BIBLIOTHECA INDICA: A

foLiection OF PRIENTAL Works

Published by

THE ASIATIC SOCIETY OF BENGAL. New series Nos. 862, 864, 867, 870, and 871.

THE AITAREYA BRAHMANA OF THE RG-VEDA, WITH aie Commentary of Séyana Acharya. EDITED BY

PANDIT SATYAVRATA SAMASRAMI!,

Associate Member of the Asiatic Society of Bengal, Editor, Author, Commentator, Annotator, 9 sate ranslalor, @= Publisher of different Vedi¢ rks &c. &e.

VOL. I.

Calcutta: Printed by M. N. Sarkar, SATYA PRBSS. 1896.

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यथामति संशोध्य सण्टोक्य सम्पादितम्‌ |

दितीय भारः

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कलिकाता-रालग्वत्याम्‌, १८५ ३-संवस्छमार्यां सत्ययन्तेख यन्तो सुद्धिवम्‌

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अयेकादगः खण्डः (ae प्रभसादि ) ... <9 श्रथ इादशः खण्डः ( तत्रैत स्तोज्रियविध्यादि ) १८४ अथ त्रयोदशः शण्डः ( , ) ... ११० ( १२) भथ ठतोयाध्यायः ( तत्रैव तौयसवनोयानि ) १५ अध प्रथमः खण्डः ( जगतौविष्टमोः war). श्रय fedta: खण्डः ( मावतौकधा ) - ... १८ अध ठढतोयः खण्डः ( सवनत्रयकधा ) ... १२२

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( १८ ) अथ ढतीवाष्यायः ( गवामयनसतयेषः ) `` २२१ श्रध प्रधमः खण्डः ( अभिष्ठवे तीख्यद्दानि ) + qa दितीय; we: ( पश्चषरशविधिः ) `` ३२४

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यी तै्ाषरुणस्त' तु aretha ara ग्रहम्‌ | शक्रः खतो हिरण्येन, खतो मन्यो तु.सक्षुभिः। `" रङीलाग्रयणं ग्टह्वात्यतिग्राद्याभिधान्‌ प्रषान्‌ | WHEAT WA UB: TATU ATR: | TASS दरौ णकलभो ऽपर्ाघधवनोयकः।

ते अरिष्यवमानाय प्रचर्य पश्च ते।

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avlatfian arate पथोः watgarerfiry | खवनौयपरोडारैदरितवा waraaag | इत्वा WY, Watiereqenfren eet | शक्रमन्याादिकान्‌ yar waarafa awfir संरच्यसतगरदन्द्रानस्ोसप्रतिगरःस्ततः अगज्यस्तोतेभ्य ey fe प्रालस्पषमसंख्ितिः a माध्यन्दिने तु सवने पुरोडाः ad q) TH मरत्वतोयः स्यात्‌ पवमामेन संस्तुतिः | दधिघर्मं इतं wary efeatar यथायषम्‌ | मरत्वलोयां स्ताम्‌ इता मान्द्य समाप्यते + दतीयसदमारणग्ध आदित्यग्रह माचरेत्‌ | आाभवेय स्तुपोताथ asa": TATA | arfaadtag2arent यशो, सोम्यचर्ख्षधा। मालो वतग्रशादृरं यज्रायन्नोयसंखवः। CANTATA स्याद्‌ AHATATTATAA | समाप सवने पान्‌ Harsrewes ततः; | क्याद्‌ दयनेरि समु बन््यां यजत गाम्‌ | दविक्षा faaay २ेवसुवामापि awe | ware चेदि मामेव farifadtaa fafa: 0”

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सथ सवक्रतुप्रधा मभूतो ज्योतिष्टोमः सपसंख इति arfwa- प्रिहिः। संस्था विधेव्यनर्धान्तरम्‌ | ततसेकस्येव च्थोतिष्टोमस्छ सप्विघधलत्ात अग्निष्टोमः, अयस्नि्टामः. उक्थ्यः, trent, जति- रातः, वाजपेयः, भापोर्यीमचेति सप्त नामानि सम्पन्नानि aa यभ्नायक्तो्रडयनास्िोमखाशा wa समासिः, सदो ऽन्िष्टोमः। एवात्यनिषटोमादीनां aa मादपर्पो ऽलो afwe: प्रज्ञतियाग शत्युष्यते खश्षप्रेतरेयक्ते मादिवचतुः ष्वुर्डाधिकवतुद्‌ गाध्यायै{विह्ितः। ततः पच्चदभाध्यायान्तीपा न्तयो; खण्टयोसक्ष्यक्रतो विशेष चक्षाः ततः पौड्याध्यायीः ' यायचतुःखण्डेषु चोषगिमंस्यस्य तस्य सिेषयिभयं)ऽभिङ्किताः | तत्त ऊदुः सतदगाध्यायीयपस्षमण्र्रान्त मतिरावविधय र्पः दिः} णवं माहनान्यायपोडगक्रम eget ealfagtT: समान््रातः | CAAT मुपशीच्यैव गवामयनम्‌, धक्रिरसामयनम्‌, दिः ल्यानामयनं ata त्रीमि सत्राच प्रयतम्त षति तानि तत अं कराप्यायेनाक्रान। तत्रापि गवामयनम्‌ wafa: | ततः पञ्चमिर््याव्रे विद्यो fefaunfta wre we afin ध्यायस्याद्ित एषारन्धः अस्म चाध्यायस्य दतु्धपञ्िकाधत्वेना- Ba facttar भागः समापितः

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कलिकाता। ` सामचमो यौसवत्रतश््र | संवत्‌ १९५३ | ( सम्पादकः )

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ओौगराव नः प्रां "निविदः सं सच्डावाकस teary | यजमान्यनक, हवते. साचिदैवतम्‌ `: | ca crane frea neared निशूपयितु प्रस्तौति ~~ agra वा एतद्यत्‌ भगं ; नगर प्राता गद्मन्ते, मवभि- बेहिष्यवमामे सुवते, स्तुते स्तोमे दमं गह्वाति, हिर इतरासां दणमः सो सा सम्मा”-दति | wearer ‘aq’ wet मस्ति, तत्‌ श्रहोकथं वै शेन्दवायवादिग्रहाणा yas, तदीयदैवताप्रथंसारूप food: | नवेत्यादिना यष्सम्बन्ध एवं retired प्रातःसवने शेग्दवायवमैत्रावरणादयो # धाराग्रहा ATTRA TAT

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# भरमर्यामादय इति वक्तव्यम्‌ 5 मान्यथा डि मवसुया पूरयेत अतएव arta "तस्था; सन्ततं खवन्या; धारायाः यैषा मन्र्यामादौनां भरवपर्यनतामां गरह्णग्‌ ( ९.६.१.)- श््यादाकषम्‌, ततः 'भन्तर्यामादि-धे दपयेन्तान्‌ धाराग्रदान्‌-द्यादि ( २५. )। Tree: care “aera अन्सर्यामं watfa, सवी धाती ग्रहानाघ्रुवात्‌"-श्ति ( Whe १२.१३.५.)। ria लभिनौयन्यायमालयाम्‌ “ठेन्दुबायवादियष्षु दति (५.४१. ); तत्‌ खलु “वाम्‌ दौ रेन््रवायवयचुर्राव्यः ग्रीव माधिगः"-इति ( ते" we ६.४.९. ) दिदेव बिध्यरथा- शवादवाक्यानृमतम्‌ ; तथा aha walaa मपि हिदेवत्यग्रहष्व्रेष बोध्यम्‌ | awa सीमरस ufufefa wen, aawardife पावाणि; दष्ट तु तानि सीम दसपूणोन्धेव विवद्ितानि। “गृषहदुनिधिगमग्र' दति (परा १.३.५८.) ace aT प्रययः। तेच ग्रहा sada वयसिंशसष्याकाः। तान्‌ प्ररिगण्यामः--उपांगुरेकः ; त्तया सः, Sean, सेषावरुणः, आविलः, शक्रः, मन्यौ, भागुयपः; Sa, वयेति नव MGW, ; तव चन््रवायवादयस्तथो दिदेवव्याः ; अथ WATE दादश ; Hera, वैय- देवि wotinte: प्रातःसवनगृदाः ; चयी मरततोयाः, wee fe ` चलारो माध्य POTEET ; भादिवयः, afar, data: qratan, इारियोजनसति पञ्चैव ठतीय सबग्हाः ; wate तु चलारोऽधिकाः--भंधः, अदाभ्यः, ere, Heat चैति Sapa afta) रपु Narain रवव wT | SHAT भाधबनीयकलं

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रः काष्वदुः $ तथा wfewerrrel. Bre wear सिः मवसङ्खाभिः wafer: gear’; —"eard वर्थला "दिक ; “दविद्यतत्या "दति हितीयः, “वषय "- इति weiter Pf So या, २.१. १-९.)) रतेषु fag करेषु गव्या wea विदन्ते. ता wefecfem मोयन्त एवं ‘wet? ब्रदिष्यवमानस्तोप्रे exrefe: qa’ सति अध्वर्युः qn’ wwe, wiser गटश्ञाति | यद्यप्याष्यर्यवयोः warrercrareat: CETTE धाराप्रहषु ढतीयत्वेनान्नातः, तथाष्बसौ TTT avtaa: : ^ श्राग्बिनो end wwa, a ame चन्ति" -ष्ति गरुत्यन्सरवचनात्‌ ६} तथा WHY दशमः सन्यः ॥।. wae Ceara? वरहिष्यवमानस्तोतगताना सथां 'चिष्ारः' दगमत्वेन

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Tete a; तचा सति nerd eithenat agqrard ecefnt तदिदं. सो सा wan’—efirraire’t | खकारो निपात; aware: सन्‌ लौ लिङ्गगम्यं तच्थब्दाभ्यां सम्बध्यते तथा सति सा' `पइस्का, ला सोतियसक्षेवयकष' भवति | 'सन्मा-द्त्य्र fetta मकारण्डान्दसः | तस्िञुपगते संति aay gaan भवति एवं सति यथा बवदिष्पवमान्य SIT ग्रसम्बन्धः, तथा प्रडगश्रश्छश्यापि waa इषटव्व बू्यभिप्रायः

रघ प्रठगशसे विद्यमानानां saat मध्ये प्रथमः aa fari— “वायश्च शंसति, तेन वायव्य उक्थवान्‌-इति। वायु- दवता यख wae सोऽयं वायव्यः (वायवा याहि देत" इत्यादिकः (सं * १,२.१-३.) ; तं शंसेत्‌ “तेन शं सनेन वायव्यः ग्रहः “उक्षधवान्‌' weary भवति | शपि वायव्यः एथक्‌ ग्रहो . नासि, wander ग्रहस्य पूवंभागो वायव्य शवयुष्यते | सच प्रथमम्‌ “भरा वायो भूषः- इत्यनेन (म॑०७.९२.१.) केवलवायुदेवता- केन aay wya, तेन वायव्यो भवति : पथात्‌ “cma TH सुताः-दत्यमनेन्द्रसहितदायुद्ेवताकेन मनग्धे (सं०१.२.४.) गण्यते तेमेन्द्रवायवोऽपि भवति। wa एव araifeded तेन्निरोया

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# “fea इति दिष्व्य"-एति ( १,२४.२. ) आजधासनोकतस्‌, feat? ay चानाम्‌ः extort तु “sa बति feare इति ( 9. ११. ७. ) लाच्धायनोक्ती Uw सामां सामद्धिकषलं पाथचभक्तिकलं सु Carat भक्तिः ( कशाण्डप० २.२.१८. १.)) ब्रहठोपदिष्टो हिरण, लाभ्यां fa wera एव चाबातन्डान्दोग्यं | ante “SW यथयेद' बहिष्पवमानेन Hear: सरथाः सर्पौत्येव मासखपुसंह Vari fram, :— Cite मदा इमी पिबामो? Say cee: प्रजापतिः afrarass frre ycee- पते su frwr vusswteq—afey’—afa १,१२.४; ५।

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-- “aqufe-ara मध्यतो awe featat”—cf (वै Be ६.४.३.४. ) # wa प्रवममभागस्पो veer अः, Sey च्छद चेन TST MUTT yf 5 हितौवं aw fart— ““शिन्द्रवादवं wef, terete wreerary’—afa) xara वायुश मिशिला देवता wer awe कोऽयम्‌ 'रे्रवायवः',--“नद्रवाय्‌ इमे इताः” -wanfew: ( de ४.२.४-4 ) ; त॑ भ॑सेत्‌ | PAA AAT TATA: शा श्राम्‌ भवेति aad aw fawe— ^सेजावदष्यं शंसति, सेन पावर

इकववान्‌- इति सिचो व्व मिशिता पः दैवता we वचं Wed (सैवावदकः,-- "मित्र इवे Grewy’-canfew: ( He र. ३,७-८.)। तं शंसतौत्पादिकं पूववश्योण्धम्‌

. eae aw विधत्ते “orfert शंख्ति, तैनाण्डिन wae काम्‌" इति aft मिलिता ! देवला aw awe सोऽयम्‌ “आआण्डिनः' .- “अश्विना avert रिषः" -इत्यादिनः (सं०१.१.१-२.)॥

qen aa विधन्ते-- “tat यसति, सेन warefarr

ewer’ इति | wat देवता wer wwe SETH, HE’ ` "न्धा याहि fawn” -carfer Rares: (Ae ९.९. ४६. ) ते शक्दडमयिग्शयोरभयोः यण्छवस्वम्‌

, षष्ठं विधत्ते -- Swed गंसति, Sree were ' इति! “ararawawtya.”-«ait: (Fe १. १. 9-€. ) ेष्वदेवस्तुवः | तेनाघयखग्र हस्य यद्यपि शवस्य नारि तथापि:

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वितेरेवरेवताक्रलात्‌ Satay ` एवं ale nee देवताकत द्रव्यम्‌ |. oe

सप्तमं ad fard— “orcad dafa "esther “पावकाः मः सरखतौ'.तयादिकः ( सं ° १.२.१०-१३, }. सारखतस्तुचः

ननु पूर्ववदतापि प्रशस्य WHIT कुतो मोपन्धस्यते ? इत्या- अष्याद-- “न मारखतो ग्रडोऽस्ति-इति | भष्वयंवमन्धकाण्डे सारखतमन््स्याप्रटिलताद्‌, ब्राह्मणे विध्यभावाच्च ब्हाभावः। afe गर्ोकथेऽस्मिवस्य सारखतस्य ara किमयं शंसन ares मित्याण्या-- “वाक्‌ तु सरखती, येतु कैच वाचा avy wu, ते ऽस्य सर्वे शस्तो काः -दरति सरखतो हि वाग्देवता ग्रहाणां वाचा ग्छ्ममा णतवात्‌ सारखरतत्वम्‌, केन सर्वेऽपि aH "शस्तो कधाः' परितशस्ता भवन्ति

बेटन' प्रशंसति “उक्थिनो भवन्ति एषं वेद" -¶ति। we afeq: सवं wet: wean] भवन्ति, ग्रहदेषतास्त्- weitere: |

sfa आमवायणायायं विरचिते माधवोये वेदाथप्रकारे

एितरेयत्राश्मणस्य छतो यप्रञ्चिकायां प्रथमाध्याये प्रथमः खण्डः + १॥

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अत्राद्यं वाएतेनादर्म्धे Wasa मन्यान्या दवता प्रठगे शस्यते ऽन्यदन्यदुकं प्रगे fad ऽन्यदन्य-

वसीषपशिका १२२ 0 , "ऋः

eure, uty श्रियते ava’ धिडेलंड sae मानखाध्याद्धतम मिवोकथं चत्‌ cet त्याने

सदुपेच्यवम मिवेवयाद्धरेतेन येनं होता संख्करोतीति वायव्य शंसति तस्ादाहूर्वायु; भाणः Aral Tar रेतः GENT प्रथमं सम्भवतः सम्भवतौति Aaa

शंसति प्राग tare तल्घंस्करोल्येन्द्रषायव' शंसति aq वाव प्रागसलदपानो यदेन्द्रवायव' शंसति प्राणा. पानातेवाख्छ तत्संस्करोति मैवावर्णं शंसति तचा. दाद्ुश्च्तुः पुसषस्य' wad सम्भवतः सम्भवतीति maaan शंसति satan तत्स्व रोव्यारिवनं

भसति तमात्‌ कुमारं जातं संबदन्तं उप वै शर षते'नि वै ध्यायतीति ' यदाशिविनं शंसति' are मेवास्य तत्संस्करोल्येन्द्र शंसति तस्मात्‌ कुमारं छातं dae प्रतिधारयति पै सौषा' रधो शिर

इतिं aex शंसति वीर्य मेवाख् तत्धंस्करोतिं मैश्वदें शंसति तद्मात्‌ कुमारो जातः पर्व भव- रति वैश्वदेवानि werfa यदग्बदेव' शंसवयङ्गान्ये- वास्य तत्संस्करोति aad शंसति wena कुमारं खातं जघन्या वागाविशति बाग्ि ace यत्‌; wired शंसति वाच Rare तस्संस्करोल्ेण के

ie सवभेष्यो'य एवं वेदं यद्य वंव॑विदुषं एत- water 1 २१

विहितं wearet miafa— “ware at ataraqay यत्‌ wea ware रेवता wet wet उन्धदन्यदुकथं प्री faa®’-vfa 1 यदैतत्‌ some’ we मस्ति, ataed यभ्य्वाबस्द amy) अतस्तेनाजरं॑प्राप्नौति aerating we Yay एथगीव देवता Wes, प्रवमदचे केवलो arg:, fettafafexaa, ठतोयस्िश्विषावदणावित्मादिरदेवताभेदः ; , ama हैषता भिद्यन्ते, तथैवासन्‌ wet “weary wae’ वायवायाहि" "इनदर वायः -दत्थादिकं qrercaerad veg क्रियते; तश्ीदोदनथाकमुपादिदिलचणभख्भोग्धलेद्नचोजसाम्या ewraryya युजम्‌ वेदनं प्रशंसति-- “अन्धदन्धदस्यान्धाश्च wey frat od Reef "अन्धदन्धत्‌' acercfrrtty मू्वादिकपम्‌ ` प्रकाराग्तरेख wet प्रथसति-- “are & यजमानस्वा- ध्यातम्‌ भियोकधं यत्‌ wet क्मादनेनेतदुपेष्छ लम मिवत्याइ- शतेन Bt रोता संस्करोति" इति | nearer’ were मस्ति पतरेव यजमानस्य (ष्याम मिवः qratt शरोर मधिष्लत्य शितं पवधयाम्‌, atest: पूर्वतर न्वयस्य यञ- अनितर निष्यततिरेतुलानिषानात्‌ (१०४७४६०) तदध्वान्‌,

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शंसति, चक्षुरेवास्य तद्‌ संखरोति" दति erat “ay. तैनावरुशः "दति (ao do ६,४.९.४..) मि्रावरुणसम्बदस्य ग्रहस्य चन्त्ाभिधानात्‌ ठचोऽपि चरक्षुःखकर्पर एव ATE अन्यम्मात्‌ यो ्रारोद्धियात्‌ प्रथम सुत्यद्यते | अस्याधस्यागमगस्य- agian yaaa एवंविध चनुःखरूपेए मेज्ावरुण- ददन यजम(नचक्नुषः संस्वार;

aya fafa मनृय स्तीति-- “afar शंसति; तस्मात्‌ gat जानं म॑वदन्त, उप वै wand नि नं ध्वा्रतौति ; यदा- जविनं सति, गोत्र Fara तत्‌ संस्वरति दरति! उत्पन्नं वालं मुख Haw मादप्िवादयः wears भेव माडइः,---नानारकिषि रुपलाननैराहनौ aaa सवलोकयतलि, त्द्‌? WT दयी वाच अतु मिच्छति, नैरम्तदकावसोकनंन्‌ भा भेव ष्णायनोति 1 तदतभ्मितापकष्ठामुगरहस्त्म्‌ | तस्पात्‌ aaa यतस्य WET, |

cad विधि aad स्तानि-- “Oe dale, तस्मात्‌ Gms जातं wager, प्रतिधाग्यति वै ग्रौवाश्रयो भिर इति; te प्रसि, ala age तत्‌ म॑स्वरोति" इति | दौनावां nara ame सवन प्रसर Ha माडः, -- प्रय faaral "मौवा; waste’ sary भाद wa सुत्रमयति, तत्‌ः भिर TaN Va! एतस्य ane वौयेनिभिनत्ाटिन्धरस्य ata: we नदोयदसेन शक्ते; मस्कारः

ux विभि मनूद्य स्तौति- ^वै्ठदेवं शेभति ; तस्मात्‌ कमा जानः Wa प्रचरति ; वैष्ठदेवानि छनि ; यदश्वं सवयष्ान्यवाख तत्‌ सं्वरोति"-दति | इत्यत्रो अ(लः We

ठलोययञ्धिका १। २॥ te

देथनश्वगगरोयोत्र मनादिक्रियाभ्यः wala समर्थः सन्‌ इस्ताभ्यां Wena daa प्रचरति; इस्तारीन्यङ्गगानि बद्ुदेवतः- कानि ; TAA देष्वदेवठदेनाङ्गसेस्लारः

ana विश्रि मनुद्य स्तौति-- “सारस्वतं शसति ; तस्मात्‌ Se सलं saan वागाविशति; वाग्धि सरस्वती, यत्‌ सार स्यतं श्रसलि amare तत्‌ संस्करोनिः इति। शस्तपादं- Raa SY पक्त ATMA, प्रतो "जघन्या वाक्‌ इल्बु- च्यत; वाचः मरस्बतीकू्यव्यात्‌ तदीयलचेन तम्याः संस्कारः

afar मनुश्रालारं प्रणंसात-- "एष वं जातो जायत मताभ्य ताभ्यो देवताभ्यः स्म्य Baars, Taw AW: स्वेभ्यः sina: die, भवनम्यो यवं वद, यस्यं चैवंविदुष wae वति" दरति; ‘ae Slay व्रधोकप्रकारेर मेद, यष एव पूवं स्र पितुस्य। stata सनर्देवतादटिभ्यो जाते भवति यथो aii {वदप "वस्यः वजमानस्य ear "एनत्‌" wen’ शंसति, सा wea टेवतष्स्म्यिः पुनजाचत देवता वायुदयः उक्थानि अ्रज्यप्रउगादीनि। छन्दांसि गप्यकद्धोनि। प्रउगानि Amman: | दवन atfs afazila | Oder. सर्वेभ्यः पूनकत्प्रत्तिः | ^

हनि @avepraravifarfaa माधवीये वेदायप्रकाशे

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पराणानां षा एतदकं यल्मडगं सप्र देवताः शंसति सप्र Wey माणाः Waka तद्माणान्‌ दधाति fa यजमानस्य पापमद्र माद्वियेतेति aie यो se होता aifeatad यथा कामयेत तथा कुर्याद यं कामथेत' wad व्ययानोति aaa मख लब्धं भंसेध्चं॑वा प्रद्‌ बातीयान्तेनेव तरलुग्धं * प्रागे नैर्येन' तद्‌ व्ययति यं कामयेत प्राणाप्रानाभ्या मन तद्‌ व्यद्धयानोद्यन्द्रवायव AT लुब्ध weed वा ud वातौयात्तेनेव Tega प्राणा- ulate Haat तद्‌ agafa यं कामयेत चक्तुषनं AMAA सैचावसूण मस्य लुब्ध WAZA वा पदं वातीयात्तेनेम तर्लु aida तद्‌ व्य्दथति यरं कामयेत। Ta व्यदुयानौत्याश्विन Te लुभ weed बा पद्‌ वातीर्यान्तेनैव तल्लु्धं | Haas az व्यर्बयति यं कामयेत aaa वय्ईयानीदयेन्दर AA qa Teed वा पद्‌ वातौयात्‌ तेनैव तल्लञ्ध दीरयेशौषेनं तद्‌ व्यष्यति यं काम Vata व्यश्यानौति वेभ्वदेव मद्य aed शस-

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aalaufewrie १॥ te

ea वा पटं वातौयन्तेनेव aegty मङ्गरेवेनं तद्‌ agata यं कामयेत aad व्यद्यानीति सारखत मस लुग्धं weed वा पदं षातीयांन्तेनेव तदलुग्धं वाचेवेनं तद्‌ व्यङ्यतियमु कामयेत सवरन भङ्गः सद णातना सम्र्यानील्येतदेवासख यथापूर्वं wy ma शंसेतसर्वेरेवेनं age: स्व॑णात्मना सम्रहुयति' सर्दैरङ्गः सर्वेणात्मना सखडाते एवं बेद

प्रकारान्तरेम Weare प्रशंसति-- (प्राशामां वा एतदुकधं ` यत्‌ प्रउग; देवताः ंसनि,-- an वै शीर्षम्‌ प्राणाः widag तस्‌ प्राणान्‌ दधाति"-दति | भिरोगमसपतच्िद्रवक्तिंप्राणामां ूर्वोक्तमनत्‌चगतवायादिदेवतानां सद्यासाम्यात्‌ अस्तस्य प्राण- श्प्रत्वम. #4 यजमानस्य शिरसि प्राणधारणः मवति

रघ WaT प्रडगशस््नस्य साम्य enufa-— “fat a aaa पापभद्र aifeatfa = ary, aw Flat erfea- aaa यथा कामयेत तथा कुयात्‌ -द्ति। “aa यजमानस्य ‘ay Hat स्यात्‌, तस्य पापमद्र कि aifeda’ पाप afae- aa, भद्रः मिष्टं, ताग फल' fa सम्परादयित्‌ं समर्थः शति प्रश्रः अत्रैव अग्नि ‘aa’ यजमानं afa यथा eta कामयेत, तथा कर्तुं शक्रोति इत्युत्तरम्‌

ay प्रमलृचप्रयुक्त मनिषटं दगंयति-- “a कामयेत.

प्राणेनेन' व्ययानीति, वायव्य समस्य ge’ weed वा पदं Matar, ta सन्लुम्धं waa तद्‌ ब्धहयतिः- दति | र्यः

१४ # एेतरेयत्राद्मणम्‌ |

यजमान सुदि शाता कामयेत | काय मिति, तदुथतै-'एनं यजमानं aria व्य्दथानीति' afeqga करवाणोति। एवं कामय- मानो दोन) “परस्य यजमानस्य सम्बनिनं वायव्य" तुच (लुग्ध are’ mai भवति तथा ‘stay IAAT, asfeum: (लुभ fanaa’ इति भ्रातुः (Fo २५) व्यामोह्प्रफार उच्यने- एका ad a तदौय मेनं पदं वा 'अतौयात्‌' स्तम्भयेत्‌, परेदित्यथः। तावना न्त्‌ नुचस््ररूपं “qa” aa भवति; तथा सति प्राणरूपत्वन पूवनिरूपितसट वायोः away "एनं" यज्ञमानं प्राणेन वियोजयति

हितीगतुचनिमित्त मनिष्ट दगयति-- “यं कामयेत प्राणा पानाभ्य। मेनं तर्‌ व्यदयानीलयैन्द्रवाग्रव मस्य Ya शंमटच वा पदं वातोयात, Aaa तुतं प्रा(पानाभ्या Had तद्‌ व्ययानि" - दूति | पूववत्‌ व्यास््ेयम्‌

ततोयन्‌चनिमित्त मनिष्ट द्रयति-- “यं कामयेत ayaa Beata, aT मस्य qa अंसटच' वा पदं वातोवात्‌, तेनेव aay waded तद्‌ व्यदेयनि दति पूववत्‌ व्धासछेयम्‌

चतु्यतचभयुक्त मनि" दर्शयति -- “यं कामयेत Aras व्यद्थानोत्याश्िन मस्य लृखं Weed वा पदं वानौयात्‌, तेनव ayy Sawada तद्‌ व्यहयति'?- इति पूववत्‌ व्याख्येयम्‌

पकमठचप्रयुश्ष alae दशंयति--. “a कामयेते aaa yaaa मध्य qa sted वा पद वातौयात्‌, तेनेन ` तरलुख' वोरयसेवेनं ag areata” इति पूववत्‌ व्याख्येयम्‌

षष्टतचप्रयुक्ञ alae’ दभयति--. “वं कामयेनाङ्गरनं व्यद यानीति, ata मस्य qed weed वा पदं तातौयात्‌,

तलौयपञ्चिका १।३२॥ १५

तेनेव AYU मङकरषैन तद्‌ व्थचयति"-दइति पूर्ववत्‌ व्याख्येयम्‌ ||

सष मतचप्रयुक्र मनिष्टः enafa— “a कामयेत वाचनं व्यदयानोति, सारस्वत मस्य yad शंसदं वा पदं वाती- यात्‌, तेनेव aeqey adda तद्‌ व्यदैयति"-दइति पूववत्‌ व्याग्ड्येयम्‌

TW शस्तस्यषटफनलसामध्यं eafa— “aq कामयेत wate we! मर्यणामना ममर्दयानीत्येलदेवास्य यथापूर्वं खजु- कमे गंसेत्‌,--मवरेय॑नं तदङ्ग; सर्वेणाकना ममदेयतिः'- «fa | र्वाक्तानि प्रागादि, adreagiia, सम्पूर्णा देष्टः, सव wre, amafsarat stay (मभ्य यजमानस्य awfar ‘aq’ एव प्रडगशस्वं waryga’ ATT समोपे पारायणक्रमेण्‌ पटितं, तथैव Bye कस्याचद्वयवस्यान्यघात्ाभावादृजुलं, नया कुं सम्पादित Ral daa! ततः काम्यमागसद्इिः सिध्यति

ब्रेन waieta -- “wage: aaa ममृद्धाते a aa” FER ETT

efa ataarwarafacfas माधवोय Ferra

पेनरद्राद्ाण्ष्य cditaafaaat प्रथमाध्याये Qala: खर्छ; २!

Re ets Gi a Pree

१९ पेतरेयप्राश्चणम्‌.#: चरथ चतुर्थः खच; |

तदाहयंघा वाव MI मैव शख ' माग्मेयौषु सामगा * शुषते बायश्यया होता प्रतिपद्यते ' कथ मश्धाग्नेय्यो ऽनुणस्ता भवन्तीद्ग्नेर्वा एता; सर्वा- wal यदेता देवताः a यद्म्निः प्रवानिभ दहति तदस्य वायव्यं at तदस्य तेनानुशंसल्यथ यदं दध मिव कल दहति दी वा दइृन्द्रवाय तदस्यैन्द्रबायवं स्प aga तेनानुशमत्यध aeq इष्यति निच eA ATA dared ad age तेनानुशसति यदम्निधँरसंस्पशरदश्य वास्य at तं वद्‌ वोपरंस्पण' aa मिवक्ललयेवो पासते aca सैवं Qi तद्य तेनानुगंसल्य्र ala erat वाहुभ्यां दभ्या Arahat aia a वा अश्चिनी' तदृ शिनं दपं cee तेनानुशंसल्यथ यद्च्ैघोष + wa यन्‌ Taal कुव्चिव दहसि यस्माद्‌ भतानि विन्ते तदख्यन्दर सप ACA aaa यदन aR सन्त बहुधा विष्रन्ति age वेश्वदवं ed तदस्य तेनानुशं सत्यघ यत्स्फजञयन्‌ वाच मिव बदन्‌ दहति तदस सारखतं at तदस तेनानुभंसल्येव स॒

> सामरे i "यदुचधपिः'

ठस्तेयपस्िक्त 1 ४॥ १७

हास्य वायव्ययैव प्रतिपद्यमानस्य Sa ठवेनैवेता- भिर्दवताभिःः स्तोतियी spent मवति! विश्वेनिः+ सोम्यं मध्वग्न इन्द्रेण वायुना frat FATA धाम्‌ भिरिति' ष्वदेव मुकं neat वैभ्वदेव्या यजति | यथाभागं तद देवताः प्रौणाति 8

अध BANA, दैवतावेलस्षण्यरूप मान्तेप सुयापयति- Caargaar वाव म्सोत मेवं गस्व माग्नेयषुं सामगा सुवते, वायव्यया कलोता प्रतिपद्यते, कथ मस्यानेय्योऽनुगस्ता भवन्तोति'- दूति ¦ भामगाम शान्यज्यस्तोत्राणि, तच FA आनेय आम्नाताः; “अग्न यादि इत्यादिषु ( उण्च्रा" १.१.५४. ) सामगेगाज्ध- म्तो्पाराम्‌ fy इता तु "वायवा यादि" .-इत्यनया (Fe १.२.१.) वायव्य WIN प्रारभते WAT Ra विल्च्तणदेवताकेन शास्या मेष्य ऋचः WT AAT भव न्ति? अमुकूलशंसम [भावे oaa wa सति" दति (तार ब्रा. =. ९१. शारान्सरं {विरुध्यत ति आन्तेपः

ललतेत्तर' दमयति -- “अरमेर्वा पता; qaqa यदेता saan’ इलि समसु FAR ( १५४०) या पता वायुदयो देवता; प्रतीयन्ते, at: सर्वा श्रमेरेव शरौरभताः ; अतोऽभ्नि- {निपय Ba mea wa ARIA S fa, wiana wae: erat SANA WATT

*त्मृताभिः, 4, ग, , ‘faa FI

ता० a २.४ , ०.२; (4.

4 2 3.4 § 2 wie ४५९ पञ ^+ SRT |

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qu ) फेतरेयमाश्रौशम्‌

धनैः प्रधमलचप्रतिषादिताया वायुदेवताया; खरूपं दए afa— “a यटर्निः प्रवानिव ददति, तदस्य वायव्यं रूपे, acer तेनानुंमति-दइति परवानिव प्रकैवानिव सन्नधिकञ्वालया दष्टयम्मिरिति यदस्ति, तश्रक्षात्मकं वायुसम्बज्धि रूपम्‌ ; वायुना उ्वालाधिक्योदयात्‌ | अतोऽस्य प्रखगशमस्त्स्य weafaat तेन aryetara होता तदगििरूप मनुं ससि हिनोयतुचप्रतिपादिताया इनद्रवागुदेषतायाः area दग. ग्रति -- “चथ az ईध भिव कल्ला दषशतिष्ौवा इन्द्रवायू ATS ward कूपं, ave तेनालुशंसति"-ष्ति उषानादयं faa छता यदा ददति, तदा हिलसाम्बात्‌ तञ्ज्वालादय fazarg. ` सम्बन्धि go भवति } अन्यत्‌ पूर्ववत्‌ तनौ यलृचे area दशयति ~ “ग्रथ यदृ एष्यति, नि हति, तदस्य Ware रूपं, तदस्य सेनाुथंमति"- इति) ज्वलतेऽग्नरौवब्रत्म्‌ wee’, ज्वालाशान्तया नासत: ‘fred: ; aqua सित्रवर्णसस्रन्धि रूपम्‌ ; -- fad दृ्टकतो हसं णोत वात्‌ तभ्मित्ररूपम्‌ ; वरुणसमस्बन्धिनोना wai नोचमामितात्‌ एतद्‌ वरूगस्य Ton तदोयदठचनाग्निरमु शस्तो भवति aaa युक्यन्तम मार -- “स यदनिनिर्घोरसंख्थस्त दस्य वारणं रूपं, यद्‌ घोरं संसभ aay सिव्लवेवोप्रासते. तदस्य मैतं स्प, ave तेनानुशंमनि"- रति ! सोऽभि: Gheraa sodas: इति mete, तदस्यासेवरुणसम्बन्थि कूपम्‌ ; वर्णभ्योग्रत्तान्‌ Maven मन्त we wer मपित afer णौतात्तीः प्राणिनो ‘faaaar मित्रस्य क्षतिः कायं ममीपे sama’ तैनैव एनम्‌

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atraahaant 12130 श्च.

उपासते" शौतपरिष्ाशय welt sec we चं वक्छिखमोदे प्रता- पयन्सो ats मेवन्ते "तत्‌ एवस्सवम्‌म्‌ (अद wea: farwarerfea qua | ade: समञ्बन्धिना “ae ATT स्पेखायै होत वकि aqua स्तरः aren इशेयति-- “श्रथ यदेनं erat वाहुभ्यां

दाभ्या भरणोम्यां मन्यन्ति, दौ बा ्रखिमी लदस्याश्षिनं श्यं मदस्य सेनान्‌-पंसति"- इति सश्िनो्दित्वाबस्त इसेनारखि्येन q मन्धनम्‌ wer Ger: Wifi सपम्‌ |

wgeaad area दर्भयति-- “wa agaaia स्तनयन्‌ waar gatas दहति, यस्माद्‌ भूतानि fant, Ae श्प, तद्‌ amnaquafa’-sfa स्मनयन्‌ ध्वनिं Haq t वं ध्वनि; विभिर्बकाररनुक्रियमे यत्‌ Feary ध्षनिसंद्िसाद्मन ena (भूतानि प्राणिनौ ‘fas विभ्यति, "तत्‌ भयकारणं afautya fare स्वाभा मासूफोटनं gat शर्लुनय कारिणो र्पम्‌ kt

तचे सारूप्यं दथयति-- “अथ sea भक सन्त वष्ुधा प्विषरन्ति, वदस्य ate कूपं, तदस्य प्मानभ॑सति"? -sfa | gaceadrnfeenayg भागोध्रादिधिष्फयषु बहुधा विषे यदस्ति, तदिश्वेषां देवानां रूपम्‌ ; तेषा मपि बद्ुलात्‌

समले areal दमं यति-- यत्‌ aay ATS सिव यदन्‌ ददति, नदस्य कारस््रत श्प तदस्य सेनानुशसतिः" -दति | ख्य अनो वाच वदति, aati: eq rata tufefaag faaauray faa we कबोति। तदेतद्दागुचारणसदटण' ध्वनिकषरणं सरखतोसम्बचरूपम्‌ |

yy # कणकश 14.42 11444444

सह्तति-- “Ca शास areas प्रतिपदंमानस्य Fa तृचः नैवैताभिदवतामि Mira ऽनुशस्तो मवति इति ‘ca ae’ शरनेनधीक्ञप्रकारेथ “वायवा याहि" cera वायुदेवताकयवर्चा शस्तं प्रारभमाणस्व होतुः तेनतेनोक्तुचेनैव प्रतिषादिताभिर्वायु- दिभिः देवताभिरमग्निसदृशोभिः “स्तोत्रियः स्तोचसम्बन्धितचो “com श्रा याहि - इत्यादिकः (So We १,१.४- 9.) ग्राननेय्यौ- ऽपि ‘aan भवतिः तस्यानुकूल्यं था भवति तथा प्रडग- ner ममुष्ठितं भवति इयथः अध शस्वयान्यां fard— “विश्बभिः सोम्यं wena sat वायुना पिपर fare धामभिरिति ( सं १,६४.१०. ) area सुक्थं शर्वा वैष्वरेव्या यजति, यथाभागं तदवता; प्रीणति sfa Hwa: "विश्वेभिः ad: देः ae, fain: crew TTT सदह, तथा fata ‘ata: म्थानेयुक्रः सन्‌ ate ay पोमसम्बरभ्िनं मधुरं रसं पिवे। विश्वभिरित्यादिका da मक्‌ awed, तया यजति तां याज्यां पेत्‌ *। कदा गरड. दिति. तदुखने --वेश्वदेव॑' श्रद्देवताकम्‌ ‘saw शस्त प्रउम- नामनं शस्त्वा TAS तथा सति खखभाग मनतिक्रम्य स! देवताम्तप्रथति isa दूति खौमसायाचायं facial माधवीये वेदाधप्रकाओच एेतरेयत्राह्मणस्य ठतौयपश्चिकायां प्रथमाध्याये चतुर्थः खण्ड;

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आवः यो०.१०.१०। 'याज्ामानि अलाःणि-दति तन्न तदुत्तरम्‌ (५.१०.२१.)।

ढतीवयदङ्धिका/ 21 ९५॥ Wa THA! सश ॥/ देवपानं at एतद्यद्‌ वषट्कारो वषट्‌ करोति ति वपाजेरैव तद्‌ टेवतास्तर्पय््यनुवषट्‌ करोति त्च धाटो ऽश्वान्‌ aT aT at पुनरभ्याकार्‌ तव Aes मेवे तद्ेवताः पुनरभ्ाकार तप्यन्ति चदनुवषट्‌ करोतौमानेवाग्नीनुपासत इत्याुधिष्ण्यानव WHE त्य्स्छिन्नेव जुद्धरति wafer वषट्‌ कुर्वन्तीति यदेव सोमस्याग्ने वीरीत्यनुबषट्‌ करोति तैन विष्ण्यान्‌ ्रीगालयसंम्थितान्त्छोमान्‌ मक्तयन्तोल्यार्हुयेषा नानु वषट करोति कोन सोमस्य खिष्टकृ्राग बति यद्वाव Hamad वीदौल्यसुवषट्‌ करोति aaa dfqaraiaa waafa मस एव्‌ सोमस्स {स्व्टलङ्गामो वषट्‌ करोति

ay warmer पठनोयं वषट्कारं विधत्त “देवपते

वा एतद्यद्धरर्‌ करोति, दंवपाल्फ्व de टखेवतास्त्पयतिः-ष्ति,। “arya eta सन्तौ वपटूकारः तं ‘Saura’ देकामां पाम साघनम्‌ : तस्मादु "वषट्‌ (कगोलि)' कयत्‌ arated पटत्‌# | तथा मनि देवाना सुचि्तेन॑व पानसाधनन wat दैवतास्तपयतोति ततः SE पटनोय AFTER? faga— “amare कगेति

लद्यथादौ ऽश्वान्धा गा वा पुनरभ्याकारं तपंयन्त्यव Raa

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RR Mataarway

देवताः yatta तपयन्ति यदङुवषट्‌ करोति" शति | “सोमस्याने वीहि ' - ययं मन््रोऽनुवषट्‌ कारः तं पठेत्‌ | "तत्‌ ततर लोके ‘aa.’ किञ्चिदिदं frei मस्ति; कोथ मिति, तदु- धरत -- यथा मनुष्याः सकोयानण्वान्वा खकीयान्‌ माः वा 'पुन- रभ्याकारं' पौनःपुन्येन ठणोदकादिभिरभिमुखीक्षतय न्धयन्धि' कण्यनेन froma वा लालयिला ययैष्टषासं प्रयच्छन्ति एव मेवतन श्रनुवषट्‌कषारण युनःपुनर्दवता अभिञुखीक्तत्य यत्न सानो हविषा तपयति अनुवषट्‌कारप्रगंसायं चोद्य सु्रावथति-- “दमानेवान्नी- नपामत इव्याहुधिष्णयानय कच्मात्‌ पूर्व्िन्नेव शद्ठति पर्वच्छिन्‌ वषट्‌ क्ुवेन्तोति ?५-इति | सोममध्यवर्सिषु fasta aretha. दनयो गे विहिताः, तानम्नौन्‌ ऋखिजः ममौपे खित्वा उपात्‌ णवः सेवन्ते एव केवलम्‌ ; तषु Wala, नापि ag gate Gata” उत्तरवदिस्थितेऽग्नी wast जुति, ततेव वट्‌ कुर्वन्ति | wad सति चिष्णागताना ममन गरौतिनस्ति | कस्मादेवं वैषम्यं fats एति चोदवादिन on Bi atte दशयति -- “यदेव सोमस्याग्ने पौ रत्यतुवषदट्‌ करोति, नेन धिन्‌ प्रौणातिः- इति | श्रग्नं ! शनि जाव्याकारे- याग्नि way Wine’ सोमरसं fe’ fur, शतिः अमेन मन्ते होता. अमुवषर्‌ करोति, इति यदस्ति, तन धिश्णयान्‌' ela होना तर्पयति | तस्मात्‌ न॑ वैषम्यम्‌ पकारान्तरेण wdfea पुनखोद्दव मुद्ावयति-- “ad खितान्सोमान्‌ भक्षयन्तोत्याष्येषां नामुवषट करोति को गु aaa यौरौवलुनषटकार्‌ः- इति Greet bog. eq | १भा० १६२० Re |

दतौयपस्िका 1 १7 ei Re

सोमस्य facag इति" दति ! ‘Aa fegrerrerat मयं होता नामुवषट करोति, @ दहिदेवत्याः सोमाः असंख्िताः असमासा; ; देवताथहोमस्यासमातौ कथ मृत्िजः ' तान्‌ feea- am मच्ठयन्ति ? waa चोद्य are: दर्भपूष्णमासादिषु fae- aaa ततः पूर्वेषां हपिषां संस्कारो भवति, ततः सोमस्यापि मैस्काराय को नाम खिष्टकङ्गागः१ इति feed चोद्यम्‌ तदोत्तर are “aera सो मस्याम वीष्धौ त्यनुपषट्‌ करोति aaa शंद्धिताग्त्सोमान्‌ भक्षयन्ति, एव्र सोमस्य म्विष्टक्द्धागो वषट. कसति" उति! wa सोम्येति जातिमात्र सुदिश्य भनुवषट्‌ः करोति दलि यदेवाम्ति, नेनैवानुनषट्काररहिता दिदेवत्यादयः सय सोमाः प्मस्थिताः' समाप्ताः; तस्मात्‌ feats दिदेवल्यान्‌ afaat wef, “Ao a Ua, धोक्लोऽमुतघर्‌कार ण्व aura facmum:. wat ऽनुव्षर्‌ करोति उक्तस्य wae योजनस्य fara मनुव्रषर कुवादटित्यथः॥५॥

sfa योमसादनाचार्यविर{ दित ate Acai TATTATRI MY waraat qara4y WIATATR प्रश्ूम- ares ५;

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TA पष्ठः Ww, il

वञ्जो बाणएष यद्रषट्‌कारा यं हिष्यान्तं ध्यायेद्‌ वषट्करिष्य म्द ज्दरिःनेव सं वच्य माश्यापयति क्किति

४४ रैतर्यत्राद्मणम्‌ |

वषट्‌ करोति US वा तव RAAT तत्कल्पयल्यवृन्‌ प्रतिष्टापयदयतुन्व प्रतितिष्टत इदं सवं मनु प्रति- तिष्टति यदिदं किञ्च प्रतितिष्ठति एवं षेद ae are दिरण्यदन्‌ बैद एतानि बा एतेन षट्‌ परति- छापयति' दौरन्तरिक्चे प्रतिष्ठितान्तरिच्तं प॒थिव्यां पुथिव्यप्खापः da wet बरह्मरि ब्रह्म तपसीदलयेता wa तत्मतिष्टाः प्रतितिष्टन्तौरिदं aa मनु प्रति. तिष्ठति यदिदं किञ्च परतितिष्ठति acd az Fufsta बषट्‌ करोल॑सौ ara बाहतवः wad मेव तद्तुष्यादधाद्युतुु प्रतिष्ठापयति याष्टगिव वै दव्य; करोति लाटगिवास् देवाः कुषेन्ति

श्रय तषट्कार साल्व अ्रभिचारप्रसाग उयने-- ^यजे। वा एप यदषटकागो यं feed तं ध्यायेद्‌ वषटुकरिंम्वम्मितिन तञ मास्छापयति"-दति। वषटूकारस्य यजरूपलात्‌ तकाल ध्यानेन a Tae भवति

ag वौषट. cay व्षट्‌कारस्य उत्तरभागे प्रससति-- पर्ति व्रपट. करोति, षड्‌ वा ऋतव ऋतूनेव तत्‌ कल्पयव्युतुम्‌ भरतिष्टापयत्यृतुन्‌ वैं प्रतिति्ठत इदं सवं मनु प्रतितिष्ठति alse क्र sla) वहिव्यमेन मन्भागेन वमन्तादि षड़तुमन्वाया युदिखलवात्‌ "तन्‌ geo सखप्रयोजनममधान्‌ करोति | तावना तवी व्याकुलता मन्तरेण प्रतिनिष्टन्ति। तग्रतिष्ठाम्‌ "अनु

ठतौयपञ्चिका। १) ६॥ RR

` खावर जङ्ग मस्प जगत्‌ स्वं Gat afafed भवति वेदने प्रशंसति "प्रतितिष्ठति एवंषेद-श्ति॥ |

प्रामाणिकपुरुषवचनोदारशेन ढ़यति -- “ae are fecweq वेदे एतानि वा एतेन षठ प्रतिष्टापयति,-खौरन्त- रिक्ते प्रतिष्ठिता, ऽन्तरिचं एथिव्यां, एथिव्यप्छापः aa, ga ब्रह्मखि, aw तपसोत्येता एव तत्‌ प्रतिष्ठाः प्रतितिष्ठन्तीरिदं aq ममु ufafasfa यदिदं fay; प्रतितिष्ठति णवं कद afi fecwaat दन्ता यस्यासौ 'हिरण्यदन्‌, face git ‘ae: ; तादृशा सुनि: ae w ata वचन are we fat वच नम्‌ ? इति, तदुत---'एतानि' oetrardifa ब्रद्मान्तामि षट. स््पनानि > यनि सन्ति, तान्येव "एतेनः वषर्‌कारेण शोत प्रतिष्ठापयति at दुमलोकस्याधस्तादम्तरि्तं, तस्मात्‌ aafra ana श्रितः तथान्तरिकं एचिष्या माभितम्‌ पथिको चाधोदर्तिनोष्वष्तु आयिता! “sg: सव्यं; जनेषु सत्यवादिषु aq यथाकालं हष्टिसस्भवात्‌ सत्यः प्रह्मणि' a2 प्रतिष्ठितम्‌ ; ker ara aa सिति वदेनेवावगमन्‌ | वेदः तपसि" वषट - ग्मन्तानुद्ानर्पं afafaa: : वदस्थानुष्ठ नप्रतिपादनाथैलात्‌ 1 इति" अमेन प्रकारेण एताः डमलोकादय एव (तत्‌ः aa वटूकारेष यदा पर्स्यरः प्रतिष्ठिता भवम्ति, तदामीं प्रतिष्टा eam: wars wina प्रतिष्टिता: सतीः “wy gare ‘ated fay जमदस्ति, aq सवं प्रतितिष्ठति एवं वेदिना, मच प्रलितिष्टति॥

अथ aaa पूर्बो्तरभागावमी प्रशंसति-- “ara

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Re शेतरेयत्राद्शम्‌

किति वषट कसे्यसौ वाव area: षत Ha तदतुष्वादधत्यु- तुषु पनि्ापयति ; याषटगिव वै देवेभ्यः करोति, तागिवाखम देवाः कर्वन्ति? - इति! मन्वे पूवंभागो वीः-शब्दो निपातल्लाद्‌ CM मतिप्रजन ° -इत्थादिधातुजल्लाहा गमनसखभाव arte मभिधत्ते | तरेतदभिपेत्य सो वाव at sary पसन्ताद्याः gaa: agama "वट ›- इतयभिधोयते। तम्मन््रपाठेन ‘wa Aa’ mafia मादित्यं षट -णब्दामिशयेषु ऋतुष्वादधाति केवल माधानमाज्रं किन्तु तेषु ऋतुषु प्रतिष्टापयनि' स्ये णाव- स्थापयति | एवं सत्यसौ होता Vaart याश मेव प्रयोजनं करोति arent मेव प्रतिष्टारूपं प्रयोजनम्‌ “aay होते, सदारेण यजमानाय देवाः कुवन्ति ng a इति ओरौमत्षायशाचा्रं विरचिते माधे वेदाधेप्रकाः रेतरेयत्राह्मणस्य ठतोयपद्िकायां प्रथमाध्याये षषः खण्ड;

अथ AHA खण्डं |

तयो वै वषटकारा' वन्यो wees: मेवोस्चवलि बर करोति asta usta

~--- ~~ ~ eee eee wens:

« “dtrefefa वधट्‌ कारः ate arto Mie २,५.१५। “वृदहिप्यवरावरदाषिदा- SS ११

aera मादेः" दति ( पा० ८.१.६१. } रतिः "वौ गहिव्यापिप्रजनक्ञान्यसनखादमेषु- पति धा० पाण अष्ा० We aoe

टतोयपस्िका ! १। २७

स्तत्‌ प्रेषां प्रेषत्वम्‌'" -इति व्धोतिष्टोमाख्यो यन्नः यदा क्नचिन्निमिततेन 2a उदक्रामत्‌, तदा “a Sar यच्च Bae “star यक्तदम्नि समिधा'-ष्व्येवमादयः (ae Ato ३. .२.१- १२. ) प्रषमन्तैस्तस्य यन्नस्य aay आह्नानम्‌ "रेच्छन्‌ ; यस्मादेवं ama परेपम्‌ः are करुवन्ताभिरिति व्युत्पश्या Hara प्रेषनाम सम्पन्नम्‌ `;

qa yea: प्रणमति -- “a gaafan प्रायोचयन्‌ ; यत्‌ qaefa mitra peat grea’ इति } “aryt- OM.” - FATA: समर पुरोरचः ( वा०स०१५.२१-२७. ) ; प्रडग- चानां wnat प्रराचनडहतुलात्‌ | aarfaafa: goafar: तं पून माद्यं ud दवाः प्रारोचयन्‌' तस्थ awe रुचि भुत्पाटिनवन्तः। ऋतः पुरोरोचनडतुल्लास्‌ घरोरुगिति नाम सम्पन्नम्‌ it

वदेः waist साद --- “a aq मन्वविन्दन्‌ ; यदद्या मन्व- विन्टस्तद्वदेतरेदित्वम्‌ ' ofa) A प्ररोचिलं यज्ज -मिक्यां "वेद्याम्‌ meq qaray अनुकनत्वनीपनलम्धवन्तः | ` ` sae नाभस्य शानत दु तेदिदिति नाम सम्पन्नम्‌ #॥

a ‘germ प्राजा; | नैषां एधा ----प 3 ध्वम्‌ प्रधिनी मवद; प्रष्यति 5 auciaway: Plat aseadile: dgahawia,’ पति माच्रर शौन 3.8.t- a)

; Sapayar यप्र anny gitaial त्म्यानस्था उपरस्द्टात्‌ ad ae naa ara Pats दवति GA Ea: ` इटि Mpqotton.2e Bub TAT Yo B-gyede |

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फरण माकम्‌ पति सतत कानार २.९. १.२५ Fol

ac एेतरेयत्राद्यशम्‌

agua माष-- “a fan’ ग्रदव्यग्त ; यदिन्त' ae- व्ह्नत, agerat ग्रहत्वम्‌-इति | वित्त" लश्च तं यन्न oe? उपांश्न्तर्यामादिभिः व्यग्धक्षत' विशेषेण स्तो्नवन्तः | AMY ग्रहणस्य BANC BPAY TATA Waray =

निविदां प्रशा are—- “a fara नितिद्धिन्यवेदयन्‌ ; यित्वा निविष्धि॑तेदगरंस्तत्रिविदां fafa” sia तं यत्न “विवा लब्धा तै देवाः परेभ्यो Geert “fafefa’ पूर्वाकदादग्‌ पदादिरुपाभिः + नज्यवेदग्रन्‌' कथितवन्तः | तस्मात्‌ निवेदनस्य प्ररठःधनाथकग्रनश्य qa निविन्नाम सम्यश्रम्‌ st

अथ वैपकार््त; प्रष्लगुणविधानाय प्रस्ताति “Aveta नटरष्यभ्यत्पं वेच्छति, यतो वाव तयोज्याय दवामोच्छति, एवे wat: सापौय इच्छति". दलि। नष्टं ay प्रयतेन aa तानि चकतीति ‘Heat ताण: पुरुषो द्विपिधः ; --ततरे केथिद्‌ मह दाव" नष्टादसुनोऽधिक भेव श्रभोच्छति, AeA वा अन्यः क्िदिच्छति; aad यतसे aa’ पव पृरुपो स्माद Fa’ मद्दवष्छल्धिः ~ oy पुरुषः "तयोः wer cardia, अत्यन्तं साधु ag इच्छति; py कामयमानेमु तथेत्य ¦ अस्वेवं सीकिक न्यायः, fa प्रकतं दत्याशद्याह-- "य एव प्रषान्‌ वषांयसो वर्धीयमोषरेद, एव तान्‌ सराधोयी Ae ; नष्टं WA aq Won इति “य एव' वस्त प्ैषमन्त्रात्‌ | वपोव्रमः--वप्रां यसः अनिप्रठदान्‌ वेद ; सर्वषु प्रेष मन्तेषु प्रवद त्वाधं बौसा प्रयुक्ता

Yo Ie ¢ t+ QAfo ४३५ Ya Rey 1 ato ewes "` द्रष्टव्यम्‌| ग्यन्द्धौ निषदि गल ~प पदप काद्भम्बस्ड्‌

ताति) पदराप्राति fafa’ sla fe ate He १९ २५।

ठतीववश्िका 1 et ze

Der (e वषट्कारं ware पशवश्च सेवन्ते ; तस्मात्तादृक्षामेन चाम श्टदषटरक्ारः Wala: ;

रिक्षस्य स्वरूप' edafa— “wa aaa qeawita, रिक्ष: दति) षट्गन्दो वषट्‌कार मभिधत्त भौोमसेनो भोम दतिवटेक्ररेरेन व्यवहारात्‌ | “यनव SANIT षङूवराध्रोति वघटकारावरोत्ं weed प्राप्रोति; नोचोश्चारणेन डि वघट कारश्च सखदयभावः ay तथोश्चारिती वट्‌ कासो “fom? -.षूताच्यते : उच्चध्वनियोग्यस्य तदभावे शुन्धप्रायल्वत्‌ भें fra’. निन्दति -- “foot रिणक्ति यजमानं पा पौ यान्‌ यषट्‌कत्तं भवति, पापौयान्‌ aa वषट. करोति ; तस्मात्‌ तस्यागानेयातः" fa | रिक्लाख्यौ वषट्‌ कारः प्रयुज्यमानः सन्‌ aaa ‘frafa’ रिक्तीकरोनि qaufaeld दरिद्रं करोतो- wae aut यजमान मपि ‘feufa waa वषर्‌ कन्त होता -पापौयान्‌ भवति" अत्यम्तनरकसाघनपापन युक्तो भवति। यस्म यजमानाय बषट कगेति, सोऽपि पापौयान्‌ भवति तस्मात्‌ कारण्नत्‌ ‘ae गिक्स्य वपट्‌कारस्य आशां (नयात्‌ प्राश्ुयात्‌, इच्छा मपिन कुर्यात्‌, किसु anata मत्यः |

wala वषट्‌ (रस्येष्टानिरटटफलप्रासिसामय्य' दशयति-- CPS यजमानस्य deg माद्धियेतति © स्मा योऽस्य (ता स्यादिम्यतरेवैनं यथा कामयेत तथा कुर्यात्‌" इति वदेतद्‌ वाक (प्राणानां का ण्तदुक्‌घम्‌'"--दन्यस्मिन्‌ खण्ड ( श२ए० ). प्रडग- faua यथ! व्याख्यानम्‌, azar वषट्‌ कारविषयं व्याख्यातष्य fata \

अनिषटफलपाधनलवं दर्भयति -~ “a कामथेत यथैबानौोजा्नो

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^ रेतकाकक्‌ ^

$भूत्‌, तवैवेजानः स्थादिति,--तवैवास्य ऋचं ब्रूयात्‌ तथैवास्य वर्ष्‌ कुर्यात्‌, सदश aad तत्‌ करोति"-इति शनोजानः' भक्नत- यन्न; पुरुषः यथैव फ़रलरहितो ऽभूत्‌, तथैवायम्‌ जानः कत- यन्नोऽपि फनलरहितः स्यादिति ‘a’ यजमानं होता कामयेत, er ग्रजसानस्य येन खरेण याज्यां ब्रूयात्‌, तेनैव ata वषट्‌- कार्‌ मपि gar; तथा सति ‘od छतयन्न' यश्ररहितेन्‌ wei फलरहितं करोति श्रनिष्टफलान्तरसाघनतं दशयति-- यं कामयेत पापौयान्ादिलयुदैस्तगा मस्य ऋच मुक्ता AAT वषट्‌ कु्यौत्यापोयांस wad तकरोतिः-इति पापीयान्‌ दद्दर नरर्वेयोग्यो वा यजमानः स्यादिति कासवमानो हीत aq मतिशयनोधैरचाय वयट्कार मतिशयेन ata: ब्रूयात्‌ ; तथा afa एनं यजमानं पापौयांस मेव करोति

श्रये्टफनसाघनतवं दग्रयति -- “य॑ कामयेन सेवान्दछछादिति, शमस्तग भस्य ऋच Rake वषट, gather waa नच्छिया मादधाति"-इति | श्रेयान्‌ दारिद्रारहितः प्रापरहि- तश्च यजमानः स्यादिति कामयमानो होता wa याज्यां Wa. ` रुचाय वषट्‌कार मनिशयेनोकचैरं चारयेत्‌ ‰; त्च ‘fae’ सम्पद मेव भवति | ‘aq’ तन्‌ wha "एने" यजमानं ‘Pray Ute: कामुशिकसम्पदि स्थापयति |

amarante fare “सन्तत सचा वषट्‌ ल्यं सन्तयं दूति | "ऋचा याज्यया ae सक्षत: निरन्तरं यथा भदति तथा “षट. wal? वषट्‌कार उचारणौयः तच यज्ञभानस्छ खेय. ya HATA |

en = ee ०७ जन ~ ~~ ~~

= "उभर aT वषट्‌कारः करि पा० १.२.३५

ऊतय्वश्िक7 ८९८ / = # Re

Red प्रणंसति-- “सन्धीयते प्रजया पशणभिर्यं wt वेद^- दूति सन्धोयते' संयुज्यते von दूति चोमस्ायणाचार्यःविरचिते माधवीये बेदायप्रकषाशये ठेतरेयन्रा द्म णस्य ठतीयपञ्िकायां प्रथमाध्याये सप्तमः खण्डः |

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अथ अषमः GG: ti

ga देवतायै हवि हौतं स्यात्तां ` aaa, करिष्य त्स{चादेव तदेवतां भौणाति मल्यक्ताद्‌ देवतां यजतं वनो वे बषटकारः एष प्रहृतो ऽशान्तो Sea लख्य हैतस्य aaa दव शान्तिः वेदन भतिष्टा amarante भयानिव waae tia sitfatur प्रतिष्ठा attra तशा षटुक्रल्य बषट्‌- aa बागिल्यनमन्वयेतं एनं शान्तो हिनस्ति वषट्‌कार मा मां भख््तो माहं तवां Wad बृहता मन उपद्धयें व्यानेन शरीरं प्रतिष्ठासि प्रतिष्ठां गच्छः प्रतिष्ठां मा गमवेतिः वषट्‌कार मनुमन््येत' तदु ष्ट स्माह दीर्घ मेतत्‌ सदप्रम्धोजः सह भोज इत्येव वषट्‌- कार सनुमन्वये तौजख वै सहश्च वषट्कार स्य भिय-

४९ ` Ratrarqrers

तपे तन्वौ' भियेगेवेनं agrar समर्धयति fara धामा समृध्यते एवं वेद्‌ बाक्‌ वरै प्राणापानौ वषट्कारस्त एते IH वषट्ते ब्युक्रामन्ति ताननुमन्येत बागोजः सह ओजो मयि भ्राणा- पानाविव्य॑त्मन्येव तोता वाचं प्राणापानौ प्रतिष्ठापयति ' सर्वायुः सर्वायुत्वाय' सवं मायुरेति एवं षेद ८॥

अथ होतु्वषट्‌कारकाले देवताध्यानं विधत्ते-- “ae देवतायै इविग्धहोतं स्यात्‌, नां ध्यायेदषट सौ रिष्यन्‌ x ; साचादैव तदरेवतां प्रीणाति, प्रत्यत्चाद्‌ देवतां यज्ञति-दूति | mat: at रेवता सुर्य हविग्ह्वाति, ‘a? दैवता मयं स्तोता वषट करिष्यन्‌ वषट्‌ कारावोदुमक्ः मन्‌ ध्यायेत्‌" मनसा देवतायाः metal दैवतामूत्तिं मादौ We aguas पश्ाह॑षट, gaifeas, एवं सति "साक्षादेव saadta रेवन! तपयति | aaa aera भेव देवतायाः साक्तात्‌कारः, किन्तु ‘waren’ qaata (तद्वतां यजतिः यागकातै प्रयक्चेण पश्यतीत्यधेः

ननु देवता चकुषा दृश्यते, कथ मस्याः wawa मिति चेत्‌, नायं दषः ; मानसप्रत्यक्षस्य विवक्तितत्वात्‌ यथा पुरोः वत्तिमौ देवता चश्ुषा gaa, ada चिग्यमानापि मनमा श्यत एवं

~+ eee ~+ ~ ~ ~~ een = re meee ee अय = = 9 ee [ -

# 34 Ay गुतिवचनं यथावदुजतं निर्क्त ; ८, ३.७. ZETA t दगोषाणेहता निरङहसिदहाविदकौधा | एण सौर सुर 4 Te ४९९ Te

ठतीयपच्विक्षा i .६1 ,. द.

₹ोतुवषटुकासादृ aqaag विधन्तं -- “ast बे वषड. कारः, एष प्रतो surat दीदाय, aw हलस्य सर्वं इव शान्तिं बद,न प्रतिष्टां ; तस्मादाप्येतदहिं भ्रूयानिव खल्यस्तस्य aa शान्तिरेषा प्रतिष्ठा वागियेव ; तस्माहषटर्‌जत्य-वषटर्‌कत्य वाभि- व्यनुमन्तयेत ; एनं want हिनस्तिं"-द्ति। वषट्‌ कारस्य ama मसकदुकम्‌ (स एषः वषट्‌ कारामको TH: परस्यो्प॑रि प्रहतः सन्‌ अशान्तः उग्रः ‘eter’ दौप्यते। तस्यः वस्य onfaay उपशमप्रकारं (सव इष सर्वाऽपि पुरुषो वद 1 खप- SANTIS वधट्‌कारस्योयत्वपररद्धारेण alacant प्रतिष्ठाः ता मपि सर्वो dz, तष्म्ात्‌ः शा्तिप्रतिष्टाविषयश्राना- arg एतहि रपि ददानो मपि लोके qa: भूयनिव' ay- qt एव news) (तस्यः ताह शवषट कारवखखस्यैैवं व्यमा णान्ति. गमनोपापः ; तथषा aerarta ‘afasy परोपद्रव- बहतावस्छि{तिः। वागि्बेत्यनेन साभिधोयने। उपरिष्टादच्य- भाषणस्य मन्दस्य # स्मरण मिदम्‌ | वागोज इत्यादिको यो मन्तः, स॒ एव्र naa ; aa कश्चिदस्ति | तस्माद्‌ "वषट्‌ क्षत्य- qT यदा यदा aye करोति, तदा तदा वाभिति मन्तेणानु- Wea सः वच्वस््ावता wana एव, हिनस्ति) अय भेक; WH:

पक्तान्तर ममिप्रलयान्येन मन्वे णामुमन््णं विधत्ते-- “'वघट्‌- कार मामां ways, माडः लां wad, awa मन उपष्ये, व्यानेन watt, प्रतिष्टासि प्रतिष्टां गच्छ, प्रतिष्ठां मा गमथेति वषट्‌कार मनुमन््रवतः -दति। हइ वषट्‌कार' वक्ष! ‘ai’

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8४ रेतरेयत्राद्चणम्‌

यजमानं ‘at ware: प्रमृष्टं विनष्ट मा कार्षी; ; we मपित्वा "मा प्रमृत्ते विनष्ट माकार्षम्‌। शता Wes यज्ञेन ‘way त्वदयं ‘guga अनुजानामि | तथा ‘anda’ व्यानादिवायुना मद aed शरोर मनुजानामि | यतसत्व' स्वश्च प्राणिसक्कस्य ' प्रतिष्ठा yrniisfa, aca a@ मपि ‘afast स्धयेणावस्ितिं गच्छ | amt मा मपि प्रतिष्टां ख्व्रेणावख्ितिं प्रापय | ‘sf waa प्रन्तेणानुमन्व येत |

fad हितौयं परततं निन्दिलिा मन्तान्तरं दगयति--- “ary # ware ala मैतस्सटप्रभोजः ae oie.” इति “Ae? aaa aqua प्रष्ववादौ afgery स्म कि are? दनि, तदु "एतत्‌ पूर्वाक्ष, wena ‘ald aq’ शपि aot एमायनुम्‌ amy स्मम्‌ कोसौ मः? इति, उव्यत-- “ats सदः gia’ इति पटवयासको aaa: मन्ताधं तु श्रुतिरव areata |

aa अन्त शानुमन्तणं विघत्तं -- “saa aqza Aaa aa” - इलि | पवकारः WIAA ARMac दश यति--“्ोजश्च ¥ वे सष व्षट्‌कारस्य प्ि्रतमे तन्वः sia | WET | Waa Haier दश्यति--- “faqs ताना wasafa’-<fa प्रिवतमयोः शएरोरयोनामग्रहे

ति वषट कारस्पोग्रलरूपः कोपो गच्छति, ततः "एनं" वषट्‌ कारम्‌ प्रियेण धामा समडयतिः स्वेभरूताना मनुपद्रवकारिषण fraq

uy ag प्रियश्रतेरद्यान्या मुपेत -यबहयते; तदन्ताव्यलुपद AA २५ ५.४ प्र) तथा कष्ः~ "'वागौजः सष भोजौ मयि प्रायापानाविति बषट्‌कार qalasaaa य॒ते - ति argo Are 2,4. vot

aaraufear ।.९६।८॥ Qu

खस्य समदं wofH wa सन्तगतो इहितीय ` भोजः-गब्द seta इत्यभिप्रायः

दमं प्रशंसति -- “fran wreat समुध्यत एवं जद” इति

अध प्ियसरैरहयवाचक)भ्यां पदाभ्यां सहित मादौ विदितं मन्त नै सिडान्तयति- “ara, 4 प्राणापानौ वषट्‌- Hr एति वषट्ते वरषर.कत Sea; ताननुमन्यत-- ants, we wien मयि प्राणापानात्रित्यान्मन्यव aarat ava a प्राणापानौ ufasraata, सवायः; सवौयुत्वायः" इति | यरय ara het, At प्राणापानौ स्तः, AST लयो # AISAHITAS- यम } यद( यदा Star वषट्‌ करो लि, तदा तदा वषट्‌कार ear डोली कप्राणापामाः गरौ neater | भवस्तक्मा भूदिति नां स्तीन्नामोजद्रव्याददिना प्राणटापानापित्यन्तेन मन्तश्यानुसन्त्रयत | eye | Wa 'श्रोजः' - सदः" इत्याभ्या प्रियद्षरोराभ्या ada) BS वपरकार ! त्सद््रसादा्मयि भ्राजः बल मस्तु, नया अ(लाप्रापाधानाः मुखेन तिष्ठन्तु | अनन AeA lal स्वात्मन्येव ari प्राणणाधार्ना प्रतिष्ठापयति | तावता Wa Waly अतसवन्सम्प(रमिनेनायुषा युक्ता मयति तश्च यजमानस्य सर्वा युत्मय सम्प॑द्यते। gan (इरे ede) वषट्कत्यः ayzaw वारगत्यमुमन्धयेतः इति वषट्‌कागनुमन््र्यधार्क कन्त कत्व AMA, अचर “MAA ताता दतिन्रा्मणे शो कर्तकत्वं प्रतौयत ; ततोऽनुमन्तरस्य यजमानकम्तकत् मन्ध सक्तं वाधित्वा Pianta मेव द्रव्यम्‌

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sea प्र्रसति-- “सवं मायुरेति एवं वेद ` -ईति इनि ौमायणाचार्यविरचिक्े माधवोये वेदाथप्रकागे 7तरथनाद्यगस्य ठतीयप्रषिकायां प्रथमाध्याये अष्टमः खण्ड; \

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¢ अश्रं AAA! खरुः

awit} Baw उदक्रामत्तं प्रेषे; HO स्च्छन्‌ mat, भैष रैच्छम्तत्‌ मेषाणां वरैषत्व तं पुरारुग्भिः प्रारोचयन्यत्मगोस्गिमिः प्रारोचयंस्तत्परोम्‌चां qT an तं उन्वामन्वविन्दन्‌ यदद्या मन्वविन्द॑स्तदद- afeca तं वित्तं गरहव्यगरहयत यदत्तं यहय्यर्हूषत az ग्रहाणां ग्रहत्वं तं विष्वा निविद्धिन्यत्रदयम्‌ यद्‌ विका निबिद्कन्यंेदयंम्त्चिविदां fafara महदाव aaa वेच्छति यतये ata तधोज्याय इवा Wfa aoa aa माघीय इच्छति एव iuravian atta बरद एव तान्त्याधोया ` वैद नषटषयं ह्यंतवत्परेषास्तस्मात्रहलिष्न्‌ पष्यति ॥८॥ अध प्रेषादोना udat दिवन्रुरादौ प्रषान्‌ प्र्सति-- “aw

वै देवम्य उदक्रामत्‌; a पः परप मच्छछन्‌ ; यत्‌ qa: त्रिष मच्छ

) ठतोयपच्चिक्ञा १।७॥ २७

दिषते भाषट्याय वर्धं यो se Bee शतै Tae ATTA वषट्‌ कल्यो" ऽथ यः समः सन्ततो setae: | धामच्छत्‌ तं तं प्रजाश्च we ्चानपतिष्टत तस्याश्च प्रजाकामेन पश्ुकामेन वषट- Hat ऽग्र येनेव पकवराप्रोतिस frat रिणक्ता- त्मानं रिकिक्ति थजमानं ' पापौयान्षटकर्चा भवति area वषर्‌ करोति TTT Aah Tata पापभद्र माद्वियेतेति are’ HF a होता सखादिलनेवैनं यथा arate तथा Vale यं कामयेत यथवानौजानो ऽभूत्ततरजान स्यादिति वर्धवाखय ea व्रूयात्धैवाख वषट्‌ कुर्या ET भवन तत्करोतियंकासयेत पापीयान्खादिलय- चन्तरा AA कच मुरौ नेतरं वषट्‌ gare यास Asa तलरोति यं कामयेत चया वादिनि TAT AG Va मुक्रीच्चक्षगं वषट्‌ कुर्या खषटय एतन तच्छिया मादधाति सन्तत wat qaz कल्यं

सन्त्य सन्धौयते प्रजया परशुभिध णवं बैद 9

अथ फलविशेषाथ वपट्‌कारम्यावान्तरमेदानाह-- “a वषट्कारा TH धामच्छद्रकः' इति "वजः पूति प्रथमस्य वपदट्कारभदस्य नामधव्रम्‌, धरामच्छत्‌-इति हितीयस few ति ठतौयस्य |

श्ट एेतरेयताश्मशम्‌

तैषां मध्ये वरजस्य खरप" दशयति - “a भेवोशच्बलि वषट. करोति, वजः इति सः" रोता मैव मन्त सुच्र्यथा भवति तधा, कलि यधा भवति am, वषटकरोति, शसः" मन्वरूपो वषट्‌कासो वजः इत्यु्ते श्रभ्रो दैः - शब्देन ध्वमेगधिकय Yad, बलि -गब्देनाक्तरसारुप्यम्‌ ; AMAR वचः तस्य प्रयोगं विधत्त ~ “नं -तं प्रहरति, fear area वधं योऽस्य स्तुन्य- wa Was; तस्मात श्राढव्यवता वषट्‌ क्त्यः? -दूति ay’ देषो यज्नमानसख सत्यः" इन्तव्यो भवति, "ततत waa’ ते way ‘feud इषं कुवते ऋाटठव्याय' wad नं वधं प्रद्धरति' वध- wet हननसाधनं ay ब्रूनै ¦ यदा-यदा अपेततितस्तद्‌-तदेनि विवक्षया तमिति वीष्ठ!। sary प्रहरणदतुवजुः, नष्मात्‌ सः' वज ज्राटेन्यवताः BHATT aTeRIT HRT प्रयोक्तव्यः | शोदयप्रयोग ण्व यजमानप्रयौगः ; दसिंणया होतु; क्रौतत्वात्‌

धामन्छदः सर्पं दर्थग्रति- शध यः समः सन्ततो ऽनिरही गैः, स॒घामच्छत्‌”-४ति | चयः ववद्‌ कारः भमः पूर्वोक्षद नि- त्वादिदोषग्डितौ यथाधोतस्तेयैषोचारितः, 'सन्ततः' याज्यः faeries, निःशेषेण ert परित्यागो यस्म wa, मा निह्णः , तथाविधा anfaen यान्धाकपा यस्य वषरकारस्छ सोयं 'जिदहाणैः, याज्यापाठद्मौीन cee. तदैलच््यात्‌ शरनिरहाणः, सम्पुणयान्यापाटोपित इयर्थः 1 कौश वषट्कारो भामस्छत्‌ इति, उच्यते ---धाम aad, ततव यधा रसांसिन प्रविशन्ति, तथा छादयति, श्धाम॑च्छत्‌' | तस्य प्रयोगं विधत्त “a तं ware पशव्ानुपतिष्ठते, तस्माक प्रजाकामेन पशकामेन qe ल्यः - दति प्रजाभिः पशुभिश्च अन्वयां तं-त fafa

हतीयपस्िक्षा १।१०॥ २५

परषमन्वाः कस्मात्‌ wae: इति चेत्‌, परोञुवाक्थानां afe- हितत्वात्‌ ताभ्योऽधिका ‘etal? इव्यवगन्तन्यम्‌ | एव" दोघ" त्वाभिन्न एव “तान्‌ aang “साधोयो ae भ्रतिशयेन सम्थक्‌ घेद। ननु सौकिकभ्यायोदाद्रणे नवस्तु नोऽन्वेषण सुदाद्तम्‌, इहं तु चरैपमन्वाणा मभिवलिस्कत्यतो लौकिकीनासङ्गत fafa चेत्‌, aya भवैतत्‌ ;-- ङ्ध" यस्मादयं dat: सन्ति, 4 'नरैष्यन्‌ः ATT धच्तस्यान्वेपणदंतवः |

पुरोनुवाक्याभ्यो दीघत्वेन Har प्रशस्य तदु्ञार काले प्रह्व विध॑त्ते.-- “aaa प्रहस्तिन्‌ fafa” इति यस्मादति- naa बहा: प्रेषा: Are तत्पाठकाले सवावरुषः प्रह्वः" विनः gaa किञ्िदवननरिरस्ति्त्रनुपविष्टो मन्धान्‌ पेत्‌ ! यथा ark (दिटमुःप्राटोन्‌ eee anftasfa, तदइत्‌,--- यया AT नष्ट quatmag प्रद्रत्वादिना qaaifa ue hi

sin anraurarifacfat माधवीधचे वेदाप्रपरकागे

एेनरयव्राह्मणस्य टतोयपश्िकायां प्र्माध्याय्‌ ननमः खण्डः

1१ ver 2 Saget

} MA SNA, Ae.

गर्भा वा णत उकानां यत्रिविदम्तदात्पुरस्ता- दकाधानां प्रातःसवने धीयन्ते तस्मात्पराञ्चो गर्भां

न्य ४५.

४५ रेवरेयत्राद्मशम्‌ `

धीयन्ते wig: समभवन्ति यन्द्रध्यतो मध्यन्दिने धयन्तं waa गर्भा war यदन्ततस्टतीयसवने धीयन्ते तश््रादमुतो ऽ्वाश्चो गर्माः war nara प्रजायते प्रजया प्रशभि्यं एवं वेद्‌ पेणा वा एत उकघानां यत्निविदसयत्पुरसादुकधाना प्रातः. सवने धयन्तं Baa प्रवयण॒तः पेशः कुर्यात्तारक्- दाम्मध्यतो मध्यन्दिन धीयन्तं यथैव मध्यतः पेण: कुर्यात्तादक्षद्यदन्ततसुढतमैयसवने धीयन्ते यथवा प्र्लनतः पेणः कुर्यात्ताटकरत्धव्तो यज्ञस पेशसा THT एवं पद्‌ १०॥

ay निविदां सवनभरेन स्थानमदं faa: प्रातःसवनं स्थान. fara विधत्त --- “गभा वा एत उकानां यच्रिविदस्तद्‌ यत्‌ पुरस्तादुकथानां प्रातःसवने श्रयन्ते, तस्मात्‌ परश्च गभा धीयन्त, परश्वः saat” sf. “afadag: -aareat निविदः fa) ad fafafaiior उर्कूधानां शवां "गभा वरैः गभ श्थानौया एव ¦ तथा सति प्रातःसवनप्रयोगे गशस््राण्‌ां पुर wiafea ‘waa’? wad, खयापयेयुरित्यथः | यस्मात्‌ TMA पुरःस्थापनम्‌, तस्माह्ञोकेऽपि गर्भाः ‘acre? स्तौ. शरोरे पर सुत्कष्ट' पुरोभाग aya गच्छन्तो . “धीयन्ते, धान्त प्रसवकालेपि “cary: पुरोभाग गच्छन्त उत्यद्यन्तं

^ भा ४३४ To “1, Bae Yo rate Zo}

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माध्यन्दिनसवने enafatd विधन्तं “amwaal मध्व. fet waa, aarva vat एताः” -दइति aarerara we निविदः पयुक्ताः, wary गमौ उदरमप्ये धोयन्तं adaeda स्थःनवि्रेषं विधत्ते -- ““यदन्ततस्तनौयसवने fad, सप््रादश्ुतेऽवास्नो गभः प्रजायन्ते won” इति ‘naa, न्वस्य अन्तिमे an एका खच शष्ट निविदः afs- नव्याः; amidar अन्तिसदेभानगिन्यः, तस्माप्नौकेऽपि गमां ‘aye, नितासस्यानाग्मातुरद्‌्गम्नष्यात्‌ "अवाचः" श्रधोभागगताः प्रजायन्त; गन Tare waar भवति Yea wiala— प्रजायते प्रजया ania एवं वेद्‌ इ्ति॥ ?नचये विदितं निलिद्धां स्थानत्रयं प्रगंसति “dst at ny उकेश्रानां afafaen ; तदत्‌ पुरस्ताद्‌कथानं प्रातःमवन qt TAMA: प्रेमः कु्रोत्‌ atleag ; यन्चध्यनो मध्यन्दिनं न्त, यत्रेन नदतः Ua Ral alesse ; यदन्ततस्तृनौय 1 पवन्ते, wala प्रत्लनतः fom gary area” ofa | Gat uMyat; "वज्‌ तन्तुमन्तान'-डति ( taTo १००६) यरता; ववण दारप्तिः-त ) कुविन्दानां," Gata वस्रवयनम्‌, तत्‌ gary); नाक aa वाससां धः 'प्रवयणतः' वयनप्रारम्भ Sa? gage कुध्रात्‌ ; यण्णमन्तसावेतस्तन्तुमिग्नद्धारः ; ia प्रान- स्तन्‌ were al falausd नवनि} wa वस्स्थानी. नानः मुकय waa sere सम्प्रदानं | ; --- are WH तन्पठनं, THETA वमान्तरमान्वद्रमम्न्‌ 1 एवं "प्रज्जनः'

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४२ रित्यत्र णम्य

वस्तस्यान्तभागः ; तच WAT वग्णान्तरेशालङ्धारः, ताष्टगुकयाना qeq निदिन्पटमम्‌ ui qed प्रथसनि -- “सर्वतो वभरस्य rat WA एत ce af y १० fa anarrararafactaa aradta वदागप्रकागे लस्यव्रह्मण्स्य antuataatat waa टम; स्वण्डः R १५॥

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पवा ता प्ता दवता यच्चिविदृम्तद्यव्युरश्नाः ययः परादःमवम्‌ धीयन्त मयता alee इन्त- “SA QHaat आदस्य AZ दय रनु GATT Af raed ear vey समभरं aenener निविद्‌ reget or वद्‌ दवा ae WHR TERETE: मम्‌: ugernreretsd fafaetuer eqliefa तदु स्वल द्र मव ददति a निविदः of actarifate. cm शनोग्राद्यन्नस दच्छिटर उुर्यादान्नस्य fez aaa ऽनु पापीयान्‌ भर्वति waa false प्रद्‌ मतौयात्रं निविदः पद farfeeterfafag: पदं

ठतोद्चएश्चिक्षा 21 ee ४३

विपरिषटरेन्मोषटयेयन्ञं मुग्धो यजमानः BAA निविदः पदे fanfrety निविदः पदे समश्येद्य- fafaz: प्रद समस्यन्रन्नस्य तदायुः संहरेत्ममायुको वज्ञमामः स्यान्तम्म्ा्न निविदः पद BAVA As नह्य Gz aa मिलते एव waa बह्म्तचयोः dfret aM AW Tat a aya a aU a AQT सति ava निवहान्‌ aaa a निविदः पद ae a प्रवि ame दष्टं नम aqea मति मन्येत लिदिद्‌।न/निविद्ध वे ata मतिणस्त | मवल्येकां {र {नध्म ततौयसवनं निविदं eenge दं परि- प्य दुच्यान्मज्नमं तदपश्न्याद्भभस्तत्यजा व्यङ्य awaizat aa परिणिप्य ततौयसदने निविदं aad aan निविद्मति पद्यत यन aaa निविद्‌ afa ada तत्मनः पनिवर्तत्‌ चान्त सव त्‌ ट्न्य- Hea तक्छन्दमं मक्त माद्य तस्मिन्निव दध्या- ग्म ea wat वव सिति guaran गंसति पः arog afa a यन्न Auta मा यज्ञादिन्द्र सोममिन gla wa aq versa मा तस्युर्नौ अरातय इन्मार्तीयत va aeqefa यो THe परसाधनम्तन्तुटेबव्नाततः माहुतं नभौमहोति प्रजा

४५४ ितरयत्राद्मणम्‌

वै तन्तुः प्रजा Aare एवल्षन्तनोति मनोऽन्वाहवा- av नाराशंसेन सोमेनेति मनसा वै यन्नसायते' मनसा क्रियते पिव तव प्रायित्तिः पयञ्चित्तिः॥११॥

इत्ये तरेयव्राह्मगे तुतौयप्चिकायां प्रथमोध्यायः ॥१॥

श्रथ निविदिष्रये ag वक्घव्यं विवक्तुरादौ श्वयसादश्येन निविदः प्रशुसति-- “arn a एता देवता वत्रिविदस्तदयत्‌ पुरस्ताद्‌ कथानां प्रातःसवने wha, श्रतो ama fra ऽन्ततभ्तु- तीयसवन श्रादिव्यस्यैव तदु व्रत मनु पर््रावत्तंन्ते" दति; या fafae: सन्ति, ता पताः सूयमम्बस्िन्य va, यथा सूर्यः प्रस्तादुदेत्यथ मभ्य खित्वा पथादन्तऽस्त मेति, एवं fafaersia Waa स्थ!प्यन्त ; तस्प्राद(दिव्यस्येव Gey भ्राचरण ममु निविदः पथवत्तन्ते ` |

arat निविदां menazeura मेकौकस्मिन्‌ ५६ canta विधर्चं - - “पच्छो वे देका aw समभरंम्तस्पात्‌ vat fataz: nerd” दति! देवाः पुरा यन्न "पच्छः पादशः “anata गकंकभागक्रमेण्‌ सम्पादिवन्त इत्यर्थः Tsar निदिदोऽपि पादः 9ंसनोयाः #

fafazit संसकाय wa sme विधत ---- “यदै तद्रता यश्च॒ ग्रभर॑स्तस्मादग्वः समभवत्‌ ; तसः (द्व {नवित vita देद्यादिवि,-- तदु खलु वर भेष zefa’—sfa ; ‘ug’ ulwaa Vat ‘aa’ तदा देवा aw सम्पादितवन्तः, तस्माद्‌ देशात्‌

‘Teasisiq पच्छः" एवकखिन्‌ Wid ऽवसाय गंसनौय

ठदीयथस्िका re! ११॥ १.१

ana उल्यन्तः | अरत एवाभिन्ना arg: किमाइरिति, तदडुथते-- निविदां थंसकायाण्व' दद्यादिति, "तदु खलु" तेनेवाग्डदानेन “बर aa जेष्ट भेव षस्तु ददति प्रयच्छन्ति | wang fafaaty कस्थापि पदस्यातिक्रमंः निषिधति--“न निविदः पद्‌ मनौयान्‌'-इति एक म्पिपदंनं त्यजेदित्यथैः विपत्तबाघपूर््कं पूर्वपक्तं निगमयति--“यद्रिवदः पद मतोः याद्‌, awe afed कुर्याद्‌ ; awa वैं च्छिद्र Baraat नु पापौयान्‌ भवति ; तस्मात्न निविदः; पद मनौयात्‌” इति पदस्य परित्यागे ane fee भवति। तच ख्रवति। तसो यजमानो निन्द्यो # भवति | तस्ाश्रिवित्यद्‌ र्त्यिजेत्‌ | uxai विपर्यासं + fauafa—- “a निविदः पदे विपरि giz: afafaz: पदे faufcetatredare, सुग्धो यजमानः स्यात्‌ ; waa निविदः पटे विपरिहरेदु"- इति [ faafretat विपर्यासः | निविदः सम्बधि यत्‌ पददयम्‌, नल्‌ नन विपरिषरेत्‌ tuudtaaat पटेत्‌ तथा सत्ययं हाता aw मौयेत्‌' यन्न wife जनयेत्‌) तनौ यजमानोऽपि सुग्धः रान्तः स्यात्‌ ¦ तस्मादिप्यौमो क्तव्यः निवित्पदस्रेषणं निषेघनि--"न निविदः परे सलमस्येद्‌, afafae: घटे समन्येद्यन्नस्य तदायुः dig, - प्रमायुको यज- मानः श्यात्‌ ; तस्मात्र निविदः पदे समस्येत्‌''--दति deat: मंस्षेषे यन्नस्यायुः wea भवेत्‌, यन्नो विनण्येदित्यधेः तती यजमानोऽपि fata 1 wait Haag 7 & tafe 27 a1 7 “व्यत्क्रमन्धास' a ; घपरक AA पद्‌ fata | $ "पद्यौ; परम्परं BA) च।

४६ एतरेयत्राहाणम्‌

अनेन निषेयेन सवेषां पदानां परस्मरविक् षणप्राप्ता मध्य sae पदयोः संप्र षणं विधत्ते-- “ae ब्रह्म, प्रद चत्र faaa एव समस्येद्‌, awa संचित्य ; तस्माद्‌ ब्रह्म ea संवित्त” इति निवित्प्रदानां मध्ये प्रदं ब्रह्म इत्येकं पद्म. ‘We क्षत्रम्‌". इन्यपरं पदम्‌ ; तं उभं एव संश्च षेत्‌ | एवकार दइतरसेश् TATA: | नदतन्बरकन्‌ ब्राद्मणक्षतिय- wat परस्मराख्यणाय भवति तस्मादेव लोके जातिदयं परखराध्ितं तिष्ठनि ; ~ जाह्मणो धमं प्रवत्तयति, चत्रियस्तस्य दषा करोति निधिन्यदानःं प्रसपस्यायमूमे सूक्ते Bla faa {घसत -- “न ada ana माति मन्येत निविद्यान्‌ Fae a 1नविदः पद ad स्वधन, wars टच चतुव afa मन्यत निदिदहानं निविदा शरव स्तोच मतिगस्तं मवति" इति | तिस्र चो ThA am भत्‌ चम्‌" > ; चतस्र ऋचो, यस्मिन्‌ सू TAKA | an avafad सूती मतिक्रम्य “निविदानं' निविट पदानां धानेन ` wag "न मन्दत चिन्तयेत्‌ एतदुक्त भवति - {तचत्‌ मातत सूक्तादरवाचोने am निविदा दध्यात्‌ fay HTS eatziar "निविदः wafer यत्‌ `एकम्‌ णव Te तद्व nad} प्रभिखक्तं समं भवति | यस्मादोष्टथं सामथ्यं तम्मा AMAT अधिके an निवित्यदषु प्रस्ििष {मति हेव स्ताना(तिणंसनं कतं भवति, तु TAH ऋचं TIAA सदिल्यथ्ः ९॥

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* प्र: `: दटन्यम्‌। + एतदटधिक्षं FINA | t Maa’ ti | "टं वापर देत Kate,’ ;

ठदतीयपस्िषा i १। ११

ढतौयसवमे विशेषः विधन्तं -- “amt परिशिष्य. ढतौय- सवने निपिदं दध्यात्‌" -दति॥ aw येय wren, ता Wray ततः पूवं Aa ठतोयसवने निषिदः प्रिपेत्‌

विपक्षवाघपुरःसर' are सुपसंहरति-- “यद्‌ ofthe दध्याग्रजननं तदुपहन्याद सस्तत प्रजा व्यदेयेत्‌ ; तस्मादेका Aa परि शिष्य ठतोयसंवने निविदं दध्यात्‌" -इ्ति। यदि श्वे wat परिशिष्य ततः go निविदं दध्यात्‌. तदानौं प्रजोत्पादनं # विनाशयेत्‌ ;--यत्रादयः (प्रजाः गर्भैः arate’ वियुक्षाम्‌ कुयात्‌ प्रजनन सुपङन्यादित्यभेन यजमानस्य प्रजोत्पादनराह्ित्य शुक्रम्‌, प्रजा व्यदयेदित्यनेन पूवं सुत्पक्ञानां gare मपत्यरादित्यम्‌ | तस्मा दिव्युपसंडारः

aq निविदानौयेन ata निविदतिक्रमं निषेधति-- “a aaa मिविद मति पद्येत" xfer यत्‌ सुखं निविष्टानां निंविद मतिक्रामति, नैन aire पदयत' निवित्प्रक्षेप परि सज्य Raa तत्‌ MN पठेत्‌ TUT |

प्रमादाजनिविम्मन्नेपविम्मुलती सत्यां ganar निविदं प्रशिप्य पाठा नान्या प्रसक्तः तं निपैभति--- “da aaa fafae मति पद्येत, तत्‌ qaqufaada, वास भेव an’’- fa निविदं मतिक्रम्य परित्यज्य निविश्मन्तेपयोग्येन श्येन awa’ श्रटयतः ` शरनु्ान mga, ‘aq चिन्मुतनिवित्कं an पुमर्मोपनिवत्तवः भूय! निविदः ufaa पठेत्‌ तच देतुरष्यते--'तत्‌' विष्मुत- निवित्कं ven "वास्लष्‌ भवः argues निवित्स्थान सुश्तं ; तस्य खानस्य घातकं तत्‌ स्रम्‌, ततः पुनःपाठस्य योग्यत्वम्‌ tt

sat ae = [1 ~ wee eee ee a 0 का ee 7 = arte

# प्रजास्पाद्नुसाचधन म्‌।

शच. रेतरयन्राद्म शम्‌

का तरिं तदानीं निविदो गतिरित्वागङ्कयार -““श्रन्यसहेवतं तच्छन्दमं ya मात्य तस्िन्निविदं दध्यात्‌” इति पूर्वस्य निविषानौयस्य # awe देवता यादृशो, छन्द यां, नथा- विधाभ्यां रेवताच्छन्दोभ्या युक्त मन्यत्‌ [किश्धित्‌+। सुक्ल मात्य तस्मिन्‌ सूक्ते निविदं प्रक्िपेत्‌

aa किञ्िददिशेषं विधक्ते “ar प्र गाम पधी वयं fafa पुरस्तात्‌ सुक्रस्य शसति" इति यस्मित्राष्तं नूतनं aii निवित्‌ प्रचिप्यते, तस्य amen 'ुरस्तात्‌' तत्पाठात्‌ पूवं “म। प्र गाम” - दरति (Horo use.) सूक्त शंसेत्‌ ad? होतारः "पथः" aa मार्गात्‌ wet: सन्तो CATA गास wee माप्राप्रवाम इति तस्य ITM: | मार्गम गदोषोऽस्प्राकं मा भूदित्यभिप्रायः

(etree aaa दर्श्यति- “al at एष प्रैति, यो यज्ञ मुह्यति, मायन्नादिन््रसोमिन दति; cates तन्न प्रयवत''-- दूति। "मा यन्नादिन्द्र सोमिनः इति दितौयः पादः aera मवः-- रे ve) (सोमिनः सोमयुक्ताद्यक्नात्‌ ara गामेत्यनुः वते, --प्रस्नेश मा प्राप्रबामेति ¦ धवः पुमान्‌ ad ‘ata’ आन्ति प्राप्राति, यष पुमान्‌ अवनयः प; Rea’ arate wea) Wal “AT A गाम पथः -दइत्यतावता पथा faa मागम्नणपरिष्टार्दार्व्वाथं मा यन्नादित्यपि पठनोयम्‌ | नत्पादपाठेनायं awa प्रयत! श्रवा “Gat aT एषः दत्य वादः पूवपाद्रशेषलरेन व्याख्येयः

टतीयपाद मनुय व्याच्टे-- “al weal waa इत्य- रालोयत्‌ एव तदपषन्ति"- दति | ‘ay अस्माकम्‌ “अन्तर्‌, मध्ये

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४, निनि घ। 1 नेतत्यदं ध-पुर्।

ठतोयपस्धिक्षा } ११ ` ॐ.

(अरातयः waar "मा खुः' मा तिष्ठन्तु तस्पादपाठेन “WUT aaa: waa भिच्छतः एव TENT अपशन्ति | ae

afarqe aw fetta ख्व मशुवदति-- “at यश्नष्य Tat धनस्तन्तर्देवेष्वाततः, माइतं मगीमदोतिःः-द्ति। ee पत्रो ‘ase nara, कुलपारम्मरये IA THAT साधकाः, ` अत एव 'तन्तुदेष्वाततः दौर्धलम्तुरिव देवेषु विस्तारितः; ‘av तथाविधं पुत्रम्‌ “arya मद्वानेन सम्पादितदेवतं (न॑भौ- मरि" wa निषेधार्थः कथिन्नकारोऽध्याहत्तव्यः, नैव नाशयाम cart: भस्माभिः प्रमादे कतेऽप्यस्मत्पुच्रख्य Say प्रवारा्छ mare: समाधौयत Tare: अचर तन्तुशब्ुस्य तात्य quafa— "प्रजा वै तन्तुः wat Baran Tag सन्तनोति - दति | कुला- चारायविच्छेददेतुल्वात्‌ पुव्रादिरूपा + प्रजा सन्तुशन्दे नोते $ तथा सत्यतत्यारेन प्रजा Ba पुवादिङूपा भेव “अस्मै यजमानाय "सन्तनोति" अविच्छिनां करोति

ठतौयस्या ऋचः पुर्वाद मनुवदति-- नमनो न्वादुवामष्े नाराग॑मेन मोमेनति दलि 1 शआराप्यायितायमसा मारायसाः। ततसम्ब न्थिन। मामेन ‘a सिप्र मेव ‘aay भ्रस्मटीयम्‌ “्राहइवा- ay आदयाभि wake तात्ययं दगयति-- मनसा सै यनश्नस्तायते aaa क्रियत" -इति। aat यन्नो मनसेव (लायै विस्तार्यते ; मनःपूर्वकल्वादिन्दरियान्तरमर हतः afeta प्रसारित यन्न यायः कर्तव्यविेदौऽस्ति $, सर्वोऽपि (मनसा क्रियते AMAA WAT युक्तम्‌ fe ‘wafer भुतरद्पाः aI

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रेसरयत्राद्मणम्‌ सूय प्रथमतः पाठे प्रयोजन दर्भ॑यति - “da aa प्रायधिसिः प्रायधित्तिः"-दति "मा प्र गाम"-श्त्यादि- सूक्षस्योकिरेव निविदतिक्रमरूपस्य #" प्रत्यवायस्य प्रायञित्िः। प्भ्यासोऽध्यायसमाघ्यधेः ११

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दूति ोमलस्ायणाचाग्रं विरचितं माधवीये वैदाथेप्रकाशे एितरेयत्राद्मणस्य दतौयपञ्विकायां प्रथमाध्याये UHITT: खण्डः ११॥

ns © ~~, + वेदार्थख प्रकाथेन तमो शाहं निवारयन्‌ | एुमभाखतुरो दैयाद्‌ विदय{तौंमदण्वरः

दति सोम द्राजाधिराज्ञपरमेश्वरमैदिकमागपरवत्तक- qa TCR AAT AAT AT TAT AT ATT [९ [ब्‌ [च a ~ भगवक्षायणाचार्येण विरचिते माधवोये वेदाथप्रकाशनामभाय रत्यन्राद्मणस्य टतोयपञ्धिकायाः प्रथमोऽध्यायः

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अध हितीयाध्यायः॥:

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ॐ» देवविशः कल्पयितव्या दत्याशन्कन्दग्छन्दसि प्रतिष्ठाप्य fafa शोंसावो नि्याद्वयते ' प्रातस्छवनें नाच्च, शंसा मोदेवेा मित्यध्वयुः प्रतिर्खाति पथाचरण' तदष्टाचरं सम्पद्यते SETA वै गायती गायनो मेव तल्यरस्तात्मातदख्वने soar सुकं ना चौल्याद शस्त्वा चतुरखरं मो HAUNT TAA शतुरच्र' तदष्टाच्षरं सम्मदाते ‘seract वै गायनी गायनो मेव तद्भयतः waa stare naif भोंसावो faareaa मध्यन्दिने WSACT | शंसा मोदैवो भित्यध्वयुः प्रतिख्णाति पञ्चारेण तदेकादशाचरं सम्पद्यत एकादभाचचरा वै ford जिष्टभ मेव तत्पुरस्ताग्मध्यन्दिनै ऽचीक्रपता सुकं | वाचीन्द्रायेत्य्‌ शस्त्वा सप्ताचर मो मुक्थथा दलयधवर्य्चतुरच्चरं ` तदेकादशाचरं सम्पद्यत ' एका- enrect & विष्टु Faure मेव तदुभयतो सष्यन्दिने

४२ Tataarwea

savant मध्व्यो शोभींसावो मिल्याद्नयत टतीय- सवने सप्रातच्तरेण शंसा मोदेवो fare: भ्रति श्णाति पञ्चाक्षरेण तद्‌ हादशा्तर BAA हादशात्चरा वै जगतौ जगतौ मैव तत्मरस्ता्षतीय- सवने ऽचीक्गपता कधं बाचीन्द्राय दवेभ्य FATE श्रल्येकादशाक्चर मो भिल्यध्वयुर काक्र तद्‌ दद mat सम्पद्यते, इादशाक्तरा वै जगतौ जगतो मेव तदुभयतस्ततोयसवने SAAT तदेतदृषिः पण्य ्रभ्यनवाच यद्‌ गायने अधि गायत्र माहित चष्टुभद्ा जेष्म निरतक्त वद्ठा जगव्लगल्याहित We a एतदहिदस्त TWAS मानशुरिल्येतद तच्छन्दभ्डन्दसि nfastrata कल्य यति देवविभ्रो एवं वेद ॥१८१२)॥

एकादये ऽथ प्रडगप्रशंसां ततो वषट्‌कार मनुखुतिं at . तत्कर रामन्धलुमन्तरशं ततो fafanafata माई; श्रथा्ावप्रतिगरादथो AMAT ; AX प्रातःसवने होतुराहाव

aaat: प्रतिगरं विधत्ते -- ““देवविशः कलयित्धा इत्य

ग्ढन्दन्कन्दसि प्रतिष्ठाप्य भिति, शोँसावो मित्याद्यते प्रातस्सवने araty. शंसा मोदैवो मिलध्वयैः प्रतिग्णाति पञ्चाक्षरेण तदशाचरं ward, sere वै गायकौ गायनौ मैव तत्‌ पुर era maa ऽचोक्तपताम्‌"- इति “Safar दवान सस्व fara: प्रजा; मेन्यरूपा; ‘areata; सम्पादनोया fa

ठतौवपर्विका। २. १॥ ` ` अश

जद्मवादिन ary: | तत्कथं सम्पादनौयम्‌ ? भरति, तदु्ते--- 0 न्दो ऽन्धस्मिन्‌ छन्द्सि प्रतिष्टापनोयम्‌ ; तथा सति Safin: सम्पद्यत इति ब्रह्मवादिना मभिप्रायः। तस्मात्‌ तन्तम्पादना्े Cat प्रातस्सवने “itary” af ware wert मान्यते { सस्याय मर्थः- श्रष्व्यो ¦ “शोसावः' शेसमं कुर्वतः, "ॐ -दत्यङ्क- भ्रः, त्वया wae Steam भवति सोऽयं ज्वरो ननः | ततोऽष्वयंः “शंसा मोदेवोम्‌'-इति aerate शप्रतिग्यखाति प्रत्युत्तरं ब्रुयात्‌ तस्याय मर्यः- डे होतः ! त्वं थस, तच मोः eq Sa एवास्माक aaa cata | तदेतन्बन््रहयं मिलित्वा अष्टाक्षरं सम्पद्यते, गायनो चाष्टाक्लरा, तेम प्रातस्छवने पुरस्तात्‌ आदौ दावपि मिलित्वा wawt मेव श्रचौङ्गुपतां' कस्प्रित- वन्तौ | गस्तरादृत्तग्कालोनौ erat पटनौयौ at विधन्त “उक्थं ATS WET ATTIC, भो Way बरत्यध्ययु- aqeat aeerat wareya,—seraa वै गायत्री, गायनौ भेव तदुभयतः waa ऽचौक्पनाम्‌"-इति। होता wet पटित्वा “oa श्राचि” दति चतुरक्षरं wat ब्रूयात. मदोवा्ां वाचि उक्थं ana भिति तस्या; ततो sad: “मो सुकयश्ाः ‘fa चतुरक्षरं aat qa ॐ". इल्यद्गोकारे | ‘sayin, त्व शस््रणं॑सी भवस त्यथः तदेतश्मन्धदयं भिलित्वा अष्टाक्षरं aq यलं "उभयत. शंसनात. पुरस्तात पथाश्च ; येषं पूर्ववत्‌ मष्यन्द्िनिमवनेऽपि वदग्मन्व चतुटयं विधं -- “sqft Wart भित्याश्नयते मध्यन्दिने षकक्षरेण, dar Wea मित्य-

A Oe OEY EE 11

* 'सम्पाद्नीधा इव्यथः) वव ब्रह्मवादिन्‌ माङः" 9 | + आश्र Mo ५.८.१५; १५.२६; ९.८.।

| शेतरेयब्ाञ्नदम्‌ 1.

यैः प्रतियाति पञ्चाचरेष, तदेकादगाच्चरं सम्श्चत,-- प्रक्ा- aura पै शिट्‌, fren भेव तत्‌ पुरस्तासष्यन्दिनै sete पताम्‌ ; SHA वाचौ द्रायेव्याह यस्वा सप्ताक्षरम्‌, भो मुक्थगा गयध्वयु्तुर चर, तदेकादशाकगं सम्पश्यत,--एकादथाक्षरा वै द्विप fagu मैव तदुभयतो मध्यन्दिने ऽचौक्गुपताम्‌"-इति Gary ATTA # | | aaa मन्तचतुष्टयं विधत्त —- “maat शोर्णोसादो fauiect ठकतीयसवने anraty, शंसा मोदेवो मिव्यष्वयुः प्रनिग्यणाति पश्चाकषरण, तद्‌ rennet सम्पश्यते,-दादथात्तरा वै जगनौ, जगतौ सैव सल्पुरस्ताच्ुतोयसवने ऽचोज्ञुपताम्‌ ; saz वाचौ नराय देवेभ्य शत्या शस््ैकादशा्षरम्‌, भो मिव्यध्वयुरेका. त्रं, तद्‌ हादशाश्चरं सम्पद्यते,--ष्ादशाक्षरा वै जगती, जगतो मेवे तदुभयतस्ुतोयसवने ऽचोक्गुपताम्‌" इति “शोशोँषावोम्‌"' -इ्ति दिभावम्डान्दशः। माध्यन्दिनसवने aaa frat भेव वायुक्यं waa मिद्युक्षम्‌, श्रत fart मितरदेवायं चेति विशेषः wary wa पूववदु व्याख्येयम्‌ enna मन्धसंवादेन द़यति - “तदेतदृषिः पश्यग्नभ्यनुवाच""- ति | "तदेतद्‌" ब्राद्मणोक्तं सर्वम्‌ ऋषिः मन्द्रष्टा दिव्यच्चानेन पश्यन्‌ मन्धवाकयेनाभिलो erat क्तवान्‌ मेतं मन्त' दशं यति-- “ag गायत्रे अधि माय arfed agaret aed निर- सक्त | यहा जगव्जगल्याद्धितं पदं इत्‌ तद्‌ विदुस्त waaa Ay: ५.इति (aoe, १६४. २१.) | श॑सनालूर्वक लोमे war

चन A! eee

# आभरण गौ ५. १४.९९.१५ ; १०.२३ ९.८। भादर गरो ५,१८.४; ९.५; १८, ११३ ९.८।

ठवैत्तेयपच्विकौ oo aK

ware भयते" छन्दसि, agatarrdtrecencarerst ` यथि छन्दः 'अध्याहितं' सभ्यादित भिति ‘ae अस्ति, weet पु कालोनान्वदयामकात्‌ चैष्टभात्‌ः swears Gew भिरतस्षत' fae मिति यदस्ति, अथवा “ote आगतं छन्दः पूर्व कालोनं “जगति' सरकालीने जागते श्वस "समाहितं सम्पादितम्‌ ; इत्येतत्‌ विविधं "पदं यदस्ति, "तत्‌! we ‘ase एव waaay “विदुः जानन्ति, ते' भगुष्ठाताणे WHAM AMY, SAA प्राप्तवन्तः # अस्य न्धस्य तात्य यति--““एतषहे सच्छग्दनम्डन्द्सि प्रतिष्ठापयति?-ष्ति। यतद fata wee मुस्तरकालोने (छन्दसि ‘aq’ पूर्वकालो "छन्दः" श्रतिष्ठापयति' सवाखित fae प्रतिपादयति उक्षायवेदनं प्रध॑सति-- “कश्ययति देवविशो पव॑ वेद -इ्लि बेदिता Safin’ Saag feral: प्रजाः सैन्धरूपाः सम्पादयति ॥१॥

पति योमत्तायणाचायंविरत्विते माधवौ weriuvart रएेतरथन्राह्मणशस्य ठटतोयपल्िकायां हितीयाध्याये प्रथमः खण्डः (१२)

अध हितीयः शण्डः

(पतिर्वे ast छन्दांसि देवेभ्यो arrears व्यभजत्‌ गायनो मेवाग्नये वसुभ्यः भातश्यषने

1

© चक्‌सडितानाग्य Same व्याष्छानानि द्रश्भ्यानि ( १. १६४. १६.)

५९ TAVTATM AY &

Fait | ऽभजत्‌ faen fara रद्रेभ्यो मध्यन्दिने act विश्वेभ्यो 23 भआदिद्येभ्यस्त॒तौयसवने sare यत्‌ # असीद्‌

ख' छन्द नुष्टुप्‌ ता समुदन्त मभ्यदौषदश्छा- वाकौया मभि सैन मव्रवीदनुष्टुप्‌ त्वं न्वेव देवानां पापिष्टोऽसि। यख तेऽहं खं छन्दोऽसि यां मोदन्त

| 1 e मभ्यदीरीरच्छावाकौया मभीति तदजानात्य खं सोम AVC खे Vast मुख ममि पर्याषरदनुष्टुभं तस्मादनष्टुबयिया मुख्या युज्यते सवंषां सवनाना मग्रियो मुख्यो भवति'खेष्ठता waa एवं पेद से वै AMA ऽकल्पयत्तश्ादयच क्र यजमानवभो भवति कल्प्रत एव यज्ञोऽपि तस्यै जनतायै कल्यते ' aad faery यजमानो वभौ यजते (१२) |

भय भतुष्टभो मुख्यत्वेन wei ad माख्यायिका माद --- ‘gaufaa an छन्दांसि देवेभ्यो भागेयानि व्यभजत्‌,--सः गायत्रो Farag वसुभ्यः प्रातस्ससवने, भजत्‌ fava Tn सध्यन्दिमै, जगतीं विष्डेभ्यो देवेभ्य भदिलभ्यसतोय- सवै" -श्ति पुरा. प्रजापतिः शव जगत्‌ खषा सवन्‌भ्रयामकं ‘ag? मायत्रयादोनि ‘eife’ देवतां भागधेयानि भाग- विषरूधाणि शला व्यभजत्‌ विभक्षवान्‌ | केन प्रकारेेति, ष-- उच्यते -यन्न य॑त्‌ प्रातस्छवन्‌ मस्ति, तस्िन्‌ (गायतलौ भेव Wa मष्टवसुदेवताये विभक्ेवान्‌, माध्यन्दिनिल्वने frau

ठतौवधङ्विकः 12 भथ ˆ मिष्य भेकादथरशद्राये विभक्तवान्‌; ` -कतोयदरवि ` अततः विश्वेभ्यो tha सादित्येभ्यखच विभक्षवाम्‌। एवं carga परिशिष्ट; तस्या gare arw— “vara यत्‌ W न्द आसीदमुषटप्‌, ता सुदन्त मभ्य॒दोहदष््ावाकनेया ममि सेम AH वोदनुटुप्‌,-- तवं aa देवानां पापिष्टोऽसि यस्य तेऽ्ंखंष्टन्दो ऽस्मि, यां मोदन्त मम्युदौदोदच्छावाकौया मभौति; तदजाकतं; aq सोमः माहरत्‌, @ a Mast सुख मभि पयाष्टरदनुष्टुभं } नस्मादनुष्टवथिया # सुख्या युज्यते सर्देषां सवना नाम्‌ -इतिः। अथाग्न्यादौनां वख्वादौनां छन्दो विभागानन्तरम्‌ “wer प्रजायते; सवभूत मनुष्टुबाख्य THRE भासोत्‌, “ताम्‌ः अनुष्टुभम्‌ “उदन्त मभि awe afgarden मभिलश्य ‘oeteq’ अपसारित- वान्‌ कुव देण sta, तदुच्यते-- "अच्छावाकोया मभि" इति! अन्चछावाक ! वदस्व इत्येव मध्वर्युशोक्षो sear at qa, सेय सगच्छावाकौया; ता मभिलच्य दूकृवान्‌, भगु- eu मन्छावाकयां कतवानिल्यथः तेन कुपिता ‘a’ waeta ‘oa’ प्रजापति मन्रवोत्‌, - प्रजापते ! शं जु एवः त्व भेव wy एको देवानां मध्ये पापिष्टोऽभमि, wer writes छन्दा ऽसि | अग्निवस्वादयः पूवे छन्दोरदह्िताः, ताहयेभ्योऽपि छन्दांसि दत्तवानसि; हंतु पूव aa तदीयाम्‌, ताह मां खन्तोऽप- सार्याच्छावाकौया मभिलश्य उदृठ्वामसि भतो मदुपे्या तव पापिष्ठत्ब मित्यरुष्टुभो ऽभिप्रायः ‘ae’ सर्वं मनुष्टुभा प्रोक्ष सुपालग्भरूपं प्रजापतिर्त्रातवान्‌ wren तदुपासग्भयरि- er walt सोमयाग माषरत्‌ तु तस्मिन्‌ सोमयाग * "ग्वया' च, टौण्चं।

रट एेनरेयग्राद्मणम्‌ |

श्प Fe ured यत्‌ सुखं मस्ति, तदभिलश्य भगुषटभं qarecq, तत्र नौतवानित्य्धंः तमाद्‌" तस्मादेव कारणात्‌ दय aged 'अग्रिया' चेढा सती सर्वेषां सवनानां "मुखा' मुखे HAT UAHA AT प्रयुज्यते

एतदेदनं प्रशंसति-- “श्रग्रियो# मुख्यो भवति, भ्रेठता मभते एवं ae-afa वेदिता खकोयन्नातोनां सध्ये रभियः अग्र भवो ऽग्र; च्येदः, “मुख्यः व्यवषटारनिर्वाशकः, “eat विद्या हन्तादिगुरैः aoa’ प्राप्रोति

प्रजापतिन्यायेन यजमानस्यापि [सवनोयथागाद्‌ | श्रादावमु- ष्टपुप्रयोग॑॑दर्शयति-- खं वैस तत्‌ सोमे ऽकल्पयत्‌ ; तस्ता aq यजमानवशो भवति, कल्यत wa यच्रोऽपि'-. दति यस्मात्‌ “सः, प्रजापतिः खकार्त॑फे एव॒ सोमयाग "तर्‌! सवनेषु अनुष्टुभो सुख्यता मकल्पयत्‌, तस्मादिदानौ मपि ‘aa कापि यापी यन्नो यजमानवश्ो भवति, a यज्ञोऽपि (कल्यत एवः अवेकल्येनानुश्ास्यामोत्यभिपरत्यागुष्टमः सवनाना मादा प्रयोगे सति यज्ञस्य यजमानवशत्वम्‌, तत्र यन्नो वेकल्यरदितो भवतौत्यथः

CH वाष्याध मेव वाक्यान्तरेण खष्टोकरोति-- “ae जन- तायै कल्पते aad विदान्‌ यजमानो वश्यो यजतः- इति “वव यस्यां जनतायाम्‌ $, “एषम्‌ age महिमानं विदान्‌ यज- सानः "वभौ खवशो भूता, वस्िच्रनुष्टभः प्रयोगे सावधानो

"= = eee [क A i en ENE SEI TO rere ae Om a mw ~—

भगी a; ate qq! ^ mrad पुश्षफ़ ; अलि fay 'अवश्मम्‌'-इति। | 'शमसमायाम्‌' q |

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ठतोयपस्िका ९1 २॥ . ae

भुत्वा यजते, at अनतार्यैः AAT जनताया, # ‘qe’ a प्रयोजन समर्थो भवति २५ दति ओखोमक्ाय णाचायैविरचिते माधवौ वेदाथेप्रकाशै तेतरेयत्राद्मणस्य ठतीयपञ्चिकायां हितौीयाध्याये हितीयः खण्डः (१२)

[क यि

Sarr: खशः

Gad देवानां Harare WAITS UAATR ऽस्य दत्छोऽनष्टभाञ्यं प्रयपद्यत BA मेव तत्पयक्रामत्‌ ` = साज्यं salted प्रउगेय qaqa मलय मेव नत्पर्यक्रामत तं माध्यन्दिने पवमान ऽसौदव्योऽनु- एनम मसत्वतीयं प्रव्यप्रद्यल BY मेव तत्पयक्रामत्त apsfen aeaty नाशक्रोत्छत्त प्राणा बृहत्यः पाणानव सन्नाशक्रोद Bad तस्मान्मष्यन्दिनि होता बहतीषु म्तोवियेक्ेव प्रतिपद्यते प्राणा वं Gee: | प्राणानेव तदसि प्रतिपद्यत कतीयप्वमाने ऽसीदत्सोऽनुष्टभा बेश्वदेवं भत्यपद्यत Fa मेष तत्मर्थ॑क्रामत्‌' तं यन्नायक्लीये ऽसौदत्ष वानरे याग्निमारूतं प्र्यपद्यातं मता मेव तत्पयक्रामदहइच्मो

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"तम्या जनसभा oi

qo ेतरेयत्राश्मदम्‌

2 वैश्वानरीयं प्रतिष्ठा यश्ायन्नौयं वल््ेरोव तद्मति- ष्ठाया मृतय नुदते सर्वान्‌ प्राशान्तर्वान्‌ ATT wea wate wea होतो- aaa सर्वायुः सर्वायुल्वाय' सर्वं मायुरेति एवं वेद ( १४)॥

पुनग्पि प्रकारान्तरेणावुष्टुभो महिमानं दश्यितु माव्या- थिका माह-- “अग्नि देवानां होतासौत्‌, तं खल्युबहिष्मव- माने ऽसीदत्‌, सोऽतुष्टुभाज्य' प्रल्यपश्चत, खलु भेव तत्पयेक्रामत्‌,

माज्ये ऽसौदत्‌, प्रडगीण प्रत्यपद्यत, Ta मेव तत्पयक्रामत्‌" दति | पुरा कदाचित्‌, Sarat यागे अग्निरेव होता waza, तम्‌ अभिनि होतारं sae: ale” way प्राप्तवान्‌ कस्मिन्‌ काले? षति, agad— बहिष्यवमानाख्ये स्तोते प्रातस्छवनसम्बन्धिनि “उपास्मै गायता नरः” -द्त्यादुयगा्यणेन सामगैः PATA सति # सोऽय मनेर्मल्यप्राभिकालः। तदानौ मसिः सला परि शतम्‌ शनुष्ट्पक्न्दस्कया “प्र वो देवायाग्नये" --इत्येतथश्चा आज्य शस्तं p प्रारब्धवान्‌ | ‘ay सेनानुष्टुप्‌-प्रयोगेण माऽग्निस्त at मेव wal पर्यक्रामत्‌" अतिक्रान्तवान्‌ ततः “श्रग्न घ्रा याहि ~ दूतयादागाययरेनाश्यस्सोत # ( Se Te १. १. 8-9. ) BTA: ward सति ‘ad रग्नि मतुः ्रसोदत्‌' प्राप्तवान्‌ | तदा

mw भा० ४५३ Jo ‘ft? द्रव्यम्‌ qe त्र ७.१. So Mo १.१.१२) + गा० ४५५, Bd To FEA |

, ए्भा० BUS Fo इष्टव्यम्‌) `" तौऽभिना होत्रा same खमा सति' a

y दतीयपच्िक्ा | २।२॥ | 42

cg’ अभिः car afew “वायवा anfe” canted, दचाव्मक्तेम्‌ प्रउगशस्त्ेण # TASTE प्रत्यपवत प्रारब्धवान्‌ तत्‌ तन प्रडगप्रयोगेण तदामौ भेव ल्यु मतिक्रान्तवानू्

दयं भ्रातस्ववने ऽर्भं॑ऋल्युपरिहारजेतुतवेन प्रस्व म्य न्दिनिसवनेऽपि तया प्रशंसति - "त माध्यन्दिने पवमाभे ऽसौदत्‌ saga मरूलतोयं प्रत्यपद्यत, wy मेव तत्पर्व्रामत्‌, तं माध्यन्दिनि हरतोषु नाथक्रोत्‌ सत्तु, प्राणा वे SWS, प्राणामेव तनाशक्तोद्‌ wag, तस्माम्मध्यन्दिने होता aeay स्तो त्रिथेष्येव प्रतिपद्यते,--प्राणा & ewer, प्राणानेव तदभिप्रतिपद्यतै"-दति। प्रानस्सवमाचिराक्ततो wa: सामगैः “Sat ते जात मन्धखः*- इत्यादिके ( Fo Are १.१.८ -१०. ) माष्यन्दिनिपवमानस्तोत्रे aaa सति, afaq कान्ते ‘aq’ असि होतारम्‌ 'असोदत्‌ maa तदानीं "सः अभ्राता मव्युपरिद्धाराय अगषटुप्‌- Been “MT AT रथम्‌? -श्त्येतयव्ां (Ae ८.६८.१ „) मरत्वतीयं wat ‘nau प्रारब्धवान्‌ "तत्‌ तनानुष्टप्‌-प्रयोभेष्ण तदान भेव सत्य मतिक्रास्तवान्‌ | माध्यन्दिमिपवमानाजिगक्षलो मूतुप्रमाध्यन्दिनिमवनसञ्ब्‌ न्विनि मरत्वतोयशस्ते शस्यमाने सति, शंसितार af’ lad प्राष्डामोति विचायं ततर छहतोच्छन्दः स्कासु eq Masry § ‘aw श्रनि "सक्तु" Wie नाशक्रोत्‌ |

0 ति ee ~ ~ = =-= ~ रोज नन

+ ९--१५ To eat | + ‘warn वाव aid सवने पपच, तिनि क्रन्दामि; पश्चमभिथ सामभिः; sarateaa पवमानेन wats, apaiaa भक a aad पात्रयन्ति"-दत्यादि dle afe®. &- -८. 2 ¡ we waa yulezia aqaiiey षटं ORY Aaa |

$ शव्रिद्यमानाम्‌ः |

a एिर्याह्रकम्‌

णन -- वहतीच्छन्दक्ता हषः MUTET LF, aq तेन कारणेन प्राणानेव व्येतु” वियोजयितु मृतुनीक्रीव्‌ ( प्राणामिमनिमि्वेहतौभिः प्राणानां र्तितल्वात्‌ | हष्त्यच्च मर लतीयग्तानन्तरभाविनिष्मेवल्यग से वषयो विदन्ते ताञ्च सव- fada माध्यन्दिने सवने uqmadt निवारयन्ति यस्मादेवं avant aaa निवारयितु waa, wary माध्यन्दिन प्रयोगी Sat बदहतीच्छन्दस्कामु we स्तोजियेणेव eta शस्त्र प्रारमेत | यच्विंस्त॒चे साभगैः eta’ गौतम्‌, सोऽयं टचस्तोचियः; सेन Baa प्रारम्भं सति तचर्व्यानां इहतोनां प्राणङूपलात्‌ प्राणा- नवाभिनश्य weave क्तवान्‌ भवति |

अध॒ ठतोयसवने मृतुग्परिहारेणानुष्टुभ' प्रशंसति-- “a ठदीयपवमाने ऽसोदत्‌, सोऽनुष्टभा वैश्वदेवं प्रल्यपद्यत, Yar Ha तत्वयक्रामत्‌"--इति fag पवमान बद्िष्पवमानः प्रथमः, माध्यन्द्िनिपवमानो दितीयः, भार्भवपवमानस्तुतीयः। माध्य न्दिनिसवने wae wnat मुतु; “खादिष्टवा मदिष्टया दं - तस्मिन्‌ (So To १,१.१५.) Ware ठनोयपवमानम्तोत्र $ ढतोयसवनगते सामगैर्मीयमाने सति aq’ afer हौतारं मृतु्- रमोदत्‌। ‘ay श्रप्यम्निस्तं वारयितु मनुष्टय्‌-कन्दस्कया “तव्वितु- वैणौमर?-ष्त्येय्ौ (Ho ५, ८२. १, ) वेभ्वदेवाख्य' शस्तं §

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+ प्ररलादिष्टव दधमादिषु चतुःखर्डषु निश्वस्य नाम THA | + ददवाजुपदं{ १९ Ge ) शैवतद ष्यक्रीभविष्यति। o साद्या afesita प्रलौति ठतौग्रसवनस्य

| “साध्या वै नाम देवां आसन्‌ ०. Reedy” -इत्याट्‌ ता० Ble ८. ४, YI „$ एतैवृलराप्यामोग्रसममारटमखणछगोराजारति |

हतीयपञ्धिक्षा २।१॥ ` शश

प्रारभत; केनारष्टप-प्रयोगेख तदान मेव मुतु मतिक्राग्धवान्‌ | दथ मवुष्टप्‌ सवनश्चये शस्ता wa यज्ञायक्नीयाख्यं साम, बैष्लानरीयं सकष प्र्थसति- Ce यज्नायन्नोये ऽसौदव वैशखानरोयेखाग्निमारतं प्रत्यपद्यत, FET भेव तत्पर्यक्रामद्‌,- वो वै ेश्वानरोयं प्रतिष्टा यज्ञायन्नौयं,-- वच्वेसोवं त्तिष्टाया मतु नुदते; सर्वान्‌ वाणान्तर्वान्‌ स्यान मल्योरतिसुय BAIN, स्वस्तव शोनोग्मुच्यते सर्वायुः सर्वायुत्वाय"-द्ति। “awe यन्ना वो अम्नये''- इत्यस्या म॒चि (So to १.१.२०.) SUM साम यज्नायन्नौयम्‌# | ARTA साध्ये तव्रामक्षे स्तते साम्मर्गीयमाने सति ढतोयपवमानानि- रक्षतो मृतुः ‘aq’ अनि" होतारं प्राप्तवान्‌ | `सः अपि अरम्मिः होता मृतु्रपरि हाराय वश्वानराय एयुपाजसे" -शत्यादिना वेश्वा- नरोयेण aia अगिनिमासताख्यैः we प्रारब्धवान्‌ तेन सूक्त प्रयोगेण तदानो मेव मुतु मतिक्रान्धवान्‌ तच्च वेष्वानरसोयं सूक वस्व रूपम्‌, यज्नायन्नोयस्तों तु प्रतिष्ठायाः BARES: | तस्मान्‌ amnean ania प्रतिहाया anamadagr मनमिनिगाङुङते | ‘a? atenista: "स्वन्‌ पागान्‌' मृतुयसम्बस्िवन्धनरच्जुरूपाम्‌, तथा Hat: सम्बन्धिनः (सर्वान्‌ खाणुन्‌' का्टोपलख्ितगदाद्यायु- धानि, "सत्या. aaa “अतिमुच्य' निवायं 'स्मस्मेयवः चेमेशेत खयं खतुयमक णाद्‌ गमुक्ञोऽभरूत्‌ अग्निवस्मामुषघोऽपि होता तैनैव प्रकारेण अनुलिष्ठन्‌ मदेणाययुषा युक्षः सभेणंव मृत्योर्हम्मुच्यते

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# Fo मा० १. १. (४।

“दवा +2-- ^ तदवा वज्ायक्ौय qudteat ata &r way दति" '--श्वयादि- सा० ब्र० ८. €, 8,

| ण्तदूततराध्यायौयंषुं नवमादिषु विषुकढरषु द्रव्यम्‌ |

सोऽयं Prana.» THATS सवीदुखायः wv , Rett भभ सति-- “ad सायुरेलि et वेद'-इतिः॥ . इति. खौमस्ायशावायं विरचिते माधवीये वेदार्धप्रकाभे ` "६: शेतरेयव्राद्मशस्य दतोयपश्धिक्ायां हितीयाध्यासे : aaa: खण्डः ॥१(१४))॥

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श्रथ चतुर्थः खण्डः |

wat वे at तवा नासषौति मन्यमानः पराः परशावतो ऽगच्छत् परमा मेव परावत मगच्छदनुष्टुब बे परमा परावद्ाणा श्रनुष्टप्‌ वाचं प्रविश्या- yard ` सर्वाणि भतानि विभज्यन्वेच्छंस' पृवदु पिते sfeedut मष्दंवालश्मायर्वेदयुः fra कियत उतर महदंवान्‌ यजन्ते ते ऽब्रबन्नमभिषुणवानैव तथा षा बन भ्राशिष्ठ.मागमिष्यतौति तथेति Ase waar भा रवाः रथं यथोतये इलयेषेन माषतयच्चिदं बसौ YA Aa TRA: सुतौ माविरभवदिदध नेदौय एदिरोष्येबेनं मध्यं प्रापादयम्तागतेन्द्रेश यत्तेन aq wea राप्नोति य. एवं Ben! (ey)

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-इति।.तत्र “भा ला रथम्‌" - दति (स^ ८.६८.१.-१.) मर्त्यत्वं प्रतिपदगष्टप, at usifaq माह -- “att के wa’ इत्वा नाश्यः

वीति मन्यमानः पराः परादतो ऽगश्डत्‌ ; परमा भेव परावत

मगण्छदनुश्टव वै परमा परावद्‌ ; वाग्वा अनुष्टुप ; वां प्रवि

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प्याशयत्‌, तं सर्वाणि भूतानि finereader gaer पिते ऽविन्दज्रसर aetarerary पूर्वेदुयः fires: क्रियत, उत्तर मह देवाम्‌ यजन्ते" ष्ति। न्द्रः पुरा ठचरनामान मरं ® WHT carafe’ नादं हसितवान्‌ afer इति मन्धमानः तदौयश्यैवन माश सस्म्ाहोतः "पराः परावतः अभ्यधिका goat Cr

wat ‘a: अयं तावताप्यलन्तुरटः "परमा ay’ अभ्यधिका भेदे

परावतं द्रभमिं पुमरण्यगच्छत्‌ | afar दूभुमिभ्यो sary मधिका दूरभूमिः केति चेत्‌, a quat—‘aqeg & परमा uray’ waft दूरमूमिः ; तच्छा मरुष्ुभि प्रविश WYN द्रष्ट, मशक्यत्वात्‌ चगुहप्‌ वाकशरूपा 1 त्तः इन्द्रो वाच॑ प्रविश्य ततर चयनं लतवात्‌ ‘aay wa घरवा अतानि aay देशेषु “विभज्यान्ते श्यम्‌ wate, मेका एकस्िन्‌ थे गतः, अन्यो देशान्तर भित्येताद्श्यो विभाग care, (तम्‌ अज्ि्यम।य fax पिवते यागङोनाः gage "जदिन्दन्‌' wa-

मन्त, देवास्तु “wut मदः उत्तरस्‌ अरन्धविन्दम्‌ + यादवं .

तलच्धाल्लोकेःपि पूर्वेद्यः अमावास्यायां पिकम्बः शां निवत |

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१९ -॥ रेतरेयनराद्मषम्‌ i

‘ont ag: उत्तरस्मिश्हनि प्रतिपदिने दशपूशमासयागा- दिना डवान्‌ यजन्तं इन्द्रस्य UNRATE प्रशस्तानुष्टविति तात्पयार्धः

अय मरत्वतोयथसस्य प्रतिपच दशयति -- “ते sara घृणवामेव तधा वाव wifes मागमिष्यतौति, तथेति ; कैभ्य- qual wal रथं योतय इव्येवेन मावत्षयचिदं वसो सत मन्ध wae: सुतकौक्या माविरभवदिन्द्र नेदोय एदिष्ोयेबेनं मध्यं प्रापादयन्त" -इति। इश््रलभ्बावखिताः त' देवाः परस्पर मिद मनरुवन्‌,---.भभिषुणवामैव' ad सवेधा सोमस्याभिषवं कर- वामः, (तधा वाव' aa प्रकारेण fas aga afar aa भवति तधा नः श्रस्मान्‌ इन्द्र भ्रागमिष्यतोति। ara मङ्गोक्षत्य ‘a ad श्रभ्यषुरम्‌' अभिषवं तवन्तः | तागा तेः दषाः “राला TH मरघोतये".-दत्यनेनैव BAT ( सं०८,६८.१. ) a fax मनुष्टुभः सकागादभिषवदेशं श्रत्यावत्तयन्‌' wa किच्धिदा- रत्तिवाचकम्‌ “आ वर्तृयामसि "दूति ceed यूयते, त्लामथ्या- दिन्दरस्याहत्तिरभूत्‌ “se वसो सुन मन्धः- दति श्रन्मिन्‌ vam? (He ८.२.१. ) सुतकौच्याम्‌' भरभिपववाचिना सुत- शब्दनेभ्यो देवेभ्य इन्द्रः श्राविरभवत्‌ः wachaqi “sx भैदोय ufefe” दइतिमन्तगपेन ( सं ° ८.५३.५ ) समौ पागमन- वाचिना Hele: xfs’. इतिपददयेन “एतम्‌ इन्द्र॑ यागदेशमध्यं प्रापितवन्सः | भ्रनेनायवादेन तत्त्नन्धविधिर्त्रेयः। एतदेवाभि- प्रेल्याश्बलायम भह -- “aqadta wet शंसेदध्व्यो शोसावो मिति माध्यम्दिने warfare भाला रथं यथोतय ददं

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ठछतौयषच्चिका २1 ५॥ &ओे.

aay सुत मन्ध ति मरुत्वतोयस्य प्रतिपदमुथराविष्र fate रदिङोतोन्दरनिहवः प्रगाथः”-दति ( ५,१४.२५.) | येन att शस्तं प्रारभते, सोऽयं wa: प्रतिपदुयते ; तदनखरभावौ Watss- चरः। Wa “श्रा ला रथम्‌" -“द्दं वसो"-्त्येताहचौ प्रतिपद- waa द्रष्टव्यौ | तत ay मिन्द्रनिदहवास्यः “we tela: cfs प्रगाथः, ऋगदयामको द्रष्टव्य TTT! |

वेदनं प्रथंसति- “भ्रागतन्द्रेख aga and, Fea यशेन राघ्रोति णवं वेदति! waa eet यस्मिन्‌ यञ्ज, सोऽय मागतेन्द्रः : वेदिता arent यन्न यजते, तथेन्द्रसदितेन यज्ञन समदो भवति ४॥

दूति खौमरत्ायणाचार्यविरचिपि माधवोये teria:

रतरेथब्राह्मणस्य ठकतोयपश्धिकायां शिलोयाध्याये चतुः खण्डः (१५)

8. 8,

i| अध पञ्चमः खण्डः |

wz iad जच्रिवांसन्रास्टतेति मन्यमानाः सर्वा देवता अजद्ृस्त' मसत एव Aaa नालः राणा वे wea: सरापरयः wat Baa तं नाकदुस्त- Wea saa: स्वापिमान्‌ प्रगाधः Wan मा शापे स्वापिभिरिलिपि aay मेवात छन्दः श्यतेः

९८ Qataarerey

ae सते मरेत्वतोयं भवत्येष चेदच्युतः खापिमान्‌ मगायः श्त भ्रा खाप खापिभिरिति॥ (१६)

gate मिन्द्र नेदोय senfea ome शंसितु माख्यायिका are “द्रः वे at जध्चिवांसं नास्सुतेति मन्यमाना; सर्वा देवना WAS मरत .एव खापयो Age: ;-- प्राणा वै wea: स्वापयः, प्राया Baal तं नाजष्टुस्‌ ; AMET cea: खापिमान्‌ प्रगाथः wera wae खापिभिरिति"-इ्ति। इन्द्रो यदा aa इतवान्‌#, तदा मिन्द्रं सवा देवताः “Marg? परित्यक्रवन्द्यः कौदश्यो देवताः ? ‘anata’ दहिंमिनवानिन्र दति मन्ध- मानाः। कषरस्यातिप्रौटृशरोरत्वात्‌ प्रहारमात्रेणासौ भृत दूति दैवतानां afer: | दतरदैवताभिः परित्यक्त `तम्‌" इन्दर रुत एव ae प्ररिव्यक्तवन्तः ¦ तिरेषणं cara: दृति, सषु्तिकाैऽपि वत्त॑माना इत्यः afar: waa प्रदेश्यल-- प्राणा वें Seas वन्तमानाः प्राणा एव “खापयौ मरुतः सखापकानानुवत्तिनो वायवः प्राणानां तन्कानानुत्रत्ति माघवेरिकाः प्रय्ोत्तराभ्या मामनम्ति--"भगवत्रेतस्मिन्‌ पुरुषे कानि स्वपन्ति? कान्धस्िन्‌ जाग्रति ?-दइति (Wo उप ४.९. ) प्रश्रः। "प्राणागननय एवैतस्मिन्‌ पुरे जाग्रति-द्रनि (We उप० ४.३२. ) उत्तरम्‌ एषेविधा यस्मात्‌ प्राणर्प्रा मरुत एवन मिन्द्रं तदानीं परि्यक्ञवन्सः "तस्मात्‌" कारणात्‌ "एषः “द्र नदोयः'-श्त्यादिकः (ae ८,५३.५.) 'खापिमान्‌ प्रगाधः' Wen agave सर्वथाप्यपरित्यक्षः शस्यते | खापि-गब्दो

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# Canaria यदवर्णं nafs faye २.५.२।

ec ।२।५। श्ल

aferq प्रमाधेऽस्ति, सोऽयं स्वापिमान ;--'“ा खपे खापिभिः- saa पादो ऽस्मिन्‌ प्रगाये भ्राग्नायते, तस्मादयं स्ञापिमान्‌

बूर fazfaearel प्रगायं प्रशस्य पुनरपि प्रकारान्तरेश्च भेव प्रशंमति-- “nf were मेवात ay छन्दः शस्यते, तच्च ad मम्त्वतीयं wade चेदच्युतः स्वापिमान्‌ प्रगाथः शस्यत ST खापे खापिभिरितिः" इति) अपि इः श्रपि अतः एतत्‌ प्रगाथशंषनादूद् मस्िश्नरुलतोयशस्ते “AI मेव छन्द.” बन्दर waar छन्दः-शब्टोप्रलस्ितो मनवः wea, (तह सवः तदपि wand मरूत्वतीयं शस्तं भवति | एष चेदित्यादिना aw afer waa “or खाप खापिभिः" इतिपादौपेनव्वेन 'खापिमान्‌ एष प्रगाथः waaay श्रपरित्यक्ञेत्‌, तदा मरत तौयं भवति ; a परिभब्दवाब्यानां मरतां प्रतिपादकलत्वादिव्य्थंः सोऽयं प्रगाथः TAIT CVT ५॥

efa योमश्षायणाचार्यविरचितं माधवीये Ferrara

एलरयन्राह्मणस्य ठतोगपञ्चिकायां featanara aaa: स्वण्डः; ५( ee)

(१ 3 7

* yaa मापि प्रगाथः Brad कथित्‌ wna gates yaa sta त्रामरद्दिश्ार्त्‌- saan दग्नि, तथा सुद्धितव NAME ; परं मष कलभाखौयोऽपि वम वान्कल. mata. waca शाकनर्मदिताव्याखानि Serre यायातं तत्राशखिल्य ates मतग.सायशाकाव ; AUARTGTA शकानतर रन्द्र

0 fata

अध षष्ठ; खण्डः |

ब्राह्मणस्य ware थं सति see तिपुरोहिता a देवा ' waaay लोकं व्यस्धिंज्ञोके ऽजयन्त adda बडस्पतिपुरोहित एव जयति खगे aa afaara जयते ती वा एतौ प्रगाधा- वस्तुत सन्ती पुनरादायं wea तदादर्यत्र किञ्चनास्त॒तं सत्पनरादायं शसते ऽथ कस्मादेती प्रगाथावस्तुतौ सन्ती पुनगादायं waa इति पवमानोकथं A एतद्यम्मरत्वतोयं ' षटसु वा अव गायतौषु सुवते षटसु बहती तिखषु faery’ सः बा एष चिच्छन्दाः Wye माध्यन्दिनिः पवमान- WIE: कथं एष चिच्छन्दाः प्र्चदशो माध्यन्दिनः प्रवमानो ऽनुशस्तो भवतौति ये एव maa उत्तर प्रतिपदो यो गायनो ऽनुचरस्ताभिरेवास्य गायचो- SAMA भवन्ताताभ्या Fate प्रगाधाभ्यां बृहलयो SANE भवन्ति तासु वा एतासु बृहतीषुं साममा रौरवयौधाजयाभ्यां पुनरादायं सतुवते ' तस्मादेतौ भगाधावस्तुतौ सन्तौ ' पुनरादायं Tea ` तच्छस््ग स्तो मन्वेति ये एव जिष्टुभौ धाय्ये यत्‌ Fed निविद्ानं ताभिरेवाश्य faedt ऽनुशस्ता wars

दतोयपशिका २। én oe

मु हास्यैष fewer पञ्चदशो माध्यन्दिनिः पवमानो ऽनुशस्तो भवति एवं वेद ( १७)

~

अथास्मिकमसत्वतीये wa “oat ब्रह्मणस्यम्तिः'- इत्यादिकं प्रगायं ( Ho १,४०.५. ) विधत्त -- "ब्राह्मणस्य प्रगाधं शंसति" -ष्ति दयोक्चोः समूहः प्रगाथः | तथा बाखलायन WE “ga: प्रतिपदनुचरा gar, प्रगाधाः”-द्ति (4, ¢8.9,) | Wawa Rarysraary ठचरूपेण VAT, तस्मादयं प्रगाय TATA #

विहितं aaa प्रगंसति-- “श्रहृस्मतिपुरोहिता वै देवा अजग्रखरमः लोकं afaik ऽजग्रन्त, त्ेदेतखजमानो छ्- स्मतिपुगोहित एव जयति खगंलोकं व्यस्मिक्ञाके जयत" -दइति। asa una ब्रद्मणस्यतिराम्नातः, सोऽयं वहस्यतिः; नश्य व्राद्रणजातिष्ाभित्रात्‌ सच agafa: पुरोहितो येषां देवानां ते शछदस्यतिपुरो हिताः" | तधा गुत्यन्तरे समामातम्‌-- 'छडह- स्यतिरदेवानां पुरोहित श्रासोल-दइति। पौरोहित्यसि्र्ं मेव चतु सगतिरात्रनामकं सश्र मम्बतिष्ठत्‌। तदपि gaat एवा- म्रातम्‌-- 'छर्खतिरकामयत wat दैवा दघोरन्‌ गच्छेयं पुरोधा fafa, एनं aqfanfacia aaa” इति (ae Hoo, ४.१. १.)\! तादृशा awafagefeat देवा waa प्रमायेन सर्ग लोगं जित्वा भूनोकैऽपि विजयं प्रामाः। तथैव तत्पारेनेदानौन्तनोऽपि यजमानो ह्स्मतिपुरोहित एवः इभ- स्मत्यनुग्रष्गुक्त एव सन्‌ लोकदयं जयति |

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9 सा० Ho भाग Yo W--35 Yo Ze t “pafeanha ar ददस्पतिपृरीहिताः ^ -इति wee ate पद. ८, १. RE!

भ्‌ ez | रैतरेयत्राद्मशम्‌

wa fafeste सुद्ावयति-- “at वा एतौ प्रमाधावसुती सन्तौ पुमरादायं wat; aergaa किश्चनासुतं खद्‌ पुनरादायं WHE, ST MASA प्रगाधाक्सतुती सन्तौ पनराद्ायं Was ? xfa”-afa caret दइं एव ऋची प्रथमम ठचरूपतया सम्प- देते प्रगरथनप्रकार उअत--पर नुनं ब्रह्मणण्धतिः"-इतयेषा हतौ - च्छन्दत्का ; इादशाक्षरेण ' तमोयपादेना्ट्रवान्यैयुक्षतया वट्‌- विंशदच्तरसम्प्तेः | मेय सक्‌ सक्लत्‌ पठनौया, पुनरपि तत्रत्य म्टाक्षरं चतुव्पादं दिराम्नाय पोष करोऽदश्चः सभ्मादनौयः | उश्वरस्या सचि प्रथमपादो दादशात्तरः, दितीयपादोऽाक्षरः ; एतत्‌ सवं भिलिला feat बहती सम्पद्यते | aaa मन्तिम werat पादं हिरभ्यस्य समासराते Say दादटशाक्तरं प्रथमपाद म्टाक्षर सुत्तरपादं पठिला तृतोया swat सम्परादनौया भय भेव प्रग्रथनप्रकारः “इन्द्र नैदोय एदिषि-दत्यश्रापि प्रगाधे ( ६८ Wo ) यौज्ञनौयः तावेतौ प्रगाधौ पुनरादाय" ya:-ga; प्रठित भेव पाद्‌ मादाय MAA aT माध्यन्दिनिपवमाने प्रमा थातैतावसुती # ।` तेरस्तुतयोः शोषा शसम मयुक्तम्‌ ; WATT क्षचिदपि सामगेरलुतं मन्वजातं पुनः-पुनगादायं near ट्टम्‌ wt सति कस्मात्वारणणादसतुतयोरत शंसन fafa चोद्य wafer wry: |

Uaala Rae परिष।र AAMT चोद्यान्तर मुन्ावयति “पवमानोकूथं वा एतद्यक्मर्त्वतोयं षटसु वा Ga ARTY सवते, षटु aunty, fag विषटपृश, वा एष जिच्छन्दाः, पञ्चदशो माच्यन्दिभिः पवमामस्तदाुः कथं एष faa: पश्चदणो

tee न, wor bad = er ee tet यिे we ee

© ` साकेत, > Wet AL

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दतीयपश्चिका २१।९॥ a

arafer: पवमानो ऽनुशस्तो भवलोति"-१ति भङत्वतौयकं यदस्ति, तत्‌ “एतत्‌ "प्वमानोकर्थं माभ्यण्दिनिववमामसग्यज्ति अस्म्‌ "अतर" माध्वन्दिनिपवमानसतरे “Set ते जातम्‌”-

fey ‘aay गायनोषु प्रथमं रुवते% ततः “पुनानः सोम - इत्यः दिषु “षटसु away सुवते यद्यप्ययं दुपचामकः परमाः

तथापि पूर्वोक्न्धायेन प्रग्रथ्य (02d ute) तिखो Swe सम्बरा दनयाः arg रोरवसाम प्रारोहातग्यम्‌, लत उपरि योधां साम गातव्यम्‌ ; एषं सति fret awa area हिरवे

मानाः षट सम्पद्यन्ते तथा "प्रतु द्रव" इत्यादिषु ( Fo भा. १.१.१०.१--३. ) "त्रिषु faze सुवते F | एषं सति a oT

= 1 « wo [क 9 ead

s-dqarat उच्चा जानम्‌ -नि, 'स ननाद दति, "एना विश्वानि"-द्रति, कवधाण सम्‌ मकं टर सूक MTA बति (उर We ५. १.८. १६..३ yr am maaan स्तुत्वा" safe ब्राह्मणणशासुनात्‌ (त्‌(~ alte ७.३.११ ) भग्रिरोमौयमाध् न्तनिपथसाननिष्पततय cad’ नान सान माल्य" Wald Aq TEGST दगामप्रयोमादिदकनाचात्रर AA, प्रकाशित तन्या साममेयरे। ततमः दबम्मम an मायित्य ‘fava win -इन्यादिद्ाद्मणय्ासभात्‌ (ato Ble ७.९.१९.) तदे मैय omega नाम ATR गातव्य मवति nea ऊहगामयन्यस्वादिम सान्‌) चट्दिव्यं साग्रवासह)तरवमामद् {चराद्य aaa V4 WA षट्‌ TTA |

+ आनि eretarat "पुनान. मीम, ‘awry सचर्दिन्यम्‌- इति, Waa a UHR (BoM TUE UT YE AN rea seat aire '-एत्यादित्राह्मण आसनात्‌ (तात्रा ७.३ १४.) अप्रटोमौयनाष्यद्दिनिपममामनिष्य सपे ‘cre’ साम गातव्य मवति! ययते तद्इनाने (१.१. २.१। a मेव urd पूत माथि "तथापि स्वदिधनम द्या दराद्मणजाखनात्‌ (ता० ब्रा 9. &. १९ ) तदथं भेष ‘atatera नाम OTA गातव्यः भवति AST BAT OA तत उत्तरम्‌ (Ho गा० १.१. १.)।

t भरौशमनानति Aas) aT pret drurnurame भेव (ae ato १.१. we) I gta MARy WHA WAS च्‌ ACHR ब्रह्मवत्‌ (9. a. eg.)

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oF रेतरेयत्राह्मणम्‌

माध्यन्दििपवमानः “Preven भवति # ; गायत्रो हकृती -चिश्ट- AAU श्रयाणां छन्दसां सद्धावात्‌ | तथा पवमानः vaen. MAI: | तस्य स्तोमस्य प्रकारः कम्दोगब्राद्मणे एव माना- यते -- “पञ्चभ्यो शिष्करोति, सं faafic एकया एकया, पश्चभ्यो हिष्करोति सणएकया तिमिः एकया, पञ्चभ्यो हिद्ध- रोतिम एकया एकया तिष्टभिः- दति (ताण््रा०२.४.१.) | रस्याय सर्थः--तुचाकक मेकं ga चिरावत्तनोयम्‌। तव प्रथमा- वन्तौ प्रथमाया ऋचस्तिरभ्यासो विधेयः, featorad मध्य- मायाः, तृतोयाहत्तौ चरमायाः। एवं प्रतिसाम साहरत्ताभिः पश्चद शभिः ऋभ्भिरुपेतलरात्पश्चदशस्तोम इति | एवं सत्यत्र चोद्य- वादिन श्रादुः,-- होतः ! ते "एषः यथोौक्तलक्षणः "पवमानः' कथं मरुत्नोयशलेशानुशस्तो भवति ? waded चान्ाय्यम्‌ ; “यधा वाव स्तोत्र मेवं भस्वम्‌"--इतिन्यायात्‌ अतो ऽर स्तोत्र श्स्रयोवेलंत्तणय aga मिति चोद्यान्तरम्‌ |

aa दितौयस्य trae तावदुच्चरं euafa—“] एव गायत्रा उत्तरे प्रतिपदो यो गायत्रो ऽनुचरस्ताभिरेवास्य गाव्र्रोऽमुशस्त। भवन्तानाम्या मेवास्य प्रगाधाभ्यां वहव्योऽनुथस्ता भवन्ति-इति | “Sat रथम्‌" -दत्यस्िग्मरत्वतोयशस्तस्य ( ६५ ge ) प्रतिपद्रूपे aa प्रथमा कगनुष्टबेव, ‘oat प्रतिपद्रूपे दे ऋचौ मायत्रमी विदधाते ; यश्चान्धः “ae वसो सुत मन्धः"- इति ( ६६ Yo ) श्रनु- चवरास्यस्त॒चो गायत्रः ; (ताभिरेव पञ्चभिगीयत्रीभिः we’ होतु

1 * 9 नजकम = कज oe Tee re , [क 7 1 8, 7, eee = Wham etter ~ ~~~ ^~

माध्यन्दिमं मवम पुएषे विभि कम्दोभिः cafes raf: षति ate are ७.३.२। गायकोविदनवुइतौभिन्डन्दोभिः, मायतामहौयवरोरबयाधाजधर प्रनयं सामः भिस्विभ्‌ः।

ठतोयपद्िका। २) ६॥ o%

पकमानस्तोवगता .गायत्रते ऽनुशस्ता.भवण्ति। | “LR नेदीयः" afa (६६ Ue) योऽय मिन्द्रनिहवः प्रगाथः; यञ्च प्र नमे ब्रह्मणः

स्पतिः? -दति (७१ Go) ब्राह्मणस्यत्यः प्रगाथः, "एताभ्याम्‌ खत राभ्यां # TARTAR AAT: “SEA TITRA भवन्ति : प्रग्रथ- नन दडतीसम्मादनस्योभयतर समानत्वात्‌ यत्‌ PENT aga तद्परि्टादभिधास्यत (१७ de ) I

अथ प्रसङ्गात्‌ प्रथमचोद्यस्यापि (OAT (4 ) परिष्टारं दशयन्‌ पुनःपुनरादानस्यानुशंसनं दशयति-- “arg वा एतासु weary aaa रौरव्यीधाजयाभ्यं प॒नदादायं स्तुवत तस्मादेतौ प्रमाधा- वस्ततौ सन्तौ पुनरादाय weed, AAT aa मन्बेति दूति | पुनानः सोभ” -दत्यस्मिन्‌ Waa या eee: प्रग्रथनन मम्बादिताः, "तासु" एताम्‌ FEA सैरवाख्येन सौधाजयास्येन साम्ना ya: -ya: पठित मेव पाद बादायादाग्र सुवते ; तस्मत्‌ एवौ इन्द्रनिहव-त्राह्मणम्प्त्यप्रगायो सामभैरसलतावपि सम्पौ état पुनः पुनः पटिन मव पाद मादायादाय शस्यत | तथाच aay नोता स्वकीयेन way स्तोत्र ममुगच्छति set विष्टभा मनुगंसन zaafa— “a एव॒ विष्टुभौ

धाय्ये, यत्‌ age निविरानं, ताभिरेवास्य त्रिष्टभोऽमुगस्ता भवन्ति efa | यथा सासिधेनोषु ` प्रसिप्यसाणाना wat wrafa सञ्न्ना ४, एव मतापि | तथा मनि “afiadat भग इव कितो नाम" इत्यका (He ३,२०.४.) धाय्या “त्वं सोम क्रतुभिः -Ta- परा ( सं १.८.१.२. ), एव जिष्टपडन्दस्के धाय्ये विद्यते, यचच तिष्टुपद्न्दस्कं “जनिहा उग्र -दत्यादिकं (We १०.७१.९६. ,

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# भाग्यः च) ° प्प्रससकोोयानेा त्‌, ! 2) भाग Bate +^)

| रेतरेयनरा््म्‌

fafautd सूक्ठम्‌,--निवित्यदानि धौयन्ते नि्चिष्यन्ते यसिन्‌ qm तत्‌ निविरानम्‌ ; (ताभिरेव सूक्षगताभिधाव्यासदहिताभिः सिष्टग्मिः "भस्त होतुः Arana: बरिषटुभः ware भवन्ति

emuded प्रणंसति-- “खव मु हास्येष विच्छम्दाः पञ्च इभो माध्यन्दिनिः पवमानो sare भवसि एषं वेद - बति ॥९॥.

दूति ओौमसायणाचार्थविरचिते माधवोये वेदाथेप्रकाशे रैतरेयप्राह्मणस्य ठतौोयपञ्चिकायां दितीयाध्यायं षष्ठः खण्डः ( १७ )

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#॥ अथ सप्रमः खण्डः |

धाय्याः शंसति! धाय्याभिव प्रजाप्रतिरिमा- स्ोकानधयद्य यं काम मकामयत तथे3तयजमानो धाय्याभिरेमांन्नोकान्‌ धयति यं यं कामं कामयते एवं वेद्‌ यदेव धाय्याः यज यज वे देवा! ATA “fed निरजानंस्तद्‌ धाव्याभिरपिदधुस्तद्‌ धाय्यानां nama मच्छिद्रेस शख यन्नेनेष्ट' भवति य॒ एवं वेद ' यदैव धाय्याः स्युमहे AAA ATA AT सृच्या वासः सन्दधदिवादेव मेवेताभिवन्नख faz सन्दधदेति एवं वद्‌ यदेवं धाय्यारः तान्दु वा

ठसौयपञ्चिको | २.। 9 oo

एतान्यपसदा मेबोकथएनि यद्‌ धाय्या Whyte

ल्यार्नेवौ भयमोपमत्तस्या vagal लवं सोमकृतुभि- रिति सौम्या दितीयोपसन्तस्था एतदु कधं पिन्वन्त्यप दूति वैष्णवी दतीयोपसत्तस्या waged यावन्त 3 सौम्येनाध्वरेष्टरा लोकं जयति'त मत एके कयोप सदा जयति एवं ae यश्चैवं विदान्‌ धाय्याः safe aga आहस्तान्वो मह इति शंसेदेतां वाव वयं uray शस्यमाना मभिव्यजानौम इति वदन्त सन्त्तादलयं' यदेतां शं सेशौष्वरः पजंन्यो sat: * पिन्वन्यप zea शंसेद feata पदं मरूत इति मारत मद्यं fas fa नयन्तीति विनौतवद्यदिनोतवन्तदि

कान्तवददिकान्तवन्तदष्णवं वाजिन मितोन्द्रौ 4 वाज्ञी' तस्यां वा एतस्यां चत्वारि पदानि afeata med बैषाव Gee AT AT एषा ठकतौवसवनभाजनां aa मध्यन्दिनि शस्यते THIS ATATAT पशवः सायज्ोष्ठा; wat मध्यन्दिने cafe मायन्ति सो जगतो जागता fe wT आत्मा यजमानख AS न्दिनिसयजमामे पशन्‌ दधाति Wo (१८)

मरुखतोयशस्ते प्रेपणौया ऋचो विधत्त-- “area शरंसति

stb See en ee! an ee en on Re ऊक की ००

cael: कं, ख,

७८ एतरेयन्राह्मशम्‌

afa) “अमिर्नेता" -इव्येका (सं०२.२०.४.); “a सोम क्रतुभिः" दूति हितौया (मं०१.९१.२.), पिन्वन््पः'"- दति ढतोया (de

१,६४.६.) ; ताः WAZ

तासां प्रथंसा are— “arenfaa प्रजापतिरिमांघ्लोकान- gag य॑ यं काम मकामयत".दइति पुरा प्रजापतिं यं लोकं कामितवान्‌, तानिमान्‌ लोकानुक्ताभिधोव्यामिः श्रधयत्‌ भ्रपि- वत्‌ नलोकशब्देन जलम्‌| ee

वेदन प्रशंसति - “धैतरैतद्यजमानो धाय्याभिरेवेमांक्षोकान्‌ धयति ag ara’ क।मयतेय एवं वेद यदेव धाय्याः '-दति। या एवोक्ता wren: सन्ति, ताभिर्वेदिता यजमानः कामितं लोकं धयति | अत्र धयव्याभिरिति "धाव्या'-शब्दनिर्वचन म्थाहगितम्‌

प्रकारान्तरेण प्रशंसा are -- “यत्र यत्र वै देवा awe च्छिद्र निरजानंस्तद्ाय्याभिरपिदघुस्तदाय्यानां waren” इति! यन्नः सम्बन्धिनि यस्िन्‌-यस्िव्ङ्ग ‘fad वैकल्यं देवा नि न्ना तवन्तः. av fax धाय्याभिः (पिदधुः भ्राच्छादितवन्तः तस्ाधः व्याभिरिति arent धाय्यालं WHAT

वेदनं प्रणंसति -- “अच्छिद्रेण हास्य यन्नेनेष्टं भवति एवं वेद्‌ ata धाय्याः” इति "यदेवः इत्यत्र योऽय मुकारः, सोऽयं पूरेण फलेन समुचग्रा्धः ;-- केवलं पूष फलः fa fae मपौ a: a पूववत्‌ श्रतिः प्रशंसाद्योतनाया

पुनरपि प्रकारान्तरेण प्रथं सति-“स्यमङ AAAS यद्या स्तदाधा सूचा वासः सन्दधदियादेव मेवैतामि awa च्छिद्र मन्दधंदेति र्वं. ae यदेव धाय्यारेः” इति |

पुनरपि प्रकारान्तरेण प्र्सति--- “ary गा एतान्युपसदा

eataafgat २।७॥

मेवोकधानि aera: ; भ्रमिर्नेतेत्यामेयो प्रथमोपसत्‌, वस्या एतदुक्थं ; a सोमक्रतुभिरिति, सौम्या दितौयोपस्‌, तस्या एतदुकयं ; faa दरति, वैष्णवो ठतीयोपसत्‌, तस्या एतदुक्धम्‌'"- इति उपसदा सर्वादे भनिरनोकं, सोमः we, विष्णुस्तेजन भिति प्रस्तु श्ग्न्यादिदेवलाकास्तिसरत उपसदः समल््राताः ; अतापि ्रमिर्नेताः-दव्यादयस्तहेवताका wa धाय्या; TA | THAT धाय्या एकंकास्य उपसदः NAA |

उक्चार्थवेदनं, तत्पूर्वकं शंसनं प्रशंसति-- “arate वै सौभ्येनाष्वरेणद्रा लोकं जयति, मत एकंकयोपसदा जयति,--य wa वेद्‌, wad विदान्‌ धाय्याः शंसति" -इनि। afer शंसिता एकंकधाय्यारूपयो पसदा ace सोमयागफलं प्राप्रोति उप. सक्म्बन्धिशखत्वेनाभिहितलादुपमच्वीपचारः |

अत कच्चित्‌ पूठ्पत्त मुपन्यस्यति -- “ata wear मह इति शंसेदेतां वाव वयं भरतेषु शस्यमाना मभिग्यजानौम इति वदन्तः" -द्ति ! ‘ax ada ढतोयघाय्याविषय afaea are: Carat wel मरुतः —saat ( do 2, १४. ११.) वैष्णवीं aatat wai ग॑मेत्‌. तु “fora,” waaay (ऽप Do ) 1 aatufa चैव are:,—fanfa फन fafa भगे यन्नः, त॑ भर तन्वन्रोति भरताः" कलिजः; नेषु पूवकानोमेषु “नान्यौ महः". tam Fax गस्यमानां वय समभिव्यजानोम दति खानुभव मितरेषा मपरे वदन्तस्त' पूवप ATE:

a निराचष्ट -- ““तत्तत्राटत्यम्‌-दति तद्विषयं aad नादरणौयम्‌ | fart बाधकं दशयति-- “यदेतं असेदोष्डरः

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# Blo १८० २, ४पण FEMA |

Ge | Ratanrwea. 4.

रजन्यो saet:?-efa ray यदि होता . “Carat मदः" -इनि carey ऋचं शंसत्‌, eT "पजैन्यः' मेषः खखकालेषु “वषट ईश्वर." ठटिराहित्य' कतुं समर्थो भवति,- afer भवेत्‌ ; दष

नुरूपाखां . पदानां तस्या ख्यभावादिव्यवेः .

सिद्ाम्त' दथ॑यति-- “पिन्बन्यप cara शंसेद्‌” -दूति इक" मेव धाय्या, तु "तान्वो महः?-इत्यादिकापि ! भत्र विहिताया afy दच्चनुक्लप्रदसद्वावं दर्भयति-- “afeafa पदं, मरत इति मारुतम्‌, war मिहे वि नयन्तौति विनोतवद्‌+- यहिनोतवत्‌, तदिक्रान्तवदृ,--यदिक्राग्तवत्‌, तद्वैष्णवं, वाजिन rater वे वाजी : तस्यां वा एतस्यां wate cerfa,—afeeia, मारतं

रेष्णवम्‌, रेन्द्रम्‌” इति , wat “पिन्वन्त्वपः'--इति पदं yaa

तत्‌ मेचनार्थम्‌ ; “पिवि सेचने-ष्त्यस््ात्‌ (्वा०५८८) घातोरुत T लात्‌ "मरतः शति मारतं पटम्‌, तदपि दध्यनुकूलम्‌ ¦ परोवातस्य sara) “aaa fae वि नयन्ति वाजि म्‌ _efaaatam? विगीतवत्यद मस्ति; ‘fa नयन्ति sary मयतिधातुजन्धत्वात्‌ | मेन faaga दष्टिपातनं wea | - किञ्च यदिनौतवत्पदम्‌, तदिक्रान्तददिव्यम wa माचष्टे; धातुना मनेकार्थत्वात्‌। तथा सति यदिक्रान्तवत्पदम्‌, तद्‌ विष्णवं विष्णुमम्बसि ; “ददं विष्णुर्विचक्रमे" दति ( सं १. २२. १७. ) ART | तथा. सति वैशव्यासतृतोय स्या उपसदः सम्बन्धन सपि मवती्य्धः। तस्िब्रेव दतौयपादे "वाजिनम्‌"-दइति

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& तरषेसोमुनि कपम्‌ ( Gre Que ) नपिन्बन्तापो सवतः gare, पथो wane भिदधेषासुवः भ्यः fire वि भषन्ति भाजिन मुस दुहन्ति erry मितम्‌ "दति (de १,६४.६. ) veer ऋचि,

ढतीवपश्धिका | २।७॥ ee

षरे, विद्यते, wae वाजिशब्दार्थः ; हरिङाराजप्रदत्वेम वाजोऽश् aferenfa निवहं गष्यत्वात्‌। उक्तेन प्रकारण were पै- fara “frre.” —cafa चलारि पदानि ठटेरसङलानि, —afzafa, मारतं, वैष्णवम्‌, te वेति तस्मादब qate- “ate नास्तौव्यर्थः पनरप्येता wed प्रकारान्तरेण प्रगंसति- “ar वा एषा ढतोयसवमभाजना सतौ .मध्यन्दिमे शस्यत ; cared भरतानां पशवः सायकाः सन्तो मध्यन्दिने सङ्गविनो मायन्ति; at जगतो ; जागता fe ana, भाता यजमानख मध्यण्दिनिस्तद्यज- माने पशून्‌ दँधाति?-दति et “पिन्बन्यपः"--इ्युगस्जि, सैवैव (तृतोयसवनभाजना' जगतो च्छन्दस्कत्वास्नागलस्य तृलौयसवमख् योग्या ताभी सतो War म्यन्दिजै शस्यते | तस्मादेव acer दिदं लोके दृश्य पै,-- मायं काले गोहे व्रजे ये परणवस्तिष्ठम्ति, ते वङ्गाः, भरतानाम्‌ wart पशवस्ताहणाः gait मध्य- fet शसद्गविनौ' सङ्गवकालयोग्यां शालाम्‌ (भायन्ति' arg वन्ति। श्रय मणंः-- ये पशवः क्षीरं दुहन्ति, से सायं wy माग च्छन्ति; 2 तु दुहन्ति, ते सायं व्रजे एव निवसम्ति ; उभयविप्रा मपिर Margaret घमकालोनसन्तापरजिवारशाय निर्मितां सङ्गवकालयोग्यां शाखा मागच्छम्ति ;--तदेवम्ष्याङ- पाठनिमित्त मिति.। fare ‘at सा qatar जगतौश्छ- | REST, यभव अगलौच्छन्द सा सह प्रजायन्ते, मध्यदेथादुत्यञ-

(१) ‘afeafy हरहिमम्पमजनक्षारि पिन्वनौति। (र) "मासं" मर्त इति। (९) ‘away’ विनयन्तौति (४) ‘oan’ afer निहि ११

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cy , Cetaarereg

wre जागताः, मध्यम्दिनिकाल यजमानस्य तथा सतिं afeaq काले जगतोपाठेन यजमानं पशून्‌ सम्पादयति afa Taare विरचिते माधवोये Ferien रेतरयव्राह्मणस्य ठतोयप्चिकायां दितौयाष्याये सप्तमः खण्डः 9 ( १८}

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मरुतलतीयं प्रगाय शंसति। पशवो वै मरुतः प्रणवः प्रगाथ; UNA HARRI जनिष्ठा उग्रः महसे quate as शंसति तद्वा एतद्‌ यज्ञमानजनन मेव सृकतं' यजमानं वा एतेन यन्नादे बयोन्ये Wa नयति aga मवति सं जयति वि जयत' एतङ्गीरिवीतं' गौरिवीतिरं वै शाक्तो नेदिष्ठं ate लोकख्यागच्छत्‌' स॒एतत्यक्त॒मपश्यत्‌ तेन खगं लोक मजयत्तयैवैतदयजमान एतेन सूक्तेन GT लोकं जयति' तस्याः शस्त्वार्शाः ' परिशिष्य मध्ये निषिदं दधाति ete रेष लोकस रोषो यत्निदित्‌ खगख

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डेतद्लोकखाक्रमणं यच्रिषित्‌ ता माक्रममाश शव stazaa यजमानं fragile योऽस्य प्रियः खादिति नु ख्गकामस्याथाभिचरतो यः कामयैत Tee विशं इन्या fafa faafe निविदा aa विशंसेत्‌ aa वै निविद्‌ विट्‌ सूक्तं wana तहिं इतति यः कामयेत विशा at हन्या fata faafe सक्तेन निविदं विशंसेत्‌ चं वै निविद्‌ fanaa विभेव तत चच इन्ति'य.उ कामयेतोभयत एनं विशः पयं- वच्छिनदानीद्यभयतस्तरिं निषिदं व्याद्यौतोभयत एवैनं afen: पयवक्छिनत्तोति न्वभिचरत इतरया aa स्वर्गकामस्य वयः सुपर्णा उप सैदुरिन्द्र मित्युत मया परिदधाति पियमेधा षयो नाधमानाः अप ध्वान्त मगति येन तमसा पराहतो मन्यत तन्मनसा wees हेवास्मात्तरलुप्यते पडि चक्षुरिति चस्षषौी मरीरुञ्येताजरसं aay भवति Aas वेद! सुसरष्यस्मात्निधयेव बद्ानिति प्राणा बै निधा aaa पाश्रानिव बहानिलेव तदाह ॥८(१६)

अथ प्रमायान्तरं विघत्त-- “मरलनोर्यं vary यसति; , पर्रनो 3 wae, पशवः प्रमथः, पशूना मवसुदधा"- इति यस्मिन्‌ परमाये मरतः यन्ते, सोऽयं म्ल तोयः प्रगाघ; "श्र LETT

cy एितरेयक्राद्म्थम्‌ ¥

हदते मरतो ब्रह्मार्चत -दसेतस्िन्‌ ward ( Wo ८,८९.२. ) मर्तः शूयन्ते, fad dq #। पशूनां प्रावररारहि्येऽपि अरण्यसश्चारकाले वायवो ताम्‌ वाघन्ते, तस्लम्बन्धाश्मर्तां परत्वम्‌, प्रगाचस्य पशप्रातिदेतुलात्पश्त्वम्‌ ; अतः प्रगाथः gyuter भवति wa निविरानोयं an विधच्च-""जनिा oa: सदमे तुरा- येति सुकं शंसति; तदा एतद्यज्ञमामजनन मेव सूक, यजमानं वा एतेन यज्नाद्‌ देवयोनये प्रजनयति" -ष्ति | होता “जनहा om: verte ( सं०१०.७१.१.) Ga शंसेत्‌ Atay wa यजञ- मामञनन aa कथ fafa, तद्ष्यते-- “पतेन सक्तेन हाता aay भ्रगु्टौयमानात्‌ Santa? देवलोक स्थानां यजमानं प्रजनयति | तस्माद्‌ यजमानजननलवम्‌ तैन ety प्रशस्य पुनः प्रकारान्तरेण प्रशंसति-- “aaa भवति ; सं जयति, वि जयते"-षति यस्मादेतेन aaa संयुज्यापि p way यजमानो जयति, वियुज्यापि जयतं ; तस्मात्‌ an aay | समोचोनो जयो येन सृक्गमेति समासः | पुनरपि प्रकाराकषरेख प्रशंसति -- “एतद्रोरिवीतं ; afc वीति 8 wrest नेदिष्ठ खर्गस्य णोकस्यागच्छत्‌, एतत्‌ सूक्त मपश्यत्‌ ; तेन स्वगे लोकं मजयत्‌ ; तथेषेत्यजमान एतन मुक्तेन ai लोकं जयति" -ति। शक्तिनामकसख्य महर्षः कुले जातः corm’, 'नोरिवीतिः' नाम, मशर्षिः। सतु खगसमोपं गला " प्रवेष्टं मक्षः सन्‌, तस्ाधमलेनेतत्‌ Ew दृष्टा, तम खें 5

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ome Mla awe इति TAMA: प्रगावः"-भावर Alo ५.४.१८

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waraat@enr ।-२.१ ८॥ | Ls

तस्ादेतत्‌ सूक्तं महरधिनाजा मौ रिषीत fawnt (सं०१०.०द्‌ १-११. ) | यथा महर्भिस्तथा यजमागोऽप्येतेन EN खगं प्राप्रोति a तद्िन्‌ qa निविषश्चेपस्य स्थानं विधन्तं “तखाः reat: परिष्व wa निविदं curfa’-sfa 1 ‘wer aa सम्बन्धः नोष्ठश्तु भाग्यं कत्वा, इयोभोगयोमष्ये " TAY ATA’ दूति ( निवि० २.१. ) एतां निविदं शंसत्‌ ¦ are स्मिते कादंपर्थं Ta समभागो सश्मवतोति चैत्‌, afe प्रथमभागे काञ्िदधिका शसा तत HE प्रतिपत्‌; “एकभयसोः VAN” -इत्वुक्षत्वात्‌ निविदं प्रथंसति--““खर्मस्य रेष लोकस्य रोषो यन्रिवित्‌ ~ दूति | सेहः आरीरगं, रेतरित्यर्थः तवर सररविथेषं fara Cag दतन्नोकस्याक्रमणं ufafay, ता माक्रममाण षव Te - दुपैव यजमानं fants aise प्रियः enfefa 4 स्वगक्षामस्य'-- दूति aa निविदस्ति, तदेतत्‌ 'छगेस्याक्रमण' सोपानखामोयम्‌ | तस्माद्यया लोक्षे सोपानारोहमखमेण पुनः पुनः श्वासं करोनि, तदनुकारिणं स्वरं wal तवैव पठेत्‌ र्वं पाठे सति "अस्य यजमानस्य ‘a? पुमान्‌ प्रियः स्यात्‌, FAA यजमानम्‌ ‘sta’ aula एव "निग्न्नोत' atest ति सुः एष एव प्रयोगः, खर्गकानस्यावमन्तव्यः वद्यमाणप्रयोगीण शाहं परिहाराय सखगे- arate: Il अभिचारप्रयोगं 4 विधत्त “अघाभिचरतः,- यः कामयेत

« afaer aa बति। पकमयमौः छन्त acadit fafad z ध्यात्‌ सव" -$ति

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igo The ४५.१३.१८, २० TAT TASNG कस्मा म। 7 प्ररमा ai

` एितरयक्राश्मशम्‌ |

ware विशं war भिति, तिर्हि निविदा सृकं विंसेत्‌ ; 8 fafafez सक्ष, चतरेणेव afed हन्ति" इति| कषत्रियजाला वैश्यजातिवंधं कामयमानो यजमानो निविदा यं श्रिधिंशेत्‌' wage मवति -- सूक्स्यादो मध्ये चान्ते निविदं दध्यात्‌, तदिदं सूकविच्छेदपूर्वकं% यं सन भिति निविद्‌ तरियजा निल, gare वैष्यजातिलं पूव भेवाखातम्‌ पत उक्ञ्ंसनेन क्षतियजाल्ा वैश्यजातिं इत्ति | ata भैकीऽभिचारप्रकार,

अैतदिपययेणाभिचारं विधे -- “यः कामयेत विणा aa न्धा मिति, Free मूतेन निषिदं विथेत्‌ ; शभ के भवि. fez सूत, विभव तत्‌ wat हन्तिः इति निवित्पदानाम्‌ (निवि०२.१-२०.) Wiel मध्ये अन्ते TAT पठेत्‌, तदेतत्‌ निवि दिच्छेदरुपं शंसनम्‌

प्रकारान्तरेणामिचार' विधत्त --“य कामयेतोभयत एनं विधः पर्ववच्छिनदानोत्युभयतस्सदधिं निविदं areata , एवैनं तहिशः पर्यवच्छिनतति ति उ' यतु होता “एन यज्ञमरानम्‌ (उभयतः gata: सम्बन्धिनौ; "विशः प्रजाः “पर्यवच्छिनदानि' परितो विच्छा करवाणोति कामयेत, -- स्वस्मात्‌ पूर्वभाषिन्यः पिद पिढन्यमातुलष्दयो या; प्रजाः, स्वस्या - MUNA: पुत्रजामात्रादयो याः प्रजाः, तासां सवासा Aas करषाशोत्यथः। यदा (उभयतः arava पिषटपन्ते faz. सातानां प्रजानाम्‌ “मरवच्छदं' विरोधं करषाशोत्येवं ‘|: होता यजमान af, होता (निविद भुभयतः' निविर भरादावन्ते श्च : ‘Sarwar’ fafins areté wary ;-भादावपि “sitar

NY eta मः RD HOPED AU Ree tates a hg nna nes Se [व ति ` वि

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टोपिका ।२।८॥ ` भ्ड

वोम"? -दतयेत माहावमन्व' पठेत्‌, भन्तेऽपि तथा ad feart: 1 सथा सति ‘aa यजमानं पूर्वापरभागयोमाढपक्षपिदपश्योशच प्रजाभि सष्ावच्छिनतसि | उक्षविधौना मसाद्र्याय निगमयति-- “इति ग्धमभिथरतं

इतरथा aa खर्गकामस्य'- इति | “ofa a “यः कामयेत, wae” --ष्त्यादुमक्त Ta प्रकारः अभिचरतः द्रष्टव्यः | तरथा तु' भनेव- watt तु, पूर्वोक्तः anna निषियरेपरूपं, सोपानारोह्ः सदटशखरोपैतं (खगकामस्य' दर्टव्यम्‌ tt

अन्तिमया सक्तगमतयर्चा ( सं०१०.७१.११.) समाति विधत -- “aq; सुपण उपशेदुरिद्र मिव्युत्तमया परिदधाति"-ष्ति। वतधा तोर्मत्र्ध्रस्य "वयः इति रूपम्‌; गमनकुशला Caw: | अत एव (सुपर्णः पञिसटशाः केचिद्‌ श्र" खगेषासिनम्‌ ‘sate: waa: | दति तस्य पादस्माधेः दिलोयपादं सबो- धत्वाभिप्रायेश्य पठति “प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः" दति ग्रयतदर्थावधारणशक्तिर्मेधा, at प्रिया येषा खषोणां “प्रिय- मेधाः", ऋषयः अतो द्दियायंद्र्टारः नाधमानाः" किचित्‌ wats याचमानाः, “war मुपसेदुः"- दति gaara: | कलोय- पादस्य पूर्वभाग war व्याष्टे-- “aq ध्वा मूणुष्टीति ; येम तमसा प्रातो मन्येत, AAAS गच्छरेटप Farearey सज्यते" afi डरश्न्द्र, श्वान्तं" तमः शअरपोणुहि' भपसारय। एत- चिन्‌ मागे पठिते सति तमो लुप्यते होता यन तमसा CATER’ आच्छादितोऽष् fafa मन्येत, (तत्‌ः तमो (मनसा गच्छेत्‌. ध्यायेत्‌ तमो fe बह विधम्‌,--दष्टिनिरोधक भेके, मोहरूपं दितौयम्‌, wen ढतीयम्‌ तैषां मध्ये येन श्छ बाधः,

te शितरेयब्राद्म शम्‌

q नमः एतदूभागपाठकाले fare भिति ध्यायेत्‌ तधा ततृ" तमः MAT FAITE विनश्यत्येव | तस्य पादस्योत्तरभागे किञ्चिदनष्टानं विन्ते - “gfe, चन्तरिति vet मरोखन्यतः'- बूति। इन्द्र! “वक्तुः ae दृष्टि पूरय एतं भारग पठन्‌ खन हस्तेन Taal “ACA पुनः-पुनः शोधयेत्‌

वेदनं प्रथसति-- “भा जरसं waaay भवति एवं ae” दति ! शरा जरसं जरासमागिपरयन्तम्‌

चतुर्थपाद HAT व्याचष्ट -- * ‘gqquranfauaa बहानिति वाणा वै निधा; सुमुग्धास्ान्‌ पाशादिव aarti तदाह - दूलि। इन्द्र! (निधयेव' atta तमसा "वहान्‌ भस्मन्‌ capa fig’ cite | अख्मन्‌ पादे निधा-न्देन पा्बन्धनहेतवो रवो विवचिताः। भरतो निधयेव बच्लानिः्युकते 'पाशादिव वहान्‌ - इत्युक्तं भवति

दलि ओोमत्ायणाचार्थविरचिते माधवौ वेदाथप्रकागे

रेतरयव्राह्मणस्य ठतौयपच्धिकाणां दितीयाष्याये Gre, खण्डः as (१९)

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अर्धं नवमः VW:

ee षै ठं इनिष्यंत्धवां देवता अन्रवीदनु मोपतिष्ठध्व मप areas मिति तथेति तं हनिष्यन्त

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« (निषा पाश्या wafa’’—gearte निद्र ४.१२)

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CET At वे इनिष्यन्तं आद्रवन्ति ` इन्तेमान सौषयाशतिं तानभिधाष्वसीत्‌ तख 9वसधादीर्षमाशौ ` विश्रवा श्रद्रवम्मस्तो हनं aves: प्रर भगवो जहि वीरयखेत्येवेन मेतां वाचं वदन्त उपातिष्ठन्त तदेतदषिः प्रश्यन्नभ्यनवाच, awe त्वा वसधादौ माणा fara Zar अजश्यं सखायः wafer सख्यं ते अस्वस्मा विश्वाः पतना जयासौति सो- ऽबेदिमे वे किल मे सचिवा Fa मा ऽकामयन्त इन्त मानस्िन्नकय भजा दति तानेतस्बिग्नुक्ध भजदंथ हेते aya एव निष्केवल्ये saw भासतु- | मरुत्वतीयं ग्रहं wenfa मर्त्वतोयं प्रगाथं शंसति मर्त्वतीयं am शंसति मरत्वतोयां निविदं दधाति मसतां सा भकिमसत्वतोय मकं weal मरस्त्व. तौयय यजति यधाभागं तदेवताः प्रीणाति यं स्वाहिदलय 'मघवन्नवर्न्ये at हरिवो ये गविशौ ये त्वा नन मनमदम्ति विप्राः पिबेन्द्र सोमं सगणा aafsfefa यव-यतेवैभिव्यजयत यव-यत्र वीर्यं मकरोत्‌ तदेवैतन्समनु दयन्द्रेणेनाग्त् सोममौथाने करोति.॥ < ( २० ) 7

wa मश्लतीयं wer तदन्ते पठनोयां arat च-प्रथंसितु म्‌

a0 पेतरेयन्राष् सम्‌

सुपाख्यान माह -- "श्रो हं इनिष्य॑सवो देवता भम्रवोदतु मप तिष्व सुप मा wae मिति; तथेति ; तं इनिषवन्त द्र वन्त्तोऽवेन्मां पै fer आाद्रवज्ति, watary भोषया इति ; तानभि प्राखमोत्‌; तस्य खसथादोषमाणा विश्वं देवा भ्रद्रवग्भरतो 34 are: प्रहर भगवो जदि वौरयखेत्येवन मेतां वाचं qem उपातिष्ठन्त" -इति पुराः कदाचिदिन्द्रो aa way qa: wat अपि देवता; waa aadty,— oq मोपति्ठष्वम्‌' आतु- qe at सेवध्वम्‌, उप मा wae हचवधाव wed माम्‌ ‘ST ह्यध्वम्‌' श्रनुजानीष्व fafa) ततोऽङ्गोक्ञत्य स्वं देवाः तं बत हन्तु मुद्यता ्रागच्छन्‌ तदा सः" wal मां इन्तु सुद्यना areata "अवेत्‌" खममसा न्रातवान्‌ | तत ददं विचार्या माम,-- इन्त | म्यग्‌ जातम्‌; देवनिवारणोपायय्य प्रतिभातत्वात्‌ ; cary दैवान्‌ भोषयै' we भोतान्‌ करवाणि द्रति विचायं “तान्‌ देवान्‌ 'श्रभि' ल्य neal प्रास मकरोत्‌ "तख are weary mare शवमाणाः” जिभ्यतः स्वे देवाः पला यन agi त्रो हि खलजन्मानन्तरं प्रतिदिनं सवासु fey शर- पातमाचदेशं प्राप्य हति गतवान्‌ तथा चान्यत्र युयतं--- “म दषुः मात्र सिषुमातं विष्वडवदेत, cata कानहणोदयदिमांज्ञोकाम- ब्रणोत्तद्‌ area aaa’ दति ( ते do >.४.१२.२. ; ता शय प्रीदृशरौरस प्रश्वासः; प्रलयकालोमवायुसमानः ; TART Samaria देवाः परमाणव इव दूरे श्रपसारिताः तदानीं - (मरुतः एव "एनम्‌ इन्द्रं "नाज" परित्यक्तवन्तः ETE! भगवम्‌ ! ह्रं ae प्रहरः रन प्रहार "जहि मारय,

हतो "वीरयस्व खकौयं वीरत्वं waza; (रतिः अनेनव

ठतौवपद्िकषा 1 २।.८ ९१

wate ‘aay we प्रति "एतां" ard वदन्तो . मरुतस मिन्द्र मसेबन्त } men gm wa मग््संवादेन egufa— “तदेतदृषिः away वाच,-- त्रस्य त्वा Gauretrarer fing देवा HET सखायः, मरुद्धिरिनद्र wet ते sweater Pret: एलना जब्रासोति' + इति कथिदुपिर्दि्यक्चानेन तदेतद्‌ देवपललायनः पश्यन्‌, ` उस लला". इत्यादिमन्तेष प्रकटीचकार | रे इन्द्र ! तव सखायो fae देवा ये सन्ति, ते सवं चस्य AMET प्रलायमानास््वां ICM: वन्तः | तस्मादिदानीं A तव WEE: सष्ठ स्य मसत ; "अथ भनुः म्तरनिमा, सर्वा ठजरसम्बन्धिनोः मेना Haat (सं *८.<द.७.) सथ भरता मिन्द्र्जत gant दथैयति-- “सो ऽवैदिमे 4 किल मे सचिवा इमे मा ऽकामयन्त, हन्तेमानस्मिवुक्य भा AAT दति; तागेनस्िन्गक्थ भा भजदव कते तश्चुमे एव freezer, उक्थे रातः” दति | "सः" इद्रः खमनसा “भवेत्‌' विचारितवान्‌ | कथ fafa, तद्ष्यते-- इभे षै fae’ पुरतोऽवद्छिताः मर्त एव "मे' मम "सचिवः सखायः | wera Se मरतो ममा अकामयन्त मा मपेल्ितवन्तः, तु मां ofc गताः ; तस्मादस्मस्ख्िलं दन्त सम्यगीभिः क्त fuer दरव मसि ; तत; Kary म्लः ‘oy Ferree माध्यम्दिनिसवनगतथकं “AT भागिनः at, वाणि; ‘sf एवं मनसि यिचायं तथैवाकरोत्‌ | “oe” wate ae (ति az प्रभति ‘at इ' मलो ऽवश्यं शख्भागिनो ऽभूवविनि ftw) वतः पूवं तु माध्यन्दिनसवने निभ्डेवख. . AAR शस्ते ववकेन्ट्रदेवताके उमे weg, नतु ay मरतां प्रवे आसीत्‌, नस्मादिदानीं प्रेण TACHA उपकारः ॥'

- ‰‰ 1 एितरेयग्राह्शम्‌ ¥

sey दकान्‌ मरतां भागान्‌ प्रद्पयति-- “मर्लतीयं we zaita, मरलतौयं प्रमाथं शंसति, मरत्वतोयं at शंसति, अरततोयां निविदं दधाति, मरुतां सा भक्तिः०-दति मरुतो- ca सन्तोति तैः सहितो मरुलान्‌ तदौयं ग्रह मध्वयुखङ्ाति | होता “wa इन्द्राय हतै" इत्येतं ( do ८,८९.१. ) मरततोयं ama शंसति, “after उग्रः -ष्व्यादिकं (do १०.७३.९१. ) मरत्वतोयं aan शंसति, “इन्द्रौ मरुत्वान्‌” caries ( निवि 2.2.) मरत्वतौयां निषिदं aa प्रक्षिपति ¦ ग्रहग्रणादिसङक्ष- gaara ‘ar सर्वा ‘aaa’ मरुत्सम्बन्धा भक्तिः" भागः

अय neat विधत्ते--"मरुलखतोय सु कथं शस्त्वा Wee तौयया यजति, यथाभागं तद्‌ देवताः प्रोशतिःः-इति॥ तां यान्यां enafa— “ये लाहिहत्यं मघवत्रवर्न्‌, ये शाम्बरे हरिवो ये गविष्टौ, ये लला नुम मनुमदन्ति विप्राः, पिबेन्द्र सोमं सगणो मर्डिरिति”-षटति मघवन्‌ इन्द्र !' “श्रहिष्व्य ' ठव्रवधे “a मरुतः त्वाम्‌ wae व्ितवन्तः tafe’ शब्दा वरतषाचौ ; “महि मचत हतम्‌ - तिवरसचिवचनात्‌# गसम्बरः कथिदसुरः, तत्‌ सम्बन्धो वधः ‘aac’, तस्मिन्‌ ये मङ्तस्त्वां अव्चन्‌' वदि त- वन्तः, - इत्यन्वयः | गवा मिष्टिरन्वषणं (गविष्टिः? ¦ "बलः नाम क्िदशुगो गुहाया arta + ; “इन्द्रो बलस्य विल मपो- ्णोत्‌-ष्रतिगरुत्यन्तरात्‌ ( ते० सं०२. १,५. १. )। तेन वलेन गावोऽपष्ताः, तासां गवा मन्वेषशे ये मसलस्त्य। मवरन्‌, तथा येः. मरुतो ‘wry अद्यापि विप्राः ऋविजः भुला लाम्‌,

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# निघ १,१०.२१) Fie z YB; [0.8.91 +गृषाकासौ' घ।

ठदतोयपञ्चिक्षा २। te ` ९.

"अनुमदन्ति स्तोस्मैरणुदिनं शइषेयन्ति, चे इन्द्र ! aaa afe- त्ब. सगणो भत्वा सोमं पिवेति याज्थामन्ताथः (सं ° ३,४०.४.) +

wai याच्यं प्रधंसति-- “यव्र--यमेवभिव्यजयत, यद्र-यन्र Ad मकरोत्‌, तदैकेतस्षमलुवेदेव्दरेरोनान्स्सोमपोधाम्‌ करोति दति) ‘aa-aaa’ यस्मिन्‌ -यस्मिन्‌ हश्रवधादिके द्रः aft: मरुद्िविजयं प्राः, प्राप्य ‘aaa यस्मिम्‌-यख्ि afa qerat ‘ata’ शौय मकरोत्‌, तदेषैतत्‌' where भिन्द्राय ana सम्यगनुक्रमेण विन्नाप्यन्द्रण सह एतान्‌ AVA सोम- ` पानसदितान्‌ करोति॥ <

efa यीमल्ायणाचार्यविरचिते माधवीये घेदाधप्रकाथे रितरयत्रा्मणस्य ठलीयंपञ्चिकायां हितोवाध्याये नवमः खण्डः (२० )

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अध दशमः WW,

इन्द्रो पै at हत्वा सर्वा विलितीषिलिलया- ब्रवीत्‌ प्रजाप्रति मह मेतदमानि यत्‌ त्व मह महा- नसानीति' प्रजाप्रतिरब्रदीदथ कोऽह fafa वदेव- तदबोच TAA AAT वै को नाम प्रजापतिरभवल्क्षो ञे नाम प्रजापतिर्यन्महानिन्द्रीऽभवत्‌ APA RA मशन्द्रत्वं महान्‌ भृत्वा देवता अब्रवीदुशारं

९४ रेतरेयत्राश्मणम्‌

छहरतेति यथा्येतर्हौच्छति यो वै भवति.यः सेष्ठता mat महान्‌ भवति' तं देवा भग्रवर्त्खय aa ga यक्ते भविष्यतीति एतं aes ग्रह aga माध्यन्दिनं सवनानां निष्कोवल्ध सुक्धानां तिष्टमं छन्दसां पृष्ठं सानां मखा TAIT मुद- इरम्नुद्छा vat हरन्ति एवं षेद तं देवा watered वा अरवोचधा श्रपि नोऽवास्तिति नेलत्रवौत्कथं षोऽपि स्थादिति मव्रवद्नप्येव नोऽस्तु मघवन्निति तानौचतेव १० (२१)

ay निकवल्याख्यं we विधातव्यम्‌; तस्य चायं सङ्गह घ्ोकः “स्तोतियशानुरूपशच धाया प्रागाधिकं तधा निविद्ठानौयसूक्रं निष्कोवच्यं प्रको्तितम्‌”-इति।

तदर्थ मादावुपाख्यान माह-- “द्रो वै त्रं war सवा विजितीर्विंजितयात्रवीत्‌,-- प्रजापति मह भेतदसानि, यत्च मं सहानसानोति ; प्रजापतिगत्रवौदथ कोऽ मिति; यदेवेतद- वौच इ्यप्रवीव्‌ ; aati को नाम प्रजापतिरभयत्को वे नाम प्रजापतिर्यन्मद्ानिन्द्रौ ऽभवत्‌, ATE AAA” -इति | इन्द्र; पुरा इनं gar सर्वा; "विजितः जेतव्या भूमोविंजित्य प्रजा- पति faz मनरवैत्‌,-- हे प्रजापते! सिदानौं यदसि, एत- मतः परम्‌ "असानि भवामि किं तदिति वोषायां चिषे. ्राकारेशोच्यत घं महानसाजि' सभ्यो भुतेभ्योऽधिकः पूज्यो

ठतोयपश्चिका ।२।१०॥ ९४

भवानोति ततः ‘ay प्रजापतिरिद atta, - मदो-मष्वे त्वया ated सति अनन्तर मह को नाम भविष्मामोति तत इन्द्र दद मप्रवीत्‌-- शे प्रजापते! खामान सुदिश्य निषेदनेम

दईति यदपरैतदवोचः, तदेव ल॑ भवेति | तत भारभ्य “aa

तज्ञामवान्‌ प्रजापतिरभुत्‌ एतलकशब्दबाखयतवं waa प्रसिहम्‌ ; अत एव qaat प्रतिप्रहमन्वन्राह्मणे एव मालनायते-- “a ददं wean welfeare, प्रजापतिं कः, प्रजापतये दद्ाति"-षति (Ao Ato २.२.५.५. ) wee शुखवाचित्वात्‌ तैन प्रजा- पते्व्धवहारे सति gal प्रजापति रित्युक्त भवति ्रजापतिग्रतं aye स्तीज्ञलयन्द्रो यस्मात्‌ महानमवत्‌, AHH’ नाम सम्ब. ati ग्रुयन्तरेऽप्यतदान्नातम्‌-- “न्द्रो ह्र मन्‌, तं देवा अश्रुवन्‌,-- ARIAT FA MPT ठत waitfefa ; ware weman” एति (do Ho ६.५.५.२. )

अथेन्द्रस्य महस्वप्रयुक्ं सत्कारविगेषं दग्यति-- “स महान्‌ yet देवता waalguit उहरतेति ; यथाप्येतर्च्छति, यो भवनि, यः Rea waa, मष्ान्‌ भवति, तं देवा अन्रुवन,-- स्वय मेष qa यत्ते मवि्यतौति ; एनं wey ग्रह wae माध्यन्दिनि सवनानां, निष्केवस्य मुक्थानां, fred छन्दसां, पृष्ठः साश्व ; म्मा उदार मुदष्रन्‌" ula शखः" ददरः, उक्लप्रकारेण स॑त्य प्राप्य देवताः प्रत्येतदब्रवोत्‌,-- हेवता; ‘oud’ wand fafa यः पूजाविगरेष ofead, सोऽयं सकार Bere, नं मक्ारभागं “A मदश्रम्‌ "उ्ररत एच. कुरुतेति ययेतथादिन' लौकिकट्टान्त रुच्यते श्यो वै भेवति, यः पुमान्‌ भवति, Gadi प्राप्रोति, za Asal’ विद्याषागादि-

९९ शैतश्यतराद्मसम्‌ |

mgm वैशिष्य wat, ‘a’ प्राश्यो विशिष्टश्च सर्वेषां मध्ये मान भवति | तादृशः पुरषः 'एतर््पि' इदानी मपि यथा विशिष्टएूजाखूप' भाग मिच्छति, तथा भय मिन्द्रोऽपौत्यध्याहारः | ‘ay इषठारेच्छावन्त fax’ देवा इद मनब्रुवन्‌,--हे इन्द्र! यत्‌ ते भियं भविष्वति, ay शय भेव ब्रूषवेतिं ततः ‘ay इन्र ग्रहाणां मध्ये "दतं माङद्रश्रह aga, तथा सवनानां म्य माध्यन्दिन" सवनम्‌, शस्त्राणां मध्ये निष्कैवल्यं शस्तम्‌, छन्दसां मध्ये तिष्भम्‌, साख मध्ये षस्तोतनिष्यादकं हरद्रयन्तर- वैरूपादिकम्‌#। ततो देवाः “wa इन्द्राय नत मुदारं' माहेन्द्र्रहाः दिकं यक्नादुददर्न्‌ तरेतच्छाखान्तरे,प्याजातम्‌ -- “स यतं ABS मुदार मुदहरत हतं इतान्धासर देवताख्लधि यम्माद्रन्र ब्ण््यत उदार Aa तं यजमान BETA ऽन्यासु प्रजाखधि" इति ( ते०सं०६.५.५.२,४. ) A वेदनं प्रणं सति--“उखदष्मा उदारं इरन्ति एवं वेद" -इति उष्ारभागं दत्तवतां Sarat तस्िब्रुबारे खापेलितभागप्राथनां दथ॑यति-- “a देवा अह्ुवन्‌,--सप वा श्रवोचधा ऋपि Asa feafa ; नेत्यत्रवीत्‌,-कथं वोऽपि स्यादिति ; ware wing ` मघवनिति ; तानोशतेव'"-इति | उडारयुक्षः ‘aa’ Key, wat देवा ve मह्रवन्‌,--इ मघवन्‌ इन्द्र! सवं मेव as खसम्बन्धिलेनोक्षवानसि, warn ada सारो भागो ऽस्त्विति ततः ‘ay इन्द्र एव मनरवोत,-- भयं सारः सर्योऽपि

* S364, रथन्तरम्‌, वद्पम्‌, वराम्‌, aaa, Taagla YA Alo He ७.६.७1 Ge Mle १.२.३२. 91 "धयन्‌ E854 mere सर्वाणि fe एष्ठानौद्रय जिष्केवन्यानि sft 4 ato we Oc yy

उतौोयग्रद्धिका ! २। ११ “ae

` सदैषापेरितः, gare मप्यत्र भागः कथं शवात्‌ १. reat

paral भागः! इति निराञ्जतवन्त' मिन्द्रं देवाः प्रार्थयमाना इद्‌ हुवन्‌,-- मघवन्‌ ! ‘ay ware woreda, सर्वथा भामो

ऽपित एषेति aa: इन्द्रः "तान्‌ देवान्‌ श्खतेव'

` इंध्यावलोकितवानेव १०॥

दूति रोमत्सायणाचाय facet माधवीये बेदार्थप्रकाथे रितरेयब्राद्मणस्य ठतोयपञ्चिकायां दितीयाष्ाये दशमः खण्डः | १० (२१)

IN TD

WT पकादश्ः खण्डः

ते देवा wrafad वा इन्द्रस्य प्रिया जाया वावाता प्रासहा नामास्या मेवेच्छामष्टा बति तथेति तखा सेच्छन्त सेनानतरवोत्‌ प्रातर्वः मति वक्ाश्मीति aera fea प्र्ाविष्छन्तं तस्माद्‌ खामुरां पल्याविष्छतं तां म्रातरुपायग््ेतदेव मरल्यपद्यत' यहावानं पुरुतमं FTO हवन नामान्यप्राः वेति प्रासषशस्यतिस्तुविष्मानितीन्द्रो वै aTas- स्पतिसुविष्मान्‌ यदौ सृभ्मसि कर्तवे करदिति यदेबेतदवोचामाकरकदि्येवैनांस्तदबवीत्‌ तै देवां BAKA THY या नोऽस्तिन्‌ वे सबि

¶ॐ

at: + रेतरेयत्राद्मषम्‌ .

दिति तथेति स्या भप्यवाकूषैस॑च्छारेमावापि शस्यते! , जहावान पुम्तमं. gurarfsfa सेना षा gee प्रिया जाथां वावाता avast नामका नाम प्रजापतिः CATA कामे सेना जयेत्‌' तखा अर्दात्तिषठलृण मुभयतः प्रिक्छिदोतरां सेना mere लासे Fea प्रश्यतीति तद्ययैवादः सुषा पवशु- Tasman निलौयमानेत्येव मेव सा सेना भज्य- माना निलोयमानंति aad fagian मभयतः परि- fegatt सेना मभ्यस्यति प्रसह कस्त्वा पश्यतीति तानिन्द्र उवाचापि aisatfeafa तै दैवा अत्रवन विराड्‌ areata निष््रोवल्यस्य या जयस्लिंशद्तगा बयस्तिंशष्ठं . देवा wet aaa एकादश «zi दादृशादिल्याः मजापतिश्च वधट्‌कारश्च देवता शक्चरभात्रः WIAA WAT मेव तदहेवता अनु प्र पिबन्ति देवपाचेयौष तद्टेवतास्टप्यन्ति' यं कामये- तानायतनक्रान्द्छादिद्यषिराजाख. Tae गायत्रा षा fae वान्येन वा च्छन्दसा वषट्‌ कुर्यादनाय- ara मेबेनं नत्करोति यं कामयेतायतनवाम्ब्धा- दिति बिराजाखय यजेत्‌ पिबा सोम मिन्द्र मन्दतु MAA मैनं तत्करोति! ११ (RB) Il

watrafee iat ११॥ 68

पथ नि्फेवसथम्ते great frary’ yatarennite प्रसौति —“4 देवा wqafad वा care भरिया जाया वाषाता arent नामस्या मेषेच्छामहा दरति ; तथेति ; तस्या सैच्छन्त ; सेनान- male, - प्रातर्वः प्रति वक्ास्मोति; तस्मात्‌ सिय; sarfireeat ; Tay aaa पल्यापिच्छपे; तां प्रातस्पायम्तेतदेषै We: पद्यत” शति! तदेवा इद्टस्याभिप्रावं प्रजानन्तः weer मिद्‌ मन्रुवन्‌,-~ यं वै" पुरतो इग्यमा्रैव caret प्रिया जाया; सा वावाता मध्वमजातोया। रज्ञां हि तिपिधाः स्तियशत्रो चम- जातेमंहिष्रौति नाम, मध्यमजातीर्बावातिति, भधमअतेः oferta. रिति ei श्रतएवाणखमेध ys प्रति राजस्लीणां aretarfare एतेर्नामभिराक्तातः- - "भूरिति मह्धिपौ, भुव षति वावाता, शव. रिति परित्रकिः' इति( Ao ore 2.0.8.4.) | नस्या वावा. नायाः परागति नाम ; राजप्रियतवात्‌ प्रमद षलात्कारण शै काव वोः wae | maaan भेव निमिक्चभूनायां सलं usu जनात्‌ मिच्छामहे दति विचार्य, afi मध Fla, तम्यां ' वाष्रातायां खाभोष्ट मेच्छन्त | car चपि वावाता ‘gary’ galas मत्रवोत्‌,-- रातौ राजाभिप्राथं विषारथितु शक्यत्वात्‌ परेदु; प्रातःकाने "वः युपा gee "वज्ञास्िः वव्षामोति। aanéd लपानोकेऽपि भिया; fern सव पव. Tar सान्तं पयावप्रगम्तु faa) यष्माहिधिक्षावसर सवं way सगं "तस्माद्‌ तस्मरारेव कारणात्‌ प्रिमा

2 - Ss 8, | 8 1 o

wae = ~~~ ~~ ^~

« ›(नतक्धी ' आया STAM wafer, ated, ari, परिषिक्ता, oneal ; at] Cataeitsamar fanaa adi: ताभि. सपात्रं pag, पा

बाग यजमानः देचिणया पताः ~ दकि Me ats १३ Pt १.८ |

१०० | टितरेयत्राह्यशम 1

खौ ‘saa’ रात्रिसमये fafieterat ost सर्द मवगन्ु भिच्छते ! arg प्रातःकाले वावाता सुपागच्छन्‌ } सा" ager ‘cata’ वश्छमाणमन्धरूपं वाक्यं प्र्यसरत्वेन प्राप्तो

तख्िन्‌ मन्दे (Wo १०,७४.६.) पादश्रयं पठति-- “यद्वावान पुरुतमं प्रराषाक्छा हत्रदेन््रो नामान्यप्राः, wifa प्रासद्स्यतिनु- व्रिानितिः- ईति! पएरातनानां पुरषाणां मध्ये विष्णुः पुरा षाट्‌ ese Geaay’ भतिश्येन प्रभूतं यत्‌" उवारितश्ं ay वावान्‌' आदौ दौघन्छान्दसः, “sara” सम्यग्‌ भभ, ल्पवा- faa. बन्दर: तस्ित्रडारे नामानि भ्रा अपराः area ग्रो माध्यन्दिनि स्ादीनि खाभोष्टनामानि “माः waa पूरितवान्‌ nae महो aa’ येषां तै प्रासहाः, तेषां पतिः शप्रासदस्यतिःः इन्द्रः “Kala भजानात्‌, देवाना ae त्रात- वान्‌, कटातेणानुग्टदरी तवानि्वधेः | चेन्द्र (तुधवण्मःन्‌ ब्रह धमवान्‌ भक्िन्‌. ठनोयपादै प्रदयोरप्रसिद्ल्यात्‌ नदं व्याचष्ट —eey वे प्रारुहस्मतिसविषान्‌" ति

चतुधेपाद मनूद्य व्याचष्ट -- “यदौ सुश्मसि wes ace. दिति; थदेवैतदवोचामाकरतदिन्येवेनांस्तदव्रवोत्‌"- इति पाद्‌- तयोक्तं षावाताया वचने श्रुता देवाः परसरं शुवत-- यदोम्‌' यदिद मस्माक WUT भागोऽन्त्रिल्ेतादश कायं ‘Aa’ कनम्‌ "उश्मसि वयं सर्वं कामयामने, ‘ay’ सवं "करत्‌" इन्द्रः Rea मकरोत्‌ ! wear चतुथपाटौऽपि avararar एव वचनम्‌ ¦ F देवाः ! वयं सवं यदिदं काय HA कामयामहे, (तत्‌ युष्म्राग- प्रदानरूपं कायम्‌ दृन्द्रोऽऊरो दिति | इद मेव हितौयं व्याख्यानं

~~~ ~~ 0 Re Ee ` षि ए,

* ware wpa afequne द्रश्य्यम्‌ |

\ watauga \ २। २१९५) १०१९

यंदेेतदित्यादिन्राद्मशेन खषटोक्तम्‌ | दे देवाः ! मया युण्मा- भिरालोचितं कायं fag: एतषानिलयेतनेव प्रकारेण तस्मिन्‌ मनवै सा वावाता अव्रवोत्‌

उपाख्यानशेषं देशयति -- “ते रेवा qaqa दृष्ाम्त या नोऽस्िब्र वैक मविददिनि ; तयेति ; तस्या अप्यत्राञरवन्‌'" - दति! तेरेव वावानाया उत्तरं Zar परस्पर fae aqay,— "याः वावाता ‘ay ama सुपकारिणो, "स्मिन्‌ निष्केवल्यं we cay अपि amar नयं अविदत्‌ नव नवतो | wer aft वावालाया इद निष्मेवन्ये शस्ते मम्बन्योऽम्त, दतिः एतदङ्गोक्षत्य नस्या WIT aay WHA |

serait wor tava --“amraqafa गस्यत.-- यहा ara yam पररा रति" $ति। यस्माद्‌ वावातायाः मम्बन्धः क्लः, न्मन कारणात्‌ ` यहावान' फषापि कन्‌ “we निष्कं - que भात्छात्तन गमनोया +; श्रम्या ऋचौ matte: सायोक्रात्‌ 2)

^१.८८८प्रभंमातुदिख कचित्‌ ( नौ किक wha विधत्ते -- “मेना

तर दन्दस्य प्रया जाना वावाता प्रासा नाम; नाम प्रजा प्रतिः wore फामे Farad, तथ्या wary fadaye सुगयनः; ufefageraci भन' भस्यस्मत्‌ प्रासे कस्त्वा पश तौलि; wane. सुपा ष्वणुगञ्जमाना नि नो यमानन्धव मेव मा सेन) भज्यमाना निखलीयमानति गरतं क्िदाम्तुण सुभयतः परिच्छिश्धतगां दना मभ्यस्यनि as कम्खा पश्चतौति" इति।

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a ots पद ए- 7।

oR , रेतर्यत्रा्मशम्‌

पूवेशाखेन्द्रख प्रिया जाया वावातां प्रास नानेति यैव सका, चेयं लोकव्यवहारे भिना वै" युदार्धो्यतधेनारपेणं aid # ; camara: सेनाभिमानितवात्‌ | तच्च शाखान्तरे समाजरातम्‌-- “mat सेनाया देवताति (Fo to २.२.८१. ) | को नाम" इत्यनेन are बक्षः प्रजापतिः, तस्या इन्द्रजावाया, aye: ; प्रजापतेरिग््रोत्मादकलात्‌। तयथा चान्यत्र शयते “प्रजापति मिन्द्र मष्जलानुज्ावरं देवानाम्‌”-ब्ति | ‘aq तथा सति श्रस्य' लौकिकस्य gare युडार्थिनो or खकोया सेना safafa कामो भवति, यतक्षिन्‌ ane सति पुमान्‌ त्याः स्रकोयायाः सेनायाः “malay अद्मागे मध्यं (पदां \ ) मूमाववखितः fefaq ay समादाय, मूलतोऽग्रतः (<भ- यतः परिच्छदा इतरां" परकीयां सेनाम्‌ अभि" wer “para” वाशवत्‌ fata) तत्रायं मन्तः-- “gras कस्वा प्यति" im) प्रासह्ये! इन्दजाये! ष्कः प्रजापतिः, तदीयः शरः, त्वा" ता wat पणश्यनि। अनेन मम्ल दप सिसे सति परसेनाया भङ्ग दृषटान उच्यते-- 'तत्‌' तस्मिन्‌ विवक्तिता्र यवादः निदप्रनं भवति, सथा कथयामः,--- अनचानाना मोशानां षा खक्ष ब्रुवति: सषा खक्रौयं खरं xe तम्मात्‌

` + (सेना Saat auiaataal--sfe निर्न ९,६१.२

| “sograt दवौ सममा हपनी See शेन पतिष्द्ं जिगा ! fre प्रदखा aud धोजनानि) रपस nae ated faa सेनान्यम्‌ परथिवो wrgar | Serger अदितिः rar) Rae Bd) प्रासद्ाददामा। स) at A युवा शनं धर्तुं ॥'" ~tfa © कचौ तेर vito २.५.२.७।

bdo संन ete RG ७.२.१०. २, १.१.४.२।

$ नास्यतन्‌ ger पक्ष

ठतोयपच्चिक्षा २1 ११॥ tok

qrermmar लतां प्रातो `निलौयमाना' बलावगुष्डनडच्ता- ugagiead तिरोहितवसना ग्ण्ाभ्यग्धर मागच्छति ; एव भैष ‘gy परकोया सेना अभिमन्ितठणकपास्लप्रूपेण भज्यमाना सतौ तत्र-तत्रारण्पर्वतादिषु “निनोयमाना' तिहिता सतौ gata रिश Afar gaa मितरसेनाभङ्गः ? CRE cqaay इत्यादिना पूर्वत एवाथः BETH:

प्रासङ्किकिं परिभाष्य uaa मनुसरति ~ “तानिन्द्र उक्ष atta वोऽवाम्त्िति; मे देवा wRaa.— विराड्‌ याश्चा निष्केवल्यस्य या चरस्तिंगदक्नरा' बति। ववानाया वचने- नेन््रसमोपं प्रति दवेष्वागरेषु "तान्‌ रेवानिनश्ट्र एव मुवाच, -- युपाक म्प्य निष्केवल 1 प्रसितो भागोऽस्ति ततो देताः aafancad विगाट॒शटन्दस्कां "पिबा सोमम्‌ -त्यता ( म"

२२ १. ) याज्यां प्रावन्त

नां यान्यां waiufa-— ‘aqafewe देवा अष्टो वमव एका- दृश war दादणादित्वाः प्रजापतिश्च वषरकारय ; दवता अर्ब arm HTL THT मेव तद्वता चनु प्र विवर्ति, टेवप्ातणष तङेतःस्तप्यन्ति". द्रति | एतदाक्व WIAA व्याख्यातम्‌ | यद्य TT या त्यामाम्््रम्निगदस्षराणि ATTA TAR तथापि संसोमाल्लगददिविभारीन मद्या पूरणाय 1 तता देवसास्यात्‌ प्रक्र भकरैकटेवतष्ाः सिध्यति

द्मधाभिवारप्रनोगं Ta 7 HA AATATA AAT frag fACTATS VARTA उ) जिम ATU A च्छन्दसा वचर्‌ quran म्न करोलि"-द्ति भयस माश्रयो

one et a duet नकः

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«tats ४४९९० १८. Coad |

१५४ ` Utena ` गद दिरस्वास्होति ‘array! तदिपरोतो यजनानोऽस्मिति कामयमानो vin विराडतिखिागायतपादिष्छम्दोयुह्लां यान्यां पटित्वा तदन्तं वषट्‌ कुर्यात्‌ तथा सत्यायतनहौनो यजमानो भवति it | saruufata fart “a कामयेतायतमवाग्क्षयादिति विराजाख्य यजेत्‌, -- fart सोम fare मन्दतु लेव्येतवाऽऽयतम- वन्त Had तत्रोनि"-इति # ११॥ इति खौमल्षाय णाचायविरदिते माधवीये वेदाधप्रकापरे एनरयत्राह्मणस्य टतीयपश्धिकायां हितोयाध्याये णकादणः खण्डः ११८२२)

5० यनी wee er गिदे कक

श्रध इादशः सरः | |

कच वा दद मे साम चास्तां सैव नाम कगासीदमो नाम AA AT aT WH सामोपाव- दन्मियनं सम्यवाव प्रजात्या इति ' नेल्यत्रवीत्याम WA भरतो मम महिमेति भत्वोपावदतां a नप्रति चन समवदत तास्िसरो भलोपावदंस्त- तिस॒भिः समभवदययत्िसभमिः समभवत्तस्मातिसमि स्तुवन्ति तिषभिर्ङ्कायन्ति तिसुभिहिं साम सम्मितं

[1 ऋ. 2१ TO ee ee om ११.११

"पिबा भोम tee area चति ग्राज्या -ष्ति जागरण Ste ५.१५४.२६९)

दतौवपर्िका 1 २।.१२॥ ` हद

NASR VTi लाया भवनि AHS बहवः प्रतयो! यदे तत्वा VT समभवत ATA wanes: सामत्वं सामन्‌ भवति एवं वेद यो

2 भवति a: शेता मभ्नुते सामन्‌ AAA दृति हि निन्दन्ति ते वे परञ्चान्यद्‌ भूला पञ्चान्धद्‌ भत्वा Reta माहव हिङ्कार प्रसावख् परथमा

ऋगाद्धोयस्च मध्यमा प्रतिहारस्रो्तमा निधनं

वषट्कार ते यत्पश्चान्यद्‌ भुत्वा पद्चान्यद्‌ भुवा

कल्ये ता तादा THT यन्नः पङ्काः TATA यदु

विराजं दशिनी ममि समपदोतां तस्म्ादाहुविराजि यन्नो दशिन्यां प्रतिष्ठित cert सोभियः | प्रजानुरूपरः पतौ धाय्या पशव HUTA ण्डाः TM

सवा अरिमंथ Masataay प्रलया पशुभिञ्च wey वमति एवं वैद RR (र३ )

"सुत मनु शंसति"-इ्नि-( ato ब्रा <.८.१० )-विभिबसेन निष्कोवस्यश स्तस्य Braga वुदिखस् ( स्तो चिवद्येकस् + ) सानन aqua चं विधातु माख्यायिका are— “We SMT sz मये साम चास्तां, स्व नाम ऋगासोदमो ATA BA, णा वा कक सामोपावदश्िधुनंश्रष्भवाव प्रजाव्वा xf, Harm ea, ज्यायान्ा अतौ मम महिनेतिः ते हे werrarwent

[कि 1 111

9 MSTA ITT प्के! . १४

१०५ रैतरकक्रद्षम्‌ |

तेभ प्रति चन समवदत ; तास्तिस्रो मूलोपावदंस्तिभिः समभवद्‌, यस्तिखभिः सममभवत्तस्मातिखभिः wafer ; तिरूभि- इहायन्ति; तिदधभिहिं साम सम्मित; तस्नारेकख् aan जाया भवन्ति, ANA बहवः सह पतयो यदहैतस्ा Way सम भवतां, TATA AAT: सामलम्‌ -दति। यत्‌ इदम्‌ इदानौ मृगाबितं साम उभयमभेलनरूप मधोयते, तदिदम्‌ “aT भैनलनात्‌ रा ऋगन्षरपदरूपा TARA, साम alfred एथग्भृतम्‌ 5 दयेव हे अपि एृघगीवास्ताम्‌ तयोः परस्मरमेलनयोग्यतां प्रदय- faq Rafaaa aia श्र्सर्मावः प्रदश्यते साभेति। सामो azaafa पूर्व wat, तदेवैकं नाम, तचरामवाच्या ऋगासौत्‌ ; अमर Cae नाम, तद्वाच्यं सामासीत्‌। भतो मैलनयोग्यतायां सत्यां सैव wa, साम प्रति उपावदत्‌' समप मागल्योक्तवतो | ara qu fart यथा भवति तश्रा aaa) तञ्च सम्भवनं marae fafa. age साम निराकरोत्‌ साभिप्रायं चावदत्‌, “प्रतः अस्माटृश्चदहिमो ज्यायान्‌" श्रम्यधिकी ममः सामो महिमा ; aatfenes विवाह तुल्ययोरितिन्यायविरोध इति | ततः साशा ag खस्य तुख्धत्सिषशय तुते कचौ सम्भुयोपैत्य ूर्ववदुक्षवत्मौ | चनेत्यक्षरदयामको निपातोऽपिशब्दाधेः a ते" ऋचौ श्रतिः अपि साम ‘a समवदत' संवाद मक्रोकारं नाकः रोत्‌ पुनः "ताः wafers yatta पूववदुक्ञवल्यः | तदानीं ताभिस्तिखमिः समभवत्‌ quad संयोग मकरोत्‌ | TTT: सम्भूतः, तस्मास्नामयुक्घाभिस्तिखभिः ऋग्भिः सामगाः "लुवन्ति' यज्ञे स्तोत्रं कवन्ति। तस्यैव व्याख्यानं (तिखभिरदायन्तिः-दइति !

(जी ति a i UN RRO es ett a OREO emma or NEES Some ne EPS SA ATTRITION Ae AS <a,

* पार Me Sno, अम, Sle Rue | मदि भव्य ४५

वतौयपश्चिक्षा | 2 | ११॥ १०७

Wert कमं कुरवन्तोदयर्थः। श्रत एव Marae शूयतै-- “eral सम ढचे क्रियते स्तोतियम्‌" इति | यथ्यपि शन्दस्यामनामकत wa एककस्य खचि सामोत्यत्रम्‌, THATS wa भाजरातेषु wey प्रयोगकाले माम गातव्यं भवति | तत प्रथमाया खचि योगिश्पायौ यतामोत्यन्नं PCM समाम्नानम्‌ तदवलोख्य तल्ला. दृश्येन दितीयढतोययोः wait समृषनोयम्‌ + रएतदपि शाख (न्तरे विहितम--- “वदोग्धां तदृश्षरयोर्गायति'" इति % | तस्ादौोकातरं कमं fret: ऋम्मिनिष्यद्यते। यस्मादाग्ानोन्न- प्रकारण तिष्टभिः इमि; ‘ata मभ्िनं' एकश्च साम fea OM: सत्तः, तस्माक्नोकेऽपि एकस्य पुरुषस्य साप्रस्थानोयस्व eit जाया ऋक्ग्थामोयरा भवन्ति; wa वपयय एकस्याः feat ‘aes wir परश्मरेकमन्येन ‘Ay’ वर्तमाना दृश्यन्ते यस्माद गन्तरपद्‌ादिरूपः सन्यतन्‌ weaifuaa, पमणष्देन सामा भियं aararzud ayn तन्ामाभयत्‌, नस्मदेकरोभय्रालका- aA, `साम नाम सम्परत्रम्‌ ;॥

उक्तायवेदनं प्रशंसति -- "मगमत्‌ भत्तिय ण्व 2” बनि ऋकमाम्रयोरकल्यवदिना व. warty: मगो भवनि॥

लं [किकव्रलतान्वादाहररःनापि aaa प्रणंमति-- at वै भवनि, यः खला मश्रत, wo ay भवत्यसामन्धय ग्रति fe

RapesqgitqQal Sta > AQ wars भाम ef azarae a UU TAR MTA AST !

+ नु दाप्वप्मागानि a ah 4: 71. तानु BATABY SMR fy गी array |

वनो; पर्यय saga fagiaa ata ( जन Foe २१. whee tee) $0. Sl. पु. १भा० 1 Fe cana, VA TATE ष!हव्यम्‌ 1 § “सामं alan शवाय चः ge भम वृति मामा" "दति ae ०.१.९ |

gar शिवरेवनान्नचम्‌

निन्दन्ति" -दइति ‘ay gary भवति" Gad प्राप्रोति, यथ विद्याहन्ताभ्यां see प्राप्नोति, सर्वाऽपि सामन्‌ भवति' सर्वषु खक यत्वबुद्या waefedafa warn ad अनास्तम्‌ ‘wart. wea: पक्लपातीति निन्दम्ति। अतः सामन्धरूपस्य लोकै प्रश- स्वत्वादबाप्य्षरपाटस्य गानस्य aaa सामल प्रशस्त fas:

aqua aaa wae fasta कि मायात भिद्या- Te सानब्रसादश्येन शस्तप्रशंसां esafa— “7 पश्चान्धद्‌ भूत्वा पश्चान्यद्‌ भूता AAT माहादश् हिर प्रस्तावश्च प्रथमा ऋगुदरौथश्च मध्यमा प्रतिषारश्रोत्तमा निधनं वषट्‌- awe -sfa | तेवे' ते एव वच्यमाणा श्राहावादयः Wat वयवाः पश्चसह्चाकाः “wary” wala weed भूता THA; तथा हिङ्कारादयः सामांाः weagTat: "न्यत्‌ पृधगेव साम- स्वरूपं भूत्वा waa! ते शस्तसामनौ खावयवोपेते उम ‘qmail खबव्यापारसमर्थे भवतः | “sera” शींसावो भिति मनः| स्तोतिये दषे प्रचममध्यमोत्षमाः' fae we: | aware पटितव्यो वषट्कारः” तदेतत्‌ पञ्चकं शस्तस्वरूपम्‌ | Sarat पठितव्यः साज सादौ “हिम्‌ - इयेवं शब्दो “हिङ्ारः' Tera गातव्यः सामावयवः श्रस्तावःः। उदारा गातव्यः ‘eater प्रतिष्रा गातव्यः ‘afer’ we सर्वेगातव्यो भागो (निधनम्‌ | तदेतत्‌ पञ्चकं स्तोत्रस्लरूयम्‌ भतः सामसादश्येन निष्केवष्यशस्तं प्रशस्तम्‌ |!

४५० '्दीणनीब्ष्ष्वा। =

“प्रलादीद्गौषप्रतिङ्ारो पदर वलिधनानि भक्तयः तत्पाश्षविध्यम्‌ "पति, '"भोदारः दिङारभ्यां बापदिध्यम्‌"-दति, “अब्ानं पूवे अलावः"-द्यारण्व '(कपिनं पव ठामा-

तोयप्शिक्षा २।१२॥ १५९

प्रकारान्तरे प्रशंसति- “ते यत्‌ पञ्चान्धदु भत्वा पशचाग्धष्‌ WAT HATA, तस्म दाषः UT यन्नः पष्क; पटवः इति ` इति यस्मात्‌ VAT ATMA प्रयेकं Tea सम्पवम्‌, ‘aay पञ्चानां पङ्का योमादयं ae: पाङ इत्येवं ब्रह्मवादिन WIE: | तधा गवादिपगवोऽपि waht: पादैमुखेन योगात्‌ UR | Wit यच्च पाङ्कतप्रसिहिषम्पादनात्‌ पशसाम्याष गस प्रशस्तम्‌ पनः प्रकारान्तरेण प्रश॑सति-- “ae विराजं efit ममि सपपदतां तम्मादाडुर्षिराजि यन्नो दिन्धां प्रतिहित इति" - दूति | “दशणाक्तरा विराट्‌" -ड तिगुत्यन्तरात्‌ दगाना मशराशां समूहो 'दगिनो' या विराडस्ति, ताममि ल्य पञ्चक दयामक्षे श्स्वसामनो 'समपदताम्‌' सश्वतः, विराटे जाते व्यर्थः | यदुभयस्मादेव कारणात्‌ सद्या विराट्मादुश्यम्‌, तस्मादभिन्ना एव माद्ुः,-- दशसक्योपैतायां गश्सामरूपायां विराजि zy: ‘sfafsa’ व्यवसित दति पुनरपि गद्खपर्षसाटश्यन शख प्रशंसति - “पामा & स्तोतियः, प्रजामुङूप" पन्न घाव्या, पथवः प्रगाथो, BT: EMA” - afa येम . चेन सामगाः सुवरन्ति, मः ‘eitfaa’ दषो निष्क वश्य गलस्य WTA शं aay. | भथ भामा धै TMNT enaty एव wifad aa मनु feta were: शस्यत, सो प्यम्‌ ‘aqea: ; WaT guoratfzerrata: 1 येयं wet

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शनालोष्याः | @ Te ms ६.५.४ ; 4१.१३ ; चतन Me १.१.१..२) दडापि पूर्व 1 wd wyan {

११० ` रेतर्यत्राद्मखम्‌

प्रचेपग्येया धाय्या, सा पद्रोखानोया। यः श्रगाधः पशु सखामोयः। यं निवि्ानीयं “aay तद्‌ रषस्थानीयम्‌ # | एतदेदनं प्रण्सति-- “a ar अ्रस्िं लोकै ऽमुष्िंख प्रजया प्रशुभिश्च wey वसति एषं वेदति प्टभिश्च सहित दूति Wa १२॥ sfa खौमन्ायशाचायं विरचिते माधवोये वेदार्थप्रकाये रैतरेयत्राह्मणसख्य ठतोयपचिकायां दिनौयाध्याये दादश: खण्डः; १२ (२२) |

(मी पि

अथ योदशः खण्डः |

म्तोतियं शंसल्यात्मा वै स्तोतिवस्त मध्यमया वारा waa मेव तम्स॑स्कुरतेऽनुदूपं शंसति प्रजा बा TSU उच्चैस्तरा मिवानुदपः Taz: रजा मेव तच्छेयसो मात्मनः कुरत ' धाय्यां शंसति पत्नौ वे धाय्या सा aac मिव धाय्या शंस्तव्या प्रतिवादिनौ शाख weg पलौ भवति यें विदान्‌ नोचेस्तरां धाय्यां शंसति प्रमाथं शंसति खर-

आः ¬ emg वा ~~ --~=- ~~ en ere ner earns terns a ae

UWTe VAY Te माः द्रव्यम्‌ |

दतोयपञ्िका ie; ten ११६.

व्या वाचां सव्यः प्रशवो पे खरः पशवः प्रगाथः पशुना ATCA इन्द्रस नु वोर्याणि वोच मिति सृतं शंसति तद्वा एतत्‌ भिय fae ani निभे बल्यं हेरण्यस्तूप मेतेन वै सूक्तेन हिरण्यस्तूप भाङ्गि- रस इन्द्रस्य पियं धामोपागच्छत् परमं लोक मज. azine fai धाम गच्छति जयति परमं लोकं णवं वेद oer वै परतिषठामृक्तं तत्मतिष्ठिततमया वाचा शंस्तव्यं' aerate टूर इव पशंल्ञभते+ रृहानवैनानाजिगमिपति गृद्धा हि पणुनां प्रतिष्ठा प्रतिष्टा १३८ २४)

॥दल्ये तर्यत्राद्यगा टतोयप्र्चिकायां दितीयोष्यायः ॥९॥

gy निष्कवन्यगम्तभागाः Banas await: ; तत प्रथम भागं विधत्ते -- ""म्तात्रियं शंसत्याकमा म्तादियः' eft ‘ofa age नामु. ` इन्यस्मिन्‌ ( उ“ प्रा" १.१.११.१,२. ) प्रगाय ad सम्पादय सामगाः स्तुवन्ति +| ad afar, मादौ aq | तस्य टरख्दे हम्बर्पल्वं पूव AT तस्मिन्‌ स्तोत्रिय स्वरविगेषं विधत्त -- “A मध्यमया वाचा गंषव्यामान मेव तत्‌ संस्वार" द्रति | ware मतिनोचतवश्च aet वाचि नास्ति, सा “मध्यमाः तया) यावना वाचा" ध्वनिना दैवयज्जन-

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पन्‌ लभते क; पनम ग, ध, TN FI पए. सी. प्र. सार Ge Mle Be २२१० ede तथाहि Tale दर्न्यम्‌।

११२ रेकरयक्ऋञ्मदम्‌

देशस्थाः wee, तु वडिरेस्थाः, तावन्तः जनिं कुर्यात्‌ | तेन श्रामान Ha’ Se मेव संस्लुसते | |

चान्तरं विधत्तं “axed शंसति ; प्रजा वा भतुरूपः"- ` षति स्तोत्रियेण ata aera: "भनुरूपः # चाच “अभि त्वा पूवेपौतये we स्तोमेभिरायवः-शत्मेष ware: ( go Wo 9.2.8.0, २, )। उभयोः प्रगाथयोः समामच्छन्द्स्यात्‌ समानदेवताकलवाज्चानुरूपत्वम्‌ | मिमं at शंसेत्‌। तस्व एचादिप्रजास्थानोयस्य भनुरुपत्व मपेक्षितम्‌ ; frayed: कुल- शोलादिना सम्रानकूपतल्ाव्‌ वच्य ष्वनिविषं विधत्त - “स saaa मिवादुरूपः daa: ; प्रजा भेव तच्छेयसो मात्मनः कुरुतेति स्तोजियष्यनेरप्यधिकं waft कुयात्‌ तथा सति सखस्मादाधिक्यें पुत्रादौ सम्मादितं भवति a

ततो यद्वावानेश्येतस्याः ( He १०,७४.६. ) धाय्यायाः शंसनं विधत्ते “धाग्यां शंसति पत्नौ वै धाखा'"-षति। cate पूर्व मेवोक्षम्‌ खरविगेषं वित्तं -- “सा नो्चैस्तरा भिव wen dean” इति भत्यन्तमौचो ध्वनिः क्तव्यः डोतुरेतबेदन॑, प्रथंसति -- “प्रतिवादिनो ere wea ual भवनि, aad विदान्‌ Wher wert शंसति" -ष्ति। पत्यः प्रतिकूलं वद- तौति श्रतिवादिनौ' तददिपययेए, wageenfeat भवति

A OORT 1 1 1 ome ~~ न~ ae > ~~~ eters teen ~^ aes [ह eens

"पूवं सु चैव तद्रूप मपरेण रुपणानुषदति; यत्‌ yay ङ्प मपरे पेथागुवदति, तदद्‌्पस्यालुष्पत्वः(। WAST एनं पत्री जायते एवंवेद सोषौधानुद्धपौं cet waz: भायापानाना MATT ता० Mo ११.६.४-९। HUTA Mae apa प्रतिपदिति ato wre ९.९.१ ; ११.१.१. Sto भाग द्वयम्‌!

अधि ला पूर -द्रति शोतौयल, "शमि ar पूवं पतये neque Ged `

aettaufoe ।.२। १२। ‘ya

: + ^पिवा शृतस्य "रसिनः" -इेत' mart ( wo चा०.६. ए, १९.१,२. ) विधत -- “nmi शंसति" इति लनं we frat fawt—“e खरवत्या वावा sere; ont 2 खरः, यथवः प्रगाथः, पशूना मबरष्यं "इति ercean’ शरव्या वारे्यथः | प्रगाथस्य पश्यं पूवं मुक्षम्‌ ; ace पत्वं wy: खाम्यात्‌,- चत्वारः खराः, पणवोऽपि चतुष्पदाः

निविदानौयं पश्चद थच सृं विधे -- “care शु वौर्याषि प्र वोच मिति we शंसति" दति तदेतल्पथंसति -- “लदा एतत्‌ fra मिन्द्रस्य चुक्षं॑निष्के वश्यं हेरष्छस्त॒य मेतेन सिन

िरण्यम्मुप whrte wre प्रियं जामोपागच्छत्त परमं लोक

) मजयत्‌-दति 1. यदेतत्‌ ‘weer शु वौर्याशि water” -cher ( Wo १.२२ १--१५.) निष्कवस्यथग््र सुक्तम्‌, तदेतदिन््म् प्रियम्‌ ; हिरख्छस्तपनाशा मषिं णा इषटत्याद्‌ ₹ेरष्छस्तूपम्‌' Ate "एतेन इत्यादिना खष्टोक्रियति | सङ्किरसः पुतो frre सुपाश्यो मु निशतेनेव amare सुत्वा तदोयं खानं प्राप्ये masa लोका मजयत्‌

वदमं प्रथंसति--“खपेग्द्रष्य प्रियं धाम weefa, जयति परमं लोकं एव॑ वेद -efa

Com ्वनिविशेषं विधत्ते “eer प्रतिष्ामूर्, तप्रति- षिततसमया वाचा siete; तस्माश्यद्यपि दूर एव पशूल्लमते,

गनेषेनानाजिगसिषति ; गहा डि पशूनां प्रतिष्ठा प्रतिष्टा" tf) न्द्रस्य नु वोर्याणि"" इन्यसिन्‌ aa awe घमा- camera तस्य प्रतिष्ठारूपत्मम्‌ ww चपि ferfireq- लवात्‌ प्रतिष्टाक्षपाः ; तथा सतैयतममृकतं श्रतिहिततमया' cate

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११४ एतत्त ्दम्‌ `

म्बितल्वादिदोषरहितया अर्शः ध्वनिनोपेतया वाचा शत्‌ यस्माद्‌ दस्यानौयस् सन्य ध्वनिः प्रतिहठिततमः, cane - यद्यपि तृणमया ACE गतान्‌ Set एवावशितान्‌ पशून्‌ दिवस पुरषो ‘aaa’ पश्यति, तथापि ‘omer पशून्‌ सार्य कालैः ` wera (भाजिगमिषति' भानेतु ferent ; यस्मत्पशूनां HT: श्रतिष्ठाः चेनावस्यातु' खानम्‌ | दिरभ्यासोऽध्यायसमाप्यधैः ॥१३॥ शति चौमस्ायणाचायं विरचिते माधवोये बेदार्धपरकाथे

शतरेयतराघ्मयस्य ठतौयपश्विकायां दिती याध्याये qatar, Ww: ११ (२४)

वेदार्थस्य प्रकाशेन लमो हारै वारयन्‌ \. पमथाश्चतुरो Gare विखः\तौधंमदेभ्वरः

इति चोमद्राजापिरालपरमेश्डरवेैदिकमागीप्रवर्तक- यवोरवुकभूपालसासराश्यषुरम्नरमाधवाशार्याद्णतो ,.

मगवस्ा्णाचाये पिरचिे माधवीये वेदार्यपरकाशनामभाष्ये रएवरेयत्राद्मस्य ढतोयपञ्विकायाः दितीयोऽष्यायः

ER कि oot

भथ उतीयाष्यायः (aa) प्रशमः Sw,

॥ॐ॥ सोमो वै राजामुष्भिं्लोक मासीत्‌ तं दैवाश्च कषयश्राभ्यध्यायन्‌ं कथ मय Wea राजा- गच्छेदिति ते ऽबरव॑ग्रन्दासि ययं vd सोमं राजान areca थति ते सुपर्णा yates यल्छपर्णा मत्वोदपतंसदेतत्धौपकं frarearatee चत्त छन्दासि वे तत्घोमं राजान मच्छाषरस्तानि e तहि चतुर्षराणि square कन्दास्या-

ara लगतो चतुरक्षरा प्रथमोदपतत््ा पतित्वा मध्वनो WATT परास ग्रोप्क्राण्यकाच्चरा मत्या Sat तपञ्च हरन्ती पुमरभ्यवायतनस्मा- त्स्य वित्ता fen fat तपो' ae पशवः सन्ति जागता हि पशवो जगती हि तानाडहरदय (wey. पतता पतित्वा भयोऽडादध्वनो गतवाश्राम्यत्चा प्रगासयेक wat त्रयत्तरा भत्वा दिखा wot धुन- रभ्यवापतचस्यान््ध्यन्टिने afeat नोयन्ते जिष्भो खोक 'तविषटम्भि ता भाष्रत्‌ (२५)

१९१ एेतरथत्रद्कम्‌॥

वहया्ावेप्रभेदं प्रतिगण WUTC WMATA,

मत्योः सन्न्टयातिक्रमणं we मरतदिधानप्रश्॑सा |

तच्छेषा यं विशेषाः प्रतिपदनुषरप्रक्रमाः सप्तभागाः,

मिष्केवस्य' शख तदवयवक्ताः स्तोवियाद्याख पञ्च

अथ ठतोयसवनं वह॒ मादावाख्यायिका मा-- “सोमो वै रालामु्मिन्नोक रासीत्‌, तं देवाश्च ऋषयचाभ्यध्यायन्‌ ; कथ मय waa राजा ऽऽगच्छेदिति ; ते ऽहरुव॑म्डन्दांसि युयं इमं सोमं राजान माहरतेति ; तयेति ; ते सपश भृल्वादपत॑सते यत्सु पणा भूलादपतेस्तदेतङधोपणं सित्याख्यानविदे आचक्षते -इति। यस सोमवज्नो दुमलोक एवासीत्‌, तेतस्मिम्‌ लोकै तदानीं सोम मभि we केन प्रकारेण सोमो भागच्छेदिति देवा कषयशच विचारितवन्सः। विचायं गाथत्रयादौनि छन्दांसि प्रत्येव मनुवम्‌,-- छन्दांसि! waed सोम माष्टरतेति | तानि तदंङ्गोक्षत्य ‘7’ लोकप्रसिदाः aferdt भूवा gina प्रतु्रदपतन्‌ | यश्ादेवं तसात्‌ "एतत्‌ सोमार णप्रतिपादवं wera ATI’ भाख्यान भिति आाख्यानविदः' पौराणिकाः कथयन्ति

अथोत्पतस्त॒ छन्दःसु मध्य warden माह-- “छन्दांसि a aad राजान सच्छाथरंस्तामि तदि चतुरश्राणि चतु- र्रायेाव छन्ांस्थासम्स्ा जगतो AFCA प्र थमोदपतत्ा पति- Ae मध्वो TATA परास्य तोष्छच्चराण्यकाक्चरा भूता दौत्ाश्च तपश्च हरन्तो पुमरग्यवापतन्तस्मान्त्य वित्ता दोक्षा विसं तपो यस्य पशवः सन्ति; जागता fe पशवो जगतौ हि ताना- इरत्‌'"-इ्ति। गायभरयादिष्छन्दासि खत्वतने nani, तदानीं सोमम्‌ TR’ प्रापु ere तभ-तजावतरत्‌। तानि छन्दांसि,

ठतौवपशिक्षा ३।१। ere

तिन्‌ are चतुशचरोपेतानि, wa: पुरा ater चतुरथरा- शेवासन्‌-- मतु कश्चापि छन्दसो ऽचिका्रतासीत्‌ ततः धा जगतो चतुरशरा सतौ एन्दोऽन्तरेभ्यः सर्वेभ्यः प्रथमं प्रहता सोमं प्रत्युदपतत्‌। तवं मार्गस्य गत्वा अथ खानता सतौ शमषथात्‌ तौग्यश्राशि परित्यश्य खय terre भूवा सोम मातुं मयक्षयतौ सोमयागसम्बन्धिनों "दों दीशकोयेष्यादिकषाम्‌, ल्षोरपानादिकद्पं "तपः हरन्तो सस्माक्लोकादानयन्तौ पुनरेतं लोक मभि ल्य "अवापतत्‌ भधोशुखो समागता यस्मादेष सम्मान्नोके यस्थ पुरुषस्य पशवः afer, तेन Sher. ‘fawn’ सन्या भवति, ava लब्धं भवति टौखानपस्षीः जगता जमानौ- वयोः सतोः पशूमां तद्मयकारणत्वं कथ मिति शङ्गनोयम्‌ ; पशूनां जागतेन भरगवोहारा दो्ासम्बन्धसभ्यवात्‌ जगनत्व कथ fafa चेत्‌, जगत्या agen माकोतलादिति geen <अत एव शाखान्तरे wat were मानातम्‌-- "सा पमि दो्जया वागण्छनलस्माव्लगतौ न्दा mae, werent Zh aaafa’-sfa (ao do ६.१.६२.) tl

विष्टभो care are—“on freqeanen पतित्वा भूयो stteset Tararaen cree wet wren भूत्वा दिका weal yacanurrarnafien zfwor नोयन्त farsi लोके facfare ach awe” -इति | सा feed gree भूयो अयः पतित्वापि arrearelta भख्राम्यदित्न्वयःपः यच्पादैष

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Th VaTaarwMwey sy: दश्विलाः wat भागीतवतौ; तखाजिष्टमः खाने माध्यन्दिनसवने = rare: सवो SPAT ऋलिग्मिर्मीयन्ते १॥ ` बति यौमलायष्थावायंविरन्िते माधवीये रेदार्थप्रक्षाचे eaten: वृतौयपञ्चिकायां तृतौयाध्याये प्रथमः खण्ड; ( २५ )

ETD GPOEAD serous)

ee दितौयः खण्डः

ते देवा अश्रवन्‌ गायतं त्वं दमं सोमं राजान सादरेति सा तथेदय्रवीत्ता वे मा सर्वैण खस्ययनेनानुमन्तयध्व मिति तथेति' सोदपवन्तां देवोः सर्वेण ख््ययमेनान्वमन्धयन्तं॑मेति चेति चश्चेतद al खस्धयनं aq प्रेति चेति afa तदी- og प्रियः खात्‌ मेतेनालुमन्बयेतं मेति चेति चेति qua गच्छति खल पुनरागच्छति सा पतिर्वा सोमपालान्‌ Safad wt मुखेन सोमं राजानं समखभ्याद्यौनि चेतरे हन्दसौ TATE जहित तानि चोप समण्म्‌ शाखया भनु freee | RUS: सोमपालः CAT पटो नख मच्छिदसच्छ- RRMA STG नख मिव ACT AAAAT वगा- भवत्‌' तस्मारसा wfaferra यः शल्थो यदनौक

aareafeni tg i ae # इतोधचद्धि्ं 1: ee ane

मासीत्‌ सर्पा निदेश्यभवत्‌ ` eee शलो धानि = पर्थानि ते मन्धावला यनि क्लावानिं ते गरष यत्तेजनं सोऽन्धाहिः सो सा तथेषुरभवत्‌ (Raya

wa गायवोढठत्तान्त माह-- “ते देवा हुवन्‌ नायत्री-- लै ACH सोमं राजान माहइरेति; सा तयेत्छत्रवोत्‌ ; -तांष्मा सर्वेण खस्ययनेनानुमन्धयध्व मिति ; तथेति ; सोदपतनतां शेषाः सर्वेष स्ययनेनान्वमन््रयन्त,- प्रेति चेति चेति; एतै सवै . खस्तायनं यत्‌ प्रेति चेनि चेति; तण्छोऽख्छ प्रियः ary भते नायुमन्तेत प्रेति चैति चेति, wees गच्छति afer पुनरः गच्छति," afar जगतोविषटुमोः सोमातग्रनसामण्योभार्व हहा तै शताः मायं प्रायितवन्तः। 2 गायि | एव नः" अमद fat aia माररति। साः गायच्रौ तथेत््गगेष्लत्य देवानं प्रेव मब्रवीत्‌, देषा; ! यदा षं सोम मानेतुः गच्छामि, aq ता मेवं गच्छन्तो मां युयं सर्वेऽपि यथाकति ede agra ware’ Game स्मस्तपयनम्‌, तदथं साध्यौ. यादरूपेश ware ममानुमन्वणं geafa; एव सुकना तथेति दवैरङ्गोज्ञते सति ‘ar गायकौ greta wager मकरोत्‌ तदानीं देवाः खागतप्रकारेष सर्वेणापि चेमप्रापणशमन्वेय गायत्री मनुमन्धितवन्तः | कोभमौ मन्तः? इति-प्र-यष्द दको मन, 'अाः-गन्देा दितोयो मन्तः; मदुमयप्रदशेनाय मितिगष्दहयम्‌ उभयसमुषवां wane) saw सोमं myfe, पुनरि चेमेषागब्डेति | भव माभोवादो मन्तरदयकाजेः पतदेव मन्न ua समै सस्तायमं ्-दतेकम्‌, भाति दिती प्रद मिः

११४ -एेतरिवनोदम्‌ 4

इतोऽधिकं नान्यत्‌ erry मस्ति -यखादिद भेव wide. प्रापकम्‌, तस्मादिदानौ सपि यः पुमान्‌ arent जिगमिषुः ‘we’ awerfam: प्रियः खात्‌ ; तं जिममिषु प्रलयेतीतिमन्ब. इयेनानुमन्धयेतं ; तेनाश्ौर्वादप्रसादेनायं Sireq गच्छति पुनः दगच्छति |

ca’ प्रासङ्धिकं सोकिकाविथि सुका प्रह्नत मेव गायतौ- हन्ता मञुसरति-- “सा पतित्वा सोमपाणान्‌ भौपषयित्वा ust सुखेन सोम॑ राजानं सम्छभ्णाद्‌, यामि चेतरे ama अ्षराण्डजहितां तानि चोप समण्टर्शात्‌”-इति ! सः गायत्रो पतित्वा" उत्यतमेन सोमं प्राप्य गन्धर्वान्‌ खानभ्राजादोन्‌ सोमरचथकाम्‌ रस्फाटनायुधप्रदशंमादिना भौीषयिला,-- भीत्या तेष्वपडतेषु खयं afer सती खकोयाभ्यां पद्यां सुखेन सोमं सम्यग्‌ ङौ तवतौ खानजाजादोनां सोमपालकल माध्वयेवे सोमप्रकरणे मन्त-तद्राह्मशाभ्या मवगम्यते | “खान अआाजाई्गरे TAT इस्त सुस्त लग्यानबे ते वः सोमक्रयणा स्ताव्र्षप्वम्‌”- इति ( तै" Wo १,२.७. ) मन्धः, “खानशराजेत्यादेते वा cafes सोमं ATE’ ahs (Fo do ६.१.१०.५.) ब्राह्मणम्‌ केवलं गायत्रो सोम भेव ग्ड्टोतवतो, fang ‘cad’ जगलो जिष्टभाखये axa "यानि" चलत्वायंशराणि “भजडहितां' परित्यक्षवत्यी, तानि चोपेत्य सम्बग्‌ yl `

सथ तस्या गायथा AAAS युहे यो sara दथ- ufa— “cen wy विदश्य any: सोमपालः ware पटो we मच्छिदत्‌ तष्छस्यकोऽमवत्‌, cured we मिव ; यदश भख- वत्‌ सा वथाऽभवत्‌, vere इजिरिव ; भथ यः welt वदनोक

इतौयप्धिष्या ।-४।२॥

शालो wat निदेग्डभयत्‌ ; awe: खणो ; वानि -व्दीमिः ते अन्धवावला ; यानि ararfar F गण्डा; यत्‌ Kast Stove; wt सा तेधेषुरभवत्‌"-इति खानभ्वाजादिष सोमर थः ष्मो werd: क्थाङेनामकः, dist तद्या मायश्या अणु इतो तराणं fram तदौयस्य वामपादस्येकं नखं fewer ae नके wea मकंटशरोरपरिमितः were खग erie) यख खगस्य पुच्छसमोपे वहवो रोमा; प्रारेणप्रमिताः सोशछाया atte- सया STITT, शल्यकः यस्मादयं नख्वादुत्यशष्तआण्च मखं मिव तोच्छाप्ररोमोपेतः। ततर शिवगखपादप्रदेमे यद्‌ ‘et मेदोऽस््रवत्‌, सा वशा ` मेष्या, काचिदजा wanfeagy साभोत्‌। "तस्मात्‌ wera sear ‘ay वणा (हविरिव टेवतायोन्यै हविरवामौत्‌ | तव हविषः arent अयते-- “एला भिव वशा मादिवयेभ्यः कामायाशभत'" इति (त° म॑०२...२.२.४) | we नरृच्छेदमाय गन्धर्वेण विरा वाणः, सोऽपि नखसहषनेन कुरिटि- ताभ्यो कषुधा wen ममिप्तितः। wer वाणस्य यः ‘vet’ ऊष्णायमनिर्मितो are च्यापितः, नस्य mere यत्‌ 'अनोकं' सुखं घषटनन कुमिहन मामोत, ‘ay aa wer, वदनम कामको वाशभामो ‘fret दंगनाममथंः wat ऽभवत्‌ ;-- जलमध्ये TATA डग्डभाख्यस्य ager fracferwe दंशनः सामय नास्ति तस्म त्क गिर ताग्रद्य लोषश्य योऽय ‘ew: वेगः, तस्मात्‌ “awa, वाण््रेगात्‌ ‘asa खभयतः-णिराः सर्पी (मवत्‌ सस्य वाशस्व मूले यानि पर्णानि" ayaa, 8 भन्ीवलीः अभवन्‌ ये Stefanie ठथचथाखषस्वधोलुषछा weet, ले स्वसा: तद्धिम्‌ वाने यानि णानि" ` wertrnenirity

14

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छागुविेषाः, ते गश्डूपदाः' सभुवम्‌ अवसखारादिखयनेष 2 aut जायन्ते, तै गण्डूपदाः तसन्‌ बाणे यत्‌ निजने" लोहपत्रव्यति- fea’ कां, सः 'भन्धाहिरभवत्‌' दृषटिरडितः eats (तथाः तेनोकषप्रकारण षुः गन्धर्वेण gat awe (सो सा अरभवत। 'उ-गब्दः ATTA ; साच सा चेत्युक्तं भवति तथोक्ते सति तत्तस्लातिः निरे शिसपादि्पेतयुकषार्योपसंश्चारः

पति ्रौमक्षायणाचार्यविरचिते माधवौये वेदार्थप्रकाे रेतरेयब्राह्मणस्व ठतौयपद्धिकायां भयोदशाध्याये दितौयः खण्डः (२५)

भध ठतौयः खण्डः |

सा यदचिणेन पदा समण्मणात्तसातस्सवन मभवतङ्गायती मायतन मकुरुत तस्मात्तत्थरद- तमं मन्यन्ते सवषां सवनाना मयियो सुखो भवतिः Heat मरुते एवं वेदाथ AMAA पदा समरम्‌ णा्षम्माध्यन्दिनं सवन मभवसद्िसंसत तदिखरतं नान्वाप्नोलमष सवनं ते देवाः माजिन्नासन ' तसि - fenced छन्दसा मदपुरिन्र' देवतानां तेन तत्छमा- ale THAT सवनेनोमाभ्यां सवनाभ्यां समा-

+ ढतौकरचिन्रा ३।२॥ १९१

wetahat समावष्वामौष्या cif एवे Sere वम्मुखेन TATU तृतीयसवन Aree पतन्तौ रस मधयसकीतरसं aang -सवने' ते देवाः प्राजिन्नासन्त तत्यशष्वपश्यंसद्यदाशिर म- नयन्याज्येन पशना चरन्ति तेन तश्समावरर्ब मभवत्ूवाभ्वां सवनारभ्यां सवः waa: समावोर्यः समावस्बामोभो राप्नोति एवं Fz (२७)

wa ठतोयसवनाथं सवनश्रयस्योत्यत्ति' दथयति--““सा यद. feos पदा aurea मभवसद्वायत्रौ भायतम AVIA; Aare मन्यन्त सर्वेषां मवनानाम्‌ ; अभ्रियो yer wate, ase मयते एव॑ षदा यत्व्येन पदा ETAT ऋध्यण्डिनं सवन मभवसदिखंसत, तदिख स॑ नाग्वापरोत्पवे सबन ; देवाः प्राजिन्रासन्त तस्मिंस्तरष्टभं wera मदक रिग््र देवतानां; fq श्चमावदहोयं मभवत्पूर्वश सखवनेनोभाभ्यां खवनाभ्यां षमा- वदर्याभ्यां समावल्जासीभ्यां रा्नोति एवं sere ayer सम. vary तन्तुतो यद्वन्‌ ममवत्‌'"- इति “ar गायव्रौ सोम मान- यन्तो दधिणन ‘war पादेन ‘aa’ यावत्‌ सोमस्य खरूपं ayia. वतो, ‘aq’ तावत्‌ प्रातस्मवन मभवत्‌ | तश्च प्रातष्यवनं "छा गायती खकयं खान मकरोत्‌ | तसात्‌ तसर्वेषां सवनानां मध्वे अतिशयेन wre fafa afer मन्धन्ते ; ae प्रयोगवादुश्य Barer यः "एवम्‌" उक्ञाधं वेद, खकीीयागां मध्ये ‘ae:

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30: सन्‌ frremfieent Saat anf 1) we ता art वामपादेन यत्‌, सोमच्य सरूपं ब्होतवतो, तग्माध्यन्डिनं सवनं वि्लस्त मभूत्‌ ; वामपादात्‌ "तत्‌" तत्र॒ “विक्लस्तं' गितं तत्‌ माध्यन्दिनं सवनं पूर्वाक्ञप्रातस्छवनाङुगमनाय शक्तं नाभूत्‌ तै देवा विचार्यं तस्िन्‌' माध्यन्दिने सवने खामिलेन छन्दसां मध्ये निष्टुभं देवतानां मध्यं इनदरः खा पितवन्तः तेन ee माध्य- fed सवनं प्रातश्यवनेनं ae समावदीयं ' gears मभूत्‌ चक्षाधैस्य वेदिता Awana मत एव तुख्यजातिभ्यां सदह भवति जामो'- शब्दो जातिवाचौ # ; तुखजातिभ्या fara:

अध गायत्री मुखेन यश्ोमखरूपं AVA, तव्‌ ठतीयसवन मभूत्‌ तस्मिन्‌ सवने तु ऋजोषसर्पे frat सोमे भाशिरा- fet विधत्ते “om पतन्तो रस मधयत्तचोतरसं नान्व परोप सवमे ; ते देवाः प्राजिज्ञासन्त तत्पमशष्वपश्यंस्सद्यदाशिर मवन- यन्तयाच्येन पशना चरन्ति, मेन aA ममवत्पूर्वौभ्यां सव- नाभ्याम्‌” दति | सा Tae रुखेन छतौयसवनरूपं सोमं ग्टहोला STATE पतन्तौ AS MAM "रस Aqsa’ सारं पौतवतौ तत्‌ उतौयसवमं ‘ata पौोतसारं भत्वा gate प्रातस्सवन- माध्य्दिनिसवमे अनुगन्तुः नाशक्रोत्‌ ते देवाः तत्प्रतौकारं विचायं aurea ‘agg भपश्यन्‌' पएषु alt यदस्ति, यश्चाज्य मस्ति, यदपि wearay मस्ति, च्छवे सारम्‌ तस्मान्‌ पौतरसे सोमसम्बन्धिनि जोष “आशिरं aica 'अवनयन्ति' सिच्चन्ति यात्रिकाः, तथा भाज्यपश्यम्यां “afer wafaefa तदानीं

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पतिरेकवालिग्रसमानजातौवानां वाचकौ 'जामि-श्दः "इन्यादि Sacra Tat निषष्णतिः ( ४,१.४९. ) | fate 20,454 1

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, द्रतौयपरश्विका ह| eRe

Bw अनुष्ठानेन oy दतौयखवनं qiearnat qed मभूत्‌ अव सर्वः सर्वोऽपि erent: eyrwrerre: “ane वादिनो वदन्ति,- कस्मात्‌ स्यात्‌ गायको कनिहा erates सतौ awed परोयाथैति ; यदेवादः साम are, तस्माच पर्येत्‌, तस्मात्तेजखिनौतमा ot इं सवन समरन्नाश्ुखेभेकं यग्मुखेन समणग्डह्नात्‌, Asay; तश्माद्‌ हे सवमे शुक्षवती प्रातस्छषनं माध्यण्दिनं ; तस्मात्‌ ठतोयसवन wily afer षुरन्ति,-धोत भिव fe मन्यन्त भाजिर मवनयति सषएक्रल्वायःः ~tfa (Ae Ho ६.१.६.२,४. )

वेदनं प्रं सति - “ad; aaa: समावदौयं; समावव्णामौभौ- राप्रोति एवं वद द्ति॥३॥ afa यौमव्तायशाचायं विरचिते माधवौये ेदार्धप्रक्षाये रैनरेयत्राद्मणशम्य ठलौयपश्चिकायां कतौ याष्याये wate: Bay: (२९)

| wires - es er ree

पय चतुथः खण्डः | तेवा ta cat कन्दसी' ma मभ्यवदेर्ता fad नावच्षराण्॑नु पर्यागुरिति नेलब्रवीद्‌ गायब यथाविश्त मेव दरति ते देवेष प्रश्न मेतां वेदेवा अत्रवन्‌ यथाविक्तमेव वदति तस्याराप्ये तहिं fret व्यादुयंधाविष्त मेव एति ततो aT WET ET |

१२१ रितर्य्॑राश्मणम्‌ |i

गावकशाभवक्षाच्तरा चिष्टवेकाच्चरा जगतौ सा्टकषैरां mat प्रावस्सवन मुदयश्छन्नाशक्रोत्‌ विष्टपम्‌ ATE माध्यन्दिनं सवन aaa तां गायचात्रवीदायान्यपि . मैऽचास्त्विति सा तथेलव्रदीत्‌ शिष्टप्‌ तां वै मेतेर्टा- भिरचरैरुपसमे रीति तथेति ता सुप्र समदधारेतद तद्‌ गायज् मध्यन्दिने यन्मरलतीयखोन्तरे भति- पदो यश्चानुचरः सैकादशाक्तरा भृत्वा माध्यन्दिनं AIA मुदयच्छन्‌ नाशक्रो्जगल्येकाच्चरा ठतोयसवन yay ताङ्गायनाव्वीदायान्यपि Asarfeafa सां तश्नरवीच्छगतौ तां वै मैतेरेकादशभिरक्चरेरपसः- खेहोति तयेति ता मुप समदधादेतदे तङ्गायना ' ठतीयसवने' यद्े्देवस्यो त्तरं प्रतिपदो warez: सा दादशाचरा भृत्वा ठतीयसवन मुदयच्छत्ततो वा अषटा्चरा गायचभवदेकादशाक्तरा fared gre. WTA जगती सर्वेन्कन्दोभिः सवावदर्येः ' समा- वञ्जञामिभी राप्तोतिय एवं वेदैकं वे सत्‌ तच्चेधाभ- वक्षस्मादादुरदातव्य मेदं विद्ष seta हि सत्‌ तततेधाभवत्‌ (२८)

ननु पूर्वत सर्वाशि न्दांसि चतुरक्तराणोलयुक्षम्‌ ; तेष्वपि तिष्टुम एक मकरं गतम्‌, अगला त्रौष्सराणि गतानि, तथा

, कतीयपञ्िका ३। ४॥ १३४

सति सर्वश्रुत्यन्तरविरोधः ; तेषु शव्यन्तरेष्व्टा सरा मायभौ श्कादशाच्चरा तिष्टप्‌. crema जगतोनि सर्वत wae: wy- Bra तथव क्रियत ; तत्कथं विरोधपरिषशरः ? दत्याख्यायिक्षया परिष्टारं दश्यितु area. - OF ar eh cat weal गायती aaagat,-- वित्तत्रावत्तरारटमुपर्यागुरिति ; नेग्यत्रवोद्गायक्ती

- वधाविक्तं मेव षति); तेदेवेषु प्रय॒ नां; a aa भव्रुवम्‌,- यथ्रावित्त मेव इति ; तस्मादाप्यतष् विद्यां व्याहयंधा वित्त रेव

दूति; ततोत्र wert गायतामवत्‌, तम्रा वविषटडेकाकया जगतो? fa a क्पन्‌ूजमन्प पृरा स्कौयान्य्षराखि पटि- त्यक्षवत्या, एयद्रम ‘eae’ गायव्रोव्यतिरिक्र weal गायनौ मभि wa wena मुक्तवन्या,-- गायति! ay त्या ‘fad’ wa अधिय मत्तरचतुष्ट्म, dean al’ विष्टबूजगलयो- रावगोः; aaa नानि चत्वयत्राखि -अनुपर्यागुःः भवां िवजमन्यावतु च्य ater श्रागच्छस्त्विति गायव्रौ तयी ददने मति fauna एमन सुप्पसि मन्रवोत्‌,--- नः" were waaifaa मेषः aa भनलिश्िम्येव aifna युक्नम्‌ ¦ यदसु येन a4 नत्‌ तथ्यवति शिकन्यायः | dant fama ‘a freq. ara ay Pa TA प्राप्रुताम्‌ ! टेवाः | कयं धायः बलति नयौ प्रप्र; a tay उत्तर मैव मध्रुवन्‌ -- ‘ay युभाकं faant anfan मेवाक्तर काम युक्ति | wey रैषैरेव मुक्त rae तत एय कारमादिद्रानौ मपि विया ae चित्‌ पुरुषस्य दर व्यन्‌ 3 | aay ‘ane: faafaua ufa AITATLAT HT qs भाडः,-- नः' waa सर्वेषा मपि लम मनतिक्रम्येव MNT

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RRS : हैतर्यत्रान्नर्दम्‌॥ श्त ष्ति। युष्ठादौ जये सति परसेनायां प्रविश्य थेन क्त;

तैनैव तद्‌ ema इति वक्शा मभिप्रायः। देवैन्याये तिर्णीते सति तदहं गायव्रौ wath: सखभावसिरैषतुरसयैनस्पैबतुर. छररपि सय मष्टात्तरा अभूत्‌ | fara: पूर वर्तमानेषु चतुव, कातरस्य TARY AAs सा, तधा जगव्या्तुरकषरेषवश्चर- FAY गतल्वादे काक्रेव सा HAZ |

taal चिष्टुभोऽक्षरत्रयादधिकाना wart प्राभिप्रकारं दयति ^ साष्टात्तरा areal प्रातस्सवन्‌ ATLA MAY faeq arau माध्यन्दिनं क्षवन मुदयन्तु; तां गायज्रात्रवीदा- यान्यपि मेऽास्िति ; सा amanda faga वां वै,-- मैतै- र्टाभिरक्तरेरपमन्धहोति; तथेति ता मुपसमदधाद्‌ ; एतद तग्रारं yay मध्यन्दिने यन्मरुत्रतोयस्योन्नरे प्रतिपदो यथानुचरः मैका- दशाक्षरा भूता माध्यन्दिनं waa मुदयच्छत्‌' -द्ति। ar इव मष्टाक्लरा Wal प्रातस्सवनम्‌ (ठदयच्छत्‌' उद्यमनं निवा तस्य प्रातस्वनस्याकरोत्‌ | या तु लिट्‌. सेयं क्षराः अन्नर- घछ्रयमातेण gat सतौ माध्यन्दिनं सवनम्‌ "उदयन्तु" fate नाभ- करोत्‌ ‘am saat fred दृटा मायन्नौ एव मत्रवौत्‌,-- ‘sraifa aera ay मागच्छानि भे ममापि श्रवः wfaq माष्यम्दिने aaa भागोऽस्ति तदचनम मङ्गोकछलत्य सा त्रिष्टुबेव मव्रवोत्‌ "तां बै' तादृशौ गायतौम्‌,-- wae भेव ‘av मां खकोैरतैर्टाभिर्नरेः 'उपषन्धेहि' सामोष्येन सन्धानं We, प्रविधेत्बथः | त्वन ayaa सा गायत्रौ ‘ai fag. भम्‌ 'ठपसमद्धात्‌' waldcerfacert: प्राविशत्‌ कोऽसौ गायका , लब्धो माग शति, उद्यतै-- 'सरत्वतौयस्य'

| कः दतोयपशिका।।४॥ ere

wee उत्तरे प्रतिपदः a त्वा रथम्‌"-दत्यस्मिन्‌ ` आरण्भरूपे दये प्रथमाया उत्तरेये दे ऋषौ प्रतिपदौ meek विदयते +. ae `इदं वसो सुतम्‌''.- द्त्यनुचररूपस्मुषः पै ; सदैवेतर कपशचचकं मभ्यन्दिनिमवने गायक fret दसम्‌ ;-- साच weet गायतो च्छन्दस्काः ततो गायतौप्वेभाव्‌ ‘ar’ faery एकाटभाक्तरा yar माप्यन्दिनं मबनप्रयोगम्‌ -छदयष्छत्‌' faraez

अथ TUM. स्वजोयाटेकम्माद्तगादयिक्षाना eae भ्रापिप्रकार दगयति-- “aomm®eraaagran oat gary, at सायत्रत्रसौदायान्णपि समेऽवास्विति ; सा aia जैवौञ्जगनौ ; तां मैमेगकादगभिगकतररपमन्धष्टोति ; तथनि ; ला सपममदक्वादेनद्र लद्ायत्र इनोयमवने यदेण्बदूषस्थोतरं

(तषट) “अनुचरः, सा genre भुत्वा sath

wees ति वेश्बदेवम्व्य प्रतिपदनुचर्वुपरिष्टादुदाङ- Feary |

उक यथ निगमयति - (मनोवा asia mera. zanna चिद्व, इदग्र जगतोः इति a

वदनं प्रणमति agate मभ(वदीयः aniee- पभो रा्ालि णवं वदः - ईन)

{भ-~-ल्म Ye $ = कवत Hh , agiataeiaia ROY > प. Rae उन्नाद ११२ Fo te) शेपम "पदधस्न्य - इनो 2 tary « " To पं५ “actrqal-tearfe gear ङः as ०८.६८.१३६ द'त १, SP 24,9 [न थध, वनि परश्च, = +

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१३१ रएेतश्यत्राद्मणम्‌ tf

maat विपरैषख प्रशंसति -- “एकं बे तत्‌ तेषाभक्तशा- दादुर्दानव्म मेवं विदुष cat fe तत्‌ तेधाभवत्‌"-इ्ति) ‘aq गायत्राः खरूपं पूवं चतुरक्चररूपैणेक मेव, तत्पश्चादधिः काक्ग्चतुष्टयत्नसम्परादमेन खकोयाना मष्टाक्षराणां तिषब्‌- जगत्यो; प्रवेशेन वेधा श्रभवत्‌ | यम्मारौदटशौ गायत्रा भद्धिमा, तस्मात्‌ “एवं विदुष मायतौमद्धिमानं न्रातवते years लोके गोसवर्गणदिकं दातव्यम्‌, “cfr एवं धमरदस्यविदः प्रादुः VMAS: मक मैव सत्‌ aunty, तस्मात्ते दान्‌ मुचित Haare? पुनवचनम्‌

sfa steumqraiafatet भाघमोये वेदाथप्रकाये

एलरेयत्राद्मणस्य छतोयपष्िकायां ठतो याध्यप्य SRA: खण्डः we (az ys

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A eu अ्रषन्नदिव्यान्‌ quifated wae मयच्छामेति त्ति तस्मादादिलारम्भयं watz uaa मादिव्यग्रहः पुरस्तात्तस्य यजलयादिद्चासो दितिर्मादयन्ता fafa मद्या स्पसमृदया मदद ढतोयसवनस्य eu नानुवषट्‌ करोलि' म्यति संख्या वा एषा यदनुबषट्‌कारः संख्या भः प्राणा

कतोयपशिका | ey us १९६

wifeet मेव्याणान्त्यंस्ाप्यानोतिं त॒ भादिला अश्वन्त्सवितारं aid सह मतन मदाच्छामेति तथेति तस्मात्‌ सापि प्रतिपद्‌ भवति वैश्वदेवस्य साविनग्रहः पुरस्ता gata दमूना देयः सविता वरेण्य दति aaa qrsasat wea wala. भवनस्य ed नानुवषटर्‌ कमत भक्षयति der AT प्रषः agave: संख्या भन्तः प्राण; मविता aq प्राणं सस्यापय्ानौत्यम षा एप णले सवन fafuafa यत्‌ सविता म्रालम्सवनं र्‌ तौयमवनं न्‌ ` तद्यन्पिवत्सार्तिवैय निविदः पटं धृरम्ताद्‌ भअयति मददधर्ष्टिदुमयोरवेनं तत्मव्र- ay pata म्रातम्मवन तुनायमवन बन्राः प्रात्थ (ः Wat एक तर्त) धमवन तस्मादु: gare vate: श्राणा यत्तावाञ्चा द्यातरापुयिवीय णंसलि द्दवापुर्थिवौ चं प्रति दय मेवे प्रतिष्टा mada age दावापृधिवौधं vata प्रतिष्ठयो Tada त्त्‌ प्रतिष्ठापयति ys (ee)

एय तावत्‌ ठतीयमवन पयन्‌ dearer वकिना ` सय ठनीगमवन wea, aa eazfaarenat, ale

सङ्ह्यतं -.

११२ दिरयत्राह्मणम्‌ #

स्थादैश्वदेवे सवितुः युनसुतिर्याव्याए्चिष्याभिवपेष्वरेविका ! वैशखानरोयं मरुतां शंसनं qaindser भिष्टागिमारूते छनौयसवनस्याद(वादितयप्कं विधत्ते-- “A रेवा Wqaat- दिव्यान्‌,-- युभाभिरिदं सवन सुद्धक्छामेति ; तथेति ; तस्र. दादित्यारश्णं, ठनौयसषन मादिलखग्रदः पुरस्तात्तस्थ-$ति। छतीयमवनं निवना aaa waceut afd मवगतवन्तः # नते देवाः “भ्रादिन्यान्‌' meagan प्रत्यव मन्नुवन्‌,-- डं श्रादित्याः! gurfa: सहिता वयम्‌ इद ठतौयं सवनम्‌ “खयः wa (ate करवामद sia आदित्याय तघेत्यद्घोक्तवन्तः | Tera safzernfen’ प्रार्थितम्‌, तस्माद्‌ ्रारित्याः tay दतौयमवनम्‌ः अदितखग्रहः आरम्भण सर्वेषां ग्रहाण मादौ यस्य सवनस्य, तदिट मादित्यारम्धणम्‌ | एवां श्रादिष्ध ग्रह दू्यादिना स्यषटोक्रियते ~ ‘ae तलौयस्वनस्य Granny श्रादौ श्रादिव्यदवलाकी ग्रहः क्तव्यः | तस्य uve oer विधत्त -- “यजल्यादिन्धासो afefe- मादवना fafa महत्या सयसन्रडया,--- ave ठतौोयसतव्रनस्य ष्पम्‌ -ईति। दादित्यसः भ्रद्धितेः gat आदित्याः; तेच तन््ाता शश्रदितिः (मरादग्रन्ताम्‌ weet तुखन्तु इति एषा ( Ho ७. ५१.२. ) याज्या मदतौ ; “मदौ दषे '--इत्यस्मा- ातारत्परतरन सछब्देनं युक्ता तस्या मादिल्याना afeiq waaay विवक्तितदेवताविषयत्न Koma | तृनौ यसवनसछ स्वरूपम्‌ ` महं " हर्पोपेत मेव ; aaa देवतानां यजमानान afant vata: |

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ठतोयपञ्चिका १।५४ १२१

दतरग्रडवद्मसक्वावमुवषट्‌ HAG sfagula— “ararae, करोति, waafa, den वा एषा यदतुवषर्‌कादः संख्या भक्षः, प्राणा भआरादित्या, नेग्रायाम््संसखापयानोति-इति। भनु- वषटुक(रभचूयोः ग्रहममसिरूपलत्वादादित्यानां arweqcer- afeare समाप्यं (न्नव समापितवान्‌ भविष्यामौति Went तस्लमासिरूपावमुयषर्‌कारभन्तौ कुर्यात्‌ नंत्‌"-इ्ति पररिभवद्योतनाथो रिएादः

भथ सावित्रं we वैष्यदेवशष्तस्य प्रतिपदं विधत्त —“a श्रादिचा santa स्वयेदं ae waa सुद्यच्छामेति; तथेति ; aanatfaat प्रतिपद्‌ भवति वैश्वदेवस्य, सावित्रग्रहः gear यजति, दमुना टेक सविता वरेण्य इति ave रुपसखदया,- - wee ater वनस्य रूण ; नानुवषट्‌ करोति, a भक्षयति; संखा वा पा यदनुवषर्‌कारः, संख भक्तः, प्राणः सविता ang स॑स्ापयानी नि"? fa |) वैश्वदेवशस्तस्य ““तस्मरवितुवृ पोमड़"-- तेषा (Ho ure.) सविटदेव्रताका प्रतिपत्‌" प्रारमरूपा Bia #। “"ट्मना द्त्यादिक ग्रस्य याज्या साच संदिताया मनाश्छातल त्सूतर कारण पठिता | तस्यां “wea fava: - इति मदि" चातुः aga: ; तस्मादियं महतो | भम्ध- aa मादिग्यग्रडवद्‌ व्याख्येयम्‌ |

परथ निवित्पयद्दारा सावितप्रहं wiefa— “ou ar एष एतं सवने विपिवति यक्सविता, --प्रातस्मवनं ठलोयसवनं ; तखत्‌ पित्रवव्साविततैय निविदः पदं परस्ताद्‌ भवति, मददुपरिष्टादुभयोः (aa तव्वनयोराभजति, प्रातस्सवने ठतौयसवने च-इति |

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प्रायः tte y. ४८ 4 आद्र MWe ५४.१८.९२)

११४ | रितरेयनराश्मर्थम्‌ 1

awe देवता य; खवितास्ति, एष देवः प्रातस्वनं दतीयसब्नने way उमे अपि सवने ‘fafuafa विलच्चशत्वेन पिदति1 ana? इति, तदैवोचयते-- वैश्लदेवशस्तरे ‘afar सविढ- देवलाकाया fafae: पदं "पिववत्‌' पिवतिधातुयुक्कं पुरस्तात्‌ wer भवति, 'महत्यदंः मदिषातुयुक्तम्‌ “उपरिष्टात्‌ अन्ते मवति | तैन श्रातस्सवने ठटतोयसवने च' उभयोरपि सवनयोः ‘aw सवितारम्‌ (आभजति' भागिनं करोति “सविता दवः सोमस्य पिवतु इत्येतं ( fafao ४.१. ) निविद आदौ प्रगुज्य- मानं पदं ‘fara’, तथान्ते प्रयुज्यमानं “सविता देव re safes सोभम्य waa” -इनि ( निवि ४.१५. ) "महत्पदम्‌ ्रप्युदाहरणौयम्‌ : तयीरुभयोः प्रदयोः सवनदयरूपयो; पिल - ्षणत्वाकवितुः पान भिति विलक्षण मिति द्रष्टव्यम्‌ णएवं- विधसविठटेवताकल्वान्‌ प्रगस्तोऽयं ग्रह इत्यभिप्रायः श्रवा निवित्पदविधानायं मिदं वाक्यं द्रष्टव्यम्‌

अथ तस्मिन्वेश्वदेवभास्व “एकया दशभिश्च WAR” -दयेतां वागुदेवताका ad विधत्ते-- “aan: प्रातवोयव्याः शस्यन्त, एकः ढतौयसवने : तम्प्ादूहाः पुरुषस्य भूयांसः प्राणा agrarsy.”~ ष्नि। “arqeian:” -दलयाद्याः ( श्राण्वण FYo ५५.२३.) aaa way ART प्रातस्सयने शस्यन्ते, ठंतौयसवने तु एकव पूर्वी दाहृता ; तसात्‌ Wawa वाथुदेवताकानां WITT पुरं षस्यापि प्रानःसवनख्ानोये qa वर्तमानलात्‌ ‘wet: चनु घ्रौणद्यः प्राणाः" भूयांसः, we’ ये कैवित्‌ ware: नाभेरव).

# साच महितः समानरतिति पत्रकोरेश पठिता भार या ५.१८. द्र

हनोयपञ्िका at ६॥ ery

St हछतोयसवनस्थानौये देये वत्तमानाः argperedt sare: | आणा, satiate इति शेषः 4

तस्िन्ेव वैभ्वदेवशस्ते द्यावाष्यिवौदिवताकं सूनं विधत्त-- ‘ararafaata शंसति, द्यावाप्रयिवौ वै प्रति्ठे--द्य Faw प्रतिष्ठा ऽभावसुत्र ; तद्द्‌ दयावाष्रधियोयं शंसति, प्रतिटयोरेषैनं तत्‌ प्रतिडापयतिः'-इति ¦! ‘ae मनु्यजम्मनि मेव भूमिः प्रतिष्ठा" आश्रयः; “Oya जन्मान्तरे “Warde erate: श्रतिष्टाः ara) एवं द्यावाष्धिव्यावेव प्रतिष्ठे यस्मात्‌, तस्मात्‌ तदौय- सुक्तथंमनन ग्नः gana प्रतिष्टारूपयोदयावाएयिव्योरेवावस्था- परयति ॥१५॥

afa शपन्छाययाचाधविरचिते माधवीये deriva

Qatyqaraee तृतौ यपल्धिकायां ततौयाध्याये पञ्चमः खण्डः (rej)

Oe Ore cere = eet

| अश OE: Wag, ||

ad waeaat वै देवेषु तपसा सोमपीथ मभ्यजर्यस्तेभ्यः प्रातस्सवमे बाचि कल्पयिषं्नानम्नि- बक्तुभिः प्रातस्सवनादनुदत' AMT माध्यन्दिने सवने ar .f- | रि न्दर ty Lal ara Renda? रद्र माष्यन्दिनित्यवना- i ~. ~ 9 | द्नुदत तैभ्यस्तृतौयसवनं वाचि कल्ययिषंस्तान्‌ = 1 i ae ^ 1 विश्वं देवा शअ्रनोनुद्यन्तं ae Tafa नेहेत

१२६९ & तच्यब्राद्मशंम्‌ `

परजापतिरन्रवौ्धवितारं तव वा इमे ऽन्तेवासास्‌ त्व aif. सम्पिवस्वेति' a तथेव्रभौत्घविता ava सभयतः परि पिवेति तान्‌ प्रजापतिरुभयतः यं पिवत्‌ ते एते धाय्ये अनिरुक्ते प्राजापतये wea’ अभित Wa Gera मृतये ऽयं वेनश्चोदयत्पश्रि गर्भां इति प्रजाप्रतिरेवेनांस्तद्भयतः प्ररि पिव तस्मादु ष्टौ UT रोचयल्येव यं कामयते तं तेभ्यो a दवा अपैवातरौमत्सन्त मनुध्यगन्यात्‌ एते UT अन्तरदध्रत येभ्यो मातैवा पिव इति॥ (३०)

“प्र द्यावा aa: एथिवीए्‌ ऋताव्रधा"-शवयेतत्‌ व्यावाण्रथि- Std मृतं ( सं” २,१५९, १, ) विधाय, “तक्षन्रथं सुव्रतम्‌” दवय सत्‌ ( स" १,१११. १. ) and aa विधत्ते “mid शंमति"- ति कभुनामकारेवा यस्मिन्‌ सृके सन्ति, तदिदम्‌ “प्राभवम्‌ ' ; तस HAR प्रधमाया खचि ठतौयपादे “aay fren waa.” इति वरेवताकलं प्रतोयते

श्रध धाय्य तरिधातु माख्यायिका माह-- “ऋभवो वै By तपसा सोमपीथ मभ्यजर्यस्तेभ्यः प्रातस्मवने वाचि कल्य धिषम्तान- ग्निवसभिः प्रातच्छवनादमुदत, तेभ्यो anafed सवने वाचि कश्पयिपरस्तामिन्द्रो रद्रमाष्यन्दिनासवनादनुदत, तेभ्यस्तुतीय- waa वाचि कस्पविषंस्तान्विश्वे रेवा अनोजुदयन्त मेह प्राखन्ति नरेति; प्रजापतिरजवीखभितार -- तव ar दूमेऽन्तवासासव

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aafa: qfaweafa ; तयेव्यतरवोक्विता,-+ लावै तव AAA: aft पिबेति ; तान्‌ प्रजापतिरुभयतः पर्वपिबत्‌"-इति. देवेषु सर्वेषु .मध्ये ऋसेवामकाः केचन देवलं प्राप्ताः मंतुब्यविषेषाः# Way पति मुदिश्च तपः ae तेन तपसा ‘wade मम्बनयन्‌' सोमर पान मभिलश्य जितवन्तः, प्रजापतेः सकाशात्‌ लब्धवन्त इत्यर्थः | सं प्रजापतिरन्ये देवाश्च “तेभ्यः wy: प्रातस्छवमे वाचि are यिषन्‌' सोमपानं कल्पयितु मैच्छन्‌ तदानीं प्रातस्ववनाभिमानौ ‘afta: देवः eae: वसुपिः' सह तस्मात्‌ प्रातच्चवषनात्‌, तात्र ऋभून्‌ “wage निगकरोद्‌। ate as: aw माष्यन्द्नि- रवनाव्रिराकरोत्‌ | for देवास्तुतोयसवनात्‌ “भनोगुखन्त' wet facrgay भिराकरणप्रकारः सच नेरेति"वाक्येन युनःपुन- रनद्यते इह' ठतौोयसवने ऋभवो पास्यन्ति विग्बेषां देवानां प्रत्येकं निराकरण्वक्येन, सम्बधात्‌ wef yay ततः प्रजापतिनिरालतादरभून्‌ दृष्टा सवितार मन्रवौत्‌.- हे सवितः लव से" waa “wear: समोपवसिनः शिष्याः, तस्त मेवैभिः सह सम्यक्‌ पिद | adele सविता प्रजापति भिद मग्रवीत्‌,-- प्रजापते ! त्व "तान्वै" तानेव ऋभून्‌ "उभयतः for तषा भूषा मुभयोः aaa: खित्वा त्र मपि सोमपा BE Ta सुक्षः प्रजापतिम्तेवाकरोत्‌ | | a wa धाय्ये विघत्ते-- ति एते धाय्ये भनिरेक्ते areca wend afr भाभवं ;--qeang मृतये ऽयं वेनचोदयत्‌ vie

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१८

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११४ रैतरवग्राह्मषम्‌ ye ,

जधा इति ¦ प्रजापतिरेषैनांस्तदुमयतः परि पिवति ; तस्मादु Be? ara रोचयत्ेव य॑ कामयते तम्‌-षति। “सुरूप अलुम्‌"' श्तयेला चाय्या (de १,४.२.), “अयं वैनः" षति ( He १०.१२२.१. ) दितोया; तै एतै wa भ्रार्मवसूक्षम्‌ "अभितः शस्पेतेः-“सुरूपः may weet ya पूषै श॑सनोया, “श्रयं वेनः देषा wary पथात्‌ शंसनोया। atest wea अनिर निःशेषः Want देवो निसक्षः, तादृशो ययोधौग्धयोः नास्ति, तै अनिश; मः Gent: water दैव सहसरा fad शक्यते | प्रजयतेरपि जगः पूव मृतस्य [नरव मथक्षलाकोऽप्यनिरकतः। अतो योग्यत्वात्‌ ते खमे प्रलापतिदेवताक्षे एतयोधोव्ययोः सने प्रजापतिरेव ‘gay ऋभून्‌ उभयतः परि पिवति | यस्मात्‌ प्रजा- पतिरमिनर्वखादिदेवतामा मृमुतु Tenn सति परदारा बलात्‌ श्चि सुत्यादितवान्‌, ‘aare’ तस्मादेव कारणात्‌ लोकेऽपि चष्टो वासितं धनपतिः वं सकौयं wu भितररनङ्गेकत मिति शेभो रोचयित्‌ कामयते, ‘A शत्य माचार्हौनं ‘ara’ प्रति प्योग्यसधामे वलात्‌ सर्वेभ्यो TATA

eran aed विधत्त -- “तेभ्यो वै देवा श्रपेवाबौभकन्त सगुष्वगन्धात्‌-; एते धाय्ये wares, येभ्यो मातेवा पिच इति""- दति भग्निविखादयो ‘Ban’, "तेभ्य ऋरभुम्यः ate’ खय मपमता एव सन्तः "भवोभन्छन्त' एवं मनसि aad कत- we: | क्मातषारशादिति तदुष्यते- “मनु्थगन्धात्‌"- दति | पी मशुष्या भसत्यद्कियोग्या भवन्तोति शक्षयेत्यथेः। ते एतै" THAT दं . ध्ये अन्तरदघत' WT ARTA च. मध्ये wet व्यवधान ayaa) कै ते घाये इव्युयेते - “Feet

ठतौयवडिका ei © Re अत मह्ठमतोः- इत्येका (do tock, ), “ee fe ee Vara’ -इत्यपरा (de 8 vee ), “अयं बेनः"" - इदेव कमार मेतदुभयं शंसेदित्वर्धः॥ a | . इति .श्टौमल्ायणाचायेविरचिते माधवो बेदार ` शेतरेयन्रान्मणख ठतीयपञ्िकायां attra? ष्ठः खण्डः (१९०) 8

Wa सप्तमः खण्डः

वेभवदेवं शंसति यथा वै प्रजा एवं वैश्वदेवं सव्यथान्तरं जनता एवं aaa वथारणश्बान्येवं धाय्यास्तदुभयतो wet पर्याष्यते aqrarat यानि सन्न्रण्यानि ate वयोभिद्धेति wry यथा वै पुरुष एवं वैश्वदेवं' तश्य यथावान्तर म्म wd amit यथा washed घाय्यासदुभ्तो uratuatwaa asaraene पर्वाशि शिथिरासि सन्ति caria ब्रह्मणा हि तानि धृतामि मलं वा UNIAN WRAY याज्या तद्यदन्या भन्या धाय्याच्च याश्याञ्च कुयुङम्मृल मेव तन्नं ` क्यु सतस्मासाः. समान्य एव GW प्रा्चजन्यं at एश-

१४० ` $ पिनरेयत्राश्मरम ye

gap यदेव देव ' सर्वेषां वा एतत्पश्चलनाना सुक्थं देवमनुष्याणां गन्धर्वापपरसां सर्पाणां पितृणां ean बा एतत्पञ्चजनाना FRA सवं एनं पञ्चजना विदुरेनं प्रचिन्यै जनताये इविनो गच्छन्ति ae! सर्वदेवशयो बा एष होता यो वैश्वदेव' शंसति सर्वा दिशो ष्यायेच्छंसिष्यग्त्धवस्विव तदतु रसं zafa यखा ae दिशि इष्यः wa तां ष्यायेदनु- छायैवाख ada mea ऽदिति्बीरिदितिरन्तरिच मिलत्तमया परिदधातीयं वा अदितिरियं यीरियि मन्तरिच मदितिर्माता a पितास पुव इतीयं वै aaa पितेयं gat fast देवा अदितिः परञ्च जना! इत्यस्यां वं विश्वे देवा seat पञ्चजना भदिति- जात मदितिञनिल् facta वै जात मियं जनित्व fe: पच्छः परिदधाति चतुष्पादा वं पश्वः पशृनाः मवमे aera: प्रतिष्ठाया एव हिप्रतिष्ठो वै एुरुषश्च॑तष्यादाः पशवो' यजमान मेव तद्‌ fe प्रतिष्डं 'चतुष्पात्यु पशुषु प्रतिष्ठापयति सदेव परच्च- जनीयया प्ररिदध्यात्‌ acre भुमिं परिदध्यात्‌ तद्यस्य! मेव ast सम्मरति' तधा मेवेनं तदन्ततः प्रतिष्ठापयति fart देवाः शृणुतेमं इवं दति

ठतीयपच्धिकां | on eve

वैश्वदेव qa wea asazan यजति वंधाभागः तदेवताः प्रणति (३१)

भथ विश्वरेवारैवताकम्‌ “आनो भद्रा"- इसेतलङ्गं ( सं° ९. ८९, १. ) विधत्त —“Suged शंसति" ष्ति। लोकिकटटान्तेन प्रशंसन्‌ aed # विधत्ते -- यथाव war एवं Saeed ; तच्यथान्तरं जनता एवं सूक्तानि, यथारण्डान्धें Waren घायां walwad ;` carne aay रण्यानि aig anfuafa स्माष्टः द्ति। लोकै यथा प्रजा, एव ay Sued शस्तम्‌ ; wanes तज्निवासस्थानं राण्य सुप- wad, used शस्त मित्यथैः। (तत्‌ः aa प्रजाशब्देन राच्ये दिवित, अन्तरम्‌" werent 'जनताः' seer यथा तिष्टन्ति, णवं तद्िन्‌ शस्ते सूज्ानि तिष्टन्ति ; यथा अरण्यानि राज्ये कचित्‌ क्ता चिद्‌ भवन्ति, एव मस्मिन्‌ we धाय्याः कचित्‌ प्रसिष्यन्तं तश्रा सत्यरण्यस्थानोयां धाय्या सुभयतः पर्यादवते। “tarda” इत्येष मन्ः “Caleta: | तस्या धाय्यायाः UTA: यस्मात्‌ वाठः; तस्मात्‌ न्तोकेऽपि aganagratfa ear खभावतोऽर्ष्यानि Ranga aaty aia पक्तिभिश सह्नोणेताद्‌ (अनरण्यानिः भशन्दानि एवेति कचिदभिन्न are & i एव Raat era wales प्रशस्य पनरप्वन्धेन प्रशंसति-- यथा बं पुसप एवं वेष्डदेवं ; तस्म यथा्वीग्तरमङ्गगन्यवं quits यथा पवाश्छेवं घाय्यास्तदुभयती घाय्यां पर्यह्रयते ; तस्मात्प शष

ee -= ~~ ~ - ~~ - ~ ~ -~ -- ~ जि eens = ee ere: ~ ~~~ ~ -~ Ae 9.

& ‘stad fagrdaga तृणस धंसेदुपांण सप्र्व मरननग्दब्रष area: ~ गति sme श्रौ ४,२.१२) Sere Srey ईति निडर 48.5 |

१४२ -॥ पितर्य्‌

uaife जिधिरासि सन्ति, दशानि wearer fe सानि हतानि -्ति। लोके यथा पुरुषो हस्तपादादिभान्‌ -सनुष्देष्ः, तदददं वश्वदेवशस्तंम्‌ ‘aw whe “भवान्तरम्‌' भभ्यन्तरप्रदेशम्‌ “भङ्खगनिः ` अवयवा यथा awa, एवं गम्यस्याभ्यन्तरे सूक्तानि निविष्टानि। यथा तेषा मवयवाना सन्धः, एव भेता धाय्याः We तिष्टन्ति! तथा सति धाय्या उभयपाश्वपवाश्ि शिचिराशि' पूवं शिधिलानि सम्पि पथाग्रयक्नेन धारितानि ददानि सम्म aa) “am a भाहावः?-दतिश^गरुतत्वादाष्टावशूपे ब्रह्मेव धाष्यारूपाणि vatfa एतानि भवन्ति

भथ जाययानां शस्नयाज्धानां प्रकतौ feat चान्यत निराक्येकरूपत्वं विधरे-- “मुल वा ware zara याल्याख ; AISA अन्धा धावा याज्थांश Ha yey मेव तद्य Vimar: समाम्य एव स्युः" - दति धाव्यौनां शम्त्रयाज्यानां श्तमृलवच्यश्नमूनता तत्‌ प्रतिगताः परित्यज्यं॑विलतावन्ध- wait यश्ररूपो उम्भूशितः स्यात्‌ ; TaN WHAT याः सनि, ता एव faamlaqeaa समान्य एव एकतिध एव शलन्थाः

Ree WITT: व्रस्य समुदाय कारणं प्रणति याश्चजन्यं वा एतदुकृं aimed; स्वेषां वा एतत्पश्चजनाना सुक्थं, देवमरुष्याणां गन्धरवाषरसां सपाणां पित्णां Saat षा रतच्यश्चंजमाना सुक्थं ; सवं एनं खजना विदुः"- श्रनि! यदेश्व- fama wa we मस्ति, तदेतत्‌ पाश्चजन्धं वै" पञ्च- fraat जनानां सम्बन्धि एव स॒ एवाः ater मित्यादिना

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RL भा० ४३४ १०५१० द्रश्व्यश्‌।

बतिदपकच्विका rg) on ह्ण

. टौ करियते, -~ये पष्ठ विधा sm सन्ति, तेषां सषा नच येत urea | पञ्चविधात्व भेव मनुष्पादिनोष्यमे,-- अग्वौगहाङ्धिः Vane एको वनः; ब्रह्म्षजियादिमनुष्यगष्टौ. बितीयो- hy. गन्धर्वा wacat वनेखतौयः, सर्पाणां वर्मशतुर्थः, . firret am: पञ्चमः # | एतेषां पञ्चविधानां जलानां तुरिरेतुखात्‌ तदीय मेतख्छसम्‌ ‘ad वैश्नदेवश्रस्तस्य शं सितारं होतारं स्वे पञ्चजना fag? जानन्ति, Aver atta: प्रसरतीत्वर्थः

वंदनं प्रंसति-- “Ua पञ्चिन्धे जनताये इविगो गण्छन्ति एवं वद्वि जनानां देवमनुष्याणां समूहो जनता, सा पञ्चसश्चोपेतत्वात्‌ "पञ्चिनोः तस्थे, तस्रोत्मधं त्रिगः होतु कुशलाः geo: ‘od वेदितार मागष््छन्ति॥ |

अध शंसनपूवं काले दिगध्यानं विधत्ते “सर्व्वतो का Wiat यो waza भसति, सर्व fer wraefearireas afga va caifa” -efa i ‘ay erat ‘arate set शंसति, खथ. 'स्॑टेवत्यो बै" सर्वा ईेवसा खनि, लत्व रितीषदेतुरित्यर्ध; | प्रतः Bist शंसिहु age: wat दिशो aver ध्यायेत्‌, कैम Wada सर्धास्यवे तिश ci दधाति॥

क्चर्‌ ध्यानं far “यस्था मश दिशि ver are at ध्यायेदनलुरह :गरैवास्य aga माद्‌ ते" दति! (ष्य Hey ww naaai {दिगि वक्षति, भेक fed ध्यायेत्‌ cet सतति 'अनुहाग्रैवः इष्यस्य एष्टतो naa तदीयं Ta सँ खोकश्दोति 9

wre परिधानोया मुचं विधत्ते-- “wfefasifctefe

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अन्यवः -श्ति निद० २.२)

१४४ . 1 Rakqar Hey |

cafta मिल्य्तमया परिदधातीयं at भदितिरियं der: मन्तरिचम्‌". इति | अखष्डितत्याददोनलादा e मूमिरेवादिति- शिष्यते | सेयं भूमिरेव दुपरलोकर्प्रा्तरिचङूपा ; wat भूमौ काम wal HUMANA सम्पादयितुं णक्यलात्‌ ! fetus मनु व्याच -- “ufefaatar a fam ga इतोयं 8 मातेयं पितयं पुतः" -इ्ति। येय मदितिभूमिः, सैव माता, asfefaea एव पिता, सोऽदितिरूप एव पुतः शयं वा- दर्ादिनोक्वाथेप्रसिदिरद्यते , सत्यां भमो मातापिद्पु्रादिभि देवसातु' शक्यतलात्‌ सैषा मदितिरूपलं प्रसिद्च मित्यर्थः | ठतौय- पाद waa व्याचःे-- “विश्वं देवा अदितिः पञ्चजना saat वे faq रेवा अस्यां पञ्चजनाः. ईति विश्वेषां देवानां भूमौ मनुष्यैः पूज्यमानत्वात्‌, पञ्चजनानां देवमगुष्यादौनां भूमाववख्छानाद- दितिम्तततदरूपत्वम्‌ चतुर्थपाद मनद व्धाचषट-- “ofefanta afefasfaa भितोयं a जात मियं जनितम्‌" षति ( do १. ८८. १५.)। जातम्‌' पूवं समुत्पन्नम्‌ प्राखिरूपम्‌, 'जनितवम्‌' शतः पर year प्राणिरूपम्‌ ; तयोरुभयोमूमौ सम्भवाददिते- स्त नट्रूपत्म्‌।

परिघानोयाया wen aq: शंसने प्रकारविशेषं विधन्त - “fe पच्छः परिदधाति, चतुष्पादा वे पथवः पशूना समवस ; सद्ग प्रतिष्ठाया एव; fenfast वै पुरुषधतुष्पादाः पशवो यजमान भेव तद्‌ दिप्रतिष्ठं apa ayy प्रतिटापयति"- इति “fa; प्रथमां तिर्समा मन्बाहइः' दति विषः साव॑विकलादस्याः

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दतौयपश्धिवा |:३ ¡ 9.॥ धः

-यरिधानीयायास्िराठतिः ‘aT, तव wate "च्छः, tq, रकंकस्मिन्‌ पादे ऽवसायावसाय शंसनं क्यात्‌ तश्र पादानां चतुष्टयेन पशसाम्यात्मशप्रापिर्भवति | किं पुरुषोऽयं िग्रतिष्ठः' पाददयोपेतः, पण्वच्तुष्यादाः ; तथा . सल्युमयविध- शं सनेन .हिपादं यजमान मेव चतुष्पाकु पशष प्रतिष्ठापयति

परिधानकाले भूमिस्यथं विधत्त - -“सटव पञ्चजनौोयया परि- warmer भूभिं परिदध्यात्तयस्या मैव यज्नं सन्धरति तखा wad तदन्ततः प्रतिष्ठापयति" -दति | ‘ata’ सर्वेष्वपि यन्चप्रयो- गैषु पञ्चजनोयया' “विम्बं देवा श्रदितिः पञ्चजना.” त्यक्षत्वादिय खक्‌ पञ्चजनोया' तया परिधानं' समापनं यदा कुर्यात्‌, तदानीं भृमि young परिदध्यात्‌ तथा सति यस्या भेव भुमौ “av सम्भरनि' ays यश्नमाघनानि सम्पादयति, तस्या भेव' भमौ Ua aay म्रननोपस्मशननान्ततः प्रतिष्ठापयति

तयाज्यं विधत्त - “fat देवाः wyatt हवं a दति maga मुकं mar Sater यजनि, anni सदेवताः itwifa” इति वैष्वदेवशस्तरथं सना दृष “fad देवाः शृणुमः - Saat वप्वदेवौ { सं० ६. १२. १२, ) याज्यां पठेत तस्यां (ख रन्तरि्ते उप fae: -इव्यादिना भिचवर्गाणां Saar मभिधानात्‌ तासां देवतानां aaa ममतिक्रम्य श्रीतिं करोति ७.॥

इलि ओ्रौमत्सायणाचाथं विरचिते माधवीये Ferhat

पतर यत्राद्मशस्य ठतोयपद्िकरायां ठतो याध्याओे सप्तम; खण्डः { २१)

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१४१ एित्र्यत्राद्मीशम्‌ |

We WER: खच्छः |

आग्नेयी प्रथमा घछ्रतयाज्या Atal सौम्ययाज्या। Aaa घतयाज्या ठव मोम पिभिः संविदटानद्ति dere प्मला यजति uf बा एतत्सोमं यदभिषुरबन्ति तस्यैता मनुस्तरसौँ कुर्वन्ति ater: feat वा अनुलरणो त्मात्सौम्यख पितुमा यजल्यवधिषवां एतत्छौोमं यदभ्यसुषव+ wet पुनः सम्भावयन्ति पुनर प्याययन्दपसदां रू णोपसदां किल वै तटरप्रं यदेता टवता अग्निः सोमो विष्णरिति प्रतिगद्य सभ्यं होता प्रवं ऋन्दोगैभ्यो अत्त a करे पतं eel हरन्ति त्तथा Wale + AHA प्रथमः सवसन्तान्‌ भच्यतोति समार तेनेव रपण तस्मादषर्‌कचचव पवां saad gratia रन्ति \ ८६३२) |

पध चतथागसौम्ययागयोर्थाल्यां विधत्ते-- “असयो प्रथमा घुतयाल्या, wal सीम्ययान्या, Fart waren, वतं सोम पिभिः संविदान दति Hera पितुमलत्वा प्रञजकि'-द्ति। Sees: भयन्ते warner कै यामी अरु तत्रासिदेवे- ताका विष्णदेवताका चेति याज्ये। “gawait पृतष्टो

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दतोगपञि + ।८॥ ४, |

अनिः" carat wea याज्या ( Wie Wey re.k), “Be विष्णो विक्रमस्व"-ष्ति (arte ito x १८.९१.) वैष्णवी हितीया waaren ; afta सोमदेवताकश्चरु, तस्य “लै सोमः” aft (Ho ८,४८.१२.) सोमो याज्या; तव “पिढभिः संविदानः sfagaarfed पिलमलीी ; तां याज्यां सोग्यचरौ पठेत्‌ तख चरोः पुरस्तादान्नेयया याज्यया घुतयाभः, उपरिषादेग्णेव्यी याश्चया GAIT | तद्याज्याहय माण्बलायनेम पटितम्‌ (ओरौ ०५.१९.१.)

सौरभी याज्य; प्रशंसति-- “ofr बा एत॑त्सोमं यटभिषुखम्ति, ran मनमुम्तरणीं कुर्वन्ति, --- यव्वैम्यः frat वा saree; तम्भाक्तौम्यग्य पिला wafa-«fa i wart. सोर सभि षुग्न्तोति यदम्वि, Aa सोमस्थ वभ एव तथ यः सौम्यश्चद- aft, एनां मीम्ययरुरूपां तन्म तस्य भोमश्वं श्रनुस्तरणो' कु न) wea दौसितस्य दशगकाले काश्चिद्‌ wet at war द्‌ waaay गोरवयवामवस्थाप्य दशेत्‌ | रषं गौः मृतं दोरिति सम॒ सतलाहिंसितलादमुसरगोत्यचयै ^ were fret aon, तस्मात्‌ विदमत्याः aera सौम्यस्छः धौगस्य

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धियजेत्‌

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» a प्रनशाज्छन्या मुदांभूमयतः परियर्जा दति भाजन Whey. १८.२३) 1 'अमृमरकौता सज Qaaral कथाः 45 मद्य वाही ध्यानृसङ्धालेशतिि) ay aon कप) मदिन्‌ विरो नुखं पच्छा aad परि a adrara (क मं" १०,१६.०.) {स ate opts FG aay ""मुष्दर्य चेत्‌ ण्यम्‌ BT सद CARL \ sey A UTR \ 4 fees) वपा Aa सदन््ा्याप्र्लिखदौपयन्हि" -श्तिख नान्या. Sie २५.५०. ३०-१७। ` कष्रदग्रख पद्याडागी areal! wert भला मारयित्वा तस्या. कशि्रोककं ame चणय) निं रेथीः-धयादि तदान aeterl: शतम्‌ पार० ३.१०! Cam पुरपाय-परकायालुरेश्यौ कियते शति -दक eg ed

१४८ ' हितर्वक्राद्म णम्‌ `

धृतयामसरहितं॑सौम्यं चर ape प्रशंसति -- “भवधिषुवा एतक्लोमं यदभ्यसषवस्तदेनं पुनः सन्धावयन्ति? - इति | भ्य सुषवुः' अभितः सोमं सुतवन्त इति यदस्ति, एतेन सोमम्‌ शश्रव- faq? ऋत्विजो wars एव तस्मात्‌ एनं" व्ययितं सोमं घुत- चरेभ्यां व्यधापरिष्ाराय स्ावयन्ति॥

सक्कद्य प्र्स्तदेवतादारा पुनविस्तरेख wat दशयति-- ^बुनराप्याययन्बुपसदां रूपेणोपसदां किल वे agi यदेता रेवलाः,- अनिः सोमो विष्णुरिति?-इति | योऽयं हतः सोमः, त॑ सोम सुपमदां रूपण सम्मादितेन पुनराप्याययन्ति। अभिनि: सोमो विष्णुरिति at एतास्तिस्रो देवताः, तटेतदुपसदा मेव खरूपम्‌ ; तत्राप्येतस्य देवतात्रयस्य विद्यमानलात्‌ | ` रध होतुराज्यावेत्तणं विधत्त “afar सोम्यं डना qa छन्टोगभ्यो aaa” इनि Kae सौम्यं चरु ea wat प्रत्या चरुमध्ये सिक्त बहुले धुते छन्दो ^ Nae: खयं पूर्वभावी सन्‌ खकोयां देषच्छाया AIA |

अव पृवंपस्‌ सुयाप्य दुषयति “तं देकं पव छन्दोरं } 2 गन्ति, तत्तधा RATE ; वषट्‌ कन्त प्रधमः सवेभक्तान्‌ भक्षभ- तौति ware; तैनैव रूपेण तस्मादषट्‌कर्तेव पूर्वाऽवे चताधेनं छन्दोगेभ्यो इरन्ति"-इति कैवलयाच्चिकात्‌ होतुराज्यावेत्तयात्‌ पूवं मेव तं" qaqa सौम्यं चरु छन्दोगेभ्यः ममपयन्ति, ‘Aq समपणं तथा न्‌ कुयात्‌ ; इविःगेषभक्षणेष॒ 'वषटकन्ताः होता प्रधम. प्रवभावो सन्‌ सवंभक्तान्‌ हविःशेषान्‌ भक्तयति ; इतिः

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mar wae नोक 'पर्षाय-पुरुषायः aaa wary "अनुसरण करयते aac mgraitcar पी; दयते" तित्‌ ae are are

तीय श्चिकः १। < १४९

एव मभिन्नो मरषिराङ a) (तस्मात्‌ कारणात्‌ सेनेव ete’ भक्चणेनेव wiwesfu,— होतेव प्रथमो भूत्वावेकतेत, अनन्तर मैव ‘ay सोम्य" ae’ छन्टोरीभ्यः समप्थेयुः दूति अ्ौमश्षायशासायविरचिते माधवोये वेदा्थ॑प्रकाशे शितरेयत्राह्मण्स्य ठतोयपसिकायां ठतो वाध्याये पमः खण्डः ( २२)

| शध नवमः खण्डः

प्रजापतिर्वै खां दुहितर मभ्यव्यायदहिष fre mane मिखन्ये ता ख्यो भत्वा रोहितं भता मभ्येत्‌ तं देवा saad बे प्रजापतिः कगोतौतितै मैच्छन्‌ एन मागिष्यि्येत मन्य)ऽन्यच्िन्नाविन्दं Bui या एव घोरतमास्तन्व WAR एकधा सम- ACT: सम्भृता एष देवो ऽभवत्तदखतद्‌ भूतवन्नाम भवति & योऽस्य asd ara As तं Sat अव्रवत्रयं परजापतिरक्तत मकरिमं विष्येतिं तथे्यत्रवौख ` रैवो at हणा दूति sttafa a एत मेव वरमह- ` शोत पशुना ATT तदख॑तत्पश्मन्नाम पशमान्‌ भवति Tissues नाम ae मभ्यायल्माविध्यल्ष

eve 4 रेतरयग्रा्मयम्‌॥

विह FE उदप्रप्रत मेतं मग दूल्याघच्चते एव मगव्याधः सडउणए्वस था Ufeer रोषि यो एेषस्विकाण्डा सो एवेषुस्तिकाण्डा तदा इदं प्रजापत रेतः faa मधावन्तत्छरोऽभवत्ते देवा अत्र वन्‌ मेदं प्रजापते रेतो दुषदिति यद्ब्रवन्‌ मेदं प्रजा- पते रेतो दुषदिति तन्मादुष मभवत्तन्मादुषसख ane wed पै नामैतदान्मानुषं तन्मादुषं सन्मानुष मिल्यावचते waa परोच्चभिया इव हिदेवाः॥€ (३३)

भधाग्निमारतं यस्तं वाव्यम्‌, तदथं मादौ उपाख्यान ATT -- ^प्रजापतिवे wt दृहिनर मभ्यध्यायदू, दिव भिप्यन्य श्राहुर्षस tara; ता गृष्यो yar रोहितं भूता मस्यैत्‌; तेदेवा भपण्यव्रल्नतं वे प्रजापतिः करोतौति; पै मेच्छन्‌, एनं मारिष्यत्येत मन्योऽन्यस्मिब्राविन्दस्तषां या एव घोरममास्तभ्व भ्रामस्ता एकधा MNT, समता एष दैवोऽभवसदस्यै Fe भववकाम"-ष्रति। पुरा कदाचित्‌ प्रजापतिः सकोयां दुरित ममि नश्य भार्यात्वेन ध्यान मकरोत्‌ | तस्यां दुहितरि avatar wate भासोत्‌, --- “wal केचन महषयः ‘fed दुालोकदेवतां ध्यातवानित्यादुः ; sat तु महषयः उषसं" उषःकालदेवतां ध्यातवानित्यादुः "ऋष्यः मृगविशेषः तथा चाभिधानकार आह -- “गोकशेष्षतेशब्यरोदिताथमेरो समाः” -इति (अम २,५.१०. ) प्रजापतिः तवापि ऋण्सो ऽभूत्‌, सा दुहिता

ढतीवपङ्िका १।९॥ शध

Cifect मृताः athe oer, ऋतुमती आतिः ` crest at दुहितरम्‌ ‘ey सभिमतवान्‌, मिधुमधनं प्राप्तवानित्यथः | शतैः दुदिटठनामिनं प्रजापतिं देवाः परस्मर मिद मन्रबन्‌,-- wa WaT प्रतिः ‘wad वे" अकषव्य मैव fafaeracd करोतीति विचारय, यः पुरषः ‘aa’ प्रजापतिम्‌ “भारिषयति' ofa’ mafia चमः, साशं पुरुषम्‌ ‘erg’ पण्ेषणं तवन्तः ; कत्वा चान्योऽन्यसिन्‌ तेषां मध्ये तत॑" प्रजापतिघातकं थविन्ह्म्‌' नालभम्त,-- स्वं way शक्रोषि, लं न्तु मिति परस्पर ver एवौीकस्य शक्तिराहित्थं नि्ितवन्तः। स्वेषु tay a एव काञित्‌ घोरतमा; तम्ब" अद्युग्राणि शरोराणि भासन्‌, ताः सर्वाः “एकधा समभरम्‌' भेलयित्वेक मेव शरोर कतवन्सः "ताः घोरतमाः तन्वः waa’ एकत्वेन सम्मादिताः सत्य; "एण Say ऽभवत्‌" एष द्रति शस्तेन प्रदश्य रुद्रोऽभिधौयते (तत्‌ तस्मादेव कारण्पात्‌ ‘we’ द्रस्य एतत्‌' लोकप्रसिचम्‌ “AT भूतशब्दोपेतं नाम सम्पन्नम्‌ | भूवपतिरिति भृतवन्राम aN तस्य भवत्पर्थामुगमादुगकषम्‌ | एतन्रामवेदनं प्रशंसति -- “भवति वै योऽस्येतदेषं भाम वेड इति वंदिता Safa @’ भूतिमानेव सम्पद्यते | अथ तेन yew ae देवानां संवादं enafa— “a ar aqaai वे प्रजापतिरक्तत मकरिमं विध्यति; = तधेव्यत्रवौत्‌ ; aa a वरं am दति; वणोष्छति; एत मेव वर महणोत,-- पशूना मापिप्त्य' ; तदस्येतत्पशमब्रापर-ष्ति। ‘a रद्र रेवा एव मन्रुवन्‌,-- चे रद्र! भयं प्रजापतिः “aay भकः' निषिदा- चरकं तवान्‌, तस्मादिमं ‘fae’ वाणेन प्रति ‘a: इद्रः TaN उत्तरोचलतेन प्रश्ना भाषिप्त्य' त्वान्‌ तरमा.

" ५२ ठेतर्यक्रद्मशम्‌,.॥

त्कारणात्‌ ‘we रदस्य “एतत्‌ लोकप्रसिरं, पश्पतिरितेताह्ं परशणब्दोपेत भाम wey] ated प्रथसति- “पशमान्‌ भवति योऽस्यैतदेवं नाम वेद'-द्ति॥

श्रय रदरप्रजापलयोवत्तान्त' दर्थयति-- “a मभ्यायत्माविध्यत्‌ ; fae ऊद उदप्रपत; तमेतं खग इत्याश्चक्षपे; यडणएव wag, Tua; या रोहिक्षा रोहिणो; यो एवेषुख्ति- कारा, सो एवेषुस्िकाण्डा-इति | रुद्रः “MUTT वाण- aa धनुरभित भक्ष्य ‘a’ प्रजापतिम्‌ “afer ऋष्यश्गरूपः प्रजापतिः fax: सन्‌ AEA: “उदप्रपत' प्रकरेण उत्पतन मकरोत्‌ | ‘a aan’ उत्पतितं सश्यमगरूपं प्रजापति माकाश दृष्टा स्ये एव एते जनाः इत्याचक्षते रोदहिण्याद्रयोः-.. नक्षव्रयोमध्येऽवखितं सुगणोप-नक्ततं कथयम्ति, नक्चव्ररूपेण fray इत्यधेः | ध्य एव' यसु रद्र: मगव्याधः' sai, ‘a? te: प्राकारे दृश्यमानः सउ एव लोकप्रसिद्धो मृग व्याध रासत्‌ | ‘ar दुहिता सेहित्‌ रशशवर्णा मृगो, ‘ar श्य माकाशे रर हिणौः नक्त मभूत्‌। या uw’ यातु TT प्रेरिता ‘sy: चिक्राण्डा अनोक wena मित्यवयववयो.- पता, ‘ats एवः सैव लोकप्रसिदा काण्डलयोपेता ‘sa. वाणो ४भवत्‌

श्रध मनुोत्पत्तिं दर्थयति-- “तदा शरदं प्रजापते रेतः सिक्त मधावत्तत्सरोऽभवत्‌, तै देवा भरवरुवन्‌,-- भेदं प्रजापते रेतो दुष- दिति; यददनेवन्‌ भेदं प्रजापमे रेतो दुषदिति, anes मभ AAMT मादुषलवं ; मादुषं भासेतखन्मानुषं ; TATE सश्मालुय मिल्याचक्ते परोक्तेण ; प्ररो्प्रिया vafe टेवाः"-

` } दतौद्यसिक्ा | aren / War

eft) ete प्रजापतिना यद्‌ रेतो मृष्या flrs, तरेकदलि- वहुत्वाुमी पतितं सत्‌ प्रताषहटरूपे धावत्‌ | aa कचि अवद्याय wie सरो ऽभूत्‌ ने Sar एव मनुदन्‌,-- प्रजापतैरिदं - tat मा guy gz wa मा भूदिति। यश्ादुषदिन्बहुवन्‌ सस्माहोषरहितस्य रेतसो ‘ares fafa’ नास सम्यत्रम्‌ जनास दकारस्थाने नकारं afer मानुष मितिः ब्राह्मणलवियादि- WY Wat) aq दैवाचारेश दोषरहितलान्नादु मेव | तधा सति मादुघनामयोग्य मपि तच्छरोरं परोचेख नाना aaa faafiaa वकव्यत्ययेन मानुष feared cae देववन्पूज्या उत्तमाः THAT: परोप्रिया इव हि" were माटपिढनिभिंते रेवदनादिनाभि प्रीतिं कुर्वन्ति, किन उपाध्यायः", श्रा चायः, 'खामी'-- शत्यादिक्षे मातापितादौना wana परोक्ते नानि athe कवंन्ति, तस्मात्परोक्षत्याय नकार- Wag युज्धतं €. efa खोमत्तायणावायंविरथिते माधवी बेदाथप्राथे ितरेयताश्मणस तृतोयपञ्धिकायां तृतौयाध्याये मृवमः GW We ( २२)

ee ee ey

WA दशमः wate:

तदग्निना प्र्यादधुसम्मरतो धुन्व सद्म भ्राच्यावयन्दम्निना वैश्वानरे . पर्यादधस्तम्मशतो

| [

१४४ पैतश्यत्रान्नशम्‌ `

ध्वंसटमिरवष्वानरः . माच्यावयत्तख यद्रेतस प्रधम सुददौष्यतं तदसावारिल्यो HATS दितीय मासद्‌ शगुरभवत्तं वणी न्यणहगीत त्यात्‌ शगा्वासुणिरंथ यत्तुतीय मदौदेदिव आदिल अभ qa धे sper aide ऽङ्किरसो ऽभवन्‌ यदङ्गायः पनरवशान्ता उददौप्यन्त तदू वहस्पतिरभवद्याजि परिक्ञाणन्यासं AUT: पशवो ऽभवन्‌ या लोहिनौ मत्तिकः ते रोहिता अथ यदश्मासीत्तत्परष्यं AAI जीरो गवय श्य उषा nen इति ये चते sear

पशवस्तं तान्वा एष Sal ऽभ्यवदत AA AT Fz मम पे arqe मिति मेतयचा निर्वादयर्त येषा VA wad ते पित्मसतां सुम्न Aq AT a: aay सन्दशो युयोधाः नो वोरो अवेति चमेधा दूति gaan इत्यनभिमारुको देवः प्रजा vata प्र जायेमहि सद्वि परजाभिरितित्रूयान्न a2 - ' gaa नान्न ufteaae खलु शं नः करतील्येव dae मिति प्रतिपरदाते' सर्व॑स्मा एव भान्दं भ्यो नारिम्यो गव इतिं पुमांसो नरः धियो नार्यः सर्षस्मा एव wal’ सो ऽनिसक्ता रौद्रौ शान्ता सर्वायुः. सर्वायुत्वाय सर्वं मायुरेति एव" षेद

दतौयपञ्चिका २। १० Wee

सो गायती am वै maal awdad a मम- सखति॥ १० (३8 ) ~< `. |

भ्रथादिव्यादिदेवतोत्यत्तिं देयति-- “afr पर््याद- धुसखखरुतो उधृन्वस्तदस्निनं श्रा्ावयत्तदमिना बैष्वानरेण पर््या- दधुस्त्मरुतो रधून्ष॑स्तदमिर्वेश्वानरः प्राच्यावयत्‌ ; तस्य यद्वेतसः प्रथम सुढदीप्यत, तदसावादटित्यो ऽभवद्‌ ; यद्‌ ितौय मासीत्‌, तद्भुगुरभवत्‌ ; तं वर्णो न्यग्य्ोते ; aang भगुर्बारुणिरथ यत्तुतौय weiss, दित्या श्रमवन्‌; ये wr आमंस्तेऽद्गि- रसाऽभवन्‌ ; यदङ्गाराः पुनरवशान्ता उददीष्यन्त, तदु दष्स्मति- रभवत्‌ इनि; प्रजापत सम्बन्धि यत्‌ रेतो देरवैर्दौपरदहितं कतम्‌, "तत्‌ tat देवा afaat wary) परितो वेितवन्तः, सरोरूपै- णावखिनस्य रसनो eres thud निवारितं परितोऽनिं war लिलदन्त cara; याभिः प्रस्रलितः, तदा "मर्तः" वायवः "तदु" रेतः अधुन्वन्‌' भाषणाय arya AHA सोऽभ्निः "तत्‌ रेतो प्रा्ावयन्‌' द्रबौभावात्‌ च्युतं नाकरोत्‌, द्रवा हुम्धात्‌ पिण्डाकारं aq नाशक्तोद्रित्यय. ग्रैण्वानरः' नाम afacta- विगेषः प्राणिना wee प्रदि्यान्नपानादिकरं पाचयति नथा भगवतोक्रम --- "अरं dara भूत्वा प्राणिनां ee मासिर; प्राणापानसमायुक्ः cana वतृदिध्रम्‌” इति ( मग० गी १५. १४. )। तेन वश्लानग्नामकेनाम्निविग्रेपेण ‘ae ta: पूर्ववन्‌ ‘cated, tava परिचिते मति मस्तस्तदरेतः पूर्ववटधुन्बन्‌ | सोऽयं वंश्वानरो ऽग्निः 'तत्‌' स्तो द्रवौभावाश्रच्युत मकरोत्‌ पिग्डभृतस्य रेतक्षो ara पिण्ड पं "उददौप्यत उहोम मभूत्‌,

` १५१ Rater

‘ay रूपम्‌ “wa दिवि cara भ्रादिव्योऽभवत्‌ हितौयं यप्रिष्डर्प माौत्‌, तत्‌ कषिभदुरभवत्‌ तं शगु वर्णो aunian from खयुतलेन श्वोक्ञतवषान्‌। aaa अगुर्वारणि रिष्यते वरस्य पत्यं वारुणिः" | एतदेवाभिप्रेत्य ते्िरोया चामनन्ति -- “भृगुवं वारुणिः, aed पितर quae’ sf ( रा” ९.१. उप० २.१. ) 1 . “we अनन्तरं ठतोवपिण्डक्पम्‌ अदोरेदिवः अ्रतिशयेन ata मेवासोत्‌, & .भादिवयाः' भदित स्रा देवविेषाः अभवन्‌ पूवं मादिवयश्ब्देन award सूर्य उक्तः, wa aed: gat इतरे रेवा उयन्ते। येः रतःपिण्डा दग्धाः सन्तो SKIT अभवन्‌, तेः ad भद्धिरोनामका कषयो ऽभवन्‌ ¦ पुनरपि aq यदङ्ारयः' वे faerie: “sama: शान्तिरहिताः सन्तः 'उददौप्यन्त' sade दीप्ताः, ‘aa’ सरवै स्पनिरभृत्‌ | |

अथय ugufé दशयति -- “यानि प्रि्ताथान्यासंसे कणाः पशवो ऽभवन्‌ ; या लोहिनी सृत्तिका, ते रोहितः ; भथ यद्धस्मा- सत्‌, तत्परष्यं व्यसपद्‌.-- नौरो गव्य ऋश्य sel गहम इति ; यै वेतरः पशवस्ते च" -दति | अङ्गारेषु शान्तेषु "यानि" कष्- वणान्यासन्‌ काष्टानि, ते छष्णवर्णः पशवो ऽभवन्‌ अग्निदान्‌ मूमो या “नोहिनौ' रज्पर्णा मृत्तिका तिष्ठति, “8 hear’ रक्षवणः परशवोऽभवन्‌। अवालिखाने यदड्स्मासोत्‌, तत्‌ Tas पुरुषशरोरजातं भूत्वा aaa विविध मरण्धादावगच्छत्‌ किम्पुरुष सिति तदवो "मोरे गवय कश्यः" -- त्यते ऽरण्य- मृगाः, Beret प्रसिरहौ एवमादिकं पुरुषरोगम्‌। ये चैते WEG पथवः, ते व्यसर्पन्त

i ठदतौयपश्चिका १|१०॥ १५७ ` `

एव सुपास्यामेनानिमारुतशस्तस्योपोषठात मभिधाय afer we शंसनोया मेका zd विधत्ते-- “area एष दैवो {भ्यवदेत, wa aed, मम वै वास्तु मिनि; Raat निरवादयन्त ; येषा रौद्रौ शस्यते" -इति। ‘ava’ तानेव पशून्‌ सर्वानभि wer एषः" रुद्रो देवः ‘xe’ सवे ममेवरेत्यतरवोत्‌। ततोपपक्तिं चोक्षवान्‌ -- ‘arg? वास्तौ ay भूमौ whi ag द्रष्य मस्ति, mae ममेति शुत्यन्तरऽपि प्रमिद्म्‌ तथाच तैत्तिरीया बद्रवाव्यं समाममन्ति--- यद्यन्नवास्तौ waa, मम वे तत्‌” दति ( सं ae.) ‘a रद्र मर्वान्‌ पशनभिगच्छन्तम्‌ ‘waa व्यमा णया "निर- षादयन्तः factey ayia) तथा तुष्टो रदः पण्वपेश्तां परि- त्यजति का सा ऋगिति, मोयते-- यैषा Tear सद्रदेवताका शस्यते, सावगन्तव्या |

तस्या ऋचः पादत्रयं पठति- शआ ते fuadaat सुम मेतु, मा नः सवस्य west युयोधाः, त्वं ar AD भषति समेधाः"- बति (Wo २.२३२.१.)। मरतां देवामां पितः) चे सद्र! “तैः तव सुतरं मुखम्‌ ‘Ty श्रागच्छतु | A’ Wang (सूयस्य wen! सूयावलोकनात्‌ “मा युयोधाः' मा वियोजय, efegmia कुवित्यधेः ¦ ढतौयपादस्य “a नो वीरः" दति अत्र त्यपाठः, “aft ay वीरः" इति गाखाग्तरपाठः i तयोर्मध्ये wars विधाय शाखान्तरपाठं fatufa— “द्रति ब्रुयान्नाभि त्यनभिमार्को देष 2a: प्रजा भवति" -ष्ति। शतिः अनेन

मः नः को Tidninc ~ ~ = —— ee ee ~ रि 1

= राते पितमदतांमुनमेनु मा गः qie dam gin अभिनी कौत अर्वति चमत प्र जायेमहि रद्र प्रजामि ee पादरी दृष्मते fener frase CR 2. )) wee ate १.८.।। गवन 4. Qe.

eux RataarwTy

qataa प्रकारेण “at नौ वौरः-दइति पाठ मैव भंसनकाले agra, अभि नःः-इति पादं agar “a tt वोर"-दइति प्रहे सति “एष 2a: प्रजा श्रनभिमारुको भवतिः | श्भिमासकं

ofa नः" इति पाठान्तरे ऽभिशब्दस्य विदयमानलात्‌ पुत्रादिकाः प्रजाः ‘afa aa नाशयिष्यामोति रुद्रौ "मारकः; “लं नः'"-इति पाठे तु ade: #॥ चतुधंपादेऽपि खाभिमतपाठविधिपूककं पाठान्तरं विधत्ते प्र जायेमहि afea प्रजाभिरिति gure रद्रेयेतस्मैव नामनः परिष्व" द्ति। ईहे रुद्रिय! रुदरसम्बखि- भृत्य ! तदनुन्नया वयं प्रजाभिः प्र जायेमहि" पुज्रपोजादिरूपेणो. त्यद्यमहि। अस्मिन्‌ पादे रद्वियेत्येत मेव पाठं ब्रूयात्‌. नतु रुद्रेति पाठम्‌ "एतस्यैव रुद्रस्य नासन उग्रत परिष्टाराय afz- afaursret:

“श्रा पितः" इत्यस्या टचः स्थाने काचिदन्या स= विधन्त —“ae खलु शं न; करलोत्येव wees मिति प्रतिपद्यते, aaa एव शान्त ; नृभ्यो नारिभ्यो गव इति, एमांमो वै नरः स्ियो नायः, सस्रा एव wre”. इति | ‘ag खलु aaa परवा ad परित्यज्य तस्या एव स्थाने “शं न: करत्यवतः'"- इत्येता शसेत्‌ ( We १. ४३. ६.) तथा सति को लाभ इति, तदुचयते-- तस्या ऋच श्रादौ यत्‌ भम्‌", ' इति अनेन पदेन श्रतिषदयतः प्रारस्भः fort तम्य पदस्य शान्तिवाचकल्वात्‌ ‘aa’ wea खकौयस्य aga: णान्तिभवति सवेस्म इत्यसय व्याख्यानं नृभ्य इत्यादि | तस्यापि व्याख्यानं पुमांस इत्यादि मवेस्मा एव WATT इलयुप- HET

ee नन

‘aia -श्ताव सुदरितमाखापाटः, Tataafaleag ‘alas '-Tahy WAR)

ठतोयपञ्चिका। २।११॥ १५९

प्रकारान्तरेण ता ard प्रथंसति-- “सो ऽनिरक्ना Cet शान्ता, सर्वायुः सवायुतवाय"-इति ' “सो arora “अनिरुक्ता रद्रवाचक- पदाभावादस्ष्टटरेवताका तत एव शद्रो' रुद्रदेवताका सत्यपि ` घोराथवाचकरद्रपदाभावादियं ‘mar’ | तां शंसन्‌ श्चोता सर्वायु- भवति | तच्च यजमानस्य सर्वायुलाय सम्पद्यते |

वेदनं प्रशंसति -- “ad मायुरेति एवं वेद"-ति | पुम- रपि प्रकारान्तरेण प्रगंसति-- “at गायत्रौ ; ब्रह्म वै गायव्ी,-- बह्मणवेनं नमस्यति" दति। a’ ar ऋक्‌ गायती SCA; गायतो ब्रह्म a’ ब्राह्मणजातिरेव ; उभयो; प्रजा- पतिसुखजव्वान्‌ | भतो ‘asta areata ‘aa’ रद्र नस- स्ररोति॥ १०॥

दति ग्रौमत्सायणाचायविरचिते माधमोये वेदार्यप्रभाशचे

एतर्यत्राद्मणस्य ठतो यपञ्िकायां ती याध्याये दशमः खण्डः १० (२४) a

WARIS: खशः

वेश्वानरौयेणाग्निमास्‌तं प्रतिपद्यते ेभ्वानरो वा एतद्रेतः सिक्तं प्राच्यावयतन्प्ादप्व्रानगेययाग्नि- मारुतं प्रतिपद्यते" ऽनवानं प्रथम कक शस्तव्यागनोन्वा एषोऽचौ amar प्रसीदम्नति भाग्निमारतं

nee रेतर्यक्रद्मशम्‌

शंसति प्राणेनैव तदग्नौ सरल्वधी यन्नुपश्मयादेन्य दिवक्षार fase गरव तच्चेत्‌ क्षता तरति! तस्मा. दागिमारुतेन aa Reet विवक्ता aed शंसति ` मरतो वा एतद्रे तः faa धून्वन्तः भाच्यावयंस- छ्यान्मारतं शंसति यन्नारन्ना बो अग्नप्रेदेवोवो द्रविणोदा इति ' मध्ये योनिं चानुद््पञ्च शंसति aa- र्मध्ये योनिं चानुर्पच्च शंसति cares योनि- ता यद्‌ दे सूक्ते Tea शंसति! प्रतिष्टयोरेव तदु- परिष्टात्‌ प्रजननं दधाति प्रजाल्यै प्र जायते प्रजया पशुभिर्य एवं Sz ११ ( ३५)

धथ “'वेष्वानराय प्रथु पाजसं विपः" इत्यनेन (२.२.१--११.) सूकनामिमारतस्य tae प्रारम्भ विधते “दै शवानरोयेशाग्नि- मारतं प्रतिपयते, - वेश्वानरो वा एतद्‌ रेतः सिं प्राच्यावयत्‌ ; meaty fared प्रतिपद्यते'"- दति रेतसः प्राया चनं का दिन्यापाद्नम्‌

तस्मिन्‌ aarmdag afafead विधन्ते-- “शअमवामं प्रथम ऋक्‌ Teta एषोचोध्शान्तान्‌ प्रसोदन्ेति; भागिनिमारतं शंसति, प्राणेनैव तदम्नींस्तरति"" -श्ति। 'श्रन- वान शब्दे नोच्छासनिष्ठासावेते ; तौ यथा भवतस्तथा प्रथमा ऋक्‌ TANT | तथा सति सर्वान्‌ "भग्नोन्वे' ज्वालारूपानम्नोभेव "एषः होता “शाग्लाम्‌' क्त्वा भ्रसोदन्‌' प्रसादं कुवेन्‌ ‘cia’ गच्छति ¦ यः पुमान्‌ afar wet असति. तस्य tere

ठतीयपश्चिक्षा is ११॥ १६१

waa wa मिति, तद्‌यतै-- उच्छासनिग्बासनिरोधादभवानं शंसन्‌ प्राणवायुमेव तान^्नीन्‌ "तरति seagate, अमित मुपद्रवं शमयतीत्यर्थः; ;;

शंसनकाले प्रामादिकश्य व्मादिनोपरूपस्य भपराधस्य प्रती - कारं दशयति-- “अरधौयन्रुपहन्यादन्ं बिवक्तार fast भेव ततुं क्त्वा तरति-इति ! त्रधोयन्‌' ्रधौयानः, viet जुर्वन्‌ rat यदि ‘saga’ उपघातं ated कुर्यात्‌, तदानीम्‌ अन्य कर्चित्‌ पुरुषं ‘fara’ विधिच्य ag समर्थम्‌ "इच्छेत्‌ समौपे \उस्थापयेत्‌ दानीं ` भेव पुरुप मपराधतरणोपायं मेतु wat ay ware मुक्नद्थति॥ अयं पन्नो ऽनुकनल्प; - सव्यः तु पत्तं दगयति-- “"तस्मादाग्निमासत ae मेष्टव्यो विवक्ति 1 aad न्वा विवकृपुरषमम्पादनं SAU Ae eared गन्तं `न न्युयम्‌ +` पश्चाहि. वती , ल्िन्त प्रधम मेव विविच वक्ष समर्था दोना wea.’ Yada नम्पादना।न्‌;

अथ “nae: AAA,” Raat सूक्तं ( मं १९. 92 ६.) विध्रत्त-- ` मानं गंमनि; मर्तो ष्वा एनद्‌ श्त fury Waa warden ured wafa” sf) मस्तां yaaa प्रजापनिग्लःनापनं पत Hara ५५५१५ )

अश्र wna विधत्त - casas; at yay, रवो aj zfamrer tla, wat if चानुरूपं stale: masa athe

> '' अध यथेनम्‌ [eT Baie 1 | नन्वा पनन कमाता प्रन; भरम Sp MG इतरम्‌ मनन सुमन aig 8rd मुत Ae ५.२... ५। 1

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१६२ ेतरेयत्राह्मशम्‌

चातु रूपञ्च ४मति, aaa योनि्धैता-दति 'यज्ञायन्ना a: Fea WATE (So We १,१.१०.१,२.); “at वःः*-इति हितीयः (Fo Bro १,१.२०.१,२, )। यत प्रथमे ANT aa: amaze, मोऽयं Maa: ; afay ay सामगैः स्तुयमानतात्‌ | श्रत एषाम दयोर्मप्ये प्र्रमभावित्वाद्‌ Aifa’—careaa इितौय- TTT सभुच्यनरस्तृचोऽनुरूपः ! यादृशः स्तोत्रियः, तष्टश्लम्‌ अदुक्ह्पचम्‌ | तदेतदुभवं Wa मध्ये शंसनोयम्‌ ; तु शस्ता न्तर न्तित म्तोतिप्रानुरूग्योरादौ णंसनोयम्‌ | तधा सति war दव मूकषमध्ये Magers शंसनं, तस्म्ाज्ञोकेऽपि atte ates दानिधृता

weary तथो; स्थानविगरेषं edafa— “ag मृते शस्त्वा wala, प्रतिष्येरेव तदुपरिष्ाग्रजनमं दधाति प्रजाते" रति) ‘ag यस्माद कारणाद Gara मारतं देति ear wee पश्चादेदा स्सालियानस्य्रो safe, तस्मात्‌ कारणाद्‌ हिन पतथः. शप्रतिष्ठसोः शि तिदय; पादयोरेव उपरि ष्टान्‌' स्वं देण `भजन्न' श्खोतप्रादक सिन्द दधात्ति! तय Gram’ परजोत्यादनाय मभ्यद्नमे | यदनं प्रणमति -- ध्र जायते प्रजया पशुनि एवं उद्‌

-इलि\११५। afe सरौमलायणाचाथविरचिते ure Teva Tatuararrey satan garat ठनोयाध्याये THEM खण्ड; 22 (24)

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mS --उ दति पगथ afd TT SOT ~ TAM MAC ag F स्य साने Sal 4 तृ, सात्र प्रां ५.२५. { Zea | |

ढतौयपञ्चिका ३। ery RAR WT हदशः way:

जातबेदस्यं शंसति परजापतिः प्रजा weer’ ताः Set प्राच्य एकवायनच्च व्यावर्तन्त ता अम्निना पयं गच्छन्त afa सुपावर्तन्तं मेवाध्याप्यपाभाः सो sqaisstar वे प्रजा अनेनाविद्‌ fafa aeaat- Sat प्रजा अननाङ्दि fafa तञ्नातवेदरस्य सभवन्नच्जातवेदसौ waged ता अग्निना परि- गता निस्ब्राः Waa दौष्यलयो ऽतिष्टसा afecag. पिश्त्तखादुपरिष्टाज्ातवेदखसापोदिष्टीयं शंसति तसात्तच्छमयतेव शंसव्यं ता अह्विरमिषिष्यः निजा स्यं वामन्यत तासु वा अहिना वुधन्येन wrest ऽदधादेष वा अह्िर्ुधून्यो यदनिर्गा्ईपव्यो ऽग्नि- नैवासु तह हपत्येन परोच्ासेजो दधाति तस्मादा- हुजुहवदेनाजुदतो बमीयानिति १२ ( ३६ )

अथ “a नव्यसीम्‌" इन्यतञ्भानवेदोदेवताकं aR ( do १४३. ८. ) विधत्तं-- “जातवेदस्यं शंसति" - तिश तरै तत्‌ प्रधसति-- "प्रजापतिः wat भररूजत, नाः रुष्टाः पराच्य एवायन्‌, aA ; ता शग्निना पर्यगच्छत्‌, ला Wh सुया- aaa ; भेवाद्याप्युपाहत्ताः ; भोऽत्रतौच्जाता वै प्रजा wit. विद मिति ; यदव्रवोक्ाता वे war अनेन(विद निति, evenre-

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# श्र. ate yt. ६।

१६४ एेतरेयब्राह्मणम्‌

dee मभवत्‌ नष्नातवेदसो जातवेदस्त्वम्‌"* -द्ति। पुरा प्रजा धिना wen प्रजाः प्रजापतिं पृष्ठतः क्त्वा पराकुखतवनेवा- ned, पुनराद्रत्ताः | तदानीं प्रजापतिः "ताः" प्रजाः अन्ना qarssy परितीऽनिप्राकारं क्तवान्‌ | श्रः नताः प्रजाः zope war ula qa पुनगावत्तन्त | यस्मादेवं तस्मा टयः mma: प्रजाः fa afaa ‘sora परितो च्छन्ति ata दृशा aalt wat सवित्‌ मावक्नम्ते | ततः म. तुः प्रजा्पनिरेय मयदीोत्‌, - "जाताः" Sarat याः प्रजास्तः; सरणी; अरम्‌ aaa ufaar cafes सखवानख्ि, waar सलि wt war अपदे मनेनतु्रकवान्‌, cael समान्थि शते wae अमवत्‌ ,— waazaivect जानान्‌ वेय भिति wae Ta HAR ~} "प्रातो fr oat aay -catfew दन्त ( स^ Qo 4, निधत--- “ir gies परिगता fayen maa Phat ऽनिदस् af sew yg garg Perea aa FATT fextd viata’ sta) afer परिगत afar हिमाः, ‘favs Ta wat, waar via प्रापूत्रनयः, -दीष्वत्य ' arora, ‘an’ wan aaenfaea warufa: ‘at? प्रजाः seus afpaafoqea | wareay aaa MMU OIA as aeR TA TA ag afafzagd विधत्त —-- "तम्मत्तच्छमयतेव WR: ता afgifufes far @awaa”? इति wareniifestd Tea, (तस्मात -तच्छभयतंव' होता गसनोयम्‌,--

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n ढतौयपल्िक्ा | १२॥ १६५

यथा वङ्किं शमयति पुरुषः, शनै; शनेः क्रमेण जलं सि्चति, एव मनेनापि शनेः शमनं करूव्यम्‌। ततः प्रजापतिः ताः" प्रजां अरङ्धिरभिप्िष्य ‘fam ut सकोया एव ‘ay ताः प्रजा इत्य- मन्यत म्य" णर्दम्तच्छन्टपयायः; सकवचनान्तोऽपि बहुवच- नान्तत्वेन परिषमयितव्यः ; तथा सनि ताः प्रजाः waa भवति | तस्माच्छनेः शंमनेन Te खकौयत्व AIT इत्यथः | UAT ‘AT ्र्विः'--दत्याद्य्वाद उक्तगशषपत्न योजनौयः ei

“oa नोऽद्धिवु्राः ` इत्यस्या च्चः ( सं, ६५.५०.१४. ) शंसनं तदेवताम्तु तिहर ष्पोन्नयति -- “तमु afeat बुनन परी- arma ऽर्दधरटेष दहता afeaun यदग्निगारपत्ये। stearate तह्ता पलेन परौन्नालन्नो दधाति; नम्पादाहजब्रटेगाजुच्रती यसोयःनिनिः'- xfer ary अनिधकादूदं खकोयववेन स्पोकछलनाम्‌ ware, प्रजापतिः श्रद्धिन। बुघ्रयनः ्रहिजुभाणष्द्‌ दयनामकाम्नि- Paty patra when 'तेजोऽटधात्‌' प्रजान! मन्त।प- भोर्त्वात ता यथा atfafaing avatar, तधा नार्मबाग्निविशेष- मम्यन्धि तेजः eta धी गारपन्योऽ{निरस्ति, एष एवं अह्िशष्दन aarreafufen ; natu. wee मति गाहप्यमेवास्निना प्रजासु पराचत्वन पज; स्थापयति यस्मा

शश्र" fe nafa Fait faye म्प | sts Hactia jvautadtnaedi:, $दमादि परनि प्रदः शानम्‌' sha cine Ato ५.२० ५।

1 -"्िरिन्नान्‌, wadtegsad भथ 6 पत्‌, वुधा. बद मतरस, af वामात्‌ ( विद्दि, दति a {नसि ea er ag) Sahel way es XH Gio Me ( Ho He ०,३१.००. ) 14H oie र्माता tata पी भगव्यते | परम्‌ ‘ose algfedar sag त्‌ faa ramarelarqaryat एव्‌ faqad -

ASAT दृश्यत ( १२.१.१५ ),

१९१ | रैतश्यत्रा्चणम्‌ ,

दागेयं तेजोऽपेचितं, तस्मात्‌ oye: होमरहितेत्‌ पुरुषात्‌ qnia elt waaay पुरुषो Game waa अष्ट इयेवं HAL ATF: १२॥ इति ओरोमकायशाचायंविरचिक्े माधवीये deriva रेतरेवत्राह्मणस्य ठतौयपश्चिकायां ठतीयाष्ाधे | हादशः खण्डः १२ (२६) a

| Wa त्रयोदशः खण्डः |

देवानां ual: शंसल्यनचीरम्नि' oeufa ae दननो गतौ गाहप्रल्य मास्ते तदाह राकां मश सज्जाम्यवे aug fafa anges दवाना मैव Wal: Wah KH Sa = al एतत्पमल्लीष Tat दघ।ति यद्म्निर्गाह पर्या ऽग्निनेवासु तद्‌ गार्हपद्येन uty प्रयत्नाद्‌ रतो दधाति were प्रजायते प्रजया wafer wi Fe तस्माव्ममानोदर्याः खसाग्यो- दर्यायै जायाया अनुजीविनौ जीवति गाकां wafer’ TATE aT एतां पुरुषस Baal सौव्यति' वेषा ` गिश्रेयऽधि पुमांसोऽस्य gar जायन्ते एवं बद्‌ पावी

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मह TPT aq’ ग। “fea sly sf भायसण्मत्‌. पाठ; |

तोयप्रद्िका eR A ११

रवौ शंससि वाग्वै सरसखती पावीरवो'वाच्येव तद्वां दधाति तदादर्थामीं yar fa sq fuatis > इति | यामौ मेव oat शंसेदिमं wa uaz मा हि सौरति' रान्नो वृं Gada तक्मादामी मेव wat शंसेम्मातलो कव्ययमो अङ्किरोभिगिति काव्याना मनचीं शंसय. वरणवते देवान्‌ काव्याः परेणव faa aaa

व्याना मनूचौं शंसन्युटौरता wat उत्परास इति पित्रः गसद्युन्मष्यभाः पितरः सोम्यास इति ये चेवावमावरेच परमाये मध्यमान्तान्त्सर्वाननन्त- गायं प्रोफालयार पितन्न्छुकिद्वा अवित्सौति दितीयां ata वरहिषदो ये स्वधया Haas वा एषां प्रियं wa ae afeag दरति पिेयोप्रेन॑स्त- कामना समडयति प्ियेख धाम्ना aasia od ददं fuse नमा asagla नमसखारवती aaa: wala area: fae नमस्यते aeeaisid पिचाः गंसेञत्‌ अव्याहावाडइ इति avery मैव शंमद्मं{खितं पे पिद्रयन्नस्य' साध्व- संस्थितं वा पण पिष्यनं संखाव्यतिया sara णंसति तस्माद्‌ ATR मैव ग्रं तव्यम्‌ १३ (३५)

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१६द Vataareray a

ag “देवानां ual watery नः''-दृत्युग्हयं देवपत्नी. देवताकं विधत्ते “देवानां aah शंसव्यनुचीरणिि खहपतिं ; तस्मादनुचौ val aera मास्ते" -इ्ति | देवानां aat:- दूत्यनेन्‌ रेवत वाचकेन शब्देन तव्रतिपादक खगृदयं # विवत्तितम्‌ ( ५.४२... ) तत॒ ऋहइपति afer meat: शंसेत्‌ | ग्टहप्रतिरग्निरिव्येताभ्यां गन्दाभ्यां तक्रतिपादिका “डत नोऽदि- war” इति ऋग्‌ faafeat( १६५ ए“ )। तदपेक्षया देव- पज्ञोनामकय्य मन्वञ तिस्य पशचा़ावित्व wa; अरत पूर्वो काया ऋचः पथात्‌ wafers: | यस्मादतेवं "तस्माद्‌" यन्न णानायां gat गाप्यम्‌ ्रन्‌चो श्रास्ते' पथाद्वतिहत sat: wa कचित्‌ yaaa मु्यःपयनि-- "तदाद राकां पूवां Wate वै your fafa” -इति। सम्पुगचन्द्रमण्डनयुक्ला पौणसास) रक्रा; तदमिमानिष्रवताया; प्रतिपादिका ऋगगि राका इतुा्यते। al tint पूयः देवपरननीभ्यः पूर्वभाविनीं ग॑मत्‌ †। Meat come, Sarai la नाम भगिनौ; तस्मात्‌ त्या ण्व रूवं प्रयमतः सोमपानं zw मिनि qa तं निरास देवपल्ञानाम्‌ एव पूवत दभयति-- “तत्तत्राहत्य, देवान मेव पोः पूवाः श्ंमदेष वा एतत्पलौयु रेतो दधाति, यदनिग। पल्योऽग्निनैवासु तद्वाहपत्यन पन्रीषु प्रत्य्तादरेनो दधाति प्रजाद्यैः.-द्ति। राकाया; पूर्वत्व मनादरणीयम्‌, टेव- ल्नीना भेव पूर्वलं मुक्तम्‌; गाद्धपत्योऽमि; पन्नीष्वेव रतः स्थापयति, तु भगिन्याम्‌ | तस्मात्‌ पङ्गीनां पूर्वगंसमेन were

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“वन पतोरण्तोरवन्ते दति दति Wg य° ५.२३.६। PUNT, कमनान्व्यादिक्‌ मनुपदं व्षाति ( १६९ ge)!

ढतीयपफञ्िक 1 21 22 १९२

भेव पलौषु गार्हपत्यसुखेन ta: खण्ययति ; तश्च ‘ama’ aaa | वेदनं प्रग॑सति-- 'श्र aa प्रजया पशुभिर्य एवं वेद" शति लोकिकोदाहरसेन cali पूवभावित्वम्‌ भगिन्याः wat. बवाषिव्वं चोपपादव्रति-- ‘aay समानोदर्यः खसान्योदर्याध जायाया शनुजोविनो जवति". दति qearur मेकोदरजापि भगिनौ पर्रम दोय, famecnta जाया ait स्तोक्रियतें ; तधा सति axa दनापि wfaat यदा कदाचिद्‌ माटणग्य् Ata AA मनुष्य yaad Maat मतौ ‘strata fafaata मनन

“TH मदम्‌ दनि at तिधतं - “crat शंसति : Ta EU TAT yas मृवनी सोव्वति,-- यैषा fararsha— डति! दिविलावादिरकाणब्यन नद्मिधायनौ wafafak पं” २,३२.४. ,, लां wea) पुमपस्य ‘fafa’ गिद्यस्योपरि fern, युदेवनववनर cam यपा -संवनो पलन्छन्दाभिप्ेयां उपम्यगा रस्ति, cont fret राक्राख्या रेवना 'सोव्यति' दठ्भभां करालि; तस्मान्‌ नदधीगरा wa मेत्‌ +

यदम गणंमति -~ ` qaidner yar aaa ut वेद" दति

“ataleat कन्या" दन्येना मुचं ( मं५ ४८.०9 ) विधन्तं -. “grated शंमलि ; and acaat पावोरवो, araa aerd eatfa’-sfa i यं वामहिभानिनो ‘acaay देवला, सैव

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१७० एितशयत्राद्मणम्‌

‘qa mura sqar प्रावोरवीः ; area ‘arf एवः देवमायां मन््रसपां ard’ wraafa aa frat मनलारयति-- “aergaiat gat siteq प्रिह्णांरेदनि" दति) “ad ay wae cau (सं.१८.१६४.) वम्दैवताकत्वाद्‌ ‘Mat ; ““डदोग्ता wae” -saert पिदरेवना- aay ‘qari उभयोः पीवःपयक(रगस्यानिथवाद्धिवारः ; नदरा afar) aa निर्णय रभैयति-- श्यामौ fa git मंमेद्‌,-- श्रमं यम wee माहि Hela; ast रै पूर्वयेयं न्स्माद्यामो Fa yar aay’ बति) oat fe रजः: “aa: ‘aan राजा" -उतिगुचन्तगात्‌ ; : tra प्रथमं ore म्‌

पू्वक्तवाभ्याः शं छाम fawa ‘cna asia wigtttatete sree; wag? dawatag देवाम्‌ श्राव्या; परशं पिन्‌ म्स्मा-नाव्याना मनूचौ water” इति। कवयः "द तिश्रुतलयादपं "काव्यानान्‌ कन्‌ ( Ao १०,१४.२.) पूरका मच Ry पथाद्‌ नच्छतोनिं शरनचतौः. at atta भसत्‌ | CRT tartar wera: al ageasnfaleduan, Waban» waza देवान्‌ अयरेष, पितृन्‌ yey FRAC शत्‌ एव ववे Yaar याम्यः, वद्छप्नाफायाः ars म्य छसनं युक्तम

श्रय निरू प्रिठरेवताका wat विधन्त -- (उटौरना waz SATTR दूति Ho १०.१५. १.) पिना, भकव्युन्मष्यसा; पितरः; ससस sia. rte: पादः spray —- “a earn Fa Wa 4 मष्पमास्तान्सवागनन्तरयं प्रीणाति" fa | “sai

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दतीयपश्धिका १। ee i Yad

famet: fare "उदीरताम्‌ उलर्धेय गच्छन्तु ; ‘acre’ छत्कष्टाः पितरः उदोरताम्‌ ; तधा -मध्यमाः' भिक्षष्टीव्कु्टमष्यः वरसिंनः पितरः उदीरतात्‌ ते विषिधाः पितरः सौम्यासः, waar: दति" एतस्य पाद हयस्य पाठेन त्िविधानपि पितु quad कस्याम्यन्तरायो यथा भवति तथा तपंति विहितास तिष्ठस प्र्माया उदाहतलादनम्तरभाविभीं हितीया ad दययति-- “ure पिनुम्तुविदनज्राद भविस्ौति ( सं° १०,१५.१. ) दितीयां शं सति" -इति ¦ सस्या eee: पाद Hae व्याच. “af¥aal ये waar gasaaw घा एतां प्रियं धाम, यद्‌ विपद इति प्रियेगोवेमांसद्ाशना समहंयति'- दनि afefa दर्म सोदन्ति उपविगन्तौति 'बर्धिंषदः' पिवरः। wa "बद्धिषदः"- दति aeaa 'एतइ वै' एतदेव बद्धिषदाम्‌ "एषां" faqui पियं स्थानम्‌ ; तस्म्ादेलत्पदपाठेन “एनान्‌ पितृन्‌ भ्िधै- सौव ‘aay स्थामेन aay करोति a वेदम प्रथं सति-- “प्रिये धाना साते एव॑ षेद" - षति तीया ad दश्यनि-- "ददं foal नमो भर्बद्यति नमस्कारवतौ मन्ततः पंसति ; तस्मादन्ततः पिदढभ्यो नमस्ियते'"- इति) अस्या मुचि “नमो अर "-दतिगरूयमाणत्वादियं 'नसस्कार- वतौ" (@o १०, १५.२.); ता मैतां निशां fara मन्ते ण॑सेत्‌ ¦ Tass तस्मात्‌ awe “नमो त्रः वितर" -दत्या- दिना (ato Wo २०. ३२. ) पिद्धभ्यो नमस्कारः क्रियते airy faatra कश्चिदिशेवं विचार्यं नियं दगंयति- Coepgarers farm: भं भरत्‌ wearetata इति ? व्याष्टाव मेव शंसदं खितं पिदयश्रसखय साष्वसंषितं वा एष पिदयन्न' मस्याः

१७१ Tataareray

पयति यो ered शंसति ; तस्मात्‌ व्याहाव भेव शंस्तव्यम्‌"- शति “Strat -<fa मन्त्र चाहःवः; aaa मन्तेण nad ‘cored वि्ेषणादूयादूय किं foe: पित्ता: भ॑सेत्‌, भारो fas ‘saree प्रधक्‌-एथगादहावमन्व विना भंसेदिनि विचारं ब्रह्मवादिन श्राहइुः। अत्र ‘faa: शंसति". saga विधिना विदधितलरात्‌ प्रधक्‌-ष्धगादावो नास्तोति wa: प्रतिभाति ; पुनः रपि दितीयां शंसति", “नमस्कारवतौं शंसति" इति पएधभग्विधि दर्शनान्‌ प्रसेक area: कत्तव्य दलयपि प्रतिभाति| विचा- ग्धं श्रुतिहयम्‌ ! तत्र पृथक्‌ waa area एव fear | तत्रव सुप्रपत्तिः,--- पिद्धयन्नख्य सम्बन्धि aya शअमंश्ितम्‌' mana, असमाप्तं तिनि; तदङ्ग साधुः ममं कत्तव्यम्‌ "यः" होना एक्‌ परयगाहावं क्रत्वा णंमति, ‘ow’ नोता पूवम्‌ 'पसंश्थितम्‌' श्रसमामं पित॒यन्न' संस्थापयति लस्मात्‌ एग sianar ifeda ग॑स्तव्यम्‌ १३॥ दति ग्रौमत्सायणाचारयैविरचिते माधवोये बदाघप्रकाग्रे रितरयन्राद्मणस्य ठतोयपञश्चिकायां टलौयाध्याये त्रयोदशः खण्डः १३ ८(२७)॥

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भथ चतुर्दशः खण्ड;

सवाट्ष्किनायं मधुमा ऽउताय मितीन्द्रखेन्द्रौर- नुपानौथाः शंसल्येताभिर्वा इन्द्रस्तृतीयसवन मन्वपि-

ठतौयपस्िक्षा a | १४॥ esa

वत्तदनुपानौयाना मनुपानोयात्व" Araraita a तर्हि देवता यरेता होता भंसति तस्म्राटेतासु मदद्मति- गौय ययोरोजसा स्कभिता र्जासीति दैष्णुवारणो ad शंसति विष्णु aga दुरिष्टं प्राति। seq: fad तयोरूभयोरेव ma विष्यो कं वीर्याणि प्रवोच मिति वैष्णवीं शंसति' यथा वै मल्य ad waa विष्णुम्तदाथा cae’ दुम तोक्ततं सुक्लष्ट' सु- मतीक्लतं वुर्जत्नियाटेव मेवतदान्नघ्यं zed दुःशस्त' | aed qua’ कुत्रेति देतां होता शंसति तन्तु तन्वनृजसो भानुमनििहोति प्रजापयां शंसति प्रजा वें नन्तः प्रजा Rava एतत्सन्तनोति' ज्योतिष्मतः पथो रक्त धिया क्तानिति देवयाना पै ज्चोतिष्रन्तः CATA AAT एतदितनोत्यनुल्वगं बयत जोगुवा मपो मनुर्भव जनया दैव्यं जन fawad wena: प्रजया सम्ननोति प्रजातये मर जायते प्रजया पशुभिर्य एवं 8 ar इन्द्रो मघवा विरपशौल््मया परि cardia at इन्द्रौ सघवा विरपभौ' aca चषणीधुदनव॑तौयं वै सद्या चर्पीधुदन्वां तवं राजा जनुषां Faw इतीयं तै गला जनुषा' मधिश्षो माहिनं यञ्जरिज gta वै माहिनं यन्न्रवो यञ-

१९४ एत्य ग्राञ्मैशम्‌

मानो जरिता यजमानायैेता माभिष arate | तदुपस्पृशन्‌ भूमिं परि दध्य(्तद्य खा मेव यन्न॒ सम रति तस्या aa तदन्ततः प्रतिष्टापयल्यम्न मरुः शुभयरिकटक्मिरित्याभ्निमारुत qed शस्त्व।ग्नि- मारुला यजति यथाभागं तहेवताः प्रीणाति प्रीणाति १४ (३८)

इल्येतरेयब्राद्मशे ठतीयपञ्चिकायां ठतोयोऽध्यायः। |

अथ चतस्त ऋषवो विधत्ते-- “खादुक्किलायं मधुमा ऽखताय मिनौन्द्रसयन्द्रीरलुपानीयाः शंसत्येताभिर्वा इन्द्रस्ततोयसवन मन. पिवत्तदमुपानोयाना मनुपानोवाल्वम्‌"- डति ^खादुक्किलायम्‌" -द्त्यादिका ऋचः ( Wo ६. yo १-४) ‘Ren’ wePaar. केत्वात्‌ ; “पपिवांस firey’ —<ite: तीयपादे शूयते ara -इन्द्रस्यामुपानोयाः' भोजनां यत्पाने, तत्य घाद्गावित्वादसुपानसः; RATAN एता ऋचः ; ताः day कथ fear मनुपा- नोयाल्म्‌ दूति तदुश्यते -- मिन्द्र; तुतीयसवमम्‌ “सुः पाद्‌ एताभिः ऋम्मिः wears: सन्‌ सोम मपिदत्‌, तस्मा दनुपानोयेति नाम सम्पन्नम्‌ |

एतच्छंसनकालेऽष्वयोः farce fad विधन --“माश्- aia वै तहि देवता यदेता wien शंसति ; तम्मादेतास्र महग्मरति. Tra af तस्मित्रनुपानौयाना wet भंसनकाके होतुः dai गुत्वा देवताः wat: “माद्यन्ति द्रव दैः सवधा wea;

#॥ ठतौयपशिक्षा १; १४॥ १७१

तमात्‌" कारणात्‌ “एतासु ऋषु शस्यमानासु Ase ATT प्रतिगो्यम्‌' मदिष्वातुयुक्नं प्रतिगरं पठनीयम्‌ "मदा atta" इत्ययं मदिधातुञ्ुह्कः पतिगरणमन्छः | | went विधत्त “ययोरोजसा समिता रजांसोति Sey: वासको मृचं शंसति ; विष्णु यत्नस्य दुरिष्टं पाति, wae: fae’ ; तयोरभयोरेव गान्ध -ष्ति। विष्युर्वरुणद्च मिलिता श्वता यस्याः, सा 'वेष्णुवासण्णै" ; तां पसेदिव्य्थः। तस्यायतुर्थ- पादे "दविष्णुरगन्बस्शा"-दूरतिखवकणात्‌ वैष्णुवासग्णीलम्‌ | मा चाश लायनेन पठिता (१,२०.६. ) tl ुरिशटम्‌' wefane यद- afean, afew: पाति await निवारयनोव्यधः ¦ “fee” साकस्येन यदङ्ग मनुटिलम्‌, ase: ‘ofa’ तस्य फलप्रतितरन्भ' निषवारयतोत्ययः तन्नादिय मक्‌ "नयोः उभयोः विष्णुवरुणगयोरेव ‘area प्रोत्य सम्पदाते 4 wad fari— faut कं वौर्याणि प्र वोच मिति tut शंसति; am वै मन्य मेकं aver fryer cre’ दुमतौछतं gas समतोक्षनं कृवनियारेव Aare eee qm wea una quafa, यदेनं wa dafa’- nia "व्स्‌: (ति ATATH Athy “AIRY (Hoe. Case) | तुषो WAH AT प्रतिभातं कायम्‌ मत्यम्‌ ¦ Wa दाम्नः, विष्युदार्ान्तिकः 1 यया मत्यं कायं लाके फलनपयववसाथि भवति,

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# Vercernu निति सतसी मम्‌ aisid भदः मादव ater सोर (Haat परनिगरी'- दलि भाक dre ४५३०. ६। “waraser sara ग्जसि Dafa शैतनना ofa या पतेपरते भभतोना सष्टोभिवंदरगन्‌ sear पुतो "Hie |

१०१ शेतरेय द्म शम्‌ |

तथा विष्ुरपि फलपयवसायो Kae: | उक्तयोः दृष्टान्त-दीषटीन्िः कमोः rad तथ्धेन्धादिन प्रपश्चातै। यथा लोके 'दुष्कषट कषकः सखयस्थान दोषयुकं aa भवति तथा क्रणं क्तम्‌, यत्किञ्धिंद्राज- कायं Hae 'दु्मतोङ्ञतं दुष्टं मत मन्यथा चिन्तितम्‌, पुवं तत्काय agad सन्‌ पराद्‌ बु्िप्रसादात्‌ gad सम्प(दितम्‌ ; तत्र कञ्चिद्‌ ghana कषकः BVM दृष्टस्य मादेरपनयनेन Aas कुवन्‌ इयात्‌" WIAA Bet गच्छत्‌, राजकायं मपि दुवदिनामाव्येन दुमती क्तं यत्सुब्‌ हिरमात्यः भुमतौ कुर्वन्‌ wey | aaa सकष, एव Rafa कमणि ane water यत्‌ स्तो मङु- शलेरद्राठभिर्दोपमहितं क्षतम्‌, यदपि safe: शच दोषसदितम्‌ पठितम्‌ ; तद्भय मपि विष्णुः क्रमेण aed सुशस्तं कुञन्‌ एति गच्छति, तच्रत्यटोषं प्ररिटरतोव्यथः। ‘ae’ यदा वैष्णवो Rat Via ग्रंमति, तटा तद्भयस्माधान मिति द्रष्टव्यम्‌

ऋरगन्तरं निधत्त --^ तन्तु लन्वनृजसो भानु मलिरहोतिप्राजा- प्रां गमति; mata तन्तुः, प्रजा Rarer waitin’ sia) अर्था शचि काचिदपि Gan सान्नादाचकणब्देन ata, तस्मादिय मनिर्क्ता {सं १०,५६.६. ); तादृश्या प्रजापति- द्यना; तद्धवताकलं पुर्व मैव निर्परिनम्‌# ; ता मेनां ara’ भसेत्‌ प्रजापते ! "तन्तु aaa .पुचरपौत्रादिषन्ततिं fat रयन्‌ 'ग्जसः रक्ननामकस्थ जगतः (भानुः भासक मादिष्यम्‌ “fate अनुगच्छ oarfzar fe qa: पुनः सरन्‌ ae. रतनिप्रात्तं करोति, तत्वालानुसारेणव मपि सन्तानहदिं ऊविन्यथः। अस्मिन्‌ पारे ‘aaa पुत्रपौत्रादि; प्रजा विव-

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RET: ९० af cafe दरश्न्यम्‌।

:॥ ठतीयपद्धिला.। ९1.१४ १९१.

किला; agua विस्तार्यमाणलात्‌ तस्मारेतत्पदियाठेनं ‘oe’ यज्जमानाय प्रजा मेव सन्तनोति" भविक्छिवां करोति . हितौयं- पाद मनय व्याचटे-- “श्धोतिष्तः पथो cer धिया लतानिति,-- देवयाना वे ज््ोतिमन्तः पन्थानस्तानेवास्मा एतदि तनोति” डति। , छे प्रजापते | "धिया any यागादयनुष्टानबुदया सम्पादितान्‌ “ज्योति भतः' प्रकाणयुक्तान्‌ ‘oa: qian ce विन्नपरि- हारेण पालय | wa न्योतिद्यत्‌ -पचि'-शब्दाभ्यां देवयानमार्गा * fasta, | tat ay सर्गेषु यान्ति weir, मे देवयानाः भर्वेषां देवानां तजलित्वाक्तन्मार्गप कदाप्यन्धका्येऽस्सि तस्मारेतव्पादपठेन We यजमानाय ताम्‌ः एव मार्गान्‌ Wat विस्तारयति + उन्तराह मनुद्य ग्याचष्टे-- “WASTE वयत जोगुवा मपो मनुभव जनया टैव्यः जम्‌ भिद्येवेनं त्मनोः प्रजया सन्त नोति ware’ इति पृनः-पुनः कर्मसु गच्छेति waar डति धनृष्ानणोनाः जगु -णष्ट्‌ नोच्यन्त ताहशानां जोगुवाम्‌ प्रक्षन्ततावृत्यन्नानां पुव्ादौनाम्‌ wu भनदटीयमान Ray कम (प्रमुरुवणम्‌' अनतिरिक्त (वयतः प्रजापते) ‘aq’ fade; वहुवचनं पुजाधम्‌ | `सतुमव'. त्वमेष मनुष्योत्पादनाधं Age wai तनो ‘Bar देवनाराघनयोग्धं (जनेः पुत्रादिरूपं uae "जनयः sare: ‘aw तेनादपारैनग ‘ad’ यजमानं ‘aa: सम्मज्धिन्या प्रजया uqereuar सन्तनोति darrafa | ae RA AMAA WANTS सम्पद्यते वेदने प्रय॑सति-- “प्र जायते प्रजया पशुभिये एवं az’—efa 4 warty शस्रसमातिः विधन्तं -- “एवा इन्द्रो मघवा विग्पथोलुत्तमया परि दधातोयं व! इनदरो सवता विरपृषोः-दति।

ver. - -॥ Uataargara # `

ऽय भिन््रौऽश्ति, सोऽयं नः ta cared भेव, फरोलिवि fect. mea तश्यमाणेन सम्बन्धः| गोष्ट wee (मघवा धंनवान्‌, amt विग्य दम रमसे" - दयस्मादातोरत्यग्रोऽयं शब्दः, विते पेण राभस््रवान्‌, सवदोदटुपक्त इत्यथः | भनया ( to ४,१७.२०, ) "उमया' शस पिक्षया अन्तिमया परिधानं gaia) उदा- चप waa? इन्द्रदिशब्दः स्देरपि शयं वैः मूमिरेवोपनश्यषे ; wan भूमिखर्थनस्य विधास्यमानलात्‌ | प्रथम्रपादं व्याख्याय धितौयपाद भनु वावष्टे ~ “करत्वा चंणषटदेनर्वेलोयं 3 म्या चप्रणोटदनर्षः'-एति। व्वषणौः-णब्दौ मनुष्यवाची, at स्यत पोषयतीति “aaah इन्द्रः सोऽयम्‌ | maar Ta aha धागभुमाषुपविष्टववादण्वरदहितः | aed: सन्‌ een’ फलप्रढानस्यावश्यजलेन सत्यानि कमार (करत्‌' करोतु, विघ्र- परिहारेण सम्पादयतु ! अस्मिन्नपि पादे मन्वार्दिपदैः qaafet भमिरवोपनसणौया टतौयफाद मनु व्याचष्ट “लवं गजा अमुपां wat salt वै राजा जनुषाम्‌ दति) जनुषां जना- नाम्‌ TH aa कलिजं Bo! UA भृत्वा शेषि वश्य माप wale सम्पादय | अन्मिन्नपि पारे “माजा जनुषाम्‌". fa meray yaafed भृभिरेबौपलन्तणोया चतु णद अनृ व्याचष्ट -- “af श्रवो माहिनं यक्रित्र cata a मादनं aw शबरो वजभानो afar asada aria माणाम्तेः'-इति। "जरित्र स्तोन यजमानाय "यत्‌" प्रसि 'मारिनं' मद्धितवं ora’ alfa ‘afr पहोतिपू॑खन्वयः; देन! ममाधिकयन सम्पादयेःयथः ¦ भम्मिवपि पाद्‌ (माददिनम्‌ः-दतयननेयं भमिरे- | वोपलप्नणपोया | ag नपुंसकलिङ्गे इति पुंलिङ्गलेन aft.

ठतौयपञ्चिका ३। १४ ` १७६

शमयिच्थैः; तैन यो "यन्नः इति प्रसि aw मावे, सोऽपि इयं 8 भूमिरेव . कोत्तिवाचिना ova: ब्देन पि भूमिरेवोपलश्यते | यजमानो जरिदढ-शष्ट्‌ माभिधेयः एतत्याष्टचतुष्टयपादठेन होता TRATES मेव श्राशासनोयं सं प्रार्थयं |

परिधानकाले होतुभूमि खगंनं विधत्ते -- “तद्पस््गन्‌ ममिं aft दध्यात्तदयस्या fa ow सरन्धरनि, तस्या Aaa तदन्ततः प्रति- छापयति' दति ¦ ‘aq नदा गस्समातिकाजे भूमिं wate परि दध्यात्‌" समापयेत्‌ | aa तेन खर्थनेनानेन यस्या भेव भमौ यन्न मनुष्टातुं माधनं सत्रि सम्पादयति | wer भेव भुमौ "एने यक्तं तटन्ततः' तत्समासिःखन्तं प्रतिष्ठापयति

अष wears विषते-- (अने मर्हिः शुभयदिकऋक्भिरि न्याम्निमारुत qa शस्ताम्निमासत्या यजति, यथाभागं तहवना; भोष्ठाति प्रीणानि". द्रति | aaa यस्य (उक्थस्य may देवला, तन्‌ श्राभिमारत gary’, पूर्वोकतप्रकारेण शस्त्वा श्रत wea अन्ने walk: ’- caer श्राग्निमासत्या aaa’) भग्नि- मालो यान्यां (mo 4, ६०. ८. ) atten «| तथा सति

= ~ ~~~ ‘ein foe,

7 curd रिः teats त्रमिति anny manilifagratslaeta a hy wipe Ho yao ts) Wea Cy जरर sre सपसंन्धःपेतन्याग्रसयोमः, va a, Weis: संस्थाः aT Tapa "द्रति (7 भार्‌ Yo १०), तव प्रयमम्याद्दपस्याणिटोमस्य stan HAM WA समाता; ; aw ie ब्राह्मन eta ag वपसातानिःश्राभ्वद्ररणितु एनपयादा ae aria | तन शतपथ ठतौयचनुघभ्य) कार्डाभ्या भकाद्ाद्ौनसयनयणमकननमीमयागपरङ्ञातमयीप्य मभ्मिष्टोमौऽभिहतः। तथा कातीष- Tra ऽपि Caan sfosta: ( 9.2.8.) sa “एय प्रथमः मामः ( १०.९.२५.) “wee! द्रष्टव्यः एनं सार्मव्राह्मण wafer waaay प्प्रज्रापतिरकामथत (ताग ae ९. १.१.) -द्वयादिधिः भ्रग्रटामौयानि irate fufyarfe |

` Raton 1” वसन्‌ wea प्रतिपादिता यावत्यो शैवताः सि, ताः सर्वा- quan मनतिक्रम्य तपेयति | शभ्वासोऽध्यायसमापतर्धः १४॥

sfa ्रौपकायशाचायं विरचितै माधवीये ैदा्ंप्रकागै driers दतोयपश्चिकायां ठतोयाध्याये चतुर्हशः खण्डः १४ ( र८ ) A

वेदार्थस्य प्रकाशेन तमो हाहं निवारयन्‌ ¦ पुमधधौश्वतुसे देयाद्‌ बिद्याती्यमरेष्वरः |

cfa योमद्राजाधिराजपरभेश्डरग्रेदिकमागीप्रवक्तम-

Pea TTS CATA AAT ATA ITE anremranaay तिरचिते माधवीये वेदायप्रकाशनामभाषे

रेतरेयश्राद्मयस्य ठेतौयपलिकाया; ठतोयोऽध्यायः

कनो 71 अष vay विदि ot

भध चतुर्थाध्यायः॥ ( तवर )

अच प्रथमः खण्डः

पी 1

॥ॐ॥ देवा वा भसुरेरवुदमुपर प्रायन्‌ बिजयार्य ताममि- नान्वकामयतेतुं « तं देवा quanta नेद्यस्माकं वे त्व मेकोऽसोति!स नास्तुतोऽन्वेध्यामोल्यववीत्‌'सुत

नु मेति तथेति तं ते सम॒त्कम्योपनिवच्यास्तुवस्तान्‌!

qs var भिग्रिभूतवा arta ऽसुरान्‌ ge au ume विजयाय च्िश्रेशिरिति चछन्टांस्येव

wager waite इति सवनान्येवानौकानि'

लानसम्भाव्यं पराभावयत्‌ ततो वै देवा अभवन्‌ परासुरा भवत्यात्मना TIT दिषन्‌ पाप्मा भादव्यो भवतिय णवं = Atal एषा गायजाषव यद्‌- भ्नि्ोमश्चंतुविथत्यक्चरा पे गायती' चतु्षिशति- रम्निष्टोमख स्तुवशस्थागि तहे यदिद are: सुधायां ea वाजी सहितो दधातीति गायनी वै aa ष्ट वे गायचौ षमा रमत agt इवा एषा यजमान मादाय खरेतोल्यनि्टोमो वे aa दवा भन्नि्टोरः

EP eee Ee.

'नक्ामवदतु'" ~ + MSTA TS YUH

masta ae

८९ Qatargas 1

qa रमत BET षा एष यजमानम मादाय qifa सवा एष संवत्षर एव यदमि्टोमख्तविशव्यष्- मासौ वे संवत्मरश्चतुरिगशतिरनििष्टोमस्य स्तुत शस्त्राणि तं यथा समुद्रं Mat एवं सवं THAT | ऽपि यन्ति॥ (३६)

चोदये सोमकथा wath,

गजफया्धथा सषनाज्वितापि |

स्यार्हैष्वदरेवञ्च मरतललौयं

waft उदिताः क्रमेण `

भय पूवोध्वायेषनोऽनिष्टोमः, सव क्रतूनां प्रह्ञतिलेन सूयते

तदर्थं सुपाख्यान Are “देवा वा श्रसुरगुड मुप प्रायज्विजयाय ; तागरमिर्नानचकषामयनैतुः; तं रेवा भ्न्तवभ्रपि Awana 7 मैक्ोऽमीति; नासलुतोऽन्वेष्यामीव्यत्रवौत्‌,--. yr मु मेति; तथेति ; तं ते समयुलभ्योपनिदत्यासुवंस्तान्‌ सुतोऽन्‌ प्रत्‌” -द्ति। Sa: waived ससुरः शद युद्धम्‌ “Sd प्रायन्‌' घयक्रान्तषन्तः | meray सग्निः ‘ary’ देवाम्‌ "अमु wag 'एतुम्‌' श्रागन्तुः नाका. म्यत; अनि सिच्छारद्धितं देवा एव मन्नुवन्‌,-- भम | त्र मपि ‘ufs अगच्छ, अस्माकं मेव मध्ये ‘a Fait’, ama ष्ति। ततः ‘ay’ अजिरे मत्रवोत्‌,-- युपाभि- रसतः wae “नान्तेष्याभि' gaa एष्ठतो गमिष्यामि, तस्मात्‌ aN माम्‌ जुः flaw मेष aa’ Vist बुरतैति ¦ रेवा- teria ‘ages’ cara ‘sufiaw भनेरमिमु सत्येन

देतोयपञिकषा। ४।१॥ १९६७

निहन्ति. wat तम्‌" अग्नि मसुवन्‌। सोऽप्यभ्निः सुतः सम्‌ fare gay ‘wae ` मेत्‌" gat water | :. ` भनेयुचप्रकारं दशयति oa fatfnga वपनौको sg साम्‌ ye सुप mae विजयाय ;-- farfufife च्छन्दांस्येव चेष्योरकुरत, arte शति सवनाग्येवानौकानि, तानसम्बा्यं पराभावयत्‌ ; ततो वे ठेवा भवन्‌ परासुरा" -ष्ति। सः' मग्नः विजयाय “तिरेक मोमयपानपङ्किवययुक्षः, “atte विभि- tate: सेनापरिरूपैः सनासुखैयुक ऽसुरान्‌ प्रति गुदम्‌ ‘eu’ एत्य ‘wag तत्समोपं प्रकर्षण मतवान्‌ | तरिर शिरिति यदुक्त, तव गायतो-विषटब्‌-जगनौरुपाणि छन्दस्येव तिसः त्रेणोरङ्घरुत | aria इति यदु, aw प्रातस्वन.माष्यन्दिनिसवन-ठतौ यमत- मन्यव चोग्धनोकाएनि सेनामुखान्यक्ुमतं | ततः ara’ अमरम्‌ पुनः wana यथा सम्भाव्यत तथा "परा भावयन्‌ , पराभतान करोत्‌ गती Qare देवा विजयिनो ऽभवन्‌, अस्राः पसभनाः॥ वेदनं प्रथंमति--- "भवत्यान्मना परास्य feaq पामा araait wafa a og वद इति| एव मग्नः छन्दस्तय-मवनजययुक्तो sfaciaed ऽभव- दिलयेकंन प्रकारेणाम्निष्टोम सत्या पुनरपि प्रकारान्तरेण स्तीति “a aaa maar यदम्नि्ामश्चतुर्बिगत्य्तसा त्रै गायकौ चतुविणगतिरनिष्टोमस्य स्ततगस्ताणि"-द्ति। atst wate- ऽभ्निष्टोमोऽस्ति, ‘ar ar एषा maar’ ferrari: सष्यासभ्यात्‌.-- गायतो गतेषु waty या agn, सेवाग्नि्टोम- Taq ArT तथा,- - बहिष्यवसमामः, माध्यन्द्निपवभाम - अभेयपवमानः; ति tf प्रवमामस्तोतराणि ; चायाय

१८६४ एेतर्यव्राद्मकम्‌ .

warnfa ; चत्वारि एृष्टस्तोजाखि ; एकं यश्रायक्नोयं alae ; एव मेमानि दादश सम्पन्नानि | शस्ताण्यपि तावन्ेव,-- भ्राश्य- प्री, fasive, मरुलतोये, बेश्वदेवाभिमारुते इति होतः marta षट्‌ ; तथा setae मपि * षट्‌ | एवं Bade agafavine गायनौ रूपत्वम्‌

प्रकारन्तरेण Weta wars स्तौति-- “ag ग्रदिद मादः मृधायां वै वाजो afedt दधातोति, गायत्री बे aay वं गायत्रो क्षमा रमत, BE वा एषा यजमान मादाय खरे तोन्यम्निष्टोमो वे तत्रह वा णनिष्टोमः चमा रमत, wal रवा एष ख्जमान मादाय खरति"-दति। ‘ae’ ada यश्नसभायां aguleat ‘afed waa मादुः | fa वचन fafa, तदुच्यते ye, धायते yafant यस्यां दिवि, सा द्यौः सुधाः ; wer मैव ‘ara? anise सोमश्पं तदशिम्रस्तोव्यननि्टोम उयते त्च सुरितः' साद ष्येनानुषठितः दधाति सुपाणब्दयाच्यायां दिवि यजमानं स्थापयति ; via यदेदवादिनां वचने, तद्‌ गायत वैः maa म॑भित्रेतधैवोक्त faa ¦ वै. center ata स्पष्टोक्रियते। चमति सषम्यर्थो faafen: ; क्षमायां भूमी गायत्र्या देवतान वै रमतेः मेव क्रोति, faa मायवीौ ‘Ke हे वै अदुगामिन्येव भूत्वानुष्टितवन्तं यजमान मादाय catia खगे unite इति णवम्मकारेण येयं aera afar, ‘ay गायचौरूपरौ ऽभिि्टोम एव ; तयोः ममलात्‌ ¦

~^ ~ - ~ == = ~ = ~= ee ee ee ee tn ee ee

aetna] मतावरएादय-। तचाहि-- “aed aa होतारः प्रष्वने wre EN परायेति ईन्‌" द्वात were wre १.४. १,१३।

कतोयवस्िकषाः २॥ (ce

भन्नि्टोमोऽपि समायां नं रमते, शिन्छमुषित garrett ae यजमान मादाय खगं माप्रोति

tay गायत्रोसाम्येन सत्वा daca wifa-— "सवा. wa संवत्सर एव॒ यदग्निष्टोमशतुर्विंशव्यषटंमासो वै संवत्रथतु- विंशतिरलिष्टोमख सुतशस्त्राणि-ष्ति } योऽव मनि्टोमः, एष संवक्सर एव; त्र्दमाससञ्चायाः स्तोत्रशस्तसक्यायाथ समानलात्‌ i!

ससद्रसाम्येन प्रथंसति-- “लं यथा समुद्र ater एवं at यन्नक्रनवोऽपि यन्ति -दइति। ‘eaten’ प्रवाहरूपा नदो यथा लोके समद्र प्राप्रृवन्ति, नपरवौक्ष्यषोडग्यतिरा्रा्टोनसतरशूपाः सवं क्रतवो पिक्ततिरुपाः प्रक्षतिरूप मनमिटोमम्‌ शपि यजति प्राभ्रवन्ति। अकिष्टोमात्‌ प्राचीना दषटिपशबन्धाद्योऽपि मजिनिष्टोमं प्रापूवन्ति। aor सति सर्वशब्दो सुष्माधैः aaa, नतु सष्रोचः॥ १॥

हति सीमकायणाचायविरयिने माधवीये वेदार्धप्रकाशे

एेनरेयन्रगद्मणस्य ठतीयय्चिकायां aqurata YAM: WU; (२८)

(ष्वा 88 2 1

श्र fzala: wes:

दौचणीयेषिम्तायते ता aaa याः काद्चे्टयन्ताः wat अग्निष्टोम मपि यन्तीकछा मुष्यत इक्राबिधा

१८९ Cataareray

रै पाकयन्ना इछा मेवानु ये के पाक्षयन्ञासे सवं sfaeta मपि यन्ति सायं प्रातरग्निहोचं जुति सायं waad प्र यच्छन्ति खादाकारेणाग्निहोचं जुति सखाहाकारेष ad प्रयच्छन्ति खाहाकार मेवान्वमिनिहोब मन्निष्ठोम मप्येति पञ्चदश mala सामिधनौरन्वाह पञ्चदश दगप्णमासयोः प्रायणौय मेवानु दणशपणमासावग्निष्टोम मपीतः सोमं राजानं गीगन््ीषधो वै सोमो राजीषधिभिसत' भिषज्यन्ति a भिषनज्यम्ति सोम मेव राजानं क्रीयमाण मन्‌ यानि कानि भंषनानि तानि सर्वाग्यगिनि्टोम मयि यन्यम्नि भातिश्े मन्यन्यग्नि' चातुर्माखेष्वातिथ्य मेवामु चातुर्माख्धान्यनिष्टोस मपि यन्तिः पयस। ya चरन्ति पयसा द्‌ा्नाय्णयक्षे wae सेवानु दाचायणयन्नोऽम्निष्टोम ममेति पशसपवसपरे भवति तमेवानु RH Tama सर्खऽग्नि्टाम मपि यन्तीकादधो नाम यन्नक्रतुस्तं दधा चरम्ति दध्ना दधिघर्मं दधिषमं मेवान्विक्ाद्धो ऽभ्निशोम मप्राति ne (ue) at अनिनिष्टोमादर्वाचीनानां यन्नाना मग्निशोमप्रासि' enafa-- “ghawlafe war, ता मेवानु यः; क(वश्यस्ताः सर्वा afa-

कतौवपद्धिक्ा ४।२॥ ya

ata मपि वन्ति” -दति | भग्ि्टोमश्य प्रारण्मं येयं दशकरः ‘ama विस्तार्य, ता मतु' तसादृश्येन tae: सर्वा षपौ- ea: अग्नष्टोम प्रषुवन्ति। wa विक्तिरूपा एवेश्यो विवदिताः; परकञतिरूपयोर्टशंपूर्ममासयोवच्यमा गतवात्‌ दौत्तणौयेष्टिगतचोदकप्रतिषोपह्वानसादष्येन पाकयश्नागां मनि्टोमप्रासि दथयति - (दा सुपष्यत, ब्काविधा $ CATH, ष्टा मेवानु येके पाकयक्रास्ते सर्वःभिष्टोमः मपि यन्ति-इ्ति। पाकयन्नाश्च ममद्याकाः,-- इतः, THA, WTR, शूलगवः, भलिहरणम्‌, प्रत्यवरोदणम्‌, weardta eft सोऽयं FUCHS पचः ; ARATE इतादींसलौनेव पाकयन्ना- नाह ¦ तेच पाकयन्ना "दकःविधाः' इकासटशाः ; "ष्का wa पाकयन्नः'' इति (Ao to १,७. ३. १. ) खुत्यन्तरात्‌ ततो दौल्लणोयेष्टा दडोपक्तानेन adem: care: स्चःप्यम्नि- ett प्राप्रवन्ति अभ्निषोतस्य प्रासिं दशयति- - “सायं प्रातरभ्निशोतं owt, सायं प्रातत्रतं प्र यनचछन्ति, स्वाङूाकारगाग्निदोतं लुह्ति, aret- कारण व्रतंप्र वच्छम्ति wean मेवान्वजिद्धोत्र मनि्टोम मप्येतिः'-इलि ; ययया प्रतिदिने areas fader, सधा दीत्तितस्य कानदये क्षौरपानण्टपं व्रतदानम्‌। “सग्निर्योति ग्योतिरम्निः arer’-sfa यथा स्राहाकारेणानिक्तोवष्टोमः cm “तनः पन्त, तेनो ऽवन्तु, तभ्यो नमम्तेभ्यः खाद"? इति

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* “Aa. पाकयज्ञाः, eat wal KP sad! yea ATMO ote

ताः Tha ys Wo १.१} As Ho 4. TE!

ane Dataarergy a.

द्वा कार atfaat व्रतप्रदान aracfa | wat त्रतगतशखाष्- कार भेवानुदखल्यानिदहोव्रस्याम्निरोमप्रारिः | अनिष्टोमगतप्रायणौयेष्टिसादृश्येन दर्भपूरमासयोरणिष्टोभ-

प्राति दशयति-- “पञ्चदश matte सामिषेनोरन्वाद्, पञ्चदश दप भाक्षयोः, प्राययोग्र भेवानु दशपूणमामावग्निष्टोम मपोतःः' दति प्रायणोयकमणि घाथ्यारह्ितल्वात्ामिषेन्यश्ोदकप्राप्ताः पश्चदगरैव। तथा प्रलनिभूतयोदभपूगंमासयोरपि

अग्नि्टोमगतसोमदहारा लौकिकानामपि सर्वेषा मोषधोना मभ्निष्टोमप्रापिं टदश्यति-- "सोमं राजानं क्रोरन्धौषधो बै सोमो राजोषधिभिस्तं भिषज्यति a भिषज्यन्ति, ata मेव शाजानं क्रोयमाणश मन्‌ यानि क्तानि भेषजानि, तामि wa} श्य श्मि्टाम मपि यन्ति" इति लोकै श्यं व्याधिप्रस्तं चिकि- कका; foie’ वचिर्िसन्त, a पुरुषम्‌ `सौघधिभिः' अमत वह्मणदिभििकिलन्त मोमस्याप्यौषधलात्तमनु Bare: धान्यमिष्टोमं प्राप्रुबन्ति

श्रगिनिोमगतातिष्यकमहारा चातुर्मास्ययागानां तत्राति दम॑. afa-—. “afta मातिष्ये anata -चातुमोस्येष्वातिष्य भेवानु चातुमाखन्यमिष्टोम मपि afa’-sfal आातिष्याया सनिः waa विहितम्‌, चातुर्मा स्यपवस्पि wari विहितम्‌ ; उभयत्र मन्यनघमसास्यादातिष्यासदटशणानि चातुर्मास्ान्यप्यमि्टोमं यन्तिः भाप्रुवन्ति

ATR दाच्ायणयन्नस्यानि्टोमप्रापिं दर्शयति --“पयसा wat चरन्ति, पयसा दात्तायणयक्न, ward मेवानु दाक्षायण यश्रोऽगिष्टाम मप्यति"- दति | दर्भपूर्चमासयीरेव गुशविल्लतिरूपः

ठक्मीवप्खिका ।२। eu

कबिा्ायणास्यो aw; तथा. शाखान्तरे द्शंपूशंमासः ufadt त्रूयते-- “दा्तायणयन्नन स्गकामो यज्ञेतः-दति ws तस्य प्रवग्यस्य AIAN प्रवन्य॑सहशो दाक्षायण यज्ोऽप्यजिष्टोम मेति ; पशवन्धाना मन्निष्टोमप्रासिं दथयति--^पशरुपवसये भवति; मेवानु ये कै पश्बन्धास्ते मवं sfavia मपि यन्ति"-इति। सुत्यादिवसात्‌ gat दिवस उपवसथास्यः। तस्मित्रमनौषोमौयः पष्टरमुष्टीयते तदिक्ततिस्पा acter: सर्वे awa: | पश. द्रव्यसाम्यादस्नीषोमोयसटशाः सवं पशवन्धा मअप्यनिष्टोमं यन्ति द्रादघनामकस्य यज्ञाररस्यानिष्टोमप्रा्ि' etafa— “epreal नाम यन्नक्रतुस्त' दका चरन्ति; द्रा efiraa दधि. an मेवाज्विकादधो ऽग्निटोम मप्येति'-इति। दर्भपूणमास- विक्षतिरूप एव कथिदिरादधनामक्ो यश्नोऽस्ति। wawar- पस्त्या दश पूणमाससत्रिधावेव माह-- “एतनेररादधः सा्व॑सेनि- यन्नो वसिष्यक्नः शौनकयञ्नय व्याख्याताः" -ष्ति ( arte ओरौ”

भार्वन्ति, यै द्भपूर्णमसाभ्यां waa’ wef ( ११. १.२. te.) aaafearaa “यद्‌, दा्ावरयन्गः स्यादयो अपि पञचदशेव व्पाणि ग्रत -दयल्याभात मिति द्यू सासती नान्पत्वर्मति सिद्धान्तं कतःग्रमुच (गुगविषानव्‌ा मव्रियिसम्पचनान्याम्‌"- षति (०. ४.२.) “fsud वाणि टभपूण्मासाग्ां यत; wien azrer- यण्यत्तौ '-श्योदि पाचक Fee ( कायार Ale ४,२, ४७, ४८, )। दाशाय. AG 4 Bam TA,” Rae Casa दाययते" ay woemehtqqaya- waa, (Wes १०.४११. )1 xa उत्तर Ay तनीक्तम्‌ “Ccadatew: खावदनियन्ना afewas: शौतकयश् agra mils ( १२१९० )। नि

१९१ | एितरेयब्रान्सम्‌

रधियाग- ; fa माध्यन्दिनि वर्ति ; श्कादधोऽपि दादद्र्यकः 1 grange साम्यम्‌ दधिघर्मसटश इरादधोऽपि afacvia मेति a > I

दूति शौमत्ायणाचार्थपिरचिते माधवौये aertvardt रेतश्यत्राद्यणस्य ठदतौयपञ्िकायां चतुर्धाध्याये दितौयः खण्डः > (82) a

अरध्र Sata: VW

दूति नु पुगस्तादधोपरिष्टात्‌ waza स्तोबा्गिं पञ्चटभ शस्त्ाणि मासो मासधा संव- wit पिहित; संबत्योऽमिन्रैऽवानरोऽग्निरग्नि्टोमः संवत्सर मेवानकण्येऽगिनष्टोम ware मपि यन्त मनु वाजपरयोऽपेयदल्युक्यो हि भवति दादश- गजैः पर्यायाः सवं प्ञ्चदशांसे हौ दौ सम्पदा विंशदैकविशं tala faaafan सा fina मासस्तिभन््राससख रात्रयो मासधा संवल्छरो विहितः संबत्छरोऽग्निर्दे्वानरोऽग्निरगििष्टोमः सं वत्र मेवा- न्दतिराचरोऽगनिष्टोम सपरयव्यतिराच मपि यन्त मन्व- aaa ऽाद्यतिराचो-हि भवल्मेतदे ये पुर

a ठतोयपदधिका $ | २४ १९१

wig चोपरिष्टायन्नक्रतवस्ते' सर्गेऽग्नि्टोम मपि यन्ति तस्य संसुतस्य नदतितं सोया! साया नवतिस्ते दश विवृतोऽय या नवतिस्ते eae ar दश तासा मेका स्तोजियोदेति जिवत्परि शिष्यत सोऽसा कविंशोऽध्याहितस्तपति' विषवान्वा. एष स्तोमानां दे बा एतस्मादवाञ्चस्ि्तो दश पराञ्चो मध्य एष एकविंश उभयतोऽध्यादहितस्तपयि तद्यासौ स्तोचियोदति dafeameces: यज- WAGs दव GA सहा बल AWA YE Fa Za aT सहा Ta मदस्य सायुज्यं सरूपतां सलोकता मगनुते एवं वद ( ४१)

क्रलन्तराणा सम्निटोमप्रातिं दय॑यति-- “of नु पुरस्ता दश्ठोपरिषटत्‌, पञ्चदणकष्यस्य स्तोत्राणि पश्चदण शस्त्राणि; मामो मासधा संवत्सरो व्रहितः; संवकषरोऽभिन्रै्ठानरोऽग्निरम्नि- मः संवत्सर aaah vo afew मनु vrata ऽप्यव्यलुक्ष्वो fe ममवतिः?-दनि। ‘fam पूव VHT प्रकारण "पुरस्तात्‌ श्रम्नि्टोमात्‌ प्राचीनस्य कमजात स्थागिनिष्टोमप्रवेशः, उताडति a: ) श्रः ्रनन्तर quftere wfaetarfeatai agate tm उच्यते | तत्र यो ऽयम्‌ Say

@ न्योतिदाममेस्याव्िरणाणा मिति ara TU ATS gay: बोट रकोऽमायासवरपरिटोमय गुमविकरा; sia (ate १, tus

१८३ ` # एितरेवद्रा्नष्दम्‌ -

क्रतुः, तस्व पञ्चदगसक्षाकानि स्तोज्राणि; भग्नि्टोमविज्ञिति- ` लान्तदोयामि wen स्तोत्राखतिदिण्डन्ते, तत og wie उकश्रसड्न्नुकानि स्तोत्राणि च, एवं पञ्चदश सम्बद्यन्ते। we. aad न्यायो योज्यः। तानि स्तोवाणि शस्त्राणि भिव मासगतां रातिसष्यां प्राप्रवन्ति। भतः सोऽयं स्तोवशख्रसमष्टो मासः HTT | ATEN मासप्रकारेण मासाहच्या Taal ‘fafeay सम्पादितो भवति। सच संवत्सरो वश्वानरागिरूप; wt प्रविष्ट पुरुषस्य संवन्छरमातरेण ॒वैष्ानरास्यसोदर्यानेः ` पाटवसम्भवात्‌ | अ्रम्नि्ाननष्टोमखरूपः; पूर्वोक्षया रोत्या घ्रेगि- त्रयस्पेणानोक्रयरूपेण चाग्नेरेवागिनष्टोमरूपेणा विभूतलवात्‌ 1. एषं सति SATS: करतुः स्तोजरेशस्रादिपरम्परथा संवर मेवानु प्रविश्य तद्ाराग्नि्टोमं प्रविश्रति। तं प्रविशन्त qa मनु वाजययाख्योऽपि ऋतुरग्नि्टोम मपि एति प्राप्रोति) म. fe वाजपयोऽयुकयो भवति ; sare क्रतु मतिक्रम्य वत्तं सानलात्‌ sat यानि ayer स्तोत्राणि, तत उट वाज. पये सोचदयम्‌, सोऽय मुक्ध्वातिक्रमः। तस्मादुक्ष्यद्ारा वाज. पेवस्य anita: 4

अधातिरात्रापोर्यामयोः क्रलोरगिनिष्टोमप्रवेश' दभंयति- “arena: पर्यायाः स्वे पश्चदणस्ते दो दौ सम्पद्य fanea- fiw’ wrefrara तविहत्सन्धिः, सा faa मासस्तिंशन्।सस्य राज्यो म्रामधा संवत्सरो विदितः समंवत्सरोऽग्निकेखानरोऽनि- रग्नि्टोमः dat भेवान्वतिराजोःनिष्टोमर मप्येयतिराज्रं मपि यस्त मन्वमोयामो ऽप्येत्यतिराजो fe भवति?-दति अतिराच- यागे ene रातेः पयाया; पै चापरस्तम्बेनेवं eet.

ढैतीयपचचिका ४।३॥ . १८६ छतो; . “अरतिराबेत्‌ वोडथिचमसालुजयं खयोदथम्ययमस- गरशेग्यो* राजान मति tanta षोडशिना प्रचयं राविपव्यायै प्रचरति शोटचमससस्यः प्रथमो गणो मेतरावरुण्वमसमश्यी et ब्राह्मणाच्छंसिचमसमस्यसततीयोऽ च्छवाकचमममुख्यश- तुथः --०प्रधमाभ्यां गणाभ्या सष्वयुखरति, उ्तराभ्यां प्रति- TUM, एष. प्रथमः प्यायः | एतं षिषितो दितोयस्सतीयओ दूति (ito १४. ३. -१६. )। wera मर्धः भतिराजास्यं क्रतु यदानुतिष्ठति, तदानीं चोदकप्राषं सर्वं मगुष्टाय अनन्तरं सायं काले पोटगिग्रहसम्ब्धिनखमसान्‌ पृरथित्वा तत eg त्रयोदशचमसग णपव्यापं सोम मवस्थाप्य पीडरिद्रषप्रथारं कछला तत जङ्घ गाति पयायः प्रचरेत्‌ तेषु पर्व्यायेषु शोटवमस मादिं सत्वा यञ्चममगयाः प्रवत्तते, मोऽयं प्रथमः | मन्रावरेणयमतस्या- ‘Sea दितीयथमसगणो भवति | ब्राद्मणाच्छंसिचमसस्थादितवे advan भवति भच्छावाकचमसस्यादिल्वं ate मममणो भवति aq aqy गणेषु प्रयमदहिनीयाम्यां waren waaay, ढतीयचतुर्याभ्यां प्रतिप्रस्यालानुनि्ेत्‌ | णवं गणचतुष्टय्ानुखान मेकः पर्यायो मवति। पुनरपि हितीयः. कतोयपर्ययायौ तवैवानुष्टयौ तेषु पर्यायेषु दादश गणा; सम्प सन्ते | एतकव ahr “genta: पर्यायाः? carn |

‘aaa अपि प्रजाः "पञ्चदशाः तदोयस्तोतरेषु wanna मृचा माहत्तिविरेषेण quenegiaa सामने; सम्पादितलान्त पञ्चदशस्तोमयुका दाद पायाः सन्ति। तेषु et हो" पायौ सम्पद्य" मिलित्वा पञ्चदणसद्याया frcren famagyrat हे

न~~ ~> ~~ om ०७ ~ = = ek ee gee, ‘cis

# ““Srsfirqag aaqa चयीद्‌भ्न्यथ्मसगरगग्योः दितिम्‌, a! २५

` १४४ रितरयब्राह्मरम्‌

स्च पर्ववष्यन्ति। fag पोडशिस्तोते यत्सामास्ति, atafin ` मवति ; ` तदोयढचगताना सचा माहत्ता सामगैरेकविंशतिसखीमः सम्पादनात्‌ (ता०त्रा० २.६४-१७ i योऽय मतिरातस्यान्ते "सन्धिः एतन्रामकं May, aa frag स्तोमः सामगेः परव्यते #। तस्यः. स्तोमस्य fag ठचेष्वातुत्तिरहितेषु निष्यत्रलादुचां aad aaa) wafanfaag aang मिलिता तिंशक्श्चा भवति | waar तिशक्षद्चया वा पूर्वोक्ञतिंशकष्चेया वा मास- राचिमास्याकासः सम्पद्यत | मासधेत्वादि पुवद्योजनौयम्‌ (१९२प्र० eto) 1 एवं सति संवद्छरदारातिरातो ऽगिनि्टोम प्रवि- शति ; प्ररिरन्त मतिरात्र मनु तदहारणासोयामोऽपि प्रविणएति। ष्रतिरात्र मतिलङ्य रोज्राधिक्येन वत्तमानलात्‌ ्रत्तिरानः" | एक।मवि गत्‌ स्तोत्ाखतिरावे, धरापोयामे तु तयस्तिंशदिला- पिष्छम्‌ ; श्रतोऽनिसावबरहार atures प्रदेशः |

उन्न सवयक्चकतन्तर्भाव मुपसंहरति- - “Cat ये पुरस्ताद्‌ ये चोपरिशटाद्यश्चक्रतवस्ते सर्वं ऽग्निष्टोम मपि afi’ -<fa | ‘waz एतेनैवोक्तप्रकारेणानिष्टोमस्य पुवभाषिन serfererat- दयो दै यश्रक्रतवः, ये ची्तरभाविन उक्ष्यवाजपेदादग्रो यन्न- क्रतवः ; ते सर्वे ऽजिष्टोमं प्राप्रैवन्ति

भथ प्रकारान्तरेषामिष्टोमं प्रशंमति- “aw. मसुतख नवतिशतं स्लोज्रियाः ; साया नवतिस्ते दण निहतो som qafag दशथ या दश, तासा मेका स्तोजियोदेति, विष aft शिष्यते ; सोऽसावकर्विंशोऽध्याहितस्तपति, पिपुवान्वा एष स्तीमानां दश वा एतस्मादवीद्स्त्रिवृतो दश TO मध्य एष

ee श, & Ne

भर तार ¶[* ९,१.२०; a8; 'जिहत्मृजि;ः २०,१.१

ठतौयपचिक्षा 8 ।३२॥ ` tek

- qefin. उभयतो ऽध्वाहितस्तपति ; aarat स्तीतिवोदेति सेतस्िचष्यरूष्टा, यनमानस्तद्‌ St चतं सदो बलम्‌? -इति ae ufasinaimefa: dgqaa ‘etifan: स्तोत्रक्षम्ब- ‘fay wat नवत्यधिकं शतं gaat कथ fafa चेत्‌, aged “प्रातस्छवने वहिष्यवमानास्थं भेकः यत्‌ स्तोच्रम्‌, aw fasq स्तोमः कियते। विहत afacfeaarfeamay fag cay विद्यमाना vad: स्तोजिया wafer | तत wea qararreiiafa | astaarferferay- मानानां तिखणा चा armhafantu पञ्चदशः स्तोमः aare- मोयः तधा सद्येकेकस्िन्‌ Ba परख दशचं त्येवं चतुषु Bray fafaat ष्टिः सम्पद्मते। aed प्रातस्सवभे एक्लोनख्धतिः। माध्यन्दिनसवने माध्यन्दिनिप्वमानाख्य मेकं स्सोचम्‌, तस्यापि पञ्चदगम्मोमयुकरत्वात्‌ स्तोत्िधाः पश्चदण सम्मद्यन्ते | चत्वारि एढस्तोच्राणि तेषु सपटशस्तोभे कते स्त्व्टवटिसञ्चाकाः स्सोविथा wafer उभयं भसित! माध्यन्दिनसवने ariitfa: aaa | टतोयस्वने श्राभवपवमानस्सोव्रस्म सपटथस्तोमो पेत. arm तस्मिन्‌ सष्दगवेः। यञ्नायभ्नौयस्तोवस्यैफविंयस्तोभो- waar ततरैकविंशतिः मिलित्वा सोयमवनेऽ्टातिंत्‌ | -एषं wana मिलित्वा नदत्यधिकगतसश्याकाः wif भवमिति तत्र या नवतिः, ते negara array एकेकसिन्दपक श्रन्तिमा Fat परितयण्य श्रवशिष्टामां wet नवमद्योपेतत्वात्‌ fara ततो नवस दशकेषु नव चित्‌, स्मोमाः | यास्त तेष दशकेषु # परित्यक्ता vat, स.एकस्विहत्‌

भोका meee ew sees ee ~ = [वि 19 7 1

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६६६ Satara i

स्लीमः| एवं टशसञ्चाकाल्िहत्‌-स्तोमाः श्रध श्रनन्रं यच्छत मम्ति, aferafe या नवतिस्ते yearn दश विहत्‌- sitar neater: | Wa नवत्या ऊध्वभाविन्यो याः' ऋचो दश, Carat दशाना wat WH एका स्तोत्रिया उदेति" अतिरिच्यते safrera स्तोतियासु footie: परिशिष्यते एवं सत्येक- विंगशतिसद्याकास्वि्ठत्‌-स्तोमाः, तभ्योऽतिरिक्षा काचिहगिति, एलायवामपत्रम्‌ | तवैक वि एति विहत्‌-स्तो ममो योऽस्ति, सर्वा ऽपि ‘gay मण्डले दृश्यमानः, एकविंशतिसद्यापरकः "भध्याहितः मण्डले स्थापितः आदित्यः ‘auf प्रकाशते | श्रादिव्यस्येक- विंगतिसद्।पुरकत्व मन्यव श्रृतम्‌-- “हादश्मासाः पश्चत्तं वस्तय पमे तोका असावादित्य wafiny इति (तेम ०५.१.१०.४.) यन्तु सवं मवामयनास्यम्‌, नन यान्येकविंशव्छहानि, तता दृण्यादणि यथोक्रखिहत्स्तोमसम्बन्धः प्रशस्तः कथं wee मिति, तद्चते-- तस्मिन्‌ wa THA मदः; तदिषुवन्रामकं दिवा ae भवति तस्य पुरस्तादणाद्धानि, उपरिष्टाहश्णह्ानि wa aarfa रवो किगोत्या सम्पादिताना Aafanfaagreart ति द्स्रोमानां मध्यवर्ती afeaq स्ममः, पव विष्रुषान्‌ मवति एतम्मारिषुबद्रूपाचिहत्सोमान्‌ ware: पूवेभाविनो दश तरिदतृ्नोमाः, cara: उक्षरभाविनोपि दण तिषतस्तोमा, ; Siew एष एकविभतिसद्यापुरकख्िहत्‌म्तोमः 'उभ- यतोऽध्याहितः' पार्ये दशकव्यापरः सन्‌ "तपति आद्िव्यवन्रका- Tt: ‘ay ततनैकविंशतिनिहत्स्तोमभ्य ऊध्वं यासौ' कगेका स्तोत्रिया "उदेति, wfafian भवति,सेयप्‌ 'एतस्मिन्‌' एकविंति- सं Waser भधिकत्ेनावस्धापिता, यजमानः, भतिरिकः

ठलौयपश्िक्षा ४।४। eae

सोविवारूपो यजमानत्वेनावगन्तव्यः। fare ‘aq’ सोविथा- ed देवं wa’ टेवसतम्बन्धिमो च्षज्रियजातिरिद्रवरुणादिरूपा | तत्‌ aa ‘we: पराभिमवक्षमं ‘aa’ सैन्यम्‌। एव मनिष्टोमः स्तोत्रियहारा प्रशस्तः

खह्ञाथेषेदनं प्रशंसति-- “aya 2 दैवं ae सष्टो बल मतस्य aged सरूपतां सलोकना wea एवं वेद'-इति | उकार्यवेदिता पराभवसङिष्णुसैन्धोपेना मिन्द्रादिदैवक्षवियजातिम्‌ अश्रुतेः प्राप्नोति तव तेन सतेेन्दरा दिना ‘arged’ सष्वासम्‌, सरूपतां प्षसालरुपतलम्‌, सलोकताम्‌" एकलोकावश्ितिं चव प्राप्रोति २॥

शति यीम्तायगाचार्यविरचिते माधवीये वेदाथप्रकापे

एेमरेयत्राह्मणगस्य द्तीयपश्चिकायां चतु्धध्याये wala: खण्डः २८४१)

CODE On "क ००

अय चतुथः स्वण्डः

देवा बा अमुर विलिग्याना ऊर्ध्वाः खगं लोक मायन्द्मोऽभ्निदि fara उदश्रयतं Ae Qt लोकस्य दार मवुगोदग्नि खगस्य लोकम्धाधिप- fam वसवः प्रथमा aera एन मववद्नति Ase

वोन ००००५००० = ~ न्न अवक 9 9 eS gale a han om

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१६६८ : Rarer ,

wrara नः वुविति स्र नासुती ऽतिकश्षध्य दयत्रवीत्‌ ' सृत नु मेति तथेति तं ते विवृता सोमेनासतुव॑स्तान्‌ सुतो ऽल्याजजत ते यथालोक ATT शद्रा भागच्छस्त एन मन्रवन्नति नोऽजस्धाकाशं नः कुविति नास्ुतो ऽतिखच्य इत्यत्रवीत्‌ स्तुत नु मेति तथेति वं ते पञ्च देन MAA TATA स्तुतो seats वे यथालोकं area When भगच्छेस एन मन्वदरति नोऽजखाकाशं नः कुविति नास्तुतो ऽतिखच्य दरल्यववोत्‌ स्तुत नु मेति तथेति तं ते सप्रदेन स्तोमेनास्तुवंस्तान्‌ स॒तो ऽल्ा्जतं ते यथालोकं मय- wa विश्वेदेवा aaa एन wats नोऽ्न- स्थाकाशं न: कुविति नासतो ऽतिखच्य इल qe स्तुत नु मेति त्ति a vafata सोमेना- TAM स्तुतो ऽलाजत ते वथालोक मगच्छन्न- ककन वं ते देवाः» स्तोमेनास्तुवंस्तान्‌ स्तुतो Sarasa वे यथालोकं रगच्छद्मथ हेन मेष एतैः सवः + स्तोमैः स्तीति यो यजते यश्चन मेवं Yer

मर्जाताथतिहवा एन मर्जते स्वगं लोक af aad acy g ( ४२)॥

जनन) nn, 78 ष्क oe जनन = ७०० ७०५५० कि अकोऽकि

» t कतिरितसवमलपलकेषु fahladars: |

` ठेतोयपद्धिका 1 8 | ४४ १९९

` ` अथ त्िहदादिस्तोमचतु्टयदारेशानिष्टोम' स्तोतु मायौ. विका माह-- प्टेवा वा श्रुरैर्विजिग्याना उरः खमे लोक भायग्बाऽभ्निरदिं विख्गृष्वै sera; सर्गस्य लोक्य दार महकोदम्निर aire लोकस्याधिपतिस्तं वसवः प्रथमा wre एन aqaafa नो sweat नः कुविति; नास्तुतो ऽतिखश्य दधन्रवीत्‌ स्तुत 4 मेति; तथेति; तंते far स्तोमेमासुवंम्तान्‌ सुतो sears, पै यथालोक मगच्छन्‌"”-ष्ति) ये देषा भलि afeat: पूर्वं मसुरैः सङ युं कला "विजिग्यानाः' विजयं प्रपाः, मि दैवा aguifaa सन्तः wi लोकम्‌ “भायन्‌" प्राष्ुबम्‌ | तदानीम्‌ ‘ofa’ स्वख्धान एव खित्वा ‘fefrwa greta egg ‘ayy waa: सन्‌ "उद्ययत' उपरितनं देश मारितवान्‌, दुमलो कपर््यन्तं watat sarai वद्धितवानित्ययेः ततः "सः afm: खर्गलोकष्ारम्‌ ‘watty तयाच्छादित मकरोत्‌ 1 a चेतरेवु देवेषु fads कथ ama: टक्‌ माम्य मिति area; यस्माद्‌ "अभ्निः स्वगस्य लोकस्य भषिपतिः'; भ्रमी fe अ्निटोमादिकर्माणि ग्रवु्टाय खं प्रावन्त (a स्गेडार- निरोधिम सम्नि मष्टा वसवः ‘neat’ परोमाभिनो चूला 'सागच्छन्‌' प्र्तवन्ः। प्राप्य "एनम्‌ भम्निम्‌ ‘a वमव पव मह्ुवन्‌,-- हे अने! त्वं "नः' wary 'भव्यजंमि' लदौयां ज्वाला ufaaer अर्जयथितुः खगं प्रापयितु मर्हसि, ‘ay WAR तव्परामाधम्‌ “चाकाशं त्वदोयज्वालोपशमनेनावकां कुविति। ततः ‘ay fata मन्रवौत्‌,--- युख्माभिरम्तुलोऽश्ं auf द्वारावरोधं परिल्यच्चामि। तद्मादवदोध- पनिद नुः चिप्र मेव माः मा afd सुत स्तोत्र

, .॥ Qatar 4.५

रति @ वसव; तवेत्योकलत्य विषठ्ामवेन स्तोमिनानि EAA | |

तस्म चिहत््‌स्ोमस्तोत्रस्य विधायक" छन्दोगब्राह्मखं Fa माकायते-- "तिरुभ्ये हिद्करोति nana, faa दिष्तेति a मध्यमया, तिष्यो हिषरोति उत्तमयोश्चतो तिहतो विष्टतिः-दति (ato त्रा २.१.१.) | रस्याय मर्व; | “उपा गायता नरः" इति a: प्रधमः ठचः, “efagramy’—afa यो fia: ea, “पवमानख् ते कवे”-इति यः wate: तृचः, एतेषु fay ठचात्मकेषु yay (To we १,१.११.) fre मानानां नवाना wat fafa: प््यायेगानं कर्तव्यम्‌ aa परथमे पर्याये fay ag भ्राद्याष्तिल् ऋचो गातव्यः, feats Yaa मध्यमा WA Maan, उत्तमे wala उत्तमा ऋचे गातव्या: | 'तिष्टभ्यः- इति ठतौया्ें पञ्चमो | “इहष्करोति'.-दत्य- भेन गान्‌ मुपलच्यते सेयं यधोक्तप्रकारोपैता मौोतिख्िषतस्तोम- स्याद्या "विष्टुति; स्मुतिप्रक्रारविगेषः। तस्या face, “saat ced anda सिति रदु गस्तीमेन सुतोऽगनिः "तान्‌! देवान्‌ ‘sara निरु दार मतिलङ्खय wate प्रापितवान्‌ तैः मरे देवाः यथालोक'' खसाचितं ` लोक खानविगेष wa तिक्रम्य aera +

भ्र पश्चदशस्तोभेन सुति दशयति-- “A शद्रा श्रागच्छ- स्स एन मव्रुवव्रति नो soared’ नः कुविति; नास्तुतो ऽति- ae श्यत्रवोत्‌ aa नु मेति ; तथेति ; तं ते पञ्चदशेन स्तोभे- नाुवस्तान्‌ स्तुमो ऽव्याजत, तै वधालोक मगच्छन्‌" ति | Te- ° RATT स्तोमस्य खरूपं इ्दोगेरेव मासायते-- “पद्भ्या

a दतोववचिकषा 8 १०

हिषहु्तोति तिष्भिः सएकया सरएकया, पश्चभ्यो feet सणए्कयास तिभिः एकय,, cet ferafa एकया सं एकया तिभिः? दरति ( ato ब्रा० २,४.१९.) | भस्याय मर्थः) ठचामक मेकं“ खङ्गं दिरावत्तंनौयम्‌ तज प्रथमाठन्तौ प्रथमाया स्तिरभ्यासः, दितौयाहत्तौ मध्यमायाः, ठतोयाहनत्तावुत्न- मायाः | सोऽयं पञ्चदगस्तोम इति | way पूवंवद्‌ व्याख्येयम्‌ +

श्रथ सप्तदगेन स्तोमेन सुति दर्थंयति--““त मादित्या माग- Se एन agqaafa नोऽजंस्याकागं नः कुर्विति; @ भाशुती Sfawma शत्यत्रवोत्‌ सुतनु मेति; तथेति; तते anette स्तोमेनुसुवस्तान्‌ सुतो ऽत्याजतः; तं वथालोक मगच्छन्‌'?-द्ति 3 सप्र दशस्तोमस्य खरूपं Seite मान्नायते--“"पश्चभ्यो feet तिभिः मएकयास रकया, wat शङ्रोति एकया a तिभिः «ana, ant हिङ्सोतिस ana तिमिः; a तिङूभिः'-इ्ति (ato ate २.७. १.)। अब weet प्रथमायाविरभ्याखः, fettaad मध्यमायाः, adored मध्यमात्तमयौः। सोऽयं सप्तदशस्तौम इति way पुववदु व्याख्येयम्‌

एक विंगस्तोमेन ofa दशयति -- “a far देवा भागच्छंस् एन मघ्रुवन्नति नोऽ्जस्याकाशं नः कुर्चिंति ; नासुतो sfirere waaay स्तुत नु मति ; तथेति ; तं रकविगेन स्तोमेनास्सुव- स्तान्‌ Aa ऽत्वाजत, ते यथालोक मगच्छन्‌""-इति | एकविंश, सोमस्य aay छन्द्‌गीरव माजायते-- “सपम्यो fercfa faafa: तिष्भिः एकया, सभ्यो रिष्करोति रकया तिङ्भि; तिषटभिः, सप्तभ्यो दिदरोति तिख्भिः सएकयाष्

RE

RoR रेतरैयक्राद्मणेम्‌ 1

तिखभिः"-ए्ति (ato ate २.१४.१.) 1 wade उच स्यो लमाया ऋचः ARTS, दहिभयपर््ायि प्रथमायाः सक्षत्पाठः, ढतीयपय्याये मध्यमाया; सक्तत्पाठः, अवशिष्टानां तु विराहत्तिः | सोऽय मेकविंशम्तोम इति wary पूर्ववद्‌ व्याख्येयम्‌ |

स्तोमचतुष्टय qadecfa— “cata तं देवाः स्तोमै- भास्तुषंस्तान्‌ स्तुतो ऽल्याजंत ; ते यघालोक मगश्डन्‌"" इति

अनि्टोमप्रयोगे उक्तानां aqui स्लोभानां favors: वयाषच्यथं समुचयं विधत्ते - “अरय हेन मेष एतैः समै; स्तो; स्तीति यो यजते-दति। श्र्धवादैलक्षण्येन विधिल' योत. यितुम्‌ ‘sare: ;--योऽनिष्टोमेन यजते, a पतैशतुभिरपि with wate |

श्रनुष्ठातुः खमग्राप्षिफलस्य सिदितात्‌ तेन सह ayia वर्दितुरगि तत्‌ we दथंयति - “ata ad वेदाती तु मजाते"-दति | यजमानो येन प्रकारे ग्रजते, भ्रमेनेव प्रकारे एनम्‌ alae ‘ay वेदिता, ‘aq’ श्रपि वेदिता २।रनिरोधन मतिलक्चय "र्जा" प्रापयल्येव। “al तुदति टदौ्षन्षान्दसः।

वेदेन मातेणानुष्टानसमानफल' टट्पितु# पुनरप्याह —“afa वा एम मजं स्वगं लोक मभिय एवं ठेद्‌-द्ूति। Fez. मातेण सिदहेऽपि फले “hye फलभूयस्त्म्‌ ˆ -द तिन्यायै- मानुष्टानवेच्यध्य' नास्ति

इति ग्रोमस्सायणाचायंविरचिते माधवोये शेदार्थ॑प्रकापर

एितरेयताद्मणस्य ठतौयपञ्चिकायां चतुर्थाध्याये

चतुथः BW: 8 ( ४२ ) |

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“५ समानफखत्व' प्रतिपोदयिमु"” भ)

1 भजर पि EN A भनि

ठतौवपशिका ५। शण्ड श्रध पञ्चमः खरः

सवा एषोऽलिगेव यदमग्नि्ोमस्त यद्स्तुबं- स्तस्मादग्निसोमसतं मग्निस्तोमं सन्त ममनि्टोम NII» Wren प्ररोक्तपिया इव हि देवास यच्ततुटवा वा्नुभि्तोमरस्तुवंस्तस्माच्च q+ ere स्तचतु स्तोम सन्त चतुष्टोम दलाचचते,. परोक्ते परोत्तप्रिया ga हि Sar qa यटेन ae मन्त ष्योति- भूत मसतुयस्तस््राच्जोतिनम्तोमस्त' ज्योति-स्तोमं सन्त ग्योतिष्टोम arses परोक्षेण प्रोक्षमिया दव हि दंवाःम वा aT पपूर्वो ऽनपरो यन्नक्रमर्यय। स्थचक्र मनन्त मेव यदमिनिष्टामस्तख् यथैव प्राययां तयोदयनं ` तदेषामि यन्नगाथा गीयते यदस्य पव मर तदस्य Tat age way अरेरिव सर्पणं WHATS a वि जानन्ति यतरत्परम्तादिति' यथां wa प्राव मेव Herm मसदिति। तदाहर्यत्‌ ead मेकपिंग मुटयरम केन ते समे इति' यावा एकविंगस्िथहे मोऽयो aed टचौ'टचिनाः विति ब्रुयात्तेमेति (४३ )॥

“(भिन्यचशवतःः क्र | ,, 1 Say स॒विसर्गपरार, a eas

१०४ ` रेतश्यत्राञ्चणम्‌

अथानिष्टोमादिशब्दं faders: प्रभंसति-- “स वा एषो $गििरेव यदमिष्टोमस्त वदस्तुव॑स्तआदभिम्तोमस्त मनिस्तोमं सन्त afavia ईत्याचस्षते पराक्ेण ; परोक्षप्रिया ca fe देवाः दनि aa मगिनि्टोमोऽस्ति, एष साक्षात्‌ ‘afta खशरीर मेवं; विभिम्डन्दोभिसिभिः सवनेष विभज्य क्रतोर्निष्यादित- ang; mayer मनि ‘ae यस्मात्‌ कारणाद देवा ्रस्तुवन्‌, (तस्मात्‌' अमिपिषयस्तुतियुक्षल्वादयं क्रतुः अगिनिस्तोमः-दव्ये तत्रामकः। तब्रामयुक्ञ क्रतु atta व्याहतः मकार- wa: षकारटकारावादिश्य शश्रग्निष्टोमः' दति वैदिका श्राच- छने | वर्णान्तरेण व्यवहितत्वात्‌ भौप्रप्रतौतिरहितं नाम परीक्ष मिलते | यस््ान्नोके ‘at’ पूज्या warned: परोक्तनाम- frat एव, नस्यात्‌ क्रतोरपि agra

मामान्तरस्य निर्वचनं दशयति-- “a यश्चतुष्टया टेवायतुभि- स्तोमेरस्तुतंस्वस्माचतस्तोमस्तं चतुस्तोमं wat चतुष्टोम इव्या- च्म परोक्तेण ; परोशप्रिया इव हि रवाः" -इति “aqear’ चसुधि।ः, वस्वो ta wife वि्ेदेवासेति। wars तिहत्पश्चदश् सप्तदश एकविंश cat चत्वारः चतुष्टोमनामनि्व- सनं TAT जनौयम्‌

ज्यो तिष्टोमनामनिर्वचनं « दथंयति-- “श्रय यदेन मु ce ज्योतिभूत मसुव॑स्तस्माव्णोतिखोमस्तं व्योनिम्तोमं सन्त ष्यातिष्टोम इत्थाचक्षते परोक्तेण ; परोक्षप्रिया दव हि देवाः” sf) (अथः नाम्टयकथनानन्तरं, ठतोयं नाम कथ्यत दूति षः! wa मम्निभूमि area दलो कप्ययन्त agtataa:,

EE I: Seen) Wem vee eee, “Semen

“भाम क्त मिय चुम" च, च!

दतीवयद्धिक्षा। ४।५॥ २०३

तथा प्रकाशमामत्वाव्‌ ज्योतिभतः। तं aed शैवा waar; तस्माद्‌ ज्योतिस्तोमः' ज्योतिषः ‘atta: af: aferay क्रतौ क्रतुर्ण्योतिस्तोमः। अन्यत्‌ पवंवत्‌ |

नामनिववनन प्रशस्य पुनरप्याद्यन्तराहित्येन प्रशंसति-- षसवाएषो sgat ऽनपरो यच्रक्रतुयंथा रथचक्र aan मेवं यदम्निष्टोमस्तस्य यथेव प्रायणं तथोदयनम्‌?--इ्ति “सः यषः भम्निष्टोमः पूवापररदितः,-- ~ पूवः' आदिः, "अपरः" भन्तः, ater ्तरष्ितो asa: यथा लोके ‘CaM AAA’ पुनः पुमः परिः ava रथचक्रस्य अय मादिरय मन्त षति विभागः करत्‌ शक्ते, तस्मादिदं मन्त्रितम्‌ ( भादिरहितस्याप्येतदुपलक्षणम्‌ ), एवं फलुरपि wa प्रायणौयेषटिरादिः, उदटयनोयेटिरग्त दति चेत्‌, मेवम्‌ ;-- योऽग्नि्टोमोऽस्ति, तस्य यागं प्रायणौयं क्म, तादश भेवोदयनीयं कम ; तयोर्यागघर्मसाम्यात्‌ # भतो विवेक मश्क्छत्वादाद्यन्तरदहितः क्रतुः

उक्त मधं मन्तोदारस्णेन हट्यति-- “नदेषाभि agar गीयते,-- यदस्य ya मपरं तदस arent त्स्य पूवम्‌, wefca सपशं waa fa जानन्ति वतरत्यरस्तादिति"द्ति। स्थे wf सुभाषितत्वेन गोयत ईति गाधाः; यच्चविषया माधा) ‘ay तस्मिब्रम्नि्टोमस्याद्यन्तयोः प्रा््यैयोदयनोययोरकविधत्वे¶ काचिदेषा ‘aware’ अभि मोयते{ मवतः पवते | यदस्म त्यादि गारा ‘we’ भनिष्टोमश्य यत्‌ ‘way उपक्रमश्पं wafer, तदेवास्य रपरः समासिरूपं कम ; ‘ae’ atare

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qa? समातिरूपम्‌ "तद्‌" तदेषा पूवम्‌ उपक्रम्ररूपम्‌। wee: प्रायणौयञ्चररादि् उदयन्ति दरब्यदेवतयोरुमयवेकविधलयात्‌ 7 तयोर्कतबोपचारः। श्राद्यन्तयोरपरित्ाने qs ब्राह्मणे रथवक्र- zviat दितः; मन्त वन्यो दृष्टान्त उद्यते (शाकल -शब्दः सर्पविश्ेषवाची | णाकलनानः we’ सर्पवियेषस्य यथा ‘aud’ गमनम्‌, तचैवाय मन्निष्टोमः। सतु सपणकाते FST पुच्छ dna mat वलयाकारो भवति, तश्र किं सुखं fat वा gee fafa ayaa: एव मवाप्यदितिदेवताकस्य चरो; साम्ये सति प्राय शोयोदयनौययोः wate कम "परस्तात्‌" एशाद्वावि, यतर पूर्व भावोति far मपि विजानन्ति

अस्या माघायास्तात्पथ्थं सष्धिप्य दर्थं यति- “थथा gare प्राण सैव सुदयन मसदिनि-श्ति। असयः afaviae प्रायणं MITA यादः, एवम्‌ ‘Sead’ समातिः “wae wie, waters:

sa को्चिदानेप agraafa— “aergie fremrra Ralin मुदयनं, कैम ते at द्रति १.-इति पूर्वादाषतम्बिहत्‌ स्तोमः प्रातस्यवनादौ प्रयोज्यत्वात्‌ ‘ATAU उधक्रमर्पम्‌; एक- विंशस्तोमरतौग्रसवनान्े प्रयोज्यत्वात्‌ “उदयनं! समातिरूपम्‌ ‘Sar कारणेन ‘a’ प्रायणोदयमे “खमे भवता fare: a

तत्र प्ररिष्टारं दर्मयति-प्योवा एकविशस्तिहदं सोऽथो Tea नौ ठदधिनाविति ब्रूयात्तेनेति-दति योऽय मकर्विंश- सोमोऽसि, सु एव व्रिहदवगन्तब्धः ; स्तोमत्वाक्षारेण तयोरेक fre त्वात्‌ ! (मधोः श्रपि यत्‌ serena, स्तोमहयाखरयभूती ‘out ददौ, (दचिनौ दचित्वधमणु्षो aa विहत्‌-सोमा-

1 दत्ीयधंचविकषै ४।.६। ४०४

were “ठास गायता नरः"-शतिसृक्स्य (To ae ६.१.१. ) aged: ofa रव, एक िंशस्तोमाययसव “owt aw बो अनये" दूतिसृहछस्य (So Wo १,१.२०. ) प्रगाथल्वाद्‌ yar तकिन्‌ एव ऋचावाखायेते, तथापि सतोतरकाक्े warty पादानावश्यः sat सम्पाद्यते ; aa इचल्वधर्मोपितल् कारेन इयोः स्लोमयोरेकविधलते मिलुत्तरं व्रूयात्‌ ॥५॥

ति यीमष्छायणावार्यविरचिते माधवी षेदायप्रकाये

रेतरेयमराद्मणस्य ठतीग्रपिकायां चतु्धाध्याये पञ्चमः wae: | ५. ( ४२ )

[1

श्रध ae: खर्छ. i

योषा UT तपल्येषोऽग्निष्टोम एष AEE सदहेवाद्ा सं्याप्येयुः साहो वै नामं तेनासन्त्वर- मागाश्चरेयुयधेव प्रातद्मवन्‌ं एवं माध्यन्दिनि एवं ढतीयसवन एव म॒ यजमानो प्रमायुको wafer ae वा te पुववोः सवनयोरसम्त्वरमाणाञ्चरन्ति aMae प्राच्यो aaa बहलाविष्टा भथ ate ठतौीयसवभे सन्लरमाणाद्चरन्ति wage vafeg दीर्घारण्यानि भवन्ति तथाह यजमानः प्रमायुको मवति तेनासन्त्रमाशाश्चरयुर्यथेव प्रातस्सवन एवं माध्यन्दिनि एवं तृतीयसवनं एव मु यजमानो

१८ A एेतरेवग्राद्मम्‌ |

प्रमायुको भवति' एत मेव werarquatade यदा वा एष प्रातरुटेल्यथ मन्द्रः वपति! तश्माम्म- द्रया वाचा मातरुसवने शंसदं यदाभ्येल्॑य ae यसपरति तस्माद्लोयस्या वाचा मध्यन्दिने शंसेद्ध य॒दाभितरा tera बलिष्ठतमं तप्रति' तक्मादलिष्ड- तमया वाचा तृतीयसवने wa देवं शंसेयदि वाच ona afte ण॑ यया तु वाचोत्तरोत्तरि्ो- Mea ममापरनाय तया प्रतिपदयेतैतत्सुशम्ततम मिव भवति सवाएधन कदाचनास्त मेति TAR a wee मेतौति मन्यन्ते se एव तदन्त fara. धात्मानं विपयस्यते रावी मेवावस्तात्कुसते' se: पर- स्ताद्ध यदेनं प्रातरदेतौति wea Tata तद्म्त मिच्वाधातमानं farted setaraareqed त्रीं परस्तात्‌ सवा एष कदाचन निसोचति ae वै कदाचन निमोचल्येतख सायुज्यं सरूपतां सलोकता मश्रुते एवं वेद एवं षेद (४४)

Leauge तृतीयपच्डिकायां चतुर्थोऽध्यायः

पनरादिन्यसाम्येन प्रशंसति “at वा एष तपयषोऽभमि- टीस एष at सदेवा waaay: ; साहो वै नाम". Xt एव प्रसिदः ‘aay भ्म भादि, तपति, एषो.

दतोधयपञ्िक्षा ig.) ९॥ केशः

ऽजि्टोमः.‡ तधोशादित्याभिष्टोमयोः सदश्रलात्‌ कधं grey fafa, agad— ‘ua’ afacta: भादित्यवत्‌ साहः, यक्ष आदित्यो ऽङ्का सह add, तथा; ‘ay भग्ििष्टोम afa एके, माहा Wea ‘decay: wands: | तस्मादादिव्य्े ‘ars: -इति करतोरनाम सम्मव्रम्‌ , ,

tert मनिष्टोमानुष्ठाने ac निषेधति--“तनासन्छरमाच्ला- wigaia waar एवं माध्यन्दिनि एवं adie we सु यजमानो प्रमायुको wafa’-<fa1 यस्मादेव ay: साकल्य नानुष्ठानाय पापम्‌, तेन' कारणेन सवं safe: (भसन््रमाणाः' तरा aKa उत्तरोत्तरानुष्टेयं सम्यक्‌ cal. लोचयन्तः "चरेयुः" भनुतिरेयुः यथैव प्रातस्छवने aaa WITT मध्याङ्कात्‌ पुवकालस्यानुष्टानाय पर्ययाषिलाज्नास्ि au, एव भुत्तसयोरयि मवनयोः | (एव सु ₹' waka प्रकारे शभे- casa सति बुदिसमाधानेनाङ्गलोपाभावाखजमामः “OAT: अपद्त्युरहितो भवति विपे बाधं quafa—- “away दं पूवयोः सवनयोरमरन्वरमाणाञ्लरन्ति, aes प्रादयो ग्रामता डला विष्टा, ward ठकतोयसवने सन्तर माणाथरन्ति, तसां wafy दोघारश्यानि भवन्ति; तथा यजमानः प्रमाद्युक्षो भवति--इति यद वैः यदि प्रथमदितौययोः सवनधोः are मङ्ोचाभावात्‌ श्रसन्छरमाणाः "ददं" wey चरन्ति wafasy;, तदान ‘aay लस्मादेवाङ्गलोपाभावात्‌ कारणादिदं SAF fa मिद. मिति, तदव्य प्राश्यो aaa’ पृंदिम्बर्तिनो Mae: 'वडलाविष्टाः' बरुभिजमैः waa भवन्ति | ‘aw तदिपरओयेशय. ‘ow दि एतोयसवने कालमद्ाच मस्य "सन्त्व -

२५

1

३१० p- Qataarerey

माणाः अतिलरथा gar: श्रद' ad ‘ache’ भतुतिष्ठन्ति, तदानीं तस्मादङ्क्वैकल्यसम्भवादेषेदं लोक टदश्यतै,-- ‘cafe’ | पशिमदिग्बक्तीनि द्दौर्घारण्यानि' जनशून्यानि भवन्ति | तथा mena सम्भाविताङ्कवेकस्ययुक्गेनानु्ानेन यजमानः (्रमायुकी भवनि" wage म्रियत wart | fart वाधक मुक्ता aoe निगमयति -- -“ेनासन्तरमाणाश्ररेयुर्यधेव प्रातस््वन एवं माध्य- fea एवं छनोयसवन एव मु यजमनो ऽप्रमायुको water’ <The | wa faq सवनेषु शल्स्योत्तरोत्तरं ष्वन्याधिक्यं विधन्त - “स एत्‌ मेव शस्तशानु पयोवत्तेत ; यदा वा एष NIAAA Ae तपति, तस्माख्मन्द्रया वाचा प्रातस्छवने शंसेदध यदाभ्येल्यथ बलोयस्तपति, तस्मादलोयस्या वाचा मध्यन्दिने seen वटाभि- तरा मेध बलिष्ठतमं तपति ; aanefasaan वाचा ठतौयसवनै weed शंमेयदि वाच tata: वाग्घि we ; यया तु वाचोत्तरो. त्रिग्योकष्रेत समापनाय, तया प्रतिषदेतेतत्मुशस्त तम मिव भवति"इति | सः होता "यत aa आदिल ages ‘naw wate यथायधादिल उन्तरोत्तराधिक्येन तपति, तथातचै- योचरो सरध्वन्यारिक्येन ear Way “यदा वै"-ष्त्यादिना तदेव श्यष्टोकरियते | यस्मिन्नेव काले ‘ay भादित्यः ्रातस्देति प्रातःकाल मभिव्यक्जयितु मुदियात्‌, awa’ तदानीं "मन्दरम्‌" भव्यं यधा भवति तथा तपति ; तस्मादादित्य ममुवत्तंमानो होता परातस्सवने "मन्द्रया Beata वाचा Wey "थः प्रातः- ` कालदु सूर्यो यद्‌्येति' मध्याृकालं निष्यादयितु माभि- मु्थेनोदः गच्छति, “भध तदानीं सुरथो 'वलोयः प्रबलं यथा मवति तथा सपति ; तम्मादोतापि ‘xara प्रबलघ्वनियुक्षया

ठंतोयपञ्धिक्ा ४।६॥. Rte

वाचा. arenes सवने श॑सेत्‌ “अय मध्या दूह यदा aah अभितरा मेति" पचिमाभिरखानां gear aa माभिः watt गच्छति, ‘sa veri मादित्यो वलिष्ठलमं तपति सध्याहृतापादपि भव्यन्तप्रबलस्तापो भवति ; भूमौ fey चोष्यंलः बाल्यात्‌ wars होता माध्यन्दिनि सवनध्वमेरप्यधिकः ध्वनियुक्षया वाचा ठतौयसव्रने waq; aera शोता are: ‘gata’ tact भवेत्‌, -- तस्य ara यदि श्ेभादिदोषेशं ध्वम मान्द्य mya. तदानीं येन ष्वनिना दतीयसवने प्रारणमः क्तः, “एवं' तेनेव ध्वनिना seq) किमयं ध्वन्धाधिक्छ भिति, तद्ुश्यते -- यस्माद्‌ "वागेव we’ वाङ्निष्याद्यलात्‌ ¡ तस्मादु यवा तुः menafagada वाचा 'डत्तरो्तरिश्याः उश्षरोस- राभिहेडिभाजा (समापनायोत्सदत' समापयतु सुत्षाहवान्‌ भवेत्‌, ‘aa तथा विधष्वन्युपतया वाचा शस्तं प्रतिपद्यत" प्रारभेत,- तु area नोचध्वनिभवेत्‌। तदेतदुक्षलश्षणोपेतं wet ‘quer तम faa भवति" अुतिकेकष्यरादहित्यनात्यन्त' शस्त मेव भवति |

aq ठतौयसवनं त्वरा मन्तरेण शनैः शंसेदिति पूर्वोक्तम्‌, तथा सति कालस्याल्पत्न समापनात्‌ प्रागव aise मियात्‌ ? श्त्याशद्भय वसुतोऽस्तमयभावान्नास्ति रोष इत्यभिप्रेल्याषह-- “स वा पपन कदाचनास्त मेति नोदेति -इ्ति। “weraa: सर aera, ‘sea, aaiufa: ; fe पुरस्य कदाविदपि सखरूपनाणोत्यन्नौ पिते

कथं तद्धि जनानां मूबधास्तमवव्यवहारः श्त्या --- “a gee मेतौति मन्यन्ते, se एव तदन्त freon faqa- ma, Tat मेवावस्तात्कैसते se; oven’ sha ‘ae’ चदा

Ae Reteriteree: 9

श्रापिनः मूयौदयादूै यामच॑तुष्टवानन् स्यो ऽस्तं भेतीति qa मम्हमितं मन्यन्ते, "त तदानीं सुरथः तद्माणियुक्त देये प्रकाणरूपस्याह पव # अन्त fire’ समाति प्राप्य (भरथः अनन्तरं सोमानं "विपर्यस्तः विपर्यस्तं करोति कथं विपर्यास इति, तदुश्ते-- अवस्तात्‌" sata देशे राति मेव कुरते, "पर- स्तात्‌ श्रागामिनि 2a ऽहः कुरे | अय मर्धः भेरीः weferd कुव्ादिल्यो यदेशवासिनां प्राणिनां दृिपथ मागच्छति, atu. वासिभिरय सुदेवोति व्यवहियते ; वदृशवासिनां दृद्धिपय मति. क्रम्य सूर्ये गते मति सूर्यास्त मेतौति तदे रवासिभिरव्यवदङ्कियतं - अतस्तस्मिन्‌ a रातिमवति, श्रादिव्ेन गन्मव्ये देणान्तरे तहेणवासिभिः प्रापिभिः सूयेस्य दृष्टतवादषमैवति एवै सति are विनागरूपो;स्तमयः कदाचिदपि नास्तीति सिषम्‌

भनेनेव न्यायेन gore खरूपोत्यत्तिलच्षणोदयाभावं दरथं- afa— “aq att प्रातर्ेतीत्ि मन्यन्ते, cate तदन्त मिच्वाथामानं विषयस्ते ; हरेवावस्तात्‌ gaat ca परस्तात्‌ दरति। qaae व्यास्येयम्‌

परमागतो ऽस्तमयस्याभावं दशंयति-- “a at wa a कटा चन निम्रोचमि'"-इति | निस्नोचन मस्तमयः) wage war कदाविदृटेतीत्यपि द्रष्टव्यम्‌

वेदनं प्रधसति-- “aes कदाचन निखोचत्येनस्य art सर्पतः सलोकता WAG एवं वेद एवं वेद" ति | वेदितुरस्त मयाभावो नामापगस्यराहित्यम्‌ ; इह aft area भूत्या पचा देतस्थादित्यस्य सष्टवास-समानरूपत्व -समानलोकताजि

~ a:

* “+ काग्गुलयाभ् एष च, च|

दतौयपदिक्ा ४।९॥ Rez.

nati | सह्वासेनेव समागलोकत्वं fawratia aay; कदाचिदपि सच्छया wares fe तक्लोकषभ्वंथो नास्ती तिविव- QM खमानलोकलत्व FAI भग्यासोऽध्यायसमाघयर्थः ९८४४)

इति ओोमस्तायणाथाय विरचिते ant? teria एेतरेयत्राद्मणस्य ठतोयपद्धिकायां चतुर्थाध्याये | वष्टः खण्डः ( ४४)

वेदास्य waits तमो हां निवारयन्‌ पमरथातुरो देवाद्‌ विद्धःतौ्थमहेश्रः |

“fa शीमद्राजाधिराजपरमेषवरवैदिकमागीप्रव्थक्ष- वो COT Ta TONY TATA WaT aa ea भगवत्सायणादार्येख विरचिते arate वेदार्धप्रकाशनामभाष्ये रितरेयत्राह्मण्स्य ठतोयपश्िकायाः चतुर्थोऽध्यायः a

अय WATT:

1) 9 Nee” 1

भथ प्रथमः खण्डः `

यज्ञो वे देषेभ्यो saver मुदक्रामत्‌' ते देवा अत्रवन्‌ Als A sala मदक्रमीदन्विमं यन्न सत्र मन्िच्छामेति ते sara कथ मन्विच्छामेति ब्राह्मणेन छन्दोमि्रेल्यगवंस्ते ब्राह्मणं हन्दोभि- रदौचयंसस्यान्तं यन्न मतन्वतापि पती; समयाजयं- सस््राहाप्येतहि दौचणौयाया मिष्टावान्त मेव ast तन्वते ऽपि wat: सं याजयन्ति।त मनुन्याय मन्- वायसं प्रायणीय मतन्वत तं प्रायकीधेन नेदीयो ऽन्वागच्छस्ते कमभि: समत्वरन्तं तच्छंयवन्त मकुषै- स्तस्मादापातहि मायणोयं शंयन्त मेव भवति a मरुन्याय मन्ववायंस्त आतिध्य मतम्बत a मातिथ्येन नेदौयो ऽन्वागच्छंस्ते afr: समत्वरन्त' तदिक्छाग्त मकुषस्तच्माशाप्येतद्ातिथ्य मिङान्त मेव भवति मनुन्याय मम्बवायंसत | उपसदो ऽतम्बत। मुपस्द्विनेदटौयो ऽन्वायच्छंस्ते कर्मभि; समल्वरन्त ते fae: सामिधेनीरनुच्य' तिस्लो देवता waste:

कतौयवञ्चिका ! ५।१॥ २१४

शआहापयतश्युपसन्यु fra एव सामिधेनीरनच्य feat देवता यजन्ति त॒ मनुन्याय wanda उपवसथ मतनृत मुपवसथ्यैऽहन्याघ्रुवंल ATT यन्न॒ मतन्वतापि पौः समयाजयंस्तस्मादापत- पवस्य wea मेव ay तन्वते ऽपि aah: सं याष यत्ति तस्ममाटेतेषु पवष कमस गशनेस्तरां शनेस्तया भिवानुत्रूयादनत्षार मिव हि ते मायंस्तश्चादपव- सथे यावल्या बाचा कामवौत तावल्यानुन्रयादाप्तो डि तहिं भवतौति मापरुव्रव॑स्तिष्टसख नो ऽ्नाद्ा- यति सं नेव्यबवौत्कधं वस्तिष्डेयेति ` तानीस्षतव मन्वन्‌ qT नण्छन्दोमिञ्च सयुग्‌ war त्रादयाय तिष्ठेति तथेति वस्माह्वापेयतहि aq

सयुग्‌ भत्वा देवेभ्यो va वहति aria छन्दोभिश्च (४५)

भन्निष्टामः सवयन्नक्रतूनां योनितवेनास्तयत प्राक्‌ परख |

देवः स्तोमः संसुतो यखतुभिर्वाचां मन्दटूर्मध्यमेदन्यैश्च ,

wafewenrfea वक्रव्यम्‌ ; तन दोलगोयेरेः संखा माख्या- विक्रया दशयति - “owt बै तेभ्यो sora मदक्र मत्‌, तेदेवा अहवन्‌,+- यन्नो वे मोऽमादय मुदक्रमौदन्विमं ay मन Afar. मेति ; ते sqay कथ्‌ मजिच्डामेति ; ania eater

ate ` Getrag . `

qe and छन्दोमिरदो्यस्त्यान्त' यश्च -मतन्वतापि पन्नः सद्रयाजरयस्तसखादाप्येतहिं दौश्वेणोयाया faery मेव यनं aaa, ऽपि wat: सं याजयन्ति ; WANT मन्बवायन्‌"- दति। "पुरा कदाचिद्‌ ‘aw’ ज्योतिष्टोमाख्यः केनापि निमितेना- cam: सन्‌ देवेभ्यः सकाशात्‌ उदक्रामत्‌" निष्करान्तवान्‌ | तजि- SrA META “aT अप्युदक्रामत्‌ ततो देवाः UT we भिद महुवन्‌,-यदैतदुभय Waele मुदक्रमौत्‌, तदेतदुभयं सर्वत्र ‘afer अन्वेषणं करवाम ततर कथ मन्वेषण मित्ु- पाय॑ fread, ऋलिग्यजमानङ्पं ब्राह्मणम्‌, गायत्रादि- च्छन्दांसि तदन्वेदकशोपाय्देन fafa, नेन्डन्दोभिः ब्राह्मणं यजमानम्‌ 'अदोष्यन्‌' दोचणौरेष्या संस्दतवन्तः | (तस्य ब्राद्म- शस्य ‘aq’ दीकशणौयेिरूपम्‌ "भान्तं" समापियय्यन्तम्‌ “waa” विस्तौरितवन्तः ! तं यन्न agate ‘cat’ तवाभिका देवतां शपि # .समयाजयन्‌' पव्रोसंयाजारुष्टाम मपि छतवन्त शूतयः | यस्मादेवं 24; कतम्‌, तस्मादेव कारणादिदानौ मपि टोक्षणोयाय्रा fact dean यश्चषमापिपन्त मनुतिष्टन्ति। खउतस्तरकालो- नाङ्गव्याह्यये पक्नोसंयाजग्रम्‌ पत्नौसंयाजरव समासि रित्यभिेत्य "भान्तम्‌† caer "तं" दवेः कतम्‌ “OT अरुक्रसगत मनुष्ठानम्‌, wy’ Tage: सपि “aay अव- गतवन्तः, अनुल्ितवन्त व्यर्थ; ‘a मनुन्धायम्‌'-ति वाक्छ सु्तरशेषतवेन वा योज्धम्‌

दौष्शोयेष्टेः प्लीसंयाजषु समासि enfaar प्रायकीयेषः Wye समाति दथयति-ते प्राय्ोव मतन्बत लं प्रायणौयेनं

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#॥ दतीयपञ्चिा ५।१९॥ , ˆ ११४

fase wifi: समलरन्त, awa waver wraafe प्रायशोयं sam भेव भवति, मजुन्धाय मन्ववाय fii “a देवाः प्रायणोयाख्यं कर्मालुहितवन्तः (्रायणौचेनः कमणा ‘a yale दीक्षणोयेिरूपं श्योतिष्टोमरूपं वा ay’ नेदोयः' अयन्तसमोपै यथा भवति तथैव (अन्व गच्छम्‌' अनुहित- वन्तः ! दोचणोयेट चिरं व्यवधान axa प्रायणोय मनु- fanaa इत्यथः | ते, देवा; `कर्मभिः प्रायणौयाङ्करपैः "समत्व रन्त सम्यक्‌ त्रां कतवन्तः। दौसषणौयेिवत्यन्नोसंयाजपस्म् नातिष्टन्‌, किन्तु att wer पल्नौसंयाजैभ्यः पूर्व, भेव sige वाकपर्यन्तं संत्वोपरताः | तस्मादेत्यादि पूर्ववत्‌ अधातिष्ेष्टेरन्तं दणयति -- "त wise मतन्बत; मातिष्यैन Heh ऽन्वागच्छंस्ते कर्मभिः समलवरन्त ; तदिरूान्त TAMA मिकान्त मेव भवति, ae wana” -दति अनुयाजेभ्यः पूवं यदिङोपद्नानं, तदन्त भेवा- faafeed कम क्षल्लोधरताः wary पूर्ववद्‌ व्याख्येयम्‌ धोपम्ु अनुष्टयं दशं यति--* उपमदो ऽतन्बत ; मुप- महविर्नदौयो ऽन्वागच्छंस्ते कमभि: समलगन्त; मे fore: साभिरेने- Tye frat देवता ्रयजंस्तम्मादाप्य agora तिखन एव साभि- धेनौगनृथ fret देवता यजन्ति, मलुन्याय मन्बवायन्‌"-दति तिसः सा्मिषेन्छ भ्राष्वलायनेन टर्भिताः-- “उपसद्याय मीढुष इति fae एककं विरनवानन्ताः माभि्धन्यः?-दइति (Be ४, ४.) | अग्निः सोमो विषुशरेव्यतास्तिसखो देवताः श्ट मग्धत्‌ ` भथाग्नोषोमौ यपमावनुषठेयं दशयति--^न उपवसथ मतन्बत ; मुपवसष्येऽङन्धाष्ुवंस्त Tare यन्न सतन्धतापि पौ; समया-

as

१८ रेतरेयत्राद्यशम्‌ |

जयंस्तसपरासाप्येतद्ुपवसथ भ्रान्त मेव ay तन्वते ऽपि aah: सं याजयन्ति”-इईति | उपवसथशन्दन सोमयागसमीपवासित्वाव्‌ पूवस्मिवरहनि भनुषयाग्नौमोमोयपषएविवक्तितः। तं' पशु देवा 'उपवसष्येऽहनि' सोमयागदिनात्‌ पदु: ‘ayaa’ प्रामवन्तः यन्न" aaa मन्रतिष्ठन्‌ ; पलीसंयाजानप्यन्वतिषठन्‌ | दोकूपेधिवत्यतो संयाजान्तत्र भेव द्रष्टव्यम्‌ Ge मन्यत्‌ |

उक्षास्िष्टिषु दोतुरनुवचनस्य acai विधत्ते “तस्मा- tia yag कर्मसु mead शनेस्तरा भिवानुत्रूयात्‌""-इति। यस्मादम्नोषोमीयात्‌ पर्वभावितेन उपक्रमरूपा दीच्णोयादवः, war ‘aay पूर्वेषु" दौ णौ वादुमपसदन्तेषु HAY ‘WAT far श्रयन्तनौचस्ररेणेव दोतानुन्रूयात्‌ |

अग्नोषामोये unt रहोतुग्नुवचनध्वमेरिच्छानुसारित्वे विधत्त --“अननशार मिव fe तेत मायंस्तस्मादुपवमधे यावत्या वाचा कामयेत, तावानुत्रूयादापतो fe तद्धि भवतोनि?-इति। ‘MAMET उर'गत्तरभावो मार उत्तारः, भनुरुल्यानुखत्यति arent: | ट्त भोयेटे सारभूता प्रायणोयेटिःः तदपेक्या सोम यागस्य समोपवत्तिललात्‌ ¦ एव मातिष्यादिषु zea Fem मनरोत्तरसार मनुत A देवाः "तं सोमयागम्‌ श्रायन्‌' ATH- वमतः | तग्प्ादतल्न्तसारे उपवसे" ऽग्नोपोमोवे पशौ होता "यावत्या वाचा ‘areata’ यावन्त aerate freq, तावता प्वनिनानुवचनं कुयात्‌ | ‘ate’ तच्िन्रम्नोषोमौोयपश काले "सः" रोमयागः प्रासो भवनोति डोतुरभिप्रायः। लोके 'प्यभीषटवम्तुमि बन्धा घा चिरकालेन प्रासे सति ₹षैटोतनायोद्ष्वनिना वार्ता wafer, तददन्रापि द्रश्व्यम्‌ |

छतोयपच्िक्षा ५।२॥ २१४६

देवानां यश्नप्रामु्पाय मभिधाय ब्रब्राद्प्रापुपायं दश॑यति-- “त माघ्राप्रुवंस्तिठसखर नो जन्ायापेति ; मैत्यत्रवौतकथं वस्तिष्ट- येति ; तानौक्षतैव ; मन्ुवन्‌,--त्राह्मरेन wet fire way भूत्वाब्नाद्याय तिष्ठेति ; तथेति ; aannaafe यश्च: सयुग्‌ War रटेवेभ्यो wa वदति, ब्राह्मणेन छन्दोभिश्च"-ष्ति। ‘a देवाः ‘a ज्योति्टोमं.यन्न प्रापयेद्‌ मन्रवन्‌,--हे यश्च ! “a? अस्मा- कम्‌ अन्नादयमिद्ययं fare सिति बुर्जिति | ‘a’ aweretad निराकरोत्‌,-मम निष्यादकं साधन मन्तरेण ‘ay युखदथं कथं fea: en fafa साभिप्राय मव्रवोत्‌ | तेष्वलुग्रहदोतनाय तान्‌ देवान्‌ ‘Fada पश्चनत्रषास्त, aT मकरोत्‌ ततो Sat aw- स्याभिप्रायं wat ^>" sara यन्न मिद मन्रुवन्‌,-- डे यच्च) a sme aaa ऋलिग्यजमानरूपैण ब्राह्मणेन aera. सैग्कन्टोभिश्च सथुग्‌ yar aafeadt war warearara ‘fase ugiglafa: am यश्नोऽप्यङ्गोचकार। यस्मादेवं amifezral मपि ad ब्राह्मणमन्तसदितो भूत्वा देषेम्योऽत्राद्- au हविर्वहति १(४५)॥

दूति यीमल्यायणाचार्यविरचितं माधवीये बेदा्यप्रकापर

ठेनरेयत्राद्यणस्य लौयपञ्िकायां पञ्चमाध्याये प्रथमः खण्डः ( ४५) #

चरथ fsata: wag:

Stfa हवै यन्न क्रियन्त ser गोग वान्त" ae- सदेव जग्धं यदा ऽऽशंसमान मात्विज्यं कारयत sa

are 1 शैतरकद्चधम्‌॥

वामे Saree वा मा Waa eng mercies यया any हैव तद्यजमानं wane Sata गौय यदिभ्यदार्ज्यं कारयत उत वामा aaa वामेन यन्नवेशसं कुर्यादिति ae तत्मराङ्व यथा गौं हैव तद्यजमानं waa Sada वान्तः यदभिशस्यमान मारत्विच्यं कारयते'यथा = at ge TATA Maa एवं तस्माद्‌ Say wer राडव यधावत ALA तद्यजमानं wafa'a पतला तयाणा माश्ाच्रयान्तं यदोतेषां sara Ra; चिदकाय मभ्याभवेत्तख्यासि वामदेव्यस्य wa प्रायधित्तिरिदि वा इदं वामदेव्यं यजमानसलोक्रो ANA: Ail लोकस्तत्‌, fafa ae सोत wey चेधात्मानं बिर्दयौयात्मरुष इति a एतेषु लोकैष्वाटमानं enafna यजमानलोक्े- ऽश्न्नरुतलोके ऽख्िन्तयुे we सर्वान्‌ दुरिष्ट मल्यत्यपि यदि सषा दव ङलिजः afcfa

baie, Tanda )

WET हेतस्जपेदेवेति (

दो्षणोयादिष्वम्निपोमोयान्तेषु हातुष्वनिविशेषं विधायान्ते ब्राह्मणशनलििजा यन्ननिष्पत्तिरिवयक्षम्‌ ; aa वर्ज्यत्राष्णवियेषं द्यित प्रस्तौति--“त्ौयि इवे as क्रियन्ते जग्धं. गोरे

बतौयपञ्चिका। ५।२॥ २११

वान्तम्‌" दति ! ग्धं भच्तितावशिष्टं भोजनपाते खितम्‌ ; गोणम्‌' उदरे प्रविष्टम्‌ ; वानः' सक्लदुदरे प्रविश्य पुननिमतम्‌ ; तान्येतानि (तौणि etfefuay क्रियन्ते; जग्धादिस्थानौयानि तौरि वज्यानोत्यथः : तत्र जग्धखानोयं दशयिला friufa—atada जग्धं, यदा ऽसमान मालिज्यं कारयत तवा मे caren वामा क्षी सेति ; aw तत्पराङ्व यधा जग्ध ; न्‌ डेव तदाजमानं भुनक्ि"- दूति। कञथिदह्ठाश्मण भरार्विज्यम्‌ (आशंसते कामयते कैनाभिप्राये- शेति, तदृष्यने--भराविवंज्याथं यज्ञशालां मयि गते सति यजमानो सेः मद्यम्‌ खत at gar’ किञ्चनं वा प्रयच्छेत्‌, ‘oa ar at gata’ अवा ai प्रयोगाभिभ्नद्ष्टात् मालिन्यं afafa ane ‘ofa’ एवं धनाजनलम्पटः सन्‌ श्र नुढानतात्यथरष्ितो free मार्ज कामयते, aed कामयमानं परुषं यजमान पासिज्यं कार्यत शति यदस्ति, तदेव जग्धम्‌ ,--यथा लोक "जग्ध पाजरश्ितं मस्ितावणिष्ट सु्छिषटतादितरेरखश्धम, तथा | ‘aw तस्मिन्नेव यागे "तत्‌" धन ame स्यालिज्यं "पराङ्‌ एव frie मेव ; ‘aq’ aren arfant यजानं “न सुनक्ति' पालयति, aw विकलो भवनौत्यर्थः | गौणं मुदा्ृत निपेधति--- “श्रथ Sada गी, - यद्विभ्य- दाविज्यं कारयत उतवा मान वाधेतौत at Fa यक्वेणसं qenfefa, तद तत्यराङ्व यथा गौरं; Fa तद्यजमानं मुमि fa यजमानो यस्मिन्‌ ग्रामे यजत, an कथिद्‌ ब्राह्मणी श्रमणो” प्रभुभूत्वा प्रयोगकौशलरद्ठितो ऽवतिष्ठते, मार्लिज्य व्जयितु मयं यजमानो बिभेति केनाभिप्रायेषेति, तदुष्यते-- भय मव प्रभुमयि इषं छत्रा कालान्तरे मां वाघेत; . भेदान

२२१ एितरेयन्राष्ाशम्‌ i

मेव anand’ wafeart gaa तदुभयं मा मूदिलभेनाभि- प्रायेण venta प्राष्ुवव्रालिवज्यं तेन प्रभुणा कारयत इति यदि, तदेतद्‌ गोशम्‌'--यथा लोके गौणम seret पुनभग- योग्यै भवति, तथा ‘ae’ तसन्‌ यागे ante भोतिमाष- प्रयुक्र मालिन्यम्‌. ‘urea निष्ट मेव "तत्‌" तादृशं प्रयोग- कौशनरहितन प्रभुणा क्षत मार्लिज्यं यजमानं पालयति

वान्तं दथयिला निप्रघति -- “श्रथ Pata वान्तं,-यदभि- गखमान aad कारयते ; यथाश वा षदं वान्ताशमनुष्या waa, एवं तस्माद्‌ Say तस्परगाङेव यथा ae, Ha तद्यजमनिं भुनक्ति" -दति। यः कञ्चित्‌ ges: प्रयोगङ्कशलो- ऽपि कैन चित्‌ पातिल्यापवादेन स्ेरनिन्धते, ताटणम्‌ “अभिशस्य- are यजमानं खकोयवन्धुंलादिदासिण्याभिमानेनापवादपरि- हाराय माज्यं कारयते ति यदस्ति, तदेतद्‌ वान्सम्‌' | तवेदं निदग॑न मुव्यते,--खया लोकै मनुष्याः वान्ताद्‌ ahaa: are’ ष्टा कश्मल मेतदिति नि्टौवनं कुः, एवं देवाः Tone’ अभिगस्यमानक्तादालिज्यास्स्वे drat) ततो यधा लोके ame सिति faaey, तथा तसिन्‌ ow तदार्लिज्यं निकषम्‌ | तथच यजमानं सव्वधा पालयति

वज्धत्वेनोकं तिविध सुधसंहरति--“स एतेषां याणा ATT गेयात्‌” दति ‘ay यजमानः "एतेषां" पूर्वोक्ञानां धनलम्पट- water तयाणा मालिन्यां मनस्यपेत्ता मपि FATA

अथ प्रमादक्ञतस्य प्रायथिन्तं दर्शयति--न यदोतेषां याणा मेकं विदकाम मभ्याभवे refs waters सोते प्रायचित्तिः"

ठतोयपदिका ५।२॥ २२९

-षति। यदि कदाचित्‌ ‘tal घनलम्यटादौमां तरयाणां मध्र वर्तमानं तं पुरुषम्‌ “कचित्‌ एक मपि “प्रकामम्‌ अवरिपृवम्‌ अभ्याभवेत्‌' भमिलश्या्विज्यं भवेत्‌, तदानौ" ae’ Faerer प्राय्चित्तिरस्ति। कुतास्तौति, तद््यते--वामरेव्यस्य wt? वामरेवमहर्षिंणा ee’ साम वामदेव्यम्‌; "कया afaa ar भुवत्‌” “TAA WTA तच्च माम eI गायन्त उद्ातारः एस्तोतमनुतिष्टन्ति $ तच कचचिदयोगविशेषः प्रायश्चित्तिः Va साम प्रशमति.-- शबदं वा wd वामदेव्यं, यजमान- सोकी saadte: eit लोकः-दति। यजमानस्य strat धिव”, “अखृलनोकः' मक्तिपदम्‌, “aa देवलोकः | ced 8 सक्षलीकत्रय fad भसपीदं ate’ “कया नितः इत्यस्या wea निदं रासगानां प्रसिद्दः वामदेव्याख्यं साम (गे ato ४. १, २५. ) तभ्मिन्‌ माजि कतव्य प्रायञ्चिसप्रकारं दर्भयति-- “तत्‌ जिभि र्नरन्यूनं ; तस्य ata sce तेधामानं बिश्टज्लौयात्‌ पुरुष दति" afar ‘ag वामदेव्यं साम ‘fahren tapra’— “कया निकः" -इत्यादिकस्तुचौ मायतौच्छन्दस्ः; तस्य छन्दसः fay पादेषु vara मष्टावक्षराणि श्रपेक्ितानि ; “ait षु गः. cement मृचि mara प्रतिपादं सत्रवा्नरायि, भतनस्तिभिर्चर- aay! "तस्यः वामदेव्यमाम्रः मम्बन्धिनि eta “उपर्य

ak ten eR I AOE POETS ee => छा जः Rn ED SR ENED भवन

~~ tees te ~ न~ ere ~क tm.

# “वासदेवाडदस्य "द्रत We ४.२.९।

Bo Wile 8.2.8.4 5 te गा ५.१, २५। f Bo Wo १.१.१२. १---३); he Mo १.१.१५) “Ha waa wae avadfa

mete grat सद-वयादौनि तदराप्नणवचरनानि। Alo ब्रा B.S, १०।

२३४ a Qatar

मोप weer “ora? wares सरुषः" दति तेषा fz: glare’ प्रयश्चरं विभज्य एकंकस्मिम्‌ पारे प्रतिपेत्‌ -तश्धा- “mit ye: aati पु, अविता जरितृशां रु, तन्धवाश्बु- तिभिः षः" इति प्रज्िप्य गायेत्‌ ( उ०अआा०१.१.१२.१, )

उक्प्रकारणाविंश्यं वैकल्यपरिषश्ारं दशंयति-- “स wy Haart दधात्यस्मिन्‌ यजमानलोके ऽस्मित्रमृतलोके sheet: खर्गे लोके wait efcfe मयेति"-ष्ति। ‘a’ छंतप्राय्िन्नो यजमानः “एतेषु लोकेष्वालानं खाप्रयति a णएवतुलोका अस्मिचित्यादिना wetfinaad | (सः यजमानः सवी दुरिष्टि दौषोपेवं aaa ‘safe भतिक्रामति॥

एवं नमित्तिक aacaawad विधाय नित्यप्रथोगेऽपि तं ` विधत्त श्रि यदि ager दव ऋलिजः स्युरिति ane हेतञ्पेदेबेति"-दति। Pater: "ऋविजः यदपि मृदा 7 धननाम्पययादिपूर्वोक्गवेकल्यरहिता एव शयुः, तथापि ‘cae’ Jey TTT Ma जपेदेवेत्यैेतरेयो मुनिराह an zk

sf भ्रोमत्ायशाचार्यविरचिते माधवोये Ferrari

रेमरेयत्राह्मणस्य adtaafqaai प्रश्चमाध्याये

दितोयः खण्डः (४६)

WA ठतोयः खण्ड, |

छन्दांसि वे Saar ea मटा श्रातानि जघ- नाइ यन्ञख तिष्ठन्ति यथाश्वो बाष्वतरो arfeat-

SOO oe + ~~ गी 1 (दा ae

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' ` ठदसोयपद्धिका। ५।१॥ mt .

Fass तेभ्य एतं मेनावरणं पशुपुरोकाश् मनु ठेविका vatfa निबपेद्‌ धान पुरोकाशं दाद्ष- कपालं यो धाता वषट्कारो ANA चरं यानु- मतिः सा गायनी राकाये SE यारका सा परप fudtarat चरं या सिनोवालौ सा जगतौ ae ae या कुदः सानुद्टवेतानि वाब wate च्छन्दांसि, गायनं Vea जागत AACA मम्वन्या- न्येतानि fe यज्ञे प्रतमा सिव क्रियन्त TAs aT अस्य च्छन्दोभिर्यजनः सर्वेश्कन्दोभिरिष्टं भवति ud वेदं तदे यदिद are: सुधायांशवै वाजौ , सुहितो दधातीति wetfa वे तल्बयुधाया इवा ud छन्दासि दधल्यननध्यायिनं लोकं जयति ud वेद ASH आहर्धातार मेव स्वासां पुरस्तात्पुर- स्ताटाज्येन पररि यजत्तदासु सर्वासु मिथुनं दधा तौति तदु बा आहजामि दा UAT क्रियते यव समानीग्या waa समानेऽहन्यजतौति ate ¥ aT अपि war इव जायाः ufaaia तासां faqa तद्य दासां धातारं पुरस्तादाजति तदासु सर्वास fart दधातौति नु देविकानाम्‌ (89)

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पैव awl ब्राह्मणेन Eeliire ayy wet wai दतो. लयक्म्‌ ; तत्र ब्राह्मणप्रयुक्ञो.वक्षव्यषेषोऽभिदहितः; भथ छन्दः nan fate म! -- “छन्दांसि देवेभ्यो हव्य मूढा शान्तानि quae यन्नस्य तिष्टन्ति, carat वाश्वतरो वोहिवांस्िटेदेवं ; तेभ्य एतं मैत्रावरुणं पश परो राश सनु देविका हवींषि निवपेत्‌” ofa) गायत्रादौनि छन्दां नि देवेभ्यो “wa Yer दव्यवषटनं छत्रा प्राप्य awe "जघना पलिमभागे. कचिततुष्णौ तिनि | यधा कोकै कथिदण्लो वा, गदेभाग्वसाष्र्येण नातः श्रष्लतरः' वा अदिवान्‌' भारवदनं क्तवान्‌ ( सन्‌ # ) दूरदेशे वनेन चान्त स्तिडेत्‌, एव भेत्तानि दन्दांस्यपि ; “Fay खान्तेभ्यः खमपरि- हाराधं दवींषि faa | देविकाः -इति मैषां इविविशे- पथां नाम कश्ठिन्‌ काले निर्वाप इति, तदुयते -- यन्नस्यावसाने योऽयं पशः" अनुबन्धाण्यः, लस्य पोः सम्बन्धो मित्रावरण- दैवताको यः परोडागः, लम्‌ aa तस्मित्रनुषटिते पञानिकपेत्‌ |

aa प्रथमं efafawa— “धाते gdam wena, यो घाता aa” -sf 1 धाछनाख देवाय द्वादशसु कपालेषु स॑रते "पुरोङाशं ' निवपेत्‌ योऽयं wren देवः, WH WAG: ; तेन पुरोडाशेन वषट्‌कार्देवतायाः यरमोऽ- गच्छति

featd इविविधन्ते-- “अनुमत्यै चङ, यातुमतिः सा गायज्रो'"-इति। “कलाहीने सानुमतिः पूणे राका निशाकरे”

~ ee ae ei ole

# नास्येतन्‌ पदं ade? | t ^"५५१रौ शभ qa विका gatta faagia यजप्रषायिः'-दति काद्या श्रौ" १८ २८।

.॥ ठतोवप्रखिक्षा ४।३॥ RW

इति ( रम १.४.८. ) भभिधानाश्चतु्दगींमिखा gfe “wy. सति-खब्दवाचया # | तदेनभिमानिन्धा देवताया अपि तदेव मम + TATA ARAMA SaaS la: यमोऽपगच्छसि १३ ठलीयं efafawt—— “राकायै चरं, या राका सा fazy’- afi पूर्षषद्‌ व्याख्येयम्‌ | चतुथपञमे विपो विधत्ते-- “fete चस, या सिनौ- वालौ सा जगतो; FFI चस, या कुषः सागुषटप्‌"- इति ) “शा ver: सिनौवासौ, सा नष्टेन्दुकला कः "- दूति (To १,४.९.). घमावास्याहेयिष्य मभिहितम्‌ "| तदभिमानिदेवतायास्छदेव नामेति gaara | . इतरेषां छन्दसां कथं यमपरिष्ार ware सर्तवा मन्धेषा सुक्च्छन्ट्‌ोऽनुवस्िलात्तावरव श्रान्तिपरि्ार इत्यभिप्रेत्य “एतानि वाव सवायि च्छन्दा सि,-- गायते aga जगत मनुष्टुभ मखन्धान्यतानि fe यन्न aaa faa faaat”-—-efa ‘cafe’ शव गायत्ररादो{न चत्वारि सवन्छन्दोरूपाखि, प्रन्धानिः खशि. गादोनि गाधत्या्दिकि wqaaa va | यस्मारेतानि चलारिं aaa श्रतमा fir’ प्रावुरव्यानिगयेनैव ‘faa’ प्रयुज्यन्ते, aaneazqurica मितरषां भुक्तम्‌

A === ee io > mm = = = = नक = कम 9० es ४1 (त +

* 'व््लुमतो cat द्वपत reat. 5 पंःरमास्यावित्‌ यसिक्ष(ः | या पूर्वा

aaah सानमतियोतल सा रानि निद्रायते -दवयाद्धि fate ११.३.८। शष

श्ोप्ररिष्टात्‌ 9.२. १:। } “feta कृषटुदिति देगपतरया्बिति नभक्ाः; शमावरारू दति यान्निकाः। या

पूर्वामावास्या सा सिनौवान्वौ योग मा कुष्टुरिति fama’ wate Me ११. १, १०।

षड WUT IAS, ८, १०।

AVE एेतरेयत्राद्मशम्‌

उलाथवेदनपूवक WIE प्रथंसति-- “एवेह वा रस्य च्छन्दोभियजतः सर्वेन्न्दोभिरिष्ट भवति एवं वेद"-श्ति। एतैः गायत्ादिभिः सर्वैः, उशिगादिभिः y

विदठत्रसि्ण छन्दांसि प्रणंसति--- “तद्वै यदिद्‌ ary सृधायां 4 ara) yfeat दधातीति ५; छन्दांसि तल्ुधायां हका एनं छन्दांसि दधति"- दति | वाजोऽननं विर्लश्रशम्‌ त्यक्तो ष्यौतिष्टोमो वाजो, सच सुहितः सम्यगनुषटितः सुधायामः wat सर्गे यजमानं खापयनौति te: | श्रनेन प्रकारेण तस्मित्रेव यक्षप्रतिपरादक we ghee’ वचन afta श्राहः, तन्त exifa a तदचनं यथोक्षगाय्त दिष्छन्दां स्येवाभिलच्योक्नम्‌ | पा च्छन्द मि "पनं" यजमानं सुधायां" खगे स्थापयन्ति †, तस्मा - च्छन्डोऽभिप्रायेणेतदवनं युक्तम्‌

वेदनं wiefa— “श्रनमुष्यायिनं लोकं जयति रवं षेद" ति {मनसापि ang wae मत्यपूरवसगछोपेतं लोक माप्नोति

wa कञ्चित्‌ mine मुदावयति-- “तदेक sareular मेव सवासां पुरस्तान्‌-पुरस्तादाज्येन परि यजेत्तदास्‌ aaty मिथुनं दधानोति"' दति ay afta छन्दसां यमपरिद्ठारायं दवि. wes यीचित्‌ aah एव माडुः,---मर्वासाम्‌' अरनुमत्यादीनां खोदेवतानां पुरस्तात्‌ घुरुषरेवतारूपं धातार भेवाज्यदरव्येण परित थजत्‌ सवे्द्वहाये पुरस्तादिति वीप्सा | तत्‌" केन

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Seta वे भानौ मू(हतो euritafaaia anit, a मेव तन्‌ प्रीयाति, wha Wat वसीयान्‌ wala —<fa Fo Ho ५१.१०.७।

feat मा aig परमै Baa षति Wyo we १७. १.९।

trate,” =sfa ( पा ८,९१.४.) दिषषनम्‌ |

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दसोयपञ्िक्षा। ५।३॥ २९९.

eae ठविषयप्रयोगेष ‘ary’ सर्वासु सीदेवतासच मिथ सम्पादयति

मिमं yaad दूषयति--- “ag वा श्राहर्जामि वा ort feat, यव समानौभ्या wat समानेऽष्न्‌ यज्ञतीति"-इति। “सदु षै" ततेव पूर्वोक्ञविषये केचिदभिनच्रा एव मादुः यच यस्मिन्‌ प्रयोगे समानोभ्याम्‌' एकविधाभ्या खगृभ्यां (समाने seq एकस्मिद्रेवादनि यजति, ‘ataqy wast "जामि पै" भारस्य भेष (क्रियते' सम्पाद्यते ; प्रयुक्नयोरेवर्चाः पुनःप्रयोगस्य affawiq. सटशत्वैनामुचितत्वात्‌। धाठदेवताके प्रथमे पुरोडाओे “wrar ददातु दाश्षै"-दति # पुरोनुताक्था, “वाना प्रजानाम्‌? -इति > याज्या awa तपरितिनाना मपि चतुणा हविषां पुरस्तादाज्येन धातारं यत्‌, तदानी निद अगृदयं पुनरपि चतुर्वार सावर्त- नयम्‌ | तथा.मति नौगमौ aw फलं दातुं समर्थो भवेदिव्यश्रः

कथं ति farfafa: enfanrer लोकिकद्ान्तेन atefe सुपपादयति -- ध्यदिष् वा अपि amr श्व जायाः पतिवाव तासां fea, लदयदासां धातारं पुरम्तादयजति, तदास सवास मिथुनं eurfa’—cia धयदिष्टवा यद्यपि लोक जायाः ‘am <a बडुसक्ञाका णवस्युः, तथापि 'पतित्रौव' परिरेक एत सन्‌ तासां मिथुनं areata; तश्रा स्ति यदि ‘aren’ w4- मल्यादौीनां पुरस्तात्‌ धातारं anda यजति, सदानौम्‌ “arg सवासु अनुमत्यादिषु एक एव धाता मिथुनं सम्पादयनि fb

वच्यमागह विभिः agai वारयितु सुक्षायं विविय निग. et sa वावन्धासीये उयायनायनेन पड (९.१४, १९. ) 7 “ह्विका निर्वेपेत्‌^-व्यादि to Gog. 8k WA |

२१० a Qertnereomay ics -

wafa—. “इति नु देविकानाम्‌"-इति। wit प्रकारेण रेति.

काभिधार्ना देवतानां हवौँषुगक्ञानौति ta: # ( ४७) # fa खौमस्ायणाचार्यविरचिते माधवोये बेदार्थप्रकान्च

रेतरेयत्राह्मण्स्य ठकतीयपञ्चिकायां weaned दतोयः खण्डः ३८४७)

भथ चतुः खण्डः

अथ दैवीनां सूर्याय पुरोकाश मेककपाश्ं यः सृयः War as एव वषटृकारो fed चया यीः सानुमतिः सो एव गायचुाषसे चर्‌ योषा साराकासोएव विष्टुब्‌ गे war aa fama सो एव जगती प्रथिव्ये चम्‌ या पथिवी सा कुदः सो एवामुष्ट्बैतानि वाव सर्वापि च्छन्दासिः गायतं ted जागत मानुष्टुभ' मन्वन्धान्येवानि fe यन्न प्रतमा सिव क्रियन्त एतेषं वा अस्य चछन्दोभिः यजतः सर्वम्कन्दोभिरिष्ट' भवति ud वेद्‌ ' त्व यदिद माहुः सुधायां वै वाजी सुहितो cur.

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ares Wyte सनु देदिक्षा watie Paty: ;-- धाता $नुमतौ राता सिभौवान। BE -इति were Whe ९,१४.१५ ('वनुमतिराकादिनौवालीकुडभ्य- दरवो पभ ददारकपालः एंदुतः"-षति arte शौ १८ २,

दतो; १।४॥। 4

तौति छन्दांसि वै aerate वा एनं छन्दांसि दधल्यनैनुध्यायिनं लोकं जयति एवं वेद्‌ ata आहुः सूर्यं मेव सर्वासां पुरलात्युरस्तादाज्येन परि यजेत्तदामु सर्वासु मिथुनं दधातौति'तदुवा भाहु- जामि वा एतद्यन्ने क्रियत aa समानौभ्या मृग्यां समाने ऽन्यनतौति afe = ar अपि aur बव जाया; पतिर्वा तामां मिथुनं त्यदासां aa पुर्तादाजति तदासु सर्वासु मिथन दधातिता या इमास्ता अमर््रां Waal car अन्यतराभिवाव तं काम माप्रोति णतासमयीष ता उभयोगत- faa; प्रजातिक्रामस्य स्चिबपन्नेत्वेषिष्यमाणस्यःः asa एषिष्यमाणसख + स्धिर्वपे दौश्वगो हास्य fre Sat अरन्तीर्यदा अथ माद्मने ऽल ममसंति ate afaadt गौ पालायनो वहद्युल्नखाभिप्रतारिगस्यो भयीर्यन्न सतरिश्वाप aa waa गाहमामं दष्रोव!चत्य मह मस्य राजन्यख देविकाश्च देबोश्वो भयीोर्यश्न waar sata TIT गात दूतिः चतुष्षष्टिं कवचिनः णण्वरहास्यते पुचनतार भसुः॥४( ४८)

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२१९. Tntanrerey

हविरन्तराणि प्रतिजानोते- “अथ दैवौनाम्‌'"-ईति wa’ अनन्तरं 'देवोनां' देवोनाभिकानां देवतानाम्‌, हवींषि निर्वपेदिति भेष;

wa प्रथमं इविविंधन्ते-- “साय gaa प्रेककपालं यः सूयः सधाता, sa waza fa | "एककपालं निवेपेदिति ओेषः। सव्यस्य gata’ धाटखरूयलम्‌, तद्वारा वषट्‌- वौ{रखदूपन्वं dowdy तदौयशमापनयो eee

उक्तानि # चतवारि हवींषि विधन्तं -- “fea चङ,-या द्यौः सानुमतिः, सो एव गायतूुवसे we’ योषाः सा राका, सो एव freq ; गवे चद,--यागौः सा सिनौबालौ, खो एव जगतो; vias} चड,--या एथिवौसा ay, सो एवानुष्टप्‌” इति प्रथमहविर्वद्‌ व्याख्येयम्‌ |

एतेषां हविषां miata yate मेवार्थवादं ( २२७० ) पुनरपि पठति-~“ "एतानि वाव स्वीरि च्छन्दांसि, --गायते det जागत मानुषम भन्वन्धान्येतानि हि यन्न प्रतमा मिव क्रियन्त ; एतै वा भस्य छन्दो भियजतः स्वेन्डन्दोभिरिष्टं भवति एषं az: तदे यदिद माहुः, सुधायां है वाजो मुषितो दधातोति; च्छन्दांसि वे तलुधायांष्वा एनं छन्दांसि दधत्यननुध्यायिनं लोकं जयति एवं वेद; ata ब्ाषुः, --सू्ं मेव सवासां परस्तात्‌: पुरस्तादाज्येन परि यजेत्‌, तदासु wiry मिधनं दधा- तीति; तदुवा भाहः-- जामि वा एतद्‌ यशनं क्रियते, ay समानोभ्या खग्भ्यां समाने ऽन्‌ यजतीति ; afe war wf वद्य द्व जायाः पति्बाव तासां मिधनं तद्‌ यदासां qr

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a adrdatean IRB ३१.

पुरस्ताद्‌ यजति, vera सर्वासु सिथुमं दधाति" रति" धातार faa स्थाने सूर्यं सिेतावामेव fate: | wera wt पूर्त

देविकानाननां देवीनगर हविषां ge’ साम्यं afar faxed दशंयति-- “ar या carer Waa WRT धमा अन्यतराभिरवावतं काम मप्रोतिय एनामुभयोषु"- ति ‘at Satara प्रसि; ‘war’ erat मुक्ताः (२३२ To 8 Te ) “सूर्याय पुरोड।शम्‌› -इत्थादेयो याः सन्ति, “ताः Way प्राक्तन amare: (२२९ ए” १५ te) “Cara पुरोकाश्म्‌'-शत्यादयो देविकाः | एव देवोरदिश्य देविक।तादामः मुखम्‌, अथ देविका मिष्य देवीलदामा मुखत --अमुः पूर्ववक्ता देविकाः सन्ति, ताः "दमाः इदानी मज्ञा देव्य; | एव मन्योन्धतादासपं सति यः काम एतास्रमयविधामु लभ्यते, a कामम्‌ "अन्यतराभिर्वावः पकाविधानिरेव प्राप्नोति तस्माद्‌ विकश्पेन प्रयोग इत्यथैः |

sa afafaa समुश्चय॑॑विधन्ते--“ता उभयीगंतधियः प्रजालिक्रामम्य सन्रिव॑पेत्‌'"-ति। अनूचानाटोनां मध्ये कञिदुः "गतयोः" | सथा Bat भूयते ` -“वयो वै, मतचिवः,-- gaat, ग्रामणीः, राजन्यः दति ( तै०मं०२.५.४.५. # ) atem मतः शरदि प्रजाति" प्रजोत्पादनमामय्य कामयते, तदानी स्य (लाः देविका देयौ ‘own ‘afaata’ समित्य जनिवपत्‌

(गोता ene 9 शि ~ ~

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व्यशवान- -वेकतदययो- yaatq, परमण -रस्यपारदः, Tae रियः

हति, वगता wae Nea a मुलर" sate काद्ध weet, (भाष, yto geet) ~ & * . ५१ 1

Cray घाप्ता @uarat, मता dtr tala त्रा! दति ग्राज्जिकद्वः ( gare Ale

४. १३. uso) | माहा We २.६. ५।

टर #

९३४ TATAATHUA

yaaa समुच्चयं निषेधति--"नेवेषिष्यमाणस्य"?- इति धन मरपच्यमाण्स्य तु सत्रिऽ्पेत्‌' उभयविधानां aqfa निर्वापो ae:

विपक्ते वाधं enafa-— “atar एषिष्यमाणस्य सन्रिरव॑पेदी- श्वरो हास वित्ते देवा अ्ररन्तोयंहा अय मात्मने ca aaa’ sfa | faw afaaaree यदि ‘var उभयः समसु चिव निवपेत्‌, तदा नौम्‌ wey घनकामस्य fad gar सर्वेऽपि रन्तो: ईष्वरः, श्ररन्तु amifes समर्था भवन्ति; एतदपेल्तिते वित्त हिषन्नौ- wi: तत्र seat —- ‘ae यस्मादेव क(रणादये धनार्थी grad’ स्वार्थ भेव "अल aa सम्युगं faa मनसा ध्यातवान्‌ Wada यागादिषु प्रहत्तत्वान्‌ ; एतदपेल्लित धने दवान दषो युज्यत्‌

धनकामस्य समुश्चयं निषिध्य प्रजाकामस्य gaa fafed ayaa म्धेवादन प्रणंसति-- “ar afar मोपानायनौ उघदुज्रस्याभिप्रतारिणस्योभयोयन्न सभिर्वाप ; तथ्य Tae गाहमानं Tea aT सस्य राजन्यस्य द्विकाय दवीष्वाभयो- न्न wand; यद्येवं रथग्तसौ ana परनि नतुष्बष्टि क्वनिनः maura ते gaat आसु. -इति। "शुचयः War. समोचोनपष्मफलोधैता ean यस्व महर्पेराश्भ सत्ति. मौय "दा विहत्त.नामकः ; सम्यक्‌ टणोदकप्रदानन MITT करो- alfa मोपालायननाम कश्चिदपि, verge 'गापानायनः; पूर्मोक्तनामकः शचिहक्तः ‘ad प्रभूतं दुं धनं यस्य राशः सोऽयं बदु; अभितः wat प्रकधैण "तरति" निराकरोतौति 'मभिप्रनःरी कथिद्राजा, तस्य पुत्र; ्राभिप्रतारिणः' ; qatar

wetrafeat ५.।५॥ २९४.

aig: तस्म रान्नो यन्न देविकाथ देवौञ्चाभयोः ‘cay अनेन श्ास्तोक्ताप्रकारेण 'घममादयम्‌' ससुशित्य मादितवानस्ि, समुखयानुष्टानेन तदवता ५^वानस्मि तग्रसादादयं ^रथ- wea? राजपुत्रः MIST जके area uf a कैवनं शएषि- wey दष्टो tase एत्रैकः, किन्तु चतुष्षटिसद्चाकाः श््बत्‌- कवचिनः" सर्वदा Farr समुद्यताः YUE “स्यः agra Tw: @ तथ।विधा एव gar ware ara: ane (४८) a दूति श्रौमसायणाचाय् विरचिते arene वेदाथंप्रकाथे Taian टतौयपयिकायां पञ्चमाध्याये नतु; खम्डः ( ४८ )॥

0 वा woe

|| अथ पथमः खण्डः |

अग्निष्टोमं तै दैवा अश्रयन्तोकथान्यसुरास्ते समावह एवासन्‌ व्यवर्तत तान्‌ भर्दाजं ऋषीणा स्वदि वा असुरा उकधषु frat नेषा कश्चन पश्यतीति asfa मुदद्वयद्म्‌ षु वाणि तेऽग्न इत्येतगा गिर इलयमूर्याडवा इतरा निरः सोऽग्तिसपोतिष्टटवरवी त्‌ किंखिदेव मच्छ aT दीर्घ; पलितो वन्यतौति' भर्हाजो पै at दौषः पलित आस सो ऽब्रवीदिमे वा असुरा उक्येषु

RE Tataargray |

facial कश्चन पश्यतीति तानम्निरश्वो लाभ्यत्यद्रवद्यदटभ्निरश्वो भत्वाभ्यल्द्रवत्तत्षाकमभ्व सामाभवत्तत्धाकमप्वस्य साकमश्वत्व' तदाः साक- मश्चंनोकधानि प्रणथेदप्रणौतानि वाष तान्युक्घानिं grea साकमशूादिति प्रस॑हिष्ठौयेन प्रणये- दिश्याहः प्रसंदष्ठीयेन बे ठेवा असुरानुकधेभ्यः mime तत्माडेव प्रमंिष्टौयेन waar साक मवेन ५८४८ )॥

प्यो तिषा मस्तावत्‌ ‘arte: समापिभेदात्‌ मप्विधः ; "अन्नि्टोमो safagra उरकथ्यः deat वाजपेयो ऽतिरात्रो sararca fa सप संथाः"- दति ( He ६. ११. २.) भाश्वलाय- नेनाभिदितत्वात्‌ | तत्रानिष्टोमसान्ना यशायन्नौयास्येन यत्न ममािः, सोऽ प्रथमरूपो ऽभ्निष्टोमः। क्त aisha पुर्वतोक्तः

अरधोकथसंसधारूपो च्योतिष्टोमो वक्तव्यः, नदं माख्यायिका माह - “ufeerd वै ga ग्रखयन्ताकूघान्यमुस्ते ममा- वसूया एवासन्‌ व्यावर्तन्त, सान्‌ भरहाज ऋषीणा पपद्धिम षा aa उक्थेषु ) '्तास्तानेषां कथन पश्यतोति सोऽग्नि मदद्नसद" उति यदा दवा अनिष्टोम माथितवन्तः, तदानो vac अपि उक्थनामकानि स्तोजाकि शस्ताणि चाञचित्धा- vfeat ततश्च A देवाश्चासुराख यत्तं तुखयतोया एवासन्‌, न्‌ तु देवाः शौर्याचिक्येम व्याठत्ति' प्राप्ताः तदानी खषोणां मध्ये BHT ALE: "तान्‌" भसुरान्‌ र्स्युकूबपरानपण्यत्‌ ; दृषा

वलौयपद्धिक्षा ५।५। २2७

खव मुवाष्,-- ‘sa waafwat qa: "उक्थेषु ' सीत्रशस््रेषु श्रयिताः। ‘ata’ सुरान्‌ ‘ual’ देवाना रषीणां wa a aif पश्यतीति तथोक्तः भरहाजो ऽमुरनिराकरणाधं केमचिन्न्धे- णाणिम्‌ "उदद्रयत्‌' उच्चष्वनिनान्नानं क्तवान्‌

मिमं wer द्यति - ‘og षु ब्रवाणि तै ऽन Laat गिर त्यमु हवा एतथ {गिरः षति हे ममे! एषि" भाग- च्छैव। ‘A त्व समुत्रेवाणि' भाभनं काय्यं कचयानि ! Kat’ टेवबाक्या्थव्यतिरिक्ा;ः (गरः waa: ‘Car ta मनेन प्रकारेण, श्चत्यन्तरादिति ao: | sifaruat (Go १.१६.६., ) इनरागब्दाव्रं दर्भति ——“aqat «at दतरा गिरः --दति। we Quit दिताः श्रसु्याः, तपय निरः देववाक्यादितराः, दैवविगो विन्य SAA!

anita दृनेयानि - सो ऽलिम्पोसिष्ठत्नव aaalte fea 2a ua aon eta: पाजसे वच्यलौति" इति ¦ भरदाजेनाहृते। योऽय alia साऽन्निः' aaah प्रययागम्तु मुत्तिष्टमेव मन्रबीत्‌--- away wat ऋषिः ‘fafata faa बन्ति, क्णो era; पन्तिति दति +

ऋषिविकरेषणानि तानि स्यष्टं।करोति-- भरहाजो ¥ रे कणो eta: पलित ara” इति। म्यो ऽधः

किं{खित्मलिनो auaiataat पृष्टस्य भरदाअस्योनरं दं यति-- प्सो saatf2h वा san sang वितास्तान्वा कथन पण्यतोतिः'. इनि | cay भरदा निं प्रत्येव मब्रवौत्‌,- मे वा अमुरा sag चितास्तान्बो कथन पश्छतो तिः Gary व्याख्येयम्‌

२३८ एैतर्यतराद्मणम्‌॥

अथो कधस्लोत्रस्य साधनभूतं 'साकमश्व-नामकं साम यदसि, wala नाम निर्वक्ति < Carra Farad भूत्व ग्यव्यद्रवद्‌, यदनि- रण्वो भूत्वाभ्यत्यदरवत्तसाकमश्च सामाभवत्‌, तव्ाकमश्ठस्य स(कमग्वत्वम्‌”-इति सोऽग्निभरद्राजस्योत्तरं gat तत ध्वे स्य मण्वाकारो wat तान्‌ असुरान्‌ Safa’ ल्य “द्रवत्‌ पअनिग्येमागच्छत्‌ ; असुराशा मुपरि वेगवन्तं मामर्प म्व परवसयाम॒रान्‌ मारितवानित्यथः। यस्मात्‌ खय wat भुला रमर; साकं we कत्वा जितवान्‌, तस्प्ादेतदृहन्तान्तसचनाय प्रघरायाम्‌ “og y व्रवाणि ते" -दृत्यादिकाया मृचि ( ईण्श्रा° १.१.१.०. ) SUI सान्नः गेग्गा०१.१.१४.) साकम भिति नाम सम्पन्नम्‌ 3

तस्य साम्न उकघम्तो्रनिष्पादकल्वं frrdt—“aerg: साक्ष मश्वेनोकद्यानि प्रणवेदप्रणोतानि वाव तान्युक्धानि यान्ध- waa साक्रमथ्वाटिति”-ष्ति। ‘ay aa साकमणखविषये प्रयोगा- भिन्ना एव मराहुः,-- साकमश्वनामकेन सास्रा स्लोताण्युकथनाम- कानि why; साकमश्वादन्यज्र मामान्सरेण यान्युक्यानि स्तोचाणि प्रमीयन्ते, तान्यप्रणोतान्येव wafer) तस्मादिद मेव मामीोक्थम्तोत्रनिष्यादकम्‌ $

carat विधत्ते --्रमंरिष्टोयेन प्रणयेदित्याहः ; प्रम festaga वै दैवा श्रसुरामुक्थेग्धः प्राणुदन्त "-दइति | “प्र मंदिष्टाय गात - इत्यस्या अचि ( BoWMloR 2.2.2, ) उत्पन्नं साम

ent eens wee ee eee ee ee toe ~ => ००० ~ ~~~ ^= ee eee,

= नामविषिः Ge Ato १.२१) + Jo Mo †.१.२९.१--१; Bo गा० १.१.१५ | { “तमत्‌ sal मोकानि weafin—werfz विधायकं ब्रा्मखम्‌ (atec.c,) |

ठतौयपञ्िक्षा 1 ५।६॥ २३९

श्रम॑रिष्टौयम्‌ ( मे०गा०३,.१.२६. ) ; तैन साोक्धस्तोताबि निष्पादयेत्‌ उक्थेष्वाथिलानसुरान्‌ रेवा एतेन सासा उकथेभ्यो निराक्षतवन्तः

एतयोः सानारच्छ्विविकन्य' enafa—aurea प्रम- feataa नयेत्‌ प्र साकमसग्वेन' इति aw इत्ययं शब्दोऽन्धव निषेधार्थोऽप्यवर विक्थाः ; निपालाना मनेकाथेत्वात्‌ | तान्य॒कथ-

वाशि श्रमंङ्धिरोयेन साम्ना प्रणयेत्‌, अदेवः अथवा साकम

way सास्रा प्रणयत्‌ yy ye) a

दूति ब्ोमक्षायणाचायतिरचित माधवीये वेदाथ्प्रकाशं

रोतरेयत्राह्मणस्य श्लोयर्पास्चिकायां पश्चमाध्याय पमः aw: ( ४९. )

~ ~ [क ween

परध चरः तस्र्‌: ते वा असुरा HATARMATRA HAA सा- ऽववीदिन्द्रः Be समामिनोा सुरान्नाल्छविहा sae चेत्यत्रीद्सगसादन्द्रावसंगं मैतावस्गा- maiaaia णंसतीन्द्रश्च हि तान्यस्य तत नदेतांत वे ततो पर्ता अस्तुः ब्राह्मणाच्छंसिन उकथ apa al seated: ware चसानितौ

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# Bo BT २.२,११.१.२; He ale evade Aidt, (५० AT Vrs

विधायकं aIWUY—aAlo are १२.९ !

४० " Qataarerey. 1

squaTerael इत्यहं चेत्यब्‌वोद्‌ बृहस्यतिसस्ञा- Srartmal बाह्मणाच्छं सौ ठतीयसवने शं सतौ

` न्द्र हितान्‌ वृस्पतिश्च ततो नुदेतां तै वे ततो SURAT असुरा अच्छावाकस्योक्ध मथ यन्त सो

वरीदिन्द्रः कश्चाहं चेमानितो ऽसुरान्नोर्खावहा दूत्य हं चेल बवीदिष्णुसतस्म्ाटेन्द्रावेष्यव सच्छावाक- सतीयसषने शंसतोन्द्रश्च हि तान्विष्णुद्च ततो aval इन्द मन्द्रेण देवताः शस्यन्ते ged वै मिथुनं तस्माद इम्दागिमिथनं प्रजायते Wats म्र जायत प्रजया प्रशरुभिर्ध. एवं वेदाथ इते पोचोयाद्च:

नेष्ीयाश्च + चत्वार ऋतुयाजा; षक. चः सा facre दिनी तदिराजि यत्नं दथिन्यां प्रतिष्ठा परयन्ति प्रतिष्ठापयन्ति (५० )॥

दख तरेयद्राह्मे त॒तीयपञ्चिकायां पञ्चमोऽध्यायः

उकधस्तोतेषु सामविशेषं विधाय sR सूकविशेषान्‌ विधातु मादौ सैतावसंणस्य शस्ते किचित्‌ at विधत्त ‘3 at अद्रा मैतावसणम्योक्ध मखयन्त ; सोऽत्रवोदिन्दः काशं चेमानितो ऽसरान्नोव्ावहा vad चेत्यन्रवौद्‌ वरणएस्तस्मादेन्द्रा धरणं सैत्रावरणस्तमोयसवने dealers हि नान्वरुणश्च ततो

ame tomes oe | ES ES MESS NOE ONT 7 = [त 71

“Peary”? क, gto ग, टौग्घ। t “afgary” टौ त्र |

¢ वर्तोकिवधिक्षा १।९॥ ४६;

aang Kf | saere करतोरमिरोमविक्लतिलात्‌र भतिद मनिष्टोमप्रयोम मनुष्ठाय तत WE मुकष्यपरथायास्लथोऽगुक्रेधाः | त्था चायस्तम्ब श्राह-- “उकष्यषदमििष्टोमचमसानुजयंस्िभ्य- खमूसग म्यो राजान मति रेचयति-इति ( ate १४.१.१६.) ag प्रथमचमसगणं Harare yew मस्ति, क्चस्तोजेषु सास्ना निराक्षतामस्त एव श्रसुराः श्रं Harare मययन्ते | ‘aa तदानीं तत्ावखितः इन्द्र इतरटेवाम्‌ प्रत्येव सव्रवीत्‌,-- असुराणा मपनोदने मम awat cule, सतो देवा; ! युकं मध्ये HAE इमान्‌" श्रसुरान ‘cay’ मेत्रावस्णगसनात्‌ नने व्छ वङे' श्रपनोदनं करिष्याव इ्ति। देवेष्ववख्ितो aa “रहं च' इवयत्रवौत्‌ ; ee) लं are चेत्यरथः। यस्मादेवं तस्म्रादुभयोमलनेन तेषा मसुरा मपनोदनाथम्‌ “erry? qa aataaad Haagen,’ एलमग्रामक ऋत्विक्‌ सेत्‌ “अन्दर वरुणा YR MATT नः" -- दयेत any (सं ७.८२, ) शिन्द्रावर्णम्‌ ; तेन तुष्टः इन्द्रश वरुणश्च ‘ary’ wera "ततः arg ‘an नुदतां निसक्रुखाताम्‌ |

दितौधे चमघ्गने fafyumed विधत्त,--- नै वे ततो ऽपदहता अमुरा WITTE उकय मययन्त ; सो ऽब्रनोदिष्डः कश्चादं चमानितो HUE इत्यद्धं चेव्यत्रवोद्‌ awefir- Waser प्रा. णाच््सीो ठनोयसवनं शंसतोग्रष fe तान्‌ हरदसखतिशच ततौ तुदनाम्‌” इति ततः मेत्रावर्श्च- शस्ताजिराछता अमुरा ताद्मणाच्छमिनः wea माखितवम्तः। We a cee gma पं ana NT Rate hae Te गुशर्विकाराः।

oo तेषा मप्मिटीमवत्‌ wer - पति १४.१.१३

1 1 soe 1)

२४२ टितरयत्राह्मणम्‌

“उदप्रत वयो रक्षमाणाः इत्येतद्‌ बहस तिदेवताकं दाद्‌ शवं कतं ( सं" १०.६८. ), “रच्छ इनदर मतयः खविदः"-इति एकादश Hag AAA ( स॑ १०.४२. ) ; agua मिलितं सदेन्द्रा- area सम्पद्यते तदेतद्‌ ब्राह्म णाच्छंसो FAG! अन्यत्‌ पूववदु MBI |

ठतौयचममगणे सूतं विधत्त ---^ते बै ततौ sagaT असुरा त्रच्छावाकस्योक्ध AAG ; सो ऽत्रवोदिन्द्रः ward चमानितो UAE way चे्व्रवौ दि णुम्तस्म्ादेन््रदष्व मचः वाकस्तुनोयमवमे भंसतोन्द्रय fe तान्‌ fame ततो नुदताम्‌ "- fa, “Hat कर्मणा मिषा" suze सैन्द्रावेच्णवं WA (wo ६, ६९. ) श्रन्यत्‌ पूववद्‌ व्याख्येयम्‌ |

सूकज्ञानां दिदैवताकलं प्रण॑सति-- “दन्द भिन्दरेण देवताः शस्यन्ते; दन्द वरै मिथुनं, तस्माद्‌ इन्दास्मि्रुने प्र जायते प्रजात्यै" इति| इन्द्रेण सह ‘ag युग्म भूता वरुण-उहम्मरति-विष्णु- रेवता; RAT शस्यन्ते | दन्द a स्योपुस्प्ररुपं ‘fara’ तादृगास्सिश्ुनात्‌ ग्रप्रपं ‘faad प्र जायत ततो इन्दशंसनं यजमानस्य प्रजात्यै भवति वेदने प्रप सति-- “प्र जायते प्रजया पण्ठभिय एवं वेद "दति

afaat याणां vant # स॒क्तानि विधाय, पोतुर्नेटुञ्च मन्ताम्नग खि fad -- “अघ हेते पात्रौयाय नेष्रोयाश्र चलार RATA, पक. ऋचः" दति | Rua पञ्चे सूक्ते “होता यत्तत्‌” इत्याटदिकौ हितोवाषटमौ मन्तो पोतुदाहतुग्राजौ, तधा aaa प्रेषसक्े ठतोयनवमौ मन्तो नेष्टराघ्ठतुयाजौो ; एवं चल्वार

कै "'प्रणालाब्राद्मराच्छखम्छावाक इति पम्विसो रोचकः" दति आखण्श्रो०५.१.१०।

ठतौयप्िका ¦ ५।६॥ ५७३

ऋतुयाजाः ; ते भिनित्वा पोटमस्बन्धाब्रे्टम्वन्धाच्च alata: नदौयाश्चः wafer) तग्रा प्रख्ितयान्या. पोतुस्तिख ऋचः, नेष्टभ्तिख ऋचः ; इत्ययं षर was भवन्ति ©

तदेतन्मन्दशक प्रशंसति - “ar विराड्‌ दभ्रिनो, तददिराजि यन्न दभिन्यां प्रतिखापयन्ति प्ति (पयन्ति'' stat सा qatar aaaatz: 'द{गनोः enangrrat मनो fanz कन्दः मम्भ द्यते ; Cenretar विराट्‌ ` दरविग्रन्यन्तगान। "तत्‌" दन दग- सम्प्रयागीख दिना caagiaaat [विराजि चन्न सिजः भ{ति्{पयन्ति ¡¦ अस्यास्‌ ऽ.त।प्ररिमभाव्यधः (५१)

sfa आोभत्सा वणनम्‌ पिद चनि aaa चटाय्रप्रकाग्र

पनस्य 12 Ba aa पञ्चमाध्यायं पः ag: | ८; {५ )

LOTTI GRIT AA BIZ निनाग्यन्‌ geaaraaty sare वित्रःतोथमदतेभ्वर्‌ः॥

दनि aac aha sare ra leary:

2G Ya sj 0 4 AL AET TO T 1T UAT AL TAY aaa सातम यन farhay मय Wa दायप्रकाप्रनामभाप्ये

Qarerifgwea सन्ये दरप्र कायः; पत्रमोऽध्यादः

£ patel fala Puce sae fab atl पय, Sea yay faye) die stare as 1 OA नयाम Gabe ? +e ee

(oe or, & [1 ¢ xis 7 ; 2 1 ® fs 7 Les 4 - wat pet ayy Sante नु mi Teh (Mah { ५५२१ Zao ९.“ {4 4.9.) कषा

{यिता Pq + tdi | fi = 8 FA 1 sy... t . ; (-परयष्धामन sea eit 4 5 .कनृभ "यय्‌ Tea HALA | २२५ ५५३५५ )

gaara पशुकामं ung sto तावु पाः १५४. १.२

२४४ रेलरेयत्राद्मणम्‌

asia मेकादश(५। देदविश्स्लरयोट्‌श(२) | सोमो वै राजामुष्मिंशतुहं श. | देवा वा असुरैः aa?) यन्नो वै देवेभ्यः ge) eh aad, सौर्या वे, इन्द्रो ठै, वैप्रवदेवं शंसति, दइतिनुदण॥३†॥

इति तुतोधपञ्चिका qatar

कक es meen om oe A ROR 17 1१ "य

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Wee भाः २१९१० टीष्मनीं zea |

| रोतरेयत्राद्मणम्‌

© ^. अथ चतुघपसिका (५२) BAROHTATT WH: Aas: tl

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दवा प्रथमेनाङ्कन्द्राय ast मम- uted दितीवेनत्क्ामि्वस्तुतीयेनाङ्वा प्रायच्छत qaqa ऽन्‌ Weta तश्ाञ्वतुर्धं ऽहन्‌ घोकशिनं भंसतिं वजो शाण यत्‌ पोको तयाच्चतुयःऽन्‌ distr शंसति aa मेव aa इरति दहिषते श्रतिनव्यायं अतं धो. स्त्यस्य स्तन्तव AsqT तौकभी पशव उकयानि तं परस्ताद्‌ कघानां पयश्च ति तं यन्परम्तादटक्यानां wre गमि व्ये aig तत्‌ पोक्णिना und प्ररि गच्छति तस्मा त्मशवो eas Urethra प्ररिगिता मनुष्यानभ्यु aaa तस्माटश्दो दा पुरुषो वा atat wait वा परिगत एत्र खय WHA ऽत एव वाचाभिपिदध उपावर्तत बज मेव tintnd पश्यन्वच्छंणेव घोर गिना परिगतो वश्व वलो वाक्‌ reel

२४६९ एेतरेयत्राह्मणम्‌ |

वदाः किं षोकथिनः षोकुशिल् मिति षोक्श , arama, Wan शखरा पषोरुशमिरच wea Warf: कीति' Waa निविदं दधाति तत्‌ षोकूभिनः षोडभित्व' 2 वा अच्चरे afafiaa पोढभिनोऽनुष्टम मभिसम्पन्तस्य वाचौ वात्र तौ सनौ सल्यानुते वाव ते waa सद्यं मेन नृतं डिनम्ति एवं वेद १॥ मंखयेष्टोनां वाग्यमसविजां यागा टेवोरेषिकानां विशेषाः | dala स्तोतेशस्वप्रक्रसिः were: गस्िणां Fra | न्धातिष्टोमभेद उक्यः समापितः, ar षोड्मी उक्ते ; “eat वं प्रयमेनाङ्कद्राय aa सभ- wea इितोयेनाङ्नामितस्वृतौवेनाङ्का प्रायच्पम्तं apie Wet; aaa Nafaa शंसति" - ईनि} श्रमनिध्रा-

afswi saa विधन्त -.-

मोगषादिमेन्ा्िषः ; खतन्दकनुलाद्‌ : am पयमनुषट ia Tear Ged नृं सतन्तः क्रतुः! तधा wrearaz पतन्ति-- “a बे षोड नाम यन्नोऽस्ति; aera पोडग ata ~ { "प्रौत्रः ग, 4. ङ, ज, भः, 2

' प्रोभ्य क, ध, इ, } पूव मन्धचा तत्र सवत्र ५5.

"प्रिटोनीनव्यादिरस्या मस्थाविरप्र-" क, च, ङ|

iS. “खतः mara” Tht पाठी मदटटसवैपुनतोमु ; “नइन पदन च्यते क्ाप्णदभ, तदप प्रतपाट; सषौभिः way निरेत्य; |

चतुर्धपद्िका १। २॥ २४७

arent? शस्तं तेन arent दति ( ao सं ६.६.११.१.) | तथा सत्ययं संस्थाविशेषः पृर्मषडहत्तुर्येहनि प्रयुज्यते, भतस्ततेवे- तच्छटंसन विधानम्‌ | देवाः पुरा प्रष्टषड्ह प्रथमेनाह्काः प्रथम- दिवसनिष्याटान सोमप्रयागेण इन्द्राय वज्रं समभरन्‌ सम्परादित- वर्तः| अचर सवत्राहःगन्दोऽङ्का निष्पाद्य सोमप्रयोग सभिधन्ते। aa सम्पादितं वच्च डितोयेन।छ्रा असिञ्चन्‌" सेचनं नाम लोह- मयानां शङ्ककुटादारोनां तोयाय दा्व्याय चाग्नौ प्रताप्य यधो चितं Ae स्थानम्‌ ; तदिदं Bai वजे कतवन्तः कत्वा ठतोयेना्ा ‘A aa fast प्रायच्छन्‌ दक्तवन्तः। चेन्देस्तं ad चतुर्ध इनि गत्रारुपरि प्राहरत्‌ | तम्पराव्पुल्यषड- हस्य चनर्मरप्रमोय (र) पह शिनं et यंसत्‌ | “श्रसावि सोम rae त" -gatiza (He १८४.१२--२०.) पोडश्याशयं TAF | सथा aaa आह -- "अध पोद्ग्धसावि ala cr a डति प्तोलियानुग्पौ'ः इति ( प्रा" ६.२.१,२.)॥

पोडगिगंसनं प्रभं सति -- ध्वजी वा ag यत्‌ qa ; तद्य- aqassa षोरूगिनं शंसति. वज्‌ मैव anette, faua warta- व्याय वधर, Ae Game waa” दनि | पोडगिनो वच. खरूपतवाद्‌ ‘a? पुमान्‌ we यजमानस्य स्तुत्यः, हसनीयः (तश waa नस्य समां वधरेतु वञ्च भव श्राटव्याय प्रहरति

तस्य mam कानः विधत्त - वजो वै पोरभौ पणव उक्थानि; तं परम्तादुक्थानां पथस्य शंलति' इति यथा पूतत्रागिष्टोमप्रयुक्तानां sea waft atfa उक्घ- गस्त्राणि प्रयुक्तानि, तयाच्रायि vara मुक्थगत्राणां परस्तात्‌ उपरि पय॑स षोडशिन wane

९४८ Tatanreree

सक्थानां पश्कूपत्यात्‌ षोडरिनो वचरूपत्वाश्चायं क्रम खावः > ता मेता सुपपत्ति प्रकट्यति-- “a य्परश्तादुकथानां पयस्य शंसति, वख रोब तत्‌ षोरुशिना परशून्‌ परि गच्छर्तिं तस्मान्‌ प्रणयो वनं शैव षोरुशिना परिगता मतुष्यानम्युपावन्नन्ते; तभ्माद्श्ो Wl TAT ar wlat wet वा परिगत एवस्य aaa ‘sa एव षाचाभिषिद् sores, वज, मेव षोफगिनं पश्यन्‌ ae रव atsfuar परिगतो वाग्वि वजो वाक्‌ धोरण" -द्ति। तै eh यदुः waa पमस्तात्‌ पथस्य शंसति, "तस्‌" तेन गंषनन षोष्भिरूपैण वज गौधोशरूपान्‌ TR धरि गन्छनि' afar नियमेन याति। aan लोकःप्यरणय ay: सथ गताः पशवः diatom वजन गव निघ्मितन्बात्‌, wa काने परलु्यान्‌ afer तत्तष्न्टदषु उपायक्तन्ते : अण्या तस्रा- AUTEM MC मेव गच्छेयुः) कोवलं ठणयारणाथ मग्ष्टे TA साये पत्ते पुनरागमनाय Tela नियामितलं, क्षि तदि ortata स्मात्‌ षौड्भिवज्‌निवमितवादश्लु qa ee दौना मन्यतमः we da परप्ररणणा aatiaa परिगतः निय सितः, आसना खय बन्धनाय ace म॒मागन्छति। fay भरत ua प्रोडभिव्जनियसिनलादेव ‘arar wre मारच्छ- स्सादटिनासन अभिविदः' श्रमितो ae: पुरुषो add | यथा शच्च यतो aitae अमीधमान प्रगच्छति, agers Fe: पुरुषः Wa एवारणाकःस्ड वचछति--- "तस्य वाक्‌ तन्तिनामानि दामनि तदश्येदं वाचा aan नाममिर्दामभिः सवं fear’ sla ( २.१ ६.) | याद्धातेग्ागमने gic म्यते, -- षोडशिनं साग्बजरूप मेद पश्चन्‌, defeat वज वैव नियमितो wate, तदा तच |

चतुर्थपश्िका! १।१॥ २४९

aay ; weet aT: मृक्तादिभिनिष्यभ्नल्वात्‌ सय मपि वागूपो भवति, वाचश्च ane लोक प्रसिदम्‌ ; यजादीनां भर्नादौ वजुप्रहरेणेव चित्ते व्यश्रोदयात्‌ | ata सवनियामकल्वात षोष- गिनः प्रगस्तलं सदम्‌ } |

aga परम्त(दुकथानां पयस्य dala’ द्रति. तज्रोक्थगस्ेभ्य उस्तरकाल(तम्यान Ra Naw tfanea faafaa fafa aA. wrinitnae gearfefareaa fava waar waaay war waaanatfeaatdtsfe- wiaa ; {रिति viefascia -- fawa afaga a; तत्रा विदन नामा्ययनक्रमनःर गमनम्‌, fagaa wai uve afarz.; wa waraoaa afina ~ “ag eifaara- qcna तदव wer festa orem व्यवघायारदचशः भसत्‌, faa yariny ueria, maar afgta, पङ्कोनां a? et ad fama amir omit इनि (ate ६.२२ -द्‌. ir ae नरु टालय Mak -- SAT UAT वुनरनुवा हरौ ददप TAT सुकवनमे श्रः मलतः मायौ {स= १,१६.२. ), '"सम॑हशं स्वायं aaa afesiafe, ननं gma, gat याहि वणा अनु गना च्छिन्द a waa” इति (संर १,८२.२. ) 4 ary aways. माःत्दतः | Las ame Area -- "ध्मा धाना TAT, मसंद ला वयं इर) THT वक्ततयो UAT afeglaetat मृरवनम 4 प्र ननं पूणवन्भु :! स्नुनो यारि वेण! way योजा fae & चराम gia नमं प्रकारण विप्र- TA शंसेत्‌ | ~

अश प्रश्रोस्तराभ्धां wef नितक्ि-- “aery: कि

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२५०. : VatqaT way

gafaa: पोकूशित्व मिति won स्लोताशं षौरुग शस्त्राणा, ्रोद्शभिर्तरैरादत्ते षोकशशिः प्रणौति dame निविदं दधाति, तत्‌ Wafer: पोकशिल्म्‌”-दति ) षोड़शिणव्दा ग्र विषं स्तो बविशेषं शस्त विशेषं चाभिधत्ते ४८ तेषा मेकं कम्बरूप- वतां षोडगगब्दवायल मुम्‌ ? तच्छब्दप्रहत्तो निमित्तान्तरं तु प्ण्याम इति ब्रह्मवादिना मभिप्रायः| षोडगशसद्यायुक्षत्वात्‌ घोडभित्व भिव्युत्तरम्‌ तत्र कथ मिति, तदुच्यने —afeeta- dat ज्योतिष्टोमः दादगस्तोस्बोपितः तथा शाखान्तर शयते ---"दादशास्निष्टोमस्य स्तोताणि' —sfa (at ate ६.२.३२.) लद्रभित उक्ष्यमंखस्तिभिः स्तोनंरनिरि च्यते; तस्मात्‌ vae7 स्तोत्राणि भवन्ति। aafia: ater एकन स्तातणाति- रिते; ततः म्तीत्रागां मध्ये ठतत्स्तोत्रप्रदागः घोडगरसद्घ पूरको मवति | तथा TAT मध्यऽप्यतच्छस्तप्रयोगः प्रोड़गमद्ापूरकः | किज्चाभ्मिच्छस्ते होढा मम्पादिताया age: पृव।दगतानि Genre अवस्यति, उन्तराहगतानि Meme. ay ‘uaifa’ प्रणव स्ताग्यति | fay “we az जगतिः" ou दिका पोडणपदोपेता निवित्‌ ( निवि° eee te.) शस्त्र मध्ये प्रसिप्यते। wat बहुधा पोड़शनद्यायोगात्‌ अयं प्रवगः पाड शिनामोपेतः प्रकारान्तरेय घोडगिनं प्रशंसति - “श वा wat श्रतिः faa पोडभिनोपनुष्टुम मभिसम्पस्य वाचो वाव तो सनौ, aad बाव ते"-दति) योऽयं षोडशो, सोऽयं इन्राधिक aad यदा सम्प्राप्तो भवति, तदानीं इं एवाक्षरे fas भवतः

एतत्‌ Fa सं क्रियते we: सत्र WHA दूति Nae आ०८.१.३.४।

चतु्पञ्चिका १।२॥ Rt

vat fe सूतकारः--“विष्टतस्य'”. दतयुपक्रम्य शाखान्तरौया fie जुषखेत्यादिका ऋचः afsqaty ( aro Bo 22.) तस्याः yafaaed पोडगा्तराणि, gat ee अष्टादश; ततो ऽक्षरहयाधिक्यम्‌ | “वाग्‌ वा अनुष्टुप्‌ -इतिखुत्यन्तरेण ( ६, ५.१०. ) तस्या वाचौ ऽनुष्टववगरवत्वात्तदासिकाया वाग्देवतायाः स्तीरूपाया बधिकाक्तररूपौ म्तनीः मम्पदते ;-यरेतत्‌ लोके सत्यवदनम्‌, यच्चाकतवदनम्‌, तदुभय मपि वाचः Marea; अतोऽधिकाल्रायाः wala पत्वम्‌

उक्ाथवेदनं qiufa - ‘yaad सय॑ नेन aga हिनस्ति एवंवेद" दति। ‘od उेदिनारं सत्यवाक्‌ पालयति, सुक्तत।- त्मादकत्वात्‌ ; अरदरतवाकी feafea, दुरितस्यानुद्यात्‌ १॥

द्रति ्ोमव्साममःचायत्रिरचिने माधवोये वेदाथप्रकाये

पितरेयत्राद्मणस्य चतुथर्पश्चिकायां प्रधमाष्यायें ( धौड्भाप्वाये ) प्रथमः खगः १॥

sre {हितीयः ware:

गौरिवीतं caf कुर्वति तेजस्कामो

t १० aw &, ¢ «+ & पि | बह्यवचसकामम्तजा वह्यवचमं गौरिवोतं तेजसौ ब्रह्मवर्चसी wafa एवं विदान्‌ गौ गिवतं षोजूणि- साम कुरूते Mae Tatra ate मिलया

५४१ रेवरेयत्राह्मणम्‌

frat वै हताय वज्‌ मुदवच्छत्त WS ATET मभ्य- Waa wig व्यनदन्त नानदं साभा- भवत्नन्नानदम्य नानदल्व मभाढठन्यं वा एतद्‌ भाढ- व्यहा साम AAT मभरादव्यो भ्रादव्यहा भवति

एवं विहान्नानदं Wafrara कुरुते तदादि aad कुरयुरविदतः षोकभौ weal sfavara हि तासु स्तुवते यदि Miata faga: षोढश शंस्तव्यो sfazaty हि तासु स्तुवते

पोड़भिगस्त' fara षोडशिस्तोतनिष्पादकं सामविभेषं faye. “गोरिवीतं षोकगिसाम gata तजग्कामो ब्रह्मवर्च॑स- कं(भस्तेजो वै ब्रह्मवर्चसं गोरिवौतं तेजस्वी agada भवति aed विहन्‌ गौरिवोतं पषोढशिसाम करुर्‌त'-इति) ओन चिन्भहपिषा मोरिवीतनानरादृष्टलातामापि मौरिवीतनामकम्‌। तत्त "भि प्र मोएतिं गिरा" .-ष्त्यस्था सचि उत्पग्रम्‌# ; सदत पोरुभिम्तोवे साम कुवीत + Fa’ शरोरकास्षिः | श्रष्मवचसं खुताध्ययनमम्मरसिः

aac विधन्तं -- “ard afar कतव्य मित्या frat 3 तृत्राग्र AY TTA, HA प्राहरत्‌,त मभ्यहनत्‌ ; मीऽभिहतो व्यनदद्‌ ; यद्‌ व्यनदत्तत्रानदं सामाभवत्‌, तम्रानदख्य नानदत्वम्‌ ; WAT वा एतद्‌ आाटव्यदहा साम BAT -

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* दऽ श्रा२ 223 ४; Fo मा० ५.१.२५ + ७० भार VLR LHR जन्या०्२.६१ 5 Mle Hho १२, We |

चतुथपञ्चिक्षा। १।२॥ ९५४

दति! भानदाख्य' किचित्‌ साम ; तत्त्‌, “amet पिपौषते- इत्यस्या खचि उत्पन्नम्‌, तदेतत्साम षोडशिस्तो बग aay fare afacre:t तस्य नानदतं कथ मिति, तदुद्यते--वजप्रहारे णा- भिहतो हतौ "व्यनदत्‌ तरिशिष्ट मुचैष्वनिं नादं क्तवान्‌ ध्वनिर्नानदसामाक्रारेण aaa) ततो नादोत्वत्रल्ानानद fafa ara) aaa अाठन्यरडतम्‌ ;-- सत्यरिगोलनवन्तः सर्वेऽपि HM मेव प्रतिपयम्नं, नतु कथिदपि tani किञ्चे तवाम “्राठव्यद्ा' ya विद्यमानस्य शतोर्घातकम्‌ |

वेदनं प्रगंसति--- natant wang भवति एवं विदात्रानदं dighrara कुरुतः-दति। गारिवौतं नानदंवा सानत्यतं Gay मम्पच्म्‌ ४॥ |

sai uaa शस्त्र विेषव्यवस्धां विधत्त -- “तद्यदि नानदं gicfasa: Mast deat sfawarg fe तामु सुवते ; यदि नौरिवौतं fren: Creat शंस्तव्या faware fe are सुवते - दूति ufazasa: परस्परव्यतिषक्ररडितो थाधौतपाठः; साऽय areas क्तव्यः यतः मामगा अपि श्रविहुतामुः व्यतिषङ्गरहितास्‌ नानदसान्ना yaa, तम््ादविदुतत्व मेवात Raq, CAM वाव स्तो मेव शस्तुम्‌ " -दतिन्यायात्‌ | गोरि बौतपन्न Wed मपि uTaaafany विद्धृतं पटनोयम्‌ ;

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{ “Marga उपोदितिनास कापरनाचः द्रति Ale Ale १२. १३.११.६० Ml? | $ देशभेदेन चानयोन्यशस्येयपि wigan (नान त्रा १२.१९.११. THe Wot

2५४ ` ैतरेवग्राह्मणम्‌

सामगैः “fagarg -्यतिपक्ञाखश्च॒गौरिवीतसाला स्तूय- मानलात्‌ २॥ इति खोमल्षायणाचा्यं विरचिते माधवोये शिदार्धप्रकाशे एेतरयत्राह्मणख चतुथपञ्चिकायां प्रधमाध्याच ( षोड़शाध्याये ) दितोयः खण्डः

1, 7 1

अथ ठतोयः खण्डः

अथातग्न्दां स्येव व्यतिषजलत्यां त्वा वहन्तु हरय ' उप्रोषु शृणुहो गिर इति गायीश्च wey व्यतिष- लति गायतो तै uaa: og: प्रणवः! परुष मेव तल्पशुभिय्रतिषजति ung प्रतिष्ठापयति! यदु गायची पङ्किश्चं तैद अनुष्टभौ 'तेनो वाचोरूपा दनुष्टभोरूप्राद जुषपान्नति यदिन्द्र पुतनाज्य saad Wy ख्यत इव्यष्णिष्श्चे बहतोश्च व्यतिषजल्यौष्छिहो FAA AVA: पशवः पुष मेव तत्पशमिव्यति षजति' पशुषु प्रतिष्ठाप्रयति यदष्णिक्‌ बहती ते दे भनष्टभो तेनो वाचोरूपादनष्टभोूपादजष्‌ Waal wae ayalt agate जुषाण दति feet fae व्यतिषजति feos पुरुषो Ha भिष्टु्यस्ष मेव adda व्यतिषजति ‘A

चतुर्थपश्चिका १।२॥ ३५१४

प्रतिष्ठापयति तस्मात्युरुषो वीये प्रतिष्ठितः सर्वेषां पश्युनां वीर्ववत्तमो यद्‌ दिपदा विंशल्यल्षरा fare चते हे अनुष्टभौ तनो वाचोष्पादनुष्टभो द्पादजङ्पान्नेल्येष वृह्य प्र ते az विदधे शंसिषं हरी इति दिपदाश्च जगतीश्च व्यतिषजति feae पुरुषो जागताः पशवः प्रुष मेक तव्पशभिनयति- wafa पशुषु प्रतिष्ठापयति तस्मात्पुरुषः पशुपु प्रतिष्ठितो ऽति चैनानधि तिष्ठति arate az दिप्रदा aWaman जगती sae अनुष्टभौ तेनो वाचोद्पादनुष्टमोष््पादनुरूपान्नैति fray. केषु महिषो यवाभिरं saw पुरो रग्र faafaw- wa: शंसति छन्दसां वै यो गसो ऽलच्तग्त्धोऽतिच्छ- न्दम मभ्यत्यचरसदतिच्छन्दसो ऽतच्छन्दस्त्व' सर्वेभ्यो वा ठषच्छन्टोभ्यः सच्चितो यत्‌ ated aa- दतिच्छन्दसः शंसति aaa पवैनं तच्छन्दोभ्यः afafamla सर्वभ्यग्कन्दोग्य; सच्चिमितेन षोक्- शिना राप्रौति aod बद्‌ ॥३॥

अथ विदरणप्रकारं fawa—- “anweataa व्यतिष-

जतिः; a at वदन्तु wea, उपो षु weet गिर गति गायत्री पङ्को व्यतिषजति ; गायत्रो पै पुरषः, पाका; पशव; पेष भष

२५९ रेतरेयनाद्मशम्‌

` तत्परषभिव्यतिषजति, way प्रतिष्ठापयति यदु गायजौ पद्धिम्ब, मैदे भ्रतुटभो, तेनो बाचोरूपादन्‌टुभोरूपादजुरूपावरैति"-इति अथः सामहयविधानानन्तरम्‌, “say गोरिव तपरे विद्तस्यापे- सितव्वात्‌, agua sfa wo) खखस्थानाहिभनज्यान्यत्र नयनं ANTI तच समानच्छन्दस्कयोरेव भवति, तदृव्याहन्ययं मृष्यतं-- छन्दस्येव व्यतिषजति'-दइति। परस्पमरविलक्षणानि axiua व्यतिधिक्तानि छुयुरिति। तत्र कस्य छन्दसः केन छन्दसा महे व्यतिषङ्ग इति, तदेनदुदाद्ररणपूदकं प्रदश्यते-- रत्वा वहन्तु "--दत्यादिकास्तिस्न Wa: ( सं° १. १६. 2-3, ) भावत्रोच्छन्दस्कताः ; “Cal घु" दति (do १,८२.१. ), “सुस. न्टणम्‌ "दरति (६०१.८२.२,४.); एतास्तिस्रः afgeagaren: ; ता उभयोः urat व्यतिषजन्मिखदरत्‌ | गायत्राः wade qa गैन सह पर्कः प्रथमपाद मुखारयेत्‌ ¦ सोऽयं प्रकारो. ऽस्माभिः पूवं भेवोदाह्नः (२४९ पर" )। लोक पुरुषो गायत्रः, उपनोतन गायत्रा अनुडयल्वात्‌, "पशवश्च urs चतुर्भिः पादैः मुखेन पञ्चमं पेलल्लात्‌ aa गायत्रो मेलनेन पुरुषस्य पशूनां मेलनं भवति wa: पुरषं ugg प्रतिष्ठापयति fa लद्रूपैव कारेन maa पद्ध मिलितं aaa दं WA AMAT; maaan, पङ्कषघ पश्चपादल्याष्‌, fafaarerat पादानां विद्यमानलात्‌ | ‘aay समैव Faia कारशेनायं पुरुषो वाग्रुपादनुषटब्रूपाहच्रूपाचच नंति" कदाचि दपि विगुक्तो भवति। भरस्रस्यास्षरामकत्वेन वाग्रुपलम्‌, WE पादमम्परत्त(वनुष्टुबहयरूपत्वम्‌, षोडशिनः पश्वादिनियामकलेन वजूरूपतम्‌ ; मतो नास्ति तिविधविवोमम्‌॥ `

चतुर्थपश्चिक।! | १।३२॥ .. १४५७

ढन्ोस्तर्योरविंषरणं विधत्ते -- “afer एतनाश्छ, ध्यं सै wy waa इन्युणणिडश्च cesta व्यतिषजत्पौषमिषो वै परुषो area: पशवः, gaa मेव तत्‌ पशभिर्व्वतिषजति, पशु प्रति्ठा- पयति ; यदुख्णिक्‌ चहहतौ a अनुद्रभो, मैनो वान्रोरूपाः दनुख्भोरूपादजरूप्रा्रैति' इति) यदिन्द्र -द्यादिकास्सिख उश्शिकृष्टन्दस्का चः (Hos ez RY RS), "भये भसु -- दत्यादिकास्तिसा एत) च्छन्दस््ाः ( do १.४४.१-द्‌. ); उप नीतः पुसषो व्याश्त्क्षरचतुष्टध)पेतां चतुविगवत्यक्तरां गायनौ व्यतिबजति, उशिक्‌ चाटाविंगरत्यघ्रा , ततः पुरुषस्यीश्णिष्त्वं पशूनां चाद्धतत्वम्‌ meat सुतम्‌ -- “seifa पश्ष्वाजि मगुस्तान्‌ हष्रव्यदजयत्‌ ; नस्त्राता; पशय उ्यन्त'"- ति (त० म॑, ५३.२.३. ) | सदत षट्‌तिंशदक्तरा, तस्या sfa- स्यार मानि CATH ALA TATA

छन्दान्तरवोवि्नरणं विधतं . - “न्रा eee, व्रह्मन्वौर तद्य कति जपाण इति हदिपदां faced व्यतिषजति; feared gaat वायं farwey aa रीण व्यतिषजति, ata प्रतिष्ठाप- घलि; तम््ात्यरषपो बोधं afaisa. aaat पशूनां वीयवन्तमो यद्‌ feqer विल्यक्तरा ल्ष्टिप्‌ च, नदे श्रनुष्टभो, तेनो वःचोरुपादनुष्टभोरूपाद्रवरुपः द्रति इति "रा पृष्व waar (सं, ०२४.४. ) पाददय्रोपरता. व्रह्मन्‌ ate” इत्येषा ldo ७,२९.२. ) विग्पृङ्ृन्दस्का ; पृरुषन्य इिपादलं प्रसिचम्‌, तिष्टुमो वाोग्यंहेत॒लादार्य्यतवग ; नम्मादुमवथमननन पुरणं वोर प्रतिष्ठापयति | तस्मत्‌ लोकेऽपि aaat हिपदां चतुष्यदानां पयनां मध्ये yeaa शङ्याधिन्यान्‌ year वौय्ं प्रतिष्ठितः |

9२

३१८ रैतरेय व्राद्मणम्‌

ददिपदा चैयं विं शत्यक्तरा ; qerat प्रथमे पादै संयुश्चाश्षरयोविंभा- गेन पञ्चाक्षरले सति दशसद्यापूत्तः। एवं wereat स्तिष्टमथ- तुणां पादानां सन्धानम्‌ faeq qarfinewa मिलित्वा चतुष्परटिसम्पत्यानुष्टबहयं सम्भवति |

कन्दो तरयो विहरणं विधत -- “एष ब्रह्म, प्र ते महे face शंसिषं हरो इति दिपदाष जगतो व्यतिषजति; feore पुरषो जागताः पशवः, Far मव तत्पशभिर््यतिषजति, agg प्रतिष्टाप- यति ; तस्मात्‌ पुरुषः ogy प्रतिठितो ऽत्ति चनानि तिति वे चास्य; यदु दहिपदा षोडश्ाक्तरा जगतो च, तै दं अनुष्टभौ, तेनो वाचेारूपादनुष्टुभोरूपादव्रूपाव्रेति? इति ! “एष ब्रह्म ` - एत्यादिकाम्तिसखरो दिपदाः, "प्रते मद इन्रादिकास्िसलो ana: (de १०.९६.१२. ) ; पशनां जागतव्वं शाखान्तरे सोमाद्गरण- कथायां waa - “सा पकूभिष्च cham चागन्छत्‌ ; तस्राज्ञ- गतौोनछन्दमां पशव्यतमा"-दति (Fo a ६.१.२.२, ) ! यस्मात्‌ मलनन पुरुषं पशष प्रतिष्ठापयति, तस्मादयं पुरुषः पश्र प्रति. डितः, तस्मिन्‌ क्ोरादिक मति चु "एनान्‌" पशून्‌ “अधितिष्ठति नियसग्रति ; तस्मात्‌ “wer पुरुषस्य at सते परश्वो ae | ‘az यस्मादेव कारणादियं हिपदा षोडगास्षरा, जगतौ चाष्ट. चतवारि ग्रदत्तरा, ततो मिलित्वा चतुष्ष्टिलादनु्टबदयम्‌

छन्द्‌।न्तरसंयुकताः काञशि्टचो विधन्तं --- “faagay afeat यषाजिरं प्रो ष्ये पुरो रथ भित्यतिच्छन्द्सः शंसति; छन्दसां षै यो रसो ऽव्यक्षरस्सो-तिच्छन्दस मभ्यत्यक्षरत्तदतिच्छन्दसो ऽनि- eT, सर्वेभ्यो वा एष्र छन्दोभ्यः सन्निमितो यत्‌ षोढशी, तदति eee: शति सर्वेभ्य एवैनं तद्छन्दोभ्यः सजि मोते" -

चतुर्थपञ्चिका १। 8 ९४४

षति। “व्रिकदुकेषु"-द्तिठतचे यास्तिस्रः ( to २.३२.१- श.) waa भधतिच्छन्दोयुक्लाः, तथा “प्रो ष्वस्मै" इति ( do १०. ११३.१-२. ) ठचोऽपि; ता उभयोः शसेत्‌। ‘Swat’ maar- दौनां यो रसः" सारः -अत्यक्षरत्‌ भतिशयेनाखवत्‌, तदानीं श्लोऽतिच्छन्दस मभिलश्या तिशयेनाखरवत्‌। ‘aay’ तस्माच्छ ग्दोरस- स्यातिगयेन सवणादतिन्छन्दस्व' नाम सम्यद्रम्‌ पोडशी चोक्तप्रकारण मवेभ्यः छन्दोभ्यः मम्यक्‌ निर्भितः; wane अतिच्छन्दसा ' शंसनेनायं होता "एने यजमानं घर्वच्छन्दोम्थो निश्विमीतं वदनं प्रगंमति--- "सर्वेभ्यम्डन्टोम्यः सतरिर्धितत सोरशिना रक्नोतिय णवं वेद" इति nay द्रति योमलायणाचायंविरचिते माधवौये वेदारथप्रकाओे एेतरेयत्राह्मणस्य चतुधपद्धिकायां प्रथमाध्याये ( षोडशाध्याये ) ठतोयः खण्डः २॥

[मी सि ३1

सथ चतुथः खण्डः

aaa मुपसर्गानुप्र्जल्ययं वे लोकः प्रथमा मष्टानानन्रिच्चलोको हितीवासी लोक qatar wit वा एष लोकेभ्यः सत्निर्मिलो यत्‌ Tam तद्यन््हानाख्लौना मपसर्गानुप रणति सर्वेभ्य एवैनं ama: सत्रिर्मिमौते सर्वेभ्यो लोकेभ्यः afafaaa षोडशिना राप्नोति एवं

२६० रेतरैयत्राद्मणम्‌

uu afeeu मिष मचत प्राच॑त योव्यतींरफाण- यदिति परन्नाता अनष्टभमः शंसति। तद्यण्ह चेष्ट चापथन चरित्वा पन्यानं पयंषेयात्तारक्तदाष्मन्नाता अनुष्टभः शंसति सयो व्याप्तो गतश्रीरिव मन्येत।- वित षोक्ूशिनं शंसथेग्नेच्छन्दसां क्रच्छादवपद्या इव्यय यः पाप्मान ay जिघांसुः" स्यादिष्टतं षोज्छ- शिनं शंसयेद्‌ व्यतिषक्ता इव पै युरुषः पाप्मना व्यतिषक्त aara तत्पाप्रान' waa ages Wald हते ud वेदोदद्‌ aye विष्टप faan- मया परि दधाति eat तैलोको ave विष्टपं स्वग मेव awa यजमानः गमयलत्यपा पूव॑षां हरिवः सुताना fafa यजति सर्वेभ्यो वा oy सवनेभ्यः सच्निमितो यत्‌ Wat ae: glut vita: सुताना मिति. यजति dase मरातस्सवनम प्रातस्सवनादनेनः तत्मग्निभिमीते ऽयो इदं स्वनं कैवलं. इति माध्यन्दिनि" वै सवन' केवलं माध्य- न्दिनादबेन' तत्स वनात्न्निर्भिमीते' ममडि सोमं मधुमन्त मिन्द्रेति मदघं ततौयस्वन" ततीयसव- न(दवन aatafama सवा वरषञ्चटर a हष , स्मेति quad wafer रपर 'सर्वभ्यो वा एष सव-

चतुधपश्चिका १।४, , १६१

aaa: सम्निर्मितो यत्‌ षोकशो तद्यादपाः पूर्वेषां इरिवः सुताना मिति यडति' सर्वभय एवैनं तत्छव- aaa: afafama aie: सउनेभ्यः सन्निर्भितेन सोकूशिना राघ्रोति एवं उद्‌ महानाम्नीनां पञ्चा- च्रानुपसर्गानुपरूजल्य HTH ACY पादेषु Wawa वा एष ower: सन्निमितो यत्‌ घोरूभौ तदयन्महानाम्नौनां VOT ATI ZINTA RITATSTY पादेषु सम्य एनः तच्छन्दोभ्य; सन्नि्मिमीत' स्दभ्यण्छन्दोभ्यः सन्निजितेन Watwat राघ्रोति एवं वद्‌ ४॥

सथ पूर्वाक्ञाना मलिल्लन्द्सा मनुष्टपूमम्मादनाय मेलनं विधत्त —. -वमदधानासोना सुपम्गानुपशूजति -इनि। “विदा मचः वन्‌"-दत्यस्ि तरनुवाके प्राकता कचो मानाच (WT ४.१. १-९.) ; तामां सम्बख्धिन उएमर्गाः पञ्चविधाः चाश्वलायनेन efaar - न्प्र चेतन, प्र aan, यादि पित्र मल्ल, क्रतुग्डग्द प्रतं श्रत्‌, सुज wife नो वमतित्यनृषुप्‌ - दूति (यी ०६.२.९.)। aw a चेतनेत्यकः प्रथम उपरमनेः. `प्र चतयेति featu: ; arg आवपि दितोयस्य महानना मामा भा atte पिव मत्खेति ठतोय उपमर्गस्त॒तौयस्यां महानासा मान्नातः | "क्रतु- see ऋतं हद्टदित्ययं चल SINT: ; TET! महानाना area: | सुख ar afe मो वमविति पञ्चम उपसगे ; ब्र

९१२ . रेतरेयव्राद्मष्मम्‌ `

चाष्टम्यां aera area: | way पञ्चसुपरोषुभ्मिलिला हातिंशदक्तरद्भावादिय भेकानुश्ुबिति qaart: | शयं चानु- ववि्तपोडगिनि तथैव पठनौया, were तु विद्तपोडथिनि पश्चाप्युपसर्गान्विभज्यातिच्छन्दःसु पञ्चसु योजनोयाः भ्रतएवो- पष्टज्यमानत्वादुपसा इत्युच्यन्ते | तदेतत्संयोजन मत्र (उपषर्जतिः -ष्ति wea विधौयते। “तरिकहुकेष*- दति येयं प्रथमा अति. WHR, तस्याचतुष्षष्टयक्षरत्वात्‌ परानपेक्णेव अनुष्टव्य- सम्प्रति; शक्येति दितौयस्या खचि acqeqed पूरयितुं भ्र चेतन-षत्यत्तर चतुष्टयं योजनोयम्‌, ठतोयस्या afa प्र चेलया'- इति योजनोयम्‌ “प्रो ष्व" इत्यादिषु तिसृषु श्रवशिष्टास्तय उपसर्गाः क्रमेण AAA A सोऽयं प्रकार WaT ada ‘ar aqua सतिच्छन्दःसखवधाय हितोयदतौययोः पादयोरव- wad उपदध्यात्‌ ;-~-प्र चेतनेति Gram, प्र चेतयेव्युत्तरस्याम्‌, उतच्तराखितरान्‌ पादान्‌ Tay क्षलानुष्टुप्‌कारं शंसत“ -श्ति ( ओओ” ६.२.११.१२. )॥

अथ महानासौः प्रथंसति-- “अयं वै लोकाः प्रथमा महा नाश्नान्तरिक्षलोको हितौयासौ लोकस्ततौया ; स्वेभ्यो वा एष लोकेभ्यः सव्रिभितो यत्‌ wad तद्यम्महानास्नोना सुपसर्गानु- प्र्टजति ; सर्वेभ्य wad तज्लोकेभ्यः afafaata’—sfa i प्रथम afar लोकतयरूपत्य' ठचां gear, षोडशिनो लोकते fafaaary | wearer मुपसर्गेः संयोजने सति afar सिध्यति॥

वेदने प्र्ंसति-- “सर्वेभ्यो लोकेभ्यः सज्निभ्ितेन पोडभिना wife एवं वेद"-ष्ति।

चतु्ेप्धिक्षा १।४॥ २६६३

भ्रद्,विदुरणनेरपेश्येणाध्यापकैः प्रन्नाताः नवारुष्टुभो निधकर --भ्र. भ्र वस्िष्टुम मिष ada ora, यो ग्बतौ"रफाणः यदिति प्रन्नाता अनुष्टुभः शंसनि'"-दति। प्रप्र वः" -दइेक- QU प्रथमः ( Ho ८.६९.१ ३.), “waa”. इति हिनौयः ( ८,१९.८-१०.), “यो gata’ -इति ठतोधः (Mot ce, १९१५) | यथा लोके कथिन्मागानभिन्नः तत्र तत केनविदपयेन चरि पयादन्धमुखेन विभ्राय समौचोनं पन्थानं परिगच्छत्‌, एव सन्रापि पूर्वोकरोत्या छचिमा अनुष्टुभः weal पथादेतासां स्वतः सिहाना मनुष्टुभां Wad द्रष्टव्यम्‌

yaa सामविश्रष मुपजोव्य विदताविद्कतयोः गस्तरविशेषयवो ae दिता; cert पुरुषविररष quate ai व्यवस्थां दग - afa-— “a at aiat nastics मन्येताविद्ुत षोरूगिनं भ॑स- येते -कन्द्सां BRETT Te यः ara मप भासः स्य(दिद्ृतं Wari गंभयेद्‌ ; व्यिषक्त £4 4 पुरुष; पामना व्यलिषक्त Fara तत्‌ पामानं waa मपङन्तिः-ब्ति। सः, लोकप्रसिदः, यः परुषः पुलपाजादिभिः anit गतस्रोरिवः प्राप्त खोवत्‌ सश्हघन्‌ vary fafa मन्यत, पुमान्‌ भविष्ते faw- रणर दितं षोडशिनं ‘ata’ अविद्ते ver होतारं प्ररयेत्‌। तस्य काऽभिप्राय इति, उ्यत---'कन्दतां कच्छरात्‌' gate गायं्ाद्‌ौनां विद्धरणक्तमात्‌ वपः अवपत्तिं पदं प्राद्र यात्‌ तस्मा भूदिति। विदरगाप्रयुक्तभातिद्योतनार्था 'नत्‌'-दति गब्टः। अथ यः पुमन्‌ yauatifeaed ‘arama’ अप जिघांसुः भपहन्तु मिच्छन्‌ स्यात्‌, पुमान्‌ विद्म शस erate मरेगयेत्‌ wa पुरुषो दरिद्रया दिङ्पेग् चानः "ऋतित्रक्न शवर षैः

, ५६8 Qataarerey

fafa एव तस्मात्‌ विद्रतप्रयोगेण पापरूपं शमलं माचिन्ध- eq ‘alana’ दारिद्रयादिसम्बन्ध मपडहन्ति॥ वेदनं प्र्॑सति-- “प्र arated wat a एवं बेद-इईति |

wa शस्नत्तमापनोयां afeed विधत्ते -- “wae awe विष्टप भिलुत्तमथा परि दधाति; स्वर्गो वै लोको awa विष्टपं, खग भेव awa यजमानं गमयति" इति भस्था-ख्चि “ae विष्टपम्‌"'-दति (We ८. ६८. 9. ) युयते,-- भादित्यो ‘aw- ware: ; “रसौ वा भ्रादिल्यो त्रप्नः"-दइति श्रुत्यन्तरात्‌ ( तै” सं° ५.२.३.५. ) ; तस्य "विटपं खानं खगलोकः ¦; अतस्तत्पा- 3a यजमानं wa प्रापयति

शम्तयाज्यां पिधत्ते-- “oor: gaat इरिवः सुताना सिति यजति" इति हरिवः" दे इद्र! षोडगिनः पूवेषां सुतानां" सोमानां, wa मिति शेषः; “aor पोतवानमोति प्रधमपाद- स्यायः (Wo १०.८६.१३.) मिमं पादं प्रग॑ंसति -- "सनभ्यो वा एष ayaa afafaat यत्‌ Want, तद्यदणाः पूर्वषां रिवः सुताना fafa यजति, पोतवहे प्रातस्सवनं ; प्रातस्घवना- रेषेनं नस्न्निभिमोते इति यः aren) विद्यते, एष सवभ्यः भयनेभ्यः सम्यक्‌ निमित cag सम्पादनोयम्‌। तथा सति यद्यपाः gaat मिति पादं पठेत्‌, तदानों तत प्रातस्सवनं "पौततत्‌' इन्द्रेण पोत Ried म्रः प्रतीयते ; aaa ‘aa’ षोडभिनं प्रात- स्सवनादेष निभितवान्‌ भवति

तस्या ऋचो दितौयपांद aay व्याचष्ट--“श्रधो इदं सवनं कैवलं a ufa, माध्यन्दिनं रै सवनं केवलं, माष्यन्दिनादवैनं aa a- नाल्सन्निरभिंमोते ' -इति } ay aia ae sa: इट" माध्य.

खतुर्धपश्िकोा १।४॥ १९१४

+ न्दिने सवनं "ते Fad’ तवैव सवम्‌ पसन्‌ पाटे केवलं सवन मधीन््रस्येत्येतदुपपन्रम्‌ ; tea पुरो हारं ठता माहेन्द्रं ग्रं माध्यन्दिनं सवनानां निक्त वलधादीनां खां मेव क्रततात्‌, भव दतत्परादपाडेन माष्यन्दिनिसवनात्‌ deat निमिंतो भवति

ठतोयपाद waa व्याचष्टे -- "समदि सोमं मधुमन्त मिन्दरेति ; मदद @alaaad, लतौयमवनादेवनं तत्षनििमीतः'-इ्ति। शे इन्द्र! ‘ayaa’ माघुशरमोपेतं did diet ‘aufe’ मदं इषं प्राप्रुहि। अस्मिन्‌ ue भदिषालयः श्रुयते, देतीयसवम सपि wee मदिधातुपेलम्‌ ; निविन्परेषु + मदिधातोविदमानल्वात्‌ तस्मादेतत्यादपाठन पषण ठतीयसवना्िश्वितो भवति

qa पाद मनुच्य व्याच "मतरा हषस््रठर भ्रा ठषसेति ठष- we पोकूगिनो रूपं, aaa वा रय aaa: afafarat यत्‌ Watt; aden: gaat हरिवः म॒ताना मिति यजति, सर्वेभ्य एवैनं ततस वनेभ्यः afafaata '-इति ! डे aad वषग्समथ ! ‘ear’ MAMET सते “HSV wata उदर शश्राहवख'समन्तात्‌ सोम- रसं कुसं ! श्रत aqua ` एषन्‌ -गब्दो विद्यत, atefa- स्वरूप मपि ‘aura वपणोपनम्‌ ; शसिदेतुत्वात्‌ यः atest fant, मोऽय aa प्रकारण मव्य; watt fe निमित, लस्प्रादपाः पूषा fafa mana सर्वमवनेभ्य एवैनं निमित वान्‌ भवति वेदन प्रणमति -- "सर्वभ्यः सवनेभ्यः सत्निश्धितेन मोूशिना राधौतिय एव ae" इति|

सस्या याज्याया; प्रादरषु पूववदुपतर्गान्‌ विधत्ते “Ay मास्मीनां पञ्चाक्षगलुपसर्गामुपणटजव्येकाद गात्रेषु पादेषु ; स्वभ्या

ere ce ow! Staal aE Mel

# “ge ae’—suiiaq ( नि Cd t-te.)

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२६९ रेतरेयव्राद्णम्‌ `

वारव sere afafaat यत्‌ षोरुशी ; वद्यहानासीजना पश्चाचरानुपषगालुपख्जवयेकादणाश्रेषु पादेष, सर्वेभ्य एवैनं तच्छ, न्दोभ्यः सभिमिमोतेः"-इति। मष्टानासनीना . wat सम्बस्धिन- स्तदोयानुवाके समामनाताः “एवा शयेवा?-ए्यादयः Taree उपमर्गाः ( Wo ४.१.१०-१५. ) तानेकादशान्तरेष चतुष्वपि ` प्रारेषु संयोजयेत्‌ ; तथा सति चनतुष्षद्यय सरलादनु्टबहयं aad | वं सति a: षोडशी सर्वेभ्यः छन्दोभ्यो निर्मातन्यः सोऽय मेतकंयोजनेन तथेव निर्मितो भवति॥ वेदनं प्रशंसति-- “dupa, सत्रिर्मितेन षोडशिना राचौति at वेद-इति #॥ ४॥ शति ग्रौमतायण।चायैविरचिते माधवोये बेदार्थप्रकाशे रेतरेयन्राह्मगस्य चतुधपञ्िकायां प्रथमाध्याये ( षौडगाध्याये ) चतुर्थः खण्ड;

bane wee =

अध पञ्चमः खण्ड; i

aed Sat Waa रात्री मसुरास्ते समावदोयां एवासन्र Alaa सोऽत्रवोटिन्द्रः wate चमानितो

= ~~ = ~ णी पाका)

४५

पोषुभिसं स्ख sifadiag बविशेषरविधय cay प्रथमादिचतुःखण्डषु विहिताः, एम्बोऽन्प ऽग्ि्ीमवत्‌ ; २४१ go # द्रष्टव्यम्‌! भाष्रलायरेन(पि "अथ asa? sera “मच जपः '-गयन्तेम qa (६.२, १.) तेवीकः। “ashen वौ्यकामः"-द्ति चा" स्भ्बःयवितिसूचम्‌ ( 1१,१.२. )।

चतेधर्ख्िका १।५॥ x49

SAUa Wal मन्वैष्याव sia a Zag oe: विन्ददबिभयुराजेसमसो,सलयो सस्मादाष्येतर्हि नक्ष arama सिवेवापाक्रम्य मिमेति तम ga fe

lladafta a कन्दांस्येषान्ववायंम्त' यच्छन्टा- waar तश्मादिन्द्रश्चेव छन्दांसि nal बदस्ति निविच्छग्यसे aires धाय्या नान्या दैवे. aq येव कन्दांसि wet वहन्ति ava पयि. र्व पर्याय agen यत्‌ पर्ययः पर्याय awe तत्पर्यायागां पर्यायत्वं तान्तं प्रथमेनेत्र पर्यायेण पू्वरानादनुट्न्त मध्यमेन मध्यराज्रादुत्तसेनापर- बाचाद्पिशर्व॑यां अनु खसोत्यवन्नपिगवरानि सलु वा एतानि छन्टांसोति स्प्ाङेतानि Ae राचस्त.

मसो भ्रलोविभ्यत सल्यपागयंसदपिशवदराणा मि शवैरत्वम्‌

षोड़णो समसः, त्रथातिगतो वक्षब्यः; aaa wa प्राधान्यं कघयितु सितिदास माद्‌ -- "अश्वं देवा wager रातौ AAU समावदोर्या एवासनचर व्यावर्तन्त, मोध्व्रव्रीदिष््र ward चेमनिनो असुरान्‌ रातो मन्ववव्यायद्रति; a sag प्रयविन्द्दविमयृरातम्तममो मतसो म्तस्मादाप्येतदधि नक्रं याक्कात्र मभित्ेवापक्रम्य बिमेति; तम इय हि ufaaaqifca’-<fa & "विभिः गी

४९८ एैतरेयब्रा हमण्यम्‌

पुरा कदाचिदहोरावयोमेध्ये रेवा भररेवाचितवन्तः, were राजि मायितवन्तः; ते' देवाच भ्रसुराश्च समानवला एवासम्‌ ; वसाधिश्चेन वगान्तराद्‌ eran मितरव्गसानं गाप्रवन्‌ | तदानीं cal देवान्‌ प्रत्व्रवोत्‌ः-मम सषायोऽपैक्तितः, हे ठेका; ! भवतां मध्ये कथाह मान्‌ श्रसुरान्‌ रात्रौ मनुगतान्‌ शतः" राश्रा भरवेष्यावः' भ्रपसारयिष्यावः इति ततो frat a eat देवेषु मध्ये तादृशं शूरं मपि प्रतीच्य 'नाविग्दत्‌' म्‌. लब्धवान्‌ | रातेः सम्बन्धि gaat wqraeua, तस्पमात्तमसो खत्योरिव ad देवाः श्रविभयुः' dat अभवन्‌ यस्मारेवानां भौतिस्तस्मादिदानौमपि “यावन्मात्र भिकैव' यक्किचिद्पि वा दूरं रातौ wero सर्वपुरुपो (faafa’) विभेति ; (नम दव fe’ तमोरूपैव रात्रिस्तस्मात्‌ सतु्ररिव भयहेतुः |

wa gear मिन्दसदकारित्वं दभयति-- "तवै छन्दांस्ये- TTI यच्छन्दांस्येवान्बवायस्तस्मादिन्द्र वैव छन्द) श्वि रातीं वदत्ति ; निविच्छस्यते, girs, धाय्या, नान्या Zakery wa छन्दांसि रात्रीं वन्ति" -दइति | ननं 2 अरमृरमिराकर- णाय प्रतं Rae मेकं मायत्रादिच्छन्दोस्यव “waaay भ्रगुगभ्य निराकनतु"गताः ; यस्मादेवं लस्पमादिन्द्रच्छन्दांस्मेवाङ्कतया अ्रतिरातप्रयोगे ‘wat वदन्तिः राविप्रयोगस्य निर्वाडकाणि भवन्ति | इद्द्रविषयच्छन्दास्येव तवर शस्यन्ते, तु निविदा पुरौ. wat ara वा देवतान्तरं वा किशिष्छस्यते; aarfee: छन्दांसि चेतये तावन्त एव निर्बाक।;

तेषा भिन्द्रच्छन्दसा ससुराचिराकरणशसाधनं द्भैयति-- “तान्व पया्ेरेव पदाय agen; यत्‌ vind; cata मनुदन्त,

)}

1.2. 1. a!

चतुर्थपञिका १।५॥ २६९

सत्‌ प्ायाशं पर्यायत्वम्‌ '-इति। ‘are रावि सायितान्‌ सुरान्‌ ‘wad: चमसगणानः क्रमानुरानेरेव पायः, aw तत्र यतमाना यागभृमौ परीय ‘aq’ निराक्षतवन्धः। यव aman: मुमा प्रवभ्थिताः, तत ततर प्रयत्नेनावेश्य जिःस।रित- वन्तः | हदादशणानाञ्चमसगणाना मनुष्ानाय तयः पर्यायाः ; एके कस्मिन्‌ पर्याये चत्वारो aw श्रनृष्टोयन्तं | यस्मात्परितो wart गत्वा चममपयायनिराल्तवन्तः, aarti निराकरण साधनलात्पयायत्वं सम्प्रवम्‌ |

क्रमेण निराकरणप्रकारं दर्थयति - - “नान्वे प्रघमेमेव पर्या- येण पूर्वरात्रादनुटन्त, मध्यमेन मध्यराश्रादुत्तमेमापगरात्राद्‌"- sfa) दथ en घरटिका एकंको भागः; इत्येवं TARA भागाः; चत्वारथमसगणा एकः पर्यायः, THA दादशानाञ्चमसमणानां अयः पर्यायाः ; तैः क्रमेण रत्रिमागत्यादसमुरमपानुदन्त I

afeafaxrncy छन्दसां घोकर्याधिक्येन प्रशमां दशंयति- "शपि wat aq ससोत्यञ्ुवव्रपिशवराणि खलु वा vata seidtfa ख्यातानि He TARA सत्यो्िभ्यत मव्य पारयंस्सष्टपिगर्वराणा मपिणवरलम्‌"” -इति। हदन्द्र! वय सपि "शर्वयोः' कत्न्नाधा श्वेः सकाशादसुरानपसाश्यितु त्वा मनु गम्य afr faa, इत्येवं छन्दा ्यद्मवन्‌ | तदेतद्वाकय मेतरेयः शला तद्ामौ भेवैतानि छन्दांसि 'अपि्रवसाणिः एवेति नाजा Tay वान्‌ et एतश्च युक्तम्‌, यात्‌ weit गानेम्तममो बिभ्यत मिन््रम "एतानि" छन्दासि wooed’, यस्मात्‌ wat राजि

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"न्धपिशवर--र्वरौमुे sfofageaait”- इति ( Be ९.१. ), “(शपि अर. अवस राजि मपिगतः कालोऽविशवर. प्ति Te Fe ८१२ ) माण्भार।

२७० ow शेतरेयत्राद्मखम्‌

ama नोदवन्ति, तस्माक्ारणाच्छ्वयीः सर्वस्मादपि पास्नयतं दयोतयितुम्‌ अपिशवेराणि-षति नाम छन्दसां gay ५१.

दरति श्रीमत्ायणाचार्यत्रिरविते माधवोये Serine. . रेसश्यत्राह्मणस्य चतुथपनि कायां प्रथमाध्याये ( पोड़ शाध्याये ) पञ्चमः खण्डः

अध Ts! WW: ||

पान्तमावो अनस दलखनखत्यानष्टूमा way प्रतिपद्यत बानुष्टमी पे राचिरेतद्राचिरूप area: Gaal मद लस्तिष्टभो याज्या भवन्द्मिहपा TIF ऽभिरपं awed प्रथमेन पर्यायिण aaa प्रथमान्येव पदानि पुनराददते यदेतरैषा wat गाव आसंस्त- देवैषां तेनाददते! मध्यमेन पर्यायेण स्तुवते मध्यमा- waa पदानि पुनराददते यदेवैषा मनो रथा आसंस. टेवेषां तेनाददत' उत्तमेन पर्यायेण Waa उत्तमान्येव पदानि प्रनगददते' यदेवेषां वासो हिरण्यं af. रध्यात्म मासौ त्तरेवेषां नेनाददतं आरा दिषतो दन्ते fata सेभ्यः सर्वेभ्यो लोकेग्यो नदते णवः

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चतुधेपञ्िका १। ९१ २७६

ae पवमानवदषरिव्याहन राचः पवमानेवती. कथ सुभे पवमानवतौ भवतः केन ते waragrst भवत इति यदेवेन्द्राय मदने ga मिदं वसो सुत सन्ध इदं छन्वाजसा सुत fafa qata शंसन्ति तेन राजिः प्रवमानवती तनो प्रवमानषतो भवतस्तेन ते समावहाओं aya: पञ्चदणसोजः wefcares गाचिःपश्चदगम्तातरा कथ मे पञ्च द्ण- ata भवतः केन समाव्ञाजौ भवत इति हाद्‌- ण॒स्तोवाणयपिणवरागि' तिरूभिदेवताभिः afar राथन्तरेण सुवते तेन रानि पञ्चट्गस्तोना तनोभं पञ्चदणशस्तोत भवतम्तन A समावहाजी मवतः परिमितं स्तुदन्लपरिमित wa शंमति परिमितं मै भत मपरिमितं wa मपरिमिनस्थावरध्यां इलयति गंसति स्तो मति वै प्रजात्मान मति पशव म्तदात्‌ स्तोच मति गंमति azarae waa तदवा सैतेनावसन्य ऽवसम्धं

इल्येतर ब्राह्या चतु पज्िकायः प्रधमोष्यायः॥१॥

Tea sea प्राधान्य मभिहितम्‌ ; wa we Taw- कथ्यम्‌ पोडभिपर्यन्तं पूवैवदनुष्टाय पोडधिन on रातिपर्वरयाः

२७२. Catanrerae

शंसनोयाः | तवस्य: पयायाः | ततैकपर्याय्तुःयस्ोपेतः। होतु- रेवं शस्तम्‌, होज्रकाणा तयाणा Raw, मिति चतुष्टयम्‌ \. अव्र प्रथमपव्याये होतुः शस्तं विधत्ते --“"पान्तमावो ware द्यन्धखल्यानुष्टभा wat प्रतिपद्यते "दति “rary et यसा wafa, सेय मन्धख्लतो सा वचा्रानुषटुपृषन्दस्का ; तया सरार ufaned प्रतिपद्यत" प्रारमेत तस्या शचि छन्दः प्रथंसति-- “aged वै रातिरेतद्रातिरूपम्‌"-दति | गायती विष्टुष्‌- जगत्यनुश्भां मध्यं गायत्पादोनां कयाणां सवनत्रयगताना महनि प्रयुक्त्वादमुष्टमः प्रयोगाय रातिरेव कालः परिशिष्यते | तस्मादत्ररनुष्टपसम्बन्धल्वादिय मनुषटप्‌ रातेः VSIA | wa fay पयायेषु णसख्रयाज्यां विधत्ते-- “saree: पोत- वत्यो महइव्यस्िष्टमो याज्या भवन््यभिरूपा ; caw ऽभिरूपं तस- ` मृदम्‌ इति wary reel याखुच्छस्ति, at: saree’; WENA: ऋचः प्रथमपयथायथे होजादोनां चतुमा शस्व. याज्याः कत्तव्याः। नाय fave एव तत्र “mada भरतेन्द्राय सोमम्‌" इत्येषा ( सं° २,१४.१.) Aa wean | सा चाखस्तौ तिषटुपष्न्दस्का तस्या दितीयपादे “fear मद्य मन्धः--दइति warm: यूयते एव मितरेषां त्रयाणां गस्वयाज्या उदाषरणोयाः ! पिवतिघातुर्याखखच्वस्ति, ताः "पीत- वतयः; तादृश्यो मध्यमपय्याये यान्याः क्तव्यः “अपाव्यस्या- “IMT मदाय" afer ( He २,१९.१. ) Ba शस्तरयाज्या | तत -भ्रपायि-इति पिषति-घातुः यथते मदिधातुर्याखच्छस्ति, ताः सव्यः"; Meany यान्याः कत्तव्याः। “तिष्ठा इसे". शेषा ( सं” २,२५.१. ) होतुः यस्रयाच्या तस्था भवसाके

चतुर्थपश्धिका १। ९१ ९७३

"रिम ते मदाय" दति मदिधातुः quai एवं चवं yet: हायनम्‌ | रातावन्नभोजनादन्धखतोना मानुरूप्यम्‌, लोरपानात्‌ पीवतोनाम्‌ ; तत ऊध्व इषत्‌ महतोनाम्‌ एव मारुरूप्ये सति ललामं समदं भवति। * प्रधमपर्याये प्रयोग विगेषं विधत्ते “प्रथमेन पयारेषःलुवते, प्रथमाग्येव पदानि प॒नराददते, यष्वैषा wat गाव भासंस्तदेषेषां तेनाददते" ति यदा सामगाः प्रधमेन पयायेण |e, वदामो स्तोजियाणां प्रथमपादान्‌ हिरभ्यस्यन्ति एवं शदेः ऽपि “gays पुरषटतभ्‌”-ष्त्यादिमाः प्रयमपादा दिगभ्यसनोयाः; “यथा वाव win #4 शप्तम्‌" युक्घत्वात्‌ एवं सति `एषाम्‌ अपतुराष्धा ae गाव ्रामत्रिति यदस्ति, तस्व मसुराथां रनम्‌ ; fa’ प्रथमपादाभ्यासेन स्तौ ङुवन्ि

हितीयपर्याये fara विधत्ते -- “मध्यमेन पयाय gaa मध्यमान्धेव पदानि पुनराददते; यदेवेषा मनो रथा प्राम॑स्तटेवेषां तेमाददति'-ष्ति “यन्त इन्द्र सोमः" LAST स्वि ( de

१०११ ) “निपूतो धधि बहति, नि पूता अपि विकि"

waa मध्यमः पादो हिरभ्यसनोयः। "एषाम्‌ TATA ‘ga? शकटं यदस्ति, येच ‘Tat’, नकं "तन" अभ्यासम्‌ खों भवति

कतोयप्ये fate विधत्ते-- “उक्षभेन पर्याये ge खष्माग्येव पदानि पुनराद्रदने ; यदेषषां वाभो हिरण्यं afa-

~ ~~ क्‌ ae न+ पथम = one ^

के सामन्राद्यण देवाव दि gray Ar aT Waa TA दाभ्यं aeenat दाक्िपर्वाया विहिता; (ताग mre ९,९१.१. )। ततत्‌ "तान्‌ सन पयां प्राणदन, पत्‌ पाच meer दत्‌ पर्यायाव पयायत्वम्‌ "~त पय!वनिदङिद्का। १४

171 PT ad epee ere aah og

२९४ ` ' Ratanrgres.

रध्याम मासीचदैवैषां तनाददते”-इतिं ¡ “शरदं श्चन्वोजंसा सुतम्‌” “were मृचि (He ३,५१.१०. ) “पिबा तख farde:, पिव लस्य गिवणः'' came पादस्य दिरम्यासः TET: शरोर मधिञ्जत्य वर्तत इति ‘TAA, Wert WAT ऽव- स्थितं वासः, ‘ferw मपि रित्येवमादिकम्‌, ef ati भवति ।-

वेदनं प्रशंसति-- “श्रा दिवतो वशु eu fata भेभ्यः aay लोकेभ्यो नुदत एवं वेद" इलि (दिषतः wat: सकाशात्‌ तदीयं घन मदन्त, ‘aa? यतुं सर्वेभ्यो लोकषम्यो | (aerate भिरा- करोति॥ |

अत्र कञ्चिगरञ्र qarnagfa "पवमामवदश tangy रातिः धवमरानवत। ; कथः सुभे पवमानवती भवतः, केन मे समाव भवेत इति दति बदहिष्यवमानः, माध्यन्दिनि; पवमानः, आर्भवः प्वमानशेव्यव महनि पवम्रानस्तोचचयं विद्यत मतु राजी तदस्ति; wa उभयोः प्रवमानल कथं सिध्यति, - तदसिष्लो केनोपायेनादश्च राजिशत्येते “समावहाजो भवतः' समानमा मयुक्ते भवतः ? इति प्रश्रवादिन STS

तत्रोत्तर माह-- ““यदेषेन्दराय wea सत मिदं वसोसुत मन्ध इदं ्न्ोजसा सुत मिति gaia शंसन्तिचख, तेन रातिः पवमानवतो, तेनोभे पवमानवतौ भवनस्तन ते WAAR भवतः - इति यदेव “gary aed सुतम्‌", “xd वसो सृत मन्धः ` “दरदं weitere सुतम्‌"--ईति + ताभिरेताभिस्तिरभिः

OF ES OTT dee Ramee ve ean ^ ae mee ee _ me ~~ --- ~ ^~ memes meee,

* ता? त्राण बाहयवमानः ( ९.५} ०-) ०. १, : नाध्यम्दिनिपषमानः २-५ ; भभवपवमानः ८३५ |

t सं ८, ९९, १९ ०५, ३, १०; इ, ५१. १०।

#॥ चतुर्थपरश्चिका १।९॥ २७४.

wera: ` शुवम्ति, होतारः safe, भनि on तिष्वपि फवमानस्तो जनामसु wT, एव मन्रापि fray. WY सतशन्दोऽभुठत्तः ; अतः पवमानसाम्यादराजिः पवमान. बतो ; ते प्रकारेण उभयोः पवमानव्वं and सति qe. भागतवं स्िष्यति | a

yatta entat मुलाप्यति-- “पश्चदशस्तोत avfcarey शविः पञ्चदश्रस्तोचा ; कथ सुमे पश्चदशस्तोव्रे भवतः, aa ते समावद्धाजो भवत इति" द्ति। अननि्टोम्स्तोताणि दादश, उक्ष्यस्सोत्रणि लोख; unaefa प्रयुश्षन्ते ; सस्पादद्ः पञ्चदगस्तोत्लोचतम्‌ ; udi तुन तानि विद्यन्त, कथं geen: स्तोतसाम्यन तवोर्भागसाम्यं सिध्यति इति wy |

aA माह-- 'हादश्स्तोन्नाणपिगवराणि तिखभिर्देव - साभि; afarar राघन्तरेण स्तुवते : तेस रातिः पञ्चदग्रस्तोज, देनोभे. पश्चरमस्सोत्र भवतस्तेन qaragiat भवतः ' इति। हादशस् अचममगगपयायष द्वादश भ्तोत्राणि च्यन्ते, तारि ्रपिशर्वराणि' रात्रायनुरेयान छन्दसाम्‌ "अरपिशवर' -सल्न्ना पू मुक्ता (age एल), तेन्कन्दाभिनिष्याच्यत्वात्‌ ्लोताग्धपि aat- कानि; रथन्तरमा निष्ाद्यं यक्न्धिस्तोवरं ५, तत्र feat देवताः श्रुयते <p, ताभिः म्तानव्याभिस्विष्टमिर्दवतामिः स्तोतव afy वेधा नित; स्तेनः कारणेन ताभिः पश्चदगस्तीव्रा Haar) तथा सति SHAAN म्तात्रमद्धामाम्याकमरान भागोपेतत्व' सिथ्यनि i

~= ~ = = नज ^~

""रदन्धरं giqsrararm Hie wala - the Ale Ae HVE I t “Parag: (azar af maa ate त्रौ ९, १. २९।

७६ पैवरेयग्रोद्यरन्‌ |

carga प्रशंसति-- "परिमितं सवन्धयपरिमित ay शंसति ; परिमितं वे भूत मपरिमितं भव्य मवरिमितस्याषरुध्वा- इति?-श्ति। उद्वातारः परिमितं यथा भवति तथा रुवन्ति, विदत्‌, waea:, सपदशः, एकश इन्येवं चतुभिंरेव स्तोमेरण सर्वस्तोत्रनिष्यस् :५। Hata भपरिभितं यथा भवति तथा अनु शंसति ; शंसनोया ऋच एतावत्य एवेति सर्व॑ त्रागुगतस्य सद्या नियमस्य कस्यचि दभावात्‌ पूवंभाविनमः स्तोत्र परिभिततव मुत्तरभाविनः श्रलस्यापरिमितत्वं लोकिकन्ायानुसारि ; लोके ‘ad पूवं सम्पादितं धनम्‌, परिमितम्‌" crete नियतिरस्ति ; var? दतः परं सम्पादनौयं धनम्‌, श्रपरिमितैः quran निरथधिकलेनैतावदेव सम्पादधिष्यानि, न॑ तधिक fafa नियते. रभावात्‌ तस्पाद्परितनश्ेसनवाष्य मप्ररिभितथधनप्रापय भव- लौल्यभिप्रे्य होतुरपरिित ममुशंसनम्‌

प्रकारान्तरेण शस्तरवाइल्यं प्रशंसति -~- “रति wafa ata समति wares मति anergy स्तोत्र मति शंसति यटेवास्था- ara तदेवास्येतेनावशन्धं '"-इति। स्तोत्रगता. कसना मतिलद्धय होता शंसतौति यदस्ति were मेव; लीके wre मतिनद्य प्रजामा चवावश्ितल्वात्‌ | aa मैक एल, पुत्रादयश्च वहवः, गवाश्चादिपशवद्च बद्व: ; तस्मादामसानौयं स्तोतभ्‌, प्रजापशु खानोयशस्म्ाधिष्येन wer प्रजापश्वादि धन॑, aw यज

जः ree at tow wee ०५ ee ene ENE. sem ea = ee -~~ ~ ~~~ ~= ~ = [का 2 वा 1 क,

@ तार प्रा ६,२,२।

तिराते ware wate, Weed राचिपर्यायाश्चयः, तनः aie, तजाजिन' शस्वम्‌, सतोऽनुयाज्ञादि तदिह ay मन्विकीजान्तं fufeag, fae’ पर- भारे बाति,

Rc | १।६॥ ` २७७

ame खासन मतिक्रम्याधिकर mites, तव्सवम्‌ “wer यज- मान होता सम्पादयति पदाम्यासो ऽध्यायसमाक्षपथेः

इति यमवसायणाचायं विरचितै माधवोये बेदार्धप्रकाशे रेतरेयत्राह्मशस्य चतुथपञिकायं प्रथमाध्याये ( पोट्शाध्याये ) षष्ठः खरः

बेदार्यस्य प्रकायेन तमो we निवारयन्‌।

1 ~ zy १५ , पुमथाबतुरो देवाद्‌ विद्यातोयमङश्लरः

efa सोमद्राजाभिराजपगमेग्बरवेदिकमागेप्रवन्तका-

YRC ATTA AAR SAT ATTA TATA AT SIT अगवकायणाचा्ये विरचितं ATURE वेदाथंप्रकाशनामभाषे

रेतरेयव्राद्मणस्य पश्चमपश्िकायाः प्रथमोऽध्यायः}

Sateen spears मी

मथ हितोयाध्यायः ` + अथ प्रथमः Gas:

प्रजाप्रतिवे सोमाय «wey टहितरं प्रायच्छत्धुयं सावि तस्ये समं देवा वरा आगच्छ सस्या एतत्यहसं वतु मन्वाकरोद्‌ यदे तदा श्रििन मिल्याचचचते ऽनाश्चिनं डव! तद्यदर्बाक्सं तचा सत्पहखं वेव WHS भयो वा प्राश्य wa शंसदयधा al FZ मनोवा रथो वाक्तो aaa एवं Saal बतते शकुनिरिवोत्पतिष्यब्राह्यौत afea देवा सम- जानत ममेद्‌ Ta ममेद मस्त्विति ते सन्चानाना wags मस्ायामडे सयो उञ्जेष्यति Tae भविष्यतोति तै ऽग्नेरेवाधि रदपतेगादििल्यं काष्टा मद्वत तश््रादाग्नेयौ प्रतिपद्‌ भवत्यांश्िनस्याम्नि- होता षपति: राजेति" aga अआष्रग्नि' मन्ये पितर मभ्नि मापि भिद्येतया प्रतिपद्येत दिवि Ta यजतं ॒सृयसेति भथमयेव कचा काष्ठा मःप्रोतीति wanes एनं तव ब्रूया्दग्नि मग्निं मिति वे प्रह्पाद्यम्नि माप्रव्यतीति rarer

चतुर्थपश्चिकषा ।२। ey रेख, -

साचश्याद्ग्नि्ता गहपति; राजेधेतवेव अरति. पद्येत खृहपतिवती प्रजातिमतौ शान्ता सर्वायुः सर्वायुत्वाय सर्वायुरेति एवं वेद (ऽ)

Ue षोश्यङ्कि den चतं मवच्छन्दोविक्रियानुष्टवाख्ये Gara स्याशतुःशस्नकाणा रातौ सन्ध; UA are अयातिराक्रतावेव ufaqaa og’ माश्विनं wer ` माश्यायिकासुखेन विधत्ते -- "प्रजापतिद्ै सोमाय ad दुहितरं परायच्छकूया सानितरीं; तस्यै से रेवा वरा area एत. Rea वदतु मन्वाकरोद्‌,-- यदेतदाखिन fawraaa ; ऽना- fori डेव, तच्यद्वाक्छषस्र ; तस्मात्सह वैव शंसेद्‌ wit ay” शति! go aefansrafa: काचिद्‌ efyat सोमाय राच्च Tree?’ विवाहा दातु मृदुगक्षवाम्‌। whet दुहितरम्‌ 2 खयम्‌, द्रयेतनत्रामघेययुक्ता "सावित्री" सविता लब्धाम्‌। cedar सवितुः gat, तथापि ज्ातिगयेन प्रजापनेदुङ्धितेषयुष्यते | "तद्ये" gfea तक्लाभाधं स्वं देवा वरा भूत्वा प्रजापते; सकाश मागमम्‌ + च॑ प्रजापतिः "तस्ये दुहिटठनाभाथम्‌ ‘az’ aman बां awa 'वष्तु भन्वाकरोत्‌ः वनस्य विवाहस्य waged माङ्गल्याय वरस्य पुरतो वहनीयो इरिद्रागुष्ादिमङ्गलदरव्य- सक ‘auq: ; यरेतदक्सदखः यान्निका भ्राश्छिनसश्रस fap चक्षते, तत्सहस््र मेव वहतुरूपेण प्रत्यभिज्नातवान्‌ ; देवानां मध्ये यो वरः श्राज्िनशस््रमन््ानेक एव पठति, aa, ater मीति प्रतिन्चातवानिवयर्थः। सहस्नादर्वाचौना ऋचो ग्रश्मिन्‌ अस्ते, तव “पवकमस aed यदम्ति, तत्‌ marian भेव"

ate, Tatanrwrey it

यस्पादाणिनसश्चख' प्रजापतिरक्ोक्तंवाम्‌, तस्मा्रोता eee मेव शंसेत्‌, ततोऽप्यधिकं वा say, तु ग्धुनन्‌ #।

शसमस्मेतिक््तव्यतां विधत्ते “ana wa dearer ¥ aT CZ ममो वा रथो amt वत्त॑त एवं Barat वत्तते”-द्ति | प्रथमतो तं प्राश्य पथाब्छसेत्‌ यथा लोकते fafated निद- श्नं तदत्‌ fa faena मिति,-- तदुच्यते अनः" we शकटं का प्रदरो ‘cay वा यदा प्रवर्त, तदानी मख्य शक्रस्य खमशस्थाने मषोमितरेण Fares छते पात खस्थः शकटं Tat वा सषसा प्रवत्तते, एव मसौ होता दछयतिनाक्षः we प्रव्तते

इति aden विधत्त -“श्रकुनिरिवोत्पतिष्नरा्नयोतः" -श्ति। यथा ma ‘nafs: कञ्चित्पक्तौ agi भूमिं टृ मवष्टभ्य “उत्पतिष्यम्‌' ware कत्त, freq प्छन्तर मभिलश्य waht करोति, एव मसी हाता तदाकारं घटनं कुव॑त्रा- wit पठेत्‌ | तदैतदाण्ठलायनाचार्यः खष्टोक्तम्‌-“पराश्च प्रति- Yew पञ्चात्‌ खस्य पष्णस्योपविगेत्‌, समस्तजद्गेरररतिम्यां जानुभ्य{ due कत्वा यथा शङुनिरत्पतिष्यन्रुपस्यक्षतस्त्ं - वाण्विनं भंसेत्‌'-ष्ति( ro ६,५.४. )

प्राश्विनगखस्य प्रतिपद माद्यायिकासुखेन विधत्त “तस्मिन्‌ देवा समजानत,--- मभेद मसु मभेद मस्तिति; ते wer- नाना WHAM मस्यायामद्देसयोन उल्लेष्यति, तस्येदं भविष्य. तोति ; ते ऽम्नेरेवाचि ग्टहपतेरादित्य' काष्टा मकुवेत, तस्मादामेयो

'प्रातरनुवाकन्धायैग तस्येव Carats सद्कावसमीोरैतीः अरत "षति awe थी ६५. ई;

चलहुयपशिक्षा | २। १॥ १२६१

अरिपदे : भवत्वाखिनस्यानिर्होता गडपतिः a” राजेलि"- शति | "तस्मिन्‌ः भआखश्िनशस्वे देवाः परस्परं "न समजानतः सन्नाम ufacfa’. माकुवन्‌। कौटभौ तदौया प्रतिपत्तिः १९ दति, dread ‘adie mina aftafa सर्वेषा मभिप्रायः | सर्व facut धथोतयितु भियं ater) ने' विप्रतिपन्ना दैवाः सल्ला नानाः' सम्प्रतिपत्ति ल्त agra: परखर भिद मतरुवन्‌-- ‘ear sifaanae aaa वयं ad atfyerfag भायामङ्ै समयवन्धपुरःसरा प्राव्नरूपा गतिः `साजिः', at प्रप्रवामः। सस्मिभ्नाजिघावने ‘a ware मध्ये यः प्रबलः, यः कोऽपि प्रम म॒ल्कप॑ण जेष्यति, तस्य ‘sea प्राणिनं भविष्यतौति समयनन्ध; "तः क्तममया देवाः "प्टहपतरनेरवा धि गाङ्पत्य- स्यापरि eratwafaa मादित्यं cara? श्रव्रनसमाति मतु कुयने,--गारहपत्य मारभ्यादिल्टपयन्तं घा्नदिति सदोया Aare यस्मादग्निः राख्िनप्रास्दतोधावनम्योपक्रमखानं, तस्मादामेयौ काविदटगाग्विमस्य प्रतिपद्‌ भवतिः प्रागम्ररूपा weet Cafagtar—sfa (सं, ९६.१५.१२. ) तस्याः प्रतीकम्‌

अत्र काचित्‌ qara मद्व(वयननि - “तदैक श्राहुरणिं मन्ये पितर मनिनि मापि सिनया (a> १०.५३.) प्रतिपद्येत इति WITHAAA:

तजोपपत्तिं पूदपन्यभिप्रतां दगयति . ~ “दिवि शक्रं यज्ञ॑ सर्यस्यति प्रथमेव ऋचा काढा aia’ दति) लस्याश्चतुय- पाट ‘qha aad थस्मादग्निवितरे पणं पत्यते, aut सति waa वर्चा qarear काष्टा धावनाग्निद्पाप्ना भवतीति तेषा मभि प्रामः

१९

27 ' ¢ ेतरिवक्रा्रवन्‌-# " `

fast oe दवयति -- “renter, पनं तदव weit efa afa मिति बे प्रत्यपाद्यगनि मापल्छतोति, wereret स्मात्‌" -षति। तस्मिन्‌ शल्लोपक्रमे ‘ae’ मतम्‌, “अग्नि मन्ये पितरम्‌" -दइव्यादिकं मादरणीयम्‌ अगादरथे रेतुरष्यते-- ‘ay भभ्निः मन्ये ` -दत्येतया उपक्रमपक्े, यः कोऽपि विरोधी समागस्य वदनै होतारं श्रूयात्‌" शपेत्‌ कथं wa ति, aged— अनेन होता “fa afia मितिः एव श्रत्यपादि' प्रारब्धम्‌, aw खि “शन्निम्पितरमनिन्भातरम्‌"--दत्येव मख्कदग्निलरूम्‌ ; पित्रा दाभिधानादमि मसौ शछोता प्राप्नोतीति दग्धो भविष्यतोति यदि nag, तदान ‘aaa’ Wasa तधा स्यात्‌ |

परमतं दूषयित्वा aad भिगमयति -- “तस्मादनिनर्हका ब्हपतिः राजेव्येतयैव प्रतिप्रद्धत, weafaaat प्रजातिमतो शान्ता; सर्वायुः सर्वायुत्वाय"-द्ति। भस्यासचि गडहपतिशब्दः we टश्यते (do ६.१५.१३. ) ; तष्मादियं गष्पतिवतो'; तथा दितौीयपादे “frat वेद जनिमा गति सवंप्राणिजननाभिन्नान- कधनादियं शप्रजातिमतौः ; बद्क्रल्लोऽशिनिगब्दस्याभावादियं ‘gre; तस्मादेतया प्रतिपद्यमानो होता स्वीयुभवति, तथ ARAMA सर्वायुत्ाय सम्पद्यते वेदनं प्रशंसति --- “सवं arg: रेति एवं बेद-द्ति।१।

षति भ्नौमत्सायणाचायं विरचिते माधवोये बेदाथप्रकाये शेतरेयन्राद्म णस्य aqeufearat दितौ्याध्वायै ( खपदथाध्याये ) प्रथमः खण्डः (ॐ)

चदुर्थवद्धिकाः { २।.२ "यह अष हितीयः खण्डः

तासां बै टेवताना' माजिं धावन्तीना ममिश erat मग्निमुखं प्रथमः परत्यपदातं मभ्िनाबन्वा- गच्छतां मब्रूता मपोदिद्चावां at इदं sare ति aawatiue वै ममेशटाप्यस्तिति तयेति तथः भप्यनाकुरतां wary afar wee ता उषस भग्वागच्छतां ता agat मपोदिश्चावां बा sz जेष्याव दति सा adware वै मनेशाध्य- feafa तथेति तस्या मप्यजाकरुर्तां तस्मादुषस्य arfaa शस्यत ताविन्द्र्‌ मन्वागच्छतां agar wai बा इदं मषवश्चेष्याव इति तं दधृष- तुरपोदि्षेति षतं तथेव्यव्वी्स्य वै ममेहाप्य- स्ल्िति तथेति तस्मा अप्यचाकुसतां तस्मादेष भर्विभे शस्यते तद्श्विना उदलयता मभ्विना बाश्नवातां यदरिविना उदजयता तभ्विमावाण्नुवातां -तस्मादेतदाभन मिव्याचचते saya यद्य रकाम- यतेय एवं षेद तदाह्वंच्छसयत भाग्नैयं गख्यत उषस्यं शस्यत पेन सथ कस्माद तदाश्िविन मिल्या- aaa gefiaat fe तद्‌दजयता मण्विनावाश्र. wat ' यदश्विना उद्जयता मग्बिनावानुषार्ता

acy , Raton .

तस्मादेतदाशिन faersea sad यद्यत्कामयते ण्वंषेद्‌॥९(ट)॥ भधामेयं ars’ विधत्ते -- “तासां वै देवताना मालिं धाव- न्तीना मभिषृष्टाना afte प्रथमः प्रपद्यत, मभ्विनाबन्वा गच्छतां, Aga मपोदिद्यावां वा इदं wena इति ; aver. व्रवोत्तस्य वं ममेहाप्यस्िति ; तथेति ; तस्मा भप्यतराकुरुतां ; त्मादानय माश्डिने शस्यते'"- इति देवताः सवी मादुपत्याग्नि- समौपात्‌ frie मूयपयन्ता माजि afer धावन्तो अभिष्टाः श्रभितः प्रहत्ताः,--एकदवता एकस्यां fefa घावति, अरन्याप्ररस्यां दिभोव्येवं सवतो धावन्ति ‘avai’ देवतानां म्ये अग्निः सुखं यथा भवति तथा, मुख्यो भविष्यामोति अभिप्रायेण प्रथमतः "प्रत्यपद्यत पुरोगा धावनं क्तवान्‌ 'तम्‌' अग्निम्‌ aa’ पश्चाद्ख्िना- वगच्छताम्‌, समोपं गत्वा तम्‌ afm मन्रुताम्‌,-हेश्रमे! त्वं शान्तो भविष्यसि, तस्मादु श्रपोदिष्धि उत्क्षणापैहि, दूरे;पसर 1 ‘way उभावेव इदम्‌" अख्िन. मुरदिभ्य जेष्याव इति सः भग्निरङ्गक्तत्य (तस्य अपगच्छतो ममापि ‘se शस्ते भागो- sfefa swear) श्रण्विनावङ्गोकषत्व ‘aa’ अनये विभागं दत्तवन्तो | यद्मादेवं ‘aay रागये बहना wat समह काण्डम्‌ श्रखिने'.शखे शोत्ा शस्यते) wade तच कार्ड wa aa द्रष्टव्यम्‌ & |

“आजिम 187 भभ auth: रेति अभिपदकपातिनौ ae: 1 wr याप्रेथं TAT BISA | प्रातरलुवाकन्यायेन"-इ यादि were We ९. ५, ५-८।

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“HATE मनुब्रूयाशन्दरेण'"-प्वयादिः, ETT: क्रतुः KT ५. १३.९८ FE) SARS afew aft च; ९.६.१०1 ` : psa ah

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धतु्षपश्डिकाः। a ay were: वाणं fare -- “or उषसे ` erred rer च्छल; तों aa मपोदिष्यावां वा षदं Sens इति; सा ater वै भ्रमेहाध्यस्तिति ; तथेति ; तस्या श्रष्यताङुरतां ; तस्मादुषख्ं माश्िते शश्यतेः-ष्ति। ‘av भ्रशखिमौ (उषसम्‌ camragat देवताम्‌ | अन्यत्‌ Gas व्याख्येवम्‌ tz काण्डः विधत -- “afer मन्वागच्छतां, मेनकां मावां arse waren tia; ae तं दधुषतुरपोदिषौति वहनं ; सथेत्यत्रवोत्तस्यं पे मभेषहाप्यस्त्वितिं ; तथेति , तस्म अष्यत्राङ्ककतां ; तस्मादैनद्र माख्िने शस्यते" दति) & मधं वन्‌ ! wat tear tia अब्रूताम्‌ ; इन्द्रस्य eating ‘aw aga उददि् wifedtfa aaa ayaa घाच्यं नाफुरताम्‌ | अन्यत्‌ पूर्ववत्‌ | sified काण्डः fare —“‘aefiant उदजयता मणिना वाशरुवातां ; यद्भ्विना उदजयता afiaarargarat, तस्म्ादेतदा- faa मिव्याचक्तते'' -xfa | ‘aq’ तस्या माजौ सषटमा मुग्यपग्यन्तं मत्व! aralaat उसार्घष्एजयताम्‌ | ततस्तावब Neary अनुवातं व्याप्तवन्तौ | ‘ag qerefiaat जय्पूवकं mwa’ व्याप्रवन्ती, तस्मात्‌ "एतत्‌" we atiaa fafa याज्जिका ares, भाख्िनं mies शंस दिव्यभिप्रायरः | = ea प्रशंसति “अश्नुते az यत्कामयते a wy aq’ - afar | | WAAC गस्त्रस्याखिनत्व मुपपादयति -- agra waa श्रानेयं शस्यत sre श्यत te मय कस्मारेनदाण्विन fren awa gufern fe तदुदजयता मग्विनावार्णुवातां ¦ gafrent

aq : शेतर्थन्राश्नवम्‌ ;

छदजयहा मभिनावालुबानां, तच्नारेतदाथिकं भिश्राच्रच्ते"- शति | भाभ्रिनकाण्डवत्‌ भामेयोषद्ैद्रक्षाख्ाना मपि स्वमान ववाष्डलस्यानेयत्वादिनामपरित्यागेनाभिनलनानज्ि कः पलपातः 7 दति way भग्निरेषा wares nce, भत्‌ yal पन्त मधावन्‌, What तु धावन्तौ magia wer’ प्रावन्त fafa तदौयलग्रसिर्चिः wearer gmt | वेदनं प्रथसलति--“श्रग्रनुते यद्‌ यलामयते एवं ae”- इति) पूवं माधिनसम्वन्धमाभ्रवेदभम्‌, इह त्वज्न्यादिखम्बन्ध राहित्यवेदनं अति विषः २॥ fa थौमकायशाचायेविरचिते anita धेदार्थ॑प्रशाये देतरयव्राद्मणस्य चतुैपञ्चिकायां हितौयाध्ययि ( शपदशाध्याये ) हितीयः शण्डः २८८)

EEO atime aml

अथ sata: खण्डः |

अशतरीरयेनाग्निराजि मधावशासां भ्राज सानो योनि मकूलयन्तरमान्ता न॑ विजायन्ते' गोभिः Tater आजि मधावत्तस्मादुषस्यागताया मरूण fala प्रभातुाषसो कूप! मग रथेभेन्द्र भाजि मधावन- waa satin उपब्दिमान्‌' चवख शप मेन्द्रो डि गदंभरयेग्परश्रिनाः sore मभिनाकाशुवातःं

चतुर्थपञ्िक्षा २।,१३॥ ans

{

दिना उदजयता। मश्िनावाश्रुवातौ तस्मात WAT दुग्धदोहः सष, मेतहिं वाहइमाना मना- चिष्ठो (aaa बोयं नाषरतां तस्मास्य हिस्त वाजो तदाः सप्त सौर्याणि छन्दांसि शंसेद्यवेवा. ग्नैयं age यथाखिनं ay वै देवलोकाः Ty देवलोकेषु रापघ्रोतोति aaaiza Sera wawar at ya frat लोकता om मेव लोकाना मभि faa aziz व्यं जातषेदस भिति सौर्याणि प्रतिप्रद्येतति aaa यथेव गला काष्टा मप- राघरुयाक्ताटक्तत्‌ सूर्यो नो दिवस्पालिल्येतनेव प्रति- | पद्येत saa गत्वा काष्ठा मभिपद्येत arenes a लातक्चेटस fafa दितीयं शंसति चिं टेवाना मुदगादनोक मिति sen मसौ वाव fas टेवाना सुदेति तस्म!देतच्छसतिं नमो fara षरस्गस्य चस दृति जागतं तदाभौःपद्‌ माभिष मेम. AMT त्मने यजमानाय च'॥ (€) अयाथिनयस प्रथं सायं देवाना माजिधावनकथा पूर्वं gu न्यस्ता, बेव कथायेष माधिनगकपरथं र्थं मेव पुनरप्युष्ं

यति-- 'अरश्वतरोरयेनानिराजि मधात; तातां ara योनि agqeagq ; तस्मान्ता fanaa’ -¶ति भश्छगदभसाङ-

जं भावाः जोष्यक्षयोऽमातम्यैः aera श्येनस्य भिदा

; TRE LIa tk Oa: Lae atic + Te ` देतरेयक्राश्च कम्‌+ `

afiea धावनं हतवान्‌ 1 तदानीं शप्राजमानः' प्रकर्ेशा्लतरोः way “अज्ञ पशे रणे'"- इतिधग्तुजन्योऽयं शब्द; तप्रेरणकाले तासां पूवपुच्छभाग मुपर्श्य योनिम्‌ “अकूलयद्ः दग्धवान्‌ तस्माद्‌ दग्धयोनिल Te ‘ary भग्वतर्थ्यो fasta’ विजनन मपत्योत्पाटनं कुर्वन्ति | श्रनेराजिधावन सुङ्गोषसो धावनं दभयति-- "गोभिर. समा श्राजि मधावत्‌ ; नस्मादुषस्यागताया मकण fala waa परसो रुपम्‌”. इति 'अरणे्गोमिः शश्र वर्वर वदै क्ेन रथेन यस्मादुषसो धावनम्‌, aaah रातेरवसानं समागताया aafa, तस्या उप्रमो रूपं प्राच्यां दिशि अरुण fade caaq मैव भत्वा प्रभाति' प्रभायुक्तं भवति॥ ्न्द्रस्याजिधःवनं टथयति —“ sada श्राजि मधावत्‌ arate saute उपष्दिमान्‌ weer रूप dat हि सः" -दति। स्मादे खगुक्रेन TAR ऽघावन्‌, तस्माल्लोकऽपि सोऽश्वयुक्तो ca: ‘saute: बहुलष्य निर्दुष्यते, तया चतस्य रूपम्‌ 'उपव्दिमानुः गन्दोपेन दृष्यते | यदा ata निगच्छति, agar याटिक्रा अन्ये सेवकाः SEER शब्दं BAM एव गच्छि! सच शब्दः ‘Tey fe भमरयुरेषु तन्नो मिन्द्रेण कतलवादैन्दरत् म्‌ | भरश्ठिनोर्धावंनं दशयति -- “गर्दभरयेनाशिना उदजयता मणिना वाग्नुवातां ; यवदख्िना senza मखिना वाश्जुवातां, तस्मात्‌ Gamay emery: सर्वेषा मेतहिं बाष्टनाना nafs रेतसस्वस्य aa नाद्रतां ; aware fetar वाजो बति ऋभ्बिन। गदमयुनञेन रथेन abe गत्वा जयपूरवकं व्याप्तवन्तौ 'य॑त्‌' अस्मादुभो रथ, ar AT TATA, weary te’

चतुरबपञिका | २।१॥ ace,

wea भारातिशयेन ` तोव्रधादनेन लोके ‘gan’ भततेमः ` शुग्धदोहः' गवक्तोररसधाभवत्‌ तस्मादिदानौ मपि गजाश्जाहि- वाहनानां स्वेषां मध्ये गदभः अनागिषः' अत्मन्तवेगर्हिती हृष्यते सदौयस् शेतससु "वों ' सामर्म्‌ aft मारां दिनागितवन्तो | तस्मादेगेन areata चोरेख .राडहिश्चेऽवि ‘a’ गर्दभो ‘fetar’ ग्दभाणतरजातिदयोत्यादकशो “are? गमनवान्‌ SAA

एषं शस्नप्रयंसाथं सप्र सुपास्यानरेष मभिधाय सौर्याशां मन्धसमूहानां agi विधातुः पूवेपक्तम्‌ उद्वावयति-- “nergy: सम सोयाणि छन्दांसि थंसेद्यधैवानेयं यथोषस्य यथाख्िनं ; सते वं देवलोकाः, सवेषु देवलोकेषु गभोतोति"-ष्तिः। wait. सस्याश्िनकारडा-ने यथा प्रयेकं मायश्रयादिभिः सततश्छन्धोमि anf %, एव मत्र सौर्येऽपि wre सम छन्हाचि vie. यानि। नथा सति मोगश्धानसर्याणां रेवलोक्षाना aware. भेदेन सक्ष बिधत्वात्‌ awafa: सिष्यलोति पूर्वपश्चिण ary:

a ad निशक्षत्य छन्दम्तयपक्तं विधत्ते -'तभ्षश्राटत्य ; atala शंसेचयो वा मे तिष्ठतो लोकता एता मैव लोकाना मभिजित्यै"- ष्ति। एचिष्यन्तरोत्तदुरलोकास्रय एव ‘faa: सष्वरजस्तमो- गुणे सि विधाः ; अ्रतस्याणशा मभिजयाय नोष्येव एनांसि थंसेत्‌॥

अयाणां छन्दसां mea fat’ पूवपच माइ --- “aergeg त्थ जातवेदस fafa स्यि प्रतिप्टेधति?-इति यानि ‘Safe’ atfe wetfa, तषां mew “उदु त्यम्‌" इति ( Ho १,५०.१. ) सदिति gaa:

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© aye Te 3. १९, te, १६ wheat Mem: | १७

ae रेतरयग्राङ्ककन््‌ः

भर्त दूषयति > “aatear ; यथैव गत्वा काहा मप्र. हुयासाहतात्‌"-षएूति। लोके कचिद्गाषापूरवक ames. धावनं sat ‘area’ safer प्राप्य “श्रपराकुयात्‌' saree स्वलनपतना्दिङप Hate कुर्यात्‌, aia तद्वति waa- कण्ठ मारभ्य सग्यक्रारहपयथन्त' मस्खलन्होता समानौ सूर्ख- काण्ड स्वलति ; तस्माद्‌ “उदु a” सेत्‌

carat fanaa माह--“सूर्यो नो दिवस्पालित्येतनैव ( deo १०,१५८.१--५, ) प्रतिपद्यत ; ada गला काडा मभिपदलत arene” इति यथा लोके कशचिदवधिं प्राप्य स्खलनरङितः स्ाभोष्ट'प्राक्रयात्‌, atta तत्‌ द्रष्टव्यम्‌ “सूर्य्यो a:—<ar- faq ad सर््यवायुम्नोनां लोकबयाद्रक्तणं प्रार्थयतो रस्ित- त्वादेवापराधं ने प्राप्रोति ; gra एतत्‌ नास्तीति विशेषः

प्रथमं ae विधाय aaa > aera faad -- “उदु a आतवेदम fafa (do १.५०.१-९. ) feata शंसति'-इति। तदेतदुभवं गायकचौच्छन्द्स्कम्‌

अध az at विधत्ते -- “faa देवाना मुदमादनौक Tafa ( Ho १,११५.१६.) Aga मसी वाव faa देवाना सुरेति, तस्भादेतच्छंसति”-इति अस्मिन्‌ मन्वे देवानां सम्बन्धि किञ्चित्‌ ‘faa रूपम्‌ ‘seme’ उदयं प्राप्नातीति शरूयते, wat वा रादित्य एव देवानां सम्बन्धि faw रूप सदेति ; aradta वणेभेद- SATA | ARTA प्र्स्तल्रादब् शंसनोयम्‌

Ame =-= + = ~ न्न "~~~ ~~~ eee ~~ TO TT 9 ति = Remy OR Rene ce ०० = Fees

a (सूर्यो मो दिवस्पामु वातो wafers अगिन: पाथिवेग्यः"-१ति। खदु व्यमिति am तु षयीदध्ंम्‌; तजौ नव गायत्राः, ता एश श्सनौया भवन्ति ; sg जातवेदस मिति aa’ Khater : (wre: योर ६.१.१८. )।

धतुर्धपञ्चिका | २।२॥ {4

` ठैनीर्य न्दो विधन्तं -- “नमो मितस्य बर्णस्य erg इति (Wo १०, २, १-१२. ) जामनं , तदागोःपद माथिव भेत. ATS भाकने यजमानाप्र च-इति ‘a तदस ममो भिन्रस्यत्यादिकम्‌ श्राशोःपदम्‌' मारिषः प्रतिपादकम्‌ ; दितीय- चतुधपादयोः “सपर्यत-यं सतः -दयाशोरथम्य लोडन्तस्य पद्‌- इयस्य प्रयुक्तत्वात्‌ | तच्छंसनेन होता खस्य यजमानस्य चाशिषं Wars # २॥ fa यओोमसायणाचार्यविरचिते Muda वेदायेप्रकारे एेतरयव्राह्मणस्य चतध्रपञ्चिकायां दितोवाध्याये ( सप्तद शाध्याये ) dale: wae (€ )

[रि 2 |

अग्र चतुथः खण्डः

= | तौ ति

तदहः सूरयो मातिगस्थो वृहती नातिगस्था yay मति शंसेद्‌ ब्रह्मपर्चम्न मति पद्येत यद्‌ awa मति शंसेद्याकानलि waa क्रतुः aT भर- al : it x ~ 1 wae प्रगाधं शंसति frat गो wha पुरुहत वा-

| ~ ae ee aa

मनि stat ज्योतिरशोमहौलसां ara ज्योतिस्तनं

aa नाति शंसति ब्रह वादतः nasa बृहतीं

== कि Owen weno

= ‘afar, ‘aga’, ‘faa’, (नमा fave एति चलारि सूम सर्यि | "उदिति सौर्याणि afar’ sin the ६.५.१८।

ROR, ` रितत्विकश्च व्य्‌

नाति शंसलवमि ला शर ara इति राधयन्त योजिं शंसति राथन्तरेय 2 सन्धिनाश्धिनाय सुवते! तद्यद्राथन्तरौं योनि' शंसति carey सथोनि- aaa Ae जगतः wen मित्यसौ वाव खक्‌ तेन सये नाति शंसति! यदु arta: अगाथस्तेन बहतो नाति शंसति बहवः सरवक्षस इति सैना- वरुणं प्रगाधं dared मिना राचिवस्णयउमभेवा एषो SMITTY भारभते योऽतिराज मुपैति तदा- ATG WATE शंसलयशोराचयोरेषेनं तव्मतिष्डा- पयति सूरचकच्चस दूति तेन सयं नाति शंसति ag चाहतः प्रगाथस्तेन aval नाति शंसति मही द्यौः प्रथिवी नस ते fe दावापथिवौ विश्वं भषति द्यावापयथिवीये शंसति दयावापयिवी ते मिष्ट wa मेवे प्रतिष्ठासावसुच age द्यावापयिषौधे शंसति प्रतिष्ठयोरेबेन' तत्पतिष्ठटाप्रयति देवो देवौ धमशा सूयः शुचिरिति तेन सृ नाति शंसति az मायौ seam चते geet तेन sect नाति शंसति frre 2a were ज्नर॑नोन या रोषति भदिति दिषदां शंसति! चितेध Fay fafa we वा एतदाज्षते' यदेतदाग्िन' fre

चतुन्रणडिका ¦ २।४॥ २८४;

fae पाशिन्यपास्ते यदैव होता afta पाशान्‌ प्रति मोच्यामौति ततो at एतां व॒- स्पतिदिंपदा area या रोषाति यभदिति तया faze: पाशिन्या wats: पाश्चानवाखसद्यदेतां दहिषदां होता शंसति fawen एव तल्याभिन्या अधराचः पाशानप्रास्यति aaa होतोच्छुच्यते' सर्वायुः सर्वायुत्वाय' सथ मायुरेति एवं az’ aaa waa इत्यसौ वाव Haale तेन सूय नाति शंसति' az दिपदा पुरुषच्छन्दस' सा सर्वाणि कन्दांस्यभ्वाप्तां तेन qeat नाति शंसति (१.)॥

रिन्दरादिप्रमाथान्‌ विधातु प्रस्तौति -- "तदाहुः wat माति. wet, awat नातिगस्या ; aaa सति शंसेद्‌, ब्रह्मवच॑स मति पटोत ; यद्‌ seat मति प्से्माणानति पित" इति "तत्‌" तस्मिाण्डिमगम्ते केचिद्भिन्ना एव arg: | Sarai ae at a सूर््ोऽस्ति, a: 'नातिशस्यः' gor मति eer गमन a क्सव्यम्‌, तथा छन्दसां मध्ये वतौ मतिलद्य शंसनं कत्तव्यम्‌ : मृ. VAT ब्रह्मवररसप्रदलास्षदभिसङ्कनं THATS नश्यत्‌, THAN: mweEqaraeiaaya प्रारान्विनाग्देदिति तेषा afanta: |.

wart Fat प्रगाधं विधे -- “we ag wi uta Ward ( do 0.22.22) शंसति -ष्ति। Swe! नः wee mae ` अतिराव्राख्यम्‌ शपा भर' भानयेति wer प्राद्वाधः |

२९४ Derterey ately y

हिलोय aed पठति-- “fren a afin ‘yeaa ante, जोषा ज्योतिरशोमहोति"-दति। ‘Gey’ ayy यारीषु भाषय- माम, इन्द्र! ‘ay wary ‘ahaa’ अतिराव्रयागद्धपे यामनि नियसविरशेषे शिक्ष उपदेशेन vada) जवाः arate जौवन्तो वयं ज्योति.” भ्रादिव्यमण्डलकरूपम्‌ श्रगोमषि' ary याम अरर ज्योतिःयन्दख्यादित्यपरलात्‌ प्रगाघस्ैन्रलेऽपि सूय समतिक्रम्य शंसन भविष्यतोवत्येतदहशंयति-- “sar वाव ज्योति- सतेन सथं नाति भंसति"-इति

wa उत्तरस्या wat विष्टारपङ्कत्वेऽपि प्रग्रथनेन बहतौ- सम्पादनात्‌ हतौ मतिल्य शंसन भविष्वतोत्येतदर्भयति-- “यदु area: प्रगथस्तेन eel नाति श्रंसति'?- दति भ्रस्िन्‌ प्रगाये yaa ऋचः षट्‌तिंशदक्षरतलत्पादचतुषटयोपेतलाच सा स्लभावत एव wal; पुनरपि तस्थाश्चतुधंपाद acrad दिरावर्तप CAT रवः प्रथमार्ईनं finwaty ae प्रग्रथ्य dzfaw- eau featat बहतो सभ्भादनीया ; aaraferd प्राद मष्टा दिरावत्तय vanta विशत्यश्वरेय सद्‌ प्रग्रथ्य aatat ददती संम्पादनोया; एवं सति हत्या अतिक्रमो भवति |

प्रगाथाम्तरं विधन्त -- “ota ara नोनुम इति ( do ७.२३२.२२०.) रथन्तरं योनिं थंसति ; cata वे ufararfie- नाय सुवते, तखद्धाधन्तरौं aif शंसति रधन्तरस्यैवं सथोनि- त्वायः-इति camer सामः “अभि ता श्र" -श््यतो- स्पन्नम्‌# ; तस्मादर्धन्तरयोनिलम्‌।` sara शतिर रथ न्तरक्लामसाध्येनान्तिभेन सन्धिना सोतेण भाग्डिनगसप्रदर्थनीर्थैः

निति 0 SERS जि यो (कोक ८५ kate a = 9 ne

^ We Wo १,९५.६ WIKIA २.९.२१ ।; Me ato १.१३)

चतुरच॑यञ्चिका २। ६९६.

भेष सुवते v, भतो रा्नन्तरयो भिश॑से षति स्तोत्रगतख्छ रथ marae साख; सयोनित्व समानयोनिलं सम्पश्यते |

wa सूय्यातिक्रमाभावं दशंयनि-- “nay मस्य अमतः दश मिग्यसौ ara सखदुक्तेन मर्ये नाति शंसतिः'-स्तिषर दशान भित्यादिकः camara: ठतोयः पादः we’ सर्वस्व जलमतः दानं" सखामिनं "सदश wae दृश्यमानम्‌, "धमि नोनुमः'-द्तिप्रथमपादगतनान्वयः | भत्र ख्ुक्शम्देनासावादित्यः aaa, तन स्यातिक्रमो नाल्ति॥

पूववद्‌ वहत्य तिक्रमामावं edafa— “ag area: प्रगाध- स्तेन aval नात शंसति"--दति।

प्रगाधान्तरं विधत्ते -- "वहवः मूरचच्स «fa ( te 5. ६१.१०.) मैतादरुणं wat गंमत्यहवं fast रातिवेरुय खमे वा एषो sata भारभ योऽतिरात qafa ; तद्यकेतावर्शं प्रगाथं श्मव्यद्ोराचयोरपेनं anfastafa’-«fa,; wet ‘faa’ सवाभ, tae 'वसणः' तस्मात्तयोम्तटरूपलवम्‌ | “a यजमानः ‘afaca’ aa मनुलिष्ठनि, ‘ae: पुमानहोराते ‘sa अपि उहिश्य क्रतु Tal, उभयः काल्ोरनुध्येयविग्रषसन्गावात्‌ | अतो सेच्ावर्णप्रगाधगणंसनेनाहोरात्योरेव कालेयाः एनं यज मानं प्रतिष्ठितं करोति +

पूदवदननिक्रमं दथयति-- ^सुर्चक्षस इति तन सूयं माति शंसति ; यदु भारतः प्रगाप्रस्तेन दरतो ति शंसनि'?- इति a Wee: इति श्रयमायां सूरपदं सूखवाचि ; अतस्तस्य aaa: |

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# Alo Ale ₹.१.२०---द८. द्रष्व्याणि। ‘oe my”, ofa an’, ‘een aera -ग्ति बय; एगयाः | anges ९.५.१८)

२६६ ` # QataareeR

पनरप्यन्धे दे ऋचौ विधत्ते -- “मरो खौ, viet नस्‌, ते हि द्यावाषटयिवो विष्ठशन्धुवेति ararefaata शंसति ; श्यावा. एचिवौ वे प्रतिष्ठे ; शय मेवेह प्रतिष्टासावमुष्र ; त्यद्‌ खावाहयि- वीये शंसति, प्रतिष्टयोरेषैनं तत्रतिढापयति'-दति। “agt वधो." LAAT (स० १,२.१२), “तै feel (He १,१६०.१.) feiiat; उमे wae द्यःवाषटयिवौ-देवताके। तंन श्ावा- एधिव्यौ सर्वषां प्रांखिना माघारभ्रृत ‘ay मनुष्यजग्मनि दयम्‌, vlaat प्राणिनि मास्यः; waa’ wat “maT erate रश्मयः तथासति द्यावाषथिवोययोः ऋ्चोः शंसनेनोभयो- रपि प्रतिष्टाखूपयोलौकयोः ^ ` यजमानं प्रतिशाप्यति |

wa सूयंस्यानतिक्रमं दशयति -- “sat देवो घमणा सयः शनिरिति तैन aa माति शंसति" -श्ति। उरस्या खचि “at देव) '-शत्यस्िन्‌ प्रादे श्वस्य गुयमाशत्वात्षदतिक्रमो मास्ति॥

हत्या अनतिक्रमं दशेयति-- “यद्‌ गायत्री जगतो तेद awa; तैन agat नाति गंसति""-इ्ति, प्रथमा गायजौ- wea चतुर्वि ्न्यक्षरा, हितोया जगतीच्छ न्दस्काष्टा वल्वासिथि- eau, fafear हासप्ततिर्तराणि सम्पद्यन्ते; तषां दधा faut सनि waffeut हे await uaa: तेन wean अनतिक्रमः |

waaay fat ud fawk-— `'विश्वस्य देवी ware weal a यादोदाति ने ग्रभदिति दिपदां शंसति -<fa.1 श्य- सण्‌ पाददवोप्सा$ सिन्‌ ब्राह्मणे एवोक्ता खचि धातुर्मत्यधंः |

भत जि कको Earner आ.

e ereeraRara ci: ferge— °ब्रमदिति feqar’—ahe ६.५.१५८

चतुर्वपञ्चिंका | २{४॥ २९

सथेयति गेच्छतोति गतिमान्‌ प्राणी # "विख, सर्वस्य ‘ae. ve गतिमतः प्राणिनो aaa, तस्य "जखन; Say खाभिनी anfafaafren सल्यदैवता विद्यते ; ‘ar कलयुरेवता wang नि रोषातिः कुप्यनि, नन aq नैव गह्वातोति हिपदा्याँ ऋचोऽथः। ता मेतां feast भंमेत्‌॥

एता wd प्रण्सति--“चितेध्सुक्थ fafa © wart एतदा. चक्षते, यदेतदटाश्विनं ; निकतिदह a पाशिन्युपास्ते, aca Frat फरिधास्यत्यथ पाशान्‌ प्रति मोखामोति; तत्ते वा एतां हष्टस्मति- ईिपदा मपश्यन्न था रोष्राति ग्रभदिति; तया faa: पाजिन्या अधराचः प(शानपासखत्तयदेतां feat होता भसति fare एव तत्याशिन्धा aia: पाशानपास्यति wera दहोनोग्मुचखत सर्वायुः सरायुलाय-दति। यदेतत्‌ शश्राश्िनं' शस्त सस्ति, तरेतधितेध ane fafa ददस्याभिन्ना saranda चिता एधाः काषएटसमूदा मनुष्यं दग्धं यस्मिन्‌ स्मशानम्धाने, aq सामं “चिवंधम्‌"; ween मिदम्‌ "उक्थं may, यथा श्बभानं जोक. , नाधिनो विभ्यति, averfiad शस्त' भयद्तुरित्यश्रः aq कथं fafa, ataraa— “निति; मृन्यदेवता, ara पाणिनौ TINT सतो ‘Sure होतुः समोपे निवसति | कैनाभिप्राये- गेति मोऽभिपघीयत, agara dar ‘ufcarafa’ sania’ करिष्यति, aga बन्धना पाशान्‌ afaq सोतरि ‘ata

ete ee ee te ees Lee ae = = = oy पि - - new ~~ = [ ता 1

, * “खचिहिसाकमां, दन air saat द्गस द्यादिषु { मघ" de ८२.१७; SIS Wo १,१९.१६ ; पारग Wo Qn) तक्षा Bea षति, "समभवान्‌ - मचयतिः {हसाकमा, ड्खखित्‌"-दति ray साधक; ( ८.4०.८,२.२२.५. ) | ‘aa ( werd; ) "दति Wo do ११६। Hage Slt. ; उणा 938) WaqaARa: पाण १.१.५१८. Blo २} °

२६ ेतरेयत्रा्मशम्‌

मोचयामि" प्रजेथामि इतिः तस्या अभिप्रायः "ततो 8 aa. दैव faw ar: परिष्रणोयतल्रकारणात्‌ तदपाकरणा्ं हष्स्यति "एतां दिपदां तत्परिहार हेतुतरेनापश्यत्‌। कासौ fatter विवक्षायां तदौयो दितोयः पादो “न या” -श््यादिकः प्रदर्शना मुपादौयते (तयाः दिपदया पाशषस्ताया मिष्य: सकाशात्‌ अधराचः THY लम्बमानान्‌ पाशान्‌ हस्तिः ्रपास्यत्‌' feugiat पल्यमानायां aware: पतिता इत्यर्थः तदद्ो. तापि feat: शंसनेन पाशान्‌ श्रपास्यति' निराकरोति) Seay क्ेमेणवायं होता निक तिपाशात्‌ सुच्यते। ततः सर्वायु भेवति, यजमानस्यापि सर्वायुलाय शंसनं सम्मथक्ते॥ पे zai uvafa— “ad argifa ud ae” एति ,

aa सृथस्यानतिक्रमं evafa— “cane जनन cardt काव मचैयतोव ; तेन ad नानि शंसति" दति | दिप्रदायां गतिवाचौ ममुचय-गब्दोऽस्ति, ont aa’ चरादिव्योऽपि म्य aaa सवेदा गच्छत्येव ; Ga’ सूदधामिषानासरारूयतिक्र मः |

एषत्या अनतिक्रमं दर्पयति यदु दिपदा, yaaa’ मा सर्वापि छ्दांस्यभ्याप्ता ; सेन aedt नाति सनि", इति ay यस्मादेव कारखादियं fare तस्मारेव परुषसाटश्यात्‌ उुरषसम्बन्धिष्छन्दो भवति परुष सव॑ च्छन्दसां wath पुरुषद्ारा "सा feet सवरि छन्दांसि श्रभितो व्याप्नौति ; "तेन ewer भपि व्याप्तत्वात्‌ नास्त्यतिक्रमः 8 दति ब्रोमन्ायशाचार्यविरचिते माधवोये वेदा्प्रकाश् tata चतुर्यपञ्ि कायां दितीयाध्याये ( सप्तदप्ाभ्याये ) wat: खण्डः (१०)

चतुर्यपद्धिका | २।५॥ REL

अथ पञ्चमः wus: |

ब्राह्मयस्पलयया परि दधाति ब्रह्म बै avafa ब्रद्मण्यवनं तदन्ततः प्रतिष्ठा प्रयदल्येवा faa fave- देवाय वृष्ण॒ इत्येतया परि दध्याव्मजाकामः परशु- कामो वृहस्पते सुप्रजा वौरवन्त इति प्रजया बै सुप्रजा वौरवान्वयं खाम प्रतयो vite मिति प्रजावान्‌ पशुमान्‌ रविमान्‌ बीरवान्‌ मवति यत्वं. विदानेतया परि दधाति वहस्यतं अति यदर्यो अर्श दित्येतया परि रध्यारेजस्कामो ब्रह्मवर्चसकामो ऽतीव वान्यान्‌ aaa महति द्युमदिति द्युमदिव वै ब्रह्मवर्चसं विभातीति'वीव वै ब्रह्मवर्चसं भाति यद्टोदयच्छवस wanna दीदायव बे ब्ह्मवर्चमं' तद्मासु द्रषियं धेहि faa मिति चिज faa 2 Tadd Made व्रह्मयशसौी भवति aaa विष्ठानेतया परि दधाति तद्यादवं विद्ठानेतयैव परि दध्याद्‌ ब्राद्यगस्यत्या तेन सूयं नाति शंसति ag बिष्टभं fa: शंसति मा सर्वागि छन्दांखभ्या्ना' तेन बृहतीं नाति शंसति गयाच fava a बषट्‌ कुर्याद ब्रहम वे गायवौ ata जिष्टव्‌ away तद्दोय सन्दघ्राति ब्रह्मषचंसौ ब्र्मयणसौ बौयंवान्‌

२०० 1 एितरेयग्राद्मणम्‌ # `

भवति ये विदान्‌ गावा विष्टभा वषट्‌ करोत्यश्चिना वायुना युवं yeaa पिबत afsa- न्ति गायना विराजा वषट्‌ कुर्याद्‌ AQ वं waaay विराड्‌ ब्रह्मेव तदन्नाद्यं सन्द- धाति ब्रह्मवचसौो ब्षमयशसौ भवति wat मन्न afa asa विद्वान्‌ गायना विराजा ane करोति तस्मादेवं विद्वान्‌ maar चैव विगाजा

वषट्‌ कुर्यात्‌ प्रवा aaifa मयान्यश्युरुभा पिवत मरश्िविनैल्यंताभ्याम्‌ (११) tt

अणाणिनस्य wares भका मुचं विधत्ते 'ब्राह्मशस्मलया परि दधाति ; am वे हहस्यतिर््र्यणयेपैनं तदन्ततः प्रतिष्ठापयति ` .-इति | “awa भ्रति geen’ eft ( do २२३.१५. ), एषा त्राह्मणस्बत्या' ; awedday त्राह्मणजातिसखवकूपत्वात्‌ तेन प्रग्पानेनैतच्छस्तं ‘age ्राह्णशूण areata afafed भर्वात

निव्यप्रयोगाथं oferta पिधाय काम्यप्रयोग विधत्ते- एवा पिते विश्वदेवाय am इलयनया ( de ४.५०.६. ) परि दध्यात्‌ प्रजाकामः पशकामःः'-द्ति 9

नस्या ऋचस्तुतोयपाद मनूद्य व्याचष्ट-- “हस्यते सुप्रजा ata इति प्रजया वै सुप्रजा वौरवाम्‌'-दति | पु्रादिश्पया प्रजी पिता ‘quent: भोभनापत्यः 'वौरवान्‌' शूरभत्ययुक्षख | मेन adage “ara वौरवन्तः--'इति' एतद्धपन्नम्‌ `

चतु्धपर्धिका २।५॥ १०६ ..

equate मनुवदति-- “वयं ara पतयो cer भिति". ति। छे ष्यते! quae वयं रयीणां घनानां पत्यः स्याम श्रस्यार्थस्य स्म्टत्वाद्‌ arena yo ज्ञानपूर्वकानुष्टानं प्रशंसति -- "प्रजावान्‌ पष्ठमान्‌ रयिमाम्‌ dara भवति, wate विहानेतया परि euifa” ष्ति। |

फलान्तरम्‌ # अन्या at विधत्ते “awed भति यदर्य भहादिलत्येतया (Ho २,२२.१५. ) परि दध्यात्तेजस्कामो ब्रह्मवे सकामो sata बन्धान्‌ बह्मवचेम avfa’-cfa i भव पाष योऽय मतिशव्दसलग्रमादादनुष्टातान्यपुरुषान्‌ ‘uta’ भतिक्रम्यै- वाधिकं ब्रह्मवकष॑सम्‌ ‘refer प्राप्रोतौचखर्थः।

दितोग्रपादे प्रथमपद aaa व्याचष्ट -- 'शुमद्धिति exafer तै ब्रह्मवर्चसं विभानोति, वीव वै ब्रह्मवशवेसं भाति"-इति | “gra- दिभाति क्रतुमञ्जनषु"-इ्ति हितीयः पादः ब्रह्मवर्चसवियेष्येन दुयतिमत्प्यायो ष्दुमसदिति' गन्द; प्रयुज्यने rata ered ‘amy विदन्भायां ‘atafea बः प्रकाशयुक्ष. भेव ayer ‘fafa सर्वा Ha ured बति तस्य पादस्य तान्पर्मम्‌ | एत- त्प] दषंखमेन द्वेखसं ala 2 भिरेषेणेव भाति - - ढतीयपाद way व्याषट्ं -- “ग्रदोदयच्छवस कऋतप्रजतेति, दोदायेव तै ब्रह्मवर्धसम इनि; afmafa पादै. agagafait- quay दीप्यमानल्वाचकं दीदयदिति पद मन्ति; aerated ष्दोदायेव पे" ब्राद्मगेष दोप्यत एवेति तस्य aces:

aque मनश व्याचष्ट -- “weary द्रविणं tify fea मिति, चिव मिव वै ब्रद्मवर्चसम्‌"-द्ति। भसिन्‌ we “afer

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fades | args शौ (६.५.१०. दरषटश्यभु।

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१०२ .॥ रेनरेयनान्नमखम्‌

fafa विथेषणम्‌, तुङ्ग भेव ; awasee वेदेन Ma 4 विचित्रलात्‌ 4

वेदनपूवक मनुष्ठानं प्र्सति - “awaadl anand भवति, aad विहानेतया परि दभाति"-इति | ¶्रह्मवर्चसो" यत- सम्मतः ब्रह्मयशसो' afafanatfige: उक्ल मर्धं निगम. यति-- "तस्मादेवं विद्वानेतयैव परि दध्याद्‌" इति

सृख्धस्यानतिक्रमं दगयति---“ग्राह्मणस्मत्या ; तेन wa नाति एसति"द्रति। यस्मादिय खक्‌ ब्रह्मरसतिदेवताका, qe सन््योपासनादौ ब्राह्मणानां TA, तस्मानातिक्रमः।

हत्या अरनतिक्रमं दयति- “ae fred fa: शंसति; सा सवाणि छन्दांस्यम्यापता ; तेन बहती नाति पंसति"-दइति। “fa: प्रथमां अिरुत्तमाम्‌"-दतिन्प्रायेन # परिधानोयायास्िराहल्नि- रस्ति; इयं fagy विरावयमाना हाविंशदधिकशतास्षरा सम्य.

द्यते; तदयदन्षरेषु संच्छन्द्सा मम्धभावयितु' शक्यत्वादियं सर्थाखि

छन्दां स्यभितो व्याप्नोति, wit हत्या ufa aenaarareta- क्रमः

aga सूत्रकारेण “आश्विनेन ग्रहेण सपुरोडाथेन चरम्ति"- दति ( WMH Aho ६.५.२१. ), तज्रोभयवा्थं हे याज्ये faa? - “Taran चिष्टभा वषट्‌ gate’-<fa i “sur पिबत मण्िना” इति (do १,.४.६.१५.) गायत्री, <भण्िना वायुना - १तिः( सं° २.५८.७. ) विष्टप्‌ ; ताभ्यां "वषट्‌ कुर्यात्‌ याज्यते तदुभयं asf: y |

तदेतदुभयं प्रध॑सति-- “ब्रह्म वै गायतो, aa तिष्टव्‌ ; anda

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# (भाण २२१० ४०, cove १९१० इत्यादिषु द्यम |

चतु्पश्िका ¦ २।५॥ १०१

wee सन्द्धाति"-दति। गायत्रा ब्राह्मणस्य प्रणापति- ` शुखजत्वसाम्यादेकलम्‌ %, fant वौयैदेतुलवात्‌ तदहूपलम्‌ ¢ ; तदुभवपाठे सति ब्राह्मणेन ae वीयं सम्पादयति

वैदनपूर्वक मगुष्टानं प्रणसति-- "नद्मवर्चसौ aman वौर्यवान्‌ भवति, aaa fasrq maar विष्टभा वषट्‌ करोति""-द्ति।

तदुक्षयोगयनौ तिष्टभोः प्रतौकदयं दभ॑यति-- “ofa वायुना युवं सुदक्तोभा पवनम मखिनेति” दति अखिभेत्या- दिकं विष्टमः प्रतीकम्‌, उभा पिवत मि्यादिकं azar: प्रतौ- कम्‌। एते विष्टुव्‌-गायत्रौ याज्ये इत्येकः पक्षः

पक्षान्तरं विधत्त --“गायत्मा विराजा वषट्‌ gate; aw वं गायकत्रात्रं विराड्‌ ; ब्रह्मणैव azar सन्दधाति" दति) TTT ब्रह्मत्वं पूर्वं मुक्तम्‌, विराजोऽवमाधनल्वादन्रलम्‌ ; भत- wens सति “mary wa ब्राह्मणजात्या संयोजयति

वेदनपू्वक ममुष्ठानं प्रपंसति-- 'ब्रह्मवचमौ ब्रद्मयशसी भवति, ब्रह्माद्य aa मस्ति. ययं विद्धान्‌ गायत्रा विराजा च॒ वषट्‌ करोतिः-इति। ब्राह्मगेनान्त्‌ः योग्यं पवित्रौभूतं श्रह्माद्यम्‌

तयोर्गायतीविराजोः प्रतौक्तप्रदसनपुरःसर मेतं ot निग- मयति - “marta विषान्‌ aan चैव विराजा वषटू कुव्योत्‌,-- प्रवा मन्धांसि मय्यान्यस्थुरभ। fora afta. ताभ्याम्‌”--द्ति। “a वा मन्धांसि"-्ति ( do ७,६८.३. ) विराट्‌, “उभा पिषतम्‌”- दति (Ho १,४९.१५.) area

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@ UUs १९ To ५१०, २५१ eae | ४८ Co, १५०१० १५५०

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raat चैव fare चः-षत्येवकारेण gana विष्य व्याहतिः ; तख्छादपि विगार्पक्ः प्रथस्त इत्यथः %# ५१५ दति श्रीमसायशाचार्यविरचिपि माधवोये वेदार्थप्रकाशे रैतरेयब्राश्मणस्य चतुरयपञ्चिकायां दितौ याध्याये (सप्दशाध्याये ) पञ्चमः खण्डः | (११) |

WAT Ts. Way:

चतुविंश मेतदहरं पयन्तारश्मणीयं मेतेन वै संबत्छर मारभन्तं एतेन wate छन्दांसि चैतेन सर्वा देवता अनारब्ध' वे तच्छन्दो ऽनारब्धा सा देवता यदे तस्मिन्नहनि नारभन्तं तटारम्भ्रपीयस्यारम्भणोयत्व चतुर्विंशः स्तोमो भवति' aaqfare चतुषिंशतव' चत॒विशतिर्वा अरखंमासा अर्बमासश एव तत्संवत्यर मारमन्त उक्यो भवति पशवो षा उक्थानि पशुना मवसङधैः' तख पञ्चदश स्तोतागि भवनि पञ्चदश

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भः ‘ugg’ aarag ( २९९१० ) VASAT उक्त सतिरादविधयः ; कस्पपयेवम्‌ ^ परः तरावे --द्व्यारम्य कण्डिकाइये (ged. })। ''अतिरावण प्रजाकामः; पण्रकामौो वा". दरद्णपनन्वौद वधिसूतम्‌ (१४.१.२. )। asa भुपक्रमै “adel भ्योसिरीमः प्रथमं विपीयन-दरति ( भाग ye ), 'मपरि्टोमः०--०वान aia (एमा eg’), was Raa’ ara |

चतुर्थपद्चिका २। ९॥ ` ३०४

went मासो मासश्र एव तल्ंवत्सर मार भन्ते तख षष्टिश्च जौणि शतानि सोनियास. वन्ति संवत्सरस्याहान्यदहःश एव तत्छंवत्सर मारमन्त Sfqeta एतदहः स्यादित्याहरंगिनिष्टोमो वै संव- त्सरो' वा एतदन्या ऽभग्नि्टोमादददांधार बिग्याचेति यामिष्टोमः खादष्टाचत्वारिथास्मयः पवमानाः स्युश्चतुविशानीतरयाशण म्तोजाणि az ufesya नोशिच शतानि स्ताजियासमवन्ति संब रसरस्यादहान्यहःश एव तत्सं ATT मारभन्तं उक्थ्य एव Aaya यन्नः wae wt aaa चतु famfa स्तोचागि werengraceqafay wa- SRN एव खात्‌ (१२)

शरमनिष्टोम sam: पोषश्यतिरातयेवयेषं चत्रुःसंखो ज्योति- छामः सार्दनाध्यायषोडगकेनामिदह्ितः; श्रय UNA मुप. जोव्य प्रवत्तं मानं “nara” नाम daacaa मभिधातव्यम्‌ # | संत्सरगतेषु षश्यधिकशतवयदधिवसेष्वीकस्मिन्‌ feast qatarat चलमृगां संस्थानां मध्ये कयाचित्‌ मंस्थया युकः सोमप्रयोगः शर्वो ऽप्यमुष्टेयः। ata भेककदिनमाध्यः मोमप्रयीगो वदेष्वदःशष्टेम व्यवद्धियते। संवत्सरसत्रश्याद्य दिउसे किद्‌लिरावम्खः ata प्रयोमोऽनुष्टेथः। तदनन्तरभाविनि हितौ वदिवसेगुष्टयं सोम-

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© सामबाद्णः चतत्‌ चतुथपञ्चमप्रपाठकग्राराप्रातम्‌ | १९

३०६ Ratanrere |

प्रयोगं विधते -- “चतुविंश मेतदहरुपयन्तयारश्रशोयम्‌" -इति ) "चतुविंश -नामकः कचित्‌ स्ोमविशेषः। हन्टोजैरेव मान्रावते-- “अष्टाभ्यो teeta, तिभिः चतखभिःस एकवा; werent freafa, एकया तिष्धभिः चतरभिः; wena feeofa, वतङूभिः एकया तिषटभिः" - इति awa मर्थः-- सोतस्याधारभूते et विद्यमानास्तिखर ऋच श्राघ्तसि विशेषेण चतुषिगतिसञ्चाका wa: aera: | सा चा- वत्तिस्तिभिः पर्यायैः सम्पयते ¦ तच प्रथमे vale प्रधमा ad त्रिरभ्यस्य ‘a? satan ताभिस्तिरटभिर्गायेत्‌, दितौया चं agate मभ्यस्य ताभिश्चतरूमिगायेत्‌, हतीयाया we: waza चाठत्तिः। एवं प्रथमपशाये set ऋचः सम्पद्यन्ते; साभि "हिङ्करोति' उद्रायेत्‌। हितौयपर्याये प्रथमायाः anens:, दिती- घायासिराहस्तिः, ठकतोयायाथतुरादच्िः ; saa मशाप्यष्टौ सम्प ` दन्तं ठतौयपयाये प्रथमायाश्तुरात्रन्िः, दिनोयायाः सक्ष. त्माढः, ढतौयायास्िराह्तिः; इत्येव मव्राप्यष्टौ सम्पद्यन्ते! तर्‌ सर्व fafaa: चसुषिंशतिसद्कवा war भवन्ति सोऽयं चतुविंश- स्ताभः। ata स्तोमेन Sala aferarefa निष्पा्न्त, तदहः ‘aqfamy ; aren Raew: “उपयन्ति' wafasa: | wa way सर्ववोपयनग्यासत इति शष्दावनुशानपरो ; cand विधान मेव सत्रलिङ्गम्‌ “तत्र ये यजमानास्त ऋविजः -दरति श॒त्यन्तःत- efant सर्वेषां यज्ञमानल्वेनोपयन्तीति बहुवचनम्‌ तस्यैतच्याङ्गः अःर्रणोयम्‌'-दइति नामधेयम्‌ |

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* ae alo 35 एष्टाषड्डश चिषदादयः पर्‌ सोमाः, तनन्डन्दोसानां चततिशा- दयसयः णोर WTA: ; तेष्वयं प्रधमः

चतु्ंपञ्चिका।२।९॥ ` qos

, were areal निवचनं दयति ‘aia deat मार- भन्त, एतन स्तोमांख छन्दांसि चैतेन wat टेवता ; qarcay’ 8 ARR ऽनारयया सा देवता, यदेत स्िन्नहनि नारभन्ते ; तदार णोयस्यारम्पशोवत्म्‌ "दति; एतमेव चतुविगेनाहा सतिणः संवत्सर सत्रं aay | aa साम. मयसव्याचे स्तोमाः, aye: प्रयोक्तव्यानि यानि weife, वाय aawarufaara: र्वा देवताः, तत्‌ सव मनेनैवाश्जारभन्ते 1 यदि aufatafaragin न्दो वा देवनान्तरं वा नारभरन्‌, तदानौ मन्यशित्रदनि शारसख् मपि शन्दोरेवतादिक मनारन्धमद्टश सभेव भवति। तस्पादस्िनेवारनि सवस्य सख्यः प्रारम्भः | तथा सत्यारभ्यते ad मल्िच्रहनौति च्छत्यत्यामम्पर्ेगये नाम सम्पन्नम्‌ aera. तस्मादक्गः पूवभािनि प्रावणोधास्येऽङनि ad प्रारब्धम्‌, तथापि तय प्रायणःवस्यातिमात्संयुक्तम्य भंवत्सर।पकमस(धारणलयात्‌ अन्य ware तिरपरेगप्रारश्भोऽसिनच्रद भरतीव्यभिग्रल्नस्यारभ्भणौ- यल सैव YHA |

afaasfa wialand fra d ---“ चमु विशम्योमो भवतिः तश्चतुर्धिंशस्य चनुर्धिश्त्वम्‌'-दइति ¦ यान्यत्र स्तात्राणि सन्ति, ay aig यः ga सुदाङतः* चतुविंश सद्ासम्यादनशूपः स्तोमः; एव कर्तव्यः| ईट्गम्तामसखामादैवाङ्नोऽपिचतुकिथं माम WAZ

तं स्तोमं wiafa-— “aafanfaat असामा, waren एव awa मारभन्तेः' ददि) दादतमु मानेषु विद्यमाना अर्थनासाथतुर्चिंशतिसष्वाकाः | न्रा मत्यदमामगष्ट एक मनं

# ‘aya प्राकृतम्‌ कं।

३०८ एेतरेयत्राह्मणम्‌

मास समाप्य पुनरप्यपरोऽहंमास इत्येवं क्रमेण घतुरविंश्रतिसम्यत्ती संवत्सरसतप्रारस्मो भवति तस्माचतुर्विंशस्तोमः प्रशस्तः |

एतस्मिव्रहनि सोमयागस्य संखा विशेषं विधत्त -- “SRT भवलि ; पशवो वा sania, पशूना मवरद्”-द्ति , अस्नि- शो मादृष्वभावो योऽय सुकष्योऽस्ति , सोऽस्मिव्रहनि प्रयोक्षव्यः | तच दादशस्तोतेभ्य saute भ्रौण्युक्थनामकानि स्तोत्राणि : तंषां पशप्रा्िद्धेतुलात्‌ षश्लम्‌। भत उक्यानुष्ठानं पशुपा भवलि

तस्मिन्नि चोदकप्रापस्तोतरशख्रसश्चां प्रणसति-- “तस्यं पश्चदग स्ोताणि भवन्ति, पञ्चदश शस्ाणि; anit. मासश एव वस्सवस्लर मारभन्तं ”-दइति ¦ मासगतानां दिवसानां तिंशक्वात्‌ स्त तरशस्तसह्याया्च तथालाश्नासत्वसम्पत्तिः ! "मासशः" vate. मा सक्रमे केत्यर्थः

स्तोत्रगताना seat a_i wiafa-- “तस्य षषटिख तीखि aaa स्तोत्रियास्तावन्ति संवसरस्याहान्यहःभ एव asians मारभन्न »-इति एककस्य सोस्य चतुर्विंशतिनलष्यायाहन्तः व्वचदत्याः Mane ऋषवशतुर्विंशरति; सम्पद्यन्ते : तथा सनि ang way चलारिंणटधिक्षं गतद्यम्‌, ory म्तोतेषरु विंशत्य- धिक भकं शतम्‌,--एतदुभयं 1 मलित्वा षथ्यधिकशनव्यसक्षाकाः स्तो तिया: सम्पद्यन्ते | संवस्सरसम्बन्धोन्यहान्ययि aaa ` तथा सति ‘wen? अहः क्रभेरोव संवल्सरसत्र मारभग्तं ¦ तदेव मुक्तः wy उप्रपादितः न॑

~ ~ =-= न~ mem = नन = er

२४२१० व्यम | ¡ "लतविक भवति ° प्रतितिष्ठति" -द्तिधताण्त्रा, .२,५-१० |

चतु्धपञ्चिका | २।६॥ १०९.

अथ Tat विधत्त ५--“अमििष्टोम wae: enfeary- रम्नि्टोमो वै संवसरो;नवा एतदन्यो sfadrareweture, विष्याचेति""- इति यदिदं दितौय महः, सोऽनिष्टोमः क्तव्यः; अग्निष्टोमस्य समंवत्सरसत्रूपतयात्‌। कथ मिति चेत्‌, तदु aa भरग्नि्ोमादन्यः' saarfesu: कचिदपि क्रतुः संवस्षर सव्रावयवभ्रूतः, एतदः नेव दाघार' नैव धारयतु wa) रजु ufecragtia सवा।श्छशिनिष्टाम।!दनि दिश्चन्ते ; तदेतदग्निष्टोमख धारयिदत्वम्‌ तस्माद ग्नि्टोमव्यतिरिक्तः क्रतुरतददः “a fae’ fata मनुष्ठापयितु भक्तः इति" पवं प्तान्तरवार्दिना मसिप्रायः॥ सिन्‌ ay सोम विरषं विधत्त —“a यद्यम्मिष्टोमः स्माद्‌- दराचलवारिशाख्ययः ganar स्युधतुनिगशानौतरास्ि स्तोज्ाणि; ag ufgaa wife शतानि स्तोतियास्तावजि संवस्षरस्याहा- ay एव तन्संवत्षर भारभन्तं प्ति! अरग्नि्टोमपन्न त्रहिष्यवताम-माध्यम्दिनिपवसानभवपवमानेष्र fay Waser: चन्वारिथनामकः स्तोमः; कर्तव्यः मच छन्दाभेरव areata Caremal चिक्षरोति, तिरूभिः द्ाद्ण्मि. एकया ; षोड- श्म्धो feetifa, uw wart a faafa: मद्राद्गभिः ; पीडगभ्यी fexadfa, दाटशभिः amen निमिः इनि + | wae vara प्रथमाया छचस्िगह तिः, दितोयाया हादेपक्रल्र wate, दतोयायाः ames: ; हितौयपय्याय प्रथमाया; सक्लत्पाटः;

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@ एव मैव पान्तं तामत दयखःपि {aio ता) ४,२.११.१२.१। t warerfame प्रतिहितः वि्लिः( ate ate ११२. ), MATA चापरा तत

सवेष ‘APG awa aly ( २.१९. )।

Rte Qataarwea

दितोयायास्िरात्तिः, ठतोयाया इादशजलल् आहस्तिः ; कतौय- wana प्रथमाया wena ब्राहत्तिः, दितीयायाः ware’, टतौ यायास्िरावत्निः ; भिलिव्वा्टावत्वारिशत्‌ सोतौयाः सम्प. aa) सोऽय मटाचलारिशः स्तोमः। मेतं पवमानेषु fay सत्वा faeu नवस स्तोतेषु ugfad सतोमं कुयात्‌ तथा सति परवमनस्तोतेषु चतुधल्वारिंशदधिकशतसछ्यकाः Salar: सम्प- यन्ते ; इतरस्तोतेष षोडशाधिकशतदयसष्याकाः; ततो मिलिल्ला षर धिक्षशतत्रयसद्चयाका भवन्ति ¦ संवस्सरगतामा महा मपि MAAS RATA PART समारभन्ते |

एवं wee सुपन्यस्य तयोः समविकल्यत मभिप्रेत्य पुनरपि पूर्वाक्ष सु कष्य सुपन्धस्यति “sar एव स्यात्‌; UTTAR यन्नः, पश्समुरं wa, मर्वासि चतुविंशानि सलोताणि प्रत्क्षाञतददह- wafast ; rater एव स्यात्‌" इति ! उकण्य्तोज्राणां पश्ु- साधनत्वात्‌ SAN यन्नः पसमद, सतं MATE कर्तव्यम्‌ किञ्च उकष्यपक्ते सवाणि drafty चतुविंशस्तोमकानि; रु त्लिष्टोमपक्ते प्रवम्रानव्यतिरिक्गान्येवं तथा संति प्रत्यकात्‌ मस्यतर्येवेतदजशतुर्विंश्रं भवति; wate कुचाप्यप्रविष्ट त्वात्‌. तस्मादुक्ध्य एवः काः; #: एवशब्दो विकल्पार्थः ; “afagla sq महरुकथ्यो वाः" इतिमुभरकारवचनात्‌

द्रति खीमस्रायणाचाययेविरचिते माधवौये वदाथेप्रकाशे

रेतरेयत्राह्मणस्य चतुयपश्चिकायां दिसोयाध्यायै ( खप्तदशाध्याये ) षष्ठः खण्डः (१२)

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* एप सासमाद्मऽपि द्रव्यम्‌ (तार Are ४.२.१३,१४.)) 1 पराष१ Who 68. 3. ५, PK |

चतु्ंयश्िका | Rj oy ११६

WY Waa: खण्ड.

वृशद्रथन्तरे सामनो waa एते वै ager नावौ सम्पारिण्वौं यद्‌ वृषद्रघन्तरे' ताभ्या मेव तत्संव्रं तरन्ति पादौ वै व्द्रयन्तरं' शिर एतदः पाटाभ्या मेव तच्छिथं पिरोऽध्यायन्ति यत्तौ वै वृषद्रथन्तरे' थिर. एतदहः UA मेव तच्छ्िग्रं थिरोऽभ्यायुवते ते उमे समवरुज्यं उमे समवस्जयुर्ययेव fear नौर्व- AME तौर मुच्छ्नी gaa मैव ते सभिशम्तोरं तौर wei: पेरन्‌ उभे समवम॒ञयुम्तदयदि रथन्तरं मव सजयुवहतेवोभं अनवरुष्टं' wa यदि वुदधद्व्जेषु रथन्तरयोवोमे अनवर यदे रथन्तरं तदरूपं यद्‌ वृडतदंराओं यद्रयन्तरं तच्छाक्करं ag qeagaa मेव मेते उम Wares भवतो ये at ud fasta एतद हकपयन्याप्त्वा ते sem: संव- QU ATTA आघ्रा मासश अघ्रा म्तोमांशच छन्दांसि चाप्र स्वां देवतासप एव तप्यमानाः' ade waa: संवत्सर मभिषुगवम्त waa ये. aT अत उदं संवत्सर मुपयम्ति qe ते भार मनि नि दधते a गुरशर्भारः sae एनं परस्तात्‌

१११ i रेतरेयव्राह्मशम्‌ x

कमभिरष्नावस्तादुवेति वै खस्ि संवत्परंख पार AAA NO ( १३)

wea teamed विकस्पितं # सामय मनव प्रशंसति -- “awgumat सामनो भवत ; एत वै awe नावौ मम्पारिश्छौ यदृ घहद्रथश्तरे ; ताभ्या मेव तस्संवव्सरं तरन्तः. द्ति। “ar fate हवामह -द्व्यस्या ayaa साम दहत्‌", “ofa ar शुर नोगमुमः-इ्न्यस्या Was रथन्तरम्‌ 'प। एते उमे रपि यन्ना- स्थस्य समुद्रस्य सम्यक्‌ परतोरप्रात्िसाधनभूते नावौ daa. मतस्य समुद्रङूपतवं शाखान्तरे दितम्‌-- “समुद्रः षा एते प्र waa, ये संवरत्तर मुपयन्वि"-द्ति (Fo सं.७,५.१.२. ) तथा खति तत्पारनयनङत्वोः सामो नौरूपत्व' युक्षम्‌ मतो तदद्रयन्तर्‌- Suna, मेव Wiataaed age नरन्ति गदामयनस्य पारं गच्छन्तोत्यर्धः

प्रकारान्तरेण प्रथंसति-- “पादौ वे ब्हद्रथन्तरे, शिर एतदश्ः: पादाभ्या मेव तच्छ्ियं शिरोऽभ्यायन्तिः"- इति | ` यथा मनुष्यस्य पादौ. तधा सच्रस्य ‘waa’ सराममो ; "एतत्‌" ्रारम्भणोय महः शिरःख्थानोयम्‌ ततो यथा लोके पुरुषाः wena भेव रई णन्तरात्‌ AE Tal, तत्र॒ भिरोऽभिलख्याम्यङ्गगकर्णाभरणादि

* 'रदनरसाम्‌ा वहसामुोभयसामुा वा प्रदं यजेत "दति भपन् The १.२१।

t Ge Wo BUM ऋचि आरण गा० १.१.२७. wea ( योनिसामं ); we are २. १.१२.१,२ WHT: MTGE उद्यन alo Uw. TET ( NA ) |

1 छण भान द.१.५.१ BAT We aro ३.१.२१. रथन्तरं ( fra); we we १,१,११.१२ WM प्रगादठचै Haro गा० १.१.१. रथन्तरं ( FIT ) |

9 एव Re ताब्रा ५.८.४.६. ( अवसाम--ये* गा० ९४.१.१४.) |

चतुर्थपञ्चिका son ats

wat ‘Pray शश्रायन्ति प्रापयन्ति; एव भेते afew: सामभ्य मेतदहः प्राप्रुवन्ति \

पुनरपि प्रकारान्तरेण प्रणंसति --' पक्तौ पै sera, गिरं एतदः ; TaN मेव नच्छियं गिरोऽभ्यायुवते'"-श्ति। aur लोके vat wana Farah aaa, गिरोऽभिलच्य नानाविध. ferenaseui ‘fad मिश्रयति; va मत्रापि सामभ्या aafae: इनि “जिस्‌ अनुष्टानश्पां सतिगो ‘gaa’ fasafea |

amare पररिया faqufa "ले उभ समव्खज्ये ; यं उमे समव्टञवुगरवेव fear aaa नोर watt Wada aq ते afanait तोर ama: अवेरन्‌ a va समवद्जयुः"- efa 1 ‘si समरन anager’ often, एकस्याप्यन- agra quuafearm: |) ‘a afaett ऽनभिन्नाः सन्तः saa परित्यजसि, तथां शिनैनासाटण्य' प्रसज्येत लोके fe नाविकः सायं कासे नापरं कथाध्चिद्रल्वः तोर्म्य-खाणो षध्रतिः यदा प्रवाहवेगाद्रात्रौ सा रल्लम्बच्ति, तदानीं बन्धनस्याणाज्किवा नौः प्रवङवेगनेतम्तनो नोग्रमाना प्ररनौर मवाक्लोरश्च पुनः पनः ATE amt रस्षकाभावात्‌ श्वेतः गतर aie Wey! णव मेव तै सत्रिणः सामदयाभाते वसतो रमदटगानद्ध विप्रान्‌ च्छम्तः' wy तिष्ठन्तोऽपि ‘qaqa’ विनग्येनुरिन्य्थः। ये सामहय मपि परिः त्यजन्ति, तेषा Raed दोष इति द7यितु खमे समवर्जगुः' - दूति पुमरभिधानम्‌ `

उभयोः साम्नोविकन्पितत्वाटेकपःग्ग्वागी दोपं। नास्तौलये- सह्यति - “तद्यदि रथन्तर मवने युवद त॑योभे पनवषृष्टे; परथ यदि हृदयद्धजेयु रथन्तरेरवोमे भनयखष दति "तम्‌ तयोः

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साश्नोमध्ये यदा रथन्तरं uftaray:,— swearafaey:, तदा छतेव mates: फलत सभय मध्यपरितज्न मेव भवति ; एवं हहत्यरित्वागपचेऽपि रषन्तरेकव सम्पू्तिः |

भ्रकारान्तरेण सामहयं प्रपंसति-- “यष्ट रथन्तरं ated, द्‌ छहक्तदेराजं, यद्रथन्तरं awa, यद्‌ दद्तदैवत भेव मेमि डमे अरनवद्ष्टे भवतः इति | पृष्टपषडङ# षट्‌खपि दिवसेषु maw एढस्तो त्रनिष्पादकानि षट्‌ सामानि,-- रथन्तरं, set, sex " वैराजं, शाक्षर, रेवत fafa | ततर रघन्तरस्य ठहतशोत्पत्तिस्थानं पूवं सुक्तम्‌ ( २१२ ०); "यद्‌ द्याव we ते शतम्‌'"-ष्त्यस्या सच्त्पन्रं aed wart; पिका सोम मिन्द्र मन्दतु त्वाः-इत्यस्या syed वेराजं साम ‡-; “श्रो wet पुरो रथम्‌" -श्त्यष्यां गोय- मानं शाक्षरं साम §; ^रेवतोनैः सधमारै--इत्यस्छां गोधमानं रैवतं साम ।। तत व्रशद्रधन्तरयोरेवातोत्तरख(नोयत्वादपेषसामफल- सिश्ाथं मेते उमे परित्यक्त एव भवतः ; उमय्परित्यागः सवथा योग्यं इत्यथः

* “wer: eet भवति" षति de Go ७.२.९.२। पृष्ठानां सगृहः एणाः पान्न, २.५२, diol “भिभ्वं पूर्वं grate विषुवतं उपयन्वि ve मुत्तरम्‌" दति wae प्रा १२.२.२.४। परात्‌ रौप्पन्धां ( ११६ क” , द्रव्यम्‌ |

+ Bo Me १.२.४.९ शचि Wire are १.१.९१, aNd ( यीनिसाम ); Go ate २.२.११.१,२ WIT प्रगाथददे Wee गा० १.१.५०. wad ( स.म्‌ )

{ We Mo ५.१.१.८ ऋचि Wo Me २.१.२१. वराजं ( aaa) 5 Bs aye १.१.१६.१.-३ GS Awe alo १.१.१०. बेराजं ( HII ) |

$ Jo Mo ९,१.१४.१. (2) 1

| द° wre २.२.१.९ wie are ate २.१.१७. Cail ( योभिसाम ); भार १,१.१५.१-३. बचे Gwe ताम ane, वतं ( सोभम्‌ )।

चतुश्पशिक्ा।२।७॥ ` ark

` उक्षख्वाक्राऽनुकागे miefr— “a ar एवं farts एतद्र quamarat वैते ऽहःशः संवत्सर माघ्रार्हमासय wT माशवं wat स्तोमांख छन्दांसि aa सर्वा देवताश्चप एष सथ्य मानाः Waals waa: संवत्षर मभिषुरठन्त भाषते" इति + ‘@ सतिः पूर्वोकतप्रकारेण wera महिमानं विहांस eee अनुतिष्ठन्ति, ते सत्रिणः संवत्षरसतत मदषारेण, भरमार, AMUN, म्तोमच्छटन्द्‌ादारेण, सवदेवतादहारेण प्राप्य तथरन्तौ fafaw सोमपानं कुर्वन्तः संवत्सर मपि नैरन्तर्येण सोम मनिः षुरखन्त रासते ; fan: कोऽपि भवतौत्ययः अश्र सत्रगतस्योत्तरपक्तस्य प्रत्यवर्रोहं fart—- ये वा चत "उड सवल्छर मुपयन्ति, qe वै भार मभिनि दषते; सं वै गुरुभारः Tera पमं प्ररस्तात्‌ कमभिराष्ठा ऽवस्तादुपैति, सवे स्वस्ति dace पार मश्रतः-द्ति। धये वै' केचन मन्द awe: सतिः अतः, भार्रकोयं चतुदश महः प्रारब्योद्ः ATE लोम्येनैतकंवत्सरसतम्‌ "उपयन्ति भनुतिष्टन्ति, तै सजिणो ‘aw 2 ae मेव भारम्‌ श्रभिनिदघमै खस्थापरि खापयन्ति; a as सएव गुरुभारः oma भारगङ्कान्‌ सतिणो विनागयति) (अथ पूरवोक्षपेलसणयेन येः सत्रिणः "एनं dat परस्ताद्‌, प्रादित श्रारभ्य विहितैः acifa’ पूतपक्षगतैः ory अनुष्ठा aay श्रवम्तात्‌' प्रत्यवरोरक्रमेण "उपेति" खपयन्ति, अनु- तिष्ठन्ति ‘aa’ तएव afan: व्वसम्ति' ah संवक्मरसत्रय an’ समासिम्‌ ‘sega’ श्रवत, प्राध्रवच्ति अय मर्यः |- अस्ति किख्िददिषृवत्रेोमकं संवत्छरसन्रस्य मध्वे

ey ers + 1 71 = were vee [नरयरमीममे 1

जयि मन == ements ae anne

ee Peay meta, पाठ, पर सण्मसपकविभदः.।

aie ितरेयक्राद्य म्‌

wearers वडा रथन्तरं uftaay: ewearafaay:, नदा eves प्रयोगसम्मृर्तः फलत wa Agoftes भेव मवति ; एवं erties रथन्तरेगैव सम्पर्ति; प्रकारान्तरेण सामदयं प्रथंसति-- “ad रथन्तरं ade, यद्‌ BWR, URI तच्छाकारं, यद्‌ वहत्द्रेवत भेव सेत SH भनवे भवतः"-इति | पृष्टाषरहे# षटस्वपि दिवसेषु क्रमेण एडस्तोतरनिष्यादकानि षट्‌ सामानि,-- रथन्तर, हद्‌ ed ` वराज, WTC, रवत fate | तव रथन्तरस्य ठषहतसोत्यसिग्थानं Ta सुक्तम्‌ ( ३१२ ) ; यदु याव इन्द्र ते गतम्‌ ~ इत्यस्या अथ्यल्यत्रं वैरूपं साम॑ ; “पिदा मोम मिन्द्र मन्दतु त्वा" शूत्यस्वा ख्ययुत्यत्ं वेराजं साम ft ; “श्रो eet पुरो यम्‌" इत्यस्यां az. मानं शाक्षरं साम §; "रेवतौमैः सधमार्‌"-दत्यस्यां गोयमानं Fad साम! Aa हहद्रधन्तरयोरेवातोत्तरसानोयत्वाद्पेषसामफन- faery मेते उभे भपरित्यज्ञे एव भवतः ; उभयपरित्यागः सर्वथा योग्य इत्यथ;

PE Ae ` me ~ ~“ eee जण = em = = = „~ ~~~ ~ eed bs Owens

* “out: षडहो भवति"इति तण do ७.२.९.२। Weal SAW: GET: ate x, २.४९. dol “अभिर पूर्य पुराद्‌ विषुनत उपयन्ति ve तरम्‌" द्रत DA po १२.१.३.४। भरलात्‌ Arora ( ३१६ क, ) zeae,

f Ro Mo ३.२.४.६ शचि भान गा०१.१.९. १६२ ( गोनिवाम ); go ate २.२११.१०२ षाः प्रमायते ere गा० १.१.९०. wud (स्क्म्‌))

1 We Go Wt कि भरण Me २.१.३१. परागं ( Stier); ठ, Gye ९.१.११.१-२ अधे Hero मा० pete, बराजं ( नोषम्‌ |

$ उम च्रार ९.१.१४.१.(९))

जा, २,९.१.९ अचि चारन गान २.१.१७ रदः ( Pre ); Fe शा VERY RR. कचे We मार २.३.०. बतं ( सोम्‌ )।

चतुक्पड्िशा १।७॥ ark

: उक्लखाङ्रोऽदुएानै प्रसति- देषा एवं विदा. cagy quater ठे ते sem: संवत्सर माघ्रादमाखथ अघ्रा भाश्थे wat स्तोमां छन्दांसिष aia सवां eared एव तशः मानाः सोमपोथं wea: dant मभिषुरठन्त भासतेः-ष्ति s "येः सतिणः पूर्वोकषप्रकारेय एतस्थाक्को महिमानं विदां eran anfasfer, ते सतिलः संवश्तरसत मददरिण, भर्धमाखदारष्यः ATA, स्तोमच्छन्ददारेष, सवटेवताहारेख प्राप्य त्वचरग्तो fafan सोमपानं कुर्वन्तः संवत्सर मपि नैरन्तर्येण सोम भनि quay भासते ; विघ्नः कोऽपि मषतोत्वधेः |

अथ सत्रगतस्योत्तरपक्प्य प्रव्यवरोहं विधले-- श्ये at अत "उषं संवत्सर qiifa, aw वै मार मभि fa दषते; सं वै गुरुभारः Eras एनं परस्तात्‌ ककिर ऽवस्तोदुपेति, सवेस्स्ति संवस्सरस्य पाय aga’-cfa | शे वैः केचन मन्ड aaa: सजिणः "अतः" भरन णोयं agian महः प्रारभ्यो्च' are. लोग्येने तत्संवत्रसत्रम्‌ 'उयम्ति' wafasfa, ते सज्रिणो शुर वै" are मेव भारम्‌ 'प्रभिनिदधमे' खस्यापरि सखापयन्वि; ‘a धे सएव गुरभारः (शृणाति भारनाङकाःन्‌ सविषो विनाशयति) ‘ay पूर्वोक्षवेलचणयेन यः मतिणः "एनं संवसरं ‘arene श्रादित area विहितैः कमभि: qauend: “My भनुष्ठा- aay ‘waaay’ प्रत्यवरोहक्रमेण ‘sifa’ ठपयस्ति,- अनु- तिष्ठन्ति सैः एव मिणः ‘afe’ aay degree "पारं" समामिम्‌ ‘spya’ पशुवत, प्रा्वेश्ति

अय मर्यः | -श्रस्ति किद्धिदिक्वत्रामकं संवस्तरसशरद् मध्ये

sat oe oom ee tte भक i oe

a -Kay माणम पाठ", पर मन्गन्पशकिई. |

ts 1 पेतरेयक्रान्चश्म्‌. i

राजा बां असख मायशौयो ऽवरोधन मुदयनौय णद्रो- धनं तस्ति संवत्सरस्य पार मश्नुते एवं az at वै संवरसरख्य प्राणोदानौ वेद सवै afa संव- QTY पार asad ऽतिरातो वा wer प्रायणीयः प्राणं उदान उदयनीयः सस्ति संवत्सरखछ पार मण्नुतै aud बद्‌ एवं enc (eg)

इत्ये तरेयन्राहमणे चतुथपञ्िकायां दितौयोष्यायः nei

परथास्मिन्ञारख्णोये चतुर्विंगेऽर्नि facade afe- दिशेष' विधत्ते-- “यदै चतुर्विंशं तम्बहात्रतं sefeaara होता va. faafa ; लददो महाव्रतोयेनाह्का प्र जनयति; संवत्सर म॑व- करं रेतः सिक्त जायते; तस्माल्समानं avfeal निन्केवस्यं aa-

, त्यषद्वा एनं परस्तात्‌ aafacrar ऽवस्तादुपैति एवं विद्दाने- तददहरुपैनि". इति वदेतद्‌ fenta चतुविंश महः, तटेव संव- करमतस्योपान्य' weave महर्भवनि आरारोरक्रमेण चतु विंशाख्यं qaranafedta ay: ; अवरोदक्रभण मङात्रताख्य qaraare feata महभवति waa हितौयत्वसाम्येन तयोः ate ayaa, faders हहदिवसाम्य मस्ति “तदिदास भृवनेषु ज्ये्म्‌.-श्येतदमङ्गं ( Ho १०.१२०.१-९. ) ठहदिवशब्देन faafeaq ; प्रौदृस्य द्यलोकस्य प्राभिद्धेतुलात्‌ एतदेवोमयन्र निष्कोवसधशस्ते क्रियते तथा सत्यस्मिन्‌ featash aqfas- नाभके इहदिवनाना तदिदाशेत्यादिना निष्केवस्श्स््रगसूक्षेन | होता रेतः fawfa ।. तत्‌ रत्‌ रिक्तं शतो महब्रतौ-

a wadafeerr २। ८४ ate:

we’ sara पङ्काः ठरुदिवास्य गिष्वोवस्वय युक्तम प्रजः नतिः wa संवत्सरसव्रमध्ये एव रेतःसेकः प्रजनमे हिवोये- धाग््मदिवसयोः waaay ततो लोकेऽप्ये केकसिन्‌ संवस्षरे रेतः Qe: उत्पसतिञे्युभयं मम्मयते यद्यद्‌ दहितीयोपान्त्ययो- दङ्कोरभयोरपि fafaar प्राणिनो जग्महप मेकं क्ये मपे. शितम्‌, "तस्माद्‌" हद दिवनामकेन सुक्घनोभवतर निष्कैवस्य शस्त “समानम्‌ एकरूपं कश्तव्यम्‌ शयः" पमान्‌ एवं मदाब्रता्ः.- साम्येन निष्केवल्यस्य कर्सव्यतां विदान्‌ "एतदु हितौय aec- तिष्टति, पमान्‌ "परम्तःत्‌' सतस्य प्रथमभागे भ्रागुलोम्येम क्रियमानैः क्मभिः “ar प्राप्य “saa soc प्राति लोम्येनैव संवर मनतिष्ठति वेदनं प्रणंसति “afer संव. त्रस्य पार aad एवं वेद^-इ्लति॥

अध संवसरसतस्याद्यन्त Carat विधसे-- “यो वै संव- सरथाव्रारन्च पारशव az, सवैम्नस्सि aware पार मप्तुते; निरतो वा भरस्य प्रायणीयो (वार मुदवनौयः पारम्‌ ` इति यः" पुमान्‌ daar ममृदरस्थानोयस्य “aaa शर्वाक्तोरसधानौ्यं प्रयम मः, "पारे" परतोरस्थानोय मन्तिमि महः, “ag तयोर्हो- ware wer निचिनोति, oa: पमान्‌ भवित्ननंय संवःसगसजस्य "पारं" समासि प्राप्नोति योऽय मतिरातरमंस्यः, एवस्य प्रय- wa wea अनुषेयतादर्तीक्रोग्खानीयः; a पवातिराव्रः पनः 'उदयनोयः' समाप्तावनुरेयलात्‌ परतोरम्यानौयः॥ वेदनं WT सति-- “afiq संवल्सरस्य पार मभनुते एवं वेद". इवि॥

उक्नावाद्यन्तावनिरावौ प्रणमति--्यो यै संवत्सरस्यावरोधनं चोद्रौचनं चेद, खये afer संवत्घरश्य पार Aree ; ऽतिरात्रो

३२० ेतरेयत्राह्मण्म्‌

a भस्य प्रायणोयो ऽवरोधन सुदयनौोय उद्रोधनम्‌-दइति। qaqat सखाधीनः क्रियते येम प्रारम्भरूपेण कमणा aaa "अवरोधनम्‌ | उदुष्यते समाप्यते येन कमणा तत्‌ "उद्रोधनम्‌" t अन्यत्‌ पूर्ववत्‌ वेदनं प्रण्सति -- “स्ति संवःसरस्य पार मंभ्नुते एवं वेदः-दति।

पुनरपि प्रकारान्तरे प्रपंसति-- “at वै संवत्सरस्य प्राणो- ert az, स्वै सस्ति संवत्सरस्य पार मग्मुपै; ऽतिरलो वा WA प्रायणीयः प्राण, उदान उदयनोयःः'. इति) पभ्रायणौयः' afatra: प्रशब्दसामान्यात्‌ प्राणः" Taal ; उच्छब्दसामान्धाद्‌ 'उदट्‌यनोयः' afaua: ‘sera’ वेदनं प्रमसति ‘af संवत्सरस्य पार aaa a ad ae ग्र एवंवेद'"- श्नि) भ्रभ्यासो ऽष्वाधसमास्यधंः ८॥ .

ति Mlaaraurara facfaa माधवोये वेदाधप्रकाओे शिनरोयव्राद्मणस्य चतुर्थपलिकाया दितीयाष्याये ( सप्तद शाध्याये ) Wea: Wes: (१४)

0 ~ ~ 9 न~ वेदाथस्य प्रकाशेन तमो हाद निञारयन्‌। Ms ~ ~ qaqa ear विदयःतोधमदहश्बरः

चति ्रोमद्राजाभिराजपरभष्वरवदिक मागप्रवत्तक-

MATAR AMAA ITC CAT AT STA STAT भगदस्लायणाचार्येण विरचिते माधवोये वेदार्थप्रकाशनामभाष्य

रेतरेय व्रा द्मणस्य चतुर्थपश्चिकाया; हितोयोऽष्यायः

वि वि, वड

भय ठेतोयाध्यायः (a7)

WA प्रधमः Gay: a ज्यातिर्गोरायुरिति स्ोमेभिर्थन्लययं वे लोको ज्योतिरन्तरिक्तं गौरसौ लोक आयुः एतेष उत्तरस्य ज्योतिर्गौरायुरिति बौग्यष्ठानिं गौरायु- ज्योतिरिति dead वै लोको ज्योतिग्सी लोको ज्यातिस्ते एते अ्योतिषी' उभयतः सं लोकत » तेने- तेनोभयतोज्योतिषा षडहेन यन्ति तयदेतेनो- भयतोज्योतिषा aka यन्यनयोरेक तक्लोकयो-+ सभयतः प्रति तिष्ठन्तो यन्यस्मिंश्च लोके ऽमण्मिंञ्चा- भयो; परि यष्टा | एतदव चक्र यदभिन्नवः षकष्सस यावभितो ऽमनिष्टोमौ' तौ प्रीये चत्वारो मध्य उक्थ्यासान्नम्यं गच्छति वे Maa यज कामयते! तत्खस्ति संवत्सरस्य पार मण्नुम aud Gz Ata तद्द यत्मधमः use! सवे स्बम्ति संवत्सरस्य पार मश्नुते यस्तदेद यद्‌ दितीयो wate AAA यस्तदद यथ्चतर्था वस्तद्र॑द्‌ यत्श्चमः॥ १८१५)

+. 'सद्ीक्ष्विगख। + ‘agin yw. ‘Asay खर्‌, | पथा a,

3?

३२२१ पेतर्यत्राद्मशम

माश्लिनिस्य विधिः प्रातरनुवाक उदीरितः | सष्वाप्रतिपदटावन्धे सी्यादरोन्यधिकानि तु %॥ aa > गवामयनस्य प्रायशोयोदयनोयावाख्न्तावतिराव्रादृक्षौ ; अथ मासक्गुसि विधानायाभिञ्चवषष््े पूबेभागरूपाखि जोष uifa frat ““ज्योतिमौरायुरिति स्तोमेभियन््ययं प्र लोको eitfacafes गोरसौ लोको श्रायुः"-ष्ति। स्तोमणब्दो क्योतिरादिभिः प्रत्येक मभि मम्बध्यते। तथा सति ज्योतिष्टोमः, मोष्टोमः, आ्रायुष्टोम दतयेतेरषोभिः व्यन्तिः अनुतिथुरिवयर्थः atazcead faa क्रभेण नलोकतयरूपम्‌ गाखाम्तरेऽप्ये- तद््रितम्‌ -- “ज्योतिष्टोमं प्रथम सुपयन््यस्मित्रेव तन लोके-प्रति- तिष्टश्ति ; गोष्टोमं feata सुपयन्त्यन्तरिक् एव तेन प्रतितिश्न्ति ; भायुरटोमं ठकतोय सुपयन्त्यमुख्ित्ेव लोके प्रतितिष्ठन्ति"-इति (ao Wo ७.४.११.१. ) षडर Tt ae Ta agua विधन्तं -- “स एवैष उरस्य हः”-इति। तयाणां qatar Sarai wae: प॒न- गनुष्टोयमान sate भवति} aa awe wer मप्यद्ां क्रमं दर्भय ति-- “anfanegea ateqerfa, मौरायुर्ज्योति- रिति जोणि"-श्ति न्धोतिष्टोमादीना मैव ज्योतिरित्यादोनि नामानि ; तैर्नासभिर्धमा अतिदिश्यन्ते ज्योतिरादिनामकाः ये wart water: सन्ति, तदो यघन्मा परतागुषेवा इत्यथः योऽय मुभयोसत्यदहयोः क्रमव्यत्यासस्त मिमं प्रयंसति--““भरयं रे लोको ज्यातिरसौ लोकतो श्योतिस्तं एते ज्योतिषो उभयतः सं

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* प्रथमादिषु quasars Haq ( २७८-ह०४ ए), ततः -द्सेव पठि युक्रतरः स्यात्‌ |

चनुषपश्चिका १, are

Waa” -cfa | प्रथमस्य त्राहस्यादौ व्योतिर्गामकः म्यदस्ति, AMARA ANAS ; VIPAT ATW AAA A ज्वाति- नामक महः, तदुस्षमलम्म्याद्‌ दुालोकखरूपम्‌ | "ते एते' ay इष्यादन्तवोवत्षमागे “्यानिपौ' उभयतो ऽवसाय परस्यरं श्वं लोकते" eS चमेचेते। अरशर्विभेषा ्तत्क्रमं dha anfeed wey विधत्त “तेनेतनाभयतोज्योतिपा पठूरन यन्ति; तदारतेनी. भयतोज्योतिषा षक्ूहन म्रन्यनयोरेव तघ्लोकयोरभयतः प्रि- तिष्ठन्वो यन्स्मिश् लोकी ऽसुम्िंयोभयोः"- एति | 'उभयतः' श्राद्य- म्तयोक्यनिनामक मदय सिन्‌ wee तरेतत्‌ “उभयतोष्चातिः", तेनेेन पषडहेनमुतिष्ठेयुः। तदनुष्ानेनाभयतौ वर्षमानयो; प्रनिष्ठां प्रापवन्तो ada) लौकयोरुभयतः' इत्यस्यैव far गणम्‌ 'afara सोके ऽमुष्पिधोमयोः- षति > अच्वोन्तरप पसे afaaafer मन्वेतव्यम्‌ a

sfwatwaare? darfatara विधं -- “परि यदह एतष्वचक्रं यदटभिश्नवः vaya श्राविता ऽग्निषटोमौ ती way, यं चत्वारो मध्य उक्रच्यास्तब्रभ्यम्‌'' -इति | यातय ufawa: पषठष्- स्तरेतद श्िंथामुष्मिकाभवोर्लोक्रयोः "परि यद्र परिवन्तमान भेष 'देवचक्रम्‌', - aa aa ग्रस्य चक्र पनः पनः परिवर्तते, तदिदं देवचक्रम्‌ ; sana पडद्रधरिवतेनस्य वच्छमाफलात्‌ रथचक्रस्य fe निष्यादकानि जासि फनकानिः aa मध्युमफलशके aa प्रवेशयितु ate afulws किवत, नस्य फलकम्योभयोः पा्खयोवंर्तृललवाय फलकद्यं कोलन भवनि ; एव afernfa षडे च्याति्यामावाद्यमवत्तिनाव(्निष्टाम्म॑ग्धौ प्रधीः भवतः, प्रकर्ोभयवी. Waa waa एन प्रधी, फलकदयस्थाभोव्रा

2 , ¢ = Untawwsy ; 9१ om दम्‌+ ¢ | 4

विद्धः wafay @ तु मध्यं carn’ avfiiter: va. dem, तदेतत्‌ wea” ; नाभियोग्यखानम्‌ उक्व्यसंखाः ada इर्यः aed प्र्ंसति-- "गच्छति वे वर्तमानेन aa काम यते, तत्‌ ata संवत्सरस्य {र aaa एवं वेद श्ति। वेदिता यवः यस्मिन्‌ MA way कामयते, तवामैनेव परिवर्त- सानेन शेवचक्रोण गच्छति; ‘aq’ तेन देवचक्रेण निर्वित्न भेव संबकरसव्समासिं गच्छति

SNAP Ta oA भाहत्ति' विधं Rt ate यग्मथमः षठः, सवे afer संवत्सरस्य पार मश्मुते, यम्तदेद ag हितीयो were यत्‌ aalat यस्तदेद ay- तुर्थो wate यत्पद्धमःः?- षति | प्रथमः षठूहः'- ति यदसि, न्यो te, ‘a gary faftsa aaa प्राप्रोति तथा ‘fede,’ षड षति यदस्ति, aatae, सब खस्तोत्यादिक मनुषं मौयम्‌ एव सुक्तरेष्ठपि fas पर्यायेषु दर्व्यम्‌ षषे TERE भावन्तं मामे सति विशदानि भूखा मासः सम्पश्यते

इति ओरौमल्ायशाचायंविरचिते माधवोये acm

रेतरेयब्राह्मणस्य चतुधपश्चिकायां ठतो याघ्याये ( अष्टादशाध्याये ) प्रथमः खण्डः (१५)

Pere छह ert we

wa हितोयः way:

wad vase quater षङ्छहानि भवन्ति wer ` ऋतव ' WW एव तत्धंबरसर माश्रुबग्दतुशः संब-

ec ! ३।२॥ ,

tet प्रतितिष्ठन्तो यन्ति हितीयं wae मु पथि ङादशाहानि wafer टादश वै मासा ara रेव तत्ंवत्सर मामप्नुवन्ति मासः संवत्सरे प्रति

तिष्ठन्त यन्ति ठतौयं षर मुपयन्यष्टादथाडति

भवन्ति तानि दधा नवान्यानि नवान्यानि नव

भाणा नव स्वर्गा लोकाः परा गांव तत्खर्गांख लोक्षा-

माप्ुवन्ति प्रागेषु चैव mane लोकषु प्रति-

तिष्ठन्तो afer चतुथं षडह मुपयन्ि चतुधिशति- carta भवन्ति चतु शतिर्वां ayaa भङंमासश्च पव तल्धंवत्सर माप्नुबन्दर्मासथः davai ufa- तिष्ठन्तो afsa asqd vase सपयन्ति जिंशदहानि भवन्ति चिंशदचलरा वै विरा! विराङन्राद्यं विराज मेव तन्पासि मास्यभि सम्पादयन्तो यन्यत्राद्य- कामाः खलु वे सच मासत' तद्यदिराजं मासि माखमि सम्पादयन्तो warty मेव तन्मासि माख्वस्न्धाना यन्य लोकायामुप्रे बोमा- भ्याम्‌ २( १६ ) | Shy पञ्चस षषृरषु प्रथम मनुश्च प्रशंसति -- "प्रथमं बक

स॒पयन्ति ; wawifs भवन्ति ; षडु! ऋतव ऋतु एव तरर marge: deat प्रतितिष्ठन्तो यन्ति" इति अनुशिते

१९६ a रेतरेयत्राह्मणम्‌

wee षट्‌ सञ्खकान्यदानि wafer, ततः सद्यासाम्याहतुषारा संवस्सरं प्राप्य तत्र प्रतिहिताः सन्तो वर्तन्तं

yay yews afed fara wee प्रसति “दित्यं wae quater ; दादशाषानि भवन्ति ; इादश्च वै मासा, ATEN wa तत्संबव्सर aryafea, मासशः संवत्सरे प्रतितिष्ठन्तो यम्ति sfal पूवंवद्‌ व्याख्येयम्‌ |

उकाभ्यां षडह भ्यां and wed प्रणं सति -- “aala wow मुपयन्य्टादशष्ानि मवन्ति ; तानि इेधा नवान्यानि नवान्यानि ; नववै प्राणा, नव Gat लोकाः; प्राशांशचैव तत्‌ खराश्च लोका- ना्ुवन्ति, प्राणेषु चैव तत्‌ खर्गेणु लोकेषु प्रतितिशन्ता यन्ति इति। f¥g षडहेषु यान्यष्टादशाहानि, तेषां gut विभागे सति प्रत्येकं ad स्या सम्पद्यते) प्राणाः" सप्तसु oy च्छिदरेष इगयोरधन्िद्रयोनंवसश्ाकाः,---सर्गलोकराश्च नवभोगस्यानभेदेन « नवविधाः | अतः सद्यासाम्यात्‌ प्राणान्‌ खगेलोकांख प्राप्य तथ प्रतिष्ठिता वर्षन्ते

qafafa: षदेतुयं wed प्रयं सति "चतुथं षङ मुप- यन्ति; चतुविश्तिरहानि भवन्ति; चतुर्विंति्वा श्रमासा, अशेमासश्‌ एव तत्‌ संवत्सर माप्रवन्त्यडंम।सशणः संवत्सरे प्रति- तिष्ठन्तो afa’—sfa i भतः सद्यासाम्यात्‌ ्र्मासद्दारा संवत्सरे प्रतिष्ठिताः 1

पू्ंबतुभिः wee: afed- पञ्चमं षडहं प्रशंमति “पञ्चमं wey quafe ; fawewfa भवन्ति; तिंशद्षरा वै विराड्‌,

* अटाभिर्लाकपालं. परिपाशिता अटखदयाकाः eat लोका: ; तैषां मध्यं why KEM खगं ATL नवसङ्नयाकाः स्वग. दमि Te षार १.२.२.१. Ble भा

षेतु्प्चिकषा ३। ३॥ ane 2 |

विगरून्नाश्च, विराज ta त्मासि mafic genera af” fa wwagrn विराट्‌ साम्याहिराजचाचाद्यरेतुलात्‌ प्रति- are विराङ्दारा भनत्राद्यः प्राप्रुवन्ति॥ पनरपि षड्हपखकं miafa—- “aaa: खलु बै . सत मासतः; तथदिराजं मासि मास्यभि सम्पादयन्तो newer मेव wafa मास्यवरुन्धाना aera लोकायाम॒ण्ये चोभा- भ्याम्‌"-इति। ये सत्रस्यालष्टातारः, ते fe 'अन्राद्यकामाः भनु तिष्टन्ति ; तथा सति पूर्वोकषरीव्या सद्चासमम्यात्‌ प्श वषर जिंशदत्तररूपां विराजं प्रतिमासं सम्पादयन्तो ana, प्रतिभाष् wary प्रा्रुवन्तो लोकदयाथं गछन्ति; प्रतिमासं षडरपदक मजुतिषहेयुरिति नात्पयाथः। aa चत्वारोऽभिश्नवाः पडा, wang yuasy ईति; सूतकारेरभिधानादयं विशेषः णा WT SVT #॥२॥ दति ओ्रौमत्षायशाचार्यविरचिते माधवोये बवैदा्यैप्रकागर ठेतरेयव्राह्मणशस्य चतुर्थपञ्चिकायां anarara { श्र्टादभाध्याये ) हितीयः खण्डः 2 (2a)

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अथ salsa: खण्डः | = “~ दि | गवामयनेन यन्तिगावोवा arfeart भदि- 1 त्यामा मेव तदयनेन यन्ति गावो बै सत्र मासत

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“mearashagay: VeTY aia, sia षकावया० Flo ११.२.१ तथा a: eferrary पशयपश्चमान्‌ पश मासानुपयन्ति yar! He ११.०१।

हरणः ` शितथ्यत्राद्यशम्‌ :

शफान्डुक्नारि सिषासव्यन्तासां दशमे सासि शफाः शङ्गा खखलजायन्त ता WAIT AA काभयादौक aura मल्तिष्ठामेति या उश्तिष्डस्ता एताः शङ्धिण्या ऽय याः समापयिष्यामः सक्र मिव्यासत तासा मश्रच्रया weifa waa AT एतास्तूपरा ऊजं त्वसुन्वंस्तस्माद्‌ तः: सर्दाखतन्‌ प्रपरोत्तर मुचिष्डन्त्यजं सु ्न्त्छवस्य गावः" भमा सवस्य चास्तां गतः: सवस्य प्रमाणं Wasi चारुतां गच्छति 40d aefemrg दवा अङ्धि रसश्च ST लोके ea वयं पव एष्यामो वय fafa ते इदिव्याः ga खग लोकां ara: पद्य वाङ्गिरसः षष्य्यां वा वेषु यदः ately sfa- राचश्चतुषिश उकणश्यः स्वं ऽभिशवा; weet च।च्च- न्त्यन्यान्यहानि 'तदादिशानामयनं wreaalar sta- रचश्चतुनिंग उक्थ्यः सवं पृष्टया; पटहा आच्य- न्व्यन्वान्यहानि deters सा wreafarg- सायन्येव ` मभिश्नत्रः षडहः VTA लोकसय यथा महापथः पर्यांण एवं पष्टः ues: BT लोकस्य तद्यदुभाभ्यं यन्लुमाभ्थां वं aq रिष्यिच्युभयो; | कामयोरूपासेा यश्चाभिश्रव Tee यच्च पुष्टये ॥२(१७)

-चतुधेपञ्चिका २।२॥ १९६ .

संवकषरसतश्यावधवाश्नासानभियाव सत्रं विधत्ते-- “an. वनेन afar ; Wat वा arian, श्रादित्याना मेष तैदयमेन यन्ति -द््ति। संवखरसदायां प्रकुनिभूतसैतस्य सत्रस्य "गवा- मनम्‌ इति नामघैवम, तेन यतिः अनुत्त युः | गमर्नमाम्याद्‌ Tay aifzaaa ; तथा ata aiteanan मेव waarqera wa ,भंवत्ति लदेननवामयन प्रवति - गावा वै wa भासत, गफाम्डु- wie सिषश्व्वम्तासां दम मारन गाः RTT; ता waa WA TAZA so Areata. ताया sziasan एताः when” sta) पुरा weifae गतराभिमाः निन्यो टेवनाः waatar: atierat पडमनान्‌ ‘ray’, fore गतानि “azifar’ ‘fearaar wy fase: सत्र मन्तिः रम्‌ | साक gaat मापि aad सम्पत्तम्‌ | नसः लाः मात्रः

परस्परे पिद मत्रुयनः - यथय ania aay “aebarafe’ तथ

दोः मोप... a कामय MICA वयं प्रा्मदत्यः , aT aT: warzfasata निम्‌ (स सय मताः | ताः पमिडाः या माव vefasa, ता, इमाः वृह्िग्धा Sy MAT BNE सामे गुठय् Naa प्रत्तम्‌

द्ादरङु Rasa wranya सस्ति, afeeat प्रभ

afa—- "रय याः समापयिष्यामः मवत fauraa, तामा मश्रश्या ayita प्रात्तन्त ; नाप TAT अश्र न्व Jd RATS ताः wataqa urate afazey गं सुन्वम्भवस वै aya: प्रेमाणं wer arent गताः ६3 मनर मनुतिषनतोनां wat मध्ये WH ष्क ata दगभिमातः fa featat;, arat aq wat

९९४ | ॥. रेतरेयत्राह्मणम्‌

qerter मास्ति, किन्तु खमगंपेक्तैव ; तादृश्यो या मावं ऊज- faara दादशमासात्भकं drat समापयिष्याम इति wana, सधैवाग्बतिष्टन्‌ "तासां" मवां wey waaay The (प्रावन्त Areata: (ता एताः' गावो लोके Aaa,’ भुङ्करद्िता zee ! ताः थुङ्गरद्िता अपि सत्रानुष्टानेन ‘ory’ वसाधि- mq श्रसुन्वम्‌' सम्परादितवत्यः | (तञादु" वलापिष्यलसणस्य फलस्व सदह्वावादेव नाः गावः मवाोढ्रतुन्‌' षटसक्कयाकानपि तस्मिन्‌ सलागुष्ठानै प्राप्य ‘sn sant सतादुत्तिषटम्ति ‘fe यस्मात्‌ ऊजेम्‌' बलातिशयम्‌ "सुन्वन्‌ प्राप्तवत्यः, तस्माद्‌ डादश- मासानुष्ठानं युक्घम्‌ "ताः भुङ्करडहिता मावः प्रहारभयाभावास्‌ "सवस्य जगतः Gawd fara गताः, तथा बलाधिक्येन शरोर- Wat सर्व॑स्य भारवशनादिकारययस्य नेल्दपंनस्य चात्यन्तं ‘ara’ रमणोयतां गताः; वेदनं प्रमति -- “ade प्रेमाणं सवस्य चार्तां गच्छति एवं वेद"-श्ति

अथादित्यानामयन. मह्किरमामयनं गवामय्रनविक्षतिष्ष wa वक्तं प्रस्तौति- `श्रादिव्याश्च ष्वा अङ्गिरसश्च स्वगे लोकं sama wi पूव एष्यामो aa मिति; ते इादिव्याः पून स्रगं लोकं जग्मुः, पथेवाङ्किरसः ष्यं वा वर्ध॑षु"-द्ति। अआदित्या्याश्च ये देवाः, ये चाङ्किरषनामका ऋषयः, तदुभये परस्परं स्वर्गप्रात्तौ gare Wala मेव प्रथमं गमन fafa भरादित्या, अङ्किरसो- $पि तथैव वत्रादिव्याः सदसा प्रथमं खगं प्रापुः भङ्गिरसस्तु ‘aaa’ विलम्भेमेव afewgray ag श्रतीतेषु खगे aren: | वा'-शब्देन पक्लाम्तरं च्मोत्यते। भङ्गिरसां मध्ये तत्तच्छक्षरुषारेण कंचित्‌ षेः ga at गता इत्यथः `

॥. चरुधेवश्चिका २।१॥ Ree

watfearmatswate विधत्ते “oer बाप्रायशौयो ऽतिरवशतुविश sae, aa ऽभिञ्जवाः षरुहा, wrererertee- नि; aerfeartaaan’—xfa i aa ‘ar’ meat farw- श्प यः, किन्तु UMAAATATT ITS TT: | गवामयने WTA प्रथम महः, अतिरातसंस्थ' चतुर्वि सुकष्य महहिंतोयम्‌, aged wa 'यथा' लव्रै्ादिव्यानामयनऽपि ; तत अङ्गुः विगेषोऽच्ि। सर्वेऽभिप्नवाः ager पूर्वाकाभ्याम्‌ ्रघमदहितौयाभ्या ayer मन्यानि सर्वाखद्ठानि “arate व्यासिं करिष्यन्ति ; गवामयकत तु एकौकस्िख्मसि चत्वार एवाभिग्नवषडष्ःः, wa इटं वैषम्यम्‌ | तदिदम्‌ “arfearraaay |

अरयाद्गिरसामगनष्य aft दगयति-- ` प्रायणोयो ऽतिगच- aqfan उक्थ्यः, से वृष्याः षका, Treat ; तदङ्धिगिसमयनम्‌ः-दति। प्रयमद्िलोय मतिक्राम्तानि सवा यहानि पश्यपददग्याप्तानि, शयेलावानतर faite.) अथवा “मा्च[नि'-श्दोऽद्विश्चपनासधेयम्‌ | तथाच arate Wy “mfufaferatarafiana महर्महात्रत सुदवनोयोऽतिरान् gaararate भवन्ति-इति तदेतद बौधायनस्य मनम्‌ | अन्यदपि यान्यन्यानि पृदखाभिद्धवेभ्य इति गालिकाचार्थ्या भेन यानि anata पहयाभिष्नषेभ्या vara दत्योपिमन्धवद्ति। तया सति प्रायषीयारम्कीयामभ्या मभिङ्घवषष हम्ययान्धानि are हानि सन्ति, तानि “arate एतन्तामकानौव्भयव Bey - यम्‌ सर्वथाप्यख्यनयोरभवोरपि गवामव्रमादिथेषः | गवामयने त्ेकस्पि्भासि चलारोऽभिपुवाः प्रहा, पञ्चमः WET: TEM 1

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वथा array चाड “we गवामयनं सर्वकामाः maga. agfan उपैत्य चतुरभिएवाम्‌ एषपपञ्चमान्‌ पश्च मासातुप. यन्ति दति (चो ११.७.१. # ) भादित्याना मयने ver weet नास्तोति +, भङ्गिरसरामयने अभिपुववष्ो नास्तीति # वषम्यम्‌ |

अयनदयगत मभनिपुवषषद्ं vse दप्यति- “ay यथा खुतिरक्नस्रायन्धेव ममिपुवः षहः खगस्य लोकस्याच यथा महापथः पया णः एवं GSI: wae: Bre लोकस्य तद्यदुभाम्या wea यत्न रिष्यव्युभयोः कामयोरपाप्तै - यखाभिपवे षक, यञ्च ृषा"-द््ति। यथा लोकस्य प्रसिद्धा “afte राज- भागरूपा (धच्ञसायनो' दु-खद्तूनां करटकपाषाणारीना ममा- Ve WSN सम्यगयनस्य गमनस्य साधनभूता, एव मय मभिपुवः Wee: स्वगस्य लोकस्य weet प्रापिदेतुः § wa usrae- TH ESTA उ्थत,-यश्रा लोके महापथः wea: ance. aaa “पर्याणःः परितोऽयनश्य गमनस्य साधनमूतः,--नगर-

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sree fe “अद qaqa’ saree “दन्तु WAT -Teay ay aay प्रलक्षाच “aa वा aver staan: मः: द्ति ( ११.७.२१.) ततौ maa ahead गवामयनादित्यानामयनयोनं Teed fom मपि adits: तञ्च बंषम्य aw ane मैव स्फटौक्रतं geez |

+ ““मवामयनेनादित्यानामयनं senda, wa afrs aifeana gen: ’—senfz sige ato १२.१.१-७। aware @asfryar: प्यायतचख्िन्पष्टदगसोरक्षत। एव ay भदेन्तौति प्रधानं ayaa’ दोतितम्‌

(आआदिव्यानासयमेनाङ्गिरसामयने व्याप्यातम्‌ तिह तस्व मिङ्कवा aa safe wees atte १२.२.१-९। are सव एवामिपवाग्विहरेकसाष्या शति प्रधानं THM

$ "डमं Aero, यदभ्वणवन्त तथ्माद्भिएवा.'"-इति ऋत्‌ ब्रा० १२.२.९.१०

रतुवेपश्िका १।४॥

ant? अरस्पर्वताद्यमावाद्यस्यां दिगि गन्तु ater तव भन्तः शक्ते , एव मयं एषः Wey: खगस्य लोकस्य mfireyt'e | ` तथा सत्यनयोदभयोः ‘sane’ वडहाभ्यां यन्तौति aefer, तेम ‘Suns पादहयखानोयाभ्या ‘aq’ गब्छन्‌ पुरषो रिष्यति" विनश्यति,- योऽभिपुवकामोऽस्ति, यथ vores: तयोक्मयोः कामयोः AT षडहहयं सम्पद्यते + दूति योमस्लायणाचायं विरचिते माधवीये वेदाथैप्रकाशि `` टितरेयन्नाद्मणस्य चतथपशिकायां ढतोयाध्याथै ( भष्टादगमाध्याध्रे ) wate: खण्ड; (१७)

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भध AA: खण्डः

एकविंश मेतदष्टरुपयन्ति विष्ुवन्तं मध्ये संव-

ह्य रसेतेन 2 ठेवा एकग नादिं ania लोका योदयच्छन््य एष इत एकविंगसस्य दभावम्ता-

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दानि दिवाकोद्यद्य भषन्ति दण Waa एक्विंभ' उभयतो विराजि प्रतिष्टित उभयतो fe वा एष विराजि प्रतिष्डितस्तस्मादषोऽनरे मांल्लीका- "1

+ गावी सत्र मासत्‌"-दवयाप्यायिक्ता८( १२८ ४०) सामदृनुधीरमि पायु एष पव (वाश्रा ४,९ तेष्त०७.५.१.) प्युदमे Sra, aay vile छं ०सू*१.१.११ Wee |

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१९४ ` Qatar `

न्वत्र व्यथते तख वे देवा -भादिल्ख | खर्गाह्ोका- दषपातादविभयुसं fafa: खरगे्लीकौरवस्तासल्यत्तम्‌- लुवन्त्स्तीमा बे बयः स्वगा dade पराचो ऽतिप्रातादविभयुतलः विभिः सख्र्गलकिः परस्तात प्रल्स्तभ्‌नुवन्त्स्ोमा वे चयः wut लोकास्त्रयो ऽवरूतात्सप्चतदटशा भवन्ति वयः परस्तान्मध्य uy एकविंश उभयतः सखरसामभि्ध॑त' उभयतो fe वां एषः खरसामभिधृतस्त्यादेषोऽन्तरे मा ्ोकान्यत्र व्यथने तच्छ वे देवा आदिव्यस्यं खगाज्ञोकादव- पराताद्‌ विभयुम्तं परमै स्रगर्लोकगवस्तात्प्युत्तभनु TATA वे परमाः सर्गा लोकास्तस्य पराचोऽति- पातादविभयुस्तं परमैः खगे्लोकेः परस्तात्‌ प्रयम्तम-. नुत्रर्त्स्तामा परमाः Wat लोकास्तच्चयो ऽवस्ता- WITT भवन्ति वयः परस्तान्ते दौ दी aaa खअतुख्विंशा भवन्ति चतुस्विंशो वै सोमाना मत्त मस्तघु ता एष एतदष्याहितस्तपति ay fe ar ug vaewifsaaufa सवा एष उत्तरा SWTA सब- स्माद भूताहविष्यतः स्वं मेषेद मतिरोचते' यदिदं किञ्चोत्षरो मवति arena बभषति' qea- GU भवति एवं Feng ( १८ )-॥

च॑तुर्थपञ्चिका 1.१ १४

` श्यै गवामयनं मादित्यानामयन मङ्किरखामेयनं रेप deere सव विपरेषा eat: | तत्र सवय पूर्वोत्तरयोमासषद्कषयोः मध्व- वसतिं यद््रधाम महरस्ि, तदेतद्‌ विधम “एकविंश भेत- दरषरपयण्ति विषुवन्त मध्ये संवश्वरस्य"- इति छन्दो गब्राश्चशे-- “सप्तभ्य ` हिष्करोति'-दलयादिना ( ता०.ब्रा० २.१४-१७ ख» ) विहितो योभय Hafan: स्तामः, .तेनेव eters सर्वस्लोत- प्रवत्तेरिद महः (एकविंगम्‌' दत्युद्यते ay विषुववामकं, व. MII ये पूर्वं षरमासाः, ये चोत्तरे, तयोमासषट्‌कयारुभयनो वर्षमानयोर्मध्यं तदेतदस्मुखेयम्‌ एतश्च नोभयोमासषट्‌कयो- weiafa, किन्छलिरिक्ष मेकम्‌ तथा वाश्ललायन भह - “sq विषुवानेकविंशो gre प्सो नोत्तरस्य" इति { ito ११.७.७८. )

तदरेलददहः प्रणंसति -- “दमेन पै दैवा एक्षिंशेमादित्' सर्माय लकायोदयष्छछन्‌' दति | पुरा देवाः "एतेन ' wer सगसोकाख्यम्‌ “्रादित्यम्‌' ‘sere इत ay प्रापितवन्तः | तथाच शाखान्तरे प्यते --- “एक विरभ एष भवति, एतन व॑ टेवा एकविप्रानादिवत्य faa तम gaa लोक मारोहथन्‌ ' -इति (तेण्व्रा०१.२.४.१.४ 0,

भ्रादित्यस्यं tare साम्यं enafa—“a urea एकविंशः -- शमि! योऽय मादिव्योऽस्ति, एषः (तः भृलोक्रादारभ्य wea रएफविंगनिसष्कयापूरका भवति तथा ATA: यते - “greq मासाः पश्चत्तवस्रय va मोका अरसाकादित्वं एकविंश्ः"-दति (A> सं ५.१.१०.२. ) } भरथयातेव fare: TAY पच्च वच्यमाण मडदेशकय aw (विषुंषाम्‌

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* “oa waaie यरएष aaa’ ~via ato Ale 1.94.22 |

११९ रेतरेयत्राञ्मश्म | रका विंशः व्युच्छते असिम्‌ wa द्द वाक्य मन्तरसेषलेनं योजगौयम्‌ tt

दामो quam enaed विधत्ते -““तस्य दश्ावस्तादशामि दिवाकौश्यस्य भवन्ति, दथ acer, मध्य एष एकविंशः उभयतो : विराजि प्रतिष्ठित, उभयतो हि वा एष विराजि प्रतिष्ठित. स्तच्मादेषोऽन्तरेमांल्ोकान्यन्र व्ययतेः-दति! feta afta ` was यस्मिज्िषवत्यहनि तदः (दिवाकौ््यम्‌' | तस्याः wary अधोभागे दशानि भवन्ति, परस्तात्‌ जडंभागीऽपि दशाहानि भवन्ति; तयोदंशकयोर्मध्ये ‘aq एकविंशः विषु- - वान्‌ वतते wer’ विषुवतः ‘raver पूर्वपक्ते षष मासे स्वरसामान भहविगेषास्रयः, तेभ्यः पूर्वं मभिजिदाख्य मेकाद्ः, | ततः पूव पुष्यः षड्ड.इति ददशादानि fasaa Wy तु प्रत्य THAT तरयः खरसामानः, ततो विश्ठजिदाख्य एकाः, तत Ae yer: wee इति ‘en’ अहानि। एव मुभयोः पां. ate दथसद्चोपैतल्ात्‌ विराट्‌त्वम्‌ , एतस्या मुभयतोऽवस्धि- तायां “विराजि श्रय मेक्विं्ः प्रतिषठितः। यथोक्घगणनया विराजि प्रतिष्ठा मेव 'हि'-शब्दोपेतेन वाक्येन खसष्टोकगाति # तस्मात्‌ उभयतो विराट्‌हयेन र्खितल्वात्‌ "एषः" आदित्यो विषुवदहःस्थानोयः, दमान्‌ लोकानन्तरा' एषां लोकानां सर्वेपां मध्य यन्‌ मच्छन्पि व्यधते' व्यथां प्राप्नोति विषु बामप्येकरविंग आदित्योऽप्येकविंशः ; सख्मादुभयोरेकत्वे सति विषु- वतो यदिराङ्दयोपैतल्वम्‌, तदेवादित्यस्योभयतो विराट्‌ल्वं भवनि भादित्यस्य व्यथाराहित्येन विषुवतो ` वैकल्यराङित्यं सिष्धयति।

ee ate जक, me tee

e “fans fe qua उभयतः प्रतिहितः" उति de ate पाठ (१.९.४.१.) i

शतुर्थपशिका ! १।४॥ aye

अवा विषुवलो यथा विराङ्इय सुभयतो रकम्‌, चव मारि. | त्वस्ताप्यधस्तादुपरिष्टाज्च वत्तमानं लोक्यम्‌ | एतदेवाभिपेश्च शाखान्तरे qaa— “तस्मादन्तरेमो लोको यम्‌ स्वेषु इषैगेव चकैष्वभि aaafa’-afa (तेण ब्रा १.२.४.१. ) a

अथ विषुवत उमयतः समीपवर्तिनः सरसामाख्यानहर्वि; शेषान्‌ प्रशंसति-- “तस्य 3 देवा मादित्यस्य खर्गाक्षोक्षादवपाता- elaage निभिः खर्गलोकंरवस्तात्‌ प्रत्यु्तभुवनस्तोमा बे aa: स्वर्गा लोकास्तस्य पसचोऽतिपातादबिमदुस्त' तिभिः euete: UC AIM AAAI वे अयः खगा लोकाखचयो eT. दशा भवनि, az: arena एष एकविंश, उभयतः खरसाम- भिधूंत, उभयतो हि वा एष सरसाममिर्पुतस्तस्मादेषोऽन्तरेमा- ल्लोकान्‌ यत्र aaa’ ef) यीऽय मादिव्योऽस्ति, ‘ae’ भादि. त्वस्य खगलोकास्‌ MATA भाधाराभावादधःपतनम्‌, तस्मादु देवाः 'धविभयुः' भादिन्योऽधः पतिष्यतोति भीताः मन्तः ‘aq श्रादित्यम्‌ श्रवस्तात्‌' मण्डलस्याघोभागे 'चिभिः aaattay खर्म गब्दोपनलितैः भूरादिभिः प्रदयु्तश्चवन्‌' अधःपातप्रतिषन्धाये HAVA ATE मकुवन्‌ | यथा ग्हगतवंगादोना मधःपात- निवारणाय रतरश्भेनोत्तश्मनं क्व्ति, तदिति | वक्षंमागश्या- दित्यस्य am व्रयो लोक। saan, तवरेवादिव्यदानोयच् fagaaise: स्वगलोकसदटग(स््रयः स्तोमा पएवोत्त्चकाः सपदगस्ोमयुकाः खरगामानो cefatar: स्तोमगब्दे नात विवक्षिताः पनरपि देवस्तस्यादिल्यखय प्राचोऽतिपातात्‌' मरडलाव्पराभूतेषु agafig Tay योऽयम्‌ श“धतिपतिः हष्टिगोषरं देथ quer यत्र क्वापि दृरदेयगमनम्‌, वक्लादति

aut ~y Ratan 1

पाताद्धोताः war: धरस्तत्‌' भादित्यभर्छलश्योपरि तिभिः अम गपःसव्यश्चब्दामिधेयेः (तिभिः witeta: "तम्‌" मादित्य “प्रत्य weary यया पूवं ताधःपतननिषठस्यर्यं year लतम्‌, एव सुपरिष्टादतिपातनिदच्यये प्रतिस्तन्धने प्रतिवन्धकस्तस्म wag भादित्यखयानौवस्य तु facade: उत्तरपक्चगताः स्तोमशष्दो- पलिताः खरसामाख्यस््रयोऽ्विं गेषा एव प्रतिस्तश्धकाः। “तत्‌! तथा सति ये विषुवतोऽृः “भवस्तात्‌' अधोवर्तिनस्योऽदर्विभे- षस्त सप्तदशस्तोमयुल्ताः कार्य्याः ये "परस्तात्‌' उपरि- वर्तिं गसयोऽशर्विभेषास्सेऽपि सप्तदशस्तोमयुक्षाः कार्यः एवं सति मध्येऽवखित एकविंशाख्योऽदर्विश्रेषः (उभयतः' अधम्ता- दुपरिष्टचच खरसतामनामकेः जिभिस्िभिरहोभिर्धुतः | Rad: शास्वान्तरप्रसिदिद्योक्ेन 'हि"-यष्दयुक्तेन वाक्येन greater: | यस्ाहिषुवदंहस्यानोय wifes, खरसाम खानोयैरभयतोऽव- खितेस्िभिकिभिर्लोकंधूतः, “तस्मात्‌” कारणादपि आदित्यः ‘were मध्येऽवख्ित इमान्‌ लोकान्‌ सर्वान्‌ सर्वदा ‘aa’ गश्छ- जपि व्यथै व्यथां नप्राप्नोति। warrants पू्वेषुन्तरेषु Pragey सप्तदशस्तोमविधिरुचैयः तथाच शाखान्तरे शयते-- “sau णव सप्तदशाः परःसामानः कारययौः?-ष्ति (ae Mo १,२.२.१. ) खरसामाख्यामा wet मेव परःसाभेति ATA . !

we विहितानेतान्‌ qataay qeneiany प्रकारान्तरे फनः प्रथंसति - “ae वै देव। भादिव्यस्य खर्गान्लोकादवपाता- दविभयुख्तम्‌ परमैः सर्गर्लो केरवस्तात्‌ प्र्यु्ब्बवम््स्तोमा कर्माः eal लोकास्त पराचोऽतिपातादविभयुख्खम्‌ परमैः

अतुषपद्धिका | ai ४॥ uae:

MIR: "परात्‌ परत्स्तभुवर्त्सतोमाः परण्यः. RE ST ` श्छ योऽतस्वातत्तदशा भषन्ति च्यः cree et. arg waugfear # भवन्ति ; जतुसिंधो सोमान सलभणष्ुष एव एतदध्यादितस्तपति, तेषु fe षा एष एतदध्याहितस्तपति"- aft: ag हि लोकेषु awa भादित्यस्तस्य छगलोका- . gaara: स्यादिति देवा भीताः सन्तः, भिव्यादि पूवबत्‌ Gren मादित्यस्य warmed परमत्वम्‌ तेनोभयतो वक्ष मानाः षटसश्चाकाः सप्दशम्तोमकाः हौ दरौ एकोमृय faa: काखतुखिंशस्तोमा भवन्ति! भिवत्‌-पश्चदण--सतदपे-करिथ- विशव-तयस्तिंशास्याग्डन्दोगेराखाताः सन्ति p, तेषा मवं चतु सिगम्तोम sua: ; पूर्वापेक्षया सद्याधिश्यात्‌ ‘ay’ स्तोम- खानीयेषु उभयतः fede aii ‘cw’ भरादित्यः warty.’ marae ख्यापितः सन्‌ 'पतत्‌' need यथा मवति वधा 'लपति' सन्तापं करोति ‘aq हि -इतिवाक्येन aga हदो क्रियते

विषुवत्‌ पव प्रसा मभिप्रेत्य तद्रूपलेगोपचरिसि मादिं पुनः प्र्॑सति -- “स वा एष उत्तरोऽखास्वस्मारुताडषिनतः,- aa मयेद मति रोचते यदिदं कि्योक्षसे भवति"इति योश्च मादित्यो ऽभिदहितः, एवैष भृताद्विष्यतच सर्वस्मात्‌" अश्मा- जगतः "उत्तरः चनल्मुटः, -- यदिदं किञ्च जगदस्ति, tay aq "अतिक्रम्य (रोचतेः दीप्यते; तदयं विषुवानम्यन्धेभ्यः सर्वेभ्योऽद्धाम्थः “SUT! उक्कष्टा भवति |

9. ~ eer ees कनक en 2k ow Sew ee

‘gages wa पाठो aeqaay तदव तकार दि्वयनम्‌ अगवि दरति ( पाच ८४.४७. ), wifereraremd उति सादन पृरक्षादपि cet ९०, १४१०

+ A [ 1 1 1 17

+ यार की, १.१-० SS मते KET |

ace Qatanrereq 4

teat niafa—“wengne बुभूषति, rareatt भवति एवः वेद'?-द्ति। एवदेदनादुत्कुष्टो wen .ufacarfaa शोभते, तस्मादुत्कषटतरो भवति

षति ओोमत्सायणाचायविरचिते माधवोये वेदाधैप्रकाथे रितस्यब्राश्मणथस्य चतुर्थपञिकायां ठतौयाध्याये ( अ्टादशाध्याये ) चतुर्थः खण्डः (१८)

जवन प्य नय भसय

अद्य qa खण्डः ti

सरसाम उपयन्तीमे वै लोकाः खरसामान' दमान्‌ वै लोकार्खरसामभिरस्यगवंस्तत्धरसाख्न सखरसामत्व तद्यत्‌ खरसान Badd तल्लो- केष्वा भजन्ति तेषां वे देवाः सप्तदशानां प्रव्लयाद- बिभयुः समा इव वै स्तोमा अविगृडहा दरवेमेषहन nfiaacfafa area: स्तोचैरबष्तात्प यीर्षग््धर्धैः पष्डः परस्तात्‌ तद्यदभिजिव्सवस्तोमोऽवस्ताद्‌ मवति विश्वजित्घवपुष्ठः परस्तात्‌ तत्प्तदणानुभयतः पयु षस्ति yat अप्रव्लयाय तख वेदेवा wifewa खर्भाह्षोकाटवपातादविभयुरुतं use रभश्मिभिसद- wy uaa बे fearataiia महदिबाक्रीलं

पतुर्धपञ्धिष्षा ।३।५॥ ॐ?

qed भवति frat ब्रह्मसाम भास मननि्टीम- eran बश्टद्रयन्तरे पवमानयोभ॑वतस्तदाटिषवं पश्चमी रश्मिभिरदयन्ति pat अनवपातायोरदित wife प्रातरनुवाक मनुतरुयात्छवे द्वे तदहि ब- are भवति aa पशु मन्यङ्गश्वेतं सवनौयसखीपा- लब्भा मालमेर ayer छ्ेतदषठरेकविंशतिं सामि- घेनौरनब्रूयार्बमलच्ताद्धातदहरेकविंग मेकपञ्चाथतं feasgrad वा शस्त्वा मध्ये निविद्‌ दधाति तावती- सत्तराः शंसति" शतायु पुसः शतवीर्यः शते द्द अायुष्येेनं तद्य इन्द्रिये दधाति ॥५( १६)

खरसामाख्येष्वहस्सु सपदथस्तोमाः पुव विहिताः ; cert ताग्य्ानि ford -- ““स्वरसास्र उपयन्तौभे वै लोकाः खरखा- माभ इमान्‌ वे लोक्षारुस्ररसामभिररग्वंस्सम्‌ स्तेरसा्ां स्वरसा- मत्व ; तथ्यत्‌ खरसाका उपयन्येष्यवेनं तल्ोकेष्या भजन्ति" -इति रसामास्यान्‌ सटसक्चाकान्‌ अरहर्विगषानुतिष्षुः भादिचय्य अधस्तादुपरिष्टा्च वतमाना इमे एव लोकाः स्वरसामदूपाः। तष्मादनुहितिरमैः खरमामभिरिमान्‌ लोकान्‌ “Taw प्रोतान- क्वम्‌ तस्पमादेतेषा महां खरोपरतसासवत्‌ TAA खर सामेति भाम सम्पदम्‌ एतेषा मभुष्ठातारो aaa सर्वेषु "भा wafer’ भीमभाजो भव्ति

अव mca: सर्वभ्योऽधष्ताद्परिष्टा्च हे चनी विधत

१४१ a पेतरेयन्नाद्मकस्‌-+

नीवा वे देवाः argu मरवुयादनिभदुः, खमा Kas स्तोमा wings इवेमे nfgacfafa ताम्बर जोमैरवस्तात्प््या- बन्दर; पृः परस्तात्‌ ; तथ्यदभिलित्‌ सप्तोमोऽवस्यादव ति, fava- जित्‌ wage: परस्तात्‌, तत्‌ संसद्भाकुभयतः पयैषन्ति, टता भग्र वुयाय"~+इति | ये खरसामानः सपदशस्तोमयुक्काः (तेषां! प्रवुयात्‌' प्रकर्षेण विशरणाद्‌ देवा भविभयुः | ‘at विशरषे'-इतिधातोरिदं ख्पम्‌ विश्ररणगङ्का कथ मिति, तदुच्चते-- षटखषस्, प्रमो- शव्या एते सप्रदणस्तोमाः (समा दव वै" खशा ga: awry ‘ufo बरवः गृदमख गोपनस्यामावाच्छियिला एव,-- एकबन्धं Bafa नूतनत्वचमत्काराभावादनादरे विभौ्णा भवन्ति। तस्मादिमे स्तोमाः प्रतवरयेरन्‌' प्रकर्षेण विगशौणा मा yafafa विषाय तान्‌" सप्दशस्तोमान्‌ “cae अधोभागे सर्वैः ra: तिहत्‌-पञ्चदश-सपदकैकविंण--तिणव - त्यस्तिंयास्ञैः ‘catia परिनो गताः, रक्षणाय परिती वेष्टनं क्षतवन्त इत्यथे; तथा परस्तात्‌" सषदगस्तोमान। सुपरि भागे सर्वेः ge) रथन्तर- छद्‌ -वेरूप-वेराज-गाक्षर-रेवस-सामख्येः Tanita: “पर्यार्षन्‌' aay खरसानश््राम्‌ “quay पू्वसिन्‌ fet सर्वम्तोमयुक्षम्‌ 'सअभिजिद्‌"भाख्य महरनुष्ेयम्‌ तथा तेषा मृपरिष्टात्‌ aige- स्तोचयुक्षं 'विश्जिद्‌'भास्य महरनुशयम्‌ | यदेतद्‌ दिविध मनु- छानं तेन सप्तदशस्मोमान्‌ उभयतः पयूषन्ति' परिरचन्ति तश्च cad ‘val’ erate अप्रवुयायः पेयिष्याभावाय सम्पद्यते |

wa विषुवस्यहनि oy सामानि frig "तस्यि देवा wifera आमाज्ञोकादवपाताददिमयुस्तं weal रण्यिभिरद- वयम्‌ ; Cat वै fearathwife, aerfgeraite: उड भवति,

Wopiafeet i ३।५॥ १४१

feed agree, भासं मम्निष्टीमसामोमे wegen rawr मैवेतरतदादिष्य' पद्भी रर्मिमिरहयन्ति wart भनवपाताथःः fer) दैवाः पुनरपि ‘ae’ भादिस्य खगंलोकादधःपात ante aenata | यथ्यपि एथिव्यादिलोकव्रय quar भुक्‌ तथापि उपरि waftiita टृद्बस्रनस्याभावात्‌ ततयदशैने सति पाश्वधोः पनन माग्ने तश्मभूदिति Var मादिष्यं पञ्चभिः रण्मिभिः' wae: 'उदवयन्‌' जह Arar वयनं लतवन्तः, इदु बहवन्त इव्यर्थः ये बन्धनरहेतवो रश्मयः, तरख्यामोयानि अद्धि विषुवति 'दिवाकौच्यनि' दिवव पठनौयानि पश्च सासानि ay मध्ये मह(दिवाकौोत्यनामक मेकं साम | तच “fay ह्- farg सोम्य मधु" -षत्यस्वा अययुत्मत्रम्‌ #। तण्डामबुक्ष एह रुतो" aay | तथा विक्षणास्य Hat साम तथच “प्रथ हणो अरुषस्य न्‌ ATS LTT BYTATAH वदैतद्‌ बह्म ` साम क्त्यम्‌ ब्राह्मणान््ंसिन afar गौयमानं साम ब्रह्म सामः} तथा arate मपरं साम तदपि “aren” tare भेषोत्पन्नम्‌ | तच्ाग्नि्टो मसाम कन्तव्यम्‌ रेन साथा afte

eee ee ewe we mee Te ~~ 7} = ~= = > ~ जनन्य = च्ल ee ee | सि सि 0 eee

9 ‘ago grey कयि wee are (.१.५१. artes ( वौनिधाम ); Go Wlo CLL IHF TT ATM? Me २.१.१२. लहहादिवाकोच्य ( MTA ) | + ‘ner taraig (SIT? Go yt) सवि faa नावगमत, अपितु ‘fore हत्‌" पव (चार, wre ४२ Bia) दार्निगान Ade (चारन गा ६.१.९१.) यूयते नदर my गद्य ( उ" भा" CCT puma गौत ( were ३,१.११. ) स्तो Hay विदित fafa गम्यत, ताण््माभायदर्यमादितिः ( Aremred.¢ WA. BeRTe) | आर० Mo ३.८ कथि जार Mie CTE. Be aie नालि, तथाहि योगि uray gran: एतदव दषम भिता i

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erate समाप्यते, ay अनिष्टोमसामः। ewset प्रकरे भवलः # ; मध्यन्दिनिधवमानाभवपवसोनयोः क्तव्यत्वात्‌ | ध्चतिमप्रयोगेशादित्यं पञ्चभिः सा्मरव्नुभिर्' भप्रन्ति, तथा- | दिव्यस्य धारणाय मवति; मेन धारणेनाधःातो मवति

अध प्रातरनुवाकस्य denne काल वाधितु कालान्तर विधत्त -- “उदित आदिष्ये प्रातरमुवाक मनुमूयात्‌ ; सर्व श्चेबै- तदश्र्दिषाकौत्य' भवति” -इ्ति। प्रकततावादित्थोदयाव्‌ mits प्रातरलुवाकः पत्यते $, WH तु सर्वस्याङ्का दिवाकीरत्वसिदधार्थ सुदयादू मभुन्रूयात्‌

सवनोयपमौ afafend विध से-- “सोयं पशु मन्यङ्श्ेतं सव- नोयस्योपालश्चा AAR Aaa yas.” इति सुवा देवता यस्य पगोः सोऽयं सोयः', cay? वर्णान्तरेण सम्पादितं fawy, तत्रास्ति यत्र सः “wary, AEWA श्वेत सोऽयम्‌ शधन्धङ्- way वर्णान्तरेणामियितः, wate इयर्थः § | तादश्रः पशुरत TUNA STAT | ; अतस्त मालमेरन्‌ | यस्मात्‌ एन- दषः सूयदेवल्यम्‌, water: सायः पशः

सामिेनोषु विशषं विधत्त- “एकदिशतिं साभिधेनीरलु- ब्रथाकत्यक्ाकयतदष्रेक विंशम्‌"-ष्ति “एतद्‌ विषुवन्रामकं aw-

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दौवाकीक्तयसामा wafa—warfe (are Are ४.९.१२-१९।

“मति रात्रा aren: प्राक्‌ शकनित्रादान्‌""-इति भा ३९५ TS I

$ "आ।तबहान्बहगं "द्रति ute ४६४१० ads “Marquee, “og सोमख ae यददयपुन्पाचि फाल्गुनानि" -षति ware are १,८.१.१७ ; ४.५.१०.२।

*चपात्‌ प्भस्चायाम्‌'-इति (ore ७,१.६९. ) गमि रुपम्‌

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paettatingwaty mente’ साणादेव gar भेकेकनि्् merrgrfaartat -मेकदिशतिसष्या धशा we area: wwe, धाः wage दतयेकविं शतिः, तवः woe श्रा --“"विषुवान्‌ दिवाकी्य , उदिते प्रातरनुषाकः, एषु saa दति पट्‌ धाय्याः सामिषेनोनां, dra: सवतौयसो- area: -इति ( ite <.६.१-४.) | | निष्केवल्यशस्त्े निविदं विधत्त —- “cauwiad ferent या शस्त्वा मध्ये निविदं दधाति; नावतीरु्तराः पंसति ; wage परुषः गतवोयः wifer चवुष्येवेनं तद्रो दद्दिये द॑धाति" दति तकिन्‌ wa स्तोत्रियलुरूपयोसमुदयोः षडुषः ४, “यहावानः-श्त्छका (He १०.७७.६९.) धाय्या, हहृद्रयन्तरयोर्यानौ Bt, उपल्षममामप्रग(धस्व प्रग्रथनेन fret: t, दशासुल्वादृतः मम्‌'-इति (aoa urn, ) fae, -यस्तिम्मगहः- इत्येकादशः (Wo ञ,१९..१-१ १), "अमि त्यम्‌ -द्वि पञ्चदश; ( de t Mt. १-१५.); इत्येव मेक चत्वारिंशत्‌ तत्र प्रघमया जिरभ्बस्तया ay तिचत्वारिंणत्‌। ‘saa नु वोर्यायिः-द्रव्यस्मिन्‌ पश्च दश्च (स०१.३२.१-१२.) BH AT मववा ंसमोयाः ; तजा ल्पे एकपष्चाभडव सि, वपन्ते frau: avant द्वम्‌ “इन्द्रस्य गु वोरव मि -षतयभ्य सूलस मध्ये Tat "निवि" दध्यात्‌ तत wy पुनरपि 'लाषतीः' ऋचः Way तथा afer

~ + ame = ewe क, 2

¢ विभ। aoa पिवतु, ममा मित्रस्य --संण ११.१५०.९-३, १००३०.९-३००६) ` t बुदद्रयन्तरवोर्य्निः---तेर ९.४९.१००.२२.२१. ke भार UMA , इद्र सिद Ramm Se ८.३.५६ उ१ भाः ०,१.८.१।२ ¦ ` wwe Pe ८.६1 १--१२. सवीय sari |

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Rak .॥- फेतरेयब्राह्मषम + `

तसद्धय खाम्यात्‌ उभ्या yeaa भवति इन्द्रियाय nage APY सद्चाराच्छतं wafer; तदौयव्यापाराशच तथा ्तर्ञ्चाकाः। स्वं सति यजमानं aye wate Td इद्ियेषु अवस्यापयति ५॥ षति ओीमख्धायणाचायविरचिते माधवोये षेदार्थप्रकाये हितरेयब्राद्मणस्य चतुथपञ्धिकायां दतौयाध्याये ( अरटादशाध्याये ) पञ्चमः खण्डः (ze) |

अथ qs, ae: a

दरोणं रोहति wat चे लोको cited ‘eat मेव तं लोकं रोषति एवं Fe यदेव दूरोशणाइम्‌! असो वे gine यो ऽसौ तपति कञिदा भज गच्छति यहुरोहशं रोषत्येत मेव तद्रोडति शंस- वत्या रोषति हंसः शुचिषदित्येष वे हंसः शुचिषद्‌! वसुरन्तरिश्चसदित्येष वै वसुरन्तरिचसङ्ोता षेदिष- feaa वे होता वेदिषदतिधिर्दरोणसदिल्येष वा भतिथिद्रोणसन्‌ नृषदिल्येष पे ane वर्सदिल्येष वे. acagt वा vaya aferata wages. ल्थृतसदिष्येष वै सत्वसद्‌। न्योमसदिष्येष वै व्योम-

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सद्‌ ata वा एतत्सद्मनां यस्थिन्भैष Greate SEAT इत्येष वा भव्जा रहो वा एष प्रातस्देल्वषः सायं प्रविशति गोजा इतेष बै गोजा ear. sara वे सल्यजा अद्रिजा sara वा भरद्रिजा wa fatra वै सता! मेष एतानि aati वा we wea प्रताच्ततमादिव रूपं तद्याग क्र दूरो- गं रोहेर्सवतेाव Tea खगक्ामस्य रोह कारस्य हवा एतं yatta सैदयन्रादो गायभौ सुपर्णो मत्वा साम माहरत्तदयथा TAT मध्यमः पुर एतार कुर्वीत ' तादक्कदयटेव तायं si वै तार्या यो ऽयं परवत 'एष ate लोकप्याभिवोढश्म ल्यम्‌ षु वाजिनं देवजृत falta वै वानौ eager: सहावानं aaa रथानां भिताष वै सहावांस्तक्तेष शर्मा कलोकाम्त्दास्तरव रिष्टनेमिं पृतना माशु मिते वाभरिष्टनेमिः पतनाजिटाशः aaa दति afeanr माशाम्ते' aval मिष्टा दुषेमेति छयतेावन. मेत- टिन्दस्येवं राति माजोद्वानाः aaa इति Saat Ramm? ara मिवा eeafa समेवैन मेतदभि- ave ala लोकस्य समधा! सम्यतते AAT उर्वी yet aga गभीर! मा वा मेती मा परेती

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रिषामेतमे पैतदनुभन्तयत we ace मेष्य न्त्सृदाच्िद्यः शवसा पञ्च Gel: सूय दव व्योतिष- परस्तताभेति ved aa मभिवदति area: शतसा we. रंहिन aq वरन्ते युवतिं शर्या मिल्याशिष मेवेतनागास्त wet यलमामे- WU (२०)

wa कस्याचिदटचः शंसनं विधत्ते--““दूरोद्णं रोदति ; iit वं लोको giwan’-<fa 1 gag रोहणं यस्मिन्नादित्यमण्डले तद्‌ दूरोहणं, तत्रारोषणस्य साधनत्वाश्रतखङूप मपि ‘ga- way -ग्त्य यते ; तद्‌ 'गोद्ति' भ्रारोहणाथं शंदरेदिल्यः। वदा मन्तस्य guy उचचारणविगेषः ‘gue ; विशेषः सतर ऽवगन्तव्यः५ a "रोति विशिष्ट anced कुर््यादित्य्धंः ¦ योऽयं सखगैलोकः, तस्यारोषूणं any मिति दरो सत्वम्‌ ; aed खगै- लोकं प्रापयतीत्यर्थः . वेदनं प्रभ॑सति-- “at wa तं लोकं रोहति एवं वेद-इति विदित aa प्रशंसति --“यदेव दूरोहणारेम्‌ असौ वै दूरोष्ठो यो ऽसौ तपति ; afaer ua गच्छति, सयद्‌ दूरोषणं waa मेव तद्रोहति"-इति | दृगोष्टण मिति aga तत्‌ किमिति शेषः| प्रज्ाथा श्रुतिः). असावित्यत्रोत्तर get यो ऽसौ आदित्य wafa, waaay ‘gta: दुः रोह खस्यानावखितत्कात्‌ |

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» भाय श्रौ ८.३.११-१५।

चतुर्थपश्विका ३। ९५ ah.

caer दः ‘afag यजमानः aenqararfearna aeelts, सोऽपि ‘gare: दुःङ्स्थानारोहण्लात्‌ एवं सति. “Ag बहि ew मन्तं "रोहति भरंसेत्‌, "तत्‌ तैन Wawa "एतम safer लोकं रोषति प्राप्रोति i मम््वितरेषं विधत्ते —“earar रोषति" -षति Sager ger च्यस्ति, मेयं ‘sari #, तया Tea, ता सुषारयै- -दिलर्धः॥ तस्या ऋचः प्रथमपादे Yar मनुष्य Tae GR ufarfzaa शसः शचिषत्‌'-दति। इत्ति सवदा गच्छ तीति Sal. war we eres सोदति ति्ठतोति "चिः wey श्रद्िन्‌ भागी यः प्रतिपाद्यत, “एष 2 AWS STATA एव ;-- सच सर्वदा गतिमच्ादंसो भवति, दुमलोकेऽवखानाष्डः चिषदपि भवति उक्वगभाग AAT व्या चष्ट —“agonfce- सदितयेष वसुरन्तरि्सत्‌'" -दति वसति सर्वदेति वदः वायुः, नद्ध वायोरनि cit वा कदाचिदम्तसमयोऽम्ति; ताहो agony सीदतौति “अन्तरिचमसत्‌' भादित्वख्य परमाम eran स्वामकलादन्तरिशसद्दायुरप्येष पवेतुग्थते दितौय- aes qian ममु व्याचष्टे - “होना वैदिषदिव्येष वै होता ‘@feqa’-<fa (होता Hae Fal; यागभैयां सोदवषीनि ‘fear 1 afer तद्रूत्वं पूववत्‌ GACT मनश्च व्याचरे. - “प्रनिधिश्रो शसदित्येष वा भतिथिदुरोणमत्‌"-इति,! a विदत तिथिविरेषनियमो चाभयं we, सोऽयम्‌ अतिचि

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इरोरषु तत्तदुहेष सीदति याचित प्रवि्रतीति ‘etree’ | दित्यस्य तद्रपत्व मपि द्रष्टव्यम्‌ कतौययपाटं चतुर्धां fever प्रथस्भाग मन्य व्याच -“जृषदितयष वै शषद्‌"-दति। दषु aqzy वष्टिरूपेणए सोदतौति षत्‌" तथा arcane वच्यति --“भादित्यचचुभूत्वाक्िषी प्राविश्त्‌"-दइति (४.२.४,) | aaa रादित्य एव ठृषच्छष्टवा्यः॥ हितीवभाग Waa व्याचष्ट “acafeary वै वरसद्‌ ; वरं वा एतसद्मनां afar. aq आमन्रस्तपति"-ष्ति। वरे aes awa सोदतीति "वर -सत्‌ः एतस्यादित्यस्य मण्डले weeny प्रसिद्धम्‌ यानि ‘eat निवासस्थानानि सन्ति, तैषां मध्ये ‘afaq मण्डले ‘qa: भादित्यः “arama: उपविष्टः सन्‌ तप्रति ‘aaa’ मण्डलं ‘qv as सश्र शछतोयमाग मनृद्य व्याचष्ट -- “कतसदिकषष वै सत्यसद्‌'- षति ऋतं सल्यवदनं वेदवाक्यं तत्र सौदति प्रति- पाशयति sfa aug’ | भादित्यस्ट सतयन षेद्वाक्येन प्रतिपाद्यत मनेकमन्तेषु प्रसिद्धम्‌ aqua aga व्याचष्ट “ब्योम- afeti वै व्योमसद्‌ ; व्योम वा रतस्सद्मानां यस्ित्रेष wae स्तप्रतिः दति anfea आकाशमगे खोदतौीति व्योमसत्‌'! श्ादित्यस्य तथाविघत्वं प्रसिद्म्‌ | यस्मिन्‌" व्यीमस्थाने ‘oq’ शादित्थः प्रत्ासनेस्पति, तत एतत्‌ खानं ‘“awai’ निवास- raat मध्ये व्योमः गटडाद्यावरष्यशुन्धय माकाश्म्‌ वतुं पाटं पञ्चधा विभज्य प्रधममभाग aaa व्याचष्ट --- “भना Tas वा WHT, WE aT एष प्रातषटेयपः सायं प्रवि्रति"-द्ति। अद्धो जायते योऽय मक्षारादिः, सोऽयम्‌ (अला agua मस्म सव्रौलमकलादवमन्तव्यम्‌ | किष्डाय मादित्यो ऽक्हष्टया प्रातः काले

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श्रष्वयतप्रादिषः भ्रतिशयेन ware विद्म यया. अवति तथा त्रिः पादयतीति शेषः

-अक्तात्पय्यं द्रपयक्रेव fate निगमयति--“तक्ाश्च्रक् चं दरोणं रोहेदंसवत्रैव रोदधेत्‌”- दति यत्र क्ञापि.कमेखि दूपे, wefram afer, तत स्वत इंसवल्येव विच्धेया |

` फडमिदेन सङ्षान्तरं विधत्ते-“ताच्यं स्वर्गकामच्य. रोत्‌" ufa wena मद्प्रिणा ce aren (do १०,१७८.१-३.५); तश्िन्‌ Gh MIME यजमानस्य Gawd Dery, तु छंखवत्या ae

, वदेवस्मप्ंसति —“arett वा एतं पूर्वोऽथ्नान feraret MAA सुपर्णो भूत्वा सोम AeA ; तद्यथा Way AeA: YT तारं कुर्वीति, eR सद्यदेव aed; ऽयं वे तर्यो योऽयं पवत एष खर्गस्य लोकस्याभिवोङा”-दइ्ति waa wear काम्ये quay) तच ‘aval wa गरुड एव पूवः प्रधमगामोसन्‌ ` ‘way wary "रेत्‌" प्राप्तवान्‌ | किं वच्यसार fafa, सेदु 'अपते--- गायत्तो ‘Eat’ ast भृत्वा सोम areca | एतश्च ya Ra प्रतिपादितम्‌ ( ११९ ए) 1 एव॑. सति “are! सूक्ते यदेवः शंसनं ‘an तजर प्रसते दृष्टान्तः कश्यपे यथा लोकै ‘wan’ स्रा्मविशेषाभिन्रं तदश्यवासिनं कच्चित्‌ पुरुषम्‌ अध्वनः" मार्गस्य ‘oz gad’ पुरतो गन्तारं anivera कुर्बोत, तादक्‌ ‘aa’ arian यः "अर्यः वायुरण्तरिक्वै पवते, भव भेव are

एवा का ON ATE OREN ee 9 १.1 A eR 7 7 eee SE TET OR OnmeNiy wl <

e we ane शपिलायः, श्वोऽपि वाचा cat तश Wha awa भः चःपत्य fae ष्यश्पकिः erg शाधौयसौ } गर्गादिषु ae पाठात्‌ (पार ४.१.१०४. )। Sage gg -निर्वचभान्तरं fraw zeae ( १०,१,३. ) |

water श्चैव.

स्वरूपः दष ata (लोकस्य भमिवोरषा' मेता . भवति ` तच्मात्ताछसूनेजेव दररोरणं रोत्‌ ^

तस्य सूकरस्य प्रथमाया चि प्रथमपाद मनथ ares “a सषु वाजिनं देवज्‌त सियेषवैवाजौ Gana” इति eed. पादे ave भिति व्यति ales ता्च्वम्‌ ? त्यमू षु" area: स्वेनामत्वात्‌ afagarat, शब्द ए्रकारार्धः- पराणाद nfag fa वाजिनम्‌ भ्रत्रवन्तं, देवजुतं' देवानां मध्ये are न्तम्‌ | श्रसिन्‌ पाङेभिधीयमामः "दष े' ताश्यं एव ; wera. aes देवेषु मध्वे aaa दितीवपाद मनुय व्याचष्टे "सहावानं ततार रथाना fra वै सहावांस्तरमैष शोमा. न्रोकान्मद्यस्तरति"' -दति। पुनरपि कोटं ताश्येम्‌ > .सशा- ara’. सहाः aad सर्गाहोना मभिभवस्तदन्तम्‌ रथानां "तस. तारम्‌' उन्मह्यिलारम्‌ | “एष त्रै" ताच्य एवास्मिन्‌ aes fafer, ‘Hera’ अभिमनसः, ‘aaa’ sayfa भवति ; यस्मादेष इमन्‌ लोकान्‌ ‘aa: aera मेवनतरित्‌ं चमः॥ दतीयपाष्ट मनुय व्याचष्ट -- “अरिष्टनेमिं एतनाज माश भिल्यष at afczafa: एतनाजिटाणः''-दति। gatfa ated तारम्‌ श्ररिटनेमिं रिष्ट चिका, agifea मरिशटम्‌, तस्य ध.मेमिखा- नयम्‌, --यथा रथचक्रस्य fa: परितो र्जिका भवति ताह. TWH: रतना परक्रोग्रमेना, तां जयतति शएतनाजम्‌'। आयु” वगवन्तम्‌। शम्मिन्‌ प्राद्ऽभिद्धिननां gat ave सद्धावाष्टेष vary प्रतिपाद्यः॥ वचतुधपादे प्रथमभाग wae व्याचष्ट --"खस्तय दति स्वस्तिता माणास्त'' दति | “ama

11

(न कि = ~ eee ns > ~ ~ ~

o ‘a मन्ध सव्यम्‌ BTA’ ~र नबि ४५

wea सन्यनः -- कुः !

१५४ शितरेयनाश्चशम्‌ `

@arig अनेन पदेन Sat mia भवति उत्तरभागं मनुद्य See “are fire दुवेभेति इयसेवेन मेतद्‌ -बूति \. ‘ard’ मरखम्‌ ‘cw कमि gaa’ areata: पतेन मारीन माद्नयत्येव ( Ho १०,१७८.१. ) #

साधसे दितोयस्या ऋचः gare प्रथमभाग ayer व्यावरे-- “इन्द्रस्येव राति माजोहवानाः aaa इति खस्तिता भेवाशस्से'- इति। यथेन्द्रस्य cat श्विः nase, ware तारस्य “दातिः दातव्यं वसु “प्राजदवानाः' समन्तात्‌ पुमःपनदंदाना वयं आजषयोमेति वखमाणेन सम्बन्धः किमर्थम्‌ “aay कम्प्र ध॑म्‌,-- wares खस्तिता aa केम भेव “a प्रार्थयते Saar मनद्य॒व्याचररे-- “नाव भिवा रुषेमेति, सख मेषेम भेतदधिरोहति ; are लोकस्य ena, ara सङ्गन डति) यथा लोके. मदुमत्तरणष्णाय माव मारोष्टति, एवं ai भ्रामं दुरोण AGRA | Uae “एने goed खगे ‘ay सम्यगेव भधिरोष्टति भपतस्तच्छंसनं aia (समष्टं ` mat भवति! साच प्रातिः सम्य भोगाय, भोग्यवस्तु- सस्पदमाय भवति सम्प्राटनं ‘aR’ भोगसम्बन्धाय भवति उत्तरादे wa व्याचष्ट -- “उर्वी wat TEA MAT मा at Rat मा परेतौ रिषाभेतीमे एवैतदभुमन््यत waa a मेष्यन्‌'- दति नकारः समुयार्थः। ‘sala भूमिश श्मः facitat ate, ‘aga’ उमे ofa भतिदोर्चे, ‘mit?’ waar. nritiat युके, उभयोरियत्ता- frag waned: ave डे qrarafaan ! वयम्‌ ‘aay आआागमनवेलायां ‘ata’ पुनगमन-

कनि (रभ ब्रच्बन्‌।

चतुरधंपञ्चिका | ares १६१४

कलायाश्च ‘ary’ छम ‘ar रिषाम fearge मा करवाम (क ` १०.१७८.२. garda होता मेषं भागमिष्यत्रपि, परा मश्च; पुनरपि परावृत्य गसमिथयन्रपि श्रमे एव' द्यावाषएभिष्याषेष अनुमन्तरयते। छतोयस्या कचः पूं ant व्वाचषट -- ““सदायिदः Tat oy ah: सूय शव ष्योतिषापस्ततानेति aad चु मभिवदति”-दति। ‘a: are: ‘aerfaa तस्मितेव खथ ‘waar बलेन पच्च Hel’ पञ्चविधान्‌ पुरुषजातिविगेषान्‌, ea- मनुष्यदसुर रासपत-गन्र्यान्‌ भ्रतिविस्तारितवाम्‌,-- यथा सः ज्प्ोतिष्रा' स्रकौयरश्िसमुकेन “aay gered तताम्‌ विस्तार यति, तहन्‌ रएतत्पाठेन aed ga ‘Nerd’ ger क्त्वा अभिवदति, प्रशसति उत्तराच मनृदया व्याचष्ट -- सहस्रसाः waa wa tier ay वरन्ते युवतिं शर्या faanfau मेवे. AINA WAT यजमानेम्यय"--इति। "अम्य तारस्य See गति; सहस्रसाः' सदस्रभेदयुक्ताः, ‘daar’ गतमेदगुक्ाः "दन षण aaa दति धातुः ; ave समुतं समजतीति सशसलसाः' सरस्रमभेदयुक्ा तां गतिं केश्पिमस्मा वगन्सः वारयन्ति! | यथा लोकै ` रयां" गरकाष्टनिमितां 'युवतिंः गव्मुरोर मिणयोरम्या वरते, तदत्‌ | नजार उपमानाधः। यथातिश्ुरे्ण wae प्रयुक्तो वाणः कैनापि a निवाते, तथा लदीयगतिरिवयर्धः ( Ho -१०,१७८.३. ) | Waa श्र्व॑पाटेन wa दाता शरासने ,. च" ama मपि यजमानेभ्यः सतामुकानात्‌ वष्ुयजमामार्थं eo fan afenty मसान २११२३ = ` `

+ निष्‌ tea. दरट््यष्‌।

` २४६ a एेतरेयत्राद्मशम्‌ a

मध्याशिष मेव प्राथेयते cweraia ; बा्यगतेरनिवा्यतानि- धानात्‌ # ` ईति ओोमत्तायणाचायंविरचिते माधवीये वेदाथप्रकाशे रेतरेयत्राद्मणस्य चतुधपञ्चिकायां टतौयाध्याये { अष्टादशाध्याये ) षष्ठः खण्डः | a (२० )

अथ सप्तमः GW

आहय दरों रोति स्वगो वं लोको दरो

SU ANT AB a वाक्‌ यदाह्यते तद्‌ ब्रह्मणादाषैन स्वगं लोकं रोहति पच्छः प्रथमं रोहतीमं तं लोक॒ माप्राखधाडं च॑ शोऽन्तरिचं तदा- grea fava तं लीक माप्रोधथ केवल्धा तदे- afer भ्रति तिष्ठति एषं तपति तिपद्या प्रलखव- रोहति यथाशाखां धारयमाणस्तदमु ग्मिंल्लोके भ्रति तिष्ठल्यद्भोऽन्तरिचचे पच्छो ऽभ्ंलोक आप्त्वैव तत्‌ ai Ma यजमाना afaara भ्रति तिष्ठन्ख॑य

एककामाः BW Brat: wre मेव तैषां TVS जयेयुरहव खगे लोकं नेव वास्धिंल्लोके ज्यामिव

ee re meena ) een. ele RR EE EN OEE EE ELT SL ATR

* auiay fedtafesea, मिष्करेवस्यपूकानां प्ररस्तादिदं aa शंसनोयं मवति; fayafa त॒ निष्कदस्यसृक्तागा मन्त एव बान Ws ७,१.१३२.०८.९.१४ सूतं RET |

चतुर्धपश्िका २। ३५७

वसेयुभिधुनानि सक्तानि wea चेष्टभानि जाग. तानि भिधुनं बे पशवः पशवण्छन्दांसि' पशनां मवरशुडधा NO (२१)

भथ दूरोहणसूकशंसनस्य प्रकारान्तरं विधन्ते-- ‘arya दूरोहणं रोहति ; ails लोको दूरोहणं, amen, awe वाक्‌, AMAT तद्‌ AURA स्वगं मलोक रोड्ति'-इति। “ओसावोम्‌"' -रत्यप्नयो राह्नानं कत्वा तदनन्तरं “a मू षु" -द्त्था- दिकं दरोणं aM ‘Tey Mera पठेत्‌ | Eye WIKIA, WHI वाग्रुपतात्‌, वाच वेटासिकाया ब्रह्म- त्वात्‌, प्रथम ARIA सति ब्रह्मरूपेण आहावेन खग समारोहति

nat प्रकारविगेपं विघन्ते--- “स पच्छः प्रथमं रोदतौम' तं लोक भाभ्रौत्ययादचशोऽन्तरिक्षं तदाप्रोत्यथ निपद्यामु' a जोक माप्रोत्यधर Kaa, तरेतस्मिन्‌ प्रतितिष्ठति एव तपति ' sf | दधा मलस्य शंसनम्‌, रोशक्रमेणावरोद्क्रमेण चेति नं ae चतुवाग मावन्त गोयम्‌ | प्रथमावृत्तः "पच्छः" पादशः पटेत्‌, एकै afar पाट्‌ ऽवसानं कल्वा-गंसेत्‌। दितौय्स्या माहन्तौ “we- चः एकंकस्मिव्रद ऽवसानं क्त्वा पेत्‌ ठतोयस्या Arent ‘fara weal oxy ऽवसानं कत्वा पटेत्‌ चतुर्ष्या wai भवसानरद्ितवा सम्पूणेया Way, ‘ay -एतानिच्तदखूभिर- afafu: लोकत्रयम्‌ ana, प्रात्‌ "एतस्मिन्‌ प्रकाशमाने स्च. मण्डले प्रतितिष्ठति

श्रारोद्प्रकारविगैषं विधाय प्रत्यपरोणं विधत्ते -- “farer प्रत्यवरोहति, -- aay शाखां धारयमाणस्तदमुमिं्रौके प्रति far

Ry Qataarerey

aetna पच्छोऽसिंक्ञोक wea तत्‌ at लोकं यञ- माना अखिंज्ञोके प्रतिति हन्ति-षकि। प्रत्यवरोक्रमे प्रधमा- छन्ती. पाद वे अवसानम्‌ ; दितोयावु सावं अवसानम्‌ ; ठतौ- यायुत्ती पादे weary | तथा सति यथा Me TATA मार पुरुषः प्रत्यवरोन्‌ हस्तेन शाख्डां ce azar fact भवति, एव ad प्रथमतः खर्गे प्रतिष्ठाय पञ्चाटम्तरिक्षे भूलोके प्रति- तिष्ठति यथा होतुः प्रतिष्ठा, तथा यजमानाना मपि; तेच स्वगे प्राप्य युनरागल्यास्मिक्लोके ufafasfet ताषैतावारोष- waa इंस्रवतौपक्ते ताश्यंपक्चेऽपि समानौ | एव सुचखारणस्य दुःशद्तल्ादस्य एंसनस्य "दुरोहण -सञ्छ्ता # कामनाभेदेन प्रकारान्तरं विधत्ते-- “qe एककामः स्युः,

स्वर्गकामा; पराञ्च भैव तेषां रोहत्‌ ; ते जयेगुव खगं लोकम्‌”- ष्ति। एकस्मिन्नेव लोकै कामो येषां ते "एककामः; | स्वगं लोक भेव कामयन्ते, त्वेनं लोकम्‌ ; तेषां ‘ary मेव प्रत्यवरोह- tfea मेव “रोद्ेत्‌' शस्तं पठेत्‌ | तावता ते स्वगं लोकं (जयेयुर्हेवः प्राद्रुवन्तयेषवे

अस्मिन्‌ ca कश्चिदोषं दशयति —“aaafaima ज्यो गिव वसेयुः" इति | ते खगे प्राष्रवन्तयेव, किन्लत्र दोषोऽस्ताव ;- ते यजमाना अस्मिन्नेव लोकं “ज्योगिव' चिरकाल मैव नेदसेयुः' स्वधा तिष्ठेयुः परिभवदयोतकनमः नेदित्यनेन भायुःत्रयरेतुरयं went दूषितः

सृक्षान्तराखि विधत्ते -- “मिथुनानि waft शस्यन्ते, ae-

tenths भी ee oe

9 “we ( aera ) एकाम्‌ ( ऋचं ) शस्व ऽदय ( area प्रडिला ) दरगे रोष "Kha argo ate we. ९५।

चतु्पञ्चिका। ३) ८॥ १६४

fa जागतानि च; fart वै पथवः, पद्वन्डन्दांचि, carer मवद" - दति मिथनध्रष्ट एकत्वनिवारक्षः am बहुरि शुक्तम्‌ भवति “Ufgarig celia Seanfy "दिविदस्य वरिभा"?-इ्त्यारौनि जागतानि' +) सदैष्छन्डो इयम्‌ मिथुमसदशम्‌ ; पशवोऽपि मिधुनामकाः ; छन्दासि पश्ुसाधनत्वात्‌ पशवः ; भतसेषां पंसनं पशप भवति nes इति ओोमससायणाचायेविरचिते anata षेदाथैप्रकाते रेतरेयब्राद्मणस्य aquafearat attra ( शष्ठादशाष्याये ) सपतमः सरलः (२१)

er oon 11 Seneee

अय Wey way:

यथा वे gay एवं बिघुवांस्तस् यथा दियो se od wat sat विषुवतो यथोत्तरो ऽं quit विपुवतस्तश्यादु्तर इता वक्ते प्र वाहुक्‌ सतः शिर एवं fayay fazadfen इव भै परण maria स्यु मेव मध्ये शौष्णो विज्नायते aerefag-

11 we =

* “afer (मं 9.१९.) (निल क्षम्‌ (ae 14), sare” dais ( do ९३६२. ) Kia shee आश्र Aho ८,६,१९।

+ “Peaferger (नं, १५५}. ga RY ल्म (Ho {९१.), Tad पूर्वीः (Po १.५९.) WU मद ( Ho द.२०.). Wafesra (He १.५०.) THY de १०.१५८. ) af” “Wa भग्र Me ८.९.१६९

१६९० ` Saterarerter a.

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बल्य रेतः शं सैडिषुबान्वा एतदुकयानो aA FA वान्‌ विषुवानिति विषृषन्तो. भवन्ति शेष्ठेता मश्रवत इति तत्तन्नाहता dame एव शंमदेती वा एतत्घंवव्यरं दधतो यन्तियानिवे पुरा संबत्सरा-. रेतांसि जायन्ते यानि पञ्चमास्यानि-यानि षमा. 4 खानि सोव्यन्ति वे तानि वेतमुञ्चतें ऽथ यान्येव दगमास्यानि जायन्ते घानि साबर्सरिकाणि तैम Bat तश्यात्संवत्सर एतद हः Waa संवत्सरो-श्येत. टृराप्रोति संवत्सरं दयोतदहगाप्नुवन्ेष इवे संव त्सरेण UIA Area एष विषुवताङ्गभ्था हव मासः पाप्मान मपहते seal विषवतापर संवत्सरेण पाप्मानं इति ऽप विघुवता एवं Qe वे्वकमण wad सव- नौयग्येपालम्मा मालमेरन्‌ fea ममयत एतं महा ACA ऽहनीन्द्रो बं at हत्वा विश्ठकर्माभवत्म,- पतिः प्रजाः ष्टा विश्वकर्माभवत्ंवत्सरो विश्व. wae मेव तदात्मान प्रजापतिं संवत्सरं fava. कर्माण माप्नुवन्तीन्द्र्‌ एव तदात्मनि प्रजापतौ संब. ent विश्वकर्मण्यन्ततः प्रति तिष्ठन्ति प्रति तिष्ठति एत" दः एव षेद (२९)

दल्यैतरेयनाद्म पे चतुथं परज्छिकाग्रां टतौोध्यायः॥३॥

4 चतर्यदचकः ^ 1 चतुथपञश्चिका! y १६१

wWa-Myatiag weft मनुष्यसाग्येन प्रभंसति “व्यथा वै yer एवं विषुदांस्तस्य nar दक्तिणोऽषं एवम gatas विषुवतो 'क्थचरोऽद ण्ठ eazy, a विषधुवनस्तस्मादुसर त्था WA पक्क सतः शिर ण्व विपुवान्‌ बिदलसंहितष्व पुश wah श्थभेत्‌ wea गरणी विप्रायते''. इति) यथा oe Gen टक्तिग्रवामसगाभ्यां angina गिरसा युक तस्य. ae wear giao, पुरुषसम्बन्धि efera. मागस्यानुश्ः , qiraitesanacrariete sata} ara. ane ad 7: ‘AR BAMA Garay, सम्‌ दान: qe 1 [ह aaah समी Mi wera wee प्ररो प्रोत aapaafasa, पतं पद War tuyay aeamerafaga (विदलं war, Toa fazer a@laenqearneat महितः) irises शेव OR QR) walt. नद्धःतिः awaraa भागदयमन्धानरूपात्‌ aroma wiv ay cata fawn’: 'स्युम aa, - aa वम्यय. सग्धि; पया स्यत संरानि wafa, पयं शिरसि सिषम्‌ सप, नदः सन्ता का(विद्धग्वा हस्मत एतश्च भूना पलिन्‌ भुव्क मपे काम qormaeaqvey fafa faay Yor ! Wa BUA प्रकदसाट्ग्यात्‌ TINA विष्रुवान्‌

रच {भित्‌ उप्त UIT - "तदाद विपुत्रस्यते तदश; jaz : Psa पतद्‌ कयान्‌ qn, fa वाज्विदुत crafa ¥ fag : न्ती भवन्ति, येता waar उनि" -दति। विषुत्रनामके cee हनियच्छलंब्रिद्धितम्‌,लत्‌' तस्मिन्‌ पूवप्चिम एच ATE:

२११. Qataarerny

दश्िणायनस्योत्षरायणस्य मध्ये विषुवत्रामकः तुलामेष- संद तिदयशूपो यः कालविशेषः, सोऽयं विषुवच्छन्दाभिधेयः-। सच wage च्युतिवु प्रचुरः अस्मिन्नेव 'विष्रवति' कासते ‘qa- दडः" शंसत्‌ ; एतस्मिव्रषटनि विहितं wa मद्दःगब्देनोपलद्यति। "एतत्‌ agiiaraga महः; उक्थानाम्‌" wei wa उक्थम्‌" उक्च्यशस््रोपेतशस्वयोम्य मित्ययः अत एव शविषुवान्‌' विषु- वन्रामकशखरवानेव सद्ुन्तिकालविगेषः ! awe भिद्युच्यते--- लं सङ्कान्तिकालं विषुवानित्यव सर्वं व्ववहरन्पि। अतस्तस्मिन्‌ काले स्वपादे मनति यजमाना “तिपुवन्तः' योग्यगस्तगरुभा भवन्ति, सर्वेष्वनुठाद्घु teat प्राप्नुवन्तीति gaia Payer ATT:

aod निराकरोति --- “awaest ; संवत्सर aq शंसृद्रेती वा एतन्धंवत्सरं दधलो यन्तिः -दइति। aratateafa िवुवाख्य- सष्मन्तियुक्ते कासे ममागत सनि शस्त मतच्छंरुनोय भिति यत्‌ yaafaqi मतम्‌, तस्मिन्‌ we तत्‌ मतं नादरणीयम्‌ किन्त 'संवेव्सरे' सते एव गनामयने तत्पु ग्रं णंसेत्‌ oi सलि यजमाना अष्यनलस्यःगेन संवर! Hagar घार्यग्धो ‘glx अनुलिखल्ति॥

विपन्ने वाधकं दग्यति-- यानि वै पुरा संबसराद्रेलानि जायन्ते, खानि पच्चमास्यानि, यानि परमास्यानि, सोव्यन्ति वै तानि वेतेसुश्रत दति संवत्सरधास्णात्‌ पुरैव कतिपयमास- धारणेन यानि रेतांमि aaa, पश्चमाससम्बन्धोनि वा, cere सम्बन्धोनि वा, तानि स्रोव्यन्ति षै स्रच्येव्र, गभेसरावो भवति; Ho नैः werarawa: शेतोभिः yafemai aah’ aa भवन्ति y

दतुर्थपशधिका ! 3. | १६३

genase see मुपसंहरति-- “aa ones दथ arent जायन्ते, यानि aiaafcanfe, Adee ; तस्मात्‌ शंव. त्सर एवेतदहः Way”. एति अथः पूर्वोकषषेपरीश्येन ‘ara’ रेतांसि 'दशमास्यानिः दशसु मासेषु तानि भूत्वा पशचाच्वायन्ते, यानि संवत्सरे तानि, तेः aa: पु्रादिथरोर मगुभषन्ति) ‘way गुणसहावात्ंवसरमते एव afafaqaafe वधो TH शंसत्‌ |

पुनरपि प्रकारान्तरेण प्रशंसति -- “date qaewotfe, संवत्सरं ्ठीतददराप्रुवन्यष © वै dat पामान मप इत रए विषुवताङ्गभ्यो हैव मासैः पामान मप हते That विषुवताः-श्ति। योऽयं संव्सरसत्ररूपः कमविभेषः, wafer aw: ; रभ. योः परम््रर' सघम्प्रातिरस्ति; तव "संवरः कन्तासन्‌ wea. प्रोति, “wea aa भूत्वा dant माप्रोति। व्यत्धयेमात्र ay- दचनम्‌ 1 तयोः परस्पर afaanna सति ‘ag, यजमानः qee- संवत्सरेण पापसानम्‌ अपरे विन(शयति; ata ‘qq, यजमानौ विषुवता' भवतरमव्यगतेनाङ्ा aaay विनाशयति afifa- च्यम, --म॑वत्गवयवेमामेदहम्तपादाद्यङ्गभ्यः ATTA ATS यति, "विधवता gaara ‘iba. शिरसः मकाभात्‌ पामानं नाश्रयति! वेदनं adufa “au संवत्सरेण पाप्मानं इते ऽप विषुत्रता ण्चंदेद'-इति।

भय प्रशस्तस्य विषृवतः wage बिसं सत्र aware ऽहनि कश्चित्पपुं विघत्ते-- “वश्वकार्मण qaw मवनीयश्यो- पाल्या मालभेरन्‌, freq quaa एत॑ मषाव्रतोये $हति"*- श्ति। शिश्लकार्मयं ' विष्ठकर्मदेवताकम्‌ wow पत्वम्‌ 'सवनौयश्वः

३९४ शेतरय ब्राह्मणम्‌ |

चोदकप्राप्तस्य पशोः खाने उपालम्भरनोयं ‘feey’ वशं हयोपेतम्‌ उभयत एतं" दकि णोत्तरपार्ग्बयोर्विललणवर्येन लाच््ितं पथः महाद्रतप्रयोगयुङ्ञे सवरस्योपान्देऽइन्यालमेरन्‌ |

तत्र देवतां प्रशंसति - “eat वै वृतं इत्वा विग्ववार्माभवत्‌ प्रजापतिः प्रजाः wer विश्लकर्माभवत्‌, संवत्सरो विग्नकर्मेन्द्र गेव तदामानं प्रजापतिं सेवस्सरं विश्वकर्माण माघ्रवन्तीन्द्र एव तदा- सनि प्रजापतौ संवत्सरे वि्कर्मण्यन्ततः प्रति तिष्ठन्ति. प्रति तिष्ठति एवं वेदय एवंवेद" इति, द्रो व॒तेवघाद्रष्व विघ्न- कत्तुरभावाद्‌ (विष्वकमा' जगत्यालनरूपकरमैयुक्तोऽमवत्‌ | प्रजा पतिश्च प्रजाः" सर्वाः खषा" उत्मादा कत्स्रजगत्छटिरूपकमयुक्तो ऽभवत्‌ उभयविधौ (विश्वकर्मा टेवः संबव्सराव्कः। अतः संवत्सरसत्रे दिरूपपग्लालम्भनेन (तदाकानेः संवत्सराकमान निन्द मेव, तया संवस्सररूपम्‌ प्रजापतिम्‌”, इत्युभयविधं “विश्वकर्माणं' यजमानाः प्राप्रबन्ति ! प्राप्य (तदानि संवत्वरातमनि "इन्द्रः, रुकरर्ूपे ‘narra’, दिविधऽपि 'विश्वकम॑चि" “अन्ततः, संव.

# “चतुविंश मेतदडः"--डत्यारम्य ( ३०४ १० ) एतदन्ता गवामयनादिव्यानामय- ceca संवत्सरसुवाणां elafaea उन्ताः। weaved 'सत्राणाम्‌-दन्यधिकन्य ‘TATE सात्र होटेकर्मान्यत्र मद्धात्रतात्‌"-डन्यन्ते' { १.१ --८.१ ३.२०. ) BAA TTY विभव उक्ताः | तत्तत्रैव uafider ana afa—‘nigetaagfan: weit sfirga एत wi श्रभिजित्‌ खरसामानो विषुवान्‌ विश्रजिसथा। wet end are suai aul: नतम्‌ बद्रौनेफाहःसचाणां wafa: समुदाष्टताः-दयादि. इत sad ate atte सूचास्मभिदितानि, तानि विशेषतः way खर्तव्यानि। दत उत्तरं क्रमान्‌ गवामगनाक्तीना aut विग्रैषविधय उपदिष्टाः ( १,७.१---१२.२.६, ) तञ Ale १२.१-२। Bape ची" पदअ०। मावो वा एतत्‌ सव areata Be He ०५१)। मामभराद्धये चवे “ard बा एतत्‌ सच मासत""-ष्नयारभ्य पभपाठकदयेन (४,४ Te ) THAT: wiss विहितम्‌, तस ठपदिष्टात्‌ (quae) भादिव्यानामयगखाञ्जिरमामयनस्य (१,२य्ह ०)

पतुधंपश्चिका | a) cy १९५

सरस वस्यान्ते प्रतितिषन््ेव यः पुनरेवं az, सोऽपि प्रति- fasfa श्रभ्यासोऽप्यायपरिसमा्तार्थः॥८॥

दति ्रोमस्तायणातच्तायविरचित माधवोये बेदार्धप्रक्षाश णेतरेयत्राह्मणस्य चतुधपञश्चिकाया alana ( अश्टादगाध्याये ) AeA: खण्ड; (२२)

तेदाधस्य प्रकाशेन तमो दाहं निवारय्न्‌। qaaraqe देयाद्‌ विद्यपलौधमदेग्बरः

इति श्रौमद्राजाधिराजपरमेश्ठरप्रदिकमागप्रवन्तक-

खौ वौ रवुकभूप्रानमास््राज्यघुरन्धरमाधवाचा्यादेगनो भगवत्छायणाचार्येय विरचिते माधवोये बेदाय्रप्रकागनामभाष्ये

रेतरेयव्राद्मणशस्य चतुथपधि कायाः टतोयोऽध्यायः

२६८ एेतशयब्राष्मम्‌ |

“ST ऽकामयत,--कथं नु गायता सर्वतो दादाक परिभूय wat खवि wun fafa ; तं वै Haka पुरस्तात्यथमवच्छन्दोभि- मध्यतोऽक्षररुपरिरादायतया स्वतो, eens परिभूय सर्वा खडि भात्‌" इति| सः" प्रजापति; gata मकामदन, - कयं मु कैन खलु प्रकारेष, गायता सर्वतो gears व्याप्य, ‘edi? भोग्यवस्तुसषधिं प्राप्यम्‌ ? निः विचा, गायत्रीं तेधा व्यभजत,-- प्वनिरूण्र तेज एको भागः, अरत्तरसद्काभिव्यज्य wre eet दितौयो भागः, अल्लरामि ठतो भामः; प्रैस्विभि- भागेरादिमष्यावमानेयु सततो दादश isa: व्वाप्य समि म्राप्तवान्‌ ¦ कन्दःभिरिनि ववचनं परूजाध्रम्‌ केन प्रपंसि - (मकः द्धि wail aug ae”. इति |

रय Tee A Aenea vonfy sy दे मचौ पल्नियीं चनन्सनौ, aiiaeat भाश्वन त. aa afar चक्तुमल्ा safimay ana ant नमोः मेद्य मधलो पर्तिणं। चन्रष्मती snifaett भाक्तो, 9 gizne स्तस्य वावभिती रतिरा्त्र, नी परली; arseqaifexsiair, & wat; यष्टा we sg, a aT इलि afer. AMAT VAM ATA sa WHE why दाद गाह सव॒ wala व्यवङ्नर्ति ¦ सा गायती wee. पता, Fegan, ज्योतिःगब्टोपसनिरमष्यणरोरापना तत uq मा भमाखतोः प्रकाग्बतौ ; अ्ररोनसचाणां सर्वघ्रां प्रसरति. त्वेन WR भाखत्वम्‌ Set apt यो नेद, सता मनुय यथः क्तगुणवत्वव्रिभिष्टया गायता ad लोकं प्राप्रोति गृढाभिप्रचम रूप्रकं परिकस्प्य "एषा पै" इनादिना खाभिप्रायः

' चतुर्थपञ्चिका ! eg) २॥ ` ७.६६.

प्रकटो क्रियते | दादा एव यथोत्तगुलविजिष्टा गायत्री ae: व्बादिना इदशाहे ते गुण, wed | तम्य ereurwer भाष्य- marae विशेषावतिराचसस्थौ, aaa पक्तस्थानीयौ ; advent विनी दहितोयेकादगादविगेषावग्निष्टोमसंस्थौ ; ती aera ; येच ढलीय मारभ्य दशमपयंत्ता शरटावहर्वियेषा मध्ये ade, तै स्वेऽप्युक्यमंस्था. सोष्टाःममह an’ wath वेदनं प्रपंसति-- "गायत्रा प्रसिस्धा aqua ज्योतिभ्रत्बा Wat सगं लोक मेति पते षति

ययो कादःक्र मिरा्वलायनायाखदश्िता ` प्रथ भरतहाद- शाद इम Adare Gan संस्थाभिर्पेवुरतिराच्र aanfana quer उकष्यानथाज्निटोम मथातिरात्रम्‌'"- दति ( Ato १०. ५.२८ १०. )॥ १॥

इति ग्रोमतसायशाचाग्रविरयवनत माधवोये Ferns

रेतरेयत्राद्य णस्य चतुयपन्दिकायां चतुधाध्याय ( एकोनविंशाध्यायं ) प्रथमः खरप; \ (22) 4

अध वितोयः wae: a

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चयथवाएते Aleit Al दम महरा चावतिरातीः दाद््शाहो*हादभाहानि ctfaal भवति afera

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= जज + गिम वी रिति ee ow [1 11

, # यद्‌ इदृशाद्ोः कतिक | od fauintaiias

४9

Ror’ Qataarerey |

एव तैभ॑वति wren रा्रीरुपसद उपैति शरीर मेव ताभिधृनुते दादा प्रसुतो भत्वा शरीरं धत्वा शरदः पतो देवता अप्येति एवं ae षट्जिंश्चदहो वा एष हाद्ण्ाहः षट्जिंशदत्षरया वे बृहती {VAT वा एतद्यनं Cente FEAT वे देवा भूमांल्लोकानाश्रुषत ते वै enfutaratitad लोक माश्रुवत दशभिरन्तरिक्तं enfufed चतुभिंशतसता fem दाभ्या मेवाद्धिंलोक्ते प्रह्मतिष्ठन्‌ं प्रति तिष्ठति ud षेद तदन्ूर्थदन्यानि छन््ांसि वर्षौयांसि भूयोऽच्रतराण्यय Haat वहतौख्या- ayaa इत्येतया fe gar इमांल्लोकानाश्नुवत ते दश्भिरवात्षरेरिमं लोक माश्तुवतं दशभिरन्तरि्तं enfafed चतुभिंश्चतख्ो दिशो दाभ्या मेवास्मिंल्ञोके प्रल्यतिष्टंस्तच्यादेतां वुहतौल्याचच्ते' ऽ्रनुते यद्यत्‌ कामयते aud ane (२४)

भगनरादशाद्ं विधाय व्युकदहादशाष्ं विधत्ते-- "तयश्च वा एते काष्टा UT दशम मद्रा दावतिराव्री दादणाहः''-द्ति। योऽयं व्युढदादणाष्ोऽस्ति, सोभ्य मेतादटयः,-- तत्राद्यन्तौ वौ 'हाकवतिरात्रौ' प्रथमदादशी, aa दशम महः, तव्परित्यज्यावशिष्टे-

WER TAT “were aden) fare कित्‌ कमेविभेषः, सोऽयं चिवार मावर्तनौयः ; “oT दणमम्‌'- स्यत

! शतुर्धपच्िका ६।२॥ :

खोऽय साकारः, वर्जनार्थः ; निपाताना सनेकार्थलान्‌ | यशा wate मय माङ. भविष्यति,-- भरायन्तावतिराज्नौ दशम ave सर्ययादां sar भवशिष्टो मवरातस्िरावृत्तः वषयान इत्ययः ` तवर चोदकेन दौचादिसश्चाविकसष्यः प्रातः; “ag den, विसो दौ्ताः-शत्यादिविकसखस्य net अुतल्वात्‌# | तं fewer मपवदितुं नियमव्रिथेपं विधत्ते -"्रादणाहानि दौकितो भवति, यञ्जिय एष नभवति" दति दशसु दिनेषु दौज्राश्नियन wafed सति Aaienfa: दौलाविग तैरयं पुरषः यज्ञयोग्य एव भवति +

sua frtd विधत्ते -- “mien crftwane खपैति, atte Ra ताभिधृमुते"-द्रति। प्रतौ तिष्ठ एवोपसदः य॑ ; ताचैकंकां wae eq भ्राव्य, इादगसु दिनेषु उपसदोऽगुहिते सति `ताभिः हादशभिमपमङहविः शरीर भेव ‘yaa’ भम्मयति, गर्‌रगततांस्षादिधातुभोषखेन प्राप्यो भवति तथाच सुत ariiudwaq— “यदा वे दीसितः at भवनि, we weit aafa’-<fa उपसरिनेष्वस्य Waar भवस्येव नभाश्यभ्‌, तदिदं सवे धुशुत इन्यनेन विवक्षितम्‌ {

भद दादणसतु दिनेषु सोमाभमिषवं fawa-—“ereaane प्रसुतः" -श्रति। wafefa fas; दौभोपसदावङ्गगक्मण्ठौ; अधिकव-

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§ “wemparafety यथःसन्योमनदः Th ata: Me ५.२.१५ ape मदन्‌ गमम्‌ 9, aye Who ०,२.१४

$थ शेतरेयत्राद्चष्टम्‌ |

ay प्रधानकम | वेदनं प्रशंसति -- “azar, welt war, शदः gent देवता भष्येति एवं वेद"-दति। ‘crenre nya:’-tfa पद्य. मनुवत्तंनौयम्‌ | वेदिता wieny दिनेष सोमाभिषवयुक्ो भूत्वा पूर्वोक्षाभिरुपसङ्विः ‘wot war शरीरगतं पापम्‌ परि- त्यज्य, अतएव YE: इङ लोके भूत्वा, परलोकेऽपि पूतः सर्वदेवताः भ्राप्रोति। wear शच इत्यन्तो विचिवाक्यणेषः, पूत इत्यादिका वेदनप्ररंसा द्रष्टव्या | यथोक्षदौ लोपसन्पुत्यादिनसद्याः wiufa— “षरलिंश्दद्ो वाएषय erenty: ;; षटलिंशदश्षसा awal; await ar एतदयनं हादशादो; eal वै देवा इमांल्लोकानाग्नुवत,-- ते 4 enfutaratftad लोक माप्मुवत, enfacafcd, दशभिः दिवं ,चतुभिश्चतख्ो दिशो, दाभ्या भेवासिंल्लोके प्रत्यतिष्ठन्‌" - इति। यो दादशाद्ोऽस्ति, एष पूर्वीकरोत्या षट्‌तिंशदिनाकलकः ; शडतीष््छन्दय षट्‌ चविंगदक्लरम्‌ | तस्माद्यो शादणाद्धोऽस्ति, एतद्‌ awa “अयनम्‌ भ्रयनस्थान भित्यथेः। देवाञ कतया Bat ay AA’ प्राप्रवन्‌ ,--दभभिदंशभिरक्षरैः प्रत्येक मेवं लाकव्रयप्रासिः. चतुर्भिरक्षरेदिकवतुख्यप्रासिः, दाभ्या मत्त tag मसिंल्लोके प्रतिष्ठां प्राप्ताः तघाविधद्दतौसाम्थादिन गता षटसिंशत्‌सष्या प्रशस्ता | Fea प्र्ंसति--'प्रति तिष्टति एवं ae”-sfa wa fafaatia quraafa— “'तदाहृयेदन्यानि छन्दांसि वर्षौयांसि भ्रूयोच्चरतराष्यथ कस्मारेतां छद ती त्याच्त इति" दूति यस्मात्‌ कारणाद्‌ awa अन्यान्युत्तरापि' af: fred जगतोच्छन्द्‌ स्युसरोस्तरं चतुर्तराधिकानि, भरतो वर्षीयसि,

वतुर्घपञ्चिका ¦ ४।३॥ TT `

तस्मैवं व्याश्यागं 'भूयोऽशरतराणि'. ति | "भथ एवं सति oper. दीनि इन्दांस्युपेशय कस्मात्‌ कारणात्‌ ‘ual षटूरतिंशदक्षरम।च- युतां षेदिकौं हष्तोत्याचक्षपि ? इति dag gate मेवाधवाद मुपजौोव्य परिहार are - “एतया fe देवा इमाल्लोकानाप्नुवत,- तवै दगभिरेवाक्ररिमं लोक acy वत, दशभिरन्तरिसं, enfufed, aqfiaaen दिशो, दाभ्या भेषास्मिंल्लोक प्रत्यतिञस्तस्मादेतां वर्तोत्याच्मेः-च्ति म्र. सञ्यान्धुनत्वेःपि नोकतयप्राभिडेतलाग्रोदत्व alia wweitar- निधानम्‌ | उकाथेकेदनं प्रणमति --"द्नुते यद्यत्कामयते एवं वेद"-दइति।॥२॥ दति ग्रीमत्साग्रणाचाग्रं विरचिते माधवीये वैदार्थप्रकाशे रेतरेयब्रादह्म णम्य यतुथपञ्िकायां चतुर्थाध्याये (एकोनिंश्राध्याये ) fetta: खण्डः | (२४)

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अध wala: खशग्ड़ः

THUR वा एष CSTE: # प्रला- ufaat एतेनाग्रे sama दादशादेन सो ऽ्रषीहत्‌ंख arate याजयत मा दादणाशनति तं दौच्तयित्वा ऽनपक्रमं गमयिलानत्रवन्‌ ete a al sa AT वजि.

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Cue eens” | इद Gey एव्‌ मैठीलर्थापि az |

१०४ ` रितरेवनाश्नयम्‌ .

यिष्याम इति' तेभ्य इष मृज मायच्छल्वेषोगंतुषु मारेषु निहिता ददतं वै तै ` मयाखयंस्खआद्‌ ददव्याज्यः प्रति्डणम्तो वैतेत AAR eee गृहणता याज्य सभये राघ्ुबन्ति ead fata यजन्ते qantas ते वा TAR ऋतवश्च ATTY ररव इवामन्धन्त eq? nlawgy a sqaq प्रजापतिं याजय at इादणाहेभेति'स ada- nave बै दौक्षध्व मिति ते caqar: पूरवे sérava ने agra मपाहत aware दि3व दिषेव द्यपहत- प्राप्मानो SULIT अपरे ऽदौक्न्त तैन तरां पाप्मान भपाडत AUR तम इव तम इव इदयनपडतप्रा्मानं स्तच्छादेवं विदान्‌ दौक्तमायेषु पूवः aa एव दिदौचि- परताप पाप्मानं इते aug ae सवा अयं भजा- पतिः संवत्सरं BAT मासेषु प्रखतिष्ठत्‌ तेवा Ta ऋतवश मासाश्च मजापताकैव संवरसर प्रश्यतिष्टंस्तं एते ऽन्येाऽम्यस्मिन्‌ प्रतिष्ठिता एव" वाव whafa भति तिष्टति यो दादशारेन यजने ' तख्मादाद्ूर्न पापः पुरुषो याज्या श्ादथारेनः Red मयि प्रति तिष्ठादिति eisai at uw wens: वै देवानां sist एतेना यजत

चतुर्थपश्चिका ४। १५६

Seas वा एष wre! स॒वे देवामां षठो एतेनाग्रं ऽयजत॑ vis: Se यजेत ‘wen Wile समा-मवतिन पापः परधो याज्या वाट्भ्ा- Sq Azad मयि प्रति तिष्टादिकीन्धाय 3 शवा जेष्य aera नातिद्र सोऽत्रवौद्‌ aware ` यलय मा चादशाह्नेति मयाअयत तनो a@ देवा sista े्मायातिष्टग्ल' तिष्ठन्ते om er ज्येष्टाय Wea सख्िन्र्खा चरषटतायां जानते एव' वेदो 4 प्रथमस्यहस्ति्यद्ध्यमो ;वाडन्समः यदृ्खः प्रथमस््यशम्तश्मादटय afaey उष्ीप्यत अष छयतख दिग्‌ afaae मध्यमस्तश्मादयं वायु fare पवते तिरश्चीरामो वहन्ति fares gaa दिग्यद्र्वाड्त्तमस्तस्मादसावर्वाङ्‌ तपरल्यर्वाङ वर्षलय- aise नच्तनाश्यर्वाकी दतस्य fen art at द्मे लोकाः सम्यश्च॒ एते aret: सम्यञ्चा sar दमे लोकाः faa दौद्यति एवः ae ii (२५)

अक्धिन्‌ कमणि यजनयाजमयोरयिकारिविशेषी दर्शवति "प्रजापतियन्नो वा एय wiene:; प्रजापतिर्वा ata वजत दादशाचेन ; सोऽत्रवोडनुथ मामां ्,-- याजयत मां ere meta ; तं Aaa गमयिलाहुवन्‌,-- देहि शु Mow

Rod Tatanrerwe t

at याजयिष्याम इति; सभ्यं दष ast प्रायच्छत्‌ ; सेषोमेतुषु मासेषु निहिता; ददतं वेते मयाजयंस्तस्माहदव्यान्चः ; प्रतिश््हन्तो 2 तै तं मयाजयंस्तस्मात्‌ प्रतिग्यक्नता ares’ दति। यो erent: प्रजापरर्यन्षः कथ fafa, वदुच्यते-- प्रजापतिरेव ‘wa सर्वेभ्यः पूवं Raa दादशाक्खनायजत, तसा दयं प्रजापतियन्न इति तद्यजनप्रकार उष्यतै--सः' प्रजापतिः वसन्ताश्युतुदवांचैवादिमासदेवां घात्रवौत्‌। % देवाः! यूय खखिजो भूत्वा मां द्ादशाक्रतुना याजयतेति ! तै माससतुदेवा त्विजो भल्ला न्त प्रजापतिं दीक्षयित्वा, तत्राष्वानम्‌ “wad क्रमं निर्ममनरद्ितं गमयित्वान्रवन्‌ fe न्नं सङ्कल्पा eter Wal तदमुष्टान मन्तरेण देवयजनदेशाज्जिगन्त्‌ शक्यते THAT न्यते ! ननु" सिप्र aa ‘ay sara 'देहि' अरपक्तितं प्रयच्छ, “प्रथः अनन्तरं ai याजयिष्याम इति तुभिमासेखोक्षः प्रजापनिः ` तेभ्य. चरतुभ्ो avawa ‘cay way ‘as’ न्तीरादिरसं प्रायच्छन्‌ सेवा ऊर्ग' रसरूपा ऋलुष्‌ मामेष Fert मपि fafeav स्वसखकालोचिलप्रकारेण ऋतुषु मासेषु प्रवत्तं मानेषु गोक्तीरपरेखच ager भवनि। aat sant ददतं तम्‌' प्रजापतिं ते ऋतवश सामाश्च भ्रयाजयन्‌ तस्माद्‌ ददद्‌ gen aren यसु योग्यः; afe दानहौनस्याधिकारोऽस्ति। तथा ‘a’ मासाञ्त्तंवञ्च श्रतिग्णणन्तो वै प्रजाप्रतिदत्त wears स्लीकुषैन्तः समन्तः प्रजापति मयाजयन्‌ ¦! aarfeertt मपि कत्विजा दन्तिणां प्रतिग्यह्नता ‘asad यजनं क्ष्यम्‌ यज- amir खलखिजां aed प्रशंसति-- “उभये awafa एवं विष्ांसो यजन्ते याजयन्ति च-इति

` चतुवेपच्िका ४1९॥ ` दक

-:'डाद्ाहे दीं angry यजमनेष दौचाप्रासिं प्रपषति न्ते वा दम ऋतवश मास गुरव Career दादथारे ATES aya . पजप्रतिं याजयनो erenwafa; तचेत्यत्रषीत्‌ = ते षै dhera मिति; Agia: ga sate; ते पापान Hated, सात्‌- ते दिवेव,-- दिवेष पशतपाष्नानो ; ऽपरा - अपरे sataat ; तेन तरां पामान मपादत | ABI BA EW ` सम दव ्नपदतपापरानस्तस्मादेवं faery दौशम्ेषु पूवे पूवे एव दिदीचिषेतः-इति। ये पूवं afer व्यवख्िताः ऋत वश्च मसा aaa waren दखिणांप्रतिण्डष्य ‘ac: eT पपभारगोरम्रेषाक्रान्ता एद व्र faa | ततस्ते पाप- परिहाराय ।दगारन ` apart rT: eT याजयेति प्रजापति सत्रुवन्‌ | प्रजपतिरद्गोक्षव्य ते at chat कुरुष्व मित्यन्रवोत्‌ 4

तश्र मासेषु ‘yarar’ शक्तपक्षाभिमानिनो वाये afer, तै ‘ge प्रथमभाविनः सन्तो दोरा agda ate: "तै पूवे ua: wala पाप्मानम्‌ अपहतः नागितवन्तः। ‘aT पापराद्धित्यात्‌ ते sare: “दिवा शव दिवा शरवः प्रका गुक्ताः। लोकेऽपि (रपदतपापानः' पुरषाः (दिवव fe’ दिवसा इव, पु्यरूपेण Arar gar भवन्ति) मथ MITT,” AAT भिमानिमे। देवा ये सन्ति, तु "अपरः पञ्चात्‌ प्रव्षमाना Stat waa से मलिन्यदोषेण पामान ‘a तग मपाहतः भति waa विनारंन maa) "तस्मात्‌" क्रत्खपापविनाश्ाभावात्‌

2 क्षयपक्ष; ‘aac awa cae, तदौयरात्रिषु चन्र

Tamera; लोकेपि ्रनपरतपापानः' पाविता `

afer: पुरषाः (तम दव fe पापरूपान्ध कारलिपल्वेन frre

ger एेतरथत्राद्मणम्‌

भवन्ति तस्मात्‌ कारणादेव पूवोपरकाशक्षेषम्वं "विषान्‌" पुरषो great’ यजमानेषु एकेकस्मात्‌ ‘ge: पूर्वं एव gauge 'दिदौषत्पषितः ठीचितु भिच्छेत्‌ ` वेदनं प्रशंसति-- “aa पामानं wa एवं वेदः"-इति।

यजमानपापविनाशषेतुलाहटलिजं miufa— ‘a वा श्रयं प्रजापतिः tame ऋतुषु मासेषु प्रत्यतिष्ठत्‌ ; a at ra क्त वञ्च मासाश्च प्रजापतावेव dam? प्रत्यतिष्ठत एतेऽन्योऽन्यस्मिन्‌ प्रतिहिताः; od w वाव ऋत्विजि प्रति तिष्टति यो दादशारेन यजते ; तस्मादाने पापः पुरुषो यान्धो दादश्ाङेन,-भमेदयं मयि प्रति तिहादिति'?-दति यः प्रजापतिः दादशाहेनायष्ट, ‘a प्रजापतिः" संवत्सरकालासको War Way मासेषु प्रत्य तिष्ठत्‌" प्रतिष्ठितो ऽभवत्‌ ; तदाच्िज्यवलशात्‌ प्रजापतेरुकर्ष- त्वत्‌ तवै इमैः ऋतवश मासा प्रजापतिक्त्ये संवत्सरे प्रति. feat अभवन्‌ ; प्रजापतिप्रसाटेन तत्पापतिनाशात्‌ “a ue प्रजापतिः ऋतवो मासा भ्न्योन्यपापविमाश्ात्‌ अन्योन्यस्मिन्‌ प्रतिष्ठितः। एव भेवेदानौ मपि यो दादशाद्ेन aaa, सोऽय afeafa ufafasfa; विकूप्रसादेन यजमानस्य पापविना- शात्‌ यस्मादेवं तस्मात्‌" अभिज्ञा एव ary: ^“पापपुसषो srenren ऋलिग्भिने aren” सस्य adfe भार्लिज्यंम कार fafa ‘wa’ पापो "मयिः ऋत्विजि “न प्रतितिछात्‌ सर्वथा सां ufawaa मसिजानामोत्यमिप्रायः |

दादशाण्ं प्रक्षारान्तरेण wief—“asaw बा cg ` अादेश्याहःः-- कश ति देवानां wel waa भयजत ; Ava वाएषय इदंशाहः,- सवै देवानां खडी aay ऽयजत"-

चतुर्धपश्िका। ४।३॥ R98;

“fai यो हादयाहोऽस्ति, भसौ tea uw कर्व मिति, wewa— यः gary (यतेन दादशाङन अपे" प्रथमम्‌ अयजत,

एव देवतानां मध्ये ‘eis,’ वयक्ता प्रवो भवति farwre हादशाइः ACA यन्नः ; एतेन प्रथम मयजत, दैवेषु wa शुखतः खेष्ठो भवति॥

पएतां-हादगादप्रयंसा सुपजोष्य भधिक्ारिवितेषं दपयति--

“M3; AS यजेत,-- कल्या णोड समा भवति ; पापः पुरुषौ याज्यो हादगादडम,-- aed मयि प्रतिं faerfefa’-vfa | यः पुमान्‌ AAU मध्ये वयसा ज्येष्ठो Yq: Asa, ताहयोऽनेन

asa यस्मिन्‌ ea तथाविधकचैको यागः, ‘cy’ भस्िन्‌ दषे

समा कल्याणो भयतिः dame सर्वोपद्रवरहितः gant भवनि यस्मात्‌ अपापस्य tee चाधिकारः, aerate: afast गुणहोनश quit a aa याजमोयः। मयि" afafe ‘aa पापो नैव ufatastafa सस्यलिजीऽभिप्रायः 4

प्रकाराम्तरण Wea wWesrtsreqaar wiafa— “इन्द्राय वे टेवा wena asia नातिष्ठन्त ; hate sweet aaa मा हादण्ादेतति, मयालवन्ततो बं तस्मे Za terra सयायातिशन्तेः2- ष्तः | Cae aaa ease ge: avat देवा wigtaaaan ; ततः Shwlardt wremrea लब्धः वेदनं प्रणस ति-- "तिष्ठन्ते म्बा SIT अयाय, Tafa चेढठतायां जागते एवं वेदः'-इति। "भस्मे भस्य केदितुः "खाः wr, “ज्चेदयाय Terra तिष्ठन्ते watt Ser चाके gate: किञ्च अलस्िन्‌ afenfe येयं चष्ठता, wert wWres: ara? रेकमव्य प्राप्रवन्ति

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` एेतर्यत्राह्मखम्‌ ,.

Is Wey प्रथमदश्दादशदिनव्यतिरिक्षो यो नवरात- wa ये wreaer पूरव मुक्ताः (१७००), तान्‌ प्रशंसति - “जश्न वे भयस्य हस्तिर्यङ्‌ मध्यमो sdreaqa: ; यदृ: WaT: wares मभ्निर् .उदोप्यत,-- उद्धा tive fer; afade. मध्यमस्तस्मादयै वायुस्वियंङः पवते,-- तिरिण्यो वहन्ति ,

‘fart tae दिग्‌ ; यदवाड्धत्तमस्तव्मादसावर्वाङ्‌ तपत्यवाडङ वषेत्यवाश्चि नक्न्रार्यर्वाचो gina fea; सम्यद्यो वा द्मे लोकाः, सम्यञ्च एते त्राः? -दइति। योऽयं नवरात्र प्रथमस्प्रश्चः, सोऽयम्‌ "ऊरौ वै' भारोद्प्रकार एव तद्यधा--- गायतं प्रात- wat, त्रैष्टुभं माध्यम्दिनिसवनं, जागतं ढतोयसवन faa सू(भाव- सि्ठः क्रमः ; तस्य व्यत्यासभावादृर्घं इन्युखते। यस्तु मध्यमस्तयडः, सोऽयं “तियद्ध्‌' वत्ते लद्यथा-- जागतः प्रालस्स वनं, गायतं arafed, ded ठनोय faa नात्यन्त ममुक्रमो area aera: ; तस्मादयं लिङ्‌ उत्तमस्वाहः, “a wale’ अधो- सुखः | तद्यथ! - ded प्रातस्सवनं, जागतं माध्यन्दिन, maa’ ढलोयस्लवन faaazatay i प्रथमो amare दितीय- स्तेदटृभान्तस्तृतोयो Maa इत्येवम्‌ जदं तिर्यज्नार्वाक्तानि विष्वपि arey द्रष्टव्यानि | यस्मात्‌ ‘ay प्रथमस्य जह स्तस्मात्दाम- aia मग्निर्द्ाभिशुखो दौप्यते ‘cae’ चाने; छदा दिक्‌ परिया मध्यमस्य त्यहस्य तिर्यश्षात्‌ तद्रूपो व्रायुखिर्यस्‌ वत्तंते,-~ वायुना fe प्रेरिता arm: ‘facfaa,’ तियम्भूताः savin. “एतस्य वायोखियंक्षात्‌ तिरश्चो दिक्‌ भिया उनत्त- मस्य तास्यावाक्गान्नटरूपः “wt भ्रा दिव्योऽघोमुखस्तपति,-- ` आदित्यप्रेरिवः- पञजन्धोऽधोमुखो वषति,-- भादित्मवक्र्षणाश्छपि

रतुथचच्चिका | ४] ४॥

'धवाचि' भधोसुखानि प्रकाणन्ते। ‘one’ भादित्यश्य walt. दिक्‌ भ्रिया। किच्च द्मे चयो लोकास्तन्षहासिभां sewer ‘ame’; wt श्राह लोकजयसाम्येनानुषटातृषां "सुख - ेतुत्वात्‌ सम्यञ्च: वेदनं प्रणंसति-- CAs इमे लोकः fat दौखखति एवं वेद"-श्ति\३॥

sfa ataamawaafacfea माधवषौये iene एेतरेयत्राह्मशस्य चतु्धपरश्चिकायां चतुर्थाध्याये (एकोन विशाध्यायै) ठतोयः खण्डः (२५)

रय Aq way: tt

arent वे aan ऽपाक्रामत्‌ तां arafaarnat मासाभ्बा मन्वयुश्चत तां वासन्तिकाभ्यां मासार्भ्या नोदाप्रुबंस्तां वेष्माभ्यां तां वार्भिकाभ्यां'तां शार- दाभ्यां तां हेमन्तिकाभ्यां मासाम्या मन्वयु्चत' at हेमन्तिकाभ्यां मासाभ्यां नोदाप्रबस्तां ठोगिराभ्यां मासाग्या मन्वयुच्चत तां HT मासाभ्या माप्नु- वच्चाप्रोति मीप्सति' ननं दिषन्राप्रोति एवं वेद॑ तस्याद्यं सतिया दौचोपनमेदेतयोरेव thaw `

eR Retr ।.

मासथोरा गतयो देत arenza’ ahaa माग- तायां दक्षते प्रल्कादौच्ा परिण्डणाति तश्मा- देलयोरेव भे णिरयो्मासयो रागतयेर्ये चैव area: प्रणवो ये ae अणिमाण मेवं तत्पसुषिमाणं नियन्ति दौ्चाष््प मेव तदुप fanaa’ पुरस्ता- Saat: uaa पशु मालभतं तख ANT साभिधेनौरनुब्रूयात्‌ सप्तदभो तै भरजापति; मजापते- रत्नै aaa जामदग्नो भवन्ति तदार्यदन्टेषु पशुषु wR va कस्मा दस्छित्सर्वेषां जामदम्ना एषेति सर्वरूपा वे जामदम्नयः सर्व॑समशाः AAT एष पशुः सर्वसगडस्त द्यस्नामदग्नो भवन्ति सव्द्पतायै सर्वसशह्ेव तस्य वायव्यः पशपुरोकछाभो भवति तदाडइवंदन्यदेवल्य उत पशरुरभवल्यथ कस्मा aaa; पशुपुरोक्छाशः क्रियत इति प्रजापतिवं यना यन्लस्धायातयामताया sf ब्रूयाद्द्‌ बाय- व्यस्तेन प्रजापतेर्नेति' agea म्रजापतिसदुक्त सषिणा प्बमानः प्रजापतिरिति aa मु aa न्युप्याग्नोन्‌ quad दीच्चेरन्त्धवे सुनुयुर्वसन्त मभ्युदवखल्यमं वै वसन्तं दष मेव azet maz बस्ति (२९६ )॥

चपुयंपद्िकाः। | ace

we wreare दौललायाः कंलविगेषं विधातं weltfe— ‘fen वै देकेभ्यो ऽपाक्रामत ; तां arafernnat मासाश्वां - waged, तां वासन्तिकाभ्वां मासाभ्यां नोदाद्ुव॑स्तां earn? at वाविकाभ्यां तां शारदाभ्यां at Safeanet मासाम्या waged, तां हेमन्तिकाभ्यां मासाभ्यां नोदाप्ुषस्तां भैथि- that मासाभ्या wage, at केथिराभ्यां मासाभ्या माप्ुवम्‌"- ufo पग कदाचित्‌ eter’ सौमू्तिंरूपा सती देवेष्वपरक्षा, तेभ्यो Vaan निगैता। eure 'वासम्तिकाभ्यं' दैनवेश्ाच्व- मासाभ्यां ‘ai’ टदोक्लाम्‌ “sare ‘Ea’ तद्युक्ता भवाम “aa मपैकितवन्तः | ततस्वरया गच्छतीति ‘ai’ ehet ताभ्यां मासाम्या qa "न आ्रुवन्‌" नागक्भुवत्‌ एवं पै -वापिंक- Mey aay यथायोगं पदान्यध्याष्न् व्याख्येयम्‌ नध्या- enfarai edfag मेव fafa पयाये सम्पूणं वाक्छ माना- तम्‌ | यथोक्ञपस्चनतगतै्मामेस्तय्मासाभावेऽपि सेभिरमासाभ्यां तत्प्रामिर्जजना वेदनं asiafar—“antifa मीष्छति; att feaarafa णवं वेद-षति) वेदिना पुरषः शयं कामं मासु मिच्छति, a माोति ; fare ‘aw वेदितारं ‘frag’ रौ प्राप्रोति

sziat ara विधत्त--""तस्माद्य' सज्चिया दोनोपनमटेवयो-

रेव पणिरयोर्मासयोरागनयोर्दीत्तित ; साक्षादेव agharar माग- तायां area --- प्रन्यतारौक्तं पर्मन्नाति ; तस्ादेतथोरेव शेशिग्यी मीसयोरागतयोरधे चैव याम्याः पदो ये चार्था अखि area मेव तत्परपिमाणं faafer, caren मेव तदुप fag- वन्ते"? इति | aan भथिराभ्या मामाभ्यौ देवानं दौक्ाप्रातिः,

ate रलरेयत्राहर्थम्‌ 9. | 0 vg ^+ Uw fewer re are’ "व॑" ged ere दोक्षा प्राष्यात्‌,

दोश aa करिथामोति # यस्येच्छा जायते, | पमान्‌ "एतयोरेव, भिरिरिसम्बन्धि-माघ फादगुनयोममासयोः प्राप्यो; सतोः rer Fay तथा सति Shr साल्ादेवागतायां बलात्कार सन्त- रेण खप्रिये काले स्थ भेव समागतायौ' सत्या मय॑ दौचितो भवति तः प्रत्ात्‌' wate दृश्यमाना faa: vet ale afterwrfir | यन्नादुकमासहयागमे «Sher, Hee . तयोमाषयोरागतयो; ay. -चाम्याः' गवादिपशवः, acer: दिकरादिपशवश्च भखिमायं are ‘wafer’ पार" ‘Frater नितरो प्रा्रवम्ति। वर्षाशररेमन्तेषु तुषु gad. राहिलास्रवतर हरितं walter पशवः genet: सिरधााव- भासने ; Tat gwd ढस्य शोषथोयक्नमा MATTE TT - भाषेन पथवः कथा भवन्ति ; भरतएवासिदप्रनात्‌ पर्षा दृश्यन्ते i एतच्च युक्त मेव ‘ay’ तस्मिन्‌ fates} दोक्षाङूप atte नितरां वन्ते सश्चरन्ि। दौततितो नियमविेपः पौसितः BM: पर्रषय भवति, भतः पशनां छगलः पारुष्यद्च Share. लिङ्गम्‌ दोकश्ार्धिनः कञ्चित्पशं विधत्त-- “स परम्तादोक्ायाः प्राजापत्यः पश मालभते" इति यो helt वाच्छति, "स, Gary दौरोप- उरा STUARTS मालमेत + हविषो हि. « -गभिष्यामौति'' a | t अध aren mere पशूनालभते) ते a4 तूपरा भवनि, सपे श्वाना, सवे पुष्कराः ema ऽविषायः०-- ङं वे शाम पे Ua चैव लोम ae qc

भनी बे GRE LUE त° are ४.१.१.५७- 1१०) 'प्राजापल्ो वा way.” ef q MMe जा CURL तैत्रा ROY द; मर Ho ११,१८। वार He Ry we]

चतु्वपञ्चिक्ा ४।४॥ ‘yee

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GUCT HAART: + सामिधनोषठ चोदकप्रापं + पाञ्चदश्य मप्वदितं वियेषं fawe —~ ‘rea सद्य सभिधैमोरमुन्रूयात्‌, - सपषदथो प्रजापतिः, ` प्रजापतेरास्यं `" -इ्ति। wataleat: ¢ wet सपषदशषह्चा शम्मरद्यते। arenas 'दादशमासाः''-द्थादिना पूर्वं athe (१भा०२१० ) | भतः समदशथमष्या प्रजापतेः प्राते सम्पश्यते अआपरोयाभ्यासु विगेषं विवक्ते-- “aah smear भवन्ति-इति , पशोः प्रासिङनु्वाद्रयाज) श्राणिया reyes 4 तदव जमदभ्निना ger: “aft wa मनुषः"--गत्याहिथङ्े समासात: ( सं Lo eRe.) REM | aa चोद्य सुद्गावयति —“aargaeayg oxy await भवन्त्यथ कम्माट्‌ श्मिन्त्स्वेवां जामदग्न्य एवेतिःः-ष्ति। खक्ष. प्राजापत्यपशचव्यतिरिकेषु स्वेषु age ्ाप्रियो यथकऋनि wate यस्य यजमानश्च मोतप्रवर्तको ऋविर्भवति, anf तेन eer एवाप्रियो wafer: एवं सत्यतापि जमदसििगोव- साना भेदव "समिषो aa -इत्याप्रियो wat aan, तन्धवाम्‌। वैवं सति ‘mang’ कारणात्‌ ‘wha पणौ 'छर्वेषां जम्दनि- WMAAAT मन्धषां चैता एवाप्रियः पियन्त इति चोष्यम्‌

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-तस्योत्तर माह -- “सर्वरूपा जामटम्बः सर्वससदाः wad एष पशः WARTIME भवन्ति सर्वरूपतायै सवस. द" ज्ति। -जमदग्निना दृष्टा चः सवङ्पा वै" सर्वासा wai wqeuyar णव, “सर्वसमडाःः मवसखूदिफलद्ेतुत्वात्‌ "एषः प्रजापतिदेवताकः पशुरपि 'सवशूपः' प्रजापतेः सवेदेवतामकत्वेन

लदौयपशणोरपि शर्व पश्चा कत्वम्‌ ; श्रतोऽयं पशरपि सर्वफलसखरि-

छेतुललात्‌ सवैः फलैः wae) ‘aq’ तथा सति यव्नामदम्नयाना Aqsa, तत्सर्वागुष्टान सिच्राधं सर्वफलसद्धदययं भवति

was पश्पुरोडागओे fang feaw -- “तस्य वायव्यः पष्पुरो- aint भवतिः-ति। ‘ae’ प्राजापत्यस्य पशोः वायु्दवता यस्य पुरोडाशस्य सोऽयं वायव्यः"

wa चोद सुद्भावयति-- “aergaemtam उत aga. ay कष्मादायव्यः agyiem: क्रियत इतिः"-ष्ति। ‘ae’ यस्मात्कारणात्‌ ‘qatar उतः वायुव्यतिरिङ्षाप्रजापतिदेवताक एवायं पशभवति, तस्मात्‌ पुरोडाशोऽपि प्रजाषटतिदेवताक पव युक्ञः; “ata: पशस्तदहेवत्यः पुरोडाशः''--दत्यभिधानात्‌ | भयव सति प्रजापतिं परित्यज्य (कस्मात्‌ कारणात्‌ yas वायुदेवताकः क्रियते इति चोखम्‌।

aera are -- “प्रजापतिवें यन्नो, यज्चस्यायातयामताखा बति म्रूयाद्‌ ; यदु बायव्यस्तेन प्रजापतेनंति ; ampere प्रजापति." cfs: पश्टरूपस्य awa प्रजापतिदेवातामकत्वेन प्रजापति. पत्वम्‌ ; तादृ शस्यास्य यशस्य पश विपि पुरोडापे तहेवतेक्ये सति “यातयामत्वम्‌' भसारत्य मालस्यकारणं भवेत्‌.-- सति fe भेदे भिषदेवताकं कमे wreeifed भवति; vere 'यातयाम-

चतुर्वपश्चिक। | eign शयः at -गिस्ारत्वखपालस्यपरिक्राराय ठदेवताग्तरं gay (इनिः Swed! ब्रूयात्‌ वायुदेवताकलवे प्रजापतेः Bar erase गच्छतोति neta; वायुप्रजापत्योः काकारषाावेमै+ wa सति वायब्यस्यैव प्राजापत्यत्वात्‌ तदिद .सुच्यी-- पद्‌ ate: व्यस्तेन प्रजायतर्नेति"- इति | नापगच्छतोत्वयथंः

` चायुप्रजापव्योरेकत्वः मन्वसंवादेन टढयति -- "तदुक्त afrar --पवमानः प्रजापतिरिति"-षति। “लष्टार मग्रजां aay ` इत्यस्या ऋचः चतुर्थपादे यः शपवमानः' वायुः, प्रजापतिरिति तादाल्म्यं सामानाधिकरण्येन दितम्‌ #॥ . | Wa भरतद्वादशाष्ो व्युढदादगादेति दौ भेदाबुक्लौ ; प्रका- रान्तरेष।(पि areal ऽशोनरूपेव्येवं दिविधो हादगाहः तत सव्रपक्ते विपेषान्विधत्तं -- “aa भु चेतसं धुप्याग्नीग्यओरग्ावे tact सनुयुर्वसन्त मभ्युदस्यवूर्ग, वन्त दूष भेव तदजं मभ्य दवस्यति""-इति। ‘aay चेत्‌ यद्ययं weary: सत्ररूपो भवेत्‌, तदानीं सत्रस्य बहुधजमानलवाक्षर्वेषां यजमानाना HA qa सम्भूयैकत्वेनावस्धाप्य, तस्मिन्‌ सवं यजेरन्‌ ; यजमानल्वा- देव सर्वेऽपि ‘ae dai Fa) “A एव यजमानास्त पव ऋत्विज. दत्युक्तावन सर्वः meatal: ‘Ay,’ कर तिविक्षायै मभिषयवं क, | वसन्तत्तु मभिलच्य “ठदवस्यति' दवक्षानौयां समातिकालःमा fufe मनुतिषेत्‌, waant समापयेदित्यथैः | वसन्तकाङं ufa फलानां गहेष्वागमनंन रसवाइश्यात्‌ (जगे. षः रस णव वसन्त; तथा मयेतस्मितेतत्तमापनेन इषम्‌" भग्नम्‌, = eit भग्रजा जीं yt गाभा मा गनदुरिद्र sat wit: पवमानः wef: Wah Mee dee

कथः , Qatawesee तै ` ‘nt’ दसं वानि ` 'खदवस्वति' ` यजमानसद्ो ददवा समापयति i

ईति सो मस्तायशाचायं विरचिते माधवोये वेदा्थप्रकाशे रेतरेयताद्म शस्य चतुर्धपद्धिकायं चतुर्थाध्याये ( एकोनविंथाध्याये ) चतुथे: SH: (२६ )

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अथ पचमः खण्डः a

छन्दासि वा भन्योन्यस्ायतन मस्यध्यायन्‌ गायनौ तिषटभश्च are चायतन मभ्यध्यायत्‌ चिष्टब्‌ गायजेा una च॑ andl waar च.“चिष्टभश्च ततो वा एलं प्रजापतिव्यठूहच्छन्दसं दाद शाह AIA माह रष्तनायजत तेन सूर्वान्काम1ग्छन्दास्यगमयव्यर्वान्‌ कामान्‌ गच्छति एवं वेद्‌ छन्दासि व्युहल्ययातया- ama छन्दस्येव व्युहति तद्यादो ऽपवेर्बानङ्गि- ान्यिरन्येरथान्ततरेरथाम्ततरेषूपविमोकं यान्त्येव मते वच्छन्टोभिरन्येरन्येरशाग्ततरेरश्राग्ततरे रूपवि- मोकं खगं लोकं aa यच्छन्दांसि व्यहतीमी वै लोकौ सशास्ता तौ वैता aria समतपन्ते पश्च- जना समजानतः तौ टेवाः समनयंस्ती संयन्तावेतं

#..चतुर्धपशिका ।४।५॥४ Qte:

Vafaatt ग्यवरतोा रथन्तरेशेवेय मरु

वृह तासाविमा नोधसेनैषेय मम्‌ जिन्वति ध्वनः. atfadt धूमेनेवेय ममं जिन्वति ' serretteat’ देबयजन मेवेय AAS मदधाव्यशनसावस्या मेत कय मसुष्या देववजन मदघाद्यदेतश्नन्द्रमषि कष्य भिव तद्मादापूयमाणपरक्तेषु यजन्त एतद्धेवोपेष्यन्त

BIA तद्धापि तुरः कावषेय vardye: पोषो जनमेजयकेति तश्माद्वाधातरिं गव्य' मीम ` समानाः पृच्छन्ति सन्ति ततोषाडः इतिं अघो डि

पोषोऽसी वै लोक दमं लोक मभिपर्यावन्तत ततो

वै द्यावापृथिवी अभवत द्यावाम्तरिाच्राम्त-

foargfa: (0)

We ष्यूठहादगाद्े यदेतद्‌ व्यूदलम्‌, तदेतत्‌ प्रशं चित माख्या- यिका arw— “weifa वा पन्धोन्धस्यायतम ममभ्बध्यायन्‌, aaa waa चायतन मभ्यध्यायत्‌, free मायके waaay जगतो गायत्रै Fare ; ततो वा एतं प्रजापति SCM CLAS AIA, ATSC, तेनायजत ; तेन सर्वान्‌ कामार्खन्दांस्यगमयत्‌ः'-द्ति। मायौ faery जगः arma तौखि छन्दांसि, गन्धोग्धस्यायतमम्‌ ‘wf Ay ‘waaay खस्रमनश्यचिन्तयन्‌ | तेता wave न्दता HHT werad खानम्‌ | सत्र गायतो चिद्टलमत्मो; सदाने माष्वन्क्निः

gee ` Gatamwey `

सवनढनोय सवने. प्यातवतो ; farq खंखानव्यतिरिकषं खागदय मभ्यभ्यायत्‌ ; तथा जगत्यपि ‘aa’ प्रजापतिग्डन्दसा मभिलाषं ष्टा, सत्सभ्मादनक्रमेण "एतं व्यरठूहच्छन्दसं इादशाषशम्‌ अपश्यत्‌ | सस्स्थानविपरोतत्वेनोढाजि ख।नान्तरे प्रखिपानि छन्दांसि यस्मिन्‌ दादशाहे, सोऽयं “Borer | तादशं दादा दृष्टा AMAT, THE, सः' प्रजापतिस्तेषा मपेखितान्‌ wra- विपर्यासलक्ष्ान्‌ "सवान्‌ कामान्‌ गायचयादिच्डन्दासि प्रापित- aq) वेदनं प्रणंसति - “सर्वान्‌ कामान्‌ गच्छति एवं , वेद-श्ति॥

carat aes विधत्ते “्दासि व्युहव्यवातयामतावे'' - एति। छन्दांसि" maanatfa ‘orefa’ तत्तदायतनविपयी- मेन अवस्थापयेत्‌ | तच्च व्यहनम्‌ श्रयातयामताये' अ्रल्तारत्वप्रयुक्ता- कालस्य परिष्टाराय भवति it Sarva ana प्र्ंसति -- 'न्ांस्येव व्यूहति ; तद्यया- दोऽश्वै्वान्‌हिर्वान्धैरन्धेरस्रान्तरतरोरख्राम्ततरीरुपविमोकं यान्त्येव भवेत च्छन्दो भिरन्धेरन्यैरसखरान्ततरेरखान्ततरेरुपविमोकौं खगं लौकं यन्ति, यच्छन्दंसि aye faster | "छन्दांमि' गायकयादोनि अख्िन्‌ हादगाडविभरेपे aga’ त्यत्र wee: कायः "तत्‌ aferq area ‘aa लोकै “अदः निद्यनम्‌ fa fren? “fa, तदुष्यते-ये राजानो रथ मार्ष तत्रत्येर्वेदरदेशं गच्छन्ति, ते राजानो योजने योजने 'डउपविमोक' weary खपविमुष्योपविसुच्य, “wae: सनःपुननूतनेदरदेशं यान्ति | शतोगपच्तिः "अथान्ततरे.”. इति, अतिशयेन अमरहितेः। पोनः- gw द्योतथितु' वाष्षाठस्सिश्च | लङ्कले चटौयन्त्े वा तदा तदा

॥"चतुर्थपञ्विका 8 ।५॥ eat

आन्तानग्बाननदुहो वा विमुच्-विसु्य, aaicaryfe: wets प्रव भेवावापि छन्दसा स्थानविपर्यासे सति खसखस्याने याग्ताजि छन्दासि पुमःपमरुपविसुच्य, तदा तदा ननः छन्टोमिः ofr खगे लोकं गच्छन्ति यदा छन्दांसि व्यति, तदानी aeet तदिति द्रव्यम्‌ =

अद BERANE उपाख्यानेन प्रणंसति "इमौ श्र लोकौ were ; तौ व्येतां, नावषन्र समतपत्‌ ; ते went समजानत , सौ देवाः समनयंस्तौ संयन्ताेतं @afaary. व्यव. Sai; रथन्तरेनमेय मम्‌ जिन्वति, बषतासाविमाम्‌"-दइसि ` "इमौ भूलोकसखर्गनलोक पूवस्मिर्कासे 'सडवास्माम्‌' caret प्रोतियुक्ताकेकर्तैवावख्िती कदाचिश्तायुभो कोनापि निमित्तेन व्येता' वियोग प्रासवन्ती, परस्परविरोधेन सश्वासं पररित्यव्च दूर्‌ ओेऽवख्िती तदानीं दयुलोकात्‌ fae: पर्जन्यो "नाव्वेत्‌ छि" सम्यादितवान्‌ ; आदित्यश्च दुमलाकवर्तां ‘a समतपत्‌' श्रातपकषपं प्रकारं aaa | तदानीं पञ्चजनाः gatat: © देवममुष्वादयः पश्यविधाः प्राणिनः समजामतः अन्धकार ग्रस्ताः मन्तः मपि माग मन्नात्वा परस्मरंकमत्यररिता प्रभवन्‌ | तदानीं arena प्राशिनो दृष्टा लौः उभौ लोकी सम्रनयन्‌' परस्परं सङ्गतिं प्रायितवन्तः। ‘AY भौ लोकौ 'संयन्धी' परम्रं asd प्राप्तवन्त "एनं परोष्रोपकारश्पं Safaary देयाना मचितं fared न्यवहेलां' चिविधस्वेन क्षत वन्ती लोकेऽपि frat नाम परम्पररविपयासेन wer. प्रापणम्‌ | तथाहि -- करस्य for. aga कन्धापितु्लामाठत्येन

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wieszafa, wanfer agit वरयितुः aaa सम्बन्ध- वंति | तदिदं faaatew सम्बन्धनयनं ‘fare: तयोश्च ferry परस्पर waitin वस्त्प्रदानादयपन्दारश्च कुर्वन्ति | ` भितौ लोकी aca awagea aa ‘ea’ भूमिः ary रथ- ` म्तरेण' एतत्रामकेनेव “ad दिवं "जिन्वति wreafa ; ‘war’ wre ‘sai मिं छता arm जिन्वति | तत्‌ एव सर्वतेयं इथन्तर मसो वदिति लोकदयरूपेष्वं सामयं स्तयते

wenre वष्द्रथनग्तरयोरपेश्ितलयेन प्रभंसां eat तकसङ्गग- क्लोकदयस्यान्धानपि परख्यरोपकारान्‌ दर्भयलति--“नोघधसनेवेय मम्‌ जिन्वति. श्येषरेनासाचिमां; घमेनेवेय aa जिन्वति, aerrerfaat ;- देवयजन Hag AAU मदधात्‌, पश्नसाबस्याम्‌''--इति। “Ta foe सुत पिबा" - इत्यस्या seat साम "नोधसम्‌' ४, “ar निदा Wawa west साम Wag + ; ताभ्या लोकयी; परस्पर प्रीतिः भरमावभ्निजन्यो धमे दिवि गच्छति, aera. agaat हष्टिसव्या' गच्छति ; सोऽयं धुमषष्टिभ्या परस्षरोप- कारः | देवयजनः Gana किच्चिहयम्‌ “ca भूमिः ‘attr fafa wema, “aa वीः पशून्‌ (मस्या भूमाव दधात्‌ ; अतो Sarat परस्मरोपकारः

जिन ete ne ene we ae em marecnmm oe ERE Oe me .

© कन Wo ३. १.५.२८ चि Ho me Yeo, Aina -( दौनिसाम) Be Ge १.१.१२. Ue TWAT: NMUS Bo Me ९.१. ६. गौधसं ( nay) “afagr’ wo We ४.१. १.१ नाच ata Brea | “अमि ga.” डति. Ge re ३, १.५. कवि Ro ato ९.१. Qe शातं ( योजिसन);उण्चा० २.१.५ १६. ऋचो mAs जन गार र. १.२. अतं (सोभ )। मानं लिह भाग ब्रा ! dct रार UY. 2.4. Bro भार अपि द्रव्यम्‌| sramrwasfy एव मष | Alo mre ७, te ९१-४ ; ११.९४

-चतुखपद्धिका ५॥ Ree

wie सत्र देवयजनगब्देन faahra ag व्याचष्ट -- “caer ya weet देवयजन मदधाद्देतधन््रमसि aw मिव" इति। बन्न Hes पशसगदिगणष्देन लोक व्यवद्िथमाणं यदेतत्‌ wey जिनः BUI - भिव रूपं श्यते, एतदेव ‘Baas’ देदवयागयोग्यः ae, ‘aa! afar: असुथां दिवि enfaaadt | =

चन्दरमसि.क्ष्णरूपप्रसङ्कादयागेषु amar geo वि्न्ने---. “aa lerqaararay यजन्त ॒पएतदेवोपेमन्तेः'-षनि। ग्रस्मा- wana aw चन्द्रमसि भ्थितम्‌, 'तस्मःत्‌' कारयात्‌ wary क~, कुबवेन्लो यजमानाः ‘Aaa चन्द्रमण्डलम्‌ sag मिच्छन्ति 1 दिदं दिने qian aan सर्वतः Yaa WAST भेषु wary, तेमते श्रपूथथमाणपक्ताःः। afar efrwarie चन्द्रमण्डलप्रामिः सर्वासूपनिषत्‌ प्रसिञ्चा*॥

देवयजमशष्दः व्याख्याय पशुशब्द व्याचष्ट ---""अप्रानमावस्या; सचय तुरः arta उवाचोषः पाषो जनभेजयकेति ; तन्मा दाप्येबद्धिं गव्य मौोमांममानाः च्छन्ति, -- सम्ति ततोषारैः ति ; अभः fe पोधोऽसौ मै aha va ala मभि पर्यावर्ते —Sfa | sar grata: स्यां भूमा aay’ अदधानौत्वध्या- Wei देगान्तरप्रसिदि quata aaron व्याख्या- नम्‌ | Cast ara’ दन्यस्मा(टानाकूप्रण्टा निष्पन्रः | erat,’ कमनोयाः ; पशनां wauelat कमन।यत्वं प्रसिहम्‌ ! ऊत शष्ट्व्यवद्टार एव (तदपि दयादिन। प्रदृश्येत वस्मादृूषः ay- fafa @ufang gqataaa धिच, "तदापि तस्मादेव कार- खात्‌ तुरनाम्रकः कन्म; कवषम्य पुत्रः, जनमेजयनामानं

का, एप ४,१०.५; तर० उष ५.१ . <... २)

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acs पेतरेथन्राद्मकम्‌

ara सम्बोष्यैव मुवाच, दे. जनभेजयक् ! (ऊषः. पोषः" वोषशम्दाभिषेयः, gfeva: wafef 1 यस्मात्तु ane पद्यु व्याजद्ाद, ‘aarfe wares कारण्ादिदानौो मपि “re aigann,’ लेविदेश्यवियेषेष गोरसं शोरादिकं faarcaat एवे च्छन्ति - “ततः तेषु दभेषु, कि मूषारः सन्ति १-दइति ; मोविषयः wren सभिपेतः | waret हतिः यस्मादूषश्यम्द- वाच्यः चोषदेतुर्गवादिरूपः पण्डः, तख्माद्ूवश्रब्देन पष्ठगब्दव्या स्थान मुचितम्‌ | “सौः द्यलोकः av भूलोक afar पय्यावत्षत सेन पष्नोपक्लतवामित्यर्धैः

दूत्यं ठश्द्रयन्तरप्रसङ्गन चावाषटचिग्योः परस्पर सुपक^नम्‌ aga प्रपश्चमोपसंहरति-- ““ततो वे द्यावाण्थिवो अभवतां, यावान्तरिलानत्राम्तरिक्षादुमिः' far (ततो बै' तस्मादेव पर- ख्रोपकार कलर कारप्याद्‌, द्यावाणचिव्यो faga अपि परस्मरकम- aa प्राष्छुपकारिष्छावभयताम्‌ ततान्तरि्षलोकं कुत्र ada इति शङ्नोयम्‌ ; ‘ara’ erate नान्तरिचलाकात्‌, अश भरति Ae भूमि नान्तरिक्षादल्या | उभयोद्यौवाषटयिव्यो- दन्तरितेषय सम्बध्येवावश्यानात्‌ | तश्षाष्सितयोदो वाष्टधिव्योरेवा- म्तरिचखस्यान्दमीव Tafa: #५॥५॥

दरति ओोमश्धायणाचार्यविरचिते माधवोये वेदाथेप्रकाभे

रेतरेयब्राश्मष्पस्य चतुधैपद्धिकायां चतुर्थाध्याये (एकोन विंग्राध्याये) पञ्चमः स्वरः (RS)

मी TEED cee Taree ae vial = 9 कि "ककन पको

मजरैष्वादिपग्थो शेखकवप्रमादप्रवाहाटेव समपुलकेष्यद्तरी ce. wees cea अरक्षाष्डते, तथापि मूलाभिपरायदिष्दध एव मम्यते |

दतुर्धपञ्चिका ! ४। ६१ १२६ अय षष्ठः खणड;

बृञ्च वा दद मये रथन्तरं चास्तांवाक्‌ अवे MAMTA वाग्वं रथन्तरं मनो awe Teas सखूजानं रथन्तर मलयमन्यतं तद्रथन्तरं mi मधर ACEI मख्जत ते दे भृत्वा रथन्तरं «ed चं ` बृृद्ल्मन्येतां तद्‌ aed wan तदेराज aca ते दे भत्वा वृह वैराजं च' रथन्तरं बैर्पं चात्यमन्येतां ATA गभ AAT ASAT ATA तानि alfa yar wat aed oat वृहच्च ats चात्यमन्यन्त तद्‌ Tea मधर तदटेवत मरूजत तानि बौख्यन्यानि चौण्वन्यानि षट्‌ पृष्ठा न्यासंस्तानि तहिं Qin छन्दांसि षट्‌ पृषमि नो टाप्नुवरग्छा TAM गभं मघत्त Bae भरुलत चिष्टुव्‌ गभ aa सा+पङ्कि ममुजत जगतौ गभं aaa सातिच्छन्दस wana तानि चौख्यन्यानिं जण्यन्यानि षट्‌ शन्दांस्ामन्‌ षट्‌ पृष्ठानि ताभि तघाकल्पन्त कल्पते यन्ना ऽपिं त्यै जनतायै ETA’ waa मेतां छन्दसां पृष्टानां ale विदाम्‌ दोचते

ata we (2a) इल्येतरेयत्राह्यमो चतुथं पञ्विकाय waateara: yen |

Om पिसरेयत्राद्म्णम्‌ :

अथास्मिन्‌ दादगाहमष्ये एटयषडहे एउस्तोत्रोपयुक्तानि # सामानि frag साख्यायिका मा“ at इद मये रथन्धरं चास्सां; वाक्‌ चवै तशमनास्तां ; aa रथन्तरम्‌, मनो Aw, तद्‌ BEY पूव AUN रथन्तर मत्यमन्यत ¦ तद्रथन्तरं गर्म WAT, ageq पमखजत”-इ्ति) ये चहव्रथन्तरे पूवम्‌ “cal वै लोकौ दत्यादिमा संस्तुते ( ge: yo ), & उभे एव ‘se’ Gemnfeara- जात ware तदुत्पत्तेः ga arena; ‘se’ वेरूपादिसाम- जात सुत्यत्तेः “ay gd नसौत्‌। तेच सामनी मनोवागपे अभवताम्‌ तत्र वारीव रथन्तरं साम, मनो ददत्साम। तदे- तश्मनोरूपं हदत्साम ‘aaa’ खरि ad सुदुक्तम्‌ ! ‘aq’ तस्मा एव षटिसिष्ये ‘Gs’ प्रथमं ad रथन्तरं" साम 'अत्यमन्यतः वा प्रपल्वादेव स्ीरूपस्वम्‌, मनोरूपत्वात्‌ खस्य पुरुषरूपत्वम्‌ ; तस्मादतिश्यितं नत्खषरूपम्‌ ; ad avara we पुरुषत्वाभि- सानेन रथम्तरसाज्ि स्तौलमावनया apa मकरोदित्यथंः | तन- स्तोस्यानोयं तद्रथन्तर' साम खोदरमध्ये गभं AUT > वाच THAW TAMAS सामान्तर AEA पै रूपस्योत्यत्ति मभिधाय वैराजसामनन sald दभयति-- “ते दे मत्वा रथन्तरं Feng छह दत्यमन्येनां ; तद्‌ हदत्रभं मधत्त, agua मरूजनतः-इति। माठस्थानोयं रथन्तरं, yaaa Sed चेति, नै' सामनो दे भृत्वा यद्‌ हत्ामेकाकित्वेन वत्ते. मान मस्ति, aca मन्येतां, तस्माद्‌ बश्तोऽप्यका किन, तिश्रयेन मन्धेतां, न्धुगत्वेन हत्साज्नि स्त्र त्ववुहिं क्त्वा संयोग मकुरुताम्‌ ततं AWA WA Wal वेराजाख्यं सामान्तर मर्त `

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Maar sare दर्यति- “ae war हश वेरा्जं ख, रथन्तरं fed चाल्यमन्येतां तद्‌; रथन्तरं मभ मधनः; तच्छाक्षर qaqa’) वेराजसाणेः weet nerve aware: wWaa.andt सति ‘a’ सामन हे yar मिलित्वा बरूपसडहितस्य TATE ada ele मभिेत्य eatery भअव्यमन्येतां स्वाधिकार war संयोग मकु्कताम्‌ | ततो Teer साम गभं त्वा शाक्रगख्यं सामान्तर मखजत

रेवतसासन safe edata—‘arfa भौरि wear रथन्तरं वेश्यं गाक्षरं च, हदव ast चात्यमन्धन्स तद्‌ ; swwt wae, तद्वत मद्जतः"- sit) मादस्थानोयं “रथन्तर पुतः खयानौये तरपं -गाक्तरं' सेति; णप त्रीणि wear, Fata gare ara WATE `तदन्यमन्यन्तः तम््नादतिश्यं Tora: नीयं and wal संग्रोग ugaa | नतो BERN wT; म्भ एत्वा रं वताम्य' सामान्तर AWA 4

Talal wt सानां फश्यम्ते।त्रमाधनलं दर्यति-- "लानि तौ खन्यानि क्रग्ठन्यानि पट्‌ वशान्यासन्‌ इति i (तानि पूर्वी कानि रव्न्तरवेदपणकराशणि ' लाश" मामानि, “wanfa’ इल. रम्यो faannifa, gad aes प्रथमटठतोयपरस्समेष्वयुग्ने- awa, प्धम्तोत्रनिष्याःः कान्यासन्‌ तश्रा वश-वैराज-रीवत- amfu ‘atfer सामानि, अन्यानि र्रन्तगदिम्यो विलदणानि भूत्वा, दिदवौीयचनुर्थषशषु युग्मस्प््वषस्पु प्रशस्लातवनिश्यादकाः न्धासन्‌ # |

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- अथ षिध स्तोवसामाधारल्वेन धद्धिधानि wife देः यति “तानि तदं tifa छन्दासि, षट्‌ षष्टानि नीदाष्रः वनका गायत wi wee, सागुष्टभ मखजत ; Freq गभे सवस, सा पङ्क aes, saat गर्म wan, सातिष्छन्दस मखजत ; तानि Wrest तोश्खन्धानि षट्‌ छन्दांस्यासम्‌ ; षट्‌ vers तानि सथाकल्यन्त ; wert यज्ञोऽपि इति ‘ate तस्मिन्‌ घट्सामसम्प्रसिकाले गायनौ -तरिष्टुब्‌-लगतोरूपाण्ि 'छन्दासिः Wife भूत्वा, (तानि gatenfe षट्‌ एढमामानि नोदाष्रुवन्‌' डानां निष्पत्तिं कन्त" नाशक्रुवन्‌ सतो गायत्रयादौनि तरोष्छपि गसं wat, पनः अन्यानि भ्रनुषटुप्पद्खय तिष्छन्दोखरूपाखि छन्दस्य. जन्त aa: ‘atte सिद्ठानि गावत्यादौनि जौ खि, “अन्यानि qafawata एयग्भवान्धासम्‌, तथेवालुदुभादोनि नीषि jaf छन्दांसि तदानौो सुत्पन्नानि, इति fafaat षट्‌ छन्दास्यासन्‌ | ततः षटसद्याकानि एृ्सामानि धाप्यितु (तानि षट्‌ छन्दां सि "तथा WHAT तेनैव HAT समर्थान्यभवम्‌। प्रधम- हितोयदलोयेष्वडस्सु गायन्रौ तिष्टलगल्यः एढस्तोन्रनिष्मादकाः ; aqua श्रनुष्टप्पङ्खय तिच्छन्दांसि स्तोतनिष्पादः कानि रवं सति यन्नोऽपि एखाषडहाख्यः # “ward? खप्रयो- जनाय समर्थो भवति

बेदनपूर्वक मलुषानं प्रथ॑सति -- “ae जनतायै कल्पते, यत्रैव नेता छन्दसा wer aft विधान्‌ दीचते sree’ इति ‘aa’ यस्था जनतायाम्‌, "एवम्‌" उक्प्रकारेण मायवतदौनन ‘era रथम्तरादौनो टानां" चव एतं क्रि कल्यनार्थप्रकारं

(क मा ककासन = 9 one eee OE ELL LS NLS LOLS TY CP EO OR SO nm oI

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जानते, दोची .प्राोति। पमान्‌ तस्मै अगतादैः arate.

यज्जसभायौ wane समर्थो भवति। पभ्यासोऽध्यायसमाप्यवैः Bee. fa श्रोमल्ायशचा्यविरचिते माधवीये tenineth

Qatari aqiafyarat बतुर्थाध्याये

( एकोनविंथाध्याये ) षष; wee (at) a

वेदार्थस्य प्रकाथेन तमो wre निवागयन्‌ | qaaraqa tare विष्यातो्थंमरेश्छरः

, दति सरौसद्राजाधिराजपरमेश्छरवेदिकमागेप्रवन्तंक- खोवोरवुकभूपालसासराज्यषुरन्धरमापवाचार्यारेशलो भगवाक्षायशाचार्ये विरचिते माधवोये बेदाधेप्रकाशनामभाषेः रेतरेयत्राह्मरस्य चतुधप्र्चिकायाः चतुर्थोऽध्यायः

अध ASAT: ll (तर) भथ प्रथमः Quy: fi

थकपकसकाष नः & > [वी

अभ्निर्वे रेवता प्रथम मषवहति चिवत्‌ स्तोमो रथन्तरं साम WAM HY यथादेव्रत मेनेन यथास्तोमं यथासाम यथाच्छन्दक्तं catia a एव वेद्‌ यदा एति मेति च' तस्मथमश्याङ्ञो रूपं यद्युक्त- वद्यद्रय बद्यदाशुमदयत्पिववन्यव्मथधमे. पटे देवता निस- च्यते' यदयं लोको ऽग्यदितो यद्राथन्तरं aga यत्करिष्यदेतानि वै प्रधरमस्याद्णो सूपाश्युपप्रवम्तो अध्वर fafa’ प्रथमस्याङ्क आज्यं भवति मेति प्रथमे {हनि प्रथमस्याङ्को qu वायवा याहि दशतेति gam मेति प्रथमेऽहनि RAMS ST AT ATH यथो- तयं इदं वसो सुत मन्ध इति aqaatae भ्रतिषद्‌- qed waa पिववच्चं प्रथमेऽहनि भधमस्छाङ्को दप मिन्द्र Ada एदिरहौतोन्द्रनिहवः प्रगाघः प्रधम पदं देवता निरुच्यते प्रथमेऽहनि प्रथमस्याहो दपं प्रतु ब्रह्मशस्यतिरिति arguaa: प्रेति भ्रथमेऽषनि Wares eq ahaa तवं सोम क्रतुभिः पिन्व-

चतुर्थपश्विका i | ‘1? "^, |,

aera बति wie: प्रथमेषु पदेषे देवता निरवयव कीः प्रथमेऽहनि मथमसयाहो रूपम्‌ बद्ाय वुं दूति मर्त्वतोयः प्रगाथः प्रेति प्रथमेऽहनि प्रधमः WTETET मा. यातिवन्द्रो aa उप नदति am मेति भथ पेऽहनि marae रुप मभित्वा शः मोमुमों ऽभि त्वा पबपौतय दति creat पृ" मवति ` राध- saisefa waasefa पवयमथ्याहो Sd यदाकाम पुरुतमं पुराधाक्िति धाय्या ss eae नामान्यपी चल्येति प्रथमेऽहनि प्रथमस्याहो रूपं frat सुतस रसिन इति सामप्रगाधः पिबवान्‌ waasefa ए्रथम- ae रूपंत्यम्‌ षु वाजिनं देबजूत भिति are एर क्तान्धृक्तस्य शंसति स्सस्यधनं वे area: afa- ताये wma मेव तत्‌ aaa afa संरत्धग्थ्य पार Wad A एवंवेद ॥१८(२<)॥

ख्यो तिष्त्या भावती WSN ST, दोछाक्ाणो याजनं any | ` Meters ene aT estat wet aa क्रुतिः A ददी qrenremat प्रायणोयोदयनौधानिरांतौ, av uw महः, afead वर्जयित्वा मध्यगतो यो tatra:, तं fay qui - "अरिमतिं देवता प्रथम avd ete, निहन्मः care

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सामि गायती च्छन्दः" -इति देवतमा watt योऽय Bfeache सोऽय Wa SAAT Wel नवर त्रश्य प्रथम महः 'वदतिदनिष्याद यति सधा स्तोमानां मध्ये विहस्स्तोमः wears erat मध्ये रथन्तराख्य' साम प्रथमस्याद्ुः एष्टसाम निह्ाहकम्‌ ; ema मध्ये गायत चन्दः wees निवीहकम्‌ oa: वेदनं wmiafa— “qureay भेनैन anata aerata यथया- weed tnitfa एवं पेद"-षति ! “यः gary ‘wae अभ्नि- जिहद्रयनम्तरगायतीष्छन्दसा प्रथमेऽहनि देवतालयं स्तोमतवं एष्ट साभलवं wee’ क्रमेण वेद, पुमान्‌ ‘Usa वेदनेन यथाः aaa’ तस्या उचितां दैवता मनतिक्रम्य, तथा स्तोमसाम- च्छन्ट्‌ास्यप्यचितानि भनतिक्रम्य समृद्धो भवति |

प्रधभेऽशनि विनियोज्याश्मन्त विशेषामादौ तावल्लक्षणसुसेन afga दग्यति--“यद्ा एति चप्रेति a, anders) रूपं यद्‌ युश्षवद्रथवद्यद(शमयत्पिकवद्‌, ane पदे देवता निरुच्यते, यद्यं लोको.भ्युदितो, warrant, यदायं, यलरिष्यदेतानि वै wana रूपाशि'?-द्रति। ‘ae यस्तव am ‘ofa चः भाकारखरनिर्टेशाथं निति wwe उपरि प्रयुक्तः उपसर्गेषु मध्ये asa माङ. अस्ति, सोऽय मा चेति. परोक्तं निदिश्यते तधा Rue: आप्रेत्यनयोरुपसमेयोरन्धतर scant यलि- न्रन्तेऽस्ति, ‘ay मन्तस्वरूपं wears “Ed लक्षश Fira: | तधा ‘ay aamaad ‘qwaq’ युजिधातूपेतं, ‘crag’ रथ- शब्दोपैतम्‌, ‘any मा्शब्दोपेतम्‌, ‘fara’ पिबतिधात्‌- Weve, तथा. चण्ड ste AAA पादे देवता "निर्यत" नि किंबते, Wat अय. लोकः भूलोकः अभ्युदितः' कथितो भवति, `तथा

a चतुर्थपश्िका | ५।१९४ F oy:

we 'दाचन्तरं' रथम्सरसामसस्बन्धि, “ara? Tree ree: सम्बन्धि, wat ara ar; करिष्यत्‌" करोते्षातोमक््िककीः यान्तम्‌, tex "यद्‌ afer एतानि वै caterfa weaver खूपाशिः निरूपकाखि, wearer: PNY एवं संसणसुखेन मन्धविरेपाविधाय netaterecer विष्यं frat "“उप्रप्रयन्मो wet मिति प्रधमष्याक् ered भवतिः -षबति प्रकतौ “प्रवो देवायाग्नये carte wer, तद्दाधित्वा नवराचस्य प्रथमेःइनि “उपप्रयन्तः"-डति (खं ° १.७४.) सूकेन genres शंसनोयम्‌ 2 afaq at पूर्गोक्षणस्षणेषु एकं aad योजयित्वा alata ‘dfs प्रथमेऽहनि wrrate «<aq’—-<fa | ‘Ware: खूपोऽय aaah, सोऽयं quae ‘Warr: afaug दश्यत; अतः प्रथमेऽहनि विनियोक्तुं योग्यत्वात्‌ प्रथमस्याङ्कोमुकुलम्‌ अन्तान्तरे awa दर्पयलि-- “aaa वाहि दर्धकेति nev afa प्रशभेऽहनि प्रथमस्याद्धो eax’. cfr) sate “apray arfe’—cenfzare (do १,२. } 'प्रख्पसर्गस्य प्राज्ञ aarmizana तत्ाभिः, तथापि ary द्यतु मय शुषः न्यासः! रएव्याकारख्पम्‌ पद मनस्वि ; भा यारीतिनुतल्वात्‌ | प्रतः प्रथमेऽष्नि विनियोक्गं योग्यलात्‌ प्रथमस्याद्ो रूपस्‌ अथ दचरये लक्षणदनं दर्भयति--^आरा त्वा शधं यथोतय्‌ KE बसो qa मन्ध षति मरस्त्रतोयस्य प्रलिपदनुखरो, रथव पिक चश्च. प्रयेऽदनि nares कपम्‌" -द्ति “रावा रम्‌ - कति ( Ho ८.६८.१--२ ) war मरुत्बतोयथस्छद्य प्रतिपत्‌ ; तच्च

रथ णम्दोपेतम्‌, “CS वसो शतम्‌” - इति ( Fo ८,२.११ ) ae

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sorergwe: ; ते पियवस्‌ ; पप. पजं मिति दितोयपादे अतल्वात्‌-। प्रयमेऽशनौ त्यादिकं पूववत्‌ . , . अलान्तरे wrnmcy दयति --- “डद नदीव एदिषो- लौन्द्रनिषवः प्रमाथः; waa पे देवता fear; प्रथमेऽहनि प्र्र्श्याङो रूपम्‌" -इति 1 “we. नेदोय-दइत्यय ऋग्यङरूपत्वा- ware: ( He Kaa. )1 इन्द्रौ जितरा aryad afm mma सोऽयम्‌ ‘xafiwa:’ ; ufewraa ania aa शयते, परास wae पादे wefa a दैवता निर्दि ण्छते ; वदैतत्रमस्यादु er लक्षणम्‌ अन्वान्तरे wear eafa— प्रैतु बह्मणससतिरिति

आश्मणस्पमत्यः; प्रति प्रथमेऽहनि प्रथमस्याद्ौ कणम्‌" दति | arma: ( ६० १,४०.३.४. ), प्रगाथ Tart) अच प्रशब्दो लक्षणम्‌ |

अथ wart wed anata - “अनि्नेता, तं खोस क्रतुभिः, पिन्धन्त्यप इति धाय्याः ; प्रथमेषु पदेषु देवता fawn ; प्रथमे ऽहनि werent . खूपम्‌"- दरति meee प्रशेपयोया ऋचो धाय्याः “अस्विमेता-दइति ( to ३.२०, ४. ) प्रथमा aren, “त्वं सोम -इ्ति (de> १,६१.२.) दित्तीया, “feranaa:” —afa (do १.९४.६. ) तीया एतासां तिसुशा मुचां प्रथमेषु aay अनिसोममरङेवता निर्दिश्यन्ते; “fiat मरतः were.” af खवशात्‌ # सोऽयं देवसानिर्देणो away waar ‘wWeeed सथं दपंयति-- श्र च. wT

मि 9 कोन तम नित त-न जन कण शा पीं (णी OEE EN ORNs

anafetaay wh: मूत प्रतौकगरहरमातवत एव Zara स्फुटम्‌ ; ठकतीवख्या अधि waR दष पाई हिवितत्शरूतिरिति भषटचितु' दर्शने पिन्वन्यप शन्थाहि।

चतुचेचद्डितया ६।. ४,

wen इलि. ( te ८.द८९.१,४.) मदस्वतोयः Aare ; पिति nee swfa प्रथमस्याह्ो र्पम्‌ -इ्ति + 7 मन्नान्तरे भाकारर्प, aed दययति-- “ना यासि oe wa गदति (do ४.२१. ) सुकर मेति प्रषमेऽडनि, ware सपम्‌ "त्ति ` 1 i अथ निष्क व्रस्य शस्त्रगतस्य wee दथन्तरसणष्वन्धद्डपं werd anafa—- “afar ar शूर नोगुमो, ऽभि ar पूत्ेषौतय इरति Tama ws भवति ; गाधन्तरेऽहनि प्रथमेऽहनि प्र्मस्मा्ी सपम्‌” -ष्ति “मि त्वा शुर"-दति ( सं ७.१२.२२.४द.) CF macarent योनिभूतः ; “wf at पूवेपोतये"-द्ति (do © ३.७. ८, ) तस्यानुचरः भतः अभिला शुरेत्यश्र रयन्तरसामलसाध्यं एषठ मवति इदं प्रगाघदयं रयन्तरसामसम्बन्धिन्धहनि योग्बम्‌ | अतो रथन्तरसम्बन्धभस्य रूपस्य MII सद्भावात्‌ प्रथमेऽषनि प्रयुज्यते मन्तान्सरे व्वाक्षाररूपं awe दश यति-- “aera gard grrarfastar धाय्या ; ss SW WRT नामान्धप्रा इत्येति प्रथमेऽडनि quae रूपम्‌ -इति | “Coyrara’—afa (do १०.५४. ) शस्त मध्ये प्र्ेपशोया ; तस्या दितोयपारादौ मा हच्रचत्ा- कारः खतः ares पिवतिधातुरूपं लक्षणं यति-- “पिभा Bae रसिम शति सामप्रगाधः ; पिबवान्‌ प्रथमेऽहनि प्रथनश्वाद्ो खयम्‌! ' दूति | 4 “पिबा सुतस्य -श्त्रय कश्यविन्छामविषिवश्य

पमाधारमत; प्रगाथः (Ho ८..१,२. #)॥ 7

e & जार १,९१.५.० खचि Xo ale (९ १९. पहः ( बीनिलान 1.

Vat a Qataarerey

अथ निविद्ानोयस qeardt fafaraaatt fra am ay वाजिनं देवजूत मिति ( do १०.१५८. } ate पुरः weer शंसति ; सखसूययमं ये ave: खस्वितायैः- इति | तात रवताः भस्य ‘are, ‘ae’ Qaarhrena ;. सले निविदानोयषूक्स्य पुरस्तात्‌ तार्क्षं सनं खस्ितायै' यज मामस्य Vara भवति वेदनं प्रथंसति-- “awa मेव तत्‌ wea सस्ति dearer पार waa एवं. येद" -इ्ति | वेदिता तेन वेदेन ‘aqua भेव चेसप्रासि मेव aarreafa तथा Renee संवतरसन्रस्य परार मश्नुते समाति प्राप्नोति ae

इति जोमताययणाचार्यविरचिते माधवोये बेदाचैप्रकाथे रेतर्यब्राद्मणस्य चतुर्थपद्ि कायां पश्चमाध्याये ( विंशाध्याये ) प्रथमः खण्डः ( २८ )

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wa दितोयः खण्डः |

आन SAR दूरादा भआसादिति ae मेति प्रथमेऽहनि प्रथमस्थाङ्को शप्र सम्यातौ भवतो निष्के- बर्घमदस्वतीययोनि विहाने ` वामदेवो वां Tae RAVAN: समपतद्‌ Sas: सम-

Wo Uo ६.२३.५१.१,२ ऋची, AMAT Go Alo १६.६.१९. ( any }। अच- पायविः सानानि सन्ति, ततश 'कैवाखित्साका माचादमूतः प्रनायः'- दति वक्तब्य सात्‌

चतुषेपदिका। ५।२४ (cable

CANT A सम्पातत्वं तद्यत्म्यातौ भ्रमेः ऽहनि शंसति aia लं,कस्य समा AIS सजले लल्वितुरदशौमह sat नो देव सवितरिति ‘ase देव्य परतिपदमुषरौ रायन्तरेऽषनि प्रथमेऽ्नि TAA रपर ZAR मन उत gaa धिय इति सापिजं 'युक्तवद्मथमेऽषनि प्रथमसाङो पं दयावा ae: पृथिवी ऋताइचेति द्यावापुथिवीयं मेति. naasefa waaay qa fase दो मनसा बस्ता नर sara aat एति a fa a Ay TAMIA Et तद्टात्मेति सर्वं मभविष्यत्‌ मेष्य च्ेवाख्माक्नोकाद्यजमानाडइति तद्यदिषहह बो मनसा बन्धत नर Tas प्रथमेऽहनि wae वे लोक दूहेहा(स्मिन्भेमेनांम्तज्लोके रमयति दवान्‌ हवै वड- xan aaa इति वैश्वदेवं प्रथमे पद देवता Pager प्रथमेऽहनि WAMATST रपर महान्तः वा `एतिऽध्वान Herat भवन्ति थे संवत्छरं वा दादथार्ह आसते agenda परे areas: aaa इति Sya2a' अथमे ऽहनि शंसति खस्तिताये खस्य यन मेव aqua aie सवत्छरस्व पार waa पर्व शद ' येष! चैवं विद्ानेतरोता देवान्‌ इवे TT

हन्य 9. Revtrrgtery

गसः waa इति अैग्वरेवं "परथमे ऽहनि शंसति बश्वानराय पुथु पाजसे विप इल्याभ्निमामतस्य प्रति

पत्यथमे पटे देवता fanaa ममे ऽहनि nA ETH ed प्र त्वत्तसः प्र तवसो विरप्शिन इति मारतं प्रेति प्रथमे ऽहनि. ceva दपं जातवेदसं सुनवाम सोम fafa जातवेदस्याः पुरस्ताल्धुकषस्य भसति mead वै जारथेद्ष्या, खं स्तितायै स्य- यन मेव तत्‌ कुरते. खस्ति संवद्धरस्व पार मश्रुते एवं ae भर तव्यसीं नव्यसी धोतिं ava इति जातवैदस्यं मेति waa ऽहनिःपथमस्याषदो ed समान माग्निमास्तं भवति यच्ारिनि्टोमे यदै. ae समानं क्रियते तत्जा अनुं aaa, तस्माल्यमास : माग्निमासतं भवति'॥ (३०) |

यस्य gare पुरस्तास्छशंसनं विदितम्‌, तस्िजिविदान- aa अकारसूपं wed दश्यति-- “at इन्द्रो दूरादान wiatfafa (सं ४.२०.) aa मेति प्रथभेऽङइनि प्रधमख्वाङ्गी ्पम्‌"- इति

xem निव्कोवस्यमरत्रतौधयोः शस्रयोनितिदाने सज्ञे स्तोतु ` साह- “सम्मतौ भवतो निष्के वस्य मरत्वतो ययोमि विदाने ; प्राम Sa at इमाल्लोकानपण्यत्‌, वाग्सम्पातेः समपतद्‌ ; waar संद्पतनलतम्चो ताना waa ; तच्यल्लम्प्ाती प्रथमेऽहनि welt

प्रतुषैपञ्चिका ५।.२॥ ty .

रमस्य लोकस्य समा सम्य apa’—efar सम्प्रसिं प्रावन्त ..आआभ्या-यजमानाः सर्वान्‌ लोकानिति ‘eed निष्कवस्वसश्च- . स्व तोयनिबिचानयोः सक्षयोर्वेक्षतयोः सम्पात इति aeqr “wr atferat वसः दति (do ४, २१. ) मरतो यशस्मस्व निंवि- चानं सरम्‌ ; “ora we,” इति (de ४.२०.) निष्केवल्यं निविदानं सकम्‌; एतयोः सम्पात दति asa प्रतिपाखते« पुरा कदाचित्‌ वामरैवः ‘cara’ भूरादोन्‌ लोकान्‌ eer, anya विकच, सभ्यातमकस्तान्‌ प्राप्तवान्‌ | अतः 'सम्पसति' सम्यक प्राप्रोति शस्ते कानेतरिति सम्पातलं' नाम सम्मन्नम्‌ | तथा AM प्रथमेऽश्टनि निष्केबन्यमङत्तौययोः सम्पातनामके an यदि daq, तदानीं await स्रगलीकप्रामि -भोम्यवस्तुसम्मलति- vate सद्वन्धाथे मम्मद्यते ` . , अश दमोम्तचयो सयन्तरसम्बन्धसरूपरं aed दशश्रति --"“तन्ष faqaaia®, sui नो देव सवितरिति वेग्बरद्‌वस्य प्र तिपदनुष्वगौ राथन्तरि;इनि प्रथमेऽशनि प्रधमरस्यादो कपम्‌” -इति। “तसवितुः -इति ( Ho ५.८२. १-३.) ठचो गप्रन्तरमान्रा सह प्रयुज्यमानो ्ष्वदेवशस्तस्य प्रलिपत्‌ ; “wat नः" दति (संन १५.८२.४६.) कचस्तस्यानुचरः ; अत उमयोरपि ग्थन्तरसम्बन्धोऽस्ति, ग्य .न्तरसम्बलेऽद्नि योग्यनाम्ति॥ सक्ान्तरे युजिधातुरू्पं लक्षण दशंयति -“युखते मन खत aaa धिय शति मापितं युत्तवत्पभेऽ्नि AACE रूपम्‌” —sfa प्रथमाया ऋचोःवसाने “ZIG सवितुः परिष्ुतिः शति

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> चान्द्रो दूरादा भानादिति मन्पातः HA Ue RLS A, oe \

४१०. | QataareTes |

शुतत्वादिदं ( सं° use.) सविषठटदेवताकम्‌ इह युजिषातुस्तु faare: सूर्ान्तरे प्रब्द खपं लख इयति-- प्र द्यावा aw: एथिवी

` चऋताहधेति (do १. १५९. ) द्यावाषटयिवौयं ; परेति प्रथजेऽ्नि प्रचमसख्याद्ो र्पम्‌" -इ्ति

अस्मिन्वेष्वदेवशस्ते amare विधत्ते-- “s देह at मनसा बन्धुता मर wanda; यदा एति प्रेति तक्रथमस्याद्धौ रूपं —agifa सर्वं मभविष्यत्पैष्यक्नेवास्माल्लोकादयजमानः <i तद्यदिश्ड वो मनसा बन्धुता AE इत्याभवं WEST Waa वं लोक श्ेशास्मित्ेप्रेनास्तललोक्षे रमयति”-ष्ति | “swe वः '- waaay (do २.६०. ) टभुदरेवताकम्‌ ; fextarar watt cGy 2aq खभवः समानश्च ईतिशवणात्‌ | Ba. श्र. शब्दा दिकं लक्षं मन्ते नास्तोत्याशङ्खय ‘ae’ इत्यादिन aan बाघ उपन्धस्यते | यदेतदेति प्रेति चेति, तदेतत्प्रथमस्य छी सप लक्षण मिति पूर्वं any ( ४०२ °); “aq नथा afa यदि मरेव्यनेन लक्षणेन ga “GT सृक्तजातम्‌ भम विच्यत्‌, तदान यज माना ware Gay प्रष्यन्ति मरिष्यन्ति एवेति बाघोप न्यासः ) "तद्यदि" -दल्यादिना समाघान सुषन्यस्यते | यस्मात्‌ प्रब्द योगे बाधोऽस्ति, तस्मात्कारणादिदेदेति aa यदि wT wha Te, तदामो निरदशन्देनास् aaa fasfaaary (अस्मिन्नेव भूलोके एव तस्सुक्तपाठेन "एनान्‌ यजेमानान्‌ रमयति far क्रोडथ ति : तत; प्रशब्दप्रयुक्षो मरणबाघोऽपि परिद्ृतो भक्ति

सक्तान्तरस्य प्रथमपादे देवताभिधानं लक्षणं दशयति “देवान्‌ ये हषच्छवघः ara इति Fats प्रथमे परदे देवता निरुच्यन्ते

चक्थपञश्चिका | ५।९॥ Bed:

WHA RA MATA Soy cher (देवाम्‌ "-दल्ादिके Ee ; बहुवचनान्तस्य SANSA खवग्णाहवतावादुश्येलेदं a ( do १४ ६९९, ) वण्देवम्‌ | प्रथमपादे देवणब्दसु faa: |

aa खस्तिगशष्दस्य तत्परस्य दरयति -“सङ्ाम्तं वा wary aera भवन्ति, ये संदक्षरं वा हादशाहं वासते; wavarew बदच्छरबसः waa इति वेष्वटेवं प्रधमेशनि पंसति, wfer- ara’ —efa 1 ‘SF यजमानाः संवस्षरसतंवा दादभाशं वा अरु तिष्टन्ति, पतै दोघं मध्वानं गन्तु qa wafer ; प्रयोगवादष्वै- भेवा-डवत्‌ agar waaay अतो देवाजिष्यादिस्न “खस्य -श्त्येतस्य प्रदस्य शंसनं 'सखस्तिता्थे' समाय मवति

Qzaq प्रमति - -“खस्बयम मेव तत्‌ कुरुते afer संवत्सर at aya एवं वेद, येषां चवं विानेतशोता Wet हश्च वसः म्बसाय दति aed प्रथमेःङ्नि एसति' -दति enter वदिता तेन खस्यन ia हादगादस्य केमप्रापि भेव wea, Sida dancaae समाति प्राप्रोति | fara “येषां यजमानाना qeraael होता wate, तेऽपि यजमाना इदां Bae प्रा्रु- वर्ति संवत्सरसत्रं समाप्रयम्ति॥

सक्तान्तरस्य WEA पाटे टेवताभिधाने लक्षणं दश्यति- (Geraci परयपाजसे विप दत्यानिमारुतस्य प्रतिपत्‌ ; प्रमे प्रे देवता निरज, प्रथमेऽनि प्रषमस्याद्ो रूपम्‌” -इति अआन्निमासतशस्रस्य ‘Garay - दति (Ho ३.१.) सश प्रतिपत्‌ HRY aaa शब्दो fame cart मसभिधन्त

सक्नान्तरे प्रब्दर्पं fay दपयति-- “naw प्रलबसौ विरप्‌शिन इति सासनं; प्रति quacwfa WARTS रूपम्‌"

+, ~ शेतरेयब्राद्मथम्‌ ©

इति , ` ' प्रल्सः'+--इति ( सं° १.८७. ) सक्ते ferttaar wer दितीययादे “वय इव मसतः”- इतिच षात्‌ षदं शुकं मर्डेवताकं पंसेत्‌ ! wa श्रःगब्दो विसरः वश्येमाणटस्य AHN पुरस्तादेतः सच विधत्त "“आातयेदसे qrara सोम fafa जातवेदस्यौ एरस्त THANG शंसति ; wexaa वै जातघेदस्याः & स्तितायै'"-इति | जात- चेदा देवतां यस्या रवः सेयं .जातवेदश्ए ( to १,९९.१. ) ; तदेवताकलवं प्रथमपादे देवताभिधानं feat franca wear चि “'अरातोयतो fa दडहातिः- इति waereraary, “नावेव सिन्धुम्‌"--इति नौदृ्टान्तेम दुरिताल्ययश्रवणात्‌ “aura क्षेमगमन aa विद्यते ; तक्मादियं wand भवति वेदनं प्रशं afa— “aqaa मेव तत्‌ कुरते, खस्ति संवत्सरस्य पार मग्नुते पषं वेद"--श्ति॥ सक्तान्तरे प्रशब्द लिङ" enafa— “प्र तव्यसो नव्यसो घोति मनय दति जातवेदस्यं ; प्रेति प्रथमेऽहनि प्रथमस्याद्ौ रूपम्‌” दति यद्यप्यस्मिन्‌ सूक्ते जातवेदःशब्दो श्रुतः, तघापि तदथं वाचौ शब्दः श्वयते ; जात qed fat तदत्तोति जातवेदाः” तत्पायो विश्ववेदः शब्दः “य aft मृगवो विश्ववेदसम्‌” -sfa squat afa शूयते तस्मादिदं सक्तं ( सं° १. १४१९. ) 'जातवेदस्यं' निविशानौयं पंसेत्‌। भव “प्र तव्यसौम्‌'`--ति प्रशण्दो विस्य;

ee ET RTE ome.

Ae ees OT ES Ef A ee A Sa

णी

* “gaze ~ale निर्विसर्गपाठी हन्यति माष्यपुसकैष, अर्थतश्च गम्यते तथैव ; पर सण्तपसकविरुख एव ख: “न जातषेदसे सुनवाम सोम भिव्यपिमारते लातबैदद्यानाम्‌ "~

आश्र Hoots) -जातमेदव्यनिवित्‌ सम्वन्धिसज्रसमवात्‌ जातवेदख्याभा भिति बहवचनं जाव्यभिप्रायम्‌'-दति तच हत्तिर्माराव योया

yeah) २५. ;

््वाभरायेव्यादिकं यदागनिमारतं wer सकम्‌, शित्‌ ee afa— “ससान माग्निमारतं भवति, यामो, यष | | aura क्रियते : तत्‌ प्रजा अनु समनम्ति; तस्ासमान पाणि मारतं भवति" -इति भस्मन्‌ प्रथमेऽहनि यदानि मारतं re? uaa, यच्ार्निष्टोमे पूवं निरूपित मानिमरुतं शस्तम्‌, agua समानम्‌' एक विधम्‌ ; व्ुनाधिकमन्ाणा सममावात्‌ | ae यदेवाङ्ग समाने क्रियते, ‘aa ww “भनुः ete प्रजाः. ऋल्लिग्रपाः पुत्रादिरूपाख्च ‘aanfer सम्यक्‌ चेष्टन्ते, TSA ज्ञोवन्तोल्य्ः | तस्मात्‌ समानं qe मास्निमाश्त wet MAA अनर प्रथमस्यादहो लिङ्गेषु “mere, "गायतं (कारिष्मत्‌ अयं लोकोभ्युदितः' इति लिङ्रचतुषटय मन्र नो दातम्‌, AAA: . aad AAT | २॥ इलि Tracers विरचिते माधवोये वेदाधैप्रकाशे रेतरेयत्राह्मणस्य चतुथेपश्छिकायं पञ्चमाध्याये ( विंशाध्याये ) feat: खण्डः ॥२८( १० )॥

किककिकिषी cers गिं

अथ ठलतोयः खण्डः

चन्द्रौ वं देवता हितीय महवडति TAS स्तोभो बशह्याम तिष्टप्‌ छन्दो यथादवत मेनेन यथास्तोर्भं

vie + वभ

`" *

अथांखाःसं यथाच्छन्दसं cralfa एषं येद ae भति

HVE BGR सद्‌ HRA ष्टे दृषदा AAAS UATE षर दयाइधन्वया AAR पदे देवता निरुच्यते ' यदन्तरिच मभ्यदितं यहादेतं यत्‌ Sed qgeqaeatia वे हितोयस्याहो शूपाण्यनििं दृतं ` ठणौमह इति fedtaare wed भवति कुव्द्‌ दितोधे ऽश्नि fetiaerer रूपं वायो ये ते सह- सिय sfa usa qa: सोम waradfa हधन्वद्‌ fettasefa, दि तौयस्याो पं 'विश्वानरस वस्ति मिन्द्र इत्सोमपा एक इति मसत्वतीयस्य प्रतिषद- qua वधन्वच्चारततर्व्च दितीयेऽहनि हितौग्रस्याहो ed मिन्द्र नेदीय ufefawa: प्रगाय उत्तिष्ठ प्रह्म- waa दति ब्राह्मस्य त्य ऊद वान्‌ हितौयेऽहनि शितीयस्याषो <a मरिनर्नेता त्वं सोम क्रतुभिः' पिन्वन््यप इति धाय्या अच्युता वृषदिन्द्राय गायतेति aaa: मगाथो येन ज्योतिरजनयन्दतावृघ दूति वधन्वान्‌ fadlassfa दितोयसखहो शूप fax सोमं सोमपते fara fafa aa सलोघा querer वषस्तेति saz दि तीयेऽशनि हितीय- हो Gi खा मिदि हवामहे रवं Hite चेरव दति

&^-< * Ny ala! 8 + + , o equ t ५. ` १1.4१9 fou ¥ = be a x #

दशत wate वारतेऽइनि हितोयेऽहनि दितीकः RATE रूपं बदावानेति धाय्याच्युतोभयं शशक Slo AAA AAS मदा यद्‌. VR दिति व्राहतेऽहनि हितीयेऽहनि दितीयस्माङो ed ल्यम्‌ षु वाजिनं aaa भिति तार्य च्युतः ( ३१) |

दादशाहगतनवराते प्रथम महनिरूप्य दितीय महनिङ्य- यत्ति---नद्रो & देवता दितीय मशर्वहति, पञ्चदश Slat ae- mara faeq कन्दः-ष़ति | दैवतानां मध्ये इन्धो, दैवता, स्तो माना मध्ये पञ्चदशः स्तोमः, avai मध्ये इश्स्याम, छन्दां मध्ये जिष्टप्‌ छन्द; ; weraqed दितौ यस्या्ो faahwara वेदनं ydefa—-“anizaa aaa यच्ास्तामं यधासाम यथाच्छन्द्सं गप्नानिय एवं ae” «fa, वेदिता स्रकीयवेष्- नेन यथोक्ताटेवतास्तोममामन्छन्दास्यनंतिक्रग्य तश्प्रमादन समदो भवति |

अथ द्िनीयस्याका गमकानि- मन्वनिङ्गानि निदिग्रति--. ea’ नेति प्रेति, यत्‌ स्थितं, तद्‌ दहितौयस्याक्नो ed; यदू वश्यरप्रलिव्यदटन्तवंश्यर्‌ पग्व॒ शदधन्वन्‌, waaay पटे दैवता faq- अते, यदग्तरिच्त मभ्युदिते, यद्ाहत, यत्‌ ara, यत्‌ कुवटेतानि | 2 fectaars) रूपाणि" दलि) wawears.afa प्रति fared ‘a? यदेपोकम्‌, तदत दितौयस्याहो few भत्र ` तौति नकारदयेनोभयं निषिध्यते ‘aq fed? तिहतिधातु-

४९६ Reta ॥,

Saat AEG सपानेष्यप्रथ्थतत्वेनावदखिते चर सन्ते ema, तदु हिलोयस्याचो सिक्कम्‌ तथैवोव्वैगब्दोपेतम्‌ परतिभब्दोपितम्‌ Wyld, slid, ठच्श्ब्दोपेतं यदास्नातम्‌, aaa ` दितोयस्याद्ो way यस साच्चाच्छषब्दो श्रुयते, तत्र तदर्था eva) मध्यमे पदे देवताभिधानम्‌, भन्तरिक्षलोकाभिधानम्‌, छद सामसम्बदम्‌, निषटपखन्दस्सम्बचम्‌, वर्तमानाप्रत्यययुक्ष- कारोतिधातुरूप भिलेतानि सर्वा fertrerst रूपासि निकूपकाशणि लिङ्कानि द्रष्टव्यानि |

अस्मिम्‌ दितोयेऽदन्धाज्यशस््रं विधत्ते “रमि ga ठणतौ- महद्रति (do १. १२.) दितोयस्याङ्क wed भवति ; कुवेदु, दितीयेज्हनि दिलोयस्याक्को eaq’—<fa 1, अचर कुवेदिति शिङ्गोपन्यासः | aaafa ` दूत मिल्यादौ साक्षात्‌ कु्वच्छब्दो ययते, तथापि करोत्यथेस्य सवंघातुगतमरामान्यलात्‌ वत्त- माना्यवाचिप्रत्ययान्तं घातुमातं gases faafaay अत्रापि "छणोमद्ेः-इति वत्तमानाथधवाचिप्रत्ययान्तो wig: Wad | तस्मात्‌ दितौ येऽहन्येतन्सुतं विनियोज योग्यम्‌ ; ततौ हितौय- aret लिङ्गम्‌

sane विधाय प्रउगशस्ं विधत्ते--“्रायो येते सखिण बति (do २, ४१.) Wet; सुतः सोम waratfa gaa, दितीधेऽनि ददितौयस्यादो रूपम्‌ -दइति “वायो येत इत्यादिकं we कुर्यात्‌ एतस्मिन्‌ सक्ते aqul ऋचो दितौवः पादः “gai ata ऋतादुधाः-दतिः; अस्य पादस्यान्ते इधेति- gaurd wot हधन्वत्‌ः ठधिधातुयुक्तम्‌। इितौयेऽहभो.- व्मादिकं पूववत्‌ i

eis Dk. oe a oy

WE HURT शं विधके-- “frearecer वदाति ME wee पोप एक दतिः मदत्वतोयस्व प्रतिपदशयरो ; कथने dy, feehasefgfadtearh, एवम्‌" -१ति “विशन ewe aa: ( dod, ६८.४-९.) new परतिपत ततिं कतरे हितोयस्या we: rey "eu ठचिधातुयुते few afer: Cefard: सदाहम्‌? - दित्वात्‌ इनदरः" शत्यं (de दर. ४- gy दैचोऽशुर्पः। तवान्तःधन्दयुक्त लिङ्क मस्ति ; चैष. मायो We oe अमदन्‌ -दतिखवसात्‌ + ` : - -अ न्ते fered दवति ~~ “द -नदीय afew ere: पथा, ‘she spree हेति areca स्वाम्‌; fethaceftt दितोयस्लाद्रो रूपम्‌” - इति “ue Heta:”-warr- दिकः wma: ( do ८,५१.५, ६.) भथभेऽइन्धिपि विहितः, उत्तर चापि विधास्यते ; wares विघोयमागोभ््युतो भवति, प्रयते भावात्‌ | तदिदं मच्युतं खितश्रष्दाधताव्‌ सितव्धिश्गाम्‌ | "दन्ति. इत्यै प्रगाथः ( सं १९, ४०; १, ) अहंलिङ्गवाम्‌ ; AEatay उच्छम्टस्य ATAU |

ae frag wag waa लिङ्ग टप्यलि “a feaaiary: त्वं dia क्रतुभिः, formers इति धाथ्या अच्यलाः'"-ति | oftar via ( मं० ३.२०, ४.) प्रथमा घाय्या ‘od सोम

दति { सै" १,८१.२.) तीया, “पिन्व्यप "'-ष्ति (रस १,६४.६.) ढतीया प्रथभेहन्यपि एतासां विहितला्द्वतस्बम्‌ प्रमाधान्तरे fag द्गति ---“aefesta मयेति मत्व. fa: प्रगाथो, येन न्योतिरमनयचुताठघ दति HAM, fem’, श्नि दितीयस्यादो रुपम्‌"-दति “छदिन्छाय cant माद

BLE रेतरयन्राह्मणम्‌ ,

Sana: (Wo र. ८६.१,२.); “मरतो erway” दति facta. ae ary तस्म “येन waif: sf ठतीयः पादः ; aa Caray -इतिखवणात्‌ भयं wital हधिधातुरूपलिङ्गवान्‌

लिदङ्क्दर्भनद्वारा सूक रिधसे- इन्द्र सोमं सोमपते पिबेम भिति aa; सजोषा sequen हषस्वेति हषग्वद्‌, दितौयेऽहनि हितोयस्या्ो रूपम्‌"-इति “इन्द्र सोमम्‌"--इत्यस्मिन्‌ मूके (do ३२, ३२. ) ““सजोषाः""-दत्यादिको ferret WAGs: पादः; तत्र. ठषखेतिञ्रवणात्‌ ठषणुक्षिष्ग मस्ति |

अथ निष्के वल्यशस्तस्य स्तोत्ियानुरूपयो; प्रगाधयो; वदः लामसस्बन्धर्पं far’ दर्थयति--"“त्वा fate इवामहे, त्वं हये हि aca इति aequd भवति ; वाहेकेऽशनि दितीयेऽहनि दितो. aera खूपम्‌''-इति (त्वा भि्चि-द्ति ( Ho &.४६.१,२. ) swale waits: स्तोत्रियः प्रगाधः ; “at wife” इत्यनुचरः प्रगाथः ( de ८. ६१. 9, ८. ) प्रथमे प्रगाथ वत्षामयुक् गृ्टस्रोतं मवति | Wa प्रगायदयस्य छहत्सामसम्बन्धात्‌ “ATE बहक एमसम्बन्धिन्यदनि तदुभयं योग्यम्‌ ; दितौयस्य चादौ ae स्ामसम्बन्धित्वात्‌ तस्मिच्हनि विनियोक्तव्यम्‌ | WIE ey aia at दितौयस्याङ्को लिङ्गम्‌ i

अयैकस्या wagae fag दप्यति--“यदहावानेति ( a १०.७४.६. ) Wagar’ इति प्रथमेऽहन्धप्यस्या Wat fate- तलादश्युतस्वम्‌

अथ प्रगायान्तरे व्व्षामसम्बन्धरूपं fag’ दप्यति- “sad . शृणवच्च इति सामप्रमाधो , we मद्य ag aw भासोदिति बार्छतेःइनि दितोयेऽहनि दितोयस्वाद्ौ रूपम्‌ -

» चतुर्धपर्चिकाः। ५।४॥ eye

इति “उभयम्‌ -इ्त्यादिकी कामङप्रयुज्यमानः प्रम (Ho ८, ६१. १,२.)। उभयशब्दस्य कोऽथः खोऽभिधोयते--~ ‘srr स्मिन्‌ दिने ‘ay कओ मासीत्‌, ‘cee’ का सेकम्‌ ; यदु यदपि शयः पव॑: काथ मासीत्‌, तद्पौस्येषं काय दयम 'खणवत्‌' खत मासोत्‌ | इति मन्गतस्याभय भष दित्यस्याथः i aren इत्यादि पूववत्‌ | aarat पू्ववदध्यतत्व' लिङ्ग दशयति - a ag वाजिनं sana fafa (do >, १७८. ) तार््योऽष्युतः'~ इति | ATG Sanraca oaafatca aaasefa विद्ितत्वादु्तरौशरो योषयल्रादखतत्वम NX | इति ोदवाय्रणाचार्यविरचिते माधवोये बेदाथप्रकापे रेनरयन्राह्मणस्य चतधपञ्िकायां CBHI ( fanny ) SATA: AT ( २१ )

~~ ~~ ~ ~ न्च

\ WT चतुथः SAT थात ऊलिग्वमा या परति aa जहि ठष्न्रानिं aun प्राच दति वरषरवद्‌ featasefa हितौ gure दपं विश्वो दवस्य नतुम aataqa ter

मा विश्वदेवं aafa fata aera प्रतिपद्‌

qant बाहतेऽहनि fediasefa दितो

ee डि ` किती शि रपं भे हि यावा पर्धिवौ fsa ite argh सुजन््नो ` शिषे अनरौयत geatae हि तौयेऽङनि दिती- TAS रूपं तनयं सुदत ˆ विद्मनापस इत्या

‘Way रौ GRATE वबुषरस्‌ इति वघ- we fatssta (ear रपं ` ara बो रथ्यं विश्पतिं fam मिति वेश्वदेवं वषा केतुयजतो द्या मशयतेति ana हितोयेऽहनि fetirvarst दपं तद्‌ शार्यातं मह्गिरसो वै ania लोकाय सत मासत तेह शम दितीयं दितौय मेवाहरागल्य agfa तान्वा एफतच्छार्यातो मानवो दितौयेऽनि सक्त मशंसयत्‌ adit a a 4 यच मजानन्‌ प्र खगं लोकं तद्या देतत्सक्तं दितीये- ऽहनि शंसति aaa wae खगस्य लोकस्यानु- wie wag ami असर्व न्‌ ae इत्याम्नि मासुतख प्रतिपद्‌ quae fedtasefa feata- awl EX aay शर्दायः सुमखाय वेधसं बति wred बु षड्‌. fecaseta दितोयस्याष्ो qd amaed सुनवाम सोम मिति जातवैदस्या

भवतति) ५।.१॥ भैः gee’ यज्ञेन वतः -लतवेदस मिति amare वृषम्वद्‌ ‘fadtasefa fedtacatst रूप सगो रुपम्‌ ( ३२)

दे तरेयब्राद्धखे चतुपच्चिकायां पञ्च ATTA

खज्ञान्तरे षष्टे fay’ पयति -- “ara Alara या परमेति aa जहि दष्णाानि सश) पच इति इष age, दितीयेऽहनि हितीयस्याक्णो ख्यम्‌". इति “या सतिः! -शूत्यस्मिन्‌ सक्ति ( सं: ६.२५. ) “जदि wanifa”--xfa तौ. , यस्या waa: पादः | तच षणब्दयुकतं नि" दश्यते अथ देष्वदेषशस्वगतयो स्त॒ चयोवुदवाममम्बन्धरूपं सिङ्ग दर्प afa— ‘fax डेषस्य नेतुस्तव्वितुनरेष्य मा favaza सतति रिति परश्वदेवस्य प्रलिणदनुचरः ; वाङ्न; नि fearaswfa दवितीयः रूपम्‌! ‡ति ! “विष्व faq”. vant ऋक (do ५.५.. १.) ""नन्सपितुः'- इति wat ( सं ३. ६२. -१०,११.) ; सोऽय भेकस्टवो FFAS aural वेश्वदेवशस्तरस्ये प्रसिपडदति i “at वि्देवम्‌ saiq wa: ( से ४.८५.७ €.) AHA श्रत उभदोवु्टसानमम्बन्वः amt fag शयति--^उदु देवः मवति हिर. ate सामि were, दितीयेऽदनि दितोयष्याद्रा WIA दूति) भस्मन्‌ saan सविव (4° ६.७१.) aE: वाचिम उन्दरम्दस्वं ATTA कं विश्च ससि)

१४२४ रेतरेयब्राह्मणम्‌ 1

सूकषान्तरे fag दंयति-“ते fe arama fran वेति ावाषटयिवीयं ; सुजन्षमी धिषणे भन्तरौयत curd, fadtasefa fedtoare: रूपम्‌?'--श्ति अस्मिन्‌ दयावाणयि- aa am ( de ६. १६०. ) “श्ुजस्मनीः'--इत्येषः प्रथमाया ऋच- BANG पादः ततरान्तःपदस्य ययमा यत्वात्‌ अरन्तवेलिङ्गम्‌ सूजान्तरे far etafa— “award ` सुहत विद्मनापस cand ; way we इन्द्रवाहा दषण्वप दति awa, feata- sofa दितौयस्याह्ो रूपम्‌" द्रति “तलक्ब्रथम्‌ "दति an भदेवताकम्‌ (do १२.१११. ; प्रथमाया ऋचस्तुतौग्रपादै Coaq fan. warner) ata “awedy”.- शल्यादिकस्तुलीयः पादः ; afagqaaa ईति वषग्व्षिङ्ग दश्यते सकषान्तरे fay दर्भयति-- “ase वो रथ्ये विश्पतिं fant सिति शश्वदेव ; हषा केतुर्यजतो at मश्ायतति ava, दितोये cefa दितीयस्याषो रूपम्‌" - दति “यज्ञस्य --दत्यादिसूते ( भर १०.८०. ) “sat भिन्नौ वणः" दल्येवं चहदंवताश्रवणान्‌ Fe वैश्वदेवम्‌ “aw केतुः''.-दति एषः प्रच्रमायाश्चतुयः पादः | aa हषर्वलिष्क ale i देतत्‌ as प्रशंसति -- “ag गार्वात मङ्गिग्सो वे सगय लोकाय सश्र मास्त ; तेदस्मदितोयं feata भैवाहगागत्य gute; तान्वा एतच्छ्वयाती मानवो दितोयेऽहनि om -स्ैसयत्‌ ; ततो वेकेप्र यज्ञ मजानन्‌ प्र स्वगं लोकं; तद्यदेततूक्तं fedlaceta शंसति, यन्नस्य प्रजात्यै, स्वर्गस्य लोकश्यानुख्यात्ये" eta. “ase वो रथ्यम्‌"? -शत्यादिकं aa (Po १०.९२.) grain mdine कस्यचिन्भदरतेः सम्बन्धादित्यवगम्तव्यम्‌ |

चतुधपञ्चिका ५।४॥ ae

कथं सम्बशरम्‌ ? इति, तदुच्यते पुरा कदाचिदद्विरको महषयः wale मत मनुष्टात्‌ Yaa: ; तदा ते aval यस्िन्‌ afay सच एशमषडदस्यं दितो सदरतुतिष्ठन्ति, तत सवत्र feta feata sefa गसखबाडइस्यात्‌ कुत्र {मं शस्तं पटित्रव्यसिति म्ला मुश्रन्ति तदानीं भार्ययातिनामकः afar: wefan ait श्रङ्किस्मो मरर्भन्‌ “ome वः" -दत्यादिकं qa हितीये- ऽइन्यभंसयत्‌ | "नतः सूत्प्रभावरदेषव न, महषंयो ‘aw प्रजा- मन्‌" ad प्रकसम wri | AMEN waa प्रजा- नन्‌ | तस्माद्‌ पितो यउदन्येतस्य सूतस्य सनेन व्यामोह मन्तरण यज्ञः प्रन्नातो भवलि, Bra

आशान्तगय, प्रनियदि लिङ्ग evafa— ‘vem aut We- घस्य we अत्याग्निमासतस्य प्रतिपद्‌ ; वरषग्वद्‌, हितोयश्मि {तो यस्याङ्न सपम्‌" दति! तथ ।(स०६१.८१ ३२.) कष्ण "--कसि- स्रवणाद्‌ ठषगल्िङ्गम्‌

म(सनमक्त fag caufa -“am गद्य gaa Fae faq arma. zone, feataseta fediwenst रुपम्‌" cher अत ग्र्या wait fadtrar? “wrt meat” दतिश्रवः- wifed मूलं ( do २.३२. ) मालम्‌ | suniay Wee

इनवदस्याथः aad fag? caafa—— “aes चुन

areata fafa (a> १,८६.१.) जानव्दस्यादयुता"-इति। nduswaagt war चिद्धिनल।दस्युतत्वम्‌

सान्तरे fas enafa -- “ana वकत जातवदस मिति sinaze - व्रधन्वद्‌. faatasela हितीयस्यादु रुपम्‌?-ति। जाततर देवताकलं waaay चात्र (सं? २,२.। frags»

कति ऋौमन्तायण्टचार्यविरचिषि माधवोये Fervent रेतरेयव्राद्म शख चतुर्थपन्विकायां पञ्चमाध्याये (विंाआवे ) चर SG: (३२ )

वेदार्थस्य प्रकार्येन wet शं निवारयन्‌ quiraqtt Gare वियातौ्सच्ेश्बरः

इति ओोमद्राजाधिराजपरमेभ्बरवेदिकमामेप्रवत्तक-

ACR Tag HL TAT CATA ATA TAT -अगवस्ायग्णाचा्ये विरचिते माधवोये बेदार्थप्रकागनामभाधे

कितरेयद्नाद्मणस्य चतुर्यप्रद्धिकायाः पञ्चमोऽध्यायः

Sat बै uz, प्रजापति सोमाय गन इषौ. ज्योतिर्मौरायुरष्टौ(?। प्रजाप्रतिः षट्‌."

afd चत्वारि“ 8 etl Sat पे ब्राद्मस्यस्थया, ssea दृरोहसं दादश ॥8 +

इति चतुथं पञ्चिका समाप्ता

| ee eee ४== इर wept `

yes, Os, २२९, ६६६, ४०१ Te (Ce 4 ७४१. २९८, २४६ WH (१०-११..१द८१३१ ख.).। टार २२दपु० 1 RBM