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Bibliotheca Trdven. Sener No. 162

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खपत्रोलष्ोदेवोनान्ना बालम्मटपाय गुष्डेन ` विरचिता |

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| VOL. IJ. FASCICULDS I.

CALCUTTA: | . PRINTED AT THE BAPTIST MISSION PRESS, a ` AND PUBLISHED BY THE

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Aisi | Salam ८८... ^, मिता्राब्याख्या |

nd अथ व्यवहाराध्यायः

Lauran! yaw geese शिष्टरचणएस्य विधानाद्ग्वयव्यति- पितेद्यां ` पालनाधिकारि ऽर इव्यवहारद श्नं कन्तव्यमित्धुक्रम्‌ | तस्य BATS खष्पप्रकारेतिकन्तेवदयताकाङ्खुमयामयमध्याय इत्याह | ऋअभिषेकादौति | बदा यवदहारान्‌ खयमित्यादिना प्रयोग- विधिना साङ्गोपाङ्ो वहारः कन्तव्यतया विदितः gaara | तज्ाङ्गाद्याकाङ्कायामाइ | भोति, हेतु हेतमहूावरूपसम्बन्धो- ऽमयोरष्याययोः सङ्गतिर्बोध्या |

२। ont हेतुमाइ व्येति wee वाक्याणङ्कारे वा कोदृश्र दति aeons: कतिविध इति प्रकारग्रश्रः। कथं चतोति- करत्यतापग्नः। इतिकन्तव्यतेति | दत्याकाङ्कायामवग्ं ay fea इत्यादिः | खश्ूपप्रकारेतिकन्तेव्यताकलाप tae: श्रङ्गादिकलाप cae वा `

र। MTR जयाणामणुष्तराणौति ष्वनयन्‌ खरूपप्रश्रसयाचर अह्योत्तरमभिहितमिति प्रतिपादयन्‌ तत्छरूमाइ Seif | WAT भावे घञ्‌ तच AU धादनामनेकारथेलान्तरयशाभः अरय ,च STA | SATAY नानाखन्देहदरणम्‌,

Balambhatti, Vol. II. Fasc. I.

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ad मिताश्चराद्चाख्यायां साघारलद्यवद् | R ताश्राष्याख्यायां साधा 1रमाटक्षा

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वि नानां ऽव बन्दे दरणं हार उच्यते | मानासन्देदहर णार्‌ व्यवहार इति शयतः दति कातौयात्‌ weara तसुदाहरति | दितौयोत्तरमाह तस्येति प्रातिपदिकोदित yaa दितौयाबहवचनेन भेदो cua इत्यथः पूर्वं मनुवाक्येन प्रतिपादितमथं waa वाच्ये सिद्याऽधिकमुपपदोकिखारस्येन प्रतिपादयति | ae = यौगिकोऽवं Sg दूति भावः। श्रत एव युक्स | एवादावक्षम्‌ +इतिना करणं तज तस्योच्यते + एचियेति | अमिषिक्रस्य तस्येवेत्ययः | श्रपिनाऽस्यव समुञ्चंयः व्यवहारान्‌ खयमित्यस्य विधिवेन पश्येदिति पुनरविंधिवेयथ्यै परिदरति | पश्येदितौति। धर्मेति | विददब्राह्मणएसाहिल्यादिरूपध्ं विेषे- wa) तथा Baer: पश्येदिति यत्‌ तदिदद्धित्रह्मणेः ae धर्मशास्त्नालुसारेण argu: इति योजना बोध्या | एतेनास्य व्रयश्थं परि तम्‌ sar तेनेव सिद्धेऽख वैयथ्यं स्यष्टमेव

४। तमेव धमेविगश्रषमाह विदद्विरित्यादिना |

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* ay इति च्चियमाचरस्यायं धमं इति मूलवाक्य्येन इतिषदेन श्प परस्य Nas करणत्वमुश्यते इः | दश्रंयतौत्याख्यातोपात्तं weet तु याच्चवस्क्यस्येति भावः। तथा दति पदेन सूतिकारः “ग afaa

arsed ध्मः, किं तु प्रजापालनाधिकतस्यान्यस्यापौति” tad व्यन्वया्थैः। .. 0 | |

at. १। AGG: VE SIM यवहार दग्रंगम्‌ 2

wa इतिकर्तव्यता खा चाङ्गामुष्ठानप्रकारः | एवं we ज्लोकद्धैव प्रपञ्चः सकलोऽध्याधगरेव दति भावः ब्राह्मरैरिश्यस्य aware | नेति | १। wafanearneaare प्राप्तं ्यवहारद ने नृपस ब्राह्म णानां समप्राधान्यं मिराशष्टे | ब्राह्म शेस हेतोति | तेषां ब्राह्मणानाम्‌ | ननु तावता कथं AMAA श्रा सयुक्त इति | सार्थेन योगे ऽप्रधाने टतौयेति तदथः यथा Gee सहागतः q पितेत्यादौ शब्दक्रिथाद्चनन्वयिलरूपमप्राधान्यं gage yea - ऽकौति तदरथल्ेऽपि a तयेति भावः ` एतत्फलमाद श्रत- शेति ब्राद्धयेति wa तथा सत्वेऽपि fama राशो दोषो om ब्राह्मणानां Fae: sweat: तु स्वया शोषाभावोऽभिमतः। mat at परवेष्टययेत्यनेन विरोधापन्ते- रिति बोध्यम्‌ | तेषां तच कथनेजेव तल्लाभ शास्वान्तर श्यासम्भयेनेव निराशे तदुक्रिफजमा₹इ | नार्थेति | wa एव मिथः waa se प्राबद्धं तद्धेति वच्छति न्यूनतां परिरति देशदौति श्रादिगा देवग्टशादिपरियहः। पारिभाषिकधर्मंण are समयः | तच्िद्धरे शादि सम्नन्िधमेस्येव्यथेः | विरुद्धस्य त्याच्यलस्योक्षलादाद् | धर्मेति | वश्यतौति | संविद्मतिक्रमप्रकरणे योगौश्वर इति भावः। क्रोधेति प्रतौकम्‌ fag इति aates farfag- argraraa wef wal श्रादरेति। wa विगेषेण तत्यागाथंभित्य्थैः |

@ are wawgatfefafarse: सभ्याः कार्याः च, ख. २।

मलुरपि, (9. = श्लो, १-३))

व्यवहारान्‌ fegay age: सह पार्थिवः

मन्धन्नेमंन्तिमिः साधं विनोतः प्रविगरेश्छभाम्‌

तजासौनः feat वाऽपि पाणिमुद्यम्य दखिण्म्‌ |

विनोतवेषाभरणः पश्येत्कार्याणि arfaera

प्रत्यहं दे ग्रदृषटेख शास्तदृषटेख हेतुभिः |

श्रष्टादशसु मार्गेषु मिबद्धानि एयक्‌ एक्‌ `

*धर्माश्रयमधिष्टठाय संवोताङ्गः समाडितः |

प्रणम्य STS: कायंद्नमारमेत्‌ #

दति व्यवहाराम्‌ श्र्थिप्रत्य्थिनो विवाद विषयोक्तौः fee:

निरिनोषुः पार्थिवः एथिवौपतिः चजियादन्योपि we: दे्काणाथुचितकार्या का्निरूपणाभिभ्नैः | एतश्च asta विग्रेषणम्‌ weram हि ब्राह्मणा रैशकालाद्यननुरूपं धण्मेमपि सहसा ब्रुवन्तो रान्न: कश्चिदनथेमापादयेयुः मण्तिभिः बुद्धि- खचिवेः विनौतः सदनाहार्योभयविनययुक्ः पाणिमुद्यम्य उन्तरौ- aggre वस्तो परबयानं लेति यथावत्‌ पश्येत्‌ नििलुयात्‌ का्यांणि खणादानादौनि। दे शदृष्टा हेतवः देशविशेषव्यवस्थितानि ` निणयषाधनानि ययोदौच्यमध्यमामा, ` कन्यां याचमानाय भोजनं ` यदि gaat तदा ae देेत्यगुक्रेऽपि प्रतिश्रुता भवतौति Wager: afew:

* aa श्लोकः मनुसं हि तापुके नोपरलब्धः |

wt. 21 सभ्यास्त्रयः कार्याः |

१। प्राद्यक्षत्राह्मरेभ्यः सभ्याः vay कार्या care किं चेति | same वेद ग्रास्लसन्पक्ना दति श्राष्दोऽयस्तत्फलितमाइ | श्ुतेनेति | we दावपि भावम्रतययान्तौ करियापरौ अन्यथा धर्मन्ञानस्यानुपयो गात्‌ | ध्मेशष्टो WITYT WAIT TATE | धमेशास्तेति ताश्छोखे . रिनिरित्याह | ata इति | एतानुदिश्च सखभासच्वं विधौयते इत्याद एवंभूताः समेति | faerie सभायामिति तदथमाइ संसदौति | सोदन्तव्युक्ख aren यथोपेति | धाढरमामनेकार्थलादिति भावः बलात्कारनिरासायाइ दानेति |

२। एते सभाषदोऽपि ब्राह्मण ware: यद्यपोति | तख -जितयसाधारणलादिति भावरः सत्विति |

विनौतवेषो नृपतिः सभां गत्वा समादितः | श्रासोनः प्राङ्सुखो wer waenralfe कायिएाम्‌ दति, <a: पूरवक्ञोकः। राजा सिरैभयतोऽचश्चलेः भावेद्धिमद्धिः मौलैः पिदरपितामहादिपरग्यरायातैः रिजोत्तमैः WG: सत्तमौतत्पुरषः धर्मशरात्तं मानवादि तख चोः सिद्धाग्तस्तज निष्णातः श्रथंशाख्ञमौ श्रनसादि तत्र तथा

Rl ननु बडत्वस्य चित्वादिपराद्धंपयन्तसख्याव्या पकल्ेन तच ते कति कार्या इत्यत wel ते चेति। सभासद cay: | *कपिश्चलाधिकर णएन्यायेमेति भावः जय ware जय waa: 4

* “कपिञ्चलानालमेत,, इति श्रुतौ कपिञ्चलाः कति यादा तज array पूर्वो पस्थितत्वाव्‌ चित्वस्यापिधिद्धा इति तदधिकरणे २॥ लद्दश्रापि ज्रयः सभासदः कार्यां इति भावः। ‘WR

We सप्तं वा सभ्याः | a. ्.२।

एवेन पूरवांपरकोग्यो निरासः ae Ware! बह्व्नेति | fama sane यस्मिन्निति इतोऽपि av ब्राह्मणा एवेत्यपि बोध्यम्‌ एवमग्रेऽपि बोध्यम्‌

मतान्तरमाह इद््स्यदिख्विति | उच्लमा दिमेदेगाद। सप्तेति बेद शब्दः शस्लखाघुपलक्षणम्‌ eat देश्- काश्ादिपरः। दा तदन्यसवंपरः। WES: TAIT: | प्राघान्यान्तस्य gaat: यच सभायाम्‌ येति यश्चसभा- aqme: | यदि तु एतदतुरोधेन मानवे चय रत्युषखचणं HIATT वा तदा एकवाक्यतेव TIM! श्रच पचे ते जथ इत्यपि तथेति a भेद इति बोध्यम्‌ परन्तु ते चय इति इद्स्यतिख्िति वदतो विन्नानेश्वरस्य स्तमिद- fafa बोध्यम्‌ | |

ननु व्यवहारान्नप इत्यचोपान्त विदद्राह्मणोदेशेन अ्रताध्ययन-

सन्पश्नवादिरूपो wal नेन विधौथताम्‌ तथा विद्द्ाह्यणए- `

विगरषलाच्छुताध्ययनसन्पन्नादे नेमाक्रेभ्व एते सभासदो भिना इति fa चेत्यवतरणासङ्गतिरित्याश्येनाग्रदते। चेति समान- विभक्तिकमामाथैयोरभेदाग्य इति बुत्यत्तेराइ तृतौयेति। "वचमक्रमेणेत्यमुक्रम्‌ | श्रभेदश्य ससगेलाभावादाह। विशेषणेति | *# विमक्तिकमे प्रथमाया पुवेत्वेऽपि gage पः पश्येदिति

वृ्चनस्य छताध्ययनसंपन्ना इति वचनापेच्चया पुवत्वात्‌ तत्र Satara wg वचनपर्यालोचनायां टतोयायाः प्रथमोपख्ितत्वाव्‌ पुवसुक्किः।

दरतोयाप्रथमान्तनिदिष्टागामिति मूलवाक्ये काचिदनुपपन्ति- ra: |

श्लो. २। अनियक्त arqantaa सभ्याः एथभियोक्तयाः।

मन्वध्याहारेण agai श्राह विदद्धिरिति। ननु विदद्धि- रित्यद्देव विवरणपर मिदमिति पुनसक्रिपरसक्गोऽत आह देति तेन यच्छब्दो तितरयर्थ्यापन्तिससुश्चयः fe विधेयत्वप्रतिबन्धकः | तथा agerzea भिय खरे श्यविधेयभावः weer: प्रतोयते | तच प्राप्ताप्राप्तविवेकन्यायेन लोकादिषिद्धश्रताध्ययनसन्पल्लादिक- gfea सभासक्ं विधौयते इति ara: | | ६। यच्छब्दस्य पूवेपराम्कले ऽपि कात्यायन विरोधरूपदोषा- न्रमपि खचयन्नाइ तथा शेति | तथा ages तदिधिने aza दति ते एव शभाषद इति ay श्रकते दति भावः।

o1 इति प्रारुक्षाथिमोऽयम्‌ प्राद्धिवाकेन सडितः। प्राड्विवाको राअप्रतिनिधिः। प्राद्धिवाकाचदगेका वित्थमरः | अमात्या बुद्धिसविवाखत्सहितः। ब्राह्मणच पुरोदितख ते afer: |) सभ्यः afer) ata सवेषामकङ्गत्सुक्रम्‌ | धमत- Aaa: | प्रचक इत्ययः |

तच सभ्वन्राह्मणयोर्मघ्ये। श्नोति रान्नेति wa: 1 छवमयेऽपि। aw मूलानुक्तः। समेति तथा मूलोक्तेः | तथा Wate: फलभेदमाइ तवेति | प्राग्बत्‌ तं राजानम्‌ | तह्वागिन इति राजसम्नन्विद्ोषभागिन vari एवं 4 परागुक्तदोषशरब्टो विगरेषपरो बोध्यः gare

न्यूमतामश्चाननिरासाय सवथा ऽनावश्वकमूलस्ठचग््देन परिहरति, रिपाविति। विन्तान्तपश्चानां इन्दाऋतुप्‌ तज gaan galas | कुलग्तेरिव्थस्य परभ्परायातेरित्य्थः

राजप्रतिभिधिः प्राङ्विवाकः | व. ख, २।

१। मसु we: प्रतिदिनं व्यवहारदशेनवत्‌ कार्थाकराण्छपि aves faferfa तन carga किं कार्चमित्याश्रङ्ाया- are! व्यवहारेति | wa एव तुः तेन तदत्यागद्ुचनदारा तस्याण्यावश्यकलं Baa | aaa व्याख्या कार्या- न्तरेति शग्तिकाद्यावभ्यकोक्षमिन्नकार्थव्यथेः। सद सहितः | श्रनेन age: स्वेभ्यो भिन्नोऽयमिति सूचितम्‌ |

२। सवेपदस्ारखादाइ | सामेति | रे श्ादिषमयधर्मानित्ययैः। विन्ते विचारयतौति vias: वेन्नौति पाठे वेन्नोत्यश्य aa HATTA: प्रकरणात्तल्ामे तदुक्तिफलमार Baha |

2 यतोऽयं सर्वतो मिक्नो ऽत एव विगेषमाइ तं चेति | args चेत्यर्थः यथाहेति। कात्यायन इति श्रथः मध्येति पपातरहितमिव्यथैः। पर परो विषये उद्युक्तम्‌ WANG |

सुख्यपच्ोक्रिपरतया मूलस्य न्युनतेति सूवयन्‌ सत्य नुन्तरारोधेनातुकल्पमाद | एवभूतेति | ब्राह्मण इति उक्त शणएविशिष्ट ware) srt खो क्रिवेचग्येमेव स्यादिति बोध्यम्‌ Jaata | तसय धर्मशास्तादावनधिकारादिति ara: |

a | मतान्तर माई नारदेनेति। Tea ha | योगौश्वरोक्- ब्राह्मणएरूपानु कल्पतलेभो क्र TAT | Wat बङकायेव्याकुलतेगाव- काश्राभावादिति ara: | पुरस्कव्येति | श्र प्रस्ठतलाद्राज- नियुक्रोक्युङ्ष एव तज क्लां बोध्यः 1 अरत एव

wafas: खतो wal धममूललो नराधिपः |

wt ३। रागादिना ऽन्यधाकरणे सभ्या creat Tear |

ae सद्धिरतो राजा वयवहारान्िश्रोधसेत्‌ इत्थ तेनेवोक्षम्‌ व्यवहारानन्विति युकः ae) एतदेव weata प्राड्विवाकेति | मते बुद्धौ ध्मेशास््ालुसारेखेति भावः स्थितः राजा तस्य wets तल्ञामे पुनस्तदु क्रिफलमाह | सवेति। vad प्राद्धिवाशेन ere अवणेऽपि तस्य तद्शेनाभावेन कथं Wafer श्राह राजेति तया सप्रतिरूपकप्रागुक्ष पुरषदारे तदहगेनस्यौ चित्येनायमेव vet श्यायानिति बोध्यम्‌ | | धर्मेशास्ालुखारेण शृतस्य तस्य योगिकौयं संज्ञा नाश्चकर्णा- दिषद्रूडिरित्याइ। तस्येति | पराद्धिवगकसखेत्यधः ata | weak area: प्राडिति | क्िब्वचौल्यादिना frost ऽयं किवः तयोर्धिपरतयर्थिमोः। विविनक्ति विवेचयति विचारयति wa परे श्रौणादिकल्वं करूपयमत we! विवक्ति वेति विविच्य विचायं areata: एतेन विशेषेण कथयतोति याख्यानम- पाम्‌ इलेति घञ्‌ चाषंलात्कत्तेरि | यद्वा भावघञन्नादग्र Tee) qe तु फलितायेपरतया नेयम्‌ यद्वा करणे बाङल- RMS घञ्‌ श्रत एव यनेत्यये उक्तम्‌ मूलं तु प्ाम्बदेव | कातौयमेवार | उक्तश्चेति | एतत्‌ | उक्त वचनम्‌ ~। श्रन्यद्पि रान्ना कर्तद्यमित्याह | अपि देति | after देषसमुखयः। तथा चाज्ञानभाग्धादिरूपोपाधिमि- ध्मश्राखखविर्द्धमाचरतां तेषां दण्डोऽयमिति भावः। सभ्या दति | निचुक्षा इत्यथैः तेषाजेव aera प्रागुक्षलात्‌ अरत एवा- जिवुक्षानां ater न्ूनदष्डपरि कल्पना युक्तं चेतत्‌। नियुक्षा- 2

९० अद्चतारिशत खारः THAT ब्राद्यणस्छ 1दग्डयत्म्‌ | व्य, अ. र्‌

माममियुक्रलेन धमेशास्वबिहृद्धाचरणादधिकापराधः तद्धिन्लानां तु ` तद्भावादल्यापराधः। श्रादयेषु राजान्नाभङ्गः HET way सयुह्ष्नमेवेति यावत्‌ तदेतदभिेत्याद पूर्वोक्ताः सभ्या इति |

२। रागादौ हेतु पूरयति रजस इति | यक्किञचिद्रागादेः साघारण्लाद्‌ाड | लेहातौत्यादि | वाश्रब्दस्य प्रत्येकं विकस्य- वोधकलादाद | लोभादेति | Warne वेति विवादपदस्य QUAI ATT दमे ‹सम्भवाषच्छाथंमाद विवादेति | नलु भ्रन्यथाऽपि wee सम्भवादेवमेव व्याख्याने किं बौजमत Te पुनरिति | तथा fe aatfa we: feat: स्मैस्तङ्गहणादिषिति पाटः 1 getaea एवा्ाल्ञाभे रागादुक्तिफलमाद रागेति | शृदशुपलकणं देषस्यापि TS नियच्छति। कर्मणः ग्रेषलविवचचया षष्ठौ वजञमिति | णसुलन्तम्‌ | तथा चानियुक्तानां तेषामल्यदण्डोऽपि कथमिति भावः |

तस्य गातमवाक्छस्य विधितलाभावात्‌, ae वधातिरिक्र- दण्डप्रतिपादकवाक्षयानामानयेक्यापन्तेञ्वति -भावः। तथा सतिं तद्विरोधान्तरं परिशरति। यत्विति दोषैः प्राप्तः षड्भिः RTT शत्यः ब्राह्मण इति भकरणम्रा्म्‌ तत्रकार- MANE | अवध्य इत्यादि | चो वाक्धालङ्ारे। अद्‌श्ड्ं इत्यनेन धनदण्डाभावः। अपरिवाद्य नेन धिगेवाग्‌दण्डयो- रभावः। अपरिहाय इत्यनेन सर्वखहरणाभावः। अन्यत्‌ WEA |

षड्मिरित्यसख प्रवेतनभैतममाद\। सं रष इति |

द्यो. 3 | अट चलारिश्रत्सस्काराः | Cr

बङभ्यो TAY श्रुतं येन सः। तत्छाधनमा्‌ | लोकेति। लोकः सदाचारः चयः सप्त वा लोका वा। वेद्‌ः चयो भिच्ादौनि षड्‌ वेदाङ्गानि | वाकोवाक्यम्‌ उक्तिपर्यक्तिमदाक्यम्‌ | इतिहासो भारतादि पुराणं Teed वायवौयादि तच कुशलो निषुणस्तदर्थाभिन्नः। तदपेक्षः awrite: तदत्तिः तदुक्षानुष्टाता | | |

५। अष्टाचत्वेति 1 वे शतमेनोक्ताः। ग्भांधानपुंसवन- सौमन्तो जञयनजातकमेनामकरणन्नपाग्रनचृडोपनयनम्‌। VA समा- Uae चारि वेदभ्रतानि प्रतिश्राखं रहोषुक्षानि खानं समावन्तेनाख्यम्‌ | विवाहाख्यः बदध्मेचारिणौषयोगः। .

पञ्चानां यश्चानामलुष्टानम्‌ | देवपिदमनुख्श्रलन्रदह्यण्णमिति | एते पञ्च wy सारा तु समुदायः | |

१। एतेषां वच्छमाणनामतुष्टानम्‌ | GEA Brga vata भवः पावंएः श्थालोपाकः wea श्रमावाख्यादि आवौ aa कर्तव्यं ्रवणाकभं | श्राग्रहायणौ तच कर्तव्यं हेमन्तप्रत्यवरोदणम्‌ | TH तच wae: Pay इत्यादक््ठन्दिलः श्ूलगवञ्च। wae तच कन्तव्यमाश्वयुजोकमे एषातकचर्रूपम्‌ पश्ुपतये खालोपाक- रूपम्‌, श्रना हिताग्नरा्यणं चेति इयमाश्वयुनोग्रब्दग्राद्यमिति इरदत्तः दति सप्त पाकयन्नसश्थाः। पाकयन्ना श्रल्ययन्नाः प्रश्रस्तयन्ञा वा तं Waa मनसा, यो मा पाकेन .मनरेत्यादौ पाकश्रब्दप्रयोगस्य प्रशंसायां दशेनात्‌ इति waaay हरदत्तादयः | श्राख्या चेयं गार््ाणां कमेणामिति' BUST |

XR व्षटचत्वा रि AT खाराः | श.श. २।

तया श्रापस्तम्बः, लौकिकानां पाकयज्नशब्द इति संख्या विधा पाकयश्चविधाः सतेत्यवं इति हरदत्तः | श्रग्याधेयमग्रिडोचं दशेपूणमासावाययणं चातुमास्यानि निरूढपशएवन्धः सौजामणोति सप्त इविर्यन्नषंखाः। एते ऽम्धासेयादयः | शरतिप्रसिद्धाः। दशेपूणंमासाविति समुदाय एकः संस्कारः GATE | सोमघम्बन्धाभावादैते fara: | श्रद्िष्टोमोऽत्यथिष्टोम sya: stent वाजपेयो ऽतिराजो satata इति सक्त सोमसंखाः। श्रमिषटोमे यज राजन्यस्य षोडथि- यहो ग्यते at safieta: | ब्राह्मणस्य कथमयं संस्कार इति चिग्धमिति Stew | एते चाधानादयो zee मित्या दत्याद्यन्यच् स्यष्टभिति एते चलारिंश्त्‌ TART: | | < संखारो fafa: ब्राह्मो देवश्च aw गर्भाधानादि- खानान्तो ag: | अथिमो ga wet ware इति चातमसंस्कारा इत्यस्यानुषङ्गः | sass चित्तं तच्छद्धाबेवेते wafer भान्ययेति भेरेनोक्रिः तथा चोपनयनाद्यधिकारसग्पत्तिरिति भावः। पाकयज्ादौनां संस्कारलं श्द्कगलिखिताभ्याञुक्षम्‌ | पाकयज्ञा Ufa: सोमसंखास्तथेव Sareea way तु जहतः SAT: संतः YACHT TTT: | नित्यमष्टगरेयैक्षो ब्राह्मणो ब्रह्मलौ किकः ज्राह्म्पदमवाभ्रोति तस्मान्न चवते पुनः दति MASA ब्रह्मलोकाः |

at ५। वयव्ारपदा्थैनिरूपयम्‌ | १द

१० श्रष्टगणाख्, सर्वग्तदया चान्तिरनद्या शौ चमनायासो मङ्गमकापेष्ठमरहेति शौचं बाघ्ममाग्यनरच्च अनायासः क्ेश्करकमानार शभः दूर्वागोरोचनारिचन्दनं मङ्गख्यम्‌ | AAT पश्यं संविभागगौललम्‌ SYR परद्रव्ानिष्छा एवमष्टा- MATCH: तेः संस्कत इत्यथः

qt चिषु | श्रष्ययनेष्यादानेष श्रदृषटा्थंषु श्रभिरतस्तदथा- लष्टानपरः | एवमयेऽपि षटसु श्र्यापनयाजनप्रतिदरूपदृष्टायं- सहितेषु वेति पूर्वान्वयि |

१२ सामयिकेति | पौरषेयौ sae समयः। चिविधः, विधिर्जियमः प्रतिषेध aw श्राचाराः समयाचारास्तेषु भवा धर्माः सामयाचारिकास्तेषु Gwe इत्यथः यदा we विदक्छता मर्यादा व्णंश्रमिणां पाषण्डानां समयः, जिष्टानुहित WANT इत्ययः WB

१। व्यवहारविषयमिति | प्त्यश्था दिर्रतिक्रूलतया नुपादिषु कथनं यवहार Cena: कथ्यमानं तदिषयस्तमित्यथेः व्धपेतेन रहितेन रान्न इति इदं तदधिषटतादेरथुपलचणम्‌ | खुतयेत्यखार्धमाद धर्मति | तदो ऽयायाद यदिति उपलचणएलादेवाइ प्राडिति वेदथ यदौति। w fefiga व्यवदारपदभि्यस्याथेमाह प्रतिन्नोन्नरेति | एतत्‌षडात्मक इत्यथः | तस्य favre |

२। श्रत एव तस विषयख देविध्यमाइ चेति | शङ्केति | werent ऽभियोगो afea विषये तत्वरूपो ऽभियोगो afa-

१४ खवक्टारमेदनिरूपणम्‌ | य. BQ |

fava cae: इ्भियोग दरति सुजधोन्तभविण बतो हिः | विषयो ऽन्यपदाथेः। तदेव विभियाद शङ्केति अरसतान्त्िति। रसतां चौरादौनां षंसगांचौरलारिसम्भावना भवतोत्यधैः। होडा arn fata | wad दति aq उणदिः। Tawa | चौरिकासेन्यचौधं सेयं eta तु तद्धनम्‌ |

इत्यमरः लिङ्गमिति | भ्रयभिचरितं चिन्हमिल्यधेः ददमुपलकणमित्यार सा्षाद्या दशेनमिति। अपहरतौति चेति वापाठेऽपि समुच्चये |

| विषयस्य भदान्तरमाइ पुनरेति | दतमाद्नय इति | दयतखेवोपा धिभेदेन भेद श्राहृयास्यः पुनर्भ॑दमाद | रएतान्य- पौति साध्येति | अवान्तरषाष्यभेदेनेत्यधेः षाम्‌ खणा- दानादौनाम्‌ | तख पुनर्भदान्तरमाह | क्रियेति | किंवा साध्यम्‌, Wane ऽनन्तवचनः। चेदित्यतःसूचितमाह | चेदिति | arn ततप्ररणोश्क्घने दण्डापत्या चेदिव्यसयेच्छिकावेदनबो धकष्यासङ्गतिः weal शरस्य रान्नः। प्रापितमिति। कथञ्चन श्रन्यायेनान्येन प्रापितमथं गरक्ञोयादित्ययः। यदा श्रन्येन प्रापितं निवेदितं श्रयम्‌ कायं कथश्चन श्रविचाये ata नोपेेतेत्यथैः | चाप्रापितमिति we तु wea विवदमानेन ततसम्बन्धिना वा श्रप्रापितमनिवेदितं कथयशिदवगम्य रागादिना गसेत याये दित्यथेः

मूले परोरित्यन् “खरितासंडितायामनुदान्तानाम्‌'” इति- ख्भाष्येक्करौत्या परख परो परे चेत्येकगरेष दत्याश्येनाद |

at ५। व्यवष्टाराङ्निरूपगम्‌ | १५

पररितौति | wanda पररिति बहवचनान्त पदमिति

शेयतोत्ययेः | बहवचना विवच्यां योजनं तु परेणेत्यादियन्ध- सखरसविरद्भम्‌ | शरकस्येत्यस्य स्वेचान्वयः |

५। एवं सति प्राप्तविरोधं परिहरति यत्‌ पुनरिति। यचतित्य्थः न्यायेति | vata wera तद्धिन्नेति एयगव्यवहारविषयमिन्थथेः यदेकेनेको ` ऽभियुक्षो मघ्नमसौ धारयतोति, तदा तस्ििन्वयवद्ारे ऽनिष्यन्ञे -न्येमान्येन चान्यया नाभियोक्ब्यः। frag तु क्रमेण तयेत्येवमेकस्य बडमिर्विवादा- भावो लेते ay धारयन्ति श्रतमित्येवमेकस्य बङ्भिविवादाभाव दति भावः। ददं Vaated व्याख्यानावसरे als सकले- तत्प्चवयाख्यानं स्फुटौ भविव्यति

न्येनतां परिहरति ्रावेदेति | दतौयान्तस्याथसिद्ध- मित्यत्राचयः | दितौयमाद श्रावेदितं चेतिं | दतौयमाद कार्येति | भ्ाधिव्याधिसहितादौनाभित्यधेः | अथसिद्गमिति | अन्यया ऽविनोतस्याबेदनमेव घटेत sgaaa राजसमोपे

गन्तुमश्रक्यलवात्‌ | श्रावेद्‌ नानन्तर तस्य युक्रलेऽपि यदि maf wat.

नाह्ानं तद्धविदनमेव निष्फलमिति कोऽष्णवबेद्येत्‌ तथा प्रजापरिपालनस्येवासिद्धिरिति तेषामथेषिद्भलमित्यथेः |

इद्‌ प्रमाणयति ' स्मृत्यन्तरे त्विति | नारदौये लित्यथैः। किं कायं का चेति | waar मन्युटतञ्च प्रश्नभेदः | केन क्रा कस्मिम्‌ देशे कदा काले क्मात्कारणत्‌। तयोभदस्योक्- MATE! ससभ्येतर ह्यलरिति | सुदरायणं लेस्यष्याणुपलचणम्‌ |

a @ CF. > शदो CPt Se seem, |

१९ अकल्यादोनां सति संभवे sae! ख. अ. २।

एवं प्रहय्थिन श्राव्हाने निषेधमा₹ | TAMAS | THU: व्याध्याद्यभिग्तः। विषमष्यः sasage:: किया- ऽऽकुलः नित्यनेमित्निकादिक्रियाययः। कार्यातिपातैति यस्यागच्छता शरतर कार्यहानिः सः व्यसन दष्टवियोगादि- दुःखवान्‌ दनद्ान्ताकुलग्रब्दस्य प्रत्येकं aan नृपकायांसक्तः SOUTH: | मन्तो मादकद्रयेण उन्मत्तः उन्प्रादेन पञ्चविघेन वातपिन्सषेश्रसन्निपातयदहसमवेनोपद्ष्टः | TAM सव॑दा ऽवधान- चनः Sal विपदादिना Aiea: |

< @tut afatuar न्‌ दौनेति नायां स्वजन- शोष्यामिति यावत्‌। सर्वेति | ब्राह्मणौम्‌ तज हेतुमाह ता इति। ताः रौनपच्लादयः न्नातिखरामिका caret

१९० एवं ature निषिद्धे प्रतिमषवमाइ तदध मेति | तस्या wit तादृशं aged तद्यासामस्तौति इनिः *एकदेग्ोतिवस्मयोगः | afc व्यभिषाररताः | गणिकाः ae: | निष्कला SAGA: |

१९ एतत्मसक्ादकल्पाद्याह्ाने पूवेनिषिद्धेऽपि प्रतिप्रसवमा कालमिति | aa परकारद्यं शनेर्यानेरिति।

१२ एतप्मसङ्गादादह | ज्ञात्वेति चुद्रकार्थैषु तथा नेत्या गुविति | वेषमाहाक्यान्तचापि विशेषमाद अकोपेति ` * ag कामंधारयान्मत्व्थौयो बड्धत्रौ द्द खेत्तदर्थप्रति परत्तिकर इति निषेधात्कथमच कर्मधारयादिनिपत्यय इव्या्द्धाह रकदेग्रौति `

SUMMIT रकदेशौत्यादिभाव्यादुदाहसरणेष कर्मधासयादपि तदशनात्‌ चसप्राणिनो यसय पूर्वौ क्तवचनस्य क्राचिकलत्वमिति भावः | `

श्लो. ५। ` सापवाद esa | ९७.

९३ "त्यादीष्यादिपदाद्भेवाह श्रासेषेति | निरोधे- aa: श्रासेधयेदिति | विवादार्थौ वादौ श्राष्डामद ग्रेनप्येनां तादृशं प्रत्यथिनं गिरोधयेदित्यथेः | |

९४ तच्चाठुविध्यमाद स्थानेति रतः ्रायेधः। ( वददिष- यत्यान्तत्छतलम्‌ एवमयेऽपि) श्रये say aa दति we aay इति sat ्रस्मात्रदेशान्न गन्तयमिति Waray: | श्रासन्ध्यं गन्तयमिति कालासेधः। देशान्तरं प्रति गन्तव्यमिति प्रवासासेधः। set arc awe दतिः कर्मासेधः | श्रासिद्धः निरुद्धः . तम्‌ wee विनेयः श्चिणौयः। अन्यथा कुवेन्निति श्रनासेधकाले आसेधः कुवन्नासेधकतां ` दण्डो भवेदिव्यथः यद्वा wage श्रासिद्धं तं खोभादिना मुश्श्नित्याद्यथेः |

१४५ नासिद्धस्तं विषह्य दिद्यस्य प्रतिप्रसवमाह | नदति नटोषन्तारादिनिमित्तचलुष्टयम्‌ तद तिक्रमणे दोषाभावमन्यजा- are) निवेष्टुकाम इति | weet गन्तृकामः विवाहा- qqaa ` इति यावत्‌ यियश्षुषष्टुमिष्डुः तत्कालं शिष्यकाले | आयुधौयाः श्रायुधनो विनो योद्धारः विग्रहे ama | निवं्ुकामादयोऽपि तदु क्क्षनेनापराधिनो Fee सा मान्यनिरोधखातत्वादाह | राजेति | - ९६। ननु येषामकच्यादौनां गरनेयानेरपि श्रागभनं Tae त्र कि

^ डल्यादय्थसिदनिद्वव्यटदिपदग्रद्यमिदय्धः। 3

१८ अवैदितस्यार्धस्य संवत्सरादिषिशि्टतवेन WES: | वय. अ.२।

कायेमत राइ HHT इति | ते एुषादवः। नियोगक्टत्‌ wrath! एतदन्यः पराथवादौ व्यवहारेषु fig विविधं विगरेषेण वा ब्रुवन्‌ दण्ड्य इत्यथः

१। अर्थगश्ब्दस्याभिषेयपरतनिराखदारा भयोजनगपरत्वमार porn इति गतनिष्टालभमथेमार पुवंमावेदनेति किया कार्यम्‌ नोपस्थाता समोपे freq प्रपलायौँ प्रपलायनं प्रपलायः सो ऽखास्तोति Wares | स्मृत तोति, वचनादिति we: इतिशब्दो Saal वा। war खेतेरित्ययेः

२। पूवांवतारितेतदचनोन्तराद्धंमेव शङ्ान्तरनिरासपरमित्था- श्येन wee! श्ावेदनेति। warm: सवत्सरेति | तदर्धशब्दायैः पक्षेति | श्रह्हणसुपलचणमित्याश तिथौति प्रतिपदादिरित्यथः | श्रदःपदाथा दिनेति | तु राचिरित्यथंः। नाचः Waa प्ररतलादाहइ | श्रथोति | वेलेति | fea- waste प्रातरादिमृहवत्तरूपो वा कालविशेष इत्यथैः

२। क्षमेति | प्रत्यधि विषये श्रासेधाद्यकरणं छमा सहिष्णता तजर थानि लिङ्गानि कारण्णनि बाद्यजडलादौनौत्यथैः |

४। तच मानमा यथोक्कमिति | तथोक्रमिति पाठान्तरम्‌! ,

नार देनेत्ययेः | अथं वत्‌ प्रयोजनवत्‌ | धमसंयं धर्मा शणः |

अक्याचरलम्धूताथेव्नादिकसतेन सेयुक्रम्‌ परिपूशोमध्याहारान- पेषम्‌ अ्रनाकुलमसन्दिग्धाचरम्‌ साध्यवत्‌ सिषाधयि- पितांसहितम्‌ | वाचकपदं awaits: गौणएलाचफिकादिपद- रहितम्‌ | प्ररुतार्थानुबन्धि पूवविदितार्याुरोधि | afar

‘Wit. पमलंखेऽर्थवत्वादयो गुशाः। re

wtaufagagfaray | siffag पुरराद्रा्विरशद्धं पूर्वापरा- faxg प्रत्यच्ादिप्रमाणाविष्द्धं व्यावहारिकधर्माविरद्ध 4.1 निश्चितं श्र्थामरसंश्यरडहितम्‌ |) BTN साधनारेम्‌ 1 fad अगतिविखतम्‌ निखिलाथैम्‌ भ्रनवधेधितवक्रम्‌ | देश्कालाविरोधि मध्यदे भौयक्रसुकचेने ग्रत्कालोनायफलसदसं मदोयमपडइत मित्येवमा दिश्यन्यम्‌ | वत्यादयेकपदम्‌ | प्रदे ्रपदाक- TRINA | अहः प्रतिपदादिर्वारो दिनं वेला प्रतरादि- बहत्तेरूपा देशो मध्यदेभ्रादिः। प्रदेशः Fre: खल- fave: erate एकं पदम्‌ वयःशब्दान्तदन्दस्य दतौया- AIT: ।. स्थानं वाराण्खादि। आवसथो ग्रामादिः शटा दिरूपस्छलविपेवो ai साध्यास विवादाखदोग्तवयस्तनाम जातिः ब्राह्मणएलारिः | श्राकारो गवाश्वादिगतो वणं दिविग्रेषः WEST: संस्यान विशेष वयः गवादिवंयःपरिमणं बाष्याद्य- वद्याविशरवः। साध्यप्रमाणसंख्यावत्‌ , WAT! साध्यस्य प्रमाणं केजादेर्गिवर्तनादिकम्‌ संख्या रूपकादौनाम्‌ | ऋआत्मप्रत्य्धि- aera स्पष्टम्‌ परेति प्राम्बत्‌ ¦ परः प्रतिवादो श्रात्मा prev तथो पूर्वजाः पिजादयस्ते wants राजानो षां नामभिशिलितम्‌। छषमालिङ्गात्मपौडावत्‌ wafagria यास्यातानि श्रात्मपौडा Sad तदत्‌ कथि- तेति, प्रतिशादिना ऽधिगन्ता श्राहर्ता ` दात दायकाः, कथितौ wrecerant सिन्वचने तत्‌ कथितप्र्यधिंसम्बन्धकमिति तरा एतादृशं यद्रे कथ्यते तदिल्याद्ययंः |

Re सवत्सरादिखेखस्य waz | वथ, श. २।

भाषापदायमाइ। भाषाप्रतौति | उकराङ्तात्प्थमा३। आवेदनेति | माजपदेन व्षादियवच्छेदः श्रत एवाह समेति। एएतद्मवखामार संवत्सरेत्यादिना | saree विशरेषणमित्यथः | श्राधाविति। तच पूर्वलादिश्ानाय तदावश्व- कलमिति भावः इदमग्र श्णुटौभविव्यत्यसाधारण्व्यवषारमाटका- भकरण्ठे अन्यापि तस्य फलमाह | TATE UTA | उपयुश्चते TINA: | TATA WW! वत्सरान्तरे sa | इति एवमथम्‌ रवं संवल्छर विगरेषएवत्‌ |

पुनस तचैव वाराणखादामेव निविष्टः निष्यादितः, संन्ना शेति श्रधिप्र्यर्धिनोरेवेति भावः श्रयिवसतोत्यभि- वासः बाङलकात्कतेरि घञ्‌ wie वा अधिः समौपे were! समौपेति तजनामान्तरमाह छृष्णभूम इति | शष्णोदक्पाणित्यशप्रतययो वन्हेः पिबिति SHASTA | Fare | | पितुरिति | एवमेव तच पटो वा। नामेव्यस्य सम्बन्धः fare: साकाङ्कुलादाह | sta | यणनुकोन्त-. नातुपयोगाग्रूतलाशाइ | नामेति | इतिरधंषमाप्तौ श्रतु- गतफलितमाह समेति निर्धारणे wet) रवम्‌ श्रवदित्या- दिना उक्रप्रकारेण |

उक्तमिति। पकामासलचणमिव्यथेः। निराबाधमिति। खपोडारहितमित्यथेः तदाह श्रस्मदिति। निष्फलत्वख एषयक्षलादाह | अभिधेयेति तज मानुषममाणसम्मवमादा- वाइ HRT | श्रयञुभवयच हेतुः भुके was एव नेति

wit. ¢ | अप्रसिदादोनां पच्चाभासत्वम्‌ | श्‌

भावः अत एव दिव्याभावमाईइ | ख्येति | विनिगमनाभावा- are पुरेति,

awe Weary दितौये मानमाइ राञ्चति | चत्यदार्थो यवहारः | WRAL अनानां नगरख्ानाम्‌ उपसंहरति | न्ये इति इतौ ति, पाम्बत्‌ याघ्येयम्‌ |

< श्रप्रसिद्धारौमां पखाभासत्वमिवानेकपदसङोणेपूवेपशस्यापि ama | श्रभेकेः पदेः सङो यः पूवेपक्ः प्रतिश्चा सा सिध्यति श्राभासद्ूपा भवतौति तदर्थ॑प्रतौतेस्तननिराकरोति | यस्वित्या- दिना तच पदशब्दः पद्यते ज्ञायते इति sare किं, aque: उत॒ चणादानादिरूपव्यवहार विषयपरः तच्च वतावदाघचे पवामाखलमिल्याइ तेति | छक्रवचने द्यैः दितौयेऽपि | तदभावमाइ ऋशादानादौति | निक्तं मयेति गरेषः। यत इति Raton बोध्यः वचनानर्थक्यपरिशराय वस्याभि- मतार्थमाइ किं त्विति | क्रियेति स्येत्यथैः एतावत्‌ mated इति शेषः

ela मानमाद यथाष्ेति | बहप्रतिन्नं बशपूवं- TERT! WA TG WERT | ATTRA THAT | तदेव दढयश्नपरंहारवयाजेनाइ तस्मादिति | were इति | उक्रवचमस्याय TG: |

१९ ययावेदितमयिनेत्यजार्थिंपदखारस्येन लभमथेमाह च्रर्थोति। अर्थिनः पुचजोऽयर्थो तत्थिताऽपर्थौ आदिश्ब्दादथि- framcatafia इत्यथः श्रत एव तेषामन्यथावादिलं face

~ पुचादौनां प्रतिवादित्वसुत्तरखरूपं | व. अ. २।

RR

We “चो HATA AAG वचमेग। A AAMT TAS काथंलान्तलं aH तज्ियक्रस्य तु तदभावात्कथं तत्वमत श्राइ नियक्तस्यापौति | तजन मानमाह अथिनेति। तखेति awa तयोरिव्यख सात्यर्यायमाह | नियुक्ति |

१९ | मूलानुक्तं विशेषमाह रतचेति | र्धिंवेदितमित्यर्थः। पाणए्डुलेखेति खडोति भाषामिद्धः श्रावापेति न्ूना- धिक्यपरिहाराय प्रेपनिष्कासनाभ्यामित्यथेः am चेतत्‌ अन्यया पचाप्रामाण्धप्रसङ्गापत्तेः तच मानमा पूर्वेति i Mra कलादिना। ततः तदनन्तरम्‌ तथा विश्रोधितं wa ऽभिलेखयेदित्यथः शोधने विग्रेषमाइ शोधनमिति | श्वेति | उम्तरेणावष्टभस्य प्रतिबद्भख्य yaace atu faa भवेदिव्ययैः। श्रोधयेदिति विधिखचितमथेमाद पुवेपश्च- fafa रागादिति प्रागकमिदम्‌ दत्य बोध्यमिति शषः

९। पत्यथिगो वचनस्य उन्तरले बौजमाइ पूर्वेति उत्तरच श्रये ` तदौयययाकयञ्चिद्वनख्यातुन्तरलाय विगरेषमाह vat चेति तदिदः ववदारविदः। सार मिल्यस्ाथो न्याय्यम्‌ तदर्था न्यायादिति | दतौयान्तानां जचाणां यद्याख्येयाथेमित्ध- जान्वधः | दुःश्िष्टेति | afwsfa waranty fae waa थुक्म्‌ श्रदुष्टमिति यावत्‌ 4 fuentes weg दुष्टमिति यावत्‌ | विभक्तिश्च समास विभक्तिषमासौ श्रषष्टौ दुष्टौ च्वौ विभङिसमासौ तौ, श्रध्याहारेण ae ada इति साध्याहारं,

wit. | Suey सदुत्तरादिभेदाः। RR

तौ तच्च तामि तैरमिधानं तेनेत्यथेः दुःचिष्टेति पाठेऽयेवम्‌ दुःचिष्टौ दुःखेन eagt at तौ ताग्धामित्य्थाद्‌ Guat पयैवसा- मात्‌ अदे शेति | श्रन्यदे गेति पाठान्तरम्‌ उन्तरपदाथेमाह ^ तत्सदुत्तरमिति |

९, प्रत्यवेति | कारणेन्तरमित्यवः | मह्यमिति धारे- रत्तमण्ठे दति wey) सत्येति सत्यलोक्तिरिव्ययंः ¦ प्रतिपत्तिरिति | प्रतिप्तिः सम्मतिपत्तिः सत्योत्तरमित्यनर्था- मरम्‌ नाहमिति वाचकः पूर्ववत्‌ एवमग्रेऽपि

₹। दितौयभेदानाइ तचेति | मिथ्येतत्‌ नादं धार- यामो्येक, नाभिजानामि नैव जानामौति दितौचम्‌। तदेति। तस्मिन्काले तस्मिन्देशे मम सान्निध्यमेव a feafafa हतोयम्‌ श्रजात इति | तत्काले ममोत्पत्तिरेव श्ितेति चतुधंम्‌। एवं प्रकारेण भिश्यो्तरं चतुर्विंधमिव्यथंः। we स्पष्टत्ात्सतिरेवोक्ना एयक सद्धोत्तेनं शतमिति बोध्यम्‌ |

४। नाम वयँ विनिगमनाविरदादाह प्रतिग्रहेणेति लेखितः wre रूपम्‌। seat afe तं पजारूढौहतमये तथा Ty तथेवाङ्गोश्तयेत्याद्यथंः। आआचारेणेति ।: wwe पराजितोऽपौत्यथः। जितः पूर्वमित्येवं वाच्य car) सः watfwreg i - " ;

५। उरत्यम्तरमाद | यद्यस्तमिति। TT एकादशानां मध्ये पञ्चाश्तमिति | शरद्ंन्नतया ऽत्यल्यत्वम्‌ | श्रत एव दगु नातिन्रिलमाइ | ददिशतमिति | समाहारे faa) पाचादि-

8 मिथोत्तरस्य भेदाः। व्य, FRI

लात्खौलाभावः | TAA कोके तवाग्ब्दयाधं अन्धत्‌ पक्चकदेशव्या पि Gee: | पच्ेकदे निरा करणसमधौ्ः। aera | श्रसम्बह्कपदकमिव्यथेः | पश्चेकदेशव्यापिनो ऽनुत्तरत्े सकखपक्ा- व्यापिनो ऽनुत्तरलमयं सिद्धभेवेत्यव्यापौत्यन्यया व्याचष्टे Sf | मध्येति | विन्ध्यरिमादलयोमे्येत्यथः। लिखिते इति | भन्त- भावितष्ययं मिदम्‌ varie अवेति ध्वनिना किमा- दिबोध्येन angefafa wet तु निराङ्णशमित्यभिमेव्यार | आकुलमिति | दुः्िष्टेति राम्बत्‌ उभयोरदाररणमाइ | fufafa | पित्वं खणामियोगस्तबत्यथेः उन्तरमाद | wet तेत्यादि इतीत्यन्तेन। sea तात्पर्थाथंमार्‌ श्वेति Delata | बडतोहिः। तथा होतग्रतवचना दित्यच दुःचिष्टः ware: | सुवर्णानामित्यज श्तं VHA MATT दत्युभयोरेक- मेवोदादरणम्‌। इतौत्यस्य -faafeafafa गेषः। शृहौतमिति। तजेति शेषः। Tes यदुत्तरं तत्‌ खाथेसिद्धये नेति. दितौ यन्नोकाथः। तथा तख सदु्तरलमेव नेति पूरवशोकंकवाक्यतेति बोध्यम्‌ | भ्रनिमतायेद्धचकतया न्यृनतेत्याद उत्तरमिति | TAMA लेख्य मित्य तथा निदेशाल्सङ्कोर्णत्तर स्यानुन्तरल- faa: aq विभि्मिंलिला we निराकरण्ेम तत्छमथ- लात्कुतो ऽदुत्तरलमत श्रा₹ अनुत्तर तवेचेति तेनेव कात्यायनेनेव। चेति। रौत्यथेः। स्यादिति सम्भावनायां लिडः वादिनोः afinafiat 1 way अन्यतरस्मिन्‌ सम्भव- तौति Ha दादौ इयोः ag? wear

wo. भि्ोत्तरादिसांकामें युगपत्तेषाममुत्तरत्वम्‌ | Rv

qe! मिथ्येति | afenfiweran) भ्र्थोति वादिदथपरलमिति gated मिश्येति | weafad, मिथ्योत्तरे दत्यथः। पुवेवादे were, वा दिनोत्धथेः। कारणे ATI Ae | faxafafa |. तथा ककमग्रक्यलाद्‌भयोर्गाथेसिद्धिरिति भावः। चार्थेति etm एवेत्थं सेकमेत्यश्य तच्रेवो दाशरण- माह ।' कारखेति। तथोभिंथः eet faa) एवेनार्थिं्यव- "छेदः प्राङःन्धायेति | सयोरक्राविव्ययेः नेदं प्र्येकपरम्‌ कारश "कारणे ufaarfea fa बिद्धलात्‌ तस्मान्तत्छांकय्थ॑पर- मेवेदम्‌ अत॒ एवं समासनिदेश्रसङ्गतिरपि इतिः प्राग्वत्‌ aaa क्रिया दइयोरिति प्राम्बदविरोधो ऽत श्रा ag चेति दितीयबङ्करे तित्यथः। भावेति | साधयितवयमेततः wage wie दिवयपरिगदः। उत्तरचयेति मिथा- कारणप्राङन्याधरूपेत्ययः | एवं चतुरिति | चथा waa gad शपकश्रतं वखाणि धान्यं गएहोतभित्यभियोगे सुवणं धारयामि , इपकश्रतं zed वश्ललाणि प्रतिग्रहेण warfa धान्यविषये पूर्वन्यायेन पराजित हति एवं भिश्याम्राडन्यायमाचसद्कर ऽपि द्र्ट्यम्‌

©) नन्व सवच क्रमेए क्रियादयस्य सुकरलात्कात्यायनोक्र- भषम्भवद््पं तत्कारणवयनमयुक्रमतस्तदा श्यमाइ एतेषां Ala | श्रविद्धरिति च्छेदः अरत एवेतत्फलितमाद | क्रमेशेति | कमेण वित्यर्थः .तज नियामकाभावादाद्‌ कऋमश्चेति | चेन प्रा्धिवा- कारेः Wea: | एवं प्रापे कविन्नियामकमाईइ यजेति | यज

4

Rq SULSSY ऋमेकोत्तरत्वे MAB | =. gy. अ. 2

faaré: उभयोरिति | मिश्याकारणशोष्तरयोरि्यैः। ceqe wee SVs | यस्य eure! तत्‌क्रियापेति | तत्साधक- कियाग्हणेनेत्य्ेः। पश्चादिति | श्र्यविषयकोन्तरषाधकक्रिय- ग्रहणेनेत्थयेः | सत्योत्तरसङरस्य पूवंमनुषन्यासे बौ जं ध्वमवन्‌ ay नियामकान्सरमाह | यथ चेति फलाभावेन पञ्ादपि तद- भावादच पूरवंमिति atm | are! सम्पति | उक्रनियामकडमे मानमाह | यथेति | उक्मित्यजरान्बयः दितौीयमाइ सतं वापौति। यद्‌ उन्तरम्‌ दितौये श्राह वेति | उत्तरे CT: | तच तदुत्तरमसद्ौणे श्ेयमित्यथः। श्ताऽन्धथेति | यतप्र्वतायेविषयकसुत्तरं भवति श्रपि तु समायेविषयक, ay चोत्तरे क्रियाफलमुभयच् भवति तत्‌। Bas Talay | न्यथा प्रकारान्तरमित्य्ेः। ARI कथयन्‌ तद्थमार | सङ्खौणमिति। Tawa wei भवतोति we इति | waft सहर व्वादनुन्तरत्भमेव सर्व॑या afaad किं तु यौगपद्येन. awa शर्या दोच्छाक्रमेण तु तत्तमेवेति प्रामुक्षमेवाइ | रोच्छिकिकम्‌- fafa | acre अ्रपे्ाक्रममिति भरष्या्पेलाक्रमकं Mama: | पु्िङ्गपाठे तत्पुरुषः। तचेति Te) तच्च aaa दितौयोदाइरणमाद तथेति तस्मिन्नेवेति | अनेन gaa यक्तं वस्त्ाणि ग्णडौतानोति Gaim एवामियोगे इत्यथैः t तानौति शेषः द्‌ास्यामोत्यस्य द्युत्तरखेति गेषः इति चोत्तरे दत्यन्यतमोत्तरेण wed तथा चाच दाश्यामोत्यन्तस सत्यो त्तरस्य यथाक्रमं मिथ्योत्तरेण कारणेन्नरेण प्राङन्यायोन्तरेणः

ie . -संकौगात्तरख क्षेिद्योगपयेऽप्य्रम्‌ | २७

WET बोध्यः Tet विषथसाग्ये hea: कमशदेषन्ये- ऽष्वधिकविषयोपादानेन प्राग्बयवहार इत्येकम्‌. तच दितोयद्याप- बादमपि प्रसङ्गासूचयन्‌ प्ररतमाइ सम्पति एतदर्थमेव

तस्धिजेवाभिथोगे ce अन्वथाऽमिथोगान्तरनेव वदेत्‌ `

मिण्यादुशरेति मिष्याचन्यतमोन्तरेत्यथेः |

८। एवं तादु्षङ्कोर्शेन्सरस्य ainda सवथा auc भरि शचित्मतिप्रसवमाह यच त्विति | ङ्धियाशिक्येति | तभ्न्धयिनेत्यषेः कथित्‌ वादौ श्रन्धः प्रतिवादो out मिदम्‌ | श्रादाबुत्तरलं बाधयति इदमिति | तावत्‌ wet: लेष्वलेयो त्रलख प्रागृालादाइ पक्षेति awe प्रतिपाद चैति नापीति | रवेनान्यव्यवच्छेदः। तथा चसासाद्ख्वम्‌ करिणं कारणमेव एकदे रख गदणस्छ साद्धवेमु पंदरति लंक्मादिति। सकारणखमिति . भ्र कारण्खयाप्राधान्य भिंण्योन्तरख्य प्राधान्य ae तदुपपादकत्वस्यापि सम्भवात्‌ चत छव तेज सहयोगे SAAT छता प्राग्‌ क्वाधकस्या जाभावमाह अअ चेति |

<. प्रतिवादिना तस्यैव छक्षमभिेत्य प्रधानन्यायादरेष wea! नम्विति। परिहरति नेति तज tame तस्येति | वचनतः | त्खयुक्या wet | कारणे इति एव चनुत्- रत्मेवेतश्ेति भावः भतु gat प्राग दाइतं प्रसिङ्क- भयेति तदभावोक्तिरवंका ऽत श्राह प्रसिद्धेति | सत्यं eet प्रतिदकतं aid रूपे ्रागृक्रेऽपौत्ययेः |. प्रतिश्ातार्थेकेति | यदण्-

2 aes om ॥) _

a Licks amatealmat कनि क्न ) 0,

ac ARGU योमपद्येगोत्तरलस्य WAAL | श्य. अ. २।

सेत्यर्थः नैकेति | साधारण्ण्टोत्यथः। उटाहरणेनेदं विश्रदयति। यथेति प्ररूतोदेति | wg fare anchiaarenfe- व्यादिपूेक इत्यथः | टे शस्येति। aerdtee: चित्तथा पाः एव विशेष इति | भिश्यासदयरितरूपतवं aes समानमिति भावः। एवसिद्धेऽधं मानमाह | Vata वापौति अनेन frataafa कारणमेव यराद्यमिति श्रितम्‌ प्रतिप्रसवाम्तरमाह। यजेति | at चेत्यथेः vague साधिते तजशिर्वाहोपाचमाह | HATTA | मिथ्याक्ियेत्थस्य wg भिश्याविषयला दाह | प्रतौति | एतेन वादिव्यवच्छेदः। अत wae) प्राडन्यायेति मन्दं कारणप्राङन्यायसंकरविषयतथा पवे्क्रमिति कथम प्रहत्तिरत श्राह qafa | saufane: तथा satwer- wa, aH पद्व्यापिलादिति wae | यदा BES प्राङ्न्यायस्याभावादचने क्रियाबोधके satay कलयापि क्रियाया श्रलाभेन खवेस्यापि प्राड न्याथस्याठुत्तरलमरसङ्गो, AYN तच तश्य गणनात्‌ तथा यथा तयोस्त तख प्रटृत्तिषया कारणस्य भिश्यासषचरितरूपत्वात्‌ सां कथ vafafcia भावः | शद्पादन्याये तु वच्यति arene प्राडन्यायविधिसिद्मौ- त्विति.।

१०। ननु पचनिराकरणएषमथेस्ेवोन्तरतवे सप्रतिपन्तरदुन्तरत्व- प्सङ्गरतदभावादत we! संप्रतिपक्षरपोति | उन्रषमित्ध- were: नो पेति | प्र्ययिनेति भावः एवं ay प्रतिवादिन एककियाश्यशे उक्ता vee क्ियादयपरसंगो यच प्रारकरूज्

श्लो. 9 . परतिश्चाता्थं प्रमाणोपन्यासः। ` २९

fang प्रतिपादयम्पतिप्रश्वान्तरमाह | यदा त्विति। यदा ऽपौत्यथेः तच्च तचापि। यथारुचोति | तस्यव तयोमध्ये ऽन्य- तरक्रियेत्यथे GRITTY युगपदनुत्तरत्वमुक्रमुपसहरति | fa कचिदिति | |

९९। निवेशिते afer. प्रा्कवयुत्पत्तराद साध्य- बानिति | खष्टायमाईइ प्रतौति भावेऽर्थासङ्गतेरिष्टाणिद्धि- शार साध्यतदति। प्रमाण लिखितादि aay gis want faces wafa | “sitar सद्यः मिथा- faa मूलारूढलं दूवयन्ञधिंशब्दस्याज यो गिकलं a योगङ्ढलमिति खचनद्ारा न्यनत्वाभावं प्रतिपादयति Salta | वत्तेमानयत्तो पाधिकाश्तुबायत्पत्तराद अस्तौति श्मपिः gasqea तेन साम्यम्‌ तुवलक्षणे निदियेत्‌ लेखयेत्‌ श्यर्थान्तर्भावः प्राम्बत्‌ भन्यदप्याह तथेति | शर्थोवेति | श्राकेपादेव कटठेलाभे तदुक्रिनियमायंति भावः | श्चतञ्चेति | गम्यते इत्यचान्यः | तावतैव तादृ MATT AAS अच स्वे मानमाह रतदेवेति | भर्योत्यादिमो कमेवेव्यथेः | प्राडन्यायेति | श्रष्याश्य उकः वादौ. तु क्रियां निदिेत्‌ | सा क्रिया i oll

* कालविलम्बभमपि इति मिताच्चरास्धेन अपिशब्देन सद्य द्र्य बोध्यः उत्तराभिधाने काणविकम्बनमङगोहृतं तु शौ घ्रसुत्तसदानस्यान- क्ररोङार इति भावः।

Re TCL aguiv कचिद्‌ दिप्वच। ye SWRI

१। ततः MAAC प्रकारान्तरे इत्यस्य व्याख्या साधनासिङ्लाविति | wa अवहारतदिषयादिकथयनप्रकारेण | SY खरूपम्‌ व्यव हारपदाथं wae व्यवेति। सोऽय व्यवहारोऽयम्‌ | इत्थम्‌ उक्प्रकारेण | भुख्थपादलाखभ्भवाद्‌ाह | चतुर गेति | खूणदानादिषरु वच्छमाणेषु. विषये |

२। तननेवांध्ाम्‌ विभज्य gna तेति तेषां we cee: विप्रतिपल्लिषु उतौषु we सा्वेजिकल मित्याह | संप्रतौति। अनिद इतमार भाषार्थेति चः eee इत्ययं योज्यः तेन क्रियापादसमुश्वयः। war चो हेतुखसुखये एष Baa: | श्चणोऽपि afenu we wi wa ware faarerrafe |

` १। at निराचष्टे। owrtfa अर्धिप्रत्य्थिनोः, wa दति te. प्रत्थेति भनःपुन्येन विचारणस्ेत्य्थः we व्धेभिचरितत्ादाद - व्यवेति | श्र्यादिषम्बन्मिन uz तत्वमिति भविः ट|. |

इति साधारेणव्यवदारिमाद्का |

` प्रते योगरूढ्त्मर्थान्तरनिरासाथाह। अभियुज्यते इति | दोषविषयौ क्रिथते दत्य: | थेनेति शेषः करणे घञः शौशभ्यात्‌ यथार्थं वा wat दति तदर्थात्‌ शनमित्य् कयितानु- कथगस्ेना न्धारै श्रविषयच्वारैनादेशः। श्रपराधेनेष्यस्य विग्रेषपर- ara wet यद्यपौति | स्यं weld प्रतिदन्तं रेति. कार- WATS अनेन दन्तं fed मया पुनर्द॑न्तमिल्येवं प्रत्यभियोगशूपतल-

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we QAAUCAYIYCASAT | Re

fers: विषयमिति | तथा चाभिधोमनिवारकमेव safe att guica a तदनिवारकम्‌ ser सत्यं fireitur- मित्यादिना शातुरविष्यकथनद्येव। सङ्गतलापत्तरेतज्जिषेधवेधश्या पर्तेख | mare अत इति | अनुपमदनेति करणे शट्‌ निषेष दूति मेनं sepitfa निषेध card: तचेव सन्भवाद्‌ाद दूदमिति | |

२। गते कमणि निष्ठायां afsent जाते तखेषटलेमासङ्गति प्रिश्रति। अअनिस्तौखंति भावनि्ाग्लाग्छवर्थोयोऽजिति भावः श्रन्येनेत्यद्य पूर्वाभिथोगे सम्बन्धात्‌ योग्यतया भरेव माइ MSA | प्रतीत्य सम्बन्भायोम्यलानमपदायाइ | नाभौति |

gl गोक्मित्याुक्रिरप्यानम्तर्यादधिनं प्रत्येषेत्छाइ किं देति अहृनिशरष्दः खभावाथेको Tan ्रतिरित्यादौ दृष्टः ्रङ्धितु- मेतन्तात्पथां्॑माइ एतदिति तथेवेति अन्वया न्यवा- afeaa भङ्गग्रसक्गादिति भावः। इदं प्रतिपादितमधसात्‌ | च्पिः aaa equa) एवमग्रेऽपि चत एवाह नस्विति तदेबेति | तथा वस्वन्तरकथननिडत्तिस्तेन कियते रकस्मि- रपि पदे ङणादाना दिव्यवरार विषये दत्यथेः। एवव्यवच्छेधमेवाइ न्‌ ब््वन्तरमिति | तदेवोदारणकथनेन विश्दयति। यथेति t यद्यपि शणादामे रूपकमेव व्यवहार विषथो भवति तयापि SIRNA suai वस्वन्तरोपाटाममिति afaiuee faut इति aa: दतेन were विषय्धेकलवादयुक्रमिद-

RR अभमियो्रविचारः। व्य. श्ल. २।

मित्यपास्तम्‌ प्रागुक्तं दाय. सारयति तथा सतोति। पदान्तरागमेति | विषयाम्तर प्र्यगमनेऽपौत्यरथंः we प्रकरणे पदग्रब्टो विषयवाचौ। इत्यनेन इत्यनेन तु यथेति we पक शतद् पवस्त॒न एकतेऽपि खएादामापररणरूपयोग्यव शारःविषय- योभिंशलेन तद्भमनममेन नोक्रमित्यनेन निषिध्यते इत्यर्थः ' उक्र सेव स्यष्टाथेमुपसंहरति तवेति | म्रत्य्धिन carded: वेय THE तु "चयावेदितं, "नोक विग्रहृति'मिन्येतत्खार श्यात्‌ |

gang मानस्योकषलात्‌ fena तदाइ wazafa: | ितोयमुक्रमेवेत्यथेः। qedafa | पदान्तरं प्रति गमनाद्‌ वस्खन्तरगमनाच्ेत्थेः। वाति पाठान्तरम्‌ aw साधार्धमस्व बोध्यम्‌ We तु प्रटतपरलमेवेति तच्वम्‌ हौनवादी eq: श्या दि्युक् सविश्षं वि्रयति wtafa | दण्ड्य एवेत्यथः। श्रत way! प्रेति | व्दनखक्रमेणार प्रत्येति सिद्धासिङ्ञीति। होनवादिने ्रशतार्थासिद्धिरतथावे तसिद्धिरिव्यथेः। रन मान- माह अत wafa | मूलृदिति शेषः weraisd एव ee: | दटमपिं षवचिकमित्याह शतञ्च ति | हौनवारी दण्डय एव, प्रहृताथाद्धौयते इ्येतदिव्यथेः। ्रर्थेति उक्रविषयव्यवहारे uaa: | Hare त्विति | वाकृपारूषदण्डपारुगया दिव्यवहारे tae श्रपिना qwagea: तथा चैवं विधे aged यव- हारहानिदष्डखेति. भावः। SAE. wea -ऽभासादा₹ | अस्था इति भरष॑पदयाव्येमाद। मन्धुङ्तेषिति अन्यत्र त्य स्यष्टवादेवाह अ्रपौति। नावसौदतौत्यस यास्य

लो, १० | areal प्र्यभिबोगविधिः। BR

पराजयते इति agren प्रज्ञतादिति | उन्तरादं- स्याखवद्धूवं grand परिहरति अथोटेति सामान्योक्षौः विग्ेषोक्तिदुं्टा्न इति भावः as योजयति प्रमेति | शाष्व- दायो द्ण्डोऽपौति | उदाइरलारेवाइ यथेति ओेष- पूरणममयोरिति भावः | श्रत एक वाकुङ्कले इति सप्तम्यन्तच्छेदो उतौयान्त इति बोध्यम्‌ wa एव वेपरौक्यशद्धा नेति गूढा कूतम्‌ एवं शब्दमाद्याथेमुक्ता दितौयमयंपदध्वनितमाह | sata | waafa | ठतौया कं, प्राग्बत्सप्तम्यन्तम्‌ | खूचित- ष्टोदाररणमाइ | यथाऽहमिति

१। ब्गतिमार भोति इत्यस्य canes तथा. प्रह्यथिं विषये एवायमपौति wa: निमित्तेति | बहप्रौहिः। aa साहसादावपि प्रत्यभियो गासम्भवे ऽभियुक्स्य कथं तत्करणएविधिरत श्राह प्रत्यभौति | तथा च. तदसम्भवे नेव gaifefa सम्मवा- भिप्रायकमेवेतद वनमिति भावः, खाभोति। सयमभियुक् इल्यादिः। तथा चेद साहसादावेवेति, . तद न्यविषयकं तदिति भावः। -. २। -नन्वेवंविधस्छले ्रत्यभियोगः . किमुत्तरं wera: उत प्रतिज्ान्तरं सत्‌। नाद्यः। पूवंपचनिराकरण्टणसमथेतवेना सु ्तरल्ात्‌ | मागधः | श्रमियोग एका प्रतिश्ना प्रत्यमियोगश्चान्या ।.. ततश्च खद त्तरे यथा युगपद्चावहारासम्भवादनुत्तरलमेवं प्रतिन्नान्तरेऽपि लद सम्भवस्य quar) safamed प्रत्यभियो विधेरेव .वेखश्यात्‌। वं व्दनार्थो cay दत्फप्रयेन शङ्ते। नन्वचापौति | दितौयपक्माथित्य समाधत्ते arses | aaraterecware.

9

Re ufayzuwafafu: | ख्य. श, २।

अनेनेति | दण्डेति | प्रत्यभिवोक्षरिति भोवः ! wag मानमाह यथाहेति | Maa कायेन वाचा वा Se कुर्यात्‌ नियतं मिखथेन। नयो दण्डः दितौयोदाहरणमाइ यदा पुनरिति यदा लित्ययेः। पारुष्ये इति वाग्दष्छ- व्यादिः। अरत एव सामान्योक्रिः | शद्रमेव AW कलपदेनोक्कम्‌ | एवं रेतदे कवाक्यतया ala एवाश्यस्तदेतद भिप्रत्य प्राग कमु पसंह- रति। vafata | उक्रप्रकारदयनेन्यथंः | श्वं aatfa | पाग- a | उक्रवचनस्येवंतात्प्यकले खतोति तदर्थः।

३। श्व्यवहितसङ्गत्यभावादाह Salta | गेषं विररेषाभावा- are! सर्वेधि ति | कार्वस्य निणंय दत्य्यऽर्यासङ्गतेरार। निशंय स्येति | तस्मिन्‌ समथ इति दिविधदाने समं card: मालजाभिन्‌ इति भाषाप्रषिद्धाऽयम्‌ अनेनाताङृशस्यातत्वसुक्कम्‌ | प्रतिग्रशन्दो योगरूढ दत्याह प्रतौति प्रति; प्रतिनिष्यधेक cam) तददिति cease) ससभ्येनेति रषोऽव ` ग्राह्यपदान्ययानुपपन्तः wan विगेषदयमा₹्‌ तस्येति | मरतिः मुव इत्यथः | GATT मानमाह | Tae ia | sata | पचा- न्तरे तज समर्थं दृत्यर्थमाद कार्येति वादिन दति इयो- रेक शेषः जा तावां वा एकवचनम्‌ | तेन वादिलेनार्चिप्रत्यर्थिमोः समासेन ग्रहणम्‌ एवमगेऽपि ररित; waa इदमुपलक्षणं तस्यापि दति केचित्‌ वादिवसुभयोरपोति प्रत्येकामिप्रायभेकः- वचनसित्यपरे | Gare Saw aegis: चेन aay दति wey eel

Wt. १९। wet मि ्ाऽभियोगे सदणधबदागम्‌ | RL

01 निशयका्येसुक्रूपं que षमलधति। श्रथति | किमिति तच्व्यादिः। योग्यतयापथ्यितलाश्ाद। aaa इति तत्सममिति | प्रङतधनसममपसापनमिमिन्तकरण्ड- मित्यचैः। आत इतोति | इति wa) श्रमियोगादिल्यज mare घनित्याइ | भियुक्तेति। वहेदित्यस्याधः दद्यादिति योग्यतथा ACATFUTE | रान्न इति | faaracfara उक्र. न्ायमन्ययोर्तिदिश्ति प्राङन्याये इति तन्मकारमाह TATA वेति | ahaa se ya पराजित इति भराडन्यायोन्तरे zea प्रतिदन्तमिति कारणोन्तरे दन्ते yaad प्रतिदानं प्रतिश्चावाद्येवापलपतोति एवापलापवादीत्यथः। भावित इति | पराजयशूपप्राङन्यायस्छ प्रतिदानस्य साधनादङ्गोकारितो वादौत्यथेः। BE दण्डमेव wae देयस्याभावात्‌ | मिथ्या- भियोगति | मिथावादौव्यथैः। इति हतौ, भिथ्यावा दिवेने- a दिगुणमिति प्रटतधनेत्यादिः। धनं दण्डूपमव- freq) adie? तु नैवमतिदे्र इत्याद संप्रेति | दण्डा- भावेति जिद्धवाभावात्‌। acta तु देवलेनाग्यपगतमेवेति भावः |

२। विशेषमाह एतच्च ति | fae’ भावितो दचादित्येत- दित्ययेः। पदान्तराणि दिविधानि सधनानि अ्रधनानि चं। तच सधनेव्वाह पदान्तेति | खधनेवित्यथैः। तच तेति | एवं विभिष्य विधानारेतश्य सामान्यस्य aa बाधादग्रहन्तिरिवि ara: | SUMAN! Byala | वाग्दण्डपारव्यादिव्यवद्ारषु प्रतधनसम-

faa इति वचनस्य सर्वद्यवद्ारविषयत्वोपपादगम्‌ | य. ख..२।

aware तद्धिगणदानस् चासम्भवाञ्चेत्यथेः | उपसंहरति सर्वेति | श्रत इत्यादिः यदा WAS gare स्वेति | मनुक्रद ण्डस्य छछणादाभमाचविषयलमपि तचापि “ay ऽधम- faa” vasa विश्य दण्डस्य वद्छयमाएलात्‌ अन्यया तख वेथथ्यापत्तेः | वचनदयप्रामाण्धादिकण्पाङ्गोकारे तु तदत्छवविषयता ऽपि wa स्यादितोदं arene we Taft | तत्‌ प्रकरप्ण्रतिपन्नाथंसाधगविषयम्‌, ददं ठु तदभावादप्रति- पनल्लायंसाधन विषयमिति कोऽपि दोष coe ` २। नलु श्रन्यच दण्डस्याभिधानेऽपि दवष्छव्यानमिहितलादुन्त- रार्धोक्तस्य विधाने सम्भवतोल्येत्रटन्तेरावश्यकतया पू्वार्धस्यानुवाद- परतया एकवाक्यतया योजनसम्भवादुणदानमाचविषयतया व्यव- स्थापनमयुक्रमत श्राइ। यद्वेति शब्दमर्थादया तथा प्रतौल्यभावा- दाद | कथमिति श्रत एव सामान्यशब्देन ares) ्रभियोग- स्येति। तत्सममिति | यवहारतुल्मित्यर्थः। थच as aay यो उक्तः arent भवति weg विरडूलाददिसदृग्र इति भाव- We! तच तच प्रतौति | घनमित्ययिमेषणस्यान्वथः शः कृतो लम दत्यत आह चश्ब्द्‌ इति | मृलवचनस्थ इत्यथैः | रच प्च Wale wea aT सत्वेन arcana समुचंथाभावान्तदयकलत्वासमभवेन निपातानामनेकायेलात्‌ auaqa- मिति भावः | ४। योग्यतया धनग्रन्दाथेमाद दण्डमिति | इत्यसुवाद्‌ इति श्एङ्गग्राहिकया तद्वहारे दण्डस्य विशिष्य विहितेन

इलो. UV) सा सादौ सद्यं खवोत्तस्दानमन्यच कालप्रतौ च्तणं ge

प्राप्नलाडिष्यसंभवेन पूर्वार्धेन तस्य eae सामान्येनानुवाद इत्यथः | Radi तु we न, ततरवोत्तरार्ध॑न विशेषस्ड विधोयमानलादिति भवः) तदेव ata अथेति | तत्छममित्ययानुषङ्गणासु- बादमाह प्रतौति mace दण्डमिति विधेयमाइ हिगशत्रिति। दिगणदण्डस्याप्राप्ततवादिति भावः। पूठेवद्‌ाह | Sarat ११

arm ॒प्रतिन्नासाघधनं *तच्ल्यादिना वक्रमयहितसङ्गत्य- भावाद्‌ व्यवहितसङ्गतिमाद ततो ऽथौति। सेयपाडग्ययोगेवादेख SX शला ` पुनः. साहसेन समहारदन्दः श्रत एवायंमाचमाद | सादइसमित्यादि | भिषेति। awit: | arate वाग्द- शडेति। प्रागलुक्रला दा वश्येति। तदभावेऽन्यच् बाधाभावादाह। दोग्धौति | विनिगमनाविरदादाद प्राणति | प्रागुक्रनिमि- न्ान्यनिमिन्तकोऽच AeA यादयः . wa एव सामान्येनाइ , areata विनिगमकाभावादार कुलेति उभयचर fated are चारि जति विर्द्धभाषणं नाथे care उत्तरमिति: maze! अर्थोति wade) सूत इत्यस्यार्थः TH ति | भतोऽन्ययेत्नेन नार दौयेनोक्त दत्यथेः १२ १। श्रयाप्मपयुक्रमाद | दृष्टेति Sra दिपसङ्गात्यूवेचा- , उभेऽअतरणे उक्र amg: | परिक ्तिंत इत्यन्तेनेति . भावः विगरेषजिन्ञासायाः सामान्यज्चानपूरवकलात्पाढक्रमादार्थक्रमो

तच्च हिषिधं मानुषं देविक tara अस्िन्नेव प्रकरण दाविंरे ea cat |

१८ दुल्तणानि ` व. ख. २।

वलौयानिति म्यायेन व्यतृक्रमेण anes मनो वागिति ate मनसेति ओओौतक्रमेण ममसः पूवनिपातः सवे वाक्यमिति न्याये- गोक्रिश्ामर्थेन we सखभावादेषेति | दोषखभावादेवेत्यर्थः। तेनाज्मख्भावनिरासः। तद्यावत्येमाश भयादौीति। आदिना क्रोधा दिपरि यदहः ara क्रिज्रित्यार्‌ विकारमिति। feeat a विवकित zane याति गच्छतौति *गच्छति यातौत्य्थः | अत एव दत्यक्रम्‌ तस्यायेमाद असाविति वा चार्थं तया TBR ऽयवेत्यन्वयेनाथसेत्यर्यो बोध्यः एकदे श्रषंयदाय तन्तात्यर्थायेमाद कचिदिति मनु मनोवाक्षायकमेभि- रिव्यपदे शादे श्रान्तरमित्यादिना बयत्कमेण कर्मादिषिकारप्रदश्न- मयुक्रम्‌ सान्निध्यात्‌ बयुत्कमेणेवाग्वयो ऽभिमतः एतदर्थमेव तयोक्कभिति ae तथौष्टावित्यनेन कायविकारेण व्यवहित ल्ान्तद्ेवान्ते GM: | अत एव Bena यथावख्ितमेव व्याश्यात- fafa Gai तदुदेश्करमेणोत्तरोन्तर ष्य पूरेपूवंवाच्यलेनाग्धस्याल्यन्त- waar स्यलतमप्रक्रमेण विकारदशरेने तात्पर्यात्‌ एव afa तथौषटा विल्यष्यापि fawafa Gata aaa, wa भेदेन agfeg तदिकारस्य wafada प्राधान्यद्चमायति बोध्यम्‌ | पयन्तौ weit) योग्यतया sre fsrafa | तौति उमय- frat: | श्रत एव शमुच्चायकथो मूले एवमयेऽपि बोध्यम्‌ दतोयश्चः परीति are ate: | श्रविनिगमकलादाद क्रष्णेति।

* oth faafa गच्छदिति awa लिखथाविवच्तायां तस्य गच्छ

तौति पुवं विवर्णं sew ततः यातौति प्रद्यनोयमिति ara: | / i

|

wt) व्रधथिनः पलायनादौ प्रकता्चदानिदंख्ख | te

एतौत्यस्य व्याख्या गच्छतो ति aera त्रास्तवेशोषणासम्भवादाह | सगह्देति | रत एव wean ares व्यत्स्तमिति पुवेपरेति श्दघुपलचणं देधादिविरद्ध्यापि शअरषषदुतते तथालनिराखायाह | बह्धिति | भाषते भाषते wi वाकूचलु- रिति समाहारदन्दः। तदयंमाह परोक्तामिति | पूजाप्रकार- भेदमाह प्रतिवचनेत्यादि | wa खतो विरूतिलाभावदाह विरूतेलिङ्गमिति | तथा चारोपितं तत्वमिति प्रागुक्रासक्घतिः। उक्कहेतो रेवान्ते BIS | तथेति | वेव्ादि वदित्यथः। रस्य वमस्य तात्पर्यां प्रतिपादयन्‌ विगरेषमाद तच्चेति | खाभाविकेति t wana: विवेकस्य acai निमित्तमिति qeaite: एवमग्रेऽपि | wa हेतुं quar सदृष्टान्तमिद्‌ fane- यति Wtf लिङ्गात्‌ यक्किञ्चिदिकारात्‌। oti तथा तल्छंभावनामाचप्रतिपादने AGUAS वचनस्य, प्रागुक्त वच्छयमाणदण्डादिप्रतिपादने | acter शईदृश्रस्थलेऽपि तथा प्रसङ्गो san श्यादिति तज्निवारणतात््रयेकमिद्‌ं वचनम्‌ एवं दुष्टः दंभावितदोष Uta आाल्येवभिति बोध्यम्‌ ॥१३॥ १४॥१५॥

१। श्रत एवाये पुमः पराम्बदेव सविग्रेषमुक्रमित्याद्‌। किं चेति) साधकस्य सन्दे हाभावाद्ययाश्चतायानुपयत्तेः प्रपन्ञ्धले दोषाभावस्य “wa ae faery वच्छमाणलान्तात्पर्यायमाद) अधम- शेति are wre व्याख्या साधनेति | Genser: | अत॒ एव ay smear! शओआ्आसेधादौति शआरादयषादोक्रं पराखङ्गिकं तु प्रहतसक्गतमिति चयि भवतोति wee भेदेन

ee ` पुवैवादिनः साच्तिणः weer: | व्य, ख. २।

धयास्यायायिमं इयं प्रहतसङ्गतं सडह ares | यश्चेत्यादि | ्रपरति- पल्लादौ gunman: संप्रतोति। wifafa we: | उभयचर facuifaage अद पलायते इति | एवमण्ऽपि। अ्रमियोगं विना श्राह्णानासंभवादाइ। अभियुक्तं इति अन्यच दोषाभावादाह | सदसौति | तुयेपादस्य Vay सम्बन्ध TATE सोऽपौति। दिविधोऽपौत्यथैः। श्रत एवाह ङ्त इति | उभयनेति wa! सम्बध्यते इति | एते जयो Fae दुष्टा अपितु प्ररृतार्यादपि thar दण्ड्याखेति षमुदायायंः। २। ददमेव श्राद्यानुरोधेनायेऽपि उभयोक्रिख्ञार स्येन. विश्रदट-

यति श्रभौति | afe रौनलमुकद्‌ टवरूपं भवेत्तरिं acqeraa fag रौनपदोक्रिरनयिका ऽतस्तददर्थाद्धोमलपरिन्नानेत्ययेः। माने- त्यनेन दण्डव्यदच्छेदः | एवेन दुष्टवव्यवच्छेदः | तथा संभवत्येक - SG वेखययस्यान्या खलात्‌ तद्‌ त्तरमस्य कथनेन दुषटस्यापि श्रतुषक्गा- warty aqeat बोध्यः -॥ १६ `

उत्तर सङ्गति व्यवहितेन कथयन्‌ तदवतरणमाद अथेति | fate: प्त्यर्योति भमनिरासाया भाषेति। तयोरयं गपत्ंभव- मुपपादयति। agente प्रात्तावित्यन्तन देशन्तर- fafa कायवशात्‌ सकुटम्ब इत्यादिः, यगपदिति | देववश्रात्‌ |. धमति | धमस्थानमित्ययेः तयोमध्ये क्रियां साधनम्‌ 4

९।.षष्वन्तात्वाव विभक्रिकस्तसिरित्याह | उभयोरिति | सत्स इत्यस्य याख्या ` संभवक्छिति | सामानाधिकरण्यभमनिरासाघ

BT. १७ | क्चिदुत्तरवादिनः साचिलः Tze: | at.

रतौ कपूवकं पू्ववादिन शइ्यस्यारथान्तर मिराङ्खवेन्‌ व्याचष्टे afaw sft i a पनरिति | ताव्रताऽपि निणेयासंभवादिति भावः | योग्यं Taare: प्रष्टव्या इति | |

२। उन्तरार्धाथंमाह | यदा त्विति | way: उक्रपूववादि- fire: | श्ननेन ब्राह्मणेन Eafe | श्रनेनोत्तरे ङ्गौ त्य- निराशतल्वादिति भावः श्रनुषङ्ादिना ow! साक्ौति।

21 जोणोक्वयाख्यानान्तरं खण्डयितुसुत्कषेयति। इद्‌- मेवेति aa. दावपि भाषावादिनौ तददिषयतया खयं aa- भित्धयेः यन्त॒ उन्तरवश्रादेवायिप्रत्ययिभेदेनाबेदनक्रमेण पूर्वे वादिन उन्तरवादिनश्च afau: प्रष्टव्या इत्यस्याथे दति कथित्‌ ¦ तत्‌ खण्डयति मिथ्योत्तरे इति | मिथ्या त्रिया yan? इति TOMA ATTA त्विति | तचा्यादिव पूवंपचनिरामः सम्पन्न इत्याह | प्वेति | प्रतिन्नाता्थेति | wera: wae य्याौत्य्थो wear) एवं मिथ्योत्तरे पूववादौ ¦ साध्यवान्‌ कारणप्राडन्याययोस्तु Tarawa सःध्यवाभिति qe शराध्यवन्ता Aa साधनोपन्याख दइत्यभिप्रायकार्थस्य प्राक्‌ agate ल्ाडिति ara: | 2

श्र विरोधमपि qraq व्यन्तर संवादोऽपि पूवेवयाख्याने इत्याह | पूर्वेति | एतेन दितीोययवच्छेदः। arelad खो रतं च, faz मिथेन्तरे प्राडल्यायेति | प्वन्याचकरण- निखये वित्यर्थः जयपच्चं anciwaq an प्रतिवादिन्येव

feafa ara) शद्धप्राडन्यायविषयमिदमिति | स्पष्टमेव | श्रे 6 /

8९ खपणविवादे aud पण्ददेदोभवकाषनम्‌ | य. ख. २।

एकायंकिषये | पूवे afa yaw काले प्रतिग्टरोतमुपभुक Gnas: | छक्रपूवेपक्लो facet येन भवेदिति aced: | अरत एव ama परशतेकवाक्यता waa विवदतो रित्यनेन स्ष्टमेवेदसुक्रम्‌ | साधकान्तरमणक्षायं ध्वनयन्तत एवाह | रतस्य चेति | water प्राक्त थिप्रद्यधिंविषयकेत्यर्थः। श्वल्य पपाद दति केचित्‌ सवेति पाठे प्रागक्रसवत्यथः १७

Ri व्यवहारे ऽपरमपि विगरेषं मृलकूदा₹। श्रपि चेति | वेदधेमाह | यदीति विवादो प्रसिद्ध इत्याह व्यवेति | पारिभाषिकपणब्दण न्यूनतापन्तेराह | पणनमिति | यवदरण्ण- भित्यथंः | खो करिसव्यता सूचनाय यथासमभवद्रव्यद्‌ानाङ्गोकरणमिति यावत्‌ aaa aren तस्मिन्सेति | वच्छमाणख विगरेष- विषथलादाइ | पूवाक्तमिति yearuaafafa fas? भाविन इत्यजोक्रमित्यथंः | सपणमिदल्यपपारदवनाय खपणमित्यस्या्थेः waa पणमिति | sa एव योग्यतया iene) राज्ञ षति | प्राह्धिवाकादिरिति we: | गयूमाभिकत्निराखायाइ faarefa | राशरेत्यपलकणमन्यस्यापि इदमुभयङटतसमपण- विषयकमेवेति भ्रमो a are) asta गमकाभावात्‌। किं लन्वतरकतो विषमश्चोभयङतस्तदिषयक्मपोति |

Ri wt खपदघटितेन रख्चितमेव विग््वमाह यच पुन्‌- रित्यादि दाप्य इत्यन्तेन | Garett cartier | निमित्त- VASAT मानाभावाश्चेति भावः। दणड TSAI! अत WATE! परमिति | aw शपणस्येवाभावादिति भावस्तदाह सपं

इलो. .१९।२० | यथासंभवं wawyatea खकहारनिबयः कामः | 8इ

वेत्ति | परेति | श्रन्यतरस्येति wa) एतेमान्यशलब्यवच्छेदः zey वन्तैतएवेति wa: चेयादिति afea विग्रेषान्तरमादइ। सपण इति १८ |

१। wae fangranrcare मूल्‌ किं चेति | anfeg- mW तदित्याद | प्रमादेति खलाय वस्त्विति। नयेदिति ata: | अन्तमिति we) afer पाठ एव तस्याकश्छकलमु- wu हेतुपरेण wines प्रतिणदयति यस्मादिति | चनमिहितमिति। शअरथिम्रत्यर्थ्न्यतरणेति we) ear पापयोगाच्चेति करणदतोयान्तात्तसिरित्वाद व्यबहारेखेति seri पएरूरयति। साश्यादिभिरिति | तथा साच्छादिभिः कियमाणएेन व्यवहारेश तद्धोयते इत्यथः | एतेन भूतमपि wy- त्वमपि सच्ादिभिरलुपन्यस्तं खद्‌ व्यवहारतो हौयते इत्यन्य दति व्याख्यानमपास्तम्‌ ASAT साकाञ्खलाद्‌ाइ तस्मादिति | we तात्पर्याथेमाइ यथेति | aaaeare तथेति | निणेय इति यथाथनिणेय cara

२। श्रनेन सूचितं पक्ठान्तरमाह। रथेति | wis Gaara! इत्यनुकल्य इति स्यष्टमस्येतो ऽप्रतौतेरु् मानं नारद्माद यथोक्तमिति भूतेति ewe श्रनुखरति तश्छोलस्तश्नात्‌ दिप्रकार cee: | wae परेति युक्र यदिति पाठान्तरम्‌ wa प्रायुश्यनुरोधेमाह | aafa नन्वस्यापि gee कुतो नात we aratfa | व्धमिच्चारेति | श्रवधाचेवादिवखारौत्ययः १९

98 सर्वेनिःवे रकदेशेऽङ्ोकारितोऽपि ste Ba दाप्यः। ख. ख. २।

१। तावन्माचस्योदाहरणत्वात्‌ पाद जयस्येकं सेषमयेमाह | नैकमिति | amea समासः। श्रत wre: शनेकमिति। लिखित मित्यस्य याख्या श्रभियुक्तमिति | प्रतिन्नाकाले ऽथिना ऽभियोगलेनाभिहितमित्यथेः | fret caw कमेलेनाण्वयोऽख्य | ma सर्वपदोक्रः सामान्येगोक्ेख॒सखारस्यादार। सवमेषेति | एकदेगेति सण्येपेति सपमौसमास ware! शकदेभे इति | ूर्वाक्रायेंकटेशङिरण्यविषये Tae: सुवणंस्याङ्गोङृतलादाह | रजताद्यथैमिति | भरगतिप्सङ्गायाह पूर्वेति ठ्चंपादाथे सप्रतौकमाद ग्राह्य इति। freed पूरवंमित्यस्याया | भाषेति। tHawe दुण्यरि हरत्वादार | दापयितव्य इति | | एवमंशदयेन प्रतिज्ञाकालेऽभिहित एवार्थो व्यवहारतः प्राय दत्य- wan, ऽनभिहितो प्राय इति afatay दशितो यतोऽतो- ऽन्वयव्यतिरेकाभ्यां भूतमप्यतुपन्यस्तं ead इत्येतत्‌ दृ ढोरृतमिति तदु दाहरणएलमस्येत्ययेः |

२। विशेषमाइ wai) fa तु युक्िरिद्धमपौति भावः। wafedare wafafa उक्रप्रकारेणेत्यथैः। लकौ- परेति | प्रत्ययो जानम्‌ तक्वन्नामस्य नामान्तरं सभावनेति। एवं तकापरनाभिका या संभावना सेव यः प्रत्यथो wa तत्छदकतान्िक्भते दति योगोश्चरवचना दित्यः एतदूक्रिफल- माइ शवं चवेति wea acaz@aa Yas) तकति तयोर faa:

२। श्रच मानमाह | तथा चेति | उपसंहरतोत्यचाग्वयः |

लो. Rei पूर्वाक्का्थं कात्यायगवचनविशोधपरिहारः। ४५

न्धायाधौति | arama तकं उपायस्तेन तकं arama निचित्य ऊहते रूपम्‌ यसिभ्विषये न्यायो योजनो यस्तत्स्यानं गमये दित्यथेः यद्वा werent न्टृनातिरेकरदितं चथा तथा गमयेदिन्धथेः एवं सति तकेणेव fag मूलवचनवेयथ्थ परि- we श्रते चैकेति यथा भाषासमये ऽनिवे्च पञा- दधौयमानोऽ्यो नादतेव्यस्तया एकदेश विभावितः सन्नपि प्रत्यर्थ aca इति ताव्रताऽपि ara इत्येव पादचयार्थो sq किमिति wa दाथ इत्ययं इति भावः | WHS | यज वचनं नास्ति तच तहृषटान्तमूलस्तयेव तकः Ges तु TATA तर्कासिंभवे- नैवमेव तकंसंभवेन तद थेतया वचनं सफलम्‌ इति भावः |

४। एवं .निखितेऽयं प्रसक्रविरोधं परिहरति afafa | योगेऽपौति | वेषां मध्ये इति we: 1 साचिभिरित्यसय मध्यमणि- न्यायेनान्वयः संभवात्‌ उपलकणं सेतदन्यस्यापि रवेनाधिकां श- व्यवच्छेदः शसो धनौ पिति | तत्छतेत्यथैः अर हेत्‌- माइ तच होति भवतौति टण्खान्यषटतवेनाज्ञान- स्यापि तत्र संभवेनापलापाभावादिति भावः। इतिः tat क्षच्ित्‌ कापि अ्रन्नागसंभवात्‌। तदेवाद्‌ निहूवेति | wai एव संग्याभावादाइ अपेक्ितिति | वचनं तु इदं कटठंसामान्य- विषयमुककात्यायनवचनं तु विगरेषभ्रास्तस्य fast इत्यस्य विषयम्‌ निहवोन्तर erat ऽपलापो निद्कवसतदरपसुत्तर परिदत्य परिव्यच्याश्नानोन्तरे Warrant wait इत्यथः तथाच सामान्यविशेषशाखखयोरमयो इत्सर्गापवादव्यवस्धेति wa: |

ad विसेधान्तरपणि्िरः | a. a. 21

x1 विरोधान्तरं परिहरति नन्विति। ware | wer- ararfey) सिरेति | लिङ्गद शंनमानेणदृढद्ेतुमाऽपि सखौसं परह णादिरूपसाध्यस्य सिद्धिभेवतोति तादृ शानामस्थिरलम्‌, खशाटाना- दिशूपस्य साध्यस्य तु दढसाघनेनेव सिदधस्तेषां fae, तदपि नाका- श्रादिवदिति खिर प्रायलमिल्ययेः भिखितमिति कियाविशेषश्म्‌ | योगे सतीति Ta: साकौति | तेषां aa carrie: | wate | ऊने rau परोक्त cereal भाविते इति श्रधिके इति | उक्रसवपिचयत्यादिः | grain srafaae साध्यतावच्छिख- भिल्यर्थसत्फणितमाइ सवमेवेति | तथा सति स्व॑साथा- faga ofa. सिद्धिः मृखतात्पर्यविषयग्डता sprfatar देशेति एकदे ्ान्तरत्यथेः | fafeafa ।. सुवर्णदिचयं ग्रहो तमिल्यभियोगे ata मया weld मिथ्येतदिति निवि छते सवेवस्तुय्हणसाधनतया कथिते: साक्षिभिः qaqa खवर्णादि धान्यं गटहोतमित्यधिकवस्त्दएे वा निर्दिष्टे बवंमपि साध्यं सिध्यतौव्येतत्यर कालत्यायनवचनम्‌ | fsa इति awl तु उक्ररोत्या ऽभियोगे fast हते yqauaquarfea: eran तेस्तावन्भाचेऽपि साकिभिः साधिते प्रहय्थो सवै दाप्यः पूर्वोक्रमित्येतत्परमिति विरोधो भिथ इति भावः तस्य कात्यायनवचनस् | नन्वेवं तादृशे किं Baw नेवात श्राह ! तचायपौति। तदु क्रस्थलेऽपोत्ययेः | नियमादिति | Itsy स्याकगमनमिति न्यायेन प्राप्तस्य ae विधानेन निधामकलवं तस्येति भावः। स्खिरपरायेषित्यस्य प्रह्ुदाहरणमाह | साहसादौत्बिति

ea a a " - - ~ "गण्याय - ~ -

WH. २९ | खनो वि योषे aida वद्या | 90

ofee: कथितेः। उपदिषटैरिति पाठान्तरम्‌ एवं साधिते ऋव्यम्नरसवादमपाह | कात्यायनेति | तदेव वचनमाह साध्याधांजेऽपौति | खोसंयहादिके विवादपदजये भाषावादिना अदेकार्थरूपं साध्यवेन कथितं तम्तजानेकवाध्यसाधमतथाऽमिहित- qifafa: साध्यार्थजातय्येकदेशरेऽपि -खाधिते सकलं भवेल्िध्ये- दित्यः तथा चोक्तव्यवखा निबयूढेति सिद्धम्‌ २०

१। वच्छयमाणश्लोकस्य तदाचेपनिकारकत्मिति तमाच्िपति | नन्विति | aa तथा बति श्चप्रामाण्यं ata: एवग्यवच्छेद- ware विषयेति। acerca: परस्परम परौति अविरोधे संभवति विरोधो न्याय्य इति भावः। श्रादिना विकख्पपरिगद्ः। अत एवायिमादिना तुख्ार्थोऽख्ि ति न्यायस्य सदिषयनिर्विषययो- निंविषयं aqwafeqe परिहः। उत्सर्गेति | सामान्यस्य विशेषो बाधक इत्येवं सामान्यापवादखच्षणो न्यायस्तन््ान्तरे प्रसिद्ध cer | पञ्चम्यन्तालावं विभक्तेकस्तसिरित्याइ। व्यवद्ारादिति। प्रहतव्यवदहारशरमनिराषय तदयंमार | दृङ्ति | तत्खरूपमाद.! aaa एतौ साफलयासाफद्याभ्वासुपपाद्यौ | समाधि- तात्प्चा्॑मार | अतश्चेति | एवेनाप्रामाणखब्यवष्डछेदः | नेदं प्रहृत माचविषयमपि तु aafafaere | एवमिति श्रादिना भनलप्रमा विरोधेऽयेवादत्वमाभित्य ययोचितन्यायानुसारे चोञ्छ मिति परिगण्यते |

. ९। रवम्‌ उक्रभकार स्ट धमश्ाख्रेति। एकगिषययो विस्‌-

द्धाषेयोदिं qatfant विरोधो तु भिश्नविषययोरविरद्धाये-

HUME BAIS बलवदित्येतदुदाहरयणविचारः | य. ख. |

wat. ofa विरोधे प्रवद बेखभावचिन्ता। एवं पूरवे धर्म णारखामुसारे णेव aia विदितलादौ श्नसादिनौति- श्राश्वस्य व्यवहार विषये . प्रत्तिरत एकविषयत्ाभावादयंश्रासल- धमेग्रास्लयोः सुतरां विरोधषाभावादनयोः प्रबलदुबेलभावचिन्तममेव तावदधक्षमिति श्ङ्धा्रयः। माचौग्नसाद्ये ्रास्तधरमंश्ास्लयोस- fear, ऽपि तु घ्मेशास्त्रान्तगंतयोरेव तयोस्तशिन्तेति एकविषयतया विरोधसन्भवात्तचिन्तनं युक्रमित्य॒त्तराग्रयः। अर्थाथंमा₹ श्र्थेति। अत एवा | स्मत्योरिति | स्ितिरित्यस्य याख्या मर्यादेति। agora शद णाये्रास््रधमेशरा स्यो मन्वादि शूपेककटे निष्यन्ञलेन वचनखरूपगतविग्रेषाभावादनयोरपि तच्चिन्तनं युक्रमिति ara: | प्रमेयस्येति। तदिगरेषान्तचिन्ता, ऽपि तु घर्मश्ास्तप्रभेथस्य षद्धिधस्यापि we सुस्यतया प्रधानलादथेशास्तप्रमेयस्यायेख्य नो ति- लचणस्यासुख्यतयोपसजेनवा्रमेयगत विगरेषसंभवात्तचचिन्ता युक्रेवेति भावः हेलसिद्धिं परिहरति धमेस्य चेति। शस्त्रादौ ्राचाराध्यायस्यादौ | वचनार्थसुपरसंदरति। तस्मादिति |

al उदाइरणाभावप्रयुक्षं तचिन्तनवेफल्यं परितं mee किमचोदादहर णमिति | अन्योक्मुदाहरणमनुद्य खण्डयति | तावदित्यादि युक्तमित्यन्तेन | रच, दति तावदादौ उदा- दरणं युक्रमिति व्यवदितेनान्वयः श्रदोषले हेतुमाइ प्रच्छन्न fafa | यतो wate प्रकाश्रमप्रकाशं वा तं मन्यु दिगस्तोत्ययेः। तथा मन्योरेव कदलादिना इन्तलादिति दोष इति भावः| श्रत एव मन्यरकार्षोदिति अतिः सङ्गच्छते मनुसुक्ता स्मृव्यन्तर-

श्लो. २९ अर्थशास्त्र डमशास्ं wwaferagerecafeae | bk

माइ तथेति | acreage: aft बेदान्तपारगमिति पाटान्तरम्‌। तेन ताद्शब्राद्यणएवधेनं | मनुमेवाह इयमिति | कामतो faa fifa feawd saan fant: कथिते- a! at श्रतुदाहरणएले हेतुमाह अनयोरिति यतं इत्यादिः | ye बेत्यादेर्थवादत्रेन खां प्रामाण्याभावादेकविषय- लाभावेन विरोधाभावाश्षशिन्ताया श्रसंभवेम गोदाहरणएत्मित्य्धः। gl तदेवा₹ तथाहहौत्यादि। शस्रमिति | मनकि- रेवेयम्‌ | दृत्यक्रमिति पठे इतः yafafa शेषः दत्यक्कति पारे तु गेषोपयोगः उपक्रम्येति। ` a. 9 दिजातौनां वर्णानां faga कालकारिते इति as oma इति cata: we व्याख्यानम्‌ 1 ्रात्मरश्शे इति | बडवचनादाच्ेलाभ इत्याह दध्िणा- दौनाभिति अरत एव सामान्येनार्थमाइ यन्नोपेतिः। परिजराणे इत्यस्य मध्यमणिन्यायेनाषथ cane र्णे इति | - सङ्गरे दर्यस्या्थमाद FSA | TG ऽन्वयो ऽनेन ख्चितः। एवं प्रागपि स्तो विपे्याचयेमाड | स्त्रीति | धमे Maree: | Weta | दुखतौत्यस्य पापाभावपरतलमित्या | दण्डति। इतीति दत्थथंकसुक्ेव्यथेः। इमम्ेमेवाह | गृरुमिति | वद्ार्थकादत्~ कारमेवाद्‌। गुवादौनिति | तथा केसुतिकन्याचेन qaife- भिनलानामोद्ृगश्स्ले इनन प्रशस्तमिति waa) wa: eraser वादत्वमिति भावः | नन्वेतत्‌ शर्वादिहननविधायकमेवास्त॒ तदसंभवे

एव AMPA WA TG! वाश्ब्देति | -समत्यन्तरेऽयेव- 7

५० अथगाख्ाडर्म प्रास्तरं बलवदिन्धेतदुदाहरय विचारः | य. च्च. २1

मित्याह | अपि वेदान्तगमिति श्रयं भावः! थथा शोके cw पिश्राचो setae पिशाचो वा भवतु राखो वा भवत्‌ भतमपि भवतु प्रेतोऽपि भवलिति oat प्रौ दिप्रतिपादने aad aur sufa वाश्नब्दाषिश्रन्दयोः प्रौडिभरकं तात्पर्यमिति नदिषिष्ट- away गुरवादिहइनने न्‌ तप्पयम्‌, तथा बेदेऽपि “age Sfast देवतेति “श्रतितिष्टन्ति दा यएताः” “तस्मादपि वध्यं maa न” इत्यादौ वेशष्दवाग्रष्दापिशब्दादीनां विधिश्रक्िप्रति- बन्धकलस्य caammBasta arsfansgnat afafunm: प्रतिबद्ध ara गर्वादिहगनविधिः | agag श्रपि वेदान्तगमित्यादौ श्भा- वमाविषयतया क्ियागतमौचित्यमपिद्योत्यम्‌ संभा वितौ चित्यस्य चातुष्ठानमयुक्रमिति सायं तात्पर्याभावः। Ge चेदं मश्जूषाया- भिति बोध्यम्‌ अरत गुवांदि विषये एकर गुरं बेत्यादिव्चन- aaa इननविचेसतज्निमिन्तप्रायसिन्तविधेरिवं विश्रुद्भिरिद्यन- AMAA aaah विरोधाभावाक्कयं तद्दा- इर खत्वमिति | |

६। वगसिद्धोऽप्यमधे care) नाततायौति षाय afa खु | seat हि ब्राहमणएचार्यादिभिन्नानामेवाततायिनां वधे टोषाभावप्रतिपादनादाततायिनामपि aaeat a वध्यलमिति HE मनु आचाय चेति Aya ्राचार्याद्यपादानं wa मागतात्पयकम्‌ तथा हिसामाभनिषेधे तात्पर्थादखख wae गाततायिनामाचायांदौनां विधिनिषेधपशतं येन गुरमिव्यश्ेतदचम- विरोधः area ie श्राचार्यादौनामिति दिसेति

Od

wit. २९। अर्थशास्त्रादर्मशाख्ं वलवदित्येतदुदाहरवविक्रः। ५९.

विशेषेण हिंषानिषेधेनेत्ययः 1 अन्यथा तेषाञुपारानभपशमेव स्यादिति wa) इदम्‌ आचाय चेत्येतत्‌ हिंसेति feer- माननिषेधस्त्यर्थः। तत्धामान्यनिषेधख्येति यावत्‌। सामन्धिति | a ददिष्यारित्थादिवचनेमेवेत्य्ः। तथा तन्ामान्यंनिषेधस्य

खाम्रान्यदच्नेनेव सिद्धलादसिणचने आआचार्यादुक्तः खार्या गिवशा- कारणाभावाद्धिंषाविरेषनिपेषेभेवेतद चभं सफलम्‌ सामान्यभिषेध- We तु वचनानरेेव afetue प्रा्तनात्पुगर्के निष्फलत्वं स्वात्‌

<fa भावः। मन्वेवमाचायं चे्यनेनाततायिनामपाचावादौनां हिंषा-

| निषेधप्रतिपादनान्नञातताजिवधे दोष इव्यनेन तु sraarfe-

हिवाया टोधाभावप्रतिपादभेण तेषां वध्यत्प्रतौतेरनयोवेशनयो- far विरोधापन्तिरेवात श्राह नाततायौति। तथा भिज्नविषयवेनाविरोध इति भावः। तदन्यविषयलभेव डयनम्‌ तच हेतुमाह यत इति | शामान्येनातत्ायिनो zim इत्य- WTS: | | 8 माहस्ये त॒ अधिका श्रपि saree उक्राः,- गरं वा तापसं वाऽपि ब्राह्मणं वा Twa आतवायिनमायान्तं इन्यादेवाविशारयन्‌ माततायिवधे दोषो शन्तुभेवति कञ्चन WAH वा अकाशं वा मन्युस्तं मन्यब्डच्छति ` . . ग्टदयेना मिदम्तारस्तथा पल्यभिगामिनः। शरभ्निदो गरददयेव तथेवाभ्बदयतायुधः

५२. अथपरासराडमभ्रास्ं बलोय इयस्य सिडान्तोदाहरणम्‌ श्य. च. २।

्रभिचाराणि gatet राजगाभि पैश्नम्‌ | एते हि कथिता शोके धर्मन्नेराततायिनः इति खत्यन्तरमाइ। तथेति | अ्रसिविषाग्नौनां इनं शवोदयतशरष्देन

TATE: | शापो्तेत्यच् बतो हिदयम्‌ | श्रा श्राहिताग्धादि- लात्यरनिपातः | ATTA तदेदप्रतिपादिताभिशारिककर्मणा | पिशुनः. awa दशिता इति ae सामान्येभेदाततायिनां पद थनात्तचरापि नाततायौति सामान्यपदेनेवोकेखान्ञाततायौल्यादि- Waray Wee चेत्यादि विगरेषश्रास्ब्य fave ब्राह्मण्ादिकं परित्धान्यच vada इति wa: |

८। ननु एवं fag श्राततायिनां ब्राह्मणदौनामवध्यले सति प्रमादाद्चदि तेषां हननं स्यात्तदा aw प्रामादिकलात्‌ किं इन्त- दोषाभाव एवेति चेन्नेत्याह श्तश्चेति | यदि विपद्येरन ष्ट्य MAT: | तस्मात्‌ तदु दाइरणणसभवात्‌ |

< खाभिमतञचदादरणए्माइ | लदुच्यते इति। हिरणश्येति। अभ्वहितलात्यवेनिपातः प्रागुक्मौलमाह धर्मशस्तरेति। चतुष्यादिति | ve ae प्रागेव प्रतिपादितम्‌। विषयेति। भवतोत्ययेः रभ मानमार Be Tafa यतो धर्मशासं rammed Wilf: दभितमित्यनान्यः। धर्मेति | धर्माथेयोः सक्जिपाते एकच तच्छासलयोः wee cimerarfea cae: श्रन्यया तदसङ्गतिः सष्टेवेति भावः wea दर्शयति wafefa इति इत्यनेन पूरव तसैव मक्राशत्वादिति भावः २१॥

wt.221 fafemetfa परमाणाजि। us

१। श्रव्यवडितेन सबङ्गत्थभावाद्‌ व्यवहितेन सङ्गतिमाद। ततो ऽथोति | wafer: श्राकाङ्धितः प्रमितिग्यवच्छेदाय साधनपरलाय चाद प्रमीयते इति शचाद्ममाजनकला- भावात्‌ | दायः सवेमिति विषये agat ऽन्यथाले परण्परयाऽपि तद्भावाटाह | परोति | भमप्रमासाधारणनिश्चयः परिच्छेदः ` कौ न्तितमिल्यच tear) मदषिभिरिति पूर्वोन्तरतदुश्वतु- रोधेनाचानुक्रमपाहइ तज्रेति तेषां जयाणां मध्ये cay: Sata पूर्वाध्यायान्ते

दला भूमिं निबन्ध वा रा Ge तु कारयेत्‌ | इत्यादिना इति wa) वश्यमाणेति श्रमैवाध्याये लेश्यप्रकरण्ेत्यादिमा यः कञ्िदि त्यादिना इति भावः भोलनश्य साधनस्य व्यवच्छेदायाद उपभोग इति वश्यमाश- सखवरूपेति | खरूपं प्रकारख्च तौ seat खरूपप्रकारौ ` येषामित्यथेः ay प्रकारो भेदः दृष्टसाचिणः अतसाविणः इल्येवमादिः

२। ननु प्रत्यच्ाद्य्टप्रमाणन्तगेतमेव प्रमाणं नान्यदिति इयोः कथं चित्ततसंभवेऽपि yay तदन्तर्भाव दति कथं त्वमित्याश्ये- are) नन्विति | लिष्यादिने wee: नित्य दत्याश्रयेनाह | शब्दाभिव्यक्तीति | लिपेः स्फोटयश्चकलववत्साचिषणां ध्वनिदारा तदभिग्यश्चकलात्खरूपतस्तेषामतक्ेऽपि त्चान्त्चमिति भावः। तस्या श्रपि तदन्त्भावमाह | भुक्तिरिति प्रमाणमेवेत्यन्वयः केशि- दिति | श्रासेधरडितवादिविगरेषणेरित्यथैः श्रव्यभिचारादिति।

6 सिखिताधन्यदमप्रमाशाभावे दिश्य पमाम्‌ ख. अ. २।

अनेमातुभितिसामयौ Sat) यथासंख्यमचाग्यः। कर्पयन्तौति | शबन्तप्रशटतिकम्‌ | चेषादिकम्‌ we क्रयादििग्राप्तम्‌ आ्रासेधरहितवे सति चिरकालोपसुकसात्‌ तदौोयग्टहादिवत्‌ दत्यनुमानप्रथोगः | aga yf: खलतोऽसुपपद्यमाना तादृत्रं तत्‌ कण्ययतौत्य्था- परतिर्बोध्या। एवं maret fag खामो रिक्येत्यादिवचगोपान्ते- निंथतकारकदेतुभिः aad fag भवति

2) उम्सराद्धथंमाईइ एषामिति | मध्ये इति शषः श्रय- यान्तभावेण समास रत्यार ्न्यतमस्याप्यभावे इति | wh er भया दिषसुचयः। वश्येति | प्राम्बत्‌ तेषां तन्तं ates वित्‌ ` व्यवस्थितभित्याइ जातौति | प्रमाएमित्यष्यानेनापि eae vay) प्रमाशमिति | wader महविंभिरिति te मानुषप्रमाणणभावमाजे दिव्थावसखर इति यथाश्चुतप्रतोयमानो ATU: किं तु तदभावनिणेये aaa तदवसर दतौत्याह मानुषेति | wa गमकमिदमेवो पस्थितमाह 1 श्रस्मादिति | waa एषा- ` मन्यतमाभावे दत्यस्यानयक्थं wea) याद्यमिति रषः बेग परामा्मित्थनेनावगम्यते इत्यनेन चास्पेवायेख्यामिमतलात्‌ |

४। ननु यथाञ्रुताथेबोधकमेबेदं वरमिति saree vane दिव्यस्येति इष्टे सत्यदृष्टा्चयणस्यान्याय्यत्वात्‌ | दिव्यस्य तयोः शास्ेकगम्यवेनाशौ किकलेना दृष्टलात्तया war यादिति भावः। एतत्फलमाश अतश्चेति | खष्टोऽ्ंः। करिया - मित्यस््ाये ऽवलम्बते इत्यस्य IATA: |

५। नलु यज -सवेसाध्यसाधकं क्रियादथं तच भवतु areas

wt. श२ | aiqgeraaa एव feata faa: | ५१

पद्येति मेके शसाधनश्धता Ma wena देवो तष का OTe श्राह यबापौति | दैवमिति | उक्- हेतोरेवेति भावः। उदाहरति यथेति | इत्यमियोगेति दति योऽभिधोगस्तष्यापश्षे परेण at sata: | Te इति। ‘gen Xa प्रधानं तस्येकदे शो रणं सख्या afyw | अ्रभिमत- हृद्धिकरूपकश्रतयदणं प्रधानं वा इत्युक्त wufang | 1पूर्वान्बयो- एमः। waa कथं सवंसाध्यधिद्धिरत are | तचेकेति | तदबिषय- mate: न्धायेनेति। anweas: श्रपि्दियसमुद्चये | सष्येति | सख्यदद्धि विशेषयोः सिद्धेरित्यधंः। व्याप्ता तस्माच साधिका खवंखाधिका यायेति fag कव्यमि्यपेरथंः | सा रेव! रत॒ wre! त्विति। वदतं वादिनां aa we fey इत्यथैः देवौ किवदतामिति पाडान्तरम्‌ | |

६। एवं faa कात्यायन विरोधं परिषरति यत्विति गृढेति | क्मधारयान्मवर्थोयः। wee ठु Kaa पाडान्तरम्‌ प्रातं योग्यम्‌, मानुषासम्भवे एवेति | मादुषासर्भवशत- गियमा्मभिति naa. भिम परोकचणष्यादृष्टाथंः |

* प्रधातैकदेशसाधनं मानुषं संभवतीति farce पदस्थ wee प्रधानस्येकदेश इति विग्रहः तदनुसारेण श्चाचष्ट | भूलभूतंमिति प्रधानमेकदेश् डत्यभिप्रायेणाष् | ` अभिमतर्ल्दिकेरि- संश्थाथां cay आानुषङ्किकत्वाद प्राधान्यम्‌ | , , ता दैवमाश्रयणौयमित्वच तस्यान्वयः सिद्धि

ud लेख्खय।दिप्रमाशानां विषयविशेषे व्यवद्धितत्वम्‌ थ. ख. २।

प्ाज्दाड | यद्पौति | साहसे तदासे विवादे मानुषासम- वाच ae चलाधंधिकरणान्यक्ानि, शरण्ये इति fafam- न्रमाईइ न्धासेति | उपरुशररति ' तस्मादिति

9 स्य owetefiaaie प्रक्रान्ते इति ve सवेजाग्वयः। WS सािदि ययो विकल्प विधागान्तख्ार्थामामेव पिक- ख्पान्तद पवादलम्‌ | कात्यायनोक्रिरियमपि एवमग्रेऽपि fay |

८। प्रसङ्गात्‌ मूलानुक्रमन्यदपि किञ्चिस्िद्धान्तभूतमाह | तथेति | wer yfserfeet: परिग्रहः एवं तचाथे- च्छिकलं नेति भावः तचादौ लेख्यस्याह | यथेति | wesc: स्फ्टोभविव्यति खितिमेर्यादा तस्याः fea:

< शक्रेराद तथेति क्ियाग्रब्दख wei भूय माणख प्रयेकं सम्बन्धः करिया करणम्‌ BRAT were: | तेन परिण्वदङ्गण्ण दिक खच्ते WTI जलवा जशनिगेममागेः। श्रादिना गेडादिपरिमाजितरजःपुश्प्रचेपस्थाना- वकरादिग्रहणम्‌ | AT इन्दोत्तरपद कदन्दलटितबडव्रोदडिः |

१०। साकिणामाह तथा दत्तेति बङवचनान्तयोद म; दन्ताद न्तं विद्यते येषु दन्ताप्रटानिकाख्यविवादपदेषु दन्ते चेति दन्ते येति वा पाठान्तरम्‌ खाभिश्त्यनिरेयासख्ये तच विक्रयेत्यङ्खनेकं विक्रौयासग्मदानास्ये avi धनं ae, दात्‌- केति te तच यकृ्छग्बन्ध कजरेत्यथेः Yt wee fra समुपस्थिते ma! एतानि च. विवादपदान्यये स्फुटोभक्ि

५। RQ kl = बः

कचो. २द।२४। सक्तिप्रमाणविषचे frac | ५७

१। उभेति। वादिप्रतिवाययुकयोः। बल्लाबस्तेति | प्रागुक्त इयथः | कायेयोः साध्ययोः | करणरूपा्निरासायार | क्रियते इति | तात्पर्याथेमाह उत्तरेति प्रमाणेनेति भावः। fag: sulfa पूर्व॑ भरमाणेनेति भावः। we लच्छान्तरमा₹ तथेति | दे afgae तत्‌ दिकं, acfatata कन्‌। निष्कश्तस्य प्रतिमासं निष्क- इयं द्धि रिव्येवं प्रथमं होला कालान्तरे तद्‌ातुमसमथ खकाये- वश्रान्तस्येव निष्क शतस्य निष्कचयं afefraplart तदेवं पर बल- aq विरोधेनोत्षरणुव्यायाः पूरवसंस्याबाधकलतवेन पूरव॑संख्याया श्रप्रस- रादित्यथः। नु याकरणे खति विरोधे we पूवंबाधकलं विप्रति- GUNA दृष्टम्‌, अण दिते भाग्ये उकं गौणौ मुख्या चोत्तरा संस्था yat संख्यां बाधते इति, तदद किं मूलमतस्तन्यायेनेवोभयच गौगमार पश्चादिति | fa तु तद्वानेव परख्योत्पत्तेरित्यथैः |

` २। एकस्य निकटे। एवमयेऽपि। प्रागु क्डेतोर चासत्लमच हेतोः सत्वं खचयन्नाई। नन्वित्यादिना | पूरवंखलादेराह तदानौ- मिति | न्धायेति vent: ष्टौतत्पुरुषो वा एकचादिता- देरन्यजाधानकरण्णदौ खलमेव नाश्तौत्ययमेव न्यायः। afer एव स्फटतायानुदयते ऽनेन यद्धा नेन तथा ऽयं बोधिते तददलान्तस्य पुनस्त खलत्वाभावादिति न्यायो frog दति उभयथा ऽपि प्रृतो क्रिभिंबधिवेति भावः २३

९1 भुक्तः प्रागुकप्माणन्तगंताथाः। कैिदिति | अासेधर- हितलचिरकाणलादि विगरेषणेयक्राया cere) कार्यान्तरमिति gaa क्रियाग्रब्दस्य कायेपरलस्याक्तलेन तदुभयान्यतर साध्यसिद्धि-

8

५८ सुक्किपरमायविषम विचारः | Fa २।

ख्पकार्या तिरिक्रकायेमित्यथेः) waa वयवदिताव्यवदहितसङ्गतिङक्रा। एकदे शिमतेन ares | परेणेति | सम्बन्धे सति दानक्रयादिषूपे परलरद्येवाभावादाह सम्बन्धेनेति | बडगरोडहिः weg नेति पाठान्तरम्‌ कर्माकाङ्खाथां परत्यासत्तेराइ भुज्यमाना भुवमिति | पश्यत इति वादिन इत्यः श्रव्रवत दति Some Brae इति | तत्र कमा काङ्ग शान्तये तदयमाइ मदौयेयमिति | ष््टोयं तस्या इति | तल्छन्बधिन्याः परेण भुष्यमानाया wat: स्यष्टवाय पुनराह प्रतौति | स्ष्टवायोक्रसदहितं विंश्रतोत्यस्याथंमाह अप्रतिरवमिति mms यथा AMA | THAT युक्त एव विं्रतिवेगरब्द- स्दुपभोगे लाचणिकः। awed कालाट्ञ्‌ | वषैस्याभविषतो- ्यत्तरपद टृ द्धिरेवमयेऽपि तत्‌फलितमाह भोगनिमित्तेति

२। अतुपपत्तौ हेतमाद हौत्यादिना ऋप्रतिषेधा- त्छामिनः Garage तावत्पयेनत तादु शोपभोगेन खला- नुत्पन्निमाइ नापौति | खत्वमिति | seat इति te: 1 ay हेतुमार उपभोगस्य खल्वे प्रमाणत्वादिति | तख खलविषयकमप्रमि तिजनकलादित्यथेः कचिह्मस्तपाठः यथा धूमस्य ॒पवेताद्‌ावभ्निन्नापकलं तदुत्पादकलं .तथोपभोग्यापि खप्रमेयश्डतखलन्नापकलं नोत्पादकलमतो a ततस्तदुत्यत्निरिलि भावस्तदाइ प्रमाणेति | ननूपभोगसख तत्ममाणलं मागा- भावात्‌ किं त्वाद्‌ कलमेवात sie रिकूथेति तज ae Was तस्य तत्वमित्यथेः

Wt. 28 | afacnafaad विचारः | ५९

२। तत्रापाठटमेव दगरेयति। तथाक्लीति | #ातमवाक्य- माह खामौति | रिग्यादिषु पंचसु wy ant भवतौति | खवेसाधारणसखलकारकडेतुपरिगणनम्‌ श्रप्रतिवन्धो दायो रिक्‌ धम्‌ | सप्रतिबन्धो दायः संविभागः | क्रयः प्रसिद्धः ्ररण्षा- दिष्वमन्यपरिग्टहोतदटणएकाष्टादिष्वौ करणं परिग्रहः | निध्यादि- र्तिः SPT: | अरषाधारणकारक्रेदनाह ब्राद्येत्या- दिना ब्राह्मणस्य प्रतियहादिना away तदधिकमसाधारण- भित्यथैः aaa भोगरूपेण श्टतिरूपेण वा यक्षम्‌, ure दिजश्डशरूषादिना शतिरूपेण aay, तदधिकमसाधारणं खल्- जनकम्‌ | निशो तिभोगयो रित्यमरः | 7

ननु एवमपि wea इति वचनमेव ATS MUTA खलरेतुवविधायकमस्त इत्याश्येन wet चेदमिति। sata: प्राभिः। तत्र ₹हत्माइ स्वत्वस्येति | एकशब्दो mare: | विधेरत्यन्ताप्राप्तप्रापणखभावत्ेन लोकप्रसिद्धायं yew भावादिति wma: | wadfa| तस्य तेषां जो कषिद्धवमित्येत- दिव्धथेः |

नन्वेवसुक्रगेतमवाक्यस् का गतिरत श्राह गोत- | मेति श्राखपरिगणितैरेव Fah: खलमसुत्पाद्यं नापरिगणिति- रपि चौर्यादिभिरिति नियमो ऽदृष्टायेति नियमा तु खलादि श्ास्तमाच्रसमधिगम्यभित्येवमधं मित्यधंः | यदा तैः खल- मेव arenfafa तथा नियमः |

६। खतिविरोधरूपं दोषमाह aft चेति। दौ ब्राह्मण-

९० युह्िप्रमाशविषमे विचारः | व्य, श्च. २।

वितिवत्‌ बहनौति प्रयोगः। विर्ूध्यते इति श्रनागमोप- भोगेन खलोत्पत्ताव पभोक्देष्डविधानमनुपपन्नम्‌ विहितख्ठ दष्डः। श्रत एतदचनविरोधादपि खलं तादृश्ोपभोगाद्‌- त्पद्चते दृत्यथेः

मतु सति विरोधे तादृ शोपभोगात्छलानुत्पन्तिः एव नेत्याश्रयेनाइ चेति | खाम्यसमच्ं बड कालोपभोगेऽपि qar- मुत्पादादुपभोक्षा चोरवदण्डय इति act 1 पश्यत इति खामिनः समकममसेधोपभोगे विं प्रतिवर्षादूष्वं तद्धानि्भवतौति उपभो गादुपभोक्रुः खलमुत्पद्यते इति तद्थेः | एवं परोचतवा- परोचत्वरूप विग्रेषपरत्वेन मिथो विरोधो येन तदभावः स्यादिति भावः प्रतिन्ञामातरणार्थासिद्धेरब रेतुमार अ्रनागममिति 1 उक्रविग्रेषं विना सामान्येन तादृग्रोपभोक्रदंष्डनिद्ान्न तथा व्यवस्था युक्रेति भावः |

C1 ननु तच सामान्योक्रावप्यच विशेषोह्या wee तस्येति युक्तैव व्यवसा ऽत are) नोपेति उपभोगमात्रवला- देव नम॒ खलसिद्धिरित्ययः 1 तथा कथं समचभोगेऽपि AMA खलहानिस्तदुत्प तिश्च यदि तथा खोक्रिवते ate सामान्येनेतदचनविरोध इति भावः | नज्विदमपि परोचभोगविष- यकमेवास्तामुक्रवचनेकवाक्यतया श्रत श्राह समक्षति | चो sa aig: | wed खलत्वानपगम उपभोगेन खलतवानिष्यत्तिश्धेति ayaa हानिकारण्णभाव इति भावः | तस्मादेतदनुपपत्ति- स्तदवस्थेति सिद्धम्‌ |

= => ee a

श्लो, २४ | मुद्िप्रमाणविषये विच्चारः। fy

< नन्वेवं मा SMS प्रागुक्ोऽथैः कि लन्य एषेत्याइ चेतन्मन्तव्यमिति दतोत्यन्तेन वच्छमाणमिल्य्थः | प्राबख्येति | श्राध्यादिषु तदपवादलेन mega vere: WTA तदपवादतया शमौ विंशतिवर्षोपभोगसहितोन्तरक्रिया प्रबला, धने तु द्‌ग्रवर्षोपभोगसदहितेति, रै श्रसखले श्राध्यादिव्वणन्तरौव क्रिया wears इत्यर्थः wa क्रिया करणम्‌ at विंश्रतिवर्षोपभोगाभावे धने तादृश्रतदभावे yawararfeaaa wag, ततो न्यच तद पेष्योत्तरकालङतमेव तप्मबलमिति वयव- स्येति भावः anes यत इति | तेषु आध्यादिषु उत्तर- क्रियाया एव वस्ठतोऽभावात्पवेक्रियाऽपेचया mT संभवति | सति fe धर्मिणि घम॑चिन्तनमिति भावः| are! स्वमेव होति, खल्व विशिष्टमेव हो त्यथः | तच Square चेति। Weare: वा Ta प्रतिग्रहाय युष्वन्तरमपाइ स्वस्येति |

९० mete एवं सति याज्ञवल्क्यस्य पूर्वापर विरोधादान- थंक्यापन्तिरपि दोषान्तरमित्याहइ। तथेति i we श्लोक त्यस्य मध्यमणिन्यायेनोभयचाचयः | श्रपवाद्‌ः श्रपवादलम्‌ श्राधौ yaa उन्तरप्राब्ये ऽनेन बोधिते ऽथिमवचनेनाधौ एतद पवाद्‌- तयोतत्तरकार्याप्ावस्यबोधने त्रैव विपरौताभिधानेन मिथो विरोधात्तदानकष्यमिति भावः उपसंहरति | तस्मादिति | हानिरिति | aaa खरूपहानिरित्य्थः

१९१९ ननु मा त्छषूपडहानिः कि तु तदनन्तरं तदिषय- ग्यवहारदानिरनेन प्रतिपाद्यते दत्यत ate) नापौति।

१२ सुक्तिप्माणविषये विचारः | य. व. २।

तावत्पर्यन्तं परोपभोगे भोग्यभोजकभावसंबन्धाभावेन वस्तुनो नष्ट- ल्वात्तदभावनिभिन्नकनुपादितवास्तवव्यवषहाराहानिरित्यथः तच रेतुमाद | यत इति उक्रत्यत्रान्यः। ag वादिनः। उपेचामित्यनेन शारौरव्यापार शून्यत्वं द्वष्णौभित्यनेन वाग्‌- वापारशून्यल, तेनात्रुवत दत्यथंलाभः तिष्ठतः विद्यमानस्य | अनेन दि विधा विद्यमानलब्वचश्छेदः | तेन पश्यत इत्यस्यार्थस्य लाभः विपन््े we sens इति यावत्‌ पूर्वोक्तं संकेतिते | ग्यवद्ारहानौ मुस्यदेत॒मार | उपेक्षालिङकेति | श्रन्यथा तदि गेषणणानर्थक्यमेवेति भावः | तथा चोक्ता हेतुलभमेवास्य वचनस्यानेनोपपादितमिति बोध्यम्‌ | उपेच्चायां यानि लिङ्गानि जडत्बालत्वादौनि तेषां at ऽभावसखत्ता तज्निमित्तेवेत्यथेः | एवव्यवच्छे्यमाद तु awa ala | पराक्रान्तलान्तत्ंबन्धाभावकृततदभावेत्यरथैः | उपे- wfaraaq uname विपन्लवस्त॒नः सखौ थले किमित्यनेन व्यवहारो छत दति voice वादौ निदन्तरो भवतौल्येव प्रकारेण व्थवहाराभावो नारदेनोच्यते। पेचां कुवैत caw | अन्यया AAU स्यष्टमव at तया वस्तुनोऽभावङतो वयव- हाराभावो वक्रं शक्य दति तात्पयम्‌ |

१२ साधकान्तरमाद तथेति | विषयश्चास्य भुज्यते दूति | विषये wefa पाठान्तरम्‌ विषये we yaa दति तौव पाठः | विषयो देशः अस्य धनिनः | च्रजडश्वदित्यादि |

यत्किं चिष्ट शवर्षाणि संनिधौ प्रचते wat | भुज्यमानं पर ष्णो aga महति

WET. २४ सुक्तिप्रमाण विषे विचारः। dz

दति gave इति मेधातिधिः। तत्‌ धनिकरूपम्‌ तदनं तदुत्पन्नं weeny इति इत्येवं प्रकारेण प्रथमपचं fared Tea इति तथा aaa Tae:

१२ सवथा व्यवदहारभङ्गं नानयोस्तात्ययेम्‌, किन्तु afefac- aca इति प्रतिपादयन्नाइ। व्यवदह्ारेति | भवतोतोत्यन्तेना- चयः वदतोत्यसख उदास्ते दतौत्यचान्वथः। We इत्यादि उपलक्षण- मन्येषामपोत्याइ अबाल इति अस्येति श्रनन्तरयोगे षष्ठौ तत्‌सूचितमाद संनिधाविति जुज्यते इति वतमान- शमो लडित्याद भुक्तमिति | चकारख्मुचेयमाह। तत्रेति | भुज्यते YR! उदास्ते उदासौनः। wa Gene एवमिति |

९४ WWM Berra: श्रध मतमिति। तादृ शोपभोगान्ञ श्म्यादे स्तददिषयव्यवहारस्य हानिः। fa तु तख तादृशस्य व्यवदारहानिश्रङ्ा स्यादिति तज्निट्त्यथेमाखेधो विधेय इ्यासेधस्यावश्छकलेव्यतां विधत्ते इदं वचनमित्यथेः। तदपि ae दूषयति तच्च नेति नल aut स्वात्मिन्युपदे्ः किम- TOG: दृष्टेः | तावदनधः, असंभवात्‌, व्यवहार हानिशङ्कायां सत्यां तज्िदत्य्सुपदेओ aay: | सा कारणे सत्येव भवति नाति, तच्च कारणं विंश्रतिवषेपरिमिता -ुक्रिरतान्यत्‌ तज नाण्यः। वचने SUR: नाद्य TANS) समात्तंति सरणएविषयतायोग्य- कालिकसुक्षा व्यवहारहानिग्रङ्धेव नोत्पद्ते साच्यादिरुभवादिति भावः | नाणडृष्टायं इत्याह | तूष्णौमिति | दोषदयप्रतिपादको- ऽयं गन्धः श्रविवक्ितं खादित्यस्योभयच्रान्यः तथा चेताव-

१४ मुक्किप्रमाणविषये विचारः | व्थ. BWR | |

ग्माजामिधिल्छायामविवकितमतु पपन स्यादित्याद्ययेः | gat नेति watwerge ae विधिवलात्कस््ये यद्यपि तथापि कलर्पनेव तावद्गरीयसौ } हिः रादष्टसत््मेव |

बालाग्रश्रतभागोऽपि निष्प्रमाणक: |

दति न्यायात्‌ किच

भावमूलकतत्कन्पना ऽसंगता एवं \

कल्यनायां बौोजाभावान्नास््मदृष्टायेत्मिति

यदा तदपि याख्यान दूषयति तच्च नेत्यादिना चेजादिकं प्रतिथहादिकं विनो पभुङ्कं इति aca qfaaer व्धवद्ारहानिश्डुगं प्रति कारणलाभाव तदुपपदे ग्रस्ासम्मवान्तूष्णौ नेत्येतावन्प्ा जो पदेभे 4 fa

ऽनुक्रावपि सम्भवात्‌ दति ara: 1

९६ विंश्रतोत्यस्योक्षमानर्थक्यं निराचष्टे | अथोच्यते दिना | wei विश्तेरिति शेषः पश्यत इत्यनेन aut नेत्ये दि श्यते नाधिकं यद्यपि तथापि विग्रतौति साय॑कम्‌ तया हि विंश्रतिवषपयन्तं खामिशृतारेधाभावेन तद्रहितं तावत्कालं वस्तु कपटशृतशेख्यकमपि प्रत्यथिनो पयुक्तं तदा विंश तिवर्षोत्तरं तत्प

श्रो. Ra | मुक्तिप्रमायाविषये विचारः | gh

मिरदेोषिमिति पबदोषोद्धावननिराकरणायेलेन तत्छाथेकमिति भावः| श्रच प्रमाणमाह | यथाशेति शक्तस्य . भिराकरणटे सम vel संनिधा विल्यनेना्ांनिष्यव्यवच्छेदः लेख्येन aaa | विग्रदर्षाणोत्या्षेम्‌ कालाध्वमोरिति दितोया। qua दति भम्बत्‌ | | : | १७ इदमपि निराकरोति तदपि नेति। तथा ae aaa श्राध्यादिष्वपि उक्रन्यायस्य तुद्धवेनाये श्राधिसोमो- पेत्यादिमूलवचनेनापवादलोश्वसङ्गत्या पत्या मूलयोमिंयो विरोधा- पत्तेरिति भावः ननृक्ररोत्या पश्चत दृत्यनेन सामान्यतो fia | तिवर्षोपभोगोन्तर स्वं wyq दोषोद्धावननिराकरणे प्राप्न श्राधिसौमोपेत्यनेम विग्रेषवचनेन तदविषये तथा a fa a : तदुत्तरमपि तदुद्भावनं कत्त्मेबेति बोध्यते दति अ्धक्रापवाद- ; maaan we gat विरोधो भिय दति चेन्न वचनान्तरविरो- Cad ग्यवश्थाया दुव चलात्‌ तदेतदभिरत्य तद्वनमाद | यथादेति। तथा तथा setae काल्यायनादिविरोधो न्यया मियो ¢ सेयमुभयतःस्पाश्रा रब्नुरिति भावः। Safa | श्राधिसो- मापच्रथोरपि तदुत्तरं दोषोद्धावनं श्रपि तु श्रदृष्टमेवेत्यश्येत- | बुभयप्रतिपाचलेनेतदिपरौततया मूलवचनयो्येवस्थायामेतदिरोधः। ऋः MAGN, वच्छमाणप्रकारेणा विरोधेनेवोपपत्तेरिति भावः sa इति निदं ्टोऽये इत्यरथः श्रन्योऽथे इति पाठान्तरम्‌ ` , १८ तमेव खाभिमतमाइ। उच्यते इति इड पश्चत वचने विवक्षितेति तात्पयत इति भावः अरत एवोप-

9

९९ खाभिसमन्तमनाकरोश भुक्तो भ्म्यादिफलस्य नियतकालो ततरः Bez | [हानिः

nafs aaretta | निराकरोश्मितिं | छंपभोभक्रियाविभे- we फलेति | aad anda eerie: aq Sa भद निष्टमलुकितिमत श्राह stetfefa) wea इति avenger: wade वैयग्ये weta) cee न्याद्‌। परेाक्षेति ! साक्रोशे इति। फलानुषरणं लभते waaay: श्रन हेतुमाह अब्रवत इति यतोऽनुवत एव फलद्ानिरतो ब्रवत watt gia: फलमस्तोति भावः निरक्रोशे चति | फलालुखरएमिल्यस्यानुषद्गः |

१९. | ददम्ब्ययुक्रमिति wea नन्विति। फलस्येति। wea: | तङ्खानिरिति | फलदहानिरपौत्धयेः way

_ ea तथापि विषयविग्रेषे फलहानिरपप्नेवे्थद्ङ्गि कारेण

परिहरति बाढमिति। फलङानिनांसि कास्तौत्धाकाङ्ायां यत्र फलं विद्यते तज हानिनै, विपरोते विपरोतमित्थाह मस्येति | फलच्येव्ययेः | was खष्टाथेम्‌ यदा खरूपतः सवोभेनेत्ययः तदिति Stars पुगः क्कः श्वं चायं पूवं पद्विषय इति भावः |

९० प्रह्लतक्वनव्िषिमाइ | यत्पुनरिति | यच्तर्थः | यत्र पुनरिति पाठान्तरम्‌ | स्वत्वमाश्ष सूति | waft खरूप्टाभावाक्फवन्धघटकसखलस्य निटाक्पोत्यय; वश्वमेनेति | weary द्रवयं स्वामिने दापचिला ततो यधा wa दण्डी wea तदन्तादुश्चोप्भोक्ार पापिष्ठं a afar तदापचिला खयं राजा दष्डेदिति तत्पवेकदष्डविधायकेन कात्यायनवकचनेनेत्यषैः।

|

श्लो. २४,२५। खाध्यादो भूम्या दि फलस्य नियतक्ालोत्तरमयि हानिः ६७

अपोद्यते बाध्यते उक्तवचनवलात्फलमृच्छा दिराने प्रापे केवखं लहान चानेन विधौषते इति तदप्वादत्वमस्येति. भावः श्र ware दाजदकहढ इति | वदचनबोधित ce: खलदेतुः अतियशक्रयादिरागमः। वचने तत्‌ क्रिया विशेषणम्‌ | sofa | वदद- लद्धिवके ऽप्रवादाभावाचेत्यथः खोक्रमुपमदरमि | तक्ादिति | meatier सायराध इति arene! स्वाम्युपेति। नष्टमिति, wena इति भावः व्याष्यातमिति उक्व्रन्तस्यापि फलषशनि- WAT सुद्ोजलात्‌ २४ |

| खयाशरुतपरकारग्रयेऽपनुपपन्तेरार श्राधिशेत्यादिना | शष्वरमाच्वडस्य पूवनिपातः श्च इन्दष्टपप्रतिपादमे तात्पर्यं नतु क्रमे तथा जडत्धादि संसाध्य तेन सदोप्रनिखेपादिमि- सिनिबयत्करमे fant इन्दः कायः यथाश्रुते तु श्राधिग्रन्दख wrens निपातसम्धबेऽपि दितौयडन्दरे sare: पूमेनिपातः सयात्‌। अनिह्यलं लमतिकगतिः। श्रत ena गतिर्न्याय्या उपनिधिना eafraqa भेदं दश्थन्नेतदभमाइ उपनिक्षपो नामेति। कथा yea श्रद शेयिला रणाय यदहोयते उपनिधिः | छसुद्रा द्वितयन्धिकरणमुभयनच्र समानम्‌ श्रत एव तच भोगाभाव दति बोध्यम्‌ श्रनोपेत्यबिवकितमिति खचयन्नाह यथाहेति। wire यदित्घादिः। यन्न wee! विखम्भात्‌ विश्वासात्‌, अमेन SUSI सूच्यते | अ्रविश्रद्धित इत्यनेन रक्षथ gua) तथोपनिधीति fret वाक्यम्‌ सामान्ये agar | fanaa दितौयेकवचनम्‌ तद्विना dau: aa Sm |

९८ ऋध्यादौ anion नियतकाभोत्तरमपि शानिः श. ख. २।

योगा्थमाईह | उपनिधानमिति | अभ्वडितलविवच्या राज- शब्दस्य पूवनिपातः wattle विनेत्यस्यारुषक्रो बोध्यः wz पूवेवाक्येन पश्यत इत्यनेनान्वेति | तथा तदेकवाक्यता शाब्दो |

२। श्रथ तात्पर्याथमाद श्चाध्यादिषिति | waa इति केदः afar swage: | श्रथिमापिना प्राकूलसमु्चथः | उपचयेति | wees भवतौत्यथः श्रज रेतुमार। पुरुषेति | aaa: | खल्यसक्वेऽपि दोष इत्याह तथाविधेति | येनेदं फलं asia: | श्रच हेतुमाद। उपेष्टेति | तच तच sratfeg | श्राधित्वोपाधिकं श्वेति आधितलनिमिन्तक waa: | आधिक्योपाधिक इति पाटान्तरम्‌। aa आधिक्यं दद्धिः। Facedfa | wat ated: चिर्टतेति पाठ- म्तरम्‌ सुसाघलादिति पाठः | सुसाधमत्यादिति पाठान्तरम्‌ | मौलक्रमबोधने तात्पर्यादाइ | उपनिस्ेपेति | wre ऽच्याच्‌- तरलाल्यृवेनिपाते sate सयात्‌ प्रतिषिद्धवादित्यस्योपेलोपपत्नि- रित्यजान्वयः। निधानकाले तत्छतं प्रतिषेधसुक्षडुग भोगे करिथमाणे se! प्रतो ति। षटौतव्पुरुषपू्व॑पदकटतौयातत्पुरषः। चो युत्कमे लाभादचत्ययः। व्याकुलत्वादिति | ster query: | waaasfa | तदर्थेति | विषारानुष्टानयोदन्दः शृत्वा तद येशब्देन षष्टोतत्युरषं हला पुनस्लयाणणं ay छत्वा दतोयातत्परष इति

भावः उपसंहरति तस्मादिति कदाचिदिति | विंशतेः ga तचानन्तरं चेत्यथः २५

WH. २१। काध्याश्यप्रहारे Laney |

्रा्यादिषु ्रपद्ियमाणेषु श्रव्यवहितयदण्यसम्भवे वयवहित- याभावात्‌ BETS मानामावाच्वाह ओ्रोियेति | wwe निमित्तमाह चिरेति | धममित्यस्यायथेमाइ विवादेति | च्मनुवाद इति fast भावितो रघादित्यनेनेवास्यार्थष विहितलयान्तच दानस्य विहितत्वेन दानेनेव दापनस्याप्याचिष्तलादिति भावः।

२। उतौयपादा्थमाद दण्ड चेति तस्षममिल्यस्य aren विवादेति श्रतुषक्गणद दापयेदिति | विधि- रिति | प्राङ्धिवाकादेरिति शेषः

2 नग्वयमपि विधिने, fast इत्यच ue तत्छम- भित्यनेनेव प्रजृतधनखमदण्डस्यापि विडितत्गादिति Ga तस्य णा दानमा विषयत्वेमासवं विषथत्वेन प्रकृते sua: सवं विषयत्वेऽपि तच तच विहितदण्डस्य ce तत्छममित्यनेनानुवादात्‌ | mat टोषः। प्रतिपादितमिदं ada तदेतत्‌ ध्वमयन्नेवाद | यद्यपौति | ग्टहान्तरादिरूपदण्डदानस्यासन्भवेनाशक्यलात्‌ 1 यद्यपि शक्रस्यास्ति सम्भवस्तथापि साम्यं दुघेटम्‌। तथाचाध्यादिसवं- विषयत्मेतस्यानुपपन्नमिति भावः श्रादिना

SIV हरणे दण्डा श्रधमोत्तममध्यमाः। (या, व. व्य. Bt. १५४)

दयत्तराधेपरिग्रहः BUS इति | तेति रषः तथा तत्छममिल्यनेन तादृशे Be वच्छमाण एव मूल्यसाम्यदारा दापनौोयलेनाष्य दण्डो विधौयते इति wa) नन्वेवमनाये चैकस्येवार्थस्य विधानादन्यतरण्वा विधित्वं स्यादिति Sai वच्छ

® च्याध्याद्यप्डारे दख्छविेषख | व्य. श्च, २।

arene seuantfafur a waceraares टराष्रनरिधि- रिव्येवसुभवच विधिसम्भवात्‌ |

४. | तुयेपादायंमाहइ | श्ूयेति | बङ्किति पूर्वान्वयि शल्य पेशन्स्य . मर्यादामाइ | यावतेति | एतन्नाभोपायमाद | Sug इति | तेन दण्डन दण्डेति cae गौोतमौये careew दमनायंत्वस्यो कलात्‌ इत्यथः तथा तस्य यो गश््‌ढत्वेन यो गवश्नेन awafaft भावः श्रनेवेवाधिकखेव arena विनिगमका- भावाश्षथोश्वा संग्रह cay यस्य fafa एवमेवानेनेव wal विगरेषान्तरमाइ | यस्य पुनरिति | we वित्यथेः aq चिग्दण्डादैर्दष्डलमेवादाव्रबिद्ध, सिद्धेऽपि वा दण्डते तदिधिः कुतो ऽवगम्यते श्यत ame! तथा चेति | धिग्दण्डो fur धिभिति gama | वाग्दण्डः; परुषवाक्यवचनात्मकः। धनदण्डो WATT: | वध्द्णडः. WUT बन्धरोधादिजो वितवियोगान्तः।

५। एते चतुर्विधा दण्डा व्यस्ता wan, wea दिभाश्िचतुरा वा ऽपराधातुसारेण प्रयोक्ता: तद्र

मनुना, (अर. ८। शो. Rees)

वधेनापि यद्रा लेताज्नियोतु श्क्कुवःत्‌ तदेषु सबेमयेत्मयुन्ञौत चतुष्टयम्‌ इति |

वधेनापि ताडनेनापि अपिरम्यसबुखसे | उक्करमेश पूवं- Yaar SAT: छन्तरः प्रयोक्रयः। तथा चाच प्रथमतदनन्तरटतो - यातःपर अब्दा धिम्दश्डवाग्दण्डधनदष्डवधद णडा नां मध्ये पूववा पेच- योनरोत्तरस्छाधिक्यप्रतिभादका. म. तु waa प्रथमादि

Git. शद दर्डविग्रेषाः। St

करमेण कन्लव्यताप्रतिपादका इति बोध्यम्‌ we पाटः AWS धिग्दष्डस्लथेति मृश संवादो

मेधातिथिना तु आरा्थोययत्ययेन पाठं टला थो रण वानोषद्मयममेवापराधं BART वाचा निभः, ay गुणवानसि मा gata कार्षीरिति। तथोच्यमानो यदि ततो a निवत्तते तदा भिग्दणष्डन yarfafae: परुषवचने मिष्य: | एवमयेऽपौति व्याख्यातम्‌ |

° *नारदेन दष्डदेविष्यञुक्षम्‌ cafe,

श्रारोरखायेदष्डञ्च zug fafa: स्मृतः | ारोरस्ताडनादिस्त॒ मरकान्तः watfaia: काकिश्यादिखलर्थदण्डः सव॑खाभ्नस्तयैव इति दिविधोऽप्यपराधानुसारणानेकधा भवति श्राह

रव,

MOC दश्रधा प्रोक्तो हयंदण्डस्वमेकधा इति।

ददं टरण्डकयमम्‌ ब्राह्मणादिसवंविषथम्‌। मच राजा Baas जाद्युएवजेमिति गोतमाश ब्राह्यणा दण्डा इति वाश्यम्‌ तख प्रशखा्थेलात्‌। चेवं wafer: परियो wafa प्रागकषखो कतिवि- रोध इति वाश्यम्‌ ्रष्ेतदव्यवदितपूरवं तनेन खेनेव, एष बभ्रो

“sat श्लोको नारदस्रतो पररिणिदटभागे उपलभ्येते। wit शखा्थदण्डखेत्यस्योत्तराधेः शारीरो दश्रधा प्रोक्त इति ये aaa) ५९। ५९ श्लोको श्रारौरस्ताडनादिरिति Bash पूर्वाधोत्तराधयोः विपर्मासो दृश्यते A

SR दग्डविशेषाः। ष्य. ख. २।

भवति शोकषेदवेराङ्गविदाकोवाक्धेतिहासपुराणड श्रलस्तदपेशस्त- इत्तिखाष्टारलारि ता संस्कारः defer कमेख भिरतः षटसु वा सामयिकाचारिकेव्वभिविनौत इत्यनेन, प्रतिपादि तबहश्चतविषयल्ेन जराह्मणएमाचविषयत्ाभावात्‌ प्रतिपादितमिदमधस्तात्‌ व्याख्यातं च। | तदेतत्‌ ष्वनयविगेषमार वधदण्डोऽपौति | ब्राह्मण- व्यतिरिक्तानां ब्राह्मणव्यतिरिक्रानां तु कचिन्तयेव पाटः। + [अज कविद्धदण्डोऽपि शारौरो आाद्धणव्यतिरिक्रानां नवधा fia इति Ws) वच्छमाणाद्यवाख्यानानुकरलः। श्राद्यपाटस्तु दितौयव्याख्यानानुकूलो दग्र खानानौल्यकिखरमसिद्धः। शरौरो दश्धा stm इति नारद्संवादौ चेति बोध्यम्‌ ]। तच मानमाह यथाहेति | fag चजिथवेश्वशद्रेषु वष थानि दण्डस्य खानानि ताजि दश सोऽ्रवौदित्ययः। ददभुपश्चख्मनुलोमादेरपि। तदेतत्‌ WAGE! Waa इति | शरौरसकलवधदण्डरहित इत्ययः व्रजेत्‌ WHINY युरादा | USGA खानम्‌ श्रव्यवहिते- नान्धेति श्थानश्रब्दोऽज विषयपरः। वन्तव्रदेशे पौडनोय इति maa, धनदण्डस्य एयम्विहितताच्छारौरभदमध्य तदुक्रिः Gata ऽखम्नद्धा चेति वाच्यम्‌ धनहृतापराधे तदण्ड एव नान्य Waites पुमसतदुकेः | ATG Gag तन्तष्यलप्रतिपाद- नाय यदा तत्पोडया शरौरपोडापरो ऽथमन्य एव ततो घन- दण्डादिति प्रकारान्तरमच मेधाति्थिनोक्ं तत एव बोध्यम्‌ |

*( ] र्तचिहम्यख्यः पाठः एक न्तरेऽस्ि | e

at. २९ | दण्डभेदाः |

< श्रथवखानिरासायोक्रल्तात्यवेमाह वेषां चेति। उप्थादौनां मध्ये इत्यथः | उपस्थमच स्न पुंसयोः प्रजनोत्पादकम्‌। यत्र दण्ड विगरेषो नान्ातस्तच यस्य यत्छतापराधस asa पौडनोयः। तचागम्यागमने उपस्थनिपरहः | wierd उदर नियर श्राहार- निदत्यादिना। वाग्दण्डपारयये जिष्डायाः, केदः चौं Cea: | west बलवट्ब्यतिक्रमात्‌ पादयोः राजदारदिदृचायां qwrt: | तदनुलेपनाद्याजिघरतो नासिकायाः राजादिरदस्यं भित्याद्यन्तरे प्रवतः AWA: महापातकिनो मारणे दे दस्येति बोध्यम्‌ |

१० नतु श्राध्याद्यपहारे महादोषे ्रकिश्चनस्य धिग्दण्डा- GMAT तस्य खन्पापराधविषयतवादतः तचैव पचान्तरमप्याह | कर्मेति। अच कमोऽपयेवमेव बोध्यः। मेधातिथ्युकर, श्रये ऽधकरा- Rang iw मानमाह यथोक्तमिति धनेति | स्वधा ` धमदानाचमं Wat waa कमं कारयेदित्यधंः। spy TAROT ब्राह्मणादृते दत्युभयोः भेष इति ध्वमथन्नाद Teta | Yara! श्रधिकरणस्य गरेषल्विवच्या षष्टो, प्रयोच्या- Daa कन्तयानौत्यरयो ai अटृत्ताविति | Meal दुराचारे ऽन्यायिनि ange खव्यापारनिरो धान्यायप्रख्यापनादोनि कननैया- Treat: | ब्राह्मणे दति प्ररतलाल्षथम्‌ नारदेनापौति | उक्रो- ऋभित्यचान्वयः वेधः प्राणविथोमानुकूुलव्यापारः निर्वासनेत्यस्य नित्यसापेचतवेन एुरादिति विगरेषण्णव्ितलेऽपि समासः, तदङ्गेति। awa ऽपराधसदङ्गत्यथंः। वधाहते इति | एष दण्डविधिः wa दत्यस्यालुषङ्गः | तदेव विश्दयति | वधमिति।

10 |

02 दण्डभदाः। च्य. WR}

१९। वधारुकर्पमाहइ शिरस दति | शरत एषं मनुः, (a. 51) BAYS: सुन्द nM दष्डमहति। (gt. १२५९ ।) मौण्ड्यं प्राणान्तिको Tet ब्राह्मणस्य विधौचते इतरेषां लू वर्णानां Tew: प्राणान्तिको भेत्‌ (ज्ञो, Rae) जात्‌ ब्राह्मणं इन्यात्छवेपापेव्ववखितम्‌ राषादेनं बहिः शुर्यास्मग्रधनमदतम्‌ ( शो. Ge) ब्राह्मणवधाद्भू यानगधर्मो विद्यते भुवि AMS वधं राजा ane ऽपि. चिन्तयेत्‌ इति Wt. ३८१ यमोऽपि, ` + सर्वेषामेव वर्छानामन्याग्यस्यापराधिनाम्‌ ` श्राररं wrige दण्डं धम प्रकष्पयेत्‌ ¢ amid इन्यात्‌ ATTA तद्धनम्‌ ` TWAS वधं राजा मना ऽपि चिन्तयेत्‌ #. ATA. ब्राह्मान्‌ प्राः सवंपपेव्ववसख्ितान्‌ ! - यद्यदविप्ेषुं Gus तत्तदा जा समाचरेत्‌ दति सुमन्तुरपि, मात्तता यिवधे दोषो sea गोत्राह्मस्वघादिति | हहस्यतिरपि, महापातकयुक्रोऽपि विप्रो वधमहति जिर्वाखनाङ्ूने मोण्डय' तख क्ु्याक्नराधिपः इति

wt. २६। दखभेदाः। ey

` वधादृते ब्राह्मणश्च दण्डो भवति करिचित्‌

शरव्या ब्राह्मण गावो लोके ऽभिव्वेदिको सृतिः

ईति स्मत्यन्तरमपि | |

१२। पुशादिति। श्रतं एव

AY, (अ. <। शो. ३८। gad). seater असंथाज्या श्रसन्पाद्ाविवाहिनः | चरेयुः efaat दौनाः अर्वधमेवहिष्कताः ` श्ातिसम्बम्धिभिसखेते are: शतलकणाः |

निर्दया निनंमस्कारारक्मनोरमुश्रा समम्‌ इति | १३। लल्लाटे चेति | श्रत एव उदस्यतिः, | हस्ताह्िलिङ्गनयनं fret कणौ नासिका। मोवा पादाद्भधंषन्दं शलाटौष्ठं ye कटिः स्थानान्येतानि cee fafesrfa चतुद METS ब्राह्मणस्य नान्यो दण्डो विधौयते cia

९४ प्रयाशमिति | wa टव

यमः, त्राह्मणएस्यापराधेषु waa विधौयते | शिरसो मुण्डनं ee: पुरान्निर्वाशनं तथा प्रख्यापनाये पापस्य प्रथाणं Waa चं | were चाङ्करणं कुयाद्राजा यथाविधि इति

दितेति। मनुनेति ae) गुवति

oq TWA | yy. Bz |

AGM सुराप सयो FATT: | एते श्वे एक्‌ Har महापातकिनो ac: (श्र, २२१५) चतुर्णामपि Saat प्रावचिन्तमकुरव॑ताम्‌ | शरारौरं धनयुक्ं दण्डं धम्यं भकच्पयेत्‌ २२६ TANTS: सुरेति | सराखम्बन्धो at ध्वजः कायं wer पदं एनः पदम्‌ अशिराः कबन्धः | ब्राह्मणस्य ब्रह्महत्यागुरुतच्यसुवणस्तेयसुरापानेषु कबन्धभगश्च- Usain ललारोऽङ्यित्वा विषयान्ते निर्वासनमिति बोधायनः, बराह्मणएस्यापराधेषु चतुष्बेडो विधोयते | AAG सुरापाणे VI HU easy ALA भगः कायः सुरापाणे सुराध्वजः | स्तेये तु श्वपदं wert शिखिपित्तन पूरयेत्‌ विशिरा: पुरुषः कार्यो were दिजघातिनः | श्रस्भायद्ठ॒ कत्तेयस्तन्मनोर नुग्राषनम्‌ इति नारदः | (प. ४२।४४।४१५।) श्रिलाश्चनं गिखियोवमित्यमरः। श्रखापवादोऽपि मनु- नोक्तः, (श्र. क्षो. ९४०। २४१) safari लु कुर्वाणाः सवं वर्णां यथोदितम्‌ | नाद्या राका ललाटे स्यदाण्ाख्रत्तमखादसम्‌ श्रागःसु ब्राह्मणस्येव कार्यो मध्यमसादसः |

at. २९. SHAT | 89.

निर्वास्यो वा भवेत्‌ cerega: सपरिच्छदः इति परिश्छद शब्देन युबदारणश्त्यदस्श्वादिखन्पद््यते सपरि- ग्रह इति पाटठान्तरेऽयेवम्‌ तद ङ्गच्छे दोऽपि ब्राह्मणस्य नास्तोति प्रतिपादयन्‌ विरोधं परिहरति यत्ति भ्रापस्तम्बे- नोक्तमिति | ्रापस्तम्बवचनमिति पाटन्तरम्‌ | चक्षु रुद्वरणमिति | चचुषोरद्धरणं aed इत्यथैः कचिन्तयेव Ws: | मनु प्रागृक्रमाइ इति | गोतममाद न्‌ TIT ब्राह्मणे दण्ड इति | प्रथमादिना प्रागुकमनुगौतम- वचनान्तरपरिग्रहः। दितोयादिना म॒ लञ्गभेदं विप्रस्य प्रवदन्ति मनौषिएः | तपा चेज्यया चेव ब्राह्मणः पूयते सदा प्ति हारौतस्य, aaa जयां वर्णानां धनहारको वधबन्धक्रियारूपयोगो महत्खपि पातकेषु विवाषकरणं ब्राह्मणस्य प्रायधित्तानि वा शोचन- मपोद्यो fe ब्राह्मण इति शङ्कलिखितयोः, प्रागक्त्टतोनां परिः | स्वेखदरणमपि ब्राह्मणस्य नासि सद्रव्यः सपरि- च्छद Ta TAT शतवन्तस्तु पापान्येतान्यकामतः | सवंखदार मदन्ति कामतस्तु प्रवासनम्‌ दति मनक्तः (श. ८।९४९)) | चयाणं वर्णानां घधनापहार वधमन्धमक्रियाविवासनाङ्करणं aT WEA तच. धनापदारः सर्व ख्ापहारो विवचितो

MNAIVERSITY OF 111011१4 1 १८९१९१८

€< SURAT: | व्य, अ.२।

वधाहचर्यात्‌ शारोरस्ववरोधादिरिति प्राग कनारदीये वध- खवेखहरण्योः पाठाञ्चेति तस्मात्‌ ब्राह्मण श्रारोरः सर्वाऽपि दण्डो नासि कदाचिदपि प्रागृक्सृतिकदम्बात्‌ | आचाय WHAM पितरं मातरं गसम्‌ fear ब्राह्मणाभ्गाञ्च सवदैव aufen: | (म. अर. grat ११२९।) दति Aaa! धनदणष्डमध्ये Tew नासि तदन्यधन- cee! समयधनमिति तु प्ररृतसाहसविधयम्‌ ange area: पूर्वं इति मनुक्मेवम्‌। तथा धिग्दष्डवाग्दण्डौ aig

, afafacieut विवासनाङ्ककर णगदंभप्रयाणानि पर्थवसि-

तानि। इदमपि प्रायिन्ताभिच्छोः। तदिच्छोस्तु तदेव नैतत्‌ | एवं बडञतश्यापि किथित्‌। किं तु Gata भिष्कृतिं कुर्यात्‌ सा ऽपि खल्या प्रायचिन्तप्रकरशे स्फ़ टौभविग्यति श्रत एवापि सा्िप्रकरणे मूले उकम्‌ ; (या. अर, 81 श्लो. oe 1 BaD) Way एथक्‌ दण्डनोयाः कूटशृसाचिणस्तथा | विवादात्‌ fare दण्डं विवास्यो ब्राह्मणः सृतः यः साच्यं fant seat निन्दते तन्तमोदतः | दाप्यो षटं दण्डं ब्राह्मण तु विवाषयेत्‌ दति सेयप्रकरणेऽपि, (या. श्र. २। चलो. Ves 1) सचिष्डं ब्राह्मणं शला खराद्रादिप्रवासयेत्‌ | दत्युक्रम्‌ | मनुनाऽणुक्रः (अ. २८ wt. eee) कौटसाच्छं तु कुर्वाणंस्तौषव्णान्धार्मिंको au:

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af. २९१, 29 | दष्डमेदाः। es

प्रवाबयेदष्डयिला ange तु विवासयेत्‌. इति श्रार्थाऽये Bears we प्रवास श्रोषच्छेदन जिहा- Sea प्राणवियोअनं येति aura बोध्यम्‌ ) faaret निष्काश्नं नप्नोकरणं वा ग्टहभक्गो वेति यथायथं बोध्यम्‌ तेयं व्यवसा णोभारिकारणएविश्रेयरिज्चाने spate ब्राह्मणस्यापि तच तजोक्रो Nice एवाभ्या्े aizet विवासनं तापि नातिद्रयासु- श्धाचचपेचया विवासनं नप्नौकरणं दरदभकङ्गो दे भ्राज्िर्वाषनं चेति

$ are gear लोभादिकारण विशेवापरिन्ञाने ऽभ्यासे चाल्य विषये | कोटभाच्छे न्ाद्यणएस्यापि खजियादिवदधंदण्ड val महाविषये तु

दे ्रालिवांखनमेव श्रषाणन्यासे सवेषामेव मनुकं बोध्यम्‌

i चअक्रिश्चनख्छ तु. तस्य निमिन्ततारतन्येन मौष््या दइकरणगदेभप्रयाण-

गिन्दश्डवाग्दष्डाः क्रमेण योध्या इति सम्रधम मित्या

ब्राह्मणख्याथेदण्डो नास्तोति वाच्यम्‌ श्रयेदण्डाभावे शारोरदण्डे

निषिद्धं खल्पेऽपयपराधे sare नदमोकरणग्टहभश्ाङ्करणएविप्र-

वान दण्डाभावो वा प्रसच्येत यतः, चतुर्णमपोति प्राकृतः, | सष ब्राह्मणे दण्ड्यो Tat विप्रां बखाद्भजन्‌ |

aft gaat दिक्‌ एवं क्मकारण्वन्धनागारप्रेशरावपि arg

We नेति सिद्धम्‌। तदेतद भिर्या इत्यलं प्रसङ्गनेति ॥२६॥

१। waafeaa सङ्गत्यभावार्‌ व्यवडितेन सद्गतिमाईइ wafer | weit Waa Casta भावः भोगमाश्स्य केवल- wire) एवमयेऽपि। श्राद्यपादाथं शाब्दं खलो पादक हेतोर।गमस्व

भोगात्राबस्धरूपं विशिष्टभोगस्य खले प्रामाण्छमभिप्रायतो ऽभि-

ce भो गापेच्चया ऽऽगमस्य प्राबल्यम्‌ | व्य. ख.२]

Weary | स्वत्वेति | ay हेतुमाह स्वत्वेति | भोगस्य wa marge प्रतियदहादि सापेचतया प्रतिय्ादेस्त॒ खलोत्यन्तौ भीगा- गवेचतया सापेच्चनिरपेखयो निरपेरं बलोय इति न्यायेनागमख प्रतियरा्यात्मकस्य ततो बलोयस्वमिति भावः। श्रन मानमाई यथाहेति। यथाकथंचिदागमस्यापि तद्धेतुलमित्याह विशद्धेनेति। कापय्धरहितेनेत्य्ेः। ददभेव व्यतिरेकमुखेन द्रढयति | afaqeta | तदेव fauzafa a fa | Clare: | एवं चेद मयुक्रमेवेति शङ्धा्रयः। समाधत्ते परेति। तथा ae तद्यभिचारिलेम त्वमिति तदुक्रमेवेति ara: | श्रनापि भारदमेवाह श्रत रवेति | सयते दत्यचाकयः | केवलतः केवलं, सावंविभक्गिकस्तसिः। wea व्यवच्छेद्यमाह नागममिति | कचित्‌ कवचिदपि यदा कापि व्यवहारविषये ` भोगेति | भोगच्छलस्यो पदे शेन क्रथनेनेत्ययथेः कलापे गेनेत्यप- “aa, पौनरश्षापन्तेः। फलितमाइ अतश्चेति ae ततो बशवला चखे्ययंः। तज तावत्छामान्यत we: सागम इति। ara: विष्द्धागमखडितः | दूौर्धेति बडत्रोदिः। एवमयेऽपि अविच्छेदः निरन्तरः, अपरिवजितः निराक्रोशः। विच्छ दापरवोश्श्छित इति पाठे विच्छेदश्चापरवञ्च ताभ्बासुज्छितः रहितः श्चाविच्छदो ऽपरवोष््ित दूति wag aw एव श्रपरव . आक्रोशः विश्छेदरडितो निरन्तरः श्रपरवरहितो निराक्रोश्रः। प्रत्य्थौति | ` यभिकरशूप्दो asatfe) apf: प्रतान्व- समुायकः।

Wit. Re | येक्रमा्रतभोगस्यागमाद्‌ प्रासम्‌ ` ८.

९। छक्रपञ्चविगेवणानां व्थदस्छाये पूर्वावता रितक्चगश्ेव रितोथपादमभिप्रावतो ययाखातुमदतरणमाइ कन्रिचेतिं | "कयिष्ठला धिकरण्न्याधेन वच्छमाणवाक्धकदम्नानुरोधेन. चाह कयाशामिति | नित्थसापेशलाहू न्तिः उम्भवर्येकवाक्धले दति an@are श्रागम इति तांत्प्थाथंमाह पुनरिति 1 पूवक्रमागतो भोगख्ित्धयः ्रगमादित्धादेस्तात्पर्था्ेमाह | श्रागमेति | Mey प्राम्बत्‌। अच WTO तञ्चरान- Acdeged, तु तन्सन्तानेरपेशच्छटतमिति farce! तथापीति | ज्राममनिरपेख canary) Tea faa: |. त्रापि कञिदागमोऽस्तौत्यागमसद्कवन्नानाव्येचा तु श्रयम्‌ arma इति शटङयाहिकया तेज्च्रानापेङेति भावः |

2 शन्वेवमपे खितश्क्ामद्धके किं मागमत STE! सन्ला-- त्विति | aa पिथिष्टेगो पभोगेनेव भन्वेवमन्योन्याख्रयग्रसन्गः | तथाहि प्रमाणभूतेन वतादूश्रभोगेनागमसन्ताऽवगतिः saa QUAN AVM प्रामाण्यावधारणमिति WIE: रिरकाखोपभोगानुपपस्तिरूपार्थापश्याऽऽगमसन्ताऽवगतिः। - तखा- मवगता्यां - aqageaatae प्रामाश्छनिदशय दति शाचात्रमाण- दतेन भोगेनागमसन्साया अनिखयान्नान्योन्याश्जयः Wawa तु तद्दारकार्थापन्िरूपप्रमाफेनेवेत्धये इति भासद्गतिः। तथा. आगमो ऽभ्यधिकं cay aed दिविधभोगस्य प्रामाण्छभमिमतं ga: . आआततेकाशिकः. wera सः | |

11

<Q Been णिकस्य भोगस्यागमापेद्यत्वम्‌ | BBR

तद्भवं fawq योग्यतया थवस्छाचेमपवाद विषय- fawe विना नोत्छनं विषयनिणेय इति बयत्कमेणाह विभेति | प्रदश्नार्थमिति | विषयेत्यादिः। तथा सति श्राद्यचकारस- दय शरस्य तदपवादे स्तौति aed: अत एव सामान्यविगेष- पथेवनेनादइ | श्रागम इति दितोयचकार स्वं WTA | सर णयोग्येत्यथः। warnafeat भोग anagafacee: स्माररैकालिकस्त श्रागमज्ञानसापेख इति भावः |

Wag भोगङ्पप्रमाणस्य कचिन्ततापेचतवं afar कुतो ऽवगतमित्धतो atente साज्जिष्यार्‌ atu दितोयमेव घेतुमा₹ तश्चेनि | उभयोरकरौत्धा विषयभेदाचेत्र्थः। aga: खत्यभाषेऽपि तचखयष्टलादार। योग्ये इति श्रभावप्रत्ये Sagas: कारणतख्च तन्त्रान्तरे sfegarare | योग्यानु- Ufa | सरणयोग्ये काले प्रतिरहादिष्ूपस्यागमस्य प्रभिति- योग्यत्वे waft तदभावादागमाभावनमिख्यः। सिद्धि तसख्िन्केवशभो गस्य बलात्कारेणापि सम्भबेनाप्रामा्छप्रशक्चान्तत्ापे- उत्वमादष्यकमिति भावः |

Ware तादृगमादइ। ्रस्मार्त्विति | श्रसरणयोग्मे cae: एतदिशेषण्णाभावेऽपि विग्ेवणान्तर षन्ता sofeaaare | सन्तत इति | निरन्तर दत्यर्थः। ददसुपशल्षणं Jara देरपि। awa सत्थगुपलयिरयोग्धानुपशयिः। अद्धतिथोग्य काले प्रतिग्रहादिरूपस्य -प्रमायोग्यलाभावादेव योग्यानुप wana: | अतस्तमागमो नास्तोति निखेतुं wes अभाव-

wit. २७ वभशताधिकात्वादिविभिर भोगस्यागमानपेच्छत्वम्‌ च्ड

ग्राहकप्रमाणष्य थोग्यानुपश्चमेरभावात्‌ | एवं पूवं तत श्रागमा- भावनिखयेन चद्यपि भोगो प्रमाणं qeafeer, तथापि waa तु श्रागमामावनिद्धयामावात्‌ मूख यिष्याभावेन तन्निर- Qeafafa तादृश्यो भोगः प्रमारमित्ध्थंः |

क्रिया प्रमाणम्‌ नुगमेति तजनिखयशागा- भावादित्ध्ंः। ये गत्यर्थास्े ज्ञानार्था इति भावः। कमात्‌ प्रपितामहा दिक्रमेए। arate परमावधिमाइ। स्मातशेति | अनुगम्य खाकाङ्कलान्तां पूरयन्‌ प्रागृक्कवाङ्यताये सप्रतौकं तत्पदं Bw | अनुगमेति | caer दति we:

विगेषं ak विना Ware विषयं विग्रेषसुपसंरति Vala | उक्रेतोचेग्यथेः। वषंति | अनेन दौ चंकाणलसुक्म्‌ | सन्ततो fac: श्रप्रतिरवः गिराक्ोशः। प्रत्येति। प्रह्य्थिन इत्यादिः भोगस्य विग्ेषण्णन्तरमाइ श्रागमेति। ancaenfz: | श्राकित्तेति | बहव्रोडहिः। गम इति पाठः| ततश पश्च विगरेषणमध्ये waa स्मातेकाल विषयम्‌ श्रन्य्तुष्टयं तदन्यविषयमिति waar खिद्धा। तं विधेषमेवाह। सा्तेऽपौति।

< 94 मानं मनुमाहइ। अत श्वेति। तस्यां wai तस्याप्रमारत्वादेवेव्यथेः | अन्यया ऽनागमोपभोगे विग्रेषेण दण्डविधानं मनूक्रमयुक्र स्यादिति ara: |

१० मनु away श्रपिः ससुश्चये, तया शोक्रम्‌, श्रपिः सम्भावना निटत्यपेखासमुशयमरहा प्रोःखमयेग्डषणप्रस्रखिति, तथा

we च्नानमद्धतिषरग्बराथरं भोगो wae). ख.

बहन्यम्द गरतान्यमिबापणापि swe दण्ड्य Leanne भेकवर्षोपभोगे एव॒ Twas सम्भवो गाम्ययेत्य पिष्ष्दवकाद्र vinta aay | तथा दृत्थाद्येकवच्ननि्हंादपि। वथा च॒ एकञ्चिरकाखमनागममुपशुद्के ZU TENS CES बहरा, यपिद्परण्यरायातभोगे तु भोक्ृणासनेकला रो ges भोक्रभावेम प्रयममनागमेगोपभोक्षरेकलेन तद्देव WITTE दण्डो दितोयारैरिति, ay भोगद् sree ऽवा- गमस्मृतिपरणन्परा्थां भोगे प्रमाणमिति यदुर ACEH भिल्या्येन wea चानागमं त्विति यडा sfame: वमर्थवाचौ, खक्रह्ेतोः | तथा सानागमचिरकाललो TAR थः wae: एव दण्ड्यो गान्य can प्रथमच्धेव सम्लेल दितौषारैः परष्पराथातभोगले ताद्शसामर््याभावाक्रथम एव Tay Cane wet | चेति प्रयागात्‌ Nts) Tee AVA TEAM परत्यराथातभोगविषयम्‌ अपिनेकमाजकटेकराने- कवर्घोपभो गुथः WET ल्य बाधारण्लादपिना तदद्य काश्ोपभोगसमुश्चयः

|

९११। went fare चैतदिति | wear:

कारणं क्रिया प्रमारमिति यावत्‌ नारदेति मथ्येऽपि सखागमाया एव शुक्रः .मामाश्छमोधकनारदवचनादिष्र्ः; दत्य जोदेश्यगतनेने कल्या विवङितलाच्ेव्यपि बोध्यम्‌ तथा चं way सागमभुक्ः प्रामाण्छमिति दितीयादावपि निशागमोफभोगे दष्डो दुर्मिवार दृत्थनागमस्मृतिपरन्रा्थां wat भोभो Be

शशो. ९७ fate सातं कालिके पभो गस्थप्रामाद्छम्‌ | *

प्रमाश्मिति fige ataqadecta) तस्मादिति 1 सवच शरादौ मथ्ेऽनते Gerd: 1 एवं चापिः सम्भावने, agua मापि शम्यं इति | बङृष्द शत्या पितेन ae भोगः शम्भाश्यते देज्िरागमखङिं ताद्ग्रोपभोगवानेपि पुरषो दण्ड्यः fayar- जागमाश्पभोगवाभिति तात्पर्याथंः |

२। नन्वस्मरणथोग्यकालिकस्य पूवंक्रमायातष्धेव ATA जागनिरपेच्य प्रामाण्यमिति यल्िद्धान्तितं तदयुक्रम्‌ | अन्यरयेनापीति वाक्ये ऽन्याबेनापि fear age तथा पूवतरेखि- मिदं AMATI प्रत्यपहारो MN KAT <नाममोपं- भोभख्य सारणयोग्यकाशिकस्यापि प्रामाश्छप्रतौतेरित्थाज्येनाइ | यदथ्यम्यायेनापौति अचान्यायेनापौति निरागमभोगण्थ श्रामाख्प्रतिपादक, पिचेति सरण्योग्यकाशिकस्येति भावः | खाशेकाशिकोपभोगस्य afetea marefata sa thia परिश्रति, तदपि fear aefa श्रयं भावः। पिभा wate rena, येन पिचपभोगष्य स्मार्भकालि- wan तादृ श्मिरागमौपभोगख्छ mre ख्यात्‌, sft a संहार्थयोग दयं ठतौधा तथा fra सह पूर्यतरपुरुष्रथोप- भोगे क्रमेणाविच्छिन्ने तादृशे जाते तत्सेणादिकं तस्मादपरं शक्यमिति प्रागुकेकवाक्यतथा सम्भवतीति aaa Saat ऽनेकयुर्वोपभो गच्छ चिरतरकाशं विना ऽसभ्वेनासारतकाशिकोप- wre meget a face स्ाक्ंकाशिकोपभो गस्य प्रामाद्छमिति।

अद्मातंकालभोगस्यापि थागमवन्तापे तत्वम्‌ च. SR

१३२) ae, जिषुरुषागतमित्यनेनानेकपुरुषोपभो गल्ाभेऽपि RIAA AANA ऽत श्राह तापि क्रमादिति लच्णेति भावः शक्याथत्यागे बोजमाइ | चिपुरुषेति। पाचा- fear खोतल्वाभावस्तचज एवं पूवकातौखेऽपि। प्रसङ्गादिति पाठः। प्रसङ्ग दति. पाठे चत दत्यादिः। erate निराचष्टे तथा Bata | we अस्मातेकालिको ata: प्रमाणमिति, तथाऽपि तस्लागमसत्तासापेचवेनान्यायेनापौत्युक्तिः कथमत श्राह च्रम्धायेनाप्यैति | शस्यं ay बौोगमाह। श्रपोति। SUT तदानथंक्धं WAT!

९४ नन्वस्मात्तेकालिकौ भुक्रिरागमन्नानं ated agai लपेचतणएवेत्युकमयुक्ष, यदना ऽऽममभिति वाक्ये <त्यन्तमिल्य्वा सर्वात्मना युक्तस्तन्नरपेच्छेण प्रामा्प्रतौ ते रित्याश्येन wed | यञ्चोक्तमिति | यदणक्रमिव्यथः। भ्रत्यन्तसुक्षमागमं विभेत्यग्बयः। ्रागुक्रौल्या परिहरति तथापौति उकवाश्येऽपौत्यथेः | sfa वाक्यम्‌ अत्यन्तम्‌ अतिशयेन उक्रेतोः Weare | उपेति | grea: आगमखदूपमपि fata! वास्येय- मित्यस्यानुषङ्ः | wa हेतुमाड | श्रागमेति। यत इत्यादिः। अरय भावः सर्वात्मना ऽऽगमन्नानस्यास्मातंकालिकोपभोगे ऽपेलाया श्रभावादत्यन्तं सर्वात्मना osama विना ऽस्मात्तंकालि- कोपभोगे aff sqm वस्त॒ तदपाइतुं a शक्यमिधेव वाक्यार्थो तु वस्तुत want विनाऽणुषभोगात्छतमस्तौति, येन प्रा्क्षविरोधः स्यादिति उक्रवदिरोधमजापि परिश्रयति,

wat. Ve | Ararqarquamafafaat भोगः कालान्हरे खेत्दबोधक्षः। Se

क्रमादिति sarafafa | अर्नात्तकालो पलचकलेनोक्ाथेक- faa: | afegamanfea उपभोग श्रागमन्ञामनिरपेखः प्रमां समात्तेकालिकस्ठु तद्षापेदश्तथेति |

१४५ तचाग्चमाङिपति। नन्विति | प्रामाण्येति | MATS FEM तद्तुपपन्नमित्ययंः। श्रनुपपन्तेः स्फटतया ऽभाषा- त्तासुपपादयति तथा होति | यमागममपेचते भोगः किं प्रमाणन्तरे्णावगतो ऽय वा नेति fane इदि मिधायाधे STATE | यद्यागम इति प्रमाणान्तरेण भोगान्येन प्रत्यचा- दिना तेनैव मानान्तरावगतागमेनेव मानान्तरावगतवेनानुप- युक्रलादाइ श्रागमेवेति | तथा मानान्तरप्रमिते उभय ज्ञापकल्वासम्भवेनानुत्पादकत्वेन चाप्रामाण्ान्तत्छापेखो भोगः प्रमाए- मिति दुवंशमिति भावः दितौये दोषमाइ रथेति श्रनव- गतागसेग बै शिष्चास्भवादिति भावः) प्रथमपरचादरेऽपि काल- विशेषे तद्पयोग ware) प्रमाणान्तरेति | मानाग्नरेणेवा- गमावगमो यद्यपि तथापि वादृश्रागमविशिष्ट एव भोगः प्रति- परहायु्तरभाविनि कालान्तरेऽपि खत्वबोधक इति भावः।

Ce | नतु तथाऽवगतागमेनेव खलावबोघे किं भोगेनेत्यक्ष- मेवात श्राह शवंगतोऽष्येति | अलं war) उपसंहरति watfa | इत इत्यत we मध्ये इति |

१७ श्रव्यवहितसङ्गतिमाइ श्रागमेति | प्रमाएमित्यस्य खादिति रवः स्तोकाऽपौव्यखख यास्या सखल्यापौति। बल मित्यस्य व्याख्या सम्यणेमिति | गतु श्रश्योदाहरणं किमत

Se पूर्वापरकाजापरिश्चाने भोगरद्दितागमाद्धो गसद्डिवाममस्य प्रावश्यम्‌ , श. ख. |

आह अयमिति दितोयचखयं ay at aes सविक्ल्पेति तु Ward मरौोयमेतदित्थाद्भिवदभ- विषयकस्तष्छन्यो वा शविकच्यकश्ागरूप cya) यदा © इति fad od, वाचिकष्ठु = खोकारो यसाद्ग्रस्य frau- ARMM CNG पुमः तु। तच छकरूपकायिक- Wart च| करे Wes | दापयेत्‌ ca) are feu जिदक्सप्रेषणादिति प्रकारो at)

१८ श्लुमन्छयेतेति | प्रतिप्राश्मो यदा प्राणै sears an समयस्दा तं प्रतिग्राह्य प्रतिग्रडोता अनुमन्येत, श्रसुक ल्व भदौयोऽखोति, सोऽपि saree भवदोयोखोति। यदा प्रति- angantfe. अमिवदनागजिन्चं गवादि प्राणिम्बपि कन्या 4, तद्भयं प्रतिप्रहोता ऽभिग्दगेत्‌ खयेदुक्षखधछे Woe: प्ररत माइ | तथेति | तेषां मघे इत्यथः पुमः ठु तत्सहितादिति। काविकलौकारषहितागमापेषयेत्यथंः |

१५९ भगुपभो गसदितागमा पेचयोपभोगर हितखागमस दुबे- सत्वे यत्रेकभेव खेभभेकस्याधौषशत्य पुमरन्यश्याणाधौकरोति aw. afe gay yaa भोगाभाव saute तु भोगोऽस्ति तच्रापि भोगरद्दिताममष्य <del errer चाधौ प्रतिप्रहे इति वचन- विरोधः area wre रतद्धेति | बिड्धान्तितसुक्रूपमिद्य्ेः ania बोध्यमिति शेषः

९० | थद्यप्यागमो ऽ्यधिक द्यश्च पूवंमोषट्मवडित- ate erent हतं, तथाऽपि तन्न युक्त, वाखयाहदुक्रायसङ्गति-

पलो. २७, २८ | लिखितादिश्रमाशानां विषयविशेषे परबदुर्बलभावः | <€

लाभेऽपि मूलसङ्गत्यलाभात्‌। किं प्रतिपादितार्थस्य तात्यर्च- विषयतया यथाकथञ्चित्‌ योजनेऽ्यशराब्दलेन खारस्यानावहलात्‌ | ्रतस्त्रकारान्तरेश ततोऽपि व्वहितसङ्गत्या शब्दम्यादथा ares | श्रथवेति | समवाये इति | एतेषां लिखितानां समवाये Fat दत्यथेः। सवेषां wat दति यावत्‌। ददमथेमाद्‌। श्रागम इति प्राग्बत्‌ दितौयपादार्थंमाह | पूर्वेति | पूवक्रमायातभो गान्यभो गापेच्चया ऽऽगमो बलवा नित्यर्थः | पूवक्रमागतभोगस्य विजातौयागमापेच्चया कचित्‌ बंलवच््म्‌ | तत्तात्यय विषयमाह पुनरिति। feats we एव वचने ऽन्यथाक्रमसत्वेऽपि श्रजानुवादेऽन्यथा पटितम्‌ एतद ष्वमक्रमेण दितौ याधं तात्पयेतो ares मध्यमेत्विति ` ्रपिबेह्भो ग- सहितपरिग्राहकः | प्रतियोग्यन्तराभावेन खापेचया ` केवशखस्य प्रावश्यासम्भवेन योग्यतया ऽभुक्रितो भुक्रः प्राबष्यममेन बोध्यत दूति भावः पर्वाधेमेव खमवायविषयमिति ama इति व्याख्यानसमाप्तौ |

२१। श्र मानमाह एतदेवेति | एतेन प्राग॒क्रथवष्छेदः। चत्थुरुषविषयमाद | कारण भुक्तिरिति एवेन प्रागक्ता- गमव्यवच्छेदः। सन्तता निरन्तरा चिरन्तनौ Adare चिर न्तनेति पाठे भ्राषवाट्राप्‌ २७ |

१। तस्य तत्सङ्गतलादेव तेन उत्तरसक्गतिमार पश्यत इति उक्तमिति बिद्धान्तमतेनेति भावः। तख तया सति waa दृष्टान्तः | दशयितुम्‌ श्रनेनेव तात्पर्यतः प्रति-

12

go भियोगे खागमोडार प्रकारः | व्य, ख, २।

पादयितुम्‌ श्रयं भावः, श्रादयेन पुरुषेण प्रतियहा दिकमेवो- पन्यस्गोयं . दितोयेना विच्छिन्ञाप्रतिरवसमच्लादि विग्रषणविशिषट भोग एवोपन्यषनौधः दतोथेन सम्षला दि विगेषणवे fie विनाऽपि क्रमागतभोगमाचमु पन्यसनौयमिति नियमस्यानेन विधै नियमा तिक्रमे दणष्डविधानमग्यथेसिद्धमेवेति दण्डव्यवश्याप्रतिपाद- कल्वसुपपश्नमेव एतेना वचने ट्‌ण्डव्यवस्ा विध्यभावादिद- मथुक्मित्यपास्तमिति | ९। स्वौकार इति। प्रति्रहादिनेति भावः। aft युक्तः परेण चेचादिकमिति पाटः। तथा प्रतिग्रहादिरिति तस्योन्तरसुक्का तथा कायमिति ara: प्रतिग्हादेैरितौति पाटे Wat तमागममर्थात्‌ प्रतिग्रहादिकमित्ययः। यथाश्तार्या- VATS | भावयेदिति | प्रतिपादयेदित्यथेः। अरङ्गोकारयेदिति वा we तात्पर्यायमाइ नेन देति |

AQAA aT Taga सानुषङ्गण Be! तत्सत इति | wa प्रागुकविरेषणएवतुष्टर मध्ये दौधेकालत्वमगे, afgaasare श्रविच्छिन्रेति। भोगमिति। उद्भरेदिव्य- स्यानुषङ्गः एवमयेऽपि विशिष्टं भोगं खोक्रम्‌ |

agit वेत्य वा चायं wanda aid ares | तत्स॒त इति वा wat इति, नापि विशिष्टमिति | विशिष्टभो गानुद्धरणे चेति ae: | ५। तूर्येपादमव्यवदितोभयशेषलेनम याचे तच्ेति। श्रस्य याख्या तथोरिति | aren दितौयेति | स्वे वाक्यमिति

WI. २८, २९ च्यारूठविवादस्य Taw ए्ादिः श्चागममुदरेत्‌ <९

न्यायेमाद . भ्मुक्तिरेवेति | प्रकषेस्य प्रतियो गिखापेचतवेम तत्खार सखेन GIA | तचापोौति | तयोमेष्टेऽपौत्यथेः। परम- amquare) fauatfa | we पूरव॑तः खरषतो wares aaae) GH चेति | पादचयय्योक्र wart: | भेाग्येति | अधे निस्तदनुद्धरणे दितौयदतोययोरपौत्यथः। अपिना sae समुखयः रट १९। सङ्गतिमाह SATA | पुनः ठु azine श्राहवादिरिति | श्रादर्जादिरभौति पाठः अरमियोगनिमित्त- खचमायाइनतुरुपादानं, तदसम्भवात्‌ भ्रादिना तत्पुचादि हणम्‌ श्रायिकमद अ्रक्लतेति | परेत इत्यस्य परमित इति य॒त्प- निलभ्यमथेमाहइ | परलोकमिति | तदः प्रशतनुद्धिश्थपरामभि- लादाद | श्रागममिति | wang हेतुरिति, यस्मादिति शेषेण व्याचष्टे | यस्मादिति | wae aren तस्ि्ित्यादि ! श्रागमेन fata व्याख्या ऽऽगमेति। शतैत्यस्य व्याख्या साश्यादौति। प्रमाणमिति | इति गेषः। य्ादि- त्यस्यायेमाद | वेति | एवं चाचागमश्ानसापेचस्य तस्य प्रामा- ष्यमिति भावः | | २। तथा seta | Aum: पूर्वसमुखये wWes- विवादस्य प्राप्रविवादस्य ब्रहारिणः प्रेतस्य saw waferat Gag सोऽयौ विवादास्पदौग्ठतः dhe: श्रागमेन संसाध्यो यतस्तम्थे भो गो निवतेयेत्‌ प्रत्यावन्ेयेत्‌ भोगस्तच प्रमाएं भवतौति यावदित्यथेः Re |

९९ | श्यवहारदश्रिवां बलाबलम्‌ | थ. च. श।

` १। अव्यवहितेन सङ्गतिमाइ afaalafa | निवतते संखाध्यत दूति पाठान्तरम्‌ तेन मापमच्छति प्रवतेतएवेत्ययेः | व्येति | पुनरिव्यादिः। afar पाट एव श्रथ wa नृपेणाधिष्ठता इति भिन्नमित्याश्रयेन वाक्यायेज्ञानो पयो गितया श्रादौ पदार्थानगाद | TUNA | प्रतयोग्यतथा ssw arate | ते के इत्यत ae! राज्ञेति | wares sorguta ere Avafa नानेति उभयोः awn दत्यजान्वयः दद मुभयं BRIA संचयम्‌ श्रावश्यकम्‌ उभयगरेवमाह | शकजा- alata | तच्ाश्योदाररणं, हेडेति | दे शादे श्रातरं गत्वा wee वा ऽ्वविक्रतारो हेडावुकाः | mies परसिद्धोऽवम्‌ तज श्रष्दः ` दितोयोदादरणं ताम्बूलिकेति | तदिक्रेतत्ययेः | कुविन्दरन्तवायः। ्रादिना तादयः | सद्गाता इत्यष्टानुषङ्गः | सम्बन्धो srarafa: |

९। श्रय वाक्यायेमाहइ एतेषामिति | wet मध्ये इति शेषः yaa कारणलादिषृतं किन्तु पाडङृतमित्याइ | weer परटितमिति। इत्याह ' इशामिति | प्रशतयोग्यलादा₹ | Tata | योग्यतया व्यवहार शब्दो द्‌ शंनपरः | कमकिप्रत्यचान्तो विधिशब्द care: व्यवदहारेति। |

gi श्रवतरणोक॒खष्टयितु agua: शतदिवि | कुट ष्टेत्यनेन वास्तवासन्तोषबोजनिरासः waa यथा चैत चितम्‌ | eae व्यतिरेकमाह कुलेति |

gi विशेषं quae नारदेति। पुनः al यद्यप्यज

Wt. Be, १९। प्र्वखदृङ्खबद्ारस्यापि afafreta: | eR:

var इति परितं मूले पूगा दति wha तथोंदः, aw पूगखरूपभुक् सवेषां होमवर्णानां erat गणः श्रत एव पूग श्ेणिगण्णदौनामिति प्राक्‌ उक, तथापि तत्‌द्धाने मुजिद्य- प्रामाष्धादुभयो विकल्पेन यणम्‌, wa एव चतुर्णामिति वयास्थाृदुक्रिषक्गतिः | यदा गणणेति चेन तद्रे yarat समुच्चयः मूले same चार्थस्य पूगा दत्थभान्वयेम तदये तेन तेषां aqua दति एकवाक्यतेव, नारदेन पुभरित्थादि वदता व्याख्याता maw नाभिमतमिति aaa बोध्यम्‌ नृप इति we प्रतिष्ठा इति | बअवहारदशेनानां ` स्ानानौत्ययेः

५। तथा सतिं विशेषमाह तब श्चेति तेषां aa Tae सोत्तरेति सभायां साधुः wa: उन्तरख्चासौ wag तत्छहिितेनेत्य्थः। | gaat भिननोहछष्टसभ्धय्‌ करनेति यावत्‌ | aga इति | उभयकारितपणरषदहिते cara: अयमेव पूगाद्यथैः पूवेचापि sa ३०

१। उपसंहर न्नव्यवरहितसङ्ति माह | दुबजैरिति | कथित्‌ सवः, बं चोपाधिश्च anat विनिटेन्ताजिति ग्यत्पत्तराह | बलेनेति | उपधौति पगन्तरम्‌ wanes area Wwe समासे श्राद्यन्तयोस्तच कटेलेनान्वये मध्यमानामधि- करणवेन फलतोत्याइ। तथा स्वौभिरिति | श्रपौगरश्यायाह | swaifacaifa | wa दत्य्थकान्तर ग्ब्देन षष्ठो समासे राण- दश्तादि बात्परनिपाव इत्याह गृहाभ्यन्तरे इति | तथाऽथे-

&8. मत्तोग्भन्तादिमोजितय्थवश्ारस्यासिदिः। BR

aw &fa) श्तांसे्यथंः। मध्यमणिन्यायेनान्यादार | निवतति ३१॥

१। पि चेति | श्रन्योऽपि कञशिन्तादृश्नो यवहारो निवर्तत दत्याहेत्यथेः | वाश्चाथंबोधायादौ पदार्थानाद AW इत्यादि | श्रातादिभोतान्तदन्दं॑ शृत्वा पुनस्तम मन्ोन्म्त्ताभ्यां रला बङ- बो दितत्पुरुषौ कायो करणेऽमौयर पञ्चविधेनेत्यश्य व्याख्या वातेति | सम्भवेनेति गहान्तपञ्चकअन्येनेत्यर्थः। कारण- भेदेन कायभेदात्तस्य पञ्चविधलम्‌। जनितभिति | एतदन्यतर- वनितमित्यथः। व्यवेति तु समन्धयादिरेवेति भावः। राद्रादौत्यादिपदग्ाह्यं वचने एव स्फुटम्‌ पुरेति पुरविर्द्धो राद्रविर्द्खेत्यथेः। यः एवं वादसैरनादेय उदातः कथितो भवे दिल्यत्तरा धांथंः एवं तस्याथिंको निदत्ति्ेष्या

२। वाक्याथेमार | एतैरिति। श्रषम्नद्धशत दत्यंग्रमनियुक्त- पदाध्याहारेण व्याचष्टे | अनियुक्तासम्बङ़ेति | ्रनियुक्रवेना- प्रेषितलेन प्रङ्तवयवदहारासम्बद्धो YMA Cas) Ware aatfa | दतिरथेखमाप्तौ

मतु मन्तादिङृतव्यवहारो विध्यतोत्यच मन्तादिषदणए- मुपलक्ण वा। आद्ये -न्यकृतव्यवदहाराशिद्धेरपि wae cia खत्यन्तरविरोध इति फलं यद्यपि, तथाण्येवकाराषक्गतिः | दितौये एवकारबलेनाश्य नियामकललाभेनेवकारसङ्गतिरूपफससक्वेऽपि वचनान्तरविरोध इति aa अ्रतेवकारबलेनाद्यस्य दुर्बलेन

द्वितौयमेव वाच्यम्‌ यद्यपाद्येऽप्यादिश्रुतिरस्ि तथापि स्वया

Rit. ३२ गरप्रिष्यादौगां कचिद्‌ यवहारः | ६५

ऽनन्यगतिकसदहेणेव तल्छाफष्ये सगतिकसङ्गन्हो नेति तत्पर्यायः तथा afa वचनान्तर विरोधस्तेनान्यश्तव्यवहारस्यािद्धिप्रतिपादनेन नियमस्य दुव चत्वादित्याश्रयेन wx | | |

यत्विति | विरोधे इति पूर्वाषयि मिथ द्द्यत्तरा- चयि ga: faa विरोधे लिल्यादौ सति तेषां इरभ्रियादीनां मियो व्यवहारो सिध्यतौत्ययः। श्रपिनेतष्नातोयरत्यन्तरसमु- चयः। ae वा खः। श्रात्यन्तिकलवं प्रतिषेध विग्रेषणम्‌। कथंचित्‌ केनचित्परकारविश्ेषेण। तथा ततर wee: सिध्यतोत्यये योज्यः | तेन सिद्धिसमुश्चयः तयोव्येवस्था तु वच्छमाणप्रकारेण | यद्वा afiy cad we: fae मिथ एव सिध्यति किं तु व्यवहारदर्भिभिः सिष्यतौत्य्यः। यदा एतदेखचष्यसचकस्ठ- ast एव तथा मूजवाक्यसेवकारस्य 9 feta योजनं aa मत्ता दितो व्यवद्ारः सर्वात्मना a सिध्यत्य 7s: रयं ance कतः सिध्यत्यन्यथा नेति यद्वा चथाश्रुत एव सः। तदन्तं went भिन्न वाक्यम्‌ यद्यपि वच्छयमाणरोत्या सिध्यति तथापि प्रबलविरोधपूवंकद्‌रायहे तु सिध्यत्येवेत्यरथेः ते कोऽपि दोष इति ara: |

नन्वयोग्यत्वादेतेषां व्यवहार एव नोचितो {खन्भवञ्च तस्यातस्तमुपपादयति ) तथाद्यैति | तच तावत्‌ गुरूशिव्ययो- वयैवहारस्यलमाइ | शिष्यति | सूृतिव्यपेतमागेप्रदशेनाय हेतु- दयमिदम्‌ | faze. शिष्टिः श्चा वधेन savas | अशक्तो तथा कन्तु शक्यते चेत्तदा GAT रणष्लंखण्डेन

é¢ सखामिग्व्यादोेनां aes: | व्य. श. २।

ayaa तच्छिवा कायां अन्धेन उक्तभिशेन wen वेणखण्डेन त्रम्‌ तायन्‌ TS रान्ना शास्यः frewle cad: यरोल्यनेनान्यया व्यवहारपदत्वाभावः सूचितः | एवमयेऽपि

९। पिताणुचयो लदा तथेति |

wat पितामहोपात्ता निबन्धो दइव्यमेव वा तच Bag are पितुः grea चेव हि

दति वच्छमाएमूलवचनादित्थथैः साम्ये हेतुरयम्‌ समानि तोति ta: धर्मेति | धमनिणंयस्थाममि्यर्ः

७। grata! तथेति सम््रतौति। stance शला दुर्गादौ परबशे्निंरोधकरणं सद्मतिरोधकम्‌। नाकाम इति | प्राएक्यलान्यतमे ata tet greed द्‌ातुमनि- स्यश्च cutee: | व्यतिरेके हेत्रयम्‌ विध्मानेत्यादि- डि .९ ॥इयेन तदभावे तदभावः सूचितः अ्रपिभिंथः सभुषये | TS STINT वच्यन्ते भक्रदासगभेदाखाद यस्तजाद्ये तयोखू- aml तथेति | भक्रमन्नं “भक्रमन्धोनमिति” श्रमरः | दितौये रपो स्तद्‌ गभेति se दिविध इत्यन्य स्पष्टम्‌ खामिना सहेत्ययेतनेनानयः। यथ्चेषामिति एषां गभदाषादोनां मधये यः कञ्चिदित्ययेः। विमुच्येत मोचनौयः। लमेत प्रापयेत्‌ | तस्मा दाखत्वात्‌ | नन्वेवं तस्य का गतिरत sve! तस्मादिति | प्रथमभित्युक्गिखारस्यादा₹ श्त्यन्तेति | भ्रभ्रेयस्करले क्रोधा- 'दिनेष्टापच्यङ्गोकारे लित्यथेः ।. एवमन्यविरोधं परिहरति | -यदप्येकस्येति | वाद्‌ इत्यस्य जिभिरग्वयः प्रागृक्ेकवाक्यतवा

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