BIBLIOTHECA INDICA, A COLLECTION OF ORIENTAL WORKS PUBLISHED BY {10 ASIATIC SOCIETY OF BENGAL. cy Serres Nos. 400, 401, 403, 406, 407, 410, 417, 418, 419 422, 426 & 429. | # } va Shaturvarga Chintamani. “= ४ By ‘3 i+ || ८ ५४ 11.914 1) 7}. ५ (New Delhi)’ } EDITED BY PANDITA YOGESVARA BHATLACHARYA AND 1१1 KAMAKHYANATHA TARKARATNA- , VOL. Il, | One कि | VRATA-KHANDA., _ PART 1. 7 ¦ CALCUTTA: | rp BY K. N. BHaTraAcHaRYa AT (प्राः ८4 15 Presa 1879. = . । - ^, . SBer : ~: | ५.८९ 7 OAL t. | „ wld. 7 2 46 ,, ~ 2 eae Oa ई- dt}. 763 ¬+ san eet & 2 Cal, NO Q S `" " ` ११०११५११ H € m. ` intial ~, „५ ee सि अति ए 11 = we ee ee Laer nalts - ह ep प्‌ ae म हि, , 1 _ „^ Ce रौ east चिन्तामणि - त्तखण्डम्‌ | श्रोदेमाद्धिा तिरततितम्‌ । SAAMI AA | a GEL(QEOO ----- 1 : CAABAAA TAMAS SAA ख “Sar Cay | -च्छयरणानन्तर्‌ | Los तेश्वरभद्राचास्यण _ ~ ---ख्यानाधतक्तरल्ने न २ यदश पर शोधितच्च t [> ~~ = ~ ~ । RAHAT खणे ्रुयन्दं सु{द्रितम्‌ ए स्यत्‌ १९३४ | stag iota = an ee । । ~ जमु sti शख्चो पचम | 000 --------- पष्ट ~) ay afyuaatary: ५६ ay Bai ०८ अमङ्वयोदशोत्रतं ( कानलौन्गेक्त) ८ व्यनङ्गययोदणश्टेत्रतं / भविष्योत्नगेक्त ) १ अननचतुदेश्टोत्रतं „ , २६ ष्रमन्नत्रत | विष्ण aay ata } éz9 waaaajaaarara: .. ee अनरकत्रतं „ . ced Sana fafa: , ४८ चमा वस्यात्रतं ( कंडपुराणोक्घ ) २५७ अमा वश्यात्रतानि „, २४६ Beat „ + ५० ICCA El १०८९ यतन श्रार्वाणकात्रत oY ॐ Bayar .. २४३ असन्धतोत्रत „ + ३१२ BUA atl sag = * २७९ श्येकपुणिसात्रतं क ९६९ qaqa *, & १९१ अश्मानः „ १०३९ qfaulaia ४५९३ # ५. । er य न गि —_ oll a अ क 9 य + न * ~ ~ 7" pitied ४ |) रा ` शा १1 अ रा क lee SE - pi ee re _ म BSA aT a चंद्दिसात्रत अाश्ासक्रानिव्रतं अादित्यत्रतं ( भविष्यपुराणोक्त ) अादित्यत्रतं ( ufagtacta ) अ {शित्यश्वनत्रते wifeawfmaa अदित्यददयविधिः श्रा आादित्याभिमखविधिः अानन्ट्‌त्रते अगन्द्दलनविधिः अआयधत्रत अगु तरतं Bie am iiaad आरगग्धत्रत अशाटित्थत्रत ष्पाङ्िनत्रतानिं अषाटत्रतान इृन्द्रपोख मा सोत्रतं द ह # ह्नि च # 9 a # हि त्न „~ £ a z TRA ,,, x RWI ses 3 उपसछरदेछतीपश्मः SHAT AZT, खमामद्दे्वरवरतं रेवोपुराणोक्त ऋऋ करतुत्रतानि ००. प्‌ CHUA vee HUA faay war act a at डोत्पातिके -1 कदस्लोवतं ve ACUAG ०५ कररात्रसानि ses करित्रत wes करूपच्त्रत ase काञ्चनपुरौत्रत wee काम ATT AA ५५, कामटेवन्रत vas EE wee aaa eee कामावार्मित्रतं soe कारोषाग्मिसाचनं Ves TTL Lak cu ,,,+ Baldy | UBT | é ८८१ | atin agate कास्लतिराचित्रतं १४८ | कोत्तित्रतं छच्छत्रतान gone] छ त्िकात्रतं sce) छ्लिकाग्ञानं ९९१ | रंव्णचतुदृशौवत MIE Wad (कंग quate) ८५८ | छब्ण्वतुद्‌ wiad ( frau ay) छग्णचतु द्‌ Wiad ( सोर पुराणोक्त ) >° | कोकिलावतं ८६३ | कंमुदौ मदोतृसवः कोम रौत्रते १०९८ . * ्षमत्रतं १३४ | गखजनौराजन निधिः ७१८ | was विधिः ७१८ | गजश्च म्तः ९११ | गन्धव्रतं gto | गललनिकात्रतं ८६८ | mea lad २५ ¦ गणावासित्रत १८ | गुसत्रतं age | गौविरावव्रतकथा २५ | -गोचिरावत्रत'( भविष्योत्तरोक्त ) १४५ | ata ( खन्यपुराणोक्त ) ९६० | गोप्रदबिराचनव्रतं ७७२ Wawa षै * UBT € 2 ९२६ दे ७६९ १७९ ५९७ ९५. १४९ १५४ १४६ 9५१५. ३५० ९4० tis २९६ ९९२ १०२९ २४१ ८९१ GR ४९९ 9 २९३ २२१ रतप २२३ ९९४ eM vite ~ > + - ¢= om | मीौरलत्रते ,५, awaits: kes ge तिध्यर्द यागमाद्दामकोक्त मं q घटटिकाभिषेकः „+ धतभाजनत्रतं घतस्लयनविधिः घ सावेचण विधिः , ५, dq qfeaniaa .. चतुद शतोजागरणन्रतं =k. wae waa vee चतुद wiaalfa तुह चौत्रत(भविषयो ्तरोक्त) चत्‌ श्यष्टमोनक्घवरतं =e. saw सौव तानिं चतुय naa वन्द्रनच्त जड fa: see चन्द्रवत चन्द्रवतं पद्मपुरा खोता चन्द्रव तं विष्ण धम्मं atin चन्द्र द्दिष्णोशयनव्‌ तं wea परा ग्लानम्‌ न्द्राय तं (| BAA ४९१ न्ति; प्श ८ १०९३ सूचौोपत्रम्‌। जयपो ्खमामोत्रतं जयत्रतं (विष्ण घन्माचरोक्ता) जयविधिः ee अया वा्ित्रतं जां तिविराजित्रतं ानावाश्चित्रित vee जओ्टाव्रतानि vee ओष्टात्रत त ताग्बंलमक्रान्तिव्रतं ,.' तिरथिनश्छववारव्रतानिं तिथियगलत्रतपरश्चकं ०५० लत्रतरतं तजेःसक्रान्तित्रत . वयौदश्सेत्रता fF ” वयोर्‌शौत्रतं चिपुरसृदनत्रतं , चिविक्रमतिराविव्रकं =... ्िविरक्रमव्रतं , चिविक्रमत्रत (सो र्पुशाणीक्त) aTeqarad vas र्न्तोत्‌प्िशान्तिः कि दमनकपजाविधिः ट्‌ष्ाटदित्यत्रत दिकाकरत्रत हि Stzrafafe: „५ aiqaa „ दीश्चित्रतं bes दुगेन्नदोभाग्यनाशन वय) द्‌ श्रोत्रं दुवा चिराचव्रत देवव्रतं पद्मपुराणोक्त' द्‌ वत्रतं देवसत्तितरतं टेवश्यनोर्थानविधिः aaa ead eaiqriwia देवव्रतं भविष्योत्तरगेक्त' .. इवौत्रतं रेवौपुराणोक्त द्दितोखामभद्रात्रत , , Zsa च्रं धैनसत्रान्तित्रेत . थेनावाश्षित्रतं fam wa Tata अनवाभ्ित्रतं धना वाशित्रतं विष्ण धम्म क्त aaa Taye masa , धघामविराचत्रत „ . BIA vee धतित्रत श्व ्तत ves पड € Qe i rr rr ie a greg ag ger fo er epg, वि ee — | | BAUAA . SR RCL Col aaa ysis घः तच्तलत्रताणख Taal Araya: नच्तत्राथत्रेतं नदोत्रतं नन्यत्रत नन्टद्िविधिः नन्दादित्रत{विधिः नन्य्‌ाविधिः aad नयनच्तचेश(न्तिः नवस्याद्युपवाग्नत्रत aaa fanaa नरसिंदचतुद्‌ शोत्रते atigeamianiaa aaifafaaarta नाम) AAG खि मात्रत नानामांसत्रता{्न निकम््प्जा नीराजनविधिः पञघटपु{ख मात्रतं पञ्चमूत्तिव्रत पचत्रतं पयौत्रन क्रः छ छ # €, 8 च 4 #ै # ध पद ९ सूचोपचम्‌ | भू पृष्ठा | यष्टा पव्च न्त्रतं . ९०५ | प्रतिमावुतं sa ५७ व्वेभभाजनत्रत - cog | प्रदोपविधिः a ७६३ पविचारोदणविधिः ,., ४४० | uatyaa नि १९ पाताल्लत्रत्‌ vee ४०६ | TATA _ ८८४ पाचत्रतं - ३८९ | प्रसववेकछतः ,., ` १०८६ पादोद्‌कस्ानं .,. ६५० | प्राजापत्यवतं ... ८३ पापमँचनत्रतः „, see | प्राक्जिवतं नि ८६१ पापसंक्रान्तित्रत ves ७३९ | mad. फी ॥ वि पालोचतुद्‌ wad „+ १३० | anaemia Hi | oe पाशुपतत्रत 7 ०५५ | फाख्गणविधिः ०. ७८८ पाशपतवरतं वायुस्‌द्दितौक्त २१२ | काल्यणठतानि . oes पाशपतत्रत ( मलव्यपोदनं ) १९७ ` ठ पितत्रत का २५३ | बन्धाभिषंकबिधिः es 27079 पितुत्रतं ( afaaquma ) २५४ | वाखि्यलाभत्रत vo ९४८ faaaa ( fama quate ) ९५५ | वृधन्तं tee ४८ पितुत्रतं ( विष्ण धसी HA ५०१ | गचीत्पतिष्मन ses १०८९१ qaaraad ०. १७१ | न्त भ्त " ५२१ पुचदोविधिः , . ५२४ ब्द्मङ्रचत्रत' विष्ण. Va HUA Yee yaad 7 cee | ब्रह्यगाय दौ चन्द्रो हिोत्रतं ९९४ पुचप्राश्चित्रतं Le. २३० । AQUI धित्रेत Lee ५०० qatqafaad - ९४९ | AIA | ११ ^ पराणश्रवणविधिः , eed | ब्रह्मसाविचौटत nee ५ a fe arse fam धम्मो^ततरोक्त ९४३ | ब्राद्धुष्या वाश्च त्रत ,.. ६४५ पणिं मात्रत वद्किपुरारोक्तः,.. २४४ भद्चत्टयवतं भ॑ २८३ ९. तुष्टयवतं „ . ६ पौर्यमासोत्रतानि ... १९० 2 भना विः 7 ५२३ पौषवतानि ree Org भवानोवतं ves ९० ग्रकोणकवतानि कि cic मादरपदन्‌नानि _ OY bw 8 भौमत भोप्रपञ्चकत्रतं भूमाजनवुतं . भूतमाव,त्‌ सवः .. ufand भमुपतनविधि; भोगसंक्रान्तिठतं भोगावाक्ञिवतं भौमवारन्रतं भोमग्रतं . भोमवतं ( प्रद्मपुराणोक्त )... भ्‌ ATMA पनं नि मङ्गललावतं मदनमरौत्सवः ees मनौरथपुणि मावतं , मनोरथसंक्रान्तित्रत र मदातप्ौवतानि , मदापोंख मासोतरतं oe सद्ाप्रस्थान , मदा फरलवतं ,. मद्ाराजत्रत „ ^ मद्दालच्छीवतं , . मद्धावृतं ses मदावृतं ( लिद्पुराष्णेततं).. भदहात्रत' ( fora Tatts ) मद! शन्तिः क मदहाभान्तिः ( भविष्यपु ए ज्र सूचोपन्रम्‌। चषा । = ८८४ | मण्ेश्वरवतं ९२९ ¦ मणटेप्वरदख््ानं _ ८६७ मोर्खवव नः र २८५ | माघमासवतानि ९६ | सघल्लानविधिः ९९१ | मामण्टोषेवतानि ,, ong | मासमस्िधारावत ०५, ७४२ | ATT ०५ ५९७ | मासवतानि see ४९० | मासौपवासुबत ००, wer मखत्रत ०० मखगानिः aes ५९७४ मूरखान रे ब्टगपच्िवे रती प्रशममं sae मोनवतम्‌ ves त भोनवेतोखापनम्‌ ९१९७ | yaaa ie: „ . १९१ | यमवतं sae ९१४ | यमवतं ( मदहामारतोक्त)... | यमवतं ( विष्ण wal रोक) १९९ । यमाद्‌ णनवरयोदमवुत 9९५ | yaaa itaa ROS यमाद्‌ विधिः RSS | युगादिवत , ५६९ | aaa , yce - योगव्‌ तानि १०५२ क Bart Batis 1 ¢ : रक्ताबन्यनपर मासौवतं... रथया वी्वः दं वोपुराएगीक्तः रथया वरोतुसवः रभ्माचिराववतं ufaqa ००० दाशत aKa = + सद्रवतः ( पद्मपुराणोरक्ग ) ... बद्रसलानम्‌ ves रूपसत्रवत Lee रूपसं क्रान्तिवत ५९५ रूपावा्चिवेत = + रगदर वधिः eee Hiewaa = + र]द्िणो सानं » * cf स्धोनारायणवत wee खलल्लितावत " STITT A tee aR, त vee त वटसाविव्रीवत vee वरवे ses वरुणवृतं प्मपुराणोक्त .. qquaa ant t =~ ६ ayiqarafe: ५५. पषा Ah ar a gf i iP yp क्क "1 मी ष री To सूष्तौपचम्‌ | an’ agaa वयस्तवचिराववेत eee afeaa ०५, मायत्रत es वारव्रतानि = + वारित्रतं विद्यावार्ित्रत विनायकस्लपनं vee विरूपा व्रतं = * विलत्वचिराचत्रत ss famtaamifaaa ,,. fafeaa foamy eaqina » > विष्छपटारत्रत = faay a टन्ताकत्या गविधिः „० टषनत्रत „ , ष qaqa: = * sfafaataunad ° + qaqa x वेश्छात्रत 7 वैश््‌। खव्रताखि ° ° वेश्ाखोकान्तिकोमाघीविधिः वे खार्नरव्रत a + aA वयतोपातव्रत'नारदौयपुराणक्त व्थतोपातव्रतं Maa ०१५ ‘ORR ८९३ जा श क्रष्वजीच्छरायविधिः URI शक्रीवत WEAN waltwaraia WRAWAAA शनिवत प्नैखरादण्णान्तः श ङः Fa श्रान्तिकपौिकानि DIUM aa {व aqe शोत्रन शिवनक्तत्रत शिवरथत्रत श्िवराचिन्रत शिव राजिन्रतमादात्म) शषिवराचिवतं स्कन्टपुरःगाक्तः fwateyaa fwaad श्िवयोगयक्तश्िविराचिवुतमाद्य fuaaa कालोत्तरे्न शििवव्रत' पद्मपुरा णोक्तं fanaa कालोत्तरीक्त शवो पवोीतनव्रत श्रतोलावासनित्रतं प्कुर्नाविराचव्रत aa Gay | eT < 1 matics “ ५०१ ' शल्नदटानउत ,,५ = + 229 ` Wedd cog , शवनच्तवपुरुषत्रेत +§ ` वमद्दाव्त प्रवमदःवतमपर Te LF i ५९७ , शव पवामवतं Ors eae | ५८० ¦ WaTATART ल्सवः “EQ | प्रयेनप्रासर्मविधिः ,,, । . S39 | Farad १००३ | qaqa ५०७ ६५९ ` aaa ५४ ५८ aaa ake | | 4 ; । सट्‌ावते नास न्रदानमाराक्म sae | ^ . | मन्तानदवुतं भविष्योत्तरौक्त ९०१ नित सश्रपिव्तं ९२ | aaa 92 ; Hag Cha ef a RS . समद्रवत २४३ ~ = + । मल्लिलाशय Fa +~ | सक्र(न्तिवतानि २९८. सक्रान्तिवितानि देवोेघुराणीक्तानि ७९८ ८१८ | संय्रामविधिः १९ | सघाटकवत्‌ वराद्पुगणोक्तं “82 | सम्पणवतं > ५ ~ ९ | eased भविष्यतपुराणौक्त ४ a + २२१ ` स॒वत्‌सरवत्‌' विष्ण waa सः सम्बत्‌सरवकानि Sanaa - सम्वेकामाक्िदतल ,,. स्यैव त" सौर पुराणगेक्त' ... खव्यावाक्षिवत vee सागरवत Sasa सावितोपुजाम न्त्रः मुकलचप्राश्निवतं gaa es सुः; 7 विष्ण waaay सुखपुक्तिवत खादित्ययुरःफोक्त सजन्धावाश्चिव्‌त Gal AMA त सथ्य वत" areata सूय्य वुल पद्पुरारोक्तः पषा ९४५ ६५५ ९४ Yo Cec सूचोपत्रम्‌ | wary भविष्यतृपुरा णोक्तं सूच्यं इतः stout क्त सोसवारवृतानिः सौमवतः सोमवृत" भ{- स .पुरारोक्त समवतः भविष्यतपुराणोक्तः सोष्वृतः भविष्यत्‌पुराणोक्त ayaa ५१० ~ UIT न सोभाग्यसक्रान्तिवन' oes सोभाग्यावा्निव त 4 सो रनक्तवत तो पुवकामायाक्षिवुत ves | WIA । सारखतदत ग्रन्थानां बचनसंख्या | a0fp)oe ——— a | न SII णगोपयत्रा कणं — ८९१, पटर । | नरख्िद्पुराण--१४; ४९,१७५, ROS, श्परथव्व परि शि —ere, २३६२६ | | ९२८२ | yey वेद्‌ :--< १६ | | नार टौयपुराण --ऽ १9, 99% | ZIT ग्टसिंद्पुराणा -४२१। ्ादिचुगाण--२४२. २४२,५१५ | प च्या दित्यपुराणं-२४९, ५१८ eile, पद्मपुराण --२५, १६७, १७४, १७९, ७६८) CHG, ९५७, dud, ९८९ | | २८९, २४९, २५४, ३१८, AV, २९४, ५ ७४, > 4 cs न्द, Cc ८5 tc काल्िकापुराणां--१५१, १८०, ३३२, | WRB <° RAD ६९, SES, GER, ६८१, ९७२, ९९२ | Gee, ८८५, CCE, OLB, SOY, COR, ५०४, ५. ५ ? HMAC —e, ४००, ५९०, SRV! क्रा OE, ६८४, ELB, VBC, BUS, ८४७) ८९०, | ९०४, ९११। । परकद्या,--२२२। प्रभासुखण्ड--२४५ | म नद्यं ५र(शस-०८,-० १,८१४.९५ ५९८८४ कमो पुराणं--१५११ १५६ २४०, CUE । गु | AI:—Ess, मार्‌डपुराणः---€3, ०२९, ८७९ | ~*~ ९ Z | त्रदं व व त —Sey, foe, ८८ | > - | | ब्रद्याण्डप्‌राण--५५२,०१९९. 9४ ४९८५५ टेवोपुराणं--२९३, ३३५. ४२४५ ४५५, ~ 4 WER, ६२७; FER, ६९४; ELV, FEM, ७२०१ | ७७६, ८१४, ८५६, ९१९, ९६४, ८९० । | मविष्यपुराणं--रप् | १०१२, L 2२ | 7s) < भविष्यतर्धराणं-२५, १९८, १७५, RES, २२९; २४० २५४. BEB, € ९४, ३९ 9, RES, SFO, ROK ५.१८,५४२११५२२; ४२२) ४२९१ ५२३९१) ५६८) ५८०५) OCH, NCE TVW, ait ०) Coy, dog, भविष्योत्तर्द--८, १४, १६, १७, १९, १२० १२२१ १ 9 ०.9., १०१६९ २५. ५६, UR, ६४, ६५, ७२१, १६२ १३९, १४०७ १५९, १६२; WY, USS, १९०, RBS, २७२, श८्र २३०८, ३९२९१ ३९९, BNE, ३४४; ३९ २.९९८, ५९०; ५१७, ५२१, ५२५, 445, ५९७, ५७८, १९१५; UE, VOY, BER, ५२७, URS, WHE, Ye, Yoo, ५८७, “Er, द्‌ २८, ¶ 9४, ८०, Qo 9, SPB, ORE, ७४८, ८०२, ८२२, ८१५, CHS, TYE, CYS, Soe, TEI, Coy, oT BEG ८९८, ८००१ hod, ९१०, E18, ६६४ १०१५ a मत्‌स्यपुराण--€९, ५०९, ५४१, ७०३, ८४३२, dod, ८९८५, १०२८ Your | AGi— Eel, ६९5, EZ, CR | BUIATTSH: —2 84, 399, «१९, a] qaafa:—zeo, BTA HT — १००१; 2078, < रव] खेषड़ -- ९४९, 642, | लिङ्गपुराणं- ११४, ११२, ३८७, ३८८, ERO, CLO, &५४; Cag | व बरादपु राणं--२१३, ३७५, ७१ २,७८८ वद्धिपु 1ण--२५५, aac, ७६३, ९९९ वायु पुराण-९४६ | वायुमिता- re वाराद्पुराण--२१, CUS, ९८१ विष्ण a — RC, १४२, २४५, ४९१, ५०२९, GIR, ७9, < 9, SHE, ८९५, evo, २५०, ८७१. < ७३, €< ४ farm BAY न र--१९,११५.३, १५४,१५५ १६४, १६९, १९७. २३५, २२६, BBO, Rar, २५८) २५६, ९९३, ४२०, ४९०, ४६१, ४६२ ५९३, ४६४, ४९४, ५९६, BEC, ४६७, ४९२ Poo, ५०१, ५०२, ५०४३, ५ ०१, Lod Yoo, ५०८, ५८४, ACS, ५८८, ९००, १८, ६९३ २४१ ९३०, ५९, CUS, ९५४, ६५१५, eve, 3 31 292, e<2, Qog, OG, Ogg, < 0 ७४९१ OAS, 9८, OF2, 925, ७८५, OO, SLE, ८००) SPO, Kye, Soe, ८३९१, ८३९ Cyd, च्ई०) ८९३), ८९४, aes, Tey, ५१०, C88, CBT, १०१०, १०२५ 1 विष्ण.पुराणं--२५५, २५६, ८९५ TAR TW --२९०) ५५३, ७९०.७७१, 9२३, ८४३, ८९9, edd L पष्टा frag दतिः--ऽ९२ भर णि वघम्म:-- १५५, १५९, ९८१) ८४१; BYR, GEE, CLR, (ORO शिवधभ्मो Wt-— ९८६, ona face - ८९१ सं सोर घम््मः- ५ ५ॐ पहा सौरपुराणं-२४, १५९, ३९९, ९१४, ५१७, oe, €९६ सख्छन्द्युरा--८७, <2, ११२९, १४०५, १०४९ VAR, २५९८, २८८) ९९३, ३१२, ३१५. ४०८२) ४९२, Bde, ५१४, USO, YER, UES, ४८८. CFO, ७२२, ७२३, ७३४, ORY, ०२६, O89, ७३८, ७२९, 9४ ०, 9४१; “FO, SKK VACA खण्ड --२५१,२४५१। BY सप्रद णोऽध्यावः | GOO अरय त्रयोदगोत्रतानि। धर्मादपेतं न कदाचिदेव यदौयवाचो विषयत्वमेति। सएव हेमाद्विरनुकमेण चयोदट्गोषु व्रतहन्दमाद॥ युधिष्ठिर vara | भगवन्‌ भूतभव्येश संसाराणवतारक | aa’ कथय किचि रूपसौभाग्यद्‌ायकं । say: Whaat येन फलं यच्छति Gnas सासवदरूपसौभास्य' त्म विस्तरतो वद्‌ ॥ AUST | way: Bad देवः शूलपारिः पिनाकभत्‌। तस्मिन्‌ सम्प जिते पाथ किन्नाप्रोति नरोभुवि॥ तेन ते कथयिष्यामि शूलपारिव्रतच्विदम्‌ | यन्न कस्यचिदाख्यातं व्रतानामुत्तमं व्रत ॥ Veal भक्तया नरोमत्य यदयदिच्छति aw! तत्तदाप्रोत्यसन्दिगधमनक्नाख्यां तयोदभोम्‌ tt कि व्रतेव्वडभिः पारधं उक्रमातफलप्रदेः। ane लियं Gua सब्वव्रतफलप्रदा ॥ # afa'e ofa इति gaara पाठः| ( १ ) दमाद्विः। [are owas: t तस्मात्‌ काया प्रयल्लेन TEGWAMN TAT | त्रयोद गोद्यनङ्ाख्या waisaia™ विनाश्नौ ॥ © सव्वदुष्टोपश्चमनौ सव्वं मङ्लदाथिनौ | अरतुल्सुखसोभाग्यरूपलावखदायिनौ ॥ धुरा दग्धेन कामेन चिनेवनयनाग्निना। भस्मौभूतेन लोकेऽस्मिन्‌ aaa पाण्डव । VASA AAA तेनानङ्गत्रयोदभौं। अपर सूयते यस्यां yuraafafagag | ^ नाम निव्वतच्तनं पायं कथयामि wae तत्‌ ॥ ~ y ~~ अनङ्गो भगवान्‌ भम्भ्‌ सजो †म्ूत्तिरगो चरः | सण्व दृवोयेनास्यां तेनानङ्कत्रयोद्‌्श | प्रसिद्धा समनुप्राप्ता नित्या सव्वेफलप्रदा | १ मि ५ ५ न, 9 मागगोषऽमले पत्ते त्रयोद्श्यां समाहितः | स्नान नद्यां aes ar we वा कूपतोऽपि वा, ५) Baas महादव विधघानाच्छशिभूषणं ti fay wad भ्रूतमभावे aufafed | तदनङ्गमितिप्रोक्त' पूजयेडक्तितोत्रतौ 1 © स A. दधि,दुग्.छत.चौद्र, शकराद्यस्तै; शुभः। = ~ स्थाप्यः एवासतः पखातस्रापयेदन्यवारिषश \ = = A =~ ने धूपदोपादिनेवेदयेः पुष्यस्तत्कालसश्भवः। * मव्वाघौचंति Geant पःठः | t विष्ण रिति Vaart Wis: | ‡ @qracta qaqa vis: | aaeey owas: |] esarfZz | 2 गे = फले ना नाविधर्भष्छर्मौतवारित्निखखनेः i शुतनामान्ययोच्चाय होमःकाव्स्तिलात्ततेः। म ~ अश्वत्य,जाति,नारङ्ग, Wada पिवेत्‌ ॥ अग्वल्यादि क्रमात्‌ काठपुष्पफलनवेदाप्रा्नानि॥ | एवमुत्तरेष्वपि मासेषु अनङ्गः पूजयेदादौ मधुमत्यासमनज्ितं। अनङ्नास्ना संपूज्य ay प्राश्य wufafy tt मधप्राशनयोगन जायते मधुरध्वनिः । श्र्वमेधस्य यज्ञस्य फलं प्राप्रोति भक्तिमान्‌ ॥ पुष्पै थो दुभ्बरे्व्वोर शएभदाडिममोदकेः चन्दनेन च योगों मदयन्त्या युत यजेत्‌ | सख्ाप्यत्तौरादिभिः पाथ पूजयित्वा विधानतः | योगेश्वरेति संस्यश्य चन्द्नं प्राशयेत्रिशि ॥ सौम्यः गोतः सुगन्धश्च चन्दनप्रा्न।दह्रवेत्‌ | राजसूयस्य AWS ACA: WABI यात्‌ ॥ माघे न्यग्रोधसक्तन्द मातुलिङ्ग सुमालिकैः। सुमालिक सोमनलकं qa भोति योगो मद्यन्ल्ा सहितं यजेत्‌ | माचेखरति dae प्राशयेन्मौक्तिकोदकं। प्रानस्य प्रभाक्ेन निमला घोः प्रजायते, रूपाव्यच्च वप्ःस्तोणां मनोनयननन्दन॥। मुक्तापूणापमे aa पद्मपच्रायते शतिः । सौम्यः शान्तः सुगन्धय चन्द्नपाश्चनाद्रवेत्‌ | ~ wt ~ ~ a गा ॐ ~~ - हि, | co - ~~ 7 ~ ग wo ~ = - Valle: | [वरतखग्डं १७अध्यायः । < । ~ बड गम्भोख्यद्न्नस्य प्राप्नोत्यविकलं फलं | ~~ फारगुनें ANAT गोरजोवीरशादकैः 11 ककोलेनच Vet wild fafa पूजयेत्‌); वौरमाम BUST कङ्क.लं प्राशयेन्निशि ॥ Aare सुरभिगेन्धो जायते कायवक्तयोः । ` ` | तया गुणगणवासो द्ुतकाच्चनसत्निभः | - गोमेधस्य फलं प्राप्य शक्रलोके महमोयते | चेते करच््र,दमनःद्रात्ता+वठ्क,ग्रौ तलैः I i भोतलः ATT: | : . Bast रूपनामानं ae सुभगया we । पूर्वोक्तविधिना wea ag र प्राणयेत्रिथि॥' | वापूरवान्‌ प्रियालोक गन्धगौरवसंयुतः | = चन्द्रवत्सव्वलोकानां लोचनाद्भादकारकः It ~ जायते स नरः पार्थ यः करोतीह भक्तिमान्‌ । = on नरभेघफलावाधिजयते नात संशयः । ante सकारा कुष्य चफलसक्तभिः | ~. ~ . लातौफलेमदहारूपभिन्द्राख्या सहितं यजेत्‌ ॥ ` प्राशयेद्रातिसमये जातोफलमनुत्तमं | नि सफलास्तस्य Vala भवन्ति भुवि भारत॥ गोसदखरफलं प्राप्य TAH महौयतं । - व्ये जम्ब विस्पते; Wet: पूयकेस्तथा ॥ ~ aaya संपूज्य vere ललितान्वितम्‌ सव्र प्रागयेद्रातौ MA तेनचाप्र यात्‌ ।' त्रत खवर" १ ऽध्यायः] Saf | वाजयेयफलं लब्धा मोदते दिवि भारत ॥ आषाढ़ ऽपामार्मनौप नालिकेरकद्म्बकंः। तिले्ोमापतिं रात्रौ wats तिलोत्तमा उमापति जपन्‌ प्राज्न; प्राशयेच्च तिलोदकं ॥ तिलोत्तमावद्‌भवत्‌ रूपसम्पद्नुल्मा | प्राप्नोति पुण्डरोकस्य फलं TURAN | ओआवरेसुमनोग्भोऽजकद्‌ लौ फलम ण्ड केः ॥ सुमना जातो | गन्पतोयैः शूलपाणि शक्तवासोन्वितं यजत्‌ | गन्सोदकच्च संप्राश्य स्मपद्रातौ विमत्सरः | सुगन्धः सव्व सौ स्याच्यधि रायुसोपजायते | पभ्निटरमस्य यन्नस्य तस्य स्यात्‌ फलसुत्तमं tt भाद्रे पालाशचाम्मेयशकाराज्य पुर स्तथा । SIU wage: | यजतागुरुणा सद्योजातः गोयासमन्वितं ॥ प्रगुस प्राशयिल्लात गुरुभवति भूतल | तलापरुषदानस्य SAS WANA | aI faa चाप्यपामार्ग ककन्धरडपूरकैः | auranifa: सुवर्णञ्च तिदशाधिपतिं यजेत्‌ ॥ हेमोदरकञ् संप्राश्य SAU: प्रजायते | नरमेधस्य यज्ञस्य फलं प्राप्रोति fafaa tt AA कदम्बक द्रोगकुस्मार्ड लवणेन तुः। फलेख विद्यार्धिंपतिं यजञेकदनया सह | ई देमाद्रिः। [्रतखण्ड'१ऽअध्यायः। पालेरमृतफलाख्यर्भच्यलवणवान्‌ TA! | लवणं प्रागयेत्तच अद्या परयान्वितः | रूपलावणयसंयुक्तः प्राशनादस्य जायते ॥ नेवेद्यानामप्यलाभदविष्यात्र प्रकल्पयेत्‌ | se प्रतिश्लोकं दर्‌न्तधावन कुसुमं नेषेदय प्राशनानां यथा क्रममभिहितानां तसय तस्याभावे खयमनुकल्य उक्तः| aay पारणेष्वे व भोजयिता दिजो त्तमान्‌ | सदक्तिणस्ततोऽश्रौयादन्धृभिः सहितो वभो | ब्रतविघ्नो यदा तस्यामशक्तो सूतकेऽथवा ॥ उपोष्य एवोपवास्य तदहः पारयेत्‌ YA? | एवं सम्बत्सरस्यान्त MAT रत्राद्यलङ्कतं | उमामदेष्वरं हममधिवास्य ततोनिशि । पष्प धवे स्तयागन्धनवे दीवि विधैः फले: ॥ ततः प्रभातसमये कछ तदहौमवलिक्रियः। वच्छ माणमिद्‌ सव्वं प्रददानत दिजातये॥ लिङ्मकारमनङ्गच्च सौवण" कारथेच्छिव । तास्रपातेषु संस्थाप्य कलग्रोपरि विन्यसेत्‌ ॥ WRI संच्छाद्य पुष्यनेवेच्यपूजितं | ब्राद्वाणाय प्रदातव्य शिवभक्ताय FAA tt शक्तिमान्‌ शयन दद्यात्सवत्सां गां परयखिनों | छतोपानत्‌प्रदानच्च कलशा सोद्‌कान्विताः॥ हादशात् प्रकत्तव्याः सरक्‌चन्द्नविभूषिताः। सितपक्षान्रसंङ्न्रा arma निवेदयेत्‌ | meee ower] Satie | देवस्येव प्रदातव्याः कुम्भा दादशगन्द्काः । वितानं पद्चवणे च्च ध्वजकिङ्किणिनादिनम्‌ | AY Waa भदराम्बप्नोयाङ्िवमन्दिरे | तस्मिन्नेव fea पाथं सम्पोडयात्मानमच्च येत्‌ ॥ देवदेव त्रिशूलेशं पुष्पनेषेव्यदरौ पके | गो तवादिबन्रत्यादिप्रर्तपविंविधभेरपि ॥ दानान्यत्र प्रदेयानि सखवित्तस्यानुश्वारतः। सेर््योपरागसहभोयथतःसदिवसो मतः ॥ भोजनच्च यथा शक्तया WET मघुरोत्तमम्‌ | neaifeaquara देयानि च विशेषतः 1 अविती नावमन्येत ब्रत्तिपेन्राखरतं वदेत्‌) एवं तुदुत्षवं कत्वा श्रिवर्थज्ञमनुत्तमं | ततः स्वयन्तु मुच््नोयादुत्यवगसमन्वितः | श्यान्ताचारकनिषटस्त Efe देवं निवेश्य a एवं faa विधिवत्‌कछतक्षत्यःपुमान्‌ भवेत्‌ ! नारौ वा ZINE a छत्वेतद्‌तमुत्तमं | फलं तेतदवाप्रोतिनात् काया विचारणा) एव कलवा नरः सम्यक्‌ भक्तिभावेन भावितः।॥ सुते सर्व्वपापोीत्रद्मरत्यादिकेरपि | ey कौीत्तिमवाप्य ते रुतः aa asiaa | पुखरेप्रादिद्ागत्य साव्वभौमो Bt भवेत्‌ | त्रतस्यास्य प्रभावेण मूत्तिमान्‌ मदनोभवेत्‌ ॥ सोभाग्यघनसौख्याच्चःशान्तविन्तो जितेन्द्रियः ॥ —_ ~ — ्ेमाद्धिः। [angus poweara: | ° ने „ * नो वेश्च * + YARNS: WAT: Tay weet wa भिवभक्रपरो zat शिबेकगतमानसः ॥ अन्तकाले शिवं wat शिवसायुज्यतां व्रजेत्‌ | कामेन याकिल पुरा ससुपोषितासोत्‌ Qaifafa तिदरश्टेहमवाक्षिदेतोः। at प्राशनेसदितनामयुतेरुपीष्य दिव्य प्रयाति परमं पदमिन्दुमौलः ॥ इति भविव्योत्तयोक्त मनङ्गचयो द शेबतं। | A ~ १ ( + लिखे चत शक्लत्रयादण्यामनङ्ग तु पटे लिखेत्‌ । नोलदूवाडुरण्यामं CAAT प्रमाणतः ॥ रतिच्रौत्यभयोपेतं पोष्मसायकवापष्टक । ~~ क~ + > पटेषु सुखितः कर्थः सवद्चा्छरसां गणः ॥ ® क “ ATAU S संपज्य वस्तरनेवेद्यदौ पकः | =a A eS © ~ धूपे नो नएविघेदद्ेब्रानातोद्यरवेण तु॥ पुष्पमरडपमध्ये तु रम्योद्याने तु पूजयेत्‌ | आचार्य्यो विविषेभक्तया पूजितव्यः प्रयत्नतः ॥ AMS मात्रपानेख यथा शक्या तु भक्तितः) पमान्‌ कामल्वमाप्रोति सव्वंस्येव प्रियो भवेत्‌ ॥ सौभाग्य प्राप्रयान्रारौ TE लोकं परत्र च । मासि मासि यज्ञेदापि यथानुक्रमयोगतः॥ एकस्मिन्‌ वा दिनि वच्छ वत्सरे वा समचयेत्‌ | वरतखण्ड'९ऽअध्यायः।] इमाद्धिः। मदन चित्तभवन waaay रतिप्रिवं। अनङ्ग चेव कन्दपे सपुञ्य मकरध्वजम्‌ ॥ कुसुमायुघसन्नच्च तधा पूज्य मनोभवं । तथा विषसवाणख् een मालतोपरिव ॥ मासि भाद्रपदे यन्नादनङ्ग YHA । इूत्येतत्रियमेनेव कामनत्रतं समाचरेत्‌ ॥ इति कालोत्तरोक्तमनङ्गत्रतम्‌। युधिष्ठिर sara | यमस्याराधनं ब्रूडि ओौवत्सषुरुप्ोत्तमं | यथान गम्यते NEATH नरकान्तकम्‌ | कष्य उवाच i हारवत्या पुरे पाये ल्रातीऽदह लवणाम्भसि | हृष्टवान्‌ सुनिमायात qa नामनामतः | प्रञ्वलन्तमिवादित्यं तपसा योतितं वर । स प्रणम्याथ AALS ए्टोयुधि्िर।॥ यमादशंननामेदं AT जन्तुभयापद्ध | कथयामास स मुनिमुहलो बिख्मयान्वितः ॥ Axe उवाच | ठत्तान्तं कथयिष्यामि wer खशरोरके। अकस्माद्रोगरह्ितः पतितोखि धरातले ॥ पश्यामि चण्डपुरषेः समन्तादाहतं वपुः ¦ ( २ ) AY मा चपुरुषो AAAI तु Wei बष्ठा यमभटे गदं Alaa वेगवाह्भिः । चणा त्सभायां पश्यामि यमं पिष्ललोचनं ॥ RUA रौद्राख्यं खत्यव्याधिसमनज्वितम्‌ । वातपित्तकफावयेव afaatrentad ! HAMAS CEPS न्दा नाहभगन्दरे; | ~~ wr. ॐ अः राजयच्छप्रमेदाद्यनवरोगरनेकषा ॥ निजाङ्गन्त॒ त्रच रौदरेज्बालागर्दभकादिभिः। A 0 ॐ Ao = रोगव्वहविधः AY ATATSEQuaray: | afdafea dare नरकेर्घोरदणनेः | ॥ | ४ 24 राच्त्संश् पिशाचख समन्तात्परिवारितः॥ विषारकेर्वशिषछादयेशित्रगुपादिलेखकेः। आदिव्यादिकदिक्पालेः कमंसाच्तिभिराहतः ॥ + ~ दूते रीद्रसुखादे ख सिंहसर्पीदिवाहनः | ॐ ने पाशांकुशादिरस्तेख भ्न कुटोकुटिलाननेः ॥ ~y ~ २४ A SeAURIAMNTS 1c: पापिष्ठानां नियामकः । ्रसिपतर वनाद्गार्तारगत्तौस््रपर केः ॥ अखिभद्गमिषच्छेदरूधिरस्वावकादिभिः | Aaa हकतोभाति थमोनाग्योा जनोऽपरः ॥ स प्राह किङ्रान्‌ सर्वान्‌ धशचराजोरुषान्वितः। त्यज्यतां fa समानोतोयुसखाभि्मन्तमानसैः ॥ सुद्रलोनाम Kea नगरे भौोषकामजः। * वानदाह्ष्यततुधा दति युखकाकर्‌ | शेमाद्िः। [anew १७अध्यायः। Raa cows: ] देमादिः। ११ शज्रियः समानोयतां त्तो णयुस्यज्यतां सुनिः ॥ इत्यक्तास्ते TATA ATA: Yara ते । जचश्यमभटाः ATA घच्धराज सुविस््मयाः ॥ "तो णायुस्तत चास्माभिन्रं कथिल्षस्तितो गतेः t न जानीमो श्रान्तचित्ताः aaa ऊगताँपते ५ यमउवाच। प्रायेणते न दृश्यन्ते पुरत धकिङ्कर;४ । कता चयोद्णौ यस्त॒ नरकात्तिविनाशनो tt उल्नयन्यां प्रयागे वा मेरवे वापिये स्ताः | तिलात्रगोदिरण्यादि दत्तं BQ nase i | ^ किङ्राजचुः | RET Tea स्वामिच्छस नो भास्कराकज | कि, तत चेव कर्तव्यं पुरुषाय चतुष्टये + na AAVATS । YAS मागमौर्षादो वषमेकं निरन्तर | ane सौम्यदिने सूथाङ्गरकवजिंते॥ मम नाम्ना हिजानष्टौ पच्च चेव समाह्वयेत्‌ । परा णवेदतच्ज्ञान्‌ खाचारांस्तच Marg QA ANT साधून्‌ सवंभूतदहिते रतान्‌ ! Wal देशे BH पट प्राञ्च डानुपवेगयत्‌ ॥ अन्तव्वीसोयुतान्‌ WAM AAAVIFAA तान्‌ | # wgafagifafa पुस्तकान्तर ve: | + देवति Qaarat ars: | _ 4 । नम Eg ` प ष क 4 „ , | | ar a im aes ; १२ Saltz: | [व्रतखण्डं cower गवः आरभ्य उत्तमाङ्गस्त॒ तिलतैलेन मदयत्‌ ॥ स्रापयेदरन्धकाषायेः सुखोष्णेन च वारिणा| wae एयक Basar सव्वां नेव दिजीत्तमान्‌ ॥ सुखसखरालान्तथाचान्तान्‌ AAT भक्तिपरायणः । सख्यं सत्यः शुषा तेषां qarararfea: tt प्रा्युखानुपविष्टं्च तयोदश VaR धक्‌ । संस्था पयेच्वाभिसुखान्‌ Ferg सुप्‌जितान्‌ | VIA quara भयो भूयो निकेदयेत्‌। ` यश्ासुखु यथेति यथाकाममयाचित ॥ देवं भावं समालच् दडः खय्‌ WMA, | fay art त्याचाच दत्तयेलिलत ^ ॥ प्रखमाचरयेककवं दि azfaua dea saga: पवित्रकैः | \ चश्धप्रावरणैः वेष्ेवस््पु्येख दूतकाः | क मन्ते णानेन fray दत्तयेत्तान्‌ VAR Tas ॥ तराद्यणान्‌ समरूपांस्तान्‌ Galea कारयेत्‌ | यमःगनेरो खत्य॒द्‌ ण्ड हस्तो विनायकः ॥ अभावः प्रलवः णान्तिद्ःखप्रशमनोऽन्तकः । लोकपालो धनो कूरो रौद्रौ घोराननः शिवः ॥ मम प्रसादसुसुखोद्‌द्‌ात्वभयदक्तिणाम्‌ | CaM स प्रयक्छेत देयं द्वा त्रलो पुनः ॥ दिजानानुत्रजे aay खच्छह्यविधिनाचितान्‌ । एवं यः पुरुषः कथिसक्इ तमिदं चरेत्‌ ॥ भ ५. ™~\ \ AASW १ऽशध्याथः |] watz: = r @ waste act gar न याति यममन्दिर | अटृष्टोसौ समायाति विमाने माकेमर्डलम्‌ |i तस्मादयाति पुरीं विष्णोस्ततः शिवदुरीं ब्रजेत्‌ । न्यूनं चण व्रतं तेन सुद्गलेन यथोदितं | तेन नायाव्यसौ खोक मम त्ज्जियपुक्व | सुद लखउवाच। यमस्येनददः Jar कापि दूता WATS भे। अहच्च wana विस्मयाविष्टमानसः ॥ स्शरौरस्ततः प्राप्य सुप्रुवोत्थितो हरः । ततोहरत्मा विष्टो छः -दृषटमिदमा गतः | Jag च मर्या तच कथितन्ते aaa ॥ र, AMSAT | CBM FRA! राजन्‌ प्रयातःसखाञ्मं प्रति । द्द कुरुष्व कौन्तेय त्वमप्यत्र महौ तले ॥ ततो थास्यस्यसन्डिग्ध परित्यज्यान्तकं fea | एव येऽन्येऽपि पुरुषाः स्ियोवापि युधिषिर | चयोद्ण्यां aera ये करिष्यन्ति भूतल | एकमत न aaa उपवासेन वा Ga! it यमाद्शंननाख्ना वे व्रतं सव्वव्रतोत्तमं | न्य, © © क & 0 aq aaqarafay at विमाननाकवश्वसा।। यास्यन्तोन्द्रपुरों रम्यामम्सरोगणसंठतां। दोधूयमाना खमरेस्तूयमानाः सुरासुर |! गौोतवादि तनिर्घोमिंग्डतपं क्तिविराजिताः | tz १४ Walls: | [तरत खर्ड'१ऽभध्यायः । भहृ्टा घोररपेस्ते यमदूतेय धिर ५ अनादिता व्याधिशतैः पिशाचादैरगोचराः । अताडिता महासैद्र नीना प्रहरणाः चताः ॥ यमहरटिपधाग्ुक्ताः सवंसौख्यसमन्िताः | सव्वाल्ारसंयुक्ताः खभिरःसोम्यद््थंनाः | ai वसन्ति सुचिरं भाविताःखेन aera) साप्य चयोद्‌ णसुनोन्‌ छतपायशेन सम्भोज्य पुज्य तिलतस्डलसम्पदानेः | wafea ये aafag चिदशेऽङ्कि पां पश्यन्तिःते ATS न. कद्एचिदेव | इति भविष्योत्तरोक्त ममदन शोत्रतम्‌। EEE Sere ~\ A, ~ | शुरुवारे तयाोदश्यामपराह् ATTA: | \ “ ~ aufaar देवपितुन्‌ ऋर्षोख तिलतण्डलेः | SS नरसिदं anwar थः करोत्यपवासकं “ © ™~, ~~ ` ५ सवपापविनिमुक्तो विष्णुलोके महीपते ॥ $ इति नरसिं पुराणोक्तं नरसिंदचयोदभौव्रतम्‌ | य॒धिष्ठिर उवाच। afe भे agg aa गन्धविनाश्रनम्‌ । तिक्ताग्रहच्च देदस्य दौ्भ॑म्बनाशनं तथा ॥ प] nage cowara i) देमाद्िः | १५ कष्ण उवाच | दमं प्रचर पुरा पां जातकर्णोमहामुनिः' GAA AGIAN RASA AAT ॥ कथयामास at ES उपविष्टा खणोतिसा। देवौ कताल्ललिपुटा जातूक्योऽबदटरत | व्ये छ मसि faa पत्ते चयोदण्यां युधिषिर | AAT पुख्यनरौ तोये परूजयेद्टभरे गजम्‌ ॥ श्वेतमन्दारमके वा करवौरद्च रक्तकम्‌ | faery सूथधदेवस्य aad दु लंभं तथा। Sty, AT, YUNA ्मन्तेणानेन पारव | fra गगने wa साला छदि समुच्चरेत्‌ ॥ QA A खेतमन्दारखताककंस्य BAA | करवौर THY निम्बहत्त aaa a 1 gre योऽचयते भक्तया ay वष एथक्‌ नरः | ZHAI BAAS नारो वा भकिसंयुता। तस्याः शरौरेद्गन्धोदुभीम्यः वा न जायते । न सापल्यभयं लोके न वथ्यादौ षजम्भवैत्‌॥ जायतेऽतीव साभाग्यमन्यस्त दुर्लभं ङ्प) कथितं याशरिष्यन्ति गन्धदौर्माम्यनाशनं ॥ स्वै टोषेविनिर्ुक्ाः सुखमश्रन्ति भारत | निम्नं नवाककरवौरललासुुण्यः | याः पूजयन कुसुमात्ततदोपदानैः | > -e(aaararatas र 7 We YTS: | +~ = + ve | = wre न क ~ १९ हमाद्विः। [नतखण्ड'१७अध्यायः । ताः सव्व कामसुखठदिसमदहिभाजो दोभाम्यदोषरददिताः सुभगा भवन्ति) इति भविष्योत्तरोक्तं दुगन्धदौभाग्यनाशन चयोद शोत्रतम्‌ | युधिदहिर sary | कान्तारवनदुगेषु प्रविशद्धि नदौषु च। समुद्रतरणे चेव संग्रामेषु वरार्द॑ने॥ देवतां कां सरेत्तत्र परिचाणकरीं विभो। कथञ्च देवं कुरुते परिताणक्षते जनः ॥ कष्णडवाच | सव्व मङ्लमाङ्ल्यां Tat भगवतीं sat । नाप्नोति दुःखं पुरुषः संस्मरन्‌ सव्वेमङ्गलां I अलच्यलच्ं मतस्य waa द्ये सखितां | -. भयं समवाप्रोति संस्मरव्रगद खिकां॥ यदातु शाख विज्ञातुमवन्यामहमागतः। गुरोः सन्दौपनेपाश्च' वलेन सदह भारत ॥ प्राप्तविद्येन च मया प्रतिन्नाताश efaar: | fea भावं विदिलामे तेनाहं भावितस्तदा । VIANA पुत्रो मे ख्ताऽसौ दौोयते war मथा ध्याता ततोदटेवो स्वापत><6 कर, ^ + ATSW ` १ऽअध्यायः |] दमाद्धिः १७ agar fa विख्याता तदा देवी च मङ््लां ॥ faaa योऽ्च॑थेत्पार्थं तश्च सवच मङ्गलं | संदितान्तरक्षत्‌ बलभद्र मङ्गला वेतिच्य a ततः प्रति aaa: पूजयन्ति जनाः सदा) मादेव बलभद्र मध्यस्थां warts वप्रे नारायणः Biss कपादो भवतस्ततः। तरयोदश्यां सिते wa मासि मासि waaa: | एकभक्तेन नक्तेन उपवासेन वा पुनः। गन्धे; पुष्पः Walaa मधसौघुसुरासवेः | परललोखरकेः fad वलिभकश्च भक्तितः। योऽभ्यचयेत राजेन्दर सर्वव पायः प्रमुच्यते । wala तरत्येव चितयं Wats यः | अथवा द्‌ रदेगस्थः कारयेत्‌ प्रतिमा्रय | awa araa चापि लिखितं चित्रकेऽपिच॥ घूजयिला विधानेन सवं तत्‌ RAAT S| uaaa facnasfs faa wea यः पूजयेत्‌ कुसुममांससुरोपहारेः | नश्यन्ति तस्य भवनव्वतिभीषणानि चोरारिजन्तुजनितानि भयानि सद्यः % ॥ इति भ वष्योत्तरोक्त * सन्नमङ्गला चयोद शेत्रतम्‌ । * मन्तादृति पुसतकान्तरेपाठः, † इति भविष्यत्तरीक्त अङ्कः बङ्ामङन्ला agen ad भिति एुषकान्तरे पाडः | ( २ ) १८ wails: | [aaa १७अध्यायः | माकण्डेय SAT | WRIA मद्ाराज ्रयोद्‌श्यासमुपाषितः। पूजयेत्‌ कामदेवन्तु वेणाखात्‌ प्रति प्रभो ॥ WAT, ALS AMBIT, STATA ATA | दव्याद्रतान्ते विप्राय गन्धवस्त्रयुगं aat ti Mal व्रत वत्सरमेतदिष्ट मासाद्य नाक + सुचिर मनुष्य; FI मानुष्यमासद्य मवत्यरोगः सुरतान्वितोरुपसमन्वितसख॥ दति विष्णधम्ममो क्तं कामदेवव्रतं। म.कण्डय उवाच | इक्रपन्ते ARITA चयोद्श्यासुपोषितः। RAYA समारभ्य नित्य स पूजयेन्नरः ॥ मदाराजन्तु YAS | गन्धमाल्यनमस्कार टोपधूपात्रसम्पदा सुवण ABUT aati प्रतिपादयेत्‌ ॥ Mal व्रतं वव्सरमेत दिष्ट aay राजन्‌ सुचिर उपो | > न ~~ » प्राञ्नोत्यसग्दिग्ष सिति पुस्तकान्तर्‌ पादः + मनुष्य दूति पुख्कान्तर GTB | aAgy : ऽध्यायः] ATi: | मानुष्यमासाद्य धनान्वितः स्यात्‌ सोभःग्ययुकख तथा विरोमः॥ इति विष्णधम्म त्तरो क्त नन्दत्रतं | व्यासखकवा च तयीरश्यान्तघा राजौ सोप्हार चिलोचनं | Zev प्रथमे यामे सयत सव्वेपातकेः ॥ इति भविष्यत्पुराणोक्त प्रदोष ad ॥ eee eee सनत्‌कुमार उवाच t अघ स्वव्छयनपुसां यग्वतामचघनाशन। त्रयोदश्यां महाव व्रतमेतत्निश्ामय ॥ नवनोतं ATHY रजतांशसमप्रभं | कपितव्धफलमाच्र यत्समादायसुसंयतः। रौप्यताश्चमये पाते सौवण वाध खगमये। सुवणंरचिते तस्य नित्निपेत्‌ प्राद्म खः ofa: स्रत AAI VIMY: az | awd पुष्यनिकरे रक्ततेव प्रकल्पयेत्‌ ॥ afaaced पद्म कारयेत्‌ कुसुमोत्‌करेः। aa लच्छ्ोपति देवं wan युक्न्तु दिव्यया॥ कणिकायां समावाह्य द्‌लेव्वावादहयेत्तथा | MAC तु area fent पालांस्त्‌ वाद्मतः ॥ १९ alfa: | [त्रतखण्ड' comets} विधाय Qasr खादुमूलफलानि च । तदये तत्समानौय नवनौतं नव विः दिधा aa तंदेकैकं मन्तेरेवाभिमन्तथेत्‌ ॥ मन्तः | पुरषः पूणंकामश्च हरिभद्र करोतु नः। सोषिद्रते सरा लच्छोग्ङ्लं feng खयं॥ एवं कत्वा ततः VAT दद्याशेकैकमयतः | qa पुलकित पिष्डभितरञ्च तथापरम्‌ | दतर म्तोलक्तितं।, प्राश्याचम्य feat vat प्रयतामभिमन्तयेत्‌ | थसवन्तरामा भरूतानामनादिनिधनच्यतः | स पर.ःपरया WAM Tha Ta A सदा। सर्य पषटिप्रजननौ सरव्वात्ति मनो तथा ॥ लच्छी: afand गभं रक्ततादचयुतप्रिया | सर्व्वातित्षयदच्ाणि दिव्यगक्तियुतान्यपि ॥ त्वा Tat सदा विष्णोः सव्व प्रहरणान्यपि । तथा fequaa: सव्वं रक्षन्त ग्रहदेवता | पान्तु संसारसंयु लां सवं TART सव्वदा । दति Gal ततः कर््याद्राद्मरानाच्च तप णम्‌ ॥ गुरवे च at दत्वा नियमान्‌ प्रतिपालयेत्‌ | वध्वा सदहोपवस्तव्यं afer प्रयताव्ना ॥ चतुदश्वान्त्‌ सुसखातः तप्‌ जाविधिः शविः । ब्राह्मणान्‌ भोजयिता तु द्या गर्द्क्तिणाम्‌ । ay eat i Hers ~ सल ~^ = yay ET (पत त्रत खर १ ऽश्र्यायः ।] Parts | | | Cs ~, Yara वान्धवः सादं fararyquaaa: i ® © एव FAAT: शदो वद्वपत्यच्च विन्दति | वश््यापि लभते पुतं मनोनयननन्द्‌नम्‌ tt कन्यापि सुपति विन्देत्‌ व्रतेनानेन qaat | माङ्गल्यं परमं प्राप्य दौघमायुश्च विन्दति ॥ इति वारादपुराणोक्त तृयोद शोत्रतम्‌ । कष्ण उवाच | गोरो विवाह्य जग्रा हरः पाशुपतं व्रतम्‌ । उमायतिः पश्पतिध्यांनासक्तो वभूव इ ॥ anifefta समन्ता विश्ुदपुतलब्धये | mor मनोभिनषितपरणाय प्रहषितेः ॥ प्रहितः aula समथदति मन्मयः। ततोमारो जगामाथ wav रतिसंयुतः॥ ईश्वरस्य धनुःपाणिव्वसन्त ग्नो सहायवान्‌ | सचेक्त चापमाक्षष्य ATA MITA गरम्‌ ॥ faa वरिपुरघाग्रे समाधेभङ्गहे तवै | बड़ा तु तस्य सङ्कल्य tz: क्रोघधज्वलद्ुः ॥ ललाटे वदङ्किमणजत्‌ ठतोयनबनाडइरः | कामोवलोकितस्तेन भस्मोभृतञ्च AAT ॥ दग्धं ष्वा सर भोकाद्रतिप्रोत्योखिते सदा | २ ` देमद्धिः। [वरतखण्ड!ऽभध्यायः। कर्शं विलपन्त्यो च सव्वमन्यदिशांगते | ततः MATSETAT गरौ सद्रसुवाच | | भगवन्‌ मदय संरसः कामं निदग्धवानसि ॥ Gad पश्यता दे कामस्य दितः कथम्‌ । ` HA प्रसादं Say रतिप्रौत्यी हं षध्वज ॥ सन्ञीवय पुनःशग्भो मृत्तिमन्तं पुनः Fa AATF महादेवो He प्रोवाच पावतौः SNA Waa Aaa शरौरि णा । मथा दग्धस्य कामस्य पुनरागमनङ्‌ तः faa a मानवदाक्य करोमि सफलं प्रिये। अरस्मिन्वसन्तसमये शक्तपत्तं तयोदभौ ॥ अस्यां मनोभवोदेवो भविष्यति शरीरवान्‌ | एतेन वौजभूतेन जगदहत्तिष्यतेऽखिलम्‌ ५ ua वरमिदटं द्लामन्मधाय युधिषिर | जगाम हिमवत्पृष्ठे केलाशं पार्वतौप्रियः | तदेतत्ते समाख्यातं सूरस्य चरित दप ॥ पृजाविघानमपरं कथयामि णुष्व तत्‌ | असयां सरला तयोदश्यामशोकाख्यं नगं लिखेत्‌ i सिन्द्रर्जनीरङ्ग रतिप्रोतिसमन्वितम्‌ | कामदेव मत्तवाजिवक्त तच ठषध्वजम्‌ | Slat वा महाराजहत्तद्चतरमधापि वा | लोलाविलासगमनगवितच्चानष्रोगणं ॥ T WUCGs मन्य इति पुख्कान्तर। व्रतख ख १ऽअध्वायः ] sats: गन्धवं गोतवाद्च्रप्रर्तपोय समाङ्गलम्‌ | amanda कछतुक्रौडाप्रोति विद्याधरौयुतं ॥ WAS पूजयेत्‌ भक्तया WaT सुगन्धकेः। मन्तेणानेन राजेन्दर नरनारोसमन्वितं। नमः कामाय दवाय देवदेवाय मूत्तये॥ ब्रह्मविष्णुसुरेशानां*# मनःत्ोभकराय a | छत्वेवमचंयित्ला तु देवदेवं मनोभवं ॥ ततस्तद्ग्रतो देवा मोदकाः सुखमोदकाः। नानाप्रकारान्‌ HAG कामोमेप्रोयतामिति। ततो विसखयेद्धिप्रान्‌ दवा ger aha | यस्स गोमिधनं# | ~ A स्तपतिं पूजयेत्रारौ वस्रमाल्यविसूषणः | कामोयमिति सच्िन्प्रहृ्टेनान्तरात्मना ॥ AAA महापूजा# यजमानः सुहदतः | रात्रौ जागरणं Hara सुखराचियंथा भवेत्‌ i © , ष्‌ त at | कपूर GR AA TAT AST: | $ = + गरूद्धाणं AQAA कुययाद्ास मरोत्सवं॥ गे = ~ an दोपप्रज्चलन fee. ga; प्र ्तणकोत्सवे;४ | Xz meee # रुरन्द्राणामिति पुसखकान्तरे। # वस्ते ayaa पुस्तकान्तरे प्राठः। # SMUG R CMA पुस्तकामरं पाठः| Saltz: | [anew gown: | एवं a: कुरुते Wy वपं वष महोत्सवं ॥ वसन्तसमये प्रापे BE: युषटोष्षः युर । तस्य संवत्सरं यावत्‌ भोकरोगे विमुच्यते ॥ सुभिच्यतच्ेममारोग्य यश्खोसो ख्यसुत्तमं | कामवर्षीं च प्रजेन्य;ः तस्मिन्‌ राद्ध प्रजायते ॥ तुष्यते नात्र सन्देष्टी दादश ड!दंलो चनः। तथा क्रामख aya वसन्त प्रजापतिः it ARAMA: सव्व ग्रहा ब्रह्मषयस्तया | सवेपि तस्य तुथन्ति यत्तमन्व्वराच्तसाः WIC यातुधानाश्च सुपण; Waar नमा, तुष्टाः प्रयच्छन्ति सुखं तस्य कत्तनं सं रयः ॥ पत्रोत्‌स्वे सकललोक मनो निवासे, कामं वसन्तमलयाद्विमरुत्‌ सदाय # ॥ पत्रा साच्च पुरुषप्रवरोऽथ योषित्‌ | सोभाग्यरूपसतसौख्ययुता सदा स्यात्‌ ॥ इति भविष्यत्तराक्तमद नमरेत्सवः। व्यास उवाच | मन्दवारयुता GAT BRIA त्रयोदशो | तस्यासुपोय विधिवस्सम्पूज्य गिरिजापतिं ।॥ ॐ © ~ Aweattefa: पापसुक्तो भवति मानवः 1 दति सौरपुराणाक्तं qaqa | * कासश्चसत्रमनयाद्धिदसुडायमिति पुख्कान्रं पाठः | aaa .omatais] दमाद्धिः २५ पुष्पादितस्वयो दश्यां Hal नक्ष मघी पुनः | अशीक काञ्चनं दद्यादित्लयुक्त दशाङ्गं ॥ विप्राय वससंयुकतं vga: प्रोयतामिति | कल्य विष्णुपुरे स्थित्वा fama: स्यात्‌ पुमान्‌ चपः | एतत्‌ कामत्रतं नाम सद्‌ा भशोकविनाशन॥ दति पद्मपुराणाक्त' कामन्रतम्‌ | ब्रह्मोवाच | कामं पूज्यः; चयोद्श्यां सुरूपो जायते ध्रुवम्‌ । इष्टां रूपवतो भाग्यं लभेत्‌ कामां पुष्कलान्‌ ॥ wana: स्वसंक्नाभिरङ्गमन्वाख कौत्तिताः। पूव्व वन्‌ पद्यपत्रस्यः कत्तव्य fatty ॥ गन्यपुष्पोपहारेय यथागङ्ि विधोयते) पूजाशाठयन शाटेप्रन aaa तु फलप्रदा | आज्यघारा समिद्धिश्च दधिक्तोरात्रमाचिकेः । पूर्व्वाकफलद्‌)होमः छतः शन्तेन रेतसा ॥ रएतद्रतं वेश्याभरप्रतिपद्रतवत्‌ व्यास्येवम्‌ | इति भविष्यत्पुराणा क्त कामचयेदशोव्रतम्‌ | sta ौोमहाराजाधिराज-स्ौमहादेवस्य समसत करग्णघोश्वर-सकल-विव्याविशारद्‌ योदहेमादद्धि- विरचित waa मचिन्तामणौ त्रतखग्डे तयोदशोब्रतानि ॥ * नरद्ति पुरूकानरे Ws: | # काम जति पुसकान्तर पःठ ( ४8 ५ अथ अष्टाद गोऽध्यायः ॥ अय चतुदंगौव्रतानि। दिग्‌ दन्ताबलकणतालपवन-परे StF AT agifaafa भियितं सुमधुर बेकुणट-कुरठस्रेः | कौत्ति किंत्ररयीषितः प्रतिदिशङ्ाथन्ति यस्यानिशं हेमाद्रिः स चतुद॑शौव्रतगखं ad महासिदिद्‌ं ॥ खोक्तष्ण Sars | अनन्त व्रतमप्यन्यत्तिघा वस्यामनुत्तमं | ४, * 7} $ न्ष सवपापड्र gat स्रों चेव युधिषिर 1 ~ ५ $ = WHI We ष्यामासि भाद्रपदे भवेत्‌) तस्यानुष्टानमातरेण सवंपापाद्यपोदति ॥ युधिष्ठिर उवाच | क्ष्णा कोयमनन्तेति प्रोच्यते यस्तया विभी ¦ fa शेषनाग भ्रादरोखिदरनन्तस्तत्तकः स्मतः | परमाता तथानन्त SATS! AB उच्यते| # न्ध + ॥ क एषोऽनन्तसंज्ञोव तथ्य FH gfe केशव ॥ BIAW उवाच | अनन्त TIE पाये ममरूपं निबोध वै | भादित्यादिग्रह्ावारायः कालल उपपद्यते। aaa १८्अध्यायः। }] watz: | कला-काष्टा-सुह्ृत्तीदि दिनरात weiTara | पत्तमासत्त्‌-वषांणि युगकल्य-व्यवस्थया ॥ थोऽयं काली मया ख्यातः सोऽनन्त इति कौ ते | सोहं कलावतो णोऽ भुवो भारावतारणात्‌ ॥ दानवानां विनाशाय साधूनां पालनाय च। safe मध्यमय्यन्तक्षष्ण विष्णु हरि शिव ॥ ब्रह्माणं भास्करः सोमं सवेव्यापकमौ श्वर | विश्वरूपं महाकाल afe सहारकारक। WMA मया Sa फाल्गुनाय प्रदशितं । सव्वं भेव away यो गिष्येयमनुत्तमं ॥ विश्वरूपमनन्तच् यस्मितिन्द्रा्तुदं ग | वसवोष्टौ दादगाकां TAL एकादणामलाः ॥ GAT: समुद्राच पव्वं ताः सरितीट्रमाः । नच्चत्रागि दिशोभरूमिः पातालं भूभुवः खद । मा कुरुष्वाच सन्देह सोऽह पायं न TUT! | युधिष्ठिर उवाच, प्ननन्तत्रतमाद्ास्माविधिं विधिविद्ाम्बर t किं ge fa फलं यत्‌स्यादनुष्टानवतां खशां ॥ ~ ©, “SH a ° HA वादौ YT WW Aa केन प्रकाशित | एव सविस्तरं GU ब्रूह्यनन्त व्रतं मम ॥ ATAU उवाच | Taq पुरा कतयुगे सुमन्तुर्माम वे feat VAifz: | (Aaa १८अध्यायः | वसिष्ठगोत्रेनोत्पत्रः सुसुरूपां witgai । दोचां नामोपयेमे तां वेदोक्तविधिना aa | तस्याः कालेन सन्ञाता दुहितां नन्ददाथिनौ ॥ WAT नाम सुशोलासा न्यवसन्माटसडनि। ततः कालेन कियता ज्वरदादहेन पौडिता। fanaia agate यरी खर्म पतिव्रता) सुमन्तुस्त॒ ततौ यन्न we qa: wat पुनः ॥ उपयेमे विधानेन want नाम नामतः Sweat want wet faa कलहकारि षीं | सापि sitar faqué wereatar aay । कुड स्तम्भाद्गन-डार-देदलो-तोरष्णद्दिषु ॥ वणं केधिचमकरीत्‌ नौल-पौत-सिता-सितैः | सस्तिकः wead ख अर्चयन्तो पुनः पुनः ॥ ततः ATS बडइतिथे गते मारद्श्यालुगा | पित्रा दृटा तदातेन aifas aaa fear aa देया मया शौला विचाय्'वंसुदुःखितः। पिताददौ इिजेन्द्राय कौरिडिन्धाय शभे दिने ॥ ग्टह्योतविधिना परथ विवाहमकरोत्तदा | निवी हादिकं aa’ प्रोक्तवान्‌ Hat दिजः ॥ किचिष्टाया्टदिकं ta जामातुः परितोषकं। तत्‌ श्रुता RRMA प्रोब्छाय खदमण्डनं ॥ पटायां सुखित कत्वा awe गम्यतामिति, भोज्यावसिष्टचूणन पा्ेयञ्च चकार सा) ATS (CAI: |] हेमाद्रिः 1 ˆ २९ कौ र्डिन्धेाऽपि विवाद्येनां पथि गच्छन्‌ शने; शनेः । शीलां सुगौोलामादाय aatet गोरथेन हि॥ HWS भोज्यवेलायां wats सरित्तटे | CEM Wal Atal a समुदं रक्तवाससा | चतुर श्यामच्च॑यन्त' भक्तया देवं जनाद्नं । >, उपगम्य शने; साथ प्रप्रच्छस्तोकद्‌म्बकं॥ sat किमेतन्म qa fa नाम व्रतमीटण । ता wy atfaaai q Mai शोलविभूषणां।॥ अनन्तत्रतमेतदि त्रतेऽनन्तस्तु पूज्यते | सा त्रवोददभेतत्ते करिष्ये त्रतसुत्तम i विधानं wed तच fa दानं कोऽत्र पूज्यते) न faq ऊचुः । भोले TAMU पुत्रामसंस्कतस्य च । ae विप्राय दातव्य अर्च॑मात्मनि भोजनं | शक्या च efaut दव्यादित्तणएडविवर्जितां | HUA स सरोत्तौरे विधिनानेन मानिनि। Bal नन्तं WAS गन्धलेपनधृपनेः | पुष्पे गन्धैः Tada. पौतरकेखतुःसमेः ॥ तस्याग्रतो EF WA FR माक्त सुडोरक'। चतुरेगग्रन्यियुतं वामे करतले न्यसेत्‌ | मन्व णानेन सुसोणियावदष' समाप्यते ॥ अनन्त संसारमडहासमुद्र मग्नान्‌ समभ्युडर वासुदेव | ^ दमाद्रिः। [तरतखर्ड १८्अष्यायः । श्रनन्तरूपो विनियोजयसख अनन्त सत्राय नमोनमस्ते I नेन डोरकवद्ाभोक्तव्य' खस्यमानसेः | ध्यात्वा नारायण quan विश्वरूपिणं | VATU AHEM AT Ga भरतं तव ॥ BAW उवाच) VARIA राजेन्द्र WHEAT | सापि चक्र Ad WaT करे TET सुडोरकम्‌ ॥ पाधेयमद' विप्राय द्वा ua Axi तथा | पुनजगाम संहृष्टा गोरथेन पतेग्टद्ं Walasa शनक; प्रत्ययस्तत्तणादमूत्‌ | तेनानन्तत्रवेनास्या बालंगोरस-संकुलं ॥ weaa खियाजुष्टः धन-घधान्य-समन्वितं। कुलमव्याकरुल' रम्यं सवे ्रातिधिपूजनं o सापि माणिक्यकाञ्चौभि मुक्ताहारविभूषिता, देवाङ्गवस्तसं च्छत्रा सावि प्रतिमाभवत्‌ | कद्‌ाचिदुपविष्टाया Beas, सडोरकः | भोलायाहस्तमूले तु भत्ता नेन दिजन्मना ॥ MAINA कौरव्य AUT Misa Tar! कोऽनन्त दति मूढेन जल्पता पापकारिणि ॥ चिघ्ा ज्वाला Teas हाहाक्ता प्रधाविता। गोला Weal By सोरमध्ये anata 1 + gaa’ १र्अध्यायः।] Bartz: | : i ere ~ cy a च, CA ray a” Aa करविपाकेन awe art aad गता, गोधनं तस्करर्मीतं we मुष्टमकाच्चनं। यद्य वागतं तत्र aaa च विनिर्गतम्‌ । ` aaa: कलङहोमितनेर्वद्चनं भजनं तथा | प्रनन्ताक्तेपदोषेण द्‌ारिद्य' पतितं we | न कसिहदतोलोके तन साद युधिष्ठिर ॥ शरोरेणाति सन्तप्तो मायया wae: fan: | faae परमं प्राः कोर्डिन्यः are at प्रियां a भोले किमेतद्त्मत्र सहसाओोककारकः। येनातिदुःखतोऽस्माक जातः सवधनक्तयं 1 सजनं: कलहोगेदहे नकथिन्मेप्रभाषते | शरोर तौत्रसन्तापः ्तेदथेतसि दारुणः ॥ जानासि gaa: कीऽच fa कतं दुष्कलतं भवेत्‌ OE HAVA A भोलासुगोलागोलमण्डना ॥. प्रायोऽनन्तक्षतारेप WTA फलं | भवियति RETAIN तदथं यन्नमाचर॥ ` एवमुक्तः सविप्रषिं जगाम मनसा BIT | निवदोत्रिजेगामाथ कौर्छिन्यः प्रयतोवनं | तपसे छतसङ्ल्यो बायुभच्यो दिजोत्तमः | AANA चानन्तं क्षद्रच्यामि ततो विभु । यस्याप्रसादातन्ञातमाक्तेपाव्रिधनं गनं | धनादिकं ममातोव सुखदुः खप्रदायक ॥ एवे स॒च्चिन्तयत्‌ सोऽथ वभ्राम विजने वने ॥ र १ माद्रः [araw orga | ततापश्यत्‌ Hered फलितं ytd तथा । afad ufaaeia: atae विभव aay तमए्च्छ्वयानन्तः कशिदृष्टा ABTAT | मद्धि सौम्य ममातोव दुःखं चेतसि वत्ते | सौऽव्रवोद्द्र नानन्त वद्धि द्रच्यामिवा हिज) एवं निराक्ततस्तन sara दिजस्ततः॥ क्त दच्यामोति गच्छन्‌ स गामपश्यत्‌मवव्सकां | ठलगमधष्य प्रधावन्तौमितश्रेतश्च पारव ॥ ्रप्च्छदेनुकेन्रूहि यदयनन्तस्त्वयेचितः। साचोवाचाथ कौर्डिन्यं नानन्त वेदमयं दिजः ॥ ततो व्रजन्‌ zeny a + राजभिश्च महाप्राज्ञ विहित ब्रतसुत्तमम्‌। एतद्नतप्रभावेन सव्वं सिदिसुपागताः | वैश्यापि मत्‌ प्रिया जाता fata सुखचारिणौ ॥ Sevi मद्रतं वत्स-तेलोक्मेषु च विद्युतं । कलहेन विलासिन्या व्रतमेतदुपस्ितम्‌ ॥ प्रह्लाद तेन ते भक्तिमेयि जाता wWawat i धृत्तया च विलासिन्या ज्ञाला त्रतदिनं मम ।॥ HATA तोयेन AKAG Ha wad । सा वेश्या GUAT जाता भुक्ता भोगाननेकशः ॥ चती aa विलामि a Weiz सुविस्मयः) AA भगवानाम्ते AAC च पथक्‌ तथा ॥ विधाय सव्वकार्य्याणि mia aa गमिष्यसि, यदद्‌ व्रतमावश्यं प्रकरिष्यति मानवः | 8 श v ries, r mt ig ra uf a ¶ ॥ च| प्र 1, | f° च" १; माद्रि | [waaay ! टश्रध्यायः) न तेषां पुनरात्तिमं तः कल्पशतेरपि । अपुतो लभते Gara ARAMA सुवचसा ॥ दरिदोलभते aan waza च arent तेजःकामो लभेत्तेजो राज्येषु राज्यसुत्तमं | अआयुःकामो लभेदायु्यादशं च शिवस्य fe | स्लोणां व्रतमिदं साधु gaz भाग्यद्‌ं तथा # अवेधव्यकरन्तासां प॒त्रश्ोकबिनाशनं। धनधान्यकरं चव जातिचेष्यकरं शभ | साव्वेगौमसुखं तासां दिव्यं सौख्य भवेत्ततः, feat वा पुरुषाश्वापि gaff व्रतसुत्तमम्‌ + तेभ्योद दाम्यह सख्य भुकिसुक्तिसमन्वितं। बहुनोक्तेन किं वच्छ व्रतस्यास्य फ़ल महत्‌ tt RAAT फलं वत. नाहं MATA WHT | नद्या aqtuaaa न लभेन््रहिमावधि 4 NEI Vara | भगवंस्तव AMSA शुत ब्रतमनुत्तमं ! व्रतस्यास्य फल साधु त्वयि मे भक्तिकारणं ॥ साभिन्‌ जातिविशेषे au पापनिक्तन्तन | अधना ओोतुभिच्छामि त्नरतस्यास्य fata at a कस्मिन्‌ मासे भवेदेतत्‌ कस्मिश्च वासरे प्रभो। एतदिस्तरतोदटेव वक्षमद्टसि साम्प्रतं ॥ विधिना थेन a स्वामिन्‌ समग्रफलभुगभवेत्‌ | मसोपरि aut कछला gfe लं सकलं प्रभो । [ऋ व्रतखर्ड (OWA । | देमाद्िः afaqz उवाच) साध्‌ साघु महाभाग व्रतस्यास्य विधि adi सवे कथयतो मेऽद्य त्वमेकाग्रमनाः WY । वरैणाखश्क्तापत्तं तु चतुद्‌श्यां समाचरेत्‌, AMAIA पुर AA WIAA ॥ ag वष तु HUT मम सन्तु्टिकार कम्‌, मदहागुप्तमिदं अेष्ठमानुषेभंवभौो रभिः | तेनेव faaattia सदसरदादभौफलं ॥ जायते मत्सखा aa मानुषाणां महावनां | स्वातौ नत्तचयोगेन शनिवारेण संयुते । सिदियोगस्य संयोगे वणिजे करणे तथा । पुखयसीभाग्ययोगेन लभ्यते देवयोगतः॥ सर्वरेतैस्त संयुक्त हत्वा कोरिविनाशनम्‌ । एतद्‌न्यतरे योगे Alla पापनाशनम्‌ ॥ केवले तत्प्रकत्तव्यम्‌ मदने व्रतमुत्तमम्‌) अन्यधा नरक याति यावचन्द्रदिवाकरौ। यथा यथा प्रहत्तिः स्यात्मातकस्य कलौ AT | तधा तथा प्रणश्यन्ति ARAM प्रभावतः tt ~ षु, ए मदुत्रतस्य प्रभावेन मतिनेस्याहरालमनाम्‌। विचाय्यत्यं wade माधवे मासि azad ।॥ नियमञ् प्रकन्तव्यः द्न्तधावनपृ बकं | ्रोवृसिदोमहोग्रस्व' दयां कला ममोपरि ॥ ४६ चख माद्िः | [त्रतखश्ड cena? gaieq fauraifa व्रतं fafaaat aa} ति नियममन्तः | ~ 6 ९ व्रतख्यन न कत्तव्या सङ्तिः पापिभिः az! सिष्यालापोन कत्तव्य: समग्रफलक। हन्मि: | 7} म ~ A क स्तो भिरहेतेख आलापान्‌ व्रतसोनेव कारयेत्‌ t a 4 + ~, -~, ~, स्मत्तव्य A महासर्प Aled सकलं WU | ततो मध्याइवेलायां नदयादौ विमल ag | Weal डेवखातं वा तडागे विमले wa | जैदिकन च wad स्नानं कत्वा विचच्तणः। om oN ~, सत्तिकागोमयेनव तघाघालोफलन च॥ = क तिले RAIA: खानं क्त्वा महातमभिः। c चै ~, परिधाय त्तिव्वासो नित्यकम् समाचरत्‌ ॥ ततोग्टद् समागत्य स्मरन्‌ माग्भक्तिखोगतः। गोमयेन च fay Hatzved Wa ॥ RANMA सस्थाप्य awacaaafaad | तस्योपरि MATA AWA: परिप्‌रिति | ~y रो ह `” a eal तत्र च aah: खाप्या Ma aaa च | प्रलेनच तदद्न agsiza al ga i ^~ ¢ 9 यथा शक्ति तथा काया fauaniertaataa: | पञ्चारुतन संस्नाप्य एूजनन्तु समाचरेत्‌ । AVM AUST तमाचाथमलोलुपं । सदा चारसमायुक्त शान्त दान्त जितेद्धिथं ॥ त्रत खण्ड oma: |] माद्भिः | AA ~*~, + तेनेव कारयेत्‌ पूजां SET शास्त्रानुसारतः। १, नो + आचायवचनाद्धोमान्‌ ost कुया द्यधाविधि | AW कारयेत्ततव पृष्यस्तबकशगोभित | ऋतुकालोद्ववेः युष्यैः पजयेदयतमानसः | A उपचारः बोडगशभिश्चन्न्तेनीमभिस्तथा | Ny aa: पौराणिकंश्धन्देः पूजनौयी यथाविधि | चन्दनं Wad दिव्य चन्द्रकुङममिखित | Qs $ ~ ददामि aa तुष्य ठृसिह परमेश्वर ॥ दतिचन्दनमन्वः | कालोद्कवानि पृष्यारि तुलस्यादौनि वे प्रभो । पृजयामि दृसिंहन्लां AA सह नमेःस्तते ॥ GUA: | कालागरुमयन्धुपं सव्वदेव सुवह्लभं | ¢ करोमि a महाविष्सी सव्वकामसस्दये ॥ इति yuna: | दोपः पापहरः प्रोक्तस्तमोरायिविनाशनः। दौपेन लभ्यते तेजस्तस्मादौपं ददामिते । इति दोपमन्वः | TO $ मो + नेवेदयय सोख्यद्‌ञ्चारु भव्यभोज्यसर्मानचत) ददामिते रमाकान्त ATI कुर्‌ ॥ ४9 Ba Sag: | [व्रतखग्ड'१८्श्रष्यायः। ofa नवेदयमन्तः । खसिंहाच् atau लच्मौ कान्त जगत्पत | om ¢) १ a अनेन।ष्यप्रदानेन सफलाःस्यमनोरयाः । TAMA | पौ ताम्बर AAS Was भयनागक्तत्‌ | यथाभूतेनासंनेन TAA RANA ॥ दूति प्राघनमन्व;। 5 $ | = Lal जागरयं aia Maafezafaaa: | YUASA Ss MAA च कथा शभा ॥ ततः प्रभातसमये स्नानं कत्वाद्यतद्दितः | पूवाक्तेन विधानेन पूजयेन्मां aaa: i awd तु चरेच्छाद् wea afaaraa: | ततो दानानि देयानि वच्यमाणनि चानघ॥ पातेभ्यस्त दिजेभ्यो हि लोकदयजलिगो षया | सिंहः! खणंमयोदेयो मम सन्तोषकारकः॥ गो-भूतिल-दिर्णानि देयानि च फेः WA: । शय्या सत्‌लिका देया सप्चधान्यसमन्विता ॥ अन्यानि च यथाशक्त्या देयानि मम qza | fAUNIST न कुव्वांत यथोक्तफल कान्या ॥ ब्राह्मणान्‌ NAAT Aw देया च दरङिण। निईनेरपि ad a देयं गक्तयनुमारतः॥ सवषामेव बरणनामधिकारोऽस्ति मे aa t त्रतखर्ड' १स्अध्यायः।] sare: | =~ oe Oo + = waa विशेषण कत्तव्य मत्परायणः | मदथे ये नरा जाता ये निष्पत्तिपरायखः। तान्‌ ससुडर देवेश दुस्तरात्‌ भवसागरात्‌ । पातकाणवमग्नस्य व्याधिदुःखाश्ववारिभिः । गो 2९ waa प्रिश्रूतस्य महदुःखगतस्य मे | am, ~ करावलम्बनन्दहि शेषशायिन्‌ ATT | श्मौदखिंह रमाकान्त भक्तानां भवनाश्न। रोर ^~ © © तोराम्बुधिनिवासस्त चक्रपाणिजनादहनः। व्रतेनानेन देषेशभुकिमुकि-प्रदो भव ॥ इति प्राथनामन्तः | शवं ura ततो 2a विदधज्य च यथ्राषिधि। उपहारादिकं सवेमाचायाय निवेदयेत्‌ ॥ दचिणाभिः सुसन्तोष्य arava विसजयेत्‌ | WATS I समायुक्तो za aay frac: ॥ ALS खणयाद्धक्तया व्रतं पापप्रणाशन। तस्य वणमाने ण ब्रह्महत्यां व्यपोहति ॥ पवित्रः परमं गुह्य कौत्तयेद्यस्त मानवः | स्वान्‌ कामानवाप्नोति व्रतस्यास्य फलं लभेत्‌ ॥ इति ओरोनरसिंदपुराणे नरसिंदप्रादभावि नरसि"दचतुदंशोव्रतम्‌ | (1८2 ¢ ~~ ( ७ ) १० Satie: | [त्रतखणश्ड १८अध्याय; | faa vara | अध लिङ्त्रतान्यत शणुलेशेन परम्‌ ख | कात्तिंकात्‌ सम्यगारभ्य ad वे शसितत्रतः ॥ ` कात्तिंकस्य चतुद्‌श्यां क्तायां पूजयेच्छ्िं | HSA प्रकत्तव्य' महापूजामघो पुनः ॥ ` लिङ्गत्रतानां सर्वेषां तथा aaa वत्तं | qui Fara यलेन वस्तनवद्यका{द्भिः | aifafasad fax’ aatefanaraa: ॥ रनिवं चसुष्टिकरः | fawn सुबणंस्य लिङ्स्योपरि विन्यसेत्‌ | धूपोवेबुन्दुरुदय खदनचागरुन्तथा ॥ {शिवरूपाय टरा तव्यं गिव--याल्यक्तयङ्गतः ॥ शिवरूपाय विप्राय लिङ्ग दातव्य" alae चतुर्दश्यां शएक्तायां वे विशेषतः ¦ संपूज्य पूवेवलिङ्ग' महास्नानेन aaa: ॥ विलिम्य कुङ्कमेनेव शिवन्तेन प्रपूजयेत्‌ । श्वेत चन्दनलिङ्गन्तु कत्तव्य प्रूवमानतः| सुवण तर्डलप्रस्य wear शिवाग्रतः! कपू रण तु प्रूपन्तु चतुदिं्ञ प्रकल्पयेत्‌ | मदहावत्यादिकं ta दधिपाच्' aurea ti शभाषटकः मङ्गलाष्टकम्‌ | एवं कत्वा विधानेन लिङ्गायविनिवत्त येत्‌ # । ees * fas’ लिङ्गाय निव्वपेत्‌ दतिक्चित्‌ प्राठः, aAagw eoagr: i) Pals | ५१ ईशान CAVA आचायाय प्रकल्पयेत्‌ ॥ tama, प्रीयतामिति लिङ्गाय was aaa दद्यात्‌ एवमन्येष्वपि ate AeA । शिवसायुज्यतां याति व्रतेनानेन षरम्‌ ख । पौषशङ्ग चतुदभ्यां पूवे वत्‌ quate | पूजान्ते गुगगुल तं शिवस्य परितोवहेत्‌ ॥ प्रतं, पलानां | पायस Badia waw प्रसथसम्मितं ॥ प्रख , तण्डलानां | नैवेयं घुरतोदेयं पताकाः शक्तिसह्यया । शक्तयो अष्टो ध्वजा तथा gana fag'a पालिपिष्टजं | तिलादठृकं gay far efauat न्यसेत्‌ । शङ्रा ख्यस्य रुद्रस्य व्रतमेतत्‌ Bara | माघश्क्तचतुदश्यां fad सपूज्य वत्त॑येत्‌ ॥ भ्राल्योटरनात्तत fay तिलप्रस्थः सुवणं कं | शिवस्य दत्तिणे भागे धारितव्यः प्रयलतः ॥ सुदोरन स्तच्च पूव॑स्यां प्रखसंमितं | अगरु fara चन्द्र॑ edad शिवाग्रतः ॥ ` व्रतमेवं विधानेन उग्रमाबाद्य निवपेत्‌ | व्रतान्ते तु गुरू भक्तया TAMA प्रपूजयेत्‌ | फल्‌ गृशक्त चतु दश्यां गिवं पूज्य विधानतः | गुग्गुलं स्तं धूपं महावत्ति चतुष्टय ॥ ` aR Salix: | [त्रतखणर्ड {अभयाय मोदकानि fafaarfa ate Sat azar | पूर्वोक्तेन विधानेन तथा far निषैदयेत्‌ । भवाय च नमः पूज्य त्वाचार्यौ भूरिंदचिणः a एवं Hal महासेन प्राप्रोति तन्मरयङ्चित्‌ | चेत एका रयो दश्यां शिवं पूज्य विधानतः ॥ भवर्द्राय faa वायं पूजयेत्ततः | एवं कायं' प्रयन्नेन चाक्षयं लोकमिच्छता \ चतुर्दश्यां GRIT वे शाखस्य प्रयतः | fad पृज्य विधानेन महास्नपनयपूवंकं। विलिप्प कुङ्मेनेव चन्द ने ध चथेच्िवं । fay’ पिष्टमयं कत्वा हे मयुष्यविभषितं ॥ तिलप्रस्थ' सुवणंच्च efaufea विन्यसेत्‌ महावत्तिदय देयं दौपमाल्य' एतेन qt स्तं गग्गलं दद्यात्‌ पलानान्तु WATT | aq शिद्धयं चन्द्र॑ प्रत्येकन्तु WAST ॥ ततोदमनपुष्ये स्त॒ शिव सूज भक्तितः | सुवणं तिललिङ्कच्च भवरद्राय निवपेत्‌ ॥ सद्रसख्यास्त गुरवो दचितव्याः waaa | भूदानवस्तदानंशच waite प्रविस्तरः ॥ TABATA ala व्रतं संवत्सर हितं | एवं यः कुरुते भक्तया सगच्छ त्यपरमम्पद्‌ i पितरस्तस्य नन्दन्ति रुद्रलोके महीयते | दिव्यवषांयुतं AT तदन्ते तु wave: | व्रतखर्डं १८अध्यायः । ] | Satz | SAAT पुनस्त तु भिवे नित्ये लयं ययुः | य: करोति aaa शिववत्‌ सच पूज्यते ॥ ae Verde faa’ कत्वा शिवं जपेत्‌ | विलिप्य चन्दनेनेव जातीपुष्पेश्च पूजयेत्‌ ॥ GE LF agers धृष देय शिवायतः ॥ लघु, ATT! दौोपमाला तु दातव्या घारिका किद्धिणोष्वजं । लावणागालकाञ्चव सौरिपो घृतसंयुत | खर्डपाचारि देयानि छतपाचाणि ate: | एवं यः कुरुते बाब्छन्‌ MARAT ॥ पित॒नुबरते सोऽपि दशपूवन्‌ दशापरान्‌ अषाटस्य चतुदेश्यां wera विशेषतः ॥ शिवं पूज्य विधानेन महास्रपनपूवेकं। विलिप्य चन्दनेदवं प्रपला q Balas | WE चन्दनकाभ्मोर ग्रन्यिला च शिखिध्वज । एवं चतुःसम नाम BTA शिवप्रियः॥ WATE ARYL लघुवत्पलसंयुतं | धूषन्तु परतो दद्यात्‌ नेवेद्य' किरणान्‌ बद्धन्‌ ॥ किरणान्‌ कपू रान्‌ । लिङ्गास्यान्तच्रएतत्‌ | धोरिका ATSATA a wayt पटच्चिकं॥ निवेद्य न्तौरपानच् खेहादटेवस्य यलतः। पिष्ठलिङ्ध' सुवण च पूगपच्ञ्च निवपेत्‌ [ वितानच्च पताकाश्च व्यजनं TTT तघा | ५२ दमाद्धिः | [ व्रतखर्ड'१ अनध्यायः आचायः पूजयेत्‌ पश्चाद मन्रवाइनेः I एवं यः कुस्ते सम्यक्‌ स याति परमं प्रद्‌ | पितरस्तस्य मोदन्ते रुद्रलोकं समततः ॥ कल्कोटिसदस्राणि कल्यकोरि शतानि च) ATAU AEA WRIA व्रतं चरेत्‌ | नित्यनैमित्तिकं चव कला काम्य समाचरेत्‌ | aa पूजाजपोध्यानं हमं चेवतु पञ्चमं । इति faa समाख्यातामडन्यहनि सन्म ख । अष्टम्यादिनिभित्तेषु wary हिगुणा तथा ॥ पवितारोहरं तदन्रिव्याङ् नियमं faa | दौच्याचेव प्रतिष्टा च ग्रहणमयनं तथा | षडगौति सुखाश्चैव निभित्तकमुद्‌ाहतं। काम्यव्रतानि कायाणिज्ञवानि fe aut पर्‌ ॥ संपूज्य परमेशानं पुवंवञ्च विलेपनं | वानरेनुहितं धूपं aaa पायसं तथा ॥ वानरं Teena | वस्तपूतोदकं चन्द्र पानन्देवाय कल्पयेत्‌ | ताम्बृलपिटिकं fe सुवणं च समपयेत्‌ । व्यजनं UGH पट गन्ध घुपकपटकं। aaq विधिवत्‌ भक्त्वा ware भक्तितः॥ ATMA HAT: AUT A श्ाठपवभितैः। अनेन त्रतसुख्येन faa यान्ति लयं परं | पितुनुरते सोऽपि दग्पृ्वन्‌ दभापरान्‌ | व्रतखण्ड'१ट्रध्यायः।}) SATA | ५५ पितरस्तस्य नन्दन्ति रुद्रलोकेषु aa ख। दिव्यवषौयुतान्यटौ लतो याति दिवाकर | मासि भाद्रपदे war चतुद्श्याम्ब॒तं चरत्‌ | खानं पच्चाखतेनेव लघुना तु विक्तेषनं 1 aug ada दवा च्छशिलालोहिते न च। धृपान्तरसमायुक्त तदभावे Tarfead | ख र्ड़ काद्य न्यनेकानि मोद्‌का। किरणानि च घारिकावटकाश्चेव शेताशिखरिणौ शभा | शालितर्डुलप्रस्थन्तु पिष्टलिङ्ग सुवणंक | तास्ब.लं नियतं तदहसनासनपादुकाः | जासुनो भूमिगे का निवैयान्त' पिनाकिने | पूबवदुगुरपरूजा च HAAN शाठवर्जिंता | प्रयाति शिवसायुज्यं बन्धुभिः सहितो नरः ॥ पितरस्तस्य मोदन्ते स्द्रलोकषु रुद्रवत्‌ । शक्तपरत्ते चतुदेश्यां मासि चाश्युजि व्रतं ॥ ara पञ्चारतेनेव रोचनायाः Waa तु। विलेपनं तु शगिना aS समर्चयेत्‌ | रीपमालाशतेनव UA शाल्योदनं तं | पपमखण्डानि सिदानिच्तौरया तं घनं gai | पुलाकक्ोलपच्न्तु जातोपरूगफलानि च। गन्धलिङ्ग yaw च शिवाय विनिवेदयेत्‌ । AMAA ततः पूज्यो हेमवस््ात्रवाहनेः । गिवसायुज्यतां याति पिभिः; सह शाङ्करे | देमाद्िः। [त्रतखण्ड' १८अ्रध्याथः १ aqemt कार्तिकस्य WHI व्रतं णु । महास्नानं पर HIT लपनन्तु चतुः समं, दौपमालाशतेनेव महावल्तिं चतुष्टयम्‌ ॥ दारेष्वजा वेजयन्तो मध्ये fey fafeg 4 I UH WeHRealeq मध्यं WAR I चन्द्रकं वितानं, लघुनाम रणाल संपुट) शोतकपूरः । BSA धूपो समुगाकनामा ॥ fafeg गुम्‌ गुलष्टतं शते केकेन धुन । शालिपिष्टे नाष्टशतं पृवस्यान्द्रोएकच्यितं ॥ तत्‌ us पिष्टज' fag’ दादग्याद्ग.लसम्बितं | हेममाला समायुक्त सुक्रादाम fayfaa et निवेदय परया भक्तया WIAA प्रयतः | मुक्तघम्बाघसुक्तायं बरूयादेवं समाहितः | a¢ तस्त महादेव इदमेवास्त्‌ fated | निवेद्य विधिवत्सम्यक्‌ व्रतं सम्यग्ययोदित ॥ प्राप्नो्येशखव्यमतुलभिच्छन्‌ WA सनातनं | AAG ब्रद्मह!चव सोऽपि tere लभेत्‌ ॥ जायते पर्या UA गुर area uaa । ेमवस्तात्रयानेख मरिभिमोक्तिकादिभिः। हस्तियान प्रदातव्य खभावाद्‌श्लसम्भवम्‌ | एवं ada सम्पण लिङ्गत्रतकछ्लते भवेत्‌ ॥ इति कालोत्तरोक्तं लिङ्गत्रतम । es see aagus eats: ] दमाद्धिः | ६२ अधुनातु प्रवद्यामि प्रतिमात्रतसुत्तमम्‌) मदाख्रानं महाव्ति-रोपमालाश्तं तथा | विखेपनं aE मेन धं वे गुग्गुलेन तु। शते नाष्टोत्तरेणेव AIT पयसा तम्‌ ॥ तालमाव्रा चतुर्विशतिने्ा च चतुभुजा | शूलासिष्र waster नामनाभरण-भूषितां ॥ शालिपिष्टमयौ काय्यं हषष््े च गोभना। alae asa मानन्तु fad तच प्रकल्पयेत्‌ ॥ द्‌्पण्धेव ताम्बुल' व्यजनं पादुकासनम्‌ । वे जयन्तौध्वजं यानमाचायाय प्रयत्नतः | मासि मासि प्रकत्तव्यं चतुदुश्यान्दिने fea | कात्तिकन्तु समारभ्य यावदाश्वयुजावधि 1 एतद्रतोत्तमं नाम प्रतिमाव्रतमीोरितम्‌ | ABE गुरुहा AA पञ्चपातक-संयुतः ॥ faada wana योऽपि विश्वासघातकः | ° सोऽपि wane याति तिसभकरुलसं युतः । कोटिकोरिसदसरन्तु शिविलोकेत्‌ died 1 तदन्तं जायते राजास एको वौवयवान्‌ Ft: | स्ाने्ठव्थमवाप्रौति गिवरोन्ताप्रभावतः# | परं पद्‌मवाप्रोति Fa भूयो न जायते, एवं वीपदिशेत्तस्य ufaerag कारयेत्‌ | * साच्ाटिति पुश्षकान्रे पठः | ( ठ ) g& दमाद्रिः। [व्रतखणर्डं्अध्यायः। महा गज महामना महायानमघापि वा | दापयेत्तु waa तदन्तं ब्रतमाप्रुयात्‌ ॥ दति कालोत्तरोक्त प्रतिमात्रतम्‌। नन्दिकश्वर उवाच) श्णुष्वा वहतो ब्रह्मन्‌ व्ये मादेश्वर aa | क + c fag लोकेषु विद्यातं arear शिषचतुद्शो। 0 तीं a) . मागगोषर चयोद्श्यां frararaaaraa: | Wage Asay AlAs शरणङ्तः॥ # 6, demi faust: समभ्यच्य च शङ्करम्‌ । 9 + ~ सुवण वषभ HAT भोजये चापरेऽनि॥ एवं नियमक्त्‌ सुषा प्रातरुत्थाय मानवः | ACHAT GSH सद शङ्रम्‌) =~ A ~ A पूजयेत्‌ कमले: शक्त : गन्ध धृपानुलेपनः। उमामहेश्वर रूप अ्रवियोगहादगौत्रतोक्ते वेदितव्यं। पादौ aa: शिवायेति fat: सर्व्वात्मने नमः) ललाटन्तु चिनेताय नेताणि इर्ये नमः ॥ मुख मिन्द्‌-सुखायेति ओौकण्ठायेति कन्धरं | सदयीजाताय कर्णौ तु वामदेवाय वे YS | श्रघोरहदयायेति हदयच्चाभिपरूजयेत्‌ | स्तनो तत्‌पुरुषायेति तथेश्ायेति चोदरं oO © = . पाशचानन्तघम्प्राय ज्नानमरूताय वे कटिं | Seg AP पनषकिषयोषयकिणणणं { fan ल्लोके खिति पुष्कान्तरे प्राठः | व्रत खण्ड" १ टश्रध्यायः ] दमादट्धिः। ५९ उरूचानन्तवे राग्यसिं हायेति प्रपूजयेत्‌ ॥ ्रनन्तेशवव्यनाधाय जानुनौ चाचैयेदधः। प्रधानाय नमो AP गुल्फो व्योमात्मने नमः ॥ व्योमकेशानमरूपाय+ कोशान्‌ BSA पूजयेत्‌ | नमः Yea नमस्तथ्यं पावती चाभिपूजयेत्‌ । ततस्तु si हे मसुद्कुम्भ समन्वितं | शक्तमाल्याम्बरयुत पञ्चरलसमन्वितं | waatafarg क्त ब्राह्मणाय निवेदयेत्‌ ॥ प्रोयतां देवदे वोऽ सद्योजातः पिनाकष्टक्‌ । ततस्तु विप्रानन्रेन तपयेच्छक्तितः शुचिः ॥ DUIS संप्राश्य खपेद्गुमावुदन्मुखः। पञ्चदश्यां ततः पूज्य विप्रान्‌ yatta वाग्यतः ॥ ATTRA WAIST श्यामे तव्सर्वं समाचरत्‌, चतुरशौषु सन्वासु Falq पूव्ववद्चनं | येतु मासविशेषामस्त स्तात्रिवोध क्रमादिह । मगेगौषीदिमासेषु कमादेतद्‌दौरयेत्‌॥ श्राशिनान्तेषिति ज्ञेयं । USWA ANG नमस्ते करवौरक। ATMA नम WAT स्थाणवे च ततः पर ॥ नमः पशुपते नाम नमस्त Varad पुनः, AAD परमानन्द नमः सोमाईधघारिख॥ नमो भोमाय Tad AlAs शरणं गतः! न पुत्र हेश्न्मरूपाये.त पुस्तङ्गान्तर पाठः, सेमाद्रिः। [wae १ ट्अध्वाथः- ) गोमृत गोमयं कौर द्धि सपि: कुशोदकम्‌ ॥ पञ्चगव्य तथा faa’ पञ्चगोश्ङ्गवारि च । तिलाश्च aur विधिवत्‌ प्राशनं क्रमशः स्तम्‌ ॥ प्रतिमासं चतुदेश्याभेकेक प्राशनं स्मतं | a £ > मन्दारमालतोभिश्च तथा मघुरकंरपि। >> A fi = सिन्द्वाररणोकंश्च मल्िकाभिः स wee: fi 6 अक्क UY: HAA Waal aware: | NA © Qa, ९ ° एककेन चतुद श्यामचयेत्पाव्व तोपति | gaa कात्तिक मासि wand तप॑येहिजान्‌ | > a 0 _ ag भू EN aa नांनाविघभच्य वेखमास्यविभ्रूुषणे; ॥ RA नौलषोत्गं' श्रुव्यक्तंविधिना नरः | उमामरश्वर हेमं FING गवा सदह ॥ मुक्ताफलाषटठकयुतं सितनंचपटयान्वितं | सबव्वौपस्वरसंयुक्तां शय्यां ददयात्सकुखभकां ॥ ता््रपात्रीपरि पुनः शलितण्डलसयुतां। | व aia विप्राय शन्ताय वेदव्रतपरायव॥ ज्येष्ठ सामविदे देयं न वकव्रतिने कचित्‌) qua योत्रिये ceria तत्छषेदिनि॥ अनव्यङ्गाङ्गाय सौम्याय सदा कल्याख्कारिखे | सपलीकाय सम्प.ज्य माल्य ae विभूषणे: | गुरौ सति गुरौ 2a तदभावे दिजातये | ‘ of © न वित्तशणाटा gala कुवन्‌ cara: | अनेन विधिना यस्त॒ कुखाच्छिवचतुदंभों। व्रतखर्ड' १ अध्यायः] दमाद्धिः। सोऽश्वमधसदस्रस्य फलमाप्रोति मानवः ॥ त्रह्महत्यादिक किचिद्त्रवामूतवा aa | पिढभिश्चाटमिवपि तत्‌ सव्व नाशमाप्र यात्‌ ॥ दौघयुरारोम्यङुलाभिदि रत्राक्चयामूच चतुभेजतवम्‌ | गणणधिपत्य' दिवि कल्यकोटिः wa वसित्वा पदमेति शम्भोः | न aeafa रप्यल तदस्याः फल्मिन्द्री न पितामहोऽपि qa नच सिद्धगणोप्यल न चाह यद्‌ जिद्वायुतकौरयोऽपि aa’ ॥ भवत्यमरवक्लवः पठति यः स्मरे दा- सदा खणोत्यपि fanac: | सकलपापनिर्मो चनीं इमां fraaqesy ॥ ममरकामिनो कोटय स्तवन्ति। तम निन्दति किसुसमाचरेयःसदा॥ यानाघनारो कुरुते च भक्तया WATATH Wa सुतम्बा | सापि प्रसाद्‌त्प्ररभेश्रस्य- पर पदं याति पिनाकपारेः। दति मल्छपुरा णोक्तं शिवचतुदं शौत्रतम्‌ | 000 (2000 ६२ दमाद्धिः | [व्रतखेर्ड १ट्अध्यायः । सनत्‌क्रुमार SATS | अरथोत्तमं पर ब्रह्मनपरः Wy Wee । चतुदुश्यां महाभाग सर्व्व रोमात्तिणन्तये | ALTAR STARS ACTA: | aa नित्यमिदं काय्य agifa व्यपनुत्तये॥ Gilat तु wanna सवेकामविवल्निंतः। आदित्यसुपति त wast” जपन्म्‌ इः | उदयात्पृवमारभ्य यावदस्तं गतो THA: | निराद्दारो जितक्रोघोतावल्तिष्ट aarfea: | Tarawa देवमचयेत्‌ पुरुषोत्तमं | उपोष्य विधिवत्‌ ख्राल्ा तथा cafe gaa ॥ पर्न्मरि, पौणमास्यां | एतच्च शक्त चतुद Mad, पुराणे Waa त्रतप्रकरणे पठि तलात्‌ | रचयिता यथा योग्य परमाकानमच्य, तम्‌ । गायती मभ्यसेत्ततर दवसेवस्य सन्निघो ॥ | Wea दश्साहख' wagiiy स्वशक्तितः | अथ तास्रमयं WA BMA समानयेत्‌ ॥ तिन पूणे तत्‌ sat पञ्चप्रस्मितेन च। सुवण" रजत सक्तां रक्तात्रानि तिलांस्तथा ॥ अन्तनिधाय तत्‌ कु््यौत्‌ नववस्तदयान्दितम्‌ । स्थापयित्वा तु तस्याग्र पूजनान्ते महामतिः। तत्र मात्तण्डमारभ्य सप॒ज्यच यथाविधि । TAGs cows: |] Sale: t प्रदस्तिणं नमसकार स्तोत्रालापेसुदा qa: | खितः प्रखटृतिभिरनिभद्‌ चतुरप्रभः। नानाव्याधिसमुत्यात्ति' मम संशमयलितः ॥ पुरुषः पुष्करात्तख सव्वाोन्तरसमाख्ितः॥ परमाासयक्लेशं व्यपोहतु ममाच त । इत्यनेनेति # मन्तण स तदास विहत्य च । Wala दृशये त्तत्र यथा सुस्पष्टलकितं | विप्राय बैद्विदुषे दरिद्राय च दापयेत्‌ ॥ qa दल्िणं द्वा Fars WUT । Yala बान्धवे सादंसुत्रखजन्नियमानपि ॥ एवं कुबन्ररोलोके सर्व्वरीगविवन्जिःतः | सौम्यगाचप्रठत्तखौ खिरमायुश्च विन्दति ॥ यघापः शमपव्यमिनिं afasafaaraa: | तथा व्रतसिद्‌ ब्रह्मन्‌ रोगाग्निं शमयेदिह॥ नाना व्याधि खभात्तांनां नराणामिह सुव्रत | तत्‌ प्रतापशमोपायोत्रतादन्यत बिद्यते ॥ दूति गारूडपुराणेाक्त गायनोव्रतम 000 क । ५ $ C श्षक्पक्ते चतुदटश्यां यदरातिध्याकसम्भवः | प जयेत्‌ सय "विधिना उपवासेन शलिनं। ^^ ` ON mn , ०. पु्वेवत्‌ विधिना faraata नेत्यघः | * wand fa कचित्‌ ws: | Safe) [त्रतखण्ड१८अरष्यायः | FF मे नाङ्गरागन्तु गन्धपुष्पे; प्रपजयेत्‌ ॥ पायसं छतसंयुक्तं कुयात्‌ प्रखप्रमाणतः | ufa दानं प्रकत्तेव्यं शिवभक्ताय aaa: | अनेन व्रतसुख्येन षयौपतित्माप्र यात्‌ | एतदूमित्रतः नाम Tata कारयेत्‌ ॥ इति कालोत्तरोक्तं भूमित्रतम | छदस्तिमघायोगेा चतुद श्यां यदा भवेत्‌ | . उपोष्य पुजयेत्तस्यां देवदेव AST | मडास्रानप्रचारेण महावत्तिपुरःसरं | ~ ॐ . १ अङ्गरागघ॒न्दनेन शक्तपुष्य; प्रपूजयेत्‌ | धूपस्त, सफलो देयः सघुना चन्द्रसुतः सितवस्त्रारि वास्तच्च आ्राचा््यांय प्रदापयेत्‌ ॥ र फले = + $ जाताफल; WITTY राच जागरणं हितं | एतदेवव्रतं नाम आयुः खौ कौत्तिवद्ं नम्‌ | इति कालोत्तरोक्त देवव्रतम । 000 आखिन्यादित्यवारेतु यदि war चतुद सानं विशेषतः काय्य" शिवस्य परमात्मनः; APU रोचनथा Tage: प्रपूजयेत्‌ | कापिलाज्य aa न्तौरं.नेवैदय' परिकल्पयेत्‌ | ्रतखेष्ड'१८अध्यायः i] Vay | शिवभक्ताय विप्राय हेमदानं प्रकल्पयेत्‌ | ४ ८ + -~. प्राणनं HE मेनेव HAY’ साधकेन तु। | $ $ 0 aN एतद्र, व्रतं काय्य भक्तया yarfafa az: अ ¢ 4 Gala तस्य जायन्ते सव्व TAT संयुता; ॥ on ~, e 0 इति कारोत्तरोक्तं सुयब्रतम.। 0 ट) (0) arenes ईश्वर उवाच | वालहदात्राणाच्च भोगिनां स्तौषु वालिशे। विधानन्तेषु वच्छामि qua ते यथा सुत्‌ i मतायां फाल्‌गुरे Fare कष्णपर्तेऽतिभक्तितः | दरिद्राणामनाधानामक्षमासां fata: | सव्वं कामप्रदं कष्ण Aqesat faaaaq ॥ रानो fatagar gq महास्रपनसस्मिता । महादौोपदयं रेय शतमष्टोत्तरं पनः ॥ aud quae ay शिवं पशुपतिं यजेत्‌ । खण्ड खा यान्यनेकानि waa विविधानि = यथा समस्यते भक्तया वित्तशाच्य' विना सुत्‌ | रात्रौ जागरखं काय्यं शिवस्याग्रे शिवं जपेत्‌ ॥ faa, शिवपच्चात्तर मन्त | एवं ATAU शम्भोः प्रभाते पूज्य निवपेत्‌ | शिवो दाता शिवो भोक्ता शिवः aafae जगत्‌ | शिवो जयति waa a: शिवः सोऽहमेव च, AAU मनसा वाचा सुतं AMAT AA ( € ) ay ६९ देमाद्धिः | [त्रतखण्ड १८अरध्यायः। न्यूनाधिक मद्दादेव द्रव्यमन्तक्रियासकम्‌। AMT परमेशान WHIT परमेश्वर | faa’ afafaa काम्य यत्‌कल्लतन्तु मया fra । agg परमेशान मया तुभ्य समपितं॥ कलातमना तथा डेव श्थितोऽसि वेद्‌ वित्ते | fee's वास्त साम्य तत्‌ aawfaa ga: ॥ कपया सव्व भूतानां कुर देव जगत्पते । न कछतन्तु मया किञिहतं दानादिक कचित्‌ ॥ अनेन त्रतमुख्येन सवे सम्पादितं AA | त्रतदानादिक शम्भो त्त्‌प्रसाद्छदान्नया॥ इदं त्रतवरं देव मया तुभ्य समपि तम्‌ । दरिद्रे परोतेख ज्नानिभिर्योगिभिस्तथा ॥ वालवालिशहद श्च स्तौ नरेर्व्याधिपीडतेः | प्रयतात्‌ फारगुने BA शिवस्याग्रेतु जागरः ॥ एतख्िन्‌ भूतदिवसे विेषााचयन्ति ये । शस््ाभूतपतिन्तेषां मूते परिभयते ॥ फास्मृनेनेब भूतायां तस्मान्भूतपतिं यजेत्‌ | अष्टम्याद्च Wei त्रतान्यक्तानि सव्वेशः । तानि सर्व्वासि तेनेव व्रतान्येव क्तानि तु । स्ान्द्‌ उवाच | $ ^ ॥ + a >= व्रतस्मोद्यापन Ha fa कन्त ay मानवे.) कोविधिः कानि द्रव्याणि कथं कायः वद्‌ प्रभो॥ AABW १८भ्रध्यायः |] Satz: दष्वर उवाच खण धरमु ख तच्वेन लोकानां हितकाम्यया । aden Hua शिवरातित्रतं शभ । एकभक्त चयोदश्यां चतुदंश्यासुपोषणं | © . ~ सम्पादय सव्व सम्भा रान्मर्डपं तच कारयेत्‌ । =, _ ॐ, . = | वस्त्र: पुष्पः Wasa पटकूलश्च गोभितं। तन्मध्यं लेखयेदिव्य लिङ्गतो भद्रमण्डलं॥ WAT VARA मर्डपान्तः प्रकल्पयेत्‌ | + . ~ + भ्रोभोपशोभासंयुक्त' दोपः सव्वं त्र वोज्चलं ॥ श्राचाय्यं वरयेत्तच waft, सहितं शचिं | भिवरूपाश ते विप्राः पूज्याखन्दनपुष्पकेः | A © > ~ sqaiaa a विप्रः शिवपूजां समारभेत्‌ | Say सजल qu तस्योपरि तु विन्यसेत्‌ # सौवणं राजतं ava Bafa कारयेत्‌ | वस््युग्मेन WAST AAA ; प्रपूजयेत्‌ ॥ क “sp पलेन वा ACSA तदद्ाइनवा Ga! | ~ रों Ce ~, + ठसामहेश्वरो ata पूजयेदषभस्यितां ॥ श्रागच्छ Satan मत्यंलोक हितेच्छया | पूजयामि विधानेन aaa: सुसुखो भव ॥ अ{वडदनमन्लः | पादासन कुरु प्राज्न निखलं au fafa | भूषितं विविधेरल्न; कुर त्व पादुकासद्ग॥ €9 gG रमाद्रिः। [ततखर्ड"१८अध्यायः | ट्ख चिन्तयेद्‌ वं शदस्पटिकसत्रिभ | व्याघ्रचख्रपरोधानं चिन्तयेट्‌व्ययं हदा ॥ गन्धोदकेन पुष्येण चन्दनेन सुगन्धिना | अध्य" ग्टहाण देवैश ule मेत्यचलाङ्‌रु | वस्त TA CHIT देवानामपि Say | WET त्वमुमाकान्त WTA’ ASI Wa | म्यो खण्ड चन्दन दिव्यं मलयाचलसम्भदं। विरेपन सुरखष् गहाण प्ररमेश्वर ॥ यन्नोपवोतं सहजं ब्रह्मणा निरतं पुरा | प्रायुष्यशभवचस्यसुपवोतं WAT FI माल्यारौनि सुगन्धीनि araareifa F प्रमो) मया हतानि पुष्मारि पुजा प्रतिखह्यतां । वनसखतिरसो wat गन्धादःसुमनोहरः। MAA: सव्वदेवानां धूपोऽयं प्रति द्यां ॥ aay वत्तिसंगुक्त' afear aifaag aq et aly गहाण San चलोक्यतिमिरापदः॥ aaa wat 2a भक्ति मे भ्रचलां कर्‌ । Sfea Hat देदि परत्र च पर गति। इटं फल मथा देव स्थापितं पुरतस्तव | तेन मे सफलावाति भवेच्जन्मनि जन्मनि ॥ quad महादिव्यं नागवज्ञोदरौयुःतं । HILT समायुक्तं ताम्बूलं प्रतिग्टद्यतां | हिरण्य गभगभस्य ह मवौजं विभावसौ; | व्रतखर्ड'१ट्अध्यायः।] देमाद्रिः ९९. अनन्तपुखफलदमतः शान्ति' प्रयच्छ मे। सोमञ्च सगणच्चःव पूजयित्वा महेश्वरं | होमं कुर्य्यात्‌ waa Vena यथाविधि a नर ाद्यणान्‌ पूजयेद्नक्तया भोजयेच्च चतुद श । MAGMA MIAH TAATITATT: ॥ यन्ञोपवोतवस्ादि Cad WW TAR TAR! गा सवत्सा Waraat नानालङ्कारभूषितां i द्यादाचायवयाय faat a Maafafa | ततः agai तां मुत्ति सवस्त्रां वषभखितां ॥ सव्वालङ्ारसदहितामाचाय्याय fase | त्रतमेत्‌ GA Ga WT मेपुणमेव aT | सव्व WA Wai यातु Warelaaat मम। दति संप्राध्यं ताच्िप्रान्‌ प्रणम्य च पुनः ya: | AAA स्ततस्तेभ्यो दद्यात्‌ कुम्भान्‌ WAR पथक्‌ | श्रजेकपाद्‌हिवश्नो भवः wey उमापतिः । सद्र; पशुपतिः शम्ध॒वरद्‌ः शिव ईष्वरः । महादेबोहरोभौमो नामान्य वं चतुदरश | स्कन्द उवाच | एव विधानंभूतेश् aa बहविधं मया) पूजामन्तविधानेन AAA पदे Ue ॥ शिव उवाच! + प्र 0 # १ _ * खूयतां धश्चसव्वंसख' शिवरात्रौ शरिवाचन। warts: | [त्रतखण्ड'१र्अध्यायः । aa aa विधानेन खगेपुखयेन wT | Bal खानं शचिभूत्वा धौतवस्त समन्वितः । स्रापयेद वद्‌ वेशं मन्तो व दससुद्बेः | ततः पूजा WAM MT यथोक्त विधिना सुत | नमो यन्नजगन्राय नमस्निसुवनेश्वर | Gat We मया दत्तां महेश प्रथमे पदे I इति प्रथमयामे | facta: t नमोऽव्यक्ताय सुच्छाय AHA चरिपुरान्तक । पूजां ग्टहाण Say यथाशक्तयोपद्त्तिणां | यथा शक्तयुपपादितां। aaa. awa: | agise fafaa: ora: संसारभवन्धनः। पातितं मोहजालेमा लं BART WET ॥ चतुथः | ततः पूजान्ते प्रतिमासं पुष्पचन्द नाच्तत Fatt कुशयुतमघ्य ` ददात्‌ | © नमः शिवाय शान्ताय सव्व पापरराय वच) शिवरातो मया दत्त WIAA मम mT | प्रधम WSCA | मथा क्तान्यनेक।नि पातकानि च शङ्कर, त्रतखण्ड' १ टश्रध्यायः।] SAT: | गरहा णाष्यसुमाकान्त शिवरात्रौ प्रसद्‌ A दितौयगप्र इराष्य मन्तः | दुःखदारिद्रभारेख दग्धोऽदहं पाव्वतौपति। मां तवं चाहि महादेव ग्टहाणाध्यं नमोस्त ते ॥ इति ठतौयप्रहराष्यमन्तः। कित्रजानासि 2aq तावहक्ति" प्रयच्छ मं। पदानयुगमले cacia’ देहि जगत्पते ॥ sfa चतु्ंप्रहराष्यमन्तः। नित्य' नं मित्तिकं काम्यं यत्छतन्तु यथा शिव | aga परमेशान मया तुभ्यं समपितं। प्राधना | gata ये वस्र कं शिवपूजां कुरुष्व मे । शभक्तातुयथाकथसित्‌ waar शिवस्यलोकं | व्याधोऽपियातोऽसोक्तदो TATA | इति कालोत्तरंसो घापनं छष्णचतुक शो व्रतम | 000 सुत उवाच) केलासशिखरासौनं Sass जमद्‌ रु' । पद्यचक्र दशभुजं faaa शलपाणिनं | कपालखलाङ्गघरं धनुखमघरं शुभम्‌ | पिनाकधारिणं भौम वरद्ञ्चाभयप्रदम्‌ । < OX SAlfe: | [तरतखण्ड'रटश्रष्याथः। भषमाद्गव्यालमोभादः गषाङ्कतशेखर। नौलजौमूत agit सय्येकोठिसमप्रभम्‌ ॥ प्रणिपत्य सूराः सव्व उपासन्तसुमापति | ते ~, . =~ क्रोडते भगवांस्तच BAT: परिवारितः । विख्ज्य रेवता: aai fava उमया az | Zul तं देवदेवेश VEMieHaaAIAT I एकाक्रिन YAS Bua aa पावतो॥ पावस्पुबाच | कथयस प्रसादेन BRIA AnH | व्रतानि eaean कथितानि या aa || ~ ते € = ०५ दानधम्माखनेकानि तपतौयोन्यने कशः । नानाविघास््वयादटव भ्रामितादह त्वया पुनः ॥ त्रतानासुत्तम देव भुक्तिसुक्तिप्ररायकं | तरह खोतुमिच्च्छामि कथयस मम प्रभो। Swat उवाच | ण्‌ देवि पर गुह्य व्रतानामुत्तमं aa | यन्नकस्यचिद्‌ाख्यातः Tee सुक्तिद्‌ायकं। on, न्ष “~, a + ~, येन व कथ्यमानेन यमोपि विलयं व्रजत्‌ t ave कथयिष्यामि खण चेकाग्रमानसा।॥ ~ oc म ~ ५ माघफास्गुनयोग्यष्य RUC चतुद्‌शौ | शिवराविस्त सा Hal सव्व यन्नोत्मोत्तमा॥ १ | = = a दानयज्ञेस्तथधा यनज्ञरन्यश् बदुद्‌चिरेः। त्रतखण्ड'१८श्रध्यायः।] SATE: I fuaufaaa नासि लला यन्नसदसरकम्‌ | MUM सा कलिद्न्तो च यमपधविनाभिनो | नते यमपुरौ' यान्ति उपोच्न्ति जिवानिशां ॥ भुक्तिसुकतिप्रदां देवि सत्यं सत्यं वरानने। Grand ङरिष्य स्त एकचित्त: समाचरेत्‌ ॥ खौ देव्युवाच । कथं यमपरुरो' डेव वच्जयिला शिवं व्रजेत्‌ | एतदेव ARAN AAA कुर्‌ मे प्रभो ॥ | {xq Bara | खण देवि यथा ठत्तं कथाम्मोराणिकों que । यमशासनदन्तौ च शिविस्थानप्रदायिनो॥ किदासोत्‌ पुरा काले निषादखामिषप्रियः। प्रत्यन्तदेषवासो च WAC जोवभत्तकः ॥ मांसादारो सदा पृष्ठ कुटुम्बपरिपालकः | स्थूलः Tat TTA घखामाङ्नो ARTA: ॥ ART AT AAA वाम बाहः PIAA: | धमुव्वामे Welal तु claw शरसुत्तमं ॥ निग तोऽसौ aa oa निषाद जोवघातकः t जोवठततिख्च सा तस्य कुटम्बपरिपालने ॥ aa निगंच्छमानस्य माताप्यस्माशिषो ददौ । WES! Ui VASA भरणे जठरस्य षच) WG Taq ते शक्रो बाह धनद्‌ एवच | ( १० ) ॐर्‌ safe: | (व्रतखर्ड १र्अ्रध्यायः | दयं पातु a चन्द्रघाननच्च बृहस्मतिः | उद्र पातुते afefuaa’ दत्तिणापतिः ॥ आलानं पातुते मत्य गादिल्यः Wawa च। वनं गच्छ QAR श्वापट्‌ वेडभिवंतम्‌ । व्याघ्राणां रीषनिर्घोषे नादितं तदनं महत्‌ | महादष्रा महाकाया दौघजिह्वा भयाननाः॥ पराद्‌ ATA दृश्यन्ते वनं वीरुदगोक्ततं | तस्मिन्‌ वने ARIST WAT दूमसंकुले | वनजौ वविशेषेस्त्‌ संब्याघ्षगिरिगद्वरे | aaa afaata च निषादः कायपोषण्‌ | वनं गला निरोष्येत fem: सत्वां इतस्ततः ॥ पटच पद्मागच्च Wat PATA | इततच वे धावदासिषे ल्‌ब्धदेतसः(१) ॥ वनं तत्‌ पृष्ठतः सव्वं निषादस्य nafs न प्राप्या AUST: कतु सगशूकरवित्तलाः | निराशो सब्धकोतिष्ठन्‌ वद्‌दस्तः गलो रविः । ददश च सरस्तत्र निखलं विमलं जलं ॥ हससारससकौण' WHITH AA | दृष्टा सु चिन्तयामास agra जोवघातनम्‌ ॥ प्रकरिष्याम्यहं tral जोवद्त्यां न संसयः! विख्व्य सुचिरन्देवि तड़ागाभिसुख' ययी ॥ तच at समासाय चतुरिणमितस्ततः। १ मानस इति GRA Ia: | eu ~ ्रतखंग्ड़ं १८ब्र्यायः i] Waltz | ae भमिता कारयामास AAA त्वस्य WA | AMt वत्त ATA सादलं बहपतकं | तस्य aa महालिङ्ग' तिष्ठते वरवणिनि ॥ तम्मध्ये च agiad विल्वञ्चेव बरानने | तेन aaa पचारि wear मागेशोधने॥ fanifa दक्िणे भामे तानि लिङ्गस्य मस्तके, न दिवाभोजनन्तस्य आामिषेत्‌ सुचेतसः ॥ प्रविष्टस्त॒ ततस्तत्र न faci लब्धकोछतां | तस्य गन्धप्रभावेन aaa स्गशूकरः॥ न तन्ति खगास्तत गर्घातवशानुमाः। ततस्त HAT WU उदिते सुमर्डले | निराशो quant श्रूत्वा निःख्ताजालमष्यतः। चलितो SEAT क्ुधार्ताल्‌वकस्ततः । तावदालास्त्‌ ते wea निरौच्य पिठमागगाः। निषादमपिते ष्ट्रा aa राचिसुपखिता॥ नानोतमामिषन्तात निराशाः शिशवो गताः | रुदन्ति Had: भब्द भोजनं दोयताच् नः ॥ ततस्त. wt पिता भूत्वा धोवद्‌नदुःखितः | भोजनं कुरु डे खाभिन्‌ तस्य भाया वचोऽत्रवीत्‌।॥ उपरोषितस्त्वहोरात्रं Avs प्रवत्तेते | भोजन RAMA वथा SUT AAT ॥ ध्चहोनो निष्रादस्त पापामा जौवघ।तकः । अकामोजागरं राजौ शिवरागां वरानने। ए € Saris: | [नतखर्डं १ टश्रध्यायः। परजा तु विलपतरैस्तं werat लिङ्गगमस्तकं | तोऽसौ कालपथाये wat यम किङ्करः ॥ शिषवैन प्रेषितास्तस्य विमानवरकोटयः | शोघ्रमानोयतां व्याधो werat यसकिङरः a निदं कल््रसन्तस्य शिवराच्यां न संशयः। यः ga लुव्कोभ्रूतवा करोति प्राणिनां वघम्‌ । इति yar वचीदिव्य' TUS गन्तुमुद्यताः | स्तयमानाः परं देवं शिवं शान्तं निरामयं | यावद्रच्छन्ति ते wa तावत्पश्यन्ति लुब्धकं | इन्यमानं लोर ण्डेव्वं डभिमशटिभिस्तया | सव्व कोलाहलं चक्रुरस्माकभितरेगणाः। परस्परं वध्यमाना Bae यमकिङ्राः। यम किङ्स ऊचुः | anata” नं निषादं जीवघातिनं | यमोयावत्रपण्येत्तु YEA नभवेत्ततः ॥ शिव किड्न्या ऊच; । ल्खकोऽयं पूव्वमासौ त्मापिष्टोयमकिङ्रः | aaa शिवरातरिस्त्‌ aaa कानने। तस्माच्छिवान्नया सव्व विमानः परमागताः | यावच्छिवं न पश्याम A AQABA नर ॥ AUNTY समारब्धा; GRANT: | अतखशर्ड'१ ८्श्रध्यायः।। हमाद्धिः VIA तन्महायुडमन्योन्यजय RTF Ue ॥ भग्नाङ्सन्धयः केचित्‌ area समायिताः। जजरोक्लतदेास्त क्रन्दन्ते यमकिङ्कराः ॥ aif areifa जल्पन्ति गतास्ते यमसादनं। निषादीऽपि गणेनीँती यत देवो महेश्वरः ॥ दृष्िमात्रस्त faa निषादोगणताङ्गतः। खितोऽसौ दिव्यदेहस्त दिव्याभरणश्चूषितः । तस्य दत्तः महेशेन विमानं साव्व॑कामिकं | सद्रकन्यासमाकौरं पुव्ममालाविभरूषितं | नानातूयंसमायुक्तं नानारदोपमोभितं | क्रौडत सुचिरं कालं थावदाभूतसष्लवं ॥ एवं लब्धवरो भला क्रोडते यम शासने | अथातो यमद्‌ ATE, भधम्मराजपुरोगताः॥ रुधिरारण सर्वादा: रुदन्ते AMADA | जजरोक्तटेदा स्ते MANIA! समन्ततः | ट्ष धर्मोवदव्येतत्‌# कोरो कातेन योजितः | प्रे षयिष्याम्पहं टेव काममंतदि कथ्यतां ॥ केन चेच gaia aa विविधघातनं॥ | यमद्‌ ता ऊचुः । ण राजन्‌ थथाठत्त ye’ भिवगणेः सद | नोतोऽसौ aaa a निषादो जोवघातकः॥ WAH WATT गणे; WATATET: | * इष्टां Ba Carafe पुशकामरे पाठः| 9 A दमाद्िः | व्रितखशर्ड coma: | तच्छ त्वा कुपितो wa: पापिष्ठो वगमो मम । कथं शिवपुर याति चित्रगुप्त विचारया। चित्रगुप्त उवाच । ईदितं पुस्तक येन न किचित्‌ gaa ad | waafe न जानाति warra a fafa | uaa निशितं देव war सत्य वद्‌ाम्यह॥ शिव उवाच) इति ज्ञात्वा निषादस्य चिच्रगुप्तनिवेदि्तं । चरितं WHIT सखागतं वाक्यमत्रवोत्‌ Il YAUA उवाच) नाहम दिनादूष्व'जन्तोचिन्तां करोमितु। गत्वा समपयिष्यामि व्यापारन्तु शिवस्य च॥ एवसुक्ता तत; Wa चित्रगुप्तो aaa सः। गल्ला च देवदेवेशं थमस्तोत्‌ प्रचक्रमे | यम उवाच | नमस्ते लोकनाथाय महावलविनाशन | aad कालविनाशाय कालनिदभिने नमः ॥ विनेताय नमस्तभ्य नमस्त शूलधारिणे | कपालिने ANG Ww नमः खटुाङ्कधारिणे ॥ नमो डमुरुहस्ताय गक्तिसपनिधाय च। AMA नोलकण्डाय BHAGAT च॥ 3 Ly ६.2 hy h es x ॥ ५ । ५.१५ । 1 A 4 7. ॥ for ~ ¬ + a 4" eT ९ 4 न ४।* -~+ ॥" १ ^ मत ह LI a = ३ LT a प इत खर '१च्यअध्याव;।] दमाद्धिः। ७९ नम स्वं लोकनाथाय महापातकना भिने | कालकंटविनाशाय नमः का{मविद्‌ाहिनें tt qty शोधसे टेव एतन्मे कौतुकं महत्‌ | ग्टहापापो निषादस्त यतः सन्तारितसत्वया | न पापानां करिष्यामि चिन्तां a चिपुरान्तक। इत्युक्ता देवदेवे तु प्रणामो-दर्डवत्‌ क्षतः ॥ SWHAA पादाग्रं Bia aul वभूव इ॥ TUT उवाच । fang दण्डमुद्रं लं त्यजसे धर्मबबन। केनाप्रराधितोग+ वत्स aaa केन मदितं॥ VALI उवाच) त्वद्रणेदंवदटेवेश्र NAT पापस्य कारणे | मदोयाः किङ्करा देव बद्धा घातिता ww | पापकमा दुराचारो निषादो जौवघातकः। धर्मी नोपाजितस्तेन Tafa ईश्वर | अयोग्य' देवदेवेश arta eat कतं | ग्हौोतः शिवपुरो' ata: सपापौ नहि मेऽपितः॥ तेनाहमागतो देव व्यक्ता सुद्धां चराम्यहं । शिव उवाच । वद्येवं यमे गौरि प्रहस्याह मथा क्तम्‌, निप्राद्‌ः पापकम्प्रांच aq प्राणिवघेन च। कदट्‌ाचित्‌ सवनं गला a किचित्‌ प्राप्नवांस्तद्‌ा। # खषिस्थिरकारक दूति Geant पाठः| † कंमापमानित इति पुखकान्तरं पाटः Seale: | [जतखर्ड' १ अध्याय; | दिनान्त च निराभोऽसीन्तठत्‌युक्घो जलान्तिके ॥ अकरोदाश्रम मध्यं ASTM तदा fata | जालिमष्ये महालिङ्क तिष्टते चिरकालिकम्‌ ॥ aut विल्वपचाखि what मामे तोऽक्तिपत्‌। कथच्चिदे वसंयोगादायुना लिङ्गम्‌ चैनि । नित्तिप्रानि प्रेतराज कोमलान्यप्यकामतः। शिवरात्रिः छता तन जाग्रताग्तद्देतुना॥ गिवरातिप्रमावेन सगतो ममशासन। गणत्वमन्तयं feat aad शिवशासन | स मुक्तो रद्रवत्रिये भोगान्‌ wea aa fefa | भोगान्ते परमं याति fat परमकारणं ¦ गिवराविप्रभावेन रागत मम शासने॥ ACSC HUTT TW’ मुद्राश्च सववेदा | पापिष्टोये सदा awit a a यान्ति Baris ॥ Vana धमश् अवमानच्च Al AAT | VE WE AGUA Fal ट्‌ण्ड'यदटच्छया | पालनाय wane पाहि सत्य महायम। सग्रहं गम्यतां Via Sw ग्टह्य ससमुद्रक॥ ताडयन्‌ पापकर्माणं पालयन्‌ वे खधमिणं | एव Val WAIST गतोऽसौ स्वग्हं भं | एवं देवि मयाख्यातं शिवराते म॑दाव्रते ॥ पाव्यवाच | श्रकामोलुब्धको देव कला हयमरताङ्तः। ‘gqaqaw ` १ अध्यायः '] दमाद्धिः 3 ८१ { é भासखय्यमेतदेवेशए ममाधव्यतर मदत्‌ ॥ कामतः शस्वटष्टेन यः करोति शिवत्रतं । तदहं योतुमिच्चछामि प्रसादादक्मरंसि | शिव उवाच | ay टेवि महाभागे सव्वेतखारुभाषिरि। श्िवरातिप्रभाव्च कथकः पापकब्धणाम्‌ ॥ AAAS FT Al AW फार्गुनादौ VASA | सातु gar तिधिन्ञंया सव्बपापविनाशिनी ॥ शान्तात्मा क्रोधो नस्तु तपसौ हनसूयकः | aw देयमिद देवि गुरुपादानुगे सदा ॥ MIA BW SEATS DW STAT ATH ATT | ay वष महादेवि नरोनारौ पतिव्रता | वौत्तयामि जमत्‌ सव्व ` कोमां भक्तया प्रपूजयेत्‌ । शिवमन्तैजपं सत्वा हौममचनदौ पनम्‌ ॥ जागरं शिवरा्न्तु शिव पश्येत्‌ समाहितः! मम भक्तो जनो Sfa शिषराचेरुपोषकः॥ गणत्वमद्दयं टदिच्छमक्षय छवगासनम्‌ । aq कत्वा तु भजते भोगानख्तसम्भवान्‌ ॥ एवं दादशवषांरि शिवरात्रेरुपोषकः | योमां जागरते राति मनुजः खगमाप्र यात्‌ | अक्त्वा मां न जानाति AAHATSTES | शिवञ्च पूजयित्वा यो जागत्तिं च चतुद भीं | ४.) भैरव्‌उवाचंति पुस्तकान्तर Wid: | ( ११९ ) Salle: | [Aarau १ टब्रध्यायः। मातुः पयोधररसं a fata nese | यरोच्छंखा त्याम्‌ भोगान्‌ fefa रेक्समः पुमान्‌ ॥ ग्राममोक्षकिधि कत्वा प्राप्रोति सकलं फलं ॥ आरी मागसिरे मासि दौोपोव्वदिनेऽपिवा। WHIATHAATS वा हादगेवसुपोषणं 1 निभि जागरणं क्त्वा टौप्‌द्योतितदिद्घखः | गो तवाद्यविनोदेन पूजा जाप्यं; शिषवैरतः॥ एवं इादशवष तु दादेव aura | saa frauen ब्राद्मणांख विशेषतः ॥ मन्व परया भक्तया WE TAT तपोधनान्‌ | MWe » AAS तु ख्ह्लीयाच्चरण्यं ॥ प्रगच्छ Awe तात क्रतल्लत्य' We कुर्‌) stv fafa नानव प्रभाते विमले पुनः ॥ wea स्थावरं GPA पुनः । पद्चाखतेन दिव्यन स्नाप्य; चोदत्तनादिभिः॥ खापयेदारिङ्ग्भानां सदहसेण शतेन वा! पञ्चाशता तद्द्धन खापयेच्छौतलेन तु \ चन्दनेन विलिप्याघ सावर उद्गम तथा । शतपतैर्जाति पुष्पे रचयेदिल्वपतवौः । दौपान्‌ दिष्तुच सव्वीसु प्रज्वाल्य सघनांस्तघा। ee # श्वाचाय्य ` भक्तियक्गसत, welarecugafafa कचित्‌ पाठः| * ग्टरौलौऽभयसिद्गन्त ष्या वर जङ्गमं पुन दति पुस्क्षान्तर पाठः, * घतेनभ्यष्य यले न gaia ल्कादि भिरिति पुरूकान्तरे पाठः| त्रत खश्ड oma: | = SATE: | सघनाम्‌ सकपूरान्‌ | नेषैदयमपि wats त्तौरखर्डसमर्ड कान्‌ | गुडा द्यं लङ्‌ इकां शेव way रुचिदं वदु ॥ निवेदयेत्तघेतानि गुरदेवतपखिनां | SUA तु गुरु पृज्य HAT मर्डलकं Taq | sata च वस्ताणि शय्यां सोपस्करां तथा ॥ दाद्शवतु गा दद्यात्‌ परिधानादिकं तथा। aaa दत्तिणामेव प्रद्यात्‌ जुहयात्तिलान्‌ ॥ al च भोजयेत्सर्व्वन्‌ ge थव तपख्िन;। पश्चात्‌ चषमापयेदेव प्रयतां मे महेण्वरः। सब्बे" चेव तथाचाय्य' गिवत्रतपरायखे | गन्धादिविविधेः सर्व्वानन्ांस्तच समागतान्‌ ॥ - दकिणाभिय gag aaa प्रपूजयेत्‌ | एवं कला महादेवि न wal देहमाप्रुयात्‌ ॥ यदासौ faad देवि शिवलोकं व्रजेन्नरः | तस्मान्न Baad Mara कल्कोरिशतेरपि | FAUNA: कारप्रय्याये द्रष्टः याति खयम्भवम्‌ | afeat लोकप्रालेख विमाने; सष्व कामिक: ॥ ततः पश्ये महादेवं नानागणसमाठतं | तदृष्टा alfa देशं शिवं तरिसुवने्ठरम्‌ ॥ नमस्तभ्य जगन्नाथ TAS WRUAGTE | नमस्ते उमयायुक्त मुक्तिसुक्ति प्रदायक ॥ नमस्ते कामदहन उलोकाव्यापिने नमः। ट waltz: | [ara १ ८अ्रध्यायः) AU कालोग्रकालभोतोस्मि ST WET 2 इति malate, cerfa वरमौष्डितं | मैरव उवाच, तष्टीऽदं तव Ua शिवरात्र रुपोषणात्‌। वरं दद्‌ाम्यदं तुभ्य' देवदानवदुलभं॥ षताः कन्या महादिव्या जिनेत्राञ्च चतुभजाः। रूपयौवनसम्पन्ना पोनोत्रतपयोधरा ॥ हेमगौर्ययो महातेजा संयुक्ताः GATT: | देवा वस्तसच्छन्रा चन्दनागरचचिता : सव्वलक्षणसम्य त्राः Hwa" दयोतिताननाः + र्वं विधा मयादा मनखिन्यः सुमध्यम; ॥ विमानकोटिसंयुकाः सषव्वांभरण्भ्चुषिताः | ज्रीडस्च महाभाग TUG मम YAH । WANA MAAS TAMA Ara | Geiss तव भक्तस्य शिवत्रतरतस्य Fk शद्रलोकेतु या कन्यास्िनेचाश चतुभुजाः। अतोव भत्त WATS यथादसुमया सह ॥ ताभिः साद्व महाभागमभुच्छ भोगान्‌ यथेश्ितान्‌ t कल्पकोटिसहस्राणि कल्पकोटिशतानि च॥ अन्त्‌ व्रतप्रभावेन शिवसायुज्यतां व्रज) ReMi WITAY MIs परमे पटे । परात्परतर नास्ति शिवरातित्रतात्यरम्‌ | AAQW १ ट च्रध्याघः 1] देमाद्धिः न पूजयति देवेशं रुद्रं चिभुवनेगश्वर ॥ जन्तुजंन्मसदसरेषु Waa नात संशयः | यदा तद्ावसंयुक्तः स स्द्रगणतां व्रजेत्‌ t तत्र दत्तं इतं जप्रमचनं गुरुपूजनं | जागरः शिवराया तु सव्व ST aa भवेत्‌ | कथित्‌ पुश्यविशेषेण व्रतहोनोपि यः पुमान्‌ i जागरं कुरुते तच स रद्रसमतां व्रजेत्‌ | Gage कुरुचेच हिमवत्‌कुसजाङ्ले ॥ शिविरात्णां तथा भक्तया दत्तं भवति चात्तय। अखरख्डितव्रतो योहि शिवराविसुपोष्रयेत्‌ ॥ स सव्वकाममाप्नोति र्द्रेण सह Wea | शिवरातिदिने दत्तं तथा भवति चाचयं। अखरडितत्रतो योहि शिवरात्िसुपोषयेत्‌ | सवेकाममनः TU: Aiea शिवसन्निधौ a धन्यास्त मानवा ara faaufarcraar: | णवा यदि शयन्ति चीयते हिमवानपि ॥ मेसमन्दारलइग Bae erg, च। चलन्त नेकद्‌ा सवे निखलं हि शिवनत्रतं ॥ अतस्तस्यां जयाद्श्यां छष्एायामेकभुक्नरः। मन्वेणनेन खद्धौयात्नियमं भक्तिमान्नरः | शितरातिव्रतं छयेतत्‌ करिघेहं महाफलं | निविघ्रमस्तु मे चात्र त्वतृप्रसादाज्नगत्पते। रातो; wey जननीं wert चैव समाहितः, ८१ हेमाद्रिः | [बतखग्ड'१८अरध्यायः | ८६ wae वं नियमं षैदविददिभो | गिवराति व्रत्मित्यमन मन्तेण शृद्रादिनियमं ग्यह्योयान्‌ ब्राह्म- wifey | tat प्रपद्ये जननीं सवेमूतनिवेमनीं | भद्रां भगवतीं aut विश्वस्य जगतो fas | wana संयमनीं ग्रहनक्तजमालिनीँं। quae शिवां cat भद्र पारमशोमदहि। भद्र पारमशेमन्तोत्तमः। दूति मन्ताभ्याखग्वे दसिद्वाभ्यां नियमं ग्ह्ौयादिलयेः। fuafaeraa दष्टा खाचान्तः शचिरावमवान्‌ |i tt संकल्येवं ad इुर्ययात्‌ gag: प्रा तरेवच | ततोऽखरमे भागे सखगायत्रवा द्यतग्द्रितिः। ara कष्णतिलेः Fates वाघ जलाशये | रम्ये निशामुखे गच्छच्छिवस्यायतनं व्रतो! दिनान्ते स्नपनं कुययोच्छिवंनामरा प्रपूजयेत्‌ | धूपनवेदय गन्धे श BATA: ATS: । श्ङ्चक्रनिनादेख कुर्यत्‌ पुस्तकवाचनं॥ fea प्रहरे चैव नाम्ना शङ्रमचयेत्‌ । qalaa विधानेन पृजयेत्यरमेश्वरम्‌ ॥ ठतीये प्रहरे टैव नाज्रा महेश्वरं तघा | यामं चतुथं सम्प्रा रुद्रः नाम्रा प्रपूजयेत्‌ | एवं हि भक्तिगुक्तश जागरं कारयेन्निशि | सकलं फलमाप्रोति सव्यमतदरानने। AAW १८अध्यायः | wate: | ८ॐ उषः Ala जपो होमः भोजये च्छववव्छलान्‌ | Waly कुम्भान्‌ प्रददयाचच यथाशक्त्या सद्क्िणान्‌ | पूजयेद्राह्यणान्‌ भक्तया ब्रते BIT स्थि तान्‌ । वाचयेच्छिव शास्र स गच्रे च्छव मन्दिरं ॥ उपोष्य पुणकम्मां णो नियतं खमेगामिनः | सिवन्नरतस्य चाख्यानं घः पठेच्छिवसत्रिधी | रमते शिवलीके च यावदिन्द्राश्तुदेश। एवं देवि मथाख्यातं शिवरात्र महाव्रतम्‌ शिवलोकमवाप्रोति (naa ae मोदते। दूति ओरस्कन्दपुराणोक्तं सोद्यापन' शिवरात्रि ब्रत | 0002000 A = ~. ~ ~ ARAMA AG रम्यं नानाघात्‌ fatafaa | “Dh ण, नानादूमलताकौण नानारत्नोपशोभिते ॥ ्ष्परोगणसङ्ेस सिद्गन्धवं सेविते | Mesa भगवांस्तत्र गरेः |: परिकनरितः ॥ नन्यादयोगण्णस्तच् क्रौडन्ते शिवसन्निघो । Hae पर aa पञ्च शब्टनिनादितं 1 ~ = >, वौणेणुख्दचख पञ्चच तथागिरि। देवकन्यासमाकौण a गिरिं सुमनोहरं ॥ प्रसा दात्तच तिष्ठन्ति सौवण; सुमनोहराः | ध्वजमाला कलं रम्यं RAG सन्वदेवते; | विषखज्य टेवता; wal: रमते चीमया सह | तच faa मादेवं उमा एच्छति शङ्रम्‌ | QQ Sage: | [त्रतखर्ड'१ दश्रष्यायः। उमो Sarg | टेव देव जगत्राघ सव्बलोक ANT | Mal प्रसाद SAN HAAG मम प्रभो ॥ नमो नमो महारव we तिष्ठति सदा, seam महाचित्ते कस्मान्मे परिवर्तते ॥ न मया हि महादेव छतं किचिच्छछमं व्रतं । कछला प्रसाद SG Aa A कथ्यतां प्रभो | ईष्वर उवाच | ay देवि परं गुह्य व्रतानासुत्तमं व्रतम्‌ । यन्न कर्याचद्‌ाख्यातं रस्यं सुकतिदायकम्‌। येन वे कथ्यमानेन यमोपि विलयं बजेत्‌। तदं कौत्तयिष्यामि SHAT TAA सदा I माघफादगुनयोमेष्य HUTA चतुर्दश । गिवरातिस्त विज्ञेया सवयन्नोत्तमा तिधिः॥ Saas Was Tay वहुदकिकैः। faaufaaa नास्ति कला यज्ञसहस्तेकम्‌ ॥ नति ARYA a: RAG शिवप्रदा । भुकिसुतिंप्रदा देवि aa’ सत्य वरानने | देव्युवाच। कथ यमपुरौ' देव बजंवित्वा शिवं व्रजेत्‌ | एतदेव महाश्चय्यं प्रत्ययं AW A प्रभो ॥ शिवि उवाच au टेविप्रयलेन कथां पौराणिकीं wut. प्रतखर्ड' १८्अध्यायः।] ददेमाद्रिः। ce मम Waa Har च शिवलोकप्रदाथिनो 1 न ते ange याति ये: aaa शिवप्रदा! oy टेवि महाशय यज्जातं शिववल्लभे ॥ श्रासौद्धाजा विदटृहायां प्रजापालनतत्परः) सुधमा नाम विख्यातः सदा परमधाञिकः ॥ ष्धिव्यां qa राजानो वत्तन्ते वशवत्तिनः | तस्य राज्यं aa कथित्‌ व्याधितो दुःखितीऽभवत्‌ ॥ साधून्‌ पालयते राजा पुचवत्‌ सुरसुन्दरि । एवं गुणविशिष्टस्य तस्य wa: प्रिया PUT भाय्यी तिलो त्तमा नाम स्वः ससुदिता गुकेः। रूपलावणयसयुक्तए शिरयोवनसंखिता ॥ सको किलसमभाषा मत्तमातङ्गामिन। TAI GAT तचा Wal तस्य भाया महोपतेः z we: faafed gat vada हि aaa ATA TAT UU भार्य्या शतसाहखसम्मिताः tt PATA गुणसंयुक्ता दास्य एद व्यवसिताः) एवं मच्छति कालेतु afafad सुरसुन्दरि \ aa: परं ayaa जगाम रिपुमदन, ष्टा तिलीत्तमा देवौ wa: समुदिता गुरौः॥ गच्छन्त ततो दृष्ट्रा राजानं रिपुमदंनम्‌। ततश्च खयसमुत्थायददौ राजासनं तदा ॥ उन्दत्येवं ततो राज्ञो fafa च पुनः पुतः! उपविष्टा तती रान्न: समोपे व्रवत्तिंनौ॥ ( १२ ) sare: | [वतखण्डं cower: | Qa UAT तदा रान्ना शिवेति aqerf< | sata Raq: t सस्मार प्राक्तनं कम्म अन्यजन्मनि यत्‌कत। AAA AA Gal ताम्ब लं करस स्थितम्‌ ॥ वकार HAT राजा wea faqs: ततः nase ar eal किमिदन्त्यागकारणं ॥ यदि qafa a aa मरिष्यामि aaraa: | सोऽपि राजा ततो gat मरणे कतनिश्यां ॥ विज्ञाय कध्यामास पृव्वेजन्मनि चेष्टितं, ग़ णुष्वा वहता Wat वचन सुरसुन्दरि ॥ Tal त्रथेरितं वाक्य शिवनामसमन्वित | wad मे सन्वचरितं पून्बजन्मनि यत्‌क्रतं ॥ खूयतामभिधाखामि सावधाना भव प्रिये । अहमासं पुरा वेश्यः सखधघगनिरतः शविः ॥ कालेन गच्छता दैवि ya जन्मवथेन च। सखकम्मनिरतस्यापि da मतिरजायत ॥ निश्ानिष्क्मणं कत्वा चौं" कत्तं महं गतः | तस्मिन्‌ काले शभे fa माघमारऽभवत्तद्‌ा । ततश्चेवासिते wa िवयोगोऽभवन्तदा ॥ चतुद णौ तिथिषासौच्््वरात्रिस्तसास्रता), मम वे रममाणस्य अधेरातमभृत्तदा॥ भ्रमता हि मया दृष्टः समवायो जनस्य व | जागरं तु प्रकुव्वाणः गिवस्यायतने शभे ॥ | | ~~ ; Wage १व्अध्यायः 1} शमादिः | अन्त्रन्तु समासाद्य उपविषटस्तत Aw | कस्यचित्‌ गटहमेधिन्धाः ATTY Fwd ॥ त्वा पलायमानस्त ELSE TATA | ततस्त afeat: सवं खद्भपाणिधनुदंराः। तत waa wea शिरज्छित्न महासिना। तङ्गयाच्च मया aa we दिषन्तु awa | ततश्च क्श्यणा तन रात्रौ जागरणेन च। lay च छते नापि राजाहं स बभूव ह॥ ततख जातिस्मरणं जातं मम तिल्लीत्तमे | ` शिवयोगस्त्‌ Was माघमासस्त्‌, शोभने | चतुदश तिथिघाय ताग्बृलं तन्मयोजभितं। UAB AT Tat Sat आचाय परम AE Il खवाचैनं तदा राज्ञो विस्मय परमं Tat! यदि मे प्रत्ययं कच्चिदुत्पाद्यसि भूमिप। तदा जोवामि sad नान्यथेयं प्रतारण | एतच Sl तदा राजा उवाच सुरसुन्दरि॥ waza शिरो मेच wad कृपसंख्ितं । कालेन ar: td लोष्ट खच ठणसच्ये: ॥ उत्धाय च गती aa द्म्मतौ विस्मयान्वितौ। wafaal ततो fa दशयामास तच्छिरः ॥ कुण्डलन्तु मखे दृष्टा विस्मयं परमं Aart AAT, दम्यतौ तत चक्रतुनियमं परं । उपवासस्य नियम तथा जागरणस्य च | €रे | GAlfe: | [वरतखण्डं१८अष्यायः । शिव sary | ua हि माधमारेतु संप्राप्त सुरसुन्दरि, ASA जारं चव HAUT पूजममव च ॥ ततश्च भगवानोशस्त्टे भवति ततृच्तणात्‌ ॥ कालेन गच्छतातौत्‌ पचपीचसमन्वितो॥ GT च तयोः काले मरणं समुपागतौ । युग्मन्तु परमं लोके शिवभक्तिसमन्वितौ | सिवराचिप्रभाञन दम्पतो शिबसन्निघो। शिवराजिभिमन्देवि a: करोति नरः) afan aa पापविनिग्भुक; शिवलोके महीयते | sau कथिता दवि शिवरातिस्तवाय्रतः! BAITS पुषा सव्व तीधफलप्रदा | यः करोति नरोदेवि शिवरालतिमिमां श्वि सव्वं पापविनिमुक्तः शिवलोके महोयते | यद्रमां खखशुयात्नित्य शिवपाजिकथां az: | कता तेन महादेवि शिवराचिनं संशयः | दतिश्रो स्कन्दपुराणे श्वयो गयुक्तशिवराचिव्रतमादात्म्यं। (60 केलासशिखरासीनं देवदेवं जगन्नर'। पञ्चवक्तं दशभुजं जिने शुलपाणिनं | कपालखटुङ्गधरं खड्सेटकधारिण। कपालधारिणं भोमं वरदञ्चाभयप्रद्‌। भस्मागनव्यालभोभाटय गशाङ्क्तरेखर ¦ anew श८््रध्यायः। ] Bate | नोलजोम्‌तसङ्ाशं सुच्धकोटिसमप्रभ ॥ दृष्टा तन्देवदेवशं प्रहस्योत्‌ फुललो चना I Sat पप्रच्छ भत्तारं UEC लोकगङ्रः ॥ | SAAS | कथयत प्रसादेन Fala व्रतमुत्तमम्‌ | यत्करा देवदेवेशः पाप्हानिः प्रजायते i युतानि देवदेवेश व्रतानि fafafaag | दानधश्चाख्यनकानि तपरस्तोर्थान्यनेकशः | aif a निश्चयो देव भ्रामिताहं त्रया पुनः। AMSA CAN UH निःसंशयंत्रत॥ yfaqfaneaiia सव्वपापन्तयं at तदददं खरोतुभमिच्छामि कथयस महाप्रभो TMT उवाच | छण eff पर Ye व्रतानासुत्तमं ब्रतम्‌। कस्यचिन्न समाख्यात भुक्तिमुक्तिप्रद नरं i यस्य यवणमाचण पातक विलयं ब्रजेत्‌ | तदहं atu यिष्यामि susan: प्रिये ॥ माघान्ते TLAVA सदा कार्य्या चतुरंग, शिवराच्स्तिसा ज्ञेया सवयज्नोत्तमोत्तमा | दानज्नेस्तपो भि ्रतैर््वहबिधरपि | diaaifa न ame aq ge faqutad: ॥ गिवराचिसम नास्ति ad पापविनाग्रलत्‌। अज्ञानात्‌ ज्ञानतोवापरि कला सुक्तिमवाप्रुयात्‌ ॥ ~र ९४ Sate: | [त्रतखण्ड'१दअरष्यायः | सव्वेमाद्गलकरणो Raguraaifaat ।. ware नरक यन्तियेरषा नक्ता कचित्‌ ॥ सबव्वेमङ्गलभौला च सर्वाशभविनाभिनी | भुक्तिसुक्तिप्ररा चैषा wer सत्य वरानन | पाव्वं Bars I कथं यमपुरं मागं Dal टेव aac: | एतन्मे महदा शय्ये प्रत्ययं कुर्‌ WET शिव उवाच । ण देवि aaa कथामस्मौराणिको' wars | यमगासनहन्सो च शिवशणासनद्‌ायिनौ॥ कचिदासीत्‌ पुरा कल्य निषाद्‌खामिषपरियः। परत्यन्तदेशवासौ च भूधरासत्रभूधरः ॥ ward wa et तिष्ठेत्‌ कुट॒म्बपरिपालकः। तन्वापौनोधनुधारो श्यामाङ्गः कष्णकश्चकः | वदगोधाङ्ग लिचाणः सदेव सृगघातकः। एवम्विधी निषादोऽसी चतुद्‌श्यान्दिनोदथे i Hea afafay टेवताग्र faafarai | तेनापि देवतादृष्ठा जनानां वचनं खुतम्‌ | उपवासर्तानाच्च जल्पतां शिवशिदेति = | दिनान्त सतदा मुक्तः Maser प्रीयतां ॥ ततोऽसौ धनुरादाय Chats गतः खयम्‌ | जगाम च ANT जनदहासच्चकार = ।॥ faa: शिवः किमेतदेवदन्ति नगरे जनाः । # - : । 1 ष पि I i . ८) Ai म "mage १ स्अध्यायः।] wats | वने चरोनिरोच्तन्‌ स wafe sy इतस्ततः | पदच्च पद्मागच्च खगसूकरचित्तलान्‌ | धावतस्तस्य सर्वासु feq वं लृखचेतसः | वनं सपवेतं wa waa दिनक्गतम्‌ | अप्राप्ता एव गच्छन्ति सकला सुगजातयः। संप्राप्तमपि चापश्यन्‌ a aa a च चित्तलं। निराशो लुखको यावत्तावद्‌स्तद्गतोरविः। उिन्तयिला जलोपान्तं जागरं मुगघातनं | सस्विधास्याम्यह tal fafad मम stad | तडागसन्निधौ गला तत्तौर जलमध्यतः ॥ निलयं कत्त॒मारन्धमात्ाय गुिकारणं | जालिमध्य महालिङ्गमस्ि सखायन्भुवं शमम्‌ ॥ ततो विल्वस्य पत्राणि चोटिला म(मेगोधने, fant efaa भागे गतानि लिङ्गमूक्चनि i न दिवाभोजनंजात स रदस्य प्रभावतः। मगात्निरोत्ततस्तस्य निद्रानाशिप्यजायत ॥ जालमष्यगतस्यापि प्रघम' प्रहरोगतः। तती जलाघेमायाता हरिणौग्भसंयुता t निरो न्ति दिः सवां उत्‌फूल्लनयना शशं | लव्धकनायसादृष्टा वारगोचरताङ्गता॥ RAG वाणसन्धानं तेनेकागण चेतसा, atfeat विल्लपत्राशि ufaatfa शिवोपरि । स्मरन्‌ शिवेति वादच्च श्यैतेन परिपीडितः < € € दमाद्धिः। [तरतखण्ड१८्अध्यायः। विल्व ay खित दृष्टो इरिखयालब्यकस्तदा | लव्धकः स्वस्वरूपेण कछतान्त इव तिष्ठति । Zul च तस्य सन्धान यमदष्ाममप्रभ। सामुगौ दिव्यया वाचा GH वाक्यमव्रवौत्‌ | WATS | faq भव महाव्याघध सवजोवनिक्लन्तन । किमयं मां हनिष्य त्वं कथयस्व मम प्रभो ॥ शिव उवाच) तस्यास्तद चनं Jal लुब्धकः प्रहतां Bay | समाढठकं कुटुम्बं मे AVA पौद्यते रशं । घनं च une नास्ति तस्मात्वं हसि शोभने ॥ सृत उवाच। जातपूजा प्रभावेन जागरीपोषणेन च । चतुथोंेन पापानां विमुक्तो लुब्धकस्तदा | विस्मयोत्‌फुल्लनयनो खगौवाक्येन पाव्वेति | उवाच वचन तां उे धरयुकमसंगयं ॥ मया हि पातितादेवि उत्तमाधममध्यमाः! नखुतालौरटभमौ वण्णे शप्पद्‌ानां कथञ्चन | कस्मिन्‌ out aqual कस्मात्‌ खानादिह्य गता! कथय ल्व प्रयन्नेन परं कौतूहलं fe F | ZITAT | खण त्व लव्खकथष्ठ कथयामि तवाखिल' । आस पत्वं महं रम्भा खगे गक्रस्य चापरा | व्रतखुख्ड १ ट्अ्ध्यावः |] दमाद्धिः अनन्तरूपलावस्यसौभाग्येन च गव्विता | सौभाग्यमदसयुक्तो दानवो मद्‌्गवितः। मयेव सत्क तोभन्ती हिर स्यान्नो महासुर' | तेन साई fat कालं मया ya यथं सितम्‌ | रन्यसिन्‌ दिवसे are क्रीडते व सुरेण च! गतो बहुतरः कालो महादेवस्य कोपलत्‌ | प्रत्यहं Gad da शङ्रस्याग्रतखरेत्‌ | थावरच्छाम्यह AA तावद्ुद्रोऽव्रवीत्‌ AT । Sita H गतासित्वकेनवा ASAT Wa | सोभाम्यमद्‌गव्वण नागता मेम मन्दिर tt सत्य करयं णोघ्र त्वनोवाशापन्ददाभिते। श्रापभोला मया aa स्यसमुक्त' शिवाग्रतः | श्रु Sa Waa णापानुग्रहकारकं। मम भत्ता समः प्राणेदटानवो बलदर्पितः ॥ तेन ae मया दैव क्रौडतं निजमन्दिरे | तस्य भोगेन GATE शयनादेव नोत्थिता। तेनाहं atta aia रुटिसंहारकारक। कद्रम्तदचनं युता सुकोषो वाक्वमव्रवीत्‌ ॥ सगः कामातुरो नित्य दिरखात्नो भविव्यति। a र्गौ तस्य भाया वे भविष्यसि महावने॥ तस्मात्ते निजले BI ठणाद्ारा भविष्यसि। दादणाब्दानि भद्रन्ते भविता ara us a tt परस्परस्य Waa शापान्तोऽपि भविष्ति | ( १३ ) Ce Alig: | [arate एर्अष्ययः\ MAM FAIS! Big शद्रे यटच्छया १ यदा afad व्याधवरो मम सान्निष्यमाथितः! वाणाग्रं तस्य सम्प्राप्ता yaaa स्मरिष्यति। गङ्रस्य तद्धा VI SBI मोक्षमवा्छयसि ॥ श्रो न मया Eel वसन्त्यस्मिन्‌ महावनं | तेन दुः खमनुघरासा मेदोमां सविवजिंता ॥ अचोक्रःन्ता fata अवध्या चेति fafad ' सकुटुम्बस्य ते नूनं भोजनं न भविष्यति ॥ आयास्यति BUSA मागं शानन्‌ लुका | रुपयोवनसम्पत्रा ब्टुमांसमदोडता ॥ भोजन सकुटुम्बस्य तचा aa भविष्यति | अ्रघवरन्यो BUY तव AMY गोचरे! प्रभाते ते त्ुधात्तस्य निथयादागमिष्यसि। मुक्ताया व्याध WH वालानादिश्य वन्ध पु! प्रपथेरागमिष्वामि सन्दिश्य च सखीजनम्‌ | तस्यास्तहत्न Bar व्याघो fafaaaraa: a ACAI तदा BIS व्याघोवाच स॒गाङ्नां। नागमिष्वति यदयन्योासृससत्तमपि गच्छति) त्या पोडितोहं वे कुटम्बय भविष्यति, WAU मम ग्टहमा गन्तव्य यदा भवेत्‌ ॥ व्रज त शयथ Aa यया मं निश्रमो भेत्‌ | ufaat वायुरादित्यः सन्ये तिष्टन्ति देवताः ॥ पालनोय ततः सत्यः लोकदयमभौ.ख भि; । त्रतखन्छं १ स्श्रष्यायः। देमाद्धिः। ९३. तस्य. तद्टचनं श्रुत्वा सागभात्तंतदा मो) चक्र सत्यप्रतिन्नां वे व्याघस्याग्र पुनः पुनः ॥ WATT | feat yar qatar बेङ्श्रष्टोऽभिजायते) arwarguagfea: सत्यभौ चविवजितः ॥ अविक्रयाणां विक्रेता खयाज्यानाख्ः याजकः | तेन पामन ल्लिप्यामि नागच्छामि पुनयदि॥ धत्त SE US as ANG मानक्ुटके | दानं Ziq waa प्रायितं a ददाति च॥ तेन पाकेन लिप्यामि गच्छामः न पुनर्यदि i सदन्त परद्ां वा यीषदरेव्छागर{विरां टेवद्रव्य गुरुद्रव्यं AWS तथा हरेत्‌) तेन पापेन लिप्यामि नागच्छामि पुमयदि # gua दोषो Vala पादः पाटन धावयेत्‌ } त्तरं खामिनं fanaa वालमेव a1 arg विप्र गुर्‌ नारः व्यापादयति afar: | तेन पापेन लिप्यामि नागच्छामि gaafe ॥ दानस्य केत्तने पापं वत्फापंदांभिके तधा । असच्छितेन्द्रिये नित्यं परदोषानुकौत्तने tt Raa च कदव्य च नास्तिके वेद्निन्द्के, सदाचारविद्टोने च परपोडाप्रदायके॥ gaya ata कन्याविक्रयकारके, परापवादसन्तुषटे सष्वधगवदिष्क्ते | १०० Safe: | [तरतखर्डं१ ८श्रध्यायः। व्रषलौपतौ च यत्‌ पापं मातापिवोरपोषके। हेतु के THM च खादतो ध॑विवजिते। एतेषां पातक ae ना गच्छामि पुनयेदि॥ यत्या व्रह्महव्यायां पिट मादव तधा । यत्पापं लुब्कानां तु मो चोरविषघातिनां | तेन पापेन लिप्यामि यद्यहं नागम ya: | feu, पुरुषोयस्त स्महच्या न पति ॥ यस्तोन्‌ हले बलो वदान्‌ विषमान्‌ areaac: | तेन पापंन लिप्यामि नागच्छति पुनयदरि॥ aKa dq a: कन्यां feata दातुमिच्छति | यस्य VASAT भाय्या ब्राह्मणौ च विशेषतः ॥ एकाक मिष्टमय्ाति भार्ययापचविवजितः। स्तनो TAMA समाने BER aT ॥ न ददाति चयः कन्यां नरो वे ज्ञान saa! | तेन पापेन लिप्यामि नागच्छामि पुन्ंदि ॥ मृगो वाक्व ततः FAT लुबखको छष्टमानसः। मुमोच हरिणो सद्यो मुक्ता वाख धनुस्ततः। तस्या उक्लिप्रभावेन लिङ्माचंकरखणन च। स पातकचतुधी शान्मुकोऽसो तत्‌ चणात्‌घ्रवं | हि तीये प्रहरे प्रासे Betta वरानने। स्मरन्‌ faa शिवं वाक्य न निद्रां लब्धवांस्तथा ॥ दितोयेऽथ ततः प्राप्ता कामार्ता मृगसुन्दरो। सन्तस्ता भयसं विग्ना पतिमन्वेषतौ तदा ॥ प्रतखर्ड१८अरध्यायः।] Sars t जालिमध्ये fadara eer aq ana च। qafaaer पत्राणि त्रोटितानि aty q | fanifu efad भागे लिङ्स्योपरि पाव्वति। तस्या बधाय Alaa वाणं घनुषि weg ॥ हषपूणन मनसा कुटम्बाये wa प्रिये | निरोच्य लब्धको यावत्तस्यां वाणं faqafa ॥ ताबम्म्रगो सुसन्तस्ता व्याधं वचनमव्रवोत्‌ | धनुधर ऋगा व्याध सव्बसतभयङ्र ॥ देहि मे वचनं Wa पञ्चान्माम्विनिपषातय॥ भायाता हरिणो चेका मागंणानेन सुखकर | PHA नेव AH WAT सुत्रत ॥ तह चो लब्धकः Jar विख्ितस्तत्‌चणादभूत्‌। तस्यास्त्‌ BETt वाणौ असु्ाञ्रपि are lt सेवेथमागतान्‌ून प्रतिज्ञापालनाय 4 । अरय कान्या समायाता या तया कथिता पुरा! एवं सच्चित्य मनसा लुखकोवाक्वमत्रवौत्‌ | णत्व af a वाक्य गतासा निजमन्द्रि ॥ त्व दा मम aa fe सा भवेत्सत्यवागपि। अहोरात्र कतं AT कुटुम्बाधं खगाङ्गनं ॥ अधना at हनिष्यामि देवतास्मरणं कुर्‌) व्याधोक्त वचनं gar हरिणो c:feat ww | व्याघं we aeat at ar at ana निपातय) नास्ति मांसं तधा Fe शरोरे रुधिर मम। श ११ ६०२ समाद्रिः। [बरतखरड"१ ८शअध्यस्यः. ॥ तजो कलं मे सकलं निदं ग्ध विदराग्निनः॥ ag प्राणेतियोज्यामि भोजनन्ते न जायते ॥ बलवान्‌ सुमहातेजा मे द मासपरिभ्र्तः । अत्यन्तस्धलपोनाङ्ञे खगो छ्यत्नागमिष्यति tt तयोक्तं लुब्धकः gar किङ्रो.मोत्यवचिन्तयत्‌! खगो व्रूतेद्यसन्दिरध निशयोऽयं षर मम॥ चिन्तथित्रति a are wal कामातुरान्तदा। कुर प्रतिज्ञां ware’ निश्चयोमे य्या भवेत्‌ # तइ्ाघवचन BAT मगो शोकसमाकुला | सत्यां प्रतिन्नां विदधे व्याघस्फयेपुनः पुनः ॥# WATT | चतवियस्त्‌ रण' eet संग्रामादयोनिवत्तते t तेन पापेन लिप्यामि वयहमनृतं वदे ॥ परद्रव्यरता नित्य मायावन्तोऽनुपास्काः ? भेदयन्ति तडागानि बवापोनाञ्च गवामपि | मागें स्थानच्चये घ्रन्ति सवेसत्वभयङ्राः ॥ परित्यजति aarti पशून्‌ wat स्तथेवच । ` ब्राद्धशान्रिन्दतेयश्च तथेवाखमनिन्द्कः | तेन पापेन लिप्यामि az तदष्टतं वटे । आकण्यत्थं वचस्तेन FART AT तत्‌त्षणात्पुये # जलं पोत्वा गता सापि अट्टः सोऽभवत्तदा ¦ जानिमध्यख्ितस्यापि दितोयप्रहरोमतः ॥ पो डितस्तोत्रणोतेन Gara परिपोडित्‌ । व्रत खण्ड एटअध्यायः ] दमाद्धिः) . ९ 7 शिव जिव una न निद्रासुपलव्धवान्‌ | » £ mn क क कतं शिवाचनं तन दितौये प्रहरेऽपि च । ~ 9 Qs ~ वोक्षते a fen! eat जौवनाय वरानने॥ सौभाग्यबलदपांदो खगस्तावत्‌ समागतः। वाणं Welal a दृष्ट मौव्यांमाशु न्ययोजयत्‌ | BAUM TATA EVASA चेतसा | यावन्मुञ्चति वाणंस तावदे BAT F | कालरूपन्तु a ext wufaai परां aay fafad भविता सन्य afe पादी विचाल्यते। Wal प्राणसमा चेव व्याभेनेव निपातिता 1 © तया परदहितस्यापि मम सृलयभविष्यति | हा कालविक्ततं पापं agral टुःखमागता॥ a fz माया समं ater we वापि वनेपि art तया विना a waif नाकाम विशेषतः ॥ adaqeista दयिता aa तिष्ठति age | Nraletsta तया Flat कान्ताराद्‌तिरिचयते। e “Ad + Cc ध्धकामकायषु पुसाम्भापां सदहायनो। विदेशगमने चापिसेव विश्वासकारिणो॥ © “ ह + नास्ति भायासमो बन्धुनास्ति भायासम सुखम्‌ | नास्ति भार्यासमं लोके नरस्यात्तस्य भेषज 1 aq ¢ ~ यस्य भायां zeae साध्व च प्रियवाद्नोौ। AAT न गन्तञ्य AAC agrees ॥ तवा विना जौवतोऽपि निष्फलं मम जौवितं। देमाद्धिः। [त्रतखं्ड'१६गअरध्यायः। एका प्राशसमामेमू fedtat प्रमदा Aa 1 भाया विरहितस्यादय जौवितं निष्फल aa | एवं afar शनकेल्‌ कं वाक्व मन्रवोत्‌ ॥ ण व्याध महासत्व आभमिघादहारनिखय। at fe पृच्छामि किचिदह सत्यः कथय सुम्फ्‌ टं ॥ said हरिणौयुग्म' कन मागण तद्रतं | त्था विनागितं aa सत्य' कथय मेऽगतः॥ तस्य तहचनं रुला लव्कापि चिन्तयन्‌ | असावपि न सामान्यो देवता कापि faaa ध्यातरेति सत्वन्तस्याग्र Taal वाक्वमत्रनौत्‌ | ते गतेऽनेन मागण प्रतिज्ञाय ममाग्रतः I ताभ्यां दत्तो भोजनाथ ममत्वं नाउ संशयः अघुना at हनिष्यामि न fe मोच्तामि कदि चित्‌ | व्याघोक्त डि वचः Jat हरिणः प्राह सत्वर | तव्सत्य RET QT ताभ्यासुक्त तवाग्रतः॥ येन ते प्रत्ययोजातस्तन्मुकं हरिणौदयं । व्यासेन कथिताः सवये कताः पथाः पुय । तस्य तह चन Far हरिणो हृष्टमानसः | व्याधं प्राह ततः Wha वचनं wadfed ॥ सग उवाच । ताभ्यां यदुक्त भोव्याध awa’ हि भवेन्मम) प्रभाते लद्गहं न्यूनमागमिष्यामि हिंसक ॥ भाया BINA मेऽद्य कामात्तापि च साम्प्रतं | त्रदखर्ड १८्अध्यायः।] SATE: | १०५ गत्वा ग्हेऽव्यतां भुक्ता AAV WEA ॥ शपथेरागमिष्यामि AEE नात AAA: | न मदेदेस्त्यखुक्नां TW भोक्तमभोषसि ॥ तद्धा मरणं मे wiafe aa हनिष्यसि) AMUN वचः यत्वा व्याधो वचनमत्रवोत्‌ x AIA SATs | असत्यं भाषसे qa प्रतारयसि मामिद। ज्ञाता Sa; VS यत्र तत्र गच्छति Hat: ॥ व्याघस्य वचन BAI AAW WE वर खगः । शपथान्‌ वे करिष्यामि यथा ते प्रत्ययो हदि | व्याक उवाच | aaa शपथान्‌ ब्रूहि विश्वासो येन जायते | यथा fe प्रेषयामि at wie प्रति कामुक ॥ ZT ATT | भत्तारं AWA स्रौ खाभमिनं वञ्येनरः | भित्र वच्चयते यस्त॒ गुरुद्रोहं करोतियः॥ तेन aaa लिप्यामि यदेतदनृतं बद । भेदयेद्यस्त्‌ fafa sare खावयेत्त्‌ a 1 विषमन्तु रसं द्‌यादेकपडनक्यां हि yaa | तेन पापेन लिप्यामि azaead a2 ॥ प्रवासष्ःलाये विप्राः malas. antics | रुन्धयान्नागविहोनाश्च Aeuralsafaar ॥ ( १४ ) १०६ माद्भिः | [aaa omega: मद्यपस्तीसमासत्ताः परनिन्दारतास्तघा | परस्तरौसेवका fae परपे शन्यस्‌ चका; ॥ शृद्रात्रभोजकाचैव रसविक्रयकारकाः | तेन पापेन लिप्यामि नायामि यदित we ui मदा यं-विक्रयेयस्तु weraty विमोहितः | aaa सन्नंविक्रेता विप्राणामपि निन्दकाः । विप्रवाक्यं परित्यज्य पाषर्डाभिरतस्तथधा | तेन पापेन लिप्यामि यदि नायाति ते ze | गां यः स्यशति पादेन उदितेऽके प्रवुध्यते एकाको भिषटटमयाति विकरण तथा tai | मातापितोरभक्तय क्रियासुद्िश्य पाचकः | कन्याश्र्कोपजोवो च देवत्राह्यणनिन्दकः ॥ एतषां पातकं मह्यं यदि नायामिकते ws | यः पठेत्‌ Alay लक्षणेन विवजिंतम्‌ | रथ्यां पय्यटमानस्त्‌ वेद्मुद्भिरते यदि | पठमानस्य विप्रस्य चारण्डालः खुणएते यदि ॥ तन पापेन लिप्यामि यदि नायामिते गदं । वेष्यारताः सदाय च दृवदायनिवारकाः। तेषां पापेन लिप्यासि afe नायासि ते we | WRAY सदा Wat: शूद्रसंपकदूषिताः॥ सन््यभ्चष्टाचये विप्रा दाठदाननिवारकाः| तेषां पापेन लिखामि यदि नायाभिते खं । भत्तोरमघद्दो नच FI व्याधिपौडितं। व्रतखर्डं १र्अध्वायः |] Paz | १०७ यान पूजयते नारौ रूपयीवनगविता। तस्याः पापन लिप्यामि यदि नायामि a ee | अथ fa वहुनोकेन भो लब्धक तवाग्रतः। यदि नायाभिते गेहं ममास्य भकेत्तदा। तेन वाक्येन सन्तुष्टो व्याधो वें बोतकल्मषः। सदहत्य वाणं धनुषो खगं sal वन प्रति ॥ जगाम प्रोतमनसा सुक्तपापो वरानने) जलं atara हरिणः ufaginga aa i गतोऽसौ तन AAT येनायातं समौदयम्‌ | लब्धकेन तदा तत्र जालिमध्य faa हि ॥ fear विल्वस्य पच्रारि fataatta शिवोपरि) अन्नानाच्छिविपृजातु कता तन तथा व्रतं ॥ gaq fuafaua सोऽथ feat जालिमध्यतः। उदिते qafas तु अ्रज्ञानान्नामरे aa It पापानुक्तोऽभवदयाघः शिविराचिप्रभावतः। यावत्निरोत्ते fea निशान्ते भोजनं प्रति॥ तावच्िशव्रता चान्या Bat da समागता। Sel खगौ तवा व्याधी वाखं धनुषि सन्दधे | यावन्मच्चति बाणं स तावत्‌ प्रोवाचतं खगो) ata | मा वाणं मुच्च धर्मासन्‌ wa पालय Bad | An + ६, € ्रहमवध्या सव्वषां सव्व शास्तनिद श नम्‌ ॥ शयानं मेथ॒नासक्त मद नव्याधिपोडित | watz: | [तव्रतखर्ड १ ट्अ्रध्यायः) नहि चन्ति wa cat ait च शिश्नातां ॥ अथ त्व wagqes मां वधिष्यसि मानद्‌ t वालकान्‌ हि se त्यक्ता च्रागमिष्याम्यहं ga: ॥ या भत्तारं VAT परपुंसि रता भवेत्‌ | तस्याः पापेन लिप्यामि afe नायामिते चहं ये कताः WAIT Wal तवाग्र व्याघसत्तम । a सव्वं मम aaa यदि नायाम्यहं पुनः tt व्याधेन सा तदा सुकरा जगाम निज aera! व्याधोऽपि तत्‌ शएरन्तयक्ता जगाम awe प्रति ॥ want वचनं ध्यायन्न गाणां सत्यवादिनां | एतेषां चातको नित्यमहं यास्यामि कां गति ॥ एवं सच्िन्तयन्‌ गेह दृष्टा; च्ुधितबालका ‡। निरामिषन्तु तं cer जगम॒स्तपि निराग cil ala aid Ze तस्य भोजनं येन जायते | व्याधोऽपि स तदा तव तेषां वाक्यानि संस्मरन्‌ ॥ न dina a faci च लभते विस्मयान्वितः | आ गमिष्यन्ति ते नूनं शपघेरतियन्विता; ॥ तानह निहनिष्यामि सतां व्रतमनुस्मरन्‌। AMAA तदा Bal खगीऽसौ शपयेः कते: | WIAA चाश सप्राप्तो यच तदडरिरशोदयं। सव्यः प्रसूता aaa दितौीया रतिलालसा॥ लतौयापि समायाता बालकैः परिवारिता | * BATA पुसहकान्तर प्राठः व्रतखर्ड'१ अध्यायः |) are: | १०९८ सव्वं; समेता एकतर मरणे क्तनिश्वयाः। परस्परेण जल्पन्ति ल्ब्धकस्य विचेष्टितं | ततो मुगोखतुमतीं भुक्ता वाक्य मगोऽव्रवौत्‌ | Wagaya FW: कत्तव्यं WUTAT ॥ व्याघ्रह्िषात्‌ CARAT ATARTATY TAT | AAA समायातः शपयेरतियन्वितः । परस्या त्‌ प्रदानाय पुनः सन्तानं aa | ऋतुमतीं तु Marat नेव Via मोहितः ॥ Bua भवेत्तस्य wag निरथकः | सन्तानात्‌ ख्गमाप्रोति!इह कौत्तिच्च शःण्वतीं ॥ सन्तति यज्ञतः पाल्या खगसौ ख्यप्रदायका | अपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्गोनेव च नेव च। येन केनाष्छुपायेन पुचसुत्पादयेत्‌ Fars | मया aaa गन्तव्य यत्र व्याधस्य मन्दिरं ॥ सत्य' तु पालनौयं स्यात्‌ सत्ये wa: प्रतिहितः, MUTA वचः FAT NY धश्चयुतं वचः ॥ AAA पारणं AA भत्ता सह मृग प्रभो । वयमप्यागभिषयामसत्या साद्व AMAA ॥ तधा ते विप्रियं कान्तन स्मरामः कदाचन, ufaay वनान्तेषु नदौनां सङ्गमेषु च ॥ कन्दरेषु च गेलाना मवतारमिता वयं | न कायमप्यतः कान्त जौोवितेन विना aati न दौनां पतिदौनानां जौवितं निष्ययोजन । ९१० Safe: | [त्रतखण्ड१ अध्यायः । मितं ददातिद्धिपिता fad erat मित Fa: | afacafe erat wale कान पूजयेत्‌ | अपि द्रव्ययुता नारो AGYAGREAT ॥ शच्या सा aaa पतिहोना GUTH । वेधव्यसहशं दुःखं स्तौणामन्यन्न विद्यते ॥ धन्या स्ता योषितोयास्त्‌ स्िवन्ते WaT: | नातन्तौ वाद्यते वीणा नाचक्रो बाद्यते TT: Il नापतिः पूज्यते नारौ अपि पुतशते्ैता | निधनो व्यसनौ हद्दो व्याधितो विद्धलस्तघा ॥ पतितः क्पणो वापि wat स््लोणां सदा गतिः | नास्ति भत्तं समो wat नास्ति wal समः सुत्‌ ॥ नास्ति भत्ता समो नाधः At भत्ता गति; प्या | एवं विलप्य ताः dar मरणे कतनिश्याः॥ वालकेस्ताःसमायुक्ता भत किन पोड्ताः। तासां वाक्च मृगः Jat हदि दिन्तापरोऽभवत्‌ ॥ सव्वंधापि हि गन्तव्यं मया व्याधस्य सन्निधौ । स्वेतः सत्यसं र्ता कुटम्बस्य Walaa: ॥ यदि गच्छामि तन्नाहं कुटुम्बस्य asia | नीवा प्रयामि तत्राहं मम सत्यं ब्रजेत्‌ पुनः | वर YAS मरणं AAA आमनस्तया | सत्यलोपात्नरो नूनं CAM नरकं व्रजेत्‌ ॥ तस्मात्‌ सत्यं पालनौयं नरः BAA सदा । सत्येन HAs Tat सत्येन तपते रविः ॥ Aarau esas: |] BATE: | १११ सतेन वायवो वान्ति Wa न asa VT एव सचिन्य स समो aig Efe मनोहरान्‌ ॥ ताभिः ae कुरद्घनभिरायमात्‌ तव्‌ क्तं ययौ | तस्मिन्‌ सरसि Sal तु कमन्यासच्चकार ह॥ तच्च लिङ्क नमस्छत्य efe ध्यायन्‌ शिवं fad af = + mn wm waa पानं परित्यज्य मयनं भागमेव च॥ काम' क्रोधः तथां लोभं माणं मोचविनाशिनों) ५ >, लल सध क . ५. > खाद्यपेयादिकञ्चव ल्काभिस्रुडो aati 8 = तस्य भाया तथा Gal: ए्ठल्लेव्ना; व्रजन्ति qt AAA ZY मरणे छतनिश्याः॥ >, भार्य प॒चेःपरिठतो खगस्तन्टे्रस{गतः। 2 AA ्ुधिती वालकंयुक्तौ लुब्धको यव fasta ॥ खगस्तन्देशमागत्य कुटुम्बेन समन्वितः | पालयन्‌ सत्यवाक्छानि लुव्यकं वाक्यमत्रवोत्‌ ॥ ST उवाच) न्धा मां प्रथमं Bly पश्ाद्नायाः MAT F | वालकानि ततः प्ादध्यन्ता मा aaa ॥ सगाणां WAU न त दोषोऽस्ति कञ्चन | यास्यामः खगे वे सव्वं TAZA न संगयः॥ तवापि URSA प्राणयात्रा भविष्ति | एतच्छत्वातु वचनं SHH लुब्धकस्तदा ॥ श्रातानं जिन्दयिला तु इरिणं वाक्वमत्रवोत्‌ | ११२ दमाद्धिः। [वतखर्ड१ ट श्रध्यायः। व्याध Sai” | AAA AGS गच्छ गच्छ BATA | afaau aw कायं asia तद्धविष्यति॥ aarat हि वधात्पापं तजनं बन्धने att नेव पापकरिष्यामि Feats कथञ्चन ॥ TAU द्या मूलं सत्य शणाखाफलन्दमं। त गुरु Wa ध्म्प्राणासुपटेषटा हि सांप्रतं ॥ गच्छ गच्छ ACF त्व कुटुम्बेन समन्वितः | न्यस्तानि तु मयास्ताणि सत्यघश्समाखितः॥ तद्राघवचन BAT हरिणः प्राह त पुनः| कम्मन्यासमदहं कछला तव्छकाशमिहागतः ॥ खन्यतां हन्यतां WA नते पापं भविषति। मया SUT पुरावाचा तया TET मराम्यदं ॥ मया मम कुटम्बेन व्क्तलाभः स्जोवने। UAH त्वा च वचनं लब्धको वाक्यमव्रवौत्‌ ॥ ल गुरुस्त्व'पिता aaa & बन्धः सखा YET | मया त्वज्यानि गस्वाणि त्याज्य मायादिक' बलं ॥ कस्य भायां सुतः कस्य Fla कस्य ह मम, तस्त: AIT VAG सग गच्छ यथासुखम्‌ ।॥ इत्युक्ता TART FAT चापं शरे; सद । खगान्‌ प्रदकिणो कत्य नमस्छत्य क्षमापयेत्‌ ॥ प्र ुव्याधं पुरस्तत्र चःपरौपूषसन्निभं । प्रतखग्ड' १ र्रध्यायः 1] देमाद्रिः। १११ एतस्मित्रन्तरे नेदु द्‌ वदुन्दुभयो दिवि a ATH Yuasa वभूव सुमनोहरा | देवदता; समायाता विमानं Tae | in aga Sats | NB SAW AAA सव्वेसत्वभयङ्र | विमानवरमारुह्य Uevfated ac । गिवराचिप्रभावैन पातकन्ते we गत | उपवास संजातस्तघा वे निशिजार्गरः॥ यामे यामे AAT पूजा अज्ञानात्त शिवस्य च| संव्बेपापविनिमेक्तो गच्छत्वं सुद्रमन्दिरं। गरज महासत्व सन्वभायांसमन्वितः | भार्यादितयसंयुक्तो नातं पदमाप्रहि ॥ ` तव नाम्ना चय Wa लोके ख्याति" गभमि्यंतिं। एतच्छत्वातु वचन AAAS BAA | विमानानि समारुद्य नात्तच पद्मागताः। हरिणीदयमागस्त्‌ दृश्यतेऽद्यापि पाव्वति a तत्पृष्टलम्ने ताराणां दितय मखिसतरिभं । Bq CIARA तु दृश्यते Alaa Te | तारातितयसंयुक्त was तदुच्यते | वालकदितयच्चाग्रे ठतोया पृष्ठतो Hat | USAMA संप्राप्ता मागंगौषेस Aad | मगराट्‌ EMAIL RA व्योमगसुत्तम ॥ ( १५ ) ११४ Salis: | [त्रतखण्ड' १ टश्रध्यायः | अकामान्नागरं Tal तथोपोषणप्‌ जनम्‌ | जातं लुब्धकराजस्य तत्‌फलं परिवणितं a मे नरा ufsuraa शिवराचित्रत शभः | सोपवासं करिष्यन्ति जागरेण aafaa ॥ तेषां फलं fe वे वक्त ब्रह्मापि च जडायते | शिवरातिसम नास्ति ad पापभयापह ॥ यत्‌ कला सव्वं पापेभ्यो Yaa नात्र TAA | यत॒फलं माघमासे बे प्रयागे मज्जतां SAT 1 AUS दारकायान्तु तपस्याषाठसेवनात्‌ ॥ गथायां पिण्डदानेन कालिके माघवाग्रतः | तत्‌ फलं जायते नूनं खवणादेव पाव्वेति ॥ इति ओलिङ्गपुराणे उमामदश्वर संवादं शिवराचरित्रतमाहात्मंय। ऋषय ऊचुः | शिवरात्रिरितिख्याता कस्मिन्‌ ara gq सा भषेत्‌। fama किविधाना सा तलन्नी विस्तरादद ॥ खत उवाच | माघस्य कष्णपत्तौयतिधिचैव चतुद भो | तस्या रातिः समाख्याता गिवराजिरिति fear: ॥ तख र्ड'१८श्रध्यायः।] ATR: । wey तस्यां way fasy सदा संक्रमते ST विशेषादमरेः सर्वेः ख्याता सेवं करेण्वरे ॥ AZADA, fuazifa: कथं जाता केन वापि fafafar | कस्मादडफला Ala सव्व वे विस्तरादद्‌ t सूत उवाच। कथयिष्यामि wat तत्‌ Waa कथानकं! भत यच्चस्य संवाद्मश्वसेनस्य भूपते; | श्रानत्ताधिपतिः पूव्व मश्वसेन इति स्मतः t आआसौोडग्धपरो नित्यं वेदवेदाङ्गपारगः ॥ HATA: पुरा तेन इद्‌ VS: इुतृहलात्‌ | कलिकालं asia वद्वमानन्दिनेन्दिनि॥ भतं सेन उवाच | कलिकाले कते कििद्तं मे वद्‌ waa । quai AFA FA सव्वेपापप्रणा शनम्‌ ॥ HOYT, # सदा मत्यां पूता; कं तयुगे पुरा | ~. $ ~ A ~ तेतायां दापरे चेव किन्तु प्राप्तो कलौयुगे ॥ © . =~ = तस्मादषत्रत व्यक्ता किलिदकारिकं az । ARIAT GAS BRA | न हि प्रतौत्तते मल्युः कतं वास्यनवा a I em @ suas इति पुखकान्तर Ts: | ११६ eaifg: | [aaa १८बअध्यायः। तस्य तद चनं Fal भतेयन्न STITT: ॥ aad सुचिर ध्यात्वा stat दिव्येन चन्तुषा। afer राजन्‌ ad gu शिवरातलौतिसज्नितं । एकाहिकं महाराज सव्वेपातकनाश्नं। तस्यां यरौयते Zia BABA तथेव च ॥ सव्व मच्लयतां याति राचिजागरणरे aa । AYAl लभते पुत्रानधनो VARA ॥ खल्यायुरदीघ मायुष्य' च्‌ णा च्चैव Ta | यंयं काममभिष्याय व्रतमेतत्समाचरेत्‌ ॥ त तं समाग्रूयान्मच्यां निष्कामो मुक्तिमाप्रुयात्‌ | तथा ALARA पापान्मुच्यते नाच संशयः 1 पठनादटेकचित्तन यदि कुर्यात्‌ प्रजागर | यानि कान्यत्र लिङ्गानि चराणि स्थावराणि च। स चंक्रमते टेवस्तस्यां tral यतो हरः ॥ शिवरातिस्ततः प्रोक्ता तेनसा हरवद्लवभा। प्रार्थितः स सुर: सब्देर्लोकानुग्रहाकाम्यया ॥ भगवन्‌ कलिका लेऽस्मिन्‌ सव्व पापसमन्वितः | वषं पापविसुक्चधै विनायकं faal व्रतं ॥ एतया पूजया पूता मत्याः शदिमवाप्रयुः | ततो दत्त इतं वेषामस्माकमसुपतिष्ठते ॥ यथो च्छिष्ट यदत्तं तष्टत्ताज्नायतेऽखिलं । कलिकालेन चास्माक किचिदेवोपतिष्ठति ॥ यत्‌ कि्चिम्मानवे दत्तं प्रभतमपि शङ्करं ॥ व्रतखरड'१८अध्यायः।] SATE: ११७ भगवानुवाच | माघमासस्य छष्णायां चतुदश्यां सुरण्वर। ae यास्यामि भूमिष्ठो tral aa feat कलो। लिङ्गेषु च समस्तेषु चरेषु स्थावरेषु च। प्रपूजयेत्‌ afew, सव्वपापविशुदये | तस्यां ual fe a gat यः करिष्यति मानवः। Hata: Bras विपापा स भविष्यति॥ ॐ सदयाय नमः । ॐ वामाय नमः । ॐ तत्पुरुषाय नमः । ॐ देगानाय aA; | पञ्चवक्ताणि संपूज्य गन्धपुष्पानुलेपनेः | वस्ेर्टीपि न नैवेदेस्ततोऽष्ये च्च प्रदापयेत्‌ | मन्तेणानेन AWA मान्ध्यात्वा मनसि faa | मौ रौवल्लम Fan Bata: शभिशेखरः॥ qgurafagera sata प्रतिख््यतां। aa: aaa fer Waarsreafefy: 2 zal nefaut aw वित्तशाटय विवजयेत्‌। ततोजागरणं कुर्यान तवादि वनिखनेः ॥ धञ्माख्यानकथाभिश्च AAA Waar | एवं करिष्यते योऽच AAHATCT ॥ सव्वपाप fags प्राथित्त' भविष्यति | तच्छत्वा तिदशाः सवं प्रणम्य शथिशेखरं ॥ सम्प्रहृष्टा Bet खानि खानानि भेजिरं | ११८ देमाद्धिः। [anew esata: | प्रेषयामासुरूव्यां वं नारदं स॒निसत्तमं ॥ प्रवोधनाय लोकानां शिवरातिक्ते तदा, सोऽपि गला धरार खावथामास Wat: ॥ शिवरातेस्त माहाव्मय यदुक्त शूलपाणिनि । ततः प्रथ्ति संज्नाता शिवरावरिधेरातलले॥ सव्वेकामप्रदा पुणा सव्वपातक नाशिनी | तच a कौत्तयिषामि पुराठत्तां कथां वरा ॥ यहत्तं नेभिषार ख्यं waa कस्यचित्‌ | तत्रासौल्लुखकः कश्िज्नातिमानो न WaT: ॥ व्यसन नाभिभूलोऽयं पर वित्तापडारकः। न कदाचिद्रतन्तन न दत्त न जपः क्तः ॥ केवलन्तु हृतं वित्तं लोकानाञ्छलसं खयात्‌ | कस्यचित्वथ कालस्य शिवराच्िःसमागता॥ माघमासे सिते पत्ते सव्वपातकनाभिनौ। तच्ासत्यायतन ya देवदेवस्य शलिन: | ततो जागरणं राच प्रारव्धमभितोजनेैः। नारौभिनरभादल भूषिताभिः TTT: । aga चिन्तयामासचौोरो वित्तेन जागरः | गच्छामि यदि काचित्‌ स्तौ भूषणे; परिमूषिता । निद्रिता बाह्यतः खाश्य प्रवासाद्‌पयाम्यहं | ततोहत्वा समादाय मुषणानि व्रजाम्रह॥ एवं fafaa मनसा गतस्तस्य समीपतः | काणिकारं समारुह्य सितो गुप्तो हि सः ॥ aww १ टप्रध्यायः।}] safe: t aterarar दिशः सवां नारौ निष्कुमणोद्गवा | चौयकग्रप्रवरत्तस्य ware विशेषतः ॥ सल्पापि fafeat याता नच नारौति निगता। तस्याधस्तात्ततो लिङ्गमवधूतं CURT | एतस्ित्रव कालेतु प्रोहतस्तौच्छदौधितिः। असताच्चव चौराणां कामिनां विमुखावहः॥ ततीनराञ्च AAA जग्म; खं खं निकोतन। उमयात परं शान्तः प्रणिपत्य aes ॥ सोऽपि चौरी निराशश्च ्तुत्तामः शौतविहलः | yaad द्ुमात्तस्मादमायिः कषिदासते ॥ ततः कालेन महता पञ्चत समप्यत। जातो जातिस्मरो भूता दपं णाधिपते्गदे। उपवासप्रभावेन तस्यां रातो प्रजागरात्‌ | शिवरातेस्तथा तस्य लिङ्गस्यापि प्रपूजनात्‌ ॥ ततो राज्य समासाद्य पिदटपेतामदह' महत्‌ | कारयामास लिङ्गस्य प्रासादं तस्य शोघन॥ वप्र au समागत्य चिवरात्रणां प्रजागरात्‌ | उपवासपरो yar गौ तवादित्रनिखनेः | धर्ाख्यानकथाभिश्च सामव्धनिभिरेव च) # नेते; aata: aay we ट्वा विधानतः ॥ सन्तप्य ब्राह्मणान्‌ कामेज गाम विषयं निजं । कस्यचि कालस्य गिवरातिः समागता। नत्यरिति teat Wis: | ९६१९८ १२० दमादटिः। (anew eames | प्रासादे तत्र सुनयः AAT: TIPS AAA ॥ णार््डिल्योऽथ भरदाजो जवक्रौतख जालवः। पलस्य; FACT गाम्य स्तथान्ये वहवो BIT! ॥ सोऽपि राजा Feat द गाशाधिपतेः सुतः t ware जागर कत्त तस्य लिङ्गस्य aaa: ॥ प॒जयित्वा तती देवं प्रणिपत्य सुनींश तान्‌ | उपविष्ठस्ततखाग्रे अनुज्ञाती द्विजोत्तमे; | AAAI: कथावदहविधाो aq | गाजर्घोणामतोतानां ब्राह्यणानां विशेषतः ॥ श्रथ तस्मिन्‌ कथयति a: पृष्टो ब्रह्मवादिभिः | कौतुकाविष्टचित्तेख विस्मयोत्फ़ल्ललो च नैः ॥ राजन्‌ णुच्छामि हे सव्व वयं कोत्‌हलान्िताः। यदि aaifa न; सत्य टरेवतायतने खितः ॥ राजोवाच यदि ज्ञास्यामि fatet: कथयिष्याम्यसंगय | देवस्याग्रे तु संपूज्य स्येनात्मएनमालभे | RATA: | सुलभानि परित्यज्य कस्माडामान्धयनकशः। जागरं AAAS हा टेगादुपतिष्ठसि | वषं वप्र सदा प्रासे नृनं त्वं वेसि कारणं | रहस्यं यदिते न स्यात्तद्रववौहि नराधिप सविलच्छं स्मितं क्ता ततः प्राह सुदुखनाः। रदस्य परमं द्येतदताचय हि दिजोत्तमाः। त्रतखर्ड'१यअध्यायः |] Safest ६२१ तथापि वैद्पिथ्यामि अश्वटेवाग्रतोयतः ॥ ततः स कथवामास पूवदेहसमुदवं | मल्िम्त्‌, चनरोन्‌न aaa’ हि नराधिप NANT देवस्य TAA जागरस्तथा । उपवासं विना तेन शिवरात्र पुराभवत्‌ ॥ जातिस्ररणसयुक्कं तेषां सव्व Gara । कथयःमास BUS GAA पूबजन्रननः | तत स्ते सुनयः सव साधवादान्‌ एुघक्‌विधान्‌ t खपौत्तमस्य राजंडयाश्ोभिसमन्बितान्‌ ॥ रात्रौ जागरणं GAT जग्मुस्तेच तथाम | सोऽपि राजा समभ्यव्यं तदेव तान्‌ दिजोत्तमान्‌ & MAA सपुरं पश्चात्छला रातिप्रजागर्‌ | WE AT उवाच । शिवराचिः ससुत्पत्रा qaufead ठप | wafaa च माहात्य तस्यास्ते परिकल्यितं ¢ तस्मात्सवप्रयत्ेन काय सा कुपसप्तम्‌। कलिकाले विशेषेण यदौच्छहूतिमातसनः ॥ रषा क्ता विष्णपेन नलेन नहे च । मान्धाचा धुन्धुमारेण सगरेण युयुत्सन | तथान्ये च महोपालाः सम्यक अडासमन्िताः। प्राप्ताश्च ईख्ठितान्‌ कामान्रेपोदिव्यायचन्ञुषा ॥ सत्यवताच साविखा्ियादेव्याचसौोतया। अरुन्धत्या सरस्वत्या पनया TAIT AAT ॥ ( १६ ) १२२ माद्रः । [ऋदग्डं १८अध्यायः ५ SETI च ANU च खधया खाहया तधा | रत्या Weal प्रभावत्या WAAT FW BINA 4 सवं प्राप्ताः परान्‌ कामानतिसोभाग्य संयुतान्‌ । waar: शकयाद्ापि पठेदा शिवसन्निधौ । दिनजात्‌ पातकात सोऽपि qua नाच संशयः नास्ति गङ्गासमन्तोयं नास्ति देवोदहरोपमः॥ शिवराचिसमं नास्ति व्रत aa मयोदितं RAGA मसः सर्व्वीघय्धसमन्रभः ॥ सव्वध्मयो राजन्‌ भिबरातिः प्रकोत्तिंता। गरुडः परिणा यहत्‌ नदौनां सागरो यथा । प्रधाना सव्व vara शिवराचिस्तथोत्तमा I ईति स्कन्धपुराणोये नागरखण्डे शिवराचित्रतम्‌ ३ 000 कष्ण Vary | चतुद भौं महाराज गतसुद्धियते सदा । न्ट स्तदा इव्यवाहः पनरस्तित्वमाप्र यात्‌ ॥ युधिषिर उवाच) कथमभ्निः पुरा नष्टा Zama gata | केनाग्निल्व' छत तच कथ fe fafeaaa कष्ण उवाच | पुरा सुर महारज तारकेण पराजिताः | अष्व्छन्‌ विष्वकत्तारं तारकं को वधिष्यति i arse १८अ्रध्याय { | waltz: | १२३ उवाचासौ चिरश्ध्यात्वा शद्रोमासक्तिसम्धवः | मङ्गा खाद! गिनितेजोत्यः शिश्दैत्य' वधिष्यति ॥ एवं Jal TET देवा य Aa: सहोमया | प्रणम्य ते AAAS यदुक्त AMA AT ॥ प्रतिपन्रच्च सद्रेण उमया सहितो नतः प्रयल्लमकरोत्तच्च यदुक्लममरेस्त॒तः ।! दिव्य वषशतं साग्र ततः कालोऽघ मथने । न चाप्यपरमस्तत ततोरस्तात्‌ कथञ्चन ॥ way सुमहत्तषां देवाना; समजायत | द्रो मासम्मवोयो वै भविष्ति महावलः |! स देत्यान्‌ दानवगणान्‌ afaafa न संशयः | केन कालेन भवति रतोविरतिरेतयोः। एतददिचिन्य प्रहितौ देवेस्तचानिलानलौ'। गतौतौवां war EeY समस्तौविषमस्तया॥ aug wi eat 24a: are विवर्जिता | यस्मान्न जनित विप्रभय दति दिवोकसां ॥ अथोवाच Ag देवादेवान्‌ Waa Wa: | afa weig daa asa सुचिर fe यत्‌ ॥ एवसुक्लोऽथ TSU नष्टोऽग्निदवसङ् लात्‌ | a aut न भुविखोवा न Gare न भूतले ॥ देवतायतने. aa न कुसत्रम्निघशं नं | क्रिमिकौरपतंगाश्च ager चिदिवोकसां। हं हो केकाः एक वहिः Wa aE गताः | 229 Salle! [व्रतखण्ड'१८्अध्यायः) शरणा पामिनिदि refs f गुणा वो भविष्यति) gel q विबुधाः सवे पचिणं afautat ॥ जौोवजोवकनासान भानोः सत्य ATA नः) कचिदृ्टसत्वया वद्धिवं मेऽस्मित्रटता सदा ॥ aux नाप्यभद्रं वा fafeda वचोऽत्रवोत्‌ # शरयोभूयस्त॒ णष्टोऽपिनान्सासुक्धारयद्धिर ॥ त॒ष्टस्तस्यात्रवोदद्किशिरच्छोव वटानिते। यस्मात्न किञ्चिदुक्तं ते तस्ाचित्रतनूर्दः ॥ जोवजौव पुनर्ज्जीव यावदिच्छा तथायुषः + दितोयं ते वर दच्चि जोवजौवक शोभनम्‌ ft व्यक्त ते मानुषो वाचा खष्टा्थां च ufaufa ep क्िददित् बाघस्तादुधः ara करिष्यति) शदया चाषोडोणान्‌ दोपः त्त णाहालो भविष्यति # मांस यथ ठतौयं वे भन्तयि्यति निन्दित ॥ AIC: स्मेऽमरश्चेव सवं कालं भविष्यति t इट्‌ दवा वरन्तस्य वदित मक्राप्तवान्‌ ॥ विबुधा रपि तत्रेव तमपश्यन्र'वंश्एग । उत्पाद्य जातकन्धाद्य शास्तसन्दटमानसः b तुष्टा वण्मघोचस्ते दे कास्िभुव नेष्वर्‌' | ऊ्रयाकल्मषोभूखा अभिनिगरभ्न्‌ वरिष्यति ॥ an हि वेणवौयषटिः ब्रह्मचारी च नेहिकः + यच्चाग्निपालनेपुख' we ब्रह्मवादिभिः । ब्रतखच्छ'श८्च्रष्यायः।) watts: १९४ बहतः aaa afe a प्राप्रोति हिनजोत्तमः। व शस्यानुग्रहं Hal टेकाइतिमधाब्रुवन्‌ । wea Wa भद्रस्य त्वं पुचो भविष्यति) युधिष्ठिर उवाच) यदा ग्निन्नष्टो देवानां केनायिलं तदा कतं) भूयोऽपि केन कालेन अस्निरमगिित्रमाम्रयात्‌ ॥ कष्ण उवाच | चिराच' fan नष्टो ग्नियनाध्रिनल' कदाचन! यस्मिन्‌ काले foal यस्यां पुनरग्निलमाप्र यात्‌ | C ट =. उतथ्य{गिरसोः पूवमासीद्यय्तिकरोमहान्‌ ॥ अह विदयातपोभ्यां वे नं वज्याख्छन्‌ सुतेन Ot X\ + + उतभ्५नवसुल्लस्त अद्भिर प्राह तं सुनि ॥ $ नि ^~ > „_ © ~ गच्छ वो द्रद्मसदनं मरोरिप्रसुखदिजः। ~ ^ 0 ~ उपेतश्वान्यसुनिभिव्र द्मराजपि सत्तमः ॥ उतथ्यः प्राह स AMA ताकषोन्तस्तमानसः। ` ज्यायान्वा कतसमाऽस्ाकमिति a: कथ्यतां MS ft ^~ _ र ay अथोवाच BAA MIAH ATATAAT | आनय TA गत्वा विव्धान्‌ मुवनेश्वरान्‌॥ r . y ~ ततो विवादं पश्यामि waai a समोच्य च) aa सहितौ गत्वा ऋषौनेव समानयेत्‌ ॥ लोकपालान्मदेन्द्रादोन्‌ सवमान्वारुणानिलान्‌ | खाष्यमास्द्रशान्‌ विश्वान्‌ भरदाजातरि नारदान्‌ & eats: | [तरतखर्डश८्अरध्यायः ) गन्धर्वान्‌ वित्तपान्‌ यच्तान्‌ TAA दैत्यदानवान्‌ | aaa तिग्मां शः सवं चान्ये समागताः ॥ दृष्टा तु विबुधान्‌ स्वान्‌ ब्रह्मा प्रोवाच arate | MAU HARTY सात्र TWA वा पुनः ॥ एव YA गतस्तावदुतत्धः BAA । स गत्वा प्राह AWS शीप्रमेह्यवसच्चिद्‌ ॥ स उत्तत्थमधोबाच कथं ब्रह्मन्‌त्रजाम्यद्दं | एव सुक्ागतः Aly a मयिनिगते॥ एव सुक्तोसुनिः प्रायात्‌ ख ख'टेवसभागत | आचचक्त च यत्‌ Wa भासखता तपनप्रति॥ उवाचाङ्किरसं ब्रह्मा गोघ्रमेव तमानय । सत्वयोको गतस्तत्र यजासौ तपते रविः। एद्येहि भगवान्‌ GA उतत्थभवने पुनः । एवमुक्तो गतः Gat aa Sars सभागता! ॥ स्थित्वा qaa प्रोवाच fa वा कार्य॑सुपस्यित | ए च्छन्तमेवं AUG ब्रह्मा प्रोवाच सादर ॥ गच्छं WT न ददते भुवनं यावदङ्किराः। लब्ध प्रयातु गोलोकं qua छष्णपिङ्गलं i पाटलं हरितं शोणं खेतोवष प्रणागितः । MRS FIST क्रौञ्चदीप सपत्तनं ॥ euafeta aa भूयोऽपि प्रदहिष्यति । Waa Vea सवं भुवनं agate: | सखण्ड" १ टअरध्यायः।] Sate गच्छं तावदितः TH खसथानेन प्रमास्कीर | एवमुक्तः सविधना सखानमधिरूटृवान्‌ ॥ fafvarafeanra सकाशं देवत रविः गत्वा्गिरा उवाचं गतं किङ्‌रवान्यह॥ विवधाङ्किरसप्राहम्तपोरागशिमकल्मष | संप्रशस्याहुरग्नित्वं कुसं तावन्महोतले ५ aa यथाग्निः छतवान्‌ स्तघालमपि सत्तम | mata प्रणस्यामि क्रासोनष्टः क्र तिष्ठति ॥ एवमुक्तः स देवेस्त॒ ahaa कतवांस्तद्‌ा । देवैदृष्टा यथाग्निश्च स मे सव निवेदितं ॥ टेवकायं कते तस्मिन्‌ Sar वद्िमथान्रुवन्‌ | अग्नेऽ eae कुरुष्वत्वमाङ्रिसमकन्मष ॥ उवाच YA मत्स्यान वचस्तोषाकर BT | हन्तं तनयश्रेष्टोभवियये प्रधमे सुने ॥ वदस्मतोतिमानाय तथा न्यवहवंः सुताः | एव सुक्तोमु निस्तष्ा ag चच जनयत्‌ Bara Il afs’ सोजनयामास garearat स्तदाङ्िराः | mara पुनरत्वग्नि मरिनिरस्यातिघो a 1 सखपन्‌ सवे चतुर्दश्यां सच्छा तो हव्यवाहनः | SUE देवानां भूतानां ग्टद्यचारिणां | ते तेव्ियं तिथिस्तस्मरे रुद्रेण प्रतिपादिता! quad तिचिहत्‌ मुनिभिः पार्थिवस्तथा ॥ नलसन्धातुसन्वादयेरन्यगानपुष'दिभिः। १२७ ९९८ Salis: 1 [त्रतखण्डं ए८्अष्यायः! प्रिया सदखहन्त णां dada gated | अज्ञानतो ये च व्यालबह्किजला गयाः t सखापदेमचितावे च तपनादिषुये ताः ॥ उहन्धनिकषता चेच शलाद्यैरविधानकेः | तेषां शस्त चतुदट्‌श्यां तदत्‌ स्वमसुखुप्रट्‌ । अनिष्टावेव दगनिदानानि fafaaifa च। प्रभूतफलभोग्यानि उपतिष्ठन्ति ते नराः ॥ एवं fafafed रजत्रास्नायो पठयते जनं; । सेन्द्रौ कचिददन्न्ये weifea fafa पठयते ॥ अस्यां मनोरथावा्िः Raat स्यान्रगसयः। sq नक्तोपवासस्य विधानं खग पाथिव | (नक्तभेवोपवासः) येन विज्ञानमात्रेण सर्वपापः प्रमुच्यत | रिवार्चनपरोभूत्वा जितक्रे घः ए चिनरः । वसुधाभाजनं GAT HUA aA ॥ उपवासात्परं Bal भेच्यात्परमयावितं | आयाचितात्मरं नक्त तस्प्रात्रकेन वत्तयेत्‌ | TAR भुक्त Yale मध्या सुनिभिस्तथा, autre 4 fasta: सन्ध्यायां गुद्यकारिभिः॥ सववेलामतिक्रम्य नकभोजो तथा भवेत्‌ | हविष्यभोजन सखानमाहारस्य च लाघवं ॥ अग्निकायमघः शय्यां नक्तभोजौ समाचरत्‌) सम््यायां Awa कत्वा शुचिना Waa त्‌ | AG दद्यात्तथाष्यं'च YUMA AA: फलः । # ज्धापद्‌रचितयेचेति FARA पाठः| eel PS mae awe १टच्रध्थायः।] watts: 1 १२९ मन्देणानेन राजेन्द्र ध्याला चेतसि WET | yawn विमुद्‌वः way: aan: शिवः § BATS दानसंप्रीत सविधा पायं व्यपोहतु ! SAG ब्राह्मणं भोज्य खयं Bala AAA; ॥ एषं संवल्रस्यान्तं ad पृथ सदचिणे । दयचामोकरं पात Tel at तास्नमेवच § श्रगक्तो BAG Wa पृण गद्येन Ula aT पू णोबुम्पोपरि स्थाप्य श्वेतवस्वयु मन्ता ॥ रौवर्मच्च fad शक्या ara पद्चारतादिना। वस्तोपरि VAIS THAR AATAT: | GRANT Fal सदौपेः सहचन्दनेः | ua संपूज्य विधिवदष्येमष्टाङ््‌ सुत्‌ख्ञेत्‌ ॥ देवस्य पूज्य मन्त्रे ए भक्तिभावेन भावितः १ फलं पुष्प गवां aie दधि दूवाड.रास्तिखाः | चन्दने तर्डलास्तोयमव्यम्टा क्गमुच्यते । फलादिभिरटभियुक्ष तोयमष्टाङ्म्‌ ॥ गिरसा धारयित्वा तु जानुभ्यामवनोड्तः। मद्ादेवाय दातव्ं WATT यथाक्रमं | WAC fa TMI प्रणम्य परमेश्वर | Gq सदचिणां दययादित्त्ाटा विवज्जितः । सोविषाय च दातव्यं पुराणविदुषं fear । एवं UA प्रदव्याखः WARAZARA + ( es ) a वां । १३० देमाद्रिः। [वतखग्डंरत्अरध्यायः। सव्व पाप विनिमुक्तः पुत्पौवसमन्वितः | धनधान्यसमायुक्ता MIA, रदं गतं ॥ अन्तकाले fat सला शिवलोक व्रजेन्नरः | aa खित्वा स चलारि युगानिपरयासुदा॥ त्रेतायां पाधिवैन्द्रीऽसौ ARCA सत्तम | . यसत्वषटमौषु च Mary wae aig नक्त समाचरति शास्तरविधानटष्ट' । सखमाङ्नाकुलरवाकुलिते विमाने Use ala सुसुखेन मद्ेशलो कं ॥ इति भविष्योत्तरोक्तं चत्‌ट शोत्रतं | 000 युधिष्ठिर vara | © = ~ अम्बुषु तडागेषु महातोयाखमेषु च। Qe 9 ™ ~ Ray सप्रयच्छन्ति ay ताः कुलपोषितः ॥ AW उवाच) मासि भाद्रपदे पत्ते शक्ते aafaa a | तदा भक्तया प्रदातव्यः AMAIA मुत्तमम्‌ । ब्राह्मणे; afagdsa: शूदर स्तोभिस्तयेव च । EN ~ =f ~z फल पुष्य स्तथावस्ब दोपालक्रकचन्दन; ॥ विरू; anaes दधिपिष्टाग्बुचन्दनेः। A Ac अनग्निपाकसिचंम्तेस्तिलत गडलमिचितैः | न = । 1 # ननि पाकसिद्धान्नरिति पसठकान्तर पाठः| anew copa 1) Saris खज्‌ CAULCAAI MATUGR AAT | श्रातुकं फलविशेषः | दाचतादाडिमपूगेश्च पुष्पे ्ापिनः प्रपृजयेत्‌ | श्रालिख्य मण्डले देवं वरुण याद्‌सांपतिः॥ मन्वेणानेन राजेन्द पूजयेडक्तिभावितः | वरुणाय नमस्तभ्यं नमस्ते यादरसांपते ॥ अपांपते नमस्तभ्य रसानां पतये aa: | HAS AM Vaal वैरस्य' मा सुखेऽम्त मे i वरुणोवारुणौभत्तां वसुटोऽम्त सदा AA | एवं यः CHITA पुरुषौ ART प । मध्याद्धऽनग्निपाकं हि wat नियतमानसः) चतुवर्णऽथवा नारो व्रतेनानेन ATW ॥ निवेदय बाह्रे देयं नेवेयच्च प्रकन्ययेत्‌ | एवं यः. कुरुते पायपालौव्रतमनुत्रत ॥ ATAU सव्व पापेभ्यो मुच्यतेनात संश्रयः । यथा समुद्र मानं fe wad नेव केनचित्‌ ॥ एवं fz त्रतिनाङ्गहे धनः FIG न शक्वते। AAA ATS कौल्यं सोभाग्येम वलेन च॥ YUM व्रतमद्ाममफलं बो नात्र संशयः | संरुडशडसलिलातिवलो विशाला पालोमुपेत्य वद्मिस्तनुभिः कतालो | ° वोजपूवेा रुकेप्तथेति पुस्तकान्तरे पाठः | + चदपुर्खति क्रचित्‌ wis | १२१ १३२ ` देमाद्धिः। [तरतखण्ड श ््रव्यायः | ये पजयन्ति वर्णं सहितं ससुर e | ^ ध ।१। तेषां ze भवति भूतिरनघगाधा ॥ इति भषष्योत्तरोक्छ पालीचतदंशोत्रतं | ------०8------- छख Saiz i नभः ~, 0 ~ afaaa दिनिपाथ wy AW aaa | aaa ye मोतं safaaaafaat i ‰ . कपया परया पाध कलात्रतमनुत्तमं | तत्ते ऽहं संप्रवच्यामि लीकामुश्रहकारके ¢ ~ _ ~ ॐ © Wo ८ AMIS पुरा ट्‌वगन्धव्व येक्तकिन्नरः। श्रष्ठरोऽमर कन्याभिनीगकन्याभिरचिताः ॥ संसारासारतां Wal कदलोनन्दने खिताः) शक्ते wa sae मासि भाद्रपदे दप ॥ टेयमघ्य ` वरस्तोभिः फलनना विषे स्तथा + =, =~ fase: सप्धान्यश्च दोपालक्कचन्द्नेः ॥ {क्त xq SAV. Ac 3, दधिदूबाक्षतव सख नवेद्य घुतपाचितः। प > £ ae = AMAA पूगफलं लवङ्ग कदली फल; ॥ तस्मिन्नहनि दातव्यं स्लोभोरम्याभिरप्यलं । मन्ते णानन VAT तच्छुष्य नराधिप ॥ fadai कदलो नित्य कद्ट्लो कामदायिनो। शरोरारोग्य लाव्यं देहि देवि नमोस्तते | दस्य यः पुजयेद्र्भां पुरुषो भक्तिमानप ! FATT OWA: |) Saiz: | १२२ नारी वानम्निपाकात्रा aata चतुरोपिवा॥ तस्मिन्‌कुले न fe भवेत्‌ काचिन्रारौो कुलारटनौ। दुर्गता दुभगा व्यङ्गा ACA पापचारिणौ॥ विलासनौ वा हषलौ पुनभूःषुनरेव सा । गणिका फेरवारावा SEAHRURT GAT I? भत व्रताच्च चलिता न कदाचित्‌ प्रजायति | भवेव्सौभाम्यसीख्याटा पुचरपोतरखियादठता ॥ श्रायुमतौ कीर्तिमती जोवेदषशतं भुवि) CATA YUNG Waal BUA aay तथा NAT च RATS Galen aa वने। AACE तथा Wal राधया yfanwa | अरुन्धत्या दारुवने सखवादया मेरुपन्वते । सौतया चित्रकृटे च बेद्वत्या feared ॥ WITHA BA पाथं नगरे नगरद्वये | ष्ठव्रतभिदं ug uz भाद्रपदे सति। यत्‌करोति a a दुःखं; कदाविदभिभूयते # उद्चित्रकन्दलदलां Heal मनोज्ञां ये पूजयन्ति कुसमाक्ततधूपरौपं ¦ । तषा wey न भवन्ति कदाचिदेव नाय्याद्यनाश्चचरिता विधवा विरूपाः ॥ दति भविष्योत्तरोक्तं कदली ad OBO १३४ देमाद्धिः। [त्रतखर्ड' (owe: | युधिषिर उवाच । लोकप्रसिदाः BART AAA नाम देवताः । ava: faa कुर्वत धम्न्तासां ante मे॥ कष्ण उवाच) वियन्ते दैवताः पुष्या: खावखी नाम पार्डव | ब्रह्मणा प्रथमं wel नियोगश्च अने क्तः ॥ योयददति लोकोऽ शभम्बाप्यथवा शम | प्रापयन्ति चताः WIT ब्रह्मणः कणगोचर | अतस लोके पूज्यास्ता निथमेन प्रजापतेः। दूराच्छवणविज्ञानंदूराद्शनमोचरं ॥ 0 Om, तासामस्तीतियत्‌पाथ अचिन्यतकद्ेवभिः। a a = $ © ALES पृष्टश्च Aaa काव्यकारणात्‌ ॥ तं खावयन्ति धाते STII ताः Wat: | यथा Sat यथादेत्या यथा विद्याघरा नराः ॥ यथेह सिदमन्धव्वां नागाः किंप्ररुषाः खगा tiara fanrara टृबानामषटयोनयः॥ तथता: पुखयकन्तत्वादिन्द्राद्याः खावखिकाः स्मता; | तासासुदिश्य कर्तव्यं व्रतं नारौनरेः सदह ।। किन्तु तासां महोग्रतुव्रतसयमन सदा, आघ्राय धूपं पक्तात्र जलं वा AAA च ॥ दातव्यं पुनरन्यासां नारो भोज्यपारणे | अन्यत्रतपारणे भक्त चेत्खयमपि तद्व्रतं, ro a Ro + - ft २४५५ ॥) RES ep "क TE मन "= „न रतखण्डं १८अध्यायः !] safe १२१ कत्तव्यं नोचदच्यमाणटोष इति मद्योग्रलात्‌ ॥ अदत्वा यद्‌ Ta: स्यादृन्तकालेऽपि पाण्डव ॥ तदा गलब्रहय्स्तस्यासुखाः स्यघेवंरखना; | सफ़नरधिराङ्गारा स्व्ियन्तेऽतोव दुःखिता; | Bad तु पुरा we Baar मनघो पः ॥ तस्य भाग्या महादेवो जपसौर्नाम भारत | WAP SIGMA Wa: ससुदिता गुणे; । भतृसुयषयुपरा भक्तुख्चातीव वल्लभा | सा कद्ाविद्गता SIG गङ्गया श्राखमे मनेः ॥ वशिष्ठस्य seus साध्वीं भायामरुन्धती | भोजयन्तो म॒नो नान्तुपन्नौनां नात्रभोजनेः ॥ तथा च प्रणिपल्याथ ger Sar महासतो। पूज्यते भगवति ब्रुहि किमेतद्रतसुच्यते ॥ भमापि कुरू कल्याणि कर्णां त्र agrafa | ्ररुन्धत्यवाच | णु भद प्रवच्यामि नामना aati ad | एतद्ध च समाख्यातं afaca महात्मना ॥ ° qe धरस्य सवस पतित्रतकरं शुभं । गच्छवा fag at रान्नितवा!तिथ्य करोम्यहं ॥ UAHA TAMA भोज्य तस्िन्यटच्छया | वभोजातिप्रिय' पाथं मुनि पलनाकताद्रात्‌ ॥ भुक्ताचम्य जगामाशु स्वपुरं परमेश्वरो | * मभान इदि पुखकान्तर पाठः, १२३६९ चमाद्धिः | [aaa CUTS । कातेन विस्मर तस्यास्तदुत्रतन्तु संभोजनं! ततः सा समये पूण स्िवमाणा महासतौ। जयसी घर्घराराव' कुर्वाणा कर्डगद्रद्‌ं | Ga लालाविलं वक्ग'दुद्भिरन्तो मुदम इः । खिता पञ्चदशणदहानि बोभत्घादारुणननाः॥ ततः षोडशमे Wa Bal चेष्टामरुन्धतो | परविष्याभ्यन्तरन्त्‌गे तां रान्नीमवलोक्यं च॥ नहुषाय समाचष्ट ARH चावणौोत्रते। * AW AT AYA राजा aa भोज्यः चकार a tt THA तद रुन्धन्या पुष्कलं aaetrafna | Zula करका यष्ट उदिश्य च wafad ।। च णाञज्जगाम waa म॒क्ताजाय जनाधिप। जगाम शक्रलोकं सा विमानेनाकवचसा॥ दोधूयमाना चमरेस्तयरमाना मुरासुरेः। युधिषिर उवाच। किं तत्र 2a कर्तव्यं gad: पुरुषोत्तम | सुविस्तरं मम ब्रूहि स्तोभिवों खावणोत्रतं ॥ AW उवाच | C गीष ~~! ) + $ मागभमोषऽमलेपद्त चतुट्श्यां नराधिप) Tey नर. स्रात्वा age विमले wat > राजाङ्खुतं नोष्टः चकारवे दति पुखंकान्तर्‌ पाठः, † Manag इति पाठान्रम्‌ | > «tf BS -" ॥ Homes 9 ५५ च HAASE cows: ।] TATE: | slag Wie: शत्वाद्येकामयापि वा। GSI: सगाति्यो व्राह्मणयो वा खगतितः ॥ Waa AW तत वैदभेदाङ्पारगं । मन्तरक्नभितिद्ासन्न' शचि शान्त जितेन्द्रियं ॥ aa gar विधानेन पादचालनपू व्वकं tt चन्दनेन सुगन्धेन दुष्यधूपादिभिस्तघा । ग्रौवासचकसिन्द्‌ रङङ्‌. मा दे विभूषयेत्‌ । ततो दयात्‌ FAIA भच्यभोज्यमनुत्तम | AAA दातव्या Asan Beta g | वदनो बारिधानो। ्रच्छिद्रा जलपूणास्तु सुव्यक्ताः सत्रवेष्टिताः ॥ सोमालकेस्त्‌ wear; पृष्ममालाविभूषिताः | चन्दनेन समालब्धाः सदिर ण्याः VIA TAF | तन्मध्य वदनोमेकां खक we निधापयेत्‌ | खित्वा मण्डलक पाथं यजमानः खयं तदा ॥ द्ममचारयेन्मन्त' ध्यात्वा मनसि केश्वः! यदास्य यच्च कौमारे बाैके वापि aaa I wu मे तत्‌सम यातु पिढदटेवमनुष्यजं | अयंमे समयः पूणंस्तारयसख भवाणंवात्‌ ॥ gama मिच्छामि fact: पदमनामयं। एवमस्त्िति ता ब्रूयुः far wat युधिष्टिर ॥ तती ब्राह्मणमद्य यजमान इदं AST । ( १८ ) Re eae: | [aaew १ ८्त्रष्यायः।. रूह ब्राह्मण मन्न्ल' सुने ये ना चयं त्रजत्‌ ॥ * गि “an क ‘ Q नः ततस्तां Wie Wad वदनो पार्डनन्दन | उच्चारयोत Aaa मन्वानेन स{इजः ॥ +न ~ च स्‌ रि 9 अमुष्याः शिरसोटेव्याः GAA eI AT | HEH PATA ततोमघुकमातुह ॥ ततो गच्छ महादेवं खाव्य' खावरिकि Wat एवभ्ुचार्यतां विप्रो वचनं शिरमातदा। न ~, aesfantara विप्राय प्रतिपादयेत्‌ | दूति at समयं wal sats वनानि च ॥ समयण्कवक्यता | ग्सहोतला करका नार्यो व्रजेयुः ख निकेतनं a ग्टहोत्वाकरका भक्ता समये था प्रयच्छति | wae ufaa श्रेष्ट खावणौव्रतमाद्रसात्‌। तस्याः कालेतु UNA सुखे सत्यः प्रजायते । धनधान्यसमायुक्ता पुत्रपौत्रे LAHAT | भटंश्ुगूषणपरा अआाधिव्याधिविवनलजिंताः। सोभाम्यातुलसंयुक्ता जौवेदषे गतं सतो ॥ अन्तकाले हरि खात्वा प्रयाति हरिमन्दिर। # जाताजातातु AA F Mla सा वल्लभा भवेत्‌ ॥ पुरुषोऽपि ad चौत्वा विधिनानन पार्डव | पभ्मिस्त समयं छता फलमेतद्वाप्रू यात्‌ ॥ naa खणन्ति ये लोका पटप्रमानमिद्‌ aa t en eee # जाता दु मन्ये मत्तः सा Pat सा वल्लभा भावदिति पाडान्तरः। त ब्रत खण्ड १ टश्रष्यायः। माद्भिः, सब्वेपापविनिर्मक्तः wi यास्यन्त्यसंगयं ॥ उद्िश्यटेव faafaarara खवर नार्य्यनवं fe जनितं स गुडाज्यमन्न'। या भोजयत्ति करका जलात्रयुक्तान्‌ | यच्छन्ति ता भुवि विव्य ga सियन्ते॥ इति भविष्योत्तरोक्तं आवणिका ad | TA उवाच | निषा योऽश्वमेघादोन्र तसापि महत्तपः) Heal ब्राह्मणभ्यश्च हेमं विद्याञ्चलो भवान्‌ ॥ अस्रालाखिलतोयषु अनधौलयाखिलाश्यतोः। श्रनभ्यस्यात्योगच् कथमिष्टं गति त्रजेत्‌ | स्व्वकामाप्थें किञिदिहलोके ata च। कथं स्याच्छिवलोकश्च पुनराछ्तिदुलंभः ॥ Aree ~ ब्रद्यदहत्यादिपापौष्यवहजम्क्न रपि | कथं च्रणादिमुच्यत TH कथय षणम्‌ ख | 9 Co >, ~ a अक्तत्वापि शिवस्याचां FIM सुविस्तरः॥ अल्प्रायारेन ade: शिवः cag तदद्‌ | स्कन्द उवाच) mA ~ ~ on व ait aa महाराजं सव्वं मतदबाय्यत। सुनेखर्गापवगादयं सद्यः शङ्रतुष्टिदं ॥ चतुर्टभौकुम्भजातशिवनक्तचसंयुता | कुम्भजा तत्य गस्तयस्य सम्बोधनं | श्िवनत्ततमाद्रो । १४० waite: | [वतखण्डं१ ट्श्रष्यायः)। यावाभाद्रपदा युम्मस्येकेन सहिताधूना | पूव्वाभाद्रपदोत्तरा भाद्रपदयोयुग्मस्य मध्य॒ एकेन ATA भवति सावा इव्यथः | | तस्यहि विधुर wet जितकानन्धकन्तयः। तपथामास दत्तश्च चक्र दप वियुक्तकं।॥ | जयदानाद्सौतस्मात्तिथिः शङ्रतुटिदा॥ । तस्याङ्ञोरो AL लेभे AMSA वस शभा | तस्यां जात नकुलो नाम 2a खयं सिवः ५ तस्रादतिशिवप्रौत्ये तं aut कतं भवेत्‌ | | ददति देवो Tienes विसुक्तिद्याच wet: ॥ | महाराजन्रतानाच्च शिवस्यैव तु तोषक्कत्‌ | | ॥ व्रतान्येतानि सर्वाणि बहनि क्तवान्ररः ॥ ! TAVATEa TI राजसूयगतेरपि। ATATAA TATA रेर्योगाभ्या सैस्तयोत्तमैः ॥ फल व्रतेन GWA महाराजेन नो समं | विप्रेभ्यः quarter: कपिलानां सतार्वद्‌ं | यो दद्यादयं दरं FST UN TATA: | सकदभ्यचं तेशम्भोः कलयकोटिशतैरपि ॥ पूजितस्याहमिति च हरि राहः खयं वच; ¦ जन्मकोटिशतेय ् भदेत्‌ बुख्यमनुष्ठितं ॥ ` तच्च ad महाराज विघ्नः कततैमर्हसि। अगस्य उवाच | ्रतराजस्य ASAT श्चुवन्लन्तोमया गुड | 1 1 ह „1: ¬ + 1 wh abate 1 ॥ # ॥। व्रतखर्ड १८ अध्यायः |] SATS: | ९४ अधुनाग्रोतुकामोहं विधिं aafeand ॥ स्कन्द उवाच) 6 यदागस्यचतदश्यामाद्रौ ATS पदाधवा) शितायामस्िताणं at न विशेषो यथा afa 4 ~ तदा ल्कभूभूतना त्रयोदस्यां यथाविधि। सव्वेत्रत महाराज तदा संकल्ययेनरः ॥ “ + ‘ © =~ चतुरश्यां ततः कुयांत्तिलगोमूचरगोमयेः । Ze पञ्चगव्येन स्नान एदाग्बना ततः ॥ शिवसंकल्यमन्तस्य ततो दणशतं पटेत्‌ t शिव waa मन्वोय्राय्रतो ५ दूरमिव्यादियजःशाखाप्रसिदः। षडत्तरस्त॒ TEU जकीटि छतेस्ततः । ` षडक्तरस्तनमः शिवायेति । ™~ ` च | मुच्यत पातकैः सव स्तत्त्वा नात संगयः। १, ~ $ WE पञ्चाखतः WY न्नापयेदुमयासद्॥ ~ ९ सोय = पञ्च गव्यक्नियासगन्धतोयं स्त घोषं; | एष्करकपिलाधेनृकोटिदानफलं लभेत्‌ ॥ गोरोचना चन्दन कुडमेला कर्पर छष्णागुरुटेव काष्ठ: | a. 2 - ॥ कस्त्रिकाद्यरनुलिप्य शन्धु प्राप्तोति yet हयम धाद" ॥ यौ पद्चकेः कुशणमीमरि स्त TAT or ee ""+---~---------~------~ a Ee a oO a i flair SAA a air # सष्ठ aay शुमद्ानिति Gears पाडः, १४२९ ष्देमाद्धिः। [त्रतखण्ड'१८अध्यावः | तरफालिकाभिरतिसुक्तकमल्लिकाभिः। NATASHA: शतपतमङ्ख) मासोऽपवासशतकोटि फलाय पूजा ॥ श्रो विल्वः afgat | BEATE: । aay घूपमथयवा विहित ey दद्यादृटताक्तगुड गुग्गुलमौशराग्र । सर्वामिमां वसुमतीोन्धनधान्यपूण दत्वाफलं भवलियत्तद्‌वाप्यमाशु | सुगन्धतेलोज्लदौपमालां गवाज्यजातानघवा प्रदोपान्‌॥ दत्ाशिष्रोवाध कुमारिकाणां कोिप्रदानस्य फलं लभेत | त्ेरयवटकासारमोद्‌काशेक वत्तिभिः | निषेदितैः कुरुननेे हेमदानस्य पुखभाक्‌॥ प्राग्योवसूद्रोमाघ न्यसेत्‌ क्ष्णाजिन adits मदेश्वरस्य युरतः इतिरेषः | राभिथिलाकतं aa कु्यादाटकमानतः। न्य नन्तु AAW दरि द्रप्रस्य मानतः ॥ शुभं दारुमयं We विस्तोरेमुपरि waa | GE मोदत्तनच्रानं न्यसेत्तवोपरि दिकं ॥ दिकं ठमामदेष्दराख्यः | fanaea a संवेष्य तं gate स्थिरं ततः । # दिपसिति पुस्तकान्तरं प्राठः ferefad | ates ona: ।] safe: १४३ तं fea! उत्तरण ततीन्यत्त्‌ सितवस््ाठतं न्यसेत्‌ I अन्यह्नितोयं fed) यरथोहारन्ततो मध्य चिशूलं परश wa: असिङःपालं खट्राङ्ग' WHT सोम महाघ्ष ॥ ेम।न्येतानि Tara हेमङ्गोमिथनं तधा । HART TMNT sit न्यसेत्‌ ततो हार गजमेष्व- राणां मध्य faye परशं धनुरारौनिन्यसेत्‌) गन्ध पुष्पातच्तत्धे दीपे बस्त fades: | लेडपवमेच्यभो्य ;फलेधिते च पूजयेत्‌ | शध्यापरिल्ा विप्राणं कोरि ेदचतुषटयं | दत्वा सव्वपुराणानि यतृफलं त तृफलं लभेत्‌ ॥ एकाख्च' यजवेकं सामेकच्चाप्ययार्वगौः। सछच्जसु चतुवद्‌' UAW लभेत्‌ ॥ प्रदस्तिणणेछत्य सुनेखट्र्डव ea Ta दशक्षत्व ईश्वर | विसुक्तिमाप्रोतिनिकाममानः सकाममाप्रोति यथा्धितं aay । विल्वपचसहखन्तु शिवसं कल्यसुचरन्‌ त्यम्बकं वा जपन्‌ मन्त इति बाहोमये wa! ॥ सर्व्व Alay यः खातः सव्वधन्नेषु सर्वदा | सवं त्रत छदाप्रीति यत्‌फलं तत्‌ फलं लभेत्‌ ॥ १४४ Saiz: | [त्रतखण्ड'१प्श्रध्याचः। aq दद्या च्छिवस्याघ्र गन्धपुष्पात्ततेः faa: | सवजमणि माणिक्य AATATHA: सद । रतदहेमरजतादिभाजन कांस्यतास्रमयभाजने तथा | ASAT AAA AA GA भाजने दिजललाटगंजलौ ॥ भिवाय शान्ताय समस्त हे तवै नमोस्त॒ते सव गसवेब दिने । अनन्तसर्वैश्बर सव दाथिने | नमोस्तु सर्वा चि तवामम्र तये मन्ते णानेन Zara कुरुचर विग्र | गोमूहेमादिकं द्वा यत्फलं लभते AAT ॥ मोच्तोपिसुलभस्तस्य टेव WAY A HAT | तघा AA महाराजे मह शायाघ FAH | नयेनिश्चागेषमशेषशवंरोः प्रजागर स्तेस्तवकौ त्त नानिभिः। भवैत्पुमांसो न नरकारादिकारणं SAW नाकार्यं फलं महात्मनां ॥ दिवा atfafa at al a ee च्षुघातत्‌ समागमः। छष्णजिनादिकं तावत्‌ aa WaT कल्पयेत्‌ ॥ सर्वयस्करयुक्ताञ्च कपिला दशप्रञ्च वा) हा तथैकां शभांसेनु' मन्तं रेव प्रकल्पयेत्‌ ॥ # यावत्ति्यचे समागम इति पुलकान्तपं पाठः। arg १ ८्अरध्यायः i] Sats १४५ प्रयतां मम faa: सनातनः HUAI HURST: | तोषितव्रतमद्धयाराजो भुविसुक्ति फलदोस्त मे सद्‌ा ततः प्रभात पुनराितोव्रतो दिजायदष्यादिधिद शिकाय। सुनोन्द्रकष्णाजिनपौटपुवंकः प्रदान मन्त कताच्नलिस्थितः । Hale Wat मासुप्रापते समुहरास्माद्धववारिधनतं सदाव्रताधिराजन ante aqua स्वासोति तार रणागतोद्यहं । इति शमोच्छमनमस्ति aa गुरुवरो यथोक्तभिदन्दत्‌ | ina ललयम्बिदधाति a गरास्ती agaifa षटीद्धव सन्निधि ॥ पञ्चगव्यन्ततः प्राण्य व्रती त्‌ ष्णौ HATTA | aa faaifa विच्छद प्राप्रोति परमं oe tt Vi उवाच । अत्रापि शूयते गस्य विश्वटरेवोदिजो्तमः | क्रौडाविनोदपरमं उमाया देवसंसद्‌ं | क ज © = भे कन रवितव्रह्माद्ये रेवा निःजतास्तन तेजसा | ( १८ ) हेमाद्रिः | [वितखण्ड'१प्अध्यायः । तभिभूतप्रभासराचभौता ब्रह्माणमाययुः } ब्रह्मोवाच । पुरात्रतं महाराजं चक्र देव पितामहः ¦ सु्लक्रियमाणन्त दशारे वोयमेत्तत | तत्यृसादात्‌ प्रभावोयं सदा ह्िपति विप्ररार्‌ i तिलोकात्‌ सलि ता सत्वस्य खव सललोकयूर्वकाः ) ष्टा AA मद्ाराजं भवड्धयीभ्यधिकः wa | यधा त्रत महाराज मत्तः कुरुत Saar 4 यस्त॒ सयं व्रतं चक्र सुद्रलोस्याः पितामहः | स मोच SAH सेभे सुलो न gaya: ॥ we Naga Tet विशकारित्वमाप्र यात्‌ | सलोकस्तथापि व्यामोहं वित्तशदस्य कारणात्‌ 5 स्कन्द्‌ ऽपि पितरं सम्भू लोभे wat fad व्रतं | seat प्रिया प्राप्रोतिवित्तशाटयस्य कारणात्‌। सुरराज्यमपि प्राप्तः णक्रोमुष्मादते खियं॥ भ्रष्टराज्यो भवेन्नुयो वित्तशादटेयक्लतसति । श्रौ पतित्वं हरिलंमे भानुलमे पर' शभ ॥ कत्वा Ad महाराजसुमाचापि पतिं fue | स्कन्द उवाच | TAA तमादाय प्रायव्वग्राश्वतीं सिय | दृष्टा Ad महाराजं व्रतं चक्रः सुरासुराः ॥ पउतियइद्मित्थयः खृणोतौत्तते व! व्रतखर्डं १ ८्अ्रध्यायः |) देमाद्धिः। चयित सकल पापस्तल्दणदा कभेति | सुरवरजनपूज्यः प्र रको यस्य पसो जगति कलषदहोनः सोपियोलेखकख ॥ इति सकन्दोपु णोक्तं मददाराज व्रतं | 000 कालि कस्या शिते परे ademi नराधिप | सोपवासः पञ्चगव्य faaaret जितेन्द्रियः | कपिलापास्त्‌ गोमूत्र RUA गोमयं तथा | भ्त तध नोस्तथान्तोर रक्तायाश्च ततो दधि॥ weal कवु राधा तमेकत मेलयेत्‌ । वरेदोक्तमन्व राजन्द्र कुभीदकसमन्वितं। ततः प्रभातसमये स्नात्वा aaa देवतां! त्राद्य णांस्तोषयित्वा a yatara वाग्यतः शचिः॥ खण ब्रह्मन्‌ Ade तत्‌ सव्वेाय प्रणाशनं | यच्च बाल्यं पिकीमार वादके चापि यत्‌छतं॥ ब्रह्य Haig वासेन तत्‌ पापं नश्यति क्षणात्‌ ॥ इति भविष्योत्तरोक्त Tw व्रतं SACRA नक्लाणो समान्ते मोयुगप्रदः। aud पदमाप्नोति यजन्देयम्बक aa | दति पद्मपुराणोक्त चेयस्नक aa । EEE eee eee eae | मादः | [aaa १८अधष्यायः। ईष्वरस्य चतुर्दश्यां waa समन्वितः | बहुपुत्री बदधनस्तथयास्यान्राचसश्यः bh मूलमन्खसज्ञाभिरङ्मन््ा्च कोत्तिताः | पूबवत्पद्च पचस्थः Hua तियौण्वरः ॥ गन्ध पुष्यो पदहारेश्च यथाशक्ति विधौयते) YAN A Wer a Balla तु फलप्रदा श्राज्यधारासमिद्िय दधिक्तौराच्रमाचिकेः। पूर्वाकफनलदो GA. छतः Wed न चेतसा ¦ एतद्चतं Sarat प्रतिषद्रतवदहडस्येयं ॥ इति श्रो भविष्यत्‌ पुराण्णक्तमौश्वर जतं । चेत्रशक्त चतुद श्यं यधावत्प.जयेच्छिवं | प्रासाद शोभां aaa सम्यक्‌ संमाजनाद्भि ॥ dara विधिवदवं चहौराद्येघरसादिभिः। AACA CHE मानु लेपयेत्‌ ॥ ततो दमनकेविख्; पदैर्म रवकः इद: | %आ्लिङ्गपीटपचन्त पूजय द्ूचिलेम्तग्रा ॥ नमे Say वा योफसान्यथसिद्धकं | अगरु मद्िषाद्य वा ध्वजं वा निर॑रेत्ततः। eee + Ba: श्रफुमेरिति पु्तकाकर्‌ qe: | + sifesdia wae दृति प्राठान्तरः, ह न ५ त्रतख्ण'१ टश्रष्यायः}] safe: | ९४८ नं मसु" We | श्ाल्िपिष्ठ vata: पच्चभिनवभिस्तथा । ® 6 > ४. कुय्थादाराचरिकं शम्भोः स्वणपात्र : + समसुज्चलः. | विचि va पूजा च an at महतौ शिषे। घष्पमरण्डलिकां fast स वितानोज्जल शभ ॥ महोत्सवेन विधिवहयं तयरवेणं च। वि विषेभच्यभोज्य श्च नञेद्यञ्चोपकल्प्येत्‌ ॥ सम्यक्‌ सम्मादनौया स्यात्‌ रथया पिनाकिनः, ~ णि > ॐ £ 3 0 = > प्रत्तणोयस्तथा रत्य वाद्ययन्त ख Waa: | प्रूजयच्छिवि भक्तांश्च विप्रानन्यांख भक्तितः | प्रोयतांभिव taal नक्तं wata च खयं ॥ वपर वषप्रकत्तेव्य' एतखतोत्वंमहत्‌ ! भिवभक्तस्तथा ae कीत्तियेयीविह्नहये | इति सकन्दपुराणोक्त' मदोत्यव ad | sary संप्रवच्छामि पावनं धमसुत्तमं। मोत्तद्ञ्च तधाक्तेणाटिहमगदमेवच। आदायकलश्रान्‌ गौरान्‌ शतं शतादइमेवच | तस्याप्यदेन्तदर्ड वा भूषय सख स ATA! | aha के Vaart हर ara warfetu: | Ha भूतायां शक्ता qaqe wt | + araura fifa एकान्तर ura: | १५० ् माद्भिः | (त्रतखर्ड १८अध्याय्‌; t समालभ्य न्यशेद्नयः सौवण" वा प्रपञ्चकं। सुरभीभिस्ततः पुष्पै रभ्यचचगुग्‌ गुलं देत्‌ ॥ नैवेय्यच्च पुनद त्त्वा वलिं वादी fafafaad ॥ वितानं दौपमादशे* वसरयुगमं ध्वजास्तघा | धूपो त्कतेपच्च AWA दा Tata सम्भवे ॥ प्रदत्तं ततः कुव्यांदण्डवद्धेरवस्य हि | faa चोदगग्रवा पिमे वाथ सवेतः॥ उपलिप्य शभे देशे सोद्‌ केर चयेत्ततः | चन्दनेनाचतेः पुष्प : स्थानं पाठांखापयेद धः भ्रुतास्वसुस्‌डो रलान्यपि तेषु निवेदयेत्‌ | सुसुगन्धा चते: पूर्णान्‌ हिर रयां घे aaa: | टोपान्‌ प्रज्ालयेत्तत्र fafa हद्‌ शङ्कर | ततस्तस्योपरिटाच जागर परिकल्पयेत्‌ | Wa: Galea lal Baad Wailea tl fada देवदेवाय weawefe स्मरन्‌ । गत्वा we समभ्यय पञ्च गव्यः पित्ततः | afafa ata: साद तुष्टो wala aaa: | ततस्तान्दत्तयिल्ा a सव्व वित्तानुसारतः) प्रणम्य च पुनभुक्ता्षमाप्य च विसजंयेत्‌ | विधिनानेन पशाब्टान्दाद्‌भौपवसन्ररः | देवभोगान्‌ सुभ क्ावं परन्धाम प्रयाति a: t कर्गत्यानिधन यस्त॒ TAR पुरःसर | # श्मदसितिपुख्यकान्तरा प्राठः। (| रतखर्ड'१द्अध्यायः 1 BATE: | १५१ प्राप्य ज्ञान" प्रयाणान्ते गमिष्यत्यत्तयं पट्‌ ॥ इति कालिका पुराणोक्त चतुद शेजागरणएत्रतं । 000 व्यास उवाच | उपोषितशतुद॑श्यां छष्णपत्ते समाहितः । यमाय धमंराजाय खत्तवचान्तकाय च | वेवस्वताय कालाय सवंसूतक्याय च प्रलयं कं तिलसंयुक्तान्‌ दव्याव्सप्तोदकाच्नलोन्‌ ॥ खात्वा नयाच् YAS मुच्यते AIGA: | इति कमपुराणोक्त यमत्रतं या HH मासस्य AWIA WAST | तस्यां iat यमं तप्ये न पश्यन्ति यमं कचित्‌ ॥ faze तिलान्‌ कष्णान्दोपन्तेलसम न्वितं | ट्वा दनं दनि शान्ता fatter च सवतः ॥ aqua तिलः कष्णे BIC पमो भेत्‌ | TA धर्मराजाय SAI चान्तकाथ च ॥ वैरसखताय कालाय दत्ताय मनवे AAT | कष्णाय कष्णगुप्ाय प्र तप्रेताधिपायच | चित्राय चित्रगुप्ताय दापये जलाच्ञसिं | afew ततः पाच प्रयता तिलेदिजः ॥ festa दव्ादयो व्यास न शोचन्मरणग्प्रति, इति स्कन्दमहा कालखणडोक्त यमव्रतं | 1300 PL ll १५९ Sate: | [तरतखर्ड १ ८शरष्याब; t AAS च उवाच | शक्त पत्तादथारभ्य फ़रल्‌गुनस्य नराधिप) asada, चतुदश्यां सोपवासो महेश्वरं | गन्धमाल्य नमस्कार दौपधूपान्न संपदा । त्रतान्त गां तथा ear वद्िष्टोमफलं लभेत्‌ | एतदेव Ad हाला WRIA तु वत्सरं | पो णड रोकमवाप्रोति कुलसुदरति aa ॥ चतुदंभौो दयच्ेततृक्षल्ला संवत्सर नरः | मासि मासि तथा भक्तया सवान्‌ काभानवभ्रते ॥ HWY कामान्महेश्वरस्य तताप्यकालं सुचिर च्चराजन्‌ | सा युज्यमायाति मद्ेश्वरस्य सवश्वर स्या प्रतिमस्यतस्य । इति विष्णधमींक्त' मदेश्चरव्रतं | a 000( 000 माकर्डे य उवाच t WRI चतुरष्यः ज्येष्टादारभ्य यादव) वागु" dane वं सोपवासो जितेन्द्रियः | गन्धमाल्यनमस्कारटोपधुपात्रसम्पदा सम्बत्सरान्त दातव्य वस्युगम' द्विजातये ॥ Ral व्रत वस्रमेतदिष्टमासाद्य लोक सुविरं मनुष्यः। सुखानि भक्ता सु्िर asta मानुष्यमासाद्यभवत्पुरोगः ॥ इति विष्णधर्मोक्त aaa गिम case copa: 1] Saez | १५२ € = ATAU य उवाच | Bara wei विरूपाचन्तु wai | सौपमासादथारभ्य यावत्‌ WAAL भवेत्‌ ॥ गन्ध मास्य नमस्कार धप दोपान्र सम्प्रा | ततस्र डिजातयेद्दयात्‌ ब्रतान्तं तुं परन्तप । तत्‌स्ब तदुपकरणं महाच्छादिक'॥ कत्वा Ad वत्सरमेतदरिष्ट भयंन चाप्रोति स wade: | कामानवाप्नोति भवत्यरोगो Hay राजन्न तस्य farsa ॥ इति विष्ण धग्रौत्तरोक्त' feeora ad | माकग्डय उवाच । यच कचन AMY यच AW चतुदभौ। सनकभ्यदिते काले देवं संपूजयेदयम | धूस््रवण fasqy काल्पायच्च दद्द) Ba MII CAT TATRA AAT ॥ योद्धार Taal Tass ALATA: | नमो घमायेति तया wines विधौयते ॥ कशरम्भोजयेदिप्रान्‌ AAA नरोत्तमं | द्व्याद्रतान्ते विप्राय तयेवच पयख्िनों ॥ ( २० ) १५४ Salta: | [्रतखण्ड'१त८्अध्यायः। छत्वा त्रत aart Hafez न याति राजन्‌ ATH AAT: | पापकच्तवं Wa सर याति नाक मानुष्यमासादयय स CAAT स्यात्‌ इति विष्ण धर्ममोत्तरोक्त यमव्रतं । नारौ चोपवसेदब्द GUAR AEA ! व्षौन्ते प्रतिमां wat गालिपिष्टमयो wut ॥ गौ तानुलेषने मौल्ये; पौ तवस्ेस्तु पूजयेत्‌ | पूवोक्मखिलं कछला शिवाय विनिवेदयेत्‌ ॥ पूर्वोक्तमित्यदिसा aaa ynaatt s सपभूमेखहायानेम्तप्तचामोकरप्रभः॥ युगकाटिश्रतं मागर रुद्र्तीके Alaa | रिवादिसव्वेलोकेषु भो गान्‌भुक्ता यथेश्ितान्‌ | क्रमादागत्य लोकेऽस्मिन्‌ राजानं परतिमाप्रुयात्‌ । दति fai HMA MAT । AAU रात्तसानाञ्च चतुदेष्याञ् TAs | Hal चेममवाध्रोति क्रियासाफल्यमे वच | इति विष्ण धमात्तरोक्तं केमन्रतं | 00 0 ~~~ ASS’ ogg: i] Wass: | पूजयित्वा vara’ तदावेखवणं ay! | वदहुविन्तमवाप्रोति फलं संवत्सर fea | श ङनपद्मी densa निधाने यत्तपू जिते । मणिभद्रं तघामभ्यच 7 धनमाप्रोल्यसंशयं ॥ इति विष्ण धर्मोत्तरोक्तं धनावापि व्रतं ¦ 000 माघमासे AqE i awaa fanaa: | तथा Manag राजन्‌ Aas च पूजयेत्‌ | सव्व कामसम्ूहस्य यन्नस्य फ़लमयुते | श्रां AA तथा राजन्‌ सव्वेकामानवाप्रयात्‌ ॥ इति विष्णधर्मोत्तिरोक्तं सवकाम त्तं | 000 AWIA चतुद्‌ श्यां मदहाकालमघाच् aq | तस्मात्काममवाप्रोति ade नाच ang 1 —s ‘ i व्रत द्रति विष्णघमों त्तरोक्त कामाकाश्चिव्रतं : 000 @ (000८ ~“ तथा नुचतुगन्धव्वं पञ्चकं पजयेन्नरः ¦ ¢) * £ सवच जयमाप्नोति ata कापा विचारणा | 7 # , इति विष्ण धमो रोद्ध जयव्रतं । ट्‌वानां मानवानां वा तत्पद्दाघं AAT परे) तेषां संपूजनं कला चतुदश्चां सुखौ भवेत्‌ ॥ त्त ™~ 4 + इति विष्ण waaay Baa | १५६ हेमाद्रिः | [त्रतखर्ड १८अरध्यायः। यम्त॒ कष्ण चतुद श्यां स्नात्वा देवं पिनाकिनं । आराधयेद्िजसुखे ततः सस्ति पुनभवेत्‌ ॥ इति कूम॑पुराणोक्तं छष्णचतुदंशो व्रतं! 000 HAAS WAS al पजयेदिन्द्शेखर । wal विल्वदल मनो हरनाम जपति ॥ षे © ~ रे + $ सव्वपःपविनिग्प at याति शंवं पर पद्‌ । oo < ™ + त्‌ ६. गो + दति सीरपुराणोक्तं छष्णचत्‌ह्‌ शोत्रतं | 000 HUI Wea यत्त गुग्गुलकं द्‌डेत्‌ | स याति परमं स्थानं पच्च टवःपिनाकष्टक्‌ ॥ निः णिक्तं 0 गो . इति सीरपुराणोक्ता कछष्णचत्‌द शो व्रतं | 00 (००---- भविष्योत्तरात्‌ चतुट्‌ श्यां निराहारः समभ्यव्यं तिलो चनं | यष्यघु पादिनेकेद्ये रातौ जागरणेन च ॥ पञ्चराव्य निशि प्राश्य wagal विमत्सरः! भ्ठामादानघवा सुक्तातलक्षारविदजिलः। होमः नुष्फतिखंः कायः शतमष्टोत्तरं नृप | रनयं हव्यवाहाय यमायाद्धिरके नमः। ततः प्रभाते विमले aia पञ्चाम; fas | पजयिला विधानेन हाम Gar तदैव च ॥ ब्रतखर्ड' १ ८अ्रध्यायः।] PATH sfag मन्वमेतच्च wat भिरसि arate ¦ नमस््िम्‌ त्तये तुभ्य नमःसू्ीग्निरूपिणे ॥ पुतान्‌ यच्छ सुखं यच्छ मोक्त यच्छ AAA नोराजन ततः कत्वा diafaar हिजोत्तमान्‌ ॥ wfaal दल्तिणा Zu पात्‌ Yala वाग्यतः | एवं संवत्सरस्यान्तं Ral सव्वं ययोदितं । सौवण कारयेदेवं fata’ शूलपाणिनं। वषस्कन्धगत dea सितबस््रयुगान्वित्‌ ॥ चन्दने नानुलिष्ाङ् शितपान्योपशोभितं। waar asia ब्राह्मणाय निदेदयेत्‌ ॥ सव्वकालिकमानन्ते कथितं व्रतसुत्तमं | सवत्र warfare aaa तु सदा भषेत्‌ ॥ चों व्रतेऽस्मिन्‌ ge यत्तत्तवमिन्‌ धनाधिप | काले गते उद्तिधे alae मरणं भवेत्‌ ॥ मृतखाद्व् cea दिव्यव्यालद्मरभ््रूषितः। द्व्यनारोगण्ते विमानवरमास्ितः ॥ टेवटेवैः समेतोऽसौ MISA stage चिरं | दह AMA कालान्ते जातो कणं Fa भवेत्‌ ॥ दानयज्नः कलौ दत्तो ब्राह्मणे ब्रह्मणः प्रियः खोमानसभ्निकतोघोमान्‌ पुत्रपौतममन्वितः | पल्लोगणसमायुक्तशिर भद्राणि पश्यति। ये saat भुवि सुरोरग मानवानां । कामात्रनामय गुरेन युताः Wea waltz: | [व्रतखेर्ड १८अ्रध्याय;) तानाप्र वन्ति शिवभ्रूततिधौ सुरेशं । संपूजयति सुमतितो विधिदन्मनुष्याः ॥ दति wae) aa nnn OO कण Sa | Bq नक्ताप्रवासस्य विधानं aw aca | येन विज्ञान माचेणनरो मोच्मवाप्रयात्‌। येषु तेषु च मासेषु WRIA चतुद | dat भोजयित्वातु प्रारभेत्‌ Baal ad ॥ मासि मासि भवन्तिडे अषटमोच चतुदमौ, गिवाचनरतो भूत्वा शिवध्यानेकमानसः ॥ वसुधां भाजनं कुला भुच्ोयान्नतभोजन | उपवासात्र HA भेच्यात्यरमयाचितं। Aaa परं नक्तं तस्मान्रक्रेन भोजयेत्‌ | डेव ख भुक्त Tae awe सुनिभिस्तघा | autre च faefas सन्ध्यायां गुह्धकादिभिः। सववेलामतिक्रम्य AMAIA सदा भवेत्‌ ॥ हविच्यभोजन सानं सत्यमादारलाघवं। अगनिकाय्यमधःशखां नक्तभोजो सदा भवेत्‌| एवं संवत्सरस्यान्ते व्रतं पूण € ~ _ — Wen पृ कुञ्ापार्स्यप्य दापयेषु शोभनं 1 कपिला पञ्चगव्येन waa रमयेशिव । व्रतखर्ड' १ ८अध्याधः 1] ware t १५ फलपएुष्मयवन्तौरदधिदभाङ्रास्तिलाः ॥ चन्दनं तख लास्तो यमष्य मष्टा ङ्गसुचते | शिरसा धारयित्या तु जानुगल्ला महोतलले॥ महादेवाय दातव्य Way’ यधा Ha | AS . नि ry ¢ भक्तोद्नंवलतिं क्रत्वा प्रणम्य परमेश्वरो | धेनु वा efaut cared वापि scart | सख्लियाय दरिद्राय कल्यत्रतविदाय च॥ at ददाति शिवे भक्तया तस्य yaa खण । विमानमकप्रतिमं हसयुक्तमलं कतं | ~ ने =~ ~, + सुरूटोष्सरसङ्)तव्याति सद्रालये सुखं | 8 ~~ 9 स्थित्वा tem भवनं वषकोटि शतत्रयं ॥ इहलोकेतु यच्छष्टय्रामलन्ेष्वरो भेत्‌, मो ^) त यख्टमोषु च शिवासु चतुद्‌णोपु॥ नक्त समाचरति शस्व विधान ez | सगाङ्गना कररवाङ्लितं विमान मास्द्ययाति waa भिवालयच्च | इति ओ भविष्योत्तरे चत्‌द श्यष्टमीनक्तव्रत' । afa खो महाराजाधिराज ओ महटेवोय समस्त करण श्रोश्वरसकलविद्याविशारद्‌गोहेमाद्ि विरचितं चतव्वर्गचिन्तामणौ ATT चतुद गोव्रतानि | HAAS USA: | es el 00८८ 00 aq पीखमासोव्रतानि विविधविवुधचठन्दानन्दसन्दोहकन्दी यदि गशित गुणौघः सोऽद्य safe गुरि, t अभिमतफलसम्पत्सिडिये ब॒द्धिभाजां व्रतनिवदभिदानो पौणखमासीं त्रवौमि । AW उवाच) पौणेमासो महाराज सोमस्य दयिता fafa: | पुणमासो भवेद्यस्यां पूणमासो ततः स्मता॥ तस्यांतु खोतसि aia सन्तप्य पदेवताः। ~~ + = $ . aifag मण्डले aad aua:ufsa faa ॥ ~ ay AACR ~ ^~ ^~ पृजर्यत्‌ ASHE SG aq घतपाचितेः | a © त्व ~ aaa erat: पूजविता मापयेत्‌ ॥ ~ a ५ + =} शाकाहार सुन्यत्रेनक्त Vala AAT: | सुनोनामन्र सुन्यन्न' नोवारादि a गगनासंवमारिक्य चन्द्र TAIT | वसन्तवान्धवविधो गौतांगो खस्तिनःक्रत्‌ः | प्ते पन्ने पञ्चदश्यां विधिरेव प्रको त्तिंतः। प ` ~\ नो ^ Sarasta a: क्थिच्छरइावान्व व्रतो wag | मतखण्ड'१९ अध्यायः i] Safe: t तच्राप्यष विधिः ata सव्वेकामफलप्रदः | भ्रमावस्या तिधिरिय पितुणामत्तया भवेत्‌ | अमावास्ेय पौणमासो तद्रतं | अमावास्या महाराज गयेन समुपोषिता! तेनात्तयवटोदन्तः पिलम्बम्तौयसुत्तमं i य: कथित्‌ कुस्ते afaq पिट पिण्डोदकक्रिया | सस्िन्रद्यवटे | स तारथत्ति राजेन्द्र पुरुषानेकविं शति" ॥ भवेयुरक्तयास्तस्य लोकाः पितु निषेविताः | यदातु इद लोकान्तं तस्य चागमन भवेत्‌ 1 ब्राह्मणः fiauaa सव्बविद्याविशरद्‌ः। पञ्चजन्मानि राजेन्द्र Vana समन्वितः | एवं WARSI हेमं कत्वा सुशोभनं, सोमं नक्तचसदितं सवांवयवसंयुतं। सप्तधान्यसमायुक्त रोप्यपाचीपरि Taq | सव्वीभरण agai at च zara पयखिर्नौ। उपदेशञ्च यो द द्यात्तस्मिन्‌ TAAL नरः । संपृज्य वस्ताभरणं मन्तं णाध्य ` निषैद्येत्‌ । नवो नवोसि मासान्ते जायमानः पुनः पुनः | चन्द्र सान्द्रसुधासौघगडहाणाष्य ` नमोस्त ते ॥ दवययादिजन्द्रसुख्याय मक्वा परमया युतः | ara मारे विधिरथं व्रतस्यास्य नराधिप 1 येन शक्रोति वा कत्त waa निरन्तर'॥ + ( Rt) १९२ दमाद्रिः | [त्रतखर्ड १८ अध्यायः 4 एकापि समुपोष्येव ददयादु यापनं सुधीः | व्रतो दयापनयीहैत्तिम्‌ख्यः कल्पः त्रताहत्तिरप्यनाहत्तिर्गोँण्‌ः | ह ~, 0 0 . यय तत्‌ कुरुते पाध पौणमासौव्रतं AT: | सव्व पापविनिमूक्तन्द्रवदिवि राजते । पतरपोत्तधनोपेतो गजदाता प्रियस्बदः। सन्ततिं विपुलाम््ाप्य प्रयागे मरण भवेत्‌ ॥ ततश्ेवाच्तयान्‌ कामानाप्राति सुरसेवितान्‌। सेव्यमानः स गन्धव्वे स्तूयमानः सुरासुर; ॥ आस्त anna दिव्यं दिव्यभोगेरलङ्कतः। o ~ Py mag ata गितपञ्द्‌शषुसोमं AUG ये पिटगखाच््रलपिर्डदानः। तेषां weifa धनघान्यसुतादिसम्मत्‌ धि ~ पूणानि पाथिव भवन्ति fast विधानात्‌ | इति भविष्योत्तरोक्तं जयपी णेमा सीद्रतं | ee गुलस्त्य सुवाच। अभोकपूणि माभेतां Toe गदतो Aa उपोष्यास्यां नरः शोकं argifa wa aarfa ary फाल्‌गुनामलपन्नस्य पौ णंमास्यां ठृपोत्तम । सन्नलेन नरः स्नात्वा sul शिरसिवे शरद | सतूप्राशन ततः कुचा Hat च Ufwwy wert Qual: समभ्यचं भूधरं नाम नामतः । TARGUS १८ अध्यायः || eartz: | awit” तधा देवौमशोकेति च कौ रयेत्‌ | यथा विशोका रशि; Haga जनादन | तथा मां सव्व शोकेभ्यो मोचयागेषधारिणि॥ यथा समस्तम्रतानामाघारत्व व्यवसिता) यथा बिगोक्ं कुर्‌ मां सकलेच्छाविभ्रूतिभिः॥ waar यथा विष्णो; are प्राप्तासि. मेदिनिः। तथा मनःखच्छतां मे कुरुख भ्रूतधारिणि॥ एवं Wal समभ्यच ॐ चन्द्रायाष्य निवेदयेत्‌ । उपाषितव्यं नकं वा dias’ तेलवजितं | ATA प्रकारेण चत्वारः फारगुनाद्थः। उपोष्या AU मासाः प्रथमं पारणं स्मृत ॥ अआषाटादिषु मासेषु दहत्‌ Gal ख द्‌ास्वना। तधैव प्राशनं पजा तह दिन्दोस्तथादणं ॥ चतुष्वन्येषु वे aia तथा वे कात्तिकादिषु। पारणतितयच्च व चतुमा सिकसु चते ॥ विशेषपरूजादा नख तथा जागरण fafa | विशेषेण च aa पारणे पारणे कत । प्रथमं धररौनामस्मतं मासचतुष्टयं । हितोये मेदिनोनाम cata च aque | पारणे पारणे राजन्‌ वस्वयुग्मेन पुजयेत्‌ | तयेव qiut sat छतसखरानेन AW | वस्ताभावे च सूत्रेण पूजवेद्रणौन्तया। BAA तश्रा चोरं शस्त वा सलिलं हरेः १६४ माद्भिः | [ततखर्ड१८ अध्यायः एवं सवत्सरस्यन्ते गो; सवत्सा दिजातये t प्रकल्पयधरणो-टेवो-वस््रालद्ारसयुता।॥ पातालसंस्या Sar चीखेमेतन्महावतं | UTI केणवप्रोतौो ततः प्राप्ता समा गतिः ॥ टेन चोक्ता धरणो वराहवपुषा पुरा) उपवासत्रतपरा समुह,त्य रसातलात्‌ ॥ मरते नानेन कल्याणि प्रणतो थः करिष्यति | व्रतमेतत्‌समाखिव्य acy यथाविधि। सव्वे बाधाविनिमक्तो CUA ATAU | fata WaNnBIUIITa स्यात्न aya: # यथा त्वमेव aga dara faaa ae | तथास ata लोके सुख nrarfa मानवः vs एवभेतन्महापुख' सव्वं शान्तिप्रदानकं | विशोकाख्य' अतवरं तत्कुरुष्व महाव्रतं tt इति विष्ण धर्मोत्तरोक्तमशोकपूणिभाव्रतं ¦ 000 GAM उवाच । पञ्चदश्यां HUA फार्गुनस नरोत्तम | पाषर्डपतितां उव तय वान््यावसायिनः ॥ नास्तिकान्‌ भिन्रहत्तांख पापिनश्चापि areata | नारायणे गतमनाः पुरुषो नियतिद्दियः। तिष्ठन्‌ त्र,वन्‌ प्रबलं क्षतेवापि जनादनं। त्रतखर्ड'१९ अध्यायः] Sari: । १६१ । अक ० "+, . hl i i aa कौ त्तेथे ततक्रियाकाले सप्तकः पुनः पुनः । aA समन्वितं टेवमचयेत जनाद्‌ नं | सम््याव्युपरमे चन्द्रसखररूपं हरिमौभ्वर | राचिच्च wat सचित्य aan ण चिन्तयेत्‌ ॥ श्रोनिशा चन्द्ररूपा त्वं वासुदटेवजगत्पते | मनोभिलषितं देव पूरयस नमोनमः ॥ मन्ते णानेन ea ठेवदेवस्य भक्तितः! नक्तं wala मौनेन तेलक्तारषिवजितं ॥ तथेव TING as च मुनिसत्तम, अयच यथाप्रोक्तं मासि मासि च afean निष्पादितं vaca पारणं दाल्‌भाभक्तितः * feala aa वच्यामि aud निवोध ao आषाटे वरे मासि मासि भाद्रपदे ag | तयथवाखयुजेऽभ्यच acy खिया सद Il सम्यकच्छन्द्रमसन्दत्वा Yaa यथाविधि। दितौयमेतदाख्यातं ठतौयं पारणं खण | कार्तिकादिषु मासेषु तयेवाभ्यच्ये केशवं ॥ भूत्या समन्वितं दद्याच्छश्ाहायाहणं निथि। Yala च यथाख्यातं टतोयमपि पारणं | प्रतिपूज्य ततोदयात्‌ ब्राह्मरेभ्या्चय efaai | प्रतिमासं च वच्यामि प्राशन काथश्दये | चतुरः प्रथम मासान्‌ पञ्चगव्यसुटादतं | # द्ष्डव्भक्तिता दति पुखकानर्‌ पारः । १९६ earfz: | [त्रतखर्ड cca ep कुभोरकं तथेवान्यदुक्त' मासचतुष्टयं ॥ सूयांशतत' तदच जलं मासचतुषटय | गोतवाद्यादिकं रातो AAT HUAI? शभः ॥ कारयेदेवदेवस्य पारणे पारणे गते, जनाद्रनं सलद्मोकमर्खयेत्‌ प्रथमं तया ॥ सोकं Tet तदत्ततौयं भूतिकेशवं । एवं संपूज्य विधिवत्‌ सपलोकं जनार्दनं ॥ नाप्रोतोष्टवियो गाति पुमान्रायथपिवा gas यावद तदहिधानेन पारखान्यच्वेति प्रभुं ॥ तावन्ति जन्मान्यसुख नाष्रोतौषट वियोगजं i देवस्य च प्रसादेन मरणात्‌प्राक्खतेः Ala । कुले सतां स्फौतधनें भोगान्‌ yea पथेख्ितान्‌ ॥ इति विष्ण धर्मोत्तरोक्तलच्छ्ोनारायणं aa 071(@0-~-----~ दारभ्य उवाच | शो तमिच्चछाम्यहं तात यममार्गं सुदुर्गमं | यथा सुखेन संयान्ति मानवा Meza F पुलस्त्य उवाच) प्रतिमासन्तु नामानि पञ्चदश्यां जगत्पतेः | कतोपवासः Yala, पूजयिता जगद्नर्‌' ॥ उद्ारयत्ररोयाति सुसुखेनेव गच्छति | Ee a Bee £ a ~ क्रतखर्ड'१९अ्रच्यायः।] देमाद्धिः २६७ र प ततो विप्राय वे careegai wefam ॥ SUATAIMY GA काननमेव J | यदा मासगतं नाम प्रीयतामिति ata येत्‌ | AAG AAMT F पौषे नारायणं तथा । aad araara q गोविन्दमपि फारगुन ॥ चेत विष्णु ame कोत्तयेमधस्दनं। wus तिविक्रमं 2a तथाषादटे च वामनं॥ खोधरं खावखे मासि हषोकशं ततः परं । नाम भाद्रपदे तदत्‌ ज्ञायत पुखकाङ्िभिः ॥ तददाष्वयुज मासि पद्चनाभेति ata येत्‌! दामोदरं कात्तिके च सव्वान्तरति द्गति ॥ णवं मासक्रमेणेव afe दातुं न naa | | तद्धा संवत्सरस्यान्ते SAAT समागत ॥ विशेषश्च कथित इत्यनेन विशेषादन्यच पुबत्रतसाम्ब' गम्यते | wad सुखमाप्रोति मरणे स्मरणं हरेः | याम्यं AT समं प्राप्य खगलोके महौयते॥ ततोमानुष्यता प्राप्य निरातन्नोगतज्वरः | धनघान्यवति Mala कुले मदति जायते! इति विष्ण धर्मोत्तरोक्त नरकपणिमा व्रतं | ~ (९.0 aa उवाच । प्र $ £ वेशाख्यां पोणमास्यान्तु Be: कमलयोनिना | १९६९८ माद्रः! [त्रतखष्ड१०अरध्यायः। तिलाः कष्णाश्च गोराख ठप्तये सव्वंदेहिनां ॥ क क ‘ तस्मात्‌ काय faa: स्रानंतच्रागम्नो Tea तिलान्‌ ॥ निवेद तव्य. विधिवत्‌ तिलपाच तु विष्णवे) तिलतेलेन Stora Zar Saw Ua F | कमंपुराणेतु विशेषः | वेशाखपूणमास्यान्तु ब्राद्यणान्‌ पच्च सप्त वा। उपोष्य विधिना शान्ताच्छ चोन्‌ प्रयतमानसः ॥ afer पुराण | मोदके तिले; ae कत्त व्य' faeaca | fast: समघुभि युक्त बाद्मणेभ्यो जनान ॥ ‰ © घु EN | दातव्या eau चापि तिलेमधुयुतरपि! (५ Aad जपे पौराणं पारंपय्याक्रमागतं। | ~, न र ~ ai तिलावं सोमद्‌ वत्याः सुरख्ष्टास्त Wag | £ “, + WIN तन्वाश्चतमां tata faa: ॥ eqieda aaa ण तिलपाचाणि तच च! ~ ९ सप्भ्यस्त्वय पञ्चभ्यो व्राह्मखभ्यस्त की त्तयेत्‌ | प्रोयतां घ्राजख Sararay aarfa ar i ‘welav Aa । # म. =a 0 OA एव क्रत स भुक्तःस्यात्पापजन्मगशताज्नितेः। ४ यो इत्यादि पुराणोक्तो antat fafa: i युधिषिर vara | सम्बत्सरेऽपि at काथितिथयः yeaa: | ॥ | a = a Pity Lye = EN a Ea aaa ™ वरैतखगड' ema: |] SATS: | १६९ Cal WA यदूखरेष्ठस्रानें दाने महाफएलाः।॥ AW उवाच | वेशासौ कात्तिकौ माघी faaatsata पूजिताः | aia दान fatale ननखः TWAT ॥ MAMA तदा शस्त दानं वित्तानुसारतः, वैशाख्यां पार्डवर्यष्ठ TBI Visa मता ॥ aifaaat पुष्करं 2S माध्यां वाराणसौ मता। खाननीदकदानेन तारयेदखिलान्‌ पितुन्‌ | gua खङ्जसेः yara fecara: समन्वितान्‌ | वैशाख्यां AAT द्वा न शोचति कछताकते । मधुरान्ररसेः पूं भाजनं AAR TS | aefa धनधान्यानि भक्तया परमया Ta: | गोभूदहिरखछ वासांसि विप्राय बिधिवन्रप। माध्यां खानं तथा सम्बक्‌ सप्ये पिटटेवताः ॥ तिलपाज्राणि देयानि तिलाः सपललीदनाः ।. MIM सदायनमन्तेख TAA WIA | aaafaacaifa मोचको पापमो चकः ४ उपानद्टानमत व CHA तु! यदा aa a खानं दान वित्तानुसारतः) काले कालोडवं सव्वं शस्यते पाण्डनन्दन | कात्तिकयां gaman विवाद्धं पुणलक्षणं । कुयात्‌ कुरूकुलखे छ इरे नोँराजनं तया | गञाघरथदानानि छतधेन्नादिकानि च। ( २२ ) दमाद्रिः | [aaaweeaarats प्रदेयानि हिजातिभ्वस्तास्ताः संस्मृत्य देवताः । फ़लानि यानि वियन्ते सुगन्धान्यगद्‌ानि च। कड्गोलकफस जत्या लवङ्कद्लोफल । खज्‌ र नारिकषलच्च कदलोफलमेव च ॥ दाडिमं मातुलिङ्गच्च ककोंट चप्ुषन्तथा। उ न्ता कडग रवेल्लच्च चिदा कषमार्डमेव च ५ प्रलानामप्रदानेन येषान्तु तिवो गताः । ते व्याधिता दरिद्राश्च जायन्त भूवि मानवाः ॥ न Gat ब्राह्मणानां दानमच प्रशस्यते | भगिनौ भागनेथानां मातुलानां पिटष्वसुः ॥ दरिद्राणा बन्ध.नां दानं कोटिगुणोत्तर' । faa’ कुलोनश्वापन्नो बन्धृदारद्रदुःखिताः ५ ्रणयाभ्यागतोदूरात्सोऽतिधिः सगसंक्रमः। वनं uwifad रामे सशोते सहलच्छखे | मातामह कुलादेल्य विश्ुद्देनान्तसयत्मना | सपथे: खादितानेकैः कौ शल्या भरतेन वे ॥ यदान प्रत्यय याति कदाचित्‌ कोशलाल्रजा। तद्धा विश्वभावन शपथान्‌ खाविता पुनः ॥ वेश्ाखो कार्तिको माघौ तिथयोऽमरपू जिताः । अप्रदानवतो यान्तु यस्यार्योनुमते गतः ॥ एतत्‌ JAI तु RITA स्सा प्रत्ययं गता | अङ्मानोय भरतं सान्तयामास दुःखितं | एतत्तिथोनां मादाममाख्यातं बहुविस्तरं | नवखण्ड" १९ अध्यायः] SATS: । १७१ wa सप्र्च्यामि तव भारतसत्तम | aura कार्तिके ae सहिता aa | ® € या afwat भवति पृणशशाड्चिद्धा॥ तस्य जलात्रकरकान्‌ वरेमातपचं। SUI प्रयाति पुरुषः YaRa Wes | Um =~ । 7 इति भविष्योत्तरोक्तो वेशखो कार्तिकी माधो विधिः| 00 Gamal उवाच ततोरतान्तं भगवान्‌ पिनाकी तस्य गुद्ायामनुमोद्य yw ¦ = ॐ र + देवश्च सबरनुगम्यमानो बभूव कामेन विदह्रचारे॥ तस्या मनुष्यः सुचिर प्रमत्तो नभस्य मासस्यतु पौणमास्यां | भाखादितोयः सहसा aus yafeatel aweta कृत्वा ॥ गच्छेत्ततः सव्वसर्द्वियुको होमैः wares लिनाच रुदर" | = =} श लेन्द्रकन्यागजवक्तनन्दं सद्वावशक्तया प्यघवाच्च यिता संपूज्य विप्रानघ देव पूर्वान्‌ कछ तोपवासोजितरोष दोषः ततः सहायानपि भाजयिला १.२ माद्रः | [त्रतखर्ड १९ अध्यायः) भायाश्च पात्‌ BINA USM | aaa भायाम मोपयिला प्रदचिणोकत्य गुहां सरुद्यं , THE, गच्छेत्परिपेकामः aa, WES: HAN HAT | aaa दिव्यारूबघनन्दिनौख | भाया ततः खावणयोः प्रयुक्तां । aia fafed भोजये च TINY मायामपि पवकम tt ततो We सवंसम्हिकामः सन्तप्म भायां प्रयतो विधाय) ? उमां fad नन्दिनं ara frat ततो भवेत्‌ युत्रकतोच वन्धा १ प्रादटेणमाचामघवा शिवस्य fecal usmataraat ar} चिगुलखदट क्गध राम्बर ड चिल्लोचनां जटिलां we safe कलवा कतीँ तामभिपृज्य पात्‌ gam ast तु निधाय aa | प्रस्य न दुरधस्य ततोभिषरक द्वा च तत्‌पाययत्प॒चकामां ॥ इति पद्मपुराणेक्त' yaad t व्रतखर्ड' १८ अध्यायः] इमादिः। १७३ ज्ये मासि सिते va पौणमास्यां यतव्रतः) स्थापयेदव्रणं aa शिततर्ड़.लपुरितं ॥ नानाफलयुल तददिक्ुद शडसमन्वितं | शितवसरयु गच्छत्र सित चन्दन चचिितं ॥ नाना भव्य समोपेतं सहिरण्यष्च शक्तितः । arvana गुडोपेतं तस्योपरि निषेदयेत्‌ | तख्मादुपरि ब्रह्माणं सौवण ` पद्मकोदरे ॥ कुात्‌केरयोपेतां सावित्रीं तस्य वामतः*। गन्धधूपं ततो द्‌दाङ्गौतवादच्च कारयेत्‌ | तदभावे कथां कुयायघा प्राह पितामहः | aware च प्रतिमां कला गुडमर्यों Gut ॥ शक्र पुष्पान्तततिलेरच्च येत्यद्यसम्भवं | बरह्मणे पादौ संपूज्य AF सोभाग्यदाय च| विरिदच्चयोस्युग्मद्य मस्मघायेति दे कटिं । स्वच्छोद्‌रायेवयुदटरमनङ्गयेल्य रोदरः॥ मखं पट्यमुखायेति are वे वैदपाणये! नमः Walaa मौलिमच येचापि aes ॥ ततः प्रभाते तं कुम्भ ब्राह्मणाय निबेद्येत्‌ | ब्राद्यणान्‌ Wise खयं तु लवणम्िना ॥ शत्या तु दत्तिणान्द्द्यादिमं मतसुदादरेत्‌। प्रोयतामत भगवान्‌ सव्व लोकपितामदः ॥ हदये सव्वलोकानां यस्त्वानन्दो विधोयते । # मामत दति GARTH पाठः| १७४ Salle: t [त्रतखण्डं १८अध्बायः। अनेन विधिना सव्व मासि मासि समाचरेत्‌ # उपवासो पौणमास्यामव्ययं aw पूजयेत्‌ | फलमेकन्तु संप्राश्य Waal भूतले खपेत्‌ ॥ aa sateen मासि छतधनुसमन्वितां | nai दृद्याद्िरिख्चाय सर्वोँपस्करसंयुतां ॥ ब्रह्माणं काञ्चनं Hat सावित्रौ राजतौन्तथा । षारमासिकः{ afeaunt सावित्रो तु फलस्य तु tt aa feat सणलौ कं पूज्य शक्या विभुषण : । शक्या गवाह्निकं दद्यात्‌ प्रोयतामिल्युदौरयेत्‌ | होमं शक्तैस्ति सौकुयी द्र ह्य नामानि को त्त येत्‌ । गव्येन सयिंषा तदत्पायसेनच कम्मवित्‌ ॥ विप्रेभ्यो भोजनं ear वित्तणाठाविवजिंतः । इक्तुट्‌ ण्ड़न्ततोद्‌यात्पुष्पमाला शक्तितः ॥ यो ब्रह्मास स्मता विष्णुरानन्दाता महेश्वरः | सुखाधीं कामरूपेण स्मरन्देवं पितामहं | क्रयचेव विधानेन पौण्मासं स्ियोऽपिवा, सव्वेपाप्रविनिर्मकतः प्राप्रोति aaa ॥ LEAMA वरान्‌ पुत्रान्‌ सौभाग्यं VIA ॥ इति ओोपद्मपुराणोक्त पुचकामव्रतं | कका ()()() सुमन्तुरुवाच | सोमव्रतन्तघाप्यग्य च्छङ्रप्रौतये VT | "र~ ~ ~ aa NR psp 7 She er SYS ola alee Pa a an ee * पडासन दति Gaal प्राठः | प्रतखर्ड़'१८ अध्यायः) दमाः + ९१७१ MAUNA पयःक्पुे' कुत्रा त्तस्य च्च TET ॥ प्रच्छादयोपरिवस्ते ण गन्धरुष्याचितं मह्त्‌ | शिवभक्त fea दद्याङोजयिला विधानतः ॥ प्राच्यां समुदिते सोमे प्रतोच्याच्च रवौ गते। पौणेमास्यान्तु वैशाख्यां wears’ शिवाय तु ॥ प्रोयतां मे महादेवः सोमम्‌ त्ति ज गत्पतिः तस्मे विप्राय तत्मात्रम्च॑येद्वकतितः Wa: ॥ एव Waa नाम कलवा सोमान्तिकं व्रजेत्‌ ` रुद्रलोाकात्परिभ्चष्टो भवेच्ातिस्मरो नरः ॥ पृव्वाभ्यासेन तेनेव पुनः fragt aaa | दति भविष्यत्य cata सौमव्रतं । | eee ata sara | दौोघांयुरारोग्यक्ुलाभिहठदि युक्तः पुमान्‌ रूपग faa: स्यात्‌ | सुइग्धहजन्मनि येन सम्यक्‌ त्रत समाचक्त तदिन्द् मौलेः ॥ पुलस्त्य उवाच | तयाण्छमिद सम्यगपरचात्तयकारकं) रस्यं तव वच्यममि यत्‌ पुराणविदो विदुः ॥ रोडिणोचन्द्रणयनं सोमव्रतभमिदहोत्तमं। त्स्बत्रारायणस्या चीमच्च ये दिन्द्‌ नामभिः | * ताच्रपात्रनयसिनि पुस्तकानर पाठः | १७६ दमाद्धिः । [व्रतखर्ड'१९ अध्यायः | यदा सोमदिने Fat भवेत्पञचचदणो कंचित्‌ ' अथवा aAMaAaa Gwar प्रजायते ॥ तदा Gla नरः FATA पञ्चगव्येन AIT! | ब्रह्म aaa रोहिणो ॥ अआप्यायसखेति च जपहिदानघ शतं पुनः| Wests परया भक्तया पाषर्डालापवज्नि तः ॥ सोमाय acerara विष्णवे च नमोनमः। HAMA, खभवनमागत्य मधुसूदन | पजयेत्‌ फलपष्यम्त सोमनामानि कोत्तयेत्‌ | सोमाय शान्ताय नमोस्तपादा वानन्दद्‌चपि च पूज्य जङ्क। ऊर्दयं वापि जलोदराय संपृ जयेन्मदटुमनङ्गराज ॥ नमोनमः कामसुखप्रदाय कटिः wage समचंनौोया। तथोदरच्चाप्यखतोदराय नाभिस्तु पज्यो विधिलोचनाय ॥ AMM चन्द्राय सुखश्च पूज्यं दन्ता दिजानामधपिपाय पूज्याः | Me नमश्न्द्रमसेऽभिप्‌ज्यः पज्यौ तथोष्टो कुसुद्प्रियाय ॥ नासा च aaa वनौषघोनां आनन्द्भूताय YAH | ध्रतखण्ड १९ अध्यायः |] walls: | १७७ Masa पद्मनिमन्तयेन्दा रिन्टोवरश्यामकराय सोर | नमः समस्तामरबन्द्ताय कणेदय द्‌त्यनिषूद्‌नाव | ललाटमिन्दोरुद्‌षि प्रियाय केश्ाःसुषुस्राधियतेऽभिपूज्य | शिरः शशाङ्गथ नमोसुरारेः विशेश्वरायेति नमः faci | पद्मप्रिये dfefa नाम wf सीभाग्यसोख्याखतचारुकाय ॥ देवो ख संपृज्य सु गन्धपुष्पे नवेदयधुपादिभिरिन्दुपतौः Bal Twat पनरुत्धितेन स्रात्वा च विप्राय sfauga: x देयः प्रभाते स हिरण वारि gaan: पापविनाश्नाय। RU गोमूत ममांसमन्र मच्ारवरज्यानथवि यतिच ॥ यासान्‌ पयः सपियुतानुपोच भुक्त तिद्छस खणयान्महत्त) कदम्बनोलोत्यलकतकानि जातो सरोजः णशतपजिका च ॥ Wala कुज्वान्यथ तिन्दुार ( २२ ) १७८ माद्रः! [anew ee श्रध्यायः | qm पुनभीरसमल्लिकायाः | Zag विष्णोः करवोरयुष्यः खो चम्पकं चन्द्रमसः प्रदेयः ॥ श्रावणादिषु मासेषु क्रमादटेतानि सवदा यस्मिन्मासे व्रतादिः स्यात्तत्‌ पुष्प रचयेडरि ॥ एवं संवत्सरं यावद्पोष्य विधिवन्ररः। Aaa WAAR णोपस्करान्वितं ॥ रोहिणो चन्द्रभिथनं कारयित्वा च काञ्चनं। चन्द्रः WES: काय्यों रोहिणो चतुरङ्ग.ला॥ दिचन्द्ररूपनिग््राणं चतुद्‌शोखित महाराजोक्ते षैदितव्यं | म॒क्ताफलाटटकयुत + शितनचपटन्ित') agate ga: कांस्यपाचात्ततेय॒तं ॥ दयान्मन्ं UIA शाकेन्तुफलसंयुतां | AAA FITS खरेरोप्य सुविता i सवस्वभाजनां Ay तथा WEY शोभनं | भूषणंदिजदम्मत्यमलंकलत्य गुग्णन्वितं ॥ चन्द्रौऽयं दिजरूपेण aura इति कल्पयेत्‌+# । यथा न रोहिग्णे कष्ण शयनं त्यज्य गच्छति | सोमरूपस्य ते तदत्रमे Reiss भूषते | यथात्वमेव Waal परमानन्दसुक्तिदः ॥ -----न # Maxafara Gaalact पाठः| # मक्ताकलापयुक्ता दूति पुस्तकान्तरे पाठः, * भाषयोदिति पुसकान्तर पाठः, त्रतखण्डं १९ अध्यायः ।] Bartz: | १७९ मुक्तिमुकिस्तथा भकिस््रयि चन्द्रेऽम्तमे esr दूति संसारभोतस्य सुक्तिकामस्य चामघ॥ रूपारोग्यायुषामेतददिघधायकमनुत्तम। इदसेव पित. णाच सववेदा वल्लभं सुन I A € O $ त लोक्याधिपतिमू ला मपकल्यश्रतच्रयं । चवन्दरलोकमवाप्रोति fama त्वा विसुच्यते ॥ T नारोवा रोहिणौचन्द्र शयनं at समाचरेत्‌) सापि तत्‌फ्तलमाप्रोति पुनराहत्तिदुलेभ ॥ इति पठति शषोतिवाय इत्य ९ ==> सघुमथनाचच न मिन्दुकौत्तनेन मतिमपि च ददाति सोऽपि गैर © ५५ @ A भवनगतः परिपृज्यतेऽमरोय: i इति पद्मपुराणोक्त चन्द्ररोददिणो शएयनन्रतं । 000( ०७० अनिलाद्‌*^ उवाच; रधोपोष्य चतुदण्यां पौणमास्यां गुर दिने, पूजयेदिधिनानन लिङ्ग साव" निबोधभे॥ agra, पञिभे भागे वामे लिङ्गस्य वे हरि । खखोल्कं दिशे रौद्मौोशखर प्राम्दिि fad ॥ ख खोल्कः BT: | ईशानं मध्ये देशे yas चेव पूजयेत्‌! ऋ अनिसाद्‌न्‌ दति पुस्तकान्तरे प्राठः, १८० Safe: | [तरतखण्ड १९ अध्यायः 3 विलिप्यायरुचन्दर ख कुसुमे सुगन्धिभिः ॥ € , चन्द्रः कपूर | गुग्गुल च (ज्यसंयुक्तमगर वासित शभ । दत्वा नौ राजनं कुर्यादा FRITH 8 युग्म गोभिथनं । agai वलिद्धेव पुव वत्‌ WET व्रजेत्‌ | पच्चगव्यं ततः प्राय आचाव्येव्राद्मणांस्तथा bt व्रतिनोमिथ॒नान्येव भोजयेच antag: | हेमवस्रादिकञ्चव यल्लात्‌ कत्वा घ कल्पयेत्‌ # ततोदेवः प्रपूज्यो वे नेवेदयाव्य' fader च। नलाग्नि' पूजयित्वा grasa भिव स्मरेत्‌ ¢ WSs पञ्चमे गावः We पञ्च नियोजयेत्‌ | तेषारुदिश्वतेष्वे वं न्य.नच्चापि ततोऽधिकं ॥ घञ्चमे पञ्चपञ्चेति वचनादहितोयेद द aaa तिखस्तिखः चतुथं चतखश्चतसः पञ्चमे पञ्च पच्च प्रथमाटेकेकेव तेषां ब्रह्मा दौनां पञ्चानां चन्द्ररूपानां पञ्चटैवतानां पञ्चवर्गानुटिश्यः न्य.नाधिकं तेषु ay नियोजयेत्‌ निखिलं प्राग्विरेषञच्च ada ame afi: 1 सुरकौौ त्ति यियीऽधच् इहेवविभवाय च । रहस्यभेतद्यत्पोततं न ea यस्य कस्य चित्‌ ॥ दति कालिकापुराणाक्तमोशान ad | - ०0०0०00 ्रतखर्ड*१९ अध्यायः] देमाद्धिः। aw उवाच | अथातः SY भूपाल क्त्तिकाव्रतसुत्तमं | Cat al लिङ्भद्राख्या पुरा यस्य प्रभावतः| sala महतीं लब्धा faq जातिस्मरामवत्‌ | योगेनान्ते तनुन््यक्ता परब्रह्मखिलौ यते ॥ युधिषिर उवाच | कटश AEA AM मन्तो waits कोटशगः। विधान कत्तिकानाञ्च ag काल बद्ख मे aq उवाच | कालतिक्यां पौणमास्यान्तु wetara कलिका व्रतं, घट्‌ मामांस्त व्रतं यावदिदं संचिन्त्य चेतमि 1 पारणे पारण चापि quae दिजोत्तमे। Saud प्रयच्छत यथा विभवसारतः। afanTa स्वयं ata: ataara वरदस्यतिः। AAT सोमवारे सा महाका्तिकौ WAT | semaghuay बद्पुखयेन लभ्यते | लब्धापि नव्या नेया यदौोच्छेच्छयग्रात्मनः) अन्यापि कात्तिक पां ममपोष्या विधानतः ॥ तस्या विघानं राजेन्द्र खणुष्वकाग्रमानमः, कार्तिके शक्तपत्तस्य पौण मास्यां दिनोद्ये ५ नक्ते न नियमं इरया दन्तधावनं । VaR Salle: | [बतखर्ड १९ अध्यायः | उपवासेन वा WAU Aa: AIG! TATA I HUA प्रयागे वा पुष्करेनिमिष्रेऽध at | शालग्रामे कुशावत्त AAAs चरिक्तक॥ WAY वावटे YU WA नरकणर्ट | परेवा नगरे वापि ग्रामेघोषेऽथ पत्तने। यत्र Alaa Al Slat नारोवांप्यथवा पुमाम्‌ | Safa पिटपृजाच्चे कत्वा होम युधिष्ठिर ॥ ततोऽस्तसमये UTA UTA गन्धस्य सपिषाः। चोरस्य वाग्धरसः TU कत्वा गुडफलान्वितं ॥ GRICE: | घट्‌ प्रमाण यथाव्योस्ति कत्तिका शङ्करं न्यसेत्‌# । षट्‌ प्रमाण षट्‌ कत्तिकरानामाणोव्यधंः ॥ षट्‌कत्तिका विमानानि खण रौप्यमयानि च॥ TATA कुर्याच्च खश्यक्या GW नन्दन | प्रथमा खण निष्यन्ना दितौयारौप्यनिभ्िता a ठतोया taaleat Waal नवनेतजा | पञ्चमोकणिकात्रेन षष्ठोपिष्टमयौक्ता ॥ कत्वा घट्‌ कृत्तिकां पाथ गन्धालक्तक भूषिताः | रत्र गभी; कुङ्माक्ताः पिष्टातस्तवकाि ताः ॥ सिन्दूर चन्दनाभ्यक्ता--जातौ पष्पस पूजिता, ~~ ~~~ Teena Ate 7) सत्तिका एकठभिति पुखकानये प्राठः aaa १९ अध्यायः |] BATE: मन्वेणानेन ताः पूज्य विप्राय प्रतिपादयेत्‌ | ॐ ससषिदारा अनलस्यवल्लभा या ATH AAlaa युक्ताः | तुष्टा HAT चमातरो याः ममापिसुप्रोततराः सन्तु स्वाहा ॥ एवसुच्च।ये विप्राय Zara कत्तिका कृप । ब्राद्यणोपि प्रतीच्छेत मन्ते णानन awa | SA: कामदाः सन्त्‌ इमा AAAATAT | कत्तिका दुगंसं सारात्तरयन्तु भयादपि । अनेन विधिना sat दृष्टःचवान्तरं स्थिताः | विज्य ब्राह्मण भक्त्या अनुव्रज्य पदानि षर्‌) नित्यं च aaa श्रियं सत्‌फलमाप्र यात्‌ | विमानेनाकंवणंन गत्वा नक्षचमर्डलं ॥ दिव्येन वपुषा aa खकन्दनविभूषितः। दिव्यनारोगणयुतः मुखमास्तद्यनामयः ॥ देधूयमानश्मरः छचपङ्ह्याविराज्ञितः | पारिजातकमन्दारप्रष्यमाला विराजित | ware: परिपगख तिष्ठदर्षीयुतदहयं | नारो क्त्वा AG चान्तं Wal aa aqua Ait | क्रौडते सुभगा साध्वो सवभोगसमन्विता। यख तच्छणुयात्पाथ भक्तियुक्तः समाहितः ॥ नारो वा पुरुषौ वापि सुचते सर्मकिल्विष्; | Rey Safe: [नतखग्ड़ १२अध्यायः | सौवण रौप्य मख्णिमोनवनौतसिदा षट्‌कत्तिका; कणिकपिषमयोश् Hal | < | =, aa निधाय कुसुमाक्ततवूपदौपः संपज्य जन्म गहनं न विशन्ति मव्ाः। दरति भविष्यत्तरोक्त संत्तिकान्रत | ——00(@00 qafafs zt उवाच) Hur BATTS AT पोर मास्यां TAS । SRA जायते लोके ग्रामे ग्रामे पुरं पर । किमे जिणशवस्तस्याङ्ग 2 ae निनादिताः | होलाका दीप्यते कस्मात्‌ फालगुन्यान्तु किमुच्यते | TSS Tanda शौोतोष्णंति Aqua | कोह्यस्वाम्प्‌ज्यते टेव: केनेयमवतारिता ॥ किमस्यां क्रियते कष्ण एतदिस्तरतो वद्‌ ॥ AY Vals | शण राजन्‌ प्रवच्यामि विस्तरेण gua | चरितं होलिकायास्त पारंपयणचागतं ॥ ्रासोत्‌ HAGA पाथ रघुनोम नराधिपः । © " क गे शरः सव्वेगुणोपेतः प्रियवादो बदुश्ुतः॥ ON स स्वी ufaat जित्वा वशोक्षत्य नराधिपान्‌ । घ्नतः पालयामास प्रजाः पुतानिवोरसान्‌ | त्रतखण्ड'१८अध्यायः।] Salis | १८५ © # । $ $ न टूभिच्त न चव्याधिनाकालमरण कणा) aaa aa: पापास्तस्मिन्‌ शसति पाथिवे। 8 > ~, * “A तस्येव शासता राज्यं चतघश्चरतस्य व | o WANA: समागम्य राहि त्राहोति waar | पोरा ऊचुः | QA A we का तित्‌ टोखटानामेति waa | दिवाराचो समागम्य वालान्‌ Ulead THA 1 ~, = > € Taal चोदकेनापि मेषज्य at नराधिप) Ae + Has परमाचाय्यः सा नियन्तु न शक्यते ॥ पौराणां वचनं Yar रघ॒न्विस्मयमागतः । विष्मयाविष्टहृद्‌घः पुरोहितमयाव्रवोत्‌ ॥ रघरुवाच। टीर्टेति रात्तसो कयं कि प्रभावा दिजोत्तम | कथमेषा नियन्तव्या मया दुष्क तकारिणी ॥ TAU प्रोच्यते राजा पुथिवौपालनात्पति; । अरत्तमाणशः gaat राजा भवति किल्िषौ ॥ वशिद् उवाच BY राजन्‌ परं Ya aad मया कचित्‌ | dive tatafa विख्याता रात्तसो मालिनः सुता॥ AM वाराधितः शन्भुरुग्रण तपसा परा, प्रोतस्तामाह भगवान्‌ AT वरय Fad ( (२४ ) Safe: | [वरतखश्डं१९ अध्यायः | qa मनोभिलषितं तददाम्यविचारितं। ‘Siw प्राह महादेव यदि तुष्टः खयं मम॥ तदवध्यां सुरादोनां मनुजानाञ्च WHT! at कुरुष्व त्रिलोकेश शस्ता णाच तथव च ॥ श्रो तोष्णवषसमये दिवाराचौ afew = | अभयं सवदा मे स्या्वत्‌प्रसादान्मदेश्वर II एवमस्तवित्यथोक्षान्वां पनः प्रोवाच HITT | Squw: शिशभ्यश्च waa संभविष्यति | ऋतुसन्धौ महाभागे AT व्यथा हदये Bar: । एवं दत्वा वरं तस्या भगवान्‌ भगनंतदहा ॥ स्वप्र द्र्थोप्यघोलब्स्तत् वान्तरभधौयत | एवं लब्धा AX ag Taal कामरूपिणौ ॥ faa पोड्यते बालान्‌ संस्मत्य हरभापषित | अडाडयातु aia fara qefaai a Vey तेन सा लोक हाडाडत्यभिक्रौयते। पश्चलोनाख्च acta नराणाच्च fanaa: ॥ रुधिर नास्िकाच्छदाद्लितं सा पिवत्यलं। एतत्त सव्वं माख्यातं दो ढावाश्रितं महत्‌! साम्प्रतं कथरिष्यामि येनोपायेन इन्यत | अद्य पञ्चदशो शक्ता फाल्गुनस्य नराधिप | master विनिष्कान्तः प्रातग्रौभो भविष्यति ॥ अभयं सव्वलोकानां दोयतां परुषषभ | लथाद्मणएकता लोका हसन्तु च रमन्तु च! वरतखरण्ड १८ अध्यायः । | माद्रि । ९८ दारुणानि च खद्भानि डोला समरीलृकः। योघा इव fafaara fans: सप्रहकिताः ॥ सञ्चय TARGA पलालानाञ् कारयेत्‌, तचाग्नि विधिवद्या cate wala: ॥ गो £ ततः किलिकिला शव्द स्तालौ शब्द मनोहरे: । data चिःपरिक्रम्य गायन्तुच हसन्तु च ॥ जल्पन्तु खेच्छथा लोकाः faa: et यस्य waa AS AR , adaa 2 भगेवद्विधः शब्दः कौत्तयन्‌ देशभाषया ॥ विस्तारय Way सहस्रनाम तस्य a तनशब्ट्नसापापादहोमन च निराक्तता॥ ek © ९ ~ ट्टृहासेडिन्भानई Taal Wansta | तस्यवेव्व चनं Yat स दपः पाण्डनन्दन ॥ 9 ~ wa कार विधिवद्यदुक्तन्तेन stuart Wal Ul रात्तसो away a चोग्रेण कम्रा] ततः प्रथृति लोकऽस्मित्रडाडास्यातिमागता v स्ववं दुष्टदमोदहोमः सब्वेरोगोपशान्तिद्‌ः। क्रियतेऽस्यां हिजैःपाथं तिन सा होलिका Hath सव्वसारा fafaaa पौणमासौ युधिष्टिर | " | | सारत्वाव्सव्वलोकानां परमानंद दाविनो। अस्यां निशागमे पाथ संरच्याः शिथवो we 1 गोमयेनोपलिप्ते च सच तुव्वो ग्हाङ्ण। MATa VOMIT खद्गव्यग्रकरान्नरान्‌ f WEAS TAT Wasaga: | १८८ देमाद्धिः | [त्रतखरड १९ अध्यायः | रच्तन्ति तेषां दातव्य गुडपक्तात्रमेव च ॥ एवं टीण्टे ति WAS दोषः प्रशमनं व्रजेत्‌ | बालानां र्षणं काय्य ` तस्मात्तस्िन्‌ खमालये ॥ युधिषिर उवाच t प्रभाते fa जन द॑व कन्तंव्यः सुखमोष भिः । Waa माघव मासि प्रतिपद्युदिते रतौ 1 कष्ण उवाच t कत्वावश्यककाथाणि gay पिटदटेवताः। वन्द्‌ येद्ोलिकाभूति सव्व दुटोपशान्तये ॥ मन्त णानेन राजेन्द्र पठयमानं faara F ¦ वन्दितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शङ्रेण च। अतस्त्व पाहि नो देवि विभूते afaer भव ॥ afea खचि ते दैव उपलिपे हाजिर | चतुष्कड्मरयेत्‌ GE’ वर्णक घातः शभः ॥ तन्मध्ये स्थापयेत्मोठं शक्तवस्तोत्तरछदं | अग्रतः पूणंकलभरं स्थापयेत्य्लरैयय्‌ तं । aad सहर रय च सितचन्दनचचि तं ॥ आसने चोपविषटस्य ब्रह्मदयोषेण भारत) चख येचम्दने नरौ श्रव्यङ्गगङ्गा सुलक्तरा ॥ पद्मरागोत्तरपटा खष्टांश्कविभूषितः। aqua भिरोऽन्तच्च दधिदूर्व्वा्ततान्वितं | वद्ापयिला यीखर्डमायुरारोग्यघ्ठदये । व्रतखण्ड' १९ अध्यायः।] देमादिः। १८९ वप्रा शिरोऽन्तमिति werd चन्दनेन Ne येदित्यथः तच्चन्दनं asiafuar fafeeaita | Tas प्रागयेदिद्वान्‌ GAGA सचन्दनं । मनोभवस्य सा पूजा ऋषिभिः सम्प्रदशिता ॥ यत्मिवन्ति वसन्तादौ चूतपुष्प सचन्दनम्‌ | सत्यं सत्यस्य कामस्य पृजेय त्रियते जनेः । प्राखनमनन्त्स्च। दइद्मग्र वसन्तस्य माकन्दकुसुमं aa | सचन्ट्नं fare सव्वं कामसमदये ! aaa दिजन्द्राशं सूतमागधबन्दिनां | ददयाद्ानं वधाश्त्याकामोमे प्रोयताभमिति। ततो भोजनवेलायां खतपाकन तेन दहि । प्राशयेत्‌ प्रथमं WA ततो Yaa कामतः ॥ य एवं कुरुते पाथं शास्तोक्त' फालगुनोत्वं । अनायासेन सिध्यन्ति तस्य सवं मनोरथाः ॥ आधयो Baa a यान्ति नाभं न संशयः | पुतपौचसम।युक्लः सुखं तिष्टति भानवः॥ पुण्या पविचा स्वे च सव्व विघ्रविनाजिनी | एवं ते कथिता ae तिधौनास॒ुत्तमा fafa: ॥ ad तुषारसमये faargeut प्रातव्व सन्तसमये समुपस्थिते च ¦ सस्माश्य च्‌ तङ्कुसुमं सड चन्दनेन | coe watts: | [त्रतखर्ड १८ अध्यायः । wal’ हि पाथं युसपीऽथ समां सुखौ स्यात्‌। समां वषेन्तु यावत्‌। इति भविष्योत्तरपुराणोक्तही लिकोत्यवविधिः । ---०00---~ युधिषिर उवाच । रत्तावन्धविघान मे किचित्‌ कथय केशव । दुष्टप्रतपिशाचानां AAT भवेन्नरः ॥ सव्व रोगमोपगशमनं सर्व्वाशभविनाशनं सकछलत्‌क्षते नान्दमेक येन रक्ता छता भवेत्‌ । aw उवाच) v % + BY UWA, ल इतिहास पुरातनं । THI यत्‌ कतं ye शक्रस्य TATE ॥ देवासुरमभयुद्धं GU दाद्‌गवाधिकं। A 0 Nt ॥ ॐ, तत्रासुरजितः शक्रः AY सवः सुरोत्तमः ॥ ( Oo, ट, 9 परिव्यल्यामरःस्वग waraeiwafaa: | प्राप्यामरावतीं तस्यो प्राखताख्परायणः ॥ ततो दानवराजेन चलीक्य खवशोक्ततं । TIARA: समानय WY VATA: | मां यजघ्व स्तविध्वच्च WE पूज्यः सुरासुर: । यः शक्रः सम्यगातिष्ठ awe wai मथा | VARTA नष्टाः सर्व्वाः क्रियास्ततः। स्ाहाकारसखधाकारवषट्‌कारादिकाश्चयाः। | | “| व्रतखण्डं १९ ्रध्यायः |] safes १९१ नाघौयत तथा Fer नपरूज्यन्तच देवताः | उत्सवा न प्रवत्तन्त सवमासोदसंष्टलं ॥ धम्यनाओे सुरेशस्य वलदहानिरजायत। ज्ञात्वा हौनवलं aa दानवाः समभिद्रवन्‌ ॥ सोऽभिदुलीऽसुरगणे स्यक्तराज्योऽपि SATS | छदहस्पतिसुपामन्तय इदं वचनमव्रवोत्‌ ॥ न स्थातुमत्शरक्रोमि न गन्तुः तेरभिद्ुतः | सवथा योद मिच्छामि agra तद्विष्यति ॥ नश्यते युद्धतो वापि तावद्गवति जोवित। तावद्वाताख्जत्‌ YT न यावन्मनसौप्सितं ॥ जयं मे शंसते awa योसिगऽहं दानवः सद । मुहत्त लितं श्रेयो येन धूमायितं चिरं ॥ AUG FIT पौरुषं क्मचोचयते॥ तद्‌ द्ाहं करिष्याभिपभ्रवं श्रयो भविष्यति, सुत्वा Gaara वदस्तिरथात्रवोत्‌ tt वदस्मतिरुवातच। न कालोविक्रमस्याद्य यजकोपं पुरन्दर | eu काल विद्धौनानि काय्ारखि विपरोतवत्‌। क्रियमाणानि दूषयन्ति सोऽनयः सुमहान्‌ भवेत्‌ | इन्द्र उवाच ! aaa fa वदनो न योत्स्येऽहं सह दानवः | नृणां HAA TAMAR AAT | गुणदो षावुभवेतावेकोकत्य विचक्षणः . ९९२ | watts [ त्रतखर्ड` १९ अध्यायः t कायमारभ्यते यत्त तस्य दोषाः पराङ्मुखाः ॥ „. तयोः संवदतोरेवं शचौ प्राह सुरेश्वरं | aa uated देव प्रातः aa भविष्यति ॥ अद रक्तां विधास्यामि जयो येनं भविष्यति । NAMM वचः WA RANT बलवव्रहा ॥ पौणमास्यां ततः प्रातः पौलोमोक्तमङ््ला | बवन्ध द्चिणे पाणौ रच्तापोठलिकां gut | वदरत्तस्ततः शुक्रः कतख स्ययनो fea: | आर्ये रावतं नागं निच्जगाम सुरारिहा स प्राप्य दानवानोकं नाम विश्राव्य चात्मनः पातयामास TA Ti शिरसि निशितैः शरः॥ तं दृष्टा सदहसायातं दानवाः संप्रदधिताः। अभिजम्म fadate: wat बर्हि णवाजिनै; ॥ उवाच दानवान्‌ सर्व्वान्‌ प्रह्वादो दानवेष्वरः। दिश्याद्य भवतां प्रा्ितव्रद्मद्ा दृष्टिगोचरः | * इते नभेकौलत्याश्‌ रथवशेन दानवाः | TAWA रथसमुदायेन ॥ यावव्छ नश्यते पापस्तावद्यल्लो विघौयत। t दानवेष्वरवाक्येन ततस्तं दनुनन्द्नाः | त्यक्ता मोनं महाव्बानः WHATETE Ea: | ततः शचोपतिः क्रा TIGA भासुरं | | जघान दानवानोक चरणात्‌ कालदइव प्रजाः | Ty ~ et ----+ # घतनमिति पुखकान्तर AIS | व्रतखण्ड'१८अध्ायः।] शमादिः t १९ द वध्यमानाः सुरेशेन दानवास्ते महाबलाः ॥ प्रत्यन्तभयसन्तस्ताः कालोयमिति मोह्िताः। केवित्ससद्रं विविश्गं हनं केविदास्िताः।॥ कचिल्लस्वितमूदीनो नम्रा War वनेऽवसन्‌ । zara प्रत्रुवाणा निग्रन्यत्रतमायिताः ॥ हेतुवादपरा सटा AQAA: प्रजागणान्‌ | एवं निज्नितदेतेयान्‌ शक्रःखस्थानमागतः ॥ FAA पालयामास पूज्यमानः सुरासुरेः। हतदहष्रा YS AT शुक्रं शरणमागताः) प्रणम्य कथयामासुजिंतोऽहसमरेऽरिणण। ama हो नवौय्यण शक्रेणापि जितो यतः॥ तस्मादिक्‌ पौरूषं लोके देवं हि बलवत्तर । शक्र उवाच | विषादं माक्तथा दैत्याः कायाणां गतिरोदशो। देवाद्ववतो भूतानां काले जयपराजयौ ॥ सन्धानं सद शक्रेण नद्‌ानोमुचितं wad | अजयः TaN छतः शच्या शचौपतिः ॥ रक्तावन्धप्रभावेण दानवेन्द्रो जितो महान्‌ | वषमेकां प्रतौत्तध्व' ततः Bat भविष्यति a WAIT सुक्तास्त दानवा विगतज्वराः | AQ, कालं प्रतोक्तन्तो यथोक्तं गुरुणा तथा i पष प्रभावो Tatar कथितस्ते युधिष्ठिर) जयद; सुखद खव FAL VW, AAT: | ( २५ ) Sal z: 1 [त्रतख््ड cesta: १ युधिष्ठिर उवाच) क्रियते aa विधिना रक्ताबन्धः सुरोत्तम) ° = ~, ~ QO कस्यां fast Her ea एतन्म वक्रमहसि॥ यथा यथा fe भगवन्‌ विदिच्राणिप्रमाषसे। तथा तथान मे ठसिव्वह्वथाः णतः कथाः ॥ कष्ण उवाच | घनाहतेऽम्बरे पाय Wea धरणोतत्ते ! ५ ५० ५ . ~ aura खावरे मासि पौणमास्यां feared + सानं gala मतिमान्‌ अुतिस्पतिविधानतः। ततो देवान्‌ पित्‌ शैव तपयेत्परमाग्भसा ॥ £ +~ > a =~ ह , उपाकम्मादिचवोक्रसषोणच्ेव तपरं | Fala AW wre वेदानुदिश्य सुव्रत i द्राणां मन्तरहितं BTA दानच्च शस्यते। ततोऽपराह्समये रत्ापाटलिकां शुभां ॥ = = A Al v6 ॐ कारयेद्‌ च्तः wa: सिद्राघहमभ्रूषितां, 2९ „~ © > € > ~ ॐ «6 0 ~ awd व्विचित ` कापासः Waal मलवज्नितः॥ वितिचतन्तुग्रधितां स्यापयेद्धजतोपरि। ty a > ATA WEA रक्ता, गोमयोपरचितः सुठत्तकृरण्डल कोः | दूव्वावणसदहितेिचरा दुरितोपश्मनाय। उपलिप्त ग टेशे दत्तचतुष्क न्यसेत्‌ Fal | as दच्लोपरि fata राजामालेवे तथ सुमुह्तते ॥ ~ ~. मो मड >, EN > वेष्याजनेन सहितो Asan: समुच्छ्रितखिद्धः। waaay: कयः शान्तिष्वनिना नरेन्द्रस्य 1) ju व्रतखण्डं cesta: |] Bathe १२ देवदिजाति शसा यस्व रक्ताभिर च येत्‌ प्रधमं । तदनु पुरोधा Bid: रक्ताम्बध्रोत मन्वेण ॥ येन बद्धो वलौ राजा Saal महाबलः तेन त्रामभिवघ्नामि रक्ते माचल माचल ॥ awa: त्तचियेव श्यं, ९३ रान्य मानवे | कत्तव्यो रक्निकावन्धो दिजान्‌ संपूज्य शक्तितः ॥ अनेन विधिना यस्त॒ रत्ताबन्धनमाचरेत्‌ | स सव्वद्ाघरह्ितः सुखौ सम्बत्सरं भवेत्‌ | यः खावणं खवति Manet सुरेन्द्र रत्ताविधानमिदमाचरते मनुष्यः. | WW सुखेन परमेण सं वषभमेकं स पुत्पोत्रसह्ितः ससुद्धन्ननय। इति भविष्योत्तरे रक्ताबन्धन पौर्णमासोततं। COO WU उवा चेत्यनुतरत्तौ। पञ्च agent: खित्वा एकभक्तेन मानवः | संपूज्य पूणिमां देवीं लिखितां चन्दनादिना ॥ पृथिमाप्रतिमा तु परिभाषायां द्रष्टव्या । ततः पञ्च घटान्‌ Guia पयोद्धिष्टतेन TI मधुना सितखण्डन ब्राद्यणायोपपाद्येत्‌ | मनोरथान्‌ Tae aga पूरिमाह्यसि॥ पञ्चकुमनप्रदानन भूतानां तुशिरस्त मे | १८ € Satta: [ त्रतखर्ड' १९ अध्यायः | दानमन्तः। । दजानेवं नमस्छत्य सब्वान्‌ कामानवाप्र यात्‌ | एतत्‌ पञच्चघट नाम ad तु्िप्रदायकं॥ इति भविष्योत्तरं पञ्चघरपृणिमाव्रतं | 000 कष्ण उवाचव्यनुठत्तो | विं शसपूज्य दम्मल्यान्यपवासौ विभूषणैः | पौणमास्यामवाप्रोति मोत्तमिन्द्रत्रतादिहः ॥ इति भविष्योत्तरे इन्द्रपोणमासो्तं | Tet उवाच), ~ 0 महत्‌पुव्वां भवल्येषा पोणमासौ fesitaa । प्रतिसंवत्सरं तस्या; सोपवासो Hales | री) + # यः पुजयति was तन संवत्सरं हरिः। पूजितः पौणमासौषु भवतौति विनिश्चयः ॥ तस्यां दानं खल्यमपि wesafa भागव) दानं तप्त जपो होमो यच्चान्यत्सुक्ततं भेत्‌ I भागव उवाच, * ~ ¢ + € qaqa पौणमासं ASIA हषध्वज | RA Wal जग्रा तन्ममा चन्त THEA | rr ~ ~ ~ ~~ a सममिति पुष्कान्तरे gre: | व्रतख गड १९ अध्या । | द माद्रि १९. ॐ WET उवाच । यस्यां पूणन्द्ना योगं याति जौवो महाबलः | पौणमासौोति सा जेया मद्रापव्वां दिजो त्तम; ॥ जवो awufa: दति भविष्यत्पुराणे मदापीणमासीोत्रतं । 000 ऋषय AT । स्युतमेतत्वयाख्यातं पशुपाशविमीत्तण' | व्रतं पाश्पतं लङ्ग पुरा देवेरनु्टितं ॥ वक्त महसि चास्माकं यथापृन्व ` लया Ba सूत उवाच | UU सनत्‌कुमारेण Ware wears प्रभः | नन्दो Wis Tae यत्‌ प्रवदामि समासतः|) देवे दव्य स्तथायत्तं dara’: सिदचारर, | ऋषिभिश्च महाभागंरनुषठितमनुत्तमम्‌ ॥ व्रत इाद्‌शलिद्गनख्य' पशपाशविमोत्तण' | Wagga भक्तानां कामदं मोद शभम्‌ ॥ अवियोगकरं qa भक्तानां भयनाश्रनं। देवेरनुष्टित ga ब्रह्मणा विष्णना तथा ॥ क्त्वा कनौोयसं लिङ्ग ara चन्दनवारिणा) चेचमासादि fave: सिवलिङ्गत्रतं waa | कलवा हेमं GH ug किकाकेसरान्चितम्‌ | १९८ Salle: 1 [त्रतखर्ड १८ अध्यायः > नवरलैस्त्‌ wfaauzua यथाविधि॥ कणिकायां न्यसेलिद् स्फाटिकं पोटसंयुत। aa AAI यथान्यायमचयेदिल्वयचके; ॥ सितैः सदख्रकमनेरक नौलि) त्पलेरपि। जातेरन्येयंघालाभं WIAA खाप्य सुव्रत ॥ सएज्य चेव गन्धाद्यंभूपदौपेख मङ्गन्लेः | नोराजनौयशान्य ख लिङ्गमूर्तिः महेश्वरम्‌ | ग्रगरु द्स्तिणं द्दयादघोरेण दिजोत्तमः। पिमे सद्यमन्वेण casa मनःशिलां ॥ उत्तरे वामदेवाय चन्दनच्ापि दापयेत्‌ | पुरुषेण सुनि हरितालच् gad सितागुरूदवं विप्रा स्तथा कब्णागुरोभे वम्‌ | तथा गुग्गुलधूपच्च दद्यादौगाय भक्तितः ॥ मदहाचद निषवेव्यास्मादाटकात्रमथापि वा, एतदः कथितं ge शिवलिङ्ग महाव्रतं | सव्व मासेषु सामान्य विरेषोऽपि च ate a t que वज्रलिङ्गन्तु ज्येष्ठ मरकतं शभम्‌ ॥ aie मौक्तिकं लिङ्ग खवर नोलनिमितं। मासि argue fay पट्यरागमयं शभम्‌ | sifaa चेव विप्रेन्द्रा गमेद्‌कमयं शभम्‌ । प्रवालेन च कालिकां तचा वै AAT tt माधे च सूव्यकान्तेन HATA स्फाटिेन तु, सत्वंमासेषु कमलं हेममेकं विधौयते | ames reste: i) Sats: १९८ अलाभे राजतच्चापि विल्वपतः प्रपूजयेत्‌ | रल्लानामप्यलाभेतुदेस्नावा रजतेन aru रजतस्याप्यलाभ तु तास्रलोदहेन कारयेत्‌ | We वा दारुजं चापि ण्मयं वा सवेदिकम्‌ । सव्वगन्धमयं वापि क्षणिकं परिकल्पयेत्‌ | हे मन्तिके महादेवं खोपत्रेणेव पूजयेत्‌ ॥ स्रौ पचरं कमलं | सव्वमासेषु कमलं हेममेकमधघापिवा। राजतं वापि कमलं हमकणिंकसुत्तमम्‌ | रज तस्याप्यलाभे तु विल्वपतरे ख पूजयेत्‌ । सहस्रकमलालाभे तददनापि पूजयेत्‌ ॥ ASSISA वा रुद्रमष्टोत्तरगतेन AT | विल्वपत्रे स्थिरा aaitedt लक्षणसंयुता tt नोलोत्यले विखणालाक्तो उत्पले षरमखःस्वयं । पाद्येग ण खहाटेवः सर्वदेवपतिः; fra: | तस्माद्सव्व waa Woes न त्यजेदधः। नोलात्पत्तं खतपड्यसुत्पलच्च विशेषतः ॥ सव्ववश्यकरं वारः शिला स्वाथे सिदिद्धा। छष्णागरुसमुद्ध.त सव्वपापनिक्लन्तनं ॥ गुगगुलप्रश्नोनाच् धूपानाच्च निवेदन | सव्वरोगत्तयकर चन्दनं सव्वं सिडिद्‌ ॥ सौगन्धिकं तथा धूपं सव्वकामप्रसाधनं | भ्व तागुरूहवद्चेव तथा क्रष्णागुर्द्धवं | २०० ` हमाद्धिः। [तरतखण्डं१९ग्र्यायः | सोम्यं सितारधूपञ्च मात्त(त्रिव्वाणसिद्िद्‌ | प्वेताककुसुमं माक्तादचतुव्वक्तः प्रजापतिः | कमि कारस्य कुसुमे मेधा Brarerafaar | करवोरे गणाध्यत्तःवक नारायणः खयं | सुष्ट गन्धिषु सव्वषु कुसुमेषु नगात्मजा | nm Dd ॐ € तस्मादरेनखघालाभपुष्प धूपादिभिस्तथा पूजयेद्‌ dean भक्तया वित्तानुसारतः | {निकेद्‌येत्ततो भक्या पायस महाचर्‌ ॥ „ ~ e ¢ $ सत सोपदणच्च सव्व दरव्यसमन्वितं | शबानरच्चापि मुद्ररं आटक्वबन्धकन्तु वा] ~ > ५ उपहाराणि quifa न्यायेनवाज्जितानि च) नानाविधानि चान्नानि प्राचितान्यम्भसा ततः ॥ त्तो राज्ये; सव्व टेवार्नां खित्यथममतंक्तं | विष्णुना जिष्णुना साक्तात्तोयेषु सुप्रतिष्ठितं॥ तस्माससंपूजयेदेवमन्ने प्राणः प्रतिहितः | उपहारे तथा पु्टिव्येजने पवनः; स्वयं ॥ सर्व्वीत्मको महादेवो गन्धतोये Batafa; | पटे वे प्रतिः सात्तान्रहाद्वौ व्यवसिता ॥ तस्मादेव' यजेद्क्या प्रतिमासं यघाविधि। = $ ay 0 e o Sy ५ प ॥ UWA पोणमास्यां सव्व Haga i त्य ny थे क सत्यं प चन्द्यान्तान्तिः सन्तोषो दानमेव च। © + | ~ पौणमास्यां तधा विप्रा उपवासच्च कारयेत्‌, सम्बव्सरान्ते गोदानं हषेःव्छगं विशेषतः; तरतखर्ड' १९ अध्यायः ।] देमाद्धिः । Rog भोजयेद्राद्यणान्‌ भक्तया खोतिथान्‌ वेदपारगान्‌ tt तलिङ्ग' yfad तेन सव्व द्रव्यसमन्वितं । स्थापयेदा शिवक्तेवं दद्यादा ब्राह्मणाय च। एवं सव्व घु aay शिवलिङ् महाव्रतं ॥ Hosa मुनिश्रेष्ठा स्तदेव तपसां परं । सूधकोटिप्रतौकामैवि माने रतनभूषितः॥ गत्वा शिवपुरं दिव्यं नेद्ायाति कदाचन | पथ वा दयकमासेरनः च aed व्रतोत्तमं ॥ शिवलोकमवाप्नोति नात काथ्या विचारण। अथवापि विन्तदीनस्तल्लिङ्ग चिन्तयेन्नरः it वषमे कं वरं fa स्थान प्राप्य शिवं व्रजेत्‌ | zqayq पिठत दैवराजलमेव त It गाणपत्यं पटं वापि शक्तोपि लभते नरः| facial लभते विद्यां भोगाों भोगमाप्रुयात्‌॥ Saal च धनं पुण्य्रायुः कामांश्च जित्यजान्‌ | यान्यांखिन्तयते का्मांस्तांस्तान्‌ प्राप्य ated t यकमासत्रतादैव चान्ते सद्रमवाप्र यात्‌ | az ufaa परमं रहस्यं व्रतोत्तमं विश्वख्जा च दृष्ट । हिताय देवासुरमच्य faz वियाघराणां परम faaa i # ट्‌एपयदिति पुस्ठकान्तरे पाठः| + अथवाद्ध aurea fa पुस्तकान्तरे प्राठः; | ( २६ ) ealfe: i [त्रतखण्ड टरत्रध्यायः age देवं विधिनेव ata प्रणम्य ASI सह त्यमु: | व्ययोदहन नास जपस्तवख प्रद्तिणयेक्षत्य faa waar ॥ पुरा छतो विशख्जा waa हिताय faa जगलयस्य | पिताअहनेव सुरन्द्रसा्चै महानुभावात्त महा मेतत्‌ | अधिया स्तवं वच्च सव्व सिद्धिप्रदं WH | जनन्दिनिख सुखात्‌ Yl कुमारेण महात्सना॥ व्यासेन कथितं तस््ादहमानन वा Ba | नमः शिवाय श्राय निखाय anfaa i AMARA WAT भवाय परमात्मने | qyaal दशभुजो द्यल्तिपञ्चदगेय्येतः ॥ शदस्फरिकसङ्गाणः सव्वाभरणभ्रूषितः | सव्वेन्नः सव्व गः शान्तः सर्व्वौपरि qafeaa: | पद्यासनखः सोमोऽयं WIAD व्यपोहतु ॥ दरेगानः पुरुष्व अघोरः AT Vay | वामदेवश्च भगवान्‌ पापमाश् व्यपोहतु I अनन्तः सव्वेविद्येशः समे पापं व्यपोहत्‌ | एको रुद्रो दयेकगुरुस्त लोकयानुमितो विधः । शिवध्यानेकसंपतनः स मे पापं व्यपोहत्‌ | तिसृुत्तिभेगवानो शः गिवभक्तिप्रवोधकः | ्रतखण्ड' १८अध्यायः।] हेमाद्धिः शिवध्यानेकसम्पन्नः समे पापं व्यपोहतु ॥ शो कण्टः खोपतिः ओौमाच्छिवघ्यानरतः सदा! शिवास्वनुरतः Vara मे पापं व्यपोहतु || शिखण्डो भगवान्‌ शान्तः शिवभस्मानुलेपनात्‌। शिवादच्नरतः. सोमान्‌ समे पाप व्यपोहतु ॥ वेलोक्यनामिता Sat ओंकारा च पुरातनौ | दाक्षायणौ महादेवो मौरी हेमक्तो शभा ॥ एकवर्ण रजा माया पाटलायास्तथेव च । अपणप¶ं वरदा Sal वरदानेकतत्परा ॥ ठमासुरदरौ साक्षात्‌ काभोस्था safe at | खटाक््धारिणौ देवौ कराग्रतनुपल्लवे। नैष्कन्धकादिभिदिव्यैम्तनुभिः Gane ता || मेनया नन्दया Sat कालिका कारिजेक्तणा | Sel at वोतशोकस्य नन्दिनश्च asa: | शुमावत्या सुगौषां वा TIIST वरप्रदा | Bury सर्व्वभूतानां प्रकतिश्च गताव्यया | चयोविंशएतिभिस्तचेर्महदाद्ेव्विजग्मिता | लच्मयादिणक्रिभिनिव्य नमिता नगनन्द्िनि ¦ मनोन्मधो महाटेवो माया वा मर्डनगप्रिया। मायया हि जगत्सव्वं ब्रह्मादय सचराचरं || छोभनो मोदनो faa’ योगिनोहदि संखिता। waren खिता लोकं इन्दोवरनिमेत्तणः || भक्त्वा यरमय नित्य सव्वदेवेरभिष्टता | २० Saliz: | (anes १९ अध्यायः । गणेन्द्रा श्रीजगर्भन््रयमवित्ते यपू AR: I समतां जननो तेषां सर्व्वोपद्रवनाजिनो। भक्ता नामात्तिदहा भव्या भवभावविलासिनो)) भुक्तिदा afaer देवो भक्तानाममयप्रदा। सामे ATASAT Sat पापमाश व्यपोदतु) AWAIT AT मुखाच्छम्नोव्िनिःख्तः । शिवाञ्चनस्तः यमान्‌ समे पापं व्यपोहतु ॥ aragiaaqiaa हलमग्नो faa: प्रभुः | याम्यतां मङुतान्देवः सर्व्वभरुतगरेश्वरः | सर्व्वदः WAM: सन्बुप्रभवः प्रमुरोश्लरः | सनारायणकैर"व सेन्द्रचन्द्रदिवाकरेः i ! way यत्त गन्धव्वभतभतिविघायकः | उरगेक्टपिभिखव ब्रह्मणा च महात्मना) स्तत स्रेलो क नाधस्त॒ सुनिरन्तः yt खितः | सर्वदा पूजितः wa ae पापं व्यपोहतु # x महाकालो महातेजा ACISATAIT: | गिवाचनरतः ag स भे पापं व्यपोहतु) awn सुनिशादंलः गिवध्यानपरायणः# | oN गिवाच्व नरतो नित्यं समे पापं व्यपोहतु] मरुमन्दरसङ्शनवकोरिप्रमाणतः। रेरावतादिभिरि वेदिव्येर्योगसमन्वितैः ॥ वदा हत्पुरड रोकाचेस्तस्ने ठत्ति निरुष्य च | किन्न ~ मन ho Egan flere # AMAT दति पुखकान्तर प्राठः त्रतखण्ड'१९अ्रध्यायः 1] द मादिः। २०१ गजेन्द्रवक्रो यः साक्तादा सप्तपाताल पादकः ti सप्तदो पौसुजङ्काः | सप्ताणवकुष्यख व सव्व तर्थानुगः faa: | sat वा ear fear दिग्धादः सोमसूय्याग्निलीचनः। SATU Alaa महाविद्या महोत्‌कटाः। ब्रद्मोवया धाररीदिन्ये ्योगपाशसमन्वितः | वचो द्त्यरड रो कात्तस्तम्ब afafaata च | गजेन्द्रवक्तो यः साचचादरणकोरि तेरह तः॥ गिवध्यानेकसम्पत्रः स मे पापं व्यपोहतु गोश पिद्लात्तोऽसो भसि तासिक्तदेहयुक्‌ ¦ शिवा नरतः खौमान्‌ समे पापं व्यपोहतु! चतुर्भिस्तनुभिनिं तयं सर्व्वारिविनिमनः॥ स्कन्दः शतिधरः शान्तः सेनानोगजवाहनः | शिवासेमापतिः lara स aad व्यपोहतु | HAIG स्तथेणानो रुद्रः पश्पतिस्तथा | उग्रो भीमो महादेव; शिवाच्च नरतः सदा | ये ते पापं व्यपोष्न्तु Waa: परमेष्टिनः ॥ महादेवः शिवो रुद्रः शतसुनोललोहितः। Sarat विजयो भोमो देवदटेवोभवोडइवः | कपोशख्दिवाकरः। UAT भेरवादयास्तु TETAS समा भवाः | ग्रिवप्राणसमापन्रा व्यपोहन्तु मल मम ॥ वैकर्तनो (AAT मात्तण्डो UAT रषिः t २०६ =. द्र . चमाद्रिः। [त्रतखण्ड१८अरध्यायः। MARU TARA तिविक्रमः ॥ आदित्यश्च तथा सयः अश्मा दिवाकरः | एते वें हाद्शादित्या व्यपोहतु मलं मम ॥ गगनःसखश नस्तजो रसश्च एथिवौरुा | चन्द्रः BAMA चात्मा वसवः शिवभाविताः 9 पापं व्यपोहन्तु मल भयं नानाविधं aa! वसव; पावकश्चैव चयोनेक् fa रेवच |! वरुणो वायुः सोम ईशानो भगवान्‌ हरिः। पितामहश्च भगवान्‌ शिवध्यानपरायणः ।४ एति पाप व्यपोहन्तु मनसा कणा क्तः | गभस्तिस्शनो वायुरनिलो मरुतस्तथा ॥ प्राणोपानख slant Aas 4 भाषिताः ॥ रशिवाचचनरतः Val व्यपोहन्तु मलं मम ¦ खेचरो वसुचारौो च ब्रह्महा ब्रद्मवित्‌सुघौः॥ सुषेण. शश्वतः पट्टः APSA महाबलः | एते वे चारणः Wait: पजयातोव शोभिनः | व्यपोहन्तु मलं WA WIA मया छतं | wast मन्तवित्पक्ञो हंसरार्‌ सिद्पूजितः | सिदिवित्परमः सिदिः सव्वं सिद्धिप्रदायिनः। व्यपोहन्तु मलं सव्वं सिडाः शिवपदा चं काः ॥ यत्तो यक्तेशधनदौ GAA मणिभद्र a | CMU: ATH fufa: yewfaiaq च। ACEI A AN व्यपोहन्तु मलं मम। gaan vemara: |] watz: अनन्तः कुलिकश्चौव वासुकिस्तत्तकस्तथा ॥ कर्कटको महापद्मः शङ्पोलो महावलः | (NAVARA: शिवदेवप्रभूषणः ॥ मल पाप व्यपोहन्तु fay खावरजङ्धम। Raps: fatwa श्रसेनः प्रमद नः अतिशयः सुप्रभोगौ mana fa किन्नराः) शिवप्रणमसम्पन्ा व्यपोहन्तु मल मम tt विद्या विनौतो विद्यालीराशिव्व दविद्‌ाम्बरः। प्रबुद्धो विवधः Alara AANA AAA: | एते विदयाधराः सव्व शिवध्यानपरायर्ाः | व्यपोहन्तु मलं सव्व ' महादेवप्रसादतः ॥ हयग्रोवो महाजम्धः कालनेमिमंहायशाः | aaa मह्‌ कथौव fara देवमादहवः॥ ग्रह्ाद्खषानुद्ादश चिवित्राष्कल एव च। जम्भकुग्भो च मायावो कात्तवबौगः HAMA: ॥ एते सरा महामानो महारेवपरायणः। व्यपोहन्तु महाघोरं पापभारं ममेव च॥ गरुत्मां य हरिव ufacgianea: i armas fet वैनतेयः TATA! | नागानां विषनाशख्च fawmarea णव च। एते हिरण्यवगंभा aver विष्णुवाहनाः | नानाभरणसम्यन्ना व्यपोहन्तु भयं मम ॥ परगस्तिश्च वसिष्ठश्च श्रह्गिरा wata a! > ७ चेमाद्रिः। [वरतखर्ड'१८शअ्रध्यायः । कश्यपो ACSA दधोचिश्ावनस्तघा) उपमन्य॒म्तथान्य च ऋषयः शिवभाविताः । शिवाच्चनरता न्तु मनसा कर्मणा ऊतः ।॥ गभस्तिस्पशनो वायुरनिलो Ata | प्राणः प्राखेग्जोवेजी जौवोमरुत एव च ॥ रिवाचनरताः सव्वं व्यपोहन्तु मलं मम | खेचरौ वसुचारौ च awe बुद्धविस.धौः॥ पितरः faataera a तयेव प्रपितामहाः | अग्निखत्ता वहिषदस्तया मातामहादयः | ane भयं पापं शिवध्यानपरायणः । MMA धरणौ चेवं Waal च सरस्रती+ दुग उमा Tat VT ST मातरः सुरपूजिताः। देवतानां मतायचैव गणा मातामहादयः । व्यपोहन्तु भयं पाप गिवध्यानपरायणः1 लच्छीश्च धरणो चेव गणानां मातरस्तथा । भूतानां मातरः Tas TAM! गणमातरः | प्रसादाद्‌ वदटेवस्य व्यपोहन्तु भयं मम ॥ Saul मेनका Va रम्भा चव तिलोत्तमा! सुसुखो TUM चेव कामुकौ कामवर्दिनौ ॥ HATA: सव्वलोकेष्‌ दिव्याखासरसः शुभाः। यिवाय तारडवं faa’ ga न्ति शिवभाविताः | गये faata नरता व्यपोहन्तु मलं ममः। अरकं; सानोऽङ्गारकश Tre व awautia: व्र खण्ड esate |] शमादिः 1 ९०९. शक्रः WHATS a राहुः AUST: | व्यपोडन्तु भयं घोरं शिरःपोडां शिवाचंका; | मघो ठपषोऽथ मिधनं तथा ककटकाः शुभाः A सिद कन्या विपुला तुला वे ठ्िकस्तघा । धनुश्च wala a gall मोनस्तथेव च॥ राशय etemraar: शिवषृजापरायणाः | व्यपोदन्तु परं पापं प्रसादात्परमेहिनः। afaat uct चैव कत्तिका रोहिणो तथा खोमान्मुमिराञ्राद्री प॒नव्वसुपुष्यसपकाः | मघा वैपूर्वफालगुन्या उत्तराफाल्गुनौ तथा ॥ gar faar तथा खातो विशाखा चानुराधका! SAT मूलं महाभामा पूर्वाषाढा तथव Te वणद् धनिष्ा च तथा अतभिषापिच। पूर्न्मभादरपदा चेव तथा प्रीष्टपदा Gar: । NWI चटेव्यासततं व्यपोहन्तु मलं मम १ TATE WITHA व शतक णोमा वलः ॥ AGIAN: WAS प्रभुव्वी प्रौतिवदनाः t कोटिकोटिग्रतेयैव yar नो परिवारिताः ॥ व्यपोदन्तु मयं पापं महादेवप्रसादतः | ग्रिवध्यानेकसम्मत्राः शिथिरा इन्द्‌ मृत्तिंभाः। कुन्देन्द्‌ TEU: कुन्देदुवडवामु खः | वडवासुख्य श्लुपय्यावडवासुखभेर्‌ नः | वपुष्मांयव USHA BMWs द्रव पाण्डर १ ( २७ ) SANZ: | [ततखर्ड' १९ अध्यायः 4 aziaia faa faa’ रौद्रौ; are fear गणः । वरषेन्द्रोविरुतिद्‌ वोविश्वस्य जगतः पिता। व तोनन्दादिभिर्नित्यः माठभिमेषमदहनः | शिवाच्चनरतो नित्य मम पापं व्यपोहतु ॥ गवां माता जगन्प्मता रुदटरलीकें व्यविता। माता Hat महाभागा समे पापं व्यपोडहतु। gar गोलसम्पन्ना शिवभक्तिपराथणा | शिवलोके खितानित्यसा मे पापं व्यपोहतु । वेद्‌ शास््रायेसनव्व्नः सव्वश्ास्त्राघविन्तकः १ समस्तगुणसम्यन्रः सव्वेदेदेण्वरोऽमरः | ज्येष्ठः MARU सौम्यो महाविष्णु चतुशटय | आद्यः सेनापतिः शास्व' Wea मेषमड्‌ नः | एेरावतगजारूटः कष्णकुचितम्‌डजः | कष्णमौराक्तनयनः शशिपन्नगभूषणः | एतेः प्रेते: पिशाचे कूभाण्डेखव daa: 0 शिवा नरतः साच्ताव्समे पापंव्यपोडतु | TIT चेव ASA कौमारौ Fat तथा। वाराहो चव मादेन्द्रौ चामु रडाग्नायिका तथा | एता वे मातरः Wat: सव्वंलोकप्रपूजिताः ! सोगिनौभिर्मद्ापापं व्यपोहन्तु समाहिता; | वीरभद्रो महातेजा हिमङ्ुन्देन्द्‌ सन्निभः । रुद्रस्य तनयो VS. भूलगक्तमहाकरः। सदहख बाडइः WAH! सरव्वीयुघधरः खयं ! व्रत खर्ड' १९ श्रध्यायः '] Saige २११ चै तागिनथनोपेतो a लोक्याभयदः प्रभुः । मातां रच्तको नित्यं महाच्षभवाहनः | च लोक्यनिश्धितः यौमान्‌ भिवपाद्‌ाचने रतः। यज्ञस्य च शिर च्छ त्ता पूषद्न्तविनाशनः॥ वद्ध ह न्तरातः सात्तादगनेचनिपातनः) गणेश्वरो AN atl @ A पापं व्यपोहतु | ज्येष्ठा वरिष्ठा वरदा सन्वोभरणभूषरिता | महालच््ौजेगन््ाता सम मे पापं व्यपोहत्‌ । महा मोहा महाभागा महाभूतगणेव्व ता | शिवार्चनरता faa’ सामे पापं ated | लच्छो; सव्व गुणोपेता सव्वलत्तणलत्तिता | WHT Wag Sat a मे पापं व्यपोहतु सिंहारूढा aereal afearacafe at ॥ शिवाचेनरता र्द्रा WA ITT व्यपोहत। RSW Weefaal ब्रह्मार्डगणनायका। कुष्मा र्डख्ेति भे पापं व्यपोहन्तु समाहिताः ॥ अनेन देवीं Wal तु चान्ते Aa BAIA | प्रणम्य शिरसा भूमो प्रतिमासं दिजोत्तमान्‌ व्यपोहन स्तवमिमं यः पठत्‌ शृणुयादपि । विधूय सव्व पापानि रुद्रलोके महीयते | HMA लभते कन्यां जयकामो जयं लभेत्‌ ॥ श्रथकामो ANT पुचकामो वहन्‌ सुतान्‌ t विद्यां लभते विद्यां भोगाथोँ भोगमा्रयात्‌ ॥ ALR हेमाद्रिः [ वतखर्ड' १९ अध्यायः ! यान्‌ यान्‌ कामान्‌ प्राथयते यज्ञानाच्ैव यत्फलं | दानानाचेव यत्पुख' व्रतानाच् विङेषतः ॥ तत्पुख' कोटिगुणितं sar प्राप्नोति मानवः | MAST RATS वीरा ABST तथा | ्ररणागतक्षातोच भितरविश्वासघातकः। HS: पापसमाचारा माटद्ाः laser तया ॥ निहत्य सव्वेपापानि शिवलोके महीयते 3 दति लिङ्गपुराणोक्तं मलव्यपो दनं पा प्ूएपतव्रतं | 000 —_—— भगवन्‌ ओोतुमिच्छामि aa पाशुपतं वरं। ब्रह्मादयोऽपि यत्‌ AAI सव पाशुपताः War: f वायुरुवाच । र्स्य यत्‌ प्रवच्यामि सर्व्वपापनिक्तन्तनं । व्रतं पाश्पतं ws मथा च शिरसि युतं ॥ कालचैत्रपोणमासौ देशः शिवपरिग्रहः। SAT ASCH A प्रशस्तः शभलक्षणः ॥ तच्च पूव्वेतयोदण्वां Carag कताह्िकः अतुलाय्य' ware संपूज्य प्रशिपित्य च ॥ पूजां खशाखिको' Hal शक्ताम्बरधरः खयं । शक्तयन्नोपवोतो च श्क्तमालयानुलेपन; ॥ दभांसने समासौनो TUBE wwe च । प्राणायामत्रयं Fa MY खोवाण्युदघ्नखः ४ वतखरड १९ अध्यायः] Was | ध्यात्वा faq देवी तदिज्ञापनवन ना । व्रतमेतत्‌ करोमोति भवेव्छङ्ल्या टोत्तितः ॥ यावत्‌ शरोरपातच् दाद शाब्द्मथापि att aga वा तदव वा मासदादशकन्तु वा। तदै वा तदै वा मासमेकं मथापि at | दिनदहादशक वाघ व्रतसरद्ःल्यनं विधिः । समिदमरिनिमाघाय विराजो होमकारणात्‌ ! salvia afafes चरुणा च यथा क्रमं ॥ Guat पुरतो भूप await शुदिसुदिथेत्‌ । लुहयान्मृलमन्तेण तारे च समिधादिभिः। तच्चान्येतानि HES शडान्यन्यानि संस्मर t पञ्चभूतानि तत्वानि पञ्चपञ्च न्द्रियाणि च। न्नानकम्धविभेदेन पञ्च पच्च विभागशः p तल्गाद्िघातवः aa पञ्चप्राणदिवायवः ! मनसा छतं Aaland प्रकतिपूरषो । = ~ रागोविद्या कला चव नियतिः काल खव a । अयाय Wefaara मदशवरसदागिवो | शक्तिश्च शिवतच्वानि तानि च क्रमशो विदुः| मन्त्र स्त॒ विरजो इत्वा होतास्त नवि गतो भवेत्‌ | अथय गोमयमादाय fawlaa निमन्ताच) न्यस्याग्र तन्तु diy दिने तस्मिन्‌ हविष्यसुक्‌। ज, o क Oe ® प्रभाते च चतुद श्यां तच्च सत्व ` यथोदित ॥ * मनखाद छतद्ुर!मकमिति पुस्तकान्तर पाठः, ९१२ २१४ हेमाद्रिः । [aaaw pean: } fea तस्मिन्‌ निराहारः arate समापयेत्‌ । प्रातः पव्वेरि वाय्ये इत्वा होमच् awa: | उपसंहृत्य Vela गह्लोयाडइस्म पाचतः॥ ततस्त जटिलो FG शिष्य कजव्व Tt हत्वा ग्नो तु पुनव्वोंतलज्नख स्यादिगम्बरः t अन्यः कषायवसनचखन््चोराम्बरो यथा | रक्ताम्बरो वल्कलो च भवेद्रो च Baa | प्रत्ता WU प्ाहदिराचम्पामनस्तनु ॥ सकलो क्त्य asa विटजामलसम्भवं ¦ अभ्िनिरित्यादिभिग्न्े; षद्धिराघ्वंणेः क्रमात्‌ निश्चव्याङ्गानि मृडादिचरगणन्त च संस्पृशेत्‌ | afafifa भस्मवायुरिति भस्मजलमिति भस्मस्थलमिति waaae त्वा इदं भसरणाङ्गएतानि wate cama ए Away, षट्‌ ॥ ततस्तेन MATT UA ल्य च भस्मनः | सव्वाङ्गोदलनं कु््यीत्‌ प्रणवेन शिवेति च ॥ तत faq’ रचयेत्निरायुषसमाद्वय | शिवभाव समागम्य शिवयोगमयाचरे | कुया तिसन्धपरमि चेवमेतत्पाशप्रतं ad | भुकिमुकतिप्रटखेतत्‌ पशत विनिवत्तंयेत्‌ । तत्पश्त् परित्यज्य AA पाश्पतं व्रत | पूजनोयो महादेवो लिङ्गमूत्तिः सनातनः ॥ ७ > + ~ # पद्ममष्टदलं हमं नवरलनरलङ्कतं । aaa १९ अ्रध्यायः 1] Bartz 1 २११ कणिकाकेश्ररोपेतमशन परिकल्पयेत्‌ ? प्च तक्ष्णनिभ ura faa cau art UT AMAA तु केवलं भावनामयं ॥ 0 ~, क # पद्मस्य कणिकामध्यं कलवा fay कनोयसं | स्फाटिकं पौठको पेतं पूजयेदथितः क्रमात्‌ ॥ प्रतिष्ठाप्य विधानेन fae कतसुगोभनं। परिकल्यपासने मृत्तिंपञ्चवक्र प्रभाकर | wy ® पञ्च गव्यादिभिः पुण्यैयघाविभवसं खतः | 2 न > स्नापयेत्‌ AAT: FU. सहस्राणि सुसम्भवः। = ॐ WAZA: PRY CAAA FEA: ॥ सवेदिकं समालिप्य fay quuyfad | > ~ faqs a Wa a वाच रक्तो AAMT: | उत्यैर्नोलोत्पलेः | १ A A नोलोत्पलेम्त धान्य ख पुष्पे स्तस्ते; Gaff: t EN AND AC € पुष्प: प्रथस्तेश्चेत ख पुष्य दू व्वाच्ततादिभिः॥ समभ्यच्य यथ।लाभं महापूजाविधानतः । # गे ‘ Or Aw on, धपं दोपं तथा चाध्य' aaa विशेषतः | 2 ~ निवेदयित्वा विधिवत्‌ कल्याण समाचरत्‌। evita च विशिष्टानि न्यायेनोपाधितानि च ॥ o ~, ~ ~ सव्व द्रव्याणि देयानि त्रतेलस्मिन्विशेषतः। (खौ पचोत्पलप्रद्यानां सहया माह चिकामता |) प्रत्ेकममणव्यापितमद्टोत्तर fear | ततापि च विशेषान्‌ यदिल्वपत्रक पर ATS: २१६ देमाद्रिः। [बरतखण्डं१९ श्रध्यायः। परान्‌ पद्यसदखङान्‌ नोलोत्पलादिष्टोप्यतव्छमानं विल्व पच्रकं ॥ प॒ष्पान्तरे न नियमो यथालाभं प्रपूजयेत्‌ | अष्टाङ्गमष्य सुत्कष्टं धूपदीपौ विशेषतः ॥ कष्छागरुरघोरास्ये रक्ता सयमनःशिलो। GCA WATAUGA सुखे कष्णागुरः Ya पौरपेगुगगुलं सव्यं सौम्ये सौगन्धिकं सुखे । दशानेऽप्रितु सोतादौन्‌ दद्याद्धूपं विशेषतः ॥ शकरा मघुकपू रं कपिलाछतसंयुत। चन्दनागुस्कुष्टाशच माल्यं वं WAI | क पूरवत्तिंजोपाया देवौ दौपावलिस्ततः ॥ प्रघोरचन्दनन्देयं प्रतिचक्रमतः at | प्रथमावरणे पूज्य क्रमाद्िवखरासुखो | ब्रह्माङ्गानि daa a प्रथमावरण्च aq | दितोयावरणे पूज्या विदो शाखक्रवत्तिनः॥ टतोयावरणे पूज्या MATA TAT । महादेवाद्‌ यस्तत्र तथेकादणमू त्तयः ॥ चतुर्थावरणे पूज्याः सव्व एव WATT: । afeia तु पद्यस्य aqa ज्योतिषांगणः ॥ सव्व fara Sara सर्व्वाः सव्व $पि खेचराः | पातालवासिनसे व सवे मुनिगणा अपि । योगिनो गुरवः सव्व पञ्चगोमातरस्तथा । SAUNA सगणाः Wa वे तच्चराचर ॥ AMAT पूनान्त सपूज्य परमेश्वरम्‌ । aay costes: 1] देमाद्धिः। २१७ शय्यासनं खजं ga हविभंक्या निवेदयेत्‌ ॥ सुखवासादिदत्तानां ताम्बूल सोपदं शक' । nda ड भूपोपि नानायुष्यविमूषणेः » नौ राजनान्तां विस्त पूजाशेषं समापयेत्‌ । ATR सोपदट्‌शच् शयनञ्च समप येत्‌ | यद्यत्‌ यस्य हितं ह्य त्सव मलुरूपतः | कत्वा च कारयित्वा च खित्वा च प्रतिपूजनं tt स्तोतचव्ययोदनं sar विद्यां पञ्चाचरीं जपेत्‌ । (पञ्चात्तरी विद्या च वायुसंहितोक्ता)) अस्याः परमविदयायाः खरूपमधघुनोचयते। आदौ नमः प्रधोक्तव्य शिवायेति ततःपरं | सेषा पञ्चात्तरौ विद्या संवख्ितिशिरोगता | WEA तस्य सवस्य वौजभूतः समासतः ॥ प्रमं AA BIE मम मेवात्मवाचिका। तक्तचामोकरप्रख्या पौनोत्रतपयोघरा 1 चतुभेजा विनयना बालेन्दुक्तभेखरा | पञ्मोत्‌पलघरा सोम्या वरदाभयपारिका। सव्वलत्तणसम्पत्रा सवाोभरणमूषिता। सितपद्यासनासौीना नौोलकुच्चितम्रूडजा ॥ रस्याः पञ्चविधावणां प्रस्फरद्रविमर्डसा | HARUM TA धूख्रवणीभारक्तएव च ॥ BAR प्रयुक्तायेवेता विन्द्‌, नाद्विभूषिता | अधच चन्द्राछति च्विन्दनाददोपरिखाकछति;। ( रेट ) २१ Safe: | [व्रतखगण्ड'१९श्रध्यायः। ain हितीयबौजेषु aaare वरानने। दौषेपबंतुरौयस्य पञ्चमं शक्तिमादिरेत्‌ ॥ वामदेवोनाम ऋषिः पडक्ति्म्दख श्रादितः। रेवताशिवएवाहहं मन्तस्यास्व वरानने | Sara वे षरारोद्धा विश्वामिच स्तयाङ्िराः। भारदाजञ्च वर्णानां क्रमश कषयः War: ॥ गयक्यनुष्टुपढष्टप च च्छन्दांसि हहतोविराय्‌ | इन्दरीरदरोहरित्र ह्यास्कब्दस्तषां च देवताः) मम UY AIAN स्थाने तषां वरानने) पूव्वोदिवीडपबं' तं नकारादि वथा क्रमं! उदात्तः waaay चतुथे ददितोयकः | qamafiaa मध्यमोनिहतः aa ie मूलविद्या fad ta aa carat तथा । नामान्यस्य विजानोयादेवं मे द्यं aa ५ नकारःशिव उच्येत ware शिखोच्ते। शकारः कवचः तद्हाकारोनेत्रउच्छते ॥ यकारोस्त्र नमः स्वाहावषर्‌हुदोषडत्यतः। फडत्यपि च वणंनामन्ते Fa यदा ae तत्रापि मूलमन्चोऽय किञ्िद्धेदसमन्वितं) तत्रास्य पञ्चमोवणों हदाद्गस्वरभ्ूषितः ॥ तस्मादनेन HAT मनोवाक्ायभेद्‌तः | गिवयोरश्चनं कुर्य्यात्‌ जपहोमादिकं aarp प्दत्निण् प्रणामञ्च Bal सानं समच॑येत्‌ | रत खर्ड' १९ ब्रध्वायः 1) BAT: | २१९ ततः पुरस्तादेवस्य सुविद्ये च प्रपजयेत्‌ ॥ द््वा््य पुष्टौ पुष्मारि देवसुदिश्य fara: | afaalfag ata यदा fam aaa: | WS HAIG कुशात्‌ सव पुरोहित | ततस्तस्याम्ब्‌ जं fay सरव्वोपकरणान्वित ॥ Wau gaya स्थापयेदा शिवालये | सपृज्य च गुरूनन्छान्‌ त्रतिनख विशेषतः| भकान्‌ हिजानभुक्तांखदोनानाधांख तोषयेत्‌ | सखयच्यानशनप्रायः फलमूलागनोऽघवा ॥ ययोत्रतो वा भित्तागौ दिवेवेकाशनोभवे। am सुक्लायन faa’ भूशयोविरतः ofa: a VAT गशखाशायो वोरासन्ययोऽथवा। नर द्रष्वय्धरतो नित्छ त्र तमे तत्समाचरेत्‌ | RAUNT तथेन्दौ वा पञ्चदश्या TAA | अष्टम्याञ्च चतुद श्यां गत्तयाह्यपवरेदपि । TATA TAA स॒ तकान्यजपूवि कान्‌ | AWM AIA मनसा कमणा गिरा॥ त्मा, दानं दया, सत्यमहिंसा Vaal भवेत्‌ | सन्तुष्ट प्रणान्तख जपध्यानरतस्तथा ॥ कुयाोचिषवणं ara भस्मस्रानमधापि ar | पूजा वेशाखिकच्चव मनसा कणा गिरा। बदनात किमुक्तेन नाचरेदयिवं व्रतो प्रसाद्‌ात्त सदाचारे निरूप्य गुरुलाघवं | २२१ हद माद्धिः | [वतखर्ड १९ श्रध्यायः | उच्छछितां निष्कृतिं कुयात्‌ पूजादहोमजपादिभिः | आसमाता बतस्यैवमा चरेत्रप्रमादतः। गोदा नङ्गोहषोव्गं कुयात्‌ पूजाच्च संसदः । सामान्यमेतत्‌ कथितं व्रतस्यास्य विधानतः | प्रतिमासं विशेषच्च प्रवदामि aaa ft are वज्लिङ्गन्तु ज्येष्ठं मारत्रतं भं । आषाढ़ मोक्तिकं विद्यात्‌ आरावे नौलि तं # मासे भद्रपदे टेव प्यरागमय Wa | अआश्युज्यान्तु विधिवद़ोभेदटकमयं शुभं ॥ कात्तिक्यान्तु ga लिङ्ग Fear मागभोषके। सुष्परागमयं पुष्य ara q मखणिजोरथं॥ फाल्‌गान्याच्चन्द्रकान्तोथं चेते मासेऽथवा तथा । सव्व मासेषु रन्नानामलाभे देमभेववा॥ SAA A राजते वा ताम्रजं लोहमेव at | WWF वा यधघालाभ क्षणिकं Wea वा| सव्वं" गन्धमयं वाच लिङ्क यथारुचि । त्रतावसानसमये समाचरितनेत्यक। छत्व वै शाखिकीं gat इत्वा चव यथारुचि | संपूज्य यजनाचाय्य afaas विशेषतः ॥ देशिकंनाभ्यनुन्नातः प्राङ्मुखो वाप्ुर्‌स्न खः | दभासनो दभपाशिः प्राणापानौ figa च ¢ जपित्वा शक्तिती मूलं ध्यालालिष्ध' चियम्बकं। NAW aya awa ठताच्नलि; \ व्रतखर्ड'१८ अध्यायः] warfz: ससुत्‌रूजामि भगवान्‌ व्रतमेतच्चदाज्ञय। । £, ~ Taal दौघमूलान्तु Tala त्तरतसत्यजेत्‌ | ततो दभजुटाधारमेखला अरपिवचोत्‌्जेंत्‌ | पनरात्तम्म विधिवत्‌ पञच्चात्तरसुदौोरयेत्‌ | यः कुयात्‌ व्रतिक्षोरौक्मादटेहान्तमनाःकिल ॥ + A A व्रतमेतत्‌ प्रक्ुवोतस तुवं नेष्ठिकःस्र तः! स्यः शमो च fas at महापाश्पतस्तथा ॥ सएव तपसाखष्टः सएव च महाव्रती | न तन een कथित्‌ कछतङ्लत्योसुसक्लषु # af “Ae bd यतिञख्नषशिकोयातः aareasearaa | या AA तहादशाहं व्रतमेतत्‌ समाचरेत्‌ । शोऽपि afeaqe: स्यात्‌ शिवत्रतसमन्वयात्‌ | घछताक्तायश्चरेटतत्‌ Ad त्रतपरायणः॥ हिबेकदिवसम्बापि सच कश्चन afea: | कतक्तव्यश्च निष्कामोयश्रेदुत्रतसुत्तम॥ शिवापिंताम्ा सतत dara: सदशः कचित्‌ | भवच्छित्रोदिजीविहान्‌ महापातकसम्भवेः | A ^~ “~ ~ . पापविमुच्ते सदयो Fad AW संश्यः। -~ > O $ REG Veal Hla asa परिकौत्तितं॥ AD ~, aly ० यस्मात्‌ सवषु लोकेषु बौय वान्‌ कछतसंयतः | भस्मनिढस्य द्यन्ते दामो भस्मानि सङ्गमात्‌। भस्मस्रान fagerat भस्मनिषठद्रति qa: | भस्म सन्दिग्धसवाङ्गो भस्मनिष्टद्रतिस्म a: | २२१ 7 कन्द ष = ट _-7 ~ ग = 4 न= तै => =. wee ८ ~ = a ॥ १1. ४ „1 २२२ हेमाद्रिः । [avaw १९ अध्यायः | भ्रतप्रेतेषु सव्व षु लो केष्वन्येषु वा भवेत्‌ | अरोगः सव्व सिद्धार्थो भवेच्वातौ वदुः स्ट ॥ भस्मनिष्ठस्य सात्रिध्याविद्रवोतिन सशयः | मासकम्भरसिक Wa भत्तकल्प्रषभक्तणात्‌ | aia भूति कर gat रक्त Ta aT aT | fang fae वक्तव्य' भ सममादहात्ागकारणं। व्रतौ च भस्मना Bla: MT देवो UST: ॥ UTA शौचानां भस्मेतत्मारमेश्वरं | धोम्यग्रजस्य तपसि व्यापादोयं निवारितः ॥ AAA जयन्तेन: कत्वा पाशुपतं व्रतं | घनवह्स्मसंग्टह्म भस्मस्ानरतो भवेत्‌ ॥ इति बायुसंदितोक्त * पाप्रुपतं व्रतं । 000 श्रथ गजपूजा | aa खो गजेखर प्रायेनमधिक्लत्याह पालकाय; | एवमस्ति देदेणस्तसुवाच मतङ्गज'॥ AUST पृणचन्द्राथां मामभ्य्चय नराधिपा; | तवपूजां करिष्यन्ति दत्तोद्यषवर स्तव | तस््राह्ववसमाराजं पृजा काव्यां नरोत्तमैः । asta विधानेन एविभिस्तपवासितेः ॥ Se * sla quate पाण्एपतत्रतमिति पुलकान्तर पाठः व्रतखण्ड cess: |] warfe: | २२३ खौोकामैचख विशेषेण सदेश्वशथकरो शभा | Sal तस्य षर देवो भगवान्‌ भूतभावनः | गतः समास्य देवौ गताः Bara देवताः ॥ faq ददाति विपुला यस्मात्‌ पूजाविधानतः १ प्रख्यातः खो गजस्तस्मा्मयदो वृपसत्तम ॥ तेनेषा क्रियते gar दिरदानान्तु नित्यशः! इदमन्यत्‌ प्रवच्यामि कल्यमस्य नराधिप ॥ चतुणा च्षोरदत्ताणां दरव्यमन्यत्‌ बन्धुभिः | उपोष्य ग्राच्येद्धिप्रो बलिं sata कारयेत्‌ | पण्यादघोषरेण ततः wie वाच्य दिजोत्तमान्‌ | पच्ारल्िप्रमाणंस्याद्ग्रन्यिकमकोटर | स्तच्च वानुपूव्वेच्छ Waa: साधृवज्नितं । ्रायामातास्यच भवेत्‌ कणिका दाद्‌ गाङ्ग AT | वि गत्यङ्ग लनादहाच् काया त॒ सुसमाहिता) वेलागवात्तनलिनोमग्निव्यच्छनकं तथा i. aze याज्ञिकं भार्डन्तग्रैवासनकङतं | सचन्दनाख कलगांखतुरःग† सोद्कांस्तघा। सामान्य WHI शेषन्द्रव्यसुपाहरेत्‌ ॥ ततो विप्रः शुचिभला anwar aed | सनत्कुमारं वरद्‌ योगजच्च महाबलं ॥ watq देवान्‌ anwar दिशषाष्टौ समाद्धितः | सव्वादषिगगां्व तथा नच्तत्रमर्डलं | meee 4 विलामय्यादनल्िनो pafeata पुस्हकान्तरे पाठ, । २२४ देमाद्रिः। [रतखण्डं १८भ्र्यायः। समुद्रानापगाः सववाः समदहोरगरात्तसाः | पव्वेताः सव्वभूतानि जङ्गमाजङ्गमं जगत्‌ ॥ एेरावतांश्चाथ पुनन मस्छत्य दिशाङ्गजान्‌ | उपोष्य सभ्विशेद्राचौ वासोभिरहतेदिज ॥ सेनान्यां ञ्च नमस्छञत्य ghz ता warata: | कुशास्तरणसंतत्तेस्थडिले प्रयतः शुचिः ॥ स्रोभूते पुनरुत्याय चातो भूत्वा समाहितः । तस्ये यस्त गजेन्द्रस्य नमस्छरलयाधिरोहयेत्‌ ॥ Uwe तालच्यजनं माल्यदामोपशोभितं | नन्दितय्ये ण महताचोदयमानेन गोभितं | सालङ्करणकः YX ह मजालविभूषितं नानाकारे स्तथावस्त् : समन्तात्‌ परिषै्टितं ॥ चन्द्नागुरभिस श स्वगन्ध र लङ्कतं | स्तीरूपपेगैः yaa: परिचर्यापशोभिते; | जल्यद्धिनिष्टरं वाक्व प्रहसद्िस्तयैव च ॥ aqua वौधथिमागे तथेव चत्वरेषु च । राजभागषु च भगं घोषवन्तस्ततस्ततः ॥ रच्यिष्यन्ति" aed राजानो विजयं पिबू । सेनापतिरमाल्याश्चये चान्य तददिजानतः॥ पूजयन्ति यधा न्यायं तथेव गजो विनः | Se * पखाश्रयिन्तोति Gaarat ara: | + विचयेषिख दति पुलकानरे पादः = । न्म STi द श्रद्ध, त्रतखण्ड' १९ ्र्यायः ।] eats: २२५ अतोन्यधा तु PAU: सससिवलवादमाः# | Ac? ~. ^~ = जच राजास व्वि नश्यन्ति देवता{वक्षमेण व > ^ $ Wad च वं तस्म सम्यक्‌ पूजां नराधिप । सपुचदारा AEA सराष्रबलवबाडइनाः | ॐ न ~ > ~, प्राज्ञां माहशखरस्यतां afaweia FT Sar: | संग्रामे शत॒संघाते भवन्ति a विदारिः ॥ काले बोजानि रोहन्ति सम्यग्बषति वासवः । ENN न भवत्यत मरको व्याघिदहानिस्तधवच॥ निरामयय Yala राजा KAS वसुन्धरां | पं प, रं ५ कै रत्ाकरवतों Sat सथयलदनसाननां। रोगा CIMA जायन्त च सतङ्गजा;। 7 0 ~ = ~ राजोपजोविनः wa ala: aafaar: | a + = नी प ’ yaa ania जोवन्तिच एतं GAT: | ~ oN . अरोगा TAIDA जायन्सव्र CAT WA | Gall लभते Ya धनाथ लभत Was यांश प्रायेयते कामान्‌ सव्व॑स्तान्‌ Wy AAT: 1 एवं aU ददहाराज शम्भो भक्तसाज्वितं चिभो। सखौ गजस्य wafers चिदु लकु विद्युतं! मया ख्यातं महाबाहो विस्तरेण यघाक्रम। — (~ <, इति पालक प्रोक्तीमजपूजाविधिः । 00८८ ०0-- „ VUE VATA: दति पुूकान्तर पाठ! ! † भयं विदिचिषु wes पृजिमिति Gaara पाठः| ( २९ ) २२९ eae: | [तखर्डः१९ अध्यायः | अधाव्वेणगोपथव्राद्यणं | श्रथाश्वयुजे AS पौणेमास्या aque हस्तिनो नौराजनं कुयात्‌ | प्रागु कूश्चवने देशे aa fefa ar मनोरमते गिरय मत पव्वेता इत्ये तया हस्तगशतमदैम्बा मण्डलः ney याभिखमितिसंप्राचयेत्‌ aa श्लोकाः दणदस्त समुत्सेधं पञ्चहस्तं सुविस्ततं | शान्तव्रत्षमयं क्य्यात्तीरणं yfvasa ॥ शौ; शक्ताम्बर धरे म्तन्माल्येरपि भूषित | कारयेत्‌ स्थण्डिले Wa tia परिपूरिते रसेस्रामभिषिच्चामि भूमे मद्यं िवा भव । Saal aaa मम यन्नषिवडनो ।॥ SHIA टताभ्यक्तौ Wal भावसमावती + ॥ ara कथाभिदामति तनिमौ स्तम्भौ fae हतामित्पुच्छयस्व TWIT त इत्यभाभ्यांसुवण्मालापताकस्तम्भो संयोज तस्या धम्त।च्यतुदहस्तां वेदों कत्वा तन्वमिव्यक्तदभः पविच्रपारिविलि प्यार च ear मधुलाजामिख aaa सयावद्‌धिक्शर ` वरसष्टुतविविघ्ान्रपानभच्यलचफलेरग्निः परिस्तो्च आपो ˆ गन्छातरः शन्धनःन्तिति चतुरोड्म्बरान्‌ aang छदोद्केन om, प्रतिदिशमवस्थाप्य द्ष्याद्रद्राम्नेयं वायव्यवारुणा ` --च्च्रकुव्या दूषणं यशस्य चञ्चस्यानिच हतवोषधिंसमाद्‌ाय . म्रण्डलनिलक्वा । तच BRT: । --- — ee oe ee Pa Da re ee cere maaaaqitafa पुलंकान्तर पाठः। - यत्रेति पुस्लकान्तर्‌ पाठः| Mle ET a 8, व्रतखर्ड १९अध्यायः।] PATS: | २३० fast व्याघ्रौ च हरिणो waar चापराजिता) afaqul च gat च पञ्चमुत्मलमालिनो ॥ तामनुमन्तयेदेदलं कटकसवद्ध्याहापि वयाघ्रन्ननङ्डय् परि- Qi, वेतस्याङ्म्भमनुमन्दया, ततोस्यास्माद्धिदेवता तस्ये च वलिं द्वा, पिण्डानि च दध्यात्‌ हस्तिनाम वाचयेयस्यां fefa स रिपुभवति ai दिश गत्वा खस्तिनमानयेदिरणयेन रजतेन वज्र ए मरिसुक्ताशङ्न चन्दनेन भद्रदारुण्या कुषेन नलदटेन रोचनयान्ननेन मखिङ्शिलय पद्मकुमुटोत्पलम मागन a Sela सूक्तं द्तिणोत्तरप्रतिसुखं प्रति- जपे च्छषणए गाचाखभ्यजयेत्‌ Baqi aaa: हस्तिनो. रचणे ew, कत्तव्योवेणदोनवः । पोड़गारलिमाचस्तु चातुपवं मनोहरः | तेन वारणात्तारयते sway aufa क्तः ग्रसति जातं जात जातवेद्समित्यमिनिं प्रज्वालयेत्‌ सुजातं जातवेद समिति नौराजयित्ा निधि विश्वतौति शालस्तु प्रवेगयेद्ये न- Gaara: स्वानि सथानानि व्रजन्ति दौषघीयुषीवलवन्तय ददि गोसहस्रं कत्तद्‌्तिणाग्रामवर च | दरति गजनोराजन बिधिः | O00 सनत्कुमार SATA | 8 + ~ अथ पव्वेणि aq’ तच्छ Us महामते ¦ यज्‌न्नाल्ला मनसः चान्ति* सुसम्भूतिच्च fa ॥ [> का 1 क ~ ~. ~ = == a कान्तिरमिति युतकान्तर पाठः| २२८ eae: | [व्रतखण्डं१९अध्यायः। aqua fu mama? शभम्बा afe area । घटठिवषंसहखाखि तत्फलं BAA नराः | दयितं जौवित पुसां सवषामपि aaa | यतस्व चयनं प्रास्षपरि केखयुता नराः ti अतस्तच्छःलन्तिजिननमाुःप्रद्‌मनाङकुल। aq ula भद्‌ ताटम्बतमिद्ोचत ॥ चतुट्श्डां शुचिः खात्वा दन्तघावनपूव्वेकं। तरितव्रद्यचयं ख यतवाक्षायमानसः॥ पौ षेमाद्यान्तधा छत्वा देवपूजां समाचरेत्‌ | मरुडलं चतुरस्रन्तु कारयेत्‌ कुसुमात्ततै; | तस्मिन्‌ ain fra देवौमचेयेत्‌ सुसमाहितः AEM पयसापृ णं गव्येन स्थापयेद्‌घटं ॥ चतुरस्तोयएणास्तु कलांसापयेत्‌ क्रमात्‌ | HY Asad पञ्च चक्रादौन्यायुधान्यपि॥ इन्द्रियाणि तद्या पच्च बुद्धिप्राण तथा मनः| न्यरेदेयानि सव्व कलदेषु चतुष्वपि ॥ सव्वाएद्‌भ्यस्तरे न्मच्यखा धिव्याधिभयादपि i Lag Ta el arg ब॒चिप्राणं मनखनः। अवन्तु सव्वं टापडगे मङ्गलानि दिशन्तु नः । द्रति aad चाभ्यव्यं afay जातधेद्सि। asin GT जुहदात्‌ dead तु घा विधि! तिद्धेनादतयुक्तेन निमष्यक्तन संयतः ॥ T NUTT पुकान्तरेष्राठः;| aaa १९ श्रध्यायः।] WaT | २२९ सन्ताः | अनामयाय पूणो विमलायाच् ताय च । मृत्यवे कालरूपायेल्येते AMAA च पट्‌ | अये वायुघमन्तण प्राशन करणेरपि | Sal तु करणायेति्ः तच्छेषे ए वलिन्त्यजेत्‌ ॥ धासन सितं साध्यं कछत्वाचायस्तदग्रतः। अभिषेकं ततः कुयात्‌ wal asada च | कुटःस्विने दरिद्राय निष्कमावच्ध हाटकं। तिलान्रलवखशदोनि दद्यादिप्रखताय च ॥ पुरं कुश्भांसततोवासरो हरिद्राचूणसंयुतान्‌ TAM कलशान्‌ लवणेन प्रपूरितान्‌ ॥ चतुरखतुरोदद्यादयोषिद्धयः परमायुष। गुरवे च वरद्‌त्वा कला ्राद्भणतप णं ॥ उपवासविधानेन fate ata: | अनन्तरे च दिवसे कुर्याद्नगवदचंनं | aaa; सद भुत नियमा च्च विसजयेत्‌ | एवं aafa य; कुयाच्चिरस्नोवो भवेच सः ॥ aq aia समुतघाने सर्नबद्ःखोदये सति | सानं ca णि यः इु््यत्तच्छान्ति सोऽञ््‌,ते परां । इति गारूपुराणोक्तमायुन तं | ‡ पुरुषायति युसकान्तर ais | २२० Safe: | [त्रतखण्डं१९ब्रध्यायः। BAe GATS | सव्व We a पात्राणामतिपाचन्तु WET | ag yaa faani दृष्टादृष्टप्रदायिकां॥ पात्राणान्तुमूज्यता fad mifiad Set | amu यो fafa: शक्रे कथितो विजयावहः | WAT पूणिंमा तात खावणस्य WATaAST ॥ शक्र उवाच | विजयाया समाख्याता सव्वकामप्र सिये | तामह Biqtuaifa awa: सुरसत्तम ॥ त्रह्मवाच | gaa राज्यविद्यायेयगःसोभाग्यतोऽपि वा) विजया ग्रामकामो जयां कुर्वीत पृणिमां ॥ हेमं वा राजतं वापि खगं वा AIT | प्रतिमां वापि कुर्वीत सव्वलचणसंयुतां | शाङ्यां इति शेषः | तामादाय शभे Ba शक्वस्तविभरुषितां | TAMA Vaart पानपाच्रविभूषितां। दौवींसुणोभनां वस्ते: कल्ययेत्तत्र विन्यसेत्‌ । इत्वा YAN मन्ते; ततद्वोन्तु विन्यरेत्‌ ॥ तत्र सयवाङ्रादियुक्तायां वेद्यां | रोचनाचन्दनं चन्द्र रुपलिप्याथ पूजयेत्‌ | # चयेत पृणिमातातदृति पुखकान्तरेषादः। त्रतखणर्ड' १९ ग्रध्यायः।] PAAR: | २३१ नानापुष्पविशेषेस्त. घूपगन्धान्रभोजनंः | प॒जयेदिधिवदवौ तथा वौजानि चाहरेत्‌ | यव गोधूमसुद्गांघ शालिषश्टिकश्राटकौः। तिलान्माषान्‌ प्रख्तोच्च ्यामाकावेणएरालकःन्‌ | विल्वास््र द्‌ाडमकपित्थमोचकापिच्छनागरान्‌ | बदरान्‌ वोज रांश उड्म्बर अपोड़कान्‌>॥ द पचयेैच्चव देव्यास्तु ने विद्यान्यपराणि च। आवण आशत्रोह्िः। एेरावतं नारिकलं नारङ्ग कद्लोफलं, नारङ्ग पानौोयामलक। फलार्थेन्तु फलान्येव WITTE यवाङ्क रान्‌ । gy सौभाग्यकामाय रलान्यायुधनानि च ॥ धनुः शच्विनाशाय तत्‌कामाय तदेव fe अत्र सव्वाधकामाय यथालाभन्तु दापयेत्‌ ॥ ततः aad at विदां we च ofa ary । विद्याञ्चच्यमाणमन्व । gaa पूजयेदालान्विजयाय स्वियो दिजान्‌ | wade भोज्येन मन्तितं विद्यया तया ॥ मन्वितं भोज्येत भोजयितव्यः afaat । faut तदद्‌ाचाय कन्यकां array च ¦ दापयद्यास गक्तयातु तथा त मनुगह्हयेत्‌ ॥ * अषचका्मिति पुस्तकान्तर पाठः| † प्रथयते इति पुकान्तर प्राठः | २३२ eae: 1 [व्रतखग्डं १८ अध्यायः। भोज्याय्र पवकामेन यासं विद्याभिमन्तित। भोक्तव्य TAR WTI a च Fala सङ्कर ॥ अनया विधिपूव्बन्तु मन्तोप्यत्रव लिख्यते | at यः एधिव्यां रेततमेदाद्‌वतयोमामचितानि विद्या प्रयच्छ- त्यष्टौ पुजान्‌ जनयति वेद वेदाङद्गपारगान्‌ | यीऽघोल्य न प्रयच्छत्य पयो नपंसको भवति। अहं बौव्यणद बलेन तुओँ नमो भगवते अक्तौशरेतसे wret रतिकाले वा चिन्तयेदेवतां ताज्िद्शेखरो। यस्य रेतन लोकोऽयं भूषितः पावनो भुवि a ओं tala महारेताय सव्ववौर्धमदाबलत | कामाय कामदेवाय मम कामान्‌ प्रयच्छतु 1 अनयाभिमन्तितं शयनं भजेत्‌। प्रयच्छ्त्यट्टो पुत्रान्‌ यदिमोहन गच्छति॥ एवं विद्यां wear तु देवीं नित्य प्रपूजयेत्‌ | भवते सव्व कामानां सिदिरष्टापराजितां। यानौ फलपुष्याणि उत्पद्यन्ते च प्रापि तानि टेव्याः सकन्यायागुरवेऽपि प्रद्‌पयेत्‌॥ यथालाभत्तकं aa देयं पुष्पफलानि च | वणौ शएभदाया च आशिनौ कात्तिकोति वा ॥ स्थातव्येतेन विधिना saa’ सिडिमिच्छता | होमेन ब्रह्मचय्यण वहमन्तोपसाघनात्‌ | ्रपुत्मो लभते पुचान्‌ धनं सौोगाग्यजौवितं। श्रधवा अ्रनयःविद्या लक्तणाहठहतौ सिता॥ व्ैतखरड'१९ अ्रध्यायः | देमादिः २२२ वौजपूरकवौजानि बटशद्गाणि नावनात्‌॥ नागकशरपुष्यासि कत्वा वो लभतेफलं | बहतौसिता शेतदहतौ | वट खडमणि arte राः । नावनात्‌ ATA फलसस्िरपांपानात्‌ फलं प्राप्रोति विद्यया | aaa भवते लोके विदयाधरधनाधिपः॥ 0 An १ फलसपिरायुव्वद्सिद। a . Co | एतत्त सव्वमास्यातं विजयाय व्रतोत्तमं | + C # ~ fafad सव्बलोकानां विधिनात्‌पसेवनात्‌ | इति देवोपुराणेक्तं पुचप्रा्नि्रतं । € ~ मख्य SAT | कात्तिक्यान्तु तथारभ्य संपृणश्रलक्तणं | पू जयेदु दये राजन्‌ सदानक्ताशनोभवेत्‌ ! Alay AWA Hal चन्द्‌ नेनानु लेपितं | दशनत्तचसहितं ततः diay पूजयेत्‌ ॥ (लावणं सेन्धवलवणक्ततं | ) छत्तिकारोहिणोयुक्तं कात्तिक मासि पूजयेत्‌ | सौम्यादरी सहितं राजन्‌ मासि सोम्ये तथेव qi आदिव्यपुष्यसदहितं मासि पौषे च यादव | म्ासपयुतं माघफालगुशे Wy पाथिव । ( ३० ) २३४ ears: | (avez cesar: आयस्ततोध सावित्रः सहितं waa दिभु' 4 चिताखातिथुतच्यतरे aura शु पाथिव) विगाखया च Hay युतं संपजयेत्तथा ज्ये्ामृलयुत ज्यं छ AAS AMARA | खावे खवशापेत वारुणेन खविष्टया ॥ तधाभाद्रपदटे पोष्णा अजाद्धिव्रप्नसयुतं। अश्िनोभरणोयुक्तः तथाचाश्वयुजें विभ ॥ ( कान्ति कादौक्लत्तिकादिक्रमेख फालगुनखावणभाद्रपरेष alfa atfa i ) # ama दद्यादिति पुक्षकान्तर as; | गन्धमाल्यनमस्कारदोपधूपात्रसंम्पद्‌ा । YAU परमान्नेन लवन waa च ॥ LAUGH पयसा पायसेन च , पुज्याघाविधवानाय्यस्तघा त्लत्तणेः GH: ॥ ततीऽनन्तरमश्रोयादविष्य' प्रयतोनर' | ब्राह्मणानां व्रतान्ते तु मद्ारजतरच्जितं A महारजत AVAL: | Waal Gg चासन द्‌द्यान्नारोवायदिवा az | रूपसोभाग्यलावखघ नयुक्राभवेनररः | व्रतिनानेन Waa waaay गच्छति ॥ सोपवास् यः कुयांद्रतमेतदनुत्तमं । अश्वमेधस्य awa फल प्राप्नाति मानवः | सौभाग्यादि च यत्‌ प्रोक्तं तदाप्नोति विशेषतः [षषी ahr pan 11 aca तरतखर्ड' १८ ्रध्यायः।] ware । १३१५ मनसा काङ््तान्‌ कामान्‌ सवानाप्रोत्यसंगय | जनाभिरामश्च पशाङ्वत्स्या =~ इ नाधिपालख तथव ABN! शक्रेण तुल्य तथेव शक्तया मानुष्यमासाय NIA राजा। दति विष्णधर्मोत्तिरोक्तं मनोरथपृणिमा त्रतं । माकण्डंय उवाच | alfa के.पौणेमास्यान्तु पूग" शिशिरदौधितिं। य्य षोड़शपतेतु कणि काथान्तु Taq ५ के शरे पृजये सत्र नक्तत्राण्यषटविं शति । पेषु तिथिरेवाचं त तोज्यीत्‌सखराच्च पूजयेत्‌ ॥ अग्निवद्धयाम्बिकभास्य नागस्कन्दविरोचनाः। शिवदुग्गायमेन्दराख विष्णुकामगिषेन्द्काः। पितरखेत्यमो प्रोक्ता afafafafazaar: | गन्धमाल्य नमस्कार दौपधृःपान्नसम्परदा ॥ शसेण परमान्नेन THI च लदणन FI AIS महाभाग फलैः AMATI ॥ त्रतावसाने दया वस्वयुग्म दिजातये . ब्राह्मणाख महाभाग महारजतरल्ितः | पज्याखाविधाः सम्यक कालविदयाच तावभौ A # Dulagqaga दति FaearaAc Tis: | RIVE eaifg: | [anew १९ अध्ययः | सोपवासस्त्रभक्ता Ue व्रतमेतत्‌ समाचरेत्‌ । नक्ताशनो वा TMs च हविष्यभ्‌ कूः; ॥ सौभाग्यदं रूपविवद् णच लाव्यद्‌ Vitara” | काय प्रयक्नेन नरेन्द्र पंसा कायन्तघाखोभिरदोनसच्छं ॥ इति विष्ण धर्मोत्तिरोक्त * सीभाग्यत्रतं | 000 माकर A उवाच | AMMATSAU VA ALAWAR नरः | सोपवासः पौणमास्यां पूज्य यज्ञफलं लभेत्‌ ॥ AGHA सव्वयक्नफल | नक्राशनस्त॒ संवूज्य वद्धिष्टोमफलं लमंत्‌ t सोपवासच् aa वाजिमेधफलं लवत्‌ | सोपवासः सुत्रतः। क्त्वा व्रतं aAATHAfer प्राप्रोति लोकांख निशाकरस्य) उपोष्य कालं सुचिरं ware सायोज्यमायाति तमस्तशम्ोः॥ दति विष्ण ध्मोत्तरोक्त' चन्द्रब्रतं। gw # सौपवासस्त नक्ताशौति पुलकान्तरपाठः। # व्यन्ता एक भक्तोनक्तःसान्तावा aaa | दृति पुस्तकान्तरे Wis | * भविष्योत्तरौक्तं सोभाग्य ad दति पुसकान्तर्‌ az: | तरतखर्ड'१८गअध्वायः 1] देमाद्धिः । RRO माकण्डेय उवाच । प्रोपदात्तथारभ्य संप शशिलच्षणे | संपज्य वरुणः देव गन्धमाल्यातरसंपद्‌ा ॥ जलाशयजले ध्यात्वा एवं संवत्सर वुधः | दद्यात्‌ व्रतावसाने तु Wawa दिजातय a छतोपानहस युक्तां वासोयुग्म विभूषितां) प्राप्नोति लोकं वरुणस्य राज Wary काल सुचिरं मनुष्यः) मानुष्यमासदय भवत्यरोगो रूपान्वितो विन्नयुतस्तथेव ॥ इति विष्ण धर्मोत्तरोक्त वरुणत्रत॑ WHS य उवाच । sagas waa पौणमास्यां नरो yf | सोपवासः TRY देव संपुजयेत्तथा ॥ शचौ मेराव णम्बज्' मातुलिङ्' नराधिप | गन्धमाच्यनमस्कार SOTA ATA | संवत्सरान्ते RARY SUT प्राप्रोति लोकं सपुरन्द्रस्य | AUTUMN नरेन्द्रपृज्यो राजा भवेदा दिजपुङ्गवो वा॥ इनि विष्ण धमोंत्तरोक्त शक्रत्रतं । + च्श्रयग्म स पृव्वभिति पुरूकानरपाठः| २३८ ेमाद्रिः। [व्रतखष्ड ewe | माकण्ड य उवाच | उपोषितखतुदश्यां पौणमास्यां नरोत्तम | पञ्च गव्य पिकेत्पमश्चाइविध्यागो तधा भवेत्‌ | शक्रत्रतमिदं HAs मासपापात्‌ WAV | तस्मात्सव्वप्रयन्नेन मासि मासि समाचरत्‌ ॥ संवत्सरात्‌ प्राप्य सुरेन्द्र लोक तत्रोष्य राजा सुदिर मनुष्यः। मानुष्यमासाद्य ALT ST राजा भवेदा दिजपुङ्गवो ar । इति विष्ण धर्मोत्तरोक्तं Tee रतं ! 000 कात्तिक्वामुपवासी यः कन्यां दद्यात्‌ खलङ्कतां | स्वकौोयां परकोणां वा नदौसङ्मके शभे ॥ एतत्घन्तानददं नाम aa सुगतिदायकं। इति भ विष्योत्तरोक्त सन्तानद व्रतं | a 000 कष्ण उवाच | कार्तिक्यां नक्तभृक्‌ cara हेमविनिभमितं। £ गि Cs + ५५ + ४ मागेशोष पं पश्येन्मिधुनं तद्देव हि ॥ एवं क्रमेण यो दयादासों वम्वविभ्रूषितां। पौणमास्यां पौणमास्यां RAS | # संवलुरर्िुं war इति पुरकानरे पाठः, ange vemata: |) Sats | २६९ पौणमास्यां पौणमास्थां कौन्तेय agefat | एतदरासिव्रतं नाम ग्रहोपद्रवनाशन | सव्वाशरापुरकं तदत्सोमलोकप्रद्‌थकं | इति भविष्यत्‌ पुराणोक्तं राग्ित्रतं। 0590 पयोव्रतः पञ्चदश्यां व्रतान्ते Wy! | लच््ोलोकमवाप्रोति टदेवीततसमुदाद्टतं tt इति पद्मपुराणोक्त देवोत्रतं । 000 कालोत्तरात्‌ | alata चतुरंश्यामुपोष्य नियमस्ितः | शिवाय पौणमास्यान्तु कत्तव्य Panwa ॥ कष्णगोमिथनं पथात्‌ सुरूप विनिवेदयेत्‌ | fea वषशतं ae शिवलोके महौयते ॥ शिवधम्य | आलिङ्वेदिपयन्त यौ दद्याहतकम्बलं | तस्यानन्तं wage माघप्‌णिमपवणि ॥ जागरः Tages: सकत्‌ sat तु पवैशि । मन्वन्तरगत BE र्द्रलोके महोयते॥ इति शिवघम्ममो त्रोक्तो छतकम्बलविधिः। पोणेमास्यान्तु यः सोम पूजयेद्तकरिमान्ररः ॥ QBe देमाद्धिः। [व्रतखण्डं १९अध्यायः । सौभाग्यत्व भवेत्तस्य इति मे निचिता मतिः। aaa: GUTH teas कीत्तिताः। प्व वत्पद्चपचस्थः कत्तव्यश्ातिधौ श्वरः ॥ तिथोश्वरः सोमः aguy चतुट भोखितमहाराजत्रतोक्त वेटतव्यं | गन्धपुष्पोपद्ारेख यथाशक्ति विधौयते पुजाशाच्चन Wat a कंतापि तु फलप्रदा ॥ आज्यधारासमिह्िख दधित्तौरात्रमात्तिकेः* | पव्वाक्ञफलदो होमः कतः शान्तन चेतसा ॥ Tana वेष्वा नर प्रतिपत्‌ व्रतवडहपाख्येयं | इति भविष्यत्‌ पुराणोक्त aaa | 000 भोजनं छतसयुक्त मधनोपरिभोभितं। दयात्‌ कष्णतिलानान्तु प्रस्थमेकन्तु मागधं ॥ दिगुणन्तण्डलानाच् VaR प्रकल्पयेत्‌ | अण्डजेर्वोर्डजेवापि विविधं afcafed ॥ भरडजानि amas वोर्डजानि का्पपसानि t fag संवेष्ठय मन्ते ख बलिमेतं निवेदयेत्‌ | अचथित्वा विधानेन पौणमास्यां समाहितः | युगकोटिसहस्रा णि शिवलोके महोयते | # Wass नवेतथेति पुस्तकान्तरे पाठः, # quate सुदखाणोति पुरलकानरे पाठः| त्रतखर्ड' १९ब्रध्यायः।] Satz | २४१ पुणखस्षयादिदागत्य we जायते कुले॥ Halal AAA! योमान्वेदवेदाङ्पारगः। दति श्रो शिवधमोक्तं घुतभाजनव्रत | 000 पौणेमास्यासुपवसेरव्दभमेकं सुयन्तितः। वर्षान्ते सर्व्वगन्धामीं प्रतिमाभ्बिनिषेदयेत्‌ । सुविचिरचैगदायानेर्हिव्यगन्धविभूषितेः। युग कटि शतं साग्र शिवलोके महोयते॥ यथेष्टमेश्वरे लोके भोगमासाद्य TAT: | क्रमादागत्य लोकेस्मिन्‌ राजानं पतिमाप्रयात्‌ ॥ इति शिवधममांक्तं गन्धत्रतं। 021)1८0 सनत्कुमार उवाच | 0 क a # a om, उपोष्य च aqe wl पौणमास्या हरि येत्‌ | a AN ~) चेच मासि fanaa पिशाचः महितो बलो | यातियोद्धं पिणाचांख सिकतादोपवासिनः“। क $ ^ 6 ™~ ~, ~, तदन्ते गच्छता तेषां मध्याह्ूतु VF VE पजा काय्यं adaa नित्य शक्या यथाक्रम | पिशाच खन्मयं HAT रम्य TUAI_ art Ae A A a > UAMAMA वस्व रलद्गरस्मनोहरः। rN ARO wre A a wad पूरिकापपेन्मांसदिव्येथ पानकः॥ क सिन्धद्धौपनिवास्िनि दूति पुरकान्तर पाठः| ( ३१ ) क माद्रिः। [त्रतखण्ड'१९अध्यायः। autafafencasag = vafiafs: | आायु्ैन्विविधाकारैन्छवोपानदहयष्टिभिः 1 शुष्का त्रपूरिकायुकते wide Weal | FUSES al टक्रावादयेख VAT ॥ तन्तौ वाय्नोन्नेख तथा पार्घोपयोगिभिः | AAS तन्तु UIST प्राप्त चन्द्रोदये एनः ॥ पृ व्वेवत्‌ पुजयेत्तन्तु वित्तसाटठ्रविवजितः | ततः कत स्वस्त्ययनो amu विसञ्नयेत्‌ ॥ अनुव्रजेदयघेतन्तु दितौये fea सति | RE CATA Us AG ACA ॥ qaze ofa a कत्तव्य; सुमहोत्वः | गोतवाद्चिनिर्घोपष्रो जनकोलाहलस्तघा ॥ कत्वा GUNA UG ट्टे: Ae स्त afed | क्रीडि तव्यं पुनर्रमनगरेषु च Wa eT tt तत्रासौ दुष्टसर्पीषणं तत्तत्णादुयेन जायते | चिभिश्रतुभिदि वसेः HUA खर्ड खणड कं | सर्व्वा पस्कारगणमनं नवग्बुख्ड' We UF । पज तब्यं सुगुप्तु रच्यितव्यच्च वत्सरं | इत्यादि पुरानोक्ता निकुम्भपूजा । 000 alfa यो हषोत्सग' कत्वा नक्त' समा चरेत्‌ | शवं पदमवाप्नोति ayaa भिदः स्मतं ॥ दति पद्युपुर!णोक्त' इष व्रतं | व्रतखण्ड'१९अध्यायः i] safe ९४६९. या प्रेरयति aaifa wing डिजसत्तम) तस्याः संपूजनं कायें श्क्तपचचदभों AT | माल्यानुलेपनेः शकतधृपेन च सुगन्धिना | रक्तवस्तप्ररानेन दोपदानेन IAAT ॥ वेदलेख TAAL SAAS a gafaat च तां देवौ dia’ fafa भायया॥ यदि पच्छदभीं wai न शक्रोति कथञ्चन! देव्याः संपूजनं aa अवश्य मपि कात्तिके ॥ उमान्तु; TAA सातु नारौ पतिव्रता | सदा VATA नारो लोके भवति भागव ॥ aga च मतिस्तस्याः कद्‌।चिदपि जायते | इति विष्ण धर्मोत्िरोक्त Waa | ०७७०८१०८ प्राप्य aye राम तथा शक्ताञ्चकात्तिकीं | श्रारामग्टहभित्तिं वे उभे भौच समालिखेत्‌ | तस्यद्वारि BE वाशु न।नावर्थस्त वजिकां | गोपक र ण' शक्तया तयोष्ेवाभितो लिखेत्‌ ॥ ad यद्चासमादयन्तु सकटोसुखनाशिकं | ततस्तो पुजयेत्रागौ खात्वा भत्तेपरा शुचिः। गन्धमाल्य नमस्कारघूपटोपान्रस न्दा । aqua विकारेव्वा विशेषेण च पजयेत्‌ | 2 Lee es | अ~ मागकाकाय 1 8 । स, ~ १ "का > + = ee ae प im न र्ण — # sufafafa पुस्तकान्तरे पठ. | २४४ Safe: | [त्रतखण्डं १९ अनध्यायः । $ 4 $ तयोस्त पूजन कत्वा पश्यत्तस्िकतामय | ~ + ~, ba ~ कन, Malaya न्यसेत्‌ alt तच्दद्याहिजातये ॥ । > ^ ॐ ततश नक्त yata तिलतलविवजित | अनयोः पूजनाद्या तु हभङ्गन्तु नाप्नुयात्‌ | पतिव्रता महाभागा दौचमाप्रोति जौवितं। पू णमिन्दं ततोभ्यय सौभाग्यः महद्‌ प्रुयात्‌॥ इष्टग्रहमधाभ्यच्य नक्तव्रमथ वा द्रप | तस्याःच्तममवाप्रोति HAY यदुनन्दन rN रि © मासनामसनचत्र पणि मायोगपच्च at | पूजयित्वा तदाराजन्‌ सोभाग्य महदाप्र यात्‌ ॥ ठसिंहप्रतिवदन्तु पृण चन्द्र सम चेत्‌ | नरोमादगणा राजन्‌ सव्वोन्‌ कामानवाप्र यात्‌ ॥ एकां वामातरं राजन्‌ कामानाप्रोल्यभौष्ठितान्‌ t वानस्यल्यमवाभ्रोति पूजयित्वा वनसख्रतोन्‌ ॥ इति विष्णधर्मोक्त' नानाफलपूिमात्रतं। खावश्यां Weary सोपवासो जितेन्द्रियः, प्राणायामश्रतं कत्वा सुच्यते wa किखिषे; ॥ दति व्किपुराणे क्तं पृणिमात्रतं | --०-- च्वन्द्रत्रत पञ्चदश्यां शुक्तायां नक्तभोजनं | द्र पच्च च वप्रोणि व्रतमेतत्‌ समाचरेत्‌। त्रत ख ग्ड १९ श्रध्यायः।| दमाः | २४५ अ्वमेधसहस्र!णि राजसूय णतानि च। दरष्टानि तेन राजेन्द्र एतदतं समाचरेत्‌ | दति वारादपराणोक्तं AeA 000 SMT Vay | ज्येष्ठस्य पौणेमास्यान्तु cual यस्त भोजयेत । परिधाय यथा शक्या दौभांगम्यमचयते नरः ॥ गन्धपष्योपदह्ारश्च DW Alara योऽचयेत। ब्राह्मण जायते तस्य सप्तजन्मनि सुन्दरि ॥ दति प्रभारूखणडोक्त ब्राह्मण्या वाभ्रित्रतं | दति ओमदहाराजाधिराजग्रोमहाटेवस्य सकलकरगा- धौश्वरसकलविद्याविशारद्रोहेमाद्विविर- चिते चतुवगचिन्तामणौ aaa पृणिमाव्रतानि | ay विंग्रोऽध्यायः। ati oe 2 अथधामावास्यावतानि। Saray वलिभिरनिशन्तपितो नागलोको राइ च्छष्टामिव शशिकलां मन्यमाना aus । सोऽयं साघुद्िजपरिट; शूरिहेमाद्रिरस्म त्रामावास्याव्रतसमुद्यं ख्यातमाख्यातिकौत्तिः ॥ आगमस्य वाच | भगवंसत्वत्‌ प्रसादेन Balsa व्रतविम्तर'। अङ्ादयन्तु मे ब्रूहि दुलभं सचराचरे । जोवितं प्राणिनां पुण्य यदिचेददसि प्रभो | कां काय्य छते किंस्यात्‌ फले कथय WHE ॥ यतां GUNMA दुलेभोऽरदौ दयाद्वयः | तिथस्मनुष्यदेवानां दुष्याप्य' सव्वं कामदं | मघामायां व्यतौपात आदित्यं विष्णुदवते, अदयं तदित्याह: सखा वग्रहे: समं ५ पुराक्तत वसिष्ठेन जामद्म्नेन सुव्रत] सनकादेमंनुष्येख् बभिबंडभिःुतैः ॥ अन्य; शतसहस्रे च दृष्टः भवत्‌ Fas | दानानां यन्न लोथीनां फलं येन क्रतं waa | — Te माननम > Ppp gp a i नम yt PP Pe a 1 नि यो "कात" व र गयोः = asta दरति पुम्कराम्तर्‌ we. | त्रतखर्ड'२ ° अध्यायः '] देमाद्विः | २४७ ससागराघरा तेन सप्तहौपसमन्विता। दत्तास्यात्‌ सव्व भावेन येन Bete कतं | मानसदिषुं aay aqua’ स्रानदानतः। APTANA च घुष्कराणांचये तथा ॥ awe ar a at विप्र व्रतेनानेन wars | ऋभ्वमेघायुतं येष्ठमिष्टाप त्त यद्वेत्‌ il ््घद्यकलतं ae विधिदृष्टेन कणा | वाजि मत we want: सन्ततिखानपायिनो i आयुव्धशोदहि विपलं त्रतकत्तं फलं लभेत्‌ । इन्दराग्नियमलीकेषु निच्छेती नामपांयतिः | वायौ: कुषैरशेषस्य लोकेषु सुकतो प्रभः । वसेचखन्द्राकनलोकपु लोकपाले्च सेवितः ॥ गोकोटिदानादययत्‌ wa के्रतौघनिवासिनां | ages कलां नान्त Test | मूर्नोौकाधिपतिशेव waar ahaa: | WAAR जनाना तयोर्लकस्यचेषवरः ॥ मदर्तीक वरेनिल्य' यावदिन्द्राखतुदंश। ततो हिरष्यगभस्य परुष व्रतकारकः ॥ तस्य लोकाधिपः सातच्तौ लोकानां परुषोव्ययः। अरद्धोदय्प्रसादटेन ब्रह्मलोके वसेत्तसः ॥ तथा वानेन विष्णुत्व ब्रह्म रूद्रम्तथा भवेत्‌ ¦ भिव लोको गुणे; पूज्यो टेवराजसमन्वितः ॥ वसेच्छाक्रण मानन ब्रतस्यास्यप्रभावतः, २४८ देमाद्रिः। [त्रतखग्ड'२०अ््यायः। ततो विष्णुरूपेण चेलोक्वाधिपतिभंवेत्‌ ॥ गङ्चक्रगदाधारो वनमालो हरिः सखयं। व्रतप्रभावाल्नच्मोशो देवो नारायणो भवेत्‌ ॥ TUM उवाच । स्कन्द केन विधानेन कत्तव्य" ब्रतसुत्तमं | aged मनुष्यणां जोवितं दुलभ भवि ॥ स्कन्द्‌ उवाच । छते aa वसिष्टन चतायां Ta ad | दापरे धर्मराजेन Hat प USL च ॥ Jaz वमनुष्ये्च eas दिजस त्तम | RAAT A सम्यक्‌ पृणंकामफलप्रद्‌ । माघमासे HUI पञ्चदश्यां रषेदिने। बेष्णवेन AMAT व्यतौपाते Yeas ॥ वेष्णवर्त अवण | ववाह सङ्गमे Gal एचिभृत्वा समाहितः सव्व पापविश्ष्यथें जिधमखो भवेन्नरः | तिदे वल्यत्रतं देवाः करिष्ये भक्तिसुक्तिद | भवन्तु सत्रिघोमेदयं चयोटेवा स्तयोग्नयः tt इति नियममन्ः | ब्रह्य विष्महे शानां सौवण पलसं स्यया | £ © ad =\s कत्तव्याचां aged तददन दिजोत्तम ॥ qa waaay शम्मोद्रणानां faa तः | वरत खर्ड'२० अध्यायः] Partie: | २४९ WALA ब्रह्मा | कत्तव्यौ विष्णुरद्रावद्गिरः पूर्व्वीक्तसंस्यया | शय्य(तरयं ततः कुय्यांदुपस्करसमन्वितं ॥ टेवानां चयमुदिष्च कत्तव्य ufanfaa: | रह्म विष्णु शिवप्रोव्ये दातव्यन्तु wat चयं ॥ हिरण्यभूमिधान्यादिदान विमवसारतः, दातव्य यदयोपेतं९ aaa: प्रयत्नतः | HUIS तु नरः Gat शचिमूत्वा waited: | तिलपव्ं मध्यस्थः पूजयेत्‌ Saad | Sel TATA | नमो विथ्वरूजे तुभ्य २ सत्याय परमेष्ठिने | देवाय Squad यज्ञानां wad नमः | ai ब्रह्मणे नमः पादो हिरण्यगभांय नमं ऊरुभ्यां, धात्रे नमो जानुभ्यां जङ्गाभ्यां परमेष्ठिने aa: | बेघर नमो गुह्य प्लोद्वाय वे नमो वस्तौ। सवाहनाय नमः कटिदेशे शतानन्दाय वत्तसि नमः) सावित्रौपतये नमोनमोस्त ATT | ओं ऋग्वेदाय नमः पूव्व- TA Uae नमो दस्तिणएवक्ते। स।मवेदाय aa: पथिमं aa । अथव्वेवेदाय नमः उत्तरवक्ते । a चतुवक्ताय नमः शिरसि, कपोलो Bi कपालाय नमः| | व व 1 र ar de a a a a le or ee ain _ 2 खश्वोपतसिति पुस्तकान्तरं पाठः| र ua मिति पुखकान्तरेपाढः | ( ३२ ) RY o Sale: 1 [व्रतखण्ड२० अध्यायः | ततः काथ्या लोकपालपूजा fan: खमन्ततः। हिरण्य गभे पुरुषप्रधा नाव्यक्तरूपवत्‌ ॥ $ भे Hale समुखो Yar पूजां we नमोऽस्त ते! ब्रह्मा प्रायनमन्दः। नारायण ANA नमस्त गस्ड्ध्वज | पौताम्बर नमस्त भ्य' जनादन AMSA a I aaa नमः पादौ विश्वरूपाय a aa: सुङुन्दाय नमो जानुभ्यां ऊरुभ्यां गोविन्दाय नमो aE! Te प्रदय॒म्नाय नमः पद्यनाभाय नमो नाभौ। भुवनोद्राय नम Set वत्तसि कोस्तुभवचसे नमः। चतुभूजाय नमो arey वदने विश्वतोसुखाय नमः । नमः सहस्रशिरसे टेवायानन्तायं मोलौ | श्रादित्य चन्द्रनथन feet दैत्यसूदन | Tat दत्तां मया भक्तया WIT करुणाकर१ ॥ इति विष्णुप्राघनामन्तः | USNC मह शन नमस्त चिपुरान्तकं | नमो जोमूतकेगाय नमस्त दहषभष्वज ॥ ईशानाय नमः पादौ जङ्ाभ्यां चन्द्ररेखरः। जानुभ्यां पश्पतिदेव ऊरुभ्यां शङ्रः स्मतः । उमाकान्ताय गुदे तु नागी वं नोललोहितः। उद्रे कष्णवाससे वत्तो नागोपबोतिने। भोगिरूपाय वे वाहौ नौलकर्डस्त करट गः | ९ करुणापर्‌ दति पुषकान्तरे पाठः | qage omar: |} BATE: t THRE oN Oo” सुखे वे पञ्चवक्ताय मौलौ चेव कपट्िनं ॥ अन्धकारे AAA नमो सलोकान्तकाय च) पूजां दत्तां मवा भक्तया WIT FINA | दूति मदष्यरप्राथनमन्तः | दति पूजाक्रमः प्रोक्तो aaa: प्रयतत ॥ ATA THAT AA AMASITSAT: । हस्तमात्रा AVATA MSHA HAW: 4 प्वेतवस्वयुगं देयं ब्रह्मे wane ये | पोतवस्तयु गं विष्णो१ wifsa शङ्रस्य च॥ पञ्चासृतेन Bia पूजनं कुसुमः खकः | aaa aad पते विल्लपतचरखण्डितैः ॥ तत्‌कालसम्भवदिव्ये; पज्या देवा TATRA TAT aa प्रकत्तव्य व्रतमेतत्‌ सुद्लेभं ॥ aifad प्रणिनामेतदनित्य fafad aa: QQ त्रताडन्दोमस्य विधान SY awa: ॥ देवतात्यसुदिश्य शास्वदृष्टेन HATA | प्रजापते विश्वरूपाय रुद्राय च नमो नमः। इत्यनेनेव way वदि संस्थाप्य ufaa: t ततो हीम प्रक्व्वोत यथाविभवसम्भवं। away प्रजापतये खाहा | अग्नये विष्णवे साहा) ९ eafafa पुलकान्तर पाठः, ११२ ate: | [त्रतखग्ड'२०गअरध्यायः | अग्नये tata wiet! एवं faag होमः१) प्रजापते नत्देतान्या- न्येन मन्व ण प्रजापतये इद विष्णुरिति fawa 1 चम्बकमिति ~ = A OA ९ ARIAT! इव्यतमन्त्रघुतह्ोमःर | ब्रह्मे विष्णवे महादेवाय खादेति पृणांइलया Wary कामान वाग्राति प्राप्रोति होमोत्रताङ्न्ोमः। अथ होमावसानेच wae द्द्यात्मयखिनीं | auagt रौप्यखुरां घण्टभर र्भूषितां ॥ ताज्नण्ष्ठों कांस्यदोहां सव्वोपस्करसंयुतां। सदत्तिणं सुगोलाञ्च आचायाय निवेदयेत्‌ ॥ तेन दत्त हतं जप्तमिष्टं यज्ञ; सदसखधा | Hana wafen व्रतस्यास्य प्रभावतः॥ Qe + ¢^ , $ VARA मयाख्यातं TAH व्रतसुत्तभं | पै * | रि अडादय यथा दृष्टं किमन्यत्‌ खोतु्मिच्छसिरे॥ इति ्कन्दपुराणोक्तमर््खारयव्रतं | अमावस्यां निरादारः zeta faafaa | + 0 =. ~ qeiqeng Hal ante विनिवेदयेत्‌ | शिवाय राजतं va सोवण' aaafwa | भक्तया च विन्यसेत्‌ afa Hee पृव्वेवदा चरेत्‌ ॥ CE LE a -ा er, —— ्रणणणणण्कककणोणररगरणौणरषषष ष म स ष ——S अ प = पन र १ एव म्विधरद्रदोमदति पुसकान्तर UTS: | २ चर्दाोमद्ति पुस्तकान्तरेपाठः। २ परिपच्छतोति पुलकान्तरपाठः। 2 शदुर्गमति पुस्तकान्तरे प्राठः व्रतखर्ड'२०अध्यायः।] SATS | २५३ कामतोऽपि aa पापं भ्ूणहत्यादिकञ्च यत्‌ । ama ` शृलदानेन इला नारीन ATA म्ाप्ट्यविमानेन नरी नारोसमजितः। quaifena साग्र शिवलोके महौयतं॥ पृव्येवदिति अदहंसा ब्रह्मच yaaa पाषण्डानालापादिक- माचरेदित्यधं; | ईशलो कादिलोकेषु भक्ता भोगाननेकथा | इह लोके क्रमात्‌प्राप्य यथेष्ट पतिमाप्रयात्‌ | दति fraud शलदानव्रतं? | = 00000} 000 अगस्य उवाच | VAS ब्रह्मणा PUPA: पितरस्तदा | afaat धेहि भगवान्‌ यथावद द्महं वयं ॥ ब्रह्मोवाच | अमावास्यादिना वीऽस्त तस्यां तिलकुशोदकेः | तपिंता argue परां गच्छन्तु नान्यया । तिला देयास्तथेतस्यासुपेाष्य पिलभक्तितः | चिराय तस्य सन्तुष्टा षरं यच्छन्तु मा चिर ॥ तस्मादस्यान्तिधी विदाने तत्सव्वं' समाचरत्‌ | दति वराह पुराणोक्तं पितव्रतं। 000 ee प रि पणः) कि 1 1 का ब शक्कर a १ famydincia शिवत्रतमिति पुस्तकान्तरे gia: ९५४ Salts: | व्रतखर्डर ० अध्यायः i | ब्रह्मोवाच । पितरः खदिरैः पिष रि ष्टाः कुव्वन्ति सव्व! टा | प्रजाहद्धि धनं रन्तामायुष् aaa Ti Wana, खसंज्नाभिरङ्गमन्ताख कौत्तिताः | गन्धपुष्मो पारख यथाशक्ति विधौयते ॥ पूजाशाठयन शाटेान कलापि तु फलप्रदा | आज्यधारासमिद्धिख द्धित्तौरात्रमाच्तिकः॥ पूर्व्वक्तफलदो होमः छतः शान्तेन चतसा१ | एतटुत्रतं वेण्वानर प्रतिपद्नतवद्दयास्येयं । ईति भविष्यत्‌ पुराणोक्त faqad | 0020)00 घुलस्तय उवाच, aaa HAITI पञ्चट्ण्यां पयोव्रतः । पच्चद्‌श्यामिव्यमावास्याथां पुराणान्तरसंवादात्‌ ॥ समान्ते MEAT Gaz पञ्च vafaat: | वास्ासि च fuagifa जलकुम्भयुतानिच॥ स याति awa लोकं पितुण्णं तारयेच्छतं । जन्मान्तर भवेद्राजा पयोत्रतभिदं खतं ॥ इति पद्मपुराणोक्तममावस्यापयोत्रतं । ne ¢. १ WHA a वेतयेति पुखकान्तर पाठः| २ श्रद्याद्‌द्ादिति पुसूकान्तरे gis: | द गावदूति पुस्लकान्तर पाठः| de baat agen ४ 3 ake > aay २ ० अध्यायः] STE: । AIHW] उवाच) ¢ ~ प्रभाखरा वहिषद्‌ अग्निखात्तास्तथव च! क्रव्यादाथ्चव WATS श्राज्यपाख सुकालिनः ॥ पूज्याः पिट गणा राजन्‌ सोपवासेन नित्यशः | चेचे कष्णारथारभ्य पञ्चदश्यां नराधिप ॥ it + | खाडन्तदद्ि Gata यावत्‌ waat भवेत्‌ । गन्य-माल्य-नमस्कार-धप्रदोपात्रसम्परदा ॥ BINA दद्या तथा धेनुं पयख्िनों । ब्राह्मणाय महाभाग fyauara ufaa:e Mal Ad वत्सरमेतदिष्ट प्राप्रोति लोकाम्‌ स तधाचतेषां। तचोष्य कालं सुचिर सुखौ स्यात्‌ प्राप्रोति Als पुरुषप्रधानः२॥ द्रति बिष्णपुराणोक्तं पिढव्रतं | 000 BATH उवाच। AUIS पञ्चदश्यां Parse area | वद्किसंपूजनं क्त्वा गन्धमाल्यान्रसम्पदा ॥ तिलदहीमन्तथा कुर्यात्रामना वद्नेराधिप | संवत्सरान्ते दद्याच सुवणः ब्राह्मणाय च ॥ १ भक्तित इति पुसकान्तर ra: | २ सुरप्रभानटूति पुखकान्तर प्राठः | ५५५ २५.९६ Saltz: | [व्रतखर्ड>° अध्यायः! कत्वा Aa वव्छरमभेतदिष्ट प्राप्रोति वित्तं सतत ava | धमं मतोरूपमनुत्तमच् कामान्‌ यथेष्टान्‌ पुरुषप्रधानः ॥ दरति विष्णपुराणेक्तं afead | 000 माकर्डेय Bars | श्र मावास्यान्तवेलायां सोपवासो नरोत्तम) पद्चदये प्‌जयन्ति चन्द्राकावेकराशिगो ॥ श्रादित्यमष्टदटलकें शशिनं पोडगाकरं | दित्य सव्वेरक्तेन चन्द्र शक्तेन यादव ॥ माल्याद्निा महाभाग होमयेत्तिलतण्ड . लान्‌ | waaay राजन्‌ तथाचयेदयशयाविधि | Ada ब्रह्मणेन्द्राय कनकंर प्रतिपादयेत्‌ ॥ CATA महाभाग य इच्छेदतिमाकनः | कत्वा व्रत aaraafeg दद्याच्च दौपान्‌ विधिवत्‌ प्रभूतान्‌ Wz ug प्राप्य faqga ae: धनान्वितः स्थाचिदिवे इदेव ॥ इति विष्ण धम्मरोत्तरोक्त' sea | १ तयोनास्नादति पुस्तकान्तरे qa: | २ करकसिति पुस्तकान्तर पाठः| ३ चस्पकत्रतभिति पुस्तकान्तर पाठः| त्रत खर्ड'२ ० अ्रध्यायः।] wae! २५ भगवानुवाच | अमावस्यामनुप्राप्य ब्राह्मणाय Fe faa | aq किञ्चित्‌ वेद्‌ विदुषे carefem Wei i प्रोयतामोण्वरः सामो महादेवः Walaa: | स्प्तजन्ममरक्रत पापं ततक्षणाद्‌व नश्यति i इति कम पुराणोक्तममावास्याव्रतं ¦ मावस्यायां ब्रह्माणं ससुददिश्य पितामह, त्राद्मणांस्वोन्‌ समभ्यच्च 1 सुच्यते सव्वेपातकः | इति कम्म पुराणोक्तममावास्याव्रतं, इति खो महाराजाधिराज-गोमदहादटेवस्य-सकल-कारणा- घ्ोश्वर सकलविदया-विशार्द्‌-खोरहेमादिविरचिते चतुव्वेगे चिन्तामणौ त्रेतखग्डे अमावस्यात्रतानि॥ ( ३३ ) ay एकविंशोऽध्यायः | SOS aq नानातिथिव्रतानि। प्रयेकसुक्तषु तिधित्रतेषु लवध्वावकाशं पुनरादद तत्‌) ह माद्धिरत्यन्तफलप्रदायि नानातिथोनां ब्रतहन्दमाद॥ युधिष्ठिर उवाच | स्मारयामि BUA Tala भवता मम) तत्साविक्रौव्रत ब्रूदि प्रसादसुमुखो भव ॥ ala उवाच | कथयामि कुलस्तो णां मदिम्नोवदनं परं, यथा चौणं व्रतं gat सावित्रया राजकन्यया ॥ sas Wala सव्वभ्रूतद्िति Ta: | पायिवोऽश्पलिनाम पोरजानपदप्रियः।॥ HAMA सत्यवाक्‌ संयतेन्द्रियः | स सभाय्यो त्रतमिद्कारापत्यकाम्यया | साविचौति प्रसि यत्‌ सव्वेकामप्रदायक | aa az q at zat साविचौ ब्रह्मणः प्रिया } qua: खरितोव्यस्या; warafafes स्थिता, व्रतखर्ड'२१९अध्वायः। warts: | २५६ कमर्डलुङरादटेवी वरदा faawifaxt | उवाच दुहिता Gat तव राजन्‌ भविष्यति) तस्याः प्रसाद्‌ादप्येतव्सव्व' तव समागतं | मन्नाम्ना सा च वक्ताव्या महाक्रर्तिमतोतुमा) भविष्यति महाराज मा भीकं कन्त महसि ॥ एवसुक्तातुसादेवौ जगामाद्शनं तद्ध) कालेन बहुना जाता दुहिता देवरूपिणे ॥ साविलोप्रौतये हत्या साविकापरूजया तधा । आदिष्टा चेव सावितुगरा सावितौसदनौ aa: | साविच्रौव्येवनामास्याश्क्रु विप्रास्तथापि सा | सावित्रौ विग्रहवतो१ aaa पितुग्येहे। काले वहुतथे याते योवनच्या aaa ar I सा सुमध्या asia प्रतिमां काञ्चनौोभिव। प्राप्तेयं देवकन्येति dea मेनिरे जनाः 1 सातु पद्मपलाशाक्तो प्रज्चलन्तोवतेजसा। चचार सपि सावितौव्रत तदुगुरुणोदितं॥ अथोपोष्य शिरः खाता सम्यक्‌ सम्पूज्य देवताः t इत्वाग्नि' विधिवद्िप्रान्‌ बाचयिववेन्दुपव्व णि a तेभ्यः qaaat au प्रतिग्ण्ह्यदपात्मजा। सखौपरिहताम्येव्यर्‌ tanita रूपिणौ | १ साश्रौकतिगप्रदवतोति Gaaract प्राठः; २ wafefa पुस्तकान्तर पाठः| २६० हेमाद्रिः | [वरतखग्ड'२१अध्याय; : माभिवाय पितुः पादौ विनोता araetfaat | क्ष ताच््नलिवरारोहा वरपतःपाखतः fear at ZB यौवनप्रासां स्वां सुतां देवरूपिणी उवाच राजा Ha Baa सह मन्विभिः॥ पचो प्रदानकालास्त नच afsemifa ai | विचारयन्न१ पश्यामि वरतुल्यामिहातमनः॥ agifa देयासि मया दोषः स्यादन्यथा मम) टेवादोनां तथा वाचो न भवेयं तथा कुर्‌ । पठव्मानं मया पचि waaay विद्युतं | पितुख्हेतुया कन्या रजः पश्यत्यसंस्ता॥ व्रह्म हत्या पितु स्तस्य सा कन्या aval स्मृता | यतोऽत प्रेषयामित्वां कुम्‌ पुति Gawd | ag tanaia a@ ae गच्छ चमा fad | देवादौनां AW ATS न भवेयं AAT कुस्‌ ॥ एवमस्त्विति सावित्रो प्रोक्ता we’ विनिर्ययौ | स्यन्दनन महाहण मन्विभिः परिवारिता! तपोवनानि रम्याणि रजघोंणां जगाम AT | मान्यानां ततर ABTA Hal पादाभिवन्दन ii ततो aaa तौधीनि पवतां वनानि च) देशांश्च विविधान्‌ रम्यानायमान्‌ सुमनोहरान्‌ | एकभम्मिन्राश्रमपदे HAHA वभूव शा, वरयित्वा वर्सात्‌ आजगाम खमालयं॥ aE ee = ee न ~ ५ ननन ~" #॥ शशि ) विभावन दूति Gage पार. । तख र्ड'२ १ अध्यायः] wattle: | ९६१ सावित्रो afaafear परितुष्टेन चेतसा) तच पश्यति देवति नारदं पुरतः पितुः | असौोनमासने विप्र प्रणम्य स्मितभाषिणे ; कथयामास तत्सव्व ` येनारण्य गतागता ॥ स। वितुपवाएच | आसौोराल्वेषु waa afaa: प्रथिवोपतिः। aaqaa इति ख्यातो देवाद्न्यो वभूव सः । तस्याप्यभवद्वा््या वे रुक्विणो नाम सुन्दरो | तस्य प्रतिहतं राज्य वेरिभेटेन योगतः॥ सबालया तथा साई भया प्रद्ितो aa | स तस्य वलसंहद्. ya: परमधास्मिकः॥ सत्यवान्‌ नामरूप.८ाो Wala AAAT aa: | नारद्‌ उवाच। अहो Ava ae साविति किमिद कत) HAM वालमावादुयद्‌ णवान्‌ सत्यवान्‌ नृपः | UA वदत्यसो राजा सत्याश्वस्तन स सरतः | tamara; प्रियास्तस्य करोत्यश्वान्‌ स BWANA | fas ऽपि लिखयव्यण्व।न्‌ चि चाश्वस्तेन कष्यते ॥ fa वर्योरन्तिटेवस्य waa दानगुणेः समः, व्राह्मणः waned: शिविरौीशोनरो aati धयातिरिव Wert: सोमवत्‌ fares: | afaaifaa रूपेण द्य मत्सनसुतो वभौ ॥ २६२ देमाद्रिः। [त्रतखण्ड २१अरध्याय;। एको दोषोऽस्ति नान्योऽसावद्यप्रसृतिसत्यवान्‌ । संवत्सरण चौणायुदहत्यागं करिष्यति | खौ कष्ण उवाच | नारदादेतदाकण्य दुहितुःप्राह पाथिवः। ufa साविति गच्छ्ान्यं at वरय wafa || संवत्सरेण सोऽल्यायुद्‌दहत्याग afeafa | साविच्रव्रवाच। सक्ञ्जनल्यन्ति राजानः सक्ज्नल्यतन्ति पण्डिताः । सक्तत्‌कन्या प्रदोयन्ते बोणखंतानि सक्लत्कत्‌ ॥ टौघांयुरथवाल्यायुः सगुणो निगु णोऽपि at | WHEAT मया walt a दितोयं aaa ॥ मनसा निश्चयं wat ततो बाचाभिधोयते। क्रियते WAU Wasa: सनातनः | नारद्‌ Vals | qaafes efequa: ata विघौवतां | अविघ्रमस्त afata wget करिष्यति ॥ एवमुक्ता खमुत्पत्य नारद्‌ स्िदिवं ययौ | उत्पादय द्रुःखमतुलं तस्य west युधिषिर ॥ राजापि दुःखसंविम्नधिरध्यानपरोऽभवत्‌। अरद्ोऽतिकण्मत्पन्नमपार मादहटगात्मनां | एतत्‌ दुःखमहो दृष्ट्रा वरमेषानपत्यता | सत्यसुक्त' पुराणन्नः कन्या दुःखेकभाजनं ॥ gage aera i] Sarfz ५६३ टेवे्यं दुक्त awa’ व्यलोकं प्रतिभाति मे। एवं UMA ISA दघाकवातमानमात्ना॥ देवों dala afaat aan eat वरः पुरा। जगौ सदु हतुः सव्व बेवाहिकमधाकरोत्‌ | स्वथं गत्वा त्‌ सामग्या वनं सुनिनिषेवितं | शमे HEA UNS बराह्मणुवंद्पारगेः॥ समथयित्वा कन्यां तां cut guia पुष्कलान्‌ | उवाचेदं महाभागां व्यधितंनान्तरात्मना | द्य॒ मत्तेन महाभाग TY A परमम्बचः। sa मे दुहितातोववल्लभा जौविताद्पि॥ Wal ससुचितो Wal: सत्यवान्‌ सत्यवल्लभः | त्वमप्यस्याः समुचितः WU धमस्यवल्लभः 1 ACSA. Aaa: वालेयं राज्यलालिता); यद्ाभौष्ट' च जामातुखंबयोयं saa ॥ तत्तदा ख्येयमस्मकं Blas ते स्त व्रजाम्यह | AAW उवाच | CUA गतो राजा नारदोक्तं व्यघान्वितः t सावित्पपिच तल्लवध्वा भत्तारं मनरेष्ठितं॥ सुसुरेऽतोव aay देयं प्राप्येव पुण्यकृत्‌ | एवं तत्राखमे तेषां तदा निवसतां सतां! कालस्तत्पश्यतां कश्िदतिचक्राम भारत) aaa शयानाया चिन्तयन्त्या दिवानिशं } नारदेन AHS दया त्रापसपति । २६४ हमद्भिः | [त्रतखण्ड२१ब्रध्यायः। ततः काले azfaa व्यतिक्रान्ते कदाचन | प्राप्तःकालोटि मन्तव्यं यच सत्यवता 3a ॥ प्रौ पदे सिते परे दाद्श्यां रजनोसुखे। ग णयन्लयाख साविक्या acta वचो efe ॥ चतुयऽह नि मत्तव्यमिति सिन्द भामिनो, ad चिराचसुदिश्य साविच्ाख्य महाफल ॥ उपोष्य dfear ae atfaat ar पतित्रता। aafaua faa स्नात्वा सन्तप्य Saat: | WAH: पादौ ववन्दे चारुहासिनो | अथ प्रतस्य परशु wala सत्यवान्वने। afaarfa च भत्तारं गच्छन्त पृष्ठतोऽन्वयात्‌ ॥ बाव्माणापि सा wat वदाभ्याच्चाभिभाषिता। HA Wid मा भद्रं गच्छ कण्टकिनं aa | सुकृमारासि कल्याणि लालिता एथिवोखता। ष्वापद्‌ाश्वापरेयातं कथं शच्यसि१ तदनं i उपवासास्ववस्तेऽदय AMAT सुमध्यमे | साविच्ववाच। नेष धरयो वरस्लौणां यद्त्तंरि ayfaa | waaaa च भोक्तव्यमित्यादई्मदभिंनः॥ प्रपर कोतुक मेऽस्ति वनस्यास्य प्रदशने। wat we प्रयास्यामि सहारा खाभिनोऽचिरं। ऋ - " - ` गमि I a rrr eee ~~ a भि भ i ie rn णये ९ WaT GAR पाठः| त इ.'२२अर्यायः] WATS | युष्मत्‌पाद्‌प्रसदेन मा निषेधं aca | ततो ज्ञात्वा चमसा TIA AMAA uaa साविचनुपद्‌ wi A तस्मिन्‌ WATE I Talal दूरमध्वानं HAs Bales | सभित्‌कधच्च कुसुम AAA a aza faa | RSA QR AS काष्टभारमकन्ययत्‌ | HIS ASL तथा पाटयामास AAA | BA पाटयवतस्तस्य जाता facia Seat i ततः Waa तसव्वे वटच्छायरामुपायितः। सत्यवान्‌ वेद्नाक्रान्तः किचिहगितुमानसः ॥ वट गृखेस्वद्रम्य सल्यवन्‌ प्राह Fz | मा्विल्ि पष्य {Ua ASAT BT प्रवाते} जीन्‌ नच fataq प्रवच्छार्सि भ्बसन्येव fe मै aa | तवोसङ्ग सणन्तावत्‌ स्ठम्‌ःमच्छामि सुन्दरि ॥ विखमम्व महाबाहो atfaal प्राह द्ःखिता' पथाद्पि गमिष्यावः SIA सुअनारर ¦ MIT TARA कत्वा जिरथास्त महोतन्ते | तावत्‌ करालवद््‌नाः शतगोध् Was: | आजम्मयमद्‌ ताथ रोदाखातिभयङ्कराः। न ize शिपातेऽस्याः सावित्रा खातुमन्तिके + गत्वाचचक्तु qa साविचास्तेतु द्धनं | दिपातेन नास्माभिः गक्वतेऽस्य धतु | zedia a at दे्‌ efeciaa a wil | ( 3g) २६९९ मादि | [aaa २९१ अध्यायः) तत्‌ स्वयं याहि नौस्माऽभिः साध्यते सत्यवान्‌ कचित्‌ ॥ SHAT यमः कोपादुत्धाथाघ् वरासनात्‌ | आरुह्य afed Ve रोदः प्राणहरो बलो | TAMIA त्वरायुक्तो यत्रास्ते सा पतिव्रता सावित्रापि च सन्तस्ता वौच्यमाण इतस्ततः ॥ सावधाना कथं कोऽद्य भत्तारं मम नेष्यति। तावदृद्शं सा वाला पुरुषं कष्णपिङ्लं i क्िरोटिनं dare’ साच्तात्‌ aafaafed : तसुवाचाध सावितो प्रणम्य मधुराच्तर ॥ कर्त्वन्देवोऽथ देव्यो वा मान्धषितुसुपागतः | न We केनचिच्छक्तया खध्मीद्‌वरोपितु ॥ NZ वा ganas टौप्ाम्बह्किशिखामिवं॥ यम उवाच) यमः संयमनखाहः सव्वभूतमयङरः | WU a wut alan a पतित्रते॥ awa: किङ्रंजतुः ततोऽहं खयमागतः । एवमुक्ता सत्यवतः शरोरात्‌ पाशसंयुतं॥ TESA पुरुषं निखकषं यमो वलात्‌ | थ प्रयातुमारभे पन्थान पिटसेवितं। साविर्पि वरारोहा क्त्वा पाटन AEA? | CAA HUAI ययावनुपद्न्ततः | ९ मण्डसमिति पुलकान्तर भाट. व्रतखर्ड २१अध्यायः |) माद्रि | ९६ पतित्रतत्वादखान्ता ध्यायमान निजं पतिं । तचन्ता ATAU तामुवाच यमस्तदा ॥ निवत्यं गच्छ साविति सुदूरं तमिदह्ागता। एष मार्गो विणालास्ति न केनाप्यनुमम्यते ॥ साविच्रुवाच। aaal aa 8 म्लानिः कदाचिदपि जाथते। भत्तोंस्मनुगच्छन्तयास्तव शिष्टस्य सन्निधौ । सतां सन्तो गतिनांन्या iui wat wer गतिः, वेदा बणोखमाणाच्च शिष्याणाच्ध गतिगृसः॥ सवषामेव जन्तूनां स्थानमस्ति महौ तले | मुक्ता भत्तीरमेकन्तु BU नान्यः समाखयः॥ रभिरन्येः समु चितेव्वीव्येधं संयुतः, तोषितो waa सावित्रौमिदमत्रवौत्‌ tt तुष्टोऽस्मि तव भद्र ऽथ वरान्‌ ATA GAA साच aa वरान्‌ पञ्च विनयावनता सतौ) चन्तुःप्रासिस्तघा राज्य खशुरस्य महातमनः | जीवितच तया भत्तधेीप्राप्िच्च waa | पितु; पुतरशतच्ेव तथा च शतमात्मनः | धन््राजो वर SUI प्रेषयामास तान्ततः |. अआजगामाघ साविनो न्यगोघविटपन्तघा॥ कल्वोत्सङ्ग शिरस्तस्य पूव्ववन्रिषसाद्‌ सा। a ra ri Sp ry a माणन a een ay ana ९ निजं पद्‌्सिति पुख्ठकान्तर dis | ६६८ हेमाद्रिः | [व्रतर्डर्ड २१अध्याघः | उत्थितयेदनां प्राप्य AAR प्रादेद्माद्‌रात्‌ | दयन दौध्िती भद्रे कालोऽतौोव गना मम) कि वच्यति हिमे तातः fag माताचद्रदखिःता) विसं ह्यय संजातं काल्लोऽतीव गतो वने | विद्धाय मातापितयै कालो a क्तापि मेऽवत्यगात्‌ । sfa मत्वा विर्ष्येते छतं नेह प्रवौघनं! | सावित्तपवाच। Ha त्वां वोधयाम्पत पौडितन्तु fattest | मस ata विलम्बोऽमूदकायण तव(नघ ॥ प्रहस्योत्थाय सावित्रौ जग्राह fatwa | सन्नित्.-गादिक साथ RMA Basa tt ततः पिचास्वनेताभ्यां दृष्टौ at परया मुदा ॥ aaa मूधयथाघ्राय पुतमङ् निवेष्य सः उवाच fez पश्यामि सभाय्यन्ां समागतं । पिदव्वदारय पृष्टः समाचष्ट यथातघा। यदि तार्थोऽतिसंहृष्टः पूजयामास at सतौ । दपर पूव्वजेभक्त राज्य निदतकर्टकं | दयम्तेना महाभाग इयाज क्रतुभिम्तद्‌ा॥ ततीोदरुपतिरासाद्य पुतानात्गुखधिकान्‌ | सा विला चित ज्ञाता जामातुर्जीवितं तछा | राज्यति च विपुलां परां qeaaig a | eee ee षन क + ष्य ~ CL a 9 वका । ध्य १ कछरन्वानेद्धप्रवशर्न(मिति पुस्तकान्तरे gre: | -€& ~ .. २ Bay [रत Faaradc Wis: | त्रत खर्ड' ९ १ अध्यायः] हमाद्धिः। २६९ सावित्रयाख्यानकमिद्‌ं सव्वेपापप्रणागनं ॥ अवेघव्यप्रदं स्वो गां WAP AIT | ~ सुखसीभाग्यद्‌ं पाय प्रातजप्यमिदं सदा | भाद्रपदे Way wet व्रतं fas | Higiewaaw suai कथितं aaa मया | युधिष्ठिर ars | कोटश aga aw arfaa azafed | तस्मिन्‌ भाद्रपदे मासि विधानं aw wa & | का टेवता ब्रते तस्मिन्‌ को am: fa फलं fat | एतदाख्याहि मे ara a fe ठप्यासि मघव! ATHU उवाचं! शरूयतां पार्डवयेष्ठ साविरौव्रतमादरात्‌ | कथयामि यथा चौण' तया war युधिष्ठिर ॥ रयोद्श्वां भाद्रपदे दन्तघावनपरूवक' । चिरात नियमं कु्याद्पवासस्य भक्तितः ॥ अग्रका च तयोद्श्यां an’ कुव्याज्नितेन्द्रिया। अयाचितं Wei पौगंमास्यामुपोषणम्‌ | नित्य रात्रा महानद्यां तडागे निमरेऽपिवा। विशेषतः परूणमस्यां सानं सषपडन्नतेः ॥ Real वालुकां wa प्रखमाचां गुधिष्िर। अधवा धान्यमादाचय यवश्चःलितिलाद्िक' | ततोवशमये पाते ayaa वेष्टित | साविचौप्रतिमां छता व्रद्धण्खेव शोधनं | २७० Alla: | [त्रतखण्डं २१ ग्रध्यायः। सौवर्णो" wud वापि ख शक्या रोप्यनिर्भिंतां। ब्रद्यणोरूपनिर्ाण' yaafufed वेदितव्यः | रक्रवस्तयुग दद्यात्साविचा ब्रह्मणः fad ॥ सावित्रो ब्रह्मणासाद्धमेवं भक्तया प्रपूजयेत्‌ ए र Ae A 3) > = ~ । गन्धः YU ख नवेदयंदोपकर्मोदकः शभः ॥ a, = ~ = ~ o a =a पूण कोणातकः पक्त: HAW: ककटोफले; | नारिकेलंख खजं रेः कपित्थे दौडिनेस्तथा ॥ से ^ ` ~, a बोजपूरः सनारङ्गगणाखाोटेः पनसंस्तथा | > Aa © Hh Ca ~ धान्यकंजोरकड् देगुडेन लवणेन च। fase: सप्तघान्ये ख वं गपाचप्रकच्ितेः। = ~ हरिद्रया कर्डस्त्रः WH. कुङ्मकसरः | अवतारं करोत्येव साविचो ब्रह्मणः प्रिया॥ तामचेयोत Wan alfaat ब्राह्मणीं खयं | द्तरासां त्वा स्लोणां पुराणोक्त विधि; स्मतः ॥ श्रो कारपूव्वक देवि वौणापुस्तकधारिणौ। क = . ~ वेदमातनेमस्त्‌भ्य मवधव्यं प्रयच्छ मे) eu देहि यगोटेहि सौभाग्यः ef fa मे, यथा प्रसन्ना साविकरयास्तथामां पाहि afafa i एवं सपूज्य विधिवज्जागरं ay कारयेत्‌! गीतबादिवनिर्घोवेद्टनारौोकदम्बकेः | = ‘ 4 ~~ ~ पुणयाख्यानंश्च वि विघस्तां wifaafaarsaa | उत्सवेन aged afsarra कथानकः | ततः प्रभातसमये रवावनुदिति afa | त्रत खण्ड '२१अध्य.यः 1] SATA | २३१ afant arau Ha नैवेद्यानि निवेदयेत्‌ ॥ अथ सावि्रिकन्यन्न सावित्रयाख्यानवाचके। ea तु स्रहत्तस्ये दरिद्र वा कुटुम्बिनि) मन्तेणानेन कौन्तय प्रणम्य विधिपूव्वकं | दृव्वत्तततिलेमि खां पूरव्वागाभिसुखस्यितां ॥ शुःचिवस्धरो विप्रञ्चोकारखस्तिपरूवकं । साविच्ौयं मया दत्ता सहिरण्या हिररमयो ॥ ब्रह्मणः प्रीणनाय ब्राह्मण प्रतिग्यह्यतां। एवं दत्वा दिजन्द्राय aifaal at युधिष्ठिर i नेषेदय। दि च तत्सर्व ब्राह्यणस्य We नयेत्‌ | खयं enue गच्छेत्खबेश्म तत श्राविरेत्‌ । गेरि खयो भोजयेड क्या हविष्यान्नेन ग्क्तितः | पुष्यं: कुड. alae: कण्टसूतकेः | वासोभिभ्रूषणेः१ क्या वित्त्ाठाविवनजिंता | विसजयेत्ततस्तां श साविकौप्रोयतामिति 1 स्वय वर्म ररे sate a सावित्रौ वरदा तुभ्य भवतां भावसुव्रतार ॥ Yar अष्टौ AAT भत्ता परम।युरनामयः। yaaa a wae वर्तान्तव सत्कुलं | aay yaa तत्तदिधिनानेन निञित i पञ्चदश्यां तथा ज्येष्टं वटमूले महासती | ९ वासाविभुषयौरिति पुरूकान्तरं पाठः| २ भवन्त्‌ तव सुद्रतेदूति पुम्तकान्तरे qa: | R92 दमाद्धिः। [व्रतखश्ड'२९अध्यायः। चिराचोपोषिता नारौ दिधिनानन पूजयेत्‌ | wie सत्यवता साध्यौ फलनेतेव्यदौपकंः | वटाव्लम्बिन Bal काष्टठभार्‌ युधिष्ठिर ॥ रानी जागरण Hal गोतनरव्यपुरःसरं, ततः प्रभाते विधिना पूर्व्वोक्तेन नरोत्तम ॥ तामपि ब्राह्मण ददात्‌ प्रणिपत्य चसापयेत्‌ uagaat पाय कितं रिधिवन्सया। याखरि्यन्ति waste gaara aafeaat: | Ya भोगःंविरं qa यास्यन्ति aga: पदम्‌ एतत्‌ FAS पपद्र धन्य ST SYA | जपतां खग्वतां चेव सावित्रौ त्रतमष्द्रात्‌ । स्मत्यथवेद्‌जनन्धे सहभनत्तुकां यां सम्पूजयेत्‌ क्रंत{द्नलितयोपवःसा। wifataaq {<ढङरःच्च तथव wa रुड,त्यया ya Yaa FX सुठानि। दूति भविष्योचरोक्त awafaal aa स्कान्द पुर) णात्‌ | घञ्यमराजवरप्रदानानन्तर माटिलत्रयञाच। ~3 मद्ोयन्तु at टेव waar नागो करिष्यति) Safar > Aa) AA SAT Vil WAM AAR AAT | । त खुखडं २१ अध्यायः || earls: | 293 धमराज Fas | नासे at विधवा वापि agar afaafe are | WAT, कार सयुतावा काये व्रतमिदं wy | ज्येष्ठमासे तु संप्राप्त पौणमास्यां afaaar | स्नात्वा चेव शचिभूत्वा वट fay aezm: | QIU बेष्टयेहत्या गन्ध पुष्यातच्तते; शभे । नमो वैवखतायेति ख मयन्तोप्रदच्िणं | रातौ Hala नक्तञ्च अब्दमेकं समाहिता) तयेव aca” पत्ते ad च पूजयेत्‌ ॥ संप्राप्ते च पुनर्ये लधभुक्‌ CaM Aaa | दन्तानां धावन war नियमं कारयेत्ततः॥ चिराच' लद्कयित्वाच चतुथं featus | qa प्रदा च पूजयिता at wat ll भिष्टात्रानि यथाशक्त्या पूजयित्वा दिजोत्तमान्‌ | Wass जगाचि निव्विन्न कुरु मे aay नियममन्तः | कत्वा वंशमये Wa वालुकाप्रस्थभेवच | सप्तधान्यष्टतं पाच प्रस्थे केन दिजोत्तम ॥ वस्वहयोपरि स्थाप्य सावित्रं ब्रह्मणा az: eat छत्वा तयोः Wea विरा व्सुपवासयेत्‌ ॥ न्यग्रोधस्य तले तिरे यावश्व व feaaz | anne ee eee ट पुतवजिता दूति पुकान्तरे पाडः | २ Wasa दूति Wiss | ( ay ) देमाद्धिः। [तरतखण्ड२१अष्यायः। Hata a alan सव्येन सह कारयेत्‌ । रोप्यपयङमारोप्य रघोपरि निवेशयेत्‌ | पलादड़' AMINA रथं रौप्यमय शभ ॥ तथाच काष्ठभारे च वटेचेव सुविस्तरं | एवच्च मिथन AAI पूजये तमत्लरा ॥ वत्तलं HWA कत्वा गोमयेन तपोधन! | पच्यामतेनं Bua गन्धपष्पोद्केन च ॥ चन्दना गुरुकपरास्यवस्वविभूषणेः । संपूज्य aa सावि्नौं मण्डले स्थापयेदधः ॥ धोतपिषटेन VAY अथवा चन्दनेन च। न्धसेचैव ततोदवीं कमले कमलासनं२ | नेन विधिना स्थाप्य पूजयेद्रतमत्सरा | अथ साविनोपूजा मन्तः | नमः सावितधरपादौतु wafaaz च जानुनी) पि > + गि कटिं कमलपताच्य set aauif ~*~ > टौ = NAGY! सनवेद्य : Ha: TRAIAN: | a = , ~ LATS TART: पूजयेदतमत्सरा | २७६ Saltz: | [anew ewe: अध सावितौप्रायेन मन्तः | सावित्रौ ब्रह्मगायती सववेदा प्रियभाषिरो। तेन सत्येन मां पादि दुःखसंसारसागरात्‌ । त्वं गोरो लं शचौ wate प्रभा चन्द्रमर्डले | तरमेव च जगन्माता त्वसुडर वरानने। सोभाग्य कुलतठदिच्च देहित्वं मम सुव्रते । यन्मया दुष्क तं ta छतं ज्मणतेरपि । भस्मीभवतु तत्सर्न्वमवेधव्यञ्च देहि मे ॥ घ ब्रद्धासत्यवतोः प्राथनामन्तः। वियोगो यथा टेव सावित्या सदहितस्तव। अवियोगस्तघास्माकं भूयाच्जन््रनि जन्ननि)॥ यम प्राधेनामन्तः ` HAA जगत्‌पृज्य सव्वेवन्य wate भे , संवत्सरन्रतं सव्व परिपू तदस्तमे। सावित्री लं यथा देवौ चतुवर्भग्यतायुषं ¦ पति प्राप्तासि गुणिनं aa efa तथा कुर्‌ | सावित्रौ प्रसवितचो च सतत ब्रह्मणः प्रिया। पजितासि fea: wa स्तलीभिम॒निगणेस्तया | चिसन्ध्य टेवि भूतानां वन्दनोयासि gaa | मया TUF पृजयं त WIT नमोऽस्तु ते ॥ जागरन्तत्र Hala गौ तनृल्यादिमङ्गलेः | ख वासिन्यस्तत, पज्या दिवसे दिवसे aa a AAS 2 LAAT: || alle: | 2S सिन्दुर qT मञ्च व तास्बलं सपविचरक। तथा Sats सरव्वाणि१ WA सोभाग्यमश्क। सतोषेव दिवारात्रौ कामक्रोधविवलिता। दिनतऽयेपि कन्तव्यभेवं माजीरपूजनं । ततश्चतुथंदिवसे यत्‌ काथन्तच्छणुच मे मिथनानि चतुविंश षोड़श arene ar i पूजयेदस्तरमो दा नमूषणाच्छाद्‌ नासनेः | अथवा Yang व्रतस्य विधिकारक॥ सव्व लक्ष णसम्यत्र' सव्वं शास्वायपारमगं | विद्‌ विद्यात्रतस्नातं शान्त्य विजितेन्द्रिय i सपनो कं समभ्यच्य वस्ालङ्ारभूषगैः | Wat सोपस्करं दद्यात्‌ खह्धेवातिभ्नोभनं ॥ ATA यथाशक्तया स्तोकं स्तोकच्च कल्पयेत्‌ | सौवण प्रतिमां पुत्रि पतिना सह दापयेत्‌ । कल्यनामन्तः | atfafa @ यथा देवि चतुव्वषेशतायुषं) सत्यवन्त पति लब्धा मया TUT तथा कुस ॥ प्रतिमादानमन्तः। सावित्रौ जगतो माता साविचौ जगतः पिता। भया ear च atfaat area प्रतिग्डद्यतां॥ अघ प्रतिग्रहमन्ः। मया weiat साविच्रौ त्थादत्ता सुग्रोभना। १९ BSA पुकानारे पाठः| 29OG TROT Re Le १ सखटतठकन्यसिति पुषकान्तरे पाटः ¦ eae: | [तरतखण्डर अध्यायः ¢ WAZA TAG सह भका सुखो भव । गुरुच गुरुपल्लोच्च ततो भक्तया त्षमापयेत्‌ ॥ =~ + ^ 9 यन्मया कछतवेकल्य १ व्रतेऽस्मिन्‌ दुरधिष्ठित। ८५ ध + e™ तत्सव्व पृणता यातु युवयोवचनेनतु॥ प्रतिमास वटसेचनमस्नः | AUTISM यमो धाता नोलः काल्ान्तकोऽव्ययः tt ~ ग e वेवस्वतश्िचगुपसो CHa: च्योवटः। ~ = © १ AN ° मासि मासि तघाद्येतनांमभिः Sages tt WATS वसेत्‌ पुति तस्माद्यन्न सेचयेत्‌ | ततो गुर सपलोकं प्रूजयेदतविस्मया i A = =z (९ श्षणख CARI FTAA मनोहरः | न्यग्रोधस्य समोप तु we at uafws Va 1 साविच्दाश्रेव मन्वण टतहोमन्तु कारयेत्‌ | पायसं जुदुयाद्घक्तया तेन सह भाविनि ॥ a % ५ ३। + BEA मन्त ण faaaifead तथा | ~ # a होमान्ते efaut eafeanisrfaatsar ॥ त्मापयेत्ततो fan वन्य पादौ waaa: 1 AAA वासरान्ततु नक्र शान्ता aufaay ॥ ay द्वा त्वसन्यत्या दृष्टा चेव प्रणम्य च ! प्रुग्धति ANGST, वसिष्ठस्य प्रियं शभे ॥ ~ -& क ™, सव्व॑टेवनमस्काय्य पतिव्रते नमोस्त्‌ a 0, ¢ । । + सव्वं We मया दत्त फल पुष्पसमन्वित ॥ त्रतखण्ड २१अध्यायः] दमाद्धिः, २७९ पुचान्‌ efe qa zie गहाणाध्य नमोस्तते,। ससौ भिद्य ण; as aata विजिनन्द्रिया । एवं करोतिया नारो व्रतमेतद्नुत्म। भ्वातरः पितरः Fal. वशुरः स्वजनास्तघधा ॥ चिरायुषस्तथारोगाः Wa जन्मगतत्रयं। wal च सहिता anal ब्रह्मलोके महोयतं ॥ दति स्वन्दपुराणोक्त बरसाविनोत्रतं | ००८ ००----- दून्द्रारघ्युवाच | दृष्टा मां नहुषो ब्रह्मन्‌ कामेनातौोवपोडितः। मान्धषयितुमारब् स्ततस््वां शरयता ॥ गुरो कश्िदुपायोऽस्ति ad वा दानमेव वा), येन शोकादहिमोच्यामि aa वद्‌ महामुने । तस्यासत वचनं Jal गुरखवांक्मधात्रवोत्‌ | वष्टस्पमरतिरुवाच। TIT HATA वेतशोक हरं पर | faua तच कत्तव्य व्रतं शोकविनाश्नं ॥ पापन्रच्खागदघ्रञ्च पुचपौतविवद्ैन | $ = 0 + > १ आयुःप्रद्‌ं कोौत्तिकर घनधान्यप्रद्‌ पर । $ + 0 . भुक्तिमुकिप्रदं दिव्यं सव्व मायाविनाशनं। तच्छणु त्मगोकाख्य तिरातत्रतसुत्तमं। © क “A he “~, माति arafat चव vas भाद्रपदे तघा। २८५ दमाद्धिः |[ व्रतखश्डर२१ अध्यायः | THI पञ्दभ्यामकभक्तन्तुं कारयेत्‌ ॥ ततः प्रातःससुत्थाय स्नान कुबधात्ततो त्रतो। आचम्यतु ुचिभृला प्रणम्य च युन: पुनः ॥ श्रप्योक प जयेद्धक्तयः ब्रह्मविष्णुस्वरूपि ण १ | क्रमेणानेन Safa पुराणोक्तनर विस्तरात्‌ ॥ अशोक शोकनाशाथे' water किताविह। aq गहाणभो दत्त ब्रह्मविष्णगेशरूपश्त्‌ | अच त्रह्मविष्णुरुद्राणां सगक्तिकानां मृत्तिकरण' । उत्त Ta तदानद्श्ंनात्‌। aa ब्रह्मसावित्रौरूपं पुतकामपूणिमा aa | लच्छोनारायणरूपन्तु पूणिमाखलच्मौनारायणत्रते । उमा मद गयो स्ववियोगदहाद्‌ भौव्रतेऽभिहितं । परिभाषोक्तं वा प्रति माव्य वेदितव्य) अध्य AA दरदं पाद्य नमस्तभ्य' कल्यितं पुणयवारिणा | पुष्मात्तत छ फलेमिं खमभोक प्रतिग्द्हातां ॥ पाद्यमन्त्रः | चन्दनं विविधं aaaaa Zafafad | ACCT SUAS क्षां कुर्‌ ममोपरि । eee १ त्रत विष्ण, aefywhifa gearat पाठः | २ क्रमेणक्तण इति Gears पाठः| २ त्वे walla दन्त पुल्लकान्नरे प।ठः | ४ Varga दूति पुस्तकान्तरे wis: | AAW २१ अध्यायः ।] SATZ | We He: | पुष्पाणोमानि ade मालव्यारौनि यानि च, ब्टहाणेमानि दिव्यानि मम सन्तु मनोरथाः | Gana: | गुग्‌ गुलवाद्याख्चये waar चागुरुसत्रिमाः। निवेदिता मवा भक्तया ग्ह{णेतान्हातरो | TIAA: । श्रारातिकं agiaa कलितं टोपसयुन | उद्योताथ जगत्पूज्यः कुलस्य मम सोस्तु वे१। दोपमन्तः | अवितस्व' atfeaelaaa महोरगेः ¦ अप्सरोभिश्च गन्धव स्ततसू्वामर्चय) म्यहं | ्रचनमन्तः। परमान्नं Balan भच्यभोज्यसमन्नितं | भक्तया निवेदितं तुम्ब षड्भिरेभो रसतं ॥ एवं सपूज्य तं aa प्रणिपत्य पुनः पुनः । अशोका प्राघयेत्पखान्मन्त णानेन भक्तिमान्‌ ॥ Ia कतं किञिदतिरिक्र' wa aa awa’ guat यातु प्रसादात्त दूमोत्तम | प्राघनामन्तः | अनेनेव विधानेन प्रतिमासच् पूजयेत्‌ | यावहादश मासान्व FASTING aa: | मम साधुवें दति पाठान्तर ' ( ३६ ) Zt 5] RER खमादिः। [anew eta | सम्यगग्होल्वा नियमं fata’ ससुपोषयेत्‌ | अशोक Aaa नानाशाखं फलान्वितं॥ qa न संस्थाय Taga: सुधूपितं | नानाफलसमायुक्त पष्यमाल्योपणोभित ॥ > => गनैतवाद्यविनोदेश्च नानाभावकथानकः | क Oo, ॐ भुराणखवणं काय्य व्रतस्यास्य च यत्‌ फल ॥ एवं जागरणं क्त्वा कुयादानान्यनेकशः | मिधनानितु संपूज्य ब्राह्मणनान्तु षोड़श | AUS करका देयाः शूर्पाणि वसनानि च \ ° > ० > गुरोस्त HAA पूज्य वस्त्रराभरणे; Wa: गोदानेभूमिदानेश वेश्मदानादिभिस्तथा । प्रधमेऽद्धि ततो ददात्‌ सावित्रं ब्रह्मणा सह ॥ उमामहेष्ठर ca हि तोयेऽद्धि रानन्‌ | > ते! य्‌ 9 लच्मोनारायण्च्चव ठतोयेऽ्कि सुशोभनं) सोपस्करमगोकन्तु दयात्‌ सव्वं मापयेत्‌ | $ ° Ce ततोऽह भोजयेदन्धृन्‌ दौनानाथां्च तथयेत्‌र ॥ पारणन्तु ततः कुयात्‌ VITUS पुनः पुनः। एवं छते चिरातन्तु फलं यत्‌ कथित बधः ॥ तच्छणुष्व महाभागं Aaa कथयामि ते। अश्वमेधादिभिय्यन्ञेरिषटेयत्‌फलमयुते ॥ १ संवाद्यद्ूति पुस्तकान्तरे पाटः, र दौनान्धांखंव पृजयेदिति पुसलकान्तरे पाठः | रे प्रखनच्च दूति प्राठान्तर। ब्रतखर्ड'२१अध्यायः] देमाद्रिः। श्य्‌ तत्फलं कोटि गुणितं चिरातेण न सशयः | गां zat विविधेदौनेरगबमदिष्वादिभिस्तघा | तथायल्नाथते FIR तीर्थानुस्मरणे कते | aqua ऋषिभिः पुख्य' awa लभते फलं ॥ इति शयुत्रा वचस्तस्य गुरोरमिततजसः। वकारसा तदा Sal पौलोमोत्रतस॒ुत्तम | सा तद्भतप्रभावेन WAT सह सङ्गता, qasa क्तं पूव्व ` सावित्या राजकन्धया ॥ व्रतस्यास्य प्रभावेण प्राप्तोभत्तां धिया सड । अरुन्धत्या वेदवत्या दमयन््यानसयया ॥ रुक्विखादिभिरन्याभिः arat: सव्व मनोरथाः | पठन्ति शण्वन्ति चये मनुखाः कुव्वन्ति भक्तया भृविसद्रतं ये$ । ते यान्ति नाकं सुचिरेविमानेः विसुक्त पापाः सुखिनो wats tt इति भविष्योत्तरोक्तमशोकचिरा चत्रतं | onD)uo नन्दिकेश्वर उवाच । अवेधव्यकरं ब्रूहि व्रतं किचिन्बहेश्वर | भक्तैदुःखमवाप्नोति Yas तथव च | अपुच्रता HEE दुःखच्चापि कुपुच्रता | a i ltt aa CI ः ज he 2 तथायत्‌ क्रियते guiatagqeaniat पाठ; | ४ ue a a Tia Gaara पठः : २द४ eae: | [वतखर्ड rem: | एतान्यवतु Salta at चनारौ बषध्वज॥ नाद्रोति मल्येलीकषेऽसिन्‌ वैधव्यं सुरसत्तम | नारौणाञ् हिताय gfe wafer णर ॥ सयैभाग्यमतुलं याति भत्तारं चाति पूजितं सर्व्वा वयवस णमनङ्गमिव चापरं ॥ agu faded सव्व यास्तविग्ारदं | sifaae qantan gfe शङ्कर ॥ TT उवाच) खणष्वेक मना भूत्वा TATA उ तसुत्तमं । येन qua ary कतक्षत्याश्च योषितः | न भवेदिधवा नन्दिन्रानपव्या कदाचन | विधानं खणु नन्दो ययातत्‌ क्रियते aia TRI चयोदश्यां मासि ज्येष्ठ च सुव्रत 1 faua aaagfea भक्या तां neat wat tt सरात्वा चेव शुचिम्‌ त्वा वतौ सिञ्े दड्धद केः ॥ Bae वेष्टयेदक्या गन्धपुष्पादि दापयेत्‌ । रायौ gala नक्र च अब्दमेकं समाडितः॥ तयेव कद्‌लो त्त नित्यमेव प्रसेचयेत्‌ | ज्येष्टो मासि ततः प्राप्य दादभ्याञ्चेव सुवत ॥ नद्यां वाध तङ्ागे वा शिवं संपूज्य rea: | aia च पृजयेन्दित्रमाटेद्धादधारिणं ॥ एकभक्त ततः कत्वा नियमं कारयेत्‌ वुते ! भोन्येऽदह तिददिन wer aati सुरेष्वरीं। aaa nya: |] SAT | TY त्वत्प्रसादात्‌ ad Ase fafa Ta महेश्वरि)। रम्भायाः wiwea कत्वा fafaayg सुगोभन॥ रम्भाया निकटे खित्वा मोतवाद्यसमन्वितं | मण्डपं कारयेत्तत्र पुष्यमालाविभरूषित ॥ वितानेन च संयुक्त सव्व शोभासमन्वितं ! मध्ये gata कदलीं फलयुष्मादिसंयुतां ॥ राजतीं शोभनाकारां जातरूपफलो चितां) वस्वयुग्मन्ततो TIT सव्वालद्धारभ्चूषितां॥ कद्ल्ये Gaeta Aus ते नमोनमः! रश्नाये रतिसारायं सव्वसौख्यप्रटे नमः ॥ कदट्ल्येकामदाचिन्ये Aaa ठे नमोनमः । पूजामन्वः | चिल्तितात्व हि weal चिन्तितं कामदायिनी शरोरारोग्यमेष्वये se रेवि TATE त। प्राघंनामन्ः | पूजयेत्‌ कुसुमन्मन्ते; AWAIT Waa | हरि द्रारच्ितेः सुच ह ्टनारीकदम्बकः ॥ ससधान्येभ॑ते Wa प्रस्धमातरेण पूरिते । उमामहेश्वर Tay wat afafaana | रुप्यप्यङ्मारूट gaaqafaal हर । वस्तयुग्मन संवे चन्दनेन विलेपयेत्‌ | पूजयेच QUAINT: पुष्प; कालोद्वैत्रती | -- - - य अमम >= १ फर्तान्वितामिति पुस्लकान्तर पाटः। २८६ दमाद्रिः। [व्रतखर्ड"२१अध्यायः | मन्व रेभिस्त नन्दो पादादारभ्य नामभिः । तरिपुराये च इत्यङ्खिगुग्ङ्गौ चा स्त॒ पूजयेत्‌ ॥ नो ५, >= € *} 6 जानुनो चन्द्रनेवाय१ AIM नमोनमः टि २२, र कटि मन्सयनाशावर्‌ स्मराय गिरिजां ततः॥ नाभिं सवश्वरायेति गिरिजाये तथास्विकां। र A om, ~ " हृदये हदि वासिन्यं शूलिने च महेश्वर ॥ मुखं कामविनाणाय पाव्वेव्ये परमेश्वरीं | ~ ¢ ० शिरः सौभाग्य द्‌ाचिन्ये शूलिने तु कपदिने ॥ ^ एवं संपूज्य देवेशसुमया सहित uy | चत्यवाददिचगोताद्यरुपोष्य कदलों ततः | a ॐ जागरस्ततर RAM पुराणाख्यानकः शभेः | एवं चिरात नन्दोशं नयेद्क्यासुभावितः | दिनानि alfa नन्दोश प्रतिलह्य च सुव्रतौ । मिथनानि च संपूज्य यथाविभवं सारतः॥ गुरुञ्चव सपत्नोकम्मोजयित्वा प्रपुजयेत्‌ | , > ¢ दिनसं्यवि waa wasnt भषेत्‌ ॥ एषद्‌ाज्येन दध्ना वा पयसा वाथ वाग्‌यतः। तत्सवितुरिति मन्तरेण ज्‌हुयाद्‌ नले सुधौः ॥ चयोद्ण्यां ANU चतुरश्यां wen पञ्चदश्यां पञ्चदशा इतय इति दिनसख्यात्व' ॥ गुरवे पाण्डर च्छ aw wal तथानघ | पि ज २ चन्द्रवच्छाये दृति पुन्तकान्तर पाठः| 2 नाथाय दृति पुस्तकान्तरे gre: | HAQw २१ अध्यायः |] ख माद्धिः २ ८3 । „19 , "ष्यगयककषाीकगकषमििमीगं १ वाल्लगभाच sla पुस्तकान्तर प्राठः | रक्तवस्तं प्रदातव्य वाचमेतासटोरयेत्‌। wat मे सहितो देवः प्रोयतां हषभध्वज ॥ दानमन्वः | ययेषेन्द्रसमोपे q wat तिष्ठति शोभने | अहमेव सदा Ta war: पाश्वं feat wa a रूपं dfs ua टेहि am: dara aa च| पत्रान्‌ देहि धनं दद्धि सर्व्वान्‌ कामांश देहि Fa प्राघंनामन्चः | कपिला AA दातव्या सर्व्वोपस्करसयुता | उमामहेश्वरं चेव HS सहितं तथा ॥ गभिणौ वालवत्सा च? यथाकुात्तथा खर्‌ । दादण्यामेकभक्तन्तु तयोदश्यां तथेव च। aa समाचरेव्रन्दि तुदं प्यामयावितं। पञ्चदणश्याञ्चोपवासमेवद्धेव व्रतं चरेत्‌ ॥ एतद्ृतन्तु नन्दोश पुत्रपोत्रप्रदायकं। या करोति ad नन्दिन्‌ विधिनानेन सुवत। न तस्यास्ति कुले aifaeqar विधवा तघा॥ अरुन्धतोव मोदे AACA | सदाकत्तियुता areal यावदिन्द्रा्चतुरंभ। व्रतमेतत्‌२ कतं wa ` ठेवपन्नोभिरादरात्‌। ताभिभोगाख संप्राप्ता दिव्या्ातिमनोरमाः। शि) २ wadalala पाठान्तर | 1] Saltz: | fanaa २१अध्यायः। विराजन्ति खगनोके रवेरिव च रश्मयः | व्रतस्यैव तु माह्ात्मयाद्वाप्रोति न संश्यः। एवं प्रभावो AST व्रतस्यास्य ABA tl यः पठेच्छणुयाद्वापि सोऽपि स्वग महौ यते | इति स्कन्दपुराणोक्त रम्भाचिराचत्रतं। Gir उवाच! देवदेव महादेव परब्रह्म मरहेश्वर | अआयुयगोथंपुचखोधर मत्‌कुलकारकं॥ ad ब्रूहि महेशान सव्वशोकप्रणाशनं , जाताः पुत्रा जायन्ते अरोगाः सुखिन स्तथा! तषां gars वष्वश्च दृश्यन्ते च सुशोभनाः सोभाग्यच्वातुलं प्राप्य Wal नव जायते येन सव्व ES भक्ता वङ्ुण्डभवनं व्रजेत्‌ | इष्वर उवाच | व्रतानासुत्तमं स्कन्द तव aa सनातनं | येनैव चौर्णमातेख सव्वं यज्ञफलं सभेत्‌ ॥ यत्‌ कल्ला सव्व दानस्य फलमाप्नोति मानवः; । गोचिराचभितिख्यातं सव्व पापप्रणाशनं ॥ नारो वाय नरो वाघ विराचत्रलमाचरेत्‌ । HUI तयोदण्यां मामि चाश्वयुजे तथा | दोपोदवसमौपे तु व्रतमेतत्‌ समाचरेत्‌ | तैतखष्ड'२१च्रध्यायः CATR ` २८९ प्रातः खात्वा चयोदश्यां Hal वे दन्तधावनं i faua’ नियमं कुय्यांडो विन्दभक्तिभावितः | गोविन्द्‌ जगलां नाथ मो वहैनधरानघ | गोतिराच करिष्यामि शरण मे भवाच्यत। नियममन्वः | MS वा गोपथे षाथ कत्वा भमिं एम्‌ | HCI VASE चतुरखं सुभोभनं॥ वितानं एवष्यमालाभिः फलेन नाबिषैरपि | मध्ये afe ततःकछत्वा मण्डलं तत्र कारयेत्‌ | सव्वेलोभद्रनामाघ् नवनालमधापि वा ॥ ana fated waged हरं | रुक्मौ faa far च शव्या जास्ववतौ aat | वामभागे तु देवस्य पज्या वे भक्तिभावतः | सत्यभामा BM Tal च वासुदटेवारि्निजित्तया ॥ efad चेव पृज्यास्तु AY पुरतो यजेत्‌ | बलभद्र यशोदाच्च TIA: पूजयेत्‌ एमं | सुरभो च सुनन्दा च सुभद्रा नाम Gas: | एताश्चतस्ो देव्यश्च AMS पुरतोन्यसेत्‌ ॥ सुवणेमाषकाः काशाः Tea प्रतिमाः शुभाः | गोवद्ेनख Has राजतः पलसंमितः। ङत्राकारेखहावठक्तेः शोभितः vai: शभः । गोपोगौपसमाकोर्णौ महाठत्त१ समन्वितः i 11 न्न a a yg a nd, 2 Heras fafa पुस्तकान्तर UIs: | ( ३७ ) ९८२ Sate: | [वतखण्ड'२१अध्यायः | एवं संस्थाप्य यन्नेन ततः TA समाचरेत्‌ | ओं ्रागच्छ भगवान्‌ क्ष्ण गोपगोपोसमन्वितः ॥ रक्त खादिभौ राज्ञो भिममप्‌ जां ग्टहाण च १ श्रावादहनमन्तः | नमः MUTT Wel च Ba जानुनौ नभः! उद्र वलदेवाय BRIA नमः कटि ॥ चक्रिणे च भुजो पूज्यौ करटं aware | सुखं षड्चसुखायेति गोविन्दाय wa: शिरः | प्रणवादिनमोन्तेख अष्टाङ्ग VAIS: | रुक्मिणे नमः । मिचविन्दाये नमः । are नमः । जाम्ब वत्य नम; । सुरभ्ये नमः+ सत्यभामायै नमः । राधाङैनमः। नामन्जते नमः। ame aa! बलभद्राय नमः। नन्दाय नमः! सुनन्दायं नमः। सुभद्रायै नमः। arated aa कामधेनवे नमः | गोवधं नधराधार गोकुलवरा षकारक) fayargadiart yaaa नगोत्तम 8 एवं dasa विधिवत्पश्वादष्य ` प्रदापयेत्‌ | गवामाधार गोविन्द्‌ रुक्िणोवल्नभ प्रभो । गोपगोपौसमौपे तमष्य ` we नमोस्त॒ ते । एव यजां समाप्येव भक्तिभावपुरःसरं | गवामध्य ` प्रदातव्यः age a दिनत्रयं t १ गवाभयसिति Geant gra: वतखर्डः२१ अध्यायः] देमाद्रिः) भि मन्वेणानेन विधिवहिशन्तोनां स्रशर्कितः॥ VSIUAT Al Arar वसूनां efear a art sifzanarg भगिनोसानः गान्ति प्रयच्छतु ६ शर्य मन्तः | नमो मोभ्यः Waray: सोरभयोभ्य wast नमो घम्ध्सुताभ्यश्चर पवित्राभ्यो नमोनमः ti पूजामन्तः | quit वैष्णवो माता faa’ विष्णुपदे खिता, प्रतिग्ह्वातु भे ग्रासं सोरभोम प्रसोदतु। गोग्रासमन्तः.। गावो A अग्रतः सन्तुगावोमे सन्तु षतः। गावो A ees सन्तु गवां मध्यं TAIT | मा वियोगोऽस्त मे ysaat चर सह वान्धवैः | त्वत्‌प्रसादेन मे ufafaaara सदा तयि ॥ प्रायनामन्तः । एवं संपूज्य गाखेवछ गोविन्दच्च विरेषतः। पुष्पे गन्धे ecg धुपे्नानाविधेरपि | ्रद्यसुताभ्धखद्ति युस्तकान्तर ras: | र माजावेकि पुस्तकान्तरपाठः। a भिषा गोः verafacty पुस्तकाम्र पाठः| ४ मावत पुष्ठकान्तर प्राठः, REL २९२ देमाद्रिः। [त्रतखग्ड२१अध्यायः। नैवेयं तपक्तेख फलेन नाविपैरपि | HAA aes चच वं शपात्रस्यितेः Ta: ॥ मुवासिन्यस्तथा पूज्या faa ताम्बूलकुङ्मेः | कर्ठसूतेस्तथा YAMA च कनकादिभिः॥ एवं संपूज्य विधिवद्नोविन्दन्तु दिनचयं। छत्पोपवासतयद्ेव चतुथं दिवसे gas ततः शुचिः ससुत्थाय क्रत्वा सान प्रयन्नतः। प्रणम्या चामुख्यन होमं AIA कारयेत्‌ | तिलंरष्टोत्तर्तं Waal होममाचरेत्‌, ततो विरज्य देवेश गुरवे प्रतिपादय च॥ गावः पुच्छे समालम्ब्य gra दिजषभान्‌ ¦ इष्टेन मनसा स्कन्द्‌ ग्णहमागम्य aan: ॥ मिघ॒नानिदाद्शाष्टौ मूषरशाच्छाद्नादिभिः) way भोजनं sal गोदानानि च दापयेत्‌ | गुरोदपत्यमचित्वा वासोम्रुषणसयुतं | भक्तया Wasa AW गोपोगमोप्समन्वितं ॥ रहोपकरणेयु ्' यथा गक्तया च भक्तितः, गुरोःसम्माद्येदौोमान्‌ efauafed sfx | aad च गुरु at wala शुचि wen | az.t fae: amalar वाग्यतो fama: | दौपोत्सवेत्रैतमिद्‌ं शएविमानसन कत्वा नरः: सकलसन्ततिहडकारि) ee Se \ zu रितिति qaarnc प्राठः, व्रतखगड'२१ अध्यायः] दमाद्धिः। २९३ भुक्तोपभागनिचयं सुखसप्रयुक्तो wea प्रयाति भवन मनुजोमुरारेः॥ दति स्कन्दपुराणोक्त मोचिराचव्रतं १ । 2 fara भारते Ge Qaida aa गते | राजा TAA Bara wiefa: we aifea: 1 मागधेस्त्यमानञच स्वसेन्यगणशोभितः | सखौोक्तष्णेन समायुक्तः प्रययो हस्तिनापुर | ्मभिषेकं adam पुरोधा afadaa: | दूव्वीयवाङ्करेयुक्त चक्रव्वंडापणं faa: | रलं दू कूले मीत्मा तोषयामास तान्‌ गणान्‌ । aaa खनरोपतान्‌ मागधां्चावनोपकान्‌ ॥ BUNA सर्व्वान्‌ Waa | SG स्थाने छपानपि। WAT सन्तोषयामास VAM’ पाग्डनन्द्नः ॥ देवटेव जगन्नाय भक्तानामभयप्रद | प्रसादात्तव गोविन्द्‌ गौरवा युधि निजिताः ॥ राज्य निष्कण्टक प्राप्त भकतियोगात्तवानघ | मत्से वापरियुक्तानां प्रसाद्‌ कुरु केशव ॥ एवमुक्ता स्थिते पार्डो पुत्रभ्ाठटसमन्विते । पाञ्चालो परया भक्तया प्रणम्य पुरुषोत्तमं ॥ वद्वाञ्ञललिपुटा Areal प्रोवाच परमेश्वर । ~-~वदनम 9 १ गोतिराजव्रतमिति पुषकान्तर पाठः| २९८४ Salle: ( [त्रतखर्ड २१ WITT: I ATUATUTD कंसासुरनिक्न्तन ॥ दु कूलर णा द्यच्च दुःखं त्वद्वक्तिंभाविता । aA Wa Satay प्रसाद कुर केशव ॥ किमपि ओ्रोतुभिच्छामि तत्तो'त्रतमनुत्तम। येन ava aaa सौभाग्य पतिभक्तितः॥ aw उवाचं | गौयां स्कन्दस्य पुरतः Waar कथितं aa । गोचिराव्रभिदं ख्यातं पवित्र aaafa a साविचीपुरतो धाता afaea महषिणा | ACA प्रागुदितं तहतं णु Tad ॥ द्रौपद्यवाच | ~, १ श * HAAS प्रकत्तव्यं यथा दानं तथा विधिः) aqua कथयाशु तं यदि तुष्टोऽसि माघव a slau Sard t नभस्ये च faa aa चयोद्गौति या fafa: ¢ कात्तिक वा प्रकन्तेव्यं सौभाग्यधनवाब्कया ॥ सूर्योदये समुल्धाय दन्तधावनपृव्वकम्‌ लच्छौ नारायणस्याथे विरात्रोपोषणं we ॥ कुयात्‌ खानं ततश्चैव च्नापयेत्‌ कमलापतिं । पच्चाखृतेन खौखण्डं: कुसुमेरर्चयेत्ततः ॥ WATTS TA YS: पूजां प्रकल्पयेत्‌ | aage 2 vars: 1] sare: | REY, पाटो नमामि afaeraaae ara जान्‌ नमानि भुवनव्रयपालनाय। स्कन्धौ नमामि कमलारमणशाय चित्त AMAIA करचक्रसुधाप्रियाय। पजामन्तः | त्तो राज्धिक्तसम्बास वासुदेव जगत्‌प्रभो। VEU मया दत्त सौभाग्य देहि मै aera अघयमन्तः। ~ >} > ~ कू ण्डेनौरिकेलेख Tarts दाडिमेः। Qe + =, 2 अध्य दक्वा चसंपूज्य कामधेनु प्रसादयेत्‌ ॥ कामधेनुपूजा | करसंपुटक क्षता कामधेनोरग्र इति वाच्यं । रोगाणि न्मु मम कामदुधा प्रसत्रा पापानि न्तु मम RASA प्रसन्ना। सौख्य ददातु मम AAT प्रसन्ना एतान्‌ ददातु AA RASA प्रसन्रा॥ ठतोये दिवसे ara वंगधावचयन्ततः | विरूटढकसमापत्र सम्यक्‌ फलसमन्वितं । दद्यात्‌ कामदुधा च त्रतसंपूणहेतके | राचाच सर्व्वतोभद्र' मण्डल प्रकल्पयेत्‌ ॥ AGHA सुवर्णस्य लच्ोनाराथं aay | 2€ eae: | [व्रतखर्ड२१अ्रध्यायः। कत्वा त MAST व्रतसंप णो हे तवे | Tal जागरणं कुर्य्याद्नोतवादि कौतुके! ततः प्रभातसमये होमं क्या द्यं धाविधि ॥ दम्मत्योः परिधानाय waa स्तं ;स्वशक्ितः | टेया aaa विप्राय fata ष्ठतेात्रजेत्‌ ॥ ue पटेऽष्वमेषघस्य फल प्रप्रति fataa | अथान्यदपि ते वच्मि इतिहासं पुरातन ॥ व्याघ्रधन्वोः Bars नौोतिशस्वमय शभ । वसिष्ठस्या खमात्‌ काचिरिव्यगोवशसम्भवा॥ स्वेच्छया प्रययौ Taatfa गह्वरे aa | सिं हव्याप्रादिजौषेभ्यो निभया तपसो बलात्‌ | सुनौश्वरस्य सा धेनुः प्रययौ गिरिगन्नरं। शिवशापपरिश्चष्टव्यान्नव्यापौ महावलः | महादष्र महाकायो नाननासौ जलबद्धनः | प्रसारितकरो वोरो aa aha एमाशमां। AlA SAT | 5 दिवसा बह्वी जाताः qaat पोडितस्य 2 | म्भ त्दृष्टा aaa अआद्ाराय प्रकल्पिता i धेनुरवाच। वसिष्ठस्य प्रभावेन दृश्जोवेमहावनैः। न हिस्याहमवश्च fe जानोयादयाघ्रसत्तम | TAGW RAAT: || दमाद्िः २९9 वाक्यमेवं महावाहो VIS कायमानसः | स्लोयजौ वाया चाहं न ब्रवौमि तवाग्रतः ॥ AWAY WUT मलम्यूजयुतेन च | परोपकतिरहौनेन fa काये ्षतियेण च ॥ AAT WAI Aa शरोर नाश्नेऽपि वा, उपकारं न बुत्वन्ति तेषां जन्म निरथंकं॥ मरणे वान्यचित्तायेरणे दौनवचीो भटाः) ते यान्ति नरकं वोरमित्याइः पुव्वसूरयः ॥ कलचपु चवन्धूनां मावारहितमानसाः | पुराणपुरुष भक्तास्ते यान्ति परमाङ्तिं। सोमवासरसच्छ्रातो बालो मम we faa: ममागमनसंट्टिः खेदः खच्च मे हदि | सखो Cua aaa सखेच्छया परितोषयति । सखोमकथथित्वाश्ु श्रयामि तव aay ॥ व्याघ्र उवाच | वेदशास्वपुराणेषु Wa पूव्वसूरिभिः | स्तो-विप्र-धेनु-पौडासु विवादे राजविग्रहे ॥ प्राणल्ययेऽप्यसल्यं हि वाच्मन्यच नेव हि। अपद्तञ्च योजन्तुधख वेरिवशङ्गतः ॥ आत्मा वे रक्षितो येन तत्‌ करोति न संशयः । यस्यचाग्र fad भच्यमादिष्ट' परमेष्िना 1 न Zaifa च यो मरखद्यनन्दानकर' ब्रजेत्‌ | QUA न मनुष्येश्च न aaa पिशाचके; । ( ३८ ) Rex देमाद्धिः। | [awa २शअध्यायः 1 aa’ fe निशितं वाक्व प्राणिभिः प्राप्यचापद्‌ | जलढणसमाहारलतसन्तोषवत्ति नां ॥ अ्पह्तानामदरेतं तत्‌ पशूनाच्चका HAT | ufaal च तथादित्याः wa तिष्ठन्ति देवताः & तस्प्ास्रल्यंत्वपाकाय AAAI SATS | तस्य तद्वचनं Jal वालकस्रेदपोड्िता t चत्री तत्र प्रतिज्ञाम्बे GHA पुनः पनः ॥ धेनुरुवाच। दिजोभूत्रा ततो व्याघ्र वेदश्चष्टोऽभिजायते। स्वाध्यायसन््यारदितः सत्यौ चविवचस्मितः ॥ sfamarat विक्रता अ्रयाज्यानाञ् याजकः | तेन पापेन लिम्पेऽदहं यदहं नागमे पनः ॥ दु्टव्ौ शठे TA यत्‌ पापं ways | दाने दत्ते प्रदत्तच्च प्रसक्ति कुरुते नरः ॥ तेन पापेन लिम्पेऽदं यद्यहं नागमे पनः | वेद्‌ विक्रयो चेव शवसूतकभोजने ॥ तेन पापेन लिम्पेऽहं aad नागमे पुनः | स तवत्सां ग्रहोता यो मातापिकचीरपोषकः ॥ देवद्रव्यं TREY ABZ TTA a: | तेन पापेन fase यद्यं नागमे घनः! MIU WTA MECH वसुन्धरां | saws तु ANY यत्पापं GUAT के ॥ तेन पःपेन लिम्बेऽदहं यद्यहं नागे पुनः, ब्तखण्ड र १श्रष्यायः] Taree: | REE सुतान्द्रिये च qa ऋ परटोषापवाद्‌के। छतन्ने AACA च परदरव्यरते Vs tt तेन पापेन लिम्पेऽदह aad नागमे ga: | सदटाचारविद्धोने च परपोडाप्रदायके॥ तंन पापेन लिम्पेऽदहं यदद नागमे पुनः परापवादसंन्तुष्टे सव्वधग विवस्जिते ॥ यत्पापं ब्रद्मदत्यायां पिट माहवधे तधा । Aga पातकं AY प्यहं नागमे पुनः ॥ द्विभार्यः पुरुषोयस्त यस्म्ाटेकां विवच्ज येत्‌ । तेन aaa farses यद्यहं नागमे पुनः ॥ यत्‌ पापं लब्धकानाच्च खस्थानां विषदायिनः | तेन पापेन लिम्मेऽदह यदह नागमे ya: | qaqa नास्तिकानाच्च पौराणं विषयेषिणां | तन पापेन लिम्पेऽद्ं aad नागमे पुनः ॥ यस्तन्‌ हसे वलो वदान्‌ विषमं areaa a: । तेन पापेन faa se AIS नागमे पुनः; ॥ Taw प्रकुव्वन्ति दण्डनं ताडयन्ति ये । तेन पापन faa se wars नागमे पुनः # wad कन्यान्तु ear feat दातुमिच्छति । तेन पापेन लिम्प se यद्यद्‌ नागमे पुनः॥ कथायां कथ्यमानायामन्तरायं करोति यः। तेन पापेन लिम्मेऽहं यद्यदहं नागमे van यतिनिन्दाकरोनित्य बेदनिन्दापरस्तधा | २०० eats: | ।त्रतखर्ड २अध्यायः | तेन पापेन fam se यद्यहं नागमे ga: | यस्य सग्रहणो ula ब्राह्मणौ च विशेषतः| तन पापेन लिम्प sé यद्यद्‌ नागमे पुनः | अक्मनिरते क्रूरे कुलघम्धविवजिते a तन waa faa sé यद्यह नागमे पुनः, He पाषण्डकी चारे तिलविक्रयकारके ॥ एकोभिष्टान्रमखाति भायांपुचरमपोषकः | MAAC दुराचारा देवद्रव्यविलोपकः॥ तेन पापेन fa ऽहं gas नागमे पुनः । awa गुरुनिन्दोयाः खाभमिनिन्दाकरास्तथा ॥ तेन पापेन faa ss यद्यहं नागमे Ya? | कुस्ते ASIA ग्रस्ते चन्द्र दिवाकरे ॥ ये wef महादान व्यकव्यविवजितं ! तेन पापेन लिम्प se aad नागमे पुनः ॥ कूटसाक्तौ सृषावादौो परद्रव्याभिलाषुकः। तेन पापेन fare यद्यं नागमे पुनः ।॥ परदाराभिगामो चये च विश्वासघातकाः! भरत्तारमथेदोनच्च महाव्याधिप्रपोडतं ॥ या न पूजयते नारौ रूपयीवनगव्विंता | तेन पापेन लिम्प्र ऽहं यदयद् नागमे yas aq fa वद्ुनोक्तंन खगराज तवाग्रतः। यदि नायामि शौघ्राहं मम सत्यं Waa a | तेन वक्येन सन्तुष्टो व्याघ्र श्राद्टारनिस्छरहः | ATS esata 1] BATHE | प्रसारितकरं त्यक्ता गच्छधेनो खक WE | व्याघ्रेण सुक्तासाधेनुरागताच सखमाखमं॥ SRT AVH SEI जात प्रखवतौ ww | वालं age सन्तप्ये way च fafafaud ॥ तादृष्रादुःखिता गावो मासरेहसमन्विताः। दृष्टा दुःखतरो बालो न जाने च तथास्त॒मे॥ तत्तद्ालमुपादाय पप्रच्छस्तत्र कारणं | वियाञ्य तासु SUA वालकन्तसुवाचसा॥ aqate aaa fe सत्यवाक्यसमन्िता | व्रजामि तदन win’ व्याघ्रो वसति aa a | Gadi | छतप्रतिज्म्‌ठ्‌सि नन्दिनोवश aaa व्याघ्रधन्ोः at वैरन्तिषु लोकेषु faa ॥ विप्र-स्ती-वाल-काय्येषु dara वैरिसङ्टे। प्राणापहारे सुनिभिरसत्य नेव दूषितं a देवेशेन YU Wa aa: सुररिपुवलौ। शपघान्‌ Hat तथा fay: we विष्वासवन्नितं ॥ तन्न त्वं खण्डे तिष्ठ परिवारेण संयुता। सुनिप्रवरास्तिष्ठन्ति न cer जन्तवःकद्‌ा ॥ TACT | सत्येन तपते भानुः Waa तपते शमौ । चतुमृ खोऽपि सनन Gad सकलं जगत्‌ ॥ २०५२९ देमाद्रिः। [ततखण्डंर१अध्यायः} सत्यवाक्यपरिभ्चष्टो सोमो जोषेत्‌ कदाचन) सत्येन सव्यलोकोऽस्ि सत्यः वेदे प्रतिष्ठितं ।॥ व्रजामि सत्यवाक्येन acain प्रति नि्भयाः। Aga चेव west व्याघ्रो यातासुपागतां ॥ व्याघ्र उवाच | अहो मे भाग्यमतुलं कामधेनुः समागता । दुष्टयोनिविनिमक्ञो यास्यामः हरसत्रिधौ | धावत्‌ प्राप्ता कलिमलद्रा पावनो कामधनु स्तावद्‌श्याघ्रः९ यशधरगणः सव्व Tapas: | वद्धा पाणौ विमलमखिभिर्रीप्यमाने किरीटे चेतु भक्तया मध्चुरवचनेराड संपूज्य सम्यक्‌ | धन्योऽस्मि कतक्तत्योऽख्ि कामघेनोः warea: | सत्व पापविनिमक्तो याम्यहं हरसंत्रिधौ ॥ गावो Ta मे YW गावो Taq AAW! | गावो Taal wa’ कलत्रयुत्रपौचक॥ सपूजितास्तता मावो Ment बहसम्पदाः। सर्व्व पापदरा गावः सर्व्वपस्यफलप्रदाः } नमोऽस्त कामधेनुभ्यो याः पुनन्ति aaa । यदाधारखितं faa नन्दादि्भ्यो नमोनमः॥ धेनुरुवाच। महागण at ब्रूहि जगतां प्रतिकारकं, १ तवेद ब्राह्मण मक्तोरिति gaat | AAQW २१अध्यावः 3] waite: २०३ यदिच्छसि at काम्य ददामि तवे भकितः। गण उवाच | विश्वोपकारकरणं समधा; कामभेनवः! tag + भवदगासु विश्वासात्‌ were सुखित जगत्‌ ॥ भवत्‌प्रजारता येवा भवत्‌प्रजापरायणः | तेषाञ्च wal सिदिः स्याद्वदोयप्रसादतः ॥ श्यो क्ष्ण उवाच | एवमस्त्विति सप्यक्ता व्याघ्रः शिवपुरं ययौ । कामधनुख सन्तुष्टा वशिषाखममाययी i एवमुक्तं गोतिराव्र कत्वा नारी नरोऽपिवा। प्राप्रोति सकलान्‌ कामान्‌ सप्तजन्मानि qad ॥ दति aware मो चिराचत्रतकथा Vara ॥ ———000(a)000 याम्योत्तरगतारखा कुय्यारेकोनकविंशतिं। खण्ड fang कोणं इला पञ्चकोषटिका ॥ एकादशपदा वाप्यो भद्रन्तु नवभिः पद्‌ | चतुवि शत्‌ पदा वापौ विगत्या परिधिः खता ॥ सितन्द्‌ खङ्ला कृष्णा वल्लो as च परयेत्‌ । कष्ण भद्र सिता वापि परिधिः पौतकर्णिका ॥ सत्वरजस्तमोपेत सव्वेतो USAW | इति मण्डलविधिः दमि | [व्रतखग्डर१अ्रध्वायः) युधिष्ठिर उवाच! भगवन्‌ तत्‌प्रसाटेन वहनि qaafa a | sata वहपुणखानि क्षतानि aga | सव्व पापहराणि स्यः सव्व कामप्रदानि च! साम्प्रतं खोतुमिच्छामिब्रतानासुत्तम aa | fafgataad ब्रूहि यदि तुष्टोऽसि माधव | यत्‌ क्रत्वा Bawa नरो नारौ विसुच्यते॥ aw उवाच | कथयामि STA S व्रतानासुत्तमं Aa | qq कस्यखिदाख्यात तच्छ णुष्व GNA | यान्यान्‌ कामान्वाच्छयति लभते तास्तघेव च । तत्‌त्तणाटेव YAR नरा AMA WAT: | wal भगवति राजन्‌ कामधेनोः प्रसादतः! सौभाग्यं सन्ततिं लक्सीं प्राप्रोति सुखसुत्तम | युधिषिर sara | यदि तुष्टोऽसि भगवान्‌ व्रतस्यास्य विधि शभ । afe मे नरगादंल करोमि त्वतूप्रसादतः। के मन्ताः करे नमस्काराः देवताः काः प्रकौत्तिताः। fa दानमष्यमन्तञ्च TAI सुरोत्तम 1 away उवाच | नारदेन YU राजन्‌ aga aucifey | * न PES ow anew a १अध्यायः)] eae । स्ारितन्तत्ववा राजन्‌ खणुष्वकमना aa | मासि भाद्रपदे शक्र चयोदश्यां समारभेत्‌ | aetna तु समुत्थाय शविर्भवेत्‌। wea faad पूव्वं' द्न्तघावनपूवकं | ्राचम्योद्‌कमादाय इमं मन्तसुदौोरयेत्‌ ॥ गलिराचव्रतस्यास्योपवासकरणे AA | Tid vq देवि त नमते घनुरूपिरि। प्रसोदतु महादेवो लक्ौनारायणः प्रभुः खच्छौ नारायणं देवं सौवयच्च स्वशक्तितः | धच्ामतेन गव्येन Swag कमलापतिं : स्यापयेव्सवं तोभद्र मगडलेऽ्टद्‌ लेऽपिवा ॥ गन्ध पुष्य; सुनेवेदैम्ततिगोतादिनन्तनेः नारिकेलाष्यं दानेन प्रौ णयेदां हरिं तघ्ा॥ लच््मौकाम BNA Aaa aq मम) परिपृखः कुरुष्वेद WHI नमोऽस्त a ॥ TUT मन्तः | रातिकं ad: RITZ azar RUA तुष्टये । नव कुम्भ जलत हविष्यान्नेन परितं 1 छत्वा दिनत्रयं we तथाच विनिवेशयेत्‌ | wey पूज्य ततः कुयात्‌ जलधारां प्रदक्तिणां | पुरा दत्वा कुण्डलक कुम्भस्तकमण्डन | न्नाच्छछाद्‌नगन्धादिदिव्यपुष्ये; सदोपकैः॥ ( ३९ ) ३०९ SAE: | [त्रतखर्ड'२१अ्याथः। अहोरातरमवक्रच्च paeld feaaz | प्रनोधयेद्रतो घेनोरग्वा SAAW ॥ ्रष्यदानन्ततः कुर्यात्‌ नारि केलादिभिः फले ॥ SATA: | पञ्च गावः समुत्पन्ना मध्यमाने Asay | तासां मध्येतुया नन्दा तस्ये Wea नमोनमः ॥ प्रद्तिणौोक्ततायेन ेनुमा्गानुसारिणी। प्रदत्तिणोक्षता तेन सप्तदोपा वसुन्धरा ॥ गावोममाय्रतः Way Wal A सन्तु पृष्ठतः । WANA हदये सन्तु गवां मध्य वसाम्यहं ॥ कै XN on $ भराचिक सनवेद्यङ्घोतवाद्यमद्ोत्सवं। qed कुम्भरङ्लशं धेनोद्‌ दादि चकत्तणः ॥ एवं सपृज्य तां धेनु सम्यक्‌ भक्तया दिनत्रयं । यवांश्च WAY a चारयेत्पाययेदपः | > A, Sn . गोमयादत्ततद्ान्यः१ FATULCT पारय तारयेदचर टेगकान्‌ VATA दुःखदम्‌ ॥ Vas जागरं कुथा त्‌सव्वपापप्रणा्नं | तिविधा्बुच्यते पापात्‌ प्रहराड्न पारव | * न ~/A तस्योत्तरं कतात्पापात्‌ Wty +A FB | चत्वारि वेणुपात्राणि कारयित्वा प्रपूजयेत्‌ ॥ रिक्ते ५. (> A नारिकंलोदकद्रात्षाखज्‌ रदाड्मः Wa: | aia | 9 [9 (9 १ मे मयादाद्यतिधामेरिनि Gear Ws: | aS २१शअरध्यायः।] CAT | 209 विरुदः पष्यसिन्ट्‌ र वस्तरकुइ,मकन्जलेः ॥ naa वौजपुराध्ये हितौये टाङ्मिं wat aaa नारि केतेन द्ाद्ष्य 'दिनतयं | HAW त्यः कायाः हविष्यान्नेन प्रिता: | लद्छ्मोनारायण देवं ब्रह्माणं भाय्यया सद ॥ पूजयेत्‌ Genta eT false | दम्पत्योर्भोजनं ta Ga भक्तया दिनत्रयं ॥ पारणे गोरिणौ विप्रानिष्टवन्धूखं भोजयेत्‌ | गुरवे विष्णुरूपायतां षेनु प्रतिपादयेत्‌ ॥ VHGA सवस्तां च घरटासुक्ुरभूषितां | गमोतवादितव्रत्यादिणान्तिपाढपुरःसरः॥ पापादिप्रग्डद्ं यावत्‌ प्रापयेद्रतर्वे AT | Ua al कुर्ते पाथ गोचिराचत्रतोत्तमं ॥ दुलभतुसदास््रोगां नराणां कृस्त्तम, अश्वमेधसहस्राणि वाजपेयशतानि च ॥ Mal यत्‌ फलमाप्रति गोतिराचतव्रते छते । प्रभासे च कुरत्तेवे चन्द्र सू्ग्रहे तथा | हेमभारगतं दयात्‌ तत्‌ फलप्राप्तये Be | धनुदानं AA येन BAG सवकामकः tt सागराम्बरसयुक्ता SAT तेन वसुन्धरा। Ua a कुरुते पाथं चिरात्रत्रतसुत्तम | भवान्तरकंतात्‌ पापात्‌ तिविघान्मु यतं नरः | सा कद्‌!चित्रपश्येत भत्तदुःखं नराधिप ४ Salfa [ व्रतखर्ड २१अध्याय; । पुचपौतसुख तस्य भविष्यति न सशयः | ~ a ॥ SHA च सा नारो वेघव्य नच पश्यति! > . वघव्यं न महाट्‌ःखं भविष्यति भवान्तर्‌ | अपुत्रो लभते पुत्रान्‌ घनद्ोनो धनं लभेत्‌ | ~ a ¢ + Rida मनसा चैव क्मणायदुपाजितं॥ तत्सत्वे पातकं याति गोतिराजव्रते कते, माः इह भोगान्‌ विपुलान्‌ कृत्वा आयुः सम्पूणमेवच॥ व्रतस्यास्य प्रभावेन गोलोके च agtad | =} 0 * a कौत्िदन्धनद्‌ च्व सोभाग्यकरण ZT I TATU ACT सव्व पापप्रणाशनं | तच स्राल्रादराद्राजन्‌ ANAM कुस Aaa | _ | 0. | ~ यदि राज्यः कुरु alfa नित्यं प्राप्यमिहच्छसिः तच्छत्वा पाग्डवचेष्टो aad चक्र समाहितः ॥ व्रतस्यास्य प्रभावेन लव्ध राज्यमकरणटक | इ तिश्रोभविष्यो त्रोक्तं मोचिराचत्रतं। 00.2)00 ब्रद्रौवाच | शृणुष्वावहितो भूत्वा यन्मां a ॒परप्ण्च्छसि कथयामि ad यें सवकामाघःसहिट्‌ं | येन dita नारौणां वेघव्यमप्रजायते | sige वदेते मत्त: YATE धनसंयुताः। age सगवच्छमि व्रतानामुत्तमं तरतं । ब्रन खण्ड xe: |] देमाद्धिः) ३०९. यत्‌ प्रसादादुमार्द्र कष्ण Bats शचौ हरि i सावित्रो मां यधा प्राप्ता सोतारामं यथा qa | दत्तकोपाद्मा Sal SERIA खक पुरा| जाता हदिमवतीमेह १ जटावल्कनधािगी। चचारोग्र तपोऽनाघा निराहारा जितेन्द्रिया ॥ एकाङ्टश्थिता वाला पञ्चाम्निपरिसंयुतार्‌ । तपस्ये निचयं हृष्टा गतः शम्भरस्ततः खयं रे | कस्मादेवं त्वया कष्ट क्रियते गौरि साम्प्रतं | उमोवाच मद्ाट्‌वो भवेदेव यथा मे पतिर्त्तमः | ©, ~^ ~ तद्ध क्रियत घारन्तपस्तपनदुःसदहम्‌ i ब्रह्मोवाच | WY वासे सुखोपायं व्रतानासुत्तम व्रतं | येन Ta ते wa: Ate प्रदास्यति। सात्वं कुस व्रत भद्रे चिराच' विल्वसज्ञितंभ्‌ : तच्चौ षमनया भक्तया पतिलेब्धो महेश्वर. | का्तिकेयः सुतस्तस्म्ादये श्च महासुने । १ जातासादिमवद्दति पुस्तकाम्तर पाठः| र पञ्चाप्मिपरिसमाप्यते दूति पु्तकान्नरे पाठः| रे Were निय दष्टा ततः खस्तोगतः खयभिति पुसकान्तरे पाठः| ४ नष्वेकुरत्रत मिति Geant पाठः, ५ Tata विष्ण संज्ञित मिति पुस्तकान्तरं पाठः| २१० Saltz: | [anew cree: ! €, द्त्युक्तो ब्रह्मणा पृष्व अ्रगस्तिमुनिसत्तम॥ faaafacaara विधि WS शप्रचक्रमे | अगस्य SAT | । ^ ध ~ A कस्मिन्‌ काले दिने कस्मिन्‌ स्थाने चव नरोत्तम, विधिनाकेन कत्तव्य कथं पूज्यो वनस्तिः । व्रह्मोवाच | wae मासि च संप्राप्त पुणमास्यां दिजीत्तम | ज्य छात दिने कुर्यास्सिदार्थः स्रानसुत्तमं। Saad सिच्धयेत्य खा दरन्धपुष्य ख पृजयेत्‌ | वत्सरन्तेकभक्तन्तु हविष्यान्नेन कारयेत्‌ | श्वशूकरखरादौनां दशणने भोजनं AAT | अनेन विधिना सम्यक्‌ मासि मासि समाचरेत्‌ । ततः संवत्सरे पण war विल्वसमोपतः२ | WEA वालुकां WA TATA महामुने tt Saal धान्धमादाय यवशालितिलादिकरे ! ततो वंशमये पाच वस्युग्मेन वेष्टयेत्‌ | SHAT हेमं गत्य कुर्य्यात्‌ सुभूषित | रतावस्वयुगं TNA फलसंयुतं ॥ ua व्व'हविपै खापि फलेनी ना विषै स्तथा | gE मय नननकरमम १ विधिदृष्टमिति पुस्तकान्तरे oe: | र्‌ विल्वसतौसमूत्ति पुस्तकान्तर "Qis: | 2 यवश्ाल्िं तिलदकमिति gaat ais: | रतखण्ड'२१अध्यायः 1) Sate: | ११९ ~ 9, प © ~ गुडत्तुजौ र कर्धीन्यल्ल वशेन विरूटकेः। ~ > Ce प VAM AMAA शपाचप्रकल्ितः ॥ AN A ~ AD THA AWTS YH: FTART: | श्रवतारं Haar sareat wcfuar | खोनिकेल नमस्तुभ्य' शिवप्रिय नमस्त ते१। अवेधव्यच्च मे टेडि fad वै जन्मजन््रनि। faq घनं पति पुतानारोग्य कुलसन्तति | सोभाग्य रूपसम्पर्ति' gia’ प्रयच्छ मे॥ सस्र विल्वपच्राणां होमयेत्त्‌ यथाविघि। पायसं तत्र Meat fer: णान्तोऽथ मन्तवित्‌ ॥ राजतं खोतसङ्कत्वा सुवणंफलगोभितं। अष्टोत्तरशतं यावत्‌ Waaw wT ेष्टयेत्‌ ॥ त्रयोदश्यां समारभ्य यावत्‌प्रूणे' भवेत्तिथेः | क्रे 9 © facia’ जागरं wat उपवासेजितेन्दरियः | ~ 2 रमापतेरे पशुपते a लोक्याधिपतिः प्रभो | WW मया देव Wat सह महेष्वरः ॥ ~ ¬ १ ततः प्रभाते wala खात्वा च तिलसषपः। > 0 ¢ ~ वस्वालङ्ारपुष्यच गुरोदम्पव्यमचयेत्‌ | पादुकोपानदच्छतशय्या गाञ्च सुभूषितां। गुरु प्रपूज्य भक्तया तु द्‌द्यादेतत्‌ प्रयत्नतः ॥ MSI चतखो वादि near भूषिताः | १ "वा" "गणंगणं णि गणौ मम ममम १ वनस्पत इति पुस्तकान्तरे gia: | २ उमाप्रत Cia पुस्तकन्नरप्राठः। RR gE त वमणणम- - न ---न--------------- मि णण रण्णेग क Safe: | [व्रतखण्डंरे अध्यायः! A ण द्‌ TMAH नस्तस्मित्रहनि GHG | मिष्टान्न भोजनं zaleraa: खेय दच्छता॥ या नारौ Fea VARA पापप्रणाशनं | 0 ^. # . ~~ =, सव्वेसिदिकर yao शिवलोके महोयते ॥ कनल्प्रकोटिगशरतं यावद्‌ास्थाय शिवसन्निधौ | ~ ane ततोरान्नो HAM Yaula wafeaqar इति स्कन्दपुराणोक्तं विल्लचिराचव्रत । O00 fawaad aaifaa चिरातोपोषितः ata: | हरनाम१ BUA भ्नूगहत्यां व्यपोहति | इति सौरपुराणोक्तं दरचिराचत्रतंर। 000 स्कन्द्‌ SAT | NEMIAAA AA सदा सौभाग्यदायकं) येन चौोखन ठे सम्यक नारौ सोभाग्यभाजना) जायत रूपसम्परतरा पुतपीतसमन्विता | वसन्तत्त' समासाद्य ढतोयायां FTAA ॥ aia wat a विधिवचिरात्ोपोषिता aat | मिथनानि च चत्वारि समाह्य यतव्रता ॥ १ दटिनामद्ति Geary पाट" | २ दरित्रताम{ति पुस्काम्तर पठः, phe णश ४ = धा पु मव्य %# =+ त न न Le eT det न्य 1 फः व्रतखशर्ड mats: |] देमाद्धिः। २१२ पूजयेत्‌ पुष्यताम्बैबन्दनेश्च TATA: | ae, मागुरुकपूरसिन्दु ta गनाभिभिः i शिलाप्टेच संस्थाप्य गुडाज्यलवणान्वितं। लोष्टकेन समायुक्त' वस्वगुग्मेन वेष्टितं | azar नाम शिलापट्रोपरि सितपेषणोपलः एतटगदुप- लोपधघानमभिदितं भवति | अआवादयेगदहादरेवों afasuraataat | आयाहि वरद्‌ टेवि afar na aaa \ पतिव्रतानां सव्वासां सुख्यालत्र रेवि भामिनि अ्रवाह्यारुन्धतीं देवों पूजयेत्‌ कुसुमैः शएभेः। दिभुजाच्चारुसव्वोङ्गों साचसूत्रकमण्डलं t प्रतिमां काञ्चनो कत्वा नामभि; प्रतिपूजयेत्‌ | देववन्दे नमः पादौ जानुनौ लोकवन्दिते | कटि CAIUS महासतो च BATT ti नाभि गम्भोरनाभोति कषिपलीं ततस्तनो | जगदाचीं तथा AWAS शान्तया नमः सदा | चस्तौतु वरदायेतुसुखं Va नमोनमः; अरुन्धतो तथा पूज्या शिरस्त कमलग्रिया a एवं संपूज्य तान्देवीं गन्धपुष्पे निवेदयेत्‌१ । पूजयित्वा सतोन्द्वों ततश्चाष्य निवेदयेत्‌ ॥ अरुन्धति महाभागे वसिष्टप्रियवादिनो | सोभाग्य टेहिमे देवि घनं yaia टेदिमे। ee १ गन्धपुष्यनिवेदनैरिति Gaearac ara: | ( ge ) 228 Salfg: 1 [वरतखश्ड'२१अअरध्यायः। PAT | अध्य" cal तु Waal वे welaggarafe: 3 WIAA महाभागां१ लोकवन्यां महासतीं a चान्‌ देहि धनं देहि सौभाग्यं देहि aaa | data सव्वेकामां ख fe देवि नमोऽस्तु ते ॥ प्राना मन्त; | सुवासिन्येऽथ संपूज्या दिवसे दिवसे तथा । शभगन्धाचतेस्तचदव्यात्‌ सव्व घु WAR ॥ होमांदैव तथा ga: समिद्धिख तिले: wa: अोत्तरगशत तददिनसंख्यामघयापिवा। भिथनानि च सपूज्य भूषणाच्छाद्‌नादिभिः। च तुव्वि शतिसंख्याकान्‌ यथा षोड शसं ख्यया ॥ प्राचाय्ाय VALI वस््ःख्ाभरणशानि च। शय्यां सोपस्करं ददत्‌ कांस्यपाच्र सुदोपकं ॥ आद्शच्चामरश्चैव Ba cara पयख्िनीं। ata भोजयित्वा च faa: yor समोदकान्‌ B सोद्कान्‌ करकांस्तदत्तयोवस््र यथाविधि | पोलिका sagas पूरिकाख विशेषतः | सोमालिकाख दातव्या एककं हिगुं aa tt दिगुणं भोजन दायपय्याप्त | टोनानायां्चर संपूज्य स्वयं नक्तं समाचरेत्‌ । aafafa शेषः | १९ प्राथयन्तों मद्दाभागामिति धुखूकान्तर पाडः, २ दनान ea tit पुखकान्तरप्राः। ee = वेनत la! १ ५ भ ह ae + ~+ व्रतखण्ड२१अ्र्यायः।] द्ेमाद्रिः। श्रनेनेंव विधानेन नारो वा कुर्ते aa | Taal समाप्रोति तथा जन्मसहस्रकं । युचपोत्रसमायुक्ता घनधान्यसमन्विता । जौषेदषशत साग्र UAl सह महासतौ | एवमभ्यच्ययित्वा तु वदं गच्छत्यनामयं & देवभाया तथा aa ऋषिभाया तथेव च । राजभाया महाभागा सर्व्वकामप्रद्‌ ad | इति स्कन्दपुराणोक्तं अरन्धतोत्रतं१। पुलस्त्य उवाच | अथान्यत्संप्रवच्यामि दूव्वाचिरासुत्तमं | नारोखां सुखसम्म्तिपुचपौचप्रदायकं॥ ~ सम £, ~ + तन्‌र्हभ्यः सम्भूता gar विष्णोरियं पुरा | तस्यासुपर विन्यस्त मधिताख्तमुत्तमं | am, Ae © =a टवदानवगन्धवयन्षविद्याघसोरमः' ~ ~ ¢ तच येऽख्तकुख्भस्य प्रतु निस्यन्दविन्देवः | ` ॐ e ~ afta स्मष्टगाताभूत्‌ gat तेनाजरामरा। a i i pte वन्या पवित्रा faq afeqiafsar तथा ॥ गणु gattauae विधिं कात्सयन gaa | मासि भाद्रपदे चेव शुक्तपक्ते तसोदभीं । चिराचं ससुपोष्यन्तु यावत्‌ पूणं तिथिभकेत्‌ । उमामहश्वर देवं सावियीं धम्ममेव च॥ १ अद्न्नत)चिरात्र व्रतमिति qaainturs: | २११५ २१६ माद्रि | [व्रतखर्ड २१अध्याव;। Galaga तु संस्थाप्य मण्डपं कारयेत्ततः | उमामदहेषवररूपन्तु प्रथमक्लष्णाष्टमोत्रते, सावितोरूपं ga- कामपूखिमायां द्रष्टव्य, धम्यरूपन्तु विष्णुधर्म्नोत्तरात्‌ | चतुव्व्वथतुष्पाद घतर्व्वाः सिताम्बर: । सव्वाभरणवान्‌ शतो war: कार्य्यौ विराजते | efat चाचमाला च तस्य वाम तु पस्तकं ॥ टूव्वासिञ्चनमन्तः | zat सिञ्चामि ते मृलसुद केरख्तोपमेः । अवे घव्यच्च मे देहि zara ते नमोनमः tt qa ह्यखतजन्ासि वन्दितासि सुरासुरेः। सौभाग्य सन्तति व सर्व्दकाथकरी भव ॥ यथा शाखाप्रशाखाभिविस्ततासि मदौ तले | तथा ममापि सन्तानन्देहि लमजरामर ॥ एवमुचखाय्य faga ware uefaa | eaatgaa क्त्वा vatafafaar ततः | सुवासिन्यः faa पृज्या वंशपातेः Walaa: | saa विधिना fasaraaa दिनचयं ॥ जागरं तच Hala guarfeafaaa: | शान्तिपाठ quay सावित्पाख्यानमुत्तमं ॥ ततः प्रभाते विमले प्रतिषदिवसे शुभे ¦ होमं तत्र प्रक्ुव्वोत तिलाज्यसमिघादिभिः। काण्डात्‌ कार्त्त मन्वेण सहस्रेण तु संख्यया qa ततो ददयाद्रतक्रोघो fanaa: | AATW २ l AAT: |] Saltz: २१७ ब्रह्मणे दचिणं दव्यादित्तशाढया न कारयेत्‌ | अआचाथच्च तथा पूज्य उमामहणरूपिणं ॥ गावस्त व दातव्यानौलवणा faxtaa: । अलाभे१ सव्ववर््णनां सवत्साद्गां पयस्विनीं ताम्रौ रौप्यखुरां खङ्ग कनकसम्भतां | घण्टाभरणभूषा् रत्रपुच्छां पयोमुच tt ईदशोन्यास्तथा wa दद्यादुवीतिराचरके। आचाय्यं' वेदविदांसं aeya कुट्म्बिनं ॥ aay णास्तविहांसं ्राचाय्य' aa कारयेत्‌) आत्ाथाथ dara परिधानंर प्रदापयेत्‌ ॥ हस्तमाता कणेमाचा Wai भूषणमेव च! मिथुनानि तथा पूज्य हादशं परिसंख्यया ॥ भोजनान्ते प्रदातव्यं भूष णाच्छादनादि करे । शयनं तेषु दातव्यं awa ed ar! सौभाग्याषटकसयुक्त स्तोणां प्रोतिकरं पर ¦ दत्वा दानानि विप्रेभ्यः फलानां पायसानिच॥ भोजयित्वा सुहृन्मित्रं aaa: BAA तथा | या नारौ ससुपोष्योव व्रतमेतत्‌ पुरातनं | ूर्व्वचिराचं पविच्र पुण्य सन्तानद्‌ायक | रेश्वय्यं सुखसौभाग्य yauaiaates ॥ [क ऋ 1४ 1 "पण्ड्या ििभिििििििििििििणिणरणीणीभणणमशाद यः a मरमम १ प्रभाते इति पुस्तकान्तरे पाठः| २ परोधान भूषणद् दूति पुस्तकान्तरे पाठः, २ भोजन तेषु दातव्य दातय भूषणादिकसिति पुस्तकान्तरे पाठः; । २१८ दमाद्धिः। [तरतखर्ड'२१अध्वाय;। aaa चिरन्तिष्टस्ततः खगरमवाभ्र यात्‌ । सेवेरानन्दितास्तत्र पिढभिः सह गोच; ॥ वसन्तिरममाणस्ता MASA TA ॥, अघ टदयात्ततो रातावरन्धत्याः प्रयत्रतः ५ WE तोयं समादाय सपुष्यफलचद्नं। भमो जानुच्च विन्यस्य अर्धय दद्यात्‌ प्रयत्नतः ¢ UTA RT: | असर्न्धतो सतो eat वसिष्टप्रियवादिनौ । waaay” सौभाग्य देहित्वं ace wer इति पद्मपुराणोक्त द्‌ वचि राचत्रतं । नारद्‌ उवाच | व्रतानां यत्‌ पर पुष्यं जन्मदुःखक्तयद्करं | विष्णोराराधनाथालं तहद्स्व जगद रो॥ THATS | गभेजजरारोग्य TG संसारनाशनं। परितुष्टिकर विष्णोः णुष्व गदतो qa I Zu स॒मुत्तभिः शान्तेस्तपोनिष्टेस्तवाग्रजैः wale इरि भक्तया मरोचिप्ररसुखेः पुरा ॥ यत्त राजगतास्य'तु व्रतं पुभिः सुदुष्करं । TAQIB २१अध्यायः।, Satz: २१९ विधानं तस्य tag फलञ्च सुमहोदयं | यतच्चिरात्रशतं कुर्य्यात्‌ wafer जनादन | कुलानां शतमादाय a याति भवन हर: ॥ नवम्यादि सिते ca नरोमामंगिरस्य च | प्रारभेत fFacrarat सततं विधिवत्‌ aat i खद्धानो जितक्रोधो नित्यस्रायो क्षमान्वितः | अभ्यच्ययेत्सद्‌ा विष्णुं wa मनसा गिरा॥ अष्टोत्तरसहखन्तु यतं बानुदिनं जपेत्‌ । ॐनमो वासुदेवेति waa stared । । असत्यस्तयपासुष्यपापेश्च सद संकथा | मधुमांसासवरसान्‌ wea परिवजंयेत्‌ 1 ब्रह्मचथ्थरतः शान्तः स्वभृतहिते रतः | बासुदेवपरो faa’ भवेच विधिवद्रतौ ॥ अषटटम्यारेकभक्तागो १ दिनि यसुषावसेत्‌ | एकादश्यां शचि; स्नातो वासुदटेवाचनें ta: | दादश्यां gated गन्यमाल्यविकिपने;: । x > = > we नेवेद्यधूपदरौपाद्यगोतटृत्य ख केशव ॥ अनेन विधिना wart तिरा्ाणां wa नरः | निव्वांपयेत्ततौ भक्तया विशेषविधिना ad | संप्राप्ते कात्तिक मासि त्रतमेतदनुत्तमं | प्रतिमासं चिरातदयमिति पञच्चागता ara: wa तच्चाधि- मासदययोगाचतुभिवर्षेरिति कार्तिके समातिः, १ See नक्तभक्ताण्टोति पुस्तकान्तरे पाठः, gate: | [aaaw'a sara | एवं भोज्य दिजातिभ्यो दद्याहस्वयुगानि च॥ एवं प्रतिमासविधिना। तथोपवो त्त्ासि खण तान्यासनानि चरे | एवं विप्रान्‌ समभ्यव्य गुरुच्ेव विभेषतः । प्रणम्य शिरसा fa सव्वमुदयापयेद्रतं | यथोक्ताहिगुणं तस्य विप्रे भक्तिमतः फल ॥ प्रलोयन्ते परे तच्च वासुटेकेऽव्यये व्रतौ। ुत्वाचतद्नतं ge विमानं तदहिजोत्तमाः | सव्वेपापै विनिमृक्ता प्रयान्ति परमाङ्गतिं। इति विष्ण रदस्योक्तं चि विक्रमचिराचत्रतं t 000 युधिषिर उवाच। अनुसूया TUT तु ब्रह्मविष्णुमदहगष्वराः। उत्पन्नाः कन तपसा कौतुक AA केशव | अनुसया सतोनान्तु चेलोक्यं विहिता faa । दानेन तपसा चेव तीयस्नानेन वा Wa ॥ जातौ VATA सव्वलोकनमस्स्ता | एतन्म RAIA अत्रयरत्‌पच्या महामत। खोक्लष्ण उवाच | तया कतिर पार्थं महाव्रतं व पुरा चिरात्खसजाति भद्र | २ कुण्डलान्यासनानिवेति पुसखकान्तरे पाठः| २ asada Gaara पाठः | AAT 2 CATA: |] eat: 22? तस्य प्रभावात्‌ सुतजातिरूपं सतोत्वभावं विविदे जिलोक्यां ॥ युधिष्ठिर उवाच | कस्मिन्‌ काले दिने कस्मिन्‌ स्थाने कस्मिन्‌ सुरोत्तम! विधिना केन कत्तव्य जाति; खाप्या कथ वद्‌ | ATTA उवाच | wae मासि च कर्तव्यं चयोदणश्यान्तु पाण्डव | नियमच्च ग्॑दहोतव्यमाचाय्यानुन्नया aa: ॥ छतवेकभक्त' इादश्यासुपवासजयच्चरेत्‌ । मर्डपं कारयेत्तत्र सपताकं AAT ॥ aa जातिः प्रत्तव्या खणाह्िभवसारतः। रोप्यपुष्पाणि काथाणि award निधापयेत्‌ | aa देवा खयः पूज्या ब्रद्मविष्णुमदेश्वराः | सपतौकाः BH: पुष्प; फले ख विविषेस्तथा ! sa विष्णुशिवम्ूत्तिकरणं अ्रभोकचिराचवदेदितव्यं। यवशालितिलाद्येख anus प्रपूरयेत्‌ । टेवतातितयं पूज्यवं शपा तिवस्वकेः१ ॥ पोतरकसितै चैव नानापुष्पे : KARAT | वस्त्रालङ्गारपुष्य ख गुरो द॑म्पत्यमचयेत्‌ ॥ पादुकोपानहं Wawa slay भूषिता, । -"यणणक्कगयगषयकोषोयािषष १ fara ata प्रस्तकान्तरे पाठः| ( ४१ ) २२२ दमाद्रिः। [तखण्ड'२१अध्यायः \ तिलतण्डलमिखरे घ यवदहोमं प्रकल्पयेत्‌ ॥ ~ रे ~ € = £ > गुडेच्तत्तोर केधान्यलवणेन विरूढ कः | ™ = 69 a सप्तधान्यस्य दोपव्व शपा चप्रकल्िते; ॥ = =~ कि ~ र रजन्या कर्ठसूत ख qu: किष्ुककसरः) छतेनानेन भूपालव्रतेन WY यत्‌ फलं । जातिं१ घनपतिं पुचानारोग्य' कुलसंन्ततिं ॥ सोभाग्य २ रूपसम्पर्ति पूजिता सा प्रयच्छति, इति भविष्योत्तरोक्त' जातिचिराचव्रतं। 00@ ०© विराचोपोषितोर द्वयात्‌ फाल्गुन्यां भवनं एमं $ आदित्यलोकमाप्रोति धामव्रतमिदं wa । aaisa देवता । इति पद्मपुराणोक्त धामचिराचन्रतं 3 000 क ~ Alea य उवाच | sean दिवस ure विराचोपोषितो नरः, 0 TY र क # MATA ATV पूजयेत्त च्िविक्रमं | Ae, , व्िविणः कुसुमेदवं विभिः प्रयतमानसः | AO ऊ चिवः खतपीतरकैः ॥ तये नुलेपना Sar feqarz धूणमेव च) 4 पएुवानारग भजक्ततः इति पुस्तकान्तर पाठः | अ राग्धमिति पुरूकान्तर पारः । २ चिराद्रोपोमिनतिाद्ादिति प्राडान्तर', raid व्रतखरण्ड' 2a: |] SAEZ: | तरिसारं गुग्गुल कुट्कयोवेश्टिकाः | वलिं चिमधुर zarq ala दोपात्ररोत्तम। थवै स्िलैस्तथा होमः Waar: सषपान्वितेः ॥ दयाविलोदहञ्च तथा दिजेभ्यः ताम्रं Faw रजतच् राजन्‌। न केवलं स कुलद व्रतन्तु यथष्टकामासिकर प्रदिष्ट ॥ इति विष्ण धमीत्तरोक्तं सुक्लचिराचत्रतं | OOO ग्रो क्तष्ण उवाच | aa त्‌ कुमुरदवं निभिः प्रयतमानसः। fatia aa नक्ाभौ नद्यां arafeatad | अजाः पञ्च पयखिन्यः प्रद्यात्‌ स BATT: | न जायते पुनरसौ जोव्लोके कदाचन। एतदस्तत्रतं प्रोक्त' सुव्वव्याधिविनाश्नं ॥ aaisa Saat | दति भविष्योत्तरो क्तं वस्तचिरा चव्रतं | गो 4 8, 8, खोक्लष्ण उवाच | पय urzue मासि TRI feared | ठतौयायां चतष्थाच्च अद्या परिवत्सर | २२४ waltz: | [argue २१अब्यायः | उपवासेन ख्ह्ोयाद्रत AAT | ATS | साला नरोऽय नारौ वा युष्यघूपविलेपनः। cul a छतमि्रेण मिष्टकेव्व नमालया | WABI WE ABYSS चेव भारत ॥ दद्याद्रवाङ्किकं भक्तया वासः पूवापरादयोः। अ नग्निपक्त भुच््नोयात्‌ तेलात्तारविवल्नि तं | पूव्वापराहयोः fedtar पञ्चभ्यो; गवां पदेषु माता रुद्राणां दुधिता वसूनां खसादित्यानामख्तस्य नाभिःप्रनुवोचं बिकितुष्र जनायमागामनागामदितिवदिष्ट यमावायुषरेति। अघ्यं मन्तः | गावो ममाग्रतः सन्तु Wal A सन्तु wea: | गावो A हदये सन्तु गवां मध्ये वसाम्यद् ॥ दरति गोप्राथनामन्तः। व्रजन्तोनां गवां निव्यमायान्तौनां HEE | परदारेऽथ वा Me मन्तेणानेन भक्तिमान्‌ ॥ अध्य दव्यात्तघाग्रासं Gea yea गवां। acy संपूज्य SUI ततो गच्छेद प्रति ॥ पञ्चम्यां क्रोध्रदहितो सुन्लोयाद्ीरसन्दयि | श्ालिपिष्टं फलं शाकं तिलपिष्टं विरूटकं | दिनावसाने राजेन्द्र संयतस्तां निशां खपेत्‌ | प्रभाते गोपदं Sal ब्राह्मणाय कुट faa ॥ विप्राय वेदविदुषे यधा शक्या हिररम्ीं; aaew २१बअ्रध्यायः।] warts: | ३२१ ्मापयेहवां नाय गोविन्द nae ast ॥ तथा Wasa Ta कत्वा गुडमय शुभं । यथाशक्त्या समभ्यचख पुष्यधुपादिभिः Tas | येवं गोपदं पाथं तधा गोवद्॑नं fare | asa दिजन्द्राय गोविन्द्‌ प्रोयतामिति। गोभक्तो Wad Var wa ear च गोष्पदं ॥ सौभाग्य रूपलावण्यं प्राप्रोति विपुलां यियं१। WAAR FILE गोभक्ति समवाप्र यात्‌ I Yat भोगान्‌ सुवियुलान्‌र्‌ खतः खगेपुर व्रजत्‌ | दिव्यान्‌ भोगांस्ततो भुक्ता पुखशेषेण पाथिव ॥ धनधान्यजनोपेतशालोच्तरसकदिमान्‌ । कलच fan war पुनरगम्भक्तिमान्‌ भवैत्‌ | एवं जन्मन्नयं पाथ व्रतस्यास्य प्रभावतः | ततो गोलोकमासाद्य yacrafaafera । तिष्ठते देववह्ुलारे यावदाचन्द्रतारकं। दिव्यरूपधरः खम्बो दिव्यालङ्मरभूषितः | गन्धन्वेगौतवाद्येन सेव्यमानोऽपसरोगयैः | दिव्यं युगशतं खिला ततोविष्णुपुरं व्रजत्‌ ॥ यो गोष्यदव्रतभिदं कुरुते fatra’ गावञ्च पूजयति गोरसभोजनशच। १ प्राभ्नोतिचाखिलभ्रियामिति पुखलकान्रे पाठः| २ Ba aa (a इति पुस्तकान्तरे पाठः | a देववद्धयाद्ति प्राठान्तर। २२६ दमादरिः। [बतखर्ड'२ १ अध्याय; | गोविन्द मादिपुरुषं प्रणिधाय चित्त लोकस पुण्यमुपयाति मर्वां पविचर ॥ इति भविष्योत्तरोक्त' गोपदचिरा चरतं | 000 ay भक्तोऽसि aaa कालरातित्रतं aa | गणु वच्छाम्यहन्तऽदय कत्तव्यं विधिवद्यथा | मासि चाश्युजेऽष्टम्यां शक्तपत्चं जितेन्द्रियः | सत्यवाक्‌ स्थिरचित्ताा नियमो भवेत्सधोः ॥ छ्वाटौ मण्डपं खो मान्‌ भूमिभागे १ समे Gat 'वतुरखरं समं AM पताकाष्वजगोभितं ॥ सूेणसूतित क्रत्वा Hw हस्तप्रमाणतः | धेन्वातिसमं aa कारयेदिधिवच्छभं ॥ ततो हरेव्लसम्भारान्‌ quia a तिलांस्तथा t पालागौःपिषप्पलोखेव समिधः सप्ततिं यतिं ॥ गर्गरो; RAV a नववांखेवादरेत्‌ शभान्‌ | ¢ रो गगरो ATA | aauquararfe वेदलानि शभानि च! an Ce नवेद्यपुष्मतोयाच्य इव्यानि च नवानितु॥ ~, £ # आहरत्‌ सव्वमेतडि Baa Galva | सुरभोणि च पुष्पाणि जातौनींलोत्यलानि च ॥ अन्यानपि पवित्रां फलाद नाहरेद इन्‌? | पानो जा ०-५- १९ Aqua sha पुस्तकान्तर पाठः । र कु्टदोनारेद्रद्निति पुखकान्तरं प्राठः । व्रतखर्ड'२१अध्यायः।] दमाद्िः । २२० च, पि £ + गन्धानिचव चित्राणि धूपं गुग्गुल पूव्वक ॥ प्रणोतान्‌ विष्टरांशचेव Gig खु चमेव च | एवं सम्भृत्य सम्भारं घतुरःसुकङ्लोद्धवान्‌ | अधिवासाथमा चार्यान्‌ ससुदिश्य प्रकल्पयेत्‌ | ये शडा विगतक्रोधा देवत्राह्मणपूजकाः ॥ श्राहोखित्‌ सत्कुले जाताः सत्यगो चत्तमान्िताः । 0 ~ © AO 0 > चतुभि रोदृशव्वत्स श्राचाय्यतन्नियमखितः॥ , , „ EN सप्तराब्ोषितेः पूज्य ASS नक्तभोजनः। एव पत्तसाध्यनव्रतं | तती निथममादाय तत्‌कुण्ड धनुषाक्षतौ | dad कारयेदत्स विप्रे; metas! ॥ शाङ्रवंशजाः शेवदौक्तावन्तः १) तदभावेन चैवेह ही मन्तद्भूमिमिच्छतार ॥ कारयेत्‌ कुशलान्‌ न्नात्वारे अव्यङ्गकुलजांस्तथा | Sarai प्राकेशेवतुल्यानां विधानं ॥ गणानामधिपं माठभूुपालं त्षभष्वजं | आदावेव च संपूज्य ada समाचरेत्‌ ॥ ASAHI: स्कन्दः । जातरूपेण टृषेशं सव्व कर्मसुसिदये | १ इर ति{वग्षसम्बोघनमिति पुस्लकान्तर पाठः| २ दौम कुयप्रादितिश्टण दति पुलकान्तरे पाठः। ३ सत्‌ कुल्लानन्नाला इति पुखकानरे We: | २२९८ Alife: | [बतखस्डं २१गअध्यायः। Taq माठभिः ae wera इर यजेत्‌ ॥ भूपालः सेत्रपालः आग्नेयः ahaa | जातरूपःसुवणं' विनायकरूपं कछष्णचतुर्धोत्रत। स्कन्दरूपन्त॒ काति aaa व्रते वेदितव्यं । भाठरूपन्तु विष्णुषर््ोत्तरे | जातस्य प्रादुभूतस्य रूपङ्गजमुग्ादि तेन देवेणादौन्‌ पूजयेत्‌ | हरस्वरूपेणए लिङ्गरूपेण देवेशो गणशः | जुहोति सप्तपालाशानुदिते जहयात्तदा | Aa TA भानावाश्चत्थसभिधोडइनेत्‌ ॥ शरदैरातरे तिले; क्ष्णं राज्येनाक्तेस्त्‌ भक्तितः | अष्टोत्तर शत यावत्‌ कारयेदीमसुत्तभं। मन्तेणनेन ततेव सव्वाश्भविनाशनात्‌ t वरदन सुसिद्धेन पुष्टिशनौतविधायिना ) ai ङी aa! कष्णवाससा सप्तसदहस्रकोटिसिंहवी हने सहखवद्ने महावेऽपराजिते valet सव्वसेन्यपरक्ीनिर्व्वा- fafa परमन्तच्छेदनि सव्व सच्लोग्माद्नि सव्वं भूतद्मनि | सव्वंटोषाच्ंधयवधय विद्याउच्छेदय निकछन्तय सव्वदुष्टान्‌ way way ज्वालाजिद्धेकरालवक्ते सव्वंजन्त्‌न ARTA WHAT aza Nea wast नमोऽस्तेते AST | हाम Gal बलिन्दग्धाचस्‌' सव्वदिशासु च । क्शराज्येन रक्तेन पयसा योजितेन च॥ ANUS: YUAN: are सुवलिं दद्यात्‌ | कुयात्‌ सपदिनच्ेव anafe णुष्व ते | अहतौ; प्रच पञ्चवा वलिद्‌ गकं हुनेत्‌ नत खष्डः२?श्रष्यायः। देमाद्रिः। ९२९ सपाह बलिद्ामे तचसप्तभेऽदनि पञ्चपञ्छाशता निवद्ाव्यस्तमदहा- व्यातौ; HAT TMH जुहयात्‌ दशपू ZAI: WR सडनया | c ay ग Oo से चतुभिः स कुलोत्यत्र स्विरकसप्त्व्वरो। उघित्वावाघ ama स्थातव्यं ह्यचनाय 4 tt सप्तरात्र भिराजन्तमेकराचः यथा शक्तयेपवासेन बलिहोमो Sal Gat Gala नक्तेन पक्तोघारणौयः | पञ्चमे यजनं वत्स कत्त व्यं विधिवत्छद्‌ा । = > Oy १, WMA Sa: १ च्विप्रस्तष्टयधन्तत तः aT ॥ ~ WA, AAR Waa sa: Wat दिनानि सप्तसपेकं चन्दनागुरुणा तथा) टेव्याः परमया भक्तया AAA qaws ॥ लेख ले ख्यस्य HUM Baas सुखस्य q! इयं चन्दनागरूवगां पूव्वेकता ॥ प्रतिमा खरमयो यातु स्थाप्य तां पूजयेत्सदा | प्रच्याल्य मम्तपतेन प्रस्ज्यामलवामसार ॥ मधुना मधुपकन्तु कारयेत्‌ पृजयेत्ततः ॥ तलोखतं TAA सुखं MAB कारयेत्‌ | प्रद््तिणं ततोमूयोद्‌ण्डवत्प्रणिपत्य च ॥ धग पालोडहवेतानुमन्ततन्या FAIA वे | १ BAAN Safa पुस्तकान्तरे UTS: | ९ अदष्मयोमया लेख्या लेष्याभ्यां मन्त्तपूतकं वारि मधनेति कचित्‌ पाठः| ३ मष्डमाचनिति पाठान्तर | ( ४२ ) ३२० watz: | [व्रतखर्ड'२१ अध्यायः) ध्पालीभक्षस्यनामस्तोच | Wat च तत्रेव भक्तया ब्राह्मणान्‌ विधिवत्ततः | काञ्नेरचंयेदव्य समासे दग्धयोजितेः ॥ gama तथा दत्य saa विशेषतः । देव्याश्च पुरतोत्यन्तयनादेवन्तु कारयेत्‌ ॥ स्वाल्यमेव छातं वत्स weifa भक्तितः सदा सव्वस्वद्योव मे युक्त AATI ददाम्यहं ॥ प्रोथ मममन्तेण चिः खाता fade: | दान््याच्तन्दया समायुक्तां तथाभक्तिं समाचरेत्‌ ॥ न धारयेन्मलङ्ारं यतस्तस्यायमोरितं । न चैतं वैनयेत्खमं नतपोमोत्तभेव च ॥ एव निष्यादयित्वा तु we गच्छे च्छनस्ततः | गत्वा प्राश्य शएविभूत्वा पञ्चगव्यं qeifaa: अष्टौ चेव कुमारौ Bel च हिजसत्तमान्‌ | खो मयेदिधिवदद्कामासुदिश्य च मातर ॥ मातर AIS गणानादिवाद्धौ। अष्टोचेव दिजान्‌ भोज्य व्रतख्ान्‌ शिवधा कान्‌ | sfem शङ्र देवं तत्पल्लौं च विनायक ॥ WARNE Bala होतारच्च विशेषतः| ततः च्षमापयेत्पश्चात्‌ प्रणिपत्य मुदम हः ॥ एतत्सव्वं ससुदिष्ट भक्तया विस्तरतो भवेत्‌ | दीनान्धक्परणंश्व कारुणयात्तच भोजयेत्‌ | यदत्त वेद्‌ विप्रेभ्यो वदत्त ब्रह्मचारि ब्रत खर्ड*२१ अध्यायः} safe: | २२१ ततीऽतियिषु१ यदत्त कारुन्याश्चैव तत्तथा | तत्सव्व Aad दानं aqua विधानतः | aay वेश्वरे दन्तं सत्यमेतव्रसं गयः | अरहा नरा सम्भोज्याः सव्व चे वोत्सषे मम I आणया परया प्राप्ताःर्स्लोवालविकलाखिलं | वन्धुभिख् ततः साद्ैसुदया परया Ya: | इ तसुग्यज्नगेषन्तु zala प्रयताव्सवान्‌। अकाले lyst FATA HUTA च यः सदा | श्रकालकोमुदो दोपलिकोत्सवं। मासि चाशखयुज्टम्यामारभेत्पन्वं णाचरत्‌ | उषिला वाथ नक्तेन एकभक्तेन वा पुनः ॥ विद्ाय पापसङ्गत स गच्छेत्परमां गति! पवेण पञ्चदश्या, Aaa त्रतस्योत्तराङ्, WaT टेवकोकायः | व्राह्मण; त्ततियाः पाथं वेश्या वा शूद्रजातयः! चरिष्यन्ति व्रतच्ेदन्तेऽपि यास्यन्दयनामयं tt एवन्तु विधिवत्‌ ata पुचवान्‌ सधनो भवेत्‌रे ॥ नालिङ्न््यापदोघोराः शव्रभिनं च वाध्यते 18 कालोव्रतमिदं ख्यातं WAS सत्ङुलोडइवैः | १ fafas an मिति पुरूकान्तर प्राठः | र. खशया प्रवराविभा दति पुस्तकान्तर प्राठः | ६ धमेतोभवेदिति पएुख्ठकान्तर पाठः| ९ शवभिप्द्चवाध्ये इति पुख्लक।(नर पाठः| 222 Sale: | [व्रतखण्डं २१गअरध्याय; | शान्ति yfecaraiae व्िंदयाकामेश् aaa: | रमाकामैलन््ोकाम; | सिंहायुतसहसखे ए उद्मानेन सञ्चरेत्‌ | विमानेनाकवणन दिवं गच्छेद्यभ्राचरेत्‌ ॥ THA तदात्व हि मयोक्तं पापनाशनं । भक्या च परया aw कत्तमहस्य तन्द्रित; ॥ अतिजातिषु waa यः करिष्यति wet | हौ नवणन FA श्र स्याट्नेनापकारकः॥ इति कालिकापुराणोक्त कालराचिव्रतं। ©600((९ 060 ब्रह्मोवाच । श्राश्विने ara are at aa वा यावशेऽपि च। AUIS कत्तव्य व्रतं शक्तावधिं हरेत्‌ ॥ शुक्तावधिभवति शक्तपन्तावधिः | एतचचोक्तमासेष्वेव वच्यमाण प्रकारण HMA शक्घाष्टमों यावत्‌ कन्त व्यं | अषटटमोमाशखिनों क्ष्णा मेकभक्तेन कारयेत्‌ | मङ्लारूपिणों टेवोमघवा सरुघातिनोम्‌ | पूजयेत्रवभेटेन गन्धमान्यनिषेद्‌ नः | नवभेदेन नवक्तललो गन्धधषेन | कन्यका UTI देवोभक्तां् मानवान्‌ | नग्न गीष ष er un pie ९ wifes पुष्टिक कामंख दति Geant ora: | त्रतखग्ड'२१ rar: '] ware: | 2 22 नक्तेन नवमौ काया यावन्न enatl च्तिपेत्‌ t एकादश्यामुपवरेत्‌ पुनरेष विधिभवेत्‌ । पुनरेषविधिरिति यथा क्ष्णाष्टम्यां द्निचतुष्कमेक भक्तनक्ता याचितोपवासात्परमपि दिनि चतुष्कत्रथं नेयमित्यथेः | या चच्छक्ता्टमों शक्र उपोष्य तु विधानतः) दानं होमो जपः पूजा कन्याभोज्यन्तु प्रत्यहं ॥ क्तव्यः जितरोभेण tay भक्तिरतेन च| नवधा पशघातेन afearsaifamifes | RUM भूतव ताले नचेवात्चिकौषया | कन्या ्यलङ्‌ तास्त च १ feat Saga: | नवधापश्ुघातेन नखर्डकरणे न चरे I भूतवेताल्ते भूतवेतालाथ आव्चिकौषेया ्रातममभोगेच्छया) HAE ताः HAT ha विशेषः । ^ ~ AZ न्तन प्रेत्ताश्चरे रथयात्रा सजागरं | दानं देयं यथाश्रक्वा सव्वषामपि शक्तितः ॥ मदाभेरवरूपेण अस्थिमालाधराच्चये। पजनोया विशेषेण वस्वशोभाः पुरादिषु | कत्तव्या; स््वकामाघप्रापणाय सुरोत्तम। अनेन विधिना शक्र यथेष्टं लभते फलं | ee 2 wafefa Geant पाठः, २ नखण्डकररानेव इति पुस्तकान्तर पाठः| द नट नत्तन wary इति पुम्तकान्तर पाठ. ! देमाद्धिः | [Aaa २१अध्यायः| मङ्गला भेरवौ दुर्ग वाराहौ चिदशेश्वरौ | द्ध मौ नौ A AN उमा हमवतौो कन्या कपालो कंटभेश्वरो ॥ कालोत्राह्मो महेणो च कोमारो मधुसूदनो t सो £ om, ay ~ वाराहो वासवौ Wal नामान्येतानि वं जपेत्‌ | पूजयेद्धोजयेत्‌ कन्याः शास्तटृष्ट न कम्मण ॥ वस्वालङ्मरकांस्यादिकरकाः कटिस्‌चकाः | दातव्या WHA: शक्या Sar भक्तो; सुखाथिभिः। VAI नवरात्ध सप्तपञ्चचिकदह्िवा। एकभक्तेन नकेनाखतितोपोषितेः क्रमात्‌ ॥ नवरानिरेकभक्न सप्त नक्तेन पञ्चायावितेन faq उप- ~ "१५ ने ५. श वासेनति क्रमः। अष्टमोमन्त कला नवादिगणना। पूव्व- चासमर्धँस्येते पत्ता | ्पयेताख्िने शक्र यावच्छुक्तातु अष्टमो । पूजयेन्मङ्गलां तत्र मण्डले विधिवत्‌ क्षते ॥ सव्व सम्भारसम्पनने सव्वं सिदिविधायके | सव्व कामप्रटे शक्र सव्व कामानवाप्रयात्‌ ॥ अथेकामस्य AA राज्यकामस्य राज्यद्‌ | आरोग्य Yast वत्स महापातकनाशनं ॥ WAITS वार्तव्यं पुस्तोवालनपु wa: | सव्व दा सव्वगा Sal यस्माच्छक्र महाफला I अनेन विधिना aa a ददाति विचारणा सव्वषां व्रतयोनौ नां सव्व व्रतमहाफलं ॥ नवम्याख्यं महापु तव सम्यक्‌ प्रकाशित | त्रतखर्ड'रश्ब्रष्यायः।] देमाद्धिः | नास्येयं भक्तिहीनस्य wee हेतुवादिनः । देय भक्ताय viata रशिषविष्णुरताय च! टेवोभक्तः सदाचारः कन्यापूजारतो नरः ॥ इडेव सव्वं कामानि साधयेद्विचारणात्‌ । विप्रा यथाच पूज्यानां दानानां काच्चनं यथा॥ Waa: सव्वेलोकानां तीर्थानां जाह्ृवौ तथा | यधाश्वमेधोयज्ञानां मधरा सुक्तिकाङ्किणां । atat यथादिसुक्‌ खष्टो देवानामच्य तो यथा। तथा सव्वं AAA वरोक्त' भोपरपञ्चकं॥ वसिष्टश्टगुगगदेषौणे कतयुगादिषु। नभोगेरम्बरोषायेश्चौरे चे तायुगादरिषु॥ वौरभद्रादिभिविप्रेः wera: कलौ युगे} दिनानि पच्च पूज्यानि चौणभेतन्मदात्रतं | AMI जपरहोमक्रियादिभिः॥ त्तत्रिये ख तथा सत्यभौचव्रतपरायरेः | नाधयो व्याधयस्तस्य न च शत्रभय भवेत्‌ । ससार पूजितो नित्य'१ महानेको पिजाथते | खवगणात्‌ सव्व कार्य्याणि सिध्यन्ति नाच सशयः ॥ द्रति देबोपुराणोक्तं' मङ्गलाव्रतं। on) uo १ मङ्लाष्टजितानित्य्मिति gearat qe: | २९ मादि | [Aaa २१अध्यायः। अथ भोखपच्चकव्रतं | नारदोयपुराणात्‌ | नारद्‌ उवाच) यदेतद्‌ चन्त YW ब्रतानां परम aa | कत्तव्य कातकं मसि waaay ॥ विधानं aw विस्पष्टः Hay सुरसत्तम) HAI प्रसादाग्मे qatat हितकाम्यया ॥ ब्रह्मो वाच | प्रवच्यामि महापु व्रतं व्रतवनाम्बर ॥ WAI: WA व्रतं wafearaa | सकागाहासुटेवस्य addin Wass | तरतस्यास्य गुणान्वक्त कः शक्तः केशवाहृते | त्रतच्चंतन्महायुखयं महापातक नाशनं | Wal नरे; प्रयतेन कत्तव्यं Wass | कात्ति कस्यामले यत्ते खात्वा सम्यग्यतव्रतः॥ URIS ग्णह्लोयाद्रतं पञ्चदिनात्मक। प्रातस्राला विधानेन AQIS च तथाव्रतौ। नद्यां निभरगत्त वा समालम्यच्च गोमय | यव्रोहितिलेः सम्यक पितन्‌ मन्तपयेत्‌ क्रमात्‌ | स्नात्वा मौन ततः क्त्वा घोतवासा दटत्रतः॥ [ne ——_— ee । ee नका > = = ~~ _ _ [ 7 वा" = १ — ९ विधानं तस्य्टकल्लमिति पुस्तकान्तरे पाठ | AAW २ १ अध्यायः | | alfa: | ५ | न~ , 6 . ; ततः संपूजयेदेवं सव्वपापदरं हरिं | स्रापयेद्‌ चुतं भक्तया मघुक्तौरषटतादिभिः॥ aaa पञ्चगव्येन गन्धचन्द्नवारिण | चन्दनेन सुगन्धेन FT मेना केशवं ॥ © ~ च HITT Tas लेपयेद्ररुडध्वजं | Ow, = = % ay asaghad: पुष्यं गन्धपूपसमन्वित; ॥ गुग्गुलं छतसंयुक्त' दडहदक्यभकिमान्‌१। रोपकन्तु दि्वाराचौ ददात्‌ पञ्चदिनानितु॥ EN # > क ४ ~ नवेद देवदेवस्य परमान्नं निवेदयेत्‌ | एव मभ्यच्य eau स्तु त्वादव प्रणम्य च ॥ (~ ५५. क, क ™ + 9 श्रं नमोभगवते वासुदेवेति जपंदष्टोत्तर ग्रत | Fes vara faaatfead व्रतौ॥ षडच्रण Hau स्वाहाकारान्वितेन च। श्रं नमो विष्णवेति षडक्षरोमन्वः | उपास्य पिमा सन्ध्यां प्रणम्य गसडध्वजं । जपित्वा yaaa’ क्ितिगायौ भवेन्नरः ॥ सव्वमेतदिधानन्तु ara पञ्चदिनेष्वपि। विशोषोक्त ad चास्मिन्‌ यदन्यनर णुष्व तत्‌ ॥ प्रथमेद्कि हरेः पादौ पूजयेत्‌ कमलेनरः। दितोये विल्लपतेण जानुदेशं समचयेत्‌ ॥ पजयेच ठलोयेद्ि नाभि wera त्‌ । ~ ~ ~ क ~. ~ ~~ ~~~. ब ॐ (करग्रेण 2 आ प प पो ९ दददवच्य तभक्तिमानिति पुस्तकान्तरे ore: ९ यदपुवेमिति पुस्तकान्तर पाडः | ( ४३ ) दमाद्रिः | वत्रतखक्डं rears | वाण-विल्ष-जयाभिश तत wan समचयेत्‌। ततोऽनुपूजयेच्चछषे' मालत्या चक्रपाणिनं ॥ कासिकया देवदेवस्य भक्या तद्तमानसः। पूजयेजजपमन्तेण गन्धघपं निवेदयेत्‌ ॥ £. ~ कि + _ रचयित्वा हषौ कशयैकादटश्यां समाहितः) तिःप्राश्य गोमयं सम्यक्‌ एकाद्‌श्यासुपावसेत्‌ fi MAA मन्वद्भयो दाद्श्यां प्रूजयेद्रतो | तौ [द + © + त्तोरख्यंव त्रयोदश्यां चतुदेश्यां तथा दधि | संप्राश्य RAPE लङ्नोयञ्चतदटिन१ ॥ प्राणनं, SAAT | पञमे तु fea खात्वा विधिवत्पूज्य amd | भोजयेद्राह्मणन्‌ भक्तया तेभ्यो cary efaui ॥ तथोपदेष्टारमपि पूजयेदस्वभूषणेः । AMAR समश्रोयात्यञ्चगव्यपुरःसर। एवं सम्यक्‌ समाप्य स्यात्‌ यथोक्त व्रतसुत्तमं। सव्वपापद्टरं FS प्रख्यातं Wasa | जन्मप्रख़ति जन्मा सन्त्यक्ता पुणयमवाप्रयात्‌ | तत्फलं समवाप्नोति सन्त्यक्ता Mya aaa पिषवेन्मदय' जन्मनोभरग्न्तिकं। तद्धोभपच्के त्यक्तसम्प्राप्रोत्यधिकं फलं ॥ भविष्योत्तरात्‌ | a ९१ Bayan, चतुदिममिति gaat पाठः| व्रतखर्ड'२ १ अ्रध्यायः :] Sate | २९१९ Wa उवाच्‌ | a™ > 9 कात्तिक शक्तपत्तस्य शण way gtraa | wale समारभ्य विज्ञय भौोष्मपञ्चक ॥ CHC CAAA बालचेतसां, च| ~D पापघोः परिहत्तव्या ब्रह्मचयण निशया | मद्यं मांसमसत्यच्च वज्ज येत्‌ पापभाषणं । ~ न श्ना काद्ारेण AIT: छष्णाचंनपरंनंरे; ॥ मो =, o १ स्तोभिव्वोक्येन कत्त व्य'१ ससत्य: पुखवदनं | विधवाभिस्त्‌ कत्त व्यं पुत्राणां शभठदयेर | ¢ ॥ ते रै । AAR ANA मोतच्ता्धख्धव पार्डव | faa’ wiaa दानेन काल्तिंकीं यावदेव तु॥ =~ क, q > वे श्वद्व स्त कत्त व्यो विष्णुध्यानपराख्खः | = ~, Ow, ~ वेष्वटेवः सव्व saateta: ara faufaufaaa भावनोयाः। या यस्य प्रतिमा कायां रौद्रवक्तातिभोषणार। रुडदहस्तातिविक्लता at हि दषट्रकरालिनो॥ तिलप्रस्थोपरि स्थाप्या कछष्णवस्वण वेष्टिता | रक्त पुष्पाक्षतापोडां जचलत्‌काञ्चनकुण्डला ॥ WITT परया भक्तया धम्मराजस्य नामभिः | १ स्तोभिवाक्यैनंकत्तव्यभिति पुखकान्तरे पाठः, २ विधवाचेस्ल ana पुराण wees दूति Geant प्राठः, ३ रोद्रचक्रातिभौषणाद्ति FARIA प्राहः | २४० Safe: | [व्रतखग्डं२१अरध्यायः | इमसमुचारयेन्मन्त' ग्टोतकुसुमाच्नलिः॥ यदन्यजन्मनि कतम जन्मनिवा पुनः, पाप प्रणममायातु तवपादप्रसादतः। एवं सपुज्य विधिवत्‌ प्रतिमाच्च सकाञ्चनां॥ £\ सकाद्यना सुवणदल्तिणायुक्ता। वाचकाय प्रदातव्या wata Waarfafa | तदच देवदेवस्य छष्णस्याक्तिष्टकारिणः ॥ तदद्दिति इहरिप्रतिमादेया) Hat पूजां यथा शक्या विप्राणां वेद वेदिनां | द्वयादिरण्य' aaa awit A प्रौयतामिति॥ अन्येषामपि दातव्यं aqua वसुवाज्कितं | छतक्षत्य; खितोभ्रूत्वा fata: संयतोभवेत्‌ i शान्तदता निरावाघः परम्पद्मवाप्र्‌यात्‌। नौलीत्यलदलग्यामशतुद्‌ शतु्भजः | अष्टपादेकनयनः ACHAT ALTA: | जटौ दिजिद्वस्तास्नास्यो खगराजतनुच्छ्द्‌ः ५ चिन्तनोयो महादेवो यस्य रूपं न विद्यत | ब्रतदेवताया महाविष्णारिदं रूपं चिन्त gar eat चङ्ग राजतनुच्छद; सिहत्वक्‌ | दरदं ula yw कथितं शरतल्यगतेन मे। तदेतत्त मया ख्यात दुष्कर WATT I व्रतं ARATE न्त प्रवर भौषपञ्चक। व्रतखण्ड'२१अध्यायः।] Pathe | २४१ यस्त स्मिस्तो षयेद्क्या aw सुकतिप्रटोऽचखतः ॥ व्रह्मचारो Wearar वानप्रस्थोऽथवा यतिः । प्राप्रोति वेष्णवं स्यानं तत्‌ क्त्वा भोपरपच्चकं ! AWS मद्यपस्तेयो गुरुगामो Weraat | FIA पातकात्‌ सम्यक्‌ FAH भोषपञ्चकं ॥ अथास्मि स्तोषितोविष्णुनं णां सुक्तिप्रटौभवेत्‌ | qaaq पटय्रमानन्तु पवितं भोप्मपञ्चकम्‌ ॥ मुच्यते पातकान्मत्यः पाठकीविष्णुलोकभाक्‌ | धन्य' पण्यं पापहर युधिषिर महाव्रतं | ARIAT ब्रह्महा WA सव्व पापे; प्रसुच्यते | यद्ध ष्मपञ्चकमिति प्रथित gaat भेकादभौप्रति पञ्धदशोनिर्द्ध। म॒न्यत्रभोजनपरस्य नरस्य तस्मि faz फल feufa पाण्डव शाङ्गधन्वा ॥ दति भोपच्चकन्रतं । "~ (00 व्यास Sata | यदजर्भाद्ानवा TA चाचचैयित्रा जनादन । तां योगनिद्रामरूजदेवीं रत्ताधेमात्मनः॥ एकांगतोभगवतो fafeaat ada gq | BRIA त्‌ संपज्या कात्तिक केगवान्नया ॥ २४२ च मादि | [व्रतखर्ड २ श्रध्यायः। ततुष्थामधवाष्टम्यां नवम्यां वा efafwer | चतुर ग्यामयो स्वोनि; सुखाताभियंयाक्रमं ॥ WIE तु यच स्याटेकान्तेतु HATA: | तत्तथा पुष्यधुपान्रसम्पद्‌ा पृजयेच ता॥ एका पुचवतो नारौ मनोवाक्ायसयुता | सर्वीपकर णुं ग्टहीत्वा यासमुत्तमं । तत्ोददाति श्येनाय सुप्रोता प्रोतिकामिनो॥ CHARA भगवत्य निवेदय | Taal aed याति ततः पणामनोरथाः ॥ कते युगे प्रसिद्धोऽयं दासवद्तको यथा | aaa waa दरव प्रेष्यतेन कते युगे प्रसिदडत्यधः। श्रघ्ोपरिवरो राजा wart: पुरेम्बके। निधाय uzel aq खनाय स्वां प्रियां प्रति॥ युगेष्वन्येषु मन्वन्तु जपेत्वनलइत्यपि | जहाति भमो संप्राप्ता ae खो याति वेश्म | अआमन्वगन्तु यस्यास्ति परल्िणा निख्ितं पुरा। स एव पत्तो ग्णहाति सग्रासमिति निश्चयः | Wal We ततो Ysa Al Ae सुसमाहिता, पञ्चात्‌ खहपति HSM समल्यन्नातिवान्धवः | weaat तु तेनेव विधिना पूजयेत्‌ परति ॥ ष्वनग्रासो नटे AW वन्त BAIA | १ तंग्रासमित्ि पुस्ठकान्तरपाठः। aaaus sara: i] देमाद्रिः। २४३ किन्तु गुप्तं खहेाय्या पुजयोत पतिव्रता ॥ युगेष्वन्येषु सद्वावो दम्पत्योनों Wagar | तदा BHAI aaa करोति a | याञ्चेनयापल्युरनुज्ञां विना तुश्येनया we wa देवौ पूज- चितब्येलयः। इत्यादिद्य पुराणोक्त श्येनयरासनविधिः । 000 TUT Sara | अतःपरं प्रवच्यामि AAA TAHA | अष्टम्यान्तु चतुद्‌ श्यां पत्तयो सभयोस्तथा ॥ उपोष्य संयतो war तिविधेनान्तराव्मना। तलोपराह्नं शुचिना विशेषात्‌ एजयेच्छिषं । पूर्वोक्त न विधानेन जपहोमादिमाचरेत्‌ | पजयेत्यरया भक्त्वा YH वा साधनादिकेः। ~ ~ . ततस्त पञ्चगव्य प्राशयेच्छलुकचरयं | AAAI हविष्यान्नेन qua ॥ अनेन विधिना यब्नादयावज्जोवं व्रत चरेत्‌, पिता पितामदशेव aaa प्रपितामहः | वसन्ति गिवलोकंषु जिवतव्रतप्रभावतः। एतच्छिवत्रत नाम व्रतानामुत्तमोत्तमं ॥ दति कानोत्तरोक्तं शिवत्रतं | Sevens (}() ("भभम . २४४ देमाद्रिः। [त्रतखग्ड़ं२१अभ्याय;। > ०५ Haq vara | कात्तिंकः खल्‌ मासो बे सव्व टेवमयोमहान्‌ । aura विशेषेण तत्र पञ्चदिनानि q | पुण्यानि तेषु यदत्तमक्षयं wa कामिकं, एकादश्यां परदत्त दौपं प्रज्वाल्य मषिकां। मानुष्य' दुलभ पाप्य पराङ्तिमवापसा। लुब्कोऽपि चतुद्श्यां पूजयित्वा जनादंनं | निभक्तिः परसंगत्या विष्णुलोकं जगाम सः भ्वपाकादिचयोदश्यां Stay SWI परे; Wala | वश्या लीलावतौ भूत्वा जगाम BAA | कोपः कश्िद्मावास्यां Gat EI च ite णः ॥ सु हडयस्त्रजापालो राजराजेश्वरोभवेत्‌ | तस्मादोपाः प्रदातव्या राचावस्तमितरवीौ॥ खेषु सव्वं गोषटेषु चेलयेष्यायतनेषु च, देवानाच्व रथ्यासु श्मशानेषु सरःसु च। नक्रातिना शुभाय यदा wafearfa qj पापिनः पितरो ये च लप्षपिण्डोद्कक्रयाः। aq Waa पिण्डदस्याप्र वन्तिते॥ स्वग तिभितिशेषः | तत्र खौ; पूजनया तु मनुष्याखं waa: | खो कामेस्त वर्व्व sit क्रोड तव्यः प्रयत्नतः | वन्धभिः सहिते; vat कृल्वगौतप्रजा गरे; | ननरतख ग्ड २ १ अध्यायः] Sate: २९५ afe दष प्रयातो तस्य सं वत्सरं जयं । ad तु क्रौडते हानौ हानिःस्याद्विजये wa ॥ सुखप्रोतिसुलाभःस्यादत्सर मनुजस्य तु, गोयं जिता पुरा शम्भुनेग्नोद्यतेविंसजिंतः ॥ तेनासौ शङ्करो दुःखौ सव्वदोमा सुखान्विता । सिया सादं जगद्योनिः Ra विश्णुः सुखान्वितः। तस्यां रातौ जनानान्तु तोऽथ सुखसुभिका(१)॥ नन्दा सुनन्दा सुरभो UTA सुमना AAT | faunal मथ्यमानाव्पो उषः Ala DAS । कामधेनोरावि्भावभावितसखदेहात्‌ उषः प्रशस्त इत्यघंः | तत्र STAT समभ्यचं धेनुः पूज्य प्रयबतः(२) | गोदानफलमाप्नोति नरा विगतकस्मषः॥ एकादश्यासुपोष्याघ नरो दिनचतुष्टयं | तेन खापयेदिष्णु' गव्यन पयसापि वा॥ नक्ताभौ मोरसरव्येः पूजयेन्सधुश्नूदन गन्ध पुष्पे; सुनेधे दरव स्ता लङ्ग रकुण्डलेः ॥ शद्धगसि चक्रो तवाहविग्णोः NASM तु शाङ्गपाशे | aq प्रयच्छामि जनादनस्य सिया युतस्यापि धराधरस्य। (१) सुख पुजिका दति क्रचित्‌ aie: | (2) धेनू: पञ्च प्रयत्नत इति पुष्ठकान्तर पाठः | ( ४४ २४६ दमाद्िः | [anaes २१अष्यायः । यिथःपति ओखओधरमेव कान्तः faa: सखायं हि खियोनुमूल । नामान्यद सखौधरखौनिवासं समचितोमे प्रददातु कामान्‌ | एव usa विधानेन Parga नामभिः | TAR जागरणं कुयात्‌ सिया are जगत्पतेः 1 या देवौ भागेवं तेज! कुलं सवं पूजिता) ATA Ul we नन्दा सुप्रोता वरदा aA tl याङ्धिरस सदा देवो सुनन्दा प्रलयुपस्यिता | श्रायातुभेग्ण्हेसातुसुप्रोतावरदासतौ) सुरभोया UTAH कामधेनुः FRAT | सदा भजेत्‌ WE Ula ममायातु सुराचिता॥ GUAT कश्यपंया तु भज Waa कामदा! सामे भवतु सुपरोता कामपेनुषहे सदा। सुमनाया वसिष्ठन्तु सप्रा्यसुमुदटे Wart aH Ws सदायातु कामदा सुरपूजिता |} एवं पूज्य विधानेन प्रभाते विमले शभे(१) । श्रुक्ताम्बरधरःस्रातः शक्कमाल्यानुलेपनः ॥ छ तनिव्यक्रियो ष्टः कुण्ड लाङ्दभूषितः। प्रातः प्रतिपदि प्रौतः काम्धेनुप्रदो भवेत्‌ ॥ कामधनुस्तु बङ्किपुराणोक्ता विक्नेयासाच दानखण्डएव द्रष्व्या ॥ (१) qatafa पुस्तकान्तरे पाद | Sa ea ब्रत खर्ड'२१अध्यायः |] PATER: | 289 वं et. सव्वमिदं ufaa तचापि aat शरदेव तासां(१)। तस्मिच्छभः क!त्िकनाममास स्तत्रापि परयो हि वभूव दशः ॥ यस्यां हरोदेत्यभयादहिमुक्तो उरस्थल प्राप्य सुखेन रेते | aa पुरादयापि fafafaat a कामप्रदा धेनव Wa Aq || afeaae aa दिने समस्ताः सुधेनवो afaad wafer | wea यस्मिन्‌ कथयन्ति लोला हानित्तयस्तत च सत्यमेतत्‌ ॥ तस्मात्वमचेव च कामधनुः zat. ससुद्श्य तु aaa | विप्राय वे सव्वैगुणाय यत्र HAl Ad ATAAA WA ॥ सप्तापरान्‌ सप्तावरानात्ानञ्चेव AAT: | सप्रजन्मक्तात्यापात्‌ मोचयत्यवनोपते॥ पटे पटेऽखमेधस्य फलं प्राप्राति मानवः | दानानामेव सव्व षरामुत्तमं परिकौत्तितं ! सव्व कामप्रदं Ta पापन्न सर्व्वदं WH । (१) वषे' दरे सव्व भिद्‌ प्रविचं ततापि aan शरदेव तासामिति cera ¦ २४८ माद्रिः। [व्रतखगर्ड'२१अध्याय; } सव्व परामेव पापानां पापानां(१) महतामपि। प्रायदित्तमिद शस्तं कथितं ब्रह्मण ae | ्रह्मविट्‌ चश द्राणां कात्तव्यच्च ad दप ॥ सव्व काम HAA कामधेनुव्रतं सतां! व्रतान्ते(२) दिलहोमख AAT प्रयलतः। इति बह्कि पुराणोक्तं कामधेनुव्रतं१। 0002000 सनत्कुमार उवाच। अमावास्यान्तु देवाश्च कात्तिक मासि केशवं) अभय प्राप्य GAS सुखात्तोरोद्‌() सानुषु i TM CANTATA सुखं FAT भुजो दरे | चतुभूजस्य हस्तान्ते ब्रह्मा सुस्त VHT ॥ अतोऽधं विधिवत्‌ कार्यी मनुष्यैः सुखसुभिका। दिवा da न भोक्षव्यख्ते बालातुरान्‌ जनान्‌॥ प्रदोषसमये Tal पूजयिता ततः क्रमात्‌ | रोपठठक्ताञ्च दातव्याः शक्तया Sawey च । चतुष्पये WATAY नदौ परन्व॑तवेश्मसु | हच्तमून्तेषु गोषु चत्वरेषु गुहासु च। ee (१) qratatfata पाठान्तरं | (2) eels a कौचित्‌ qa | (३) चोग{श्विति qratac | angie 2¢maqra: |] artsy: | ३४९ aa: qa: भोभितव्याः कयदिक्रयभरूमयः | दौपमालापरिचिप्त प्रदेशे तदनन्तर | ब्राह्मणान्‌ भोजयिल्लादौ विभज्य च वुमुक्तितान्‌ | अलङ्तेन भोक्तव्यं नववस्त्रोपशोभिना ॥ सिगधे्यग्धःविं दग्धे ख area fawa:(2) सह | शद्धरस्त YU GA AUT सुमनोहरं | का ्तिके Cara तु प्रथमेऽहनि सत्यवत्‌ t जितश्च णङ्रस्तत्र जयं लभे च पाव्वतौ। अतोऽयं AST दुःखौ उमा faa सुखोषिता। तस्माद्य, तं VAN प्रभाते तत्र मानवेः॥ त स्मिन्‌ भवेज्जनयोयस्य(२) तस्य संवत्सर शुभं | पराजये विस्दन्तु लव्धनाशस्ततोभकवेत्‌ | व्यो तव्यं मौतवादययादि खनुलिप्तै; स्वलङ्कतंः | विशषवच्च भोकत्रव्यं anal: सद | तस्यां निशायां wast शय्यास्थानं(२) सुगोभनं । गन्धपुष्मैस्तथा वस्त्र TAMA | दौोपमालापरिक्चिप्त तथा धूपेन धूपितं। दयिताभिश्च सहितैनया सा च भवेत्निशणा। नवैवस्तैश्च संपूज्य दिजसम्बन्धिवान्ध वान्‌ | दल्यादिल्यपुराणोक्त सुखसुश्ि्रतं | ( १) लिखिते दति पुक्लकान्तर are: | (२) तस्मिन्‌ दते जयी यस्येति पाठान्तर | (3) शय्याष््यातमिति प्राडानतर। ३५० दमाद्धिः। [त्रतखण्ड'२१अध्याथः | aq कोसुरोमदःव्छवः | पद्मपुराणे | कात्तिके मास्यमावास्या तस्यां दौपप्रदोपनं। शालायां ब्रह्मणः कुयात्‌ स गच्छेत्परमं पद ॥ प्रतिपदि ब्राद्यणयख गुडभिखे: सदौपकेः | वासोभिरहतेः पज्या गच्छेद ब्रह्मणः पुरं ॥ गन्धैः पुष्प नवैर्वस्त: सम्मानं भ्रूषयेत्त यः । तस्यां ufaqer ar q स USAT: पदं ॥ महापुण्या fafafea बलिराज्यप्रवत्तिनो। ब्रह्मणस्त प्रिया faa’ बलेयौ परिकौत्तिता ॥ वराद णान्‌ भोजयेत्‌ योऽस्यामात्ानच्च विशेषतः | स याति परम स्थान विष्णोरमिततेजसः ॥ चेते मासि महावाहो YT प्रतिपदा वरा | aa यश्च तिलांस्पृष्टा स्नानं कुयान्नररोत्तमः॥ न तस्य दुरितं किचिन्नाघयो व्याघयोचप। भवन्ति FAME ल तसात्‌ खानं समाचरेत्‌ | दिव्यनौराजनः तदत्‌ सव्व रोग प्रणाशनं। गोमहिष्यादि यत्किचित्तत्साद्ं quad ॥ - तेलवस्त्रादिभिः सर्व्वान्तो र्णधस्ततो नयेत्‌ । बराह्मणानां ततोभोज्य' कुया कुरुकुलो इद | तख एताः पुरा प्रोक्ताः तिथयः कुस्नन्द्न। काति काश्वथुजे मासि aa वापि तथा द्रप ॥ anew RTA |] BATE! । २५९१ खानं दानं शतगुणं कात्तिकायां तथा aa वल्िराज्येषु शुभदा पांशनाशभनाशनो । वामनपुराणे | वलिं प्रति fafama sara | तथा AGRA GH ठत्त शक्र महोत्सवे, वोरप्रतिपदा नाम तव भावो महोत्सवः | तत्र at नरशाद्‌ल ESE पुष्टाः BARAT: | एष्पधृपप्रदानेन भ्रचयिषयन्ति rad: | aalaat सुख्यतमो भविष्यति दिवानिशं । यथेव राज्ये WITH साम्प्रतं तयेव भाविन्यपि कौसुदौ च। भविष्योत्तरात्‌। खो क्ष्ण उवाच | परा वामनरूपेण प्रायेयित्वा धरामिमां। afaas हरिः ca’ क्रो तवान्‌ विक्रमैस्िभिः | इन्द्राय दत्तवान्‌ राज्य वलिं पातालवासिनं।, कत्वा देव्यपतेदं त्महोराचतरयं By एकमेवाघभोगार्ध' वलिराच्येति विङ्कितं | सरहस्यं तदेतत्त कथयामि नरोत्तम ॥ कात्तिके छष्णपन्नस्य पञ्चदश्यां निशागमे यथे्टचेष्टं दैत्यानां राज्यन्तेषां मौत । २५२ Safe: | [्रतखण्डं २१अष्यायः। युधिष्ठिर उवाच: विशेषेण हषोकेश कौमुदं ब्रूहि मे प्रभो, किमथ daa दानं तस्यां का रेवता भवेत्‌ ॥ faa तत भेदय केभ्यो Sa जनादन) प्रहर्ष; कोऽत्र fafee: ater कात्र प्रकोत्तिता॥ AAW उवाच | कात्तिक कष्णपन्ते तु चतुर्दश्यां दिनोदये। अवश्यमेव कत्तव्यं Bra नरकभौरुभिः। अपामामान्‌ पल्लवान्‌ वा भामयेच्छिरसोपरि। भोतलोष्णसमायुक्त सकर्टकदलान्वित ॥ हर पापमपामागं ाम्यमाणः पुनः BA | ATHY मन्त, । पल्लवान्‌ त्तोरदुमाणां। Oo $ Or + AAG ATU काय्य धनम्ध्राजस्य नामभिः) यमाय TRUTH AIA चान्तकाय त्त ॥ = ववस्वताय कालाय सव्व भ्रूततच्तयाय च| Meas Tua नोलाय परमेष्ठिने | =~ तरकोदराय चित्राय faaqara a aa: | नरकाय प्रदातव्यो दोपः सपूज्यदेवताः॥ ततः प्रदोषसमये दौपान्‌ द्दयान्मनोरमान्‌ | ब्रह्मविष्णुशिवादौनां भवनेषु मठेषु च। eat चं रै ie 7 1 (५ (न रतखर्ड*२१अरध्यायः।] BARE । २५३ कूटागारेषुत्तेलेषु सभासु च नौषु at प्राकारोद्यानवापौषु प्रतोलौनिस्करेषु च | सिदाहबुद् चासुरडाभेरवायतनेषु च । मन्दरेषु विविक्षु इस्तिश्ालासु चव हि॥ एवं प्रभातसमये ह्यमावास्यां नराधिप | स्रात्ा देवान्‌ पिद्धन्‌ भक्तया सपूज्याघ प्रणम्य च । क्त्वातु पाव्व णखादन्दधिन्तौरष्तादिभि;। भोज्येन नाविधेरविंप्रान्‌ भोजयित्वा aaa a ततऽपराह्समये घोषयेन्रगरे sq: | सखरसखरराज्य saga यथेष्ट चेषटतामिति i लोकापि पुरा ee: सुधाधवलिताजिरे । ठक्षचन्दनमालाभिखाचिते च ग्रे we ॥ ुतपानरतोद्धिक्षनरनारौमनोहरे | चरत्यवादितरसन्तुष्टसप्रज्चलितदौपके | अन्योन्यप्रो तिसं दहृ दत्ततालनक जने | ताम्बूलष्टवदने कुङ्मन्तो द चचिते | दुकूलपट्नेपध्यसणमाणिक्चभूषरे | ATA RATHI MATA ॥ युवतौोजनसङ्ो णं वस्तोज्चलविद्धारिखि। टौपमालाकुले रम्य विष्वस्तध्वान्तवन्धने ॥ प्रदोषरहिति शस्त दोषादिरदित Wa | यात्राबिहारसच्चारजयजोवेति वाद््भिः। ( ४५ ) २५४ ष्ेमाद्धिः। [व्रतखण्डर! श्रष्यायः। चुद्रोपसर्गरडिते चौरजायाभयोदते | ¶मिचखजनसम्बन्धिसुहतप्रेमाभिरच्िते(१,) ॥ ततोऽर्ब॑राच्रसमये स्वयं TWAT AAT | अवलोकयित्‌रम्य TETRA at शनेः ॥ महता AAG a ASST: । हम्यशोभान्तु संपश्यन्‌ चतर क्तं; स्रकेनरेः ॥ Seu मरदाश्चय्थं चिन्तयित्ाकमनः Ga वलिराज्यप्रमेदच्च ततः सखग्टहमात्रजेत्‌ ॥ ua गते fata तु जने निद्रान्धलोचने 1 तावन्न नरनारोभिः सूख्येडिर्छिमचन्दने; ॥ ` निष्कास्यते प्रहृष्टाभिरलच्मौः खग्डहाङ्गणात्‌ | ततः प्रवुदे(२) सकले जने जातमहोत्सवे I माल्यदटौपकदस्ते च सरेहनिभरवत्सले १ वेष्या विलासिनौ ara खस्तिमङ्गलचारिणो। Wed WE व्रजन्तो च पादाभ्यङ्गप्रदायिनि। पिष्टकोदतं नपरे गुरश खूषण कुले ॥ दिजाभिवादरनपरे equanfearfefa | सुवासिनोभ्यो दाने च दोयमानें यदृच्छया i राजा प्रभातसमये TAS THAT । सद्वावेनेव सन्तोथा देवा; सत्पुरुषा दिनाः ॥ इतरेवात्रपानेन बाकूप्रदानेन परडिताः॥ ममम मम (१) wafea रञ्जित इति पाठान्तर, (२) भसं दति पृस्कान्तर पाठः। at क्रतरण्ड२१अरध्यायः।] BATE: t ३५.५६ >, 2 € >, TAM AAI AT पुष्यकप्‌ रकुङ्‌.मः । ~ EN > ~ भव्य र्चाव चर्भोज्येरन्तःयुरविलासिनो ॥ DV oO 2 ५ प ग्रामविषय(?, दने पुष्पकप्‌रकुदुमः। भक्तेरुचा वचर्भोज्ये रन्तःपुरविलासिनौ ॥ A WO az = ग्रामेविषमदटानंख सामन्तरपतोन्‌ wa: | bd Ae A ॐ = धपटातिजनसन्म्नान्‌ TAT: कण्टकं; शभः ॥ ~ @ ~ सनामाङ््‌ : खय राजा तोषयेत्‌ AAA TAH । यथाह तोषयित्वा तु ततो मल्लान्‌ भटान्‌ नटान्‌ # ang महिषां शेव युध्यमानान्‌ परेः सद | गजानाञ्च योधांश्च पदातोन्‌ समलंकछतान्‌॥ AMES: खयं पश्येत्रटनत्तं चारणान्‌ (२) | क्रधापयेत्तासयेच्च गोमद्िष्यादकं ततः a षान्‌ दर्षापयेद्गोभि रजिप्रत्यक्तिवादितान्‌ । ततोऽपराह्समये qaut दिशि भारत ॥ AMAIA प्रवप्नौयाद्‌ग WAT च पादपे | कुशकाशमयीं दिव्यां tana डभिद्टेप॥ दशं यित्वा(२) गजानश्वान्‌ सायमस्यस्तले नयेत्‌ | गावो षाः समदहिषा मण्डि ता(४) घरश्टिकोत्‌कटाः ॥ (१) दषम दति पुरूकान्नर पाठेः (२) वारण्णानिति पु्लकाश्तर ara: | (३) दौचयिलेति पुखकान्तर पाठः | (3) मरतोघस्टिकोतकटा इति एुरूकाकार ais: | ३५९ दमाद्रिः | [ व्रतखण्ड २१अध्यायः। | छते Aa दिजेन्द्रव बप्नोयान्माग पालिकान्‌ । दुगमन्तेण AAT सव्व लोकसुखप्रदः ॥ त नाट्टोत्तरशएत | नमस्कार ततः कुत्‌ मन्तेणानेन Baa | मागे पालि ANA सव्व लोकसुखप्रदे ॥ विषये; पतरदाराद्य : पनरेहि व्रतस्य मे । राष्रभोज्येन वे राजा सहस्रेण शतेन वा। सख गक्तवाप्रे त्तया वापि welata ग्राम्यभोजनेः। मातुःकुलं पिहङ्ुलं वालां ख सह बन्धुभिः ॥ सन्तारयेत्‌ ससकलं मागपालींददाति यः। यघोत्तरे दानफ़लाधिक्या्ंः शतसहस्रायुतलन्षभोजनान्येः तानि प्रतिन्नया मागपालौ alae aay aera al ददाति तस्येदं फलं | ग्रामराष्शब्दावयुतलन्षोपलत्तणी | MUAAY ततेव काय्य TAINS | मागेपालोतलते नेत्थं यान्ति गावो गजा SAU | राजानो TAPAS ब्राह्मणः शूद्रजातयः | मागपालीं समुलङ्खय नौ सज: स्य: (१) सुखान्विताः ॥ कत्वं तत्स्मेवेद TAY टेत्यपतेर्बसलेः। पूजां AAT कृपः साक्ताद्रमो मर्डलके व्रते | बलिमालिख्य देवेन्द्र वणकः पचर ङ्को; aM eee (६) THES: खात्‌ EA सद्‌ा दूति पुखकान्तरे पाठः| त्रत षण्ड २१अध्ाघः] देमाद्धिः। २५० © Oe रि $ सव्वाभरणसपूण विन्ध्यावल्या मह्ासिनं॥ HUW जयोद्धोम उरुदानवसंवतं | संपूणंहृष्टवद्नं किरौटोत्‌करङुण्डलं ॥ » \ 9 * दिभुज दत्यराजान कारयित्वा aq: स्यं । ~ + Cn ग्टहमध्य च शालायां विशालायान्त गऽच॑येत्‌ ॥ भ््राहमाटजनेः AT सन्तुष्टो वन्धुभिस्ततः। = 3 > > ~ > कमलः कुसुमः पुष्प: कद्भारे THM Ue: क, £\ \ गन्धपुष्पा्नेवेदयेर चते गडप्‌ पकः । + 6 N मद्यमांससुरालेद्धयदौपवन्यपहारकः ॥ मन्वेणानेन राजेन्द्र समन्तो सपुरोहितः वलिराज नमस्तभ्य विरोचनसुत प्रभो ॥ भविष्यन्द्र सुराराते पजेयं प्रतिग्द्यतां | एव पजां ठृपः कला रात्रौ जागरणं ततः | कारयेत्‌ प्रेत्तणेयादिनटद्त्यकम्रानकेः | + ™~ MAA ग्टहस्यान्तः शय्यायां WHAWE: ॥ संस्थाप्य बलिराजानं we: पुष्ये पजयेत्‌ । ^ बलिसुदिश्य can दानानि कुरुनन्दन | यानि तान्यक्तयान्याइर्मयेव संप्रदर्भितं। यदस्यां दौयते दानं wet वा यदिवा बहु । तदन्तं uaa’ विष्णोःप्रीतिकरं परं , विष्णुना वसुधा लब्धा तुष्टेन बलये पुनः ॥ उपकारकर दन्तमसुराणां AIA | ततः wala राजेन्द्र प्रत्ता कौमुदी शभा। 245 Saltz: | [नतखण्ड aca: ! aaiugafagial सव्वंविन्नविनाशनौ। TAMAR ara धनपुष्िसुखावदहा + कु शब्देन AST जेया सुददहषं ततोदणं । धातुज्ञेनिंगमन्नेख तेनेषा कसुदो खता ४ कौ मुदरन्ति जना यस्मात्रानाभावेः परस्परं | ETAT: सुखाया स्तास्तेनषा कौसुरौ wat | कुमुदानि वल्य स्माहौयतेऽस्मे gfafec अयाघ्यैः पाथिवेः पाथं तनेषा कौसुरौं Bar i एवभेक महो रां वष aa विशाम्पते | EU दानवराजस्य Arenas Was ।॥ यः करोति aa ay ae व्याधिभय् a: । कुत इति तत्र भयं नास्ति ख्त्यक्त भय ॥ afud Wanita सस्यसम्परदसुत्तमं | AIHA जनः Va: सर्व्वोपद्रववजिंतः॥ कौमुटौकरणाद्राजन्‌ भवतोह AAS 1 सो यादृशेन भावेन fasaal युधिष्ठिर ii षटेन्यादिरूपेण तस्य aa प्रयाति fe: afear रोदिति(र) aw ष्टो वष प्रहृष्यति ॥ भुक्तो भोक्ता Wied खस्यःसखस्थो भविष्यति | तस्मात्‌ प्रहृष्टेस्तष्टेश् कर्तव्या RAST नरैः ॥ (१) नप दति पुरूकान्तरे gre: | (२) ददितमिति पुस्तकान्तरे ue: | ATSW २१ अध्यायः |] SAE | २५९ वैष्णवी दानवी aa तिथिः(:) FH युधिषिरः । दौपोत्देन जनित सव्येजनप्रमोदे कुव्वेन्तिये सुमनसो बलिराजपजां । दानोपभोगसुखहदधिशताक्लानां राजन्‌ प्रयान्ति सकलं Wasa इषं' ॥ इति भविष्योत्तरोक्तः कीमुरीमहोत्सवः। AY भरूतमहोत्सवः। स्कन्दपुराणात्‌ | रतावसानं संप्राप्य निष्कान्ते पाव्वैतौपतौ । उत्याय शयनादेवो शौचंचक्रेतिभमौचद्‌ा। ततः Warat पार्वत्यां वारिधारासरःप्रभा | श्मभवदिति शेषः। सरी fara | चिन्ता समभवत्तस्या न yal दुहितापि ar | तस्याञचिन्तयमानाया हदयाम्बसमुद्धवा । TH RAMI कन्या मरमयपङ्िता | नोलवस्त्राभिबसना रक्तवस्त्रावगुख्डिता | गिरिकन्यान्तु at कन्यां ह दयाम्बससुद्धवां | उवास संपरित्यज्य ahr चाघ्राय पार्वती | भ्रू मिषड्गङःलिप्ाङ् सम्भूतासि यदङ्गने | (१) निधिरिति पुलकान्तरे पाठः, देमाद्धिः। [व्रतखण्ड'२१अध्याय;। तस्म्राद्दकसेवेति(१) भविष्यति महोत्सवः ॥ यस्ित्रिन्द्रमहौलोके दिनेषातमुपेष्यति, तस्मिन्‌ दिने तव जना आराध्यन्तं महोत्सवं ॥ यः कामो भेरवस्यासौत्‌ भगवत्या भवस्य च। स HPA भूत्वा कन्य we कर faa: । ततोऽम्बिका भगवतो wat भगवतः प्रिया | एमांसमव्रवोत्‌ awl’ किच्च werfe भे सुतां ॥ ततो SIAC भैरवो मैरवाक्लतिः। उमां नौचेस्ततः प्राह वि्युन्मत्तद्वाम्बदः॥ सोभवद्धेरवः कामो भगवत्या भवस्य च। तत्स्भूताविमौ चेषा भायां मम भविष्यति ॥ दम्पती विक्तताङ्गो तो कुषेशणाच्छाद्नो feat । Stat चक्र सोमभूषः काविमाविति शङ्धितः ॥ तावुभावपि भवो मवपाल खन्द्र चिदितजटस्तिपुरारिः । प्राह पादपतित: खसमोपे को युवां uaa किच्च करोमि॥ अम्बिका च वद्तिस्म गिरौशं सूवयकोटितडिद्‌ ग्निसवणे। SAT MATA वदमाना लोलयात्र भवतो चलमाना॥ (९) उत्‌कटसंवेति पुखठकान्तरे पाठः | AAQW २१ अध्यावः || देमाद्रिः । २६१ योऽभवत्तव HRS WHat भैरवो भयकरस्तिदशान, एष ते किल पुमान्‌ Wadia: स्तोयमेव ममयो मदनामिनिः ॥ सोमलत्तस्ततः प्रोक्तः उमया सोमभावनः | गो पदैषधरो SA दम्पतौव्यत्रवौदचः। यदेव हि ल्या ध्याने ध्याते Sl ATF | तदेव मत्‌प्रभाषेन भरवो BI मेऽभवत्‌ ॥ नाह त्या विनादेविले वापि न मया विन! श्रत एष मया तेऽद्य दत्तो लस्बोदरेण च ॥ उत्सवस्तेषु भविता त्या प्रोक्तो aa faa । पुव्वांगमोऽस्य भविता दत्तकामं महोत्सवं ॥ HAMAR लोकः We सुरवराचिते | सज्जन्ते तेन चान्योन्यं नरा नाश पाव्वेति tt fae y हदयं स्तो way Fea wat | vufagifed wa तदिद्‌ जगदङ्गने ॥ भगलिङ्गसम्‌तक्रोशं RAW: सामरा ATT: | अन्योन्यं पातपिष्यन्ति प्रक्रोशन्तः परस्पर ॥ श्रारम्भेवावसाने च भविता मैरबोत्छवः। उदसेविकय!(१) रेष कालच भवितोतवः ॥ यत्पर नगर ग्रामं aaa प्रवेच्यति | उन्मत्तमिव तत्‌ va Blatt भविष्यति ॥ (hr ge A TT गमिं —, Hn meet भि eEeeEE —" gp el reg ln ile, 1 an (१) saad विषयान्वितिप्राठान्तर | ( ४६) ३६२ SATs: | (aaa Teg: | उन्प् त्वद्‌नुन्मत्तं चातुवण' गिरे; सुते | $ # ५ € भविष्यति पर सत्त भरवागमदषितम्‌।\ यथा नियुक्ताः पिचघ विशन्ते देवता दिजान्‌ + >, 2, = ~ एवं भरवि मदृहात्मदाङ्गरवां विगते नरान्‌ ॥ ¢ म तती राससमारूटा; शक्षत्‌कदट मलेपनाः | HTH AIA: सतवेषटनभूषगाः ॥ तत्‌ फलावदकुचकाः प्रकटोत्‌कटभजिखखनाः। भस्रभरूषितसव्वाङ्गा विस्मृत मलपङ्धिलाः | > £ > = तालतालवादययमानः क्रूरावदवचोन्दितः | अरवदमसवद्ध' पृव्वोपरानन्वितं वच इत्यः । ~ ~ As र सूच्यमाने(१) ATE भैरवो ULI सदह ॥ प्रवेच्छति पुरं Fa उत्सवं जनयन्रणणं | क, म, क oO. * प्रविष्टे भरे भोर gasafad एर) जनस्य TIA घोरो भविष्यति agiaa: : रोचकः प्रियः । घोरः उत्कटः | येषां AMAA जरयाचेव जज्नराः | तेऽपि वत्सकवत्सवं करिष्यन्तुव्सवं नराः ॥ ATARTANSTIT: SF मागुर््रूषिताः > ~ > ^ o क पोतरनेकव्वस्वख् वासोभिः af ज्य्टस्य शक्तपक्ादो Alaatra युधिहिर । तज्तिपुष्ककमाख्यातं सत्भोयथ्यप्रदायकं(१) ॥ तथा भाद्रषदस्यादौ ALATA WW नन्दन । वरदानन देवानामषोणां सेवनेन ar | तौयसरानेन वा टेव तपोदहोमव्रतेन वा AW उवाच | चत्वारि राजन्‌ भद्राणि ससुपोष्याणि यततः । तत्‌ प्रभावाद्बेन्यून राजन्‌ जातिस्मरो AT | शएभोदयः पुरा वेश्यो वभूव यसुना तटे | a eS ee eee (१) रूपोदा्य्रगुणान्वित भिति पुष्ठकान्तर ure: | २८२ देमाद्रिः) [avae aca | तेन AAITAlW Ba: कालक्रमादसो। BAIS सुतो जातः खण्डीवोति विश्ुतः। व्रतप्रभावाज्नातिनज्ञः सच चौरेनिपातितः। नारदस्य प्रभावेन पुनस्ज्जोविताऽप्यसौ | TAT YIU सकलं TATA: | युधिषिर Sara | AAI कथं Ga: ausiaifa at कथं। दस्यभिश्च aa atal waa जोवितः wa ॥ RU चवाच | waa नामराजासीत्‌ कुशावत्यां नराधिप। तस्य मिते च रटरेव्षो सदा नारदपव्वतौ। एकदा सच््नरयग्यह TAA तौ यदृच्छया | स्वागतावन्नदानादैरुपचारंर पूजयत्‌ | तेषामयोपविष्टानां पू ववहत्तान्तभाषिणां सच्जञयस्य सुता प्राप्ता वरुणो पितुरन्तिकं॥ पव्वेतः प्राह राजानं कन्येयं acafaat । गुष्रगुल्का संहतो सःपौनश्रोरिपयोधरा tt पद्चपच णना पद्मकिच्ल्कसन्निभा । आकुचितख्दुन्निग्धेः केशेरतितते नैः ॥ सविलासागजगता सुनाशा कौशलसरा। अहो रूपमहो धव्थमहो लावश्य सुत्तमं ॥ तिलपुष्यस्फुटा नासा रूपं सरं परिलच्यते । ब्रतख ग्ड २१अध्यायः | Satz: २-५ कस्येयं ATH भद्रा ममातिददयङ्गमा॥ एवं gare तं विप्रं विख्योत्‌फुल्ललो चनं | राजा प्राह ततो aga दुहिता मम पव्वत॥ AMA वचो घोमानत्रारदः क्षुभितेन्द्रियः) राजननिबद्ुकामोऽदहं कन्येयं रौयतां सम | ईस्सितन्ते प्रदास्यामि वरमत्यन्तदुलभं | TWagqal नारदेन Wala सच्छयस्तदा | छ ताच्ञलिख्वाचेद्‌ प्रहर्पोत्‌फूल्ललोचनः | पतो मे दोयतां सिप्रमत्तोणकनकाकरः | यस्य aa पुरोषंवा aay ्तिपति fact | जातरूपं हि तत्सव्व gan’ भवतु स्थिर | एवमस्त्िति त राजा नारद प्रत्यभाषत, qausifad ga ददामि तव gaat एवमुक्ता Val Hat सालड्मरां सुमध्यमा | विवाद्धयामास तदानारदटो हषटमानसः | तत्तस्य चेष्टितं दृष्टा पव्वेतः क्रोधम्‌ च्छित | उवाच नारद्‌ं रोषादौपात्तस्फरिताधरः। मयेयं प्राधिंता पूवव ` त्रया ar स्यादिवाहिता। तस्मान्मया समं सखगानरगन्तासि कदाचन्‌ ॥ दत्तस्त्वयास्य यः पुतो वरदानेन नारद्‌ | सोऽपि चौरेरुपदहतः पञ्चत्रसुपयास्यति | एवसुक्ः प्रव तेन नारदः प्राह SAAT | न लं घस विजानासि किचिन्मूढोसि gard | ( sé ) ८६ माद्रः [व्रतखग्ड'२१अध्यायः। सामान्या सव्वभूतानां कन्या भवति aa | न तस्या वरये दोष पश्यन्तो TEAAT: ॥ नसेवितातया ay aa मां aaa रुषा । पाणिग्रहरणमन्ताणं निष्ठा स्यात्‌ प्रधमे पदे(१) ॥ यस्माटरेतद विज्ञाय WTS सामनागस। तस्ाच्चमप्यदहो BA न मन्तासि मया विना सष्लयस्य रुतःगशापाद्यदि पश्चलमेष्यति! आनविष्य तथाप्येनं यमलोकान्र संशयः ॥ एवं गा तदान्योऽन्यं Saat तावभौ ga: | + पूजितो aaa नाघ जग्मतुः aria प्रति WAS सप्तमे मासजातः Tal JIA सः | सणछौोवौति (र) नामास्य यथाधमकरोत्मिता § जातिस्मरः स्मरवपः सुवात्मत्तिकारणं। सव्व भूतस्य तजृन्नोऽभृदद्रव्रतफलादिह | तत्र श्ेमपुरोषादि यत्‌ किचित्‌ चिपते क्षितौ ! जायते कनकं सव्व ` प्रसादान्नारदख्य च॥ € तेनासौ यजते राजा विधिवहूरिदचिणेः । राजसूयादिभियंज्ञेविं विधेरधि पूजितः ॥ वभार श्ल्यानितरान्‌ पुपोष खजनातिघौन्‌ | चकार दृेबतागारान्‌ सरारामादिवापिकाः। जातखेदञ्च तं ya «wa रत्तिभि्तं। (१) aya पर्‌ इति पुखूकान्नरे पाठः| (२) षमाद्धौवोति पुखठकामरे पाठः| ब्रतखर्ड'२१ अध्यायः ।] Sats: । ace राशयः कनकानाच्च वभूवुभूपतेः सुतात्‌ | Ware दस्यवः केचित्‌ War aq कनकाकर ॥ धनलोभेन तं जघ्न दाच्तिणात्या महोदताः। तस्मिन्‌ विनष्टे तत्रष्टं वरदानससुद्धबं ॥ कनकं नश्यते TA जमामान्योऽन्यतः त्यं | घातितं दस्यभिः ya wat राजा सुदुःखितः। विललापाकुलमतिः सम्मोहन पपात च। विलपन्तंतु a Fel नारदः प्राह सत्तर ॥ राजन्‌ विषाद माकाषोः खणिमान्भारतों कथां | SUA स समाचस्यो चरितानि महौजसां ॥ विनष्टानां नरेन्द्राण यतौनां दद्दिणवतां | खुत्वा जा नरेन्द्राणां चरितानि asraat | विनषटगोकः ससा प्रकतिस्ो वभूव सः। नारदोऽपि नरेन्द्रस्य खत Ya यमालयात्‌ ॥ श्रानयामास तरसा यथारूपं यथात | EI El स पुतन्त परितुष्टेन चेतसा ॥ त्रोड्तो विस्मितखेव छतान्नलिरथात्रवीत्‌ | किमाश्चय्य प्रसन्नेन भवता AA ATT | दत्तः VARMA भूतो दस्यभिनिंहतो यथा । षरमासान्ते पुनरसौ जौवितं सव्वभेव तत्‌ ॥ सस्मार TATU जातिस्मरणकाररं, aq व्रतखष्ठमिदं किमन्यत्‌ कथयामि ai तथा भाद्रपदस्यादौ तौन्‌मासान्‌ TBA CT | Roa Salis: | [व्रतखग्ड २१अध्यायथः | तचिपुष्करमाख्यात बहविद्याप्रदायकं। ¢ + तथा मागशिरस्यादौ तोन्‌ मासां नराधिप ॐ 0 ५ तदिष्णुपदमित्यकं सव्वं घन्धप्रदायकं। सुनिभिः कथितान्येवं भद्राखेतानि भारत | £, ॐ € “~, A कत्तेव्यानि नरः स्तोभितव्राद्यणानुमतेनवें॥ युधिषिर Sara ००५ च रि = = ५ 0 विस्तरेरौवमे ब्रूहि देवदेव जनाद्न। भद्राणां नियमाघानं प्रधानं मधघुसूद्‌न(१) ॥ AAW उवाच | ay राजन्नवहितो भद्रां विस्तर as | कथयिष्ये न कथितं यन्मया कस्यचित्‌ gt + च ह Wal मागयिरस्यादो चतखस्तिथयो वराः । दितोया च aalar च चतुथो पञ्चमी तथा ॥ एकभक्ताशनस्ि्ेत्‌ एतिपददि जितेन्द्रियः | प्रभाते तु दितौयायां wat यत्‌ करणौयकं।॥ प्रहरे वे समधिक गते सानं समाचरेत्‌ | + ५ ~~ © Saad तु ag मन्तेरभितिचकच्तण! ॥ अदन्त प्रवदिष्यामि विप्राणां विधिस॒त्तमं | एतन्न एष्पविलेपनधपरध्य दद्याहिनूषर्ः | प्रवरेभूरिनेवेदीरीपदानेख भक्तितः॥ पूजयित्वा विधानेन fay विष्डेश्वर व्रती | ततो दिनावसाने तु सुत्तं विमले सतो । VY USAMA waar तद्धावभावितः। ~ € ~ FF स चार्यो arent देव ऋटग्मिम्‌ डिस्तथेतरः ॥ तत्त सम्यक्‌ प्रवच्यामि युधिषिर निवोध सै), चन्दनागुरकप रदधिदूष्वचतादिभिः ॥ य 2 2 Ao a = न ¦ ससुद्रजंश्ान्यव a A As rN २ za en ~ A पष्यः फलं ख Hale: खजं रनारिकेलकः ॥ वस्त्राच्छछादनमोवाजि भूमिरेमसमन्वितेः | क, Q सत्व युक्तस्य कछत्खस्य विधिरेष naifaar _ ॐ इतरस्य यथा WHA फलपुष्पा्ततोदकः। लव णाज्यगुड स्ते लपयःकुम्भतिसेःसद्ट ॥ शशिन्‌ चन्द्र AUIS नामानि Hav AT: | दितोयादिषु चन्द्रस्य agiaioan ` निवेदयेत्‌ y अच्च यित्वा निश्रायान्तु शरिष्ठदया विवद्ेयेत्‌ | त्रत खण्डं २१ अध्यायः} देमाद्धिः। २९१ nae वदैयेदष्य ' गशिष्ठद्या नृपोत्तम ॥ एवमघ्य: प्रदातव्य; WY मन्तविरधिक्रञं | नवो नवोऽसि मासान्ते जायमानः पुनः एनः ॥ चिरग्निसमवेतान्‌ वे देवानाप्यायक्ते हवि; | गगनाङ्गरसन्दोप दुग्धाञिमघनोद्धव ॥ भाभासितदिगाभोगखमानुज AMIS Ci | zara ` दिजराजाय afenra निवेदयेत्‌ ॥ निर्वत्याध्यं' MATA तती wala वाग्यतः | भ्ूमिन्तु भाजनं कत्वा पद्यपचसमासितं ॥ पालाभेमधुपत्रेवी(१) gna वा भिलातक्ते(र) | समालभ्य धरां tal मन्तेणएनेन मन्तवित्‌ | AUS भोकुकामोऽद देवि सव्वरसोद्वे , मदनुग्रहाय सुखादु कुव्वन्तो मम्‌ तोपमं ॥ एवं Gal च भुक्ता च गाकपाकगुणोत्तर | आचम्य खन्यघालभ्य Tar सोमं wT; fa | भोक्तव्यन्तु दितौयायां waqal मोरसोत्तरं.२) | Palas सगुड़ा रजन्‌ पञ्चम्यां aye भुवि॥ भोज्याः WAY WEY सदा श्यामाकतग्डलाः । प्रसाधितष्टत गव्यं फलं शाकमयान्वितं ॥ प्रातः Gla ततः Gal aaa पिदेवः "¦ | (१) घम्परपदरेव्वः इति पुखलकान्तरे प्राठः, (2) faa दति पाठान्तर, (९) ्ष्तारद्छवण ale tfa Gaara प्राठः | RE R eaife: | [त्रतखण्ड २१अब्यायः। भो जयेद्राद्मणान्‌ भक्तया sat दानं विसजयेत्‌ । MAI AT, UT TAS AT काम्यया | एवं vey सवषु चरिमासेषु यतत्रतः(१) ॥ करोलयेषं नरो भक्त्या वषेभेकममव्सरो | तस्य aifaaaaa fae’ सोमः प्रसौदति। एतत्करोति या कन्धा भव्य प्राप्रोति सा ata | दुभेगा सुभगा Veal भवत्यदिघवासदा॥ UMA लभतेराज्यं धनार्थं धनमाग्रुयात्‌ | प॒त्राधीं प्राप्रयात्‌ पुचानित्यादह भगवान्‌ Ta: | योषित्‌कुलाकुलविवादहमनोरमाणि शय्यान्नपान(र) शयनाशनगोभितानि। भद्राखवाप्य धनपतकलत्जातोः जातिस्मरो भवति भारतभद्रकत्ती ॥ दति भविष्योत्तरोक्तं Aza aa | सुमन्तुस्वाच। ay कौरव vata तिथिरुह्ाखितानितु) देव पाप्डानि; स्यात्‌ कलानन्तं फलं लभेत्‌ ॥ alana: प्रतिपदि। पुष्पाहारो हितोयाया^२)। (१) एवंभाद्रविमारुष्‌ नियतात्मा घतत्रत इति पुसलकान्तर Wis: | (२) सखात्रपान दृति पुष्ठकानर wis: | (2) पुष्यप्राण्नो दितौयायामिति gists | ब्रत खर्डं rama |] PATZ: | २०३ लवणवज्नित' ठतीवायां । तिलात्रा्ौ(१) चतुष्यं | aera: पञ्चम्यां | RAAT Tet) णाकाशनः सप्तम्यां | विल्लादहारो- भ्यां पिष्टाशनो aaa अनगिनिपक्ष(हारो दशम्यां एक दश्यासुपवासः | चघरताशना दादश्यां । पायसादहारस्वयोटरश्यां। यवाच्राहारथरतुदंश्यां। WAST! कुशोद्कप्राशनः पौण मास्यं एव प्रागनविधिः॥ उक्ानि प्राणनान्येवं विधिपूववेसुर्‌! हतं | त्तोरप्रतिपदाथान्तु स सर्व्वासु विधौयते ॥ स क्तोरप्रतिपदोक्तो fafa: कथ्यते ॥ aa व्रतदिनात्‌ qa- fea तिकालखानसुपवासश्च पविचः aaaa शिरसा सइ गायचौजपञ्च तत्‌पून्वेदिने एकभक्तं विधायोपवाससङ्कल्यः aafeas दिजभ्यो efauerafafa एष ga: प्रागनविधि- स्तिथोनां। एवमनेन विधिना पत्तमेकं यी वत्तयति अश्व मेधफलं दशगुणं प्राप्रोति स्वग मन्वन्तरं यावत्‌ प्रतिवसति उपगोयमानाप्रोगन्धवे; सह वासः | मासचतु्ये तु सोऽश्वभेव राजसूयानां शतगुण फलमाप्राति। खगं उपगोयमाना- प्सरोभिर्ग न्ध तुर्य गानां सप्ततिं यावत्‌ प्रवसति। waa: संवत्सरः। य एवं नियमाद्राजत्राश्वयुजनवम्यां वेशाखटती- यायां aifa a पौरमास्यांवा fafaaarfa ग्लाति, ( १) तिदस्ल'योति पुस्तकान्तर पाठः ( ५० ) ३९४ Safe: | [व्रतखण्ड'२१अभ्यायः। ब्रह्मचारो LIAN नारौनरोवा शचि; प्रयतमानसः पुष्यः द॒न्तविभुसालोक्य व्रजति ॥ पुष्पदन्त विसु; Gar: | इति भविष्यत्पुराणोक्तं' मद्ाफलब्रत' | onB)uo Aw क न कम 1 ज्य पञ्चतपाः साय हेमघनुप्रदो feat waa WTR रुद्रत्रतमिद्‌ wd | अष्टमो चतुद्‌ श्याविति ai चलारि दिनानि पच्चाग्नि- साधनं तच्चतुधं दिने सायं सुवणंघेनुं दद्य।त्‌ | दति पद्मपुराणोक्तं aad | 000 इ पञ्चम्यौ हि are = a प्रतिपदौ नरः) सोपवासः सुगन्धाच्यः Wala प्रियया सह ॥ खगनिश्वलचिन्तस्त रतिप्रोतिविवजितः | ख गनि श्चलदित्तः सय्यध्यानपरः | समश्च स्मतिशोलश तस्य प्य फल Ty दिव्यं वसदस q दिव्यं वषशतं तधा ॥ ततस्त भावय्येनं(१) महादेवं न सयः | इति भविष्यत्पुराणोक्तं सम्भोगव्रतं । (१) तद्रस्तक्त वत्येन इति पुखकान्तरे पाठः। aaawy 2emgr: 1] safe: ¦ २९५ 0 $ चे मौ पौयमास्याममावास्यां चतुदश्या्टमोषु च। नल मब्दन्तु Fala ह विय्यत्रह्म चारिणौ | उमामहेशप्रतिमां Sal कला सुशोभनं | राजतीं बापि कर्षा स्नापयित्वा टतादिभिः॥ >। गन्धपुष्प TAT वस्त युग्मं च शोभनः । ज्ये = = भच्यभोज्यरगेषेश्च वितानध्वजचामरः ॥ भोजयेच्छिवभक्तांखच रौनानाथान्‌ प्रतपंयेत्‌। श्त्या च efaut द दाच्छिवमन्ते; मापयेत्‌ ॥ तास्रकस्यादिपात्र वा सितवस््रावगुरिटतं। HAT वायतनं मध्ये "प्रतिमान्तपकल्पयेत्‌ ॥ पारमे वायतनं उपकल्ययेत्‌ स्थापयेत्‌ | गिरस्याघधाय aera शोभित पुष्पमालया ॥ + = > ध्वज शं ख्यादिविभवः शिवस्यायतनं नयेत्‌ । लिङ्गमृत्तमं दशस्य त्रतस्यान्ते निवेदयेत्‌ । तरेधा स्थापयेत्पात्रसुपगोभासमन्वितं | fag प्रदत्तिणोक्षत्य प्रणिपत्य चमापयेत्‌ ॥ “A = $ e ~ समाप्यतद्नतं पुण्य WY यच्च फलं लभेत्‌ | > AV © > © = दादशदिव्यसकाशमहायानमनोहरः॥ ~ AW! ~, A Oe ~ YACHM लोक WE: WIE प्रमोदते) कल्पकोटिसदस्राणि कल्पकोटिशतानि a | तदन्ते स महाभागो विष्णुलोके asad | ~, 6 इति शिवधर्मक्तमु मामदेश्वरव्रतं | 000(@}000 ३८६ Saiz: | [ वतखण्ड २१अध्यायः। अट्या qemt नियतव्रह्मचारिणो। aqua न भुक्त महौभोगजिगोषया | वर्षान्ते प्रतिमां कत्वा पववदिधिमाचरेत्‌ ॥ स्रा नार््यस्तद्रतं प्राप्य yaaa GUA लभेत्‌ | अत्राप्युमामहेगश्तर प्रतिमा wa a । पृववदिति qaadia वदिव्यथेः | जाम्ब नद्‌ मयने ATRIA CARA: ॥ गल्ला थिवपुरन्दिव्यं अशेषं भोगमाप्रयात्‌। उमामहेण्वर नाम त्रतमौश्वरभाषितं। ASA सव्वं नारौणां नरानाच् विग्रैषतः। तस्मात्‌ सर्वव WIAA उमामरहेश्वरतव्रत ॥ RAG ALATA, सुखमक्तयमाप्र यात्‌ । उमादेवोपरियार्थन्तु नष्टेन परमाथत: ॥ इति शिवधम्मींत्तरोक्तमपरमुमामदश्वरत्रतं। विल्बहठत्तं HA दाद्शाहमभोजन | यः GAS भ णात्‌ पापान्क्ता भवति नारद्‌ | शिवो देवता | दति सौरपुराणोक्त पापमोचनत्रतं। anew 2 yaa |] | Saree: | २८७ सूतउवाच | पौणंमास्याममावास्यां वषमेकमतन्द्रिता t उप्रवासरता नारो नरो वा दिजसत्तमा;॥ वरपरीन्तः सवेगन्धाव्यां प्रतिमाच्च निवैदयेत्‌ | साभवान्यास्त्‌ सायोज्य सारूप्य वाघ सव्रता | लभते नात्र सन्देहः सन्यं सत्य सुनोरा; | दूति लिङ्गपुराणोक्तं भवानोत्रतं । 000 SUE तु मासस्य चतुष्ट तु देतथा। अमावस्यापौणमास्यौो सप्तमोदादभोदयं | सवत्सरमभुच्ानः waaay जितेन्द्रियः | ब्रह्मचय्य we यच्च यत्फलं सचयःजिनः(१) | रतु गाभिफल(२) यच्च तद्‌वाप्रावल्यभोजनात्‌ | uy तिधिखाभिनो देवताः | इति aaa तिथियुगल व्रतपच्चेकं | ०००८००० --* चतुदष्यां तथाष्टम्यां पत्तयो Waray: | योऽब्दमेकं a yaa गिवाच्ेनरतः शिः ॥ यत्‌एखमत्तयं प्रोक्त सततं सचयाजिनां | तत्‌ पुण्य सकल तस्यां यिवनलोकञच्च गच्छति ॥ ~ , > इति भविष्यत्पुराणोक्त' श वोपवा मत्रतं | (a) सवयाजिनामिति पुलकान्नर चाड, 11 पुलकान्तर पाठः, (२९) अटुगा.मफललमिति पुकारे पाठ; | ३९८ earfe: | [नतखण्डंर१अध्यायः। कष्णा्टम्यां तु नक्तेन कत्वा AW ae ws | इह भोगानवाप्रोति( ) aca शिवमच्छति ॥ इति ओओोभविष्यत्पुराणोक्त शिबनक्तब्रतं | G00 add Said | अष्टम्याञ्च aqeat पर्नयोरुभयोरपि | वषमेकं ततो Ya नक्त यः पूजयेच्छवं | सव्वयन्नफलं प्राप्य स याति परमाङ्ति'। दति लिङ्गपुराणोक्तं' महात्रतं(र)। COO पौषमासे तु GAA पत्तयोरुभयोः Ba | चतुहश्यामघाष्टम्यां पौरंमास्यामघापिवा॥ १. faa’ faa fafaaq ततः काम्यं समाचरेत्‌ | विशेषपूजा aaa AUN शदचेतसा i नेवेदय' यावकप्रस्यं ख र्डं त्तौ र!ज्यसं स्मतं । रुद्रसं स्यांस्त॒ वे विप्रान्‌ भोजयेचव दत्तयेत्‌ ॥ वितस्तिमात्रं प्रतिं यावप्षटिन निख्तां(३)। VUF ACE लोक तमभूषान्त कारयेत्‌ | शिवायत्‌ प्रदातव्या कपिला गुरवे aa: | सववाहनसमायुक्ता व्रतपुणखमतः BY ॥ मनर "क" "यणीया (१) दद्ध लोकानवाग्नातोति पुस्तकान्तर पाठः | (२) wet व्रतमिति पुषूछकान्तर पाठः, (३) यवापिष्ठन निश्मितामिति पुखूकान्तरे पाठः! तितख्डं २१अध्यायः |] SA | १९९ सूब्धकोटिप्रतीकागेर्वििमानेः सव्वकामिकेः | सुद्रघन्दसमाकौरण ASTURIAS: | हषभस्पन्दनेयैक्तो नानागोतरवान्वितः | निःसप्कुलसंयुक्तो aaa यत WET: | यावत्तद्रौमसंख्यानं AT प्रसते कुलेषु Ft तावद्यगसहस्राणि qa महोयते | समोप्य तु समासाय सायोज्यं यातिवा ततः) अनेन विधिमागण oy पिष्टमयं fad | समप्य च विधानेन चक्रवत्तिपद लभेत्‌ ॥ फाल्गुन तु तथा चक्र निवेदय तत्प्दं लभेत्‌ | aa शिवं पिष्टमयं fata च शिवाग्रतः ॥ स सुदति ब्रह्महत्यां शितलोकमवाप्र्‌ यात्‌ | ame मासि दण्डाग्रं शिवस्याग्र निवेदयेत्‌ । हस्ता ई (१)पिष्टजं काथ' पूजान्ते तु निवेदयेत्‌ । सुच्यते सर्वपापेभ्यो रुद्रलोकं महौयते। ज्येष्ठे पिष्ट मयं ug शिवाय विनिदयेत्‌ | मुच्यते तु कतघ्नरलाद्द्रलोके तु गच्छति ॥ आषाढ़ पिषटजं पात्रं शिवाय विनिवेदयेत्‌ ! मुच्यते दुष्कतेः सर्वेरिह जन्मनि afea: ॥ ध्वजं पिष्टमय यस्त॒ शिवस्याग्र निवेदयेत्‌ । mat तु विधानेन सोऽक्षयं मोत्तमाप्रयात्‌(२)। # णि प श (२) दस्ताग्रभिति पुस्तकान्तर ais: | (२) सचेम मीोचमान्नयादिति पुस्तकान्तरे पाठः| देमाद्रिः। [वतखर्ड'२१अध्यायः | मासे भाद्रपदे यस्त॒ गदां पिषटमयीं ददेत्‌ । farina’ तु aig शिवलोके महीयते ॥ मासि चाश्व युजं शूलं द्वा दईपिष्ट सम्भवं | शिवाय पुरतो देवं agai व्यपोहति । कात्तिके तु wean freee निवेदयेत्‌ ॥ सपजन्मकत पापं दहत्यम्निरिवेन्धन | मासे वे मागेशोषं तु कमलं पिष्टसम्भवं ॥ ग्रिवाय विधिना देय (१) सर्वश्वथ्य मवा्नयात्‌ | स्व॑षाच्ेव aay व्रतानां कौत्तितं मया ॥ निव्यपूजान्तु fae काम्यपूजान्तु कारयेत्‌ | मासिमासि गुरोः पूजा कत्तव्यन्तु aaa | महा पूजा(२) atid कर्तव्या तु विधानतः; । गुरवो दत्तितव्यास्त्‌ हे मवस्वान्रवाहनेः। तत फलमियात्तूणे यथोक्त कत्तिकासु च) वित्तशाठयराहासेन इष्टापूर्त वियुज्यते ॥ दूति कालोत्तरों क्त शिवव्रतं । (१) एुरतीदयमिति परष्सेकान्तर प्राठः | (२) मदोपूजादति पुस्तकान्तरे पाठः। वरतखच्छः२१अष्यायः।] देमाद्धिः) Bot अथ शक्रध्वजोच्छायविधि;। टेवोपराण। Wa उवाच | ~, + ‘\ कैन at fafeal AN मम वगशक्रमागतः। wuafefaasy तदिधिं कथय प्रभो j ब्रह्मो वाच | गङ्गायाः सिकतासंख्या क्रियते सुरसत्तम | ~~ ५ न wazaany देवराज जिगोषतः ॥ विष्णुना घातिताः केचित्‌ केचिद्धेवैन गम्भना | गुहेन निहताः केचित्‌ मया केचिज्निर्घांसिताः ॥ देवौ भिनव्वेदहवश्वान्ये न तथापि ्यङ्गता' | ~ > न~ सुबलोनाम TUR हं सकतुम्महावलः ॥ मम वंशससुत्पत्रोदण्डघातश वासव, ~ ५ ५५ , ५ तेन पृव्वच्जिता Sar: भानोखन्वन्तरे(१) विभो(२)।॥ समागताः समस्तास्त TS शक्रेण वासव | यथान WAT: समरेदेत्यान्‌ यो, पितामह ॥ WAU परिभूताञ्च शरणं ताङ्गता वयं | तदाह चिन्तयन्‌(३) ua विष्णुरत्तां दिवौकसां । wee ( १ ) भोत्येमन्वन्तरं विभोड्ति पुकारे पाठः| (२) मात्य मन्वन्तर विभी सुरदारुकस्य तथा(२) तथबोडग्बरस्य च । चन्दनस्याथ वा राम पडमकस्याघ वापदि॥ ~«, ¢ . # at अलाभे waraui afe कुर्वीत awat(z) t सुवणं वड़ां WHATS सम्यक्‌ प्रवेशयेत्‌ ॥ प्रोष्ठपदे सितेपक्ते श्रषटटम्यां रिपुस्ट्‌न। ™ 8 दुमप्रमाणा विज्ञया शक्रयष्टिदिजोत्तम॥ "ष चतुभिरङ्ग लेहीना साग्रं भवति शब्दा | अष्टाभिश्च तथा सूले च्छित्वा तोये च सत्तिपेत्‌ ॥ MANTA नगर सम्यगेव प्रवेशयेत्‌ | तीयादुत्य(४) ant पताकाध्वजमालि च ॥ सिक्तराजपथ कुर्या त्त थालङ्कत वालकं | © Qe = र नटनत्तक VEIT AAT पूजितद्‌ वतं ॥ सप्‌जितग्हराम तथा चू जितवाद्धय | सोरेरनुगतीराजा Fan: फलपाणिभिः । [नी शि कि 9 hg Mg Eh ng a श क चात) प eae ( १) नयनेः gaa रथ fa पुन्तकान्तरे पाट | (२) away तथातिनति पन्तकान्रं पाठः| (३) वैव्णबोभिति पुस्तकान्तरे ure | (४) यस्याः प्रवेश इति पुस्तकान्तरे पाटः BRR SAaliz! | [त्रतखरण्डर्‌१अ्रध्यायः। $ ^ ॐ कन = = क, sca बद्यघीष्रेण तान्तु afe प्रवेशयेत्‌ । ततस्त IATA यन्वन्यस्तां तु कारयेत्‌ | तस्मिन्नेव ङि waa वस्वद्छत्रां निधापयेत्‌ | ॐ % A, “ + प प्रा कच्छनरां तां ततः बुच्धादस्वंः सच्छादितां शभः ॥ यजितं पृजयेत्तान्तु यावदा हाद शो भवेत्‌ । + ¢ ४ एक [दश्यां सोपवासो कृपः कुयात्‌ प्रजागर | समभ्बतसरेण aed सन्ति सपुरोधसा॥ राचोजागरण काथं नागरेखजनेनतु| कष्य, ~ AA साने खान महाभागेद याः प्रेङ्ास्तथा AY । प्रेष्ठा डिन्दोलिका । मधु मद्य | quad व्यगौोतन रातो शक्र नराधिपः | ह{दश्यान्तु शिरस्तो sata; प्रयतस्ततः १ मन्व Wada कुर्याच्छक्रकेतोः समाहितः) टेवीयरारे लष स्यामुद्यापन सुकं ते नानयोव्विंकल्यः ॥ सुयन्वितं तु कुष्य त्ृहस्तम्म चतुष्टयं | पृजयेत्तं महाभाग गन्धमाल्यात्रसम्पद्‌ | नित्यच्च पटयोः ast यष्टिपृजान्तु कारयेत्‌ | वलिभिस्त्‌ विचिचाभिस्तथा ACURA: | नित्यञ्च जुहयान्‌ मन्तान्‌ स पुरोधांच वेव्णवान्‌ | faa’ मौतेन Taq तथा WAY पूजयेत्‌ ॥ हादष्यां पूजयेद्राजा ब्राह्मणान्‌ धनसञ्चयः | विशेषेण च wan साम्ब्षरपुरोदिते। ९ र तखण्ड २१अध्याथः'] sats: ४१३ उत्थाने च प्रवेशे च शक्र Bata | वच्यमाणेन AAI कालवित्सपुरोडितः # प्रयतः प्रूजयेद्राजा तदा दिनचतुष्टयं | पञ्चमे दिवसे प्राप्त शक्रकेतुं विसन्जयेत्‌ ॥ पूजयित्वा महाभाग वलेन च तुरङ्किणा । नौत्वा करौन्द्रेसितयन्ततोनव्यां प्रवायेत्‌ ॥ पटदयं ष्वजखेति चितय | वाद्यघोष्रेणए महता सङ्ञतिस्त्र कीर्तिता | पौरजानपदास्तचर MST कुयुयस्तथाम्भसि | SHIT तथा कार्यो जलती र गते दान्‌ एतदहिधानं दृपतिस्त्‌ कतवा प्रास्ोति afe धनवाडइनानां | नाशन्तथा TATU राम मदत्‌ प्रसादन्तिदशाधिनायात्‌ ॥ इन्द्रध्वज रोभज्येत्‌ पतेदिन्द्रध्वजो यदि । waa शक्रयष्टिवी कृपतेनियतम्बधः | TANF AUR Tae तधेव च ॥ माटकायास्तथा UF परचक्रभयं fea | माठका तोरणस्त्ः | दिव्यान्तरिक्भौमाञख उत्ातास्तच a सदा | तेषां तौत्रभयाग्नेयं फलमत्यन्तद्‌ा र्णं ॥ निलोयते च क्रव्यादाः WHAT तथा fea | राजा वा स्रवते aa सन्वदेभो विनश्यति a ४१०४ € माद्धिः | (तरतखर्ड २१अब्ायः। इन्द्रष्वजापक्ररणं यत्‌कि््िहिजसत्तम । fants विन्नेया ater नगरवासिनां ॥ अन्यस्य एकतमस्य | इन्दरष्वजनिमित्ते तु wafanfad wa | SCAT पुनः Falq सौवण नन्द्के वने(१) ॥ राज्य दत्वा च गुरषे बन्धनानि प्रमोचयेत्‌ । सप्ताह qafaar च ध्वजं दद्याहिजातिषु। शान्तिरेन्द्रोभवेत्‌(२)कार्यी ब्राह्मणानां दिने fea | गावश्च tart इदिजयुङ्कवेभ्यो हिरख्यवासोरजतेः समेताः | एवं छते शान्तिमुपेति पापं व दिस्तथास्यान््रनुजाधिपस्य | खोराम उवाच | शक्रोच्छ।येति धे मन्ता; सोपवासो दपः पठत्‌ | तानहं खोतुमिच्छामि सव्वधश्धभताम्बर ॥ पुष्कर उवाच | wy मन्तानिमान्‌ सम्यक्‌ सव्वकल्यघनाशनान्‌ I प्रापे शक्रष्वजेच्छाये धान्‌ पठेत्‌ प्रयतो पः | परखेन्द्रजितामिच छचहत्याकनाशन(२) | (१) सवरं मिन्द्रकेतुना दृति पुस्तकान्तरे are: | (२, शा :करौटर इति पाटठान्तरः। (३) वरख न्रजितार्मिते टचदन्धाक urea इति पाठान्तरं। ¥: त्रतखर्ड'२१अध्यःयः।) Satie | ४१५ देव देव महाभाग a fe भूयिष्ठताङ्तः॥ तवं प्रभुः शाश्वतयैव सव्वभरूतदिते रतः । अनन्ततेजा विरजा यशो विजयवदैनः॥ प्रयतस्व प्रभुनित्यस्तिष्ठ सुरपूजितः | ब्रह्मा स्वयम्भूभगवान्‌ सव्वलोकपितामहः (र) । रुद्रः faaraye a: शतरुद्वियसंयुतः। यज्ञस्य नेता कत्तं च तथाविष्णुर्रुक्रमः। तेजस्तदद्ैयत्यका नित्यमेव महावलः | तेजो धारय Fan जय शक्र yafes |) विष्णुगदाधरः खोमान्‌ णङ्चक्रासिशाङ्गवान्‌ | सते AMSA जय शक्र महाबल | श्रनादिनिधनो देवो ब्रह्यकायः सनातनः | अग्नितिजा महाभागो Tela पाव्वेतौसुतः।॥ कात्तिकेयः शक्तिधरः षडक्गोऽसि गदाधरः, सते वरेर्रोवरद्‌ः तेजोवद्यतां aw | देवसेनापतिस्कन्दः सुरप्रवरपूजितः, आदित्या वस्वो रुद्राः साध्या टेवास्तथाश्िनौ। भागंवोऽङ्धिरसश्चव विषखदेवा मर्द्रणः। MATA MIA चन्द्रःसूर्य्यीऽनिलोऽनलः। देवाश्च ऋषयस व यत्तगन्धव्वरात्तसाः | समुद्रा गिरयच्ेव नदयोभूतानि यानि च। अ, i a ष्यि ष) शि (२) ब्रह्मलोक पितामड दति पुखूकन्तर पाठः! ४१६ waltz: | (व्रतखश्ड २१अध्याय;। तेजस्त प्रा्षिःसत्यच्च Ae: Ah: को्तिरव च। प्रवत्तयन्तु ते तेजो जय शक्र Walaa | तवचापि जयं नित्यमिहसं पद्यते शभ । प्रसौद राज्ञां विप्राणां पूजनादपि सव्वंशः। तव प्रसादात्‌ ufaat faa’ सस्यवतौो भवेत्‌(१) ॥ शिवं भवत्‌ fafaa शाम्यन्तां सुनयोखशं। नमस्त टेवरटेषेश नमस्त बलस्दट्‌न॥ नमो विघ्रनमस्तेस्त सहस्रा WaT | सव्वपरामेवनोकानां aaa: परमा गति; । त्वमेव परमः प्राणः सव्वेस्यास्य जगत्पते | Sw द्यसि!च PES: GHAR: पुरन्दरः ॥ तमेव भेधस्त्वम्बायुसतवमम्नर्वे यतो रविः t त्वमत्र घषनविनज्ञप्ता Haare: Gada: तद्ध तेजः WEIL घोषवास्त्वम्बलाहकं | सखष्टा aaa लोकानां deat चापराजितः ॥ त्वं ज्योतिः सव्वलोकानां लमादित्यो विभावसुः | त्वं AVIA a राजात्व सुरोत्तम ॥ त fae सहस्रा तच्तस्त्व टेवस्त्व परायणः | त्वभेवममतन्देवल्ल ala: परमाचितः॥ qed w fafa: wa: नरस्त्व' वं पुनः षणः | TRG AAT कलाः का्टास्तूरिस्तथा । सवत्स त्वो मासा रजन्यश्च fafa च, - षन (i) सत्यवतो भावति पुम्तकान्तरे प्राठः —_— ¥ ana '२१ अध्यायः] BATH ४१७ त्व सुह्त्तसगिरिवरा वसुन्धरा स भास्कर वितिमिरमस्वर तघा। महोदधिः सतिमिङ्धिलस्तथा Saar वहइकरमाकराकुलः ॥ महव शस्त्व्मिह सद्‌ाभिपूज्यः महषिभिमेदितमनोमहाकभिः । sfuca: पिवसि च सोममध्वरं वषट. कतान्यपि च हविषि भूतये ॥ a@ विप्रः सततमिहेन्य सफला ` वेदा घव्वतुल वलोद्यमोधसे J | @ aequa परायणा fae: Rerprafuafar Wage: | यन्नस्य दत्तां भुवनस्य गोपा त्तस्य न्ता aqafasan | कष्ण वसाने च सद्‌ा महाता aataa यो fafaafa लोके ii यं वाजिनं गभमेवासुराणां वे्वानरे are aaa Ufa aq: aera चिदरेखरायं लोकचयेाय पुरन्दराय ॥ ्जोऽव्ययः UWA एकरूपो विष्णव राद: पुरुषः पुराणः | ( ५२ ) gic Salle: | [बतखर्ड२१अध्याययः | GUAT सव्वेहरः ANA: © सदस शोषः तमगन्यररिन्द्रः ॥ कविं aa fae चातारमिन्द्र सवितारमिन्द्र' सुरेशं शशाद" NEC शङ्शच हचदहणं सुसेन मसरा कं वोरा उत्तरे भवन्तु | तातारभिन्दरेन्दिधकारणशत्मा जगत्‌ प्रधानञ्च हिरख गभं । लोकेश्वरं टेववर वरेण्य मा नन्दित प्रणतोच्पि नित्यं । एवं देववरस्य Hua © क * aziaa स्तिदगपतः सुसयतः) अवाप्य कामान्‌ मनसोभिरामान्‌ सखर्गाललोकानायाति च रेह we: ॥ वराह सहितां । संपूरणे वोच्छयणे प्रवेशे क भ स्नान यथा माल्यविधौ विसज। पठेदिमान्रुपतिः सोपचासो मन्ताः शुभाः प्रुहतस्यकेतीः ॥ संपूरण पताकारोपणं aa faunas | © ~ =a राके ववस्तश्क्र सोमं ~ AN Wad TMTAT पारयङ्धिः। महमिसङ्: afenwafi: शक्राद्धिरस्कन्द HURT | ्रतखर्ड २१अध्यायः 1] दमादिः © > । > TUATHA TAR रूपः © oN ~ समधितश्ा भरणरुदारः॥ तथेह तान्याभरणानि टेव Waifa सप्रोतमना गद्यर | दति शक्रष्वजो छायविधिः। 63 क मौ माकर्डेय SATA | दटमन्यत्‌ प्रवच्यामि पञ्चम्‌त्तित्रतं तव । संवत्सरः Wat बह्धिस्तथाकपरिवत्सरः ॥ इष्टापूत्तस्तथा सोमो अनुपूर्व: प्रजापतिः । SUSY तथा प्रोक्तो देवदेवो महेश्वरः ॥ तषां मण्डलविन्यासः प्राम्बटे वविधौथते | प्रग्बदिति Hawa a Ga awe: ॥ मर्डल विन्यासाः कत्तव्याः। प्राग्‌वत्‌ प्रपूजनं कायः होमः कायस्तथा विचि; । तितैर्बीदियत्रैयेव waa सितसषपेः ॥ afae र्रकामन्वं AA: प्रत्यहं क्रमात्‌ | नक्तागनस्तथा fasq प्राग्बदिवसपञ्चक tt चेचशक्त' समारभ्य पञ्चमो प्रभृतिक्रमात्‌ | संवत्सराख्ये FIG व्रतमेतत्‌ समाचरेत्‌ tt पूजावसाने दातव्याः सुवणः AB यादव | चतुर दविदे देयं णाखामटेन area | THA पद्मं देयं तधा कएल विदो भवेत्‌ | ४१९ ४२० देमाद्रिः। [(त्रतखर्डर१अध्वायः। यथे लोकमाप्नोति कामचारो विद्ङ्गमः। व्रतेनानेन CUA: पूज्यमानः सुरासुर: | ATA माषाद्य भवत्यरोगो वरेण रूपेण वस्तेन युक्तः | खपप्रतापान्ितशवचु सङ्गो दिजोत्तमो वा वद्यन्नयाजो ॥ द्रति विष्ण धर्मोत्तरोक्तं सुं बत्छरत्रतं | O00 व्रद्धोवाच | ya सम्प्रवच्याभमि टेव्याराघनसुत्तमं | 0 > o यत्‌ wat waararat प्रािस्तुस्षिभविष्यति । ~ a € > HO pn ~ द्‌ न्तद्‌न्तमय द ण्ड ह मवन्धः GA: । विचित्र पद्चरागाद्येम भिस्त सुगोभितं। ५१ “nm, ८ = + + AGUA: क्रारयेदव्याः सावभोमं मनोरमं। दुकूलवस्वसनञ्छन्र Beata | o + © ~> क~~ + घर्टाकिङ्किणिष्योभाच्य दपणरुपग्योभितं | त रघ पूजये EM TMAH: ॥ x Q २९, पारिजातकपुष्प् यत्तकदटमचन्दनः) ` सुगन्धिधूपितं कत्वा देवो aa निवेयेत्‌ ॥ + $ a 9 ry प्रतिमां शोभनां da agiea ag करीं, पूजयेद्र विन्यस्तां विन्यस्तं सव मङ्गलां । दुगा काल्यायनो देवौ acer विनष्यवासिनौ, aagag २१गअ्र्यायः।] Parte: | ४२१ निश्ग्यश्म्भमथनौ मद्दिषासुरविमरि नौ | उमा त्षमावतो माता शङ्करस्यादईकायिनो। प्रसोदतु सदामेऽस्त यच्च नो aifsad gfe | अनेन वलिपुवंख नमकस्कारयुतेन च | yy पूजयित्वा ततो राजासमन्ताद्याप्य गोतकः | पच्चमोसप्तमोप णां नवम्येकादगौषु च, टतौ याभिवविन्नंगदि वसेषुव्सवेषु च | महानदौवनोत्सङ्गपवंतखवणेषु च । तच मर्ड़पविन्यासं agfecafafana | गेलं वा wed वापि क्त्वा वास्तविभागवित्‌ , सवेलचणसम्पूर्ण सवं भोभासमन्वितां | पूवं च कारथेच्छक्र TIANA समारभेत्‌ | मदहाजनपदोपेतां महास्तोसङ्सङ्लां | e AA A =~ ~ -~, सव्वांत्रपाननवेदयः समस्तेरपि पजयेत्‌ ॥ 0. __ न द याचदिग्‌ वलिं शक्र vafeyg समं ततः(१) | a~ WATAAATA मन्ते णानेन सुव्रत | जयतव कालिका wa सवभूतसमावता | रक्त मां निज तेभ्यो बलिं we सदा faa | ¢) on, वि ‘SN मातम््मातव्वरे द्ग सवकामप्रसाधनि। अनेन वलिदानेन सर्व्वान्‌ कामान्‌ प्रयच्छ मे(२)॥ एवं दत्वा बलिं शक्र तथा देव्यावतारयेत्‌ | (१) सञ्जादिच्‌, समन्तत इति पाठान्तर | (२) दिवान्‌ लोकान्‌ प्रयच्छमं इति पुस्तकान्तरे ara: | देमाद्विः। [बतखण्ड२१अब्याय; | बिन्यरेद्द्रपौठे तु मण्डलेरुपगोभितां। + ७ =, ~, A A, तचस्ां waa qt ₹ेमरूप्येश्चताम्नजेः | कलगेरष्टसहस्रेए गन्धोदकसुप्‌ रिते; ॥ Ae १९ ० ` A समम्तफलसम्पूण AAI रथ पल्लवः | न, ७५ ~, Ao € c सत्रा पयेदेकभक्तेन Tamaae c: tt वेदमङ्गलगब्देन wrafeafaaa: | awalusey a घण्टाकिङ््िशिरावितेः। o~ अन, मी, रि ~, a सरापयित्वा ततो देवीं निरन्डेदर्मकेः wa । नि खञ्छेन्ररोयजेत्‌ | गे मयादि कते: पद्म : दौपवच्यौ दिवोधितेः | © A + = afagafeataa: TETRA: | =a £ a ० 0 यवश्ाल्यङ्करह्वित्रयवचारनिमन्ययेत्‌ ¦ ‰\ क । उदजः कमलः | पवचारेयवढ णेः | TAG TCE प्रत्य क कलशं GIA । तथा कपू रच्तोदेन चन्दनं FAA च | गोरोचना wa aa देवीं मालिप्य पूजयेत्‌ | = > र, =, = रि हमजजांतिमाल्यच् रतन्यासरनकधा t वासोभिः सुमनोभिञ पाददयं ससुत्त्तिपेत्‌ | वस्व पुष्योपरि च॑क्रमणं arated: 1 eaag तथा कन्यादिजान्‌ crave: fears | We भोज्यान्नपानेन AA सव्वं ख WAT | भोजयिला चमापयेदेवी a प्रौयताभिति। ATAW '२१अध्याय; |] दमाद्िः | ४२३ तथा देवीं रथे कत्वा पुनरेव WE नयेत्‌ | महता MAGA समस्तविभवान्वितेः | सान्तरेण रथं स्वै पुष्यटूव्वौच्ततेजलेः । प्रिष्यमाखेः कन्याभिस्तोभिग्ङ़लवादिभिः। सलिलेन पथे पांशु कला पच्च ततःक्रमात्‌ | पुरशोभां पयः शोभां हारभोभां we ws ॥ कारयीत तथाशक्र Beart निवारयेत्‌ । ्रच्छेवयास्तरवस्तस्मिन्‌ प्राणिहि at विवज्जयेत्‌ ॥ बन्धनस्था मोक्तव्या वध्याः क्ोघादिशत्रवः), MATS RA! CH TIA Alay कारयेत्‌ tt अरकालेकौमुरीं ena! afaaarea कुर्यादित्यर्थः; | सर्व्वदा सव्वं देवस्तु शङ्रादोः प्रतिष्ठिता t रथयात्रा तथाशक्र YUMA सदा कता । तया कित्ररगन्धवभूपातालनिवासिभिः | रथयाचा प्रभावेन मोदते दिवि Saari आदित्य रथराजन्द्र रथेन नभसः RAT | टेवादिवत्याविमानस्या रघयाच्राप्रभावतः।॥ क्रीडन्ते विविधैर्भोगैः सर्वा तङ्विवजिताः | तध्रात्वमपि Sa रथमाचाकरोभव॥ शिवाया शिवदायास्त्‌ परमेश समाधिना अगस्त्य उवाचं | रथपाता सम GA ब्रह्मणा वासवस्य तु । दमाद्रिः [व्रतखण्ड'२१अब्यायः पूर्व्वं वत्‌ कथितं तात तत्ते सव्व मयाखिलं ॥ स्थापित नात्र wee देवो माहात्मयसुत्तभं | यः पटेच्छणुयादापि भक्िमान्नप सत्तम tl ससुखं यथः सोभाग्य पुबरप्रात्तिमभोष्ठिताम्‌। लभते AA PEE Tas ब्राह्म णोऽत्रवोत्‌ । gaaa हिते राज्ये पुराशक्रस्य कौत्तिता। धनदस्य पुरोप्रासिवेरुणस्य च agar | हति स्थाने छता तेन तघा Bars नेच्छते, भुच्जते परया तुष्टया wet नागवतों शुभां ॥ दति दवोपुराणोक्ता रथयाचा। "=---~---- 000) सद्र उवाच | रथयात्रा HA HAY भास्करस्येह मानवः, aay किं भवेत्तेषां यातां gata यत ब ॥ विधिना केन कत्तव्या कस्मिन्‌ काले सुरोत्तम) HIG Mirada रथारूढ दिवाकर | टेवस्येमं रथं भक्तया भ्रामयन्ति ददन्ति च। तेषां किच्च फलं प्रोक्त येच HAR ATT | भ्नमन्तमचयन्देनं ृत्यमोतपरा नराः | प्रजागरच् Rafer vs खडासमन्विता, ॥ तरत वर्ड'२१ अध्यायः |] Satz: | रि 1 रममम 11 1 ana fa फलं Wa रयं यच्छन्ति ये Xa: वषभक्तच्च यो ua दप्कानिच भोजन्‌ । qua घान्योदनं दकानि खाद्यानि uaa ब्रूहि निखिलं सुरश्रेष्ठ सुविस्तरं | लोकानां श्रये देव पर कोत्‌हलन्तु म्‌ | त्रद्यमोवाच | साधु पष्टोसि भूतेश गणेशे त्रिलोचन | श्णुष्यकमना Tafa यथा पृष्टं सुविस्तरं | देवस्य रथयातरेषा भास्करस्य महासनः। इन्द्रोत्वस्तघा VE मतीद्यतौ समौ यतः, मल्येलोके Mfrs तोलोकालोक प्रपूजितौ॥ nada इमौ तस्मिन्‌ ST ST महोत्वौ(१) | इमौ इन्द्रध्वजरविरथो। न तचोपद्रवाः सन्ति राजतस्करसश्रवा' | तस्मात्‌ काय्थंविभौो भक्तया दुभित्तस्योपशान्तये । शक्त पत्ते तु सप्तम्यां मासि मागंशिरे हर, छट ते नाभ्यच््रयेद्‌ व पञ्च भूतान्‌ यजेत वे। अभ्यच््रयेत्‌ ग्रहणं यः सर्पिषा अद्यान्वितः। दिने दिने जगन्राधप्रविष्ट वर्णके रविं | वणके SEU We | सम गच्छ्दयानमारुटो गैरिकं fafediaa | ( १) देवोदवमदीन्वौ इति पाठान्तरं | ( ५४ ) BRS ४२६ Sie: | [रतखण्डं २१अध्वायः | वेश्वानरपुरन्दिव्य गन्धव्वापरशोभित | शाल्योदनं खर्डमि खं बडवज्रसमन्वितम्‌ | वज्रसमन्वितं आ्राज्यसमन्वि तमित्ययं:(१) | वणभक्तं प्रयच्छेद्यो भास्कराय fea दिने॥ Tes, Vala तु ष्वजमालाङ्ल शुभं | AVA पुरन्देव स्तूयमानो Hela fa: ॥ तस्मात्‌ सव्व प्रयतेन भास्कराय AL: सह ॥ वणं भक्त प्रदातव्यं प्रतिष्याप्यह ava । छतप्ूण खण्डवेष्टां कासार aienia a: i दध्योदन TINY संयावं गुप्‌ पकान्‌ | ये प्रथच्छन्ति देवस्य भास्करस्ये ह वणं कं ॥ ते गच्छन्ति न aut नरा वे मन्दिरं aa! अहन्यहनि यो भका भास्कराय प्रयच्छति) अभ्यङ्गायष्तंदटैव स याति परमां गति। तथा यो वणभक्तच्च अहन्यहनि भक्तितः ॥ सम्प्राप्य ह भान्‌ कामान्‌ गच्छेत्सोपि ममालयं | चणो सुदत्त नं faa’ य; प्रवच्छेच्छुभं रवैः ॥ स याति परमं खानं यच देवोदिवाकरः। लतस्तं तपयेद्‌ वं(२) पौषे मासि विधानतः ¢ सप्तम्यां शक्पक्तस्य खणुष्वेकमना यधा | CNH समानोय WIS जलं शुभं tt er re es he gE ei ८१) वज safafa पाठान्तर | (९) ade सापयदेवमिति पाठान्तर | ब्रतशर्ड २, ब्रध्यायः।] SATE | ४२७ वेदोकेन विधानन प्रतिमां arate: | safe तीधनामानि मेनसा संस्मरन्‌ वधः ॥ प्रयागं पुस्करं चेव कुरुकतेत्रं सनेभिषं । SASH भद्रवटं सोमं MATa च ॥ ama quad fan aaa a | WFTSTL AW YU गद्गासागरमेव च॥ कालसुय्यः मि्रवनं सुर्डीरस्वामिने तथा । WHAT AYU Aaa तथा शिवं ॥ गङ्गासरखतौसिम्धचन्द्रभायाः AAT: | विपाशा यमुना तापो शिवा Saat aai(e) | गोदावरो प्योष्णो च कष्णबेणो तथा नरौ | शतरुद्रा पुष्करिणौ को्िकी सरयुस्तघा ॥ तथान्ये सागराधेव सान्निध्य was fafa | तघाखमाः पयतमा दिव्यान्यायतनानिद ॥ एवं स्रानविधि क्त्वा रचयित्वा प्रणम्य च। धुपमध्य ` प्रदा तु प्रतिमामधि वासयेत्‌ ॥ चिरात सप्तरात्र वा मासाद्वं मासमेव च। स्ितख्थानं we 24 भोजयेद्क्तितो नरः+ ततस््वारोपयेदेदि चतुरखां सुदेितां। UI तु माघस्य सप्तम्यां जिपुरान्तक | wafers विधिवत्‌ Hal ब्राह्मणभोजनं | शङ्भेरोनिनारेख ब्रह्मघोषेय GH: ॥ (१) वैश्रवतोति प्राढान्तर्‌ | ४२९८ warfz: | {a तख ग्ड RUA | awmrediafa विधे री द्मणस्वस्तिवा चनः | ततोऽस्य कारयेद्यात्रां शान्तिहतोजनस्य च ॥ रथेन दशंनौयेन किङ्लेणौजालमालिना) शक्त पत्ते तु माषस्य रथमारोहयेद्धवि # छत्वाग्निकायय' विधिवत्तथा ब्राह्मणभोजनं | प्रीणयित्वा जनं सवं" दत्तिणाभोजनादिना ) प्रपूज्य ब्राह्मणान्‌ दिव्यान्‌ हीमांखापि सवाचकान्‌(१)) इतिहासपुराणाभ्यां वाचका व्राह्मणोत्तमाः॥ मतो देवश दृष्टव्र सपृज्योयं ततः सद्‌ा(२)। माघस्य शक्तपक्स्य चतुष्यामे कभोजनं ॥ अयाचितं तु पञ्चभ्यां wat am प्रकौत्ति तं । सप्तम्यामुपवासस्त अष्टम्यां रोहयेद्रवि ॥ अ्रगिनिकाय्ये ततः कत्वा रथस्य पुरतः शिव। षष्ठयां तु रात्रो भूनेश रथस्येहाधि वासन ॥ ब्रह्मणान्‌ भोजधित्वा तु दिव्यान्‌ भौमांश्च वाचकान्‌ ¦ रथधमारोपयेदव TAA भूनभावनं | सिताथां माघमासस्य तस्य टेवालयाग्रतः॥ तचरसस्येव देवस्य FATA प्रजागरं | नानाविधैः प्रेचणकेर्दौपहन्तोपश्ोभितैः t शङ्कत्‌ निनादे ख ब्रह्मदोषेश्च gaa Haq प्रजागरं तस्य देवस्य पुरतो fafa ii ee पकषकषययष्यग्यःणयशणरणेणयेरीणरीषागवे शपि (१) areata मकचन्तानिति पाठान्तरं, (९) THAT Se चेति पृष्ठकान्तरे पाठः त्रतखग्डं २१ श्रध्यायः] BATE: | ४९ ततीऽष्टम्यामायतनं देवं रथगतं नयेत्‌॥ नगरस्योत्तर दार गशङ्भेरोनिनादित। ततः ga efaag हारं वापि तथापरं ॥ एवं fe क्रियमाणायां याचायां वदव्छरावघेः, मानवाः सुखमेधन्ते याजा जयति af ay | नोरुजख जनाः सव्व गवां शान्तिभेवेतन्नया | क्तीरथापि यात्राया; खमभाजो भवन्ति fen वीढारञ्च तथा रुद्र Bata व्रजन्ति वे। GZ उवाच) कथञ्च चाल्यते ब्रह्मन्‌ स्थापिता प्रथमासक्लत्‌ | एवं नो वद्‌ देवैश सुमहान्‌ सश्योऽचमे। ब्रह्मोवाच | पूव्वभेव सदखांगोष्धानं तस्य ALAA: | संवत्रस्यावयवेः afar रथो मया I सवेषान्तु रथानां वेस रथः प्रधमः स्मतः । तद्ृष्ट्रातु ततस्त्वन्ये wear विश्वकम्यण ॥ कल्पिताः सब्वेदेवानां सोमादीनामनेकशः। विष्ठकर्याक्तं प्राप्य रथं देवेन TET पूजाथमात्मनीदत्तो मानवे क्रोधसम्भवः। मन्‌नच्वाकवे tut म्य सपृज्यते रविः ii अतस्त रथयानेन चालनं विदितं रवैः) AMA चालने दोषः सवितुः शूलघारस॥ ६३० a -- न-पा न कन इमाद्धिः। [व्रतखेर्ड २१ग्र्यायः। तस्माद्रधेन प्यति भारकरः पृथिवीमिमां | गच्छत्रतिठतेचैतन्मण्डलं सवितुः सद्‌ा | प्रदिष्टं चलते यस्मात्तस्मादेचालनं स्मृतं । तदेव रथयाचासु टट भानोखनोधिभिः॥ अन्येषां चालनद्रे्टं देवानां पाव्वतोप्रिय | व्रह्म विष्णुशिवादौोनां(१) खापितानां विधानतः ॥ तस्माद्येन Saw याता काय्य विधानतः) प्रजा नाभिदणान्त्यथ' प्रतिसंवत्सरं wero काञ्चनोवाधरोप्यो वा दृटदारुमयाधवा। ट टाच्तयुगचक्रश्च तधा कायः युयज्वितः॥ यिन्‌ Tatas afd सुमनोरमे | ara प्रतिमां यल्नाद्ोजयेदाजिनः शएभान्‌ | हरन्‌ लन्तणसपत्रान्‌ सुमु खान्‌ वशवत्तिनः | HAA समालभ्य चामरस्रभ्विभूषितान्‌ ॥ सद्ण्वान्‌ योजयित्वा तु रथस्याघ्य' प्रदापयेत्‌ | चिबुधान्‌ पजयिल्वा तु ध्वजमाल्यानुकलेपने; | अदा ररविविपैख।!पि भोजयिल्ला दिजोत्तमान्‌ | दरीनान्धकपणदीँःश्च स्वान्‌ aaa शक्तितः | न कचिद्दिमुखं ऊुव्यीदुततमाधममध्यमं । wana सवितत waanreuaifa: | य; प्रयाति fe भ्म्नाशः aarat arfanifea: ! सदातुहि fueda स्वगं स्थानपि पातयेत्‌ | (१) मद्ाविग्ण {शवरादौनां इति पुष्कान्तरे पाडः) #ै त्रतख ग्ड 2 HAT: || waits: + € ~ asa efaudga: afaqa waa | > > ^ =~ aAMatafad: कामभव्यलेद्यसमन्वितः। प्रणयिता फलं सव्व मिममुच्चारयेदरवं॥ वलिं waa मे देवाः आदिलया वसवस्तथा | मरुतोघाखिनौ रुद्राः सुपर्णः पन्नगा ग्रहाः ॥ असुरा यातुधानाश्च रथस्था arg टेवताः(२)। आआकछलष्णेन रजसा WA भेतसुटादरत्‌। +. न्स ततः Galena कतवादितनिखनः | रथप्रश्रमण कुय्यादत्मना सस्मेनतु॥ = परुषश्चापि dia: स॒य्यभक्तिसमन्वितेः । A €> © 7+ “AO re सुठातप्रग्रहदांनवलौवहरया पिवा। यथा प्रशमन दद्याहिषमे पथि गच्छतः CRRA -. > उपवासस्ितेविपरे दिव्यंभोगेख सुव्रतः | विं शद्विः पोड़शेव्वीपि प्रतिमां भास्करस्य ai स्थानात्‌ प्रचान्यते रुद्र रथमारोपयेच्छनः। राज्ञो च fagqal ez Weal तस्य महामनः ॥ =, ~ ~ qn ~ नेंरारोपयेत्तत उभयोः Usa wee | निन्ुभा दक्तिणे aa राज्ञो वाप्यत्तरे तथा ॥ दारे च ब्राह्मणो तस्मिन्‌ दिव्यौ Wag पाणयोः | व्रह्माचास्य तथा सोमः कूवैरस्योपरिखितः। गरुड TEAS कल्पमानं प्रकल्पयेत्‌ | Baga ayaa स्वगं दर्म नपम ॥ ४२९ (२, मानस्ोककथानकं[रति पाठान्तर, ६२२ देमाद्विः। [व्रतखर'२९१अध्यायः। सुवगेविन्द्भि्थित्रः मपिमुक्ताफलाल्वलं | . ¢ ° ततस््विन्द्रधनुःप्रख्यं स्रणदण्डमघयापर | ध्वज प्रकल्ययेत्तस्य पताकाभिरलङ्कत | नानावरु विचित्राभिः सप्तभि; कामनाभ्रान॥ ध्वजोपरि वरतव्योम सुकाराधिषित महत्‌ | रथ्यासु सङ्गतो विपो नयेद्थवर Tq: | रथ्यारूटन्तु FAs खेयोयच्चात्मनः सद्‌ा, AUS AEA WA AS SHIT ALAA: रथमारोहतस्तस्य क्षय गच्छति सन्ततिः | क क A सरथो SATAN वोढव्यो ब्राह्मणः Fert ॥ a~ ~> A AV 2, ततियं ख बश्यश्च(१) नच शद्रः कदाचन्‌, येवन्यटेवता भक्ता ये च मद्यप्रवत्तकाः॥ ~ aN A aS ~_ A, न तः WSS NSM: CATA मदोडतः। उपवाससमोापतेर्व्नीटनव्यः पाव्व तौ प्रिय। Q & ao, = सखश्थानाचालितो TE पृव्वहार AWA 4 दिनमेकं वेत्त पूज्यमानो ata q| > = a ५५ नानाविधः प्ेत्तरकेः GUTTA TI $ © =$ £ © ~ नान।(विधब्रद्ययोषग्द्यणानाच् aq: | feat च अष्टमो aa नवम्याञ्चालयेत्ततः॥ ATT efau at नगरस्य चिलोचन, तत्रापि दिनमेकन्तु तिष्ठते चिपुरान्तक॥ त्त्ियेः (१) च लियं TRAC तथा राजा AAA a: | ad Fay दृति पाठान्तरं, व्रत खण्ड २१अध्यायः'] satis: | ४३१ ततः परं व्रजेत्तस्य पञिमं हारमाश् बे। तत्रापि दिनमेकन्तु तिष्ठत(२) मधु्दन॥ ~ a - ॐ तरेते: युज्यमानो यथा राजा तथा BT: | तस्मादपि चरद्रद्रहार यायात्तथोत्तर॥ A aA तथापि पृज्यः qe विधिवत्‌ प्रियद्गनः| तस्मात्त चालये दुद्र AMAT पुरस्यतु। aay पजयन्त्य नं ब्राह्मणः खद्यान्विताः। ~ ~ १ ~ A cA शङ्गवाद्चनिर्घोषस्तथधा प्रत्तणकवरः:।॥ =~ 4 न्स ब्रह्मघोषश्च विविधे; समन्तादौपह्ठत्तकः | AWS ॐ € oA नानाविघवित्तदान ब्राह्मणानाञ्च ATT: ti ~ रौ नान्धङ्जपणानाघथतप्र णस्िपुरान्तक। ° पुरमध्यात्त चलितस्तिष्ठत्‌ प्राप्य खमन्दिर ॥ इत्थ प्राप्य स्थितं देवं परतो मन्दिरस्छतु। ततः सितः पूजनौयो भवेत्पौरेण छत्रः । प्‌ज्यमानसत्वहारा Taree तिति । परे दिने व्रजेत्‌ aia a निरन्तरमादरात्‌॥ + ९ $ लयोदणश्यामतो तायां wag sat facia | y ~~ ॐ + * Ua WIAA वं ग्रहशं दुरितापहं। पररिवारकतं र्द्रसानुगं परमेशखर। सद्र उवाच । कथ प्रचालयेद्रद्मन्‌ TU तमनाश्नं | ~ ~~ ~~~ मानना, (२) स्थाप्रथदिति पुस्तकान्तरे ara: | ( ५५ ) @alte: | | व्रतखर्ड 2 TAS I "अनुगां कथ चास्य RAT AAT क्रमात्‌ ॥ भूयोभूयः ess विस्तरान्मम ख यसे । वेद सव्वेजगत्राथ परं कौतुहलं हि मे॥ ब्रह्मोवाच शने; प्रचालयेदरदर वत्मनाशोभनेनतु। तथा न तस्य भङ्गः स्यादिषमे पथि ward: | प्रतिहार रघ ae नयेन्माग faged | तस्माद्नन्तर TE दर्डनायकमदरात्‌ । पिङ्गगलच्च ततस्तस्य एग चाद्रान्रयेत्‌ ॥ पुरतो इारतस्तस्मात्‌ TSR एतः | रथारूटस्तचया दख्डिदेवस्य पुरत faa | | तस्मादपि तथा ez लेखको भास्करप्रियः | शे शने;्नेनेयेद्भुद्र रथं दैवस्य Baas | रथस्य चक्रभङ्गोवा यधा नस्याचिलोचन) ईषा(१) as feauaaa तु aafaaz: | तुलालाभे तु aVlat शम्यां शूद्रभयं ब्रजेत्‌! युगभङ्ग तनादिः पौठभङ्ग प्रजाभयं + परचक्रागमं विद्याच्क्रभङ्ग Ta q | ध्वजस्य पतनेचापि पिटमन्यं विनिदिं गेत्‌(२) । प्रतिमाद्यङ्गिकायान्तु राज्ञो मरणमादिरेत्‌) SUAS वमायेषु उत्पातेषु शुभेषु च | (१) चैत द्रति पुख्कान्तर पाठः, (२) दपरमन्य्‌, विनिदिश्दिति पुखकान्तरे पाठः| त्रतखरड'२ १अध्थायः।] Safest gay बलिक वधः कुर्य्या च्छान्तिहीमन्तयेव Tl g गोभ्यः शान्तिः प्रजाम्यश्च जगतः शान्तिरस्त्‌ वे। खे aaa तधा शान्तिः सव्वत्रास्त्‌ तथा रैः, त्व' देव जगतः सरष्टा पोष्टा चेव तमेव fz प्रजापालिन्‌ ग्रहेणान गान्ति कुरु दिवस्पते। इदमन्यच्च वच्यामि WV: परमकारण । यत्तु कारणभूतस्य VERT WMATA! | दुष्टान्‌ ग्रहांश्च विज्ञाय चहश्ान्ति(१) समाचरेत्‌ ॥ एवं छता प्रजाशान्ति कला च सखस्तिवाचनं। पनः सञ्ज रथं छत्रा कुथ्यांत्‌ प्रक्रमणं हर ॥ मामरेषं afqar q नयेरेवालयं रविं, पूजयित्वा ततः सव्व; शास्त्रोक्ता अथ देवताः ॥ यथा पूज्याः ग्रहा; सव्व उक्तास्ते च तिलोचन i रथदेवास्तया पूज्या वास्थिता रघथमायिताः॥ AIL यवागू मम वै परमान्नन्तवेश्बर। फलानि कात्तिक यस्य द्‌ याद्भते शप्रौ तये ॥ विवस्वते agate तथा मद्य सुरेश्वर। पुरुहूताय wate सानुगाय निवेदयेत्‌ | इ विष्यमगम्नये द्‌ यादच्नान्न' विष्णवे तथा | रात्तसेभ्यः सम देयं दद्यान्‌मांसोद्नं FT deat पिथितान्नन्तु रेवन्ताय निवेदयेत्‌ | तिलानत्र पिटराजाय ददययाचिप्ुरसटन। क ड ( १ ) ग्रदण्णन्ति' समाचरदिति पाठान्तर) ४३६ चदेमाद्िः। [ततखण्डंर१ अध्यायः । अख्विनाभ्यामपूपास्त, वर्भ्वो मांसमोद्न | पिटभ्यः WATT Cala मधुना सह ॥ कात्यायन्यै aya faa दद्यात्तथा दधि, सरखत्ये जिमधुरं वरुरायेन्लुरसोदन! खार्डवानां धनपतौ तव faa चिलोचन। VACA तु तकरण मरुद्धयस्तपंणं स्मृतं ॥ माषानपूपान्‌ माटभ्यो भक्तया तु विनिवेदयेत्‌ | उल्लोपिका्च भूतिभ्यो जलं Galas se द्‌ द्याद्ण्पतो विदान्‌ मोदकांस्िपुरान्तक। RTA ते Sa SAT स्याद्णनायक्र। सव्वेभच्याणि विश्वे भ्यो(१) दातव्यानि समन्ततः ॥ Ut छषिभ्यस्त्‌ alt aww waa | aaa च बलिं Hae सावभौतिकं॥ मांसोदन सुरामाज्य तदरेभ्यञ्च WET | परूप्ानाज्ययुतान्‌ sara रुद्र तिलांस्तथा | स्वाहासुताय AA दातव्यास्िवुरान्तक। भास्कराय सरा दयात्‌ सुरदारु चरिलोचन॥ राजठत्तं सुरेन्द्राय हविष्य पावकाथ च| “faa स्धान्यन्तु मांसमाज्यं gyrate) | aaa विविधान्‌ गन्धान्‌ fate वेतसो ण्डजेः | ARRAN ALES यमाय परिकीर्तिता ॥ “~ ~~ ~~ ~ ~~ नय म म ममन (१) वेश्चभ्योदति पाठान्तर | (2) गरडमातस्यभुषर्‌ इति दुद्ठकान्तरे प्राठः! नतखर्ड'२१अध्यायः।} हेमाद्रिः । ४३७ टेय' स्यात्‌ कणिंकारन्तु अखिभ्यां हषभष्वज | faa देयानि पद्मानि(१) चन्द्रिकाय तु चन्दन ॥ नवनीतं aaa विनताये तथामिषं' पष्पाखयष्छरसां रुद्र माल्याः परिकौत्त येत्‌ ॥ वरुणायाग्निमित्यन्तु फलम्‌लन्तु नेच्छते; | विल्व ददात्‌ कुबेराय कपित्थं मरुतां तधा ५ गन्धवभ्यथारुगन्ध' दद्ाचिपुरसद्‌न | वसुभ्यथारु कपूर दद्याचानुगणाधिपे॥ परिढभ्यः पिण्डमूलानि aera विभो तकं | गोभ्यो यवान्‌ USA माटभ्यस्व्ततान्‌ हर ॥ गुग्गुलं विघ्नपतये fae Sates | ऋषिभ्यो agauag नाभेभ्यो farqua ॥ wee देयानि सङ्ल्यानि नराधिप | मधुसपिभ्या तथाक्तानि गेरिकस्य त्रिलोचन i न्यग्रोधस्तस्य वाडइभ्यो भक्तया रुद्रे निवेदयेत्‌ | सायं प्रातख AMIS सदेकाग्रमना इर ॥ want भक्तितः शक्तया 2S रूपं विचत्तणः | मन्तो देवशादरूल यो यस्य ह प्रकौ सति तः ॥ शान्त्यथं ब्राह्म णेभ्यस्त्‌, तिलान्‌ दद्यादि चक्तणः | वेष्वा नरे यवान्‌ लुहयात्‌ तेन सहितान्‌ नरः ॥ टेवानामरस्तं छतं पितृणां हि aura | शरणा ब्राह्मणानाञ्च सद्‌ा दयेताच्िदुर्बधाः | कश्यपस्याङ्गजा Ba पविता तथा र) गै (१) धानग्रनोति पुखकान्तरे gre: | ४२८ eae: | [रतखर्ड'२१अध्याथः । ara दाने तघा होमे ATT BMA वराः! seq देवान्‌ usta a परूजयेटेव प्रयन्नतः॥ अवताययं रथाचनं स्थापथेन्मण्डले ua: | कत्वा चिरातिकंयल्लादोप-तोय-फलाचते; | कापास-वौज-लवणभसं दशन्तु शान्तये | वेरो मारोपयेत्‌ पशात्पल्लोभ्यां सह सुव्रत) तत्रयं पूजयेद्‌ वं दिनानि eq gaa | दागाहिकेति विख्याता या भूता भूतलं हर ॥ तथा संपुजयेद्‌ व WAAR रलो भव । च तुथऽहनि कत्त व्यं यल्लादिखमणं रवेः ॥ AG MAA AT पूजासत्‌कारमण्डलेः | अनेन विधिना asa दशाहानि दिवाकर, तती नयरेरं स्थान qaqa’ सद्‌ाचलं।! अनेन विधिना यस्त॒ कुाहा कारयोत aT | TAMU WHIT भाखरस्यामितोजसः ॥ स पराइन्तु वर्षणं aaa मरीयते। कुले न जायते तस्य दरिद्रो व्याधितोऽपिवा॥ AMF षतं यस्त भास्कराय प्रयच्छति) कलवा सुवर्णतिलकं स गच्छेत्‌ BUNGE | ANH यो CIA गङ्गायाश्च ANS | सानायमानेयस्त्‌ भास्कराय(१,) जिलोचन ॥ संप्राप्येहाखिलान्‌ कामान्‌ प्राप्रयादरुणालय | भक्तवणन्तुयो दात्‌ हविष्यात्र गुडोदनं ॥ Atel त ( १) वाक्त.भास्कपाय दति कचित्‌ पु्लकान्तरे पाठः, तरतखर्डर १ TAT: 1] SAE ¦ ४३८ गच्छेत्‌ सुरपुर भद्र aa देवः प्रजापतिः| SMITA, वे भक्तया भास्करं पूजयेत्तथा | स गच्छ दोसिमान्‌ सद्र सव्यलोक न संगवः | रथमारोपयेव्यस्त रथमार्गं प्रमाजति ॥ स याति सयसालोक्वं वायुतुल्यपराक्रमः। रथस्य गच्छतो वस्त माग वुर्य्याच्च APA?) 4 CAH WA यात्‌ YS मस्तं नाच सगवः | सव्यस्य गच्छतो भक्तया यः HATA ATSC ॥ युष्यप्रकरशोभाव्छ शभतोरण्मङ्डितं | शङ्तृव्यनिनादाव्चन्तथा प्रेत्तएकान्वितं ॥ सयाति ute Bia aa zat विभावसुः | देवेन सहितो यस्त॒ द्रृव्यन्‌ गायन्‌ तथा खयं । सव्वं महोत्सवं भक्तया भास्कर भक्तवत्सन्तं | AQ संवत्सर Wa भानोयत दिनोदये। रथप्रक्रमणं ata कथित्‌ wa भवेत्‌ | ततो sna वपं कत्तव्य भूतिमिच्छता । द्न्द्रवजस्य चाप्यव' यदिने यजनङ्कतं । तती Sena वष कत्तव्या नान्तरा पुनः । याचायाच्चापि ते भङ्ग qaqa षभष्वज | मन्देहा नामतो ज्ञेया Waal नात्र BAA: I ये कुव्वेन्ति तथायातां नरा धरध्वजस्य तु | इन्द्रादिदेवता ज्ञेया Waa परमं पटं।॥ = क "~~~ ~~~ ~~~ ~~ (२) awefafa ar qa: ४५४५४ SAE: | [व्रतखर्ड' २१ श्रध्यायः | gaat कथिता भद्र रथयात्रा दिवस्पतेः | यः Yat वाचयित्वा तु सर्वपाप; TAA ॥ sat च विधिवद्क्वा यान्ति खय्यसदोनराः। दति भविष्यत्पुराणोक्तो रथया नोत्सवः | on(d)uo खोक्लष्ण उवाच | ठकादश्यां माघमासे चतुदृश्यट्मोषु च। एकभक्तेन यो दद्यात्‌ चेलकान्यजुनानि च। उपानहौ कम्बलच्च wea faa’ तथोद्‌कं। करपा चादिकं वत्र यथागक्वाधिने ao आत्तं ताणएपरो नित्यमश्वभेधफलं लभेत्‌ | एतत्सौ ख्यव्रत नाम ATAATUAT पर ॥ इति भविष्यत्युरा णो क्त' सीखयत्रतं। 000 नारद्‌ उवाच। gat मया विघानोक्ता विष्णोराराधनक्रिया। तत्‌प्रसादात्‌ ALAS जन्मदुःखजयप्रदा | waa ओरोतुमिच्चछामि सम्यक्‌ पूजाफलप्रदा। अत्पग्रन्येन SIT महापुखफलप्रद्‌ं ॥ पविचारोहणं क्त्वा fawufaaafad: | किं फलं प्राप्यते देव नरेस्तदतमानसेः ॥ फ त्‌ दर्ड२१अध्यायः'] देमाद्धिः। ४१ afama च कत्तव्य विधानच्च तथा vac | faat यस्यां aurea प्रमाणञ्च यथाविधि a यावन्तस्ततवस्तस्मिन्‌ तत यच्चानुमन्तग। तच्वन्यासविधानन्त॒ तथा वे वाधिवासनं॥ श्रारोदणविघधान्‌ञ्च उपवोतस्य चक्रिणः | विसर्ज नविघानन्तु पविचारोहणादिक) fa कल्ला फलमाप्नोति Baa किसकुवरे तः | पतत्‌ aa समाचच्छ विधानन्तिद्शेश्वर ॥ बद्धवा) amy वत्स परं qq विधानं Zafafaa | भया युतं पुरा सम्यक्‌ सकाशाच्चक्रपाणिनः | पवितारोदय विष्णोभूक्तिसुकतिप्रदा यकं i आयुः कोत्तिव्यशो aut सुखसम्वद्वैनावहं ॥ + ५ + 7 पश्यानान्तु यथा पुण्यं सव्व पापहरं Wa | पवित्रारोहणं तस्मरात्पवित्‌' परमं स्मत | संवत्सरं नरो UR WAWY Wales | यत्‌ फलं anata पवितारोदहणेनतु॥ न करोति विघानेन पवितारोदरण्न्तु यः। तस्य सांवत्सरो पूजा निष्कला qfaaua | = FAY’? > तस्माडइक्तिसमायुकनरविष्णुपरायणेः। 0 AR ‰* ॐ . द्‌ वष्र वष प्रकत्तव्य पवितारोहणं हरः ॥ श्रावणस्य सिते पत्ते nace दिवाकरे! ( ५६ ) eae: | [व्रतखण्डंर१ अध्यायः द्वादश्यां वासुदेवस्य पवितारोहणं स्मतं ॥ faze a tal काय्यं कन्यायान्तु गतेऽथवा | तस्यामेव fan सम्यक्‌ GaSe म कथञ्चन । विष्णो रुद्रस्य gare faite: घर्म्‌, खस्य च । देव्या गणाधिनाथस्य मातृणां wags च ॥ पवितारीहणं काय्य अन्य ara यथाविधि । अक्त्वा फलहानिः स्थात्‌ संवव्छरकताचनात्‌ ॥ सव्रान्तु महत्‌ Ya पवि्रारीदरे aa | तिघयस्त्वत्व विन्यासाः एथगुक्तास्दपोधन ॥ प्रतिपदनदस्योक्ता पवित्रारोहणे fefa: | an eat दितोयान्त्‌ तिधोनासुत्तमातिधिः॥ Salat तु भवान्यास्त्‌, WIA तस्तस्य तु | पमी सोमराजस्य षष्टो प्रोक्ता गुहस्य च 1 सप्तमौ भास्करेपोक्ता दुगायाशाष्टमौ सता | मातृणां नवमौ War दशमो वासुकेः स्मृता ॥ एकादशे षो णान्तु दादौ चक्रपाणिनः) तयो द गोद्यनङ्स्य शिवस्योक्ता चतुद पो | मम टेव सुनिधेष्ठ पौणंमासौ fafa: स्मता। यथोक्ताः BRIA तु तिथयः खावणस्यच | स्वेषामेव रेवानां कायः तासु यथा विधि नारद्‌ SATA | कस्मिन्‌ da तु कत्त व्यं पवित्र चक्रपाणिनः! v ^ वत ख्ड'२१श्रध्यायः।] VATE | ४४३ प्रमाणं Wa ATA पण्य ' चैवेह Fle | कनि मध्यमे चेव उत्तमे च पविच्रके। क्रते यथा फलं कलतस्तददस्र पितामह ॥ ब्रह्मी वाच | णु AT AAA यत्‌ AA यत्‌ प्रमाणकं | विधानं च यथा तस्य फलं चेव यथा भवेत्‌ ॥ प्रथमं दभसतन्तु Waa ततः पर, ततः त्तमं (१) aye Wie wa ततः परं | शचिकापाससुत्रण fafa वा भाण्भं। शचिभूत्वा शचौ देशे कारयोत प्रयत्नतः | तददिधा नोपयुक्गन्तु TAA | कन्धा कत्त यते Ta नारौ ary परतित्रता॥ विधवा सार्धभोलावा सूत्रमेतत्त कत्त येत्‌। कंशयुक्त चतं दग्ध मद्यरक्तादिटूषितम्‌॥ मलिनं नौलरका' वा waa a विवजयेत्‌ | यथोक्त सूचमादाय तिगुण fa: प्रयोजयेत्‌ | ufaa तेन tala कनिष्टोत्तममध्यमं | कनिष्टन्तन्तुभिनज्ञयं सप्तविं गतिभिः gas मत्य लोके तु तत्‌ Aha सुखायुद्नपुचदं | चतुः पञ्चशता ज्ञेयं तन्तूनां मध्यमं परं | दिव्यभोगावदह yar खरगावाससुख uz | a णम भोभो खगन काक 9 न ऋ स (2) चोद्रसिति वा Qa: | 388 दमाद्धिः | [त्रतखग्डं ae | उन्नमं चेव तन्तूनां शतमष्टोत्तर शतं) दत्वा तदहासुदेवाय विष्णुलोकं व्रजेन्नरः ॥ ग्धात्तरसहस्त्ं तु तन्तूनां परिसंख्यया | वनमाला खता विष्ण eur ufaver fe at a कनिष्ठ नाभिमाच स्यादूरुमाचन्तु मध्यम | पवित चोत्तमं प्रोक्त जानुमाच प्रमाखतः॥ वनमालाप्रमाखेन प्रतिमायाः प्रणयते | नराणां जन्मसंसारदुःख्ल्य प्रणाशिनौ # afas दाद्‌ गवोक्ता मध्यमे fray: Har: | faqueane प्रोक्ता waa पविचके ॥ WARSIAL काय Talat a विधानतः, सुनोन्द्रवनमालायां विष्णुपूजनतत्परः ॥ अधिवासनसते तु ग्रन्थयो दादश War: | तत्वन्यासविधान तु यूयत गुद्यको त्तम ॥ zz विष्णुरिति ख्यात मन्वमेतहि जन्मनां श द्राणां तत्वविन्यासः मन्तो वे दाद्गाक्तरः ॥ तावदावत्त AV यावन्तो TAT: स्मता: | एकधा च दिधाचेव चिघधाचेव पविचरके।॥ sq प्रतिग्रयि सक्लन््रन्वजपः मध्य हिःशेषेचिः; कुड मोौरकपू रद नादिविन्लेषनेः | पविन्‌ाि fataarg तच्छन्यासन्तु योजयेत्‌ | अधिवःसपविताणि एकादश्यामुपोषितः ॥ यष्ादिभिः प्रपूज्याथ न्यसेदिणोः ुरेनिजि। व्रतखर्ड aaa: |] दमाद्धिः। छ भ तत्छन्यासं at aia पविचारोहरं हरे; ॥ VATA च तद्रातौ Aaa भक्तिमान्‌ | एकादण्यां Waa: एष्पधूपविले पने: ॥ aaq gaara: पृजयेत्ररुडष्वजं त्यमौ तशुभाख्यानेमंल्नयुद्ध; प्रचालितः |} वा दयेमासुत णड यज गर Bahay | च्ोरकश्ररसंयाववटकापृपमाद्‌ कः । फलः सुगन्ध मधुरेव कारयेदरे;। एकादश्यां नरो भक्तया स पूज्य मधुसूदन । पवित्रारोदहण कुर्य्याद्‌ वरेवस्य चक्रिणः | सोपवासः ofa: कनजप्यो जितन्द्रियः॥ द्वा दानं दिजाग्रेभ्यःपजयिला जनादन | पृव्वोधिवएसितं सम्यक्‌ समादाय परवित्‌कं॥ अलो देवेति मन्ते ण विष्णामष्नि' निवेदयेत्‌ । अय मन्तो दिजातौनां पवितुारोदणे स्मतः ॥ ~ mn =^ „~ शूद्रस्य मृलमन्वो at da वं पुजयेदरिं। वा गब्द्ाहाद्‌शात्तरी वा,येन a पृजयेद्रिमिति मूृलमन्तव्याख्या । स्ततिमङ्गगल निर्घोषं गोंतवादितनिस्वनेः। पवतारोडइणं त्वा देवतायास्त्विमं वरं । मणिविद्रुममालाभिमंन्दारकुसुमादिभिः, एषा सांवत्सरो पूजा तवास्त गरुडध्वज | waza क्रोयाहोनं भक्तिद्धोनं gale ah ४४६ eat: । [AAR २९अध्याय्‌ः । aq पूजितं मया देव परिपूणं तदस्त i वनमाला यथादेव कौस्तभः सततं छदि । पवित्रमस्त्‌, ते तदत्‌ पूजा च हदयावहा ॥ aa पवितकं विष्णोव्व्पदादगवापिकं। फलं प्राप्रोव्यक्ला तु पूजाहानिमथाप्रयात्‌ ॥ एवं संप्राथ्य देवेशं प्रणिपत्य पुनः पुनः मरूयोऽपि दद्यादिप्रेभ्यो हरिसुदिश्य दकिणा | ततोनुभोजये(१)द्त्या गुर ज्नानप्रदायिनं। वस्वगन्धानुलेपा्यैः YA TITRA; | प्राप्यानुज्ञां गुरोः शिष्यो waar araaa za | a गच्छति faasrar नरकं fe atraa: ॥ तस्मात्‌ सव्वप्रयल्नेन यथा विष्णुः तथा ae । आनन्दे नाचयेव्यस्त, स सुक्तिफलमाप्र यात्‌ | यथा विष्णुस्तघधा विद्या यथाविद्यास्तथा गुरुः | वितथं पूजयेद्स्त a समुक्तिफलमर्हति ॥ ताम्बूलं पुष्पगन्धाद्येः पूजयित्वा विसजजयेत्‌ | ततो बन्धून्‌ विशिष्टांश ज्ञातिमित्रसमायितान्‌ ॥ भोजयेदागतांखान्यान्‌ भिन्ञुकांश्च खशक्तितः। एवं विधि विनिन्वैत्यं पवित्रारोदरे हर ॥ विष्णोः सायुज्यमाग्नोति पुनराहस्तिद्लंभं। स्थण्डिले देवटेवस्य एष एव fafa: स्मृतः ॥ = “~ ~ ~ nc ~~ ~ _ (१) पृजर्येद्तिवा पाठः| व्रतखर्ड'२६अध्वायः ] ददेमाद्धिः। ४४७ पवितारोदणं विष्णोविशेषः ख यतानि | यावत्तन्तुसमायुक्त' भावयेत जनाद्‌ नं ॥ aay aH तस्य एष एव विधिः स्मृतः(१) | यावन्तो ग्रन्ययः प्रोक्ताः MAW खानुमन्तं ॥ ततव मृलमन्त्ेण दद्यादिष्णोः पवितुकं। प्रतिमां सरख््लिवाय क्रत्वा विष्णोः पवितकं | कुल नाशं ससुदधत्य(२) विष्णुलोकं व्रजेन्नरः ॥ एवं संपाद्य विधिना प्रवित्ारोदहणं ge | अच॑यित्वा विधानन हरि सपविचक। विसजंयेत waa sada पवितकं | सांवत्सरी wut पूजां संपाद्य विधिवन्मम ॥ ्रजद!नौन्तु गोविन्द्‌ विष्णुलोकं विसजितः; | मन्तं णानेन aay अवता यथा विधि ॥ SUIT AWN zatma वाथ विसजंयेत्‌ | यावत्‌ Ya स्म तं सम्यक्‌ पवितुरोहरणे aa | उपवोते छते भक्तया तत्‌ फलं चाप्नुयान्नरः | अनेनैव विघानेन avant तिददिदीकसां ॥ पवित्रारोहण कुच्यात्‌ खण्डिते प्रयतो नरः | अनेनेव विघानेन तस्य पूजाविसजं नं ॥ प्राघेनावादनं दानं समस्तविधिमाचरेत्‌ | ge agg + + प ० ० ० 9 eg Pag ag ete Me (१) faa मानवं qafaia पाठान्तरं। hg i rn (९) कुल्लानां णएतसद्त्यति पाठान्तर | 8४८ Sala: | [त्रतखर्ड१अध्यायः। म © „~ $ तच्चमन्त: समावेश्य विसजनविधिक्रियां । अचनेतु सुरेन्द्राणां सवंकामानावाप्र यात्‌! © + + | ¢ ह अःयुवलं घनं विद्यामारोग्य कौलति मव्ययां प्रयच्छन्ति यथा शक्तया Neate दिवोकसः। चिते टेवटेषेग शङ्कचक्रगदाधरे ॥ ~ ¢ C ~^ चे £) (~ श्रिताः HASA WA a: BATA हरिः । अचिते सवंलोकेशे सुरासुरनमस्छरते।॥ ana कसकेरिघ्नेन याति नरक नरः। ९ ~, * TAA Salis च सुरासुरग्रु दरि } ये नमन्ति नरा नित्य' aa नरकगामिनः | तपस्तप्ा नरो घोरमरण्ये विजितेन्द्रियः | Ra समवाप्रोति स्मृता तु गर्ड्घ्वज | दति गुह्यतमं विष्णोः पूजाकल्पः aaifed | 6 . 6 waratia aaa: a याति waigta | शिवागमे गिवपविचलत्तणं | एकाद्शणाधवा सुज स्तिंगता वा्टयुकया | पञ्चगता वा HA व्य तुल्यग्रन्यन्तरालक॥ दाद्गाङ्ग लमानानि व्यासादश्टाङ्ग.लानिच। लिङ्भविस्तारमाणानि चतुरङ्ग षिकानिवा॥ न an Ge af + तथव पिशख्िकास्पप्य चातु सावद्‌वत'। गाङ्गावतारक काय्यं परवितमतिसुन्दरं | gv aaa '२१ ग्रध्यायः] देमाद्धिः। नारद्‌ उवाच, भगवन्‌ देवदेवेश परं कौतृहलं हि भे। पवितारोहणं पुण्यं प्रसादादक, महसि । पवितेति कथं संज्ञा gatas किमुच्यते! छतेच किं फलं प्रोक्त विधानं तस्य ated ॥ द्रव्येन केन वा Garg किं ward हि aq स्मतं | fa देवत्यच्च fae: कोवा तस्य ऋषिः स्मतः ॥ ध्यात वाधिभूतं वा धिदेवं कथं भवेत्‌ | केन मन्वे ण तत्कुय्थादिघानं तस्य कौटश्चं ॥ कस्मिन्‌ कालेतु कत्तव्यं aaa at foal wa क्रियते वा कियत्‌ कालमेतदन्रूहि सुरेश्र | श्योभ गवानुवाच(१)। Bly नारद WTR तोषितोऽहं Baraat रुष्व तव qaifa पवित्रारोहणं क्रमात्‌ ॥ पवित्रं तेन विख्यातं ब्रह्मतेजो fe गोयते | विष्णाख्यया तु विख्यात तदा लोके निगद्यते ॥ तदेव सूत॒रूपेण यज्ञेशः कमणः प्रभुः | तदेव लिगुणोभरूतं मतं नारायणख्यया | चिदेवात्मा तिदृवात्मा arat: प्रणवः सतः ॥ ते पब्वतात्‌ AYRAT वराहा्ङ्गमाभिताः। कुत एष ससुत्परत्रदति प्रयस्य इदसुत्तर। सङ्कातिन च तन्तूनां नवाता परिकीत्तितः। ( १) त्रद्योवानति पाठान्तर | ( ५9 ) Bye माद्रः [त्रतखण्ड'२१अध्यायः | तन्तं प्रथमाटेवो वासुदेवो जगद्ग सः॥ हलागुधो दितौयस्त्‌ vasa ठलौयकः। अपरेसखनिरुदस्त्‌ ततो नारायणः प्रभुः ॥ बरह्माविष्णुस्तथानुणां वरारोहे समाथिताः ॥ अधिदृवेन रूपेण ्रध्यात्थेा च fata Ft मनो बदिरहङ्गारस्तन्मात्‌ाणि तथेव च । saa fa नवेतच्च zara सुव्यवखिता | दौ रन्तरित्ं एथिकी quae च ॥ SHIT GAH मकारद्चाधिभूतकम्‌) afaad तथा कमं ary सद नतुयं । जेयं पविने तदिहानधिदेवमद्‌ा रेत्‌ | HAUT गायतौ प्रदयुन्धी ऋषि सयते ॥ वासुदेवः परा तस्य Saat परिकीत्ति art योगोऽस्य व्रह्म करणे ब्राह्मणानां विशेषतः ४ saga fearatat कत्त व्यःप्रतिवत्सरं t सरिदर्षासु gata पवितारोहणं शभः ॥ यावच्च धारयेत्तन्तुस्तावत्‌ Gala वे ad | तथा पवितकं कत्वा तोन्मासान्मासमेव वा ॥ पत्तदिमास सयोवातिरात' aqua ar अवधिकालतिकं कलवा सितपक्तायनुक्रमाःत्‌॥ यथा शक्तया यजन्तयनं कालसङ्ल्यना तथा । पवित्‌ क्रियमाणे वे न त्याज्य देवतान्तिकं # उपवो तौ कते पश्चात्‌ wag विचरेदुधः । ATewW '२१अध्याय; |] BSarfz: | BRE Age शोभनं az विजयं च चतुधकं॥ आषाटादिक्रमाद्‌ वंनामानोमानि घारयेत्‌ | दादश्यां aad चापि पञ्चम्यामथयवा fea | अनुकूले q(t) कत्तव्य पञ्चदश्यामथापि वा । सत्‌ तु याञ्जिकं कला तणवस्कलसन्भवं । कार्पासिकं तथा काय्यै दाभिकचापि कारयेत्‌ ॥ ब्राह्म णौ कलितं सत्र मन्ददौतमघापि ar तगुणं त्रिगुणौक्ठव्य क्षालयेन्निमलाम्भसा ॥ aaa शोधयेदीषान्‌ केणाव्यांख स्वय बघः। अष्टोत्तरशतं कुयात्‌ चतुःपच्चाशदेव वा ॥ सप्तविंशतिरबाय ज्येष्ठमध्यकनौयसः | अङ्ग छपव्वमात्राणि तथा स््रौशूद्र एव तु(२)॥ Vaya: सवं भक्ताश्च मधुसूदने | पूवोकं गुरुमासाद्य भक्तया सन्तीषयेच तं | AAG प्राययेत्पश्चादुब्रारं कुर्‌ A प्रभो | AF छ पव्वमात्रास्त ग्रनयख्ोत्तमाः स्मरताः ॥ तद्ई' मध्यमे चेव asaya: स्तः । अधमं नाभिमाच् स्यादुत्तमाङ्ग दितोयकं॥ लभम्बितो जानुमातरे च प्रतिमायां निगदति! एवं हि रूपतः कुर्यादघमाधम-मध्यमं I यथाशोभं प्रकुर्वोत Aaa विषमाः स्मताः। (१) Wagram, दनिवा ais: | (2) पवितं स्ति पाठान्तर, ४५२ Safe: | [व्रतखर्ड'२१गअ्रध्यायः। से वप्रोक्ता भवेदेव प्रोक्ता wa कचित्‌ कचित्‌ ॥ aoa हिज एव विद्याविचन्तण | # ५६। | स्यख्डिले वाघ वद्यामि प्रथमं कखणिकान्तर॥ दिव्याग्रञ्च दितोयञ्च इदिणापाल्लान्तग az t या WAG कत्तव्य प्र्यवायोद्यतिक्रमात्‌ ॥ fasten: Ue: Wage च | सद्‌ा चारश्ितो मन्तो वेद्वेदाङ्पारगः॥ Q mm, अलब्दोऽपिशनः सोम्यः सव्वभ्रूतहिते ca: । ara? a a विक्तेयः सव्वकर्रती fe a: ब्राह्मणः चचियो ae यक्ञेयो मधुस्षदनः agit: afaat वश्यस्तथा alge wa वा॥ WIAA WA समव भक्ताश्च AGATA | Udia गुरुमासादय मत्वा सन्तोषयेचतं ॥ यज्या Weta पात्‌ उदार कुसुमे प्रभो) पविचेनंव यज्ञयो यज्ञयमधुम्‌द्नः॥ एवं करिष्यामौव्य॒ल्ते Tatty समाहरत्‌ ॥ रेः सचादि यत्स्वे गुरवे तन्निवेदयेत्‌ | यथा सक्तया पवित्रञ्च विः कुथांदतन्द्रितः + अष्टात्तरेण मन्तेण यन्यान्ते ग्रन्ययस्तथा | कुक मं रोचनाच्वैव wits समन्वितं ॥ अद्‌वक्तेन मन्तेण व्यस्तेन च विनि;चिपेत्‌। समस्तन तती AM मन्येत विचन्तणः i उक्तेनेव तु मन्तरेण aM aa पविचकं t ्रतखण्डं २१बअध्यायः।] ware: | ४५२ ओमिति aya fafaa नम दति तदुपरि रोचना नारा यशायेति तदुपरि कपूरमिति Aaa मन्ते ण भैलयिला। ओं नमोनारायणशयेति समस्तेन मन्ते ण fanaa समस्तं नैव पबित मलं कुयात्‌ | दूति विष्णर दश्योक्तः पविचारोदणएविधिः | ब्रह्मो वाच | Wael कारयेत्‌ पूजां मम aa यथ्ाविधि। £ ~ a © = Wal JAM AGATST A MBE मनोदवेः॥ सदा सपूजयेदेवं सव्वेकामानवाप्र,यात्‌ | सत्वं तोधा भिषेकस्य फलं गाप्नोति दानव । उमां शिवं हताशच्च प्रूजयत्‌ प्रतिपत्तियो | + ast रो faatad दमनक तौयायान्तु पूजयेत्‌ ॥ हविष्यमन्न Aaa देयं गन्धा चनं पुरा । फलमाप्नोति विप्रेन्द्र उमया यत्‌प्रभाषितं॥ ॐ ~ ™N a} ~ क Balai यजदवों NTU समन्वितं) qe मागरुक पू र मणिवस्तस्रगचिंतां ॥ सुगन्धपुखखधपे च्च Cara सुमालितां | Meta Dade शिवो मे तुष्यते सदा ॥ ॥ + 9 । १९। रातो जागरण काय प्रातद्यातु efaat हेम-वस्त्ा-त्रपात्राणि ताम्बूलानि MARAT | 848 Satie: | [ततखस्ड२१अध्याय; । सौभाग्याय सदा स्तोभिः काया वचसुखाथिभिः । TIT कारयेत्‌ पूजां ल्डकादिभिराछतां i चतुध्धां विन्ननाशाय सवकामस्दये | CYA पृजयेन्नागान्‌ तथादयन््होरमान्‌ ॥ त्तौ रसपिं स्त aaq 2a सपं विषापद्धं । Bet स्कन्दस्य RAAT पूजा BATTAL | इहेव सुखसौभाग्यमन्ते स्कन्दपद ATA ॥ भास्करस्य तु सप्तम्यां पजा दमनकादिभिः। mal प्राप्रोति भोगादि विगतारिमहातपाः॥ मातणामपि चाष्टम्यां gat सव्वात्रगन्िकां | छ्ततवाल्नभते वत्स सिदिभिष्टान्तु दमनके; । नवम्यां पूजयेद्देवीं महामदिषमद्दिनीं | बु्ुमागरुक पूरेधंपावध्वजतपं णेः ॥ द्‌ मने्सपत श्च विजयाख्य पटं लभेत्‌ | SAU द शम्यान्तु पूजा काय्योनुगन्धिकौ | धनवान्‌ पुत्रवान्‌ कान्तो ऋषिलोकं महौ यते | दा दश्यां पूजयेविष्णु' कपू रागरुचन्द नैः | इविष्यावेर्महावादौ aul विष्णुपदं लभेत्‌ । कामरेवस्तरथोदश्यां पुजनौयो यघाविधि॥ रतिप्रोतिमायुक्तो amaanfayfaa: | वामे खुहोतघन्वा च पञ्चवाण्करः स्मृतः | कुम्भ वा सितवस्वे बा लेख्य' पच्च फलादिभिः, ब्रत ण्ड'२२९ अष्याः] warfs | ९११ खणड शकीरनेवेदय; सौभाग्यमतुलं लभेत्‌ | चतुर श्यान्तु देवेशं शशाङ्गाङ्धितशेखरं | ्ौरादिखपनःस्राप्य yaya: सुगन्धिभिः ॥ पूजनोयो यथान्यायं मदनेरहेमसन्नितेः। वस्ताव्रमणिपूजा च कत्तव्या महतौ शिषे वितान-ष्वज- चख देवं HAWS जागर | मदहापुखमवाप्नोति अश्ठमेघफलादिकं ॥ पौणमास्यां तथा AT सव्वकामसख्इये। इन्द्राय सह शच्या च कामिकं लभते फलं | एवं Tyee ये च पूजां प्रकुबेते । सन्वेग्रज्नतपीरान फलान लभन्तिते। विचितदेवभोगेषु क्रौडन्ते दिवि खेच्छया | पण्यत्तयादिदायाताः saat खल ते Zant UAT न सन्देह इत्याद भगवान्‌ शिवः | इति देबोपुराणोक्तद मनकपूजाविधिः । 000 सूयय उवाच) शिवं ये पूजयिष्यन्ति ea दास्यन्ति gaan: | v ¢ „ _ क सव्वेपापविनिम॒क्ता दिवमष्यन्तिते fest: u यथा पशुपतिनित्य दक्वा सवमिदं जगत्‌ | न लिप्यते पुनः सोऽपि यो नित्यः व्रतमाचरेत्‌ ॥ इह HAAG पापं TATA BAY aq! ४१५१ Salta: | [त्रतखश्ड'२?अ्रध्यायः। व्रत पाश्पत नाम wat दन्ति fasnaa दादणश्यामेकभक्ताशो चथोद्‌ष्यामयाचितं। चतुर्दश्यां तथा नक्त उपवासं परेहनि ॥ परनि अमावास्यायां) wanes हिरण्यं Ca’ ताखेमयं तघा । सौवण" कारथेत्‌ पतं Barat पथक्‌ was | तबेवोक्लेखये नमृत्ति ` शिवायाश्च शिवस्य च ॥ तत्‌ प्रमाणं हषं Galea’ हेनश्वतुग्‌ सं । रोप्याष्टगुणतास्रन्तु तद्द वापि कारयेत्‌ । AMAURY गुच्छञाशौतिप्रमाणं ¦ तद्दम्बति ₹देमरूप्यतास्रेषु योज्यः हषतरय काः sara दद्यादिति वचनात्‌ । कुम पत्र समारोप्य वस्तोत्तमयुतं तचा | तयोदश्यामे कभक्तं रिक्तायां AMAT | AARC | गन्धपुष्पै; HAAS: वस््राभरणरीपकैः | गङ्गाधर समभ्यच्य प्राथयेत्‌ प्रवरम्बरं | गङ्गाधर महादेव सवलोकपरावर । जहि मे सवपापानि पजितस्त्विह शङ्कर ॥ गङ्गाधर धराधोश् परात्पररवरप्रद्‌। श्रौ कण्ठ नोलकण्टस्वसु माकान्त AAA ॥ एव पूज्य विधानेन प्रतिप्द्यदिते रवो । व्रतखण्डं २१ अध्यायः] Sarfz: | ४५ हिर्यादोन्‌ Wang arava निवेदयेत्‌ ॥ घ्रा तं सनगः Wa TATA WAT सवकत्‌ | न लिप्यसे विङुव्ा शस्तग्रामाङ्ः रु AST | एवं Jal नमस्छत्य ठषान्‌ दब्याद्रौोरस्ितान्‌ | गुरव दिभ्यो दिजेस्यस्तांच्छङ्र प्रोयतामिति | एवं व्रतमिदं कला हषं दखाहिजातये॥ agra, प्रतिमा | TAA महाघोरं न पष्यति कदाचन) ततः gar a fanfa: पुनरायात्‌ खक gt | थमसोकन्तु संदृश्य GA a सहितस्तद्‌ | ते; Waa यथाहत्तं सव्वमाख्यातवानत्रपः ॥ ततः FAC ARITA बवषद्‌नं यतव्रतः। सव्वेपाप विनाश्य सहस्रा चोदिरौपतिः ॥ सव्वं सन्तश्च ये प्र तास्तथा वे चापरे शतं) तैस्तैः साई स cafe: परलोकमवाप्रुयात्‌ | थः करोति aay a सव्वपापप्रणाणनं। न लिप्यति स पापेन पञ्चपत्रमिवाम्भसा॥ ब्रह्महत्यादिभिः पापेरगम्याममनादिभिः। मुच्यते पातकभ्योद्याभच्यापेषेः gary wag ! यः करोति ASAT दानं स्व्वेसुखावदहं। हत्वा पापान्यशेषाणि स्गलीकंस गच्छति ॥ दूति बह्किपुराणोक्तं पाप्रुपव्रतं | O00 ~~~ ४५८ देमाद्धिः। [नतखच्ड'२१अरध्यायः। HIT उवाच | TUANAAAS यच्च पुख्योपठ हग | भनोरथप्रटं यच AKA RAAT AA ॥ याज्ञवल्कय उवाच | प्राप्यति विविपरेथननेयत्‌ फलं मासिकेःछंभिः(१) i उपवासेस्तदाप्रोति समाराध्य Hales | मनोरथानां सप्राभिकारक पापनाशनं) A यतां मम WAT त्रतानासुत्तमं त्रत । यत्‌ wal नजडोनान्यो वधिरो भवदुःखितः नचेवेशटवियो गाति कथित्‌ प्राप्रोति मानवः नचाप्रियोस्य लोकस्य कदाचिदपि जायते(२)। सप्तजन्मानि wary सव्वेपापे; प्रसुच्यते ॥ विष्णुत्रतभितिख्यात दशितं विष्णुना खयं | nasa दितौयादि कल्वाद्निचतुषट्य॥ पगमासपारणप्रायं WRATH AA | aa सिदार्थकेः स्नानं ततः छष्एतिलः स्रतं।॥ वचयाघ Salasts सव्वोषध्या ततःपरं t नाजा छष्णाच्‌ Aaa तथा तं तेन पूजयेत्‌(३) ॥ तथेव च चतुथऽह्ि पौकेशं च केशवं(६) | कामक (१) साधिखाधभिः feta at are: | (२) नवाप्रियो मानुषाणां न रौगौतुवि sree «fa ar are: (३) खानं छबव्णाच्यताष्येन दति पुखकान्तरे पाटः। ८४) ध्यालादेवं प्रपृजयदिति पाठान्तरं - श व्रतखण्ड२१अध्यायः 1] CaF | 8५९ का o A xj £ ~ A देवमभ्यव्य पुष्पञ्च पञ्च धूपानुक्तेपनः | उद्रच्छतश्च वालेन्दौद्‌दयादष्य" समाहितः, = A AA © न पुष्पः पत : फलं व सन्वेघान्यञ्च ufaa: | दिनक्रमेण चेतानि चन्द्रनामानि कौत्तयेत्‌ | शशो चन्द्रः शशाङ् निशापतिरिति क्रमात्‌ 1 नक्तं Yala सततं यावत्तिष्ठति चन्द्रमाः AAPA न Yala व्रतमद्गभवाच्छभे | एवं way मासेषु ज्ये्ान्तेषु ययसिनि | ada वे व्रतं छं हितौयादिचतुरिनं। विप्राय efaut दरदयात्पञ्चम्यां च यशस्िनि। एवं समापयेन्मासेः oe भिः प्रथमपारणं | ~, + =~ पारणान्ते च टेवस्य wad भक्तितः शभः यथाशक्या तु कन्त व्य' ferns विवन्नंयेत्‌ ॥ आषटदिदितोयाच् परमासन तपोघन्‌]. पारणं वे समाख्यात व्रतस्यास्य Bune ॥ व्रतम तदिलोपेन cua ययातिना t =u ~ 23 तथान्यः एथिवोपालेरुपवासविधानतः ॥ उपवासो नतौ | त्रितं मुनिसुख्ये ख मरोचिचयरनादिभिः। a ™ सु्मित्रयाच(१) ककय्या aifwear धूमपिङ्गया(२) ॥ (१९) सुरभधाधद्तिवा atarax | (र) शाण्डिष्या च समोतया इति वुर्कान्तरे प्राठः| ६६० दमाद्धिः। [त्रतखणर्ड'२१अध्यायः। सुटेष्णया च देवक्या मतिमत्या क्तं तथा! . १ सावित्रा पूरमास्या च(१) वोरिणयाथ सुभद्रया + | > . ब्राह्मण्दतियविशा शूद्र स्तोभिरनुहितं। SAAT रम्भया चेव सौरभेया तथा A | ~ चे =~ सेटि + धराष्छरोभि(:) gars: सेवितं युखवाज्छया | प्रथमे पाद्‌ पूज्योख fades पूजनं ॥ SMA Tas, पूजा चतुथ शिरसो we: | DAMA समस्तेभ्यः पापेभ्यः खदयान्वितः $ । ५५ ॐ ^. मुच्यते कलुषथ्व स प्राप्नोति मनोरथान्‌ | ्रतानासुत्तमं दयोतत्‌ aa aa भाषित पापप्रश्मन Na मनोरघफलप्रदं ¦ यच्च काममभिष्याय क्रियते नियतत्रतैः ॥ व्रतमेतन्बहाभागे तं संपूरयते कणां । मनोरथान्‌ पूरयति सवंपापं व्यपोहति ॥ अव्याहतेन्दरियलच्च सप्तजन्मानि यच्छति i माघे AAA TAY प्रयागे पापनाशनं | सकल तदवाप्नोति gar विष्णु" aafead | इति दिष्ण.घर्मीत्तयो क्तं विष्ण व्रतं । (१) वेदवत्या तथा चौरमिति पुलकान्नरे पाठः | (२) धराधरे दति qearat पाठः, त्रतखर्ड'२ १ अध्यायः] watz खौमाकर्डेय उवाच | यो गभूतं इरि ga चातुमीस्यसुपोषित | अचयेत्पौणंमास्यान्तु सोऽश्वमेधफल लभेत्‌ ॥ योगभ्रूतं सकल | ब्रह्ममूतममावास्यां पूजये त्तासुपोषितः। राजसूयमवाप्रोति कुलसमुदरति BA 1 ब्रह्मभूत निष्कलं | ब्रह्मभ्रूतममावास्यां पौणमास्यां तर्थेव च योगभ्रूतं परिचरन्‌ केशव महदाप्र यात्‌ ।॥ aaa प्रौतिमाप्रोति मासप्तास्तयोः सद्‌ t पजितः सोपवासेन भक्तया देववरो हरिः ॥ महात्रतमिदं ख्यातं सव्व कल्यमषनाशनं ॥ सवत्सरमिदं कला नाकण्छ महोयते॥ सव्वेपापोपरशमनं व्रतमेतत्‌ प्रकोत्ति तं ! स्र चित्तशक्तिरेवात्र सव्व कमसु कारणं | कछला त्रत इादगवत्सराखि प्राप्रोति लोक पुरुषोत्मख | तचोष्य कालं सुचिर महात्मा प्राप्रोति लोक पुरुषस्ततोऽसौ | इति निष्ण धममोंत्तरोक्त मद्ात्रतं! कनन {)() () (000 BER हेमाद्रिः । [त्रतखग्डं २१अध्यायः | माकर्डेय उवाच | चेत्रशक्तादथारमभ्य vas दिनसप्तकं । दिनं छदिनौच्च व पावनीं चैव पूजयेत्‌ | wat चन्त तथां सिन्धु तथा भागीरथीं क्रमात्‌ | वहि खानं(१) तथा gaifaa’ नक्रा्नो भवेत्‌ | जले च APIA Blt शान्तात्मा च fea fea तोरप्रणाख दातव्या वारिघान्यो दिजातिषु। च्रौराशनख fasa तत्तथा feaaaa | एव संवत्सरं HAT YU संवत्सरे AT: | दिजातिषु ततो दव्याद्रजतस्य पलं एभं ॥ फाल गुनस्यासिते wa (२) सप्तम्यां दिवसे(३) क्रमात्‌ | तं लोकमाप्नोति नरो यत्र पायसकदमाः। AACS दिव्याः सव्वकामफलप्रदाः | तचोाष्य कालं शचिरं Asia मानुष्यमासादभवल्यरोगः। गुणे waa धनेन युक्तो राजाथ वा ब्राह्याणपुङ्कवख tt इति ओ्रोविष्णधर्मोत्तरोक्त' नदोत्रतं | 000 a 0 नि नि ea aaa ee ee ee at a 990 9१9 क पा छा # 9 + 9 + 3) ण ie 91 (१) efaaqrfafa gaarat पाठः| (२) फारुगणख सिते प्रच इति पाठान्तर | (३) विदिनभिति qearnt पाठः| ‘a व्रतखुर्ड'२१अध्यायः] BAT माकर्डेय उवाच । ्रतःपरं प्रवच्यामि तव लोकव्रतं शभ । यास्तु व्याहृतयस्तत्र BATA: प्रकोत्तिताः ॥ श्रा चरेत्‌ प्रत्यहं खानं बहिनित्यमतन्द्रितः | चैतश्टक्तात्तथारभ्य क्रमेण दिनसष्ठकं | aaa गोमयं at दधि afa: कुगोद्‌कं। एकरानोपवासश RATA समाचरेत्‌ ॥ महाव्याहतिभिरहौमस्तिलेः कार्य्यो दिने fea | संवत्सरान्तं दद्याच तथा विप्रेषु दल्तिणंा | सुवणंसुमहदा सः कांस्य घेनूस्तथेव च । सवत्सरमिद्‌ क्त्वा AG पुरुषसत्तम | सवेलोकवरः Wary खेच्छया स्यान्नराधिपः | यावत्‌ कल्मावसानन्तु कल्यादौ पा्थिंवोत्तमः। स चक्रवत्तां DAG सुरासुराणामधिकप्रभावः। सं वत्सराणामयुत शतानि स याति एृ्ोसकलाभिरामः॥ इति विष्णधममंत्तरोक्त' लोकव्रतं | 000 HRW] उवाच) Nata: संप्रच्यामि तव waad शमं महेन्द्रे मलयः सद्य शुक्तिमादरच्वानपि ॥ ५६२ ४६४ दमाद्रिः। [व्रतखर्ड२१अध्यायः। विनष्यख प्ारिपाचश्च सप्ते कुलपवेताः | चेचशक्तसमारम्धात्‌ प्रत्यहं दिनसप्तक' ॥ तेषां MUTT क्त्वा वद्धिःखरानं समाचरेत्‌ । गन्धमाल्य नमस्कारधघुपदोपान्नसम्बरदा | यवेर्हमं तथा HAleaifsn यवानपि । fae’ यवात्रमख्रोयात्‌ कुय्यात्‌ संवत्सरं व्रतं ॥ तस्यावसानं gard यवप्रख्धां ख विंग्तिः। वातकाय दिजेन्द्राय सुवण" काञ्चनस्यतु ॥ व्रतेनानेन WIT चतुःमागरमेखलां | भुनक्ति agai राजा वशेङ्त्वा रिपून्रुपः॥ भोगांस्त भुक्ता चिदिवेश्वरस्य मानुमास्ादय यथोक्तमेतत्‌ | प्राप्रोति सवे हि मयेरितं यत्‌ जन्मान्तराणय वनरेन्द्रसत्तमः I दति विष्णुधर्मोत्तरोक्त' शे लत्रते। ग. काकीर्ड य उवाच ॥ waa: संप्रवच्यानि ससुद्रत्रतमेवते। चैतशक्तादथारभ्य sae दिनसप्तकं॥ BUM स्तं दधिमर्ड सुरो ट्‌ क(१) । २ ५५५ (8 वि ५५ तथवक्तुरसोदच्च सखादुदक्नव THAT ॥ (१) सरोदनममिति पएुखकान्तर पाठः| arg ama: |] sake: | ४६१ आचरेत्‌ AE ara सुविता तघावदहिः। Baa Cla Fala सप्तम्याञ्च प्रदापयेत्‌ | हविष्या usan’ gata संवत्सर aa | संवस्षरान्तं ददयाच aati ag परयख्िनों॥ व्रतेनानेन WU सप्तस्ागरमेखलां | भुनक्ति वसुधां राजा सप्तजन्धान्तराणखितु॥ sf = ्रारोस्वकामः Fala त्रतमेतत्तथव ale) | ¢ ५ \ VURIASAHIAD स्वगकामस्तघेवच ॥ apaaauta पवित्र सो वदन wafsafearie t ~ ~*~, कत्तव्यभेतत्‌ WAATT ny >, = राज्याभिकामरचरणश Aq it इनि विष्डधर्मत्तरोक्त' समूटर्रतं। 00 ~ माकर य SATS | श्रधातः सप्रवच्यामि हौपत्रतमवुत्तमं | चे चश्ुक्तातथारम्य vas दिन सप्तक ॥ जग्बृगाकङुगक्रो च्च Matas hay , WAZ पुष्करचेव प्रत्यहं पूजयेत्‌ क्रमात्‌ ॥ नित्यमेव तदाख्रानं afta समाचरेत्‌ ! अधःशायो भवे्नित्य' तदेव feaang | RR eee (२) व्रतकाम इति पाडठान्तर। ( ५९. ) ४६६ ` माद्भिः) [त्रतखर्डः२१अरध्यायः। पूण संवत्सरे व्याद्रजतच्च fafafad | फलानि तु विशेषेण संख्थानन्दो पवत्‌ कतं ॥ तरतमे तत्रः RA पुणंसंवत्सर शुचिः । सखगेलोकमवाप्रोति यावदाभरतसंसवं ॥ मानुष्यसासाय स THI भुनक्ति uta विजितारिपच्ः | संपृज्यमानस्िदयेः सदेव मह ति भिनद णपु द्वेश ५ दति विष्णधमींत्तरो क्त दोपत्रतं | 0002000 0 = खोमाकर्डय उवाच | aya; संप्रवच्यामि Wad नाम a ad | चेतरणुक्टतोयायां BARAT TAR | सत्वा शक्ताम्बरो राजच्छक्गमाल्यानुल्ेपनः | तिष्ठेद्ृषटतोदनादासे भूमोखप्यानिणांच तां) s चतुर्यीच्च तथा Bra बहिरेव समाचरेत्‌ | पञ्चम्याञ्च विशेषेण शक्ताम्बरधरः Wha ॥ लच्छी संपूजयेत्‌ Ta: कत BATH ar शक्तेन गन्धमाल्येन छतदौपेण वाप्यघ। लच्छी रूपन्तु नारदौयपु णात्‌! पद्मा पद्मकरा कायां पद्मपुष्पास्नखिता। AGUA स्रूपाव्वा सान्तसखत्रकमश्डलुः | व्रतखर्ड'२१अध्यायः।] दमाद्धिः। ४६७ हरिद्रया च धान्यन BIE HA गुडेन च। इुलन्तुविकारेख लवणेन च भूरिणा । ख शक्तया च महाराज yfrar वलिकपषंणं(१) । aaa ततोवज्नौ पद्यानि ज्ञुइयाच्छविः॥ तदलानि च बिल्वानि तदलाभे तधा wa | त्राद्यणान्‌ गोरसप्रायं तभूविष्ठमाशयेत्‌ | सुवणमाषकं द्दयाद्राद्यणस्य च टक्तिणां | अनाहारस्ततः AAA शत्तौ SR यथाविधि ॥ ततस्तु पञ्चमीं प्राप्य पूर्वोक्ते पद्निनोजले। स्नात्वा संपूजनं कुयात्‌ Wasa तधायितः॥ भूय एतद्िज दद्यात्‌ TH कनकमाषकं(२) | पद्मात्तमघवा विल्व प्राओ्रोयात्तदरनन्तर ॥ ततो इविष्यमसरौयादाग्यतो मानवोत्तमः; संवत्सरमिदं कत्वा ad पाधिंवमत्तस॥ फलमप्रोति विपुल राजसूयाश्वमेधयोः | विना कनकदानेन व्रतमेतत्‌ समाचरेत्‌ व्रतान्ते माषकं सन्वंमन्निष्टोमफलं लभेत्‌ | संपूज्य MIATA शक्तपत्तस्य पञ्चमो a नित्यमेव fra Sat थियमाप्रोत्यनुत्तमां | वलसुत्तममाप्रोति रूपमारोग्यमेव च | (१) भू्मिनावखिक्पन मिति पाठान्तरं। (2) कनकमासममिति पाठान्तरं | ४ ६८ Gale: | [तरतखण्डं२१अध्यायः। जगत्‌ WTA वरदा Gut विभावरीं सव्वेमतां ave: | aaifaa: qaadle यस्त॒ कामानवाप्नोति स सब्वकालम्‌ | इति विष्ण धर्मोत्तरोक्तं stad ४ 000 SAWS A उवाच; र अथापरं प्रवच्यामि पञ्चमृत्तिव्रतं तव । श्र ङ्चक्रगदापद्यं एयोवोच् मद्ाभुज॥ गन्पे्मखडलिकां कत्वा पच्च पञ्च सुपूजयेत्‌ । चचश्क्तां तथारभ्य परचचमोप्रमृतिनःरः॥ सोपवासो वहिद्लातस्तया शक्तास्वरः शचः | गन्धमाल्यनमस्कारदटोपधूपा्नसम्प्दा॥ सवेषां पूजनं Bal जुद्याव्जातवेद्सि | v सबंषाभेव देवानां नामभिस्त्‌ तथा we ॥ ब्राह्मणान्‌ HAGA तदा च सुरभोजनं। संवत्सरमिद्‌ं Hal त्रतान्ते ARTY | पञ्च वेदविदां दव्यात्‌ agaw नराधिप) व्रतेनानेन चौणन राजस्रयफलं लभेत्‌ | मानुष्यमासादय भवत्परोगो वलान्वितोघधग्य परोविनौोतः। वरत खक्ड'२१ब्रध्यायः।] ददमाद्रिः। ४६९ Jaa रूपेण धनेन युक्तो राजाधिराघोष्यघवा इिजेन्द्रः॥ इति विष्ण धमोत्तरोक्तं पच्चम्‌र्तित्रतं। ar उवाच | अन्नदानस्य Alera कथयामि तवानघ) यत्‌प्रोल्खषिभिः ga तदहेकमनाः णु ॥ ददखान्न दद्खात्र ट्द्श्लान्न' युधिष्ठिर सद्यस्त्िकरं लोके विधिदततेपरेणत्‌। रामेण दाशरथिना व्रतस्य न निजानुजे | निवदात्त guaa’ तच्चापि कथयाभिते ॥ एथिव्यामद्रपू णाया वयमन्नरस्य काङ्ताः | सौमितेगान्नमस्माभिनत्राद्यणस्य सुखे हतं | ATMA HAT वत्सावण्यं फलं AT: | प्राप्यते amueafaara विप्रमुखे इतं ॥ aaa न तत्‌ प्राप्य विद्यया qaqa वा| प्राप्यते लोकवारोऽयमाद्‌त्तसुपतिष्ठते | भच्छयोपयोमादन्यखदानं ATC परं | प्रकारान्तरभोज्यानि दानान्वायान्ति. भारत | अत्रमै परम दान सत्यवाक्य पर uz | त्‌पिपस्षाद्ययोलाभः सन्तोषः परम सुखं |} स्रातानामनुलिक्तानां मूपितनां विभूषणः | & ॐ % मादि | ।व्रतखर्ड २१अध्याय;। न सुखन च सन्तोषो भवेदन्नाटते Bai भ्वेतोनाम महीपालः साव्वभौमोऽभवत्‌ YT तेनेष्टं वहभिथन्नेः संग्रामा वहवो जिताः | दानानि च प्रदत्तानि waa: पालिता ae | yar भोगान्‌ सुविपुलान्‌ च्रूणां Beta सितः | वानप्रस्थेन विधिना व्यक्ता राज्यखियं ae | खग जगाम तां भुक्ता पूज्यमानो HUET: | तत्रास्ते रममाणोऽसौ साकं विद्याधरोरगेः॥ प्रसिद्ध स्तयते सिदध; सेव्यतेऽप्सरसाङ्कणेः | गन्धन्वर्गीयते इष्टै; शक्रोनाप्यनुगम्य a: ॥ दिव्यमालाम्बरघरो दिव्याभरणभूषितः | सच faa’ विमानाग्रयाद्वतीय्ये महौतलं। स्वयमायाति कौन्तेय aera RATT | तच्छरौरं तथेवास्ते रचितं canta | स कदाचित्‌ सुरे खाने ब्रह्माण ससुपास्ितः। प्रणम्य प्राच्नलिभूत्वा fra दादि दम्रतौत्‌ । भगवंस्त्वतृप्रसादन प्राप्तः खर्गसुखं मया | सव्व षामप्ययं पृज्यः सुराणां सुरपुङ्गव I किन्तु ्ुदाधतेऽत्यर्घः खगख्ऽस्यापि मे प्रभो, ययामांसान्यह aifa भक्तयाम्यशनं विना॥ ब्रह्मोवाच | श्वं ताभिजनसम्पन्रशखेत BY ay मम। त्रया wa श्रुतं दत्तं गुरवः पररितीषिताः। % व्रतखण्ड'२१ब्रध्यायः] safe: Bot नाशनं भवता दृत्तं ज्चुधिताय fentaa ततः सखाध्यायसम्पन्र Tian संयतेन्द्रियं | येन संपद्यते alacaar जायते तव | विरिशेस्तदचः श्युत्वा तरायुक्तो agtafa: | अगस्त्य भोजयामास Waal भरतसत्तम। पवेतस्तप्तोगतः खग ` द्त्तात्रदच्िणात्रतं ॥ पौलस्त्यं fara पशादेवदानवसङटे | रामायेकावलीं प्राद्ादगस्यः परया AZT | एतद तस्य महात्मा क्रथयाम्यपरच्च ते। तवान्नादपर किञिदानं सत्य मयोदितं। न्न वे प्राणिनः प्राणः अन्नमोजो वलं सुखं | एतस्मात्‌ कारणात्‌ सद्धिरत्रदः wae: स्मतः! GES ह्याकबगंच हं सप्ता: वुभूचिता; | aut: प्रतिनिवत्तन्ते नकोन्धः AEM: पुमान्‌ ॥ टौ चितः कपिला माता राजभित्तु्रोदधिः। दृ्टमाचाः पनन्त ते तस्मादद्यात्त नित्यशः | एकस्याप्यतिचेरनरं यः प्रदातुमशक्निमान्‌ | तस्यारग्रपरिक्रेशेः waa: कि फलं खे । शक्यते पुष्करे चायं चिरराचायजौवितु ॥ अत्राहारविदहीनेन war वत्त यितु" चिर | मुक्ता WE ग्णदस्यस्य WIAA यस्त॒ सेवते | यस्यान्न' तस्य ते yar दरतिप्राहमनषिणः॥ ४७२ हेमाद्धिः। [त्रतखर्डंर१गअ्रध्यायः। gad दि सनुव्याणामन्रमाखिलय तिष्ठति | Hara daa नित्यः तस्माद्न्रन्त्‌ दौयते॥ यस्येटश) फलावाञ्चिः कथिता सव्व स्रिभिः fuai वा पुष्कलां वायि हन्तकार दिजायते। भोजनच् यधा लाभमद्च्वा खाति किल्विष | येन गतं सहस्र" वा भोजितं स्याहिजन्मनां ॥ तेन ब्रह्मग्डहान्रन्तद नयन्तु च कुटोरकं। वाराणस्यां पुरा ara वणिजो वरखिजिविनः॥ धनेश्वर Tara दैवव्राह्म पूजकः | तस्य WMH Fara aw रच्छ्षिः | ससपं WME गादणिद्गदा fantea: | dens वणिजादत aa ezyafaat ॥ aq: प्रति afeq ररत्तच yy च। fasata fea: afefeares सपपोतकाः। वणिजा Case @ Fisreteagd 1! चनकच्तौरपानाय; सपभःमेरवरईयेत्‌ ॥ लिलंदह wa भाण्डानि cee गन्धसरञ्चयात्‌। भ्रयोपांसुप्रकारेव चकारवारिमध्यगं | जगाम सुमहान्‌ कालोवलोला च वकः DA । अधेकस्मिदिने agi गतः aiq निलोचन, वाणिः मागांखर्विन्दयायपिलाख्ितं ad} व्यवहार समारव्य वणिक्पुत्र ण्घोमता | % wat ¢ ऋ. व्रतखक्ड' ९१ अध्यायः'] SAR | ददाति प्रति्यह्वाति घवतेलं waa ATSIC कुल तया यादसेरन्तरेण सः VAAN रजायल्यादणित्‌कित्तोव TAT: ॥ जानन्नपि सठत्तान्त निदानं नियते वशा | च्रासात्‌सन्तज्नयामास पलेनपलषछटभोजिनं। सम हतः समुत्पाय सूदाोनमधिमच्छति॥ उवाच दारुणातमं सखामिन पन्नगाधमः शरणागतपोषितञ्च तव पिता प्रियङ्र। कस्मान्माहंसि Teal नमे sta विमोत्तसिं | तदन्ते कल्लाःशब्द्‌: सच््ञातो UA सुखां ॥ TART सुदेतोष्टः सप्य णाभि wT eT: | प्रच, तानन्त Wits छे नवैत्य दौ रयेत्‌ ॥ धनेश्वरोप्यनुप्राघ्ः Ma मांकलयाभिरा ' fa fa aa aaafa तव पन्नग विपियं। aga भवता afe खाभोगेनाभि चेडितं। म्‌ खं faa’ कुसम्बन्धं होनजातिषु नोद्यां। यः करोत्यवधोंङ्गारान्‌ खहस्तेनापि कषेति । तत्व Wa Gaq wat वाष्ये राह दयागिर। निरपराधो भवतः YT णाह समाहितः; सदाह पश्यतस्तेय दशाम्यनं नराधिप यथा A Wat Walat भवेदस्मात्‌ कचिद्धयरं , ( €e ) $92 ७४ Safe: | [ितखण्ड'२१अध्याय; | धनेश्वर उवाच | उपकार a fa ठत्ति @ हपाश्चानपाश्य च) ध्ममागमनक्रम्य प्रयातः HATTA त णमाचं प्रतिच्छलं' यावदेव fanaa | Mea ANS करोत खयमात्मनः। एवमुक्ता WE SUI Adlai ब्रह्मचारिणां, स्ख भोजयामास छतपायसभोजनेः ॥ समुष्याय ततः TA ब्राह्मना ELAAAT! | वणिक्पुत्रो थोत्तमाङ्ग पि चिचिपुङ्सुमाच्तान्‌) वणिकपुच चौ रन््लोव नश्यन्तुतव WAT । AUS HT सशदिरस्तते ब्राद्मणान्नयाः ॥ ततः स दु्टप्रतिव्व॑कि वणिगजन प्रतारितः पनत्रगोनगसत्‌कारः प्रपात च ममार FT Il विपन्न" पत्रग दृष्टास्तन्तु्दनेश्व रः | प्राः किमेतदिति प्रोक्ता विषाद्मगमत्परं। पोषितोय मयावालो पालितोलिलास्तया | ममोपकारात्पञ्चत्व प्रपन्नः पवनाशनः ॥ उपकारिषुयः साधुः Wea तस्य को गुणः | अपकारिषुयः साधः साधुल्वामिति मे मतिः ॥ Lad सं प्रधाव्योसो दुःख सन्तप्तमानसः। TAA नाङ्गलतथा तच्च सुक्तगणोऽनिशं | ततः प्रभाते APTA Brat सन्त्य देवताः ॥ FASW RAMA |) BATE: BO aga भोजयामास पुनरेव दहिजन्मना | समास्तरिशट्संसिद्ा त्राद्मणानुमोदिताः॥ विणिगादह समाभिष्ट गच््ोवतिः पन्नगः | ततो दिजवरो सुकर वभिः परिषिच्तेः ॥ sefas दहीनाङ्ग सह साहि महाकुला | प्रहष' मतुलं aa a दृष्टा पुरतख्ितं। प्रतयग्रावयवं ee खकिणीं परि नलिह | दानाय प्राज्न; प्रश्शंसुधनेखरं। एरौनिषासिनः सवं विस्मयोत्‌फल्ललो चनः ॥ सदस्रभोज्य aera कथितं त युधिषिर i सम्यक्‌ Bet प्रुक्घस्य किमन्यसेत्‌ कथयामिते | दइक्न्तियसत्वनुदिन दिजपुङ्गवाना aa विशदमनरेटश्मागताना। मर्त्य विद्धत्य सुचिरसु सुद्धत्‌ जनास्तं tag यान्ति भवनं मुदिता सुरारे। इति ओभविष्योत्तरे सदटाब्रतं नामानन STATS | युधिष्ठिर उवाच) भगववन्‌ कोन तपसा ada निथयभमैनवबा। दानेन RA वा लोके स्रोज्यलन्त प्रजापते ॥ अतितेजो महादोषं etat एकिरणोज्नालं । HAC जायतेयेन AH वक्षमर्थाहसि । ४७६ माद्िः। [aaa stars: | AW उवा च । सधरायां पुरापां पिङ्कलोन।म तापसः | आगतः AAI जाम्बवत्या च पूजितः ॥ परषटख UTA aa स UVa यघातघं। नयासिमे समाख्यातः तत्सव ते वदाम्यहं ॥ यदायदा कपये पुणखयकालः WIAA | सेप्रान्ति सूय्य ग्रहे ' चन्दरपव swat i पचरेत्यनेप्रास्े द््िणे विषुवे तथा । > एकादश्यां शक्त पत्ते dae wat दिनत्तये tt सप्तस्यामयवाटटम्यां स्ताल्ला व्रतपरो AT; | नारी वा भूमिदेषेभ्यः प्रयच्छन्‌ प्रयताङद्गणे॥ VARMA दोप ALAA प्रहालन्त प्रटोपकं। युधिष्ठिर उवाच । ufaga इति प्रोक्त यत्वया मधुसुदन | किमेतत्‌ कौतुकं aft संगयच्छेतु मदसि ॥ कष्ण उवाच. पुराक्ततगुगस्यादौत्रि शङ नम पाथिव। ससग गन्तु कामोऽभूत्‌ TAA टृपोत्तम । ततञ्चण्डालता नोतो afase महाना। fang: सवंमाचस्यौ विश्वामित्राय धौमते i सोऽपि HATA चकार हय देवतं | नते सुचिः प्रतिष्टहं ततः क्रः ुगामजः ।' qaew asa: |) Bartz: | 899 विश्वाभिचस्त कोपेन चकारान्यान्‌ सुरोत्तमान्‌ | ङ्गाटकानारिके रान्यवचान्न जडकान्‌। मोघार पद्हन्तावा गौड़ कुष्माण्डकान्‌ दुमा ¦ उष्रान्‌ मनुदिसुख्याख क्रोधान्मनिरवाखूजन्‌ ॥ चकारान्यान्‌ समुषितान्‌ प्रतिमासु सुरोत्तमान्‌। ततः शक्रः समागम्य विश्वामितं प्रसादय वे॥ afe निवारयामासये aera तथापि a मेघलोकेषुते सव्व Sal टेवकुलेष्वय ॥ मन्त निवा षिर्डीषु स्थिता afe aa यथा । ब्रह्मा विष्णु स्तथा रुदरायेचान्येरेवतागणाः। लोकाना सुपकाराय मच्यलोक सुपागताः। प्रतिमा सुखतां शखत्‌ भोगान्‌ भुक्नन्ति शाखतान्‌ | वरान्‌ प्रयच्छति भक्तानामिति ते गुह्यमौरितं ॥ तेभ्यः TATA प्रच्छान्तं तं प्रदीपकं । सूव्यीय रक्तवस्ं ण पृणावत्तिं waa a | चतुः प्रस्य: प्रहलन्तौ मन्त णानेन दापयेत्‌ | तद्दिष्णोः परम पटं सदापश्यन्ति सूर्यः ॥ दिवोव चक्तुरातनं नमः| पौ तवसे णक्ष्णाय Waa शूलिने | RIT वस्ते Usa गौरौसुदौश्ठदापयेत्‌ ॥ लाक्तारतन दुर्गाये पृंवत्तिं प्रवोधयेत्‌ । नौलवस ण कामाय वाणश्नाघायथादिरं i ४७ Sata: | [नतखग्डंर१ अध्यायः! नागेभ्यः कष्णवस्रेण ग्रहेभ्य दषिकायुषां। देवाग्ेन पिढवत्ति का । नागोभ्यो ना गवर्तौति प्रवोधयेत्‌ | विशेषं णु ख्याय पूणं वत्ति निगद्यते । गिवायेतिश्वरवर्ती" भौगवर््ती जनादंने। aman विरिजचेस्त मर्या; सोभाग्यवत्तिका। नागोभ्यो नागवन्तो ति ग्रहवत्तीं युधिष्ठिर ), AAIT A मधुना तेन मध्रुवण्डके | अपिते चचिते चै वलं लिता प्रवोघयेत्‌ | मन्ते णानेन राजेन्द्र तच्निश्चामय वेदिकं | ऋ गभिरेषां कामपाङ्िरातुच ayes सविश्वाः सुत्तितयः णक्‌ | अयेकामाय जेगिर अप्रियेषु धामसु HAYA भोग्यस्य सम्नातेको विराजाभ्यांनमः खाद्य | एवमेतेन विधिना यः प्रयच्छतिरौोपक। विस्तौण विपुले wa छ तकु नियीजितं 1 यान्तिते ब्रह्मसदनं विमानेनाके वच्च at | तिष्ठन्ति पावमानास्ते यावदाभूतसं जवं | सदीपेतु तथेवो्ङ्गतिथथा देगेवत्तसि वलवन्ति fi तघादोपस्य दातारो भवन्ति स AAAI: ॥ यथेवोद्गतिनित्य' राजन्‌ दौपशिखः शएभाः। दरौपदातु स्तथेवोद' गतिर्भवति भोभना ॥ Baa QR दातव्यो Way तलेन वा पुनः , ATSWR LTA '] VALS: | ४७९ वसामज्नादिभि्टीपो नतु देयः कथच्चन। टौपतैलन कत्त व्यं न तु कम्मविजानता। नि्वीणाद्यान्तु aoe हिंसन निगदितं ॥ य; Gare a कश्ाणि area पुप्पितेक्तणः। दौ पत्ती भवत्यन्धः काणोभिव्वापको भवेत्‌ ॥ पद्मपचोद्ववां वत्ति ' गन्धतेलेन दौ पकम्‌ | विरोगचेवा सुभगः नघौभवति मानवः; ॥ प्रहेभ्यो देवदेवस्य कपू रेण तु Sagi | अश्वमेधमवाप्नोति कुलचेव WAIT | एतन्मयोक्त' तव दोपदान फलं समग्र कुरुवं शचन्द्र | Tal यथोक्तस तत प्रदेयो टोपस्वयाविप्र सुरालयेषु | अत्राप्युद्‌ाहरत्तौमभितिहास पुरातन | दौपद्‌ानात्तिलिदरानात्‌ पदमाप पुरानघ I ्रसोचिचरयोनाम विदमंषु महोपतिः। तस्य Ya णतं रान्ना Ta पञ्चदशोत्तरं। एकेवकन्या तस्यासौकज्ञतानामन AA; | सव्व तत्तणसम्पन्रा रूपेणाप्रतिमा मुवि ai ददौ काशिराजाय चावेङ्गोचारुधम्मगीं | शतान्यन्यानि भायां तौख्वासं्चाबधन्ध णः | तासां मध्येयमदहिषो ललिता वाम्यथा भवेत्‌ | ८० देमाद्रिः। [{बतखण्ड'२१ब्रध्यायः। विष्णो रायतने सातु सख परिदौपकान्‌ | प्रजालयत्यनुदिनं दिवारात्र मनिहतं। तामिग्रमाश्व card एक Tae aia कां । तस्याः प्रहलभोदरोप उच्चस्थान क्तः श्मः तस्मिन्‌ काले तथा faa’ ब्राह्मणावसथे तु सा। व्यग्राभवति AAs दौपप्रेषणतत्परा ॥ चतुष्पयेषु रथ्यासु देवतायतनेषु च। वेत्यठक्तेषु ठ रेषु Mey पव्व तेषु च ॥ पलिनेषु नदोनाज्चकूपमूलेषु पाण्डव ॥ ता सपलाोऽथ सङ्गम्य प्रच्छरिदमादटता'। ललिते वद्‌ usa ललिते वद्नं तथा ॥ न तथा वलिपुष्पेषु न तथा द्विज पूजने । भवत्याः सुमहान्‌ यलो दौपप्रहालने यया | तदेतत्‌ कथयास्माकं ललिते कौतुकं परं | मन्यामदेन्त यावश्य' दौपदान फलं श्त | ल लितोडवा च | are मत्सरिणो भद्रानवनागादिभाषिता | एक Ua: सिताः साध्यो भवव्ीमममा नदाः । ATM चरणा णन्तु गदितं मम। मये तदहोपदानस्य यथेष्ठ भुज्यते फलं ॥ हिरखयदयिताभार््या WAU सुतावसा | AASB २१ श्रष्यायेः 1] Saiz | उम्ादेवोति vey टेविकामा सरिदरा | भनारायणानुकम्माथे' ब्राह्मणादयवतारिता॥ श्युषिता तुखिता हष्या देविका पापनाशनो। तस्यां Mal सकन्रदयां गाणपत्यमवाप्न यात्‌ ॥ तस्याम Basra aly Ragas । हरिणा gfagagar यस्यां ala Aa पुरा॥ सोषेरराजस्य YU Aa योऽभूत्‌ पुरोहितः | तेन चायतनं faut: कारितं टैवकातटे। अहन्यहनि TAA AIAG: ॥ दौपदानादिभिखैव waaaaa fem | कात्तिक्या दौपकस्तच प्रदन्रकेन VAT । आसोत्निवांणभूविषहे टेवःवासुरतो निचि! टेवतायनें वासी तचाहमपि मृषिका॥ प्ररौपवत्तिदरणे छतवुदिव्वरानने। ग्टहौतेयं मया व्तिहठषदंगो ररोधर मां। नष्टा WE AAU माजेरस्य भयातुरा | वक्तप्रान्तेन पश्यन्त्या सदोपः प्रेरितो war जज्वाल पूव्वेवदास्या तस्ित्रायतने gat | सतादहंतु पुनजीता ACH राजकन्यका ॥ जातिस्मरा महहौपस्य महिषो चार्मण. | एष प्रवादो दौपस्य कात्तिक मासि mua: | दत्तस्यायतनें विष्णोय स्थेयं SHAH | ९ रोदसि a द्ति पुस्तकान्तरे ais: | ( ६१ ) ४८२ माद्रः) [त्रतखण्ड'२१अध्यायः) श्रसदुःल्यितमप्यसख प्रेरणं यन्मया aa | केशवालयदौपस्य तस्येदं मुज्यते फलं 4 एतस्मात्‌ काररखारीपानदमेतानदहर्निभं | प्रयच्छामि इरेगहे जातमस्य महाफलं # ठवसुक्तं AIAITAT टोपदानपरायणाः | वभूरवूदेवदेवस्य केशवस्य महागद | ततः कालेन ALA AE रान्ना महामना विष्णु लोकमनुप्राप्ता WY प्राप्य मानदा ४ तं लोकमासाद्य ZIT साई सराजपलो कमलाभनेचा। रेमे महोपाल मदा समेता दौ पप्रद्धानात्‌ सकला A SAT: दोपप्रटानमपि gaat वदन्ति विप्राम्निगोग्टदसुरेकग्टहाङ्गणेषु | तद्ानदोप्रवपरुषास्ययथान्धकार गच्छन्नरःपततिनो सविले कदाचित्‌ ॥ इति ओभविष्योत्तरे दौपदानविभिः। भमि (}() () कोय अथ कन्दपुराणोक्त ALAA | कलासगरिखरासोनो देवदेवो ANT । त्रिलोचनो दशभुजो जटाखण्डेन्द्मर्डितः ॥ भस्माचितशरोरम्त्‌ पञ्चवक्तसमन्वितः | शूलपाणिमहतेजा दाद्‌ णादिव्यसन्निभ; | "SRR AASW २१अध्यायः |] दमाद्विः ४८४ शेषवदजटाज्‌टः सुखासोनः AAA | तच टेवासुरा यत्तगणगन्पव्बल्ित्रराः | अन्येऽपि द तपसो खत्य॒कालसमप्रभाः। एभिः संसेव्यमानोऽसौ पावती प्राणवल्लभः ॥ कसिंखिदट्पिषकंसो प्रावतोप्राण्वल्लभः | विखज्य देवानेकान्ते पाव्वेल्या सह तिष्ठति x प्रणम्यातौव TAS रोमाच्िततनूर्दं | aa एच्छति सा रैव णु सव्वंसुरेश्वर । BARA WH तु लोकामात्यजने रताः tt सदौ नाच देवानां विश्वेशे भक्तितत्पराः, किमथ agi नास्ति ब्रूहि & सुरसत्तम) ईश्वर उवाच । ay देवि प्रवच्यामि यत्पृष्टोऽहं तयाशुना! व्रतमेतत्‌ YU WG सौतया राघवेण ai अन्यैरपि जनैः सव्वं; UST व्रतसुत्तमं | नभस्यच व्यतिक्रान्ते नभस्ये च प्रवत्तिते | नभाः, खावः, नभस्योभाद्रपदाः तौ चाच पूिमान्ती ्राह्नौ। एवं कालक्रमेखेव Batt पूणिमा गता | afed प्राप्य विप्र रेत्यग्रं नेवाभिधानात्‌) त्रतमेतत्त कत्तव्य षोड़गेव दिनानि तु। एतच्छरत्वा ततो देवौ WHET बाक्यमव्रवोत्‌ ॥ पाव्वेल्यवाच | किं-विधानं gu प्रोक्तं व्रत मौनव्रतासकं | soe हेमाद्रिः [(रतख्ड'२१ wara: | ACA समाचच्च प्रसादं कुर मे-प्रभो 8 इश्वर उवाच) afeaga संप्राप्य सभायः सह वान्धदैः। गत्वा प्रभातसमये Sara जलसब्रिधौ | तडामे वा ASM गत्वा प्रखव्णेऽथवा॥ खानं WA तदा aa: शिदध्यानपरायणेः। टूव्वाकार्ड' सुसं ग्टह्य सोडषग्रस्िसंयुतम्‌ ॥ ततस्रचञ्च कर ae faa वामे टृदक्तिणे op एवं विधानं कत्त व्यं यावत्‌ स्यात्‌ प्रतिपदिनम्‌) तददिने चेव संप्राप समाध्यथे' व्रतस्यतु ॥ मौनेनेवानयेत्तोयं मौने गोधूम पेषणम्‌ । मौनेनैव च कत्तव्य aad भोजनादिकम्‌ ॥ सर्व्व पस्वरमादटाय गत्वा च जलसत्निधो | aia काथ' तदा aa fama ततः परम्‌ tt देवषिमनुजानाच् पितुणाञ्धेव ATTA | पश्चादेवाधिटेवैशं मन्व; संपूजयेत्ततः॥ शूलपाणे anes अ्दैचन्द्रविभ्यूषण ! तोयेन खापितो टेव पवितः कुस at सदा। देवस्त वन्दिता Ga: सव्वपापप्रणाशनौ ॥ aqaivaifad टेव नित्यं मे वरदो भव कामतोऽकामतोवापि यन्मया SHAT क्तम्‌ ॥ awa विसय यातु eur स्नानेन भोः शिव । रसालसुत्तम साज्यः देवानाञ्च सदा प्रियम्‌ ॥ Tage २१ श्रध्याथः।] Waite: | guy तेन a aifuat 2a निधिकान्तिप्रदो wa! यस्योचारणमाकण ठति यान्ति पितामहाः § मधना ज्ञापितो देव faa शोकहरो wa | यमलोकभयत्रस्तः AIT ai aa: भिव] QwWwalaa aq ai कुरुष्व सुमानुषम्‌। यस्य CAAT T Ye: पापाच्च जौवितम्‌॥ तेनेवोत्तमतोयेन स्नातो देहि प्रियं wat सुगन्धं wed टेव कुद्कमेन समन्वितम्‌ ॥ अविंतोऽसि मया waar शिवलोकप्रदो भद) अर्तयान्वन्ध॒पुवादौन्‌ कायद्धेवाचिवाद्चनः । न्ते चैवात्तयं लोकमक्ततेरर्सितः HT | सन्तानः पारिजातश्ये चान्य सुरपादपाः। aut ga war देव पूजितः सुखदा भव । धूपोऽयं Wat टेव सुन्दरो गन्धवान्‌ श्चिः॥ ईष्ठितं मे वर टेहि परव a शभाङ्गतिम्‌। शडा शक्ता चा रुवत्ति राज्येन च समन्िता ५ दौपवत्ति प्रदानेन प्रीतःस्यादोश्ठसे मम। सव्वेमन्रप्रदानच्च देवानाञ्च सदा प्रियम्‌ ॥ तेनेवात्रप्रदानेन सुप्रीतो वरदो मम। णाखाप्रयाखान सिता च zat विस्तारभ्रूता धरणौतसे यथा, ममापि सन्तानवर तघाच्चं कुरुष्व दव्व शिव पूजने रता ॥ ४८६ Safe: | [बतखष्डं २९अब्यायः। नानाविधं फलं सख्यं सुपुष्ात्तत चन्दनम्‌ । भक्तया च परया दत्त WAG सुरेखर। जन्मजन्मान्तरे ष्वेव भावाभावैन यत्‌ ऊतम्‌ | चन्तव्यं टेव aaa शद्धो भूत्वा समाहितः॥ शिवपूजां प्रकुव्वा णः कतक्लल्यो भवैन्ररः । इति प्रजा) wa सपूज्यं विधिना age: क्रियते aa: | सदा सम्पन्रपूजायां प्रीयतां मम WET: ॥ सप्रोतो भव देवेश uaa पाहि सदाशिव | एवं प्र्ाथतेः खानं a: कारयति मानवः॥ अआजग््मोपाजितात्‌ पापात्‌ शुध्यते नार WaT | विभाग प्रदातव्यौ त्राद्यणाय शिवाय ai र ~ > # + पालना चव भोक्रव्य पक्तात्र विधिवत्‌ wat । ¢ = > एवं क्रमेण कत्तव्य सष्ेषटटज नबान्धवेः | व्रतिनां हितकामाधं' fest भोज्यः सदकत्तिणः ॥ १ ९ ~ क दातव्य प्रोतिपुव्बय adage दिजम्‌ | ततश्च शिवपुजादि भावाभावेन यत्‌ कतम्‌ ॥ Oo. Oe © 9 AMA मम पुणे VARMA | # क, Q ॐ # पचपोतप्रद द्येतत्‌ सव्यकामप्रद्‌ं aa ॥ TANT मया ख्यात तदय प्रोतिपवक। SAA देवेशि सव्बपापंः प्रमुच्यते ॥ १९ मनेनेति पुखकान्तरे पाठः; श्रतखष्ड२१ अध्यायः} earfe: | gre देव्युवाच । यदेतदतुलं FA त्रताद खाद्‌ दाहतं | प्रयांतु मे किञ्चित्‌ कथयस्व सुरेश्डर ॥ ईश्वर उवाच | रु देवो यथा त्तः प्रत्ययार्थं सुरेश्वरि । eftane राज्ये तु यदत्त परमाद्वतं ॥ राज्य wife adidas adaware waa | नाधर्मो वियते देवि तस्मिन्‌ ufa प्रगासति॥ न होनवद्नः afaa दुःखौ न द्रिद्रवान्‌ | न च व्याधिभयं किचिदल्पायुन्रातुयो भवेत्‌ ॥ एवं पालयतो राज्य दरिखन्द्रस्य Vlas: | षट्‌ कश््निरता नित्यं विप्रा यजनतत्पराः । wun निरताः aa नित्योतखादहसमन्विताः | तस्मिन्‌ पुरवरे विप्रो ऋषिशमंऽति तापसः 1 तव्समोपे वणिक्पुचः खौकरो नाम विद्युतः | afwagat महापापौ धश्चमागेपरान्च खः | निन्दको देवतानां च ब्राह्मणानां च निन्दकः | सदा पापरतामासो वणिक्‌पुवः सुरेश्वरि | कभिशमां feat faa पूजयेदिष्टदेवताः | षट्‌ कमेनिरतो विप्रो व्रताचारौ सदेव fe | एवं कालक्रमेणेव श्रावणो afwar गता। ated प्राप्य प्प्रिणन्नानक्षत्वा नदौजले । yee दभाटिः। [त्रतखंष्ड२१अध्यायः। तदिन खावख्य॒त्तरदिनि। देवपिमनुजानान्तु पितिशां ada कतं | शङ्कर पजयिला तु fray भोज्य तथातियौन्‌ ॥ सप त्रः सजनं; साड भोजनं क्तवान्‌ दिजः१ । ईट्धन्यवशाद वि वखिग्वे्मगतो fea ॥ दूव्वात्ततं च सूत्र च वणिग्घस्ते न्यवेदयत्‌ | सच्यस्तच तदा GATS वाक्वसुवाच | कऋ्टषि शर्मप्रोवा च | भोभो faa वणिक्‌ पुत्र गिवमौनव्रतं कुर्‌ | पुतपौचप्रदं लोके शिवस्थानप्रदं तथा! तस्य तदचन Yar खवणष्यानमासखितः ॥ स्ववित्तं चिन्तयलेव व्यवसायस्य भङ्गःतः। पवजन्प्ान्तरे @ मे मिचत्व' ससुपागतः॥ न करोमियदा वाक्य तदाशापं प्रदास्यसि अद्य WAM पूव नुतं न क्षतं व्रतं । सं प्रत्यद्दं करिष्यामि वदाक्यभयशङ्धितः। त्रतसख्या विधानं च ब्रूहि मे दिजसत्तम ॥ ऋरषिगमों वाच | शु faa aa पुण्यं घनपुतवकलतद। तावद्रतमिदं काय्य" यावत्‌ स्यात्‌ प्रतिपदिनि॥ दिनानि षोड़गेवातरव्रतमेतदुदाद्तं । नित्य जलाशय गत्वा ईश्वर पूजयेत्ततः ॥ १ न्यवेश्य{द्ति कचित्‌ पाठः| त्रतखव्ड'२१अध्यायः।] Bartz | ४८९ ूर्व्वाषोड़गकाष्डेव समौनं पूजयेच्छिषं । एकभक्त AWA Baad Wawa | qata सविधानं च festa कथितं aet | vaseat वणिकपुचो विस्मितो वाक्वमत्रवोत्‌। एतन्मे मानुषाः सव्व व्यवसायेन मे विना वत्तिष्यन्ते कथं विप्र यावद्‌तसमापनं ॥ मदेश्मनि {दिनैकस्य व्ययश्हिनं विद्यते | ऋषि णश्मोवाच। ईश्वर नियता भकिदृटभावैन चेत्तव | एवं fe wefan करिष्यति न oa: ॥ एव सम्बोधितस्ततर ब्राह्मणेन महात्मना | वरिकपुचो दरिद्रोऽपि व्रताय निखितोऽभवत्‌ ॥ चकार चेवं aqua व्रतस्यास्य विधानकं, fara हिजच्रष्टः Nats वणिक्सुतः ॥ व्रतमेतत्‌ aa भव्यं लोकानुग्रहकाम्यया | पूवे संचितभेवासौदि्टमव्र we तयोः ॥ AANA Aaa AAIG जगाम 4 | AAA AHA SFI ख्रदासौन्महतो तदा ¢ व्रतं समाप्य विधिवत्तद्‌ादानान्यनेकघा | गो-भ्ू-वस्त्रहिरख्यानि फलं ताम्बूलवासमो | विप्रभ्यः खदया द्वा जातौ तौ हषसंयुतनौ | व्रतस्यास्य प्रभावेण WE सन्मोःपराभमवत्‌ 1 ( ई | ४९० Sas: | [anew ewer 1 पुत्पोत्रादिसयुको घनघान्यसमन्वितः | aya स वणिक्‌ ga: स्वव्रतस्य प्रभावतः ॥ aq वषशतं साग्र भोगान्‌ भुक्ता APA | ततखकार कायान्तं वणिक्‌ पञ्चत्वमागतः ॥ यमेन प्रेषिता दूताः पाणसुद्गरपाण्यः | TAA रक्तवक्ता्च THAT भयानकाः ॥ WAU महाकाया रक्तयुष्पेरलङलताः | तग्णहोतो वणिक्पुत्र वद्धः UTTAR; | वडाःपारेस्तदा दूताः Wa खोकरन्तद्‌ा | दूताऊचुः | यदि कालक्रमादापिप्राप्ाते मानुषौ तनुः | कस्मात्‌ पापप्रभावेन यमल कस्स्वयाजिंतः ॥ मनुष्यः कुक्ते यत्त यत्र क्यं FUE: | एव ब्रुवाणास्तेदूता सुह्रोद्यतपाणयः | प्रहत्तका मास्त Ad निजालस्तो वणिक्सुतः | तद्रतस्य प्रभावेन AAA वभूव सः। gerne तु निष्कान्तः गक्िस्तेजोमयौ शभा ॥ मयापि प्र षिता दूतास््तमानेनु निजालयात्‌। यमदू ते; समं YS BAM सुदारुणं | ते सखशक्या ममगणेयभदूता निवारिताः | तस्मिन्‌ काले च संप्राप्तं महिमानं प्रिये शभं॥ सिषरगन्धव्वयच्ताणां गसौय। प्ठरसंठतं । व्रतखण्ड़ं २१ अध्यायः] SarfE: | BER समारूट़ोवरिक्पुतो विमानं सव्वंकाभिक ॥ ममालयं समायातो मत्प्रसादात्‌ सुरेशखरि | मया चागमनादेव दत्त स्थानं तदासना तावच्छ्िविपुरोनन्दयावदभूतसंञ्मवं। पश्ाद्चुपालपदवों भुक्ता तेनाधिमेखलां i पव लब्धवरो भूत्वा famis गिवि्ासने | चवं प्रकाशमायाते व्रतमेतत्‌ सुरश्वरि | व्रतप्रभावादिप्रोपि सव्वधरसमन्वितः। प्राप्य घन्यतमं स्थानं शिवलोके त Alea 1 quan सखल्यवुजौ नामाधिव्याधिविव्जिंतं । मौनव्रतस्य Awe ल्युपापनिषृद्न | सव्वसिदिप्रदं ef योगक्तेमकरं पर । शिवलोकप्रदं पुण गुह्याद्गद्यतर शमं ॥ aa प्रोतिप्रसादरेन afaag तवाघ्ुना॥ रौद्र कलियुगे देवौ ad कत्ते न शक्यते | AAAS व्रतं छोतत्‌ सात्ताददुलंभं कलौ | एतस्मात्‌ कारणात्‌ Wa मयेतत्र प्रकाशितं! Sang व्रतभेतदे मौने सर्व्वीर्धसाघनं । तेषान्तु fead प्राप्य सकलाघ विनश्यति | नत्त शोको भवेत्तस्य सतत Fact | कुव्व न्ति मनुजा भक्या ad किल्विषतारयं। मोनप्रभावाडि शभे शिवालये वसन्ति war: शविशुडदरेदहाः | ger ware: | [व्रतखण्डर' १अध्यायः । ससेव्यमानाष्छरसाद्गणन चरन्ति लोकान्‌ विविधान्‌ मनोरमान्‌ | ससारपाशाच विमुच्यते दिवं पर ud यान्ति सुराचिंतास्तत इति। „ a 0 ~ इद्‌द्त्रतं पूववद्धायामेव कत्तव्य रुद्रव्रतत्वात्‌ नतुदेव- Raga पौववाद्धिक्यासुत्तरस्यां। रंद्रत्रतेषु way कर्तव्या क्‌ से tn ६ सासुखो fafafefa ब्रदह्मववत्तवचनात्‌। दति विष्णधमीत्तरोक्तं दोपत्रतं। | अथ स्कन्दपुराणेक्तां मोनत्रतोद्या पनं! 00000 ~~~ पाञ्वत्यवाच। क {1 # मीनत्रतस्य Alera कथा चव सविस्तर! उत्ता AAAE IN BU च त्न््ुङान्मया॥ 0 g व्रतस्योतस्जनमनन्तर। वस्त ाभरगेखेव छचोपानत्‌खरगादिभिः। ्राचाथदिगुणं wa ace ब्रह्मरे तथा । Hwy समेखलं यन्नकुण्डपा्वसमन्वितं | कत्वा शिदस्य वै मूत्ति' पार्वत्याच्चैव कारधेत्‌ t Haul राजतीं तारौ कुशात्‌ शाठविवनितः त्रतखण्ड२१अध्यायः।] safer ४९१ यधा विभवमानेन Gates WIAs | माषमात्रा सुवणस्य दरिद्रस्यापि कौत्तिता॥ लिशूलमच्मालाच् वरदाभयश्ोभितं | अक्षमाला विभ्ारमितिश्ेषः | देवोच् दिभुजान्तददराभयकरां शमाम्‌ | BSAA पञ्चगव्यन कषाये: पञ्चभिः शमैः ।॥ फलय सृत्तिकाभिख ततः पञ्चाखतेनतु। नमोऽघोराय HAT ततो USHA FU NSM तथा चक्रेऽघवा लिद्गोद्वेपि at | TAT RAT UI AAIWMall युतं es I तच संस्थापयेदेवं सटेवोकच्च दोचितः। श्रागमोक्तबिधानेन न्यासान्देवस्य कारयेत्‌ ॥ दौघंभाजा प्रसादेन अङ्गानां न्यास ईरितः) प्रसारेन, प्रसादेन alsa | प्राद्ावाकनि कुर्वत Tale! वै समाचरेत्‌ । SMW Fala मायावौजेन तच्छतः ॥ aA वाससौ दद्यादुपवोतमतः परं | चन्दनं पुष्पधुपञ्च eld नेवेयमातरान्‌ | ताम्बलच्च सकपूरं फलानि विविधानि च। एवं संपूज्य SAN ग्रहयन्नमधारभेत्‌। दाविं गदेवताः पूज्याः पष्यधूपादिभिः क्रमात्‌ | ग्रहयन्नविधानेन ततोऽम्निखापनं मतं | ४९४ चमाद्विः। [त्रतखण्ड२१अध्यायः। होमं aa प्रङर्बोत वदपात्सभिषेः wa: । बदपात्समिधेः, वरसमिद्धिः | gaa चसभिश्चव fade सष्ठतें स्तथा | FAA UTAH CAA च॥ समाप्य शिवयन्नच्च गदृद्टोममथारभेत्‌ । ग्रहपूजां पुनः war वलिदानमथारभेत्‌ ॥ ततः पूणहति Sal MATH पूजयेत्ततः | धेनुं दक्वा हिरण्यञ्च तथात्र वसनानि च ॥ Naw ब्राद्धाणेभ्यख SUA वस्नाद्क। पोड्षान्‌ कल्पान्‌ दद्यास्मालावस्तरलङःतान्‌ ॥ देवञ्च देव्यासदितमात्तायव्याय निकैदयेत्‌ | तथा चैव प्रकत्तेव्यमा चाय्य स्तष्यते यथाः १ तेन तुष्टेन देवेस्तष्टो भवति नान्यधा | अरतुरे fant थामो भवतो न संशयः ॥ दौनानाधविगिष्टेम्यो cargisa’ सदच्िण | wary aisha देय स्यात्‌ भोजनच्च waa | यथा विभवतो वापि वित्तसाव्यविवजितः। ततः समाप्य सव्व॑न्तु सुच्ोयादाग्यतः शविः ॥ शिदेरिष्टेख सहितः पक्ताबरेषठ तपाचितेः | प्रभातायान्तु शव्वथ्यामङरम्भोऽस्य विधौयते | सायं समातिरुदिष्टा भोजनन्तु ततः पर | ्राचयखन्तु aan परिधाप्य विघानतः॥ व्रतख ण्ड ' २ १अध्याय; |] Salts: | ४८ न, पावंतौ सहितो te: प्रीयतामितिवाग्यतः | एवं यः कुरुते efa मौनस्योदयापन wa वहुप्रजो agua भवेत्‌ जन्मनि जगनि) परथाच्छिवपुरं गत्वा वसेच faaafaay ॥ दति मीनत्रतोद्यापन। {0 () (¬ नमन ad उवाच | केलासभशिखरासौ नं देवदेवं जगद्ूस्‌' । प्रणम्य पावेतौ प्राह TEC लोकशङ्रं ॥ व्रतं कथय किचिन्मे रुपसोभाग्यदायक। Jat Vary | ay देवि प्रवच्यामि ad तलोक्यविन्रुतम्‌ | महालच्छौरिति ख्यातं सव्वेसंपत्‌कर Way ॥ UU विराजनगरे शिवशाद्‌ दरपोऽभवत्‌। तस्मिन्नेव पुरे रान्न ब्राह्मणौ वाल्युचिका॥ अरघाप्यदरेदूरातरःपूणोदकं हहत्‌ | da Gal पयः Wa नौरस्थस eeu ह॥ लवयानं CHMIT लच्छोमप्सरसाङ्गणम्‌ | गत्वा पाश्वे स पप्रच्छ किमेतत्‌ पूज्यते एभाः ॥- ता wal इजदेवो च महालच्मीरिति Zar | अस्माकं वचनात्‌ मचय प्रकाणय महाद्यते॥ तवापि सव्वंकल्याणं भविष्यति न daa: | ved Sie: 1 [तरतखर्ड'९१अध्याघः । दय॒क्तान्तद्‌ से तत्र स्वेप्य्रसाङ्ग रलः | श्रयराजापि खगयासंसक्तोबनमभ्यगात्‌ | az विलेक् कृपतिः त्षुधितोऽन्रमयाचत ॥ सोऽच्रन्ददो तदा TH Aa Val | HITT | त्रत मादा तम्यभिच्यक्का Ad चास्मे न्यवेदयत्‌ ॥ महाराज निवोषेदं मदहालच्छोत्रत wa: भद्र भाद्रपदे मासि शक्ताषटम्यां नरोत्तम ॥ स्तत्वाभ्यच्य AAAI THAT | कुङ्माक्तषतं aa पषोड्गयन्यिसयुतम्‌ ॥ तन्तुभिस्तत्‌प्रमा गेख वघ्रौयान्त्‌ करे गुणम्‌ । टूव्वीचततप्रवालानां सोड़गेव तु MST | पुनरेराख्िने मासि कष्णाष्टम्यां दिने शमे । उत्सवं कारयेद्‌ व्यास्त॒र्योपगलनादित | aa च uae fea वितानवरमख्डितम्‌। मोक्तिकालम्बितप्रान्त पुष्पमाल्यविभ्रूषितम्‌ ॥ सस्ति केव्यद्मानेष gua: समन्वितम्‌ | काषटटमचन्दनाकारामयचिचमलां पुनः ॥ चतुभंजां मदालच्छीं वाजिष््टगतान्तथा | दण्डात्तसुत्रवरदां तथ वाभयपाखिका ॥ पद्यासनां AAU! पद्यां पद्मदले णाम्‌ | दिग्‌ गजे: खाप्यमानाञ्च काञ्चने: HARTA: ॥ ततोयात्ापयेदययाने निमग्नायां गहे तथा, व्रतखक्ड 2 १अध्यायः।] मारि, । BE9 e ९ <> . Gla कुयादसन्ान्तो मन्तवच्चोपचारतः। देवान्‌ fan's सन्त्ये तती Saws व्रजत्‌ | Baad च संस्नाप्य कुयात्‌ धूजाविधिन्ततः ॥ शालिपिष्टः way मोधूमानाञ्च चूणकं। पायस छतसंमिख' पञ्चप्रखनिसंख्यया(१)॥ शडवचिफलया वापि पाचयेन्ोद्‌कान्‌ Dara । त्राह्य णभ्यः प्रदरोयेत आत्मानं प्राश्थेत्ततः ॥ फलनि च समाद्टव्य प्ररोपानष्टटससख्यया | _ एवं सब्भतसन्भारस्ततः पूजां समारभेत्‌ | {सित चन्दनलिप्ताङ्गं सितपुष्पावलम्वितां ॥ + ~+ = सितवस्तयुगद्धत्रां खत पुष्य ;(२) प्रपूजयेत्‌ t EN SS रो चपलायं नमः पादौ चलाय च जानुनो॥ कटि कमलबासिन्यं नाभिं aie नमोनमः | A pon. + स्तनो मच्घवासिन्य ललिताये भुजदख । उत्‌कर्ठिन्यो नमः कण्ठ मायाये सुखमर्डलम्‌ | =~ on नमः faa शिरः पखाद्द्यादरदव्यमादरात्‌ ॥ Qo. ~ ~, ay दयखादष्ष विधघानन नारिकेराद्भिः wa: | > € नो =_> ala: कूष्माण्ड; कक्रट)न्देरन्यस्तत्‌कालसम्भवेः ॥ HSA प्रदेयानि यथा Waaly at yA: | चन्द्रोदये ततो दद्यात्‌ अ्रघञ्न्द्रस्य भक्तितः ॥ प्रवालफनलमन्दोपेः पुष्यः Ment | ( ९) पप्रभतिसद्धय। दूति पुखलकन्तरे wis | (२) परब त्तवस्ठ रिति ahaa mis: | ( ६३ ) ४९८ देमाद्धिः। [व्रतखण्ड"२१अध्यायः। नवी नवोऽसि मासान्ते जायमानः पुनः पुनः ॥ त्तो राञ्ि समबेतस्त्व टेवानाप्यायसे हरिः) ्तोरोदाणवसहत अद्विने समुद्भव | भाभास्षितदिमाभोग रमानुन AAT | HAST DAIS वषाणां e1z संख्यया | वघ वप्रं सपल्लोकं AIT पूजयेत्‌ Bat: ॥ हिरणय-वस्व-गो द्‌ न दं त्तिणाभि ख भूरिगः | एवं यः कुरुते भक्तया तस्य गरौग्ट हमा विसेत्‌ ॥ दति खुत्वा नृपयक्रे Tala त्रतमाद्रात्‌। कालेन गच्छमानेन व्स्मतः सच डोरकः॥ तस्य रान्नो समादाय ज्वलितेग्नावथधारूजत्‌ | Haq Aud Hal स्वदस्तस्थच्चकार इ ॥ तस्थाः कञविपाकन दौभग्यं पतितं तघा। TUG UU Aa रान्ना WAAR ॥ य इद्‌ कुरुते देव्या as aa महोत्सवम्‌ ॥ तस्य योजंन्मनितयं न कदाचिदिसुच्चति। आयुरारोग्यमेश्वय्य' धनं Gare विन्दति ॥ aga विशेषेण कुशाल्लच्सौत्रतं शभ | व्रतात्‌ समाप्रयात्‌ लच्छी वासुदटेवप्रसाद्जां ॥ नारो वा कुर्ते यातु प्राप्यानुज्ञां AAA तः | सुभगादश्णौया A IEPA च जायते॥ a: शोभनं व्रतमिदं दयितं मुरारे भेत्या समाचरति पूज्य श्गोस्तनुजाम्‌ | RASwUT BT 1] Barly: | & ८९. राज्य faa सभुवि भव्यजनोपभोग्यां भुक्ता प्रयाति भवन मधुसूदनस्य । इति स्कन्दपुराणोक्तं aera aa | 000 माकंण्डय SATs | अतः परं प्रवच्यामि चतु््‌त्तित्रलं तव । हिधा तु देवदेवस्य मृत्तिर्भवति area ॥ घोरा सोम्या शिवा चान्याऽघोरा भवति पावका । शिवा चाग्निपति(१)यस्माद्ग्नौषोमातकं जगत्‌॥ feat घोरा विनिरटिष्टा feat सौम्या ततः पनः। घोरा afea सव्यश्च सोम्या सोमजलाधिपौ ॥ तेषां तु पूजन ara प्रतिपत्‌ प्रमति क्रमात्‌| शक्तपत्तात्तथारभ्य फाल्‌गुनस्य हिजोत्तम | रादित्य प्रूजयद्राजन्‌ प्रघमेद्धि परः एचि: famlasfs तथा af ठतो येऽह्कि जलःधिपम्‌ | MAAS TTT TIAA UA: । aut a रूपनिमांणं क्लम तान्पेहुधः ॥ गन्धमाल्यनमस्वारधूपदौपान्नसम्पदा, वचा हरिद्रया ara waasfS समाचरेत | हितोये AZIZ a खानमामनलकेः WH: । प्रियज्गना adlasfs चतुथं गौरमषयैः॥ ॥ षयोः (१) चोड्पतिरितिक्तचित्‌ पाठः| ५५०० eats: | [नतखश्डरे १ aware! | गीधू म-तिल-घान्यं ख yaa दिवसक्रमात्‌) होमः कायश्च धम्मज्ञो eau By चाप्यय। AF भार क्तवस्तच्च चन्दनं SAAT च । चोरण चैव कत्तव्य WAT प्राणधारणम्‌ ] एतत्सवत्सरं कत्वा व्रतः पूण्नरोत्तम । सव्वकामसखइस्य यज्ञस्य WANA ॥ विमानेनाकंवणन anata स गच्छति) तत्रोष्य सुचिर कालं कुले महति जायत ॥ मानु्मासादयय भदव्यरोगो वसुन्धरेगो विजितारिपक्तः। wa स्थितः सत्यपरो विनौतो जितेन्द्रियः सव्बजनाभिरामः ॥ इति विन्णधर्मरोत्तरोक्तं गृणावा्नित्रतम्‌ | मो 9» ५ MARCA उवाच) a. ® इद्‌मन्यत्‌ प्रवच्छानि चतुमून्तित्रत तव। शक्रकोौनाशवरुण्धनाष्यच्ता यदूत्तम | चतृरात्मा विनिदिष्टो वासुदेवो जगत्पतिः । तेषान्तु रूपनिन्माणं Hal ता नच्च येदधः \ गन्धमाल्यनमस्कारदोपधूपात्रसम्पदा | ~ हि = क, ९ + प्रादयेद्कि(१) चचश्क्तस्य यजेत facia ॥ रिरि विम (१) SITS पुस्तकान्तरे पाठः| व्रत खण्डं २१अध्यायः।] ATE | ° १ faalasfs aad दैवं aaa सलिलाधिपम्‌ | aqustS धनाध्यत्तं प्रत्यहं स्रानमाचरेत्‌। नदौप्ररेगमासाद्य देवदिकूप्रवहक्रमात्‌। यै स्तिैम्तथाज्येन ही मःस्यात्तिलतर्डलेः | रक्त पौतं तथा aw खेतं वस्र दिनक्रमात्‌ । शभमे तद्रतं HAT पूणंसस्यत्सरं नरः ॥ नाकलोकमवाप्रोति वावदाभूतसद्चवम्‌ | मानुष्यमासाद्य भवत्यरोगो वसुन्धरेणो विजितारिपक्तः। जनानभिरामः सुभगः waar ततोऽपि fanaqufa zai | दति विष्ण धर्मनात्तरोक्त aati व्रतम्‌ 0001000 HRW य उवाच | az मन्यत्‌ प्रवच्यामि qa त्िव्रतं तव विष्णुभूमिनभो व्रह्मा तस्य रूपचतुष्टटयम्‌(?) | तेषान्तु रूपनिश्चाणं कत्वा तानचयेद घः | गन्धमाल्यनमस्कारदोपघूपान्रसम्पद्‌ा ! sats चचशक्तस्य विष्णुरेवं समर्चयेत्‌ ॥ दितोयादिषु धम्मन्न भुव ga(2) पितामहं। पूवत्रतोकं ana विघधानमपरं भवेत्‌ ॥ (१) मूत्ति्वतुषटयोति प्राठान्तर | (२) व्योम इति वं चित्‌ प्राठः। AR waltz: | |[ त्रतखरड aaa! AAHAAT: कत्वा WA खगंमवाप्र यात्‌ । मानुष्यमासाद्य भवत्यरोगो धञ्माभिरामो दरविणोपपन्नः। धनेन रूपेण सुखेन युती जनाभिरामो fafaarfcaa: 1 इति विष्णधमं क्त धनावाभ्रित्रतं । AAA उवाच | इदमन्यत्‌ प्रवच्छामि aula ad तव | बलं ज्ञानं aaa शक्तिख यदुनन्दन | विख्यातं देवदेवस्य तस्य मूत्ति चतुष्टयम्‌ । यद्ेवरूपं कूश्मस्य(९) बलस्योक्त' तथेव तु it रूपं Was a Ma’ नरसिंहं तथा aa | azey ayaa कथितन्तु मया aq | पूव्व ` वलसुखं तस्य वासुदटेवसुखं भवेत्‌ | दल्तिख वद्नं ज्ञान ad सुर्षणं विदुः ॥ Gay पश्चिमे aq te पापाहर तथा। वारादच् तथावक्तमनिस्ड' प्रकौत्तितं। तिराचोपौषितभेते पूवं सपूजयेन्म खम्‌ | शक्तपत्तप्रतिपदि वैशाखे मासि दक्िणम्‌। SUS च पिमे MAINS च तथोत्तरं | (१) ध्मष्यद्रतिवा पाठः aang 3a: t] Bats | ५०३ asta दातव्यं चेतरे मारे दिजातये॥ र्णोपयोगिदातव्य वशाखे Aaa | योगोपयोगि दातव्यं wae मासि दिजातये।॥ यन्ञोपयोगि दातव्यमास्याषाटठ़े तथैव च। व्रतभमेतन्नरः क्त्वा पृणमासचत्‌ष्टयम्‌ | पारणं प्रथमं कत्वा BAMA महीयते) खावणादिषु मासेषु हितौय पारणं भवेत्‌ | दशवषंसहस्राणि स्वग भुक्ता यथोदितम्‌ | सौभाग्यादिषु भोगेषु ठतोयं पारणं भवेत्‌ | eats पारण क्त्वा भोजवेद्रा द्य णाञ्छ चिः ॥ भोजनं गोरसप्रायं सद्ौकाशक्तरायुतम्‌ । प्राप्त दितौ त्रतपारणे तु प्राप्नाति देवस्य सलोकतां सः | स्वर्गन्द्रलोक च यथोक्रकालं भुङ्ते सुखं सव्वेसखदिकामः। इति विष्णधमोत्तयोक्त सव्वाप्निव्रनम्‌ 00200 "न्ग TAH] उवाच | इदमन्यत्‌ प्रवच्यामि चतुय aad तवं | छालादिच चतुयुगं पूजयेत्‌ सुसमाददितः ॥ प्रथमे चेत्र शक्तस्य दिने ast छत युगं! ष्व तेन वस्तयुगम न गन्धमाल्यादिना तघा ॥ ५०४ हेमाद्रिः | [त्रतखर्ड'२१अध्यावः। चेचश्क्तसमारन्ध प्रथमेऽहनि पूजयेत्‌ ॥ कलं शक्तेन सव्व ण गन्धमाल्यादिना fea दि तौयेऽहनि रक्तन तथात्रेतान्तु पूजयेत्‌ ॥ ठतौयेऽदनि पौतेन gut पूजयेदधः। ~© ५ # . + aqusefa ama तिष्यं सपरूजयेद्यग ॥ © of ~ (> सिब्वायकः GAA तथच च हरिद्रया, aN > ॐ „~ £ तथ्वामलकेः Manns वसक्रमात्‌ 0 MITT प्राणएयाव्रान्तु कुय्यात्‌ प्रत्यहमेव च | क्रला Ad वत्सरमेतदटेक aqua मोदति नाकण््ठ । संपृज्य देव quafias चतुय गं aif महौ समग्रां ॥ ~, # ६ इति विष्णधर्मौत्तरोक्त' चतुय गव्रतम्‌ a! खौमाकग्डय Bars | दमन्यत्‌ प्रवच्छामि aqafard तव। Sqayq तघा वद्धि विरूपात्तं समोरण | जानोहि यदुशादूंल देवम्ूत्ति चतुष्टयम्‌ । तेषान्तु रूप्रनिश्माणं KAT तानश्चयेदघः ॥ गन्धमाल्यनमस्कारदोपधूपान्रसम्पदा | Sauat महाभाग प्रतिपत्‌प्रतिक्रमात्‌ ॥ कौप-नादेय-ताड़ाग-कारार; खानमाचरेत्‌,। - त्रतखण्ड'२ १ अध्यायः] sate | दभ्रा fadadetat waa च तथा भवेत्‌ | कपर कुद, aya तथेवागुसचन्दनम्‌ | त्राद्य णेषु प्रदातव्य तथा राजन्‌ दिनक्रमात्‌ दिनत्रयं तथाश्चोयात्‌ सायं प्रातरथासितम्‌ ॥ दिनमेकन्तु वाश्चोयात्‌ व्रतचारो नरोत्तमः। एतत्‌ संवत्सर Hal AA पुरुषसत्तम। सव्यकामसख्दस्य ITA फलमश्रते। मानुष्यमासादय भवत्यरेगो वसुन्धरेशो विजित।रिपत्तः | जन्मान्तरेस्यादिजवयसुख्यो वेदप्रसक्तो वहयज्ञयाजो॥ इति विष्ण धर्म्मोत्तरोक्तं देवमृत्तित्रतम । 0104 WAT उवाच | श्रतःपरं प्रवच्यामि waa fa रतं तव । चेतरमासाद्थारभ्य प्रतिपत्‌प्रभुति क्रमात्‌ ॥ Qua बहिषरोप्यग्नष्व।त्तास्तयेव च। क्रव्यादापहताय्ेव आज्यपा सुकालिनः ॥ जयेत्‌ प्रत्यह् राजन्‌ गन्धमाल्यःनुलेपनेः। aaa ant कुयात्‌ तिलानम्नौ च होमयेत्‌ | ait भोजयेद्दिप्रान्‌ तिलान्‌ दया दत्तिणाम्‌| नक्राशनम्तथा fas sfaaray नराधिप o waqifas क्ता व्रत पुरुषसत्तम | ( ६४ , ५० 4 ५०६ eae: | [तव्रतखश्ड २१अ्रध्यायः। व्रतावसाने दात्त रजतस्य फल (१) fea ॥ व्रतेनानेन चौणंन सप्तलोकगतिभवेत्‌ । वरिद्णः प्‌ज्यमानम्तु कामचारो विदङ्गमः॥ जन्मावसान पुरुषस्त क्त्वा AUCH लभते नरन्द्रः ¦ क्रत्वा तथा इादमवव्छर {ख्‌ मानुष्यमासाद्य agiafa: स्यात्‌ ॥ इति विष्णधर्ममोत्तरोक्त' पितव्रतम्‌ । ~ भ्‌ ----- AAW J उवाच) चतमामाद्यारभ्य कष्णपन्ने दिने fea | पातालप्‌जनं Gary प्रतिपत्‌प्रभुतिक्रमात्‌ ॥ Ua भौमं fama पातालं नौलखत्तिकम्‌। रक्तभोमं पौोतभोमं खेतक्ष्णएषद्‌ावपि॥ सुवंर्गन्धमाल्य ख नैवेद्येन च भूरिणा । छतदोपप्रदानेन व{्कसन्तपशेन च॥ एवं नक्राशनः क्त्वा Ad Wat सदा | व्रतावसने दद्यान्न, दौपकान्‌ दिजवेश्मसु ॥ Tara fa राजेन्द्र यथा quifa वाप्यथ । AAHAAT, Gal दर परादपतिभवैत्‌ | पातालगतन्तु नर दत्यकन्यासदस्रः। ८९) परललमिति कचित्‌ qre: | ब्रत ख॒र्ड २१ WATT: | Satie: | रमयन्ति महाराज थावदिन्द्राश्चतुद््‌ भ ।॥ कालेन वासाद्य मनुष्यलोकं राजा भवेच्छचगणप्रमाघौ। वलेन Huq धनेन युक्तो महागतिः सव्वजगत्‌प्रधान+ | दति विष्णधम््र ्रोक्तं पातालत्रतम | 000 माकंण्डय उवाच) चेतशक्ताद्घारभ्य प्रत्यहं दिनसप्तकम्‌। सुप्रभां काञ्चनात्तोच्च विशालां aaa. gary ॥ मेघनादं ways तथेव विमलोदका | faa’ dosage वदहिःसख्रान समात्रेत्‌ ॥ तासाच्च प्रत्यहं नाम्ना SUI Gla समाचरत्‌ | त्रद्यणान्‌ भोजयेचात् दघ्ना युक्तं सुभोजनम्‌॥ छतोदन तथाशओ्ौयाव्सक्तदटेव तघा निशि एवं संवत्सरं क्त्वा व्रतं सारखतं नरः ॥ ANT सुचिर कालं मानुष्यं जायते यदा! तथा नरेन्द्रो जितग्त्रपन्तो दिजोत्तमो वा वडयन्नयाजो | रूपेण धान्येन धनेन युक्तः सुतान्वितः स्याच्च जनाभिरामः॥ इति विष्ण धर्मरोत्तरोक्त सप्तमागरनब्रतमः' 1० यकशर (१) साखतत्रतमिति कचित्‌ पाठः| ) | yer देमाद्धिः [ततखर्डंर१अ्रध्यायः। MATHS य उवाच । चत्रशुक्तादथारभ्य प्रत्यहं दिनसप्तकम्‌ | मरोवचिमतदङ्गिरसं पुलस्त्यं yas क्रतुम्‌ । वशिष्ठच्चं महाभागं पूजयेत्‌ द्वसक्रमात्‌ | का ङोडइवेः फले? Ya: गोरसंख फलान्विनेः (१) | अचरत्‌ प्रत्यहं ala वहिनक्राशनो भवेत्‌ 1 aziaiefatadta तिल््नित्य' समाचरेत्‌ | तर्पयेद्राद्यणांघात्र फलमूनेय गोरसः । वारिघान्यश्च दातव्याः क्तोरपुणो हिजातिषु। एवं सम्वत्सर कत्वा तान्ते वादिताम्नये ॥ दद्यात्‌ क्रष्णाजिनं राजन्‌ यथापूव मयेरितम्‌ | व्रतमेतन्नररः Hat Arataray विन्दति ॥ HAWS समासाय AYA प्राप्रोव्यसं ययम्‌ | प्राप्रोति लोकयदि वा सुरागं देवस्य विष्णोयदि वैश्वरस्य । पितामहस्य प्रपितामद्स्य वा ततेन तेनाश(२)मदानुभावः॥ इति विष्णधर्मरीत्तरोक्त' सपरषिं ्रतम । | ऋणो ममम ( ९) पथग्विधेरितिवा are: | ( २) ब्टपत्रतेनाश्चितवा पाठः| AAG 2a: |] SAT: | ५०६ दष्वर उवाच | नवमौ चाष्टमी चेव पौणमामी Ae WM | यो ysa देवि नेतेषु सुपवसु नरः Wa गाणपत्य' स लभते निःसपलामनिन्दिति ) दति मत्स्यपुराणोक्ते नवम्याद्युपवासव्रनम्‌ | QAM उवाच | HUA तु ana यस्त nui च सप्तमं | उपवसेदिति शेषः |} इदेव सुखमाप्रोति परत च एभां(१) गतिम्‌ । इति भवष्यत्पुराणोक्तं सुखव्रतम्‌ | 000 श्रादिन्य Sara | VAM तथा AsTi(2) पत्तयोरुभयीरपि | योऽब्दमेकं नक्तभोजौ नियतात्मा जितेन्द्रियः ॥ ATY परमं प्रोक्त सततं सवयाजिनां। सत्यवादिषु यत्‌ पुण्य यत्‌ पुण्यसृतुगाभिनां। तत्‌फल सकल प्राप्य मम लोकमुपेति सः | दरति भ विष्यत्पुराणोक्तमकंत्रतम्‌। र र गिभणी ~ LR re ` (१) सुसुखामितिवा mia: | (र) ष्यादित्यमथवा venfafa पुस्तकान्तरे पाठः| ४१० Saiz: | [त्रतखर्ड'२१श्रष्यायः। अष्टम्याञ्च नवम्याच्च पक्चयारुभयोरयपि। योऽब्द्मेक ने Bala चरङ्डिकाराधने ca! I स याति परमस्थानं aa सा चण्डिका स्थिता, इति भविष्योत्तरोक्त' चण्ड़काव्रतं । O80 ~faqara | पूजयन्त्या श्च ललितां सवसौख्यप्रद्‌ायिनीं | स्ियो व्रतपरा यास्तु न वेधव्यं भवेत्‌ कचित्‌ ॥ याः काश्चिद्‌ वताः Wal मनुजोरगराक्तसाः। ता; Gat वशमायान्ति ललितापूजने कते | SUA पुरा WIT ठदि-सन्तानकारणात्‌। ययातिसुचुकुन्द WAHT पुरूरवा; | एते चान्ये च ववी राज्य प्राप्तमकण्टकम्‌ | तस्मातसव्व प्रयत्नेन पृजयेल्लितां Gare | SAGA उवाच) एतद्‌ तवर ब्रह्मन्‌ कस्मि्मासे(१) चका तिथि; । HAM: कस्य पूजेय दानं कस्य विधौयते ॥ अत्रिस्वात् । णु तमनवद्याद्ि ललिताराघनक्रियाम्‌ । अआअाश्िनस्य सिते पत्ते द्‌ शम्यां नक्तभोजनम्‌ | क ५ iy + + प्रतिमां wanat दिव्यां सर्व्वालहारभूषितां | a ar a ( 0) afaare मातामदप्रश्तयस्तथवात्र तयो AA | प्रियताङ्गोप्रदानेन इति car वि सजं येत्‌ ॥ क्रतेनानेन राजेन्द्र यत्‌युखय' प्राप्यते पुनः | AGUA न WATT Taz) वध्गतेरपि। + + a Ge * qaigq पौतांख धनं wa सुमहदटोख्ठितं। ~ | दरेवाप्रोति पुरुषः परत्र च पराङ्ति। पञ्चद्ष्यान्तु माघस्य पूजयित्वा पितामह | गायतया सहित रेवं वेदवेदाङ्गभरषित। ~ कै सै ९ = 0 $ नवनीतमयीं धेनुं फलंनांनाविघेय॒तां । सहिरण्यां सवत्ान्तु ब्राह्मणाय निवेदयेत्‌ ॥ नतत daa} कौत्तयेत्‌ प्रोयतां Asa पद्ययोनिः पितामहः (३) | यत्खर्भयच्चपाताले TAS किचिद्‌ लं भ(४)। तद्‌वाप्नोत्यसन्दिग्ध' पद्मयोनेः प्रसादतः | यानि चान्यानि दानानि gama सुवद्ुन्यपि। ( १) पृजय्द्ति पाठान्तर | (र) प्राप्त मिति afm faq पुस्तके are: | (3) सनातनदृतिवा पाठः) (४) स्थानं Bia पाताले यन्मते किचचिद्लभमिति वा ure: | AASW २१अध्यायः।] Patz | ५१७ युगादिषु महाराज ्रत्तयाणि भवन्ति fe वित्तहोनः ख शक्या यो ददाति aaa वसु | तदप्यत्तयतां याति नाचकाया विचारणा॥ वित्तानुसार खन्दद्याइनौ वा निडैनोपि वा aqua fz a: कित्‌ naaifarat(y सन्‌ ॥ तदक्षयं भवैव्सव्व युगादिषु aay: | श्रनुसारेण वित्तस्य ऋक्साप्येन समाधिना। भ्रू-हिरण्य' ae वासः शयनान्यासनानितु ङ तो-पानदह-यानानि देयानि शभमिच्छता ॥ एव Sal यथा शक्तया भोजयित्वा दिजानपि। Gaggia सुमनाः वाग्यतो बघुभिः सद ॥ यत्कि nifaa पापं मानसं atfaa aa aaa नाशमायाति युगादितिथिपूजनान्‌ ॥ MARIANA गन्धर्वः पूज्यमानः सुरासुरैः | कल्यमेकं वसेत्पाथ रुद्रलोके न संशयः ॥ aeiaa किमपिकोटिगुणं तदादः aia जपो नियतमत्तयभेव aa | स्यादत्तयासु गुगपव्वतिथौषु राजन्‌ व्यासादयो सुनिवरा इह नान्यधेतत्‌ | aid भविष्योत्तरोक्तं युगादिव्रतं(?) | 02102) (१) यगाद्‌ छ्त्यसिति वा qr: warfz: | [व्रतखर्ड२१३ध्यायः। ५१८ सनत्‌कुमार Sars | वेणाखमासि saat ठतोयायां wares | यरानुत्पाद्थामासर युगच्चारव्धवान्‌ कतं) प्रद्मलोकाज्रिपथगां एधिवौतलमानयेत्‌(१) ॥ भगोरधश् ठेपतिः सागराणां सुखावद्ः। तस्यां कार्यो यवेर्होमो यर्वर्बिष्णुः समचयेत्‌ | यवाम्‌ द्दयाहइिजातिभ्यः प्रयतः प्रागशयेव्यवान्‌ । Sia Zit जपः खाद तथा दोमजपादि क(र)।॥ दया क्रियते तच तद्‌ानन््याय कल्पते | सिन्धौसरिदिशेषण सव्वमकच्तयमु च्यते ! इत्यादपुर'णोक्तो युगादिबिधिः। नरद्धो वातत | मासि meas यत्त कष्णपन्ते तयोद्‌ भी । Tae युगं तस्यां चेतायान्तु समादहितः(२)॥ चरेतायां विनि्रत्तायां एतस्यां तदी युगमवतौखमिति- सम्बन्धः श्र्थाहापरमितिलमभ्यते | गोमूत्र गोमयं gat समालभ्य च खत्तिकां । Barge तडागे वा तिथौ तस्यां aarfea: | (१) श्यियामवतारयेदिति बाचित्‌ ais: | (२) छाप्ोमादिकच्चयदिति वा प्राठः | (३) तप्रौध्न ईति वा प्राठः, व्रतखर्ड'२१अध्यायः।] देमाद्रिः। ५१९ क्तन्तेन HABIT WAAAY न TAA: | युगादौ यसिलोकेशं स्र! पयेद्र रुडष्वज । तो ~ ny AT नो गें छतत्तोरजलः पुण्य; स गच्छदष्णवों gal | खाथितोध विलिपोघ पुजितोध नमस्त; ॥ युगादौ युगकत्तातु नृणां सुक्तिप्रदो हरिः। आ, = म oO ~ =. व्रते वे सव्वयन्नन युगादौ जमतोपतिः। पजनौयो TA TAA BAITED हरिः ॥ इति भविष्यत्युराणोक्तं यगावतारव्रतं। 000 दति ओरोमदाराजाधिराज Waray समस्तकरणाधौखर सकलविद्याविगारद्‌ ओोहमाद्रिविरचिते चतुर्वग चिन्तःमणी aaa नानातिघौत्रतानि॥ WY दाविंभोऽध्यायः। a——00(0)00 ——— ay वारव्रतानि ्रारित्यादिक्रममनुसरन्‌ सप्तवारत्रतानि qa सप्रत्यवदहितमतिष्ठसोद्य safe ae: | अनन्दाय प्रभवति सतां यस्य वाचा faarat faa wane यितचरितस्तोचमेतोपवितः 1 aa तावद्‌ादित्यव्रतलनि। fest उवाच | ये लादिव्य्रते ब्रह्मन्‌ पृजयन्ति दिवाकरं । सरानदानाद्नातेषां किंफलं यद्रवोहिमें। Awl Sard | ~, > ते! # © ये लादिव्यदिन प्राप्त खाद कुवन्ति मानवा, | ~ > सप्तजन्मनि त प्राप्ताः सम्भवन्ति विरोगतां ॥ ~ ट > + ~ व राग्यसिदहव प्राप्य gaia asifa a उपवासन्तु कुवं न्ति ये त्वादिव्यत्रते सद्‌ा | जपन्ति तु महशखतामोमितं लभते फलं ॥ विश्ेषादादिव्य fea जपमानो गणाधिपान्‌ | षड्त्तरं महाशट्तं जपन्‌ वैरोचनं पदं । व्रतखर्ड श्रग्रध्यायः।] SATE | ५२६ sifea wea, aa | agiaat Ht HY a दतिमन्वः षड्न्तरः, stat स aatafa aw |. यो यः autea भानुं संपूज्य wearers: t am करोति yaa: स यात्यमरलोकता ॥ द्‌ ति भविष्योत्तरोक्तमादिद्यत्रतं। 000 अदिव्य sara । योऽब्दमेकं प्रकुर्वीत aa हि मदने नरः । ब्रह्म चारौ जितक्रोधो ममाचनपरःखग ॥ सवत्सरान्तमासाय मडक्तांख हिजोत्तमान्‌। भ जयिदा प्रोतो ब्रूयात्‌ प्रयतां मे दिवाकरः ॥ aq भक्तिसमायुक्तो मम लोक स गच्छति | सच भानुललतं AH Ws Gay यान्नरः ॥ दति भविष्यत्पुराणीक्तमादिल्यत्रतं। 000 (a) 000 हस्तयुक्त वाकादिने WtAAAT चरेत्‌ | = ~ स्रालाभ्यख gq विप्रान्‌ वे fathn aad ac: 9 इति न॒सिंदपुराणोक्त' सौरनक्तबरतं | 000 ( ६६ ) ४२२ Safe: | [iaawae 225572: अधादिव्यवारे नन्दादिविधिः। ब्रह्मोवाच । इाद्‌ग्या SAA वारो आआदिवख महात्मनः) नन्दो USWA सौम्यः कामदः VASAT | जयो जयन्तो विजय ्रादित्यादिसुपासितः) द्यो VAS चव महारो गविनाश्नम्‌ | मालतोकुसुमानोह खेतचन्दनसुत्तमम्‌ ॥ धूपं गग गुलच्रष्ठे न Adar पृपमेव तु | दापू विप्राय ततो सुनीत वाग्यतः ॥ प्रखमात्र भवेत्पूपं गोधु मोत्यमनुत्तमम्‌ | Aza वा Hala सुगन्धसष्रपान्वितम्‌ i सहिर्यन्तु दातव्यं ब्राह्मणेभ्यो हितेष्सना | भौमे दिव्येऽथवा देयं न्यसेदापूरणं रषः ॥ देवा, ब्राह्मणाः, भौमाः, तदितरे ब्राह्यणाः | दातव्यो मन्तवत्‌ Gul AHWR Wy Wa q} पपादि धन कभा आदित्यपरमथ तु, aaa | आदिव्यतेजसोत्पन्र' wilacafathag | aaa मम विप्र त प्रतोच्छापूपसुत्तमम्‌।॥ ग्रहणएमन्ः | कामद सुखदं धन्य YAS YAS तथा | सदातेतु प्रयच्छामि Awa भास्करप्रियं | रतखण्डं २२अध्यायः।] BATFE: | ५२३ Walaa मद्ामन्तो दानादाने रविप्रियौ। AQIS ATA S श्रय मे नाच सशयः॥ एष मन्तविधिः प्रोक्तो नराणां खयसे विभो। अनेन विधिना यस्तु देवं पूजयते रवि ॥ सन्वेपापविनिर्मुक्ः Baan मदहोयत | न tz न रोगास्त कुले तस्य महाकनः॥ यश्व नं पूजयेद्वानुः अच्तयन्तनुते सदा | सूय्यलोकासख्रयं छत्वा राजा भवति yaa ॥ वहुन्नातिसमायुक्तः स नरो रविसन्निभः। इति भविष्यत्युराणोक्तो नन्दादिधिः | 000 मासि भाद्रपदे वौर PRI तु या भवेत्‌ | षष्ठौ कुर्कुलयषठ सा wer परिकौत्तिता' तव नक्तञ्च यः कुव्यादुपवासमधापिवा॥ हसयानं समारूढो याति सस्लोकतां | मालतोकुसमानोद तथा ख तन्तु Vea | विजवच्च तथा ad नैवेयं पायसं परं । विजयो, धूपः भविष्यत्पु राणोक्तोयथा ॥ अव्रणं fuga विप्र योखर्डमगसन्तथा | ALTE तथा मलं शकरा was हिज इत्य संपूज्य टृवेशं मध्या भुवनाधिपं, zal तु efaat waar तता सुच््ोत वाग्यतः 4 ARs Salle: (त्रतखर्ड २२अध्यायः। पाथसं सगुड देयं Asay सपिषा स । सर्व्वान्‌ कामानवाप्रोति पुच्रकामधघनाद्िकान्‌ ॥ इति भविष्यत्पराणोक्तभद्राविधिः | aaa रोहिणो Me यदा वारो रवैर्भवेत्‌ 1 जात्या स सौम्यता are: स सौम्यः परिकोत्तितः। स्नानं दानं जपो होमस्तथः देवादि पूजनं ॥ अन्य स्यान्रसन्देहस्तस्य वारे महामनः; | aa समाहितो यच पूजयेद्धास्करं नरः ! याति सोकं ख देवस्य भास्करस्य महामनः) रक्तीत्मलानि बे तत्र तथा Tag चन्दनं सुगन्धश्चापि धूपोऽच नेषेद्य' पायसं परं | ब्रह्मेति, मे भावितं aa: द्रति संपृजितः qa arent: पुतो भवेत्‌। अतोऽयं Yaet वारोष्टेवस्य परिकौ्तितः) इति भविष्यत्य्‌ crate: पुरापुचदो विधिः। भे मा (मः श eau त्वयने यःस्यात्‌ स जयः प्ररिकौत्तितः॥ अ्रोपवासो AH Ala दानं Baar | भवेच्छतगुणं रेव भास्करस्य fea aa ॥ तस्मानक्तादि कत्तव्यमस्माच्छतगुणो विधिः p दति भविष्यत्‌ राणोक्तो जयविधिः । त्रतखण्ड२२ अध्यायः} SATs: | १५२५ जयन्त BULA आदित्यगरणनायक | वारो देवस्य चेवात पूज्यो देवो गणाधिपः | पूजितस्तच 2am: सहस्र गुणितं फल | फलं ददाति देवेशः खानदानादिक्सपि ॥ gaa पयसा हात खा नभित्षरसेननु। fagud qe मस्य प्रशस्त भास्करप्रियं ॥ धुपक्रिया गुग्गुलुना Atay माषकं प्रिये । इत्थं संप्रूज्य देवेशं Fatal मन्तरवत्‌ किल ॥ ब्राह्मणान्‌ भोजयेत्‌ पात्‌ मोद कांस्तिलिशष्क्लौ । इत्थं यः पूजयेदानु' प्राजापव्यत्तंसंयुतः ॥ स शोकविजयो नाम सवेपापभथापहः | aa कोटिगुणं सवः फलं पणस्य कर्मं णः ॥ ददाति भगवान्‌ देवः पूजितः सगणाधिपः। ala दानं जपो होमः पिढटृवादिपूजनं ॥ नक्त वा सोपवासो वा संपूज्योऽच दिवाकरः) सव्वेलो काधिपो zat प्राप्यते सप्तससिकः । इति भविष्योत्तरोक्तं सुयस्य वार चिपुरसूदनव्रतं ; 000 ~ ~~~ प्रातः कत्वा ततः Gra पूजयित्वा दिवाकरं । ्रादिव्याभिसुखस्तिष्ठवययावद्स्तमनं रेः ॥ जपमानो He तां anil भक्तितः | महादेवस्य भ्या तु sada दिवाकरं | पश्यन्‌ जपन्‌ महाश तां तिषेदस्तमयं + भगदवतं, पूव्वाफल्‌ गुनि | ™ # nx योऽत्र पजयत भानुं शुभगन्धविक्तेपने; । ¢ ति = OO + सवरोगविनिम कः सयाति भाखतेग्ण्द। 0 # अ, = A, अ कप पुटे कत्वा पुषाक चेव Baa i त्रतखण्ड'२२ अध्यायः] देमाद्रः | ५२७ देवस्य पुरतोरानो Waa सपजयेदुधः। जयेद्‌ व भक्तया एतेन विधिना fest ॥ सवरौीगेषिं युक्तस्तु गच्ेदादिव्यकालय। तस्मादपि asain इङ्गाररहितस्ततः ॥ हिज, wear इङाररहितो, ब्राह्मणः । दति भविष्योत्तरोक्तो रोगदविधिः। 0 यस्त्वा दित्यग्रदहेगस्य वारो देवस्य yaa | पूजयेत्‌ स प्रिवोनित्य ख्यातो गोदुतिभूषम्‌ः | गोयुतिः, Wa: War: स भूषण" यस्य स सपमृषणद्त्यघ; । यस्त सप्‌ जयेन्नित्यं पतङ्ग पत्रगाधिपं। गन्धपुष्यादिधुपे स्त॒ स्तोत्र al विविधेस्तथा। सोपवासो गणयेष्ठ आदित्यग्रहणं शचि: | जपमानो Hea तां स्वगाखोक्षग्रहाधिपम्‌॥ ब्राह्मणान्‌ भोजयिता तु तती ysta वाग्यतः। आ्रदिव्यग्रहयुक्तोऽस्मिन्‌ वारे तिपुरसुद्न॥ एतत्‌ AHA पुण्यं awa We भवेत्‌ | सरानदानजपादोनां HNU तषभष्वज ॥ aan हि फलन्तेषां भवत्यस्मिन्र संशयः | Halal F गुणखेष्ठ भास्करस्य वचो यथा तस्मात्‌ सब्धदिनं काथः ga कर्म faq: ॥ एव भुक्ता च aa च उप्रवासमघापिवा। ९५२८ देमाद्धिः। [वतखण्ड२२अध्याषः | ये त्वादित्यदिने Ha स्ते यान्ति परमां गति ॥ धन्य पुष्यं AWAY Way कामदं तधा! तस्मिन्‌ यदानमपर तद्भोदानसमं aa | दादगेते महाबाहो वाचा भानोखओहातनः। अनुषितास्त॒ कथिताः सवबपापमयापहाः ॥ कत्वेतदेषां विधिवदार हषभवादहनम्‌ । तलो AAT लोकं ठषकेतो मदहातमनः | इति भविष्योत्तरोक्त नन्दादिव्रतविधिः। +~ () खरोनारायण्‌ उवाच | छत्वा qa) fadag शोभनं करिकाचितम्‌ | पतद्‌ यभियुं तत शोभमानं मनोरम ॥ तेषान्तु मध्यं चत्वारि तन्मध्य भास्करं न्यसेत्‌ | तेषां दादणपत्राणांसम्बन्धोनि ware पचाखि पद्ममध्ये कणिंकासंलग्नानि कार्य्याणि ala agra, पचर दादय- za Taq! पूव्वेपत्रे न्यसेत्‌ qaaraarg दिवाकर | याम्यायान्तु विवसखन्तं Away भगं न्यसेत्‌ | वरणं पञ्चिमे पत्र वायव्ये इन्द्रमेव तु | प्रादिव्यसुत्तरे देव सवितारं ततःपरं i कणिंका प्व पत्रेषु न्यसेदेकस्य वाजिन; | दचिणन सहस्रांश" मात्तंर्ड' पिमे भक्तेन छतपक्े (३) म॒ शालि्टतेस्तथा ॥ न्राह्मगानय Ts भक्तियुकन SAAT | वयोदगघटान्‌ SARITA खता AAITAT! | तथानेन विधानेन fant aafafafaar.(s) | ( १९ 2) वेद्‌शास््रक्ञ <7 a1 UTZ: | ( २) पयोन्वतानितिवा पाठः| (३ ) quararaifa at प्राठः) (23) बत्रकाञ्चपविचकं, इति वा पःठः | watz: (तव्रतखच्ड२२अरध्यायः) SUAsAAl: काय्या शित्त वित्तानुसारतः । दयात्‌ स्राचारसपनत्राद्यरषुमणोषिपु | Saad ग््हसारण पुनरेव Baad ॥ ततो गुर भक्तिपूबमासने चोपवे शयेत्‌ | अश्चयेदुगन्ध पुष्या धूपदौपविलेषनैः ॥ न गुरोः Beat माता न गुरोः सटः पिता संसाराद्डरेदोहि व्रतदानोपदेणतः। गोस्वामौ पूजितौ यस्म्ात्याव्वत्या सहितः प्रभुः । तस्मात्‌ संप जयेद्वक्तया गुरु भाय्यांसमन्वितं ॥ saad प्रथमं aa Usa पा दसस्थया ॥ द्व्यादस्तरारणि दिव्यानि सुवणाभरणानिच। प्रमूल्यानि तु रन्नाि(१) ग्रामच्तचपुराणि च ॥ नगराणि we fea यच्चान्यत्‌ सुरसुन्द्रि। दाहनानि fafaatfa गजवाजिरथादिक ४ अन्यानि यान्यभोष्टानि तानि सर्वाणि दापयेत्‌ | WA: CAA सुवस्ताञ्च सुरूपिणौ ॥ ग्ण गङ्गे VAG कांस्य दोहा पयस्विनी । qs ala च वस्वप्रात्रतदेदिका। sere, ara SURARTU Gag | HANS] यथाशक्त्या दापयेत्‌ प्रयतो aat ॥ elses ATA गुरवे araerfaa | एवं गुस wary शक्तया eras यजेत्‌ । (१९) बरचानौतिवा पाडः) त्रतखण्डं aaa: |] SATs: | दौपदानं प्रकत्तव्यं गुरवे ज्ञानदायिने, त्तमा पयेच तत्‌ ua टेवादिःप्रतिमां ददेत्‌ | ततस्तपस्िनां रेवि मम दशनहेतुना | सुगन्धष्टतसमिखपूपेः छशरपायसेः | धारिकायोकवल्लोभिः afta waar ॥ दधिदुम्धसमोपेतं भोजनं दापयेत्‌ gut: | तपश्िनो ब्राह्मणांश्च लिङ्मुत्तिंतुविधा। मम रुपमिद्‌ यस्मात्‌ तस्मात्‌ THI चतुष्टयं | fuatfeaa शास्वन्नेदगकेदश्च चिन्तकः | जटासुद्रादिसंयुी भस्मोच्छलितविगरहेः | ब्रह्म चरतेः Was ममत्सरवजितेः॥ tem: शिवपातरे च भुक्तौ; फल मनु त्तमम्‌ | भोजनान्ते प्रदातव्यं ताम्बूलं सुखवासकम्‌ | शेत चन्दनकौपौनं sal aia विसन्ज येत्‌ | शक्तितो भोजनं Za यथा विभवविस्तरे; | कछपरणनाथदोनानां सुहृदां याचतामपि। एव विधिसमायुक्तो गच्छते परम us ॥ भोगान्‌ YER Badia शतकोटियुगन्तरेत्‌ | कन्याभिवषितो tf रमते खेच्छया प्रिये ॥ मम लाके वशेत्तावद्यावदाभतससवं। मम बौय्येवलोपेतस्विनेतः शूलपाणिकः ॥ AWAY सोमवारस्य अन्त मक्तिमवाप्रयात्‌। पूवे छष्णेन aT तधा x पद्मयोनिना | टेवदानवगन्धर्ेः पिशाचोरगरात्तसेः | ५९५ ५६६ देमाद्धिः। [तखसर्ड'२२अध्यायः। ऋ घभिः क्ितिपेम्तदत्‌ खायग्भुवम्‌ सैः प्रिये । अन्यश्च मानव; शदधेराम्तिकैष्चश्मतत्परः। न देयं eufaura शद्धहोनाय न कचित्‌ शा स्तधन्मदिषे नेव विडम्बकजनाय च | अचाययदेवविप्राणां व्रतिनां व्रतशौलिनां ॥ वङ्किवेदसुतीर्थानां निन्दकाय न बे क्रचित्‌ | ara नैव परित्याज्यः व्रतमेतत्‌ Teas | AAMT AAs इति ज्ञात्वा समारभेत्‌ । गुरोः समोपे Fala व्रतमेतन्न सशयः, नन्यथा गुरुहौनस्य निष्फलं जायते ad | सन्दष्ट; स्वकार्येषु गुरुदहौ नस्य वे भवेत्‌ | AMAA प्रयन्निन गुरुमेव समा खथेत्‌ । रध PAI वच्य ब्रतमाहाव्ायम्‌त्तमम्‌ | ये चरन्तिनरा देवि स्ियखापिसुभाविताः॥ तेषां जन्मसहस्रेऽपि न शोको जायते कचित्‌ ॥ न दारिद्धानरगश्च सन्ततिच््छेद्‌ एव च। कुलोटि समुदत्य स्थापयेदिन्द्रसञ्मनि॥ दत्थ णोति ABA wala व्रतस्य q | खा वयेति संयुक्ता रुद्रस्यानुचरो भवेत्‌ ॥ क्रियमाणं तथा पश्येद्रतमेतत्‌ प्रियं aa भकतियुक्तौ नरः खुत्वा यब्वानुप्रमोदते। मति ददति aarfa a याति शिवमन्दिरं ॥ इति स्कन्दपुराणोक्तसोम्रतं | qagw~ aaa: |] Pals: | ५६७ अथ भोमव्रतं। 000 WViAASITH WY त्षपयेन्नकभोजनः' सप्तमे त्घसंप्राप्त wifad तास्रभाजने। हमं THATS RAAT GAIA | नेदं Bare मारं asa पष्पात्ततादिभिः॥ मन्तेणानेनतं दद्यात्‌ ब्राह्मणाय कुःर्‌ख्विने। कुजन्मप्रभवोपि त्र मङ्गलः पठयते वधः | अमङ्गलं faery मवंदा यच्छ मङ्गलम्‌ । sfa भविष्योत्तरोक्त भोमन्रतं | 000 ~~~ भौमोयमेष्वरः ya Ula जनितो महान्‌ । रूपेणव सदा रम्यो वरदानाददिवौकसां। स्येव दिवसे प्राप्ते तास्रपातं atta | परिपुम्प गुडनेव वपंमेकं प्रदापयेत्‌ ॥ व्रतान्ते दापयेन्‌ यथोक्त फलसंयुतां | व्राह्यणाय सुरूपाय अव्यङ्ितशरौरिणं॥ एवं aafafa दिव्यं यः कथित्‌ कुरुते नरः | रूपवान्‌ घनवांश्चव जायते नात्र संशयः | दति स्कन्दपुराणोक्तं भोमवारव्रतं । 006 ~य Salfe: | [ततखण्ड'२२अध्यायः। युधिष्ठिर sara देवदेव जगन्राथ YCIUZRSTUA: | सव्वाधसाघन YQ त्रत कथय मेप्रभो॥ मौमौयमचनं ब्रूहि AIT तस्य मे प्रभो | व्रतेन येन aaa नरे दुःखात्‌ प्रमुचते | ओओभगवानुवाच । यदुक' कथयिष्यामि सव्व कामाधसाधनं। ग्रहाणामधिपोभौोमः पूजयेद्ौमवासरे ॥ मङ्गलो भभिपुत्रख WITT धनप्रदः | स्थिरासनो महाकायः सर्वकामाथसाघकः।॥ लोहितो लोहिताङ्ग सामगानां क्षपाकरः | धरात्मजो कुजोभोमो भूतिदो भूमिनन्द्नः॥ अङ्गारको ANAT सवंरागापद्धारकः | खृष्टकत्ती weal च सवकामफलप्रद्‌ः | एतानि कुजनामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌ | ऋणं न जायते तस्य धन प्राप्रोत्यस शयं ॥ विकोण् सदाकाय मध्ये छिद्रं प्रकल्ययेत्‌ | HEAT सदा लेख्य रत्ती चन्दट्नमेव च। कोण कोणं प्रकल्ययानि तौणि नामानि भूमिज । आर'वक्रं भूभिजच्च रक्रगन्धे ख पु जयेत्‌ | स्थापयेदव्रणे Far जलप्‌ ण WISH ॥ रक्धान्ये रैवेद्येरष्य THWART | रक्तगन्धेश् धूपेय पुष्पदोपादिभिस्तघा । म्रतखर्ड२रश्रष्यायः।] ParfR | Age मङलं पूजयेद्रक्तया arasefa aac | NUL प्रकत्तव्या AFA तदग्रतः | तान्तु प्रमाजयेत्य ्ाहामपादेन CTA | एकविं गतिनाम!नि परिलातु दिनान्तके ॥ SIA धनवांशैव जायते नात संशयः | Gata fewest वायः प्ठेत्‌ सुसमाहितः ॥ एवं क्षते न सन्देहो WI val सुखो भवेत्‌ | पूजित्मे देवदेवेशो मङ्गलो मङ्गलप्रद्‌ः ॥ उज्जयिन्यां aqua भौमो Wagga a: | भरडइाजङ्ले जातः UfAPATSae: | वरदो मेषमारुटः स्कन्द्‌ प्रायस्तत्‌ ait स्यन्‌ पृथवो मन्दले are प्रतिष्ठितः: प्रत्छि{मन्तः। भ्तूसिपुतो मदातेजाः ZAC CHIT: 1 BASH ILAEA via; wifes प्रस्च्छमे। पूज(मन्वः | Wale देवदेवेश विघ्रहत्ता GAAS | WAU मया दत्तं aa wife प्रयच्छ a(t) ॥ भूभिपुत्ोमदातेजा; खे दोद्ववः पिणाकिनः। धनार्थो लां प्रपन्नोऽस्मि VUE नमोऽस्तते ॥ ALAR: | गौतमेन Gu Tar लोाहिनाङ्गो Asay: | (१) प्रदभवदविवा ares ( ७२ ) Yoo देमाद्रिः। [तरतखश्ड २२ WaT: कथय त्वं महाभाग Fer प्रूजार्चने विधिम्‌(१)। गौतम उवाच। मन्तमाराधन ब्रूहि सव्व प्राशिभयापहं । सवेपाप प्रशमनं सर्व्वीपद्रवनागनं ॥ सवं यन्नफलं येन सवं दानफलं लभेत्‌ | तपोजप्यान्यनेकानां फलं येनेव लम्बते | रूपञ्च सकलं येन वादहनायुघसयुतं | येन पूजितमात्रेण जायते सुखसुत्तमं(२) | Walaa Aa कालनवफनप्रद्‌ (२) । सवेपापप्रणमनं सजव्याधिविनाशनं(४) | सवसोख्य प्रदानानां फलं येन च लभ्यते । तद्रतं ब्रुहि मे देव लोहिताङ्गो agraz: 1 भोम उवाच |} WY साधो महाभाग TIT गीतम, व्रतं पूजा परं दान asia भुवनचये) आसोत्‌ पूवं सुनन्दिको ब्राह्मणो वैद्पारग; | तस्य भाग्या सुनन्दौका वन्धा तु वहनोभिनी # eee (१) wafafa wrara< | (८९) प्राणते परमं सुखभितिवा पाठः| (१) कालत नेवाभयप्रद्मितिवा पाडः, (8 ) सर्म्बपिद्रवनाश्ममिति वा ora: | = ४४५५ १५ =, - 5 म ' a व्रत खच्ड' २२अध्यायः।] | SAT ४.७१ तस्यापत्य न AAA बदलवन्धभावतः। तेनान्यस्य सुता जातु सुशौला रूपसयुता 1 ब्राह्मणस्य कुले जाता wear पोषिता सयं । सब लन्तगसंपरणी मद्रतेन तु गौतम ॥ पूवंजच्नि तेनाह पूजितशव भावितः) तां galy we तस्य ब्राह्मणौ साद्यपालयेत्‌ | नित्य प्रसयते(१) au अष्टाङ्गात्‌ कनकबद्युतिः। तेन खणनासौ विप्रो waren वेद्पारमः॥ कोरि कोटरो विप्रो राजते भूमिमण्डले | AD A pw 0 वषः कतिपयेव्विप्र सा कन्या योवनोत्तमा। ष्टा नन्दोकविप्रेण दशवषां' aa:faat | विवादह्ाथन्तु विप्रस्य द्वा सोभेखरस्य च ॥ वेदोक्तविधिना तच विवाडहमकरोत्तदरा(२)। AL ७ „^ © + + । वषः; कतिपयवति प्रस्तां कन्यां प्रौदुयोवमां ॥ आदाय श्वश्ुरग्टद्ात्निगेता WHAT ~ “~N © स्वदटेगोपरिमागण गच्छमानस्वहनि शम्‌ । वनान्ते गह्वरे घोरेऽर ख TH तमध्यगे | सुनन्दो च वने तस्मिन्‌ मन्द्लोभप्रभावतः। सवेसुन्ये वने तस्मिन्‌ महालोभेन भावितः | माग चलति विप्रोऽसौ घाति तु" विति खकं ॥ तेनासौ घातितो विप्रश्ौरखरूपेण सादरात्‌ | (१ ) पुष्टोयते eee aq रण्‌ सदए च्छःथसायतसतफनलं | क न Thoms = et ee ~ tm ज श ~ 7 ~ Te 7 ~ = a TH ~ ~ नः शभ + = (१) पथ्यायामतसत्रवोद्ति प्रादान्तर ; i i म te म्‌ oe qa २रब्रध्यायः'] माद्रः | ५८१ a नोन्न a गती at निघाचेह मदौयौ पितरौ सुने, तं प्राह नारदः ya सव्यलोकागनि; गनिः(१) ॥ पोडवामास वसुधां सवपामसुधारिष.२) | रोगांखकार देदेषु गेदधेषु धनसच्यं ॥ तदा पुश्धान्यरख्यानि परिश्चभ्य Wal ee । श्रादाय कायपोषाय सायसायवाःलि a पितः) क्तो वभावं परस्छल्य प्नेदुभित्तम्िचितं | at विद्धाय सचापसगतथलस्तत; aif a4» एवमुक्तः MORIA प्रज्वलन्निव पाठकः | प्रलोकय गगनाद्धुमौ पातयामास वं शनि ॥ यतमानो शरे; WH लग्नः; SAI बभ्रुव ह धरण्यां पतितं Sel HPAI AAT ॥ नन्तं FARA Aa नारदो SLA! | हषा द TAA BA दशयामास a ula | KA देवास्तदा प्राप्ता AMAS ST AUAAT! | गनिन्ते सान्त्रयामासुः क्रोधमुग्ध सुनिचतं। स्वस्ति तेऽस्त महाभाग पिप्पलाद सहामुने । भद्रन्तेऽत्र लं नाम नारदेन ABA I अन्वयगुक्तं विन्द्र जौवितं पिपपलाद्‌नात्‌ | पणी यि पाव्य (१) सव्वल्लकानन्तः शनिरिति पाउान्तरः | (२) क्रीडया पोडगरःप्ास sey agufrarfafa पाठान्तर | TR देमाद्रिः। वितखष्डंररच्ध्यायः। saw पिप्पलादटेति लोके ख्याति गभिर्व्यसि ॥ येच लां पूजयिष्यन्ति स्नात्वा पुष्मात्तता{द्भिः। ग्ट्छायमपटे रम्य च्िमयुभकतिभाविताः | सप्तजन्रान्तरं यावत्‌ युद्पोत्रानुगाभिनो' aut waa grat भविष्यति कदाचन ॥ स्मरिष्यन्ति a asta at पिप्पलादेति नामतः | तेषां waataar न पौडापि भविष्यति 1 त्मस्वास्य महाभाग faztatsy ग्रहाग्रणीः | चरन्‌ Fae) WATT शुभाश्भफलप्रद्‌ः । SSAA ग्रहाख्चते न भवन्ति कदाचन, वलिद्ामनमस्कारः शान्तिं यच्छन्ति पूजिताः | अतोऽथमस्य दिवसे स(नमभ्यक्गपून्वकं। कायं Zaq पिप्राय तेन्तमभ्यङ्कहेतपे। यस्त Haat यावत्‌ प्रासे शनिदिन नरः(२) ¦ aa ददाति विप्राणं ana तु) ततः मंवतव्छरस्यान्ते प्राप्ते तस्य fea पनः | लोहघटापितं सौरिं तलङ्कग्मे विनिचिपेत्‌ ॥ aS वा BUM वाध क्लष्णवस्तयुगान्वितं | (१) चरन्‌ wafafa पाठान्तर | (रे) प्रतिदिने नर दति पुषूहकान्तरं gra: | AAW २२अध्यायः | dare: ५८३ ्रनिरूपन्तु मस्छपुराण्ःत्‌ | इन्द्रनौलव्यतिः शूलो वरदो हषवाद्नः(?)) वागवाणासनधरः; किसैटःकरुतः सदा! AWM AUR कष्णकस्बसलगायिन। SISA सयं BSI कष्णपुष्पेथ पूजयेत्‌ 1 que! aa aga ;(२) क गरानेस्तिलोदनेः(३) | पजथित्वा aaga wAala पुनः पुनः ॥ ष्णाय दिजसुख्याय तदभःषेतराच as) | देयः शनंखरौ Wa मन्ते गानेन a fra गत्रोरेवोति fanturfaantat see य:(५) । क्रराउलोकनवशान्ुवनं AGT खे ग्रहो AZ | तुष्टो धनकनकसुखं carla waa WAIT: प्रातु | यः पुरा नषटटराज्याय नलाय afeaifaar(s) सप्र eal निजं(ॐ) राज्यं समे रसौर प्रसौद्‌त्‌॥ कोणं NASBA मन्द्चष्टाप्रसारिणं। EMAAR AA नमस्यामि trax ॥ A A 9 1 ऋ, । „षयवा - +, gd 11 णि ति | ध २ 1 प ग (१) ग्रघ्रञादन दूति पुम्तकान्तर पाठः ¦ (२) सुगन्धमन्धपुष्येश्च दृति पाठान्तर, (२) सरलं featteat fa पःठान्तर ¦ (४) aT गांददयाच कम्ठन्तसिति gata | (५) दतरोषाच्च वगानां wr मन्तरद्धिजत्तम दति पुस्तकान्तरे प्राठः: { € ) Ty प्रदद्‌ किलल Tq पुस्तकान्तरे पटः) (७ ` खध्रतस्नंनिजमिति युम्तकान्तर पाठः , ६८४ Satfe: | [व्रतखण्डररेब्रष्यायः। नमोऽकएत्राय WAST नौ हारव णणैच्नरे चकाय। गुत्वा रदस्य तव कामदस्त्व सरद मे भव aay । नमोऽस्त प्रेतराज्ञाव HUN वे नमः(१) । गनेखराय क्रूराय शुदधबुरदिप्रद्‌ायिने॥ य एभिनीमभिस्तौति तस्य तुष्टा दृदावयसौ। तदोयन्तु भयं तस्य ख्प्रऽपि न ufaafa | इन्यनेन विधानेन शक्ति car विसन्नयेत्‌ | एतद्‌ व्रतन्तुयें विप्र दरिष्यन्तोहं मानवाः। WAM TAT WA वत्सर Waza qs तेषां Waal der Sisfa a ufaafa 1 भवियःत्तरात्‌। AW Sars | पुरा Baga पार्थं नावप्रत्याकञ्सन्‌; | कथचिद्रग्यःदरज्नस्तस्य UF BAMA! | ततोराष्ट कुधाविष्ट वन्नूवालोव Sat । पतक्गसुषकाकौर चोरव्याक्तभयाङ्ल्लं | तभ्मिन्‌ Tiga Tid सपल्लौकः BATA: | कौशिकः AWS त्यक्ता परदाटसगाच्छने; | मागंच गच्छतातेन येन केन मपिर; त्यक्तः TSAI दुर्भरः हि FLAS ॥ ज कन क = 2 ` 2 =, = ~, तस्मिन्‌ कालं fauna ard द्धौोषधिसच्चये | (2) BVEE a las दृत पुस्त॒कान्तमे प्राठः त्रतखण्ड'२२अ्र्यायः] देमाद्रिः। लत्वा तत्निघुशं कश्च ततोऽसौ कौशिको aa: | सोऽपि बालः च्षुधादौनो दिगो ata ear अपि | उत्याय पिप्पलस्याघोमूलान्यत्तं प्रचक्रमे ॥ ai जसं पपौ faq त्न AAA | aa anifaat Oe तेपे च विपुलं तप; 2 अजगाम VU Tat वेदपारगः | a — किं ~> #्णा नी ~= "न शी च a त ET दोवउद्नं Bia fenias tl देट्‌.सष्यःपयःस्ाच सरद्स्यपद्‌क्रमात्‌ | Set च वेच्खवं aad इाद्गादर्साच्यृतं | GVW ALA SIS (AW ata चं éfqqaunizga विष्णुः प्रखच्ततां await | TRAINS. TSG ङदनच्छविः | SULA: WAS A) WF UATSTIT: | स SUT Agi Gal वर्‌ द्रुहि य{भच्छसि॥ GRA AAA aaa [ASAT | ASAMSRial QUAD Awa Tk Sal HA सपद सनाभ्यासच्ख faa” | aimitaaay दिष्शुस्तचंवान्तरधोयत tt तलोऽभवन्छद्ाज्ञानौ महपिः a जिश्स्तदा। नारद्‌ प{रपप्रच्छ केनाहं पौड्तो मुने॥ ग्रहेण ग्रहरूपेण दःलरूपऽदिद्‌ःखितः नमे faa a a aiat जोवितोरऽस्म्यस्य पौोडया॥ ( og ) =~ श 3 ure द्समाद्धिः। [त्रतखशर्डररश्रध्यायः। UNG भवता दत्त मम देवः दिजोत्तम | तच्छत्वा ततो वाक्व कथयामास नारद्‌ः॥ > ०५५ ~ ~ , मो शनख्रेण क्रूरेण ग्रहण a fe afsa: | uifsay समम्तोऽपि टेगोऽयं मन्टचारिणा e तथेव च फलं UTA रषं सौरिः शनेखरः॥ ATAU उवाच | mt # एवमुक्ता सुराः सव्व प्रतिजग्मुखयागतं | प, ~, ~ ~ प्रनेशख्रोऽपि सखे स्थाने ग्रहत्वेण प्रतिष्ठितः | a 4 . पिप्पलादोऽपि ata aarat प्रतिपालयन्‌ ¦ पनेरन्तु संपूज्य तुष्टाव रचितास्नलिः। कोणस्थ; Pal वक्रः कष्णो रोदरौोऽन्तकोपमः) सौरिः Watt मन्दः Waat मे यहोत्तमः॥ शनेखरभितिस्रत्वा पिप्‌मलादो महासुनिः। ~ Oo ~, [१ र वेञ्यलन्‌ विमानस्ो हृष्तऽद्यापि मानवे: ॥ इटं गनेशराख्यानं ये पटि्यन्ति मानवाः(१) | तेषां कुसकुलयष पुनः GIST न बाघत॥ छष्णःयसेन घटितां assaf ~ ~ "४ “0 aie निधाय aan faaaara | यो ब्राह्मणाय रविजं प्रददाति wer 7) म ~ + पोडा Waacaal न हि वाघते a ll ee ee यषा धी णमि ज yl ae धा (१) ये ब्रोष्यन्तिस॒मादिताः इति धुखलकान्तरे पाठः| व्रत खर्ड'२२अध्यायः'}] PACE: | ५८७ इति भविष्योत्तरे शनेश्चरव्रतं | ——— 00(D)00 NAW Sas | Mad: संप्रवच्यमि ta द्येतद्त्तम। येन लच्मौषटतिस्तषश्टिः एष्टिः कान्ति aac ॥ मलेन सूवधतनयं WHAT भरतपम | afafed anata ग्रहवितयमादरात्‌ | Hata राश Aqala क्रमान्रप। wa छततिलेः इय्याङगहनामा च मन्तवित्‌ ॥ waqzimenanzifantaca at | Sia मधुसपिभ्य दघ्ना चैव waa तु, UAH WHEAT BAIA ताः सपमे चेव संप्राप्त AA स्सुतस्य च, ग्रहास््रनोऽपि कत्तव्या रजन्‌ लोहमया; War | लौहपात्रे सिता; सव सौवण वा Hees | कष्णवस्वथुगं द्ादेकोकस्य RAAT | sa afaeq निरन्तरव्रतोक्त वेदितव्य) UWPRATS, HEWITT IANA | करालवदनः BE TAUNYR वरप्रदः | नोलसिंहासनयुतो weta waa | aa दिवाहवः सव्वं गदिने विकृताननः ` ग्टक्नासनगता faa केतवस्यव्वेरप्रटाः ॥ SAAR CAAT धूपं क्णागुरन्तदा | yar Salle: | [त्रतखण्डर२्अ्रध्यायः) Sul Ge ah are ब्राह्मणायोपपादयेत्‌ i WHAT ART AA राहवे तथा | ASCH AA] सन्त गान्तिप्रदो भव | afe भरा रवियुतो भास्करो राहुणा सह । ~ Ad =, facia Ga पडाकरा ग्रहाः ॥ TAM सवं MATZ: ॥ यरण्वं Hid राजन्‌ खटा ufaanaa: | ™~O on rate 9 = तस्य MAIS सव्व यच्छन्त विजय सुखं] य एतं खलयाच्छान्तं ग्रह्धाष्णं पटतेऽपिवा। ¡ क €, च्छ = तस्य UGA: सव्वं Wie यच्छन्ति भूपत॥ qa विधुं कुजवधो गुरुशुक्रसोरोन्‌ Ses AA SAIAlSAHAT | रयज्य हेभटितान्‌ हिजपुङ्गवाय SUI UNIT ग्रहमखेन न पौडतेऽद | ४ + on ~ hast TRA Asa व्यवस्थितान्‌ | AWMUYA, Way धूपो efaar wena | fa Cen as aS +~ ~+ ^ दूति भ्‌.वष्योत्तरोक्ता AS AU SMU) | COC (a O00 waafafanaa faatat Qeaiae: | पुनरेव vaeiia aaifa q aa fea | रादि्ाचाटमोधोगा यदा मवति मौम्यके। we oe eee eee (१) प्रदनच्चः{द्‌शान्तिरि लि पःठान्तर | व्रतखण्ड २९अध्यायः] माद्रः, wee विशेषप्‌जा कत्तव्या पुत्रकामेन Faq: ॥ पुष्ये शक्त चतुद श्यां गुरुयोगो यदा भवेत्‌ | अथवा सोमसंयोगा विशेषात्‌ पज्य TFTA ॥ पायसं wadga शिवाय विनिदेदयेत्‌ ¦ धृपदौपोपहा राये: Gaaq पूजये च्छवं a प्रायनन्तु तं कायः सव्वंकामप्रद्‌ं व्रतम्‌ i आदित्यरेवतौयोगश्वतुदेण्यां यदा भवेत्‌! अष्टम्यां वा मघायोगेा शिवं संपूज्य पूव्ववत्‌ | तिलास्त्‌ प्राणने शस्ता अःदित्यत्रतमौरितं | aia wad तख yaaa, सद | रोहिणो चन्द्रदीरख चतुदहंष्यां qe भदेत्‌। ACA सोमसंयोगा त्तदा Wend चरेत्‌ | nyaa विधःनेन शिवं संपूज्य यज्ञतः । efa deg aaa प्रानं च्ौरमेव च। कौ सिं मारोग्यमेश्वय्य' प्राप्यात्राडतं वचः | अश्िनोभौमसंयोगखतुदश्यां यदा भवेत्‌ । अष्टम्यां भरकणीयोगस्तद्‌ा भोमत्रतं चरेत्‌ ॥ सपृज्य परया भक्तया शिवं पञ्चोपचारतः। रक्तोत्परलप्राणनन्तु WaT प्राभ्रुवाच्छभ । रोदिणौवधसंयोगखतुदश्यां यदा भवेत्‌| अष्टम्यां वा समारेन GHAR समाचरेत्‌ ॥ शिवः पूज्यो विधानेन महाख््रानपुरःसर। मद्ावत्तिसमोपेतं प्रानं WANE | ५६. 9 eatfe: : [a AMIR AAT! घवार्थदाराश्च AM वदत तस्य नान्यथा ॥ रेवतौगुरसंयोगशतुद्श्यां यदा waa | श्रष्टस्यां तिष्यसंयोगाह्रसत्रत तदा चरेत्‌ ॥ प्राशनं कपिलानज्यन्तु ब्राद्योरससमन्वितं | वागमोशत्वमवाप्रोति व्रतस्यास्य प्रभावतः। AAU भागवयुतं चतुदेग्यां यदा भेत्‌ । श्क्रत्रतं ae विबि पुनव्वेखषटमौ यदा। संपूज्य परमेशानं यधाविभवविस्तरंः | प्रानं HY चैवात्र HUST संयताकना। महाफलमवाप्रोति व्रतस्यास्य प्रभावतः। भरणोशनियोगस्त्‌ WE wi यदा भवेन्‌ | आद्रौयोगस्तथाष्टम्यां तदा शनिव्रतं चरत्‌ I fad संपूज्य विधिवत्‌ प्राणनं सस्यभमेव च । श्चनिरेकादगस्थो हि फलं यच्छति waa विरु शोभते aa तदथं व्रतमाचरेत्‌ | इ मकुष्यप्रवालच् कस्बलन्तु क्रमेण च) NEZ तौच्णलोहञ्च MAI दापयेत्‌! यथा MMA वत्स आचायाय waaa: | इति कालोन्नरोक्ताणि तिथिनक्षचवारव्रतानि। 000 इन्द्र Vary | we नेव तु FAT महापु यथया भवेत्‌ | तदह चातुभमिच्छछामि away सुरेश्वर ॥ व्रतखग्ड'२अध्यायः।] SAT | ५९९१ ब्रह्मोवाच | ay वत्स प्रवच्यामि ata परिषच्छसि। AURIS ग्रहच्तिथियौगिकं | ख गुपोश्णाषटमोयोमं शिववोगेषु Was | खटवगयसौ भाग्यः भद्रया WYATT | दवयगाद्यद्‌ा षष्ठौ पुष्यद्ंरविवासरे, स्कन्दया गस्तद्‌ा कार्यः सव्वकामप्रसाघकः। वारे देव यदा Ba सप्तमौ विजया मता! तदातु शोभनो योगो भवेत्‌ सव्वेगुणावहः॥ ्शिरिक्तासु संयोग आद्र त्तस्य सुरेष्वर ! नवम्यां मङ्गलो योगो भानुभरर्तद्नि यदा, yom चाथ चन्द्रो fe wana सुसावद्ः ॥ afead Tas q गणनाघयस्य चाडहनि। पनवेसौ गुरोव्वारो sei Baia a | ana तदा यागं विष्णोः सर्व्वायसाधकं॥ दतौयायां यदा सौम्ये कत्तिकत्तं भवेत्‌ कचित्‌। यदहयागम्तदा कावः सन्वेशान्तिप्रदायकः ti स्वात्य शनि चतुय च उमायागे वरा स्मरता ॥ उत्तरासु च पृव्वासु भानुपूण्ीषटमौषु च, ग्रहशान्त्यादिकं AA सव्वान्‌ कामानवःप्रयात्‌ | गुरोरेकादमौपुष्ये रोहिण्यां वा नेश्वरे । सुतरोभाग्यकामाय यागो रौद्विनायकः॥ प्‌श्पिमासु च UA अष्टमोदःद्गौषु च; ५९२ Safe: । {बतखर्ड'२२अध्याय;। चतुदण्यां ठटतौयासु WAY Way च | सव्व घां सश्भषेद्‌यागेा UAT महामुने | मन्तमाघन्िष्टायु रुद्रयागाद्वाप्यते॥ खोमेधाज्ञानमायुष्यममाया गान्महासुने । MaMa यशः; fate महादेवाद्‌वाप्रुयात्‌। TUT PACA भास्करात्‌ प्राप्यते ध्रुवं । afafazi यथाकाम प्रयच्छति तिविक्रमः॥ fais सम्भषेत्तस्य aw पश्येदिनायकं॥ विगतारिभेवेत्‌ षयं ष्टा स्कन्दन्तु तत्ततणात्‌ | माटवःगान््रहासिदिः सव्वंघामपि जायते) भवेस घनवान्‌ पुंसां Waals हतागनात्‌ | स्वगापवगे संसिडिद्‌ गयागात्‌ प्रजायते | मायाद्येमङ्गनलादैय ज्येष्ठायां awfaaa: ॥ ईशान्य कालिका्याम्त्‌ यष्टव्या विधिना qa: ॥ इत्याद्य देवौपुराके ग्रहतिथाक्षवागमादहाव?कौत्तंनम्‌ | afa गौमहाराजाधिराजखो महादेवस्य ममस्तकरगाधौश्वर- anatazy, faniqeais afefatfaa- चतुव्वगचिन्ताममौ qaaw वारव्रतानि अथ चयोविशोऽध्यायः। अथ नत्तेचत्रतानि। ant इमाद्धिनयविनयसम्परसतिभवनं दिजन्मा सन्मारगप्रयितपदसचारचतुरः। तिलीकौलोकानामविकलफलश्रणिरचना विचित्रं नत्ततरत्रतमणमिदानौं वितनुते | पुष्कर उवाच | sq: परं Haifa काम्य RA तबानच। उपोघितौ सदा पि यजमानपुरोदितौ । अश्विन्युवे शभे aia कुया तां तत्निबोधत ॥ MARIAH दो कुम्भौ मधुककुसुमान्ितो। चअष्वगन्धयुती कत्वा स्थाप्यावधसदा Wal i ततः संपूजशेदिदान्रासत्यौ शशिनन्तघा | श्रग्विनौं qeuga श{चिवःसःस्तथा दरि (१)। गन्धमाल्यनमस्कारर्रीपधुपात्रसम्पदा ॥ ततोऽश्वमिधनं as सव्वौषधियुतं Tze | प्रणतेन ततो Ber नासत्याभ्यां निवेदयेत्‌ ॥ धृपमष्टाङ्क दद्यादेवानान्तुहिनोत्तम॥ ्रष्वलोम तथधःश्वत्थफनमरले च वा मदा) (१) प्रगक्तवासास्तथाद{रि्मिति पाठाक्र्‌ | ( oy ) वि é १८४ दमाः | {त्रतखर्ड २२शअरध्यायः। uaa fad कत्वा मणिदायम्त योभनः ॥ aq दधत्तवाश्िनभेतदेव स्नानं प्रकुव्बन्‌ प्रयतो मनुष्यः | अ्र्वानवाप्नाति निरस्तसङ्यान्‌ कुलोद्वान्‌ वोखवलोपपत्रान्‌ I इति विष्णधर्मोत्तरोक्त (\)अञश्िनोस्लानं । 000 —— ब्रह्मोवाच saa कथिताः कष्ण तिथियोगा मथा तव। नत्तवटेवताः सर्व्वाः नत्ततेषु व्यवस्थिताः ॥ इष्टान्‌ कामान्‌ प्रयच्छन्ति यथास्थानं सुरेश्वर | AA यत्र AGA यदा aafafacfa | TAM TAIRA तदा स सफलो भवेत्‌ । Zaata प्रवच्यामि बत्तचाणां यथातथ | नक्षत्राशि च सर्वाणि थन्नद्धेव पथक्‌ पथक्‌ ॥ अ्रज्िन्यामाश्चिनाविद्ा दौर्षायुच्नायते नरः | व्याधिभिर्मुच्यते fad asad व्याधिपोडतः॥ भर्या यमराड्ष्टः कुसुमेरसितेः wa: । तथा गन्धादिभिः शभ्रेरपमल्यं विमोचयेत्‌ ॥ aaa: कत्तिकायान्तु wie संपूजितः परा। रक्तमाल्यादिभिदवयादष्टतहोमेन चध्रव॥ प्रजाः प्रजापतिः प्रोत इष्टो(२) दयात्‌पश्‌ WAT | (१) भविष्योत्त रोाक्तसिति पुखकान्तर पाठः| (x) Waa: प्रलाप्रतिःप्रोत इष्टमिति पाठमनतर्‌ | व्रज खण्ड २३ अध्यायः!) देमाद्धिः । ५९१ रोहिखां देवशादूल गोजन्माह जगत्पते | BUMNG AM सोमं जातिमारोग्यभेव च। आद्रायान्तु fad पूज्य पशून्‌ विजयमेव च। सितैः पञ्चा दिभिर्दिब्येदवलं पयसा चवे | © © # णतान्‌ पुनव्वेसो ददयाच्चरुणा तप्यिता दितिः ॥ तिष्ये हदस्यतिब हिं विपुलं सुखमेव तु | भोगान्‌ गन्धादिभिनांगा अञ्चेषायां प्रपूजिताः।॥ भे ~$ © +, afqara प्रयच्छन्ति भक्ताद्यमधघुरेः Wa! । मघासु पितर! पुष्टि छतपायप्ततपिताः। पूर्व्वा यां विजयं zara देवः सुतपितः ॥ भक्या प्रपूजितो ददयादुत्तरायां तघायमा। | च। # | ५ 9 =, # भत्तारमोष्ठितं नास्याः पुंसथ वरयोषितः ॥ NUT AMAT सम्प्रद' चारुरूपतां | fx । , ~ om quaaifad ea ददययात्तजोनिधिस्तया ॥ चितासु gfaaerel दद्यादारोग्यमेव च(१)। स्वात्यां संपूजितो वायुः एतानिष्टान्‌ प्रजच्छति(२) ॥ saree तु विशाखायां data: प्रपूज्य च। धनं राज्यञ्च लब्यौ ह aval निवसेत्सद्‌ा ॥ रेभं चमन्‌राधास्वेवं संपूज्य भक्तितः | # ao $ © प्रियो जनानां सव्वषां चिरच््ोवति सव्वदा | च्ये्टायां पूव्ववचिन्द्रमिष्टा पुटिमवाप्र यात्‌ | (१) राच्यः faag fearai निःसपल' प्रयच्छनोति पाठान्तर (२) दृषटस्व दृत: प्रोतः emi वाय॒व्वल्ल परमिति पुस्तकान्तरे पाठ, | Wed देमाद्िः [तरतखण्ड'२२अरध्यायः। गुणः सर्वस्त संपूण; कणा वचनेन च । मूले निक्ैतिभिष्टा waa परललादिभिः। पूर्ववत्‌ फलमाप्नोति AANA च Wat भवेत्‌ ॥ अप्रा जलैरेतेहंता तच्रेव पूर्व्ववत्‌ | TAT ASA FAT MUTA AAA | aimee तथाविश्वविरिचु्रतुरयोगतः। संपूज्य faaaraifa ve विजयमेव a(e) ॥ aaa पूजितो विष्णुः सर्व्वान्‌ कामान्‌ प्रयच्छति(र) | धनिष्ठासु aafaer न भयं प्राप्रयात्‌ कचित्‌ | महतोऽपि wararat गन्धपुष्पादिभिः शभेः(३) | वर्णं शतभिषासरचं व्याधिभिसु चते नरः ॥ अजग्बाद्रप्टायान्तु एदस्फपटिकसन्निभ | संपूज्य मुतिमाप्रोति ara काय्यां विचारा i उत्तरायामदिव्रघ्न परां शान्तिमवाग्रयात्‌ | रेवत्यां पूजितः yar ददाति विविधान्‌ पशून्‌ । सितैः पुष स्तथा Hag पे व्विजयवदनेः ॥ य Ua A समाख्याता ART: संक्तेपतो WAT | ननत्तचदेवतानां हि साधकानां हिताय 4 | तस्मादित्तानुसारेर भवन्ति HASTA: | गन्तुभिच्छेद्‌ यदान्यव क्ियाप्रारग्य एव च। मि pe (१) fara परमं Saar, खगमाभ्नोति Haz tia पाठान्तरं, (२) Sia पे्भक्तितद्ति पाटान्तरः | (३) THe Hee प्पमेरिति पाठान्तरं | व्रतखश्ड' २३त्र्यायः)] Pals: | ५८७ नक्तचदटेवतायन्न कत्वा तं सव्वंमाचरेत्‌। एवं aa हि तत्सव या्राफलमवाप्रयात्‌ | त्रियाफलन्तु संप्रूणेमिलयुक्त भानुना aan दति भविष्यत्पुराणोक्तो नक्तचपूजाविधिः । MILA उवाच | अग्न्यः दवमवाप्रोति शत्रुनाभमधापि AT सखे च्छया कसओ्मणा केन सद्‌ा मनुजपुङ्गव ॥ पूजयेहासुदेवन्तु कुङ्कुमेन qatar | ~ A ॐ OAC. 9 Aa FUE GT दया गुग्गुलं ॥ waa दौपं दद्याच्च रतावस्त्रं तयेव च | निषेद्‌नोयं देवाय तथा सव्व ` निवेदयेत्‌ । हो तव्यच्च AHIMA तथेव च सुरषभ | आयुधानि च देयानि ब्राह्मणेभ्यस्त्‌ efaq ॥ कव्दे तदन्य रिपुनाशकारि काय्य ' सदा त्रगणप्रमाधि। क्वेतद्ग्न्य {रिपुनाशमाश्ु प्राप्रोति मर्यो न fe सशयोऽच। इति विष्ण धर्मत्तरोक्तं श चनाशन्रतम्‌ | (+ BIA उवाच | aaife योतुमिच्छामि काम्यानि afemag | £ त्वत्तः सव्वेज्न YAR वादोगणदरपातमज। ५९८ Saiz: | [aaa २रेश्रध्यायः। Gent Sard | क्लोपवासो AMA सोपवासस्य भागव। guard gaia कत्तिकासु यथाविधि ॥ ते €. = ॐ € (~ । at प्रकोणंमलंः कलशम्‌ HAC AYA: | ait: सर्व्वौषधिग णेस्तथा तीर्घोदकेः WU: tt अग्न्यश्त्थगशिरीषागां न्यग्रोधानां waar | =~ > = ९५५ ^+ 0 पातचपुणस्तथा युक सतिलः कष्णदिजोत्तम ॥ रक्तमाल्येन TIT बडकरटेस्तथेव च | श्रागनेय्याशासुखः स्थाप्यो नोलवासा हिजोत्तमः॥ afs कुमार शशिनं खं वस्ुण्मव च । पूजयेत्‌ कत्तिकास्वेव गन्धमाल्यान्रसम्पदा॥ = ॐ 0 a A पोतरकस्तथा वस्वटतदोपस्तथव च| दघ्ना गव्येन लाजाभिरग्निमन्तेण aay tt EN 3 छशरापूपिकाभिश्च sage एथग्विधः। देवतानां यथोक्तानां frag ज्‌दहयात्ततः॥ गहभाश्वमयराणं लोमानि मनुजोत्तम | धारयेदक्िणे सम्यक्‌ गक्तया कनकमेव च। वेतवासास्ततः पात्पूजयेन्मधुसदनः। २८ , , ~ ~ कमतत्सतत क्त्वा गच्छ: पुर सदा॥ इति विष्ण धर्मोत्तरोक्तं छि काल्लानं | OOO नन्द्क्िवाच । रोदिणौ जन्मरनत्तत' aaa चक्रिणः ATQW ` २३अ्रध्या य; | Salle’ । ५६९ तास्नरुकमयों कत्वा पञ्चरतेन संयुता। स्था पेद स्वयुग्मे न पुष्धूपेः(१) प्रप जयेत्‌ । कालोद्ववफलदिं ara ae तपाचितेः। femach समाप्येतद्वाद्यणायोपपादयेत्‌ | श्रोतियाय सुरूपाय भिक्षुकाय कुटुम्बिने | सवयं नक्तेन Wala रोदिणया दशंने aa | एवं विध aa fear दिवि शैवाश्च चक्रिरे ॥ वर्च वर्ष समायाति eararaifa gaa | यं यङ्गाममभिष्यायन्‌ तं तमाप्रोत्यसंशय ॥ इनि स्कन्दपुराण क्त' रोद्िणोत्रतं। 000 पुष्कर Sars | उपोषिती कल्िकासु यजमानपुरोहिती। रोदिण्यां ara कुया द्‌यजमानस्य भागव ॥ त्तो रक्त प्ररो हाज्यसितमाल्यविभूरषितान्‌ | प्रियजङ्ग चम्दनोपे तान्‌ पच्च GANA प्रकल्पयेत्‌ ॥ प्राद्ध खो त्री हिराश्िस्थं कुम्भ स्तंरभिषे चयेत्‌ 1 विष्ण शशाङ्गं वर्गं रोहिणोच्य प्रजापति पूजयेव्संयतः GM) गन्धमाल्यानुलेपनेः | धपः प्रजापते यस्तथा विष्णुशगाङ्योः ॥ (क 1 "गीणणीोषयपधषणणपि पि ममम (१९) मन्धधुपेरिति पाठान्तरं | wn, दमाद्रिः। [त्रतखर्डररेब्र्यायः | पञ्च पिष्टहषान्‌ दिव्यान्‌ ara विनिवेदयेत्‌ | पुजःसिद्वाय होमन्तु दरेवतानाच् कारयेत्‌ । ५ 0 7+ A ~ gaa सव्ववोजश waarar जितेन्द्रियः | दक्तिण। गुरवे देया कांस्यं गीवीससो wa ॥ सुवणेच्च महाभाग विप्राणामथ भक्तितः! पांशकद्‌ मसंयुक्तमश्वलोम WH तधा ॥ agg faad कत्वा मणिधाथः शभप्रदः। + ¢ $ 9 A अल क्रियाथ तद्दि aza Sag कुव्वन्‌ पुरुषोऽथवा स्तौ, पचानवाप्रोति तथेस्षितांश्च पुष्टि तथाग्रमं fagara afa | इति विष्ण धर्मोत्तरोक्त रोदिणोस्लानं। भनुरवाच | ग्रहदोषोपखणस्य WH राजसूतस्य qT! मद्दिष्यो वा waar हिजादिष्वध वा जने, विपयते फल यत सुप्रयल्लज्तीद्यमे | गजाश्वगोत्षागणच्च यतर हानिः प्रजायत ॥ यत्र भौमान्तरोच्ते च उपसग Wea | तत HATTA यागं पुष्पाभिषेचनं ॥ मूल राजा समाख्यातस्तस्य शाखा प्रजादिक। उपसंदारसंस्तारे शभे वाप्यशुभेऽपिवा॥ नत खण्ड AIAN: | earfz: Ta: AeA: सदा aa aa गाखादिक भवेत्‌ | aa विनष्टे नश्यन्ति शाखाल्ाः फलसच्चयाः ॥ तदथं मूलर्तायां यतितव्यं महासुने। घर्मायकाममोक्षाणणं a fe Fa: प्रपद्यते ॥ हणा या पुरा wifarseia उडस्यते; | र { ऋ व्याख्याता कोत्तविष्व.भ्मि तान्ते ala रष | युष्यस्रान महापुण सव्वपायप्रताग्नस्‌ | उत्पातश्मन दिव्य यचङतायथःरय॥ वल्मौ कतुषके शाखि कट करट किव जं ते | faa wait fafa lag । Can HE MMAT NA RH aa ia सुश्रत AMAM AIGA SANT | aquafataaa निर्पहतद्‌ दः न्विते | सुमधुरठनच्तप्राये(१) फलपद्नवगाभिते । पत्तिशावगराकौ ५ छक वाज्लूपणानिते। BAM IHF AIAIA THA || चतकोरचाससयुके AMAA AA (aa | शखिपारावताखौककाककःकिलनादितं 1 SSRIS GTA SIs a | Mie eM ति [ना गं कुय्थैदन्मेद्‌ T BAsWessay a | हिमाद्रावच्नर्न्त वा सद्य िज्ट, 34 इ । aziat ofan वापि aya दृ HK | —_— eer ee ----------- ~ -------- (2) दुकचरटखदेच्छाय दृति पाठान्तर , ( 98 ) ६०२ देमादटिः | वत्रतखण्डररेश्रष्यायः।. गोारोचनालक्षरुक्मथडन्कुदुःमशोभिते | ससुद्रतोरे कुर्याच्च आश्रमे वा ग्टद्ेऽपिवा ५ र्वोदकूप्वमभागे प्रदच्िणपथे जले । श्वाविम्‌ षिकविरते ककटावासवजिते ॥ वणे गन्धरसोपेला घना fava समा मदौ) या कष्टवीजरो दा यैव्वडश्ः aatifaar tt गत्वा तां सुसुद्त्तऽथ कौबेर्यां मधि वासयेत्‌ बलिपुष्पराण्डारञ्च मन्नरयुक्त निवेदयेत्‌ ॥ च्रामच्छन्तु सुराः सव्वं asa पूजाभिलासिनः। fem नगा fearaa ये चान्ये अ्शभागिनः » अवादय वन्ततः Walrad ब्रूयात्युरोहितः | खः पुजां प्राप्य यातारो दा शान्ति APT ४ कलवा पूजां ततस्तेषां रात्री तस्यां व्रतौ वसेत्‌ । खात्वा शभाश्वगोवत्सदधिशषेपदशनं # पष्यदूर्व्वाचतफललाजदथं नमेव च । खच चामरणङ्ानगितवस्तादिदणनं | लाभो वा सव्वैकामानां पूरणाय प्रकौत्तितः ॥ फल एष्पयुता दत्ताः न्ोरिणः शमदा मताः 3 Agate 2S प्रासादेभहषादिषु ॥ चन्द्राकग्रडणं WT पव्वं AIST शुभं । निग बन्धन स्वप्र fafewa जयावदः। परिवनत्तं गिरेः कुयाच्छक्र' वा चावगृहति(१) ॥ (१) च्छव वाचाबगृरते एति प्राटान्नर। aage ema: |] aries: | ६०३ tt Soe — एवा क TATE प्रासादं GH तस्य जयो भवेत्‌ | लभते Vea सवं लाभो तस्यतु वै भवेत्‌ ॥ स्तरोदट्नहौीनस््नौगमनच्च एमावह(१) | Gi तु कूपपङ्कषु WY तरणं शुम | नदौषु तरणं शस्त समुद्रतरण AAT | fafa शत्रसेन्य च जयं प्राप्रोति मानवः ॥ कटकादा अलङ्मराः पुज्रराज्यसुखप्रदाः। सुदद च्ञनवेपच्योलाभाः स्वोधनदायकाः॥ रुधिरारम्भः पिबेद्‌ यस्त॒ तरते वा यदि कचित्‌ | मांसाख्िभक्तये लाभो लभते वा हितं फल ॥ ास्यटरत्यचरोत्ादहपतना; कलिकारेकाः ॥ याम्ये यातागताक्रष्टानयनं भयर्ल्युद्‌ | पिमे यानगामितं तथाकूपप्रवेयन | उत्तरे HIS: VY रक्तमाल्यास्वरागमः॥ खरोष्टकपिकापोतवराहाहिनिश्ाचरान्‌ | टृद्ाषटभान AI: कायां घातपातफलप्रदान्‌ ॥ वातपित्तकफोत्येषु यानाम्ितरणादरिषु। यौोगरदसन्तषु प्रपादानफलप्रदाः। श्ुतानुकौत्तणं दृष्टमन्‌भूतं विगहितं । a wei afe ar eur: प्रदोषप्रथमे तथा tt मघ्ये AMAA सव्व चान्ते WITRAIT: | गोविसगेच् F दृष्टास्ते तथा परिकोत्तिता; ॥ = el Se A re (१) अगम्यागमनं Qafaia पुखकान्तरे पाठः, ६९०४ Saiz: | [HAWS २२अध्यायः। ZU सखद्रान्‌ शभान्‌ यागं क्गुव्यािष्टन्तु कारयत्‌ | सानं देवार्चनं होमं जय शान्तिं समारभेत्‌ ॥ कत्वा स्वान्‌ लभेन्‌ वत्स ततो मण्डलमा लिखेत्‌ | AUST समारभ्य यावद्धस्तगरतं भवेत्‌ ॥ AWE तत्र कत्तव्यमत AS न कारयेत्‌| विमलं विजयं we विमानं शभद faa a वईमानच्च टृवद्च सता कामदायकं | aaa खस्तिकाख्यञ् इति stem मर्डलाः | सितदिहरितानाच् Ta RTA: सुशोभनः! प्रालिष्टि ककोसुम्भरजनोदहरिपनजाः। मरणिविदुमरागाश् नसमना अभिमन्तिनाः) सितसमपघुादयर रज, RAT F पातयेत्‌॥ MAUS न्यसेन्मन््ौ सश्भवच्ति पदानि ar | सोम्यं खानं CAT त्वः मोःमयेनो पलेयित | चन्दनागुरकपू रद्दोद्घूयादिवासितं। भूभाग सुभितं tag Gey qfSagqut । याम्य खम्तिकश्डाययेः aa: काण्डकमर्डितेः | पद्मपताष्टक aa fay farted हाराणि समसल कल्िकःकेगरोल्नलं । पद्म तघा च wate स्वस्सिकान्वत्पयलानि च) सव्येऽवलस्वय SA तु ट्जःपात्त समारभेत्‌ | मध्वमानाभिकाङ्ग ठेद..लिटाद्‌वयेच्छया ॥ अधासुखाङ्ग.लो' हत्वा Wada, wa | व्रतखण्ड'२२अरध्यायः |] FAs: | ९०५ aa tara कर्तव्याविच्छित्रा पुच््रवज्निता ॥ AF ्टपव्वेवतस्थूला समा काया विजानत i aaa विषमं स्थलं विच्छिन्नं कशलाहत | पथन्तमपितं इऋसखरमालिखेत्र कदाचन ॥ ससक्त कलहं विद्यादक्ररेखे च विग्रह | अतिस्यृलं भवेदपाधिनित्य' पीडा fafafad 1 विन्द्भिभेयमाप्रोति शच पक्वान्न संशयः | छसशाथाच्चार्घहानि; स्यादिच्छित्रे मरण धवं | वियोगो वा भवेत्तस्य इष्ट द्रव्यसुतस्य च ॥ अविदित्वा लिखेदयस्त्‌ मण्डलन्तु यथेच्छया | सव्बदोषघानवाप्रोति ये दोषाः पूव्वभाषिताः | चतुरस्र aqe 2 €. > A नागानगेषरल्ल थ वणकंश् व पूजयेत्‌ | 2 ५ a A, धूपायाइतिदानंश्च देवान्‌ Ca: प्रदकिणः॥ ` ७ WAG WAALS: सुमनसा तथा | च ¢ ए fi निः ~ wot सव्वांन्‌ बलिभिः पुष्यगन्धश्च पूजयत्‌ ॥ प्रतिनास्ना पताकाश्च वस्ाणयाभरणनि Ft waaay प्रदेयानि सुयन्नोपदितानि च॥ efau पिमे वापि वायव्यां मण्डलस्य 4 | ग्रहयन्नविधानन होम माटमखोदित b get SAE: | त्रतखण्डं२२अध्यायः। कत्वा द्रव्यैरिनैवतस यथोक्तैर्तचणान्वितेः। लाजाच्ततं We ef Bet q सषपाः। fasrat, सुमनोगन्धा qara ससितोत्‌कटाः! गोरोचना तिना cur qxatfanafa J | waaay सरावान्‌ विनिवेदयेत्‌ | पथिमायान्तु वे Fat प्रूजायां स्रातको भवेत्‌ ॥ कलशान्‌ YESA कुथ्यात्‌ Wada वदामिते, उत्पत्तिलित्णं ज्ञानं कथयामि महासुनें। वाचका; RANGA येन लोके प्रकौतितः। अस्ते मघामाने तु VASA! सदानवैः। HAG मन्दरं AG AA कत्वात्‌ वासुकिं। उत्पत्रमख्तं तच ASSAM | तस्य सन्धारणा्धय कलशः परिकोल्ि तः | कलां कलां Weal च Sarat विश्वकश्मणा | निश्ितोऽयं Fae कलशस्तेन उच्यते ॥ कलशस्य मुख ब्रह्मा WATT AST: | aa तु संख्ितो विष्णुमेष्ये aera: खिताः | भेषास्त देवताः wat वेष्टयन्ति vate | ङ्चौीतु सागराः सप्त VA ST मध्यतः | नचत्रारि गरहा;सब्वें तथेव कुनलयपव्व ताः | हिमवान्‌ हेमकटख्च निषधो Hees च। राद्ितो माल्दवांयेव सुधकान्तिद् WAT ॥ गङ्गा aaa स्िन्धुसुभम! aga नरौ) daw २२अध्यायः1] ary: | ६९९ शिरावतौ शतद्रुश्च तधा वेतरकौ नदौ। गोदावरो नखमदा च महौ नाम महानद | FCAT प्रयाग एकदस्त TITS | अमरेशं पुण्डरोक WE सागर एव च॥ aft यानितौर्घानि aan निवसन्तिवे। सादा शान्तिश्च पुष्टिश्च प्रौतिगोयचिरेव च॥ MAA यजवदः सामवेदस्तयेव च। aaa वेद्सह्िता; सव्व कलग्सं सिताः ॥ नवेव कलशाः पुष्या: शम्भु मूत्तिं ससुद्धवाः | गोभ्योपगोभ्यो मरुतः सुमन्द तथापरः ॥ मनोहरः WANs: पञ्चमः परिकौत्तितः। विरूजस्तनदूषश्र षटसप्तमकावुभो | अ्टमस््विन्द्रियातौतो नव्रमो विजयः wat i नवैव wat: ख्याता अधिदैवं निबोधमे! ग वत्स यथा तेषान्दिगोन्याखे व्यवसिताः | मवमो यः: समाख्यातो fanaa नाम नामतः) गिवस्तच स्थितः सात्तामव्वपापहरः TH | सतु पञ्चमुखः ख्यातो लोके सर्वीधसाधकः। पञ्चव्रह्मयाकको यस्मात्तेन पञ्चमुखः स्मतः ॥ ofaa q मुखे सदयो वामटेवस्तथोत्तरे। qa तत्‌पुरुषं विद्यादपोरच्चापि दक्िये।॥ ईशानः पञ्चमो मध्ये सव्व घासुपरिखितः | एतं पच्च सुखा वत्स WTA ग्रहनाशनः ॥ ( ॐ ) देमाद्रिः। [व्रतखष्डररेयघ्यायः ; तो भवेच्छक्तो वामटेवस्त पोतकः | त्‌एरुषो ज्या अघोरः कष्ण एव च॥ Saya: afea तेषां waau: समन्वितः HHS, कामरूपो स्यात्‌ च्नानाधारः शिवात्मकः ॥ qa ज्येष्टकलभो हितौयो जलसम्भवः | लेयः पवनश्वव चतुघधस्त हुताशनः! पञ्चमे यजमानस्त षषट्ाकाश्यसन्भवः॥ TIAW Aaa: प्रोक्त शदित्यश्च तथाष्टमः । ua चोत्पादिता दिव्याः गसिदेनाधिषठिताः पृरा॥ LeU Qua waw aaa स्थिताः) च्ितौन्द्रः पूव्बतो न्यस्य: asa जलसम्भरवः ॥ {यव्यं VMI न्यस्य RMA अ{ग्नङम्भवः नेष्ट ते यजमानस्त्‌ शेयान्यां कामसम्ध्रवः ॥ म्ब उत्तरत योज्यः सोर द्च्िणतो न्यषेत्‌ ¦ न्यस्यवं कन शानान्तु yaad विचिन्तयेत्‌ ॥ कीन्स्रःन्‌ा TI aw ग्रोवायां विष्णुरेव fz मध्य IM सव्व सन्दा देवाश्च पन्रगा;(१)॥ Gai तु सागरास्तषां सयप्रद्ोपा w Afeat | faq Wa तघोञा च गन्धर्वा ऋषयस्तथा; पञच्चब्बूतास्तथा घोरास्तषामधरतः खिता. ॥ गः Waa तोयेन सितास््रेकान्ततोज्छ्यल)ः; | WCET AAT ताड़ागेन जेन ayy a —_ = ee a -नन्----- ,---_ ~ — -- -- ~न — न~ ~ ss. ~ग i + ee Pte oe | ee क~~ ग-- (१) रद्र द्वा इति पारानरः| त खुग्ड़'२२अध्यायः'] Pails: | वापौकूपाद्तियेन MHS U सुखावहः: \ सव्वेमद्धलमाङ्गल्या; सव्व किल्विघनागकः; | अभिषेक सदा ग्राह्याः RAW LEAT: Ter! यात्ाविवाहकाले वा प्रतिषटःदक्क ददिः योजनौया विशेषेण सव्व डयप्र धद: | WAT F ALATA AH Av ङ (ददरः Fat "en YU Fy aes | yur + ww 1६ , सरटुगभा ANAT A TAM व्यः एताषाच् Al Ria स्नायन्‌ ewe} ; सव्व CATHAY RAHA SAT | ग्रहदात्र AHA: HVT ASA SA ; ग्रहान्‌ चारयते यस्मन्मातरो Bfariwer | Zitats AIAIT Wa a चार ANT, । एककान्तु कलां Aa: fARMiagy Wawa i SEQ सखिता यस्मात्न A RAV Wi. ॥ हमराजततस्ना AW Waa लक्‌! न्दिदः t Gag aa fae उसंराः SAF तः 4 कलशाना प्रमाणन्तु FIRE AVIT | avatafaat योऽस्य a fa: agqeara मूत योऽ गणस्तस्य wart fas: fara: | ये गरणस्तदला नागः J नागाः Rang a । MAW ग्रहा; Wal ates fed a । एनः सव्व मिद्‌ STATE MN A सत्‌, i* दुराधघषमदहासष्ल); दत्व TASS ९१२ Sarfe: | [तरततखमग्डर्‌ ३२अध्यायः | रलानि वोजपुष्पाणि फलानि कलगे fara: + प 0 पुष्पमालायख Gala सितचन्द्नचचिताः॥ =~ भ = वच्रभ्गेत्तिकवदूव्यमहापद्चश्च स्फाटिक, NN a ae = > सव्व, शभः Wala VATS ALAA ॥ वौोजपरूरकजम्बोरग्रासराग्ातकदाडिमेः। ि =~ क cA यव गालिनिवार ख गोधूमसितग्रषपे;। 6 x कुङ्कमागुरुकपरूरमदरोचनचन्द्नः। मांस्येलाकुकपूरपत्रचर्डासु राजल | निर्य सास्वद्‌ गे लेयसन्ञ देवदलं फलं | जातोपचरकनागादहाः णका गौरो सपरखिका) वचा tis: संमच्जिछा qua मङ्गलाष्टक) gal मोहनष्ङ्गारं शतमूली शतावरौ | माला नागबला देवो सहदेवौजयात्तमाः। पुन्नागोमासितापाठा गुता सुरसिकालता॥ $ च मालक Taga गशतपुष्पा(१) पुननया। Aa देवौ fuar रुद्रा सव्व ग्रन्धानि काञ्चनं, समाहत्य शुभान्येव कलशेषु निधापयेत्‌ ॥ कल्याणं विजय धूपं चन्दर दद्यात्‌ समङ्गलं। सव्वेरत्रमलक्गारं रोचनास्यन्तु पकं | बक्कल दगङ्गलं हदय षट्‌ विश्रदङ्गलावधि। त्त वा चतुरखः वा प्यकं तिकगाभिंकः ॥ वासव पद्चमध्ये तु भगस्वस्तिविनायकेः | (~ (९) शतप्रच[मिति पाद्ान्तर्‌ | व्रतख ण्ड'२२अध्यायः i) sarfa: | ६१२ = नि ~ * खोमोह्रत्तसमः रोहः सव्व sa: शभान्वितं | सव्व रलसमपेतं पद्य HAST | हस्त वस्तारसुच्छये दशाङ्गलसुगोभनं। खानाख्य' Wes wa छन्तसमन्वितं। Waa दिगुणं दध्याडटुस्मानं सपौटकं t गजसिंहपदाकौणे' हमरन्रविभ्रूषितं | सिंदहाख्य' साद्वैविस्त,रं दर्डासनमघापिवा) समपादं ग्रहासख्य वादेमपतविभूषितं। ~ ¢ ॐ 0) ^ + वचेन्ट्रनौलवगंख्य महाघ्भणिचिचितं), चतुष्पाद्‌ोऽयवा कय्यस्विमर्डलसमोऽपिवा ॥ व्याघचि्रकपद्येवी उपधानानि कारयेत्‌ | oF € Ao SN 0 अन्यव्वा aaa BTAAHGTAT ~ 0 ra १ QTS3°T ^~ पत्न्य MT च्यवन्ति व्ह IY. गाह i ६१४ Salle: | [त्रतखर्ड'२रेग्रष्यायः | aeufaataa सप्षपञ्चसतेरपि॥ aun सव्वलोकानां जिगतन्दिगतम्पर | तूला WMATA काय्या खदुकोष्टकपूरकः। उपधानं विचिचन्तु HWS खद्‌ aaa | FA खुद्गाटकाक(र खवणशाख्यानसुत्तम। यानं शय्यासनं काय्यं ठत्तपादं सुटोभनं | वितस्ति उच्छ्रितं काथ पादस्थान TATU | एवं समस्त प्रत्यग्र कला शव्यासना{द्कि। वस्रालङ्गरग्ोभादामभिषेक समारभेत्‌ | ततो sae योधस्य waufsana | सिंहस्याघ ठतीयस्य व्याघ्रस्य A ततः पर ॥ चत्वारि तानि चासि तस्यां बैद्यासुपस्तरेत्‌ | Lai Gea सम्पाते पुख्ययुक्तं निगाकरे। Sa वा Usama चीरदत्तमयं Wat भद्रासनं प्रकन्तव्यं साईदहम्तः समुच्छ्रितं | सपाद्दस्तमानन्तु राज्ञा मरहसिकं aat | सुसद्ृष्टमना राजा होमान्ते चाथ सविगरेत्‌। दैवज्ञामाव्यकञ्किवन्दिपौरसुहृहतः ' इिजदद्ष्वनियुतः इभवःदयरवान्वितः ॥ मद ट्गद्तूर्यश णब्दकेश खभावद्धैः | अहतक्तौमनजिवसं नृपं कश्बलप्रायिनं asia faye, सपिःपृणंश्च ama । अटपाड्गवि aie गतमष्टाधिकं waa | त्रत खण्ड awa] Bae | ` ६११ कलशानां समाख्यातमधिकन्तू ्रोत्तर | कल्याणेन तु मन्वेण मङ्गलेन जलेन aT | देवो गम्भरसतेनाघ स्रायादान्येन वा विभो ॥ अआज्यन्तेजः समदटिष्ट आज्यम्पापद्र WA आज्य सुराणामाहारमन्ये लोकाः प्रतिहिताः॥ भौमान्तरित्त' fea at arama | सव्व MSI MIAN प्रणश्सुपगच्छतु | कस्बनसुपनोय ततः quragfea: कलनैः सरापयेद्राजा- नमाचार्योऽनेन मन्तेण | सुरास्तवामभिपिचन्तु ये च सिद्धाः पुरातनाः। Aa TAWA ASA VITA WATT! I आदित्या aaat wat afaal च fanaa | afefaz aarat च स्वाहा सिद्धिः acaat ॥ को त्ति्वच्मौ य तिः aia सिनोवालो कुहमस्तया | दिति सुरसा चेव विनता Hgts च॥ टे वपल YAtal देवमातर एव च। सब्वासत्वामभिषिजन्तु शएभाशाप्सरसाङ्णाः ॥ नन्तताणि मूत्त पतच्ताह्रातसन्धयः। सवत्सरदिनेशश्च HAVASU AU लवाः | सव्वं लाममिषिखन्तु कालस्यावयवाः शुभाः; वैमानिकाः सुरगणा मनवः सागरः AE! सरितय महाभागा नागाः किपरुषास्तध्रा | AQIAU महाभागा वानप्रस्यदिजैः सह ६१६९ देमाद्भिः। [व्रितखर्डररग्रध्यायः। fear derma होरा प्रुवस्ानानि यानिच॑। मरोचिरचरिपुलहः पुलस्त्यः क्रतुरङ्धिराः ॥ WY. सनत्‌कुमारथ सनकोऽध सनन्दनः ॥ सनातन दत्तश्च तधा सनकनन्द्नः॥ एकतश्च हितय्ैव वितो जावालिकश्यपौ | टूव्वोसा दुव्िनौतख कण्वः कालत्यायनस्तय्रा ॥ माकन्डेयो दौषतपाः Waa विदूरथः! व्व; सम्बत्तकखेव चयवनोऽलतिः पराशरः देपायनो यवक्रीतो SATA: सदहानुजः॥ णते चान्ये च सुनयो वैदूव्रतपरायग्णा;। सशिष्याम्तऽभिषिञ्न्तु सदट्‌ाराश्च तपोधनाः ॥ पव्व तास्तरवो वल्लः पखान्यायतनानि च, प्रजापतिरिंतिशव गावो विश्वस्य TAT: | वाहनानि च दिव्यानि स्व्वलोकाश्चराचराः। अग्नयः पितरम्तारा staat: खन्द जलं | एते चान्ये च बहवः पुण्यसङ्नेत्त नाः शुभाः! तोयेस्वामभिषिञ्चन्तु adtanafaaea: | HAMS प्रकुव्वन्तु जायुरारोग्धभेव च) अथाभिषिक्ती मघवानेदेसुदितमानसेः॥ इत्येवं Vue taal िैस्तथा परै. गवेरनारायगे Vea दह्यशकममुद्ैः | ्रापादिष्टा हिरण्येति गग्भवेति त्रैव च। सव्व AFAM Ea aq’ कापासिकन्धियात्‌ | व्रतखर्ड २२अरध्यायः। | दमाद्धिः | gre WHAYLAMA UWA AFAT T | ततः सम्पूजयेद्‌ वान्‌ रुरून्‌ विप्रान्‌ ध्वजायुधान्‌ | Ba वाद्यङ्गगजानशान्‌ परिजघानि घारयेत्‌ | वेदेन च जयेनेति अलड्मराणि पाधिव;। दितौयायां ततो dai गला हइयाडताश्रनं । देवानां वदने सथाने निमित्तानि तु Waa | WIS रुद्राय चन्द्राय(१) विष्णवे ब्रह्मखे faa | प्राजापव्ये कुमाराय विद्वा विनायके सूर्याय ग्रहराजाय वराहाय चिविक्रमे। मालां वरद्‌ माते ayia wala त्त | नागराजञ्जनन्ताय ततो राजा समाहरत्‌ | क्रमेण संस्थिते चमंखपदिष्टो नराधिपः ॥ वरषस्यं वषद्‌शस्य खरण्डष़षतस्य q | तेषासुपरि सिंदस्य व्याघ्रस्य च ततःपरं॥ उपविष्टे पुनहीमन्तर्मन्त; सष्टतेस्तिसः। Hal गेषसमात्नि स mala: संखितो वदेत्‌ ॥ यान्तु Sar: सव्व Yararera पाथिवात्‌ | सिडिन्द्खा रसुविपएलां पुनरागमनाय J | आपोहिष्टा इतिचाचं | हिर स्पव्ण इति चतुरभिक्छेचं। नमः श्र्भवेच मयो भवेत्यादिमन्व aaa जपेदिति शेषः | यदाह गमेः, अएपोहिष्टाला च्व हिरण्ये ति चतुऋ' च॑ । (५९) खषा स्ट्‌ायचेन्द्राय sla पुस्तकान्तरपाठः | ( on ] ars Satie: 1 [anew agar: | पण्यादगहनिनदेजपत्‌ खातो नराधिपः | Wal चवते वस्व युगवस्तराभिमन्तिते ॥ दूति सन्वमद्गलमाङ्नव्यं खन्दनाद्िसिः ag dad कार्पीसयुतं विश््यात्‌। विश्णुधम्मोंत्तरे | एवंस्राती Ba ERI वद्नं दपरे AAT: मङ्गलालग्भनहुःता धौतवासा समाहितः a अभ्यचेनं ततः Fate वादौनां CIA carat आयुधाभ्यचनङ्गला वाइ नास्यचेनन्तथा ! राजचिज्ाचनं Fal ह्यलङ् AAT स्कं । अरनुलेपनमादव्यात्‌ योसक्ञेनाभिमन्तितं ॥ सियन्धातश्मयि aie मन्वः सुमनसां सभेत्‌ । IZA वचस्यमिति मन्वोऽलहःरसे खतः | ततोऽनुलिघसुरभिः खम्बो रखिरशभूष्रसः। केशवाम्य चनं छत्वा वङ्किस्थानं व्रजेदिति a श्रथव्व परिशिष्टे | पुर्या वाचयित्वास्य प्रारग्धः HiT sg तिथिनतच्तचसंयुक्तसुत्तकरणे भरसे । उच घोष इति त्था खभिमन््ा पुरोहितः | सव्व तूव्येनिनादेन Baa aE तः | ततः सम्मूजयेदिति देषः । अभिषेकानन्तरं भोतवास्; स््राचान्तो देवगुरुविप्रान्‌ त्रतखर्ड २२अध्यायः |] मादि gre सम्पूजयेत्‌ । ध्वजायुघार्दनि तु सम्पूज्य सखस्वमन्ताभिमन्ितानिं HALA VASA AIA Bs धारयेत्‌ टे बेनेत्याद्विजयाख्येन देवौमन्वेण येबागमप्रसिद्वेनाल्मरधारणं । | ध्वजादिमन्तास्त। विष्णुधर्मोत्तरे । —— 00(000———= राम Vary | छन्राणष्टकेतुकरिखां WAH eral | तथा दुन्द्भिचापानां gle मन्वान्ममानघ ॥ पुष्कर उवाच्‌ | चरु UA महाभाग भगवान्‌ थान्‌ पराशरः | गालवाय GAA सव्वघरङगतास्यरः। यघाम्बद्‌न्च्छदयति शिवायेमां वसुन्धराम्‌ t तथाच्छाद्‌य राजानं विजयारोग्यहदये ॥ SANA: | गन्धव्व पत्रराजसत्व माभूयाः कुलदूषकः । ABT, सत्यवान्येन सोमस्य वरुणस्य च | प्रभावाच तापस्य za @ तुरङ्गम्‌ | तेजसा चेवसूव्स्य स॒नीनान्तपसा AAT | रुद्रस्य AWAY पवनस्य बेन च स्मरत राजयुत्रोऽसि कोस्तभं च मणि aT | या गति त्रद्महा गच्छेत्‌ परिढद्धा माटहा तधा ॥ भुम्यथऽदृतवादौ च दत्रियञ्च पराम ख; | &२० दमाद्रिः | [व्रतखर्ड aga: | सन्धा चन्द्रमसौ वायुब्यावत्पश्यति THA | qaaasti चिप्र ag पाप भवेत्तव i निव्कति afe गच्छन्न युद्धे तस्मिन्‌ तुरङ्गम । fiya विजित्य समर सह भचा सुखो Ua | SANA: | UHRA महावौर्‌ BATA faa: | पवित्राद्नते यस्त तथा नारायणध्वजः | RMA CSTE नामारिविष्छुवाद्नः यआयाद्धवो SWAT TH रेदारिखद्नं गर्लाम्प्रारतर्गतिसत्वयि Blarsa Aas | साण्ववस्धायुषान्‌ Tay यत्तास्माकं रिपून्‌ SF I WARM, | कृसुदेरावणः WT: ुष्डदन्तीथऽवामनः। सुप्रतीकोऽञ््जना नोत एनेऽषरो देवयोनयः] तेषां Gala पौचाथ दलान्यष्टो समागताः | भद्रौ मन्दो Beas राजः स्मै एव च । वनं 4 vagal स्मर योनि asa पान्तु त्वां वसवो wer आदित्याः AAREUT | WUT Ta नागेन्द्र समयः प्रतिपाल्यतां | अवाप्नुहि जय युव गमने खस्ति नो as ae सोमाद्‌बलं विष्णोस्तेजः स्व्याज्लवोऽनिलात्‌ ॥ सथ्य भेरोञ्न यं रट्टा देवात्‌ प्ररन्द्रात्‌ | युद रचन्तुनाग at दिश सद्द वतेः | ATA w '२२३अध्यायः || SATA | afiaal सहगन्धवः UT Gi पव्वेता; eT | sfaaan | इतभग्वसवो र्द्रा वायुः सामी सहषय्‌ः | नागकिन्नरगन्धवां यत्तस्ुतगखद्रह,; | प्रमथास्त्‌ सद्ादिव्यैभू तेगो mata, सह णक्रः सेनापतिस्कन्दो वरुणश्वाखितसत्वयि। प्रदहन्तु रिपून्‌ सव्वांन्‌ राजा विजयर्च्छतु । यानि प्रयुक्तान्यरिनभिमःपणानि समन्ततः, पतन्तूपरि लूं हतानि तव तेजसा ॥ कालनेभिवषे यददट्‌यइतत्िएरघः(तनें | हिरणस्शिपोष्यदद्वघे सव्वौसरेषु च। नोलां खतानिभां दृषा AAAI ST: ॥ व्याधिभिवििविपैर्घारेः wa य युधि fafaar: | पूतनारेवतोनान्न्रा कालरात्रौति ware | द्दत्वाश रिपून्‌ wala पताके त्वासुपाखितः 1p पताकाःमन्वः | असिविंशसनः खङ्कस्तौच्छधारो द्रासद्‌ः(१) | यौ गर्भो विजवचव waa नमोऽस्त ते(२) ॥ इत्यष्टौ तव नामानि खयसुक्तानि ैघसा। नन्त Alans तं गुरुटेवो महेश्वरः ॥ रोह्िणश्च शरौरन्ते टेवतन्तु जनादन । Ais “we (१) तौच्तएधम्प्रा scree इति पुलकान्तरप्राठः, (२) चमादारस्ठयेव च इति पाठान्तरं | RRR SAYS: | | त्रतखरड२३अध्यायः। पिता faatadt Za: सलं पालय स्वेदा ॥ SATS eT समर चन्धरीन्योपमी छासि | La मां रच्णोयो.ऽहन्तवानघ THIS A Ut SA: | दुन्द्भे तं सपलानान्तथा विज्धयवद्धनः। यथाजोमूतघोषेख इष्यन्ति जलचारिणः | AUS तव शब्देन हपौऽस्माकं सुद्‌ावड | यथाजोमूनशन्देन यौग्यान्तासोऽभिजायते।॥ तथा च तव शब्देन चस्यन्छ्वस्मह्िषो रणे ॥ equa, | सर्न्वीयुधमदहामाच सव्व देवारिसूदन) चापरत्वं सव्वदा Ta साकं रवर; सद्‌ा | TTA | दितीयायां वैद्यासिति पूवव न्तावहदिचयं काव्थमिव्यप- ulfed |! aa प्िमेयां aera efaudagi यहयन्ञाः। द्यन्त ग्रहदोमापत्तथा वच्यमाणददितौयदहोमसम्बन्धितया aaa वेदौ वस्तगल्या ठतौयापि दितौयागब्देनोच्यतं। देवानां वदने स्थान इति खणग्ण्ह्यकल्योक्तविधिना aa अग्निसुखे सद्रादिदेव- ताभ्यः परव्वपूज्ितमण्डलदेव ताभ्य प्रणएवाद्भिश्तुष्यन्तेः AIT युक्ते नामभि; प्रयेकमष्टाविं तिः अष्टोत्तर णतं वा टताइतादड- तौजद्यात्‌ | AAS 22a: 1) BATH: | ६२३ aga विष्ण्धड्त्तरे। (+¢ तेषामेव ततो व्ली चलरन्तैःखनासभिः। श्रेःकारपव्वे जहयादृषलं वदु पुरोहित दति॥ निमित्तानोत्यादि AA क्रियमाखे प्रद्रिणमिखलतसुदामदौ पिल शएुभधष्वनित्वमधूमत्वमित्यादोनि ष्ूभस्‌चकानि निमित्तानि AB लयेत्‌ | अद AT ॥ ततः पुरोहितो वद्ावन्वारब्ध कृपे येत्‌ ¦ QIAA यजामद्धे यत TS भजामदह॥ agua: परि दौयत इदं विष्डुविचक्रमे। अआवायो भूषश्ुचिना सन्तैरेतेदयःक्रम ॥ समित्तिलाज्यदूव्वभिस्तघा fama । प्रत्येकं WAR W Bay aT EMAL ॥ आच्व्वेखपरिरिद्टे | चतुहौतविधानेन जुहुयाच्च पुरोदितः। चतुदि त्त स्ितैरवितरैदददैदाह््पारमेः विल्वाद्ारः WABI. पयसा वापि वत्तयेत्‌। सप्तराचटताशोकवा AA Sta प्रयोजयेत्‌ I गव्येन पायसं Faq सौवरन BIN q | वेदानामादिभिमन्चेमद7व्या्धतिपूव्वकेः ॥ WHAUAVST तथा स्याद्पराजितः। ्रायुष्याख्ाभययेव तथासखसत्ययनो गणः | ६२४ हेमाद्रिः [areas २रअध्यायः। एतान्‌ पञ्च गणान्‌ हत्वा ada दि जोत्तमान्‌॥ NAPA: सपत्र इन्यादि अपराजितः विश्रम्य मान इत्यादिः | agra प्राणा- पःनादो्वःदिः। waa: apazfaafanife. |) खलत्यद्रनो सूपारपातभित्यादि;ः। ततो ग्णद्याक्तविधिना umqisaraa | ततोराजासनर्सिति । ततो इानानन्तर तस्यामेव वेद्यामग्नरत्तर- भाग प्राुक्नानङ्हानि ware a लदुपरि राजासनं सिंह सनमाह्व्य BVT! तस्य तस्योपरिक्रभश हषदंगादिचम्बा- ास्तोय्ये राजेःपये येत्‌ | उपविष्टे तु राजनि खखमन्तेस्ताभ्य एव देवताभ्यः wrgafaa: प॒सेडितो इत्वा शेषस्य favaq प्राययित्तप्‌णाहुयन्तस्यो त्तरोत्तरस्य समाप्ति कत्वा यान्तु देवगणा द्रत्यादिमन्तेण प्राच््नलिद्‌ वतादिचजेनं Faia | aga विष्णुम त्तर | 000(({ ५06 व्क रुर {दिग्भागे AAT VITA ANAT | सिंहासन न्यसेत्‌ ष्ट शएुभास्तर्णसंयुत ॥ ततस्त aa waa प्राग्ग्रोवाणि तु विन्यसेत्‌ । हषस्य षद्‌ ग्य TNA BAG च) त्वगपि चिहय्य ares द दत: पर्‌ | ध्रुदःसिश्योरसि we पं awa ag» छषोबनलौ वद्‌ : । इषदंमो माजीरः। ररर्गौरि खगः | एृषत- {यत्मगः | TN ATGTAW २अध्यायः 1] हेमाद्रिः ९२५ दभपारिभषैद्राजा तथैव च पुरीद्धितः | तयोदहस्तगतावन्यो दर्भो संग्रन्ययेदिजः।॥ तयोद्ेपपुरोडहितयोः पारणिगतौ zataan fest Paara ग्रहटेगे सग्रग्ययेत्‌ | a Oo QO, ततः Gilat जदुयाद्‌बाद्यमन्त BA शुचिः | रीद्रवेष्णववायव्यशक्रसीम्येः सवाससेः। , चे a ॐ 4 वाद स्मल्येस्ततः कुर्थात्तन्तयत्तरसंज्नकं | aaa यजक्नानमिल्यादयः | रौद्रा अस्मरुद्रा इत्यादयः । वैष्णवा विष्णोनु क्मिव्यादयः। वायव्या alata इत्यादयः णक्रः त्रातारमिन्द्र इत्यादयः! सौम्या आ्राप्यायखेत्यादयः। वरुणा TH मै वरुण Tales | asUal awa sata इत्याद्यः I = Ow, छपतिस्नघ any पुरोघसमधाच्चयेत्‌ | =a गोमहिररयरलेश् अन्यानपि क्रमागतान्‌॥ स्थानदेवान्‌ पुरोदटेवान्‌ नदौ कूलं चतुष्यधं । अभयच् जने देयं गोगोवसगे' समाचरेत्‌ ॥ अलङ्कःत्य aaa सितौ तौ aayfart | टेबन्देवोच् विज्ञाप्य वन्धनखःश्च मोचयेत्‌ ॥ न मोचेद्रान्नः सन्द्ष्टानन्तःपुरकतागसः। विभवानुरूपभावेः gt ast समारभेत्‌ | सिंहासनं समासाय चतुष्कोषतदयोतितेः। > a 0 >$ दोप रजलतपाचसख्यम्तोयाघाषछतवन्दितेः | ~ £ , रोचनाद तथा पश्येद्प णं मङ्गलानि च॥ ( €<. ) ६२१ Say: | [्रतखस्डंररेश्रध्यायः। ततौ ज्यीतिषिकान्‌ युरीदितच् गोभूटहिरख्याद्भिरभ्यद्या अन्यानपि afar क्रमागतांख सम्परज्य गटददेवान्‌ पूरो aia न gag चतुष्यथच्च पूजोपदारेरचयेत्‌। “गोगोससगे मोमिध्‌नमित्ययः' । तौ च भेनुदषमो aaa वस्ताल्ारादि- भूषितौ | देवं महेश्वर रेवीच्च भगवतीं Mae उत्‌रूजामौति विन्नाप्योत्खजेत्‌ | दरपशरौरे अन्तःपुरं च कऊंतापराघन्विह्याय बन्धनं मोचयित्वा पताकातोरणादिभिः परे ast कथ्यत्‌ | aqua TFAM TIA सभावि्ेसोवा। दीपेर्नीँराजित इति We: 1 वन्दितं वन्दनं fanaa aatarl ततो गोरोदनाद्धिः टृव्वीरौनि च द्पंणं मङ्गलानि च पश्येत्‌ | आघ्रवण्परिशिष्टे । प्रोक्तानि मङ्गलान्यष्टौ ब्राद्यणो Wears: | भूमिसिदार्चकाः afa: wat व्रीहियवौ तथा(१) ॥ एतानि सततं पश्यन्‌ स्यगक्रप्यचयन्नपि । न प्राप्रो्यापद्‌ राजा यिव प्राप्रोव्यनुत्तमां | तचा सिद्ासन रद्य पताकां वा क्रमागता चामरच्छचसंगुक्त प्रतोह्ारविभूषितं। मत्तदिपं चतुष्कञ्च चतुदिचुपकल्ययेत्‌ ॥ उपविष्टस्ततो राजा प्रजानां कारयेडित। TAU ब्राह्मणा गावस्ौवालजडरोगिणः॥ ततस्त दशनं दयं ब्राह्मणानां पेण तु! शरणो प्रश्तिमुख्यानां Mary नमस्करेत्‌ । षि प्‌ु pi SS ees व (२) दिरप्छ सर्पिरादित्य अापोराजा aurea tia क्रचित्‌ पाडः; त्रतखक्ड'२ रेग्रध्यायः।] WATFR! आशिष ASB तुष्टा जनपदा Ul एवं प्रजानुरज्येत Wal च वशगा भवेत्‌) पुरोहितं मन्िण् सेनाष्यत्तं तयेव च ¦ अश्वाष्यत्त Tanga रोष्टामारपति aar t भार्डागारपतिं Sat SIHA यथाक्रमं | यघाहंण तु योगेन VAT सपृजयेच्रपः ॥ दूव्वासिद्राथकान्‌ सपि: walalfeaat तया | शक्तानि चेव पुष्पारि afy sara धुरोरित्‌ः\ परधव्वेविदहितो au विधिः पुष्याभिषेदने | UST Bla महो USA गक्रलोकच्च गच्छति, टेदोपुरः!रे) एव YS अवाप्राति Ral UTA: | विनापि चारईफलद पुखय yofugea | राष्रोत्मातोपसगपु धुमङेलोय दने । ग्रहोपमर्द ने चव पुष्यस्नानं समाचरेत्‌ ॥ नास्ति सोके सरउत्पातोयो Aaa न शाम्यति ayaa नास्ति यदस्मादतिरिच्यते । अ्धिराज्याधिनो राज्ञः पुतरजस्याभधिसप्किणए' | तत्पृव्वे मभिषेके च विधिरेष प्रशस्यते ॥ देवेन ब्रह्मणे दत्त तेनाप्यसनसे एनः | SUA गुरोःप्राप्नं तती दैवसभाङ्तं ॥ मदेन्द्र्थमुवाचेद्‌ TEM Passer | QAR WH SHA IFTH Ge bs ६२८ Salle: | [तखश्ड'२२अरध्यायः। saad च MAA CIR SII । aaaafatag a परां हदिमवाग्र यात्‌ । प्रतिसंवत्सरं कायमभिषरेकन्तु पाधिंव t मर्डलोक नरेन्द्राणां सामन्ताधिपतेरपि। सामन्तानां सदा कायः विघेणवरमखं Te | faa AAUZATAT यस्या न भवनं Tat तस्येदड्गरयेत्‌ स्नानं सव्वकामप्रसिदिदं | इति quarafaty: | उदगयन आपयमाणपत्तस्येकरात्रमवराद्सुपोष्य fase पुट्टिकामः स्थालीपाकं खपयित्वा महाराजसिष्रा तेन सप्पिखता ब्राह्मणान्‌ भोजयित्वा पुष्माघण fafs वाचयेत्‌) एवमपरापर स्मात्ति्यादौ दितोये तौस्ततौये एवं संवत् रमभ्युचचयेन महान्त- म्यों पुष्णाति आदित ख्वोपवासः | अवराद Wat | अवरता- चेक राचो पवासस्यापृतस्य पुंसोवहपवासपन्तापेचया “मद्ाराजः eat: तेन हतशिषेन चरुणा पुष्पाधंण सिद्धिं वाचयेत्‌ पुष्टिः सिदिरस्त्िति वाचयेत्‌ । wi पुव्ववचचरुषा महाराजेटित्रा ह्य ए- भोजनादि कायः । हौ हितोये दो ब्राद्यणौ हितौये पुष्ये भोज- येदित्यथं; | णव संबत्सरमभ्युचयेन पृव्व वत्त॒तीयं qaqa तिषेषूत्तरोत्तरददया ara भोजनौया saz: । आदित एव MANGE पूवं यु तरे चेत्यथः। दत्यापस्तम्बोक्त FAR | Slay उवाच | स्तोग wa feats उपवासससुडवं ¦ व्रतखर्ड'२२ अध्यायः] arte ६२६ RII TATAMAIa Malay” a; ll HAT, Beara विघवायाश्च Waa | धन्य VATA Y भगवन्‌ प्रोतिकारकं॥ पुलस्त्य उवा च | ूयतामखिल ब्रह्मन्‌ यदेतदनुष््च्छसि । उपकाराय त्त alu fay लोकेषु faga ॥ प्रश्रमेतं पुरादेवौ णेलराजसुता पतिं। पप्रच्छ शङ्करं ब्रह्मन्‌ Raia खर स्थितं ॥ देव्युवाच | कुमारोभिख देवेश ग्टहस्याभि ख केशवः | विधवबाभिस्तथा सरोभिः कथमा राध्यते वद्‌ | ईष्वर उवाच | साघु साधु AI पृष्टमेतन्रारायणाखयं। उपवासादियत्‌ कन्य ख.यतामस्य यो विधिः।॥ aa परिसमासादय नारीह सुखखमेधत | दुःभौल्ेऽपि fe कामार्थौ नारौ प्राप्नोति wats | अनाधारा ATTA सव्व लोकेश्वरं हरि | RANA चेत्नारौ सब्ब Vaya | सुकलतयुतन्तस्म्रादतमचचुततुष्टिद | HW a Tat तस्य यतां वरबस्पिनि ॥ यचोत्वी सव्व Mat खयः प्राप्नोत्यसं गयं । रििकच्च सुखं प्राप्य सृता खगसुखान्यपि॥ अनुज्ञाप्य खप्ितो माटतश्र कुमारिका) ६२० देमाद्रिः | [त्रतखण्ड'२द३अध्यायः। पजयेत्तु AMA भक्तया पापहरं हरिं ॥ चिपृत्तरेष्वथक्तषु पतिकामा कुमारिका, माघवायेति वे नाम जपेन्नित्यमतद्द्रिता ॥ प्रिया रक्तपुष्पै धुव कुसुमं स्तघा | समभ्यच्चरदते दद्यात्‌ कुङ्‌ मेनानुलेपनं | सवौंषधिभिः सुद्धाता तमाराध्य जगत्पतिं नमोऽस्त माधवायेति होमयेन्सधुसपिषा ॥ सदेवसुत्तरायोगे समभ्यच जनार्दनं daa पतिमाप्नोति प्रेत्य wag गच्छति । अतिवाल्ये च aafafauart पापमनुषितं। तस्माद्दिसुखते पापात्‌ सुखिनौ चेव जायते ॥ अब्ट््‌नेकेन तन्वङ्किः व्रतं प्राप्ता यदिच्छति | तदेव प्राप्रुयाद्वद्रे नारायणपरायणा ॥ षर्मासप्रौणनं काय यथाशक्त्या चवे हरेः । पारणन्ते महाभागे भोजयेद्‌त्राद्मणोत्तमान्‌ I दति विष्ण धर्मोत्तरा क्तं सुकलचप्रार्ि्रतं। 000 अथ ज्येष्टाव्रतं। तत्र लिङ्गपुराणात्‌ | FAA च ` | मायावित्व' za विष्णोद्‌वदटेवस्य चक्रिणः HA च्ये्ठाससुत्पर्तिद बटे वाज्जनाद नात्‌ | वक्तमदसि चास्माकं रोमहषण तच्छतः ॥ AAI २२३अध्याय. ।| दमाद्धिः । ६२९ सुत उवाच; अनादिनिधनः खौमान्‌ व्याला नारायणः Wy: | जगदिघमिद्ञक्रे मोहनाय जगत्यति: ॥ विष्णव ब्राह्मणान्‌ वेद्‌ Fea] सनातनान्‌; faq पद्यां तथा योज्य भागमेकमकोारयत्‌।॥ ज्येष्ठामलच्मोमशभां Feast नराधमान्‌ | AVMY महातेजा भागमेकमकारयत्‌ 1 TAM AIA: खषा पश्चात्पद्मां जनाररनः। Al तेन समाख्याता दय लच्मौदिजसत्तमाः + अखतोद्धववकेलायां सुधानन्तरमूत्थिता) अग्रतः सा समुत्पन्ना ज्येष्ठा इति च वेश्ुता ! स्यो रनन्तर समुत्पन्ना पद्या विष्णुपरिग्रहा। दुःसहो नाम विप्रषिरुपयेभेऽशभान्तद्‌ा | ज्येष्ठां at परिप णार्यो मनसा ata निष्ठितां लोक चचार ELIA तया सह मुनिस्तदा i यस्मिन्‌ घोषो रेखेव हरस्य च महामनः | वेदघोषस्तथा विप्रा होमधूखस्तयेव च | faa वाथ यतासौत्‌ aa तत्र warfe ar | पिधाय way संयाति धावमाना इतस्ततः tt Baa विधां oer दुःसहो मोहमागतः तया सद वन गत्वा चचारसतदासुनिः॥ TAA महातानं माकंर्डयमपश्चत | nga महासानं Sa मुनिमत्रवोत्‌ | ६३२२ ealfg:| [वतखण्ड'२३अध्यायः। भाय्ययं भगवन्‌ मद्यं न स्थास्यति कथञ्चन ॥ fa करिष्यामि विप्रघ gaat सह भाया! प्रविशाम्यनया कुच कुत्र न प्रविशामि at मार्कण्डेय उवाच | शु दुःसह wa त्मकीत्तिरशुभाज्िता | परलच्छीरतुला चयं west इत्यभिशब्दिता | नारायणपरा Aa वेदमागनुसारिणः | agua महात्मानो भस्म्ोदूलितविग्रहाः | fant aa जना faa न fata कथचन | नारायण EMAAR पुग्डरोकान्न माघव! अच्यतानन्द गोविन्द वासुदेव जनान | afdz वामनाचिन्दय राघवेति चये war | वच्यन्ति सन्ततं हष्टास्तेषां घनग्यडादिष्‌ | आरामे चेव गोष्ठेष न विशेथाः कथञ्चन ॥ SAA AAAs थत्‌ सहसादिव्यसन्निभं | am विष्णोरतौवोगन्तषां हन्ति सद्‌ाशभं | स्वाहाकारो वषटकारो we यस्मिन्‌ प्रवत्तते। तददिघा चान्यनो गच्छ सामघोषेऽय यच AT I वेदाभ्यासरता faa निव्कश्चपरायणाः। वासुदेवाचनरता दूरतस्तान्‌ faasa ॥ अग्निहोत' डे येषां लिङ्गार्चा वा टेषु च। वासुटरेवननुव्वापि चण्डिका aa fasfa 9 दूरतो aa तान्‌ fear aq पापविवच्नितान्‌। aaans 23a: 1] Barly: | £33 famafafaaaaa यजन्ति महेश्वरं | तान्‌ Teal व्रज AAA SAF त्व सहानया |! aifaar ब्राह्मण गावो गुरवोऽतिथयः सदा । रुद्रभक्ताख पूज्यन्ते यै नित्य तान्‌ विसञ्जय॥ ट्‌: सह उवाच | यस्मिन्‌ want योग्यो मे aaghe सुनिसत्तम | त्वदाक्याङ्गयनिमुक्गो विशाम्येषां we wet AACA उवाच | यच UTA च wal च परस्मरविरोधनो। wa ws तस्य बिगेधां भयवन्नि तः ॥ देवदेवो महादेवो रद्रस्तिभुवनेश्वरः | विनिद्रो यत्र भगवान्‌ वेधा भयवन्नि तः । वासुदेवे रतिनास्ि aa afer सदा afc: | aunafesa नास्ति भस्म नास्ति we zai | aq खभ्यचनं नासि wae श्यां विगेषतः | कष्णा्टम्याच्च रुद्रस्य सन्ध्यायां भयवजितः | चतुद्‌ भ्यां महारवं न यजन्ति च यच वे, पिष्णोनीमविद्धौनास्येरश्चभास्छेदु रात्मभिः ॥ नमस्कारञ्च सय शिवाय परमेष्ठिने, AAT च AU HS न वदन्ति दुरातकाः। तच वं सततं वत्स aurea समाविग॥ वेदघोषो न यत्रास्ति गुरुपूजा नयत च। पिटकन््रविदहोनाश्च quae समाविग॥ ( Geo ) | कर ie ee le 77 न्म Sap ee See ee ०3 ~~ = ._ ६२४ saris: | [नतखण्ड'२३श्रध्वायः। रातो Wat we यस्मिन्‌ कलहो ana fas: | aaa aeafad विशं लं भयवजितः॥ लिद्धार्चा नास्ति aaa यस्य नास्ति तपो द्मः (2) 3 सद्रभक्तिविनिन्दा वा तत्रव fan निर्भयः ॥ अतिथिः स्रोतियो वापि qeat वेष्णवोऽपि वा ! न सन्ति aed गावः Wars समाविश il बालानां प्रच्यमारनां यच war fe aaa | भक्नन्ति aa SEU: सभाव्येस्त्वं समाविश ॥ TRIG महादेवं वासुदेवमथापिवा। seal विधिवद्रव्यं यतर aa समाविश॥ पापकश्मरत मढ़ा दयाहोनाः परस्परं | we यस्मिन्‌ समासन्ने 2a तच समाविश ॥ प्राकारागारभिद्याऽसावन्ववेच्ा Refer । ACTS समासादय वस नित्यमनन्यघोः ॥ aa कण्टकिनो क्ता यच निष्पाववल्नरो) त्रद्महक्तख यत्रासि सभायसत्व' समाविश ॥ अ्रगसत्याकादयो ale qatar wey वै । करवौर विभेषेण नन्दयावत्तमयापि वा, मलिकावा we येषां सभायस्व समाविश ॥ कन्या च यत्र वे वल्लो रोहितोऽथ ast खे । वकुलः कद्लो यतर सभायस्व' समाविश i तालस्तमालो भल्लातस्तिन्तिडो खण्ड मेव च | गा eee (१५) atten एति पुषकान्नः ore: | qagw 2a aA: |] CATH: | कट्म्बः खदिरं वापि anses समाविश i न्यग्रोधो वा We PAs तथेव च | उड म्बरः सपनसः VU समाविश | यस्य काको ze विन्द्‌ दारामे वा गट्हेऽपिवा। feaa मुर्डितो वापि सभायसत्व समाविश ॥ एकच्छागं हिरावेयं fang vaarfes | USA सप्तमा तङ्क ae समाविश tt यस्य कालौ We देवौ प्रेतरूपा च डाकिनी | च्तेचपालोऽयवा aa सभायस््र' समाविश्र ॥ भिच्विम्बच्च वे यस्य गुहे चपणकं तथा | ara वा विमस्बमाहृष्टं तच तृणं समाविश a श्रयनासनक्ालेषु भोजनासनहत्तिषु | येषां बदति वे वासौ नामानि न हरे; सदा) ACU समाख्यातं TIA समाविग ॥ पाषर्डा वारनिरताः ae बहिष्क ताः ! विष्णभकतिविनिस्‌ क्ता महादेवविनिन्दकाः। नास्तिकाश्च शवा यत्र aurea समाविश | aut च भगवान्‌ fay: शक्रः सव्वं सुरेश्वरः । शिवप्रसादजाश्चेति न बद्न्ति दुरात्मकाः ॥ ब्रह्मा च भगवान्‌ विष्णुः शिवस्य wa was | वदन्ति मूढाः खद्योतं भानोवां मूट्चेतसः ॥ तेषां गदे तथा Aa आवासे वा सहानया | विश भह गहे तेषां facia त्वमनन्यधौः॥ Jeg Se - ६२६ SANE: | [way २२शअ्रध्याय; । अन्ति केवलं ase wana विचेतसः | SIAAFAP A तेषां ल Wearfay o Al aU शौचविभ्रष्टा रेदसंस्कारवजिंता। सव्व भक्तरता नित्यं तस्या स्थानं समाविश i मद्यपानरताः चापा मासमभच्चरखतत्पराः। परद्‌(ररता मलयाम्तषां त्वं गटहमाविश ॥ ua ख नचनरता मथने वा fear रताः सन्धप्रायां waa वापि डे तेषां समाविश ॥ पृष्ठतो wad सनो AAA NAG यः । जले वा मेनं कुर्यत्‌ aaa समाविश | रजस्वलाङ्गनां गच्छबार्डारयेः वा नराधमः | कन्यां वा गामजः वापि quae’ समाविग। बहुना कि प्रलापेन निव्यकन्भवदिष्कता; | र्द्रभक्तिविद्ोना ये ze तेषां समाविश ॥ ag fe alae: We: येपमालिप्य गच्छति) भगद्रावं करोव्यस्य सभायस्व समाविश) इत्युक्ता स सुनि; star निमोख नयने तदा | AW aa MAT शस्तचवान्तरधौयत ॥ दुःसहोऽपि यथोक्ञानि स्थानानि समुपेयिवान्‌ | विशेषाद्‌ वदेवस्य विष्णोनिन्दारताकना। सभार्यो सुनिभादूल सषा ज्या इति स्मता । दुःमदम्तासुवाचद्‌ तडङ़ामासखयसस्तर । SIA BARA VUE प्रपश्यामि रसातलं | व्रतखर्ड'२३ग्रध्यायः ।] SUZ! आवयोः खानमालोक्य निवासाय" ततः पुनः| आमभिष्यामि ते पाश्वभिल्यक्ता तसुवाच सा । किमश्रामि महामागको म दास्यति वे बलिं | इत्यस्तां मुनिः प्राह यास्तियस्त्वां यजन्ति वे । बलिभिः एष्पधुपेख न तासान्त्' we विश ॥ इत्युक्ता प्राविगत्तत्र पातालनिलयङ्गतः | अ्दयापिसच नायातस्तेन सा जलसंस्तरे | ग्रामे ककटवाद्म तु निवमास्तेऽशभा पुनः ॥ प्रसङ्ग aeam विश्णु स्िभुवनेश्वरः | लच्मौजष्टस्तथाऽलच्छीः सा तमाह जनाद नं ॥ Wal Wal AAs बलिं त्यक्ता मस Wat | Aaare जगन्नाघ ata देहि नमोऽस्त a Laat भगवान्‌ विष्णुः प्रसद्य जनादहनः | AAA Saal माधवो मधुसूरनः॥ ये रुद्रमनघं सव्व wet नोललो हितं | अम्बां हैमवतो वापि afaat जगतामपि। agar निन्दयन््त् तेषां वित्तन्तवेव च॥ एवभेव महादेवं विनिन्येव यजन्ति मां। सूट ह्यभाग्या ugat अपि तेषां घनन्तव॥ यस्याज्ञया WA ब्रह्मा प्रसादादसते सदा) ये विनिन्द्य awa मत्पदभ्वंशकारकाः॥ महका Aa ते भक्ता एवं वत्तन्ति TAT | तषां धनं we a इष्टाप्‌ MATA च ॥ & २७ QRS saat तां aftasaraat लच्लीजनाद्‌ नः। maT भगवान्‌ सद्रमलच्छोत्तयसिद्ये॥ तस्मात्‌ Uta च बलि््िन्यो नरेखरेः | विष्णुभक्तेनं सन्देहः सव्वं aad aa att अङ्गनाभिः सदा पूज्या afafufafaufes: ॥ भविष्योत्तरात्‌ | युधिष्ठिर उवाच। BATH FAL नारो काकवन्धा तथाऽपरा, गभखावा ठतीया च नानादोतैश दूषिता ॥ निदेनाख्च नराचेव दारिद्रोष्डता खिताः | कणा केन मुच्यन्ते ay afe जनाद्रंन॥ व्रतेन केन awa ` सुखं प्राप्रोति मानवः | ata च जगन्नाथ aaa HAI मे | SRW उवाच । मारे भाद्रपदे शक्ते पक्त ज्येष्ठा यदा भवेत्‌ । WaT जागरणं Heat मौतवादिच्रनिःखनेः । एव विधषिघानेन एभि्मन्ते; सुपूजयेत्‌ it wale त्वं महाभागे सुरासुरनमस्कते | ज्येष्ठे तरं सव्व देवानां मत्समोपा सद्‌ा भव । आ्रवाहनमन्वः | Wasa तु खेतवस्व TAF AT | वरच्च yaa पाशं faa ते नमोनमः ॥ eta: | [्रतखण्ड'२२ब्रध्यायः, व्रतखग्ड'२३अ्रध्यायः] PATER: MAAR: | ae ae anfas ats ब्रह्मवादिनि) MUN च समुद्धते अध्य WS नमोऽस्तृते ॥ अध्ये मन्तः | श्ाङ्गवारेख GEA तोरनारीहदर्प्यणः। अन्यै रप्यायुपैयुक्तां ज्येष्ठ त्वामचयाम्यद | प्रायनामन्तः। सुरासुरनरवंन्दया यक्तकित्ररपूजिता। पूजितासि मया देवि sas त्ामचंयाम्यहं ॥ पुचदारससदगथेः aaurag farsa | saaa विनाशाय Ws BATT I Qala; | Ara U पूजयेच्जष्ठां Gl वाऽथ पुरुषोऽपि ar । aa: सन्तानहदिञ्च अरणिमाद्गुणो भवेत्‌ ॥ श्रचिता चचिता ज्येष्ठा सदा Ala DATA | YAR संपूजयद्धक्वा वस्तं राभरणादिभिः। इादगेव च वर्षाणि पूजनीया Aaa: | यावज्नन् तधा पूज्या विधिनानेन मानवे; | ददाति fad पुत्रां wa atat सदा feat! aaa विधिना gat at fe पूजयते नरः ॥ नारी च प्ूजयथेजेगष्ठां तस्या लच्छमोर्विं वदते | बन्धा च लमते YALA दुर्भगा सुभगा भवेत्‌ ॥ SAAR जोववत्सा काकबन्धा प्रजावतो | ६४० दुःखितो fe नरः afae सुखौ वसते सदा। एवं विधविधानन ज्येष्टां वस्त्वच्चंय त्सदा | विश्नन्तस्य प्रणश्येत TTY लवणं तथ्या ॥ एतहतं महा ष्ट' Ya पापविनाशन | तन्मया कथितं सव्वं ज्य टाया व्रतं महत्‌| यथा UB RWIS VT हात्रतं सुशोभनं) नौ राजने कति चेव Sat ग्राह्यः सुभक्तितः ॥ नेवेदयसदहितं प्राश्य त्रतस्याग्र युधिष्ठिर । गुरुहस्तात्सदा wear दोपः प्रज्वलितो महान्‌ ॥ ATS भकियुक्तस्त शुचिः प्रयतमानसः | अनेन विधिरा चेव व्रतं are युधिषिर ॥ ज्येष्टा नाम परा Sal भुक्तिसुक्ति फलप्रदा | यस्त॒ पूजयते TAA al प्रयच्छति ॥ स्कन्दपुराण | ईश्वरः उवाच । मासे भाद्रपदे पत्ते शक्ते ज्ये छात्तसंयुते। तस्मिन्‌ काले दिने gata ज्ये छाया; परिपुजनं। तच्रष्टम्यां यदा भानुदिन ज्यष्टकमेव च। NAT Bl तुसा प्रोक्ता Taal बहकालिका। HAGA नरः ग्यां त्स्यामन्यत वा दिने॥ ufaga: शचि; कुशात्‌ ज्यष्टाटेव्याः प्रपूजनं । नद्या. wag sree सिकताः दरेयजाः ॥ टेवौरूपन्तु aaa ध्यात्वा त ब्राद्धरिः aE मण्डले तान्तु Hea देवीं हेममयौन्तत; | eats: | [नतखण्डं 2 area | व्रतखण्ड' 27a; ] Pars: | ६४१ स्था पयेदरजतोन्तास्दौ wei वा दिजसत्तम(१)। अवादहयेत्ततो टेवोमधव। पुस्त कऽपिवा ॥ तिलोचनां शकदन्तो' विभ्चतो राजतो तनु । विततां रक्तनयनां ज्य छामावदयाम्यहं ॥ रचि तवं महाभागे सुरासुरनमस्कते | ज्या ल सव्व देवानां मवसमौोपगतः भव ॥ दति aay at टेवोमावाह्य सुक्षतव्रतो | दाद्रन्यजलेः पाद्यं पाद्योरुभयोदिंजः ॥ खरौखर्डवापूरयुतन्दयादन्स्तथादंणं | भक्तया WIAA मया asa रीयते तव | ATAU सुरेशानि TS AS ननोनमः। Saas सुवखादिपाते णच्लिनापि art NH TA स्मरेदेवौ' गन्धधूपैस्तथा चेत्‌ | गोधूमयवभाल्यादितददवयेः सुपारयेत्‌ ॥ पञ्चप्रखूतिमातेस्तः पूरिकादौनि सपिषा। निषेरयेच तरेव fale @ यतद्रतः | तत WAl महादेवी सव्वकासफलप्रदं । ज्येष्ठाय ति ARAM ख छायं ते नमो नमः ॥ ज्येष्ठ ase anfasafes सत्यवादिनि। एदयेहि लं महाभागे we we सरस्वति | TAA: | Wal स्तोत्रकधाट्त्यगोतानि पुरतस्ततः | (१) qi वा प्रयकुडयुरिति Gearatuis: | ( ae) pe eee ee AT, tg = म ¬ ~ as 4 rt ert “ a क हि ६५८२ तामम्निविथां तपसा उ्वलन्तौ Saat aay जुष्टां दुर्गं Sal शरणमह प्रपद्ये | सुतरसितरासनाय नमः। इत्यावाहयत्‌ ! Sale: | [ana २३अध्यायः सौवौरे चेव संयुक्तां Psa एव च ॥ सुवासिनोभ्बः THT तत्‌ प्रददयात्‌ सुक्ततत्रतो। टेवीमनुज्ञयावित्वा ततो भुच्लीत वाग्यतः | सखिभिः सदवचान्नानिसत्रतो सुक्षतव्रतः। भुक्ता पौत्रा तदाचम्य देवौ AAT पुनः पुनः | Wha AMY कुर्यात्‌ प्रातविं सजनं a एवमेव प्रङुव्यदहे व्रतन्तु प्रतिवत्सरं | विसजनान्ते तु ततः शिवां त वारिणि लिपेत्‌ ॥ अपूपवटकान्दव्यादूव्राद्यरेभ्यस्ततो दिजः। लु्यादेवं प्रयलेन सायं वाघ विसजेयेत्‌। facet प्राप्रुयाद्दिदयां स्रौकाःमस्विवमाप्रुयात्‌ | गिरम्तर्गकासे तु द्व्य दन्यादसं्रयः । GAIT राजतन्तास्र RAMAN भवेत्तदा | ad dag aaara fats amg ware a: ॥ cal age कथितन्तवेदं विधि मन्ताचनसेंप्रयुक्तः | Waste सायुज्यकरो व्रतस्य स्तस्य सदाचारवतां Feat यस्याः fad रथे युक्ता व्याघ्रथापि महावलः | ज्ये छामहसमिमान्दवौ' प्रपद्ये एरर रः cat ॥ ४ t qHew २३यअध्यायः!}] Pas | ६४३ o~ fi ¢ १ ति {ह “ अपादहिर्ति faafafecaaat शुचयः पावका इति fae सिरभिषेवं Fate | £ क नास्राघ दिष्टरन्दत्वा पाद्यमव्यमघासन । ~ ^ > ¢ 09 वस्तमाचमनं() चव मधपकादि Waa: | Tay पुष्यन्तयाधूपं दपं नेवेद्यभेव च । = ^ पुनराचमनच्छेव कारथिला विसजयेत्‌। = 9 -™ = ~+ $ ~ a = ० स्ये =e 3 Sisagia agi च सव्याय नमः। a काल्ये am | “~~, म > ॥ ज ४, oe = nme । चों कपालाय नमः wi कलिप्रिवायं नमः। अचः {विद्धां नसः) =$ ०. | ज = A —o च ia द न्तस ४ सीं विनायकाय नमः | Bl भाग्यं नमः Bi Wit क्नुः ५ it > rT पदः वि wren open ¢ 4 at faa नमः | ai AW नमः। MAMET AT खथभिनामनिस्तपसं | ~ , x ₹ . | दामं दधिमधृच्ोरष्टतः इय्यात्‌ सुसंयतः | हविष्यं सवसख्रोया द्‌बरद्धणांस्तन भोजयेत्‌ | अनेन विधिना स्त॒ वत्सराणद्तुटयं | =~ $ ५ नि" न ~ + रतान्ते प्रतिमां Gata staal’ फलस ज्यितः | छष्यवस्तेण संयुक्तामाचाय्याय निषेदयेद्‌ | > ~ OA $ + वस्तराभरणमाच्यस्त WIA: पूजित {=a} = a ~ Um प्ररिपत्य ततः wate सव्वे' fated । राह्मण सुक्तवन्तस्ते THA: सखस्तिवाचन। क ~ ~, ¢ प क एव क्षत Ad सम्यक्‌ Valea: प्रजायत) ~ ~ चघनधान्यसमद्धिख आरोम्यङेव जायत | ष ५ इति ज्यष्टात्रतं,। (?) सानमाचमनमिति प्राठान्र | ६४४ Salz: | [त्रतखग्ड-२३अरध्यायः। पुष्कर Say | शतो तूपोषितो fasta यजमानमुपोषितं | aaa खापयेत्नित्यन्तत्‌स्ाम्यागासुखख्ितं tt तत्‌खाम्याणासुखं ने क्ट त्यभिसुख | ूर्व्वीकाशासम्मख वा पूषन Gzoa च) कुम्भदयेन WAT पूजयेन्सधुसूदन ; विरूधाच्व सवसखु न्द्र शूलन्तथेव त्त | गन्धसाल्यनभस्कारदो TAU ATA ॥ एतेषामेव जुयात्तया नास्ता तं दिजः । पोतवासास्ततो भूता AT कञ्च शूकरं ॥ सुराकषणरसंयावः खानोक्ताशासुखस्ितः | वल gaa दव्ाज्नान्ु Har ततः चितौ। ततोऽष्टादगभिः पष्ंमूःलैः पञभिरेव च। सुवं गभन्तु मणिं विदान्‌ भिरसि धारयेत्‌ i छत्वे तत्‌ सकलं कश्च ale ayaa लभेत्‌। दचिणशाञ्चात्रये caa ents च फलानि च। सितानि चेव वस््राणि कनकंरजतं तथा| MATa दातव्य ब्राह्मण्ानामभौख्ठितं भरलहृयन्मूल भिद्‌ इच्च न्‌ स्नानं सदा भागववंसमुख्यः | afa ससमाप्रोति सदेव हद्धि यथेख्ितं ar विचारमस्ति। इति विष्एधम्् ्तरोक्तं मृलस्तानं। qqaw २२शअ्र्यायः।] PAR ६४१५ Ge ~ 6 £ गर्म" सुनिवरसेष्ठ' भागव; परिषटुच्छति | ५) ~, ~ ; . agaa q Bat शिरोञ्छतस्य करं फलं ; पादे aie qaq प्रोक्तं तच्रमाचच्छ Baa | पि a र # स्रानदानादिद्ोमांख दश्चनोयं कयं भवेत्‌ | गग उवाच! प्रथमे पितर हन्ति feara हन्ति मातर) ठतीये च धनं न्ति चतुधं भोभनं भषेत्‌ ॥ WAH छेदनं Al र्तसखरावो दिधघोयते | दितोये दोयतत बालः परस्तोपुरुषस्य ar ॥ अथवास्य ठतोयेतु पश्चाच्छान्तिन्तु कारयेत्‌) दतुघं शस्यते खानं wat wa fast: पिता॥ स्वयसुत्प्राटयेत्‌ प्राज्ञो मरूलानाञ्च wa पिता) ayaa पविता ओषध्यः कथयाम्यद्धं | aaa wager च शिरीषो वेतसस्तघा | fazat शतमूला च विष्णुक्रान्ता च afeat aural मो ननेच्रा च पुत्ाप्ररि कताच््रलौ | पलाशो fanaa रोचना चन्दनदयं | AMA HUM THA तथामल(१)॥ गोजिह्वा तुलसौ gat wager शताङ्गलौ | ब्रह्मदण्ड द्री णपुष्यौ fray :्ेतसपेपाः | काका नयगो (१) बाल्याकच्च तथामलमिति पाठान्तर | द माद्रः | | वत्रतडर्ड२२दधष्यायः | पिप्पद्ः काकजद्ा च वाधथमारण डउडहस्तथा | ifawat च गान्धारौ निगेन्धा पूणकौगिक। ॥ भगक्तुमा सुभद्रा च गुडचौ सेन्द्रवार्णो। HAMA च दन्तौ च कदलौ RAHAT | WAC, गशतपनी च ्ररिष्टकापराजिता। वित्रपग्णं शतपत्ा च faaatisa सुवचला। ्रष्वगन्धा हस्तिकणों हरिद्रादितयं तथा| SEql AYRITA अष्ठत्थो वक्ुलस्तया॥ सजंराजो Baa मन्दारश्ातिसुक्रकः। मालतौ Sigal q यौकर्णं staat | दभमलं करदोरं azaal विकङ्कतः | पाटल्ला सुरदारु weaefaar तथा | फल मयत्रच्तस्यं पलाशस्य त्त पल्लवं, tial नन्दोवन्नमूनलं सुरदारुवि दारिका | aaa sacar नौलीत्पलं aga च। नागकेशरसिन्दूरो कुमारौ चेव निचिपेत्‌ ॥ तास्व्‌ पञ्चगव्यञ्च CATA काञ्चनं | यथास्मभवतो वापि याह्य मूलोश्तं wai | वौरत्वचा wag wale घटे न्यत्‌ ) नवया उभयङ्लस्या गोख्ङखनिताच यः वह्िसलगताया च तथा ASV AT | वस्स क पल्ललस्था च रजसा THA A रजसा Waa, मोरजोरच्िता रथ्यामत्तिका दत्य; | AAS २३अव्याय | Sarfz: E89 SAH q at Mar shan पापनाश्रम्पे | ATRIA करकः शन्तिन्ते चष्ट तोदप्रिलाः ॥ चत्वारो ata ai द्वा गिरसनाने fadfear | सवालाास्ततः कु्यदिलिष् awa WH । वेदमङ्गलघोःवेय मन्दः gaia: | (चाः कलग्न्द्व्य' अभिमन्ता तदः BI | सान कामि दिव्य सूतकान्ते ततः fart: | MAL ख!पयेत्य द्द पूजान्तु कारयेत्‌ | आच पूजयिता तु ANAS TAA । सौवण" say द्याद्‌ःचःष्डौय we fara: ॥ Gy दद्याद्वा धान्य WANS दिः | Tat ततः कला wa चऋरःःखयेन्‌ तेत्र तैनह्ुजातस्य GSCI च) Twila चव भावस्य दालस्येति faatsa } कष्णतिलानान्वु षच्या इर्य भानसुयत\ ufeaufaafad qawara: निङ्गम्मा eae: श्ुव- चसा सूपंसक्ता | दस्तिकणं एरण्डः । उष्टवः पौलुः! सधुकारी मधकः। सजंराजो AR. | AeA घाटः ¦ अ{दिद्ु्त माधवो | माललिः जातिः) स्व पष्मो Baal | योर सिख | गदयन्तौ पूतिका | अद्धस्टनिका पालन) मन्मयहत्तथास्नः। सुरद्‌ास्‌ः रव- sane: । विदारिका कुषाण्डौो । ष्यतवौधौ गिरिका ष्व तपाका गु्ला | शेषाः सरना न्रप्रभिद्धानि) & ४८ dale: | [व्रतखण्ड२३ग्रध्यायः। 2 इन्द्राय SST | अग्नये SSI! सोमाय खाहा। पवमा- नाय WTSI | मरुते SIS! यमाय. खाद्ा। BAI खादहा। अन्तकाय स्वाहया । अग्नये facaa खादहा॥ त्रातारमिन्द्र! त्वत्रो श्रमे | सुगनरपरन्धां | ग्रसुन्वत्त । तच्वायानि भरानोनियुद्धिः। वयं सोम। ania | अन्मेसद्रा। स्योना एयिवी। इत्यदि मन्ता; | इति मृलशान्तिः | 0060000 UH उदाच | काम्य AY Tas वारिज्य' येन fafa | छषिच्च बहलाञ्धैव कणा केन वाति | पुष्कर उवाच | स्रलेषूपोषितः quatfed क पुरोदितः। उपोषितस्य waa यजमानस्य fram ॥ MIME FAUT WAG खपयेन्रर । युक वं समू लेय WFAA TIAA 1 मणिभिश्च यथालाभं कनकेन तयेव च। THA: कलगेश्तुभिंखगुनन्दन |} भकालमुलेः, नवे; । ततस्तु THIS ST शङ्चक्रगद्‌ाधरं | MFG तु तथेवातच् वरुणञ्च निशाकरं ॥ न्वमाल्यनमस्कारदौोपधूपान्नसम्बदा । AAS २२ध्यायः'] VA | ६४९ एतेषामेव AeA नारा wa (EH! नोलवासास्तथा सूत्वा farey समादितः॥ नौलानि चेव वासांसि देवयानि विक्धिानि च। चन्दनच्च(१) सुरा चैव aed दिविघन्तथा ॥ शक्तानि चदेव माल्यानि धुं AMSA तधा । निष्यत्तिमकरस्या खि गहसुक्ताफल तथा सुवणं न्तरित कछला घारयेच तथा मरि | aaaq सिदिमाप्रोति वाणिज्य नाच संशयः | समुद्रयाने च तरथाक्षयेचनसौदति। नोलानि सप्त वासांसि efau चात्र wea | WF सुवणं रूप्य ञ्च(२) तथा सुक्ताफलानि च | त्र aay fete ad मेतदिधीयते | MUU Wasa परमात्र yaad | WIAA WARAAICA TT: करोति aaaetafearar i न जातु लाभादिनिवत्त तेऽसौ ससुद्रयानादिब्र निस्रगावे॥ इति विष्णधर््रोत्तरोक्त' बाणिज्यलाभव्रतम्‌। सूत उवाच । ABU मानसः पुचो दशचिष्ठदति faa: | (१) Saag quaafa पुस्तकान्तरे पाठः| (२) WE सुवण gag ति पाठान्तर | ( ८२) ६१० देमाद्रः। [वतखरड'२२अ्रष्याय;। तस्य AVATARS युचः पराशरः ॥ तपश्चकार सुमचष्रष्कर देवदानवेः। Carat ब्रह्मचारो च ततो लब्धवरो भवेत्‌ ॥ सुपुच TU as भवेरुक्तोमदहात्मभिः | कुरु संवत्सर स्नानं Baa खवशे ya सोऽपि पुतानवापाष्टो चकार यडयान्वितः | पाराशव्यः सुतं लेभे व्रतस्यास्य प्रभावतः। एवमन्योऽपि राजेन्द्रस्तावत्‌ सिदिमवाप्रयात्‌ । पुचान्‌ Wage लभते सुखुद्धात्यन्तमश्चुते | दत्यादित्यपुराणोक्त पु नोत्यत्तित्रतं । ee ee SIH Sars | स्रानानाभिह wast यः स्रानमतिरिचिते, तन्ममाचच्च सकलं सब्ब कल्यषनाशन' ॥ पुष्कर उवाच | णु पाटोद्कन्नानं सनव्वेकत्परषनाश्न'। चतुरात्मा हरियत भवत्यन्वागती fea 1 aa nafs खानं सव्वकल्दषनाशन, ततः कायः प्रयत्नेन खवणक्त विगेषतः ॥ अथोत्तराषाट्ासु निराद्ारो जितेन्द्रियः ॥ Wag सब्बगन्धेदं वटेवस्य शक्तितः । पाद्‌ प्र्षालयैदिदान्‌ क्रमेण चतुरात्मनः | ततः सुकलथ्ान्‌ कय्यो चतुरः सुदा त्रवान्‌ | त्रतखण्ड agama: t) रमाद्धिः 3 aw राजतं avaavzafa महोगयान्‌॥ ततौ निरुदचरणः कूपाद्धिः चालयेत्ततः | ताभिस्तु काल गमप स्थापनोयं तदग्रतः | ततः प्रदुख्रचरणो Aa प्रखवग्ीद्‌कः; । तेस्त्‌ संपूणकलशं भवेत्‌ ्थाप्यन्तद्यतः | संघ णस्य चरणो ae तोय ख aw | aan पूरितन्तेख श्याप्य' तस्याग्रतो भवेत्‌ | वासुदेवस्य चरणौ AISA: चालयेद्वधः। कलशं पूरितं तेश्च wats aaa; | ततस्त पूजा कत्तव्या तथा वे चतुराकनः। कलशान्‌ पूरयेत्तांय गन्धमाल्यफलात्तवेः : ततः प्राप दितौधेऽङ्कि ara: पूच्छसुपोतितः: संन्धखश्रानिरुदय सरप्यश्ोत्‌कटुकौो भदेत्‌ | परयम््रस्य च देवस्य ततः सङ्कघ स्य च ततश्व वासुदेवस्य मव्वादासद्य why \ पवित्रमन् : सव्व घटाएनामभिमन्वरं | कर्तव्यं सान्वयेनाध शुचिना भागेवोत्तम॥ अश्र मन्त्रान्‌ प्रवच्यामि चतुषु कलशेषु तिं । मङ्गन्यंख यश्रस्थां सदयोऽघविनिघुट्‌नान्‌ | ARCH: सव्व त सरन्वगद्वापरालितः' वायुमूत्तिरचिन्धावमा सीऽनिकुदः स्यं TA: । पादोदकेन दिग्धेन शिवेनाघ्विन्दणन : तथादमुप्व्याशु सय वदयति प्रभः \ ६५२ इदमाद्भिः। [जतखण्ड'२३अअरध्यायः | लीक्षान्‌ प्रद्योतयति यः प्रयन्तो भास्करः प्रभः | इतायनः स तजस्तौ aya विद्धातुते ॥ कामदेवो जगद्योनिः सब्ब गः WALT: | रोगहत्ती जगनाघो मङ्गलानि ददातुमे। जगतां कर्षणादेवो यः स संकषेणः प्रभः | रद्रमूरत्तिंरचिन्त्यात्मा सव्वगः सव्व दारकः ॥ वछामपालोऽरि्दिमनः सव्व भूलवशङ्रः विश्वयोनिर्मदातिजा मङ्गलानि ददातु मे॥ सव्वयासो वासुदेवो BATA दूतभावनः। सव्वेगघाप्रभेयश्च पुरुषः परमेश्वरः | TAM सर्व्व SAM जगत्तारणकारणः | QAAPiel वरदौ विदधातु सिय aa tt एवं खातस्ततिं Har परिधाप्य सुवाससौ | शक्तवासा उपस्यश्य पुजा कुर्यात्‌ क्रमेण तु ॥ nat पुष्पैः फलैः Gaeta: सुगनिभिः। नैषेदोविविधै चैव पायसान्नस्तु TTA: | एवं देवाचनं कला सम्रताभौमेताश्भः। भोजनं Wena क्त्वा तिषदतच्द्रितः । प्रादुभीवानि genta खखयात्‌ केशवस्य च । पाषण्डपतितानाख् वज्जयदर्भनं तथा tt दइतिपादोदक्षखानं Wa रत्तौदण तव, मङ्गल्यम्पापश्मनमलच्छौनाशनं पर ॥ सश्वत्रिघ्रप्रशमनं सव्व ब्ाधाविनाशनं। व्रतखर्ड' agua: \] arly: | ९५३ सव्व Teast स््वैव्याधिद्टरः परं | याचासिशिकर ge कम्धर्णां सििकारकं। nau afee मध्ये बलायुःस्मृतिवद्न | MAA कामपरं यशःपुचदिवचैन ॥ अमोघक्तेय्य ` पुरुषोत्तमस्य पादोदकस्रानभिद प्रतिष्ठ | स्रानोत्तमन्ते रणचन्द्रमेग- भेवस्त्‌ ते किकरवाणिराम। दरति विष्ण धररीत्तरक्तं पादोदकस्तानं। खोराम उवाच) आरोग्यकारक खानं हितोया प्रतिपत्तथा | Mua व्रतं चेव वेष्णवं TIVE म | पुष्कर उवाच | धनिष्ठासु मद्धाभाग यजमानपुरोदिती | उपोष्य वारुण STA यजमानस्य कारयेत्‌ | कत्वा FATA पुण ण ङ्मुक्ताफन्तोदकेः | भद्रासनोपविद्टः सन्‌ खाते वाहताम्बरः ॥ aya वरुणं YE ATT वारुणं तथा | THA प्रयतो राम गन्धमाल्यानुलेषने,। दौपधुपनमस्कार स्तथा चेवाव्रसम्पदा | देवतानां यथोक्तानां कुर्व्बोतावाहनन्ततः ॥ waa स्तधाज्येन arate विचत्तण; , ६ ५५४ हमाद्धिः। [नतखंक्ड'२३ अध्यायः | गुरवे वाससो देये ससगोक्भकाञ्नं। व्रा द्म णनान्तु द्‌ातव्याऽवित्तशायान efaat i ~ = £, ~ x WAM Aas, पचरव्वशाग्रण तथेव च, १, , चिघठतस्त मणिडाग्यः सव्व रोगविनाशनः ॥ % $ e | प्राकानि इरित माल्य सव्व शस्यानि बास्रसो। वरुणाय विनिक्िप्य गन्धधपं निवेदयेत्‌ | अलङ्यानस्य fe वारण तत्‌ सानेन दानेन कतेन सम्यक्‌ रोगा. समग्राः ana प्रयान्ति वदस्तघा मोत्तमवाब्रयाच्च ॥ इति विष्णुधन्न aca शतभिषास्तानः | 000 अतःपरं प्रवच्यामि काम्य WH तवानघ, कत्ता तपवसेत्तत्र कारकश तथेव च ॥ uy भाद्रपदायोगे अहिन्रघ्रगते तथा । aa निशान्ते gala हितीये इति शाम्तविन्‌ a उडम्बरस्य पत्रि पञ्चगव्य quien | रोचना चन्दनं वासः लिपेत्‌ Hares बधः ॥ बम्भहयं ततः FARIA खनेर ड | अकालमूलं संस्नाप्य: कत्ता तेन तदा भवेत्‌ | स्नात्वा गोवालवोरणि परिधानि समाहितः | पूजयेचाप्यहिव्रघ्नमादिव्य च तथेव च ॥ ` AAQW २२अष्यायः | wae: ९ ५५ FANG शशगाङ्च गन्धमाल्याव्रसम्पदा। =, = दौपधूपनमस्कारस्तयेव बलिकन्यणा ॥ अत्ततानान्तु पाचाखिततो राम was T | ्रहिव्रघ्नाय qe सफरोख निवेदयेत्‌ ॥ परडङ्गनतु दद्याद तथा धूपं दिजोत्तमः। ततस्त प्रूजा कत्तव्या टेवरेवस्य चक्रिणः ॥ ZI Zaatat यघोक्तानामेकेकस्य शतं Wat गोपालश्रफणङ् स्त॒ sad aaa a | धारयं तस्य HUY करे BAIT वा भजे॥ = > यि) कन, HA चवोपटेष्ुतु Naat cata efaar - कै कारपूव्वेमाज्यन्तु सर्व्वसां ज॒डवात्ततः | ब्राह्मणानाञ्च सव्व षां यथावद्नुपूव्व शः ॥ अलङ्कयन्‌भाद्रषदामथान्या करोति यः स्रानमिदं सदेव | भवन्ति तस्यायुतश्चस्तर Wa: परामवाप्रोति तथेव afta’ | इति विष्ण घम्भरंत्तरोक्त अदिन्रघन््रानः | 000 वरुरुवाच, व्रतान्यन्यानि मे ब्रूहि काम्यानि दिजपुङ्गव। नारो पुरुषाणाच्च aa WR यतो aah HRW J उवाच । . छ ्तिका खद्ये€ वं कर्ति कोप्रतिक्रमात्‌। ६१६ दमाः | [aaa २२ अध्याय; । यावर्स्यात्कात्तिकौ war नरसिं हमुपोषितः ॥ अनुल्ेपनयुष्पादयेः सव्व रत्र; Wea J! व्रतावसाने दद्याद्र तया wat दिजातये। सने तवल्सयु ताद्व (१) रजतच्च तथा ट्प । उपोषितः सद्‌ा gare a स्याच्छ तुवज्नितः। मार्ग सोषमधारम्य गन्त पूजयेन्नरः | ARAMA नमनन्तं सव्व कामद्‌ ॥ पनन्त पुष्योपचयमनन्तसुखसम्प्रर्‌ | यथाभिलषिताषाधिः कुसुमे पुरुषोत्तम। CA दौयाभिपूजेवनमुपोषणपरो नरः | विप्राय efaui cara: प्रोयतामिति॥ पोषमासादधारभ्य पुष्ये नित्यसु पोषितः, MANNA AIM बलदैवमथाचंयेत्‌ ॥ भनुलेपनपुष्या दैः सव्वेरतरस्तयेव च, व्रतावसाने दातव्य (२) कांस्यं कनकमेव च | भक्त्या विप्राय भवति fact gfegqat नरः ॥ AAR SUVA मघासु सतत मरः, वरा मयेद व तथा नित्यसुपोषितः। छताभ्यङ्ग न विधिवचन्दनेन सुगन्धिना। तथा च परमाच्रेन एतदोमेन बाप्यथ ॥ दयादुत्रतावसाने त्‌ BANA नराधिपः) ~ ss ~, + (६) शतवच्नरय्॒ताद्चव ति प्रारान्तङ | ५२) खत कांख्मिति पुखकन्तरं प्राठः, त्रत ख ण्ड२ Vay: || Saree: ६५७ fi =~ . | चठप्रसादमाप्रोति क्त्व तदर्‌त्रतसुत्तम I फरगुनो तस्तथारभ्य फ(र्गुनौषु समचयेत्‌ I नरनारायणो देवी यावत्‌स्यात्‌ फ़ारगुनो पुनः। AAMAS Wad Urata प्रतिपादयेत्‌ । व्रतेनानेन नारौ स्यात्‌ Val समलङ्ता। भाव्य नरस्तघाप्रोति sugfaur zat & श्रनुक्ूलां प्रियां faa’ तथा पवर्ते at = _ ~ ५ अविस्मेगमवघव्य करोन्येतन्महात्रतं ॥ a * 3 . ~, ` चतरमासाद्धारभ्य faa’ Tsar | oN तो अर ~ यावच्च wast faa विष्णुसुपोपितः॥ adiaara cag faa aa fanaa । AAAAA पुरुषः पुतानाद्रीव्यघेखतान्‌ #ै नारोवा पुरुषव्याघ्र नात कार्य्य विचारर्ए्‌ । > ~ + ©. ane aaa विष्णु विणागासु समचयत ! = मो + ` Maga surat सौपवासः Ga विभु । दत्वा व्रतान्ते कनकं ज्नातियेष्ठं नरीत्तमः। = ~, ~~, VASA तथा ज्येष्ठासूपोषितो नरः Wer! क क, + \ AWA WIE SF वस्तालद्ारभूषणः 1 व्रतावसाने दातव्य गवां डत मनुत्तमः | वस्त्राणि कनकं wie AW सायुज्यमाप्र्‌ यात्‌ ॥ अषःटृ)तस्तथारभ्य दिनदयसुपौषितः, अ षः दृ स्बचयेदेवः प्रयस्रमपराजितं॥ भ्रयः स्यात्त swt Sy Was ततः! ( <३ ) que दमादधिः | [त्रतखर्ड'२र्अध्यायः) विम्तीण aa aia faa रूपयुता faa: | एवणौोतसतवधारभ्य ग्रहण संमुतं हरि | ूव्ववत्सोप्रवासस्त WAIT AIM पुनः A व्रतावस्ाने SIAM ब्राह्मणाय Ta as I व्रतेनानेन WAIT दौघजोवितमाभ्रयात्‌ i आरभ्य प्रोषटपादोतो निल्यम्भाद्रपदादये) AFIT URAT WARIS! YA: । व्रतावस्रान दद्याच्च गवां भिथ्नमुत्तम | व्रतेनानेन भवति निव्यमाज्ञायुतो नरः ॥ ्रणष्वयुज्यामघारभ्य नित्यमेवाशिनोषु च। ्रचयेत्यद्मनाभन्तु वासुदेवमपोषितः। व्रतावसाने दद्याच्च कास्यं Cro wa तथा । क्र्नान्ययेतानि मया नरेन्द्र प्रोक्तानि ते पापहराणि fag | AHI SIT AAT षाणां कामाक्िद्‌ान्येव वथेषटदानि ॥ एतद्रूपा खा विष्कम्भा । वलभद्रो नोलवासा लाङ्लौ सुषली faa: | नरनारायण नोलौ सात्तात्‌ शुक्तजटानजिमौ | रथस्थेकीकचरणौ Aye TEMA | वाण्वाणासनयुली feaqareqifcay | Za, सचापो द्विभुजो राजसत्तणलक्तितः। प्ङ्कोमोदकौपद्चचक्री Aaa उच्यते। प्रत खण्ड २३ अध्यायः।। earls: € ‰<~ ATU शङ्पद्मचक्रकौमोदकोधरः | waifu wena विस्मेकनोयानि। दति विष्ण धर्नीत्तरोक्तं सव्वकामाशषि्रतं। 000 युधिष्ठिर उवाच) । ~४ fa 90 अप्राप्तिन यथा दुःखमश्वथ्यादेनरोत्तम। ~ AO # (प $ तथा मनोरथलंब्वनाशाद्‌ःख भवेनुणां ॥ ६.० ¢, कण, £ =+ £, a रेष्वय्यादिचयते ata सन्तते वापि लोपतः । अरभोषटाद्न्यतो वापि खपदाद्येन विचतिं। नरो नाप्नोति are at तरतं तदहि मै सुने i क्ष्ण ara | सत्यमेतन्महाभाग eranifaa स्तय | ~ A & taney वित्तस्य बन्धवमसुतस्य च | तदेव खूयतां पाथं यथा नेटात्पद्च्युतिः । स्वगौ दिजी यते सम्यगुपवासत्रते वरणं | दाद्‌ शतच्तणि राजेन्द्र प्रतिमासन्तु यानि वे | SOA om, रो ~ = एष्पधूप स्तथास्मोभिरभोष्टरपरस्पि। टि + Ca sifea: कलिका क्ता ath a aaa | छशरामानत्रनेवेयं पुव्वमासचतुषटयं । निवेदयेत्‌ फाल्गुनादौ संयावन्तु ततः पर्‌ ॥ अषाढ दिषु (2) data पायसं विनिवेदयेत्‌ ॥ (९) श््रषादटादिचतुम्प्रससिति quart पाठः| ९६५ दमद्धिः | [त्रतखर्ड २२अरध्यायः) तेन कणरःमात्रनेवेदयं पूत्यैमास चतुष्टये निषैदयेत्‌। फाग्गुना- दिषु dua ततः परं अआषादृदिषु चतुषु मारेषु पायस विनिवेदयेत्‌) aaa a राजेन्द्र ब्राह्मणान्‌ भोजयेद्बघः। पञ्चगव्यजले सानं AGI प्राशनाच्छचिः॥ सम्यक्‌ संपूज्य राजेन्द्र तमेव पुरुषोत्तमं | प्रणम्य प्राधयेदिदान्‌ शचिल्रातो उयाविध्ि | नमो नमस्ते मम TAINS पापस्य af समुपेतु पुणः । रष्वय्यवित्ताद्‌ि सद्‌ाच्तयं मेऽ सयाच मे सन्ततिरच्तास्तु तथात लवं परतः परास त्रह्मात्मभ्रूतः परतः परात्मा! यश्राचतं मे Fe वाच्छति तत्‌ “iq रे मेत्‌ इराप्रमेयं। अरच्तानन्द गोविन्द wale यद्भौष्ठिति | तद्‌त्तषयममेयात्मन्‌ कुरुष्व पुरुषे;त्तम ॥ ua 24 ane प्राययित्रा यथाविधि । ata खयमस्ौयाननित्य' यद्वासमन्वितः ॥ ततः संवत्सरस्यान्ते सुखं सुपोत्वितःऽच्युते | स्त aaa ब्राह्मणाय निवेदयेत्‌ i शक्तितो ghant दद्याद्च्तः प्रीयतामिति) एवं त्रिसप्तभे ay कुश्यादुदुवापनन्ततः 5 तरतखण्ड'२२अ्रययायः।] माद्भिः) ६ & AVG ब्राह्यणो स्थाप्या सविर Waa | £ ष महासती रौप्यमयौ तन्मना सदेव सा॥ =“ = ततस्त पूजयिता तु माल्यवस्ल(नुञेपनः। मन्तेणानन राजेन्द्र प्रणिपत्य विधानतः ॥ प्रतसवत्सर दद्य(द्न्रपानं दिजः{तये। awa तिलान्‌ cag सहिरणयाज्यसंयुनान्‌ \ गाखाय दद्याद्विप्राय सवत्साः कास्यद्‌ःहनाः। wary शकितो eager तिष्टत्त्‌ केशवः! घटसपाच निर्दिष्टाः स्थाप्याः पूणजलोज््वलःः ॥ HAASAN, साद TM A Wad नरः, तस्मात्‌ सव्व Waa a Twi विप्रान्‌ विसर्जचेत्‌ ॥ samtaa राजेन्द्र नरः wg ति arsed ~ 0 न ~ सन्ततिं BUA A WA ayy” तथव Tn तदहत्तिमितमत्यन्त ततो न Waa aT: । c ~ A o~. तस्मात्‌ मव्व प्रयलन अना चतर पूजयेन्‌ । ~, ~, यतताच्तयकामस्त सदव पुरुषोत्तम | AW उवाच) ~ ~D अत्रापि aad काचित्‌ fast खग महात्रता। नारो तपखिनो भूत्वा प्रख्याता Waray | समस्तसन्दे हरा सटा Baraat feat | कस्मिथिदटेव कालेतु देवराजः शतक्रतुः | a ५ ™~ + : पृवन्द्रचररितं राजन्‌ पप्रच्छेदं seule | ~O ~क ~, ~, वद्द्रात्मरतः We य AYA: AUT , देमाद्रिः। [व्रतखण्ड२३ग्रध्यायः | तेषां चरितमिच्छामि ओोतुमङ्किरसां az tt एवमुक्तस्तदा तेन देवेन्द्रेणमलब्य॒ःतः। प्राह Wawat खेष्ठः परमपिठहस्मतिः ॥ आत्मनः WARM मामवेदि सुरेश्वर | ततः परमय टेवो avufaaafan: ॥ ययौ 7a महाभागा सम्यगास्ते तपख्िनो t सातो समायातौ देवराजददस्पतो। सम्यग्धन् ण संपूज्य प्रणिपत्याह सुत्रता। नमोऽस्त देवराजाय तथेवङ्गिरसे aa: a QS कासं महाभागे; सकलन्तदिदोचयतां, af कतु मया शक्तं तत्‌ करिष्येऽविष्य च वहस्पतरुवाष्द। वाभ्यामागतौ भद्रे प्रष्टुमद्ाभिकाङ्धिनीो। यच HW AINA aqvs कथयस मां tt यदि स्मरसि कल्याणि पूवन्द्रचरितानि बं । तदा ख्याद्धि महाभागे टेवेन्द्रस्य FATT | WATT AAT । यत्त पृष्व सुरेन्द्रस्य aaa प्रथमे fe ai तस्मात्‌ पृव्वेतराये च तस्यापि प्रथमश्च a | तेषां पूव्वतराये 4 af तार्नाखलानह्। तेष च चरितं aqa जानाम्यद्गिरसां वर॥ मन्वन्तराणखनेकानि ख्टयस्िदिवौकसः | Waal ख वहन्‌ Fy मनूनाञ्च gata यान्‌ ॥ घ्नत खुर" २३ ध्यायः+| माद्रः । REX एवसुक्ता सुरेन्द्राणां a Wa शाख्रायणो, कथयामास Bara तदापि कथयामितं॥ णु वत्स ARH टेवदेवतदुन्नं यः। सलयेकपानलान्‌ समरे विजित्य सहदे वतेः । इन्द्रस्यायतनं पथात्‌ प्रविवेश सुनिभयः ॥ तं ष्टा सहसा प्रष्ठ गक्रः WATTS Asa | जगोप सहसा aed नकुकणभयाददिवं | दानवं शक्रश्यनं प्रणिपातपुरःसरः॥ वासुदेवस्त FIU हृष्टा देवतकण्टकं | तकार कणटग्रहणं वासवस्तेन इषितः ॥ ततः BWA तरसा WH Swi Wa: Wa: | पौडयामास विहसन्‌ AEM भेरवान्‌ रवान्‌ ॥ ममार दानचेन्द्रोऽसौ वलाद्धगनार्चपच्ररः | निजेगाम ततः मोऽपि शय्यामूलमवाक्‌ गिरः ॥ तुष्टाव हरिमासोनः WE MATT | WATT मया शक्र उवाच सुरराट्‌ प्रति॥ तत; Ha तपो we टेवराजस्तपसिनोः। उवाच जानासि कथं लमेतत्‌ शाम्भरायणि। STATA aT | A काण, क © ~, सव्व ठव हि 2a aaa F सुरेष्वराः। aaa alta तेषां युतं दृष्टन्तयेव a) 2% उवाच्‌ | ६६४ दमाद्धिः। [त्रतखग्डं२रशअरष्यायः। fare वद्‌ Te GAA यटच्छया। ata वसतिं प्राप्ता यथान्यायेन केनचित्‌ ॥ अहो सव्वत्रतानाच्च द्यपोषितमवोदहतं। प्रधःनतरमल्यन्त स्वगवासप्रद्‌ मत॥ एवमुक्ता ततम्तन Sau तपखिनो। HAA महाभागा यथा ASVTAUTIAT | anata at 2a प्रतिमासं सुरेश्वर t यथोक्तत्रतमासाद्य सप्तवषांरि पृजितः ॥ तस्येयं HAUT ALATA ताराघनस्य मे। द्‌वन्लोकाद्भिमतादेवराज यद्‌ युतिः ॥ स्वग दूव्यमथेष्वथ्ः सततं यानि वाञ्छति | नरः प्राप्नोति तत्‌सव्व' तीषगणौयस्ततः प्रसुः ॥ एतत्ते wa देवैन्द्रचरितं सकलं मया । स्वगंवासात्तयत्वच्च मासाद्‌यृतपूजनात्‌ ॥ यया च कथितं देव पृच्छतस्िद्शंष्वर | waar afsed विव धाधिपैः। विष्णोराराधनायान्यत्परमं सिडिकारण॥ तस्यास्तदचन Bal देवराजहदहसखतौ | तां तघेव्यू चतुः analy चेरतुञ्चापितद्रतं ॥ तस्मात्पायप्रयनेनप्र तिमासं समादहितः। मासि मास्यच्य॒तं पूज्य भवेधास्तन्मनास्तद्‌ा | ये शाश्भरायणि agi चितव्रतेन af an विधिना सुधियो नयन्ति। SSM EY भरतखण्ड yma |] BATHE: | ते खगलोकमभिलभ्य कछताधिवासाः कल्यायुतं सुतथतेरपि न चयवन्ति। इति श्रभविष्योत्तरे शभ्मरायणोबरतं | धयया (7) {2 वशिष्ठ उवाच | रष्व च महोपाल ad विष्णुपद चयः | सव्यं पापप्रगमनमं यज्जमाद्‌ पुरा हरिः ४ za: प्रजापतिः vet विष्णुमाराध्य gear t वद्शणख तिपतरायां a evrafiaea: 1 Za उवच) भगवन्‌ सव्व कटेत्वमादिष्टं मे खयन्भुवा! ब्रह्मणण टेवटेवेन तवादटेशेन Anan fauaa जगन्राय समखूष्टिः कता aq | विषगासङ्गविणमात्तन्ममा चच्च चा युक्त ¢ वशि उवाच | इूलयेवसुक्तो TAU देवटेवो जनाद्‌ a आचष्ट SGI त्रत विष्णुपद्त्रयं | स्व्वीरम्भविनिष्यत्तिकारकं पापनाशनं! संसारच्छेदके घोरेययेष्ट खिरवबदहिभिः ॥ ACs तव राजेन्दर व्रतानासुत्तमोत्तम | कथयामि समाचष्ट ANIA समासतः ॥ MIS मासि राजेन्द्र पव्वाषादोपु पाथिव। ( te ) ६९५ Fe त , , क, 1 = रि । ् माद्रि | | व्रतखच्ड २२अ्रध्यायः। समम्ब्य FTA AAAA नियत! uta: | पष्प qo AAT Ea AT ¦ सागुरुदन्दनेः॥ यथाविभवतशान्येरतैरव्वासोभिरेव तु। च्तोरसरेहस्यितं तद्द्रव्य विष्णुपद्‌तरय॥ MAA AMA केगवस्याग्रतो न्यसेत्‌ यवांश्च द्द्यादहिप्राय alata: प्रीयतामिति | नक्त wala राजेन्द्र हविष्यात्र सुजीभनं। तथेवोत्तरषाट्ासु यावे मासि मानवः ॥ तयेवाभ्यच्यं गोविन्दः तथा विष्णुपदच॑य | fama wea द्वा प्रौणयिला भुवःपतिं॥ wala गोरसप्रायं मानवो मौनमास्थितः) al वा Use TAG तथा भाद्रपदासु वै। फाल्गुने फालगुनौ Gat भवेदिति यद्‌प॥ तिविक्रमं aer देव qaitafafaars aq | पद चयन्तु देवस्य समभ्यचयतु पार्थिव i fever द्तिणं cura सखगतिः प्रीयताभिति। नक्तं Wala राजेन्द्र आज्यपाकविवर्जिंतं ॥ एष एवोत्तरायोग Va मासि विधिः स्तः । परपुच्ो लभते पुतमपतिल्तेभते पतिं ॥ समागमं प्रवास तथा प्राप्नोति बान्धवे. | भद्रमेखय्येमारोग्य' सौभाग्य वानुरूपतां ॥ प्राप्नुयाद्‌ खिलानेतान्‌ पजयित्वा waz | यान्‌ यान्‌ कामान्नरःस्तोवा हद्येनाभिवाच्छति) व्रत ख ण्ड' २२अध्यायः i] sats | ६६० तांस्तानाप्रोति निष्कामो विष्णलेःक प्रपद्यति ॥ Qs qa क्त्वापि पापानि नरः स्तवा नराधिप) पद्‌तयं त्रतच्चात्र Hua सर्दकिल्विपैः। दरति बिष्णधरमंत्तरोक्तं विष्णपदव्रतं। C00 Za Vara | SyaAat महादुःखमतिदृष FRyaar | कुपुत्रः सव्वदुःखानां हेतुभूतो यतो मम॥ धन्यास्तेतु सुत प्राप्य सव्व द्रूःखविवज्नि ताः | शकतं प्र णान्तबलिनं भक्तं गुणएविचन्तसं ॥ स कम्यनिरतं नित्यः देवदिजपरायणं | Nad Fea टरोनानाघसमाखयं ॥ देवानुकुलतायुकं युक्तं सम्यग्गुखेनतु | प्राप्नोति पुत्र वे योऽस्मात्रान्यो धन्यतरो भवि ॥ सोऽहमिच्छछामि तत्‌ योतु aa: करम मह्ासुने। येन तल्लक्षणः Yat लभ्यते मानवरिह ॥ YAW उवाच | एवमेत स्महाभाग पिचोः पुत्रससड्वं । स्वदुः खोपशमनं येनेतत्‌ कथयामि ते ॥ छतवोर्य्यो महोपालो हेदयानामभूत्परा | तस्य भौोलवतोनाम्नौ aya वरवरमिनौ॥ सा खयुता महाभागा HAA Waa | my Leap 1 reine ~ | 1 Se merci ie ptr Tre a mc crs प्ट GAZ: | [बतखर्ड' २२अध्यायः | गुणांश्च पुचलाभस्य क्षतासनपरिग्रहा। कथयामास HAAN नान्नानन्तत्रतं शभ 6 मे वेय्युवा च । योऽयमिशे्ररः कामं नासे वा acafaat | स त समाराष्य fag सम्यगाप्रोति केशवात्‌ ॥ aaa खगिरक्छत्तं यख्िन्दिने भवेत्‌। तस्मिन्‌ सम्प्राश्य Waa खाला नियतमानसः) एषयेधूपेस्तथा गन्धेरप्रहारे्च शक्तितः । वामघादमनन्तस्य पूजयेहरवणिनि ॥ अनन्तः सव्व कामाथ अनन्तं भगवान्‌ फलं $ ददात्वनन्तच्च पुनस्तदिदहेवन्यजन्मनि | अ्रनन्तपुरयो परचयङ्करोत्ये त हाव्रतं | auifwataaraia Fe A पुरषोत्तम? दत्यचायाचचनं तस्य यथाविधिविधानतः | समाहितमना war प्ररणिपःतपुरःसर। विप्राय efaureaieaa: प्रौयतामिति। LUST तथा नक्त भुच्छ्ोयात्तेलवजितं ॥ aaa पुरुषं पौषे पुष्यं भगवत्‌कटि | SIMMS कर्तव्यं गोमरूचप्राशनन्ततः] अनन्तः सव्व कामानामिति वोच्वारयेत्‌ पनः॥ सुच््लोत च तथान्यायं वाचयित्वा दिजोत्तमान्‌। माघे मघासु Ae ATH देवस्य पजयेत्‌। छन्धच्च फार्गुनोयोगे फाल्‌गुने मासि.भामिनि। व्रतखरड'२२्अध्यायः] इदमाद्रिः। eee चतुष्वतेषु मासेषु गोमूतप्र। प्राने मत tt ब्राह्मणाय तथादद्यात्िलान्‌ घान्धकमेव च | देवस्य दक्तिणं स्क ध्येते चित्रासु 8 जयेत्‌ ॥ तयेव प्रःशयेचाच पञ्चगव्यं महौपते | किञचित्त कनकद्दयाद्‌यावन््रःसचतुषटयं ॥ aura तु विशाखायां वादु संपज्य gia | तथेव दद्यात्‌ कनकं AK YRla वाग्यन; ॥ ज्य छासु च कटि gas मासि शभव्रत। MAST aAMMS क्यात्‌ पाद्‌ाचन विभोः॥ पाद्दयन्तु खवणे श्रावणे मसि पूजयेत्‌ | wa विप्रायदातव्य प्राण्योत यथाविधि ॥ alfa कान्तेषु मासेषु प्राशनं SAA a I सुखं प्रौहपदायोगे मासि भ; द्रपदेऽचयेत्‌ ॥ तददेवाश्डिने पूज्य छद्यच्चाशिनोषु च। कुाव्समादितमना स्नाने प्राणनमच्ंनं। भ्रनन्तशिरसः पूजां alfa के छत्तिकासु च । यस्मिन्‌ यस्मिन्‌ दिने पूजा तत्र तत्र दिने दिने ॥ नाम तख तु जप्तव्य ज्लुतःप्रसलितादिषु | छ ते नानन्तसुदिश्य yar मासचतुष्टयं । ततश्चतुषु मासेषु मधुना कुलनन्दन | तोरण वणादौच होमो मासचतुष्टयं | प्रशस्तः सव्व मासेषु हविष्यान्नेन भोजनं | णवं दाद्शभिम्मासेः पारणचितयं भवेत्‌ । Lt lit ti bs i LT "ज चमाद्रिः | [त्रतखर्ड २९३अध्यायः। व्रतावसानें Wat सौवण TCAs a राजतं सुषलच्चेव तत्परां विनिवेदयेत्‌ | एष्यधुपःदिनेषेद्यं पूजा काथ्या यथाविधि ॥ Aiea पीटोपरि हरि मन्तं रेभियंयाक्रमं। नमोऽस्त्वनन्ताय fat: पादौ स्वासने aa: tt शेषाय जानुयुगलं कामायेति कटि नमः | नमोऽस्त वासुदेवाय पाश्वे संपूजयेदरेः । सद्कषरणायेत्युद्रं भुजौ सव्वस्वधारिणे | करटं DACA दं सुखमिन्दुमुखाय च॥ SAY मुषलब्ेव स्वनाम्ना पूजयेद्बधः । एवं संपूज्य गोविन्द्‌ सितवस्व विभूषितं | च्छचोपानत्समायुक्र' खम्दामालङ्कतं तथा ॥ adaeaar: पूज्या नत्तत्राणि च सव्वंश्‌ः(१) । सोमं नत्ततराजान मासान्‌ संवत्सर तधा ॥ नच्तत्रदेवतास्त॒ भविष्यत्पराणात्‌ | खनो यमराडम्निधाता चन्द्र उमापतिः। afefaataafa: सपाः पितर भगोऽय्यमा॥ =~ र विस्वा aaa a शक्रागनो faa va च। aaa निक्छेतिस्तोयं fad देवाः Faatafe: ॥ वसवो वस्शस्तस्मादट्‌जोऽदहित्रघ्नप्रूषरी | नच्चटेवता Bat कथितास्तव देवताः ।॥ दादा घटाः काय्योः सतोयाशान्नसंयुताः ॥ gee (१) नचत्राणि ager इति पुकान्तर प्राठः। ्रतखर्ड 22 WAT: 1] Sali: ९९ एवं संपूज्य विधिवदेवदेवं जनाद्‌ नं, AIT पूजयित्वा तु वस्तेराभरणेः शुभेः। UH AT वैद्बेदाङ्कपारगं सयतेन्द्रिय' पुराणज्ञः धम्यविद्‌ अव्यङ्न्तु fara | तस्य देय समम्त' aga: प्रोयताभिति | अन्येषां award 2a वित्तानुसारतः ॥ अनेन विश्विना ue व्रतद्चैतत्‌ समाप्यते | पारिते च समाप्नोति सव्वानेव मनोरधान्‌ ॥ yaa भिर्वित्तकामतयदारानभौ भिः | Wades Ha Ma aT! | TATA महाभागे Ya स्वस्त्वगनं at 2 अनन्तव्रतसयुक्तं मन्वेपापप्रणागनं। तत्‌ कुरुष्वेतदेव तं तरतं शौोलघनप्रदं। वरिष्ठ" सव्वलोकस्य यदि yanatw an दति विष्ण धर्ममोत्तरोक्तमनन्तत्रतं | 000 पुरूरवा Sars | खतुमिच्छामि भगवन्‌ Saad महाफलं । Taam भविष्यामि दिव्यरूपधरो qa | afaaara | तदेतद्‌तकामेन अच्िष्यौ ब्राह्मणौ WA | ज्योतिषं योऽभिजानाति इतिदहासांश्च क्त्खशः 1 तत्‌ प्रदिष्टेन विधिना पादाचपरतिक्रमात्‌। & 9२ ware: |) [व्रतखण्ड'९ २ अध्यायः । फारगुन्यां समतोतायां कष्णपत्ता्टमीतु या, समरूनांतांतु daa ad wala मानवः | उपो षितव्य' aaa नत्तचस्य च cad | वरुणद्च तथा we पूजयेद्विधिना नरः ॥ पूजयेद्‌ वदेव भगदन्त' Ware a उपोष्याङ्गानि देवस्य WaT च पूजयेत्‌ । ततोऽग्निहवन कत्रा पूजयित्वा तथा qa । उपवासम्त्‌ कत्त व्यो fealasefa पाथिव॥ उपोष्य wa विगते स्नात्वा संपूज्य केणवं | छवा ग्निहवनं शक्तया पूजयित्वा हिजोत्तमान्‌॥ ह विष्यात्र्चभोक्तव्यं खण चाङक्रमं मम(१)। पादयोः कथितं मूल प्राजापत्यन्तु ASAT: ॥ afaal जानुयुगलं wager च पाथिव। सहिते द तथाषाढे गुद्यच्च सहिते we ॥ पूर्वोत्तरे च फारान्यौ कत्तिका च करिभंवेत्‌ | पायोः कुत्ियुतयो न चति तयं समं | उभे प्रोष्ठपदे राजन्‌ रेवतो च तधा waa ॥ उरोऽनुराधासु ws धनिष्ठासु प्रकौत्तितं । भृजो ज्ञ यो विशाखासु इस्त प्रोक्तौ तधा करौ | अङ. Ba तथा प्रोक्ता राजसिंह yaa सौ । VAT नखाः प्रोक्ता ज्येष्ठायां नूप कन्धरः ॥ Bat खवण्णे TAN सुखं ys प्रकौल्तितं। (१) ष्टण, IFAW मम दृति प.उान्तरं | रतखण्ड'२२अध्वायः |] देमाद्रिः। दत्ताः खातौ शतभिषा ea: प्रोक्ता तथधाद्रप॥ मघायां नासिके प्रोक्ते खगभोषं च लोचने। चिता ललाटे विन्या भरख्याच्च तधा शिरः ॥ शिरोरुदास्तधाद्रासु ब्रतस्यान्ते नराधिप) चेत शक्तावसाने तु aa परिसमाप्यते । यद्यन्तरायं न भवेत्‌ fafa निमित्तजं t AFARAY सकलसत्तवगं सुपोपितः 4 व्रतान्ते प्रयतः STAT पूजयेनमधुसदनं। चन्दनागुरुकप्‌ रखगदभः UREA! ॥ SAHA, सककोलेलवङ्गकुसुमे स्तथा ॥ बालगुग्गुलनि्य्यौसेः पुष्यः कालोडतेः WAL | धूपो ALITA चन्दनेन सुगन्धिना | दौपाश् देया राजेन्द्र तिलतेलेन पूरिताः ॥ STA AUG काया महारजतरच्जिताः। नेवेवयञ्च तथा काय परमान्नेन पूरिण॥ SUT ACA ATA च गुडेन च। सितया च तथा wa! फलेमू सैर्यथाविधि ॥ sue: पानकेद्येः शोत ख सुगन्धिभिः ॥ लवणस्य च पात्राणि ane निषेदयेत्‌ | सव्व वोजानि राजेन्द्र भूषणानि च शक्तितः | महार्दि च वस्ाणि भक्तया प्रयतमानसः तददिष्णोः परमिलेवं होमः कार्य्यो हय नन्तर' y दादशातच्तरको मन्तस्वोशूदरेषु विधौयते) ( ठ्भू ) RAifE: | [बतखण्डररअष्याथः | eanifandgary जइयात्तिलतर्ड. लान्‌ ॥ ततस्त दच्तिणा देया गुरवे Baas | armfa च प्रदेयानि aaa विविधानि च। तुरगाणि च सुख्यानि रलानि विविधानिच ब्राह्म णस्त. पिता Wat रूपसत्रप्रदश कः । रुप्रसोभाम्यंलावखलजन्य्ारोख्यप्ररायकः॥ राज्यस्य वा हिजत्वस्य बहवित्तस्य cram: t न तस्य निष्कतिः शक्ये गन्तु दानेन yica I गुरुप्रसाद waa slau A | कारण) तस्मात्‌ प्रसादमाकाख द्र पसवरप्रदशकः ॥ अवश्य तस्य CAN तप्‌ णन्तु भाजन | चतुःपलन्तु कांस्यस्य सुवण काञ्चनस्य च | ततः पर भोजनोयाः ayaa दिजपुङ्वाः | लव णन्नौरदध्याज्यगुडभकत्तसितोङट ॥ भोजनं पानकोपेतं पश्वादेया च दत्तिणा। AMY ` प्रदातव्य ब्राह्मणाय नवं शभ । बडम्‌ल्य शभच्चेव महारज तर्जितं ५ सप्त वोजानि देयानि लवणं कुप्यमेव च। यच्चान्यदप्यभोष्ट स्याच्छचोपानद्मेव च। वित्तणाटय न कत्तव्य Bata महोपते। अवश्यदेयं सत्ेऽस्मिन्‌ तप्‌ णन्तु भाजनः॥ "चतु;पलन्तु कांस्यस्य सुवण' काञ्चनस्य a! व्रतेनानेन चौण्न Seah दिवं व्रजेत्‌ ॥ व्रत खर्ड'२२अध्यायः '] Pare: | ६७५ data सुचिर कालं मानुष्ययदि araa | राजा भवति Pas area at धनान्वितः ॥ कुले महति सश्मूतो रूपेणाप्रतिमो भूवि । siti महदाप्नोति सौभाग्यमपि dud 1 aaa बुदिमेघाच्च मतिं घमऽतिशाश्तौ | संप णे चन्द्रप्रतिमः सव्व सत््ववशंकरः ॥ नय भवति राजेन्द्र नारो चाप्सरसां TAT ! सुभगा WAI च लावख्छगुणसंयुता | ASIA बहुधना बहुभूषणसयुता। भतु घात्यन्तद्यिता लोके ख्याता च सद्गण; | नित्यारोग्यवतौ कान्ता सव्व दोषविवजिंता\ चन्द्रानना नोलसरोजनेचा चेलोकयकान्ता पतिवल्लभा च। भवत्यवश्यं सुभगा शूगोल AAG AA यशसा खय च) इति विष्ण gratin रपस चतरत | 000 sy नोरजनदिधिः। राम SAA | नोराजनं विधिन्त्त्तः सोतुभिच्छामि aaa | * ९ ™ rf नो कथं काय्य नरन्द्रस्य शान्तिनोराजनो प्रभो ॥ पुष्फर उवाच | ६७९ SANE: | [तरतखशर्ड २रेग्रध्यायः। पर्व्वौत्तरे तु दिग्भागे नगरे च मनीदरे (१) | विस्तीण' कारथेद्राजन्‌ सुमनोहरमाखमं I HSU A कुशास्तोण' पताकाष्चज शोभितं । तोरणति तयं तच्र WITS कारयेच्छभ ॥ काय्य षोड़गदहस्तन्तु तौर णन्तु TWAT | व पुल्य' WEA तथा Ala गन्तम ॥ तोरणद्िणे भागे तत काच्यमधाञअ्मं | देवताच भवेत्तत्र ताम्निहवनक्रिया ॥ अषटहस्तायतोत्‌से धसुल्म कानान्तु वामतः | काय्यं भत्रति शष्काणां कूटं wages ॥ Cate Raa गतग्रय्यि मनोरमा | मध्यमे तोरणे कु्यीच्छतपाणान्तु मध्यगां | छादट्थिता FAIA र्दा संच्छादयेत्युनः॥ AMZ APA वन्नः ward सव्वजन्तुभिः। न लङ्का च यावकव्छात्‌ प्रथम राजहस्तिना॥ चि त्रान्त्यक्ता यदा स्याति सविता प्रतिपद्यते, ततः प्रतिकन्त व्या यावत्‌ खाती रवि स्ितः॥ SAA व्रत्य देवाः पूजनया दिजोत्तम। व्रह्मा विष्णुश्च शम्भ शद्रखेवानिलानलौ ॥ विनायकः कुमारश वरुणो धनदे यमः। विष्व Sat महाभागा उच्चेःखवस एवं च ॥ a =. a न, द १ १) पृष्व WU तु ant देश त॒ सुमनोष्दर «fa पुस्तकान्सरे पारः, AAS २२ब्रध्यायः 1] दमाद्धिः । goo अष्टो महागजाः Tara at नामानि A wT | कुमुदे रावणः पद्मः yusatisa वामनः ॥ सुप्रतोकोऽच्छनो नोल एतेऽष्टौ रेवयोनयः ४ पूजा कार्य्या ग्रहर्ताणां तथव च पुरोधसा | ततस्तु जइयादच्को पुरोधाः सुसमाहितः । यथाभिहितदेवानां मन्तेस्तल्िङ्गसंज्ञकोः ॥ तथा च मन्तहोनानां प्रणवेन महाभज | समिधः चौरत्ताणं तथासिदाथकानि च। इत्वा च कलशान्‌ FATT Weary घनसंयुतान्‌ ॥ पूजितान्माल्यगन्धे्च वनस्लिविभूषितान्‌ | पञ्चरङ्गकसरत्रेण कुय्यीदस्तयुगन्तथा | भल्ला तश्यालिसिदाथेवचाकुष्टप्रियङ्कवः ॥ तीरणात्‌ पिमे भाग कलशः yaad: | खातः सच्रापनोयाः सयन्तपूतेर्मजोत्तमाः ॥ तुरगा महाभाग TAT त्य ततस्त तान्‌ | ततोऽभिषेक नागस्यतथा तं तुरगस्य च | अत्रपिष्ड ततो टेयमभिमन्ता goat | तस्याभिनन्दने राज्ञो विजयः परिकीर्त्तितः ॥ त्यागे च तस्य विज्ञेयं महद्वयसुपस्थितं | निष्कामथेत्तोरणेस्त ततोहि प्रमं गजं ॥ ततापि प्रथमं राम afufaa गजोत्तमं | तस्यादौ तुरगद्चेव राज्ञो मरणमादिशेत्‌ | eid तत्र विन्नयं गोखरोष्टस्य लङ्घने ॥ ६७८ Safa: | [त्रतखश्डररे्रध्यायः। लङ्न्येदामपाटेन यदितं su HBT । राज्ञो पुरोहितामाव्यराजयपुचाहितं भेत्‌ ॥ UAT मरणं त्रूयादाक्राभेत्तं पदा यदा। रान्नो विजयभाचष्टे लङ्येदच्िणिन a | राजरस्तिनि निष्कान्ते सान्वयस्य wal भवेत्‌ t निष्कामेयुस्ततः सव्व ATS सखास्तोरणे गजाः ॥ ततोऽश्वा सुमहाभाग AAW नरसत्तम । awa ध्वजदेव राजलिद्धगानि यानि an ततस्तु तानि Tara पृजयेद्‌ायुधष्नि च | पच्चरङ्कमते ग यास्ताः प्रतिसराकछताः॥ दृष्यादूेति मन्तं ए निवक्नौयात्‌ एरोहितः | सर्वषां वरप नामानान्तुरङ्ाणाच्च भागेव ॥ BUTI ते नेयाः कुच््रा स्तरगेः सदह । स्वातिस्थः सविता यावत्‌ तावच्छालासु संख्ितान्‌॥ पूजयेत्‌ सततं राम माक्रोशेन्न च ताङ्येत्‌। aafasifa सर्वणि पूजयेदास्रमं Vet | पजयेदरुणं faa तथा सुविधिवदहिजान्‌ । भूतेज्या च तदा कार्य रात्रौ बलिभिरुत्तमेः।॥ NAM TANT स्यात्‌ पुरुषैः शस्रपारिभिः । वमेतामाखमे faa’ सवत्सरपुरोहितो। अण्ववेद्यप्रधानश्च तथा नागभिषम्बरः | aifaag तथा भाव्यं ब्रह्मचारिभिरेव a I स्वाति व्यक्ता यदा सूर्य्या विशाखां प्रतिपद्यते॥ द्र तशव ण्ड 23a: || देमादरिः अनङग्यौ दिने तस्मिन्‌ वादनन्तु विशेषतः | पूजिता रजलिङ्गाख्च HAA नरहस्तगाः। हस्तिनन्तुरगं छत्रं खड्चापञ्च दुन्द्सि ¦ ध्वजं पताकां waa चापन्तमभिमन्तयेत्‌ ॥ अभिमन्ता ततः स्वान्‌ कुर्या त ङुच्ञरधूगतान्‌ | कुच्नरोपरिगौ स्यातां सवत्सरपुरोदितौ॥ श्रश्ववेदयप्रघानख तथा नागिषम्बरः। ततोऽभिमन्विव राजा समारुह्य ATEA ॥ निष्कम्य तोरणेनगमभिमन्तितमा सहेत्‌ | तोरणेन विनिष्कम्य कुर्य्यात्‌ सुरविवन्नि तं ॥ बलिं विभज्य विधिवद्राजा FATA: रतेरलङ्कतः सववर्वीज्यमानशच aa: | उन्मकानान्तु निचयमदौपितमनन्तरं, राजा प्रदचिणोकुय्यांत्‌ तौन्‌बारान्‌ सुसमाहितः) चतुरद्गबलोपेतः सव्व सैन्यसमन्वितः। ut: किलिकिला शब्दः सव्वं afeafaaa: । ` बलितेख पदातौनां er तान्‌ मनुजीत्तम ॥ एवं कल्ला WH गच्छे द्राजसेन्यपुर.ःसरः। जनं संपूज्य च महतसर्व्व मेव विसजयेत्‌ | शा न्तिर्मौराजनास्येयं कर्तव्या वसुधाधिपः ्तंमचड्धिकरो राम नरकुच््ररवाजिनां | धन्या यशस्या रिपुनागशनौच सुखावहा गान्तरनुत्तमा च! & 9 &८ 9 देमाद्धिः | [त्रतखण्डरे २अध्यायः । काथ्या कृपेराष्विह्वदिदतोः सव्व प्रयतनेन WYTATT । दति विष्ण धर्म्ोत्तरोक्तो नोराजनविधिः। es os fh BIA Satya! उपवासेष्वगक्तस्य aca फलमिच्छ तः | अनम्यासेन रोगहा किमिष्टं aaqaat | पुलस्त्य उवाच | उपवासेष्वशक्तानां नक्तं भोजनमिष्यते | यस्मिन्‌ ad तदप्य yaat वे व्रतं महत्‌ ॥ आदित्यणयन नाम यथावच्छङ्कराचनं | येषु नक्तचयोगेषु पुराणज्ञा प्रचक्षते ॥ यदा हस्तेन सप्घम्यामादिव्यस्य दिनं भवेत्‌ । axa वाथ संक्रान्तौ सा fafa: सव्व कामिक | उमामहेश्वर स्या चप मच येत्‌ सुथनामभिः। सगथ चां शिवलिङ्च्च उभयं पूजयेदतः। उमापते रव्व्वोपिन मेदः कवचिदिष्यते। AMAA GI SWS TT समचेयेत्‌ ॥ अचां प्रतिमा । उमामहेश्वररूपन्तु प्रयमक्लष्णाषटमोत्रतोक्ता वेदितव्य | हस्तेन Waly नमोऽस्त पादा वकाय Fay च Wass | त्रतखरड'२२अब्यायः |] Pari: | ce स्वातोषु we च सुरोत्तमाय धाते विशाखासु च जानुरेशं।॥ AMAA नमोऽस्त, पूज्य MUTT टेवसदस्रभागाः | जेगछास्वनङ्गाय नमोऽस्त YU भिन्द्राय सोमाय करिद्च मूले | पर्व्वोत्तराषाद्युगे च नाभि त्वष्ट नमः सप्तुरङ्माय | तोच्णां गरे तु Wad च वत्तः aa धनिष्ठासु विकत्तनाय। वच्चसखल ष्वान्तविनाशनाय जलाधिपक्तं प्रतिपूजनोयं | ज लाधिपनक्त, शततारा) पर्वोत्तराभाद्रपददये च वाइ नमखन्द्रकराय पूज्यो ॥ VAAN करदये च सपरूजनोयं gq रेवतोषु। नखानि पूज्यानि तथाऽशिनोषु नमोऽस्तु सपाश्वधरन्धराय ॥ कठटोरधास्नभरणौषु TS दिवाकरायेत्यभिपूजनौया | ग्रो वाभ्निक्क्तेऽधरमम्ब॒जेषं संपजयेद्ारतरोहिणौषु । ( se ) ९८२ Safa: | [वतखण्ड'२३अध्यायः। अग्निक्डच्तन्तु aaa | सृगोत्तमाङ्ग दगनाः परार संपूजनौया Bla नमस्ते | नमः सविते इति wet तु नासाच्छिपूज्याघ पुनव्वसौ च ॥ WIETASY ! ललाटमम्भोरहवल्लभाय पुष्य ऽसकान्वेदसंमौरणाय। साप्य ऽय मौलिं विवुघप्रियाय मघासु कणाविति wats: | साप्य WATT | qary गीत्राह्मणनन्द्नाय नेत्राणि aysaaaifa ग्नो; | भयोत्तराफ़राल्‌गुनिषु wal च विश्वेश्वरायेति च पूजनौयी | नमोऽस्त WMT NTT कपालसपन्ट्‌ धनुद्धैराय। गजासुरानङ्गयुरान्धकार विनाशस्ूलाय नमः शिवाय) इत्यादि चास्तसि च asa नित्य विश्वेश्वरायेति शिरोऽभिपृज्य ! भोक्तव्यमतेव मतेलमन्र- ममांसमक्तारमभक्तशेष ॥ AGW Ramya: |) दमाद्रिः। ६८९ दत्येवंविधनक्तानि कत्वा दयात्‌ पुनहंषरं। ालेयतर्डलप्रस्यसुङ्म्बरमये छतः । उडग्बरमये, AAA | संस्थाप्य ara विप्राय सहिरण्य निवेदयेत्‌ | सप्तमे वस्त्रयुग्मच्च पारणे तधिक भवेत्‌ ॥ चतर्दये तु संप्राप पारणे भारताब्दिक्े। आब्दिकं, diana) सप्तविंशत्या ferat केकम्मारणमिति- संवत्सरे ्रष्टादगदिनाधिके चतु्शपारणानि भवन्ति, MAM AISA गुडत्तोरष्टतादि्मिः। HAT ABA पद्ममष्टपत्रं सकणिकं | शएमष्टाङ्ग लं तच्च पद्यरागद्लाज्िलः। शय्यां विलक्षणां कत्वा fausafaafe at | सोपधानकविशामां स्वास्तोणां चरणा ख्यां । पादुकोपानहच्छत्रचामरासनदरपणः। भूषणेरपि संयुक्तां फलवस्तानुक्तेपनेः ॥ तस्यां निघाय तत्‌पद्यमलंसत्य aaa’ | कपिलां वस््रसंयुकामतिगोलं ocfaar रोप्यत्तुरां ₹हेमख्ङ्गो' सवस क्!स्यटोहनौ' | cata Tuas वह्किनाभिविलङ्गयेत्‌ i ये वादिव्यशवनमशून्यं तव WAI | alert त्या faat tar aa A सन्तु सिडयः!॥ यथान देवाः Haifa त्द्न्यमनघं विदुः | तधा मामुदराशेषदुःखससारसागरात्‌। gts हेमाद्रिः | [त्रतखेर्ड २२अध्यायः। ततः nefatia प्रणम्य च विसजयेत्‌ ॥ शव्यासनादि aaa हिजस्य भवनं नयेत्‌ | दद्‌ मद्ापातकनमित्रराना aqad वैद विदो aefe | न बन्धुपुतेण धनैवियुक्तः चल्लोभिरानन्दकरःसुराणां। नाभ्येति Dai ay दुःखभगोकं यावाप्य नारो HUSA भक्तया ॥ इति पठति णोति ara इत्थ हरिशयन पुरुडधतवल्लभः स्यात्‌) अपि नरकगतान्‌ पितुनषेशेषा- नपि दिवमानयतोह यः करोति॥ दति पदम पुराणोक्तमादित्यश्षयनव्रन | --८०(४00---- अश्िन्यामहोरात्रः वा दिनानि तिः fas रोगो जायति) अण्ठिनौ देव ते। न्षौरलड्ड कनेदेद्य। नौलोत्मलपुष्पं। ga- pyr: । देवस्येति waa | dere समिधो Susy ek भरण्यां WAT: wes ari दिनानि wafsata: | यमो देवता | ग॒ड्पुपाकनेवेययं । छष्णसुरभिपुष्यः । सुरभौ तुलसी । AMIS. । तप्रस्बकं यजामह इति पृजामन्तः | छतमघु- तिलान्‌ जुहयात्‌ ॥ ₹२॥ व्रत खण्ड'२२अध्यायः} दमाद्धिः। ६५ afaarat दिनानि ani afte aa! wed aaa । युधिकापुष्य | afta aq । पनन्तु मां देवजना इति पृजा- मन्तः | तं प्रधानद्रव्य \॥२। रोदिख्यां दिनान्यष्टौ | प्रजापतिदैवता। क्तौरोदनं नैवेद्यं । कमलपुष्पं । सरलो धूपः । नमो ब्रह्मणे नमोऽगस्तय इतिमन्चेण पूजा । सव्वेधान्धानि जुहयात्‌ ॥ ४ ॥ सृगशिरसि पञ्चदिनानि सौमो देवता पायसनेषेदय । कुङ्‌ मपुष्य। दशाङ्गोधूपः। नवोनवो भवति इति पजामन्तः | गव्यं पथः प्रधानदरव्यं।५॥ आद्रीयां Bar| स्ट्रोटेवता) सौदहालिका aad) वौरि कापुष्प sta: qa, । नमः शम्भवायेति पजामन्तः | मध्वाज्यं प्रधानद्रव्ये॥&॥ पुनवसौ दिनानि सप्त। अरदितिद्वता। गुडोदनं नैषेदयं । मल्िकापष्य'। मलयजधुपं । अरदितिद्यौँरदितिरिति पूजामन्तः। WAALS प्रधानद्रव्य ॥ © I पुष्ये दिनानि wa) गुरुदवता | खण्डमर का As | aes. ga | षठिकाधुपः | छहस्यते अरतौयेति wad पूजा । तपाय- सम्प्रधानद्रव्यमिति॥ ८ ॥ saat दिनानि en नागारेवताः। sadder | अगस्ति UG! छतशगुंडधूपः | aaa सप्यभ्य इति पूजामन्ः | efrga- Vifaat प्रधघानदरव्य' | € ॥ मघायां स्यः सन्देहोवा। दिनान्येकषि' शतिः, पितसे- देवताः | BATU AI । चम्पकप॒ष्य । गुग्गुलधूपः | पितु- ९८६ watz: [व्रत खं ग़ VPA: ॥ स्त॒म्तषसिति पजामन्वः! तिलतण्डुलमधु छतपाताणि war ARH | १०॥ aay पाग्युन्यान्दिनानि पञ्चदभ । भगोदेवता ! ATTA | श्वेतकरवौरपष्यः । विल्वफलधुपः। यन्मे गभवसतदूति TAT मन्तः ¦ सप्तत्रोदयः प्रघानद्रव्य॥ ११॥ उत्तरफरगन्यान्दिनान्येकविशतिः। अयमा टेवता। ar शाल्योदनं AIG! रक्तोत्पलपष्य | छटतगुग्युलुधूपः | wy रुद्रे भिवसुभिरिति पजामन्तः | प्रियङ्गवः प्रधानद्रव्य॥ १२॥ हसते सतुगसन्देहो। दिनानि पञ्चदश! सविता टेवता। अपृपनेवेदयं | रक्तकरवौरपुष्प । शजल्ञकोधुपः ! उदुत्यच्छातवेद्‌- afafa पृजामन्तः । दधि प्रघानद्रव्यं॥ १३२॥ faarat दिनानिदण। ष्टा देवता । मोदकानेदेद्य' जया- पष्य | युधिकापसकधुपः। fad देवानामिति पजामन्तः। चितीदनं प्रधानद्रव्य॑॥ es खात्यां मासा नवधा | वायु्दवता। दध्योदनं Aaa | द्मनकपुष्य | कऊष्णागुरुघूपः | सनः पितेव सूनव दति पूजा मन्तः | छतयवान्रद्रव्य ॥ १५॥ विशाखायां दिनानि पञ्चविंशतिः carat aq} घ णकोनेवेदयं | तुम्बरिका पुष्य! देवदारुधुपः | इन्द्राग्नौ आगत मिति asa: | दध्यीदन प्रधानद्रव्यं॥ १६॥ अनुराधायां दिनानि en! मितोदटेवता। कशरानेवेद्य' । पोर्डरोकपुष्य । चन्दनसिद्धरसधुपः। देव सवितः प्रसुव यन्न मितिमन्तः। सूरणकन्द प्रघानद्रव्य | to | त्रतखण्ड'२३अध्यायः।] PAZ: | ६८9 aera दिनानि पञ्चदश | इन्द्रोदेवता 1 चितोदनने षया | HAUT ALT: । पाटलिकापष्य' इन्टरोमायाभिरिति पृजामन्तः | सूरर्कन्दस्ूल प्रधानद्व्यं॥ १८ ॥ सूते सतुः। रात्तसो देवता। सम्तमांससुरापोलिकानेषेद्य | कष्णसोस्बरिका पष्य । ATP TT ब्राह्मणामिनिसविधान इति पूजामन्तः | FARE: WAZA ॥ १९ ॥ प्व्वाषाठ्ायां दिनानि सप्तविंशतिः | आपो देवता । मण्डको नैवेय। weg शेलजधूपः। किञ्धेदम्बरुशेति पूजामन्तः | रत्तयालयः प्रधानद्रव्य॥ Ro ll उत्तराषाटायां दिनानि faufa: 1 व्शिटेवा देवता। विल्वपञ्चकनेवेद्य | पञ्चवख पुष्यः । बालकधूपः। fae देवास रागत इति पूजामन्तः। शल्नकोखर्डानि प्रधानद्व्यं॥ Re I saw दिनानि नव | fawe वता । न्तौरण्करातमशण्डका- वेद्य । जातोपष्य । दशाङ्घधपः। Ndidar अवन्तु न इति [HAA | THAW लाः प्रधानद्रव्य ॥ २२ ॥ धनिष्ठायां दिनानि awaen वक्षवो देवता वटवटका- aaa | शतपचिका पुष्य । छतगुगगुलघूपः | चायन्तामिह देवा दरति asta: | उड्म्वरउद्‌कोद्वानि प्रधानद्रव्य (२३)। भ्रतभिषायां दिनानि ea! qamzaat! छतवटका- नेषेय' । उदट्कोद्रवानि qa) कप्‌ रागुरुधपः। इमं मेति LATA: । उद्‌कोद्धवानि पुष्पाणि प्रधानद्रव्याणि च (२४)। प्व भाद्रपदायां गल्युः। अजेकपाद वता । दधिसर्पिषौ ~ ॥ ay aaa! शतपत्रपुष्य । | aaqinfeaa: | शमग्निरग्निभिः gcc Saltz: | [ange 227g | करदिति पृजामन्तः। ग्राम्य पृतिकरच्् कुष्ाण्डखरण्डानि च प्रधानद्रव्य (२५) | उत्तरभादपदायां दिनानि पञदश । afeaul देवता । गुड- पललभौतोदनं नेवेद्यं। कपु रपच्चिका ya) छतनिम्बपत् भूपः । विष्णुर्योनिं कल्पयतु इति पूजामन्तः । आद्र मैवरुधिर- दग्धानि प्रघानद्रव्य (२६) रेवत्यां दिनान्यष्टौ । पूषा देवता । तिललङ्डुकपिन्याकं Fa | HUTT । गुग्गुलधपः। हंसः शचिषदिति पृजामन्तः। छतदुग्धानि फलानि जुह्यात्‌ ॥ २७ ॥ यथोक्तब्राद्मणेन यस्य AMAA यदुक्त द्रव्य तदृटोत्तरयत जुह्यात्‌ गायता | ययोक्तविधिरेकेषः सयः प्रत्ययकारकः । नत्तचतपणं यागस्तथारोग्यः प्रयच्छति॥ पृव्वेसमिद्नि (१) fea: च्तौराज्येना्ट रतं जुह्यात्‌ | दादशनामानि मण्डले लिख्य पूजयेत्‌ | मध्यं नत्ततरेवतां प्रति- छाप्य वस्वयुग्म न afeai बाद्भणय दयात्‌ ' रोगशान्तिभिवति | इति गरगँक्तो नक्तचददोमविधिः। ee 9 ऋणे माकंण्डेय vary | afaq हि जनन यस्य जननन्तस्य तत्‌ स्मतः | ©. | 9 संर | < चतुथे मानसं तस्मादथमं Radia ॥ eee (१) सव्व सिद्धिरिति पुखलकान्तरे gra: | व्रतखर्ड'२रश्रध्यःयः}] देमाद्रिः। ace. wagifaa षोडशं स्याडिश समुदयं AA | वैनािकन्त न्त्र HAAS WAST ॥ षड़्‌ नत्त पुरुषः सव्व प्रोक्तो महोपते | राजा च नवनचनो नच्ततरतितयं TMT" निल्यमम्यधिकं षड्भ्यः पाधिवस्य कृपोत्तम | देगोऽभिषेकनचत्र जातिनत्ततमेव च। जात्यायितानि aata नत्तचाणि तवानघ il पव्वातयमघाग्नेयं ब्राह्मणानां nalfa at पौष्ण मेतं aur fear प्राजापत्यं तथा स्मतं | aifequifan हस्त शृद्धाणामभिजित्तथा। सापः विशाखा aaa बेष्णवच्च नराधिप। प्रतिसी मोद्धवानाञ्च सवषं परिकोत्तितः। दह देहाथेदहानिःस्यात्‌ waa तुपतापिते॥ AU कममणां हानिः Gter मनसि arag मूत्तिद्रविणवन्धूनां हानिः साङ्ातिके ते ॥ aaa सासुदयिके मिचग्रल्यायंसंक्तयः। वेनाशििके विनाशः स्याद्‌ हद्रविणसम्दां | पौडिते चाभिघेकक्तं राज्यश्शं विनिहित ॥ Sua पौडिते पीड़ा देयस्य च पुरस्य च। Hea जातिनचरे ua व्याधि' विनिदिेत्‌ । ग्रहर्चजातां समवाप्य asi पूजातु काया विधिना aaa t aa: शभ विन्दति cafes ( ८9 ) ee ea 11> AL ee a ^ > ९९० देमाद्धिः। [वरतखस्डं२२अध्यायः | विधूतपापः पुरुषः सदेव । THA A तु WEA Wag AND तु | खेतगोः पयसा BE सरातव्य कुशवारिणण॥ जन्प्रनत्तच्रपौडायां तस्मात्‌ क्रेशादिसुच्यते | शिरौषचन्द नाश्त्थनागदानाम्बुभिनरः ॥ खातस्तर मानसे तप्तं तस्मादीषाददिसुच्यते | सिदधाथेच्च frag ख शतपुष्पां शतावरौ ॥ स्रातव्यमन्भसि fant aaa aa wifes | प्रियज्गविल्वसिद्ाधयवाण्वत्यसुरा द्वया ॥ सुराद्धा, देवदासः | चन्दनोदकसंयुकतं Bla साङ्गतिकं fea | WAUAUTA: सानं तथासिडाथकेः Wa: ॥ पौडिते ससुदायत्त पु षां कल्मघनाशनं | दषश्द्महतस्रदा तथा विल्वीदकेः Wa: । शतपुष्पासमोपेतेः खान sara भेत्‌ t पौडिते चाभिषेकं सव्वरतो दकेस्तया | पोड्ति टेशनत्ततचे खद्धिः सानं विधोयते । सृत्तिकाच्च प्रवच्यामि खणष्व गदतो AF I नयाः कूलदयान्मध्यात्‌ सङ्गमातसरसस्तटात्‌ ॥ अश्वस्थानाद्रजखानाद्नोखानादिरि मस्तकात्‌ | शक्रसथानात्‌ सवस्मौकाद्रजस्यानाल्सुरालयात्‌ ॥ TAVIS AAI ठषशङ्गोच तां तथा | सव्व Tae: ज्ञातो जातिनचव्रपौडने | व्रतखर्ड' २३अध्यायः।] Wa: | ६९१ . qua किल्विषरादराजन्‌ ara काया विचारणा ॥ इदमापः प्रवहतः Glan: प्रकौत्तितः ॥ खातस्तयेवं करपचन्द्रपश्ात्‌ सखतरपनम्प्कवोंत जयोपदिष्टः | पोड़ाकरस्याथ ततस्त कार्यों नत्तचयागो विदितो यथावत्‌ ॥ पोडाकरस्याघ AA कार्ययो पुजा ग्रहेन्द्रस्य नरन्दरचन्द्र। तं पूजयेदाप्यथ चन्द्रयुक्त ततः स दोषान्‌ सकलान्‌ जदह्ाति। इति विष्ण धमीत्तरोक्ता नवनक्चश्नान्तिः। ~------60(}00 मनुरुवाच ! यदौच्छसि सुभत्तारमिद जश्न्यथापरे | कन्या कु्यान्रपञ्े्ठ विष्णुना कथितः ac ॥ सव्वं पाप्रर पुण सव्वकामफलप्रद्‌' | उमामहेश्वरं नाम कत्तव्य' विधिना यथा ॥ प्रोाश्िने AUT मासे खगे भाग्यऽधवा सुने) मेत शाकरेऽथवा RS अष्टम्याच्ाथ शाङ्रे॥ MSt भाद्रपद मासः | खगो wala | भाग्यं gay फाल्गुनी | AA AICI! WR AB! wet आदर! पुव्वऽहनि सपत्नौकं ब्राह्मणं THIET | THN नरं AM सव्व धरत्रताज्वितं | cree ele 4 ~ ॥ ६९२ देमाद्रिः। [व्रतखण्ड२२३अष्याय;। आमन्ता Wa WEN प्रातः कास्त्वनुग्रहः। मुदान्ितस्तद्ा कुव्यीत्कलिदन्द (विवर्जितः 1 मघुरान्नेन भोज्यन्त्‌ क्षोरच्ुयवश्यालिभिः | सितसरत् तया रक्ते शुभे 29 च वाससी | famed aed वत्स देवटेवोप्रसाधके। Wal saat oy whes प्रतिमासु च | उमामहेष्वरप्रतिमालत्तणप्रमाणन्तु aaneredaa वेदितव्य | इत्वा दिशां बलिं ear वितानमवधारयेत्‌ | चतुरस्रं Wait गोमयेनोपलिप्य zi चतुष्क शाल्िगोघ्रूमकणंकोरुपभोभितं | दोपमालाज्वितं कत्वा Zima भोजयेत्ततः ॥ शङ्रोमं समाध्वाय थक्रास्य' uate | मद्‌ चन्दनकाश्लीररापू रागरधूपितं। जातौ पुव्रागमन्दारसि तपते स्त॒ कलितः ॥ स्थाप्य युग्म saad चिधा छत्रा प्रदकचिशं। सुखलेपेन सम्भोज्य wid तसुमेश्ठर | आचम्य WWI” द्द्यादन्धोदकं तथा | सहिरण् Way एनद्‌ त्वा च मापयेत्‌ | प्रोयतां मै उमाभरत्ता aaeaufa: पति; | उमामन्तेर चेवोमामोश्मन्तेण WES | पूजितः सव्वकामान्वे पय॒च्छत्य विचारतः | अनेन प्राप्रयात्रारौ अवियोगं एुरेष्वर | त्रतखणर्ड'२ रश्रध्यायः | BAR: | ६८२ इह जन्मनि सोभाग्य घनपुवसुखानि च । खता याति परं खानं णङ्रामासमन्वित | तत्र सक्ता महाभोगगन्देदावाभिमदहाकुले। सखदिक्छडिसम्मन्र पति fafa saa 1 AACA AWA सदा भवेत्‌। खाघनोया समस्तस्य विभवान्तः पुरस्य a! सुपत्रा जौववत्सा त आआधिव्याधिविवच्जिता | vat यथेसिनान्‌ कःमान्‌ तते पतिपृविका दिवं याति ठृप्खष्ठशङ्रोमाचका चया ॥ नरो वानेन विधिना नारं जायते पतिः। UIT, सव्व भूतानां पतित्सुपगच्छति। प्रङ्रोमाव्रतं शक्रलच्छता qa nated रत्या Sal अरुन्धत्या रोहिण्या सुरसत्तम tt कतमासौत्‌ Garay ara wafea तत्फलं tt इति Zalqualal उमाम देशखरव्रतं । ----- 000 {000 इन्द्र उवाच | कथितं uPA ad मनसि तुष्टिदं | श्रो तुसिच्छाम्यदहन्तात विष्णुगङ्रसन्नित | मनुरुवाच यथा उङेश्वरन्तात तथा कायिद्‌ aa | किन्तु पौतानि वासांसि केशवाय प्रकल्पयेत्‌ ॥ £28 Safe: [aaaw 2 gata + गन्धपुष्प तथा धूपं सुगन्धच्च HATTA । काय्यं परूजनसम्भारे ल्डकादिरसं दधि ॥ एवन्तौ पूजयिता तु प्रतिमास्यख्डिलेऽपिवा | आहत्य ब्राह्मणौ aa वैदवेदाङ्गपारगो) यती वा व्रतसम्मन्रौ जटाकाप्ायघारिणौ 1 तौ भोजयेटिघानेन शूलपाणिजनाद्‌ नौ ॥ aara विधिना वत्स सव्वेकामप्रसाधकी | sara दिण्णं fauna कतिक शङ्राय च ॥ दच्वानुब्रजतो लोको क्रमादेहत्तये ततः | भुक्ता भो गास्तथा शक्र इहायातो FLAT: 1 कुले भवति म्रूपानां सुखो प॒चादिसंयतः। qa भावाद्कवैदवक्तिः शिवे विष्णौ च शाश्वतो | योगे प्राप्य पर याति aa तत्‌ स्थानमव्ययं ॥ ईति देबोपुरानोक्तं शङ्रनारायणत्रतं। ————~ 000(}000 अनेनेव विधानेन लक्छ्मोनाराथण्त्रत | ब्रह्य गाय चिजन्तात चन्द्ररोह्िणजिन्तघा | भ{व वित्तानुसारेण सत्यमेव फलं लभेत्‌ ॥ इति पद्यपुराणोक्तं() बद्मगायचिचन्द्ररो दिणोत्रतं | 000 पयण AUTTY समादाय युवानौ लकत्तणान्वितौ | (१) देवो पुराणेक्तमिति पुस्तकान्तरे ars: | > व्रतशखर्ड २२अध्यायः || दमाद्धिः 3.3: SaaS: खर रौप्य सवस्त Gata ने ॥ भिवोमे पूजयिता तु तदिने सम्प्रयच्छति । शिव sat च faata | गिवभक्ताय fara Ufsar at Bea ar i न वियोगो भ्वैत्तस्य सुतपलोपतेः कचित्‌(१) | विमानेवी waren गच्छेच्छिवपुर द्विज; । तच भोगांशिरं war ee चागत्य (यत समडर्धनधान्यायै; प॒तमित्रसमाङकसैः। विगतारिभवेदुत्रह्य ब्रतस्यास्य प्रभावतः ॥ इति ढेवोपुरानोक्त' गोयम्मत्रतं | = OD योवा रत्नसमायुक्त गोयुगं पृजयेन्म ने । प्रयच्छति शिवोमा च प्रयतां भावितात्मनः ॥ यो वारद्नप्मायुक्तमिति पञ्च व्रतेन az विकल्यादचापि यूव्व त्रतोक्त wa कालो fanaa स सव्व पापदुःखाभ्यां विमुक्तः MEA सदा इह लोकं भवेन्यो टेहान्ते प्ररमं पद्‌ | इति टे बोपुराणोक्त' मोरलव्रतं। 0 eee (१) gaanquiya क्वचिदिति पुरूकानरेपाठ; | Saez: | [व्रतखण्डं २२यशअरध्याः। मनुरुवा च । अतः परर प्रवच्यामि रूपसौमाग्यकार्‌ T | नत्तचविधिना aa यथा aufa शङ्करो ॥ गादारभ्य मूलेन पादौ जातिसखजा Fart | पृजयेत्सोपवा सस्त नक्तचन्तेतु पारणं | aaa हविष्रा fas ara जङ्ग प्रपूजयेत्‌ । ब्राह्या रोड्िणौ। HRS SUA तिलमासान्रभोजनः। तेनेव प्रथमं विप्रानज्िभ्यां जानुनो aaa tt ॐ ow TS + Cc Heya शितपुष्पश्च भोजनं दधि शकरा, अषाटृदितये चारु बिख्पत्र ख पूजयेत्‌ ॥ = ९ => $ नतो रा्रभोजयेत्तव त्राद्मणांस्तद पारणं | THT WANG पारयन्त्या प्रपूजयेत्‌ ॥ धारयन्तो Guarana: | द्धिभक्तन्तु aaa afaarg कटि जयेत्‌ ¦ > EN A © „~~ = दमनंःशितपुष्यञख्च लड्‌ डकेद धिभोजनः। पाशं भाद्रपदायुग्मे पूजयेत्‌ कुसुमैः भितैः। त्तोराव्रदधि विप्राणं award तु भीजनं। पोण्णि कुतिद्रयं देव्याः सहकारखजा यजेत्‌ ॥ छतमाघान्रभोज्यन्तु AAU यजेत्‌ | 6 पर = = $ ry कणिकारः शभः पोतर्भोजनं छतपाचितः' 1 षटदेगं धनिष्ठासु aga: प्रपूजयेत्‌ । त्रतखर्ड 2anaai] VAT: | g29 RR sl Wp Set ce a ere हे मपुष्येर्नागके शरेः | कणेपत्रा च नेवेदयं दोविशाखाभ् पृज्यते । HATA: सुगन्धेख sa भोज्यच्च पायसं ॥ करौ करे Rata उशोरतगरादिभिः। YAY नेवेदयमङ्ग लोख पुनव्वेसौ ॥ QE मेनाचंयेदेव्या देथ भोज्यद्च षष्टिकं | नखान्‌ भजङ्गदे वल्य एन्रागादिभिर्चैयेत्‌ । शोजगन्तु मोक्तिकं Sa (१) योवां ज्येष्ठासु पूजयेत्‌ | सितमालादिभिदव्या देयं Wise छतादिक। TAG: कर्णो पजयेद्गजयेदधि। रम्भा Heat | Ut मुखन्तु पट्याद्येः waaay भोजयेत्‌ | tw, BMA ay रद्ना देव्याः सुरक्तः कमलयजेत्‌ । Sa शतभिषक्तं च नागकशरचन्द्नेः। aH रशकरा भोज्य यजेन्नासां मघासु च ॥ जयापुष्प स्तथा भीज्यः गोधूम छतसस्वात | सगे नेत्रहयं टेव्याः सुगन्धे; कुसुमेयजेत्‌ | छतमाषान्रभोज्यन्तु fafaa परिकल्ययेत्‌ ॥ चि चां चितसखजा gsr awe चितरभोजनं। भरणोषु शिरो टेव्याः पड्छकादिखरजा ware | QUA भोजनं देयं केयानाद्रोसु पूजयेत्‌ जात्यादि कुसुमेदव्याः सर्व्वानानि च भोजयेत्‌ | (१) Wiser, मज्िका देया । मन्न शिखरिणौ इति पुस्तकान्तरं oe: | ( aa) eafz: | (त्रतखर्ड २ ३्रध्यायः। नचतेष्विति पूज्याय रूपयुत्राधिभिः सदा, शश्युव्वाप्ययवा विष्णु तहे माचदक्तिणा ॥ देय वस्रयुगं fat सपरत के जितेन्द्रिये । देवोशास्त्राथकुशले शिवज्नानविशारदैे॥ संपूण चन्द्रवदना पञ्च पत्रायतेत्षणा | शीभना दणना Wat: कर्णे चापि सुमांसलो ¢ षटपदौघनिभैः केशेर्युता कोकिलवादिनौ। तास्नोष्ठो पद्मपताभा सुहस्ता स्तननामिता॥ नाभिः प्रदत्तिणावत्तां रम्भाद्‌ण्डनिभोरुका | SIM तनुमध्या च afacry लिशोभना , प्रमदा सुभगा भत्‌ मनुष्योऽपि महाभजः | पीनवक्ताः STAT: पण चनद्रनिभाननः ॥ सितदरन्तो गजगामो महावलपराक्रमः | परियः सत्व स्य MHRA पञ्चपत्रायते्षणः ॥ सव्वेशा सत्राधबेत्ता च Mi चेतोपद्यारकः । AACA ASA त्रतनानन जायते | वियोगश्च इषटटानामधानाञ्च समागमः! AQUA AVY त्रतायासुत्तमं aa ॥ भरापत्‌सखपि न भेदस्त स्विया काथं न दुष्यते | अपि टोषामकेभीवेन्र त्याज्यः सुनिसत्तम । इनि दे वीपुराणो क्त नक्षचार्थत्रत । 000(p)000 aage agama: |) Satie: | नारद्‌ Sala | खौमदारोग्य रूपायुःसीभाग्यसव्वसम्मदा | संयुक्रस्तव विष्णोवा gargs कथं भवेत्‌ | ara वाविघवा सव्व गुणसौभाग्यसयुता | क्रमासूुक्तिपद देव किचिद्तमिहोच्तां ॥ GZ उवाच | सम्यक्‌ TEAM AN] सव्वलोकहि तावहं | चुतमप्यत्र AEA ASA खण नारद्‌ | AAQAGAR नाम परं मारायणाचंनं | पादौ fe (१) कुखाहिधिवदिष्णुनामानि ata येत्‌ | प्रतिमां वासुदेवस्य म्रूलत्तोयभिप्‌जयेत्‌ | चे चमासं समासाय AAT बाद्यणवाचन ॥ मूले नमो विधराय पादा वनन्तदेबाय च रोहिणशोषु। जद्धेऽभि पृज्ये वरदाय चेव दे जानुनौ वाखिकुमारकच्च ॥ पर्वोत्तराषादृयुगे च पादौ नमः शिवायेत्यभिप्‌ जनोयो | पूर्व्वो त्तराफाल्‌ गनियुग्मके च HS नमः पञ्चशराय पूजा ॥ कटि नमः ate धराय विष्णोः संप जयेन्नारद्‌ कत्तिकासु । (९) पदादि gee दिति Fearn’ पाठः । ६<< 30 g aaa: ! [वरतखण्ड'२२अध्याथः। तथा चयेद्गाद्रपदादये च॑ पाश्च नमः केशिनिखदनाय | कुक्तिदियं नारद्‌ रेवतीषु दामोद्रायेव्यभिप्‌जनीयं ॥ अत्तेऽनुराधासु च माधवाय नमस्तघोरस्यलमेव पुज | प्ट धनिष्ठासु च पृजनौयं मघासुविध्व सकराय तद्त्‌ ५ खोगङ्कचक्रासिगदाघरा नमो TANTS WATS पूज्याः, चस्ते तु इस्ता मधुसूदनाय नमोऽभिपृज्या इति केटभारेः | पुनव्वे सावङ्ग लिपव्वभागाः साम्नामघोश्ाय नमोऽभिपृज्याः । भजङ्गनत्तत्रदिनें नखानि स पूजयेन्मव्सयगरौरि णच | HAA पादो शरणं व्रजामि जासु Ha हरिरचेनोयः। Ma वराहाय नमोऽभिपूज्ये जनाद नस्य खवशे च सम्यक्‌ ॥ पुष्य AAC AISA नमो सिंहाय च पूजनोय t नमो नमः कारणवामनाय AAT दन्ताग्रमघाचनौयं | त्रतखर्ड'२२अध्यायः |] दमाद्िः | ७०१ आस्यं इरे; कीतुकभा गवाय सप्रूजनौयं feat वारुणे तु| नामोऽस्त रामाय मघासु नासा सपूजनौया रघुनन्दनस्य | सगो त्तमांगे नयने च पूज्य नमोऽम्त ते राम विघुणि तान्त | BMAF DAT बुधाय शान्ताय नमो AAS चित्रासु सपरूज्यतमं सुरारेः शिरोभिप्रज्य भरणोषु विष्णो नमोऽस्त विश्वेश्वर कल्किरुप॥ BETS केशा; पुरुषोत्तमस्य सप्रूजनोया हरये AWE | उपो पितं रुत्तदिनिषु शक्तया सप्रूजनोया दिजपुक्गवाः at qa aa सव्व गुखान्विताय(१) वागूपथोलाय च शामगाय। हेमो विश्ालायतबाडद्‌ र्डं मुक्ताफलेन्द्रोपलव युक्तां | गृढ्स्य qe aan निविष्टा (ल जा नुन्ना ee ee ek ----- म {१ Haq yy ats दरति Tan tat OTs: । देमाद्धिः। (ततखर्ड'२२ अध्यायः | wal हर्पस्रयुतां wear | Wat तथोपस्करभाजनादि- युका veaqifeag ears ॥ यद्यत्‌ प्रियं tafateerfa ea aafenrarafeata war ! मनोरघाब्रः सफलोकुरुष्व हिर स्य गभांच॒तसद्ररूप | स ल्लोक VAS काञ्चनं पुरुषोत्तम । शय्यां दद्याच्च मन्ते ण aa Refaafsrat ॥ यथा ज विष्णुभक्तानां जिनं जायते कदित्‌ | तथा सुरूपतारम्ये ana भक्तिरुत्तमा ॥ यधा AA न शयनं तव wel जनान | शय्या FTAA क्ष्ण जन्मनि wats i एवं निवेद्य तत्‌ we वस्वमाल्यानुलेषनेः | नक्षत्रपु रुषन्नाय fama विसजयेत्‌ ॥ सुक्तोतातेललवणं सव्वं serena faa: | भोजयेच यथाश्नक्तचा वित्तगाटाविवर्जिंतः ॥ इति तच्चत्रणरुष्रमुपोष्य विधिवत्‌ ख्यं । way कामानवाप्नोति विष्छुलोके मदोयते ॥ तरद्हत्यादिक किच्चिद्यदतासुच वा ad | रामना चाच पिढभिस्तत्‌ सव्वं ` नाशमाप्र यात्‌ ॥ दति पठति खणोति वातिभक्या प॒ रुषतरो त्रेतमङ्गनाघ कुात्‌ | व्रतखर्ड'२३अष्ायः |] SATs: | ७०३ कलिकलषबिदारणं सुरारेः सकलविभ्रूतिफलदच्च Ta: I दति मल्स्यपुराणोक्तं नक्तचपुर्षव्रतं | युधिष्ठर उवाच) उपवारेष्वशक्तस्य तदेव फलमिच्छतः ॥ अनम्यासेन रोगा किमिष्टं त्रतसुच्तां | शिवय्योपरि यस्य साइक्िः सवस्य वा विभो। नच्तचाख्यं व्रत तेन कथं कायथमिद्ीयतः।॥ SAW उवाच | उपवारेष्वगक्तानां नक्तं भोजनमिष्यते | यस्मिन्‌ व्रते तदप्यत्र ्रन्यतामक्षयं महत्‌ ॥ शिवनत्तचपुरुष शिवभक्तिमतां दषं) तस्मित्रत्ततच्रयोगे च पुराणज्ञाः प्रचच्तते॥ फाल्‌गुनस्यामलें TS AST इस्तः प्रजायते | तदा We बतं चतत्नकतेनाभ्यच्य शलिन ॥ शिवायेति च हस्तेन St सप॒जयेदिभोः | शङ्राय नमो गुल्फो पूज्यो faarg पार्डव॥ भो माय जङ्क्‌ स्वातौषु देवदेवस्य पूजयेत्‌ । अरुदयं विशाखासु चिनेताय तु पूजयेत्‌ मेट्ञ्वानुराधासु अनङ्गाय हरेति च । सदा ज्यष्टासु च तथासुरज्ये्ठति We aq , ५ °य देमाद्रिः। [तरतखणर्ड २२ेअध्याय; | नादास्याय नमो नाभिः पूज्या aaa शूलिनः। अएषाटठ्युगसे Wa WaT तोपतयेति a Aqua ततः Fal पूज्यो कापालिने नमः। qaqwa ufasig सद्योजाताय वे aa: t वामेति पूजयेत्माथ इदयं शतभिषासु च | पू्व्वीत्तरायुगे वाहू नमः खद्राङ्गघारिणे ॥ पज्यंरद्रायच तथा रेवतोषु HCA | aa पृज्य(श्डिनौयोगे नमस्छत्य पिनाकिने ॥ ATU तत Ge तषाइगय नमोऽस्त्विति | छसिवस्वाय वदन कत्तिकासु कछकाटिक्रा ॥ वक्‌ पुजया रोहिशौयागे नमो वाचस्यतेरपि। खगो त्तमाङ्गं दशनान्‌ भेरवायेति पूजयेत्‌ | द्रोद्यीषाधरौ TAN खाणषेति युधिष्ठिर । नासा पुनव्वेसौ पृज्या पूष्णो दन्तविघातिने। पुष्यं नेत्रहयं एज्य नमस्ते Ba SHA । अख्षायां ललाटन्तु AMAA नमो Aa: tt मघासु च जटजटं पूजयेद्‌न्धकारये(९) । ae फल्गुनोयोगे च खवा सोमधारिरे ॥ नमोऽस्त WUE AT AIT कापालसपन्द्धनुद्राय(२) | गजासुरानङ्प॒रान्धकादिः (१) qa चम्बकायचेति एस्तकान्तरे Wig: | (२) मपन्द्रध्रमद््राय chy पुरूकान्तरे UIs | तरेतखग्ड agwara i] Sais: | विनायसरूलाय नमः Taare ॥ शिरः सप्‌ जयेदद्या ततो धूपविलेपनं | ततस्त Tay भोक्तव्यन्तलक्तारविवर्जिंतं | शालेयतर्ड THT waaay संयुतं | द्व्यात्सव्व षु AAT ब्राद्याग्णनां नृपोत्तम ॥ waa न दौषः स्थादधिकं ह्यधिकं फलं ! ननचयुगले WA AAA समाचरेत्‌ | सृतकाभौ चदोषेणए TATA: समा चरेत्‌ | एवं क्रमेण AWA त्रतस्येवास्य पारखे। ब्रा ह्य णान्‌ भो जयेद्वक्या गुडकत्तोरष्टतादिभिः | काञ्चनं कारयेद्‌ वसुमया VE WET | Wal GAIT कत्वा विर्इग्रम्िवजित । सोपधानकविखामा सवास्तराभरर Tui | भाजनोपानहच्छचचामरःसनद्यणः | भूषेरपि सयुक्तां फलवस्तानुलेपनेः ॥ सवस्वराङंस्यदरोहनो' हेम खभ विभ्रूषिनां | द्व्ात्प.व्वोह्समये न किचिदपि लङ्कयेत्‌ 3 मन्तेणनेन राजेनद्र हदि शम्भं निघाघवे। यथा न Sq शयन तव पव्वेतजानघ | शून्यं Ata सततं तथा मे सन्तु fata: ॥ यथानदेवखर्यांस्त aed विद्यते कचित्‌ | तथा मासुद्धराशेषदुःखरुसारसागरात्‌ ॥ ततः; प्रदक्तिणोकल्य प्रणिप्य विसजयेत्‌ | ( te ) ७०९ देमाद्भिः। [बतसग्ड'२३अ्रष्वायः। शथनादिकञ्चं aqua हिजस्य भवनं नयेत्‌ ॥ नेतद्दिभौलाय न नास्तिकाय कुतकटृष्टाय विनिन्दकाय। प्रकाशनोयं व्रतभिन्द्‌ मौलेः पञखा्तिलेंभ्योपदह तान्तरात्मा | भक्ताय दान्ताय गुणन्विताय प्रटेयमे त च्छिवभक्तियुकरे | इदं महापातकिनां नराणा मघत्तय वेदविदो वदन्ति॥ या काचिदेतत्‌ HAAS भक्त्वा भत्तीरमास्ित्य Tay T art न बन्धपुतरादिधनेवियौग- माप्नोति दुःखं न सुहव्ससुत्यं | ददं वसिष्ठेन qua aa कतं FACT परन्दरेग | यत्कौत्तनाद्प्यखिलान्यघानि विष्वक्षमायरन्तिन सशयोऽते ॥ इति विन्छधर्त्तिरोक्त' शेवनक्तचपुरुषनत्रतं । 00 ofa ओोमहाराजाधिराजयो महादेवस्य समम्तकरणाधौखर- सकलविदयाविशारदयोहेमाद्रिविरतित- चतुव्वगचिन्तामणौ त्रतखर्ड़ नच्तचत्रतानि। अथ चतव्विंग्रोऽध्यायः ॥ lS त्यक्ता वेरं चिरपरिचिलं भित्भावं प्रपत्र वारी want: किल विलसतो थस्य गेहेऽनुरागात्‌ ५ aaa प्रकटितमिदं वेभवं पुण्यभाजाम्‌ | सोऽय यो गव्रतस्षसदटय वक्ति हमाद्धिरस्मिन्‌ ॥ पथ योगव्रतानि। AW उवाच) विष्कम्भादिषु योगेषु भवेदेकादश्ौ AT: | यो दद्धाति MANIA एततैलपे चवं | यवगोभधूमवरयं निष्पावा्व्टालतष्डुलान्‌ | लवं द्धिद्ुग्धच्च वस्तं कनकमेव च॥ कम्बलं गोष छचमुपानदयु गलन्तधा | कपुर FEAT s चन्दनं कुसुमानि च ॥ Me तास कांस्यच्च रौप्यञ्चेति युधिष्ठिर | win: सशक्त विधिवत्‌ सव्वपापेः प्रमुच्यते । न वियोगमवाप्रोति योगमत्रतमिद aa tt दति भविष्योत्तरोक्त' योगत्रत । [ up ye Fe ee a त 2 ee ee ie ee ग १ ४ नप ne तततो ANT Be का जत = + हेमाद्रिः | (anew sana: | धरण्युवाच । Vaal व्यतोपातः कौटशः स खरूपतः | कस्य युतः कथं पृज्यः पूजिते तत्र किं फलं ॥ वराइ उवाच) यदा दहस्यतेमायां ताराच्ञग्राह Way: | मित्रलात्‌ प्राह तं Bawa भाधां ठहडस्मतेः॥ चक्र चन्द्रो न aera हितं भिष्योऽपि तं aer | “ewe किलादित्यो दौषदटच्या तदे चत । तावत्‌ सोमोऽपि aise ततोऽन्योऽन्यमवेत्ततां | उभयो टिसम्पाते Raa: सोमस्ब्योः | SAA Nase: पुरुषः पिङ्लेत्तणः॥ दष्टौषटदौषघदशनो श्कुटौकुटिलाननः। कपिलष्मन्ुकेगान्तो लम्बभ्रूः FHT: ॥ करालो stags सुवधाग्नियमसतन्निभः | सम्भोत्तकामस्तेलोक्य' रवीन्द्भ्यां निवारितः) AIA मां बाधेते पाले वे Fa a मया। सव्य सी माव चतुः कोपटृष्टान्नो विविधादतिपाताद्वानभूत्‌ । व्यलोपातस्ततो नाम भवान्‌सुवि भविष्यति॥ यस्मिन्‌काले त्वद्त्पत्तिस्तदा कल्याणएकारि णः | व्यतोपाताय weed ala a: पापकारकः। तदन्न च्ुधितो wee aa कोपो निपात्यतां | व्यतोपातस्ततो नाम भवान्‌ भुवि भविष्यति a व्रतखर्ड'२४अरध्यायः ।] BATH | ० व्यतोपात उवाच | नमो वां पितरो मेखःकोरपातः सभोजनः | दत्तो भवद्वगामधुना प्रसाद्‌: क्रियते क्षमा wile ऊच तुः | BAAN ALA कं यसत्वेदटौोयसमये समाचरत्‌, तस्य पुण्यमिह ते प्रसादो नन्तमस्तु सुतनोरनुग्रहात्‌। तत्‌काले तव विदधाति पूजनं यस्तस्यष्ट' भवत्‌ भवेत्सभद्रसूयः। प॒चायुधैनसुखकौत्तिपष्टि- रूपारोग्यादयङ्ग लिज नवल्लभत्वप्‌ः व्व ' ॥ वराइ उवाच £ ~ VASMIATTURA व्यतौपातोऽदितो नरैः। tna, क क, = खितं च फलं तस्य तद्कन्त warts: tt । Q + कै क, m~;, विस्तरेणच्ितफलं afza कन शक्यते | येनाचयते व्यतौपातः स विधिः खूयतामिति ॥ शभे व्यतोपातदिने विगाहयेत्‌ स पञ्चगव्येन महानदीजल | ~ A उपावसद पवमानजापको जपेत्त शद्धो व्यतिपात a नमः॥ च्छादिते तास्रपावे a शकरापृरिते घटे | ७१० देमाद्िः। [त्रतखर्ड"२8 अध्यायः । काच्चनाने प्रतिष्ठाप्य हेममष्टमुजन्रर ॥ अष्टसुजं अष्टाद्‌गसुज। उत्मर्तिवाक्ये व्यतौपातमूत्तरष्टारण भुजल्वात्‌ । उत्प्र्तिवाक्यानुसारत्राच्च विनियोगवाक्यख्य यथा भगवद्रौतासु चल्लारोमनवस्तथेति चलारशतुद्‌ W | गन्धपुष्याचतेभूषदौपवस््निवैदनेः | wavtes फलिते मसि मार्गभिर ऽचयेत्‌ | नमस्तेऽस्त व्यतोपात सयसोमसृत प्रभो। यदहानादिकतं किचचित्तदनन्तमिदास्त मे ॥ STA पच्च CaS] सपष्मात्ततमच््लिं । ufaa तत्‌च्णादेव सव्व पापनच्तयो भवेत्‌ Il यदि दितौयेऽपि दिने व्यतौपाता भवेन्महौ। तदा Gata TAA सकलं गुरोः । पारणं व्यतिपातान्ते कुर्यत्‌ संप्राश्य गोमय'। अये afaaa दिने व्यतीपातो waafe | aa alfs तद्‌ SAT उपवासं समाचरेत्‌ I axed मासि मासि aarataaated | व्यतोपातेतु संप्राप कु्यादुयापन बुधः ॥ व्यतोपाताय खादेति क्षौरहचसमन्वित | आज्यस्ीरतिलानाच् होतव्यं वं शतं शत ॥ शरकीराघटपूखंन CSAIL तां | प्रतिमां काञ्चनो, त्वा प्रदद्याद्‌त्रतदेिन | वन्देव्यतोपातमहं ASTRA रवीन्दु सुनुः सकलेष्टलब्ध । त्रतखक्छ'२४अरध्यायः ] दमाद्धिः। Ort समस्तपापस्य HA AAS YU चानन्तफलं ममास्त | Zia समोच्य गुरुः परिपूज्यतें काटक-क्राणडल-का च न-भूषयेः | सकलमेव समाप्य यथोदितः मुपलभ्य मिहा्ते मदौ | गां वै पयस्विनीं दय।वसुवर्णोत्तमद्चिणणं | तस्मै शय्यां समासाद्य सारदारुमयो' zeit द्त्तपत्तविताना्यां हे मपटटरलङ्कतां । हसत्‌लोप्रतिच्छन्नं शएभगण्डोपधानकां। प्रच्छछादनपटयुकतां धूपगन्धादिवासितां। UMAR, मन्नोदकपृरागुरसुन्दरा | दोपिकोपानदच्छनचां प्रद्द्याचामरासनां | Suit auainia विमाने रत्रसुप्रभैः। अष्छरोगणसम्भोग्ये गँतन्त्यविलासिभिः। गत्वा ama end मोदते चिद्शाचितः। तदन्तं राजराजः स्याद्र पसोभाग्यभार्भवेत्‌ | RAMAN गुणपुत्रायुरारोग्यधनघान्यवान्‌ | प्रतापन्नो महेशखययुक्तभावो TETAL tt WAM ALAIN यावच्जन्माषटटकायुत | दशं शतगुणं eta तच्छ तघ्रन्दिनित्तये॥ श तन्नन्तच्च सक्रान्तौ Van विषुवे aa: | युगादो तच्छतगुखं Wad तच्छतादतं ॥ ७१९ Safe!) [त्रखण्ड'२४ग्रध्याय; । सोमग्रहे तच्छत्रं तच्छत्रं रविग्रह | असंख्ययं व्यतौपाते दान वेदविदो fag | उत्पत्तौ तल्नन्गुण कोटिगुण anquarfsarat | अवे दृगुशितं पतने जपदानाद्यक्तघं पतिते ॥ जन्मदाविंशतिनाडङ़ waa afanfa: | व्यतोपातस्य पतनं euaataad विदुः ॥ anfad यद्ययतिपातकाके पनः पुनस्तद्रविगोतरश्मौ | प्रयच्छतः कल्पं शतावृदानि विवदमानं नहिं ₹हौयते aq ॥ तस्मास्महि @ च्यतिषातपृजां कुरुष्व चेत्‌ पंण्यमनन्तमिष्टं । यदि fata सततन्तवेष्ट समस्तधारित्वमभोश्ितच्च॥ गणयित्वा व्यतौपातकालवा वेत्ति यो नर!) PATI तस्य भवतो भानुभेश्वरौ पटति लिखति यः णोति वे तत्‌कथयति पश्यति कारथत्यवश्य । रविशशिदिवमापसीपि दिषेशचिरसमयं परिपृज्यमान अस्ते | इति वराद पुराणोक्त व्यतोातव्रतं। 000 ATA ४अध्यायः || eartz: 922 युधिष्ठिर उवाच | येन व्रतेन चोखंन नपश्यद्यमगशासनं | परि एच्छाम्यदं ABA पापघ्न व्रतसुत्तमं।॥ 9 [४ = + तद्वत ब्रूहि विप्र aa जगति बं छपा | Alte a उवाच | खण राजन्‌ व्रतमिदं SAT पुरातनं तेनैव राज्ञा dea शूकराय च दुःखिने । एकदात्‌ खषित्वा स द्यशो रजसत्तमः। अन्तश्चरन्‌ भवे राजन्‌ दृष्टा तत्रैव शूकरं | दम्धपादकटिखैव दम्धग्रौवसुखोदरं i टा तथा विधन्तन्तु कपाद्चक्र दयापरः ! केन कञ्मविपाकेन AIA प्राप्तवानयं। अहोकष्टमदयोकष्ट सकरणापभुज्यते। प्रवश्यमनुसत्त व्यं कतं WAY शुभाशुभं । दत्य क्का तत्‌ स्वरूपेण राजा तं प्राह शूकर । saat किमवस्था वं awa ब्रूहि शूकर | तच्छ्रत्वा saat निः शखसन्‌ शूकरो सुदुः । साल्वा पराकछ्तं WH प्रत्युवाचाथत दपं | शूकर उवाच | Sq राजन्नहं पृव्व वेश्यो विश्वसखाभवः। AMRIT न दातादहमाखितेभ्यश्च किञ्चन i sara बहवो war पराणच्ुतिनोदिताः। ( <° ) दमाद्रिः | [AAMT २४अध्यायः | तथापि पापबुद्धयादह न करीोम्यात्नो fea | श्राशापाशमनुप्राप्ता Uttar विनिगताः। HAN WHATS न क्िचचित्तकछषतं छत ॥ एकदा तु दिजः कञिद्दयतोपाते we मम) ्रागतो याचते ara a किञ्िद्‌त्तवानह॥ ततश्च कुपितो विप्रो मम amazed | ्ाशागिनिर्‌ हते यदन््माङ्गानि ए्यक्‌ यक्‌ । तथेव तु तवाङ्गानि दावाग्निः wags | अरण्ये निजने 2% निजे द्ुमवजिते | aa शुकरयोनौ त्व प्रसूति समवाघ्रुहि। प्रसादितो मया विप्रः पुनरप्यकववांस्तद्‌ा | जनानि शूकरलवेऽपि द्व्युक्ताथ जगाम सः॥ तेन शापेन राजेन्द्र शूकरत्वमवाभ्रयात्‌। अहं दुःखी ह aaa निजने निञ्जले वने ॥ राजोवाच) कंन तवं FAA पापात्‌ ममाचच्छेह शूकर | येन शक्यो मया Aq तव शापस्य संत्तयः॥ वराद उवाच | यतां मम राजेन्द्र सुक्तिः स्याव्येन कम्मणा। व्यतोपरातत्रतं नाम Aa राजंस्त्वया पुरा) यथा माता सुतस्येह सव्वस्य हितकारिणी | तथा त्रतभिद्‌ राजन्निह लोकं परच च, AAGW २४अध्यायः! || earfz: ७१५ यथे वाभ्यदितः सूर्यो यशेषं च तमो दहेत्‌ । द्द्‌ ad तथेव waa व्यपोहति | wad Wat यथा विष्णु्कणां परमनितिं । ददाल्येव न सन्देहस्तथा व्रतमिदं भं । श्तभिन्दु त्ये दानं सहस्रन्तु दिनक्षये | विषुवे गतसादस्व व्यतोपाते लनन्तक] व्यतोपातव्रतस्यास्य विधानं ST तचत; | मावा फाल्‌गुनें वापि अन्यस्िन््ासि वा भवेत्‌ | व्यतौपातो दिने afaq प्रारमेदत सत्तम | तिलैः oa MITE सगुड' गुरवेऽपयेत्‌ ॥ एव feald दातव्य ठतौये त्‌ समापयेत्‌, स्तं पायसच्चेव दातव्यं WANA | एवं संवत्छरस्यान्ते देवस्यार्दान्तु कारयेत्‌ | श्रुः चक्रगदापाखि पद्यह्स्तं दिररमय 1 वस्तयुग्म न PAY पूजयेद्र रुड्ध्वज | गोत्तोरेण च संपूण कांस्यभाजनमुत्तमं | स्थापयेद्‌ वदेवस्य स्थानन्तचरव कल्पयेत्‌ | शय्या च aad तस्य स्थाप्या टेवमनुस्मरन्‌ ॥ अनन्तद्नायिनं देवमनन्तफलदं शभ | aan सदहाज्वितं fay म्या सपृजयेूस' ॥ वेदिकेनेव मन्ते ण TAY: HAVA | पायसेनेव नैवेद्यं शकरासंयुमेन च। eat fata रैवस्य प्रायनं प्राथयेदतौ | ७१६ इमाद्धिः [त्रतखष्डंर४श्रध्यायः। व्यतौोपातव्रतं टेव त्रयानन्त समपिंतं। भवत्वनन्तफलद मम जन्मनि aaa | sata हषौकेशं प्राथेथिला ततो त्रतौ ॥ daa गुरवे ददयाच्छीचिधाय gata | व्रतोपदेषटे विप्राय ब्रह्मज्ञाय विशेषतः | afaata सुवस्पं वा दकचिणा तु विधोयते, ब्राद्मणान्‌ भोजयिता तु ्रतमेतत्‌ समापयेत्‌ । दृधं ad wal देव weld पूव्वेजन्मनि | स्वग प्वगदं नृणामनन्तफ्रलद शुभं ॥ सुखद किल्िषादस्मात्‌शूकरत्वान्र संशयः | तेनैव Gal Cavs: शूकरं वाक्यमव्रवौत्‌ ॥ मय। Rafat Va तत्‌फलन्ते द दाभ्यं | एवमुक्ता BIAS: WHIT फलं ददौ ॥ AqaUI aa GUA शूकरो सुक किल्िषः। मुक्तः शूकर देहाच सव्वाभरणभ्रुषितः | दिव्य विमानमाखाय वाक्च्धदमुवाच =I sua: कित्नरजानौष्वः व्यतौोपातव्रतोत्तमं ॥ देव सुखदं Zui परत्र च परा्गतिं | ट्टा मां पापनिसुक्त व्रतस्यास्य प्रभावतः | विश्वासः क्रियतामस्मिन्‌ व्यतोपातव्रतोस्मे ॥ इत्युक्ता Wiad: सोऽथ राज्ञो वे पश्यतस्तदा |. तं eet विस्मितो war राजापि aed व्रतं । ततो राजा पुरङ्गला AT वाकारयल्ननान्‌। त्रतखण्ड २४अध्यायः।] Safe: | ७१७ aa gq क्तवांस्तच व्यतोपातव्रतं शभं॥ ततो राज्यं चिर क्षता देवदेवस्य चक्रिणः ॥ eau: प्रा्वांस्तेन विष्णोस्तत्प्ररमं पद्‌ | FAM कुर्‌ राजेन्द्र व्यतोप्रातत्रतोत्तमं। सव्व पापत्तयकरं नु णामिह सुखप्रद ॥ Ce यः कुरुते AW! अद्ाभावसमन्वितः | सरव्व'पापविनिसुक्तो विष्णुसायुज्यमाप्रयात्‌ ॥ यया तु पुच्रकामिन्ा कतं सा लभते सुतान्‌ | स्तोकामेनेह asa लभेत्रारोमनत्तमां। व्यतौपातत्रतमिदः व्य तौपातदिने यजेत्‌ | ज्ञानवान्‌ धनवान्‌ Bary इहेव स सुखी भषेत्‌ | यद्द्‌ खणयाद्गक्तया विष्णुलोके महोयति ॥ इति नारद्ोयपुराणेक्त' व्यतोपातत्रत'। दति खौोमदहाराजाधिराजओौ महादेवस्य समस्तकरणा धोश्वरसकलविद्याविशारदयीहेमाद्विविर चिते चतुर्बगचिन्तामरो तरत खण्ड योगव्रतानि। yg पन्चविंशोऽथ्यायः। (0 ~ --~---" अथ करणत्रतानि। येनेदं निजगौरवेण दूरा दुत्कषच््रगद्पि नोयते स एषः | आचष्टे निखिलमनौपितायसिदधय Safe, करणगणब्रतानि) सनत्कुमार उवाच BY राजन्‌ प्रवच्यामि करणव्रतसुत्तम। बवाख्य' बालवच्च व कोलवन्तेतिलङ्गर | वणिजं fafefcare: करणानि पुराविद्‌!॥ माघमासेतु सम्पात Yara यदा भवेत्‌। बवाभिघधानकरणसुपवासस्तद्‌ा मवेत्‌ ॥ पूजथेचाच्य तं देवं गन्धमाल्य विलेपने | सौवर्णीं प्रतिमा arat विष्णोः कषिता भा ।॥ जपे ददहनिशं da मन्तमष्टात्तरं वधः | कलग्च्च समानोय alata तथोपरि | विन्यस्य uated सुवणंकमलन च | वितानं चामरं घण्टां देवाय प्रतिपादयेत्‌ | ares uma] eaArtz | 9१९९ एवं सष विधेयानि बवाख्यान्यघ् सपमे । वषै तु करणे प्राप्ते पूव्व ` पूर्व्वं समाचरेत्‌ | ताद्य णान्‌ भोजयेचात TRAST UAT | qadq बालवादौनि विष्न्तानि यथा क्रम । उघिल्ला सप्त aaa पूर्व्वोक्तविधिना द्रप), ana at ब्दुरिमोभरहमदिदानतः। एवं करते Ad राजन्‌ राजसूयाश्वमेधयोः | समस्त फलमाप्रोति सुखं कित्ति asta | दरति ब्रह्माण्डपुरा णोक्तं ACUAT | —— 000 युधिष्ठिर sar | छष्ण केयं जनैः सर्व्वेविष्टिभद्रेति चोच्ते। HAMA Rl TT Sl कथं वा पूज्यते AT: | AAW उवाच | सुता मात्तर्डदेवस्य छायया afaat qu | नखरस्य भगिनी ae BANAT i सा WANA TAA ग्रस्तं समुपचक्रम | नियति यदि काय्यण afaae yefear | विघ्न करोति स्वपता भुच्ञानस्य सितस्य 4 | यन्नविन्नकर रौद्रौ समाजोत्वनाशिनौ i नित्योदेगकरौ पाथ विनाशयति सा जगत्‌ | तान्तु दुव्विनयां कमे यच्छछाम्येनां सुमध्यमां ^ र ५ दमाद्धिः। [व्रतखणर्ड'२ areata: | कन्धादुव्विनयाङ्गदे पिता दोषेण गह्यते | तस्मात्सव्व प्रयल्ञेन कन्या Zar विजानता i चिन्त्योवमश्भां भद्रां यस्य यस्य प्रयच्छति, तं aaa aaa सुरराच्तसकिन्नराः। मर्डपं मर्डपारमभ्भ वि नाशयन्ति ततच्तणात्‌ | विवखान्‌ चिन्तयामास कस्य यं प्रतिपाव्यते ॥ विरूपा दुष्टहृदया agate तिपाद्का॥ अदरोममदादष्रौ खेच्छाचारविद्ारिणौ, दत्ता येषामसीख्याय भवतौ कथञ्चन ॥ एवं वितकयन्‌ देव आस्ते araferafa: | तावत्तया जगत्सव्वे' दुष्टया watauga ॥ अथाजगाम सवितुः UA ABTA: | उपालभ्य ददौ चास्य विष्टे दाच्चमगेषतः। भास्करस्तमुवा चदं स्यम्भग्भवनेश्छरं । भवान्‌ कर्ता च त्ता च कस्मादेवं प्रभाषसे | एवमुकस्तदा ब्रह्मा भास्करेणाभितदुयतिः॥ तदोवाच fafeara wy us मयोदितं ¦ कारणे; AE वर्तस्व वववालवकौलव; ॥ सप्तभेऽदैदिने प्राप्त यदभोष्टं कुरुष्व तत्‌ | यातराप्रबेशमाङ्गल्यक्षषिवाणिज्यकारकान्‌ | भक्षयखाभिसु खगान्‌ नरानुन्रागगामिनः | नोदेजनोयो fe जनी भवत्या दिवसचयं | पूज्या सुरासुराणां a दिवसादई' भविष्यति aaa २५अअध्यायः] saris ORL SANT ये प्रवर्तन्ते us at निभया aa | तेषां विनाश्य wa area afafad u एवमेषा ससुत्यत्ना fafefafefaaraat | निषैदितेति कौन्तेय carat परिवञ्न य ॥ सिंहग्रौव सप्भजा त्रिपाद्‌ पुच्छसंयुता। खरोत्तमाडइग्वद्ना प्रेतरूढा AWE | IAAT दधतौ हस्ते प्राशासिशक्तयः | ATA WI मालाश्च मुद्रा सप्तविधा स्मता ॥ सजलजलदवर्ण रौघनासोरुदष् विप्रुलद्टनुकपोला पिग्डकोद्‌रण्डजङना | श्रनलशतसहस्र Detail समन्तात्‌ पतति भृषनमध्ये काय्येनाश्ाय विष्टिः ॥ भानोः सुता किन्तु गताग्रजाता ष्णा कुमूर्तिः सततं कुचेला । टेवेनियुक्ता करणान्तसंसथा विस्त was विवज॑नौया | सुखे तु घटिकाः पञ्चदतु aw wer faa | हदि चेकाद्श प्रोक्ता्चतस्रो नाभिमर्डल्ति | पञ्चे कयान्तु विन्नयास्िखः yas जयावहा, ॥ सुखे कायविनाशाय Tarai waaay | Ele WIUEU HIT नाभ्यान्तु कलद्ावहा | कटप्रामथेपरिश्'शो विष्टि पच्छ yaw: ॥ afaat यानि काय्यांणि अश्भानि शुभानिच। ( €१ देमाद्धिः। [व्रतखर्ड२५अध्यायः । तानि सर्व्वाणि सिध्यन्ति विष्टिपुच्छ कपोतम्‌) जलानलेन्दुक्रुरेभ याम्यवातेन्द्रदिकक्रमात्‌ ॥ संख्यासमानेः प्रहरेविं ट Suge Ga । करालो मन्दिनो VS सुमुखी दुसुखो तथा । fafaar वष्णवौ eal ष्ट चेतास्तु fava: | धन्या द्धिसुखो भद्रा महामारो खरानना 4 कालरातिमहारौद्रो विष्टि कुलपुचिका)। भैरवो च महाकालो असुराणां Baga ॥ दादगेतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌) न च व्या्धिभयन्तस्यरोगो रोगात्‌ waa यहा सव्वऽनुकृूहलः Qa च fanife जायते। रणे Usage द्युते aaa विजयौ भवेत्‌ । यश्च quad नित्यं शास्तोक्तविधिना नरः| तस्य स्वां धेसिदिस्त जायते ATA संशयः | एतद्भद्राव्रत' पूव्वमेतत्ते कथितं wars एवमेषा agua विष्िरिषटटविनाश्नो। तस्प्ात्ररेण कौन्तेय AAT फलाधिना॥ येनोपवासविधिना व्रतेन च युधिष्ठिर | पूजिता तोषमायाति तदेव कथयामि a tt यस्मिन्‌ fea nagar तस्मिन्नि भारत | उपवासस्य नियमं कव्धात्ारो atisy ar ॥ यद्‌ tial भवेदिष्टिरेकभक्तं दिनदयं। काय्यस्तनोपवासः स्यादिति पौरःशिको विधिः ॥ ange yaar: 1] Safe | ७२१ प्रहरस्योपटि यदा स्यादिष्टिः wets | उपवासस्तथा काय्य एकभक्मतोऽन्यघा tt सर्व्वौषधिजलख।नं सुगन्धामलकरय | नद्यान्तड(गेऽ VI Bla सव्व शस्यते | देवान्‌ पिन्‌ ama ततो दभमयो' gut! विष्टिं कत्वा पुष्यधुषैनं बेद्यादिभिर चयेत्‌ ॥ Slaw नामभिविशटेः शतमष्टोत्तरं चप, wala दख विप्राय तिलान्‌ पायसमेव च। सतेलं GAIL भक्ता पशाद्च्ञोत कामतः | व्छायासूथसुते देवि विष्टिरिष्टाथनाशनि) पूजितासि यथाशक्त्या भद्रे भद्रप्रदा भव। उपोष्य विधिनानेन ea सप्र यधाक्रमात्‌। उद्यापनं ततः कुर्यत्‌. पूवव वत्‌ Tar भामिनौ' । स्थापयित्वायसे wie ana faze च! परिधाय क्रष्णवस्त्रयुग' awa Ta पुनः ॥ ब्राह्मणाय UAE याल्लौहतेला स्तिलांस्तथघा | AU सवत्सां गामेकान्तथेव क्ष्ण कम्बलः | efaura थथा शक्तया दत्वा भद्रां विसजयेत्‌ | य एवं कुरूते पाथं सम्बग्‌भद्रात्रतं नरः | fan न जायते तस्य AIA कथञ्चन I रात्तसा वा पिशाचावापूतना प्राकिनो ग्रहाः | न पौडयन्ति तं we ये भद्राव्रतमाचरेत्‌ | न चेश्ट वियोगः स्यानत्रहा निस्त स्य जायते | ol 1 कीणर oe eS O24 Saiz: | [aaque २५अध्यावः। | Berea याति सदनं भास्करस्य न AAT: | aaasifaaaea गनौ शनेर्यां मत्तया भ्रमत्यविरत' करणशक्रमेण। तां छष्णभासरमुखो समुपोष्य fafe- भिष्टार्थ सदिमनिशच्च पुमानुचेति ॥ इति म विध्योत्तराक्त fafead | 000 क्ष्ण Sars t तथान्यदपि a वरिम विष्टित्रतमनुत्तमं। aqeat विष्टितो न स्याइ्यङ्ापि युधिष्ठिर ॥ सुकरं PIT As सब्बकामायद्‌ रणां) परं प्रोतिकरं भानोः ag विन्नोपगान्तिदं | मागंशौषामले TT TATA TT: संपृज्य AMI S विच्यादौ wag ॥ प्रागुक्तां iy at देवो मन्तमे नमुदौरयेत्‌ | भद्रे भद्राय भद्रं fe चरिष्यं aaa a 1 fafaut aw a टेवि काय्यसिदिच् भावय, सुस्रातः पूज्यतामेवं ब्राह्मणं च स्वश्क्तितः। ततो Wald राजेन्द्र AIT न जायते॥ ay वान्तऽपि भद्राया; कामतो वाग्यतः why: न किचिद्धच्तयेत्प्राज्ञो यावड्द्रा प्रवत्तते | अनेन विधिना पाथं प्रतिभद्रां समाचरेत्‌। त्रत खर्ड२५अध्यायः] SATIS | S24 नरोवा यदिवा नारो सर्व्व॑कामायमसिडये ॥ ततः Haat पूण प्रतिमाङ्ारयेद्बधः | लौही Lana वापि creat वा खगक्तितः। Wa चोद्यापन कत्वा स्थापयित्वा यथाविधि पूजयेद्क्तिमान्विप्रो मन्त रेभिरुदारघीः ॥ पूजितासि यथा qa fam qa waza च। विष्णुना णङ्रेणाथध तथाऽन्नः पूजयाम्यहं 1 निर्विच्रनार्धसंसिदियथा तेषां कता लया | तथा ममापि WATT UE WSIS भव ॥ अज्नानादयवा द्पा्वासु्लद्खय छतं हि aq | ततत्तमस्वाश्भे मातर्हीनस्य शरणाधिनः ॥ दूति कुर्याद्यथा शक्या वित्तशाठाविवज्जितः। अशक्तः परकोयां वा पजयित्वा नराघमः। अभावे tani aat विधिं निष्यादयेद्वधः ॥ एवं fe कुरुते यस्त भक्तया भद्राव्रत AT | भद्राथामपि कथ्याणि तस्य fasten: | इ लोके सुखं भुक्ता पुचश्वयथसमन्वितः। अविन्नेन नरव्याघ्र दौघीयु्व्याधिवज्नितः। ततोऽन्ते wWifa प्राप्य मोदते सुरराडिव। एतत्पुरा महेन्द्रेण dw हतजिघांसया | विमाना कुषेरण ala यचिदशारि्णि।॥ waar दिपुरान्ताय ayaa विष्णुना । ux हि भद्रः भवतीहसदट्वयपसां 828 देमाद्रिः [त्रतखर्ड२५अध्यायः | ये भक्तिपूव्वेकमिदं ब्रतमादरे | भद्रासिघ्ानमभिधाय मनोनुगं ये o ™~, र Fa तद्यखिलमेव wary वन्ति। इति भविष्योत्तरोक्त दितोयमभद्राव्रतं। इति ओौमदह्ाराजाधिराज खोमहादेवस्य समस्तकरणा- धोश्वरसकलविद्याविशारद्‌यौदमारद्वि विरचिते चतुव्वेमचिन्तामणौ त्रतखर्ड करणतव्रतानि। अथ षड्विंशोऽध्यायः | 06100 अथ सङ्न्तित्रतानि। 0 परो Tai faafeawera- रानन्द्तो famaafa aia: | सएष sarfeaqniferat प्रक्रान्तिसङ्गन्तिगितव्रतौष ॥ व उवाच । भगवन्‌ aa केन तिदग्यानो न जायते | म्ब च्छदशे च पुरुषस्तन्ममा चच्च TEA: | माकण य उवाच, मेषसंक्र प्रन भानोः Maasai amar) | पृजयेडागेवः देवं रामं शक्तया यथाविधि षसं क्रमणे प्राप्तं तथा AWE पूजयेत्‌ | तथा मिधुनसंक्रान्तो पृजयेद्ञोमगायिनं | तथा कुलोरसंक्रान्तो दरादहमपराजितं। नरसिंह तथा 2a सिंहसक्रमणे fay i कन्यासंक्रमणे टवं तचाशखशिरसं यजत्‌ (९) सोमप्रारे नरोतम इति पस्तकान्तरं पाडः, २८ SATs | |त्रतखण्ड'२९अध्यायः। तथा मकरसंक्रान्तो रामं दशरथामज | FAUT HAT राजन्‌ रामं यादवनन्दन | मोनसंक्रमगे मद्यं वासुदेवन्तु THAT ॥ पटे वा यदि वारयां गन्धमास्यात्रसम्पद्‌ा | x # + 0, प्रादुभोवस्य Aral VT होम Fata पाथिव। व्रतान्ते HAVA छचोपानत्मन्विता | व स्नयुग्मयुतां दद्यात्‌ प्रतिमासं सकाञ्चनां। व्‌ “Oo wf ~, रातोतुदौपमालाभिदवदेव प्रपृजयेत्‌ ॥ क्त्वा ad वव्सरमेतदिष्ट aay तिय्यक्त न चापि जन्म, प्राप्रोत्यवाप्रोति चिरञ्च ara HUMANA मनोऽभिराम। दति विष्ण धर्मौत्तिरोक्तं स॒जन्मावाश्रित्रतं । | + ब्रह्मोवाच | FRA रोचना भासो सुराचन्दनबालक। चरिद्रासह Waa मेषे सानं WITT | रोचना मोरोचना। यदह्ापदं ग्रहटोषापद्। प्रिपद्ग: पञ्चक कुष्ठ तच मारौ निशाकरं ॥ रोचनागससंयुक्ल' FTAA सहाफलं ॥ fray फलिनो | निशाकरं कपूर ॥ SUT पद्मक Fs रोचना यन्थिपणंकं। वरत खंर्ड' २ईअष्यायः।] दमाद्धिः। ७९९ कुडमागुरुसंयुकं fara राज्यदं मतं ॥ SAIC बालक | रोचना बालकं सुम्तसुराशलेयचन्दनं । faa सुराध्यत्त राज्चायु;पुत्रवद्न ॥ ष्हरिद्रा बालकं कुष्ठं मांसो चन्दनरोचना। कन्धाख्नानं प्रकत्तव्यं सन्तानरतिवद्चैनं + रोचनारङ्गकुषट्च चन्दनोभोरपट्यकं। खरिद्र।ब,लसंयुक् तुले दुष्कतनाश्न ॥ प्रियज्ग.स्फपटिक मासौ पद्मक रोचनागुरः। सुम्ताकुछसमोपेतं वशिकं राज्यदं aa tt प्रवालं मौक्तिक Fs रोचनाघनपद्यकर। सुरामांसो समोपेतं घनुःसक्रमण शुभं ।॥ Tal AT t रोचनातावकङु्ठः चन्दनागुरुकुमं। SUIT पद्यङेयु तं मकरे सव्वसोख्यट्‌ । यरन्थिपणे' त्वचा वाला केसरं जातिपच्काः ॥ रोचनासदह संयुक्त Fal पुतासुराज्यद्‌। केसरो नागकेसर: | कपू CHAT व मांसी AAT | बालकं सघनोश्ौर तचा मौने शुभावहं ॥ दाद्‌गेते समाख्याताः स्नाताः सुरवरािंताः। पलच्छौोनाशना TAIT महापातकनाश्नाः।॥ टेवदारुमदा GAS चन्द्रगेले यकुन्द्रः ॥ ( €२ ) GR 9 Satie: | [तखग्ड'२६अध्यायः; पद्मक VARMA सुरसां गुग्गुलुस्तथा। महिषाख्यमथान्यन्तु द्रव्याखेकाद्गेति FN चन्द्रः HCC! सुरसा तुलसौ। aaa सोमदेवत्ये योजनीया नियन्तितः॥ सोमदेवस्य खगशिरसि। विजया विद्यया aa क्तमङ्कः नयोजितं | विजयं नाम विख्यात सर्व्वापदवनाश्चनं ॥ AAAI धन्य ULATSTUI | बालानां रत्तणार्याय राजकायया (१) fates ut एतत्त कथित शक्र समाश्ेन मया तव । wit संक्रन्तिधुपस्त॒ यथावत्परिषच्छतः॥ इति देवौपुराणोक्तानि संक्रान्तित्रतानि। नन्द्किश्वर उवाच | थात; सप्रवच्यामि घान्यत्रतमनुत्तमं | यत्‌ wal हि नरो राजन्‌ सव्व कामानवाघ्र यात्‌ ॥ saa faya चव खानं कल्ला विचच्चणः | व्रतस्य नियमं Haare देवं दिवाकर ॥ करिष्यामि व्रत देव तद्भक्त स्वत्मरायणः | aefana मे जातु तव टेव प्रसाद्‌तः॥ (१) cara se इतिवा qe: | RABY २६ WATT: 1] sate: २१ caw लिखेत्पद्मं ae भेनाष्टपतकं | भास्करं पुव्व प्रषु आग्नेये च तथा 4 यथाविभवसारेणततो विप्राय efaat i + ॐ „. , . ~ ufaala q व खंत वस््रयुम्म प्रदापयेत्‌ ॥ उद्यापनेतु Uae Gana प्रदापयेत्‌| ष्वेतव स्तय गच्छन्न ब्राद्मणय निवेदयेत्‌ ॥ एवं छते पराकोत्तिजीयत वापि बद्धिज। फलं न Waa वक्ङ्कष्यतेरपि जिह्वया ॥ विमला ala राज्यच Waa नात्र सगथ. | ~ 9 ¢ आयरारोग्धसम्प्रत्नी जोषरेदषेगशत AT | इति स्वन्दपुराणोक्त कौत्तिसंकरान्तित्रतः । O00 (2000 नन्दि कँष्वर उवाच | वच्याम्यपापसङ्ान्ति TY स्कन्द विधानतः | संक्रान्त्यां नियतो भूत्वा तिलैः wai समन्विते; ॥ करक वदईमानच् प्रतिमास निवेदयेत्‌ ¦ वद्धेमान इति शरावः मन्ते Waa तु खायाद्क्तिभःवसमन्वितिः॥ तिलो माम्पातु पापेभ्यस्तव Sa प्रसादतः) aq मां Ta देके वाद्मनःकायकल्मषात्‌ | उद्यापने च देवस्य सौवणमःषकेणत्‌ दिसुजा प्रतिमा कायां रजतेनाघ कारयेन्‌ | ॐ & ¢ देमाद्भिः [तितद्डर्ड२६अध्यायः । तिलयेलः प्रदातव्या व्रतेऽस्मित्रात संश्रयः, FA पापप्रणाशाय आयुर रोग्यहेतवे । TAMA YU प्रोक्त ब्रह्मणा विष्णदेतथा t faufcera जगदे तथा प्रोवाच WA WAAT ममाचष्टं मया Whar प्रभो तव । सव्व सङ्{न्ति दिवसे प्रारभे तसुत्तमं दच्िणो त्तरसङ्गान्तो सर्व्वाखिति च केन च+ अभ्रवत्वाच्छरौोरस्य योगपदात्‌ प्रशस्यते | न चात्र विधिलोपः स्यात्सव्वं ana देवलं ॥ नानादरेवन्रतानान्तु ARAMA प्रशस्यते} इति स्कन्दपुराणोक्तमपापसंक्रान्तित्रतं। 0०८० नन्दिकेश्वरः उवाच | Waal संप्रवच्यामि ताम्बलाख्यामनु तमां | विधानं ga वत्या दान्यसद्गान्तिवच्च तत्‌ ॥ ताम्बलचन्दनाद्च्च wast दिजोत्तमात्‌। यावत्स वत्सरं GH रात्रो Tat ततः परं ॥ याग्ब लं भच्चयेदिप्रान्‌ कारयच्चैव नान्तरं | वत्सरान्तेतु कमलं कत्वा चेव तु काञ्चनं | पतचरकोशच्च HAA तथा पूगौफलालयं। चग भाण्डं VFA पूगप्रस्फोटनं तथा | सुखवासाद्चृष्णीनां भाण्डानि च दिजषम ५ qagwe 2isare: |] द्देमाद्िः | 9४१ = __ = दिजद्‌ाम्पत्यमावाह्य सव्वोपस्करस Fa: | ष ~ ™. A ^^ CAA GRAM भोजयेत्‌ Veta fess ॥ उप्कल्यितच्च यक्रिच्िट्‌ूत्राद्वणाय निवेदयेत्‌ | एवं करोति या नारौ ताम्बृलाख्य AATUA | चै । ९ ~ सव्वकामानवाप्रोति aa aifagayr | ~ + त सौभाग्यन्तज अतुलं प्राप्रोति दिजसत्तम ॥ © > =~ ~, nn ~ भका YAS पौचेख मोदते च गह WT | मृता RIAA पथ्वात्‌ सूधलोकं महहौयते। पतिना देववदविप्र यावद्‌ाह्तसंञ्चव | णोति युवतौ काचित्‌ सापि तत्‌फलमश्र ते | मुच्यति सव्वं पापेभ्यः खग॑लोके महौ यते | दति स्कन्दपुराणोक्त ताम्बूलसङड न्तिव्रतं | 0 नन्दिकेश्वर Sara | sa: पर प्रवच्यामि agifag मनीरथां। गुडेन पृ णंकुम्भञ्च waaay खश्क्तितः | सङ्क न्तिवासरे ददयःदटु्राद्यणाय कुट्म्निने॥ एवं स'वव्सरे पूणा स्वशक्रगोदापनं Wy | गुड न पव्व तं aes gaa ख aad अयने चोत्तरे दव्यादित्तशाठयम न कारयेत्‌ | यंयं प्राथेयति ard a तंप्राप्नोति पुष्कलं। सन्वपापविनिमु a: aaa महोयते | इति स्कन्द पुराणोक्तं मनोरथसंक्रान्तिबतं। ७४२ eatfe: | (avaw २६यन्नध्याः ? नन्दिकिखर उवाच | शतः ut प्रवच्छामि विशीकसङ्कान्तिसुत्तमां । अयने विषुवे ya व्यतोपातो भवेद्यदि ॥ एकभक्तं नरः कुर्यीचिलेः Bray कारयेत्‌ | काञ्चन भास्कर कत्वा aa विभवशक्तितः ॥ स्रापयेत्य गव्येन गन्धपुष्प; सुपूजयेत्‌। वेष्टयेद्रकवस्ताभ्यां तास््रपाच निधापयेत्‌ ॥ WAU नमः पादौ रवे aE fa वं aa | आदित्याय नमोजानु WE चेव दिवाकरः ॥ me तु कटिं पृज्य भानुद्धेवोदरे तथा | नमः Ug बाहुभ्यां WIA तु पुनस्तनौ। विवसखते नमः AW सदस्रांशो सुखे स्मतं | प्रभाकर Aal Aa तेजोराशे नमः शिरः॥ वरुणाय नमः कशान्‌ Weel Taga | भरघ्यादि year वत्‌काथ्ः ब्राह्मणाय निैदयेत्‌ ॥ एवं स वत्सरे पृण काञ्चनेन दिवाकर | सपद्महस्त ay sa यथाविभवगक्तितः | ~ ~ SRR कारयेत्पूजयेद् A THI ख वेष्टयेत्‌ । ततो VA प्रङर्वीत खथ्यमन्तश्च नारद्‌ (१) ॥ दादश कपिला दव्यादस्रालइारसंयु ताः । अशक्तः कपिलाभेकां faanrafaafer a: | (१) सव्वमन्त्रं च नारद्‌ इति पुल्कान्तर्‌ Tis: | त्रतखर्ड' २ ६ग्रध्यायः।] Paz ७४३ शं भ ~ अ, रि ~, Qet च कुरच्च aaa च प्रटोयते | वि ४ कन, + कोटि कोटिसुवणस्य दत्तस्य लभते फल | + आयुरारोग्यमेश्वय्य' भाग्यीपुतसमन्वितः॥ इति स्कन्दपुराणोक्त विश्रोकसङ्ःन्तित्रतं | 00 दति खोमहाराजाधिराजस्ौमदादटेवस्य AARTUTM- रसकलवियाविशारद्खोहेमाद्धिविरचिते चतुव्व गचिन्तामसणौ aqaw सङ्ान्तित्रतानि | अथ सप्रविंशोऽध्यायः। अथ मासव्रतानि | येन त्रिलोकौ धरणौ कतेयं कपू रतुखप्रतिमेय गोभिः । हेमाद्विस्रिः सुमहाप्रभावं मासव्रतं त्रातसिदत्रवोति ॥ वज्र उवाच | भगवन्‌ RAW केन रूपवान्‌ जायते नरः | एतन्म सथं छिन्धि a’ हि सव्व विदुव्यते ॥ AAW A उवाच, फाल्‌गुन्धां समतौतायां प्रतिपत्‌प्रति ware! यावश्व॑ची महाराज ताबत्‌स्रातो fea fer | वहिः संपूजयेदेव' केशवं भोगशायिनं | एकभक्ताशनो निल्यमघःशायौ तथा भवेत्‌ | तिरात्तोणोषितः पूजायां कुथात्तथेव च। स्वश क्या रजतन्द दयादस्त युग्म तथव च ॥ रूपाथिनो मासमिदं मयोक्ता व्रतोत्तमं नित्यमदौनसत्व कलातु नाक मनुजस्त्ववाप मानुष्यमासादय च रूपवान्‌ स्थात्‌ ॥ दति विष्ण धर्म्रात्तरो क्त' ख्पावाश्षिव्रतं | त्रतखण्ड'२७भ्रध्यायः।] Balz | भ्र ्रद्योवाच। धराज निबोधेद्‌ दमनादिमहोत्छवं | प्रघत्तवरनासेक पञ्चमोचारसुन्दर tt संयुतो नन्दनवने आवया सह भाखेया | विख्मयोत्फ़क्ञनयनो बभ्चामोन्मत्तवःच्छवः। स zea वने फले विव्याधरगणान्‌ बन्‌ । वसन्तरत्तौः नत्त मानान्‌ सुरासुरगणाचितान्‌।॥ सन्तानपारिजाताभ्यां बड़ा वे माघवोलतां। कदाचिदौलनच्चक्रः wifi घनस्नो ॥ गोतमान्दयोलकारूढा अभासन्‌ परमस्ियः। येनेवोत्पाटयन्ति a सखनाधमपिमन्मयं ॥ acu विस्मयाविष्टा भवानो प्राह WT | कौतुकं A समुत्पन्नः पत्नरगाभररण War | SAH मम कते Raa Baya | यथा समन्दोलयेऽ्ं यथा चेतरे तिलोचन॥ तद्गौरीवचनं चार श्चुत्वाऽसो तषभधष्वजः। श्रान्दोलदूारयामास समाय महासुर ii म्तम्भदयद्गरयित्वा इषटटकाटमय ट्‌ । aug वोपरितनं 2B काष्टमकल्पयत्‌ ॥ वासुकि दर्डिकास्थाने बडानन qaad ॥ तत्‌पुरा war ae aaarafaafea ॥ भूरिकार्पीसकेगेयेः ara afeaa वे। सग्दामालम्बितकर ufuatfaantge ॥ ( es } ७४६ Sate | [नतखण्डंरऽभष्यायः | चरयितला विचिचान्तां दोलां वेजालिनोल्रा | सं सिद्धां सिदमुरवे गरवे न्यवेद्‌गरत्‌ i तचारूढृस्स भगवान्‌ सोमः सोमविभ्ूषशः। मर्डनान्टोलयामास WT: THs: सद ॥ atau q विजया fae तु जया भवेत्‌ ॥ चामराक्रान्तवाद्नंगसमाज्िष्टकुचद्दयं | श्रान्दोलयन्त्वा WAN तद्गतं WESTUT I Qa देवासुरस््नौणामासौदानन्दनिभरः। जगुगेन्धव्व पतयो नढ्तुखाष्छरोगणा; ॥ उत्तालवाद्यानि तथा वादयन्तिस्म चारणाः) चेलुः कुलाचलाः सव्व Tay: सप्र सागराः ॥ ववव्वाताः सनिर्घाता दैवे दोलासमन्विते । ्रालोक्य व्याकुलं लोकं देवाः शक्रपुरोगमाः उपेत्य प्रणिपल्योचुः सव्वपापद्रं परं । उपारमस्व भगवन्‌ भवतः करौोड्यानया) जगदा घशितं 24 वि चलज्जलसागरं ॥ गोव्बषगौभिः संहृष्टः TEA Made समुत्ततार दोलातः प्रहर्षोत्‌फ़द्ललो चनः | उवाच वचनं शक्रः सुरसाथस्य पश्यतः । agama सृललित विस्फटाधेपद्‌ा चतर y ओरोमद्दन्द्र उवा | sa wafa 2 दील, क्रोडं पुष्करिगौीतटे। वसन्ते का रिष्यन्ति मण्डिते तिद्शाङ्गरे। व्रत खग्ड'२ अध्यायः} माद्रः! oye ने तपदपटौ च्छन्नं पट्यराग विम्धुषित | च्छाद कैरपसम्मन्नां विन्यस्तकनकादुकां ॥ ATA खहला। विचिचाभरणां भूरिभाभासितददिगन्तरां | मालाविदयाधराक्रान्तां प्रान्तारोपितद्पंणां i छचत्तामरसछत्नां AMAIA Hat! afmara ततः क्त्वा fea fea दिशां बलिं ॥ AMAIA वमिषटशिष्टजनाहठतं | सरूलमन्तेण Vani प्राप्त दोलाधिरोदसं॥ gaat ब्रह्मणो विदान्‌ यठेदा मन्तसुत्तमं | किश्वतखत्तरुत विश्वतोमुखो विलो areata विश्वतस्ात्‌ | dare धमति eat दपरवाभरूमो जनयन्‌ देव एकः ॥ गन्धौरत्‌ निर्घोषः कलद्धानाचचनिः खनेः ॥ स्त॒तिमद्गलशब्दे् पुष्यघुपादिवासितं। कुङ्मक्तोदताम्बुलपुष्पमालाकुली अन. tt ai विद्धाय जलक्रोडामन्यासां faguta च। पौत मौतवज्लाघा(तताह्ितो aaa; सुख मन्यते fara कोऽपि प्रभाव(ऽयमनङ्गजः। एवं येऽनुगमिष्यन्ति नरो द्‌लामुपागतां ॥ नि रुजस्त भविष्यन्ति सुखिनः ace: णत । पुत्रपोत्रसमायुक्ता घनधन्यस्मायुताः॥ fang सुखं wa ततो यास्यन्ति तत्परं । प्रास्त वसन्तसमये सुरसत्तमाना- n = ey ee eT 7 ष्म॒ न्तका ह्व ost Safe: | [awa Rowe: | | 0 on, मान्दोलनसुरवराननु Fa a Fl ते प्राप्रुवन्ति भुवि जन्मतरोः फलानि दु;ःखात्तितः कुल शतान्यपि तारयन्ति ॥ इति भविष्योत्तरोक्त आन्दोलनविभिः। Se । ee महाभारत) ward नियतोमासभमेकभक्तन यः Farag । gay मणिसुक्ताटो कुले महति जायते ॥ विष्छुधम् | चेतरं विष्णुपरो मासभेकभक्षेन a: क्तिपेत्‌ | सुवणमशिसुक्ताढय ase समवा परुयात्‌ ॥ अहिंस्रः सव्व yay वासुदेवपरायसः; नमोऽस्तु वासुदेवायेत्यहशाष्टशतं जपेत्‌ ॥ Sata यज्ञस्य ततः फलमवाप्नुयात्‌ + रति एकभक्तव्रतं | अथ वेश्राखत्रतानि | "षष MAW उवाच | s ५ €^ नशाखे पुष्मलवणं वजयित्वा तु wire: | विष्णुलोकमवाप्नोति ततो राजा भवेदिष्ह # ATGW २ऽअध्यायः।. दमाद्विः ७४९ एतत्‌कान्तित्रतं नाम कान्तिसोभाम्यदायिनो ॥ विष्णुरत टेवता। दति पद्यपुराणोक्तं कान्तित्रतं) AAT | निरन्तरेकभक्तेन ane यो जितेन्द्रियः | नरोवाथ्दिवा नारौ ज्ञातोनां Beat त्रजेत्‌। विष्णुम | य; क्िपेदटेकभक्तेन dure पूजयेरिं | नरोवा afe ar नारौ ज्ञातीनां Beat व्रजेत्‌ ॥ पअहिस्रः सव्व भूतेषु वासुटेवपरायथणः। नमोऽस्त वासुदेवायेव्यदहश्चाषटशतं जपेत्‌ । MAUI IFA ततः WAAATH यात्‌ | शति एकभक्तव्रतं! a a qq उवाच | भगवन्‌ RUT कोन aferat भवेत्ररः। एतदेव मनुष्याणां मनुष्यत्वसुपाद्तं | AAW 7 उवाच) चेत्रवान्तु समतोतायां यावन्मासं दिने दिनि। पूव्व वत्‌ पूजयेशेवं सिंहमपराजितं । ७१० देमाद्रिः। [्रतखग्डरञ्अध्यायः। पूव्व उदिति चतमासोत्तरूपावातित्रतवदेकमभक्तवहिःखान- anaifea कत्तव्यभित्यघेः | Hay we कुर्य्या त्तथा सिदाधकेच प। ब्राह्मणान्‌ Wasa तधा विमधुर aq | विमधुरं मधुष्ठतशकराः(१)। वैशाख्यां कनकन्द्दयात्रिरातोधोषितो az ज्नानावाशिप्रदन्तवेतदुतं बदिविवद्धनं ॥ Wal ad मासमिदं aara- मासाद्य नाकं सुचिर मनुच्यः | मानुष्यमासाद्य तु ब॒ियुक्तो न्नानेन AMT तथा भवेच | इति विष्णधर्म्रोत्तरोक्तं नाना वाश्रिव्रतं। अथ ज्येष्ठवब्रतानि | महाभारते । च्येटामूलन्तु वे मासभेकभक्तन्तु यः FATT | Gag मतुलं Ae पुमान्‌ स्तो वाभिजायते a faa | | कष्णापिं तमना न्ये saaua न यः fay । अहिखः सव्व भूतेषु वासुदेवपरायणः ॥ (१) दुग्ध घतश्करा इति पाठान्तर | त्रतखग्ड'२ऽश्रध्यायः।] देमाद्रिः। ४.१ नमोऽस्त वासुटेवाधेत्यह्ाटयतं जपेत्‌ | अतिराजस्य ATA समग्र HAART ANZ | इति एकभक्तव्रतं | वच उवाच) चौ विषौ नस्य लोकेऽस्मिन्‌ जोवितस्यापि कि फलं । AME A VAIS येन ABA नरः ॥ मार्कण्डेय उवाच। वेशाख्यां समतौतायां प्रतिपत्‌प्रखतिक्रमात्‌| ya वत्‌ पूजयेद्‌ वं खरौ सहायं fea दिने पृष्व वदिति चे्रादिरूपावाभित्रतवत्‌ | quae: waa a जुडयादक्षतानि च | बिल्वा asl सततं गोर सेभजयेहिजान्‌ ॥ चिराचोपोषितो ज्येष्टां aan प्रतिपादयेत्‌ | AQAA राजेन्दर तेन साफल्यमख ते ॥ Mal Ad मासमिदं यथोक्त- मासाद्य मास सुचिरं मनुष्यः, मानुष्यमासाय विह्डतजाः शिया युतः स्यान्जगति प्रधान ॥ इति विष्ण घर्मत्तरोक्त ओ प्राित्रतं। अथाषाटव्रतानि। pe Pe ke LTE षन HOF ot 1711 ee Le | | |, +>) | | कि कक श्र ORR Salle: | [aaa@wrowara: महाभारते। अआषाट्मेकभक्तन खिता मासमतन्द्रितः | बहुधान्यो बहुधनो ABYas जायते fay । ्रषाठ्मेकभकतेन प्रूजयेदिष्णुतत्परः। इति एकभक्तव्रतं | 00 aay उवाच। भगवन्‌ HIT केन भोगमाप्नोति Aras: | किन्तु भोगविद्धीनस्य कार्यमस्ति wafes i AAT उवाच। = ॐ च्यछयान्तु समतौतायां प्रतिपत्‌प्रतिक्रमात्‌ | qa वत्‌ पूजयेद वं विश्वरूपधर हरि | अत्रापि qaafefa रूपावासित्रतवदिलर्ः | कत्वा व्रतान्ते च तथा चिराच दत्वा सयुक्त शयन दिजाय। स्व्लाकमासादय fat नरन्द्र मानुव्यमासादयय चभोगवान्‌ स्यात्‌ # इति विष्णुधम्रक्त भोगावाभिव्रतं। 000 अथ wrauaarfa | AAAS २७अध्यायः ।] BATS | ७५३ सच्छ्य Sars | HITS AIT पूज्या क्रियत a कडा aa | HAAG Barwa fH फालन्तद ay मे । विजय उवाच) me a रावण मासि BAI मनोहरे । dura पाव्व तौ' देवौ" पूजयेद्वक्ि शक्तितः | मासं यावन्नियमतः Pata Wea al हदि । ~ न ~ A ~ ^ AUT VARGA: प्यतचन्दनकेन च ॥ ACA AR AS 1 ॐ > गन्धधूपख नद्येययाक्ालोडइवः HA | Ge = =\ WS दद्यात्‌ फ़देनव कुसुमात्ततचन्द्नः | नमोऽदखावण्णौ FN सव्व पायच्चयङ्करै 1 Werte हि देवेशि गङ्भरेण समं aa | 0 अष्यमन्तः | नमो नमस्त टेषेजि अद्खावणि ara fa | ~, 0 o~. ~ नमस्तेऽस्त, जमन््ातनमस्त SUAAH I नमो टेवि नमस्त॒भ्यं कात्यायनि नमोऽस्त ते ॥ नमः कालि मदाकालि fad दुग नमोऽस्त ते। oA. “8 fi क नमो सद्रासि सर्वाणि अपण यडुरप्रिये(१)। aaqyated देवि त्राहि संसारसागरात्‌, पूजामन्तः। * CK + धूपोऽय सव्व देवानां आहारो द्यखतोपमः | (१) aaa wachha दति एुूकानतर प्राठः | ( €५ ) ७५४ माद्रः | (aagw noma: | ad zaiy देवेशि अदंखावरणि नमोऽस्तते॥ शट तवस प्रदातव्य wa वा निरते शुभे । खावणान्तं ततः varaata नियमं शविः ॥ गोरिणोभोजयेच्छक्या मिष्टान्रेन जये wi festa भोजयेत्तच वस्वाणि परिधापयेत्‌ | एवं विघविघानेन FATA 1 न तस्य wa दारिद्रा न चबेषटवियोजनं | "UT Yana भत्तीरच्च गुणाधिकं) सुरूपं गुणिनं कान्त पर्डितं प्रियवादिनं ॥ एकभक्तेन नक्तन कुव्योदेतदु व्रतं शमं । द्द्‌ कत्वा पुरन्द्रणोन्द्रः लेभे पतिमुत्तमं।॥ रोडिषौ पतिमालेभं चन्द्रं व्रतनिषेवणात्‌। रणया sat सुभत्तारं आदित्य प्राप सत्पतिं! gem कथितं us अरदईखावणिकाव्रतं | कुरुते ata quifa aataar भवन्ति fF al Weaderaare देवो न वर्षति। कथायवणमाचेण देवो वषति वासवः ॥ gies डामरे घोरे aera राजविग्रहे। कथामेतां निशम्याशु Da: सर्वै; प्रसु यते ॥ इति बह्याण्डपुराणोक्तमङश्रावणिकात्रतं | 000 युधिषिर vara | HAGW २ऽश्रष्यायः'] SATS! | ९१ स्वभारति सम्बन्धे महासेहो वथा भवेत्‌ | कलस्तोणां AVA Ad मम AUT | ag उनाच | यसुनायास्तटे Yr मध॒रास्ि पुरौ एमा | तस्यां शचन्ननामाभूद्राजा राघवनन्दनः ॥ तस्य भार्य्या कौत्तिमाला arate प्रथिता भुवि | कदा प्रणम्य भगवान्‌ वशि्ठसुनिसत्तमः॥ पृष्टः कथं Aaa ys सौभाग्यमतुलं लभेत्‌ | ate मे तिलसम्बन्ध कारण त्रतसुत्तम | एवमुक्तस्तथा ज्ञानो वशिष्ठः कोततिमालया | ध्याला सुत्तं माचख्यौ कोकिलाव्रतसुत्तमं । वसि sata | AMUNSNUA AA सन्धाकाले Tafa | सङ्ल्पयेन्मासमेक खावणौप्रश्ति Bs | aia करिष्ये नियता amaa feat aay | भोच्यामि नक्त भूगय्याङ्रिषये प्राणिनान्दयां। इति सङ्कल्पया पुरुषोनारो वा ब्राह्भाखान्तिकं | प्राप्यानुन्नान्ततः WE सव्व Balada: | परुषः प्रतिपत्‌काले दन्तधावनपूव्व कं ॥ नयाङ्गतलाथ्वा वाप्यां agua fear सती। तुल सौखत्तिकां zea तडागे गरि निर | खानं कुय्यीट्‌व्रतौ पाथ सुगन्धामलकेस्तिसैः | ५९ हदेमाद्रिः। [तख रण्ड'२७अष्यावः } दिनाष्टकं ततः Vary सव्वाषध्या पुनः पुनः ॥ यवया favar चाष्टौ दिनानि ए्गाचरेत्‌ | स्नात्वा ध्यात्वा रविं सन्धगन्तपेयिल्ला fas, eer: तर्पयिला fata पिषेः कोकिलां प्तिरूपिये a HARA शभे: पुष्ये: YATRA: | alaat घूपनेवेय दीपालक्लकचन्दनः॥ तिलत गडलेदू ata: पूजयेत्तं मापयेत्‌ | fam faagiga मन्ते waa पाण्डव | तिलात्स्रेहन्तिलाव्सीद्यं तिलवखं तिलप्रिये । सौभाग्यघनपुदांश्च देहिमे कोकिन्ते नमः) इत्य मव्य ततः UTA संयतः ॥ कत्वाहारं BUT यावन्मासं समाप्यते) मासान्तं तास््रपाचे त्‌ awa तिलपिष्टजां a रलने तां awaat sree निषेद्येत्‌ । ALS गुड युता ATA दु गड सेऽधवा ॥ PSII का Saw वा प्रोहति, व्यासे वा संप्रदातव्या व्रतिभिः शभकाङक्षया। एवं या कुरुते नारौ कोकिलाव्रतमादरात्‌ | सप्तजन्मनि सोभाग्य सा प्राप्नोति सुविस्तरं ॥ निःसपल्न पतिं मव्य aay प्राप्यं waa | Bat गोरोपुरं याति विभानेनाकंवच्च॑सः ॥ एतदुतं atte a मुनिना गदित ger | तघा चानुष्ितं पाये समग्र कौर्त्तिमालया ॥ त्रतखर्ड'२ऽअरध्याथः] Paz t तयाप्त सव्वं सस्मर ane aearfs =! पतसौभाव्यसत्‌कारं VATS प्रसादतः | एवमन्यापि कीन्ह य कोकिल्लाव्रतमाद्‌रात्‌। पतरिष्यति ध्रुवं तराः सोभाग्यञ्च भविष्यति ॥ ये कोकिलं कलरवाङ्लकर्ठपोटां यच्छन्ति साज्यतिलपिषटमयी' दिजेभ्यः। ले नन्दनाद्िवु aay faa कामं मचः समेत्य सधेरध्वनयो भवन्ति । इ ति भविष्योन्तसयो क कोकिलान्रत। OOO ASAT | श्रावणं नियतो मासमेकभक्तेन यः च्तिपेत्‌ t यतर तताभिषेकेण युज्यते ज्ञातिवडईनः॥ fama | aaa कभक्तन Baw विष्णुतत्परः t afte: सव्वभूतिषु वारुदेवपरायणः । नमोऽस्त वासुदेवायेव्यड घाष्टतं जपेत्‌ | वाजपेयस्य UAHA समय फलमस्ते। 000 afa एकभक्तनतं | वज्र Sqr ७५७ Sy माद्रः | [तव्रतखर्ड' २ OF VITA: | भगवन्‌ कमणा केन नित्य ward waa | G $ + TRIM महाभाग जन्मसाफल्यकारणं ॥ माकर्ड य उवाच | Bast समतोतायां प्रतिपत्‌प्र्ति क्रमात्‌) Ta वत्‌ पूजये व धश विग्रहधारिणं | - ~ ~ = . qqafeaaa रूषपावातित्रतानुक्विगेषंण ग्रहणं t मासस्य Wa TI पौणमास्यां कुय्याचिराचः कनकच्च दद्यात्‌, व्रतोत्तमं WHAT A £ ^ + सव्वायद्‌ नाच विचारमस्ति, इति विष्ण.धब्ममत्त रोक्तं धम्म वाश्िब्रतं | 000)000 अथ ARITA hat | OO महाभारते | प्रो्पादन्तु यो मासमेकाहारो WAAT | धनादटपस्पौतमतुलमेश्वय' प्रतिपद्यते | nS विष्णुधम। एकाहारो भाद्रपदे यश्च कष्णत्रतं नयेत्‌ | अहिखः सव्व way वासुदेवपरायणः | नमोऽस्तु वासुदेवायेत्यदशाष्टग्रतं जपत्‌ | व्रतखग्ड'२७अर्यायः।] PATER: | UWIAA TIA WARAYT लभेत्‌ | दति एकभक्तव्रतं | 000 व्र उवाच । भगवन्‌ कर्मणा केन धनवान्‌ पुरुषो भवेत्‌ ¦ स॒जवान्‌ देवलोकेषु gaa भवति मानवः ॥ oO om Aint य Sata |! खावण्यां समतोतायां प्रतिपत्‌प्रश्ति क्रमात्‌, पन्वेवत्‌ पूजयेदिष्णुः देवं सङ्घं णं fay | अनुकतन्तु रूपावासि व्रता दिज्न यं | नौलोत्यलदलेः पचे खङ्राजस्य पार्थिव | तेन परमान्नेन तथा faa a पार्थिव ॥ चिराचोपोषितः सम्यक्‌ प्रोढपद्यां ततो नरः! गाञ्च Cafe Hay ATTA मनुजोत्तम ॥ कछला aad मासमिदं त्योक्त- मासादयनाक सुचिर मनुष्यः। मानुच्यमासादय धनान्वितः स्यात्‌ व्रतेन aaa नरेन्द्रसिदहः॥ इति विष्ण धमी त्तरोक्त' धनावा्नि्रतं | eo OSS प्रथाश्चिनव्रतानि। 4 ५६. Alle eae: | [्रतखर्ड'२७अध्यायः । व्रद्रोवाच | मासि तचाशद्रुजे War एकाट्ष्यासुपोवितः। न्क्ञौयात्त व्रतं AS AACTS महाफलं ॥ अहिसकाः शुचिद्धखः ध्याम जिवेन्द्रियः। SISA ACSIA वासुदेवः जगद्गुरु" ॥ विलिप्यतु BAA चन्दनागुरुकुद्ध मेः । कमलोत्यलकच्वारेरकोत्मलसुगगन्धिभिः। अच्च येदच्यतं fast माल्या च सुगन्धया | तेन YAMA नतु AAT पर्येत्‌ ॥ दौपं zatfeat नक्तं aul dq चिरा शभ | नेवेद्यं पायस्ापुपमोद्‌ कविं {निवेदयेत्‌ ॥ fata वासुदेवःय waar चेव जितेद्द्रियिः। व्रतमेतन्नरः कल्ला धम्य ध्यात्वा चमापयेत्‌ ॥ च्रं नमो वासुदेवायसततच्च जपेदट्डघः। विप्रां भोजयेद्रत्या casa तु hau | अनेनेव विधानेन मासमेकं areca ॥ यावद्धिबध्यते देवः कात्तिखे गरुडध्वजः । त्र तमे तब्डद्ापणय सह।पातकनाणशन ॥ समं मासोपवासेन फलसस्याधिक्र इ a सव्वकामप्रदं UA पुत्ारस्यधनःयदह्‌ | त्रतमेतब्ररः कछला MAW HAs AA | इति विष्ण र दस्यो क्तं कोमुदोत्रतं। ree ्रतखण्छरऽअध्ययाः'] BALE: | AT उवाच | भगवन्‌ RAI कन ALIANT AAA Aa | रूपसौभःग्यलावण्य' सरोमस्य निरथकं | AAW य उवाच । प्रोषठपद्यामतौतायां प्रतिपत्‌प्रखतिक्रमात्‌। याद्‌वाय दिबाच्चांयामनिरुद' प्रपूजयेत्‌ । qataa विधानेन वावद्‌ाण्बयुजौ भवेत्‌ | य्व क्तेन रूपावःप्तिवृतोक्त न | सारसरचयेदवं जातोपुष्प दिने दिने, सारसः कमलैः | gaa जदयादह्कि wa दद्याहिजातवे। भोजनं मोरसप्राय aa विप्रांश्च भौजयेत्‌। लतिरानोपोषितः सम्यगाश्वयुज्यान्ततो नरः | सघत ससुवणच्च कांस्यपातच' fear i ददान्रपतिगादू ल ATAU asa | qanafefafee खगलोकप्रदं शुभ'॥ न maa रोगहरं प्रदिष्ट मान्नञाकर रूपविष्ठडिदञ | advan ते कथित gate AAS HAART दलोके। इति विष्ण धर्मोत्तरोक्तमारोग्धत्रतं । पा ( ९६ ) ^ ७६२ दमः द्धिः [तरतखर्ड'रऽ्रध्यायः1 महाभारते) तप्रैवाश्वधुजं मासभेकभक्तन यः Pada WU ASA TIA TEYIA जायते| विष्णुधर्मत्तरे | नयं खा्लयुज MCE पृजयन्नरक्तभोजनः । aise, सव्व भूतेषु वासुदेवपरायणः ॥ नमोऽस्त दासुडेवायेत्यदहथाषटटगतं जपेत्‌ | अतिरात्रस्य यज्ञस्य ततः फलमवाप्नुयात्‌ ॥ दति एकभक्तवतं | el ft: 6 अथ कात्तिकवतानि। rs ^ ~+ ५ का{तिकोम।सः सव्वं यत्योऽग्निश्च सब्वेरेवानां मुखं तम्मात्‌ © ~ ^~ = ए aifaa मासि बहिः alata गाथनोजपनिरतः। सव्वं दैवद्विष्यामौ संवत्सरकतात्पापात्‌ यूतो भवति । इति विष्ण wae: काल्तिकस्ञानविधिः। ~~ ™ मेचेय arg | ह - A Cm, कात्तिक; खल मासाव सव्व देवमतोमदहान्‌ | 0 खानि कच्छा (१) दीक्तानि सव्व ay sufa fea कलानि सुनिभिस्तानि भवन्ति मनुजाधिप | (१) यनि aaa a इति पाठान्तर | amas. शग्रन्यायः।] देमाद्धिः। of देवप्रिकठमसुषयेभ्यो दत्तं छतमधुश्रतं॥ तचात्रमच्तथं Wa ब्रह्मा लोककलठ ar | ane हरि भक्तया दीपं दच्च! दिवानिशं | सव्व पापविश्द्ात्मा नरो याति fea ae | दति वङ्किपुराणोक्त कात्तिकत्रत | सनत्कुमार Fats | दामोदरस्य वाक्यन्तु श्युला TABATA! केनोपायेन भगवन्रश्यते तन्महस्मः॥ नाकलोकसमं सौख्य GANT AIT | भगवन्‌ देवको पुतरस्तदाक्चस्यीत्तर ददौ | उवाच परमं TAH मनोरयफलप्रद्‌ | भो णुष्व महाबुद्धे यत्‌ प्रवच्छामिते वचः ॥ ae आश्वयुजे मावि पौरमाखां aaa: ॥ qua च निगारम्भ AMARA: | नमः पिठभ्यः प्रेतेभ्यो aaa] किष्खडे | नमो यमाय रुद्राय कान्तारपतये नमः \ दव्यादनेन Hay दोप खदासमन्वितः | थ. कार्तिक AAI TU तस्य TUT | द्िवाकरेऽस्ताचलमौलिरते WEISS एरुषः परार | यु पाक्ति यन्नो यद्वचद्‌ार्‌ Ae safe: 1 [तरतखग्डरऽअध्यायः | nitia भूमावथ तस्य afe ॥ यवाङ्गलच्छद्रि FATA, मध्य दिदस्तदौषश् सुपट्िकासु | कृत्वा चतसरोऽषटदला HAT, याभि्मवेदषटददिगानुमारे। यवैश्नितमङ्लं यवाङ्ग ल | तत्कखिकायान्तु महाप्रकाभौ दोपः प्रदेयो दलगास्तघाष्टौ ¦ खदिद्खा दौपवरास्त्‌ तेल छतादियुक्षास्त AGATA ॥ VAP AAMT AaQw नवं सुरक्रन्त्रथवा YLM | sagam woffa 4 धन्यं प्रयोज्यं AGHY BAT शिग्ध सुखत्व ससम समस्त; तच्छालिपिष्टोपरिसन्निघेयं यथा न नश्येन्न च HMA AT i aq प्रकुय्यांचिगुणप्रमासं मध्व स्ितस्याप्यथ दौपरान्नः | दलेषु शोभावमतोव कुर्य्यात्‌ मनोरयानासुपलब्धये च" घरटाद्क लम्बितपुष्यदटाम खुवस्तरगोभाज्ितमत परात्‌ | anew २७ग्रध्यायः।] Barts: । ७६१ संयोज्य afd त्वथ गोमयेन सचन्ट्नाक्तेन जलेन fant li अनेकवणेरथ AWA तु कछत्वा्टपच्रं कमलप्रमाख) फलानि मुलानि तधाच्ततानि लाजा दधिक्तौरमयान्नरपानं ॥ नानाविधं भक्तविशेषणच Urata AYTH वाद्य t निषद्य waia हराय wal दामोदरायाप्यय TID i प्रजापतिभ्यस्त्रथ aaqfaaw: Taw Vary तमख्ितेभ्यः। नेक त्यकोणाद्थय दच्तिणान्त धश्मादिभ्यः प्रेतपयान्तिकेभ्यः। ततोजल शोतलमानयित्वा सपिःसमध्वक्रमतीव eat MIT Wel AAMT जलेन awamuey सद्िधाय । हे मादिषपाचन्तिलिभेव पूरैः दय 1त्पिघानञ्च सद्त्िणच्। गोभूहिरण्य way वस्त फलानि भरूलानि aaa ura WE रथं शयन जान a ७६६ माद्रि [ व्रतखण्ड'२७अ्रध्यायः ४ aaa fafarea मनोज्ञं । निवेदयेद्‌ एसत्तमेभ्यो AW त्यकोणाद्‌थ dha: | UMA: NUBIA Rata waifza: प्रेतपु्यन्तिकेभ्यः | एतत्समग्र विधिवच कुर्य्यात्‌ स्वगक्तिमादो सखधनं विचाय्य tt दौपान्‌ समग्रानथ वजथित्वा सव्व नयेय॒स््वपि विप्रसुख्यान्‌ | प्रदक्तिणोकत्य वनाङ्गनान्तु ततोभवेच्छवतनक्तभोजो ॥ वनाङ्गनां वनदेवतां दौोपस्तन्ममून्तिं) इतोदमोटग्‌ Mag aa निशागमे प्रत्यहमेव Faz | मास AAD UAT च भक्तया समाप्यते कार्सिकपौणमास्यां ॥ दिनत्रयं दौोपमदोच्छवं वा एकोऽथ वा दोपवरश saz t aura यज्यादिसमग्रमासं निशागम प्रत्यहमेव भक्तया ॥ नमोऽस्त कान्तारकदेवताभ्यः Ala HA MVEA VA | नाय्य ALU सुसंयतेन ४ | र त्रतखर्ड'२७अध्यायः।] देमाद्धिः। 229 wan aaa निशासु भोज्य | सन्ध्याच्ये दौपवराश देयाः tat समे कात्तिकपौीगमास्यः। दरि देश्मस्वधथ गोकुल षु श्म्ानदेवायतनेषु चेत्य नदौतरेषु BVA वा अधेकलिङ्के पथि चेककते ॥ usauvifanna तेल- पलस्य Wa ATA Wa at ये al तदचरथवा तदः प्रमाप्य रिक्तास्त्वय पूरणोयाः। हस्तान्‌ स्ववौथां ख चतुहभेव प्रमाप्य वस्तं त्य aaafa i प्रज्वा लयेत्ताञ्च निरुष्य dats स्तो णामलङ्ारशतेः प्रपृज्य । ट्वो महावत्तिंरतौव वन्या पुण्या च साद्या भुवनप्रकाशौ॥ एतन्न FACT यस्त AS स्तस्यान्धकारस्य कुतोऽपि शान्तिः! अयं ह दोपः क्िलकल्यलच्- शिन्तामरणिभदरषरोऽथ ay: अनेन दौपेन मनोरथानां सम्प्राकिरस्तोति न संशयोऽत्र 9@5 देमाद्धिः | व्रतखर्ड़ २ऽब्रध्यायः। एतानि उक्ता nfafazaifa दामोदरश्चान्तरितोवभ्नूव ॥ इत्या दिपुराणोक्तः प्रदरोपविधिः। वज्र उवाच | भगवन्‌ THU केन सव्व त्र जयमाप्र यात्‌ | व्यवहारे रते aa विवादे च festa i जयावाप्तः परन्नास्ति सौख्यं लोकेषु सत्तम्‌ | Baa परं सोख्य तदपि व्रतसुच्यतां | माकंर्डय उवाच) अआश्वयुज्यामतोतायां प्रतिपत्‌प्रतिक्रमात्‌। qa वत्‌ पृजयेदेवं लोकनाथं तिविक्रमं 1 पूव्वेवदिति रूपावापिव्रतवत्‌ | विरातगन्तं तु कात्तिकयां दयाद्क्तणसुत्तमं | सव्व शस्य घरङ् त्वा HANTS TAS तः । wal aad मासमिद यथोत प्राप्रोति लोकं सुचिर नरवर | तचोष् कालं Bhat मनुष्य प्राप्रोति सव्व च जयन्तिलोके | इति विष्ण घर्मीत्तरोक्त जयावात्निब्रतं। गभर). 4 व्रतखण्ड २ अध्यायः] शेमाद्धिः। ote ब्रह्मोवाच | ay कार्तिके मासि देवतिंपिटसेविति। क्रियमाणे व्रते द्रुणा wer ऽपि स्याखदहाफलं ॥ GT संवत्सरः पुण्यस्तस्मादषोसु पूजितः । वर्षायाः aida: पुष्यः काति काङ्ो सपञ्चवं ॥ aaa gag अचनं सुविलेषनं | देकं कात्तिक विष्णोः फलं स{वत्सर लभेत्‌ ॥ रतः कात्तिकमासादय Wea रभकाङचिभिः। रिसुदिष्य कत्तव्य सुशकतया सुकर व्रतं ॥ कात्ति कस्यासिते पत्ते वायुभन्तखतुभो' | समुपोष्य नरो भक्तया पूजये सड्ष्वज ॥ Suga कत्तव्यो afiad सितेन च । जलक्च्छमिदं कत्वा विष्णुलो क व्रजेन्नरः ॥ दशम्यां पञ्चगव्याशो एकादश्यामुपोषितः । अचयेचाच्युतं देवं नियत त्रतश्चरेत्‌ ॥ कात्तिकस्यासिते कला नरी देवत्रतञ्चरत्‌। दामोदरं aM देवो देमानिकौ भवेत्‌ । su: चोरं दधि va सप्तम्यादिचतुदिन। atta कस्यासिते Tar एकाद्श्यासुपोपितः ५ छच्छपे तामं नाम Haq संप्‌जयेदरि। mafia परमं विष्णोः स्थानं त्रेलोक्यपूजितं। fatia’ पयसः पानमपवास्परस्यच॥ Weta कति के Wa HM ASR उच्यते | ( «9 ) ९७. Sale: | [त्रतखरड२७भ्र्यायः। दामोदरं WUD छच्छ' ATBRATAT | | प्रथात्यसुलभन्देव FAYM AAT | AIS TAIAAMATAIRY ATS AA: I aaa नौोवारान्रं । त्रयदद्चोपवसेदन्तय' कच्छोऽयं FUT खातः | कान्ति कस्य ठतौयादावर्चथेदिष्णमव्ययं | RIA नरो याति तदिष्णौः परम I Tata पयः पौला प्रतिपत्‌प्रथ्तिक्रमात्‌ | दष्याद्ारो WITT एकादश्यामुपावसेत्‌।॥ कार्तिकस्य सिति कुर्व्वन्‌ पूजयेद्र सड्ष्वजं | भास्कवराख्यमिद्‌ङ्ला प्ते तदहीपं वजेत्ररः ॥ यवागू" यावकं शाकं दधित्तौ रष्टतच््ल | पञ्चम्यादि faa पचे कार्तिकस्य समाचरेत्‌ ॥ ae anced ga न्विष्णु चने रतः | Awa लोकमाप्नोति पुनरात्तिवस्नि तं | पलाश्रविल्वपतरैख FAITAT म्बरः | quag प्वित्‌ aie षष्टयमासुपवसेदिन ॥ gaa दि कार्तिके शकते ठच्छमाग्ने यमुत्तमं । fanaa भक्तयाभ्यच्यं जनादनं।॥ aa विल्वानि पद्यानि खणालकवलानितु। सप्तम्यादौ नरः क्त्वा एकादश्यासुपाजसेत्‌ | कात्तिकस्यामले पन्ते लच्छोप्रदभिदं ad t ATTY WaT वेष्णवो गतिमाभ्रुयात्‌ ॥ व्रतखण्ड'२७अष्यायः। ] ale: | 99१ कप (१ कच्छा तामि aaa सव्व पाप्डरारिच। © =a 4 oa, ~ कत्त व्यानि नरभक्या कात्तिकं तु faweaa: | ग्टस्यो वा Aaa वा YRAata भित्तकः । Ral व्रतमवाप्रोति AWA पदमव्ययं ॥ छच्छ!णि Haq Vata बाञ्चनोनियतिद्दरियः | घौ तवासःतिखा तः पूजयेद्‌ TAB ॥ अद्धिसको दानरतोे जपद्ोमपरायणः। रचयेदुवरद्‌ विष्णु कछच्छाणितु समाचरेत्‌ | व्रतद्रव्याणि सव्वािन्लोरादौनिसदात्रतौ। विप्रदत्तानि aad wal न प्रकामतः॥ यानि वे परकोयानि द्रव्यारि कथितानितु) तेषां पुखतमन्दान यष्दाति fears | कुव्व न्‌ छच््रणि Neca: WaT FRAT वा ॥ श्ररुतन्तु गवां ्तोरं पाययेत्‌ पौोडितन्नर | Sal तान्यत्रतच्चानि भ्रापो सूल फलं पयः | © e Saar Muna च गुरोवचनमौषघं | यथोक्तेन बिधानेन छच्छारि समुपाचरेत्‌| alfa & कष्णमभ्यच्यं याति यच wate a: 9 And, एवं watwafia पूजितो मरुड्ष्वजः | व्रतोपबासनियमेस्त सुक्तिफएलभागिनः ४ दति विष्ण रदस्योक्तानि छच्छुब्रतानि। tale ni | 58२ Safe: | [व्रतखण्ड'२ऽअरष्यायः। ATalal Says | Ga Kila A AL राजा TAIFS सुने। afeat diedgat कथं सम्बभुजें az विष्णुमक्लस्ततिपरः प्रवरः स aetfaat तस्मिन्‌ gana मासि तस्यां किमकरोचुपः ॥ वसिष्ठ उवाच | संप्राप्य कात्तिकं मासं प्रवोधकरणं इरेः | अतिसुग्धोऽप्यसौ राजा मोदहिनो' वाक्वमत्रवोत्‌ # वत देवि लया are बहन्‌ संवत्सरान्‌ मया | तवापमानस्य भयान्न त्व Yat मया कचित्‌ ॥ GMa व्रतकामोऽद तन्निबोध वरानने! लय्यासक्तस्य मै देवि बहवः कात्तिका गता; ॥ न व्रतो कात्तिके जातो सुक्घैकं हरिवासर | सोऽहं कति कभिच्छामि ada ufcafeaa ॥ अव्रतेन गतो येषां कान्तको Hal AAT | दाप्तं वथा तषां wa पद्चोद्रवात्मजे॥ मंसाभिनो fe भूपाला भवत्ययं खगवागताः। ते मांसं कात्तिक त्यक्ता गता fared शभं॥ प्रठत्तानां fe warat ahaa नियभे छते, saa’ विष्णुरूपत्व प्राप्यते मुक्तिसाधनं a हृदयान्नाद्कटणि दौ पदानादिवं ब्रजेत्‌ | तस्याप्यभाषे सुभगे परदौोपप्रनोधनं ॥ कत्तव्य भूतिकामेन सव्व दानाधिकरं यतः। व्रतखर्ड"२ऽअध्यायः।] दखेमाद्धिः। एकतः सव्व दानानि दीपदानं {द चैकतः । कात्तिके न समं प्रोतं दौपको ह्यधिकः स्मतः । कार्तिके atta at nat विष्णोर्नाभिभवोडइवे। SAMA: RAY पापाुयते नाच संशयः । व्रतीपवाप्तनियमेः atta at यस्य गच्छति ॥ देवो वैमानिको wat a याति परमं पदं | तस्मान्मोहिनि ale परित्यज्य ममोपरि | भव भ्रूधरपूजायां निरता नोरजचचणे | अहं त्रतघरघव भविष्ये रिपूजने। मोहिन्यवाच । विस्तरेण ममाख्याहि माहात्म्यं कातति कस्य च | सव्वपुणयाधिकः प्रोक्तो मासोऽयं राजसत्तम ॥ विशेषात्‌ पुष्करे TAT हारावत्यान्तु BAe | Sar काति कमाहात्म्यं afea se थयेष्ठितं । SMIFS उवाच | मादहात्म्यमभिघास्यामि मासस्यास्य वरानने। येन ते जायते भक्तिभक्तया येनाच्यं ते हरिः ॥ कान्ति के छच्छसेवी यः प्राजापत्यरतीऽपि वा । षड दाद णाहं पक्तवा मासंवा वरषयिंनि॥ चपयिला नरो याति afean: परमं adi एकभक्तेऽधवा नक्त तथा Bar अयाविते । छते नरेद राप्राभिभषेदे दौपमालया । तस्मिन्‌ हरिदिने पुण्य तथा बे भौोषपद्धकं | 292 99% देमाद्विः। [त्रतखर्ड'२७अध्यायः। प्रवोधनौ नरः क्त्वा जागरेण समन्विता | न मातुजठरे afa अपि पापान्वितो नरः ॥ afafed बरारोहे AIA यस्त॒ पश्यति | विना सांस्येनयोमेन स्याति परमंपदं ॥ कात्तिक मण्डलं SET सौकरे शूकरं एमे! SUT HII BY A WADA भवेत्‌ | चिवधस्य तु पापस्य eer मक्तिभवेन्रणं | मन्दरे चपलापाद्भिः कुजके श्रौधरं तथा ॥ क) न्तिके वर्जयेत्तौलं काति के ast aay । कान्ति के वज्जयेत्कांस्य' aha a मासि afd i aa रजिकादिसन्धानं। निष्यावान्‌ कात्तिक देवि यो yea विष्णुतत्परः । संसस्सरकतात्प्‌ खाद्धानिभवति ATAU ॥ प्राप्रोति रजकी योनिं सङद्वचणसमभवात्‌। कार्तिके सीकर मांसं aq yea सुदु्धतिः । षष्छ्व्व॑धसदखाणि रौरवे परिपच्यते | तन्मक्तो जायते पापौ fasrat ग्रामशुकरः॥ न Het मत्तयेन्मांसं न ara नान्यदेव हि), चर्डालो जायते राजन्‌ कात्तिक मांसभच्णात्‌॥ कान्ति कः aaa: किञिदुतधरस्य तु, TSI A VHA AT शोच्यः कताक्षते ॥ कत्तिकेतु कता Shar नृणां जन्मनिकुन्तनौ । तस्मान्सव्वं प्रत्नेन दौचादधर्बीत कात्तिके॥ FAW २७ अध्यायः ।] माद्रः | अदोचितस्य arate कतं सव्वं' निरथेक। पशयोनिं समाप्नोति Staal कुलजन्म च) awe कात्तिक कुादिभेषेण तु कात्तिक । तीर्थेषु ahaa बुर्व्यात्‌ सव्वयत्ेन भामिनि। कात्तिक शक्तपन्तस्य छलत्वा Basa नरः। WAS BAT कुम्भान्‌ स याति दरिमन्दिरं ॥ संवत्सरत्रतानां हि varia: कात्तिक स्मता, पञ्चाहा यच दृश्यन्ते विष्णो नभिजसम्भवे | दिनानि aa चत्वारि तथेव acafafa | उत्तरायणहौनेऽपि gfe विना शभे 1 दष्यन्ते यन्न सम्बन्धाः पुत्रपौचविवद्नाः | amie कत्तीस्मि कात्तिकत्रतसेवया | अगेषपापनाशाय तव प्रोतिविहठडये ॥ इति नारदोयोक्तं कात्तिकमा स्रत | ब्रह्मोवाच | SIM कात्तिक AG Sat भक्तिरतो नर; । शाकपाचकनक्ताणौ प्रातस्लायो शिवारतः॥ पूजयेत्तिलदहोमस्त मघुत्तौरष्टतादिभिः। ATA टेवौमन्तंण ङण GAG इरे; | महापातकसंयुक्तो युक्तो बा ATTA: | सुष्यते नात्र West यस्मात्सव्वगता शिवा॥ Soy ७०६ देमाद्रिः । (wae २७अध्याय; | रन्यो वा भावनायुक्तो अनेन विधिना frat | aa वा अन्यतो वापि पूजयेत्‌ पूजयेत ar न तस्य भवति व्याधिन च श्रतं भयं | नीत्पातं खददुस्य वान च राष्ट विनश्यति॥ मदास्रभावसस्परन्रा ऋतवः शएभदायकाः। निष्पत्तिः सव्व शस्यानां तस्करा न भवन्ति च। प्रभ्रुतपयसो गावो ब्राह्मणाः सतक्रियापरः | faa: पतिव्रताः wat zat निं तवैरिशः ॥ फलपुष्यवतो दैवो वनसखतिमतो महो | भवने नात्र Ve दशर्डिकातिधिपूजनात्‌। जयन्तौ AFA कालौ भद्रकालौ कपालिनो। दुर्गा wat शिवा घाजी खघा खाष्ा नमोऽस्तुते | अनेनेवतु मन्तेख AIA कारयेत्‌ । प्रातः सम्यक्‌ स्मता वत्स aferwl प्रपूजिता a sq नाशयति fan यथा सूर्य्योदयस्तमः। इति देवीपुराणोक्तं देवोत्रतं । 000 नारद्‌ उवाच्च। भगवन्‌ खोतुमिच्छामि व्रतानामत्तमस्य च | विधिं मासोपवासस्य फलश्चास्य यथोदितं ॥ यथाविधा at: काया AAT यथा भवेत्‌ I भारभ्यते aya समाप्य हि यघाविचि। त्रत खण्ड'२७अ्रध्यायः!] देमाद्धिः। ७99 यावल्संख्यन्तु Aaa तावदुन्रूहि पितामड | व्रतमेतत्‌ सुरथ विस्तरेण ममानघ t ब्रह्मोवाच | साधु नारद्‌ WAT VAT तपोधन, याषृद्तिमतां Be तच्छगष्व व्रवीमि ते। सराण यथा विश्णुम्तपताद् aar «fa: | aa: शिखरिणां यददेनतेयस्त पत्तिं ॥ MATA यथा गङ्गा प्रजानान्तु यधा TSU | AG सव्वेत्रतानान्त॒ तदहन्मासोपवासन I सव्व व्रतेषु TMT सव्व तौ धषु यत्फलं । सव्व erates वापि लभेन्मासोपवासक्रत्‌ । अग्निटोमादिनिैज्ञविधिवद्ूरिदक्तिणेः। न तत्यणयमवाप्रोति यन्मासपरिलङ्नात्‌ ॥ तेन zu इतं aA सखानद्धेव AI कता । a करोति विधानेन नरो माससपोषरं | प्रविश्य awd यज्ञ Fans Hares | गुरोराज्ञां ततो लब्धा कुव्यान्मासोपवासन। वेष्णवानि ययोक्तानि war सव्व व्रतानि तु| दादभ्यादोनि guia तती मासमुपाचरेत्‌ | Sanh VARY कला चान्द्रायणं ततः | -मासोपवासङ्कव्वोत ज्ञाता देहबलाबलं 2 वानप्रखो यतिव्वापि नारौ वा विधवा सुने। मासोपवासं Hala गुरुविप्रान्नया ततः ॥ ( ea ) 20 देमाद्धिः। [acraes' २ेऽअध्यायः । आश्िनसयामल्ते पत्ते एकाद्श्यासुपोषितः | त्रतमेतत्त्‌. गल्ञौयाद्ावत्‌ तिंप्रदिनानितु ॥ दासुटेवं सम॒दिश्य कात्ति कां सकलं नरः । मासच्योपवसेदयस्त स मुक्तिफलभागभवेत्‌ ॥ श्रद्युतस्यालथे भक्तया चिकालं कुसुमे; शभे; । मालतीन्दौवरे पञ्चः कमलैः सुसुगन्धिभिः॥ कुङ्मोभोरकपूरेर्विलिप्य बरचन्दने; । नेबेद्यधूषदौपादेरचयेत जनाद्‌ नं | मनसा HAUT वाचा प्ूजयेहरुडध्वजं । कुष्य त्ररस्िसवनं avsfafudfea: ॥ नाम्नामेव aata विष्णोः कुथादहनिं गं | waa विष्णो स्ततिवाच्या खषावाद्‌ं विवज्जंयेत्‌ ॥ सव्य सत्वद्यायुक्तः णान्तठत्तिरदहिंसकः | Bel वासनसंस्थो वा वासुदेवं प्रकौत्तयेत्‌ ॥ खः त्यलोकनगन्धादिखादनं परिकीत्तनं। अन्नस्य वज्ज येत्‌ wa यासानाच्चाभिकाङ्नं॥ aaa शिरोऽभ्यङ्गं ताम्बृलं सुविलेपनं | AA वञ्ज येत्‌ सव्व ' यच्चान्यतर निराल्तं ॥ area न स्यहेत्कि्चिदिकन्भस्थान्न चालयेत्‌ | स्रतायतने fasa हस्य खरेदतं | चत्वा मासोप्वासन्तु सम्भतात्मा जितेन्द्रियः| ततोऽचथेत्ततः पुष्यं दाद्श्या ङ्ग रुडध्वजं | पूजयेत्पष्ममालाजिगेन्यधू पविलेपनेः | नत खण्ड'२७ब्रध्यायः 1] PATH । ७9७€. वस्त्राल्ारवाद खच तोषयेद्‌ चतं नरः ॥ स्रापयेत हरिं भक्तया तौथेचन्दनवारिणण | चन्दने नाललिसाङ्ग एष्यधूपेरलङ्कतं ॥ वस्वदा ना दिभिञखव भोजयेच दिजोत्तमान्‌ | zag efaui तेभ्यः प्ररिपत्य aura ॥ विप्रान्‌ चमापथित्रा तु fre पूज्य च। एवं वित्तानुखारेण ufagaa शर्तितः। एवं मासोपवासन्तु KAI जनार्दनं | भोजयित्वा दिजांश्ैव विष्णुलोके asad । एव मासोपवासं हि सम्यक्‌ Gal तयोदश | नि्खौपथेत्ततस्तान्‌ वे विधिनानेन तच्छ. णु ॥ कारयेदेष्णवं यन्नमेकादटश्यामुपोषितः । पूजयिता च देबेणमाचाय्यानुज्ञया sfx a अचयित्वा हरिं waar अभिवाद्य गुरुन्तया | ततोऽनुभोजयेदिप्रान्‌ भोजयोत यथाविधि ॥ विड कुल तारि चरान्‌ विष्णुप्रूजनतत्मरान्‌ | पूजयित्वा हिजान्‌ सम्यग्भोजधित्वा तयोद्गं ॥ तावन्ति वस्वयुग्मानि भाजनान्यासनानि च । योगपद्ानि gaye ब्रह्मसूत्राणि चेव हि! ea दिलाग्रेभ्यः पूजयित्वा प्रणस्य च । . त तोऽनुकल्पयेच्छय्यां शस्तास्तरणसंस्कता ॥ साच्छादनश्भां Ast सोपधानामलङ्घतां | कारयित्रातमनो ata काच्नोन्तु खशक्तितः) देमाद्धिः 1 ff FAAGW २ ऽध्यायः | न्यसेत्तस्यान्तु शय्यायामचं यित्वा ख गादिभिः। Tea पादुके LA वस्तयुग्मसुपानहो ॥ पवित्राणि च पुष्पाणि शथ्यायासुपकल्ययेत्‌ । एवं nag सङ्कल्य प्रणिपत्य च तान्‌ feats ॥ Naa AMSG विष्णुलोकं ANAT | wanwafear विप्रा वदेयुत्रतिनं सदा॥ व्रज व्रज awa विष्णोस्थानमनामयं। विमानं aura दिव्यं सशय्यापरिकाल्ितं । aa विष्णुपदं याहि सदानन्दमनामय ततो विसञतरैःदेप्रान्‌ प्रशिपत्यानुगम्य FJ ii AAA पूजयेन्नक्या YX ज्ञानप्रदायक। तां शय्यां कल्ितां सम्यग्गुरु वत्रतसमाप्रकं। प्रणय्य गिरसा यान्तो गुरवे प्रतिपादयेत्‌) एवं पूज्य हरिं विप्रान्‌ गुर्‌ ज्ञानप्रकाशक ! Hat मासोपवासांथ नरो विष्णुतनु fase i छतमासोपवाक्तश्च विष्ण्ुपूजनतत्परः। नयेच्छान्तमनाः कालं wae: सुजितेन्दरियः | war मासोपवासांख् निव्वाप्य विधिवन्ने | Pua शतसुचुत्य विष्णुलोकं व्रजेन्नरः | तस्मिन्‌ जातो महापुरं कुले मासोपवासक्षत्‌ ॥ सव्धैपापविनिमुक्तो विष्णुलोकं मनह्तोयते | नरी मासोपवासानां कत्ता पखवतां नरः ॥ पिल्माल्कुलाभ्याच्च समं विष्णुपुरो' व्रजेत्‌ । व्रतखर्ड"रञ्रध्यायः ।] देमाद्रिः | ७८१ नारो वा सुमहाभागा यघोक्र व्रतमाख्िता। कत्वा AMAA व्रजेदिष्णु सनातनं | नारद्‌ SAT | सुदुष्करमिरं देव मूच्छग्लानिकरं gai | ad मासोपवासाख्य' भक्ति जनयतेऽच्यते ॥ पौडितस्य wee व सुमूर्घोत्रेतिनस्तदा | त्यागो AAAS वाघ किन्तु कायः पितामड। ब्रद्योवाच | ATA कथितं SEI Fay वा तपोघन। Zul तु AWAY कुय्थादव्सम्यगनुग्रदह। असतं पाययेत्‌ च्ीरमिच्छमानं सकछत्रिशि' Tae न वियुज्येत प्राणे; चत्मोड्तो aay ॥ अतिमूच्छान्वितं ate सुमूषु' चतप्रपौड्तं । पाययित्वा faa alt रक्तेदत्वा फलानि च ॥ away यो faa व्रतस्य परिपालयेत्‌ | पयो मूलं फलं eur विष्णुलोकं व्रजेत सः ॥ एव मासोपवासस्मारूट्‌ प्राणसंशये | अव्रतघ्रगुणेदि व्यैः परौष्सटत्राद्यणाज्ञया॥ aa व्रतं विनिघ्नन्ति हविर्विप्रालुमोदितं। चौ रोषध गुरो राज्ञयापौ स्रूलफलानि च | एवं कछलत्वाभिभक्तेत(१) सगुड' wad तदा । (१) एवं छलाभिवासति क्रचित्‌ प्राठः | St ears: | [avew २७यश्नध्याः। पाययेद्रत्तितो यस्माव्छमाप्रोति gaad ॥ श्रथ fayaa विष्णुर्दाता विष्णुव्रतौ तथा | aq विष्णुमयं ज्नात्रा त्रतख्य' चस्षौणसुद्वरत्‌ ॥ यथा सुमूषु निष्ट परिग्ला नोऽतिमूच्छितः। तदा ससुदरेत्‌ च्ौणमिच्छन्त fagqefaa ॥ परिपाल्य त्रतौ देहं व्रतशेषं समापयेत्‌ | यथोक्त fequ तस्य फलं विप्रसुखोदित्‌ ॥ इन्द्रियायष्वसंसक्ता सदेव विमला मतिः | परितोषयद्‌ दिष्णु' नीोपवासोऽजितात्मनां ॥ fa तस्य ae fuera: सानो मजपव्रतेः | येनेद्द्रियगणो घोरो निजिंती हष्टचंतसा । जितेन्द्रियः सदा शान्तः सन्वभरूतदिति Ta! | वासुदेवपरो नित्यं न at कतु महति ॥ meat त्रतं(१) यथोतान्तु aad पुरुषो त्तमं । विष्णुलगीकमवाग्रोति पुनराठत्तिदुलेभं | ये स्मरन्तिसदा विष्णुं विश्दनान्तरालमना' ते प्रयान्ति भयं aa विष्छुलोकमनामयं | प्रभाते Wetla च AAS दिवसत्तये । aaa येऽनुकीत्तन्ति ते तरन्ति भवाणंवं ॥ आआनन्दितोऽथ दुःखात्तः MS: शान्तोऽथवा इरि । यो हि कौत्तयते भक्या स गच्छे Say पुरौ | (१) रुला नूनमिति ahaa ate: | व्रतखणर्ड' २७अ्र्यायः 1] Parts: | गभजन्म-जरारोग-दुःखसं सारवन्धनेः | न बाध्यते नरो faa’ वासुदेवमनुस्मरन्‌ ॥ स्थावरे UFH WS स्थले सच्छे भामे | विष्णं पश्यति waa a: स विष्णु; सयं नरः ॥ सव्व विष्णुमयं ज्ञात्वा तैलोक्यं सचराचर | यस्य शान्ता मतिस्तन पूजितो wees: | अतिकल्प्रानुकल्यानां ब्रतानासुत्तमस्य च) विष्णुलोकमवाप्रोति प्रसादाचक्रपाणिनिः॥ विधिमांसोपवासस्य यथावत्‌ uftalfa a: | सुतखेहादिजश ष सव्व लोकद्धिताय च| कुला खुला चयं waar ततो ayy ब्रजेत्‌ । नाभक्ताय प्रदातव्य न देयं दुषटचेतसं। इति विष्ण रडस्योक्त मासोपवासव्रतं | महाभारते | Rita HY AU मासं यः कुर््यदरेकभोजनं | शूरश्च बहभाग्यश्च कोति मायैव aad | faqua | कात्तिके एकदा YER Ta विष्णुपरो नरः | शरञ्च कतवि्श्च वडपुच्च जायते ॥ अदिः सव्व भूतेषु वासुदेवपरायणः | OG 3 ७८४ Safe: | [त्रतखण्ड' २७अध्यायः | नमोऽस्त वासुदेवायेव्यहश्चाषटगतं(१) जपेत्‌ | अतिरात्रस्य यज्ञस्य ततः फल मवाप्रुयात्‌ ॥ दूत्येकभक्त्रतं | य क 6 हि अथ मामंशोषत्रतानि। 000 महाभारते | HUM यो AMARA a Tiare | भोजयेत्त दिजान्‌ भक्तया qua व्याधिकिल्तिषेः ॥ सव्व" काल्या एसम्परणंः सव्व दु;खविवचत्नि तः ! sure व्याधिरहितो बोय्यवानभिजाथते। कषिभागो बहुधनो बहधान्यश्च जायते ॥ विष्णधमं | मा्मगोषन्तु at मासमेकभक्तेन सत्तिपेत्‌ | कव्व न्‌ वे विष्णुष्रुखषां स 2a जायते भे ॥ अदह्धिखः सव्व भूतेषु वासुदेवपरायणः नमोऽस्त वासु वायेत्यहश्वाष्ट गतं जपत्‌ (२) | वाजपेयस्य यज्ञस्य ततः फलमवाप्र यात्‌ ॥ इति एकमभक्तव्रत | (१) वसुदेवाय चादद्चाष्टशतभमिति पुरूकान्तरे पाठः | (२) बाणुदेवाय चद्दञ्चःटभतं जपति क्रचित्‌ पाठः | argue omega: |] SAT | ety qa उवाच | भगवन्‌ HAU केन नरो AACA यात्‌ | लावशयरद्ितं रूपं निष्फलं प्रतिभाति मे॥ माकर्ड य उवाच, कात्तिक्यां समतौतायां प्रतिपत्‌प्रतिक्रमात्‌ | ue at यदि araiai waar पूजयेदिभु ॥ बहिः सान ततः FAARAAA aaa: | एकभक्त महाराज हविष्य प्रयतः AEST tt मार्गगोषं ततः प्राप्य चिरात्रोपोषितः शविः | WM sq Sq हत्वाग्नो छतमेव च ॥ भो जयेदटूत्राद्वाणांखात् भोजनं लवणोत्कट | चणितस्य ततः प्रस्य लवणस्य दिजा तये | मदहारजतरकच् वस्त्रयुगम तथा गुरोः, Sale कनकं राजन्‌ कांस्यपाच तथेव च॥ मासेन लावखयकर प्रदिष्ट व्रतोत्तम नाकगतिप्रदच्च। न केवल यादव सव्व कामान्‌ नरस्य TIAMAT | इति विष्ण धर्म तरो क्त लावण्यावासित्रतं | ( ee ) ७८ ई माद्भिः । [ततर २७अध्यायः । अथ पोषघव्रतानि | eee 9, 0 0 wont मदाभारते। पौषमासन्त॒ कौन्तेय भक्तनेकेन यः त्िपेत्‌ | सुभमो दथनोयख य्रोभागौो च जायते॥ विष्णुघश्र। पौषमासं तथा दारभ्य एकभक्तेन यः च्िपेत्‌ । शयष्परः भौरेररोगौ जायते नरः | अदह्िखः सव्वभूतेषु वासुदेवपरायणः | नमोऽस्त वासुदेवायेत्यहश्चाषट शतं जपेत्‌ । अरष्लमेघधस्य IAA ततः फ़लमवाम्र यात्‌ tt दति एकभक्तव्रत। व उवाच | भगवन्‌ RAI केन शोलवान्‌ पुरुषो भवेत्‌) कुल जातिश्ुतेभ्यस्त्‌ शौलभेव विशिष्यते ॥ माकेर्डय उवाच | ्राग्रहायखतौोतायां मासमेकं fea दिने, पूव्ववत्य्‌ जयेद्देवं वरादमपराजितं | तेन स्रापयेदे वं तेन जहयाद्रिं | wa दिजेभ्यो care छतमेव निवेदयेत्‌ ॥ तिरात्रोपोषितः पोष्पां wauraa च दिजं। 9. ध्याय ~ मा रे व्रतखर्ड'२ऽश्रध्यायः ।] VAT | ete पूजयेच्च eau यथाभक्ति नराधिप ॥ क्रत्वा ad मासंसिदं यधोक्ल- मासाद नाकं सुचिर मनुष्यः | मानुष्यमासदययचं शोलवान्‌ स्यात्‌ प्राप्रोति पुटि चिरजोवितद्ध। इति बिष्णधम्रीक्तिं भोलावापरित्रतं | 00(@0o परय शक्त चतुद श्यां पौषमासे समाहितः । चान्द्रायणत्रतं मासं ग्राहयेत्व्व पापजित्‌ | पूणन्दपौ णं मास्यान्तु पूजयेत्प्रतय हं जलेः ॥ पोषदति सामौप्ये सप्तमो | AGE भोपूणमास्योः पूञ्वंमासा- वयवत्वात्‌ | मनोरयाय स्वाहेति तथा सन्ते पथांसि च | au येदग्निरेताभिस्तिरुभिशव सदव tz I अत्राहतिभिरटाभिडताभिश निशाकर | यंदेवादेव इत्यते घतुभिं मन्त सत्तमे: | MMA तपयेहादं VA पापोपशान्तये । तथा देवक्तस्येति सभिद्धिनित्यमेव हि ॥ चरम्धैच्य तथा सक्तन्तक्र यावकमेव च। Wa चोर दधि तं magenta च॥ पौ्यमास्यामारभ्य Was aut Bag कारयेदित्यथ;। SaAMey_ वे पश्चात्‌ प्राएचेदत्रमादरात्‌ | OTe Salis: | [त्रतखण्ड २७अध्यायः। कुकटाण्डापमान्‌ ग्रासान्‌ परीणमास्याच्च भक्तयेत्‌ | छत्रा पञच्चदगेवाध saad fea दिने ॥ विंशत्या सदतं येन BWIA भषेच्छतं | अमावस्यादिने चैव विप्रखोपवरशत्ततः। शक्तप्रतिपदारभ्य चन्द्रठद्धिक्रमेणतु। विंशत्या सहितं भूयो म्रासानां खाच्छ्त यथा ॥ मासेन इदे शते येन भवेतां हेच विंशतौ, एकस्य प्रणवो HAAG श्च भवैद्‌ऽपि। भुवस्वयाणं सखापि चतुणां मह एवच) भवेदथ च पञ्चानां AMAA उदातः ॥ AAA तपः सत्यमष्टानां यरिकी्य ते | ॐ नवानामिड्वाग्र दशायां मन्त एव च । एकादशानां योजख विजयस परम्भकेत्‌ | तयोदशनां पुरुषस्ततो wart wath an शिवः पञ्चद्शानान्तु य्ासानां मन्त vas | CISA TARTANA ZAR TAR अभिमन्ता ्रसेद्नासान्‌ दिनसंस्याक्रभमेण च ॥ af नमः खाहा waa: खाहेत्यादिमन्ताः। समाप्ते चत्रते दययान्नां gaa हिजातये। चान्द्रायणेन Gia सव्व'पापन्तयो भेत्‌ ॥ एवं सबत्सर FAT चन्द्रलोकमवाप्रयात्‌ | इह लोके धनारोग्य सुख सौभाग्यसम्परद्‌ं ॥ व्रतखण्ड अध्यायः! | Paty: ote. भवेदमरलोक च शक्रस्य सदने ufa: | भवेच्््िविन्तदभ्यासाज्जग्म ्राद्धयणजन्मनि ॥ दति ब्रह्मपुराणोक्त चाद्धायणव्रतं। 00 अथय माघ्रमास्रतानि | नारदटोयपुराणे | काकोल Bars | सम्प्राप्तो मःघमासोऽय तपखिजनवल्लभः। यस्मिन्‌ करोन्ति पापानि यज्नस्रानवतां सदा(१) ॥ क्तानि सव्व देहेषु बरद्यहत्यासमान्यपि | SAM माघमासस्तु बहदानप्रदायकः ॥ देवेस्तेजः ufefad माघमासे जले सदा । न वहि सेवयेत्‌ स्नातो दस्नातोऽपि बरानने। da Raaefs Naa न कदाचन, यावत्‌प्रभा वरारोह तावत्‌ Bates Bart सरित्तोयादयभावे तु नवङ्ुम्भख्ित्‌ जर | वायुना ताडितं रात्रो गङ्ातोयसमं विदुः ॥ तत्रास्ति पातकलोके यत्न खरानादिनभ्यति। अग्निप्रवेगादधिक भाघस्लानं वरानने ॥ षष क्षरण णि भणि) nr a i नामन्‌ (१) यतिस्लानवतां सरति पाठान्तर 6é 9 Valfe: | [बतखर्ड'२७अ्रध्यायः। जोवता मुज्यते VE sat दुःखं a पश्यति। एतस्मरात्कारणात्‌ Ga माघल्नानं विशिष्यते ॥ अहन्यहनि दातव्यास्तिला; पकरयान्विताः | fang तिलानां fe चतुथः शकरान्वितः॥ AAUP वरारोहे सव्व मास नयेदतौ | स्यो मे प्रीयतां देवो वष्णुसूत्ति facaa tt माघावसाने सुभगे GSH सप्रदापयेत्‌ | TMA aaa Wa सप्तधान्यसमन्िते ॥ चित्त मोदका देया; कछतास्तिलमयाः इभाः | मरि चेनिश्मिता; wear: नारङ्गाणि च दापयेत्‌ । सरितः प्रमवस्त्वः fe पर धाम जलें मम। त्वत्तेजसा परिग्चष्ट पापं यातु सदस्रघा ॥ दिवाकर जगत्राथ प्रभाकर नमोऽस्त ते। परिपूणं' कुरुष्वेह माघस्न!नसुषःपते | एव aragar याति भिचा विम्बं द्काकरः | परिव्राड्‌ योगयुक्तश्च रणे वाभिसुखो हतः। ठतीयोऽच वरारोहे माघन्नायौ प्रकौत्तितः॥ भविष्योत्तरात्‌ | युधिषिर उवाच। माघमासे मम Als खानं यदुङकुलोदड | येन दुःखाम्बपद्ौषादुत्तरन्ति भवाणेवात्‌। SAW उवाच | ATE क्तयुगं प्रोक्तन्तेता तु afar aa | व्रतखण्ड'२७शअध्यायः 1] safe: t 22 वेश्यं दापरभित्याद्हः ae कलियुगं तथा ॥ कललो राजन्‌ मनुष्याणां ओे थिव्यं स्रानक्णि। तथापि माघव्याजन कथयिष्यामि AST ॥ यस्य दृस्तौ च पादौ च वादन सुसंयतं(१)। विद्या तपश्च कौत्तिय स तौयफलमश्रति॥ VACUA: पापात्मा नास्िकोऽच्छिन्रिसशयः | हतुनिन्दारतखेते न तौ्ध॑फलभागिनः ॥ प्रयाग पुष्करं प्राप्य कुसक्तेचमयापिवा। यचवाततवा खायान्माचे नित्यमिति fafa: 1 तिराचफलदा नदयो याः काशिद्ससुद्गाः। ससुद्रगास्त GAA मासस्य र्रितां पतिः ॥ अपां समोपे यत्स्नानं सन्ध्यायामुदिते रदौ | प्राजापत्येन तत्तल्यं महापातकनागनं ॥ प्रातसत्थाययो विप्रः प्रातःस्नायी भवेत्सदा, सव्वपापविनिसुक्तः परं ब्रह्माधिगच्छति । वधा चोष्णोद्कख्रानं TAT जाप्यमवेदिकं। SAAT sal Are sar भुक्तमसात्तिकं। खानं चतुविधं Wa arafafeafafec वायव्यं वारुणं ar दिव्यच्चेति पृथक्‌ खण । वायव्यः WMA वारुण सागराद्भिः। ART त्राद्यणमन्तोकतं दिव्य Hara भास्करात्‌ | arama want वारूणं खे मुच्यते | (९) HAY व सुसंयतें दृति प्राठान्तर, ७९२ Sails: | [त्रतखर्ड'२७अध्याय; t AMAT Wet वा वानप्रस्थोऽथ fray: ॥ एते सव्व प्रशसन्ति सर्व्वदा माघमज्ननं | वालतद्वयुवानख् नरनारोनपुंसकाः॥ Gal माघे शभे तौ प्राघ्रवन्तौखितं फलं । ब्रद्मत्तत्रविशां चेव मन्तवत्स्रानभिष्यते॥ तुणोमेव fe शूद्राणां तथव कुरुनन्दन | नमस्कारेण वा कायं सव्वपापौघहानिदं॥ माघमासे रटन्त्यापः किञिदभ्य॒रदिते रवो) AGA वा सुरापं वा(१) कं पतन्तं Galas ॥ प्रासादा यत्र सोवा; स्तियखाप्रमां समाः | दविदुग्धव्हा यत्र नद्यः पायसकद्‌ माः ॥ aaa यान्ति मज्जन्ति ये माघे भास्करोदये। यतिवत्पयि गच्छेत मौनौ पेशून्यवस्नितः | य इच्छेहिपुलान्‌ भोगान्‌ चन्द्रसूययग्रहोपमान्‌। पष्यफारगुनयीम्मष्ये प्रातः सखायौ भवेत्त्‌ सः ॥ पौण्मामौनमावायां प्रारभ्य खर -माचरेत्‌। fauteafa पुणखानि सकरस्ये दिवाकरे । तत उत्थाय नियमं ग्टह्वौ यादिषिपूव्वंकं ! माघमासमिमं yw ass टेव माघव ॥ तीय शोतजले नित्यमिति ager चेतमि | अप्राच्तशरोरस्त यः साक्षात्‌ स्नानमाचरेत्‌ ॥ पट्‌ पदेऽश्वमेधस्य फलं प्राप्रोति मानदः | meee (११ ब्रह्मघ्नमपि चाण्डाल.मति पाठान्तरं | व्रतखर्ड'२ऽअ्रध्यायः।] PAT: | ७९३ ततः खाता शुभे ala ear facfa a we | ैटोक्तविधिना राजन्‌ aatarey निवेदयेत्‌ ॥ पिन्‌ सन्तप्ये तचस्धः अवतीय ततोजलात्‌ | Seed नमस्छव्य पूजयेत्पृरषोत्तमं ॥ शङ्नचक्रधर टेवं माघवं नाम पूजयेत्‌ t व्क war विधानेन ane aaa भवेत्‌ । भूशय्याव्रह्म चयण शक्तः खानं समाचरेत्‌, अशक्तो ब्रह्मचव्धादौःखेच्छा तस्यव कल्पयते | अवश्यमिति aaa माघन्नानमिति खुतिः)। इष्वरण यथाकामं बलं VATA ॥ तिलस्य तिलोदत्तां तिलदेमो तिलोद्कौ | तिलसुक्तिलदाता च घट्‌तिलाः पापनाशनाः॥ तैलमामलकाख्वेव ata Zara नित्यशः | तथा प्रज्वालयेरद्कि निवातां कारयेत्कुर। एवं माचघवमासे तु शक्रो भोज्यमवारित। कारयेदथ गत्या वा faamsrfaafara a द्म्मत्यानि दविजाग्राणां पूज्यवस््विभूुषणेः | भूषयित्वा प्रदेयानि दानानि विविध{नच॥ कम्बलाजिनवस्त्राणि नानारल्लानि शक्तितः, aianita च देयानि प्रच्छाद्नप्टानिच॥ उपानहौ WSR मोचकौ पापमोचकौ | तथान्यदयित किचिन्माघसख्रान प्रदोयते। ( १9 9 } S929 तस्माघल्रायिनान्देयं विप्राणां भूतिमिच्छता ॥ स्वस्येऽपि दाने वक्तव्यं माघव प्रीयतामिति | अगम्यागमनात्स्त यात्पापेभ्यच् प्रतियदहात्‌ । रहस्याचरितात्पापान्मच्यते खानमाचरन्‌॥ माघमासे विधानेन चतस्याघधाय माघवं। पितुः पूर्वान्‌ समुदत्य मातुः पूव्वान्‌पितनय | एकविं शकुलेः ae भोगान्‌ yar यघ्रेष्ठितान्‌॥ माघस्योषसि arar वे विष्णुलोके महौोयते ॥ यो माचमास्यषसि सच्धकराभितास्त्र साने समाचरति waaay | उट्ष्टन्यं पूत्पुरुषान्‌ foaniaas लभे प्रयाव्यमरदटेदधरो नरोऽमसी॥ इति माघस्लानविधिः। 0000 भाघ सास्यघसि Gla कला दम्पत्यमचेयेत्‌ t Deer awa बालवस्तरविभ्रूषणेः ।। गमौ.:{प्यपद्माप्रोति शरोरारोग्यसुत्तमं | SIMA नूनं सग्यव्रतमिदं स्मतं ॥। इति पद्यपुराणोक्त सूरत्रतं | OOD अनन नद्धो वाच | ~ # ™! ™. ज छच्छकभत्त CA माघमासमत्न्दतः। wait FT रयं कुयािचवस्तोपमोनितं। Safe: | [ततखरडर२ञअध्यायः t nage रऽप्रध्यायः।] Safe ७९.५ अर SD ¢ € ~ । ष्वेतंखतुभियुक्तन्तु तुरगः VAI त | श्वेतष्वजपताकाभिः चचामरदपणं tt तण्डुलाट्‌कपष्टन Gal भानुत्रराधिप। विन्यस्य तं रथप्रस्ये संज्ञया सह भूपते | ° ४२१ न A 8+ . > त tral राजमागण गङ्भेया{दभिः aa: | po wrafial गनं; पञ्चात्‌ सूधायतनमानयेत्‌ ॥ aa चारुरुप्षठिन प्रदोपाद्यपशोभितं t ~ = aA aA, प्रेक्ष णोयप्रदामंख सपिता शनेः wa: | प्रभात स्रपनङ्त्वा पयसा al Cas वा। दोनान्धक्पणानाच्च यथाशक्त्या च दत्तिणां! रथं सम्बाडनोपेतं भास्कराय निवेदयेत्‌ । भुक्ता च ब्राह्मणे: साद प्रणम्याकं WE व्रजेत्‌ ॥ ® + + सव्वव्रतानां परमं शक्रधस्माख्धितः सदा | तजर GAA नाम सव्व कामाधसाधकं॥ सव्वैत्रतेषु UTM सव्व Alay यत्‌ फलं । wa GUAT ATE लभते प ॥ ¢ = ५ ~ 9 “A सूग्योयुतप्रतोकागंव्वि मानः साव्व कामिकेः। = Ge ~ om, faqngas: are सवलोके महोयते ॥ yar तु विपुलान्‌ भोगान्‌ सव्वेलोकेष्वनुत्तमान्‌ | कल्यायुतशत साग्रततो राजा भवेत्‌ faa | दति भविष्यत्य्‌ राणोक्त' aac | | ~) ७९९ माद्भिः । [त्रतखण्डर्ऽश्रध्यायः | araaifa समुद्यक्तस्तिसन्धा योऽचयेद्ररिं। भवेत्‌ षारमासिकं पु मासेनेव न संशयः! दति भविष्यत्य ciara fara | महाभारते | माघमासन्तु al मासमेकभक्तन यः च्िपेत्‌। खोमान्‌ कुलन्नातिमांस्त स महत्व प्रपद्यते । विष्णुधम् । माघमासं इिजखष्ट एकभक्तेन यः Fata | विष्णुश्रूषगणपरः AHA जायते सतां ।॥ Mea, सव्वेभूतिषु वासुदेवपरायणः | नमोऽस्त वासुटेवायेव्यहशा्ट गतं जपेत्‌ | अतिरात्र यज्ञस्य ततः WAAAY ANT | दूति एकभक्तं | 000 भना ~~ A उवाच | भर्वन्‌ स्न कौन पिदयावान्‌ एरुषो भवेत्‌। सविद एव fasta: पुरुषः पशरन्यया ॥ ATHY उवाच | पोष्यान्तु समतौता्यां प्रतिपत्‌प्रतिक्रमात्‌ | Aaa पूजयेद्‌ वन्तुरङ्शिरस हरि \ व्रतख ग्ड २७अध्यायः || दमाद्िः | € ॐ प्राम्बदिति रूपावास्नित्रतोक्तविधिना तुरक्गगिरसं हयग्रोव॥ faaia जृहयादद्धी fase वं समचयेत्‌ । निरातोपोषितो ara तिलान्‌ कनकमेव च| दयादुत्राह्यणएसुख्याय सम्यक्‌ प्रयतमानसः! मुख्यान्‌ यन्नोपवोतांख प्रभूतमपि wea | क्रत्वा Ad मासमिद यथोक्तं विद्यान्वितः BIT रुषः सदेव । सखलोकमासाय सुखानि war कामानभोष्टान्‌ YAR A च ॥ इति विष्ण धर्ममीत्तरोक्तं बिद्या वारिव | 000 (000 अथ फाल्गुनव्रतानि। महाभारते | भगटेवन्तु योमासमेकभक्तन वित्तिपेत्‌ | रष्वय्य मतुलं We पुमान्‌ स्तो वा waa | wary वल्लभतां याति तस्यासैव भवन्ति a tt विष्णएधम्म | त्पयेटरेकभनेन VIA फःरगुने | VAG ट्ष्णुशुखषापर; सोभाग्य स्रजनानाच् सर्व्वेषामेव Mala; | हेमाद्रिः | [त्रतखण्ड २६अध्यायः) श्रहिंखः सव्वं भूतेषु वासुदेवपरायणः ॥ नमोऽस्त वासुदेवायेत्यहशाषटणत जपेत्‌ | पतिरात्रस्य यन्नस्य ततः MARTY यात्‌ ॥ sta एकभक्तत्रतं | ————-——- 0002 )000 ——_—_—— वराद Sara! फाल्गुनस्य तु मासस्य पुष्पाणि सुरभौणि च। कश्यमण्यानि शुभानोदह wetar भक्तिमान्नरः ॥ ततः SAAT A MISTI | यम्त जानाति कञ्माणि wag wufafarad: | उदाहरति aia नक्तादर्नियमस्थितः ॥ जानुभ्यां vam Sar कराभ्यासङ्क लेः पुट । ग्टहोत्वे तिशेषः, पटं पुष्यपरूणेपात्रपुटं । नमो नारायशेव्यक्रा TH मन्तसुदौ रयेत्‌ । नमोऽस्त टेवदेषेश चक्रनिशखथ्नायते नमोऽस्त MRA FAT नमोऽस्त ते॥ श्रादिमध्वावसानन्तं न जानाती कखन ॥ वसन्तागमरृष्पाणि Weim पुरषोत्तम) य एतेन विघानन Harare q फारगुने। न च गच्छति ससार पर लोकं च गच्छति ॥ इति वरादपुराणोक्तः फाल्गुनविभिः। i | व्रत खर्ड'२७अध्यायः।] PATER: | ७९५ aq उवाच | भगवन्‌ HAM कंन AMY महदाप्रयात्‌ | लावणयर्पसौभाग्य विना क्रयं निरथकं॥ HAA उवाच | माच्यान्तु समतोतायां प्रतिपत्‌प्रतिक्रमात्‌ | az ar यदि वाच्यां aw संपूजयेत्द्‌ा। पूर्वोक्तं सकलं wae afd चाच नराधिप ।॥ =€ >= ~ = (9 yatafafa चचमासमम्नन्धिरुपावास्ित्रतोकसित्यथः। नित्यं समाचरेत्‌ ara तथा गन्धप्रियङ्गना। चस प्रियङ्गना goatee gard fray ar! गन्धः fray wenaage, fray: we PENTA द्रव्य प्रियद्ग: कङ्क: | छ । 3 फा रगुन्यान्तु anteara चिराच्रोपोषिनो aq | aa च देये go gE Ua MEA” aaa ats | सोभाग्यदं द्यतदनुत्तमन्ते * ~~ ड व्रत ममतत्कथितं वोर ॥ इति विष्ण धग्मींत्तरोक्त सोभाग्यावापिव्रतं। इति खो महाराजाधिराज-खोमदहादटेवस्य समस्तकरणा- भोश्वरसकलविद्याविशारद्‌-योहेमारद्िविरचितं चतुव्वगचिन्तामणौ त्रतखण्ड मासव्रतानि अथ अष्टादशोऽध्यायः oe 00012}000 अथ नानामासब्रतानि। श्रखान्तच्चारुचामौकर ०५० (१)परिप्रीणितप्राणिवगः र्गङ्गा सङ्गभरमोसहतसलविलमत्‌किन्ररो गोतकीत्ति : । हेमाद्रिः संप्रतौहस्फरदुसदुरितव्रातघातेकरहेत्‌ नानामासव्रतानां क्रमनमथय कलाकीविद्‌ः संविधत्ते ॥ तच चातुर्ममसोव्रतानि | ष्क विष्णुधम्प्रोत्तरात्‌ | HAW J Sars | aa स्वपिति aataq Fatal जनाद्‌नः। लच्छोसद्ायः सततं शेषपयङ्मास्छिलः | एकाद्श्यामाष। ठस्य GRID जनादनं। देवाश्च wuaga स्त॒ वन्त दिनिपञ्चक॥ ततश्च चतुरोमासान्‌ योगनिद्रमुपख्ितां | aa ad तसुपासन्ति षयो ब्रद्भसमिताः॥ कात्तिकस्य सिते wa तदेव दिनपद्छकं | विद्योघग्रन्ति Faq गल्ला सेन्द्रा दिवोकसः| तस्मादेताश्चतुम्पीसौनरः कुशात्‌ ABA | भविष्योत्तरात्‌ | १९ चते श्यदरवय पतितम | ASW २८अध्यायः।] Bare: | ८०१ युधिषिर उवाच गोविन्द्‌गयनं किन्तु किमथे" स्पितौत्यरौ, कथन्तच्छयनं तस्य देवदेवस्य चक्रिणः i के चाच मन्त्राः पूजा च दानाः नियमाश्च के। fa aig faq मोक्तव्य सुपे टेवजगत्पतौ। AAW उवाच | aT पाथ प्रवच्छामि गोविन्दशयनव्रतं। कटद्‌ानं समुत्यानं चातुमीसोत्रतक्रमं | fauna सहसांगो खाप्येन्धुखदनं | तुलां प्राप्त (१) मष्दाराज पुनरुत्थःपयेच a ॥ sfaaqa a da ua wa विधिक्रमः। नान्यथा खापयेत्‌ BW नान्यथोत्याप्रयेत्तधा ॥ श्राषाट्स्य सितं oa एकादश्यामुपोषितः | स्थापयेत्‌ प्रतिमां विष्णोः गड चक्रगद्‌ाधरां ॥ काञ्चनीः राजतौ तास्रमयौ' पित्तलजां तथा ! पोताम्बरधरां सौम्यां wre wha शभे। शुक्तवस्त्रपटच्छन्ने सोपधघाने सुपूजिते॥ ब्रह्य पुराणात्‌ | एकादश्यान्तु शक्तायां args भगवान्‌ हरिः | भुजङ्गशयने शेते यदा तन्ौराणपे सदा ॥ तदा तत्‌प्रतिमा कया सव्व लत्तणसंयुता | a, aN A a eee Mo (१) Gainey इति पुस्तकान्तरे qe: ( १०१) — Gee Safe: | [त्रतखण्ड'२८अध्यायः। तास्रारकूटरजतैः Bat चिचप्टेषुवा। सच्छा म्दडस्तयिन्यस्तमनोन्नचरणाम्बुजा ॥ नानाविधोपकरकेः पूज्या तु विधिपूव्वंकं। उपवास RUA रादौ जागरणं तथा a तस्यां wat adalat great पूजयेच्च ats त्रवोदश्यां ततो magaarey निवेदयेत्‌ । | भविष्योत्तरे (2) | इतिदहासपुरागन्नो वेद्वेत्ताध वा पुमान्‌! चतरापयिला द्धिन्तोरछतन्तोद्रसितादिभिः॥ समालभ्य शमेगन्य धूपे वस्त्रं रलङ्कतां । जातोकुसुममालाभिमंन्तेणएानेन पूजयेत्‌ ॥ सुप्त तयि जगन्नाथे जगतपते भवेदिद्‌ | fags च विबुध्येत प्रसन्नो मे भवाच्यृत॥ एव तां प्रतिमां विष्णोः स्थापयित्वा aa नरः) प्रभाषेचाय्रतो विष्णोः कताञ्लिपुटस्तया | चतुरो वाषिकान्‌ मासान्‌ देवस्योत्धापनावधिः। इमं करिष्ये नियमं fafa ge Fea ॥ eat al AU al मद्भक्तो WANT सुटट्त्रतः। गहनो यान्निवमानेतान्‌ दन्तधावनपून्व कान्‌ | तेषां फलानि वच्यामि तत्कन्त्‌ णं cae षक्‌ | मधम्बरो भवेद्राजा पुरुषो गुडवजंनात्‌ ॥ = 0 Aw ~ तलस्य वजनादेव सुन्द्राङ्ः प्रजायते | a rer er (१) सदहाभारते इति पुषकान्रे wis: | ange ecg: |] SATs | ACACIA CAM SAATAAAT ATT ॥ मधूकतेलव्यागेन सौभाग्बमतुलं लभेत्‌ | यो गाभ्यासो TAT FT ARIAT | कटुकास्त तिक्तमधुत्तारकषायसुच्चयः॥ यो वज्ज येत्‌ स वेरूप्ये gad नाघ्रयात्‌ क्षचित्‌ । ताम्बेलं Ava भोमौ THAW जायते| छतत्यागाच Taw’ सव्व सखिग्धतनुभवेत्‌। फलत्यागाच मतिमान्‌ बडइपएुचख जायते ॥ शाकपचाशनादुभोगो अपक्कादमलो भवेत्‌ | पादाभ्यङ्गपरित्यागाच्छिरोऽम्यङ्ग' विवजंयेत्‌ ॥ टौसिमान्‌ दौप्तकायेन सोऽपि alzufange | दधिदुगधेकनिवमौ गोभक्तो गोपतिभयेत्‌ | इनद्रातिथितमाप्रोति खालौ पाकस्य वजंनात्‌॥ लभते सङ्गतिन्दोषां तैलण्कस्य व्जनात्‌ | भ्रमो प्रस्तरशायो च विप्रो सुनिवरो भवेत्‌ ni सदा सुनि: सदा योगौ मधुमांसच्च वजयेत्‌। निर्वववाधिर्नीँरगोजस्वौ ating दिवजयेत्‌ ॥ एवमादिपरित्यागात्‌ म्यः स्यात्‌ CAA | एकान्तरोपवाक्षेन ब्रह्मलोके महोयते | धारणान्रखरोमनाच्च गङ्गास्रानफलं लभेत्‌ ॥ धारणशाद्यष्टयोगाङ्ग) मौनव्रतो HATA TAH फलिता भवेत्‌ | नमोनारायणायेति जपन्यज्नफल लभेत्‌ ॥ coe eatfe: | [(aaqw acer: | अयं चातुखमास्यत्रतारम्भो गुव्वस्तमयादावपि Aa: | यदाद द्गमः। Awad aera शक्र गुर्व्यो नवा तिथेः | खर्डत्व' चिन्तयेचादौ चातुख्यास्यविघौ az: | पादाधिवन्दनादिष्णोलभेट्गोदानजं फलं ॥ भमौ Ysa सदा यस्त॒ स एथिव्याः पतिभंवेत्‌। नमो नारायणायेति जपन्‌यन्नफलं लभेत्‌ ॥ विष्णुपारानसंस्पमर्णदिनपापात्‌ waa | पादोद्काभितेकादं गङ्गास्नानं fea fea | पणष यो नरो भुङक्ते कुरुच्तेतफलं लभेत्‌ | नित्य शास्वसमाख्यानाल्लोकान्‌ यस्त VATA व्यासस्तष्यति तस्याशु विष्णुलोकं स गच्छति। Hal प्र्तणएक विष्णोर्लोकमष्छरसां लभेत्‌ ॥ wae स्रापनादिष्णोनिर्लं रेह माप्रयात्‌ | पञ्चगव्यागशनात्पाघ चान्द्रायणफलं लभेत्‌ ॥ ्रयाचितेन प्राप्नोति पुचान्‌घम््रपीन्रेषतः | घट्ान्नकालभीक्ता यः कल्यस्थायो agfefa 1 खपवासहयान्तरितेकभक्तः | शिलोच्छिखिन Yara: प्रयागस्रानमाप्रुयात्‌ | विष्णुदेवकुले कुर्य्या दुपलेपनमाञ्न ने ॥ कल्पस्थायो USAT WaT ATA AAA: | प्रदलिणशतं यस्त॒ करोति स्तुतिपाठकः | ह सयुक्तविमानन सतु विष्शुपुर व्रजेत्‌, गोतवाद्यकरी fault MARAT ATT | व्रत ख ण्ड remy: |] हेमाद्रिः यामयं जलत्यागान्नरोगेरभिभूयति | गुडवज्जी नरोदव्यादङ्कतं तास््रभाजनं। सदधिरणय कृपञखषछलवणस्याप्ययं विधिः 1 रद्ध वेवन्त' नारद्‌ उवाच | a4 Oa gq गोबिन्द ब्रतचथ्ा सुरोत्तम, HUA मानर्भ॑क्या विष्शुपूजनतत्परेः । तिथयः काञ्च पुण्या a नि;ःओेषफलदायिकाः। सन्तुष्यतं Way aaa तपसा रणां | दानद्ोमजपन्नानं व्रतचर्य्याचंनं दरे; | समाचच्यसुरश्ष्ठउपवासविधिक्रियां a HBAS | ay aa प्रवच्यामि waaafafataat | ai निवेद्यं नरो भक्तया प्रयाति परमाङ्गतिं ॥ भरवगम्य विधानेन समचनविर्धिं इरे; । व्रतप्रूजाद्कं Harada भक्तिसमन्वितः ॥ afasta विधानोक्तां इरःपूनाविधिक्रियां | Fa भक्तया समाप्रोति ठदिष्णो; परमं पदं | यस्त॒ विष्णुपरो नियं ृदृभक्तिजितेद्दियः | स ग्रहेऽपि वसन्‌ याति तदिष्णोः परमं पट्‌ 1 गिवे वा afaagal arm ar गणनायक) Hal व्रतस्य नियमं यथोक्तफलभागभवेत्‌ | नरस्य चयमाग्रोति पापं जकथतोद्धवं । Salle: | (व्रतखण्ड र र्अ्रध्यायः। राषघ्ाठृस्य सिते प्ते एकादश्यासुपोषितः। नक्त gate cet छ walaifaaa व्रतो ॥ कुय्यादिति, नियमं aa’ ग्टह्नोयादित्यन्वथः। एकादश्यान्तु ग्ह्लोयात्‌ संक्रान्तौ WATS च॥ MAUS नरो भक्तया चातु्मीसौत्रतक्रियां। चातुमौसोत्रतानान्तु gala परिकल्यनां॥ इद्‌ Ad मयादेव weld पुरतस्तव, fafaut [सदधिमायातु प्रसादात्तव AAA tt ग्टहोतेऽस्मिन्‌ ad टेव पञ्चत्वं यद्धि मे भवेत्‌) तदा भवतु संपूणन्तरनप्रसाद्‌ाज्जनार्‌न। ग्टहौ तेऽस्मिन्‌ ad देव away fad ads तन्मे भवतु WAU त्वत्‌प्रसाद्‌ाज्ननादन॥ एवमभ्यच गोविन्द्‌ व्रताचनजपादिकं। सव्व त परिग्न्नोयात्परपूणं' वया भवेत्‌ ॥ व्रतानि aware शेवानोह दिजोत्तम | एकभक्त नरः Gal faaaial za: ॥ योऽचयेचतुरोमासान्वासृदेवं स नाकभाक्‌ समापो भोजयेद्दिप्रान्‌ भक्तया zara द्तिग्णं॥ यस्त॒ BA CAAT नक्तमाचरतेत्रतौ , AMI नरो cat सवलोके महो ये ॥ श्रपूपवज्न न कत्वा भोजने व्रतमाचरेत्‌ | Tita aula वस्तं दत्वाण्वमेधकत्‌ ॥ a3 zat च विप्राय AWA AAT AAT | व्रतखण्ड २ र्अध्यायः '] VAT । ८०७ रौप्य दत्वा ब्राह्मणाय धरतो तद्नतमानसः॥ अन्नदानं व्रतं क्ष्यादटौप्यद्‌ानच्च पारण | एकान्तरोपवासेन विष्णुपूजनतत्परः ॥ गान्द्त्वा वासुदेवस्य लाके संपूज्यते AT: | यस्त सुस ENA तितियो भवेन्नरः । शय्यां सोपस्करान्दत्वा इन्द्रलोके मदहोयते | वाधिकांयतुरौमासान्‌ मद्यं मांसञ्च यस्त्यजेत्‌ | स्वर्शारो हरिसुदिश्य स भवेद्द्विजः, यः; च्िपेत्‌ छच्छपादेन आषाटादिक्छतुहयं ॥ विष्णुपूजनछन्मच्यः स लभेत्तत्निकेतनः। गोप्रदानाद्वेत्सोऽङिः समाप्ते दिजसत्तम i यस्तिराचकछतादहारो निव्यद्नायो जितेन्द्रियः । वासुदेवाचने युक्तः स लोकं बेष्णवं व्रजेत्‌ ॥ पूर्व्वकङ्गोदटानपारणं। ait यो वन्न fear a क्रान्तिके मासि मानव! हिरण्य शालिना eur पद प्राप्रोति वंष्णुवं ॥ यस्त॒ कशवभक्तः हि विष्णोः पादोद्‌क पिवेत्‌ | वर्षारात्रः नरो भक्तया स विष्णोः aq संविशन्‌ ॥ Ug चन्दनसंयुक्त Ga दव्यात्पयखिनो'। वाधिकांश्चतुरो मासान्‌ प्रजापत्यञ्चरेत्ररः ॥ समाप्त गोयुगं दद्याद्वा ब्राह्यगभोजनं | पराकेग नरा faa’ a: लिपेत्‌ वाधिकं WAT ॥ रच्च यित्वाऽच्ुतं भक्तया स गच्छेदष्णुलोकतां, aS # Tet देमाद्रिः। [तरतखर्ड'रस्धध्यायः। qatar पारणं । गो सूचथाचकाडारो योऽचखयेच्च तुयं ॥ विष्णुमभ्यच्य aga नरो विष्णु पुर व्रजेत्‌ | समासौ MIG TAI काञ्चनसयुतं। णःकमूलफलंवीपि ANCA नयेन्नरः, समाप्तौ गोप्रदो War स याति विष्णुमन्दिरि i पयोव्रतौ तथाप्नोति ब्रह्मलोक सनातनं । AAI च तथा दद्यादाभेकाच्ु पयस्िनौ ॥ amt यित्वा ad यस्त दधि्लौर्टतान्वितम्‌ t दद्यादस्ाणि wana कात्तिक्यां गोप्रदो भवेत्‌ । संपूज्य विप्रमिथनं MO A प्रोयताभिति। ददा काञ्चनं शक्या गौरोलोके महोयते ॥ APIA UM मासांखतुरः च्तपयेत्ररः। प्रतिमां काच्चनौ द्यादृम्मत्योब्रह्मलोकभाक्‌ ॥ AAAS ART CTHARWA Alaa । समापो वस्त्रयुग्मन्तु aa दद्यादिजातये। सन्धामोनन्ततः क्त्वा AAA BARAT: | वस्वयुगम तिलान्‌ घण्टां ब्राह्मणाय निवेदयेत्‌ | सारस्वतं पद्‌ याति विद्यावान्‌ धनवान्‌ भवेत्‌ । करत्वा प्रलेपनं शम्भोरग्रतः कशवस्य च ॥ वाधिकांखतुरी मासान्‌ wa ददयात्पयखिनीः। HIT भास्करं WET WAT” वाग्यतः | पकभक्तः नरः कुखाचातुमोस्यमतद्द्रितः) वेतखर्'रप्श्रध्यायः।] Sarfz | व्रतान्ते विप्रमिथनं पूज्य घेतु समन्वितं | aaiq हिर्मथान्‌ दद्यात्‌ सोऽश्वमेधफलं लभेत्‌ ॥ व त्तानश्वत्यान्‌ | तेन खापनं छत्रा was केशवस्य च । भत्ततेयसमं FAlq WT मोमयमर्डलें ॥ समाप्तौ इमकमलन्तिलघेनुसमन्वित। ब्राह्मणाय व्रतो ददयाच्छविलंःके महोवते ॥ सन्ध्यादौपप्रदो यस्तु प्राङ्गण दिजसत्तम। समाप्तो टोपिकां दद्या्चकथतुरस्त्े णडाङ्गने॥ वस्तयुग्मान्विते वत्स स तजस; भवेदिह) देमानिको ALE A गन्धव्वीष्ठरसेवितः॥ भ्ूमिन्तु भाजनं Hal al भुङतपेतु WIR | कांस्यपात्च्च गां दत्वा Bala भवते नरः ॥ पणंसंस्तरसम्भोजौ समाप्तौ काँस्यभाजन) दत्वा खगगतो ब्रह्मन्‌ पूज्यते तिदिवौकसा॥ उपोषग लं भुङ्के रम्भापलाशदच्तजेः। अन्यानि यान्यभोष्ट.नि वञ्येदिष्णुतत्परः | विश्ुडमानसो ब्रह्मन्‌ सब्वेमेवात्तयो भवेत्‌ ॥ पादटाभिचन्दनं कला केशवस्य नरोत्तम। प्राप्रत्यतुलमानन्तय प्रसन्ने TEST | तच्छद्वमनसः पुसस्तोषं यान्ति दिवोकसः।॥ एवं व्रतानि guia जन्मदु;ःखडहराण च। हरिसुदिश्य चौखानि भुतिसुरतिप्रदानितु॥ ( goa) Bie देमाद्धिः। (ava newer: | AZT Wat पचचयोरुभयेरपि। Aa VARTA दोपं Tarqquay it MFT q तथा दोपं car चव wales | चातु माोस्यत्रतं RAT व्रतान्ते Waar: 1 a afa भवनं wat: पूजितो उेवसत्तमेः। विशोः प्रद्चिग्णां war णम्भः वथ {3िजोत्तम॥ व्रतान्ते AAS भूत्वा दत्वा खगमवाप्रधात्‌। यस्त वे चतुरो मासान्‌ करोति च जगत्पतेः | ANIA BEATA पाद्‌पूजां दिजोत्तम। सयाति awa लोक शाश्वतं नात dau: | यस्त कंशवमसुहिश्य नित्यमेव तिलप्रदः | तिह्तव्वामौ भवेत्िलं नतुमास्यमतन्दरितः ॥ समाप्ततु aa विप्र तिलधेनुप्रदो भरेत्‌ सर्व्वप्ःपविनिस॒क्तो विष्णुलोकं मद्ोयते। तदन्त च भवेद्राजा भारते भूर्ताम्बरः।॥ गोतन्तु देवदेवस्य केगवस्य शिवस्य च । करोति निल्यमाप्नोति नसो योगस्य बे फलं ॥ व्रतान्तेसतव्रतोदयाते षर्टां देवाय सुस्वरा | काटतिक्रकषाणां् वज्जयेद्यम्त्‌ मानवः॥ स भवेद्रूपसम्पनो व्याधिभनाभिमूवते। ania च हिज पूज्य शक्या दद्याच दिशां एति तालापमनरतं ast येच ऋ तुदयं | पादाभ्यङ्गत्ररो ददयाद्ाद्मणानाद् भोजन। त्रतखष्ड र्ट्भ्रष्यायः।| Aly: द्च्िगाख् यघाशक्या स गच्छटिष्णुमन्दिरं ot यस्त वै चतुरो मासान्‌ वज्ज येद्तसुत्तमं | मद्दालावस्छमाप्रोति गात्रसौरभ्यसेव च ॥ व्रतान्ते इरिसुदिश्य दत्वा armani | गन्धेन पूज्य गोविन्द्‌ ब्राह्मणाय दिजोत्तम। वस्त्रयुग्भन्ततो sar विष्णुलोके महोयते।॥ तेजसौ जायते fan तेलपक्ुम्य वज्ञ नात्‌ | विप्रान्‌ सम्भोज्य fang याति लोकच् aa ॥ यस्यजडरिमदिश्य सानसमूष्णेन वारिणा, गड्गखानं क्तन्तेन निन्यभेव न सशयः यस्त dad नित्यं agt भगोर कभां। स नित्यं ानमाप्रोति agiat नात संगयः॥ यस्त रमे हषोकेशे पुष्पाणि च पिवजयेत्‌। व्रतान्ते तु VASA: W AAT BUTTS: tt स याति भुवनं war विष्णोरमिततजसः। nga तु जगन्राये शिस्याङ््ण्मचं येत्‌ | quai यो नित्यं स्लस्तिकेः TARA | a aifa र्द्रलोकं हि गाण्पत्यमवाप्रयात्‌] यस्त॒ सुमे हषो केशे GRATIS ' Ss MARC मुक्ता वे प्राजापत्यपुरं व्रजेत्‌ ॥ यस्त सुपे EMA ठनोयायां नरोत्तमं | प्रतिषत्तं गुड दद्याद्ौरो मे प्रोयतामिति a समासे विप्रमिथनं पूजयित्वा हिजोत्तमं \ See SRR eae: | [areas २ स्ऋध्धाव। वस्तेराभरशेडैव भोजयित्वा भवेत्‌ सुखौ । पञम्यां प्रतिपक्चन्तु awe: परितं घटं | यः प्ररयःइतस्यन्ते पूजयित्वा दिजोत्तमान्‌॥। वस्त्र राभरगेचेव AWAIT च | ट्वा सारस्वतं वाति ae गन्धन्व पजितं | विदान्‌ स पुणंविभवो धनधान्यसमन्वितः ॥ खूपवान्‌ गुणवांख्चव TAHA BAA | SAF श्यान्तु संयुज्य उमामादेश्ठर विभु ॥ प्रतिपचन्तु संपूज्य पुचेर्गन्ध वेद्‌ नैः | चातुनोखे ततो हन्ते रोप्य लला ठषोत्तमं। तत्रोपरि च सौवणसुमामादेष्वर्‌ं विभु ॥ घुजचिता दिजखष्ट ब्राह्मणाय निवेदयेत्‌ | तरतो सयाति yaad विमानेन fe aed | कल्पान्ते aa 4 fear wate भवेदिति॥ भविष्योत्तरात्‌। ठवमादिनतेः पाथं तोषमायाति तोषितः! केशवः ATT AW: कंसकेशिनिसुट्‌नः॥ सुपे य्मित्रिवत्तन्ते क्रियाःसव्वीः शभोदरयाः | विवाहव्रतवन्धादि चङ संस्कारवोत्त गां । यज्ञग्डहप्रवेश् प्रतिछादेवभुखतां ॥ guia यानि कश्याणि नस्य; सुप्र जगत्वतौ, अस्‌ HAMA सासं SA पतेय च कमणि ॥ सलमासखमयोचद्ध aTaafaarac: | व्रतखक्छ'रटश्रध्यायः।] SATE: 1 प्राप्त wigue मासि एकादश्यां faasefa Hera भवेदिष्णोमहापातकनाश्रन) कटिदानमिति गशयितस्य विष्णंःरङ्परिहठत्तिकरणं | थदटेतदेवश्रयनं ततेदङ्ारणं WT ॥ पुरा तपःप्रभावेण तोपितोऽदह महाभुज) प्रार्थितः Wane षु ular योगनिद्रया ॥ ततो मयामनो देहं तत्‌ waa निसेल्तं । उरो MH मम व्याप्त हृदयं कौस्तभेन तु | गह्गचक्रागदाशाङ्ग बां दवो घाहवत्तमाः | gut नाभेनिसड़ं भे वेनतेयेन पक्षिणा । सुदुटेन शिरो as कुण्डलाभ्यां Bfaez ॥ ततो दत्तं मया पां नेत्रयोः WARS | चतुरो वाभिकाश्मासान्‌ वसुः प्रीती भविष्यति।॥ योगनिद्रापि agra er प्रौताभवत्त aT | चकार लोचनावासमतोय मे युधिष्ठिरः ॥ SEQ ताश्ावचित्वा मानयाम्याससख्िता| योगनिद्रां महानिद्रं ओेणहिशयण खपन्‌। तोरोदतोयवोच्योषेर्यौतपादः समाहितः ॥ सच्छा करा म्ब; खअच्छेखंदयमानपद्हयः | तस्मिन्‌ काले च agal ay मासांखतुरः चिपेत्‌ । तरमै रनेकतेनिवमेः UWA ययकेऽनघ } क्पमेकं विष्णुलोकं पूज्यमानो नरो वसेत्‌ ॥ ततो विबुध्यते देव गह्दक्रगदाधरः। ८ १४ ेमादधिः। [त्रतखच्डःरटम्रध्यायः। 9 & =, ~ 9 au पुराणात्‌ | एकादश्याश्च warat afaa मासि ana | WEN बोधवेद्राजौ अदाभक्तिसमन्ितः ॥ =a iT A न = ZUMA MA AST WAT AAAS: A ~ AMIS EISA पुरागखवणेन च॥ ~ ~ + वासुदेवकथाभिख स्तोचरन्ये ख वेष्णवः | = 4. ५ „~ fj ™ सुभास्ितिरिन्द्रजालभरूरिगोभाभिरववच॥ ~ ADA AAR a SR ~, एष्यध्‌ घश्च नेवेदयदीं पह a: सुशोभनः | ~ ACA A 2 ¢ A दामभच्यरपूपख फलः शकरपावरः॥ ~go ॐ © > > द्चेःविकारेमधुरद्राचाच्तद्रः सद्‌ाडिमः। कुटेरकस्य AAA मालत्या कमलेन F I कुठेरकः छष्णतुलसो। _™~ ति याभ्यां खतरक्ताभ्याच्न्दनाभ्याच्च WAT |! x FTAAARVATY THA: WHF: | > > 6 2 तथा नानाविधैः प॒ष्पेद्रवेवांर MATEA: | रक्षयुकेन प्रथमं माल्येन ग्रहण तथा ॥ तस्यां रात्यां व्यतोतावरां दद्श्यामरुणेःद्ये। = क ~ ~, परादौ छतेनचवेण मघना ITAA: Il दघ्ना MTU च ततः पञ्चगव्येन शास््रवत्‌। Seda AIT मसूरामलकानि च ॥ क~ रे ry > . सषपाय faa a सरव्ववोजानि area | मङ्लानि वघाकाम रलानि च कुशोदकं tt एव संशोध्य Say दद्याद्रोरोचनां शुभां) ततस्त कलां देया यथा प्राप्ताः खलङ्कताः ॥ त्रतखर्ड.रर्अध्यायः ।] देमादिः। १५ ज तोप्ज्ञवसंयुकाः सफला सकाञ्चनाः। पु ण्या हवेणु गन्द ण वौणावेरुरवेण च I एवं dala गोविन्दं स्नुलिप्त Way | सुवाससन्तु सम्यूज्य सुमनोभिः SHEA: | ae daatas पायसेन च ररिणा॥ पाचेभ्ययाव्रदानैच Bia: एष्यः सदविगैः। वास.भिभू"षने रन्यैरमभिषेव मनोजबेः॥ व्रा द्या; पूजनया विष्णोदयाय Bay t यत्त faxed पयाद्धोक्तव्य ABU UE ॥ भविष्योत्तरात्‌ | mIfaa शक्तपच्तस्य एकादश्यां समाददितः॥ मन्त्रण चेव राजेन्द्र देवमुत्यापये्िजः। AAT वरादहपुराणोक्ताः | Si ब्रद्मोन्द्रसद्राग्निकुबिरदेय्य- सोमादिभिवंन्दतवन्दनोवः। qaa देवेश जगन्निवास मन्त्रप्रभावेण Faq टेव ॥ sf ~. गोतवावद्यस्तथा नृत्यदोपमालाभिरव = | साचैनां जलघुनूनां प्रदानेन aaa च। मि © ~, कै तधा कालिक ara cats पारण भवेत्‌| ~, ™ Aa न~ प्रसवाप च प्रवोध च feafaen वं fea हिंसात्म केस्त्‌ किन्तस्य यज्ञः TT महामनः ॥ प्रस्रापे च nats च पूजितो येन केणवः। दगाहमेतत्‌ कलातुत्रतं fare aw u अग्निषटोममवाप्रति कुलच्चव समुदरेत्‌। ~ € 6 ॐ श्रगम्निसुख टेवतानामग्निद्‌वञ्च कत्तिका | 6 a द्‌ कात्तिकखाग्निदेवत्यो मासो faqs: स्मतः | ते + ^. ते पाश्वयुज्यामतोतायां यावत्‌स्याहइ ज कात्तिक ॥ ad दभादाभिहितं छता खरे महोयते | पोर्डरोकमवाप्रोति कुलमुषरति aa ५ ( १०४ ) ८२६ Safe: | [तरतखष्डर८्श्रध्यायः। wae fuera कात्ति केऽभिसुखौ भवेत्‌ | VAM MIs was पूजितः ॥ एतावन्तं तथाकालं सव्व मासविवजं कः | BUA AACA मानुषे सखमःप्रयात्‌ ॥ सारोग्यरूपसम्पच्या युक्तय सुभगो wag । प्रसुसे टेवदेषेथे दशराचोदितं व्रत ॥ Hal तु चतुरो मासान्‌ VER मधुसूदने, VSZYAIRA प्राप्य AURIS महौयते ॥ असिधाराव्रत क्त्वा AAT MART AT: | सव्वयन्नानवाप्रोति विष्णुलोकञ्च गच्छति ॥ येनयेन तु काभेन खड्खघ{रात्रतच्छरत्‌। तं तङ्काममवाप्याय विष्णुलोके ugiad ॥ तथा WAAL भवति दने च वरथ्ापयोः। भादित्यतेजा भवति ara काया विचारस्णा॥ दारभ्य Bars । असिधाराव्रतविधिं समाचच्च महाद्य॒ते। uaa aud fata a हि सव्वंविदुच्यते॥ URW उवाव | खरातखालङ्कःतखम्बौ भुक्तवान््रासवजिंतं । छातदवत्यपूजख स्तौसदहायः खपेत्रिशि। ब्रह्मचारो Faas खद्धधारात्रत चरेत्‌ t NYS qa ya a समालिङ्कय स्वपेत्रिशि॥ द्मचारो शतगुण फलमाप्रोत्यसंगय | व्रतखष्ड रट्भध्यायः।] SArfz: | ८२७ भतोवदुष्करमिदं खङ्गधारात्रतं स्मृतं ॥ Mal व्रत इाद्‌शवत्छराणि तेलोक्यराज्य WAATA Ae | भुक्ताचिरन्ते दिजसुख्यमन्ते सायुज्यमायाति जनःदनस्य । दति विष्ण धम्मीत्तरोक्तमसिधा रातव्रतं। 00020)000 ALATA उवा च । द्द्‌मन्यत्‌ प्रवच्यामि चतु त्तित्रतन्तव | faqiaiaa acai नरेण सुविपयिता। afe: स्नानं नरः छता Baw दपूजनः। wat शृणुयान्नित्यं मासदयसतन्दित; ॥ चेताद्‌ारभ्य धर्यान्नो faa नक्ताशनो vq | ततो BAT प्राते ज्येष्ठस्य चरमेऽहनि ] area way तथा धेनु पयखिनौः । छतपूणं aia रुदविरण्यन्तु द्‌ल्तिणां ॥ भाषाटादिषु मासेषु यजवद्‌व्रतं चरेत्‌ अणिनादिषु Hey सामषेदव्रतं चरेत्‌ | तणप्यघवत्रत नाम पौषाद्षु विधौयते । Way RVR ST We द्त्रतकौत्तित्‌ं ॥ वेदाव्मनो वाङूदेवस्य gat सत्वा नरो इाद्यवव्छराणि | cao माद्रः! [तरतखग्डंर८्भध्यायः। विष्णोर्लोकं याति लोकैषिशिष्ट afaq प्रासे सव्व दुःखं जाति ॥ इति विष्ण धम्म ्तरोक्तं वेदव्रतं । 000 माकण्डय उवाच। ©, © * श्टमन्यत्‌ प्रवच्यामि चतुभूत्ति त्रत तव । bas) ~ ~ f: ~ चन्नस्यामलपकत्त तु सोपवासो जितेन्द्रियः ॥ वामुदेवन्तु संपूज्य ताद्शाय faway: | 7 ।५ = ५ ज्‌ दाच्तणएथन्तु वं दयाद्रव्यं यज्ञोपयोगिवित्‌॥ UETUAY संपूज्य वैशाख WUT | afaara तथा carey सांग्राभिकं Wa ti + पूः ८ ४ ~~, nae@ पूजयितातु was मासि दहिजोत्तम। वेश्याय दद्या ारिज्चे द्रव्यं यदुपय्‌ ज्यते | छत्वानिसदपृजान्तु मास्याघाढ्‌ यथाविधि । कर्यमोपकरणं (१) द्रव्यं TAHA गागंव | मासेयतुभिभवति पारणं प्रथमं दिज। क्त्वा नरस्तिष्वथ पारणानि लोक समाप्रोति पुरन्दरस्य | ANT राजन्‌ Baty कालं मानुष्यमासादय भवेत्‌ ATT: ॥ इति विष्णधरम त्तरोक्त' aad | (१) कामाय कारकमिति चुस्तकान्तरं पाठः| $ छ. व्रतखण्ड'२र्अध्यायः] warts: t ८२९ मा कर्य उवाच | द्रद्‌मन्यत्‌ प्रवच्यामि चतुत्तित्रतन्तव । नित्यञ्चतुषु मासेषु आवणायेषु area | चतुःसागरचिद्ानि पूणं कुम्भांस्तु पजयेत्‌ | चतुरात्मा दरिज्गंयः सागरात विचन्तणेः॥ खान समाचरेत्रित्य नदोतोयेन यादव, हो मच्च wad Gara Tad तेलवजिंतं ॥ का्तिकस्यावसानाह्ि पूजयित्वा दिजोत्तमान्‌ | aa दत्वा तु विप्राय नाकष्रष्ठे मह्ौयते | सव्वं काम WAC IAT लभत फलं | मानुष्यमासादयय welifaa भुक्ता AST सागरमेखलान्तां | ततापि waa मनोनिविष्टो भवत्यरोगञ् बलेन युक्तः ॥. इति विष्ण धब्ब्रीत्तरोक्त सागरव्रतः। w= 000(0) 000 MAH CT उवाच | Czauaq प्रवच्यामि aqy fa व्रतन्तव वासुटेवस्य गसडस्तान्तः सङ्घस्य च | प्रयन्नस्य तथा चिद्व मकरो व्यादिताननः। देवानिसषो Wie wag: प्रकोत्तितः ॥ पोतं नोलं तथा श्वेतं Tay यदुनन्दन | ८३० माद्भिः (तरतखण्डरर्भष्यायः। तेषान्तु कथितं ara: पताका ताहटमिष्यत ॥ यस्य देवस्य afes स चाना प्रकौत्तितः। पताका ATA! तस्य वसनन्तख AEST | 43g vad मासि गसड़ पूजयेन्नरः | पौतेन गन्धनवेव्यमाल्यवस्त्राद्ना fea | वेगाखे च तधा मासि तालं संपूजयेत्सद्‌ा | alata गन्धनेवेयमाल्यवस्तादिना fea | ज्येष्ठ च प्रत्यहं मासि मकरं cHAa ॥ श्वेतेन गन्धनेषेच्यमाल्यवस्वादिभिदिज। wa संपुजयेदवं aang यथाविधि। रक्तन गन्धनेवेद्यमाल्यवस्ादिना feat afe: खानं तथा कुय्यादद्किसंप्‌जनं तधा | नित्यच्च कुथथावैमन्न तथा ब्राद्यगभोजनं(१) | पारनार्थं तथा Haram’ तेलविवज्ितं ॥ TUNG तथा च स्याद्‌ ABA सदा भवेत्‌ | ATAAAT: FAlT सम्यद्चासचतुशटयं | ब्राह्म णान्‌ पूजयेच्छक्या आषाढ़ चरमेऽनि। वस्तराखयक्तानि waa दद्यद्िप्रेषु दक्तिणां | HAA पारणं राजन्‌ BUM Alaa | दितोयं पारण कत्वा शक्रलोके महौयत। Sala पारण कला ब्रह्मलोके महोयते। छत्वा पारण्षटकन्तु रुद्रलोके APIA । (१) ब्राद्धणतप णमिति gear पाठः | angw~w rcs 1] ATA | चे विष्णुलोकमवाप्रोति क्त्वा दादश पारण | ध्वजव्रत इादगशवत्सराणि कत्वा नरो भागववंशसुख्य | सायुज्यमायाति जनाद्‌ नस्य देवस्य विष्णोः परमेश्वरस्य | इति विष्ण धर्म्म ्रोक्तं ध्वजव्रत। 0000 AAW] उवा च | द्रद्मन्यत्‌ प्रवच्छामि waa तित्रतन्तव । TEI गद्‌ापद्म' चतुरात्मा walla ai वासुदेवः स्मतः शङ्क; चक्रः सङ्घ णस्तथा । प्रदुन्नर् गद्‌पद्ममनिसंडोजगन्ग स; ॥ खावणादिषु मासेषु वद्िःख्रातस्त, नक्तभाक्‌। तेषान्तु पूजनं कुयात्‌ प्रतिमासमनुक्रमात्‌ ॥ गन्धमाल्यनमस्कारदोपधूपान्नसम्पदा | ततम्त कात्तिकस्यान्तं समाप्ते तु तथा ag ब्राह्मणान्‌ भोजयेडक्चा दव्याच्छक्या च ददि, कांस्यपात्च्च wa ससुवण' ava च। Gal Ad मासवतुष्टयच्च प्राप्रोति Wa तरिदगेशखरस्य। मानुष्यमासाद्य तथेव पश्चात्‌ वसुन्धरेशो Waals ale: ॥ इति frat आयुधत्रत' । ERR देमाद्धिः। [ATU RewATT: | नद्धयीवाच | अतः पर प्रवच्यामि सव्वाभ्यदयव्धैनं । यत्‌कत्वा जायते राजा Vay ala TAT | मासे नभसि dara नक्ताहारो जितेन्दियः। MIA lal सद्‌ाध्यायो अग्निकायपरायणः। zat सप्‌ जयेदत्स विल्व पुष्पनागचम्पकेः ॥ wag गुग्‌ गुलं दव्यान्नेवेद्यं छतपाचितं। alta दधिभक्त्च अथवा शाकयावकं॥ AY कु््यीन्मन्तस्य सदखमयवा शतं | awa समप्यत यावत्‌ पं व्रतम्भवेत्‌ | au व्रते ततोवत्स कन्याचायदिजस्तियः । भोजयेत्‌ एजयेच्छत्या हे मगोचरभ्यूष णेः | saad नित्यः काय्यं कृपोत्तम) यः ङ्यांत्‌ गततं भक्तया सोपि तत्तुल्य ताभिवात्‌ १ नचव्याधिजराखतुवन भयच्ारिसम्भभ | जायते टेवि भक्तस्य अन्ते च फलमव्ययं ॥ अच मन्तपदानि भवन्ति) ओं नन्दने नन्दनि सर्व्वायसा- धनो नमः मूलमन्तः। Bt नन्दने Esa नमः, wea | नन्दिनी शिरसे नमः, शिरः wata aa: शिखा। at अथसाधिनौ नमः, कवचं। रों नमः, हं फट्‌, wet Sl नेचायनमः। at नन्दिनो उपचारहृदयं | ढतोयायाच् पञ्चम्यां waaay च) ्रतखष्ड'२ रश्र्यायः।] दमाद्रिः। ८३३ नवम्यां पौणमास्यामेकादश्यां दादभौषु च। seat सा चेव विद्या पुजनौया विशेषतः । नन्दासुदहिश्ययो दद्याच्छावणे गोहषं faa | स लभेदिषटकामायं देवौलोकञ्च waa | नभस्येतां ससुदिश्य sari काञ्चनं पिव t स व्रजे तपापस्त नन्दालोकञ्च निर्भय । sifea नवराचच्छ उपवासमयाचितं | कत्वा देवी प्रपूज्याथ अष्टम्यामपरेऽडःि ॥ हेमपुष्पमणिवंस्त' नानाचित्रविभूषितं | SAG काञ्चन Sa नन्दाये खार्थमिदये। विघुतपापसङ्घातः सव्वं कामसमन्वितः | गच्छन्त तन्तु लोकं वे यन्न Sat सुरारिहा | वसते कल्पकोरिस्त श्रष्छरोगणसेवितः ॥ ARAMA एरथिव्यामेकराड़ भषेत्‌ | कार्तिके पजयित्वा तु देवीं जातोगजाद्वयः ॥ Hara दददिप्रे कन्यास स्तोष्वघ्ापिवा। मितानि चेव वस्ाणि तथा टेयानि दक्तिणा ॥ मुच्यते सव्वं पापेस्त, जन्मान्तर HATH । देव जायते योगौ ata पदमव्ययं । माग तु fafwaqearar देवीं पूज्य च कुड मे: aaa छतपूपाख देयाः कन्यासु च दिजे ॥ भो जयेद चयेदत्स Ta: WRT: | प्ाप्रयात्सव्व कामांश सव्व पापे; प्रसुच्यते | ( १०५ ) । + ८९४ ेमाद्रिः। (age acweara: | पौषे देवीं समाधाय जलजेरभिपूजयेत्‌ ॥ aaa शालिभक्तञ्च कन्यां सम्भोज्य दच्तयेत्‌ । पोतवस्ेस्तथा शय्या Zar टेयातिशोभना ॥ gaa विधिना वत्स साक्ताहवोप्रसोदति। ददाति कामिकान्‌ भोगान्‌ अन्ते च सपुरं नयेत्‌ ॥ माचे तु पजयेद बीं कुन्दजसरम्म्रादरात्‌। कुडमेन सदपण तथा ससुपलेपितं । सदप्येण कस्तरिकासदितेन | खापितां विधिवल्यृब्वं' ततः कन्यास्तु पूजयेत्‌ | festa afeeat भ्या विधिवद्वतयायसैः। दत्तिणणं तिलदोमच् यथा गक्तया प्रदापयेत्‌॥ विधूतपापकलिकः सव्व भोगसमन्वितः | विश वपुत्र्च जायते नरसत्तमः! देद्ान्ते नन्दिनलोकं सव्व टेवनमस्छतं | प्रयाति नाच ae wt अनेन विधिना aa फाल्‌ गुने WIS वीं GAH! सहकार केः | तथा निवेदय भच्याशणि शकंरामधुना सद ॥ भोजयेत्कन्यकान्‌ विप्रान्‌ दच्तिणसितकाससौ, अनन जायते भौमौ देवौलोकच्च गच्छति | WMA WARIS तु देवौ पूज्या दमानकेः। नेष्यं BSA देया तथा Hara भोजयेत्‌ । fara wads पूजितव्याः(१) यथाविधि) (९) दलितग्या इसि पुख्ठकरान्तर aia: | FASE owes: |) SAT | ८३५ अनेन सव्व कामान्‌ बे प्राप्न याद्विचारणात्‌। टेवोलोक aswel यत्र भोगा निरन्तराः | वैशाखे GAR! वौ' पुष्य gale aT | नवेद्यं सक्तवः Sw Hat भोज्याय दचयैत्‌| भानि इमच्छचाणि देयानि हिजसत्तमे | देवौन्तु प्रणमेत्स सव्व देवेष्वनृत्त मां! se तु शङ्करी पज्या रक्तागोककाररटकेः॥ तथा देयश्च aaa तपुर RATA: | भोजनोयास्तथा TAT गोभूदानादिभिः भैः । जलङुम्भास्तथा Sat सम्म. वा सिताम्भसा! अनेन वारुणान्‌ भोगान्‌ तेषां fat प्रयच्छति॥ WMS WRIT पश्च नलो त्यलेद्‌ लेः । मेवेदं wage दधि wag पायसं | कन्या दिजा fan भोज्या Tate arg नात्‌ ¦ नानादेमाङ्रागा दे faa: समौक्तिकेः। पूज्या भगवती ` शत्या सव्वं HATTA ॥ नन्दा सुनन्दा कनका उमा दुग चमावती। मौरी योगेश्वरो वता नारायणौ सुनाशिका॥ अभ्विकेति च नामानि खावणादाद्गक्रमात। सङ्गो त्यन्ति उत्थायये नरा awe: | भवन्ति नरशादू ल णथिव्यां घनसङ्क लाः | पतानि पथि संग्रामे रिपुपोडासु नित्यशः ॥ समुत्तरति दुगाणि fe केति gna । ८२६ Safe [बतखण्डंरर्अध्यायः। व्रतानां प्रवरं काथं As वा पादमववा॥ मासं वापि प्रदातव्यं खावणदिक्रमेखतु। इति देवोपुराणोक्त Aaa | 0060 MTG उवाच | देवकी नाम राजेन्द्र देवकस्याभवत्‌ Fat | ~ १ १, नो saga तपस्तेपे yaa किल भामिनो॥ भाष्या सा वसुदेवस्य सत्यधश्मपरायणा |} न च तुष्यति मोतिन्द तपस्तामाह भागंवः। भागव उवाच | किमघेन्तम्यते भद्र तपः परमदुःष्कर ¦ द ~ सवाभिलपितो az कुच aafea | देव्युवाच | श्रपुत्ाहं fanas पतुपमनास्ति सन्ततिः | mea गोविन्दं पुदमिच्छामि Tra | तपस्तावत्‌करिष्यामि aaa समाधिना। यावदाराधितो व्ष्ुदीस्यत्परिमतम्बर॥ भागव SaTq | गोविन्दाराधने gat afe a Taafefa तदिद्‌ ब्रतमाख्ाय तौषयख जनार्दनं | ATG रट्अष्यायः,| देमाद्रिः । ERS प्रथमे कालि aes aaa टैवकिं खयं। पञच्चगव्यक्ततस्रानः पच्चगव्यक्तताशनः॥ बाणपुष्पेः AID वासुदेव मजस्विभुः । दत्वा च चन्दनं धूपं परमात्र निवेदयेत्‌ ॥ छतं निषेदयेदिप्र ख्ह्लोयाच्च ततो व्रतं अद्यप्रत्यह्ह मासं विरतः प्राणिनां बघात्‌ ॥ असत्यवचनात्‌स्तेयाकधमांसादिभक्तणात्‌ | सपन्‌ विवुध्यन्‌ गच्छ स्मरिच्याम्यहमच्य॒तं ॥ परापवादं पंशृन्यं परपौडाकरन्तथा | स च्छास्वद्‌वतायन्ननिन्दामन्यस्य वा सुवि॥ न वच्यामि जगत्यस्िन्‌ पश्यन्‌ सव्वं गतं हरि । भ्रत्यन्तो वाधिशकतोऽपि यस्मिन्‌ ate यगशखिनि | कुवोत नियमन्तस्य त्यामोधर्म्नोपहडये | maa पुरतो विष्णो faa fa पापतः wat aga स्यमञ्मौयान्मौ नौ नित्यसुदश्न खः ॥ Hawa तथा मासि जातीपुष्चैजंनादनं | समभ्यच्य gaya चन्द्नच्च निवेदयेत्‌ ॥ परमान्रच्च देवाय विप्राय च yaa | द्व! तयेव गह्लोयाननियमः योऽस्य रोचते ॥ तथेव नक्तं Yala ada’ कुलनन्दिनि। सवव्वेव aqaia पञ्चगव्यादिक समं, एष्पधृपो पहारेषु विशेषो efaqurg च | खानप्रागनयोः साम्यन्तयेव नक्रभोजनं | Gas eaifz: Cock fice ~ x रचयेत्‌ प्रतिमासञ्च a: पुष्पस्तानि मे ख्णु॥ ये च धूपाः प्रदातव्या नेवेद्यान्नच्च यत्तथा । A ~ बाणस्य जातिङ्खख्मः तथेव च मुकुन्दजे; ॥ 2 OA > ~ aarfaqan ta र्तवोरश्च THT: | mw 3 ay Of wa: शुच्चेम ह्निकायास्तघा मलिकया aa: ॥ ट्‌ धिपद्याभकेतक्याः पद्यरक्रोत्पलेन च । क्रमे णाभ्यल्वितो विष्णुददाति मनसि fad i am M4 ann क AN ° कात्तिक मागशोष च धूपं पोषे च चन्दनं । माघफाल्गुनचेचेषु द्‌ व्य दिष्णोस्तथा गुर ॥ = ~ ~ aqanraiiey मासेषु fay देवकि ufaa: | कपूर देवदेवाय Taya खरावणादिषु a कात्ति कादिषु सासेषुषपरमान्न शभे fay | # धि कासार माघपूव्वषु way ततस्तिषु tt छ तन्तिलान्‌ जलघट हिरखणयमथयवा aat | प्रतिमासं तथा दद्याद्वाद्यमणाय शुभत्रते। यथोक्तनियमानाच्च ग्रहण प्रतिमासिक। कुर्व्वन्‌ जगत्परतिविष्णुः प्रीयतामिति मानवः | योषिदप्यमलप्रन्ञा व्रतभेतद्यधाविधि। करोति मासान्‌ सकलान्‌ अवाप्नोति मनोरथान्‌ | १ ~, व्रतेनाराधितो विष्णुरनन जगतःपतिः। ददात्यभिमतान्‌ कामान्‌ चरिप्रकालेन भामिनि धान्य यशस्यमायुष्य सोभागम्यारोग्यद्‌न्तघा | व्रतमेतत्‌ प्रियतरं त्रतेभ्योऽव्यक्तजन्मनः ॥ AAG गर टश्रध्यायः || हेमाद्रिः ८२९ तेनानेन शाता पटेनेकन माधवः | सुखटश्यो न सन्देहो sia वाग्यतसखितः। कायवाद्नसा बुद्धा करोल्येतन्महात्रतं | शदधानाममलो देवो दृश्य एव जनाह्‌ नः ॥ तस्मिन्ेकाग्रचित्तानां प्राणिनां acafufa | प्राप्न वन्ति प्रयतेन सुक्तिभाजो fara: ॥ यथा RUA प्राप्य यद्यदिच्छति चेतसा तत्तत्पफ़रलमवाप्रोति यथा सम्प्राप्तं विसु \ इएभवत्रतमिद तस्मात्‌ मदहापातकनाशन | ्राराघनाय aM He टेवकि पावनं | afaata हषोकेशे नूनं यास्यति देनं | दृष्ट चाभिमतं यत्ते तदशेषं भविष्यति ॥ इति विष्ण धर्मत्तरो क्त विष्ण santa । CGO नारद्‌ Sars | भरःवन्‌ Safaaita खानदानव्रतक्रियाः। हेमन्ते जिध्िरे चेव aa get जनाद्‌ =: मागगोषं तथा Yt माघे चैवाथ फारगुने | यत्फलं प्राप्यते पुंभिः प्रणम्य मघघातिनं a ब्रह्मोवाच | णु वत्स माप्य हेमन्तभिभिरावभौ। रत्र संपूजितः क्ष्णः सल्येनापि प्रतुष्यति | ८४० Sale: | [ततखण्ड'२८्अध्यायः। मागेभौषं सिते पचे प्रतिपत्‌प्रथ्तिक्रमात्‌ t व्रतचथां विग्ङ्धोयाद मन्ते शिशिरास्मिक्रां ॥ सखात्वाभ्यच्य षौ केशं प्रणिपत्य नरो व्रतो । ACY AVATAR चराचरमुरुन्ततः॥ भगवन्‌ चपला ह्येषा प्राणिनां प्राणसंख्ितिः । wd खतुगमेनुष्याणां दुविज्ञेयं कदा भवेत्‌ I अतस््वां प्रा्धयाम्येव वरमेतदधीत्तज | यथा. WW व्रत न स्यात्‌ waa ala a विभी व्रतमतन््या देव चहो तन्तव शासनात्‌ | जीवतोपि खतस्यापि परिपूणग्भवलिति।॥ एवमभ्यच्ये लोकेशं चराचरगुर' Fhe | ततोनु बदहिमान्‌ कुर्य्यात्‌ व्रतचयाच्च शिरौ'॥ मागभौषस्य कष्णादौ प्रतिपत्‌प्रखतिं नरः | श्रहिसकः faarga: प्रातःस्राथो सदा भेत्‌ ॥ HAs वदेवेशं WAS केशवं सदा । विलिप्य कुङमोशोरं चन्दनेनाथ शक्तितः। पृ जयेन्मालतौ पुष्पै हविलूवादिकेन qt दौपं सदोज््वलं दव्ात्र्ठतं WIAA शाल्योदनं दधियुतं aaa सच्रिषेदयेत्‌ | प्रणमेच्च aM Naat शिरसा केशव सुष्ः। अनेन विधिना चेव dass गरुडध्वजं | ean के शवायेति जपेदष्टोत्तरं शतं ॥ एवं पञ्य YU AMG ततोनरः | व्रतखर्ड'रय्श्रध्वायः 1] Vals: | ६८४१ अकांस्यपाच wala eur faut feara a 1 वजेयेनमर्घुमांसानि aaa कुभोजनं । अलुतम्तेयपारुष्यं waa पतितैः सह ॥ गवादिकं संदा दद्यात्‌ स्िंतिशायौ agfafa | सदामिवन्द द्ष्वत्धङ्ग रु ज्नानप्रदन्तथा ॥ एवं पुष्ये तथा माघ फाल्गुने च नरोत्रतौ। व्रतं WANA VA नच AI HAVA ॥ हेमत्तांखतुरोमासान्‌ व्रतेनानेन नर्तयेत्‌ | विगेषीऽच्र विधिस्तच हादशो च gaa खण | मागगौषं शुभे पत्ते एकाद्श्यासुपीषिनः। पूज्येज्जगतामोश केशवं कल्यषापदं ॥ दादश्यां स्रापवरेदवं WITT परुषोत्तमं। रसे सर्पिषा चेव पञ्चगव्येन च क्रमात्‌ ॥ Semi खाण्टेद्‌वं पुष्ये मधे च फल्गुने, नैवेद्यं Garey ara: पूजयेच ततो हर्‌ tt प्रणम्य गिरसा उवं ang कशिपःतनं| भक्या क 1ान्नन्भु चा araay प्रवरं ax । waza क्रियादहोनं भक्रहोनच्च कशव। यनपूशजितं मया देवं परिप णन्तद्‌म्तमे ॥ एवमम्यच् टेदेगं "णियत्य पुन; पुनः) सतोऽनुभोजयेदिप्रान्‌ भक्तया दद्याच efaat a अनेनेव विघानेन पुष्ये माच्च च Hay A | WHA प्रणमेदौशं प्र,ययेत्‌ पूज्य वे इर ॥ ( १०६ ) च्छद चदमाद्रिः। [त्रितखण्डरप्मध्यायः | भोजयेच हिजान्‌ yaa भ्योद याच्च दिशां | त्रो हिवस्रतिलान्‌ सग्यिदवयाग्मासक्रमेण gu Bem टेवसुदिश्य feng wa ufaa: समाप्येवं AA भक्तया AMAT GACHAT: ॥ न गच्छेन्नरकं याति यत्रास्ते गरुड्ध्वजः। व्रतम तन्महापुख तव्रतेभ्योऽभ्यधिकं सुने CATIA AAA महापातकनाशन। सुरापो ब्रह्महा स्तयो गुरगामो सदादती।॥ WAT नरो Ad Waal सदयः पापात्‌ waa | asfafa: सदाचीरी खगतिसुजमोत्तमः ॥ ज्नानःविभिमंदहाभागैीत्रैतमेतत्‌ प्रपूजितं । Wiad PAT प्रासः HAT I गरुडध्वज ॥ व्रतेनानेन देषेणो दक्ताद्ये क्टःषभिस्त a: t भागवेणावनिं प्राप्य अक्रूर ययातिना | परितोष्य PIAS व्रतेनानेन AG | सदा नमं पर स्थानं awa सुक्तिलक्तणं ॥ अने नाच विधि भक्तया सम्प्राप्त सनकादिभिः। सव्वकामप्रदं UW नामनात्वनरकं AA ॥ कछला TA तया BIA न गच्छेन्नरकं AT: | इति विषव्णएरदस्योक्तमनरकव्रतं | चेचःदिचतुरो मःसान्‌ जसे दुरव्यदयाचितं। व्रतखण्डर८्भध्यायः] | VATA: | TBR व्रतान्ते मणिकन्दयान्रववस्तसमन्वित ॥ तिलपात् fectwg ब्रह्मलोके agiaa | कल्पान्ते भूपतिनालमानन्दत्रतमुचखते ॥ दति मत्स्यपुराणोक्तमानन्दबत | | ~ दौणमास्यां तथाषाद्यां शिवं संपूज्य यत्नतः | उपवौतं शिषे दद्याच्छिवभक्तांख भोजयेत्‌ ॥ पुनरेव च कान्ति क्यां पूज्य way त्तमापयेत्‌ | यतीनां efaul दक्वा सूत्रवस्तादिपूष्व कां 1 यः कु्यीससक्षदप्येवं चातुमीस्यां पवित्रकं | RAR CASA रुद्रलोके महोयते I पण्यत्तयात्परिभ्चष्टः चतुवद्‌ः प्रजायते। इच्छया तु भवेद्राजा गुरुरूपसमन्वितः ॥ दूति faa गिषोपबोतव्रतं | 0002०00 प्रतिमासं प्रवच्यामि शिवन्रतमनुत्तम। ध्षकामार्थमोच्ता्ं नरनाय्यीददिदेदिनां। पुष्ये मासतु VA यः कुधान्रक्तभोजनं। सत्यवादौ जितक्रोधः शालिगोघूमगोरसेः ॥ पत्तयोर श्यं यन्नादुपवासेन वरयेत्‌ | तसिन्धामचं यदौ गमम्नि शय्य भ.ततः। cee A Trt क, 1, 1 abiilom, st ae degre ee i TERE TaN 77 a ८०५8 षइमाद्रिः। [awew २त्यअ्रध्याः। afanara मासान्तं पौंमास्यां नादिभिः: दातवा स्नानं महापुजां शिवे यात्‌ प्रकल्पयेत्‌ ॥ aaa यावकप्रस्' dlcfag निषैद्येत्‌ : भोज त्वा femal सिवभक्तान्‌ सदत्तिणान्‌ | faz गःमिथनच्धेव कपिलञ्च निवेदयेत्‌ a JTaAFT Wey तस्य पुरफलं WW । सूथकोटिप्रतोकायेव्विं ara: साव्व^कामिकेः ॥ रद्रकन्यासमाकौर्णेमदाहषमसंयुतिः | सङ्गौतनन्यवाद्येय अष्छरोगणसेवितेः। BIG पमाल्ये ख स्त॒यमानः सुरासुर: | तिनेचः शूलपाणिख गिवेखयसमन्वितं | गच्छेच्छिवपुरः रम्यंयतास्तं शङ्करः स्वयं ॥ यावत्तद्रीमसड्गधयान तत्‌प्रशस्तिः कुलेषु च। तावद्य गसदसखाणि gat शिवपुर व्रजेत्‌ | तिःसपकलज : We भोगान्‌ yea यये ्ठितान्‌। न्नानसोग warara a aaa विमते ॥ CAT वः समाख्यातः ससाराणववत्ति नां | जशिवमोत्तक्रमोपायः शिवाश्मनिषेविशां ॥ ATA TAMA यः कुथ्यान्रक्रभेःजनं) anit छतसंयुक्रां yaa: स्ितेन्द्रियः। सोपवासथत्‌दश्यां भवेद्‌भवपच्तयोः | जिवाय पौण्मास्यान्तु प्रद्द्या ह तकस्बलं ॥ BU गो्मिथनद्धाच्र सुरूपं विनिवेदयेत्‌ ॥ व्रतखच्छ'२ट्अध्यायः] इदमाद्धिः। शेष कत्वा anfee gata फलं लभेत्‌ | इन्द्रनोलप्रतीकाशेविंमानेः सिखिसंयुतः। गला शिवपुर रम्य yar भोगान्‌ यधेष्ठतान्‌ t सम्प्राप्त फागुन मासे यः कुय्याचक्तभोजन॥ श्यामाकत्तौरनो बारेनल्नि तक्रो धो जितेन्द्रियः । चतुद्‌ग्यामधाष्टम्यासुपवासरतो भवेत्‌ | पौणमास्यां Aaa पच्चगव्यष्तादिभिः। qa nasa ga गोमतूचगोमयादिभिः॥ त्वगभिखक्तौरत्चाणां घातोगन्धारिभिस्तथा। दद्याद्नोमिधनं भ्या Ma परमेशिनि। शेषमन्धययथोदिष्टं प्राप्रोति सुमत्‌ फलं | UMMA AT aA ATTRA: ॥ गत्वा शिवपुरं wi gata aud फलं । SAAS GVA TD: कुर्व्यान्रक्रभोजनं। fara पयसा युक्त waa सयतेन्दरियः॥ दद्याद्ोमिधनच्चात्र पाटलं समल्त शिवायातिसुरूपञ्च शेषं पूव्ववद्‌। चरेत्‌ ॥ पुष्परागप्रभय्यीनदिव्येख रथसंयुतेः। गत्वा शिवपुरं रम्यं gad चिदशरपि॥ ama मासि waa य; कुर्व्याब्रकभोजनं | पिष्टक पयसा युकं yaa: afaafea गोढशायो शिदध्थायो निशायां वस्त्रभमेकश्क । नियमच्च यथोद्दिष्टं सामान्य सव्व माचरेत्‌ | cer ह aL 1 02 ee Ro ee | 4 ताभ ८४६ चखमाद्धिः | [वरतखष्ड २टभ्रध्बायः। वैाखपौणमास्याञ् कुग्यात्‌ ara छतादि्भिः। शिवायालङ्कतं श्वेत दद्याद्रोमिथनं शुभं । SUH Se TAT म॑हायानरलङ्क a: ॥ श्वेतठवभसंयुकेः प्रयातौण्वरमन्दिरं | सर्व्वा भिः सव्वेरूपाभिः स ath: परिवारितः । नोलोत्पलसुगन्धाभिः क्रीडते कालमत्तयं | SAS मासे तु WHA यः कुथावब्रक्तभोजनं। शाल्यत्र' पयसा FRATTACT संयुत | वोरासनो fame स्याद्वा गामनुगच्छति tl अनुपविश्यावखानं वोरासनं। हितकारी गवां नित्यमहङ्गारववज्जितः) पौगमास्याच्च wa कुयान्‌ स्नानादिकं विधिं। ca गोमिथनञ्चाच qaqa ae EA । a 0 A त = नोलोत्पलसमप्रख्येमहायानमनोरमः॥ मद्वा सिंहनिवदेख क्रौडत कालमक्तय | MISA सखायः कुव्याव्रक्रभोजनं ॥ भूरि खण्डाम्बसमि सल TURIN | दव्याद्ोमिधन गोरं भ्िवायालङ्कतं Ta ॥ ७ Qe + सामान्यच्च विधिं कुयात्‌ सव्व वेप्रद्य चोदितं! दति पुष्यमासोदितं), ~A ON = एडस्फटिकसद्ूमग्यानंः VITAI Ta: | ufuafe गुण्युक्तः शिववदिचरेत्‌ खयं ॥ सम्प्राप्न खावखे मासि यः फुथाद्रक्षभोजनं! व्रतखण्ड rcowaras i) Tals: | ८४७ छीरषटिकभक्तेन सव्व भूतदिते रतः। श्वेत स्रपादपोर्ड च दवाद्रोमिधनं faa | सामान्यमखिलं कुश्याहिधिना यत्‌ प्रकोततितं ॥ ~ A A wd o rf ° सविचिचमहायानविचिताश्वनियोजितंः। गत्वा शिवपुरन्दिच्यंपूर््बोक्तं लभते फलं ॥ प्रासे भाद्रपदे माते यः कु्यीन्रक्रभोजन। षतशेषन्तु yan वच्तमूनलताखितो fear रातौ वायतने वामः सव्व भूनानुकम्पकः। नोलस्कन्ध at गाञ्च शिवाय विनिवदयेत्‌ ॥ Ao ny ६ रि निशणक्ररकरप्रख्यवेच्ववेदूय्छगोभनः | ॐ +© A ee SN चक्रवाकममायुवो विमानः साव्वकामिकंः॥ गत्वा शिवपुरं रम्यममरासुर्वन्दिति। क्रोडते स मह.भोगय्यावद्‌ःइनसंञ्रवं॥ खोमानश्वयुजे मासि थः कुय्यान्नक्रभोजनं | Pama Tyra: प्रसन्नात्मा जितेन्द्रियः ॥ हषभं नोलउगणभसुरोदेशे ससुत्रतं | विभ॒च्य भगवत्यग्रे गामेकां समलङ्कतां। विधिभेषं हि vata aad समुपाचरेत्‌ ॥ प्राणान्ते च परं स्थानं प्रयाति निववडशो। सवच्छमौक्िकसडगा ये रिन्द्रनोलोपश्ोभितेः ॥ 2 » १ a १ जोव Bandy a विमानः BIHAR, | प्रत्रीडतें मद्दाभः गे य्यीवदादतसं्वं I १ o~ ~, € . भभेच कात्तिके AST यः छुय्यात्रक्तभोजन। ८४८ Sale: | [तरतखण्ड'र८््रध्यायः। चीरोदनच् yaa wuarel जितेन्द्रियः| द्दयाद्नोमिधनञ्ात्र कपिलं कञ्जलप्रभ। पव्वोक्तविधिवत्‌ कत्वा शिवतुल्यः प्रजायतं ॥ HU ACUGIS महायानैमनोरमेः। महासिंदक्रताटोपे; शिववचेष्टते सुखो ॥ मार्मजोच शमे मासे य: कुययीत्रक्तभो जनं | यवान्नं पयसा Ja Yara: सच्जितेन्द्रियः ॥ दद्यद्वोमिधूनं दिव्यं पाण्डर समलङ्तं। गिवाय शेषं पूर्वोक्तविधिना समुपक्रमेत्‌ | सितपद्यनिभव्यीनेः म्ेताण्वरथसंयुते | गत्वा शिवपुर दिव्य जिवतुल्यबलो भवेत्‌ ॥ afear सत्यमस्तेयं ब्रह्म चयं WAT SAT | स्खरिनञ्चाग्निहवनं भूगय्या नक्तभोजनं | पकत्तयोरुपवासेन चतुद weal लिपेत्‌ । षूत्येवमादिनियमेराचरेत शिवत्रतं | शिवभक्तातुया नारो Wa सा पुरुषः भषेत्‌। स्तो त्वमत्य॒त्तमं सा चेत्‌ काङ्ते खरुयाहुतं॥ दति विन्शधर्मोक्त' शे वमदाव्रनः। 000 कात्तिक तु शभे मामे एकभक्तेन aw aq | ्षमाऽहिंसादिनियमेः संयता व्रतचःरिणो॥ गु डान्यभिश्पिण््ाक मासान्ते विनिवेदयेत्‌ | वरतखण्ड'र८्श्रष्यायः] दमाद्रिः। ८४९ 8 + क, द्‌ अष्टम्याश्च Was भ्यां उपवासरता भवेत्‌ ॥ a 0 छ © ह इन्द्रनोलप्रतौोकाशंविमानः VIHA: | ९ + + ०५ 7} ™~ दषाणमयुत साग्र रुद्रलोकं महोयत॥ धथावत्सबलोकेषु भोगानासाद्य यत्नतः: क्रमादागत्य लोकेऽस्मिन्‌ यथेष्ट पतिमाप्र्‌ यात्‌ I कन + £ ~, o इत्येवं सुव्वमासेषु विधिस्तल्यः प्रकोत्तितः। एकभक्तोपवासस्य फलन्तु सट विदुः ॥ चमा Waa sia भोचभिन्द्रियनिय्रदः। शिवप्‌जाग्निद्धोमञ्च सन्तोषस्रेहभावन ॥ सव्व व्रतेष्वयं धः सामान्यो दगघास्मतः | ¢ ~ ~, ~ ¢ # AMM शुभे मासे saws yaaa | A ~ अ गन्धमाल्यरलङ्कत्य शिवाय विनिवेद्वेत्‌ ५ =a © द ~ mm A BAA महाया नरष्छरोगणसवितः, वषायुतशतं साग्रं शिवलोके ugiaa ॥ पुष्ये मासि पिनाकञ्च qe कत्वा पिनाकिने, गन्ध पुष्प रलङ्कत्य शिवाय विनिवेदयेत्‌ ॥ तास्कांस्यादिपातरे वा zar दद्यात्पिनाकिनें। मदा पष्पकयानेन द्िव्यगन्धप्रभादतः! वर्षा णामयुतेसाग्र रुद्रलोके महोयते ॥ रथस्याण्वयुतं माघ दोपमालाप्रसोभितं। पिष्ट लिङ्स मायुक्त छलायतनमानयेत्‌ ॥ aN a A! = महारयोपमयानः; र ताश्ठरघसयुतः;। वषीयुतं गत साग्र शिवलोके awlaa i ( tes) ८५9 न क ealfe: | [व्रतखनग्डरअध्यायः। फाल्गुने प्रतिमः पटो wat चरुसमन्वितां | गन्धमाल्यैरलष्कन्य सयापत्रेरौश्वरालयं | अना ~> en a aacufaafe व्यनोयनादयसमाङुलः॥ =. युतश्तं are शिवलोके avlad ¦ > र ~ ॐ चतरे भवदुमारद् ASI पष्य Tae | Siw पाच wa च अनयेच्छिविमन्द्िरं॥ Ao ॐ 0 x शरदििन्दु-तौकाशविमानंः साव्व काभिकः। वर्षीयुतयतं साय सद्रनोके ATA | ~ © , तन्द्लाट्कपिषेन GWT केलासपव्व तं | ~ . ९ + ईश्तरोमासमायुक्तं सव्व धातुविभ्रूषित॥ >, ^ ¢ + + क कन्दरयिविधं चिच्च रबण्प्रस्यसयुत | सव्व रल्लसमायुक TITAS ॥ कलासव्रतमियेवं बेगाख्यां यः समाचरेत्‌ केलासकल्ययानेः स शिवलोके ayaa ~ * लिङ्ग पिषटटमयङ्कत्वा ज्यष्ठमासे सवेदिकं! भक्तया संपूज्य गन्धः व्येव ay न वेष्टयेत्‌ । उपशोभाविशेषेश्च Aa जागरमाचरेत्‌ । a “A = ~~ प्रभाते wangia: शिवाय विनिवेदयेत्‌ | ~ ~ 0 = € एदस्फटिकसद्गागेविंमानेः साव्वकामिकेः वकोटिगतं aia शिवलोकं भद्ोयते। we faruagar अपादु ayaa सव्व away ad yeaa | = a, ~ ग्टदापकरणयुक् सुणलोदूखलाद्भिः। व्रतख॒ गड रच्शध्यायः।] SAa4rfz: | THR? सव्यैरल्नसमायक्त दासौ श्य्याद्यलङ्कतं | एते; पिष्टमयेः साद्य: er arated ॥ सव्वभक्तसमाकोण' गन्धमाल्यैरल्तं | बेतरक्लासितैः Vaasa: सुशोभितं | चतुपिधनसंयुक्चरुणा ATT gq शाषादु पोणमास्यान्तु we स्थाप्य शिवाग्रतः 9 सर्व्वीपकरणोपे तं प्रणिपत्य निदेद्‌येत्‌ | श तमूमेर्महायानेविंमानैः साव्वकामिकैः ॥ वषोटिशतं साग्रं रुद्रलोके मङौयति | सुघाघातुसमाकोण' fafeaaac. faa 3 निषवेदयोत सव्वीय स्राव तिलपनव्देतं ॥ सच्छेन्द्रनौलसङ्.गेयानंरप्तिमैः शभः वषकोटिश्तं साग्र wets astaa | क्रत्वा NUS मासे शोभितं घान्यपव्वतं। वितानध्वजच्छत्राद्; गित्राय विनिवेदयेत्‌ ॥ दिराकरकरप्रख्य महायाने सुशःभनः। वघकोटिसदस्राणि agate महोयते॥ क्त्वा नाश्वयुजे मसि विपुलं जिदिपव्वतं : सुवणवस्तसंगुक्त' शिवाय विनिवैद्वेन्‌ | सुविचिचौर्महायानैर्वरभोगसमन्वतेः। वघकोटिगतं साग्र" WAS Bsa | स््पधान्यसमायवुक्' स वोजरसा{्टिः। सव्व WAAAY a सव्व MT fUA SAR SAlfg: | त्रतखग्ड'र८्भध्याय | ug खतुभिः daa वितानच्छतगशोभितं॥ TAATA TA au: प्ररौपेश्चातिभोभितं। fafaacamiaa शद्कवोणादिभिस्तथा।॥ ब्रह्मो तैस्तथा पु मा ङ्य ्च faqua: | मदःष्वजाषटकयुतं विचित्रकुसुमोज्जनल ॥ नगेन्द्रमेसनामानं चलोक्याधारसुत्तमं। तस्य मदि शिवं कु ब्धा त्सव्वदेवसमायुतं | देव्यगन्धव्व॑भरूताश्च सिदयकच्तगखास्तथा | विद्याधरष्छरोनागा क्षयञ्च विशेषतः ॥ ्ालिपिटटमयं लिङ्ग saga विचन्षणः। aq दचिणे हस्त शूलं facugfaa i एवं way देवेषु FATT यथाक्रमं । शिवस्य महतो पूजां कत्वा चससमन्वितां ॥ पूजयेत्सव्वे देवां दणदिच्‌ बलिं हरेत्‌ | aaa भोजयेत्पश्चात्‌ गिवभक्तान्‌ सद्चिणान्‌ ॥ सव्वीरम्मसमायुक्तं यथाविभवकल्यितं | निषेदयौोत रुद्राय कात्तिक नगसुत्तम ॥ थः; क्य त्सक्रद्प्ये व तस्य पुखफलं रु । टेवतुल्यगणो भूत्वा गुणरूपसमन्ितः । शिववददिचरेन्रित्यं निल भुवनं Vat | सदागमेषु यत्प ख कथितं मुनिभिः पुरा॥ तत्प्‌ कोटिगुणितं प्राप्न aria waa: | मडारवरप्रभेव्यीनेः wa रत्रसमन्वितेः ॥ व्रतखष्ड regquy: i} द्देमाद्धिः ८१५३ गौोतद्लादिवायेश्च wah समन्ते; | apo AT { सुव्यकोटिसमप्रख्यविमानेमसरसम्भवः ॥ ते AO EN ४ नरनारोसमाकोखणेगन्धवादेः शुभस्तया | देवदानवगन्धर्स्तयमाना गणादिभिः॥ £, स्वच्छन्दा VAM Wal प्रयातोश्लरमन्दिरिं, कल्छकोटिशत दिव्यः मोदते सा मद्ातपाः। + ^~ = अ ~ एव सव्वेषु देवेषु भोगान्‌ भुक्ता यथेष्ठितान्‌ । एण्यन्तयादिहागल्य राजानं पतिमाप्र्‌ यात्‌ ॥ सुरूपा सुभगा नित्यं भवतोखरभाविता। दति शिवधर्मीक्तमपरशेवमदान्रतं। ~ O00 ———— SAW उवाच | ~ १ ५ ‘ चतारभ्य पिवम्तोयच्लघारां प्रपातयेत्‌ । वर्षान्तं छतसपू रन्ददयादैनिकां नवां ॥ एतद{रात्रतं नाम सर्व्वौद गदर a | कान्तिसोभाग्यजननं सपतोदप्यनाश्नं | इति भविष्योत्तरोक्त घाराव्रतं। टेवौोपुराणे। “oS | 9 =~, ॐ मागरसोत्तमं ददयादृषटत पौषे महाफलं , AMAR लवणं | Salis: | [aagag aca: | fanaa भुनिखष्ठ सप्तधान्यानि फाल्‌गुने। विचिचाणि च वसा चेते ददाद्भिजातये॥ वैशाखे दिन गोधूमान्‌ ज्ये daw घटं । WMS चन्दनं tz सकपरूरं महाफलं ॥ नवमौनं नभोमासि Ha प्रीष्टपदे wa | गुड़गकरवर्णाढयान्‌ लडडकानाण्विने मुने । दौपदानं agg कात्तिके य! प्रयच्छति। सव्व कामानवप्रोति क्रमेण तु SITET | व्रतान्ते गां शुभां sara सवत्सां कांस्यदटोहनों॥ सथुगां wast वत्स दटापरयेह्दिधिना सुने tat विरलिमादित्यं विश्णु am यथाविधि॥ सखभाव शबो विधिवत्‌ पूजयिता festa | दातव्या बौलराशे तु कामक्री धविवज्निते। श्रयाचके सदाचारे विनोते विनयान्विते। गोद्‌ानाल्लभते कामान्‌ WAH मनोरङान्‌ ॥ इति देबोपुराणोक्त मासन्रतं | वसिष्ट उवाच | A „= oN ~ ~ WY भ्रूपाल Aaa तराराध्यते AT: | ~~ बि पि a ^ Om नारोभिक्षापि घोरेऽस्मिन्‌ पतिताभिभवाणवे| त + = ज समभ्यच् ANA वसुदेवं AAA Il एकम्खातियो भक्त दितौय area a | angie cata: i] Sale: | ८५५ कारोति ANAT कीति कं मासमा्तवान्‌ ॥ ua वयसि यत्तेन जानताजानतापि ar | पापमाचरितिं तस्मःन्‌मुचखते नात सगयः। अनेनैव विधानेन मार्मशष;पि ae | समभ्यच्च कभक्त' वै विभ्यो यः प्रयच्छति | भगवत्‌ MwA BAAS WIS मे ॥ aa aafa यत्पापं योषिता पुरषेण वा) क्षतं तस्माच्च तेनोक्तो विमोत्तः परमात्मना | तथा चैवेकभक्त वे यस्त. गोभ्यः प्रयच्छति पण्डरोकात्तमभ्यच् पौषमासे महोयते। तत्‌ प्रौणनाय aqua asa aa a कतं! स तस्मान्‌ Fat राजन्‌ पुमान्‌ योषिदयाप्िवा। चेमःसिकां वतनिद्ंयः करोति नरेष्ठर ॥ सरिष्णुःौकनात्‌ पापेलघभिः परिसुच्यते । दितोये वत्सरे राजन्‌ मुच्यते चःपपःतलकोः | तदत्ततोयेपि Aa महापातकनागन। व्रतमेतन्नरेः स्लौभिस्िभिमीसेरनुितं॥ fafa. संवत्सरदैव प्रददाति फलं sat । तिभिर्मसेम्य्ोवस्थासिविधात्पातकान्रुप ॥ aft नामानि देवस्य मोचयन्ति faafaa: i यतस्ततो व्रतमिदं fafamngqersea | सव्व पापप्रशमनं केगवाराधनं परं ॥ इति falar चिविक्रम्रतं | ८५६ Safe: | [वरतखग्ड'२८्मध्यायः। सुमन्तुरुवाच | + „~ ® समभ्ययजगन्राथं टरेवमकमयापिवा। एकमख्माति यो भक्त दितोय array ॥ ~ at ~ न्ति + करोति भास्करप्रोव्य कात्तिक मासमाप्तवान्‌। aq aafa laa जानताजानतापिवा॥ पापमाचरितं तस्मान्‌ सुच्ते AA WAT: 1 saaq विधानेन मामगोषं विभाकर | 0 # ~, समभ्यच्य एकभक्त पिप्रेभ्यो यः प्रयच्छति) भगवत्‌प्रोणनायांय फलन्तस्य शृणष्व मे ॥ ay aafa यत्पापं योषिता पुरुषेण च) छते तस्माच्च तेनोक्ते विमोत्तः परमात्ना॥ ॐ > तथाचं वकभक्ञ्च aq विप्राय यच्छति) दिवाकरं समभ्यचय पौषे मासि महोपते॥ तदत्‌ ठतोयेपि कत मद्ाप(तकनागनं। a“ > मो ^~ प ७ $ व्रतमेतत्ररस््रोभिस्िममासरनुितं॥ ° > 7 ५ ॥ fafa: सवत्सरश्चव प्रददाति फल कणां । तिभिर्मसेस्त्रावस्थास्त्‌ चिविघात्‌पातकावरप॥ o~ ~ मि ~ ^ alfa नामानि देवस्य मोचयन्ति चिवाषिकान्‌। यतस्ततो व्रतमिदं तिविक्रमसुदाद्त। सव्वभरूतप्रशमन भास्कराराधनं aT | इति भविष्योत्तरोक्त' सोरचिविन्रमव्रतं । —— 0ff}00 —— AAGQW २८अ्रध्यायः |] दमाद्धिः | ट५ चवादिचतुरो मासान्‌ जले क्र्व्यीदयाचितं । च्येष्टाषाढ़ तथा ATA WS वा राजसत्तदः ॥ व्रतान्ते afta दद्यादन्रवस्वसमन्वितं | तिलपाचं fecuy ब्रह्मलोके महो यते । तदन्ते राजराजः स्यादारितव्रतमिदहोयते ॥ दति पद्यपुराणे वारिव्रतं। 000 Cla योमदहाराजाधिरजयोमदहाटेवस्य समस्तकरणा भोश्वरसकलविद्याबिशारदखोहेमाद्विवि- ~ o © रचिते aqaafaaraat व्रत खण्डे araaarfa | ( १०८} WAlAAa wa syns: t 000 अथ कतूत्रतानि)। ¢ उपक्रियाये सुषटदामिदानीं tulsa: प्रकरौकरोति। waaay णिमकम्पसम्मरत्‌- सप्राद्यितो दुरितापड्न्त्री\ HHS A उवाच। श्रधातः संप्रवच्यामि षर्मृत्त र्नं पर | वसन्त पृजयेन्नित्य' हो मासौ सुनिपुंगव | फले; पुष्ये : कषायेस्त गोष WAY पृजयेत्‌ मधुरेण महाराज प्रा्ट्‌काले ¶तुञरेत्‌॥ Tad पजयेत्रित्य ate लवणेन च | कटुख्ेन च हेमन्त तिक्तेन भिशिरं aati नक्ताग्नस्तथा तिरत्पञ्चकं वजयेद्रसं | ब्राह्मणान्‌ भोजयेच्चापि प्रभूतवसनादिभिः ५ सवत्सरभिदट्‌ कल्या AA परमपावनं। ्रष्ठसेधमवाप्राति राजसरूयञ्च विन्दति! सव्यान्‌ कामानवाप्रोति नात्र काया fase फल मत्तयमाप्रोति व्रतस्यास्य करोतम | त्रत षण्ड"२८अध्याय;।] BATH | ८५९ वेते समारभ्य faa a ost संपूजयेदयसूढ तषट कम क । कतोपवासंः सनरो qatar लभेत्‌ फलं शाव तमेव Wyo इति विष्ण धर्मत्तरोक्त षणम्‌ fad | OO set छत्वे कभक्त' हेमन्ते माघमासे तु यन्तितः। माचान्ते च रथं इुधाखितरवस्त्रोपशोभितः। ष्वते खतुभिः संयुक्त' TA: WAKA | Maa ध्वजमालाभिखिचचामरद्पंगेः। तण्डलाटकपिष्टन लिङ्ग कत्वा सवेदिकं | विन्यस्य TA तु पूजयेत्‌ लतलत्तणं ॥ तद्राचौ राजमागं च शङ्भेादिभिः aA भ्रामयित्वा ततः पशाच्छिवायतनमा नयेत्‌ i तत्र जागरपूजाभिःप्रदौपाद्यपभ्नोभिते; । प्रेच्च णोयप्रदानेख क्षपयेत शनेनिशां | प्रभाते खापनं AAl तच्नक्लानाद् भोजनं | दोनान्धङ्पणशानाख् यथाशक्त्या च दत्िणां | रथं गोभासमायुक्त (Raa विनिवेदयेत्‌ ॥ Yat च बान्धवः as प्रणम्येश we व्रजेत्‌ | प्रवरः सव्वदानानामस्िन्‌ WH: समाप्यते ॥ aa शिषरयं नाम सव्वकामःथं साधकं | mde Salis: 1 [व्रतखण्ड२८मध्यायः। सर्वव्रतेषु यत्पुख् (१) सव्व यज्ञेषु यत्फल ॥ aq शिवरथेनेव तत्प्र सकलं भवेत्‌ | सू््यीयुतप्रतोकायैविंमानेः साव्वं कामिके; | तिः सप्तङक्कलजे; ae शिवलोके agiad a दति विष्ण धर्मोत्तरोक्तं शिबरथत्रतं । 000 पुलस्त्य उवाच | बजंेयस्त पुष्पाणि हेमन्तथिभिरे vat । पच्र्रयच्च फाल्गुन्यां क्त्वा WAIT च काश्चन ॥ दद्याद कालमेलायां (2) प्रौयेतां श्िवकेशेवो | शिरःसौगन्धाजननं सदानन्दप्रद sat ॥ कत्वा पर पद याति रसोगन्धात्रतसुत्तमं। दति पद्मपुराणोक्त सोगन्धयत्रतं | क (7 (7) pe पुलस्त्य उवाच | यच न्धनन्ददेदिप्रे वषौ दि चतुर AT | एतधेनुप्रदोऽन्तं च स परं ब्रह्म गच्छति ॥ वेश्बानरव्रतं नाम सरव्वपापप्रणशन | इति पद्यपुराणोक्त बेश्वानरतव्रतं। eee ( १) सव्वप्राथयेषु यत्‌ युष्छमिति पुखकाग्तरे पाठः, Cy) दद्यादि काखवेलायामिति पुखकानरे ure: | व्रतखण्ड'२८ अध्यायः |) SAE: | cet पविचरतोययुकरय्ेः कुम्भ; ara शिवोपरि | गालयेद्यः AAT स ब्राह्मपदमसखते ॥ दूति शिवरहस्योष्तङ्गलतिकात्रतं | ie । इति शौ महाराजाधिराज-खोमदहादटेवस्य समस्तकर्णा- धोश्लरसकलविद्याविशारद्‌-गरोहेमाद्रिविरचिते चतुव्व ग चिन्तामणौ ASE ऋ तुत्रतानि | अथ चिंशो.ष्यायः। ०००@०००---- अथ संवत्सुरतव्रतानि | विदन्मनःकेरव कोरकाणां शाङ्सन्दोधितिरह्गतो a: | हेमाद्िणा प्राण्तां हिताय वितन्धते तेन समाव्रतौघः॥ पुलस्त्य उवाच | नक्तमष्टच्चरित्वा तु गवा ae कुटम्बिने। saan fagay दद्यादिप्राय वाससौ ॥ प्रणम्य भक्तया शक्तच्च प्रयतां शिवकेशवौ | एतदेवत्रतं नाम महापातकनाशन॥ इति पद्मपुरा णोक्तं दवव्रतं। 0 YAR उवाच | UIA नरः RST VATA CARAS | वसनरयुगम तिलान्‌ घण्टां ब्राह्मणाय निवेदयेत्‌ ॥ सोकंसारम्बतं याति gatas जायति । VAR Tad नाम रूपविदयाप्रदायक i इति पद्मपुयणेक्त सारखतव्रत | व्रतखण्ड'२९अध्यायः।] BAT | ८६३ यस्त संवत्सरं पूनमेकभक्तो भवेन्नरः | अहधिसः wang वासुदेवपरायणः ॥ नमोऽस्त वासुदेवायेव्यद्शाष्टगतं जपेत्‌ | पी ग्डरौोकस्य IHG ततः फलमवाप्र यात्‌ ॥ दशवर्षसहस्राणि खगंलोके सहोयते | तत्‌ क्रियादि arma माद्दाव्मा प्रतिपद्यते ॥ दति विष्णधर्म्रोत्तरो क्तम कभक्तत्रतं । ————=00(00 पुलस्त्य उवाच | क्त्वोपलेपनं शम्भोरग्रतः. केशवस्य च। यावद पनदं याङेनु जसलचछतस्य च Il स सव्वपापनिम्‌ a: शिवलोके मदीथते। राजा भवति aaa: wat महेश्वरः | एतत्‌ AQAA नाम TERA WHITH | दति पद्मपुराणोक्त ARTA । 0004000 पुलस्त्य उवाच | QUIT भास्करं WET MHA वाग्यतः। एकभक्त नरः RaAevwaAR विमत्सरः ॥ व्रतान्ते विप्रमिथुनं पूज्य घेनुत्रयाज्वितं | छन्न हिरण्मयं TIAMAT लभेत्‌ ॥ ८१४ देमाद्धिः। [तरतश्वग्ड २९ अध्यायः, दिवि देवविमानसख्थो मोयतेऽप्रसाक्णः | एतत्‌की त्तित्रतं नाम भूमिकौर्तिप्रदायकं ॥ इति पद्मपुराणोक्त कौत्तित्रतं। waa खरापन कत्वा केशवस्य शिवस्य च। ब्राह्मणो भास्करस्यापि Ma aqeca a tt TAA शभ FIA गोमयमर्डले | समान्ते Sanaa तिलघेनुसमन्वितं । समा वधं | WEAVE ST दव्याच्छिवलोके महोयत। सामगाययतसेतत्‌ सामनत्रतमिद्दो चते | दति पद्मपुराणोक्त aaa | ताम्बुलभन्षणादौ या गोरोपत्रं ददाति च। WoT ताम्बृलपतः' | पूगचृणंसमायु् स्तियो वा पुरुषस्य वा ॥ ATA FT सौवणं WAI राजतं | मुक्ताफलमयं चूण सम्पूणं वा प्रयच्छति ५ नस्ाप्राप्नोति Saree न दौगन्ध सुखस्यवा। ए्तत्पचत्रतं नाम गौरोलोकप्रदायकं। sfa भविष्योत्तरोक्त Wada | व्रतख ३ ° अध्यायः |] Saris: | ८६५ पश्चासतेन खापनं कतवा विष्णोः शिवस्य दा। वत्सरान्ते पुनद यादनु पञ्चारुतेयुतं tt विप्राय कनक WE TAME पाण्डरं | खगलोकप्रदं दिव्यं ्टतित्रतमिदं स्मतं । ईति विष्ण.पुराणोक्तं धतित्रत | 000 पलस्त्य उवाच | वच्जयित्वा पुमास्मांसमब्दान्ते गोप्रदो भवेत्‌ | तद्टदेमसगं दत्वा सोऽखभेघष्टलं लभेत्‌ | sfgaaafaqra कस्पान्ते भूपतिर्भतैत्‌ ॥ दति पद्मपुराणोक्तमद्दि'साव्रत | मुखवासं परित्यज समान्ते गोप्रदो भवेत्‌ । यक्षाधिपत्यमाप्रोति समुखव्रतमिद्टोच्यते।॥ इति पद्मपुराणोक्तं quad | यञ्च नौलोत्यलं हेमं शवौरापाचसंयुतं | णकान्तरितनत्तागो समान्ते षसं युतं | zaifefa शेषः। स वेष्णवं पद याति altaaafae स्मत ॥ इति पद्मपुराणोक्तं' नोलब्रतं | ( १०९ ) ८६६ Sais: 1 [वखण्ड'९०अध्यायः। TAT त्वेकभक्ायौ सभव्यफलदुग्छद्‌ः। भिवसलोके seen uifranfas स्मतं ॥ दति एद्यदुरारलेक्छ प्राित्रत । G00 सन्धाारौपप्रदौ Va समां away aay । सखमान्त दौपकान्‌ SMA LIS काष्ठनं a वस्तयुम्मच्च fay a aval vafes । सद्रलोकमवाप्रोति दोतिव्रतनिद Wa a इति पद्मपुराोक्त' दीतित्रत। 80. SAMI समां दवयाइनुमन्तं wafaay: शक्रलोकमवप्रोति शक्रत्रतसिदं स्मतं | इति पद्मपुरणोक्त शक्रत्रतं। 000 यस्वेकभतेन समां चिपेदनु' ठषान्वितां । ua fawaal cara पदं याति शाङ्करं । एतदुद्रत्रत नाम पापशोकविनाशनं ॥ इति पद्मपुराणोक्त dead | ००@००--- दे सदसे पलानान्तु मादिषाख्यन्तु यो देत्‌! देवि Wat पूण" स मे नन्दिसमोभदेत्‌ ¦ ्रतखष्ड १०अध्यायः।, माद्भिः TEs पलं नव समारभ्य पयः ufafed ददेत्‌ | इति पद्मपुराणोक्तं WAT | efamarg यो मूत्त पायसं स्तच्च वे | निषेदथेदषंमेकं सोऽपि afeaat भवेत्‌ ॥ ततः संवत्सर पूण BAAS जाग्र | क्त्वाभ्यच्यं महेग्रानं मडहासरामादिभिहत tt दद्यादिप्राय staal wat ary पयखिनों। afar चरितं पुख ad पातकनाशन | Wa संवत्सर ua तावदेव faafea 1 इति खन्दपुराणणेक्त मदश्वरत्रतं। न 0 () (000 संबस्षरन्तु यो yea नित्यभेद ह्यतन्द्रितः । निवेद पिटट्‌वेभ्यः एथिव्यामेङराद्ध३ेत्‌ | यो yea एथिव्यानित्यन्वयः | दति पद्मपुराण मुभाजनत्रतं | et, दति ओओमद्ाराजाधिदाज-शखमद्!देवस्य समस्तकरणा- धोश्वरसकलदिद्यःदिश्रद-शयोहेमाद्विविस्दिते चतुत््रग सिन्तामरी ATW सबत्सरव्रतानि। By एकचिशोऽध्यायः। 00८00 अथ प्रकोणकन्रतानि। ेमाद्िरुत्रिद्रसुरारिभक्ति- रधोतवेदाखिलघ्श्यषेदः। अशेषरलोकोद्रणावती णः प्रकीर्णकं वरंयति कमेण ॥ MAT सुखासनं देवदेवं जगहर" | वासुदेवं ana स्थितिसंद्ारकारकं॥ प्रणिपत्य aged चराचरगुर' हरि । शरी रारोग्यमेशखयथ' कामदेवसमः पतिः सुखावनोधने नित्यमवियोगश्च तेन वै। aera वात्रत वापि प्रूजामाराधनादिक॥ लच्छी; प्रोवाच शनक त्तीरमसितेच्षा | भगवन्‌ देवदेवेश लोकानामनुकम्प्रया। ne al किञिदिच्छामि दयां qa ममोपरि! व्रत कथय मे किचिद्रूपसौभाग्यदायकं | कतेन येन टेवेय सव्वतोधकलं aad | येन YaTS Vala we सव्वसखदिद्‌ | शरोरारोम्यमेश्वय' कामदरेवसमःपतिः ॥ सुखावलोकने नित्यमवियोयश्च Aaa! anew sess: |] Warf: | ata al ad वापि तौधेमादहाव्सयमेव च॥ येनानुितमात्रेण सव्व सिद्धिर्भवेत्‌ ध्रवं । कथयस्व सुरग्रेष्ठ गुह्याहुद्यतरं मम । विष्णुरुवाच | कथयामि न सन्देहो व्रतानामसुत्तम व्रतं | प्रद्यम्नायापि नाख्यातं पुत्रप्रीत्या aa fas ॥ तेजखिनां यथादित्यः पत्तिणाङ्रुडो यथा यथा नदोनां WET च वर्णनां ब्राह्मणो Gar | तथा त्रतभिदं as कथ्यते तव भामिनि AMS न Raa न काशी न च पुष्करं पावनानि महाभामे यथद्‌ व्रतसुन्नमं । गौयां देव्या छतं Ya WET महातना। Taq Taal साद दमयन्त्या नलेन च। WA पाण्डवैः सम॑; छतं त्रत मनुत्तमं ॥ रम्भया मेनया चापि पौलोम्या सत्यभामया। शा र्डिल्ययाप्यरुन्पत्या saw टेवद्त्तया ti गायता चेव साविचया ad अेष्टमनुत्तमं | अन्याभिखेव arate fa त्रतमिदं छत ॥ तस्मात्तेऽहं करिष्यामि सर्व्वपापप्रणशनं। विष्णुप्रोतिकर रम्यं व्रतानां प्रवर wy AWS FAA पापाल्ुरापो TACIT: | गुरुभायाभिगामो च एतेषां सङ्गमोचयः। मानकूटस्तलाकृटः कन्याद़रगवविक्रयो। ८७० SAS: | [्रतखण्ड' २ १अध्याथः। अगम्यागमनो यस्त॒ मांसभौ हषलोपतिः। भूमिहत्तां कूटसात्तौ कन्यादूषयिता च यः t एभिः सर्देमहापापेरस ते नाच संशयः | तस्मात्सव्वे प्रयत्नेन कत्तव्य व्रतसुल्मं ॥ काच्चनाख्या पुरौ नाम व्रतं तरेलक्यपावनं। श्क्तठतौया AUT च एकादश्यऽथ पूणिमा ॥ सक्रास्तिवी महाभागे Heat चाष्टमो fafa: t पव्व॑सखेतेषु दातव्या काच्चनाख्या पुरौ शभा॥ व्रतो खात्वातुपू्वाह्ने नद्यादौ विमले जले। सत्तिकालम्भनं ary विधिनानेन तत्‌ fad a उदतःसि धरे qa विष्णुना क्रोडरूपिणा | लोकानासुपकाराय वन्दिता सिदिकामद्‌ा। तस्मातल वन्दिता पापं St मेऽनेकजन्मज ॥ सत्िकालम्धनमन्तः | रापोयुयं सव्व योनिविष्णना fafa खयं। साच्निष्य तौयसदह्िताः कुरुष्व साम्प्रतं मम tt Ven THAT | अनेन विधिना स्रात्ा wearer सतो । नालपेत्‌ पिश्नान्‌ चर्डान्‌ पापिनः पापसङ्गिनः। पाषण्डिनो विकन्धख्धान्दे त्राद्मणतिन्द कान्‌ | ware प्ाणिपादच्च Gale ठे दन्तधावणं | उपवासस्य नियमं Faraway वा पुनः ¦ शङ्प्रवरमाद्‌ाय हेमयुक्तं ततो जलं 1 व्रतखग्ड' soma: i] दहेमाद्धिः। ८७१ नमो भगवते वासुटेवायेव्यभिमन्त्ा च! वन्दे तोयं शुचिभू ला इरिरित्यचरं जपन्‌ । श्रमीहत्तमयो भेदौ चतुःस्तम्नेः समन्विता | SAE MUA F कार्य्या चेव सुभोभना॥ वस्त्र णावेष्ितास्तम्भा वितानवरमर्िताः। पष्पमालाज्िताः काया दव्यिरूपाधिवासिताः॥ मघ्ये तु मण्डलं RA GATT वर्णकः Wa: । मर्डलस्यतु मध्येतु भद्रपोरं सुभोभनं॥ रसन aa विन्यस्य कमलं तच विन्यसेत्‌, तस्योपरि BASA WA YR Wares tt अग्रे तु खापयेत्‌ FA जलपूण' सुशोभनं | चौरसागरनामास्य कल्यितव्यं प्रयन्नतः | सामान्येकपलाः HT श्राम वित्तानुसारतः ॥ चत्वारिपलान्यस्यमिति aaa बडुत्रौह्िः सप्तवण॑वत्‌ | वोष्लायाच्च wert weifa च पततः षोडगमध्य एकमिति सप्तद्‌गशतावद्रद्यणविधानात्‌ | मध्यग्टहचचाएटमाचायग्डहत्दात्‌। तत्‌प्रकारस्तदत्‌ । बह्िःप्रकारो बहिग्टहवत्‌ | एवं चतुख- लारिशदधिकथतपलं हेम । तावच्च रूष्यं(१) । Var यस्या अधोभ्रूमिः शिरं काञ्चनं तथा । £ ~ ६, (१) आादग्पुरूकंषु एनद्‌ गद्समूडात्‌ ca’ कतिचित पाठाः पतिताः प्रतिभा fa, Ga waza ' एपुस्टकेष ez 7 $ श्य द्गद्यसमद्ात्‌ VS BEN प्रद्यसमूडं अदशपुस्तकेष ट्ट aay व श्न्दाभावात्‌ चत्वारि प्लान्यच्यामिःति यत्‌मत्चिकरयं न alata fa | ८७२ देमाद्धिः। [Araya wera: | WAT TARA: BST दशारससमन्विताः(१)। प्राक्रारं कारयेदमं रौप्यं पैटटमथापिवा। पष्ट सोसं। मोदकान्‌ सखाप्येहिहान्‌ प्रासादथिखरेषु च। समन्तादष्टयेत्तान्तु परो वस्ते : सुगोभनेः॥ तदग कदलोस्तश्चेम्तोरणं परिकल्पयेत्‌ | पुष्पभोभानुकत्तव्या विभवादिस्तरेण च tt चतुशखरणिके वप्रः प्रतिषठाप्या पुरौ gar | तस्या मघे न्यसेदिष्णु' Saar समन्वितं | aa Tad काय्यं ट्ग्नाख सुभूषिताः। सुक्ताफलमय तच भूषणं परिकल्पयेत्‌ ॥ UF खणंमयं काथ गङ्न्वक्रगदायुत | पच्चाखतिन सं स्राप्य गन्धपुष्पैः प्रपूजयेत्‌ ॥ ब्राह्मणो वरैदिकर्मन्तेः पुराणोक्तं AANA | वासुदेवाय पादौतु YMA संकषणाय च ॥ तेलोक्यजननायेति जानुनौ YAR: | ATA त्रे लोक्यनाथाय WE न्नानमयाय च ॥ कटि दामोदरायेति उद्र विष्णुरूपिणे । पद्चनाभाय नाभिन्तु उरः ओओवत्सधारिणे॥ कर कौस्त॒भनाभाय WI GWA च। TAMRAC वाह Gara चायुघानि ay भि खाञ्चशाणमन्त्ेण देवदेवस्य पूजयेत्‌ | (९) Grater Aiea न qaigta: | args ३१अध्यायः] SAE: | ८७३ fad aaa: संपूज्य लोकपाला स्ततोऽचयेत्‌ ॥' नवग्रहा पूज्या बे होमं तेषान्तु कारयेत्‌ t दुगा गणपतौ पूज्यो तयी हँ मं प्रकल्पयेत्‌ ॥ अग्रे नवेव्यमतुलं दापये त पाचितं | पायसं PAG मोदकान्‌ FARA टेणकालोद्वषान्यत्र फलाटरौनि प्रकल्पयेत्‌ | Zara enfedt दद्यात्‌ पार्तः पुष्यचर्िं तान्‌ | waa तु विशालात्ति मूलमन्त ए दापयेत्‌। कुम्भाः षोड़श कर्तव्याः शेतवस््नेविभूषिताः॥ मिष्टाच्रेन समायुक्ताः सहिरण्या; पथक्‌ was । पक्ता्रानि तु हृद्यानि deta प्रदापयेत्‌ ॥ फलानि aa देयानि नानारूपाणि सुन्दरि | दौ पाँस्तास््रमयांखव ay gary विन्यसेत्‌ । ब्राद्यणान्‌ भूषयेततेस्ते रलक्कारेयघाविधि | सपल्लोकान्‌ प्रयल्लेन जपं FATT प्रोड़श | सद्स्रभोषो त्यादि afsarfawa aaa i दमाद्रिः। [ततखण्ड' २ १ शरध्यायः। © ~ ~, आचायः सन्ववित्परान्नो बन्धयेत्सदस्येन च ॥ आबदनेचे BUF भाचायस्त इद्‌ वदेत्‌ | सत्व कामप्रदं पश्य काञ्चनाख्यां yeifaat | वरवस्त्रयुतां रम्यां दुःखदौभौम्यनाशनीं। एवमुक्ता महाभागे वस््रसुत्सजयेत्ततः ॥ पष्पाच्ञलिं ततः frat a पथ्येन्रगरों qui | eur at नगरों देवि यजमानः पुरोदितः॥ सौोवणशेपाचमादाय रीप्यन्तास्नमधापि वा | अथवा WSEAS पाचालाभेतु सुन्दरि ॥ vata fara जलगन्धांस्तथा फलं | fasragrad gar रोचना दधि faa ततस्वषः UAB’ मन्ते णानेन सुव्रते | लच्छौनारायण्यौ देवो भक्तिपूतन चेतसा a जानुभ्यां धरणो गत्वा मन्तसेनसुदोरयेत्‌ | aug निग्ितादेवौ विष्णुना शङ्रेण च। Tay Al चेव गायत्रा स्कन्दवे रवणेन च। aaa पूजिता देवो ware विजिगोषया ॥ सौभाग्य देहि gaia धन॑ रूपञ्च पूजिता । VEU मया दत्तं टेवि सौख्यं प्रयच्छ F | एवमर््य' तदा TAT दोपान्‌ प्रज्वलायेत्ततः। जागरं तच Fala Magaifeat तघा। विष्णोजांगरखे पुणे शतयन्नफलं लभेत्‌ | प्रभाते विमले जाते Mat नित्यादििपूजनं | ATSS WATT |] Safe: । TOY आचाथ' पूजयेत्तददस्त्र TATA | Walt Wag यलात्‌ सम्भोज्य पूजयेत्‌ | शय्या सोपस्करा तस्म वस्रचन्दनसंयुता ॥ प्रदेया YI तच सव्वौपस्करसयुता | तां पुरो काच्चनौं दद्यान्यन्ते waa yaar | लच्छीनारायसी देवी सव्व कामफलप्रदौ , रुक्मपुथ्योः प्रदानेन यच्छतां मम वाञ्छितं 4 नारायण षोकश ज्ञानज्ञेय निरनच्ञन | सक्नपुय्याः प्रदानेन यच्छ मे स॒क्तिद पर । दला लनेन मन्ते ण गौदया YTS ततः | ae दक्षिणं दव्यात्सन्तु्चा यद्नवन्ति ते । एवं च्षमापयिल्वा तान्‌ AU FT पुनः Ga: | अनाघान्‌ बधिरान्‌ agate व विशेषतः ॥ गवाङ्किकच्च दातव्य गोभ्यः सदत्‌ प्रय्नतः| एवमुच्ारयेत्तत विष्णुम प्रोयतामिति। एवं क्त्वातु तत्सव्बे पारणं aa कारयेत्‌ । इरिने; Jews पुचपौतैः समन्वित; ॥ एवं कते Gane ane कथितुं मया | कल्यकोटिसदस्राि कल्पकोटिशतानि च॥ ब्रह्मलोक समासाद्य व्रतो मोदति ब्रह्मवत्‌ | ब्रद्मलोकाट्रद्रलोकमिन्द्रलोकमतः परं I च्ौणलोकस्ततो देवि aged लोकमाप्र वात्‌ | तत्र yar तु विस्तौर्णीन्‌ भोगांस्ते stages | खेमाद्धिः। [अतखण्ड' ३१अध्याथः | मदेहे लीयते चेव पुमानखततं ब्रजेत्‌ | साव्व भौमस्त राजा वे जायते विपुले कुले ॥ य इदं खशयान्निलय वाच्यमानं aaa | सहस्रङुलमुद्ुत्य विष्णुलोके महौ यते ॥ लया काञच्चनपुर्य्याख्य' व्रतमेतत्‌ Ha पुरा | त्रतप्रसादाद्र्ताहं लब्धस्त लोक्यपूजितः॥ इति गारूडपुराणोक्त' काच्नपुरोत्रतं | 000 युधिषिर उवाच। संपूणतां मनुष्याणां व्रतानाच् Ware a | कुरु प्रसादङ्ग या्थेमे तनो वक्त मड सि ॥ IAW उवाच | साध्‌ साघु महावाहो FATT युधिष्ठिर) रहस्यानां रदस्यन्ते कथयामि व्रतोत्तमं ॥ सपू नाम तच्चापि ad सम्यक्‌ फलप्रद | TAU नरनारोभि््यीवत्‌ संपरूणकालकं॥ TART AU Si संपूगंफलकाङ्किभिः। किचिद्गग्न प्रमादेन aed व्रतिनां भकवेत्‌॥ तत्‌ संपू" भवेत्‌ Wa व्रतेनानेन पाण्डव | उपद्धर्बहविषैम हा मो हाच पाधिंव ॥ यंडग्न किञ्चिदेव स्यात्‌ aa विष्रविनायकेः | नत्‌ संपूण" भषेत्‌ wa सत्यं सत्यं न संशयः ॥ काञ्चनं रोप्यकं रूपं शिल्पिना तु घटापयेत्‌ | त्रतखण्ड'२१अध्यायः 1] SAE: | TOO भग्नत्रतस्य योदेवस्तत्‌ खरूपं afafad | रूपं wig anata प्रारब्ध aed किल | नच निष्पादितं fafae ara wa तथा fad 2 faqs पङ्जारूट' Be प्रहसिताननं | दिभुजादोमि aig aateae विशेषं ॥ तच्च रूपमन्नातेषु व्रतेषु, जन्मान्तरक्तारना विस्मतानाच् Staa तेष्वपीद्‌ प्रायधित्तमिति | | निष्पादितं शिल्िना च तस्मिन्नेव दिने पुनः| AAMT पनः प्रासे ब्राह्यणो विधिना we 1 सरापयेत्ययसा दन्ना छतक्तोररसाम्बभिः | गन्धचन्दनपुष्य स्त पूजयेत्‌ कुसुमादिना। तोयपूणस्य कुम्भस्य सुखे विन्यस्य चन्दनैः | धृपदौपाचतेवस्त्ेर स्त बल्यु पहा रक; | <. ~ _ ~ अध्ये CAA AAA मन्व णानेन UW | उपवारेन होनस्य wafad wares: ॥ शरण्य प्रपनत्रस्य कुरष्वाध sat qa: | परच भयभौतस्य WAIT व्रतस्य च ॥ कुर प्रसाद संपूण ad संपूर्णमस्तमे। ques aafee afer uaa aa | तव प्रसादात्तदेव सन्वमछिद्रमस्त्‌ मे ॥ खयाद्टा असुकदेवाय नमः, पूव्वेतो दक्तिणत उत्तरतो विधिं Harz | उपथघस्तादिक्पालेभ्यो नमः | ८, देमाद्धिः। [(aaew २९अध्यायः \ इदमध्य मिदं पाद्यं ada त नमोनमः! एव प्रोक्ता aq: पादो जानुनो कटिश्रौष के it बत्तःकुच्तौ च हदयं ws वास्यशिरोरुदान्‌ | ततो दिजाय कौन्तेय विधिवत्‌ प्रतिपादयेत्‌ i पजयेत्तस्य देवस्य ततः पात्‌ VATA | पूजितस्व' यथा शक्तया नमस्तेऽस्त्‌, सुरोत्तम tt tfearafaat नाय areata दिशसमे। एवं चमापयित्वा तां देवमूत्ती' बिघानतः॥ स्थित्वा पूर्व्वसुखो विप्रो ग्यङ्कोयादभेपारणिना। विप्रस्य हस्ते AU दाता चेवोत्तरासुखः ॥ त्राद्भ णोऽपि प्रयच्छेत मन्वेणानेन तहतं । वाक्यं UU मनः पूर्णः काया पूर्णा व्रतेन FI संपूणस्य प्रसादेन तव पूर्णो मनोरथः ॥ ब्राह्मणा यानि भाषन्ते अनुमोदन्ति Saar: ' सव्यटेवमया विप्रा न तदचनमन्यधा | जलस्य चौरतां Nat पावकः wawaat | सहखनेचः Wa adifanderafa; | MMAUA वचनात्‌ बरह्महत्या प्रणश्यति | अखमेघफलं UA प्राप्यते नाच TUT: व्यासवाल््नौकिरनच्नात्पररास्रवसिहयोः | गगमौतमपोम्याजिवसिष्टाङ्गिरसां तथा | वचनान्नारदादौनां GU wad A ad एवंविधविधानेन रहता ATHU व्रजेत्‌ | त्रतखर्ड'२१अध्यायः। ] Saree: ८७९ दाता तत्‌ प्रेरयेत्‌ सव्वं ब्राह्मणस्य WF aa | ततः पच्चमदहायन्ञात्रिवपे होजनादिभिः | एवं थः कुरुत भक्तया त्रतमेतस्हादुबु धः ॥ तस्य aqua याति तद्वतं यत्पुरास्ितं | खण्ड" संपूणतां याति प्रसन्ने ब्रतदेवति | संपूण च ततः कन्तां संपृ णोङ्गोभषेदतौ | भोगौ wAaaqatha: स संपूणमनोरथः ॥ सिल्ला वषशतं AM ततः सार्गेऽमरो भवेत्‌ | TAVITA च ब्रह्मविष्णोशपूजितः॥ खग लोके चिर स्थित्वा पुनर्मोत्तमवाग्रुयात्‌ | प्रायञ्चित्तमिद Wa पुरा गगणमे प्रभो॥ गोकुले गोकुलाकौणं मया बाल्ये द्यपोषितं | एवं त्वमपि क्षौन्तय चर Gata aT | भग्नानि यानि AeA antsy हौत्वा | जन्मान्तरेष्वपि नरेण समत्सरेण ॥ संपूणपुजनपरस्य एुरो भवन्ति । सव्व त्रतानि परिपू णफलप्र दाणि ॥ इति भविष्योत्तरोक्तं संपूर्णं 000 afeaqat Bara | साधु माघ महाविप्र शिवभक्तोऽसि gaa | मौनं वच्यामि तन्न देबेरपि fanaa | ८८० हेमाद्रिः [वतखण्ड'२ १अध्यायः। ay वत्स प्रवच्यामि मौनं सर्व्वाधसाधकं। मौ नत्रतं महापुरं इ ह" aa विवजयेत्‌ # y ai भोजनकाले तु TRU यदि निगतः qq aa सुरामांसं तस्माकौनं विवजंयेत्‌ ॥ वाणा मनसा वाचा तत्र हिंसां विवजयेत्‌ | मोनस्यास्य प्रभावेन देवाश तिदिव aati vt अहिंसकः तमो yea Teil मोनत्रते सथितः | Aad Weald यः षरमासमयापिवा। मासत्रयसमायुक्तो मासमेकन्तयेव च । AMS पुनः कुव्थाददिवसान्‌ दाद्माधं वा॥ षट्‌ पच्च alfa ca at मोनो Yala aaa: | समासे तु aa afaq मौनव्रतसमाहितः॥ fay चन्दनजं ABI ASF न तु प्रोत्तयेत्‌ | गोरोचनां समारभ्य गन्धैः yA पूजयेत्‌ ॥ धुपच्चागुरुकं दव्यान्नमस्कारं ततः पुनः, करपाद शिरोभिस्तत्‌ प्रणिपत्य निवेदयेत्‌ ॥ ्रालवित्तानुसारेण हेमघर्टां प्रदापयेत्‌ | शिवाग्रतो निवघ्नौयाच्छिवस्यातोव बल्लभं ॥ शोभितां ष्वजमालाभिः waa: सुभोभनेः। पुष्यदामविलम्बेख बडवर्येरनेकधा I विदिशासु विमानस्य कांस्यघण्टां निबन्धयेत्‌ । वक्नोयाश्रतुरस्नोणि tant थक्तितस्तथा ॥ कांस्यलोडमयौ वापि gmat च निवेदयेत्‌! व्रतखण्ड'२१अध्याथः!] देमाद्रिः। ८८१ शिवस्य पुरतो विप्रांज्डिवभक्तांश्च भोजयेत्‌ | पायसं waaay मधुमासंपरिभ्र त | श्रनेकभक्तभोज्यानेलंद्यपेयसपिले; | मच््ञलक्तौ रसंमिग्रेम ण्डके: सुसमाहितः | ya प्रव्रजितानाञ्च निरुचछषं समापयेत्‌ | क्या च efaui दद्यादित्तशणाटप विवज्जेयेत्‌ । AAT जायते विप्र यस्य थस्य तु तद्धषेत्‌ ॥ शिवभक्तायतो faa’ शान्तिवाक्यं पुनः पुनः ।' ताक्नपातरे qafay खाप्य पुष्मेरल्कतं | शिरसाघाय तत्पात्रं खयं मोन समाहितः। स गच्छत्‌ BAT यावत्त शिबगोचर्‌ । प्रदत्तिणोक्षत्य faa चौन्‌ aig समन्ततः प्रविशेभग्डहकं सखएपयेटैवदक्तिे ॥ पुनः पुनः समभ्यच् गन्धपुष्प च Waa: | नमस्कारेस्ततः पश्चात्‌ प्रणम्य शिरसा भुवि॥ मोनस्येव विधिः प्रक्तोमया तव महामुने | AQ मोनस्य माहालपराद्ेवताः शिवतां गताः ॥ दिव्यवर्षसडसखराणि दिव्यवषगतानि च | दिव्यवषंशत कोटि स्द्रकान्यासमाघछतः ॥ कोटिकोटिपिमानानामसंस्याकौटिसङलेः। वज्रस्फटिकसोपानेस्तम्प मरकतप्रमैः॥ सवं हममयैदिर्यवंनमालाविभूषितेः। चामरासक्तहसताग्नः कोटिकोटटिनरेर्दतः | ( १११) CER देमाद्धिः। [नवखण्ड ३१ श्रध्वायः। दिव्यगन्धसुसंपुरयुक्तमालाफलान्वितैः एवं विपैवि मानस are fragt सखौ ॥ कालचयादिद्यागत्य राजा द्यामितविक्रमः। वक्ता च सुभगः ALATA सुरूपः frau: ५ धममवुद्धियुतवेव सव्व शास्तविभशारदः ! एवं मौनव्रतं प्रोक्त' सव्वकामाचसाधकं | भुवि सव्वासमर्थानां सुकर प्रकटौकतं + ज्ञानमधस्यषिनाशनमादय मोच्मन!दिमिनन्तरमेक | शिवं सव्वंजगत्प्रसुः शान्तिकरं प्रभुमव्ययसच्छमस्च्छतनु ।॥ तनुलम्बितनरसुखमालधरं परिपिङ्गजटादशाङ्धरं | दगवाहविलौचनपापद्र खवणोज्वलङ्कण्डल नागधर | वरनूपुरसुष्टसुपाद्धर कमलोपरि संस्ितपादतलं ॥ सुरासुरशिरश्रेणोमणिनोराजित' इये । नमः शिवाय शान्ता कारणचयदेतवे ॥ पठयते सन्ब॑शास्तषु वेदेखव व्रिशरेषतः; ध्यानधारणयो गात्मा परापरविभूतये । य इदं पठते स्तोच' भक्तया चेवतु THAT A ape nppctrceme (१) कम्पति पुखकान्तरे aia: | aage २ १ श्रष्यायः।] earfe: | ८८३ न तस्य पीडां aa न्ति परहाश्ापि ग्रहोत्तमाः | वाचिकं मानसं पापं (१) नश्यत नात संशयः | दूति ataaa ga यस्तनोति महेश्वरं | १ य्‌ oo” + Hud सव्वपापभ्यो रसदरलोकं स गच्छति | दति शिवध्मोक्तं मौनन्रत' 0002006 श्ुतिच्छतिपुरारेभ्यो यन्मया दछयवधारित | aa वरिम gas कस्यान्यस्सोपदिश्यते ॥ खात्वा प्रभातसन्ध्यायासुपस्यण्य च पिप्पल | तिलपातरन्तु at cara सन ale क्षताक्षते। व्रतानामुत्तमं देतत्‌ सव्व पापप्रणाशनं | पुत्रव्रतमितिख्यातं नाख्यातं कस्य चिन्मथा॥ दति भविष्योत्तरोक्त' yaaa | ~ 000 कच्छान्ते गोयुगं दद्यात्‌ iss उक्षितः पदं, विप्राणं शाङ्करं याति प्राजापल्यमिदं aa ॥ शाङ्करं पद धथातोत्यन्बयः | इति पद्मपुरा णोक्तं प्राजापत्यत्रतं । "पथा #, तिसन्धा' ger दम्मत्यसुपवासौ विभूषसैः। दद्याद्रां धनमाप्नोति मोत्तमिन्द्त्रतादिड i दति पद्मपुराणोक्तमिन्दबरतः | ८८४ हेमाद्रिः । {तरतखण्ड २१अ्यायः | गोरोसमन्वित TT AAT सद जनादनं | रान्ञीसमन्वितं aa प्रतिष्ठाप्य यथाविधि) धुपोच्छयेण सहित (१) घण्ठां पत्रेण संयुता | पातं, दोपपाज् | यो ददाति दिजैन्द्राणं पुष्ये रभ्य WWE | दत्तिणसहित दत्वा प्रणम्य च पुनः पुनः ॥ दिजन्द्राणामिति बहवचनादेव युग्मानां एघन्दानं धूपादित्रयच्च एतद्‌ aad नाम दिव्यदेदप्रदायक॥। दरति भविष्योत्तरोक्त' द वोत्रतं | 00 भासोपवासो यो zara विप्राय शोभनां waar याति भौमव्रतमिदं खतं A इ ति पद्मपुराणोक्त aaa | () auras मि ¢ -~ Ar, SIZING” यः कत्रा Tage निवेदयेत्‌ | न्तन्ट्रत्रतमिदे प्रोक्त चन्द्रलोकप्रदटायक॥ इति पद्मपुराणोक्त चन्रव्रतं। 000 पत्चोपवासो यो दद्यादिप्राय कपिल्लाहयं | न्रह्लोकमवाप्रोति दैवासुरसुपूजितः। [ , , ge (२) धुपोत्चेपणसदितमिति पुखकान्तर पाठः | बरतखण्ड' २१ अध्यायः] WAT | acy तदन्ते राजराजः स्यात्‌ प्रभात्रतमिदंस्मतं॥ इति पद्मपुराणोक्त प्रभाव्रत | रद्याण्डं area कत्वा तिलराशिसमन्वित | are तिलप्रदो wat afs aaa च दिजान्‌ | संपूज्य विप्रदम्पत्य' araaafaufia (१)। श्रक्तितस्िपलादृ दं विश्वात्मा प्रौयतामिति ॥ guifs दव्यात्‌स परं ब्रह्म याल्यपुनभवं | एतदद्यत्रतं नाम निवांणफलदं Ful दति परद्मपुराणोक्तं बह्यत्रत | 0060000 यसोभयसुखो' दयात्‌ प्रभूतकनकान्वितां। दिनं पयोत्रतो तिष्ठेत्‌ सथाति ata पट्‌ | एतदसुत्रतं नाम पुनराहत्तिदुलेभं t दरति पद्मपुराणोक्त Tada | Q क मि Sa: परं प्रवच्यामि नन्दादेव्याः पदष्टयं | येन सा wad वत्स अचिरेण महात्रतात्‌ ॥ SAA UTAH काय्य यथाशक्तयनुसारतः। a i a a a a ~~~ ~~ — ——— een १) wate रुखोषितभिति पुषठकान्त ua: | ute Saiz: tt [AASV We WATT: । आस्व चतैवित्वपैः पूज्ये तु AMAA ॥ देवो संपूज्य भ्या तु खरख्डिले प्रतिमासु a! तद्क्ताय च विप्राय कन्यकासु निवेदयेत्‌ । मुखते सव्वपापेभ्यो दुगालोकञ्च गच्छति | ततः चये महाप्राज्ञो विद्याघरपतिभवेत्‌ | कालेनेवमिहायातः Bust waa: tt इति पद्यपुराणोक्त नन्दापद दयत्रतं | 000 सप्तरानोषितो ददात्‌ saga दहिजातये। वरव्रतभिदं प्रोक्त ब्रह्मलोकप्रदायक ॥ दूति पद्मुपुराणोक्तं वरत्रतं | THAN च सप्ताह गोरिणोरतर भोजयेत्‌ | संपूज्य पाव्व॑तीं भक्तया गन्धपुष्यविकल्तेपनेः ॥ ताम्बृलसिन्दूरवरेनारिकेलफलेन त्त । Maat कुमुदा Vat प्रणिपत्य विस्जयेत्‌ ॥ एकेकां Gude वों सप्ताह यावदेव तु। प॒नख Waa प्रापे ताः waa निमन्वयेत्‌ | षड भ्यः सम्भोजयित्वात्न' यथाशक्तया विभूषसै; | भूषयित्वा माल्यवस्तर ; HUFETH TAA: ॥ कुमुदा माधवो WA भवानो पाव्व॑तो var | afaat चति सप्ूज्या sae दापयेत्‌ यक्‌ mage genera: 1) देमाद्रिः। ate ब्राह्मणं पयेच्वेक वाच्य सम्म्रत्रमस्तमे) सप्तसुन्दरक नाम AT पापहरं YH | Gat प्राप्रोति wear सौभाग्यमतुलं तथा ॥ दूति भविष्योत्तरोक्त' सप्रसुन्दरकत्रतं | नन्दिकेश्वर उवाच । sa: परमिदं ya वच्यामि मुनिसत्तम्‌ | पुष्यति शथसंयुक्त सम्वदेवेरनुषितं। द्यणा विष्णुना Sar Mesa यमेन च। ~ वरुणादित्यसोमाग्निमरुडनदनारदरः ॥ ~ १ UNA VHA (4 MAMA ae: | fasaifaaafasitaaeaiagqurfefa: i ~. 0 MATA चादयः way afaaua! | Y > ०५ a भागवातिमद्यकालंखग्डष्वरगरणाधिपः॥ ~ = हषवासुकिककोटक्ुलिकानन्ततत्तकंः | > = = प्रङ्पद्यमदाप्द्यरन्येसखापि महोरमः॥ १ + सिदेशथत्तः किपरुषेवंसुभिख agai: | » "0 = श्रष्छरोदत्यगन्धव्बरत्तोभूतगणेरपि | faat गतिया प्राप्ता सर्व्बगत्यतिश्ायिनौ। मया शिवप्रसाटेन तथा fafaut खण | सितचन्दनतोयेन ara fas विलेप्य च| = ^ „ध nay A, + श्वेतवि कसित; पद्म; सपुज्य प्रणिपत्य च। tat Satz: | [तरतखसर्ड३१अध्यायः। uga विमले Wa fafes पुष्पिते घने॥ सोमे TH | मध्ये कसरजालस्य स्थाप्य fay कनोयसं | ug sald विधिवत्सव्व गन्धमयं शुभं । स्थाप्य दचिणामूरत्तौ तु विल्वपतेः समचयेत्‌ ॥ दक्तिणामूत्तिसमोपे | aya efat पाश्च पशिमेन मनःशिलं, उत्तरे चन्दनं दद्यारच॑रितालच्च Ta तः ॥ Guida genta aaa a qaaq | धूप छष्णागुर दवात्सष्टतच्चापि गुग्गुल | वासांसि चापि सच्छाणि विकाश्ानि नवानि च! पायसं तसयुक्त छतदोपांख कारयेत्‌ (१)॥ सव्व ` fata aaa ततो गच्छेत्‌ प्रदच्तिणं | qua भक्तया देवेशं स्तत्वा चान्ते मापयेत्‌ | सर्व्व पद्या रसंयुक्त' त fas निवेदयेत्‌ । शिवाय शिवमन्तं ण दक्तिरामूत्तिमासितः॥ दक्िणामृत्तिंमाथितो aaa शिवाय | aaa विधिना देवाः सव्व दैवत्वमा गताः! देवो रेवौोलमापरन्ना स्कन्दः aifaaaraa: 1 इन्द्रश्च SATA TAG गणताङ्ताः। ud Assad fay पञ्च गन्धमयं शभं ॥ सव्व पापविनिसुक्तः शिवमेवाभि गच्छति | भा न - न कम्णननाणननजयोमयोयजािनन ep (१) द्‌प्ये{द्ति कचित्‌ पाठः | ATEw ३१ अध्यायः] Bari | ८८९ एतद तोत्तमं Ja शिवलिङ्ग मद्दाव्रतं | भक्तस्य ते मयाख्यातं न देय यस्य कस्यचित्‌ | इति शिवधम्ममोत्तरोक्तं शिबलिङ्व्रतं। युधिषिर उवाच) देवदेव awa बालानां हितकाम्यया | वद्धापनविधिं ब्रूहि राज्ञामपि विशेषतः॥ खोक्तष्णु उवाच, पिढकग्चसमुच्नूतः OITA महासुनिः!। गत्वा प्रयागं Wala मङ्ायसुनयोस्तरे | क्त्वा aay विधिवत्‌ warfa पिढतपंणं। नत्ातु माधव S39 Ser तच aerate सनत्कुमार Tals सत्यलोकनिवासिन | तं प्रणम्य यथान्याय स॒निः कालोसमुद्धवं॥ पूजितस्तेन विधिवत्‌ कथाश्चक्रे मनोद्राः। RA A महाभागं सुनिः पप्रच्छ सादर | व्यासः सत्यवतो सेनु; सव्व लोकदिताय ते ॥ सनत्कुमार उवाच) मासि मासि प्रहृषटन्तु बालवद्पनं Te: | आसमान्तात्समन्ताच समान्तात्‌ संविधौयते॥ कुसुदा माधवो MT सद्राणौपाव्वतौो उमा। कालो सरम्बतौ चेव सावितौ ब्रह्मणः प्रिया ॥ ( eer) ८८० देमाद्रिः। [तरतखण्डं३१अध्यायः। सतौ Wal तथा मेधा vfvafeaafaat | छपडग्भिपरितासा जयन्तौ नाम षोडशो । पृजनौयाः Waa सूमध्य विलिख्य ताः | रजनौ पिष्टतो वापि लिखेदा F_RA वा | गन्धपुष्प : YT दौपवस्तनिषेदनेः | फलम नोहर भत्तैः पक्ातरेविंविधैरपि ॥ तृ्थघोपे AMBIT: FAtda महोसवं | सोप्तिपत चौ देशे sia ay fanaa: a अन्ततेखन्दनेः स्थाप्य FAIA: TAR TAT | नामभिः प्ूजनोयास्ताः सखरापथिल्ला च बालकं॥ भ्रूपतिं वा सुनिखेष्ट सव्वांलङ्ारभ्रुषितं | gaat माटपितरौ बालवक्चपने सति॥ परोघाः प्रूजयेद्रह्मन्‌ राजवद्वीपने विधौ | कुमुदाद्या: Valea बशपातच्राणि कल्पयेत्‌ ॥ UAHA PASTY SIA षोड़श Mew | azeita azeifa = चैकंकमयापि वा॥ बदहपक्रान्रयुकानि फलपुष्मयुतानि q | सुवासिनोभ्यो विप्राणं दयाडक्तिपुरःसर॥ प्रीयतां Haga मे बालत्राणविवद्धैनो) aaa यशसा GET बालं म Away बे | प्रयच्छन्तु सदारोम्य सौख्य सोभाग्यमेव च। यख ते इतिमन्वेण अघ्यन्ताभ्यः प्रकल्पयेत्‌ | एवं त्वा नमस्लत्य विप्राश्ीर्वाद cars | व्रतखर्ड'३१अध्यायः।] safes: | CER Yala गोत्रजः सादं EVAVAAT aT ॥ AMAT BUMS fea तस्मिन्‌ प्रकल्पयेत्‌ | सुवासिनोनां विप्राणां कुमुद्‌ Maatfafa u AAAI CATIA | AY ATG प्रवदईमाने.१)संवत्सरे राजानमभिवदंयिष्पनायुषा- वच॑सा Aaa anal प्रजया सिधा विजयेन कोर्योपवचितेमङ्गले- रभ्य॒च्य रुकेरचयित्वा Hse दविनिरूप्य लोकपालेभ्यश्च खाप- येत्‌। माहेन्द्रो यत्तजसेति लोकपालांचेष्टा राजानमन्वालभ्य ज॒इयात्‌ । अव्वा चभिन्द्र तातारमिन्द्र वद्य चचिय मद्रतिभित जोव शरदोवद्धमानोऽभिवदख प्रजया वाह्ठघानेतिदाभ्यां, रत्तन्तु- तल्ागिरस्यः(२) इति चतखूभौरच्तां कत्वा सगुण असत दति रो चनेनालङ्कर्य्यात्‌। नावे a तन्तुमिति सूक्त सम्प्रातत्रतं कला धाता ते ग्रन्थिमिल्यक्तमभि वदैखेत्यसपलो भवेदिलेतत्‌ aH Ate aya: पेटौोनसिः, HS पराण | एवं वद्धपनच्चेव AA AT प्राप्तवासरे। मासे mae व्यतौतेतु बालानां हदडिदेतवे ॥ न बालरोगाः प्रभवन्ति तस्य न न्द्‌ रोगानतु शाकिनोभ्यः। भयं waa a जलाम्निदिग्भ्यो वलस्य राक्ञोऽपि विशेषतस i (१) प्रवद्धमने दति पुसकान्तरे पाठः, (९) लाग्नय दति पुश्ठकान्तरे प्राठः BER eatfe: । (AGW ३१अध्याय; । सम्प्राप्य राज्यं टृपतिः समान्त कुय्यादिमं शान्तिमहोत्छवच् | ग्रहान्‌ सुसंपूज्य विनायकच्च zat च भक्तया कुसुदादिटेवी, यः पृजयेद्रक्तिपुरःसर वे जेता रिपूणां वलनुदधयुक्लः । इति वड्पनविधिः। 00909 ¦ अधवणगोपथब्राह्मण | अथ छतावेच्तण | प्रातः प्रातः शङ्दुन्द्भिनादेन ब्रह्मघोषेण वा प्रबोधितो राजा शयनचण्हादुत्थायापराजितान्दिश्मभिक्रम्योपाध्याय प्रतौ तेत i अथ परोघ्नः स्नातानुलिप्तः शविः शक्तवास।ः क्तमङ्गल- रचितोष्णोषः शन्तिश्यह प्रविश्य देवानां नमस्कारं war स्रस्त ताचनमनुन्नाप्य तिनोतोपविशेद्यमस्य लोकादयधाकालं यो न जोवोसौति खसत्ययनं aaa परिस्तोथ णान्तातीयेन तिलान्‌ छताक्तान्‌ जयात्‌ शान्तः सौवण राजतमोदुम्बरं वा पातं wage सहिरण्यं नस्य जुतिसहस्र' खङ्गो विष्णो विक्र मस्ति तल्भिमन्त्यम आाज्यन्तज इति तदा लभते) आनज्यन्तेजः ससुदिदटरमाज्य AIST uz | asa देवास्तुष्यन्ति आज्ये लोकाः प्रतिष्ठिताः WAM Asa वा यत्त RATATAT | सत्व AMMAN प्रणाश्सुपगच्छतु॥ रतखण्ड'३९अ्रध्यायः] Satis: । ८९८३ तस्मिन्‌ waned wager शिरोह्धद्यमन्वालभे- gaa fafa इार्भ्या । सूयस्यातभिति प्रद च्तिएमाहत्य शेषं साधयेदिति तच Alay: | अयं छ तावेत्तणस्य प्रोक्तो fafacaaga: | एव समाचरेत्सम्यक्‌ प्रयतः सुसमाहितः | उपास्योद्यकलेतुस राजा जयमिच्छया। स राजा जयते Te न पश्यन्तेतु Waal ॥ प्चादानोय कपिलां राजा दव्याहिजातथे। आशीर्व्वाद्‌ं ततश्व TAT तन्मुखनिःखतं ॥ गुरुणा्ेदिते तस्राोषमायुरवा्रथात्‌ | पतान्‌ aia मित्राणि लभत नात्र संशयः | आयुष्यमच IA सोभाग्य शत्रतापनं | दुः स्वप्रनाश्नं धन्य छतावेत्तणसुच्यते | दति घलाबेक्तणविधिः | गयेयं | अध अ्रगसत्य!ष्यविधिः ¦ पद्मपुराणात्‌ | WY Bary | भरल कोऽघ yatta स्वर्लकोऽथ महर्जनः | तपः सत्यञ्च सते देवलोकाः प्रकीर्तिताः ॥ पर्य्य तु सत्वे प्रां आधिपल्य' कथं भवेत्‌ | ८८9 SAS: | [ततखण्ड' anata: दह लोके WH रूप आयुररोग्यमेव च) लत्मोख विपुला ब्रह्मन्‌ कथं स्यात्सुरपूजित | पुलस्त्य उवाच । वसिष्ठो यो भवेत्तस्मिन्‌ जलकुम्भ च पृव्व वत्‌ | ततच्चेतचतुबांहः साक्षखत्रक मण्डलुः ॥ ane इति शान्तात्मा aya ऋषिसत्तमः मलयस्येव देशे च वेखानसविधानतः॥ BRT: समुतोविप्रेस्पशक्रो BEAT | ततः कालेन महता तारकादिनिपौडितं t जगदोच्य स कोपेन पौतवान्वरुणालयं | ततोऽस्य बरदा; सवं AYA: WETS: ॥ ब्रह्मा विष्णुश्च भगवान्‌ वरदानाय जग्मतुः | वरं हरणीष्व भद्रं ते यश्चाभीष्टोऽच वे सुने। | अगस्त्य उवाच | यावद्रद्यसदहसखारं पञ्चविशतिकोटयः | वेमानिको भविष्यामि द्‌ च्िणाम्बरवत्मनि | मदिमानोद्यात्‌ कुर्य्यात्‌ a: afaq पूजनं मम | स चैव ya यातु वर Ty gat मया। खद येतु करिष्यन्ति पिर्डपूव्वन्तुभक्तितः। तषां पिदगणः wat मया ae दिवि faa: एतत्‌ कालञ्च तिष्टत एष एव वरो मम | एव मस्त्िति Aaa जम्म्‌दवा यथागतं । ACH, CAAA श्रगसत्यस्य सदा Ty: ॥ AAZIE sews: |] WATE | ८९ विष्णुघर्म्मो त्तरे | अगस्त्यस्य महहासुनि प्रति पितामदवाक्वं | देवकाय्यमद ब्रह्मन्‌ त्वया कलमिदं शभ ! तस्मात्‌स्थानन्तु ते वचृमि वेष्वानरपथाददहिः॥ दिव्यदेहो भवांस्तच विमानवरमास्थितः | eau दिणमाखित्य भ्रस्तोदयसमन्वितः ॥ प्रसारमम्भसां na निविषरलं तवोदये | भ विष्यत्यमलप्रन्न मत्‌प्रसादाव्सदेवतु॥ श्रत्समुदितो War वसन्तेऽस्तमय fea | प्राकाम्ययुक्तख AUT समग्रां वसुधाच्चर॥ Waal await तवोद्ये। पूजां लमाष्से लोकं मत्‌प्रसादाद्‌हिजोत्तम ॥ ये च त्वां पूजयिष्यन्ति गन्धमाल्यफलात्षतेः | दधिकाच्चनरलशथ परमात्रेन भूरिणा ॥ GUGM: सक्षम रडम्ढत्रोपानहयष्टिमिः । धेन्वा हषेण uaa वासोभिः कनकेन च ॥ संवत्सरच्च त्यागन फलस्यैकस्य वाप्यथ | पूजनेत्रीद्यणानाच्च aay परकीत्तनेः | विधानं यदगस्त्यस्य पूजनं तदद्स्र मे॥ पुलस्त्य उवाच |} प्रत्यूषसमये विदान्‌ कु्धादस्योदये निभि, सानं शक्ततिलेस्तदच्छकल्लमाल्याम्बरो डौ ॥ I = 7 ky 2 ae aes PE 2 age erie तने 1 ऋज al? ग क चत्‌ ~ cee eafe: | [नतखण्डं ३१अ्यायः। faaed निभि दिनसमुखे ara समावरेत्‌ | स्थापयेदव्रणं Fa araaafayiaa पञ्चरलसमायुक्तं छतपातान्रसयुतं। नानाभक्तफलयय क्त तास््रपाच्रसमन्वितं 3 अङ्क Tala Yaa तथेव MAUHA AAA FTW | चतुभु जं कुम्मसुखे faara धान्यानि सप्ताम्बरसंघुतानि। सकाश्पुष्यात्ततशकतियुक्त मन्तेण ददयाहिजपुङ्वाय | उत्क्तिष्य लम्बोद रदौ घबाह- म नन्यचेता यमदिञ् खस्थः | सकाशपुष्पातच्ततया शक्तया युक्त प्रयुक्त मष्य सुत्‌च्तिप्य"द य।दिव्य- न्वयः | अत्यायतवाइद्र्डमिल्यत्‌रेपणक्रियाविशेषण । लम्बोदर दौ घबाहमिति प्रतिमाविशेषणं | हिजपुद्गवोऽगस्यः। गवि ताष्ण द्‌ दया च्छ चिसुक्तिरोप्य- Maat हे मसुखीं सवत्सां | घेनुन्ररः aizaat प्रणम्य सवस्वघण्टाभरणां दिजाय। भ विष्योत्तरात्‌ | Raa कारयिता च AAA सुगोभनं। पुरुषाक्रति wag जटामण्डलधारिणं | कामग्डलकर faa: aaa परिवारितं, mage २१अध्यायः।} दमाद्रिः। ces सनत्युग्रविषदन्तारं quant सुनिं | तस्मिन्‌ Ga समालम्न' चन्दनेन ततो न्यसेत्‌ ॥ खापितश्चामुलिप्तच्च चन्दनेन सुगन्धिना ° ~ 2 TA $ पूजित जातिङुसम हदयपू पञ धूपितं। भथ विष्णुरहस्ये) काशपुष्पमयीं रम्यां Hal ala तु वारुणेः | ह 2 lw. was nee विन्यसेत्नान्तु waar aaga | इह पूर्व्वाक्तसुवणरूप्येग सह UaAqaTifeHa | GUHA ललपूशंकुम्भः | + ~ A कुम्भस्य पूजयेत्तन्तु पुष्पधूपविलेपन; | दध्यत्ततबलि SIZ बुव्यपैत्‌ प्रजामरं॥ पूजा च वच्यमागेरष्य मन्ततविषेया | प्रभाते त समादाय यावत्‌ पुण्यजलां | fanaa तान्‌ पश्यन्‌ जलान्ते प्रतिमां मुनेः ॥ Wy SUSI भक्त्वा सम्यगुपोषितः। ४ gua लेः फलगेन्धेधपेरथ सुगन्धिभिः । Q € ~ a द्रा्चाखज्‌रककेन्धू नारिकलादिभिः Wut पञ्रतसमायुक्तं हेमरूप्यसमन्वितं ॥ VAUD पातवद्न्दनेन समायुत | तन्त तास्रमय क्त्वा टद्यादध्यं दिजातये ॥ AN? खनमानेति प्रठन्‌सन्तमिमं सुने । “Ye यथा लाभक्षताधंन सव्ववीध aufaa: । अष्य' ददुगरगस्त्याय शूद्रे मन्तविधिस््वयं | ( ११३ ) BEG दमाद्धिः। [तरतखण्ड' ११ अध्यायः, काशप्ुष्यप्रतोकाश वह्किमासतरुख्रव। भित्रावश्णयोः gs कुभ्रयोने AAT ते 8 भविष्योत्तरात्‌ । ततघाध्यं; प्रदातव्यीयेदरव्येस्तान्‌ WI मे) खउजरेनौलिकेल ख RATE स्वपुसेरपि ॥ कार्कीटे; कारवेल्लं ख॒ कम्भरेर्बीजपूरकेः | तन्ताकेर्दालिमेखेव ACE: HAH: ॥ GARE रेः कुशेः AU TAA TIT | नानाप्रकारेभक्तेख Wiss रसेः Wa: ॥ faae: anna वंशात लिधापितः। सौवणरूप्यपातचं श तास््रवं शमयेन च ॥ afe स्थितेन va ण जानुभ्यान्रणौं गतः। द्स्तिणाभिमुखी zat ध्यालागसत्य सस aq | SUNITA प्रयतेन चेतसागुरचन्दनेः। QUAL TH पातर सकाशपुष्याच्ततशकौति वचनात्‌; काशपुष्प्रतोकश वदङ्किमारतसम्भरव। भित्राकसणयोः ya कुम्भयोने नमोऽस्त ते ॥ वातापिभचितो येन wag: शोषितः परा, लोपासुद्रापतिः Wary योऽसौ तस्मे नमो नमः ॥ येनोदितेन पापानि विलयं यान्ति व्याघः। तस्ये AAAS BTA wT पुचिरे॥ MAIN केदमन्वेण SITS नृपोत्तम | अगस्यः खनमानः खनित; प्रजामपत्यं वलमिच्छमानः, त्रतखण्ड २१९ अध्यायः] माद्रः! cee Sa AUlalqea: पुपोष सत्या टेवेष्व!शिप्रो जगाम्‌। दवैवमर्ष्यं कौरव्य प्रणिपत्य विसञ्जयेत्‌ | अचितस्व' यथाशक्त्या नमोऽगस्त्यमहषंये | Gfemrafuat दत्वा nafale व्रजस्व az विसन्नं नमन्वः | विसञ्जयित्वाऽगस्त्य' तं विप्राय प्रतिपादयेत्‌ Say व्यासरूपाय वेद्वेदाङ्गवादिने॥ अगस्त्यो AAAI aT स्मिन्‌ घटे खितः | anal दिजरूपग प्रतिन्टह्ातु aaa: | QTM, VAATWMCTAMIATIAN TA । saa विमलं सौख्यं प्रयच्छ त्वं महामुने | प्रतिग्रहमन्तः | एवं यः कुरुते भक्तया हयगस्त्यव्रतमाद्‌रात्‌ | फलमेकं तथा धान्यं cage परित्यजत्‌ | SIT च तथा वप एुनरप्यनुपक्रमेत्‌ ॥ विष्णुरहस्ये | दत््वारष्यन्तु विधानेन नरः कुग्भोदवाय च। त्यजदगस्त्यमुदिशष्य धान्यमकं फलं रसं ॥ श्रय मारसेप्यगसत्याच्येमभिधाय | VAY फलल्यागमेवं कुष्बन्‌ न aizta | Sia कला ततः पञ्ादजेयेन्मानवः फलं । Slag खाहान्तेन प्रणवादिना waaay सपिषा विभरेधः। aoe Sate: | [नतखण्ड'३१शअ्ध्यायः। ततोऽनु पूजयेदिप्रान्‌ तपायसमोद केः | गाः सुक्णच्च वासांसि तेभ्यो zara efaut ॥ छतपायसयुकेन पातेण खगिताननं। सहिरश्यच तं कुम्भ त्रद्मष्णय निवेदयेत्‌ ॥ SIMA भास्वरे कन्यामवीग्बे सप्तभिदिनेः। अर्ध्य" SEIT FT वसन्ति महोदये) प्व नत्ततरान्तगेते ऽकं ag) saat त्वव्वोक्‌ | AVF वराहमिहिरः | संख्याविधानात्‌ sfatuaa Awa संदणनमादिशेद्न्नः। तच्चोज्जयन्यामगतस्य Hay भागः ATG: स्फाटभास्करस्य | auaala: सप्तभिरगैः कन्यामगतस्य स्फुटस्यादित्यस्य मघादितीयचरणान्तगतस्यत्यर्थः | तधा ईषत्‌ प्रकागेऽर्णरस्मिजाले। ने ओऽन्धकारे दिशि efavat } संवत्सरावेदितहदिग्बिभागो) र गोऽष्येमून्वा प्रयतः प्रयच्छेत्‌ ॥ भविष्यात्तरे क्ष्णवाक्यः। awa चेष्टितस्य; waste युधिषिर, कन्धायाम।गते QA श्र्वाग्वे सपमे दिने, कन्यायां समनुप्राप्तं अथ्यकालोनिवत्तते 1 ततखण्ड'२१अध्यायः 1] Pas: | ९०१ युधिष्ठिरे परे पूत्वा ठतोयचर णल्िहा सत्यकडद्ये इत्ययः | यस्मिन्‌ देशे afaq fea अगस्यसन्दशनं भवति । तस्मिन्‌ aa तस्मित्रष्य दानमिति saa: | कन्यायां समनुप्राप्ते इत्या दि- ना सप्तमादिनादारभ्य संक्रःन्तिमिवधौकुव्वेता उद्यादारभ्य सस दिनाभ्यन्तरेऽपि युक्तमर्घद्‌ानमिये तदशितं तथाच पद्मपुराणे । भासप्तरात्राद्दयाद्यमस्य दातव्यमेतत्सकलं नरेण | यमस्य अगस्त्यस्य | उदयादृदे भ्रासप्तरातात्‌ | सप्तरात्रमव- Waa एकस्मिन्‌ fea septa इत्यः | VAUAZE YI अघ्यदानमनधकमिति t ब्रह्मपुराणे, अगस्त्योदचिणामाश्ामाथित्य नभसि fea: | वस्णस्यामजी योगौ विनखापाद्विमर्हनः॥ कन्धांगेभ्यः पथिमेभ्यः षड भ्यः प्रारभ्य संख्यया । भगान्‌ दहिसप्तति यावत्‌ ys a eae राशिषु उदेति तावह्गगवान्‌ अ्रगस्ये व्योम्नि धामश्धत्‌ ॥ उक्ताभ्यः प्िमेभ्यः प्रारभ्य पूर्व्ववत्‌ क्रमात्‌ | षट्त्रिगतच्च यावच्च Ysa भानुयथाक्रमं | तावच्छछान्तस्य पातालं प्रयात्यस्तमुपैति च। उत्ता षभः | SUIT | नवचरगोराभिः| सपाद्नन्तच्र दयभोगात्‌ । उत्तराटतोयत्तरणाद्यः | तदहिसप्ततिरजिनौ aat- यचर ष्णान्ता; | एतावत्‌ सूयभा(गेनोद्यकालः । ओेषोऽप काल. - ~ ५ ee eee ee =? न्न i Safe: | [ange ema: t छतो पवासः सम्पश्य द गस्यमुदित afa | । चो ७ + 9 सव्वकामप्रदं VE सव्व भाग्यप्रव्नं ॥ ५ तो = अतच्ेनोयश्च भगवान्‌ खद्ाभक्तिसमन्वितेः | © > > Ca, FUGU CHAT य्यवेध्यान्ये्तेन च ॥ जातिपञ्ञोत्पलः qaqa सितेन al गौभिष्टेत स्तथा Ta Tas सागर सम्भवे; | उपानच्छतद्‌ण्डश्च पादुकाच््रनवल्कलेः | इविषा ciara a wa: Yes शोभने; । अन्यप्रकारेभत्तेख SAAT UAT: | SMW च शुभ काममुदिश्येकं मनोगतं ॥ यद्य प्राप्रयाम्‌ कामं भगवन्नसि सितं । तत्‌प्रसाद्‌ाद्‌ विन्नेन भूयस्त्वां पूजयाम्यहं ॥ CHAT परूजयेत्पश्चादेवन्नांख तथा गुरून्‌ | ब्राह्मणान्‌ भोजयिलातु ततो wala वाग्यतः। AA GAIT | भासप्तराचादुदयाद्यमस्य दातन्यमेतव्छकलं ATT | यावत्समाः VASA वा T- रथोष्येमप्यच वदन्ति केचित्‌ | इनेन विधिना यस्तु पुमा नघं निवेदयेत्‌ | इम लोकमवाप्रोति रूपारोग्यसमन्वितः॥ दितोयेन भुवर्लोकं स्वर्लोकञ्च ततः पर। सपेवलोकानाप्रोति सर्वान्‌ यः प्रयच्छति । त्रतखर्ड २ १अध्यायः | | चमादिः । € र MASTS थः कुर्य्यात्‌ स परब्रह्म गच्छति) ATTA Sarat | नरपतिरिममष्य खदधानो ददानः प्रविगतमद्दोषर्निंज्विंतारातिषन्चः । भवति afe हि दद्यात्सप्रवघाणि सम्यक्‌ जलनिधिरसनायाः स्रामितामेति wa: tt भविष्योत्तरात्‌ | SMI ANIA क्रभमेणानंन पाण्डव | पुमान्यत्‌फलमाप्रोति ACHIAAAT: WT ॥ ब्राह्मणः स्यात्‌ was: सव्वशास्तविशारद्‌ः | afaa: एथिवीं स्यं प्राप्रोल्यणवभेसखलां ॥ वेश्यानां धान्यनिष्यत्तिर्गोधनच्चापि निन्दति! शुद्राणां घनमारोम्यं सस्यान्नरश्चाधिकं भवेत्‌ ॥ MAU पुत्राः प्रजायन्ते सौभाग्य ग्टहस्डिमत्‌। विधवानां wee aed पार्ड नन्दन ॥ कान्या भर्तारमाप्रोति Bway aa दुःखितः, येषु देशेष्वगस््ार्घः पूजेयं क्रियते जनेः ॥ तषु देगेषु asta: कामवर्पी प्रजायते | ईतयः प्रशमं यान्ति नश्यन्ति व्याधयस्तथा | पठन्ति ये त्वगस्य्षित्र तं wafer चापरे ॥ ते सव्व पापनिमुक्ताः चिर feat महीतले, द सयुक्तविमानेन खरग" यान्ति नरोत्तमाः।॥ मच्यदौच्छसि we परम्वियुकतं ॥ ॥ ,/ |, 0" अ, ते । a = - / a Awe ९०४ Safe: t [वतखस्ड'९१अध्यायः। भोगान्‌ शरोरमतुलं aggagfe | तद्रन्नवल्लभ BARA मद्ाष्य- मघं प्रयच्छ फलवस्ररसेः सधान्येः | पद्मघुरायो इति पठति खणोतिवा य एतः हसुयुगलाङ्भवस्य सप्रदान | मतिमपिच ददाति सोपि दिष्णो- भेवनगतः परिपृज्यतेऽमरौषेः ॥ ब्रह्मोवाच | सितचन्दनतोयेन व्योम साप्य fafam at कणिकाकल्पितैः wd: सं पूज्य प्रणिपत्य च ॥ क्रथिंकाकल्वितः, कण्कामर्डितेः। aga विमले सौम्ये निच्छिद्रे glad सति। पुष्पिते विकसिते! मध्य केषरजालस्य व्योम स्थाप्यं सुशोभन। श्र्षटपव्व माचन्तु सव्व गन्धसमन्वितं | प्रग्र संस्थापयित्वा च भास्करस्य सुरोत्तम ॥ पूजयेत्‌ ACTA तथा THA चन्दनैः| धूपश्च गुग्गुलं दद्यात्‌ प्रणम्य शिरसा रविं॥ कु मं पूव्व पाश्चतु ददादगोमसमादहितः। दत्तिरे चागुर्‌ दत्वा पिमे wea सितं॥ 'वतुःसमस्चोत्तरे तु दद्यादोमविचन्तणः। दद्यान्मध्ये शभ पुछ रक्त चन्दनमाद्रात्‌ ॥ AAMT arwara i) Barly: | ९०५ पूजयैदि विधेः पष्यस्तथा सागुरुचन्दनेः | धूपं RUT दद्यात्तं वापि गुग्‌ गुलं ॥ वासांसि च सुसूच्छाणि विकेशानि निषेदयेत्‌ । पायसं छतसंयुक्त' तदो पां दापयेत्‌ | सव्व निवेद्य मन्तरेण ततो गच्छेत्‌ प्रदद्धिरं। प्रणम्य शिरसा भानुसुत॒घायेनं चमा पयेत्‌ ॥ सर्व्वोपद्ारसंयुकं बलिन्देवाय चाहरत्‌ | खखोल्‌कायेति मन्ेण सूथावामिततजशे | saa विधिवदेवच्ाचयिला पररा tf | SE ब्रद्मत्वमापन्नः प्रसादाद्वास्करस्यतु॥ दति भविष्यन्पुराणोक्त' व्योमत्रत | fafa wat जले वासं प्रभाते गोप्रदो भवेत्‌ | वारुणं लोकमाप्राति वरुणव्रतमिद्ोचयते॥ दूति पद्मपुराणोक्तं वरूणएत्रतं | योऽब्दभेकं प्रक्व्वीत an sata cafe पव्वे cyt | Aaa faawra: शिवाचनरतः Bett वत्सरान्ते च विप्रेन्द्र franara anf sara i ( ११४ ) ९०९ देभाद्रिः। [त्रतखण्ड२१अरध्यायः1 भोजयित्वा ततो ब्रूघात्‌ प्रौयतां भगवान्‌ प्रभुः । एवं विधिसमायुक्लः चिवलोकच् गच्छति |. न च मानुषतां लोके अ्रघ्नवां प्राप्रुते नरः॥ इति भविष्यत्पुराणोक्त प्रन क्तत्रतं | एृथिवौभाजने भुङक्ते faa’ wag यो नरः | अरतिराच्रफलतं देवि अहोरात्रेण विन्दति । षएयिवौोभाजने भूमावन्र' निधायेत्यथे; faatsa रेवता | इति पद्यपुराणोक्तं पवश्वभाजनव्रतं। ---00200---~ थो विंशतिपलादू्ै महो छत्रा तु काञ्चनीं | दिनं पयोव्रतं दद्यादुद्रलोके महीयते | धराव्रतमिदं प्रोक्त सप्तकल्यश्रतानुगं | दिनं टेवानासुत्तरायण। परयोत्रतमिव्यमन्तरं क्वेत्यनु सङ्क; | Gal देवता घराद्ानं पारणं) दति पद्यपुराणोक्त' धराव्रतं J जैव (){) () नन्दिकेश्वर उवाच | तथा सव्वेफलत्यागमाहातय' णु नारद्‌ | घ्रतखण्ड २१ अध्यायः] Saris £09 ASAT परे लाके सष्वकामफलव्रतं ॥ मामजौष शभे मासि ठतोयायां सुनिव्रतं | इाद्ष्यामच वाष्टम्याञ्चतुदेश्यामथापिवा। आरभेच्छक्तपत्तस्य कत्वा त्राह्यणवा चनं | अन्येष्वपि च मासेषु qe sf= सुनिसत्तम ॥ सद्‌च्रणा पायसेन शक्तितः पूजयेदहिजान्‌ । अषटटादरगाना धान्यानां अन्यच फएलमाचकं॥ वजंयेदषटभेकन्तु विनेवौषधकारणात्‌ 1 सष काञ्चनं रुद्रन्धम्मराजच् कारयेत्‌ 1 FAW मातुलिङ्ग ञ्च ठन्ताकम्परनसन्तथा | आआस्ास्बातकपित्यानि कालिङ्मथ aaa tt खो फला श्वत्थबद्‌ रच्म्नोरं कद्‌ लो फलं । HATCH शक्या कलधौतानि षोड़श ॥ कलधौतं हेम । मूलकामलकच््रम्बूतिन्तिड़ोकरमन्द कं | RSAHY CWT करोरङुटजं समो। एलकभेलाफल | उदुम्बर नारिकंलन्दरात्ताथ छहतौदयं | रौप्यानि aaa फलानोम।नि षोडग ॥ तास्नन्ता्तफल कुष्यादगस्तिफलमेव च | पिर्डो रकाश्मयफलं तथा सूरगणकन्दकं ॥ ATH: ओखोपण्ये | रतालकाकण्टकच्च केतकाम्हौ कचिभटः | Ton plea en = 2 ति epee A SRR INARA AE SR EW RE ms EY NS 1 1 ee) | ` षी ग र + =+ नषधः - 4h = — ee pa Ab en ९०८ देमाद्धिः। [व्रतखण्डर१ प्रध्यायः।। केतकः अस्बप्रसाद्नफल | श्रन्लौकञ्चिच्चा। चि चवल्लौ मेलं तदत्‌ कूट भौल्मलिजं फलं । कृटशाल्मलि; रोदौतकः | ग्रामनिष्यावमध्‌क्रवटेङ्ग.दपटोलकं! मधुकोमघकः | iret fequ । तालाखि षोडयेतानि कारथयेच्छक्तिती ac t उद्ङ्मभदयं कुब्याडान्योपरि waa tt ततश कार्येच्छ्यां श्थ्योपरि सवासस। भत्तपातदयोपेतं थम रुदरढषान्चितं। धेन्वा सदेव शान्ताय विप्रायाथ qz faa | सप्रलोञाय संपूज्य Ge ऽहि विनिवदयेत्‌ ॥ या फलेषु नवसन्दयमरा रसरूपिणः। तथा सव्व फलव्या गत्रताह्वक्तिः fede मे a यथा शिवस GUA सद्‌ानन्दफलप्रदः। तद्यक्षफलदानेन तौ स्यातां मे फलप्रदौ ॥ यथा फलानि कामाः स्यः शिवभक्तषु सव्व दा | तथानन्तफल प्रािमःऽ स्त जन्मनि sala ॥ यथा Wea पश्यामि भिवविष्ण कपञ्चजां तघा ममास्त fara शङ्रः WEL सदा | दरति वत्सरतः सव्व AAA च ya; ॥ ARTA: AVANT t भाक्त ख च्छयनं द्‌ दयात्सव्वो पस्करसयुतं। aa फलान्येव यथोक्तानि विधानतः॥ व्रतखण्ड' aca: 1] BATH | ९०९ तधोदकुभयुम्मञ्च शिवधर्म च काञ्चनः; विप्राय car yatta वाग्यतस्तेलव जितं | ्रन्यानपि यघागक्तया भोजयेदहिजयपुङ्व। एतस्मात्र पर किञ्चिदिह लोके परत TI व्रतमस्य afaas यद्‌ नन्तफलप्रद्‌ | सौवणताख्रौप्येषु यावन्तः परमाणवः | भवन्ति quarag फलेषु सुनिसत्तम | तावद्युगसदखराणि स्द्रलोके महौयते॥ एतत्स मस्तकल्‌ष्रापहर्‌ जनाना माजोवनाय मनुजेषु च सववेदा स्यात्‌ जन्मान्तरेषु न च पुचवियोगदुःख- माप्नोति धाम च युरन्दरदेवजष्टं ॥ दति मत्सपपुरणो क्र फलत्यागव्रत' | 000 Baw Sas | वन्ताकस्य विधि वच्छे zy पाय समाहितः) संवत्सरं वा षण्मासान्‌ तौन्मासान्‌ वान भकच्तयेत्‌॥ अथ भरण्यां मघायां वा एकरातोपवासं wart सख्रख्डिलं देवतामाइय गन्धपुष्यनेवेद्यादिना च संपूज्य दर्भपाणिगन्धो दकेनावादयेत्‌ । यमराजमावाहवामि। कालमावादयामि | विच्रगुप्तमावाद्टयामि। सतुव्रमावादहयामि। awiafeaararearfa sfai ततोग्नि समाधाय तिलाज्यं ज॒डइयात्‌ । यमाय खाद | TATA खहा नोलकण्डाय खाद्धा। यमराजाय खादा। वितर ९१० चखेमाद्रिः। [वरतखण्ड'३१अध्यायः। | +भ न~ ~ ah po aes ~= oF + भनुः = | SRA ita ey OA ऋ क po अन # 0 ~ प्व ज~न ऋ [५ [न ~न गुप्ताय BIE! वेवखताय खादा | अग्निमूषैव्याहतौरषटश तच्इयात्‌ | प्रायथित्तं Sal ब्राह्मणः खयमेव इतरषामाचायः। अघ खश्रक्तया सौवण ठन्ताकं ब्राह्मणाय निवेदयेत्‌ | ष्णां गान्तथा BY तथेव कणेवे्टाङ् Slag: कतोपानद छष्णवस्त्रयुग कष्णकम्बल दयात्‌ | ब्राह्मणान्‌ भोज्याशिषो वाचयेत्‌। | अनेन विधिना यस्तु ठन्ताक्तञ्च प्रयच्छति, NAAM वा aaa न भक्षयेत्‌ ॥ ay aa विधिं कला जन्मावधि त्यागं करोतिसतु विष्णु लोक प्रयाति पौर्डरोकोऽश्वभेधफलमाप्रोति | सप्तजचऋसहस्राणि WHS महीयते | WAM AIA यावयमलोकं न पष्यति । ठन्ताकमप्रतिदतं वरहंमसिद | द्व्ादट्दिजाय छतवस्रसमन्ितं यः| लत्वा तु वषंमपि मासमथेकभेव याम्य न पश्यति पुर पुरुषः कदाचित्‌ | दति भविष्योत्तरोक्तो चन्ताकल्यागविधि; | 000 व्‌ mil ae ॥ rr = न ॥ नष = ह) 1 itis ny i य a 4 St eee तै ण ~ 9 | = न= aT [1 are पयोत्रते feat काञ्चनं कल्यपादपं | + ५ 9 + UAE यथाशक्त्या ACA WIAA ॥ © $ . aay । Tal ब्रह्मपदं याति WATAAA स्मतं ॥ व्रतखण्ड २१ अध्यायः 1] BVarlz: | ९११ ABSA देवता । इति पद्मपुरणोक्त' aaa | 000 Sa पलदयादूह रच मश्वयुगा FEA | ददन्‌ छतोप्रवासः स्याद्दिवि कल्पशतं वसेत्‌ । तदन्ते राजराजः स्याद्‌श्वव्रतमिदं स्मत । इन्द्रोऽच SAAT | दति पद्मपुराणोक्त अश्चत्रत | तददमरथं दद्यातकरिभ्यां संयुत YA! | सत्यलोके वशेक्रल्यसहस्र मथ भूमिपः | भवेदुपोषितो भूत्वा करिव्रतमिदं स्मृतं | उपोषितो भूत्वा ददयादिव्यन्बयः | तदत्कल्यदयादूवै । ब्रह्मा ऽचरय देवता | दति पद्यपुराणोक्तं करित्रत । | छताभितेकं यः Rares शिवस्यतु। नियतं खच्छधाराभिः Guard ससुद्यतः॥ गेतद्रलोपद्ारेण शङ्वादितरनिःखनेः | कुाज्जागरणं तत्त प्रदोपादुयपथोभया । समस्तपापनिसुक्तः समस्तङुलसंयुतः | are ऋ चनु ~ | न Po a, a ~ ऋ ~ रर + = नोनं ऋनि य क व "न त-क (~ I 21 a= + न्क Pe eu oot pe अय PEE ee EX. wn ए Ht कस 5 Pe ऋ कन्न [ , + Hee +~ a ऋ निए 4 a [ग लि, ~ 3 | [1 न 1 क Le id =. ५ प पि । । on soe A oy ~ नना ९१९ Sala: | [तण्ड ३१अध्यायः। ज्वलि: सं महायानेरसंस्येये नगोत्तमे; 1 युक्तः शिवपुरं faa’ मोदते गिववत्सृखौ | ग्रहणे विषुवे चेव gay दिवसेषु च ॥ छ ताभिषेकं यः पश्यदासमास्धिसुपो षितः | विधूय सव्वपापानि शिवलोक स गच्छति ॥ एकः पूजयते भक्या अन्यो भक्तया प्रशस्यति | तुद्यभेव फलन्ताभ्यां भकतिरेवाऽत्र कारण ॥ इति शिवधर्मराक्तो रतस्लपनविधिः | सूत उवाच! gaat खल्‌ या सुक्तिरनायासेन देदिनां । जायते कमणा येन Bae तदृदिजोत्तमाः ॥ गोचग्भमानमालिख्य AWA गोमयेन च । चतुरस विधानेन चरुणाभ्युच्य मन्तवित्‌ ॥ द्र > >, अलङ्कत्यं वितानाद्यन्तखापि मनोरमः २, >५ ar ~ ACTUARY स्रणरण्वत्यपचरकेः ॥ सितेविं कसितेः ag. रकैर्मीलोत्पलेस्तथा | विमानेन विदितेण सुक्ता दाम्ना हिजोत्तमाः। A A > 0 ~प सितदत्ात्मकेखव सुश्च: पूणएकुम्भकः ॥ फलपल्लवमालाभिबेजयन्तोभिरश केः, >} fi OA =~ पञ्चाशदोपमालाभिधूपश्च विविधंस्तया ॥ uqineadgqa लिखित्वा पद्ममुत्तमं । तन्तदर्णौस्तथा च णौ व ATT hy ay | eae २१अध्यथाः i] safe ९१३ THEM ata क्त्वा wa विधानतः | कणिकायां न्यरेदेवन्दव्यादेवेशखरम्भवं ॥ तत वर्पंनकारादौनन्यसेत्‌ प्रागाद्नुक्रमात्‌। प्रणवादि नमोन्ताश्च aang हि सुव्रतः ॥ सं पूज्येव सुनिगरेष्ठ गन्धपुष्यादिभिः क्रमात्‌ | त्रा द्य णन्‌ भोजयेत्तत्र पच्चाशददिधिपूव्वंकं॥ अच्तमालोपवौतच्च कुरूडलेानि कमण्डलुं | प्सनच्च तथा cw उष्णोषं वस्वमेष a Vwi तषां हिजेन्द्राणां देवदेवाय wars | महाचरुच aaa aw गोमिथ॒नं तथा । Way देवदेवाय Zl तदणंमर्टलं | योगोपथोगिद्रव्याणि शिवानि विनिवेदयेत्‌ a ओंकाराद्य जपेद्टौमान्‌ प्रतिवयंमनुक्रमात्‌ ॥ एवमालिख्य यो भक्तया वणमण्ड़लसुत्तमं थत्‌ फलं लभते मर्॑स्तद्वदामि समासतः ॥ साङ्गान्‌ वेदान्‌ यघान्धायमधीत्य विधिपूव्वकान्‌ | द्द THA धान्यायं ज्योतिषटोमादिभिः! क्रमात्‌ A ततो विश्वजिता पुतानुत्मादयय तादृशान्‌ | AAV गत्वा सदारः साग्निरेव qi चन्द्रायणादिकान्‌ कत्वा संन्यस्य वे दिजः क्रमात्‌ | ब्रह्मविद्ामधौत्येव ज्ञानमापाद्य यत्रतः i aa TIAA योगौ यत्फसमाप्रयात्‌। तत्‌ फलं लभते Wa वणमर्डनलद्णं नात्‌ | ( १९५ ) ९१४ देमाद्धिः। [त्रतखर्ड'२१ अध्यायः येन केनापि वा लिख्य प्रलिप्यायतनाखधं | उत्तरे दिखे वापि एतो वा दिजोत्तमाः ॥ चतुःष्वो केऽपि बा AWE समन्ततः। विक गन्धङुसुमे पदौ पे तुति घैः | प्राघयेशवमौोशानं fading गच्छति ॥ तच YR महाभोगान्‌ कल्पकोटिशतं नरः! atena: स मेः पूरयेच्छिवमन्दिरं ॥ MAAR मासाय गन्धरवस्त् पूनितः | ज्रमारागत्य लोकेऽस्मिन्‌ राजा भवति वोयवान्‌॥ इति सौरप्राणोक्त' TUAW | WRIA नवं धान्यं Wa Bal सुगोभनं। सुतिधौ च qaaa Gesu च Vs सति । गच्छेत्‌ केत विधाने च गोतवाद्यपरःसरः। aa afeq प्रज्वाल्य धान्यं; सस्तो waa | क्त्वा होमं aa: agraaeia fayfac a पध्यरव स्त ; फले मू लेह स्यण्व रथ संयुतं | तेन दैवान्‌ पितन्‌ बन्धून्‌ तप्ययित्क यथाक्रमं | विभज्य च यथाशक्या cau: Bafana: | नववस्त्राठतः खग्वो खनुलिप्तः @aya: | ; खितः Ga मुखस्तष्टा ब्रह्मघोषपुरःसरः | | HUA WA ष्टो मङ्लालम्भनादयुक्‌ ॥ प्रासरोयादधिसंयुक्त नवमन्ताभिमन्नितं | : कलाद्ारश्च RIA मौतवायोर्महोत्सवं ॥ इति ब्रह्मपुराणोक्तं सख्योत्स॒वः। व्रतखग्ड' २१अध्यायः'] PATHS | ११५ चौरोदसागरात्‌ Yat मथ्यमानात्‌ YTUAAT | Wal Sat ससुत्पत्रा सव्वलक्षणसंयुता ॥ नारायणो याऽसाजुक्ता सुकुमारा यखिनौ । सतोदेहससुडूता सतो परमश्मेभना ॥ तां Zur चकितास्तत्र ततः सव सुरासुराः। मनोज्ञा YAGI चेषा दन्त FAAS वयं | एवमुक्ता व चस्ताञ्च ददशः सव्व एब aq | चतुनांमाथ तस्यास्ते grata भुवि विस्तरं । अतोऽ सा Baar च पूजितव्या प्रय्लतः। पुष्यधूपानुकलेषाद्यस्तया ब्राद्यर्तप्य रैः | दौ बालको तथा sal संपूज्य तदनन्तरं | धश्मायकाममोतच्तञ्च WAS कुटौरकेः। स्तीसदहायेन EVA wafaawa: सड | adfana fafaaq afaar च yaraar | निषेदिता गुरुभ्यश्च सखयभोज्या न चान्यघा। उव्छवथापि कत्त व्यो दरृत्यगौतसमाङ्लः ॥ इति आआदिल्यपुराणोक्तः श्यामामदोत्यवः। 0j—— ब्रह्मीवाच | ऋगबेदमातेयगो त्रं सोमदेवं विदुसुने | काश्यपं च wag sued विदुबु धाः | सामवैदोऽपि WAT भारहाजः पुरन्दरः, ९१६ Saif: [व्रतखग्ड'२१ अध्यायः! अधिदेव विजानोयाद्रूपारस्म च्छ णुष्व तु ॥ Rag; पद्यपत्रायतमच्तः प्रलङ्धिताम्बरः। सुविभरक्लग्रौवः कुचचितकेशश्मश्रुः प्रमाणनापि वितस्तयःपञ्च | स राजतो मोक्तिकजोऽघ पूज्यो वरप्रदो भकतियुतहिजाय i यजन्वैदः पिङ्गलाः कशणमध्यस्थूलगलकपोलः तास्वः प्रादे WA Wey | faa fag saat पूज्य Fa कामानवाप्रयात्‌| सामवेदी नि्यखग्नो gaa: शचिः शएविवासाः त्तमो दान्त ew काचनयनः atfeaadt वपन बड़रत्रिमातः। तास्बरय- मणाविन्द्रावयास्येड़ पूजितः भदो भवेत्‌ । अथवेदेदस्तौचए घणः कामरूपो विश्वाका विश्वत्‌ AC AT ज्वालावान्‌ WAT ` वंशसुकतोत्धापौ नौलोत्मलबर्ण qua खदारतुष्टः सौवण: पद्य- रागे वा AAA वा पूजनोयः प्रपूज्य Vay कामानवाप्नुयात्‌! aaa व्ैरविदितानि। यावन्ति बैदगोतानि पुखयन्नव्रतानि a | तावन्ति खवणाद्स्थ प्राप्रयाह्क्तिभावितः॥ AGA लभत युतानधनो धनमाप्नुयात्‌ | विद्यामविदानाप्रोति दुःखौ दुःखात्‌ प्रमुयते ॥ पटित्वा स्व्व॑देवानां wad दिजवल्लभः | जायते Ala सन्देहो देवौ च वरदा GST tt दूति देवोपुराणोक्त' देवत्तं | त्रतखर्ड'२१अध्यायः 1] PATHS: | ९१७ सोरपुराणशात्‌। अघातमचरणो सखिला शिवक्तेते वर्त्र: | देहान्ते शिवसायुज्य लभते ATA AAA: tt fay UTA | fir पददयं वापि fads ata यः । स याति fuaaiaa ata काय्य विचारणा t दूति ataad | eres () र WET Bars | आदित्यग्रहणं राम ग्रहणे च faut i उपवासाद्वाप्रोति सव्व HAVA । खानं दानं तथा AMARA तत्तदा WA | खादच्च भागवयेष्ठ वद्िसंपूजनं तधा ॥ afa विष्एघर्ममौत्तरोक्तो अ्रहृणोपवासः। 000 अथ महातपोत्रतानि। मासे मासे च यः कुय्यात्च्रिराचक्तपण qui | HAL लोकमासाद्य स विन्देत्‌ परमं पद्‌ ॥ रि ~ $ ५ वतुयऽहनि यो yea व्रतवांख wheat | Ce ७ गद गान्धव्व स पद प्राप्य मोदते शक्रवहिवि॥ पञ्चमेऽहनि यो मुनक्त प्रतिमासमतन्द्ितः । ९१८ SAS: | नतखर्ड'२१अध्यायः | विसुक्तः Wa nua स we feaafe a: ॥ यो yea दिवसे as नित्यं नियमवान्‌ शुचिः | वारुणं लोकमासाद्य स विन्देत्परमं पदं i सप्तमेऽहनि यो yea जितदन्दो Eeaa: | अ!दिव्यलोकमासाय सोऽपि faeaefad ॥ जितदन्दः सदिष्णुः | अष्टमेऽहनि यो yea जितदन्दो हदृव्रतः | AWS WAAR, भवैत्मरमयतिः ॥ नवमेऽहनि यो yea नरो नियममाखितः । स वसूनां प्रियो भ्रूत्वा चरते वसुभिः सह | द गमेऽदहनि यो मुङक्त दादणादफलं लभेत्‌ | अश्विभ्यां च समो भरूला अ्रव्ययं खेलते तथा ॥ चादट्‌श्ादः क्रतुविरेषः। एकादशे तुयो yea feat मानवः शुचिः, एकादश BAA a रद्रगणतां व्रजेत्‌ | यो Ben तु द्विसे yea देवि सदा az | इादगादन्तु सम्प्राप्य शक्रलोके मद्धोयते ॥ aaNet ga निव्यमखालति दिवसे az: | वसेत्‌ स भागवस्छानं प्राप्य दिव्यसुखान्वितं । चतुद ओेऽतु दिवे नित्यमश्नाति यो नरः, स वसेहूद्रलोक तु गिवसायुज्यतां व्रजेत्‌ ॥ aware चिपेव्यस्तु नित्यमेव जितेन्द्रियः | देवराजेन तुल्योऽसौभ्रता सरमे च तिष्ठति। व्रत खश्ड'२१शअ्रध्यायः!] देमाद्धिः। ९१९ यस्त॒ मासं चिपेदीरो जितक्रोधो जितेन्द्रियः । विमानन स दिव्येन saat: समब्ितः॥ सव्व लो केषु वसते जन्मान्य्टायुतानि च) ततो ब्रह्मान प्राप्य ब्रह्मणा च सुपूजितः), ब्रह्म लोके निवसत यथा ब्रह्मनरोत्तमः॥ महाभारते मासि मासि चिराचासि wart वषाणि दादश गणाधिपत्यं प्राप्रोति निःसपन्नमनाविकलं ॥ यस्त॒ संवत्सरं YW एकाहारो भवेन्नरः | अतिरात्रस्य यन्नस्य समं फलमुपाञ्ते ॥ दशवषेसदहस्राणि सगेलोके महो यते | तत्‌क्षयादिह चागत्य माहात्मः प्रतिपद्यते ॥ यस्त॒ संवत्सर YUVAT UAHA A अहिंसानिरतो faa’ सत्यवाग्विजितेन्द्रियः | वाजपेयस्य यज्ञस्य स फलं AHIDA | तिंशदषसदखाणि वषीणां दिवि meat अष्टमेन तु भक्तेन जोवेत्सवव्छरं नरः | गवां मधस्य यन्नस्य फलं प्राप्रोति मानवः। ससारसयुक्तेन विमानेन स गच्छति पञ्चाणत्त agarfy वर्षाणि दिवि मोदते ॥ पत्ते पत्ते गते राजन्‌ योऽश्रोयादषंमेवतु, रमासानयनन्तस्य भगवानङ्किराऽब्रवोत्‌॥ afeaquraity दिवमावसते स च ॥ ९२० देमाद्धिः। aww CTT! | अस्नोयाददितौये wa way दिनेच्वति विशेष; । बोणानां वक्ञकोनाञ्च Aare विशाम्पते | सुघोरे धरः शब्दः सुसुप्त: प्रतिबध्यते | सं वत्सरमिहेकन्तु मासि मासि पिवेत्‌ पयः! फलं विश्वजितम्तात्त प्राप्नोति स नरोत्तमः ॥ सिंव्याघ्रप्रयुक्त न विमानेन स गच्छति गतञ्चाष्टो सुरकन्या रमख्न्ति च तन्नरं antag agarfu वषं दिविमोदते। मासाद नरव्याघ्र नोपवासो विधौयते ॥ युधिषिर उवाच | यो दरिद्रैरपि विधिः शक्यः प्राप भवेत्‌ प्रभो | तुल्यो यज्ञफ़लेरेव तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ भोर Bary | यस्त कल्य तथा सायन्य्ञानो नान्तरा पिषैत्‌ | भरहिसानिरतो faa SETA जातकेदसं | यज्ञं बहसुबणे धो वासवग्रियमाहरत्‌ | सत्यवाक्‌ MATA ब्रह्मशासनसचकः॥ चान्तो दान्तो जितक्रोधौ यत्फलं समवाप्रयात्‌ | पाण्डराभप्रतौकाओे विमाने हंसलक्षणे । कल्यमिति oa पिवेद्द्‌कमपोति Te षड्भिरेव च स aa: सिध्यते नात्र संशयः । देवस््रोणामपि वसेत्‌ गृत्यगोतनिनादिते। प्राजापत्य वसेत्‌ पद्मं वष णामग्निसम्भवं ॥ ्रतखण्ड' २१अब्यायः] sae ९२१ पञ्च कोरिगतं; चोणि वर्षाणि यः प्रात्‌ शततन्ते कभोजनं। धन्य पलोरतोनित्यमग्नि्टोमफलं लभेत्‌ ॥ डितोये द्विसे यस्त॒ प्राञ्रोयादेकभोजनं। सदा दादगमासान्वे HHA जातवेदसं | यन्न बहसुवणं यो वासवप्रियमाचरेत्‌ | सत्यवाग्दनगोलखव्रह्मण्याश्चनस्‌यकः ॥ Alea दान्तो जितक्रोधः यत्‌ फल समराप्रुयात्‌, UWIAA विमाने हसलन्तणें ॥ दे समात्े ततः पञ्च सोऽप्सरोभिवरेत्सदह | समासे परिपूण । ठतोये दिवसे यस्त प्राश्रौयादेकभोजनं | सदा MAA जह्वानो जातवेदसं ॥ अग्निकार्यपरो नित्यं निव्यकाय्यप्रसोघनं | अतिरात्रस्य यन्नस्य फल प्राप्रोत्यनुत्तमं | सर्पीश सदा लोक सोऽप्सरोभिव्वैसेत्सद | निवत्तनच्च तत्रास्य alfa पद्मानि वे विदुः ॥ श्रास्येति fear दिवसेयखतुथ तु प्रा्रौयादेकभोजनं | सच दादशमासान्व जद्वानोजातवैदसं। वाजपेयस्य यन्नस्य फल प्राप्रोत्यनुत्तमं | सागरस्य च पथ्थन्ते सन्वेलोके च शयेत्‌ | देवराजस्य च क्रोडंनित्यकालमवेन्तते। ( ११६ ) ९२२्‌ Safe: | [तखण्ड२१अध्यायः। सागरस्य च uaa ससुद्रसंख्याविश्चेगान्त। feat पञ्चमे aq प्राश्मोयादेकभीजनं | सच इाद्गमासान्वं Waal Haas ॥ अल्पः सत्यवादौ च ब्रह्मरखखखाविहिसकः। अ्रनसूयुरपापस्यो इादशादफलं लभेत्‌ I जाम्बूनदमय दिव्यं विमानं Faas | BAA ABARAT ARTS MT र VE I ्रावत्तनानि चलारि। तुलापद्मानि दादश श्ररम्नि परिमाण तथासौ वसते fat 1 आआवस्तेनानि aaah तला पद्मानि णतंप्रमानि | शराग्निपरिमण। शराःपञ्च। अग्नयस्तरयः॥ टमपि परिमाण मन्वन्तराणामेव । feat यस्त ue a सुनिःप्राश्रौत भोजनं । सद्‌ा VIIA वे जह्वानो जातवेदसं ॥ सदा चिप्रवणस्नायो ब्रह्मचाथ्नस्यकः | सुनि; संयतवाक्‌ | गवामैघस्य AAA फलं MATA | aqaaatamg wee: प्रतिवध्यते | नूपुराणां निनादेन मेखलानाच्च निस्वने! कौटोसदख वषो युगकोटटिग्रतानि च। पड्म न्यष्टादग तथा पताके दे तयेव FI श्रयुतानि च पञच्चाःरहतस्चश्ेखतस्य च । लोखा प्रमायेन समं ब्रह्मलोके मह्ोथते। ब्रतखेर्ड २ १अध्याय;ः ।| Safe: ERR पताकाः सख्याविर्ेषः | दिवसे सपमे यस्तु प्राौयादटेकभोजनं। सदा हादशमासान्व जह्वाणो जातवेदसं ॥ सरस्वतों गोपयानो AWA समाचरेत्‌ | सुमनोवण कश्चैव मधुमांसख् वजेयेत्‌ ॥ पुरषो मरुतां लोकभिन्द्रलोकच्च गच्छति | aa aa च सिद्धार्थौ टेवकन्याभिर्यं ते | फलं बहुसुवण स्य GWA लभते नरः | सख्यामतिगुर्णां वापि तेषु लोकेषु मोदते | कुङ्कमादि अरतिगुणं। अतिक्रन्तगुणानामपिरिभितानिति यावत्‌ । यस्त॒ संवत्सर पूणे भुडकेऽडन्यष्टमे नरः | देवकाय्यपरो नित्यः जह्यानो जातवेदसं ॥ पोण्डरोकस्य यज्ञस्य फलं प्राप्रो्यनुक्तमं | पद्मवर्पनिभद्धेव विमानमधिरोहति ॥ HUT, कनकमौराखनायः श्यामास्तघा पराः, वयोरूपसमायुक्ता लभते ATA सशयः ॥ यस्त॒ संवत्सरं भुङ्ते नवमे नवमेऽहनि | सदा CIMA Talal जातवेदसं | श्रष्वमेधस्य यक्नस्य फल प्राप्रोति मानवः। पुर्डरोकप्रकाशं ब विमानं लभते नरः । दौषस्य्यग्नितेजोभिददिव्यमालाभिरेव च। ९२४ देमाद्रिः। [तव्रतखर्ड'र१ अध्यायः) नोयते रुद्रकन्याभिः सीऽन्तरित्त मनातनं। अष्टादरशसदस्राणि वषाणां कल्यमेव च, कोटौशतसदस्रच्च तेषु लोकेषु मोदते । यस्त॒ संवत्सर YR दशाहे वे गते गते । सदा CEMA AT HEAL जातवेदसं ॥ गते प्राप्ते तथा त्रद्यकन्धा चामरविजिता। करुते तत्र सा Mel सव्वंभूतमनोहरे ॥ अश्वम धसदसखस्य फलं प्रा प्रोदखनुत्तमं | रूपवत्यश्च त कन्या रमयन्ति Vat AT एकादशे तु दिवे यः प्रासे प्राशते हविः | सदा दाद्शमासांख जह्यानो जातवेदसं | परस्त्रियं नाभिलषेदाचाय मनसापिवा॥ ्रदरतच्च न भाषेत मातापिन्नीः wastes | अभि गच्छन्महादटेव विमान महाबलः | द्राणां तमघौवासं दिवि दिव्यं मनोरमं) वषाणां परिमेयानि युगान्ताग्निसमप्रभः ॥ कोटोगतसदखच कोटिद्‌शशतानिच। az नित्य प्रणमते टेवद्‌ानवसंस्मतः॥ स तस्मे qua प्राप्तो दिदे दिवसे भवेत्‌। दिवे ered aw ara बे प्राशते हविः। सदा हएदणमासान्वं जद्वानौ जातवेदसं । ादित्यडाद्‌शाभास बिमान सोऽधिरोहति॥ अष्टमददिसंयुक्ता ब्रह्मलोके प्रतिहितं। nage ats: 1) देमाद्धिः। ९२५ नित्यमावसथं राजन्‌ नरनारोसमाङलं | agen तु दिवसे यः प्राप्त yaa हिः ॥ सदा हादशमासान्‌ वे देवसत्रफलं लभेत्‌ | रन्नपद्योद्यं नाम विमान साघयेत्ररः। तत्र णङ्पताकेद्दे युगान्तं कल्पमेव च ॥ अयुतायुतं AMV] सस॒द्रच्च तथा वसेत्‌ ॥ श्द्कपताकाप्रखतयः पताकाविगशेषः। गोतगन्धव्वघोषेश्च भेरीपणवनिःखनेः | सदाप्रमुदितस्ताभि दवकन्याभिरीज्यते ॥ चतुदञे तु feat a: सदाप्राशयेदविः। सदा इादशमासान्वे महामेधफलं लभेत्‌ । अनिद श्यवयीोरूपा देवकन्याः Gawd: | मृषटतप्ताङ्दधरा विमनेरूपयान्ति a | कलसविनिर्घोषिनु पुराणाच्च faaa: | aTSATY समुत्‌कषस्तच aa विवोध्यति | देवकन्यानिवासे च तस्मिन्‌ वसति area: | जाहृवौ वालकाकौम पूणसंवत्सरं नरः | यस्त॒ पन्ते गते भुङ्क्त एकभक्त जितेन्द्रियः । सदा हादणमासास्त जद्वानो जातवेदसं tt राजसयसहसरस्य फलं प्राप्रोत्यनुत्तम | यानमारोहति दिव्यं हंसबहि णएसेवितं | मनिमण्डलकेधितं जातरूपसमा्तं | दिव्याभरणभोभाभिव्व tal cage | ९२६ Satiz: | [व्रतखर्डं ३१अब्याय; । एकस्तम्भञ्चतदार सप्तनोमं सुमङ्गल | वेजयन्तीसदखे श्च शोभितं मोतनिखनेः ॥ fea दिव्यगुणोपेतं विमानमभिरोहति। मगिसुक्घाप्रवालैख afad वेद्यतप्रभं | वसेन्‌ युगसहस्रं खड़कुल्ञरवाहनः। षोडषे fears प्रापे यः कु्यीदेकभोजनं। सद्‌ हादशमासान्‌ वे सोमयन्नफलं लमेत्‌॥ सोमकन्यानिवासेषु सोऽध्यावसति नित्यशः | सोम्यगन्धानुलिष्षश्च कामचारगतिभेत्‌ ॥ सुद्जनाभिनौरीभि सुघुराभिस्तयेव च, अचति वे विमानः कामभोगेश्च सेव्यते | परल पट्यश्तप्रच्य महाकल्प euifaa | पावत्तंनानि चत्वारि साधयेचाप्यसौी aT: | दिवसे सप्तदशमे यः प्राप्त प्राते इविः | सदा दाद्शमासान्‌ वे HAT जातवेदसं & स्थानं वारुणमेन्दरच्च रद्रच्चाप्यधिगच्छति। मारुतोयनसञ्धेव ब्रह्मलोकं स गच्छति \ तच दवतक्रन्याभिरासने नोपचय्धते | भूभूवखापि देवषि' विश्वरूपमवेचते ॥ aa देवाधिदेवस्य quran रमयन्ति तं) चातिंद्रद्रूपघारिखयो मधुराः समलङ्घताः। चन्द्रादित्यावभो यावत्‌ गगणे चरतः प्रभो | तावच्चरत्यसो वोर: सुधाख्तरसागनः। ares arma: |] द्ेमाद्रिः। ८२ अटादशे यो feast प्राश्रोयारेकभोजन | सदा दादशमासान्‌ वे सप्तलोकान्‌ स पश्यति ॥ रये; सनन्दिघोषेख wea: सोऽनुगम्यते, देवकन्याभिरूद्‌ स्त॒ भ्राजमानः स्वलङ्कतैः ॥ व्याधघ्रसिं हप्रयुक्तच्च aqaafaate | विमानमुत्तमं दिव्यं सुसुखो हधिरोहति। da कल्यसहस्रं स कन्दराभिः ag ated | सुधारसच्च Yala अ्रशख्तोपमसुत्तमं। एकोनविंशतिदिनि थो yea एकभोजनं । सदा दादशमासान्‌ वे सप्लोकान्‌ स पश्यति ॥ SUA लभते सथानमप्सरोगररेवितं | गन्धव्वरूपगोतच् विमानं सुवर्चसं ॥ तच्रामरवरस्नोभिर्मोदते विगतज्वरः | दिव्याम्बरधरः योमानयुतानां शतं णतं | qusy विंशे दिवसे यी qea aaa | सदा दादशमासांस्त सत्यवादौो Waa: । AAA AWAD सव्वभ्रूतहितं रतः । स लोकान्‌ विपुलान्‌ रम्यानादित्यानासुपाञ्नत॥ aaa दिव्यमाल्यानुक्लेषने | fanra: काच्नेटिव्येःपृतशानु गम्यते | एकविंशे तु feat यो भुङ्क्तं दयंकभोजनं। सदा दाद्शमासान्‌ a जानो जातवेदसं ॥ लौकभोगशनसं दिव्य शक्रलोकञ्च गच्छति | = _— eer EAS Safe: | [वतखण्ड २ १ auras | अभ्िनोमेरुताच्धेव सुखेष्वभिरतः Vet | अनभिन्नख दुःखानां विमानवरमाख्ितः । सेव्यमानो वरस्तोभिः क्रौोडव्यमरवत्‌ प्रभुः। fat दवसे प्रमि यो yea द्येकभोजनं | सद्‌ा दादगमासान्‌ वे Wala जातवेदसं ॥ अहिंसानिरतो धोमान्‌ सत्यवागनसयक। लोकान्‌ वसूनामाप्रोति दिवाकरसमप्रभः। कामचारो सुघ्ाहारो विमानवरमास्थितः। रमते देवकन्याभिटहिव्याभरणभूषितः ॥ जयोविशे तु दिवसे षः प्राशओेरेकभोजन। सदा हादशमासांस्त्‌ मिताहारो जितन्द्रियः। वासोस्सनथ्चैव रद्रलोकच्च गच्छति । कामचारी कामगमः पूज्यमानोष्ठरोगणेः ॥ aaaquage विमानवरमास्ितः। रमते देवकन्याभिदि व्याभरण भूषितः ॥ चतुविशेतु दिवसेयः प्राशेदेकभोजनं। सदा SIMA I ARIA जातवेदसं ॥ ऋारित्यानामधौवासे मोदमानो वरेखिर। रमते टरेवकन्यानां सदसे वायुते स्तथा । पद्विंशे तु feat a: ए्शेटेकभोजनं॥ सद्‌ा हादणमासान्वे पुष्कलं BARTS रथे; WAAR एुडतोह्यनु गम्यते | देवकन्धासमारुढ़ राजते विमते; शभेः | प्रतखण्ड'२१अध्यायः।] Parts: | ९२२ तच कल्यसहखं वे रमते स्तोशताह्तः ॥ भोज्यं TAR लभते सदा ते अखतोपमं | षड्विंशे दिवसे यस्त्‌ प्राञ्ोयादेकभोजनं | सदा इद्शमासान्वं नियतो नियताशनः | जितेन्द्रियो वौतरागो ज॒ह्वानो wastes । सम्प्राप्नोति महाभाग पूज्यमानोऽष्छरोगसैः | सप्तानां मस्तां लोकान्वमूनाञ्च Vay | गन्धर्व्वरपरोभिख पूज्यमानः समश्रुते | डे युगानां avag दिवि द्दिव्येन तेजसा ॥ सप्तविंशे तु दिवसे यः प्राेदेकभोजन । सदा दादमासान्वं ज॒ह्वानो जातवेदसं | फनलमाप्रति विपुलं देवलोक च मोदते, WTA AMA YF SA; प्रपूज्यते ॥ स्तोभिग्धनोभिरामाभौरममाणो मदोत्कटः | युगकनल्पसदस्राणि ती खयावसति वे सुखं । योऽष्टाविंशे तु दिवसे प्राओ्रोयाटरेकभोजनं t सदा दादशमासान्वं जितात्मा च जितेन्द्रियः ॥ फलं tafe चरितं विप॒लं WAIT TA | Wuataaaya: aa रविरिवामनलः॥ Square a नार्यो रममाणाः qaqa: । रमयन्ति मनःकान्ते विमाने qaase | सव्वं कामयुते दिव्ये कल्पायुतशतं समाः | एकोमत्रिशे fead यः प्रागेरेकभोजन ॥ ( ११७ ) ९३० Safe: | [त्रतखण्ड ३९ अध्यायः! ` सदा CTA सल्यत्रतपर{यणः | तस्य लोका; शभा दिव्या दिनव्यगन्धगुणान्विताः ॥ ततर ad शुभानाय्य दिव्याभरणभूषिताः | मनोभिरामा मधुरा रमयन्ति मदोत्‌कटाः § भोगवांस्तजसः युक्तो बेष्वानरसमप्रभः | दिव्यो दिव्येन वपुषा भ्राजमान दवामरः॥ ` वसूनां मसताच्छेव साध्यानामख्िनोस्तया | QAM तथा लोकान्‌ AMMA गच्छति ॥ धस्त मासते गते Ysa एकभक्त VATA: | सदादाद्श वे मासान्‌ ब्रह्मलोके गतिभतेत्‌ t सुधारसकतादारः WAT सव्वंमनोहरः। तेजसा वपुषा Jawad रस्मिमाजिब। aq प्रभाभिर्नारोभिकिमानसखी मदयते ॥ रद्ररेवपिं कन्याभिः सततच्चाभिपृज्यते | यावदषसहखन्तु जग्बुह्ौपेऽभिवर्षैति ॥ ARIAT: प्रोता ब्रह्मलोकस्य Waa t पिप्रष्चैव यावन््यौ निपतन्ति नभखालात्‌ ॥ वी सु वषतस्तावन्निवसत्यमर प्रभः | भप ¢ च, क यावदित्यादि | जम्बृदोपेषु wate amaze धीमती देषस्य ategaal यावन्तो विप्रपोजलकणा नमस्यलात्रिपतन्ति तावन्तः संवत्सरान्‌ ब्रह्मलीके वसतीव्यये; | =O ¢ $ मासोपवासो aaa दशभिः खग्यसुत्तमं । b ९ HVAT स्रौ रगतिभषेत्‌ ॥ ` वरतखच्ड ३१ अध्यायः} Pare € afactant जितक्रोधोजितचिश्रोररस्तया | Seam नियमतः सन्ध्योपास्षनशेविता | agfufaaara मासमस्राति aac: | अभ्नावकाशगौलस्य तस्य वासोनिर्प्यते ॥ दिवङ्गला WTI Ga राजन्‌ यथाऽमरः स्वग पुण्य यथाकामं दप yea यथाविधि ॥ उपवासानिमान्‌ कत्वा गच्छेच परमां गति । तचा वेश्या शूद्राश्च उपवासं wae ते ॥ चिरात दिचिराचच् तयोः पुषिन faa t चतुधंभक्तच्पणं वेष्यशूटरेऽभिधौ यते ॥ तिराचन्तु न waafafed ब्रस्मवादिभिः। इति महातपोव्रतानि । () _ + ¢ 6 , न्यच ali aaa कात्तिक्यां वा प्रयन्नतः। ¢ ~ ४ कत्तव्य; खच्छशेतस्तिभिर्वण दिंजातिभिः। षभः कष्णसारस्त TAA तिहायनः। 0 ते G ॐ AMA दशनोयश्च सव्वलच्तणसयुतः ॥ faa Oo + अष्टाभिपनुभियुक्ञ्तुभिरथवा क्रमात्‌ | तिदहायनौभिधंन्याभिः सुरूपाभिश्च शोभितः 1 ~ © सर्व्वोपकरयोपंतः सव्वसस्यचरो महान्‌ | squat विधिनानेन अपि स्मतिविघानतः॥ प्रागुद्क्‌प्रवरे देशे मनोज्ञे fasts वने । नच वाच्यो न तत्चौरं पातव्यं केनचित्‌ कचित्‌ । wat पिटभ्यो माटमभ्यो बन्धुभ्यख्ापि ana y माटठपत्ताख ये केचित्‌ ये चान्ये पिटपक्तजाः | गरुष्वश्र बन्धूनां ये कुलेषु ayRar: | ये प्रेतभावमापन्रा ये चान्ये आादवर््विताः | wage’ ३१अध्यायः |] ATs: | <८१ हपोत्षगन ते सव्व लभन्ते afaquat ॥ द्दयाद्नेन AW तिलाचतयुतं जलं) पिहभ्यश्च समासेन TMG, efaat | ततः प्रसुदितास्तेन हषभेण समन्विताः | वनेषु मावः क्रौडन्ति ठषोत्सगं प्रसिदथे ॥ श्रप्रवरत्ते Plea दाता वक्रोकिभिः wes | बराद्यण्णनाद यत्‌किचिन्मयोत्‌ख्टन्तु निजने ॥ तत्कखिद्न्यो न नयेदिभान्यन्तु यथाक्रमं | ठषोत्सर्गहते नान्यत्‌ gaata महो तलं । WATT | मनुरुवाच | भमवन्‌ योतुमिच्छामि प्रभस्य तु WaT | हपोत्सगविधिच्चेव तथा पुखफलं मत्‌ ॥ भरनुमादौ परोच्तेत सुशोलां लचणन्वितां। ्रव्यङ्मपरिक्तित्रां जोववत्ामरोगिशो॥ सिग्धवणां fava लिग्धश्ङ्ान्तयेव च | भनोहरातिरोम्या् सुप्रमाणामनुदतां ॥ ae ति A £ आ्वत्तद्‌च्िणावत्तयुक्ता दच्िणतख at | =a र ५ वामावत्तवांमतश्च विस्तोखजघनस्तना | खद्संहततास्योष्टो रक्त जिन्न! सुपूजिता) आस्यावरौषा स्फटितरक्तजिद्वा तथा wy ars न्वे = SSA, तास्राभवलिनेचा च शफरविरलदरहः। ( १२४ ) ९८१ Salix: | [वतखष्डं३१ अध्यायः aghayawa जलवदुदसचिनैः ॥ Tafa ख नयनेस्तथा रक्तकनोलकेः | सप्तवतुदे खदन्ता भवेदश्याम तालका | षड्ब्रता सुपाश्वारुएधयपच्चसमायुता | शष्टायतरिसेग्रोवाय्ुतासा श्भलत्तणा ॥ धटत्रता भवेत्‌ केषु केषु पञ्चसु चायता | भायताश्च तथेवाष्टौ WHATS भावाः | HI उवाच, उरः ue गिरः af: arat च agqurfad 1 weanifa धेनूनां कथयन्ति विचत्तणाः ॥ RU AT ललाटञ्च asa रविनन्दन। समायतानि स्यन्ते GS AMY चामर॥ चत्वारश्च स्तना राजन्‌ एवमष्टौ मनोषिभिः। शिरोग्ौवायुताचेव भरूमिपालायता ans तस्याः सुतं Waa and लन्तणान्वितः, उत्रतस्कन्धककुदं ऋजुलाङ्गलकम्बलं ॥ मद्ाकटि aaa ञेदटूथमणिलो चनं | प्रवालवगगङ्गाग्रं सुरौर्घमरिवालधिं ॥ नवाषटदशसंख्येवा AWS शनैः wy: | मलिकातच्तञ्च मोक्तव्यो ष्णहेऽपि घनधान्यदट्‌; ॥ वणतस्तास्रकपिलो बा द्मणस्य प्रशस्यते | WA TH गोरख HU पाटल Le ॥ न्द्रनोलाभष्््श्च शवलः पञ्चकालकः | amew अध्यायः] sare: t exe TART महास्कन्ध घत्तुरोमा च यो भवेत्‌ ॥ Lara: कपिलो aa रक्तशङ्गखयो भवेत्‌! WN AUT ब्राह्मणस्य च शस्यते ४ चिग्धरक्ेन वणन त्तचियस्य प्रशस्यते । काञ्चनाभमेन ALTA कष्ण ना प्यन्यजन््नः # यस्य प्रागायते ङ्ग सखसुखाभिमुखे सटा । सव्वेषामेव वर्णनां सत्त स्व्वीयसाधकः॥ माजांरपाद्‌कपिलो घन्यः कपिलपिष्कलः | श्वेतो माजांरपादस्त धन्यो मणिनिभेच्तणः॥ करटः; figada खतपादस्तयेव च। MIST यस्त॒ feare: शत एव च क पिच्ेलनिभोधन्यस्तथया तिमिर सन्निभः t WALA eA I सुखं यस्य प्रकाश्ते। नान्दोसुखः स विज्ञेयो caaut रिेषतः 0 Wag जठरं यस्य भवेत्‌ पच्च गोपते | SUN: स ससुद्रात्तः सततं कुलवदनः tt afaarquiaaa धन्यो भवति पुङ्वः। कमलेमण्डलेखापि faa भवति waz: ॥ अतसतीएष्मवणख तथा घन्यतरःखतः | एते धन्यास्त घाघन्यान्‌ कौत्त यिष्यामि ते aa । क्ण ताल्बोषदगना CAVE IARI 2 परव्यक्तवणो साख व्याघ्रमस्मनिभाखये॥ ध्वाङ्कग्टघ्रसवणंच तथा मूषकसत्निभाः। ace देमाद्धिः। [aaeee’e १अध्यायः। FW का णास्तथा GA ककःरा ख्यास्तयैव च । विष्रमश्धतपादाश्च उद्धान्तनयनास्तघ्ा ॥ न तेषा; प्रमोक्तव्या न ते धायाम्तया ग्ट, मोक्तव्यानाच्ख yvatat भूयो वच्यामि लक्षणं ॥ सखस्तिकाकारग्द्धाथ मेषोषसटशस्वनाः | मदाप्राणाञ्ेव तथा मत्तमातङ्गामिनः ॥ मद्योरस्का मदोच्छासा मदहावलपराक्रमाः) गिरः कणो ललारद्च बालधिथरणास्तथा॥ नेते पां च RUA शस्यन्ते चन्द्रसन्निभाः। श्वे तान्ये तानि waa awa तु विशेषतः ॥ भूमौ कषति लाङ्गलं Vaasa बालि | पुरस्तादुद्यतो नालो हषभस्त प्रशस्यते ॥ णक्तिष्वजपताकाभा येषां राजौ विराजते) अनङ्ादस्तते घन्या वित्तसिदिजयावह। | प्रदक्तिण निवत्तन्ते aa ये विनिवत्तिताः। समुत्रतशिसोग्रौोवा धन्यास्ते युघवद्ैनाः ॥ रक्त्ङ्ोश्रनयनाः aa भषेदययदि। WR: प्रबालसदट गे नास्ति धन्यतमस्ततः ॥ एते धायः waa मोक्तव्या यदिवा ठषा,। धारिता तघा सुक्ता धनघान्यविवदनाः। चरणा सुखं पुच्छं यस्य श्वेतानि गोपते | ला्तारससवणश तं नोलमिति निदि शत्‌ ॥ हप एव स मोक्तव्यो नस धार्यो we भवेत्‌ व्रतखर्ड२१अध्यायः।] दमादधिः। ace तदथ॑भेषाविरला लोके गाथा पुराणी | एष्टव्या बहवः पुचा यद्यप्येको गयां व्रजेत्‌ ॥ एवं रष TANIA wWeisd क्रो तमघापि राजन्‌ t मुक्ता न शोचन्मरणं महात्मा at at विधि a aga faureq आरित्यपुराणशात्‌ | भानुरुवाच 1 qafa cau ये तु Tass सुशोभनं। UF MAIS खङ्गयुक्त मनोर ॥ कात्तिक्यां ददते यस्त॒ Sal पूजां न सशयः | चिवषासत्वघ गुर्विन्यी carseat हपस्य च। wifaaly जपेत्तत्र तथा चेवाघमरषणं | HUA प्रदद्यात्‌ तु हषभस्य न संश्रयः घण्टां लौदकतां दात्‌ BES पटलेः Wait ‘Wea भोजयेच ब्राद्मणान्वे यथाविधि a यावन्ति रोमकूपाणि प्रभस्य भवन्ति वे | WALA 4 तथा लोम यावच्छयति वे सुने | तावक्तोटि सहस्राणि रुद्रलोके महोयत ॥ aqfafaq कुरुते पापं पुरुषो afuafaa: | ते aa विलयं यान्ति गोपते परिमोचनात्‌ | इषभस्येव शब्देन पितरः सपितामद्टाः | शाखर्डलेन CAM सखग॑लोके न्‌ संशयः tt €९० Salfz: | [aways tears: | जले प्र्िप्य SIF AAG चरते ay: | द्णवप्रसदसखाणि fracaa तपिताः १ कूले समुच्छिता यावच्छङ्ग लिखति खत्तिकां । भच्यभोज्यमयैः ga: पितरस्तेन तपिताः # गवां Aa यदा चेव Taw: MISA तुयः) अष्पुरसां aaa क्रौोडन्तं पितरः were लाङ्ग.लसुत्‌ जन्‌ यावत्तोये सक्रौड़ते तु सः। अरष्सरोगणसङ्खुख सेव्यन्तं पितरस्तदा tt सदस्रदत्तमातरय तडागेन यथाविधि | afaa at पिढणणांबे सा aay समोच्ते॥ देवोपुराणात्‌ | मनुर्वा) अश्वमेधसमं YU दषोत्स गां द्वाप्यते | Saat afar मासि ataat कात्तिकस्य वा ॥ मो विवाद्दोऽध वा कार्यो मार्घ्या वे फार्गुनेऽपिवा) शिवोमामङ्गलं चेत ठतीयायां महाफलं ॥ अश्त्योदुम्बरौयोगं विवाहविधिना भवेत्‌ t सतोरणं भ्ेत्तोर्थं उत्‌सङ्ग गोकुलेऽपिवा ॥ ततस्रो वस्षिका भद्रा Vl al सम्भवतोऽपिवा । वस्स स्व्वाङ्गसंपृण कन्या सा वत्सिका भवेत्‌ । FARA यथाशोभं THT ALATA । विवाहभेकवात्सय्यं Naa च लभते सदा | व्रतखर्ड'३१अध्यायः।] दमाद्रिः। ९९१ हषेण अश्वमेधस्य यागस्य लभते फलं | जायेरन्‌ बहवः पुत्रा यदेकोऽपि गयां त्रजत्‌॥ यजेत चाश्वमेधेन ata वा ठषसुत्खजेत्‌ ॥ रोहितो यस्त वणेन Tea षः । wags शिरः wa सवे नौलहषः war | WE Tw वे Ga गां aaa सव्बतः ॥ Aa AAAI याम्ये शूलं समालिखेत्‌ ॥ धातुना CAAA अ्रायसेनाधवाङ्घेत्‌ | एव Har अवाप्नोति फलं वाजिमखोदितं | यमुदिश्योतजेदत्स स लभेताविचार णात्‌ | यथा भिवोमयोर चां पूजिता सव्वं कामदा ॥ एषं रेवतयं TEI अनन्त लभते फलं | aya विदितं यच्च क्रत्वा गोदानजं फलं | क्रतोः WES RAT यत्‌ ठषोत्छगांद्वाप्र यात्‌ ॥ वाराहपुरारात्‌) मुक्ता तु नोलकण्ठन्तु RAI: ससुपागमे। QE कछला तु सुखोणि avfaar दिजातयः ॥ zul तिलोदकं पिण्ड पिटपेतामदेषु च! नराये चात तिष्टन्ति पतिताः पिहबान्धवाः॥ तेषान्त्राता भविन्ति नोलाल्सष्टौ यथाविधि | ग्णद्ोत्वोडम्वरं पाच कत्वा छष्णतिलोद्‌कं ॥ विप्राणां वचन wal यथागक्या च efaat | नोलकण्टस्व TFS तोवमभ्युत्‌ खजेयदि। ९ €२ safe: | [तव्रतखण्डं ३१अध्याय;। ष्टिवघंसहस्राणि पितरस्तेन तपिता; a FARA qT BE WU नोलकर्टेन भेदितं) उद्वत यदि सुग्रोणि we शङ्गगतं भवेत्‌ ॥ बान्धवाः पितरस्तस्य नरके ये वसन्ति च। STAT नरकात्‌ सव्वं सोमलोक व्रजन्ति Ft नोलकण्डस्य मुक्तस्य वहपुखयेन सुन्दरि ॥ षटिवष सहस्राणि षटषिवषंशतानि च | सोमलोक तु Wala Waswata सदा। RAR GUAT | AAAS Tara | नोलोत्परलसमप्रख्यः शखेताङ्खन्द्रमस्तकः | सुश्वरयुवा Meas हषभो नौल उच्यते ॥ अथवा लोहितं fas aaa वा विमो चयेत्‌ | चतुष्पात्‌ सकलो Tal FAST इरवाहनः ॥ age समो gant विधिनायेनमे ag सोपवासः शचि; स्रात्वा WATE a हरालयं | वितानदौपसुच्छाद्य दिन्यसेच्छ्िवम्ूदनि। गव्येन शभ गन्धन स्नानं संकारयेच्च्छवि। पलेस्तु पञ्चतिंगद्विः सपिषा यन्नतो बधः | ससुदुत्य कषायेस्त्‌ AVS कोष्णेन वारिणा ॥ भरूयोऽप्यभ्यद्धय यनेन पञ्चगव्येन VEX | ततः खाप्य शिवं भक्तया कपूरागुरचन्दनैः॥ HA र्ड २३१बअ्रध्यायः |] हमाद्धिः <.< श पूजयेत्‌ कुसुमैः Ae: समालिप्य च चन्दनैः | सौव पङ्जं कावः पञ्चतविंणदलाकुलं ॥ aad न्यसेन्मृि RATS सकणिक । aay तथा श्वेतं aM द दात्सु ेभनं ॥ दक्वाघ TAG ततः षडविं गसंख्यया । रौप्यताश्रादिषाचस्य' नो राजनन्तु कारयेत्‌ ॥ ततो भूतबलिं ददान्सव्वेदित्तु प्रयततः। पूजान्ते पूजयेदिप्रानटो eaia eau | ततो वेदीं वितानच्च चतुहस्त' प्रकल्पयेत्‌ | तत्रवाग्निं समाधाय Tad न्यसेदधः ॥ स्थालोपाकच् रुद्राय यावकं चर्पायसं | तथा चाइतये sar एभौरीद्रवलिन्ततः | इरे; VATE MBG मर्ण विधिपूर्वकं | mes वत्छतरोभिख ब्रह्मघोषेण वे ततः ॥ अभिष्य ag तन्तु विधिदृष्टेन क्म्या | रक्तपौतसितेः wa: प्रष्पखापि विभूषयेत्‌ a aya TRAM हेमवे टू सम्भवे । घरिटिकं कर्टकाभ्याञ्च वासयिला विभूषयेत्‌ ॥ विकिरेच ततो लाजान्‌ जातवदः neha | परोताच्छलिना पुच्छ सदमेनतु धारयेत्‌ ॥ हराय परमेशाय पएष्पोद्कयुतन च। हस्तादुत्‌ल्िप्य मोक्व्यो मया दत्तसुदौरंयेत्‌ ॥ जद्धा सू स्षिचावद्ध' मो चधिलवा प्रदचिणं । ( १२१५ ) ELS Vaz: | [त्रतखश्ड २१अब्यायः | अ्रङयेत्त्‌ faqaa ge, विपञ्ितः | द्वयादचंयते कुम्भं प्रणम्ये शच्च Tea | क्षाम विन्यस्तं सम्प" तिलसंयुतं ॥ तं चास्य Aaya VITA दापयेत्‌ । शिवव्रतघरान्‌ विप्रान्‌ सयतांश्च विशेषतः ॥ हिरण्यवस्वदानेन त्रतख्थान्‌ भोज्य दन्तयेत्‌ | दोनान्धदुःखितानाच्च भोजनच्चानिवारितं ॥ अरण्य चत्वरे वापि MS वा मोचयेत्‌ षं) न गहे मोचयेददिदान्‌ पुष्कलं कामनापफलं ॥ विष्छुधर्मोत्तरात्‌ | माकण्डय उवाच | अश्वयुक्‌ CRIA पञ्चदश्यां नराधिप | कात्तिक waar मासि AMAT कारयेत्‌ ॥ ग्रहणे इ महापुण्य तथा चेवायनदये | विषुवदितये चैव ware वान्धवस्य ai BU यस्य यस्मिन्‌ वा तस्ित्रहनि कारयेत्‌ । मातरं ख्ापयित्वाग्र पूजयेत्‌ कुसुमा क्तः ५ WEMS ततः कुयात्‌ वंाभ्यद्यकारकं। THAT कलसं अष्वत्थद्लसेवितं ॥ तत्र UA समावाद्य जपयेदूद्रदेवता; | स॒समिद्ध गवां मध्ये सुविस्तौथ हताशनं | पयसा यपयेदिदान्‌ चरु Mey’ समाहितः र at ्रतखण्ड ११ अध्यायः ।] द माद्रः | ९९१ तयेव पौरुषं Pa कृष्माश्डानि तथेव च | ततोऽङ्योत हषभमयस्कारः सुशिल्यवान्‌ ॥ शूलेन दक्षिणे पाश्च ata चक्रेण निदियेत्‌ | afsa खरपयेत्पश्ात्‌ खाने तस्य थया पटेत्‌ । हिरण्यवणति ऋचखतसरो WAST I ्रापोद्िष्टेति faa शत्रोदेवोति बाप्युत 1 AMAA तं aay नराधिप । श्रलङ्धात्ततः पथाद्न्माच्येश्च शक्तितः ॥ fafeuifua रम्याभिस्तया चौनांशकेः wa: ततोऽङ्िते जपेन्मन्त्रमिमं प्रयतमानसः | तषो fe भगवान्‌ धर्यखतुष्यादः प्रकौत्तितः । त णोमि aug walt a at Taq सर्व्वतः । Ua युवानं ayy cerfa गवां पतिं युयपतिं were । HAA सारै्चरत प्रकामं काम तथा प्राप्न त ATA: ॥ एत युवाम ala a ददामि तेन क्रौडन्यखरत प्रियेण | agate प्रजया मातन्‌भि स्तन्मारिषाम दिषते सोमराजं(१) | aa पितावत्स इति प्रततं जपेत कण GUNS सव्ये | १९ glare मिद्‌ न समोचोनं। ९९ & ट माद्भिः । [त्रतखर्ड'२१ wera: | प्रचाखयेत्त षभ ततस्त पूव्वां दिशं वत्तरौसत्‌ wat: वासोयुगं होतुरथ प्रदेयं सुवणेयुक्र' WAT Tis | शिल्िप्रधानस्य aaa सूयं टेयं तथा ufequfa राजन्‌ | विप्रास्तात्रं टरधिसपिषा युतं सश्नोजनोयाः पयसा च भिरं) उत्‌ख्शटमाचे aaa व्रजन्ति afa परन्तस्य पितामहा ये ॥ यस्मिस्तडागे सजलं SATU: पातु समागच्छति तत्‌ पिना दिव्यान्तु पूणा सकलं महौपते लोके पर afaaal विघत्त ॥ सरिदरां का्धिद्योपयाति टष्णन्वितस्तस्यं पितामहानां ॥ afé विधत्त सरिताम्बरिष्टा Bee कालं विविधाम्ब॒वाहा ॥ द्पण पूणः स विषाणघाते- धंरां यटा दारयते ATT | पिचाद्‌यस्तस्य तद्व wet wa लभन्तोति न संशयोऽच| vara तुल्यानि शतानि राजन्‌ वरत खर्ड३१अभ्यायः।] खमाद्धिः। £29 wat au तस्य fea प्रयाति। संवत्सराणां परिपूणकामः संरेव्यमानस्तिदशाङ्नाभिः। इति इषोलत्घगं विधिः | 000 शतानीक SATs | भगवन्‌ केन विधिना Saal भारतं AT: | श्रित रामभद्रस्य पुराणानि विशेषतः ॥ erg वष्णवा war: faz अशेषतः | acai वापि fare aaa saat विधिः।॥ सुमन्तुरुवाच | ea ते कथयिष्यामि qeasaa विधि | इतिहासपुराणानि sar भक्तया विशाम्पते) मुच्यत सव्वपापेभ्यो ब्रह्महत्यादिभिवि at i सायं प्रातस्तथा रातौ wrayer witha यः | वस्य fAYWA AT GUA शडूरम्तथा॥ VAG भगवान्‌ ब्रह्मा दिनान्ते तुष्यते हरिः | महादेवस्तथा रातौ Weaat qfeargarg | परारणनि दशादो च तदेकं शृण्वतां विभो | भारतं WAM TY AWTS aq फलं । विधानं दाचकस्येदं wa तावडिशाम्परते ॥ ORAM WEIS स्थान यत्‌ समयान्वित ¦ eer ठेमाद्धिः। [वबतखर्डंर १अध्यायः | प्रदधिणं ततः कल्ला या तस्मिन्‌ देवतेव हि ॥ तां विधानेन सव्वेषां श्रगेषगुरुवचप | नमस्छल्य यथा ara शिवमस्त्िति चान्ततः | नान्यतो SIME ST सर्वैव रर्महीपते ॥ शूद्राणां पुरतो वैश्या वेश्यानां चविथास्तथा । ततियाणां तथा विप्राः खण्वन्तेयतेऽग्रतः सटा, मध्यस्थितीऽथ want वाचको वा चयेन्नुप | ये च ASCH राजन्‌ दूरात्तच्छद्रण्ष्ठतः॥ ब्राह्मणं वाचकं विद्यान्रान्यवणंजमादरात्‌। TAIT जा द्राजन्‌ वाचकाच्ररकं ATT ॥ इत्थं हि aeaat तेषां वण नामनुपूव्चे थः | मासि मासि भवेद्राजन्‌ पारणं Fras tt खेयोधमात्मनो राजन्‌ पूजयेदा चकं J! मासि पूणं दरपथेष्ठ दातव्यः सणमाषकः॥ ब्राह्मणेन महावाद्ो हौ देयो त्तच्रियेण तु | धाचकस्य FIA S await zat ॥ द्र णाप्यम चत्वारो Waa: सखणमाषकाः। मासि मासि aoa es खडया वाचकस्यतु ॥ प्रथमे पारणे राजन्‌ वाचकं पूज्य शक्तितः प्रगिनिष्टोमस्य यज्ञस्य फल प्राप्रोति ara: | कार्तिकादि महावाद्टो कात्तिक यावदेव तु अग्निष्टोमं aay ज्योतिष्टोमं तथेव T ॥ मे तरावरणं वाजपेयं वेष्णवञ्च तथा विभुः | व्रतखण्डं २१९अध्यायः'] दमाद्िः। ९९९ Alsat तधा ब्राह्म पुर्डरोकच्च भूपते tt श्रादित्ययन्ञस्य यथा राजसूयाश्वमेधयोः | फलं प्राप्रोति राजेन्द्र मासेरदाद भिः WATT | इत्धं यन्नफलं प्राप्य बाति लोकानथोत्तमान्‌ ॥ समासे TATU तथा खश्क्तया तपेयन्‌ द्रप । वाचका ब्राह्मणच्ेव WRT: प्रपूजयेत्‌ | गन्धमाल्यानि दिव्यानि वस्ताखाभरणानि च | वाचकाय प्रदव्यात्त ततो विप्रान्‌ प्रपूजयेत्‌ | हिरण रजत वस्व गावः कांस्योपदोहनोः | दत्वा तु वाचकायेह FA WIAA फलं ॥ वाचकः पूजितो येन प्रसन्रास्तस्य देवताः | तस्मान सद्‌ा Ga देयन्तस्य विदुबधाः ॥ are तस्य fest yea वाचकः खदयान्ितः | भवन्ति पितरस्तस्य SA aa दप I ब्राह्मणादिषु वणषु ग्रन्याधें वाचयेन्रप | य एव वाचयेद्राजन्‌ स विप्रो व्यास उच्यते ॥ अतोन्यया वाचथानीो ज्ञयोऽसो faaaraa: | इतथम्भूतो वसेदयस्मिन्‌ वाचको व्याससंमितः ॥ देशेषु पत्तने राजन्‌ स देशः प्रवरः स्मृतः| प्रणम्य वाचके भक्तया यत्‌ फलं प्राप्यते नरे. | न तत्‌क्रतुसहसरेण प्राप्यते कुरुनन्दन ॥ TARA ग्रहाः सव्वं एकतस्तदिवाकरः | तथेकती FEAT: सव्वं CHAT स वाचकः ॥ एः १००० हमाद्िः। [बतखर्ड'२१ अनध्यायः दवे कस्मि पिच पावनं परमं करप । वाचकश्च afaa a तथा चेव षडङ्गवित्‌ ॥ एते सव्व aaas विन्नेयाः पङ्क्तिपावनाः | तिविधं वाचक विद्याचूदारगुणभेदतः | Saag महावादहो तिविधो गुणभेद्‌तः। samt कष्यमानो तवं निबोध गदतो aa | afaga तथाऽस खर सव्वविवन्नि तं । पदच्छे द्‌ विद्धौ नच तत्तद्वावविवल्निं तं + अवुध्यमानो VAT लोलद्ोत्साहवन्नि तः । Sem वाचयेद्यस्त स विप्र नरेश्वर | क्रोधनोऽप्रियवादौ च अज्ञातो ग्रन्धदूषकः। न च तटति कष्टानिस् ज्ञेयो वाचकोऽघमः॥ विस्प्र्टमह्भतं यान्तं खष्टाच्रपद्‌ तथा | तारसखरसमायुकं रसभावविवजितं॥ अवध्यमानो WANT ATA वाचकः! सज्ञेयो Waal राजन्‌ इदानीं सालिक रगु 1 ग्रन्थाथं TAWA समग्रं ACT TW त्राद्ग्एणादिषु वणषु ्रचयेदिधिवन्रप ॥ य एवं वाचयेद्राजन्‌ स ज्ञेयः सात्विको वधेः! खड़ाभक्तिविद्ो नोऽसो लोभो च्च SURAT ॥ ेतुवा{द्परो राजन्‌ तथधासूयासमन्वितः। नित्यां नेमित्तिको' काम्यामदददक्तिणां कृप ॥ वाचकाय महावाहो TIAA मानवः; | aaa’ ११ अध्यायः ।] चमाद्धिः। १००९ स ज्नेयस्तामसो राजन्‌ तामसो मानवः सदा, न तस्य पुरतो वोर बाचयेत्‌ प्राज्ञ wa fF tt प्रसङ्गात्‌ खृकयादयस्त, खद्धाभक्तिविवजिं तः | खोता कौतुकमाच्रस्त, सन्नयो राजसो बुधः ॥ सन्त्यज्य TARA भक्तिखडा समन्वितः | सतनं पूजयानस्त, वाचक ACA TT | नित्ये नैमित्तिके ara गुरवे च दद्त्तथा। य णवं वाचको वौरसन्ञेयः सालिकी Ta: A व्यासः पूज्यः BARU यथा व्यासरूवचो कृप । तस्मात्‌ पूज्यो BRE प्रधमं वाचको Ta: ॥ आपत्काले च get च तथाऽसौ गुरुवत्‌ स्मतः ॥ सेश्ाखसमये वोर SATAY Tae । कात्तिक्वामथ माष्याच्च संपूज्यः प्रथमो भवेत्‌ | पर्व॑ खेतेषु च विभो संपूज्य धमतः स्मतः ॥ ह्दिरण्यश्च सुवणंच्च धनं धान्धं तथेव च। Saga तथा पक्त मासच् कुरुनन्दन। दातव्यं प्रघमं aw खाव कोरतिभक्तितः | दत्ता पष्य फलं तोयं पतरमिन्धनमेव च | सारस्वत AVA Sa समन्ततः ॥ रथ स्वस्तथा RA Aan: पूजन TIL वाचकस्त्‌ TAL नित्यं Gaara नराधिप y न SIA यथा दन्द स्तथा काथ नराधिप । Zana लोम देयं इत प्राठषि चोत्तम । ( ere ) १००३ eatfe: | [बरतखर्ड'३१ अध्यायः | SUA कालयोभगे कादौ वै कुश्चलोमभी ॥ यदा दातु न शक्रोति माषक AIGA ZF I ततस्तस्य तदा दद्यात्‌ माषकं खयसेऽनघ ॥ तद्भावे ferme faaurer farsi aq । afaaiis fe दातव्या कव्व ता सफल श्चुत ॥ दूत्येषा कथिता नित्या मासि मासि भवेत्ततः। afafaat भवैद्राजन्‌ ग्रहणादिषु पव्वसु॥ TAM वाससौ राजन्‌ गन्धमाल्यविभूषग्े | aaa va खि विभो दातवे भूतिमिच्छता ॥ Sat पव्वसमािन्तु वाचकः पूजयेद्‌ बधः । अआआमानमपिविक्रौय य इच्छेत्‌ सफलं Ba | ने मित्तिकौच नित्याच्च efaut न ददाति ae णोति च सदा तात तस्यं तत्‌ निष्फलं फलं | चतुगुणा भवेद्राजन्‌ या faa दत्िणा विभो॥ Cea भोगमाप्नोति care भगवान्‌ शिवः | इत्येष कथितो राजन्‌ पुराशखवणे विधिः a द्रति ओोमदहाराजाधिराज-खोमद्ादेवस्य समस्ततकरणा- धोश्वर-सकलविद्याविशारद-योदेमाद्विविरविते चतुव्वंगचिन्तामणौ व्रतखुर्े प्रकीशकव्रतानि | मि ay शान्तिकपौशिकानिं। —=Doge— Wa. णान्तिमिनः खदानसलिलखावेः ae tat येनात्यर्थकदयि ताधिनिवदही दारिद्रदावानलः। लोक यः सततङ्न्पालद्टदयः पुष्णाति ठणष्यातुर्‌ सोऽयं शान्तिकपौश्टिकानि afed tafe ॥ aa विनायकख्नपनसुच्यतें | पाह याज्ञवक्त्यः | विनायकः aufanfasta fafaafaa: । गणानामाधिप्त्ये च रुद्रेण AWA तया तेनोपरूष्टो य स्तस्य aaufa निबोधत! सखभ्रे ऽव ग! हते ऽत्यर्थ' जलं शण्डा पश्यति ॥ अरत्यथमिति खोतसि दियते निमज्जति वा अवगाहमाजस्य q वङवत्वात्‌ | काषायवाससधेव क्रव्याद्‌शाधिरोहति । क्रव्यादः, ग्यघ्रव्याघ्रारौन्‌ | अन्दजैर्गभेरद्र; सरैकत्रावतिष्ठति। व्रजमानं AMAA मन्यतेऽनुगतं परेः ॥ परेः wafa:, Tear घावद्धिरभिन्रूयमानं मन्यते| विमानानि Waar: संमत्येति fafawa: | तेनोपरूष्टो लभते न TWIT WHA: | १००४ देमाद्भिः। [वतखण्ड२२अष्यायः) कुमारौ न च भन्तीरमपत्यङ्भसङ्ता | sae afaae न सिष्योऽध्वयन तथा # वणिक्‌ लाभं न वाप्नोति afags amaa: | सपन तस्य कत्तव्य yeasts विधिपूष्वकं ॥ gusts, अनुकल नक्त ्रादियुतेऽह्कि न रात्रौ | गौरसषपकक्तेन साज्यनोव्छादितस्य तु "उत्सादनमुदत्त a f स्वधे: सव्व गन्दैविलिप्रभिरसस्तथा | भद्रासनोपविषटख खस्तिवाचयाः fest शभा: # शभा अनूचाना; | Wat fear aia भवन्तो qafaafa वाच्याः । अस्मिन्‌ संमये wenafafern garearaa gar faq: | अश्वस्थानान्जस्थानादल्मौकात्‌ सङ्गमात्‌ Seq b ataant रोचनां गन्धान्‌ aqaesrey निक्िपेत्‌ | या MEA द्येकवणश्वतुभिः कलगेद्दात्‌ ! चन्मखानङुहे रक्ते WIG भद्रासनं तथा ॥ तत उक्रोदकशत्तिकां wanfeafeaia तादिपल्नवोपश्यो भितान्‌ तान्‌ख््रमदामवेष्टि तकर्डान्‌ चन्दनेन afsara नवा- छ तवसुभरूषितांश्तुरः कलशांख तिख्षु qatfey a सखापयि- लवा शचौ सुलिभे afed रचि तपञ्चवसं खस्तिके लो द्धितमा नड चर्मोत्तरलोमपाचौनग्रोवमास्तौध तस्योपरि दखेतवस्तप्रच्छा दितमासन arg तत्रोपविष्टस्य सस्तिवाचनानन्तरं जोवत्‌पति- खताभिः रूपगुणयालिनोभिः कतमङ्गलस्य गुरुरभिषेकं कुर्य्यात्‌ ॥ qASS ways: i] माद्भिः t १००४ सहसाच्च शतधार सपिभिः पावनं aa ¦ तेन atafafagifa पावमानाः gaa an भगन्ते वरूणो राजा भग aat avufa: भगमिन्द्रश्च वायुश्च भगं सप्तषये विदुः | यत्तं AIG दौभोग्यं सोमन्ते यच wea | ललाटे कणशयोरष्छो रापस्तत्‌ Wy ते सद्‌ा ॥ कल गतये मन््रत्रयसुक्तं, चतुय तु WA HAMA: | BAS साषेपन्तेलं शुषेणौद्म्बरेण तु } जु या ब्मृद्ेनि कुशान्‌ सव्येन ufeze च । सव्यपाणिग्द्टो तक्शानन्तर्हारं BRAT ॥ मितश्च समितर्चैव तथा शलकटं कटौ । AMIS राजयपुतर्ेत्यश्ठवाहसमन्वितेः | नामभिबलिमन्तेख नमस्कारसमन्वितेः। प्रणवादिभिरितिशेषः | AA लोकिकेऽग्नो स्थालोपाकविधिना ee यपयितवा तैर वषड़भिमेन्ते स्तस्िनरेवाग्नौ इत्वा तच्छेषञ्च बंलिमन्ते - रिन्द्राम्नि-यम-निज्रेति-वरुण-वायु-सोमे णानन्रह्मानन्तानां नाम- भिश्तुरखन्तेनमोन्तस्तेभ्यो बलिन्ददयात्‌ | दद्याचतुष्पये LI कुशानास्तौग् यत्नतः । क ताक तांस्तण्डलां ख पललोद्नमेव च| AMAA सक्दक्हता; तण्ड ला; पललं तिलपिष्टन्तन्ि- मोदनं पललोद्न। १००६ देमाद्धिः। [aaew ३२अध्यायः मत्स्यान्‌ पक्ता स्तयेवामान्‌ मांसमेतावदेव तु | faa qa सुगन्धच्च सुराञ्च तिविधामपि।॥ मूलक पूरिका प्पास्तयेवोण्डरकस्रजः। द्ष्यत्र' पायसच्ेव Fetus’ समोद्कं। sweat पिष्टादिमयव्यः ताः प्रोताः खजः, गुडपिष्टं गुडमिख भ्ादयादिपिष्ट। एतान्‌ सव्वीनुपाद्रव्य भूमौ कछला ततः fat एतान्याद्रत्य at तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुष्डाय घौमहि तत्रो दन्तो प्रचीदयात्‌ | इति faa शं। सुभगाय विद्महे काममालिन्ये धौमदहि तन्नो WO प्रचोदया- दिति अभ्बिकां नमस्कयात्‌। एवं विनायकं तच्जनन्ये संपूज्योपहारशेषमास्तोथ कुशि aq निधाय aqua निदध्यात्‌, | बलि weaa देवा आ्रादित्या वसवस्तथा! मरुतोऽयाश्िनो रुद्राः सुपर्णः पत्रगा ग्रहा; ॥ असुरा यातुधघानाख पिशाचा मातरे नमाः) शाकिन्यो यत्तवेतालयोगन्यः पूतना शिवाः ॥ sara: सिद गन्धव्वां मालाविद्ाधरानघ।' | दिक्पाला लोकपालाश्चये च विघ्नविनायकाः | जगतां MAHA ब्रह्माद्याश्च महर्षय. | HAW: खेचरादचैवये चान्ये चोपदेथिकाः + व्रतखर्ड३२२अध्यायः 1} दमाद्रिः। १००७ माविघ्नोमाचमेपापमा सन्तु परिपयिनः। सोम्या भवन्ति Sata BANAT: सुखावहाः ॥ Tad Aqua बलिष्टरणमन्ताः ॥ विनायकस्य जननीसुपति्ठत्ततीऽभ्बिकां | ूव्वौ सर्षपयुष्याणां zarar पूणमच््रलिं ॥ स कुसुभेनोद्केनाध Tar दूर्व्वां समंपपुष्पाणा पूण मञ्जलि Saas a षच्यमाणमन्वेश | रूपं देहि amt रेदि भग भगवति fe मे। युव्ान्‌ देहि धन देहि सव्यौन्‌ कामांख देहि भे।॥ विनायकोपस्छाने utara: | ततः शक्तास्वरधरः शक्तमाल्यानुलेपनः । ` ATWUT भोजयेद्‌दादस्तयुरम' गुरोरपि ॥ गुरोदंचिरखादानमप्यपिशन्द्‌ा त्‌ । विनायकोहेओेन ब्रादह्यरेभ्यख। एवं विनायकं पूज्य ग्रहां खेव विधानतः । क्यशां फलमाप्रोति fad प्राग्रोव्यवुत्तमां॥ आदित्यस्य सदा पूजां तिलक खामिनस्तथा | महाभोगपतश्चेव gad सिद्धिमवाभ्रयात्‌ ॥ विनाथकोपरूशाधिकारे | भविष्यतूष॒राणे | करणे मूट्मावानमनौलान्तरगस्तघ्ा। faafuaram यातिश्मयाननिकट acy करणे विधेये काय अनौलान्तरगः भुम्यादावसंलम्नः सत्र MAG AAA | १००८ माद्भिः । व्रतखण्ड' २२अध्यायः | पश्यते BAMA AYA नात्र ST | तेलाद्रंगावविषुर करवौरविम्युषितं ॥ स्वप्नान्ते स्वप्रमध्ये तथा खपनं तस्य कत्तव्य gents विधिपूर्वकं । गोरसषेपकरुकेन सकल्लनोत्‌सादितो नरः ॥ Vara चतुष्याख वारेण धिषणस्य च। faa वौरजनत्तचे aaa पुरतो aq उत्सादित उहत्तितः 1 faa वस्तिः | सर्व्वैः सव्व गन्ध विं लिघ्रशिरससतथा | भद्रासनोपविष्टस्य खरस्तिवाच्या fear: शभाः ॥ SARI संपूज्य घातौ भौ मजन्तथा | कष्णस्य पितरं वाघ श्रकश्यारभ्िनं तथा॥ धिषणं ACA RUAN भारत। विप्रस्तकं वाइलेयं नवकस्य च धारिण | अखस्थानगजसान इत्यादिको मन्यो यान्नवल्कासमानः | अभ्बिकोपस्थानमन्तसत | रूप देहि यशो देद्धि भगं भगवति देडिभे। पुचान्‌ efe धनं efe सव्व कामांश देहि ay ्रचलां कुरु मे देवि विपुलां ख्यातिसम्भवां। ख्यातिसम्धवा eat | इति विनायकस्ञपनं। | व्रतत खर्ड ` १२अ्ध्यायः।] देमाद्धिः। १००९ Gat उवाच) खानमन्यत्‌ प्रवच्छामि तवाहं दूरितापडहं | राजन्‌ Alsat ya’ सततं विजयावद् a VARTA तु AA AAMT मनुः YT | Mal यस्व मायुष्यं सव्व शच चयद्करं ॥ प्रभातायाच्च व्व St भास्कारेऽभ्यदिते तथा t ama ziaaas विधिदटषटन waar ॥ Maw राजतं ga अथवापि महीमयं! नादेयेः सारसंस्तोयेः कल्पयित्वा यधाविधि ॥ अषौ विन्यसेत्तत्र समाभ्यङगः सुचूणिताः । जया च विजया चेव तथा aamata च ॥ धन मुखकोजा च west च कुसुमानि च | च्तोरज wafaara देवौनिःसारभेव च ॥ फलिनो वराङ्गना चेव गजेन्द्रस्य च AAA । चद्रजाङ्रजाख्ेव घने दे दे विभावरौ। ata मूत्तिके चेव qa’ asaya तथा । शशाङ्गगदप्यच्च दानञ्च करिणस्तथा । ओषध्यः कथितास्त॒भ्य स्रानमन्तमतः WT tt at aal भगवते रुद्राय धवलपार्ड.रोपचितभस्मानुलिप्त TATA | तद्यथा ¦ जय जय विजय स्वच्छ वरममुष्य कलदविग्रहविवारेषु | जम्ब जम्ब मथ मथ सव्व प्रत्ययिका | ( १२७ ) १०१० Safe: (| त्रतखग्ड २२शअबष्यायः। योऽसी युगान्तकाखतु fewafa cat ga: | रौद्री भूति aware स atcag जोवितं॥ संवत्तकाग्नितुल्यख त्रिपुरान्तकरः शरः) सव्व टेवमयः asta a at cag जोवितं॥ निखिनमित्यनि aret | ud way तेनव मन्वे श तिलतण्डुलं। Vala Waa as जुह्यात्‌ waa: शविः ॥ ततः संपूजनं Hareazae गूलिनः। छतश्लीराभिषेकेख गन्धपुष्पफलाचतेः॥ दोपधूपममस््रारेस्तवा चान्नेन भूरिणा) गौतवा दस्त मघुरेत्रौद्मग्यखस्तिवाचनेः ॥ मादश्वरसरानभिदं हि कत्वा Tait शवर निवहं णश्च | सव्व नवाप्रोति नरस्तु कामान्‌ यात्राम्‌ aifaaafa Feats i दति विष्छधर्म्ीत्तरोक्तं मारश्वरस्लानं | 0000०00 पुष्कर उवाच | सख्ानान्यन्यानि a वचमि निवोध गदतौ aa | रत्तोप्रानि यशस्यानि araifa fated: 1 ala Baa कथितम।युषोवदेनं पर । राम गोगक्ता ATA पर Gaprfaqéa y gages i] wart १०११ गोमूत्रेण तथा ara सव्व पापनिवदहणं। पञ्चगव्यजलस्नान सव्व व्ाधिनिषूद्नं a खानं Miia कथितं aaafefaaes । aiag कथितं cur धर लच्छोविवद्ेनं॥ तथा दर्भोदकल्लान सव्वं पापनिवद र! पञ्चगव्यजलसखानं सव्व काव्यीधसाधन ॥ गवां खष्ोदकसख्रान सव्व पापनिवद्ध णं । पलागश्रविख्लकमलपुष्यञ्नानं पुरादहितं। वचा रिद्रा मच्जिष्ठा तगरं वाचके तथा। wiatafefafer cha पापसदटनं। वचा हरिद्रे F सुस्त Ala TMT पर, NITY यथा शस धन्यं मेधाविवशनं ॥ ara afaa माङ्लख' तथा काड्धनदारिषा? क्रमादूनतरे किचचिद्रप्पतास्ोदकेस्ततः # तथा रतोद्कंः खानं संग्राम विजयान्‌ कुर | विण्डमध्यतः कत्वा vara: परि चारयेत्‌ ॥ तिन पाते यत्‌ खानं सव् कामप्रदं भवेत्‌ । तथा प॒ष्पोदकस्नान भवेदारोग्यकारक॥ तथा गोजोदकखानं Wa वोजप्रसादक | तथयेवामलकसखरानं अ्लच्छोनाशनं घर ॥ तिलसिडाथकैः खानममाङ्कव्यप्रनागनं । Radel faa: खानं अथवा मौोरसर्वपेः। खानं परियङ्ना प्रोक्त तथा सोभाम्यवद्नं ॥ (०१२ Salix: | [arg ३२अ्रध्यायः। AMMAR SHA कुमारो पञद्मवारिशो । खानं रोमविनाशायस्मत quay इिज॥ मासो सुरा चोरकनागपुष्पेः a “Ay VATASIATITAINAT | कुरुष्व कड्नोलकजातिपूगेः समस्तसोख्षख्च FAIS स्यात्‌ ॥ इति विष्णध्मोत्तरोक्तनानाल्लानविधिः। afafst sare: | सद्रखानं विधामेन Bae जनान | सव्व दु टोपञ्चमनं सव्व शान्तिप्रद बरणौ AY उवाच | देवसेनापतिस्कन्द' रुद्रपुच' षडानन। TTA Hans लः सुखासौ नसुशाच द ॥ सव्व ज्ञोऽसि कुमारत्वं प्रसादाच्छ्ङरस्य वे । खानं रद्रविधानेन gfe कस्य कथं भवेत्‌ ॥ स्कान्द उवाच! च Q सृतवत्ातुया नारो SAAT ऋतुवज्निता। या सते कन्यकां वन्ध्यां खानमास्सं विभौोयति ॥ avai वा चतुद श्यां उपवासपरायणा | ~ ™D ~ ५५, ऋतो शद wats प्राप्त सूथदिनेऽघ वा ॥# AAGQW २२ अध्यायः || safe: । ANS सङ्गमे कुव्थाद्हानद्यो fastaa: | faaraasaat wie विविक्त वा were ॥ शरदिताग्निं fest गान्त wird सत्यशालिन। छानाय प्राथयेदिवं निपुरे रौद्रक्मरि ॥ ततस्त मण्डपं FMAITAYTAA | वद चन्दनमाल्यच्च गोमयेनातुलेषितं | तन्मध्ये श्वं तरजसा संपूण" पद्यमालिखेत्‌। मध्ये तस्य महारवं खापथेत्‌ कणिकोपरि ॥ दद्यादलेषु नन्यादरौन्‌ चतुषु विधिधूव्वं का । इन्द्रादिलोकपालांख दलेष्यन्येषु विन्यसेत्‌ tt aay विनायकच्धेव स्थापयेत्तत्र पाधिंव। Talal गन्पुष्यच्च ya दौपं गुडोदनं ॥ aararafaury दात्‌ फलानि विविधानि च। चतुःष्कोणेषु खद्रामश्वत्थदलभुषितं!॥ एकेकं विन्यसेद्र्मन्‌ सर्व्वोषधिसमन्वितं । चतुद gq मण्डपस्य द दाद्भतबलिं ततः । aaa दिशि कत्तव्यं मण्डलस्य wala: | aaa शभे FS VAMC ॥ लवणं सर्पिषा Ja Waa मधुना as | मासं स्तोकेन जुडयात्‌ HAVA नवग्रह 1 दितौयस्याम्निकायस्य कत्त च ब्राह्मणो भवेत्‌ ॥ सद्‌ जाप्यक्षद्‌ा चायं सित चन्दनचचितं | सितवस््रपरोधानं faaarefaaiad ॥ १०१ wT mu, च १०१४ भोभयेत्‌ APT: कण्टे कर्वेषटाङ्ग लोयके; मर्डपस्य समौपखो जपेदटुद्रान्‌ विमत्सरः # यावरेक्ादश् गताः पुनरेव जपेच्च तान्‌) टेवमग्डलवत्‌ काये इितोयं मण्डल शभ ॥ तस्य सध्य तुया नारौ खितपुष्पेरलङता t प्वेतवस्रपरौधाना खतगन्धानुक्तेपना ॥ सुखासनोपविष्टा या ज्राचा्यो HAH! | अभिषिच्चेत्ततचैनामकंपत्रपुटाम्बना ॥ च तुःष्िसख्यानामेकादगक्तत्यः। पविच्रामिन्द्रकोटाजग्ण्डगोदावरोमद्‌ | सर्व्बोषधो रो चना नदौतोर्घोदकानिच॥ एतत्‌ सं्तिप्य कलग चिवसंजन्नसुपूजिते | भरापाद्तलकंशणन्त' Braet विशेषतः ॥ सर्व्वा ङ" लेपयेदक्या qatar काचिदङ्गना | सद्राभिजप्तन ततः खछापयेत्‌ ललनाद्चतां॥ तोयपूर्णी्टकलगेरश्वत्थदलपूरितेः। सव्व तोदिकख्ितेः पात्‌ खापयेत्‌ aurea: ॥ एवं खाता SIGHT SIs Ai काञ्चनं तथा। diqzara निदिष्टा efau मोः पर्याखिनीो। त्राद्यशानामधान्येरषां aan afagea | गोवसरकाच्चनाटीनि दला स्वान्‌ च्मापयेत्‌ ॥ कतेनानेन विप्रेन्द्र रुद्रख!नेन भामिनि सुभगा कान्तिसंयुक्ता बडइपुता प्रजायते | earfz: | [व्रितखु ३२अधघ्वापः | nage इरश्रष्यायः 1) watts: | १०१५ सव्व ष्वपि fe मासेषु ब्राह्मणानुमते शुभ । तस्मादवश्यं कत्तव्य पुजान्‌ wl सुख च्छति ॥ यास्नानमाचरति ङंद्रमिति प्रसि डान्बिता दिजवरानुमता नताद्भे | दोषान्‌ निहत्य सकलां शरोरभाजो aq: प्रिया भवति भारत जौोववव्ा A दति भविष्यत्तरोक्त' azar | 00०८१८00 ईष्वर उवाच | णु NYE awa खानं घटिकया पर | धारयिवयन्तिये aa घरिकां 2afafarai 1 तेषामथेख BAY सौभाग्य हदिभेष्यति | Vata मण्डलं कत्वा गौरीं तत्रेव पूजयेत्‌ | कुडःमागुरुकपूरचन्दनेन विलेपयेत्‌ | एेशन्ां feta wera घरिकां मधघुपूरितां। एष्यमाल्येरलङ्कत्य THAI कैटेत्‌ | हिरण्यं निल्तिपेत्तत न शु न्यां कारयेद्‌ बुधः | वस्तणतु समाद गन्धांम्त तैव निक्िपेत्‌ । कुड्मागुरुकपूर चन्दनेन विलेपयेत्‌ a उशोर चन्दनं मुस्तां बालकं सव्व digg | तथा चामलकौ' gai चिपेद्ोरोचनां बुधः | शतमष्टोत्तरं कत्वा गौयां वे मूलविद्या | १०१६ Saris: | [त्रतख्र्ड'९२ wear: | ततोऽभिमन्ा घटिका मौरौमन््ेश at पुनः t शताष्टाधिकजमेन अभिमन्बोदकं गुद ॥ ततोऽभिषेकं gare योभितीवा नरस्य art घरिकानिषिक्ता चेव या नारौ मण्डले गड । सुभगा सा भवेत्रित्य aca विधिवद्भुह॥ AGA लभते Ya श्रजोवा जोविनौ भकेत्‌। अनेनेव विधानेन गुविणो यदि कारयेत्‌ ॥ UA प्रसूयतेसातु महावोयपराक्रमं। राजा विजयमाप्नोति धारयिता सुसर i खाया रूपवतो कन्या वरं न लभते Aer सा घटिकाभिषेकेखश सोगाग्यमतुलं लभेत्‌ येन येन fe भावेन घटिका कारयेद्बधः | तस्य तेन fe भावेन तत्फलं ददते बुधः ॥ धम्म नोक्त' ANAY UF wy कथचन! aaa BAA अनेनेव तु कारयेत्‌ $ मूलमाचिव्य पूर्व्वोक्तमूलमन्त्र त्यथः | न घरटिकापरं किदित्सोभाग्यकरसं मतं। न घटिकापरं स्कन्द धकामायमोत्तदं ॥ घटिका waa स कामानखिलान्‌ लभेत्‌ | agal लभते पुच्रमघनो VARIANT | इति भविष्यत्पुराणोक्तो घटिकाभिषेकः। ee प्रतखं ग्ड ३२ब्रध्यायः 1] watt: † | १९१ कात्तिकेय उवाच | ga मेव त्वेया ज्ञातं सन्ति aaa a fe Fear dag विविधाकारेगेहधातुविकारजेः | AAW जायते ताणं तानाचच्च प्रयल्तः। Tat Sars | ग्रहदोषान्‌ प्रवच्यामि खण एुच qaqa: | दाविं्रतिग्रहाः प्रोक्ता नारौपौड़ाकरास्तते। ग्रहाः कौमारिकाशान्ये तेऽपि हाविंशकौत्तिताः। चतुःष्टिय संख्या वे ग्रहाणां क्रूरकश्चणां । चतुःष्टिसषहस्राणि wane प्रविस्तरः । तेषां मध्य तु प्रोच्यन्ते चतुःष्टिस्त नायकाः | दोषै दी दगभिवत् ग्रहा न्ति योषितं | एकपातरेण यानेन परशय्यासनेनं तु | परयुरुषसंयोगेन परवस्तविभूंषने; ॥ लालोच्छिषटकमाल्येनं एकभाजनभोजनैः ॥ कोशोद्कन संसिक्तादन्यनाव्यवगृहनात्‌ | ते हषे सर्वश ग्रहाः पोडाकराः स्मता; । प्रथम Wea पुष्प WAY तदनन्तर | पात्‌ MCA बालभेवमाहुनं संगवः ॥ ग्रहनामानि vaifa सचरो रेवतो शिवा! VaR! च लम्बाच पूतना कंण्डपूतना ॥ गोमुखौ च बविडालौ च तथा चैव महाङ्ला। काकोलौ च दसन्तौो च अहड्गरो जया तधा । ( १२८ a? FRR OT 10 +, १०६८ Satie: | [तरतखर्ड'२२अध्यायः | मुककेगो त्रिदण्ड च अजासुसौ च waar सुकला पिङ्गला नाम पिटनासा aaa | स्कन्दग्रहास्तथा चान्ये सवषां नायकाः स्मृताः ५ रजनौ कुम्भकणो च तापसौ Waal परा, मोदनो Veal चतर धनदा W FAT तथा॥ चतुःषि; समाख्याता मातरो बालमातरः। आजको जग्भको भाम SPC] पञ्चमः ॥ बालानां पौडनाः सव भ्रमन्ते बल्िकांसिणः } बल्िन्द्यादिघानेन ततो सुद्धन्ति नान्यघा॥ चतुरस कत Aa Wada कतं aa: | सप्तभागान्‌ समान्‌ सवान्‌ AT होमं विचक्ष ॥ तेषामन्तरकोषटेषु नवपद्यानि कास्येत्‌। सबाह्याभ्यन्तरे at wRufsa यललतः॥ अटटपत सित qa केसरे; सह कणिकः । तेषु Way च गणाः wa तुष्टिः यथाक्रम It पूर्वादौ प्रूजयेत्‌ AAT] तथाषश्टाषटकमष्टधः। fanaa कथिकामध्य way नवसु स्थितं॥ कमले मध्यमे as अङ्कस्तु afed शिवं । घूजयेत्‌ पूवंविधिना कल्पयित्वा तु वासनं॥ रसय HA वच्यामि येन सुञ्न्ति योषितः | sia तासां विकारांख सव्वाभरणभूषिताः। स्थापये विधानज्ञ: सापवासप्रायणः। व्छतौपातविनिसुक्ते सान्या च्छमेऽहनि | anew २२अरध्यायः।] Safe १०१९ विषृत्तरेषु रेवत्यां प्रःजापव्ये yaaa | श्रश्विन्यामघ पुष्ये च नत्तचे रोहिणो तघा॥ neue wy वापि लिप वा चतुष्पथ | MUA AIT वा नदौनां सङ्गमेषु च ॥ णके श्मशाने वा टेवलायतनेऽपि atl HIM CAI ABMS स्नापयेत्ततः ॥ पचरकामान्तु Waly राजपलौन्तु UPA | माठस्रनेत्‌ cata श्मभाने wayfaat 1 RI RAT जोणकपे बन्धा पुष्करिणोषु च । अरभिचारकछ्तां नारो gang विरेतसं। सरापयेत्तान्‌ wa a शिवायतनसङ्गमे। श्राचायस्त सुसंपूणः Waa: wha: wert ्रष्टहस्तप्रमाणेन Was waaifa arn चतुरस्त' WARt तोरण्वजगोभितं। चन्द्राभन्त्‌ कतादोप पुष्यमाल्योपशौोभितं | सानपानेश्च नेषेदोविविधं कारयेदलिं | तिरजोभिः सम(लिख्य awa सव्वं कामिकं। प्वेतरक्त' तथा AW AAG RAW qt ईशो ब्रह्मा तथा विष्णुः रजसामधिपाः स्मता; ॥ म ण्डलस्योत्तरे भागे कुर्य्यात्‌ खपनमर्डलं | चतुद स्तप्रमाशेन वणशकेरुपश्ोभितं ॥ अकालनूलकनलतसांश्तुरष्टप्रमाणतः) चूत पलवस gary तथष्टपरिचेष्टितान्‌ | १०२० हेमाद्रिः [तरतखर्ड Wasa: | हिरण्य तदूव्वाभिरोषधौसङ्गसंयुतान्‌ ! नद्या थोभयक्ूलात्त वल्मो कह चमूलतः | weal खदमल्यान्तु सा पयेत्‌ प्रथमे घटे ॥ दितोये गोमयं स्थाप्य aaa मन्धवारि द) चतुर्थ हेमरजते VBA सव्वंमौषधं १ षे तोर्थाम्बविन्सासः WAN सप्तसागरं | HAT चाष्टमे न्यस्य net माठभिः as t gaa विधिना aa त्वभिषेक vera tt aaa जोवपुचा azar चापि प्रसूतिका । अवोजा वौजतां aifa wl ava पुरुषोऽपिका) अभिचारक्तत दोषं मन्वोऽयं नाण्येदिति॥ अनेनैव fe योगेन सुख्येनं सव्ववन्धना दुभगा सुभगा वापि कन्या प्राप्रोति सदर ॥ हस्यष्वरथयानं वा BRS कुण्डलानि च धनधान्यहिररानि येन वै तुष्यते गुरः । येन qua तुष्यन्ति देवता मातरे ग्रहाः ॥ श्धामिषकविव्या भवति) Fi a BY. ar Taz । अभिक कोऽनेन कौलिते गभं Wage: |) शरौ खहा । अनेनाभिभिक ARVs पुरुषः Wig | ओं Wag खहा ¦ पुष्यच्ये तु नारोणामभिषेकञच्च eat ॥ ai Q हां स्वाहा) अनेन कौलिते गभं अरभितेकं देयं । यीजौवति तस्याष्यतेन तंवा पतिं wa | ai aime: र साहा व्रतखक्ड'३२अध्यायः । ] SATE: १०२१ सषेपेरच्तेवीपि तं टेदन्ताडयेच्डिगोः | मौनशरेन्मियते वालो रुदते silat wat इति वन्धवाभिषे कविधिः। 0000600 मनुरुवाच। इन्द्रादित्योपरागे च यन्मानमभिधौयते। aaa Wafawifa द्रव्यं मन्वविधानतः॥ मव्छ उवाच | यस्य राशिं समास्य Way णसग्धवः | तस्य ala प्रवच्यामि मन्तोषधिसमन्वितं ॥ चन्द्रोपरागं संप्राप्य क्रत्वा बाद्यणवाचनं। संपूज्य चतुरो विप्रान्‌ शक्तमाल्यानुलेपनेः॥ सव्वमेवोपरागस्य समानोयौषधादिकं | स्था पयेचतुरः Fay अत्रणान्‌ सलिलानज्वितान्‌ kt गजाश्वरथवत्मौ AUF ACTIN FATT | राजदारप्रटेशाच्च मद्मानौय निचतिपेत्‌ | पच्चमव्यच्च guy पञ्चरत्नानि चेव fz | रोचनाप्र्मशङ्ख्च पञ्चभङ्समन्वित ॥ स्फटिकच्छन्दनच्चोव तीयवारि सषसषपं ¦. गजदन्तः कुद्मच् तथेवो शौर गुग्गुलं | शतत्सव्वे विनिक्तिप्य कु्मेऽथावाडइयेत्सुरान्‌ । सव्व ससुद्राः सरितस्तोधनि जलदा नदाः १०२२ Safe: | [ततखण्डे अध्यायः | यान्तु यजमानस्य दूरितच्तथकारकाः॥ योऽसौ वहतरो टेव aifearai प्रसुख्तः। सहस्र नयनश्न्द्रः पोडामत्र व्यपोहतु | मुखं यः waearat सघ्ा्चिरभितव्यतिः । चन्द्रोपरागसम्भतामग्निपौड़ां व्यपोहतु ॥ यः कश्सात्तो लोकानां घ्चराजतिविश्चुतः। यमखन्द्रोपरागोत्थां पोडामच व्यपोहतु tt रच्तोगणाधिपः wary प्रलयानलसप्रभः। खड्खव्यग्रोऽतिभोमश्च रक्त.ःपोड़ां व्यपोहतु ॥ नागपाशधरो देवः सदा मकरवाहनः । स जलाधिपतिशन्द्रः ग्रहपोडं व्यपोहतु ॥ योऽसौ निधिपरतिदवः खड्गशूलगदाधरः | चन्द्रोपरागकलघं धनदेवी व्यपोहतु | योऽसाविन्द्धरो देवः पिनाकौ sears: | चन्द्रोपरागपापानि विनाग्रयतु शङ्रः॥ Sadia यानि भूतानि स्थावराणि चराणि च। बरह्मविष्ण कसूक्तानि तानि पापं weg a पूजयेदसुगोदानेत्रीह्यणानिष्टदेवतां | एतानेव ततो मन्ाज्वितश्च कनकान्वितां। प्राङ्मुखः पूजयित्वा तु सम्मश्यतोष्टटेवतां 1 HAT द्रव्यसंयुक प्रास्तं यदहणपव्वरि। चन्दर ग्रहे नित्ते q ad गोदौहमद्गते। छतस्नानथ त षटं ब्राह्मणाय निबेद्येत्‌ | . . ०५ . त्रतखर्ड २ २अ्ध्यायः।] Az | १०२३ अनेन विधिना यस्त सग्रह खानमाचरत्‌। न तस्य ग्रहपोड्ास्यान्न च बन्धुधनत्तयः ॥ परमां सिहिमाप्रोति yatrafagaat | BAGS सूश्चनाम सदा मन्तषु कौत्तयेत्‌॥ SUM कथितं खानं SIME । अस्मिस्त पञ्चरागःस्यात्‌ कपिला च सुगोभना॥ य इद्‌ णयान्नित्य खावयेदापि मानवः | ` सव्वेपापविनिमुक्तः शक्रलोके मदहौयते ॥ चन्द्रग्रहे टप रविग्रहणेऽग्रजन्मा मन्ते रिमैः समभिमन्तय शभोदकुम्भान्‌। खान करोति नियमेन नरस्य der न तस्य तं ग्रहकछ्लता gaa ट्नोति ॥ इति मव्छपुराणोक्त चन्द्रर्ययोपरागस्तानं। ----00000)000 AMA यमलजननगान्ति व्याख्यास्यामो यख भाया गौर सौ वडवा faafa प्रसवेत्‌! प्राय्ित्तौभवेत्‌ पू em? चतुर्ण QUA कप्ायसमुपसदहरेत्‌ | भ्रत्तवटोदुम्बराश्वत्थश्मो देव ९ ~ + न्प aN दारुगौरसघयपास्तेषां सहिरप्यदूव्वाङ्र ख प्वेरष्टो कलशान्‌ पूरयित्वा सर्वौषधिना eat स्रापयेत्‌ । अपोद्ष्टेति तिर- भिः, कयानखितरेति प्ञचेन्द्रेण पञ्चवारण्नद्‌मापः प्रवहतेत्यपा- ^ क क, ॥। दयमितिख्लापयिलालङ्कत्य तो दभषु उपवे शयेत्‌ । मारुतं सथालो- १०२४ देमाद्धिः। [बतखण्ड'३२अध्यायः। पाकं खपयिवाज्यभागाविष्टाज्याइतीजंहोति। पूर््वौक्ञस्रपन- मन्व: खालोपाकं जुद्ाति। अग्नये rer पवनाय ater! मारुताय खाहा। यमाय खाहा। अन्तकाय are! मृत्यवे स्वाहा | ब्रह्मणे साहा wag खिष्टिक्लते aren! war तेषूलकः कपोतो wa: श्येनो वाविशेषम्ततः प्ररोहवल्ीको वा भवेद्र कुम्भ प्र्तलने, आसनश्थनयानभङ्ग, ग्टहगोधिकाककला- शसरोखुपसपं णे, छचध्वज विनाशेऽप्यन्ये उत्पाते प्येतदेव प्राय- fad ग्रहणशान्तिं waa विधिना कल्वाचाय्यीय वरं Sat af वाच्याशिषः प्रतिष्टद्य ान्तिभिवतौति। दति काल्यायनोक्तयमलजननशन्तिः | 000 पुष्कर उवाच | टन्तजन्मविशालानां waw afaaiy मे। उपरि प्रथमं यस्य जायन्ते हि निगोदिजाः ॥ Vaal सद यस्य VISA भागवसन्तम | मातर पितरं वाध खारेदात्ानमेव ar | तत्र शान्ति प्रवच्यामितां मे निगदतः श ॥ TAWA बालं aa वा स्थापये्निज | तद्भावेन TAN काञ्चनेन वरासने ॥ सर्व्वोषधेः सब्बे गन्धेर्वीजेः पुषेः फरेम्तथा , पञ्चगव्येन रते पताकाभिश्च भागव, BANAT दातारं परूजयेत्तदनन्तरं | Rages ३२ब्रध्यायः] SATA: १०१५ VATEAA RIG तथा ATA UTA | gvasefa fantat at car a faa tt HIYA रजत गाखभुवमाव्ानमेव वा) दन्तजन्मनि सामन्धे शण खानमतः परं I भद्रासने fatwa मह्वमुंलंः फलेस्तथा । सर्वोषतैः सव्ववौजेः WANA च । खापयेत्‌ पूजयेचात्र afe सोमं समरणं प्रधमं स्थापयेत्तच देवदेव ञ्च केशव | स तेषामेव जुहयषद् तमग्नो यथाविधि॥ ब्राद्मणानान्तु दातव्या ततः पूजा च दखिण! ततः SAGA बालं ्रासनेषुपवेभयेत्‌ ॥ भासन्त Sage aa: सुख्ापयेत्ततः । सुखित्नेर्वालका नाञ्च aa काच पूजनं, पूश्याच्चाविघवा नार्यो ब्राह्मणाः सुददस्तथाः ॥ दति विष्णधर्मरो्तरोक्तद न्तोत्यत्तिश्ान्तिः | 41 rire जनमारससमत्पत्तिं प्रवच्यामि वसंन्तिकां। धद्‌ा लोभसमाविष्टः पोडयानो धने; प्रजाः I रमत्यभिद्रवनाजान च waar तिष्ठति | वचस्तस्यानु वर्तन्ते प्रजा Wa विद्ाय ताः ॥ क्रोधलोभसमाविष्टाः साध्वाचारविवन्निताः। पूजयन्ते न MNS देवान्‌ विप्रास्तथा पितृन्‌ ॥ ( १२९ ol RAE २५ cle ee ok १०२६ ताखधश्ाभिभूतासु ततो Tz: प्रकुप्यति u अन्तको एष भगवान्‌ गतानां प्रिब ख्व च। कु रतेऽसौ विकारांश्च डतुमूतः खथग्वि्ान्‌ ॥ ताराग्रहान्‌ ABTS ETT राइकाकवलाहकान्‌ । ससग्यसन्धाविक्कति घोरां saat: | मूमिकम्पोदकनिघांताः णोतोष्यतिलविक्रयाः 9 अतिवर्ममवर्मञ्च तयेवतुविपथयाः। aia रसदहोनाशव भवन्तो विपषयथये ॥ रसवौोयविहोनास्ता रोगानुत्पादयत्ति च ॥ र्द्रप्रकोपनं तस्माच्जनमार NIG ॥ तस्मात्‌ प्रसादयेत्‌ यल्ादेवदेव महेश्वर । दवज्नानप्रदिरेन विधिना सुसमादितः॥ arugaa fafear अधवशिरसा तथा | aaa विधानेन gases प्रसादनं # ध्िवसूक्षमुमा सूक्तं जपेच्च शतरूद्धियं। बल्यपहारविविधान्‌ चत्वरेषु निवेदयेत्‌ ॥ अ काहयेत्तं सगण रुद्र रातावदहः शचिः। ATU भच्यभोज्येश्च दक्तिणाभिख पूजयेत्‌ ४ प्रसादितं ततौ we जनमारी निवत्तते | जप्य ware निरतो aafaa यतेन्द्रियः ॥ qa ोमसुपायित्य नियमेन यधाविषि। wa gare पतेः कम्धसिडिः प्रशस्यते ॥ कर्णस्तस्य मूलं हि Veet a7: was) eatfa: } [वतखर्डं ३२अध्यावः) ढतखण्ड"२२ अध्यायः] Saiz: t १०२७ उपोषितो वपः रातः शक्बस्ततसमाडहितः) Haat खय Ral ततः भान्ति प्रयोजयेत्‌ ॥ waray wufaaat राजा राजपुरोहितः) राजवंश्मुषो येवां कुशलं aa वडैत ( इति ग्ेक्तजनमारभ्रान्तिः। ae गोशान्तिः गगप्रोक्ता। ATTA SA WAT गवां दचयामिबदटसाः। उदधिम्नो EZAUTS! पतनो मोहनस्तघा 2 तेषां रूपसमुर्घानन्ताट शं तदवोमि वः । शान्तिक च निर्दिष्टं aren तन्न निभ्धितं॥ रात्रौ गोष्ठेषु at गावो वित्रसन्ति यतस्ततः | उदिग्नो नाम स व्याधिस्तन चेव प्रजायते ॥ AWA Sarat नयनात्‌ प्रपतन्ति च| wari तं विजानौयाद्रोषुं रोगं fafafe येत्‌ ॥ mifua aa gala youd मुचयन्तिवा। प्रवेपमानाख्दलिताः पतिता व्याधिरुच्यते ॥ SEAT कुर्व्वन्ति मण्डलानि aga च। भविष्याल्सभरियन्तौ च asda विदुबे धाः | gay पूतिकं यासां चौद्रमव्वत्‌ प्रवत्तंते। त प्रूतनाष्दं विद्यादषु रोगसमुत्यितं a यदि faut विनिर्मज्य whit समभिधावति। Hits Tl Se le RA 1. १०२८ Satie: | [वतखच्ड२२अब्यायः। afaa नाम नाह मोषु व्याधिभवत्ययपि) रक्तानि जवनेतानि fagafer wafer a | afaaraifa लोयन्ते व्याधिं विद्यालुदारुशं ॥ उत्थाय Awe याति वातेन faaa a att कयत्तेपगतिज्ञयो मोषु व्याधिः समुत्थितः + Qt a न शक्रोति यातुमुलङ्सखिता। Mat नाम a RA गोषु रोगः समुत्थितः ॥ यस्याः स्पुरन्ति माचरारि रोमाख्युडानि सन्ति) उभौ च कर्ण लम्बेत विद्यात्तं कर्णलम्बकं ॥ aaa व्याधयो दिष्टा ययज्या wa चापरे । तेषुतेषु यथोदिष्ट भान्तिकग्ध प्रयोजयेत्‌ ५ Awa िरःस्रातो निराहारः wat शविः) Tata aq war तत; शान्ति प्रयोजयेत्‌ ॥ मग्नाः कप्रायवसनामरूढ़ा ये परिचारिणः) aga रूबलिताच्ैव दूरतः धरिवजियेत्‌ ॥ काणाश्च geia तथा wagarafq } अन्त्वांवसायिनञखेव दूरतः परिवजंयेत्‌ tt MMH वा UAT वा HASH TART । AMUMAATS वा देवगीषेऽपि वा भवेत्‌ ॥ गणकस्त शचिग्दूता टेदताद्यु पकल्ययेत्‌ | प्रतिष्ठाप्य ततो देवाम्‌ वेदौ इयत्‌ प्रमाणतः ॥ धत्वे कुम्भान्‌ FATT माल्य लाजानुज्ञोमिकांस्तथा p मांस GHIA AIT तयेव feufafug at it व्रतखर्ड'ररेश्रध्यायः।] safest १०२९ छतसषेपतलेन सर्भपानक्चतांस्तथा | सुकतप्रतिसरान्‌ गन्धान्‌ स्भिधस्त्‌ समाहरेत्‌ ॥ उदुम्बर पलाशद्ख खदिरं विल्वमेव च। अश्वत्धच्चं शमोचेव समिधस्तत्र कारयेत्‌ ॥ wala evarfe पव्वमातव्राखि कारयेत्‌ , हथाखिव(रखास्यौनि उलूकस्य समाडरेत्‌ ॥ एतान्यस्योनि yore सवोख्येव समा रेत्‌ | वचया सह सयुक्त धुपङ्गोषु समानयेत्‌ ॥ सुरार्धिरसंयुक्र ata पक्षामिषन्तथा। दिशा विदिशाश्चव बलिं Sarg veferut ॥ MAG सव्वेगोष्ात्त Raisyqaraag t अाज्यधुपञ्च TWaATyY ग्राहयित्वा प्रदक्तिशां ॥ अग्नि प्रोय विधिवत्‌ चरिस्तौोथ समन्ततः) aaa विजयेचापि सुडत्तं ah कारयेत्‌ ॥ श न्तिमेतां प्रयुन्ञानः सावित्रौ" मनसा जपेत्‌ , रषा fe वेदमाता तु दिजः पूर्व्वसुदादता। छष्णच्छागस्यं Sa aaa ग्टह्य शोणितं । समिधो जूडयाच्छान्तो सषपेख एतेन च ॥ र्ीघ्रतेलङ्कशर रक्तमाल्येन संयुतं | एव तु जहयाद्िप्रो ezine विनाशनं धष्पकयस्य छागस्य शोणितं हावयेत्ततः, यावनं कटुतेलच् व्याधिं दृष्टानुपातनं॥ सोमव्यस्त समिधः ant gaat | १५१२० शमादिः । [वतखण्डं er wena: । रच्षातेलेन waa व्याधिः स्याश्चाव मोहकः ॥ पाण्डरस्य तु छागस्य वसां ृद्थमेव च । मधु सपिंख fants जयात्‌ पूतनाग्टहे ॥ अशत्धोदुम्बरः समित्‌ । पलाशथख।दिरौमासेः व्याधिः साम्यति दारणः कष्णग्रोवद्य SAA CITI वा ता भवेत्‌ ॥ fat समिषा ya जहषादारणामथे। धयोददस्य छागस्य वसां हृद्‌यगोरिति ॥ चरिष्टाक्षतसखयुक्त कण्डचेमस्य नाथन, तं सषपतेल्छ दयं ङुक्कुटस्य च ॥ यघथोपनौताः समिधे दावयेचम्बकण्णि के | गवां शान्ति यथादिशं यः प्रयुकां दिजषभ ॥ कारयेच गवां वा WIAA तैवर। तस्य पुत्राश्च पौताख धनघान्यन्तथेव च॥ गावश्च स॒म्यग्बईन्ते लोके कौत्तिंमवाग्रुयात्‌। शिबधमीत्‌। 000 AW त्रह्मपादेन स्तयते प्रणवेन सः | स सिवः aad Sat गोषु मारीं व्यपोहतु ॥ लम्बोदर देवेन गजवक्रेण सुस्ततः | स शिवः शाश्वतो देवो गोषु मारौ व्यपोहतु ॥ योऽ्ते च सदा भक्तया विष्णुना प्रभविष्णुना | ange २२अ्रष्यायः।] देमाद्धिः। १०३२१ स शिवः saat Sat गोषु मारं व्यपोहतु ॥ सव्वरो गरे णापि रविणा यः प्रणम्यते | स शिवः णाश्चतो देवो गोषु मारीं व्यपोहतु ॥ श्रौमतां asa घण्टाकणगणेन यः | नित्यं प्रणम्यते भक्वा हरेनानन्धचतसा ॥ स शिवः शाश्वतो देवो गोषु मारो व्यपोहतु) नित्य सद्रवलोपेतो सद्रभक्तिसमन्वितः॥ धण्टाकणगणो 2a: शिवन्नानविधायकः। शिबयो गानुभाषैन गोषु मारी व्यपोदतु ॥ नमः निवाय देवाय agréara माविनं ) रुद्राय स्थानवे नित्य हरायोप्राय ते नमः॥ धरमेयाय सिद्धाय मन्तसिद्िप्रदायिने। SIMA महेशाय अनन्ताय नमोनमः ॥ श्रभिमन््ा सदा तोयभेतेमन्तेर्ययाक्रमं। प्राथेयीत गवां 2a ततः सिदि्भविष्यति ॥ य ईद पठते गीषु WANA वा समागमे, SAW बलवान्‌ भोगो योमानयंपतिभवत्‌ 6 SUI चपर स्थानं स गच्छेत्रात्र WNT: | सव्वपापवि शद गोश्णन्तिकमिद पठत्‌ ॥ ata गोश्ान्तिः | ee (') सुश्वुतो रदराजश्च nat faafaea as १५३२ देमाद्रिः। [wae २१ ग्रध्यायः। sofa बाहनागार ालिद्ोवं तपोनिधि ॥ हयानां मडको घोरः कथं जायेत वै प्रभो। कथं वा शान्तिक तेषां एतच्छश्चुत तां वद्‌ ॥ तानुवाच महातेजाः शालिदोत्रस्तपोनिधिः। स्थानेऽशुभे स्थापितानां wwe वाघसं as tt यानां मरको घोरो जायते नाच संशयः | यस्य वा जन्मनत्तच्र' RUT वाध मानस ॥ मघादिक सानुदायं वेनाथिकमथापिवा। जक्नक्तव्राचतुधदशमपषोडगाष्टादशानां न्त चाणं मानसा- दयः Wat | पीडयते aifcaaraafe वाप्यथ cet | विविधैव तवोत्पातेस्तस्य स्यादुवाजिमारणं॥ यस्व वे ब्राह्मणाः HET देवा वा पितरोऽप्यध। विनायकोपष्ष्टो वा wet ar यस्य वाजिनः ॥ हथमार स्त तस्य स्यात्‌ सतु थान्तिकरो भवेत्‌ । न वन्ते हयात्‌ Gat Da: पीडयन्ति चापरे।॥ स्थाना हिवत्तनं काय्यै शल्योडरणमेव art क्त्वा कुर्व्वीत ततैव बासुदेवतपूजनं ॥ तथा नच्त्रपौड़ायां खानं विहितमाचरेत्‌। पोड़कख ग्रहः पूज्यो नच्त्रमपि digg विनायकोपष्े न पृज्यो गण्पतिभवेत्‌ | faaa dfaaada तथा गालंकटं welt RABY राजपुचख पूज्या वे चाम्बिका तथा! wage gwar: |) warty: १०३१ यस्य वै ब्राह्मणाः BAT पूज्यास्ते न चान्यथा १ देवानां पूजनं ata यस्व wet दिवौकसः ॥ QIN च SANs यदालिन्दापकषणं | BA स्यात्तत्र RAS ATA शाञ्च पूजनं ॥ aay स्थापिते थाने तथा शविविवज्मिते | स्था नापकषणं war faa: पूजा विधौयते ॥ उच्चेःखवादयः पज्या यस्व क्रु स्तर ह माः ॥ हयमारे तु संप्रासे हयानां बाप्यपद्रवे 1 cai शान्ति प्रघ्यामि aa निगदतः खण | गोमयेनामुलिपे तु wa FR qofea: | अरहोराचोषितो war शान्तिक समारभेत्‌ ॥ धोतशक्ताम्बरधरः शक्माद्यानुलेपनः, सोष्णोषालङ्तः शक्या ear: विभिः wea चत्वारो ब्राह्मणश्च सदायाधुवततद्दिताः | waa दितोयो यजुषां वरः । ठतीयः सामविन्मख्यखतुय चाप्यपरे श 2 सव्व QE कुलौनाख शुचयः शौलसयुताः। ग्रहो ताम्बरसम्बोताः पविचककरास्तघा! मय्येऽग्निकुण्ड' कुर्व्वीत मग्डलन्तु VATA | fafeq विन्यसेत्‌ कुशान्‌ पुगानोषधिवारिण्‌ | Cas म्यसेत्तषु एेशान्धादिक्रमेर तु) सपिषः पयसो दनो मधुनश्च यघाक्रमं। Fwy ूर्न्वभागे त॒ कुादेषे्ठरं पट्‌ ॥ ( १३० ) १५३४ Satz: । [तरतखर्ड'३२ ्रध्यायः। दत्तिणेतु यमं कुयादरुणं पञ्चिमे तथा । | उत्तरे च तथा भागे कु््यीदेखवणं प्रभु" ॥ स्वी स्तान्‌ Uae गन्धमाल्यानुलेपने; | away TLASILA वेद्यपूजनं ॥ तिषामवाप्य तल्लिङ्गः मन्वराज्यन पावका । यजवंद विदः पूवं जपेटेन्द्रान्विशारद्‌ ॥ यास्ये सोमं AAT वारुण बह्वचोपि च) मन्व कुषेरसयुता जयपेदिद्वा नयग; t सुवणंमहतं वासः कास्यङ्गाच् एक्‌ पथक्‌, aaa दचिणा द्वा इयमारात्‌ प्रमुच्यते ॥ हयमारे तु संप्रति हयानां काप्यपद्रवे। sai शान्ति प्रवच्यामि तन्म निगदतः wae पुवोकेतु शमे स्थाने पूर्वोक्तविधिना aa: | अग्निकुण्ड" दिणोशओान्यां aa a rae fee भूमौ gala देवानां मग्डलेष्वपि पूजनं ॥ sa विप्रतयं कायः नेवकाथसत्वथवेणः | अम्नेये aa दिग्मागे वह्लिपूजा विधोयते ॥ रेशान्धां पूजनं वायोः प्व तु सवितुभवेत्‌ | साविवन्तु जपेन्मन्त यजवदविशारदः ॥ आग्नेये वद्वचच्धेव सौमं सामविशारद्‌ः। सव्वंमन्यन्त्‌ कत्तव्य पर्वोदिष्ट विजानता | उत्थातेषु निमित्तेषु वाजिना मिङ्गतेषु च | प्रायचित्त' प्रकुर्वीत ततः सब प्रशाम्यति । मतखण्डरश्रष्वायः} Barfly: १०१५ SAMA UT भागे सखरख्डिलं तच कलयेत्‌ | विराचोपोषितस्तत्र गान्ति Hata gofea: | नवंवासोभिरा्तिपं स्ण्डिलन्तु चतुदिशं | उद्ङुम्भास्त चत्वारः स्ापनोयाथतुद्थं। रसपाचाखणि देयानि पृथे gat च सुश्रुत । शिरः खातः कछतोष्णोषो यघावत्‌ क्रतमर्डलः ॥ शुक्तवास। जितक्रीधो बहुत्वेन समोरितः। श्राइतो जुडयादङ्को Wits सुसमाहितः। पितामद्ाय रुद्राय MV वरुणायच। श्रखिभ्याच्ेव Gua शक्राय च तथाम्नये ॥ वादाय वाघ ष्रये fea देव्ये aaa च। गन्धर्वेभ्य्च सोम।य Sawa was देवता या भवेत्तत्र उत्पातस्य तु कारणो। मण्डले तां विदित्वा तु बलिभिश्चापि पूजयेत्‌ १ प्रतमष्टाधिक इत्वा प्रतिरैवं पुरोहितः, ततस्त पूजनं द्या हे वानान्तु विशेषतः ॥ पायसोक्ेपकादौ पधूपदौपा दिलेपनेः | मधपायससंमिखर विप्रा भोज्याः wef: a एकेकटेवसुद्दिश्य TW WA WIG ar! सुवणंसदितं वासो aa wiag efact | निष्कत्यय तदा देयं चिरात्रन्त्‌ महाभुजा | पुरोददिताय तुच्यथं येन तुष्यत्वसौ हिजः। व नान्‌ पूजयेत्‌ सवान्‌ खस्तिवाच इिजोत्तमान्‌ | ९५३६ Salle: [तरतखण्ड२२अरष्यायः। एतहि यान्तिक काय्य निवत्यमोत्पातिके सदा ॥ रत्तोघ्रन्त TAT सर्वत्पातविनाश्न। TM विजय. guar घनघान्यःववद्धेनं ft इति शलिहोचाश्श्न्तिः | 006 Sy Wawel: | aa wandaufa पलकम्डहो तमजलक्तणानिचाभिच्य- याह WAAL: 1 qimaywany चरतोत्यभिलत्तयेत्‌ । बहन्‌ स कुष्लरान्‌ दन्ति ae वापि ways ॥ sat aa क्रियाङ्कगात्‌ Saal छपतिः. खयं । पजयेद्यत्रतो रुद्रं विष्णु सर्वश्च Saat: i सातौ yaafaafa कर्तव्यो atemfua: | सवासु गजगालासु चलरेष्ववंरेषु च ॥ नगरात्सहसा रात्रौ निणंयेद्ारणान्‌ बदिः | दिगि प्राच्यामुदोच्यांवा खानं जनमनोरम ॥ मनोरमतराम्‌ SUAS मतङ्जान्‌ 1 स्चायचरणा राजन दत्तभङ््टणाशनाः ॥ यथाविधि महामन्वरे कारे स्त संयते; | GAA सञ्चाय्य जपद्ोमपरायसे; ॥ खरोहितस्त gata यान्ति पापप्रणशनौ'। qufaat दिजांस्तत्र दत्तिणाभिख पूजयेत्‌ ॥ ATS Vey: 1) मादि 1 १०३ महोमाताश्च सप्ताहं चयः सथितत्रताः। दकशतं निभि खात्वा मुच्छीरन्‌ efagtes: ॥ व सभङ्कट णाद्यरानेकस्थाने निङेणयेत्‌ | रारखकलं ANG VEN मनसा मवेत्‌ ॥ खविखानेषु Aare गावः सषाहमेव च। वासयेत्‌ सडह वत्से ख gua fa हितेस्तथा ॥ हितोरणं fata जलस्मोभयनोरजं । स्रस्तिकस्तेषु चकेकोभवेद्द्रो णोऽय AAA: # मष्टासाज्राश्च ततैव स्यस्ते खण्डिलवासिनः | सुव्णनां शतच्चाच विन्यस्यसुट्‌कं fea} सामान्ययन्नप्रोक्तं यत्‌ खानं तदुपकर्पयेत्‌ । ~, ~~, ६५ e “CW च Wawra चतुमासविषो aar ॥ =a © Ow, . मन्रज्‌ हयाद्िप्रस्त सभिद्धिजांतवेदसं | 9 + स7मान्ययन्न निके यथाप्रोक्तं विधानवित्‌ ॥ WAG जडयादे तैः समिद्वि जातवेदसं | इन्द्रः we मरुद्धिख्च गजेन रावतेन च ॥ satay निद्नोयात्‌ उदौच्यां खा पयेत्‌ गजान्‌ ४ क ma 0 लि प $ ~, ua कत्रा इविःशेषवलि प्रतिदिशं हरत्‌ ५ A A wag, =. HACC पृन्वोक्ट वेभ्यस्तेभ्य एव च। दक्िणस्यान्दिशि विप्रो ततो Sa समा चरेत्‌ ॥ नामाम्नये faaera भूतेभ्योऽध बलिमया ! दत्तिणयां aug efcaiates बलिं | दिजो aafad राजन्‌ नियते; सुखनेजंपन्‌ ५ १०३८ Salis: | [aww ar waa: | ay ufaaafefa समाथिता दद्रा रुद्रमनुष्ाः रौद्राणि चव qaifa tafe व्याघयश्च dane व्याधयो जीवित चायः त्तन्तेभ्य एषं बलिः | | yal aualhefa तु इत्वाहरेन्द्रायोदनं | guafeat बलिं दरे दयथान्यायमिमं मन्त" विप्रो यनेन योजये- fefa नमो राक्तस-पिशाच-गन्धर्म-रत्तोभ्यो येषु पिजं dad एष प्राणाखायत्तासेम्य एष बलिरिति बलिं सभ्यो feufaa मन््रसुरोरयेत्‌ | अग्नये पाधिवानां सलानामपाधिवानां सत्वानामधिपतये एष ते बलिः वायोरान्तरित्ताणणं सल्वानामधिपतथे एष ते बलिः । रुद्राय च यथान्य।यं कमेणोपहरेद्‌ बलिं । ये aug ये wag a Hay ae ada weet SURE । tsufca ये fafecra एचिव्यां ये च संखिताः। तभ्यो नमोऽस्त रुद्रेभ्यो बलिमेभ्यो हराम्यहं ॥ इता हत्वा बलिं सम्यक दिजातीन्‌ खस्तिवाव्यच। पर्वोकतंन विधानेन रागान्रोराजते क्रमात्‌ | दत्वावगाहन्तषान्तु ततस्तौर पर नयेत्‌ । हारे fema Dus aa विधिना ga: RUBIA VBS यथा राजजनन्ततः | ana संप्रेश्ये तान्‌ कछतकोतुकमर्डलान्‌॥ गोतवादिचर्ब्दे ख सहजान्‌ खस्तिबाच्य = | BAAS: WE: LT: ्रालगन्धेख पूजितान्‌ ॥ व्रनखण्डं२२अ्रध्यायः'] देमाद्धिः। १०३९ सहिरण्या स्ततः कुम्भान्‌ शालाहारषु विन्यसेत्‌ । संखुष्टाल्कतान्‌ क्रत्वा सवं सम्भारपूलितान्‌ | भरदाजो Hafea द्रोमूप उदाहतः, तथा YAR गालायां चैममङ्गलसम्भतां ॥ प्रविशंशानिरदस्त war तिष्ठन्‌ शरच्छत । TUM बलवान्‌ WR रान्नष च विजयावद्धः॥ तथा | APSA राजा चम्पायां पालकाप्य ख एच्छति। चातुमसोषु सवासु कथत्रीराजयेद्नजान्‌ | प्रबूहि एृष्टमेतन्म यधावन्म॒निसत्तम | सएष्टसत्वद् राजेन पालकाप्यस्त तोऽत्रवोत्‌ I द्‌ णु महाराज Vad परिष्टच्छसि। रोगास नैक्रेतिखेव तथा taifa gaa: | पिशाचा FIRST गन्धर्वा रात्तसास्तथा। Saal a यत्ताश्च कौैमाराखापि ये ग्रहाः | ये अघोर जयाद्याञ्चयेचर्द्राखटेवताः। SAUNA ये केचित्‌ पौडानत्तचजाखये।॥ वलिं वा भोककामाञ्च इन्तुकामास्तघाऽपरे | तथा क्रोड़तुकामाखधघोररूपा महाग्रहाः ॥ देवोपघ्ाताये चान्यं तत शान्ति त्रजन्तिते। एतदयं HATA गजनौराजनौ स्मृता ॥ कात्तिक प्रथमा राजन्‌ दितोया फ.लगुनो तथा! ्राषाढौतु ठतौया स्यत्‌ fae नोराजनाः; स्मता; ॥ १०६१ हेमाद्रिः १ [ava gna | aquial भत्‌ gare गजानां हितमिच्छता (१ । gure देवतानाख सिद्धानाच्च ate रत्‌ ॥ खष्टान्‌ पिकांख जालां धान्यन्दधि wa मधु! पायसं मघ कल्माषं aifeata गुडोदनं | सुप्रतिष्ठ भद्रपोढं दिव्यमाल्वानुलेपन ॥ सोर्घाग्रान्‌ इरितान्‌ दभौन्‌ विप्राणाच्च व भोजनं । नवं faag विधिवद्वजो पस्कारमाहरत्‌ ॥ आक्रान्तन्तगरोशोर प्रियक द्योपराजयेत्‌ | सर्वरब्रौषपेखापि धूपमाल्याच्ञनानि च | रक्ताविधानं कुर्वीति यजानां स्वस्तिवाचने । गमागमेपि कत्तव्या शान्तिः सन्धयादयेपि च ॥ रोहितो दक्षिणतो जइयादव्यवाइन | उत्तरे ज॒इयादं दयः एचिवस्त्रः समाहितः | श्राहतक्तौमवसनः शविभूत्वा Harare: | अष्टौ देवान्‌ नमस्छत्य गजानां स्स्तिवाच्य च ॥ प्रजापतिं च faye anga watafa | GSW AAA ATW Was तधा ti खेनापति नमस्यामि मजानां खामिना प्रमु । यज्ञभार्डमयानोय यज्नभ्रूमि प्रकल्ययेत्‌ ॥ पूवणान्तरतो वापि ब्राह्मणानुमते भिवे! प्रागुदक्‌ प्रवण देशे िग्धौषधिनगे समे ॥ प्रदच्िणोङ्के चव waa: सुपरिक्रमे | १९ चछोकाङ्मिदं संमोचोनं भवितु are fa i व्रतख षड'२२ अध्यायः] दमाद्धिः। १०४१ गोमयेनोपलिप्याध anyfa प्रवेशयेत्‌ ॥ तस्मात्चनरकं तच स्ूमादष्टार्रत्रयः(१)। नो यानदेवोपदहतान्‌ MELA CST समान्‌ | अनुगम्यान्नवान्‌ ठत्तान्‌ ऋलुन्चानरुस्ितान्‌। उत्सेघान्‌ हाद्शणारलोन्‌ वारयोत विचच्तशः ॥ SAM wally MAING | saifa कारयित्वा षट्‌ बलिभिख fayuaq ५ स्थानेषु पुष्पमालाश्च करणे तोरणानि at | राजाथ प्राजनान्‌ स्वान्‌ गडोला चात्ततोद्कं। प्रोत्तयेत्‌ स्तस्यस्ूलानि धरणौ परिषास्तघा। परिकम्मिणः qarat. Waa: शक्तबाससः ॥ यावन्निव्वी एका तु जलाभ्यास नयेद्वजं । श्रान्तिच्च FLAVA ब्राह्यणयेव वाचरेत्‌ + zalfa दस्त्यामाराणि तथा प्रवणानि च। वरुणं तोधं कन्याञ्च नागानुद्कदेवतान्‌ ॥ सागरान्‌ सरितश्चैव उदपानं सरांसि च। तडागानि च सर्व्वाणि सुरानभ्यच्चयच्छवि 6 प्रायथित्तानि कत्वा च ततः प्रख्ापयेद्च । सव्बरद्ौ षधे्बीजिः qua व विचकत्तणुः ॥ चन्दन यथा प्रोक्तः स्रःपयेटतुपूव्वथ्ः । Sas तस्य नागस्य कारयेदादहतानितु॥ हारिद्र विष्टनादाचपूव्यात्‌ पद्धाद्गलान्यथ । ¢ „> . a प्रत -~ १ alaiaiag न न्ब प्रतिसाति। ( १३१९ ) १०४२ हेमाद्रिः [बतखष्ड९२अध्यावः १ मङ्गलानि च सर्व्वाणि कारयेत्त विचक्तणः ॥ रोचनया प्रियं यच्च सम्यगग्रामं समालभेत्‌! ufs Mapa EE quifa: समवव्सरेत्‌ ॥ र 0 शोभितं वैजयन्तीभिन ee: पञ्चरज्जभिः। काञ्चना राजता वापि दिव्यवासः समन्विता ॥ ग्रथिता MAA नागरोशौरमियिता। कि <. न~ Baal पव्वं ताने च सव्वंदेवनमस्छता॥ शतपासौ AQAA गजानां खस्तये भवेत्‌ | श्रारोग्यायेव नागानां se विजयाय च॥ मध्ये च खस्तिक कुय्यां त्‌सरस्ति गच्छन्ति GST: 1 ५ + aang लाज awafa समन्ततः ॥ . । € कुशोद्म्बरथाखाभिः सव्व तः परिताडयेत्‌ | s र काटः पलाशजेश्वापि सिदकोदुम्वरस्तथा॥ च्योतोषिं जनयेयावत्‌ समिद' वाचक aa? | Weal चोदकं पातं प्रोत्तयेदव्यवाहन । रदिते नमस्त । सरस्वति नमस्ते | टेवसवितनेमस्ते ¦ ठत्तिष्टाय विवद्ेख प्रभावं त्रितं मम, विबनोधयत्यष्छरसः सुभरस्ताख व्राह्मणाः tt योग मम प्रयच्छख प्रसन्नो हव्यवाहन) ~ # 0 + खुवेणाज्य' wear शणान्तिभिवतु इस्तिनां |] WTS UAT SITET SAMA BIT! भुः aren भुवः WITT | | बद्धो बोघधयग्दूतानि ब्रह्नारच्ःदिदीलस्‌। aATSw eywata: 1] Sater i १०४४ सद्स््राचं भूतपतिं Fat वर्णं यम ॥ विष्णुञ्धैव महात्मानं तथा नारदपर्वतौ । उद्‌{लकं काश्यप मरोचि गुमेव FI ऋषिसुख्यान्रमस्यान्ि सव्बानेव क्ताच्लिः | आसिच्याज्याहुति तघां ya; wf WH पुनः # भवन््यरोगाः राजानः ALAR याजकाः | दिजे दानं प्रयच्छन्तु बलारोग्ययश्सि चट TET | za भ्रूतानि गन्धव्वीः Mowe दिभोगणाः। आदिलयमरतचैव अग्न्यो च तथा ग्रहाः, गजानां सप्रयच्छन्ति बलारोम्ययगांसि दष स्याह | रेरावत पुष्पदन्तं कुमुदं वामनं तथा! MWA नौलवन्तं साव्वभौमं Gand tt सुप्रतोकच नागेन्द्र अद्ाबल्तिनमेव च) मदा गजास्ये वान्यान्‌ नमस्यामि arate: tt आसिचाज्यादति तषां awa: afer गजं पुनः} भवन्छसेगाख गजाः सस्ष्यन्ताच्च याजकाः | प्रयच्छन्तु च नागानां बल्लारोगम्ययशांसिच॥ सादा । aaa जमदग्निश्च वसिष्ट पुलहं क्रतु | दौषघं वरबरद्ैव पुलस्त्यं च्यवनं तथा । विदो त्तमाच्च खाहाच्च vad चात्र मालिनं। १०४४ eaif2: | [बतखण्ड'३२अध्यायः। दिमवत्‌प्रमुखच्चापि ahary कुलपव्वतान्‌ ॥ तयेव सव्वं तोऽनन्तान्‌ नमस्यामि कछताच्नलिः | feat ea 4 8 नागा सव्वकालमधिषिताः॥ भूमिघराः yaya नमस्यामि कछताच्ञलिः | श्रासिच्ाज्य्डतिं तेषां भूयः afer गजे पुनः ॥ भवन्तुरोगाख्च गजा VAY याजकाः | प्रयच्छन्तु च नागानां वशरोम्ययशांसि च| स्वाहा | भ्रूभिधरान्‌ अभिमतान्‌ महातेजान्‌ महावलान्‌ | देवदसौन्महाभोग्यान्‌ Bayar aarafa: ५ अनन्तं प्रथमं वन्दे सव्वलोकाभिपूजितं | कर्कोटकं धूमतिषं aging महाबलं ॥ कालोयच्चापि बन्दित्वा बलसुत्पलमेव च। हरिञ्च विद्यज्निद्वच्च कवलाश्वतरावुभो ॥ उदयन्तमथादिव्यं जिह्वायां परिलेदति | प्रणतं तं पुनश्ापि लाङ्गलेन निषेवते ॥ नुनीम महाभागः THA मदवलः | नामो afwaeaa 2 चापि धरणौधराः॥ कुव्वन्तु खस्ति नागानां निर्व्वारे तरणे तथा! qaqa चये नागायेचये दिशि मोचराः॥ आसिच्याज्याइतिं तेषां भूयः स्वस्ति गजे पुनः । भवन्त॒रोगाच्च गजाः सरष्यन्ताच्च याजकाः 4 स प्रयच्छन्तु नागानां वङारोग्ययशांसि च। sagas aaa: |) wate | १०४१ उत्तरेण afer, सेनान्यमपि कौत्तनं॥ सेनापतिं शक्तिधरं गजानां खाभिन प्रस | षष्टोप्रियं क्रोञ्चरिपु घर्म ख हादथेन्तयां | र्तमाल्याम्बरधर घरटाभरगकुर्डलं | aaa दाद्‌ शभुजं कात्तिकेयं दुरासदं ॥ रल्तप्रतिसरः माल्यं प्रकतं कामचन्दनेः । अचयेदरड़संयावपायससखस्तिकादिभिः ॥ पूव्वदक्तिण feta दक्तिणाच्च दिशं aur तथेव awa वन्दे पञ्चिमाच्च दिशं aa i वायव्याञ्चोत्तराद्ेव cat gatact दिशं। adisera दिशं वन्दे अदिति रेवमातरं। रधिखये वसन्रागास्तान्रमस्ये aarafa: | श्रासिच्याज्याइतिं तेषां ya: af गजे पुनः ॥ भवन्त॒रोगाश्च गजाः CLARY याजकाः | सं प्रयच्छन्तु नागानां वणरोग्ययशांसि Fy खादहा। सखस्तिकापूपसयावमघुलाजा छतं तथा | दिर ण्यच्च सुवणं वासांस्यभिनवानि च ॥ मैरेय सुराचेव AGA वरवारुणौ | Yeas aay मद्य कल्माषभेव च ॥ सव्व मेतदुषन्यस्तं ग्रहाणामशतो हितं | utaqat सुगुषां वा Ayal वद्‌ चाश्व नः) सं प्रयच्छतु नागानां वर्परोग्ययश्ांसिच॥ खहा | ९१०४९ | SAE: | [बतखक्ड ३रश्रष्यायः। व्यपोहतु च पापानि इह रान्तः Wa War: t तया विसा अरा ALTA ARAFAT: ॥ अविष्टं वया नास्ति भोक्तमहंसि कामदः अपूतिमांसमासार्‌ ह्यपधाप{िवजितं॥ AACS मनुष्येस्त AN च FAr । ग्रहणे TINA सेनान्ये UAT a | सप्रयच्छन्तु नागानां वग्णीरोग्ययशांसि च ॥ ist | पादायुधं MAIS WATT मनोरम | विचिव्पचरक्तात्त Gas zaaifa a | कुकटमे wey a Fafa भद्रमस्त्‌, ते। संप्रयच्छस नागानां aatcieqanifa a सराहा | प्रभूतवणलाद् लं सव्वाङ्सुसमाहितः' धोतमामलक काल्‌ कोः Bit सन्द्गयामि ते॥ च्छागे मम VII ठं Vary भद्रमस्त ते। VASA नागानां वरणंरोग्ययभांसि च॥ | TST | सहस्र शूलावनत टेवराजविलिपनं | प्रवरं सव्वभूलानां sit दगंया्िते॥ उभौरं भे गहाण त्वं सेनान्ये WEA ते । संप्रयच्छस्व नागानां वणरोग्ययशांसि च| प्रत्र २२अध्यायः ।] Parte: ९१०४७ TST! = ay # 9 # =~, # नराजिनो' त्विमां सालं सहखातेण घारस्ति) + सन्भूता CAATAID दाच्तलाना WAST ॥ प्रोनिसच््ननौ देवौ भूतनागनिषेविनां। भ्राबादेषु विवादेषु न्ेतरमौराजनोपषु Ta नागानाञ्च प्रवेशेषु AFA वास्ष्प स्म्रता) सुरा सुमन्या सुरसा मदोकरमनोरमा tt पूजिता देवमनुजेः wast दृशणयामि ते! वारुणो मे We @ Garay WEA ते। संप्रयच्छस्व नागानां बर्णरोग्ययशांसि च॥ सादा | पुरा देवासुरे यड संग्रामे तारकामये Baral: सस्छतो देवैदवानामभमितद्यूतिः ॥ र्न Way सराजानं सेनान्ये AZAR ते। सं प्रयच्छसख नागानां वण्भरोग्ययश्रांसि a स्त एदा | Za US मृदङ्गाश्च कांस्यवाद्यानिं यानि च! वोणासपीणि पणवा मोघा परिवद्न्तकाः ॥ श्राइता AFA वे वाद्यन्ते सघुरसखरा; | seata दिवसं विजयाय पस्य च ॥ विविधानि च रूपाणि सम्यग्‌वृद्धा इताशने । +L ~ {~ श्ट. र्ष्टप {द = > ~ क स २५६५०६६२ स=, CAT चमन्‌ Ath ॥ १०४८ देमाटिः। [बतखर्ड २२ अध्यायः । faan: परुषशथापि वसुगन्धस्तथेव च I afaaut विचित्रश्च वल्मोकाक्षतिसंखितः। होतिदायौ चयो afefe wat चयमादिेत्‌ ॥ quanta, स्पलिङ्गगाद्य; राज्ञो रुक्तो विरूपवान्‌ । घूमवातयुतच्चाय वगगन्धः समयः ॥ गोसुखाक्तसंस्थानो गवां सच्तयमादिशेत्‌। चिरे णोत्तिष्ठते aa fanaa प्रणाम्यति॥ छष्णवर्णो विधूमाच कछशरागन्ध एव च। ऋथमानस्तद्धा बद्धिशाख्यति दरपतेवधं ॥ ग्टप्रोलुकनिभ्वापि राज्ञो मरण्मादिथेत्‌ । अव्यक्तवर्णय दुर्गन्धो विप्रकोणभिखोऽनलः ॥ fan विनाणयेद्राषट्ः सामान्यं सपुरोडित। Us मरणभेवःपि शवगन्ध यद्‌ाऽनलः।॥ slaw यदा afSs: HUGG Tara: | सगन्धः स्याद्विवणख हतमाख्याति पाथिवं | ala? पाटलकश्धौव वद्किवधनमादिगेत्‌ | विप्रकौख्णिखश्ापि वायसप्रतिनिसवनः। रान्न: RIA नयाय युवराजवघाय च ॥ afed कुस्ते वह्किरतिधूमोद्यतिखखनः | करे चोरसि rel च Beast चयो भवेत्‌ 1 तचाथदहानिं जा नौ वात्तस्मिवरत्पा तद्ग ने । करोषधुमसदयश इन्द्रायुत्ररखमदयुतिः॥ wang चय fad तदिधा वकि रदिथेत्‌ | + | ~, व्रतखग्ड`२२ग्रध्यायः।] WATS | १०४९ mata विक्ततस्त तथा wuaafara: tt जननाशं तदाख्याति STATA इताशनः। षह विद्ंरिद्रावर्णभो लेपमानो यथाऽनलः + निग्डाक्रतिसंयसथानस्तथा शङ्निभाक्ततिः। पाशाक्षतिनिभश्वापि राज्ञो बन्धनमादिशेत्‌ ॥ विच्छिन्रगतस्थाणामाक्रतौसदितसखनः। वामतो यस्य गला च धूमः प्रतिनिवत्तते | मत्स्यगोगितगन्धानां तुङ्गो यज्ञ जायते) रान्न: yaad विद्यात्‌ शास्वपरोक्ैरिमेदिजः। अशभान्यवमादौनि a निक्रेयानि भूपते) प्रासादाद्भिनिभश्ापि स्तोपशुः कलशाक्षतिः ॥ vefamiafafxal हसरलोदधिखनः। गह्प्रभमयाण्वानामेव दुन्द्भिनिस्वनः | सुवगंरजतप्रख्यः चोरपायसगन्धवान्‌ ॥ WAM कवचानाच्च वारणानां महोपते $ भासते घस्य चात्पथ' संग्रामे जयम दिशेत्‌ | प्र्षटटमनसणथापि शक्ताम्बरधरा यदि | द श्रयेयुः शभा गारन्तड़ वेच्जनयलच्तणं ॥ यदा गुरस्वप्रसत्रो जडयादव्यवाहन | मद्धाभवं विजानौयात्‌ पञ्चापि गजादि्क॥ परनन्यवाहनान्‌ पूज्यान्‌ दिव्यलत्तणसयुतान्‌ | गदादौनि विशिष्टेन तोयेन स्रापयेद्‌ बधः ॥ अन्यवाद्ान्‌ दिपहयान्‌ wataa समाहितान्‌ t ( १३२ ) ६०१० Salle: | [ततखक्ड३२रअरष्यायः। बा द्यङ्कम्भो द केनेव सरापयेत्तच साधकः ए राज्ञे नोराजनं कुय्योत्तददहःषु च मन्त्रवित्‌ | अन्येष्वेवम्विघः ara: सहि carat परः॥ राजानं बादहनान्ांख चघान्याख पुरोहितः) सर्वीलद्ारसंयुक्तान्‌ सवमद्गलसंयुतान्‌ | छत्वानुवाचभेत्पमरशाद्‌ त्राद्यणेरा शिषो AT ॥ द्‌ त्तिणामतुलान्दव्याटरलिग्‌भ्यो गुरवे दपः) वाहनच्च सभूष्रादामाचाय्याय प्रदापयेत्‌ | दासद्‌ासोकण्छ्येषु ग्रामादिषु च Vay | सवालङ्ारसंयुक्तान्‌ राजा वाहोपरिखितान्‌ # सारोरे्ापि संयुक्तान्‌ मत्तदिप्टयोत्तमे;। वराय षे; स्वस्तिव चने ऋ तिगभिः सह संयुते: ५ Adal राजभवनं दपं संवेगणयेत्‌ wa | पृव्वख्रानवि्िष्टेन कुम्भतोयेन मन्ववित्‌ ४ गजगालाच् संप्रोच्य वाजलिशालान्तयेव च | fasta लतिखेः पष्य खाप्यवकोख्य च ॥ भ्ालामध्ये यसिदहच्च सुदटगनमनामयं | पूजयेद्‌ गन्धपुष्या दि स्वीलद्ार संयुते; | सक्तभिः छंशरान्नेन कुय्याद्ूत बलिं बहिः । ततः; शालासु सवासु ब्राह्मणान्‌ भोजयेदलं ? ततः SATA HAC wal गजवाज्ञिनं | एवं शान्तिः प्रकुर्वीत निमित्त सति ASE: | परिच्छदस्य टृपतेख्न्तविस्लसमाहितः ॥ तै “ - त्रत खर' ३२ श्रध्यायः |] wares} four a $ a 0 ९ © सव्वेकल्याणएसपु T: समव्बबाधाविवउ्जि at । सुपुष्टं राज्यतन्वन्तु sada महोयते ॥ इति गजशान्तिः OG way Bu विरोहेत्‌कपोतो वामारमध्ये निपतेत्‌ | वायसो वा we प्रविशेत्‌) गौग्यहमारोहेत्‌ । मौरात्ानं प्रतिधा येत्‌ । अनदन्‌ वा सुदित उकल्लिखेदनग्नी वा धूमो जायते वल्मौ- कच्चोयजायते इव्राकनिध्थासच्चोपजायते। AW At अष्टो वास येत्‌ । खप्रेऽख्ि दन्तपतन शहपतिजायां सदहोपतयदिन्द्‌ त अन्येषु वा WAAAY ्रगदेयजनोल्ञ खनप्रत्यग्निमुखान्‌ कत्रा खखालो- पाक जुद्ोति। यत द्रन्द्रभयामह इति पुरोऽनच्य खस्तिदाविश- स्परतिरितियाज्यया नहोत्याज्याहइतौरुपजदहोति व्यस्ते व्याख्याते | Wa इन्द्राग्नौ भवतामवोभिः गत्र इन्द्रावरुरणरा त हव्या | शमि- न्तासो मासुवितायश्योः शत्रः इन्द्रापूषणावाजसातो | कयानयित आभुवको अद्ययुक्ञेभवानचः समनसाविति। faefeaa प्रखति- तुष्टामा घनुवरप्रदानन्‌। saan waaay हतशेषं निदघाति ॥ शन्नोटेवौ tues रायो भवन्तु पोतये शंयोरभिखवन्तु नः । इति सथालौसक्षालनमाज्यगेषसुद्‌कशेषद्च पाचयां समानोयं एतेषूत्यातेषु उत्पन्नेषु विनयेत्‌ । Maer तच्छवोराहणौमद ata t LoTR इमाद्िः। [व्रतखर्डं २२अध्यायः | अन्तं संख्य ब्राह्मणान्‌ सखंपूज्याशिष्मे वाचयिता शिवं शिव्‌- मिल्यद्भतो व्याख्यात; | अरूण उवाच | 00{,)00 नानारोगदतानाच् aife arai aaifcfa: ti अदित्याराघनं Gal नान्यच्छेयस्कर aT | तस्मादाराधयादिव्य सव्वेरोगविनाशनं। ग्रहापघातदन्तरं सर्वोपद्रवनाशनं॥ प॒जयानो जगन्राध भास्करं तिमिरसापद्ं | सथ्य ग्निकार्यं सततं सिष्यथं सुखमा चरेत्‌ ॥ महाग,न्तिशरितिख्यात सर्वो पद्रवनाश्नन |. ग्रहोपच्ातहन्तार SSHRC VE I यत्‌ कते मम सूय्यण पुरा शान््यथमादरात्‌ ¢ सब्वपाप्रः पुख' महाविद्नविनाशनं ॥ महोदयं wifaat लच्दहोममिति स्मतं | तालध्वजपरताकाय महावस्वाय ते AA: ॥ स्वाहेति च दानायेह राति विख्जेद्‌ qu: । महोदराय ताय पिद्धाच्ताय महामते ॥ स्वाहा परत्तःधिपतये arefa विर्जेद्‌ वृधः | उतत्तरादिङमुखायेद महादेव प्रियाय च। ञ्वेताय श्वतवणणंय त्िवेदाय नमो नम. । WMA शान्तरूपाय पिनाकवरधारिणे) SHAS, खाये साहा ईशान आहति \ व्रतखण्ड'२२अध्यायः i} warfz | १०४५४ विखुजेत्‌ BANE fafwaquiaataa | Sa देकं महात्मानं पावकं विःघवनुप) लःकपालसुखं देवं fans यावदादरात्‌॥ एवं इताग्निकायच् सेर्‌ खगवरोत्तम | ल्हौ मच विधिवत्ततः शान्तिः समात्रेत्‌ ॥ Wa: खरिति स्वाहा लक्तहोमविधिः aa: | महादोभे चवे सौर एष एव विधिः परः ॥ कत्वेवमग्निकायन्तु सौरं खगवरोत्तम। लत्तहीमञ्च विधिवत्ततः शान्तिं समाचरेत्‌ ॥ सिन्द रासणरक्ताभः VACHS: | सदखकिरणो Sa: सप्ाश्वरथवाद्नः॥ गभम्तिमालौ भगवान्‌ सव्वलोकनमस्तः। करोति ते महाशान्ति ग्रहपौोडानिवारिरीं॥ सुचक्ररथमारूट्‌ः अपां सारमयोऽम्बजः। सप्ताश्चवादनो देवः शान्तये त्ख तप्रभुः ॥ गोतांशुरख्तांशथ wasfeaafaa: | सोमः सोस्येन भावेण ग्रहपोडां व्यपःइतु ॥ तप्षगोरिकसडगशः सव्व णास्तविशारद्‌ः ) सर्व्वटेवगुरुचिप्रेा ्रधव्वंपिवरः प्रः ॥ दस्परतिरितिख्याती अथयशासरपरश यः| Waa चेतसा शान्तिः परण qaaifsa: ft ग्रहपौड्ं विनिल्नित्य करोतु तव शान्तिकं। सूथा चनपरो नित्य" प्रसाद्‌ाद्वसकरस्य च ॥ १०५४ देमाद्धिः। [वतखण्डं ३३अध्यायः | हिमङुन्देन्द्‌व णभदेव्यदा नवपूजितः। महेश्वर स्ततो NW महासोरो महामुनिः ॥ सूर्या चनपरो नित्यं शकरः शक्रनिभः सदा | नौ तिशास्तपरो faa’ यहपौडां व्यपोहतु ॥ भित्रा्ञनचय प्रस्यम्छाव्राजः सुमहाद्द्यतिः। GAGA: BATA ग्रदपौडां ated ॥ नानारूपधरोऽव्यक्रः रविन्नानरतिश्यः) नोत्परतिजीयते तस्य नोदयः पर्डितेरपि ॥ एकम्ूलो हिमूलश्च तिशिखः पञ्चचुडकः। सहखभिखरूपथ्च इन्द्रकतुरिव स्थितः ॥ aaygasfaygag बद्यविष्णुशिवातजः। नेकशिखरः केतुः सते रुजं व्यपोहतु ॥ एते ग्रहाः महात्ानः सूथाचेनपराः Wet t गान्ति Ra a A हृष्टा! सदा कालदहितेषिणः॥ पद्मासनः पदमव, पद्मपत्र दकेत्तणः | कमर्डन्‌धरः Alay रवगन्धव्व सेवितः, AGH देवपतिः requ: सदा ¦ QUAD महातजाः wa लोकप्रजापतिः ॥ ब्रह्मशब्देन दिव्येन ब्रद्माणान्ति करोतुवे। निष्कालतत्वविज्ञो यः कालवित्‌ कालतत्मरः॥ पौताच्बरघरो टेव अतेयोवरद्‌ः सद्‌ा! शङ्नचक्रगदापासिः श्यामवणंखतुर्मजः ॥ बलि; साच्वात्‌कछतो येन वनेषु परयेव यः| AAG ३२ अध्यायः |] माद्रिः। १०५५ यन्नरटेवोत्तमो ट्वो माधवी मघुखदनः। सूर भक्तयान्वितो faa’ faafafanfataa; | aaa faa’ विष्णुः शान्तिं करोतुमे॥ हे मङुन्देन्दसङ्ाशो गोशरुत्याभरणोऽरिडहा | गोखुतयः सपाः | चतुभजो महातेजाः gu: शशिशेखरः | चतुसुखो भस्मघरः श्मशाननिलयः सद्‌ा | माताणां faaaaa तथच Aqsa: | वरो ACW वरदो टेवदटेवो महेश्वरः 1 तेलोक्यनमितः सौमानादिव्यासयधनें Ta: | आआदित्यपरमो निलयमादिव्यध्यानतत्परः॥ आदिव्यदेहसम्भृतः स मे शान्ति करोतु वे! पट्यरागनिभा देवौ चतुबंद्‌नपङ्जा | अक्तमालापितकरा कामर्डल्धरा भा | AMI रीम्यवदट्ना भरादित्याराधने रता, शान्ति" करोतुते प्रत्या WMA खग॥ ners ते ति विख्याता ्रादित्यदयिता सदा | anata Qafaq ख्यातिं लीके गता खग हिमङुन्देन्द्सदटशौ मदाहषभवादह्िनो | चिशलहस्ताभररण मोखुत्याभरणा सतो ॥ aqua चतुव्वेक्ञा चिनेचा पापनाणिनौ | घध्वजा यानरता TATU णान्तिदाञस्तमे॥ मयुरवादइना देवो सिंहवादणएविग्रहा | १०५६ माद्रि! त्रितखर्ड' ३२अध्यायः। NASA ALATA सन्वांलङ्धारभरूषिता ॥ BATH AAA वनवासपरा AAT | कौमारी वरदा देवौ wife’ सातु करोतुने। कच्छचक्रधरा श्यामा पौोताम्बरधगा खग । Aqua च या देवो चतुर्वद्‌नपङ्कजा | सूय्यीचनरता नित्यं सूय्यकगतमानमा | शान्ति करोत्‌ ते faa सर्व्वासुरविमदेनौ। ररावतगजाषरूढा पविहस्ता महाबला | afaaci | सदृखलोचनादटेवो वणंतश्चम्पकेधणा ॥ {सिडगन्धव्वनभिता सव्वांभरणभूषिता | इन्द्राणोते सदा वीर मान्तिमाशु करोतु वे। दराहरूपा विकटा वाराहवरवणिनौ | श्यामावदाताया Sal गह्चक्रगदाघरष। तजंयन्तौदह निःगेषं पूजयन्तो सदा रविं। वाराद्ौ वरदा टेवौ तव णान्ति' करोतु वे, अद्ेकेगोत्कटामात्ता निमांसा सखायुवन्धना ॥ करालवदना घोरा खडगघण्टोदयता सती | कपालमालिनौ घोरा खटुाङ्भवरधारिणौ ॥ अआरक्तपिङ्गनयना मजचम्भावगुर्िता | गायदाभरणा Sat मगशानविनिवासिन्ते । शिवा रूपे घोरेण शिवाराघधमयङ्कसे ॥ चामुण्डा VSSIY सद्‌ा CF मे। त्रतखण्ड arma: i) Barz 1 १.५७ चरण्डमुर्डकरा देवो AWHWAAT सतो ॥ श्काणमातरो टेव्यस्तथा लोकस्य भातरः t भरतानां मातरः सव्वास्तथा च पिटमातरः॥ BEN पूज्यन्ते तास्तु देव्यौ मनौषिभिः ! माषे प्रमाते aaa इति माटमुखास्त ताः ॥ faatadt ¢ त्राता set at च पितामहो, saaTe पितामद्यः भान्ति" ते पिढमातरः ॥ सव्वमाठसुखादेन्यः BAI! गस्रपाणयः । sme प्रतिष्टन्ल्ो बलिकामा महोदयाः ॥ wife gaa ते नित्यमादिव्याराघने रताः | प्ान्तेन चेतसा शान्ता णान्ता @ भव णान्तिदा॥ सव्वीवयवयुकतेन गात्रेण तनुमध्यमा | पौ तश्यामादिसौम्येन चिचलेखैव गोभिता॥ ललाटतिलकोपेतचन्द्रलखाच्च धारिणौ। चिचाम्बरघरा Sal सव्वोभरणभूषिता ।॥ वरा स्तोमयरूपा्णां शभा गुखमहास्यद्‌ । सव्मन्ते तु सन्तुष्टा उमा Sal वरप्रदा ॥ साक्षादागत्य रूपेण शान्तेन(मिततेजसा | रान्ति iq a tant आदिव्यचरणे रता॥ श्रवलाबालरूपेण षडवक्तः िडवाहनः। पूरन्द्वद्नः यौमान्‌ fire: शक्तिमान्‌ विभुः ॥ कत्तिका पत्यरूपेण समुदटोषः सुराचितः। का त्ति केयो महातेजा अदित्यादरदपितः | ( १३२ , १०१८ हदेमाद्धिः। [व्रनखण्ड aaa: | शान्तिं करोतु सततं फलं Peary wae: | आतेयौमबलां जब तधारोग्यं खगाधिपः ५ खतवस्तपरोधानस्ताच्यश्च RARIY! | शूलहस्तो महाप्राज्ञो ata स्विभावितः + शान्ति" करोत्‌ त णान्तो wa मतिमनुत्तमां' Ua alg भो निल्यमचलं सप्रयच्छतु ॥ मादयसे मद्ाकायो गजवक्तो महाबलः | ना गयन्नोपवोतेन नागाभरणभूषितः ॥ सर्व्वार्थसम्दाधारो गणाध्यच्तो ATI! | भोमगाचो wal Sat नायकोऽथ विनायकः करोतु ते महाशान्ति प्रति प्रोतेन Baar धो तास्वरधरा कन्या नानालङ्ारभ्रूषिना। यसुना स्ताम्विका GUT सव्वेलोकनमस्छता ॥ सव्वसििकरा देवौ प्रसादात्परमा परा) शान्ति Aq a माता भुवनस्य खगाधिप ॥ faquima qau महामदिषमदहनो। धनुः-गशक्रि-प्रहरणश-खड्ध-पट्िशघारिणो ॥ अआजव्रेनोद्यतकरा सर्वोपद्रवनाशिनी | शान्तिं HUG a सौरा दुर्गा भगवतो शिवा ॥ fruita ay खायुरन्ननिबन्धनः। भ्रतिच्छोऽतिव्यक्तो a: wate: faz महान्‌ ॥ PAAR महावोयः AI च कछतमानसः। सनग्थभक्तिपरो fra aa शान्तिं प्रयच्छतु ॥ त्रतखच्छ ३२श्रध्याथ. |] माद्रः [ १९ ०५६ प्रचण्डगगसेन्योऽसौ मह्ाकटाक्तधारकः | अ्तमालापितकरस्त्राचतश्चष्डश्वरो वरः | च ग्ड पापदरो faa ब्रह्महव्यादिनाशनः | शन्ति करोतु ते faa आद्त्याराधने ca: t करोतु च महायोगो RANA परस्परम्‌ ॥ TAIT मातरो SIMI लोकस्य मातरः भरतानां मातरः; सव्वोस्तघा देवस्य मातरः ॥ सुग्धाचनपरा Sat जगद्याप्य व्यवसिताः, शान्ति gay ते faa मातरः सुरपूजिता: ॥ ये रोद्रा Vena रीद्रस्थाननिवासिनः | मातरो रौद्ररूपा गणानामधिपाश् F 1 विन्नभ्रुतास्तधया चान्ये द्वि feg समाञिताः' fafe कुव्वन्तु ते नित्यं भयेभ्यः पान्तु सर्व्वदा ॥ Vari दिशि wat J तु AMSAT महाबलाः | हिम्बुन्देन्दुष्टौगनोल-कशङ्लोहिताः tt दिव्यान्तरित्ता भोमाश्च पातालतलबासिनः। सूधाचनरता Gear: णान्ति' कुव्वेन्तु ते सदा y aaa ये खिताः सव्वं शुतहस्तानुषङ्धिनः | GAMA रक्तास्त, तथा वै रक्षणा: ॥ दिव्यान्तरिद्धा भौमाश्च आग्नेया मास्वरप्रियाः। श्रादित्याराधनपराः श प्रयच्छन्तु ते Wer | याम्यां दिशिमतायेतु सतत दण्डपाणयः) RUIE कछष्णनेपच्या; वरा वे कष्णलोहदितःः » १०६९ देमाद्धिः+ [त्रतखर्ड ररेअध्यायः। दिव्यान्तरिक्तषा भोमाख यमस्यानुचराः GT | आदिव्याराधनपराः शं प्रयच्छन्तु ते सदा॥ नैऋत्यां VARA येतु रात्तसा खल्युपाणयः | नोलाष्ा Maqata तथा वे नौललोहिताः ॥ दिव्यान्तरिच्ता भोमाश्च विर्ूपाक्तानुगामिनः। अदित्यस्याचने faa’ कुव्वं न्रा रोग्यसुत्तमं |} अपरस्यां वरायेतु सततं RANT: | HMA’ कश्रूपाख सद्‌ा ल्षणिकवोत्षणाः ॥ दिव्यान्तरिक्ता Wata अदित्याराघन रताः, RIT A सद्‌ा शान्ति वारुणा वस्णामुगाः॥ वायव्यां संखिता fast मदावेगा्राः खगाः | पौ ताता; पौतनिभाँसास्तथा बे पोतलोहिताः॥ दिव्यान्तरित्ता भोमाश्च आदित्छाराधने रताः) सूथ्धत्रताः सुमनसः षन्ति कुव्वन्तु ते सदा ॥ उत्तरायां fefa गताः सतत निधिपाखयः। गिरिकात्ताः कस्तरिकास्तघ्ा वे कष्णलोहिताः ॥ दिव्यान्तरि क्षा Mara अलकाधिपवज्लभाः। आदिव्याराधनपरा; श प्रयच्छन्तुते सदा + रेणान्यां संखखिता ये च प्रशान्ता; शूलपाणयः | भस्मरोदलितदेद्ा च नो लकङ्णलोदहिताः ॥ दिव्यान्तरित्ता Wats पातालतलवासिनः | aagurat नित्य शान्ति कुर्वन्तु ते सदा ॥ लीकपालानुगा द्यते मदावलपराक्रमाः | AAGQW २२अध्यायः।, देमाद्धिः । sifeq’ पूजयित्वा तु बलिभेषां विनिचिपेत्‌॥ ततः सुशान्तसनसो लोकपालसमन्विताः | MAMAS: सव्व शं प्रयच्छन्तु पूजिताः | अमरावतौ नाम पुरौ पूव्वभागे व्यवस्थिता । विद्याघरगणशाकौ ण सिदगन्धव्वंसेविता । रलप्रकाररुचिरा महारलोपशोभिता ॥ aa देवपतिः सौमान्‌ व्पाणिमेदहाबनलः | गोपतिर्गोसदखेण भ्योभमानेन शोभते | ेरावतगजारूढ़ो गेरिकाभो महाद्यतिः | दन्दः सदस्रनयनः ्रारिल्याराघने रतः ॥ सूरधध्यानेकपरमः सूधभक्ञिसमन्ितः। सय्यप्रणामपरमः गान्ति ते Tawar 0 आग्नेये दिग्विभागे तु पुरौ तेजवती सदा | ATASAT ATMA, नानारलोपशोभिता॥ तत ज्वालासमाकौशां दोपाङ्गारसमद्यतिः | UU Wefeai देह ज्वलन पापनाशनं ॥ टित्याराघनपरा आददिव्यगतमानसाः। प्रान्ति Hig a Sat अथ पापपरित्तयं ti वैवस्वतौ परौ रम्या द्त्तिरे च महामनः | सुरनायगणाकौोणं पिलटर्षोगणाकुला। ततेन्द्नौलसङ्ाणो रक्तान्तायतलौचनः। मदह्ामद्िषमारूटो रक्रस्रम्बस्वभूषणः | TARA महातेजाः WCTAITAT: | १०६२ हेमाद्रिः! [वरतखण्ड' १२श्रभ्याखः १ भादित्याराघनपरः च्तेमारोमग्ब ददातु F 1 aaa aq दिशो भागे Ys. aw fa fagat | महारत्तोगण।कौो णां faa चग्रेतसंकुला ॥ तच स्कन्द्निभो Sat रक्तखग्वस्वभूषघणः | SENNA: करालवद्‌ नोज््वलः t Wate वसेत्रित्य आद््ल्ाराघधनं रतः। करोतु ते महाशान्ति wa धान्यच्च यन्नतः॥ ufaa q feut भाग पुरो शुदवतौ श्भा) ऋरटषिरसिद्गग्णकोणं नानारतसुगोभिता ५ aa कुन्देन्दुसंकाशो हरिः पिङ्गललोचनः | WRAY Sat AIT महाबलः ॥ वर्णः परया Naar ्रादिव्यगतमानसंः। रोगकाशादिसंकाशं तापं निरव्वांपवत्वथ॥ वायव्ये दिग्विभागेतु पुरो गन्धवतौ wart तऋटषिसिदगणाकोणं हेमप्राकारतोरणा ॥ तत Slates AW: पिङ्गल लो चनः । aaa: प्रान्तसन्तानो प्वजयच्यायुषोच्छछितः ॥ चरमः परमो देवो ग्रहेशश्च परात्परः त्तेमारीग्य' बलं शान्ति करोतु सततं तव | महोदया नाम पुरो मन्दरेण महोदया, नानायन्तसमाकौण नानारल्ोपभोभिता ॥ तत्र देवो गदादहस्तखि चस्रम्बस््रश्रूषणः | स्वा इमंहातेजा हरिः पिङ्ललो चन; ॥ त्रतखर्ड ३२ अध्यायः |] safe: । १०६२ शान्ति करोतत प्रीतः ान्तः शान्तेन चेतसा | यगोवतो पुरो wa tart दियमाखिता॥ मानागणसमाक्ोोण नान।क्रतसुरालया। तेजःप्राकारप्थन्ता अनौपम्या मदोञ््वला ॥ तच कुन्देन्द्संकाशो ्रङ्करागविभूषितः | त्िनेवः AMAIA AAAATAT वरः | ईशानः परमो देवः सदाते शन्तिसच्छतु ॥ उमापतिमदडहातेजायन्द्राईकतगेखरः | भूर्लके च भुवर्लोक aaa निवसन्ति ये । Sal देवौसमाकौोण शान्ति Haag a सदा ॥ महर्लोके जनोलोकं तपोलोक च ये feat: | ते सव्व मुदिता देवाः wif gag ते सदा॥ सत्यलोक तु ये Salwar भोञ््वलविग्रहाः : gana. सुमनसो भय निनांशयन्तु ते ॥ गरिकन्द्रद्गषु वनेषु निवसन्ति ये) सूर्य नपर देवा रचां कुव्वन्तु ते सद्‌ा | शरचन्द्रातिगौरेण देदह नामलतेजसा | सरसतो qual यान्ति यच्छतु तेसटा। थातुचामोकरद्छाया सरोजकरपल्लवा| सूभक्ता Paar देवो गान्ति यच्छ्तुत सदा| हारेण सुविचिचेण भास्वत्‌कनकमेखला | ्रपराजिता aati करोतु विजय तव ॥ कत्तिका परमा gat रोहिणो चवरानना। १०९8 डेमाद्धिः। [त्रितखर्ड३२अष्यायः। aaa भद्रमाद्रा च परमोञ्ज्वला | ASTRA युष्या: अक्षेषा च तथा खग । स्या चनरता faa सुथभावेन भाविताः! पूव्वेभागे स्थिता war शान्तिं Gag ते sett नक्षत्रमातयो Gar: Haag रविनोदिताः ॥ अनुराधा ततो ज्येष्ठा मूलं GAIL तथा | FAUST महावोय्यां आष्राढा चोत्तरा तथा | अभिजिन्नाम ada खवणच्च qew | एताः ufaaat Slat Wied चानुमूत्तयः॥ WARE पूजयन्येताः सव्वकालं सुभाविताः | गान्ति कुर्वन्तु ते नित्यं विभ्रूतिञ्ख महाघ्िकां ॥ धनिष्ठा शतभिषायातु पूव्वेभाद्रपदा तथा। उत्तराभाद्ररेवत्यावश्िनो च महामते। भरणो च महादेवौ नित्यस॒त्तरतःसिता। सूर्यां चनरता नित्यमादित्यगतमानसाः। णान्ति कुव्वन्तु ते faa विभ्रूतिच्ख महाह का i षो तषाधिपः सिदराथिदों्िमतां az: | Yat WAIT ते सूथधयोगपराः शमाः । शान्ति कुव्वन्तु ते भ्या सपादाजपूजकाः | धनुः कन्या च परमा मकरखापि ऋक्िमान्‌ | एते दत्तिखभागे तु पूजयन्ति रविं wer y तुला faaagara प्िमेन aafear: | BAN STATAT: न्ति Taz a TT ॥ व्तखण्ड'ररश्रध्यायः 1] Ath: । १०६५ ककटो विका मोन एते उत्तरतः खिताः | Ia ते महाकालमादिव्यं ग्रहनायकं। शान्ति कुव्वन्तु ते faa’ खखोक्रन्नानतत्मराः। यतयः RAYS यै खता: सततं TA: | ऋषयः सप्तवि णाद्याः प्रशान्ताः परमोज्चलाः | सू्थप्रसादसम्पत्राः शान्ति" कुव्वन्तुते wet कश्यपो गालवो गार्ग्यो faafuat महासुनिः। AACA वसिष्टथ मात्तर्डः UAE! करतुः ॥ नारदो शगुरावेयो भरदाजोऽङ्किरा मनिः, वाल्मीकः कौशिकः कणः शालव्योऽथ पुनवंसुः ॥ WAKIA Tad ऋषयो वे खगाधिप | सूगधध्यानेकपरमा आदिलयाराधने रताः ॥ तारकोऽग्निमुखो ea: कालनेमिरदहावलः। एते Sal मदासानः स्यभावेन भाविताः 1 पुरि बलं तथारोग्यं प्रयच्छन्तु सुरारयः। वैरोचनो (SCAT: Baal वसुलोचनः ॥ मधघुकन्दो YHA SA TAWA | भावेन ahaa वक्तान्तायतलोचनः। मद्ाभोगक्लतारोपः UFTARATAT: ॥ Haat नागराजेन्द्र आदित्याराघनं रतः। महापापचयं हत्वा शन्तिमाश करोत्‌ ते॥ अतिशितश्रोरेण स्फुरम्मोकिकसत्रिभः | निलयं राजखिथा gat वासुकिः गान्तिशच्छतु। ( १३४ ) | १०६६ दमाद्िः। [वरतखण्ड'२२अरध्यायः। अरतिपौतेन वस्त्रेण विस्फुरन्‌ भोगसम्पदा । तेजसा चापि दिव्येन कतखस्विकलाज्छनः १ नागराट्‌ तच्तकः Wary नायकोघसमन्वितः। करोतु ते महाशान्ति सव्वदटोषविषापहः॥ अतिलछष्णेन वणन जटाविकटमस्तकः | HAUS रेखात्रयोपेतो घोरदष्ायुधोयतः॥ HUSA Berar विषदणंदलान्वितः | विवसन्‌ सव्वसन्तापं इत्वा शान्तिं करोतु ते ॥ पश्चवणन Sea त्तारूपट्ायतेच्तणः | पञ्चविन्द्कताभासो ग्रोवायां शभमलत्तणः ॥ TAU महाभागः सुथपाद्‌ाचने रतः | करोतु ते मद्ाशन्तिं मद्यपापभयापद्यां ॥ पर्डरोकनिभेनापि देहेनामित तेजसा | शङ्शूलाङ्रचितेभूषितो ahr waar i HUG महानागो नियं भास्करपूजकः | सते शान्ति faa जन्म निखलं संप्रथच्छतु॥ Wiha Feary War कमललोचनः | विषदपबलोन्मत्तो गौवायां रेखयान्वितः ॥ agar: भिया युक्तः सय्यपाद्‌कपरूजकः। महा विषहरो ष्टः स च यान्ति करोतुते॥ अतिदेहेन गरेण चन्द्राईकतमस्तकः। दोप्राभोगक्लताटोपः waaay: ॥ afam नाम नागेन्द्रो निलयं accra ! age २२अध्यायः।] was: १०६० अप्त्य विषं घोरं करोत्‌ तव शान्तिक ॥ अन्तरित्ते च ये ara a नागा; खगसंखिताः। पाताले ये faararat: सव्वेप्यच समाखिताः। सूथपादाचनरताः णान्ति कुव्बन्तु ते सदा। नागिन्यो ATARI AAT नागकमारकाः। सूथभक्ताः सुमनसः शान्तिं gaa ते सदा॥ ata नागसंस्थानं कौत्तयेच्छणुयात्तधा । न तस्य an हिसन्तिन विषं क्रमते सदा॥ गङ्ग GWT मद्ादटेवो यसुना Aart नदो | गोमतो चापिगोनाच वरुणा देविका तधा! सव्वे ग्रहपतिं देवं देषेशं लोकनायक ॥ पूजयन्ति सदा नयः सूखवद्वावभाविताः। शान्ति garg ते नित्यः सुध्यानेकमानसाः ॥ ATAAl नाम नदौ शोनश्वापि महानदः t मन्दाकिनौोच परमा तघा सव्याज्िता war |i एताश्चान्याश्च वद्धो व भुवि दिव्यन्तरोत्तमाः। सुय चनपरा नयः Haag तव शान्तिकं ॥ महावेखवणो Sat यत्तराजो महावलः | यत्तकोटिपरो वासे TATA YA: ॥ मदाविभवसम्यत्रः सुव्यपादाचने रतः । सथध्यानेकपरमः CANT भावितः। शान्ति Rtg a ala: पञ्यपत्रायतेच्तण्‌ः ॥ मणिभद्र Hera मणिरलविग्ूषितः | १०९६ Safe: | [्रतखण्डरेरेअध्यायः। मनोहरेण हारेण कम्बलग्नेन राजते ॥ यकतिरौय्च्कन्याभिः पररिवारितविग्रहः । सूयाच नसमायुक्नः करोतु तव शान्तिकं a सुवौरो नाम aaa मखणिकुण्डलम्ू षितः। ललाटे हेमपटेन प्रठदधेन विराजते | वापिको नाम Tae: कण्ठाभरणभूषितः | मुकुटेन विचित्रेण बहुरलान्वितेन च॥ यत्तबन्दसमाको णो यत्तकोटटिसमन्वितः | सूर्य्या चेनपरः Maly करोतु तव शान्तिकं छतराष्टो महाराजा नागयक्ताधिपः खग | दिव्यपष्टोऽगरुच्छन्नो मणिकाञ्चनभ्रूषितः॥ WANA: TAC: सुथपूजापरायणः। सूय्यप्रसादसम्मन्नः करोतु तवं शान्तिकं ॥ पूणभदरो ALAA: सर्न्वालड्ारभूषितः | ललाटे सेमपटेन uses विराजते ॥ बदयत्तसमाकीर्णो यत्तकोटिशतेन च। सचयेप्रणमपरमः waa समन्वितः। स्या चनसमायुक्तः करोतु तव शान्तिकं ॥ विरूपात्ताख्ययक्तन्द्रो खंतवासा महादयतिः | नानाकाच्चनमालाभिरुपय्ोभितकाच्चनः।॥ स्‌य्यपूजापरो निव्य' कच्ाच्तः कच्सत्रिभः। तेजसादित्यसङ्ाशः करोतु तव णान्तिकं॥ अन्तस्चगता यत्ताः ये यत्ता सूथवासिनः | व्रतखण्डं २ रश्रध्यायः |] देमाद्रिः। १ ° गिरिदुगषु ये यत्ताः पातालतलवासिनः | नानारूपधरा यत्ता WANA SSAA: ॥ ये ARAM MAAR: सय्यपूजासमुत्‌ सुका | शान्ति" gaa ते हृष्टाः war: शान्तिपरायणाः ॥ afawt विविधाकारास्तथा यच्कुमारकाः । यत्तकन्या महाभागा ूर््यस्याचनतत्पराः ॥ शान्ति सखस्ययनं चमं बल कल्याणसुत्तमं | सिदिमाश प्रयच्छन्तु निलया सुसमाहिताः॥ afaat: सवतः सवं aaraa महाधिपाः। wena सदाकालं यान्ति Fag ते पराम्‌ | सागखः सवतः सव ग्रहरलानि सर्वशः | सुव्यस्याराधनपराः बुर्वन्तु तव शान्तिकं। राच्साः सव्वेतखोव घोररूपा महाबलाः | स्थला Vaal FT तु अ्रन्तरित्तचराखये॥ पाताले Waar a तु निव्यं wares रताः। प्रेतानामधिपाः सवं प्रेताख सव्बतोमुखाः | अतिदौोप्ाखयेप्रेतायेप्रेता रुधिराशनाः अन्तरित्तचराः प्रेतास्तधाऽन्ये खगंवासिनः | पाताले yaa वापि ये प्रेताः कामचारिरः॥ एकचक्रो रघो यस्य यस्त॒ Sat बषध्वजः | तेजसा aa देवस्य शान्ति Rar ते Get ये पिशाचा महावोयां छडिमन्तो महाबलाः | नानारूपधरा; सव नाना च गुणवत्तराः । १०७५ माद्रः । [तरतखग्ड'३२अध्याथः) अन्तरित्त पिथाचाये खगे ये च महाबलाः घाताले WAG ये च बहुरूपा मनोजवाः ॥ यस्याहं सारथिव्वार यस्य तवं तुरगः सदा । तेजसा तस्य देवस्य शान्ति कुवन्तुतेसटा॥ अपस्पमारग्रहाः सवं सवं वापि ज्वरग्रहाः। गभवालग्रहाये च दन्तरोगग्रहाश्चये। अन्तरित्तग्रहाये च सान्ति gaa a सदा॥ इति दवादयः सव सव्ज्ञानविधायिनः | कुवन्तु जगतः शान्तिं सुभक्येव सवदा ॥ जयः सुखाय देवाय तमोमोहविरोधिने | जमगतामेकस्यांय भास्कराय नमोऽस्त ते॥ TAUAAA शान्ताय जयः कल्याणएकारिये | जयः पञ्चविकाशाय बुद्धरूपाय ते Aa: I जयो दौभिविधानाय जयः कान्तिविधायिनं | तमोघ्नाय अजेयाय अजिताय नमो AA: |i जयो वाजेथदौेम सदस्रकिर णोज्वल । रयनिजिंतलोकाय बहुरूपाय ते AA: गायतोवेदरूषपाय साविचोदयिताय च। धराधराय PALA मात्तरडाय नमो नमः ॥ सुमन्तुखवाच। 000(D)000 एवं हि विदिता शान्तिररुशेन neta t श्रेयसे वे नतेन्द्राय गरुडाय महात्मने ॥ ATIS ३२अ्र्यायः।| देमाद्रिः। १०७१ एवमन्यऽपि राजेन्द्र मानवा्ाङ्रोगिण१। श्रस्मिन्‌ कनेऽग्निकाय तु नौरुजास्ते भवन्ति हि॥ तस्मा यन्नेन waa अग्निकार्य विधानतः । RIM राजेन्द्र ales णाम्तिल्तण ॥ ग्रहोत्ातषु दुभिंक्ते उत्पातेषु च Aa | अवषंमाने पजन्ये लक्तहोमसमन्वितं ॥ जपित्वा येऽग्निस्‌कन्तु ध्याता रवि प्रयत्नतः) एवं छते WAST वषते कामतो Fat ] saa शान्तिकाध्यायं यः पटेच्छणुयाद्पि । विद्ाय सवलोकांस्त॒ ahaa महीयते 1 HUA लभते कन्यां जयकामो जयं लभेत्‌ | TATA GUA पुचकामः सुतं लभेत्‌ ॥ यंयं प्राथेयते कामं णते मानवी दप । तं सवे शौघ्रमाग्रोति भास्करस्य प्रियो भवेत्‌ ॥ gar शन्तिमिमां gat समग्रा HUA | सं ग्रामं प्रविशेदयस्त ध्यायमानो दिवाकर | स्वान्‌ जित्वा रणे शचन्‌ श्रानन्दपरमो भवेत्‌ ॥ ्रत्तयं मादते कालं अतिरस्तशसनः। व्याधिभि्नीभिभ्रूयेत पुतरपौचप्रतिद्धितः। भवेदादिव्यसटशस्तजसा प्रभया AAT यसुदिश्य asst वाचको मानवं प्रति। न पीडयते रसौ दोषेर्बातकम्पकफात्मकेः ॥ नाकाले मरण तस्य सवपापेन दुष्यते | १०७२ देमाद्िः। [त्रतखण्डंर२श्रध्यायः। न विषं क्रमते देहे न जडो मान्धमूकता। न चोत्मातभयं तस्य नचेवाऽरिभयं भवेत्‌ | येरोगाये महोत्पाता ये wer यन्मह्ाविषं। ते सवं प्रशमं यान्ति खवणद्स्य भारत। qe सवतौर्थानां गङ्गादिषु निषेवितः | तत्यख कोरिगुखित प्राप्रोति खवणादि्भिः॥ द्णानां रजस्यानां अन्धेषाच्च fasraa: | जोवेदषेशतं साग्रं सवबाधाविर्वाजतः॥ WHAT HAWS ABET गुरुतल्पगः | शरणागतदहन्ता च ये च विश्वासघातकः ॥ दुषटपापसमाचारः पिदा माहा तधा! स्रवणाद्चैव पाठेन HUA सवपातकेः । sfaviafad पु अग्निकाय्यमनुत्तमं | GUA सदा टेयं qu कथितं पुरा॥ रणस्य महावाहो अररुणेनानुजस्य त्‌ | अनुजेन पुरा प्रोक्तं भोजकानां aera | सुग गग्यमुखानान्तु णाकरौपे AEWA | तेनापि कथितं we सवपापभयापदहं ॥ दति भ विष्यपुराणोक्ता महाशन्तिः। श्रघाद्नतशान्तयः। AA मत्स्यपुराणे | मनुरुवाच | दिव्यन्तरित्ते भौमेषु या शात्तिरभिषौयते। AaAgw ` १२ग्रध्यायः।] sarfs | १०७३ तामहं खोतुभिच्छछामि मरोत्ातेषु कथव & मच्छ उवाच | प्रयातः सप्रवच्यामि चिविषेष्वद्तेषु च। विशेषण तु Way शान्तिं कुर्य्यात्रराधिप। परमया चान्तरिक्वैषु भोमा fearg aifaa i विजिगौषु्पराद्राजन्‌ भूतिक्षामण यो भवेत्‌ a विजिमीषुपरणेव अभियुकस्तया at तथाभिचारशङ्यां शज्रयामपि नाशने | भये महति प्रापे waar णान्तिरिष्यते ! भूतेषु ट्यमानेषु रौद्रौ भान्तिस्तयेष्यति । वेदना aqua जने जाते च नास्तिके t श्रपूज्यप्रूजने जाते arent शान्तिस्तये ष्यते } भविष्यत्यभियोमे च परचक्रभयेऽपि च । राष्रभेटे च Gara Del शान्तिः प्रयस्यति चह्ातिरिक्ते पवने ae सर्व दिर्गुतिथति | aaa वातजे व्यापी वायवी शान्तिरिति ॥ श्रनाद्ण्टिमये जाते तथा fanaa । जलाशयविकार च वारुरौ गान्िरिष्यतिं॥ अभि णापभये प्रापे भार्गवो च तथाहिज | जाते WHATS प्राजापत्या BETAS | उपसकराणां aaa त्वाष्रौ पार्थिंवनन्दन ॥ बलानां गान्तिक्रामस्य MA च तथा aq | भागनयीं कारयेच्छान्ति' संप्राप्ते वङ्ितेहते । ( १३५ ) १०७४ eatfz: | [amaue १२अध्याथः | WMAP तथा जाते जायागरत्यादिसंक्षये | अश्वानां शान्तिकामस्य तदिकारे समुत्थिते | ्ष्वानां काममानस्य गान्धी शन्तिरिष्यते ॥ गजानां गन्तिकामस्य तदहिकारे ससुत्धिते | गजानां काममानस्य शान्तिराड्धिरसो भवेत्‌ ॥ पिशाचादिभये जातं णान्तिम्त नेतो स्मता | saa जात दुःस्बप्रेऽपि महाभुज I काम्यान्तु कारयेच्छान्ति' संप्राप्ते मकरे तया । धननाशे ससुत्पने कोवेरो शान्तिरिष्यते ॥ FAME तथा्थीनां aaa ससुपस्यिते | yfamawa शान्तिं पाथिवौच्च प्रयोजयेत्‌ # naa feaara च tat al मनुजोत्तम! स्ते aay faaraafea afias aati Mae सोमजातेषु वायव्येष्वद्भतेषु च। दितोये feama च राचो च रविनन्द्न ॥ पष्याम्नेयविशाखायां पित्राजभरणोषु च। उत्पाताये तथा भाग्य आग्नेयो ay कारयेत्‌ yj ठतोये दिनयामे च रानो च रविनन्दन। fea awa arg वासवे विश्वदैवते । ज्येष्ठायाञ्च तथा मेषे ये MARAT: कचित्‌ | Tel भषु प्रयोक्तव्या महाशान्ति; कुलोददह | चतुरं दिनयामे चराचौ च रविनन्द्न। सायं पौष्ण तघादरयामद्धव्रप्रे च दारुणे ॥ aay ३२अ्रध्यायः | SaAtts | १०७५ सरले वरू शट व्ये ये भवन्द्धुतास्तथा | वारर तेषु कर्तव्या महागान्तिमिहोचिता ॥ भिन्रमण्डलबेलासु ये भवन्यद्वताः कचित्‌ | शान्तिः थान्तिदर्यं काथः निमित्त सति नान्यथा | fafafaaaat शान्तिनिमित्तसुपजायते ॥ वाणप्रहारा नभवन्ति यद- | द्रान्रणां waleaqarat | देवोपघाता न भ॑वन्ति तद- इमी कनां णान्तिपरायणानां॥ HAVA | अद्भतानां फलं टेव AAAY तधा वद | त्वं fe af विशालात्त ज्ञेयं सवमशेषतः ॥ Hl उवाच | श्रचते वणयिष्यामि seare मद्ातपाः।, aa मे ठदगगस्त सवेधश्ष्धताम्बर ॥ सरस्वत्यां समासीनं गाग पा्धिंदनन्द्न | धप्रच्छेति महातेजा गर्गो संनिवरंप्रियः ॥# अ्चिंरुवाच | पश्यतां पूवरूपारणि जनानां कथयस्व मे | नगराणां तथा रान्नां तवं हि स्वविंदुच्यते | गर्गं Sars | पुरुषापचारनियमाद्पराध्यन्ति saa: | ततोपराधादेकानासुपसगः Waa ah १९००१ Satis: | [aaa २२अध्यायः। feaafid भौमच्च चिवि परिकौत्तितं। ग्रदच्तैवे कतं दिव्यमान्तरित्तं निबोध मे। उल्कापातो दिशान्द छः परि वेगस्तयथेव च । गन्धव नगरद्धेव afea विकताचया। एवमारौनि लोकेऽस्मिन्‌ आआकाशानि fafafe tq v चरस्थिरभवं भोम सूकम्पर्मपपि भूमिज) जलाशयानां aaa भौमं तदपि alfa a भोमघ्वाल्यफल न्यं चिरेण परिपच्यते | अभयं मध्यफलद्‌ मध्यकालफलं दुतं I mad तु ससुत्पत्र यदि afe; faar भवेत्‌ | सपादाम्यन्तरे ज्ञेयमशुभं निष्फलं भवेत्‌ ॥ अद्रतस्य fanaa feat शान्त्या न दभ्यते | विभिवषं GACT सुमदडइ्यकारक। राज्ञः शरीरे लोकेच षुरे दारे पुरोहिते पाकमायाति GAY तथा वे कोशवाहन I ऋ तुम्वभावाद्राजंन्द्र Was aaa: | gua विन्नेयास्तांसत्व मे aea: खग ॥ वच्वा-गनि-मदोकम्प-सन्धफानिघोत-निःखनाः | परिवेषरजोधूम-रक्ताकस्तमनोद्याः ॥ दमेभ्योऽथ TUS बडइयस्यफलोदमाः(१)) arafaacataa शुभानि(२) ayared | (१, सधपुष्यफल्लोद्रमा «fa काचित्‌ पाठः| (र्‌) शिवाय्‌ दति पुकार घादुः। aaa azar: i] देमाद्धिः। Looe तारोरूफापातकलषं कपिलाकन्द्‌ मण्डलं | ्नम्निज्वलनं स्फोट धूमदिव्यानिलाहतं(१) ॥ रक्रपट्यारुणा सन्धा नमः चूखाणवोपमं | सरिताश्चाम्ब संगोषं दृष्टा गौ शभ वदेत्‌ ॥ शक्रायुधपरिषेगौ विदयुच्छष्कविरोहगं | कम्पोदत्तनवेक्लत्य' रसनं द्रण faa: | नदाद्पानसरसां ACTUAL णञ्जवाः | शीषणि वारिरोघानां वर्षासु शभदानि च(र)। दिव्यस््नोरूपगन्धवेविमानाङ्ञतद्‌ गनं (२) | ग्रहनत्तचताराणं दशनं वागमानुषो(६) ॥ गौ तवादित्रनिर्घोषो वनपव्वतसानुषु | शस्यो रसोत्पत्तिः शरत्कालं शुभाः सखम ताः(५)। श्रो तानिलतुषारत्व नन्दनं सगपस्िरां | रत्तोयत्तादिसखानां दशनं वागमानुषौ। feat धूमान्धकाराश्च णलभा वनपवताः। Sa: सूर्योदयास्तलवं ea शोभनाः HAT; ५ हिमपातानिलोत्यातविरूपाइ् तद्णनं | टृष्ाचलनाभमाकाश्न्तारोख्कापातपिख्र ॥ (१) घमरेखजिराकुललमित्ति वा are: | (२) पतनश्चाद्िमेदानां क्षासु न भयावद्मिति दा are: | (3) दियक्ञोमृतगन्धवं विमानाद्ध तदग्नमितिपादानरं ¦ (४) र्नम्‌ fant शति कचित्‌ पादः। (४) पापाः शर्‌ छता द्तिबा पाडः | १००८ दमादिः | [arg २२ब्रध्यायः। faarmaigaralry गोजाश्वमगपत्तिणं | पताङ्रलतानाच्च विकाराः शिशिरे gar ॥ क्टतुम्बभावेन विनाद्भतख्य जालस्य EVA तु गोघ्रभेतत्‌ | HAMA शान्तिरनन्तरन्त्‌ काया यथोक्ता वसुधाधिपेन॥ इयद्‌ तशान्तो चौत्यातिकं | गग उवाच । देवताच प्रदरत्यन्ति वेपन्ते प्रज्वलन्ति च । आ्ररटन्तिच रोदन्ति प्रतिष्ठन्ति हसन्ति च ॥ satay निषोदन्ति प्रधावन्ति वसन्ति च | भ्रच्लतो वित्तिपन्ते वा शाकप्रहर रध्वजान्‌ ff अवाङ्मुखा वा तिष्ठन्ति स्थानात्‌ स्थान मन्ति च) aaah तथाधमं Veta तथा वसां | यवमादौनि दृश्यन्ते विकाराः सहसोत्थिताः ॥ लिङ्गायतनक्ेनेषु aa वासं न रोचयेत्‌ | रान्न वा गमनं aa a वा टेशोविनश्यति॥ SAMA चोत्ातान्‌ हृष्ट टेशभयं वदेत्‌ | पिता महस्वधग्ध षु तत वासं न रोचयेत्‌ ॥ वसूनां बम्बृजं WA Sau लोकपालजं । व्रतखण्ड२२अध्यायः |] PAE: | १०७९. ज्ञेयं सेनापतोनाच्च यस्मात्‌ सकन्दशिखर्डिजं | लोकानां विष्णुवायुन्द्र विशखकम्धससुदधवं t विनायकीोद्रवं Fa गणानाद्धेव नायक ॥ देवटेव sung देवस्वौषु safe: | वास्त say विन्गेय weruta नान्यथा | ~, भ ४ १।्‌ टेवतार्चाविकारषु Basar पुरोहितः, डेवताचाँन्तु WAT वे ताम्तामाच्छद्य भूषयेत्‌ । पूजयेत्तां ACA गन्धमाल्याव्रसम्पद्‌ | मधुपकण विधिवदुपतिषठेदनन्तरं ॥ o -~ > तछ्लिङ्ाचनमाचरण खालोपाक यघाविधि। पुरोधा ज्‌हयादङ्छो सप्तराचमर्तन्द्रितः ॥ १ विप्राश्च पूज्या मधरान्रपानः uefau: anfed दिजेन्द्र। प्रा्ऽष्टमे च कच्ितिमोप्रदानेः 9, a ¢ सकाच्यणः शान्तिमुपति gio 4 TUR तशान्ती अर्चाविक्ततोपश्मनं | 000 गग Sats | नरिनदीप्यते aa ue खशमलिम्बरः। न दौप्यते चेन्नवान्‌ HUE: Tera BN प्रज्चलेददरुमं यत तथाद्रम्बा कथञ्चन | प्रासाद्‌तोरणदार ठृपवेश्रमसुरालयं | १०८१ @aife: | [व्रतखग्ड ३२ अध्याय; | एतानि aa ददन्ते तत्र राजभयं भवेत्‌ | ~ fc m (9 . विद्य॒ता वा प्रदष्मन्ते तत्रापि SIA | sanifa anifa a: विशालसुपपद्यतं | quaafaat यत्र aa विद्याकददय i afgfeara गगने भयंस्यादु्टिवजिते | feat सतारे गगने तथव भयमादिथेत्‌ ॥ विकारखायुधानां स्यात्तत्र सम्राभमादिभेत्‌। चिराल्लोपोषितस्तव पुरोधाः सुसमाटितः। ती ° eA ~ afafs, alcaarai सषपंश्च तेन qi ¢ कन. दखाव्स.वणश्च तथा दिजेभ्यो गास्ेव वस्वाणि तथा yay | एवं छते पापसुपेति नाशं > + = यद म्मिञकत्यभय fear ॥ रलद्ग तशान्तो अग्निवेकलयं । 000 गग उवाच), पुरेषु येषु दृश्यन्ते पादट्धा देवचोदिताः, वदन्तो वा CAA A स्रवन्तोवा रसं बड प्रोद्य वा विना बाधं शाखा सुच्न्त्यसंक्रमं | फल पुष्पन्तथाकालं दशयन्ति ऋदायनाः I पूरव्वावस्यान्दशयन्ति फलं पुष्पं तथाभवं | att HE सुरां रक्त मघु तोयं सरवन्ति ary व्रतखणर्ड ३ २भ्रध्यायः] Bartz | | १०८१ प॒ष्यन्यरोगाः सहसा BH रोहन्ति वा पुनः | उत्तिष्ठन्तीह पतिताः पतन्ति च तथोत्धिताः ।॥ तच aaifa ते ब्रह्मन्‌ विपाकंफंलमंव च। Gea व्याधिमभ्येति हसने टेगविभ्चम ॥ शाखाप्रपातने FATT संग्रामे योदपातन। बालानां मरणं कुव्योत्‌ बालानां फलपुष्पतः i स्वराष्टभेद कुरूते फल पुष्मनन्तर्‌ | तयं aaa mat ae दुभि चलक्षणं i WAY सप्रहारेषु वोयमन्त्ं न रोहति | Ua Aral महाराजभयं HEART स्थानात्‌ स्थानन्तु गमन देगभङ्ग aafetg ॥ जल्यत्‌स्रपि च दक्षु रोते at waa ॥ एतत्‌पूजितहच्ेषु सव्व रान्नोऽपि पच्यते | ga: फलै शाधिकते रान्नो सत्यस्तथा रित्‌ ॥ अन्धेषु चेव aay वनत्तोत्पातेष्वतन्दरितः | आच्छादयित्वा तं aa गन्धमाल्येविंभूषयेत्‌ ॥ HMA AATSA कुय्यांत्पापप्रगान्तये | fuanwuae वं पश्चा निवेदयेत्‌ | aaa इति यदौमान्‌ eal रुद्र WIA: | मष्याज्ययुक्रन सु पायसेन संपूज्य विप्रां ख yay दद्यात्‌ । Waa Baa तथाचनेन देवं हरं पापवबिनाशदहेतोः ॥ Can तशान्तो हक्ोत्यालश्नमनं | ( १३६ ) नर , १०८२ रेमाद्रिः। [ततखग्डं३२्अध्वायः | गमे उवाच sfaatexmafeefaafend ad | sam ¢ दिनादूदै afewar भयायतु॥ gaa fanart चेव विज्ञेया राजदत्यवे | शो तोष्ख॒ता विपय्यीसे र त्‌ नां रि पुजग्भयं ॥ wind वषते यत्र तत्र श्ठभयं भेत्‌ । agiqaigaggy नगरं संपिनश्यति | मज्जास्यिसरेहमांसानां जनमारभयं भवेत्‌ ॥ Ti उवाच) प्रविशन्ति यदा ग्राममास्खसूगपत्तिगः | अरण्य यान्तिवा ग्राम्याः खलं यान्ति जलोडवाः ¢ स्थलजा वा जते यान्ति घोरं वा सन्ति निभयाः। राजदारे प्रहारं गिवा वाप्यशिवप्रटाः॥ fear रात्रिचिरा वापि राचोवापिद्वाचशः) ग्राम्यास््यजन्ति ग्रामं वा agra बविनिदिखेत्‌ oy दोषा वा सन्ति aaa मण्डलानि च Gaal । tai विप्रियं यच तदा प्रेतफलं लभत्‌॥' प्रदोषे HRCA हेमन्ते वापि कोकिलः, रको दयेऽक्राभिसुखो शिवा यमभयं वरेत्‌ | VENA: प्रविशेत्‌ waver सुदि लोयते। Bay वाऽमकत्तिका gaa सेत्यग्टदपतेभयेत्‌ nv प्राकारदारगेदेषु तोरखणापण्वोधिषु | बोतुच्छत्रायुघाख्ये षु क्रव्यात्‌ संपतते यदि p व्रत खण्ड २२अध्यायः!] दमाद्रिः। १०य्द जायन्ते वाय TAMA मधु वा स्यन्दने यदि। प्रदेशो नाशमायाति राजा च खियते तद्‌फ॥ Waar WAU दष्टा प्रभूतं APs भवेत्‌ । काष्टोल्मूकासिशखङ्गास्याः शखानोमरकबेदिनः॥ दुभि त्तवेदना Fart काका धान्यसुषो यदि | जना भ्रमिभवन्तिस्म निभया रणवेदिनः॥ काको मेधनगुक्तश्च श्वेतः स यदि हश्यते । राजा वा faad aa तदा ear विनश्यति ॥ उल्‌को aad यत्र निपतेदा तथा we | जेयो Weds त्यं ननाशस्तयेव च | सृगपच्तिविकारेषु कुष्याद्ोम सदरल्तिणं | Zar: कपौत इति च जप्तव्यं vafufes: | सुदेव इति चैकेन Sar गावः weferar | जपे च्छछाकुनसूक्तञ्च मनोषेदथिरासि च। देवाः कपोतादयो मन्वा awe ufser: | गावश्च ear विधिवत्‌ ददिजानां ARIAT षसरयुगोत्तरोयाः | एवं aa शान्तिमुपेति पापं खगे हिं जेवा fafaafed यत्‌ । इद्त शान्तौ गपक्िवेक्तोपशमन | 0000 गगे उवाच | प्रासाद्तासर्णच्छाद्‌ हार WHI wat | १०८४ Sali: | [त्रतखर्ड १२ेअध्यायः। निमित्तन्तु पतित esrat tase | रजसा वाष्यधूमेन दिशो यत्र समाकुलाः | आदिव्यचन्द्रतारासख विवर्ण भयलद्धये ! Taal यच ea ब्राह्मणा fafa: | qwaae विषययस्ता अपूज्य YHaSAA: | adatfa वियोगानि तन्महङ्चयलक्तगा ५ कतद््योपरागे च feat श शिसुयखयोः | फल पुष्प तथा धान्य हिरखाभरणानि चं ॥ चां शुजन्तु(१) फलानाच् ae रोगजम्भयं | छिद्रञातिप्रवघायां शस्यानां प्रोतिवश्चैनं ॥ विरजस्क रवावश्चेयदा च्छाया न दश्यते | श्यते न प्ररोपे बा तत्र टेणभयं भवेत्‌ ॥ fara alfa TI वा Ra याम्योत्तरण चच) दून्द्रायुधं तथा दृष्टा उक्कापातं तथेव च॥ दिम्दादपरिषेषौ च गन्धदनगरन्तथा | परचक्रभयं ब्रूयादहं शोपद्रवभेव च ॥ सव्यं न्द्‌ पजन्यसमौर शानां हो मस्त arent fafuafesre : । धान्यानि गोकाद्धनदत्तिकाशरू देया दिजानामधनाश्दतोः॥ + [~ CERAM हष्टिवेक्लतप्रशमनं। १ पत्रे ति कवित्‌ Gas WTS: | * AAGW ३२ अध्यायः । 1 मादि । १०८५ गं उवाच, नगरादपसपेन्ते समोपसुपयान्ति वा । नयो दप्रखवणा विरसा fe भवन्ति a विवंकलषः तपरं फेनवजन्तु सङ्क लं ! ्तोरसेदसुरारक्त वदन्ते TEAST: | घरमासाभ्यन्तरे तच परचक्रभयं भवेत्‌ ॥ जलाशया नटन्तं च प्रज्वलन्ति कथन्ति ar विजल्पन्तेऽति जिद्यच्च ज्वालाधूम esi च ॥ अखाते Al जलोत्पातः समथां वा AATTAT, । ANAT दृश्यन्ते जनमारोऽच सम्भवेत्‌ ॥ दिव्यास्नोगोभयं सपिमधुनात्रावकेचनं। जघन्या ATAU मन्त्रास्तेस्त होमो जसे भवेत्‌ | AAR परमान्नरमचर देयं हिजानां दइिजभोजनाथं। waa टया: सितवस्रयुक्ता- स्तथोद्कुम्भाः सकलाघशान्ते | Cag तशान्तो सलिलाशयवेक्ततं | -----6000---~-~ t? गग उवाच) श्रकालप्रसवा नाः कालातोतप्रजास्तया। विक्षतप्रसवाखव युग्मप्रसवन।स्तघ्रा | भमानुषास् VES AAA BAA | Safe: | [व्रतखण्डं १२ अध्यायः | Hag यधिकाङ्मश्च जायन्ते यदिवा aa ॥ स “y र ana: पत्तिगखव तथेव च सरोरूपाः,। ५ 0 विनाशन्तस्य टे गस्य कुलस्य च विनिदि भेत्‌ ॥ निवांसयेत्तां पतिश्च राष्टात्‌ fare पूज्याश्च ततो दिजन्द्राः। च यद च्छ क तरी ह्म णतप्य ण _ लोके ततः शान्तिमुपंति पापं । दति वेक्ततशान्ती प्रसबवेक्लतं | ~-----006 0 गम्‌ उवाच | यान्ति यानान्ययुक्तानि युक्ञान्यपि नयान्ति aq t चोदयामानानि aa स्यात्‌ मदद्वयससुत्थित ॥ वाद्यमाना न वादयन्तं वाद्यन्ते वाप्यनाहताः। अ्चन्ताश्च Waals न चलानि चलन्ति च| उपस्करादिविक्ते घारं शस्त्रभयं भवेत्‌ ॥ वायोस्त gat दिजपु्वेख कत्वा तदुक्तां श्च जपे मन्त्रान्‌ | ददात्‌ प्रसूत परमान्रमव्र सदसि णन्तन शमोऽस्य WIA: | इ त्यपस्करवकछनोपशषमः। त्रत खण्ड २२अध्यायः |) माद्रः | १०८७ augafaataaa ततापि मयमादिओेत्‌ | स्वियश्च कलहायन्ते वचा निघ्नन्ति बालकान्‌॥ क्रियागामुचितानाच्च विखितियंच ema | afmaa न दौप्येत इयमानाषु wifey i पिपोलिकाय क्रव्यादा यान्ति वान्तरितास्ततः। पू कुन्भः स्रवन्ते च विवा विप्रलप्यते | agar खामिनो यत नश्युयन्त समन्ततः। वेष्वा घते वापि wane सति निन्दितः (१) ॥ न च देवेषु aa यथावदाद्भारेषु च। \ मन्दटघोषानि वदानि वाद्यन्ते विस्वराणि qi गुरुमित्रदिषो यत्र शचपूजारता जनाः] प्राद्यणान्‌ PHA जनो यचावमन्यतें | प्रा न्तिमङ्लदह)मेषु नास्तिको aa जायतं। राजा वा स्रियते aa सव्वेदेभो विनश्यति । ara विनाशे संप्र प्त निमित्तानि निवोध & | ब्राद्यणान्‌ प्रथमं इष्टि arta fafaefa | घ्ना द्य गूानवमन्येत ब्राह्मणं जिघांसति | न तान्‌ स्मरति Bay याचितञ्चावमोयते ॥ नमन नचाशिश् wal नाभिनन्दति) ayaa at लोभात्तथा सम्पोडिते wat ————_— ~~~ ~~~ १९ प्रडसन्ति सत वन्ति चेति कचित्‌ पाठः १०८८ a walfe:) [वरतखण्ड ३२ vara: | * 0 गो एतांखाभ्यचयेत्‌ सम्यक्‌ सपन्नोकान्‌ दिजोत्तमान्‌ | Ay 9 भोज्यानि चव काययोणि सुराणां बलयस्तथा। गाव देया दिजपुङ्कवेभ्यो HATA ABWAAACTA | होमय कार्ययो हिजप्‌जनच् * ~ ~ प . एव क्ते गान्तिसुपति ag | दति मत्द्यपुराणोक्तान्यह्नतश्षान्तिकानि समाभ्रानि। इति गओौमहाराजाधिराज-खौ महादेवस्य समस्तकरणा- घोण्बर-सकलविदाविगारद्‌-खौदेमाद्विविरचिते चतुव्वग चिन्तामणौ व्रतखुर् भद्धतश्ान्तिकानि समाप्तानि a नत्त 2 , AA + 4 AAT ५ 7 ^ en A | ॥ £ 4 ^4 १ ॥ ^ : @ + | Central Archaeological Library, awe EO, | DELHI. | ae OF) wv Ms ~> _ {2.4 © Call No ॐ८22>€ | How | Title— af alas werbe | . ८८ ॥ book that is shut 1s buia block? ~~ १ OSI. =” GOVT. OF INDIA | @ - . < ` Department of Archaeology 8 ` NEW DELHI. % | "Please help us to keep the book ` clean and moving.