se 2 Se eee. ee + भितं * 7 क - - 7 कै ॥ ११ e = { ra hn al «+ ae ee > Tee + ॥ ॥ i) # १३३ १ च १२९५१११३ ११३११११३... षि क ra * । aa oe 2 १९ 7 Petre rEPeratyegerv te क + ॐ ^ 4 च ++ bee ४-१*.५ da + s ५१ - wearers : aii et चै (+भ) Pag) 8 ‘ LP at Ps 4 at a च TF ३११३. + ३१३१ J] Vf) SAS? 4, ग + । id Te 2: Yer "कथ +) "६ च iu a a ax Live ea ११ क ` A 1 e AAs ११. @ FADD TTA A ROA Oe ee ११११३१४३.) > ॐ क =$, ; ५ च+ कूर taht 146 ms प evan fC. ooh A! ३ an १ BOE Oh bd bee Np AT {१,८५.० ६१ ११९११११३ 4. (क ie LZ १ ११ : [नि > # च « - 4 # a कै # . [म 4 ११.१६ | j SS ° ५१३०१ ४ ३१. yy pw चं es # १०१ 2 भभ Sie : J," ११.०१ चि, ९.०० प १५ ११ 0१५ (19 ie el te ae a} . tcl ध a 4 \) - ¢ ‘ ies ‘ ‘ १ । + = 4 a * at ४ ॥ ~~ १११६ eS rave | क्व +» TAA ५०.४१ ५.३१ verve f, +. A+ 4 ५ 2 (~ 4 ०१११ a> १1१. Ot rata iy +} shetty bt | 9 a? sa é P | Pa P, a bad # 4 4 । क. ॥ [ ॥ 4 ॥ a = Try ere VASES VAM 1117११११. १११ oe BPS a ae arr erileere al ८) A RU) ere Pek LD ett OATHS ४५१११११1) tO eee aes ४ 0 क Potty tate १1११।११।११, CETL EY ONE 9 i tet a REE, eaten lah Va wens eta d + ३१, + ee ey १५.११. १.१ ग ११६) न ह च 29 ॐ # १.0 ak aD We eee eet te nh iat bere (Aus i hy + १११. J ११४३१२१६. अ, 7 oP My PA AL “ ae 8 WA गोपि A wr A, ५४ as I A ५१११ i ry a . A WY i" a । ऊ . = a » 4 0 * # ‘ J ‘de * J im) ¢ a) ie ५१५५ ॥ ५६, ae ॥ 9 च ? ‘in A भ ॥ १ ११. Awe: pad % + # ‘ft < ! > 11 awi fed + 0 IA A ५१ 6, ae UF a 3% : 7) 18. ४ क, ४ ^ १1११ १११८, ११00 01910 .^ 4.4 aa hed win y rae १) 8)» ows teat J १११ Ate de ied te ml. © aay i ~ F r favtlar Sales La * OX iv ४५ aN AL J हि कणि) AS (० ०११ ॥ + AN ‘ | ^ ; | 4 PUP RADA oe ee 4४१५१. < YF ध ॥ ‘ rhb rs AY AS PARR ER ON AVA eee ‘le (47 क च" Wee DAY ee Se 4/ (१.०१ तथे aoe J AN Aiea) ) ४११११५१८ ०११0 Neo भ ०११९. १ ^. ५१५४} १ 04 # १३११३३४३ ३. ३९१ # 4 « Vit. 0, ~क, १ |). भ 7 # ३.१ १११२१११ क ay te "१ ३ a A? As, 4६ \' ५ ates ५ er at ११ >) ११ ५ a1 ® ३१.५० vA tc Md र) हक ee A ४ | 4 ~s ए Af १ ११११११,.१६११.१५५ eS es 0 Cer y ek ay 4 "1 thet A ॥ प ^ त J AJ 145m . cae (ei Mi Se Ee ieee pt a di Aa त Ms ARAN ny ane (८: १ 2.4 AVA Pi ११, Fi ae = ४ ” 4१५५. Sis iv’ iP? A ११ vy a a ब्‌ 7 is =" Ae ५ he 4 ११११ + * , ies 1 fl ॥,११ ८०५३२ “i १११ i) 94, १९३, OA व ^ भि ५११ Oy J १, in “) te ren 9 Ane a, 9 | ey न pin ५ >» १, a» ३ । P "A कणि १. ह ¢ ऋ; 1) क Py र. च ~~ 1 j A ae १६५१ ३५ (५.९ ६४ ह ray ie Delve ११ ह rie Pty hb wave ue rit: ere WA AY, x (4 EOS, 4१9३१६८६. ie ie ees ay Way क 11111११ १41 ea ie on (110 hs च 2 » /. oe 5 ॥ \ "4 ' are ४ At AD ।१ १. +. त rere, च Oy, ep १६ 4s" । ut । +" f न ef r wre uf vs “३४ म AZ itd oat चद्‌ ~ १११. क Ve) १ ०१३ Gre 5 Se A | ॥ + ओः नव वी te eee ४. oe i 4 , me) 4 ३१ Le a a ॥}॥1 nar १५१ vive ११ edd AMA ae Ae ‘ Ne 11021140 se 14111401. 120 444 OD re ty iV hone ye -_ J ॥ x + ५१ - हि ; hg A ॥ » $ ot it ॥# # ३ . x) 4 { 4 कि) i laws # ~~ क्क कु (^) त 4 ae See ast 1 ~~ ह+“ eo eo 8 ~¢ Pt xn é Ps Py # ‘hs 4 ¢ क ~~ « a । } । २५ "प eer CAPERS | | | beh mit Ge + दि 12 hee + १. - ॥ ‘ [९ 4 4 send ten Neer 4 [न aa Ve" १ 4 Se « fa 4 On Ag ee te", i (1 ११ क [नि ee oe c ति 1 भवी) ~ Lo --4 ny ater" क~ ११ अकि > कन “ 4 175 ta a १ ध “sein ॐ च+ mt oe are = Sighs Lave yo ag orf च + ete १६. "ऋ ® । ॥ + 1141 it = a eT THE LIBRARIES COLUMBIA UNIVERSITY GENERAL LIBRARY [ठ een pend pence fer per pe | C=] Digitized by Google Digitized by Google BIBLIOTHECA INDICA: A COLLECTION OF ORIENTAL WORKS PUBLISHED BY THE ASIATIC SOCIETY OF BENGAL. New Serres, Nos. 189, 197, 201, 291 & 857. ८ Agni Puranay, A COLLECTION OF HINDU MYTHOLOGY AND TRADITIONS, EDITED BY RAJENDRALALA MITRA, LL. D. Honorary Member of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland, and of the Physical Class of the Imperial Academy of Sciences, Vienna ; Corresponding Member of the German and of the American Oriental Societies, and of the Royal Academy of Science, Hungary; Fellow of the Royal Society of Northern Antiquaries, Copenhagen, &c., dc. VOL. II. CHAP. 115 70 268. CALCUTTA : PRINTED BY N. K. SIRCAR AT THE GANESA PRESS. 1876. 972, 1P9/ अग्निपुराणम्‌ । =° <न HUG मदं SATA प्रणोतम्‌ | —_——=—000——— | खलश वङ्गदे शोयासियातिक्‌-समाजानृश्चवा ——000—— खौ राजेन्द्रलालमिवेन परिशोधितम्‌ ॥ कलिकाताराजधान्यां गरे शयन्त afer | सवत्‌ १९३१ | Digitized by Google अथाभ्निपुराणस्य दितीयखण्डस्यानुक्रमणिका | S00 धष्याये विनयः ve | खध्यये विषयः we ११४-११९ मयायाना .. ११९९ युडजयाणेमोयनचजचक्रः ८१ ११०७ TENET: +s ६४ | १६७ युदलयाणंवोयमशामारौ ,,, ११८ Ta a ० RR चिद्या vee GR ९१९ महाद्धोपाद्विननं ... ९९ | १९८ युदणया्गोयषटकस्मचि ८५ १२० भुवमकोषवणनं .. २९६ | ११९ युदजयारूवोयषष्टिसंवत्‌- १९१९ Bat fare’ -* RO सराकि “+ ८७9 १२९ कालगणनं se RE | १8० युडजयाणं बोथषोडश- १९९ युद्जयायेवोयनानायोगाः ४९ पदका , ८९ ९४ युदजयाणंवीयच्धोतिः्ा-,,. | ९४९ यद्धजयारं ोयषड्जि"न्‌- सारः ० ४६ पदकन्नानं seer OR १९५ Beara वौयनानाचक्राकि ४ | serait, १९९ य॒ङडजयाखुवोयनचवनिशयः ५५ मन्तोषधादयः vee € १९७ युडजयाण वोयनानाबलानि ५९ | १४१ युद्जया्ं वोयकुलिका- ,.. १९८ युदजयाणं वोयकोग्चक्रा ६१ करमपुजा ... ९४ ९९९ Gama वोयञष्यकाण्डः ९२ | १४४ युदयारंदोयक्लिका- ... १३० युदजयाण्वौोयमण्डलं ,.. ९४ पूजा ,,, ९७ १९६९ युडजयारंवोययकरादिः ९९ १४१ मालिनोमन्त्रादिन्यासः १०९ १९२९ युदजयथाश्वोयसेवाचक्र ९८ १४६ अटाटकदेवौ vee १०६ ११३ युदजयाणवोयमानाबलानि of १४७ लरितापूजादिः .. १०९ १९४ युडजयणवौयने aay. १४८ सङ्ग1विजयपुजा .. १११ विजयविच्या + ०० | १४९ अथुतलचकोटिडोमाः १११ १३५ सुदयारुवोयसङ्गामविजय- | १५० मन्वकाराखि vee ११४ विश्या ... ८ । १४५९ वशेतरधघणाः veg ११७ 322603 २ ` अधाम्निपुराणानुक्रमणिका। अध्याये विषयः शठ १५२ ग्ददस्थरत्तयः ` ... १५९ ब्रह्मचय्येश्रमः vee १९० १५४ विवादः ... UR १५५ स्ाचाराध्यायः ... १२४ १५९ zara: vee १२८ १४५० प्नावगण्यौचादिः ... १३० १५८ खावाद्यग्यौचं ... १३४ १५९ असंखतादिश्योचं , ,,, २४१ १९० STAN Qa: Jae, UBR १९१ यतिधम्मः ०. ९४४ १६९ Waa ,,, १४८ TER ATS RST: ०० १४० १९४ नवग्रष्ोमः vee १५४. १९५ ` नानाधश्माः ... URE १९९ वणधम्मयः vee १५९ १९७ यूतलरूकोटिदोमाः १६१ १९८ मशटापातकादयः .. ९६६ १९९-१००- १७१-१७२- > प्राथशित्तानि ... १७? १७३.- १७४ १७४ व्रतपरिभाषा ... LER १७६ प्रतिपद्व्रतानि ... १९९ १७७ दितोयात्रतानि eos २०५ १७८ इतोयात्रतानि ses ROR १७९ चतुय व्रताति ,,, Ree १८० पञ्चमोत्रतानि ,., १0७ ९८१ वष्टोत्रताजि ,० २०७ १८२ सप्नमोत्रतानि - ,,, Rou १८३.६८४ अटमोतरतानि roe Ree अध्याये १८५४. AoE ९८७ Yaa ९५८९ १९० १९१ १९९ १९३ १९४ ९९४ १९६ विषयः ve नवमोत्रतानि vee २१३ दशमेत्रतानि ००० २९१५ रकाद्शोत्रतान ,,, BLE दाद्‌श्टोत्रतानि see २१७ FAME AG ... २१९ अण्डद्ादशोत्रतं ... २९१ जथोदगश्तत्रतानि ... २९९ चतुदंभौत्रतानि ... २९३ श्षिविराचित्रत soe ९२५ अण्याकपु णिमादित्रतं २२६ वारव्रतानि ०,, २२७ नसत्रत्रतानि ree १२८ दिविसत्रतानिं ,,, २३१ मासव्रतानि vee २३३ नानाव्रतानि woe २३५ दौोपदानत्रतं ` .., २३६ नवय दाचनं ,,. २३८ एष्याध्यायः vos २४० नरकखदूपवणनं ,,, २४३ मासोपवासव्रतं ,,, ९४३ भोखपञ्चकत्रतं oo २४८ WAU ATG oe २४९ कौम्‌दन्तं vee २४२ व्रतद्‌'नादिसमच्यः we. २४३ दानपरिभाषा ., २५५ मडाद्‌ानानि vee ९६१ नानादानानि oo २६५४ मेद्ानानि ve २७० अथाम्निपुराणानुक्रमणिका: ३ ध्याये विषयः re २१३ श्थोदानानि vee २७९ २१४ AAA a J oe २७७ २१५ सन्धाविषधिः . २८२९ | २१६-११७ गायवौनिवेाषं ` ... २८७ श्ण राजाभिषेकः , २९१ २१९ अभिषेकमन्त्राः oy २९४ २९० ए च विजयसडायसम्यत्तिः वअनुजोविषत्तश्च ., ३०२ २९१ दुगं सम्यस्षिः .. ३०६ २२२९-२ «| . २२४-२९५- PUTT T . ३०९ २२९- २९० युदयानजा ... ३९९ रर SHAT: .. ९३० | २९२९-२ “| शकुनफलं ० ३९१ ९३१ ९६९ याव्रामण्डलचिन्तादिः RRQ ae 7a’ ,,, ३४५ २३४ प्रात्यदिकराजकमे ... QUT ९२३५ रशदौचा ve ३४० १९९ Rare » ३५७ २३० रामोक्तनीतिः oe RUE २३८ regrets ,,, ६६१ २६९ दादशराजमण्डलानि i सन्िचिप्रङादयश्च। .. २९९ २४० सामाद्युपायाः ,,, ९७० , , ROE २४१ राजनीतिः ॥ अध्याये विषयः ष्ठ VBR पुरुषलच्तशं ३२८४ १४३ Maa ac¢ २४४ अयुघलचणं .„ ८७ २४५ रत्नपरोचा ves ३९० ९४९. वास्तुलक्षणं vag RER ee पुष्पादिपूजाफलं ... २९५ २४८-२४९ ष ९४५०-९५१ । ween ९९६ ९५२-२५२ व्यवहाराः ai Bes ९५४ दियप्रमाखानि ४१६ २४५ दायविभागः vee ४२१ ९४९ सौमाविवादादिनिरयः ४९५ ९४० वाक्पारुष्यादिप्रकरणं 8३२० ९४८ we fears vee BRE १५९ यञुविधानं ves ४४७ ९९० सामविधानं vos ४५१ ९९१ अथवेविधानं wee ४१८ ९९२ उतपालभ्रान्तिः ,,, ४९१ २९३ देवपुलावैश्वदेवादिबलिः ४९४ ९२६४ दिक्पालादिललानं ,,, ४९७ ९९५ विनायकल्ञानं ,,, ४६९ २५६ मादेष्वरख्लानलच्कोटि- .. शमादयः ,, BOR १६७ मोरालमाविधिः ,,, ४७४ २९८ दतरादिमन््ादयः ,*, ४७८ Digitized by Google अग्निपुराणं । अथ पञ्चद शाधिकशततमोऽध्यायः । orn गयायाबराविधिः। सम्बिरवाच | उदयतधेद्यां यातु(*) are mat विधानतः । विधाय कापटौषेशं ग्रामस्यापि wefan ` wat प्रतिदिनङ्च्छेत्‌ संयता प्रतिग्रहो | च्टहाचलितमात्रस्य गयाया गमन प्रति।॥२॥ स्रगारोहखसोपानं पिद्धणान्तु पदे पदे । बरह्मश्चानेन किं काथः ate acta fa nae fa कुरङ्चे चरवासेन यदा(९) gat गयां ब्रजेत्‌ | गयाप्रात सतं ष्टा पिद्धृणासुत्‌सवो भवेत्‌ ॥ 8 ॥ पद्धयामपि जलं wer garg faa दास्यति। AWAMA WATTS Wes मरण तथा॥ va धासः पुसां Feat मुक्तिरेषा चतुव्िधा | काठन्सन्ति पितरः; ya नरकाद्वयभोरवः ॥ ९ ॥ गयां यास्यति यः पुतः सं नस्त्राता भविष्यति | सुणडनच्योपवास ख aaa विधिः ॥ ७ ॥ a कालादिगंयातौथं दद्यात्‌ पिण््ांञ्च fram: | प्चश्रयनिवासौ च पुनात्यासप्तमं FAUT ९ WH fafa Ge, He, Go, Ro, Ho Ty २ यदि LA He, Me, We FT ( 2 oe ae श्‌ गयायाचाक्थनं। (१११५ ATE! weaTE च awra(’) गयायां खतवासरे | Wa मातुः waa areas पतिना सह ॥ ९ ॥ पिज्ादिनवदेवत्य' तथा etenead | प्रथमे दिवसे खायात्तौथं द्यत्तरमानसे ५ १०॥ SUL मानसे पुण्यं आयुरारोग्यघबये | सव्वीघौघविघाताय(र) era gare विमुक्तये(र) ॥ ११ ॥ सन्तप्यं देवपितादौन्‌ खात्‌ पिण्डदौ भवेत्‌ | दिव्यान्तरौक्षभौमस्थान्‌(*) देवान्‌ सन्तपयाम्यहं ॥ १२ ॥ दिव्यान्तरौक्षभौमादि पिद्टमाज्रादि तपेत्‌ | पिता faatagaa aaa प्रपितामहः ॥ १३ ॥. माता पितामहहौ चेव(५) तथेव प्रपितामही | मातामहः प्रमातामहो हदप्रमातामदः(९) ॥ evn तेभ्योऽन्येभ्य(°) इमान्‌ पिण्डानुद्धाराय ददाम्यहं | St नमः सव्यदेवाय सोमभोमन्नरूपिणे(*) ॥ १५॥ जोवश्क्रशने खारिराहकेतुसखरूपिे | उत्तरे मानसे खात(«) उदरे त्स कलं कुलं ॥ १६ ॥ aa नल्ा(*०) व्रजेनमौनो नरो दक्तिणमानसं(*९) 1 १ न्बषटकारु val चेति we, go च । Bo qi: | र्‌ स्वघोघविनाशायेति खर; Fo, Re Fl 9 तेभ्यस्तेभ्य इति Wo, Ho च| ३ स्लानं सवेविमृक्तये इति we | ८ सोमभोमखदूपिे इति च०। ४ दियान्तरीचमान्‌ मौमानिति ग०। < Qa fat क०। ५ माता मातामरी चवेति कर, Go, १५० Ud द्धा इति Teo | To, Ro, Mo च| १९ ततो दचिशमानसमिति ae, घ० € दद्परमातुकामद इति Ho, To, Re, He, We FI [११५ अध्यायः। अग्निपुराशे z afat मानसे खानं करोमि fraaaa(’) ॥ १७॥ गयायामागतः खग" यान्तु मे पितरोऽखिलाः | are पिण्डन्ततः क्रत्वा सू' नत्वा वदेदिदं ॥ १८ ॥ at नमो भानवे भक्रे(र) भवाय भव मे विभो। भुलिसुक्तिप्रदः सव्वपिढणां भवभावितः ॥ १९ ॥ कव्यवालानलः सोमो यमचेवायमा तथा | अग्निष्वात्ता वहिषद्‌ श्राज्यपाः पिढदेवताः ॥२०॥ QTM महाभागा Fant charg | मरोयाः पितरो येच माढमातामष्टादयः।॥२१॥ तेषां पिश्डप्रदा तामा गतोऽस्मि गयामिमां | उदौव्यां Feiss देवषिं गणपूजितं (२) ॥ २२ ॥ नाम्ना कनखलं ata fay लोकेषु fag | faatat प्रौतिजननैः पापानाच्च WATT! ॥ २३॥ लेलिहाने दा नागे रच्यते चैव नित्यशः | aa aiat दिवं(*) यान्ति क्रौडन्ते मुवि मानवाः ॥२४॥ फल्गुतौध' ततो गच्छेन्महानदां feat) ` नागाच्जनाहनात्‌ कूपादटाद्ीष्तरमानसात्‌ ॥ २५॥ एतद्‌ गयाशिरः (५) प्रोक्त फलगुतौयं' तदुच्यते । PULAU ATT सारात्‌ रारमथान्तर ॥ २६ ॥ ९ करामि fara इति ate | ४ तच ear दिवमिति ज०। २ भानवे Ta दति So । ४५ wen मयाभिर इति खर Se, ३ देवभिंगशसेवितमिति घम, जन्च। दन्च। देवतागणसेवितमिति भार | ४... TATA ATH AA | [११५ wearas | यस्िन्‌ फलति चौर्गौष्वौ कामधेनुजलं महो । efecarfea यस्मात्‌ फल्गुतौथं न फल्‌ गुवत्‌ ॥ २७ ॥ RAYA नरः WIA CEI देवं गदाधरं | एतेन fa a पथां रणां सुकतकारिणां॥२८॥ षथिव्यां यानि तोर्यानि आसमुद्रात्सरांसि च । फल्‌ गुतोय' गभिष्यन्ति वारमेकं दिने दिने ॥ २८ ॥ फल्गुतीय तोर्थराजे करोति MARTA | firs, wt ब्रह्मलोका पत्ये आतनो भृक्षिसुक्तये ॥ ३० ॥ ल्रात्रा जादौ पिण्दोऽथ नमेवं पितामह | कलो माहेश्वरा लोका WI टैवो(\) गदाधरः॥३२१॥ पितामद्ो लिङ्गरूपौ aaa मदेश्वर | | गदाधर बलं काममनिरं नरायण(२) arn ब्रह्मविष्णुगसिहाख्य वराष्टादि नमाम्यद्टं | ततो गदाधर दृष्टा कुलानां शतमुच्रेत्‌ ॥ २२॥ धर्मारण्य fadasts मतङ्कस्याखमे वरे | मतङ्गवाप्यां Tara area पिर्डदो(र) भवेत्‌ ॥२४॥ मतङ्गे सुसिचवेशं(*) नत्वा चेदसुदौ रयेत्‌ | प्रमाणं Saar: सन्तु लोकपालाख साच्तिणः॥ २५॥ मयागत्य मतङ्गेऽस्मिन्‌ पिद्ुणां निष्कतिः कता | खानतपणयादादि्रद्मतीयऽय(५) ATH ॥ ३५ ॥ १ Wat Sa ta |e, गर, चर, १ alec: पिष्डट्‌ दति wo | wom | व ४ मतङ्ग we सिद्धेशमिति ate | र नारायणमिति Po, मम, Go a | ४ AMA aia So 1 [११५ श्रध्वायः। अग्निपुराणे ५ ACHAT ATE कुलशतोदतौ | महाबोधतस ABT धर्मवान्‌ BUATHRATH ॥ २७ ॥ aaa agacfa(’) खानं कुय्यीदयतव्रतः(र) | खानं awatena®) करोमि awazaa ॥ २८ ॥ पिद्धणां ब्रह्मलोकाय ब्रह्मषिगणसेषिते । तर्पणं swag पिण्ड प्रदद्यान्न प्रसेचन(*) | HATS वाजपेयार्थी ब्रह्मयुपप्रदिणं ॥ ze ॥ णको सुनिः कुश्धकुश्ाग्रहस्त आम्रस्य मूले सलिलन्ददाति | srara fant: facta Zar एका frat दयथेकरी afear ॥ ge ब्रह्माणच्च नमस्कत्य कुलानां TAFRTT | फलगतौर्यै Masts खाता देवादितपंणं ॥ ४१॥ क्रत्वा ae सपिर्डच्च गयाशिरसि कारयेत्‌ | पञ्चक्रोशं WAAA क्रो यमेकं गयाशिरः ॥ ४२॥ तच पिण्डप्रदानेन कुलानां शतसुदरेत्‌ | सुरण पद्‌ ATS महादेषेन धोमता ॥ ४२॥ सुण्डष्ष्े शिरः साक्षाद्‌ गयाशिर उदाद्तं | १ ब्रह्मसदसि इति Wo, Ao, To, सोयं इति qo | Be F | ४ तपंश्ाडृष्टत्‌ पिष्डप्रदश्चापि प्रस- २ मयाग्येत्यादिः, era कुयोश्तव्रत वनमिति wo, wey! तपेणत्राड- इत्यः Uso पुसतक मास्ति। wa freaneqrase qa fire मम, ३ ब्रह्मसदस्तोयं tia we | ब्र्मशिर- घण, Fo, Bo च। ६ गयायाचाक्थनं | [ ११५ अध्यायः) wag गयािरस्तत्र फल्‌गुतोर्थाय मं(*) छतं ॥ ४४ ॥ THA तत्र वहति पिदटणन्दत्तमक्चयं | Sat दशश्वमेधेतु EE देवं पितामह ॥ ४५॥ CANE नरः सषा नेह भूयोऽभिजायते ! शमौपच्रप्रमाणेन fow ear गयाशिरे(९) ॥ ४६ ॥ नरकस्था दिवं यान्ति खगा मो्माप्र युः । पायसेनाथ पिष्टेन शक्लना चरुणा तथा ! 8७ ॥ पिण्डदानं away गोधूमेस्तिलमिधितेः | faw दत्वा रुद्रपदे कुलानां शतसुहरत्‌ ॥ ४८ tt तथा विष्णुपदे arefawet हयणमुक्तिक्तत्‌(*) | पित्रादौनां wage खामान(*) तारयेत्ररः ॥ ४९ ॥ तथा ब्रह्मपदे खाद्ौ(५) ब्रह्मलोकं नयेष्िटन्‌। दक्िंणाग्निपदे तदद्राहंपत्यपटे तथा ॥ ५० ॥ पदे वाहवनौयस्य Aral aang लभेत्‌ । श्रावसथ्यस्य Weal’) CIT च गणस्य च ॥ ५१॥ श्रगस्त्यकात्तिकेयस्य All तारयते कुलं | श्रादित्यस्य रथं नत्वा) कणीदिलत्यं नभेब्ररः ॥ ५२ ॥ १ फलमतोथोत्रयमिति a>, घ०, se, ४ ब्रह्मपदे Aafafa we Wo च| ६ वर्णस्य चेन्द्रस्येति Se | र पिण्ड दश्चाद्रयाशिर इति ज०। WAV चेन्द्रस्येति क०। खाव- ६ पिष्डदः कुलमुक्तिरृदिति qo, ज० च । सथ्यस्य॒ सेन्दरद्येति He | पिष्ठदो छयतिमुक्तिरदिति घर । ७ रथं aE fa ao, wo FI ४ खाद्मनति Se | १११५ अ्रष्यायः। अग्निपुरासे ॐ कनकेशपदं नत्वा गथाकेदारकं नमेत्‌ t सवंपापविनिसुक्तः पिन्‌ ब्रह्मपरं नयेत्‌ ॥ ५३ ॥ . विशालोऽपि गयाशोषं पिर्डदोऽभूञ्च पत्रवान्‌ | विशालायां विशालोऽभूद्राजयुतोऽब्रत्रीद्‌ दिजान्‌ ॥ ५४॥ कथं युतादयः wat दिजा अचव्विशालकं। गयायां पिर्डदानेन तव सव भविष्यति ॥ ५५॥ विशालोऽपि गयाशोषं पिदढपिण्डान्ददौ ततः(\) | cular सितं ta पुरुषां स्तां ख पृष्टवान्‌ ॥ ५६॥ ~ aA Aa iq | के य॒यन्तेषु चवंकः faa: प्रोचे विशालकं | अह सितस्ते जमक इन्द्रलोकं गतः शुभात्‌ ॥ you’ मम रक्तः पिता ga awaa पितामहः | TART नरकं प्राप्ता तया सुक्तौक्तता वयं ww ues a पिर्डदानाद्‌ ब्रह्मलोकं ब्रजाम इतिते गताः। विश्ालः प्राप्तपुच्रादौ राज्य क्त्वा इरि ययो ॥ yen Tate: ayaa च वरिजश्चेदमन्रनत्‌ | प्रेतैः Wa: सहातः सम्‌ PHA मुज्यते we ॥ go । खव णदाद्‌ शोयोगे कुम्भः AAT सोदकः(२)। दन्तः पुरा स मध्याङ्कं जोवनायोपतिष्ठते॥ ee i धनं WHIT A गच्छ गयायां पिण्डदो wa | afura welat तु गयायां पिण्डदोऽभवत्‌ ॥ ६२ ॥ ९ ददौ मत इति Go, Ao, wo, So, २ सार्थश्च सोदक दूति wo | Re, ज०च। ट गयाणत्राकथन | | ११५ Weare | प्रेतराजः सह परेतैमुक्तो नोती हरेः पुरं । marae पिष्डदानादामानं खपिद्धुस्तथा(९) ॥ ६२ ॥ पिदटवंशे ताये च area aaa zi गरभ्वश्रवन्धनां ये चान्ये बान्धवा BAT: ॥ ६४ ॥ ये मे कुले लसपिश्ाः प॒जदारविवजिंताः(९) | क्रियालोपगता ये च जात्यन्धाः पष््वस्तथा ।। ६५॥ विरूपा श्रामगभां ये ज्नातान्नाताः कुले मम | तेषां faut मया दत्तो हक्षय्यसुपतिष्ठतां ॥ & ६ ॥ ये कचित्‌ प्रेतरूपेण तिष्टन्ति पितरो मम | ते सवं ठधिमायान्तु पिण्ड दाने न(र) सवदा ॥ ६७ ॥ fawt eam सर्वेभ्यः Waa FAATTA! । WAAR तथा देयो Waa’ लोकमिच्छता ॥ ६८॥ पश्चभेऽङ्कि गदालोले Garay बहिमान्‌ t गदा प्रर्षालने तोयं गदालोलेऽतिपावने ॥ ge ॥ सानं करोमि Caan जनार्दन | नमोऽक्यवटायेव अरच्चयस्तर्मदायिने ॥ ७° ॥ पित्रादौ नामत्तयाय सवंपापक्षयाय च। खां वटतले(*) क्याद्‌ ब्राह्मणा नाच्च भोजनं ॥ ७ १ ॥ एकस्मिन्‌ भोजिते विप्रं कोटिभेवति भोजिता | किम्पनबे हभिर्मुञः fasut AAA ॥ ७२॥ १ भ्रेतराजेत्यादिः, खपित्‌ ` खथेत्यनाः ३ पिष्डंभनानेमेति we | पाठं wo Tae afer | ४ वडतटे इति ज | ₹ Waa विवर्जिता दति Ho | [१९६ wera अग्निपुराणे गयायामब्रदाता a: पितरस्तेन पुजिखः। वट वटे श्रं नत्वा पूजयेत्‌ प्रपितामष्ं ॥ ३ ॥ अचचयाक्नभते लोकान्‌ कुलानां शतमु्ठरेत्‌ । क्रमतोऽक्रमतो वापि गयायात्रा महाफला + Og i इत्याग्नेये महापुराणे गयामाहाव्मो गयायावा नाम पच्च रेशाधिकशततमोऽष्याथः। अथ षोडगशाधिकशतनमोऽध्यायः। OO on गयायाताविधिः) असिनिरवाच । गायजरेयव महानद्यां जातः (९) gaat समाचरेत्‌! गाया AAA: प्रातः Are frwaarygy ॥ en ware चोद्यति(९) खात्वा aeraregarer च । साविन्रौपुरतः सन्ध्यां frwerre तत्परे ॥ ९ + अगस्यस्य पटे कुधादोनिष्ार प्रविश्य च | निर्गतो न पुनर्योनि प्रविशेग्धच्यते भवात्‌(९) ॥ ३ ५ १ प्रात इति we | ९ awa भयादिति wo, भण च| २ awe सरसोति ae | ( २ ) १० गयायाज्राक्थंनं। {११६ अध्यायः! बलि' काकशिलायाच्च कुमारञ्च नभेत्ततः(\) | सखर्गदाथां MaARW वायुतोयऽघ पिण्डदः ॥ ४ ॥ भवेदाकाशगङ्ायां कपिलायाञ्च पिण्डदः । कपिलेशं शिवं नत्वा रुक्िकुण्डे च पिण्डदः ॥ ५ ॥ mae च कोटौशं नल्वाम्रोघपदे नरः(र) । गदालोले वानरकं गोप्रचारे च पिश्डदः(९) ॥ & ॥ नला गाव बे तरण्यामेकाविं गकुलोदधतिः । खादपिर्डप्रदाता(*) स्यात्‌ क्रौञ्चपादे च पिर्डद्‌ः(*)॥ on तीयायां विशालायां fafacrara पिर्डद्‌ः। ऋणमोच्चे WIAA WAFWSY भस्मना ॥ ८ ॥ ख।(नकन्‌ Fad पापात्रमेदेवं जनाद्‌ aq | एष पिण्डो मया दत्तस्तव इस्त जनादन ॥ ९ ॥ परलोकगते मद्यमच्यस्यसुपतिष्ठतां । . गयायां पिढरूपेण खयमेव जनान: ॥ १० ॥ तं दृष्टा was सुच्यते वे ऋ ए चयात्‌ | मारकीर्डयेश्वर नत्वा नमेदरपरेश्वरं नरः(९) ॥ ११ ॥ 5 Bada सदेशस्य धारायां पिण्डदो भवेत्‌ । ९ नमेन्नर इति Go, No, qo, Se, ४ We पिण्डप्रदातेति we | wo च| | ५ भवेदाकाग्रगङ्गगयामित्यादिः, — -२ सखपदेऽशरद्‌ इति Go, घ° च | alent च भिष्ठद इत्यन्त ३ कपिखेशमित्यादिः, गोप्रचारे च पिष्डद्‌ पाठःक० Guat मासि | दूत्यः पाठ ग Gas नाचि | € AAR, Feat नर इति Go| [ ११९ अध्यायः। अग्निपुराण ११ (र््टध्रकूटे waa]e धौतपादे च पिण्डदः ॥ १२ ॥ पुष्कारिण्छां acara taal त free: | प्रभासेशत्रमेद्‌ प्रे शिलायां freee WaT weg tt दिव्खन्तरोक्षभूमिष्ठाः fare बान्धवादयः । प्रेतादिरूपा सुक्षाः(र) स्थः free त नीयाख्िलीः॥ १४ ॥ wraaa प्रेतशिला गयाशिरसि पावनौः। प्रभासे tages च पिण्ड दस्तास्येत्‌ कुलम्‌ ॥ ey वसिषटेशत्रमस्कत्य ace पिण्डदो भवेत्‌ । गया नाभो .सुषुम्‌ णार्यां महाकोष्टपाख पिण्डदः ॥ १६॥ गदाधराम्रती सुण्डण्षटं देव्याश्च सत्रिधो | सुर्डष्ष्ठ.नमे दादौ स्ेज्रपालादिसंयुतम्‌.॥ vot पूजिताः भयं न स्वादिर्षरोमादिना शनम्‌ | ब्रह्माण्च नमरत्य ब्रह्मलोकं नयेत्‌ कुशम्‌ ॥ ६८॥ सुभद्रां बलभद्र प्रपूज्य य॒रुमोत्तमम्‌ | सक॑कामलमायुक्षः Here नाकभाक्‌(२) ॥ १९ ॥ wala ane तदम्रे पिण्डदो wag । माधवं gufaat च देवो वे मानिको(*) भक्ैत्‌ wre ॥ Aaa प्राच्यं मौरी" agare सरसतौम्‌ | पित्‌ नुजुत्य SUA भुक्तभोमोऽ Wr: ॥ २१॥ १ सवकामसमायुक्ः HVAT a लोक- ३ कुखमडइत्य लोकमागिति म” rol भामिति पाठो we qaastuatsta | वशिष्ठ ufaanfe:, कुलमुद्धत्य AA र प्रतादिरूपमक्का दति ०, ae, qo, गित्यकः पाड we पुख्ठक नाखि, aa ०, कन्द) | ४ देववमानिक इति °| १२ गयाणताक्चनं। [११६ अध्यायः। हादथादित्यमभ्यच्यं वङ्धि रेवन्तमिन्द्रकम्‌ | रोगादिस॒क्षः खगो श्याच्छोकपर्दिविनायकम्‌ ॥ २२॥ प्रपू्य का्तिकेयश्च निविश्नः सििमाग्रयात्‌ | सोमनमाघच्च कालेशङ्केदारं प्रथितामष्म्‌ ॥ २३॥ सिद्े्वरख्च सद्रेशं रामेशं ब्रह्मकेष्वरम्‌ | अष्टलिङ्गानि शुद्धानि पूजयित्वा तु(९) ware २४॥ नारायण वराषश्श्च ares नमेच्छिये। व्रह्मविष्णुमे णाख्य जिपुरभ्नमथेषदम्‌ ॥ २५ ॥ सीतां रामश्च TAS वामनं BATES च । सवेकामानवाप्नोति ब्रह्मलोकं नयेत्‌ पिन्‌ ॥२९॥ देवैः we’ सम्प्रपूज्य देवमादिगदाधरम्‌ | ऋ णश्रयवि निसुक्षस्तारयेत्‌ सकलं कुलम्‌ i २७ ॥ टेवरूपा शिला yer तस्माहेवमयो शिला | गयायां नहि तत्‌ स्थानं यत्र ate न विद्यते ॥ २८॥। aaa पातयेत्‌ पिण्ड तच्रयेद्रह्म शाश्वतम्‌ | RAAT फल्गु चरौ" च प्रणम्याङ्ार केश्वरम्‌ tl २९ ॥ मतङ्गस्य पटे ATS भरताश्रमक भवेत्‌ | Sadly कोटितौयं यत्र पार्डशिलात्रदः ॥ २० ॥ तव स्यादग्निधारायां मधुखरवसि पिण्डदः | रुद्रे शं किलिकिलेशं नमेदुहिविनायकम्‌() ॥ ३१ ॥ पिण्डदौ धेनुकारण्छ पटे धेनोननंमेश्च गाम्‌ । ९ पूजयिलायेति we, wo, es, ९ wae िविनाथकमिति we, a, ae GT! Bo च| wae, इविनायकमिति Bo, ११६ अध्यायः। अभ्निपुराशे | १९ सर्वान्‌ पिद्टस्तारयेश्च सरस्त्याच् पिर्डदः ।, २२ I सम्भासुपास्य WAS नमेषवौ' सरस्रतौम्‌ | विसन्धााकष्ठवेदिपरो बेदबेदाङ्पारमः ॥ ३३ ॥ गयां प्रदक्षिणोक्कत्य गयाविप्रान्‌ प्रपूज्य च । श्रत्रदानादिकं Ta क्षतन्तव्रा चयं भवेत्‌ ॥ २४॥ स्तुत्वा सम्प्राधयेदे वमादिदेवं गदाधरम्‌ | गदाधर गयावासं पित्रादौनां गतिप्रदम्‌ i २५।। धन््ाथेकाममोक्षार्थं' योगदं प्रणमाम्यहम्‌ | देषन्दरियमनोबचिप्राशाष्कारवजिंतम्‌ ।॥ २६ ॥ नित्यश अद्ियुक्त(९). सत्यं ब्रह्म नमाम्यहम्‌ ॥ ` आनन्दमयं देवं देवदानववन्दितम्‌ ॥ २७ ॥ देवदेवो ठन्दयु क्र सवेदा प्रणमाम्यहम्‌ | कलिकलमषकाला्तिंदम नं (९) वनमालिनम्‌ ॥ ३८॥ पालिता्खिललोकेशं(९) कुलोचर शमानसम्‌ | व्यक्ताव्यक्तविभक्तासमाविभक्षामानमावमनि।॥ २९.॥ खितं खिरतर(*) सार वन्दे घोराघमदनम्‌(*) । गतोऽसि गयां देव पिठकाययं गदाधरः 11 ge ॥ लं मे Aral भवाद्येह अक्णोऽहसणश्रयात्‌ | १ नित्यद्दवदिय्ृसिति च०+क०च। ४ स्दिततरभिति ae, च, Go च| ९ कालार्भिनाद्मनमिति we! काशार्नि- ५ वन्दे इमरिमदनमितिड०। बन्द दरनमिति ae, Go, घ, लन च। संसारमदं मसिति we | a Ulfearfewcanfafa ae | 7 १४ खादइकल्यकथन | [ ६१७ अध्वायः) सात्तिशः aq A Sal ब्ह्मजानादयस्तथा + ४१॥ मया गयां समासाद्य fost निष्कृतिः कता | गयामाहामपठनाच्छाडादो ब्रह्मलोकभाक॥ ४२॥ पिद णाम्तयं खाडमश्षय ब्रह्मलोकदम्‌ | इत्याग्नेये महापुराणे गयामादह्ाकय गयायाता नाम षोड शाधिक्रशततमोऽष्यायः। अथ सप्रदटशाधिकिशततमाऽष्यायः। ----ू>७-ॐ o> ASH, | अग्निरुवाच । कात्यायनो सुनोनाच यथा खाङ तधा ae | गयादौ खाच कुर्वीत सङनक्रान्त्यादौ विशेषतः ॥ १॥ काले वापरपन्ते FAA ऊष्वैमेव ar | ware च पदक च(\) पूरवेद्यखच निमन्येत्‌ । २ ॥ यतोन्‌ WEVA वा ज्ञातकाच्छोत्ियान्‌ दिजान्‌ | अनवद्यान्‌ Halas शिष्टानाचारसंयुतान्‌(२९) ॥ २ ॥ ‘ ee ० १ VATE WAY चेति wo | ९ अचारसंसछ तानिति ae, oo 4 | [११७ serra | अभ्निपुराणे १५ वव्नयेच्छितिकुष्टयादीत्र ख्क्लोयाचिमन्तितान्‌ ' खाताख्कषींसघा VAT प्राडमुखान्‌ देवकन्यणि ven उपवेशयेच्चोन्‌ पिक्रारीनेककसुभयत्र वा | एवं मातामहारेख शाकेरपि च कारयेत्‌ ॥ ५॥ तदङ्क ब्रह्मचारो स्यादकोपोऽल्लरितो ख्दुः(*) | सत्योऽप्रमत्तोऽनध्वन्यो अखाध्यायसखच(\) वाग्यतः ॥ ६ ॥ सर्वौ परल्िमूभैन्यान्‌ पचेत्‌ प्रये तथासने । दभोनास्तौय दिगुणान्‌ पितरे देवादिकञ्चरेत्‌ ॥ ७ ॥ विश्वान्देवानावाडहयिषये एच्छेदावादयेति च | विश्दैवास sare faatata यवान्‌ जपेत्‌ ॥ ८॥ विश्वे देवाः rudd पिदनावाहयिष्ये च । ए च्छेदावायेत्यक्तं उशन्तस्त्वा समा श्रयेत्‌ ॥ ९ ॥ तिलान्‌ विकौखखाध जपे दाय'गन्बित्यादि पितकरे। aufaa निषिष्धेहा शत्रो देवोरभि टचा ॥१०॥ यवोऽसोति यवान्‌ दत्वा पिरे सवच 3 तिलान्‌ | तिलोऽसि सोमदेवत्यो गोसवो देवनिश्धिंतः। waafe: va: सखधया freq लोकान्‌ state नः सखधा। इति । | खच तेति etary’ पाते हेमेऽथ राजते ॥ ११॥ WSC वा खङ्ग वा पशपत प्रदक्चिणम्‌ | देवानामपसव्य तु fre णां सव्यमाचरेत्‌ ॥ १२॥ ९ अनरितोऽ्युजरिति we | खर, घर च। २ सव्ये प्रपत्रोऽनश्वन्यो अखाध्यायेति १६ खहकस्यकथनं | [११७ शअ्रध्यायः। एकेकस्य एकेकेन सपवित्रकरेषु च । यादिव्या रापः पयसा सम्बभूवया wafcer उतपाधिं- वयाः । हिरण्वणी afsaren न आपः शिवाः संश्योभाः सुषवा भवन्तु ॥ | fam शेवा एष aise: खाहा च पितरेष ते ॥ ees सखधेव' पितामहाः संखवात्‌ प्रथमे चरेत्‌(\) | पिढभ्यः स्थानमसौति न्नं पात्र करोत्यधः ॥ १४॥ WA गन्धपुष्यधुपदौपाच्छादनदानक। ताक्तमन्रसुचत्य Tea करिष्य च ॥ १५॥ कुरुष्वेत्यभ्यनुन्नाती जुहुयास्ाग्निकाऽनले | अनम्निकः fuse’) सपविते तु aT: १६॥ waa कव्यवाहनाय खारहेति(९) प्रथमाति: | सोमाय पिदमतेऽय यमायाङ्िरसे परे॥ Ven SANT WAIT दत्वा पात्र समालभेत्‌! पृथिवौ ते urate पिधान ब्राह्मणस्य सुखे अशते अमृतं ज्ुष्टोमि खादेति | | sae विष्णुरित्यन्ने दिजाङ्ग छवरिषैशयेत्‌ ॥ १८ ॥ अपहतेति च तिलान्‌ feared प्रदाययेत्‌ | लुषध्वमिति dare गायज्रादि ततो जपेत्‌ ॥ १९ ॥ १ शङ्ेकस्त्यादिः, प्रथमे etiam: २ अनप्रिको जणे Safar we पाठो शर Gee नालि। a खभतिक० | [ero अध्यायः। श्राहकल्यकथनं | १४ देव ताभ्यः free महायोगिभ्य एव च। नमः Sara rete नित्यभेब नमो नमः(९) ॥२० # aay wrara विकिरेदपो दद्यात्‌ सक्षत्‌ aay | गायती पूव्वेवव्नक्वा मध मध्विति वै जयेत्‌ ॥ २१॥ तपाः ख इति सम्यच्छेततप्ाः ख दति वै वदत्‌ । ओषमन्रमनुक्ाप्य सव्वमवमयैकतः ॥ २२ ॥ उशत्योच्छिटपाशं तु AAT चे वावनेजनं | द यात्कुशेषु ओन्‌ पिण्डामाषान्तेषु परे जगुः ॥ २२॥ WATTS कं पुष्या्यच्चतानि प्रदापयेत्‌ । अ्रस्षखोदकभेवाय भ्राशिषः प्राथयेव्ररः(र) ॥ २४ ॥ श्रघोराः पितरः सन्तु गोवन्रो atat wer | दातारो नोऽभिवर्चन्तां वेदाः सन्ततिरेव च ॥ २५॥ खदा च al मागब्यगमदड्देय च नोऽस्त्विति | wag नो बड भवेदतिर्धोख लभेमद्ि ti २६॥ याचितारञ्च नः सन्तुमा च याचि कश्चन | सखघावाचनोयान्‌ कुशानास्तौग्य सपवि्रकान्‌(२) ॥२७॥ स्वधां वाचयिष्ये पच्छेदगुन्नातख वाच्यतां | पित्भ्यः पितामहेभ्यः प्रपितामष्मुख्यके ।। २८ ॥ , STATS AT उच्यमानस्तथेव च । am निधिष्चेदुष्तानं ore ware eferat ॥ २९ ॥ [क क 1 SL TS SSE १ area मित्यमेब भवन्तिति इति २ water पिसर दृत्यादिः, आकयं Wo, Re च । | सयविभकानित्यनतः पाठः Wo, He, २ प्राथेे्तत इति Ho, ज०, Ho Gl पुखकडये aie ( ३ ) १८ श्रम्निपुराणे ११७ श्रष्यायः'! sore WETS Sa ASA वाचयेत्‌ | frm देवाः Maange वाजे वाजे विसजयेत्‌ ॥ ३२० ॥ आमावाजख्येत्यनुव्रज्य wat विप्रान्‌ प्रदक्षिणं | ze विशेदमावास्यां मासि मासि चरेत्तथा ॥ २१॥ watts प्रवश्यामि शरा पूवंवदा चरेत्‌ | एकं पवितरमेकां एकं पिष्डम्पदापयेत्‌ ॥ २२ k नावादनाम्नौकरण fas tart a ara fe afaua खदितमिति ataafed feo. 12 3h sufasafaaaa विसग चाभिरम्यतां अभिरताः स्म इत्यपरं शेषं पूव्ववदाचरेत्‌ |! २४॥ सपिगटोकरणं वश्य अब्दान्ते मध्यतोऽपिवा faa wi alfa पात्राणि एकम्प्रेतस्य पाचकं ॥२५॥ सपवित्राणि चलारि तिलपुष्पयुतानि a गन्धोदकेन युक्तानि(*) पूरथित्वाभिषिच्चति i acu प्रेतपात्र पितृपात्रं ये समना इति इयात्‌ । पूव्ववत्‌ पिण्डदानादि प्रतानां पितता भवेत्‌ 11 BO ॥ अधाभ्यदयिकं खाच 'वच्ये TT तु पूव्ववत्‌ | aaa पितमन्रवव्जं Gate तत्‌ wefawi ac it उपचारा ऋ जकुशास्तिलाथश्च यवरि (९) | q fare सम्पन्नं सुसम्मन्र' वटेहिजः ॥ २८ ॥ १ गन्धोदकेन सिक्तानि इति ate | इत्यः पाठां Wo Toa नाकि | Ware द्बिकमित्ादिः, अरि [ ११७ अध्यायः) ae | १९ द्ष्यच्चतवदराद्याः(९) पिण्डा नान्दोमुखान्‌ freq श्रावादहयिष्ये च्छच प्रौयन्तामिति werd ge hi नान्दौ सुखाच्च पितरो वाचयिष्येऽथ पृच्छति । मान्दौसुखान्‌ पितृगणान्‌ प्रौयन्तामित्यथो वदेत्‌ ॥४१॥ aretqara पितरस्तत्मिता प्रपितामहः | मातामहः प्रमातामद़्ो हदप्रमात्‌कामहः ॥ ४२ ॥ स्रधाकारत्र Bata युग्मान्‌ विप्रः भोजयेत्‌ । afa वच्य fae ut च ग्राम्येरोषधिभिस्तथा ॥ ४३॥ मासन्तिस्तथारण्ये (९) कन्दमलफलादिभिः। ARIAT मार्गे रयं वे शाकुनेन च ॥ ४५॥ ` चतुरो रोरबेणाथ(२) we षट्‌ छागलेन तु(*) । कूम सप्त चाटौ च वाराहेण नवेव तु ॥ vy मेषमांसेन दश च माद्िपैः area: fara: | सवत्‌सरन्तु गव्येन पयसा पायसेन वा ॥ ४६॥ वार्दोनसस्य मांसेन ठतिदादशवाधिंकौ | खक्नमांसं कालशाकं लोहितच्छागलो(*) मधं i! ४७ ॥ ARMAS वषोसु मघाखादमधाक्षय (९) | मन्ताध्याखम्निहोात्री च शाखाध्यायौ षडङ्गवित्‌ ॥ gc ठणाचिकेतः तिमधैखधद्रोणस्य(*) पाठकः | विषपणज्येष्ठसामन्नानौ स्युः पडक्तिपावनाः || ४९ ।! ९ दध्यक्षतवदयष्या tfa te, woe) ५ शखोहितच्छागक इति ao, चर, ॐ , 2 तथा aqfcfa Go, So F| Co च्‌ | । ६ बरं रोरवेशाथति ae | € मघाग्राडइमिरहाचयमिति we | ४ पञ्चकं द्‌ागरेन तु इति Go | ° Wat शसति we | Ro अग्निपुराणे [ees अध्यायः | काम्यानां कलमा ख्यास्य (‘) प्रतिवत्सु धनं zy । faa: परा हितीयायाख्तुष्यां ` धन्धकामदः ॥ ५० ॥ पञ्चम्यां प्रकामस्तु TNS अष्टाभागपि(९) | क्षथिभागो च सपम्यामदस्यामथेलाभकः ॥ ५१ ॥ नवम्याश्च THM) दशम्याङ्गोगणो भवेत्‌ | एकादश्यां TATA हादेश्यासनधाग्धकं ।। ५२ ॥ ज्ातियैष्ठा वयोदण्यां wqeare शस्तः, *) | Barat Ae सर्व्वाप्तममावास्यां समोरितं*) ti ५३ ॥ सप्त व्याधा TATA (९) खगाः कालच्छरे गिरो | WMATA: MEET इसाः सरसि मानसे। ५४॥ तेऽपि जाताः) कुरते ब्राह्मा बैदपारगाः. | प्रसिता दूरमध्वानं युखन्तेभ्योऽवसौदत ॥ ५५ ।। खाहादौ पठिते खां पूणः स्यान्रह्मलोकर्‌ | are" ware पुत्रादिः(>) पितुरश्नौवति तत्पितुः yen ततपितुस्तत्पितुः qarentafa प्रपितामदे | पितुः faatawerta परस्य प्रपितामहात्‌(<) ॥ ५७ ॥ १ कालमाष्यास्ये दति Fo, Wo | | द्या समोरिता दति we | २ चरहसाम्धपि इति Wo, गण, Go, q दब्ासंषु इति Ge, To, Go, wo °च । quaraty इति ae | च। द नवम्धां वे शफपतिरिति बज | © तेऽभिजाता इति Go, Fo च। ४ चतुद श्याश्च राखत इति Ge, . ८ कुयात्‌ सुपुजोऽपि इति wo | बन्च। | ९ तम्पितुरित्यादिः, प्रपितामहादित्यग्त ५ खतानां श्राद्धं खवाक्तिरमावा- पाठो We पुखके aie | ११८ श्रध्यायः। भारतवषकधनं | Re एवं मात्रादिकस्यापि तथा मातामहादिके । खादकस्य पठे व्यस्त स लभेत्‌ खाहकत्‌ फलं (९) ॥ ५८॥ तोये युगादौ मन्वादौ We दत्तमधाक्तयं | श्रष्वयुच्छक्तनवमो दादौ कास्तिके तथा ॥ ye ॥ ठतौया चेव माघस्य तथा भाद्रपदस्य ष्व | फाल्‌गुनस्याप्यमावास्या पौषस्येकादशगे तथा ॥ ६०॥ आषाढस्यापि दशमो माघमासस्य सप्तमौ | MTT चाष्टमो RYT तथाषाढे च पूणिमा॥६१॥ कात्तिकौ फाल्गुनो ATT IS पञ्चदशो सिता । ` सखायग्यवाया मनवस्तेषामाद्याः किलाश्षयाः ॥ ६२॥ गया प्रयागो WET च FTAA च ATT | aaa: WATTS शालग्रामो वराणसो(९) । ६३ ॥ गोदावरौ तेषु खाच यौ पुरुषोत्तमादिषु । इत्याग्नेये महापुराणे wena नाम सप्तदशाधिक- अततमोऽध्यायः | अथाष्टाद शाधिकशततमोऽध्यायः। oo WITATT । अग्निरुवाच । उत्तरं यत्‌ समुद्रस्य feasaa दधिं | Qo (| faa वष तद्‌ भारत नाम नवसाडखविस्तुतं ॥ १॥ कब्योभ्रूमिरियं खगं मपवर्ग' च गच्छतां | poe पिम UG, लभे च्ाडटतं फरभिति ao, we, २ वाराखसो इति ख, wo, च, Wo gy WoT 3 रर ` अग्निपुराणे [ ११८ अध्यायः, AVA मलयः सद्यः शक्छिमान्‌ हेमपवंत(\) ॥२॥ faay 7 पारिपाचश्च सप्तात्र कुलपवंताः। CANT कसेरख तास्जवणा गभस्तिमान्‌ ॥ २॥ नागदहौपस्तथा सौम्यो गान्धर्वस्त्वथ वारणः | रयं तु नवमस्तेषां CIT: सागरसंठतः ॥ ४॥ योजनानां सहस्राणि sare दत्िणोत्तरात्‌ | नव मेदा भारतस्य(र) मध्यभेदेऽथ पूर्वतः ॥ ५॥ किराता यवनाश्चापि ब्राद्मणायाञ्च मध्यतः। वेदस्मतिमुखा नद्यः पारिपाजरोदहवास्तथा ॥ ६7 विन्ध्यश्च नकषदाद्याः स्यः सद्यात्तापौ पयोष्णिका । गोदावरौभोमरथोक्षष्णवेख्ादिकास्तथा ॥ ७ ॥ मलयात्‌ क्रतमालादययास्िसामाद्या ASS: | कुमाराद्याः शक्तिमतो(९) fears बन्द्रभागका ॥ ८ ॥ पश्चिमे कुरुपाच्ालमध्यदेगशादयःखिताः। moe 6, इत्याग्नेये महापुराणे भारतवष नामाष्टादशाधिक- शततमोऽध्यायः। ED अयेकोनविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः। © © mn, O4 wereratie | ्रग्निरुवाच | लक्षयोजनविस्तारं जम्बहोपं समाहतम्‌ | ee १ आक्तिमा मुखपवेत दति to, कण्व, २ मव भदा भवन्धस्येति ऋण । श्यक्किमाद्चपवेत इति ज०। ३ शह्िमत इति Ge, न°, do, भा०्च। ¢ [११९ अध्यायः महादोपकथमं | २१ लक्योजनमामेन क्लोरोदेन समन्ततः ॥ १ 1 संवेश्य लषारसमुदधिं भ्रस्दौीपस्तधा fea:(*) । सप्र मेधातिथेः पुताः अ्तदोपेषख्रास्तथा॥२॥ स्याच्छान्तभयः शिशिरः मुखोद्य इतः परः। अनन्द श्च शिवः क्षेमो भवस्तत्ामवषवं ॥ ३ ॥ मथादागेलो मोमेधशन्द्रो नारददुन्द्भौ । सोमकः सुमनाः श्लो वेभ्राजा स्तनाः WAT: ॥४॥ नद्यः प्रधानाः सप्तात्र श्रत्ताष्चछाकान्तिकषु च। जोवनं पञ्चसारसख' wat वर्णा्मामकः(९) ॥५॥ arora: कुरवयेव विविंशा भाविनखते। विप्राययास्तेख सोमोऽर््थो दिलच्शाबन्िलत्तकः ven मानेनेश्ुरसोटेन हतो दिगुणगालमलः | | वपुष्मतः VA पुत्राः शाद्मलेशास्तथाभवन्‌ voi way इरितसेव जौमूतो लोहितः क्रमात्‌ | STA मानसयचैव सुप्रभो नाम वेकः ITH दिगुणो दिगुशेनेव सुरोदेन समाहतः | कुमुदश्चानलद्धव (र) ठ तौयस्त॒ बलाहकः te द्रोणः ककोऽथ(*) महिषः ककुद्मान्‌ सप्त fare: | कपिलाश्चारुणाः पौताः HUT: स्यु्रीह्मणादयः ize वायुरूपं -यजन्ति ख सुरोदेनायमाह्तः(४) | १ Sowa खत दति we | eal २ TWAT CA Go, घर खन्च। ४ Masala we | ९ HAV AG af Ge, ग०, घ, ५ पुरोदेम SHAT इति we । २४ अम्निपुराणे [ete भ्रष्यायः। ` च्योतिष्रतः HINT: Maes धे मुमान्‌ सुतः ॥११॥ Su लंवनो पेरवः कपिलख प्रभाकरः | विप्राद्या दधिमुख्यास्तु ब्रह्मरूपं यर्जान्त ते ॥१२॥ faga(’) हे मशेलख द्युतिमान्‌ पुष्पवांस्तथा । agama हरिः शे लो ante मन्दराष्वलः ॥१३॥ वे्टितोऽयं छतोटेन क्रौश्ष्ोपे म सोऽप्यथ | क्रोश्ेष्वराः दतिमतः पुत्रास्तत्रामवषंकाः ॥१४॥ कुशलो मनोम गयोष्णः प्रभानोऽथान्धकारकः। सुनि दुन्द्भिः सप्त सप्त tara निखरगाः(९) ॥ १५॥ WUT वामनचैव ठतोयबान्कारकः(र) | देवाहत्‌ पश्डरीकख दुन्दभिदिगुणो मिथः ne an होपा Slay ये शैला यथा हौपानिते तथा। पुष्कराः पुष्कला धन्धास्तोथा(*) विप्रादयो हरिम्‌ ॥१७॥ यजन्ति क्रोख्चहोपस्त दधिमण्ोदकाचतः। सं छतः शाकदोपे न इव्याच्छाकेश्वराः सुताः ॥१८॥ जलदख कुमारख सुकुमारो ATA | कुशोत्तरथो मोदाकौ टुमस्तव्रामवषकाः ॥१९॥ उदयाख्यो जलधरो रवतः श्यामकोद्रकौ । ` श्राम्विकेयस्तथा रम्यः aT सप्त निखरगाः॥ २०॥ १ Waa इति wo | fama ctf पाटो we पुरक मालि) Wo, Wo FI १२ छतोयस्षइकास्क इवि we, wo | ४ पुष्कड्ावत्यां तीथा इति we | २ कुशलश tafe, fran cen च। [११९ श्रध्यायः। मषादहोपादिकथधनं। २५ अगा मबधमानस्या(*) मन्दगाञ् feataa:,”) | यजन्ति cared a(*) शाकः चोराच्विनां ठतः ॥ २१॥ पुष्करे शाष्ठतः सोऽपि दौ पुत्रौ सवनस्य च। aerate धातकिख वषे & नामचिद्धिते(*) । २२॥ एकोऽद्विश्मानसाख्योऽ्र मध्यतो वलयाक्ततिः | सोजनानां सहस्राणि विम्तारोच्छायतः समः ॥ २३॥ जोवनं दशसाहस्र' सुरत्रद्मा च Gua | स्वादूदकेनोदधिना वेष्टितो हौपमानतः॥२४॥ अनातिरिक्षता चापां समृद्धेषु म जायते। ` उदयाम्तमनेष्विन्दोः पक्षयोः शक्तक्ष्णयोः ry it दशोत्तराणि wea") अङ्कलानां शतानि वै । sat वरिक्षयो दृष्टौ सास॒द्रौणां(९) महामुने ॥ २६ ti ` स्वादूदका बहगुणा(०) aeat जन्तुविता | लोकालोकस्ततः शैलो योजनायुतविस्त॒तः ॥ २७ ॥ लोकालोकस्त तमसाहतोऽथार्डक टाषहतः | भूमिः सारण्डकटाहेन पश्चाशत्‌कोटिविस्ररा(८) ॥ २८॥ डत्ाग्नेये महापुराणे होपादिवणंनं नामेकोनविंशत्यधिक- शततमोऽध्यायः ॥ १ खाजाग्यनधमाख्खा इति Go, wo qi ¢ ससद्राशामिति ao, Go, we | | र दिजादयद्ति कण, Go, Come | | ऽ खाद्दका इितिमुणेति ae, wo च ३ wae इति do, Bo च| खाट्दकातु इिगुरेति ae, mo च। eae दं भागविशितेद्तिश्०। खदुदकालु जिग्‌येति ae, wo च। ५ पश्चाचेति ao, Go च। ८ पश्चाद्रतकोटितिखतेति wo | & ( ४ ) अथ विंग्रल्यधिकशततमोऽध्यायः। भुवनकोषः | भ्रम्निरुवाच | france खतो भूमेः सहस्राणि च सप्ततिः। उच्छ्रायो दशसाहस्रं पातालघ्ेकमेककं ॥ १ I! waa वितलश्चेव नितलख् मभस्तिमत्‌ | महाख्यं सुतलख्धाग्रय' पातालख्ापि ara ॥ २॥ क्षष्णपौतार्चणाः शक्तशक्तरायेलकाच्चनाः | भूमयस्तेषु रम्येषु सन्ति देत्यादयः सुखं ॥ २ ॥ पातालानामधसास्ते शेषो विश्णुख तामसः। गुणानन्यास् चानन्तः शिरसा धारयन्मरीं tt ४॥ भुवोऽघो नरका AH न पतेत्तत्र वैष्णवः | रविणा भासिता vat यावत्ताक्वरभो मतं ॥ ५॥ भूमेर्योजनलक्षन्तु वशिष्ठरविमश्डलं | aaa चन्द्र लधान्रात्ततमिन्दुतः। g ॥ दिलचाद्ाधचास्ते बधाच्छक्रो दिलक्षतः। frau कुजः शएक्राज्ञोमाद्‌ हिलश्षतो गुरः ॥ ॐ ॥ शुरोिंलक्लतः सौरिक्ाततर्षयः शनेः शक्ताद्‌ wat श्यधिभ्यस्त॒ ते लोख्धद्योच्छयेण च ॥ ८ ॥ Way कोटय मदर्लीको ay ते कल्पवासिनः | [ १२८ अ्रध्यायः। भवनकोषकथनं । 26 जनो हिकोटितस्तस्मादयत्रासन्‌(*) waratea ॥ ९ ॥ जनात्तथचाषटकोटा वैराजा यत्र Saat! | AUIS तु कोटौनान्तपसः सत्यलोककः ।॥ १०॥ SUA यत्र ब्रह्मलोको हिस स्मतः) पादगम्यस्त्‌ RTM भुवः WAAL: खतः ॥ ११॥ सवगलोको warrant नियुतानि() चतुर्दश । पतदण्डकटाष्टेन ठतो ब्रह्मा ण्डविस्त रः ॥ १२ ॥ वारिवनृष्निलाका्ेस्ततो भूतादिना बदिः | हतं दणगुणेरण्ड' भूतादिकषता तधा । १३॥ दशोस्षराणि शेषाणि एकेकस्माश्शासुने | महान्तच्चं समाहत्य प्रधानं समवख्ितं ॥ १४ ॥ VATA न तस्यान्तः सङ्ख्यानं मापि fraa(®) | हेतुभूतमशेषस्य प्रतिः सा परा मुने ।॥ १५॥ असङ्ख्यातानि aes aa जातानि Sent । दारुष्यग्नियधा ae तिक्ते त्त्‌ पुमानिति(५)॥ १६॥ प्रधाने च खितो(५) व्यापौ चेतनामामबैदनः। प्रधानच्च Yate व सर्व्बभूतालभूतया(९) ॥ १७ ॥ विष्णुशक्चा महहाप्राश्न ठतो संखयधस्मिणो | तयोः) सेव एधगभाषै कारणं संययस्य च ॥ १८ ॥ ९ यजते र्ति Go| ४ पुमानपि इति do, भण्च। २ अयुतानि इति ae | ४ TATA safe eft Ge, To, So च । २ aw era नैव विद्ते इति ao, we, ९ स्वेभूताहभूतया इति ड“ । च । Be era न च विद्यते इति ग° | © दयोरिति we | श्ट श्रमिनिपुराखे [१२० अध्यायः | . © ~ ` चोभकारशभ्रूतख्च TAM महामुने | यथा ter जले वातो faufa कशिकागतं ॥ १९॥ जगच्छक्तिस्तथा विष्णोः प्रधानप्रतिषादिकां |. fayufa समासा Zara: auafar fev zon स च विष्णुः खयं ब्रह्म यतः सर्व्वमिदं जगत्‌ ` योजनानां सहस्राणि भास्करस्य रयो नव॥२१॥ शणादण्डस्तवेवास्य हिगुणो सुनिसन्लम | सांकोटिस्तथा सप्तनियुतान्यधिकानि वे॥२२॥ योजनानान्तु तस्यातच्चस्तत्र चक्र प्रतिष्ठित । जिनाभिंमतिपश्चार wafa ययनावमकं॥२३२॥ सवत्षरमयं aew कालचक्र प्रतिहितं। . चत्वारि गत्संष्ख्ाणि हितौयात्चो विवखतः ॥२४॥ पश्चान्धानि तु साद्नि स्यन्दनस्य महामते | WITT UT: WATER ATA: ॥ २५॥ ` ङसोऽक्स्तद्य गां warat र्स्य वे । हाश्च सप्त छन्दांसि गायत्रादौनि सुव्रत ॥ २६४ उदयास्तमनं चेयं दर्थनादशनं Ta: | MAA AWN तु वशिष्ठोऽवखितो wa: ॥२७॥ सवमायाति तावन्त भूमेराभर तसम्क्ञबे(*) | जर ्रख्षिभ्यस्त्‌. wat यत्र व्यवसितः ac ॥ uafewue दिव्य ठतोयं व्योजि भाखर । निदूतदोषपङ्कानां यतौनां खानसुत्षमं |) २९ ॥ १ भूमेराह्ृतखम्‌स्वे इति ao, ज” च । [१२० अध्यायः | भवनकोषकथनं | २९ ततो wet प्रभवति सरणात्‌ पापनाशनो(\) | दिवि रूपं हरेश्रयं शिषशमाराक्तति प्रभो ॥ १० | खितः पुच्छे भ्रवस्तज्र waq भ्रामयति ग्रहान्‌ | स रथोऽधिष्ठितो देवे रादित्ये ऋषिभिर रे:(२) । ae it गन्धवरष्छरोभिश्च ग्रामणोसपंरा्सैः(र) | हिमोष्णवारि वर्षाणां कारणं भगवान्‌ रविः ३२॥ ग्वे दादिमयो विष्णुः स शभाशभकारख्‌ | रथस्ि चक्रः सोमस्य कुन्दाभास्तस्य वाजिनः(*) ।॥ ३३ ॥ वामदक्षिणतो युक्ता SM Aa चरत्यसौ | aafanquvanfy यस्रिशच्छतानिष।॥ ३४॥ त्रयस्िंयत्तथा देवाः पिवन्ति च्षणदाकर(५) । ` एकां कलाश्च पितर एकामारश्मिसंखिताः ॥ २५॥ वायु ग्निद्रव्यसग्भूतो CARAS च । शअरष्टाभिस्तरगेयुक्ञो बुधस्तेन चरत्यपि ॥ ३६ ॥ शक्रस्यापि casera भोमस्यापि रथस्तथा | SEMA रथोऽष्टाश्वः शनर टा शको रथः ॥ 2011 स्भीनोशच रथोऽष्टाश्वः केतोखाटाखको रथः, यदद्य aya: कायस्ततो विप्र वसुन्धरा ॥ Acti १ सवंपाप्प्रराभ्िनोति ae | we gaa माखि । ` २ दटषिभो रवेरिति ग, घण, छर, ४ कुन्दाभास्तज वाजिन दूति wo, Ro Fl Go, Go FI 2 सरथ इत्यादिः, राखसेरित्यन्तः पाठः ४५ सरूदाचरमिति Wo! ae afergera [ १९१ wera: | पद्माकारा AYRAT पवताद्यादिसंयुता । ज्योतिभवननव्यद्विससुद्रवनकं हरिः ॥ २९ ॥ ` यदस्ति नास्ति तदिष्णुविष्णुच्नानविजन्ितं(९) | न विन्नानख्ते किञ्चिज्‌ ara विष्णुः परम्पदं ॥ ४०॥ तत्‌ gare येन विष्णुः स्यात्‌ सत्य'न्नानमनन्तकं | पठेद्‌ भुवनकोषं हि यः सोऽवा्सुखाकभाक्‌ ॥ 8१ ॥ ज्यो तिःशास्रादिविद्याञ्च शभाश्भाधिपो इरिः(र२) 1 इत्याग्नेये महापुराणे भुवनकोषो माम विंशत्यधिक- शततमोऽध्यायः ॥ अथेकविंशाधिकशत तमोऽध्यायः, ———S00-_—_ ज्योतिःशास्त्रं । अग्निरुवाच | ज्योतिः गास प्रवच्छामि शभाशभविवेकदं | चातुलं चस्य सारं यत्‌ तज्‌ ज्ञात्वा संव्वंविदवेत्‌ we i षड़्ष्टके(९) विवादा न न च fasten feat | न विकणे wa प्रतिः(*) Ha च समसपतके॥ २॥ १ भ्नानविज्ञानजुभ्भितमिति ज०। ३ षटकाटृके इति Go, मर) चरः छर, ९ श्एभाश्यभाश्यो efcfcfa wo, to S| कर च। | ४ न तिकोणेष्‌ प्रीतिः खादिति ae | [ere श्रध्यायः। व्योति: शास्रकथनं। 22 दिदादथे विकोखे च मै्रोकेतरपयोयदि | भवेदेकाधिपत्यच्च ताराप्रोतिरथापिवा॥२॥ तथापि काखः संयोगोनतु षटकाष्टके पुनः, | ala गो “refed fara च पमान्‌ स्तिरा en गुरुत्तेतरगते wa खयक्ेत गते गुरौ | विवादं न प्रशसन्ति कन्धावेधव्यक्घहववेत्‌ ॥ ५॥ अतिचारे fray Wem मासचतुष्टयं | ACES A Hala गुरोवेक्रातिचारयोः॥ ey चेच We न रि्रासु शरौ Ua कुजे रवौ । चन्द्रत्तये चाशभं स्यात्‌ सन्ध्याकालः शभावः ॥ ott रोदिणौ चोत्तरा Aa खातो waltsa रेवतो | तुले न भिधने शस्तो विवाहः परिकौत्तितः॥ ८ ॥ विवादे कणं बेधे च व्रति पुंसवने तथा ' प्राणने चाद्य चारयां विरक्त विवच्न येत्‌() ॥ < ॥ WaT मूलपुष्ये च सूधमङ्लजो वके | कुम्भे सि हे च भिधने क्य पुंसवनं aad ॥ १० | हस्ते मले सगे पौष्णं बुधे शक्रो च निष्कृतिः | TAT TTTS मले ATTHAT ॥ ११॥ WA प्राशन शुक्रो Wa मृगे च मौनके() | हस्तादिपश्चके पुष्य कत्तिकादिश्रये तथा ॥ १२ ॥ fanned विवजेयेत्‌ दूति ae, ae, Vala मकरमोनके इति We | Wo, Go, Ro, Go F शअमग्निपुराणे [१२१ श्रध्यायः। श्रण्िन्धामथ रेवत्य नवान्रफलभन्तण | पुष्यो हस्ता तथा ज्येष्ठा रौहिणौ खवशाश्िनौ ॥ १२॥ सखातिसौम्य च भेषज्य कुथादन्धत् वर्जयेत्‌ | qaraa(’) मधा याम्यं पावनं (९) खवणत्रयं ॥१४॥ भोमादित्यशनेरवारे खातव्यं रोगसुक्तितः | पाथिषै westart मध्ये माम च दिक्च च॥ १५॥ कौ सट पाथिवे fea कौ विदि लिखेदसन्‌ । गो रोचनाङ््मेन YT TA गले तं ॥ १६ ॥ शत्रवो वशमायान्ति मन्त शानेन fafad | यो कीं सम्पटं ara ay कौ पत्राष्टके क्रमात्‌ ॥ १७॥ गोरोचनाकुङ्कमेन भूजऽथ सुभगाहते । गोमध्यवागमः पच्रिद्राया रसेन ख॥ १८॥ | शिलापटेऽरौन्‌ warafa भूमावधोमुखीक्लतं । [॥ et wt € a.) सम्पटन्राम भं हं सः(*) पत्राष्टके क्रमात्‌। गोरोचनाकुङ्कुमेन Wt खत्यनिवार णं | एकपद नवप्रौ त्ये (५) दिषटदादशयोगकाः ॥ Qo ॥ चिसपकादथे लाभो वैदाषटहादये fry: | तनुधंनञ्च सहजः सुत्‌ सुतो रिपुस्तथा ॥ २१॥ जाया निधनधर्ममौ च क्मायव्ययकं क्रमात्‌ | १ एवेतिकभिति ख. | 8 ata खट्तिख० st x २ पावकमिति So | . इति wo | 2 Ut Se tha we | ४ रकप्रश्चनवभाग्यं इति ate | [१२१ wart) ज्योतिःशास्तकथनं। ११ wz मेषादिलग्नेषु नवताराषलं वदेत्‌ ॥ RR UW. जग्म सम्पदिपत्‌ चेमं प्रत्यरिः साधकः क्रमात्‌ | निधनं भिचपरमभित्र ताराबलं विदुः ॥२३१। चार ज्ञगुरुशक्राणां सूर्यखाचन्द्रमसोस्तथा। माघादिमासषटके तु चौरमाद्यं प्र्स्यसे ॥ २४ ॥ BUTT बधे जोवे पुष्यं खवणचिचयोः। पञ्चभेऽनब्दे चाध्ययन wel प्रतिपदग्यजेत्‌ i २५॥ frat wast भौमं प्राच्यं वाणो हरि खियं। माघादिमासषटर्‌के तु(*) मखलाबन्धनं Ws i! २९॥ चडाकरणकाद्यश्च AAAS न शस्यते। TA याते गुरो शक्र BMT च शशलाल्डने। २) ॥ उपनोतस् विप्रस्य सत्य जाड विनिर्िंओेत्‌ | Ma शुभवारे च समावत्तनमिष्यते ॥२८॥ आभक्तेते विलग्नेषु शभयुक्र चितेषु च । अशिनोमघाचिन्रासु खातोयाभ्योत्तसासु च ॥२०॥ सनन्वंसौ तथा पुष्ये wade: प्रशस्यते | । भरस्याद्री Hara aT वङ्किभगक्षंयोस्तथा ॥ २०॥ fastfaga gala वस्त्रप्रावरणं नरः | गरो wR qu वस्त्र विवाहादौ न भादिकं॥३१॥ रेवत्यश्विधनिष्ठासु हस्तादिषु च पञ्चम | aefagacarat परिभानं प्रशस्यते ॥ ३२ ॥ १ माधादिमाखषटकेष दति we | ( 4 ) १४ अभ्निपुरारे - [१२१ श्रध्यायः। आम्यसपेधमिष्ठासु(\) fag gay वारुशे(र) | mia हानिकर ear विक्रोतं लाभक्तङडषैत्‌ ॥ २२॥ श्रन्विनौखातिचिष्ासु रेवत्यां वारुणे रौ । क्रीतं लाभकर द्रव्यं विक्रौोतं हानिक्डषेत्‌ tas it भरणौ aha पूर्वाणि श्राद्रश्चेषा मघानिलाः वङ्किच्येष्ठाविशाखामु खामिनी नोपतिष्ठते ॥ २५॥ द्रव्यं ca युक्तं वा यव निच्चिष्यते wai | SUC AAU शाक्रे कुर्याद्राजाभिषेचनं ॥ २६ ॥ ` aa ae तथा भाद्रमाश्िनं पौषमेव च । माधं चैव परित्यज्य शेषमासे we शएभं ॥ २७ ॥ ufien Ofed मूलसुत्तरावयमेन्दवं । ` खातौ इस्तानुराधा च WHIT प्रशस्यते ॥ ३८ ॥ आदिवयभौमवजंन्तु वापौग्रासाद्के तथा | सिंहराशिगते MF गुष्यदित्ये मलिम्लुचे ॥ २८ ॥ ` बाले हेऽस्तगे श्रो ग्ट कन्म विवजयेत्‌ | अम्निदाष्ो भयं रोगो Tater धनक्षतिः ॥ ४० ॥ सङ्के ठणकाष्टानां कते अवणपञ्वक्े। ग्टष्ट्प्रवेशनं gare निष्टोत्तरवा रुके ॥ 8१॥ ` नौकाया घटने दितिपच्चसप्ततव्रयोदभौ | कृषदर्गां धनिष्ठासु हस्तापोष्णाश्विनौष्‌ च ॥ ४२ ॥ पूर्वात्रयन्धनिष्टाद्र वज्किः सौम्यविशाखयोः। १ अम्यसपेविश्षाखाय शति we, MoT! ९ पूर्वेषु चाग इति गर, घ, wo च०। [१२१ wearati sa fa: MATT | ५ saat चाश्िनो चैव याव्रासिद्िस्त्‌ सम्यदा(९) ॥ ४३ ॥ faquty Ufeai सिनौबालौ चतुषटभौ | खवणाद्देव हस्ता च fear वेष्णवौी तथा॥४४॥ गोष्ठयात्रां न कुर्वीत प्रवेश्य नेव कारयेत्‌ | अनिलोत्तररोहि्यां खगमलपनवसौ ॥ ४४ ॥ प॒ष्यञरवणहस्तेष कथिक समा चरेत्‌(९) । पुनवस॒त्तराख्वातौभगमूलेन्द्र वा रुफे(२) ॥ ve ॥ गुरोः FRA वारे वा वारे च(*) सोमभाखतोः। ana च Taga fay तथा ॥ ४७ ॥ दिपञ्च(५) दशमौ सप्त ठतौोया च व्रयोदशयौ | रेवतौरोदिणोन्द्राग्निदस्तमे तो ततर षु(९) च ॥ ४८ ॥ मन्दारवव्ने वौजानि वापयेत्‌ सम्पदध्थपि(*)। रेवतौस् मूलेषु wat भगम ्रयोः ॥ ४९ ॥ fused तथा सौम्ये धान्यच्छेट्‌ सगोदये 1 स्तचित्रादितिखातौ रेवत्यां खबणत्ये ॥ ५० । fat aa =) गुरोवौरं अथ (<) भार्गवसौम्ययोः | याम्या दितिमधाज्येष्ठासून्तरषु प्रवेशयेत्‌ ॥ ५१ ॥ १ याजासिद्धिषु सम्पद्‌ दूति म € wanatacrg दति ज० । Slo च। वापयेत्‌ संयतोपि चेति qo, go, २ समारभेदिति go, eo च | जण च। a Q WIGS च वारु इति ख०, WoT! CGC ST इति कर. ४ वारे a tha So | < गुरोबारोथवा दति घर, meas $ favefa ae | २६ अम्निपुराणे, [ १२१ अध्यायः, श्रं धनदाय(९) सव्वधनेश्ाय देहि भे धन खादहा(र) | श्रं नवे au इलादेवि लोकसवक्चेनि कामरूपिणि देदि भे धन सखाहा॥ | पत्रस्थं लिखितं धान्यराशिख्' धान्वनं । तरिपूर्व्वासु विशाखायां धनिष्टावारुणेऽपि 2)0 6 = युडजयाणवौयनानायोगाः । श्रम्निरुवाच | TA RATATAT सारं युदजयार्णवे | WIEST सराः स्यः क्रमाब्न्दादिका fafa: wen कादिहान्ता भौमरवी TATA गुरुभागवौ । आ्निरसतिणनाडयान्तु मामार्कशनयः परे ॥ २॥ खार्णवः GMA Tents समाहरेत्‌ | रसाहतन्तु तत्‌ कत्वा पूवंभागेन भाजयेत्‌ ॥ २ ॥ afefiraredt ल्वा (१) रूपन्तत्रेव निच्तिपेत्‌ | QCA नाड्याः पलानि सप्राणस्पन्दनं पुनः ॥ ४॥ अरनेनेव तु मानेन उदयन्ति दिने feat | स्फरणेसख्िभिरुच्छास TSG पलं तम्‌ ॥ ५॥ निमा १ afefay qa wat इति wo | [१२१ अ्रध्यायः। युदजयाणवोथनानायोगकथनं | ४३ afefia पलेलिंपता लिप्ताषष्टिसत्यहनि शं । पञ्चमार्रोदये बालकुमारयुवहदकाः॥ € ॥ DATTA चास्तमेकाद शां शकेः | कुलप गमे WAR": समत्य: पञ्च मोऽपिवा ॥ 9 ॥ सखरोदयच्यक्र। शनिचक्रे चाैमासङ्ग,हाणामुदयः क्रमात्‌ विभागेः पञ्चदशभिः भनिभागस्त्‌ gars र ॥ शनिषरक्री | दशकोटिसहस्राणि श्रवु दान्य्द्‌ हरेत्‌(९) | चरयोदशओे च॑ लक्षाणि प्रमाणं कून्धरूपिणः ven मघादौ छत्तिकायन्तस्तहे शान्तः णनिखितौ | कूम चक्र | UVa च सपोडमधः सप्त च संलिखेत्‌(९) ॥ toa वायुग्न्योचेव नेते पूणि मागनेयभागतः । ` अमावास्यां वायवे च ured तिथिरूपकः ११॥ रकार दत्तभाग तु डकारं वायवे लिखेत्‌ ।. प्रतिपदादौ ककारादीन्‌ सकार AWA BAL VAN UNIS तु भङ्गः स्यादिति राहइरुदाहतः । विष्टिरम्नो(९) पौणमास्यां wuts ठतोयकं ॥ १३॥ चारा याम्यान्तु सप्तम्यां cust teat | AAS AA चतुष्यौ वरुणाखये ॥ १४॥ ९ खव दान्यवंदं ऋमादिलि भा०। 2 विषिवको दति ग! ९ सप्ररसांशिखदि ति wo | ४४ अग्निपुराणे [ १२३ wera: | शक्ताष्टम्यां ear च एकादश्यां शशन्त्यजेत्‌ | रोद्रबेव तथा सेतो Sa: सारभटस्तथा ॥ १५॥ साविज्रो विरोचन जयद्‌ वोऽभिजिन्तथा(\) | रावणो fara wet वरुण णव त्त ॥ १६॥ यमसौम्यौ भवधान्ते दशथपश्चमुहृत्तं काः | VE रौद्राणि कुर्वीत शलते ज्ञानादिकं चरेत्‌ ॥ १७ ॥ मैत्रे कन्याविवाहादि भं सारभटे चरेत्‌, afaa स्थापनाद्यं वा विरोत्तने कृपक्रिया ॥ १८ ॥ जयदेवे जयं कुर्याद्‌ रावणे Tawa च(९) | विजये क्षिवाखिच्यं पटवन्ध च नन्दिनि ॥ १९॥ वरुणे च तडागादि AMAT यमे चरेत्‌ | सोम्य सौम्यारि gala भवेज्ञम्नमदहदि वा ॥ २० ॥ योगा areat विरुदः स्यर्योगा arate शोभनाः । राइरिन्दराखषमोर्च वायो कं यमाच्छिवम्‌(२) ॥ २१ ॥ शिवादाप्यष्ञलादम्निरम्न : सोम्यम्ततस््रयम्‌ | aaa सङ्क्रम wha चतस्रो घटिकाखमन्‌ ॥ २२ ॥ रादुचक्र.। SWRI वाराष्टौ च ANN गिरिकशिका। . वला चातिबला चौरो म्निकाजातियुथिकाः॥२२॥ यथालाभं धारयेत्ताः खेताक्षख शतावरौ । Test age दिव्या ओषध्यो धारिता जये॥२४॥ \ ९ स्पन्यमभित्यादिः, जयरेवोंभिजि- २ जोवकमं चेति ee | सयेत्यन्तः पाठः घ० Yas afer | ३ दायोयोस्य ततः शिवमिति घर. | [ १२३ अध्यायः | युडजयाणंवोयनानायोगकथमनं | ४५ शरं नमो भैरवाय) ख्गपरश्हस्ताय wt कू (र) faufaarara sti ङ (*) फट्‌ । श्रनेनेव तु wee शिखाबन्धादिङव्लये | तिलकश्चाच्ञनश्चेव धूपलेपनमेव च ॥ २५॥ खानपानानि तेलानि योगधूलिमतः खण | भगा मनःशिला तालं लाक्षारससमन्वितं ॥ re I aqaraicagar ललाटे तिलको वशे | | विष्णुक्रान्ता च aural wetaa(’) रो चमा ॥ २७ ॥ शरजादुग्धेन digs तिलकोवश्यकारकः | fray कुङ्मं कुष्टं मोहनौ तगर wa ॥ २८ ॥ तिलको वश्यकन्तश्च रोचना रक्तचन्दनं | निशा मनःशिला तालं प्रियद्ग सषपास्तया ॥ २८ ॥ मोहनो हरिता क्रान्ता सहदेवो शिखा तथा । मातुलङ्गरसेः पिष्टं ware तिलको ait 2° ॥ सेन्द्राः सुरा वशं यान्ति कि पुनः चद्रमानुषाः । मल्िष्ठा चन्दनं TH कटकन्दा विलासिनो॥३२१॥ पुननवासमायुक्तो लेपोऽयं भास्करो aT | चन्दन नागपुष्पञ्च afasr तगर वचा(*)॥ ३२ ॥ लोप्रप्रियङ्ग रजनोमां सीतेलं वशङ्करं | इत्याग्नेये महापुराणे नानायोगा नाम चयोविंशत्यधिक- शततमोऽध्यायः ॥ १ श्यो ममो भगवते भेरवायेति ख ४ TREAT चेति wo | Wo च| ४ मद्धिडा तमर्यत ao | afaer ९,९ खो ऋमिति ख०, अ, च। waa वदेति wo | = अथ चतुविंशत्यधिकश्रततमाऽध्यायः। ones § - O scene युदजयायवोयज्यो तिःशास्रसारः | अग्निरुवाच। ज्योतःगासरादिसारच वध्ये युद्जयाणेषे | -विना मन्तोषधादयञ्च यथोमामौश्वरोऽव्रवोत्‌(९) ॥ १॥ SIAN | देवैजिता eraara(’) येनोपायेन तदद्‌ । शभाशभविवेकादयं ज्ञानं युदजयाणवं 1 २ ॥ ईष्वर उवाच | मूलटेवेच्छया जाता गक्तिः पञ्चादशाच्च॑रा) चराचर ततो जातं यामाराध्याखिलाथंवित्‌() nau मन्तपौटं प्रवच्यामि पञ्चमन्त समुदधवं | ते मन्वा: सवमन््ाणां जौोविते मरथे खिता; ॥ ४ ॥ ऋग्यजुःसामाथववाख्यवेदमन्ताः क्रभेण ति । सयोजातादथो मन्ता ब्रह्मा faye रुद्रकः uy ईशः VANE देवाः शक्राद्याः पञ्चच सखराः। “WVU कलाय मलं ब्रह्मेति कोत्तितं ॥ ६॥ asa यथा धङ्किरप्रहद्धो न दश्यते | विद्भाना तथा देहे शिवगक्षिनं दृश्यते ॥ © ॥ आदौ शक्तिः समुत्यत्रा अ्र।ड्ारखरम्रूषिता। ततो विन्दु महादेवि एकारेण व्यवसितः ॥ ८ ॥ a: a ae १९ इ्वरोऽवदत्‌ इति घ. । ३ यामार।ध्याख्ष्ठाकविदिति a, २ दानवाद्या दति So | „, ग्च। [१२४ mata | युदजयाण्वौोयज्योतिःगशाससारकथनं | ४७ जातो are उकारस्तनदते हदि भखितः | अशै चन्द्र इकारस्त मोचमागस्य बोधकः । < ॥ श्रकारो व्यक्त उत्पन्नो भोगमोक्षप्रदः परः(\)। अकार Tat भूमिनिदत्ति कला WAT ॥ eo i गन्धोनवोजः प्राणाख्य इडाथक्तिः सिरा स्मता | इकारख प्रतिह्ठाख्यो रसो पालश्च fara ११॥ क्रा शक्तिरोवोजः स्याहरवौजोऽग्निरूपवान्‌ | विया समाना गान्धारौ शक्ति दहनो HATH १२॥ प्रणान्तिर्वीयुपय्पर्शो ययोदानख्चला क्रिया | श्रोङ्ारः शान्यतोताख्यः खथब्दयुखपाणिनः ।॥ १३।। पञ्च बर्गाः खरा जाताः कुजज्नगुरभागंवाः। शनिः क्रमादकाराद्याः कङाराद्यास्बधः खिताः ॥१४।। एतन्म लमतः सवं" Wad सचराचरं, विद्यापोठ' प्रवद्यामि प्रणवः शिव ईरितः १५॥ उमा सोमः खयं शक्ति्वामा wast च रौद्रापि AW विष्णुः MATSSY गुणाः सरगदयस्तयः। १६॥ रब्रनाडो तरयस्चेव(र९) स्थूलः GH परोऽपरः । चिन्तयेच्छ arta मुञ्चमानं परागतं 1 १७ ॥ ञ्राव्यमानं यथात्मानं चिन्तयेत्त' दिवानिशं । . अजरत्व' भवदे वि शिवत्वसुपगच्छति (र) ॥ १८ ॥ १ भोगमोखप्रदः शरभ LA Me | द णिवत्वमधिगच्छतोति sto | २ ESAS ATG fa Wo, Go F | ec | ्रग्निपुराणे [१२५ अध्वायः। aE Bret न्यस द्गते" मध्येऽथ SEA | BIG ततः प्राये रणादौ विजयो भवेत्‌ ॥ १९ ॥ शून्यो निरालयः शब्दः स्यः तियङ्नतं स्य॒शेत्‌ | सूपस्योष्धंगतिः tar जलस्याधः समाखिता।। २० ॥ सर्वखानविनिसंक्घो गन्धो मध्यं च मूलकं | नाभिमूलले(\) स्थितं ae’ शिवरूपन्तु मण्डितं ॥ २१ ॥ शक्तिव्युहेन सोमोऽ हरिस्तत्र व्यवसितः | दशवायुसमोपेतं पञ्चतस्माब्रमण्डितं ।। २२॥ कालानलसमाकारं प्रस्फरन्तं शिवात्मकं | AM जोवलोकस्य(२) CATS चरस्य च ॥ २२॥ ` afaae(®?) खतं मन्ये मन्पौठेऽनिला मकं | इत्याग्नेये महापुराणे युदजधाणेवे Ala MASA नाम चतुव शत्यधिकशत तमोऽध्यायः ॥ [ अथ Gala शत्यधिकशततमोऽध्यायः। युदजयाणंवोयनानाचक्राखि । ` श्वर उवाच। रों छो कणमोटनि weed ayer इ. १ नाडोमूले दति Go | | aa जोवं Masta इति Ge | 2 aa बोजं जीवनायेति खर, कण च। ३ AfeRe इति Go | १२५ Mayra |] युदजयाण्वोयनाना चक्रकधनं | ४९ wa.) श्रां हः ग्रस ग्रस छन्त aren दक ङ्‌ फट(र) नः | USTATA WH HM, AL. संरक्तलोचनः | मारणे पातने वापि dredreisa भजेत्‌ ॥ १॥ कश्चमोटी महाविद्यां सवंवरंषु chert | नानाविद्या | पञ्चोटसं प्रवच्छामि सखरोदयसमषनितं 1 २॥ नाभिद्दन्तर यावत्ताव्चरति मारुतः | उच्चाटयेद्रणादौ तु AVA प्रभेदयेत्‌ ॥ ३॥' करोति साधकः क्रो ATTAITTAT: | द्यात्वायुक कण्ठः ज्वरदादारिमारणे(९) ॥ ४ ॥ कर्ोद्बो रसो वायुः शान्तिकं पौष्टि्ं रसं । ` दिव्यं al समाकष गन्धो नासाज्तिको wasn ५॥ गन्धलौनं ममः कलवा WMAAATT संशयः | स्तम्भनं कौोलनादयञ्च करोत्येव fe साधकः॥ ६॥ चण्डघण्टा करालो च सुमुखौ दमुंखौ तथा | रेवतौ want घोरा वायुचक्रोषु ता यजेत्‌ ॥ 9 a उच्चाटकारिका देव्यः खितासवेजसि संखिताः। सोम्या च Want देवौ जया च विजया तषा॥८॥ अजिता चापराजिता महाकोटौ च creat | शष्ककाया प्राणहरा Tare खिता भ्रम; ॥ < ॥ १.९ ओ शु फडति we | -३ ज्बरदादनिवारशे दति wet ( ॐ ) Yo | अग्निपुराणे [१२५ अध्याथैः। विरूपाक्षो परा दिव्यास्तधा चाक्राशमातरः। AEC जातद्ारौ च STAT शष्करेवतौ ॥ १० ॥ पिपौलिका पुष्टिहरा महापुष्टिप्रवह्ना | भद्रकालो सुभद्रा च मद्रभोमा सुभद्रिका ॥ ११॥ खिराच fase दिव्या निष्कम्मा गदिनौ तथा! दाजिशस्रातरघक्र अटाटक्रमशः खिताः॥ १२॥ एक एव रविन्द्र एक चैकेक शक्तिका | भूतभेदेन तौर्थानि(*) यथा तोयं महोतले ॥ १३ ॥ प्राण एको Hwa fad yar | वामदक्तिणयोगेन दशधा सम्प्रवत्तंते । १४॥ fre सुष्डविचित्रश्च carey वेष्टितं | ब्रह्माण्डेन(र) कपालेन पिवेत परमाग्तं ॥ १५॥ पञ्चवगंबला दये जयो भवति तच्छणु | ्रञ्राकचटतपयाः MATa वग Tira nee xkqesane Wana दितौयकः उजगजछदवलाः सो वगंख TaAtATM: ॥ १७॥ एएेघभकटठधभवा डो ATA WAAR: ATW TA: SHCA मो वगः पञ्चमो भवेत्‌ I esi बणाखाभ्युदये नृणां चलारि शच्च पञ्च च। बालः कुमारो युवा VEN STS नामतः ॥ Le । १९ भृतमेदेम भिञ्वानि इति we । २ ARS इति wo | तामि vam भिन्नानि इति षर । . १२५ अध्याथः |] युचजयाणंवौयना नाचक्रकथनं । ५१ भामपौडा शोधकः स्यादुदासोनख कालकः | कत्तिका प्रतिषङ्ौम भ्राननो लाभदः Basil २०॥ घटी भोमो मघा der श्राद्रौ चेकादभौ Fat! | waar दितौया ज्ञो लाभथाद्रौ च सप्तमौ ॥ २१। बुधे हानिभेरणौ चरः खवणं काल kent । जौवो लाभाय च भषेषुतौया पर्वफल्‌रानौ ॥ २२ ॥ जौवोऽष्टमो(९) ufasret जोवोऽञ्चेषा aarest | at waaqel स्यात्‌ पूव्वभाद्रपदा Pra 1 22 0 पूव्वीषाठ़ा च नवमौ शक्रः पौडाकरो waz | भरणौ भूतजा शक्रो यमदण्डो हि हानिछत्‌ ॥ २४॥ छत्तिका पञ्चमो मन्दो लाभाय तिथिरौरिता। शेवा दशमो मन्दो योगः पौषाकरो भवैत्‌(र)॥२५॥ मघा निः पूशिमा च योगो गत्यकरः स्मृतः । तिथिवयोगः। ूर््वोत्तराग्निनेऋत्यदचिणानिलचन्द्रमाः(र) ॥ २६ ॥ ब्रद्माद्याः we ua स्यः(“) प्रतिपन्रवमोमुखाः । राशिभिः सहिता दृष्टा aera: सिये खाताः ॥ २७॥ भेषाद्ाखतुरः कुम्भा जयः पूणंऽन्धया सतिः | सूग्यीदिरिक्ता पूणा च क्रमादेवग्प्रदापयेत्‌ || २८॥ १ जओवेऽहटमोति we | श दचाग्न1निलचखन्द्रमा दति a | ९ भरशोत्यादिः, पोडाकरो भवे दित्यन्तः ४ mye: खयसिदष्टाः खरिति ब । ` पाठः कण Fae ahs | aR अम्निपुशाखे [१२५ अभ्याबः। रणे सूरं फलं नास्ति सोमे भङ्गः प्रशाम्यति | कुजेन wee विद्या धः कामाय वे गुडः ॥ २९ ॥ शाय WAR’) WaT मन्दे WHY रशे भवेत्‌ । देयानि पिङ्गला जङ्ग सयगानि च भानि हि ॥ ३०। मुखे नेत्र लन्नादेऽव भिरोहस्तोरपादके ! पाटे कतिल्िक्ऋचे स्यान्धीखि पच्धऽप्रलाश्रनम्‌ ॥ २१॥ ABM च भको face काश्ये बाश्यनम्‌ | कचिदिते ae wre राइचक' वदाम्यडम्‌ ॥ ३२२ ॥ TRIG ने ऋ तङ्कनचछेने ऋं ताव्यो मतव च | RATA बर्हेरापमास्याच्छछिकालम्रं ॥ २२१ TRIM यमराहङुं Atte’ व्रजेत्‌ Ya: | BER TAM नाव स्त WTS जयो TT | ३४ ॥ श्रग्रतो खत्युमाद्नोति fafeqre aati a | आराग्नेयादिशिवान्तं च पूर्णिमामादितः fad ay Ys HUSA यावत्‌ WEES मयो भवेत्‌ । शियाग्याग्नेयने WaT फणिराइ कः VE |i भेषाद्या दभि पूर्वादौ यत्रादिल्योऽग्रतो तिः | SAAT RUTH तु सप्तमौ दशमौ AAT ॥ ३७ ॥ चतुगौ तथा शक्ते बतुर्थ्येकाद्शौ तिचिः | पञ्चदभौ विष्टयस्यः पुखिंमाग्नेयवायमे ॥ ३८ ॥ वि , अकचटतपयशा वगा; स्ादयो Wee! | ९ awa दति Wo, GoW! १२५ अध्यायः] युदजयाणंवीयनानाचक्रकथनं। ५३ ग्टप्नोखकम्ेनकाख्च पिङ्गलः कोभिकः क्रमात्‌ \ २८ ॥ मारसञ्च FATS गोरह: प्तिषःस्मताः। भदौ साध्यो इतो wea’) उचाटे पल्लवः खतः ॥ go ॥ TR ज्वर तथाकभ प्रयोगः सिदिकारकः | शान्तो प्रीतौ नमस्कारो वोषट्‌ yer वथादिषु ॥ ve ti ड त्यो (र) प्रोतिसवाशे विद्ेषोश्चाटने च फट्‌ । वषट्‌ सुते च दौष्यादो(२) मन्त्राणां जातय षट्‌ ॥ ४२।। श्रोषधोः सम्प्रवच्छामि मह्ारक्ताविधायिनीः | महाकालो तथाच्र्डो वाराहौ Watt तथा ॥ 32 ॥ WAT AVATAR aT रक्षयन्ति तम्‌ | ब्रला चातिबला भोसमुसलो सहदेव्यपि ॥ ४४ ॥ जातौ च afar rent गार अङ्गराजकः | चक्रङ्षा महोषध्यो धारिता विलयादिद्राः ॥ ४५॥ गहरे च महादेवि उहताः शभरदाभ्रिकाः | ख्दातु FUELS सवलचणलच्तितम्‌ ॥ ge is TH पादतश्े MAT STATA | AMT REN च वजाषतप्ररे शके ॥ ४७ ॥ वरछमीकख दमाद्त्य मातरौ योजयेत्ततः | W नमो महाभैरवाय विक्ततरदष्श्ररूपाय पिङ्कलाच्ाय जिशूलखडगध राय (५) वौषट्‌ । \ wet saat सन्त्रद्ति ख ज, च। gs way इति Ge, ४ विषूलकट्‌ाङ्वरायेति Wo, Fe, चण ९ वषद्‌ BIH चदीमपरदाविति wo, च च | fanied wywerwwcrafn ज. ४४ | अभ्निपुराशे [१२५ अध्यायः | पजयेत्‌ कमं देवि स्तम्भयेच्छस््जालकम्‌ । ४८ ॥। अम्निकायः प्रवच्मि caret जयवर्ैनम्‌ | santa निशि काषाम्नौ नम्नो सुक्षिखो ac il ४९ ti दक्तिशस्यस्स॒ लुहयावमांसं that विषम्‌ । तुषास्िखण्डमि खन्तु TATA शताष्टकम्‌ ॥ ५० ॥ ओं नमो भगवति कौमारि लल लल लालय maa घण्टादेवि aya मारय मारय सहसा नमोऽसते भ गवति विष्ये TET | अनया विद्या डहोमादन्धत्वच््ञायते रिपोः५५)। ` शं वजुकाय वजुतुष्ड कपयिलपिङ्गल करालवदन aE महाबल wage) afefers महारौद्र दंद्रोत्‌कट ay करालिन महाद्ृढप्रार लङ्कष्वरसेतुबन्ध गेलप्रवाह गगन- चर Utfe भगवन्रहावलपराक्रम भैरवो श्रापयति wife महारौद्र दौघलाङ्गलेन असुक वेष्टय Aca अग्धय waa खन शन वेते ङ फट(र) | अषटतरिं गच्छतन्देवि हनुमान्‌ seria ॥ ५१॥ पटे WANGARATTA aa | TAMA महापुरारे जुदजयार्थवे नाना चक्राशि नाम पच्चविं गत्यधिकशततमोऽष्वायः ॥ १९ दमथलं जायते चात्‌ इति we, २ बलु सुर इति we | जन्ब। ९ छंण्णितिखर, अथ षड्विशत्यधिकशततमोऽध्यायः। कण @ । । ०0 7 ‘ awafaaa: | दैश्वर Say | वश्चाम्यक्षामक पिण्डः शभाशुभविबदये | यस्मिन्रश्च भवेत्‌ सथ्यस्तरादो arly मदनि,\) ॥ १ ॥ WHT खे दयत्रेत्े इस्तपादे चतुष्टयं | दि पञ्च सुते जानौ mye विचिन्तयेत्‌ ॥ २॥ शिरस्थे तु भवेद्राज्यं पिरतो sana: | AWM: कान्तसौभाग्य' दये द्रव्यसङ्ग्रहः ॥ २॥ CS तं तस्करत्वङ्गतासुरध्वगः(९) पदे । कुम्भाष्टके भानि लिख्य(९) सूधकुम्भस्त रिक्षकः॥ ४॥ अशुभः सुय कुम्भः स्याच्छभः पूरव्वादिसंख्ितः। फणिराइ'(*) प्रवश्यामि जया जयविषेकदं ॥ ५॥ अष्टाविशाक्षिरेदिन्दुन्‌ प॒नर्भाज्यस्िभिस्विभिः | अथ ऋच्ाणि चत्वारि रेष्ठास्तत्रेव दापयेत्‌ ॥ ९॥ afar सितो राइस्तटृक्तं फणिमहंनि(*) | तदादि विन्धसंद्‌ भानि सपतविंशक्रमेण तु ॥ ७ ॥ वक्तं Wand awe भ्यते सवं are? | १ Wife awa इति a | च| ९ मतायुरध्वमः पदे दइतिख०, ४ काङराङमिति ० । ` भानि किकेदिति षर ज, ५ WIKIA eo, To च। ५६ | अग्निपुराणे १२६ भ्रष्यायः। ma भङ्ग विजानोयाससभेषु च मध्यतः ॥ = ॥ उदरस्थे न(९) पूजा च जयदैवामनस्तथा | कटिरैभे fea योध wed दरति परान्‌ ॥ I पच्छस्थितेन कौत्तिः araryes चमे सृतिः | पुनरन्ये प्रवच्य(मि रविरादडबलन्तव॥ vo tl दविः शक्रो वधयैव सोमः सौरिगु रस्त या(९) | लोहितः संहिकयेव एते यामार्चभागिनः॥ ११॥ सौरि रवि राइख AAT saa TSA! | स जयेत्‌ सेन्यसङ्घातं दयतमध्वानमाहवं 1 १२॥ रोहिणो चोत्तरास्तिस्रो ङ्गः पञ्च feats fe | अश्विनो aay खातो धनिष्टा शततारका॥ १२॥ चिप्रारि पञ्चभान्येव ararat चेव (९) योजयेत्‌ । अनुराधाइस्तमृलं खगः पुष्यं FATT ॥ १४॥ waaay चेतानि ज्येष्ठा चित्रा विशाद्डयः। पूर््बास्तिखाऽग्निभेरणौ मघाद्राद्ेषादारूणाः ॥ १५॥ स्थावरेषु खिर qa यात्रायां च्िप्रसुत्तमं ¦ Maras Ceara उगरषृग्न्तु कारयेत्‌ ॥ १६ ॥ दारुणे दामां ङुथादच्ये चाधोसुखादिकं। ` afaat ucaa षा विशाखा पिद मै ऋतम्‌ ॥ १७ ॥ १ Seca चति we ` Caan चाटः चण युकं नालि । - २ Sian दत्याहिः, eifed-. ९ षातराष्वनि Sires mee, [१२६ अध्यायः नसत्रनि्ंयकधनं । ५७ पूववा वयमघोवक्त' कच्छ चाधोमुखश्चरे त्‌(\) | एषु कूपतडागादि विद्याकन्ध भिषक्क्रिया ॥ १८ i स्थापनन्नोकान्रूपादिषिधानं(९) खननन्तथा | रेवतो चाश्िनौ चित्रा हस्ता स्वातौ पुनर्व॑सुः॥ १८ ॥ अनुराधा सगो ज्येष्ठा नव वै asaya: | एषु राज्याभिषेकच्च TEAK AIA: ॥ २० ॥ आरामण्यहप्रासाद्‌ प्राकारं WARTS | ध्वजचिदङपताका (र) सर्व्वाने तांच कारयेत्‌ ॥ २१॥ हादशो सूखदग्धातु चन्द्र TARTS तथा । भौमेन दशमो दग्धा Salat वे बुधेन TW २२॥ षष्ठौ च गुरुणा दग्धादितोया गुणा तधा | सप्तमी aayau विपुष्करमथो a2 ti २२॥ दितौया ादणौो चव सषमौ वै ठतौयया(*) | रविभोमस्तधा(५) fe षडेतास्त तिपुष्कराः(९) ॥ २४॥ विशाण्ठा afaat चैव उत्तरे हे पुनव्वेसुः | FAUT चेव wea तु चिपुष्कराः ॥ २५॥ लाभो हानिजयो हिः gaara तथैव च । ae we’ विनष्टः वा तस्छव्वन्विगुणं() भवेत्‌ ॥ २६ ॥ श चाधोमुखं भवेदिति we | ४ मस्मामखयेति Me, Ae, चण ९ नोकायूतादिविधानमिति मर, Ge, To च | eo च । € षडेता्िषु पुष्करा इति कण, ९ वचिकपताकाश्चति क । ` खर He, HOTT ४ कतौषकेति Te, ज ° च। 3 तत्वं दिनुरुमिति खर, we च| ( = ) रद अग्निपुराणे [ere अध्यायः) afiadt weet देव wae पुष्यमेव च। erfarada विशाखा च अवशं सप्तम YA २७॥ एतानि eoue षि पश्यन्ति च दिशो दश। VATS दूरगस्यापि भागम; ख्य गोचरे ॥ २८॥ आषाढे रेवतो चिता केकराणि yaaa? | एषु पञ्चसु wag’) निगेतस्यागमो भवेत्‌ ॥ २९ ॥ aftaat रोहिणो सौम्यं फटगुनो च मघा तथा | ` मूलं च्येष्ालुराधा च धनिष्ठा थततारकाः॥ १२० ॥ पूष्वभाद्षदा wa चिपिटाभि च तानि हि(९)। अध्वानं व्रजमानस्य पुनरेवागमो भवेत्‌ ॥ Blu EA ठसरभादव आदरषाढा तथेव च । नष्टाधीबेव दृश्यन्ते सकामो नेव वियते ॥ ३२ ॥ घनवेश्यामि गण्डान्तखखमय्ये यधा ferry | रेवत्यन्ते चतुरी (९) अख्न्धादिचतुषटयम्‌ ॥ ३२॥ उभयोयांममावन्तु वजयेत्तत्‌ AAA: | WANN मघादोतु घटिकानां चतुष्टयम्‌ ॥ २४॥ हितौयं गर्माख्यातं कतौयं ach कषु । च्येष्ठाभमूलयोन्धष्ये SUSI यामकम्‌ ।॥ ३५॥ ९ केकरेषु च wey इति ae | ९ रोबत्यको चतु्कृनहे इति wo, २ चिपिढानि मानि fe «fa aw, Zo, Wo, Fo, Wo, MO. on [१२७ i मानाबलकथन्‌। we न gareenatre यदौच्छदामजौवितम्‌ | दारके जातकाले च(\) fasta पिठमातरौ।॥ २६ ॥ शत्याग्बेये महापुर नखचत्रनिण्यो नाम षडविं शत्यपिक- WAAASWITA: | अथ सप्तविं शत्यधिकशततमोऽध्याथः | नानाबलानि। kat उवा च(९) । विष्कृश्च घटिकास्तिखः शूले पञ्च विवजयेत्‌(९) | सट षट (५) गण्डेऽनिगण्डे च नव व्याद्ातवजुयोः ॥ १ ॥ परिघे च व्यतोपाते उभयोरपि तदिनम्‌ | ava aferaa याायुहादिकम््जेत्‌॥ २ ॥ ग्रहेः “ured वश्य टेवि भेषादिरागितः(*) | MEGA च TAR वर्जितौ एभदायको ॥ ₹ ॥ १ आतचत चापोति खञ। ४ षट अ गण्ड ऽतिगष्डं चेति we, ९ खआन्निखवाखेति we | चण, छण च । uy मण्डतिगच्डे चेति र पश्च थ बलंयेदिति ख०, Mo, we, गम, So @ | Ce च| ५ मेषादिराशिभिरिति ore | tr अरम्निपुराे [ १२७ wars: | हितीयो मङ्लोऽघाकः सौरिचैव तु सैहिकः, द्व्यनाशमलाभश्च Wwe भङ्गमादिशेत्‌ ॥ ४॥ सोमो बुधो खगुजोवो fetta शभावः | ढतोयस्यो यदा भानुः णनिर्भौमो गुस्तया ॥ ५॥ बुधशेवेन्द्‌ राख Wa ते फलदा ग्रहाः | बधशक्रौ चतु तु गेषाञैव भयावहाः ॥ ६ ।। पञ्चमस्थो यदा जोवः शक्रः सोम्यख Wear: | ददेत(९) Safed लाभं षष्ठं स्थाने शभो रविः \ ७ ॥ न्द्रः सौरि्ङ्गलख ग्रहा देवि खराशितः। FUG YAS. षटं त्यजेत्‌ षष्ठ गुरु ग्‌ ॥८॥ सप्तमोऽकः शनिर्भौमो राडइरहान्ये सुखाय च। MAN ATI सोम्य Wa चाष्टमो श्भो॥ < ॥ TAT TETSU हान्य WAY नवमो शभो । TAT हन्ये च लाभाय दशमो भृगभास्करो ॥ १०॥ शनिर्मौमख WHA चन्द्रः सौम्यः शभावः | WHAT सव्वं वजयेहशमे(९) WARN ११॥ अधशक्रो ETE शेषान्‌ हाद णगास्यजेत्‌ | अहोरात्रे CTS A राशयस्तान्‌ वदाम्यहम्‌ ॥ १२॥ मोनो भेषाऽथ भिथ॒नञ्चतस््नो नाडयो ठषः। षट्‌ ककंसिहकन्धाख तुला पश्च च हिकः ॥ १२॥ ` धमुनक्रो घषटचैव सुगो राशिरादयकाः। १ ददातोति we | > च | २ बजयेदष्ममिति Go, A>, चम | [ १२८ अध्यायः | कोटचक्रकधनं | ६९ चरख्धिरदिःस्रभावा मेषाद्याः स्ययंधाक्रमम्‌ ॥ १४॥ HAT ARTAI तुलाभेषादयखराः | GUHA जयं AAATATA शभाशमम्‌ । १५॥ स्थिरो हषो हरिः कुम्भो हिकः खिरकाभके । ie: समागमे नास्ति रोगात्तौ नैव सुष्यते ॥ १९॥ मिथुन कन्यका मोनो aaa हिःखभावकः। दिःखभावाः इभायेते सवकाय्ये षु नित्यशः ॥ १७॥ ` याव्रावारिन्धसङ्न््रामे विवाहे UAT | afe जयन्तथा लाभं Ae जयमवाग्र यात्‌ ॥ १८॥ प्रश्नौ विंशताराश्च तुरगस्याक्तियधा। यद्यच कुरुते वष्टिभेकराच प्रवषति ॥ १९ ॥ यमभेतु यदा ष्टिः पचभेकन्तु वषति। THM महापुराणे युदडजयाणवे नानावलानि नाम सप्तविशत्यधिकशततमोऽष्यायः ॥ ` अथ अष्टा बिंशत्यधिक शततमो sara: | के अक, OO nae See ” = ae कोटचक्रम्‌ | fat उवाच | कोटचक्रं प्रवश्ामि wate gt लिखेत्‌ | चतुरस्रं GUUS THA चतुरस्रकम्‌ ॥ १।। पम्निपुराखे [६२८ अध्यायः I aretfanafaster मेषाद्याः पूवदिरमुखाः | कत्तिका पूवभगे तु अद्ध षाम्नेयगोचरे ॥ २॥ भरणो दचिरङे हेमा विशाखां मऋते न्यसेत्‌ । अनुराधां पञ्चिमे च अवख वायुगोचरे ॥ २ ॥ धनिष्टाश्ोत्तरे ae Qurai रेवतौ' तघा | वाद्यनाडयां खि तान्येव श्रो दयत्ताणि यत्रतः ॥ ४॥ रोहिणोपुष्यफल्गुन्यः सातौ AST क्रमेण qt शरभिजिष्छततायातु अश्विनो मध्यनाडिका॥५॥ RITA Fat नाडो कथयामि प्रयब्रतः। सगखाभ्यन्तरे YA ATMA YA: ॥ ६ ॥ उत्तराफरगुनौ याम्ये चित्रा नेक्छंतसंख्िता |. मूलन्तु पिमे न्यस्योल्तराषाढ्ान्तु वायवे ॥ 9॥ पूर्वभाद्रपदा सोम्ये रेवती $णगोचरे | कोटस्याभ्चन्तरे नाडो द्यसाष्टकसमन्विता ॥ ८॥ अद्री हस्ता तथामाढा चतुष्कश्चोत्तराचिकम्‌ | HA स्तच्च चतुष्कन्तु दद्यात्‌ MSA MST ॥< ॥ एवं दुस्य विन्यासं वाद्य स्थानं दिशाधिपात्‌ | MAGA यदा AVI ऋक्षवान्‌ खात्फलान्वितः ॥ १०॥ MTA ग्रहाः सौम्या यदा ऋक्षान्विताः Ga: | जयं मध्यखितानान्तु भङ्मागामिनो fag: ॥११॥ naun प्रधेव्यं निग मभे च निगमेत्‌। भगुः NAAT भोम WT सकलं यदा tl १२४ तदा भङ्गः विजानोयाखखवमागन्तुकस्य च | [१२९ अध्यायः | ` महाघकधनं | - ६३ प्रवे चतुष्के तु सङ््रामच्चारभेद्‌ यदा । ११॥ तदा fayifa aga नं gatwa विस्मयम्‌ । nN ~ € $ इत्याग्नेये महापुराणे युदजयाण्वे कोटचक्र ATATST- विशत्यधिकश्ततमोऽध्यायः॥ शयोनचिंश्दधिकशततमोऽध्यायः। 4 ~~~ ~~ अघकार्हम्‌ । fae ware!) sear प्रवश्यामि उल्क(पातोऽघभूबला | निघातो ग्रहणं वैशे दिशां दाहो भवेद्यदा ie i लच्येासि aad येते wae चैत्रके । भलदहगरादि wey षड्भिन्भासेखतुगु णम्‌ ५२ ॥ ~ ~ ° @ ५ वैशाखे चाष्टमे मासि षड्गुणं सवं सछमग्रहं | wags मासि तथाषाढे यवगोधूमधान्धकेः ॥ ₹॥ MAS ततेलाव्पे fay Tears: | ~ हतास । ५ कार्तिके घान्यकेः क्र RATATAT ॥ ४ ॥ । [० न्धायेज्ञाभो A =` ya कुद्मग धान्धेख माघके | Ba नित । । । गन्धाद्यः फाल्गुने MATA SAWCT ॥ ५॥ THAT महाषुराणे Weare ara जनजरियदधिक- अततभोऽध्यायः | Qoe= ae अथ faye धिकश्ततमोऽध्यायः | धातचक्र | fat उवाच । मण्डलानि प्रवश्यामि चतुर्दविजयाय fe | + ॐ कत्तिका च मघा पुष्य पूर्व्वा चेवतु फल्‌ गुनो ॥ १॥ विश्रासवा ATT चेव पूवेभाद्रपद्‌ा तथा | श्राग्नेयमण्डलं भद्रे तस्य Tafa लक्षणं ॥२॥ ~ 6 , ¢ VITA Tae वायुव्बटनं शशिस॒य्ययोः | भ्रूमिकम्मोऽथ निघातो ग्र्णं चन्द्रसूखयोः ॥ २॥ ~ „~ ॐ © ध्‌मच्वाला दिशां दाहः कतोखव प्रदशन। CaaS घोपतापः पाषाण्पतनन्तधा ॥ ४॥ नेतरोगोऽतिसारख अग्निख प्रबलो भवेत्‌ । ` सखल्पर्तो रास्ता गावः सखल्पपुष्यफला FAT: ॥ ५। विनाशञेव शस्यानां quate विनिदिं त्‌ । aaa (9९ | । ! प्रपोडयन्ते Garant अखिला नराः ॥ ६॥ x | ॐ a संन्धवा यासुनास्चव गुष्णका भोजवादह्धिकाः। जालन्धर च काश्मोरं सप्तमद्योत्तरापथम्‌ ॥ ७ ॥ aurea विनश्यन्ति तस्िनरस्या तदशंने । इस्ता Hae Aa Aral खगो बाथ FATE ns उत्तराफलगुनो चेव haat च तधैव च । [१३० अध्यायः। AWARAA | ९५ aera waa’) किञ्चिहायव्यन्तं बिनिर्दिंमेत्‌ ven ACI प्रजाः Gat हाहाभूता विचेतसः + (हलः कामरूपञ्च कलङ्कः कोशलस्तथा ॥ १०॥ शरयोध्या च waa च नश्यन्ते कोड्णान्धुकाः | WAT चैव मूलन्तु GAAS तथेव च॥ ११। रेवतौ वारुणं Waa भाद्रपदोत्तरा | यदात्र चर्लते(र) fafgered तं विनि थेत्‌॥ १२१ जडइच्योरष्ता मावो बडपुष्यफला Far: | आरोम्धः तत्र जायेत बहशस्या च भेदिनौ।॥ १३॥ धान्यानि च संमघानि afd पार्थिव भवेत्‌, परस्र नरेद्राण सङ्ग्रामो दारुणो WA ॥ १४॥ st WDA चैव ्रतुराधा च वैष्णवम्‌ | धनिष्ठा चोत्तराषाढा अ्रभिजित्‌ सपरमन्तथधा ॥ १५ ॥ यदात्र aaa’) किञ्चिन्‌ arte’ तं fafatena प्रजाः समुदितास्तस्मिन्‌ सव्वरोमविवल्निताः ॥ १६१ afar’ कुवन्ति राजानः सुभिक्तं पार्थिवं Way | ग्रामस्तु दिविधो ज्ञेयो सुखपुच्खकरो महान्‌ ॥ VON wal राइस्तथादित्य cam यदि fea’) | सुखभ्रामस्त विञ्चेयो alas gee उच्यते ॥ १८ ॥ १ यद्यत्र भवते ciate] 9 यथा fara इति we, Ho, ao, Go, Bo @| २,३ यद Bua दति we | vert सित इति ao, He FT (<) ६९ अम्निपुराणो [६२१ अध्यायः । भानोः पश्चदओे Wa यदा चरति चन्द्रमाः fafaeee™) तु ware सोमभ्राम fafafetqu een इत्याग्नेये महापुराणे युदजयाणवे AGA नाम-त्रिंशद्‌- धिकणततमोऽध्यायः ॥ HARA शदधिकशततमोऽध्यायः। ---> 4० << -- घातचक्रादिः। bat उवाच | प्रद्िशमकारादौन्‌ खरान्‌ पूव्वोदितो लिखेत्‌। चत्राद्यं मणाश्क्र' प्रतिपत्‌ पणिमा fafa: १॥ योदभो VATA अष्टम्येका च सप्तमौ | प्रतिपतच्चयोदश्यन्तास्तिघयो दादश GAT ॥२॥ चे्रचक्रतु संस्पर्थान्नयलाभादिकं विदुः। विषमे तु शभ Sa समे चाशभमोरितम्‌ ॥ ३ ॥ युहकाले समुत्पन्नं यस्य नाम च दाहृतम्‌ । माचारूढन्तु यन्नाम आदित्यो गुरुरेव च ॥ ४॥ १ निंचिमभेदे tia we) ` [ १३१ अध्यायः । चातचक्रादिंकधघनं | ६०. जयस्तस्य सदाकालं TEAR चेव मोषे । स्वनाम यदा योधो fad इनिवारितः(९) ॥ ५॥ प्रषमो eta आआादिखो feat सध्ये wars: | Bl AAA प्रथमान्तौ AAA नात्र TAA ६४ ` Yara यदा Wer) खरारूदन्तु दश्यते | स्वस्य मरणं विद्याद्‌ Seas जयो भवेत्‌ ॥ ऽ ॥ नरचक्र' प्रवच्छामि we frag यथा | प्रतिभामालिखेत्‌ ya warearia विन्यसेत्‌ ॥ ८॥ भ Nhe सुखे चेक हे we नेत्रयोन्धसेत्‌। वेदसरख्यानि ₹स्ताभ्यां कणे ऋचचदयं पुमः ॥ ८ ॥ wea भूतसङ्ख्यानि weenfe तु पादयोः | नाम WS AS BT चक्रमध्ये तु विन्यसेत्‌ ॥ १० ॥ भेजे शिरोदल्षकणं याम्यहस्ते च पादयोः छद्‌ ग्रौवावामहस्त तु YAU तु पादयोः ॥११॥ यस्मिवृच्वे स्थितः aa: सौरिर्भौमस्त सें हिकः | तच्िन्‌ स्थाने खिति विद्याद्‌ घातभेव न संशयः ॥ १२॥ जयचक्रं प्रव्यामि श्रादिष्टान्तांश्च वे लिखेत्‌। रेखास्त्रयोदशालिख्य VE सखतास्तियंगालिखेत्‌ ॥ १३ ॥ दिग्‌ ग्रहा सुनयः स्य ऋखिवग्रद्रस्तिथिः क्रमात्‌ । = मृष्छंनासतिषेद चंजिना(९) अकडमा ह्यधः ॥ १४ A रा ९ जिषे विचारित इति eo, । मियते २ यथा यादो दति mo, To, च०,७०च | eafaarca इति म०, to, SoG! २ मृच्छ नाृतिषेदा जिना दूति He | a= ee अम्निषुरासे [ १२२ अष्यायः। ्रदित्धाद्याः सप्तद्रते नामान्ते बलिनो ग्रहाः | - आदित्यसौरिभौमाख्या जये सौम्या सन्धये ॥ १ ॥ रेखा दादश चोहत्य षट च याग्याग्तथोत्तराः। ayaa a’) ऋक्षाणि मेवे च रविमण्डलं ॥ १६॥ तिथयश्च रसा वेदा अग्निः सप्तदशाधवा । | वसुरन्धाः समाख्याता अकटपानधो न्यसेत्‌ ॥ १७ CHARAN शेषा स्ये वलः क्रसान्‌ न्यसेत्‌ | ararataa पिण्ड वसुमिभाीजयेत्ततः॥ १८४ ` TAM ACAI AWS ATA वरः । ¦ रासभादुषभः जडो ठवमात्‌ FRC AT ॥ १९ fi quatre पुनः; सिंहः feersa खरुवरः । | खरो येव बलो we: एवमादि बलाक्लं ॥ २० tt दूत्यामनेये महापुराणे घातचक्रादिनामेकविंशदधिकः शततमोऽध्यायः ॥ | अथ दाचिंशदधिकशंततमोऽध्यायः। 00g सेवाचक्र । fat उवाच | Marea प्रवच्यामि लाभालाभानुसचकं(र) । पितामाता तथा watat sarah च विगरोषतः॥१॥ 2 MEA G CPT Ge, Be, Mo, SoG |X जाभाश्ाभायसूचकमिति क ०अन्व। [१३२ अध्यायः | सेवाचक्रकधन | ee afaam तु fasta यो यस्माज्ञभते फलं | weal? स्थापयेद्रेखा भित्राघाष्टौ तु तिगाः॥२॥ कोकाः पञ्चतिशच्च तेषु वर्णान्‌ समालिखेत्‌ । स्वरान्‌ पश्च समुषत्य स्मन्‌ पथात्‌ समालिखेत्‌ ॥ २॥ ककारादिदकारान्तान्‌ होनाद्वनंस््ोज्विवव्नयेत्‌ | सिद्धः साध्यः सुसिशख भ्ररिखत्यञ्च नामतः ॥ ४॥ aftaara हावेतौ वर्जयेत्‌ waaay | एषां मध्ये यदा नाम ल्तयेत्त प्रयब्रतः ॥ ५॥ श्रामपक्ते(\) खिताः सवाः सवं ते शभदायकाः | हितीयः Tanda ठतौोयषाथेदायकः ॥ ६ ॥ श्राक्ना Taq) पञ्चमो मृत्यदायकः | द्यानमेवाथलाभाय faawarfeataar: ॥ ७ ॥ सिचः साध्यः afaea सव ते फलदायकाः | अरिखत्यञ्च erat वजयेत्‌ weedy?) ॥ ८ ॥ WHT यचा प्रोक्त Wea विदुस्तथा । पनशेवांशकान्‌ वश्ये वगोषटकसुसंस्क तान्‌ ॥ < ॥ देवा अ्रकारवगतुदत्याः कवगमायिताः नागाश्चैव चवर्गाः स्युगेन्धर्वाखच टवगेजाः ॥ १० ॥ ९ BUTE एति Ge, Wo, ज ^, HoT! "Mo, अ०च। qiaay ईति Wo | ३ अरिम्‌ त्यरित्यादिः, सर्वंकल॑सु ९ खाथेनागरख्तुर्थस र्ति Wo, घण, Go, TUM पाठः we Gas aS | ७० अम्मिवुराशे [११२ भध्यायः। तवे ऋषदः प्रोक्ताः पवग राक्षसाः BATS | पिश्ाचाच्च यवगे च शवगं मानुषाः MAT: ५ ११॥ देषेभ्यो बलिनो दैत्या दे त्येभ्यः प्रगास्तघा(९)। पत्रगेभ्यख गन्धवा मन्धर्वादषयो वराः ॥ १२॥ ऋषिभ्यो राक्षसाः शूरा राक्षसेभ्यः पिशाचकाः। पिशाचेभ्यो मानुषाः स्वदुबलं वजंयेदलौ ॥ १३ ॥ पनश्िच्रविभागन्तु ताराचक्रं RAT | | ९ नामाद्यचरखचन्तु KE HAT तु पूवत: ॥ १४। ऋचे तु सस्थितास्तारा नवत्रिका यथाक्रमात्‌। जग सम्प्रहिपत्‌ SA नामर्तात्तारका इमाः ॥ १५॥ VAT WAST षष्टी TIAA A परे | परमेचरान्तिमा तारा AAA तल्शोभना।॥ १६॥ सम्पत्तारा aerasr विपत्तारा तु निष्फला | SAAT सव्बकार्थे प्रत्रा श्रधंनागिनौ(र) ॥ १७॥ धनदा राज्यलाभादि नेधना कायनाशिनी। HIATT च मित्राय परमित्रा featawi(®) «esa ताराचक्रं | मात्रा वे खरसचजच्रा स्याव्राममध्य चिपेत्‌ प्रिये । विंशत्या च Wisi यच्छेषं तत्‌ फलं भवेत्‌ ॥ १९. ॥ उभयोत्रममष्ये तु TAIT धनं WT । SATA WE श्नेयन्धनं माचाधिकं पुनः ॥ २० ॥ १ पञ्जमाख्त दनि He, Ae, घ०, Bo, २ प्रत्यरा खाद्मनाधििनी इति Wo | अण्च । पञ्चमाः agar xfs we | ३ हिताय चेति we | [१३२ wera नानाबलकथनं । ७! धनेन मिता aut ऋरेनेव चयदएसता । खेवा चक्रमिदं प्रोक्त लाभालाभादिदशंकं॥२१। मेषमिधनयोः प्रोतिमत्रौ भिधनसिंहयोः | तुलासिंहौ महामेन्ौो एवं धनुघटे पुनः ॥ २२॥ faatai न gala मित्रौ alarm मतौ | वषकर्कटयोर्मेची कुलोरघटयोस्तधा ॥ २२॥ कन्याहधिकयोरेवन्तधा मकरकीटयोः 1 . मौोनमकरयोर्मतौ ठतीयेकाद्थे खिता ॥ २४। तुलाभेषो महाम विदिष्टो ठषहखिकौ | मिधनधनुषोः Gta: ककटमकरयोस्तथा ॥ २५॥ WAU: प्रौतिः कन्यामोनौ तथैव च । ` इव्याग्नेये महाप॒राणे युखजयाशंवे सेवाचक्रं नाम दाति शदधिकशततमोऽध्यायः॥ किसर अथ चयस्लि शरदधिकंशततमोऽध्यायः। नानाबलानि | tat उवाच। गभजातस्य बच्यामि सेवाधिपसखसरूपकं। नातिदौषः क्षणः खलः समाङ्गो मौरपैतिकः ॥ १ ॥ © | अग्निपुराणे [१३३ अध्यायः । THA गुणवान्‌ शूरो गह Bs जायते। सोभाग्यो मदुसारख जातखन्द्रडोद्ये॥२॥ वाताधिकोऽतिल्‌ खादिजातो भूमिभुवो Ze । बहिमान्‌ सुभगो मानौ जातः सोम्यग्टहोद्ये॥३॥ ACMA शुभगो जातो FAS नरः | त्यागो भीगौ च सुभगो जातो ख्गुग्होदये।॥ ४॥ बदिमप्च्छ्‌भगो मानौ जातखाविटहे नरः | सौम्यलग्ने तु सोम्यः स्यात्‌ FCT स्यात्‌ क्रूरलम्नके ॥ ५ ॥ दशाफलङ्ोरि वश्ये नामराशौ तु संस्थितं। गजाशखधनधान्यानि राज्यो वि gat भवेत्‌ ॥ ६ ॥ पुनधंनागमचापि दायां भासकरस्यतु1. fearater चन्द्रद्शा भूमिलाभः सुखं कुजे ॥ ७ ॥ afauta wa बोधे गजाशादिघनं गुरौ । BATA शक्रे शनो व्याध्यादिसंयुतः wen खा नसेवादि नाध्वानं वाणिन्य' gens । ` वामनाडोप्रवाहे TATA चेदिषमाक्षर॥ < ॥ तदा जयति सङ्ग्रामे शनिभौमससे दिका; | दचनाडोप्रवाहेकं वाणिज्ये चैव निष्फला ॥ १०॥ सङ्ग्रामे जयमाप्नोति समनामा नरो ध्रव, अधश्चारे जयं विदयादृष्ेचारे रणे afa ॥ ११॥ Ste Ht शं Gwe मोटय(९) चों च्यर्‌ a सव्वेशतुं HEAR Vise whe: फट्‌ । | ९ मोचयेति Wo, wo च| [र [९११ wera: | युदजयाणंवौयनानावलकथमं । ७३ सवार ख्वे्मन्व' ष्यालामानन्ु भेरवं । अतुभुजन्दशसुजं ATCT ATTA शभ ॥ १२॥ शरलखटुदहम्तन्तु award | WES परसेन्यानामामसेन्धपरारसुखं ॥ १२ + SUS TIGA शतमष्ट र जपेत्‌ | जपारडपरकाच्छन्दाच्छसत्र त्यत्का पलायते ॥ १४॥ > 9 ° was © । । परसन्य TT UE प्रयोगेण Faas | ग्मशानाङ्गारमाराय FAST STATHAM: । १५॥ ऋर्पटे प्रतिमां लिख्य साधष्वस्यवाचरं यथा । नामाय नवधा लिय रिपोचेव यथाक्रमं ॥ १९॥ © ~ ~ aie वक्त ललाटे च wes रुद्मपादयौः। We तु बाइमध्यंतु(९) नाम वे नवधा लिखेत्‌ # १७ + मोययेदयदकाले तु(र) उच्चरित्वा तु विद्यया । a e | @, rs araram प्रवच्यामि ware चिमुखाशरं (१) ॥ १८॥ faa Gt ater तामा शवरोगविषादिनुव्‌। दु्टभतग्रहा खय व्याधितस्वातुरस्य च ॥ १९ ॥ करोति arenes aren सिते gary । erat arate लता ऊंननिमं विषं॥२०.॥ awa नाशमायाति ५) साधकस्वावलोकनात्‌ | १ काङमृरे तुरति ब०।. १ जयाय" मूमुखाकरकिलिः wo, a, २ भोचवेखुद्कारे त रति ae, Wo, To, कर, Mo, We च | we च। * नाद्नाणोतीति ग । १० ७४ ` अभम्निपुरारे [ead wera: | नर्ध्वायेहाताश्य feag areata ॥ ३१ दिसंज वक्रं चश्च च(९) गजक्रद्धरे प्रभु । असखूख्योरगपाद सधमा गच्छन्तं खमध्यतः ॥ २२॥ श्रसन्तश्चेव खादन्त" Fea wea रिपून्‌ 1. चच्छाषतांच द्रष्टव्याः केचित्पादेख चणिताः॥ २१), qagaatwara केचिन्नष्टा दिशौ em | साच्ष्यानान्वितो यञ्च लोक्यं worgy भवेत्‌(र) ॥२४॥ पिच्छिकान्तु प्रवच्यामि मन्रसाधनजां क्रियां। ` श्यां पिन्‌ faq Siw सः महाबलपराक्रम सव- सेन्ध' waar St azar at ada, Gi विद्रावय Fi ख, भां भरवों ज्ञापयति खादहा | ` अमुश्वन्द्रग्रणे तु wager तु पिच्छिकां ॥ २५॥ wade Wradaar ware गजसिंहयोः | ध्यानाद्रवान्‌ मदयेश्च fewest खगाविकान्‌ ॥२६॥ weer प्रवच्थामि दूरं मन्वेण() बोधयेत्‌ | | माढ्थां चरश्कं ददात्‌ कालराचा विेषतः॥२९॥ ज्मा नभसखसयुक्ष' Area चामरो तथा(*) । ` कार्पासम्‌लभाजरन्तु तेन दूरन्तु बोधयेत्‌ ॥ रदं ॥ ओं अंशे है wefe we aefe wa fe dt जहि मसानंहि खारि aris fafa fafa tig ae, ९. away चेति ao, Fo, Go, Ho Ql Yo, Mo, Ho gt २ अभयो भवेदिति ae, Ho, Fo Gl ४ सारतो वानरो aus wo, we) १ wena ofa ae | मशमन्धयति ख, [१३२ अध्यायः, युडजयाण्दौवना गाबलकथनः | वि TAT दूरशब्दाल्नप्तया APTA | . अपराजिता च धस्तरस्ताभ्यान्तु तिलकेन fe २९ ॥ किलि किलि fafafe इच्छाकिलि भूतनि wefafa उभे दर्डइस्त रोदि माहेश्वरि versie उ्बालामुख्ि शद्ुकख शऋष्कजडङ्न्धे अलस्वपरं हर wi स्वदुष्टान्‌ wa wf य्मातरिरो्षये्टवि तांस्तान्‌ area Wi qua wea fear afe सोम्येन waa श्रासरक्तान्ततः कुर स्राहा। ` aaa माद; सलिख्य सकलाक्षतिषै्टिताः। नागपच (१) faafeat सर्वकामाथसाधनीं ।। १०. ॥ हस्तादौ दारिता पूवः ब्रह्मरदेन्द्रबिष्णुभिः। गुरुसङग्रामकालेः तु विदथा रचिताः इरः ॥ ३१ ॥ र्या नारसिंद्ा चमेरव्या शक्तिरूपया + = सवं चर लोक्यमोद्िन्या गोग Sarge TH ॥ Vz ie वीजसम्परितं नाम करिकायां दलेषु च! पूजाक्रमेण चाङ्घानि Tara (र) स्मतं Wan ३२-।। waar yaaa नामसस्कारमध्यग। कलाभिवषितं पात्‌ सकारेण निबोधितं 1 88 i अकार विन्दुखंयुक्तशओङ्ारण समन्वित | | धकारोदरमध्यस्थ वकारण निबोधित(९)।॥ १५॥ १ aaa tfa de, अण्य। चकारः Caw चकारेति म न्क -- २ 'रच्ामन्छभिति ख, Ho, Se, SoG) We qe: stacey ठका- ९ ककारोदरमष्यद्यः चकारेति ख । Tif, me ey: ७९ [र अभ्निपुराणे ` ` [१३१ sara चनद्रसभ्यटमधभ्वसं सव्वं दुटविमदं कम्‌ (९) | अववा करिंकाया्च लिखेन्नाम च कारणम्‌ neg पून दशे तथोदरं UTA चोसरे लिखेत्‌, UMA च KETC षोडशके SUA! 29 ॥ चतुश्र काद्यान्‌ are मन्त्रश्च सत्यजित्‌ । लिखेदमलपवर तु रोचनाङ्खदमेन च॥ र८॥ कपूंरचन्दनाभ्या ख न्वितसूतरेण वेष्टयेत्‌ | सिक्थकेन परिष्छाद कलशोपरि पूजयेत्‌ ॥ ze ॥ यन्रखख(९) धारण्डद्रोगाः शाम्यन्ति रिपवो afar: | frag tad wa विप्रयो गखते हं रौ (९) ॥४०॥ at वाते वितले विडालमुखि cagf उहवो arge?- a खोलि श्राजौ ero मयि are verfe दुःखनित्यकष्डोचेमु- ऋतन्बवा अद सां aay surfs भां भलखि Ti aren नवदुर्गा सप्तजपास्म SAA सुखखितात्‌.1 wi af sie wz खाहा। WEIR सप्तजप्तं तु GRAesatifae, ॥ ४१॥ इत्याग्नेखे महापराणे युहजया शवे नानाबलानि नाभ तयस्िशदपिकथततमोऽध्यायः॥ _ @ faneafafa : beac CeCe Ataf ५ es < : १ खवदुःखविभदकमिति are | ` ~ ३ रिपृरोभरमृतेशटोकिति ae ao, ९ WME Ho, We, To, ४० च| T>, Bo, Wa, Moy अथ चतुस्तिंशदधिकशततमोऽध्यायः। "सतर -- वेलोक्धविजवविश्या | fore उवाच । अ लोक्यविजयां व्ये सरगवयन्तविमरहिंनौ(९) | wid a x भां नमो भगवति द्िषि मौमवक्घं महो wea fafa हिलि रक्षने किलि किलि मह्ानिखने ge चां frafenk ga श्र Prats कट कट गोनसाभरसे चिलि चिलि शवभालाधारिखि द्रावय श्रां aerate साद्रंचकज्ञताच्छटे(र) fana St sa श्रसिलताधारिणि भङुटोकतापाङ्क विषमनेन्र- watat बसमिदोविलिप्तगाते ae २ भ्रां Far ATR a नौखजोमूतवरं wmaararaaracs विस्फर TW घण्टार qraarees श्रं fafa श्ररुणवसख Tt si sf क रोद्ररूपे छः vt at Stet os ot भाकष aware TE: श्वः afafe gia ai क्रोधरूपिखि प्रञ्वलर at भोमभोषणखे fire at महाकाये fee st करालिनि किटिर महाभूतमात सव्वदुष्टनिवारिखि जये भ्रां विजये भ्रां चर लोक्छबिजये इ फट्‌ eer eRe ९ शनं मनपिसदिनोलिलि we | २ GRAM तपे तिं we | [र Oc afagqua [११२५ भरष्यायः। Ararat पे तसंख्धां विं गहस्तां ares ॥ १ ॥ न्यास KATY IMP Cageitsa होमयेत्‌ + सङनधामे सैन्यभङ्गः स्वात ब्र लोष्यविजयापठात ।, २ ॥ wt बहरूपाय aa स्त्य it मोहय Tt सव्बशत्रन्‌ द्रावय श्र ब्रह्माणमाकर्षय विष्णुमाकषेय Wt माहेष्वरमाकषय So टालय owt पवतान्‌ चार्य wt सप्तसागरान्‌ शोषय wt fer छिन्द बदुरूपाय नमः। भुखङ्कव्रामख्ा fade विद्यादरिन्ततः । .. इत्याग्नेये मदहायरारे Fens a लोक्यविजयविखाः नाम "तुश्जनिशदधिक शततमोऽध्यायः अथ पच्चननि शदधिकशततमोऽध्यायः। सहःमविजयविशख्या | far दवाच |. सङ्ग्रामविजयां विद्यां पदमाला वदाम्यहं , शो छौ चामुण्डे उमशानवासिनि aera’) १९ खखमकप्राखर्ख्छ इति We | [११५ Weta: ) युषठजयारुवौीयसङ्गमजवबविद्याकधनं । ९ weitaaares महाविमानसेमाकुसे कषालरातरि महागणपरि- - हैते HUES बेडमुजे ` घण्टाङ्मरकिदिणोश्रटाृ्टासे किलि fafa dt gy फट्‌ दं्टाघोरान्धकारिणि नादशब्दबहुले गजवच्ध- ` ध्राहतश्ररौरे मांसदिग्पे लेलिरानोग्रशिद्ध wercafe रद्र SVINTIA भोमाद्राटहासे स्फरदिद्तप्रमे चल चल श्रं चको Cat चिलि चिलि भो wafert श्रं भी सकुटोमुखि इङ्ार- भयत्ासनजिक्रपालमालावेटितजटासुक्ुटशश्ाहधारिशि अटाह (से किलि fafa ots दषटटाघोरान्धकारिखि सव्ववित्रविना- fafa ve कग साधयरे wt गोघ्र कुरर भां फट. at अह्यो शमय naw आं CF tr कम्पयर्‌ श्रां चालय रां रंधिरः मसिमंयप्रिये eae wt ger St fee Taree St अगुक्रमयं St वजशरोरेम्पातय(९) भां a लोक्यगतम्दटमदुर्ट-वां weiter awzela वाभ्ावैशयभां aa Sia भ्रां कोटरासि agai Seanad acfefe Hi aceararafida ee at पचर Tiwy शरां मण्डलमध्य dang ai किं विलम्बसि awaaa विष्युरससत्येन र्दरसत्येन चरषिसत्येन sada ar fafa fate art fafa fafa विलि fafa th faaaecarizfe कष्णभज- wafeanae सर्वग्रहावेशनि प्रलम्बौषठिमि भ्वभङ्गलम्ननासिके विकटसुंखिं कपिलजटे acter wea’) भा व्वालामुखि(र) १ WERT पातयति ख०। सङ्रशरौर we | घातयेति ae, ew Re TETefe इति ae, ९ Sfrwazwitie wmwdis he espe | co अम्विपुराफे [eau wera: खन भेतपातय चं cafe eda भूमिं waa at गिरोह aqeufaa wt इस्तपादो wu सुद्र स्फोटय Wt फट्‌ भां विशारय Wit faye च्छेदय Vata इन Tt cea ताडयर्‌ Wt eae Wear भं aaa भेदय द्या we at क्िकया पाटय St अर्ुभेन aw भो भिरोचिजुरमेकाहिक eufes व्रपाहहिकच्यातुर्थिकं डाकिनीस्कन्दग्रान्‌ qa ay Vt awit उन्धादय wt भमिं पातय vit we ब्रह्मासि एडि at माङष्यरि एहि Tt कौमारि ufe भो वेष्यवि uty वाराहि ufy wt Gfx ufe wt चासुख ufe wt रेवति णड at चशाशरेवति ufe wt हिमवश्चारिणि ufe wt इड afefe असुरक्षयङ्करि श्राकाशगामिनि ate बन्ध बन्ध अदूतैन कटर समयं fae i मण्डलं Wane ओं WH YS अ Wi चच॑न्य हस्तपादौ च बन्ध दुटग्रहान्‌ Tay a ओव दिशा wa Ti विदि बन्ध अधस्तादन्ध भ्रां सव्व बन्ध at sum पामौचेन वा सृत्तिकया सर्षपेग्य सर्वामाते्य St पातय at खासुण्डे किलि किलि भ्रां fray फट्‌ खाहा। पदमाला BUTS सव्वेकचप्रसाधिका ॥ १ ॥ खम्बा WANA :पाटाख्स रद जयः | अष्टाविं सुजा स्थेया असिच्छेटकवत्करो(*) ॥ २॥ गदाद रयु ते(९) AWAY श्र चापथरो परो | १९ अरिषठेडककत्‌काराभिि We) २ नद्‌ाशुष्ठशुनो इमि ate | अविेढकनरकःरो इति ज, । {१.२६ अष्वायः। नच्च बचक्रकथ्म। सष मुषटिमुद्ररयुक्षौ च(\) शङ खडगयुतो परो.॥ २.५ | ष्वजवखधरो चान्धो सचक्रपरशू परौ। SACTT UTA च शक्तिकुन्तधरौ परौ ॥४॥. । इलेन सुषलेनाक्ौ पाशतोमरसंयुतौ । . ठक्षापशवसंयुक्तो अभयमुिकाज्ितौ(२)॥५॥. - AMAR च महिषं घातनौ होमतोऽरिजित्‌ । ` जिमध्वाक्षतिलेहामो न देया यस्य कस्य चित्‌ ॥ gu इत्याग्नेये महापुराणे युदजयाशंषे agrafaaafaar नाम ४ पद्यतरिशदधिकशततमोऽध्यायः अथ षरजिःशदधिकशततमोऽध्यायः। -->000>---~ `. नन्तत्रचक्र | hat vara | श्रथ चक्र प्रवद्यामि यावादौ च फलप्रदम्‌ | अश्विन्यादौ लिखेशक्र तिनाषौपरिभूषितं॥ १॥ अश्िन्धाद्रौदिभिः gat ततच्ोन्तरफटगुनो | दस्ता IST तथा मूलं वारुणं चाप्यजेकपात्‌ ॥ २ १ मुषिमङ्करसंयक्नो इति se । षटि- कर, We] अभयलम्िकान्वि- मद्रर्थुक्णो चेति ज | लो इनि ज. । २ अभयखस्तिकान्वितो इति खः, ग०, So, ( ११ ) ~ ER ufaqgers [११२७ weara; t नाशय प्रमा चान्धा वाम्य Afacear | पुष्य भाग्वन्रधा fear मेजश्चाप्य' च वासवं ॥ २॥ ufead ठतोयाघ अत्तिका रोहिणो wife: | fear arnt विणाखा ख खवणारेवतीचमं॥५४॥ नाष्टौजितयसंज CANT शेयं चुभायुभं | चक्रष्फ सोश््रन्ततत(*) तरिनाष्ौपरिभूषितं ॥ ५॥ -रविभौमाकंराइखमश्यभं स्माच्छभं पर 1 दे्गब्रामयुता अ्राद्रभाथाखा कथः WaT: ॥ & ॥ भर,भ,छ,रो,ख,भाःपु.पुः्र,म,प्‌,उ,इ,चि,खा,वि+च.ज्ये,मू,पू+उ, । अ,ध,ग,पू,ख,र | अत्र सप्तवि श्यतिनक्षत्राशि Tar । ATMA ~ ५ e < महापुराणे युद्धजया णवे AIA नाम षट्‌ विश्दधिकशततमोऽध्यायः ॥ अथ BAA शदधिकशततमोऽष्यायः। ~~ ~ मशामारीदिद्या | dere ware) महामारी प्रवच्छामि विदां यनुविमर्िनीं | (4 THEN TCHS इति Ho, Yo, Go, Mo, Bo च| [ १३७ अध्यायः । मषटामारौविद्याकथनं | ८१ at et aerate cathe कष्णवणं यमस्यान्नाकरिशि सर्व्व भरूतसंहारकारिखि भ्रसुकं हनरे Vt THR परे Tt fever भां मारयर St उकादयर्‌ भां स्वव॑सस्ववशक्करि स्वेकामिके ह फट खाडेति। | | ओं मारि wearaaa: | St महामारि शिरसे ares ओं कालशाति शिखायै वौषट । ओं लष्णवरें सः कवचाय ु' । at तारकाच्ि विद्यवि स्वं सच्चभवडरि TAA स्वकार्येषु ST तिनेवाय वषट्‌ । ओं महामारि स्व॑भूतदमनि महाकालि Tala क फट्‌ | एष न्यासो Uefa ardor साधकेन तु ॥ १। शवादिवस्त्रमादाय चतुरसरन्तिरस्तवा | छष्णवणों भिव च agate समालिखेत्‌ ॥ २ ॥ पटे विचित्रवरथे ख धनुः शूलच weal’) | खटङ्गन्धारयन्तो च HUT पूवेमानने ॥ २ ॥ तस्य trefaaraa भक्षयेदग्रतो मर | दितौयं याम्यभागे तु cafes भयानकं ॥ ४ ॥ लेशिानं करालं च ठधोत्‌कटभयानकं | aw दृष्टिजिपातेन were हयादिकं ॥ ५॥ sata ख मुण्डं देव्याः Rare गजादिनुत्‌ | मन्धपुष्पादिमध्वाज्येः पचिमाभिमुष्डं यजेत्‌ ॥ ९ ॥ Xo सधटुःगूलकतुं कामिति ख ०, Ho, Fo, Fo, जर, Bo | — -अभ्निपुंराशे [१३७ Were: | wearmacaaaaacnte नश्यति | वश्याः MINAS नाशमायान्ति Ws: sv समिधो निम्बस्य worcsfafarrar: | मारयेत्‌ क्रोधसबुक्षो शोमादेव न संशयः us y परसन्धसुखो Wat सप्ताहं ज्याद्यदि । व्याधिभिग्यं ते सन्धन्भष्गो भवति वेरिशः॥< ५ समिधोऽटसदशखन्तु यस्य ara तु डोमयेत्‌ | अचिरान्‌ च्यते सोपि ब्रह्मणा यदि cara: veo 0 उश्मत्तसमिधो रक्षविषयुक्सशख का | feaaa ware नाशमायाति वे रिपः॥ ११५ राजिकालवखेष्ा माडक्रोऽरेः स्याद्‌ दिनव्रयात्‌ । ` खररल्षसमायुकहोमादुश्चाटयेद्िषुः ॥ १२॥ काकरक्रसमायोगाद्ोमादुन्ादनं Be: | बधाय कुरते सव्वं यत्‌ किञ्चि्नसेखितं ॥ १२॥ अध सृ ग्रामसमये गजारूढस्त साधकः । कुमारौदयसंयुक्ञो मन्सनत्र्विग्रहः ॥ १४ it «Bre खादिवाद्यामि विद्या ज्ञमिमन्तयेत्‌। महामायापट WY उच्छे्तव्यं Tasty १५॥ परसन्यसखो भूत्वा SHAG महापटं | .. कुमारोौर्भोजये्त् पयाचििण्छोख waaay ॥ १६.॥ साधकिन्तयेव्ेन्धम्माषाणमिव निखलं । निरुकाहं विभग्नञ्च सुश्नमानश्च भावयेत्‌ ।। १७॥ एष VY मया प्रोक्ता न देयो यस्थ कस्य चित्‌ । [ear रवयः) =| weaned cy वैलोक्विजया Aral TAA मैरवौ TAT ॥ १८ ॥ A afa परा | कनिका wat eat नारसिंहपटादिना | इत्याग्नेये मष्ापुराशे FEHMVCa ATTA नाम सप्तजि'गदधिकशततमोऽध्यायः ॥ अथाष्टचि'शदधिकशततमोऽध्यायः। Joyo षट्‌कमाणि । faq उवाच । षटकन्माखि प्रवच्छामि सव्वं मन्तेषु TST । भदौ साध्यं लिखेत्‌ ga चान्ते मन्तसमन्वितं ॥ १॥ awa: स तु fast महोश्ाटकरः परः । श्रादौ मनवः ततः साध्यो. मध्ये साध्यः FAUT ॥ २॥ योगाख्यः THAT SACRA योजयेत्‌ । ` आदौ BIST साध्य नियोजयेत्‌ ॥ २ ॥ YAGI (aaa साध्यं मन्त्रपदं पुनः |. ४ अम्बिपुराशे [१8 अध्यायः | रोधकः सम्प्रदायस्त स्तश्नादिषु योजयेत्‌ ॥ ४ ॥ अधो हृ" याम्यवामे तु.) war साध्यन्तु योजयेत्‌ । ware: सतु विन्नेयो वश्याकषेषु योजयेत्‌ ॥ ५॥ Haat यदा साध्यं प्रथितच्चाच्तरात्तर। प्रथमः सम्परायः स्यादाक्षटिवशकारकः। ६ ॥ मन्ास्षरदयं लिख्य एकं WAAL FA: | विदभः सतु विज्ञेयो वश्याकषेषु योजयेत्‌ ॥ ७ tt श्राकर्षणादि यत्‌ कख वसन्ते चेव कारयेत्‌ । तापज्वरे तथा वश्ये साहा चाकषणे शभ ॥ ८॥ नमस्कारपदच्चैव शान्तिहदौ प्रयोजयेत्‌ । ` पौशटिकेषु वषट्‌ कारमाकषं TANT ॥ € ॥ विदेषोच्चाटने wet फट्‌ स्यात्‌ ख्डोक्षतौ शभे | लाभादौ मन्त्रदीक्षादौ वषट्‌कारस्त falas: ul १०॥ यमोऽसि यमराजोऽसि कालरूपोऽसि FATT | मथादत्तमिमं wa मचिरेण निपातय ॥ ११॥. निपातयामि aaa निहन्तो भव साधक । संद्रष्टमनसा(९) ब्रूयाहेथिकोऽरिप्रख्दनः ॥ १२५ Ut War यमं प्राच्ये Fraser प्रजिद्चयति । श्ामानन्धेरवं ध्याता तती WA FATT 11.23 ॥ रात्रौ बारा विजानाति भालनख परस्य च । १९ अध ऊद याञ्यवामे tfa wel ९ सेरक्मनसेनि &e | [१३९ अध्याया । षटटिसंवत्सरकथनं | ce दुगं em रचणोति eat wralfowt भवेत्‌ ॥ १४५ HA हसन्तमलवरयुक्धेरवौः घातयेदरि । इत्याग्नेये महापुराणे युद्जयाणवे षटकर्माणि नामाष्ट- fanefwanaaatsara: | | अथोनचत्वारि शदधिकशततमोऽध्यायः। षष्टिसिवत्षराः । ईश्वर उवाच | षष्यब्टानां प्रवच्यामि शभाश्ममतः ZT प्रभवे anata feat सुखिनी जनाः॥ १॥ शक्ते च सवंशस्यानि प्रमोदेन प्रमोदिताः। प्रजापतौ प्रहिः स्वादङ्किरा भोगवश्ैनः।॥२॥ खौमुख वते लोको भावै भावः प्रवर्च॑ते | पूरणो पूरते शक्रो धाता सव्वौँषधौीकरः ॥ २॥ hae: Ga आारोग्यबडइधान्यसुभिच्षदः | प्रमाथौ मध्यवषेसत विक्रमे शस्यसम्पदः ॥ sn हषो बच्यति सवख चित्रभानु चित्रतां । uc a ्ग्निपुराखे [१२९ अध्यायः! . . स्वर्भानुः चेममारोग्ब' तारणे जलदाः शमाः ॥ ५॥ चार्धे शस्यखम्परिरतिठटटि at जयः। सवेजित्यत्तमा afe: सर्वधारौ सुभिक्षदः ॥ ६॥ विरीभौ जलदान्‌ हन्ति विक्ततख भयर: । ` wt भषेत्‌ पुमान्‌ वौरो नन्दने नन्दते प्रजा ॥ ऽ ॥ विषयः शत हन्ता च र रोगादि मेत्‌ | SATA AWA लोको दुष्कर दुष्करा प्रजाः ॥ ८ ॥ दुमुखे saat लोको(१) Saas न WA: | संवत्सरा महादेवि विलम्बस्त्‌ सुभि दः ॥ < ॥ विकारौ शत्‌ कोपाय विजये सवदा कचित्‌ । ` ga श्रवन्ति तोयानि शोभने कुभक्षतप्रजा ॥ १० ॥ रासे निष्ठो लोको विविध धान्धमानने | gate: fier कापि काले wait धनक्षयः nl ११। सिचा सिद्ाते सर्व्वं ` रौद्रे रौद्रं प्रवत्तंते। qua मध्यमा हि दुन्दुभिः चेमधान्यक्षत्‌ ॥ १२॥ खवन्ते रुधिरोद्ारो रक्ताक्षः क्रोधनो जयः | aa च्ौणधनोलोकः(र) षष्टिसंवत्सराणि तु ॥ -१३२॥ SAAR महापुराशे युद्जया वे ष्टिसुवसरराणि नाम अनचत्वारिशंदधिकणततमोऽध्यायः ॥ ट दुमुखे मुखरो खोक इति Go, 4°, 8, He FI ९ चौकधवो ata इति we सोखजनो रोक cit अ. WY चतवारि श्रदधिकश्रततम्पेऽध्ययः।+- चष्यादियोगाः 1 tazq उवाच, वश्य(दिथोगान्‌ः varia लिखेद्‌ eee लिमाम्‌। अङ्गराजः सखशदेवो\९) सग रस MSE TAT He I FAM ARAM चधःपुष्छा रुदन्तिका । कुमारौ र्द्रलटा(९) स्याडिष्छक्रान्ता थित्तोऽकंकः॥ २॥ AMI सहसत HUTA cara (२) । गोरसः MAST चद केषश्द्धयो We तच्छ Ks ऋत्विजो ६६ Teale mre WHR मुनिर कन्‌ः१ ४. जिवः ११ । वसवोट दिक ture केऽ ग्रह< तु 4 TAA चन्द्रसतः॥ ४ ॥ faqaae 4 waar काषधौनःं yer | प्रधमेन AAR धूथोदत्तनं घरं ।॥ ४ ॥ दतौयेनाच्नन FA WA कुधाच्चतुष्कतः | ङ्गराजागु खोक VAR eos स्मतं । ६ ॥ सुनयो दक्तिखे one gare: qa भुजगाः पादसंस्थाख tac afe संखिताः ॥ ॐ ॥ मध्येन साकशभगिभिभूपः स्वात्‌ VARTA | एते विलिप्तदेहस्त तरिदशेरपि पूज्यते (*) ॥ [9 eee a ae a aa eT a cael t सदेवा इति Go, च, So, wo gq) ३ शन्यधशरसन्िकेति Go | ९ कुमारौ serater इतिं ° | ` ४ जिद्रेरपि wa cf ae, eo च| ( १२ ) Zo अग्निपुर।से [१४० अध्यायः \ we Read zwegent wa: AMAA Tra वाशाद्याः ज्ञानकर्मणि ei ECA ATT MAT: TATIT: पानके GAT: | ऋ लिन्बेद स नयनेस्सिलकं लोकमोहनं ॥ १०॥ सूथतिदशपचेख NA सनौ लेपतो वथा | चन्दरे्रफशिसदरे ख योनिलेषादशाः fara ॥ १६॥ तिचिरिग्बगवाणेख गुटिका तु वगङ्करौ। WS Wea तथा पाने दातव्या गुटिका aR ।॥ 22 ऋतिविग्‌ प्रहाचिेलेख शस्त्रस्तम्भे सुखे ता | येलेन्द्रवेदरन्धु ख WFAA AVA ॥ १२५ वाणाचिमनुरद्र च गुटिका चन्ृषादिनुत्‌ | तिषोषथदिथावाेक्ञपात्‌ खौ दुर्भगा ATH १४। जिदशास्िदिशानेनेद्घपात्‌ wee पञमे । चिदशाचेशमुजगेक्षपात्‌ खो सुयते Ts १५५ सप्तदिषमुनिरन्धं च व्यु तजिह लेपतः | जिदशाखग्िमुनिभिष्वजलेषात्‌() cat सुतः ॥ १६ ॥ अहावििसप्यनिदगर्गटिका स्याद्‌ वशङ्करी | ऋति क्पदखि तीषध्वाः प्रभावः प्रतिपादितः ॥ १७ ॥ इत्याग्नेये महापुराणे यु दजयाश्यवे Wenger नाम चत्वारिथदधिकश्यततमोऽष्यायः ॥ १९ चिदणच्छन्विमवुभिष्व जरेपादिति न, च, ©, ee च| अयेक चत्वारि श्रदभिकशत तमोऽध्यायः! षट्त्रिं शत्पदकन्नान। श्वर उवाच | षटज्रिंशत्‌पदसं खानामोषधौनां वदे फलं । अरमरोकरणं Ti ब्रम रदधेन्द्रसेवितं ॥ १॥ हरो तक्षचयधाश्ाङ मरो चम्पिपपलोशिफा | वद्धिः west पिपपलो च गुटचोवचनिम्बकाः(९) ॥ २४ वासकः MATA च सेन्धवं सिन्धुवारक | MWA मो्रका विख्खम्मोमनेवं बला ॥ २॥ एरण्डमुरो TSH WH: सारोऽव चपट; | घन्धाको ACHAT WAZA जवानिका ॥ ४॥ frey: खदिर देव छतमालो इर्द्रिया । ` वथा सिद्ा्ं एतानि षटुिग्त्पद्गानि हि ॥ ५॥ ज्मादटेकादिसथज्नानि छलषधानि महान्ति fet सर्घरोगडहराणि खरमरोकरणानि च ।। १॥ बलोपलितमेशुरि(र) सवकोहगतानि तु) एषां qay वटिका cea परिभाविता bet MASE! कषायो AT मोदको गुखुखर्डकः | eee १ qufaraar tft ne, oq! २ बरोपङ्िति्मेदौनोतिक° | ९२ श्रम्िपुराणे [१४१ अध्यायः) मधुतो तते गपि wawranerfa ancy सव्वोकनोपयुक्क fe खतसण््ोवनग्धवेत्‌। Bae कषमेकं वा पलयड पलमेककं ॥ € ॥ यथेष्टा चारनिरतो(\) जोषेदषंशतव्रयं | सतसच््नोवनोकषख्ये गी नासरूप्रन्‌ परोऽस्ति fe veo a प्रयमाव्रवका योगात्‌ सर्वरोगे: AYA | fedlare adlars चतुर्बौ ते रुजः ॥ ११ ॥ एवं षट्काच्च प्रथमाद्‌ दितोयाञ्च ठतीयतः। चतुधात्यञ्चमात्‌ षष्ठा तधा नवचतुष्कतः ॥ १२ ॥ ' एकर्दित्रिचतुःपञ्चबट सपताषटटमतोऽनिलात्‌ । अग्निभास्करष विशसप्तविंगै ख पिन्ततवः ॥ १२॥ वाणत्त ग्रलवसमुभि स्तिथिभिसमु च्छते कफात्‌ | वेदाग्निभिवौणगुणः षणः Wet एते es a ग्रहादिग्रहशाम्तख सव रव faqad | एकदित्रिरसंः गलवसुग्रहशिवेः क्रमात्‌ ॥१५॥ | erfanfafaqare ava काखौ विचारणा। बट्‌जिंशत्पदकन्रानं न देयं यस्य कस्व चित्‌ ॥ १६॥ इत्याग्नेये ARGUS युदजया शवे वटसिं्त्णरकश्नं नाम एकचत्थाररिथिदषिकगलतमोऽष्ययः ॥ oe ९ yumerereteca इनि ० 1 अय हिचवारिशदधिकश्न्‌तमोऽध्याय.। --*°<^°@-- मग्ोषधादिः। at sara मन्लोषधानि चक्राखि(१) वच्छे सर्ववप्रदानि च। ` शौरनाग्त्ो वशंगुणो few) माताखतुगणाः॥९॥ Ala इते भचेच्छषथोरोऽध जातकं वटे । wy 3 विषमा vate गभं पु्रजग्मदाः॥ २॥ | समैः काणे बाभेऽद्ि विषमैः पुमः 1 त भवेत्‌ काणं Wigararace च ॥ २॥ © 6 ~ “~ ~ ararauiagfan वपि यरे कते । समे स्तौ विषमे ना स्यादिरेषे च(९) afer fee: ॥ ४। प्रथमं खूप शुज्धेऽथ प्रथमं ज्यते पुमान्‌ । e > £ A पमे ~ TH MATIC द्रव्यर्भौगेऽखिले मतम्‌ ॥ ५॥ शनि चक्र crea ve efe परित्यजेत्‌ | दराशिखः सत्तमे cfegaduaafear ॥ ६ ॥ ठकदा्टदादसमः पाददृश्टिख तं त्यजेत्‌ | दिनाधिपः प्रहरभाक्‌ Rar यामार्भाभिनः(२) ॥ ऽ ॥ १९ मन्वादीनि Wome gq) २ यानाडंभोगितनर दति wo, मम, ९ fannie छ०4 Co, जर च| < 9 अग्निपुराणे [१४२ ध्यायः शनिभागन्दजेवयद दिनराडइ' वदामिते। रवौ पर्वऽनिकते मन्दे गुरौ याम्येऽनले भगौ ॥ ८ ॥ अग्नौ कुजे भवेत्‌ सोम्ये खिते राइबध सदा। RACER प्रहरमेभे TST FTTH ॥ < ॥ वायौ संवेष्टयित्वा च शव इन्तो शसब्युखं | तियिराड प्रवच्यामि पशिमाग्नेयगो चरे 1 १० ॥ अमावास्या वायवे च राः सम्य वगव्रहा | कादा जान्ताः स्ख स्यः साया दान्ता दिखे १११ WH त्यजेत्‌ कुजगुणान्‌ WN मान्ता TA | याख्या हान्ता SUT स्यस्विधिदटटिं विवजयेत्‌ ॥ १२ ॥ vate दचिणास्तिख्लो रखावें HAUS | सर्वयराश्यादि संलिख्य Trt हानिजयोऽन्धधा ii १२ ॥ विष्टिराड' प्रव्छामि wet Tere पातभेत्‌। ` िवाश्यमं यमाहायु वायोरिन््र ततोऽग्बप lt १४॥ AWAY ASME खन्द्रादम्नि ततो जल | जलादौ चरेद्राइविष्टया सह महाबलः ॥ १५॥ Sarat च ततौयादौ सप्तम्यादौ FAAS | एवं aay सिते Te वायौ राइख CATA १६४ इन्द्रादौन्‌ मैरवादीं च ब्रह्माख्छादौन्‌ ग्रहादिकान्‌ | च्र्टाटकच्च पवादौ याम्यादौ वातयोगिनौ ॥ १९५ यान्दिशं वहते वायस्तवस्थो घातयेदरोन्‌ | टढौकरशमाख्यास्ये कण्ठे बाह्वादिधारिता ॥ १८॥ पष्योदता ATT वारयेत्‌ शरपुरखिका | [१४२ wera: t aarauifena | ey ता पराजिता पाठा erat gen निवारयेत्‌ ।। cen श्ना नमो भगवति arregqad way श्रा war भराखाट्‌ at भरे रक्ष पिव कपालेन caries tac भस्माङ्गि भस्मलि- ATA sage वखप्ाकारनिचिते पूवां दिशं बन्धर रों दक्िखशां दिशम्बन्ध भा पञथिमां दिगम्बन्भर cut दिगग्बन्धर नागान्‌ बन्धर्‌ नागपन्नोबन्धर St NIA Tazz भो य्चराच्तस- पिथाचान्‌ बन्धर्‌ wt प्रेतभूतगन्धवीदयो बे केचिदुपद्रवास्तेभ्यो THR Tse र्र्‌ प्रधा TAR TH शुरिक बर्‌ भ्रा च्ल महाबले घटिर्‌ श्रौ मोटिर सटावलिवच्वाम्निवजुप्राकारे ¥ फट्‌ Hoy ata Haw Wa: wage: aia. fir: सरवेदुष्टो पद्रषेभ्यो BY भगेषेभ्यो Tae | अहञ्यरा दिभूतेषु wawtg योजयेत्‌ | इत्याम्नेये महापुरारे मुदजयाखवे मन््ाषधादिर्नाम fe खल्वारिशदधिकश्ततमोऽध्यायः॥ अथ चिष्त्वारि शदधिकश्ततमेाऽध्यायः। orn @ ow” @ ———— | कुनिकापूजा। | at उवाच | कुलिकाक्रमपूजाञ्च(९)वश qateareat | A ° यया जिताः qu देवे: शस्त्राय राज्यसंयुतैः ॥ १ ॥ १ कलिकाचक्रयलाेति खम, wo a) | ufagure. | १४३ WaT: | मायाबोन्नं च. गुष्याङ्ग बषट्‌ कमस करे न्धेत्‌ । कलो कालौति इदयं दुटचाच्छालिकाः भिर; ५२५४ Ae CTT AST Tara aes fre) भेखखो कवच TA नेत्राख्या दक्तवर्किका ॥ रे ॥ ततो AMAA मण्डले WAR यजेत्‌ । wat Hee इद्र ेऋेत्येऽथ Graf ॥ ४ + कवचम्मध्यतो नेच Wale च मले । दाविंशता afearat Gl इसचस्रलनचवचङ्ऋचाक्रमन्द ` TTS HL SETS चद WATT SATS केव्यवोः Ta! वाराहौ चेव HRA चामुग्छा चरकिकेन्द्रकात्‌ + ९ ॥ यजेद्रवलकसहान्‌ गिवेन्द्राम्बियमेऽग्निये । जले तुः कुमुममालामद्विक्ाणां च पञ्चकं ॥ 9 ॥ जालन्धर पूणंगिरि कामरूपं क्रमायजेत्‌। मड्टोश्ाग्निनेचऋत्ये wa वै वष्यकुलिकां ॥ ८ ॥ अनादिविमलः पूज्यः सव्वश्नविमलस्ततः | प्रचिक्ष्किमलखःथ स मोम्प्विमलस्त्तः +€ ५. समयाख्योऽथ विमल एतहिमलपञ्चक | मङूदौ यानन ऋते TH चोत्तर शष्के ॥ १० ॥ wary feted षष्ठा सोपन्रा सुखिरा तधा । रब्रसुन्दरौ चेगाने खङ्गे चाष्टादिनाथकाः ॥ ११॥ fas भरो गषष्टायाख्यो वषा भ्रन्न्ग्बपेऽनिले । ` भवेद गनरवर AAT BITCH LR Wt [१४४ अध्यायः। «=| afta | ९9 बर aa: पञ्चनामास्यो(\) aadiaraafeat | याग्याम्नेये Tata ज्येष्ठा रौद्रौ तथाऽन्तिका ॥ १२॥ faa श्यासां महाहडाः पच्प्रणवतोऽखिलाः | सप्तविंश्त्यष्टविंशभेदात्‌ waa feat १४॥ अरे गू ऋऋमगणपतिं प्रणवं वटकं यजेत्‌ | चतुरखे मर्डले च Shes गणपं यजेत्‌ ey वाभे च वटकं कोशे गुरुन्‌ षोड़यनाधकान्‌ | वाव्यादौो चाष्ट दण प्रतिषट्कोणके ततः॥ १९॥ ब्रह्माद्याश्ाष्ट परितम्तश्मध्ये चं AAMT: | कुजिका कुलटा AI MATH F सब्बदा॥१०॥ TAMA महापुराणे YFHET TA कुजिकाक्रमपृजा नाम लिचलत्वारिशदधिकशततमोऽध्यावः॥ अथ WAAC शदधिकशततमोऽध्यायः। © „^ @ aa ot @ कुलिकापूजा | र sara | अओोमतोः कुनिकां ae धरमप्राथीदिजयप्रदां। पूजये Aaa ण परिवारयुतेन वा ॥ १ । at stant खे ङं हस्षमलचवयश्भगवति sft कां ङ़ं at चोः चु. at कुलिके si ai ङ्लनणमे श्रघोरसुखि at gi . wi मृत्यौ aqarares इति So | ( १३ ) an अ्रम्निपुराखे [१४४ Weare: | ay fafa ay विके at at at Tt कों रे वच्यकुलिनि(*) al चेलोक्धकिंखि st कामाङ्ृद्धाविखि st et” were कारिणिशि wy TF Ma wW a नमो भगवति त्तो कुलिके sat st m र्मण्नभे अघोरसुखि at at faa at fafa t कत्वा AUTPMAY सम्बरावन्दनमाचरेत्‌ | वामा BUST तचा Vest सन्ध्यात्रयमनुक्रमात्‌ ॥ २॥ कुलवागौशि विश्रहे महाकालोति घौमहि | Aa: कौलो प्रचोदयात्‌ | AME’ पञ्च प्रख्वाव्याः पादुकां पूजयामि च। मध्ये नाम qed हिनवात्कवोजकाः ॥ रे. ॥ नमोन्ता वाऽथ TIT तु सवं Bal वदामि तान्‌ | MANTA: सुकला THA: कुनिका ततः॥ ४॥ खोकण्ठनाथः कौलेशो गगनानन्दनाधक्चः | चटला देवौ AAT करालौ तुख्नाथकः ॥ ५ ॥ श्रतलदेवौ यौ चन्द्रा STAM AAs | भगावक्गणदेवमोहनो' पादुकां यजेत्‌ । ९ ॥ अ्रतौतभुवनानन्दरत्राग्यां पादुकां यजेत्‌ | ब्रद्मन्ञानाऽच कमला परमा विद्यया सद ll ॐ ॥ विद्यादेवौगुरुशटद्िस्तिणचि प्रवदामि ते। गगनश्चट॒लौ चामा पद्मानन्दो मणिः कला ॥८॥ १ बङ्धिकुलिनि षति खग च। [१४४ श्रध्यायः। कुजिकापूजाकथन। ९९ कमलो माखिक्क्षण्ठो गगनः कुसरसतः,। पन्नो मेरबानन्दो शिवः कमल इत्यतः € । शिवो भवोऽथ awa aafaura षोडश | चन्द्रपूरोऽय TANT शभः काभोऽतिसुक्षकेः(\) ॥ १०॥ करटो वोरः(र) प्रयो गोऽथ कुश्रलो देवभीगकीः | विश्वरेवः Year Tal धाताऽसिरेव FU ११॥ HAST ANT भोजः षोडश feat: | समयान्यस्त Sea घौढान्धासेनं alee ॥ १२॥ प्रिष्य मण्डले पष्प मश्डलान्धध पूजयेत । अनन्त महान्तश्च सवदा शिवपादुकां ॥ १३॥ ACTA PITY पञ्चतच्वाभमण्डलं । Pawan शङ्करानन्तकौ यजेत्‌ ॥ १४॥ सदाशिवः पिङ्गल खगम्वानन्दश्च नाधकः। लाङ्गलानन्दसं वत्ता मण्डलस्थानके यजेत्‌ ॥ १.५॥ awe aware: frat च महेन्द्रकः | WET YAR वाण अघासिः शब्टकी वशः ॥ १६॥ TINTS मन्दरूपो बरसिन्दलवा क्रमं यजेत्‌. | SSS wa azar we अधे" पुष्यं धूपं रौपंगन्धं बलिं पूजां SHR AAA A St AT चेः PATA T WAATR महाकपिलजटाभार Uratfarseayy wate गन्धपुष्पव- खिपूजां wee wa: Vt a: Tt a: शं महाडामराधिपतये(र) सषा! ` क _ | 2 aay Me fa Mo, Ho a! मडामा वाधिपतये इति ste | १०० श्रग्निपुराणे [१४४ अध्यायः। बलिशेषेऽथ यजत्‌ गीं दां यों वे विकूटक।। १७ ॥। वामे च दत्रे wa याम्ये निशानाथपादुकाः दे तमोरिनाथस्य we कालानलस्य च ॥ १८॥ sefeare जालन्धर yw वै कामरूपकं | गगनानन्ददेवञ्च स्वगीनन्दं सव्गंकं(९) | १८ ॥ परमानन्ददेवञ्च(\) सत्यानन्दस्य पादुकां(र) | नागानन्दश्च वगास्यसुक्तन्ते TATA ॥ २०॥ सौम्ये fad यजेत्‌ wee सुरनाथस्य पादुकां । samara विद्याकीरौश्वर यजेत्‌ ॥ RLU कोटौशं विन्द्कोटौशं सिदको टौ शखरन्तथा | सिह चतुष्कमाम्नेययां भ्रमरौ शेश्वर यजेत्‌ । २२ ॥ चक्रोगनायंकुरङ्गेश ठते गचन्द्रनाथकं,५) | यजेहन्धादिभिषेतान्‌ याम्य विमलपञ्चकं । २द॥ यजेदनादिविमलं सव्वज्ञविमलं ततः | यजेद्योगौशचिमलं fewer समयाख्यकं ॥ २४) नेसे चतुरो देवान्‌(५) जेत्‌ कन्दपनाथकं | पूवाः शक्तौ च स्वा च(९) कुजिकापादुकां यजेत्‌ ॥ २५॥ e ~ ita . ९ खमानम्दश्चदयकमितिच०सण्ष। ४ wate मन्तनायकमिति so | र पत्रगामम्ददेवद्चेति ol पवना- भूतो मग््रनाथकमिति se | नम्ददेवद्चेति ज०। ५ चतुरो वेदानितिख, we, जन्च। 9 € € न्ट @ ऋ दे मत्यानन्च्ख पादुकामिति wo, € पूवान्‌ सशङ्गीम gate fix He, Be गम, Go, भ, Hog! च | | [१४४ अव्यायः। कुनिङापूजाकग्न | १०१ AMMA मन्धेण पञ्चप्रणवकेन वा | सहस्राक्षमनवद्यं fay’ शिवं सदा यजेत्‌(*) \२६९॥ परव्बाच्छिवान्तं ब्रह्मादि ब्रह्माणौ च महेश्वरो | कौमारी वैष्णवो देव वाराहो शक्रशक्तिका॥ २७ ॥ चामु्डा च महालक्छीः पुब्ब दौश्ान्तसर्चयेत्‌ । डाकिनो राकिनौ पूज्या लाक्तिनौ काकिनी तथा॥२८ शाकिनो याकिनौ पूज्या वायव्यादुग्रषर्सु च। यजेद्‌ ध्यात्वा ततो देवीं हातिंशदणंकामकां ॥ २९ ।। पञ्चप्रणवकेनापि कौ कारगाथवा यजेत्‌ | नौलोत्‌पलदलश्यामा षड्वक्छा(९) षटप्रकारिका HI Qe fesfacciearen बाइहाद्‌ शसंयुता | सिंहासनसुखासौना प्रेतपन्नोपरिखिता 1 ३१५।। कुलकोटिसस््राव्या कर्कटो भेखलाखितः। तज्षकेणोपरिष्टा चच गले हार वासुकिः । ३२ ॥ लिकः कर्णयोयं स्या: कशः कुरूलमर्लः | waar: UW APU वामे नागः कपालकः। ३३ ॥ WHAT VEIT UF Yay cf | विशललन्दपेणं खङ्ग रत्रमालाङ्गशन्धनुः(र) ॥ ३४ ॥ MATTE सुखन्देव्या AAAI । पूर्वास्यं पाण्डर क्रोधि दल्तिणं कष्णवर्यःका |) ३५ ॥ | a i ee ९ सदाशिवं खथं यजेदिति To, कण, २ षडव्येति ज | So ख | ९ बनमाराह्गं धतुरि(नि Go, ड च| १०२९ अम्निपुराणे [१४५ अनध्यायः | हि मकुन्देन्दभ सौम्य ब्रह्मा पादतले fea: | fam जघने wat छदि कण्ठे तथेश्वरः ॥ २६ I सदाशिवो ललाटे स्याच्छिवस्तस्योद्ंतः fea | ्राघूशिंता हुलिकेवन्ध्येया पजारिकन्धसु ॥ २७ ॥ इत्याग्नेये महापुरारे युजा णवे कुनिकापूला नाम चतु- खत्वारियदधिकशततमोऽध्यायः॥ Ge अथ पच्चचत्वारिशदधिकशततमेाऽध्यायः। मालिनोनानामन्त्ाः। kart उवाच । नानामन्त्रान्‌ प्रवश्यामि षोढाग्यास्पुरःसरम्‌ | न्धासस्तरिधा तु षोढा ख्यः शाक्षशाश्रवयामलाः He Ul Tras गब्दराभिः षट्षोशग्रन्विरूपवान्‌(\) | निविदा तद्रो ग्धासख्ितस्वासाभिधानकः ॥ २ ।। चतुर्थो वनमप्लायाः ज्ञो कहादशशूपवान्‌ I THAT रव्रपश्चासा TATA बर CHCA: Hh gM शाक्ते पत्ते च aifaarfafsara fedtaa: | १ षोडङशप्रतिरूपवानिति we | १४५ Wears | मालिनोमन्तकथनं | १०३ अध्ोशटकरूपोऽन्धो हादशाङ्खतुयंकः॥ ४॥ पद्चमस्त Wr स्याच्छक्िखान्धास्रचण्डिका(?) | कीं St लौं चौर फट्‌ नयं Tate: सव्वं साधक (९)।५॥ मालिन्धा नादिफान्तं स्वात्‌ नादिनौ च शिखा qa | अग्रसनो(२) शिरसि स्यात्‌ शिरोमालानिहत्तिः शः ॥ ६॥ ट शान्तिश्च शिरो भूथाच्‌ चासुरा च तिनेतगा | ठ प्रिवहृष्टिदिनेवे च नासागा गुह्यशक्ञिनो ॥ 9 ॥ न नारायणी दिकं च cane त मोहनौ । ज प्रत्ना वामकणखा वक्त च विणो स्मता ॥. ८ ॥ क करालो दरदा avatar ख कपालिनौ। ग शिका जचैद्टा स्याद्‌ 8 AY वामदष्टिका॥<॥ उ शिखा दन्तविन्धासा ई माया fawar स्मता श्र स्याग्रागेश्ठरो वाचि व aw शिखिवाह्िनौ ॥१०॥ भ भोषणो Trea AYIA म वामके। डनामा दशषकाषश्ौतु ठ वामे च विनायका।॥११॥ पपूणिमा हिष्स्तेतु भ्रोकाराखक्कलोयको | अं दशनो AAT SW. स्यात्सश््नौवनी करे ॥ १२ ट कपालिम कपाल शूलदण्डे त staat | fas ज जयन्तौ स्याहदियंः साधनौ(५) सृता ॥ १२॥ १ wie: ara जिवर्धिंका दूति ane | fafa mo, wo qe! afwerar frefta fa. eo |. १९ खश्वसमोति ee, qe q werd खात्‌, aad सम्बंसाथकः- ५. पावनोति ate, spe | १०४ अग्निपुराणे (१४५ अध्यायः) जोवे श परमास्यास्याद्‌ ह प्राणे चाम्बिका GAT दक्षस्तने GUM A WA पूतना Wa १४॥ अरस्तनन्नौर्रा Wet लम्बोदय्युदरेचयथं। नाभौ संहारिका a स्यान्‌ मष्ाक.लौ नितम्बम॥ १५॥ TH स कुसुममाला ष Wa शक्रदेविका। उरुदये त तारास्याद्‌ Stat दक्षजानुनि ॥ १६॥ ava स्यादौ क्रियाशक्तिरो गायतो च seat श्रो सावित्रौ वामजङ्ा SA ST दोहनौ पटे ॥ १७॥ फ फेत्कारो वामपादे नवासा मालिनो aa! | श्र slaw: शिखायां aera स्याद्‌नन्तक्षः॥ १८ ॥ । LN © ~ = aa दश्तनेवस्यादो तिमूसिस्त वामके | मई =€ + in उ दश्षकणऽमरोश ऊ कणघांशकोऽपरे ॥ १९ ॥ ऋ भाषभूतिनासागश्र वामनासा fata ऋ। र खागुहेक्षगण्डे स्याहामगर्डे FTI Ti २० ॥ कटोशो दन्तपङ्क्तावे BATA GTA रे | सदोलात W WAT AE SsmawiT भ्रौ ॥२१॥ WMT घाटकायां स्यादः महासेनजिष्ठया । क क्रोधोशो CHAT खञ्ण्डोयस् बाडुषु॥२२॥ © अ ~ पञ्चान्तकः FIT गो घ Mg दत्तकङ्णे। ङ एकपादखाक्गः स्थो वामस्कन्धे च RAR: ॥२२॥ $ ५ € च्छ एकनेतो बाहो स्याश्वतुवक्गो ज कूपर | भ राजसः कङ्णगः अः सवेकामदोऽङ्ग खौ ॥ २४ ॥ ट MAM नितम्बे स्यादत AEs Await | [१४९ भष्यायः। अष्टाटकदेवोकधन | १०५ छ दारका दक्षजानौ HST ठढोऽईजलेश्वरः ४ २५ ॥ ख उमाकान्तकोऽ ङ सस्त आषाढो नितम्बके । घ दण्डौ वाम ऊरो स्याह भिदो वामजाजुनि ॥ २६॥ घ मौनो वामजरहायान्र भेषखरणाङ्ग लौ । प लोहितो ewan फ fret बवामकुल्तिगः ॥ २७॥ ब गलण्डः LSA भो नाभौ ख feces: | म महाकालो दये य वाणो शस्त्वविस्मतः(९) ॥ २८ ॥ र रक्ते SRE T ल पिनाकौ च मांसके | व खडगोशः खानि स्याहकथाखिनि शः स्मतः ॥२९॥ ष चेतेव Herat स गुः शक्रधातुक्े | प्रा हो नकुलौशः स्यात्‌ ल CTIA RTT: ॥ १०॥ Uae: प्रपूज्य छौ वोजेनाखिलमाग्रयात्‌ | इत्याग्नेये महापुराणे मालिनौोमन्ादिन्यासो नाम पच्यचत्वारि शदधिकश्ततमोऽध्यायः॥ अथ षर्चत्वारि श्दधिकशत तमोऽध्यायः । अष्टाषटकटेव्यः। ईश्वर उवाच । facut सम्प्रवक्षामि ब्रह्मविष्णुमदे शवरीं | ब्यक 9 @ क = @ @ # = = ee eee @@ १९ Sardine विनदति we | ( १४ ) १०६ | अग्निपुराणे [१४६ अध्यायः । श्रौं नमो भगवते रुद्राय नमः। AAATAW नमखाकाशमालणां सव्वकामाथसाधनौनामजगरामरो णां सव्वे त्रा प्रतिहत गतौनां खरू- परूपपरिवत्िनोनां सव्व सस्ववशोकरणोतादनो अृलनसमस्तकः wana सवमाढगद्यं हृदयं परमसिद्धं पर कमच्छेदनं परम- fafeacaraet वचनं Wi | जरद्मखण्डपदे श्दररेकविंशाधिकं शतं।.१ ॥ तद्धा, ओं नमशासुर्डे बरह्माणि अघोरे अमोघे वरदे fas SE! Ht नमश्वामुष्डे माहेश्वरि अघोरे wars वरदे fag Set ओरं नमश्चामुण्डे कौमारि अघोरे waa वरदे विच्च STI श्रो नमश्ासुरडे वेष्णवि अघोरे ws वरदे विश्व arti at नमधासुण्डे वाराहि ant ware वरे fad Sel Tanage इन्द्राणि अघोर श्रमोधे वरदे fad खाहा। Tt .नमखासुरडं चण्डि अघोरे wis वरदे विश्च खाहा ओं ममश्वासुरं शानि wit अमोधे वरदे विष्व arer(’) | : . यथधाश्चरपदानां fe fayaufectaa | ` श्रं aware agate ज्वलितशिखरे(९) विद्यल्जिद्ध तएरकातति fayaaa विक्षतदष्ट कदे त्रां भांसथोणितसुरा- सवप्रिये ear रां sar ai विजम्भयरे श्रां मायात लोक्यरूपसदसखपरिबत्तिनोनां भां qa भां qe. fafxe हिरिर भिरि चासनिरे भ्ामणिर si द्रावशिर arafae १ St ange मारेशरोत्यादिः, विश्वे खारेत्यम्ः पाठः Re पुशके aie | द्‌ ज्वशितमिख दति qo, Go Fo so | | a [१४६ अध्यायः श्टाटटकदटेवौो कथनं | १०ॐ मारणिर संजोवनिर हेरि aft. धेरि Wt afta at नमो ASTI नमो नमो fas | एकज्िंश्तपदं WAT: गशतमन्तकसप्ततिः ॥ २॥ हे घोः पञश्चप्रणवाद्यन्तां चिखण्डोच् जपेद्‌ यजेत्‌ | डे घौ ओोकुनिकाषृदयं पदसन्धौ तु योजयेत्‌ ॥ Fi अकुलादितिमध्यख कुलादेख तिमध्यगं। मध्यमादि विमध्यस्य' पिण्ड पादे जिमध्यगं।॥ ४ ॥. अयाईमावासयुक्त प्रणवाद्य शिखाशिवां। at सौ शिखाभैरवाय नमः। wi सवो स्वं सवौजव्रा- चरः | । st st ¥ निर्वीजन््ाणं' दाति ceded ॥ ५॥ तादय ककारान्ता AHA च कुलक्रमात्‌ | शशिनौ भानुनौ चेव पावनौ शिव इत्यतः ॥ ६ ॥ गान्धारो शश्च freret चपला गजजिदहधिका | म मृषा भयसारा स्याश्मध्यमा फाऽजराय च ॥ ७५ कुमारो कालराचौ न सह्टा दध कालिका! फ शिवा भवधाराणट वौभस्नात विद्य॒ता॥८ ॥ ठ विश्वश्चरा शंशिन्या ठ ज्वालामालया तथा | करालो THAT THT वामा च्यष्ठा च रौद्रापि We ts खकालो क कुलालम्बौ अनुलोमा द पिर्डिनौ। at afew x eat वे शान्तिर्मत्तिः कलाकला ॥ १० ॥ ऋ खडगिनो उ वलिता S कुला र तथा यदि । सुभगा वेदनादिन्या करालो श्र च मध्यमा ११॥ goa ufagee [१४६ भध्यायः। भ्रः अपेतरया WS Gears शक्तयः क्रमात्‌ | wai wal wal महाभेवराय नमः | MNT श्ु्चकणों च राचसो चपणछया ॥ १२॥ fagrat चाक्षया चेमा ब्रह्माख्यषटकसख्िताः | इला लौलावतो नोला AST ASAT तथा ॥ १३ ॥ लालसा विमला माला(९) माहेश्वथऽके feat: | इताश्ना विशालातच्ौ sera वडवामुखो ॥ १४॥ हाष्टारवा.तथा क्रा क्रोधा बाला खरानना) कौमार्य देहसम्भताः प जिताः सवसिदहिदाः ॥ १५। VAM तरला तारा Wea च इयानना सारासारख्यङ्ग्राषटा शाश्वती (र) AMA He ॥ १६ ॥ तालजिद्वा च रक्षाचचौ विद्युखिद्भा करङ्किणो | मेघनादा प्रचण्डोग्रा कालकर्णो कलिप्रिया i १९॥ aT TATA पृूजनौया जयाधिना | SAT चम्पावती चैव प्रचम्पा च्चलितानना ॥ १८॥ पिशाची पिखवक्ता च लोलपा शिन्द्रौसम्भवाः पावनौ याचनो चव वामनो दमनो तथा ॥ १९. ॥ fretar seqaet विता विष्वरूपिणो | चासुराकुलसभ्धता AWS पूजिता जये ॥ २०॥ wafer जयन्तो च दुजया च यमास्तिका(२) | १ शोखादतिज० | २ साज्िको र्ति.) २ जवनिकति wot: [१४७ sara | त्वरि तापूजादिकथनं । १०९ विडाल रेवती देव जया च विजया तथा ॥ २१ ॥ AMAR AA जाता ALITAASTHA | TAMA AYU wereaifeata षटचलारिश- | दधिक्षश्ततमोऽष्यायः ॥ । अथ सप्तचत्वारि शरदधिकशततमोऽध्यायः । ल्रितापूनादिः। heat cara | at auger इ फट्‌ मम सर््रोपद्रवान्‌ यन्व- मन्बतन्छचुणंप्रयीगादिकं येन छतं कारितं कुरुते करिति कारयिष्यति तान्‌ सर्वान्‌ war दं्टुाकरालिनि क vty गुद्ङुभिकाये खाष्टा । ॐों भरौ खेर) वां गु्यक्कजिकाये नमः । को" सर्वजनक्षोभणी warranted ततः | भ्रा खें ख्या(र), सवजनवशङ्रो तथा स्वास्लनमोहनी ॥ १ ॥ ओ स्यौ(९), warren ए खं खां dad तथा । जौ wwe शो cite श्थांकलो इतिक । चां खदति र्शोांख्ष्छयांश्तिद० चों Wo | स्फ, इति न° । ११० अग्निपुराणे [१४७ अध्यायः । रेः fara वौजं Boys Tera तथा ॥ २॥ Gan Tt He re Aas we ङो aa | i wt Vase S Sr ङोः फट्‌ ate लरिता पुनक्ेयाऽ्िता जये | St सिंदायेत्यासमं स्यात्‌ SS weaalfea | ae ऽच भिरसे aret तरितायाः शिवः Ga: ॥ १ ॥ सं SY शिखाय वषट. स्याद्‌ भवेत्‌ चतं कवचाय इ'। ऋ," नेज्रज्रयाय वोषट्‌ Strats SUH ॥ ४ ॥ St ara’) Sed चण्डा seat च्षोभणौ क्रिया | AAR च SVART BEATA नवशक्तयः ॥ ५॥ अघ दूती; प्रवच्यामि पूज्या इनद्रादिगाच ताः | Ht मले बडतुष्डे(९) च खगे छौ" (२) खेचरे ञ्वालिनि ज्वल खलेष 2 शवविभोषरशे(*) we चर दछेदनिकरालि खेच qr HM चे वच्चे afta eas, कन्ते- जोवति Ofe मातः श्रो फेवेफेफे वक्र वरौ gi पुटि पुटि घोरे क." फट्‌(५) ब्रह्मैता मध्ये | gare च त्वानि त्वरितायाः पुनवदे ॥ & ॥ छो हः(९) wed प्रोतं हां ह भिरः स्मतं । फां ज्वल ज्वलेति च शिखा वग इले इ" इं इ ॥ ७॥ १ ऋकारो दति we | ४ शरविभोषणरटे इति sto | aay नखं were दति ज० | ४५ र. फट्‌ इति Ko | ३ डमे मिति we! ९ करौ. रस्ति we | [est श्रध्यायः। ag afasagerana | १११ at चुः यौ नेत्रमि्यक्त चौ' अस्त्र वै aaa फट्‌ इं खे वच्छे चेः wa इ azar = facade मध्ये स्यात्‌ पूर्वादौ खे सदाशिव, att ढे मनोखानौ aa ara छो च माघवः ॥ ८॥ @ ब्रह्मा इ' तधादित्यो दारुणं फट्‌ खलाः सदा । इत्याग्नेये महापराणे युजया णंषे त्वरि तापूजादिर्नाम सप्तचत्वारिशणदधिकशततमोऽध्यायः ॥ - अथ अष्टचतारिं शदधिकशततमोऽध्यायः। सड ग्रामविजयपरूजा । faq उवाच ¦ Tey ख्यां सूय्याय सङ यामविजयाय नमः | ङो षोः ङः। षडङ्गानि तु सूथस्य सङ ग्रामे जयदस्य हि । रोड खं खशोक्ताय खादहा। स्फ. ह, इक्र ओं करे । प्रभूतं विमलं सारमाराध्य परमं सुखं ॥ १॥ . = EN गायकं न WHANAY Ara यजेत्‌ | अनन्तासन सिंहासनं पद्मासनमतः पर ॥ २ ॥ ११२ अम्निपुराणे [ese अध्यायः । कणिकाकेशरास्येष CHARA ATS | Star aenr(*) जवा भद्रा विभतिविमला तथा २॥ भरमोघा विद्यता पूज्या नवमौ सवतोमुखौ | स्वं Tanga vats पुरुष तधा ii si भामानखान्तरास्मानं परमामानमश्चथेत्‌ । सव विन्द्समायुक्ता मायानिलसमन्िताः ॥ ५॥ खषा प्रभा च सन्ध्या च साया माया बलान्विता | विन्दु विष्णुसमायुक्ता(*) हारपालास्तथाषटकं ॥ & ॥ सव्ये चण्ड प्रचर्डश्च पूजयेहन्धका दिभिः । पूजया जपष्टोमाययेयु्ादौ विजयो भषेत्‌ ॥ ७ ॥ हतयाम्नेये महापुराओे युदजया णवै we ग्रामविजयपूजा नाम अटट्वत्वारिशदधिकशततमोऽध्याथः॥ 4 ५ अथोनपश्चाशदधिकशततमोऽध्यायः॥ ॥ © लकल्कोटिष्ोमः | शबर उवाच । शोमाद्रणादौ विजयो crenfefewaraa | WS ण OMAN प्राणायामगतसेन च ।॥ १ ॥ १९ Stat धूमेति र | २ fare fare caren इति ° | [१४९ wate! लक्षकोटिदहोमकथनं। ११३ ° अन्तजले च गायत जघ्ठा षोडशधा चरेत्‌ | प्राणायामां च पूर्वाह्न जुह्यात्‌ पावके हविः ॥ २ ॥ मैदययावकभन्तौ च फलमूलाशनोऽपि वा । सौरणक्षष्टताद्ार एकमाहारमाखयेत्‌ ॥ २ ॥ यावत्‌समासिभंवति Vass पार्वति । दक्षिणा लक्षहोमान्ते गावो वस्त्राणि काञ्चनं i ४॥ सवौत्पातसमुत्वत्तौ ware यभिर्दिजैः। नास्ति लोके स उत्पातो यो waa न शाम्यति।॥ ५॥ ape परमं नास्ति यदस्मादतिरिश्यते | कोटिदोमन्तु यो राजा कारयेत qaafest: ite ॥ न तस्य शत्रवः wee जातु तिष्ठन्ति किचित्‌ | न तस्य मारको देशे व्याधिवां जायते कचित्‌ ॥ ७ ॥ अतिहष्टिरनादष्टिमूषकाः शलभाः एकाः | राक्षसाद्या शाम्यन्ति सवं च रिपवो रणे॥ ८॥ कोटिहोमे तु वरयेद्वाद्यणान्विश्ति तथा । तच्चा सहस्रं वा यथे्टाश्चतिमाप्रयात्‌ ॥ ८ ॥ कोटिष्टोमन्तु यः gare fest भपोऽथवा च faz | यदिष्छेत्‌ प्राप्र यात्तत्तत्‌ सशरोरो दिव व्रजेत्‌ ॥ १० ॥ MAAN ग्रहमन्देरवा कु्रार्डोजातवेदसेः शेन्द्रवारुणशवायव्ययाम्याम्नेयेख वैष्णवैः ।॥ ११ ॥ WIAA: MIU: MCAT रौ मा्च॑नात्ततः। अयुतेनाल्पसिश्िः araaerasfearfaaa ॥ १२ ॥ सवपोडादिनाशणाय कोटिष्टोमोऽखिलाघद्‌ः। ( १५ ) ११४ अग्निपुराणे [१५० श्रष्यायः। यवत्रोहितिलक्तौरघतकुशप्रसातिकाः ॥ १२॥। पङ्जोभशोरविखवास्रदला दमे प्रकौत्ति ताः | अषटष्टस्तप्रमाणेन कोरिषोमेषु खातकं i १४॥ तस्म्मादर्दप्रमारेन Basa विधौयते | होमोऽयुतेन AAT कोद्याज्याद्यैः प्रकौत्तितः ॥ १५॥ 1 - इत्याग्नेये ~ © 2 मष्टापुराणे युदजयाण्वे श्रयुतल्षकोटिदहोमो नामो- नपच्चाशदधिकशत तमोऽध्यायः ॥ t अथ पञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः। @ ™~ 6 We eu 6 मन्वन्तराणि | भग्निसवाच । मन्वन्तराणि venta भ्रायः खायश्यवो Ag! । श्रग्नोप्रायास्तस्य सुता यमो नाम तदा सुराः॥ १॥ sitalara सपेय TGA शतकतुः | पारावताः सतुषिता देवाः खारोचिषेऽन्तरे ॥ २॥ विप्ित्तच देवेन्द्र जजंस्तश्चादयो fear! | चेत्किम्परषाः एचास्तृतोयदोत्तमो मनु: ॥ २ ॥ सुशान्तिरिन्द्रो देवाञ सुधामाद्या वशिष्ठलजाः। सपर्पयोऽजा याः पुष्राषतुर्घस्तामसो मनुः ॥ ४ ॥ [१५० अध्यायः | मन्वम्सरकथन | १११५ wena सुरगणाः शिखिरिन्द्रः सुरेश्वरः | ज्योतिर्ामादयो विप्रा नव ख्यातिसुखाः सुताः ॥ ५॥ रवते वितथश्चेन्द्रो अभिताभास्तथा सुराः | ईिरष्यरोमाद्या सुनयो(\) बलबन्धादयः सुताः॥६॥ AAAI इन्द्रः स्वात्यादयः सुराः। TAMA महषयः FIAT: सुताः॥ ७ ॥ विवसखतः सुतो विप्रः आददेवो waa: | ्रादित्यवसुरुदराया देवा इन्द्रः पुरन्दरः ॥८॥ वशिष्ठः काश्यपोऽथाजरिजंमदम्निः सगोतमः | विष्ठामित्रभरदाजौ मुनयः सप्त साम्पतं॥ < ॥ इच्चाकुप्रसुखाः Gar रथेन हरिराभवत्‌। स्ायम्भवे मा नसोऽमृदजितस्तद नन्तरे ॥ १० ॥ सत्यो रि्ैववरो वेकुण्डो वामनः क्रमात्‌ | कायाज; GAYA भविता चाष्टमो मनुः ॥ ११॥ पूवेस्य च सवर्णोऽसौ सावणिभविताटमः | सुतपाद्या देवगरण दौत्तिमदृद्रौरिकादयः॥ १२॥ मुनयो बलिरिन्द्रख विरजप्रमुखाः सुताः | नवमो दक्षसावर्णिः पाराद्याञ्च तदा सुराः८९) ॥ १२ ।) इन्दर वातस्तेषां सवनाद्या दिजोत्तमाः | श्चतकेत्वादयः पुत्रा ब्रह्मसावरिरित्यतः ॥ १४॥ सुखादयो देवगणा स्तेषां थान्तिः शतक्रतुः | १ fecactara ऋषय इति Hol २ तथाद्रा इति Wo | ११६ श्रम्मिपुराणे [१५० रध्याः । हविष्याद्याश्च सुनयः TAMAS AMAT ॥ १५॥ धरमसावखिकचाथ विदङ्ाद्यास्तद्‌ा सुराः | गणखेन्द्रो निखराद्या सुनयः पुचका मनोः।॥ १६॥ सर्वत्रगाद्या रद्राख्यः arafwafaat मनुः | ऋतधामा सुरेन्द्र इरिताय्याख देवताः॥ VO kt तपस्याद्याः WATT: सुता वे Vara: | मनुख्रयोदशो CT: PATATUTSA: सुराः॥ १८॥ इन्द्रो दिवस्ति स्तेषां दानवादिविमदंनः | निर्मोहाद्याः सप्तषंयचितरसेनादयः सुताः ॥ १९ ॥ मजुखतर्हभो भोत्यः whateva भविष्यति। चाश्ुषायाः सुरगणा अग्निवाद्भादयो दिजाः॥२०॥ चतुर्दशस्य भौत्यस्य FAT ऊरुमुखा मनोः | प्रवत्तयन्ति वेदां भुवि सप्तर्षयो दिवः॥ २१ ॥ देवा यश्नभुजस्त तु भूः Ya: परिपाल्यते | बरह्मणो दिवसे ब्रह्मद्मनवस्त चतुदश Naa aarara हरिवंदं दापरान्ते विभेद सः | श्रादययो वेदखतुष्मादः गतसादखसग्मितः॥२२॥ THAME THATS WT व्यकल्पयत्‌ | श्राध्वय्येवं aa fare ऋ गभिर्होज्ं तथा मुनिः ॥ २३ ॥ हाच सामभिघरी ब्रह्मतश्चाप्यय्वंभिः। प्रथमं व्यासशिषस्त पेलो छयन्बेद्पारगः maw इन्द्रः प्रमतये प्रादाहास्कलाय च सहितां | बौध्यादिभ्यो ददौ सोपि चतुहां निजसंहितां ॥ २९॥ [१५१ Beary: | TUATHARAA । ११७ यजवदतरोः शाखाः सप्तविंशन्महामतिः। वैशम्पायननामासौ व्यासशिष्यश्चकार वे ॥ २७ ॥ काण्वा वाजसनयादया याज्नवल्क्यादिभिः War: सामवेदतरोः शाखा व्यासशिष्यः सजमिर्निः। २८॥ सुमन्तुख सुकम्प्रां च एककां संहितां aa: | WHA FT ERMA Tea सितां गुरः tl re ॥ gaqaaace व्यासशिष्यो विभेद तं | चिष्यानध्यापयामास पैष्यलादान्‌ ACSA: ॥ ३० ॥ पुराणसंहितां चक्र सतो व्यासप्रसादतः। TAMA महापुराणे मन्वन्तराणि नाम पश्चाशदथिक- श्तततोऽध्यायः॥ जयकरी अथेकपश्चा शदधिकग्रततमोऽध्यायः। @ „~ 0 वणतरधर्मीः | अभ्निरुवाच । मन्वादयो भुक्तिसुकिधन्धां बौ्वोप्रवम्ति यान्‌ । प्रोचे परशरामाय वरुणोक्षन्तु पुष्करः ॥ १ ॥ GAC उपाच | वणौखमेतराणान्ते धर्मान्वश्यामि सवंदान्‌। मन्वादिभिन्निंगदितान्‌ बासुदेवादितुटिदान्‌ ॥ २ ॥ ` ११८ अम्निपुराण [१५१ अध्यायः, रिसा सत्यवचनन्दया भूतेष्वनुग्रहः | तौर्थानु सरणं ठानं AWAAAART | ३॥ देवदिजातिशटश्रषा गुरूणाञ्च Waa | खवणं सवधन्माणां पिट णां gerd तथा ॥ ४ ॥ भक्ति sum नित्यं तथा सच्छा स्ननेतता | आखशंस्न्तितिन्ता च तथा चास्तिक्यभेव च ॥ ५॥ वर्णायमाणां सामान्य warra (*) समोरित | यजनं याजन दानं बेदाद्यध्यापनक्रिया ti ¢ ॥ प्रतिग्रहच्चाध्ययनं विप्रकर्माणि निदिं शत्‌ | दानमध्ययनद्धैव ary यथाविधि । ७ ॥ चचियस्य wie कमे दं परिकीर्तितं | आचियस्य विशेषेण पालनं दुष्टनिग्रहः ।। ८ ।। कषिगोरश्यवाशिच्यं वेश्यस्य परिकौस्तिंतं | शूद्रस्य दिजशयूषा सवंशिस्पानि वाप्यथ ॥ < it area aa facta हितौोयक | आनुलोम्येन वणानां जातिग्प्टसमा HAT |! १०॥ चण्डालो ब्राह्मणोपु्रः Ware ufaaraa: | सूतस्त॒ चचियाल्ातो ARATE देवलस्तथा ॥ ११।। yaa. स्त्रियापुजरः शूद्रात्‌ स्यात्‌ प्रतिलोमजः | मागघः स्यात्तथा वेश्याच्छदरादायोगवो भवेत्‌ ॥ १२ वेश्यायां प्रतिलोमेभ्यः प्रतिलोमाः सहस्रशः | १ घमरूपमिति मण, Wo, Go, wo, अण | [१५२ श्रध्यायः। ग्टषखहठन्तिकथनं | ११९ faare: सदमे स्तेषां नो्षमेनाधमैस्तथा ॥ १३ ॥ © $ ‘ चणालकमं fafer बध्यानां घातनं तथा । स्नोजोवन्तु agate (\) deena च ॥ es i सूतानामश्वसारण्य पुक्सानाश्च व्याधता | स्त॒तिक्रिया मागधानां तथा चायोगवस्य च ।॥ १५॥ रष्गवतरणं Wa तथा शिखे जोवनं । वहिग्रमनिवासख खतचेलस्य धारणं 11 १६ ॥ न संस्मशस्तयेवान्ये घर्छालस्य विधौयते | नि “Oo ~ ; ALBUS गवा AT देदहत्यागोऽव यः क्तः ॥ Lo ti स््रोबालाद्यपपत्तौ वा वाष्ानां fafearca | ~ = “~ Q AEC जातयो Bat: faquiaa कमतः ॥ ec ti CAMA मष्ापुराणे वर्णान्तरधमी नामेकपच्चाश- द्धिकश्ततमोऽध्यायः॥ अथ द्विपच्चाशदधिकशततमोऽध्यायः। ग्टश्टस्थतत्तिः | FRC उवाच | भ्राजोवंस्त यथोक्तेन ब्राह्मणः खेन कमणा । चत्रविटशूद्रधर्मण MIs तु WATT ॥ १॥ छषिवाणिज्यगोरच्छं कुशोदच्च दिजखरेत्‌ | गोरसं गुडलवणलाक्तामांसानि वजयेत्‌॥ २॥ १९ सजीवन तन स्मत्‌ प्रोक्ञमिति ae go, Fo, अर, च | १२० अग्निपुराणे Le ५३ अध्यायवः | भूमिं futon Pear इत्वा कोटपिपौलिकान्‌। षनन्ति खल यत्नेन कषेका देवपूजनात्‌ ॥ ३ ॥ इलमष्टगवं धम्यं ` षड्गवं जो वितार्थिंनां | word ठृशं सानां feast धमघातिनाम्‌ ॥ ४ a ऋताखताभ्यां Maa तेन प्रस्तेन वा । सत्याढ़ृताभ्यामपिवा न ATM कदाचन॥५॥ इत्याग्नेये महापुरारे ग्इस्यतत्तयो नाम दिपञ्चाशदधिक- शततमोऽध्यायः ॥ अथ चिपच्चाशदधिकशततमोऽध्यायः। ara ¢ ब्रह्म चर्थाखमघमः | JRC उवाच | aaa वच्य भुक्तिमुक्तिप्रद खण । Mery निशा स्ौणामाद्यास्तिखरस्त गद्दिताः ॥ १ ॥ ATTY Garay कर्माधानिकमिष्यते। गभेस्य स्म्टतान्नाने सवनं स्यन्दनात्‌ पुरा । २ ॥ षष्ठेऽष्टमे वा सौमन्तं GRA नामभं Wa । afeaarat कत्त व्य जातकर्म freed: ile अशोचेतु व्यतिक्रान्ते नामकर्म विधोयति। Tare ब्राह्मणस्योक्त' वर्मान्तं च्षतियस्य तु॥ ४॥ गदासासकं नाम प्रशस्तं बै श्यशू द्योः । [१५३ अध्यायः। ब्रह्मचर्याश्रमधमकथनं। १२१ Vale ब्रह्मणस्योक्तं cata ahaa च ॥ yt गुदासात्कं नाम प्रशस्त TATA: | बालं निषेदयेद्त्त तव युत्रोऽयमित्यत 1 & \, यथाङ्कलन्तु चूडाछलद्‌ त्राह्मशस्योपनायनं | गभीषटमेऽ्टमे ATS गभादेकादये BT ve गभात्त wet aa षोडगाब्दादितो a fe मुच््रानां वल्कलानान्तु Harare प्रकौत्तिताः wc ॥ मावे याप्रवास्तानि qatfa व्रतचारिणां, पणेपिप्यलविलानां क्रमादक्डाः प्रकीर्तिताः ॥॥< ॥ ARTS गललाटास्यतुल्धाः WIN: RAT तु । अवक्राः सत्वचः सवं नाविशरुष्टास्त THA: Ute i वालोपवोति कार्णीस्चौमोर्णानां यथाक्रमं | श्रादिमध्यावसानेषु भवच्छब्टोपलस्ितं ॥ ११॥ प्रथमं aa भिक्ेत aa fran ध्रवं भवेत्‌। स्लौणाममन्ततम्तानि area समन्वकः ॥ १२॥ sala गसः fret सित्तयेच्छौचमादितः | अआचारमग्निकाय च सन्ध्योपासनमेव Fi १२॥ TIGA प्राडःमुखो yea यशस्य दक्षिणामुखः | fra WES मुखो YSR ऋतं YER उदढःमुखः॥१४। सायं WAS जुहयान्‌ AAT व्यस्तहस्तकं ।. ® * ` Qe wa ~ मध मांसं जनैः ae Wa sae वे त्यजेत्‌(१) ॥ १५॥ > Se ब्ल Eee १९ AMY बेयेदिति qo, Ao, Ho, कर) arf: मुत्यश्च वे त्यजेदित्यनाः we, Se, som) UTE TAG. - पाठः जर एके नालि) ( १६ ) १२२ अग्निपुराशे [१५४ अध्वायः। हिसाभ्यरापवादं 4 wate ख विशेषतः | दण्डादि घारथेग्रष्टमण्ड चिध्वान्धधारणं ॥ १९ tt वेदस्वोकरणं लत्वा खाया दस्दच्िणः। नेष्ठिको amare वा देशान्त निवेदुरौ ॥ १७ ॥ इत्याग्नेये महापुराणे ब्रह्मचयाखमो नाम चिपश्चायदधिक- शततमोऽध्यायः ॥ Sean ay अथ चतुःपश्चाशदधिकश्ततमोऽध्यायः। विवादः | पुष्कर उवाच 1 विप्रचतसखो विन्देत matic भमिपः। इ च वश्यो यथाकामं भायकामपि चाग्धजः॥ १॥ waaratfa सवाणि न arahearear | पाणिग्राद्यः eratg ब्डङ्लोयात्‌ afwar शर ॥ २॥ वैश्या watearcarent 3 rarer तथा । सत्तत्‌ कन्धा प्रदातव्या इरस्तां चौरद्र्डभाक॥ २॥ अपत्यविक्रयासक्तं निष्कतिन्र विधौयते | कन्धादानं शचौयागो(\) विवाष्टोऽच चतुर्थिका । 8॥ ` ६ इतीम इति खण, wow: [१५४ serra | बिवाषकचनं | . १२३ विवाशमेतत्‌ कथित नामकश्धचतुषटयं | ae सते प्रव्रजिते ata च पतिते aati yt पञ्चखापतत मारोखां पतिरन्यो विधौवते ' मते तु देवरे Sara तदभाभे यष्छया ॥ ९ । मूष्वोजितयमाग्नेथं वायष्य' चोत्तरात्रयं | रोहिणो चेति चरणे भगणः समते सदा॥ on ARMA वरथेब्र कार्याश्च भार्गव | fear. समादरः मात॒तः पञ्चमासषथा ॥ ८ ॥ प्राष्य टामं ब्राह्मः सात्‌ कुलशीलयुताय तु। पुरुषास्तारयेत्तस्लो नित्यं कन्याप्रदानतः ॥ € ॥ तथा गोमिघनादानाडिवाहर्बाष उचते | प्राथिता दौयते यस्य प्राजापत्यः स धश्चकृत्‌ ॥ १० ॥ SRA चासुरो मन्दो गान्धर्वो acarfara: | ` राक्षसो युदहरणात्‌ पैशाचः कन्यकाच्छलात्‌ ॥ ११॥ वेवाहिकेऽद्ि(१) कुर्वीत qgarnrcarer शचौ | जलाशये तु तां पूज्य वाद्याययेः(\) स्तं wea ॥ ere प्रशम केशवे नेव विवाहः काय wa fe | | पौषे चेत्र कुजदिने रिक्ाविरितिधौ aan ee | न शुक्रजीवैऽस्तमिते न uae ग्रहा्हिते। श्वक्वौकिभोमयुक्तेमभे व्यतीपातहते a fe १४॥ सोम्य faare वायव्यं सावित्र रोहिणी तधा। १ बेबािकेष्ट इति qo, Go, Go, २ वद्यौषेरिति Fo, Wo, He || go qj १२४ अग्निपुराणे. [१५५ अध्यायः ‘ JR. + ई ख्छरावितयं सूल मतर पौष्ण विवाष्भ॥१५॥ मागुषाख्यस्तेवा लम्नो मागुषाख्यां शकः शभः | aaa ख तथा as दशमेकादशेऽ्टमे |! १६॥ TEA AAT ¦ प्रशस्ता न कलोऽषटमः | सपाश्या्टमवगेषु शेषाः शस्ता ग्रहोत्तमाः ॥ १७॥ सेषामपि तथा मध्यात्‌ षष्टः शक्रो न शस्यत | (। विक्त ~ € a (५ a भे कस्षव्या तथेव च चतुधिका॥ १द॥ न दातव्या ग्रहास्तत्र चतुराद्यास्तचेकगाः | e iW e ~ quae far गच्छत्‌ WaT SUT War Ua: | ve garaa महापुराणे विवादो नाम चतुःपञ्चाशदधिक- शततमोऽध्यायः ॥ era अथ पश्चपच्चाश्दधिकश्रततमोऽध्यायः। ® 9 qua ~~ —_— e e श्राचारः। (भ “9 रोन्‌ vx ~ UMC SATS ब्राह्म HRA चोत्‌धाय विष्णुादौन्‌ दवतान्‌ ATA खमे मृ व्रप॒रौषे तु दिवा FATES YS! ॥ ९ ॥ TH ख द्िणे gated सन्ध्यं यथा दिवा । न मागादौ जले Treat सत॒ णायां सदाचरेत्‌ ॥ २॥ [१११५ wera पलारकथनं। १२५ WIT कत्वा सदा सम्य भरयेहन्तधावन | fan जेमिन्तिकं काम्य क्रियाद्घ' मलकर्षणं hi ३॥ क्रिवाख्ानं तथा षष्ठं Werera प्रकीतितं | VSAM HU VATA चरेत्ततः ॥ ४॥ भूमिष्ठसुद् तात्‌ TM ततः प्रस्नव णोदकं | ततोऽपि सारसं पुष्य" तस्माब्रादेयसुख्यते । ५॥ तोधलोयं ततः पुण्ड गाङ्ग पुष्य तु सवं तः | संशोधितमलः पृष्व निमम्नख जलाशये॥ ६ । STA ततः ङुय्ोदष्मसः परिमाजंनं । . हिरण्वशास्तिङभिः शन्नो देवीति चाप्यथ © ॥ अआपोडहिेति तिखभिरिदमापस्तयेव च , ततो जलाशये मग्नः कु््याद्‌न्तजंलं जपं | ८ ॥ तजराचमर्ष॑णं ae gai वा तधा जपेत्‌। ` GUA मन इत्येवं GN वाप्यथ पोरुषं ॥ < ॥ गायनं तु विशेषेण अघम॑षणसुक्कके | देवता भावठन्तस्त्‌ ऋषिचेवाघमषणः ॥ १० ॥ SRAATH तस्य UTATA हरिः स्मतः | ्रापौखमानः Wet देवतापित॒तपं a(*) Neen पौरुषेण तु सक्तेन ceasenate | aatsfereaa(®) gatera car(®) तु शक्तितः i १२॥ ९ तत्रास शमित्यादिः देवतापिर्तपं- २ सगोऽधरिररकमिति ७०, wo च । wefan: पाठः भाण पुरूक mie: ९ दोषं दलति क. | १९६ अभ्निदुराख [१५५ अध्यायः । ततः समभिगच्छेत योगचेमा्थंमौशर | भ्रासनं शयनं यानं लायाऽपत्बहमण्डलः Il ११२॥ arma: शुचिरेतानि परेषां न शविभवेत्‌ | भाराक्रान्तस् गुथ ख्या: पन्वा देयो गुरुष्वपि ti १४ ॥ न पश्येचाकंमुख्यन्तन्रास्त यान्त न Tafa न चेवम्बां सिषं कूपं शूनाखानमघोषिनं ५ १५॥ कापीलाखि तथा भख ANTE व Alera । अन्तःपुर faware acete were हि(९) ॥ १६॥ मारोरेहिषमान्रावन्न sa न च पर्वतं | भर्धायतनभाखेष॒ तथेव सधात कुतृहलौ ॥ १० ॥ लोष्टमर्दी TTS नखखादौ विनष्यति | सुखादिवाद्नं नेद्‌ विना Sto न राविमः(९)॥ १८४ नाहारेख fate म च aw विरामथेत्‌ । कथाभङ्गं न कुर्वीत म च वासोविपयं । १९ ॥ भद्र भद्रमिति qurarfae area कचित्‌ । पालाशमासनं aed देवादिष्छायया(र) ब्रजेत्‌ ॥ २० ॥ म मध्ये पुञज्योयोयात्‌ नोच्छिषटस्तारकादिष्टक | wararat wet gare कण्डयेद्‌ frees ।। २१ ॥ waaay fro देवाब्रदौपारद्च न प्रजेत्‌ | मलादि प्रक्िपे वाखु,*) न नग्न; खानमाचरेत्‌ ॥ २२१ १ परभतो wan fe दति we | ६ दवादिच्छाययेति खर, wo, He a | ९ Btzaclanfa:, मराजिग can: ४ मलादि QUINT दति खम, ze: पाठः, He Foe नाखि च| [१५५ अध्यायः । TACHA | १२७ ततः समभिगच्छेत योगचेमार्थमोश्वर | स्रजन्राकमनापनयेत्‌ खरादिक-रजश्वजेत्‌ ॥ २३॥ छौनाच्रावशसेत्‌ THAN निवसे a: | वेयराजनदौहोने स्तेच्छसमीवडनायङते seg t रजखलादिपतितनं भाषेत aud ata | मासहतमुखः Harera(’) Tat तधा qa २५ ॥ प्रभोरप्यवमान स्वद्ोपयेदचमं बधः इन्द्रियार्थ नागुकूलो वेगरोधं न कारयेत्‌ ॥२६। नोपेचितव्यो व्याधिः स्याद्विषुरल्योऽपि(र) भार्गव । रष्यातिगः सदटाचामेत्‌(र) विभृयाब्राग्निवारिणौ ॥ २७ ॥ न इङ्‌ थाच्छिवं yer पाद्‌ पादेन नाक्रमेत्‌ । wae वा परो वा कस्य चिन्नाप्रियं वदेत्‌ ।॥ २८॥ वैदथाखनरे नद्रभिंदेवनिन्दां विवर्जयेत्‌ | ettersttat(") न कर्तव्या विष्वासन्तासु वर्जयेत्‌ ॥२८ ॥ धमश्चति देवरतिं(५) कुथादर्मादि नित्यथः(९। सोमस्य पूजां ware विप्रदेवादिपूजनं ॥ २० ॥ १ कुयाद्धास्यमिति wo, zo q | Zo! वेदनतिमिति qo, we २ रिपुवेलोपि cfr wo | च| २ Varwrafafa wo | , € भद्‌ . मद्मिति ब्र arfearfe:, कुया- 8 जोरानिच्छेति कर | ware fara इत्यः पाठः भ ५ रेवगतिभिति मर, च ee, ज, पुरे नाखि । १९८ श्रम्निपुराणे [ १५६ ब्रध्यायः । ¢ | + ९ षष्टो चतुद श्यष्टम्यामभ्यङ्ग वजये चथा। दूरान्‌ HAAS नोत्तमेर्वे माचरेत्‌ ॥ २१॥ CAAA महापुरारे श्राचाराध्यायो माम TITS शद्धिकशततमोऽष्यायः॥ AD अथं षटपच्चाश्रदधिकशततमोऽध्यायः। A-™ © ~ @ वन्धः 0 दरव्यश्रदिः। पुष्कर उवाच । टद्रव्यश्चदि' प्रवश्यामि पुनःपाकेन Tang t gery मूचपुरोषादयः स्यष्टन्तास््र सुवणेकं॥१॥ safe तच्चान्यथा तु ACU A ATTA | चारे कांस्यलोहानां सुक्षादेः च्षालनेन तु ॥२॥ | अनानां(\) चेव भाक्डानां सर्वस्याश्ममयष्य च | शाकरव्जमूलफलवेदलानां तथेव च ॥ २ ॥ मा्जनाद्यक्षपाज्राणां पाणिना यश्चकमणि। SUMMA CARA We. समूमाजनाङरं ॥ ४ ॥ -_ ९ दषछटानामिति ce | [१५९ भध्यायः। दव्यद्व्रिक्षघनं | १३९ प्रोधना्मस्तग्यदस्त्ं (५) खलिक्राहिकिंशोधमं । TEAS TOMI ASAT वज्रात्‌ ॥ ५॥ प्रोक्षणात्‌ सहतानान्तु ZATATY तथो तृञ्वात्‌ | शयनासनयानानां शूर्पस्य शकटस्य च ॥ & ॥ शदिः सम्रात्तणज्‌ याः चलालेमख्नयोस्तघा | सिष्ायेकानाङस्फेन गङ्कदन्त मयस्य च ॥ ७ ॥ गोबालैः पलपा्ाणामस्ां स्याच्छङ्कवत्तघा । नियासानां गृडानाख्च शवशानां च शोषणात्‌ ॥ ८॥ कुशद्मङ्ठसम्नात्राच WIAA AT 1... शच चदौोगतं तोयं पृख्यन्तहत्‌ प्रसारितं ॥ < ॥ स॒खवजख् गोः डा अुहसश्ठाजयीर्मुखं | नारोणाश्चेव व्यानं शङुनौनां शनो FE ॥ १० ॥ मुखैः प्रस्रवणे ठत्ते खगयाथां सदा शचि । YM चसा तथा सुपत्वा Tear चाम्भो विगाद्च च ॥११॥ दथ्यामाक्रश्य ब्राचामेहयासो दिपरिधायचख। माजारखरक्र माच्छदयतुथऽड्ि रजखला ॥ १२॥ ज्ञाता Bt पश्चभे योगा टे पिजेयचकर्माखि। पच्चापानं दश्कस्मिब्रभयोः सुप्त सिकाः ॥ १३॥ एकां लिङ we दद्यात्‌ करयोख्िदिङ्त्तिकाः | ब्रह्मचारिवब्रखानां यतौनाञ्च चतुगुणं ॥ १४॥ खोफलेर पदानां चोमाखाङ्कोरसबपेः। न १ Awan wage इति ae, wo च | ( १७ ) > -५- = Oe = कयि 1 १९० अभ्विपुराखे [१५७ wear! शदिः caw Maa समलोखां प्रकौल्तिंता ॥ १५॥ GUY फलानाख प्रो्ण्ाकल तोऽख्िख । cara महापुराणे xa terra षटःपश्चा्द्धिक- शततमोऽध्यायः ॥ अथ AMAT aS fea aS Ts: I ` ` , etme SS me श्रावाभोचादिः। धष्वार ware । प्रेत शिं urea सूतिकाशदिमेव च । दशाह Maa सपिश्छषु विधोयते ॥ १॥ शनने च तधा शदित्रोह्मकानां भृगृ्तम । दादशाहेन राजन्यः पा रेश्चोऽथ मासतः ॥ २ $ शू द्रोऽनुलोमतो दाङ खामितुरधग्छ शौ चकः | षट्भिस्तिभिरथकेन चज्रविट शूद्रयोनिषु ५ ३॥ awe शदहिमाप्रोति aaa तथव qt ` विट्‌शद्रयोनेः शदिः स्वात्‌ क्रमात्‌ परशरामक ॥ ४॥ Werte चिरातरेय awh: शूदर तषा विधिः। [exo wear: | arannwifearaat । १९९ आदन्वजननात्‌ सद्य पाचा्रिकौ ुतिः(४॥ ५।॥ सिराज्रमाव्रतादे णाहशरात्रमतः पर | ऊमजेवार्षिंके WT पच्चाहच्छहिरिष्यते ॥ gh इादथारेन शदिः स्यादतौसे वल्छरवरये । ` गते; संवत्सरैः षट्भिः शदि्मासेन कौतिंता wo स्ोणामलतचडानां विश्चदहिर्बेशिको खता । तथा च HAAS AT ब्रह्टाच्छदयन्ति बान्धवाः॥ प ॥ विवाहितासु नागों farce विधीयते । पितुग्छ प्रसूतानां विशदितरंभिको अता ue ॥ सूतिक्षा दशराजेख शदहिमाप्रोति नान्धा । विवाहिता fe चेत्‌ कन्धा सिक्ते पिदठवेग्मनि ११० ॥ तखाच्िरात्राच्छदान्ति बान्धवा नाच GT: | समानं SANG प्रथमेन समापयेत्‌ Wee th असमान हितौयेन wrest यथा । SNATCH: BAT तु Frat मरणोद्रदो wer यच्छेषं MUTT तावदेवाखषिभवेत्‌ | अतीते ene तु जिरावमशचिर्भवेत्‌ \ ११॥ तधा संवत्‌सरेऽतौते खात. व विशाति । मातामहे तधाऽतौते WATS चं तथा सते wee tt रातिभिनधाखतुखयाभिगर्भावे वि गोधनं | सपिण्डे area वशः wey एवाविधेषतः wee ९ Were निकी तथेति ze | ११२ अष्निषुराशे [१२५७ were दर्शरभिेख शदान्ति दाद्थाहेन भूमिपः | वेश्याः पश्चदग्रारेन शूद्रा मासेन मामेव + १६॥, उच्छिषटसजिधावैकं तथा fre’ निवेदयेत्‌ | कौल्तयेशच तंवा. तख ATA समाहितः ॥ १७ tt अक्षवत्‌सु fray पूखितेषु चनेन च(१) । ` विख्टाचततोयेष गोतरनामेाशकौ्तनेः ॥ १८ चशुरङ्लकिस्तारे सत्ख्ातग्तावदन्तरं | वितस्िदौषे क्त्यं विकर्षणं तथा चयं ॥ १९.॥ विक्षूखां समीपे च व्वालथेच्‌ उवशनजयं | सोमाय ABA राम AAA च PATA? | R2 Il HEMET EAT: We TITY ठु धः | पिण्छनिष्वेषण्शं gate urate gaa पुथक्‌ ॥ २१ ॥ TNA दक्षा मधुना तथा मासेन BeBe । मध्यं चेटथिमासः श्यात्‌ कथीदभ्यधिकम्तु तत्‌ ॥२२॥ NAT दादशाहे न. खब्बभे त॑त्‌ समापयेत्‌ । सवतृरस्यं Wey अ यहि खोदेधिभीश्काः vee is तदा दादथकर अहिं कायः तधि भवेत्‌। IAT भाष तु Ate चारवदाचेरेत्‌ nash परेताय na सर्ब च तसेव gee ! पिण्डान्‌ fafada संहशवतुरसतं aaifeat a ayn erase cat पुथिवी wera xfer चाप्यथ । ` णि aay चेति Wo, खर) चर) Co, Wo, Ho, Ho [१४७ अध्यायः । WATT AHA | ११२ योजयेत्‌ Rafe तु frag भागव ॥२६॥ Baars च. पत्निषु तथेव विनियोजग्रेत्‌। CAR TAY प्रकम्य TAT HATTA ॥ २७ ॥ ` -मन्वजमिर्‌ं कच्च गुदर तु विधवे । सपिष्छोकरणं खोशां क्राध्यमेवं तदा wan’) ४ २८॥ ATE FUG HAE प्रेते HaTAATT | aptat: श्िकता धादां थना वर्ति वासवे ॥ २९ ॥ wat मखयितु' लोके मल्वतोताः. पितामहाः | कासे eral. खेयं ` मास्ति. तस्मात्‌ कयां चरेत्‌ ॥ ३०॥ देवने धातजाश्याने प्रेतः आदं तं लभेत्‌ । नोपकुखा्ररः अओ चन्‌ Taare एव वीं (1 ae सून्वज्िपाथ्यकाशनीभिकतानामामधातिनां |. पतितानां च, arate बिखष्स्तषताख ये ॥ २२॥ अतित्रतिब्रह्मवारिनपकारूकदौलिताः।. _ राजाक्ञाकारिणो(र) येष. arare प्रतगाम्यपि॥२३॥ मेने कटधूमे च सद्यः खानं विधौयते | हिज न .नििरत्‌(र) परेतं शूद्रेण तु.केधश्चेन ५ ३४॥ नच शद्रः दिजेनापि तयोहाषो हि जायते(*) अनाथविप्रपरेतस्य वहनात्‌ खगंलोकभाक्‌ ॥ २५॥ १ Sree तथा भदेदिति wo, wo, yo: २ ननिदेदेदिति wo | च । कायेमेतज्षथा भवेदिति फ०। ४ तयोदंषो,भिोयेते ईंतिं ze | २ राजान्नाकारका इति ze | | ` ` " ^ ९१२४ ` अजिपुराखे ` [eas अध्यायः । TEMA जयमाप्नोति HASTA च काटः | wena बान्धवं परेतमपसव्येन तां चितिं ॥ ३६ ॥ परिक्रम्ब ततः खानं Fa: सव्वं सवाससः | Fara च तथा द्य खींखींवेवोदकांच्लौन्‌ ॥ १७ ॥ दाश्मनि पट्‌ दत्वा प्रविशेयुस्तथा गह । suatfafqaesy निम्बपतरः fare wu cn चथक्‌ शयौरन्‌ भ्रमो च क्रौतलब्याश्वनो भवेत्‌ । ˆ एकः feet दशारे तु श्मजुकगकरः शुचिः ५ २९ ॥ सिशार्धकेस्विलैबिदाम्‌ मच्वेहासोपर दधत्‌(र) । NATTA तनये HUM गभसत तथा ॥४०॥ काण मवाम्निसख्छारो मव चास्योदकक्िया । ` तुयं च दिनेकास्तवाखां चेव सख्यः ॥ ४१ ॥ ufeaqaneyaret विधोबते । . CAMA महापुराखे शावाशोचं नाम सपतपश्चागदधिक्ष- शततमोऽष्वायः ॥ ॥अथाष्टपष्वाशदधिकश्ततमोऽध्यायः। सखरावा्शोचं। घुष्कर sare | खवागोच Tafa मन्व दिमुनिसब्मत | १ सिदाचेेखिखे भान्‌ बजदासोऽपर येकखिलेविंहान्‌ सावादासोऽपर qufefa we, ७०, me) सिद्धा दषदितिमण्ब्न्च। | [eas अध्यायः । SAINT | ११५ राजिभि्धासतस्वाभि्ंभसावे WES at १॥ चातुख्यासिकपाताम्ते दशां पश्चमासखतः । WHT च चत रात्र बश्च पञ्चाहमेव च ५.२॥ NVIVA, FMS हादथाहदतः पर । witei frufwefear(’) खानमाभेष व पितुः ॥ २५ न खानं fe सपिष्डे anf’ सत्तमाष्टयोः। सव्यः गोच सपिष्डानामादन्तजनमात्त्ञा is ॥ पचृूडादेकराच wreraars बिराव्रकं । दथरा र भवेदस्मासातापिन्रोद्िराव्रक i ५॥ अलातद्ग् तु खते कतचटेऽ्मके तधा | प्रते waa Pama कते gira मेथिकौ 1 द + wey चजिये शडिसिभिर्गश्ये यते तथा | अदिः Is पञ्चभिः खात्‌ प्राग्विकाहाद्‌ दिषट्‌्त्वषः(९)५०॥ ` यत्र बरिरावर विप्राशामशोग्ं aed | तच्र YS Wee: ष्व wea: । ८ # We नैवाग्निसंस्कारो af तजिखनेद्‌ भुवि । न चोदकक्रिया aw माजि चापि छते सति nen जातद्न्तख्य वा कामा खादुपनयनाहथ | एकाहाच्छदयते विप्रो योऽग्निषेदसमन्वितः ॥ १० ॥ होगे होनतर सेव व्राहतुरश्खथा | ` पञ्चाहेनाग्निहोनसतु दाडाद्राद्मयत्रवः.॥ ११ ॥ १ तिषदिः कथितेति a, we, भण्च। र दिषडक्कत्रिति ढर। १२६ अजिष्ठराख {१५४ अध्यायः | चविधो .नक्रसत्राहाच्छदेयहित्रो WHAT? दशादाम्‌ ANN वेश्यो विभ्राहाच्छद्र WaT १२॥ दणड क्ते व्रि हादेन ETH | वेश्यः पञ्चदशेन शूद्रो MIA शयति ॥ १२॥ ` गुोत्कषं Seren arene बरहि । . एक्राषाप्तो सद्यः We BRT समूहयेत्‌ ॥ १९ ^ दासान्तेवासिष्टलकयः शिष्यायेकच्र वासिनः ।. . स्वामिनुख्यम शौचं श्या ऋति एक्‌ TART ॥ १५॥ मरशारिव Bia संयोगो we नान्बिभि!। | दाहादृ ष्मो व्याद्रश्छ वतानिको fer: a १६॥ SAMA ब्लनान्विघ्ठा मात्‌ sla जिचतुःप््दश्रमिः खश्यवशा! कमेक तु ॥ १७ ॥ ` ` -श्रतुये ma Ga उसमे वभि वधा । ` अखिसचर्यनं ara’ ब्रश मामचुचूवं शः cn , TEWMVAHNT प्रद राच्च अहं भवेव । पण्ठिदो.सृच्कतरामेव स्रि विधीयत ॥ १९ ॥ eta’ Gandia avert मच नोता । | HAST. HH अ SEM Wea तु ॥.२१॥ ` दश्रण्होपरदिः feta दुद्डितुर्म रणे are । सयः WT सपिश्डमनां भूव रडाष्टतिदिं न ५ २१ ॥ WHTHAT याविष्टं र स्ोरकात्‌ ATE | afaat म्राठपुश्स्य सपिष्डानां च सद्यतः ॥ २२॥ दग्य्छच्छन्वति विप्रो जगह नौ ATTY । [१५८ were | खावाद्यभोचकथनं । १३७ घद्धिसिभिरदहे केन त्षतविटशूदयोनिषु॥२२॥ एतज्‌ जेयं सपिण्डानां ae चानोरसादिषु | अनौरसेषु YAY भाधाखेन्धगताद्न च ॥ २४॥ परपूवोसु च स्नोपु िरात्राच्छदिरिष्यते । वयासङ्रजा तामा प्रव्रज्यासु च तिष्ठतां ॥ २५॥ ्रामनसूयागिनाख्छेव निषत्ततोदकक्रिया । मातेकया हिपितरौ शातरावन्धगामिनौ ॥ २६ ॥ एकाः सूतके तव BAR तु दहो Waa’) | सपिख्डानामशौच fe समानोदक्रतां a2 ॥ ७ ॥ बाले देथान्तरस्थे च एयकपिर्डे च सखिते | सवासा TARAS सद्य एव. विश्दाति ॥ २८॥ दशाहेन ABTA छ दान्ति TATA | विरावेण ager खा नात्‌ (२) शान्ति मोत्रिणः ॥२९॥ सपिण्डता तु पुरुषे सप्तमे विनिवत्तते । समानोद्कभावस्त, निवर्तेताचतुदशात्‌ । ३० ॥ जकनामस्मते वेतत्‌ तत्पर AAA | ` विगतन्तु विदेशस्य eaten wired 1) २१ ॥ यच्छेषं दशरात्रस्य तावदेवाशविभवेत्‌ | ्रतिक्रान्ते दशाहे तु जिरा्रमश्विभषेत्‌ || २२॥ संवत्सरे व्यतीते तु सपदेवापो विशदयति | १ मतके तु व्रा भवेदिति घ, Go, अण्च । २ ANA दति Go, ae, we, तके तु तथा भवेदिति Woe | Wo, Ko, ज ° च । ( es ) ear अम्निपुराणे [९४८ ware: | मातुले ofaet राजिः भिष्यविवंम्‌ बान्धवेषु 711 22 0 ‘aa जामातरि ta Sfea aferattga(’) | श्लालक्े ततस्ते दव खानमाज्र विधौयते ॥ ३४ ॥ मातामश्यां तथाचायं सते मातामरे we । Shs Crews भागतायां तथापदि । २५॥ उपस्गंतानाण्च दारे बरह्मविदान्तधा । संजिव्रति(रोत्रद्यलारिसङग्राभे टेशविश्चमे ॥ 2९ ॥ दाने य्न विवाहे च aa: शोच विधौयते | चिप्रमोदपन्तु erage चासघातिनां। १२७ ॥ असाध्यव्याधिषुक्षस्य खाध्याये Waxy च | | प्रायसिसमनुन्नातमम्ितोयप्रवेश्नं ॥ 2c ti अपाना सषधा(२) क्रोधात्‌ जंहा त्परिभवाहयात्‌ । ew स्ियते नारो पुरुषो वा waa ॥ 2211 WIAA चेकलथं वसे नरके WA | हदः ोतखतेशंघः परित्यजति यद्वसनम्‌ ।। ४० ॥ विरात्र त arate हितोये वाखिद्छयं | BAe तदक कायः तुष अदमाचरेत्‌ ॥ ४१ ॥ विद्यदम्ििहतानाख are शदिः सपिष्डके(५) » याषष्डाचिता wee नाभोचोदकगाः लियः ॥ ४२ ॥ पिदढमाज्ादिपाति तु राद्रंवासा पोषितः | sf प्रेते, भनिनीचुत tata «fa ० | Ge, Bo, Ho q| ९ यतिव्रतोति ae | ४ fegefqurary wwe, fet धोयते ३ अपमानादथेति Wo, Ho, चर) इति ढर।. [१५८ quara: | खावाद्यभोचकधनं । १३९ wards प्रह्वी प्रेतक्षाख' यथाबिधि॥ ४३५ यः afew रेत्‌ प्रेतमसपिस्छ" कथञ्चन । खात्वा सचेलः weft तं प्रा्च विषति ॥ ४४४ यद्य त्रमत्ति तेषान्तु दशाहेनेव Wea | अनदशरच्मह्ेपव न वे तिन्‌ WE वसेत्‌ I ४५॥ ATG ब्राह्मण प्रेतं ये वदन्ति दिजातवः | पटे परे TMS शिः स्यात्‌ ख्ञानमात्रतः ॥ ४६ ॥ Rahat दिजः yeaa चिः | SAS Aas: सा ` लत्वा च परिदेवनं ।। ve tt वजेये्दश्ोराजरं दानखादादि कामतः (१) | शूद्रायाः प्रसवो गेहे WTA मरणं तक्ष ॥ ४८ ॥ भाण्डानि तु परित्यज्य श्राहाद्लेषतः शुचिः । न विप्रं ay fro मतं शूद्रे नाययेत्‌ ॥ ४९ # aaa ta जञापितश्च पूजितं क्समे हेत्‌ । नग्नदेहं SVT नेव fafare परित्यजेत्‌ ।। ५० ॥ wars रोता तु चितां चारोपये्नदा । ` भराहिताम्नियंधान्धायं दश्व्यस्िभिरग्बिभिः ॥ ४१॥ अनाहिताग्निरेकेन लोकिकेनापरस्तथा। TAY त्मभिलजातोऽसि तदय जायतां पुनः ॥ ५२ th असौ खगाय लोकाय Tater esa: | VATU दक AAMAS बान्धवा; ।। ५३ ॥ (याप्या १ दानजादादिकमं चेति °| १४० अम्निपराशे [exc शरध्थावः। एवं मातामष्टाचाप्रेतानास्चोदकक्रिया । काम्योदकं सखप्रेतखसीयग्वशरलिवं STi ५४ ॥ अपो नः NTI MY सुतोऽपंयेत्‌ । ब्राह्मणे दशपिष्ाः स्यः AS दादश aa i ५५॥ वैश्ये पञ्चदश mar: शूद्रं विशत्‌ प्रकौत्तिता। धतो वा पत्रिकान्यो वा few दद्याञ्च पुचवत्‌।। ५६ ॥ विदश्य निम्बपत्राणि नियतो हारि वेश्मनः! | आचम्य चाग्निमुदकं गोमयं गोरसषेपान्‌ ॥ Yo 1 प्रविचेवुः समालभ्य लत्वा श्मनि पद wat अक्तारलव॑णावराः water मूमिग्ायिनः ॥ ५८ ॥ जौतलब्धाशनाः खाता भादिकरन्ता care । अभावे WATT तु कु्यात्पिरडोदकादिकं ॥ ५९ ॥ यथेदं शावमागोचं सपिष्ेष॒ विधोयते । ` जननेप्येवभेवं स्यात्निपुणं शुहिमिच्छतां ॥ ६०.॥ सवषां शावमाशौचं मातापितोख सूतकं । Gam मातुरेव Teresa पिता चिः ॥ ९१ ॥ ` पुज्रजंकदिने are कत्तव्यमिति निधितं | तदशस्तत्‌प्रदानाथे' गोदिरण्थादिवाससां ॥ ६२ ॥ अरणं मरणेनेव सूतकं सूतकेन तु । उभयोरपि यत्‌ ya तेनाशौचेन श्यति ।। ९२ ॥ ` सूतके कृतकं चेव्यान्‌ खतके त्वघ खूतकं । AURA BAK शौचं Fara सूतक ll ६४॥ ` समानं लघु्ोचन्तु प्रथमेन समापयेत्‌ । [१५८ श्रध्यायः। असस्कतादिशोचकधनं । १४१ असमानं दितीयेन धश्चराजवचो यथा । ey शावान्तः शाव आयात(९) पूवांभोचन ware | TAU लघ बाध्येत लघुना नेव aT ॥ ६६ ॥ san सुतक्रे वापि राचिमध्येऽन्यदापतेत्‌ | तच्छेषेणेव शरन्‌ रात्रिशेषे दयहाधिकात्‌ ॥ ६७ ॥ प्रभाति TNS UTS Uta चिभिरदिंनेः । उभयश दणादहानि कुलस्या न You ।। ec ॥ दानादि विनिवत्तंत भोजने कछषत्यमा चरेत्‌ | अन्नाते पातक नाये भोक्तरेकमहोऽन्धथा (९) ॥ ge ॥ इत्याग्नेये महापुराणे खावायशौच नाम ACTA S- धिकशततमोऽध्यायः tl Ge EE अथेकोनषष्टयधिकशततमोऽध्यायः। o_O . असंस्कतादिभौचं। TRC उवाच । संस्कतस्यासंस्कतस्य सर्गो मोतो हरि खमते; | अख ्ङ्गाग्भसि क्षेपात्‌ प्रेतस्याभ्यदयो भवेत्‌ ॥ १॥ १ आपात दति Go, wo च| रेकमडोन्ययेत्यकः पाठः ष, Wo, ao, २ छनमेणे बभेवं खादित्याडिः, भोक्त - पुरुकतयेष माङि। १४२ 15 Be | भम्निपुराणे (exe अध्यायः । गङ्गातोये नरस्याख्वि यावलावदहिवि खितिः। भ्ाकलनसूचागिनां ater पतितानां तथा क्रिया ॥२॥ तेषामपि तथा गाङ्ग तोशा पतनं हितं । तेषां दत्त जलं चान्नं गगमे तत्‌ प्रलोयते।। २ ॥ अनुग्रहेण महता Naa पतितस्य ख 1 मारायणवलिः काय स्सेनामुप्रमशते ।। ४ ॥ अयः पुष्डरोकाचस्तत्र TH न नश्छति | पतनाचायते यस्मात्‌ तस्मात्‌ WT जनादनः।। ५॥ पतसां सुक्तिमुक्षथादिप्रद एको इरि | दृष्टा लोकान्‌ स्ियमाशान्‌ सहायं धमंमाचरेत्‌ ॥ ६॥ ख तोऽपि बान्धवः शक्तो AAT नरं खतं । जायावज हि सर्वस्य याम्यः पन्वा विभिद्यते(९) ॥ ७ ॥ धमं एको(९) व्रजत्येनं यच्च कचन गामिनं । श्वः कायंमय् कुर्वीत TA चापराद्धिकं॥८॥ न हि प्रतौश्ते सत्यः कतं बास्यन वा छत | सछेत्रापशग्डहासक्नमन्यव्रगतमानस' ॥ ९. ॥ ढकौवोरणमासादय खत्यरादाय गच्छति | न कालस्य प्रियः किद्‌ देष्यशास्य न विद्यते ॥ १०॥ आयुष्य कमखि Nt प्रसश्च श्रते लनं । नाप्राप्रकालो जियति बिष शरशतेरपि | ११॥ Sarai eae: प्राप्तकाला न जौवति | १ पन्वा विभ्ये इति अ०। R अमं Lata अर | [१९० अध्यायः | त्वरि ताप्रूजादिकथनं | १४३ ओषधानि(९) न मन्राद्यास्रायन्ते खल्युनान्वितं ॥ १२ ५ AMAA प्राकृतं कमं कर्तारं विष्डति wa | अग्यक्तादि व्यक्षमध्यमव्यक्षनिधन अगत्‌।। १२ ॥ कौमारादि यथा देह तथा देहान्तरागमः । मवमन्धदाथा AA WHIT शरोरकां । १४ ॥ देष्टौ नित्वमबध्योऽयं यतः भोकं ततस्यजेत्‌ | इत्याग्नेये महापुराणे शौचं नामेकोनषच्यधिकशत- तमोऽध्यायः ॥ अथ षष्टयधिकश्रततमोऽध्यायः। ® ~© य se Qe ATANRT AA: | GRE Sars | वानप्रखयतीनाञ्च(९) धमं" TA swAT ण्‌ । जटित्वमम्निष्ोजित्व erartfrrnce | १॥ वने वासः पयोमरूलनोवारफलह्तिता | ufaaefasfaa era ब्रह्मचारिता॥२॥ देवातिधोनां पूजा च watsa वनवासिनः। ९ जोषधादोमि क । ९ तौनाक्‌, दति we । १४४ अम्निपुराणे [eer अध्यायः । VE छपत्यापत्य्च दृष्टारण्य (५) TATA ॥ २ ॥ ठतौयमायुषो भागमेकाको वा PATA | Wet पश्चतपा fra’ वषाखञ्ावकाथिकः ॥ $ ॥ ्रद्रवासाख हेमन्ते तपबोग्रच्रोदलो(९) । अपराहत्तिमाखाय व्रजेदिशमजिद्यगः(२) ॥ ५ ॥ TAMA महापुराणे वानप्रस्ाखरमो नाम षच्यधिक- शततमोऽध्यायः ॥ वाकस्य ॥ । अथेकषष्टपधिकशततमोऽध्यायः। A 0 es ~> @© ee” @ यतिधमंः | | पुष्कर उवाच । यतिधर्मः ` प्रवश्छयामि ज्रानमीच्ादिदर्भकं। चतुयेमायुषो भागं प्राप्य सङ्गात्‌ परित्रजेत्‌(५) ॥ १ ॥ यदि विरजेदौरस्त दहि) च परिव्रजेत्‌ | प्राजापत्यां निरूप्येि' सवदेवसदक्िर्णा ॥ २॥ TAA समारोप्य प्रत्रजेद्राद्मणो ग्टहात्‌। a en ye ~~ १ caremfafa © | ४ सङ्गान्‌ परित्यजदिति So | ९ मपञ्चोप्रं वमे चरोदिति Se | a facorarta तदि दति wo! ९ भणददिश्मजिद्यम दति eo | [१६१ अध्यावः। यत्तिघन्षकथनं । १४१ रुक एव चरबरित्य' ग्रासमव्राधमाज्रयेत्‌ ॥ २ ॥ उपे्तकोऽसख्यिको सुनिन्रानसमन्वितः। | कपाल दच्चमूलख्(\) कुचेलमसहायता ॥ ४ ॥ समता चेव संस्तरे लस्य (९) Tere | नाभिनन्देत मरणं नाभिनन्देत जौोवन(द) ॥ ५ ॥ कालमेव प्रतोक्चेत निदेण तको azar efeqa न्यशेत्मादं वस्त्रपूतं जलं fata neu सत्यपूतां वदेदाच मनःपूतं समाचरेत्‌ | अलावदारूपा्ाणि ण्मयं वे णवं यते: ।। 9 ॥ विधूमे न्यस्तमुषले व्यङ्गारे YRAITA | ae शरावसम्पाते भित्तं नित्यं यतिश्चरेत्‌ ॥ ८ ॥ माघकरमसछःक्िस' प्राकूप्रणो तमयावित । तात्‌कालिकञ्चोपपच्नं भं पञ्चविधं सम तं !। < ॥ पाणिपात्रो भवेहापि पात्रे पात्रात्‌ समाचरेत्‌ । अवेत गतिं णां कमंदोषसमुद्धवां ॥ १० ॥ शदभावशरेहर्म' TA TATA रतः | समः सवेषु भूतेष न लिङ्ग" धमेकारणं ॥ ११॥ फलं HARTA यचप्यम्बप्रसादक | न नामग्रहणादेव तस्य वारि प्रसीदति ॥ १२॥ १ BUTEA Wo, Ho, HoT! २ जोवितमिति we, चर, Ge, wants इति ze | द°, Ho च| ९ रतच्छ.इस्येति ड» । ( ee ) १8६. अग्निपुराणे [१६१ भ्रध्यायः। श्लिषः पण्डकः पङ्क Tat बधिर एव च। सद्भिश्च qua सहिरज्नानात्‌ deat दिजः । १२॥ शङ्कि tare यान्‌ जन्तन्‌ हिन॑स्यन्नानतो यतिः। तेषां खात्वा विशदा प्राणायामान्‌ षडा चरेत्‌(१) ॥१४॥ afew खरायुयुतं मांसग्ोणितलेपन | चमावनद SAAT TW मूत्पुरोषयोः॥ १५॥ जराशोकसमाविष्टं रोगायतनमातुरं | रजसखलमनिव्यच्च भतावासमिमन्जेत्‌ ॥ १९ ॥ तिः चमा दमोऽस्तेयं (र) शोचभिन्द्रियनिग्रहः । Sia सत्य ARNT दशकं TTT ॥ १७.॥ चतुर्विधं terre कुटीरकवहदके | हसः परमसं यो यः TATA स उत्तमः ॥ १८॥ एकदण्ड facet वा(र) योगो मुच्येत बन्धनात्‌ | अदिस सत्यमस्तेयं ब्रह्मचथाऽपरि ग्रदौ ॥ १९ ॥ यमाः ware निमा: गोचं सन्तोषणन्तपः | स्वाध्यायेश्वर पूजा च पद्मकायासनं यतेः(*)॥ Re tt प्राणाधांमस्त दिषिधः स गर्भोऽगर्भं एव च। जपध्यानयुतो गभा विपरौतस्त्लगभेकः ॥ २१॥ yaa तिषिधः सोपि पूरङुब्भकरचकाः पूरणात्‌ पूरको वाथोत्रिखलत्वाचच कुम्भकः .॥ २२ ॥ १ समाचरेदिति Go, Bo FI ३ facwl चेति eo | २ दयथाऽस्त यमिति Se | ४ TMNT a awa इति ze [१६१ भध्यायः। यतिधम्मकथनं | १४७ रेचनाद्रेचकः प्रोक्तो माव्राभेदेन च जिधा। हाद्शात्त चतुविंशः षट्‌तरिंशन्माचिकोऽपरः ॥ २३ तालो eae मातरा प्रणवादि षरेच्छनैः। प्रत्याहारो जापकानां ध्यानमीण्वरचिन्तनं ॥ २४॥ मनोषटतिदीरणा स्यात्‌ समाधिनब्रह्मणि fafa श्रयमाता पर ब्रह्म सव्य ज्ञानमनन्तकं ॥ २५॥ विज्ञानमानन्दं ब्रह्म तच्चम॑स्यऽहमस्ि तत्‌ । पर aw ज्योतिरासा वासुदेवो विमुक्त Why 2 4 देहे न्द्रियमनोबदिप्राणाषड्ारवजिंत | जाग्रत्‌स्वश्रसुसुष्यादिसुक्ष(र) ब्रह्म तुरोयकं 1 २७॥ नित्यशदबदयुक्तसत्यमानन्दमचयं (र) | WE ब्रह्म परं ज्योतिरन्तरं way हरिः ॥ २८ ॥ योऽसावादिल्यपुरुषः सोऽसावदहमखण्ड श्रां । सबारम्भपरित्यागौ समदुःखसुखः WAT ॥ २९ ॥ भावश्चैखब्रह्मारड भित्वा ब्रह्य भवेत्ररः। रषदा NCATE चातुर्मास्यं व्रतश्चरेत्‌ ॥ २० ॥ ततो ब्रजेत्‌ नवम्यादौ युतुसखिषु वापयेत्‌ । प्रायञ्चित्तं यतीनाच्च WTA वायुयमस्तथा ॥ Be द्त्याम्नेये महापुराणे यतिधन्धा नामे कषच्चधिकश्चतत- मोऽध्याय॥ a ni १ जआाम्रसखननुचुक्षयाकमक्कमिति ९ इत्याग्नं ये अष्टो चनियेय इत्यादिः, सत्यमा- Go, द, He FI नम्द्मदय मत्यन्तः पाटो Ae. Gos wifes । अथ दिषष्ट यधिकशततमोऽध्यायः | CUNTARAA | पुष्कर उवाच । मुवि श्णुर्यान्रवख्को हारोतोऽजिर्व मोऽङ्किराः | वसिष्टदश्षसंवत्तशा तातपपराशराः ॥ १॥ आआपस्तम्बोशनोव्यासाः काव्यायनलदस्मतो | गोतमः शङ्कलिखितो घममेते यथाऽब्रुवन्‌ ॥ २ ॥ तथा वच्छ समासेन भुक्तिमुतिप्रदं खण , ` प्रठन्नश्छ farwe हिविधङ्ग वेदिकं ॥२॥ काम्य कमे प्रवत्तं स्याव्रिहत्त ज्ञानपूवक। वेदाभ्यासस्तपो ज्ानमिद्द्रियाणद् सयमः।। ४॥ हिसा गुरुसेवा च नि:ःखयसकर पर । सवषाभपि चतषामाव्मन्नानं पर स्मतं ॥५॥ agar सविद्यानां प्राप्यते wad aa: सवभूतेषु ara सवभूतानि wars i ६॥ समम्पश्यन्नामयाजो खा राज्यमधिगच्छति , भरालन्नाने समे च स्यादेदाभ्यासे च यब्रवान्‌ ॥ ॐ ॥ एतदिजग्रसामष्य (°) व्राह्मणस्य विशेषतः | दतद्दिलमासामप्रयभिति खर, ०, भार एतर्दिजिग्मसानभ्रोति we | Be, eo Fi: | : [१९२ wera: । धम्मशास्रकथनं | १४९ | वेदशास्त्रार्थत्छन्नो यत्र तता खमे TAT ॥ ८ ॥ cea लोके तिष्ठन्‌ fe ब्रह्मभूयाय wena’) । सखाध्यायानामुपाकमे खावर्यां यशेन Th ou हस्ते चौषधिवारे च पश्चम्यां Wave वा पौषमासस्य रोद्िण्यामषटकायामधापिवा। rou जलान्ते छन्दसाङवयादुत्‌ सग विधिवदहिः | चह मरेतेष्वनध्यायः भिष्यलिग्‌ गुरुबन्धषु ॥ ११ ॥ उपाकमेणि at खशाखाय्रोतिये तथा(२) । सन््यागजिंतनिर्घातं भूकम्मोरकानिपातने tl १२॥ समाप्य वैद ह्यनिशमारणयकमधोत्य च। पञ्चदश्यां VERA Teas ॥। १२ ॥ ऋतुसन्धिष yar वा atin प्रतिष्डद्य च। पशमण्ड्ुकनकुलण्वाहिमाजीरशूकरेः(९) ॥ १४ ॥ Haat ANU शक्रपाते तथोच्छ्रये । AMET AAA मासवाणर्तु faaa ney श्रभेष्यशवशृद्रान्यश्मशानपतितान्तिके | WUHTE च तारासु विदयुतस्तनितसम्‌क्चवे ॥ १६.॥ भुत्क्ाद्रपाशिरम्भोन्तरद्ेरात्रेऽतिमारुते | | पांश्वषं fenvers सन्ध्या नौहारभीतिषु uve धावतः प्राण्िवाध च विशिष्टे हमागते | ५ ५५ ` १ ब्रह्मचय्याय करुपःते इति we | Wie, wo, Zo! ९ लभाखाच्ोतिये wa tia go, ३ शभ्माजोरश॒करोरिति Se | one भग्निपुराणे [ १९२ भध्यायः। खरोष्टयानदस्यश्ब नोकादक्लादिरोहरे ॥ १८॥ सप्तवि णद्‌ नध्यायानेतांस्तात्‌कालिकान्विदुः | इत्यागम्नये महापुराणे धश्चशास्व नाम हिषख्यधिक- शततमोऽध्यायः ॥ | अथ चिषष्टयधिकश्ततमोऽध्यायः। @ == 6 —— Zw मे यादकल्यकथनं। TRC उवाच । खाइकल्प प्रवच्यामि मुक्तिसुतिप्रद्‌ खण | निमग्ा विप्रान्‌ Yaa: खागतेनापराह्नतः । १। ्ार्योपवेशयेत्‌ ae युम्मान्देवेऽथ पित्रके । शरयुग्मान्‌ प्राङसुष्ान्देवे नोन्‌ पेते चैकमेव बा॥ २॥ मातामहानामयेवन्तन्व' वा बैश्वदेविकं। पाणिप्र्तालनं zat fagcra कुशानपि ॥ ३॥ आअवाहयेदनुक्नातो विश्व zara xara । | यवेरन्ववकौ््याथ भाजने सपवित्रके ॥ ४ ॥ शन्नोदेव्या पयः fear यवोसौति यवांस्तथा। यादिव्या इतिमन्ते ण ea we विनिचिपेत्‌ ॥ ५॥ इलोदकं गन्धमाल्य धूपदानं प्रटोपकं। भपसव्य ततः कछला पिटणामप्रदश्िखं ॥ ६ ॥ {१९२ भ्र्यावः। यादैकल्यकथन | gut दिगुणांस कुशान्‌ Bat WTA TAT पदिन्‌ । BMA तदभुन्नातो अजपेदायान्तु नस्ततः | ७ ॥ यवार्थास्त तिलैः काथाः कु्याद््यादि पूववत्‌ | द्वाष्य संखवान्‌ शेषान्‌ पाते wat विधानतः ॥ र ॥ faa: स्थानमसोति न्यं पात्र करोत्यधः । अग्नो करिष्य आदाय एृच्छत्यब्र CAA ।। < ॥ कुरुष्वेति gama gare पिल्यश्ञवत्‌ । ˆ - CART प्रदश्या त भाजनेषु समाहितः ॥ १०॥ यथालाभोपपन्नेषु रोष्येषु तु विशेषतः | cara पथिवोपात्रमिति पात्राभिमन्वशं ॥ eet aad विष्णुरित्पते feares निषैणयेत्‌ | सव्याहृतिकां Tan मधवाता इति as ॥ १२॥ TAT यथासुखं वाच्च भुख्ोरस्सेऽपि वाग्यताः ।. safac हविष्यश्च द याञ्चा पवित्रक ॥ १२॥ VARIA SA! ख शेषं चेवान्रमस्य च । aca विकिरेद्‌ भूमौ दद्याच्चापः सकत्‌ TATU १४॥ सवंमन्रसुपादाय सतिलं दलिर्णमुखः | उच्छिषटसत्िधो पिण्डान्‌ प्रदद्यात्‌ पितुयन्नवत्‌ ॥ १५॥ मातामहानामप्येवं दद्यादाचमनं AA: | सस्ति are ततः कुर्याद क्षययो दकमेव च ॥ १६॥ दत्वा तु दक्तिणां wear खधाक्षारसुद्हरेत्‌ | वाश्चताभित्यनुन्नातः खपित्‌भ्यः खधोच्य तां(.) ॥ १७ ॥ १ मातामहानाभित्यादिः, afr: खधोच्यतामित्यन्तः पाठः; we पुखके नाखि १५१ पम्निपुराखे [ १६२ भध्यायः। खरोष्टयानदस्यश्व नोकाहन्तादिरोहरे ॥ १८॥ सप्तविशण्द नध्यायानेतांस्तात्‌कालिक्षाज्विदुः | इत्याग्नये महापुराणे waar नाम हिषथ्चधिक- शततमोऽध्यायः ॥ | अथ विषष्ठयधिकशततमोऽष्यायः। @ === 6 ee @ कक @ चयादकल्पकथनं। पुष्कर उवाच । Arena प्रवच्यामि सुतिसुतिप्रद्‌ खण | निमन्ा विप्रान्‌ Yaa: खागतेनापराह्ृतः ॥ १। ्ार्योपवेशयेत्‌ पौठे युम्मान्देवेऽघ पिच्के। अयुगान्‌ प्राङसुखान्देवे चन्‌ वैते SHAT aT Vt मातामहानामणेबन्तन्त' aT Sasha ` पाणिप्रचालनं द्वा विष्टरे कुशानपि ॥ १ भावाहयेदनुन्नातो fad देवास Tarr | | यवेरन्ववकौय्यौय भाजने सपवित्रके ॥ ४॥ शब्रोदेव्या पयः fear यवोसौति यवांस्तथा । यादिव्या इतिमन्ते ण इस्ते wa विनिचचिपेत्‌ ॥ ५॥ इत्ोदकं गन्धमाल्य धूपदानं प्रटोपकं। अपसव्यं ततः कलवा पिद्णामप्रदच्िखं ॥ ६ ॥ {१६२ भ्रष्यायः। ओदैकष्यकथनं | १५१ दिगुणांस guy लत्वा छ गन्तस््ेत्यु चा पिन्‌ | भवाद्य तदशुन्नातो जपेदायान्तु नस्ततः | ७ ॥ यवार्थास्त तिलैः काथाः gateathe पूववत्‌ | दस्वाष्यः संखवान्‌ शेषान्‌ पाते Hart विधानतः ॥ र ॥ पिद्छभ्यः स्थानमसोति wet पाव करोत्यधः । अग्नो करिष्य आदाय VATA CAAA | < ॥ कुरुष्वेति gama gare पिढयज्ञवत्‌ । ˆ CART प्रदश्या त भाजनेषु समाहितः ॥ १०॥ यथालाभोपपन्नेषु रोष्येषु तु विशेषतः | zara पथिवोपाज्रमिति पात्राभिमन्बरं ॥ ११। aad षिष्णुरित्यत्रे frags निषेशयेत्‌ । सव्याहृतिकां गायनौ मधवाता इति BAW १२॥ TAT यथासुखं वाख' मुष्ोर स्तेऽपि वाग्यताः ।. safac हविष्यश्च career पविच्रक॥ १२॥ WANA SA ख Ii चेवान्रमस्य a! तदन्न विकिरेद्‌ भूमौ दद्याच्चापः WHT VAT १४॥ सवंमन्रमुपादाय सतिलं दल्तिणाभुखः | उच्छिष्टसव्रिधौ पिण्डान्‌ प्रदद्यात्‌ पितुयज्नवत्‌ ॥ १५॥ मातामहानामप्येवं दयादाचमनं ततः। सखस्ि वाच्यं ततः क्यार श्षय्योद कमेव च ॥ १६ ॥ दला तु द्तिणां शका खधाकारमुदाहरेत्‌ वाश्चताभित्यनुन्नातः खपित्भ्यः खधोच्य तां(.) ॥ १७ ॥ १ मातामहानाभित्यादिः, खपिदभ्यः खधोशच्यतामित्यभः पाठः we Gea माखि। ११५२ ९ पिष्टपूवे' विसखयेदिति ae, go, भ च| अरभ्निपुराणे [१९६२ अध्यायः। कुख रस्त सखधेत्यते भमो fag ततो जलं | प्रोयन्तामिति वा दवं fast Sart जल ददेत्‌ ॥ et दातारो नोऽभिवद्न्तां वेदाः सन्ततिरव च। खडा WT नो माव्यगमदडुदटेयं च नोऽस्ति ॥ १९ ॥ caret तु प्रिया वाचः प्रणिपत्य विसजयेत्‌ । वाजे वाज इति परौतपितुपून्व विसजंनं (९) ॥ २० ॥ यस्िंस्त संखवाः पूवेमघेपाते निपातिताः | पिढपाब' तदुत्तानं wat विप्रान्‌ विसजंथेत्‌ ॥ २१ ॥ प्रदक्िणमनुत्रज्य yar तु पितसवित। | ब्रह्मचारौ भवेत्तान्तु रजनो ब्राह्मणः WTI २२॥ एवं प्रदल्तिणं कत्वा ant नान्दौसुखान्‌ पिढन्‌ | यजेत दधिक कन्धमिखान्‌ पिण्डान्‌ यवः क्रिया ॥२३॥ क्रोष्टं टेवदह्ोनभेकाघकपवित्रक। आवाहनाम्नोकरणरदितं ह्यपसव्यवत्‌ ॥ २४ ॥ उपतिष्ठताभित्यक्ष्यस्थाने पित॒विसजंने । शरभिरम्ब्रतामिति वदेद्‌ ्रूयुस्तेऽभिरताः BASeu ayn गन्धोदकतिलेयुक्त' कुयात्‌ Watgea | salgienay प्रेतपात्' प्रसे चयेत्‌ ॥ RE t ये समाना इति enat te पूव्वं वदा चरेत्‌ | एतत्‌ सपिण्डो करणभेकीदिष्ट feat सदह (९) ॥ २७ ॥ अर्व्वाक्सपिर्डौ करणं यस्य संवत्सरा द्‌ भवेत्‌ | २ सिधा adifa go, & FI ~~ Lear अध्यायः । आदकषलकथनं । gue aware sega cary saat fea ॥ २८ ॥ warefa च awe प्रतिमासन्तु वत्सरं । प्रतिसंवत्सरं काय्य are वे मासिकावबत्‌ ॥ २८ # हविष्याजेन बं मासं पायसेन तु वत्सर । माग्यडहारिशकौरग्नेयाङुनण्का गपार्वतेः(९) we ॥ TUTTI ENT Aa qT । मासडदयाऽभिर्तप्वन्ति दन्तेरेव(९) पितामहाः ५ २१ ॥ wenfad महाण मधबुक्ना्रमेव a(*) । सोहाभिषं कालथाक मांसं वार्दौनसख wears वदाति गाखय सवमानग्यमुश्वते (५) । तथा वषाच्रयोद्भ्यां मधास्ं श न संश्ययः॥ १३२ ॥ wat प्रजां वन्दिनख पुन्‌ सख्यान्‌ चतानपि । त छषिं च वात्य femaawa तथा ५ ३४॥ बद्मवथखिनः gary Bea सकुप्यके । wifasrer सब्बकामामाप्रोति आददः WIT a Vee प्रतिषत्यभतिषेताग्ब्जयिला चतुहथौ" । WAT तु इता मे वे तेषां तव प्रदीयते + १६॥ war(*) श्नपत्यमोजव शौय" Wa’ बरं तथा । quae ससौभाग्बमपत्ब सुख तां चतान्‌ + १२९ ॥ t भात्‌ खानिदारिशौरभधरा ४ खव मान कवन, ते इतिं ध, कुनच्छागवावंतेरिति we, wo च । ९ TALC Wo, ७०, अ ० च। ४ शथंजिनि we, meq) र भथमुद् मेष वेति we । ¢ > eye? । --ऋमिश्ु्छये- [१६४ य्वा १ प्रचरतां gery बाच्जिण्क पमृतां तथाः . अरोगित यच्छे बौनष्फेकतां फरमाङ्कतिं aac , ^ wet fiat: मिषेशसिद्दिः प्ये मा्प्वजाविक्र । श्रश्वानायु घ विधिदत्‌ यः are सम्य््च्छति ॥.२२ ॥ ` nO RTC स कामानाप्र यादिमान्‌। ` -वसुरुद्रादितिङत्मः पितरः जराशटेवताः ४ ० ॥ ` " Preah ara). पिन्‌ खादेन afta: 1. आयु) प्रजां अन (र) feat खम मोचं सुखानि च ॥४१॥ ङक fer नथा ee फरोता णां. परितामहाः( १), इत्याग्नेये मष्टापुराखे Benen नाम चिषख्यधिक- + | शततमोऽध्यायः॥ ¢ ¢ ~+ eee ee | ह ahem Pair : : : s अय चतुःषष्ट यधिकशततमोऽध्यायः । ` free | ay । ६.“ " 9 < et Sa - ` ˆ `: `य we नवग्रहहोमः GRC उवाच । सोकामः शान्तिकामो वा ग्रहयन्न' समारभेत्‌ | seq great बा तथे वाभिचरन्‌ पुनः ॥ १४ a न १ लनुष्यान््रिनिि Ok यादाः प्रक्छं दङ्मिनिबर। | २ जायुः प्रभ(चमभिति जर | ४ प्रोताः Fory rear इति we ४ toe, {द्दह अध्ययः TERR । #00, of; सथः सोमो were कषयाय cewerteid i शकरः गने रो Wes कासु शति गराः BATE २ ॥' -सा्धकात्‌ स्फटिका द्रशचन्दन्परत्‌.स्तलका हभरौ-+. रताद व. WATT र्टाः कण्ण. कामादिकं # २ tt : , , भबरछग्वायजेनिख्य sarees aay पबा, _ यथावशे प्रदेयानि वाससि कुष्ुमानि च ॥४ a. } Waly बलयसखव धपो SAW गुग्गुलः WAU मन्वन्तरश्च चरवः प्रतिद्‌ वतं ॥ ५; आक्तष्ोन इमं देवा अग्निश दिवः कङ्कत्‌। उद्ष्यखेति च ऋचो यथारसङ्कय प्रकोत्तिताः॥ En हस्यते VARA वायाव्‌ पर्श्वितः} शन्नो Sata काण्डात कतु' छन्वतिमास्तया-॥' st अकः पालाश खदिरो हपामागाध(* पिप्पलः । उदुम्बरः शमो दुष्वो PATS समिधः HATA US tt HACER बा 1, ,. .; - , , + छो तव्या, मधुख्यिभ्मां दन्ना येव समन्ताः: WA. गुडोदनं wad च हविष्यं चोरय. दध्योदन बिः gary aia चित्रालमेव चः) .१.०॥ द्याह URSA ERT भोजनं ब्र: . शकितो वा बब्ालाभं aaa. विधिपूर्वकं etn ` WY: WEMAAST] हेम वासो हयस्तथा | pe cpa fine ९ खदि्रिवपामामार्यति to, we, जन्च। ADS achat «ny, 8 १५९ . . असिरा [१६१ wera: } oer गौरावसन्कान एता बे द्िषाः ऋमात्‌.॥ १२ ॥ अख ae बदा दृष्यः(\) स तं aan पुलयेत्‌ । द्वा वरो दत्तः पलिताः पूजितस्य च ।] ११ ॥ wenden aterrer(’) मुष्छयाः पतनानि च। भावाभावो च जगतस्तस्मात्‌ पूज्यतमा WAT + १४॥ CRT महापुराखे मवद्हहोमो नाम चतुःषष्यधिक- MATA SATE ॥ [~ अथय TTS yaaa STA: | ~: ` नानाधन्षाः। | अस्निरवाच । wa भागमा खितो वोऽसो wed दौपवत्‌ प्रभः | अनन्धनिषवं कत्वा मनो बुहिखतीन्दरियं ॥ १ ॥ ` अदन्तु ध्यायिने डेय (र) गव्यं दधि तं पयः । frayat मस्राख वा्ताकुः कोद्रवो a7 fe ॥२॥ संहिकेयो यदा सुख ` wae viata: ` शस्तिच्छाया तु सा War wrwerarfeatswar ti ३ ॥ १ खदाखुःखरति Ge, ण्य्‌ q afar eufafa wo! q wewerinth Ge । | [१५१ जध्यायः। मानाधमेकधनं । gaa पिते चैव यशा wat Fa चैव करे fear । तिधिर्वेवसखतो नामसा छाया wwe तु॥ ४।। TMATINIY न दद्यारेश्वदेविके। waa’ तु विप्रस wer care दिशे ॥ ५॥ न स्त्रो gata जारेण म विप्रो बैदकरशा। बलात्‌कारोपभक्ना बेहेरिहस्तगतापि वा(९)॥ ९ ॥ ware दूषितान्रारौखतुकासे म शाति । य भ्रामव्यतिरेकेख हितों नार पश्यति(र) ॥ © ॥ ब्रह्मभूतः स Caw योगो चामरतोऽमलः | विषयेग्दियसंयोगात्‌ केचिद्‌ योगं वदन्ति वे॥ ८॥ अधर्मो मबा तु षोतस्तेरपखश्छितेः। भामो भनससेव संयोगश्च AAT. परे ॥ ८. ॥ afagta मनः छता Saw परमामनि | wale विमुच्येत बन्धाद्यो गोऽयमसुन्तमः ॥ १०॥ gra: पञ्चभि ग्रामः weer महत्तरः | देवासुरमनुष्यवां स जेतु नेव waa’) ॥ ११ ॥ afeaarfa सर्वाणि mar चाभिमुखानि वैं । मनयख्ेवेद्दियग्रां मन खाव्नि योजयेत्‌ । १२॥ सवभावविनिर्ु्षं Qo ब्रह्मणि न्धसेत्‌ | एतज्‌ WITS ध्यानञ्च शेषोऽन्धो ग्रनबमिसतरः(*) ॥ १३ ॥ eee १ Sicwarmfa वेति eo. wo, RUA गथ. waza दनि ae we Gi Go | | र faite नाहुपक्षतीति we, coq) ४ देवा ये पन्दविशरा दलि ee | १५८ ' भम्निपुराशे [२९९ जध्व्यः । यवास्ति सलोकस्य acefifa free: MIAH तघाऽन्यस्य द्ये नवषितिष्ठते ॥ १४॥ असंबेदयं fe ae aw’) कुमार Rees यथा.) अयोगो नेव जानाति जात्यन्धो हि धटे wae ।॥ १५॥ awe feet दृष्टा खानाश्चलतसि भास्करः । ` एष मे wee Ree परं ब्रह्माधिगच्छति ॥ ६६ ॥ उपवासव्रत्चेव खानन्तोर्ध' फलेभ्वषः ॥ हिलसभ्यादनश्चोव WITT तत्‌ फलं ॥ १७ it एकार पर ननन प्राणायामः परन्तधंः । | सात्रित्राासत पर नास्ति area ace सतं॥ १८॥ aa स्वियः gta ar: सोभगन्यर्षवङ्किभिः। Raa ara carta दुध्यन्ति केनचित्‌ ॥ १९ ॥ शरसवणन यो mi: erat योनौ मिषिश्यति । “SUT तु भकैन्रारो धावच्छव्य' न सुति । २० ॥ fred तु ततः we रजसां weld ततः | ` ध्यानम Sewanee गोधनं पापकमणां ॥ २१॥ श्वपाकेष्वपि भश्लानो ध्यानेन हि विश्द्धाति। भाक्ता ध्याता मनो ष्वीन ध्येयो विष्णुः फलं eft: 1221 पर्याय यतिः wre पङक्तिपा वमपावभः। रूढो नेषठिकन्धमं अस्त wea दिजः ।॥ २३॥ १ were दि तद्‌ wy इति ae, @ च । सुर्सवेदयं fe तद्‌ ay Cin ae, य्नच। खय वेश्च fe re my tf we, Coq, ~ [१९९ were । वणंधर्मादिकधनं | १५४ प्रायिक न पा्लामि येन. etry श्राव्या). े क प्रव्रजिताः परब्र या देषां बोजसन्ततिः +. २४ ॥ विदुस नाम चरच्छाला जायन्ते ATT TAT: | शतिको Grae. wa! शासो दादथिकस्तथः ॥ २५ ॥ भासो बिंतिक्बोणि श करो दशभिस्तथा । पुष्यो विफलो Fal जायते AMSA ॥ २६।। ततो दाबान्निद्ग्स्त खाणभवति सानुगः + ` ततो वषेशतान्य्टौः दे उ किष्टत्यचेतनः ॥ ve it पय AUS तु जाते AWW | Wan Mae मोच कुलस्योत्सादनेन वा ॥२८॥ प्रोजमव TI ATT मन्लमघ्राप्ं | इत्याग्नेये महापुराणे नानाधमा नाम पच्यषच्यधिक- शततमीऽध्यायः॥ ॥ 1 De) अथ षट्षष्टपधिकशततनोऽध्यायः। , वणधर्मादिकधनं | gat उवाच feared प्रवश्यामि धम वे पञ्चधा wa‘) | ` बणशत्वमकमाजित्य योऽधिकारः प्रवस्ते ॥ १॥ 0 श wi वे परमाद्तमिति We, wo a | ' १६० ` अन्निपुराख [eae Wares) वषभः स feud वघोपनवनन्विषु । ` यसत्वाखम समाचित्य aera: सविधौयते ॥ Qh Sa अाचमधमेस्त्‌ भिखपिष्कादिको यवा । खभयेन निमित्तेन यो विधिः चज्प्वत्तते ॥ २ ॥ नेमिनः स विक्ेयः प्रायचिन्तविधिवथा | AMAA WH चापि arvana यतिच्ुप॥४॥ SM भाखमधश्स्त घन्धः स्वात्‌ पञ्चधा परः(५)। षारङूगख्यस्याभिधान यो SEU ख उदातः ॥ ५॥ FAUT मन्वदागाद्यदृ्टाषं इति मानवाः उभया व्ववहारख्त TWUTTWAT ख ॥ gt Seria fewer: स्वाद्‌ मागम शः प्रकौत्तितः । a2 तु विहितो wir खतो aren Ta Ton अनुवाद खतिः ख ते(९) aratafafe मानवाः quae परिसंख्याधा वानुवादो fattwas(®) uc ॥ fattece एवासो ware दति मानवाः | स्वादट चत्वारि शद्धिः संस्कारेब्रह्मलोकगः ॥ ९ ॥ गभोधानं घु सवनं सौमन्तोज्रयने ततः जातक नामकृतिरबरप्राथमचडकं ॥ ९० ॥ संस्कारश्चोपनयनं बेदब्रत चतुष्टयं | खानं सखधन्धचारिश्या योगः स्वाद्यन्नपश्चकं ॥ ११॥ १९ थमं रव सनातन इति We | ३ वाथंबाद्टठो विनेषत इति 1 अथवा शतिः aa «fa we, Wc, wey | wee | | [१९६ अष्यायः। वशधमौ दिकषनं | vat gaan: पितुयश्नो मनुखभूतयश्चको । त्रद्मयच्चः PATRIA: पुरोऽटकाः । १२॥ पाव्वणयाद' खावख्याग्रहायणो च Safe | TIAA ST सपश faa we खास्ततः WaT? 1-03 tt अग््याधेयमम्निोष्र (९) ea: स्यात्‌ पौरंमासकः | चातुमास्याग्रहायशेष्टिनिरूढः पशबन्धकः ॥ १४ ॥ सोामणिसप्सौोमसस्थाग्निष्टोम afer | भ्रत्यभिनिषटोम उकषघख HSM वाजपेयकः ॥ १५॥ अतिरात्रास्तथा स्तोमा Wet चामगुणास्ततः । दया क्षमाऽनस्या-च अरनायासोऽथ मङ्गल I १९ il अकापण्यास् हाशोचं aa स पर व्रजेत्‌ | प्रचारे मेने चेव WETS दम्धधावने ॥ १७ ॥ खानभोजनकाले च षटसु मोनं समाचरेत्‌ | पुनदोनं पथक्पानमाज्येन यपसा निशि ॥ १८॥ दन्तच्छेद नसुष्ण च सप्त WAY Tae | ज्ञात्वा Ya न ङ्लोयाद्‌ टेवायोग्धन्तदौरितं 1 १९ ॥ अन्धगो जोप्यसम्बद्नः(९) प्रेतस्याम्निन्ददाति यः | पिष्श्चोदकदानच्च ख EME समापयेत्‌ ॥ २० ॥ उदकञ्च SY भस हारम्पन्यास्तथेव च । १ अम्नदराधानमग्मिोवमिति ख, २ अन्धमोनो\न्वखम्बन्ण इति खर, चम go | + अण्च | । ( २१ ) १६. अग्निरा [१६७ अध्यायः | एभिरन्तरितं wear पड्क्षिदोष्रो न विद्यते ॥ २१॥ TE प्रायाहतौरवयादनामाङ्क्टयोगतः | CAAA महापुराणे षणंधग्ौदिनाम षटषच्यधिक- ्रततमोऽध्यायः॥ खथ सप्तषष्टयधिकशततमोऽध्यायः॥ श्रयुतलक्षकोटिद्टोमाः। अभम्निरवाच । ओशान्तिविजयायथं' werd gare | ग्रहयन्नोऽयुतहोमलच्कोटाालकस्तिधा ॥ १ ॥ AVIA शग्निकुण्डाद्‌ ग्रहा नावाद्च मण्डले | सौम्ये wea eas शक्रः पूवं दले थो ॥ २॥ आग्नेये SAT भौमो मध्ये स्याइास्करस्तथा | शनिराष्येऽथ AHA WE! ATA वायते ॥ २ ॥ दशखोमा wat विशुब्रद्रनद्रौ यमकालकौ । चिवगुष्ाधिदेवा श्रभग्निरापः चितिहरिः ॥ ४ ॥ 8. Tat देवता च प्रजेशोऽहिविधिः क्रमात्‌ | ते प्रत्यधिदेवाञ्च west दुगयानिलः ॥ ५॥ खमेभ्डिनौ च सम्पज्य यजेदौजेख वेदजैः । [१६७ अध्याधः। भयुतलशकोटिष्टोमकधनं ११२ TH: पलाशः खदिरो दयपामागं पिप्पलः ॥ ९॥ STMT: शमो Tal कुशा समिधः क्रमात्‌ । मध्वाज्यदधिसमिखा होतव्याखाषटधा शतम्‌ 11 9 ॥ एकाष्टवतुरः FUT पूय पृणोडइतिन्तथा । वसोशारान्ततो दव्यादस्िणाच्च ततो ददेत्‌ ५८ट॥ यजमानं चतुर्भिंसतैरभिषिश्चेत्‌ समन््रकेः | सुरास्वामभिषिचन्तु ब्रह्मविष्णुमहेश्बराः ॥ ९ ॥ वासुदेवो जगवाधस्तथा सङ्षणः प्रभः प्रदयनरखानिसदय भवन्तु विजयायते॥ १० आआखर्लोऽभ्निभंगवान्‌ यमो वै AWA | वस्शः पवनसेव धनाध्यक्षस्तथा शिविः॥ Ve it बरह्मणा afea: शेषो दिक्पालाः पान्तु वः सदा ।; कोतिं ट तिधा gfe: यषा क्रिया मतिः १२४ afenemt वपुः शान्तिसतृटिः कान्ति मातरः | एतारूवामभिषिश्चन्तु TTA: समागताः ॥ १३॥ आदित्यन्द्रमा भौमो बुधजौवभिताकषजाः। ग्रहास्वाममभिषिच्चन्तु We Rae तपिं ताः ॥ १४॥ देवदानवगन्धर्वा यक्षरा्षसपत्रगाः । ऋषयो मनवो गावो देवमातर एव च ॥ १५॥ देवपत्न्यो FAT नागा दैत्या्ाष्छर साक्ग्णाः । शअस्नाखणि wanrennte राजानो वादनानि च ॥ १६१ श्रौषधानि च रतानि कालस्यावयवाचये। सरितः सागराः चैलास्तीधौनि जलदा नदाः ॥ १७५. १९६४ (aropepmeneap ty अम्निषुराणे [१६७ अध्यायः। एते लामभिषिश्चन्तु सम्बकामार्धसिष्ये(\) | अलङ्कतस्ततोः दव्यादेमगोब्रभुवादिक । १८॥ कपिले सवदेवानां फजनोयासि रोहिखि। तीधरे बमयो यस्मादतःशान्ति प्रयच्छ मे । १९ ॥ GUS WE पुण्यानां agararg aya | विष्णुना विष्टती नित्यमतः शान्तिं प्रयष्छमे॥२०॥ धर्म लं ठषरूपेण जगदानन्दकारकः अष्टमत्तरधिष्टानमतः शान्ति wae WW eh ॥ हिरणयगभ गभयं हे मवोजं विभावसोः | अनन्धपखफलदमतः शान्ति प्रयच्छमे।॥२२॥ पौ तवस्तरयुगं यस्माहासुदे वस्य FA | प्ररानात्तस्य वे विष्णुरतः शान्ति प्रयच्छ मे॥२३॥ faye मद्छरूपेण यखादखतसभ्भवः | चन्द्रा कवाहनो नित्यमतःशान्तिं प्रयच्छ मे ॥ २४ ॥ THI Baal. wat धेनुः केशवसन्निभा | सवंपापष्ठरा नित्यमतः यान्ति प्रयच्छ मे॥ २५४ वस्म्ाटाथसकश्षाणि तवाधौनानि सर्वदा | लाङ्गलाद्यायुधादौनि भतः यान्ति प्रयच्छ मे ॥२९॥ यस्माच्च सवयज्नानामषगलन व्यवसितः योनिविभावसोनित्यमतः शान्ति प्रयच्छ मे ॥ २७॥ गवामङ्कषु तिष्ठन्ति भुवनानि चतुदश | यस्मात्तस्माच्छिवं मे स्यादिष लोके परत्र च॥२८॥ १ wasrarafeny इति खर, .. [१९७ अध्यायः। भयुतल्तकोटिष्टोमकथनं | १६५ AWTS शयनं केशवस्य शिवस्य च । शया ममाप्यशुन्धाऽस्स दत्ता जनि जन्मनि(५) Re ॥ यधा रर षु Way सवं देवाः प्रतिहिताः | तचा शान्ति" प्रयच्छन्तु रब्रदानेन मे सुराः। Qo tl यधा भूमिप्रदानस्य कलां नाषन्ति षोडशे । दानान्यन्धानि मे शान्तिमूमिदानाद्ववत्विह ॥ २१॥ ग्रहयन्नोऽयुतषशोमो दतस्तिणाभौ रणे जितिः । विवाहोक्वयश्चेषु प्रतिष्ठादिषु aig । ३२४ सर्वकामाप्तये लच्चकोटिटोमदइयं मतं | गृहदेशे मण्डपेऽघ(९) अयुते इस्तमात्रकं ॥ २२ ॥ भेखलायो निसयुक्त कुण्डख्त्वार रहिजः | स्वयभेकोऽपि वा ले wa दशगुणः हि तत्‌ ॥ १४ ॥ अतुरस्तं fees वा ताच्चश्चाजाधिकं यजेत्‌ | सामध्वनिशरौरस्त्' वादन परमेष्ठिनः ॥ ३५॥ विषयापष्टरो नित्यमतः शान्ति प्रयच्छ मे। पूववत्‌ कुण्डमामन्ता THA समाचरेत्‌ ॥ २६॥ वसो्ीरां ततो दद्याच्छग्याभूषादिकं ददेत्‌ | तच्रापि दथ चाटौ च waa तथत्विजः ।॥ ३७ ॥ पतान्नरराज्यविजयभुक्तिमुक्यादि(*) चाप्र यात्‌ | दक्षिणाभिः फलेनास्माच्छबन्नः कोटिष्टोमकः॥ २८ ॥ १ तथा जखनि लन्धनीति ० | स्टरादौ मण्डपे चैवमिति ज । ९ RU म्पे मायेति we) २ पुणाथेराण्यविजवमल्मुजादीति खर, =, च | १६९६ अग्निपुराणे [१६८ अध्यायः) चतुहस्त' चाष्टस्त Fwaren च feo: । पश्चविशं dred वा पटे हारे चतुष्टयं ॥ २९ It कोटिद्ोमौ सर्वकामो विष्णुलोकं स गच्छति। Sas ग्रष्मन््रव्यी गाया वेष्णववेरपि i ४०॥ जातवेदोमुखैः शेवः(९) वेदिकः प्रथितेरपि । ` तितैर्येद्ठं तदीन्यरण्वमेधफलादिमाक ॥ ४१ tt विदेषशाभिचारेषु Fare कुर्डमिष्यतं । समिधो वामहस्तन श्येनाखयनलसं युताः ॥ ४२ ॥ रक्षभषेमक्तकशंध्यायद्धिर शिव Frat: दुभ्िचियास्तख्म सन्तुयेो efe इ फडिति च ॥ vee शिन्दात्‌ चरेण प्रतिमां पिष्टरूपं रिपु wag’) | यजेदेकं Wea at a: सक्ता दिवं ब्रजेत्‌ ॥ ss i इत्याग्नेये मदहापुराणेऽयुतलचषकोटिहोमा नाम ससषध्य- पिकशततमोऽध्यायः॥ अथाष्टषष्टयभिकशततमोऽध्यायः। ose eee ee मद्ापातकादिकथनम्‌ | gat उवाच । ewe’ Gera Zui प्रायचित्मङ्बतां | कामतोऽकामतो Alla प्रायित्त क्त ALAM १॥ † ~~ ras न ९ जातेदोमुचेः सोरैरिति ख | ९ रिपु" इरेदिति ७० अर च, {ear sara: | मष्टापातकादिकथनं | १६७ मत्तक्रहातुराणां च न Yala काचन | महापातकिना स्मृ्ट यच्च स्पृष्टमुदक्षया ॥ २ ॥ ware गखिकाव्र च(९) वाह मे गायनस्य च । अभिशस्य षण्डस्य यस्याख्ो पपतिगं डे ॥ २ It रजकस्य कृश सस्य वन्दिनः कितवस्य च | भिष्यातपखिनश्ेव सौरदण्डिकयोस्तथा(९) ॥ ४ ॥ कुष्छगोलस्ोजितानां वेदविक्रयिणस्तथा । शेलषतमग्वायाब्र' कतन्नस्याब्रभेव च ॥ ५॥ कश्मीरस्य निषादस्य चेलनिणंजकस्य च ! मिष्याप्ब्रजितस्यान्रम्यु बल्थास्तेसिकस्य च ॥ ६ ॥ श्रारूढपतितस्यात्र विदिष्टाच' च वस्णयेत्‌ | तथैव ब्राह्मणस्यात्र ब्राह्मणेनानिमन्वितः ॥ o ॥ बराह्मणा शूद्रेण नादाचेव निमन्वितः। एषामन्यतमस्याब्रममलत्या वा ATE क्षपेत्‌ ॥ ८ ॥ मत्या YR चरेत्‌ कच्छं रोतोविणमू चमेव च | चण्डालण्वपचानब्रन्तु भक्ता चान्द्रायणं चरेत्‌ ॥ < ॥ अनिद च Ware गवाघ्रातं तयेव च। शूद्रोच्छिष्ट' एनोच्छिटं पतितान्र' तथेव च ॥ १०॥ AHH VA WHT कृच्छं माचरेत्‌। WMA यस्य यो NEM सोप्यश्दस्तथा भवेत्‌ i ees खतपञ्चनखात्‌ कुपादमेध्यन सकुद्युतात्‌ | १ मानां गकिकागाष्ति wo, अच । २ चोरदान्मिकयोशयेति we ! ten अभ्निपुराशे [१६९८ अध्वायः । अपः पत्वा are तिष्ेत्‌ सोपवासो हिजो्मः ॥ १२ ॥ सर्वर TS पादः स्वाद्‌ few बेभ्यभूपयोः (९) | विडवराहखरोष्ाणणं गोमायोः कपिकाकयोः ॥ १२ ॥ प्राश्य मूवषुरोषाख दिजान्द्रायणं चरेत्‌। wale जग्धा मांसानि(९) tard करकादि च ॥ १४॥ क्रष्यादशूकरोष्टाणा गोमायोः कपिकाकयोः | गोनराख्वरोष्टाणां SAH WATS ॥ १५॥। मांसं जग्धा FACS ATH ण शाति t WAT तथा मुक्ता ब्रह्मचारौ मधु AAW te लशुनं Waa चाद्यात्‌ प्राजापत्यादिना शिः) | भुक्ता चान्द्रायणं Fata मांसच्चामञ्मतन्तधा ॥ १७ i पेलगव्यच्च tad तधा ्षेमातकं मद्‌ । | हथाकछलश्ररसंयावपा यसापूपग्ष्क लीः ॥ १८ ॥ शरनुपाक्षतमांसानि देवान्नानि शर्वोति च। warg महिषौोणां च वत्जयित्वा carers ॥ १९ i स्वे्लौराणि व्याणि ararqarerfare st | शशकः WHA गोधा खड्गः RAMTAUT च । २० ॥ भाः पञ्चनखाः प्रोक्षाः परिथेषाख वर्जिताः । पाटौोनरोहिताग्मद्छयान्‌ fiequia भक्तयेत्‌ ।। २१॥ यवगोधूमजं सव्व ` पयसेव विक्रियाः । वागषाडगवचक्रादौन्‌ सज्ञेहसुषितं तथा ॥ २२ ॥ १ दितौयं बेश्मभुक्रयोरिति क०, eo, २ श्यष्कारि दमध्मासानि इति ee | ०, HOG द प्राजपरत्यादिजः पचिरिति खर । [१६८ अभ्यायः। , भङ्ाषातकारिकबनं | १६९ अम्िहोतपरोहाग्बितरौद्मशः कामचारतः | चान्द्रायणं चरेश्भासं वौरवध्वासमं fea’ ॥२२५ ब्रह्मतया सुरापानं स्तेयं गुषेङ्नागमः। महान्ति पातकाभ्यादः Paras तेः TE ॥ ३४ ॥ Maa च समुत्‌कषो रालगाभि च aya | शगुरोषालौकनिवंन्धः समानं ब्रह्मशत्यया(१) ॥ २५॥ ब्रह्मोज्‌भापवेदनिन्दा ख कोटसाच्छ सुद्द्वधः | गहं ताब्राज्ययोजंणग्धिः(९) सुरापानसमानि षट्‌ ॥ २९॥ निक्षेपस्यापडर्ण नराश्वरजतस्य ख १ । भूमिवजमणशौ नाच सक्यस्तयसमं GAM २९ ॥ रेतःसेकः स्वयोन्याषु कुमा रौष्वन्यजाश्रु स | सख्यः पुत्रस च.) सोषु गुरुतख्वसमं विदुः २८ ॥ गोबधोऽयाज्य dares पारदाओाक्मविक्रयः । TATA TATA, खाध्ययाग्धोः THA TH RE tt ufefafaarana परिवेदनमेव च । ` .. AMAA कन्यायास्तयोरेव च याजनं Bot कन्याया द्ध्व वाद च व्रतलोपनं । ` तशङागारामदाराणामपत्पस्छ च विक्रयः॥ ३१॥ ASAT बान्धवत्यागो भृताध्यापममेव च । ` भुताश्चाध्ययनादानमबिक्रय् fama 22 0 ९ समानि ब्रह्महत्येति ०, ०, २ गदहितामामन्रजनधिरिति So | अण्च। ३ US: चलद चेति wo) ( २२ ) {Se भग्निपुराशे [१९८ मध्यायः। सर्वाकारेष्वधौकारो महायन्धप्रवत्तनं । हिंयोषधौनां arrests: क्रियालङ्कनमेव च॥ 22 1 इन्धनाधेमशष्काणां दुमाणाद्धेव पातनं । शोषितं awa स्रीनिन्दकसमागमः ॥ २४ ॥ आताथेख्ध frarcan निन्दिताच्रादनन्तधा 1 अनादहदिताभ्नितास्तयख्णानाच्ानपक्रिया॥ २५॥ असच्छास्राधिगमन sides व्यसनक्रिया | घान्धकुष्यपशस्तयं मपस््ोनिषेवणं ॥ २९ ॥ स्नोगद्रविट्‌चत्रबधो नास्तिक्यश्चोपपातकं। ब्राह्मणस्य रजः कत्य प्रातिरघ्रेयमद्योः | २७ ॥ ` aw पसि च मधन्ध जातिस्नश्कर स्मतं | खवरोटमगन्द्राणामलाव्योखव ATTA(*) waa सष्ौखंकरणं Fa मोनाहिनङुलस्म च । निन्दितेभ्यो धनादानं बारिल्य शूदरसेवनं॥ २८ ॥ अपात्रौकरणं रयमसत्यस्य च भाषणं | SAR TSAATHAT मयामुमतभोजनं ॥ ४० ॥ पलेधःङ्गसुमसतेयमै भश्च मलावदं | TAMA महापुराशे मशटापातकादिकथमं arare- षथ्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ भी ’ १ Wace मारणमिति eo; अभरकोनसप्नलधिकश्ततमोऽध्यायः | प्रायचिन्तानि। पुष्कर उवाच | शततप्रभतिपापानां प्राय्ित्तं वदामिते) AWE दादशाब्दानि कुटोषला वने बसेत्‌ ॥ १ ॥ fraarafager wat शवधिरोध्वजं | प्रास्येदामानमम्नो वा afae निरवाकथिरोः ॥२॥ यजेत वाण्वभेभेन खजिता गोसवेन वा | जपन्वान्यतमं वेदं योजनानां शवं ब्रजेत्‌ ॥ २॥ waa वा वेदविदे बराह्मणायोपपादयेत्‌ | ्रतेरेतर्ग्वपोहन्ति महापातकिनो मलं ॥४॥ उपपातकषसंयुक्ो गोत्रो ATS यवान्‌ fdas छतवापो AHS चणा तेन संहतः ॥ ५॥ ` चत॒थकालमश्रीयादक्षारलवणं मितं। ` ` TAIT Gla Bra st मासौ नियतेद्धियः॥&॥ दिवानुगष्छेद्राख्व तिष्ठन्न रजः पिबेन्‌ । | हषभेकादशा WTA रव्यादिचरितव्रतः(१) ॥ ७ ॥ अविद्यमाने सवसं वेदविदो निषेदयेत | पादभेकश्चरेद्रोधे हौ पादौ बन्धने चरेत्‌ ॥८॥ - १ Cary सुचरितत्रत इति ७१ | १७३ अ्रभ्निषुराणे [१९९ अध्यायः) योलने cast areta सवं" निपातभे । कान्तारेष्व दुगेषु विषमेषु भयेषु च ॥ ८ ॥ यदि aa विपत्तिः स्यादेकपादो विधौयते। चण्टाभरणद्ोषेण तथेवारै' fafafena ॥ १०॥ दमने दामने रोधे शकटस्य fanaa द्तग्भगह्लपाशेष सते पाटोनभाचरेत ॥ ११॥ ayugiaugy च ay Teer तथा | यावकन्तु पिवैत्तावद्यावत्‌ सुखा तु गोभषैत्‌ ॥ १२॥ गोमतो लपेहिद्यां गोस्ठतिं गोमतो" स्मरेत्‌ । एका चेदभिंवाद्‌ यत व्यापादिता भवेत्‌ ॥ १२ ॥ पादं पादन्तु इत्यायाश्चरेयस्ते एयक TAH | खपकार क्रियमाणे facet नासि aaa १४॥ एतदेव व्रत क्ख सपपातकिनस्तथा | अवकोख्िवज शदपधच्चान्द्रायणमथापि arn ey a वक्ष्यो तु Alaa WAA चदुष्यये | पाकयन्नविधानेन यजेत निश्ररतिं मिथि + १६॥ nonfat विधिवचचौमानन्ततस्तु समित्तुचा | WR YTB जुह्यात्‌ खपि षाइतिं (९) ॥ १७॥ अथवा गाभस वसित्वाष्टश्वरेग्बहीं । इत्वा गभं मविश्रातं AMET चरेत्‌ ॥ १८ ॥ १९ शुजयात्शपिंाजनोरिति ०७० जन्च | _ . {tae Mars t प्रायवित्तकथयन | १७३ सुरां पौत्वा fen मोहादम्निवणां सुरां पिवेत्‌ । गोम ्रमम्निवणं वा पिषैदुद्कमेव वा ॥ १९॥ | चवण स्तेयकदिभर राजानमभिगम्य तु । सकन्धे ख्यापयन्‌ व्र यामां भवाननुशास्िति ॥ २०॥ RAT मुशलं राजा सकदन्धात्‌ Ba | बेन VATA स्तेयो ब्राह्मणस्तपसेव वा | २१॥ गुरुतरो fanaa frre दषणं खयं | | निभाय चाश्नलो गच्छेदानिपाताच्च नेच्छति ।। २२॥ चान्द्रायणान्‌ वा चोक्मासानमभ्यसेत्रियतेन्द्रियः। जातिभ्वंशकर कमं छत्वाग्यतममिच्छया ॥ २२॥ चरेच्छान्तपनं कच्छ प्राजापत्यमनिच्छयां। सङ्रौपाचक्लत्यास मासं शोधनमेन्दवं 1 २४॥ मलिनौकरणोयेषु AN स्ादयावकं ars | त॒रौयो ब्रद्महत्यायाः afaae वधे सतः ॥ २५॥ SAAN SUS शूद्रे TG षोडशः । माजेरनङलौ CAT चासं AWAIT च ॥ २६ ॥ श्वगोधोल्ककाकां च द्रहत्यात्रत ITT | चतुस्पामपि षणानां नारीं garaafeat ।। २७ ॥ THAT प्रमाप्य GT गू दरहत्याव्रतं चरेत्‌ I सर्पादोनां बधे नक्षमनस्थां वायुसंयमः ॥ २८ ॥ द्रव्याणामख्स्ाराणां स्तयं कलतान्य्ेश्मतः | चरेच्छान्तपनं wee व्रतं निर्वाप्य शाति ॥ २९ ॥ `, १७४ पभ्निपुराणे [ १६८ अध्यायः। भक्तभोच्यापषरणे यानशय्यासनस्य च । स॒ष्यम्‌ूलफलानाच्च पञ्चगव्यं विशोधन ॥ ३० ॥ ठणकाष्टद्रमाणान्तु CRA TTS TI चेलचरप्रामिषाणान्तु(९) faces स्यादभोजनं ॥ ३१ ॥ मणिमुक्षाप्रवालानां ATA रजतस्य च | अयःकांस्योपलानाख्च हादशाद्ं कणाब्रभुक्‌ | QR tt AMARTH दिशफेकशफस्य च | प्तिगन्धोषधीनान्तु रज्वा चेव श्राहम्मयः ॥ २१ ॥ गुरुतस्पव्रतं Fore a: सिक्त्वा स्वयोनिषु | सख्यः यतस्य TAT कुमारोष्वन््जासु च ॥ २४ ॥ पिटठखखेयीं भगिनीं खस्रोयां मातुरेव च | मातुख भ्नातुराप्षस्य गला STRIATE ॥ २५॥ TAANY पुरुष उद क्यायामयोनिष | रेतः सिक्त्वा जले चेव BH शान्तपनञ्चरेत्‌ ॥ २९ ॥ मैथनन्तु समासेव्य णु सि योषिति वा दिजः। गोयानेऽष् दिवा चैव सवासाः खा नमाचरेत्‌ ॥ २७ ॥ चण्डालाग्यस्वियो गत्वा भुक्त्वा च fae च | पतव्यन्नानती विप्रो श्नानात्‌ साम्यन्तु गच्छति ॥ १८॥ विप्रदुष्टां fea wat निरग्यादेकवेग्मनि । ` यत्‌ षुसः परदारेष 'तदेनाच्चारयेदुत aan साचेत्पुनः प्रदु्ये त सदृशेनोपमन्विता | | छच्छच्चाद्रायणसचैव ठ दस्याः पावनं समत Ni ४० ॥ १ गेशचमेानिषाशाशति we | [eso अध्यायः । प्रायचिस्षकथनं | १७५ यत्‌ करोत्येकराजेण दष सेवनं दिजः | Ameya wafer चिभिर्वव्यपोङति ॥ ४१ ॥ इत्याग्नेये महापुराणे प्रायचित्तानि नाम रकोनसपतस्य- धिकश्ततमोऽध्यायः॥ Eo अथ सप्नत्यधिकशततमोऽध्यायः। प्रायचित्तानि। SRC उवाच । महापापानुयुक्तानां(१) प्रायचिन्तानि वचभमिते | सवव्सरण पतति पतितेन सहाचरन्‌ ॥ १ ॥ याजनाद्यापनाद्योनानब्र तु यानाशनासनात्‌ | यो येन पतितेनेषां संसग याति मानवः | २॥ स तस्यव व्रत कुास्तव्सगस्य श्ये | षतितस्योद्कं काय सपिण्डेवान्धवैः ae । ३ ॥ निन्दितेऽहनि सायाह्क wafer गुरुसन्निधौ | दासौ घटमपां पूण" qaaq प्रेतवत्पदा(२) ॥ ४ ॥ अष्ोराव्रसुपा ACN बान्धवैः स | निवत्तयेरंम्तस्मात्तु च्ये्ठांन््ाषणादिके ॥ ५॥। न्वेषां ग्पराप्र याश्चास्य यवोयान्‌ गुणतोऽधिकः | १ मडापापोप पञ्चानामिति Go | R प्रतवत्‌ सुदति We, Ho, Yo, wo ९ प्रायचिन' बदामित इति we | च| १७६ भरग्निपुराणे [१७० Wate: | प्राय्ित्ते तु चरिते पूण कुश्भममपां नवं ॥ ६ ॥ तेनैव MW प्राश्येयुः खात्वा पुजला शथे | एवमेव विधिं ङुयुर्योषिस्‌ पपिताखपि ॥ ७ ॥ वस्त्रान्रपानन्देयन्तु वसेयुख weitere | तेषां दिजानां सावित्री नानुदेत(\) यथाविधि ॥ र ॥ तांख्ारयिला वोन्‌ aera यघाविश्यपनाययेत्‌ | विकमखा; परिव्यक्ञा सिषा मय्येतदादिर्थेत्‌ ॥ ९ ॥ जपित्वा चौणि afaan: सषश्स््राणि समाहितः, Aas पयः पीत्वा मुच्यतेऽसतप्रतिग्रहात्‌ ॥ १० ॥ ब्राद्यानां याजनं कत्वा परेषामन्यकमं च | श्रभिचारमह्ोनानान्तिभिः छच्छर्व्यपोहति(९)।। ११॥ शरणागतं परित्यज्य वेद विश्नाव्य a fess: | WAAL यताहारस्तत्‌पापमपफसेधति॥ १२॥ श्गालखरेदष्टो ग्राग्यैः क्रव्याद्भिरेव च । AVE rae asa’) प्राणायामेन शष्टाति ॥ १२॥ च्रातकव्रतलोपे च कभेत्यागे शभोजनं | VER’) ब्राह्मणस्यो कला त्ङ्र्च गरौयसः ॥ १४॥ Satay aE: ओेषमभिवा ख प्रसादयेत्‌ | वगृ चरेसच्छमतिक्तच्छत्रिपातने ॥ १५॥ . छच्छातिलच्छ gala विप्रस्योत्पाद्य शोषितं | १ न युजच्यतेति ae | ४ कर ारमिति Wo, च, कर २ WET दति ग०, घर, च। खोङकारजिति ae, ७्०य। eal CHIC! FA खर | ३ मरोष्टविडबरादेशेति Se | [१७० श्रध्वायः। प्राथ्िन्तकभनं ) १७७ चारण्डालादिरविन्नातो यस्य तिष्टत वेश्मनि ॥१६॥ सम्बग्‌ Was कालेन तस्य कुर्व त शोधनं t चान्द्रायणं पराक वा हिजानान्तु विशोधनं ॥१९॥ प्राजापव्यन्तु शूद्राणां सेषन्तदनुसारतः। गडङ्सु भ ade तथा धान्धानि यानि च ॥१८॥ Bal WF ततो हारि तेषान्दद्यादताश्नं | ख्णमयानान्तु भाण्डानां ara एव विधौयते ieee द्रव्याणां परिशेषाणां दव्यशरिविधौयते। कूपेकपानसक्षा ये खथं सङस्पटूषिताः (९) zon आधययुरुपवासेन पञ्चगव्येन ara | यस्त संस्पृश्य चश्डालमखरोयाच्च सकामतः ॥२१॥ दिजखान्द्रायणं कुय्यो तपन्नच्छमवापि वा | भा्डसङ्‌ TAHT घा डालादिजगुष्ठितेः ॥२२॥ शुक्त्वापौल्वा तथा तेषां versa विशदयति | शरग्यानां yaa weafaar डदिजातयः ॥२२॥ तरतं चाद््रायशं कु्युखिरात्र शूद्र एव तु । चर्डालकपभाण्डेषु अन्ना नात्पिवते जलं ॥२४॥ दिजः शान्तपनं कुयाच्छ द्र ्ोपवसेहिन | चर्डासेन तु Tae’) यस्त्वपः पिवते दिजः ॥२५॥ विराचन्तेन Hae शूद्र ्ोपवसेदिनं | उच्छिष्टेन यदि(२) स्पष्टः wat wey वा दिजः ॥२६॥ ६ स्ाडसङूकरपरभूषिता इति we । र बदति ख, To, Yo, Go, दन्य ९ Sez इति we | | ( २१ ) gor अन्नित्ुराे [१७० अध्यायः १ Stig रजनोमेकां पञ्चगव्येन शपति । ` वैश्येन चतिधेेव ara aM सभ्रावरेत्‌ ॥ २७ ॥ sara प्रखिलो विप्रः कान्तारे यद्यनदके। पक्ताचेन गतेन भवोशचारङ्करोति वै ॥ Ae अभिधायव तद्वयं अक कल्वातु सख्ित। शौचं कत्वा ब्रमभ्यश्य अकस्याश्नेख TWAT ॥ २८ ॥ Seana चौरेवा कान्तारे वा. प्रवासिनां! ` भच्यामश्चविशदाय ९) तेषां वच्ामि निष्कृतिं ॥ २०॥ पनः प्राच्य Bey वर्णानामगुषवेशः कच्छस्यान्तेब्राद्मणस्त पुनः संस्कारमर्हति ॥ २१ ॥ पाटोनान्ते जिय sete वश्य एव च। पादं HAT तथा श्रो दान cat विश्यति ॥ २२॥ STAT तु सवण या GST चेत्‌ स्यादुद्क्यया | तस्मिन्‌नेवानि खाता शदिमाप्रोत्यसंशयं ॥ ३२ ॥ Tree तु arta संसृष्टा Parca | "यावन्न शडिमाप्रोति.शदसखरानेन शति ॥ १४॥ wa war area alae qrere पिवेत | अरहोरान्रोषितो भला पञ्चगस्येन शषाति ॥२५॥ मृज्ोश्चार दिजः GAT अकुला शोचमालमनः। मोहाद्गक्तवा(९) तरिरात्न्तु अबान्‌ पोला बिश्ु्चाति ॥२६॥ थे प्रत्यवसिता विप्राः प्र्रष्यादिवलात्तघा। १९ भच्छमोग्विद्छदयथेमिति we | २ लोभादुक्लेति Ge, मर, Wo, Ge, Re च। [१७० seta: t प्रायित्तकधनं | १७९ शरनाशकनिवरत्ता्च तेषां शदिः प्रचच्यते ॥ २७॥ चारयेन्नोणि छष्धाणि चान्द्रायणमथापि वा । MARAT: TAA तधा पुनः ॥ २८ ॥ उपानहममेध्य' च यस्य CITA मुखं । खत्तिकागोमयो तत पश्चगव्यश्च शोधन ॥ ३९ ॥ + ^, aed विक्रयद्धेव -नौलवस््रादिधारखं | ; तपनोयं हि fawer त्रिभिः कद ष्विति ४४० ॥ अनन्यजातिश्वपाकेन (र) TACT Vt THAT | aquseta Wart खा fara त्च ्राखरेत्‌(२)॥४१॥ चाण्डालश्वपचो Bet तथा gaye सूतिकां | wa तत्स्यशिन स्ष्टा(३) सदयः सानेन श्यति ॥ ४२ ॥ नार ayia wae खात्वा विप्रो विश्यति । THREAT अधोनाभेम्‌ दोदकेः ॥ ४२ ॥ वान्तो विविक्तः arat तु घतं प्रा विश्यति । STAT चरकर्मकत्ती कच्छ ae इणेऽत्रभक्‌ ॥ ४४ ॥ अ्रपाडनक्तयाभथो WITT शना दष्टस्तथा शुचिः । कभिदषटश्ममघातो कृष्धाव्नप्याञ्च होमतः ॥ ४५॥ होमाद्येखानुतापंन पूयन्ते पापिनोऽखिलाः(*) । दइत्याम्नेये महापुराणे प्रायशिन्तानि नाम सप्तयधिक- गततमोऽध्यायंः॥ १ अन्त्यज ख VITA So | २ अग्यलातिश्व॑पकमेत्यादिः-तं व. खाचर दिरत्यनः पाठः we Te ना खि | ९ भवमातस्प्रशिमं wWafata Wo | शवमतस्यद्िने श्वानमिति धम eq) ` * ल्जोवारं द्विजः कलेत्यादिः; पूयन्ते पापिनोऽखिलो cam पाठः a we yaa mts | BY एकसप्रद्यधिकशततमोऽध्यायः। Ow’ ©) प्राय्ित्तानि। Gat उवाच | प्रायधिष्त wef वच्छ श्िकर परः ।. ` पौरुषेण FAM A मासं जप्यादिनाषडा॥ १॥ सुष्यते पातकैः qe चिरघमषखं | बेदजप्याहायुयमाद्‌ गाया व्रततोऽद्षा(*) ॥ २।। मुण्डनं सवकष्डेष खानं होमो इरोर्यजिः | त्थितस्त्‌ दिवा तिषठेदुपविष्टस्तथा निथि ॥ ३॥. एतष्टोरासनं प्रोक्त कच्छ कृत्तेन पापहा | अष्टभिः way ग्रासयति चान्दरायखं wa ॥ ४ ॥ प्रातखतुभिंः aay थिशचानद्रायणं aa | aatautaq पिण्डानां चतारिथच्छतदयं ॥ ५ मासेन भश्चयेदेतत्‌ सुरचान्द्रायणं चरेत्‌ | जराष्मुष्णं पिवेदाषस्यहमुष्ण' पयः पिवेत्‌ ॥ en वाहमुण्ण' छतं Tat वायुभक्तौ भवेत्‌ वहं | anne मिदं प्रोक्त गोते; ata प्रकोत्तितं ॥ ७ ॥ कच्छातिकच्छ पयसा दिवसानेकवि शतिं । गोमूत्र गोमय are दधि खपिः कुशोटरटक।॥ cu : ९ भपतोऽवरेति Wo, Wo, TE [ree serra | प्रायचिक्तकचन | १८९१ एकरातोपवासशकच्छ UN खतं | एतच्च UAT महाशान्तपनं Wa ॥ । ९. ॥ वहाभ्वस्तमथककमतिशान्तपन स्मृतं | कच्छ, TATA स्याहादशाहमभोजनं ॥ १० ॥ एकभक्त ATI क्रमावक्षमयाचित। प्राजापत्यमपोष्यान्ते पादः स्यात्‌ कच्छ पादकः | Vk RENTS फलं कच्छ विष्व: यो कच्छ रितः । ` UNA: स्यादामलकैः FHS तु पुष्पकः॥ १२॥ CARS WUT TMAH जलेन तु । ` मूल क्छन्तथा BTEUT स्षोरण ama: १३॥ मासं वायब्यकच्छं स्यात्माणिपूराब्रभोजनात्‌ । तिले्ीद्रात्ेण कष्ट माग्नेयमात्तिल॒त्‌ ॥ १४॥ पाच WHEAT लाजानां AUT ` तथा भवेत्‌ | उपोषितञ्तुषश्यां पञ्चदश्यामनन्तरं । १५॥ पञ्चगव्यं समश्नोयादविष्याशौत्यनन्तर | मासेन दितं रः कुत्वा सर्वपाप प्रमुच्यते ॥ १६ ॥ यकामः YCAAT खगंकामोऽघनष्टये | देवताराधनपरः छंच्छकारौ स सवभाक्‌ ॥ १७॥ ष्त्याग्नेये AYU रहस्यादिप्रायचित्तं नाम एकसप्त- यधिकशततमोऽध्यायः ॥ अथ दिसप्रल्यधिकश्रततमोऽध्यायः। 0 सवपापप्रायशित्तानि । TRC उवाच ¦ परदारषरद्रव्यजोवहिंसादिके यदा । ee ee १ fraud fora इतिज. qo | परवत्तते aut चिस प्रायचित्त afer ॥ १ ॥। विष्णवे विश्वे fas विष्णवे विष्णवे (१) नमः। नमामि fay चिन्तख्महृष्वारगतिं इरि ५२॥ चिनलस्थमोख्मव्यकमनन्तमपराजितं | विष्णुमोडय मेषेष अनादिनिधनं विसु ५ २॥ विष्छु्ित्तमतो wa fawaferag aq | यच्ादद्मारमो विष्छुयदिष्णुमयि aaa: us i करोतिः कमभतोऽसो WaT चरस्य च। तत्‌ पापन्राण्मायातु तस्मित्रेव fe चिग्विते॥५॥ ध्यातो हरति उत्‌ पापं ST दृषटस्त्‌ भावनात्‌ | तमुपेन्द्रमहं fay प्रणतात्ति हरं हरि ॥ & ॥ लमल्यसिचिराधारे. wera तमस्मन्रः। हस्तावलम्बनं विष्णु" प्रणमामि परात्‌ पर ॥ ७ ॥ सवश्वरेश्वर fait फरमाजलभो ज | षो केण षौ केश WHAT ATT ॥ ८ ॥ afaeraa गोविन्द मूतभाक्न केशव 1 : [ १७२. warm | सवंपायप्रायचि त कथनं | १८९ Ele दुष्क तं ध्वातं अ्रमयाघव्रमोऽसृते ॥ ९ ॥ य्या चिग्तितं दुष्टं खचित्तवश्रवस्तिंना | ` अ्रकाथमददव्यग्रन्तच्छमश्चय केशव ॥ १० ॥। ब्रह्मण्यदेव गोविन्द परमाथेपरायय | ANAT TACT: पापं प्र्रमयाखत ॥ ११॥ ATCT सायाहे Tare च तधा fafa: कायेन मनसा वाचा छतं पापमजानता॥१२॥ जानता च इषौकेश GCA माधव | नामव्रयोश्चारणतः सप्रे यातु मम BTN १३ । शारोर F इषोकेश पुण्डरौकाक्त माधव | पापं प्र्मयाद्य लं(*) बाकक्षतं मम माधव ॥ १४॥ anwar सिन्‌ गच्छन्‌ जाग्रद्‌ यदाल्थितः। क्तवान्‌ पापमय्याह कायेन मनसा गिरा ॥ १५॥ यत्‌ खस्पमपि यत्‌ स्थलं कुयोनिनरका वदं | तद्यातु प्रथमं सव्ये वासुदेवा नुकौत्तनात्‌ Neen, पर AW परं धाम पविच्च' परमश्च यत्‌ ¦ तस्िन्‌(९) प्रकौत्तिंते विष्णौ यत्‌ पापं तत्‌ प्रण्यत्‌॥१७॥ यत्‌ प्राप्य न निवत्तन्ते गन्धस्य दिवजिँतं । सृरयस्तत्‌ पद विष्णो स्तत्‌ at ्रमयत्वधं(२) । १८ ॥ पापप्रणाशनं स्तोत्र यः पठेच्छ.ण्यादपि(४) । १ प्रशमात्यथेमिति ख, ae, Bo च | ४ यः परेच्छया मर इति ज, २ अस्िद्रिति qo | wea] यः TSW GUAT ९ सर्व" ममयलचमिति We इति Ge | १८४ भग्निपुराणे [१०३ अध्वाबः । शारौरेानसैरव्वागजः कते; पापे; प्रमुच्यते ॥ १९ ॥ सव्वं पापग्रहादिमभ्यो याति विष्णोः पर पदं । ABT पापे छते जप्य स्तो सर्वाघमडं नं ॥ २० ॥ प्रायिन्तमघौघानां सोर aad वर | प्रायचिन्त; स्तोवजर्पव्रतर्बश्यति पातकं ॥ २१ ॥ ततः wraifa(’) संसिद्धे तानि & भुक्िसुक्षये। इत्याग्नेये महापुराणे सव्वपापप्रायित्ते पापनाशनः aia नाम हिसप्तत्यधिकशततमोऽष्यायः॥ अथ चिसप्र्यधिकशततमोऽध्यायः | Ftd प्रायञ्िन्त | ufsreara । प्राययिन्त awrite ve पापोपशान्तिदं | स्यात्‌ प्राणवियो गफलो व्यापारो waa स्मत ॥ १॥ रागाद्‌ SANA प्रमादाच्च AA ALA Wa aT | AWA घातयेद्यस्त स UAT WaTAT: Wz I! AREAARATU सव्वषां गस्धारिणां | यदेको घातकस्तच VA A घातकाः Mar 2 श्राक्रोशितस्ताहिती वा धनेव्वां परिपोडितः hres I Pe A ER, १ ततः WAIN fa खर, Ae, Yo, Ho च। [१७१ ward: | प्रायधिक्तकषन १८५ यमुदिश्छ त्यजेत्‌ प्राणां समाइत्रद्यचातकं ॥ ४ ॥ ` ओषधाद्युपकारे तु न पापं स्यात्‌ हते खते । ga शिष्यन्तथा भायां शासते न ते we et देणं कालश्च यः शक्तिं TATA यब्रतः। प्रायथ्िन्त प्रकल्या SII Set A निष्कतिः) ug ॥ गवां ACTA वा सद्यः प्रा्ान्‌ परित्यजेत्‌ । प्राखेदालानमम्नौ वा सुश्यते ब्रह्महत्यया ॥ ॐ ॥ भिरःकपालौ ध्वजवान्‌ dari कन्य वेदयन्‌ | “ज्रद्महा दादश्ाब्टानि भितभुक शशिमाप्रयात॥ ८॥ षडमिवषंः शडचारो ब्रह्महा पूयते नरः विदितं यद्कामानां कामात्स दिशगुख खत ॥ € ॥ प्रायचित्त were बधे खा (९) तिवाषिंकं । aufa wa हिगुं free दिगुखं चिधा५१०॥ saa विप्रे सकलं पादोनं चतिये aa | वेश्येऽैपाट्‌ं चते स्याददस्ौवालरोगिषु ॥ ११ ॥ तुरौयो बरह्महत्यायाः लत्रियस्य बधे सत 1 वेश्येऽटमाथे THM WE Ha षोडशः ॥ १२॥ अप्रदुष्टां fad war शद्रहत्याव्रतं चरेत्‌ । पञ्चगव्य fede मासमासोत सयतः५१२॥ गोष्टे ययो गोऽमुगामौ गोप्रदामेन शाति | wee वातिकच्छ, वा पादष्टासो नुपादिषु ॥ १४ ॥ अतिद्धामतिकंशामतिबालाञ्च रोगिणो | १ न संख. निरिति eo! २ Wise A Cla we | ( as) tug. | रग्निघुराणे [१७२ अध्यायः I हतवा पू्व्वविधानेन चरे दत्रतं दिजः । १५ ॥ बराद्मशान्‌ भोजयेच्छक्या care भतिशदिकं। ` सुश्टिचपेटकीलेन तथा गृष्ादिमोटने ॥ १९॥ ` लगुडादिप्रहारे ष गोबध' तत्र मिर्दिंशेत्‌। दमने दामने चैव शकटादौ च योजने ॥ १७ # सौशगरृहृलपागरवा सृते पादोनमाचरेत्‌ | कौे शाग्तपनं कात्‌ प्राजापत्यन्तु ASH १८ ॥ AMAA पापात शस्ते चाप्यति कच्छः कं | भाष्जीरमोधानकुलमण्डकश्वपतति यः | १९ ॥ इत्वा चाहं पिवेत्‌ सरं कच्छ, चान्द्रायणं चरेत्‌ वरतं cee रटसि प्रकाशेऽपि प्रकाशकं ॥ ०॥ प्राणायामशतं काः सव्वपापापनुत्ये | पानकं द्राक्षमधकं GTM रन्तालमे वं 1 २१॥ माध्वीकं ट्माध्वौकं भरेयं नारिकेलजं | न मदयोन्धपि मद्यानि cet मुख्या सुरा स्मता॥२२॥ च्रेवणस्थ निषिद्धानि drat carer: शुचिः । कणान्‌ वा wader पिण्याकं वा सकछलतव्रिशि ॥ २३२॥ सुरापाशापनुत्यथ' बालवासा जटौ ध्वजौ | TATA प्राश्य विणमतरं सुरासंस्म टमेव च 1, २४॥ पनः संख्कारमहेन्ति त्यो वण हिजातयः | भयमाण्डखिता अपः dat सप्तदिनं व्रतो ॥ २५। चाण्डालस्य तु Waly star स्यात्‌ षडदिनं व्रती | चण्डालवूपभाष्डेषु पौल ्रान्तपनं चरेत्‌ ॥ २६ ॥ [१७३ ध्यायः। प्रायञ्चिन्तकधनं | १८७ पञ्चगव्यं fata पोत्वा चान्जलं दिजः । मब्छकण्टक शसक शह-शक्िकपद कान्‌ | २७ ॥ dat नवोदकं चेव पञ्चगव्येन इदयति1 शवकपोदकं Tay facray विश्दयति॥ २८॥ ्रन्यावसाथिनामन्न भुक्त्वा चान्द्रायशं चरेल्‌ । आआपतकाले शूद्रे मनस्तापेन Dera! २८ ॥ शद्रभाजनमुक्‌ विप्रः पञ्चगव्यादुपोषिततः | HCI Be GE च दधिशक्षवः॥ ३० ॥ श द्रादनिश्धाग्धेतानि गुडक्षीररसादिकं, Tarawa चोपवासो दिनान्ते तु जपाच्छचिः॥२१॥ मचोखायशचिभुक्षा fasta विशदयति । क शकोटावपनब्र च पाटस्पष्टच्च कामतः ३२ ॥ ग्न णन्रावेचखिष्त चव WUT वाप्यद्‌क्वया | काक्रादंरवलोढं च शुनासस्प भेष च ॥ १२ |! गवा द CHART YRAT AAT ।. ` रेतोविणमूत्रभची तु प्राजापत्य समा चरेत्‌ + २४॥ STRAT AAAS पराको मासिक मतः। पत्रयरेऽतिनल्लच्छू स्यात्‌ षण माले. कृष्युमेव च ॥ २५॥ ufc प्राद्ल्लच्छर' Beare: युनराण्दिके | पूवं ्न्वौभिकं शरां परेद : gacrfeca ॥ २९ ॥ निषिदभकच्णे सक प्रायचिन्तमुप्रोषकं । भस्तणं aya war’) भिश्यकं तच्छमाचरेत्‌(९) ॥ २७॥ १ ` ए कनं व्रजनं wai ढ। र fiegene षमाजरदिनि wey Ret war ieee! २. Rages earache ख० | शद अम्निपुराण [१७३ अध्यायः । अभोज्यानान्तु YMA स्तोशुद्रोच्छिषटमेव च। लग्धा मांसमभच्य्च सप्तरात्र पयः पिवेत्‌ ॥ २८ ॥ ay मांसच् योऽग्रौयाच्छावं सतकमेव AT | प्राजापत्य चरेत्‌ कच्छ Ire यतित्रेतो ॥ ve ॥ अन्यायेन परस्वापहरणं स्तेयमुच्यते | मुसलेन शतो रान्ना aren विशाति ॥ ४० ti अधःशायौ जटाघारो परणमुलफलाशनः | एककाल Tara दादशाब्ट विशदयति ॥ seo CMA सुरापंख ब्रह्महा गुरतस्पगः | स्तयं कत्वा सुरं पोता RGIS LAT ॥ ४२ ॥ मखिसुक्ता प्रवालानां तास््रस्य रजतस्य च । ` यस्तं स्योपलानाच्च दादग्ाषं कणान्रभ्‌क्‌ ॥ 8३ ॥ मनुष्याणान्तु हरणे MU Aare च । वापौकूपतडागानां दिषान्द्रायणं Wa ॥ ४४ ॥ भद्यभोज्यापरणे यानशय्यासनस्य च | षष्पमृलफलानाश्च पञ्चगव्य विशोधनं ॥ ४५ ॥ ठखकाष्टदरमायाच्च CAAA गुडस्य च । Sawtufrarare निरा स्यादभोजन ॥ ४७ ॥ पितुः wate भगिनौ माचायतमयान्तथा । MIA सुतां AG THEA गुरुतल्पगः ॥ ४८ ॥ गुरुतस्येऽभिभाष्येनस्तमे पच्यादयोमये | Ta watrafas saat स विशाति ४४८ ॥ चान्द्रायणान्‌ वा WAITS. FATT: [१७२ अध्यायः। प्रायश्च कथनं | १८ एवमेव विधि गाद्‌ योषित्ङ्पतितासपि ॥ ५० ॥ यत्‌ YA? परदारेषु तच्चैनां कारयेद्रतं। रेतः frat कुमारीषु चाण्डालोषु सुतासु च॥ ५१॥ सपिष्डापत्यदारेषु प्राणत्यागो विधौयते। यत्‌ करोत्येकरात्रेण हषलौसेवनं दिजः ॥ ५२॥ तद्धेश्यभुग्‌(९) जपचित्य' जिभिरवरदेव्यपोडति | पिट व्य दारगमने ्नाटठभा्यीगमे(?) तथा ॥ ५३ ॥ चाण्डालो पुक्षसीं वापि खषाश्च भगिनौ सखौ । मातुः पितुः खसारख्च नि्िघ्ां शरणागतां ॥ ५४ | मातुलान WAT सगो तरामन्यमिच्छतौ' | . शिष्यभाथां गुरोभाय्यां गत्वा चान्द्रायण्रेत्‌ ॥ ५५ ॥ cared महापुराणे प्रायचित्तानि नाम तरिससत्य- भिकशततमोऽध्यायः ॥ a efeurafafi Jo, To q | २ भातलाथागमे इति He, Ho, Te च। अथ चतु;सघ्र्यधिकंशततमोऽध्यायः। प्रायथिन्तानि, -मनिरुवाच | टरेवाखमाचनादोनां प्राय्िन्तन्त लोपतः | पूजालोपे चाष्टशतं जपदिगुखपूजनं ॥ १ ॥ पञ्चो पनिषद्‌ र न्हत्वा ब्राह्मणभोजन | सूतिकान्यजको दक्यास्यषटे देवे तं जपेत्‌(९) ॥ २॥ पञ्चोपनिषदैः पूजां दिगुणं खानमेवच। विप्रभोज्य होमलोपे sara aaa ५३२ ॥ होमद्रव्ये मृषिका देभ॑चिते कौटसंयुते | तावश्नाव' परित्यज्च प्रोच्य देवादि पूजयेत्‌ 8 ॥ अङ्रापणमावन्त fea भिन्नं परित्यजेत्‌ | WIAs CYS अन्यपात्रे तद्पंणं ॥ ५॥ दे वमानुषविघ्नन्न पूजाकाले तघेव च । मन्त द्रन्यादिव्यत्यासे मूलं THT FAH पेत्‌ ॥ ६ ॥ कुम्धनाषटशतजमो देवे तु पतिते करात्‌ | भिन्ने नष्टे चोपवासः शतहोमाच्छमं भवैत्‌(९) Hon LE LTT ICL LCL CC PS A १ तं शञनेदिति Go, ९० च । २ गत्ोमाच्छ चिभेवेदिति we, Yo, He च। [१७४ अरश्वयः | प्रायश्चित्तकथन | । १९१ BA पापेऽनुतापो बे यस्य पुंसः प्रजायते । प्रायचित्तन्तु Wee हरिसंस्मरणं परं ॥ ८ ¢ ATTA पराको वा प्राजापत्यमघौषमुत्‌ | सये शक्तियो भादिमन््रजप्यमघो षतुत्‌ ॥ ९ ॥ गायतो प्रणवस्तो बमन्जप्यमघान्तकं | ATTA ACTS रायैरा दै स्तदन्तक्रेः ॥ १० ॥ सयाशशक्तियौशादिमन्ताः कोटाधिकाः wera | TAA AGAR नमोन्ताः सर्वकामदाः ५ ११॥ िंहदादशाष्टाणंमालामन्ा खदोषनुत्‌ । AMA पुराणस्य पठनं खवणदिक॥ १२॥ दिविव्यारूपको बिष्णुरम्निरूपस्त्‌ tad. . परमावा देवमुखं सवषेडेषु गोयते ॥ १३ ॥ vam तु निहत्तौ तु इज्यते सुक्तिसुक्तिदः(*) | ्रग्निरूपस्य विष्णो हवनं ्यानमच्चनं ॥ १४॥ जप्य स्त॒तिञ्च प्रणतिः गारौरागेषाघोघतुत्‌ | SNAU fa दानानि धान्यदादशमेव च ।। १५॥ तुलापुरुषमुख्यानि मह्यादानानि षोड़श | अरव्रदानानि सुख्यानि सर्वासघडहराणि हि । १६॥ तिथिवार्षसङनक्रान्तियो गमन्वादिकालके। aattz CANA fA MSTA AA (’) ॥ १८ ॥ TFT गया प्रयगख काश्ययोध्या छवन्तिका। १ wena, feta cad भुक्तिसुक्किद २ अषनाग्ननमिति ao | दति Wo, Go, Mo, He FI १९२ | भभम्निपुराखे [१७५ wera: | HUAA प॒ष्कर द Alaa पुरुषोलतमः ॥ १९ ॥ श्ालमप्रामप्रभासाद्य तौधश्चाघौषघातकं। पह ब्रह्म परं ज्योतिरितिष्यानमचघोधनुत्‌ ॥ २०॥ पुराण ब्रह्म चाग्ने य ब्रह्मा yas: | भवताराः wager: प्रतिष्टाप्रतिमादिक ।॥ २१॥ न्यातिःशास्तपुराणानि WATE aataai(*) । TINA सर्गाद्या भ्रायुवदो धनुखतिः ॥ २२॥ frat न्दो व्याकरणं निरक्ख्चाभिधा नकं | कल्पो MTA मौमांसा wary सवं हरिः प्रभुः ५२२ ॥ एके STM यस्मिन्‌ यः स्वमिति वेद यः | तं दृद्धान्यखय पापानि विनश्यन्ति रिख सः ॥ २४॥ विद्याष्टादशरूपञ्च सद्म: ख्धलोऽपरो इरिः। ज्योतिः सदत्तर ब्रह्म पर विष्णुश्च fara: २५॥ CAMA मह्ापुरारे प्रायचित्तानि नाम चतुःसप्तत्य- धिकथततमोऽध्यायः॥ भथ पञ्चसप्तलयधिकशततमोऽध्यायः। enue | व्रतपरिभाषा | अम्निरुवाच । तिचिवारत्तदिवसमासलवब्दाकसङुःमे | चस्तरव्रतादि(९) वच्यामि वसिष्ठ खण तत्‌ क्रमात्‌ ॥ १॥ १ खतयः न तयो व्रतमिति wo, घ, Go, fama: "ण्डः ae Yow ats! SoG! खद ब्रहम व्यादिः, तपोत्रत- २ पलो वरतादोति co, अर च। [१७१५ sara t व्रतपरिभाषाकथनं | | १९२ शास्त्रोदितो fe निखमो ad तच्च तपो aa | ˆ नियमास्त॒ fatter व्रतस्यैव दमादयः॥ 3 aa हि कत्तं सन्तापात्तप दत्यभिधौयते । इद्द्ियग्रामनियमात्रियमख्ाभिधौयते॥२।। अनग्नयस्त॒ ये विप्रास्तेषां अ्रथोऽभिधौयते | ब्रतोपवासनियमेर्नीनादाने स्तथा दिजः ॥ ४ a ते खहेवादयः(१) प्रोता सुक्तिमुक्षिप्रदायकाः। उपात्तस्य पापेभ्यो यस्स वासो गुरः TE ५॥ उपवासः स fata: सवंभोगविवर्जिंतः(९) | कांस्य मांसं WATE चणकं कोरदूषकं ॥ ६ ॥ शाक मध परात्रश्च(९) त्यजेदुपवसन्‌ स्त्रियं | सष्यालङ्ा रवस्वराणि धूपगन्धानुलेपनं । ७ ॥ उपवासे न शस्यन्ति दन्तधावनमच्नं। दन्तकाष्ठ पञ्चगव्य क्तवा प्रात्र तश्चत्‌ ॥ ८॥ ` असकृज्जलपानाच्च ताम्बूलस्य च भक्चणात्‌ | उपवासः प्रदुष्येत दिवाखग्राच्च मैघनात्‌ ॥ ९ ॥ चमा सत्यन्दया दानं शोः.भिन्द्रियनिग्रहः | देवपूजाग्निहरणं(*) सन्तोषोऽस्तेयमेव च ॥ १० ॥ सवत्रतष्वय धमः सामान्यो दशधा स्मतः | पविच्राणि wage seats शक्तितः ॥ १ १॥ न १ तःस्यृद्वाद्यद्ति Ao, ण्च। ३ श्रावं दपि परान्नसेति Wo, Boag २ सवप्रापविवज्ितद्ति se, wo ४ दवपूजागिनिडवनमिति घण, य्ण्च| ` च । सवतः परिवखित इति we | ( २५ ) १९४ अन्निपुराणे [ १७५ अध्यायः । न्ध्िद्चायौ faarera(’) गुरदेवदिजाश्वंकः | चारं Wee लवणं मधं मांसानि aaa ॥ १२॥ तिलमद्राहते शस्यं We गोधूमकोद्रेवौ । Waa डेवधान्धघ् शअरमोधान्य तथेत्तवं(र) । १३॥ धितधान्य' तथा पण्य मूलं क्षारगणः खतः । aifenteaqera कलायाः सतिला यवाः 1 १४॥ ATTA aS नोवारा गोधुमाद्या व्रते हिताः | कुञाण्ालावुवात्तकून्‌ पालङ्गौम्परतिकान्यजंत्‌॥ १५॥ चरदमेष्य' TAU: शाकन्दधि तं पयः । श्यामाक॑श्यालिनोवारा यवकं मूलतण्डलं ॥ १६॥ हविष्यं व्रतनक्तादावग्निकाथादिके fea | मध मांसं विह्ायान्यदु व्रते वा हितमोरितं ॥ gor चप प्रातस््यहं सावं चयहमद्यादेयाचिरत । ATEATY ATMA प्राजापत्यश्चरन्‌ fest: ॥ १८ ॥ UHH ग्रासमसरौयात्‌ ऋद्ाणि Ths पूववत्‌ । त्रोहश्चोपवसेदन््मतिकछच्छ चरन्‌ शिजः ॥ १८. ॥ गोमूत्रं गोमयं क्षौर दधि सपिः कुशोदकं | एकराचरीपवासख GS शान्तपनं स्मतं | २० ॥ WAR शान्तपनद्रेव्येः षडहः सोपवासकः | सपाहेनं तु HAM महाशान्तपनोऽषदा ॥ Ve दादशाहोपवासेनं पराकः सवपापा | १ WATT इति Be | २ RAW Tey चेति Ae, we TI (१५ mera: । व्रतपरिभाषाकथनं १९१ महापराकस्विगुणस्वयभेव प्रकौ तितः ॥ २२ ॥ पौर्णमास्यां पञ्चदशग्रास्यमावास्यभोजनः। ` एकापाये ततो हदो चान्द्रायणमतोऽन्यथा ॥ २२? कपिलागोः पल मच WIESE गोमय । Sit सप्तपलन्दयाद्‌ ewaa पलदयं (५) । २४ ॥ छतमेकपलन्द दयात्‌ पलमक कुशोदकं । गायत्रा गह्य गोमूत्रं गन्धहारेति गोमयं ॥ २५ आष्यरायसेति a ate दधिक्रावणेति वे रषि। तेजोऽसोति तधा wea देवस्येति कुशोदक(९} ॥ २९॥ AURA भवत्येवं WT fetard जपेत्‌ । अघमषणसुकेन संयोज्य प्रणवेन वा) ROA पत्वा सर्वाघनिमुक्तो विष्ुलोकौ दयपोषितः | उपव्रासौ सायग्भोजौ यतिः षष्टामकालवान्‌ ।॥ २८ मासव् चाश्भेधौ सत्यवादौ दिवं बजेत, amare प्रतिष्टाञ्च यन्नदानव्रतानि च ॥ २.९ # देवव्रतो सगं चूडाकरणमे खलाः | | माङ्गल्पमभिषेकश्च मलमासे विवजयेत्‌ tr ३०॥ दर्णदशस्त चान्द्रः स्यात्‌ faureaa सावनः - . मासः सोरस्त सङ्गन्तनाक्तत्रो भविवत्तनात्‌।। २१५ सौरो मासो विवाहादौ यन्नादौ सावनः स्मतः(२)) १ cada पलवयभितिघ०,ज०, ट० पाठः क” Gea नास्ि। ` च| ९ सावमों मत दति we । २ AIM इत्यादिः कुमोदकुभित्यक | १९६ अग्निपुराणे [१७१ श्रष्यायः | arhen frente च चान्द्रो मासः प्रशस्यते ॥ ३२ ॥ आषाढौमवधिं get यः Serre पञ्चमः | कु्व्याच्छाचन्तत्र रविः कन्यां Wag ata art २३॥ मासि संवत्‌सरे चेव fafasa यदा भवेत्‌ | तद्रोत्तरोत्तमा श्रेया पूर्वा तु स्यान्‌ मलिस््चा ॥ ३४ ॥ उपोषितव्य add tara याति भास्करः । दिवा gure तिथयो रातौ नकतत्रते WaT: ॥ ३५ ॥ युग्माग्निकतश्रूतानि (९) षयसुन्योबसुरन्धयोः | TU हादयो युक्ता चतुष्टश्याघ(र) पूणिमा । २६ ॥ प्रतिपदा त्वमावास्या fasta महाफलं । ` रएतद्यास्त महाघोरं हन्ति पुण पुराक्ततं i २७॥ नरेन्द्रमन्तिव्रतिनां(२) विवाहोपद्रवादिषु | सदः शौचं समाख्यातं कान्तारापदि संषदि ॥ ३८॥ ्रव्धदौघेतपसां न राजा व्रतहा fea: | गभिंणो सूतिका नक्तं कुमारौ च रजखला ॥ ३९ ॥ यदाऽशचा तदान्येन कारयेत क्रियाः सदा । क्रोधात्‌ प्रमादाज्ञोभाद्ा व्रतभङ्गो भवेददि ॥ ४०॥ दिनत्रयं न wala qed शिरसोऽथ वा। TIAA व्रतक्ततौ Tal वा कारयेत्‌ सुतं tl ४१॥ सूतके खतके काय' प्रारब्ध पूजनोज्‌ भितं | व्रतस्थं Bleed दुग्धपानादयेसचरेद्‌ गुखः ॥.४२ ॥ ९ युग्माभ्रिवुगभूतानोति ao, He च ३ नरेम्ट्‌सनितव्रतिनाभिति खर, Be, ९ ARR चेति ae | Be, HT ` [१७५ अध्यायः । व्रतपरिभाषाकथन | १९७ Hel तान्यत्रतन्नानि ATG मल फलं पयः | हवित्रीद्यणकाम्या च गुरोवचनमौषधं ।॥ ४३ ॥ कौत्तिसन्ततिविश्यादिसौभाग्यारोग्यठदये | नैर्मल्सुतिसुक्चथ Fa व्रतपते ad ४४ ॥ ददं व्रतं मया AS गहीतं पुरतस्तव | fafaui सिदिमायातु लत्‌प्रसादात्‌ जगन्पते ॥ ४५॥ रटोतेऽस्मिन्‌ व्रतवरे(९) sage fat ae । aaa पूणमेवास्त प्रसन्ने त्वयि सत्ती 1 ४६॥ .. व्रतमृत्ति जगङ्गति मण्डले संसिद्धये | आवाहय नमस्तभ्य सत्निधौभव केशव । ४७ ॥ मनसा कलिपितैर्भत्या पश्चगव्येजले; Wa: । पच्चामतेः ज्ञापयामिलंमे च भव पापहा ॥४८॥ गन्ध पुष्पोद्‌ केयुक्तमष्य मध्य पते शभ | WAT पादयमाचाममष्यौड्रु मां सदा ॥ ve ॥ वस्र AAI FA Wey कुरुमांसदा। भूषणाय; Ya afer व्रतसत्पते ॥ ५० ॥ सुगन्धिगन्ध' विमलं गन्धमूत्त were वै । पापगन्धविहहोनं मां कुसु a हि सुगन्धिकं i ५१॥ पुष्य ग्टहाण यष्मादिपणं मां कुर्‌ सवदा । पुष्पगन्ध सुविमलं आयुरारोग्य त्ये ॥ ५२ ॥ दथाङ्ग' गुग्गुलष्ट तयुक्तं WT Wer वे | aug धूपित मां त कुर धूपितसत्पते ॥ ५३ ॥ १ व्रते देव दति Ac, चर, So, Wo, Ho, So | I १८८ अरम्निपुराे [१७१५ अध्यायः | Sang fag दोषं ््हाणाखिलभासकं | दोपमत्त प्रकाथाढठंय सर्वदोद्ध गतिं FT ५४॥ अनव्रादिकश्च Aad टहाणान्नादि सत्यति | अन्रादिपूण' कुस AAAS सवदायकं ॥ ५५।। मन्तदौनं क्रियाहीनं भक्तिद्ौनं मया प्रभो यत्‌ पूजितं व्रतपते परिपूणन्तदस्त् मे ॥ ५६॥ un देहि wa देहि सौभाग्यं गुण्सन्तति । aia विष्यां(१)देहि चायुः सवर्ग" मोक्षश्च ठेहि मे ॥५७॥ द्मां पूजां व्रतपते WelaT व्रज साम्यतं | घ॒नरागमनायेव वरदानाय वैप्रभो । ५८॥ SIA व्रतवता सवैत्रतेषु व्रतमत्तेयः | पूज्याः MAUS वे शक्तया वै भूमिग्रायिना ॥ ५९ ॥ जपो CHT सामान्यव्रतान्ते दानमेव च | चतुविश्ा CSM वा पञ्चवा तरय एककः ॥ ६० II विप्राः प्रपूज्या गुरवो(*) भोज्याः शक्या तु दक्षिणा । देया गावः FAUNA: पादुकोपानद्धौ पृषक्‌ | ९१॥ जलपातच्चाब्रपाचरख्त्तिकाच्छत्रमास्‌न (९) | शव्या वस्त्रयुगं कुम्भाः परिभाषेयमोरिता । ६२॥ इत्याग्नेये महापुरार व्रतपरिभाषानाम पञ्चसपत्यधिक- ्रततमोऽध्यायः॥ ९, ~ ९ कोति हदधिभिति eo, eo q | So, Zo a | २ विप्राः ger, समरव इति चण, g मद्रिकाशनमासनमिति we | अथ षर्‌सप्त्यधिकशततमोऽध्यायः। aon 8 es 0 8. प्रतिपदुत्रैतानि। भरग्निरुवाच। वच्छे प्रतिपदादौनिं व्रतान्यखिलदानि ते। कात्तिंकाश्वयुजे चेते प्रतिपद्वद्मणस्तिथिः ॥ १ ॥ पञ्चदश्यात्रिराहार,! प्रतिपदच्चयेदजं । आं तत्‌ UCM नमो गायत्रा वाब्दमेककं॥ २ ॥ भरत्तमालाखवन्दच्चे(९) वामे श्र चकमण्डल(९) | लम्बक चञ्च जटिलं हेमं ब्रह्माणमच्चयेत्‌ i २ ॥ शक्या चौरं weary ब्रह्मा मे प्रौयताभिति । निमलो भोगसुक्‌ खगे भूमो विप्रो घनौ भवेत्‌ ४ ॥ धन्य' व्रतं प्रवच्यामि भ्रधन्यो धन्यतां व्रजेत्‌ । मागंशोषं प्रतिपदि नक्त इत्वा प्युपोषितः (९) ॥ ५॥ wad नम waft orate सव्वभाग्‌ भवेत्‌ | प्रतिपद्येकभक्ताभौ समासे कपिलाप्रदः ॥ ६ ॥ वैश्वानरपदं याति शिखिव्रतमिदं स्मतं । इत्याग्नेये महापुराणे प्रतिपद्वतानि नाम षट सप्तत्यधि- । कशततमोऽध्यायः ॥ १ Waarersy © gees gw’ 0 अषटटमोव्रतानि। अग्निरुवाच । वश्ये व्रतानि चाष्टम्यां feat प्रधमं व्रत | मासि भाद्रपदैऽटम्यां रोदिष्यामधैरातके ॥ १ ॥ WU जाती यतस्तस्यां जयन्तौ स्यात्ततोऽ्टमो । सप्तज्क्षतात्‌ पापात्‌ सुष्यते चोपवासतः ॥ २ ॥ BUYI भाद्रपदे wat रोहिणोयुते। उपोषितोचव येत्‌ कष्ण(१) सुक्तिसुक्तिप्रदायक ॥ २ ॥ प्ावायाम्यदं au gece देवकीं । वदेवं यभोदाङ्ाः(९) पूलथामि नमोऽसते ॥ ४॥ योगाय योगपतये योगेशाय नमो नमः । योगादिसम्भावायेव गोविन्दाय नमो नमः ॥ ५॥। खानं कष्णाय दद्यात्तु अध्ये चानेन दापयेत्‌ । यज्ञाय यज्ञेश्वराय यज्ञानां पतये नमः| | यज्नादिसम्भवायंव गोविन्दाय नमो नमः। ग्टहाण देव पुष्पाणि सुगन्धोनि प्रियाणिते॥ 9॥ सर्वकामप्रदो दैव भव मे देववन्दित | धूपधूपित धूपं तव धुपितैसव ere मे ॥ ८ ॥ सगन्ध धूपगन्धाग्य FE मां AAT हरे | STEELE ES SILL AEE ६ faratifar ee । ९ बष्ोदाशति eo, He wy] ( २७ ) २२१ अम्निपुराणे [१८७ अध्यायः। Saga मष्ादौपं दौपदौसिद सवदा(\) ॥ € ॥ अया TH गहाण त्व कुस Weal च at! विश्वाय विश्वपतये विश्वेशाय नमो नमः(९) ॥ १०॥ विश्वादिसम्भवायेव गोविन्दाय fate | wate घ्थपतये WANTS AMT नमः ॥ ११॥ ्धादिसभ्धवायेव मौविन्द शयनं कुङ्‌ । सर्वाय संव्बपतथे स््बशाय नमो ममः ॥ १२१ walfeawaraa गोविन्दाय च पावनं(र) | चौरोदाणंबसम्भत अतिने्खमुद्धव || १२॥ WUT UME Chea सहितो मम । wufwe स्थापयेरेवं सचन्द्रां रोह्िशो यजेत्‌ ॥ १४॥ Saal aged च यथोदां नन्दकं बलं | ACURA पयोधाराः पातयेद्‌ गुडसपिंमा ॥ १५॥ चस्त्रहेमादिक दखखाद्वाश्मर्णान्‌ भोजयेहुतौ । लद्ाटमोग्रतकरः YATE TTA”) ॥ १६९॥ वषं वषं तुयः कु्धात्‌ सुजार्थो वेत्ति नो भयं (५) | पुरान्‌ देहिः घनं देहि आआयुरारोग्यसभ्ततिं 11 १७ ॥ wy कामं च सोभाग्बं खगे Me च रहि मे । इत्याग्नेये महापुराणे. जवन्यषटमोत्रतं नाम चशोव्यधिक- शततमोऽध्यायः ॥ १ waa इति We, छ च | पावभेमित्यशः पाठः ड" पुखके माछ | १ विष्वेश्नाय MASS तेरति oe | ४ रन्शरोकमामिति we | ९ पारदभिति ny adtianfg:, ५ gare aus सुतमिति wo, 2० च । अथ चन्नरशोल्यधिकशवतमोऽध्यायः। ` | भ्टमोत्रतानि | अग्निर्वा च | ब्रह्मादिमाढयजनाच्पेन्‌ माढटगणाषटमौ | werent Tate years लष्छमथंभाक्‌॥ १४ छष्णाषटमोत्रतं वच्छे मासे मागंशिरे चरेत्‌ । नकत. लत्वा एविभूत्वा गोम maha ॥ र्‌ ॥ भरृभिग्यायो निशायाञ्च wet पूजयेद्‌ Fate वषे WA तं प्राश्य ae चौरं महेश्व रम्‌(९)॥ २ tr महादेवं फाल्गुने च तिलाशौ(र) समुपोषितः | चेतरे WY यवाशो च Aaya शिवं यजेत्‌॥ ४ Sater पशपतिं ष्ये TTT: | HAS मोम्रवाश्बग्रं ATT TANTS ॥ ५॥ ara च urge विखपन्नाशनो fafa | aewarst चा युजे tt रुदन्त कार्तिके ५ € ॥ दध्याभौ HARTY Treaty मण्डले वजेत्‌(२) | गोवस््रेम Wa ददयाद्िप्रेभ्य fey 19 1 प्रार्थयित्वा दिनान्‌ aiten(") yfargieaary यात्‌ t १ माघ चौरो aeacfafa Ao, ट वषं षं तु Wee इति Ro, Go च ॥ ~ Go ॥ : ९ fauretfa ae , ` ४ द्विजान्‌ तोष्य इति जर | २१९ अम्निपुरारे [१८४ अध्याबः। AMIN तटमौषु स्वाद्‌ AAT च US ॥ ८॥ पौरन्दरं पदं याति खगंतिव तसुश्ते (र) | अष्टमो बधवारे ण पक्षयो रभयोयधदा ॥ < ॥ तदा व्रत प्रञ्र्व्वोत अधवा सगुाशिता | तस्यां नियमकन्तोरो न खः खि तसम्मदः ॥ १०॥ | तष्डलस्याष्टसुष्टौनां वल्मेयितवां लोह यं । भक्त AAT Ways BHT सङ्गलाम्बिकां ॥ ११ ॥ wifea पूजयित्वाङ्गं gala च कधाखवात्‌ । शक्तितो दिणान्दययात्‌ ककटौन्त warferat(®) ve ei धौरो दिजोऽस्य(२) भायास्ति cat gee कोभिकः। efeat विजया ae धौरस्य धनदो ठषः(*) ॥ १३ ॥ कौथिक्रस्तं ष्डहोत्वा तु गोपालेघारयन्‌ ठषं । गदायां खानक्ल्येऽय(*) नोतचौरेर्दषस्तदा ॥ १४ ॥ आत्वा TIAMAT स हषं मागितुमागतः। विजयाभगिमोयुक्षा ददं स सरोवरे ॥ १५॥ दिषव्यश््नौयोषितां ठन्दमव्रवौरहेहि भोजन । स्मोठन्दमृचे वताद्‌ मुच्च त्वमतिथियं तः ॥ १९ ॥ दुतं क्त्वा स बुभुजे प्रासवान्‌ वनपालकं । १ सुमतित्रतमुश्वते दति Wo, घ, a बोरो दिलोऽखति ae, qo, we, Bo, He, Te, TOS He, Fo | ख्या जित्रतम्‌ यते दति so | ४ वीर्य wart टव इनि wo, Ee, २ SSCs लान्वितासिति we, च, -ढ° च | वोरख नदो व एति चर, eo) गमरीकष्डद्ागन्वितामिति we | So, He, Wo gq) ४ Wray इति se [१८५ wera | नवमोव्रत कथनं | २१२ गतो wre’) सहषभो बिजयासहितस्तङा ॥ १७॥ धौरे ण(र) विजया दत्ता यमायान्तरितः पिता। वुतभावात्‌ कोथिकोऽपि छयोध्याया कृपोऽभवत्‌ ॥ १८ ॥ पि्रोस्स॒ नरके ष्टा विजयाति' यमे गता । सगयामागत प्रोचे FAA नरकात्‌ कथः॥ १९ ॥ बु त्टयाश्यमः प्रोचे प्राप्य तत्‌ कौशिको ददौ। बुघाष्टमौहयफलं खगतौ पितरौ ततः (२) ॥ २० ॥ विजया इषिता चक्र वतं भुक्यादिसिये | अशोककलिकाशाष्टो ये पिवन्ति पुनवसौ॥२१॥ मासि सिताष्टम्यां नते शोकमवाप्रयुः AAMAS मधमाससमुङ्खव ॥ २२॥ पिवामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुर्‌ । चैवादौ माटपूजाक्लद्टम्यां जयते रिपून्‌ ॥ २३॥ इत्याग्नेये महापुराणे भ्टमोवतानि नाम च्तरशौत्य- पिकशततमोऽध्ययः॥ भथ पच्चाश्नोल्यधिकशततमोऽध्थायः। @ र © त कमक og रकि O नवमोत्रतानि ॥ अग्निरुवाच | नवमौवृतकं qa भुक्तिमुश्वादिसििद | देवौ quarfiad war गोाख्यानवमोवुत ॥ १॥ ` १ मलो AC Kha we, ग, We, ७, RATA Fo, Ho — a पितत सदेति ख, । ४१४ | अम्निपुराशे [१८६ अध्यायः । पिष्टकाख्या तु नवमौ पिष्टाभो हेविपूजनात्‌ | अष्टम्यामाश्विने शक्त AURA AT Wz I अघादना सवदा बं ALA नवमी खता SM तु AWM एकषागारखि ताऽथवा ५.२ ॥ पूजिताष्टादशभुजा येषा; षोड्गसत्‌कराः(\) | शेषाः प्रोड शस्ताः ACMA डमरुम्तथा ॥ ४ ॥ सद्र चण्डा प्रचण्डा च Toa चरनारिका। चण्डा चरण्छवतो पूज्या चण्डरूपातिचर््िका ॥ ५ a marae चोग्रचण्डा cat महिषमद्हिनौ(र)। Tir दुग दुग TW स्वाहा दशाच्तरो Haw |g दौर्घाकारादिमन्त्रादिद्वने च नमोऽन्तक्रः | षद्भिः पटे गरमःस्धएषषट कारृदारिकं ॥ ७ ॥ WE छारिकनिष्ठान्त न्यस्याङ्गानि जपेच्छिवां(र) | एतच्रपति(*) यो qe मासो केनापि बाध्यते ns a कपाल खेटकं घण्टां दप णन्तव्जनोन्धनुः ध्वजण्डमसरकं पाशं वामहस्तषु विभ्रतौ wen शक्तिमृहरशलानि वज्‌ खड्गश्च Fa | शङ्क चक्रं शलाकां च श्राबुधानि च पजयेत्‌ ॥ १० ॥ पश्ञ्च कालो कालोति जष्ठा खड्गेन घातयेत्‌ | कालि कालि वजेष्वरि लौहदण्डायै नमः ॥ ११॥ १ षोढश्दखकाद्ति fo; ३ वकाराः जरि ९ MAT सध्ये चोप्रचष्ठां SAT पाठः घ He Ho Be पुरकेषु नाकि। मददिषमदिनोमिति ae) ४ रवं जपतीति, ण्य) [१७६ ब्रध्यायः। दश्मोव्रतकथयनं | २१५ aged रुधिरं मांसं पतनाय च ने ऋते | वायव्यां पापराक्षस्यै चरक्ये नम शश्रे ॥ १२ ॥ विदारिकायै चाग्नेय्यां मषा शौशिकमम्नये (९) | तस्याग्रतो कृपः Graves’ पिष्टमयं इरेत्‌(९) ॥ १२॥ दद्यात्‌ स्कन्दविशाखाभ्यां ब्राह्माद्या निभि ता यजेत्‌ | जयन्तौ APS कालो भद्रकाली कपालिनौ ॥ १४॥ दुमा धिषा चमा घाभौ खाहा खधा नमोऽस्तते)। देवौ waren! wry पृजयेचाहेणादिना ॥ १५॥ ध्वजादिरथयान्रादिबलिदान वरादिष्त्‌। इत्याग्नेये महापुराणे नवमोव तानि नाम पञ्चाशोत्य- धिकश्रततमोऽध्यायः ॥ अथ TSM THT ATA ATA: | जूक © शे © © क © दशमोव्रतं | अग्निरुवाच । दणमोवतकं वच्छे घ्यकामादिदायकं । ` दशम्यामेकभक्षाशौ समासे दशधेनुदः ॥ १॥ feng काश्चनोदंयाद्राद्मशाधिषतिर्मवेत्‌ । इत्याग्नेये महापुराणे दगमौव्रतानि नाम षडगीत्य- धिकशततमोऽध्यायः ॥ ` १ arerent fara aaa इति Wo, He २ पिष्टमयं safefa qo, we GI a} अथ सुप्राशोत्यधिकशततमोऽध्यायः। on ह प @ कय एकादशीव्रतं | अग्निरुवाच | एकादगोव्रत वच्छे सुक्धिसुक्धिप्रदायकं |. दगम्यात्रियताहारो मांसमेधनवजिंतः (९) ॥ १ ॥ रकादश्यां न yeaa पल्चयोरभयोरपि । दादश्येकादथो यत्र तजर सब्रिहितो हरिः ॥२॥. aa(®’) MaMa पुश्य त्रयोदश्यां तु पारणे | एकादशो कला यत्र परतो हादशो गता(र)॥१॥ तत्र क्रतुशतं पण्यन््रयोदण्यान्तु पारणे | दशम्येकादशौमिश्रा नोपोष्या नरकप्रदा ts | एकादश्यातिराषशारो Ya चैवापरेऽनि । wT se THC रणं मे भवाच्यत॥ ५॥ एकादश्यां सिते wt पुष्यर्चन्तु यदा भवेत्‌ | MATAR प्रोक्ता सं पापनाभिनौ॥ ६ ॥ एकादभौ हादशौ या खवणेन च सयुता। विजया सा तिधिः प्रोक्ता भक्तानां विजयप्रदा ॥9॥ एषैव फादगुने मासि पुष्य्चण च संयुता | ९ मधमांसैविं वचित इति ae । ३ दादष्टो मतेति षर, मग च । र WA Wo, we, He TI ‘lawl भवेदिति ©, Wo @ | [ese were | erestacrenraa | २१५ विलथा प्रोच्यते सद्भिः कोटिकीटिगुखो चरा(९)॥ ८॥ एकादष्या विषणुपूजा(९) काया सर्व्वोपकारिणशो(२) । धनवान्‌ घुत्रवान्‌ लोके विष्छलोके मह्यते ॥ < + इत्याग्नेये AUGUST एकादशीव्रतं नाम सपताथौत्यधि- कशततमीऽध्यायः॥ अथाषश्ाजोत्यधिकशततमोऽध्याथः। [क इ © | @ ५ हादश्रोत्रतानि। | अम्िरवाच । दादशोव्रतकं वच्य मुक्धिमुक्गिप्रदाबकं। एकभक्तेन भक्तन तथेवायादितेम Te उपवासंन HN चवं हाद्शरिकवतो । चेरे मासि सिते पत्ते wrest मदनं हरिं ॥२॥. पूजयेद्‌ मुक्तिसुत्यर्थी.*) मदनडहादभोव्रतौ | MATS तु TTA भोमहादभिकव्रती ॥ र ॥ नमो AAW ala यजेदिष्छ ख स्वंभाक्‌। फाल्गने च. सिते we योविन्दहाद्भौब्रती ५ $ tt विषोकहादभौकारौ यजेदाश्वयुजे हरि । ` लवणं AWN तु HUAI यो नरः ॥ ५॥ ददाति शक्ताद्श्यां स सर्व्वरसदायकः | १ कीरिकोख्नुोमेति चऽ! ` ३ काय्य सवाषडारिकशोति we, २ ण्कादक्षाखणि waft wo, we अ० च । | च| earqarafradfae> ` ४ मृ्खमुह्या्मिति we, we a! ( as) Aes ` अभ्निपुदाखे 1१८८ अष्यायः। WAS Yate भादरं गोवत्‌सहादभीत्रती ५ & | | माष्यान्तु समतोतायां वणेन तु संयुता | हादशो या भवेत्‌ Wear wrt सा तिलदादरभोौ॥ 91 तिलैः खा नन्िले्होनो नैबेद्यन्तिलिमोदक | | Soa तिलतैेन तथा Ba तिलोदकं ॥ ८ ॥ faara देया fara? फलं होमोपवासतः | ओं नमो भगवतेऽ्ोः वाखदेवाय वे यजेत्‌ ॥ ८.॥ सकुलः स्वर्गमाप्नोति षटतिलदादभोव्रतौ | मनोरथदादशोक्षत्‌ फालगने तु सिते ऽशवभेत्‌ ॥ १८ it नामहादनीव्रतक्लत्‌ ATTA नामभिः | वर्षं यजे्रि स्वर्गो न भवेन्‌ नारको AT: ११॥ फाल गुनस्य सितेऽभ्यज्चय सुमतिदहाद गोत्रतो | मासि भाद्रपदे शक्तः भरनन्तदादटयोत्रतौ(९) ॥ १२॥ श्रश्चेषस्षतु we वा(९) माधे कष्णाय व Aa: | यजेन्तिलांख जुहयात्तिलदादशोक्वबरः ॥ १३ ॥ सुगतिदादशोकारौ फाल्गुने तु सिति यजेत्‌ । ` जय ay नमस्तुभ्यं वषे स्याद्‌ भुक्किसुक्तिगः(२) ॥ १४ ॥! area तु हादश्यां सम्प्रािदहादभोव्रतो | | इत्याग्नेये मशापुराणे नानादादभोव्रतानि नामाष्टाशोत्य- धिकशततमोऽध्यायः ` ९ भनौरथदादशोत्थादिः, wrugrestt wo, coq! व्रतौत्यकः पाठ" Go THs मालि | ३ वषं we.ufweatac एति २ अखाषाड्देतु TT tft |, ae, me Wo TY अयेकोननवत्यधिकशततमोऽध्यायः। अवणशाद शौव्रतम्‌ । अग्निर्वा | अव णादयो वश्य मासि भाद्रपदे सिते + ` अक्णेन युता S(t) महतौ सा छ पोषिता ५१॥ सङ्गमे सरितां जञा नाच्छवण्दादशो फलं(:) | बृधवणसंयुक्षा दानादौ सुमहाफला ॥ २ ॥ निषिडमपि कन्तव्यन्नयोदश्यान्तु पारणं | दादश्याख्च निराषारो.वामनं YATE ॥ २. ॥ SHEN QUANTA पारणं + श्रावाहयाम्ब्धं विष्णुः वामनं शङ्घक्रिणं ॥ ४ ॥ सितवस्त्रयुगच्छस्रे घटे सच्छत्रपादुके. ` ` खापयाभि जलेः शदेविष्णु(रोपञ्चामतादिभिः॥ ५॥ छतदर्डधरं विष्णु वामनाय नमो नमः । ser ददामि Tan भर्ध्याहायः सदार्विंतः(*) we ॥ सुकिसुक्षिप्रजाकौ्तिंसरवेखग्धयुतं कुर्‌ । ` , वामनाय नमो गन्धं होमोऽनेनाटवा शतं von { १९ अवशेन समायुक्तेति घ०। Yo, Fo, ०, Bo a | - -२-इाद्दादष्तोफंरमिति To, To, wee eha fa Hi,zoet ` । ` `. ` मदाचिंतद्ति। ग, RRe परम्निपुराणे ` [१८८ अध्यायः | wt नमो वासुदेवाय धिरः aerate: | BUS AS तदत्‌ WS छष्डाय वे नभः ॥ ८ ॥ AMANITA वक्षो भुजो सवास्त्रधारिखे | व्यापकाय नमो नाभि वामनाय नमः कटि we i वेलोक्धजयकामेति(\) HS AG यजे्रेः | सर्व्वाधिपतये पादौ विष्णोः सर्व्वाकने aa: ॥ १०॥ छतपक्षश्च नेवैच्यग्टवयाद्‌ दष्योदनैषटान्‌। दातो च जागरं कतवा प्रातः ज्ञात्वा च GET ॥ ११॥ गन्धपुष्पादिभिः पूज्य वदेत्‌ पुष्पाच्नलिस्विद्‌ | नमो नमस्ते गोविन्द बध दणसलन्जित ॥ १२॥ TRATES लला सवसौख्यप्रदो भव । प्रौयतान्देव Vay मम frarqarea ॥ १३॥ वामनो बहिदो दाता द्रव्यस्थो वामनः खयं । ` वामनः प्रतिग्डह्ाति वामनोभे ददातिच।.१४॥ द्रव्यस्थो वामनो नित्य वामनाय नमो aa: | प्रदत्तदचचिशो विप्रान्‌ सन्भोज्यान्रं खयच्चरेत्‌ ॥ ey nt [ „^ इत्यामेये महापुराणे खवशादशीव्रतं नामेकोनबव- त्यधिकशततमोऽष्यायः ॥ & च ोक्षजगनायेति कर, अ" च । चे रोक्जनकायेति wo, २८० अ! | WE BCAA AST: । ` Ow! © THBWMSTMNAT | श्रम्निरवाच | भरखच्डदादभीं वच्य व्रतसम्पृणताक्तत | मार्गो सित fang दादभ्यां समुपोषितः ॥ १.॥ पञ्च गव्यजले खातो यजेत्ततप्रा्नो AAT | यवत्रौद्ियुतम्पावग्धादश्यां fe दिजेऽपयेत्‌ ॥ २ ॥ सप्तजन्मनि यत्‌ किञ्िग्मया खण्ड व्रत क्त । भगवंस्त्वत्‌प्रसादेन तदखण्डमिदहास्त मे| २॥ | यथाऽखर्डं जगत्‌ We त्वभेव पुरुषोत्तम । तथाखिलान्यखर्छानि व्रतानि मम सन्तु वे ॥ ४॥ एवभेवानुमासंञ्च agate विधिः स्मतः | अन्यश्च ादिमासेषु शक्षपात्राणि(*) चापयेत्‌॥ ५॥ अवशादिषु चारभ्य काञिकान्तषु पारणं | ` खषलजग्भसु Feel व्रतानां सफलं कते ॥ ७॥ | रायुरारोम्यसोभाग्बराज्यभोगादिमाभ्र, यात्‌(र) । इत्याग्नेये महापुराणे अखर्डदहादशोव्रतं नाम नवत्य- | धिकशततमोऽध्यायः ॥ - २ खरपावाखिद्ति खर, घ०,जन्च। दिः, crenitarfcarmarfcarn: २ खथिस्वाच | CUTE CH वच्टोदत्या- पाठः wo TUS fa | अथेकमवत्यभिकशततमोऽध्यायः। ee 0 कय ep"e रयोद्गोव॒तानि 1: अग्निरुवाच । वयोद शोव्रतानौड सर्वदानि वदामि ते.। अनङ्गेन कृतामादौ AWSAPFAMNTAT ॥ १॥ चयोदश्यां anita wary हर यजेत्‌(र) | मध THAI इतदहोमस्तिलान्तते; ॥ २ ॥ . पौषे योगेश्वरं प्राच्य चन्दनाशौ कताइतिः । महेश्वर मौक्तिकाशोौ माघेऽभ्यश्चय दिवं व्रजेत्‌ ॥ २ ॥ काकोलं प्राश्य नोरं तु(\) फालगुने पूजयेहतौ | कपुंराशौ खरूपं च चेतरे सौभाग्यवान्‌ भरेत्‌ ॥ ४ ॥ महारूपन्तु वैशाखे यजेव्ञातीफरलाश्यपि | way च्येष्ठदिने(र) प्रदय्् पूजयेद्‌ ब्रती. ॥ ५॥ तिलोदाशौ तथाषाढे उमाभत्तारमश्च येत्‌ | आरावे गनखतोयाशौ FHA AIT खिनम्‌ ॥ € ॥ सव्योजातं भाद्रपदे प्राशिता गुरुमच्चयेत्‌ | - सुवणंवारि सप्राश्य भ्राख्िने विदथाधिपम्‌ ॥-७॥ ` ९ दरि anata ge, M0, अन्व । द्‌ BATH इति Ao, He, ङ, जर, २ काकोलंप्राश्चीनच्चति qo, Mo, We, म, च। We, Ho, WI | [१२२ meas ` चतुरेभोव्रतकधनं ॥ AVR farnat कालिके तु मदनाभौ यजे तो | शिवं हेमन्तु वर्षान्ते सब्डाास्दरदलेन तु॥ ८। वस्त्रेण पूजयिला तु ददयाद्दिप्राय गान्तथा | शयनञ्छत्रकलशान्‌ पादुकारसभाजनम्‌ ॥ < ॥ चयोदध्यां सिते चतरे रतिप्रोतियुतं स्मरन्‌ | अशणोकाख्य नगं लिख्य. सिन्दूररजनोमुखेः ॥ १० ॥ शष्ट यजेत्त कामां कामत्योदभीवतम्‌। ` इत्याग्नेये महापुराणे adie व्रतानि नामेकनवत्य- धिकशततमोऽध्यायः॥ SD खथ दिनवत्यधिकशततमोऽध्यायः। काय or eee os” @ चतुद भौत्रतानि । अग्निरुवाच | व्रतं वच्छे चतुदश्यां सुक्षिमुद्धि प्रदायकम्‌() | कात्तिंके तु चतुष्श्यां निराहारो यजेच्छिवम्‌ ye वर्ष्मोगधनायुखान्‌(र) gaq भिवचतुरहशौम्‌ | anise सितेऽष्टम्यां ठते यायां मुनिव्रतः ॥ २। . १ भुक्तिमुक्तिदं wa इति ख०, घ०। भृक्तिमुक्ितुखभदमिति Go | Ho, भजर, टनव । ` ९ मोगबलायप्मानिति wey ` २२४ पमिनिचुगाणे [१८२ अध्यायः. । RISA al AHEM फलाष्टारो यजेत्‌ सुर (९) । व्यक्ञा.फलानि दद्यात्‌ Fay फल चतुरो ॥ २॥ तुदा Ware Tee: Waray: | TAA UIA ea खब्डंभवचतुदंशौ ॥ ४॥ लष्णाष्टम्बान्तु नक्तेन तथा कष्कचतुदभौ' | इ भोगानवापोति परत्र च शभाङ्तिं ॥ ५॥ कातिके च चतुर्दश्यां क्षायां जानकत्‌ सुखो | श्राराधिते महेन्द्र तु ध्वजाकारासु afey(®) Neu ततः शक्तचतुदश्यामनन्तं THANE । कुत्वादभमयं चैव वारिधानो समन्वितं ॥ ७॥ wifes पिष्टस्य पूपनान्नः कतस्य च। अ" विप्राय दातव्यमशैमामनि योजयेत्‌(९) ॥ ८ ॥ कत्तव्य सरितां चान्ते कथां कला(*) हरेरिति । ` भरनन्तर सागप्रहाश्दरे मग्नान्‌ समभ्य्र वासुदेव ॥ ९ ॥ श्रनन्तर्ूपे विनिथोजयसव अनन्तरूपाय नमो नमस्ते | अनेन पूजयित्वाथ Ga बहा तु. मन्तितं॥ १०॥ स्वके कारे वा AG at लनन्तव्रतकूत्‌ सुखौ | TUM AGU नानाषतुदेगौव्रतानि नाम हिन- वल्यधिकशततमोऽच्यायः ॥ १ जेत्‌ खयभिति go; a मोखनभिति wo, wo, ज ° वषे भोगधनयुश्भानित्यादिः ष्वजाकाराश् भर, Ho, ze, च| यटटिष्‌ द्गः पाठः we Gee wife! * कथांज॒लतिश०। , अथ चिनवल्यबिकशततमोऽध्यायः+ 0) अ ए) कमक ® शवक © शिवराजित्रतम्‌। श्रग्निरवाच | शिवराचित्रतं वच्छे भुक्तिमुक्तिप्रद ण() । माघफाल्‌गनयोशष्ये RUT या तु चतुद्णौ ॥ १॥ कामयुक्ता तु सोपोष्या कुवन्‌ जागरणं वृतो | शिवराजिव्रतं wa चतुर्दश्यामभोजनं ॥ २ ॥ राजरिजागरशेनेव पूजयामि शिवं ब्रती । आवाहयाम्यहं wal मुक्तिमुक्तिप्रदायकं ॥ ३ ॥ नरकार्णवकोत्तारनावं शिव नमोऽस्त ते) नमः शिवाय शान्ताय प्रजाराच्यादिदाथिने॥४ 1 सोभाग्यारोग्धविद्ायेस्वगमाग प्रदायिने(र)। wipets धनन्देह्धि कामभोगादि ४६ मे॥५॥ शुखंकौ्तिसुखं Sf at मोचं च 2. मे । लब्धकः UAT FA पापी सुन्दरसेनकः ॥ ६ ॥ इत्याग्नेये मदापुराखे निवराजितव्रतं माम जिनवत्यधि- कशततमोऽध्यायः। णी म नीषि १९ भङ्िसक्तिपद्‌यकमिति we, यर च। र छमेनोचप्रदायिने दति ee | ( २९ ) अथ चतुनवल्यभिकशततमोऽध्यायः। अशोकपूणिमोदिव्रसं | अग्निर्वाच। भरभोकपूणिमां वच्छे भूधरं च भुवं यजेत्‌ 1 फाल्‌गुन्धां सितपश्चायां वषः स्याडक्तिसुक्तिभाक्‌ nee Raa SHA WaT नक्त' समाचरेत्‌ । ` शेवं पदमवाप्नोति हषव्रतमिद्‌ परं । २॥ faart यामावसौ तस्यां पिढणशं cua | उपोष्याब्द' पिटठनिष्टा निष्पापः खगमाग्रयात्‌ ॥ ३ ॥ Wasa च माघस्य पूज्याजं सब्वमाप्रयात्‌ | वश्ये साविच्रामावास्याश्यक्तिमुद्धिकरो gat ie ॥ पञ्चदश्यां व्रतो sas वटमले महासतो | विराचोपेल्िता नारौ सपधान्ये"ः प्रपूजयेत्‌ ॥ yt प्ररूढः कण्ठखुच्रंख रजन्यां कुङ्मादिभिः। वटावलम्बम क्त्वा TAMA प्रभातके ।। ६ ॥ ` नमः साविवरै सत्यवते AR बापयेद्‌ हिज । Gan गत्वा दिजान्‌ भोज्य खयं qa विसस्लयेत्‌ ॥७ ॥ सावित्रौ प्रीयतां शेव सोभाग्यादिकमाग्रयात्‌ | cara महापुराख तिधित्रतानि नाम चतुर्नवत्यधि- कश्ततमोऽध्यायः ॥ अथ पश्चनवल्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ emo 9 = क ou @ वारव्रतानि। | अग्बिरूवाच । वारव्रतानि वच्यामि yfaafarertir fe r कार पुनव्वैसुः GAT खाने TAT शभा ॥ १ ॥ खाङ्धो चादित्यवारे तु सप्तजग्भरस्वरो गभाक्‌। TEM चथवारो यः सोऽकंस्य हृदयः इभः ॥*२॥ कुला CS AAA नक्ते नाब्दं स AAA | कि्राभसोमवाराखि सप्त HAT सुखो भवेत्‌ । ३ ॥ स्वात्यां wear चाङ्गारं सप्तनक्यात्ति जितः | विशाखायां बंधं wu सप्तनक्तौ ग्रह्ात्तिुत्‌ ॥ ४ ॥ अनुराधे देवगुरु" सप्तमक्लौ ग्रहात्तिनुत्‌(\) | शक्र ETS MEW सप्तनलौ ग्रहात्तिलत्‌ | ५॥ भले शनेर ख ज्ञ ANAM ग्रात्तिलुत्‌ | इत्याग्नेये म्ापुराे वारव्रतानि नाम पञ्चनवत्यधि- कशततमोऽष्यायः॥ १९ अभुरापे arf: प्हानिरदित्यनतः पाठः भ° Yee भारि | अथ पणवत्यधिकश्ततमोऽष्ायः। नच्चज्रव्रतानि। अमिनिङ्वाच । नच्व्रब्रतकं वच्चे भे इरिः पूजितोऽधंदः(९) | नश्चतपुरषं चादौ चेव्रमासे हरिं यजेत्‌ ॥ १॥ मुले पादो यजेव्शवे रोहि णो खच्च येरि | ` ` जानुनौ चाश्विनोयोगे भ्राषाठासूरुसञन्नके ॥ २॥ ae पूर्व्वो त्तराखेव कटि वे कत्तिका च । ga भाद्रपदाभ्यान्तु Brest वे रेवतोषु च ॥३॥ wal चैवानुराधासु धनिष्ठासु च wsa! शुनो eat विशाखासु युनर्ववस््रङ्लोयंसेत्‌ ॥ ४ ॥ TANG नखान्‌ पूज्य WE ज्येष्ठासु पूजयेत्‌ | ओजं विष्णोख wat मुख ge wis ॥ ५१ यजेत्‌ खातिषु दन्ताग्रमास्य' वारुषतीऽचंयेत्‌। ` मघासु नासां नयने BANG ललाटकं। ६॥ Fay Waly कचानब्दान्ते Waa ee ` गु पूणं घटेऽभ्यच्य शय्यागो्थादि दक्तिणा(र) 94 aaagen विष्णु. पूजनोयः शिवालमकः | १ हरिः ois एजित दृति ao | भय्यागेद्रादि दिखा इतिषर, जर, x श्य्यागोखादि दथिशाद्ति we, coq) weg | शय्याधेन्वादि Efrat इति Fc | (१८६ अध्यायः | नश्षचव्रतकधन | २२९ शाग्भवायनौोयत्रतकक्मासमे पूजयेदरिं ॥ ८ ॥ कात्तिक कत्तिका च BAG सृगास्यके | नामभिः केणवादयेस्त॒ अखताय नमोऽपि वा ॥ < ॥ afta क्िकाभेऽहि मासनत्तचगं हरि । शाश्मवायनोयत्रतकं करिष्य भुक्तिमुक्तिदं ॥ १० ॥ केणवादि महामूत्तिं मच्युतं सव्व दायक (९) | ्रावाहयाम्यडृन्देवमायुरारोम्यर्वाददं ।॥ ११॥ का्तिंकादौ सकासारमन्र(र) मासचतुष्टयं (र) । फाल्गुनादौ च कुशरमाषाढादौ च पायसं ॥ १२॥ देवाय ब्राह्मणेभ्यश्च नहञत्रेवेदयमाशयेत्‌(*) | ` पञ्च गव्यजलेच्रा तस्तस्येव प्राणनाच्छ चिः ॥ १३॥ अवी ग्बिसजंनाद्‌ द्रव्य नैवेद्यं सर्वसु्ते | विसर्जिते aaa fatrerrafa च्षणात्‌ ॥ १६ ॥ नमो नमस्तेऽच्येत म तयोस्त | पापस्य afe ससुपेतु ye ष्व वित्तादि सदाऽक्षयं भे (५) यश्च मा सन्ततिरभ्यपेतु ॥ १५॥ यथाच्तस्त्वम्बरतः परस्तात्‌ स ब्रह्मभूतः परतः परान्‌ | ९ सर्व्वपापरमिति 0, ५ नक्तं मैवेखमप॑येदिति we: ९ खव्यछठारमन्नमभिति Go, Ae, घर,च। ५ रञ्वध्येविक्तादि मशोदयं| मे इति २ मासचतुष्टकमिति qo, भा० | २१० अभ्निपुराणो [ree ware: तथाश्थतं तं कुर afsad मे मया कतम्पापडराप्रमेय ।। eg tt अरच्यतानन्द्‌ गोविन्द wate यदभौष्ठितं। WAI माममेयात्मन्‌ कुरुष्व पुरुषोत्तम I! १७ et सप Tae aaron सुक्तिमुक्िमवाग्न यात | अनन्तत्रतमाख्यास्य नखतव्रतकथयद (५) । १८ ॥ arate खगथिरे मोमूाशो यजेचरि | अनन्तं सवंकामानामनन्तो भगवान्‌ फलं॥ Ve tt ददटात्यमन्तश् प॒नस्सदे वान्यत्र wala अनन्तपुन्योपचयद्ुःरोत्ये तब्महाव्रतं ॥ २० ॥ यथाभिलपितप्रासिं करोत्व्लथमेव च | पादादि पूज्य नक्ते तु सुखखोया्तेलवजिंतं ॥ २१॥ ` छते नानन्तसुद्िण्य wat मासचतुष्टयं | चेचादो लिना eta: पयसा खावशादिषु ॥ २२॥ मान्धाताभूद्‌ युवनाश्वादनन्तव्रतकात्‌ सुतः । इत्याग्नेये महापुराणे नकत्रवतकानि नाम षवत्य- भिकशततमोऽध्यायः ॥ ९ मववत्रतक।मर्रमिति Wo, Ao, Boy नचतव्रतक;त्रदभिति वर Go, Se FI अथ सब्रनवल्यधिकश्ततमोऽध्यायः। eee) feawaarfa | अग्निरुवाच | दि वसव्रतक वश्ये met धेनुव्रतं वर्‌ । यद्लोभयसुखोन्दद्यात्‌ प्रथूतक नकान्वितां ॥ १ ॥ दिनं षयोव्रतस्तिष्ठेत्‌ स यात्ति परमम्पदं | जदं पयोत्रत क्तवा ाश्चनं कल्यपादपं ॥ २॥ दत्वा ब्रह्मपदं याति TIAA खतं । दद्यादिंयत्‌ पलादृद (९) ata तु काञ्चनो ॥ २॥ दिनं पयोव्रतस्िषठेदुद्रगः स्यादिवावृती। we ay चिराव्रन्तु भक्ते नेकेन यः चपेत्‌(९) ॥ ४ ॥ faga धनमाप्नोति जिराव्वुतक्षदिन। मासे मासे जिरात्राशो एकभक्गो गखे्तां ॥ ५॥ यख्िराचवुतं(२) Gara wafer जनादन | कुलानां शतमादाय स याति भवनं इरेः ॥ ६ Il नवम्याञ्च सिते पत्ते नरो मागंशिरस्यथ(*) ! प्रारभत रिरात्राणां gay विधिवद्‌ वृतौ ॥ ७॥ ९ दद्यात्‌ विशत्पललादूडमितिच० अण०्च। Mo, So | द ufacranrganfats ao, wo, Ho, र चिपेदिति do, qo, Go, wo, ४ ataface चेति Ge, घ, Ho, Ho RRR परभ्निपुराणे [१९७ अध्यायः। शर नमो वासुदेवाय aKa वा णतं जपेत्‌ | श्रटम्यामेकभक्षाभ्न दिनव्रयसुपावसेत्‌ ॥ ८॥ दादश्यां पूजयेद्‌ विष्णुः कात्तिक कारयेद्‌ व्रतं | विप्रान्‌ सश्भोज्य वस्ताणि शयनान्यासनानि ॥€॥ तोपवोतपाताणि ददेत्‌ सम्ब्राघेयेहिजान्‌ । त्रतेऽस्मिन्‌ दुष्करे चापि विकलं यदभूखम॥ १०॥ भवद्विस्दनुन्नातं परिपूशेः wafafa | भुकभोगो व्रजेद्‌ fay’ विंरातत्रतकत्रतो(\) ॥११॥ कार्िंक॑त्रतकं वच्छ भुक्तिसुचरिप्रदायकां | SUA पञ्चगव्याशो एकादष्यासुपोषितः tt १२॥ कार्तिकस्य सितेऽभ्य खं(९) किच्णु' टेवविमानगः | चेच चिरात्र' नक्तागोः अजापच्चप्रदः सुखी ॥ १३२॥ चिरा पयसः पानसुपवासपर सूह | षष्ठादि कार्तिके शक्त HR WISE उच्यते । १४ ॥ परचरात्रं पयः Mat Taree छयुपीषितः | एकादश्यां काल्तिके त ak भास्करो थदः। ९) ॥१५॥ यवागू यावकं शाक्त द्धि att wa जलं । पश्चभ्यादि सिते Te कच्छः गा न्तपनः HA । १६॥ इत्याग्नेये महापुराणे दिवसत्रतानि नाम सप्तनवत्यधि- कशततमोऽध्यायः॥ १ जिराज्रश्षतकत्रतो दूति ख०, घण, अ च। Co, Ee, Ho, Ho च । facramareg त्रतो दति eo | ३ wrectsaz इति qo, ae, ९ afin सिते are efx Wo, Ao, Ie, Go, Ho, Fo अथाष्टनवल्यधिकश्रततमोऽध्यायः। मासव्रतानि। अग्निरवाच। मासव्रतकमाख्याखये भुक्तिसुक्गिप्रदायक। आष्राढादिचतुमासमभ्यद्ग वजयेत्‌ WaT: ॥ १ ॥ शाखे पुष्पलवणन्त्यक्ञा गोदो AAT भेत्‌ | गोदो मासोपवासौ च(९) भौोमव्रतकरो इरि*(९) ॥२॥ भाषाढादिचतुश्मासं प्रातःज्ञायौ च विष्णुगः, माघे मास्यथ चैते वा गुडधेनुप्रदो भवेत्‌ ॥ २॥ गंडव्रतस्ततौयायां MoT: स्याकहात्रतौ । मागं भौषादिमासेष नक्तकदिष्णुलोकभाक्‌ ॥ ४ ॥ एकभक्त्रतौ तदद्‌ हाद शौव्रतकं पुधक्‌ (२) t फलव्रती चतुश्ासं फल त्यक्ता प्रदापयेत्‌ ॥ ५॥ खावणादिचतुर्मासं aa: सव्व लभेहतौ । श्राषाटस्य सिते पक्त एकादश्यामुपोषितः ॥ & ॥ चातु मोस्यत्रतानान्तु gata परिकल्पनं । STATI WE RAN कक्टस्य(*) इरि यजेत्‌ ॥ ॐ ॥ इद्‌ व्रतं मया देव Weld पुरतस्वव | १ भासे यवाध्ौ चेति ख°। 2 इाटदशोव्रतकं परमिति Go | ९ भोमव्रतपते इरिरिति we । ४ खाषाडां Cree MING ककटे चेति भर । ( ge ) २१४ अग्निपुराण [१९८ अध्यायः निर्विश्नां सिदिमायात्‌ प्रसन्ने तयि केशव ॥ = ॥ ग्ट होतेऽख्िन्‌ aa देव cage faa ae । तख भवतु सम्पण ततप्रसादाव्जनादेन ॥९॥ मांसादि aa’) विप्रः खात्तेलत्यामौ इरि यजेत्‌। रकान्तरोपवासो च rare’ विष्णुलोकभाक॥ १०॥ चान्द्रायण विष्णुलोको mat स्यान्‌ सुक्गिभाजनं | प्राजापत्यत्रतौ AM शक्तुयावकभक्षकः ॥ ११॥ खुग्धाद्ाहारवान्‌ SA पञ्चगव्यास्वसुक्तया | शाकमलफलाद्ारौ नरो विष्णुपरौं ्रजेत्‌(९) ॥ १२॥ मां सवर्व्नी यवाहार रसवर्व्ी हरिं व्रजेत्‌ । कोमुदव्रतमाख्यास्मे Bhat समुपोषितः ।॥ १२॥ दाद्श्यां पूजयेदिष्णु प्रलिप्यानोत्पलादिभिः। waa तिलतलेन दोपनैवेद्मपयेत्‌ ॥ १४ ॥ Sr नमो वासुदेवाय मालत्या मालया यजेत्‌ । धर्धकामार्थमो चंच प्राप्रयात्‌ ASAT ॥ १५॥ सव्व aa प्राच्यं मासोपवासकव्रती | इत्याग्नेये महाप॒राणे मासवतानि नाम अषटटनवत्यधि- कशततमोऽध्यायः॥ किल जहका) eee १ wienf< ta ति We, Fo, Ro F| रे विब्पुर व्रजेदिति qo, | WAT A तु इति we | zoe] अयेकोनशताधिकशततमोऽध्यायः । ® नानाव्रतानि । अम्निरुवाच। ऋतुव्रतान्यह व्ये मुक्तिमुक्किप्रदानिते! इन्धनानि तु यो दद्यादषोदिचतुरो wag ॥ १ ॥ एतधेनुप्रदखान्ते ब्राद्मणोऽभ्निव्रतो भवेत्‌ । कलवा मोनन्तु सथ्याथां मासान्ते CARATS! ॥ २॥ तिलघण्टावस््नदाता gel सारसतव्रतो(*) । पञ्चातेन पनं RATS धेनुदो AB ॥ ३। एकादश्यान्तु ANIM चेतरे va निषेदयेत्‌ । हेम विष्णोः पदं याति मासान्ते विष्ण॒सद्ुतौ ॥ ४ ॥ पायसा शो गोयुगदः योभाग्देवोत्रतौ भवेत्‌। निवेद्य पितुदेवेभ्यो यो yew स भवेत्प: ty It वषत्रतानि चोक्लानि() warfare वदे 1 ` सङ क्रान्तौ खगेलोकौ स्वाद्रात्रिजागर णाब्नरः ॥ ६ ॥ अमावास्यां तु BETA शिवाक्षयजनासषथा। उत्तरे त्वयने चाज्यप्रस्यस्रानेन केशवे ॥ ७ ॥ १ सुधीः सारखतव्रतो इति Go, ग०, २ सवंत्रतानि वोक्ञा मीति खर we, Ho, Ro, zo च। wo a | | २३२६ अग्निपुराणे [२०१ अध्यायः | दाजिंशतपलमानेन सवपापः WAT | इतच्चौरादिना ara प्राप्नोति विषुवादिषु uc सौोणासुमाव्रतं ओद ढतौयाखशटमोष च्व । गौरी महेश्वरं चापि यजेत्‌ सोभाग्यमाभ्रयात्‌ ॥ ९ ॥ उमामहेश्वरौ प्राश्य अवियोगादि चाप्र यात्‌ । AGATA खौ च उमेशत्रतकारिशो ॥ १० ॥ a Sarat F AT नारौ Wa सा पुरुषो भवेत्‌ । इत्याग्नेये मशापुराशे नानाव्रतानि नाम एकोनशता- धिकशततमोऽष्यायः॥ अथ दिश्ततमोऽध्यायः। दीपदानव्रतं | अग्निर्वा | दौपदानव्रत वच्य सुक्तिसुतिप्रदायक | देवदिजातिकण्डहे दौपदोऽब्द' स सव्वभाक्‌ ॥ १ ॥। चतुमौसं विष्णुलोकौ का्तिके सगलोक्यपि । दौपदानात्‌ परं नास्ति न भूत न भविष्यति॥२॥ AIATATTA ATTA ATT | Serra’ दोषदः प्राप्य खगलोके महोयते ॥ ३ ॥। विद्म राज्दुहिता ललिता दौपदामभाक। [२०० mee) दौपदानव्रतकधनं। २३२७ तार्धन्धच्छापपन्रौ शतभार्याधिकाऽभवत्‌ ॥ ४ ॥ ददौ Vaasa सा विष्णोरायतने सतो। ण््टासादौपमाहामः सपन्रोभ्य उवाच हइ ॥ ५॥' ललितोवाच | सोवौरराजस्य पुरा मेतरेयोऽभत्‌ परोहितः | तेन चायतनं विष्णोः कारितं देविकातटे ve ॥ कार्तिके टौपकस्तेन दत्तः सम्रेरितो मया। AHURA AAR AMC तदा भयात्‌ ॥ ७ ॥ निर्व्वा णवान्‌ प्रदोसोऽभ द्या मूषिकया तदा | मृता TAMA जाता TATA शताधिका॥र८॥ शरसष्ट्ल्ितमप्यख्य प्रेरण यत्‌ क्तं मया | विष्णायतनदौपस्य तस्येदं भुज्यते फल ॥ € ॥ जातिखयरा छतो दौपान्‌ प्रयच्छामि तवष्ट | एकादश्यां aaa वे विमाने दिवि मोदते ॥ १० it जायते दौपषत्ता तु मृको वा ज एव च । अन्धे तमसि दुष्पारे नरके पतते किल।॥ ११॥ विक्रोशमानांख्च नरान्‌ यमकिष्कर भ्राहतान्‌ | विलापेरलमनत्रापि किं वो विलपिते फलं ॥ १२ ॥ यदा प्रमादिभिः पूबंमत्यन्तससुपेचितः। जन्तुर्जअसहसरेभ्यो WAT मानुषो यदि ॥ १३ ॥ तव्राप्यतिविमढामा किं भोगानमिघावति। सहितं (\) विषयाखादेः क्रन्दनं तदिद्टागतं ॥ १४॥ ९ हितमिति खर; म च च । दूषितमिति ee | २३८ , अन्िपुराणे. [२०१ अध्यायः । भुज्यते च कतं पवमेतत्‌ fa वो न विन्तितं। परस्तोषु Hay Alaa Sas fe wa ey Ox a विषयाखादोऽनककोटयनव्ददुःखद्‌ः I" परस्त्रोहारियद्गोवं हा मातः fa विलप्यते ॥ १६॥ कोऽतिभारो starter जिह्वया परिकीत्तने | वत्त लेऽल्पम्‌ ल्येऽपि यदग्निलभ्यते सदा ॥ १७ ॥ AAMITMETE MT HAMS दुःखदं । cereal कि विलापेन wer यदुपागतं ॥ १८ ॥ अग्निरुवाच । ललितोक्तच्च ताः Tar दौपदानादिवं ay: | तस्मादोपप्रदानेन व्रतानामधिकं फलं ॥ १८९ ॥ इत्याग्नेये महापुराणे दौपदानव्रतं नाम दिशतत मोऽध्यायः ॥ अथेकाधिकदिशततमोऽध्यायः। ~ ----९<--°----- नवव्युहा्नं | अम्निरूवाच | नवब्यहा्चनं वच्य नारदाय हरौरितं। AWA SIA अवोजं वासुदेवकं ॥ १ Uh TAA सद्षएम्‌ Nae च दच्चिणे । (२०१ अध्यायः। नवद्यूहार्चनकधनं | २३९ शरः अनिर नेते ओं नारायणमप्व॒ च॥ २॥ तत्‌ स॒द्रह्मा णमनिले इ विष्णु" चौ कृसिं हकं(९) | उत्तरे HAUSE ELH हारि च पञ्चिमे ॥२॥ कंटंसंशंगरुमन्तं waaay द्िणे(९) | Seay फडितिच खटंफंशंगदां विधौ ॥ ४॥ GUA a कोणेशञ्च घंदं भं श्रियं यजेत्‌ | दत्तिणे चोत्तरे gfe wed a ates nw पोठस्य पिमे wa वनमालाच्च afea | WA WCE ASAT कौस्तभं wa li € ॥ दशमाङ्क्रमादिष्णोन मोऽनन्तमधोऽच्च येत | दशाङ्गादिमहेन्द्रादौन्‌ पूर्व्वादौ चतुरो घटान्‌ ॥ ७9 ॥ तोरणानि वितानं च रम्य निलेन्द्षौजकेः | AWA AANA तनुं वन्य ततः परवेत्‌ ॥ ८ ॥ श्रम्बरस्य ततो ध्यात्वा सृच्छरूपमघाकनः | सिताखते निमग्न ञ्च(५) चन्द्रविम्वात्‌ सुतेन च ॥ < ॥ तदेव चामनो बौजमम॒तं वसंस्कतं । उत्पदयमान पुरुषमामानमुपकल्ययेत ॥ १० ॥ उत्पन्नोऽसि खयं विष्णर्वीजं हाद शकं न्यसेत | इच्छिरस्त शिखा चेव कवचं चास्त्रमेव Th ११॥ वत्तोमूदशिखापुष्ठलोचनेषु न्यसेत युन Wa करय न्धस्य ततो दिव्यतनुभवैत्‌ ॥ १२॥ "षाय उष्य चो [| १ क्र, fry चों मखिंदकमिति 3 पिराजश्च दधिरे इति wo | खर Ko, Bo GF ३ सितासिते faamefa eo, ao q| २४० | अग्निपुराणे ` [२०२ MCAT: | qarata तथा देवे गिष्यदे हे न्यसेत्तथा । अनिग्धाल्या खता पजा यरः पजनं ददि ॥ १३२॥ सनिग्प्रील्या मण्डलादौ बहनेता ख शिष्यकाः | ge चिपेयुयन्‌मृ ततौ तख तच्राम कारयेत्‌ ॥ १४॥ faa वामतः भिष्वांस्तिलव्रौद्िष्टतं yaa | शतमष्टोत्तरं त्वा ACTS HATTA ॥ १५॥ AAAs मर््तोनामड्नां च शताधिकं | TUM रौचयेन्तान गुरुः पज्यख तेधनः ॥ १६ ॥ द्त्याम्नेये महा पुराणे नवव्यृष्टाञ्चनं नाम एकाधिक- दिशततमोऽध्यायः॥ अथ हयधिकदिशततमोऽध्यायः। पुष्याध्यायकथन । भग्निरुवाच | एष्पगन्धधूपरौपनेषेदयस्त्थते हरिः । पष्याणि देवयोग्यानि योग्यानि वदामिते ॥ १॥ IY AS मालतौ च तमालो भुक्गिसुक्तिमाम्‌ । मल्लिका सवेपापप्नौ य॒धिका विष्णुलोकदा ॥ २ ॥ भतिमुक्लमय तदत्‌ पाटला विष्णुलोकटा | [२०२ mata | पुष्पाध्यायकथनं, २४९ करवीरे विष्णुलोको जवापुष्येच पुण्यवान्‌ ॥ aii पावन्तोकुलकादये ख तगरविष्णुलोकभाक्‌ | कर्णिकारेविष्णुलोकः FIs पापनाशनं ॥ ४ it पद्म कतकोभिख कुन्द पुष्पः परा गतिः वाणपुष्यववं राभिः कछष्णाभिदरिलोकभाक॥ ५॥ अगोकस्तिवकस्तददररूषभवस्तथा | सुक्तिभागो विलपतः TATA: परा गतिः ॥ ६ ॥ विष्णुलोकी शक्कराजेस्तमालस्य दलेस्तघा | TAM कष्णगोराख्या कल्हारोत्पलकानि च ॥ 9 ti पद्यं कोकनद YA शतालमालया हरिः | नोपा्ुनकदग्बेच (९) AGHAST सुगन्धिभिः ॥ ८ ॥ किंश्केसनिषुष्यस्त गोकेन्रागक सं कैः | सन््यापुष्येविंलृतके रच्नोकेतकौभवेः(९) ॥ ९ ।। कुखाण्डतिमिरोत्यैख कुशकाशशरोडहवेः | सतादिभिमरुवकः Water: सुगन्धकः॥१०॥ ufagqia: पापहानिभक्या ara तुष्यति | auaatya ya माला कोटिगुणधिका। ee ti स्वनेऽन्यवने पुष्येस्िगुणं ars; फलं (१) । - विशौ नाचयेदिष्णुबाधिकाङ्ग्न मोटर; ॥ १९ tt काञ्चनारैस्तथीन्पत्तेमिरिकणिकथा तथा | १ मृक्तिभामी कदम्बेखति 2० । Wo, Wo, a0, च| ९ रञनौकेतकोभवैरिति ० । २ जलजेः फरमिति we | ( ३१ ) २४२ अग्निपुराणे [२०२ अध्यायः १ कुटजैः शास्मलोये खच(९) शिरीतैव्रकादिकं॥ १३॥ गत्र WaT a) qataferaree रि;(₹) । अकमन्दारधस्तरकुसुमे र चयते हरः ॥ १४ ॥ कुटजैः कक्॑टो एष्य : Rasta शिवे ददेत्‌ । कुष्मा णडनिम्ब सम्भर पेशाचं गन्धवजितं ॥ १५॥ अहिंसा इन्दरिथजयः(*) चान्तिज्नांन (५) दया खतं | A भावा्टपुष्य ‡ सम्बज्य देवान्‌ स्याद्‌ मुक्तिसुक्तिभाक्‌ ue ati श्रहिसा प्रथमं पष्य पुष्पमिन्दरि यनिग्रहः | wage दथा wa पष्प भान्तिविशिष्यतं ॥ pot शमः Fa तपः पुष्य ध्वान पुष्यं च सप्तम | सत्यच्चेवाष्टमं एष्यभेतेस्त्॒यति केशवः ॥ १८ ॥ एतैर वरषटभिः पुधयैस्तव्थलये वाधितो हरिः | सुष्यान्तराणि सन्त्र बाह्यानि मनुजोत्तम ॥ १२ ॥ wan zafaafay: पूजितः परितुष्यति(९) । चारण सलिलं gar सोभ्य. छतपयोदधि ॥२०॥ प्राजापत्यं तथाच्रादि आम्बेयं धुपदौपक | फलपुष्यादिकयैव वानस्पत्यन्तु पञ्चमं ॥ २१ ॥ पार्थिवं कुशमूल्य दं वायव्यं गन्धचन्दनं | १ भालाखिजेसेति ख०, ग ° अदिस इन्द्रियम इति ao | Go च | ` ५ च्रान्िदाममिति we | ₹ सुगन्धैः पचजपुष्येखति ० ६ Sea प्रथमं पुष्यमित्यादि्‌ः, पूजितः ९ ist नीलोत्प रिरिति परितुष्यति इत्यन्तः मादः Te, गर चर Wo, Ao, To, He च | ; Go, Ko, Ho, Ho, Zo Faas atte | [२०२ भ्रष्यायः। नरकस्वरूपकथन्‌ | २४३ अद्धाख्यं विष्णुपुष्यच्च सवदा चाष्टपुष्पिकाः ॥२२॥ आसनं मत्तिपञ्चाङ्ग (९) विष्वा चाष्टपुष्पिकाः | विष्णोस्‌ वाशदेवा दयेरोशानाव्यैः थिवस्य वा ॥ २२॥ इत्या नेये मद्यपुराख पुष्पाध्यायो नाम हयधिकदिश्तः तमोऽध्ययः Uh अथ चयधिकदिशततमोऽध्यायः॥ नरकस्वरूपम्‌ I अग्निरुवाच । पुष्याद्येः पूजनादिष्णोत्र याति नरकान्वर्‌ I आयुषोऽन्ते नरः प्रारेरनिच्छव्रपि gaa ug tt जलमग्निव्विषं wet सुदयाधिः पतनं गिरेः | निभित्तं किञ्चिदासाद्य SA प्रारेविसुच्यते ॥ २॥ ` अन्यच्छरोरमादत्तं Matta BHAA | YSAa WIA दुःखं सुखं धम्य सङ्गतः | ३ ॥ नौयतें यमदू तस्त यमं प्राणिभयङ्रेः | qua दक्तिणद्ारि धाम्मिकः पञ्चिमादिभिः॥ ४॥ amine: gta पात्यते नरकेषु च(र) | ९ aga मृत्तिषोडढाडमिति Go} पात्यते नरके सद्‌ा tfa eo! पोते २ पत्यते नरकष्नपिद्ति ae | नरकधनेति घ०, Re FI २४४ अग्निपुराणे [२०३ श्रध्यायः। aa तु नोयते wate वसिष्ठा दयक्तिसं चयात्‌ ॥ ५॥ मोघातौ तु महावौच्यां वषलचन्तु पौडयति | TARA महादोसे ब्रह्महा भूमिहारकः । ६ ॥ मदा प्रलयकं यावद्रौ रषे पौडाते शनेः | स्तोबालठदद्न्ता तु यावदिन्द्रा तुदं श ॥ ७ ॥ महारौरवके रौद्रे ग्टदचे तादिदौपकः। दषते HARA स चौरस्तामिखके पतेत्‌ ॥ ८॥ ARAM शूला भिं यते यमकिद्रः । महाताभिखके सपजलौका दौश्च wera ॥ et यावद्ूमिमोढाया असिपत्रवनेऽसिभिः(\) । नेककस्पन्तु नरके करम्मवालकाखु च ॥ १० ॥ येन दग्धो जनस्तत्र THA वालकादिभिः। काकोले कमिविष्ठाशी carat मिष्टभोजनः॥ ११॥ HEA मूचरक्ताशो पश्चयन्नक्रियोज्भितः | agua THUS भवेचाभच्यभकत्तकः ॥ १२ ॥ तेलपाके तु तिलवत्‌ Vera परपौडकः | तैलपाके तु पच्येत शरणागतघा तकः ॥ १३ ॥ निरुच्छासे दाननाभौ रसविक्रयकोऽध्वरे | ATA वजुकवाटेन महापाते तदाऽढृतो ॥ १४ ॥ महाज्वाले पापवद्िः क्रकचेऽगम्यगामिनः। , स्रो गुडपाके च (९) प्रतुेत्‌ परमन्नुत्‌ ॥ १५॥ १ असिपजवमेऽप्रिभिरिति Fe | ९ मरुपाकचेति Go, ae FI [२०१ अध्यायः। नरकस्वरूपकथन † | २४५६ aicse®) प्राणिहन्ता श्ुरधारे च भूमिडत्‌ | अम्बरीषे गोखण हृद दुमच्छिदज्‌ स्वके ॥ १६ tt मधहनत्तौ परौतापे कालसूत्र TUTTE | कश्मलेऽत्यन्तमांसाभौ उग्रगन्धे छ्यपिण्डदः १७।। et तु aaNet वन्दिग्राहरताख्चये । wae नरके ae sufas खतिनिन्दक : 1 १८ ॥ पूतिवक्त कूटसान्चौ wae धनापहा । बालस्त्रोदघातो च कराले awa sag ॥ ve ॥ विलेपे मद्यपो पिप्रो महाता तु Afea:(*) ॥२०॥ तथाक्रम्य पारदारान्‌ ज्वलन्तोमायसीं शिलां | शास्मलाख्ये तमालिङ्धन्‌ नारौ बहइनरङ्मा॥२१॥ श्रास्फोटजिन्नोदरणं स्तोचणान्‌ नेत्भेदन। WPM ्िप्यन्ते माटपुत्मादिगामिनः॥ २२ ॥ ` चौराः gta भिद्यन्ते खमांसाशौ च मांसभुक्‌ । मासोपवासकत्तीञे न याति नरकनत्ररः॥२२॥ एकादभौत्रतकरो MIATYRAS व्रतो | इत्याग्नेये महापुराणे नरकस्वरूपवणेनं नाम त्राधिक- दिशततमोऽध्यायः॥ १९ अरकपे इति ae, go a) २ मामेते तु भेदिन tfa खर, He, घर; Go, Ro, Bo FT | अथ चतुरधिकदिशततमोऽध्यायः ! © ~> eo a ge ae मासोपवासत्रत | अभ्निरुवाच। व्रतं मासोपवासश्च(९) watqae aetfa at करत्वा तु वेष्णवं यज्ञं गुरोरान्नामवाप्य.च।॥६॥ HB: BAS AT FTA मासोपवासकं॥ ~ वानप्रस्यो यतिर्वाथ नारौ at विधवा qa ure आश्िनस्यामले Te एकादश्यासपोषितः। व्रतमेतत्त, टह्नोयादयावच्धिंगदिनानितु॥ रे ॥ अदप्रभ॒त्यदं विष्णो यावदुत्थानकन्तव | अच्चयेत्वामनश्न्‌ हि यावत्‌ विंशहिनानितु॥४। कात्तिकाण्िनयोरवि्णोर्यवदुटथानकन्तव | fad ययन्तरालेऽदहं व्रतभद्ो न मे भषेत्‌ ॥५॥ तिकालं पूजयेदिष्णुः Fatah गन्धपुष्यकेः । विष्णोर्गीतादिकं जप्यख्यान gene व्रती नरः ॥ €॥ वथा वादम्परिरे दधा काडन््तां विवजयेत्‌(९) | नात्रतस्थं स्मशेत्‌ कश्चिहिकन्धखान्न चालपेत्‌ ॥ ७ ॥ १९ त्तं मासोपवासाष्डममिति घ ज० २ अत्राकाड्ां. विवजंयेदिति we, च| GoW) {२०४ Tati मासोपवासव्रतकघनं। २४७ देवतायतने तिष्ठे्ावत्‌ faufearfa तु दादण्यां gufaat तु भोजयिला दिजान्वृतौ ic a समाप्य efaqi sal पार णन्तु समाचरेत्‌ सुकतिसुक्तिमवाप्रोति कल्पा व तयोदश ॥ € ॥ ` कारयेदेष्णवं यश्च यजदिप्रांस्लयोदग | तावन्ति वस्रयुग्मानि भाजनान्यासनानि च॥१०॥ द्छवाणि सपवित्राणि तधोपानद्यगानि च(*) | योगपट्ोपवोतानि दद्याद्दिप्राय तेखतः(२) ॥ ११॥ अन्यविप्राय शय्यायां a विष्णुः प्रपूज्य च ! भावन AMARA वस्ताद प्रपूजयेत्‌ ॥ १२ ॥ सव्वंपापविनिसुक्तो विप्रो विष्णुप्रसादतः, विष्णुलोकं गमिष्यामि विष्णुरेव भवाम्यहं ॥ १२ ॥ व्रज ब्रज देवव विष्णोः स्थानमनामयं | विमानेनामलस्तत्र fate विष्ुखरूप्टक्‌ ॥ १४ ॥ दिजानुक्लाथ(*) तां शय्यां गुरवेऽथ निवेदयेत्‌ | कुलानां गतसुदचत्य विष्णुलोकन्रयेद्‌ sat ॥ १५॥ मासोपवासो TET स देशो frre भवेत्‌ | fa षनस्तत्कलं war यत मासोपवासक्तत्‌ ॥ १६ ॥ व्रतस्य मच्छितं Eur चौराज्यच्चेव पाययेत्‌ । नेते aa विनिघ्रन्ति हविर्विप्रानुमोदितं ॥ १७॥ १ .ततः पानयुलानि,चेति ख०। २ वेमत दूति ae | १ दिजान्‌ नलाथेति So | श्य अभ्निपुराणे [२०१५ अध्यायः । नरं ५ | । St गुरोहितोषध्व रापो मूलफलानि च AYR Hal व्रतमस्मात्‌ समुदरेत्‌ ॥ १८॥ TAMA महापुराणे मासोपवासव्रतं नाम चतुरधिकः दिशततमोऽध्यायः॥ अथ प्चाधिकरदिशततमोऽध्धायः। भोष्पञ्चकत्रतं | [प | © $ अग्निरुवाच । भोप्मपञ्चकमाख्यास्ये व्रतराजन्तु सवद | कात्तिकस्यामले पन्ते एकादश्यां समाचरेत्‌ ॥ १॥ दिनानि पञ्च ' विः ्ञायो पञ्च्रीहितिलेस्तथा(९) | तपथेहेवपित्रादौन्‌ मौनौ सम्पूजयेद्रि ॥ २॥ पञ्चगव्येन Tara देवं प्चाख्तेन च। > [] [क चन्दनाद्यः समालिप्य गुबगुल WATT ॥ ३॥ रोपं A o e eta carfearcrat नकेद्य' परमात्रकं। ओं नमो वासुदेवाय जपदषटोत्तर शतं ॥ ४ ॥ \ यवत्रोडहितिलैखयेति घर, ड», Re, Te च । [२ ०६ अध्यायः। अगख्याष्येदानकधनं | २४८ जडइयाच घु ताभ्यक्षांस्तिलब्रौहँ स्ततो व्रती | ASL AAT सखाहाकारान्वितेम च ॥ ५॥ कमसैः पूजयत्‌ पादौ Feta विख पचकैः | arg wate ठतौयेऽथ नाभिं भृङ्गरजेन तु ॥ ६ ॥ वाणविखधजवाभिस्त चतुथं प्चभेऽहनि | मालत्या भूमिशायौ स्यारेकादण्यान्तु गोमयं ॥ ७ ॥ गोमूत्रं दधि ga च पञ्चमे पञ्चगव्यकं | पौण मास्याश्वरेवक्ष भुक्तिः afr लभेद्‌ व्रतो ॥ ८ ॥ ata war इरि प्राघस्तेनेव (र) भोष्मपश्चकं | ब्रह्मणः पूजनायैख उपवासादिकं ब्रतं(२) ॥ < ॥ SAA महापुराणे भोकषपद्चकं माम पञ्चाधिकहिशत- तमोऽष्यायः ॥ eines a अथ षडधिकदिश्रततमोऽष्यायः। ~ १ ° | रगस्थाध्यदान कथन | अभनिरवाच । अगस्यो भगवान्विषणुस्तमभ्यर्प्र याहि | अप्राप्त भास्करे कन्धां सजिभागेस्तिभिर्दिनेः nex १ दरिं रेमे तेभेसदिति ग० | इरि eC ara तेमेतदिति Sot रि प्रा्णेने- Ao, Wo, Fo, जर, He, Ee मदिति So, Zo च। a1 ध ( ३२ ) ९६९ अम्निपुराशे [Rog भध्वाबः । अध्य" दयादगस्याय पूजयिला Wife: 1 काश्पुष्पम्ीं मूत्ति ware विन्धसेद्‌ घटे ॥ २॥ मुनेर्यजेसां कुम्भां TN Fang प्रजागर | भगस सुनिशादल AMT महामते(९) + १ + द्मां मम क्रतां पूजां wate प्रियया सड । | WATE च साख्यं प्रा्चयेश्चन्दमादिना ॥ ४॥ जलाशवस्मोपे तु प्रातर्भील्वार््वमपंयेत्‌। काशयपुष्यप्रतोकाश अग्निमादतसश्भव(र) ॥ ५॥ मित्रावरुखयोः पुव ङश्रयोने नमोऽस्त ते। आतापिर्मखितो थेन वातापिश्च मष्ासुरः # ६ ॥ समुद्रः शोषितो येन सोऽगस्यः सश्यखोऽस्त मे। अगस्ति" प्राधयिष्यामि कशा मनसा गिरा॥७॥ अशच्चयिस्याभ्यष मत्रं परलोकाभिकाङन्लया | होपान्तरसमुत्पन्र Sarat परम परिधं ॥ ८॥ राजानं सव्वहत्ताशां चन्दनं प्रतिष्छद्यतां(२) । ध्ार्धकाममोक्ताणां भाजनौ पापनाशन ॥<॥ MATA ATA पुष्पमाला प्रष्ष्यतां | Wise खद्तां देव भक्ति मै ्चलाष्ुरु॥ १०॥ शष्ठितं मे वर देहि परश्च च शभाङ्घति | सुरासुरेसुनिखेष्ठ सव्व कामफलप्रद ween १ तेजोराष TUPGH दरति Ao, Ho, २. afwurewawafe we | €0, Ho, Wo, Ho, SoG! तेणो- २ चन्दनं मे nzynfafa so, TIN Haran इति Go | So W| \ [२०६ अध्यावः। भगस्याष्यदानकथनं । ९४६ वस्त्रौ हिषदेहन्ा द त्तस्वर्ध्या ह्यं (९) मया | अगस्त्य बोधयिामि grat मनसोत (र) ॥ १२ ॥ wae प्रदास्यामि रहा णार्ष्य महासने | अगस्य एवं खनमानः खनिः प्रजामपत्यं बलमीदहमानः | CA कर्णाहषिरुग्रतेजाः पुपोष सत्या रैवेष्वाशिषो जगाम ॥१३॥ राजपुचि avers स निपति महाव्रते | शर्घ्यं were रेवैथि लोपासुद्रे यणखिनि॥ १४॥ वद्यरतव्रसमायुक्ष' रेमरुप्यसमन्वित | सप्तधान्धहत (९) पां दधिचन्दनसंयुतं ॥ १५ ॥ wet caterers शोण द्रा णा मवेदिकं | अगस्य सुनियादल तेजाराभे च सवद nee ll cat मम छर्ता पूजां ख्डोला व्रज शान्तये । त्यजेदगख्यसुदिश्य WAAR फलं रसं ॥ १७ ॥ Adie भोजयेदिप्राम्‌ छतपायसमोद कान्‌ | at वासांसि सुवणश्च(*) तेभ्यो care दक्षिणां ॥ १८॥ तपायंसयुङ्घेन पातेणाच्छादिताननं । ` सदहिरण्यस् तं gar त्राद्यणायोपंकख्पयेत्‌(*) ॥ १९ ॥ ९ दलस्य ऽस्य इति ee । ४ प्रतिमाश् हुव यद्धेति we | २ मनसेप्‌ सितमिति ae, घ, भर |! ५ त्रा्ायोपपादयेदिति चर Te, ` मनमेद्दिर्तमिति ॐ | Bo, खन्च। ३ सुप्रधान्बथनभिति qo! ॐ २५२ अभ्निपुंराशे ` [ २०७ श्रध्यायः। THANG TATA सव्वं सवेमवाघ् युः | नारो gata सोभाग्धं पति कन्धा कृपोद्धवं ॥ २८ ॥ इत्याग्नेये महापुराओे अरगस्या्यंदानव्रतं नाम षडधिक- दिशततमोऽध्यायः ॥ 7 अथ सक्नाधिकदिशततमोऽध्यायः। । e — @ oa कोसुद्रतं । अगिनिरुवाच | कोसुदास्य मयोक्षश्च चरे टाण्वयुजे सिते | हरिं यजेन्‌ मासमेकमेकादश्वासुपोषितः ॥ १ । आश्विमे शकपचेहमकाष्टारो रिं जपन्‌ । मासमेकं भुकतिसुक्यं करिष्य कौमुदं व्रतं ॥ २ ॥ उपोष्य विष्णु हादश्यां area विलिप्य च | चन्दनाशुरकाश्मौरैः कमलोतृपलपुष्ययीः ॥ २ a कर्हारैरव्वाघच मालत्या दौपं aaa वाग्यतः। QUT च ARS पायसापूपमोदकेः ॥.४॥ श्रं नमो वासुदेवाय विन्नाप्याष warez | 4 [२०८ gua | व्रतदानादिससु्चयकथनं | २५३ भोजनादि (९) fea दश्यायावद्‌ देवः परबहयते nee तावग्धासोपवासः स्यादधिकं फलमप्यतः | दत्याजेये महापुराणे कौभुदव्रतं नाम सप्ताधि कि ग- ततमोऽष्यायः॥ अथाष्टाधिकदिशततमोऽध्यायः। कक, @ ~~ शे ककण one व्रतदानादिससुश्चयः | अम्िरुवाच। aaeratfa arava प्रवदामि समासतः। तिथौ प्रतिपदादौ च स्यादौ afanrg ष ll et faqarel च मेषादौ काले च ्रहशादिकषे। यत्‌ काले थद्‌ व्रतं दान यद्‌ द्रव्यं नियमादि aq २॥ तद्‌ द्रव्याख्यच्च कालाख्यं सवं वे fayead | रवौ शव्रह्मल्छयादयाः(९) सवं विष्णोविभूतयः ॥ २ ॥ लमुदिष्य ad दानं पूजादि स्यात्त wad । जगत्पते समागच्छ शरासनं पाद्यमर्ध्यकं ॥ ४। मधुपक' तथाचामं खानं वस््श्च गन्धवा | १ भोजमाभिदति गम oq) २ रवौशग्द्यशो केशा इति ate | २५४ अम्बिपुराशे [२०८ अध्यायः | पष्य धप era aaente नमोऽस्तते ॥ ५॥ ति पूजाव्रते दामे दानवाक्ध समं AT | अद्यामुकसगोव्ाय विप्रायासुकशग्धरे tg tt एतद्‌ द्रव्य frayed सर्वेपापोपग्यान्धये | आयुरारोग्यहद्यय' सौभाग्यादिविहद्ये(?) ॥ ७ ॥ मोवसम्ततिदष्ार्थ' विजयाय धनाय च | धमय श्वर्यकामाय ततपापश्यमनाय च ॥ ८ ॥ संसारमुक्रये दानन्तुभ्यं सम्प्रददे WE | एतद्ानप्रतिष्ठाधथं' तुभ्यभेतद्‌ TATA ॥ < । एतिन प्रीयतां fae’ सब्बलोकपतिः प्रभुः | यश्चदानव्रतपते विद्याकौ्योदि देहि भे ॥ १० ॥ wraraaarata efe & मनरखेख्ित | यः पठे च्छणयाननित्य HAVTATHAS |! UK ॥ स प्राप्तकामो विमलो सुक्षिसुक्तिमवाप्र यात्‌ | तियिवार्सद्धान्तियीगमन्बार्दिकं व्रतं ॥ १२५ AR AHA aaa पजनाइवेत्‌ | इत्याग्नेये महापुराणे व्रतदानसमुश्चयो नाम श्र्टाधिक- | दिशततमोऽध्यायथः # | [~ १ सौमाम्भाय weed इति कर, He, ze च। सोभाग्धाय सुबडये इति Uo, जर, Fo च। अथ नवाधिकदिशततमोऽष्यायः। णमी [शष a’) oOo ara परिभाषा कथन | अग्निरुवाच । दानधन्भान्‌ waenfa भुकिसुतिप्रदान्‌ a | दानमिष्टं तघा पत्त we कुर्वन्‌ हि सर्वभाक्‌ ne वापोक्रपतडामानिः देवतायतनानि च | अवप्रदानमारामाः TH घले च सुखि ॥ २॥ faery तपः सत्य बेदानाच्ानु पालनं | अतिष्यः वेश्वदेव च प्राइरिषटख नाकदं ।॥ २॥ WHIT यष्टानं खयं स्क्रमखेखु ख । ` दादण्यादो च यद्दान qu ` तद्पि नाकदं ॥ ४॥ देथे काले च पान्न ख दानं कोटिगुणं भवेत्‌ | saa faga ge व्बतोपाते दिन खे ॥ ५॥ युगादिषु च USAMA चतुदश्ब्टमोषु च । सितपञ्चदगोसवेदादमोष्वषटकासुचख।॥ ९॥ यश्नोकवविबाहेषु तथा मन्बन्तरादिषु | वेते दृषटदुःखप्ने दरव्यत्राह्मणलाभतः ॥ ० ॥ खडा वा afea aa सदा वा दानमिष्यते | अयने द विषुवे हं चतसः षडशोतयः।। ८॥ चतस faquay सहायो इारगोत्तमाः | ५६ अग्निपुराणे [२०९ अध्यायः | कन्धायां मिथने मौने धरुष्यपि रवेगति+ ॥ < ॥ षड्भोतिमुखाः परोक्षाः षड़गोतिगुणाः we: | अतोतानागते Fea दे उदग्दिणायने ॥ १०॥ विंशत्‌ waza नादेया मकरे विंशतिः खाताः | वन्त माने तुलाभेषे नायस्तृभयतो SW ॥ ११॥ asta व्यतीतायां ष्टिसक्रास्त नाडिकाः। yaren विष्णुपद्याच्च प्राकपवादपि षोडश ॥ १२ ॥ चअवशाश्िधनिष्टास नागदेवतमस्तके | यदा स्याद्रविवारेख व्यतौपातः स उच्यते ।॥ १२ ॥ नवम्यां Wares कार्तिके निरगात्‌ कतं | तेता faawatarat Fare हायर युगं ॥ १४ 1 दं वे माघमासस्य Wie नभस्यके | HU कलिं विजानौयाज्‌ ज्ञेया मन्वन्तरादयः ॥ १५ ॥ अष्वयुकच्छक्रनवमौ CTEM कार्तिकं तथा | SAA चेव माघस्य तथा भाद्रपदस्य च ॥ १६॥ फाल्‌ गुनस्याप्यमावास्वा पौषस्येकादभौ तधा | श्राषादृस्यापि दशमी माघमासस्य सप्तमो ॥ १७॥ श्रावणे चाष्टमो AUT carats च पूणिमा । कार्तिके फाल्गुने तद्‌ व्ये पञ्चदशी तधा ॥ १८॥ उध्वं वेवाग्रहायस्धा weathers ईरिताः | अष्टकाख्या चाष्टमो स्यादासु(\) दानानि चाक्षयं ॥ een १ Baw fa Ao, घणलर,अण्च। [२०९ अध्यायः। दानपरिभाषाकथनं २५७ मयागष्गप्रयागादौ ata Saraarfey | अप्रार्चितानि दानानि facta’ कन्यका न fe il 20 II दद्यात्‌ पूवंमुखो दानं WRIATTUUYG! | श्रायुविवरेते दातुर्मश्ोतुः aaa न तत्‌ ॥ २१॥ नाम गोत्रं समुचाय सम्प्रदानस्य चामनः। सम्प्रदैयं प्रयच्छन्ति कन्धादाने पुनस्त्रयं ॥ २२ ॥ खालाभ्यश्चप व्याद्तिभिर्दयाद्ानन्तु सोदकं | कनकाश्चतिला नागा दासोरथमहोग्टहाः॥२१॥ कन्धा च कपिला धेमुमदहाङानानि वे दश | खत शोय तपःकन्धायाज्यथिष्यादुपागतं ॥ २४ # Ue धनं हि सकलं wen शिख्पामुहत्तितः | कुशोदक्षषिवाणिन्यप्राघ' यदुपकारतः ॥ २५॥ पाशकद्य तचोधादिप्रतिरूपकसाहसेः | व्याजेनोपाजितं ace विविधं चिविधं फलं tl २९॥ श्रष्यन्यध्यावाहमिक दत्तश्च प्रतिक | | भ्नाढमाढपिदढप्रा्त' षडविधं स्रीधनं aa) ॥ २७ ॥ बरह्म ्रविगां ^ 0 क देवाग्रे चाच Hay wafers वै ददेत्‌, विप्रायासुकगोज्राय मेरुन्द्रव्यमयम्परं ॥ १६॥ A ~ $ ~ aa ae निवि faqed ददामिते, CVA ब्रह्मलोके शिवलोके हरेः पुरे ॥ 29} FAQS क्रोडेत विमाने देवपूजितः | अन्येष्वपि च कालेषु MSM प्रदापयेत्‌ ॥ १८॥ पलानान्तु WAU ई ममे सम्प्रकल्ययेत्‌ | ङ्तयसमायुक्त' ब्रद्मविष्णुहरान्वितं i १९ ॥। ॐ ® © >$ Qn एकैकं पव्वतन्तस्य शतेकेकेन कारयेत्‌ । ~ ॐ मेरुणा सह WATS Sala योद्श ॥ २० ।! अयने ग्रहणादौ च ye हरिमच्यः च । Om . € ~ e ~ स्वणमेरुं दिजायाप्य विष्णुलोकं चिर वसेत्‌ Re ॥ परमाशवा यावन्त इह राजा भवेचिर | रोप्यमेर semfega ayaa ददेत्‌(१) ॥ २२॥ प्रागुक्तः च फलं तस्य विष्णु विप्रम्प्रपूज्य च | भ्रूमिमेरुख विषयं मण्डलं ग्राममेव 3%) । २२ ॥ परिकल्पयाष्टमांशेन शेषां शाः (९) पूववत्‌ फलं | दादशाद्िसमायुक्र दस्तिमेरुसखररूपिगां i २४॥ [काक्का क रिं १ सद्करुपा aE efata ae, Go, Fo, se च। So | | 7 द शेषाङ्गा द्तिख० | ९ मण्डलं WAHT त ग, Ho, | [२१२ अध्यायः। मेरुदा नकथनं | „+ २७५ ददेचि उरुगुं carat फलं लमेत्‌ । तिपञ्चाशवेरण्भेर' हयहादशसंयुतं ॥ २५॥ विषणादौन्‌ पूज्य तं द्वा भुक्तभोगो पो भवेत्‌ । अश्वसङस्याप्रमाणेन TAT पूदबदेत्‌ ॥ २६ ॥ UZTS भारमातरैवस्तरमे रख मध्यतः | | ओले दा द शवस्तर ख दस्वा तद्धा्तयं फल ।। २७ WW WATYAEAT पलानामाज्यपर्वतः | शतैः पञचभिरेकेकः cat shaq हरिं यजेत्‌ । २८ ॥ विण गे ब्राह्मणायाप्यं सवं प्राप्य हरि व्रजेत्‌ t एवं च GWACY कत्वा द ्वाप्रयात्‌ फलं ।। २९ ॥ धान्यमेरुः पञ्चखारोऽपर एकैकखारकाः | स्वश तिद काः सव ब्रह्मविष्णु महेण्वरान्‌ ॥ २० ॥ wag पूज्य fay at विगेषादश्तयं फलं | एवं eninaraa तिलमेसु प्रकल्पयेत्‌ 2k ॥ खङ्गाणि पूव वत्तस्य तथेवान्यनगेषु च । तिलमेस प्रदायाथ बन्वभिविष्णुलोकभा क्‌(९) | १२ it नमो विष्णुखरूपाय घराघराय वे नमः। ब्ह्मविष्णौशश्हगय धरानाभिखिताय च ॥ ३१ ॥ नगदादणनाथाय सवंपापाप्ारिरे | विष्णुभक्ताय शान्ताय ae भे ee सवया ॥ २४॥ निष्यापः पिढभिः are’ विष्णु गच्छामि at aa: | a म १ बन्धेभित्र द्यरोकमानिति we | ase | afeaqurar (२१२ अध्यायः) a हरिस्त हरेरग्रे aE विष्णुख विष्णवे ॥ ३५ ॥ निषेदयामि wear तु सुक्तिसुक्यथंे तै | श्त्या ग्नेये महापुराणे मेरुदानानि नामं हाद्शाधिक- ` दिशततमोऽध्यायः ॥ अथ चयोद शाधिकदिशततमोऽध्यायः। ow” © ण्थौदानानि। अग्निसवाच । पुधौदानं प्रवश्यामि एथिवौ विविधा मता | शतकोटिर्योजनानां सप्दौपा ससागरा ॥ १॥ जब्बहोपावधिः साच उत्तमा भेदिनौरिता | saat wafaata: काश्चनेख प्रकल्पयेत्‌ ॥ २ ॥ तदर्शन्तरजं FU तथा wT समादिभेत्‌ । उत्तमा कथिता पृथौ हंगेनेव तु मध्यमा ॥२॥ कन्यसा च विभागेन (९) fare कूर्ममपद्कजे । पलानान्तु सखे ण कल्पयेत्‌ कल्पपाद्प ॥ ४॥ मलदण्ड WAG फलपुष्यसमन्वित | १ GUT a g विभानेनेति Ge, य० च | [२१४ भ्रष्यायः। मन्तमाहात्म्यकथनं। २७७ पञ्चस्कन्धन्तु सहसा पच्ानान्दापयेत्‌ सुधोः ॥ ५॥ एतद्ाता ब्रह्मलोके पिढभिर्मोदते चिर । विष्णुग्र कामधेनुन्तु पलानां aati: शतः len ब्रह्मविष्णुमरेशाद्या देवा धेनौ व्यवखिताः | धेनुदानं स्व॑दानं waz ब्रह्मलोकदं ॥ 9 ॥ विष्णुग्रं कपिलां cat तारयेत्‌ सकलं कुलं । saga fad दवादण्वमेधफलं लभेत्‌(९) ॥ ८ 1 भूमिं द्वा सभाक स्यात्‌ सवंशस्यप्ररोहिणौम्‌ | ग्रामं वाथ पुर वापि(९) खेटकञ्च ददत्‌ सुखो nen का्तिक्यादौ(र) हषोत्‌सगं' कुवे म्तारयते कुलं (*) | इत्याग्नेये महापुराणे एूथोदानानि नाम त्योदशाधि कदिशततमोऽध्यायः ॥ अय चतुद शाधिकदिशततमोऽध्यायः। © ~ ® मन्तमाहात्म्यकथन | अग्निरुवाच । नाडो चक्र प्रवच्यामि यजून्नानाज्‌ श्रायते इरिः। नाभेरधस्ताद्यत्‌ कन्दमह्रास्तत्र निगेताः ॥ १ ॥ १ मरमेधफसं खभदिति we, Go, ३ काल्िकादावितिख०, zo q| So FT| ४ FA GAGE कुमिति ae, wo, ९ पुरौ बापीति wo | Be, Ze ey. | २७८ अग्निपुराणे [२१४ अध्यायः। दासप्रतिसदखखाणि. नाभिमध्ये व्यवखिताः। तिथगंमध्चव व्याप्तन्ताभिः समन्ततः॥ २ ॥ चक्रवत्संस्थिता दताः प्रधाना SWaSa: | SEI च पिष्घला चेव सुसुम्णा च तथेव च ॥ २॥ गान्धारो दस्तिजिद्वा च पृथा चैव यशा तथा, अलम्बष Seas शङ्किनो दशमो Warn sn दश प्राणवहा Bat area: afeantfaar: | प्राणोऽपानः समानश्च उदानो Bia UA Wi ye नागः RUA क्षकरो टेवदस्ो घनच्रयः | प्राणस्त प्रथमो वागुदश्ानामपि सप्रभुः॥ ६ ॥ प्राणः प्राययते प्राणं विसर्गात्‌ पूरणं प्रति नित्यमापूरयत्येष प्राणिनामुरसि खितः ॥ 9॥ निःश्वासोच्छासकासेम्त प्राणा जोवसमायितः। प्रयाणं कुरुते यस्मात्तस्मात्‌ प्राशः प्रकोत्तितः ॥ र ॥. श्रधो नयत्यपानस्त आहारच्च दखामधः। सूचरशक्रवहो वायुरपानस्तेन कौत्तितः॥ € ॥ पोतभक्तितमाचघ्रातं रक्तपित्तकफानिलं | समत्रयति WAY समानो नाम मासतः ॥ १०॥। स्यन्दयत्यधर FH नेत्रागप्रकोपनं | SEAM A AMY उदानो नाम मारुतः | ११॥ व्यानो विनामयल्यङ्ग व्यानो व्याधिप्रकोपनः। प्रतिदानं तधा कग्डाद्यापनाहयान उच्यते ॥ १२ ti SHIT नाग TUR कूम योश्नौलने खितः + [२१४ अध्यायः। मन्तप्राहात्म्यकथनं ROE RAC UAT चेव देवदत्तो विजुश्िते ॥ १३॥ धन्वः स्थितो घोषे मुतस्यापिन qufa । atta: प्रयाति दशधा नाड़ोचक्रं हितेन तत्‌ ॥१४॥ सङ्ान्तिवि पुवद्धैव अहोरात्रायनानि च। WMATA ऋणच्चेव ऊनरात्र धनन्तया(९) ॥ १५॥ ऊनरात्र wafear अधिमासः विजुग्िका। ऋगा भवेत्‌ कासा निश्वासो धनमुयति(९) Neel उत्तरं दक्षिणं Fa वामं दक्तिगसञन्नितं। मध्ये तु विषुवं wa पुटइयविनिःस्मतं।। gor UE fea: पुनरस्यैव खस्थानात्‌ स्थानयोगतः | सुस्म्‌णा HAR BS eet वामे प्रतिष्ठिता ।१८॥ faye दचिणे विप्र ay’ प्राणो ह्यहः स्मतं । अपानो TATA स्यादेका ATIS WIM: 1 १९। श्रायामो देहमध्यखः सोमग्रहणमिष्यते | देहातितलत्वमायाम ्रादिव्यग्रहणं fag: २० ॥ Bet पूरयेत्तावदहायुना यावदौप्‌सितं। प्राणायामो भवेदेष पूरको देहपूरकः ।। २१९॥ पिधाय सव्वेहाराणि निश्वासोच्छासव्जिंतः, सम्पणंकुग्धवत्तिषठेत्‌ प्राणायामः स FAH! 11 २२॥ सुच्ेदायु ततस्तं श्वासेनैकेन मन्तवित्‌ | उच्छासयो गयुक्त्च वायुमूद्॑ विरे चयेत्‌ ॥ २३ ॥। १९ wamnufa Se | २ बलखमच्यतद्ति Ho, We FT| ate अग्निपुरारे २१४ Weare | उच्चरति खयं यस्मात्‌ खदेहावख्धितः fara: | तस्मात्‌ तक्छविदाद्धेव स एव जप उच्यते ॥ २४ ॥ अयुते दे सरखरेकं षट्शतानि तथेव च । अहोरात्रेण योगौन्द्रो जपसङ्ख्यां करोति सः ॥ २५॥ AAT नाम WAM ब्रह्मविश्ुमरेश्वरौ | अजपां जपते यस्तां yarn न faa ॥ २९ ॥ चन्द्राम्निरविसयुक्रा star कुण्डलिनो मता। EUV तु सा Wat अङ्कराकारसंखिता॥ Ron ख्ष्टिन्धासो भवेत्तत्र स वे सर्गावलम्बनात्‌ | खवन्तं चिन्तयेत्तस्मिव्रख्तं साखिकोन्तमः ॥ २८ ॥ देदस्थः सकलो ज्ञेयो निष्फलो देहव्जिंतः(१९) । ह सहसेति यो त्रूयादसो देवः सदाशिवः ॥ २९ ॥ तिलेषु च यथा तेल पुष्ये गन्धः समाचितः परुषस्य तथा देहे स वाद्याभ्यन्तर खितः ॥ २० ॥ ` ब्रह्मणो द्ये खानं करे विष्णुः समाितः। तालमष्ये(९) खित रुद्रो ललाटे तु महेष्वरः ॥ २१ ॥ प्राणाग्रन्तु शिवं विद्यात्तस्यान्ते तु परापर | पञ्चधा सकलः प्रोक्तो विपरौतस्त्‌ निष्फलः ॥ २२.॥ प्रासाद नादमुत्थाप्य शततन्तु जपेद्यदि | ` षण्मासास्मिदिमाप्नोति योगयुक्तो न संशयः ॥ ३२ ॥ गमागमस्य ज्ञानेन सव्वपाप्षयो भवेत्‌ | ~+ +~ ~ ~~~ ~~~ Laer एति ७०१०२. च। TERRE [२१४ भ्रष्यायः। मन्तमाहात्म्यकधने। REL अणिमादिगुणेष्वथ' षडभिासेरवाग्रयात्‌ ॥ २४॥ खलः Ga: परति प्रासादः कथितो मया। सो दोषः भ्रतश्ेति प्रासाद लक्तयेचिधा ॥ ३५॥ wat दहति पापानि दोषा मोक्तप्रदो waq! आप्यायने ञ्जतशेति ate विन्द्विभ्रूभितः॥ २६ ॥ अदावन्ते च SSA फट्कारो मारणे हितः |. आदावन्ते च इदयमाकष्टौ सम्पत्ति तम्‌ ॥ Qo ॥ देवस्य दत्तिशां मृत्ति पश्चलन्त feat जपेत्‌ । जपान्ते तहोमस्त दशसाहखिको भवेत्‌ ॥ २८ ॥ एवमाप्यायितो मन्तो वश्योच्चाटादि कारयेत्‌ । RE शून्यमधः शून्य मध्ये शून्य निरामयं ॥ २९ ॥ विशून्यं यो विजानाति मुखतेऽसौ wa दिजः | Was यो न जानाति पञ्चमन्तमहातनु Wve अषटतिंशत्‌कलायुक्त न स आचाय sad | AMSTITY गायतं खद्रादोन्‌ Tass गुरः ॥ ४१॥ इत्याग्नेये महापुराणे मन्तमदात्म्य' नाम चतुदंगाधि कददिशततमोऽध्यायः॥ ( ३२६ ) अथ पवद शाधिकदिशततभोऽष्यायः। waarfatw: | aftaqara । Wert यो विजानाति सयोगो a हरिः पुमान्‌ । ओग रमभ्यसेत्तसरास्मग््रसारन्तु सवद ॥ १ ॥ स्वमन्प्रयोगेषु प्रणवः प्रथमः खतः । तेन सम्परिपूणः यत्तत्‌ पूः कयै नेतरत्‌ ॥ २॥ रोह रपूव्विकास्तिखो महाव्याद्ृतयोऽव्ययाः 1 चिषदा चैव साविक्रौः विज्ञेयं ब्रह्मणो सुखं ॥ २॥ योऽधौतेऽदग्य्न्धे तास्ोणि कषोख्यतन्बितः। स ब्रह्मपरमभ्येति aay, खमृत्तिमान्‌ ॥ ४ ॥ CHAT चरं AB प्राणायामपरन्तपः | साषित्रस् परन्नास्ति मोनात्‌ स्यं किशिष्बते ॥ ५॥ सप्तावन्ता पापषरा दशभिः प्रापयेदिब | विंशावत्तीतु सा देवौ नयते हौखरालयं ॥ gi अष्टोत्तरशतं AAT ATT: संसारसामरात्‌ | ङद्रकुष्मा रूट जप्येभ्यो गायनो तु विशिषते ॥ 9 ॥ म गायत्राः WHA न व्याहृतिसमं इतं | WANT: पादमप्यदै गदैखचमेव वा॥र८॥ ACCA सुरापानं सुवण स्तयभेव च | शुरदारागमयैव जप्येनैव पुनाति सा ॥ < | [२१ ५ श्मधघ्धाघः। सन्ध्याविधिकधनं | २८३ पापे aa तिलेहामो गायतीजप शरितः | TA VHA WANT उपवासौ स पापहा (६) it १० ॥ गोघ्नः पिढभ्नो मातृघ्नो ब्रह्महा गुङतस्यगः। AWA: ACTA च सुरापो लचजप्यतः ॥ ११ ॥ शध्यते वाऽथ वा जाला थतमन्तव्नेलं जपेत्‌ | रपः गतेन GAT तु WAM: पापदा Wag ॥ १२॥ शतं AAT तु MAN पापोपश्रमनो सृता | UES AAT सा देवौ उपपातकनाथिनौ ॥ १३ ॥ ` श्रभौष्टदा कोटिजष्या देवत्वं राजतामिषाव्‌। ` ओड्र पूव्वसुच्ाथ yaa: खस्तयेव च ॥ १४॥ Taal UU जपे चेवमुदाष्तं | विश्वामिच्र टषिच्छन्दो गायत्र सविता तथा ॥ १५॥. देवतोपरनये जप्ये विनियोगो इते तथा । अग्निव्वीयु रविषिविदत्‌ यमो जलपतिगुङः॥ १६ ५ पन्य CE Waa! पूषा च तदनन्तरं | मिज्ोऽथ THUS वसवो मरूतः Wt १७॥ afwer विश्वनासत्यौ कस्तथा सवशेवताः। रुद्रो ब्रह्मा च विष्णुख क्रमगोऽसरदेबताः। १८॥ गायत्रा जपकाले तु कथिताः पापनाशनाः | पादाङ्कष्टौ च TTA च ATA जानुनौ तथा ॥ १९ ॥ ae frre ठषणो कटिग्राभिस्तघोदर | १ उप्रपातकपापडति ग०, Fo, oF | २८४ अभम्निपुराणे [२१५ wera: | स्तनो च wea War मुखन्ताल च नासिके ॥ २०॥ aa च श्चरवोर्मध्यं ललाटं पूवंमाननं। दसिणोत्तरपाश्व हे शिर भ्रास्यमनुक्रमात्‌ ॥ २१। ata: श्याम कपिलो मरकतोऽभ्निसब्रिभः। रुकाविद्य॒चस्बरहष्णरक्तगोरन्द्रनोलभाः ॥ २२ स्फाटिकखणयाण्डाभाः पश्ररागोऽखिलदयतिः(*)। हेमधुखररक्तनौलरक्तकष्णसुवणभाः ॥ २२ ॥ शक्रक्ष्णपालाशाभा(९) गायत्रा awa: क्रमात्‌ | ध्यानकाले WTEC SA सवकामदा ॥ २४॥ गायत्रा तु faaeta: सवेपापप्रशाशनः । शान्तिकामो यवे: कुधादायुष्कामो तेन च ॥ २५॥ सिषा कैः कमेसिद पयसा ब्रद्मवश्चसे | TIAMAT TA धान्यकामस्त शालिभिः ॥ २६ ॥ चोरिवचसमिद्धिस्त ग्रहपौडोपशान्तये | धनकामस्तथा feats TAA: कमलेस्तथा ॥ २७ ॥ आरोग्यकामो gaifaqenia स एव fet सोभाग्य च्छ गुग्गुलना विद्यारधीं पायसेन च ॥ रर ॥ श्रयुतेनोक्षसिद्िः स्या्नत्चेण मनसेख्ठितं | कोटय ब्रह्मबधान्‌ मुक्तः कुलीदारौ हरिर्भषेत्‌ ॥ २९ ॥ ग्रहयन्नमुखो वापि होमोऽयुतसुखोऽथक्तत्‌ | | ९ पश्ररागोऽमलयुतिरिति Wo, we, २ क्पद्मपलाणामेति Go, ज° च । We, Zo F | [२१५ श्रष्यायः। सन््याविधिकथन | २८ ` आवाहनञ्च गाय्रास्तत ओङ्ारमभ्यसेत्‌ ॥ २०॥ सत्वो रन्त गायत्रया निवघ्नोयाच्छिखान्ततः। खनराचम्य हदयं नाभिं स्कन्धो च संस्परशेत्‌ ॥ २१। प्रणवस्य waren गायनीच्छन्द एव च । Sasha: परमामा स्याद्योगो वै सव॑कमंसु।। 22 ॥ शक्ता चाभिमुखो दिव्या कात्यायनसगोत्रजा | चेलोक्यवरणणा दिव्या थिव्याधारसंयुता h 22 ॥ श्रत्तसूतरधरा देवौ पद्मासनगता शभा | श्रां तेजोऽसि महोऽसि बलमसि ्राजोऽसि देवानान्धामनामासि। विश्वमसि विश्वायुः सवंमसि aatg: श्र रभि भूः | आगच्छ वरदे देवि जप्यं मे सत्रिधौ aa २४॥ व्या्तीनान्तु सर्वासाखषिरेव प्रजापतिः । व्धस्ताखेव समस्ताख ब्राह्ममत्तरमोमिति ।! २५ ॥ ` विश्वामिरो यमदम्निभरदाजोऽघ गोतमः | ऋषिरतिव शिष्टश्च काश्यपख यथाक्रमं ॥ २६॥ अरग्निवाय॒ रविचैव वाक्पतिव रुणस्तथा इन्द्रो fayatedtat देवतानि यथाक्रम ॥ २७ ॥ गायत्रटिगनुष्टप्‌ च हतौ wefata च । freq च जगतौ चेति छन्दांस्याहरतुलमात्‌ ॥ ३८॥ विनियोगे व्यादतीनां प्राणायामे च Brava | अआपोदिष्ेत्युचा चापान्दरुपदादौति वा स्मृता(\) ॥ ३९॥ १ द्रुपदादोति वायवा इति Go, ज ०, ज० FI २८४ श्मिनिपुराणे [२१५ अध्यायः | तथा हिरख्यवर्णाभि; पावमानौभिरन्ततः। विप्रषोऽ्टो futey ATT ARAMA ॥ sot अन्तजले WAgia जपेन्तिरघमर्षयं | आापोदिषठेव्य चोऽस्याच सिन्धदौप ऋषिः wait ve ॥ ब्रह्मल्ञानाय छन्दोऽस्य Waa देवता जल | aaa विनियोगस्य हयावभघके क्रतोः ॥ ४२ ॥ श्रघमघंणसुक्ञस्य ऋटषिरेवाघमषंणं | अनुष्टुप्‌ च भवेच्छन्दो भावहत्तस्त देवतं । ४३२॥ श्रापोज्योतौरस इति ara चिर: स्मृतं । ऋषिः प्रजापतिस्तस्य छन्दो होनं यज॒यं तः ॥ ४४ ॥ बह्मयाम्निवायुसथ्याख देबताः परिकौन्तिताः। प्राणरोधात्त वायुः स्याहायोरग्निखच जायते 11 ४५। अग्नेरापस्ततः शदिस्ततञ्चाचमनच्चरेत्‌। भरन्त्रति भूतेष गुहायां चिश्ठमूर्तिषु ॥ ४६ । तपोयन्नवषटकार ATTY च्योतो THz | Sea जातबेदसखषिः maa sad ॥ ४७ ॥ WANE आख्यातं सूधशेव तु देवतम्‌ | afaca नियोगः aretha नियोगकः ॥ ४८॥ चित्र देवेति ऋचके ऋषिः कौस उदातः | विष्टुप्‌ छन्दो देवतच्च waiver: परिकीत्तिंतं ५.४९ ॥ इत्याग्नेये महापुराणे सन्ध्याविधिमांम पच्चदशाधिकदि- | शततमोऽध्यायः ॥ अथ षोड़श्राधिकददिशततमोऽध्यायः। © ^~ @ @ स्वक @ मायतोनिवौंरं | भग्निरुवाच | एवं सन्याविधिं कला गायतौख्च जपेत्‌ स्मरेत्‌ । गायञ्च्छिष्यान्‌ यतस्त्रायेत्‌ भायां प्राणांस्तथेव च(\)।१॥ ततः was गायत्रो सावितौय ततो यतः | प्रकाशनात्सा सवितुर्वाग्रपत्वात्‌ सरसखतो ॥ २॥ तज्‌ ज्योतिः परमं ब्रह्म भगं स्तेजो यतः स्मतं । भा दौप्ताविति ea हि रसजः पाकेऽघ तत्‌ खतं ॥ २ ॥ भ्रोषष्यादिकं पचति ere दोसौ तथा भवेत्‌ । भगः स्याद्‌ राजत इति aga छन्द ईरितं ॥ ४॥ ata सर्वतेजोभ्यः 2s वै परमं षद्‌ । स्व गौपवगं कामेव्वी awa सदव fey हयोतिव्वरणार्थलाज्जाग्रत्‌ खभ्रादिव जितं | नित्य शब दभेकं सत्यन्तदो महोश्वरं ॥ ६ ॥ अ AW पर ज्योतिषर्गथेमदहि विसुक्षये | तज्‌ ज्योतिभगवान्‌ विष्णुजं गव्जन्मादिकार णं ॥ ऽ ॥ शिवं कचित्‌ पठन्ति स्म शक्तिरूपं पठन्ति च । केचित्‌ सूयधङ्चिदम्नि बैदगा अम्निहोतिणः ॥ ८ ॥ १९ कायान quis चेति Se १ अग्निपुराणे [२१६ ध्यायः । ` अन्न्यादिरूपो विष्णुहिं वेदादौ ब्रह्म ata | तत्‌ पदं परमं विष्णोरहँवस्य सवितुः खतं ॥ € । महदाज्य सूयते fe खयं ज्योतिदहरिः प्रभुः । पर्जन्यो वायुरादित्यः भौ तोष्णाद्येख पाचयेत्‌ ॥ १०॥ gat प्रास्ताडतिः सम्यगादित्यसुपतिष्ठते | | आदित्याज्जायते विवे रब्रन्ततः प्रजाः ॥ ११ ॥ दधातिव्वा धौमहोति मनसा धारयेमहि । ` नोऽस्माक यश्च nara सर्वेषां प्राणिनां धियः॥ १२॥ चोदयात्‌ Was बुधोर्भोक्ष णां सवेकमं | दृषटाटृ्टविपाङ्षेषु विष्णुसूग्योम्निरूपवान्‌॥ १३ ॥ शष्वरप्रेरितो गच्छेत्‌ GA वाऽष्वभ्चभेव वा | श्णावास्यमिदं wa मदहदादिजगदरिः॥ १४॥ aula: MISA देवो योऽहं स पुरुषः प्रभुः । श्रादित्यान्तगतं यच्च WATS ब agate: mewn - जन्मखत्यविनाश्ाय दुःखस्य चिविधस्य च । ध्यानेन सुरुषोऽयच्च द्रष्टव्यः सूमण्डले 0 १६॥ aa’ सदसि चिद्रह्म विष्णोयंत्‌ परमं पदं । देवस्य सवितुभर्गो ace fe तुरोयकं ॥ १९ ॥ देहादिजाग्रदाब्रह्य we vets dats योऽसावादित्यषुरुषः सोऽसावदमनन्त भां ॥ १८ a ज्ञानानि ganatela प्रवत्तंयति यः सदा | | Sa मदापुरारे गायन्रोनिवांणं नाम षोड़गाधि- कदिशततमोऽध्यायः॥ अथ सप्नदश्याधिकदिशततमोऽष्यायः । hd | ध Ow © - गायत्रौनिववाखं | अम्निरुवाच । शिङ्गमत्ति' शिवं gar arena योगमा्वान्‌ । faate(’) परमं aw वसिष्टोऽन्धख शङ्रात्‌(९) ॥ १ ॥ नमः aaafagra(*) tefagra वं नमः! नमः परमलिङ्गय(५) व्योमलिङ्काय वे ममः ॥२॥ ममः सहस्रलिङ्गाय वह्िशिक्काय वे नमः। नमः yuufapra gfafarra वे नमः ॥ २ ॥ ममः पाताललिङ्गाय ब्रह्मलिष्मयबे नमः। नमो Teafagra सप्तददोपोदैशिङ्किनि ॥ ४ ॥ ममः सर्वाकलिङ्काब सवलोकाङ्कशिङ्किे । नमश्सवग्यह्कलिङ्काय afefawra वे नमः ॥ ५॥ ममोऽदष्कारसिङ्गाय भूतिष्ठाय बे नमः। aa इन्द्रिवलिङ्ाव नमस्तन्धा लिङ्गिनि ॥ gu नमः पुरुषलिङ्गगय भावशिङ्गाय वे नमः। ~ ~ ee eT ee ९ निन्ेशमिति ee | ९ कमकशिङ्गयेति ° | ९ बलिष्टोण ब ङ्करादिति we, च ४ नमः पवगरिष्गायेति We, He, we, च्व । Fo, se च| ( ३9 ) २९० ` भग्निषुराणे [२१० अध्यायः । ममो रजोैलिङ्गाय सत्वलिङ्काय(१) बे नमः(९) ॥ ७ ॥ नमस्ते भवलिङ्गाय नमस्ते गुख्यशिङ्किनि | नमोऽनाग लिङ्गाय तेजोलिक्ाय वे नमः sa नमो वायु्ंलिङ्गाय(९) चतिशिङ्गाय वे नमः। ममसेऽथवसिङ्काय सामलिङ्गाय(*) तै नमः ॥ ८ ॥ नमो यन्नाष्टलिष्ठगाय onfagra वै aa: | नमस्ते aufagra रेवागुगतलिङ्गिमे,*) ॥ १०५ दिशनः परमं योगमपत्यं HAART | aw चेवाशश्शयं देव wae पर विभो(९) ॥ ११॥ अशयनग्छच्ं वंशस्य घम च मतिमक्षयां | अम्निरुवाच । वसिष्ठेन स्मृतः wares: ada पुरा ॥ १२७ वसिष्ठाय वरं दवा ARATE TT | SAAT महापुराणे गायत्रीनिर्वाणं माम सप्तदथाधि- कदिशततमोऽभ्वायः ॥ णिक षर १ ब्शिङ्गायेति Wo, we च | .४ नमसते सम्य शिङ्गाय mafew- २ aa ₹ग्द्रियल्िङ्गायेत्याडिः स्जशि- येति ०, we च| जञायते गम Ce पाठ; we Gee ५ नमोऽनागतशिक्गयेत्यादिः, दे- भासि। बन्‌ गतलिङ्किनि cam, पाठः, ज. नमो वागुड़ शिङकाषेति we । aga wife! ९ प्ररमाद्मा पर बिभो इति ae | अथाष्टादशाधिकदिशततमोऽध्यायः । ame? ८०० @ Owe Sa राजाभिषेककथनं । भम्निरवाच । पुष्करेण च रामाय राजधर्म" हि पृच्छते । यथादौ कथितं तददशिष्ट कथयामि ते॥ १॥ TRC उवाच | राजधर्म" प्रवच्यामि सवस्मात्‌ राजध्मतः। राजा भ्वेत्‌(*) TAWA प्रजापालः सुदण्डवान्‌ ॥ २॥ पालयिष्यति वः सर्वान्‌ धनस्थान्‌ व्रतमाचरेत्‌ । संवत्सर स aya पुरोहितमथ दिजं(९) ॥ 3 ॥ aiawafgearnarafes wire | सवत्र BT काले ससम्भारोऽभिषेचनं ॥ ४ ॥ क्या अते कृपे नात कालस्य नियमः aa: | तिलैः सिहार्धकेः जानं सांवत्‌सरणरीहितौ ॥ ५ ॥ चोषयित्वा जय रान्नो राजा भद्रासने खितः। अभयं चोषयेद्‌ दुर्गाग्मो चयेद्राल्यपा लके ॥ ९ ॥ ` ष॒रोधसाऽभिषेकात्‌ प्राक कार्येन्द्रौ शान्तिरेव च। खउपवास्यभिषेकार tere ज॒डयान्‌ न्‌(९).॥ ७ ॥ १ cre हरिति Wo, We, ue, me, २ पणोडितमथच्िं जमिति we, we अर, Seq | Wo, Mo, Zo GI ३; ३ श्ड्यादमूनितिं eo ९९२ भम्निपुराणे [२१८ भ्रध्यायः। Terrier साविभरारन्‌ tere ary , सौम्यान्‌ खसूवयन WATTS AAA ॥ ८ ॥ अपराजिताश्च करसं see सि णपा ष्वेगं | सम्पातवन्तं VAT पूजयेद्र न्धपुष्यकेः ॥ ९ ॥ प्ररक्िणावत्त थिखस्तप्तजाम्बनदप्रभः | रथोघभेषनिर्घोषो विधुमख इताशनः ॥ १०॥ अनुलोमः सुगन्ध सस्तिकाकारसविभः | प्रसनावि्यष्टाच्वाशः स्फलिङ्गरष्टितो हितः। १११ न व्रजेयुख मध्येन मार्जीरमगप्िंणः VARTA ATA दानं गोधंयेवधः॥ १२॥ AMAT कणा वद्नं केशवालयात्‌ | इन्द्रालयखदा(र) wat हृदयन्तु कुपाजिरात्‌ ॥ १२॥ करिदम्तोषतमदा दिशन्तु तथा yo | SUTFTC तयदा वामश्चव AAT YT ॥ १४॥ WUT तथा एष्ठलुदरं TATA TET | मदोतटदययदा one. संशोधयैत्तधा(९) ॥ १५॥ वेष्याहारण्दा tw: कटिशौचं विधीयते | यज्ञश्थानासषेवोरू गोखानाश्नानुनो तथा ॥ १९॥ रश्वखानाततथा AGE TANTS | agia पञ्चगव्येन भद्रासनगतं adh १७१४ _ ufafageararat चतुशटय्भधौ घटे, ९ चन्द्राख्वब्डदति ख. | र स्नव च र ज्यन्दवषि eutwdwaamn: संष्टो धय waa: पाडः Ge TERS | [२१८ अध्यायः। राजाभिषेकक्षधनं। Reg पू्वेतो VAFWTA CAFTA ATW 1 १८॥ eugaa याम्ये च चौरपूरंन afaz: | SWI च तास्नङुम्धेन Set: afeatia च ॥ fe ataan जलेनोदक शुद्रामात्योऽभिषेचयेत्‌ | ततोऽभिषकं कृपतेंबद्गचप्रवरो fee non gata मधंना विप्रभ्डन्दोगय कुशोद्कः सम्पातबन्त कलशं TUT गला पुरोहितः ॥२१॥ faura afecarg सदस्येषं यथाविधि | राजथियाभिषेके च थे aaa: परिकौतिंताः | २२॥ Ae दद्याष्महाभाग ब्राह्मणानां खनेस्तवा । ततः पुरीह्ितो गच्छेदेदिम्‌लम्तदेव तु(\)॥ २३॥ wafese cae सौवणनाभिषचयेत्‌। वा भओषधौत्योषधौमोर वे aw ति गन्धकैः ॥ २४१ पुष्यं; पुष्पवतीत्येव ब्राह्मेति च वौजकेः(२) | ware: शिशान ये देवा कुमोदकः ॥२५॥ यजवद्य घव्वबेडो(र) गन्धदारेति संस्मरेत्‌ । शिरः कण्डे रोचनया शव तीर्थो दकदिजाः ॥ २६॥ गीतवाश्ादिनिर्घोषे बामरव्यजनादिभिः। सर्वाषधिमयं gar धाश्येयुरःपा्तः ॥ २७॥ तं पश्येयं राजा तं बै मङ्गलादिकं। wae fag’ ब्रह्माखमिन्द्रादौंख ग्रहेष्वरान्‌(*) ॥२८॥ १ बेदिमख्छनथेवतु इति ख. | २ antag मयेद इति Ge | २ दौषकेरिति eo) ४ प्रहादिकानिति wo, जर, च, द| ३.९ ४ अम्निध॒राखे [Ree wearer: | AAA शय्यामुपविष्टः पुरोहितः | मधपक्षादिकं द्वा पदबन्धं प्रकारयेव्‌ ॥ Re ॥ राश्ोसुकुटबन्धश्च THAN ददेत्‌ | धरवादेरिति च fate षज हषद गजं ॥ ३० ॥` हौ पिजं सिहजं व्याघ्रजातश्चन्ध तदासने । भरमात्यसचिवादौँंःख प्रतीहारः प्रदशयत्‌ ॥ ३१ ५ गोजाविग्डहदानाख्ः सांवत्सरपुरोहितौ | पूजयित्वा हिजान्‌ प्राश्य ्न्धभूगोब्रसुख्यकेः ।। २२ ॥ afe प्रदतिणौल्लत्य ye नत्वाथ प्तः ॥ हषमालभ्य गां वसां पूजयित्वाथ मन्तित li ३२॥ WAAC नागद् पूजयेत्तं समारुहेत्‌ | परिभ्वमद्राजमाग बलयुक्तः wefera ii २४॥ रं fats दानायैः प्राच्यं स्वान्‌ विसजजयेत्‌ | TATAA मशापुराशे राजाभिषेको नाम ब्र्टादशाधि- कडिशततमोऽघष्यायः॥ अथोनविंशाधिकदिश्ततमोऽध्यायः। —$ : — अभिषकमन्तराः पुष्करडवाच | राजदेवाद्यभिषेकमनतान्वच्येऽघमदनान्‌ । Bary ate: सिखेत्तेन सव" हि सिद्धयति ॥१॥ [२१९ ware: ! भमिषेकमन्तादिकथनं । २९५ सुरास्त्नामभिषिख्न्तु ब्रह्मविष्णुमद्ेश्यराः | वासुदेवः सक्कं यः प्र्यजरखानिरदकः ५ २ ॥ भवन्तु विजवायेते इन्द्राद्या दशदिग्गताः | “at घर्मो agent रचि: अहा च सर्वदा ३॥ भगुरजिवंसिष्टठखच सनक सनन्द्नः। सनतृकुमारोऽङकिराख GAR पुषः क्रतुः ।॥ ४॥ मरोचिः कश्यपः पान्तु प्रजेशाः यिकौपतिः। प्रभासुरा बहिषदर श्रगिष्वात्ता् cag a ny ll क्रव्यादासोपषताख भाज्यपाख FRAT: | अम्निमिखाभिषिच्न्तु ear धश्मवज्ञभाः॥ ६॥ आदित्याद्याः कश्यपस्य ayaa’) वल्लभाः | AMAA MIA भार्य्णायारिष्टनेमिनः ॥ ७ ॥ afaarara चन्द्रस्य yawa(2) तथा प्रियाः | wat A कपिशा TST सुरसा सरमा दनुः॥ ८॥ श्येनौ भासौ तथा क्रौचचौ तराष्टौ wait तथा । ` परन्सत्वामभिषश्चन्तु अरुणथाकसारधिः।। ९ ॥ श्रायतिर्चिंयतीराजिर्िंद्रा arated खिताः। & SAT AAT WAT पान्तु धुमोर्बानिक्तिञ्जये ॥ १० tt गौरो शिवा च ऋषि वेला था चेव नडवला | भरशिक्रौ च(र) तथा sateen देवपत्न्यो वनसखतिः ॥ ११। AVIRA करप मन्वन्तरयुगानि च | १९ देवपुबस्येति ae | ९ पुरख्यस्मति mo, we, eq] १ अपिता चेति we | १९६ ufergu® [२१९. भ्रध्यायः । संवत्राखि वर्बाखि पान्तु लामवनदयं ii cee WAIT तथा मासा TAT TWAT तथा | सन्ध्यातियिसुङ्तच araaraaarafa: 10a 1 Barara WE पान्तु मनुः खायन्भवादिकः। ख्वायश्वः खारोचिष Grafted मनुः १४ ॥ रेवतखाचमः बटो eae इेरितः। सावरणा AWYTS धमंपुत्रच AEH १५।। eae Crewe च मनवस्त॒ चतुहय। विश्वभुक्‌ च विपदिच्च सृचिल्तिख शिखो fag: १६॥ मनोजवस्त बौजस्ौ बलिरङूतथाम्तयः। are ऋतधामा च दिवश्यक्‌ कविरिकः ॥ १७॥ LARS FATS तधा वत्सविनायकः | वोरभद्रख नन्दो च'विश्वकमा पुरोजवः ॥ es ॥ एते तामभिभिश्चन्तु सुरमुख्याः समागताः, नासत्यौ देवभिषजौ भवाद्य वंसवोऽष्ट च ॥ १९ il दश चाङ्किरसो बेटाखू्वामिषिश्चन्तु सिये | आला न्चायुमनो SM मदः प्राणस्तथैव च 1 २० I efarute गरि wa; सत्य पान्तुवः। क्रतुं चतो वसुः सत्यः कालकामो धरिजंञे ॥ २१॥ ्रूरवा areata faweara रोचनः । ETNA सूर्व्यख्वाचिश् तिद तथा AA? २२॥. MAMTA धुमकेतुख रद्र जाः(१) | [२१९ श्रष्यायः\ अभिषेकमन्कथनं। २९७ भरतश्च तथा स्लुः कांपालिरथ किक्किणिः॥ aes भवनो भावनः पान्तु खजन्यः खजनस्तथा(९) | करतुखवाख BRE च याजनोऽभ्यगनास्तथा ॥ २४ ॥ प्रसवश्चाव्यंयख्चव TAQ भगवः सुराः मनोऽनुमन्ता प्राण नवोपानश्च वौयवान्‌ ॥२५॥ बौतिहोजे नयः साध्यो हंसो नारायणाऽवतु | विभुखेव ayaa canst जगहिताः i २९॥ धाता मितेाऽ्य॑मा पूषा शक्रीऽथ वरुणो भगः । avr विवस्वान्‌ सविता विष्णु्हीदश भास्कराः ॥ २७॥ एकज्योतिख दिज्योतिखिधतुर्ज्यौतिरेव च |` एकशक्रो हिशक्रख त्रियक्रख्च महावलः॥ Re 4 न्द्र मेत्यादिशतु ततः प्रतिमक्तत्तथा। भित सम्परितसेव भ्रमितख महाबलः ॥ २९ ॥ ऋतजित्‌ सत्यजिश्चेव सुषेणः सेनजित्तभा । अतिमिच्रोऽनुमित्र पुरमित्ोऽपराजितः ॥ ३० ॥ ऋतथ ऋतवाग्‌ धाता विधाता(र धारणो was | विधारणो महातेजा वासवस्य परः सखा ॥ ₹१॥ दटतच्तयाप्यटेत्तख(र) एतादृगमिताशनः | क्रोष्टितख AEA ALAA महातपाः॥ ३२॥ १ सुजनखयेति wo, wo a | १ दैटशखाम्पदशखति | | ₹ faura fa Ge | ( ३८ ) २९८ श्रग्निपुराणे [२१९ अध्यायः । wat yar धरिर्भीम अभिरसुक्षः चपावड(\) | ति्ववश्चरना्टव्यो(९) रामः कामे जयो विराट्‌ ॥ ३२॥ देवा एकोनपच्चाशसरतसू्वामवन्तु ते | fourefaaca: चितेन वे कलिः॥ २४॥ ठर्णायुरग्रसेनच WATTS नन्दकः | इष्ड ऋह्नारदख विश्वावसुख तुम्बुरुः i २५॥ एते तामभिषिच्चन्त॒ गन्धवा विजयाय ते । पान्तुते कुरुपा मुख्या दिव्याघाप्सरसाङ्कणाः ॥ २६ # MAI Yat च मेनकाः We जन्यया(३)। क्रतुखखला Barat च विष्वाचो पुल्िकसला ॥ ३७ | प्रज्ञो चा TaN TT पञ्चा तिलोत्तमा | चिच्रलेखा AAU च पण्डरोकाच वारुणो॥२८॥ Talat विरोचनोऽथ बलिर्व्वाशोऽध तत्सुताः | एते चान्येऽभिषिच्छन्तु दानवा राक्षसास्तथा ॥ ३९ ॥ Vasa प्रहेतिख विव्यतस्फाजंधरग्रकाः | | यत्तः सिहामकः पातु माणिभद्रश्च नन्द्नः॥४०॥ पिष्ठभत्नो afaaida पुष्पवन्तो जयावहः | NE: पद्म मकारः कच्छपश्च निधिजंये॥ ४१। पिशाचा MEANT भूता म्यादिवासिनः। महाकालं FLSA नरसिंहश्च मातर tt ४२ ॥ १९ Siva: चमासदेति wo | १ सष कन्यय ति Ho! ९ WANE tha Ho, Bo, He FI [२१९ अध्यायः। अभिषेकमन्तकथनं। २९९ गृधः स्कन्दो विग्राखस्त्वानरेगमेयोऽभिषिच्चत्‌ । डाकिन्यो ara योगिन्यः खेचरा भूचरा याः॥ ४३२॥ NESTED: पान्तु सम्पातिप्रमुखाः खगाः | TAMIA महानागाः शेषवासुकित्तकाः॥ ४४॥ एेरावतो महापद्मः कम्बलाश्वतरावभो | गहः कर्कोटकयेव एतराष्टौ TAHA Syn कुमुदे रावणौ पद्यः पुष्पदन्तोऽथ वामनः | सुप्रतौकोऽच्ननो नागाः पान्तु तवां सव्वतः सटा ॥ ४६ ॥ पतामदस्तथा हसो हषभः शङ्करस्य च । | दुगौसिंहख प्रान्तु at यमस्य महिषस्तथा ॥ ४०॥ उच्चे; खवा ाश्वपतिस्तथा धन्वन्तरिः सदा । MAT शङ्राज च वज्‌" शूलश्च चक्रकं ॥ ४८ ॥ नन्दकोऽस्त्राणि TAY TXT व्यवसायकः। चिचगुष्च दण्डश्च पिङ्गलो खत्यकालको ॥ ४९ ॥ बालखिल्यादिमुनयो व्यासवाख््मनोकिमुख्यकाः | safer भरतो दुष्यन्तः शक्रजिद्लो(\) ॥ yo w मल्लः ककुत्‌ ख धानेन युवनाश्वो जयद्रथः | मान्धाता मुचकुन्दब पान्तु ATS पुरूरवाः ॥ ५१ ॥ वास्तदेवाः पञ्विश्त्तत्वानि विजयाय ते | ङकाभोमः शिलाभौमः पातालो ahaa ्तिंकः(९) ॥ ५२ ॥ १ wa forge इति go, Wo च| | २ गोश्मु्िक दृति wo, घर, qo, He, wo, Zo च। नोखलमूडेल इति ee | + अम्मिघुराणे [Ree अष्थायः । Tacs: चितिखेव sata रस्पतलं | aataitsa भुवमु ख्या. जम्ददीपा दय: faa 42 ॥ SU? कुरवः पान्तु रम्या हिरण्यकस्तथा(\) | UST: केतुमाल दर्थं चेव. बलाहकः ॥ ५४ ॥ हरिवषः किम्परुष seta: कथे समान्‌ | ताखवर्णा गभस्तिमान्‌ नागदौपव सौम्यकः ॥ ५५॥ गन्धर्वो वरूणो Ta नवमः पान्तु sq: | हिमवान्‌ हेमकूटख निषधो नोल एवच ५६॥ WAT WPA भेरुमास्थवान्‌ गन्धमादनः | ASR मलयः स्य; शक्मा ्षवान्‌ गिरिः ॥ ५७ ॥ fara पारिपाक्ख गिरयः शान्तिदास्ते। ऋग्वेदाद्याः षढषग मि. इतिशासपुरा शकं ।। ५८ ॥ भआयुवंदच मन्धव्वधरुेदोपकेदकाः | शिचा. wert व्याकरणं निरुक्तं च्योतिषाक्तिः ॥ ५९ ॥ न्दोगानि = aera मोर्मांसा न्धायविस्तंरः। wire) यरा णच विद्या श्येता चतुद ग्र ॥९०॥ साङ्ख्यः योगः TH वेदा वे पञ्चरा चड़ । कताग्तयश्चक WAT गायनो च.शिवा तधा ॥ et a eat विश्या च गान्धारौ पान्तु at यान्तिदाख.वें। खवणेचसरासपि दं gM TATA: । ६२ ॥ चत्वारः सागराः पान्तु तौरथाजि. विविधानि च) ९ रेरष्यकलथयेति we, eo, 1c च |. हरर मयसखथेति qe | [२१९ श्रष्यायः। अभिषेकमन्तकथनं। २०१ TRACY. प्राग प्रभासो. नेसिषः प्रः ॥ ९३ ॥ गथाशौर्षो ब्रहमथिरस्तीयंमुत्तरमानसं। कालोदको नन्दिकुष्डस्तौघं' पच्चनदस्तथा |! ६४ । WNT प्रभासश्च तथा WAHT । जग्बमागे ख विमलः कपिनलस् तथायमः ॥ gy मङ्ाहारकुथ्ावरतै विन्ध्यको; aaa: । ` वराहपवंत्चैवः त्दौथद्धणखलं, तथा ॥ ९६ ॥, कालश्छरख. केदारो सद्रक्रोहिस्तथेव च । वाराणसौ. महातीधं' वद्यीखम एव Th eon हारका योगिरिस्तीष Tae पुरुषोन्तमः ¦ शाखक्मो् ATES सिन्धसामरसङ्गमः ।। ६८ ॥ wage विन्दुसरः करवौरत्वमस्तया | नयो. ARTETA: शतदहुमेरूकौ तथा ॥ ee ॥ अरच्छोटा-च-विपाश़ च्‌ वितस्ता देविका मदौ । काकेरो वरण चेव निखिरा गोमतो मदो Uo tt पारा, चमग्वतीः रूपा मन्दाकिनी We | तापौ पयोग्णौ-वेखा च मौरौ BATA तथा ॥७१॥ गोदावरौः MAT तुङ्गभद्रा प्रणो तथा। चन्द्रमामा शिवा गोरो अभितिश्न्त पान्तु. वः(\):॥ ७२॥ इत्याम्मये BUTT अभिभेकमन्तरा नामोनविंशन्य- धिकदिशततसोऽध्याथः.॥ १ अभिषिद्चक्‌ पान्‌ चेति खर; He, चण, Fo, Ro, Me, ज० टण्च| अथ विंशत्यधिकदिशततमोऽध्यायः। ` सशायसम्पन्तिः | पुष्कर उवाच । सोऽभिषिक्रः werarat HASTA: रान्ना सेनापतिः कार्यो ब्राह्मणः afaatsa atu १॥ कुली नो नोतिशास््रन्नः प्रतीहार नौतिवित्‌ | gaz प्रियवादौ स्यादत्तौशोऽतिबलान्वितः 1 २॥ ताम्बलधारोनास्तौ वा भक्तः कशसद्प्रियः। साथ्िविग्रहिकः काखः षाडगु्यादिविशारदः ॥ २॥ खडगधारो Tans स्यास्सारथिः स्यादलादिवित्‌ । खदाध्यक्तो हितो. fe महानसगतो fe a: ns a सभासदस्त WANT aagarswycated: ्राद्वानकालविन्नाः afear दौवारिका जनाः॥ ५॥ रत्रादिन्नो धनाध्यश्लः श्रनुह्ारे feat नरः | स्यादायुबंद विद्यो गजाध्यच्ोऽय इहस्तिवित्‌ ॥ ९ ॥ जितञओख्रमो WATTS हयाध्यक्षो हयादिवित्‌ । दुगध्यत्तो हितो धौमान्‌ स्पतिवँस्तषैदवित्‌ ॥ ७ ॥ ` यन्त्रमुक्त पाणिमुक्ते wan सुक्षघारिते। sara fage च कुशलो safe ॥ ८ ॥ ठद घान्तःपुराष्यच्ः पच्चाशदाषिकाः लियः । [२२० अध्यायः। सहायसम्प्तिकथन | २०२ सपततयब्दास्त॒ पुरुषा रेयु; TARHG ॥ < ॥ जाग्रव्छयादायुधागारे ज्ञात्रा ठत्तिविंधीयते | उत्तमाधममध्यानि ब्धा कमणि पाधिवः।॥ १०॥ उ्षमाधम मध्यानि परुषाणि नियोजयेत्‌ | जयेच्छः पथिवो' राजा सहायानानयेहितान्‌ ॥ ११ । धमिष्टान्‌ धमंका्यषु शुरान्‌ सडनग्रामकमसु | . निषणानर्क्षयेषु(\) waa च तथा Way ॥ १२॥ सोषु werfagaia dreary दारुणकर्मसु | यो aa विदितो राश्ना चितेन तु तच्ररं॥ १२॥ घम Wa च काभे च नियुच््नोताधमेऽधमान्‌, राजा यथा Fars उपधाभिः परोक्तितान्‌ ॥ १४॥ समन्तौ च यथान्यायात्‌ कुय्योहस्तिवनेचरान्‌ | तत्पदान्वेषणे यत्तानष्य्तास्तत्र कारयेत्‌ ॥ १५॥ यस्मिन्‌ कमणि कौशल्य यस्य तस्मिन्‌ नियोजयेत्‌ | पिदढपेतामद्ान्‌ भृत्यान्‌ सर्वकमसु योजयेत्‌ ॥ १६॥ विना दायादक्तलयेषु aa a fe समागताः। परराजग्डषात्‌ प्राप्तान्‌ जनान्‌ संखयकाम्यया(९)॥ १७ ॥ दुष्टानप्यथ वाऽदुष्टान्‌ संखयेत प्रयब्रतः | qe war विष्वसेत्र तदृढत्तिं वत्तंये्थे ॥ १८॥ देणान्तरागतान्‌ पाश्वे चारेन्नला हि पूजयेत्‌ | शचरवोऽग्निर्विंषं सर्पा निस्तिंशमपि चेकतः ॥ १९॥ [ १ रिपननर्थ॑दछचत्येव्विति wo) २ जनानाश्रयकाम्ययेति we | २०४ शरग्निपुशाणे [२२० अध्यायः | भूत्या वशिष्टः fare: कुभत्याख तथेकतः ! चारचक्षभवेद्राजा नियुष््नौत सदाचरान्‌ ॥ २०॥ जनस्याविहितान्‌ सौ्यांस्तघान्नातान्‌ परस्पर | वणिजो मन्तकुणलान्‌ सांवत्सरचिकित्कान्‌ ।२१॥ तथा प्रब्रजिताकारान्‌ बलाबलविषैकिनः) नैकस्य राजा अध्या च्छदध्याद्‌ बहवाक्यतः॥ २२। रागापरागौ भव्यानां जनस्य च गुणारुशान। WATATAPATATS WACAMSATT Ti Az अ्रनुरागकर HA चरेव्नद्याहिरागजं | जनानुरागया AAT राजा स्याञ्जनरश्लनात्‌ ॥२४॥ दूत्याय महापुराणे सदहायसम्पत्तिर्नाम विं शरत्यधिक- इिश्चततमोऽप्यायः ॥ अथं एकविं शाधिकदिशततमोऽध्यायः | © ^, 0 कणि . गयी @ अ” @ Gent उवाच | भत्यः Gata, राजाज्न! भिष्यवसच्छियः पतेः । न च्िपेदचनं राश्रो अलकूलं प्रियं वदेत्‌ ॥ १ ॥ रहोगतस्य वक्तव्यमप्रियं यदितं भत्‌ | न fagal ₹रेदिन्तं नोपेक्षेत्तस्य मानकं ॥२॥ राज्ञ न तथाकाथः वैश्भाषाविचेष्टित , भन्तःपुरच राध्यो FTAA PTT: ॥ २॥ [२२१ भ्रष्यायः। भनुजोविष्ठत्तिकधनं । ३० ४ संसगः न ATTA राज्ञा गुह्यञ्च गोपयेत्‌ । प्रदश्यं कोलं कििद्राजानन्तु विशेषयेत्‌ ॥ ४॥ राज्ञा यच्छरावित गद्य न awa प्रकाशयेत्‌ | भरान्नाप्यमाने वान्धस्मिन्‌ किङ्रोमोति वा वदेत्‌ ॥ yn AA रब्रमलङ्गारं रान्ना दत्त च धारयेत्‌(\)। नानिर्दिष्टो(र) हारि विथेब्रायोग्ये सुवि राजदक्‌॥ ६ । जम्भाव्रिष्टोवनङ्नसं कोपं पय्यन्तिकाखयं | waet वातसुद्भारं तस्षमोपे विसजयेत्‌(र) ॥ ७ ॥ सगुणा ख्या पमे FHI परानेव प्रयोजयेत्‌(*) | TST Mel aay afer चद्रता तथा ॥ ८॥ चापस्यच्च परित्याज्य नित्य" राजानुजीविना । ` gta विद्याथिष्येख संयोज्यामानमाश्मना ॥ < ॥ राजसेवान्ततः क्य द्धतये area: (५) । नमस्कार्याः सदा चास्य पुच्रवह्लभमग्तिणः॥१०॥ afaaate विश्वासो राजचित्तप्रियश्चरेत्‌ | ल्यजेदिर कं cara वत्तिमौहेत राजवित्‌ i ११॥ शअष््ट्ास्य न HAT कामं कुग्या तथापदि | प्रसन्नो वाक्यसङ्ाहहौ रस्ये न च MHA eR ९ र्ाऽदस' नधारयेदिि Wot ३ विवजजयेदिति qo, qo, Ho, ze च। २ alfafed 6 eee =----------0 ~= ® Ly | राजघमाः | ‘URC उवाच । BAT कमं Sarai विहि देहान्तराजिंतं । तसात्‌ पौरषमेषेष् अष्टमां नौषिणः ॥ १९ ॥ [२२४ अध्यायः t रालधर्मकथनं। ` ३२९१ प्रतिकल तथा दवं पौरुषेण विहन्यते | साचिशात्‌ waa: gag सिद्दिः स्यात्पौरुषं विना ॥२॥ dad रैवसस्मच्या काले फलति भागव । दैवं स॒षकार खच हयं पुंसः फलावहं ॥ ३ ॥ छषिष्टिसमायोगात्‌ काले स्ख; wafers: | aay Cat कुर्यान्नालसो न च देववान्‌ ॥ ४॥. सामादिभिरुपायै स्त॒ सवं सिदयन्युपक्रमाः । ` साम्न चोपप्रदानच् भेददण्डौ तथापरौ ॥ ५॥ माग्नोपेचेन्द्रजाल्च उपायाः सष ATHET | दिविध कथितं साम तण्यच्चातथ्यमेव Tug a AUNAAA साधनामाक्रोग्रायंव जायत | महाङुलौना दुवो धमनित्या जितद्दियाः ॥ ॐ ॥ सामसाध्या अरतधेवश्च wae राक्षसा whe | तथा तदुंपकारार्णां कतानाद्धब वणन ॥ ८ ॥ परस्परन्तु ये दिष्टाः क्ुभोतावमानिताः तेषाग Gta परसरं BARA) ॥ < ॥ श्राोयान्‌ दशेयेदाशां येन दोषेण बिभ्यति । परानेव ते भेद्या Tet वै न्नातिभेद कः ॥ १० ॥ SUMMARY ATERG मन्लामाव्यामजादिकः ५२) | अन्तः कोषस्चोपशाम्य Fay THT तं जयेत्‌ ॥ ११ ॥ उपायश्रेष्ठं दानं स्यादानादुभयलीकभाक्‌। न सोऽस्ति नाम दानेन वशगो यो न जायते ॥ १२॥ १ WHEE Rua Ho | 2 अन््रामात्यानुजादिक दति Sey ( ४१ ) ९२१ ; अग्निपुराणे [२११ भध्यायः। दामवानेव शक्रोति संहतान्‌ भेदितु' प्रान्‌ । चयासाध्यं BIA दण्डेन च कतेन च॥ १२) zw aa खितं दष्टो नायेषप्रशौक्ततः । ATW दण्छयन्रश्येदण्डयानुजाप्यदेण्डयन्‌॥ १४ ४ शशेवदैत्योरगनराः feet भूताः पतजिखः। Samay खमर्यादां यदि दण्डान्‌ न पालयेत्‌ ५॥१५॥ यखाददान्तान्‌ द्मयत्यदश्डयान्दण्डयत्यपि t ` दमनादण्डनाचैव तस्माहण्ड विदुवधाः ५१९7 तिजा efacren fe राजा भाखकरवन्षतः । . लौकप्रसादं गच्छेत दर्थंनाशन्द्रव्ततः ॥ १७ 8 जगहयाप्रोति वे चारेरतो राजा सभोरणः। ` ` दाषनिग्रहकारितलाद्राजा वैवस्वतः प्रभुः ॥ १८ 8 यदा दहति gate तदा भवति पावकः। यद्ध दानं दिजातिभ्यो दात्‌ तस्मादनेष्लरः ॥ १८ ॥ धनघाराप्रवषिंलादेवादौ वरुणः A ` चमथा धारयंह्लोकान्‌ पार्थिवः पार्धिवो भषेत्‌ ५२० ॥ SRILA ALAN रचेद्यश्मादरिस्ततः॥ CATT AWTS सामाद्यपायो नाम Ty fa ae पिकदिश्ततमोऽष्यायः॥ अथ षडविंशत्यधिकदिशततमोऽध्यायंः। राजधर्माः । GHC उवाच । टर्डप्रणधनं वच्ये येन Tre: परा. गतिः। वियवं awa विचि माषस्तत्‌पश्चकं भवेत्‌ ॥ ११ छष्णलानां तथा wear (*) क्षा" राम alfa t gata fafafedt राम पोडशमाषकःः॥ २५. निष्कः सवर्णं चत्वारो धरणं cafe तेः । ताखररूप्यसुवष्णौनां मानमेतत्‌ प्रकौत्तितं ॥ ye afer a: कार्षिको राम परोक्षः कार्षापणो gas पणानां हे शते ae प्रथमः साहसः सृतः(९) ws aan पश्च विन्नेयः सहख मपि चोत्तमः । ` | चोरेरम्‌भितो यस्त मूषितोऽच्छौति भाषते ॥ ५ ॥ तत्प्रदातरि भूपाले स टण्डास्तावदेव तु। ओ यावदहदिपरौता्े मिष्या वा यी' ata तं॥ ९॥. तौ aaa छधमेज्ञौ दाप्यौ तदिरुं दमं (९) । कूटसाश्यन्तु कु्बी णांस््रौन्‌ ats प्रदापयेत्‌ i ou विवासयेदधाद्मणन्तु भोज्यो विधिन्रे हौरितः। निचचेषस्य समं ae दण्डयो निेपमुक्‌ तथा॥ ८ ॥ १ त॑था चष्ट दति Ko, He FJ | ९ Meas es Cala, TING: GA TAM: पाटः We Ges mies ९ थोयावबदित्यादिः, aigay दसभित्यनाः पाठः we gaa माकिः; २२४ अरभ्निषुराणे [२२१ अध्यायः t वख्ादिकख्य was तथा धर्मान laa यो fad घातयति यथानिचिप्य याचते \ ९ ॥ ताबुभौ चौरवच्छास्यो een वा ददिगुणं दम । WMATA: युमान्‌ HAT धरदरव्यस्य विक्रयं \ १० tt ` निर्दौपो च्रानपूषन्तु @tarwas fal’) । मस्यमादाय यः few न दद्याद्‌ SHI एवं सः । ११॥ रिशु्ाप्रदातोरं GIT THIAT | तिं Wa न FATT: RAST HUST TH ॥ १२४ श्रकालें तु UIA भ्यं दर्यः स्यात्षावदेव तु । क्रीत्वा विक्रीय वा किञ्चिदयस्येहानु्यो wag + १२॥ सोऽन्वदशादहानत्‌खानो दवयाचेवादरीतं च । चरणश तु SNES ATTA दापयेत्‌ ॥ १४॥ आदद ददश्वैव रान्ना Sw शतानि षट्‌ | वरे दोभानविख्याप्छ यः कन्यां acafee’) ॥ १५॥ SUIACAT VI तस्य रान्ना दण्डयः गतदहयं। प्रदाय कन्धा Meare पुनस्तां सम्प्रयच्छति ॥ १९॥ Swi Halt नरेन्द्रेण तस्याप्यत्तमसादसः । सत्यङकारे क वाचा च शंक पुमसंशयं ॥ १७॥ ल्गोऽन्यत्रे च विक्रेता wena दण्डम ति | CAAT न यः पालो ग्टद्ोतला भक्तवेतनं ॥ १८ ॥ सतु दण्डयः शत रान्ना yan वाप्यरंन्तिता। १ चोरवडषमद्ंतोति Ho, MoT! २ ATUL it Wo, He च|". [२९९ अध्वायः। oo cera, ३२३ धतुः गतं परौ णाहो ग्रामस्य तुं समन्सतः॥ १९.॥ दिगुणं गुण वापि नगरस्य च कल्पयेत्‌ | ठतिं aa ngala यासुटो नावलोकयेत्‌ ॥ २ ° ॥ त॑वापरिकते धान्ये हिंसिते नैव दशर्नं | ग्टहन्तडागमारामं AT वा भोषया हरन्‌ URL ` शतानि पञ्च दण्डयः सादज्नामाद्‌ दिशतो ea: | मर्यादाभेद काः सवं दर्पाः प्रथमसाहसं ॥ २२ ॥ शतं ब्राद्मणंमाक्रुश्य fan दण्डमहंति । . aay दिशतं राम yea बधमंति॥ २३॥ पञ्चाशद्धाद्मणो eer क्षचियस्याभिशंसमे । वेश्य वाप्य्ैपच्चाशच्छदर दाद्शको दमः ॥२४॥ ्ततियस्याग्न यादेश्यः साहस पूर्वमेव तु । शूद्रः च्त्रियमाक्रश्य जिद्वाच्छेदनमाप्रयांत्‌ ॥ २.५॥ धर्मोपदेशं विप्राणां शूद्रः gaa दण्डभाक। खतदेादिवितथौ दाप्यः fequated । २६ ॥ उत्तमः साहसस्तस्य यः पपिरत्तमान्‌ च्िपेत्‌ । ` प्रमादादये मेया Mian भीत्या द्च्डार्दमर्ईति ॥ २७ ॥ मातरं पितर च्येष्ठं तरं श्वशुरं गुरु" । भराच्चारयनच्छत दण्डयः पन्थान चादददरोः॥२८॥ श्रन््यजातिदिजातिन्तु येनाङ्क्नापराभ्रयात्‌ । तदेवच्छेदयेत्तस च्तिप्रमेवाविकचारयन्‌ ॥ ३९ tr अवनिष्ठोवतो quiz हावोदधौ Sedan: ` -श्रपमूव्रयतो मेदुमपग्ब्दयतो गुदं ॥ २०॥ ३२६ परस्निपुराणे [२९६ अध्यायः bh उतृकष्टासनसंस्यस्य नो चस्याधोनिक्तन्तन | NASH च रजयेत्तदङ्गन्तस्य RAAT ॥ ११ ॥ श्रदैपाद्कराः कायां गोगजाश्लोष्टघातकाः ! हन्तु बिफलं कत्वा सुवण TWAELA ॥ ३२ ॥ हिगसं टापयेष्छित्र पथि ofa जलाशये । genta ये दरद्यस्य न्नानतोऽन्नानतोऽपिवा ॥ ₹२ ॥ स तस्योतृपाश्च afeaq रान्न दद्यात्ततो ea | यस्त॒ र्न घटं कूपाहरेच्छिन्याच्च तां प्रपां ॥२४॥ BSG WANT मासं दण्डयः स्यात्‌ प्राणिताङ्ने t धान्य दम्यः कुम्भेभ्यो हरताऽभ्यधिकं बधः ॥ २५॥ येषेऽप्येकादशगुणं तस्य द्‌ गढ़ प्रक्पयेत्‌ | सुवणरजतादौनां दृखीणां हरणे बधः॥ ३९१ येन येन यथाङ्गेन स्तनो zy विचेष्टते । तश्तदटेव रदस्य प्रत्यादेशाय पाधिवः ॥ ३७ ॥ MMU शाकधान्यादि we WaT दोषभाक्‌। गोदेवाथ' wtarfe wares’ बधोद्यतं ॥ १८ ॥ ग्टषतचेतापह्तार तथा पट्न्यभिगाभिनं | श्रम्निदं गरद हन्यात्तथा चाभ्युखतायुध॥ १९ ॥ राजा गवाभिचाराद्यं दन्याशचैवाततायिनः॥ परस्ियं न भाषेत प्रतिश्निदो विथेब्रहि॥४०॥ | TEEN स्तो भवेद्राज्ञा वरयन्तो पतिं खयं | ~ पो ‘ © उत्तमां सेवमानः स्तौ जबन्धो वधमषति॥ ४१॥ : wat ल्.घयेद्या तां श्लभि; सडःघातयेत्‌ faz । {२२६ Galas) राजघमकथनं। | are सवणंदूषितां gate पिर्डमावोपजोविनौ' ॥ ४२ ॥ ज्यायसा दूषिता नारौ FA समवाक्नयात्‌ । | वेश्यागमे तु विप्रस्य afsaareararaa ॥ ४३॥ तियः प्रथम वेश्यो दण्डयः शूद्रागमे भवेत्‌ । Weal देतनं वैश्या लोभादन्यत्र गच्छति ॥ ४४ tl वैतनन्हिगुणं carewy हिगुण तथा | भायी gata दासा शिष्यो भ्राता Mee wey कतापराधास्ताखयाः ACSA वेणदलेन बा । ` षट न मस्तके इन्याच्चौरस्याप्रोति किखिषं i ४६ ti र्ासखधिकतेयस्त प्रजा ऽ त्यथ" विलुप्यते । तेषां सजखमादाय राजा कुयात्‌ प्रवासनं ॥ ४७ ॥ ये नियुक्ताः सखकायंष हन्य : कार्याणि कर्मं | fara: क्रूरमनसस्ताबिःखाम्‌ ALATA WBS ॥ TATA: प्राड्विवाको वा यः Hara, कायमन्यधा । तस्य सवेखमादाय तं राजा विप्रवासयेत्‌ ॥ ४९ ॥ ` JAAS भयः कायः सुरापाणे सुराष्वजः। way श्वपदं विद्याद्‌ ्द्मदत्याभिरः पुमान्‌ ॥ ५० ॥ शूद्रादौन्‌ घातयेद्राजा पापान्‌ विप्रान्‌ प्रवासयेत्‌ । म्टापातकिनां वित्तं वरुणायोपपादयेत्‌ ॥ ५१॥ ग्रामेष्वपि च ये केचिष्टौराणणां भक्तदायकाः | भा्च्डारकोषदा चेव सवांस्तानपि घातयेत्‌ ॥ ५२ ॥ wee राष्टाधिक्ततान्‌ सामन्तान्‌ पापिनो इरेत्‌। afar छलातु ये चौर्य" रात्रौ कुवन्ति तस्कराः HRD A ARS अग्निरा [२२६ भध्थायः। तेषां च्छित्वा कृपो स्तौ are शूल निवेशयेत्‌ । तडागरेवतागारभेदकान्‌ घातये्र पः ॥ ५४ ॥ ` समुत्‌ खजेदधाज मागं यस्त्रमेध्यमनापदि | स fe कार्षापणन्द ्डपस्तममध्यश्च शोधयेत्‌ ॥ ५५ ॥ प्रतिम्रासङक्रमभिदो ca wants at समश fauna at at चरते मखतोऽपिवा॥५६॥ समाप्रयाब्ररः YA दम मध्यममव AT! द्रव्यमादाय वणिजामनघणावरन्धतां ॥ ५७॥ ` वजा VAR TIN FACS RUA | द्रव्याणां दूषको wa प्रतिच्छन्दकविक्रयो ॥ ५८ ॥ मध्यमं WY AEG कूटकत्त तथोत्तमं | RASTA देय sua दिगणस्ततः ॥ ५९ ॥ श्रभच्यभच्छे विप्रे वा शुद्र वा छष्णलो TH: | तुलाथासनकर्ता च कूटकह्ब्राशरकस्य च ॥ eo ॥ एमिड व्यवदन्ता यः स दाप्यो दममुत्तमं | विषाग्निदां पतिगुस्विप्रापत्यप्रमापिणौ। ६१॥ दिकण करनासोष्टो' Rat गोभिः प्रवासयेत्‌ । ` चेचवे शम्य मवनविदारकास्तथा नराः ॥ ६२॥ राजपत्न्यभिगामो च द्ग्धव्यास्त कटाग्निना । ` ऊने वाप्यधिकं वापि लिखेद्यो राजशासनं ॥ ६२॥। | प्रारज्ायिकचोरो च मुश्चतो ew उत्तमः | राजयानासनारोढदस्ड उत्तमसाहसः ॥ es ॥ धो मन्ेताजितोऽस्मीति न्यायेनापि प्रराजितः। ' [१२७ ्रध्यायः। युंदयात्ाकथ्ंनं । ई २९ तमीयान्तं चरोजित्य(९) wae दिगुणं दमं ॥-६५ ॥ अाद्वान॑कारो बध्यः स्याद्‌ नात मचादयन्‌ | SNA च यो. हस्ताषटभिभुक्ः - पलायते ॥ ६९ ॥ Sila: पुंरूषकारख तद्‌ ट्चादार्डिकोः aa इत्याग्नेये महापुराणे दण्डप्रणयन नाम षरडविरशव्यधि- कदिणततमोऽष्यायः॥ चन + é e o „ ~ ‘ [कर i 4 त - = ” १८4 : ' + # अथ सपविशलधिकदिशततमोऽध्यायः। ` es म eee ow” @ a युवेवात्री.।. ` पुष्कर खाच | यदा मन्येत खृपतिराक्रन्देन बलोयसा | पाश्णिग्राहोऽभिमूतोम तदा यात्रां प्रयोजयेत्‌ ॥ १॥ घ॒ष्टा योधा अता मुताः MAY बल मम । 'मूलरसासमर्थौऽस्मि तेर्गख(रोशिविरे रमेत्‌ ॥ २ ॥ natal eae यायात्‌ sare: पीडितं परं । भूकम्मी atten यांति ag केतुब्यदूषयत्‌ ॥ ३ ॥ विदिना कं सैन्य संश्रतान्तःप्रकोपनं(र) । शरीरस्फर.े धन्ये तथा सुखप्रदशन ॥ ४ ॥. fafa शक्न धन्य जात गत्र पुरं AAT! „ १ पएमजिबति गरं जन्चं। ee स्तिशाषः। = १ सण््ताकःपरकोपदभिति खम, Eo च। | ( ४२ ) 2३० । अभ्नियुररखे {२१८ Gara: | ceifaarargeat सेनां arate योनेत्‌ ॥ ५५. हेमन्ते शिथिरे चेव रथवरजिसमाङुलां | VACA सन्ने वा शरन्‌मुखे(५ ॥ ६ ॥ सेना पदातिबडइशा अरन्‌ जयति खदा । - सङ्गदच्ि्भागे तु यस्तं प्रसमुरखं भेत्‌ nee न WAY तधा वामे USES हदयस्य ख । लाञ्छनं पिटक्ेव विश्य wee तथा ॥ ८ ॥ विपथेशाभिदह्ितं सव्ये erat शमं wag | LAT मह्णापुराये खवा माम सविं शत्यधिकदिथ- ततमोऽध्यायः ॥ VHS विं श्रत्यधिकदिशततमोऽष्यायः। — 3 च्वन्राष्याधः | । TRC उवाच । SA शभाशभं वच्छ दुः सेप्रहर शन्तथा । नाभिं fears गारे ठणठ्तससुङ्कवः ॥ १॥ चरनं afe कांस्वानां FoR नग्नता AAT मलिनाम्बरधारिलमभ्यङ्कः पङ्टिग्ता ॥२॥. sary प्रपतनच्ैव विवाो गौतमेव च। तन्तौवाद्यविनदेदख दोलारोष्णशमेव Ti 2 | लनं पद्मलोहानां सर्पाणामथ मारण । gp १ रख्यति Ho, To | | ; | , -- [२२८ अध्यायः। | war । ` Bre: दल पुष्यटुमाथाच्च SVTIST तथेव च ॥ ४१. TEAST ral तथा चारोदशक्रिवा। wae पञ्िमांसान्नं dae acer we!) ॥ & ॥ मातुः प्रवेशो जठरे वितारोहणमेकः at शक्रष्वजाभिषतन पतनं यशथिदब्ययोः ॥ &॥. दिव्यान्तरौचभौमानासु्यातानाच्च देनं + .. देवदिजातिख्पानां गुरूग्णाह्णोप एवं च ॥ ७.॥ ada wares विवादो Waka च (र)। तन््ोवा्विदयोनागां वाख्यनामपि वादनं nse स्मोतोवदहाभागमनं ख्छनं मोमयवारिणाः। पड्ोदकेन च तथ्य मभ्मौतोयेन ATT < ॥ पलिङ्गनं कुमारोषाः परपाणाख् मषने() । हानिरेव aararat विरेको वमनक्रिया ॥ १०५ दक्तिणश्छप्रगमन व्वाधिनमिभवस्तधा। | फला नासुपद्धानिख UTA भेदनं AUT ॥ ६१ ॥ . CEASA पतनं ग्टहसम्प्राजं नन्तथा | क्रोडा पिशाचक्रव्वादवानरान्यनरेरपि॥१२.४. , परादभिभवसेव तस्माच्च व्यसनोड्वः | काषायवसरधारित्वं ase: area तथा(*) ॥ ११॥ १ तन््ोवा्चविनीदशत्यादिः, ABQ ब faaieiega va चेति ato | BUCY FU पाठ : Re We GARE ₹ meray च मेनमिति a | ४ ufsdtaiiq:, wien तये- त्यतः TS: He Team Hef | - nifa | RRR a {~~~ ¬+ ¦ RGIS. , [२२.४८ srempa: } GWMAANTE च रहमास्यागुज्ञ AA, | इत्यधन्द्रानि yi तेषामक्रषेन Wal १४ A: ` भयञ्च BVA तदत्‌ काय्यं wis feares | तिलंहोमिो हगि्जिद्वशिवाक्षम णपूजनः॥ १५॥ तधा स्तविप्रपठनं पखकाटिलणस्तघा | SAA प्रथमे ara’) संवक्छरविपाक्िनः॥ १६९1 वडभिर्मासेहित्ोये तु विभिमासेच्ियामिकाः | | चतुय त्हमासेन दण्हादरूणोदये #-१ॐ ॥ . एकस्यामथ VATA शमे का यदि व्राऽशभं e © पथाटृष्टस्त यस्तत्र. तख पाक दित्रिदिथेत्‌.॥ ८५ तस्मात्त TAA GT TTA न शस्यते । ओेलप्रासादनायाश्वदषभारोष्शं हितं ॥.१९. ॥ . ` Eau खेतयपुष्पाणां मगने च तथा हिज .। दमटणोद्धवो नाभौ तचा च TEATCAT ॥ २० ॥ : तत्रा च बहभौषंलं “fans एव च । सुशक्तमास्यधारित्वं सुशक्राम्बरधारिवा। २११४ न्द्राकैताराग्रहणं परिमार्जनमेव च । शक्रध्वजालिद्गनच् ध्वजोच्छायक्रिया तथा ॥ २२॥ ® N भूम्यम्बधारायदश(र) Tawa विक्रिया । जयो विवादे यते च सङ्ाभे च तथा fea २२1 भकस्तण्च्ाद्रमांसानाम्प्रायसस्य च AAT | दशन रुधिरस्यापि खानवा स्धिरणन्व।।२४॥ - १ प्रशमे भागे दतिः ख०। र भृम्यम्बघोनां प्रडणमिति Fo, Ro, Ho च| ~ = [३२९ अध्ायः। गङुनैपःलकथनं | are सुरास-घरमय्ानां षानं सौरस्य वाप्यथ । ` saad भूमौ fart गगनं aa Rye मुखेन Sea शस्त मंहिषोकां तथा गवां । सिन्त इस्तिनोनाच्च बडवानां तथेव च ॥ २.६. प्रसादो देवविप्रेभ्यो गुरुभ्यश्च तथा दिज्ञ। अन्यस WTA? गवां WAIT च ॥ २७ ५. ARIS WTA IT राम Ba राज्यप्रदं हितत्‌।. दाज्वाभिषेकश्च तथा sea शिरसोऽप्यध। acu मरणं afsaiag afgerst ग्टद्मदिषु। ल धष. राजलिङ्गानां तन्त्ौवाद्याभिवादन । २५ ॥ TS पश्यति AT राजानं ब्रं इयं 1 fer ठषभङ्गाच्च कुटुम्बस्तस्य वैते ॥ २० ॥ हमेभग्टहशेलाग्रवचारोहणशरोदनं | छतविष्ठानुलेपो वा भ्रगम्यागमनं तधा ॥ ३११. faaaw wearer. फलो दत्तो नभोऽमलं | TATA मश्ापुराखे खप्राध्यायो नाम भ्र्टाविंशत्यभिक- हिशततमोऽष्यायः! ॥ अथ एकोनं शदधिकदिशततमोऽध्यायः। = <~ © नन्वत चक © शकुनानि | पुष्कर उवाच । ओषधानि च युक्तानि धान्यं कष्णमभोभनं | HME टणणशष्कशच्च गोमयं वे धनानि ze i ४२४ अम्निपुराशे - (२९९ अध्यायः ॥ अङ्गार Beat च (\) सुरूाभ्यल्शच नग्नका | भयः पडू THAT CARY नपुंसका ॥ २४ वण्ाशश्वपचाद्यानि नरा बन्धनपालकाः। गभिसौ सनो च विधवाः पिष्याकादौनिवै खतं॥२॥ तुषभस्मकपालाख्िभित्रभाग्डमशस्तकः | STM Tare भिनमैरवभर्भारः | ४॥ णोति परतः णब्दः शस्यते न तु एतः। गच्छेति पचाच्छब्टोऽग्रयः रस्ता तिगद्ितः॥ ५॥ w यासि fas at गच्छ किन्ते त्र गतस्य st अनिष्टशब्दा इत्यथे ` क्रव्यादख ष्वजादिगः॥ ६॥ ` CATA वाषनानाख शस्तरभक्गस्तयेव च । शिरोषातख हाराकेन्डतवासादिपातनं॥ ७ ॥ इरिमभ्य्य संस्तत्य स्यादमङ्गल्यना शनं | दितोवन्तु ततो cer विरु प्रविशे ।। ८ ॥ TAT: सुमनसः येष्ठाः YHA महोत्तमः | , मांसं मत्स्या ETAT TW एकः पशस्वजः ।। ८ ॥ ` MARCHA नाया SATE ज्वलितोऽनलः। © oe 0 $ दूर्बाद्रं गोमयं वेश्या MUSA CaF ॥ १० ॥ वचासिदाधकौषध्यो सुद्र भआायुधखंडगकं | : Ba wis tafay शवं रुदितवर्जितं ॥ ११॥ = - + © सिकं फल wa दधि पयो ्रक्षताद्शमास्तिक | ` शङ्क इचः शभ वाक्य भक्लवादितमोतकं । १२॥ कयः १ गुडसपे बति ae, चन्जण्च। [२३० WaT | aaa । ` ११५ गग्ीरमेषस्तनितं afenfea मानसी | एकतः सवलिङ्गानि मनसस्तष्टिरेकतः ॥ ११ ॥ TATA महायराणे माङ्गल्याध्यायो नाम रकोनविंश- द्धिकदिथततमोऽध्यायः॥ ; Ge sea , wy चिं शदधिकदिशततमोऽध्यायः। e इयम <> 9 को शङुनानि। TR उवाच । तिष्ठतो गमने प्रश्रं पुरुषस्य Garg! निवेदयन्ति शकुना देशस्य नगरस्य च ।। १ ॥ Was पापफलो Shar निर्दिष्टो देवचिन्तकः । शान्तः शभफलखव देवज्ञो: ससुदा्तः ॥ २ ॥ षघटप्रकारा विनिदिष्टा यङ्कनानाख दौषयः।. -. वैलादिग्देशकरण सतजातिविभेदतः ॥ १) पूर्वा gal = विश्नेयासा तेषां aera दिवाचरो राजिचरस्तथा रातौ दिवाचरः।॥ ४॥ omg diet विन्चया कऋचषलम्नग्रहादिषु । .. धमिता सातु fren याङ्गमिष्यति भास्करः।॥५॥ zai खितः सा ज्वलिता gar चाङ्गारिणशो मता। एतास्तिक्लः स्मता दोषाः पच्च यान्तास्तधापराः ॥ ९॥ - 'Z Tq ` अभ्विपुराशे [२१० भष्यायः। दोप्तायाल्दिभिः दिग्दोपष' शकुन' परिकौसिंतः । ग्राभेऽरख्ः वमे -याग्यास्तथा निन्दितपादपः ॥ ॐ ॥ , देणे Targa wat टेणदोप्ो festa: | क्रियारीक्तो विनिर्दिष्टः खजात्यलुचितक्रियः ॥ ८॥ qaziaa कथितो भित्रभेरवनिखनः। जातिदौषस्तथा श्यः केवलं मांसभोजनः ॥ < ॥ दौपताच्छान्तो fafafee: wane: प्रयब्रतः। fata fafate cae वाच्च फलां फलं ॥ १० ॥ TATE गहंभण्डानः सारिका ग्हगोधिका | चटका WITHA कथिता ग्रामवासिनः ॥ ११॥ अरजा विष्टकनागेन्द्राः कोरी -मद्दिषवायसौ | पाम्यारण्या विनिर्हि्टाः wast वमगोचराः८९) ॥.१२५॥ मार्जारकुकटौ Are तौ चेव वनगोचरौ | तयोर्भवति विन्नानं faa वै रूपभेदतः ॥ १३ ti गोकणगिखिचक्राद्न खेरहारौतवायसाः = कुलादकुकभण्यनपफे रुखष्लनवानराः ।। १४ ॥ शतन्रचटंक॑ष्यामचासभ्यनकपिष्ललाः तित्तिरिः तपचच््र कपोत तथा am १५॥ SASHA ETAT AM AFA wicersra सारङ्ग इति sar दिवाचराः।॥ १९॥ वारर्यलकशरभक्रौच्याः TUTTE -लोमासिंका, पिङ्गलिकाः कथिता राजिगोचशरा,।॥ १७ ॥ १ सवरऽन्प ख वनेचरा इति we | [२३० श्रष्यायः। शङुनफलकथयनं। RRO साख BAAMITARATAYATA: | हका रिखिंहव्याघ्रो्टुग्रामशूकरमानुषाः ॥ १८॥ ष्वाविद्षभगोमायुहककोकिलसारसाः। तुर ङ्गकापीननरा गोधा द्यभयचारिणः ॥ १९.॥ अलप्रखा नयोः सवं पुरस्तात्सष् वारिणः जयावहा fafafeer: पञ्चाब्निधनक्रारिणः ॥ २० ॥ WRIA यदा चासो BTEC घुरतः fea: +. स्प्रावमानं वदति वामः कलहभोजने ॥ २१॥ याने तदेनं शस्तं TARTS घाप्यथ । तौरोर्मीषमथाख्याति मयुरो भिन्रनिखनः॥ २२॥ प्रयातस्याग्रतो राम खगः प्राख्डरो भवेत्‌ | ऋ चा खजम्बवाव्याघ्रसिंहमाजोरगदं भाः ॥ २३ ॥ प्रतिल्लोमास्तथा राम खर fanaaa: | वामः कपिच्लः स्तथा दक्िणसंखितः । २४॥ wea निन्दितफलस्तित्तिरिस्त न शस्यते | एणा वराहाः CAAT ATAT BAT | दत्तिणाः।॥२५॥ अवन्त्र्घकरा नित्यं विपरीता विगहिताः। ह षराण्वजम्बकव्याघ्राः सिंहमाजौरगदं भाः(५॥ २९ it वाच्छिताथंकरा Hat दक्तिणाहामतो गताः। शिवा श्यामाननच्छच्छः fare खइगोधिका ॥ १७ ॥\. शूकरो परपुष्टा च YAATAG वामतः। | १ प्रतिलोमाखयेत्यादिः, स्डिमाजारगदंभा इत्यन्तः पाठः लर we पुखकष्ये afte | ( ४२ ) ३२८ भरग्निपुराणे [२२० Wea | MUTA भासकारूषकपिओोकशंच्छित्‌कराः ॥२८॥ कपिखोकणपिष्योका(\) ररुश्येगा दस्तिणाः1 जातोत्ताहिशशक्रोडगोधानां AVA A शुभ 11 २२॥ ततः सन्दशनं नेष्टं प्रतोषं बानरर्चयोः | RARE Waa: प्रसखितस्य हि योऽन्वहं ॥ 204 भवेत्तस्य फलं वाख तदेव दिवसं बुधैः । मत्ता भच्याधिने बाला वैरसक्तास्तयेव च ॥ ३१॥ सोमान्तमभ्यन्तरिता fara निष्फला fess एकदितरिचतुर्भिंस्त शिवा धन्या सते्भवेत्‌ ।। ३२ ॥ पञ्चभिश्च तथा षड्भिरधन्या परिकौत्तिता t सप्तभिख तथा war निष्फला परते भवेत्‌।॥ 22 ॥ gut रोमाख्चजननो वाहनानां भयप्रदा | ज्वालानला qaaet विन्रेया भयवदनो ॥ २४ ॥ प्रथमं सारङ्ग दष्टे शभे देशे qu वदेत्‌ । AINE मनुष्यस्य WHA च शभ तधा ॥ ३५॥ तथधाविधन्ररः पश्येस्सारह्ः प्रथमेऽहनि । .. आसन AMAA HAT वत्सर फलं ॥ ३६ ॥ इत्याग्नेये महापुराणे गकुनानि नाम विश्दधि- कहिशततमोऽध्यायः ॥ ९ पुत्रामानचत्यादिः, पिप पोका इत्यक Weta षु नव पु्तकेषु प्रायः समान एब । तेषामेकतमस्यापि साराय्येन ष्योधितु' न स शक्यते । खअभिधानादिष्वेपि तच- RR TTT | अतस्तव विरतिः | अथेकतनिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः | 9 ©. —— © ~~ द oe शङुनानि। THC उवाच । विशन्ति येन मार्गेण वायसा बहवः पुरं | तेन मागण रूढस्य पुरस्य ATT भषेत्‌ ॥ १॥ सेनायां यदि ara निविष्टो वायसो र्वन्‌ वामो भयातुरस्त्रस्तो भयं वदति दुस्तरं (९) ॥ २ ॥ चछायाङ्गवाहनोपानच्छचवस््रादिकृहनं । सन्य॒स्तत्‌पूजने पूजा तदिष्टकरणे Qs ॥ २ ॥ प्रोषितागमक्तत्काकः Faq हारि गतागतं। रला दग्ध we द्रष्य च्िपन्वह्किनिवेदक;॥ ४॥. न्धसेद्रक्र परस्त।च निवेदयति aaa | पीतं द्रव्य तथा रुका रूप्यमेव तु भागव ॥ ५॥ यच्चैवो पनयद द्रव्यं तस्य लचिि'विनिदिशेत्‌ | eu वापनयेवयत्त्‌ तस्य डानि विनिदिथेत्‌ ॥ e ॥ पुरतो want: स्यादाममांसस्य छदने | afar, स्यान्‌ सदः AG राज्य' TAT महत्‌ ॥ ऽ ॥ यातुः काकोऽनुकूूलस्त चेमः कमं चमो भवेत्‌ | न त्थंसाधको ज्ञेयः प्रतिकूलो भयावहः ॥ ८ ॥ समध खेऽभ्येति विरुवन्‌ यात्राघातकरो भवैत्‌। वामः काकः स्मृतो धन्यो दक्तिणोऽयेविनाशक्लत्‌(र) ॥ € ॥ ` v १ दष्करभमिति खर ee gi २ दचिण)ऽत्रविनाश्लदिति ac, घर्मः च। ३४० | ufmagera [२२१ श्रध्यायः। वामोऽनुलोमगः WEY मध्यमो दक्षिणः खतः । प्रतिलोमगतिर्वामो गमनप्रतिषेधक्त्‌ ॥ १०॥ निवेदयति यात्राथमभिग्रेतं ze गतः(९)। ` एकाच्तिचरणंख्कं वीक्षमाणो भयावहः ॥ १६ ॥ कोटरे वासमानश्च महानथंकरो भवेत्‌ | न WAAC काकः THT! स तु शस्यते | १२॥ अभेध्यपूणवदनः काकः सर्वाधंसाधकः(र)। ज्ञेयाः पतजरिखीऽन्धेऽपि काकवद्‌ भृगुनन्दन ॥ १३४ स्कन्धावारापसव्यखाः शानो विप्रविनाशकाः | इन्द्रस्थाने नरेन्द्रस्य YTS तु MT १४॥ अन्त्रं WIT मरणाय भवेडषन्‌ | यस्य जिघ्रति वामाङ्ग' तस्य स्याद्थ॑सिटये॥ १५॥ भयाय दिशं ae तथा सुजमश्चखिणं | यात्राघातकरो यातुभवैत्‌ प्रतिसुखामतः । cet मागगीवरोधको मागं चौरान्‌ वदति भागव। ्रलाभोऽखिसुखः पापो र्जचोरमुखस्तथा ॥ १७ ॥ सोपानत्कमुखो धन्यो मांसपूणंमुखोऽपि च । अमङ्ल्यमुखद्रव्य केशस्येवाशभं Aa १८॥ श्रवम्रयाग्रतो याति यस्य तस्य भय भवेत्‌। यस्यावमूत्रा ब्रजति WH देशन्तथा FA १९ ४ १ मलत्वथं साधक इत्यादिः, गे गत इत्यन्तः २ कोटरे द्त्यादिः, wees पाठः So पुस्तके नालि | इत्यन्तः प्राठः So पुसतक aife | [२९१ अध्यायः। शुनफलकथनं। । ३४१ मङ्गल्य च्च तथा द्रव्यं तस्य स्यादथसिदये | श्ववच्च राम विन्नेयाम्तथा वे जस्बकादटयः । २० ५ भयाय खामिनो ज्रयमनिमित्तं carat fafa चोरभयाय स्याहिक्ततं waa तथा ॥ २१॥ शिवाय खामिनी रातौ -बलोवर्दो नदन्‌ भवेत्‌। उत्‌षटढठषभो um विलयं सम्पुयच्छति i २२॥ रभयं WAIMY गावो दत्तास्तधा GAT: | AMAT: खवत्‌सेषु गर्भक्षयकरा मताः ।। २१॥ ` मूमिं पादेविंनिन्नन््यो Star भौोता भयावहाः | SMA ष्टरोमाख गङ्गलम्नख्द्‌ः शुभाः ॥२४॥ महिष्यादिषु चाप्येतत्‌ सव ara’ विजानता | SUG तथाऽन्येन सपयथाणस्य(*) वाजिनः । २५॥ जलोपवेशनं नेष्ट भूमो च परिवत्तनं | विपत्‌करन्तुरङ्स्य सुप्र बाप्यनिमिन्ततः॥२६॥ यवमोदकयोर्देषस्वकसख्माश्च न शस्यते | बदनाहुधिरोत्त्ति्जैपन न च शस्यते ॥२७॥ क्रीडन्‌ वके: कपोते सारिकाभिरंतिं वदेत्‌ | साखनेत्रो जिहया च पादलेष्टौ विनष्टये(र) ॥ ac ॥ वामपादेन च तथा विलिखंश्च वसुन्धरां। waar वामपालन fear at न शभप्रद्‌ः॥२८९॥ भयाय स्यात्‌ wana तथा निद्राविलाननः। © @Qsaa । १ VTA aa Ty; | २ faarnafafa a, Se aq) ९५, श्रम्मिषुराणे [२११ ब्रध्यायः। MUSEU न ALCAY AAT वा WE व्रजेत्‌ i go ध याज्राविघातमाचष्टे AIA AUT TAF । हेषमाणः WIA areal जयावहः ॥ २१ tt ग्रामे व्रजति नागश्ेन्‌ मेनं देगा भवेत्‌ । प्रसूता नागवनिता मत्ता चान्ताय भूपतेः ॥ ३२ ॥ SUEY नचेददयात्‌ WANT वा WE व्रजेत्‌ | मद्वा वारणो जद्याद्राजघातकरो भवेत्‌ ॥ Vz tt वामं दच्िणपादेन पादमाक्रमते शभः। दत्तिणच् तथा दन्त' परिमाष्टि करेण च ॥ ३२४॥ ais: aaa वापि रिपुसेन्यगतोऽशभः | खर्डमेघातिठच्या तु सेना नाग्मवाग्रयात्‌ 11 २५॥ प्रतिकुलग्रहचा त्तथा सम्पखमारतात्‌(९) | याजाकाले रणे वापि छतादिपतन wa ३६ ।' दष्टा नरााङुलोमा ग्रहा वै जयलक्षणं | काकेयोघाभिभवनं क्रव्याद्धिमं ण्डलतच्तयः ॥ ३७ ॥ प्राचौप्िमकेशानौ सौम्या प्रेष्ठा शभा च दिक्‌ । इत्याग्नेये महापुराणे शकुनानि नाम एकजिश््टधिक- हिशणततमोऽध्यायः ॥ ९ वामं दचिशेयादिः, सकखमारुतादित्यन्तः पाठः we पुस्तक afta | अथ दाचिंशदधिकदिशततमोऽध्यायः। याच्ामर्डलचिन्तादिः। Gat उवाच । सर्वयात्रां प्रवच्यामि राजघर्मसमाखरयात्‌। Taya नोचगते विकले रिपुराशिगे ti १॥ प्रतिलोभे च विध्वस्ते शक्रो arat विसर्जयेत्‌(९) | प्रतिलोमे बधे याचां दिकपतौ च तथा ग्रहे।।२॥ > Twat च व्यतोपाते नागे च WHAT तथा 1 चतुष्पादे च किन्तुन्न तथा यात्रां तिवजयेत्‌ ॥ २॥ विपत्तारे नेधने च प्रत्यरौ चाथ जन्मनि । awe विव्जयेदयातां रिक्तायाञ्च तिथावपि ॥ ४॥ उदौची च तथा AAC) तयोरेकं प्रकीर्तितं । पञ्चिमा efaut या दिक्‌ ante तयैव च॥ ५॥ aafafenagad परिघनत्र तु awed | भादित्यचन्द्रसोरास्त दिवसा न Wat: ue i कत्तिकाद्यानि पूवण मघाद्यानि च याम्यतः AMAA चाध वासवाद्यानि वाप्यदक्‌ ॥ ७ ॥ सवहाराणि शस्तानि छछायामान वदामित। wifes विंशतिन्नयाशखन्द्र षोडश alfa us a WA पञ्चदथेवोक्ताखतुद ग तथा qe । । ean ® ~ १९ विवजयेत्‌ इति ao, ae, we, oq! २ दिक्‌ पूव यातयादोचौति ज०। ` ३४४ भ्रग्निपुराणे [२३२ श्रध्यायः। MATT तथा जवे WR STEN कौत्तिताः ॥ < ॥ एकादश तथा We सवकर्मसु Maat: | AHA शक्रचापे TAS न व्रजेन्नरः ॥ १० ॥ WHATS शभे यायाव्जयाय हरिमास्मरन्‌ | वच्येमर्लचिन्तान्ते कत्तव्य राजरश्षणं ॥ ११ ॥ सखाम्यमात्य' तथा दुर्ग" कोषो दरडस्तयेव च | मिचच्नपद येव राक्य सप्ताहसुच्यते ॥ १२॥ सपाङ्गस्य तु राज्यस्य rane न्‌ विनाशयेत्‌ । मण्डलेषु च सवषु afe: काथा महोल्िता।॥१३॥ रासमण्डलभेवात प्रथमं मण्डलः भेत्‌ | सामन्तास्तस्य विन्नेया रिपवो मरडलस्य तु ॥ १४॥ ` खपेतस्त॒ Tey Sa: शन्रमित्रमतः परं | faafaa ततो Sa faafaafcgera: ॥ १५ एतत्पुरस्तात्‌ कथित पश्चादपि निबोधमे, पाश्णिंग्रादस्तः पञचा्ततस्वाक्रन्द्‌ उच्यते (९) ॥ १९ ५ WAT ततोऽन्यः ख्ादाक्रन्दासार उच्यते । जिगोषोः यव्रयुक्तस्य विसुक्तस्य तचा दिज ॥ १७॥ नातापि निश्चयः शक्यो वक्त मनुजयुद्कव | निग्रहानुग्रहे शक्तो wae: परिकीत्तितः ॥ १८ ॥ निग्रहानुग्रहे शक्तः सवषामपि यो भवेत्‌ । उदासीनः स कथितो बलवान्‌ एयिवौपतिः॥ १९ ॥ १ AUR चसर्वेषु gtacen fF दत्यदचोक खासारख्छित्यस्छ TW so Has WA, परग्तसंश्ञगनः। [२११ भध्यायः। षाडगु्छकथनं । १९४१५ न कखमचिद्विपुश्धिबह्ारणाच्छत॒मि्रके | मण्डलं तव सम्बोक्कभेतद्‌ हादश्राजकं ॥ Re ॥ जिविधा रिपवो War: कुष्यानन्तरल्लविमाः | पूवपूर्वा युस स्तेषां दुधिकित्स्यतमो मतः ॥ २१ ॥ भ्रनन्तरोऽपि यः was सोऽपि मे क्जिमी aa: | पाश्धिग्राष्ो भवेच्छतोमिद्राशि रिपवस्तथा ॥२२॥ पाश्थि प्राहमुपायेखच Wades तथा खक । मित्रेण ieee प्रशंसन्ति पुरातनाः॥२३॥ fare शज्रतामेति सामन्तल्वादनन्तरं | ज्रं जिगोषुरच्छिन्दयात्‌(र) खयं शक्रोति चेददि॥२४॥ प्रतापहद्धौ तेनापि नामिन्रास्लायते भयं | यघास्य Menara विश्वासख यघा भवेत्‌ ॥२५॥ जिगौषुधं विजयौ तथा लोकं वशब्रथेत्‌ । इत्याग्नेये मष्टापुराणे यातामण्डलचिन्तादिनाम दाति शद्धिकदिश्ततमोऽध्थायः ॥ अथ चयस्लिं शदधिकदिशततमोऽष्यायः। Weyer । GAT उवाच ! सामभंदौ मया प्रोक्तौ दानदण्डौ तयैव च। दण्डः AAA कथितः wea aaifa ते ॥ १॥ १ म्‌. जिरषु सुख्छिग््ादिति घ, we a) ( ४४ ) ४.६ | अरम्निपुराे [२३३ Wea प्रकाशवाप्रकाणच्च हिविधो दण्ड sea | awd ्राभषातश्च शस्यघातौऽम्निदौपनं ॥ २५ प्रकांशोऽ विषं वह्किर्विविचैः gata: | दूषण्ेवं साधूगासुदकानाच् दूषणं ॥ १ ॥ दष्छपरणबयं Magia चथ भार्गव । wet aaa वतो रसे म मम विग्रहः ॥ ४॥ अनघायागुबन्धः स्यात्‌ Barat च तथा भवेत्‌ । साभलब्धास्यदश्ाज्र टानश्ाथंस्षथष्रं ॥ ५॥ भदद श्ानुबन्धः स्वादटापे्तां समाययेत्‌ । न चायं मम शक्रोति किञ्चित्‌ ages ॥ ६॥ न चाषस्य शक्रोमि तचीपे चां समाज॑येत्‌ । अवज्ञोपहतस्तत्र राक्ता काया रिपुर्मधेत्‌॥ on मायोपायं wef उतृपातै रणते चरत्‌ । अजोरुदै जनं शत्रोः frfecere afew ॥ ८ ॥ स्यलख तस्य पुच्छश्यां aatent विपुला feat विरज ततश्च वसुख्कापातं प्रद शयेत्‌ we ॥ एवमन्ये टशनोया उत्पातां भडवीऽपि चं। उडेजनं तथा Fay ङुवैर्विं विपैहिषां ॥ १० ॥ सांवत्‌सरास्तापसाख नाशं ब्रूयुः परस्य च । ` ` fatty: एथिवीं राजां तेन चोददेजयेत्‌ परान्‌ ॥ ११॥ देवतानां प्रसाद कोत्तनौयः परस्य तु। भगतं ब्रोऽभितरबलं प्रंहरध्वमभोतवत्‌ ॥ १२ ॥ एवं FART प्राते AAT, संवे परे इति । [२११ wart षाङशुणकथयं । age wer: किलकिलाः काया are: अवरहतस्तथा५१३२॥ देवाश्राढठडितो राज gag: अमर प्रति। इन्द्रजालं NTs इन्द्रः कालेन द्श्रयेव्‌ ॥ १४॥ चतुर्ग बलं राजा सष्ायाथ दिवौकसां । बलन्तु दथयेत्‌ प्राप्त रकषददट्िश्रेद्धिपौ ॥ १५॥ दिन्नानि रिषुयोषाणि प्रासादागेष दर्थयेत्‌(९) । षादगुण्छ सम्परवश्यामि तहरौ सल्धिबिग्रहौ i १६ ॥ सन्धय frawea यानमासनमेव. च.। देधोभावः tare षरडगुणाः परिकीन्तिंताः ॥ १७ ॥ पणबन्धः स्मतः सन्धिरपकारस्त fare: | जिगौषोः शत्रव्रिष्ठये यानं याजराऽभिधौयते॥ १८॥ किग्रेण wa देशे खितिरासनमुष्यते | बलान प्रयान्तु द्रधोभावः ख रच्यते \। १९ ॥ SSAA मध्यमा वा GAIA स्मतः | समेन सन्धिरन्वेयोऽषोमेन च बलोयसा ॥ २० ॥ होमेन विग्रहः कायं; खयं रान्ना बलीयसा 1 तत्राप्रि पाशिस्त, बलौयांसं eared ॥ २१॥ भासोनः कम विच्छेदं शक्तः कत्त रिपोयदा । भशदपाशिसासोत fare वसुधाधिपः॥ २२ ॥ भश्दपाणििबलवान्‌ ह घौभाव समाययेत्‌ | वलिना विग्टहोतस्त (९) योऽसन्देहेन पाधिंवः॥.३ ॥ GAIA AHA गुणानामधमो गुणः | १ प्रासादापे प्रद्भेमेदितिढ०। २ freWine, इति ae | ४८ अभ्निपुराणे [२२४ Weare: । बडइशयव्ययायास() तेषां यानं प्रकौर्तिंतं i २४ बहुलाभकरं TaN राजा Waraay(*) । wa fafa ere, तदा FATT स खयं ॥ २५॥ इत्यागेये AYU उपायषद्गुखादिनौम wife - शद्धिकददिशततमोऽष्यायः ॥ भथ चतुस्विंशदधिकंदिशनतमोऽष्धायः | | a, Cae _—— eww 6 प्राल्यहिकराजकमं । gant उवा | अजस्रं कम वच्छामि दिनं प्रति यदाचरेत्‌ । दिसु तौवथेषायां रातो निद्रान्यजेन्रपः ५ १॥ वादयवन्दिखनर्गीतिः पश्येद्‌ गृढांसततो मरान्‌ । fanaa न ये लोकास्तदौया इति केनचित्‌ ५२ श्रायव्ययस्य WAG aa: काय यथाविधि। वेमोत्‌सग ततः RAT राजा WTAE AAT W २॥ खानं FATA पः पयादन्तधावनपूवक । हल्ला सथ्यान्ततो जप्य वासुदेवं प्रपूजयेत्‌ ॥ ४ ॥ वहो पविव्रान्‌ जयात्‌ तपे ages: पिदन्‌ | eee ९ बच्रयव्ययाया्ममिति Go, wo, २ Wel कसविष्छेद्मित्यादिः, राजा Zo च। समाने दत्यकः पाठः Ho पुरक ats | [२९१४ ्रध्यायः। प्राल्यहिकराजकम्कथनं | २४८ दद्यात्काञ्चनीं धेनुं दिजाभीवादसंयुतः॥ ५॥ अनुलिप्तोऽलङ्तख सुखं wae दर्पणे । सस्व wa राजा खरयादिवसादिकं॥ ९ ॥ ed भिषरजोकं च मङ्लालब्भनश्चरेत्‌ | पश्येद्‌ गुर तेन दकाभौवाटोऽच व्रजेखभां ॥ ७ ॥ AIM ब्राह्मणान्‌ पञ्येदमात्याख्नन्विशस्तथा | प्रकतौ महाभाग प्रतोहारनिषेदिताः ॥ cy शुत्वेतिष्ासं araife कार्याणां कायनिंयम्‌ | RANT: पश्च कन्त कुर्यात्तु मन्िभिः ॥ < ॥ aaa सहितः gata gaieghr: सह । न च मूखत्र्ानापेगुषं न प्रकटं चरेत्‌(१)॥ १०॥ aa afafsa कुर्ययाद्यन राष्ट" न बाधत | आआकारग्रहणं रान्न मन्त्ररक्षा परा मता(१॥११॥ आकाररिङ्कितैः प्राज्ना मन्त wate पण्डिताः। | ataacrat वेद्यानां मन्विणां वचने रतः ॥ १२ ॥ राजा विभूतिमा्नोति(९) धारयन्ति ad हि ते मन्तं कलाय व्यायामश्यक्रे याने च शस्त्रके ॥ 22 1 निः स्वादौ कृषः खातः पश्येदिष्णु सुपूजितम्‌ | इत्च पावकं पण्य हिप्रान्‌ पश्व बुपूजितान्‌ ॥ १४॥ ` १ भक्त चाप्रकदं चरदिति ae, Go, So TUE स्थाने खाकारेङ्धितित्छन्नः का- च| य्याका्येविचच्चश इति ० पुखक पाठः ९ खकार प्रये राज्ञा TACT परा मता राजानिभूतिमान्नोतीति sto | ayo ` अम्निपुराणे [२३५ Tara षित्री मोजनङ्थाद्‌ ered: इपरोचितं | शुक्ला EAT वामपाश्वन संखितः(९) ॥ १५॥ arate चिन्तयेद्‌ ser योधान्‌ ateraw ae | ware ufeat सर्ष्या-कायाणि च fatwa तु।१६॥ WUT TAT सुक्लान्रनन्तः पुरचरो भवेत्‌ । वाद्यगौतैरतितीऽन्येरे वचरित्यश्जरेजपः।। १७ ॥ CATA महषुराशे sft नाम चतुसिंयदधिक- हिशततमोऽध्यायः ॥ अथ Tala शदधिकदिश्रततमोऽध्वायः। app oS 9 TUSTaT | GRC उवाच । थात्राविधानपूरवेन्तु वच्छेसाङ्ग्राभिकं विधिः । सप्ताहेन यदा ATA भविष्यति महोपतेः ॥ १॥ पूजनौयो हरिः शब्पदका देवि नायकः | हितौ येऽनि दिक्पालान्‌ waren ययनश्चरेत्‌ ॥ २ ॥ शय्यायां वा तदम्रेऽथ देवान्‌ प्राश्यं मनुं रेत्‌ | नमः शग्मो जिनेत्राय Tea वरटायच्॥ ३॥ वामनाय विरूपाय खप्राधिपतये नमः | | १ संविरेदिति जर। [२३१ reat रणरौक्षाकथनं । ` ३५१ भगवन्देवदेषे श शूलभषटषवाहन ।॥ ४ ॥ ` इष्टानिष्टे ममाचच्छ सगरे स॒सस्य शात | wean दूरमिति gira मन्छसुशरेत्‌ ॥ ठँतौयेऽहनि दिकंपालान्‌ रद्रास्तान्‌ दिकपतीन्धनेत्‌ | ` ग्रहान्‌ यजेचतुर्थऽडकि पश्चमे चाश्विनौ येत्‌ ॥ ९ ॥ माग या देवतास्तासाब्रद्यादरौनाच्च पूजनं | दिष्यान्तरोच्भौमखदेवानाद्चं तथा वलिः ॥ ७ ॥ शानो भूतगणानाश्च वासुदेवादिपूजेनं | waren: Pras gate प्रायत्‌ 'सर्वदेवताः ॥ ८ ॥ वासुटेवः WIT: पर्स्रथानिरदकः। नारायशोऽनजो विष्ुव्रौरसिंहो वराटकः ॥ ९ ॥ शिवं इस्तत्‌परुषो(९) ware राम सत्यजः(९) | सयः सोमः कुजाद्द्रिजौवदश्यक्रशनधराः ॥ १० ॥ We: केतुगंणतिः सेनानौ चण्डिका war) ` Gait सरखतौ दुगा ब्रह्माणौप्रसुखी गणशः ee शद्रा इन्द्रादयो afeatararetsat सुराः दिव्धाम्तरो चशरूमिष्टा विजयाय भवन्तु मे ॥ १२॥ मदयन्तु रणं शत न्‌(र) संममग्टश्नोपद्ारक् | सपु्रमाठभृत्योऽह(*) देवा वः ATTA | १३॥ स १ wate इति we । ९ ae qa भविति च जनय । २ राजावित्यादिः, eae cam: . ४ अवन, -मां wwaiswfafa ज, पाठः मर Gas aria ब्ण्च। pies अग्विपुराके [२३५ प््वायः। चमूनां TIAN गत्वा रिपुनाशा नमोऽस्त, वः(५) । विनिः प्रदास्यामि(२) द्तादभ्यधिक वलिं ॥ १४॥ ease faced wast चाभिषेकवत्‌ | याव्रादिने सप्तमे च पूजयेश्च तिविक्रमं ॥ १५५ न राजनोक्षमन्तैच श्रायुधं वादनं यजेत्‌ | चुख्याषहजयशब्दे न मन्तमेतत्रिामयेत्‌ ॥ १६ ॥ दिव्याग्रोचभूमिष्ठाः सन्बायुदीः सुरा ते । देवसिदि' wate @ Saarara(®) सा तव ॥१७॥ cag देवताः सर्वा इति खला BHATT । WHAT सथरश्चापं धमुनागेति मन्त ॥ १८॥ तदिष्योरिति sara ददाद्धिुमुखे पष्ट । | efad पदं wiftafes प्राच्यादिषु क्रमात्‌॥ १८॥ मागं TH हयश्चैव धयेवार्हेत्‌ कमात्‌ | भार्य वादये गच्छेत CTSA नावलोकयेत्‌ ॥ Re ॥ Maat गतस्िषठेत्‌ पूजयेहेवता दिजान्‌ | परदेशं व्रजेत्‌ पञ्चादाससेन्ध' हि पालयन्‌ । २१ ॥ राजा प्राप्य विदैयन्तु५) देणपाखन्तु पालयेत्‌(*) | देवानां पूजनं gare feareraay तु ॥ २२॥ नावमामयेसदेश्यानागत्य खपुरं पुनः | पस ee ee ee १९ want पतरेव रिपुनाण्यो भवेख- ४ प्राप्तविदेशष्ठ इति मर चर Geo येति Zo | a} | ९ जिला णय, प्रदश्ामोति | ५ Sareea पाङेवदिति we देषा १ जत्रा वाबास््लिति se | चारो पाख्यदिति गमवर Ho, जरः wa} ` [३३१५ Went रण्दोखाकधमं | ९५२ जयं प्राप्यायेरेषान्‌ दव्याद्यनानि पार्थिवः ॥२१॥ दितौ त्रेऽहनि wear भविष्यति यदा तदा । खापयेहलमश्वादि यजेरैवं sfawal || २४ ॥ ` ऋस्ादिराजलिङ्गनि arent निभि वैः ग्ण न्‌" may सिंहकं पूज्य वाहनाद्यमशेषतः ॥ २५॥ पुरोधसा ya पण्डंदङ्कि त्वा दिलान्यजेत्‌ | WHAT सशरण्चापं गजाश्यारुद्य वै व्रजेत्‌ | २६॥ देशे wem: शचा कुर्यात्‌ प्रहतिकरपनां | संहतान्‌ योष्येदसख्पान्‌ कामं विस्तारयेदष्कम्‌ ॥ २७ ॥ सूचोमुखमभोकं स्वादल्यानां Tet: सद । VAT: प्राण्यङ्गरूपाख दरव्यरूपाच कोत्तिताः।॥ २८ ॥ TES मकरव्यहइश्क्रः श्येनस्तथव च । अद्ैचन्द्रय वख MALTS एव च ॥ RE | मण्डलः सवतोभद्रः सूचीौब्यृहश ते नराः । व्यूहानामथ सवेषां पञ्चधा सैन्यकस्पना। १० ॥ हो प्चावरुपच्ौ हाववण्य' पञ्चमं भवेत्‌ | एकेन यदि वा हाभ्यां भागाभ्यां युहंमाचरेत्‌ ॥ ३२१॥ भागत्रयं wate तेषां cada gs) न व्युह्कलपना काय्यां UMN भवति afe fez ॥ ३२ मलच्छदे विनाशः ara gag waar: सन्यस्य पवात्िष्ठत्त्‌ क्रोशमात्रे मष्टोप्रतिः ॥ ३१ ॥ भग्नसन्धारण aa योधानां परिकौत्तित.। परधानभङ्ग सैन्यस्य नावस्थानं विधीयते ॥ २४ ॥ ( ४५ ) २५४ -असिपुराशे [२३५ अध्यायः! न संहता विरलाण्योधान्‌ व्ये waz | आयुधानान्तु BAK यथा न स्वात्‌ परस्पर ॥ २५॥ भेत्तकामः परानोकं संहतेरेव मदरयेत । ` भेदरण्याः परेशापि कव्याः संहतास्तघा 1। ३९ ॥ व्यहं भेदावहं ष्यत्‌ परव्युहेभ्‌ चेच्छया । TAS MECHA खत्वारस्त्‌, तथा हिज ॥ ३०॥ TAQ Wasa: समास्तस्य च दश्थिषः। धन्विनशमिंभिसुल्याः पुरस्ताचचब्धिशो रथे ॥३८॥ इष्टतो धन्विनः पथादइन्विनान्ुरगा रथः | रथानां Gwe: पसपदातव्ाः एथिवौजिता ॥ २८ ॥ -पटातिङुष्ञराण्वानां where प्रयब्रतः | शरः प्रमखतो देयाः स्कन्धमावप्रदशन 11 ४० 8 wae भोरसङ्धन शश्रविद्रावकारक(१)। दारयन्ति परस्तात्त न देया ATTA: पुरः ।॥ ४१ १ Marea रणे भोरून्‌ शूराः पुरखिताः, प्रांशवः शकनाश्पश्च ये चाजिद्येखष्ा(र) नराः ॥ ४२॥ Seagrass क्रोधना कलहप्रियाः | नित्यद्रष्टाः प्रच शूरा Ware कामिनः।॥ 22 a संहतानां हतानां च रणाधमयनक्रिया(*) | प्रतियुद्' गजामाख्च तोयदानादिकच्च यत्‌ ॥ ४४। a ee मिज q wafaxtwatcafafa qo, ae, 8 Gq faery Wer दति To, ae, चर, qo, we a) Ta १ वर्ापनवनन्ियति ae | [२१४ अध्यायः। रणदौचाकथन्‌ | ९५१ ्ायुधानयनं Va afar विधौयते | रिपिखां भक्तकामानां wearer तु CTT 4 ॥ भेदनं संहता नाख चमिशां कर्म atid | विसुखोकरणं qe धन्विनां च adrad ii ४६ ॥ दूरापसरशं यानं हतस्य तथोच्यते | जासनं रिपुसेन्धानां cast तथोच्यते ॥ ४७.॥ भेदनं संहतानाख् भेदानामपि संहतिः ॥ प्राकारतोरणाट्रालदरुमभङ्ख ATH ।। ४८ ॥" चल्तिभर्विंबरमा च्या रथाश्वस्य तथा समा। ` सकहमा च ATMA युहभमिरदा्ता ॥ sen णवं विरथितव्यश्टः कतण्दिवाकरः तवानुलोमशक्राकिदिकपालङदुमारुताः॥ ५० # योधानुत्तेजयेव्छष्व व्रामगोत्रावटानतः | भगप्राप्ता ख विजये Tara मतस्य च ।। ५१ ॥ जिलवारोन्‌ भोगसम्पा्िः saa च परा गतिः। निष्कतिः खामिपिर्डस्य मास्ति युद्समा गतिः ॥ ५२॥ शूराणां रक्तमायाति तेन पापनयजन्ति ते | चातादिदुःखुसषटनं रणे तत्‌ परमन्तपः॥ ५३॥ वराश्छर'सदखाशि यान्ति शर रण GA | स्वामी सुकतमादत्ते भग्नानां विनिवत्िंनां ॥ ५४॥ त्रद्मशुत्याफल तषां तथा प्रोक्त पद पद | WM सहायान्‌ यौ Teese विनष्टये ॥ ५५ ॥ अश्वमेधफलं प्रोक्तं श्राणाममिवसिंनां । que अगम्बिपुराखे [२३५ Weare: | whfas जयो राच्रि(र) deere समाः समेः ॥ ५६ ॥ नजा च THATS न हन्तव्याः पलायिनः । न प्रेचकाः प्रविष्टा wwe: पतिताद्यः॥ ४७॥ आर्ते निद्रामिम्‌ते च अद्ध सौख नदोवने दुदिने कूटयुदानि शज्ुनाथाथेमाचरेत्‌ ४ ५८ ४. बाह ware famine भग्नाः परे इति । प्रास्त भित्र बलं भूरि नायकोऽब्न निपातितः ॥ we a सेनानोनिंहतचायं भषतिखापि faye: । विदुतागान्तु योधानां सुखं कातो विधते a ९०॥ ware देया wars तथा च परमोहनाः । पताकासैव सब्धारो वादिक्रार्टां भयावहः ॥ ६१ ॥ ` सश्माप्य विजयं qe टेवान्विपरांख संयंजेत्‌(र)! 1 रब्रानि राजयामीनि भ्रमाव्येन छते रणे + ६२॥ aw fea न कस्यापि स्च्यास्ताध.चरखश्व)। शव प्राष्य रसे मुक्त पुज्रवत्‌ परिपालयेत्‌ ५ ६२ ॥ पुनस्तेन न aie दे्ाचारादि पालयेत्‌ । ततख खपुरं प्राप्य प्रवे मे प्रविशेद्‌ we ॥ ६8 tt हेवादिपूजनं क्ग्यी द्रचेद्योधकुटम्बक । संविभागं wate: कुव्यीद्‌ शत्यजनस्य च ॥ Eyl qesrar मयोक्ता ते जयाय Tawar | शत्यामेये म्टापुराशे Tustar नाम पश्चविंशदधिक- fanaaats ara: ॥ | १ धमेनिष्टो जयो जित्य इति ख०, २ देवान्‌ विप्रान. गुरूम्‌ यजेदिति चर, ° च । । भ०्च। अथ षरि शदधिकदविशततमो ऽध्यायः | are । | THC SANT राज्यलच्मौखथिरत्ाय यथेन्द्रेश पुरा चियः । ` स्ततिः छता तथा राजा जयाथ" स्ततिमाचरेत्‌ ॥ १ ॥ TH उवाच । नमस्यं सर्वलोकानां,\) लननौोमख्िसश्भवां(र) | त्रियसुजिन्द्रपद्मा्तौ' faqaneaferat ॥ २ ॥ a fafeen’ स्वधा aret शुधा लवं लोकपावनि | सन्ध्या रातिः प्रभा afer TET सरस्वती WV यन्नविद्या महाविद्या qufrer च yrs । srafien च देवि तवं विसुक्तिफलदायिनो + ४॥ araifaat वयौ वान्त दण्डनोतिस्त्वमेव च । सोम्या सौम्ये जं गदे ATS पूरितं ॥ ४ ॥ का daa area दैवि सवयन्न मयं वपुः। अध्यासति देव देवस्य योगिचिन्ध' गदाणतः॥ ६॥ ल्या देवि परित्यक्त सकलं भुवनकरथं | विनष्टप्रायमभवत्‌ त्वये दानी' समेधित ॥ ७ ॥ दाराः पुतास्तथागार सुदृदान्धधनादिक। ` भव्येतन्बहाभागे नित्य array sa ॥ ८ ॥ ५ १ खवभतानामिति go, ज, He च| २ अननोमम्बुसकवामिति लर | १५८ पम्निपुराखे [२२६ भष्यायः। शरौरारोग्यमे श्य मरिपचचषयः Fe") | देवि avfecerat परुषाणां न emai ॥ ९१ त्वमम्बा सवंभूतानो देवदेवो हरिः पिता । त्वयै तदिष्छुना चाम्ब जगदयाभ चराचरं ॥ १०॥ मानं कोषं तथा IMs AT WE मा परिच्छद्‌ । ,. award wang त्यजेथाः सब्बषावनि॥ ११॥ सा WAGE AAT पशुख्ा विभूषण | | gaan मम देवस्य(९) विष्णोषे्तःस्थलालये (९) ॥ १२ ॥ wera सत्यस्नो चाभ्यां तया भौलादिभिर्युखेः। त्वज्यन्तेते नरा सदयः SINT ये त्वयामले ॥ १९१४ ~ त्वधाव॑लोक्िताः सद्यः चौलादेरख्िले्ग शेः | game tae परुषा निमा पि॥ १४ ॥ Saree TTT धन्धः स कुलीनः स बदिमान्‌ | सशरः स च विक्रान्तो यस्बया रेवि वोलितः wy yu सखो तैगुख्यमायान्ति शोलाद्याः THAT FAT | | पराढनसुखौ जगष्ठाती यस्य त्व fares ॥ eg il "नं ति avfaq wat गुणान्‌ जिह्वापि बेधसः | vate देवि varia नास्मांसत्याक्तोः कदाचन ॥ १७॥ एष्कर उवाच | एवं स्तता ददौ Ate वरमिन्द्राय चेप्सितं । सुखिरत्वं च राज्यस्य सङग्रामविजयादिकं ॥ १८ ॥ १ अयः खमिति Go, गर, चर Me T] र देवद्‌वस्तति Se | खयः शुभमिति we | 2 TWIG इति We, Ae, Ae, Oo (२१० Was 1 रामोक्षनोतिकथन | १५९. सखस्तोपाठश्च वणक at सुक्तिसुक्तिदं । Mla सततं तस्मात्‌ पठेच WIAAT Wee ॥ इत्याग्नेये महापुराणे Arata नाम षट्रिशद्धिक- हिशततमोऽष्यायः॥ CEE? अथ सप्तिं शदधिकदिश्ततमोऽध्यायः। रामोक्तनोतिः। अम्निखवाच । नोतिस्ते प॒ष्करोक्ता तु रामोक्ता लच्छणाय या | जयाय तां प्रवच्मि re धश्भादिवश्ैनौ 1) १ ॥ राम उवाच | न्यायेनाव्जनमथंस्य वैनं THT चरेत्‌ । . सत्‌पाच्प्रतिपक्तिख राजन्तं चतुविधं ॥ २॥ नयस्य विनयो मूर ल विनयः शास््रनिखयात्‌। विनयो शौद्दरियजयस्तेयं क्षः casas ॥ २॥ शास्र wat तिदाच्छ' प्रागरभ्य धारयिष्णुता । CATH वागमितोदायमापत्‌कालसदहिष्णता(\)) su प्रभावः शचिता aat त्यागः aa’ Bawa | qa whe eaafa गुणाः सम्पत्तिहेतवः; ॥ ५॥ प्रक णंविषयारण्ये धावन्तं विप्रमाथिन। १ बारिमिता दाठपमापशकारुखदिन्यतेति We, 89, We, He TL १६९० पम्निधुराणे [२१७ अध्यायः | waren कुर्व्वीत वण्यमिन्दरियदन्तिनं १ ६ ॥ कामः कोधस्तथा लोभो wat मानो मदष्तथा | बष्टवर्गुत्‌जेदेनमस्ि स्यङे सुखौ AT: ॥ ७ ॥ भान्वोचिको' व्र्रौ वान्तौ gwatfa च पाथिंवः। तदिष्येसत्‌ि करयोचे तेचिन्तयेदिनयान्वितः ॥ ८ ॥ पपरान्बोचिक्यार्धविन्नानं धर्म्माधर्म्मौ चयीखितौ। अर्थान्धी तु वार्तायां दर्डनोत्यां वयानयौ॥<॥ अहिंसा सुदता वाणो सत्यं AS aT BAT | विनां fafirat चेव सामान्यो wh उच्यते ॥ १०५ प्रजाः समनुग्टश्लोयाव्‌ ङु्यीदाचारसंखिति । वाक्‌ सूनृता दया दानं होनोपगरतरच्चणं() ॥ ११॥ दूति ow सतां साधुहितं स्पु रुषत्रतं। आधिव्याधिपरीताय wer et वा विनाशिन ॥ १२४ को fe राजा शरौराय wid समाचरेत्‌ | a fe खसुखमन्वि च्छन्‌(९) पौरयेत्‌ कपणं जनं ॥ १३२॥ are: पोषपमानो हि मन्धना हन्ति पाथिवं। क्रियतेऽभ्दषंलोयाय खजनाय यथाच्ललिः ॥ १४॥ ततः साधृतरः काय दुर्जनाय भिवाधिना | प्रियभेवाभिधातव्यं सत्सु नित्य दिषत्‌श् au १५॥ देवास्ते प्रियवक्षारः पशवः; क्रूरवादिनः! शचिरास्तिकऋपुतात्ा पजयेहेवताः सदा॥ १६॥ 2 दोनो पनतरचरमिति wo, च०, ० २ सरुखमन्विस्छरिति we, we नलर, Me, Seq, ` ` ` च। [ | ¢ २९८ WANT | राजघमकथनं। १६१ डेवतावद्‌ गुरजनमासमवच्च FER | प्रणिपातेन fe qe संतोऽखषानुचे्टितेः ॥ १७॥ र्व्वीताभिसुखान्‌ weary स॒क्ततकणा i सद्भावेन ifad सम्भूभेण च बान्धवान्‌ ॥ १८॥ wars प्रेमदानाभ्यां दाचिष्येनेतरः जनं | अनिन्दा परज्ञत्येषु खधपरिपालन ॥ १९ ॥ छपणेष aaa waa मधुरा भिर: । ¦ धरणे रप्येपकारित्वं भित्रायाव्यभिचारिशे॥ २० ॥ ग्छहागते परिष्वङ्ः शक्ता era afeqar | स्वसमदिष्वनुत्‌सेकः परत्रदिष्वमव्सरः ॥ २१॥ अपरापतापि वचनं मोनत्रतचरिष्णुता(१)। वेन्धभिबंदसथोगः BAA चतुरखता॥२२॥ उचितानुविधायित्वमिति aa महानां | इत्याग्नेये महापुराणे रामोक्तनोतिर्नाम watangfy- कदिशततमोऽध्यायः ॥ अथाष्टतिंशदधिकदिश्रततमोऽध्यायः । [नि व पा @ ~~” @ राजधमीः | शाम उवाच । खोम्यमा्यच्ं राष्ट दुग कोषो बलं TET | परस्प्ररोपकारोदर BATH राज्यमुच्यते Woe [यासयित ९ शसमद्धिख्वित्यादिः, मोमत्रस॑चरिग्ड तेत्यकाः पाठः go Gea नाखि | ( ४६ ) ३६२ शअरम्निपुराणे [२३८ अध्यायः ॥ राज्याङ्गानां वरं राष्ट साधनं पालयेत्‌ सदा(५)। कुलं गोलं वयः aa afar सिप्रकारिता॥२॥ अविसंवादिता सत्य ठडसेवा क्तन्तता | दैवसम्पत्रता बिरचुद्रपरिवार्ता॥ २॥ शक्यसामन्तता चैव तथा च दृटभक्तिता(र) | दौर्षदभिंत्वसुत्‌सादः शुचिता स्यललक्तिता ॥ 8 ॥ विनौतलं धार्मिकता साधो wag: | प्र्यातवंशमक्रुरं लोकसङ्ग्ाहिणं शचं ॥ ५॥ कुर्व्वीताव्महिताकाडनत्तौ परिचार मष्टौपतिः। वाग्मो प्रगल्भः खतिमानुदग्रो बलवान्‌ agri eu नेता दण्डस्य निषणः क तशिल्यपर ग्रहः(२) | पराभियो गप्रसदः सवेद्ष्टप्रतिक्रिया(*) ॥ ७ ॥ ` परछठन्तान्वेन्लौ च (५) सन्धिविग्रहतत्छवित्‌ । ¦ गटठमन्तप्रचारन्नो देशकालविभागवित्‌ ॥ ८1 श्रादाता सम्यगर्थीनां विनियोक्षा च पात्रवित्‌ | क्रोधसलोभभयद्रोहदम्भचापलवव्निंतः ।॥ < ॥ परोपतापपेशन्यमाव्षय षाँद्रतातिगः बदोपटेशसम्पन्रः शक्तो मधरदशणनः Il १०॥ गुणानुरागस्ितिमानामसम्पह णः स्मृताः ater एवयः भूराः Taro ^^ ११ ॥ कुलीनाः HIT: WIT: श्युतवन्तोऽनुरागिशः(€) nee Ui १ खाम्बमात्येत्यादिः, पाल्लयत्‌ सदेत्यन्तः ४ सवदुष्टप्रतिप्र दति Eo, Ho, पाठः ae Gan ata | Bo Z| २ AEG दढभक्ितेति He । ` ५ परच्छिद्‌न्ववेचो चेति ao, Be [~] < २ aaa: खवप्रड इति 4°, Te च | च। ६ मुणवनकोऽकुमाभिन इति Aol [२३८ अध्यायः । राजघभमकथनं । २६२ दष्डनौतेः प्रयोक्ञारः सचिवाः Barwa: | सुविग्रहो जानपदः कुलशोलकलान्वितः ।॥ १२॥ वाग्नौ प्रगल्‌भयच्तुखानुल्ाहो प्रतिपत्तिमान्‌ | स्तश्नचापलदहोनख AT: केशसदः That ॥ १२॥ सत्यसक्वछटतिख्येथ प्रभावारोग्यसंयुतः | कतशिखशच(*) say प्रन्नावान्‌ धारणान्वितः ues tt दृढभक्तिरकन्ती च वराणां सचिवो भषेत्‌ | खतिस्तत्यरताथषु चित्तन्ना ज्नाननिखयः(र) ॥ १५॥ ठता मन्गुभिख्च मन्विसम्पत्‌ प्रकौत्तिता | wat च द्र्डनीत्यां च कुशलः स्यात्‌ पुरोहितः ॥ १६॥ ्धव्ववे द्‌ विहितं ुयाच्छान्तिकपोशिक । ` साधतषराममाव्यानां afea: az afeara gO ॥ wawat च शिल्य च्च ahaa गुणदयं (२) । सखजनेभ्यो विजानोयात्‌ कुलं स्थानमवग्रहं ॥ १८ ॥ परिकश्चसु cag विन्नरानं धारयिष्णुतां | Wagaya sepa’ प्रोतितां ae?) ॥ een कथायोगेषु Fela वाग्भिलवं सत्यवादितां। SAE च प्रभाव च तथा क्रेशसदहिष्णुतां५)॥ rou ufa Sagan च खेखधश्चापदि लकच्तयेत्‌ | | भक्ति मेती च शौचं च जानौयाहयवदारतः॥ २१॥ १ BATA So | 8 प्रतिभां वयेति ae | ९. चिकको चाननिखय इति ग०। yao cafe, लं गरसदिन्दुतामि- ९ परोत बशजयभिति ज०। त्यमाः पाठः इण पुरके नाल्ि। ` ३६४ अभ्निपुराणे [२३८ अध्यायः । संवासिभ्यो बलं सश्वमारोग्य' waka च(\) । श्रस्तखतामचापल्यं वैराणां चाप्यकौत्तेनं ।1 २२॥ प्रत्यक्षतो विजानौयाद्‌ भद्रतां चद्रतामपि। फलामुमेयाः सर्वत्र पराक्षगुण त्तयः ॥ २२ ॥ शस्याकरवती get खनिद्रव्यसमन्वि ता । गोदिता भूरिसलिला पण्ये नपदेयं ATW AB tt दम्या सकुष्रवला वारिखलपधान्विता t अदेवमाढका चेति शस्यते भरिभतये 1 २५४ शद्रकारुवणिक्प्रायो ATCA: BIT बलः | सानुरागो रिपुेषो पौडासहकरः Ta. २६ ॥ नानादेष्लौ ; समाक धावकः पमान्‌ बलौ + | टकजनपदः शस्तोऽमूष्डव्यसनिनायकः(९) ॥ २७ ५ TAMA महाखातसुश्प्राकारतोरण(र) | if aN 9 चरं समावसेच्छलसरिनमरुवनाखय RE It जलवदान्यघनवष्टगे कालसद्ं ACT | , ओदकं पार्वतं वारचमेरिणं धन्विन च az Re ॥ Larger: पिदढपेतामश्ोवितः। धमौर्जिंतो व्ययसहः कोषो धमादिद्ठ्टये i २० ॥ पिदपेतामद्ो वश्यः संहतो दक्तवेतनः | विख्यातपौरषो जन्धः कुशलः WFAA: ॥ ३१ । नानाप्ररणोपे तो नानायुद्विशारदः | न~~ १ सखमारोग्ध Fear चति Bet ३ उश्चप्राकारमेपुरमिति घ, Ho SI २ सद्छन्यसननायक इति a t | [२३८ अष्यायः। || crear | ३६१५ मानायोधसमाकौर्णो नोराजिवष्यहिपः।। ३२ ॥ प्रवासायासदुःखेषु युदेषु च RAAT: | सष्ेधक्ष्रियप्रायो दण्डो दण्डवतां मतः । २३ ॥ योगविन्नानस्वाढा were प्रियम्बद्‌ । ायतिक्तममदेधं मिन्रं gata सत्ङ्कलं ८९) ॥ ३४ ॥ दू रादैवाभिगमनं खष्टाघष्टदयालु गा । वाक्‌ सतकत्य verry त्रिविधो भित्रसङ्गहः ॥ ३५ ५ धमंकामाथंसंयोगो भित्रा चिविध' फलं sta तत्र. सब्र (९) तथा वंशक्रमागतं ॥ ३६ ॥ ufad व्यसनेभ्यख मित्रं ज्ञयं चतुव धः । fat गुणाः सत्यताद्याः समानसुखद्ःखता 11 २७ ॥ वच्येऽनुजौविनां वत्तं सेवौ सेवेत भूपतिं । SAAT भद्रता SST लान्ति; क्रेणसदिष्छुताः ५ ach सन्तोषः TAZA मण्डयत्यनुजोविनं। यथा कालसुपासोत राजानं सेवको नयात्‌ ॥ ३९ ॥ परस्थानगमं ASAT मत्सर ग्यजेत्‌ | fam कथनं भृत्यो न FATT ज्यायसा TE ॥ ४० ॥ OU WH च मन्द न च भक्तः प्रकाशयेत्‌ | रक्ताद्‌ ofa समोदेत विरक्त सम्यजेत्रपं॥ ४१ i भकाय्य प्रतिषेध काय चापि प्रवत्तनं। सडन््षपादिति सत्त बन्धुमिध्ानुजोविनां ॥ ४२ ॥ ९ faa gala सत्क्रियमिति we । -२ तक सुम्दद्मिति य०। न्यः is. : ano Sey नो TE TT =-= ape ter Wee =e - ऋ । नमम EEE ; र" १ आग्‌, FREER Be ।। ap RELA कध््मीं ज faery | + # 4५199 aim are y isgureay 8 Be it धश उः Gi oft शाजवहमात्‌। 194 निभि प्रजानां वद्धा अव+ sg tt Anat काज weeds कदे AT: । amy भैरी + धाद cree’) रचयेव्‌() 4 soe भु गर्त Eee THT श्वे care दिथा टितः । Ten: भनि श भभ्या free शरारल ॥ st ७ eae Werte राजधर्मो भरम पट लियर Fest ren ऽध्य: ३। 7 [२३९ cere) षाडगण्यकथनं | aay तथारिभितमिक्तच्च विजिगोषोः ge aati’) | पाणि ग्राहः खतः TATA TART ॥ २॥ आसारावनयोखेवं विजिगोषोख मर्डर । श्ररे खचविजिगोषोख मध्यमो भम्यनन्तरः ॥ २ ॥ अतु ग्रहे संहतयोज्नि ग्रहे व्यस्तयोः प्रभः । मण्डलादष्िरे तेषासुदासौनो बलाधिकः ॥ ४ tt अनुग्रहे संहतानां व्यस्तानां च बधे WA! | सज्धिञ्च विहं यानमासनादि वदामिते॥ ५॥ बलहि ग्णदीतेन सन्धिं कुथाच्छिवाय च। कपाल उपष्ारख सन्तानः AKAMA ॥ ६ ॥ उपन्यासः प्रतोकारः संयोगः पुरषाम्तरः | Wevact wifes भ्रातापि स उपग्रहः ॥ 9 ॥ परिक्रमस्तथा दित्रस्तथा च परदूषणं । स्कन्धोपनेयः सन्धि सन्धयः षोडशेरिताः ॥ र ॥ परस्परोपकारख Ha सम्बन्धकस्तथा (र) । उपहाराश्च चत्वारस्तेषु सुख्याख सन्धयः ॥ <€ | बालो amt दौषरोगस्सथा बन्धुवहिष्कतः । ` मो रुको भौरुकजनो TaN ल व्खनस्तथा ॥ ₹ ° faxanafaza विषयेष्वतिशक्रिमान अनेकचित्तमन्तश्च टेवत्राद्याणनिन्दकं a > fae => geangda द्‌ वनिन्दक एव च तक -` ` => बलव्यसनसङन्कल — a १६० १६८ भ्रम्निपुराखे [२३८ श्रध्यायः। सदे शशयो बहइरिपमुक्षः waa यख ₹ । सत्यघर्मव्यपेतख विंशतिः पुरुषा wat ।॥ १३॥ एतेः सन्धिं न कुर्वीत विष्छज्ोया त्तु कवलं | परस्परापकारेण पुंसां भवति विग्रहः ॥ १४॥ रामनोऽभ्युदयाकाङ्क्षौ पीड्यमानः परेण वा | देशकालबलोपेतः प्रारभेतेह विग्रह (९) ॥ १५॥ राज्यस््रोस्थानदेशानां न्नानस्य च बलस्य च । श्रपहारो(९) मदो मानः पोडा वेंषयिकौ तथा ॥ १६ a sraraufaaatai®) विघातो tava च। भिचरायच्चापमानखच तथा बन्धुविनाशनं ॥ १७॥ भूतानुग्रहविच्छे दस्तथा मण्डलद्‌ षणं | एकार्थाभिनिकैशित्वमिति विग्रहयोनयः ॥ १८ ॥ सापत्न्यं AAT सरोजं बाम्‌जातमपराधजं | बैर पच्चविधं tw साधन; प्रशमनव्रयेत्‌ ॥ १९ ॥ fafaqua निष्फल वा सन्दिश्धफलभेव च। तदाते दोषजननमायत्याश्चेव निष्फलं ॥ २० ॥ यत्या Aa च दोषसच्नन तथा | श्रपरिज्नातवोय्यण परेण स्तोभितोऽपिवा॥२१॥ परार्थ fares दौघकालं feat सह | अकालटेवयुक्तेन बलोदहतसखेन च॥ २२॥ ee ~~~ ~~ tthe १ Waa tafe: विग्रह्भित्यम्ः २ अवार दति aor पाठः अण पुख्के नालि। ३ ऋ्रानाथे्रहिषमारमिति ०) [२३९ wera) | Wea । १६९ Aza फलसंयुक्रमायल्यां फलवजितं । आयत्यां nada तराले निष्फलं तथा ॥२२॥ sata wenfaragaies विग्रहं | तदाल्लायतिसंशष्ट' कमं राजा सदाचरेत्‌ A २४॥ द्रष्ट पुष्टं बल मत्वा गणह्लोयादिपरौतकं | मित्रमाक्रन्द आसारो यदा स्यहंटभक्षयः ॥ AYE धरस्य विपरौतच् तदा विग्रहमाचरेत्‌ । farm सन्धाय तथा AAT TAWA UAE A ख्पे चया च निपुणेयोनं पञ्चविध स्मत । परस्रश्य सामथ्यविधातादासन स्मतं ॥ २७ 1 श्ररेख विजिगोषोख यानवत्‌ पञ्चधा स्मृतं | बलिनोर्हिंवतोरमध्ये वाचातानं समर्पयन्‌ ॥ २८ ॥ दैघोभाषेन तिष्ठेत काकास्िवदलत्तितः | उभयोरपि सम्पाते सेवेत बलव त्तरं ॥ २९ १ यदा दावपि नेच्छेतां waa जातसंविदौ | तदोपसपे त्तच्छचमधिक वा खयं व्रजेत्‌()॥ ३० ॥ उच्छ्िद्यमानो वलिना निरुपायप्रतिक्रियः | कुलशतं सत्यमामासेवेत बलोत्‌कट(९)॥ २१ ॥ तदशनोपास्तिकता नित्यन्तद्भावभाविता। तत्‌कारितप्रश्रयिता त्तं सययिणः खतं ॥ ३२॥ CAMA महापुराणे षाडगुख्यं नाम एकोनचल्रारिण- दधिकदिशततमोऽध्यायः॥ १ उभयोरित्यादिः, खथ ब्रलदित्यम्ः २ बलोत्करसिति ao, qo, ae, पाठः Se Fas aha | अर 4 ( go ५. अथ चत्वारि शदधिकदिशतममोऽध्यायः। कि, हि केः 6 वाणि क्षी चक्क स मादिः। राम उवाच । प्रभावोसाशङ्धिभ्यां aaufa: प्रशस्यत | प्रभावोत्छाइषान्‌ ATA जितो देवपरोधसा ॥ ११ मन्तयेतेह aroha नानातेन्रीविपचिता । ATMITHS HAL कुतः HATTA फलं ५ २॥ अविन्नातस्य fasta विन्नातस्य चं fraa: | अर्थदेधस्य सन्देशच्छेदनं रेषदनं ॥ १॥ साया: साधनोपाया विभागे देशकालयोः | विपत्तेख प्रतोक्रारः पर्ाह्नो मन्त cual’) ॥ ४॥ मनःप्रसादः खडा च तथा करणपाटवं | सहायोत्यानसम्यच्च Rigi सिदिल्षणं il yn मदः प्रमादः HIAa सुप्तप्रलपितानि | | भिन्दन्ति ave प्रच्छव्राः कामिन्यो रमतान्तथा॥ € ॥ प्रगल्भः खतिमान्वाग्मौ शस्ते यास्ते च निष्ठितः। भरभ्यस्तकथैण Wags भवितुमर्हति ५ ७ ॥ निरष्टाः faatay तथा शासनहरः (र) | "~~~ ~~ ~~~ कि (ase mara: साभादिकथन। १७९ कालमोचेत कााधमनुज्ञातख निष्यतेत्‌ ॥ € ॥ fexy धतरोजोनोयात्‌ कोषमित्रवलानितच्। रागापरागौ जानोयाद्‌ efearafaafea(’) wee a कुथाशतुबिध स्तोत' पक्तयोरुमयोरपि | तपखिव्यच्जञनोपेतैः श चरे;(९) ae संवसेत्‌ ॥ १२१॥ चरः प्रकाशो दूतः स्यादप्रकाशश्चरो हिधा, वणिक छंषोबलो लिङ्गो भिक्ुकाद्यासकाखराः॥ १२॥ यायादरि व्यसनिनं निष्फले(द) दूतचेष्टिते । प्रलतिव्यसनं यद्छात्तत्‌ समोच्य समुत्‌पतेत्‌,॥.१२॥. अनयाहास्यति ALA स्मास दयसनं सत । इताशनो जलं व्याधिदुभि्तं मरकं तथा ॥ १४ ॥ दति पष्छविध देवं व्यसनं मानुषं पर | Sa पुरुषकारे WIAA च प्रशमन्नयेत्‌ ४.१५ ॥ उल्धापितेन AA च मानुष व्यसनं ET | मन्तो मन््रफलबािः कारव्यानुष्टानमायतिः॥ १६॥ VAIN टर नोतिरमिन्र प्रतिषेषनं । व्यसनस्य प्रतोकारो राज्यराजाभिरश्षणं॥ १७. tt TAINS BUS हन्ति सव्यसनान्वितः | दिरख्यधान्यवसत्नाणि वादनं प्रजया भवेत्‌ ॥ १८ ॥ aurea द्रव्यनिचया शन्ति सव्यसना प्रजा । प्रजानामापदिख्यानां रक्षण कोषद्डयोः॥ १९ ॥ १९ दष्टिवह्कुविचेष्टितेरिति गर, Wo, २ खचरैरिति अ, | Wo, Wo, Ho, रण Fh ६ fame र्भ Ge, Wo, TO Th QS अम्बिपुरासे [२४० अध्यायः 1 पोराद्या्ोपकुवन्ति सं खयादिह दुहिनं | त्ष्णो यु जनत्राणं मित्ामित्रपरिय्हः॥२०॥ सामन्तादि कते दोषे नश्ये्तदयसनाञ्च तत्‌ | Yaa भरण दान प्रजामित्रषरिग्रहः ५२१ ॥ धश्मकामादिभेदख दुगं संस्कारभूषण | कोषासयसनादन्ति कोषमूलो हि भृपतिः ॥२२॥ मिवामिवाकनोदेमसाधनं रिपुमहनं | द्रकाय्याश्कारिलं द ण्डाश्षहपसनादइरेत्‌ ॥ २२१ स स्तम्भयति मित्राणि भरमिच्र नाशयत्यपि। धनादैरुपकारित्वं मिवात्त दयसनाद्ठरेत्‌(\) ॥ २४ ॥ राजा सव्यसनो हन्याद्राजकायथाख्ि यानि ws वाग्द्ण्डयोख पारुष्यमधद्‌षखमेव च ॥ २५। पानं wt aaa aad व्यसनानि महोपतेः। आलस्यं MAA दपः प्रमादो देधकारिता ५२९१४ इति पृव्वापदिष्टञ्च सचिवश्यसनं खत | अनाहष्िञ्च पोडादौ राष्ट व्यसनसुच्यते RROD विश्यौशयन्त्प्राकारपरिखात्वमशस्तरता | त्तौणया सेनया नहं दुगव्यसनमुखते ॥ २८ , व्ययोक्षतः परिलिप्तोऽप्रजितोऽसःखतम्तया । दषितो दरसंस्थश्च कोषव्यसनमुच्यते tre. ५ उपरे परिचिप्तममानितविमानितं। १ संपतम्मयतोत्यादिः, मितचातद्धयषनादइरेदिन्यकः पाठः कर Gea athe) [२४० अ्रध्यायः। सामादिकथनं । 292 अभूत व्याधितं ATA दूरायातन्नवागतं ॥ ३० ॥ परिक्लोणं प्रतितं प्रहताग्रतरन्तथा | श्राशानिवद्भयिष्ठमनरतप्राप्तभेव च ॥३१॥ कलत्रगभत्रि्िप्तमन्तःगशल्य तथव च। विच्छित्रवोवधासार शन्यमलं तथेव च|| ३२॥ | अस्वाभ्यसषहत वापि भिनब्रकटं तथव च। दृष्पाश्णिग्राहमयच्च बलव्यसनमुच्यते ॥ 22 ॥ दे वोपपोडितं मित्र भ्रस्त शत्रबलेन च, कामक्रोधादिसयुक्रसुसाहादरिभिभक्ेत्‌॥ ३४॥ अथस्य दूषणं क्रोधात्‌ पारुष्य वाक्दग्डयोः। कामजं BAIT Ad व्यतनं पानकं faa: ॥ २५ ॥ DANCY पर लोके उदेजनमनयकं। असिदसाघधन TEC युल्लयावनयेन्रपः । ३६ ॥ seaafa भतानि दर्डपारुष्यवान्‌ ac: भूतान्युदज्यमानानि हिषतां यान्ति संखयं ॥ ३७ ॥ विहा; शज्रवश्चव विनाशाय भवन्तिते। TUS दूषणाथच्च परिल्यागो महोयसः ॥ ३८ ॥ रथस्य नौतितचन्नेरघदषणमुष्यते । पानात्‌ काग्यादिनो ज्ञानं खगयातोऽरितः wasn ३८ ॥ जितखमाथं wnat fateh बने। धञ्ायप्राणनार्था द व्यते स्यात्‌ RASH ti ४०॥ | कालातिपातो waraater स््नव्यसनाइवेत्‌। पानदोषात्‌ प्राणनाः काश्ाकायाविनिश्ववः।॥ ४१॥ ३.७४ अग्निपुराणे [२४० अध्धायः। स्कन्धावारनिवेशन्नो निभिसन्नो रिपु जयेत्‌ । स्कन्धावारस्य मध्यं तु सकोषं नृपतेग्टें 11 ४२ ॥ मोलोभूतं जचेशिुषदुदिषदाटविकं बलं | Une समाहत्य wae विनिवे शयेत्‌(९) # ४२ ५. सैन्ये कदेशः Tae: सेनापतिषुरःसरः | चरिभ्रमेशत्वराख मण्डलेन afefaia । ४8१ arat: खका विलानौयादरसौमान्तचारिशः । निर्ग च्छत्‌ प्रविशेचैव सव्व एवोपलकितः ॥ ४५॥ सामदानं भेद दण्छोप्तेन्द्रजालक | मायोपायाः wa परे निचिपेत्साधनाय तान्‌ ॥ ४९ ॥ चतुर्विध खतं साम उपकारानुकौक्तनात्‌ | मिघःसम्बन्धकवनं खदुपव्वे च भाषणं ॥ ४०॥ आयाते दशनं याचा तवाहमिति are | यः सम्परा्षधनोत्‌सग उक्तमाघममध्यमः ॥ ४८ ॥ प्रतिदानं तदा तस्य ग्टहोतस्यानुमोदनं | द्रव्यद्‌ानमपूव्व ` च खयङ्गाइप्रवत्तनं(र) ॥ ४९. ॥ देय प्रतिमोक्ष्च दानं पष्ठ विध स्मत | सखेद्रागापनयनसंदर्षोत्पादनं तथा ॥ ५०॥ मिथो Aza मेदन्नभदश विविधः स्मतः | बधोऽ्थरणं चेव परिक्तेणस्िधा दमः !। ५१॥ VRAIN AHSCT] TATA | उहिजेत waning पिण्डः प्रशस्य ते ॥ ५२ ॥ ` पन्त ` र कथेव दुप्रेनमिविजन स्च) = ` [२४० अध्यायः | सामादिकधनं । २७१५ faite णापनिषध्योगेन्याच्छस््रादिना feu: । जातिमात्र fest नेव चन्यात्‌ सामोक्तरं वये ॥ ५३ ॥ प्रलिम्पन्निव चेतांसि cerary पिवचिव | ग्रसर्रिवाख्त साम प्रयुष््ोत प्रियं ae: ५४ ॥ मिथ्याभिशस्तः खोकाम आङ्कयाप्रतिमानितः । USER Whaat भ्रामसुश्रावितस्तथा i ५५ ॥ विच्छिकरधन्धकामाष ः क्रो मानौ विमानितः! अकारखास्‌ परितयक्षः कतवेरोऽपि साग्ितः ॥ ५६ | तद्रव्यकलबच पजाङोऽप्रतिपूजितः। Late भदयेच्छत्रो खि ताजित्वान्‌ सुशङ्कितान्‌ ॥५७ ॥ भागान्‌ Tray कामन्निजांख प्रथमन्रयेत्‌ | सामदृष्टानुरन्धानमल्यग्रभयदशनं ॥ ४८ ॥ प्रधानदानमानं च भेदोपायाः प्रकौत्तिताः faa इत काष्ठमिव चण्जगधं विशीर्यते ॥ ५९ ॥ त्रिशरक्िदयकालन्ना eae नयेद्रोन्‌ | मवोप्रधानं कल्या णवि" aaa साधयेत्‌ ॥ € ० ॥ लुब्ध aly दानेन भित्रानन्योन्यशद्या | स्ण्डस्य UAE एुचभ्रातादि सामतः ॥ ६१॥ दानभद्‌ षमृसुख्यान्‌ योधाम्‌ (९) जनवदादिकान्‌ | सामान्ताटविकान्‌ भेदद्‌ ण्ाम्यामपराडकान ॥ ६२॥ दवताप्रतिमानाश्तु पूजयान्तमंते बरे. । पमान्‌ स्तोकस्त्रसंवौीतो निभि WHATHA: 1 ६३। १ दानभेरेखेव Ree पौरानिति ज. | २७९ भम्निपुराणे [२४१ अध्यायः t वेतालोख्कापिश्ाचानां शिवानां च खरूपिको। कामतो रूपधारिल्वः शस्त्राग्य श्माग्ब वषणं ॥ ६४ ॥ तमोऽनिलोऽनली मेष इति माया शछमागुषो | जघान कोचकं भोम अखिदः स्रोखर्ूपतां ey अन्याये व्यसन युद प्रहन्तस्यानिवारणं | खपे क्यं स्मता अ्रातापच्चतख हििम्बया ॥ eg t भेघान्धकारदच्यग्निपवेताङइतद्शंनं | दरस्थानं च सैन्यानां दशनं ध्वजगशालिनां ॥ ९७ ॥ ङ्त्रपाटितभित्रानां संरूतानां च दशनं, शूतोन्द्रजालं दिषताग्मोत्यथमुपकरपयेत्‌ ॥ ६८ ॥ इत्याग्नेये महापुराणे सामादिनौम चलवारिथद्धिक- दिशततमोऽप्यायः॥ अथेक्र चत्वारि शदधिकदिशततमोऽध्यायः। राजनोतिः। राम उवाच | षडविधन्तु बलं व्यय देवान्‌ प्राय रिपु" व्रजेत्‌ । मौलं ya ओोणिसुष्द्हिषदाटविक बलं ॥ १॥ पव ya गरोयस्त बलानां व्यसमं तथा । षडष्क मन्त्रकोषाभ्यां पदात्यण्वरर्थहियेः ॥ २॥ नद्यद्धिव नदुगेष्‌ at यत्र भयं भवेत्‌ | [२४१ wera!) राजनोतिकथन। 209 सेनापतिस्सच्र तच गच्छेद होतेबलेः ॥ ३ ॥ नायकः FCAT यायात्‌ प्रवोरपुश्वाठतः। | ` मध्ये कलर. खाभमो च कोषः फल्गु च यदलं ॥ ४ ॥ पाण्वयो रुभयोरण्वा वाजिनां पाश्ठवो रथाः | रथानां पाश्लयो्नागा नागानां चाटवोबलं ।॥ ५॥ Vary सेनापतिः सव ocean छतो स्वयं । यायाव्छवचसेन्यौचः खिवलानाश्वासवलच्छनः it € ॥ UACIEA महता मकारेण परोभये । - श्येने नोच तपचेस सूच्या वा वौरवक्भया ॥ ७ ॥ पश्चाद्ये तु WHS पाश्वयोवव्वसद्धितं (९) | (Rae सवंतोभद्र भये ae TATU ॥ ८ ॥ कन्दरे tenes निखगावनसङ्टे | दौघाध्वनि परिश्रान्तं चतपिपासाहितक्तमं ॥ < ॥ व्याधिदुभिंक्मरकपीद्ितं eafaga । पङ्पां एजलस्वन्ध व्यस्तं पुश्ोल्तं पथि ॥ १० ॥ RYN भाजनस्य ग्रमभमिं्मसुखितं | ष्वौराभ्निभयबिचस्त' afearagared 1 ११॥ इत्यदौ स्वम CA परसन्धं च घातयेत्‌ । fafaet Quarenat भिव्रविप्रकतिबलौ ॥ १२॥ कुयोत्‌ परकर शबुदं हि कटं विषसये । तेष्ववसख्कान्दकालेषु पर इन्धावमाङ्लं tt १२ ॥ १ वजुखद्करभिति wo, Be च। ( ४८ ) ३८६ श्रग्बिपुरा्े [२४१ अध्यायः) अभूमिष्ठं खसूमिष्टः खभूमो चोपजायतः t प्रकतिप्रग्रदाक्ष्टं पायेर्वनचरादिभिः॥ १४१ न्यात्‌ प्रवौरपुख्े भङ्ग दानापकभेष्येः । पुरस्ताद नं दत्वा तन्न्षछतनि खयान्‌ ५ १५ ॥ 'हन्धात्यचात्‌ WANE saa वेगिना | याहा सलोल हन्धाच्छरे ण FAA: ॥ १६॥ stat पाश्वीभिषातौतु व्याख्यातौ कटयोधमे t परस्तादिषमे इभे पथादन्धात्त वेगवान्‌ 1 १७ ४ BU ware विषमे एवभेव तु पा्वेयोः | प्रथमं योधयित्वा तु दूष्यामित्रारबौवलेः ॥ १८॥ खान्तं मन्दविराक्रन्द इन्यादखाग्तवादहनं । द्यामि व्रबलेव्वो पि भङ्गन्दत्वा प्रयलरवान्‌ ॥ १९ ॥ जित मितेव विश्वस्त इन्धा्मन्लव्यपराख्रयः | स्कन्धावारपुरम्रामशस्यस्वामिप्रजादिषु॥२०॥ विखभ्यन्त परानौकमप्रमनत्तो विनाणयेत्‌ | अथवा MAGI AWG मागंबन्धनात्‌ ॥२१॥ अवस्कम्दभयाद्वाविप्रजागरक्तखमं। feargn समाडइन्धाविद्राव्याक्गलसेजिकं ।। २२॥ fafa विखब्धसंसुप्तं नागेव्वौ खडगपाफिभिः । प्रयाणे yaar fae वनदुगप्रथे शनं ॥ २२ ॥ अभिवानामनौकानां भेदनं भिन्रसरूग्रहः.। विभोषिकादहदारघातं कोषरसेभकम्ये TU २४॥ अभिन्रभेदनं मिजरसन्धानं TaN च। [२४६ भरष्यीथः। रा्जनोतिक्रयनं। ड ऊट वनदिरभागे विषये वीवधासारलक्षणं ॥ २१.॥. अशुयानापरसरणे गौोघ्रकार्ययपपादरन। दौनानुसरणं घातः HSA जघनस्य च ॥*२६.॥ अश्वा म्मौथं पत्तख सवदा शस्वधारणं |: शिविरस्य च. arate: योधनं ahaa च ॥ Qo TRAM YEA ATA TCA TATE | Baar पदातौनें भूनातिंविषमा मता.॥ २८॥ सैल्पह रपस) चिप्रलङ्नो यनगा. खिख ॥ निःगकरा विपङ्का इं सापसारा च वाजिभूः ॥ २९ ॥. निद्धाणुहक्तकेदारा रदभूमिरकदमा। मदं नोयतरुच्छेद्यत्रततीपङ्वजिंता ॥ So ॥ निरा गम्यथेला(\) च विषमा गजभेदिनौ । उरस्यारोनि firarfa ufaweq बलानि हि ॥ ae tt प्रतिग्रह इति Sarat राजका्न्तर क्षमः | तेन ून्धस्त यो age: स fara दव Tera ॥.३२॥ जयार्थो न च युद्धात मतिमोानप्रतिग्रहः। यच्र राजा तंत्र कोषः कोषाघौनां हि राजता ॥ २३२ योधेभ्यस्त॒ ततो gary किंचिद्ातु (९) न युज्यते | SAAT राजक्ाते ATE ततस॒तार्दने ॥ Ve ws: Qarafaad aecaiwenfeaes | अथवा खल यष्येरन्‌ पत्यश्वरथदरन्तिनिः॥ ३५॥ १ निःश्केरा मन्धरेरेति जर |. २ किं fe दातुभितिषनअग्च। Bre ufergers [Ree Ware! यथा भवेदसम्ब(धो व्छायामविनिवन्तेने | भरसहृरण FOC TET: THAT ३६ ५ | महासङ्कलमुदेषु सश्रयेर क्छ तज्गन्लं | अश्वस्य प्रतिहारो भवेयुः Bearers: ॥ २७ ॥ इति wenreauien विधेयाः gece तु | पादगोपा HATS पुरुषा दथ पञ्च च ॥ ३८ ॥ ` विधानमिति नामस्य विहितं qere च । शरनोकभिति fasafafa कल्पया नव frat: ५२९ ॥ तथानोकस्व रन्धन्तु पञ्चधा च TTT | दत्यनोकविभागन खापयेद्‌ व्यृडसम्पद्‌ः॥ ४० I STARA कल्पपानेतान्‌ TIGA | SURAT Trt च मध्यः we प्रतिग्रहः li ४१।। कोटो A VENTE: सपताङ्गो AE उश्यते । STARA Besa सप्रतिग्रहः ॥ ४२ ॥ गुरोरेष च Ra कखाभ्यां परिवजितः । तिषषुः Garena wate: gebgar: ॥ ४१ ॥। अभेदेन च युध्येरन्‌ रचय ख परस्पर | मध्यव्यहे WHY GT Yea, जघन्यतः ॥ ४४ ॥ qe हि नायकप्राख इन्धते तद नायकं । उरसि स्थापयेन्नागान्‌ WHS HAAN Taryn sy hi दयां TWAT मध्वभेदौ प्रकौक्तितः । मध्यदेशे CATA TATA HY क्तयोः ॥ ven पश्यो गजानोकं ब्यूहोन्तभययं खतः । (२४२ rere रासनोतिकथनं। ace. रथस्थामे इथाम्‌ Very वाती धो ये 1) vot रथाभावे तु हिरिरान्‌ VS सवते टाषयैत । यदि स्याद्ण्डगाहल्यामावाधः समोकौत्तिंतः ॥ ४८ ॥ AWAIT भोगो दण्डस्तं बंहधां WI तिखगहसिस्त रण्डः are भोगोऽग्यासिरेवं च ॥१८॥ मण्डलः सव तोहल्िः एथेगवैभिर संहतः | प्रदरो टठकोऽसद्ः चापो ब afta qi ye ti प्रतिष्ठः सुप्रतिष्ठ श्येनो विजयसच्छयौ | विशासतो विजयः Wel सथणाकणचममुखौ॥५२१॥ संास्यो बलयञेव दण्डभेदाश्च THM! अतिक्रान्तः प्रतिक्रान्तः कच्ताग्याञ्चङक्षपक्चतः॥५२ ॥ अरतिक्रान्तस्त पक्षाभ्यां ्योऽन्ये तदिपथये | पत्चोरस्य रतिक्रान्तः प्रतिष्ठोऽन्यो विपञयः-॥ ५२ it AUT धनुःवरो द्यशो se aya! | दिगुणोन्त स्वतिक्रा ्सपश्लोऽन्धस्य विपयंयः॥ ५४॥ दिचतुदर्ड said Har लक्षणतः क्रमात्‌ । गोम्‌चिकाषिसञ्चारौशकटो मकरस्तथा ॥ ५५॥ भोगभेदाः समाख्यातास्तथा पारिश्रवक्कः। SBI युमोरस्यः शकटस्तददिपयये ॥ ५६९ ॥ : मकरो व्य्तिकोशेख Ta: कुच्लरराजिभिः । मर्डलब्यहभेटौ तु सवंतोभद्रदु्जयौ ॥ ५७ ॥ ` र्टानोको दितोयस्त प्रथमः सर्वतोसुखः। अर्ैचन्द्रक उष्ाङ्गो AMATI संहतेः | ५८॥ QR भजिपुराखे [२४१ Wary: 0. तधा MRSTET च काकपादौ च Aiea I चिचतुःपंश्चसेन्धानां Far भाकारमेदतः ॥ ४< ॥ CUS स्थुः ससद AW हो ATE च । असङ्घातस्य षट्‌ पञ्च भोगस्येव तु सङ्करे । ९० ॥ पचादौनामयैकेन इत्वा Re: परिचिपेत्‌ | उरसा वा समाहत्य कोटिभ्यां परिषेषटयेत्‌(९) ॥ ९१ ॥ परे कोटो संमाक्रम्ध पक्ताग्यासप्रतिब्रहात्‌। कोटिभ्याश्नघन हन्यादुरसा च प्रपोडयेत्‌ ।। ६२ ॥ यतः फलगु.यतो fra यतखान्येरधिषितं। ततश्चारिबलं हन्धादातलमश्ोपह्येत्‌ । ६२ ॥ सार दिगुशसारे श फल्गुसारेण्पोडयेत्‌ | PEAY WAAR प्रच रे दारयेद्लं ॥ ६४ tt स्यात्‌ कथचपर्चोरस्यैखच वत्तमानस्त॒ TSA | ATA प्रयोगो CWA स्थानन्तु दशं येत्‌ । -६५॥ स्याद्‌ ण्ड समपन्ताभ्यामतिक्रान्तः प्रडारकः। भवेत्स पक्षकसाभ्यामतिक्रान्तो ES! सतः ॥ ag ॥ कत्ताभ्याञ्प्रतिक्रान्तव्यहोऽसनद्चः स्मृतो TAT | HATTA: खाप्योरस्येः HAI BAW eo ॥ St द्रो बलयः Mat rer fegfrerce: t दुजं यखचतुवंलयः शत्रोबंलविमद्‌ नः ॥ ६८॥ कच्चपक्षोरस्वेर्भागो विषयं परिवन्तंयन्‌ | ९ कोटिभ्यां परिकसपयेदिति घ, qo च। [२४१ अध्यायः। ्रम्निपुराखे QoQ संप चारौ गोमूचिका शकट; शकटाक्ततिः ॥ ६< ॥ विपरषयोऽमरः प्रोक्तः सकंश्रतकिमिदेकः t स्यात्‌ कच्चपत्तोरस्यानामेकौभावस्त्‌ मण्डलः ॥ 9e ॥ ARIMA भेदा मण्डलस्य प्रभेदकाः। एवच्च सवंतोभटरो वल्वाक्वरकाकवत्‌ ॥ ०१ ॥ अच चन्द्रख VHS West नामरूपतः (\)। TRE AUNTS AIT, शत्र णां बलवार; ॥ ७२ tt श्रग्निरुकच। UHR रावणश ear भवोध्यां प्राप्तवान्‌ हिज । रामेाक्तनीत्येन्द्रजितं इत्तवांक्ञच्णः पुरा | ७३ ॥ इत्याग्नेये महापुराणे रामोक्तराजनीतिर्नाीम एकचत्वारि श- दधिकदहिशततमोऽध्याय॥. १ अखाह्सद्पुलकानां मध्ये क we चिद्धितपुरकद्ये दण्डादिकनिपय- हठतक्गामसमोप € : यानां fre विन्यासुलकद्रामखमोपे खारतयः प्रदर्भिताः, परन्तु ता wet: | ता यथा.-द्ष्डयुदद्००° | TACHA S २०। रढयदश्य० ° < | way । द्‌ दढब्यदद्य > = ॐ | EAL | © © © 9. 9 ` ©. @. 9. © ००० | छातकयुचख् § oe e OOo | वललबष्यशद्ऽ 25 5। SAV S SSS St भोगयूहख ००००० । मौमूचिकाग्‌ शस्य Ss < । ~| 1. 09 @ 9 ® ७09 oes ca | अमरगृडस्य ००००००० | -सक्तभब्रयूरस्य ‡ 3 अथ दिच्ारि शदथिकददिशततमोऽध्यायः। | फरुषलश्ष ख । अग्निरुवाच | राभोक्ञोक्ञा मया नतिः atei राजन्‌ sui वदे । FAT यस्ससुदधे स गर्गायोक्तं यथः पुरः ॥ १॥ समुद्र VATS! TATE GT वच्छ स्तौ शारेव शभाशम । एकाधिको दिशक्व तविगश्बोरस्त्रयेव च ।४ Rt तिजिकस्तिप्रलम्बख विभि्व्यीप्रोति यस्तघा । चिबलोमांस्लिविनतस्िकालन्नञ्च सुव्रत ॥ ३॥ परुषः स्यास्लच्षण्यो विपुल तथा fag! चतुरं वस्तथा यख तथेव च चतुःसमः ॥ ४॥ चतुष्किष्छ तुदः TART च । चतुगेन्धतुङसः TAT पञ्चसु ॥ ५॥ षड्‌ AANA ANSE नवामलः । THUG THATS AUT: ॥ ६ ॥ चतुदश सयदन्ः षोखगाचथः शस्यते | धर्नाथकामसंयुक्षो Wat द्येकाधिक्रो मतः ॥ 9॥ तारकार्यां विना aa शुक्तदम्तो दिशक्तकः। गगम रख्िखवो नाभिः casa, faat खतं द ॥ अनसुया; द्याः चान्तिमङन्लाचारयुक्षता | WS TH त्वकाप ख्मनायासख गोता ॥ < ॥ "= [२४२ WaT | परषलत्तणकधनं | ३८४ चितिकस्तिप्रलम्बः Eee भुजयोनेरः | दिग्देशजातिवगांख तेजसा यथसा Frat १० ॥ व्याप्नोति यस्िकव्यापौ तिबलौमावब्ररसत्वसौ | उदरे बलयस्तिखौ नरम्विविनतं खण ॥ ११॥ देवतानां दिजानाञ्च गुरूणा प्रणतस्त यः । धमौधकामकालन्नस्तिकालन्नोऽभिधौयति ॥ १२॥ उरो ललाटं amy fafrenat विलेखवान्‌ । दौ पाणौ हौ तथा पादौ ष्वजच्छत्रादिभिये तै १२॥ WEN हदय we कटिः Tet चतुःसमं । RTA, लोत्‌ सेध खतुष्किष्कुप्रमाणतः ।। १४ ॥ द्रं टाखतख बनद्राभा खतुःकष्णं वदामि ते । नेत्रतारौ A ष्मः HUT केथास्तथेव च | १५॥ नासायां वदने खेदे कश्षयोविङगन्धकः | स्तं लिङ्ग तथा ग्रोवा जघ स्याहेटङसकं ॥ १६॥ सचा स्क लिपवोखि नस्डकेशदिजत्व चः | | हन AT ललाटे च नासा Sat स्तनान्तरं ॥ १७॥ TS: HI नखा नासोत्रत ga ककाटिका। जिग्धास््वक्षेणदन्साच लोम eferara वाक्‌॥ est जान्वोरुव ख USA वंशौ हौ करनासयोः | नेति नासापुटौ कणा HS पायुमु खेऽमलं ॥ १९ ॥ जिद्नोष्ं तालनेत्रे तु हस्तपादौ नखास्तथा । शिखाग्रवक्त शस्यन्ते पद्माभा दश देडहिनां॥२०॥ पाणिपादं सुखं wat wad wea शिरः | ( se ) ३८६ अष्निपुराखय [२४९ अध्यायः, ललाटमुदरं US वहन्तः पूजिता दश । २१ a प्रसारितभुजसखेष्ट मध्यमाग्रहयान्तर | SHAT समं यस्य न्धग्रोधपरिमण्डलः ॥ VR पादौ get स्फिचौ पारा TSM षयो कुषौ । कौर सकथिनो जङ्ग शस्तो वाह तथादिणो | २२ ॥ चतुद शसमदन् एतन्सामान्यतौ नरः | विया खतुहश CTA: पश्येद्यः तोडश्याक्षकः; ॥ २४॥ wea शिराततं गावमश्भं मांसवजिंतं | SAAT यच्छस्तन्दु्या परस्या ॥ २५ ॥ धन्यस्य मधरा वाणो afaaraatafaat | | एकक्पभवं रम भये र्षा सत्‌ स्तत्‌ ॥ २९ ॥ दत्यामेये महापुराणे पुरुषलक्षणं नाम दिवलारिशदधिक- दिश्ततमोऽध्याय्‌; ॥ अथ चिचत्वारिंशदधिकदिशततमोऽध्यायः। स्लौलश्चणम्‌ । ` समुद्र उवाच ¦ घस्ता स्रौ(*) Meaty मत्तमातङ्कगामिनौ । शुरूरुजघना या च मत्तपारावतेच्वणा॥ १ ॥.. सुनोलकेभो caer विलोमाङ्गे मनोहरा | १ wat By eh ae | [२४४ अध्यायः। चामरादिश्शकधनं | ace. VATA शौ पादौ संहतो च AAT स्तनो WRU नाभि; प्रदकिणावन्ता Peary | gent निगढो मध्येन नाभिरक्ग मानिका ॥३॥ जठटरन्र प्रलग्बच्च CASA न शोभना | नशवक्तनदौीनामौ न wer’) waefiar ॥ ४ ॥ न लोलपा न gular भा देवादिप्रूजिता | गण्डेन्धधूकयुष्याभेन शिराला न लोमशा ॥ ५॥ न संहतभनूकुटिला पतिप्राणा पतिभिवा । भलक्षणापि लक्षा यताकारस्सतो गुणा.(९५। ९॥ भुवदनिष्ठिका यस्या न स्पृशेकमल्युरेव सा 1 इत्याग्नेये म्ाषराणें स्रौोलक्षणं नाम त्रिचत्वारि शदरधिक्ष- दिशततमोऽध्यायः ॥ | | अथ चतुखत्नारि शदधिकदिशततमोऽध्यायः। चामरादिलक्षणम्‌। अगम्निरुवाच । चामरी रकादण्ोऽग्राः ST रात्रः प्रशस्यते | इसपर्ैविरचित मयुरस्य शकस्य च ॥ १॥ ` Gaal बलाकाया न काथः भिथपश्चकेः । ~~~ ----~----- ९ न शठेति ्०। ९ जठरमित्यादिः, ततौ गुणा इत्यकाः प्राठः ` च० He Gage नाकि | Qua श्रम्निपिराशे [२४४ अध्यायः । GACT ब्राह्मणस्य TU रान्न एक्का ॥ २ ॥ निषतुःपञ्चषट सप्तश्रष्टपवंख THA | भद्रासनं चौरैः पश्चाशदष्रः लोच्छरये:(\) ॥ २ ॥ विस्तारेण निष्स्त'(९) स्यात्‌ सवणा ये ख चित्रित । धनुद्रव्यत्यं Ste खङ्ग दाङ हदिजोष्तम ॥ ४॥ ज्याद्व्यनितय्चैव वं ्भङ्गल चस्तघा | दारुचापग्रमाणन्तु WS हस्त चतुष्टयं ॥ ५ ॥ तदेव समहोनन्तु प्रोक्ष मध्यकनौयसि । सष्टिमराहनिमिन्तानि मध्ये carta कारयेत्‌ ॥ ९ tt सखल्यकोटिखत्वचा VE शाङ्गंलोहमये दिज । कामिनौखलताकारा कोटि; काया सुसंयता ॥ ७ ॥ surat fan मिञ" वा ate शाङ्गन्तु कारयेत्‌ | शाक्तः" समुचितं काथ wafers विश्रषित ॥८॥ कुटिलं स्फटितश्चापं सच्छिद्र न गस्यत | सुव्ं' रजतं ater कष्णायो धनुषि स्मृत ॥ < ॥ artes शारभं WIE रोददिषं वा धनुः TH | चन्दनं वेतसं सालं धावलद्कुभग्तरः । १० ५ सर्वजरे्ठ धनुर्वेदे; शरदि चितः | पूजयेत्त धनुः(र) यखुडगमन्तेस्न लो क्यमोद्नः ॥ ११॥ TATA ATA शरस्याप्यशरस्य च | | ऋजवो इ मवार्णाभाः खायुखिष्टाः FIAT ॥ LR ~~~ १ चतुरखमित्यादिः, पञथ्ाभदङ्ग, रोच््र येरित्य नः We: ज० FIs नाल्ि। ९ fawafata ce | २ URINE म० चर, HO S| [२४४ श्रध्वायः। चाभंरादिलक्षणशकयनं | १८९. THIET SIPS ते लघौताः सुवर्थकाः | याज्रायामभिषेकादौ यजेहाणधमुमुं खान्‌ ॥ १२॥ ” सपताकास््रसङ्गाहरसावत्‌सरकराचुपः। ब्रह्मा वै मेरुशिखरे स्वगं गङ्ग तटेऽयजत्‌ i १४ ॥ सेाषदेत्य' स cen fer यत्ने तु चिन्तयन्‌ | तस्य विन्सयतो TS: पुरुषोऽभूदलो मदान्‌ ॥ १५॥ ववन्देऽजच्च तन्देवा भ्रभ्यनन्द्न्त इषिताः(\) | तस्मात्त नन्दकः (र) खडगो देवोक्तो हरिर्ग्रहोत्‌ |! १६॥ तं जग्राह wager’) विकोषः rsa | SEM नौलो रत्रसुष्टिस्ततोऽभू च्छतवा हकः ॥ १७ ॥ | 2a स गद्या देवान्‌ द्रावयामास वे रके । विष्णुना खडगच्छत्रानि देत्यगा्राणि भूतले i १८ ॥ पतितानि तु संस्पर्थत्रन्दकस्य च तानि fe! लोहभ्रूतानि सर्वाणि त्वा wat इरि व॑र ॥ १८ ॥ ददौ पविश्रमङ्रन्ते saa भवेष्ुवि । इरिप्रसादाद्‌ ब्रह्मापि विना विन्न" हरिं प्रभु ॥ २०॥ पूजयामास यत्नेन TASH खडगल्चणं t खटौखट्रजाता ये दशं नौयास्तते War wre ti कायच्छिदस्वाषिंकाः wee सपीरकोहवाः तौखूछाज्छेदसद्ा ALTA: स्य ाङ््देणजाः ॥ २२ ॥ शताचैमङ्ग MATS चेष्ट" खड्गं wath | LANs १ रोडदत्यभित्यादिः रुषिता care पाठः २ TUT नन्दक इति ge, we च। लर Gwe नाकि | २ मादेव इति ore | ` ३€ ० ` aferqure [२४५ अध्यायः | तदै मध्यमं चेयं ततो रोमं न धारयेत्‌ it २३२॥ ae Tat शब्द यस्व CET सत्तम । ` किद्िणोसटथन्तस्य धारणं ओ्सुश्यते ।॥। २४ ॥ ` खगः पद्मपलाशाग्रो मण्डलाग्रख शस्यते | करवोरदलाग्राभो waa वियतुप्रभः॥ २१५४ RATE TAT: शस्यन्ते व्रणाः Ger लिङ्गवत्‌ | काकीलुकसवरष्णभा विषमास्ते न भोभनाः॥ २९ ॥ खड्गे न पशयेहदनसुच्छिष्टो न Uefa । ` मूल्यं जातिं म कथयेमिशि ङुथात्र भौषेके ॥ २७ ॥ caraa महापराणे भायुधलचणादि्नाम चतुखत्वारि- शद्धिकदिशततमोऽध्यायः॥ अथ पश्चचत्वारि शदधिकदिशततमोऽध्यायः। नयति Keema —— , रब्रपरोत्ता । प्म्निरवाच | carat aed वच्छे cat धाथमिदं Zt: | qed मरकतं Te पशररागश्च मौक्तिकं ॥ १॥ CAAT महानीलं वैद गन्धशस्य कां | QUT GATT खटिका पुलकं तथा ॥ २१ [२४१ wea |) रत्रपरीच्ाकधन | RE? ककतनं पुष्यरामं तधा चधोतीरसं दिल | स्फटिकं WATER तथा राजमय शभ ॥ २ ॥ सोगग्धिकं तथा TST शङ खत्रह्ममयं तथा | गोमेद रुधिराच्चश्च तघा भल्लातकं fest ॥ ४॥ धूलौ मरकतञ्चैव तुकं GaAs च । पोल्‌ प्रवालकञ्चेव गिरिवच festa ॥ ५॥ भुजङ्गममरिच्धेव तथा वज॒मणिं शमं | fefeaq तधा पिण्ड स्नामरद्च तथोत्पलं ॥ ६॥ सुवणप्रतिबहानि cari ग्रोजयादिक्घे | अन्तः प्रभं AAT सुसं स्थानत्वमेव TAN सुधार्या नैव urate farsa मलिनास्तथा । खण्डाः ATA TF TNA TATA ॥ ८ ॥ saa wena विमलं च यत्‌ | षट्कोणं TRAIT लघ चाकनिभं शभम्‌ ॥ < ॥ शकपच्तनिभः जिग्धः. काज्तिमाखिमलस्तया | augue: SRATHTS विन्द्भिः neon स्फटिकजाः पञ्मरागाः स्व्‌ रागवन्तोऽतिनिनख्मलाः। MART भवन्तो कुरुबिन्द समुद्भवाः ॥ ११ ॥ सौगन्धिकोत्था काषाया सुकल्लाफलास्त्‌ शक्तिजाः | विमलास्तेभ्य SRT ये च UPIWAT Fat! १२॥ नागदन्तभवाा्रााः FATA: | वेणुनागभवाः Wer मौक्तिकं मेघजं aT १३॥ हत्तत्व' शकता खाच्छय महत्व मौक्तिके गुणाः। १९२ अम्निपुराणे [२४९ अध्यायः । इन्दनौलं शभं सौरे राजते ज्राजतेऽधिक(\) ॥ १४॥ रष््रयेत्‌ ख्प्रभावे ण cae विभि येत्‌ | गौलरकषन्तु वेदय Se हारादिकं भजेत्‌(९) ॥ ey TAMA मष्ापुराशे रत्रपरोक्षा नाम पच्चचत्वारिशण- दधिकददिश्ततमोऽध्यायः॥ अथ षट चत्वारि शदधिकदिश्ततमोऽध्ययः। TATA । अगनिरुवाच | वास्तलद्छा प्रवच्छामि विप्रादौनां च भूरिह । शिता रक्षा तथा Tat KUT चेव यथाक्रमम्‌ ॥ १॥ छतरक्नात्रमद्यानां गन्धाढ्या वसतख मूः | मधुरा च कषाया च भस््ञायपरसा क्रमात्‌ ॥२॥ qa: शरेस्तथाकाशेदंवौभि्यौ च संखिता । are fania निःशल्यं खातपूवन्तु कल्पयेत्‌ ॥ २॥ "वतुःष्टिपद्‌ क्ता मध्ये ब्रह्मा चतुष्पदः | पराक्‌ तेषां वे wear कथितस्त॒ तथायथमा ॥ ४॥ दकिणेन faaata faa: प्िमतस्तथा । ` उदङमद्टौधर चैव WITT च वङ्किगे ॥ ५॥ साविवरचैव सविता जयेन्द्रौ awash | १ भाजते स्ितमिति ee, ogi २ भवेदितिमर Go Gq) [२४६ अअध्यायः। वास्तलकच्षणकधनं। ३९३ ` र्द्रव्याधौ च वायव्ये पूर्व्वादो कोखगादहिः॥ ९॥ ate रविः सत्यो.भुश्ः() पूर्वव दधिषे । WHAM SAAT गन्धर्वाय वारये ॥ ७ ॥ पुष्यदनम्तोऽमुरायेव करुणो TY एव च| सौम्ये भकज्ञाटसोमो च अ्रदितिधनदस्तघा॥ ८ a नागः करग्रहे अष्टौ fete feta स्मृताः । ST तु तयोदवौ प्रोक्षावत्र wea lie | पज्यन्धः Waa देवो दितीयश्च करग्रहः | मदेन्द्ररविसत्याख्च WAST गगनन्तथा ॥ १० ॥ पवनः पूव्वतयेव अन्तरौचधनेश्वरौ | Wat चाथ Awa खगसुग्रोवकौ सुरौ ॥ ११॥। रोगो सुखञ्च वायव्ये दस्िणे पुष्यवि्तदौ । WEAR AAA गन्धवा नागपेढकः ॥ १२॥ राप्यं दौषारिकसुग्रौवो पुष्पदन्तोऽसुरो जलं । यच्छा UAT शोषश्च उत्तरे नागराजकः ॥ ११॥ . मुख्यो भल्लाटश्शिनो अदितिखक्वेरक्षः। नागो हताशः WSt वे (र) शक्रस्य च aga: nes SA WHAT: YA Wa wa उत्तमः | UMA WSMV WATS: पुष्पदग्तकः ।॥ १५ ॥ शिलेटकादिविन्यासं मन्न; प्राच्य सुरांबरेत्‌ । ` नन्दे नन्दय वासिष्ठे वसुभिः प्रजया सह । १६ ॥ १ भृगुरिति sto! | _ २ नागो Sart: चह इति Powe च । ( ५० ) R28 अम्निपुराख [२४६ अध्यायः । जये भागवदायारे प्रजानाच्लयमावदह (९) | पूेऽ्विरसदायादे ward gee मां ॥ १७ ॥ भद्रे काश्यपदायादे कुर wat मतिं wa सववौजसमायुक्ष सव रब्रौषधंवते ॥ १८॥ afat ava नन्द वासिष्ठ रम्यतामिह । प्रजापतिसुते देवि चतुरखे महोमये ॥ १८ ॥ सुभगे सुव्रते भद्र we काश्यपि —— वाकपारुष्यादिप्रकरणशम्‌। अस्मिरुवाच । सत्यासत्यान्यथा स्तोत्रे नाङ्न्दरियरोगिखशां । सपं करोति चेदण्डयः'पणानरैत्रयोदश Wt परभिगन्तास्ि भगिनोख्ातरं वा aafa च। शपन्त' दापयेद्राजा पञश्चविशतिकं दम॥२॥ र्दोऽधमेष feqe: परसो पृत्तमेषु श्च । दण्डप्रणयनं काथ वखंजातयुत्तराधरे; ॥ र ॥ प्रातिलोम्यापवादेषु हिगुशजिगुणा eur: | वर्णानामागुलोम्येन तस्माटेवाशडानितः॥ ४॥ वा्ग्रोवाने्रसक्थिविनागे वाचिके दमः। WAALS कः पादनासाकण्करादिष्‌ nui ATMA TTATCS नोयः पणान्‌ दथ | तथा शक्षः प्रतिभवं दद्यात्‌ चेमाय ve a(t) ॥ ९॥ पतनौयक्ततं सेपे दण्डो मध्यमसाहसः | उपपातकयुक्ते तु दाप्यः प्रथमसाहसं ॥ ७ ॥ ` वै विद्दपदेवानां नेप उन्नमसाडहसः | स~ ~~~ ~ ~ किमगा ९ दद्ारित्यत दाप्य दूति erat भवितु a | [२५७ अध्यायः] वाक्पारुष्यादिप्रकरणं । ४३९ मध्यमो ज्ञातिपूगानां प्रथमो ग्रामदेशयोः॥ ८ ॥ अरसालिकष्टते fas a किभिश्ागमेन च | द्रष्टव्यो MATT कूटचिङ्कक्तादयात्‌ ॥ 2 ॥ AACA TT दण्डो दशपणः स्मतः | परमेध्यपाण्णिनिष्टूयतस्पथेने दगुणः स्पमतः॥ १०॥ समेष्वेवं परस्त्रोषु दि गुणस्तृत्तमेषु च । Sarak दमो मोहमरदिभिरदण्हनम्‌ ॥ ११॥ विप्रपीडाकरं च्छ दमङ्गमब्राह्मशस्यतु) उड प्रथमो दण्डः सस्ये तु तदहिकः ॥ १२॥ SEW सतपाटैतु दशविंशतिकौ cart परस्परन्तु VaR शास्त्रे मध्यमसाहसः ॥ १३॥ पादकरशाश्ककरोह्ुखनषु पणान्‌ दय | पोडाकर्षा शकावेषटपादाध्यासे शतन्दमः ॥ १४॥ शोणितेन विना दुःस्ुवेन्‌ काष्ठादिभिनेरः। हावरिश्तं पणान्‌(१) दाप्यो हिगुण दशनेऽरूजः।॥ १५॥ करपाददतो UF च्छेदने कणंनासयोः। AM दण्डो AMES खतकल्पहते तथा ॥ ११। चेष्टाभोजनवाग्रोधे ने चादिःप्रतिभेदने | कान्धराबाइसकष्याख्च HF मध्यमसाहसः ॥ १७ ॥ एकं wat aware यथोक्तादिगुणा दमाः | wad देयं ewe दिगुणः स्मृतः ॥ १८॥ दुःखमुत्पादयेचखस्त. स ससुत्‌धानजं व्ययम्‌ | ९ दइाविंधतिपशानिति खर | BRR अग्निपुराणे [२५७ भध्यांयः। दाप्या दण्डश्च यो यस्मिन्‌ कले समुदाद्रतः॥ १< tt तरिकः Wat शल्क VET दरा: पलान्दश | त्राह शप्रातिषे्यानामेतदेवानिमन्वणे ॥ २० ॥ श्रभिघाति तथा भेदे we कुद्यावपातने। पणान्दाप्यः पष्ट गविं ति तच्चयन्तधा ॥ २१॥ दुःम्बोत्पादिष्हे ga लिपन्‌ प्राणडरं तथा। षाडगादयः पणान्‌ दाप्यो feria मध्यमन्दमम्‌॥ २२४ दुःखे च fare याखाङ्च्छेदने तथा । aw: qaqa स्याहिपसप्रखतिः क्रमात्‌ ॥२९॥ fara Gea सत्तो मध्यमो quart मद्ापश्ूनामेतेषु स्थानेषु दिगुणा Tare a Vs a yofenf sat शाखास्कन्धसवंविदारये । उपजीव्यहुमाणान्तु विं यतेदिंगुणा दमाः(२)॥२५॥ यः साषसहमारयति स दाप्यो feqaqay | यस्तवेवसुक्घा ह दाता कारयेत्‌ स चतुगु्म्‌ HVE श्राययोक्रोगातिक्रमइाठजायाप्रहारदः I सग्दिषटस्याप्रदाता च ससुद्रग्टहभेद्‌कः ॥ २७॥ सामन्तकुलिकादटोनामपकारस्य कारकः; पञ्ायत्पण्िको दण्ड एषामिति विनिख्यः ॥२८॥ खच्छन्दविधवागामौ विक्र ष्ट नाभिधावकः। भकारे च विक्रोष्टा चण्डाल्ात्तमान्‌ खन्‌ ॥ २९ ॥ शूद्रः प्रब्रजितानाश्च देषै पेते य च भोजः | १ प्ररोदिषा.खम्‌मित्या[दरिगतेि Fer ear CU पाठः खन्युखके गाखि। [२५७ श्रध्यायः।] वाकपारुष्यादिप्रञ्रणं। ४११. अयुक्त' शपथं कुव ्रयोग्यो योग्यकमछत्‌ ॥ २० ॥ हषन्तुद्रपशूनाच्च पू स्वस्य प्रतिघातलछत्‌ | साघारणसख्यापलापो दासौ गभविनागकलत्‌ ॥ ३१। पितापुव्रखङखूश्राटदम्पत्याचायश्िव्यकाः | एषामपतितान्योन्यव्यागौ त शतदण्डभाक्‌ ॥ १२॥ वसानस््नोन्‌ पणान्‌ दण्डयो ATH TAA | विक्रयावक्रयाधानयाचितेषु पणान्‌ za ak a तुलाशासनमानानां कूटक्व्राणकस्यच। ` एभिश व्यवहत्ता यः स दाप्यो दण्डमुस्तमम्‌ ॥ २४॥ कूटं Fos Aa कूटं यखाप्यकूटकम्‌ | स ATUHA aT तु दाप्यः प्रथमसाहसम्‌ ॥ AYN fane faaratq erafaerg प्रथमं दमम्‌ | मानुषे मध्यमं राजमागुषेषूत्त मन्तथा ॥ २९ ॥ अवध्य यख वध्नाति बध्यं यश्च प्रमुञ्चति | अप्राप्तव्यवदह्ारख् स दाप्यो दममुत्तमम्‌ fl 29 ॥ मानेन तुलया वापि यीऽशमषटमकं रेत्‌ । हाविं तिपगान्‌ दाप्या वषो erat च कल्पितम्‌ ॥ ८ ॥ भेषजं हलव यागन्धधान्य गुडा दिषु | पर्येषु प्र्तिपन्‌ होन पणान्दाप्यस्त्‌, षोडश ॥ १९ ॥ Ty कुष्वं तामघ' सबाधं कारुभिच्थिनां | Wa Bie ठदहि' वा सदसो दणड उच्यते ॥ ४०॥ राजनि खाप्यते asd: wae तेन विक्रयः । क्रयो वा निखखरवस्तस्माहशिजां aad स्मतः ॥ ४१॥ ( ५५ ) ४२४ afaguy [ayo wera: । स्देशपण्य तु शतं बशिग्‌ asia पश्चक। ‘ ~ दथकपारदेश्यत्‌ यः सद्यः क्रयविक्रयौ use ॥ पश्यस्योपरि संस्थाप्य व्ययं प्यसमुद्रवं | द ~“ विक्र क अरथाऽनग्रहकत्‌ कायः क्रतुविक्रेतुरेव ख ॥४२॥ ग्टहोतमल्य यः पस्य करेतुर्नव प्रयच्छति | सोदयन्तस्य दाप्योऽसो दिन्लाभं वादिगागते॥ ४४ a विक्रोतमपि विक्रीय पूव क्रेतयश्टह्कति। ानिचेत्‌ क्रढदोषेण क्रेतुरेव हि सा भवेत्‌ ॥ ४५॥ राजदेवोपघातेन पर्छ दोषमुपागते । हानिविक्रतुरेवासौ याचितस्याप्रयच्छतः॥ ४६ ॥ क e ‘ ss wae च विक्रौत ge at geaafe | विक्रौनौते दमम्तवर aa ल्याद्हिगुणो भवेत्‌ ॥ ४९ ॥ aq हदिख्च बणिजा पण्यानामविजानता | क्रत्वा नानुशयः का खं: कुवन्‌ TT भागद्‌ण्डभाक्‌॥ ४८॥ ~ + * ¢ समवायेन बणिजां लाभार्थं" कमं कुवतां। लाभालामै यथा द्रव्य यथा वा संविदा क्तौ ॥ ४९ ॥ प्रतिषिहमनादिष्टं प्रमादाच्च माशितं। स तद्‌ ादिञ्नवाचरस्तिताद्श्मांयभाक॥ ५० ॥ अधप्रत्तेपणादहिंश भाग शरक BIN रेत्‌ । व्यासिद्ध राजयोम्यञ्च विक्रोतं राजगामि तत्‌ ॥ ५१॥ भित्था बदन्‌ परोमाणं शएरूकस्थानाद्प्रक्रमन्‌ | दाप्यस्त्वशटगुण यञ्च सव्याजक्रयविक्रयो ¦ ५२॥ देयान्रगते प्रेते द्रव्यदायादबान्धवाः। २५० ware 1] वाक्पारुष्यादिप्रकरणं | ४१५ न्नातयो वा इरेथस्तटागतामस्तेविं ना Ba । ५३ ॥ frm व्यजयुनिभमशक्तोऽन्येन कारयत्‌ | अनेन विधिराख्यात ऋलिकककर्मिणां | ५४ ॥ श्राकेग्छेद्यते चोरो लोपे णाध पदेन वा। पूवंकर्मीपराधी वा तथैवाशडवासकः | ५५ ॥ ` अन्येपि गङ्गया are जातिनामादिनिशवेः | य॒तस्त्रोपानशक्ताख शष्कभित्रसुखस्राः | ५६॥ परद्रव्यग्ट्हाणाच्च एच्छका Fearfea: | निराया व्ययवन्तश्च विनष्ट द्रष्यविक्रयाः॥ ५७ wid: APA चौय araray दिशोधयेत्‌ । ` दापयित्वा तं दरव्यं चोरदण्डेन SWAT ॥ ५८॥ सौरं प्रदाप्यापष्ठतं घातयेदिवियेवपैः। ` afas ब्राह्मण mat स्वरा्टादि प्रवासयेत्‌ ॥ we ॥ घातितेऽपद्रते दोषो ग्रामभत्तेरनिर्भते tt स्वसोन्नि दयाद्‌ ्रामस्त, पटं वा यत्र गच्छति ge पचचग्रामौ वहिः aire ase वा पनः ` वन्दिग्राहांस्रथा वाजिकच्लराणाच्च हारिणः eet प्रसद्य घातिनश्चैव शू लमारोपयेवरान्‌। उतृच्तेपक ग्रन्विभेदौ करसन्दगहो नकौ ॥ ९२॥ कार्यौ दितीयापराधं करपादटेकरीनकौ। भक्तावकाशान्न्य,दकमन्तोपकंरणव्ययान्‌ ॥ | it ट्वा चोरस्य Fal जानतो TA SUA: | शस्रावपाते गभस्य पातने चोत्तमो Ta ६४॥ ४२६ ufergure [२५७ wera: | Swat वाऽधमो वापि पुरुषस्त्ो प्रमापरे | शिलां बहा चिपेदणष्यु नरण्नों विषदां ख्ियं ! ६५५ faarfaret जिजगुङनिजापत्यप्रमापयीँ | विकण्करनासोष्टौं ला गोभिः प्रमापयेत्‌ ॥ ag ॥ खे्रवेष्मव मग्रामविवोतखलट्‌ाहकाः। रालपन्राभिऽगामौ च erate कटासम्बिना ॥ ६७५ पमान्‌ संग्रहणे VWI: केशाकेशिपरस्तियाः। स्वजा तावु मो SH श्रानलोम्ये तु मध्यमः ॥ Qe प्रातिलोम्ये बधः पुसां नाथाः क्शौवका््तंनम्‌। नोवौस्तनप्रावरणनाभिकेश्यावमदनम्‌ Nae ॥ अदेशकालसम्भाषं सहावस्थानमेव च | स्रौ निषेधे शतं ददयाददहदिशतन्तु दमं पुमान्‌ ॥ <° ॥ प्रतिषेधे AMS यथा खं ग्रे तथा । पशून्‌ WE SA दाप्यो Fat स्रौ Ars मध्यमम्‌ 192 VAGUS दासौषु yfsery तथेव च। गभ्यास्पि पमान्दाप्यः पञ्चायत परिकम्दमम्‌ ॥ ७२ ॥ Waa दास्यभिगमे दण्डो दशपणः स्मतः । कबन्धेनाद्च गमयेदन्ाप्रवजिता गमे ।। ७३ ॥ aa वाप्यधिकं वापि लिखेद्यो राजग्यासनम्‌ | पारदारिकचौरं वा AUT दण्ड CWA: ७४ ॥ wade षयन्‌ विप्र gw उत्तमसाहसम्‌ | कूटस्वणव्यवष्टारो विमांसस्य च विक्रयौ ॥ ७५॥ अङ्हटोनख कन्वो टाप्यस्लो्तमसाहसः | RUS अध्यायः।] वाक्पारश्यादिप्रकरणं। ४३९ शको मोचयन्‌ स्वामौ Sea: खङ्किणस्तथा + oe ॥ प्रथमं सासं catfem S दिगुणं तथा । भचोरद्चौरेऽभिवदन्‌ दाप्यः Ty दमं ॥ ७७ ॥ राक्नोऽनिष्टप्रवक्षार तस्येवाक्रोयकं तथा | खताङ्कलम्नविकरेतगु रोस्ताङ्यितुस्तथा ॥ ७८ ॥ तम्मग्तस्य च Ware fear frat प्रवासयेत्‌ । राजयानासनारोढदंण्डो मध्यमसाहसः ।॥ ९ It हिने व्रभेदिनी राजदिष्टारेशक्षतस्तथा | विष्रतवेन ख शूद्रस्य जोवतोऽष्टशतो दमः॥ ८०॥ यो मन्धताजितोऽस्मौोति ग्धायेनाभिपराजितः। तमायान्तं wafer aT दण्डयेहिरुणः दम' ॥ ८१॥ राक्राऽन्धयायेन यो दरो ग्टहोतो aquraa t fata दद्यादिपरेभ्यः सयं ति शङ wea ॥ ८२॥ wears wifes लोकपः क्षिरपग्रहः | प्रजाभ्यो बहुमानश्च स्वगेखया नश्च शाश्वतम्‌ ॥ ८३॥ CAAT व्यवहारा गुणः स्यः सप्त भूपतेः | CMM मह्ापुराखे वाकपर्थादिप्रकरणं नाम सप्तपच्चाशदधिकदिशततमोऽध्यायः॥ CET Cai सथाष्टपश्चाशदधिकदिशततमोऽध्यायः । eee ----- ऋग्विधानं | अम्निरुवाय | कऋग्यज्‌ःसामाधवेविधानं पुष्करोदितम्‌ । भुकिसुक्षिकर जप्या्ोमाद्रामाय age ॥ १ ॥ पुष्कर उवाच । प्रतिषेदन्तु aaifa araifa प्रवदामि a | प्रथमः ऋग्विधानं वे खण त भुकिमुक्तिदम्‌ ॥ २ ॥ ्रन्तउजंजे तथा CA जपती मनसेष्ठितम्‌ | कामं करोति गायो प्राणायामाहिशेषतः॥ २॥ Waal SNA जपो नक्ताशिनो fear ।. बहख्ातस्य ततैव स्वकस्प्षनाशनः ॥ ४ ॥ दशायुतानि जघ्वाऽथ हविष्याशो स मुक्तिभाक्‌ । प्रणवे fe परं AW AST: स्वंपापषडा NR. Starcaasag नाभिमावोद्के fea: | जलं पिवेत्‌ स स्वैस्त पापे वे (१)विप्रसुश्ते ॥ ९ ॥ माज्रातय तरयो वेदास्रयो टेवास्नयोऽम्नयः | मदहाव्याष्तंयः सप्त लोका होमोऽखिलाषघष्ा ॥ ॐ ।। गायन्नौ परमा जाप्या महाव्याहृतयस्तथा | अन्तस्ज ले तथा राम प्रोक्तयेवाघमर्षेणः ।। ८ ॥ अग्निमोले पुरोहितं सृक्गोऽयं वड्धिदेवतः। १ Wife’ विप्रमुखत दूति मर, Te, He चर। २५८ अध्यायः ।| ऋगविधानं। ४२९ शिरसा धारयन्‌ व्क यो जपेत्यरिवत्‌सरम्‌ ॥ < ॥ ia जिषवणं मेष्य मनग्निज्वल नश्चरेत्‌ | भरतः परखचः सप्त वायुद्यायाः प्रकोत्तिताः॥ १०॥ ता जपन्‌ प्रयतो नित्यमिष्टान्‌ कामान्‌ werd । मेधाकामो जपेत्रित्य सदसन्यमिति त्यचम्‌ ee i अन्वयो afta: प्रोक्ताः नवर्चो खत्यनाशनाः। शनःेफख्षिं aq: सत्निरद्ोऽथ वा(१) जपेत्‌ ॥ १२ ॥ मुष्यते सवपापेभ्यो गदौ वाप्यगदो भेत्‌ | य इच्छच्टा्वतं कामं मित्र प्राञ्च पुरन्दर ॥ १२॥ ऋग्भिः षोडशभिः कुथादिन्द्रस्यति दिने दिने । दिरण्डस्तूपमित्येतस्लपन्‌ WTA प्रबाधते । १४॥। चेमौ भवति चाध्वाना येमे पन्या जपन्‌ aT: | रोद्रौभिःषद्भिरौगान' Wangan वे दिने दिने ॥ yy il MQ वा कल्ययेद्रोदर aw शान्तिः परा भवेत्‌। उदिव्युदन्तमादित्यसुपतिष्ठन्‌ fea fer १९ ॥ चिपेव्वलाश्नलोन्‌ सप्त मनोदुःखविनाशनं | दिषन्तमित्यथाइ Safer जपन्‌ स्मरेत्‌ ॥ १७॥ WARY सप्तरात्रेण विद्ेषमधिगच्छति | WAR रोगो वा प्रस्कत्रस्योत्तमं जपेत्‌ ॥ esi उत्तमस्तस्य Vest ave विविधासने। उदयत्यायुरच्छय्ये तेजो मध्यन्दिने जपेत्‌ ॥ १९ ॥ ९ सब्रिबडोऽथेति we we, He | ४४० SATs [२५८ अध्यायः | अस्तं प्रतिगते gar दिषन्त प्रतिवाधते । न वयश्चेति सक्ञानि जपन्‌ तूजियच्छति ॥ २० ॥ एकादश quae aa ararfatate te श्राध्यासिकोः ALAA ATM TATA यात्‌ \ २१ ॥ भानो भद्रा इत्यनेन दौषमायुरवाप्र यात्‌ | त्वं सोमेति च सूक्तेन नवं पश्चेचिाकरं ॥ २२॥ उपतिष्टेत्‌ समित्पाशिव्वी सांस्याप्रोत्यसं चयं | रायुरोष्छत्रिममिति ater सृक्त सदा जपेत्‌ ॥ AQ aaa: गोशुचदिति ar मध्ये द्वाकरं | यथा मु्चति चेषोकां तथा पापं प्रसुञ्चति॥ ९४ ॥ जातबेदस शत्येतच्वपेत्‌ Berard पथि । भय व्विसुश्यते wa: खस्तिमानाप्र यात्‌ खान्‌ ॥ २५॥ ALAS तथा रात्पामेतह्‌ aay ! प्रमन्द्िनिति सूयन्तया जपेदभेविमोचनं ॥ २६५ aufaarfafa खातो बेश्वदरेवन्तु सप्तकं । मृच्चत्याच्यं तथा जद्त्‌ सकलं किखिषं मरः ॥ Re ॥ इमामिति जपन्‌ शश्वत्‌ कामानाप्रोत्यभौप्सितान्‌ । मानस्तोक इति erat तिरात्रोपोतितः शुचिः ॥ २८॥ भोडम्बरीख ज॒हयात्समिध खाज्यस स्ताः | faut vaige पाशान्‌ जौधेद्रोगविवजजिंतः ॥ २९ ॥ जद्धवादुरनेनेव Wat सम्भ" तथेव च । मानस्तोकेति च्चा शिखाबन्धे छते ATU १० ॥ अधृष्यः स्ेभूतानां जायते संय विना। २५८ Baa? 1] ऋग्विधानं । ` ४४१ चिच्रमित्य्‌ पतिष्ठेत चिसन्धंग भास्करं तथा ॥ ३१॥ समित्‌पाणिनेरो नित्यमौप्‌ सितं घनमा्न यात्‌ | भथ स्वप्नेति च जपन्‌ प्रातमंध्यन्दिने दिने॥ ३२ I दुःखघ्रञ्चा्ते ae भोजनच्चाप्र या च्छभम्‌(१) | उभे पुमानिति तथा रक्षोघ्नः परिकौत्ति तः ॥ ३२॥ उभे वासरा इति ऋचौ जपन्‌ कामानवाप्र arg | न सागन्निति च जपन्‌ मुच्यते चाततायिनः ॥ २४ ॥ कया शुभेति च जपन्‌ जातिग्रे्ठमवा्रयात्‌ | इमन्रसोभभित्येतत्‌ स्वान्‌ कामानवाप्रयात्‌ ॥ २५॥ पितरिल्युपतिषे त नित्यमधंमुपख्धितं (२) | aaa नयेति सङ्घेन तष्टोमख् मागंगः।। Re | धौरात्रयमवाप्रोति eae यो जपेत्‌ सदा | कङ्तो नेति gaa विषान्‌ सर्व्वान्‌ व्यपोहति ॥ ३७ ॥ यो जात इति सुक्तन सर्व्वान्‌ कामानवाप्र यात्‌, गणानामिति gaa जिग्धमाप्रोत्यनुत्तमं ।। ईट ॥ यो मै राजबितोमान्तु दुःखप्रणमनौमचं | शरष्वैनि प्रसितो यस्त॒ पञ्येष्छत' समुत्थितं ॥ १९ ॥ अप्रशस्त प्रशस्तः वा कुविदङ् इमं जपेत्‌। विंशकं जपम्‌ सुक्घमाध्यासिकमनुत्तमं |! ४० ॥ पर्वसु प्रयतो नित्यमिष्टान्‌ कामान्‌ समश्रुते | छणष्वेति जपन्‌ Ya जुद्रदाज्यं समाहितः ॥ ४१ ॥ ९ भोजना याच्छतमिति Go, Ae, Fo,Mo | २ नित्यमच्नशुपश्ितमिति a-, wo & | ( we) ४४२ अग्निपुराणे [२५८ Wea । wala इरेत्‌ प्राणान्‌ रक्तांस्यपि विनाशयेत्‌ | उपतिरेत्‌ खयं वद्धि परित्य चा दिने दिने ॥ ४२ ॥ तं रक्षति aa व्किव्विश्वतो विश्वतोमुखः । हसः शविः सदित्येतच्छचिरोकेदिवाकरं ॥ ४३ ५ कपिं प्रपद्यमानसत्‌ खालौपाकं यधाविधि । TFN चेमव्ये तु खनोखाहास्त्‌ पञ्चभिः ॥ ४४॥ इन्द्राय च AUNTS पल्लन्धाय भगाय च। यथालिङ्घन्तु विदरेक्ञाङ्गलन्तु छषोबलः ॥ ४५ ॥ युक्तो धान्या सौतायै सुनासौरमघोन्तर | गन्धमाच्यन मस्कारेयजेदेताअ देवताः \ ४९ ॥ प्रवापने प्रलवने खलसोतापडारयोः | Mae भवति Tea Bat कछषिः॥ ४७५ समुद्रादिति aaa कामानाप्रोति पावक्षात्‌। विश्वानर इति erat य ऋग्भ्यां afeaefa ॥ ४८ ॥ स तरल्यापदः wat यशः प्राप्रोति waa | विपुलां थियूमाप्रोति जय प्राप्रोत्यनुत्तमं ॥ ४८ ॥ sa त्वमिति «at धनमाप्नोति वाञ्छितः । प्रजाकामो जपे नित्यं वरुणदेवतव्रय' ॥ ५० ॥ MMT चयं जपेत्‌ प्रातः सदा खस्थयनं महत्‌ । स्वस्ति पन्या इति प्रो खस्तिमान्‌ व्रजतेऽध्वनि ॥ ५११ विजिगौषु्वनस्ते शरणां व्याधित भवेर्‌(१) | सिया गभप्रमूढाया गर्भ॑मो्षणसुसम' ॥ ५२ ॥ १ व्ाधिकम्भवदितिडढ° । २५८ अध्यायः ।] ऋग्‌ विधानं | BBR अच्छावदेति ay afeara: प्रयोजयेत्‌ | निराहारः क्िद्रवास। a fata प्रवषेति॥ ५१॥ मनसः काम इत्येतां wars नरो जपेत्‌ | aeaa इति खायात्प्रजाकामः शुचिव्रतः ॥ ५8 ॥ saga इति खया द्राज्यकामस्त्‌, मानवः | रोहिते whfa स्नायात्‌ ara” यथाविधि ॥ ५५॥ राजा चरि aad छाग वैश्यस्तथैव च। दशणसाषखिको होमः प्रत्येकं परिकीर्तितः ॥ ५६ ll आगार इति gaat गोष्ठे गां लोकमातरं | उपति द्रजेश्चौ व यदिच्छेत्ताः सदाक्षयाः ॥ ५७॥ उपेतितिभौरान्नो दुन्द्भिमभिमन्तयेत्‌ | तेजो बलच प्राप्रोति श, aq नियच्छति ॥ ५८ ॥ ठणपारिव्णपे सकत THT दस्यभिहतः । ये के च उमेत्य चं जघ्ा दौघंमायुरवाप्न यात्‌(१) ॥ ५९ tt जौमतसक्तेन तया सेनाङ्गान्यभिमन््रयेत्‌ | apart fay’ ततो राजा विनिहन्ति रणे रिपून्‌ ॥ go 1 ्राम्नेयेति fafa: सक्ष धनमाप्नोति चाक्षयं | श्रमोवद्ेति सकन भलतानि खापयेत्रिशि॥ ६१॥ संबाधे विषमे दुगे बन्धो वा निगतः कचित्‌। पलायन्‌ वा टहौतो वा AMAA TAT जपेत्‌ ॥ ६२ ॥ चिरात्र नियतोपोय ख्रापयेत्‌ qaqa | ते नाइतिश्तं पूणं जयात्‌ जम्बकेत्ये चा । ६२ ॥ १ Garnafata z | अभ्निपुराशे [२५८ अध्यायः । समुदिश्य महादेवं लोषेदब्द्तं सुखं । AWA, चा खात उपतिष्ठेदिवाकरं ॥ ६8 ॥. sua मध्य ग्व दौर्घमायु ल्जिजोविषुः | इन्द्रा सोभेति Gag कथितं शव्रनाशनं ॥ ६५॥ यस्य खुं ad मोहाद्वात्य at संखजेखह | उपोष्याच्यं स जुहयाच्चमम्न व्रतपा इति ॥ ge ॥ भ्रादिलेत्यक्‌ च सम्बाजं (९) AAT वादे जयौ भवेत्‌ । महोति च चतुष्क ण सुष्यते महतो भयात्‌ ॥ ६७ ॥ ` ऋचं oat यदि श्चेतत्‌ सबष्वेकामानवाग्र्‌ यात्‌ | हाचत्वारंति चेन्द्र war नाशयते रिपून्‌ ॥ gc ॥ ara avifa जप्ता च प्राप्नोत्यारोग्यभेव च | wat भवेति दाभ्यान्तु मुक्ता प्रयतः छविः ॥ ६९ ॥ दयं पाणिना wer व्याधिभिव्राभिभुयते | उत्तमेदमिति ज्ञातो इचा शत्र प्रमापयेत्‌ ॥ ७ ० ॥ water इति सूक्त न LAAT TAA ATT | man वारर्धिखक्तेन दिगदोषादिप्रम्‌श्यते ॥ ७१ ॥ यदत्य Rae दिते TATA जगडवैत्‌ | यष्टागिति च जिन वासौ भवति संसछता(२)॥ ७२ ॥ वाचो विदभिति वेतां जपन्‌ वाचं समश्रते | पविक्राणां पविचन्तु पावमान्याद्यत्तो मताः ॥ ७२॥ वैखानसा ऋचस्िशत्मविवराः फरमा मताः | १ ergata प्रसमूाजभिति मर, ae, He च। २ सख्परितितिकमुदण्च। २५८ भ्रष्यायः 1] ऋग्‌ विधानं | Bey ऋच्चो दिष्टिः mata परसखेदयपिसत्तम ॥ ७8 ॥ सब्पेकल्यषनाश्ाय पावनाय शिवाय च। स्वादि्टयेतिसूक्ञानां सपषष्टिकदाहृता ॥ ७५ ॥ SAAT चाद्धेताः पावमान्यः शतानि षट्‌ | VAM AKT घोर खत्यभयं जयेत्‌ ॥ og ॥ safes fa वारिस्थो जपेत्पापभयाने | प्रदेवन्नेति नियतो जपेच्च मरधन्वसु ॥ ७७ ॥ प्राणान्तिके भये प्राप्त fvarga विन्दति | manent जपेच्च मनसा निभि ॥ oc ॥ स्बुष्टायासुदिते Ta द्यूते जयमवाभ्र यात्‌ | मा प्रगामेति मूढश्च पन्धानं पथि विन्दति ॥ ७ ॥ त्तो णायुरिति मन्यत aefeq gue प्रियं | यत्तेयमिति तु MATS मूढा नमासभेत्‌ ॥ ८० ॥ WeaGaa: पञ्चाद्‌ तेनायुर्विंन्दत wee | इद्‌ मेष्यति जडयात्‌ त WIT: AHA! ॥ ८९ ॥ पणकाभा गवां गोठ AIA AAT | वयः TU इयेतां जपन्‌ वै विन्दते धियं ।॥ ८२ ॥ हविष्वन्तौ वमभ्यस्य सर्व्वपापेः प्रसुष्यते | तस्य रोगा विनश्यन्ति कायाग्निवंडैते तथा ॥ can खा Wawa: खस्तययनं सर्व्वव्याधिविनाशनं | हसते भरतौत्ये तह िकामः प्रयोजयेत्‌ ॥ ८४॥ सव्वंजेति cu wifes at प्रतिरघस्तथा | सूत संकाश्यपञ्ितयं प्रजाकामस्य कीर्तितं ॥ ८५ । ४४६ अग्निपुराणे [२५८ we रुद्रेति इत्येतदाम्मो भवति मानवः | न योनो जायतं विदान्‌ जपनुातौति रातिषु ॥ ८६ i uifsaa roar राति चेमौ नयेव्ररः। कल्पयन्तीति bs भतिन कुच्वारिनायनं ॥ ८७ ॥ TAIT AAS सक्त दाक्षायणं महत्‌ | उत eat इति जपेदामयन्न' छतव्रतः॥ रट ॥ sana जनित्ये तच्जपेद्म्निभये सति | शररश्यानोत्यरश्येषु जपे त्द्वयनाशनं ॥ ce ॥ ब्राह्मोमासादय सूक्ते दे ऋचं AUB शतावर । पथगदविष्टतैर्वाय मेधां wally विन्दति ee ॥ मास इत्यसपत्रघ्न संग्रामं विजिगौषतः। ` ब्रह्मणोभ्निः संविदानं गभमरत्युनिवारणं ॥ ९.१ ॥ अपेति aa a शुचिदुंखप्र नानं । येने दमिति वे sar समाधिं विन्दते atu ९२ i मयो Wala इत्येतत्‌ गवां खस्तययनं पर । शाम्बरोमिन्द्रजालं वा मायामेतेन वारयेत्‌ । € ३॥ महोतौणामवरोस्त्विति पथि खस्ययनं जपेत्‌ | अग्नये बिदहिषन्रेवं जपेच्च रिपुनाशनं॥ ९४ ॥ वास्तोष्यतेन AAU यजत wWeeaa4n: | जपस्यैष विधिः प्रोक्तो इते Far विशेषतः ॥ ९५ । होमान्ते दक्तिणा देया पापशान्तिडतेन तु | इतं शाम्यति चान्नेन ्रब्रहेमप्रदानतः॥<€4॥ विप्राभिषस्त्रमोषाः स्येवंहिः जानन्तु सर्वतः | [२५९ श्रध्यायः 1] यजबिधानं। ४ ४७ सिद्दाथका यवा धान्यं पयो द्धि तं तथा ॥ < ॥ स्ोरठत्तास्तथेषान्तु होमा वं सवंकामदाः। समिधः कण्ठकिन्यसख्च रालिका रुधिरं विषं ॥ ९८ ॥ अभिचारे तथा गेल अशनं शक्तवः पयः | दधि tei फलं मृलम्भ्विधानमुदाद्रतं ॥ ८९ ॥ इत्याग्नेये महापुराणे ऋम्विधानं arare- पञ्चाशद्धिकदिगततमोऽधष्यायः। अथोनषष्टयधिकदिशततमोऽध्यायः | on यजविं धानं । पुष्कर उवाच | Tafa धान वच्यामि मुतिसुक्षिष्रदं Ty | ॐकारपूत्विका राम महाव्यादेतयो मताः॥ १॥ सर्व्वकर्पषनाशिन्यः सर्व्पैकामप्रदास्तथा | आराज्याइतिसदसखेण दे वानाराधयेद्र धः ।। २॥ मनसः wifed राम मनसेप्सितकामदं | शान्तिकामो यवैः क्थात्तिलेः पापापनुत्तये ti ९॥ धान्यैः सिडायकैषौःव सर्व्वंकाम करैस्तथा | श्रोदुम्बरोभिरिष्मामिः पश्कामस्य शस्यते ॥ ४ tt SUI चैवान्नकामस्य पयसा शान्तिमिच्तः। अपामागेसमिद्विस्त्‌ कामयन्‌ कनकं TY ॥ ५॥ BBG ट अम्निपुराणे [२५९ sere । कन्धाकामो छताक्षानि avant ग्थितानितु। जातीपुष्पाणि TEAR AT तिलतद्छ्लान्‌ ॥ ९ । वश्यकश्णि शाखोढवासापामागेमेव च | विषाखरूमिखसमिधो व्याधिघातस्य भागेव ॥ ऽ ॥ WEA TEMALAR TAA वध काम्यया | सव्वेव्रौह्िमयौ कत्वा cre: प्रतिक्ततिं हिज ॥ ८ ॥ सहस्र शस्त जडया द्राजा वगते UAT | वस्वकामस्य gare दव्वां व्याधिविनाशिनो ॥ <॥ ब्रश्मवश्चसकामस्य adage विधौयते । प्रदरेषु जइयानुषकरण्टकमसखभिः ॥ १० ॥ विदेषणे च परमाणि काककौशिकयोस्तथा | कापिल एतं इत्वा तथा चन्द्रग्रहे fee ॥ ११ ॥ वचाचुशन सम्पातास्लमानीय च तां Tat | सहस्रमन्वितां सुकला मेधाबौ जायति नरः ॥ १२॥ एकादंशाक्ग लं TE लोहं स्ठादिरमेव च(१) | farm बधोसौति जपत्रिखनेद्ि पुषश्मनि ॥ १२ ॥. उश्चाटनमिदं क्म शत. णां कथितं तव | वक्तव्या इति जघाच विनष्टशचत्तुरा्नयात्‌ ॥ १४ ॥ SUTRA इत्ये दनुवाकन्तथात्रदं | तननपाग्नं सदिति cat इत्वात्तिवस्ितः॥१५॥ भेषजमसोति दध्याज्येहामः पशूपसग मुत्‌ (२) | ्वादिरमेव वेति Wo, ख०जचण्च्‌। २ पशुपसगेदेति कर, ४०्च। [२५९ श्रध्यायः | यजुविं धानं | ४४९ तियम्बकं यजामहे होमः सौभाग्यवद्वनः॥१६९॥ कन्यानाम WHA F कन्यालाभकरः परः । भयेषु तु जपत्रित्यं भयेभ्यो विप्रमुच्यते ॥ १७॥ - धुस्तृरप॒ष्य' VTA इत्वा स्यात्‌ सवंकामभाक्‌। . ` त्वातु गुम्मल राम ay पश्यति शङ्करं ॥ १८॥ Yaa मनोऽनु वाकं जघा दौघयुराग्न arg | विष्णोरवाटमिव्ये तत्‌(१) सवबाधाविनाथनं ॥ १८॥ Taine wey तथेव विजयप्रद | saa अग्निरित्येतत्‌ संग्रामे विजयप्रदं ।। २०॥ श्ट्मापः प्रवहत जाने पापापनोदनं। विश्वकनर हविष्रा सृची' लौदोन्दथाङ्ग.लाम्‌ | ९१ ॥ कन्याया निखने द्वारि asaa न प्रदौयते । देव सवितरेतेन इतेनैतेन चान्रवान्‌ ॥ २२ ॥ ` अग्नो खादेति ज्‌इयादहलकामो हिजोतत्तम | तिैर्यवं च wis तघापामागेतण्ड ले; ॥ २ २॥ agaafaat कला तया गोरोत्तनां हिज । तिलकच्च तथा छलत्वा ज नस्य प्रियतामियात्‌ il २४ ॥ सद्वाणाच्च तथा जप्य स्व्वाघविनिखदनं | सर्व्वकर्जकरो होमस्तथा was शान्तिदः ॥ २५.॥ अ्रजाविकानाम्श्वानां Haat तथा wat! . मनुष्ाणाब्ररेन्द्राणां बालानां योषितामपि ॥ २६॥ माणां नगरानाच् देशानामपि भागव । ` ९ वि्शोर्दरारसितयेदिति घ०,ज* च । मिोरराडमितयेतदिति कननशर०च । ( ५७ ) Bye अग्निपुराणे faye अध्यायः | उपद्र तानां wine व्याधितानां तथेव च ॥ २७ ॥ मरके समनुप्राप्तं रिपुजे च तधा भये। द्रहोमः परा शान्तिः Wasa waa TH ATH FUWeAVAAT Baty पापान्‌ व्यपोहति । शलयावकमेक्षाशौ नक्त मनुजसत्तम ॥ २९ ॥ बदहिःजानरतो Mala अते ब्रह्महत्यया | मक्षुवातेति WAT होमादितोऽखिलं लभेत्‌ ॥ ३० ॥ दधि क्राव्नेति तवा तु पुरान्‌ प्राप्रोत्यसं यं । AA तवतौव्ये AAMT स्यात्‌ तेन तु ॥ ee afaa wx wa प्रत्सव्ववाधाविनाशनं | ` TE गावः प्रजायध्वमिति पुष्टिविवधंनम्‌॥ १२॥ छताडइतिसदस्रेण तथालच्मोविनाशनं | Say देवस्य तेति इत्वापामागंतण्ड लं ॥ २२ ॥ wad विक्षताच्छोघ्रमभिचारात्र waa: | रुद्र पातु WITS सिद्धिः कनकं लभेत्‌ ॥ as 1 गिवे wtaenqara ब्रौहिभिजजंडयाव्रः | याः सेना इति Sas तस्करेभ्यो BATTER ॥ २५ ॥ यो भ्रस्मभ्यमवातोथाच.त्वा छष्णतिलात्ररः | सद्खरशोऽभिचाराशच yaa fanarefea ॥ ३६ ॥ अननेनान्नपतेत्य व इला AMAA TAT | ` सः शचि: सदित्ये तव्नप्तन्तोयेऽघनाश्नं ॥ २७ ॥ चत्वारि WRT तत्तु सव्वं पापष्रः जलें | देवा as fa जघ्ातु ब्रह्मलीके AAT | ९८ I २५८ HTS 1] यजुवि धानं । ४५१ वसन्तेति च yates आदित्याइरमाश्रयात्‌ | सुपर्णसोति चेत्यस्य क्मव्याहृतिवडषैत्‌ ॥ ३८ tt नमः सखाहति fast ar बन्धनाग्मोत्तमाप्नुयात्‌। अन्तव्ज ले चिरावत्य EIS सव्वेपांपसुक्‌ ॥ ४० ॥ शह गावः प्रजायध्व मन्त्रोयं बदिव्धैनः। ag सपिषा Var पयसा पायसेन ar ge tt श्रत a(t) ति Waa इत्वा Teme च । . आंरीग्यं चियमाप्रोति frase चिरन्तथा ॥ ४२ ॥ श्रोषधोः प्रतिमोदष्व'(२) वपने लवनेऽयकतत्‌ | ARAM पायसेन होमाच्चछान्तिमवा प्रियात्‌ ॥ ४३ ॥ aa इति च मन्ेन बन्धनखो विमुच्यते | युवा सुवासा इत्येव वासांस्याप्रेति चोत्तमम्‌ ॥ ४४॥ Hag मा शपथ्यानि सव्वोन्तकविनाश्नम्‌(३) | मा माहि सोस्तिलाच्येन इतं रिप॒विनाशने(४)॥ ४ TE नमोऽस्त सव्व॑सपेभ्या तेन पायसेन तु । HIS राज इत्येतदभिचारविनाशनं il ४६ i व्वा काण्डायुतं इल्ला काण्डात्‌ Ala मानवः । WA Tare वापि मरकन्तु TAA | ४७ ॥ रोगार्तो gaat रोगात्‌ तथा दुःखात्‌ दुःखितः, १९ ure fa 2० | शत वेनि we २ ओषधयः प्रतिमोदध्वमिति ज०। ३ सष्टंकिख्विषनाग्रनमिति घण, अ०च। ढे चिध्रविनाशममिति Fo, We च्छु | | ४५२ अग्निपुराणे [aye श्रध्यायः। पोडम्बरोख समिधो agar वनस्रतिः४४८॥। त्वा BaM राम धनमाप्नोति मानवः | सोभाग्य महदाप्नोति व्यवहारे तथा जयम्‌ ॥ ४९ ॥ अपां गभमिति इत्वा दैवं वष पथेदृधरवम्‌ । अपः पिवेति च तथा इत्वा दधि wa ayn ve tl प्रवर्तं यति घनन्न मद्ाठरिमनन्तर | ARG शुद्र इत्येतत्‌ सर्व्वा पदरवनमाशन ॥ ५१॥ सर्व्वं शान्तिकरं प्रोक्ष मश्टापातकनाशनं | श्रध्यवो चदित्यनेन रक्षणं व्याधितस्यतु॥५२॥ Tag यशस्य च चिरायुः पुशिवद्ैनम्‌ । सिशधकानां Saw पथि चेतञ्जपन्‌ सुखौ ५ ५२ ॥ रसौ यस्ताम्र इसयेतत्‌ पठत्रित्य' दिवाकर' । उपतिषटेत WaT सायं प्रातरतन्द्रितः ॥ ५४॥ अवमक्षयमाप्रोति दौषेमायुश विन्दति | प्रसुञ्च(१) धश्वत्रियेतत्‌ षड्भिरायुधमन््ख' ॥ ५५॥ रिपूणां भयदं युद नात्रकाथा विचारणा। मानो महान्त Tard बालानां शान्तिकारकं ve li नमो हिरख्यवाडइवे इत्यनुवाकसप्तकम्‌ | | राजिकां कट्तेलाक्ां ears नाशनी ॥ ५७ ॥ नमो a: किरिकेभ्यख पद्मललातेर्बरः | राज्यलच्छीमवाग्न,ति तथा विष्व: सुवषकम्‌ ॥ ५८ ॥ car रद्रायैति faastare धनमाप्यते । १ भ्रति ग०) ष; ज०च। २५९. अध्यायः |] यज्ुविधीनं। ४१५३ दूर्वाहोमेन चान्येन स्॑व्याधिविवच्निंतः ॥ ५९ ॥ ag: शिशानद्त्ये तदायुधानाख्च TAT | संग्रामे कथितं राम सवंगतनिवईैषं ॥ ६ ° ॥ राजसाभेति yea wea पञ्चभिदहि ज । आ्राज्यादतीनां UAT चत्तुरोग दिसुच्ते॥ ९१॥ शत्रो वनस्पते गेहे हमः स्यादास्तदोषनुत्‌ | भ्रमन wg सि इत्वाज्य देवं नाप्नोति केनचित्‌ ॥ ६२॥ sat फेनेति लाजाभिहत्वा जयम वा्नयात्‌। भद्रा इतीन्दिये हीनो जपन्‌ स्यात्‌ सकलेन्दरियः ॥ ९३ ॥ saftey एथिवो चेति वशौकरणसुत्तमम्‌ | ्रध्वनेति जपन्‌ मन्त व्यवहारे जयो भेत्‌ ॥ ६४ ॥ ब्रह्म राजन्यमिति च aati तु fafeaq | सवत्सरोसौति wa लचद्दोमादसेगवान्‌ ney aq कणवत्रितीलेतत्‌ संग्रामे जयव्चैनम्‌ । इन्द्रोग्निधम दत्य तद्रे धमं निबन्धनम्‌(१)॥ ९९ ॥ धन्वा नागति मन्तख धनुर््राहनिकः परः, यजीतेति तथा मन्तो विज्ञेयो छयभिमन्वणे ॥ ६७ hi - मन्त्रश्ाह्िरथेत्य तच्छ राणां(२) मन्वे भवेत्‌ | वङ्कोनां पितरित्ये तत्तृणएमन्ः प्रकीत्तितः॥ ८ il य॒न्ञन्तोति तथाश्वानां योजने मन्व उच्यते । आशुः शिश्रान इत्ये तद्‌याचारम्भणमुच्छते ॥ ६९ ॥ १९ wafaagafafa ato | २ ae fe रघ दछोत्छराणा्भिति we, Ko च। ४५४ श्रन्निपुराखे [axe अध्यायः | विष्णोः क्रमेति aaa रथारोहणिकः ae: | आजङ्कतीति चाश्वानां ताङनोयसुदाद्तं ॥ o> ॥ याः सेना श्रमभितल्रौति परसेन्धसुखे जपेत्‌ | दुन्द्भ्य इति चाप्ये तह न्द्भो ताडन भवेत्‌ ॥ ७१ tt एतेः पूर्व हतेर्मन्त छतैवं विजयी भवेत्‌ | यमे न दत्तमित्यस्य कोटरिद्टोमादिचक्षणशः ॥ ७२॥ रथसुत्पादयथेच्घ्र सश्रामे विजयप्रदम्‌ | श्रा क्ष्णेति तथेतस्य कर्मंव्याद्धतिवद्गवैत्‌ a ७३ ॥ शिव संकल्यजापे न(१) समाकिमनसो लभेव्‌ | पञ्चनद्यः Wad इत्वा लच्छो मवाप्नुयात्‌ ॥ ४ ॥ यदा बधृन्दा्षायणां मन्ते णानेन मन्तितम्‌ | UCARA: कनकं धारयेद्धिपुवारणं ॥ ७५॥ ca wae द्रति च शिलां लोष्टश्चतुदिशं | िपेह.हे तदा तस्य न स्याच्चौरभयं निशि ॥ ७६ ॥ परिमे गामनेने ति (२) वश्रीकर शसुत्त मं | न्तुमभ्यागतस्तत्र वशोभवति मानवः ॥ ७9 ॥ भच्यताम्ब AYA मन्तितन्तु प्रयच्छति | यस्य धर्मज्ञ वशगः सोस्य sta भविष्यति ॥ ऽर ॥ शन्नो fara इतोयेतत्‌ सदा wert शान्तिदं । गणानां त्रा गणपतिं कलवा होमख्चतुष्यथे ॥ ७९ ॥ agar sree सर्वधान्धे रसं शयम्‌ | ९ शिवषंकल्‌प इत्येतदिति ae, He FI २ परा. मे गायनेमेतोति we | २६० अरध्याधः ।| सामविधानं ४५१५ हिरण्यव णीः ए चयो मन्तोयमभिषे चने ॥ ce ॥ शत्रो देवोरभिष्टये तथा शान्तिकरः परः | एकचक्रो ति मन्त्रेण Aare न भागणः(१)। ८१ ॥ ग्रहेभ्यः शान्तिमाप्नोति प्रसादं नच संशयः। गावो भग दति erat इहत्वाज्यङ्गा Waly ATA ॥ प्र ॥ प्रवादांशः सोपदिति(र) wean विधौयते । देषेभ्यो वनस्पत दति gars विधौयते । ८२ ॥ गायनौ वैष्णवो ज्ञेया तदिष्णोः परमम्पदं | सव्धैपापप्रशमनं सव्वकामकरन्तथा(२) ॥ ८४ ॥ cared महापुराणे यजुबििधानं नामोनषध्यधिक- दिशततमोऽध्यायः। HY षष्टयधिकदिशततमोऽध्यायः | << oo | सामविघधान। पुष्कर उवाच । यजुष्विधा नङ्थितं वच्य ara विधानकं | संहितां Swat quar इल! स्यात्‌ सव्वेकामभाक्‌ ॥ १ ॥ संडिताञ्छान्दसौं arg sar प्रोणाति West । wearer Gari संहिताञ्च wal स्यात्तु प्रसादवान्‌ ॥२। १ भागतद्ति कण, Ao, घर, Ko, Ho FI ९ Haein सोपदिनोति ० च। ३ wai न्तिकरन्येति घ०, Ho च | ४५६ अग्निपुराणे [२६० अध्यायः t यत इन्द्र भजामहे हिं सादोषविनाशनं । saat qa च श्रग्निस्तिग्मे ति वे जपन्‌ RN सर्व्व पापद्रं Ha परितोयच्च तासु च(१)। विक्र यच्च विक्रौय जपेदृष्टतवतोति च ॥ ४॥ अयानो देष सवितज्ञयन्द्‌ःखप्रनाशनं। शरवोध्यम्निरितिमन्त ण छतं राम यथाविधि ॥ ५॥ रभ्य छतगेषेग मेखलाबन्ध इष्यते | स्नोणां यासान्तु गभीशणि पतन्ति खगुसत्तम ॥ ६ ॥ मणिं जातस्य बालस्य वश्नीयास्षदनन्तर' । सेम राजानभेतेन व्याधिभिर्विंप्रसुच्यते ॥ ऽ ॥ | मर्पसाम प्रयुच्ानो ATR ATT सपेजग्यं । माद्य त्वा बाद्यतेव्ये तद्त्वा विप्रः सहस्रशः ॥ ८ ॥ शतावरिमखिम्बष्ा ATH याच्छस्नतो भयं । Agana इति Para प्राप्न याइ ॥ < ॥ स्व मध्यायन्तौति जपनत्र fata पिषासया(२) | त्वन्निमा ओषधौ शछयेतज्‌जघ्चा व्याधि न वाप्नयात्‌ ॥ een पथि देवत्रतच्ञघ्वा भयेभ्यो विप्रसु्ते । यदिन्द्रो मुनये त्वेति इतं सौभाग्यवर्धनं ॥ ११॥ भमो न faa इत्ये वं ने चयो र्न हितं | सौमाग्यवर्दनं राम Ala काव्यां विचारणा ॥ १२॥ safes fa वर्गञ्च तथा सौभाग्यवचनं | : naan ` ~ १ परितोय' युताय॒तमिति ज०, ट च। | | २ पिपासित इति घ, Ho F | २६० Taya: 1] सामविधानं ४५७ परि प्रिया Fe वः कारिः(६)का्म्यां संखावयेत्‌ स्रियं ॥१३॥ सा तद्भामयते राम नात कार्य्या विचारणा) TART वामदेव्यं त्रह्मवच्चसवर्च॑नं ॥ १४॥। Watered fra वचाचूणं wage । इन्दरमिह्गाथिन' जघा भवेच्छ तिधरस्वसौ ॥ १५॥ त्वा TAMTWAl एुचमाप्रोत्यसं शयं | मयि खोरिति ward जप्तव्यः ओोविवह्धनः॥ १६॥ वैरूप्यसखाएटक fra’ cpa: तियं लभेत्‌ । ANCA प्रयुश्ानः Tat] RATA ATT ॥ १७॥ गव्येषुणेति यो fra’ सायं प्रातरतज्तितः। उपस््ानं गवां FAT ART: सदा VWI ॥ १८ ॥! | BATH यवद्रोणं वात भ्रावातु AAT । `. : Saat इला विधिवत्‌ wat मायां व्यपोहति १.१९ ॥ प्रदेवो दासेन तिलान्‌ इत्वा RAIN | अभित्वा पृष्बेपोतये वषट्‌कारसमण्वितं ॥ २० ॥ वासके्यस्खन्तु इतं aT जयप्रदं । ` । दस्यण्वपुरूषान्‌ FINE पिष्टमयान्‌ TAT ॥२१॥ परकीयानघोद्‌ श्य प्रभानपुरषांस्तया । ` सखिन्नान्‌पिष्टकवरान्‌ चरेणोत्‌ RA भागग्रः ॥ २२॥ भित्वा शूर शोतुमो मन्ते यनेन मन्तवित्‌। ` ` ज्ञत्वा सर्षपतेलाक्षान्‌ क्रोधे न(२) जु यात्ततः॥ २९ ॥ १ परिप्रिथदेव कारिरिति ९ परिदाय कारिणि we, we च 1 परिभिवादव कनिरिति च, weg) we च । परिप्रियादेव कपिरिति च, so च| २ Re Ufa खर, Wo, Ho च। ५८ ४८ अम्बिपुराशे [२९१९ अध्याबः। a ° एतत्‌ Fal बुधः WA संग्रमे जवमाघ्र arg | MTS WATTG TACSTAAT ५२४ ॥ सव्वं पापप्रयमनाः कथिताः संशय' विना । CATA महापुराखे सामविधानं नाम षष्यधिक-- डिशततमोऽध्यायः। Ce Oe अथेकषष्ट पधिकदिशनतमोऽष्यायः। कक (7 ह () , अचव्वविधानं | पुष्कर उवाच । खानां विधानं कथितं ae चाषव्वेणामय । शान्तातोयं गणं इत्वा शान्तिमाप्नोति aaa: tl १॥ भेषन्धश्च गण इत्वा सव्वोनोगान्‌ व्वापोडति । विसप्तौयं गश - हत्वा weqara: प्रसुच्यतं ॥२॥ क चिच्राप्नोति च भयं इत्वा चेवाभयद्गश' । न कसिस्वायते राम गखं त्या पराजितः ॥ ९॥ WITS गश इत्वा ws व्यपोहति | सखस्तिमाप्रोति waa इत्वा aeraage ॥ 8 ॥ ` AIG MATA श्धवर्गणन्तथा | वास्तोष्यत्यगण Ta वास्तदोषान्‌ व्यपोहति uy a तधा रोद्रमणं इत्वा wary दोषान्‌ area | एतद सगय होमो Wrreng गाश्तिषु॥ ६॥ २९१ Beta: 1] अधव्वविधानं ४५९ वैष्णवी शान्तिरन््रौ चत्राह्मो रौद्रौ ada च। वायव्या वारणो चेव MID भार्गवो तथां non प्राजापत्या तया लोष्टो कौमारो वद्िदेवता । ` AY FT aaa खान्तिनक्छेतको तधा॥र८॥ शान्तिराङ्किरसो याम्या पार्थिवो सबव्वकामदा । यस्त्वां खल्यरिति gasa’ सत्यविना्रनं ॥ < it सुपणर्तेति इत्वा च मुजमेनव बाध्यते | CQ TAA तत्‌ सवकामकरग्भवेत्‌ ५ १०॥ इन्द्रेण guide तत्‌ सवबाधाविनायनं । द्मा रेवति aaa स्वेश्ान्तिकरः परः॥ ११। इवा मरुत इत्येतत्‌ सवंकामकरगभरेत्‌। यमस्य लोकादिव्येतत्‌ दुःखप्रथ मनम्परं ॥ १२॥ aaa पश्चबणिजिति(१) पण्यलाभकर az | कामो भे वाजोति ga’ etait सौभाग्यवर्चनं ॥ ee t तुभ्यमेव जबवोम्ित्यय्‌ तन्तु gaudy | ग्ने गोभिव्र द्त्येतत्‌(२) भेधाठहिकरम्यर॥ १४॥ धवं प्र वेयेति इतं खानलाभकरं भवेत्‌ | अलक्तजोवेति शना क्षषिलामकर भरेत्‌ ॥१५॥ अन्ते भग्न इत्येतत्‌ भवेत्‌सौभाग्यवचैनः । येमे पाशा स्त धायेतत्‌ AAATMARITT ॥ १६॥ शपत्वहत्रिति रिपून्‌ नाशयेचोमजाप्यतः। = CO वन' बनिक्‌ चेतति घण जन च। २ अग्र सौभःग्य दत्य तदिति a | ४६ ` fags [२६१ अ्रध्यायः। त्ममत्तमभितौलेतद्यशोवुहिविव्ैनं ।। १७ ॥ यघा खममतीत्य तत्‌ Brat सोभाम्यवरैनं | येन चेशदिद्चेव गभेलाभकर' भवेत्‌ ॥ १८॥ श्रयन्ते योनिरित्यं तत्‌ पुव्रलाभकर भवेत्‌ । शिवः शिवाभिरित्ये तत्‌ भधैत्सलौभाग्यवधैनं(१) ॥ १८ + avufaas परिपातु पधि खसरूषयनं भवेत्‌ | quifa वेति कथितमपमुत्यनिवारणं ।। २“ ।१ भरथवेशिरसोऽध्येता सर्वपापैः प्रमुच्यत | प्राधान्येन तु मन््ाणां किञ्चित्‌ कर्म ववेरितं ॥ २१ ॥ saat यज्नियानान्तु समिषः प्रथम इविः। आज्चच्च व्रीययैव तथा वे गौरसषेषाः ॥ २२ ॥ अत्ततानि तिलासौव दधिरे च arta! दभास्तथेव gata विख्खानि कमलानि च्‌ ॥ २३॥ ` शान्तिपुटिकराणयाष्ुद्रव्याण्यतानि aaa: तलङ्कणानि aa राजिका रुधिरं विषं॥२४॥ समिधः कण्टकोपेता भ्रभिचारेषु योजयेत्‌ । me's दैवतं छन्दो विनियोगश्च भाचरेत्‌ ॥ २५॥। SHA AWYTT भ्रथव्वबिधानं नामैक- षथ्यधिकदिशततमोऽष्यायः | अ १ कुद YW प्रसादयेदिनि qo, जन्भणच। : ह अथं faqs परधिकदिशततमोऽध्यायः। कवयो O ™, 9 © शकक CO | उत्पातशान्तिः | TRC उवाच । सूक्त प्रतिवेदच्च we लच्छविवधैनं | हिरण्यवखो हरिणोम्‌ चः geen धियः ॥ ११ रथेष्वच्चषु वाजति wast ag Faz सरावन्तोयं तथा साम यसु सामवैदक्षे॥२॥ थियं धातमयि धेषि प्रोक्तमाधवेरे तथा! aaa यो Tinea इत्वा here वै भवैत्‌ ॥ २ ॥ पद्यानि चाथ faenfa इलाज्य' वा तिलान्‌ fara: | एकन्तु पौरुष सूकर प्रतिषेदन्तु wae Il ४ ॥ aaa दद्यात्रिष्यापौ द्येक कया (१) जलाच्लि | खात एकीकया पुष्प विष्णोर्हत्वाघद्ा भवेत्‌ ॥ ५ ॥ Gla एकैकया दला फलं खात्‌ सवंकामभाक्‌ | मदापापोपपापान्तो NAAT तु Ta ॥ ६ ॥ | कच्छ विशचो जघा च EAT खात्वाऽथ सर्वभाक्‌ | अष्टादशभ्यः शान्तिभ्यस्तिखोऽन्याः थान्तयौ वराः + अ ॥ अमृता चाभया सौम्या सर्व्बोत्पातविमद्"नाः। | अमृता सवंटैवत्या अभया द्मदैवता ॥ ८ ॥ सोम्या च सर्वदेवत्या एका स्वासबवकामदा। ` a १ Ua इति कर, घर, Re, अ०च। | ४९२ पस्निपुरारे [२६२ अध्यायः | अभयाया मणिः कार्य्यो वरुणस्य अगृत्तम ॥ € ॥ WARIWSTATATS सौम्बायाः गहनो AFT: | तदेवत्यास्तधा मन्त्राः सिद्ो(\)स्याश्षणिबन्धनं ॥ १० ॥ दिव्यान्तरोलभौमादिसमुत्पातादेना इमाः | दिव्यान्तरो्षभौमन्तु अहुतं विविधं चण्‌ ॥ ११॥। श्र्र्च वतं दिष्यमाम्तरौलचिबोध मे । ठश्कापातच दिग्दाहः परितैथस्तवेव ख ॥ १२॥ गन्धर्वनगरद्धौव afes विक चया) चरख्िरभवं भूमो भूकम्धमपि भूमिज eg tl सप्ताहाभ्यन्तरे ठष्टावद्ुत' Frere भवेत्‌ | शन्ति विना जिभिषेरहुतं waaay १४॥ Saqrat.(*) प्रत्यन्ति वेपन्ते wera च । परठन्ति() च रोदम्ति प्रखिष्यन्त हसन्ति षं ॥१५॥ GVIAANA TATA AA त्वा प्रजापतेः अममिनिर्दीप्यते यच ues शगनिसखन ॥१९॥ न aa चेन्धनवांस्तद्राषट ` पौडाते नृपैः | अम्निवैकत्यश्मनमम्निमन्तेख भागव ॥ १७ ॥ अकाले फलिता हसाः सोर ta स्रवन्ति च। हनर्तोत्मातप्रशमनं शिवं पष्य च कारयेत्‌ CS HN अतिहष्टिरनाह्टिदभिचायोभयं मतं | a सिद्धयाश्ति we, He FI ९ ठेवतास्नि Go, Ko GI ३ आवटनोति Go, Fo, Ko, Ho च| २९२ अध्यायः] उत्पातशान्तिः 1 ४६२ saat बिदिनारब्यहष्िन्न या wara हि ॥ १८ ॥ वटिवेज्नतल्वनायः स्वात्पजय्े ग्ड की पूजनात्‌ | न ग राद्यसपन्ते समीपमुपयान्ति च ।। २०॥ नद्यो दप्रखवणा facara asf a | शलिलाशयवेलल्ये TAS वासखो A! ॥ २२॥ भकालप्रसवा नाथः कालतो वाप्रजास्तथा | fananaaqra a श्रुम्मप्रसवमादिकं॥ २२॥ स्रो णां प्रसववंकत्ये सोविप्रादि' प्रपूजयेत्‌ | £ 4 agar इस्छिनौ गौर्वा यदि युम्म' प्रयते ॥ २२ ॥ विजात्य' विक्लतं वापि ष्र्मासम्बियेत बै । विक्षतं वा प्रसूयन्ते परचक्रभयं भेत्‌ ॥ २४ ॥ होमः waft जपो विगप्रादि पूजनं | यामि यामान्धयुह्लानि युक्तानि न वहन्ति च।॥२१५॥ TIM तुयं मादा मद्रयसुपखितं | प्रविशन्ति वदा wameen wafers: ॥ २६ ॥ ace afer at ब्राम्याः जलं यान्ति खलोह्ठवाः। खलं वा जलजा बान्ति राजदारादिके शिवाः ॥ २७ ॥ प्रदोषे HURST वासे frat waited भषेत्‌ । ग्ट दद पोतः प्रविशेत्‌ क्रव्यादा मूषि लौयतं॥२८॥ मधुरां afaat कुयात्‌ काको मेधनगो थि । प्रासादतोरणोद्यानहास्प्राक्षारवेश्ममां ॥ २८ ॥ afafawy पतनं टढ़ानां राजगत्यवे | रजसा वाध धूमेन दिगो यज समाकुलाः ॥ ३० ॥ ४९४ ` अम्निपुराणे [२६३२ अध्यायः। केतुदयोपरागो च द्िद्रता शरिसुययोः । ग्रहचैविछतियेव्र तज्रापि भयमादिभेत्‌ ॥ ११ li श्रम्नियतव न दौष्येत Gat WFAA: | मृतिभयं शून्यतादिरत्पालानां फलग्भवेत्‌ ॥ ३२ ॥ दिजदेवादिपूजाभ्यः शान्तिजप्येस्त॒ होमतः | इत्याग्नेये महापुराण उत्‌पातश्याम्तिनाीम दिषच्यधिक- दिशततमोऽध्यायः। अथ त्रिषष्टयधिंकद्चिशततमोऽध्यायः। Ox%0 देवपूजातरैष्ठदेवबलिः 1 GAC उवाच । देवपूजादिकं कम वच्छे चोत्पातमरनम्‌ | भ्रापोदिष्टेति तिखभिः arisen” विष्छवेपेयेत्‌ ॥ १ ॥ हिरण्यवर्ण दति च पाद्यञ्च faufafe a शत्र रापो द्ाचमनमिद्‌ मापोऽभिषे चनं ॥ २॥ .रथे अरक्ते च तिखभिगन्धं युवेति(९) वस्त्रकं । Bt एष्यवतोलयेव' धूपन्धूषो सि चाप्यथ ॥ ३ ॥ ` तेजोसि शक्रं दपं स्यामधुपकं दधौति.च। हिरण्यगमभ दत्यष्टावचः प्रोक्ता HAA vv | अवरस्य मनुजसरष्ठ पानस्य च सुगन्धिनः। ` चामरव्यजनोपामच्छत' यानासमे तथा ॥ ५॥ १ मन्धं खधेतोति ae, Ao, Ao, He I २६२ भध्यायः।] देवपूजाबेश्डदेबबलिः। ४६१५ यस्‌ किञ्चिरेवमादि स्मास्सावितिख निवेदयेत्‌ | म्रौ रषन्तु जपत्‌ GR तदेव YRATMAT ॥ ६ ॥ Malwa तथा वेद्याश्लले पू णेघटे तथा । नद्धौ तीरेऽथ HAA शान्तिः स्यादिष्णुपूजनात्‌ ॥ ॥ ततो Wa waa दौप्यमोने विभावसो | परिसम्‌ङन्य पद्यु परिस्तौय परिस्तर; ॥ ८॥ CAAT VATS लुडयात्‌ प्रयतस्ततः | वासुदेवाय देवाय was चाव्ययायच॥ < ॥ अग्नये चव सोमाय मित्राय वरुणाय च। इन्द्राय च महाभाग इन्द्राग्निभ्यां तथेव च ॥ १०॥ विन्ञिभ्ववैव रेषेभ्यः प्रजानां पतये az: | WANS AM राम धन्वन्तरय एव च॥ ११॥ वास्तोष्मये तती 2a ततः खिष्टिक्षतेऽग्नये। सचतुष्यन्तनाग््रा(१) तु इलेतेभ्यो बलिं इरेत्‌ ॥ १२ ॥ तत्चोपतत्चमयितः पूबंणाग्निसतः परम्‌ । श्रष्लानामपि ध्मन्र अ्णीनामानि चाप्यथ ॥ १९॥ निसमौ धम्िणोका च अरखपन्तौ(२) तथव च। भे्पतो (र) च नामानि सव्वषामेव भागव ॥१४॥ भरामयाद्याः क्रमेणाथ ततः शक्तिषु नि्तिपत्‌ । नन्दिन्यै च खभाग्वौ च CARS च भार्गव ॥ १५। | 4 qaqa क area fa पाठः साधुः | ₹ श्चपयो ति ज०। ३ रेचपणौंति ज०। ( ४९ ) ४६६ अग्निपुराण [२६१ अध्यायः। भद्रकाष्यं ततो Tat स्थशायाश्च तथा भिये | हिरष्केश्ये च तथा वनस्यतय एव च॥ tg धम्म मयो हारे WHA WATT ख | अत्यये च Aes वादरुणशायोदकाशये ॥ १७ ॥ भू तेभ्य बहि द्याच्छरणे धनदाय ष। TRACY TAY पूवण AAT १८ ॥ यमाय तत्‌ पुरुषेभ्यो दयादकिण्तस्तया | वरुणाय तत्‌पुरुषेभ्यो दव्यात्पिमतस्तघा ॥ १९ ॥ सोमाय सोमपुरुषेभ्य उटम्दद्यादनन्तरं | ब्रह्मे ARYA मध्ये दच्यात्तयेव च॥२०॥ WANT च तथा WME खण्डिलाय far तथौ । दिवा दिषाचरेभ्यख रातौ राव्रिचरेषु Wel बलिं बहिस्तवा area प्रातस्तु प्रत्य | पिष्डमिवपणं Fare प्रातः सायन्र कारयेत्‌ ॥ २२ ५ frag प्रथमं दश्यात्त्‌पिजे तङनन्तरम्‌ । प्रपितामहाय तश्चा fiat ततोऽपंयेत्‌ ॥ २९ ॥ vara दचिणाम्रेषु gad यजेत्‌ पितुन्‌ । द न्द्रवारुणवायव्या याम्या वा AMATI | vy I ते काकाः afew दमं पिण्ड मयोहतम्‌ । काकपिण्डन्तु ware शनः पिण्ड प्रदापयेत्‌ ॥ २५ ॥ विवखतः कुले जातौ दौ श्यावशवलौ (१) इनौ | तेषां पिण्ड प्रदास्यामि पथि waa A wet ng ६ श्मामण्रवस्ाबिति Bo, Bo, Zo | | २९४ अध्यायः ।] देवचजावैश्वदे वबलिः | ४ ६७ सोरभेय्यः(१) सवदहिताः पविना: पापनाशनाः(२) | प्रतिग्ङन्तुमे ग्रासं गावस््रौलोक्यमातरः॥ २७॥ ग्ोग्रासश्च waaay कत्वा भिता प्रदापयेत्‌ । अतिघौन्दोनान्‌ पूजयित्वा wel भुच््नीत च सय WAT ॐ भूः AW SUN AE ऊ खः खाहा ऊ भूभृवः स्वः खाद्ा | ॐ देवक्षतस्यैनसोऽवयजनमसि खहा ॐ पिटठक्षतस्येन- सोऽवयजनमसि arer ॐ भरानक्षतस्येनसोऽवयजनमसि खाद ॐ मतुब्यक्ततस्येनसोऽवयजनमति खाहा ऊ एनस एनसोऽव- यजनममसि खाहा। यच्चाहमेनो विदहांखकार यच्चाविहांस्तस्य सवस्य नसोऽवयजनमसि arer अग्नये खिष्टिक्ञते खाहा ॐ प्रजापतन्ने rer विष्णुपूजावग्वदेवबलिस्तं कौर्तितो मया | इत्या खेये महापुराणे शेवपूजावेश्वदेवबलिर्नांम जिषच्यपिकष- दिश्ततमोऽष्यायः॥ अथ ATS पधिकदिशततमोऽध्यायः। $040 fequreifeara | भग्निरकच | सर्वाथेसाधनं सरामं ce शान्तिकरं rT arate सरित्तोरे ग्रहान्‌ विष्णुः विचक्षणः net ` र्कौरमेयाद्तिकणषरबजअण्च। २ पृष्छराण्य दति M0, Zo q | $a अग्निपुराणे [२.६४ अध्यायः | Varad equate विनायक्रहािते | किचार्थिनो दे TS जयकामस्य ates ॥ २॥ ufsat erate mit zeit: सर्वेत्तधा | भग्ौकसतिधो ararena यस्या Prats ॥ १ ॥ garfuaTa yaret garfaare सागरे | गटहसोभाग्यकामानां सवंषां विष्छुसतिधौ is ॥ Jug रेवती पशे सवषं खानसुन्तमं | खानकाभस्य TTT स्मृतं ॥ ५॥ पननेवां रोचनाश्च Way गुरुको wes Aya रजनी हइ च ANCATT ATTA ॥ ६॥ qaqa afest मांसौधासकमदनैः | frag सषप कुष्टस्बलाम्तराद्मोख FET ।। ७ ॥ wane गक्षमिख' STUT खानमावरेत्‌। मण्डले afearara विष्णु" त्राद्शमर्धंयेत्‌ ॥ ट i दक्षे वाभे हरं पूर्वं TT पूर्वादिके क्रमात्‌ | लिखेदिन्द्रादिकान्देनान्‌ सायुधान्‌ सषद्वबान्धवान्‌(१) ॥९॥ खानमण्डलकाम्‌ fey gatas विदिश्चु च। विष्ण॒व्रह्मे य शक्रा दीं स्तदस्त्रा चय होमयेत्‌ ॥ १० ॥ एककस्य त्वष्ट गतं सभिधस्त तिलान्‌ छतं । भद्रः WR? fears: कलसाः gfeahan: ॥ ११॥ अमोषचिनलागुख THAIS TENA! स्थापयेत्तु घटानेतान्‌ साशिसंद्रमरुदर णान्‌ ॥ eR १ सहवाइनानिति yo, ज० च । २९५ अध्याथः।] दिक्पालादिखानं Bee faa देवास्तथा Sat वसवो मुनयस्तथा | TANI सप्रोतास्तथान्धा अपि Saat: ue ॥ श्रोषधोिंल्िपेत्‌ ge जयन्तीं विजयां जयां । waaay शतपुष्पां विष्णुक्राम्तापराजिताम्‌ ॥ १४॥ च्योतिसतौमतिबलाखन्दनोगोरकेशरं | कसतुरिकाञ्च कपूरं बालकं पत्रकं त्वचं ॥ ११५॥ जातीफलं sage शत्तिकां पञ्च गव्यक' । भ॑द्रपोठे खितं साध्यं खापथेयुचि जा वलात्‌ १६॥ राजाभिषेकमन््ोक्देवानां होमकाः Tes पूणीडइतिन्ततो दत्वा गुरवे दक्तिशां ददत्‌ ॥ १७ ॥ शनदरोऽमिषिक्लो गुरुणा पुरा देत्यान्‌ जघान ह | feanrearaygfad dararet जयादिकं॥ १८॥ TMM महापुराणे दिक्पालादिखानं नाम चतुःषष्टाधिकदिशततमोऽध्यायः | , अथ पच्चषष्ठ यधिकशततमोऽध्यायः | ——000—— विनायकल्लान। पुष्कर उवाच । विनायकोपख्ष्टानां qa स्वकर a2 | विनायकः क्धविन्रसिद्धर्थ' विनियोजितः i १॥ गणानामाधिपत्ये च केशवेश्पितामद्ैः। स्तप्रेवगाडइतेऽत्यथ ` जलं सुरां ख पश्यति ॥ २॥ “a ४७० , अभिमिपुराणे [२९५ अध्यायः । विनायकोषडङ्टस्त ऋव्याद्‌ानधिरोहति | व्रजमानस्तघामानं मन्धतेऽनुगतम्परेः ॥ १॥ विमना विफलारग्भः dateafafiua: 1 कन्धा वर न शाप्रोति न चापत्य arya! ४.।। श्राचायत्व ओोजियख न शिष्योऽष्ययन' लभेत्‌ | धनो म लाभमाप्रोति न छषिख् कषोवलः ॥ ५ ॥ राजा रान्य न चाप्नोति खपनन्तश्च कारयेत्‌ । हस्त पुष्याश्वयुक सौम्ये TUF भद्रपोठ कं(१) ॥ ९५ गौ रसषपकर्क न साज्येनोत्ादितस्य च (२) | सर्वषः सर्वगन्धैः प्रलिप्तथिरसस्तथा ।॥ © ॥ चतुभिं; कलसेः array सर्वेषधौः चिपेत्‌ । ` भष्वखानाहजस्थानादस्पोकात्‌ सङ्गमाहुदात्‌ ॥ ८ ॥ afaat रो चनाङ्कन्धङ्क गगल म्तषु निक्षिपेत्‌ | सहस्रा स गतधारसषिभिः पावन कतम्‌ ॥ < il तेन लामभिषिच्ामि पावमाग्धः(३) पुनन्तु a | भगन्ते वर्णो राला भगं GAY हरस्पतिः ॥ १० ॥ भगमिन्द्र वायुश भगं ATA ददुः | यत्ते केशेषु दौर्भाग्य' सौमन्ते यच मृचनि ॥ ११ ॥ ललाटे AUN CNT TTS TA स्वंद्‌ा। दर्भपिष्लिमादाय षामष्स्तं ततो गुङः ॥ १२॥ १ इसपष्याञ्चयक्‌ सोग्यवेग्ययेषु way चेति go, Ho चे। २ Bre areifeng Sia wo, Ko FI १ `इमा GIG «fa wo, So gq | २६५ Wears ।] विनायकस्नानं। go? GAT Bes शुषेणौडस्बरण च । ayaa हनि कुशान्‌ सव्येन afew Tn १३ भित afaaga तथा शालककरटकौ | HAW राजपुर एतेः स्वादहासमन्वितः ॥ १४॥ . नामभिबेलिमन्वेशच नमस्कारसमन्वितैः (१) । दद्याश्वतुष्यये WT कुशानास्तौय सर्व्वतः ॥ ११५॥ छताक्षतांसर्ड लां ख पलशौदटनभेव च | मल्छयान्पङ्ंसतथवामान्‌ पुष्य चित्र सुरां farce मूलक पूरिकां पूरपांस्तथ वे ण्हविकासखरजः दध्यत्रं पायसं पिष्ट मोदकं गुडमपयेत्‌ ॥ १७ ॥ विनायकस्य लननोसुपतिष्टे त्त तोऽगम्बिकां | दू्व्व सषंपयुष्पराणां carat पूर्ण मच््रलिं ॥ ec ॥ रूपं देहि यशो देहि सोभाग्य सुभगे मम | Uv देहि धन देहि सर्व्वान्‌ arate देहि मे॥ १९ ॥ भोजयेद्राह्मणान्द द्यादस्त्रयुग्' गुरोरपि | विनायकं Terns यियं aa लभेत्‌ Vo tii इत्याग्नेये महापुर विनायकखानं नाम पञचषच्यचिक- दिशणततमोऽध्याय;। १ वषट्कारसमन्वितेरिति घ०, Mo, So, Zo च। SORA PIC TCE GUIS 10 HE 0*%O APACS ATAR SPATS | पुष्कर उवाच । खानं Het Ta राजादेलं यवद्धेनम्‌ | दानवेन्द्राय बलये य्लगादोशनाः FTTH १५ भास्करेऽमुदिति NS प्रातः संखा पयेद्‌ घटेः , ङ नमो भगवते Tata च बलाय च पाररोचितभस्मातुलिस- गात्राय। तद्यथा जय जय सर्वान्‌ शज्ुन्‌मृकस्य कलदविग्रहवि- वादेषु WA | ऊँ मथ मघ सर्व्व पयिकान्‌धोसौ युगान्तकाले feraia इमां पूजां रोद्धमूर्तिः avate: शक्तः स ते cag जौवित । सम्बरत्तकाम्नितुख्यञ्च निपुराग्तकरः चिवः सरव॑शेवमथः सोपि तव रचतु जौवितं लिखि fara खिलि areri एवं ज्ञातस्त मन्त ण जु्यासिलतणष्डलम्‌ ॥ २॥ wea dara पूजयेच्छलपाणिन | aiarmafa वच्यामि ater विजयायत॥.१॥ aia Baa कथितमायुष्यवदेनं परम्‌ | ‘ata च Tat: BATT शाघमहनम्‌॥४॥ सौरेण बलबदिः ASU लच्छो विवधैनं | कुभो दकेन पापान्तः पञ्चगव्येन स्वेभाक्‌॥ ५५ शतमूलेन Baraat खङ्गोदक तोऽघजित्‌ | २६९ Baa: || मादेश्रख्रानल्कोटिहोमादयः। ४७३ पलाशविलवकमलङथखानन्तु Tad ॥ ६॥ वचा ees द मुस्तं खानं रच्तोहण परं। WII यशस्यञ्च धन्मभेधाविवडंनम्‌ ॥ ७ ॥ हे माद्धिचैव aye’ रूप्यतास्नोदकैस्तथा । रब्रोदकेस्त॒ विजयः सोभाग्य सर्वं गन्धकः ॥ ८ ॥ wafea तघारोम्म धाजरा्खिः परमां faaq 1 तिलसिदायकेलं चमो; सोभाग्य च प्रियङ्कणा ॥ < ६ पद्मोत्मलकदम्बे ख Nee बलाद्रुमोदकेः।! विष्णुपादोदकस्रानं सवंखानेभ्य उत्तमम्‌ ॥ १०॥ एकाको THR कोके (१) विधिवच्रेत्‌। अक्रन्दयतिसुक्तेन प्रबन्नोयान्‌मखि करे ॥११॥ कुषटपाठा बचा Vol गङ्कलोष्ादिको मरिः। स्व्वेषाभेवकामानामौश्वरो भगवान्‌ हरिः ॥ १२। तस्य संपूजनादेव सव्वान्‌कामान्‌समस्र ते | खापयित्वा wattle: पूजयित्वा च पित्तहा ॥ १३५ पञ्चसुद्गबलिन्दत्वा अरतिसारात्‌ प्रसुच्यते। पच्च गव्येन संखाप्य वातव्याधि विनाशयेत्‌ ॥ vs ॥ दिष्ेहख्रपनात्‌ स्ेष्मरो गडा चा तिपूजया | wa तेल तथा ate जानन्तु तिरसं पर ॥ १५॥ खानं Pata feae समलं छ ततेलक्रम्‌ | चौद्रमिन्ुरस क्षौर खानं चरिमधुरं सतम्‌ ॥१६॥ छतमिशरसं तेल चो द्रश्च तिरसं faa | १ यवकामायेत्येकोक्षमिति कण, Ro च | € ० ४०४ uifergera [२९७ अध्यायः। अनुलेप्िशकस्‌ कपूरोगौरचन्दनः ॥ १७५ अन्दनागुरुकपूरमगदर्पैः VHF: | warqaaa विष्णोः सवंकामफलप्रद Heal तिसुगन्धश्च age तथा चन्दनकु मेः | ANY WHIT मलयं सर्व्वकामदम्‌॥ १९ ॥ जातीफलं WNIT Weary त्रिशौतकम्‌ | पीतानि शुक्रवशानि तथा शक्तानि भागंव॥२०॥ छष्णानि चव रक्षानि पश्चवर्णानि निहि येत्‌। उत्पलं पश्मजातौ च चिशौतं हरिपूजनं ॥ २१ ॥ क्ष्म रलपद्मानि जिर रक्मुत्‌पल | धूपदौपादिभिः प्राच्यं विष्णुः शान्तर्भवेच्ां ॥ २२ i चतुरसख्करे AW AWWA शोडश | लखष्टोमङ्ञोटिहोमन्तिलाज्ययवधान्यकेः 1 २२ ॥ ग्षटानभ्यथ्यं गायत्रा सब्बभान्तिः क्रमाहवेत्‌ | इत्याग्नेये महापुराण माद्ेश्वरज्ानलत्तकोरिष्ोमादयो नाम षटःषचथ्चधिकदहिशततमोऽध्यायः | अथ सृतप्रषष्टयधिकदिशततमोऽध्यायः । णी 6। १0 नो राजनाविधिः। TRC उवाच । कब सांवत्सरं राज्नां जग्म पूजयेच तं । मासि मासि च संक्रान्तो सथसीमादिदेवताः॥ १॥ २९७ अध्यायः ।] नोराजनाविधिः । ४७४ श्रगस्स्योदयेऽगस्य्चा तुास्य' ee यजेत्‌ | शयनोत्थापने पञ्चदिनं कु्यौस्मुत्सवम्‌ ॥ २ । प्रो्टपादे सिति ca प्रतिपतप्र्तिक्रमात्‌ | भिविरात्‌ पूवदिग्भागे water भवनख्रेत्‌ ॥ ३२ tt तज्र शक्रध्वज साप्य शचौ WHY पूजयेत्‌ | अष्टम्यां वाद्यघोषेण तान्तु afe प्रवैयेत्‌ ॥ ४ ॥ एकादश्यां सोपवासो stent केतुसुत्‌धितम्‌ | यजेदस्तादिसवोतं azer(e) सुरपं way ye ata जितामित्र aaeq पाकशासन | शेव देव aga a हि भूमिष्ठतां गतः ne t त्व प्रभुः शाश्वतश्च व सव्वेभूतदहिते रतः । अनन्ततेजा वे राजो यभोजयविवदैनः ॥ ७ ॥ ` तेजस्ते aaa ते देवाः शक्रः सुठशटिकत्‌ | बरह्मविष्छुमदहेशाख कात्तिंकेयो विनायकः ॥ ८ ॥ श्रादित्या वसवो रुद्राः साध्या गवो fea: | मर्दणा लोकपाला ग्रहा यत्ताद्विनिम्रगाः ॥ < ॥ ससमुद्रा Wael ME चर्िका च सरखती | प्रव्तयन्तु ते तेजो जय शक्र TWIG १०॥ ` तव चापि जयात्रित्य' मम सम्पद्यतां शभ | mare राज्ञां विप्राणां प्रजानामपि gam: i ee a waaay एथिवी faa शस्यवतौ ata शिवं भवतु निविन्न शाम्बन्तामोतयो खश ॥ 22 १ asufafa wo, गर, Ro, Ho, यच | ४७६ भम्निषुराण [२६७ अध्यायः WRT WAG! जितम्‌: खगं माप्नुयात्‌ | भद्रकालीं पटे लिख पूजयेदाश्विने wan १२॥ WAT AMMA RTH ध्वजम्‌ ! ` इतस राजलिषमनि aera कुसुनारिभिः॥ १४ arafata बलिन्दव्याद्‌दितौयेऽङ्कि gare । भद्रकालि मशाकालि दुगे दुर्गालतिहारिखि ॥१५॥ वैसोक्यविजथे चरि मम शान्दौ जये भव । मौराजमविधि' वे रिशाग्याकन्दिर चरेत्‌ | eet तोरणचितयं तच ze टेवान्‌यजेत्‌ सदा | चिताग्यक्ा यङा खातिं सदिता प्रतिपद्यते ॥ १७ 1 ततः प्रति waar यावत्‌ खातो रविः खितः। ब्रह्मा विष्णुख ware शक्रखेवामलानिलो ॥ १८॥ विनायकः Fares वर्णो धनदो यमः। far देवा area WHITEY च तान्‌थजेत्‌॥ १८ ॥ कुसुरैरावणो पद्मः पुष्यदन्तख वामम: | छपतोकोऽच्नो नौलः पूजा wear खहादिकै॥२०॥ gor जुहयादाण्य' समिक्षिदायकं तिलाः | qa अष्टौ पूजिताय तैः खाप्याखगनोत्तमाः ॥ २१ ॥ र्वाः लाप्या ददेत्‌ पिष्डान्‌ ततो fe प्रथमं गजान्‌ । निष्क्‌ मथेन्तोरेस्त॒ गौ पुरादि(१) न लच्येत्‌ ॥ २२॥ विक्रभेयुस्ततः wa राजलिङ्ग' रहे यजत्‌ | १ शेखरादोति wo | २६७ अध्यायः |] नो राजना विधिः। ४७७ वारुणे वरुणं प्राय रात्रौ भूतबलिं ददेत्‌ ॥ २३॥ विशाखायां (१) गते Gar ्रायमे निवसेन्नृपः | sam atest तस्मिन्‌ वाहनन्तु विशेषतः ॥ २४॥ पूजिता राजलिष्गख waa ATER: | इस्तिनन्तुरग छव खक्ग चापञ्च दुन्दुभिम्‌ ॥ २५॥ ध्वलं पताकां WaT कालन्नस्त्वभिमन्वयेत्‌ | अभिभन््ा ततः सब्बन्‌ FAT कुच्ञरधगे तान्‌ ॥ २६ ॥ बुष्ञरोपरिगौ स्यातां सांबस्षरपुरोदहितौ। | afaata waren तोरणेन विनिगं मेत्‌ ॥ २७॥ निष्कम्य नागमारद्य तोररेनाव निगमेत्‌ , बलिं विभजा विधिवद्राजा कुच्रधुर्गेतः ॥ रट ॥ उन्म कानान्तु निचयमादौपितदिगन्तर | राना प्रदसिणं कुय्याचीन्‌ वारान्‌ सुसमाहितः॥ २८ ॥ चतुरङ्बलोपतः सर्वसैन्येन नादयन्‌ । एवं Hat WE गच्छे हि सिं तजलाच्लिः ॥ zo ॥ शान्तिर््ोराजनास्येयं वये रिपुमदेनौ | cara a महापुराणे नौराजनाविधि्नीम सप्षथ्चधिक- दिशततमोऽध्यायः। a ~ ` १ विध्ाखान्तिति wo, go |, अथाष्टषष्टयधिकदिशततमोऽध्यायः। --०*‰०-- - छ तादिमन्वाद्यः। पुष्कर उवाच । छतादिमग्त्रानृवश्छामि येंस्तत्‌ yet जयादिकम्‌। ब्रह्मणः सत्यवाक्वेन सोमस्य वरुणस्य Tie it सुरस्य च प्रभावेन ate तं ETH | पारछराभप्रतौकाश हिमञ्घन्देन्दसुप्रभ ॥ २॥ aera दग्कादयते भिवाये नां वसुन्धरां । तधाच्छादटय राजान विजयारोग्यहद्ये ॥ ३ ॥ ATAFTMAC AIA: FACT: | ब्रह्मणः सत्यवाक्येन सोमस्य वरुणस्य Wh ४॥ प्रभावाच्च हुताशस्य ava तवं तुरङ््म। तेजसा चैव gaa मुनौनां तपसा तथा ॥ ५॥. द्रस्य AWAY पवनस्य बलेन च । wt त्वं राजपुत्राऽसि कोस्तभन्तु मणि खर ॥ ६॥ यां गतिं ager गच्छेत्‌ पिढ्ा aren तथा ! भूम्ययःदतवादौ च Ufars परान खः ॥ ७ ॥ ब्रजेश्त्वन्तां गतिं सिप्र मा तत्‌ पापं भवैन्तव | विक्ततिं मापगच्छस्त्व' युचेऽध्वनि तुरङ्गम ॥ ८॥ बिपून्‌ विनिन्नन्‌खमरे ae wat सुखौ भव । WHAT महावीर्यः सुव ण स्वासुपाचितः ॥ ९ ॥ पलत्रिराष्वे नतेयस्तथा नारायणध्वजः | २६८ MTA: | | waifeaaiea: BOE काश्यपेयोऽख ताषत्तौ नागारिर्विष्णुवाहनः ॥ १० ॥ अप्रमेयो दुराधष रशे देवारिसूटनः। महाबलो महावेगो महाकायोऽख्ताश्नः॥९१॥ गरुकाश्नारुतगतिसत्वयि सन्निहितः स्थितः | विष्णुना देवदेवेन शक्रा खापितो afa nv १२॥ जथाय भव मे नित्य हरयेऽथ बलस्य च। साश्ववन्भायुघान्योधान्तास्माकं रिपून्‌दह॥ १३। कुमुदैरावणौ पद्यः YMA वामनः | GUAM नोल एतेऽष्टौ देवयोनयः ues ॥ तेषां gare Ware बलान्यष्टो समाखिताः। भद्रो मन्दो ANIA गजः संकीर्ण एव च ॥ ey वने वने प्रसूतास्ते WMA मदागजाः। पान्तु लां वसवो रुद्रा feat समर्दणाः।॥ १६॥ भर्तार र्त नागेन्द्र समयः परिपाल्यतां । शिरावताधिरूद्स्त॒ वजुहस्तः TAM: ॥ १७ ॥ णृष्ठतोऽनुगतस्व घर Tag at स देवराट्‌ । ` भवारुदि जयं युद BUA सदा व्रज ॥ १८ ॥ waa हि बलच्ेव ेरावतसमं युधि । Met सोमादलं विष्णो स्तजः सर्ग्या व्नवोऽनिलात्‌ ॥ ve ॥ way गिरेर्जयं QASIM देवात्‌ परन्दरात्‌ | युद्ध Tag नागास्त्वं दिशख सह दैवते; | २०॥ अण्िनौ सह गन्धर्वे: पान्तु लां सर्पतो few: | मनयो वसवो रुद्रा वायुः सोमो महषयः AL kt ET o अरम्निपुराशे २६८ अध्यायः] नागकिन्नरगन्धवंयस्षभूतगखा ग्रहाः । THATS सहादिलैभूं तेथो माठभिः सह ॥२२॥ शक्रः सेनापतिः स्कन्दो वर्ण याथितस्त्वयि | प्रहन्तु रिपुन्‌ स्वन्‌ राजा विजयमष्छतु | २२ ॥ यानि ्युज्ञान्यरिभिभूषणानि समन्ततः | पतन्तु तव TAU हतानि तव तेजसा ॥ ९४ ॥ क{सभै मिबधे aeq यु जिपुरघातने। हिरण्यकश्िपोयुह बध सर्वीसुरेषु च।। २५॥। भोभितासि तथवाद गाभस समयं खर । नोलखेतामिमान्दुष्टा ANAT पारयः ॥ २६ ॥ व्याधिभिर्वि विैर्घोरेः शस्तं च युधि faferar: । पूतना रेवतो लेखा कालराचोति पठयते ॥ २७ ॥ दहन््ाश रिन्‌ सर्वान्‌पताक्ते लासुपाचिताः। सवे मेधे महायज्ञ देवदेवेन शूलिना ॥ २८ ॥ शरेण जगतद्ेव सारण त्वं fafafara: | नन्दकस्यापरां ara स्मर शजनिवहण ॥ २९ ॥ नौोलोत्पलदलश्याम क्ष्ण दुःखप्रनाशन | असिर्विशसनः GRATUIT दुरासदः ॥ २०॥ saat विजयस्व ध्यपालस्तथेव च । caer तव नामानि पुरोक्षानि AMAT ॥ VLU waa afaat तुभ्य' गुरुदंवो मद खरः | हिरण्यद्ध शरौरन्ते दवतन्ते जनादनः।। १२ ॥ राजानं र्त fafa श सबलं सपुरन्तथा | ९८ अध्यायः। दनादिमन्तादयः gce पिता पितामहो देवः सल पालय सर्वदा ॥ १३॥ NAIA समरे वर्मन्‌ सन्ये alice भे। रच्च मां र्षणोयोऽइन्तवानघ नमोऽस्त ते ॥ १४॥ दुन्दुभे a सपव्रानां घोषाश्च दयकम्प्रनः भव भरूमिपसंन्यानां यथा विजयवशैनः ।॥ ay यथा नोमूतचोषरेण इष्यन्ति वरवारणाः AAS तब शब्देन र्षोऽस्माकं FATT ॥ १६। TA लौमूतशब्देन Bat तासोऽभिजायते | तथा तु तव We न बस्यन्त्स्मद्िषो रण ।। 29 ॥ WA: सदा नोयास्तं योजनौया जयादिषु । छत कम्बलविष्णादे स्बभिपरेकद्य वत्सरे ॥ YS I राञ्नोऽभिषिकः wean Sava पुरोधसा | इत्याग्नेये महापुराणे Sifenater: नामाषटषथ्यधिक- दिश्ततमोऽष्वायः। vs Digitized by Google Digitized by Google