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UNIVERSITY OF TORORTO LIBRARY

WILLIAM H. DONNER COLLECTION

purchased from

a gift by

THE DONNER CANADIAN FOUNDATION

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BIBLIOTHECA 17104 -

COLLECTION OF ORIENTAL WORKS PUBLISHED BY THE ASIATIC SOCIETY OF BENGAL.

New Series, No. 266, 981, 994, 1026, 1033, 1049, 1088,

GADADHARA-PADDHATAU PRATHAMAM KHANDAM KALASARAH

GADADHARA RAJAG RU

EDITED By

PANDIT SADASIVA MISRA4 SOL I.

= ON ~~ ee ON gsr, ~

0५071776; PRINTED AT THE BAPTIST MISSION PRESS, AND PUBLISHED BY THE ASIATIC SOCIETY, 57, park STREET. 1904.

कालसारस्याशुद्धिशुहि-निधण्टः |

quire: | तुलश्चोवश्ात्‌ सिडान्तश्थिरमगौ

शरुद्धति त्रतान्तकं म्ुख्याकाल्त पालकः UTS र्षेः .. दिश्वामिचः कलाकाष् मटोनं

ददशो

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चतुद श्यप्यमावास्या गख्डिचा

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१९८०

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सपिण्डोकरगावचारः

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पद्भयङ्गः |

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मध्याहे

प्रमातिकोक्तैः ...

प्रतिषिद्धयते दानवौ aq... सौगाग्यो WS मभूरत्वात्‌ AG... प्राणिन विद्याद्र शान्तिकाध्याय श्रद्ध

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५.७

कालसारश्तप्रमाणग्रन्थानां ग्रन्धक्षताञ्च TARA | eben

नामानि way

BUM ASAT २०, २२९६, २२१०, UE, URE |

अङ्गिराः ALE, URS, २५७, २६६; २७२) २७५, ROS, ACV, RER, RTE, BOA, २०२, ३०७; RO, BRO, २२६; ४१४; ६६२

Bra: २९२, ४२५ |

आ्नेयएुराणं Oo, १२६; UBS, २८५, Bey, BRR, BRE, BUR, QU, Bod, 8०७, ६०२ |

BATH: १२४, २२६ |

आयष्या श्रतिः 298 |

अदित्यएुराणं ५२, ५४, €9, १०१, RWW, २५८, 29%, ROP, ३६१; Be, Er? |

अआआदिएराणं २९९, २०९, ३९६२, ५४२. |

आपस्तम्बः १८, yo, CO, ES, LUG, Bee, २०२; ALB, २२५; २६४ २७२, २७४, ३२३, २६३२; FOO, २७८ ३८९६; BBR, 8९६; URS, ५४६, ५५२; ५५६ , ५९६ |

आअाश्रलायनः ९०२, ४१९६; ४२० |

ईशानसं्िता १६०, १६२; १६४ |

उत्तरसौरं २२० |

उप्दारस हारः ७२, |

श्रना; ६६, BOR, BRT, BUC, BRO, BRS, BRO, ५९८ URR, URS, ५५२, ५५६ |

नामानि पर्ष

ऋटष्यष्रटङ्कः २४२, २६४, २५४, BSS, BAR, BRE, BOS |

रकाम््रपुराणं ११९, VEU, VER, १९३ |

कर्वः १२७, BOS, ४१२ |

RATA ३६६, ३२७७ |

कल्पतरूः VR, AO, VAR, १८०; VEO, AV, ALS, २२३, RRB, २६३, ROY, RSE, २९७, २५३, BIO, २८२, २८९; ४०१; BR, ४२६) gad, ६३८, BBY, BUY, ५९०, ५४४, ५५७, ५६० ude |

कश्यपः RVR, २२६, २३२० |

AISHIZE] २३४, २२८, २२९, २४३२

कात्यायनः YR, १०१, URE, २३१, ABR, VBR, १४४, Rad, २४४, RUE, RSG, २९२, २२१ ०००, ४९०, ERE, ARR ees, ४४१; BBR, ४५५; BER, BOO, ४८५, ५१२, ५२७, ५२७; ५६० |

कारमिकः १६२ |

HINT alt: ROE, Bed, ३९०, ४०, ४२.७, BYR, BES, BER |

कालमाधवौय ५७५ |

ATMEL: BR, ७४, ९५३, २९३, Ae, BS, ९४८, ४९६ |

कालादश्रौय संग्रहकारिका 29%, २४३, ३२५ |

कालिकापुराणं Yor |

MICA चयन २९०, ROS, २१९, ३१८ |

AIMS २६ |

FAUT 3; ५९, ८४, AW, १२७, १२९, १३२, १४०, VBR, २०४, Re, RAY, २९४, २९६, RES, २९१; ४०४) BOS, yes, ६००; ROR

HAMA ९३३, २८७, २८८, ५८० |

छत्यमद्धाणेवः ५६७ |

( ओ)

नामानि पचे

छष्णटहत्‌पण्डितमदापाचः १०१; ९२२, २०८ |

HAS ४५५ |

कोषः ४३१ |

कौधुमिः २४२ |

कतुः ४७७, Bee |

गभस्तिः ४९९१ |

TRAST वा तातते पुरां ५५, SE, Yoo, We, Rd, २९०, ree, REC, BRE, ६०७, ६०८ |

गाग्येः २५, 98, ४५, 8७, २०३, २३८, ४५३, ४५७, ४९७, ५९९ |

गालवः ३९८, ३८९, ४०४, ४९७, BRE |

ग्रह्यपरिश्िि्टः २२३, २३९ |

Wasted ३२५

ग्द्यख्चभाष्ये २०८ |

गोभिलः BS, १३, YOR, YES, BER, ३८७, २८८, ४००, ६०४, ४०५, BOT, BAO, BUS, 8२०; ४२९; BRB, ५२८, ५७२।

गडः UR, BVA, ६१२ |

गोडसं बत्‌सरप्रदोपः SR, VLR |

mista चिन्तामणिः ४४३।

गौतमः Roe, २०२, २१२, २४०, RSE, ३९६, BY, २७४, goo, ४४८, 8५५, ४१५७, Bde |

HINT: ५२० |

कन्दटोगपर्शिष्टु २०, Res, २५८, २९९, २७७, ३९० २३९३, २९१९, २२९) २५५, RET, ROU, ३९५, RES, ४००, BOR, ४०४, ४०५; BAR, BAYS, BRB, ५७०, ५८६ |

SIGE RE RUS, २७८) २८६, BRB, ४०४, 8०५, BO |

नामानि पचेष

जाबालिः ६०, १७७, २३६; २४२, २६०; २९४, ROO, VE, २९ 9; ३०८, ४२३२, ४२३, ५४; BER, BER, BEE, ५८८ |

जमिनिः १९९२, १३२, २५९, २७७, BOB, २५८१ |

Sana रामायगं ३२१ |

ज्योतिः पितामहः २३४ |

ज्योतिःशास्त्रं ३, €» UR, BB, ४७, ६८, १२३, Re, २९७, VUE, RR, २२८, RAE, VBL, VBR, २२५, २३६, RS, BRE, ४५८, BRS, ४६९, BOR, ५४७८, YSE |

ज्यो तिःसागरः 228 |

ज्योतिःसिडधान्तः 234 |

तिथितत््वकारः १०५, १०६; २०७, ALS, २२४, BRL, ४६२, ४७६, ५०१५, ६१२ |

तेत्तिरौयश्ाखा नारायगौयं ५;

SAT २६९; ROO, AUB, ROY, BEE, kw, WES |

दाच्तिणाव्यसग्रहकारिका 228 |

SUTRA १०३ |

देवलः ५१, ५५, ५७, TY, ८१, १२२) १३०, UBS, १६१) २९०; २२५) २५५, २८२, BOB, ४२.३२, ५००, ४०४, YOY, ५२२, ५२७, ५३८, ५१४९; ५५०) WAR, VB, ५९५; Wed, YOST, ५८०, ५८७, YER, ९१५३ |

SHAE <=, Se, =३, SS, QR, 2B, Lou, २९९, १९६२. १२५; ९५७, ReR, २२०; २५८९) BER, BRE, BOE, BSS, ५७८) YXo, ५८२, ४८३, ५९२ |

Ua yor |

धबलसं ग्रः ९२, ८२, १५२, ९८२., ASR, 8४६, ४७५ |

नामानि पेषु

घोम्यः २७ |

नन्दिएराणं R¢, ५८४ |

नरसिंहधराणं १४५, ३२२, ५०७ |

नागरखण्ड २४३ |

नारदः १०२; CRO, १२० २२२, ARE, VER, RR, २२०; २३९ Es |

नारदौयपुराणं २४, २५, २९, इद, BE, ४०, ४५, ४८, 99, 8, €<, १२६; ९२७१ URS, URE, ARO, VBE, US, ASR, VRE |

नारायगभाष्यम्‌ ३६९; २६६; ४०९; ४०२, ४२५) BRM, BRO, ४३२, 8२७ |

निगमः ४९६, SS, १२८, १५२, ९२५७, ५३७, UO, ५६१५ |

निबन्ध्‌ २०१; २२४; २४९; RUE, २०६, Boe, ४९५, ५०४।

निणेयाम्रतं २०२ |

नोतिरन्नाकरः ८०, २०२; १२द्‌

न्सिंहतापनौयं 228 |

पञ्चाननः ३००, ३०२ |

WATT ९द्‌, ९९; ९७) US, ३७; RS, RE, 8%, dd, ६७, Od, <, ९.९५, १२५, ९४२, USS, २५१.) १६५; १९०; १७०; ४२५; ६०९ |

पराशरः ४९, LAR, १६६; AAA, RSE, ३९५, RAK, ३३९, ३४८ |

परिशिष्ट ede, ४९१. ४९२ |

WITT: VOR, २९४, RAY, २९९, RUS, २२२) २९०, ROR, Rod, २७०८ २८२) VER, RU, ROU, २२२; BRB, २२५; B92, ३७४, BRE, BBO, ५७० |

पितामहः २२, १४१. |

पिद्टचरणाः EC, RSS, २९० |

नामानि पेष

QUIT ST, TY, EB, १६२, १६४, १८१, BLE, BEM |

परुषो त्तमपुराणं १८8 |

TA १२२, RL? |

पुष्कर पुराण For |

पव्वीचाय्याः RT |

Wstafa: ad, ४९) ५२, ६५, Sy, २२१, २२४) |२३७, २४०, २४५, २९५, २६८, ASE, Boy, २०९.) BRS, ASS, Bow, Boy, ४०६, 8०९, BL, BE, BRR, ४८८, Bo, ५०९, ५१८) URE, ५२९) ५९२ |

प्रचेताः BY, २२९, २५९, २९० ४२६, BRR, ४२९, ४४० ५०४, ५७०

प्रजापतिः १७३, २४६,२६ ०, ROE |

बङ्ृचपरि शिश ९७२, |

SEM €, २३, BY, २०२, २०४, २४१, VAS, ५८१, ५८८।

ङद्धगोतमः ३८०, ४९०, ५९७ |

BRAT! २०३, २८६, २०४।

खृद्मिद्िरः २४९५

SEAM: ६५

खद्ग्रातातपः AYO, ४४१, Yes, ५४९, ५६७ |

Zula ३०२ |

रहत्‌ पचेताः १८२, २९४ |

खद दशिष्टः वा TWHIMS: SR, ५८९, ५८१, ५५8, ५९ द, ६०३, Cos |

दषद्दन्नन्दकिश्वस्पुराणं २५९ |

BCAA २८५, २७८, २९०, २९२, २.९४, ३०३, २२५, २८९६, ३८०, BUR, ४६५५ ६९१० | #

नामानि qay

Seta ५8, ९२, ५८४, RIS, २४१; २५२, २५५, २५६, RES, २८०, RES, RAV, RRR, BUS, RUS, २९०१ REV, Ber, BRS, BEC, ५२४, ५२५, ५५५, ५६२, ५९४, ५६५, URE, ५८९ |

बोधायनः BR, YO, ९५, १५९, VES, २२०, २२५, BR, BOE, २८०, RS, RTO, BAY, SRS, BRE, BSB, ५९१; ४५९१) ५६०, YOY, ५९४ | # `

AMT YR, VB, Br, BR, By, WB, Ws, ९४. द्द्‌, CO, Oe, ७६, SOy CR, ९५, ६०१; ९०८, VE, ART, १२०० VBR, ९४२ १७८, ROE, २८४, १८५, USK, USE, १८ ०, २२१. REE, ROP, RON, QS, VSR, २८३, RSE, RER, २९३; RES, REE, ३००, BLO, RAR, BRL, ३२८; BRE, BUR, २५९४ RUS, २५९; २९६, REO, goo, 8०९, ४२8४, ५२६, BBs, 8५१; BUG, BEX, BER, Bey, BOR, ४८३, ४८४, BTS, YOR, ५२९, ५९१२; URE, YRS, URE, ५३०) URL, ५७२, ५९७, ५६२१ UR, USB, UCU, UME, ५७०, ५८२, ५८४, ६०० |

ब्रद्मवैवतते एराणं ५४, ९९, OY, OF, ८३, ८७, ES, ९००, AUS, १३०, TBs AR, VES; १,८१.१ इर, VE |

ब्रह्यसिडधान्तः १०, १९) २३२, २२५, २५४; USS |

ब्रद्याणडएराणं Ro, BS, URS, VRE, ९५०) UE, १८५) १९ ०, uy, 8९०, BEX, YOU, ५९६; URS, ५५८, UCB, ६०२, ९०8, dod, ०८» ६९२ |

भगवतीषुराणं १०३, १०९, ४६५, ६१० |

भगवदुक्तिः १६५, Be |

भगवदुगोता ४।

pe २०२ |

नामानि Tag

भरदाजः BEG, ४२१९१, BY, ४२३ |

भविष्यषएुराणं १४, १६५, BR, Re, BE, ५८, UE, ER, ६९१ OX, 932, OT, OE, ८०, SY, SK, SS, ER, EY, LOR, १०६) LOS, ९९१९; ९९५; ९२०; १२१; URE, ABS, UMAR, CUR, १७९, १८२, VER, २१९१, २९१८, २२२, BE, BEE, २७५; BOE, २८ ०; BER, Gor, 8०२, ४२०, Bd, ४१७, 8३२०, BYR, ४५३१४१५७, BUS, Bed, ६१२ |

विष्योत्तरपुराणं 9, २०, ३९, BO, ६४, ७२; €%, ER, 8, १०१; ९०४; ९०६) ROS, १,१.२, २,९.२५ ARS, URE; VOU, VOM, ६१०; १५६, WLS, YOO, VSR, Bod, ०७, BOY, ५७६, ५४७७, ५८१, ५८९ |

भागवत १०५, ee |

wy वा wywfa: fo, १४४, ५९७ |

भोजराजग्रोवागमसंग्रहः 8 |

मण्नाचाय्थेः ३८५

मव्छएराणं Ud, Re, २७, BR, ४१, Sq, १३२, ९२२, ९४५, ९४६) १४६) २१०, RLS, RBI, ROR, RES, सव, Ae ds २५४) FOO, २८१; २९२, २९8 ४००; 8०१, BS, BR, BR, ४३२, BUR, BUR, ४५७, 8६8, ४८०, 8८१, BEB, ५०७, ५९२, URE, ५७२, १६३, UES, YEO, ५९६, ०२, ६०४ |

मदनपार्जातः २२४, ६३ |

मनुः २०, UR, ५९, ९७१, १९8, VEE, २०१; ROB, ROU, २०९, २९१७, ALS, AUS, RRO, RRR, RRB, RRO, RUE, VOIP, VSR ON, २९०) RER, २९४; RES, २९९, ३०१. ३०३, २०७, ALR, २९७ २२०) RRB, २२५५ २५९. २५२, २३५४६; २९२, २९६; RED, ROR;

नामानि पेषु २७8, ROK, ३८०) SR, २८४, BTU, ४२६४ BRS, BRU, ४५8९) BUS, BEX, BER, BES, ४८०, BER, ५९१. ५९.8४; URS, ५२१; ५२१४, IRE, ५२७, ५२९; YRS, ५8४५, USE, ५४५९; ५४५२; YUE, Wud, ५९०, YER, WER, UKE, USE, USE, VEN |

AMILATAT VRB |

मरोचिः ४६, २४११ २४२, २७४, २५९, BUS, २६८, ३८२, २८६; BER, 8 ०९, BR, BEY, BOY, BOS, ५०७ |

ABTHTRT UR, १५; ९८, २० RR, २४, RR, ३९; २७, ४१; ६८, AEE, YER, ROY, RSE, Red, RYO, BRO, २५९, RES, REY, 8९४, BUS, BOS, ४८०, ४८९; BSR, BT, 8८७, ५०७, URS, ५२३, URE, USR, ५७१. ५९११ ६०8; EAR

महाटमोपडतिकारः १५०७ |

माधवाचाययेः ई, ४२, ५२, ad, dR, a, ६७, de, OR, ८, Qed, VI, ULE, ९२२५ १२२, URS, URE, UEP, VOR, RAW, RRO, २४२, २४६; RET, RSA, ASR, २८४) २८५५ BRY, BRR, yey |

ATHBATETT ५२, ५७, १०८, ALE, १२७, UBB, १४७) REV, २७१, ३२४, २५५, २५७, BEB, BUC, BE, BOB, BET, ५९१, ५8०, ५8६२, ५8७; ५७५ |

मंचेयग्टह्यपरशिष्टं ४८८, ४८९ |

मेधिलः ३६५

UA? ११७, Ve, VEC, २२१; २२६; २९०, REO, RES, ROR, २८४, २८६, २८७, २९८, BLY, BER, BOC, ४०६, Boo, ४२४, ४९8) BOE, BTS, YR, ५९२, WRB, URS, ५९६; ARS, ५१९; ५२२,

BRS, USE, १५९१; ५५8, WAY, ५५९, WAS, ५६४, ५७२, UCR | 2

नामानि प्रेष

यमदभिः ३७९६, ४८< | |

याज्वल्क्वः ईर, १७० १९० Roe, Rok, र, गा ९; २९१४, २९६; २२०. RRB, २२४,.२७२, RER, eee, REE, REE, ROO, AUR, २९४) RLY, BLS, २२०; RAV, RRR, २५२. ३५८) २६५, REO, REC, २५८५, २९२, ४०३, BCR, BRE, ४३०) BER, ५११, ५४९९ ५१९, WU NER, 8a ee

याज्िकाः २५२ |

योगौरः €५, Bud, ५५७ |

CAATAT २२८।

wag: २६७ |

LIHATUIB: २८ SB, १०२, १९६८, २०२, २५३, Bod, ६०६ |

रामायणं १२०, १६९, BB, Bed, Bey |

BAYT! REE |

रु्रयामलतन्त्ने Lod, Ved |

AAT: ३६८, ५८९ |

HASTA १९१; २३४, २४४, ३९५; BUY, २९९, ४४५, ५७८ |

लिङ्गपुराणं ¢o, OR, TB, TE, ९५५, १६०, WOR, १७७) VER, २६०, २६५, २६८, १९५

लीकाच्िः ४९२ |

लोपात्िः dd, ३८६, BRR, BAS |

वटेशखरसिद्धान्तः २३७ |

वत्सः ६० |

वराद पुराणं १५; RR, ७५, १३२, १५८, २९१, २६५, REO, BRE, Res, ५९०; WR, ६०७ |

वराहसंह्िता ger |

( ae)

नामानि पेष

वशिष्टः €, Ke, SR, <<, WR, LES, RRB, २९१; २९९) २९४; BY, on, CYS, USS, ५६९, UPS, USO, ५६०

वद्धिपुराणं १४८, ४०७, ४५९ |

वाक्यरन्नावलो ४६८ |

वालः ९११. |

वामनपुराणं 3 |

वायधुराणं १३०, ९५५, ९१६१, १८५, २४५, BOC, २९९, ४४६, ४४८, ४६९, ४६३, 9६६, BSR, ४८७, URS, ५२३, URE, URS, URE, URL, URR, URE, ५४०, ५४१) VER, ५६४, ६०६, ६०७ |

Taf: १५२१, १२३ |

वाशिरूरामायण ४।

विक्ञानेश्वरः RR, Rod, २९१२, २२४, २५७, RER, २९४, ३०१, ३० Rod, २०७, BLS, REY, ROS, ER, ४२६, UE, ५७० |

विपषमिखाः २८७, ४०९, ४५०, BYR, ४९३, ५९५ |

विलाससग्रहकारिका १२९, १४०, १४३ |

विश्वनाघसिश्चः ३८७ |

विश्वरूपनिवन्धः ९०५ |

विश्वामिचः १२०, VR, २२०, २८४, REC, SEE |

fam: २७, ४०, BR, ARE, १७६, RB, RES, RFE, ROL, RES, २०८, ३९५ ३२०, AUS, REV, REL, ४०९ ४२२, ४३०, ४९९, BOT, ५९१८, ५२२, ५३०, ५३९, ५२८, ५४३, ५४८, ५७९, ५५३, ५५8 YER, ५७० |

{वष्णधम्भः १५४९, Bud, ५८५, dos |

विश्णधम्भोत्तरं ©, €, Yo, LR, २९, Be, Bd, ४८, ५७, Cy, ७०, SR, ९०, EY, C9, ES, १२४, १२६, १३२, १.२४; LSA, ९.४७, १५०,

( 3

नामानि पत्रेषु १५९१, २३३, २३६, 8 ०६, BS, BAL, BRA, BUR, BEL, BER, ५७२, ५७४, ४८३, ५८६ |

विष्णपरागं YL, ८५, ९१, URE, ROS, RRR, RUE, BLE, २५२, २१५० BEY, REO, BEE, ४४५, BER, ५०२, ५८२

FaMTEU १५, २५, ३२; ३३, BB, EL, ER, URS, १२९. १३२, VRE URS, १४४१ ४८५, ६०९ |

famimafa: १७, ३७३, ४०७, ४४७, ४५१ |

तरेगम्यायनः ३२०८ |

वैश्वानरसंद्िता 9 |

व्याघ्रपादः ROS, २८५, २०८, BRO, २५७, ३८४, ५८७, ५९१, VEO |

वयासः UR, BO, BE, UE, EX, AUR, LOB, २९१९; ARB, REP, BAY, २२६, BOT, २८२, ३८४, 8०४, BRA, BRC, ४८९, ५०९, ५८०, YER, VER, &२९१।

त्रतसारः १०९; Tek |

WUFeMAT ५०, vee |

HE! वा शङ्खलिखितौ ३९, ४७, २१५, २१९, २१७ ALS, २१९९, २९१, RIB, ROY, RSS, VSS, २९ ०, REY, REY, RES, BOR, BE, BO, BY, BRB, ४६९१, BSR, BSB, ४८४, 8€७, ५९४, ५३२०, ५२९; ५२६, ५२८, ५९४, ५९९, ५५३२, ५६७, ५७०, YE |

MATA २२२, २२०, २४०, AVE, २५९, २५३२ |

शतानन्द सग्रहः RL, ७२, ७३, ८०, १२९ VAR, LES, १७३, १७४, (og, WOE, ९८०, RAY, RUB, २०६, VBS eae

ष्रवरसखामोौ १७९ |

शातातपः २२५, २३४, RWW, VES, BLY, BLE ३७७, ३८७, Bee, RES, ००० Bod, ००२, ४०२, ०९१९, BRN es

( „९

नामानि vay 8२४, ४४३, 8५४, ४६४, BOR, 8७८, ४८०, ५१९१; URB, URE, ५२१, UR, UBS, WE, ५४२, WAR, ५५४, ५९५ USS, USE, oe, es |

प्राम्बपुराय २२१५

प्रास्तं २०९, ४६६ |

शिवपुराणं २५, २९, १५९, १७७, १९१, TER, VER, २०३ |

THALSTS ४९, १९२, १६०, VER, UCR, ९९४, BER!

शिषधवाक्य वा fret: २०४, २३०, २९५, BLS, ३३७, BOE, २८१; BSR, ४०२, You, Lee |

श्ुदधिगुच्छकारः २०० |

श्ुद्धिसारुः २८८ |

श्युद्धिसारकारिका BRE, wes |

शुनःपुच्छः २५६ |

शूलपाणिः ४१८ |

Taw: २५९१, ४४७, Ber |

WISGIRAT २९३, ४१९, ४४५७ |

खाद्र्च भाव्यम्‌ ५९8९ |

=, €, ६९०, ९५९६ २७४, २८१, २२८ Add, २७५, ३८०, ४०७, ४१९, ४९७, ४२१, BBR, ४३३, ४३७, Bee, ७४१५, ५६९२ |

खरौधरखामो ३१३ |

षट्चिंश्न्‌मतं २६, ४२, ROL, ROR, २०३, ५९३ |

संग्रहकारः AR, १९०, २२५, २४२ |

संग्रहकारिका १४२, २६९, USB, BBR, ४७8 |

स्यतपाः २०३ |

नामानि पव सद्यत्रतः 9, ४६, ८२, २९१५, २४४, Bey, ५१५ | PATA: २३९ |

-्‌

सनत्‌कुमारसदहिता १२६, १२०, १२०, १३२ |

वत्तः १५३, २१३, २२२, २७६, २८१, aye |

साद्यायनः Bad, sed, ४५३ |

सालकायनः BER |

सिद्वान्तशिरोमणिः १०, 32 |

GAY UE, ५७, ER, २२४, २७६, २१२, BAR, २५९, २७, ४९१८, B28, ४६०, ५८8 |

सोरपुराणं ५२१ ३०८२ |

MU: २२९ |

खान्दपुराणं १२, १९, २९, RR, २२, २४, २५, २०, BB २४, २९, ४०, ४५, ४८, ४९; UR, UR, OS १५, 4, eee SR, 08, =, SW, =€, €°, ९२, “6 foe ९९९ ९९५, १२०, १२०, ARE, ६२९, ORS Res १४६, VR, UWB, VIS, VUE, १६०, AER, VER, UCB, VER, ९९९, ASL, VER, USE, १८०, ९१ ३२८४, 8०६, ४५७, 8६७, BES, YOR, Coo, ६०५, ६९९, €2B |

सप्तिः €; १४, de, २, €B, १६०, १८२, RoR, २०८, २१६, २२७, RRO, २३८, RAR, ACB, २९२, २०६, BS, २२३, ABU, Res, BTR, BER, ३९९, ४०६, BC, ४२४, ४२२, BRO, ४४३, Bas, 8४७, ४५५, ४५९, ४६९, BOs, YRY, ५७१, ५७8, ५९ ई, ६१९१ |

सतिमोमांसा use |

खतिरलमाला 8६८ |

खतिमद्ाणेवः १७१ |

( १५ )

नामानि पेष

सतिसग्रहः २४०, २७९, ४२१८ |

स््मतिसमुचयः ८०, ०५, ४५८, 8६३, ५०४ |

स्पतिसारः ५०४ |

सष्र्याचारः २८८ |

न्तरं AR, AR, Ud, ५९, CB, O9, URS, LSU, १६१, १६९, १७१, २१३, २१९, RBS, २४५, २९६०, २७ ०, ROB, REV, २९५, २९७, Red, RUE, BRR, BRP, BOR, २८६; २९ °; 8 ०२, 8५९६; Bas, BOO, 8९०, ५०३, ५०८, ५०९, YO, YER |

इय गशौ षपञ्चराचं २६७ |

रिभक्तिविलासः १९८) १४० १९६५, ९७६ |

हरिवः १५०, VA |

इरिदरसमुचयः २७६ |

इारलताक्कत्‌ २०३ |

हारीतः YB, OF, WEN, VES, VEE, २००, RLY, २8३, २.४8, RTE, २९०, RER, ३९.४, BRR, २२५, ३५२, ३६३; ROE, ३८०; ASK, Sed, BB, ४२९१; BRO, ४४२, BBE, ४८५, BST, BSE, ५०२, ५९१०; ५१२, ५९8, ४१८, ४२२; WSL, ५६२; USE, ५५२; ५१५३; ४५५९, ५९३, UES |

SATE: ४९१६, SR, BRR |

कालसारस्य विषयानुक्रमणौ |

चअक््यटतौया ... CE QUA विचारः

ची

यअघोराव्याचतुदग्रौ... अङ्काश्रौ चवि चारः चक्ञातम्टतादह।दिनिगंयः ... च्त्यन्तनिद्धनपच्तेश्रादत्तमा अधिमासपातेसपिण्डनवि चारुः अनङ्चयोदशौ अनन्तत्रतं अनध्ययनकालाः अनुपनौताविवादितयोर्दाह- विचारः अन्तजंलादेरनन्तरं पुनरजं वने प्रायख्छित्तं अन्नपानं BREA TIT कत्तेव्यविचारः अपराजितादशमौ ... अपुचस्यापि सपिण्डनं अमावास्य

—— 0.

FZ |

१८०

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अमावास्यादिपावेगश्राद्धं अयननिणेयः ... व्ययनयोःकम्भ विपोषेषु उपयोगिता ... अयाचितनिगंयः यर्दादयामावाम्या ... अलभ्ययोगाः ...

| AURA TAS ... | अम्ुदधिकालेषु कम्भकरगा-

करगविचारः अयण्ोकाष्टमो अश्ौचपकरणां अग्रो चे अथ्ययननिपेधः

अश्च गुरुलघविचारः ...

अग्नौचान्नादिग्रहणविचारः

अग्नो चेकरसव्याकर्सव्यविचारः | SS अग्रौचेस्मासादिकममविचारशः

अद्कान्वद्धकाश्राद... अष्टमो We qagana

eee 8 °

ZT | c अकामा वै gaara: च्ामखाडनिरू्पणं ... आरणयकषष्टौ

+ अवश्यककाय्यषु सद्यः च...

आश्विनमासस्य अआषाट्मासक्यं

ड्‌ | गौम इन्द्रपोगमासतै | उत्तरायणं उत्सत्राभिदादहः Swazi उपनयनकालः उपवासनिणंयः उपाकमंकालः

|

sq faa: चटतुप्रग्टतकालाः टषिपच्चमो ...

|

रखकदिने बह्श्नादविचारः...

खकभक्तविचारः

Bd ९)

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रकादश्रौदेधे fay:

१२२ रखकादशो विचारः LR एकादश्यपवासाधिकारि- निणयः , १२९ रखकादण्राद्ादिश्राड् ४०३ रखुकाव्दमध्ये एुचदुह्हिचोत्रैत- विवाह विचारः २२७ रखकाोटिद्ख्राद्कालाः ३७८ क| कन्धाया गौ सैत्वादिविचारः २२२ करतायायांयोगः ... ... ६११ कारणानिणेयः... yod कमेकालव्याक्षिविचारः By | HAIFA... ४८० कामदेवचयोदशौ ... TUR काम्यश्चाद्धकालः REV कासतिकमासछव्यं २९ - 32 कुक्कुटोत्रतं प्र कु शनिगंयः ५२७ कुधूराखद शमो २२५ ष्णजन्मादमो ge RMAs ASAI faranat ,.. <9 | कौमुदौपोर्गमासौ ... १७द्‌

क्रियाकत्तेविच रः

oe ३५९

श!

| | | गङ्गायां योगः... ... .-. ६१९ | चतुयों ee

गङ्कायामश्िच्तेपविचारः ... REL | चन्दनधयदोपवस्रादि- | विचारः ... wee ५३०

गजच्छायाशखाद्धविचारः ... ४६8 चम्प्कदादश्रौो ... ,.. १४७ गयाश्राद्समयोगाः... ... ४६४ Macat ... ^ oe गभ॑खावाद्यशौ चविचारः ... ER | चातुर्मास्यत्रतं ... ... RR गम : = = | भा धानकाल ०५ | चाुमांखकरत्यक्सैय- © गभिगौदादः... ... .-. ३३५ क्व गर्भिंगोपतेःच्तौरनिषेधादि- | चूडाकमेकालः - 3 विचारः ... ..* २९६९ | चेचछष्णचतुदंश्रौ ... ... ९६७ ° गरण्डिचायाचा .-. “~ USE | चचमासछृद्य.-- 01. 2 QR ज्यविच = पः ° गर्वा दिव्येवज्या बज्यविचारः २४६ चचश्ुल्प्रतिपरत्निणयः ... ईह्‌ गोचनामपदादयुद्ारणविचारः ५७० |

मोबिन्द्दादश्ो ... + १०७ | जपविधिः ,. kk. ५६०

MBSA ... ... ... १९१५ | जन्ममर्ययोःखवशणाबध्येव-

गोष्टौश्राद्धं ... ,.. ... ४८० अणौ चनिमित्त .., २५७ गौरी गणेश्चतुर्चौ ... ... 93 | जयन्तौपारणे विेषनियमः ce गौरीब्रतं ... ... ... ७२ | जाग्रदुगौरौीपच्चमौ ... ... ox co vee ,.. ... ५८८ | जातकमेकालः ... ... २९१५ ग्रदशश्राद्धं ... ... ... gos | जौवत्‌पिटकस्यापि श्राद्धा- ग्राह्यतिथिनिणेयः „० धिकारिता ... ,., BSE ~ AOS, ञ्येषपुचदु fe चीज्यष्टेमासि q |

त्रतविव्राहविच!रः ... २२८ घोटकप्च्चमौ... ... ... ८० च्येद्टमासछलव्यं ... ... RB

( २९ )

छे | दुर्गाश्रयनकाले सवदेवता- fafafada: ... ... ण्य्‌ | गि ke ` | दुर्गात्‌सवविचारः ... ... १०३ ~< ee BSE SATBAT ... ~ “~. ROR तौर्धयाचाविधि ... ... ४८६ देवपूजाश्रादयोः क्रमः .. ४९१ emt. -* ~“ ६८ | देविकश्चाडं ... ..- .. ४८ AMM ... ... ... ९५२ | दोलायात्रा ,.. ... ... ९७९ विव |. -- ६.० | दालायाच्ा ... +. ^ शष्ट इादशो et न~ ०६ = | | दितौया ee wee nee &७ दच्तिणायनं ... ... .-. १८४ | दत्तिणाविधिः ... ... ५६७ A, दन्तकालादिनिरू्पणं ... २८६ | नक्तभोजननिणेयः ... ... द्र दन्तधावनलनिषिड्धकाललाः ... yoo | नच्तचाणां तच कत्तेवयविषरषाणं दमनक्चतुदष्री ... ... १९० निणेयः ... ... ५७३ दमनकचतुरद्ौ ... ... ११४ | गच्ठतरेकभक्तविचारः... ... ५७४ दशमी ewe URE | नक्ते ब्रतपूनादिनिणेयः ... ५७ SUSUMU ... ... १२० | AMAT च्रादकालनिणयः ... you दशद्धरायां गङ्गास्नानविधिः १२० | नदोनां रजखलात्वविचारः ५८६ दण्ादह्धानन्तरं पिचादिम्टय- नरसिंहचतुर्दभौ ... ... ११५५ श्रवणे अशोचविचारः... ३०४ | नवमौ... ... .. .-. शद्‌ द्‌शााभ्यन्तरकाव्थविचारः... ३५७ | नवाद्ख्राद्धविचारः ... ... ४७३ दाद्प्रकश्णं ... ... BBQ | नागचतु्ौविचारः ... ... Sh दिवसस्य विभागविचारः ... vo | नागपञ्चमी ... 6. .-. < QUAM ... ... ... १५८२ | नानाद्रव्यदानकलं ... .-. ५३२

दुर्गाशयनाद्टमौ ... ... १९०२ , नासकरणकरालः ..* -“" RVG

नित्यविद्किततिललपेग- निषिद्धकालाः

निरममिदाद्दः ...

नेमित्तिकखाद्धकाल्ताः

नेमिन्तिकश्चाद्धे योगविग्रष

q |

पर्तनिणयः ,.. पतितप्ेतल्लव्यं, , पञ्चमो पगनरदाद्विधिः ... पण दाहेऽश्नौचविचारः परिविषविचारः पाकपरिद्यागकालाः पारगाविचारः पाश्वेपरिवत्तैनं पारणेविपोषः पावेणश्ादकालाः ..

पावैगेको दिषटयोः कम विचारः

पाषाणचतुदं शौ fqugfafu: ... पिद्टबन्ध्वादिविचारः पिदग्डतौ aquarius

AUG ...

( # )

| पि्ाद्यश्यौचपालनविचारः ...

` ५५५ |

२४१

. ३९४ |

पिट सदने पुचौप्रसवनिबन्ध-

ना प्रौचं oes ae

२९०

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पुचिकापएुच कत्कसपिगर) = कर्गाविचारः...

पसवनकालः ...

पुरुषो AAA ASTI याचाकाल।ः ...

पुष्कर दाद: on.

पुष्कर विचारः

URURIS ...

पुष्यवन्दापना...

पुष्याभिषेकः...

Bea रजखलात्वकाल- fama:

पौमासौ

पौ षमासछत्य

प्रथमाद्यमो ...

प्रदो पामावास्याश्राद्ं

प्रावरुणषष्टौ ...

प्रावर्गोत्सवः ...

परेतस्पर््णादौ ग्रामपरवेश- समयः...

प्रेत छ्व्यानन्तर प्रत्यागमने- तु संस्कारविधिः

mH |

काल्यानमासल्द्यं ... ,,

४१.

| ब्रालकमरणे दाहविचारः ... बालस्य पञ्च माब्दमध्ये मातरि

गभिस्यां चूडाकरणाभावः

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ब्राद्यणस््रौ णां कम्भविरो षेवैदिक-

AMIS अधिकारः... २२४ H |

भद्रादटमौयोगः 4 भाद्रवमासक्तत्यं ,.. २8 भोमदादश्ौ... ... भोध्रपच्चकं ... २१ - २२ भौश्रारटमोख्रादं ४७१

मुवनेश्वरदेवस्य चतुदं श- याचाकालाः ... १९ भरूतश्ुद्धेरावश्यकता ... ५१६ WARM ... ,.. १४६

q |

मघाच्रयोदणशो ... Ber मण्डलार्थैचूरेविषषाः ५२ मन्वदिखादनियोयः SER

मलमासम्टतानां खाड- विधिः. ~

मलमासेत्याज्याव्यज्य- विचारः. RRR मलमासनिरूपरं ... रर

मदा्टमो ee मड्ानवमौ विचारः... ११३ महालयश्रादं... ९५२ ` महालयेऽधिमासपाते- विचारः Bud ASTRA ... ... ६०३ माघमासक्लव्यं २० - 8१ | माघसप्तमो ... cy | मातामदहादिनिबन्धनाष्ौचं ३१८ | मागश्ौषेमासललव्यं ... ad | मासविचारः ... १० मासि षवि तकाम्य- साननिणयः ... ९8 मासानां चेचादित्वनिणंय.... २२ मासिकश्राड... ged | गतथ्िमूत्‌ पन्याद्यश्चौ च- | विचारः . 23 य| | यमद्धितौया ... ६७ यमलयोरेकम्टताव्रौचं ... २९५ याजाङ्न्पाद्वं,.. 8८० यगाद्निरूपर , ४५९ | योगनिशेयः कि yo? | T 1 रच्तापञ्चमौ ... =

रचिकावन्धन रजःशुद्धिकालाः रुटन््याचतुदणौ रम्भादटटतोय।... रविमक्रान्तिक।लनिफ॑यः

रासनवमौ

सेष्धिणौगरह्ितनन्माद्मो...

|

वकुलामःवास्याश्र.ञ... वरुदाचतुर्यो ... वराद्दादभ्णै वलदेवपूजा

dq ल्यु ad:

afefa घ्कुमराकालः बद्भाव्सवपोणेमासौ ... वामनजन्म वारुष्यादियोगः दालमरणाशोच विचारः

विदेग्रगतानां वात्तानुपगमे-

श्बुद्धि विधिः विद्धतिथिविचारः ... विद्धापरनामक खग्डततिधि-

निगेयः वि्िपस्मिाषा विनायकब्रत ...

faatannafeamuaifa...

विधिनिषेधयोःकाल- विचारः

विपत्‌ पातेऽश्रौ चमध्ये- करौव्यनिण्यः

िवाद्क(लः...

विवाद्योग्यकन्धाविचागः ...

विशेद्‌ वनिणयः विद्धगत्राद्धयणकश्राडध विषाष्द्ुना ... afeaig autqaniaty:

तै शाखमासकछलगयं रेष्णवेकादभ्रौ afautaata: gafate कालनिशंयः व्रतिनां वर्ज्याः

व्रतोपवासनियमाः ... x |

प्रुकध्वजीव्थापनं

WATS lees HTS शुद्धिविचारः ...

प्रास््रह तिनिरूपणं ...

शस्त्रःदिडङतस्य we मेव Awa:

ऽप

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, RUE +.

. ४६१५

शिवचतुधोौं ... शिवराचित्रत

शुकरास्तसमये वज्याबज्य- विचारः ae श्युद्धमासविचारः श्ुद्धापरनामकसंपृगेतिधि- fama: Aas ूद्वाणमप्यपनयनाभावः प्रवणदादशो... ्चादेऽर्घादिपाचाणि ख1द्ेऽपराहतिलादौनां पाग्रस्त्य

आद्धकत्त्‌ःपरग्ट भोजनादि-

निषेधविचारः

श्ाद्कालेयत्थिविचारः...

ag देयद्रव्यविचारः Me नच्तचफलं are निरसनौयाः .. श्राद्वप्रकरणां... खाद्धपूर्वा परदिनञ्लं ae योगफलं

खा दवज्यद्रश्याणि ावणमासरत्यं

खद्धविघ्रे एनःख्रादरविधिः ..

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, ९१५८ | शिदराचिपारया विेषत्वं...

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प्राद्खनल्प

खाद्धस्तुतिः ... खाद्स्यान विचारः श्राद्ध च्छिदटदानविचारः प्राद्योत्तरकमं

खोपञ्चमौ

"” | Hel...

| षण्ोदवोपूजा

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| सतोदाद्ः

सच्वास्त्नोणां ब्रतादिषु अञ्ज-

नादिग्रहशं ...

सन्यासिनां किवाविचारः ...

सच्यासिम हालयश्चाद्ध-

विचारः

सन्यासिम्टतो पुचादौनां-

कत्तेव्यता सप्तमो... सप्त पिदटटकामावास्या

सप्तपिहटकामावास्याश्राद्ध ,..

सपिरडौकरणविचारः

सपिर्डसमानोद कत्व- विचारः ae

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सघातमरग श्राद्धक्रमः सम्बत्सृरनिगेयः संवत्स॒रभेदेष RUB fase: सद गमनविधिः सद गमनेऽप्रो चनिगेयः साभिकदादः... सायिकनिरमिकमेदेना- प्रोचविचारः... साम्मकदम्प्यार्दाह- विचारः सामान्यतो दानतव्रतयोः कालादिनिण्यः सालम्राम शि लात्राद्यणक- BTR... साविच्रौव्रतं ... सिंह छद स्परलो करव्य- विचारः सो मन्तोन्नयनकालः ...

खराः . १८१ खतिस्जखलयो दहे विष्रेषः ३३२ सौर नक्तव्य वस्था ६९ स्वन्द्‌ षष्टो ८8 सखानयाचा , १८४ सत हो चतुद wt . १६८ स्लौणामुपनयन।(भावः , २२० स्न गूदयोर्पमि पौराणिक- मन्लेऽधिकारः . २२९ स्मात्तामिमद्‌ाह विधिः . ४४२ | रितालिका ७६ इरिप्रायन , १८७ रिग्रयनदत्तिणायनयोःकमणां विधिनिषेधविचारः... २४७ हर्ग्रयनपाशचपरिवत्तैनो- QAR... ... १४५

MAAN: TUF |

गदाधरपडतो-

ATAATC: |

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MANTUA AA: | अविद्मस्तु |

च्रगरेषवर्णाञ्रमधमोटद्धये श्ररीरिमाचस्य गोघ्रमुक्रये | निजालये भो पुरुषो त्त माङ्यं दधदपुर्दारुमयं महः रये रचितजननिकायामोष्टदानेकदचः तपयत विमलाया दौनपचः Hera: | खतिनिकरगभो राम्भो धिमध्यायरना- नयनङृति विधाने नृलयनेऽन्तरायम्‌ amu कौ शिकवाजपेयि-तुलसौ वंशाद्‌ इहत्पण्डिता- नौ तिगरन्धङृतः रायगुरुरित्यासोद्‌ वदान्याग्रणेः। qa: श्रारद बाजपेयमखकूदट्‌ विदान्‌ दरेृष्णण्ड-

नायश्रो महिषो गरूदेलधरा भिष्योऽग्रजो WaT 1

लू गदाधरपद्धतौ

वेदान्तादिसमस्तग्रास्तरनिलयो नोलाम्बराख्योऽनुज

स्तस्य स्मात्तवरोऽतिदेवविदश्वतसा हित्यविद्याणवः |

सदट्वैयाकरणश्च नोतिनिपुणएः श्रोनोलगेलेशितु-

मंञ्चसरानमुखो त्सवान(वयवस्तो यो ऽवणेयत्‌

घोरेन खवितोणेद्‌ पितमदहासत्‌ ्रासनेपृत्तमान्‌

सस्थापाघ्वरिण विधाय घनदप्रख्यान्‌ दिजांस्तान्‌ व्यधात्‌ |

प्राज्यं प्राप चतुमुखादिकमहायज्ञेषु सन्तोषयन्‌

विप्रादौनपि राजदधयजनितं यौधिष्ठिरं यो amu

यो नोलाम्बरराजगष्वभिधया ख्यातः चितौ ओौहरे-

रृष्णाख्यच्ितिपेश्वरेभपतिना frau सम्मानितः |

सौवर्णोड्चतुष्टयाच्य॒तपद्‌म्भोजाङ्छष्णातप-

चाणेन दिपचामरप्रष्टतिभिथात्मीयविद्कैः परेः

यज्वा यच्चरमो wart दति भ्राता इदत्पण्डिति-

स्तं नोलाम्बरनामकं पितर यौजानकौं मातरम्‌ |

नत्वा राजगुरूगेदाधर खुघोस्तं कालसाराभिधं

we प्रारभते विलोक्य यमिमं निःसंगया: स्य जेना:

कालो दिविघः, नित्यो जन्येति तन्न कालकालापरनामा श्र एव नित्यकालः। विश्वछषट्‌ विश्ववेदात्मा योऽभिज्ञः काल- काखो गुणे सव्वेदिद्यः प्रधानचेचमभिति निगेणः संसारमोहस्िति- बन्धहेत्रिति Wd:

—————___$ ~

(९) मद्धसानमुखो त्‌ सवाद्यवयवत्तोचं योऽवग॑वत्‌ |

कलस्ारः |

कौर्पि, अनादिरेष भगवान्‌ कालोऽनन्तोऽच्तयः परः | waa खतन्तवात्‌ सर््वात्मला ऋअदेश्वरः | पुनस्तच,- पर ब्रह्य चग्चतानि वासुदेवोऽपि WET: | कालेनेव दि ख्ज्यन्ते एव गषते पुनः - ज्यो तिः शास्त्ेऽपि,- गताना AMAA SG: कालोऽन्यः RAAT: | तस्मात्‌ जन्यस्य कालस्य वासुदेवादौनामपि कलनात्‌ कालकालः परमेश्वरः तस्य सव्वेकर्मारम्भे Muga तन्निरूपणमप्यपे चितम्‌ | तथाच स्मरन्ति,-

Way कालेषु समस्तदे गेष्वगरेषकार्ययेषु तयेश्वरेश्वरः | aa, खर्ूपै्भगवाननादिर्ममास्त॒ माङ्गल्य विदद्धये हरिः यस्य Waly aaa तपो यन्ञक्रियादिकम्‌ |

नून सम्यणेतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्‌ वामनपुराणे,-

सव्वेमङ्गलमङ्गल्य वरेयं वरदं WA |

नारायणं AGE सव्वेकर्माणि कारयेत्‌ दति परमेश्वरस्य निगेएलात्‌ कथं aqacufafa चेत्‌, उच्यते,-

नित्यो say कालौ दौ तयोराद्यः परेश्वरः |

सोऽवाङमानसगम्योऽपि Sel भक्रातुकम्पया दति

(९) अवाद्यनसगम्यीऽपि |

8 गदाधरुपद्तौ

तस्य देदक्वान्न विरोधः। तयाच वाशिष्ठरामायणे,- वड्गपाप्घरः Raa कुण्डलो कवचाज्ितः। चतुषटट मयो दार वक्कषट समन्वितः मासदाद्‌ शकेद्‌ामभुजद्ाद्‌ श्कोद्धटः | सखाकारममया sel टतः किङ्ःरसेनया इति कालखरूपं यद्यप्यस्ति तथापि भक्तानु जिच्या खो षरतनाना- AAA नानामूिस्मरणम्‌ | तथाच भगवद्गोताचाम्‌,+- योयो यांयां तनुं am अ्रद्धयावितुभिक्छति। तस्य तस्याचलां Wei तामेव विदधाम्यहम्‌ तया BA युक्तं स्स्याराधनमो इते | लभते ततः कामान्‌ मयेव विदितान्‌ हितान्‌ तया,- यजन्ते साविका देवान्‌ यच्वरच्ां सि राजसाः | प्रतान्‌ ग्दतगरणश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः श्रतएव लोकेव्वापिदिदा गोपालं सर्व्वऽपि खेच्छया एकेकां देव- तासुपासते। एवं मायाया श्रपि ईश्ररात्मकलात्‌ नानाविध- शक्रिमयो सा जनयति कालतलमेवादौ | भाविभवर्‌श्दतमयं कलयति जगदेष कालोऽत Ta | भोजराजगेवागमसङ्गदो क्तावपि जन्यकालस्य मायाकाय्यैलं सङ्ग- Sa! भा विभवर्‌श्डतमयभित्येक पद्‌ खां मयरप्रत्ययः। श्रारम दव

कालसारः |

कम्मेणोऽन्तेऽपि ईश्वरस्मरणं FAA” | यत्करोषि यदश्नासि यन्जृदोषि ददासि यत्‌ यत्‌ तपस्यसि कौन्तेय तत्‌ कुरुष्व मदपैणएम्‌ दूति भगवदुक्तः। पूव्ववदचापि यो at यां देवतां समुपासते तत्र समपेयेत्‌ चेत्‌ कंचित्‌ विरोधः। देवोप्ूजादौ fret afa तथा एव श्राचरन्ति। दैश्वररूपात्‌ नित्यकालात्‌ जन्यकालोत्पत्ति- सेत्तिरोयश्राखायां नारायणे श्रूयते सव्वं निमेषा जज्ञिरे विद्युतः पुरुषादपि कलाः काष्ठा सुहर्ताश्च श्रहोराजाश्च र) eam: अद्धमासा मासा Bas: संवत्सराश्च कल्यान्ता दति। मनुरपि, कालं कालविभक्तोश नक्तचाणि ग्रहांस्तथा | ष्टं ससज चेवेमां खष्ुमिच्छननिमाः प्रजाः दति | aa निमेषादिपररद्धन्तेषु जन्यकालेषु संवत्सरः WTA, अरन्ये गुणण्डताः | सोऽकामयत, दितौयो मम ara जायेत दति मनसा वाचं मिथन समभवत्‌ तद्‌ाञ्रितः समभवदिति अतेः एवं नानासमुत्यानाः कालाः सवत्सराभिताः | श्रणशरञ्च ATHY सत्वं समवयन्ति तम्‌ दति श्रुतेश्च,

(१) कायं | (र) तथाचरन्ति | (a) अष्टो राचञ aaa |

a

द्‌ | गदट1घधर्पड्धता

कालस्य जन्यवपत्त चिरचिप्रप्रत्ययोपायिद्धारेण कलयत्याकिप- aad: दूति व्यत्यत्तिः तथाच जन्यकालेष्वादौ HG नाम मामायनाद्यवयवयुक्ता Baa कालविशेषः, way वसनयस्मिन्न- यननतमामादय दति BUA | दाद ग्रमासात्मकः द्ाद्ग्रमासाः संवत्सर दरति Wa) पञ्चविधः, तथाच ज्योतिःगास्ते- सौरो वषः पञ्चषश्चत्तरबिग्रतवासरेः वारस्पत्य एकषष्युत्तरचिग्रतवामरेः मावनोऽन्दः षश्चयिकचिग्रतैर्वासरेभवेत्‌ | चत्‌ःपञ्चाग्रदधिकचिग्रतादेस्तु WEA नाच्तचोऽब्दयत्‌ विं ्त्यधिके स्िशते दिनैः | Gage: सौर-जेव-साउनेन्दव-तारकाः तारकाणमय तारको नाच्च FHA | तच, सौरसावनचान््राणां BATT कममसु उपयो गोऽय नाच्चस्यायद्‌यिऽधिकत्सरे वादेस्यत्यस्यो पयोग दति वर्षेषु पञ्चसु | तथाच माघधवाचाय्थाः,- gee पञ्चविधे चान्द्रो त्रतादौ तिललकादिके। सुजन्मा दिघ्रते सौरो गोसचादिष सावनः चयोऽप्याचाय्यैसेवादौ विकस्प्यन्ते निजेच्छया | ्रायदूयि fe नाच्चो वारस्पत्योऽधिवत्सरे चान््राणां प्रभवादौनां पञ्चके पञ्चके BA | सम्परोदा चिदित्येतत्‌ श्ब्दपूर्व्वास्तु वत्सराः

कालसार्‌ः | ©

तिलं यवो वस््रधान्ये रजतं दौयतेऽच तु | तत्‌ स्फुटं विष्णधन्नात्तरे,- संवत्सरे तु दाद्रणं तिलदान मदाफलम्‌ | परिप्रव्वं तयाद्‌ानं यवानां दिजसन्तम Te तु वस्त्राणां घान्यानां ways | दूत प्व रजतस्यापि दानं दत्तं मदाफलम्‌ | दूति संवत्सरनिणंयः श्रथ श्रयनम्‌ श्रयगतावितिधातोनिष्यन्नं, श्रयते यात्यनेन BAU स्यौ द्विणाशासुत्तरा श्रां देति, इतुच्यमयनम्‌। तच्च ददिविधं, दकिणयनसुत्तरायणं चेति | यान्‌ wala दक्विणदित्य एति यान्‌ षएमासान्‌ उदगा- दिव्य एतोति श्रुतेः श्रयनप्रकरणे, सौरमानमधिषत्य खतुचयं स्यादिति विष्णधर्मो- ततरोक्तेश्च एतेन श्रयनद्रयं सोरमानेनबेति सिद्धम्‌ | तच सत्यत्रतः,- देवतारामवाघादिःप्रतिष्ठोदडमुखे रवौ | द्किणणग्रामुखे qa तत्‌-फलमवाप्रुयात्‌ भविष्योत्तरे,- पुष्छानि यानि कश्डाणि वन्नं चिणायने | उग्रदेवतानां तु प्रतिष्ठा aaa”) कार्य्या तथाच कैश्ानरसं

हितायाम्‌,-

(१९) अच्रापि |

¥ TTY रपद्धतौ

माठमभेरववारादनार सिहचिविक्रमाः | मदिषासुरदन्लो म्याप्या वे दचचिणायने एतासां देवतानां ग्टदप्रासादादिकमषणत्र काय्येम्‌ | यमस्य देवस्य यः कालः प्रतिष्ठाध्वजरो पणे | गर्त्तापूर भिलान्यासे कालः परिकौत्तिंतः॥ इति देषो- पुराणोक्तेः | येषां येषां कमणां यच यच Raa उल्ेखः, तच तच तानि कार्य्याणि चिणायने कार्य्याकाय्येविचारो स्वन्यः, चातुर्मास प्रकरणे वाच्यः | इत्ययननिणयः | अय Ba खगता वित्यस्माद्धा तो निष्यन्नः। यतिं गच्छति श्रग्रोकपुष्याद्यमाधारणएलिङ्गमिति वसन्ताटिकालविगरेषः खतः | स॒ षड्विधः, वसन्तो वर्षा श्रद्धेमन्तशिशिरभेदा दिति, wear waa: दति भ्रुतेः। यत्त॒, दादश्रमासाः पञ्चन्तंगो हमन्त्रिशिरयोः समासेनेति श्रताबुक्तम्‌ | तदनुमन््णेयस्य षष्ठस्य प्रयाजस्य च्रभा- वात्‌ प्रयाजानुमन्तणयेम्‌ | तु wast पञ्चलप्रतिपादनाथं- fafa Faq) ते waa चेचवेशशराखाभ्यां वसन्त दत्यादि मासाभ्यां मासाभ्यां भवन्ति तथाच काणखशाखायां, दृष्टकोपाधा- नमन्त्ेष पदयते, मधुश्च माघव वासन्तिका Ba, एकञ्च VAY FAW Ba, नभश्च नभस्यश्च वाषिका wa, शखोन्नेश्च शारदा wa, सदश्च सदस्य हेमन्तिका Ba, तपश्च तपस्यश्च गिरा waste, तच वसन्तः प्रयमः। सुखं वा एष waat यद्वसन्त दति श्रतेः

$$

(2) दिश्य इति | (2) तेच fama तवः |

ATAATE: |

ते प्रत्येकं दिविधाः, aa: सौराश्ेति। चेचाद्यात्मकानां वसन्ता- दौनां चन्द्रगतिकल्ितलात्‌, चन्द्रमाः सदो ताषड was कल्ययतौ- ति श्रुतेश्च नतु want मासद्यात्मकलमसेवेत्युक्तं श्रधिमासपाते qx कथं निर्वाह दति चेत्‌ उच्यते ययोर्मासयो मेध्ये मलमा- सपातः(९ तयो यो मास उत्तरः तस्िं्तस्यान्तर्भावः, तयासौ षष्टिदि- नात्मको मलिनटएद्धभागद्यात्मक दति का नुपपतिः तच्च मलमासविचारे स्पष्टौ(ःभविव्यति सौरेषु ऋतुषु मोना दिलं मेषादिलन्च वैकल्पिकम्‌ |

तदाद बद्धगाग्येः,-

मोनमेषो रविर्यावत्‌ वसन्तस्तददेव दि वशिष्ठः+ यावन््रेषदषो भानु वंसन्तस्तावदि ष्यते | दति

उभयो विकल्पः, तदनुसारेण गोश्रदयोऽपि यथायथं विक- wget wget विनियोगस्तु भरत्याद्यवगतः, तथाच श्रुतिः, वसन्ते ब्राह्मणः श्रम्नोनादधोत,२ Ha राजन्य श्रादघोत, शरदि वैश्य श्रादघोतेत्यादि | रतिस्त, वसन्ते ब्राह्मणएसमुपनयोत WA राजन्य शरदि वेश्यमित्यादि | विष्एधन्चात्तरे,-

षणम्‌ तित्रते षट्सु वमन्तायुतुषु एक्‌ TR पूजाविगरेषा SAT) तथा वसन्ते ललानानुलेपनादि दानं, एवमन्यचाणुद्‌ दाय्येम्‌ |

दत्युतुनिणंयः

(१) मलमासो दृष्ठते। (२) स्ुटौ (३) aera 2

१० गदाधरपद्धतौ

श्रय मासाः। मास्ति सान्त ॒चनद्रवाचकं प्रातिपदिक तस्यायमिति सन्बन्धायं wu) मासः, एवं सुति चान्द्र एव मासो मुख्यः, WII गौणः, सन्व॑षां साघारण्धाय श्र्यान्तरमुच्यते, मसो परिमाणे दति धातोनिष्यन्नोऽयं मासश्रब्दः, area परिमोयते यावता कालेन चनद्रटद्धिचयो, wea, चन्रटरद्धिषयाभ्यां खयं ued दति वा मासः। तयाच (र)सिद्धान्तशिरोमणै,- मास्यन्ते परिमोयन्ते खकालदद्धिदानितः | तस्मादेते सता मासा चिगश्रत्तिथिसमन्िताः qua राभिगतिय्र परिमौोयते सौरो मासः श्रदोरा- aut चिग्रत्‌स्या aa परिमोयते सावनो ara: | तथाच ब्रह्य सिद्धान्ते, चान्धः Ratfeenin: सावनस्ति्रता fea: | एकराशौ विर्यावत्‌कालं मासः भास्करः भासकरस्यायमिति भास्करः सौरः। नचचाणं सप्त विंश्रतिसद्या परिमोयतेऽनेनेति नाचचो मासः | तदुक्तं विष्णघन्नात्तरेः- सव्वेचेपरिवन्तैस्त॒ नाचचो मास उच्यते | तथाच चान््रसोरसावननाचचाश्चतुविधा मासाः। तत्र सौरमा-

(९) णा are: | (2) तवासिदान्तशििरोमणौ |

कालसारः। ९९

सस्य श्राद्यन्तो मेषादिराणशोनामाद्न्ताभ्यां wae: | सावनेष पुस्‌- षेच्छादिनियामकः(.। चान्द्रो दिविधः cata: पूणिमान्तश्ेति। दर्णन्तले लघृदारौतः- दद्रा यच saa मासादिः प्रकौत्तितः। श्रग्निसोमो wal मध्ये समाप्तौ पिदसोमकौ दति द्भेपौणेमासयाजिना प्रक्ञप्रतिपदि eifecaa इनद्राप्नौ ह्येते, पौर्णमासे afyatat cfeeaa® ह्येते, दशं पिण्डपि्टयन्न पिदसोमकौ देवौ दति दर्णन्तो are: पूणिमान्तच्वे तु महालयप्रकरणे स्मय्येते,- शरश्चयकूरृष्णपकचे q arg काय्यं दिने fer दरति:

णान्तत्वे तु भाद्ररष्णपक्त इत्यक्त स्यात्‌ तस्मात्‌ Tula giana: समो विकल्पः श्रनुष्ठानन्तु gafaq वचन- विग्रेषात्‌ शिष्टाचाराद्वा चवस्ितम्‌ |

यत्त ब्रह्मसिद्धान्ते,-

्रमावास्यापरिच्छिन्नो मासः स्यात्‌ ब्राह्मणस्य तु। सङ्कान्तिपो णेमासोभ्यां तथेव नुपवेश्ययोः

र्युक्तं तत्कमेविगेषे बोध्यं | यथा विष्णुपुराणे.

माघासिते पञ्चदपौ कदाचित्‌ उपेति योगं यदि वारुणेन | द्रति, शरतभिषायुक्तमाघद्गे यत्‌ श्राद्धं विहितं तद्‌ ब्राद्मणएस्याधिक-

(१) area vars नियामकं | (२) देवते |

१२ गदाधरपद्तौ

फलद मिति | एवं चचविगशोः सौ रपो णंमास्यन्तमा सयो रुदा हाय्यैम्‌ | तेन सन्वैकश्येसु सामान्यतः सर्ववषामपि पौणेमास्यन्तमासो ग्राह्यः | तस्य सुख्यत्वाद्‌ा चाराच्च | चान्द्रमासानां चेरा दिसंज्ञा नचच्रप्रयक्ता | तथाच, faarqar पौणेमासौ चेचो afar मासे afta इति Sat मासः! द्‌ गान्त-चान्द्रेऽपि मये तादृ शपो णेमासौसलात्‌ चेादि- संज्ञा्विरुद्धा, एवं वेश्राखादिषननेयम्‌ | तच विचाविश्ाखादि- यो गस्यो पलचणएवात्‌ तत्‌प्रत्यासन्नखात्यनुराघादियोगोऽणविरद्धः | तदुक्र, ज्यो तिःशास्ते,- चितरादित्रिदयं चेचश्रावणन्तेषु पञ्चसु | वारुणादि चयं भाद्रेऽयाश्िने रेवतो कम्‌ ऊर्ज्जादिमाघान्तेषु aq कत्तिका Theat तथा फाल्गाने पूव्वेफाल्गन्या दि ्रयन्तु प्रयोजकम्‌^ सामान्यतः कन्तयानि श्रुतेः, मासि मासि बोऽग्ननं वा fagura | तथा स्कान्दे, एकभक्रेन यो देवि are मागे चिपेन्नरः। cafe व्रतानि, एवं माघमासादिषुं तिलदानादौनि विष्ण- धन्मोत्तरादयुक्तानि कम्मेविग्रषेषु मासविगरेषाणं yan, वथा,- श्राभ्यद्ये रवेर्मानं चन्द्रस्य पिहकश्मेणि | यज्ञे सावनमित्या waaay

(१) प्रयोजनं |

कलसारः | AR

श्राभ्युदये विवादादौ पाच देवत्रत-टषोत्सगे-चूड़ाकर ए-मे खलाः सौरमानेन कन्तेव्या श्रभिषेकस्तथाब्दिकः व्याषः,- खतकादि परिच्छदो दिनमासाब्दगास्तया | मध्यमयदभुक्तिश्च सावनेन प्रकोन्तिता इत्यादि दरति श्दद्धमासनिणयः। मलनिणेयस्तु श्रष्टद्धकालप्रकरणे aq: | श्रय मासरत्यानि | यद्यपि महाभारतादिषु मागेभोर्षादिलेन aqaaifa लिखितानि तथापि waa छश्चादिप्रहत्तलात्‌ तमा- रभ्य लिख्यते | तथाच ब्राह्मः चेतरे मासि जगद्‌ ag ससज प्रथमेऽहनि Vas Wau तया aaa सति i प्रवन्तयामास तदा कालस्य गणएनामपि | ग्रहान्‌ नागानृच्धन्‌ मारान्‌ वत्छरान्‌ वत्छराधिपान्‌॥ ThA चेवमासरत्यं, महाभारते, चेचन्तु नियतो मासमे कभक्रेन यः fata | सुवणमणिमुक्राव्ये कुले महति जायते मासत्रतादिकमश्मद्‌ पूणिमान्त(* एव gata)

(१) पूणिमान्तमास खव |

re गटाधरषद्वतौ

alg काल्तिकप्रणिमान्तमुक्ताः- मागफोषेस्य मासस्य प्रारम्भे प्रतिपद्यपि नवव्षसमारम्भो Sa: कृतयगे छतः इति , पूणिमान्तस्य aaa” मुख्यत्रेन कन्वितवादिति दिक्‌ i तच AAU मध्याङ्ृरूपेकभक्तकाले मासादिप्रतिपल्तिेरुभयदिन- गामिवे उत्तरदिने ब्रतारम्भः काय्येः(र) | तयाच सतिः, मामि संवत्सरे चेव तियिद्ैधं यदा भवेत्‌ | तचोत्तरोत्तमा ग्राह्या ya aA स्यात्‌ मलिन्नच : मामादितियवर्षादि तिचेञ्च देधे यत्‌ aad तत्कर्मयुक्तका- लस्य दिनद्ये सम्भवे दत्यथेः। सव्वेकम्मारम्भे ae श्रावश्चकः | aura भविये,- सङ्कन्पेन विना विप्र यत्किञ्चित्‌ कुरुते नरः | Ragan तस्य धम्मेस्यादधं चयो भवेत्‌ प्रक्रि श्रद्ध मस्ते कांस्यरूप्या दि भिस्तथा | WEA नेव AVA ATs कदाचन ग्टहोलोदुम्बर पात्रं वारिप्रणं गणान्वितम्‌ | aay साय्रमूलं फलपुष्याचता जितम्‌ जला श्यारामकूपे सङ्कल्पे पू्वेदि ङमुखः | साधारणे चोत्तरास्ये रेशान्यां निकिपेत्ययः

(९) पृणिमान्तमासस्य | (2) ब्रतारुम्भः।

कालसारः | ९५

ताम्रपाचस्य श्रत्यन्तासम्भवे waar” wWetar तत्करणम्‌ | गहौलौ दम्बर ws वारिप्रणं णान्वितम्‌ | उपवासन्तु wea यद्रा aaa धारयेत्‌ दति वारा- Sim: | पौणेमासटन्नेखेन शएक्तपचयोकते य्य॑ःपि मासपच्ततियौनाञ्च निमित्तानाञ्च eam: | उक्ञेखन मकुर्व्वाणो तस्य फलभाग्‌ भवेत्‌ दति भवि- aa: पचचोक्ेखः काव्ये एव | एवं HUMID मावास्ययोरुन्नेखः। व्रतमारभ्याखमापने दोषः | परिग्टद्य त्रत सम्बगेकादग्यादिकं नरः | समापयते तस्य गतिः पापोयसौ भवेत्‌ दति विष्ण- रदस्योक्तेःर) | श्रापदि तु जलाटोनां ्रतेघ्रत | AB तान्यव्रतघ्नानि BIT मृलं फलं पयः | हवि त्रह्मणकाम्या गरोवंचनमोषधम्‌ इतिग्रासतात्‌ | सब्वेष्डतभयं व्याधिः प्रमादो गरुश्रासनम्‌ | च्रव्रतत्नानि चोच्यन्ते सक्देतानि waa: दति भवि- Ay | श्रय वेग्राखमासरत्यम्‌ | भारते,- निस्तरेदेकभक्तन वैशाखं यो जितेद्धियः |

(९) जलपातं | (र) रम्यो क्तः |

१६ गदाधरपद्धतौ

नरो वा यदिवा नारौ ज्ञातोनां अओष्ठतां ब्रजेत्‌ स्कान्दे घनद्लमुक्रम्‌ | पाद्मे च, a: परित्यच्य वैशाखं ब्रतमन्यद्‌ पाचरेत्‌ सखकरस्थ महारत्नं feat wig fe याचते॥ चरवेग्राखो भवेत्पापौ विप्रः ओतपरोऽपि च। तयाच,- वच्माणएसंयो गण्रयकूत्वन्यायनेद Ad नित्यं काम्यश्च | पुनः पादय, and सकलं मासं नित्यस्लायौ जितेद्धियः | जपन्‌ हविष्यभुग्‌ दान्तः सव्वेपापेः प्रमुच्यते तोये चानुदिते खानमिति च। तथा,- नि माधवं सकलं मासं AUS योऽचेयेन्नरः | चिसन्ध्यं मघुदन्तारं नास्ति तस्य पुनभंवः मत्ये,- ama पुष्यलवणे वजैयित्राथ गोप्रद्‌ः | wat विष्णपदे कल्य feat राजा भवेदिह गोदानं Aleta | पुष्यलवणएवजेनस्य निषेधरूपलात्‌ “निषेधः कालमाचके" TUR: वेशराखमासप्रवेश्रमारग्येव काय्येलं | इद्‌ पुष्य- वजेनं देवाचेनकालोननिर्गाल्दुष्येतर पर, तद्ग्रहणस्य प्रूजाङ्गतेन विहितलात्‌ |

कालसारः | ९५७

तत्घलानमन्तः पाद्मे वैश्राखं सकलं मासं मेषसङ्कमणे रवेः प्रातः सुनियतः are Waat Aye: 1 मधुहन्तुः प्रसादेन ABUAAGII | fafanag मे ge वें शाखस्तानमन्वहम्‌ माधवे मेषगे भानौ मुरारे मधसदन | Maa मे नाय Sat भव पापदा एतत्‌ काम्यप्रातःसानं नित्यप्रातःलानोनत्तर सन्ध्यातः yaaa काय्येम्‌ प्रातःसलायो श्ररुणएकिरणगस्तां प्राचोमवलोक्य साया- दिति विष्णसछतौ सव्वैमाधारण्ठेन काम्यनित्यस्तानो दे गेनारुणे- दयकालविधानात्‌^ प्रातःसानस्य देदद्द्धिदारा कम्माधिकार- सम्पादकलात्‌ काम्यस्य BAA प्रातःस्लानानन्तरमेव काल दति कालभेदसम्भवाच्च नित्यकाम्ययोस्तन्त्ेणानुष्ानम्‌ नतु सन्ध्याया BA सव्वेकर्मानरलात्‌ सन्ध्योत्तर काम्यं प्रातःखानमिति चेत्‌ न। सन्ध्यायाः खूव्यौदयावधिकलात्‌ सुयी- दयोत्तरकालोनकश्मणामेव सन्ध्यो त्तरत्वाधिकार सम्पाद्‌कलात्‌ ननु सखय्यीदयात्‌ va रुन्ध्यां समाप्य काम्यं सानं क्त्य fafa चेन्न दय्यादयावधिजपरूपसन्ध्यावाधापत्तेः सन्ध्यावसाने Raia काय्येमिति वाक्याभावाच्च ननु “a वासोभिः सदाजघखम्‌” दृति अ्रजसस्लानस्य मनुना

(2) काम्यनियप्रातःलानोदेेनारुणोदयकालविधानात्‌ 0

१७८ गदाधर्पद्धतौ

निषिद्धलात्‌ कथं asaiafafa चेत्‌ न। तस्य यादृच्छिकस्तान- aa निणेया टित्यलमति विस्तरे ए") एव मावादिकाम्यप्रातःखराने- ष्वपि बोध्यम्‌ यत्तु, तुलायां मकरे सेषे प्रातःस्नानं तिलैः सद हविष्यं ब्रद्मचय्येञ्च महापातकन। शनम्‌ दति भारते ona) तसिलसदितस्तानपरवेकं काम्य व्रतान्तरम्‌ यत्ते, पादे नारदेनोक्रम्‌- मधमासन्य शएक्तायामेकादग्यासुपोषितः। पञ्चदश्याञ्च भो वोर मेषसंक्रमणेऽपि च॥ वर शाखसराननियमं ब्राह्मणनामनुज्ञया ` मधुर नमभ्यच्ये Falq wT दूति aa व्यवस्थितो faa) तथाच, वैष्णवानां काल्तिकव्रत- ag चग्ल्तैकादण्यामारम्भपक्चः | खस्य वेष्णवलादादौ ACSW: ङतः t ब्रतस्यास्य वैष्णवाना मावश्यकत्वमिति इरिभक्रिविला सादौ लिखितम्‌ | चचियाणां सक्रमणाद्यारम्भः) तेषां सौरमासेऽधिकफलप्रायकतेः ब्राह्मणानां Away चान्रमास एवाधिकारात्‌ पौणेमास्यादि पकः | श्द्राएण सप्ययं we: “ug वाडसनेयिनः" दति श्रापस्तम्बोत्तया तेषां aang वाजसनेयिसमाचरणणात्‌ इति Bare ननु वच्छयमाणएचा तुर्मावत्रतवत्‌ sata एकाद श्यादिपच्चाणां सव्व॑साघारण्यमस्तु इति चेन्न तच aaa पकाएं “दादश्वामेव

(९) विस्तरेण तच |

कालसारः। १९

पारणम्‌” दति सव्वेसाघार छख वाचकत्वात्‌ तयाचारात्‌ | Fa तु तादृश्रवाक्याभावात्‌ तयाचाराभावाच्

च्रचाख्मत्‌ पिद चरणः, चेचपोणेमास्युपादानमपि wa त्रतस्य पौ णमास्न्तमा सा भिव्यञ्नकम्‌, तन्तु वेशा खङृष्णप्रतिपद येवेत्या ङ़ः |

केचित्ते, पौणमास्युपादानं सङल्यपरमिति, तदपि यक्तम्‌ प्रातः प्रतिपदि सन्ध्यातः ya कष्मेखनधिकारान्‌ सङ्कन्यकरएस्यान्‌- उितल्ात्‌ सन्ध्योत्तरं सङ्ल्पकरणे तु “वैशाखं सकलं मासम्‌” दतयुक्तस्य साकल्यस्य वाधाप्तिरिति रतो मासादिंतिये देधं उत्तर विद्धाया ग्राद्यत्वऽपि एतदचनवलात्‌ पवेविद्धा ग्राह्या एवं माघादिमासेऽपि° बोध्यम्‌ सङ्धन्यवाक्ये तु ay चेच्पौणेमास्या- भित्यायुक्ता श्वः प्रातरारभ्य वेग्राखपौणेमासोपय्न्तं वेश्राखन्रतमदं करिष्ये दति fae: | केवलस्ञानपक्ते तु वेश्राखसलानमरहं करिष्ये ofa i

aq जपन्निति सामान्येनोक्तलात्‌ VEGA wa सहखमयुतं वेति fegifaaatq गशतसख्यकजपेनापि पापच्यात्‌ wastsfa व्रतसिद्धिः। शक्तो तु प्रत्यहं सहसजपोऽव्यन्ता शक्तौ मासेन लचजपः काय्येः जपोऽयं वर्दिजेपविधिना ae) जपविधिरस्मत्‌रते MUTI FEB |i स्तोशद्रयोस्तु सानम्‌,-

agaafaniga मन्त्रवत्‌ लानमिष्यति | तुष्णोमेव fe gee GUY कुरुनन्दन

(१) माघमासेपि |

२० गदाधर्पद्धतौ

दति महहाभारतोक्तरमन्तकमचापोति ग्द्नौयम्‌। aa wane वेदिकमन््परत्वात्‌ | प्रकते तु Aan पौराणि- कत्वेन स्मात्तवात्‌ स्तौशद्राएणामधिकारः। satisfy तयेव एतददिचारः आद्धु प्रकरणे उच्छते ay efaagarfa | भविष्योत्तरे, Safa सिताखिन्नं धान्यसुद्गास्तिला sar: कलायकन्द्नौवारा वास्तुकं हौडमोचिका कालेयं कान्य मूलक केवुकेतरत्‌ | कन्दं सेन्धवसासुद्रे लवणे दधिसपिंषौ पयोऽनुष्टतमारञ्च पनमाब्रहरोतकौ | पिप्पलो जोरकञ्चेव नागरं तिन्तिङोफलम्‌ कदल Wat धानो फलान्यगुडमेचवम्‌ | Raa मुनयो दविव्याणि प्रचचते ढन्दोगपरिग्िष्टे,- हविय्येु यवा मुख्यास्तदनु AeA War: | माषको द्रवगोरादौन्‌ सर्व्वालाभेऽपि वल्जंयेत्‌ माद्छे- कलायाञ्चएका सङ्गा मिथनानां हशेषि च। एतेभ्योऽन्यानि नान्नौयात्‌ मिथुनानामनापदि श्रगस्यसहितायाम्‌,- नारिकेलफल्चेव कदलीं लवलों तथा श्राव्रमामलक्च्चेव wey wane AAT any दविष्य मन्यते बुधः

RIVAL: |

डेमन्तिवं हेमन्तपक्तं॒ग्ाच्यपरनामकं मुद्गाः स्यृलमुद्रयति- रिक्राः, स्यलमुद्गानां सामान्यतो ऽयभच्छलात्‌ | “निष्यावा श्राद्का मुद्गा” इति वच्छमाणएस्कान्दोक्तौ सुद्गस्य हविग्यलाभावोऽपि स्यृल- सुद्धपर एव saat बह्वाक्यप्रतिपादितं qzefawa area स्यात्‌ कालेयं तिक्रशाकविग्रेष दति इद्धाः कन्दं acute पयोद धिषटतानि गव्यान्येव |

श्रमादिय्यं तया सपिदं धिक्तौरमयापि ar | एतद्रतं( मतं विप्रा मेयनस्य विपय्येयः |

दरति विष्णध्गौत्तरोकतेः। wad द्‌ किणात्यप्रसिद्धभ्भोतफलकं पनसव्यतिरिक्रम्‌ | इरोतकौ वन्येव ! श्छभोतफलकपनसस्य ग्राभ्य- इरोतक्याश्च सामन्यतो ऽप्यभच्यलात्‌ ! जौ रक म्यच. एएक्तनोरक, हृष्णजौरकष्य शआ्राद्धेऽपि निषेधात्‌ नागरं mel तस्य श्राद्रेक- प्रसुतिकलात्‌ श्राद्रकस्य efawafafa श्राचार्य्याः। रेचवपदेन दृचुरस एव ग्राह्यः | खण्डादौनां गडप्ररुतिकलात्‌ गुडलम्‌ इत्य- सत्‌ पितामह -रष्णएटहत्‌ पण्डिता दौ नामाग्रहः वष्ठुतस्तु यथा TI- रसस्य पाके ASA तया गुडस्य पुनःपाकेन खण्डादिवमिति इषि- व्लमेव | शिष्टाचारोऽपि तयेव gaat त्रौदिः श्ररत्पक्धान्यम्‌ | गौराः Baas) “सुष्यालामे प्रतिनिधिरपि wears” दरति प्रतिनिष्यधिकरणशन्यायेन प्राप्रान्‌ माषकोद्रवगौरादौन्‌ वल्जेयेदित्यथेः | मिथुनानां दिदलानां मध्ये कलाचचएकाः खृडि-

(९) ब्रह्य (2) जौरकमच |

RR गदएधरपडतौ

याच्णा इति प्रसिद्धा दविष्याः। दतिव्यनिषेधं प्रत्य “वन्तला- guage’ इति स्कान्दोक्तः, wequatiat निषेध इति केचित्‌ awa स्यलकलायचणकयोः/\) पाथेक्यं चणक्डोला दति देशन्तरौयः। कलायो वन्तलकलायः इति नानाविध- संग्रयात्‌ श्रस्मद्‌ शचणएकवाच्यानां दे णान्तरगच्यक्ोलानामण्युभयो नेव दविय्यल्मिति वदन्ति दति परिगणएनपच्चो बङ्कग्न्थकाराणं aaa: दवियीग्ये दविय्यमिति विज्ञानेश्वर) aaa कारासु मधुमाषमांसेतरश्राद्धदेय दविग्यमित्याङ्गः। तदनुया- यिनस्त॒ इदविच्यदे ष्वपि) तिविच्यागणएयन्‌ तथाच वेशवार- रिङ्गमरो चादीनां वज्जनसस्कारकलनोपात्तवात्‌ तेषां दवि- व्यम्‌ वि्योत्तरादिगरितद्रययेग्योऽधिकदविष्याणि, यथा,-

:गोधूमश्ामाकभरियङ्गवो धान्यानि खाशिकाख्यककटोभेद- पटोलतिन्दुकख्जुरा स्ातककममरणा दूति प्रसिद्धफललङ्चदृददद री- वेकङ्कतद्ाडिमृहतौ फलानि | मध्यालुकशालूककसेहविदारौगता- वरौ तालमूलौ फलालूव्यतिरिक्सन्वालृभेददौ घेमूलकानौ ति मूलानि। पालद्चखदिरतुलमो तण्डलो यक सषे पपिष्यलो्घुम्राण्डवारत्ताङ्गि“काक- जद्वाज्घसुम्भश्धस्तणकफलु वजितानि शाकानि सव्वेगयविकाराः | वेचाङ्करं कपूर लाजाश्चेति॥ एतद्र्याणणं ₹हविव्यलादि विवेकः arg- प्रकरणे लेख्यः -

9 &= “^

(१) Tea कलायचणकयोः | (२) faa विष्यं स्यात्‌ | (द्‌) श्राद्वदेयेष्वपि ` (४) वार्ताकौ।

ALAA: | R32

ननु मधमाषमांखानां आद्धदेयलेन vfaafafa चेन्न माषमश््र मघृमांसपरान्नमेयनानि त्र्येऽहनि वजंयेदि तिं वाक्यात्‌, माषस्य रदि्यप्रतिनिधिलनिपेधाच् हि यदा वैशाखपोणमामौ परदिने जपादिकालव्यापिनौ तदा परदिने जपादिमासनत्यः aaa, “mat यस्य यः कालः? दति खद्धयानज्ञव्श्योक्तेः। दविव्यभोजनसम्य तु इविष्येतरभोजन- निटतन्तिरूपलात्‌। “निषेधः कालमा चके) निषेधस्तु निदरत्यात्मा कालमाचमपेचते इति BRAVIA: | एकभक्तकाल चौलमास्य- भावात्‌ हविय्याकरणेऽपि त्रतहानिः॥ एवं afar भक्तादिषुं वोध्यम्‌ ti - श्रय ZARA | भारते,- ज्येष्टामूलन्त यो मासमेकभक्तेन सद्धिपेत्‌ 1 - शशरस्येमतुलं Bed पुमान्‌ स्तौ उाभिविन्दते Aafafa arearfata Ta: “eat भवति अष्टः? दूति सकान्दो क्रः | निर परय ASA} oe भारते, श्राषादृमेकभक्तन fear माममतद्धितः। 7 ABU वडघनो वड्पुचख जायते |

(QQ) तदा जपादिवैशाखमासक्लव्यं कार्यम्‌ |

28 गदाघधरपद्तौ

अरय ्रावणमासकत्यम्‌ | भारते,- रावणं नियतो मासमेकभक्तेन यः fat | qa तचराभिषकेण प्रज्यते ज्ञातिवद्धनः

BY भाद्रमासरत्यम्‌ | भारते,-प्रोष्टपदंतु यो मासमेकाहारो भवेन्नरः | गवाच्छं स्फोतमतुलमेश्ययं प्रतिपद्यते VATU दरति एकभक्तागो

ay श्रायिनमासक्त्यम्‌ | भारते,- Waray मासमेकभक्तेन यः चिपेत्‌ | BNA वाहनाव्छश्च वहपुचश्च जायते ast शद्धः

न~

प्रय कात्तिकमासरुत्यम्‌ | भारते,- aT HAA नरो मास यः कुर्यादेकभोजनम्‌ | Wy away कौ तिमा सखैव जायते स्कान्दे, BANANA sa कफलप्रात्तियोक्ता | नारदौयपुराणे- एकभक्तेन नक्तन तयेवायादितेन | कृते त्रते धराप्राभिर्जायते दौ पमालिनो दूति केवलैकभक्रादिके फलम्‌

कलसार्‌ः |

सुपुण्ये कार्तिके मामि देवपिंपि्टसेदिते। क्रियमाणे व्रते aut श्ल्येऽपि सद्ाफलम्‌ दूति विष्णरदस्ये afale =f फलम्‌ sada fava सासं दानोद्‌रग्रियम्‌ | तिय्येगयोनिमवाप्नौति esuaafeaa: दूति नाररोयोक्तेः यत्किद्धित्‌द्रताक्रले दोषः ।॥ नारदोयेः- कात्तिकसमो सामः तेन समं युगम्‌ वेदेन समं wed तोयं गङ्खवा BAT तया, मांसाभिनोऽपि were अत्ययं.“ खगयारताः। ते मांसं काल्तिके wal गता विष्खालयं शभम्‌ तया, माद्य vada मारं ala नान्यदेवं fe चण्डालो जायते राजन्‌ कत्तिक सांसभरणात्‌ स्कान्देः- FYY HY मानुष्यं का न्िकोक्तञ्चरे दि | wa धश्मश्तां 3s माहपिहदा५) भवेत्‌ ब्रद्महा YAY Gast सदाथृतौ | करोति सुनिश्रेष्ट यो नरः कार्तिके aaa विधवा विप्रषेए व्रतं यदि कार्तिके") करोति सुनिग्ाद्रसं नरक याति द्‌ाङूरम्‌ तथा,- यतिश्च विधवा चेव fants वनाश्रमौ |

(१) अत्यन्तम्‌ | (>) मा पिद्टघातकः (3) Ra ata तु कात्तिक 4

$$$ ~~ ~ ~ ~

4

गदाधरपद्धतौ

कार्तिके नरकं यान्ति BRAT वेष्एवं व्रतम्‌ एवं गट दम्यस्याप्यन्ये THRU BACT उक्ताः तया,- गदे कात्तिक कुर्य्यात्‌ faa तु कालज्तिंकौम्‌ | सेते त्‌) कान्तिकं gala सव्वयन्नेन भाविनि॥ नन्दौपुराएे-यो नरः कात्तिक मासं मांसं तु परिक्ञेयेत्‌ | स्वत्सरस्य VHA पुष्ट मांसस्य दजंनात्‌ श्रमाम्थं mata मांसं वज्येम्‌ | कौमुदं तु विग़रषेण एक्तपचं नराधिप | दजयेत्‌ सन्वैमांसानि war aa विधौ यते sfa वाक्यात्‌ कौमुदं काल्तिकम्‌ | तचाप्यसामयं भौग्रपञ्चके मव्छमांसादिकं away. तेनाच मांसवजेनं निन्य काम्यच्च नारद ये,- कार्तिके wane, का तिके WAAAY HIPAA वजंयेत्‌ ate, कार्तिके nia सभ्धितम्‌ कालिके वजयेत्‌ स्ियमिति कचित्‌ चतुथा पाटः सन्धितं च्रासगादि। का प्रौ दण्डे,- ऊजं VARNISH RAV पुनः। ama शूरणं चेव एएकमिम्बो ञ्च वजंयेत्‌ शरणं aie दति श्यातम्‌ | नार दौखे,- श्रामिषं मेयनञ्चेव कार्तिके यस्तु वजंयेत्‌ |

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(९) tere |

कालसारः | ५.

सव्वेकालङतं पापं दुष्ठुः वापि नश्वति

विष्णः. aifwasfatsaisfay देवामां सुखं तस्मात्‌ alfaa मासि afearal गायचौजपनिरतः aaca efaarny संवत्सरक्तात्‌ पापात्‌ qat Hafa | पुनः एव

कान्तिकं सकलं मामं afearet जितेद्धियः। जपन्‌ दविव्यभुग्दान्तः Haare: प्रमुच्यते इति

Bq MARR श्रावण्यकज्लत्यान्तरवजिते काले कात्तिक वदिःख्ञानं प्रातःकालेतरक्रालेऽपि प्रकरणन्तराधिकरणएन्यायन काम्ये स्तानान्तरम्‌ यत्त॒, प्रातःकालो मुहत्तौस्तोन्‌" इतिं alga, तच्छराद्धादिरिषयसिति। अतएव, श्िष्टास्तद्‌नुसारेए दिव्ये यदा कदापि काल्तिंकत्रतकाम्य्लानं af) aferatay प्रातःलानाददिरित्यर्यापयन्ति) एतदेव विधिवाक्यमित्यपि acim | वडिनंद्याद्‌ा विति केचित्‌

कार्तिकं सकलं मासमिवयुकरेमासादितिथिः yafagrfa ग्राह्या तस्मात्‌ प्ूषदिवसमारभ्य व्रतस्यारम्भान्न प्रातःकाले काम्य- aaah: ननु,- का्तिकेऽदं करिष्यामि waa जनादन |

Wau तव Zan दामोदर मया ay |

दति मन्त्रलिङ्गात्‌ waar प्राभिरिति Ya) वेश्राख- ag प्रातःल।नस्यावश्यकताभिपरायेणेव देत्रपोणेमाम्हां qa- पौणमास्यां सद्न्यस्यो क्रिनाच तयोक्तः | INTE वाक्थसुक्तम्‌ | माघे वच्यते

as ग्द्‌ाघ्रस्पड्ध तो

ननु, aa प्रातःग्रब्दम्य at रतिरिति चत्‌ उच्यते। “श्यं खयं we प्रातः" इति प्राजापत्यकृच्छरादाविद प्रातःश्रब्दस्य द्विस- परत्मित्यभियुक्ाः | यदौ च्छेदिएुलान्‌ भो गान्‌ चद््रसुच्ये्हो पमान्‌ | कान्तिके रकल मासि प्रातःक्ञायो भवेन्नरः दति वाक्यस्य Saag सावकाग्ल्मिति केचित्‌ | तया- चारस्य दभेनात्‌ | मन्ते मयेति Way सद ननु, तुलामकरमेषपु WANA प्रग्रस्यते | हविष्यं ARV सदाप।तकनागनम्‌ दृति TAA: का गतिरिति चेदुच्छते। aq” सौर मासचरयात्मकमन्यदेव व्रतमिति पर्वाचार्य्याः ननु, एतदपि खःघु Maas खंडतवविवच्यां “श्राकामा ay यद्छलानम्‌” दत्यद्‌ावेपि पौरेमासौचतुषयका लौनष्यक्‌लान- विधानापत्तिः^ तेत्‌ दषाञ्चिदपीष्टं। सौरमासोपादानं तुखादिप्दोपादानादिति <q दाच्यम्‌। तहिं “कन्थां गते सविः तरि” इत्यादौ सौरमाखशोपादानादािनमासि मदालयश्राद्धंः कथं सादिति चेत्‌ सत्यं रानमान्तण्डोक्तौ aA तत्‌ केवलः

q pe

= A U ८६ : . स्तानमभिप्रल्येव | BA एव प्रशखटत इत्युक्तम्‌ “EAR AWWA gfa”. quien तत्‌ यक्किचचिद्धतासिप्रायेण इति वाक्चद्वयं तत्‌ श्रतएव,- तुलामकरसेषेषु म्रातःक्ाय भवेन्नरः |

#--

(९) एतत्‌ | (र) खानापत्तिः।

दलिसार्‌ः |

हविष्यभुक्‌ aU Base: प्रमुच्यते दत्याषेवाक्यान्तरेऽपि एयक्‌क्रिया यमुक्तम्‌ किञ्च का्तिकबतासम्भवे यदू श्रपञ्चक्मुक्तम्‌, तच प्रातःसखान- मुक्ता पुनः Bratt तपणन्तरसुक्तमिति दिवचे यदा कदापि काम्यं स्रानान्तरमिति सिद्धम्‌ sa स्तानस्य arama करणम्‌ तद मम्भवे aaa पिदकारिते वा जलाशये श्रत्यन्ता- सम्भवे तु पञ्चपिण्डोद्धारणदिप्रवेकं परजलागशयेऽपि काय्येम्‌ नलबद्विष्णरोगवता तु, श्रापः खभावतो मेध्याः fa पुनवेद्िसयुताः | तेन सन्तः प्रशसन्ति सानमुष्णेन कारिणा i दति षट्‌जिंन्मतोक्रेरुष्णजलेनापि स्तातव्यं। we नित्य काम्यवाद्‌ ययाकयञ्चिनिर्वाह्यवात्‌। UAT च्राचारसारे द्रष्टव्यम्‌ सानोत्तरमष्यद्‌ानम्‌ | तच मन्लः,- व्रतिनः alfa मासि aaa विधिवन्मम BEIM मया दन्तं दनुजेन््रनिद्धद्‌न |i नित्यनेमि त्तिक au कार्तिके पापनाशने | DEUS मया दत्तं राधया सदितो भवान्‌॥ दति मन्तं ससुच्चाय्ये योऽष्यं मद्यं प्रच्छति | यूपपूणेषयितोद्‌ नस्य फलमसृते aq गायत्रोजपसंव्याचा अरनुक्तावपि सव्वेपापसुक्वथं लबजप-

(२) निन्य काम्यत्व |

Re गद्‌! धर्पद्वतौ

स्योक्तवात्तदासे BIA: Be | “Md: प्रमुच्यते” दति लच- जपं प्रहृत्य विष्णस्टतेः | तचामामथ्यं परत्यं सदखजपः काय्यैः

सदसशवस्वभ्यस्य ददिरेतलिकं दिजः |

महतोऽप्येनसो मास (त्वचेवा हि विमुच्यते

दति aan: | चिक प्रएवव्यादतिगायन्य।त्सकम्‌ | च्रं “गायतो

जप्यनिरत" दरति निरतपदौ पादानात्‌ सदखनपान्युनजपौ न्‌ काय्येः॥ afeatalafefcia aaa: | प्रसवे a

जलान्ते WMT जले देवालयेऽपि at |

गवां गोष्ठे युष्यतौयं भिद ददेऽथवा गहे

द्युकेरनाद्ते ग्टडेकदे ेऽपि शिष्टा जपन्ति

सान्दे,- गवामयुतद्‌ानेन यत्फलं WIT खग |

तुलसी पचकंकेन तत्फलं का न्ति तम्‌

विद्ाय सव्वेएुष्याणि सुनिपुष्यंए वेग्रवम्‌ |

कार्तिके योऽचचयेद्भृत्वा वाजपेयफलं लभेत्‌ सायंसन्ध्याकालारम्मे ्ाकाप्ररौपद्‌ानम्‌ | विष्णधन्ौ त्तरे,

त्रा ्रयुज्यामतो तायां वावद्राजेन््र कात्तिक

तावत्‌ दौपप्रदस्योक्तं फलं राजेन्द्र शाश्वतम्‌

तावत्काल्तं प्रयच्छन्ति यं तु cid सदा fafa |

ag देशे वदिस्तेषां मदत्‌ पुष्यफलं भवेत्‌ |

AQAA ASA प्राकाश्य तेन जायति |

प्राकाश्वाद्‌ यदुशाद्रंल तेन यान्ति तया सुखम्‌ ABS. तुलायां तिलतेलेन सायंसन्ध्यासमागतते |

कालसारः | ३९,

ARI यो दद्यान्मासमेकं निरन्तरम्‌ | मश्नोकाय atid भरिया विदुज्यते॥ दौ पदानमन्तः, शतानन्द मङ्ग डे, दामोदराय मभि तुलायां लोलया ay | प्रदौपन्ते प्रयच्छामि नमोऽनन्ताय देधसे दति was यो द्यान्‌ प्रदोपं सपिरादिना ] श्रकाग्रमण्डले वापि wean लभेत्‌ लोलया aay: way तिक्लदे लगाज्ययो दीँ पदाने विकल्पः ब्राह्मे तु, अत्यदेदोपसाकां यो दद्यात्‌ कार्तिके fafa anand पापं चिभिवैषेव्य॑पो हति चतुष्पथेषु TAY ब्राह्युष्णवसयेषु | SURAT MEY कान्तार गदहनेघु च॥ दिष्णवेश्मनि यो दद्यात्‌ का्तिके मासि दौपकम्‌ | अरग्चिष्टोमसदस्छस्य फल प्राप्रोति मानवः etl रय भै) प्रपञ्चकम्‌ | भविष्यो त्तरे, का सिके WAIT प्रण धरं पुरातनम्‌ | एकाद्‌ण्वां समारभ्य विज्ञेयं भो श्रपञ्चकम्‌ तया, शाकादारेण मुन्यन्नैः छव्णाच॑नपरेनरेः | स्तो भिर्वा waa ATA सुखवद्धेनम्‌ | विधवाभिश्च ana qanafiaga | सव्वेकामसग्टद्यथं मोक्तायंमपि ofa i zaite विधिम्तत्रेव द्रष्टः 1

a2 गदाधरपद्धतौ

विष्णर द्ये. Waray यतः प्राप ad पञ्चदिनात्मकम्‌ मकाग्राद्‌ासुदेवस्य dam भोग्रपञ्चकम्‌ तथा,- AAR गुणान्‌ वक्त कः रक्तः केश्रवादृते। तया,- का्तिंकस्यामले पत्ते सावा सम्यग्यतत्रतः | valent तु गह्योयाद्रतं पञ्चदिनात्मकम्‌ प्रातः साला विधानेन wars तथा aat | नद्यां निदयंरगतं वा समालभ्य गोमयम्‌ यवन्नोदितिलेः सम्यक्‌ प्रङ्ुययौत्तषंण क्रमात्‌ Tarte | ब्राद्ये-- एकाद ग्रो समारभ्य राका यावत्‌ प्रबोधने | वकोऽपि तच alae मांसञ्च किञ्चन तेन मद्यादिकं aaa ua Bava वकपञ्चकमिति प्रसिद्धिः द्रति कािकनतं') च्रकरणे cetera: फलग्रवणाचच नित्यकाम्यम्‌ | तचान्रमानेनेव alana तु यत्‌ aa माघे नामि विगेषतः। छच्छरादिनियमानाच्च wear प्रग्स्यते॥ इति पितामहोकरः॥ चेतन्यदेवानुया यिगो खवेव्छवेस्तु ता थिन एएकतेकादश्यामारभ्य का- ्तिकण्क्तैकादण्ौ यावद्‌ ब्रतमाचरन्ति तच श्एक्तद्रादश्यां पारणे सम्यक्‌ प्रमाणं दृश्यते| इति तत्पकेऽपि पूरिंावधि aaa NAAR तयाचारस्य ओरौपुरषोत्तमचेे शओरोजगन्नायप्रासादे द्ग्रैनात्‌ इति का्तिंकत्रतेपिचारः॥

(९) इदं का्तिंकत्रतम्‌ |

कालसारः | ३२

रय चातूमास्यत्रतम्‌ | भारते,-श्राषादस्य गिते प्ते एकादण्यासुपो षितः चा त्र्मास्यतरतं quiz यत्कििननियतो नरः वारादे,-श्राषाढशक्तेकादगश्यां पौणमास्यामयापि ar चातुर्मास्यत्रतारम्भं कुर्यात्‌ ककटस्क्रमे श्रभावेऽपि ठुलाकेऽपि मन्तरेण नियमं ब्रतौ | कार्तिके शक्तद्रा दश्यां विधिवत्तत्‌ समापयेत्‌ चतुर्घापि fe तत्‌ चौं चातुर्माखव्रतं नरः तुलाके कार्तिके We गुद्यकेरिति we) “चतुर्धा गद्यके- ख्णे'मिति भारतोक्तेः। नारदौये,- एकभक्तेन न्नेन तथयेवायावितिन च| aa ad धराप्रा्िर्जायते दौपमालिनो | भविष्ये,- यस्तु ga दपोकें नक्तमाचरते ब्रतौ। वस्तयुगमं नरो दता विष्णलोकञ्च गच्छति माव्छे,- श्राषाढादिचतर्माष प्रातःस्तायो भवेन्नरः वारे, Waataad जूर्यान्नरः किञिन््ररौ पते | नान्यया atfeen पाप पिनिदन्तयप्रयन्तः॥ पच्चचतुष्टयाग्रक्रौ तु स्कान्दे, ann: कार्तिके मासि ad छुर्यात्‌ पुरोदितम्‌, तचापि रेदगशक्तः स्याद्रो श्रपञ्चकमुत्तमम्‌ Il पुरोदितं चातुर्मास्योक्तम्‌ | एतेन चातुर्मास्यत्रतस्य नित्यलम्‌

तस्यारम्भमन्लो विष्णर स्वे, 5

३९ गदाधर्पडतौ

ez ad मया देव weld पुरतस्तव | fafan सिद्धिमायातु प्रसन्ने तयि ana गहौतेऽस्मिन्‌ at देव यद्यपरूरं fear | तन्ते भवतु BAT ल्रसाद्‌ात्‌ जनाट्‌न॥ उद्या पनमन्ल्ोऽपि तत्रव, ददं तरतं मया देव छतं प्रत्ये तव प्रभो। नूनं सम्यणेतां यातु त्वत्ममाद्‌ाज्ननाट्‌न॥ चातु्मास्यनियमाः स्कान्दे मञ्चखद्रा दि प्रयनं वजेयेद्ुक्तिमान्नरः। अनृतौ व्रजेद्भाय्यां मांसं मधु परौद्नम्‌ पटोलं मूलकञ्चेव वार्ताकं नेव भचयेत्‌ | aay वजेयेत्‌ दूरान््धुरं सितसषंपम्‌ राजमाषान्‌ ठुखुश्यां्चाप्यणधान्यञ्च वजंयेत्‌ | mia द्धि पयो माषान्‌ श्रावणादौ क्रमादिमान्‌॥ राज-गोप-यतोस्यक्ता नारो हेच्श्मेपादुके | तेलाभ्यङ्ग दिवाखप्रं षटषावाद च्च वजेयेत्‌ | एतेना नुपगोपालयतौनां चम॑पादुकारोदणं निषिद्धम्‌ | दविष्यस्यापि दौघेमूलकस्यात् asian, साक्तान्निषेधात्‌ केषाञ्चि- न्मते पटोलस्यापि तथा मच्छेऽच काम्यनियमाः,- चतुरो वाषिकान्‌ मासान्‌ देवस्योत्यापनावधि मधुखरो भवेन्नित्यं नरो गुडविविजंनात्‌ तैलस्य वजेनादेव सुन्दराङ्ग: प्रजायते |

कालसारः | २४

लभते सन्ततिं Sei स्याल पाकमभक्तयन्‌ सदा समुनिः षदा योगो मधुमांसस्य वजेनात्‌ | निव्व्गाधि नौँरुगोजसखौ विष्णभक्तञ्च जायते एकान्तरोपवासेन विष्णलोकमवाप्रुयात्‌ | धारणान्नवलोन्नां वे गङ्गास्तानं दिने fer i नमो नारायणायेति जघ्ाऽनश्नजं फलम्‌ | पादादिवन्दनादिष्णोरंभेद्‌ गोदानजं फलम्‌ एवमादित्रतेः पाथं तुष्टिमायाति ana: |

नात्र कालष्एद्यपेच्वा | तथाच गाग्येः,- ana नेव ated शक्रो नै वा faa: awa दिन्तयेचा तुर्माखत्रत विधौ नरः |

एवच्च afa.— श्रस्तगे गुरौ शक्रं बाले we मलिन्तुचे | उद्यापनसुपारम्ं त्रतानां नैव कारयेत्‌

दूति इद्धगाग्थेवाक्य सामान्यलादितरत्रतविषयम्‌ याम्यायने दरो BA सव्वैकर्माणि वजयेत्‌ |

इत्यपि विहितेतर विषयम्‌ तथाचाच कन्तेव्याकन्तव्यविषये

AAALAC स्तत्छा दचय्येव्याख्या श्रदद्धकालप्रकरणो लेख्याः aa ओरौभुवनेश्वर चेते नित्रा्षफलं गरिपुराणे,-

चात्‌ मास्यं नरस्तच छेत्वा गिवपरायणः | राजष्यसदखस्य फल प्राप्रोति नान्यया

त्र एकासकचेचे ओपुरुषो त्तमकेचे। तच निवासफलं त्राद्ये-

ad गदाधरपद्वतौ

वापिकांखतुरो मासान्‌ afeeq पुरुषोत्तमे | विद्दाय सव्वेपापानि विष्णएलोकं गच्छति ufuai यानि तौर्यानि चेचाण्यायतनानि च। तिष्ठन्ति चतुरो मासान्‌ चे योपुरुषोन्तमे पुष्करि ण्याच्च aay वायां कूपे सरित्सु च। तिष्टन्ति सव्व॑तोर्थानि शयनोत्थापने इरेः खकान्दे,- काश्यां awa वासान्नियमव्रतसंखथितेः | फलं यदकं तदिद्ात्‌ चेते श्रो पुरुषो त्तमे चातुर्मास्ये निवसति: चेते ओौपुरूषोत्तमे | साच्तात्‌ दृष्िभेगवतस्तद्यं मो्तसाधनम्‌ दिने दिने महापुण्यं सवेक्तेचनिवासजम्‌ safe वङफलानि विस्तरभयान्न लिखितानि i aaa तु एकम्थानावस्यानादिचातुर्मास्यधरम्ाः श्रावणादि- मासदय एव BS वाषिकाभ्यां मासाभ्यां नेकस्यानवासः स्यादिति agay शङ्खकः एकरा FARIA नगरे पञ्चराचकम्‌ | वर्षाभ्योऽन्यच वर्षाय मासां चतुरो वसेत्‌ दूति काकग्टद्यमत्यन्ता शक्त दिक्यम्‌ |!

AY AANA | भारते,- मागेग्रोषन्तु यो मासमेकभक्तन सङ्किपेत्‌ zines दिजान्‌ भत्वा सुदा धिक्रिखिवषेः

कालसार्‌ः |

सवकल्याणएसम्यन्नः सर्वेोषधिसमन्वितः | उपोव्य व्याधिरहितो वौय्येवान भिजायते i afew वजड्घनो वड्घान्यञ्च जायते

श्रय पोषमासरत्यम्‌ | भारते,- पौषमासन्तु कौन्तेय भक्ेनेकेन यः चिपत्‌ | सुभगो दशंनोयश्च यश्रोभागौ जावते॥

श्रय माघमासरत्यम्‌ | भारते,- पिदभक्तो मघासखेवं चिपेद्‌यस्त्ेकभो जनः | Saige जातिमां सुमहा खेव जायते | मघासु मघायुक्तपौणेमासोके नाघ इत्ययः} भविषयोत्तरे,- saat माघमासस्ह वेष्णवानामतिप्रियः | देवतानाखषोणश्च gaat सुरनायक तथा, माघमासे Tema: किञ्चिदभ्यदिते रवौ ब्रह्मघ्नं वा खुरापं वा कम्पतन्तं Galas | किञ्चिदभ्यदित इति प्रातःकालावधिषूपम्‌ | ARTS रवौ माघे प्रातःकाले तयाम | गोधष्यदेऽपि जले सानं मोखदं पापिनामपि | दति पा्मोक्तः।॥ भविव्योत्तरे,- यो माघमास्यषसि सय्येकराभितामे

29

(१) जातिमति मदत प्रपद्यते |

३८ गद्‌ाधरपड्धतौ

सानं समाचरति चार्नटोौप्रवाहे | उद्धत्य सप्त पुरुषान्‌ पिटमादवशान्‌ खगे प्रयात्यमरदेदधरो नरोऽसौ श्रच सुथ्यकराभिता्र दति उक्त नतु earfaara दति। तथा,- दारिद्चपापदौर्भाग्यपापप्रचालनाय वे। माघल्लानान्ने Wats उपायो नरसत्तम il श्रविसुक्ते प्रयागे गङ्गासागरसङ्गमे यत्फलं ग्रभिरवषेः प्रा्यते नियतं नरैः तत्फलं लभते माघे ररदस्तानान्न WNT: | AHR हेमारौ सुरापो TRAIT: I aaa विपापः स्यात्‌ तत्संसगों तु पञ्चमः। श्रायवित्तकलचा दिसन्पदः प्रभवन्ति तया,- कामादिकञ्च बत्पाप न्नानाज्ञानकरृतञ्च यत्‌ | MAA aan मकरस्थे दिवाकरे | Ua— wad मकरादित्ये Yo GUNS सद्‌ा कर्तव्यो नियमः कथिद्धतरूपो नरोत्तमैः फला ति शयेतो a किच्चिद्धोज्यं त्यजेद्ुधः | रेर्चातु ama तपः पूजा तु कार्तिके तपोऽभ्यर्चा तथा दानं चयं माघे विशिष्यते | इति araad यद्यपि नित्यकाम्यम्‌ तथापि बज्वाक्येषु लाने ay- फलोक्रः केवलसानमावश्यकम्‌ ब्रह्माण्ड, माये प्रतिदिनं प्रातःकलानाग्रक्रौ तु पणि

कालसारः | ३९.

aia यत्नतो धौ ररवश्वं दे वपूजनम्‌ च्राय्े चान्ते सध्ये QE स्ानमाचरेत्‌। वलवान्‌ पुरुषो नित्यं वालद्धा तुर विना i नारदोये, माचप्रातःस्ाने जलोक्तिः,- gaia: सवेपापानि त्रिविधानि संप्रयः॥ तथा,- माघमासे aus we वे नि्रगाजलम्‌ | तद्भवे तुस खायात्‌ FU भाण्डाभिते तथा तचया,- सरितामप्यभावे तु नवद्घुम्भस्ितं जलम्‌ | वाय॒ना ताडितं tat गङ्गाख्ञानसमं विदुः तया, वदङ्कि सेवयेत्‌ खातो arerat वा वरानने) होमाय सेवयेद्रद्धिं WATE कदाचन गेवे, माघमासे नरो यस्तु सायात्‌ Waa वारिण याति ब्रह्मणः सद्म ञद्यदत्यायतोऽपि सन्‌ यच्रातिश्नौतसं तोयं ge तच्ताधिकं भवेत्‌ श्रत्यन्तागक्तौ तु पाद्म ततेन वारिण aie aes क्रियते नरैः | षडब्द फलदं तद्धि ance दिवाकरे रच वद्किप्रज्चलनादिकं वस्त्रादि दानं (*चश्रस्रत्‌हृतटानसारे द्रष्टयम्‌ भविष्ये, बवालास्तरुणका इद्धा नरो नारौ नपुंसकाः | साला माघं LH AT प्राप्नुवन्तो रितं फलम्‌ |

(२९) वस्त्रादिदानञ्च सवम्‌ |

ge w<Ta wEat

विष्णः देशी षा पौणेमासों वा प्रारभ्य सानमाचरेत्‌ चिंग्रदिनानि पुण्यानि मकरस्ये दिवाकरे तच चोत्थाय नियमं गह्या दिधिपूेकम्‌ | माघमापमिमं परणं सराखेऽहं देव माधव इत्यादि | श्रच Rata: पुष्यपौणंमास्यामिति भ्रमः काय्यैः। “द्ग वा पौणमासौंः वा इति ददिविधचाद्धमासस्येवादरो मासा- न्तराणामित्यभिप्रायात्‌ | पौणंमास्यारम्भे तु ‘“faneeratfa” विरोधः Bq, तसख्मान्माचरृष्णप्रतिपयेवारभ्भः स्पष्टं स्कान्दे, gat तु समतीतायां यावद्भवति gfwar | माघमासस्य राजेन्द्र विष्णोः gat विधौयते दूति पृणिमाकथनं सङ्कन्पपरमिति नारायण्ोपाच्यायाः aa दर्ान्तपच्तो(%ऽसखदेगे नाचय्येते माघमुपक्रम्य स्कान्दे, wai देवतानाच्च मूलकं नेव दापयेत्‌ | दघ्यान्नरकमाप्नोति gata ब्राह्मणे यदि ब्राह्मणे मूलक भुक्ता चरेचान्द्रायणं व्रतम्‌ | ्रन्यया यान्ति नरक aafaeug एव हि वजनोयं प्रयन्ेन aan यदि वागममिति | alana नारदौये,- सवितुः प्रसवस्येह परं घाम जले aa | तन्तजसा परिभ्रष्टं पापं यातु सदसखलधा

(९) दभ्र न्तमासपत्तो |

कालसार्‌ः | ४९

दिवाकर जगन्नाय प्रभाकर नमोऽस्त TT परि परणं कुरव्वेदं AEA ममाच्यत tH मन्तं aa पठन्ति॥ पादे a wate रवौ माघे गोिन्दाच्युत माधव | Baga SAT ययोक्रफलद्‌ो भव | यथा नारायणः BA यथः नारायणो जलम्‌ यया नारायणो माघ स्तया पापं विनश्यत्‌ | दरति मन्ल्ान्तरं तदपि wha माघन्तानं प्रयागेऽधिकफलम्‌ मदाभारते,- स्तारिते यैः ead माघमासे युधिष्ठिर तेषां पुनरादन्तिः कन्यकोटिग्रतेरपि मात्ये,- षष्ठितौयेमदस्ताणि षष्ठितोये्रतानि | माघमासे गभिवयन्ति गङ्गायमुनसङ्गमे Il गतां शतसहस्रस्य सम्यग्‌ त्तस्य चत्‌ फलम्‌ | प्रयागे माघमासस्य BE RAS तत्‌ फलम्‌ माघस्ञानमन्ते स्लीशद्रयोरष्यधिकारः पौराणिकिलादिति पर्थै- मुक्तम्‌

श्रय फाल्गुनमा मछव्यम्‌ | भारते,- भगदेवं तु यो मासमेकभक्तेन सङ्भिःपेत्‌ | aly वल्लभतां याति area भवन्ति ताः भगदेवतं, पूरव पाल्‌गनोनचचं तदु पलदितं मासं फाल्‌गुनमित्यथैः॥ 6

४२ गदाधर्पद्धतौ

विष्णः,- दच्छदिपुलान्‌ भोगान्‌ चन्द्ररु यथग्रदो पमान्‌ | प्रातःस्तायौ भवेन्नित्यं दौ मासौ माघफाल्ग॒नौ यमोऽयधिकमाद,- = oN दिदान्‌ fags समभ्यच्छं सवपापः प्रमुच्यते | दे वपिच्रचेनं तपेणादिना i दति मासकहत्यानि

श्रय पक्निणेयः |

पच्चग्रब्दः पच्च परिग्रह इति धातोनिष्यन्नः। चन्द्रस्य पञ्चदश क- लानां पूरणं चयो वा यत्र पच्छते waa पचः। war देव- पिहका यथाय पच्छते यः कालविगरोषः ua) तया दिविधः, TH: BUA तया हारोौतः, उद्‌गयनं प्रक्तोऽदः पूर्वाश्च agua, द्चिणायनं तभिखो राचिरपराहश्च तत्‌ पिदरणमिति। Wa Ware: | तभिखः aus: तया माधवोये,

देवे मुख्यः wave: au: fay विशिष्यते |

RL

श्रय fafafaua: | तिथिश्रब्दोऽपि तनु विस्तार दति धातोनिष्यन्नः। वद्धमानया चौोयमाणया वा चन्धकलया तन्यते यः कालविग्ेषः सा fafa: सिद्धान्तशिरमणणै,-- तन्यन्ते कलया यस्मात्‌ तस्मात्तासिथयः सताः | aal तनोति agatat ्तौयमाणणं वा चन्रकलामेनां यः का- लविगशेषः सा fafa: | षटूचिशन्मते,-

कालसारः | ४३

चन्द्रृद्धिकरः RH BU: चन्द्र ्यात्मकः | पचत्याद्यास्तु तिथयः क्रमात्‌ पञ्चदश War: पचतिः प्रतिपत्‌ तथा सोमोत्यत्तौ प्यते,- neat पिवते वह्ि्दितीयां पविते रविः | तिशेदिवास्ततौयान्तु चतुर्थौ षलिलाधिपः पञ्चमो तु वषरकारः ष्ठो पिवति area: | सप्तमोषटषयो दियामष्टमो मज एकपात्‌ | नवमो छष्एपचस्य यमः प्राप्रोति वे कलाम्‌ दशमीं पिवते वायुः पिकवत्येकाद्‌भौसुमा | ददशण पितरः सवे समं प्राश्नन्ति am: | योदश waraa: कुवेरः पिवते कलाम्‌ | चतुदट्‌भो पर्एपतिः gent प्रजापतिः निष्कलश्च कलागषशन््रमा प्रका ग्रते | कला षोडशिकाया तु रपः प्रविग्रते सदा i Raat तु सदा सोम्‌ श्रोषधोः प्रतिपद्यते) तमोषधिगतं गावः पिवन्तयम्बृमतं यत्‌ तत्‌ रौरमग्टतं wat मन्त्रपूतं दिजातिभिः | Baafay यज्ञेषु पुनराप्यायते शशो दिने दिने कलाढद्धिः पौणमास्यां पणता एवं प्रतिपदादिपौणेमास्यन्ताभ्यः पञ्चदगशतियिभ्योऽतिरिक्रा ्रमावास्या तिथिरिति सामान्यविगरेषरूपेण तिथयो दिविधाः aa

(९) प्राश्राति |

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४४ गदाघरपद्तौ

श्रमावास्यातियिः सामान्यरूपा अन्याः प्रतिपद्‌ाद्यास्िययो fase रूपाः ननु ज्योतिःशाप्ादौ कलानां सय्यपरवेनिगेमाभ्यां तिशयु-

त्पत्तिरुक्ता, श्रत पानमुक्रमिति तदिरोध दति चेन्न श्रस्मदादि- ग्रेनापेचया चज्योतिःाग्तस्य प्रटृत्तलात्‌ च्च वह््यादिदेवानां aM विंवचचितलात्‌ वम्दुतस्त॒ रखय्यप्रेनिगंमो वा वह्यादिदेवतापानं वा सवर्थापि कलाप्रयुक्ता एव प्रतिपदादिति- wail तत्र fafafaiey प्रथमा कला इति प्रतिपन्नाम्नौ प्रति- पच्छन्दः प्रत्युपमर्गात्‌ प्द्रगताविति धातोनिंष्यन्नः। wR पचो . मासो वा प्रतिपद्यते simad यस्यां सा तिथिः प्रतिपत्‌ सा Raid चन्द्र विशेत्‌ पदे चनद्राननिःमरेदिव्युभवयापि प्रय- मेव तदु पल्लचितः कालतिप्रोषः प्रतिपच्छब्देनो च्यते एवं fe तौयादिषु बोध्यम्‌ तत्र ज्योतिःशास्हे,-

षष्िदण्डाल्मिकाः सवा स्तिययस्तच तु चयः |

षडद्ण्डावधिकः afg: पञ्चदण्डावधिमेता तथा Haggai घन्देदात्‌ तन्निरुयः काय्यैः

हासटरद्धो तु गाग्यरोक्तम्‌,-

waar दपं स्तथा fea fafa तियिलच्णम्‌ |

धर्माधमेवश्रादेव fafuaeurt facia a नृणां धर्माधमेवशादिति कालाद बौधायनः.

(१) विवसंते |

कालसार्‌ः। ४१५

wai समतियिज्ञंया दर्पा इद्धिमतौ खता) सोयमाणा fafa दिखा fata: प्रागुदौरितः aq: साम्यमन्यच्यो वा दहिस्तोऽधिकचयच इति माघवाचार्य्याः। एतन्नेविष्यस्य विपरि वन्तेनविगेषात्‌ तिथिदिविधा सम णा खण्डा चेति तच सकान्दे,- प्रतिपत्रश्तयः स्वां उदयादोदयाद्रवेः। aut दति विख्याता इरिवासरवजिंताः हरिवासर एकाद | तच वेष्णवमते श्ररुणोद्‌ यवेधान्तद- जिता दल्यक्तम्‌ नारदौये त्‌, च्रादित्योदयवेलाया चारभ्य षषिनाडिकाः। या fafa: at aq wel स्यात्‌ मावेतिथ्यो aa विधिः यातु नोक्रलच्णा सा खण्डा i एतेन सम्पूणं AZT खण्डा विद्धेति बोध्यम्‌ तच werai विधिनिषेधयोने सन्देहः विद्धायां विधिनिषेधयोव्येवस्ा गाग्यंणोक्ता,-- निमित्तं कालमासाद्य ठत्तिविधिनिषेधयोः | विधिः पृज्यतियौ aa निषेधः कालमाचके तिथोनां Gaal नाम कर्मानुष्ानयोग्यता | निषेधस्तु faz कालमाचमपेचते Sf पालनम्‌। तया पूज्यकालमासित्य विधेरनुष्ठानरूपपा- लनमिति तिथिमाच्चिल्य निषेधस्ाननुष्टानरूपपालनमिति | तयोः पालने कालस्य निमित्तवसित्ययेः | यथा, यस्मिन्नदनि waren उद यमाच्यापिनो तच “एकाद गोसुपवसेत्‌” दति विधिवला-

४६ गदाधरपद्वतौ

त्त्‌त्रते रत््मदो waa इति तिथेः परज्यता तेलाभ्यङ्गादि- निषधे a कालमाचापे्ना तथा गिवरदस्ये,- mag चोद्‌ धिक्ताने दन्तधावनमेथने | जाते निधने चैव तत्कालव्यापिनौ fafa: i इत्यादि | तम्माद्धिद्ध तियो gaa नियम्‌ तच पराशरः चिमन्ध्ययापिनौो यातु सेव पज्या सद्‌ा तिथिः) तच युग्माद्रणएमन्यत्र दरिवासरात्‌ मरौविः,- खखण्डव्या पिमा maaan fafa: | सा द्यखण्डा व्रतानां स्यात्‌ तच्रारम्भसमापनम्‌ श्रन्यच,- उदितो चच मान्तेण्डः खखण्डाद्‌ तिवन्तंते | रण्डा सा fafaaiat इानद्‌ानत्रतादिषु सत्यब्रतः,- उदयम्था fafuat fe भवेददिनिमध्यगा | सा खण्डन व्रतानां स्यादारम्भश्च समापनम्‌ विष्णधम्मात्तरे,- बरतो पवामखवानादौ Saat यद्‌ा भवेत्‌ | सा fafa: सकला ज्ञेया श्राद्धादो लस्तगाभिनौ भविष्ये तु व्रतोपवासनियम दूति पाठः| दति कमेकाल- aif. तच aad वेध उक्तः पेढौनमिना। पच्दयेऽपि तिययस्तिधिं vat तयोत्तराम्‌ | चिभिसुहत्त विध्यन्ति सामान्योऽयं विधिः सखतः पूवचयुरुद यानन्तरममावास्या जिमुद्धत्तां चेत्‌ खा प्रतिपद्‌ विष्यति परेद्युरस्तमयात्‌ प्राक्‌ दितौया faysat चेत्‌ सापि पूवं प्रतिपदं

कलसार₹ः | 89

विध्यति एवं aaa) तच चान््राणं fadtat श्रदोराचविभागं विना व्यवस्था कन्तमग्रक्येति तद्धिभागो गगंणोक्तः | श्रदिपच्छमपरिक्तेपो निमेषः परिकौल्तितः | at faaat afe नाम द्धे वटौ तु लवो aa: | at लवौ चण दल्युक्तः काष्ठा प्रोक्ता द्भ चणा: | विंशत्‌ काष्ठाः कला प्रोक्ता weiner ia: ते ञिग्रिदहोराचमित्याह भगवान्‌ इरः | एतादृशादोराचस्य श्रति-रूति-पुराण-ज्यो तिःशास्तेषु दिवसस्य पञ्चद्‌ पमुद्ध्तानां पञ्चदए़्रनामानि राचरेरपि तथा नानाविधानि पठितानि i प्रकते तु राचिनान्नामनुपयोगात्‌ दिवसस्य gy नामान्यच्यन्ते तया WE रोद्रसेच् मच्च तया शालकटः स्तः सावंचश्च जयन्तश्च गान्धवेः कुतपस्तया | Ufeuy विरञ्चिश्च दिजयो नेरतस्तया | महेन्द्रो वरूण्येव भेदाः VBS रताः उत्तरायणे दिवमदटद्धौ सुहर्तानां दद्धिः। दकिणायने दिव- सस्य हानौ तेषां हानिश्च तथा ज्योतिःशरास्ते,- श्रद्धः पञ्चद शांशो yeu इति | एवं ्रयनयोः warty वैपरीत्येन * ासटृद्धो ज्ञातव्ये एं पञ्चधा विभागादिष्वपि ate, एवं पञ्चदग्रधा विभागः, पञ्चधा दिभागोऽपि। तथा ब्यासः,- सुद्धत्तेचितयं प्रातः तावानेव तु सङ्गवः HEARST: स्याद पराहस्त॒ तादृशः

8S TETAT पडतो

सायाङ्धस्तिमुहन्तम्त॒ सवेकमेव दिष्कतः | चतुधां विभागोऽपि) aura गोभिलः,- Gale: FECA AUB प्रहरस्तया | ASA ASAT AIRY ततः परम्‌ faut विभागोऽपि स्कान्दे, ऊं Gaza प्रोक्तं मुहर्तानां ठु पञ्चकम्‌ | Yate: पञ्चक प्रोक्तो AWRY ततः परम्‌ ्रपराहस्ततः प्रोक्तो मुहरत्तानां पञ्चकम्‌ दधा विभागोऽपि) स्कान्दे, त्रावन्तनान््‌, पूर्वाह्णो ह्यपरहस्ततः परः aa पञ्चधा विभागस्य वङ्कप्रमाणसम्मतत्ात्‌ प्रायेण तं समाथित्य विधिनिषेधो निणोँयेते 1 aa यच विगषविधिस्तच तत्रान्ये पचा लेख्याः तचो पवासेकभक्ते नक्तं Wally व्रतं दानं चाध्ययनं सपतदिधं देवक्रमं तवे उपवामग्रन्दायौ विष्णधमं,- उपाट्रन्तस्त पापेभ्यो यस्तु वासो aa: aes उपवासः विज्ञेयः सवच भोगवरजिंतः तचोपवासः aafafay fafea: 1 नारदौये- mara ar यदि वा हष्णान्‌ प्रतिपत्‌प्रश्तौन्‌ तिथोन्‌ | उपोय्येव वलिं zat विधिना द्यपरेऽहनि ब्राह्मणान्‌ भोजयिला तु स्वेपापेः प्रसुच्यते

कालसारः। 8९€

दत्युपवासस्याहो रा FA ATT ary faa सन्देदः। तद- aaa चरिमन्ध्यव्या पिन्याम्‌ तद मम्भवे खण्डतिथौ | तत्र वाक्यान्य्‌- दादइतानि। तच Ware अमावास्याविद्धा प्रतिपदुपोष्या। तचाप्- पराहवययापिनौ सुख्या तदसम्भवे मायाद्धव्यापिनोौ ग्राह्या। नतु उदयतरिमुहत्तवयापिनौ | तया वासःः- प्रतिपत्येव विज्ञेया चा भवेदापराह्िकौ | देवं कम्मे तया जेयं पिच्य वा मनुरव्ररौत्‌ | Gatafa:,— पञ्चमो सप्तमौ ठेव दग्रमौ sate | प्रतिपन्नवमौ चेव कन्तव्या स्मो fats: | GAA लं स्कान्दे, - weal नाम मायाङ्धवयापिनौ दृश्यते चद्‌ | प्रतिपत्सन्मणो कार्य्या या भवेदापराल्िकौ निगमोक्तिरपि,- युगा त्रियगग्चतानां षण्मन्यो वंसुरन्नयोः | RAV दादौ यक्ता Wagar प्रूणिमा | प्रतिपद्यप्यमावास्या ति्योयग्मं महाफलम्‌ Vaya ARIAT दन्ति UW पुरा कतम्‌ ama दितौया श्रग्निस्ततौया युगं wat तं पञ्चमौ षट्‌ षष्ठो। मुनिः सप्रमो। वसुः weal) रञ्च नवमौ। aE: एकादशो अच दितोयादिसत्तय॒ग्पषु प्वंतियिः उन्तरविद्धा MET उत्तरा तु wfagas | दितौयाटतौ ययो युग्मं मेलनं महाफलम्‌ | तत्तत्तियिनिमित्तके कम्मरौति ma) wage

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५० गदाधर्पद्तौ

युगप्रादि विपरौतम्‌ | प्रतिपद्वितौ ययो रित्याचयोमेलनं महाघोरम्‌ | एवं चतुय पञ्चम्यादिपषु बोध्यम्‌ श्रय उपवाखविषचारः। द्द यग्मगरास्तमुपवारुविषयमेद | एकादश्वषटमो ष्ठो दितौया चतुयिका। चत्‌द्‌ ्प्यमावास्या SIAM: स्वः पराच्विताः दूति श्ङ्रगोतावचनादिषु उपवासस्येवोक्तवात्‌ ननु व्यासोक्तौ देवश्रन्देन बतादौनामपि विवक्ति चेत्‌, तेषूदयतिथिप्रा भस्य वच्छमाणएलात्‌ तथा वुग््मोक्तिः शएक्तपच- विषया, प्रतिपद्यष्यमावस्येति ज्ञापनात्‌ श्रतणएव,- प्रतिपत्‌ सदवितौया स्याद्‌ दितौया प्रतिपद्यृता | waren: भविय्योत्तरोक्तिय् रष्णप्रतिपदिषया 1 तयाच, शेष्णप्रतिपत्‌ परेद॒रुद यादूद्धं चिमुहहत्तां ततोऽधिका वा सान्ता सेवोपोग्या नाचापराहव्यािः। are दितौयायतायाः प्रतिपदो विग्रेषसुख्यलेन पञ्चमो सप्तमोत्या दिवचनस्याप्र्न्तेः नतु, यो यस्य विदितः कालः कम्मेणस्तद्‌ पत्रमे | fafuatfaaat मातु कार्य्या नोपक्रमोज्द्रिता श्रत बौधायनोत्तया पवैविद्धायां एक्तमरतिपदि प्रतिपत्‌प्रवेश् एव सङ्ल्पः प्रत यते | प्रातः सङ्कल्पयेत्‌ विद्धानुपवासत्रतादिकम्‌ | Wage मतिमान्‌ ब्रर्य्यान्नक्ततरता दिकम्‌ नापरे wore पिच्यकालौ fe तौ wat |

कालसारः। ar

द्रव्यादि way प्रातरेव सङ्कन्यस्य काय्येलान्‌ तदुभयं कथं गच्छत इति चेदुच्यते | fafuarfa: दिविधा च्योतिः- शास्तप्रसिद्धसाभाविकौ एका रुगयाक्रसा कल्या पाद्‌ कवचनोत्पा- दितान्या चेति तथा देवलः यां fafa समनुप्रा उद्य याति भास्करः, सा fafa: सकला ज्ञेया स्तानद्‌ानजपादिषु | तथा, यां तिथिं खमनुप्रापय उदय." याति arent: | at तिथिः सकला जेया द्‌ानाध्ययनकम्मेसु कम्मैखिति वज्वचनात्‌ निखिल्लदेवोपवाससद्गहः(२) | सोर पुराणे यां प्राप्यास्तमुपेत्यकंः सा चेत्‌ स्यान््िसुद्टन्तंगा | waaay सर्वषु सण तां विद्वुघाः एवं विगरेषवचनाभावे निसुहहत्तेवयाप्निरेव साकचयापादिका। तथा सति, श्रादित्योदयवेलायां यान्यापि fe तिथिभवेत्‌ | सा प्र॑त्येव मन्तव्या wat ated विना दूति देवलोक्तो | उदये सा तिथिर््ाद्या विपरौोता तु ues) दति खान्दोक्तौ चिसुदहन्तव्यापिरेवेति बोध्यम्‌ एवं मति साकल्यापाद्‌कवचनादसत्यामपि शएक्तप्रतिपरि

re - --- eee =-= ~

(१) अस्तं याति दिवाकर्‌ः। (२) निखिलदेवोपसङः |

५२ गदाधरपद्तौ

श्रमावास्यायाः प्रातरेव aga दति स्वे सङ्गतम्‌ एवमन्यच तियिष्वपि ज्ञेयम्‌ श्रभावेऽपि प्रतिपदः age: प्रातरिष्यते। दति माघवाचार्य्याः } Baal a— नास्ति स्त्रोणां gam धौ व्रतं नाप्युपोषणम्‌ | दृति मनक्ररुपवासादिषु निषिद्धेष्वपि, भक्चायनुज्ञायां दोषः भार्य्या भर्तमतेनेव त्रतादोनाचरेत्‌ षद्‌। | दृति कात्यायनोक्तेः | नारो खल्वननुन्नाता भत्ता faar सुतेन वा। निष्यखं तु भवेत्तस्याः यत्‌ करोति व्रतादिकम्‌ 1 दति माकंण्डवोक्ेश्च 1 च्रादिणब्देनोपवामाद्युपसङ्गमहः दत्यपवासनिणयः

BARA व्रतादौ Zs: | परिणदयव्यादि विष्ण्रदस्यादयुक्तौ दोष- श्रवणेऽपि प्रतिनिधिद्ारा तत्‌ रखमापनेऽ्यदोषः। तथा पैठीनसिः, भार्य्यां wana कुर्यात्‌ भार्य्यायास्त॒ पति waa

श्रसामथ्ये परस्ताभ्यां त्रतभङ्गो विद्यते स्कान्दे US at विनयोपेतं भगिनौ arat तथा एषामभाव एवान्य argu विनियोजयेत्‌ भ्रातर भगिनौ fre argu दकविणदिभिः। सुढत्यन्तरेऽपिः- पिदमादटपतिभ्राटखर्गुवाटदिग्दसुजाम्‌ | श्रदृष्टायंसुपोषिला खयं HUA भवेत्‌

कालसारः | ys

पिटमादसवखभ्नादगुवेयं fanaa: | उपवासं प्रक्र्वाएः GUY क्रतुप्रतं लभेत्‌ दषिणा नात्र द्‌ातव्या ए्रूषाविहिता AT | ब्राद्ये,- भिव्यत्रतं agate ग॒रुसम्बन्धिवान्धवाः | पुनः सान्द,- RIA UA: पुरोधाश्च भ्राता wat सखापि ar | याचायां waaay जायन्ते WAST: एभिः कृतं मदादे वि waaa aa भवेत्‌ | Ran श्रात्मौय इति कतिदटदस्पतिः श्रत्यन्तासम्भवे तु- उपवासासम्थेशवदेकं विप्रं तु भोजयत्‌ | तावद्धनानि वा दद्यात्‌ यद्‌ भुक्तार्‌दिगुणं भवेत्‌ सदखसम्मितां देवो जपेद्वा प्राणसंयमात्‌ | कुर्य्यात्‌ senegal ययाति Ad AT I देवों araata ay उपवासा टि नियमाः | ्रदित्यपुराण,- Wea रोचनं वापि गन्धः सुमनसस्तया | रत्ये चोपवासे नित्यमेव पिवजंयेत्‌ रोचने, दरिद्रादिना गाचोज््वलौकरणम्‌ | सत्यन्तरे,- ते चेवोपवासे वजेयेद्‌ न्तधावनम्‌ | गायत्याः WaT: पूता ay: प्राश्य विष्डुद्यति i दरति प्रायतन्त चोक्तम्‌

५७ गद्‌ाघ्ररस्पड्ध at

मुखप्रड्िस्त दाद्‌शगण्ड्षेराग्रपत्रादिना वेति दन्तधावननिषे- धकालप्रकरणे AAA | सधवस््रोणणां तु ब्रतादिष्वपि दरिद्राग्रदणादिकं श्राव्यकम्‌ | वस्त्ालङ्ार पुष्याणि गन्धधूपानुलेपनम्‌ | उपवासे दुव्यन्ति दन्तधावनमन्ननम्‌ दति मनृक्तः। तलस्य प्रतिप्रसवाभावात्‌ तद्शथहणाभावः | श्राचारोऽप्येवमेव | कौम, कांस्यं मासं मद्रा खच चणकान्‌ कोरदूषकान्‌ | शाक मधु WAY वजयेदु पवासकृत्‌ ठदस्पतिःः- दिवानिद्रा परान्नञ्च पुनभौजनमेथनम्‌ | Qt कास्यामिषं aa दादण्वामष्ट aia एतत्‌ पारणएमा चो पलक्षणएम्‌ विष्णधरम- श्रसम्भाखान्‌ fe सम्भाव्य तुलस्यतसिकादलम्‌ | श्रामलक्याः फल वापि पारणे प्राश्य एएद्धति wea जलपानञ्च दिवाखापन्च मेथनम्‌ | ताम्बूलचवेण मांसं वजेयेद्रतवासरे wea: प्रतितपाषण्डनास्तिकसम्भाषणं श्रनृताश्नौलादिकसुप- वाषदिने वजेयेत्‌ | ata— दिग्राम्यान््यजान्‌ छतं पतितञ्च रजसखलाम्‌ | स्पशेन्नापि भाषेत नेचेत ब्रतवासरे स््लोणन्तु प्रचणात्‌ सङ्गात्‌ ताभिः संकयनादपि | निःस्यन्दते agua दारेष्बुतसङ्गमात्‌

RIAA: | ४५

गरूड पुराण,- स्मरणं arya केलिः प्रेचणं गुद्यभाषणम्‌ | संकल्पोऽध्यवसायश्च काय्येनिष्यन्तिरेव एतन्‌ मेथुनमष्टाङ्ग प्रवदन्ति मनोषिणः | qa पारणमावश्यकम्‌ | पारणान्तं ad ज्ञेयं व्रतान्ते दिजभोजनम्‌ | श्रसमाते व्रते पथं नेव कुर्य्याद्भतान्तकम्‌ दृत्यादित्यपुराणोक्तेः ्रद्धवेवन्तं,- स्वेष्वेवो पवासेषु दिवा पारणमिव्यते | AV पुण्यहानिः स्यादृते पारणधारणत्‌ | तत्रापि पूर्वाह wa,— खगवासेषु स्वेषु yale पारणं भवेत्‌ | AYU AAAs ध्ममेवोपसपेति दति देवलोकः धमं यमम्‌ gale पारणसम्भवे,- सन्ध्यारिक भवेन्नित्यं पारणन्तु निमित्ततः | afag ucfaar तु नेत्यकान्ते भुजिक्रिया द्र्युक्ेजलपारणं तला नित्यकर्माणि समाप्य पुनःपारणे दोषः तच स्कान्दे स्यष्टम्‌,- पारयिलोदकेनापि भु्गानो नेव द्यति श्रशितानशिता यस्मादापो विदद्भिरौरिताः॥ मतु, तियौनामेव सर्वासासुपवासत्रतादिषु | fama पारणं कुर्यात्‌ विना भिवचह्दटभोम्‌

५९, गदाधरुपद्धलौ

दति स्कान्दोक्रेस्तिश्यन्तप्रतौचायां ad yale पारणमिति चत्‌ सत्यम्‌,- तिश्यन्ते चोत्छवान्त पारणं aq चोद्यते | यामजरयो द्धेवत्तिन्यां प्रातरेव fe पारणम्‌ | दति सत्यन्तरात्‌ प्रदरचयपय्यन्तं तिश्यन्तापेक्ता श्रन्यथा पूर्वाह्न एव तरता दि स्ित्यच ्रा दि शब्दन एकभक्तनक्ताया चितवब्रतानि naw, दति माधवाचा्य्याः॥ दति साधारणपारणणविधिः। विगश्रेषस्त॒ छृष्णजयन्त्यादिषु लेख्यः | यद्यपि पारणग्रब्दः पार तोरसमाप्ताविति घातोरूत्यन्नवेन समाभ्िमाचवाचकस्तयापि लोकश्ास््रयोरूपवाससमाप्नावेव पद्जा- दिग्रब्दवत्‌ ate: श्रयेकभक्त निर्ण यते ara वेश्वानरव्रते,- प्रतिपद्येकभक्ताग्रो aaa कपिलाप्रदः | दति। तच एकभक्तं तचिविधम्‌ i स्वतन्तंमन्याङ्गमुपवासप्रति- निधिरूपद्चेति तेच तेश्वानरत्रतादिषु खतन्तम्‌,- पूजाव्रतेषु सवषु मध्याह्व्यापिनो तिथिः | तथा “ane पूजयेत्‌ नृपः इत्यादि विहितगणेग्रत्रतादाव- न्याङ्म्‌ | तियौ यच्नोपवासः स्यादेकभकतेऽपि सा fata: दूति सुमन्तुवाक्यादि विदहितञ्चुपवासप्रतिनिधिरूपम्‌। तचान्याङ्ग प्रधानानुक्षारेण गुणस्य नेतयलाद ङ्गिनः प्रजा विधेमेध्या्के विडिततेन श्रङगस्येकभक्तस्यापराह्ादो प्राप्यमाणएवान्नेव मुख्यकालापेच्ठा

क्रालसारः | ५७

किञ्च यदा खतन्तेकभक्तेऽपि केनविनिमित्तेन मुख्यकाला- सम्भवे गौ एकालोऽभ्यनुज्ञायते i तदा किं वाच्यमन्याङ्गं उपवाख- प्रति निधिषूपस्य उपवासतियौ area तस्य गो णोपवा षात्‌ | "तिथौ यचोपवासः स्यादेकभक्तेऽपि at तिथिः” दूति सुमन्तक्तथच तच्च माकंण्डयपुरारे | “एकभक्तेन नक्तेन” इति वच््यमारेकादभ्रो बतादावुक्तम्‌ एवञ्च, afar eA RAR सुख्यकालापेचा | तत्कमेकालम्तत्छरूपच्च स्कान्देः- दिनाद्धसमयऽतोते भुज्यते नियमेन यत्‌ एकभक्तमिति प्रोक्तमतम्तस्मात्‌ दिवेव fe देवलोक्तो तु aaa ठु दति fae | नियमेनेत्यनेन इविव्यभोजनप्रा्तिः। wae पञ्चधाविभकराहमेध्याद्धापर- भागरूपो दिनाद्धस्योपरि साद्धसुहन्तेपरि मितः कालः fears sata षति समनन्तरभा वित्वादस्तमयात्‌ प्राचोनोऽवश्िष्टः कालो गौणः | दिवेत्यभ्यनुज्ञानात्‌ एवं qafad सति मध्याङ्वयापिनौ तियिर्याद्या,- उदये त्रूपवासस्य नक्तस्यास्तमये fate: | मध्यद्व्यापिन ग्राद्या एकभक्तव्रते तिथिः दूति बोधायनोक्रेः aa निंयस्य विषयस्य षोढ्ामेदा SU पूर्वेयुरेव agate: | vata agri: उभय agnfa: | ataaa agife: | उभयत्र साम्येन acatuanfa: |

छभयच वैषम्येण तदेकदे ग्वयाधिश्चेति | तचाद्यददितौ ययोने ae: | 8

५८ गद्‌!धरपद्धतौ

safer मध्याद्धवयाप्तरभावात्‌ | दतौये gafagt are! सुख्य- ~ = fa = = at (^~ कालव्याप्रेः समवेऽपि गणकालव्याप्रर धिकवात्‌ | चतुय yafaga | दिनदये सुख्यकालव्याप्रेरभावेऽपि गौ णकालव्या िखाभात्‌ पञ्चमे- ऽपि vafaga) सुष्यकालव्या्रेरभयत्र मामभ्येऽयि च्रधिकगौ णएकाल- SS [न =~ व्यािप्रापनेः। ae तु यद्‌ प्रतेयुमध्याक्ेकदेभऽधिकव्या्धिस्तदा- fear गौ णकालव्या्ते् प्रवेविद्धेव तस्मिन्नेव षष्ठे चदा परेचयु- मेध्याद्धेकदे गेऽधिकव्या्िम्तदा पर विद्धेव परेदगेएकालव्याष्यभावे- ऽपि सुल्याकालव्याघ्या धिक्यात्‌ | ईइत्येकभक्तनिणंयः |

अरय नक्तनिणयः |

भविष्ये,- रतुटश्यामया्टम्यां wat: neat) ` asf नित्यं yatta शिवाचंनरतो att तया, नक्रं रुष्एचतदश्वां तया रुष्णष्टमोषु क्रत्वा भो गानिहाघ्रोति aa भिवे रतिम्‌। एवमादौ नक्तं सिद्धम्‌ ag fafaua,. अन्याङ्गं उपवास- प्रतिनिधिरूप खतन्तञ्चेति। तचान्याङ्गे नक्त्रते दुर्गापूजादौ पूजा विधेरङ्गिनोऽनुसारेणण ङ्गस्य नक्तभोजनस्य राच प्रहरोत्तरमपि प्राय- माणएलान्न सुष्यकाल्लापेक्ता | उपवासप्रतिनिचिषूपेऽपि तस्मिन्नेव मुस्यकालापेचा ¦ तस्य उपवासदिन एवानुष्टानात्‌ | तथाच स्कान्द, प्रदोषव्यापिनौ ग्राह्या सदा न्तत्रते fate: | उद यस्या सदा पज्या दरिनक्तत्रेते तिथिः i ba&

कलसारः | ye

एवमन्यज्ापि तस्मात्‌ aan सुख्यकालो नियः | तच नक्तग्रब्दो BHAT: | अन्यया, सदोपवासौ भवति यस्तु नक्रं समाचरत्‌ | देवेर्युक्न्तु पूर्वाह्णे vere पिभिः सदा षिभिश्चापरा्ने त्‌ wae गुद्यकादिभिः। सवेवेल।मतिक्रम्य नक्तभुक्तमभोजनम्‌ | चिमुहत्तेः प्रदोषः स्यात्‌ भानावस्तं गते सुति am तच ugala दति शास्तरविनिश्चयः॥ दति व्याषोक्तौ समाचरेत्‌ प्रकु्वोंतेत्यादेरन्यो स्यात्‌| fe कालः केनविदिच्छया ad शक्यते। तननक्तस्य काल- दयम्‌, भविषये,- सुहन्तान दिन नक्तं प्रवदन्ति मनोषिणः। नचचद शेनाननक्तमहमन्ये गणाधिप HQ कालदयस्याधिकारिभेदेन Bgl | तचाच देवलः,- नच्चद्ेना ज्नत ग्टदस्यस्य वुधेः सतम्‌ | यतेदिनाष्टमे भागे तस्य ust निषिध्यते खत्यन्तर,- नक्तं निग्रायां gia उरस्यो विधिसंयुतः ufay विधवा चव प्रह्व्यात्‌ दिवाकरम्‌ सदिवाकर तु यतप्रोक्तमन्तिभे घरिकाद्ये। निग्रानक्तन्तु तत्मोक्रं यामाद्धं प्रथमे सद्‌ा “Pagan: प्रदोषः स्यात्‌” दति राचिभोजने कालो Bata: | प्रदोषब्याष्यसम्भवे ग्ट हस्यस्यापि दिवानक्तं Wal तयाच स्कान्दे

go गदाधरपद्ध at

प्रदोषव्ापिनौ स्वात्‌ दिवानक्तं विधौयते) श्रात्मनो faqut कायामतिक्रामति भाष्करे aaa नक्तमित्याज्नं नक्तं निभि भोजनम्‌ एवं ज्ञात्वा ततो विद्धान्‌ ares तु भुजिक्रियाम्‌ कूर्य्यान्नक्तत्रतौ anne भवति निशितम्‌ | वत्सः, प्रदोष्वयापिनो ग्राह्या तिथिनेत्तत्रते सदा | एकादशं विना सवाः शक्तं BW तया रताः तथाच प्रदोषव्यास्षिसुख्यकल्पः | सायकालव्याभिरनुकन्यः | तच्च नक्तं प्रदोषद््ापिन्यां तियौ कास्यम्‌ तदेवं नक्ततत्कालौ व्यव fgat श्रत्रापि राच्चिनक्ने sigan: पूरुरेव प्रदोषव्या्निः परेदयरेव प्रदोषव्यात्धिः | उभयत प्रदो षव्याप्षिः नोभयत्च प्रदोष- व्धाञ्भिः। उभयच साम्येन प्रदोषेकदेप्रया्निः | उभयच वेषम्येण प्रदोषैकदेगवयाक्तिश्ेति। aa नाद्यदितौययोः सन्देहः eae पर तिथिरव,- यदेव तिथ्योरुभयोः प्रदोषव्या पिनो तिथिः | तचोत्तर नक्तं स्वाद्‌भयच्चापि सा यतः॥ दूति जावाल्िवाक्यात्‌ | उभयचापि दिवा रा्रावपिसा fafa- विद्यते यत cae: चतुयैऽपि परेव “squad uta स्याद्‌ यतोऽ्वागस्ततो हि सा दति जावालिवाक्यात्‌” | प्रदोषे तद्भावेऽपि श्रस्तमयादूर्वाक्‌ यतः सा विद्यते ततो aaa) “र्वागस्तमया त्‌" इत्यनेन we दिवाराचित्रतल्रन प्रदोषव्याश्चिवत्‌ सायंकालव्।घछ्यापि निणेय

कलंसारः | ६१

दति ज्ञायते पञ्चमषष्टयोरपि परेव। सायंकालस्य गौणस्य तज्तियिबयाप्रलात्‌ रातिनक्रभोजने नाडोत्रयसुत्तमः कालः,- प्रदोषोऽस्तमयादूद्धं घटिकाच्रयमिष्यते | दूति Wa) मुहतत्तचयं मध्यमः कालः+ ` fagen: प्रदोषः स्याद्भानावस्तं गते सति ।' दति arate: निग्नौयपय्येन्तो जघन्यः कालः, “नक्तं निशायां gata” इति सामान्टेनाभिधानात्‌ नतु, - सायसन्ध्या तिघयिका श्रस्तादुपरि भाखतः। तया+चल्ारौभानि कर्माणि सन्ध्यायां परिवजयत्‌ | श्राहारं Has निद्र खाध्यायञ्च चतयेकम्‌ दति wag सन्ध्याकाले कथं भोजनमिति चेत्‌, न। ma- यंन ब्रतायनचन्नदप्रनभोजनवि धिना पुरुषायस्य सन्ध्याकालनिषेधस्य बाधात्‌ | यथया पुरुषायप्राणिदिसाप्रतिषेघः क्रवर्थािष्टोमो यरिंसा- विधिना बाध्यते i यत्त॒ सप्तमोभानुवासरादौ सौरनक्तं विदितम्‌ तच पूर्वोक्र- विपर्य्यासिन सायकालव्यािसुख्यः कन्पः। प्रदोषव्यात्भिरभुकन्यः | qa षोढ्ाभेदे परवंस्मिन्नेव परस्मिन्नेव वा सायंकालव्याप्तौ सन्देहः उभयचर सायंकालव्याप्नौ wfafata) उभयजापि तन्तिये विंद्यमानलात्‌ | नोभयच तद्याप्तौ प्रवंतिथिरेव सायंकाले तदभावेऽपि प्रदोषकालेऽपि तत्तिथेः स्वात्‌ उभयच साम्येन quam वा तदेकदिग्वयाप्तौ gaa गौणस्य प्रदोषकालस्य तन्ति- चिन्याप्नवात्‌ सोरनक्रभोजने दिवसस्यान्तिममुह्धन्तं उत्तमः |

६२ गरदाधरपदतौ

‘get दिनं ana” cara: | श्रन्तिमाधो gett मध्यमः, --. सदिवाकर animafaa घरटिकादये। | hu cya: aa: ara HE, faqed wiatfs निभि Sarat fafa. तस्यां at भवेन्नक्तमदन्येव तु भोजनम्‌ :-; दूति BAT: “ma@at दिगुणां दायां” इत्यादि saa पय्यवस्यति,- Ts ये afeafer agaa कुवन्ति मानवाः ` 5 ते दिनान्तेऽपि भुच्ोरन्‌ निषेधाद्राचिभोजने दूति भविष्ये र्पिवासरे राचिनक्तस्य निषेधात्‌ ररदस्यस्यापि दिवैव भोजनम्‌ | एवं रविसंक्रान्त्यादिष्वपि जेयम्‌ माधवाचार्य्तु एकस्मिन्नेव दिने एकभक्तनक्रयोः प्रसक्तौ गौ कालस्याप्यसम्भवपक्ते भारय्यापुत्ादिना कन्चन्तरेण नक्तं करणो यमिति लिखितमनुसन्सेयम्‌ li wal धवलसंग्रहे,- विव्यभोजन सान सत्यमाहारलाचघवम्‌ | AGIAN: शय्यां नक्तभोजो षडाचरेत्‌ भविये,- “चअरभ्निकाय्यैमघःशर्याम्‌” दति पटिला श्र्चिका्यं वखादलिभिराज्यदोम इति लच््ोधरः -स्कान्दे,- एतानि वजेयेत्‌ नक्तं अन्नानि सुरसुन्दरि। निष्ावा श्रादृको सुद्धा माषाेव Haya ` `: ^ ~+; मसूरा राजमाषाख गोघमा स्तिपुटास्तया | | eo FAUT वत्तलाश्चापि सुसुक्ताञ्चवमादयः॥

कालसारः | €3

waging नक्ते दविष्यद्र्मेव भोज्यमित्ययः। विचारो दविव्यप्रकरणे लेख्यः इति नक्तनिणेयः श्रय श्रयाचितं निणौःयते | प्राजापत्यर्च्छरारौ सप्तमोव्रतादौ तदिदितम्‌ तस्य द्रावय वयावितमयावितमित्येकः प्रतिषेधकूपः। तथाच प्राजापत्यरच्छवयाख्याने गौतमः | Wat अहं कञ्चन ara- तेति। sa: उपवासवद्‌होराचमेव विषयोौकरोति। श्रत. एव संकल्पो ऽपय सिननहोराते याचितमन्न भोच्छ दति वाच्यम्‌ तथा पयुद्‌ासोऽपि तथा ठदस्पतिः,- धद प्रातः BE साय हमद्यादया चितम्‌ | हं परञ्च avatar प्रानापत्यञ्चरन्‌ दिजः सखव्यन्तरेऽपि,- श्रयाचिताशो मितभुक्‌ परां सिद्धिमवाभ्रुयात्‌ | दूति शय्रासभो जिल्वं मितभोजित्रम्‌ “श्रयाविते दौ चाष्टौ दति चतुर्विश्रतिमतोक्तेः। तथाच, याविताद्‌न्यद्यादितमित्यष्या- प्रयन्नलभ्यस्य परद त्तस्य भोजन विवच्छते | तदापि पराधौनलादेव कालबिगरेषविधानस्याश्ररःतलारहोरात्रमेव विषयोकरोति खग्टह- स्थितव्स्त॒नः इदानौमयावितल्ऽपि प्रबेयनरसञ्चितलाद्याचितमेव। तथाच पयेदाषः। यद्दा निषेधस्य प्रसक्तिपूवेकलाद्याच्‌जाप्रसक्ते्च परद्रव्विषयलादयाचितग्ब्दोऽपि परद्रवमेव विषयोकरोति तच्च भोच्यद्र्ं परकौयमयनोपनोतच्च | तयाच याज्ञवस्क्यः,-

६४ गदाधरपद्धतौ

श्रयावितादतं agate दुष्कृतकमेणः | यतिधरमेष्‌ शना भिचाग्रनसमुदयो गात्‌ saat निमन्तितम्‌ | श्या वितं fe age ama मनुर त्रवोत्‌ il यदि प्रतिषेधो यदि वा पय्येदास उभयथापि एकभक्रादि- वन्न कालो विशेषणो यः। प्रतिषेधेऽनुष्टयाभावात्‌ पय्येदासे पराौ- wag) श्रसति कालविगरेषविधौ कर्मकालव्यात्िवचनमच प्रव- तते तथा सति कालविगेषविध्यभावात्‌ ग्ररक्तरुष्णप्रतिपदादौ छपवासत्‌ पूर्नात्तर विद्धे ara एवमयाचिते सवेतिथिषु उपवास- वत्‌ fawa: दति सुखितम्‌ इत्यया चितनिणेयः

श्रय दानत्रतकालौ निर्णोयेति | भविष्योत्तरे,- प्रतिपत्सु fara gq पूजयिता प्रजापतिम्‌ | सो वणेमरविन्दञ्च कारयिवाष्टपचकम्‌ रला त्वौदुम्बरे wa सुगस्धिष्टतप्ररिते | ुषयेषपैः पूजयिता विप्राय प्रतिपादयेत्‌ Ag] मण्डलत्रते,-

मामि भाद्रपदे wa पक्ते प्रतिपत्तियो | नेवेद्यन्तु waa षोड्गचरिगुणानि च॥ फलानि पिष्टपक्रानि दद्यात्‌ विप्राय षोडश ।. देवाय षोड़गेतानिं दातव्यानि प्रयन्नतः॥ भुज्यन्ते षोड्ग्र तया ब्रतस्य नियमास्तयः |

कालसारः | ६५

एवमन्यान्यपि ज्ञेयानि | तत्र,- पोर्वाहिकास्तु॒ तिथयो देवकार्यं फलप्रदाः | दूति खद्धर्खजवस्कयवाक्ये देवे पूर्वाहव्याघ्यभिधानात्‌ पूर्वाह्स्य पञ्चधा विभक्तस्य मुख्यात्‌ | पक्तदयेऽपि तिययस्िथिं gat तथोत्तरम्‌ | विभि्युहन्तैर्विध्यन्ति सामान्योऽयं विधिः खतः दूति पेठोनसिक्चनाचोदिते भानौ चिसुदन्ता तिथिर््रह्या एकभक्तनक्तव्छ्‌ प्रतिपदो क्रकालविश्ेषश्नास्राभावात्‌ wares HSU: | HAVA माधवाचार्य्याः,- सोद यचिमुहर््तायां gale व्रतानि wi इति ननु,- at fate समनुप्राप्य उदयं चाति AAT: | सा तिथिः सुकला Sar स्ानद्‌ानजपादिषु | दति देवलादिवाक्यस्य, व्रतो पवासस्ानादौ घटिकंका यदा भवेत्‌ | उदये खा तिथिर्याह्या श्राद्धादौ चास्तगाभिनौ दूति विष्णधरमत्तरादिवचनस्य, “श्रादित्योदयवेलायाम्‌ दूत्यादिबो धायनोक्तश्च का गतिरिति चत्‌, उच्यते वैश्वानराधि- करणन्यायेन श्रवयुत्यानुवादरूपतया तेषां चिमुहन्तंयािप्रशंसापर- चम्‌ तच षोढा मेदः | उदयकाले ata चिमुह तव्या पिनो | परेदयुरेव उदयकाले चिमसुद्धत्तव्या पिनो | उभवक्रापि चरिमुह्ठन्ते- व्यापिनो नोभयच जिसुहन्तस्पगिनो उभयचापि साम्येन त्रेष-

au वा चिमुहत्तेकदेगस्यभिनौ चेति ag खण्डतिधिला- 9

६६ गदाधरपदतौ

भावात्‌ सन्देहः) दितौये चयगाभिले चिसूह्रत्ताम्यत्तरविद्धां परित्यज्य पर्वेयुरेवानषठेयम्‌ | इद्धिगामिले साभ्ये परेदयुरेव तयाच उग्रनाः,-- खर्वा दपेस्तया fear fafad तिथिलच्षणम्‌ | खबैदपे परो कायौ fear स्यात्‌ पवैकालिकौ ठतौयादिषुं WY VY श्रस्तमयव्याप्रः कमेकरालबाडङ्श्यस्य लाभात्‌ पूरवि्युरेवानु्ेयम्‌ ्रस्तमयव्याप्रेनिर्णयकतवम्‌, पादो, तरते साने तथा नक्ते पिटकां विशेषतः| यस्यामस्तगतो भानुः सा तिथिः पुण्छभाग्‌भवेत्‌ il तौ थस्ञानजपदोमादयस्तु त्रतप्रब्यन संग्टहौता इति माधवाचार्यः |

दूति द्‌ानत्रतकालौ | ay व्रतविगेषेषु काला निरूप्यन्ते तत्र वत्छरादिः प्रतिपत्‌ | AS.— या Wal चेचमासस्य वत्सरादि तिधिः war | या शक्ता प्रतिपच चमासख्य वत्सरस्य सा gafagt कन्तेव्या RAAT परसंयुता | नन्दां संवत्सरादौ तु टदभैविद्धां कारयेत्‌ पर विद्धा vane दिमुहन्तां भवेद्यदि | सुहन्तेमेव कन्तेव्या प्रतिपद्‌ दितौयाखिता सुह्टत्तंदितयं चेव ged यदि चापरे | aa वासरे यस्मिन्‌ प्रातः सान्दतिधि wad

कालसारः। qo

काल्तिकण्क्तप्रतिपदि वलिराजोत्सवः। तच त्राह्ये,- AEA TAMA प्रभाते तच मानवेरित्यादि i म॒ yafagrat प्रतिपदि are: | पाच्च, रावणौ दुगेनवमौ तथा zatway या। yafasa avant शिवराचि वलेदिनम्‌ दति। माधवा चार््यासतु,- Fay पूर्वेययुरुपवा सवदा चरेत्‌ sfai उपवासवत्‌ एएक्ञप्रतिपद्‌ पवामवदिल्ययैः। एवं माधौये' व्याख्यातम्‌ | छृष्णप्रतिपदि पर विद्धायामुपवासस्य सिद्धान्तितिवात्‌ |

fa SSS

aq दितौयादिचारः। ay द्वितोया सा gafagt ग्राद्या, प्रतिपत्‌ सद्ितोया स्ाद्धितोखा प्रतिपदयृता | THVT: ननु, एकादश्वष्टमो षष्ठो fatter चतुदश | चयो दश्व्यमावास्या site: स्यः पराचिताः | दृति खगुरूतिवचनस्य, युगम्मवचनस्य का गतिरिति चेद्‌- च्यते प्रवेदिने वचिमुदटन्तसत्वे एव परदिने चिमुहन्तंसत्वे एत- चनात्‌ परविद्धा org) अचानन्तभट्रौये यद्धावम्थापितं तन्न कस्यापि AHA | तयाच माधवाचाथ्याः,- Wada प्रातः परेदयुस्तिमुद्धन्तेगा | सा दितोया परोपोय्या gafagt ततोऽपरा इति) यमदितोया | लङ्गं | aa दला भगिन्या प्राधनोयम्‌,-

qc गदाधरपद्धतो

भ्रातस्तवानुजाताहं YSra भक्तमिदं प्रभम्‌ | Rag यमराजस्य यमुनाया विशेषतः

ज्येष्ठा चेद यजाताहमिव्यृद्यम्‌ | alfa तु दितौयायां warat भाटपूननम्‌ | या gaia विनश्वन्ति भ्रातरः सप्तजन्मनि

तस्या दृति wy |

भारते,- का्तिके THIS तु दितौयायां यधिष्ठिर

यमो यमुनया ga भोजितः wwe खयम्‌ तस्यां fans राजन्‌ भोक्तव्यमतो वृधेः यत्नेन भगिनौ दस्ताद्‌ भोक्तव्यं पुष्टिवद्धंनम्‌ दानानि प्रदेयानि भगिनौग्यो विशेषतः |

श्रचाष्टघधा विभक्तदिवसस्य पञ्चमभागो मुख्यः कमंकालः। “भोक्तव्यं पुष्टिवद्धंनम्‌” इति विधिसमभिवयाइतफलश्रुत्या भोजन- नियमस्य प्राधान्यात्‌ परञ्चमभागस्छ भोजनकाललात्‌। तिधिदेधे “fatal प्रतिपद्यता” इत्युक्तः yafagr याद्या, इति ्रनन्तभहैये यल्लिखितं तन्न तस्था उक्तेः छष्एपद्ठविषयतेन निणेयात्‌ तथाच

aaa eA पर विद्धेव ग्र्या ज्यो तिःगशरासे,- तया यमदितौयायां यात्रायां मरणं भ्रुवम्‌ | दूति दितौयाविचारः।

त्रय ठतोया | सा चतूर्घोयता ग्राह्या ्रापस्तम्बः- दितौयाशेषसंयुकतां ठतोयां कारयेत्त्‌ यः

कालसारः | ६९

याति नरक घोरं कालद्ूच HARTA I दितोयाग्रेषसंयक्तां या करोति विमोहिता | सा वैधव्यमवाप्नोति प्रवदन्ति मनोषिणः |

एवं स्कान्देऽपि वह्नि वाक्यानि सन्ति। aa निमुद्धन्तैवयाध्येव bats N S व्यवस्या वेधग्रास्त्े तथेव निणयात्‌ | कला काष्टापि वा चेव द्वितीया aga | सा ठतौया कन्तव्या कन्तेव्या गणएसंयुता |

दति यत्‌ स्कान्दवचनं, तत्‌ कमु तिकन्यायेन चिमु्हत्तं दटय- तौति माधवाचार्य्याः। परदिने ठतोयाया aura एव yafagr ग्राह्या |

वशिष्ठःः-एकादग्ौ eater ast चेव योद्‌ पूबेविद्धा anal यदि स्यात्‌ परेऽहनि ama रम्भात्रतविषयलेन निेयमिति विरोधः रम्भाख्यां वजेयिवा a ठतौयां दिजसन्तम | WAY WRAY गणयुक्ता WUT A «ft Ww दति ब्रद्धवेवन्ताक्तेः |

अरच्यठतोया |

भविष्ये, aura मासि use ठतौोया चन्दनस्य aad तया धान्यं va वापि fanaa तस्यां दत्तन्वच्यं स्यात्‌ तेनेयमच्चया War |

oe गदाधरषद्धतो

दतौया चन्दनस्य GAA चन्दनदानं शस्तम्‌ aay WAIVE ABA नाच संश्रयः | दरति वचनाच ASAT AGT | त्राग्रेयादिषु उपानच्छवजलपाचदानान्यक्तानि,- या Wat Fame ama मासि वे fate: | aatal araar लोके गौर्वाणेरभिवन्दिता योऽस्यां ददाति करकान्‌ वारिवाजसमवितान्‌ | याति पुरूषो Nt लोकान्‌ वे हेममालिनः करकान्‌ कुम्भान्‌! वाजमन्नम्‌ | हेममालिनः ख्यस्य | विष्णधमीन्तरे नच्चविगेषे गुणविशेषः, saat सा fafusiar कत्तिकाभियुता यदि भविष्यति महाभागे विगरेषेण फलप्रदा | वैशाखे मासि राजेन्द्र maa या fafa: | दतोया रोदिणौयुक्ता saat सा प्रकौत्तिता तया,- वैशाखे WRI a ठतो यायां दिजोत्तम | agelfa नरश्रेष्ठ तत्तद चयम्रुते विशेषेण तया द्‌ानमचतानां महाफलम्‌ | ब्रह्म ame मासि gaat दतौयायां जनादन यवानुत्‌पादयामास च॒गमारश्चवान्‌ छतम्‌ ब्रद्मलो कात्‌ चिपथगां एथिव्यामवतारयत्‌ | तस्यां कायौ यवेदहौ मो यवेर्विष्ण समचचैयेत्‌

(९) चन्दनस्य चेदयकतो |

कालसारः | ७१

यवान्‌ ददात्‌ दिजातिभ्यः प्रयतः प्राशेद्‌ यवान्‌ | पूजयेच्छङरं Wet केलास तदिनाचलम्‌ | wea नृपतिं सागराणां सुखावहम्‌ | सानं दानं तपः arg जपहोमादि किञ्चन श्रद्धया क्रियते यत्त॒ तदानन्याय कल्यते सिन्धोस्तोरे विशेषेण सवेमच्यमन्नुते | WS श्राद्धम्रकरणे लेख्यम्‌ दानादौ पूववत्‌ पर विद्धा याद्या

RY रम्भादतोया | vfaatat,— भद्रे कुरुष्व यन्नेन रम्भाख्यं त्रतमुत्तमम्‌ | ज्ेषटग्क्ञट तीयायां eat नियमतत्परा तथापरं रम्भात्रतं तच्तैव,- रम्भाठतोयां वच्छामि स्वेपापप्रणग्िनौम्‌ | aime तया मासि eatarat नराधिप Gara प्रातरुत्याय द्‌न्तधावनपूवेकम्‌ दृत्यादि उपदारसंहारे,- सौभाग्याय पुरा We रम्भया राजसत्तम | तेन रम्भाठतौयेयं स्वैसो भाग्यदायिनो खा प्ूबेविद्धा ग्राह्या | स्कान्दे, SEMI तया रम्भा साविचौ वरपेठकनै | रृष्णाष्टमो गता कन्तवया सशरी fate: ब्रह्मवेवन्त-- रम्भास्यामित्यादि |

92 गदाधरपद्धतौ

MORAG | WAlAage,— FSG: प्रदातव्या मामि भाद्रपदे fad | ठतोयायां ade वासुदेवस्य प्रोतये उमां fad aang विधिवत्‌ पूजयन्ति याः। गौरौ वरप्रसादेन परं सौभाग्यमाभरुयुः ति चिदेधं परदिने aaa नाच चिमुहन्तेवेधोऽपि श्रपेच्छते। तथा माधवाचा्य्याः,- मुहत्त मा सत्वेऽपि दिने गौरौत्रतं परे प्ररद्धा धिकायामप्येवं गणयो गः प्रशस्यते

AY चतुर्थो |

साच परविद्धा ग्राह्या-

एकादशो तया षष्ठौ अमावास्या चतुधिका।

उपोष्याः परसंयुक्ताः पराः पेण संयताः दति रहदग्िष्ठोक्ते, य॒ग्मवचनाच |

fatal पञ्चमो चैव cual चयोदभो।

चतुद चोपवासे दन्यः पूर्वोत्तरे तियो दूति दद शिष्टवचनान्तरं त्रतान्तर्‌ विषयमित्यवधेयम्‌ |

मङ्गलवार चतुश्यीयौगे फलायिक्यम्‌ः-

wat वे सोमवारेण रविवारेण waa |

aaa? भौमवारेण श्रकतयादपि चाचा | दूति भविष्योक्रेः

कालसारः | 98

गरिवचतर्थो | walaaage,— मासि भाद्रपदे wat चतूर्थो ग्िवपूजिता। तस्यां लानं तया दान मुपवासो जपस्तया il तावत्‌ सदखगु णतं प्रसादाद्यतिनो नृप | यतिनो योगिनः शिवस्येति यावत्‌ | रौ द्रवादपराल्ोऽच gaara दति निबन्धनकङृतः | तियिदेधे परेऽद्धि व्रतम्‌

गो रौ गणेष्रचतूर्थौ | लिङ्गपुराणे,- dei तु गणेशस्य गौ य्येव विधानतः, पूजां wal लभेत्‌ सिद्धिं सौभाग्यञ्च नरः क्रमात्‌ दूति सिद्धिसौभाग्यरूपफलविशिष्टकामो यस्यां कस्याञ्चित्‌ aaa गौरौ गणेशो पूजयेत्‌ प्ूजाकालव्वस्था वच्छमाएगणेश्र- ब्रतवत्‌ द्रष्टया॥

विनायकत्रतम्‌ | भविष्ये,- विनायकं ars चतुय यद्‌नन्दन सवविघ्नविनिमृक्रः काय्यैसिद्धिमवाभ्रयात्‌ स्कान्दे, विनायकत्रते कार्यां waaay sae | चतूर्थो जयायुक्ता गणनायसुतो पिण्णे प्रातः श्क्ततिलेः खाला AMT पूजयेन्नप | दति कल्यवचनात्‌ |

चतूर्थो गणनाथस्य माद विद्धा प्रश्रस्यते | 10

७8 गदाधरपद्धतौ

मध्यद्धव्या पिनो चेत्‌ स्यात्‌ way परेऽइनि ti दूति ₹दस्पतिवचनाच, परदिन एव मध्याङ्कयाप्नौ परदिने

व्रतमन्येषु पकेषु पूवेदिन val ara सोद यत्िमुहन्तेबेधः, AUT कमेका कत्वात्‌ जयायक्ता टतौयाय॒क्ता मादविद्धा तौया विद्धा शएक्ततिलेः aa, शक्त तिलान्‌ facta fafaata कालादशरेकारः) स्कान्दे,-गजवन्रा तु शुक्ञायां wat पूजय न्नप |

मासि भाद्रपदे प्राप्रे waa fanaa:

यदा चोत्पद्यते भक्तिमासि पन्यो गणाधिपः |

एकमाम दिमास वा AWTS AGT तया

अयवा AVATAR व्रतं दाद्‌श्वाषिकम्‌ |

एवं सति यदा श्रात्यायिककाय्यैसिद्धिकामो भवेत्‌, तदेव

यस्मिन्‌ कस्मिंश्चन मासे प्ररक्तचतु्यं wad कुयात्‌ “यदा चोत्पद्यते" दति वचनात्‌ भाद्रमासे यद्त्रतारमभं कुर्वन्ति तज विगरेषत दति फला धिक्यात्‌ प्रतोचासद-कार्व्वेवेति ज्ञेयम्‌ waa सोतान्ेषणथे हनूमता श्राचरितस्य व्रतस्य शरत्काले Awe स्यात्‌ | एवं श्रष्टतादरणदावपि ज्ञेयम्‌ एतदपि एकमासष- पके प्रमाणम्‌ | तया काण्ंगौरवमपेच्य दिमासं are ad दिवार- मित्यथः तया अ्रधिकविघ्राग्रङ्गायां aaa aig व्रतम्‌ षणला- Gta व्रतस्य समाश्निः) aacwasta दाद्‌शभिर्मासेमैलमासपाते तु चयोदग्रमासेरिति कालाश्णद्धिप्रकरणे सेख्यम्‌। अत्यधिक- काय्येगौरवे द्वार्‌ ग्रवषेपच्च प्रतिश्क्तचतुधिं दादश्रवषेपय्यन्तं ad काय्येमिति साधौोयः। safe दाद्‌ श्वषेपक्े यत्‌ प्रतिवल्छरं |

कलसरः | ७५

भाद्र श्रक्रचतुर््यामेकवारमनुतिष्टन्ति, तदपि श्रज्ञानविलस्ितिमिति ज्ञेयम्‌ श्र वर्षाषु भवं वाषिकं ad दादगेति केचिदर्यापयन्ति, तन्म न्दमेव | एकवचनान्तत्रतग्रब्दस्य दाद शत्यनेनान्वयाभावात्‌ | एक- मासमित्यस्य एककमासमित्यथः gat भवेत्‌ एवं दिमासादिपु ज्ञेयम्‌ “संख्या शब्दस्य इत्तिविषये वौोप्सायेलमिव्यते इति भाव्- altima यथाकथयच्चित्‌ समाधेयभिति Sq, वत्सरं तयेत्यादन्तौ काचित्‌ गतिरस्तौति सोऽधौ हय एव किञ्च इतुमत्‌गरुडा- दोनामेकवारालुष्ठाने फलप्राप्धिरपि विरुद्धा स्यादिति दिक्‌ wasted विग्रेषो, वाराहे, Wal चतूर्थो कन्याकंभौमवारेण संयता ` महतो तच विन्नेश्रमविलष्टं लभेन्नरः BRAY भौ मवारेणेति वा कालाद्‌ गेवचनात्‌ बोध्यम्‌ दृति विनायकत्रतम्‌ |

श्रय तददिनकन्तेयानि | : ` विनायकं समभ्यच्येत्यनन्तरं भविष्ये “afer निद्रां मति भवाम्‌” दत्यायुक्ताः . विद्याकामो विग्रेषेण पूजयेच्च सरसखतोम्‌ | दृति विददितस्य सरखतौ पूजनस्य तु यस्यां राजौ चतूर्थो भवति तस्यामेव करणं समाचारमल्म्‌ | श्रस्यां wal wat चन्द्रट शनं निषिद्धम्‌ |

og गदाधरपद्धतौ

तयाच पाद्य, Baa चतुण्यां a fae wee दशनम्‌ | faurfanad कुर्य्यात्‌ तस्मात्‌ waa तं सद्‌ा fae भाद्रे मासि। Ag .— वाख्देवोऽभिग्रस्तस्तु निगाकरमरोविषु | स्थितश्चतूर्थ्या मद्यापि मनुव्यायापतेचच सः श्रतखतु्यां we प्रमादादोच्छ मानवः पठे द्भाचेयिकावाक्यं प्राडमुखो वाण्युदङ्सुखः धाचौवाक्यं तचेव,- fae: प्रसेनमवघोत्‌ सिंहो जाम्बवता इतः | सुकुमारक मारोदोस्तव Gi स्यमन्तकः ृष्णोऽपि तद्रा चौ चन्द्रकिरणेषु स्थित दति श्रभिश्ापमाप, sata सोऽभिशापोऽपवाद्‌ दति यावत्‌ AAAI श्रापतेदित्ययेः। श्रतणएवेयं चतूर्थो दरितालिकेति प्रसिद्धा) हरेः MRE, ताडका श्रपवादद्‌ायिका इति यावत्‌ | इलयो- Tad | तस्मात्‌ wea निषिद्धम्‌ प्रमादात्‌ तदौचणे सिंदप्रसे- नमित्यादिमन्त्ं पठेदित्ययः। wai wena निषेधात्‌ “निषेधः कालमात्रके" TAR टतो यया पञ्चम्या वा fagrat तद्राजिगतहतो यापञ्चम्योखन्द्रद शेनसमाचारः | पञ्चाननगते भानौ पचयोरुभयोरपि | चतुथ्यामुदितश्चन्द्रो नेचितव्यः कदाचन इत्यश्च शएद्धमासमलमासाभिप्रायेण पक्चयो रिश्यक्ेमेलमासेऽपि axa निषिद्धम्‌ | श्रतएव पञ्चाननगते दति सौरमासोक्तिः |

कलंसारः। gd

श्रतएव,- सौमन्त प्रेतरृत्यं नवशय्या नवः wit | मलमासेऽपि ana निमित्तविदितञ्च aq दूति सखत्यन्तरान््मरलमासेऽपि नेमित्तिकचन्द्रद गेननिषधस्य परि- पालनसमाचारः | उदितश्नब्दोऽचाद्धादितयादटृत्तिपरः, खरूपव्या- ख्यानपरो वेति तिथितलकाराः। यत्ते पञ्चाननगते भानाविति वाक्यमवलम्ब्य Tenure werd निषिद्ध मित्य लिखन्‌, तत्‌ wary इत्या दिपाद्मा दिवाक्यविरोधान्नाद्धियत warned | नाग- चतुर्थोव्यवस्या नागपञ्च्यङ्गलात्‌ तच लेख्या वर दा चर्यो | नारदौये,- माघरक्गचतुण्यो a गौरौमाराघयेद्‌वुधः | चतुर्थो वरदा नाम गौरौ तच सुपूजिता | श्रच्॒व्रतसामान्यात्‌ सोदयचिमुहन्तेयापिर्याद्या | तिथिरदैषे दतौया विद्धेव | नाच युग्मोक्तेः प्रसरः | जया यदि aqui चतूर्यौः हस्ते यदि | जया aa fe कर्तव्या नागविद्धा कारयेत्‌ दूति विगेषरूछतेः | तया माधवाचार्य्याः+- mat: शद्जयाप्यस्त॒ नागविद्धा निषिध्यते | रय पञ्चमो | सा चोपवासे चतुर्योयता याद्या ब्रतेऽपि तथा चतूर्थो संयता कार्य्या पञ्चमो परया नतु |

oc गद्‌ाघ रषडतो

दति ₹हारोतोक्रः। स्कान्देऽपि,- पञ्चमो तु सदा याद्या चतूर्थोसदिता विभो | यत्तु ब्रह्मवेवन्तं- पञ्चमो ठ्‌ प्रकन्तेव्या षष्ठया AAT तु नारद्‌ | xia तत्‌ स्कन्दषष्ठयां स्कन्दो पासनाय विदितं पञ्चम्युपवासं विषयोकरोति “स्कन्दो पवासे स्वो कार्यां पञ्चमो परसय॒ता” | दूति वाक्यशेषात्‌ तया च, सकन्दोपवास्पञ्चमोव्यतिरिक्- पञ्चमोषु yafaga वणष्ुक्तपक्ते जायद्रौ रो पञ्चमो | पुराण,- पद्मनाभे गते wat स्वे Sq रनन्तरम्‌ | पञ्चम्यामश्रितौ पचे समुत्तिष्ठन्ति पन्नगाः Qi तु देवदेवेशे पञ्चमो वयालपञ्चमो HII AIIM जायद्गोरौ महो तवम्‌ देवैरिति awa टतौया ) श्रशितो शएक्तपचे शितिधवलमे- चकाविति कोषात्‌, WHT षमाचाराच्च ₹हरिश्यनानन्तरं ख्रावणमास TI | Was शयनविधानात्‌ | तया श्रावणएदूरक्तपचवे जायद्गौरौ इत्याख्या | दयं पूजा राचावाद्धियति(९), sae न्द्श्रवणएणत्‌

WRBUTG रच्तापञ्चमो | भविये,- ay भाद्रपदे मासि पञ्चम्यां agarfaa: | यस््वाजिख्य नरो नागान्‌ ृष्णवर्णादि वणेकेः (२) क्रियते | |

कालसारः |

पूजये दन्धपुष्येश्च सर्पिःपायसरग्गुलेः | aw तुष्टि समायान्ति पन्नगास्लचकादयः MIVA कुलात्तस्य भयं नागतो भवेत्‌ | तस्मात्‌ खवप्रयनेन नागान्‌ संपूजये बुधः द्यं नागपूजा दिवैव नागानां नामानि पश्चम्यां लेखानि रचा विधानं तु राचौ क्रियते राचिपदेन sete एवाच ga: | भविष्ये,- यः श्रावणे खवति Wasa सुरेष्र रचखाविधानमिदमाचरते मनुयः | श्रास्ते सुखेन परमेण WaT पुचप्रियादिसडितः ससुदल्ननय | श्रावण दति चेचश्क्रादिमासाभिप्रायेण | रचाकरणएमन्त्ो यथा,- चण्टाकणं AMAT स्वेव्याधिनिवारण | वोपद्रवशरुघातविद्रावण दर प्रिय कण्ठे यस्य AVA wet यस्य पन्नगाः | तेजांसि तस्य देवस्य रन्त॒ मम मन्दिरम्‌ रष्नृधारणमन््लो यथा,- यन बद्धो वलौ राजा दानवेन्धो मदासुरः। तेन त्वामपि बध्नामि रचामाचर मा चल | यदटोभयदिने पञ्चमो रातिं स्पश्ति। तदा पूबेदिने रचावि- धानमिति निवन्धनहतः |

ce गदएधरपडडतौ

षिपञ्चमो | wafaaqed,— भाद्रे सितेऽपराञ तु पञ्चमो यच तिष्ठति | विश्वामिच खषिः WIT: पृज्यः सन्तानटद्धये aN afag ~A ्रपराहः Hatta: | तच तिधिदधे gafaga ग्राह्या षषटोयुक्ता पञ्चमो या महंत प्रजने | पतिपुचदता नारो सा नारौ नरकं व्रजेत्‌ दति शतानन्दसंग्ररोक्रः

घोटकपश्चमो | देवो पुराणे, श्राश्चिनस्यारस्ति we पञ्चमो या तियिभेवेत्‌ तस्यां शान्ति प्रकर्वोत श्रश्वानां aga सदा दत्यादिना रेवन्तादिप्रूजाविधिसुक्का(\, एवं AaB सुह येः शान्तिं कारयेन्नृपः | तस्याश्वाः प्रविवद्धेन्ते aque मन्दिरम्‌ TERA नपस्यावश्वकौ प्रजा | “पञ्चमो सप्तमौ चेव” दति वाक्यात्‌ सायाद्हव्याघ्या व्यवस्येत्यस्मत्‌ पितामरकृतनो तिरन्नाकरे लिखितम्‌

नागपञ्चमो | भविष्ये, आरावे मासि पञ्चम्यां waged नराचिप द्वारस्योभयतो लेख्या गोमयेन विषोहवणः श्रनन्तो वासुकिद्येव राजीवो मणिभद्रकः |

en ककन

(९) इत्यादि पूजामुक्ता |

कालसारः |

ेरावतो wate: कर्कोटकधनञ्जयौ | पूजयेदिधिवदौर दधिदुर्वाङरः कुशः गन्ध पुष्यो पचारेञ्च ब्राह्मणानां तपेणेः ये तस्यां पूजयन्तोह नागान्‌ भक्तिपुरःसराः तेषां स्पेतो वौर भयं भवति कुत्रचित्‌ दूति। ्रावणएमासे विदितमपौदं ad काल्तिकमासे agate एवं WAY मासेषु पञ्चम्यां यः प्रपूजयेत्‌ | श्रासप्तमात्‌ कूलात्तस्य भयं सपंतो भवेत्‌ दूति वाक्यान्तरे चातु्मास्यमध्ये यस्मिन्‌ कस्मिन्नपि मासे AIG AAA: | पुराणणन्तरे,- तिथौ युगाह्यायां समुपोष्य यथाविधि श्रह्खःपालादिनागानां शेषस्य महात्मनः पूजा काय्या TAGS राप्यायनपूवेकम्‌ | fai अन्यनागानां परूजोक्तेति तेषां नागानां विकन्पः। यगा - कया aman चर्योत्य्ैः | तत्र तियिद्ेधं विचारः तचादौ तदङ्गमूता नागचतुर्थो विचाय्यैते | तच Wale: कमेकालः। युगं मध्यन्दिने यत्र तच्रोपोय्य फणौश्वरान्‌ SUIT पञ्चम्यां पूजयेत्‌ प्रयतो नरः | विषाणि तेषां नश्यन्ति हसन्ति पन्नगाः | दति देवलोक्तः। “पञ्चम्यां प्रूजयत्‌” दत्येतदचनान्‌ पञ्चमो- यो गस्य प्राशसयमवसौोयत इति तदङ्गता नागचतूर्थौ पूरुरेव

मध्याद्धव्याप्तो gaa: श्रन्येषु पञ्चसु wey उत्तर विद्धेव | मागपञ्चम्यां 11

=z गदाधरपद्तौ

(> ८८ $ = 99 सोद्यचिमुद्धत्तव्याभ्षिरेव याद्या केचित्त “युग मध्यन्दिने Ta नागपञ्चम्यां wane: कमेकाल इति लिखितम्‌ तत्‌ प्रमाद विलसितमेव। चतर्योवचनस्य पञ्चम्यामप्रटन्तेः। नागपञ्चम्यास्त नागचतुथ्येधोनतलेन मध्या्धव्यापरैर नियतलाच

कर्मण्य

ग्रौोपञ्चमो | धवलसग्रहे,- पञ्चम्यां FERIA: कौन्दौ WT aE" | कौन्दौ ate@at | तथा,- सोभाग्यसुत्तमं gaiq पञ्चम्यां श्रौरपि भियम्‌ | ओीरत्र सरस्वत |) वरदाचतुण्यनन्तर एतद्वचनस्यो क्रत्वादि यं माघष्क्तपञ्चमोति ज्ञायते | यद्यपि गौडसंवत्सर प्रदौपे,- माघे मासि सिते पके पञ्चमो या भियः प्रिया तस्याः Yale एवेद काय्येः सारखतोत्सछवः तयाप्यस्मदशरभिष्ः राचावेव सरखतो पूजा क्रियते

प्रय षष्ठो |

साच सप्तमोय॒ता ग्राह्या एकादश्ष्टमो षष्ठौ पौणेमासौ yew | ्रमावास्या SNA ता उपोष्याः पराविताः दति विष्णधमंक्तेयग्मवचनाच्च | fe षष्ठौ नागविद्धा AWA तु कदाचन

क्ी{स्तसतारः |

नागविद्धा तु या षष्टो कृतपुष्छच्या भवेत्‌ VAR VE AAI महा पुण्छफलप्रदा | दरति agaatra ब्रैतेऽपि सप्तमौयुतेव ग्राह्या नागः पञ्चमो gue चयो यस्यां सा तयोक्ता। यदि कद्‌ चित्तियिचयवग्रादतत्त- रविद्धा लभ्यते। तदाऽगत्या yafagr याद्या तदाद वशिष्ठः, एकाद्प्ै तीया षष्ठौ चैव चयोद्शौ | पूबेविद्धा तु कन्तेव्या यदि स्थात्‌ परेऽहनि

श्रारण्छकषष्ठो | सत्यः,- se मासि सिते पक्वे षष्ठया मारण्यकत्रते या विन्ध्यवासिनों देवो grata वंनेमताः कन्दमूलफलादारा लभन्ते सन्ततिं fe ताः | राजमानत्तेण्डे,- Be मासि सिति पचे षष्टो चारण्छसंज्ञका | व्यजनेककरास्तस्यामरन्ति विपिने fea तां विन्ध्यवाधिनो सकन्दषष्ठोमाराधयन्ति | कन्दमूलफलादहारा लभन्ते सन्ततिं हि ताः स्कन्दषोमित्यचात्यन्तसंयोगे दितौया | तयाचास्याः श्रारण्य- कष्टो WARY चेति नामदयम्‌ | चेचरृष्णपके aaa तु स्कन्दषष्टयेव तियिदेधे पवेविद्धा याद्या | aus wast भशिवराचि॒तदं गौ | एताः पबेयुताः कार्य्यासतिश्यन्ते पारएं भवेत्‌ दूति afueta:

८४ गदाधरपद्धतौ

षष्ठो देवौषष्ठौ | यया भाद्रस्य Waal षष्ठयां षष्ठो प्रपूजिता Naga सौभाग्यधनधान्यसमन्विता तस्माद्‌ यन्नेन AB पूजयन्ति सदेव तु | रच षष्ठोसाधारण्येन व्यवस्था, विशेषाभावात्‌ |

प्रावरणषष्ठो | कोमँ-या तु मागंशिरे war महाष्ठौ नराधिप) दे वदिजसुदद्धाश्च waa तत्र दापयेत्‌ भ्रौ तघ्रशब्देन वस््रकम्बलपरो प्रतयः | Wa cater सोदय- चिमुह्धन्तेः कमेकालः |

(=== ee

SARUM | चेत्रमधिरुत्य eatqua,— षष्ठयां खन्दस्य कन्तेव्या GH स्बौपकारिका | दरेव सुखसोभाग्यमन्ते विष्णुर ब्रजेत्‌ लेङ्ेऽपि,- प्रत्यब्दमपि पूजा षष्ठयां काय्य Tew च। व्यवस्थात्ङ्ता

श्रय सप्रमो | खा yafagr याद्या | युग्मोक्रः, सम्मुख तियिवाच्च षष्टयेकादश्यमावास्या पूबेविद्धा तयाष्टमो | सप्तमो परविद्धा नोपोय्यं तियिपञ्चकम्‌ दति स्कान्दे उत्तर विद्धाया निषेधाच | त्रतेऽपि षष्ठौ विद्धेव |

क{लसारः। cy

षष्ठौ तु anal ay अन्योन्यं तु षमाञ्िते। पूवे विद्धा दिजग्रेष्ठ कन्तेवया wnat तथा. | दरति विष्णुपुराणेक्तेः | यदा पूवेदयुरस्तमयपय्यन्ता षष्टो, परेद:

तियिचयवशाद स्तमयादर्वाक्‌ श्रष्टमो gent, तदा परूवेविद्धाया श्रलाभादृत्तरविद्धायाञ्च प्रतिषिद्धूवात्‌ कुचानुष्टानमिति चनि- षेधसुक्लदापि उन्तरविद्धाचामनुष्ठानम्‌ | “गे षिलोपस्यान्याय्यलाद्‌- नत्र विद्धा गौोणकालवेन सौकार्य्या दति माधवाचाय्याः। तयाच सवेषु सप्तमोतरतेषु “पञ्चमो सप्तमो चेव" इति पेठौनस्यक्तः,

सम्मुखो नाम सायाद्धव्यापिनौ TRA यदा | इति स्कान्दोक्रः साया्भयाप्तो वयवस्या

रतै

HRA | भव्ये wz मासि सिते va सप्तम्यां लल्ितालये | स्नात्वा शिवं मण्डलके लेखयित्वा साम्बकम्‌ | भक्तया संपूज्य विधिवत्‌ करे वद्धा सुडोरकं | दत्यादि | रच सप्तमोसाधारणो यवस्या

= `~ =-=

माघसप्रमौ खतिषमुचये,-खयंग्रदणएतुल्या fe शक्ता माघस्य मप्नमो | अरुणोदयवेलायां सानं AX मदाफलम्‌ तत्रैव, Gale फलगन्धाकं पच्चरक्रप्रस्नवत्‌ | दद्यादुत्थाय aara सप्तधा यदि वा चिधा॥

(९) सन्मु खो

cd गदाधरुपद्धतौ

माद्छ,- माघमासस्य सप्तम्यामुद्‌ यत्येव भाष्करे | विधिवत्त तिलस्लानं महापातकनाशनम्‌ भविष्ये,- are मासि सिते ad सप्रमौ कोटिभास्करा | द्यात्छानाघेदानाभ्यामाय रारोग्यसम्पदः श्ररुणोद्‌ यवेलायां Nat माघस्य सप्तमो | गड्नयां यदि लभ्येत खुयग्रदगतेः समा I को रिभास्करा सप्तम्याः भास्करदेवताकलेन कोटिसप्तमोतु- च्येत्ययंः | खानमन्तो यया,- यर्‌यर्‌ जन्मकृतं पापं मया सप्तसु जन्मसु। aa Tay way माकरौ eq erat RIAA जननौ सवेष्धतानां सप्रमो Bnafay | सप्तव्यादतिके देवि नमस्ते परिमण्डले anafaae प्रोत सप्तदौपप्रदौपक | नमसकारमन््रस्त॒,- सप्तम्या ञ्च नमस्तुभ्यं नमोऽनन्ताय वेधमे॥ श्रचाचारभोजनं कूवन्तौति रत्यकौमुदौकाराः | तदद्रव्याणि यया,- गव्यमखिन्नमन्नञ्च तिलमुद्नो मागधौ | तया, श्रामतण्डुलसुद्नाश्च सद्यो दधित“ पयः Ha: कथिता देते अन्ये चाराः प्रक जतिता: दन्तकाष्ठं तथेवापख्िकटु Pawar तथा भोज्यपाचं तयेवेतद चार परिचक्चते |

(९) afaagted |

कलसारः| =

खुण्डौपिष्यलोमरौ चानि fa हरौतकौ विभौोतक्यामलक्यस्िफला तया | उभयचारणोदयकालव्याप्तौ GIS सानम्‌ | चतखो घटिकाः प्रातररुणेदय उच्यते | Talal GAR SA गङ्गाम्भःखदगः रतः चियामां रजनो प्राङस्यक्रा्यन्तचतुष्टयम्‌ नाङोनां तदुभे सन्ध्ये दिवसायन्तसज्ञके | दति ब्रह्मवेवन्तेवाक्येन परवस्यारुणेद यकालस्य पर दिना ङ्गतवोक्तेः। एतच्च सप्तमौसखलानं नित्यप्रातः्लानं रत्वा सन्ध्यातः पूवं पुन- माघसानं BAT सन्ध्यातः पूर्वमेव पुनः कायैम्‌ ) एतदिचारो वेश्राखमासेऽनुसम्भयः | श्रच कोणएाकचेत्रे विेषफलम्‌ | ब्राद्धे,- ara मासि सिते va सप्रम्यां संयतेद्धियः | कृतोपवासो यस्तच गला तु मकरालये | eae विश्द्धात्मा mtza दिवाकरम्‌ | सागरे विधिवत्‌ स्ञात्वा शवय्येन्ते समादितः दिवानृषोन्मनुव्यांञ्च पिद्रन्‌ waa दिनान्‌ | sila वाससौ धौते निर्मले परिधाय च॥ श्राचम्य प्रयतो wat तौरे तस्य महोदधेः | cafe वज्यन्धेषु दय्येपूजा्घादिकमु क्रा, दखरयैगङ्गाम्भसि क्तात्वा कुगेरासिच्य asta | सवैपापविनिमुक्रो नरो याति चिपिष्टपम्‌

गद्‌घर्पड्ध तौ

तया, योगं विवसखतः प्राप्य ततो मोचमवाभ्रुयात्‌ | aq विधिवाक्यानि arg द्रष्टययानि

श्रय श्रमो | तच शष्णाष्टमो सप्तमोविद्धा ग्राद्या | तथाच निगमे,- HUGS चेव रृष्णपके चतुरेगो | पूवं विद्धेव कन्तेव्या पर विद्धा कस्यचित्‌ उपवारादिकांषु ET घमः सनातनः | शक्ताष्टमो ठु नवमोयता ग्राह्या | WRIA चेव was चतुद | gafagl कन्तव्या RAAT परसंयुता उपवासादिकार्येषु देष Ys: सनातनः | द्रति निगमोक्तेः युग्मवाक्यमपि श्क्तपच्चपरम्‌ | एवं, नाष्टमो सप्तमोचुक्ता सप्तमो नाष्टमोयुता | नवम्या सदह कार्य्या स्यादष्टमो नात संग़रयः॥ दति ब्रद्मवेवन्तवाक्यान्यपि श्रक्ताष्टमौपराण्येव | aa काम्याऽषटम्यपवासो देवोपुराणे- एकादशो कोटिसदसतुल्याऽमिताष्टमो पवेतराजपुश्याः | ततोऽपि war गुणिता शतेन पराश्ररव्यासवशिष्ठमुष्येः भविष्धे,- QHIs तयाष्टम्यासुपवासपरायणः | मालतौ कर वौरेए विल्वपत्रेश्च पूजयेत्‌ giffa नाम saa) पुरतोऽषटग्रतं नृप |

कास्तसार्‌ः | Te

सवेमङ्गलनामेति जप्तव्यं किल भारत तया,- चतुटंश्यां aye Gaal: Wawa:

योऽब्दमेकं yatta गिवाचेनपरो नरः

यत्‌ पुष्छमचयं प्रोक्त सतत सचयाजिनाम्‌ |

aq Ga सकलं तस्य शिवलोक गच्छति।

सततसचयजनाकयपुष्छप्रा्िः, गिवलोकप्राश्धिञ्च फलम्‌ फाल्‌-

यनश्रक्गाष्टमो चतुदेश्योरारभ्य वधं यावत्‌ प्रत्यष्टमो चतुदं ्येपवाब- व्रतम्‌

AMAA |

लेङ्गगारुडयोः,- श्रो कस्याष्टकलिका पिवन्ति पुनवंसौ | aa मासि सितषष्टम्यांन ते णोकमवाप्रुय॒ः बृधवारयोगे विगरेषः,- aa मासि सिते पच्च टषलग्रे पुनर्व॑सो | aia: लाला वुधाष्टम्यां वाजपेयफलं लभेत्‌ श्रो केर चयेद्‌ ग्रमग्रोक लिका: पिवेत्‌ | उग्रं शिवम्‌ इति नक्तचवारयो योगे फलाधिक्यम्‌। तयोरभावे- ऽपि fafaara तत्‌पानम्‌ | | मौने मधो WAIT श्रणोकाख्या तयाषमौ पिबेदश्नोककलिकाः सखायाल्लोडितवारिणि दति स्कान्दोक्रः। लोदितवारिणि ब्रद्यपुचाख्यनदजले |

काम्यं खानमाह विष्णः, - तदभावे सोतोमाक्रऽपि,- 1

Wo

ge गदाधरपद्धतौ

पुनवेसुवृधोपेतां चेते मामि शिताष्टमोम्‌ | wag विधिवत्‌ erat वाजपेयफलं लभेत्‌ दरति। जलगण्ड्षेऽषटा शो ककलिकाः स्यापयिलाभिमन््रणम्‌ | मन्लस्त,- तामग्रोक VAS मधुमाससमुद्भव | पिवामि शोकसन्तप्नो मामशोकं सदा कुर्‌ दमं aa पोराणिकत्वात्‌ fier शद्रा श्रपि पठेयुः स्वौ- भिरच नोहः कर्तव्यः प्रकतावपूवैतवादिति | जेमिनिन्यायेन ave तावृद्ाभावात्‌ एतत्‌पानख भोजनर्ूपताद एधा ANH: पञ्चमभागः कर्मकालः। aa तियथिदेधे परविद्धेव are सामान्यश्णक्ताष्टमोलात्‌ | फलं aa मन्त्रलिङ्गात्‌ ग्रोकाभावः। व्येष्ठात्रतादौनामस्रदटेे समाचाराभावात्‌ AAMT छष्णज यन्त्यष्टमोव्रतम्‌ | तत्खषूपं स्कान्दे, जयं युष्छञ्च कुरुते जयन्तौ मिति at विदुः रोदिणणौसदिता ृष्णाष्टमौो या भ्रावणणष्टमो | विष्णधमौत्तरेः-रोदिणो यदा रुष्णपकेऽष्टम्यां युधिष्ठिर जयन्तो नाम सा प्रोक्ता सवेपापददरा तियिः॥ तदकरणे स्कान्दे, श्द्रानेन तु यत्पापं शवदस्तस्थभोजने | तत्पापं लभते कुन्ति जयन्त्यां भोजने छते AGRA सुरापश्च गोवधे स्तोवधेऽपि वा लोको यदुग्रांल जयन्तौ विसुखस्य | तथया,- करोति यदा विष्णोजेयन्तो सम्भवं रतम्‌ |

काससारः |

यमस्य वग्रमापन्नः सहते नारको व्ययाम्‌ विष्ण्रहस्यविष्णपुराणएयो स्तत्‌करणे फलम्‌, रोदिण्यामद्धेराने तु चदा कुष्णष्टमौ भवेत्‌ | तस्यामभ्यच्चनं शौ रे रन्ति पापं चिजन्म्रजम्‌ भविष्योत्तरे,- जयन्यामु पवासञ्च aa योऽग्ययद्धरिम्‌ |

तसय HANA ZA पापं नागश्यतेऽच्युतः कौमारे यौवने वाच्ये ae यद्‌ पाजितम्‌ | तत्पापं नाग्येत्‌ BW स्तया तस्यां सुप्रूजितः एवं यः कुरुते Sar देवक्याः सुमहोत्छवम्‌ | वधं वं भागवतो सद्धक्रो धमनन्दन | नरो वा यदि वा नारौ यथोक्तं फलमश्मुते 1 पुचसन्तानमारोग्धं घनघान्यद्धिमद्‌ गदम्‌ Tre चेयवसनयं मण्डलं सुमनोहरम्‌ | तस्मिन्‌ Ue wyyR दो्घाय॒मेनसेश्ितान्‌ परचक्रभयं नास्ति तस्मिन्‌ राष्रऽपि पाण्डव | पजेन्यः ATARI, स्यादोतिभ्यो भयं भवेत्‌ यस्मिन्‌ Ze पाण्डुपुत्र लिख्यते देवको त्रतम्‌ | तच Baffin नं गभेपतनं भवेत्‌ I व्याधिभयं तच भवेदिति afaaa | वेध्यं दौर्भाग्यं तच कलो VE सन्पकेणापि यः qq कथिन्नन्म्ाष्टमोत्रतम्‌ | विष्णलोकमवाप्नोति सोऽपि पायन संश्रयः |

cm TETAe पतौ

दति प्रत्यवायवोष्छयोः वणात्‌ फलश्रवणाच्च wagad नित्य- काम्यम्‌ | नित्यं सदा यावदाय॒र्वो्वायोगः फलाश्रुतिः | प्रत्यवायो ऽनुकन्पश्चत्यष्टौ नित्यलबोधिकाः दति संग्रहोक्ादिषु एषां नित्यादि शन्दानामष्टानां मध्ये एक- स्याणयक्तौ नित्यलमिद्धः | काम्यतया करणे नित्यलस्यापि सिद्धिः) काम्यन नित्यसिद्धिः स्यात्‌ प्रयोगो नोभयात्मकः। दति wa: | एकम्य त्रभयले, संयो गप्रयक्कभिति जेमिनि न्यायेन, “fags ज्यात्‌” “श्रभ्निदोच जृ्यात्‌ खगेकाम दूत्यादिवदेकप्रयो गादुभयमिद्धिः | किन्तु काम्ये सर्वाङ्गोपसंदारे, faa तु अङ्गवेगष्येऽपि फलमिति | श्रच शद्रादेरप्यधिकारः, नरो वेति मनुव्यमाचराधिकारोक्ः। स्त्ोणं स्युटोऽधिकारः जयन्त्यामु पवासश्च महापातकनाशनः | सवे; कार्यौ महाभक्त्या GHANA Awa: दति भविग्योक्तः, va: गनोवादिभिः wavy arafad व्रतम्‌ | भविव्योत्तरे तु. Aad बदले पत्तं रुष्णजन्माष्टमौ त्रतम्‌ करोति नरो ag भवति ब्रह्मराचषः दृत्याटि | तया,- वक्षं ae aq या नारौ रृष्णजन्म्ाष्टमोत्रतम्‌। करोति Heats! व्यालो भवति कानने स्कान्देऽपि,- ये कुवन्ति जानन्तः रृष्णजन्ाष्टमो व्रतम्‌ | ते भवन्ति नराः प्राज्ञा याला BAY कानने y

AHIMA: |

अरलोतानागतं तेन BARR AC Waa | aaa) नरके घोरे भुञ्जता छष्णवासरे श्रन्यत्रापि,- नभःकष्णाष्टमो प्राप्नो yaa ये दिजाघमाः | तेलो क्यसम्भवं पापं भुच्छन्त्येव संशयः दत्यादिषु यः केवलाष्टम्यपवासोऽभिहितः। जयन्त्यृपक्रमो- पसंहारमध्यपटिततादैश्वानरदादग्रकपालान्तगताष्टाद्‌ शकपाला दिव - दवयुत्यानुवादेन जयन्तोत्रतप्ररोचनापर एव तच्च UE ब्राह्मे, तथा भाद्रपदे मासि Bursa कलौ यगे ! श्रष्टाविशतमे जातः छष्णोऽसौ देवकौसुतः दत्याथुक्राः- अ्रभिजिनाम aes जयन्तो नाम वेरो | gent विजयो नाम यच जातो जनादटंनः | सोपवासो दरः पूजां कृवा तत्र Azfa | दूति तदन्त एवोपसंदतम्‌ | एवमाग्रेयपुरारेऽपि,- BUGS भाद्रपदे श्रष्टम्यां रोदि Wa | उपो षितोऽचंयेत्‌ aw भुक्तिमु करिप्रदायकम्‌ दति लयन्तोमुपक्रम्य,- जन्म्ाष्टमोव्रतकरः Gaara विष्णलो कभाक्‌ | वधं वषं तु यः कुर्यात्‌ पुत्रार्थो वेत्ति नो भयम्‌ | दत्युपसंतम्‌। भयं जानातौत्ययः | एवं सत्यपि यस्मिन्नब्दे रोदहिणोयोगाभावस्तचापि त्रतमाचरणोयमेव। -तिथिनचचथो गस

- ~= ~~ ----- ४.२

(१९) पातितं नरक घोरे यो Yom |

६४ गदाधरपद्धतौ

प्राग्रश््यावगमात्तन्नाभेऽष्टमो माचमप्रग्स्तं ग्राह्यम्‌ | नचचयोगाभाबे तु प्रतिनिधिवत्तियिमाचमाश्रयणौयमेव | दिवा वा यदिवा wat नास्ति चेद्रोदिणीकला | ufsant प्रकुर्वोत विगेषेणेन्दुसंयुताम्‌ दति पुराणोक्रः समाचारा | ङृष्णाष्टमोदिने प्राप्रे येन ym दिजोत्तम | वेलोक्यसम्भवं पापं तेन ya दिजोनत्तम दति सखल्यक्रस्तिथिमाचऽप्यकरणे प्रत्यवायश्रवणात्‌ प्रतिवषे- विधानाच्च तथाच, जन्प्राष्टमौोति यवदारोऽपि संगच्छते त्रतखरूप, उपवाषजागरणषृष्णप्रजा चन्द्राघादि तथाश, तत्मकरणे नारदोये,- उपोष्य जन्मचि्धानि कुर्याज्जागरणं निशि | शरद्धंराचय॒ताष्टम्यां सोऽश्वमेधफलं लभेत्‌ भविग्योत्तर,- तस्मान्मां पूजयेद्धक्वा We: सम्यदुपोषितः | ब्राद्मण्णन्‌ भोजय द्वक्षा ततो दद्याच दच्विणम्‌ | हिरण्यं रजतं गावो वाषांसि विविधानि. | यद्यदिष्टतमं लोके aut मे प्रोयताभिति तत्रैव, शन्द्रोदये श्रशाङ्ाय we दद्यात्‌ इरि स्मरन्‌ इति , ददं काम्यते, काम्ये सर्वाङ्गोपसंदारेए फलसिद्धेः निष्काम- स्यापि wad | awa तु केवलेनोपवासेन तस्मिन्‌ जन्मदिने मम श्रतनन्ृतात्‌ UAHA नात्र श्यः

{तस्तार | ey

इत्येव saat प्रहत्य, भविष्ये, एकेनेवोपवासेन रतेन कुरनन्दन | प्रजन्मङृतात्‌ पापान्‌मुच्यते नाच Va: | तज कर्मकालः, भविष्ये, रोददिणौसदिता au मासि भाद्रपदेऽष्टमो | श्द्धेरा जादधश्चोद्धं कलयापि yet भवेत्‌ महापुणछतमः कालो जयन्त्याख्यः प्रकौ ्ितः | योगोश्वरः,-श्रद्धंरा चाद धश्चोद्धंमेकाद्धंघटिकान्विता | रोहिणो चाष्टमो ग्राह्या उपवासत्रतादिषु इति एका श्रद्धेवटिका एकाद्धघरिके, ताभ्यां sfaaae: | एतेन घटिका are, तद संभवेऽद्धंघटिकापि | ब्राद्ये- सुत्त विजयो नाम aa जातो जनादंनः। दति | एवं सुख्यकालस्य चेविष्येऽपि घटिकासम्बन्ध्यगोत्यधिकश्नतत- मभागरूपायाः कलाया श्रतिष्धन्मलेन दुलच्यलान्न वयवस्यापकलम्‌ | नाथद्धवटिकायाः, तचापि acer | तथाच पूर्वापरदण्डदयो- पेतमद्धंरा चमत ge: कमेकालः विष्णधमौत्तरेऽपि,- Asus तु योगोऽयं तारापव्युदये तया नियतात्मा शविः ata: पूजां तच प्रवर्तयेत्‌ श्रय य्राद्यतियिनिणंयः | ततादौ जयन्तोमंज्नका रोद्िणणयुताष्टमो wer विद्धा शड़ा- धिका विद्धाधिका चेति चतुविधा तत्र षष्टिदण्डाल्मिकायां

ee a

(९ सन्देह सत्त्वात्‌ |

९६ गदाधरपदतौ

रद्धायामषटम्यां VATS AZT चयो गा हो रा चान्तयेत्‌ कि REA योगेषु मंदेदः। एवं सप्तमोविद्धायामष्टम्यां संप्रणरो दिणो- यो गाद्धंराचतद्‌यो गा दोरातान्तयेत्‌ किञ्चिन्मह तद्यो गेष्वपि yas Aq एतेषु षष Hey दिनान्तरे योगाभावात्‌ किन्तु यो गतारतम्यात्‌ प्राग्रस््यतारतम्यम्‌ यत्किञ्चिन्मृहनत्तयोगः प्रशस्तः | श्रदधराचयोगः प्रशस्ततरः | संप्रणयोगः प्रग्रस्ततमः |

मुह्त्तमयहो रात्रे यस्मिन्‌ am हि लभ्यते |

sea रोदिणो we तां gui समुपावसेत्‌

दरति विष्णरदस्योक्तः, पर्ययः सम््ाष्टमो परेद्यरपि वद्धंते

चत्‌ श्एद्धाधिका भवति। सापि gata रोदिणौयता। परेयुरव तद्यता उभयत्र तद्युता चेति तचाद्यदितौययोने सन्देहः aaa पंदयुरेव, पर दिनाद्धराजेऽष्टम्यभावात्‌ | निगो ये तिथिनच्च- चयो गस्य प्रश्रस्ततरलात्‌ | ननु,- उदय चाष्टमो fafgaaat सकला यदि |

सा भवेत्‌ वुधसंयुक्ता प्राजापत्यरेसंयुता

श्रपि वषश्रातेनापि लभ्यते वा नवा विभो |

दति स्कान्दोत्या परययुः fa स्यादिति चेन्न तस्याः पूर्वः

नचचयो गाभावपरतेऽप्येपपत्तः | ae: निभ्रौयात्राक्‌ सक्तम्या युता परयः fame aqua वा विद्यमाना विद्धाधिका ) सापि त्रिविधा पूरवुरव रोदिणौयुता | vata तद्युता | उभयच तद्युता चेति | च्राद्ये Waza,

विना ee aren नवमौ संय॒ताष्टमौ |

ses कक

कालसारः) & 9

कार्यां विद्धापि सप्तम्या रोदिणोसयुताष्टमो॥ दूति श्रादित्यपुराणोक्तः, जयन्तो शिवराजिश्च ata भद्राजयान्िति। रलो पवासं तिथ्यन्ते तथा gary पारणम्‌ दूति विष्णधमेक्तिखच | fad wey, “मुह्धन्तेमणयददोराच् aa.” | उभयत्र रो दिणौयुतायां विद्धाधिकायां चातुविध्यम्‌ gaqea farted उभयोयोगः परेद्युरेव fama तद्युता उभयत्रापि निग्रोये तद्युता उभयत्रापि निश्ौये योगाभाव- खेति श्राये पूर्वैव, कार्य्या विद्धापि सप्तम्या रोदिणणेसदहिताष्टमो | तचोपवास gaia तिथिभान्ते पारणम्‌ दरति Wath: | अन्येषु पकेषु Wats तथाच, पू॑द्यरोव fame नक्चयोगाभावात्परा eta परक्द्यनिंभोये रोदिणौ- योगेऽपि परेद्युः सद्धल्यकालावधिसवंकाले तिथिनक्त्रयो गसच्वात्‌ | सा सर्वाऽपि कन्तेव्या सत्तमोस्यताष्टमौ | दूति agaaara: | चतुय पचम्त॒ चिविधः पूर््युनिंभौयादूद्धं तियिनक्षचद्वयं रन्त, Rafts प्राक्‌ समाप्रमित्याद्यः प्रकारः। पूवेदयनेचच्ं महत्‌ परेदयः खन्पं weal निणौयादू धं प्ररत्तलात्‌ Wa": खल्पा, परेदयमंहतोति दिनदयेऽपि नि्ौथं योगो नास्तोति दितोयः प्रकारः | TAUB महतो, परेयुः खन्या, रोदिणो तु निग्न -

Je ~ (स्‌ नौ [ यादूद्धं प्रटृत्तवादन्पा परदयुमहतौ इति sata: प्रकारः। तत्राय 13

€< TTY ग्पद्धतौ

ava निभ्ौययो गाभावेऽपि मङ्कन्पकालमारभ्य योगस्य मलात्‌ | दितौये परेव | गन्नमोमददिताष्टम्यां श्रवा ea दिजोत्तम | प्राजापत्ये दितौयेऽद्धि qeunts भवेद्यदि | तद्‌ाष्टयामिकं पुण्यं प्रोक्तं व्यामादिभिः परा | दूति स्कान्दोक्ेः | ठतौयेऽपि परेव | qafagizal या तु उदये नवमोदिने। सुहधतत्तमपि dear स्पूर्णा चाष्टमो भवेत्‌ दति waite: | एतेषु जयन्तौभेदेषु यदा कदाचित्‌ बृध- वारयोगो यदा मोमवारयोगो भवति, तद्‌ चतुग्यां मङ्गलवारवत्‌, ्रमावास्यायां सोमवारवत्‌, Gea विवारवच फलाधिक्यम्‌ | तथाच पाद्य, प्रेतयोनिगतानां a प्रेतल नाशितं नरैः ये: हेता श्रावणे मासि aval रोदहिणणैयता किं पुनबृधवारेण सोमेनापि विगरेषतः | विष्णघमोत्तरेऽपि,- श्रष्टमो बुधवारेण रोदिणो सहिता यदा भवेत्त्‌ gfamea किं छतित्रैतकोटिभिः तथयाच,- उदरो weal किञ्चित्‌ इति सकान्दोक्रिरपि एतत्‌समाना्यैव | तस्मात्‌ वारयोगे फलग्रतेगुणएफलबोधकलमिति, वारविगेषानुसारेण व्यवस्धेति, माधवा चा येतिथितच्चक्छत्‌प्रतयो- ऽस्मे शवह्टनिबन्धङतख ननु श्रनयेव Dart रो दिण्णो गुणफलमस्त इति चेत्‌, |

लस्लार्‌ : | ८€

प्राजापत्य्तसंयक्ता कृष्णा नभसि चष्टमो | सुहन्तमपि लभ्येत सेवोपोव्या महाफला दति wat, वासरे वा निशायां वा यच यक्तातु रोददिणौ। विशेषेण नभोमासि सेवोपोष्या सदा fata: 1 दति वशिष्टोक्तौ च, एवकारशरुतेः Ufeer नियामकवेना- भिधानात्‌ | एकाद शरौ श्रताद्राजन्नधिकं रोदिणणोव्रतम्‌ | इति अ्रवणाचेत्यलमतिविस्तरेण | ay रोदिणोरदितष्टमौ विचायते, तच ween सन्देहः | विद्धा चतुविधा | gaara निशोयव्यापिनौ vata निश्रौधव्यापिनौ दिनदयेऽपि निभ्भैयव्यापिनौ दिनदयेऽपि निग्नोचव्याश्चिरदिता केति आद्ये gaatiten, परेद्युनिंभोयव्या- भेरभावात्‌ | way Fay way परेव, सङल्पकालमारभ्य सवैकम- कालस्याष्टमोयोगात्‌ | श्रय जयन्तौपारणे fave: | तियिनचचनियमे तिथिभान्ते पारणम्‌ | दति खान्दोक्तरभयान्ते पारणं काय्यम्‌ नन्वेवं षति यदा दिवा तियिनच्चयोरुभयोरन्तो लभ्येत तदा कथमिति चेत्‌, उच्यते | तिथिनच्चचसयोगे उपवासो यदा भवेत्‌ | पारणं तु कर्तव्यं यावन्नेकस्य संचयः दति acetate एकतरान्तेऽपि पारणम्‌

१०. गदाधरपड्धतौ

ननु पारणं दिवा तज्ापि vate दति पबेसुक्रम्‌ यदा तु पूर्व्॒र दैराचमारण्य तिथिनक्त्रयोः sata: परदिने राचिप्रहर- पय्येन्तं व्यातिम्तदा कथमिति चेत्‌, उच्यते तदा राचावपि पारणम्‌ | तिश्येचयो यदा च्छेदो नक्चान्तस्तयापि वा | च्रद्धराचेऽपि वा कुर्य्यात्‌ पारणं तपरेऽखनि दरति प्रतिप्रसवसछतेः | श्रपिशन्दादिवापूर्बाहयोः केमु तिक- न्यायेन प्राष्यभाव एव | अत्यन्ताशक्तस्य तु ARs | जयन्त्यां yafagiar quad समाचरेत्‌ | तिथ्यन्ते चोत्‌सवान्ते वा rat कुर्यात्त पारणम्‌ इति तयाच परेद्युः प्रातः ओरओरृष्रपूजापूवेक तरतं समाप्य त्रतरूपो- त्वान्ते पारणम्‌ ! एवं तिथ्यच्चयोरुभयोरन्ते पारणं मुख्यः कल्पः | एकतरान्तो ऽनुकल्पः उत्सवान्ते पारणमप्रशस्तमिति बोध्यम्‌ याः काञ्चित्तिययः नोक्ताः पुष्या नचचसयुताः | Sua पारणं क्ु्यादिना भ्रवणएरोदिणोम्‌ दति सतेना रोदि्न्तापेकति चेत्‌, अष्टम्यामय Ufeai gaia पारणं कचित्‌ | श्नन्यत्‌ पुराकृतं कमं उपवासाजितं फलम्‌ तिथिरष्टयणं दन्ति नच्च चतुग एम्‌ | तस्मात्‌ प्रय्नतः कुर्यात्‌ तिथिभान्ते पारणम्‌ दति त्रद्धवेवन्ताक्तः। विना अ्रवणएरोदिणोमिति तु नचत्नापवास- विषयम्‌ | उपद्र दादि वश्रात्‌ पारणाया waa जलपारणं कायम्‌ |

ATHATE: | १०९

सन्ध्यादिकं भवेन्नित्यं पारण तु निमित्ततः | ्रह्धम्त पारयिलाय नेत्यकान्ते भुजिभेवेत्‌ | दूति कात्यायनोक्तेः। जयन्तो पूना विधिस्तु, AHA त्रतसारे द्रष्टव्यः) जयन््यष्टम्याः प्रातः ओौदुर्गादिव्या जन्मोत्‌ सवं कुर्यात्‌ | तया भविष्योत्तरे, श्रौ ङष्णवा क्यम्‌ | HUY तत्‌चणाद्राचौ प्रभाते नवमौदिने | यया मम तया काया भगवत्या महोत्सवः दति aq नवमोति यदुक्तं तदष्टमोसमाष्यनन्तरं नवमो प्रटृत्यभि- प्रायं, तु नवमौोनियमपरम्‌ | HUM, तत्‌च्षणाद्राचौ प्रभाते दत्याद्यसङ्गतं स्यात्‌ | अष्टमो प्रकरणे पारणएविषये, ब्राद्ये,- श्ररुणोद यवेलायां नदम्यां तया faz: | दरत्यादौ यदुक्तं नवमौ पदं, अष्टम्यनन्तर भा विल्ादेवोक्म्‌। तथाच, श्रष्टम्याः प्रभाते सत्वेऽपि दूर्गाजन्मोत्सवं निःसन्दिग्धमेव समाच- रन्ति च्रतएव नोतिरनाकरेऽस्मत्‌ पितामहङृष्ण दत्‌पण्डितिमदा- पातैः जन्माष्टमयत्तर दिना द्धैरा चे UAE दु गजिन्मोत्छवो यत्‌ क्रियते तद्भ्वान्तिमूलमिति लिखितम्‌ इति ग्रौहृष्णनयन्त्यष्टमो व्रतम्‌

श्रय Zagat | एतद्व्रतं नित्य काम्यच्च प्राप्रे भाद्रपदे मामि Wale भारत या पूजयते gat मोहादि यथाविधि i

९० गद्‌1धरपद्धतो

चौोणि जन्मानि वेधव्यं लभते नाच ane: | तस्मात्सप्रूजनोया सा ufaay वधूजनः सुखसन्तानजननो भ्नाठसोख्यप्रदा सद्‌ा, cafe वचनात्‌ | 9a व्रतसामान्यव्यत्रस्धया सोद यचिसुहन्त- वेधो waa aa तिथिद्धे wer: शक्तपचवन्तिल्ऽपि पवैविद्धेव ग्राह्या | श्रावणो दुगेनवमो तथा दूर्वाष्टमो या। gafaga कन्तव्ा शवर चिवेले दिनम्‌ इति नारदोक्तः। मासि भाद्रपदे Wal चा भवेदष्टमो नृप। ूर्वाष्टमोति विज्ञेया पवेविद्धा प्रशस्यते तया, दूर्वास्या weal sar नोत्तरा सा विधौयते दत्यायुेश्च a “काण्डात्‌ काण्डात्‌” इति मन्त्रेण भविव्य- वाक्यात्‌ केवरलदूर्गापूजां कुवन्ति तस्मिन्नव भविव्यपुराणे w- पुरूषसाधारण्येन नानाकामायसिद्धये, दुर्गासहितमदेग्प्ूजनं aq लिखितं तत्‌ काम्यम्‌ एकवषेममायय ब्रतान्तरं विध्यन्तरेण कायम्‌ | विधिस्ततरेवानुमन्धेयः 1 NRA दुर्गाश्रयनम्‌ | तच देवानां ख(मान्येन शयन- पचो राजमान्तेण्ड,- वद्धिः स्कन्द पुरन्दरो गणपतिः SAT भास्करो देवः पवेतपुचिका वसुमतो तोयाधिपः ana: | ब्रह्मा वायशिवादयः प्रतिपदारम्मे तिथौ शेरते चोत्तिष्ठन्यमुना क्रमेण वरदाः खे खे faut पूजिताः

कलसारः ! VoR

विशेषस्तु तच भगवतो पुराण,- सरवैदैवोल्यिता तिष्ठेत्‌ दुर्गा लोकददिताय वै | सखपेद्वाद्र सिताष्टम्यां चिपञ्चदिवसात्‌ परम्‌ 1 sfasafaat दैवो षोडशेऽद्ि राचितः। दिवा खापे भवेद्रोगो fama जन्यः दिनच्यो यदि भवेत्‌ ate घस्रं ख॒तुदेश | agaq सखापदिनं fafuagt कदाचन दूति fafuegt षोडश्रदिने खापननिषेधात्‌, पञ्चद शदिन- पयन्तं खापदिनम्‌ तथाच, भाद्रष्रक्ताष्टमोराचिमारभ्य षोडग्र- दिवसे बोधनोक्तेः उत्थाने नेवाष्टमौ नियमः | एवं सति तिचिदद्धौ सप्रमोदिने देवोसुत्याप्य परदिने दगौल्छवारम्भः कायैः॥ दति दुगशयनम्‌ |

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रय शरत्कालोनद्गौत्सवारम्भः |

म॒ श्राञ्धिनर्ष्णाष्टमोमारभ्य तत्‌ग्रक्ताष्टमोपर्चन्तः संयोगण्रयक्त्नन्यायेन नित्यः काम्य तयाच देवोपुराणे,- एवं यजनं कुर्यात्‌ वं aw यधिष्ठिर | यो yaad सम्यक्‌ चण्डिकां भक्तवत्सलाम्‌ | भस्मोरत्यास्य पुण्यानि निरं दत्यवमानिता | एवं MAI BATT प्रत्यवायश्रवणाच् वच्छमाणानुकन्प- विधानात्‌ नित्यः तथाच दुर्गाकन्य,- यद्‌ देववश्रादस्मिन्‌ मासे पूजा जायते |

१९०४ गदाधरपद्तौ

तदा तु कार््तिकाष्टम्यां कमे चेतत्‌ प्रकौत्तितम्‌ छष्णाष्टमों समारभ्य यावत्‌ THAT भवेत्‌ | दिवसे दिवसे प्ूवप्रोक्तं कमं ares ata कात्तिक वापि aurea समारभत्‌ | सवेकामायसिद्याथे HAS eee तम्‌ FAS कुरुते यस्त॒ स्टुद्धिस्तस्य जायते | वेद्‌ विच्च भवेत्‌ वर्णै च्रिवगं साधयेत्‌ क्रमात्‌ रलाप्नोति यग्रोराज्यपुत्रायद्धंनमग्पद्‌ः | दति ्रनुकल्पविधानं फलश्रवणं च, भविव्योत्तरे,- gata wagal साने Bla पुरे YT | ne ne श्रक्रिपरं aia रासे वने वने aia: प्रसुदितेदष्टे ate: afsafan: | दरेभक्तियतेन्तैच्छैरन्येश्च भुवि मानवे; 1 सवीभिश्च games तद्िधानमिदं टण्‌ ्रज्रिपरेद्ोपरायणेः | ace: किरातादिभिः। अ्न्येरतुलो- मजातिभिः देवो पुराणे ब्रह्मवाश्चम्‌,- मदा सिद्धिप्रदं धन्य सवे्त्रनिवदणम्‌ सव॑लोकोपकाराथं विशेषाद्‌ सिद्त्तिभिः कर्तव्यं जराद्धणयेस्त॒ क्त चिवेलौ कपालकैः | गोधनाय तथा am: शद्रः पुचसुखार्थिंभिः॥ सौभाग्यार्थं तथा स्तोभिरन्येश्च धनकाङ्धिभिः | ayaa महापुण्यं शङ्रादयेरनुठितम्‌

कालसारः | १०५

एतेनास्य त्रतलमपि ae) wa यत्तियितत्कारः | “Sees भुञ्नानाः कात्या चन्यच्च॑नत्रतम्‌"” | दति ओओभागवतवाक्यमखय त्रतत्रप्रतिपादनाय उदादतं तत्म- माद कृतम्‌ | हेमन्ते प्रयमे मासि नन्दव्रजक्तुमारिकाः। fa तत्वा द्ध aia Aaa | तथा, कष्णाष्टमौोमि- त्या दिवाक्वादस्य षोड्श्रदिनत्मकल्म्‌ | यत्त देवौ पुराणे, पक्तमेकं तु पाः प्रूजयिव्यन्ति चण्डिकाम्‌ | तेषां विप्र wey भयं किचिद्धषिव्यति इत्यादि बहनि फलान्युक्ता,- चण्डिकाप्रूननाद्‌ वोर पूजिताः स्वंदेवताः। दव्य पञ्चद शदिनात्म कवम्‌, तत्तियिचयाधौनम्‌ | तच मूलाष्टमौविषये, श्रादित्यपुराणे- ्रष्टपद्यामतीतायां या सा छष्णाष्टमो भवेत्‌ | तस्या मवश्ये कन्तेवया दुर्गापूजा ययाविधि॥ विश्वषहपनिबन्धे,- यदाष्टमों तु aaa ae याति दिवाकरः। तच sired कुर्यान्न कुर्याद परेऽहनि कुलं aa धनं us दौंञ्चायुस्तयेव प्रयमा चाष्टमो पूज्या ये काङ्खन्ति मदा Wag | च्राश्वयज्याष्टमो यञ पूज्यते aaa Paar |

द्‌ भिचं तच जानोयाद्शवर्षाणि पञ्च च॥ 14

Ved गद्‌धरप डतौ

तथा, सप्नम्यासुदिते Ga परतश्वाष्टमो यदि, तच ster gaia ङूर्याद्‌ परेऽदनि

प्रयमाष्टमो, मूलाष्टमौो | तथाचात्र श्रस्तमयवेधस्य प्रातिखि- aad तियितच्चकारलिखितसियिसामान्यपरट्रत्तसो दयचिसुह्धनत्त- aut arg: 1 एवं सति, “प्रातरावादयेत्‌ देवों प्रातरेव विष- जयेत्‌" इत्यादिवाक्यं ्रस्तमयवेधस्य राकच्यापवाद्‌ कलेन प्रातरारभ्य पूजाकर्मारम्भण्णैयं, q अष्टमो ्रपेचणो यत्येवं परं बोध्यम्‌ |

घोड्ग्रदिनासामथये स्कान्दे, काणोखण्डे,-

नवराचं प्रयनेन प्रत्यहं सा समिता | नाग्रयत्येव विघ्रौघान्‌ सुगतिञ्चेव crefa भविष्यो त्तरे, च्राध्िने मासि शक्ते तु कन्तवयं नवराचकम्‌। प्रतिपद्‌ दिक्रमेणेव यावच नवमौ भवेत्‌

WH, WRI | नवराचकम्‌, नवराचसम्बन्धिपूजादिकं कमं aa fagrat प्रतिपदि साया्धबेधं weler पूवेविद्धेव याद्या सम्भ सौतियिषु सायाद्भवेधस्योक्रवात्‌ माघधवाचार्यास्तु, “aay मासि योऽयं नवराचोत्छवः क्रियते तस्य नक्तत्रतलान्नक्तकालेन व्यवस्थाः” दति पञ्चम्या दि नवम्यन्तपञ्चदिनपकेऽपि सायाद्भवेध एव, पञ्चम्याः स्मुखौ तिथिलात्‌ | एतत्पके प्रमाणमतरैव लेख्यम्‌ चिदिनपचे रद्रयामलभवियययोः,-

fafea वापि arial सप्तम्यादिदिनतचये |

तचापि agar: सखौ तिथिवात्‌ साया्धबेध

यत्त, त्रतौ प्रपूजयदेवौं सक्तम्यादि दिनचये |

कालसारः। eo

दाभ्यं चतुरदोभिर्वा हासट्द्धिवगशात्तियेः द्रति तियितच्वकारेभ विव्यवाक्यमु दातम्‌, तत्‌ गौडदेशे श्राद्धियते | तच सोद यचिमुहन्तेवेधययेव पूजायासुपवासे श्रादृत- लात्‌, बलिदानस्य दि वानुष्टानाच। श्रस्मट्शे त्‌ तिचिदद्भावपि महाष्टमौपरदिन एव महानवम्या नियतलात्‌, परदिने पूर्वापरदण्डद्वयोपेतनिशोये नवम्या च्रभम्भवाच पूवेदिने महानवमोसमाप्तौ तत्यरदिने प्रजायाः कुतः प्रा्चिरिति नाद्धियत एव श्रतएव मदाष्टमोपद्धतिकारादिभिः प्रारोनेरपि तदाक्यमनादृतमेव | तस्मात्‌ चतुर दः प्तः सम्भवति | “छक्तत्रयेऽपि gare’ इति रुद्रयामलभविव्ययोने्त्ो पजौ वनेन यत्‌ चिदिनप्रूननमुक्तं तदपि amet नाद्धियते। नकच्स्य व्यवस्धापकलमित्यणेच्यते। दिदिनपच्चे ययाप्राप्तमदाष्टमो मदा - नवस्योः | aurea भविग्यस्कान्दयोः,- अष्टम्याञ्च नवम्याञ्च जगन्मातरमसििकाम्‌ | qafaatfaa माभि विशोको जायते at tl एकदरिनपन्ते त्‌, यथाप्राप्नरमदानवम्यां तथाच भविग्योत्तरे,- नवम्यां पूजिता देवो ददात्यनवमं फलम्‌ | दूत्यादि मदानवमौप्रकरणे लेख्यम्‌ नवराचादिपञ्चपकचेषु, भवियये,- WA चाश्रयजे राजन्‌ सोपवासो भवेन्नरः | Teast निष्यतिदन्दो निदुःखः भवेत्‌ सद्‌ा यः करोद्यपवासन्तु नवम्यां विधिवन्ृप |

१०८ गदाधरपद्धलौ

Vata एकभक्तेन प्रवदन्ति मनो षिएः i पञ्चमो तथा षष्ठो सप्तमौ चाष्टमो aa उपवामपरो wat प्रूजयेच्ण्डिकां वृधः नवराचोपवासन यथा ग्र्या तथा नृप चिरा चरेण ददिराचेण एकराचेण वा पुनः॥ एकभक्तस्तु पञ्चम्यां षष्ठयां नक्तं प्रवन्तेयेत्‌ श्रयाचितन्त्‌ सप्तम्यामष्टम्यां उपोषितः एतच्च तथा योग्याधिका रि विषयम्‌ | तयास्िन्‌ ब्रते षट्‌ प्ताः, तयाचागमे सग्रहः | तच fea: षोडग्रमिनवभिरयो पञ्चभिदग्ाम्‌ | एकेन afefed mam: प्रस्तौमि तददिधानमदम्‌ Ba परे न्यूनाः भत्ृद्‌ये केवला्टम्यामपि परजा यस््ेकस्यामयाष्टम्यां नवम्यां वाय साधकः | पूजयेदरदां देवँ + + + +॥ sfa कालिकापुराणोक्रः। एतत्‌ स्वाधिकारिकं व्रतमिति TRY स्य॒टसेव तया रुमाचारोऽपि “NTRS महापूजा दूत्या दिमाक॑ण्डयपुराणणोक्रेरच चण्डो पाठटनियमः | श्रय मदाष्टमो तच aatata: कालिकापुराणएव्राद्ययोः+- Rasa भद्रकालो caanfaarfwat | argeiat महाघोरा योगिनोकोटिभिः Tet ततोऽयं पूजनीया सा तस्िन्रदनि मानवः |

कालसारः | १०९

तया ब्राद्ये तदनन्तरम्‌, ^= rat = ~ A उपो षितवस्वधपमाचः रन्नानुलेपनः (र =>. “A A vA दोपे TAMU NW: फलपुष्यश्च धान्यकः द्ाभिषेविंविधेः कापि via atgqeage: | विल्वपतरैः ey चन्दनेन तेन A cA ~ qua: पालकद्दद्यं राचिजागरणन च। दुर्गा ठु श्रास्त्राणि) प्रूजितवयानि पण्डितेः॥ मद्यभाष्डानि Testis कवचान्यायुधानि च। wat शिल्तिभिस्तानि तानि पृज्यानि agar भगवतो पुराणे पूर्वादादतो करिभिः खापविधिसुक्ताः- मूलेन प्रतिबोधयेद्धगवतौ चण्डो प्रचण्डारुतिम्‌ | च्ष्टम्यामुपवाससयतयधिया Bat नवम्यां वलिम्‌ नानापाशवमां षमन्जरुधिरे AAT समाराधयेत्‌ | aaa mau fafay दमो सम्प्राप्य eased | निश्यामष्टमौ परोक्तं दगौत्छवं तु कारयेत्‌ | aaa चोपवासादौ aafagteat भवेत्‌ उत्सवपदेन पूजोपवासयोः aye) way दुगे1त्सवव्यति रिक्त उपवासादो | श्रन्योपवासव्रतेषु य॒ग्मवाक्छस्येव सोद चिमुद्ध तेभाद्‌ायैव प्रसरो मदाष्टम्युपवासे इत्ययः | seat aa नवमो तच पूजां faasa |

(९) शस्त्राणि प्राटान्तरम्‌ |

गदाधरपड्धतौ

ष्ट मौच्चेदनुप्राप्य we याति दिवाकरः | तच द्गत्छवं कुर्या न्न कुर्याद परेऽहनि | Zul पर्घ्रतां याति नवमोवासराचिते च््टमोनिशि सन्तष्टा gat zetfa पावेतो लथा,+- श्रष्टमौ नवमो विद्धा तच दुगां पूजयेत्‌ | पूजयत्‌ क्तेणभागो स्यात्‌ यया वज्जहतो गिरिः च्रष्टमौ नवमोयक्ता शान्तिं gaiq fast यद्‌ त्रियते क्रियमाणे तु aa राजा विनश्यति गरुडपुराण, प्रजनोया शिवा स्वे रेकधाऽभमिन्नपन्वैणि | faa wafefa: va पर ore दिजातिभिः। पूबपवेि yma qaug परेऽदनि | पशमांसेबेलिं कुर्यात्‌ निभि चेननृपतेरतः पूबपवं दिजातौनां पर व्रतवतां सद्‌ा | यस्मिन्नहनि यत्‌ काय्यं तस्मिन्‌ तत्‌करणत्‌ परम्‌ फलं स्यात्‌ पिषदेवानामतः कालं ATA | सा विद्या arafagt चेत्‌ at War खा शिवा ततः॥ च्रतस्तस्या faut gar faut कमं धमेतः। या पूवेतिथिसंयुक्ता सा तिचित्रेतकमेसु नेष्टा चदटेवकार्याणि कुतस्तस्यां दिजन््नाम्‌ तिथौ पूर्वापरौ प्रेते देवकार्येषु चेत्‌ कमात्‌ नातो देवो fas: पूज्या विधिज्ञैः gavafe | दिजानासुपवासादि राजन्यस्याददेनं परम्‌

कालसारः। &

देवौ दिजातिभिर्नात्र ara प्रेतगतेऽहनि | पमां सबलिदानं aaa तद्राजन्यानां नियतं argurar- मनियतम्‌, साविक्यादि पूजया चारितार्थ्यात्‌ | तयाच स्कान्द-भविखयोः,- पूजा तु चिविधा प्रोक्ता सालिक्यादिप्रभेदतः। सालिकौ जपयन्ञाचेने बे निरामितैः राजसो बलिदानेन नैवेद्यः साभिपेस्तया | सुरामांसो पहारेञ्च जपयज्ञ्विना तु art विना मन्त्रेस्तामसौ स्यात्‌ किरातजनसेविता इति | देवोपुराणे- प्राटर्‌काले विगरेषेण श्राश्रिनेयाष्टमौषु च। aunt नवम्याञ्च लोके स्याति afaafa | श्रतएव Asal महानवमोति aria: | ननु सहदाष्टम्यां fa सोद वचिभुह्धन्तेवेधो are उत प्रातिखिकः कालोऽसि दूति चेत्‌, उच्यते पूर्वापरदण्डदयोपेतमद्धंराचमच कमेकालः, तच Syd: | छृष्णजन्माष्टम्यादौ सवच जन्मकाले पूजा विधानवदचापि बवलिदानान्तायाः प्रजायाः agua fafeaaa AAA A ATA | वलिदानं ततो विद्यादद्धंरातचे संश्रयः द्रति वाथुलोक्तौ agua वलिद्‌ानमुक्तमेव रष्णजन्मदिने agua दे यत्पतिः faga एवञ्च agus दिनदयेऽष्टमौ सम्ब gaa: प्रजादिकं परेयुरूपवाख दति सिद्धम्‌ एवमष्टादात्मक दुरगात्रतेऽपि agua दिनदसे श्रष्टमोयोगे परत्र तम्‌ |

CLR गदाधरपडतो

्श्चिनस्याष्टमो शक्ता प्ूवेविद्धाचेने war! ब्रतोपशसादौ fas: परविद्धा प्रशस्यते दति सङ्गदोक्तः यत्त॒ कं्चिल्िखितम्‌,- नक्तकाले तु BATA मण्डल कारयद्भतौ | दति देवोपुराणेक्रः प्रदोषः कमंकाल दति तद तौवायुक्तम्‌ | मण्डलकरणादिसम्भारकालो यदि कमैकालवेनाच ग्राह्यः, तहिं छष्णजन्मा्टम्याम्‌,- तच साला तु yale नद्यादौ विमले जले, देव्याः सुशोभनं कुर्यात्‌ देवक्याः खूतिकाग्टदम्‌ ti दूति भवि्योत्तरोक्तष्टतिकाग्टदमण्डनादिकालः gate: कमे- कालः कि स्यात्‌ | ननु दिनद्येऽणद्धरा चेऽषटम्यभावे कथमिति त्‌, परेद्युरिति aa: मुख्यकाल श्रष्टम्यभावेऽपि सङ्कल्यमारभ्य तिथेः प्रटृत्तवात्‌ | ननु, उपवासं महाष्टम्यां पुचवान्न समाचरेत्‌ | यथा तथेव पूतात्मा wat देवों प्रपूजयेत्‌ दरति मदष्टम्यामुपवासनिषेधः श्रूयते इति चेत्‌ एतदा- क्यस्य पूजाङ्गमहाषटमोनिमित्तको पवासविषयतात्‌ तथाच, तन्निभित्तोपवाससय निषेधोऽयसुद्‌ाइतः | नानुषङ्गकछतो ग्राद्यो यतो नित्यभ्रु पोषणम्‌ ii इति जेमिनिः। देवौ पुरारे, seat समुपोखेव नवम्यामपरेऽहनि | मव्छमां सोपदारेणए दयानेवे्यसुत्तमम्‌

कलसार्‌ः। १९

तेनेव विधिनानन्तु खयं yet नान्यया दूति यत्‌ मांसपारणमुक्त तन्मांखमत्छागरिनां काम्यत्रतपर sam यतिब्रद्मचारि विधवानामपि तत्‌ प्रसज्येत तस्मात्‌ छतमव्यवजंनसङ्ल्पानामपि मांसमत्छपारणएम्‌ | श्रयेकमंणो- मांसादि वजेनान्म्ांसादिपारणस्य प्रतिपत्तिकमेतेन दु वंललाच्च सधवस्तौणां तु मांसभच्णनिन्दो पलः स्वेदा मांसभचणभाव- समाचारात्‌ मद्छपार णमेव, नेव मांसपारणम्‌ | अरय महानवमो विचारः | श्रयामो प्रकरणएमप्ये सो कर्याय मदहानवमो विचायते,

भविष्योत्तरे,

च्ष्टम्यां तु नवम्यां तु देवदानवराचमेः |

गन्धव रूरगेर्यसेः yaa किन्नरेनेरः

अन्यैरपि amet तु we: पू प्रपूजिता

पूजितेयं पुरा देवेस्तभ्यः पूरवेतरेरपि

तस्मादियं महापुण्या नवमो पापनाग्िनो

Sug सप्रयनेन सततं स्वेपार्थिवः तया,- कन्यां गते सवितरि श्क्तपचेऽष्टमो ar |

मूलनचचसंयुक्ता सा महानवमो War तथा,- पुष्या मदानवम्यस्ि तियोनासुत्तमा तिथिः

अरनुषटेया नरैः सवे प्रजापालेविगेषतः

भवानौतुष्टये पाथं संवत्सरसुखाय वे |

शतप्रेतपिगाचानां प्रत्ययं daar 2 45

UB गदाधरपद्वतौ

तथा,- संतजैयन्तो डङारे विप्रौ घान्‌ पातकान्‌ वरान्‌ | नवम्यां पूजिता देवो ददात्यनवमं फलम्‌ सा पुण्या सा पवित्रा सा स्वेसुखदायिनो | तद्‌ा तस्यां पूजनया चामुण्डा सुण्डमालिनौ तया,- मन्न्तरेषु Way कल्पेषु कुरुनन्दन तेषु aay चेवासौन्नवमोयं सुराद्धिता प्रसिद्धा नवमौ धन्या ae ad युधिष्ठिर श्रयो श्चूयोऽवतारेञ्च भवान पूज्यते BT च्रवतोर्ण चसा देवौ भुवि देत्यनिवदंणो 1 स्वगं पातालमर्त्य॑षु करोति सितिपालनम्‌ श्रद्िदहोचपरे विप्रे बेदवेद्‌ान्तपारगे | सुवणेख प्रते दत्ते करुरुचेत्रे यत्‌ फलम्‌ तत्‌ फलं लभते राजन्‌ प्रूजयिला तु चण्डिकाम्‌ aden afd a दुःखं प्रवत्तते कञ्चिन्‌ भियते राजा पूज्यते यच्च चण्डिका | ये ait पूजयन्तो पूजितं तेजेगच्तयम्‌ तसाटुर्गाचैनं ओष्टम्टविभिर्गोयते कलो देको पुराणे मासि चाश्वयुजे वोर Raw चिश्लिनोम्‌ नवम्यां THIS तस्य पुण्छफलं wT च्रश्चसेधसदसस्य राजघुयश्तस्य वे | तत्‌ फलं लभते NC देवोदेवगणेरेतः तथा,- महानवम्यां पूजेयं सदेसिद्धि प्रटायिका |

कालसारः। ११५

सर्वषु वत्‌स॒ वरेषु agar परिक fant Batata यग्रोराज्यपुतरायुधेनसम्पदः | स्कान्दे,- श्रश्वयुक्‌प्ररक्ञपचस्य नदम्यां वे वरानने उपवासपरो श्वा यस्तां पश्चति भक्तितः तस्य पापं wi याति तमः खुधौदये यथा | तथा, तत्मकरणे, Sat सुदुगेगहनान्नितरन्ति मर्याः | भविष्येः- नक्त श्याश्वयुजे राजा Beat एएक्तपच्छके aifaa मासि garat नवम्यां निशि चण्डिकाम्‌ पूजनात्‌ शज्नाश्रः स्यात्‌ Ue जयति लोलया तथा,- वषेपद्मसदसेषु यत्‌ फलं समुपाजितम्‌ | तस्यां दानं जपो eta: सानं चाचयमुच्यते ्रचापि, “नवम्यां विधिवत्‌ बलिः” इति वाक्यात्‌ fasta: anata: तत्र तिथिदेधे, “^श्रावणेदुगेनवमो इति वाक्यात्‌ पूबेविद्धा ग्राद्या श्रय गोष्टाष्टमौ | पादे, श्णक्ताष्टमो कात्तिक तु war गोष्टाष्टमो se: | तदिने वाख॒देवोऽभवद्ञोपः सवत्तुव्सपः तच क्रयात्‌ गवां gat गोग्रास गोप्रद्‌ चिएम्‌ | गवानुगमनं कायं सवेकामानभो प्ता | कोर त्‌, सवेपापविष्णद्धये इति पाटः मागो षेरृष्णपच्ते WAAL | AMR प्रयमगभौत्यन्नस्याय विद्ययं गणएपत्या द्षिरणएपूजा-

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पूर्विकां वन्दापनां कुवेन्ति। समाचार एवात्र प्रमाणम्‌ 1 श्रौमुवनेश्वर चेतरे चतुद्‌ श्याचामध्ये एकाम्रपुराणे प्रयमाष्टमोयाचाया लिखितलात्‌ प्रमाएमघ्यत्रास्तौति वदन्ति aa सोदयचिसुहत्त- चाश्या wae | तियिदेधे पूर॑युवैन्दापना छष्णाष्टमौलात्‌ | ad— मध्या्रादधिकं किञ्चित्‌ wa प्रथमाष्टमो | तच पूजादिकं कायं न्यूना चेत्‌ पूबेवासरे इति तदमनकरूलमिति निवन्धरुतः भद्राष्टमौ, अलभ्योगे लेख्या | भोग्राष्टमो आद्धप्रकरणे लेख्या | अरय नवमो | सा चोपवासे पवेविद्धा ग्राह्या, ata: त्रतेऽपि तथा aoe नवमो विद्धा ana फलकाङ्किभिः qalqaat तात दशम्या कदाचन दूति ब्रद्मविवन्तेक्तेः, तथा AGIA Ga एव माघवीये,- नवमो पूरव विद्धेव पक्चयो रुभयोरपि | दूति नवम्याः साघारणएनियमाः श्रय रामनवमो | तद्व्रतं नित्ये काम्ये नरमात्राधिकारिकम्‌ तयाचागस्य- सदितायाम्‌- प्राप्ने ओ्रौरामनवमो दिने मर्त्यो farsa: | उपोषणं कुरुते कुम्भो पकेषु पच्यते RHA रामनवमोन्रतं सवेत्रतो त्मम्‌ | व्रतान्यन्यानि कुरुते तेषां फलभाग्‌ भवेत्‌

कालसारः। १९७

तथा,- afaa दिनं ठु कन्तेयसुपवासत्रतं सद्‌ा | तया,- कुयाद्रा मनवम्यां तु उपोषणमतद्धितः | मातुगंभंमवाप्रोति नैव रामो भवेत्‌ खयम्‌ तस्मात्‌ सर्वात्मना सवं Baa नवमो व्रतम्‌ | मुच्यन्ते पातकैः सवे यान्ति ब्रह्म सनातनम्‌ दति केवलो पवासेनापि नित्यसिद्धिः | काम्यते तु, श्रोरामनवमो प्रोक्ता कोरिद्धयेग्रदहोपमा | तस्मिन्‌ दिने महापुण्छे रामसुदिश्च भक्तितः यत्किञ्चित्‌ कुरुते कमे AT भवच्यकारकम्‌ उपोषणं जागरणं पिदटनुदटिश्य पेणम्‌ तिन्‌ दिने ठु ana ब्रह्मपराधिमभो ष्यभिः | दृत्यगस््यसंदितोक्रः सर्वाङ्गोपसंहारः BA: | तथा,- GAIT BUSS महादानैः BASE: | यत्‌ फलं तदवाप्नोति ओ्रोरामनवमोत्रतात्‌ श्रच Ws: HAAS | तथाचागस्यसंहितायाम्‌,- मेषं पूषणि qin लग्रे ककंटकाड्यं | श्राविरासौत्‌ कलया कौ शरल्यायां परः पुमान्‌ तथा,- चेच्रुक्तनवम्यां तु रामस्य पूजनं भवेत्‌ | ततो मध्याद्धवेलायां स्नातो fe जगत्पतिः चेत्र Wel ठ्‌ नवमो पुनवेसुयता यदि | सेव मध्य्धयोगेन मदा पुण्यतमा भवेत्‌ | नवमो चाष्टमो विद्धा त्याज्या विष्णपरायणेः |

११९७ गदाधरपदतो

उपोषणं नद्यां वे दशम्यामेव पारणम्‌ | द्धा, Val | Tava तु दरति वाक्यान्तरात्‌ एते- नाच तियितच्वकारेः grat खक्तादरो fagrafafa यत्‌ व्याख्यातं तन्निर स्हमेव | वस्तुतस्तु नचचयो गस्य फला धिक्यापाद कलं व्यवस्यापकलं | तथा तत्रेव फलमुक्रम्‌ | पुनव ष्चचेसंयोगः खनल्पोऽपि यदि लभ्यते | चेचग्णक्तनव्रम्यां a at तिथिः स्वैकामदा il ane दिनदये नवमोयोगे परविद्धेव ग्राह्या | खरौ रामजन््रनवमो सपूर्णा फलदा सदा | विद्धा चेत्‌ परविद्धेव ata तु विगरेषतः | दयो मैध्याङ्भयुक्ता चनो पोष्या पूव॑संयुता पर विद्धेव कर्तव्या मध्या्कव्ापिनौ यद्‌ दूत्यगस््यसंहितोक्रः, दिनदये ware नवमो योगेऽपि परवि- Sa) सङ्ल्यकालमारभ्य नवमौसत्वात्‌, “नवमौ weal विद्धा त्याज्या” द्यकगेश्च | “विद्धा चेत्‌ परदिदधेव” इत्यनेन Wares योगाभावे परविद्धाया एव प्राप्रैः। तिधितच्वकारेष्ठु दशमौ- पारणा सव रेवाष्टमौ विद्धा नो पो ये्यक्तं। वैष्णवानां तु दरि- भक्तिविलासे सद्गहकारिका। “नवमो चाष्टमो विद्धा vant लिला, द्ग्रम्यां पारणयाश्च निश्चयान्नवमो चये | विद्धापि नवमौ ग्राह्या तरेष्णवैरष्यसंश्रयम्‌ दति श्रच सालग्रामशरिलायां पूजाकरणे फलाधिक्यम्‌ |

कालसारः | WE

सालग्रामग्िललायां तु तुलसोदलकल्िता | पूजा ओ्रौरामचन्द्रम्य कोटिकोटिगुणधिका दत्यगस्यसंदितोकेः 1 मदानवमो तु लिता | श्रय ual t तच Waa सोदयचिमसुदह्टत्तवेधस्य प्राग्रस््यादे काद गो विद्धा ग्राह्या suena तु चिमुहन्तात्मकास्तमयवेधस्य प्रा श्रस्यान्नव- मोविद्धा याद्या | प्रक्तपच्े तिचिर््ाह्या चस्यामग्यदितो रविः। छष्णपच्चे ति िर्याह्या चस्यामस्तमितो रविः दरति सवतिथिसाधारणएमाकंण्ड्योक्रेः, एतेन “anal चेव ara aga दिजसत्तम” इति स्कान्दवाक्यम्‌ पञ्चमो मप्रमो चेत्यादिवाक्ये सम्युखौलमपि कष्एपचविषयं ज्ञेयं एवमन्यान्यपि परविद्धा निषेधवाक्यानि छष्णएपद्विषयाण्छेव | खदुगां aaa fase नतु तिथिनामान्यप्रटरत्तं माकण्डयो क्रिमवलम्व्य विगरेषवा- क्यानामेषां पचचद्यपरता किमिति निरस्त दति चेत्‌ a पद्ये, पूवेविद्धाखोकारे | aut quay कार्य्या पूवेया परयापि ar} यक्ता दूषिता यस्मात्तिथिः सा स्वतोसुखौ दृत्यङ्गिरोवाक्ये यथा wat erat दोषरदिता, तथा पूर्व तिथ्या परतिश्या वा विद्धापौति विभरिखप्रटरत्तसख परविद्धाभिधा- नस्यनिर वकाशत्वेन Jaa | BAVA माघवाचार्याः+- कृष्णा Gat! Wal cima yaaa |

CV गदाधरपद्धतौ

दश्दरादशमो | ज्यष्ठब्क्तद गमो मधिृत्य ओरौ पुरुषोत्तमचेचविषये ब्राद्य,- यः तस्यां हलिनं au waa भद्रां सुसंयतः | सवेपापविनिङक्तो विष्णलोकं aac: स्कान्द, ABLAU दश्रमो सवत्सरसुखो War | तस्यां खानं प्रकुर्वोति दानश्चेव विग्रेषतः यां काञ्चित्‌ सरितं प्राय दद्याट्भतिलोदकम्‌ मुच्यते दशभिः पापैः महापातकोपनैः ब्राह्मे we मासि स्ति पचे दग्रमौ ₹स्तसंय॒ता | हरते दण्पापानि तस्मात्‌ दशदरा War भविये,- च्येष्टएक्तद शम्यां तु भवेत्‌ भौ मदिनं यदि ज्ञेया TAURI A सवेपापदरा fafa: तथाच, केवलदग्रमौ GU, दस्तनचचयता Guat मङ्गल- वार हस्तनचचयुता पुण्यतमेति विवेकः गङ्गयां तु शङ्खः ae मासि चितिखुतदिने nave cut | fanfaa:— va tearfacmafed seat मच्यलोकम्‌ | पापान्यस्यां हरति तिथयो सा दगेत्याङ्रार्याः gu दद्यादपि शतगुणं वाजिमेधायतस्य विश्वामित्रः, पारव्यमनृतञ्चेव Uae वापि eam: श्रमवद्धप्रलापञ्च वामयं स्याच्चतुविधम्‌ पर द्र येव्वभिध्यानं मनसा निष्टविन्तनम्‌ | वितयाभिनिवेग्रश्च मानसं चिविध waa

कालसारः | १२.

श्रदत्तानामुवादानं feat चेव विधानतः) परदारोपसेवा कायिक fafa रतम्‌ द्‌ शपापं Vlad WAI तं खरासुरेः | हर तानि सदा गङ्ग पापानि मन्नतो मम Il रिष्णुपादाय्सरत दरति प्रकुतमन्लोऽपि पठनोयः, तथा वास्ौ- कयक्रेरिति गौड़ाः। तच तिधिदरेधे ररक शमौ वात्‌ पर विद्धा ग्राह्या चरपराजितादग्मो ग्रतानन्दसद्गनहेः- श्रवणेन य॒ता चेत्‌ स्यात्‌ TWAT चापराजिता | तच नीराजनं कला यात्रा कार्य्या जिगोषृणा | अन्यत्र, आ्रध्रिने erat शक्ता वणेन aafaar | विजया quay प्रोक्ता सा चेदात्यन्तदुरंभा aifyaa सिते पक्त दशम्यां तारकोदये | कालो विजयो ज्ञेयः स्दंकाय्यायेसिद्धये लसत्‌सन्ध्यामतिक्रान्तः किञ्चिदुद्धिन्रतारकः। विजयो नाम कालोऽयं सवेकार्य्याथेसाधकः तयाचाच सायसन्ध्यासमागम एव मुख्यः कालः | Awaz पुण्या ana दशमो तिथिः | afd RHI तु सा भवेज्‌जयद्‌ा नृणाम्‌ दूत्या दि वाक्यादुद्यावधि सायङ्कालव्यापितं तिथेः gua saga चेत्यधिकं ज्ञेयम्‌ चयवश्रा दिनदयेऽपि भशायद्कालासम्भवे

तु विजयनामक एकादग्रमुहत्ता ग्राह्यः | 16

Cre गद्‌। धरपद्तौ

श्राधिनस्य सिते ag दश्रम्यां सवेराशिष |

सायङ्ाले Rar याचा दिवा ar fanaa Tah: श्रवेकाद्‌गोयुक्ता STAY शस्ता

एकाद्‌शभोखतायां दश्म्यामुत्‌ खवादिकम्‌ |

गरएक्तायामाश्धिने मासि कुर्‌ तं भरतषभ

दषस्य दशमो wai yafagt परित्यजेत्‌ |

श्रवणेनापि संयक्ता मित्युक्तेः श्रादिना उपवासादि

परेद्युः सायङ्काले दश्म्यभावे तु नवमोयुतापि ae |

सायद्धाल्ते यदा स्यात्‌ दशमो चापरेऽदनि)

नवमोौसंयुता कार्यां सवेदा जयकाङ्खिभिः

नवमो गेषसंयक्रद्‌ शम्यां विजयोत्छवम्‌ |

कुरु राम तल्भि्युक्तं वशिष्ठेन मदात्मना द्र्यक्रः | एवं च,-

श्राश्िने श्रक्तपत्तस्य दशम्यां पूजयत्तया |

एकादश्यां कुर्वीति प्रूजनच्चापराजितम्‌

दूति शवर दस्यो क्तिरेतत्‌परेव | कालस्य नियमात्‌ अरवणा-

योगे फलाधिक्यं तदनुसारात्‌ व्यवस्या |

तिथिनच्चचयोर्योगे दयोरेवानुपालनम्‌ |

योगाभावे तिधिर््ाद्या देव्याः परूजनकमंणि दूति देवलोक्तेः |

दशमो यः समुद्य Tala कुरुते FU |

तस्य संवत्सर राज्ये कापि विजयो भवेत्‌

कालसारः | ररर

द्यक्तौ केवलद गम्या एव GHATS RAVI Tt यात्रा च्रावश्यक्यो यात्रायां तु वाल्मौकिः,- दुरगोत्सिवानन्तर वेष्णवक्तँ तियौ द्‌गश्म्यामपराजितायां | रामो जिगोषुद्‌ ्रदिच्‌ वेधं Bat जगामारिपुरं wate: tt याचतां समाप्य पुनवेलिः | “विनिषन्तस्तु वलिं दद्यात्‌" दति वाक्यात्‌ शमौ मभ्यचेयेत्‌ रेयाचानिर्विप्रसिद्धये | वारशलादि दिला तु fea प्रस्यानमाचरेत्‌ याज्राकरणागशरक्रौ तु ज्योतिःगशास्ते,- कायेवश्रात्‌ खयमगमे wad: केचिदाचार्याः इतायुधाद्यमिष्टं वेजयिकं निमे ga: तया खञ्नादिद गैनफलं स्थिरलग्रनिषेधा दिकं तचेव द्रष्टव्यम्‌ | aa विग्रेषविधिर स्मत्‌ पितामदरुष्णदटहत्‌पण्डितिमदहापाचकरते नौ ति- रन्नाकरे द्रष्टः भ्रौ पुरूषो त्मचेचे जगन्ायप्रासादे उद यवयापि- दश्रम्याम्‌, “ea द्योदयिकौ” दति mad ase दुर्गादेया श्रपि कार्या विधिपूजासु श्रन्ते प्रषण्स्योक्तः। तयाच, श्राथिनङृष्णाष्टमोमारभ्य मन्ततरसंडितायाम्‌,- spat बोधयेदट्वों नवम्यां प्रभावतः ततः प्रभातसमये मुखप्रच्तालनं जलम्‌ | जातौलवङ्गतोयेन चालयन्‌ मुखमन्ततः |

१२४ गदाधरषड्धतो

दन्तकाष्ठ दगम्यां तु प्रदद्यात्‌ कायसिद्धये

एकाद ग्यामलक्रञ्च दाद श्यां नखशोधनम्‌

चयो दश्यां ततो दद्यात्‌ गाचोदत्तेनकं WAR

adeut तु देव्यास्तु केप्रासंयमनं waa |

्रमावास्यायाङ्नन्धं तु गाचोद्धत्तनकं तया I

प्रतिपत्सु खिन्टूर Kaa चापरेऽदनि )

दतौयायां WH वस्त्रे Wai wy प्रभम्‌

पञ्चम्यां asa: सानं षष्ठयां मदोपदारकैः

सप्तम्यां पचिकाप्रूजा नानोपकरणेः श्रमैः

र्टम्यां पूजयदकीं नानोपकरणेः Wa:

OITA: सर्मांसान्ने aurfananfaa:

नवम्यां वलिदानञ्च विजयार्यो नृपो" नरम्‌

zuat प्रेषणं कुर्यात्‌ क्रौड़ाकोतुकमङ्गलेः

मद्यं मादकं जातोफलादि | षोडग्रदिनात्मकनतपक्ते मलमास- पाति जिन्दुरस्वेवाटत्तिरित्या चार्या, | एतस्मिन्‌ दिने पुरुषोत्तम- चेवादो विष्णप्रतिमाया रपि याचा क्रियते तया विष्णधर्मोत्तरेः-

रथमारोप्य देवेभ्रं सर्व्वाभरणश्रोभितम्‌ |

सासि्णघनुवाएपाणि नकनंञ्चरान्तकम्‌

BANAT जगन्नातुमा विश्वेतं रघृदहम्‌ |

(१) पौ त्तमः इति पाठान्तरम्‌ |

कालसार्‌ः १२५

राजोपचारः WIA शमोट्ररतलं नयेत्‌ सोताकान्तं TIA भक्तानामभवङ्रम्‌ | Rafael ग्रमो ट्तमचयेदिजयाप्तये तच मन्तः, श्रमो waad पापं प्रमो लोहितकण्टका। धरित्यजुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनौ करि्यमाण या याचा यथाकालं सुखं मया | aa fafannal a भव ्रौरामपूजिति॥ Real साचतामाद्रां शमोमूलगतां खदम्‌ | तदादि चनिर्घोषिस्ततो देवं we नयेत्‌ aged Wa भाव्यं कैशिद्वायच्च वानरैः | कैचिद्याघ्रसुखेभव्यं amaze ava निजिता caer दैत्या बैरिणणे जगतीतले | Tass Tats रामराज्यमिति aaa श्रानोय waded निजसिंहासने सुखम्‌ | ततो नौराज्य देवेशं प्रणसेद्ण्डवह्ुवि मदाप्रसादवस्त्रादि धारयेदरेष्णपैः सद सोता दृष्टेति दनुमदाक्यं श्रलाकरोत्‌ प्रभुः विजयं दानवैः ag वाससोऽखरात्‌ श्रमोतलात्‌ | तथा विष्णुप्रतिमानामपि विजयोत्छवः orate: | HAUT | mqguy,— afaaa सिते ad दशम्यां नियतः प्रएविः , प्रातःखानादिकं कमं ला पश्चादनन्तरम्‌ |

१२६ गद्ाधरषड्धतौ

एवं न्यासविधिं इला ततः पूजां समाचरेत्‌ | aut,— शिवं ट्‌ श्रयं aa लच््मोदेवौं पूजयत्‌ | afe: कुश्राण्डकुसुमेदं med दशभिः कमात्‌ पूजयत्‌ विधिवन्तावत्‌ यावत्कष्णचतु धिका | तस्यामधें श्रश्राद्भाय car विधवा भवेत्‌ श्रथेकाद्‌पौ विचारः एकादश्यपवासो नित्यः काम्यश्च, नित्यलापाद कानामष्टानामपि विद्यमानलात्‌ | तथा पूव्वक्रकारिकाक्रमेण नित्यश्ब्दादयः। उपोग्येकाद शो नित्यं पच्योरभयोरपि | दति WET | एकादश सदोपोष्या पच्योः एएक्तकछष्णयोः | दति सनत्‌कुमारसंदितायाम्‌। उपोग्येकाद भौ राजन्‌ यावदायुःप्रहत्तिभिः दति श्राग्रये ) ag पच्च कन्तव्यमेकाट श्यामुपोषणम्‌ | दूति नारदौय | परमापद मापन्नो दषं वा ससुपस्िते | सूतके शतके चेव त्याज्यं दादगौत्रतम्‌ द्रति विष्एधर्मोत्तरे | एकादश्यां asta परचयोरुभयोरपि | दूति कात्यायनोये | करोति fe at मूढ एकादश्चामुपीषणम्‌ |

कालसारः। ARs

नरो नरकं याति रौरवं तमसाटतम्‌ निष्कतिमेद्यपस्योक्ता waned मनोषिभिः | एकादश्यन्नकामस्य निष्कृतिः alfa नोदिता i मद्यपानान्मनिभ्रेष्ठ पातेव नरकं AAT | एकादश्यन्नकामस्तु पिभिः सदह मनज्नति i दति षनत्कुमारः | एकभक्तेन नक्तन तयेवायादितेन उपवासेन टर्‌नेन faatefuat भवेत्‌ दूति माकंण्डेयः | दूति नित्यादि ग्ब्दाः। कारिकान्तरोक्रानतिक्रमोऽपि | तथा कण्वः,- एकाद शोमुपवसेन्न कदाचिदतिक्रमेत्‌ | एवमन्यान्यपि तथा कोर्म्कान्दयोः,-

भोक्तव्यं diag ae दरिवासर | नारदौये,- यानि कानि पापानि ब्रद्मदत्यादिकानि च। श्रन्नमाथित्य तिष्ठन्ति dia हरिवासर तानि पापान्युपाश्नाति aad इरिवासरे श्रभचिवर्णा यसन्तो च्तए चिपन्ति यमकिङ्कराः | मुखे तेषां महादेवि भुञ्जते ये इरेदिने॥ नारदौय,- व्याजेनापि छता राजन्‌ दशेयति पातकम्‌ |

फलयो गात्‌ काम्यश्च | तथा कौर्म यदौ च्छेदिष्णमायन्यं fea सन्ततिमात्मनः |

१२८ गदाधरपद्तौ

एकादश्यां wala पक्योरुभयोरयपि नारदोऽपि,- खगं मोत्तप्रदा qar पु्रपौचप्रदायिनौ | BAC दूवासमापने दोष उक्तो विष्णरदसये,- समादाय विधानेन दाद गोत्रतमुत्तमम्‌ AQ भङ्गं नरः कला रौरवं नरकं ब्रजेत्‌ उपवासा ङ्गतियिनिणेयस्य वेधाधौ नलात्‌ ग्रमो वेधो निरूप्यते श्ररुणोद्‌ यवेधः, कलाकाष्ठा दिबेधः, पञ्चद गदण्डवेधञ्ेति निविधः | तचाद्यवेधो वेष्णवानामेवेति acai दितौय दतरेषां दती स्तु नो पवाषविषयः तया निगमे,- सवप्रकारवेधोऽयमु पवासखय दूषकः | साद्धंसप्तसुह्न्तस्त वेधोऽयं वाधते aaa इति नाचोपदासे पञ्चद शद ण्डवेधः नापि चिसुहन्तेवेधः नारदौये,-लववेधेऽपि fare द्‌शम्येकादशः त्यजेत्‌ सुराया fagar we गङ्गाम्म इव निमेलम्‌ सएत्यन्तरेऽपि,- कलारद्धंनापि विद्धा wenaatent वदि | तचाणेकाद्गौँं त्यक्ता arent समुपोषयेत्‌ तया,- अरतिवेधा मददवेधा ये वधास्तिथिषु war: | सर्व॑ःप्यवेधा विज्ञेया वेधः खधौदये मतः दति तथा ओओतस्मार्तानां खवौदयवेधः, यचोद्ये कलाकाष्टति वच्छमाणोक्तेय |

(९) दश्रम्येकादश्रौं विना।

कालसारः | Cre

्रयायिकारिणः। भेविष्ये,- faquazad नाम ane साववणिकिम्‌ | सर्वाञ्रमाणां सामान्यं BATA चोत्तमम्‌ नारदौय,- अह्टाब्दाद्‌ धिकोमर्चयो यपू णो तिवत्सरः | यो YR मानवः सोऽभ्ददेकाद्श्यां WIT तच Baa, कौमं,- एकादश्यां भुच्रौत पच्योरुभयोरपि | वानप्रस्योयतिषैव Walaa सदा रदौ भवियोत्तरे,- एकादश्यां मुञ्नोत पच्योरुभयोरपि | ब्रह्मचारो नारो Waray सदा WHY a4 नारो विधवा, विधवा या भवेन्नारौ सुजजौतेकादगौ दिने) तस्यास्तु सुकृतं नश्येत्‌ woe दिने दिने दति सौरधमोाक्तिः, नालति aint एयग्धमे ad नाण्यपोषणम्‌ | दति agar पतिमल्यास्तन्निषेधात्‌ | तदनुटत्तौ,-- Was wa wy नरकश्चैव गच्छति। ata fang यत्त॒ एकाद भोप्रस्तावे, तत्‌ भवनुज्ञापरम्‌ ‘aaa तथा दति स्कान्दे उक्तम्‌ यत्त रविवारेकादश्वा सधवस््रोभिः fafesaugat aq क्रियते, aa,— भानुवारसमोपेता तथा सङ्का न्तिसंय॒ता |

एकादपग सदोपोष्या पुचपौचविवङ्िनौ 17

१२० गदाघधरपड्तौ

दूति नारदोक्रः, “सवेसम्बत्करौ तया इति सनतृकुमारौयो- क्तश्च काम्यतया दोषावह, वारत्रतेषु स्तौणमधिकाराचारात्‌, उपवासनिषेधे च्रनो दना दिभदणेन निषधपरिपालनाच | ब्र्मवेवरत्त-- श्रयनोवोधनो मध्ये या aware भवेत्‌ | सेवोपोय्या गदस्येन नान्या BUT कदाचन | दूत्यादौ, “एकादणेषु aug” दरति वच्छमाएवाक्येष्वपि उपवासाङ्गनियमनिषेधो नोपवासनिषेधः यानि कानि चः cafe away भोजनस्य निषेधात्‌ इति बहवः प्राचौ- नास्तु गटरखेतरोषां पचदयऽपि ad ग्टदस्थानां शुक्ताखेव शय- नोवोधनौ मध्येऽपि “एकादणशोष रष्णासु” दूति निषेधात्‌ पुच्- वट्‌ग्टददिणं किंचित्‌ भक्तणप्रवकं व्रतमिति तथा वायतौये,- उपदाषनिषेधे तु किच्चिद्धच्छं प्रकल्पयेत्‌ दूष्यत्युपवासेन उपवासफलं लभेत्‌ भद्यकल्यनापि तचेव,- am इविष्यान्नमनोद्नं वा, फलं तिलाः कतौरमथाग्ब वान्यम्‌ | यत्‌पञ्च गये यदि वापि वायुः प्रणस्तमचो ्रमुद्धर स्यात्‌ वायुभक्षरस्याप्युपवासानुकरल्यलम्‌^\ तथा रामायरे- जला मारूतादारो निराद्यारस्तयेव | दूति yaya |

(९) भोजनस्य सवथा निषेधात्‌ | (2) नो पवासत्वम्‌ |

कालसारः | २३२९

भविखे,- टन्तखाद्यं भवेत्‌ यद्धि तदोदनमिति waa | wg Ta” तथा aa ओदनं चिः प्रकौत्तितम्‌ पेयञ्चनोदनं प्रोक्तं + + + + + aris स्कान्दे, श्रग्रक्तावुपवासस्य ag किञ्चित्‌ प्रकल्पयेत्‌ | विष्णरदख्ये,- श्रसामथ्यं wore ad quia | कारयेद्धमेपनो वा ya वा विनयान्वितम्‌ भगिनौ भ्नातरं वापि व्रतमस्य ara | भार्य्या भक्त बतं दुर्य्यात्‌ भार्य्यायाश्च पतिस्तया स्कान्दे, नारो पतिसुदिश्च एकाद श्वासुपोषिता | UY क्रतुशतं WE मुनयः पारद शिनः 1 उपवासफलं तस्याः पतिः प्राभ्नोत्यस्ग़्यम्‌ राज्यस्यचचियायं एकादण्यासुपो षितः पुरोधाः चतचियेः ete we प्राप्रोति निश्चितम्‌ | मातामहादौनुदिश्य एकाट्श्यामुपोषले || कत aque विप्राः सम समवा्रुयः | कर्त्ता STITT पुण्य प्राप्रोत्यच wz: | sagt केषा खिद यधिकारः ya लिखितः | ननु,- warenmty arg रविर्ङ्कमले तया | ager कुर्य्यात्‌ पुचवान्‌ wey दूति कात्यायनोक्तौ, agra aur विषश्क्रदिने aur’? |

(१) श्ोष्यम्‌ | (2) रविसंक्रमणे तथा|

१३२ गद्‌1धर्पद्वतौ

दूति कौर्पि, एएक्लेकादश्यामपि सङ्भान््यादिपाते उपवासो काय्यै इति चेत्‌, “तन्निभिन्तोपदासस्य" दति afar: सद्धन्त्या दि निमित्तो पवासस्य wee प्रति निषेधात्‌ | तया तदुक्तम्‌ विव्णधमौत्तरे,- सखगुभानुदिनेपेता ख्य्येसङ्का न्तिरंयता | एकाद स्दोपोष्या पुतच्रपौचरविवद्धिनौ प्रत्युत, “मङ्कान्तो रविवारोवा” इत्यादि सनत्‌कुमारौ योत्मौ फलाधिक्यमपि कथितम्‌ | कात्यायनः, उपवासो wer नित्यः श्राद्धं नेमित्तिकं भवेत्‌ | उपवासं प्रकुर्वोत wera feeafaaa इति | वारादे,- सूतकेऽपि नरः साला प्रणम्य शिरसा दरिम्‌। एकादश्यां yaa त्रतमेतनिरप्यते(९) म्टतकेऽपि yaa एकादण्यां सदा नरः | पुलख्यः,- एकादण्वां yatta नारौ दृष्टे रज्रस्यपि | श्रप्रनेचे तु काम्यकूतेऽपि(र) प्रजादिवजं णारोरनियमकरणएमिति gi लिखितम्‌ wa “पूजादिकमशौचान्ते aaa” इति areata | सूतकान्ते नरः सावा पूजयिता sareaa | दानं gat विधानेन व्रतस्य फलमश्नुते

दति aie: |

(९) लप्यते इति | (२) काम्यत्रतेऽपि |

कालसारः | १३३

माघवाचार्य्याः,- श्क्तायासेव नित्यो पवासो नैमिल्िककाम्यो- वासौ तु छृष्णायामपि काय | तच नेमित्तिकः गश्रयनोवोधिनौ मध्ये | RAG माव्छे,- एकादश्यान्तु aura aie दिधिवन्नरः | gaara: wafgyg सायुज्यच्च सष्टच्छति दत्यादि | काम्ये सर्वाङ्गोपसंहारः | faa तु केवलो पवासेनापि सिद्धिः। श्रय नित्योपवामो tara प्रातसुजिक्रियाम्‌ | वजेयन्मतिमान्‌ fan: cata हरिवासरे दूति रिष्णुर दस्यो करः mat तु कात्यायनः,- श्रत्रिमांस्तु ततः कुर्यान्नियमं सविपरषणएम्‌ | श्रयेकादश्यां दधे निणेयः | यचोदयं कलाकाष्टासुहत्तमपि Td | सेदेकाद्‌श्वपोग्या स्यान्नतु wal कथञ्चन दिनदयेऽप्यदयसम्बन्धे दादौृद्धौ सर्वेषासुत्तरेव | संपृरेकाद भौ यत्र प्रभाते पुनरेवसा | सवे रेवोत्तरा कार्य्या परतो दादश्नौ यदि दूति उभयाधिक्ये नारदोक्तेः | यत्त॒ हत्यकौमुद्याम्‌ “उभवायिक्ये विधवानासुपतरासदयं” लिखितं, तदाचार विरोधात्‌ प्रत्यक्तग्रास्रविरोधात्‌ सवेशतिकार- रनादृतलाच् सवेया नाद्धियते | दवादोचये त्‌,- Wala यत प्रभाते पुनरेव ar | alam चयोदरण्यां नास्ति चेत्तत्कथं भवेत्‌

१२४ गदाधर्पद्धतौ

उत्तरां तां यतिः जूर्ययात्‌ पूर्वासुपवसेदट्ग्टहोौ एतेन विघवाणेत्तरामुपवसेत्‌ यतिसमानधमेलात्‌ निष्का- HATS | तया माकण्डयः;- संप्र्ेकादभौ यच प्रभाते पुनरेव ar | ूर्वासुपवसेत्कामौो निष्कामस्हनत्तरां वरत्‌ श्रतएव ररदस्यानां उत्तरोपवासखषमाचारोऽपि निष्कामल्पचा- श्रयणादेव | सकामले तु पूवे।पवास एव युकः | तदे तद्क्तं विष्णएर हस्ये, निष्कामस्तु गरदो कुर्याद्‌ त्रेकादगों सद्‌ा | सकामस्तु सद्‌ा पूर्वामिति बौधायनो मुनिः यद्‌ aed कियतो qual, तदुततरमेकादगशौ gar, पर- दिने aren, तदा दश्रमोविद्धापेकादगो are | एकादशो दश्राविद्धा सकला दादश परे। guia दश्मोविद्धा षिर्द्‌ालकोऽ्रवोत्‌ दति विष्णधमत्तरोक्तेः चयोद्श्यां लभ्येत gem यदि किञ्चन | gitar तच दशभौभिभिता फला दूति गोभिलोक्तख | Hz यः कालादर्गं-एकादभौ यदा ब्रह्मन्‌ दिनचयतियि भवेत्‌ तद्‌ा Balen त्यक्ता दादश समुपोषयत्‌ दति गोभिरोत्वन्तरम्‌ are, उपोषणन्तु विद्धायां दादौ वा aa सति।

कलेसर: | १२५

दूति खकारिकायां विकन्य उक्तः, नस्मटशे श्राद्धियते। दति एकादश्यां चौणएणयामणुपवासत्रतादिकमेव | aq— कलार््नापि विद्धा स्यात्‌ द्‌ग््येकादगग यदि | AURIS व्यक्ता दादश ससुपोषयेत्‌ दूत्यस्य स्छत्यन्तर वाक्यस्य कागतिरिति चत्‌, उच्यते तस्य काम्यद्रादगोत्रतनिभित्तव्रन द्‌ एमोनिषेधपरतं नतकादभौत्रतनि- षेधपरत्वम्‌ | दादण्टामुपवासन्तु ये वे कुवन्ति मानवाः | वत्स मामेव ते यान्ति मम व्रतपरायणः दूति काम्यदराद्‌गोत्रतस्वापयक्त च्रन्यया,- एकाद दणाविद्धा परतोऽपि विद्यति | zfefuafafaga रुवोपोखया सुदा तिथिः इत्यादि वायुपुराण दिपुक्तद्‌ गमौ fag aera विधायक- वाक्यानामनवकाश्रः प्रमज्येत | किञ्च, “कलाद्धंना पि” इत्यादिवा- कव्यानां वैच्णव विषयलमिति वच्यते | बद्‌ ल्रुदय एकाद्‌ भौ तदुत्तरं elem. चयः, परदिने चयोदणो, तदा गदस्यस्य,- एकादश्नौ द्वाद राचिश्ष चयोद्शौ | व्यदस्पृक्‌ तद्‌दोराच नोपोव्यं तत्‌ सुताधिभिः॥ दति cata,” want उपवास निषेधात्‌ किञ्चित्‌ भचण- Waa AA तथा कालाद्गेरता Wher:,— wale द्राविद्धा alent चयङ्गता |

(२) इति पाद्मोक्रया उपवासनिषधात्‌ |

Vad गदाधरपद्तौ

Ziq वाप्येकभक्त वा तद्‌क्ुर्यादयाचितम्‌ इति | अ्रतएव,- UVRISU कलामात्रा दादगौ चयङ्गता | रणा सा दादशो पुण्या नक्त aa विधोयते दूत्यादि may val) नक्रविधिरसमथंस्यो पवासासम्भवे सत्य॒पमन्तव्यं दूति विन्नानेश्वराः | ननु एकाद्‌ परौ चयत्रदि हद्‌ ण्मो विद्धा fa a याद्या दति चत्‌, तद्िग्रषवचनाभावात्‌ विभेषवचनाभवे दशमोविद्धायाः सवथा च्रनादे यलात्‌ तयाच नारदः+ atta दग्रमोविद्धा wcaaremfate: | तासुपोष्य नरो AQAA Ty वषं शतोद्भवम्‌ दग्रम्यां यस्तु विद्धायामेकादश्यासुपोषितः। तस्यायुः Wad सत्यं नारदोऽ्यत्रवो दचः पम्यनुगता aa तिथिरेकाद्‌शौ भवेत्‌ | तस्यापत्यविनाग्रः स्यात्‌ परेत्य नरकं ब्रजेत्‌ दशमो ग्रेषसंदक्ता गान्धार्य्यां समुपोषिता तसाः Gand नष्टं तस्मात्‌ तां परिवजेयेत्‌ ति(२। एवं ब्राद्ये,- सोतामान्धादभायस्वयोद्‌ गमौ विद्धो पोषण्णदिवदुःखभि- ्युक्रम्‌ afaa,— नोपोषितञ्च aay नेकभक्तमयाचितम्‌ |

(९) wa नक्तविधिः। (र) विषाधरमात्तरे,-- द्वादश्याः प्रथमः पादो हरिवासर संज्ञकः | तमतिक्रम्य Faia पारगं विष्युलत्यरः | पस्तन्तान्तरे अधिकः प्राठः |

कालसारः | URS

नन्दायां gafagrat कुर्याद श्र्यमो हितः एकाद भौव्रतवि धिर समत्‌छते व्रतसारे द्रष्टः | श्रय पारणे विशेषः | स्कान्दे, पार णेऽनि संप्राप दादौ यो अतिक्रमेत्‌ चयोद्ण्यान्तु सुज्ञानः शतजन््नि नारक कलादयं चयं वापि दादौ नलतिक्रमेत्‌ | पारणे मरणे नृणां तिधिस्तात्कालिको भवेत्‌^) तया,-- खानाच्चनक्रिया कार्यां दानदहोमादिसंयुता | एतस्मात्‌ acu fay waa BARAT पिढतपेणसंयक्तं wat gel Tews मदहाहानिकरो Gat दादश लद्धिता नृणाम्‌ | पुनः स्कान्दे eet दादौ ger निगशौोयादूद्धमेव दि श्रामध्याह्ाः क्रियाः सर्वाः कन्तेयाः श्रस्भृशरासनात्‌ श्रत्यन्तासामथं देवलः, URS समनुप्राप्ते दादश्यां पारयत्‌ कथम्‌ | श्रद्धिश्त॒ पारणं कुर्य्यात्‌ gaa दोषरूत्‌

+ यदा कलापि द्वादशो नास्ि तदा चयोदश्यामपि पारणम्‌,- चयोद्श्यां तु wert पारणं प्रथिवोफलम्‌ | ्रतयनज्ञाधिक वापि नरः प्राप्रीत्यसश्यम्‌ |

दूति नारदौयोक्रः पारणं तु नेवेद्यं तुलसौ मिश्रं aaa |

(१) Wat | 18

१३२८ गदाधरपदड्तो

wal देवो पवासन्तु योऽश्नाति दादभौदिने। नेवेद्यं तुलसो मिश्रं दत्याको रि विनाश्रनम्‌ दति स्कान्दोक्तेः। aa दग्रम्यादिदिनचये नियमाः- श्रङ्गिराः,-- सायमाद्यन्तयोरक्ोः सायम्प्रातश्च मध्ये | उपवासफलप्र प्च जेद्याद्ुक्रिचतुष्टयम्‌ देवलः,- द्‌ शम्यामेकभक्रस्त॒ मांसमेयनवजितः एकाद शोमुपवसत्‌ पच्योरुभयोरपि देवतास्तस्य तुब्यन्ति काङ्खितं चेव सिध्यति | शाकं मामं मखुरांञ्च पुनभौजनमेथने queasy emai Fuss | AGIS— कांस्यं मांसं सुरां रौद्रं लोभं वितथभाषणम्‌ | व्यायामञ्च vary दिवाखप्रमयाश्ननम्‌ तिलपिष्टं waxty दादगेतानि वैष्णवः | द्वादश्यां anata eagle: प्रमुच्यते विष्णरद्येः- रत्यालोकनगन्धादि खाद्नापरिकोत्तितम्‌ | शरन्नस्य वजेयेत्‌ सवं ग्रासानाञ्चाभिकाङ्गएम्‌ | गाचाभ्यङ्गं fatto TATA TS TAA po amet वजेयेत्‌ सवे यच्चान्य्न fatraaa BUI BUG TUM | तया दशमोदादश्योः शाक- नषेधादिकं पूववत्‌ |

~~~ I ev hye

(१) भक्तचतुद्धयम्‌ |

कलससारः। VBE

AQIWS,— Beil पञ्चदण्याञ्च दादण्यां ्राद्धवासरे | वस्त्रञ्च पौ दते नैव चारेणापि योजयत्‌ हरिभक्रिविलासादिग्न्थानालोक्य aia | वैष्णवे का दो भेदा लिख्यन्तेऽनति विस्तरम्‌

ततादौ वेष्णवलक्षणम्‌, दिष्णपुराणे- चलति निजवणेधमेतो यः सममतिरःत्मसु ददि परपके हरति न्ति किञ्चिद शितमनस न्तमवेदि विष्णभक्तम्‌

स्कान्द, परमापद मापननो दषं वा ससुपस्यिते | नेकादभों त्यजेदयस्त तस्य दौचा सि वैष्णवो | समात्मा सवेजोवेषु निजाचाराद विशतः | विष्ठपिंताखिला चारः fe aa उच्यते सदौ चा विधिसन्यासं सयन्त्रं दाद्‌ शाचरम्‌ | श्रष्टाचरमयान्यं वा ये मन्त्रं ससुपासते ज्ञेयास्ते amar लोके विष्णवचनरतास्तया |

माधवाचार्यास्तु,- वेखानसाद्यागमोक्रदौचाप्रापतो दि वेष्वः |

तच नित्यवादि विचारः gaat. कलाकाष्टादिवेधोऽपि सखयादय दवार्णोदयेऽपौति विग्रेषः |

विलाससग्रहकारिका,-

(९) नित्यत्वानिव्यत्व विचारः |

१९० गदाधर्पद्तौ

एकादशो सम्पर्णं विद्धेति दिविधा भवेत्‌ विद्धा तु fafaur तच त्याज्या विद्धा yaar वेधचयन्त॒ पूबेसुक्तम्‌ | श्ररुणो दयवेधोगार्‌ड,- शरमौगेषमंयकरो यदि स्यादरष्णेदयः | नेवोपोय्यं away तच चेकाद ्ौत्रतम्‌ तत्रमाण, स्कान्दे, उद्‌ यात्‌ प्राक्‌ चतखस्तु नाडिका श्रुणोद्यः | नाडिकाः दण्डाः सा राचेस्तिंश्रत्तमभाग दति दरिभक्ति- विलामकाराः | श्रच ये संएृक्तसन्दिग्धसंयक्तसङ्ोणेनामका वेघमदहावेधातिवेध- योगाख्याञ्चलारो वेधास्तेषामुदयाप्राक्‌कालौ नचतुदेण्डात्मकारुणो- दयवेधान्तगंतवात्‌ कैमुतिकन्यायेन वेधकत्वमिति ग्रन्थगौरवभया- afafaa: | एतदनन्तरम्‌, पादय, श्ररुणोदयकाले तु वेधं दृष्टा चतुविधम्‌ | Rela ये प्रङुवेन्ति यावद्‌ाभ्रूतनारकाः संष्क्रादौनामन्ते WES ,— पुचपौचप्रटृद्यथे दादश्वासुपवासयत्‌ | तच HAVA पुण्यं चयोदण्यान्तु पारणम्‌ विलासषग्रदकारिकापि,- अरत एव परित्याज्या समये चारुणोदटये | ` द्‌ म्येकाद गौ विद्धा वैष्णवेन fanaa: यस्तु कौं, श्रदधैरा्वेध उक्रः | तदपवादो ब्रह्मीवन्नं- agua केषाञ्चित्‌ दशम्या वेध इष्यते |

कालसारः | १४२९

श्ररुणोद यवेलायां नावकाश विचारण कपालवेध दत्याह्राचार्या हरिप्रिया | तन्मम मतं यस्माच्ियामा राचिरिष्यते चियामां रजनो प्राडस्यक्ता चन्चतुषटयम्‌ | नाडोनां तद्भे सन्ध्ये दिवसाद्यन्तसंञ्लिते दति ब्रद्मवेवत्तवाक्यात्‌ चियामालं ) एकाद भौचयादौ विषः! aut पितामदःः एकाद श्ोदिने रेणे उपवासं करोति यः | तस्य qu विनश्यन्ति मघायां पिण्डतोयथा | दिनच्ये तु aad citer दादौ भवेत्‌ | द्‌ शमो प्रोषसंयक्तां gata कदाचन दति कौं, quigatem त्याज्या. aga दियं यदि | दादश्वां पारणालामे yaa परिश्टद्यताम्‌ विष्णएघमेोत्तरे,- एकादभो चदा बद्धा दादश्नौ चयङ्गता | VW सा द्वादशो ज्ञेया नक्तं az विधौयते ata,— fafuagt तथा pra सम्प्राप्ते वा दिनचये। सन्दिग्धेषु वाक्येषु? arent खमुपोषयेत्‌ श्रय उन्मिलिन्या दष्ट विधेकाद्‌श्यः | ्र्मवेवर्ते,- उन्मिलिनो वच्जृलो चिस्पृशा पदवद्ंनौ जया विजयाचेव जयन्तौ पापनागिनौो

EE: याजन A TS TT ` 2) £ eae 2

(2) परेकादश्रमौ त्याज्या | (२) ण्कादश्रौ यदा विद्धा श्रमो WAKA | (इ) सन्न

GBR

गदाधस्पद्धतौ

दादश्योऽष्टौ मदापु्छाः सवेपापदरा faa | तिथियोगेन जायन्ते चतखश्चा परास्तथा नच्चयो गा aaa पापं प्रप्रमयन्ति ताः | एकादण्ो तु सम्पण asad पुनरेव सा द्ादभौ चन aga कथितोग्धिलिनोति a | giema faaga चेवेकादौ यदा वश्जुलोति wyae कथिता पापनाश्रिनो अरुणोदय श्राद्या स्यात्‌ sem सकलं दिनम्‌ चरन्ते satan} प्रातस्तिसयुप्रा रेः प्रिया कुङ्राके Vet इद्धि प्रयाते पच्वद्धिनौ विदायेकादग्रौं aa दादभौः समुपोषयेत्‌ | पुख्यश्रवणपुव्याद्यरोदिणणेखयुतास्तु ताः उपोषिताः समफला दाद श्ोऽष्टौ VR एयक्‌

संग्रहकारिका,- एतत्‌ मेदाष्टक नन्दां त्यक्ता Hea स्यते , नन्दा, URTSWY भद्रा, दादर एतेषु केषुचित्‌ Hey

कालविगरेषेषु फलाधिक्यम्‌ तैव, Gat TVA तु सथ्याप्रा मधखदनौ |

दादौ चिस्युश्रा नाम पापकोटिच्यावहा धन्याः स्वँ AAA वेश्ाखे मधसदन waa faa येस्तु बुधवारेण संयुता

राद्ध तु. sient तु सिते पच्च wed यदि gaag |

कालसारः | (BR

aval at तु जया ख्याता तियौनासुत्तमा fate: 1 तया,- यदा तु श्क्तदादश्यां प्राजापत्यं प्रजायते। जयन्तो नाम सा प्रोक्ता स्वेपापहरा तिथिः 1 तथा, यदा तु एएक्तदादश्यां नच Baw भवेत्‌ | तदा सातु महापुण्या arent विजया war i प्राजापत्ये रोदिणो | तथा,- यदा ठत ए्क्तदादणग्यां ge भति किंचित्‌ | तदा सा तु wegen कथिता पापनाशिनौ Taal खानदानादिषु वहनि फलान्यक्तानि | Gas, पुनवे- सुनचचम्‌ | पच्चवद्धिन्याः स्यष्टलचणम्‌, पादो,- sat वा यदि वा qui aqui जायते यदा | “wat षष्टिघटिका जायते प्रतिपदिने दति aq विलाससग्रहकारिका,- श्रय खछचप्रय॒क्तानां जरतकन्तेयता यथा | जयादोनां चतद्छएणं तया am निरूप्यते भान्वकाद्‌ यमारभ्य प्रटत्तान्यधिकानि चेत्‌ समान्यूनानि वा सन्तु ततोऽमोषां व्रतौ चितौ किं वा खूच्योदयात्‌ पूरवे प्रत्तान्यधिकानि चेत्‌ | समानि वा तदेषां व्रताचरण्योग्यता ्रवणव्यतिरिक्रेषु aay खल्‌ विषु दूर्यास्तमन पयन्तं काय्यं द्वाद खपेचणएम्‌ FAN AQAA: दादण्यान्च समाप्तम्‌ |

१४४ गदाधरुपद्धतौ

गतायामपि aaa व्रतस्योचितता भवेत्‌ तत्रैव पारणएकालनिणेयः,- agi भतिथ्योरधिका fafagq पारणं ततः | भान्ते स्याचेत्तियिन्यूना तिधिमध्ये तु पारणम्‌ दादश्वननुरत्तौ ठु agt ब्रह्मा च्युतचेयोः | aaa पारणं sgt गेषयोस्तद तिक्रमे श्रौ दादौ चतुष्कस्य महतोऽमौ विनिणेवः | नृसिंहपरि चर्यादिग्न्यं दृष्टा विनिभितः ब्रह्मा, Ufeat waa: श्रवणम्‌ श्राद्धेऽपि भेदः पाद्मे, एकाद्श्यान्त्‌ प्रान्नायां मातापितरो wise दादश्यां तत्‌प्रदातव्य नोपवासदिने कचित्‌ कात्यायनः, दादौ पूवंपादौयस्तत्र चेद्ध रिवासरः | दादश्याधिक्यतः तिषेत्‌ पारणं aa नाचरेत्‌ एकादश्याधिक्यदादण्छाधिक्यभेदौ उन्मिलिनौ, safe चेति पुनलिखितौ | उभयाधिक्ये तु श्य सम्यणेकादभो यच प्रभाते पुनरेव सा। तचोपोय्या दितौया तु परतो दादश चदि सन्देहे निर्णयकनिरूपणम्‌,- विष्णर दखे,- श्रक्यन्ति सदा विष्ण मनोवाक्कायकग्मेभिः तेषां दि वचनं ara ते fe विष्णुषमा मताः दूति awaniem निर्णीता ग्टोतदौचैरपि भो द्रवेष्णवेस्तु- स्मात्तेमार्गलेव एकादशो gata दति साधारशणेकादभौ

STAAL: | Lew

ay हरिग्रयनयपाश्रेपरिवत्तेनोत्यापनकालविचारः | यथा, माद्छे,- गते विष्णः सदाषाढ़े भाद्रवे परिवत्तैते। कार्तिके प्रतिबुध्येत wars दरेदिने हरेदिने, एकादश्याम्‌ | नार सिंहे, पञ्च मासान्‌ दरौ सुरे ST तच भयं भवेत्‌ | ब्रह्महा भवद्राजा संग्रामे भयमाप्ुयात्‌ खपेन्नाराचणो देवश्चतुयं मासि agar | बद्धेयेत्खापदिनं तदा लोकः सुखो भवेत्‌ श्रत: श्राषाद्श्रकरैकादभनोमारभ्य का्निकप्क्तैकादश्वन्तमास- चतुष्टये हरि ग्यनम्‌ | खत्यन्तरे,- fafa खापो दिवोत्थानं सन्ध्यायां परिवन्तनम्‌ | भविव्योत्तरे,- farsa सदां शौ खापयेन्मधुख्दनम्‌ | तुलार भिगते तस्िन्‌ पुनरुत्या पय्रुवम्‌ श्रधिमासेऽपि पतिते ge एव विधिक्रमः | कार्तिके एएक्तपचस्य एकादश्यां यथाविधि ततः समुत्थिते विष्णौ क्रियाः सर्वाः प्रव्तयेत्‌ | aq विषमाद्‌ टृद्धमिदिरः,- माधवायेषु षट॒खेकमासि eee यदा | दिराषादः a विज्ञेयः Wa ककंटकेऽच्यतः द्यं दिराषादृसन्ञा उत्तरभा विषं दरि खापविवेकायो पयुज्यते, तया getafet:,—

(१९) संच्तयः। 19

rad गदाधरप ददतौ

मेषादिमियनान्तेु यदा दणेदयं भवेत्‌ चरब्दान्तरे aura मिथनाकं हरिः खपेत्‌ ककटादिचिके मासि यदा दश्दयं भवेत्‌ | च्रब्दान्तरे तथावश्यं HHH दरिः खपेत्‌ भोमेकादगौ गरुडपुराणे, माघमासे DAIS GAIT युता YT एकादग्नौ तया चव भोमेन समुपोषिता श्रच यस्तद्‌त्रतं कुर्यात्‌ पिद्रणा मनुणणो भवेत्‌ | waren विख्याता प्राणिनां पुण्वद्धिनो नचरेण रिनाप्येषा ब्रह्मदत्यां अपो इति तदनुटरत्तौ माव्छे,- यद्यष्टमोचतुदेश्यो दादपोपषु भारत। श्रन्येव्वपि feasg ग्क्रस्वसुपोषितुम्‌ ततः guifaat भोम fafa पापप्रणग्रिनोम्‌ | उपोय्य विधिनानेन गच्छद्धिष्णोः परम्पदम्‌ Aq SITU | सा चेकादगौोयता BE, य॒ग्मोक्तेः। उपवासा तिरिक्तव्रते तु रष्णोकादश्य॒पवासेऽपि, स्कान्दे- दादौ प्रकत्तेव्या एकादश्या य॒ता विभो सदा कार्य्या विदद्धिविष्णभकेश्च मानवः

(१) विनाशयेत्‌ |

कालसारः। ९४७

नन्वेवं सति “aaa ad ya” दत्यादयुक्रनिषधेऽप्येकस्मिन्‌ दिने ब्रतद्वयानुष्ठानं प्राप्नोतीति चेत्‌, न, देउतेक्यात्‌ दिनदयेऽपि बरताचरणे दोषाभावात्‌ तथा विष्णधमात्तरे- एकादसुपोय्येव seat ससुपोषयेत्‌ | तच विधिलोपः स्यादुभयोदंवता हरिः दति एतदुक्रिवलादेव, एवमेकादणो भुक्ता steal समुपोषयत्‌ | प्रौ पवासजं YU स्वे प्राप्रोत्यस्रयम्‌ दति) खत्यन्तरमालम्व्य माधवाचार्यरुपवासदयासामर्थं यो दादश्वा- जेबोपवासो लिखितः, सोऽप्यस्मदे शस्मातैनाद्धियति | Sigma काम्बोपवासो माकंण्डयेनोक्तः,- द्ादश्यासुपवासेन सिद्धाय श्प waz: | चक्रव्तित्मतुलं सम्प्रा प्रोत्यतुलां भियम्‌ चम्पकदाटश्ौ | भविये,- we मासि सिते va दादण्यां wok: wa: | ्द्धेरभ्यच्ये गोविन्दं नरः किमनुशोचति तियिदेषे yafagr ae | वामनजन्मर नभस्ये WHI ठ्‌ द्राद्श्यां खवणोड्नि | बलेस्तु बन्धनं कन्त WATE वामनस्श्यत्‌ जयन्तौ वामनाख्या सा रेवोपोव्या नरोत्तमैः | सवेपापप्रमनो सवेकामप्रदायिनौ

Las गदाधरपद्तो

एकादश्यां भवेद्योगो दाद श्वाः श्रवणस्य | पूर्वहि वाय awe सा तिथिमेहतौ wat अवणद्राद शो | विष्एधमात्तरे,- मासि भाद्रपदे शक्ता दाद भ्रवणान्िता। महतौ alent ज्ञेया उपवासे महाफला सङ्गमे सरितां ge सुस्तातस्तामुपो षितः | श्रयन्नादेव चाप्रोति दादणश्दाद्रोफलम्‌ ti बुधश्रवणसंयुक्ता रेव दाद्‌भौ भवेत्‌। श्रत्यन्तमहतौ यस्यां सवं कतमयाचयम्‌ ai समासाद्य चिरञ्च भोगान्‌ भुक्ता महेन््रोपमदेवतुल्यः | मानुव्यमासाद्य भवत्यरोगो धनाज्ितो WAIT मनसो शवणएचसमायुक्ता Bent यदि लभ्यते | SHAN द्वादशौ तत्र त्रयोदश्यान्तु पारणम्‌ “एकाद गोम्‌” इत्यादि “eaarefc:” इति पूरवैसुक्तम्‌ भविग्योत्तरेऽपिः- निषिद्धमपि कत्तं चयोदश्वाञ्च पारणम्‌ | दादश्याञ्च निरादरो वामनं पूजयाम्यहम्‌ इत्यादि | बह्धिपुराे,- quia नियमं कुर्य्यारेकादश्यासुपो षितः | दन्तकाष्ठ Met वागृयतो नियते द्धियः

कालसारः | १४९

श्रवशद्दाद भ्ौयोगे समुपोग्य जनाद्‌ नम्‌ | safer विधानेन aa भक्तेत्यरेऽदनि माव्य, रात्रौ श्रवणेनैव यदा चेककलां WaT | सा तिथिः wager स्यात्तत्तच्चाचयं भवेत्‌ तथा,- दानं दला दिजातिभ्यो वियोगे पारणं aa: | वियोगे अ्वणदाद्‌ शौव्यपगमे, इदं गशक्तविषयम्‌ | aa दरिभक्तिविलासकारिका वेष्णवानाम्‌,- दादश्वां तु भवेद्योगः श्रवणस्य दिवैव हि) श्रचोपवासः कन्तंवयो वैष्णपैः सवद्‌ापि उदयव्यापिनी gat अवण्द्रादणों षदा | श्राचार्ययाः केचिदिच्छन्ति कचिन्नेच्छन्ति चापर सुह्न्तनितयं वापि सङ्गवान्यमथापि वा | दति, विष्णधभमे,- नभस्यशुक्तदादण्यां नचच् श्रवणं यदि | तस्यां Mag यत्लानं तदनन्तफलं लभेत्‌ देवपूनादिषदसगुणएित मित्युक्तम्‌ | इयं अवणदादगौ फाल्गन- चे चान्यतरछष्णपच्चऽपि भवति तथा नारदौय,- Gat वा यदि वा कृष्णा दादगश्नौ अवणान्िता | तयोरेवोपवासथ चयोदण्यां तु पारणम्‌ श्रय faye | माव्ये,- Want ay स्पणेदेकादभों यदि | एव वेष्णवो योगो faugaafaa: afaaita विधिवन्नरः प्रजो एकल्मषः |

१५. गदएधरपद्धतो

प्राप्नोत्यनुन्तमां सिद्धि पुनरादत्तिदुलेभाम्‌ पारणे वगरक्रविषये विष्एधभीन्तर- दा द््षैमुपवासस्तु दाद श्यामेव पारणम्‌ | निषिद्धमपि कन्तयमान्नेयं पारमेश्वरो TANIA | तच ननत्तचपच्च एकः, तिथिपच्चस्वपरः, agaqg श्रवणाया area दविजानच्चविसगंः, तयाचाष्टदिनसाध्यो नच्तचपचः, तयाच दरिवंगेः- सप्रराचे व्यतोते तु भरण्यां faratea | जगाम dat मेचेषेचहा खगेसुत्तमम्‌ भविव्योत्तरे a दिजायां विसजने यो दोष उक्तः दिना- नक्तवानुरोधेन नवमदि ननिषेधायेः | Atal, ब्रद्याण्ड,- भाद्रं मासि fad पक्त ्रवणद्ादशौो यदि | शरक्रसुत्या पयेत्तच अवरे तद्धियोगतः नकचत्रपचोऽयं नाद्वियते। तियिकल्पः पञ्चदिनात्मकः aatea: | तथा विष्णधमौत्तरे,- दादश्यां शिरःसखातो नपतिः प्रयतस्ततः | मन्तेणोत्थापनं स्रय्याच्छक्रकेतोः समा दितः तयाच,- aga दिवसे प्राप्रे waa विसजंयेत्‌ | भविययोत्तरे,-एवं यः कुरुते यातां प्रकरकेतोयुधिषठिर पजन्यः कामवर्घौ Ifa SH संग्रयः

कलसार्‌ः।

हरिव श्रक्रकेशवसवाद्‌,-

नरास्वाञ्चेव asa ध्वजाकारासु यष्टिषु |

महेन्द्रं वाण्युपेनद्रञ्च yaa महौतले

ये वादयोः fat ca मेन्द्रो पेन्द्रसुज्िते |

मानवाः प्रणमिव्यन्ति तेषां नास्यनयागमः भोमदादटगो |

fa च्छु घमीत्त >

BANG wT माघे मासि प्रजापते | एकादश्यां fad ve सोपवासो जितेन्द्रियः दाद्ण्यां षटतिलाचार Fal पापात्‌ प्रमुच्यते तिलोदर्तो fawarat तिलदोमो तिलोदको तिलदाता भोक्ता षट्‌तिलो नावसोदति। wen षट्तिलौ Wal सवेपापेः प्रसुच्यते चिश्दषसदस्ताएि खगंलेके महौ यते |

sat तेलय्रदणे दोषः, पाद्म,-

SaaS माचे AWE: BAA | दरादग्धां प्राग्‌भवे देव तेन याप्रमुखो भवान्‌ पराग्‌भवे पूवेजन्मनि |

द्यं वरादद्यादश्रौ |

इृदन्नन्दिकेश्वर पुराण,

माघे त्‌ रक्तदादश्धां लग्रे ककंटसंज्ञके | श्रा विरासोद्‌ब्रद्मनासाविवरात्‌ क्रोड्रूपष्टक्‌

९५९

१५२ गदाधरुपदतौ

anata: विज्ञेयो दवो नारायणः खयम्‌ | पूजाविधिः कल्पतरौ zea: | दति वराहदादगौ श्रय चयोदश्नौ | ्रच्रापराहवेधः,- चयोद्णो प्रकत्तव्या या भवेदापराहिकौ | दति स्कान्दोक्रेः | षष्टयष्टम्य्मावास्या HUT चेव चयोदग्नौ | एताः परयताः GAIT पराः VAN संयताः पराः सप्नम्याद्यः दति निगमोक्तेः। कृष्णा परविद्धा याद्या, श्रत्र ष्णो पादानात्‌ Wal परवेविद्धा ग्राह्या | satan vara दाद शोसदिता विभो | द्ति ब्रद्मवेवन्तं, सामान्योक्रेशु | यदा तू aM पर विद्धा लभ्यते, तदा प्वेविद्धापि याद्या एकादभरौ दतोया षष्ठौ चेव wate | पूवे विद्धा तु कत्तेया यदि स्यात्‌परेऽइनि दूति afusta: | दति चयोदश्चाः साधारणनियमाः॥ कामदेवच्योद्ग्ौ | भवियये,- चेचश्क्तच्रयो दश्यां मदनं दमनात्मकम्‌ इत्यादि दमनो, दमनटचः | एवं यः Hid प्ूजामनङ्गस्य महात्मनः | भवन्ति नापदस्तस्य तस्िन्नब्दे कदाचन

कालसारेः | १५९

धवल संग्रहे,- मदनस्य चयोदण्यां मदनं चन्दनात्मकम्‌ | Bat संपूज्य aaa THA ठ्‌ ततः dufan: कामः पुचपौ चसण्टद्धिदः | संधित: प्राणिति; | श्तानन्दसंग्रहे,- कामदेवः चयोदश्यां पूजनोयो यथाविधि | रतिप्रौ तिसमायक्रोऽप्यशोकमणिण्डिषितः ततः प्रातः समुत्थाय Brat कलसवारिणए | परं सौभाग्यमाप्नोति कामांञ्चाप्नोति पुष्कलान्‌ तियिद्वैषे इयं yafaga, क्तचयोद भौ लात्‌ | रष्णाष्टमो Bena साविचौवटपेढकौ | श्रनङ्गवयोद गौ रम्भा Ba: पवेखंयुताः दूति संवन्तौक्तञ्च | वटश्रब्दन बतं, tent तिथिः श्रमावाश्या। तथा साविचौव्रतामावास्या दति कालाद | ्रपरानङ्गचयोद श्रौ, भवियये,- “मागेोर्घऽमले Te” दत्युपक्रभ्य Rasa छता देषा तेनानङ्गचयोदशौ | चापि पूवेवद्युवस्ा | दूति श्रनङ्गत्योद्शो | श्रय चत्‌द्ग्रौ | तच श्ररक्तोत्तर विद्धा ग्राद्याः Wat चतुदभो ग्राह्या परविद्धा षटात्रते। दति are | AIBA चेव WATS चतुरदभो 20

९५७ गदांधरुपद्वतौ

gafag! कन्तव्या कन्तया परस्युता दति निगमोक्तेशच | ष्णा तु परवेविद्धेव, कष्णपकेऽषटमो चैव छष्णपक्तं Yew | परव विद्धेव कर्तव्या पर विद्धा कस्यचित्‌ ofa श्रापस्तम्बोक्तेः | यत्त कान्द, WEI कत्तेव्या चयोद्श्या युता विभो मम भक्तं म॑दावादो भवेद्या सापराह्कौ द्रति गरिवचतुदं गौ विषयम्‌, मम भक्तरिति शश्वरोक्रलिङ्गात्‌ | माघवाचार्य्यास्त “चेचश्रावणचतुटश्धौो श्क्तेऽपि राचियोगिन्यौ ग्राहय | सधेश्रवणमास्स्य TAT या तु चतुदश | सा राच्िव्यापिनो ग्राह्या परा पूर्वाहगाभिनौ दूति बौधायनोक्तेरित्याङ्कः | परा, मासान्तरवत्तिनो श्टक्रचत्टरभो | दति चतुदेश्याः साघधारणनियमाः |

दसनकचतुदंभर | स्कान्दे मधुमासेऽपि संप्राप WaT चलुदेग्नौ | प्रोक्ता दमनभन्नोति सिद्धिदा महोत्सवा तया, प्रूजयिखन्ति ये aah तद्‌ ङ्गभवपल्ञवेः ते यान्ति परमं स्यानं care प्रभावतः 11 द्यं warts gafagr ग्राह्या,

कालसारः | १६५

oft

सवां चतुदगो पज्या Bar प्ूरन्दुना Be | चरपूज्या प्रूरिमायक्ता मधौ Wat चतुद गो द्ति वायवोयोक्रेः(*) | ले ङ्गे, श्रदत्वा दमनं WI ब्रह्महा पूजने भवेत्‌ | तया, Weal सदोदगो जायते निधितं सुने | दत्वा लच्ाश्चमेधम्य लभते वाञ्छितं फलम्‌ दति दमनकचतुदग्रौ | नरसिंहचतुद्णौ | RAI went मामि awa | ्रादुतो नपञ्चास्यः तस्मात्तां समसुपोषयेत्‌ च्ननङ्गन समायक्ता सोपोव्या चतुं्ो | ूर्णायुक्तान्तु at इुर्य्यान्िर सिंदस्य तुष्टये यः करोति नरो मोदात्‌ arafagi WEN | धनापत्येविंयज्येत तस्मात्तां परिवजेयेत्‌ adem ada सायङ्काले दिनदय | परेव ada वायि कन्तया मा तदेवतु॥ खुऱत्परदिने चता सायङ्ाले चतुदंभो | AM तल्न्यया पूर्वा atfasfuar तियिः॥ दूत्यादिवाक्यात्‌ परदिने सायङ्काले wean एवं gafagi गाद्या अन्येषु परेषु पर विद्धंव | दति नृसिंदचत्दंगौ

(१) माध्रवोयो क्तः |

१५६ गदाघधरपद्धलौ

श्रनन्तव्रत चतुद |

भवि्योत्तरे,- ततः शक्त चतुदेश्ा मनन्तं Ugh | तथा,-- सवेकामग्रदं नृणां स्तो णाश्वेव युधिष्ठिर Tas चतुदश्यां मासि भाद्रपदे qa | तस्यानुष्टानमाचरेए सदेपापं प्रणश्यति | तियिद्धेघे प्रबेविद्धा गाद्या प्रक्तचहरद गो लात्‌ | a3 aia विसुहन्तयाघ्येव waar” | “पूर्वाह्णो 4 देवान” दति yen gana विहितस्य yatew कमेकालव्वेऽपि “ea ्योदयिकौ याद्या” इति वाक्यात्‌ सोदय-

चिमुहनत्ते्याभेरेवाच प्राप्तलात्‌ “चिसुहरत्ताभावे समाचाराद्‌ दिसुदर््तापि ag दति माधवोये यह्िखितम्‌, तद सद्‌ शाचार- विरोधाननाद्धियते |

HUH भोज्छवेलायां समुत्तोय्ये सरित्तरे | frat ददश at aut समूहं रक्तवाससम्‌ चतुद श्या मचेयन्तं भत्वा देवं प्रथक्‌ BTA | afa | ज्िङ्गान्मध्याह्ः कमंकाल दति केचित्‌, तन्न प्रमा- uaa लिङ्गस्यो पोदलकल्वं, नाच प्रमाणन्तरमस्तौति लिङ्गस्य eta | | fafuawar श्रपि “देवत्य विदितस्य पूर्वाहस्य विध्यसम-

(९) wa सवेतिधिवल्िसुह्धत्तव्यापैव yaa |

कालसारः। १,५.७

भियादताथैवादेन वाधायोगात्‌ किन्त तस्येव गौ एकालत्वबो धकं तत्‌” इत्याहः | तथा सोदयदिमुहत्तव्यािरेव याद्या |

दूति अनन्तव्रतचठ्दट्‌गो |

BAIA | भविष्योत्तरे, भाद्रे मामि सिते ve श्रघोराख्या went aqua नरो याति शिवलोकमयन्नतः तिथिदेषे पूर्बैवत्‌ पर विद्धा याद्या दूति भ्रघोरचत्द्‌शोौ। विचाङृष्णचतुद्‌ गौ श्रलभ्ययोगेषु लेख्या | पाषाणएचतुद्गौ | देवोपुरारए,- उशिक WHIT तु या WeTwaqent | तस्यामाराधयेन्नोरौं नक्तं पाषाणएभोजनेः एेयेसौख्यसोभाग्यरूपाणि प्राप्रुयान्नरः | पाषाणकार्‌ः पिष्टकः पाषाणग्रब्देनाच उक्तः, कमंकालोऽच नक्तम्‌ नक्तमिति विधिसमभिव्यादहारात्‌ दिनद्येऽपि नक्त चतुदगोसत्वे परेदयतंतम्‌ एएक्लचतुद्‌भोलात्‌ | ट्चिकपदेन मागे- Wet मासः, श्रन्यया शरक्तपच्चनियमो स्यात्‌ | wha | ररन्त्याख्या WE | यमः, - माघे मास्यसिते wa ररन््याख्या We | तस्यासुद यवेलायां सातो नावेचते यमम्‌ उद्‌ यवला श्ररूणोदयकालः |

१५७८ गदाधरपद्वतौ

तया वाराह प्ररुणोदयवेलायामारटरन्यपि Tag | नियुक्ता विष्णना सर्वाः कस्य पापं पुनौमडे यां कांचित्सरितं प्राय BUG waeTla | यमुनायां विग्रेषेण निचतस्तपंयेत्‌ पुमान्‌ यमाय धमराजाय ग्दत्यवे चान्तकाय च। व्ैवखताय कालाय Vaasa I दप्रोदराय दण्डाय प्रताधिपतये नमः | पाशिने चिचगुप्नाय रोद्रायौदम्बराय च॥ एककस्य तिलेमिंभ्रान्‌ दाच्च स्तीन्‌ जलाच्नलौन्‌ सम्बत्छर रतं पापं तत्‌ चणदे वनश्यति | श्रर्णोद्‌ यकाले दिनद्येऽपि चतुद्श्या arat प्र्वदिनारूणोदय एव दधानम्‌, रएवतदंगो तलात्‌, माघह्ृष्णसपष्य॒क्तन्याया | तच aaa: | माघमासे रटन्त्यापः BUTE चत्दग्ौम्‌ | AGH वा सुरापं वा कं पतन्तं Garay दति रटन्तोचतुद्‌ शो | जिवराचिव्रतम्‌ | aq नित्यं काम्ये च, तयाचाकरणे प्रत्यवायः, श्कान्द,- परात्परतर नास्ति ग्िवराचिः परात्परम्‌ | पूजयति wast सद्र चिभुवनेश्वरम्‌ | जन्ट्जेन्मसदसखेषु भमते नात्र संश्रयः

HAA: | १५९.

Tafa स्कान्दे वषं ay महादेवो नरो नारौ पतिव्रता | शिवराचौ महादेवं भक्तया कामं प्रपूजयेत्‌ नित्यनिश्चलग्ब्दावपि स्कान्दे माघकृष्णचतुदेग्यां यः faa संशितव्रतः | सुसु चः प्रनयेननित्यं लभेदौ श्ठितं फलम्‌ guat यदि वा ए्य्येत्‌ चौयेत हिमवानपि | मेरुमन्दरलङ्गाख गेलो विन्ध्य एव च॥ चलन्येते कदा विदे निश्चलं दि शिवत्रतम्‌ दति | काम्यं फलश्रवणात्‌ | “Shad फलं दति va षामान्ये- नोद्‌ादतम्‌ | पुनः स्कान्दे बहनि फलान्य॒क्ा,- सर्वान्‌ Ya महाभोगानश्टतवं प्रजायते | दति | श्रचोपवासः प्ूजाजागरणं चति चयं प्रधानम्‌ | तथाच स्कान्दे, उपवासप्रभावेन तथाचेवा् जागरात्‌ | शिवरात्र तथा wait लिङ्गम्यापि प्रपूजनात्‌ श्रच्यान्‌ लभते कामान्‌ शिवमाचुज्यमाग्रुयात्‌ | तत्‌ मद्यखण्ड Va च,- स्वयं लि ङ्गमभ्यच्यं सोपवासः जागरः | अजानन्नपि निष्पापो निषादो गणतां गतः व्याघ्रभोत्या विल्वटचारूढ़ो निषादः तदधःस्यशिवलिङ्गो परि विल्वपत्रपतनात्‌ जागरादुपवासाच्च व्रतफनलमवापेति तस्याः |

१६० गदाधरपद्तौ

"एवं सति यत्‌ स्कान्दे केवलो पवासः, केवेलजागरणएम्‌, केवल- पूजनम्‌, चोक्तम्‌, तत्‌ वैश्वानर विद्यान्यायेन श्रवयत्यानुवाद्‌ करूपलेन उपपद्यते" दूति माधवाचार्याः | श्राचारादेकाद्‌ भवत्‌ केवलोपवा- सोऽपि दृश्यते, | एवेनेवो पवासेन ब्रह्मदत्यां व्यपोहति | दूति लेङ्गोक्तः उपवासागश्क्तो तु रतिः, श्रयवा शिवराविं तु प्रूजाजागरणेनैयेत्‌ | दत्ययं पक्चोऽनुकल्पवेन ग्राह्यः नरमाजाधिकारिकमेव त्तं दाद्‌ णब्दात्मकं चतद्‌ णान्दात्मकं वा काम्ये स्यात्‌ इति दशान- सहितायासुक्तम्‌,- i एवमेतत्‌ ad Haiq प्रतिखंवत्सर त्रतौ दाद्‌ णा ब्दिकमेतव्छात्‌ चतु्षिंशाल्दिकं तया सर्वानि कामानवाप्नोति प्रत्य Vea मानवः | fuaufaad नाम स्वेपापप्रणाग्रनम्‌ भ्राचाण्डालप्रष्तानां भुक्िमुक्तिप्रदायकम्‌ | स्कान्दे ततो राजौ aya शिवप्रोणनतत्वरैः | प्रहरे प्रहरे सानं पूजा देव विग्रेषतः Ta,— कुर्य्यात्‌ wea: aa वामे यामे ममाचंनम्‌ | प्रहरे प्रदरे देदि दद्यादषंमनुत्तमम्‌ दूत्यादिविधिस्तु asa द्रष्टययः। विधिः ama लवश्च कायः

कालसारः | १.९२

श्रय कालः | दशानसदितायाम्‌,- माचक्ृष्ण चतुद श्यां महादेवो महानिशि | शिवलिङ्गतयोद्ूतः कोटिष्य्येखमप्रभः ` तत्कालब्यापिनौ याद्या शिवराचित्रते तिथिः, च्रद्धेराचादघश्चोद्धं यक्ता यत्र चतुद गौ तत्तियाबेव gata शिवराचित्रतं aay | दूति बहन्यपराणि ama “महानिगश्रािता यच aa quifed व्रतम्‌” दत्युपसंदतम्‌ एवं नारदौयसंहितादावपि fama उक्तः | महा निग्रालच्षणमाद | देवलः,- महानिशा दे घरिके राते्मध्यमयामयोः दति | afeara दण्डः | दति fame: कमंकालः। प्रदोषोऽपि वायवोय.- चयो द्श्वस्तगे Ba चतद्षु नाडषु | wafagt तु चा aa शविराचिव्रतं चरेत्‌ खत्यन्तरेऽपि,- प्रदोषव्या पिनौ याद्या गिवराचिचत्दभो | राचौ जागरणं BATA समुपोषयेत्‌ तथाच प्रदोषनिग्नौो ययोरूुभयोरपि प्राधान्यम्‌ | एवं सति fated yaa: म्रदोषनिभौ योभयव्या प्तौ ata व्रतम्‌ ! तथाच स्कान्दे, Batent यदा देवि दिनयुक्तिप्रमाएतः। जागरे frat: स्वान्निशि gut चतुदंभौ

21

१६२ गदाधरपड्धतौ

दिनभुक्रिः अरसमयसमयः। परेुरोदोभयव्यातौ परद्यरेव | तयाच कामिके,- निश्रादये चतुद्‌ण्यां पूर्वा त्याज्या परा War! दिनदयेऽपि प्रदोषनिभौयोभयवयात्निरुभयोर््याघ्यभावश्च सम्भवति, यामदयस्य दद्धिच्ययोरभावात्‌ पूेयुनिंजौयव्यािः gta: प्रदोषव्याशिचेत्‌ yaa: “श्रावणो दुगेनवमो” Tanga: | श्रद्धराचात्‌पुरस्ताच्न्नयायोगो यदा भवेत्‌ | पू्विद्धेव कन्तव्या शिवरातिः गिवप्मियैः॥ दूति पुराणणन्तरोक्रख महतामपि पापानां दृष्टा वे निष्कृतिः पुरा) दृष्टा gaat पुंसां quaat शिवां तिथिम्‌ दूति स्कान्द गेवयोदं भयो गनिषेधाच | gag: प्रदोषव्याशिनांसि, famwarfacta नास्ति, परदुः प्ररोषमाचयािश्ेत्‌, परेद्युरेव जयाप्रयुक्तां ठु जातु कुर्य्यात्‌ शिवस्य uta प्रियङृच्छिवस्य | दूति वच्छमाणएपुराणान्तरोक्रः( यदा पद्युः प्रदोषयािर्नांसि, परदुः चयवशात्‌ प्रदोषव्या- भिरपि नास्ति, तदा ga: उभयवयाघ्यभावेऽपि निभौयव्यापेः सद्वावात्‌ जयायोगाच |

(९) वच्छमाणपरराश्र सक्तः |.

कालसारः | १९३

जयन्तौ श्रिवरातिश्च काथं भद्राजयान्विते | दत्यक्तश्च | ननु,- चयोदश्यां यदा wat याममेकं went | उपोय्या सा ARGU ग्भृवे चनमन्रवोत्‌ दति भेवोक्तः, भक्तया Tat WAM MAAS: प्रजागरः | afaarat चयोदश्यामन्ते स्याचेचतुद्‌ भौ दत्य | पू्ौक्रवेधकालादन्योऽपि बवेधकालोऽस्ति दति चेत्‌ मेवम्‌ | Hq चतुथयामे, Wa वा यदा जयोदश्यां चतुद्‌गोयोगो are, तदा किं वक्तव्यम्‌, BETIS चयोदग्ौयोग दति, अन्ते वेध उक्तो तु भेदाभिप्रायण | ननु तदाक्चानन्तरं “महतामपि पापाना” मित्यादिना दशेयो गनिन्दोपलमेः तादु शस्ये एतद्‌ याद्यमिति चेत्‌ शरद्धेराचयतां यस्व माघरृष्णचतुद्‌ गौम्‌ faaufaad ज्ुर्यात्सीऽश्वमेधफलं लभेत्‌ waa नवनाडौष श्तविद्धा चयोदभौ | faacifaad तच क्र्य्यान्नागरणं तया भवेद्यच चयोदश्यां श्रतयाप्ता महानिशा | गिवराचित्रतं करय्यात्‌ दूत्यादिबह्वाक्येषु श्रद्धंराचस्य प्रदोषस्य वा काललेन उक्त- त्वात्‌ Agta प्रदोषे वा चयोदश्यभावेऽपि तद्‌ याद्यले “जया-

(१) Baty |

९६४ गदाधरपडतौ

mami नत जातु gaiq” दइत्यादिबह्वाक्याना मनवका ग्रलेन बलवत्वाचेत्यलमति विस्तरेण | faut तु फलाधिक्यं, पुराण satel कलाप्येका मध्ये चेव चतुदश | अन्ते चेव fanart fai fraageq वारादियोग तु खान्दशानसंडितयोः,+- माघङ्ृष्णचत्द्‌श्यां रविवारो यदा भवेत्‌ | भौमो वाय भवेट्‌वि कन्ेवयं त्रतमुत्तमम्‌ श्वियोगस्य योगो fe तद्भवेदुत्तमोत्तमम्‌ | पारणे तु विग्रेषः। यदा पूर्ंद्यरूपवासः, तदा चलद श्ामेव पारणं" तथाच स्कान्द, उपोषणं wae wei पारणम्‌ | छनैः सुरुतलचेख लभ्यते वाथवा वा i AG Wa Waa: पञ्चवकरेस्तयापदम्‌ | सिक्ये सिक्ये फलं ae wat ag पार्वति ब्रद्याण्डोदरमध्ये तु यानि तौर्थानि सन्ति a संस्थितानि भवन्तौ तायां पारणे ते तिथौनामेव सर्वासासुपवासत्रतादिषु | तिश्यन्ते पारणं कु््यादिना शिवचतुद्‌णोम्‌ एतत्‌प्रकरण एव शिवपुराणे fama पारणं कुर्य्याद्‌ यामच्रयसमापने |

कालसारः | १९६५

Baal पारणं प्रातरन्यतिश्यपवासवत्‌

TiAl पुनः पञ्चादुक्त, “तियोनामेवसर्वासां” दत्यादि पूवेव- दुक्रम्‌ | तथाच यामचयमतिक्रम्य चतुद शौ सत्वे पारणएफलं याम- चयमध्ये | तयाच एतयो विंशेषवाक्ययोरुभयोरयपि सावकागश्रलमेव |

एतेन एतयोः सामान्यविगशेषभावं कल्पयित्वा तिथितच्वकारैये- लिखितं तत्‌ गेववाक्यानामकलनकतमेवेति परास्तमेव ¦ अशक्तस्य तु उत्छवान्तविधिना yale पारणे फलं, दोषोऽपि। श्राद्धाधिकारिण q नित्यस्य दगेश्राद्धस्याकरणे प्रत्यवायात्‌, तत्काला विरोधेन यामचयोद्धं चतुद गौ तियिलामे तत्पारणं काय्यैम्‌ | Aq Zi एव, गुणएफलकामनाया नित्याविरोधेन काय्येलात्‌ | “ee शिवराचित्रतं वेष्णवेरपि अवश्यं काय्यै" दति दरिभक्नि- विलासकाराः | तथाच पाद त्रतखण्ड,-

सौरो वा वेष्णवो वान्यो देवतान्तरप्ूजकः | पूजाफलमाप्नोति शिवरा चिवदिमुंखः ग्रोभगवदुक्रिःः- नराः परतर यान्ति नारावणएपरायणः | -न ते तच्च गमिव्यन्ति दिषन्ति महेश्वरम्‌

इत्यादि बहृवाक्यानि लिखिता दरिभक्रिविलारुकारव्यै-

वस्याप्य कारिका कता,- षएद्धोपोग्या सा aa विद्धास्याचेचतूर्दभौ | प्रदोषव्यापिनो ae तत्राणाधिक्यमागता

९६९ गदाधरपद्धसो

प्रदोषश्च चतुर्नाद्यात्मको(*ऽभिन्नजनेमेतः | प्रदोषवयापिनो साग्येऽप्युपोय्यं प्रथमं दिनम्‌ नोपोष्या वेष्एतै्विद्धा सापौति सतां मतम्‌ | यत्‌ उक्तम्‌,- शरिवराचित्रतं तं कामविद्धं विवजंयेत्‌ | AANA पराग्रेण,- माघाशरितं शतदिन fe राजन्‌ उपेति योगं यदि पञ्चदश्या | जयाप्रयुक्तां तु जात्‌ कुर्यात्‌ शिवस्य राति प्रियक्लच्िवस्य योगखोक्रोलो गाचिण,- faqet भवेद्योगो वेधो मौहत्तिकः wa: शिवरात्रौ ana नियमेन चयं qu: | उपवासो महादेव पुजा जागरणं निशि स्कान्दे,- कथित्‌ पुष्यविगरेषेण त्रतहौनोऽपि यः पुमान्‌ | जागरं कुरते तच र्द्रसमतां asiq पुनः श्िवङृष्णभेदे वज्दौषानुक्ता स्रहकारिकाण्युक्ता२) | काय्यै गुणावतारवेनेकयाद्र द्रस्य FAVA: | वैष्णवायतया HBT सदाचाराच ATAA यत्त्‌,- चतुयेस्कन्धदृष्छातु aa वाञ्छन्ति तद्त्रतम्‌ | , दति कारिकां रवा ओओौभागवतचतुयंखन्धे wand उदा- इतम्‌ |

(१) चतुर्नायधिको | (२) संग्रह कारिका छता |

कालसारः। १६७

भवव्रतधरा ये चये तान्‌ समनुद्रताः। पाषण्डिनस्तं भवन्तु सच्छास्त्रपरिपन्थिनः दरति, सख्स्याखारस्यादेव “नेकेवाज्न्ति” इत्युक्तम्‌ वयं वाज्छाम इति नोक्तम्‌ | तचाखारस्यवोजं लिख्यते wand शिवराव्यादिकं दति वचेदयथेः स्यात्‌, तदा भवन्रतकरा दत्येवोक्त स्यात्‌, तु भवव्रतधरा दति प्रकतायस्तु भवस्य Rafa ्पग्रान- वासाख्िमालासपेधारणणदि नियमान्‌ ये दधते, aig येऽनुगताः ते पाषण्डिनोभवन्तु इति | saua “सच्छास्तपरिपन्थिनः दति विशेषणम्‌ शिव- राचिकरणे सच्छास्वपरिपालनमेव, स्वेया परिपन्थिलम्‌ अन्यथा शिवराचिव्रताकरणे दोषप्रतिपादकानां देष्णवयन्धोक्तानां बह्वाक्यानामनवकागशर एव स्यात्‌, दति दिक्‌ | केवलम्‌, द्वयमननं फल तोय fae पिवेत्‌ कंचित्‌ | निर्माल्य नेव wea कूपे aq विनिषिपेत्‌ दति पादमाक्तेः, तया काय्येम्‌ sta ग्रिवराचिनिरूपणम्‌ |

AY चेचरुष्एचतुट्‌ग | शतानन्दसग्रहे,- चेचछृष्णचत्टंश्यां यः सायाच्छिवसन्निधो | गङ्गायां विगरेषेण प्रेतोऽभिजायते | Head तु BHU VAs वैर द्नौलकयनस्याति- निषिद्धलात्‌ azad ada प्राधान्यान्नलिखितम्‌ |

१६८ गदाधरपदडतौ

मद्‌नपर्वाकरणएदोषवाक्यस्य मदनच्योदश्ोकरणेनेव चारि- ताथ्यैमिति, तथाच तत्‌समाचारो गौड़ानामेव दति

, खरो चत्देगो | राजमात्तेण्ड,- धवलितकलसन्यस्तर क्रपताका Get सवने | चेचाभशितभ्चतदिने पापरुजं दूरतोऽभिधत्ते^) चेचरुष्णचतुद्‌ ai यिष्टादिभिः शक्तौरतघटे रक्रपताकायक्ता खो श्राखां ग्टहोपरि ard | दूति चतुदंभोप्रकरणम्‌

श्रय ugent | सा दिविघा, पौणेमासौ श्रमावास्या चेति ay “aa-

malfeat मासा” दत्यकतेस्तच्रादौ पौणेमासौ निर्णीयते, सा उपवासे प्वेविद्धा याद्या, “sqert afta इति युग्मके | ad तु परविद्धा aE | तया ब्रह्मवेवत्तं-

ग्रत विद्धा कन्तेव्या श्रमावास्या पूणिमा।

वजेयिला afasie साविचौत्रतसुत्तमम्‌ एवं सतिः-

एकादण्यष्टमो wat पौणेमासौ we |

्रमावास्या ठतोया ता उपोष्याः पराजिताः

(१) दूर ते धत्ते

कालसारः। Lee

दूति रदस्सत्य्नि ग्रैतपरेषेति ज्ेधम्‌ | HALT यवङ्निवन्धकारे लि खितोऽयं प्रकारः यमः,- Vater tafe सायात्तेन नायाति मत्‌पुरम्‌ | दति | स्कान्दे, - पौणेमासौष चेवासु मासक्तसदितासु च) एतास स्नानदानाभ्यां फल दशगुणं सतम्‌ वेश्राखीँ प्रहत्य यमः, गौरान्‌ वा यदि वा छृष्णन्‌ तिलान्‌ ste संयतान्‌ | Raat धर्मराजेति पिष्टदे वांश्च ayaa यावन्जन्म्क्तं पाप तत्‌चणदेव नश्यति | चरन्दायतं सन्तिष्ठत खगेलोके संशयः qaqa तु यातचराप्रकरणे लेख्यम्‌ आअषाच्छादिषु दानाकरणे दोषः | तया रामायणे.- agiat कात्तिकौ माघो faze: पुष्समवाः | च्रप्रदानवतो यान्तु यस्यार्योऽनुमते गतः | तासु दानादौ फलं महाभारते, च्राकामावेषु यत्‌ श्राद्धं वच्च दानं यधाविधि, उपवासादिक यच्च तद्‌नन्तफल सनम्‌ i श्राषादौकात्तिकौमाघोवेशराखोषु यत्‌ कतम्‌ तदनन्तफल प्रोक्तं स्ञानदानजपादिकम्‌ | श्रावणपौ णंमास्यां वलदेवपूजा | mgmt वच्यमाणएसुखराचिप्रातगेवादिपरजामुक्ता श्रावण्यां

यो fama उक्तः पच्तोऽस्मरेगे श्राद्धियते। २९

© MTHS at

auta,—arat मदिय्यः SATE: प्रच्याः wharaer fea |

पूजन केचिदिच्छन्ति आवण्धां तु गवादौनाम्‌ तथया,- आवौ gfwar यन्न मध्याङ्कव्यापिनौ यदि |

उत्थाने वलदेवम्य नन्दाविद्धां तु बजेयत्‌

खर्वा zat तथा fear नन्दायां पौणेमौयता

SEGA ऽगेरपाणेः कारयेत्‌ Gaara

यामदयं Wet पौणमास्यां दियामकम्‌ |

gasefa बलेः पूजा पष्ुवन्दापना तथा

नन्दायन्रपौणेमास्यां कत उत्थापने बलेः |

तच रोगौ भवेदिग्रो गाद नश्यन््यनेकधा

पौणमास्यां नन्दायां यच चोत्थाप्यते बलः `

गवां तत्र भवेद्रोगो द्‌ भिचञ्च तदा भवेत्‌ पादय, “श्रावणो दुगनवमो” इत्यादि |

श्र AEG ANAM स्पुटम्‌ | तच देधे सवषु Tey पूवेदिन एव नन्दायोगस्य निषिद्धलात्‌, केवलं परदिन एव wear परदिने area) Gee: कमकाले तद्याघ्यभावात्‌ | तच पूनानुष्टानं तु रौद्रलादपराह् इति केचित्‌ aa सवे देवानां जन्मकाल एव प्रूजाविधानात्‌ किन्तु wae पूजाया qaqa रोद्रलादपराहे करणेऽपि दोषः॥ उपाकमकालः | याज्नदत्कयः-चभ्यायानासुपाकमं आवष्छां Wawa वा | रस्तेमौषधभावे वा पञ्चम्यां अवणस्य वा |

कालसारः | LOR

पौषमासस्य रो दिण्यामष्टकायासयापि वा | जलान्ते seat कुर््याद्‌त्सगे विधिवददहिः। अध्यायानामिति बहवचनं wea) away az- ARIANZUAAS संस्कारः ओषधोनां agaist भाद्रपदे मासि fears इत्यधेः तदेव सवौ षधोनां प्रादुभावात्‌ रस्तयोगे वा श्रावणस्य WHIZ इस्तयोगं बेत्ययंः रत्यन्तरे,- उपाकमभं क्त्यं Race दिवाकरे | स्तेन प्रक्तपश्चम्यां aaa श्रवणा चेत्‌ यद्‌ आवण्धां अवण्टणयोगाभावनिखयः, तदा तत्‌पूवेतो easel एतदुभयाभावनिखये sau तआ्रावरपूिमाथां qaifeas: | श्रवरस्वामो,-- अ्ध्यायानामुपद्धर्यादिति श्रवणेन वेति agra तथा विभक्तेगे एभ्चतलात्‌ AWA योगेऽयो गेऽपि आव णपूिंमा- यामिति qe: कस्य इति देशोपद्भवाश्रद्धायां इस्तपञ्चम्यासिति वहवः सतिमषहाणवे ठु, सक्राम्ति्यदणं वापि पौरंमास्यां यदा भवेत्‌ | उपाङृतिस्ठ पञ्चम्यां regi वानसनेचिभिः दति पक्षान्तरम्‌ sq त॒ पौषमासभ्य रोरिफोयुक्तायां eat कस्याञ्चिन्तियौ श्रष्टकायां वा gaifeay: | मनुः. saat प्रौष्ठपद्यां वाणपाहत्य यथाविधि | यक्तण्डन्दांस्यधोयोत मासान्‌ विप्रोऽद्धंपञ्चमान्‌ aq व्यवस्थितो विकल्पः छन्दोगव्यतिरिक्रामां saci,

AOR गदाधस्पद्धतौ

कन्दोगामां भाद्रपूणिमायां “श्रय प्रोष्ठपद्यां ee वोपाकरणं, gai

aay? दति गोभिलोक्तः। कन्दो गानां गोभिलोक्तेव्वधिकारत्‌ | यत्पारस्कर खमे “श्रद्ध षषठानद्सप्तमान्‌ ar इति पक्तदय-

qa उरम्‌ ¦ तत्मरचमाध्ययनानन्तर ate इति निबन्धङ्धतः |

तच HARTA | छृदत्‌प्रचेताः,- भवेद पारूतिः पौणमा vale एव बह्ूषपरिशिष्टे,- पव॑ण्ौ थिके ge: आ्आवण्ठां ते्निरौयकाः | वहन चाः WAT हुय्य्ेदसंकरा न्तिवजिंते इति | तेत्तिरौ यकपदसृुपलक्तणम्‌ | श्ाखान्तराधिकरणन्यायन्‌ न्दो- ग्यतिरिक्राः सं wale Ba: इन्दोगास्तु अपराहे | अरध्यायानामुपाकमं कर्यात्कालेऽपराहके | ूर्वाह्नके विसगेः सादिति छन्दो गगोषरम्‌ | दूति ai fata: | तच तियिद्रेधे ararewarfcar,— उपाकमणि dan पौणमास्यां परा fafa: षण्मह्त्ेकं विद्धा स्यादिति aut निरूपितः परा तिथिः प्रतिपत्‌ |

षणमृहभनतेक विद्धा बाद शदण्डविद्धा | उपाकमेणि, उत्सर्गे, समाप्तौ

(२) सप्तमासान्‌ वा

कालसारः | १.७ दह

ग्रस्ता स्यादित्यथेः | “श्रावणो दुगेनवमोःत्यक्तरेतदतिरिक्तपरतं, aa विशेषविधानात्‌ केचित्त दिनद्ये aura अवणायोगा- दिगरेषः। आअवणायोगाभावे चये पूर्वा, wet aa ae दिनभदये कमेकालव्याघ्यभावे पर करणमिति किञ्च मासरद्धौ प्रजापतिः+- उपाकमं CITY कव्यं दु गोत्वं तथा | Sut भियतं कूर्यात्‌ परै तन्निष्फलं भवेत्‌ वे्ाखादिषदद्धौ तु- माघवादिचिके मासि श्रधिमासो यदा भवेत्‌। ककंटे त्‌ हरेः खापः पौणंमास्यामुपारतिः 1 श्रावण्धादिरद्धौ त. maafefaa मासि श्रधिमासो भवेद्यदि | सिंहेऽके हरेः खापः Braet स्यादुपाकृतिः एवञ्च छन्दोगव्यतिरिक्रानाम्‌ | ङन्दोगागां A मलमास एव | तथाच गश्रतानन्दसंगरडे,- उपाकमं तयोत्सगप्रसवादोऽष्टकादयः | मलोच्छचेऽपि कन्तवयाः गरेषमन्यदिवजयेत्‌ दति पवंप्योद यिके ga: awl तेत्तिरोयकाः | बह्चाः अवण तु was सामवेदिनः दति, नच्चपक्ते,- श्रवणं gut ग्राद्यसुपाकरणकर्मणि | दति माधवाचायवौक्रचिसुहन्तनेधग वस्था |

१७४ गदाधरपड्तौ

व्यासः,-- RATA तु AHA उत्तराषाद्संय॒तम्‌ | मवत्छरषृतं पापं तत्‌चणादेव anfa 1 धजिष्ठासडितं कुर्य्यात्‌ Haw कमं यद्वन्‌ | तत्कमं सफलं कुर्याद्‌ णकर्‌णसंयतम्‌ इति | “एतद्पाकम गुरोः साग्रिकत एव, eae ्रादसथ्यघ्ाध्य- त्वात्‌" दृति केचित्‌ aw एतदेव व्रतादेभेन विस्गेखिति व्रतादेशशन्दोकर्वंदारम्भे विखगगशन्दोक्रः समावन्तेमे उपाकमदहोम- स्यातिदे श्नात्‌ | तस्य लौकिकाभ्चिमाध्यत्वेन अधिकारसम्बाद्‌ कलस्य सिद्धवात्‌ लो किकाग्निसाष्यल्ात्‌ | "“यस्तु॒श्रमध्ययनभयात्‌ पौषमासे vai करोति, कालातिक्रमप्रायञित्तं vearefafasar आवण्धामुत्सगपूवेक- मुपाकरोति” दति शतानन्दसंगरहे। साधौयामयमेव पचः सर्वेः समा चय्येते | दत्यपाकर्मोत्छगंयोः काशः | श्रस्यां पौणमास्यां रकिकाबन्धनम्‌ | भविष्ये,-घनातेऽन्बरे पाथं Wee धरणौतले | wa Alawar पौणमास्यां दिनोदय खानं gaia मतिमान्‌ अ्रतिरटति विधानतः | ततो देगान्‌ पिह सेव तपेत्‌ परमाम्भसा उपाकमदिमे THT णाञ्चेव तपसम्‌ | gata argu: ae देवाजुदिश्च भक्तितः UU Hated ज्ञान दान प्रशस्यते |

कानलसारः | १७५.

ततो ऽपराह्ममय रक्तापटरोखिकां\ ware |

~ aA tee कारयेश्चाचतः ग्रस्तः भिद्धायंडमग्द्विताम्‌ |

= etn A Ss > ^

वस्त विचिः कापासः saat मलेवजिसाम्‌ विचिचतन्तग्रयितां स्था पयेद्धाजनो परि कार्य्या रदस्य रचा गोमयाराधितसुदृत्तमण्डलेः | दुर्वाव्रणेकसरितेभित्तौ दुरितोपश्रमनाय॥ उपलिप्रे wea sae न्यसेत्‌ we पौ ठम्‌ तचो पविग्द्राजा सामात्यः सपुरोदितः।

~ ~ ~ ~ aneaar मसुदेग्या जनेन afeat मङ्गलग्ब्दः salmaaa: | देवदिजातीस्ठ॒ aa रक्ताभिर च॑येत्‌ प्रयमम्‌ | तदनु पुरोधा नृपतेः Tat वन्धौत मन्त्रेण येन बद्धो बवलोराजा START महासुरः तेन ल्रामपि ayifa रच्ामाचर मारल॥

ARCA > > ब्राह्मणः चचियेवेश्यः शद्रे खान्य aaa: | कन्तेव्या रिका वाचो दिजान्‌ सपर्य शक्तितः श्रनन विधिना यस्तु रचिकावन्धमाचरेत्‌। सवेदोषरडितः सुखो संवत्छर वसेत्‌ |

य: श्रावणं aafa Wasa नरेन्द्र

रचाविधानमिदमाच्रते मनुष्यः,

शरास्ते सुखन परमेण वषंमेक

gafsarfeafea: मसुदत्ननस्य ii

(२) रच्तापदढालिकां।

१.५६ गदाधरपद्तो

च्रतरापराह्ः Haare: | तियिददैधे परदिने, मामान्यविधौ(\ तत्मरकरणात्‌ | एतदिधिसु श्रस्मत्यितामहङते नोतिरनाकरे द्रष्टव्यः दति दन्द्रपोणंमासो | प्रतानन्दसग्रहे,- went महेग््रञ्च पूजयेत्‌ afaaraa: | गोतवादि चमातङ्गभ्वतये श्रपतिनिंभि पञ्चदश्यां भाद्र पौणमास्यां, तत्मकरणात्‌ इति कोमुदौपौणेमामो | लेद्ग,-- श्रा श्न पौणेमास्यान्त्‌ कुर्य्याज्जागरणं निभि कमुदौ सा समाख्याता कार्य्या लोकविश्चतये॥ agai परजयेचच्छौं इश्रमेरावते भ्ितम्‌ | qaafafa स्र्रमततेर्जागर एञ्चरेत्‌ | fama वरदा war: को जागर््तोति भाषिणो | तसे वर प्रदास्यामि aa: क्रौडां करोति यः॥ नारिकेलेञ्चिपिटकेः fags देवान्‌ समर्चयेत्‌ | qq प्रोण्येत्तेन खयं तदग्रनो भवेत्‌ नारिकेलरसं Dar श्रचैर्जागरणं fafa | aa द्धि प्रयच्छामि at जागन्निं aelae विष्णः, को जागन्ि वचोऽभिधाय पुरषं walwaq gana | nat agent निभि खयमिषे लोकस्ततो जाग्टयात्‌ दषे sifaa मासि।

(९) सामान्यविधेः खतद्धिधिसु

कालसारः | १७७

भविग्योत्तरे पजा विधिमुक्ता,- एवं war विधानेन य॒तक्रोड़ां समाचरेत्‌ | श्रचेश्च चतुर ङ्च सुष्टिस्यो च्या दिभिस्तया | Asay यथान्यायं युधिष्ठिर परस्परम्‌ | ब्राह्मः चचिचेवेशयेः शद्रे चवान्यवणंकेः | तथा, ताम्बलेना रिकेलेख वस्तेचेव aufea: | परस्परश्च दातव्यं परूज्यदेवं समच्यत्‌ | एवं यः कुरूते wert तस्य देवो प्रिया भवेत्‌ | ददात्यभिमतान्‌ कामान्‌ एेदिकामुञ्भिकान्‌ सद्‌ा | aq “fafa” दति “fame” इति चाभिधानात्‌ cat पूजादिकं काय्यैम्‌ aa fafued यदिने aetufamtataa- व्याति; afea काय्येम्‌, निग्रानिभोयोभयव्याप्ेः | यदा पूरव॑दयुनिशोयव्या्तिः, परेदयुरस्तमयादुपरि यातिः चेत्‌ तदा परेद्युः, प्रातरारभ्य रारिमम्बन्धात्‌ प्रघानपरूजाकालानुरोधाच। यदा qaaufamvanta:, ate निग्रायोगः तदा सुतरां gag: | | श्ररःसु तिययः पुष्धाः क्मानुष्टानतो feat | नक्रादित्रतयोगेषु रातियोगो विगिख्यते॥ द्रति TATE: | श्रष्याः कुमारपौ णेमामोति aA, तच कुमारोत्पन्तेः | तथाच शिवपुराणे, श्रश्वयक्‌पौणमास्यान्त विभेद दिवि सत्वरः | TATA,

x १,७ = गदएघस्पड at

्रयापि gaa लोके कुमारोत्सपूिमा। इति कुमारपौणमौ।

पुख्यवन्दापना |

ब्राद्य,- ददं जगत्‌ पुरा Say व्यक्तमामोत्ततो दरिः | पुरन्दरश्च सोमश्च तथा wat ₹ररस्पतिः॥ aga पुव्ययोगन पौणमास्यां तपोबलात्‌ | अरलङूतं पुनश्चनरः मौ भाग्यो सादलच्सौ भिः तस्मान्नरेः पुष्ययोगे तच सोमाग्यदद्धये | तया, wafarty aaa नवेवस्तश्च श्रोभितान्‌ | ततः पुष्टिकर wy Nima एतपायसम्‌ | पुष्ययोगे AA राज्ञा स्नान स्वेदा | पुय्ययोगन तिद चनात्‌ तिथिमनादृत्य नचचरे प्रजावन्दा- पनादिकं वहवः कुवन्ति ¦ राजानः सवे केचित्त Esta तया gata, तच HAT: प्रमाणम्‌ aa तिथिपष्वत्‌ नचचपकेऽपि ) नकरदेघे,- उद्ये चिसुह्ध नस्यं aaa व्रतदानयोः। दिनद्रये aula तु ya स्यादरवत्तरम्‌ 1 दति माघवौयकारिकया ्वस्या॥ ABA णेमामो | लङ्ग, awa: मिते ga माघे मास्याद्रभे fafa | द्रादग्धां पञ्चदश्यां वा waafeuetaa: i इति,

कालकाः | १०९

दोलयाचा। ब्राद्ये,- नरो दोलागतं ger गोविन्दं चिदशाचितम्‌। फाल्गुन्यां संयतो war गोविन्दस्य पुर व्रजेत्‌ प्रतानन्दसयष्ट,- फालगने पौणेमास्यान्तु ATE: फल्गमहो कवः | गो विन्दो दोलयाक्रौडन्तचायैन्नि गते faut RA उन्तराफालगनौ नचञे | तत्र कालः स्फुटो ब्रह्माण्ड, श्रौ पुरुषो त्तमवणन,- अप्रभाते fanaa saan दिनेश्ररे। ततः प्रभोः WATS दोललो परमसम्मता दति दोलोत्छवः | श्रय श्रमावास्या विचाय्थेते। तद्या, ब्राद्य,- Wal वमेताग्टच तु यदा wefearad | एकां पञ्चदगौ राचिममावास्या ततः War | Ba ्रमाण्न्दः महाय देवोपुराण तु, Ral नाम catia: Gama प्रतिहिता। GH AAT वमत्यस्याममावास्या ततः इता॥ एति, षा प्रतिपद्यता ग्राद्या, प्रतिपद्यष्यमावास्या fazed महाफलम्‌ दति yeaa: | षश्चष्टम्यप्यमाव।स्या उभे पच VAST |

१८० neue Eat

स्नातानां गति यास्ये acy नागमे पुमः॥ दति वाराहोक्रेरच स्रानमावश्कम्‌ | अ्रतएव,- दशं सान gala मातापिचोम्त॒ जौोवतोः। कुवेस्तच निरा चष्ट faesfafa जौ वितः दृति कल्पतरौ लिखिलो जौोवत्पिदकस्य स्लाननिषेधो राग- ्ाप्तविषयः | वेधे तु तस्याप्निषेधात्‌ भोगाय क्रियते यत्तु सानं यादृच्छिकं AT: afafug दणम्यादौ नित्यं नेमित्तिकं तु

Tam: |

५ॐ

zit ala Hala मातापिचोसु जोौवतोः। नवम्याञ्च aaa निमित्तान्तरसम्भवः॥ द्रति स्फुटसुक्तवाच् प्रत्युत फलमाद पेठोनमिः,- Gay WHATS व्यतौ पाते वे्टतौ | Raia Alaa पुनात्यासप्तमं कुलम्‌ | दूति साघारणएनियमः साविचौत्रतम्‌ | प्र तानन्दसग्रह,- उ्ेष्ठङष्एत्योद्‌ ण्यां चिरात व्रतमाचरेत्‌ | सा विच qaaeal उत्सङ्गसखम्टतप्रभुम्‌ चिरात्तौपोषणं तच स्तौएं नान्यत्र ग्रस्ते कायें पत्युरनुज्ञाते वेधव्यं भवेत्‌ कवित्‌ तिधिदेधे साविचौत्रतं gag: काथ्यम्‌

कालेसारः ! LSe

श्तविद्धा भिनोवालो तु तत्र aa चरेत्‌ | वजेयिला तु सावितरोत्रतन्तु श्रिखिवादन दूति स्कान्दोक्ेः। “ग्तविद्धा aan’ दति ब्रद्धवेवक्तीक्तख | यदा तु Wag: चतुद्रो श्रष्टाद्‌णदण्डात्मिका भवति | तदा gafagrafa परित्यज्य पर विद्धेव श्राश्रयणौया | श्तोऽ्टाद्‌ नाड भिदूषयन््यृत्तरां तिथिम्‌

दति सकान्दोक्तेः। दति साविनौत्रतम्‌

अरय सप्रपिदटकामावास्या।

भाद्रामावास्या सप्तपिदकामावास्या दल्युच्यते तद्वाक्ये श्राद्ध श्राद्धप्रकरणे लेख्यम्‌ तां प्रकृत्य पुराणान्तरे विशेषः | ea सवणेवटकंः पतिमाराधयन्ति याः | ताः स्वाः सुभगा नायः पुचवत्यो वराङ्गनाः ayy भवेत्तासां Tang aug | दूति aafa@arararer | HIPAA प्रदौपामावास्या आराद्धप्रकरणे लेख्या Barta: | धवलसंगरद,- कार्तिके मासि gartet तिथौ कुङ्कुमा शके: सुखाय gets: स्यात्‌ कायराष्रसुखाय 2 |

(१) कुसुम शकः |

१८२ गद1घरुपद्धतौ

कायसुखत्यक्रः कायसुन्दरप्रतिपदित्यस्य नामान्तरं | ` भ्णक्ता- दा वित्यमावास्यायाः प्रातरित्ययः | श्रमावास्यां तुलादित्ये लच्छौनिद्रां विमुञ्चति ` सुग्वराचेरुषः काल प्रदो पोज््व लितालय दूति सपतेः awfea काज्तिके | पुनद्धेवलसंग्रह,- सु्पभेः कुसुेर्गन्धेदधिगोरो चनाफलेः | TAM वान्धववन्धूञ परच्छत्‌ कुग्रलया गिरा पूजयेच्च तया लब्यो मलच्मो मलना श्रिनोम्‌ | लच्छी पञ्चपताकाभिद्धजमेकं गहे न्यमेत्‌ एतस्या्चान्द्रमाम एव BATU | इति Gata: | मागं प्रौं दो पावल्यमावास्या | Ame दौ पद्‌ानेन पजा AAT महाफला | दौपटचाश्च AN द्‌) पचक्रमयापरम्‌ दौपयातरा HAUT WET HSI श्रिनोवालतषु च्रयवा वतम कायं मद्याफलम्‌ एतेन चतुरद्यप्यमावास्याप्रतिपदा दि चिषु दौपद्‌ानं प्रतिपादि- ` तम्‌ ag cadet भविखोत्तरे,- नरकाय प्रदातव्यो दोपः सपर्य देवताम्‌ | ततः प्रदोषसमये दोपान्‌ दद्यान्मनोरमान्‌ रहय विष्एुभििवादोनां भवनेषु मेषु FAMILY Wie सभाखु नदौष च॥ प्राकारोद्यानवापोषु प्रतोलोनिष्कटेषु |

कानलसारः। न्‌

पूदार हम्यैचासुण्डाभेरवायतनेषु aqua विविक्रासु दस्तिग्रालासु चेव हि नरकाय नरकगमनपरिदाराय दत्ययेः। श्र देवोत्थापनानन्तरामावास्यायाः यत्‌ काल्तिकश्ष्णत्वमुक् तचे चश्क्तादिमामाभिप्रायेण दति॥ वकुलामावास्या श्राद्धूप्रकरण लेष्या ! AY ओोपुरूषोतत्तमचे दादश्याचाकालाः। तच संय कारिका,- aged रथयदरगतिः शायनं चायने दइं | uaiaia: श्यपरिदतिः प्रातिः पुष्यपूना दोलाकेलिदंमनकमदोऽचय्यपुष्यटलोया ¦ याचाः स्कान्दे हरिप्रतिमया दादगरति प्रणौताः। स्कान्द स्नानं मरोगण्डिचां चोक्ता प्रतिमावचनम्‌,- मम खापं ममोत्थानं मत्‌पाश्रेपरिवन्तनम्‌ | मार्गे प्रावरणं चेव Wa क्ञानमरोक्छवम्‌ ! फासगुन्यां क्रौडनं कुर्य्यात्‌ दोलायां मम ufag gaa मां ममनग्यच्छु दृष्टा मां प्रणिपत्य च॥ ्रत्येकम मादस्तमश्नेघफनलं भेत्‌ | 4a मामि waemi दमनेम॑म पूजनम्‌ | TAI तु यः way BAe लभेत्‌ वेश्राखस्य सिते पके ठतौयाच्यसज्ञिका | तच ले पय द्न्धयन्दनेर तिगोभनेः

१८४ गदाधरपद्धतौ

प्रीतये मम ये कुय्यृरुत्सवान्‌ मम WANA | चतुवेगप्रदा Wa प्रत्येकं तु प्रकौत्तिंताः पुनस्तचेव,- aa वा महतौ याचा सर्वा मुक्गिप्रदायिका | तस्मिन्‌ तस्मिन्‌ fea get भगवान्‌ मुक्रिदोभ्रवम्‌ विश्वामहेतोमूरबाणां यादा Wal: छकृपावता | विष्णना कत्ता विप्राः पापिनां कल््मषापदाः श्रायासजनितं पुष्य मन्यन्त ते नराधमाः। तचादौ स्ञानयाचा। ब्राद्धो,- मासे WE तु BN aaa चन्द्रदवते पौपंमास्यां तद्‌ खानं सवकालं ररे दिंजाः तया,- तथा समस्ततोर्यानि gaara दिजोत्तमाः | wea: gufasg avatar एयक पथक्‌ तया,- Bae उदयं Bla प्रशंसन्ति ayaa: | उद्यं दति उदयायवदितपूवंकाले | तथा,- तस्मिन्‌ काले तु ये मर्त्याः पुराणं पुरूषोत्तमम्‌ | बलभद्र BASIE ते यान्ति पदमव्ययम्‌ एवं बहनि फलान्युक्ता, ब्रह्महत्यादिकं पापं प्रणद्याञ्च Ng: | पुरूषोत्तमपुराण- जयख राम रछष्णति सुभद्रेति सशन्नरः | वदन्ति माजने काले यान्ति ब्रह्मपदं मम

कालसारः | Vey

ब्राह्मे, दच्िणणमूत्तिदशनफलम्‌,- aid पश्यन्ति ये ष्णं ब्रजन्ति चिणामुखम्‌ | ब्रह्महत्यादिभिः पापे gaya ते ana: प्रासादमध्यप्रवेश्रानन्तर वायवोय,- ततः पञ्चद्गशादानि मम खानादनन्तरम्‌ | सुरूपां वा विपां वा wanfaai मम carte | ज्येष्ठा नश्च विनापोयं याचा weet श्रन्यया “सर्वकालम्‌” दूत्य सङ्गतं wea वह्नि फलानि विस्तरभयान्न लिखितानि “देवे द्यौदयिकौो" दति नारदरौयोक्ते दे वतोत्‌सवेषु उद य्यातेरेव- व्यवस्यापकलात्‌ | श्रच तिथिदेधे परदिने खानम्‌ केवलं दिनदयेऽपयद्‌ यसम्नन्से परवंदिन एव बष्टिदण्डात्सिकायाञ्च तियनिक्रमफ परे | श्रकमण्पं तियिमलं fagreaeny विना इति agrees: | परदिनस्य कर्मानहलात्‌ षड्जयन्तौषु श्रपराजिताङ्मारो- वादिषु केषुचिद्पि विभिय्य स्ात्तविधेरक्रवात्‌ ) तद्भातिरिक्र- सवेयात्रादिकाषु ओो पुरुषोत्तम सुवनेश्वरकेचप्रासादयो रुद यवेध एव॒ गह्यते वच्छमाणायनादिसक्रान्तिषु यस्िन्नदोराच्रमथ्य रविसंकरमणं, तदिन एव यात्रा कार्या दोवयात्नायाः परदिने छानदानलाभावान्न परदिने प्रा्िण्ड्धापि कार्य्या दति बोध्यम्‌ |

ट्ति ्ञानयाचा। 24

isd गदाधरुपद्तौ

श्रय Aiwa | ब्राद्ये,- ण्डिचामण्डपं यान्तं ये पश्यन्ति रये सितम्‌ वलं BW सुभद्राञ्च ते यान्ति भवनं इरेः यं पश्यन्ति तदा BW ante मण्डपे स्थितम्‌ | हरि रामं BURA विष्णलोक बजन्ति ते तया गुण्डिचासुपकम्यः- यस्याः सद्भोत्तेनादेव नरः पापात्‌ प्रमुच्यते | aa नानाविधवज्फलान्युक्रानि द्रष्टयानि। तत्र नानोप- हारद्‌ानञ्च लिखितं सवंकामप्रा्ययेम्‌ | स्कान्दे ओरोजगननाथप्रतिमाया इन्दुं प्रति वचनम्‌, श्राषाद्स्य सिते पके दितौया पुख्यस्यता | OIE TE gaara faut कार्य्या सदा at Waa aan दति। सा गुण्डिचा | सद्‌ाग्रव्दाद्याच्ेयं aygetwasy a7 कार्यां | aaa विनापि काययैति गम्यते श्रकरणे बहवो दोषा saat विस्तरभयान्ने लिखिताः | तस््मान्नच्तचयोगः BIA | तदनुसारेण व्यवस्यति सिद्धम्‌ | कान्द, दिनानि नव यास्यामि तथा तस्मादिदहागतम्‌ | aati ते महाराज सवेतौयेमयं ac: | ame सत्त दिवसान्‌ स्थाखाम्यनुजिटचया | तच faa at पश्यन्तो यान्ति मत्यां मर्मालयम्‌ faa: कोच्योऽद्धकोटौ तोयानां भुवनत्रये |

कातसार्‌ः |

तानि सर्वाणि सरसि मत्साज्िध्याट्‌त्रजन्ति | aa gar fatuaggr at भक्निभाषिताः। जननौजटरे क्तं पुनर्नानुभवन्ति fe नवसेऽदङ्कि समायान्तं द्च्चिणाग्रासुखं तदा |

ये पश्यन्ति प्रतिपदमश्चमेधक्रतोः फलम्‌

पराप्य भोगानिन्द्रसमान्‌ yard मां विग्रन्ति ते।

तथा, BATS Bt att acl a सा प्राङतमानुषौ सत्ताहमध्ये asa फलम्‌,- दिवा तदभेनं ga राचौ quad भवेत्‌ | ट्ति afew | अरय हरिगशयनम्‌ | स्कान्द, WISN कुर्यात्‌ खापमोत्सवम्‌ | तया,- ये पश्यन्ति महात्मानः ग्रयनोत्‌ सवसुत्तमम्‌ | aaa पश्यन्ति कारयन्ति ये महम्‌ दृति Rivera | efauTad | lee, HAUT प्रवच्छामि दच्विणयनमुत्तमम्‌ | संक्रान्तेः पूव॑काले या कला वे fanfaaar: sat पुष्धकालोऽयं पुष्यकमसु कर्मिणाम्‌ तया,- waa द्दिणे तस्सिन्नचयमानं सिवः पतिम्‌ | fasta स्वेपापानि विष्णलोकं व्रजन्ति ते |

५८७

yer गदाधरपड्तौ

यत्‌ संक्रान्तेः पूवे पुण्धकालत्मुक्र तत्‌ सभेवेऽधिकफलमुक्तं नाच तेनेव व्यवसा, सामान्यतः पुण्छलोक्तेः | ` दति द्‌ चिणयनम्‌ | रय पएाश्चपरिवत्तनम्‌ | स्कान्द, श्रतःपरं प्रवच्छयामि wae परिवत्तनम्‌ | श्रयितस्य sage: परिवत्तंयितुयु गम्‌ नभस्ये विमले va सम्प्राप्ते हरिवासरे | सन्ध्याकाले तदा विप्राः कमं कुर्याद्यथाविधि tt तसन्‌ काले यः WA WAST परमेश्वरम्‌ | ufcefa नाप्नोति जननौ गभषङकःटे पुनरपि नानाफलान्युक्रानि | दति पाश्चेपरिवत्तंनम्‌ |

श्रय उत्यापनेकादश्नौ | स्कान्दे, कुमारपौ णमासोसुक्ता, ततः प्रभाते षङ्कलप्य कार्तिके व्रतमुत्तमम्‌ व्रतेन तेनेव भयेत्‌ यावदेकाट्गौ सिता तस्यामुत्यापयद्वं प्रसुप्तं परमेश्वरम्‌ | तया,- श्रयनादुत्थितं देवं ये afar गदाधरम्‌ | निद्रां मोरमयो भित्वा च्योतिःगशान्तिं ब्रजन्ति ते सव॑कामनाष्यादौन्यपि उक्तानि | दति उत्थापनम्‌ |

कालसारः | Yc

BY प्रावरणेत्सवः | स्कान्दे, BIT सिते ve seat प्रावरणो त्‌ सवम्‌ रला दृष्टा नरो भक्तया aud लोकमाभ्ुयात्‌ इत्यादि | तत्‌ एवे पञ्चमौ दिनत्यसुक्रम्‌ | ततोऽरुणोदये काले प्रातः सन्ध्यासमौपतः | पुनः प्रपूजयेदटेवं परवेवल्सुसमाडितः दूति प्रावरणोत्सवः। श्रय पुव्याभिषेकः | स्कान्दे, - पुष्यञैण संयुक्ता पौणेमासौ यद्‌ भवेत्‌ पोषे मासि तदा कुर्य्यात्‌ quaratad हरेः तथा,- पुय्यस्ानोत्‌ सवं ga पण्यन्ति मुदा जिताः | सन्यन्नस्वकामास्ते ब्रजेयुरवेष्णवं पदम्‌ दत्यादि | श्रस्य ॒प्रत्यब्द विहितलानचचाभावे पूफिमायामेव करणम्‌ नच्तचसद्धावे तु फलाधिक्यं तु तेन Baar दूति पुष्याभिषेकः। उत्तरायणम्‌ | नाद्धे,- उत्तरे दचिणे fanart पुरुषोत्तमम्‌ | दृष्टा रामश्च कृष्णश्च भद्रां भद्रप्रदायिनौम्‌ त्यक्ता सर्वाणि पापानि विष्एलोक गच्छति) दति उत्तरायणम्‌ | दोलयाचा | ATS aut दोलागतं दृष्टा गोविन्द्‌ पुरुषोत्तमम्‌ |

१९० गदाधरपद्वतौ

फालगाने arfa at विप्रा गोविन्दस्य पुर ब्रजेत्‌ दोलायमानं गोविन्द्‌ यः पश्येत्‌ सुसमादितः | ब्रह्य दत्यादि पापानां करोति चयमात्मनः

Wal we ageat, fade स्त्ोवधं, दतोये मद्यपानं नाग्रयतोल्युक्ता दोलाचयद्‌ग्रेने पञ्चमहापातकच्य FA: | ब्रह्माण्डे तु कालः स्फुटः,

श्रप्रभाते fanaa प्रकारे दिनेश्वरे | ततः प्रभोः RAMA दोलौ परमसख्रता इति। RATA पूवसुक्तम्‌ | दूति दोलायाचा | ZAAHIAEM | q@re,— “aa मासि waema”’ त्यादि लिखितम्‌ | तथा,-- ततञ्ाभ्यदिते qa दवं टणपुरःसरम्‌ | नयेत्‌ ओओजगदौ शरस्य समोपं दिजसत्तमाः इत्यादि | tfa दमनकचत्द्शो। श्रख्यदतोया | ज्ाद्ये,- ae पथ्यत्ततोयायां aut qed | ै्राखस्य सिते पके यात्यच्युतमन्दिरम्‌ दति ओरौ पुरुषोत्तमे दाद श्याचाः। अरय YIU चह्दट्‌ ्या्नाकालाः | तचायं सग्रहः,- यात्राया प्रथमाष्टमो निगदिता प्रावारषष्टौ तथा |

कालसारः | १९१

पु्यख्ञानमयाच्यकम्बलविधिर्माघे सिता सप्तमो तदत्‌ स्यात्‌ ग्रिवराचिका रयगतिः स्याद्‌ामनं भच्ननम्‌ | पुष्ाचय्यटतोयिका परषरामो याष्टमौ शायनम्‌ उक्ते तच पविच्ररोपणयमदेती चिकरे चोत्थितिः aa ओौभुवनेश्धरे fe विदिता याचा gaat दग्र Ta स्पष्टतयोदिता शरविधास्तचादिना संयरहा- SmaI WIAA TART यातचा Zast War: VATA, AMM WA सासे wet प्रयमाष्टमो। पौ णेमास्यन्तमासे इयं छृष्णाष्टमौ तयेव समाचारात्‌ शिवपुराणे, यः पष्ेललिङ्गराजस्य मागें प्रावरणोत्छवम्‌ | सर्वोत्सवेः संयुक्तो याति श्डरमन्दिरम्‌ एकाम्रपुराणे- AMIDA पञ्चम्यां Fans समाचरेत्‌ | दइत्याद्यधिवासमुक्ता तत्‌ परेद्युः | WaT भुवनेश यः षष्ठां प्रावरणोत्सवे | ब्रद्यहत्यादिपापानि ae नश्वन्ति नन्यथा | दरति तिथि स्फुट गेवे, यः पुश्यपौणेमास्यान्तु लिङ्गं नोराजितं मुने | पश्येत्‌ याति भुवनमिन््रस्य चिद्‌ शादितम्‌ दृष्टा मकरस्क्रान्त्यां लिङ्ग चिसुवनेश्वरम्‌ | टतकम्बलसंयुक्रमयि लोकमव TAT यः पथ्येन्माघसप्तम्यां भास्करे श्रसनिधो | प्रतिमां लिद्गराजस्य महापापे: प्रमु चते |

१९२ गदाधरपद्धतौ

भविष्ये a— श्ररुणोदयकाले त्‌ Val माघस्य सप्तमो दति पच्चकमेकालौ स्फुटौ | Ta— माघरृष्णचतट्‌श्ां शिवं cat षिलोक्य aq’ भिवमायुज्यमाप्नोति यदि वेद्‌: प्रमाएभाक्‌ माघषृष्णचतर परौ तच चेचष्एक्तादिमासगणएनया पूरफिमान्त- मापे फालगुनरृष्णचत्दंगो सिद्धैव | गेवे, एकाम चेचमासे यः पञ्चद्रथगतं दरम्‌ | ब्रह्महत्यादि पापानि चयिला मोचमाभ्रुयात्‌ एकात्रे तन्नामकचतचे ओ्रौभुवनेश्वरे | एकाबरपुरारे,- पुरा तुष्टेन मया राघवाय महामते | वरो दत्तस्तदथेञ्च sess रथसंखितः श्रग्रोकाख्यामिमां यातां कुर्‌ नृपपुङ्गव | रथस्थं तच मां दृष्टा मम लोकं त्रजेन्लरः लिङ्गपुराणे तु पचतियौ Ge aa मासि सिताष्टम्वां ते manasa: इति गरवे AIAN यः पण्येद्‌मनभल्जिकाम्‌ | मदोत्छवाज्वितां तण्ड guian fad aaa एकाम्रपुराे त्‌, चेचश्णक्तचत्‌दश्मां asi द्मनभन्जिकाम्‌ | दूति माखपच्चतिययः स्फुटाः | एकाब्रपुराणे- ्र्राखस्य ठतौयायां fay चन्दनण्षितम्‌ 1 इत्यादि

„._ .---------- ~~~ बच

(९) श्िवराच्ौ विलोक्यते |

कालसारः | EQ

ufaa तु पचः स्फटःः- या Wat कुर्‌ mee वेशराखे alfa a fafa: | ठतौया साया लोके गोवणिरभिवन्दिता दति। एकाषपुराणऽ- श्राषाद्शकताषटम्यान्त WAS सन्निधौ | नय मां तच aaa गरिविकाख्यं चिलोचनम्‌ गेवे, शयने wwe यः पश्येत्‌ कृत्तिवाससम्‌ | ब्रद्यलोकमाप्रोति नियत मुनिसत्तम i एकाब्रपुराणे तु, श्रय वच्छामि देवेशि यातां मे श्यनोत्तमाम्‌। श्राषादृस्य THA wert समाचरेत्‌ दति मासपक्चौ स्फुटौ एकाबपुरारे,- Haat चेचशक्तायां चत्दैश्यामुमापतिम्‌ | पवित्र यद्राश्यां aaa fea महोत्सवम्‌ Ta,— यमदितौयायाचां यः wana समादितः | येनाच्चितो war खगेलोकमवाप्रुयात्‌ महाभारते तु, कार्तिके Bare तु fadtarat यधिषठिर। यमो यमुनया पूवं पूजितः awe खयम्‌ दरत्यादिना मासप्ो स्फुटौ | गेवे, प्रवोधिनौचहदैग्यां cet चिभुवनेश्वरम्‌ | वद्धः सवेदे वेसु शिवलोकमवा्रुयात्‌ दूत्यादिषु guy दिवसेषु यो नरः पण्येत्‌ तिभुवनेग््च लभेत्‌ परमां गतिम्‌

WHA तु,- कान्तिकस्य शिते पचे wien मडेश्चरि 20

१९४ गदाधरपद्धतौ

श्रम्भो रत्या पनं कूर्यात्चया सह anges द्रत्यादिना उत्थापने मासपच्लौ स्फटौ ag याचासु तियिदेधे वस्या भो पुरुषोत्तमखेचयाचा प्रकरणे लिखिता दति श्रौमुवनेश्वरोयचत्‌द्‌गयाच्रातियः। श्रयानध्ययनकालाः | मतुः, एतान्‌ नित्यमनध्यायानघौयानो विवजेयेत्‌ |

्रध्यापनञ्च कुर्वाणः frarat विधिपूवेकम्‌ कणैश्रवेऽनिले राजौ दिवा पांश्सम्‌ दने एतौ वर्षष्वनध्या या वध्या यज्ञाः WAGs विद्युत्‌स्तनितवर्षासु मदोल्कानाञ्च संसवे | श्राकालिकमनध्यायमेतेषु मनुरत्रवोत्‌ एतां स्वभ्यदितान्‌ विद्याद्यद्‌ प्रादुष्कृता््चिषु तदा विद्यादनध्यायमनृतौ चाभ्रद ग्ने निर्याति गमिचलने ज्यो तिषाञ्चोपसच्छंने | एतानाकालिकान्‌ विद्यादनध्यायानृतावपि ्रादुष्कतेष्ग्रिषु विचयुत्‌ स्तनितनिःखने | सज्योतिः स्यादनध्यायः TE राजौ यथा दिवा नित्यानध्याय एव स्यात्‌ ग्रामेषु नगरेषु च। धर्मनेपुण्यकामानां पूतिगन्धे स्वेदा

` अन्तःग्रवगते ग्रामे टषलस्य सन्निधौ RUM रुद्यमाने AAG जनस्य

SITAR: |

Ss

उदके WUT दिण्स्‌ चस्य faust | उच्छिष्टः sigaa चेव मनसापि चिन्तयेत्‌ प्रतिग्य्ह्य fam विद्दानेकोदिष्टस्य केतनम्‌ | qe कौत्तेयेट्‌ब्रह्म राज्ञो राहोश्च इतके यावदेकानुविष्टस्य गन्धो लेपश्च तिष्ठति | विप्रस्य विदुषो SB तावदुत्रह्म कौत्तेयेत्‌ श्रयानः प्रौढपादश्च कछला चेवावश्रक्थिकाम्‌ | नाधोचौतामिषं जग्ध्वा सूतकान्नाद्यमेव I Mr वाणग्रब्दे सन्ध्ययोरुभयोरपि | GHATS: पौणेमाखष्टकासु gaara गरु दन्ति fre हन्ति चतुदश ब्रद्माष्टमो पौणेमास्यौ तस्मात्ता: परिवजेयेत्‌ पा प्रवं दिशां ere गोमायुरूदिते तथा श्रखरोद्रे रुदति URt पटेद्धिजः॥ नापौयौत श्फशानान्ते ग्रामान्ते गोव्रजे तथा | वसिता नैनं वासः राधकं प्रतिग्यद्य

प्राणि at यदि वाप्राणि यक्किित्‌ aga भवेत्‌ | तदालभ्याप्यनध्यायः werent”) Te दिजः रतः

चौरेरुपकषते गरामे संभ्रमे वाधिकारिते। श्राकालिकमनध्यायं विद्यात्‌ सर्वाह्ुतेषु च॥ उपाकर्मणि wien चिराचं Sat रतम्‌ |

(१) UTES’ |

red गदाधर्पदड्तौ

अष्टकासु AR Baume राजिषु i नाघोयोताश्वमारूढो BW इस्तिनिम्‌ | नावं खरं ate नैरिणस्थो यानगः॥ विवादे कलहेन सेनायां सङ्गरे, भुक्तमात्रे नाजोएे afaat ama | ्रतियिञ्चानतुज्ञापय मारते चाभिवाति 41 रुधिरे सृते Targa परिचते सामध्वनाटग्यज॒षौ नाघोयौत कदाचन | वेद्स्याधौत्य चेवान्तमारण्कमधोत्य तथा,- पश्टमण्डुकमार्जार चसपेनङ्लारुभिः। ame गमने विद्याद्नध्यायमह्निंशम्‌ द्वावेव वजय ननित्यमनध्यायौ प्रयत्नतः | खाध्यायग्डमिच्चाप्रद्धमात्यानञ्चाएएवि दिजः एतदाक्यानामर्थापनेन WA क्रविगेषोऽपयुच्यते रात्रौ कणेश्रवे ( कणश्रवणयोग्ये वायौ वाति) दिवा भूलिपटलोल्ार णप्राकर वायो वहति दृति, वर्षासु (प्राटरर्‌्काले) दावनध्यायावित्ययंः। श्राकालिकं निमित्तकालादारभ्य परेदयर्यावत्‌ ख॒ एव कालः, तावत्‌ पयन्तमनध्यायं विद्यात्‌, विदयतृस्तनितक्षंषु य॒गपत्‌ जातेषु एकदा मदोल्कानां सन्निपाते ्राकालिकमि- त्यादि waqi एतान्‌ विद्यदादौन्‌ यदा star प्रकटौ ङताभिका रेषु ( सन्ध्याचणेषु ) श्रभ्युदितान्‌ (उत्पन्नान्‌) जानौयात्‌ तदाऽनध्यायं कुर्यात्‌ |

4 ~यो `

कलसारः। १९

सन्ध्यासु विद्युद दिसमस्तान्वये, तदा सन्ध्यायामेवानध्याय TAA | कन्पतर्कारास्तु, विद्युद दिप्रतयेकद गने तदेवानध्याय दूति। अनृतौ ( पराटडभिन्नक्तै ) प्रकटौ हताभिकालेष॒॒सन्ध्ययो रिव्यः समा- चारात्‌ बहमेघद शरनमात्रे सत्यनध्यायो, wagat ज्योतिषां (axqaidtat) wat (atagat) श्रपि ग्रब्दादन्यतापि | ्रादुष्कतेषु (प्रकटोकृताग्रिषु ) दौमाथेमित्ययेः तथाच प्रातः- सन्ध्यायां विदुत्‌स्तनितनिःखने, तु केवलवषेणे, यदि प्रातः- सन्ध्यायां विद्युत्स्तनितनिःखनः, तदा सनज्यो तिर्यावत्‌ खययादय- and, तावदनध्यायः; दिनमाच्व्यापौत्ययंः। यदि सन्ध्यायां, तदा रािमात्र्ापौत्यथेः। एवं विद्युत्‌ स्लनितयो व्यवस्था aa तु अवस्था उच्यते। शेषे ( विदुत्‌स्तनितवर्षाणं पूर्वोक्तानां गेष- वषंणरूपे) दतौये जाते। यथया दिवानध्यायः, तथा राचौ श्रहोराचमित्ययः। Wan तु “सायं सन्ध्यायां स्तनिते राचौ श्रनध्यायः, प्रातःसन्ध्यायान्वदहोराचभिति" यदुक्तं ततरा दोरा्रपचो Aaa | सन्ध्यागजेनदोषमाह दुर्वासाः |

सन्ध्यायां गजिते aa शास्लचिन्तां करोति यः। चारि तस्य नश्यन्ति श्रायुः प्रज्ञा यश्रो वलम्‌

यानि चान्यानि खतिवाक्यानि श्राचारपिरुद्धानि सन्ति तानि सर्वाणि विस्तरभयादनुपयोगचच लिखितानि। aguafana: | wa धर्मातिश्रयकामानां यो नित्यमनध्याय उक्ः। सवेषां, काम्यत्वात्‌ ! ्रतएव वशिष्ठः “नगरे तु काम्यमिति” | मध्यमराते (मुद्दत्तचतुष्टयरूपे महानिशायां )

९९८ गदाधरपद्तौ

“aqysufafa” गो भिलसतेः। श्राद्ध भुक्‌ निमन्तणादारभ्य आद्ध- भोजना दोरा यावत्‌, पठेत्‌ केतनं (निमन्त्रणं) दारौतः,- “ओआद्धमनुग्ययज्ञभोजनेऽदो राच मनुखखयज्ञो (श्रतिचिप्रूजा) | याज्नवस्कयः,- “fue गटहमागते” श्रंदलिखितौ “नगरचत्‌- ष्ययसक्रनेव्वनध्यायः राजामात्यमहापुरुषखर्यागे ऽनुक्रूले मिने- SHA नावग्डययन्ञवाटे | मदापुरुषोऽच उल्छष्टगुणएशालो | WH: सूतके पुचजन्मादो, राहोः सूतके ( चनद्रसू्यौपरागे) याज्ञवल्कयः, - Be प्रेतेष्वनाध्यायः शिष्यवहुरुवन्धुषु(*) उपाकर्मणि Tan खग्राखाओरोचयोस्तया HAIN शय द्रान्त्यश्मश्ानपतितान्तिके

बोधायनः+-

“विग दे शपतिश्रो fag aera” | रे ्रपतिरच दे ग्राधि- HITT |

stfaay fwanrata: | राजखग्राखिनः चिराचोक्तः। ्रोटपादः ( श्रासनादयारूढपादः) श्रवगशरक्थिका जानौ पय्यैङ्वन्ध- रूपा वाणशब्दे शर्ब्दे दति केचित्‌ वाणश्ब्दस्तन्तुसदित- वौणवाचौति साग्मद्‌ायिकाः। एकसुदिश्व श्रनुविष्टस्य स्पृष्टस्य कुङूमादेरिति Ge) गन्धलेपसद्धावे अयदादृद्धं wee | पौ णंमास्यष्टकासु चेत्यच wala: | agqrwatfa तद्माल्या- वाक्यात्‌ श्रष्टकाश्राद्भदिननिषेधस्य वच्छमाएलाच | यत्त॒ यमेन; प्रजापतिं fe तिष्टन्ति val विद्यास्तु वसु |

(९) शिष्यलिदू रुबन्धष |

कालसारः | Yee

तस्मात्‌ धर्माथ॑कामार्या नेताः पर्व॑सु कौत्तयेत्‌ दूति काम्य पवेवजेनसुक्तः तदेदान्तातिरिक्रविद्यापरमिति साग््रदायिकाः। WANE VATE, quad चतुद्‌श्योरष्टमो दितौये तथा द्ति श्चोकगौतमोक्तः। ust (atfeagt) खितायाञ्च शब्दात्‌ | श्षश्रानपरिमाणमापस्तम्बौये,- WIA सवेत च्राग्रम्याप्राचे। शम्या CAVA, सा प्रदेश्नमातचा, शम्यास्याद्‌क्रलक्तणा | तस्याः प्रासः ्रचेपो यावद्दूरे भवति, तावदट्दूरं ्मशानात्‌ स्वेतो मुक्ता अरध्येयमित्ययः | यमः,- शश्नातकस्य छायायां शाल्मलमंधुकस्य कद्‌विदपि aaa कोविदारकपित्ययोः॥ afaat (परिधाय) प्राणि, गवाश्यादि श्रप्राणि, वस्त दिर ण्यादि यस्मात्‌ ब्राह्मणः प्राणौ एवास्य सुखं यस्य तथोक्तः | यद्यपि “उत्पातेषु शान्तिखस्ययने aa’ दृति दारोतोक्तः श्रान्तिपय्यन्तमनध्यायः प्राप्नोति, तयाप्यषक्तौ ग्रान्तिकरणाभाव- निश्चये उत्यातकालोन एवानध्यायः इति मनोरभिप्रायः, “चौरेरुपश्ते गरामे" रत्यादि पूर्ाक्रानध्यायनिभित्तसमानलात्‌

श्रनध्यायः चिरान्न afar तयेव च| दति यमोक्तिः सवग्दमिकम्पपरा।

२०० गद्‌!धरपड्तौ

QUAM A याज्ञवल्कयः,- सन्ध्या गज्जिंतनिर्घातश्वूकम्यो स्का निपातने | समाप्य ad द्या निशरमारण्कमधोत्य दनि शरमहोराचम्‌ Taw | आ्राचाय्येयोः ( रर्प्ररक्रयोः) परिवेशे (awa) ज्योतिषोः ( सूर्य्याचन्धमसोः) श्रच ये केचि- दुत्पातभेदाः उक्ताः, ते तु सवेपदन मनुना संग्टहोताः। श्रष्टकासु ( पौषमाचघफाल्गुनमासौ यरृष्णाष्टमो षु) WAAAY योऽनध्याय SA | सः, प्रतिपक्ञेशमाचेण कलामात्रेण weal) इति वाक्यात्‌ परदिने कलामाचरसल्वेऽपि परदिने भवति “निषेधः काल- ara” दूति वाक्यात्ियिमारभ्य प्वेदिनेऽपि। ्टकासु तु यथाप्राप्तश्राद्धरिने दति पोनरुत्यम्‌ श्रष्टकासु “farts, चिराचमन्त्यासेके" दति गौतमोक्रिदयं सप्तम्या दिदिनचये प्रठत्त- मपि agqfafatturarigad | खलन्त्यासु वसन्ताद्यलन्तभवासु | द्रिणस्थो ( मर्टेगस्थः) यानं (गश्रकटादि ) मुक्तमात्रे ( वावदाद्र- पाणिरिति wanted) दारौतः,+- ऊद्धं भोजनादुत्सवे, देवतादुत्वे | भोजनोद्धंञ्चानध्यायः | छक्के (चरन्तो गारे ) | त्राभिवाति श्राभिमुख्येन वायो वाति इत्यथैः शस््रहननस्य एयरुकतेः | HITS ( तन्नामकदेवतं देम्‌ ) | सामध्वनौ कममविगरेषापवादमादह रङ्गिराः) सामध्वनौ सत्यपि यज्ञेऽघो यौतं शतलात्‌ श्रा पस्तम्बः। “काण्डोपाकरणे WATERS | काण्डसमापने चापिदलस्य, काण्डोपक्रमे समापने चानध्यायः।

मयी मि

काल्तसार्‌ः | Rok

यत्काण्डमुपाक्र्वोत Ueaqawgqugaa! तावत्तददरधोयोत | तया उपाकरणसमापनयोश्च पारायण्स्यतां विद्यां (“पारायण धर्मायमादितः" दत श्रारभ्य समा्निपय्येन्तपठनं) तत्‌ चानध्यायेन वज्येमित्यथंः। चय्या (बेद्चयस्य) निष्के प्रणवव्याइतिसाविश्या- त्मकसारमित्यथेः प्रत्यदमभ्यस्य पश्चात्‌ वेदाध्ययनं Fea) प्रवो ( गो मदिषादवः) | विश्वाभिचः,- विदङ्गमविद्रादग्रामान््यभववायसेः | छतेऽन्तराये पश्वादयैरनध्यायः BE मतः |

ग्रामान्यभवाः (मनुजाः रजककमेकारनटकेवर्तादयः) श्रोक-

गोतमः+ यायाद्यदन्तरे व्याघ्रो नेवाधौयेत दायनम्‌ | हायन ( वत्सरम्‌) | “qa वासिनां वेदमध्येटणाच्च मध्यतः | ग्रग्श्चपाकगमने नाधोयोतापि वत्छरम्‌

मानवीय श्रादौ दमाननित्यमनध्यायानिति यदुक्तं श्रनध्ययनस्य नित्यलं, तत्‌ग्रहणएधारणादिममर्थस्येव “श्रन्ते तु द्ावेवेति श्रषएद्भ्म्यात्मश्नौ चयो यं नध्ययननित्यलमुक्त तद समर्थस्य Fa’ fafa निबन्धेङृतः | याज्नवरक्यः,- भ्दतसस्धिषु भुक्ता Varga प्रतिग्ण्ह्य च।

ग्तसस्धिः (प्रतिपत्‌ )। महाभारतेऽपि,

दूयं योधिष्ठिरौ सेना गाङ्गयश्रपौडिता।

प्रतिपत्‌पाटशौलस्य विद्येव तनुतां गता 26

जं गद्‌घर्पद्ध at

श्रापस्तम्बो येऽषटम्यादिषु विशेषः, उद येऽस्तमये वापि सुद्धत्तत्रयगामि यत्‌ तदिन तददोरा्रमनध्यायविदो faz: केचिद्‌ाङ्ः कविदेशे यावत्त दिननाडिकाः। तावदेव दयनध्यायो fe तस्मिन्‌ दिनान्तरे तदनं तां fafa wea) दिनान्तरे (ति्यन्तरे ) fauarad, खतिः.- प्रतिपज्ञेशमा कलामाञण चाष्टमो | दिनं दूषयते स्वे सुरा गव्यघटं यया छ्षोकभो पञ, चातुर्माखदितौयासु मन्वादिषु युगादिषु | विषुवायनयो दनद शयने बोधने तथा पचादिषु चयोद्‌श्वां तस्यामेवोत्तरा तिचिः। aie चेदधिवेवस्याद्नध्यायः श्रुतावपि राजमारत्तण्ड,- कोप्रेचेरादितोयास्ताः FIG गते तु या। यातु कोजागरे याते चेचावचल्यां परेऽपि ary चातुर्मास्ये समाप्त या दितौया भवेत्तिधिः। पराखेताखनध्यायः पुरारेः परिकीर्तितः चे्ावलौ (चैचपौणमासो) | दद्धगाग्येः,- mwas ave वा या familar विधे | चातूर्मास्यदितौयास्ताः प्रवदन्ति मनोषिएः॥ wat (are) wet (कात्तिके) तपस्ये (फारगने) विधुख्ये (SVS) श्राषाच्छादिषु Veale गताद्त्यधैः |

कालसारः | २ण्द््‌

मन्वादिथ॒गादि तिथयः श्राद्धप्रकरणे वाच्याः। विषु वायनेषु विषमा गाग्येः,- दिषायने क्रमेद्धातयेदि cist परापरे | माघोयोता हनि राच्रावेवं विषुव्योरपि दिवा संक्रमे पर्वापरयो राच्योरनध्यायः, राचिसंक्रमे पूरवेत्तिर-

दिनयोः चयोदश्यन्तरतियौ चत्‌द्‌श्यामित्यथंः। zie दिवसे

किञचिदभेनेऽपि चयोदग्यामनध्यायः। sat ( श्रवणदादण्डां ) सखत्यतपाश्च,- श्राभाकाग्रितपकेषु मेत्रश्रवणरेवतौः aig: संस गरयुखेत्‌ तचानध्ययनं विदुः टृद्धमनुः,- जननाद्‌ शराच अवे समुपस्िते | नाघौयोत fast नित्यं तावद्‌ाकालिकेष मरागुरो sews बेदानध्ययनं ब्रजेत्‌ देवोपएराण,- at जने कुर्यान्न तसकरसन्निधौ | शमश्रुकरकाकारिङकवाङगुसमागमे mga (नापितः) काकारिः (पेचकः) छकवाुः Gaz: “चलारौमानि कर्माणि” दति नक्तप्रकरणोक्रूते सन्ध्यायां निषेध om: शिवपुराणे, प्रदोषो fe दिधा प्रोक्तो रूदिर्लाचणिको सुने Mere रबेश्ुक्र प्रदोषो मुनिभाषितः॥ सन्ध्याकाले guia गगने तारकामये | तथा,- विश्चक्राद्धेमाचस्तु प्रदोषो afsafem: |

२०४ TEI धर्पद्धतो

याममेकं Wei यामयामाद्धसप्नमो यामयं चयोदश्यां प्रदोषो wrefwaa: | द्त्याथुक्ता,- नृत्यभङ्गान्मदादेवः क्रुद्धो भवति तत्‌चण्णत्‌ | mG ददाति तसै set भव दूति wy: तया,- प्रदोषे हरि पण्येत्‌ पश्येच्च ठषभध्वजम्‌ | agai: राचौ यामदयादर्वाक्‌ सप्तमो waste | प्रदोषः तु विज्ञेयः aafaarfaafea: wat नवसु नाडोषु चतूर्थो यदि gad प्रदोषः तु विज्ञेयो वेद्‌ाध्ययनगङितः॥ शिष्टाः; wat यामद्रयादर्वाक्‌ यदि पश्चेत्तयोदभोम्‌ | प्रदोषः मतु विज्ञेयः wafaerfanfea: सवेचापवाद माइ मनुः, नेत्यकेनास्ल्यनध्यायो ages fe तत्‌सतम्‌ तथा,- वेदोपकरणे चेव खाध्याये चेद नेत्यके नातुरो धोऽस्नध्याये होममन्तेषु safes कोर्म,- श्रनध्यायं तु नाङ्गेषु नेतिदासपुराणएयोः | waaay पवखेतानि aad वेदोपकरणं (वेद्‌ातिरिक्रविधास्थानं) तेन सवेविद्या पठेत्‌ दूति यच साचादचनं asa वेदोपकरणेऽपनध्यायो सर्वेति सिद्धम्‌ | दरति तिथिषु देवनिरूपणम्‌ | श्रय पिव्यकमंणि तिथिनिरूपणे प्राप्ते argu मरणेत्तरभा-

कालसारः | २०५

विलान्मरणएस्य तु जन्मोत्तरभा विलात्‌ जन्मन BARA Aa तुप्रश्टतिकाला निरूपन्ते | याज्ञवल्क्यः- ब्रह्मचचिय पिर शद्रा वर्णस्वाद्यास््यो fest: | निषेकादिश्षगानान्ताः तेषां वै मन्लतः क्रियाः गर्भाधानग्डतौ Ge: सवनात्‌ Wea पुरा | षष्ठेऽष्टमे वा सौमन्तो मास्यते जातकं श्रहन्येकादशरे नाम Way मासि निक्रमः) षष्ठेऽननप्रागनं मासि Vet कार्यां यथाङ्गुलम्‌ एवमेनः प्रमं याति वौजगभेसमुद्धवम्‌ | द्रष्णोमेताः क्रियाः aut विवाहस्तु समन्त्रकः वौजगभेसमुद्धवं (एकर शो णितसम्बन्ध, गोचव्याधिसङ्खा न्तिनि- मित्त) तु पतितोत्पन्नवादित्ययः। चड़ान्तानां नित्यतेऽपि एतत्‌ पापशमनं श्रानुषद्गिकं फलमित्ययंः wut तु विशेषः | एताः SETA: द्ष्णो मित्यादि | षोड्ग्त्तेनिशाः tut तासु garg सम्विगेत्‌ | ब्रह्मचा्थंव पवेष्याद्याश्चतसखस्तु asia एवं गच्छेत्‌ fad चामां मघां मूलां वजंयेत्‌ | खस्य इन्दो सत्‌ पुं लक्षण्यं ननयत्‌ पुमान्‌ genase we राचिचतुष्टयं वन्यम्‌ श्रविष्ठासु दादशसु पञ्चमसप्तमनवमेकाद्‌ चयो दप्रपञ्चदग्रूपाः षड़यग्मरा चयः त्याज्याः दति दश्रा्यः व्याचज्याः। श्रवश्िष्टासु षटसु राचिषु यद्यत्‌ va पतति, तदिदाय aye, विशिष्टः पुचो भवति |

Rok गदाधरपडतो

एकस्यां राचौ मृदेव गमनं, दिस्तिरिति ageane भवति ) मानवोये तु,-षोडग्ररािषु रािद्रयगमनमेव ब्रह्मचये- फलप्रद्‌ मित्युक्तम्‌ | कामां रजखलात्रतेरटव्यलष्वा दारादिभिश्ाल्य- वलामित्ययेः। मघा इत्यादि गण्डनचत्ोपलच्णम्‌। एवमा दिप्रयम- सङ्गम एवाद्ियते | श्रन्यरत्तावपि एतत्‌शएभकालगमने पुच्रोत्पति- रिति याज्ञवरक्या भिप्रायः गण्डनच्चाणि तु ज्योतिः शास,

श्र्िनो मघमूलानां faat गण्डाद्यनाडिकाः | अन्त्ये पौष्णोरगेनद्राणं पञ्चैव यवना जगुः

ay tet ( वलवति चन्द्रे) एतत्‌ चान्यश्भयहो पलच्षणम्‌ | तया च्योतिःशास्ते,-

पापासंघुतमध्यगेषु दिनरुलग्रचपाखामिषु |

तर्‌चूनेव्वश्टभोजद्ितेषु fags faz विपापे सुखे

aang चिकोएकण्टकविधुष्वायचरिषष्ठा चिते |

पापे युग्मनिश् खगण्डसमये पुंशद्धितः सङ्गमः

एवमादि प्रयमसङ्गम एवा द्वियते, शअरन्यत्तावपि एतत्‌ एभका- लादिगमनेन पुत्ोत्‌पत्तिरिति याज्ञवलक्यामिप्रायः श्रय॒गमरा- चित्यागो नाधर्मकारण, किन्तु पुत्रोत्पादनाथ॑मेव पवैवन्नैनं तु श्रधमहेत्‌तया एव इति बोध्यम्‌ गण्डनच्चचा दिवन्छनं प्रयम- त्वेव वधवारादिवच्नमपि प्रयमत्तावेव “श्रभिनवनारौगमनं बुधा बृधवासरे ga” इत्यादि शासनात्‌ | पवेवजेनं तु wa स्वपि, चदं ्ष्टमो वाक्येषु तियो नामेवोक्तेः

प्रयमन्तौ वारादिदोषे ज्योतिःशास्ते,-

HIATT: | oe

पुष्यं दृष्टं निन्दिते भे यदि स्यात्‌ श्रान्तिं कुर्य्यादङ्गनानां waa | तत्संयोगं वल्लभा वजेययु यावद्भूयो दृष्यते waa aq ! नच्तचतिथिवारेषु यच्र पुष्यं cafe | होमं कुर्यात्‌ गायत्या वारदोषे तिथावपि Qi रज्चेश्वाष्टरतं दुर्वाभिश्च तयेव च। तिलेराज्येन दुर्वाभिर्हमिं कुर्यात्‌ प्रयनतः नच्तचदोष श्ान््यये प्रत्येकं तु सदसलकम्‌ | श्रच वयव्ा,- वारदोष्यपोहनाथं श्राज्यमिथितानां दूर्वाणां अष्टोत्तरशतं होमः, तिथिदोषे श्राज्यानामष्टोत्तर श्तं होमः, नचचदोषे श्राज्यमि- शितानां जुश्ानामष्टोत्तर प्रतं होमः, लंग्रदोषे ्राज्यमिभिततिला- नामष्टोत्तरण्तं होमः, श्रतिग्रक्रस्य तु प्रत्येकं सहखदोमः, यदा, दुर्वा तिलाज्ये Isaac गायचऋोमन्ल्ेण AAT दुर्वा तिलयोदामे हस्तस्य साधनलं श्राञ्यदहोमे सवस्य साधनलं दति) समुचचयदो मस्यासम्भवात्‌ षटचिग्रद धिकग्रतचयद्ोमे प्रत्येकद्रय- सम्बन्धन agains fafa. सदसखग्तदोमादिषु श्रसम्भवात्‌ श्रष्टोत्तरत्वस्य नियमात्‌ | ननु इन्दसमासात्‌ समु चयपचः प्राप्नोति दति चेन) भिन्ना-

२०७ गदाधरपडधतो

वस्यद्रव्यं॒प्रति सादित्यस्योपपन्नतात्‌ ब्रह्मयाण्डोक्रहोमस्य काम्य- ara सवः करियते | निषेककमणि afgargria “faarerfe: कमगण दति वच्छमाण्च्छन्दोगपरि fasta: ) एवं afe- ्ाद्धाभावात्‌ तत्पुवेविदहितानां areqat वसो्धारायु खमन््रनपा- नामप्यभावः एतद्‌ दद्धिश्राद्धप्रकरणे लेख्यम्‌ केचित्त टद्धिश्राद्धा भावेऽपि,- निषककाले सोमे सोमन्तोन्नयने तथा ज्ञेयं पुंसवने चेव we पञ्चाङ्गमेव दरति विष्णपुराणणेक्रक्माङ्गं श्राद्धं कायम्‌ कर्माङ्गं इद्धि मत्‌ wa” fafa सतेर्मादप्ूजादिकटद्भिखाद्कन्तयतापि, दति वरन्ति ii वस्तुतस्तु नान्दौमुखश्राद्भस्य गर्भाधाने विहितप्रतिषिद्धूलात्‌ विकल्प एव, दति शष्टन्राद्यणानां गर्भाधाने नान्दोमुखर!द्धा- NAGATA, नृपादौनां तु तत्करणे समाचारञ्च उभयं प्रमाण मिति, भ्रस्मत्‌ पितामदरृष्णए-टहत्पण्डितिमहापाचादयः | एवं ग्टद्यबभाव्ये,- “मादपूजापूवेकं खयमाभ्युदयिकं war” दति पद्धतो यल्लिखितं तदपि सङ्गतम्‌ शद्राणणं गाय- व्यामधिकाराभावाद्‌ ATMS होमः कायें दति केचित्‌, तनन तथा सति यागाद्‌ावपि श्द्रस्याधिकारो निर्वायैत। किन्तु वारादिदोषव्यपोदनायम्‌ योगस्य (“होमकरणस्य धान्यमिन्दोः

(१) हेमकरणस्य |

कालसारः। २०८

शंखश्च awaant स्िथिवारयोश ताराकलायलवणन्ययगाश्चुरागे zaiq दिजाय कनकं एएविनाडिकायाम्‌ दूति सामान्यश्ान्तिः कार्थं | यद्रा सवंच हेमदानमाचम्‌,- सर्वदोधोपश्रान्ययं डेमद्‌ानन्तु केवलम्‌ | दूति weary | विग्रेषस्वस्मत्‌हते श्राचारसार Zea: | AT,— छतु कालाभिगामो स्यात्‌ खटारनिरतः सदा | “sq aa” दति सूत्रेण aaa एिनिप्रत्ययः। श्रयग्टतुकाल- गमनविधिरप्रवेविधिः युचोत्पादनम्‌ sane BANAT शासे विधानात्‌ नाच नियमविधिश्रङ्गा, gata? खतु- गमनस्य पाकिकप्राप्रेरभावात्‌ | नापि परिसस्याविधिः, खतू- गमनस्य Tatas प्रति प्राप्ररभावात्‌ | तथाच, विधिरत्यन्तमप्राप्नौ नियमः ofa सति तत्र चान्यच wat परिसंख्येति awa y यत्त॒ नियम दति विनज्ञानेश्वररक्रम्‌, तत्‌ पुच्ोत्पादनसख नित्यलात्‌ खछतुगमनमपि नित्ये दत्यभिप्रायेण aaa सन्ध्या- वन्दनादिवदृतुगमनमपि नित्यम्‌ | यथा कामो भवेद्वापि स्तौणं वरमनुष्ररन्‌ | दति यान्ञवख्क्योक्तरनुतावपि गमने दोषः श्रत एव,-

wat नोपेति यो भा्यामनतौ यश्च गच्छति ` 27

१० गद्‌ाघर्पड्ध at

तुल्यमाडस्तयोरदेोषमयोनो aq सिञ्चति दति बोधायनोक्तौ भ्रनतौ यो दोष उक्तः, खतावगता श्रनुतुगमने वोध्यः घद्यपि,- यः खद्‌रानतुलातान्‌ खस्यः सन्नो पगच्छति | भूणहत्यामवा्नोति गभं प्राण विनश्यति द्रति देवलोक्तौ, यथा यमादिवाक्यादिषु त्रह्महत्यादोषादय gmt: | तयापि खतुकालाभिगामो स्याद्यदि gat जायते | द्रति कौम क्ररुत्‌ पन्नविद्यमानपुचस्य स्तौकामनाविरद्ेऽपि चछतावगमनेऽपयदोषः | चतुदष्यादिषु नचतरेषु वन्नं ततृतत्काल एव, “निषेधः कालमाचके" इत्युक्तेः सङ्कान्तिखमयस्य afige- लेन दुलच्छवात्‌ तदवच्छिन्ना दोराचमेव विषयः “अतीते नागति युषे" दत्यादिवच्छमाणणेक्तौ दानविषयलम्‌, तु स्तौतैलमांस- वन्नैनविषयत्वम्‌ | पुण्यं नाम विदितविधिवद् कमे,» इति निषेधस्य पु्छलाभावात्‌ ननु खतुदोषहो मप्रायञछिन्त “गायच्ौरोमः axe निषिद्ध sam” तत्कथं स्तो द्र योव दिकमन्त्ानधिकारः कथं वा पौराणिकमन्ल्ाधिकार इति Fa | माव्छे,- fe बेदेव्वधिकारः कञ्चित्‌ शद्रस्य विद्यते पुराणेव्वधिकारो मे fiat ब्रह्मेव fe SQA Uae: wig सङ्रजाति विशेषस्य शएदरस्येति नाजोपयक्तमिति (१) विद्ितविधिधम्भ इति ` '

कालसारः। २११

शङ्धनौ यम्‌ यत्र प्रतिलोमस्यायधिकारः, तच सुतरां शद्रस्येति कमु तिकन्यायेन शद विषयवसम्मवात्‌ व्यासोऽपि,- मन्लवल्जं cafe प्रशंसां प्ाप्ुवन्ति च। wa मन्तवजेमिति वैदिकमन््वजं दति कल्यतरुकाराः | तेषामयमभिप्रायः | “तच्चोदकेषु wang” दूति जेभिनौयन्यायेन वेदभेदे guar” दति लो किककोषप्रामाप््न AUIS वेदिकमन््परत्रमेवेति | श्रतएव पराश्ररः+- कपिलाक्तौरपानेन ब्राद्धण्णै गमनेन | वेदाचचरविचारए Wet गच्छत्यधोगतिम्‌ ननु guuafuag भवियये,- श्रध्येतव्ये चान्येन ब्राह्मणं afaa विना | ओओतव्यमेव WEI नाध्येतयं कथञ्चन दूति। तथा,- ओतं सा्तञ्च वे धमं प्रोक्तमस्िन्नपोत्तम | तस्मात्‌ wefaar विप्रं alae कथञ्चन | tan: पुराणएमन्लेष्वपि कथमधिकार दति चेत्‌ निषा- दस्यपत्यधिकारन्यायेन पुराणएनिषेधस्य कर्मोपयो गिपौ राणिक- मन्त्र विग्रेषाध्ययन विषयत्वे मानाभावात्‌ | तस्मा द्रथकारादे राधानोपयो गि दिकमन्लपाठवत्‌ शद्रस्य कर्मो- पयो गिपौराणिकमन््पाठेऽधिकारस्याविरोधात्‌ | एको दिष्ट्राद्धा- AMC वाराहे, श्रयमेव विधिः प्रोक्तो श्द्राणं मन्तवन्नितः | waa तु शृद्रस्य विप्रो aau गद्यते दति |

२९२ गदाधरपद्धतौ

दरति az, तच्ापि उक्रमन्त्रलच्षणानुसारेण वेदिकमन्त्ाए- मेवाभावः। नतु पौराणिकमन््ाणमपि गौणएत्ेन तेषां aa दप्रयो गविषयलात्‌ | अनन्यया गौर्नास्ति दत्यादौ वाइकादेरभावः प्रसज्येत | तस्मादमन्लवप्रसि द्धििदि कमन््ाभावकतेव

ननु पौराणिकमन्त्ेऽपि शद्रस्य नाधिकारः, श्रध्ययनं विना प्रयो गस्यानुचितवात्‌ श्रष्ययनञ्च,- |

शूद्राय मति दद्यात्‌ नोच्छिष्टं दविष्कुतम्‌ |

xfa ब्राह्मणस्य शुद्र जञानोपदेग्रनिषेधान्न सम्भवतोति चेद्‌- waa) wa मतिश्नब्दो श्रध्यात्मविषयकमतिपर एव Use ब्र्मविद्यायामधिकाराभावस्य दभितलात्‌ विदुरादेम्हखसभाव- तो विद्यवेन,* दरति समाधानम्‌ तखात्‌ wee पोराणिकमन्त- पाटेऽधिकारः। नित्यनेमित्तकेष्वेव कर्म॑सु, तु काम्यकर्मसु | काम्य(रञ्तोनां लब्धविद्यादिताभ्िचेवणिकाधिकारिकवेनेव श्रधि- कायन्तराकाङ्खाया श्रभावात्‌ | FATT रयकारस्याविद्यवादुत्तरक्र- तुषु नाधिकार दति gard तस्वाधानमिति मौमांसकसिद्धान्तः नतु वै दिकमन््साथ्येषु कमसु कथमिति <q? उच्यते “श्रनु- मतोऽ नमस्कारो aa’ दति गौतमोक्तवैपदि कमन््स्याने नमः पद ह्पमन््ो डेनाधिकारः चान्नवसक्योऽपिः-

नमस्कारंण HAY पञ्चयज्ञान्न हापयेत्‌ |

aq एवकारादिप्रयोगवत्‌ कारण्ब्दः vam) तेन नम

दूतेव wea) विन्ञानेश्वरेस्तु “नमस्कारमन्तो देवताभ्यः fae-

(१) खतो विद्यत्न | (२) कामश्रतौनां

कालसारः | RUS

wy <aifenat नम दति वा यललिखितम्‌, aa प्रथम- पस्य WHEN नादरः | देवताभ्य दति ama बैदिकलान्नम दत्यस्येवादरः। ननु AAU प्रयोगसमवेतार्थप्रकाग्रनद्ारा कमीङ्ग- लात्‌ नमः शब्देन प्रयोगसमवेतस्य कस्यचिद्‌ य॑स्य प्रकाश्रनात्‌ कथं वा Aaa, केन पेण वा कर्माङ्गलम्‌, दति Feast जपा- दिमन्ताणं कमेसमवेतायंप्रकाग्रक्रवाभावेऽपि श्रदुष्टदारा कर्माङ्गल- वदुपपत्तिः कमंसमवेतायप्रकाग्रानं तु नावश्यक, स्मान्तकमसु वाजसनेयिनां पविचरकरणणादः केना्यप्रकाश्रनात्‌ | mgtainafss, श्रमन्तरोति परिभाषेत्यादि aza विचा- रिते तदह्भिदूंषितमनुसन्धेयम्‌, शुद्राणमामानेनेव वेश्वदेक- रणत्‌ | लोकिके वेदिक वापि इतोच्छि्टे जले दितौ दति सब्बत्ताक्तजेल एव होमः कायैः | उपनयनाभावेन वेदा- भावात्‌ ब्रह्मयज्ञस्य करणम्‌ | यदा पौ राणिकमन्तेण ब्रह यन्ञा- qua, Weyl वज्भिनैमःपदेर्वा तदनुष्टानम्‌। sagt स्वे “TET वाजसनेयिनः" gayoEManeafangeaiaca दति dag: | विगरेषम्तु॒ aa तत्र लेख्यः wa केवित्‌,- एवं दरोऽपि सामान्यं टद्धिश्राद्ध स्वेदा नमस्कारेण मन्त्रेण कुर्याद्‌ामान्नवद्‌वुघः दूति खत्यन्तरोकरेः मन्त्रवन्न दि शुद्राणां gem सपिण्डनम्‌ |

ट्ति विष्णकर ¦ |

२९४ गदाधरपदतौ

नमस्कारेण Baia याच्यवर्क्यो क्तेः | agaafaniaa मन्तवत्‌ wafaad | aida fe शद्रस्य सनमस्कारकं मतम्‌ दति योगियाज्नवसख्कयोक्तेः। दर्णानुदत्तौ शद्रोऽप्यमन््वदिति मात्योक्तेशचारिगेषाभिधानात्‌ श्राद्धपञ्चयन्न नित्यन्तानेषु पौराणिक- waste wala) एष॒ मन्तमाचस्याना क्राङ्खितलात्‌ तत्‌- पुरो हितत्राह्मणेनापि पठनौयः इति रवणिंकस्त्ौणमपि | aay मन्तवत्‌ कमं Gat कुर्याद्यथाविधि तदौद देदिके सा दि मन्ताहां धर्मसंख्लता दूति स्कान्दोक्ररेतदितरकमेसु वेदिकमन्लपाढठः | तथा नसिंहतापनोये,- “सावि प्रणवं ageat स्तौ शएद्रयोरनच्छन्ति afaat wat यजः प्रणवं यदि स्तो शद्रयोजनोयात्‌, wat- sit गच्छति नेच्छन्तोतिः “नास्ति स्तौणां क्रिया मन््ेःरिति वचनमपि पववदव दिकमन्तपरम्‌ पौ राणएिकमन्त्रास्त॒ ततृतत्‌ कमसु स्तोमिः पठनौया एव |

प्रय पुसदनम्‌ |

पुंसः सवनं स्यन्दनादिति पुमान्‌ खथतेऽनेनेति पुंसवनास्य कर्म॑ ग्भचालनात्‌ पवेमित्यथः। तथा पारस्करः, मासे fama ada वा यददः gar नचचेण चन्रमा युज्यते, दति पुषा पुंनामकपुख्ादिनचचेए यज्यते यदेत्यथंः। मासे इति गभ- धारणएकालादिति we: एवं रोमन्तोन्नयनेऽपि बोध्यम्‌ |

कालसारः। RU

aq सौोमन्तो नयनम्‌ | qussa वा सोमन्तो मासोति। श्रतानन्दसग्रहे,- षष्टेष्टमे तथा मासि सौ मन्तोन्नयने विधिः | कुर्यात्‌प्रयमगभं तु नवमे तु वचः wT दूति नवममासोऽप्यत्र विदितः शंखलिखितौ विग्रेषमादहतुः | "“गर्मस्यन्दने सौ मन्तो नयनं यावदा प्रसवः दति सौमन्ताकरणे तु सत्यत्रतः,- स्वौ यदा कतसोमन्ता WEAR कथञ्चन | ग्ट तपुचा विधिवत्‌ पुनः संखारमहंति | हारोतः,- Baas: सो मन्तन दिजस्तियः | यं यं गभं wea गभः संतो भवेत्‌ | पारस्करोऽपि,- “Ayan षष्ठेऽष्टमे वा, तयाच पुंरुवनसौ- मन्तोन्नयने ेचसंस्कारतात्‌ सदेव कायं, प्रतिगभम्‌” | सरत्‌ SHAT नारौ स्वंगभेषु FRAT दूति देवलोक्तः | कर्काचार्यास्तु गर्भान्तरेष्वनियम TATE: | दति सोमन्तोननरयनम्‌ | श्रय जातकमं | “एते जातकमे च,” श्राङ्पसर्गादिण yam” (att दण क्र) एते (MAT गभंकोषात्‌ कुमारे जाते निगंते वा) नातकर्माभिधम्‌ कम्प) Wa Vales, तत्सव॑मशौचप्रकरणे

२१६ गदाघरषडधलौ

लेष्यं aa TMA याज्ञवक्तौ येऽनुसन्धयम्‌। गभिणोपतेः चोरादिनिषेधः | तयाच स्तिः,- वदनं द्‌ हनं चेव वपनं सिन्धमघ्ननम्‌ | पवेतारोदणं चेव कुर्यात्‌ गभिणणौपतिः तथा,- नोद्‌न्वतोऽम्भसि era wate कत्तयेत्‌ | चरन्तवेल्याः Ufa: qaansit भवति भ्रुवम्‌ एतदि दहितेतर िषयमित्याचार्याः | यत एतत्‌ प्रकरणे, श्राघानपवेदौचासु प्राय्चित्ते गरोग्टैतौ सन्यासे यज्ञकाले सप्तभिवेपनं सतम्‌ तया श्रलभ्ययोगादौ ससुद्रस्तानम्‌ | | दति जातकम | AY नामकरणख्यं कम | ‘Seagal नाम” इतौ दमौ चान्तोपलच्षणएम्‌ | श्रग्नोचे तु यतिक्रान्ते नामकम विधौयते | दूति श्रङ्कखवचनात्‌ | तपात्‌ चन्तविटशृद्राः खा चान्तदिनेषु नाम कये रिव्यथेः | पारस्करः “ट्‌ गश्म्यामुत्याप्य ब्रादह्मणन्‌ भोजयिला पिता नाम करोति, Fat WTC वा घोषवदाद्यन्तरस्थं दौोघाभिष्टानम्‌ | ङतं gain तद्धितमयक्ता्रमाकारान्तं fad तद्धितम्‌ | श्रमं नाद्यणस्य, वमं चतचियस्य, Tifa awe दासेति gee”! इति ga, adeuat दग्मदिने उत्थापनम्‌ | ante

तलस्ार्‌ः | २९७

नामकरणं, ब्राद्मएत्रयभोजनं नियतम्‌ घोषवद्चर रादौ aw नान्नः तदट्घो षवदादि। TIS, HAA, est णो, दधौ नो, वभौ मो, att खो, वदो, घोषवन्तः wae अन्तं Gat यम्य तदन्त- Taq) यरद्दवा wear दो घेमहखमभिष्टानं अवसानं यस्य तत्‌ तथा छृतं (त्‌प्रत्ययान्तम्‌) यद्रा छृतं पूवपुरुषेषु fated नाम तया yng: “ङरुलदेवतासम्बद्भ पिता नाम quia” दरति gang देवतासब्बद्धं वेत्यथ स््ौनान्नि विगरेषोऽयुक्ता्तर- मित्यादि ब्राह्मणस्य शम (मङ्गलप्रतिपाद्‌कं ara) चल्नियस्य qa ( शौयप्रतिपादकं नाम) ame ad ( घनवत्तादिप्रतिपादकम्‌) | Wee दासेति प्रेव्यलप्रतिपाद्कम्‌) नाच नान्नि शर्मादधिप्रयोगः, नद्ध चर्य्यानन्तर श्रम दि प्रयो गस्य वच्छमाणएत्वात्‌ |

प्राक्‌ चृडाकरणणादालः AAAI HATS:

gary रु विज्ञेयो aaa निवन्धनम्‌

दति इद्गातातपोक्तेश्च ब्राद्यणएवालकादौनां जन्मावधि a ण्रमादि प्रयोगः| मनुरपि, माङ्गल्य agua स्यात्‌ चचियस्य बलाच्ितम्‌ | वेश्यस्य waa URE तु जग श्ितम्‌ दत्यादि |

तया, wiut खुखोद्यमक्रूरं fawerd मनोरमम्‌ |

Higa दौ धेवर्णन्तमा गो र्वादाभिघानवत्‌

“दि गिनगिवश्रतादहे तत्‌ कुलाचारतो वा इति ज्योति-

वचनात्‌ | नामधेयं दशम्यां तु दादश्वां रापि कारयेन्‌ |

| 28

नदति गदाधरपद्धतो

ge तिथौ gat वा aaa वा varia दति मनृकतश् अन्यदापि नामकरणसमाचारः। तच द्‌गम- दिनपक्लो ना द्वियते, श्रभौ चानन्तर मन्यपच्चाणं सम्भवात्‌ दत्यभिज्ञाः। कल्पतरूकारास्त॒ “ana” दत्यच, येषां दगादात्‌ प्राक्‌ Whe: तेषामित्याङ्धः | fa नामकरणम्‌ | ay वदिनिश्रमणएकमं | “aqa मामि faa” | मनुः,- चतं मासि ave शिग्रोनिक्रमणं ग्रहात्‌ | यत्त॒ भविष्ये, alan दनिऽराजेन्द्र शिग्र निच्रमणं ग्रहात्‌ | दूति “तत्‌ शाखाभेदात्‌” इति कल्पतरुकाराः | इदं वालकस्य चन्द्रतारानुकूले शएभदिने काय्येम्‌ aa दिनस्य श्रनि- यतवात्‌ WIAA ययास्वं कायेलात्‌ | एवमन्नपराशनेऽपि बोध्यम्‌ wifes तु वषमध्ये yaar दति बोध्यम्‌ दति वहिनिंक्रमः | RIAU | qaqa मासि “यत्त॒ सम्बत्सरेऽनज्नप्राप्रनम्‌”” दूति ग्रंख- लिखितवचनम्‌, तत्‌ गुखफलविषयं दति कल्यतरूकाराः | दत्यन्नप्राप्रानम्‌ |

(९) विकल्प इति कल्पतरुकाराः |

कालसारः | २१९

त्रय चृड़ाकमं BST कार्य्या यथयाकलम्‌ | मनुः, nase तोये वा ava श्रुतिचोदनात्‌ | ugfafadt “श्रयमेवघं चूडाकरणं पञ्चमे ar” | पारस्करः,“ यया मङ्गलं वा स्वेषां यद्या यथाकला चारम्‌” | यथा मङ्गलमिति, घमेश्रासत्रान्तर विहितकालान्तरस्यो पलक्षणम्‌ | ्रतएव कंचित्‌ पञ्चमेऽब्दे क्रियते, वज्भिस्तु उपनयनात्‌ पूरवे यदा- कदापि क्रियते | aq विशेषः खत्यन्तरे,- सूनोर्मातरि गभि्ां चृडाकम कारयेत्‌, प्राक्‌ पञ्चवत्छरादृद्धं गभिंष्टामपि कारयेत्‌ | चड़ाङृतौ भिशोर्माता गभिणौ चेयद्‌ा भवेत्‌, कते गभ विपत्तिः स्यादम्पत्योर्वा सुतस्य वा i दरदं चूड़ादिकं कमं मकरादिमासषट्रे- चूडा माघादिषद्वं लघुदरण्टदभे मे चोन सक्र ATH सत्सु केच्धेखशएभगगनेदेद्धिगै विष्णवोधे | नो रिक्रायष्टषष्टान्त्येतियिषु यमारादयुग्माब्दमासे, नो जनमर्दनटुमासे विधटङ्जग्रगिन्यच्लम्नाकंष्एद्धौ | दति च्योतिःशास्त्ात्‌। aq माघादिपदं सौरमासपरम्‌ | “सौरो मासो विवाहादौ इत्युक्तेः दति चूडाकमेकालाः

२२० गद्एधर्पद्धतौ

रयो पनयनकालाः | विश्चामिचयान्नवरक्यौ,- गर्भाष्टमेऽष्टमे वाब्दे ब्राद्धुणस्यो पनायनम्‌ | राज्नामेकादगे रुके विशामेके यथाकुलम्‌ श्रच गभपदम्य ware गुणणौग्रतवेऽपि राज्ञामित्यादिव्वप्यन्वेयः, अय श्रब्दानुश़ासनं केषां श्ब्दानामितिवत्‌ | गभदिकादगे राज्ञो ग्भात्ति दाद्गे विशः। दति मनक्तः | नयनमेव नायन पञ्यादुपोपसगः | फलकामनायान्तु मनुः त्रह्मवचसकामस्य काय्यं विप्रस्य पञ्चमे | राज्ञो वलार्थिंनः षष्टे वे ्टस्येहा यिनोऽष्टने उपनयनस्य परमावधिमाद यान्ञवरक्यः,- श्राषोड्गाद्भा fants चतुविंशाच्च वत्सरात्‌, ageatant काल श्रौपनायनिकः परः श्रत Sg पतन्त्येते षवधमेवदिष्कताः, साविचौपतिता व्रात्या ब्रात्यास्तोमादृते क्रतोः उक्रकालव्यतिक्रमेऽपि ब्रात्यास्तोमनामकक्रतुकरणरूपप्रायसिन्ता- नन्तरमेव सस्काय्ये एव इत्ययः 1 IU विवाह एव उपनयनम्‌, aatfeart विधिः स्ीणामौ पनायनिकः wa: | दति मनूक्तः। यान्ञवल्क्यः,- प्रतिवेदं agra दादग्ाब्दानि पञ्च वा। ग्रहणा न्तिकमित्येके केगान्तञ्चैव षोड्गरे

कानसारः | +.

तया,- गुरवे वर Tal खाया तदनुज्ञया | वेदं व्रतानि वा पार नौवाप्युभयमेव वा॥ च्रविश्चुतत्रद्यचर्यो weet स्वयमु देत्‌ गुरवे वरं (श्रभिलपितं) श्रमिलदितदानाग्क्रौ तदनुन्नया THU: | पारख्करः,- “चयः स्ञातका भवन्ति, दिद्यास्तातकः त्रत- स्लातको विद्यात्रतस्तकः | समाप्य वेदममसमाप्य व्रतं यः समावन्तते विद्याक्लातकः यो Fa समाप्य वेदमसमाप्य समावत्तते, व्रत- Qian: | उभयं समाप्य समावतन्तते विद्यात्रतस्लातकः ननु- sama तिष्ठेत दिनसेकमपि fas: | दति निषेधेऽपि च्रस्मट्‌भ्रे समावत्तनानन्तरं कथं विलम्ब्य विवाद दूति चेत्‌, सत्यम्‌ | “अभावे कन्यकायाः wan ad चरत्‌, afa वा चचियायां एुचानुत्यादयोत वेश्यायां वा” दूति पेढोनसिवचनात्‌ कलियग- fafagy “asa agua” दरति निषेधोक्ेख ame ्रसमाचारः सङ्गच्छत एव afaa वेण्ययोः कलावभावात्‌ तदिवादव्यवदहारः। श्यद्राणं तु यमः, शद्रोऽपेवम्िधः ara विना मन्तेण dea: | केनवित्छमष्टजत्‌ saat तं प्रजापतिः छन्दसा (वेदेन) समष्जत्‌ (न समयोजयत्‌) | Alg,— faareara संस्कार शृद्रोऽपि लभतां सदा | माचशब्देन विवाडेतररस्कारनिट्तिः, तथाच यमन्राह्ाक्तिभ्यां

RAR गदाधरपद्धतो

az गर्भाघानपुंमवनसौमन्तोन्नयनजातकमेनामघेयव हिनिंच्र- मणान्नप्राग्रनचूडाकरणविवादहाः इति ay विवाहकालाः। विष्णुरे वधे रेकगुणणं भार्यामुददेल्ियणः खयं | मनुः,- जिग्रदर्षो वदेत्‌कन्यां wait दाद शवाषिकं | व्यष्टवर्षोऽष्टवषों वा धमं Bieta सत्वरः सत्वरः ग्दस्थाश्रमे चरायुक्तः सनित्ययः | कश्यपः, अष्टवर्षा भवेन्न रौ नववर्षा तु रोदिणणौ | द्‌ प्रावर्षां भवेत्‌ कन्या BA Ts CHAT | श्रतानन्दः+- ग्भादष्टमव्षं तु दशमे दादशेऽपि वा। कन्यापरिणएयः Wea इति वाद्ादिसम्मत सम्बन्तः,-- विवादस्ष्टवर्षायाः कन्यायाः शस्यते बुधः | गर्भादिति सवेचान्वयः अन्यया, कन्या द्वादशवर्षाणि याप्रदत्ता WE वसेत्‌ | म्टणद्दत्या पितुस्तस्याः सा कन्या वर येत्‌ सखयं दूत्यादियमादौनां तू( दाद्‌ शवं विवादे निन्दावचनमनथेकं स्यात्‌ च्रतएव जन््ावधिसक्तमवं गौरौलमाइ कश्यपः, सप्तवर्षं भवेन्नोरौ दशवर्षां तु कन्यका | Wa तु sen ay कुमारौत्यभिधोयति॥ afaasfa,— anaat wae] दशवर्षां तु निका) द्वादगे तु भवेत्‌ कन्या अरत BS रजखला

(९) जन्मावश्धिद्दादशवषे |

कालतसारः। ष्ट्म्ट्र्‌

सप्रमवषेस्य गर्माष्टमलादिति कल्यतरूकाराः तथाच मासद- याधिकषड्वर्षानन्तरं स्तण विवाहकाल see: तस्िन्नेव वषं कन्याया गौरौलमिति सिद्धं एवं a स्तौणं जन्म्रावय्येकाद श- वषेमभिव्याप्य विवादकालस्य परमावधिरिव्युक्तं भवति विशेषं मनुराह, afar या मातुरसगोचा या faa: | सा प्रशस्ता दिजातौनां दारकमंणि aah दारकमेणि ( दारलजनक्े विवाहे ) मेने ( मियनवाच्यस्त्ो- पुंससाध्य श्राघानकमंणि) केवलं स्त्रौखाध्यपाकादिकमेणि | रपि तु उभयसाय्येऽपि सा प्रश्सतत्ययेः “मिथुनसाध्यधस्मपुचोत्पन्तौ दति कल्पतरूकाराः॥ व्यासो विगरेषान्तरमाद,- सगोचां मातुर्येके नेढन्दुद्ाहकमेणि AGATA विज्ञानाद्‌ ददद्‌ AMSA: तदसम्भवे यान्ञुवर्क्यः+- पञ्चमात्सप्तमादूद्धं मातः पिदतस्तया | माहतो मादसन्ताने मातामदहादिपिण्डन सपिण्डामपि पञ्च agg उडइडेत्‌, पिदसन्ताने पितामहादिपिण्डन सपिष्डामपि सप्तमादृद्धं उदहेदित्ययेः। तचाप्यसम्भवे, वशिष्ठः, पञ्चमो सप्तमी चेव aren: पिहतस्तया इति

~~ -- - ee ~~ = = कण न= =, - - -~~~~ ~~

२०४ गदाधरपद्धतौ

“एतद वाङ्निषेधाय, पुनस्तत्प्राष्ययम्‌' दति विज्ञानेश्वराः। कल्पतरौ तु “च्रममानजातौयकन्या विषयमेतदितिः “ख्वणे- मातामदक्सलविषयमेतदिति मदनपालः विमादसपिण्डेऽपि निधेघमाद सुमन्तुः+-- facie: सर्वा मातरः तङ्खातरो मातुलाः | तदु दितरञ् भगिन्यः, तर्द्पत्याः भागिनेयाः स्युः, ताः सङ्करकारि- wuagat नो ददेदिति। स्वेभिद्‌ं सम्भवपरं अ्रत्यन्तासम्भवे तु सुमन्तुः. “Pade मातः, पञ्चातीत्यपिदतः” पेठोनसि- रपि “कन्‌ मातः, पञ्च पित इति वा” wa “समानजातौये पञ्च, असमानजातौये चनिति व्यवस्थितो विकच्यः इति कल्पतरौ aqua तथापि शरस ठद्धेरत्यन्तासम्भवपर मित्येव लिखितं | agiai तु, पिहबन्धमाठवबन्दुलक्तणं यथा, च्रादि पुरुषस्य सगोन्ेते- ऽपि पिहसन्तानो भवति। श्रन्यगो चते माठटसन्तानो भवति इति “यत्त पिदस्सुः खसु; gar” दत्यादिकात्यायनोक्तिमु दात्य तियितत्वकारैः पिहवन्ध्वा दिलं उक्तं। “तत्‌ अशौचे क्रिया- कर्तरधिकारे च” असे भर निबन्धकारोलिखितलात्‌ तदक्षणएमा- द्वियते), aa आत्मवन्धोरपि sada | काचिदस्म्द्‌शविष- gifa दाविणत्यसयदहकारिकाः-

चतुर्थो सुददेत्वन्यां was पञ्चमोमपि। पाराश्र्यमते षष्ठी पञ्चमो तु पञ्चमो पञ्चमः पञ्चमं कन्यां नोदडेदिति Gam: | पिदटपक्ते निषेधोऽयं माटपक्ते दूषणं

(१) ्छाद्धियते तच aaa रणिद च्तिणान्यसंयद् कारिका, |

कालसार्‌ः | २९५

कूटस्थगणनायान्त्‌ यस्यां gt वरस्य तु | जनको विद्यमानेत्‌ a पच्छः पि पच्कः जननौ विद्यमाना चेत्‌ पचो मादपच्तकः। दति, विवा दयेदित्यनुटन्तौ याज्ञवस्क्यः, ““त्रसमानाषेगोचजाम्‌” इति छषेरिद आपै प्रवरदत्ययेः गोच वंश्र परम्परा प्रसिद्धं | श्रा पस्तम्बः,- समानगोचप्रवरां कन्यामुढोपगम्यच | तस्यासुत्पाद्य पिण्डादं argurea हौयते॥ एवं प्रवरेक्येऽपि,- परिणीय सगोचां समानप्रवरां तथा | त्या गं ear दिजस्तस्यास्ततञ्यान्द्रायणं चरेत्‌ दति पाथक्येन परिगणनात्‌ त्यागश्चोपभोगस्य, तस्याः समानप्रवरां कन्यां गोचजामयवापि ar | faareafa ot मूढस्तस्य वच्छामि निष्कृति उत्स्य तां ततो भायां माहवत्परि पालयत्‌ | दति शातातपोक्रेः। समानप्रबरखशूपमादइ बोधायनः, एक एव खषिर्यावत्‌ प्रवरेष्वनिवन्तते | तावत्छमानगोचत्वग्टते सम्बङ्गिरोगणात्‌ समान गोचल्नं खमानप्रवरत्वमित्यथेः। श्चग्वङ्गिरो गणेषु विग्रेषमाह संग्रदकारःः- पञ्चानां fay सामान्याद्‌विवाहइ स्िषु इयोः | गम्बङ्किरो गणेष्वेवं वं ेष्वेकोऽपि वारयत्‌ 29

२२६ गदाधरपद्धतौ

तथाच पञ्चार्घ॑याणां खछषिचयानुटत्तौ मियो विवाहः | व्यार्ष्याणां खषिद्रयातुढन्तौ विवादः गेषेष्वेकानुटन्तौ विवाद द्त्यथेः,- जमटयिभरदाजो विश्वामिचोऽचिगौलमौ | वशिष्ठः गौतमोऽगस्तिरेषां येऽपयेनुयायिनः येषां तुल्यषिंश्यस्वं नो ददन्ति मिस्ते | एष,मष्टानामेकस्यापि येषु प्रवरेष्वनुवन्तेनं, तेषां भियो विवादः | सवेषितुल्यले विवाहः we एव | कश्धपः,- अ्रनेकेभ्योऽपि दत्तायामनूढायां तु यच वे। वरागमश्च स्वेषां लभेतादिवरस्तु तां पश्चादरेण यदत्त तस्याः प्रतिलभेत मः। तथा गकवृषूढ़ायां दत्तं पूवेवरो देत्‌ gaat धनयदणएपूवेकं दातं प्रतिन्ञाय यच बहनां aut श्रागमने, तचादिवरः तां कन्यां लभेत, अन्ये तु पूवेदन्तमूल् लभर न्नित्ययेः | नारदः, प्रतिग्टह्य तु यः कन्यां वरो देशान्तरं ब्रजेत्‌ | चौनृद्ठन्‌ समतिक्रम्य सा चान्यं वरयेद्धर प्रतिग्द्य वाग्दत्तं laa: कात्यायनः, प्रदाय WA WY: कन्यायाः साधनं तथा | ural सा वषमेकन्तु देयान्यस्रे विधानतः यमः, वाचा दत्तात्‌ या कन्या यदि तस्या वरो wa: | मन्त्ोपपन्ना सा कन्यका पितुरेव सा॥

RIAA: | RRO

मन्त्लोऽच पाणिग्राहणिकः | मनुः,- कन्यायां canara बियेत यदि Wenz: | देवराय प्रटातव्या यदि कन्यानुमन्यते ay पुचदुदिचोरनब्दमध्ये व्रतविवादविचारः। ञ्यो तिःशरास्ते,- नपु विवादोद्धैग्तुचयेण विवादकायं द्‌ हितश्च यन्नात्‌ | मण्डनादुपरि मुण्डनं स्यात्‌ तन्पण्डनान्म्ण्डनमन्वगेव तथाच पुचोपनयनादृद्धं दु दिद विवादः | र्युदधाहो नेव कार्योऽष्येकस्मिन्‌ द्‌ हिटदयं | चेकजन्ययोः पुंसो रे कजन्ये कन्यके नूनं कदा चिदुद्रादो नेकधा सुण्डनदयं | पुरौ परिणय दृद्धं यावददिनचलतष्टयं पुव्यन्तरस्य कुर्वोत नोदाहमिति खूरयः। एतत्‌ विमादकन्याविषयं अन्यया सतौ, एको दर प्रसूतानां विवादो नेकवत्सरे | विवादो नैव करव्यो गामस्य वचनं यथा दति एकोदरवेयथ्यं म्यात्‌ श्रमम्भवे तु, विवाद्ेकजन्यानां षण्मासाभ्यन्तरे यदि | sand वचिभिर्व॑षेस्ततेका विधवा भवेत्‌ दत्यादौनामपि aaa स्यात्‌ | तथा, एकोदये करतलग्रदण यदि श्या- देकोदरख्थवरयोः कुलमेति ary

२२७ गदाधर्पद्तौ

एकान्द्के तु विधवा भवतोति कन्या, दयन्तरव्यव हितं Was वदन्ति ्रधिकोऽच एकलद्रविवाहे दोषः दति। त्रय ज्येष्ठपुचद्‌ दितो seas त्रतविवादहादि विचारः, ज्यो तिः्ास््,- we मासि तथा ara” चौर परिणयं व्रतं ज्येष्ठपु चद्‌ दितो aan परिबवन्नैयेत्‌ रन्नमालायां,- श्रा्यगभद्‌ हतुः सुतस्य वा जच्चैष्ठमासि fe पाणिपोडन | ज्यो तिः शास्ते- santa जन्मभे तया नेव जन््रदिवसेऽपि कारयेत्‌ श्रा्यगभेद्‌ हितः सुतस्य वा ज्येष्ठमासि दि जातु मङ्गलं aa जन्म्रमासि दत्यादिचिकनिषेधोऽपि च्येष्ठपर एव | श्रन्यया,- जन्ममासे Gal धनाच्या जन्मभोदये | जन्मभे wager कन्या हि भरुबखन्ततिः AMZ जन्मसु तारकासु मासेऽयवा जन्मनि जन्मभे वा, ad a विप्रोऽध्ययनं विनापि प्रज्ञा विगरेषेः प्रथितः प्रयिव्यां i दत्यादयुक्निविरोधः स्वात्‌ | पिहच्येष्ठं विना चान्यो eget दूव्यति | माठतो च्यषटपुचशचेन्न दोषो वे प्रजायते

(१) मागें |

कालसार्‌ः | २.२९

्रसम्भवे तु ज्योतिःगास्ते,- हन्तिकास्यं रविं त्यक्ता we च्य्टस्य कारयेत्‌ उत्सवेषु wag feagiena त्यजेत्‌ 1 टृषमासे प्रथमं छत्तिकानचत्े द्वाद शां रवेर्भागः “सौरो मासो विवादादौ” दत्यक्ततात्‌ ज्येष्ठो (aa: ),- प्रथमं ज्येष्ठमासस्य मादव्यो वन्जैये दिनं | प्भकर्म्यप्रजानामष्टौ सुनिभागुरिः द्‌ शाहं चेव गाग्येख द्वादशाह टदस्यतिः। asta fae भोगं यावन्मनिपराश्ररः श्रजोऽच मेषमासः तथाच मेषमासान्त्यदिनपञ्चकेऽपि वजेन | तावन््रश्चतिकृत्तिक प्रृत्तेरिति पराग्रराभिप्रायः श्रयाप्रटद्धिकालेषु कमकरणाकरणएविचारः | तज्ादावस्मत्छतण्टद्धिसारकारिकाः लिखिता पञ्चाल्छषाचि- वचनानि लेख्यानि | तयाच,- कालस्याग्रचिताऽधिमास्यय दरिसखापेऽय याम्यायने, ग॒र्वादित्य उदौरितोभवविधे राश्चेकतारेक्यतः | तस्यां सिंदटृदस्यतौ सुरगरो वाले ae कवौ, सन्ध्यास्तंगतवाल्यवाद्धेकवश्रान्नष्टे द्धि Aa लप्तान्दे ऽधिकवत्सरे मकरगे जोवेऽपि कालोऽश्चिः | तचोड्ादिषु सर्वकमकरणं देगेषु fread कालाश्द्धिषु काम्यकमैकरणं नेवाय नेमित्तिकं | नित्यं काय्येमिह मतिप्रसवाङ्ल fama aa

२३० गदाधर्पद्धतौ

शिष्टवाक्यं,- गर्वादित्ये यरो सिंहे नष्टे प्रक्र मलो स्तरे | याम्यायने दरौ सुरे सरव॑कर्माणि asad तया,- ara afg गते Ma सवेकर्ममाणि वजेयत्‌ | टृद्धिं (aga) गर्वादित्यो दिविधः। एकरा शिगतलेन एकनचच- गतत्वेन चेति एकनचचगतत्वं भिन्नराशिस्थते सतति बोध्यं | तयाच कश्यपः,- छचेकमन्दिरगतौ यदि जोवभान्‌ WRIT: सुरवर कु रुश्भिहे | नारभ्यते ब्रतविवादग्टदप्रतिष्टा- चौ रादिकभमगमनागमनं घोरः नारभ्यत दत्यनेन आरन्धन्रतं काय्यं Baaas मन्दिरं राभिः तथाच ददस्पतिसर्यो एकरा शिगतो यदौत्यथेः एतेन टदस्पतेरस्तं गमनमणुक्तं | विभोग्यनचचगतलमस्तवमिति लक्षणात्‌ गुवादित्य Tam सवेधमेनिषेधः काम्यपरः अ्रच माकिवाक्यानि मलमाम- प्रस्तावे लेख्यानि ग्रक्रनष्टव्चात्‌विध्यप्रतिपादकोक्तयो लेख्याः | उत्तरसौरे,- शरोमध्यमसक्रान्तिदोनश्वान्द्रोऽधिवत्छरः | वर्ज्यानि aa यन्नाधंप्रतिष्ठादौनि नाकिनां स्य टसंक्रान्तिहोनखेत्‌ Rast yaaa | श्रतानन्दः+- श्रतिचारगतोजोवो नेति चेत्‌पूवेमन्दिरं | | प्रसम्बत्सरो ज्ञेयः स्वेकमेसु गदितः सिदस्थं ARTS गुरुं यनेन बजेयेत्‌ |

कालसारः | RRV

दृति देवौपुराणोक्रः, प्रतिष्टादौ मकरदटदस्यतिरपि as क्रः तत्र लृ्तसम्बत्सरे कमेनिषधेऽपवाद माद सत्याचायेः,- राशित्तयं सञ्चरतेऽब्द मध्ये नायाति ga यदि लुप्रवषे। Mat कर्माणि तदा करय्याचिद्ाय गौडोडविदारदे शान्‌ ! ज्यो तिः शास्ते मकरददस्यतावध्यपवादः,- नमेदापूवभागेतु शोणस्योत्तरद किणे | गण्डक्याः पञ्चिमे एर मकरस्यो दोषभाक्‌ एतद धिसम्बत्सर स्याप्ुपलचण, श्रमे श्िष्टाचारात्‌ | तथाच ल्तवर्षाधिकवषंमकरट्हम्यतिषु सवेकमेकरणं निःसन्दिग्धमेव | सवासखपि कालाशएद्धिषु काम्यकमेणो वजेनं, नित्यनेमित्तिकयो- रिति सामान्यतः। विशेषस्तु aa aa लेख्यः | अय मलमासकारिका। काम्यारमभसमापने मलिने मामे तु कच्छरादिकं, प्रारथं हि समापयेत्तदपि यत्‌ मासात्छतं सावनात्‌ | आरम्भस्य समापनस्य Yet मध्येऽधिमासम्तदा- TY कमे समाचरेदय नवे तौर्यामरेच्ये त्यजेत्‌ रो गावषेणश्रा न्तिमुख्यकरणणा कालप्रतौ चासद- स्यारम्भं समापन मलिने काम्यस्य कुर्यादधः | नो सुचेत्सकलं तदाप्यगतिकं नित्याग्निदोचादिकं नित्यं मोमस्वादि नो गतियुतं नाधानमप्याचरेत्‌

दर्‌

गदाधरपडलौ

जातेष्टिं गतिसंयुतां fe तदा कुर्याद योत्सजेन- aafe ग्रदणोदितं तरगतिकं sates चरेत्‌। पंखतिप्रमुखान्नखादनविधिप्रान्तानि कर्माणि षट्‌, fa स्वंमलभ्ययो गविदितं श्राद्धादिकं कमे च॥ ng मासि ata तनुयाच्छराद्धं तु anifed, दानश्राद्धविधो य॒गादिषु तथा श्राद्धादि मन्ादिषु। प्रेतान्दोदककुम्भद्‌ानमय नो fe प्रतपचाष्टका- न्वष्टक्यप्रथितानि जातु मलिने श्राद्धानि gale: ui श्राद्धे मासि मलेऽधिमासविदितं ag faratfed, qua सति तस्य पणेदिवसाधोऽपयूनषाणएमा सिकं

“ng मासि शतस्य मासि मलिनेऽप्ाद्यादिकं are,

दन्यदार्षिंकमाचरेद्धि मलिने नष्टस्य मासे मले नव्यस्त्रौ गमनं तया परिएयानन्तयभाङ्गुतने- न्दोवन्दापनमचनूतनगयाश्राद्धं PATA: | वि्नशव्रतमब्द पच्चविदितं तचरा संसपेके,

aie मासि विवादमुख्यर हिताः wan: श्रुतेश्च क्रियाः मासश्चा धिक श्राधिने यदि भवेत्‌ तत्‌प्ूवेतो वामरा- नष्टौ चाधिकमासमेव सकलं Wei एएक्ताषटमों | agra श्रिवा चनं विरचयेचेन्रख्यपकच्चमो-

(शक्तः णड दर हाचरेन्नवदिनादिष्वेकपचं gat: ti

मलमाससखरूपं ब्रह्मसिद्धन्ते,-

चान्द्रो मासो दयसक्रान्तो मलमासः vata: |

कालसारः | रोद

ग्टद्यपरि श्ट ,- मलं वदन्ति कालस्य मासकालविदोऽधिकं) कालाधिक्यं विष्णधर्मोत्तरे उक्र, सौ रेणाब्दस्त॒ मानेन यदा भवति aria | aaa तु तदा माने दिनषडट्‌ प्येते | दिनराव्यश्च ते राम प्रोक्ताः सम्वत्सरेण षट्‌ सौरसम्बत्छरस्यान्ते मानेन शशिजेन तु 1 एकादश्रातिरि च्यन्ते दिनानि waa | वषदये साष्टमासे तस्मान््रासोऽतिरिच्यते चाधिमासकः प्रोक्तः wanna गहत: | सो रवषेस्य पञ्चषष्वधिकचिशतदि नात्मकलं ¦ चनद््राब्दस्त॒ चत्‌ः- पञ्चाश्दधिकचिशतदिनात्मकल्मिति एकाद शदिनाधिकलं नन्वेवं सति दिनाद्धंनूनोऽधिको मास दति चेत्सत्यं अतएव सिद्धान्ते, alfanfgiaata fea: षोडगशभिस्तथा | घटिकानां चतुष्केण पतत्येकोऽधिमासकः॥ cfs ननु श्राधिक्ये सति मासस्य मलत्वं कुत दति चत्‌, तस्य नप॑सकला दित्येवेश्य तयाच, ज्यो तिःशास्ते,- ्रसद्धगन्तो दि यो मासः कदाचित्तियिदद्धितः। कलान्तरात्समायाति नपुंसक Tad | नपुमकलवं कुत दूति चेत्‌, पुरुषस्य que तन्मा सेऽभावादि- तयेवेथ्य। तयाच, तवेव, - मासेषु दाद शादित्यास्तपन्ते fe यथाक्रमम्‌ | 30

१३४ गदाधरपड्धतौ

नएमकेऽधिक्रे मासे मण्डलं तपते रवेः प्रातातपस्वाह,-- awa’: समाक्रान्तं रवयेमङ्का न्तिवजितं | मलोम्बुचं विजानौयात्‌ मवेकमेखु गदितं यत्त॒ ASHE यस्मिन्मासे सङ्खान्तिः सद्काज्तिदयमेड वा | मलमासः विज्ञेयो मासे टिग्रत्तमे भवेत्‌ i दति स्फटमानाभितं। दािग्रह्विरिति मध्यनमानाभितमिति किदिरोधः। लघुहारौतः,- sua यच waa मासादिः प्रकौजिंतः। अद्निमोमो wat मध्ये समाप्तौ पिदमोमकौ तमतिक्रम्य तु यदा रविगेच्छेत्‌ कदाचन | wet मलौन्तुचो ज्ञयो दितोयः प्राकृतः wa: तथाच, गएक्तप्रतिपदादिदर्णन्तामासः, संक्रान्तिरदितोऽधिमास दूत्यापद्यते | प्न्तमासः सक्रान्तिदरययुक्ः चयमासः। उभयोरपि मलत्वमित्यथेः। ननु अ्रधिमासे जातस्य उत्तरवघंषु कस्मिन्‌ मासे खनच्चप्रजादि, गतस्य तु कुच श्राद्धादि अनुष्टेयमिति चेत्‌, उच्यते, तस्य उत्तरम सेऽन्तर्भावात्‌ उन्तरमासे तदनुष्ठेयं | तथाच, च्योतिःपितामदः- षष्ठया तु fead मासः कथितो arecrag: | gaig तु परित्यज्य उन्तराद्धं प्रशस्यते

कालसारः | २२५

दूति ज्योतिःशास्ते। तथाच एतद्राक्यमुपनोव्य माघवाचार्य्याः,- चान्द्रोऽधिमासः data: सोऽन्तभेवति चोत्तरे, दति aa कञिदिगशरेषः सुधोभिरवधेयः॥ तच afteara var विचारणोय। तथाच, azarae श्रधिमासपाते wet मलपोणेमासोपक्तः, तदुत्तरं मलद्‌ शेपक्लः, तदुत्तरं इएड्धपौणेमासौ पचः तच कस्यचित्‌ जन्म मलद भेपक्ते, Fura शद्ध पौणंमासोपरे, तत्राधिमासस्य शद्धद गान्तमासे- sauia सिद्धे सति मलपोणंमासौपचस्य शद्ध पौ मासौ पचेऽन्त- भावः। aang भाद्रषटद्धदभररूपे पौरण॑म्यन्तपक्तमाञ्ित्य आ्रश्चिनदगशेपच्तया वयवदहियमाणेऽन्तर्भावः। तथाच aware एएद्धपो णमासोपच्चे यस्य wa, पञ्चात्‌जातस्यापि तद्‌ त्तरशएद्धवघें लादौ खनचचप्रूजा यस्य मलद्‌भेक्ते जन्म, तस्या यिजातस्यापि श्राश्चिनङृष्णपचतया व्वदह्ियमाणे Huy पञ्चात्‌ सखनचचपूजा | एवं आद्धादौ बोद्धव्यं, अयमधिमासः चेचादिमघ्रसु मासेषु भवति ! तदुक्तं agfagri— चेचादर्वाक नाधिमासः परतसधिको भवेत्‌ | ज्यो तिःमिद्धान्ते,- धटकन्यागते aa उसितो वाय घन्वनि। मकरे वाय Haj वा नाधिमामो विधौयते॥ दति। ननु दिसक्रान्तमासख एष्वेव मासेषु पततोति चेत्‌, न। ज्यो fa: सिद्धान्ते,-- श्रसक्रान्तिमासोऽधिमासः MHS: स्यात्‌ |

२३६ गदाधरपद्धतौ

दिसक्रान्तिमासः sare: कद्‌ चित्‌ aa: कात्तिकादिचये नान्यदा स्यात्‌ | तदा वषंमध्येऽधिमास्दरयं स्यात्‌ दरति, काल्तिकादिमामचय waar: | चयमासयुक्ते वं च्यमासात्‌ yd दिचेषु मासेषु मध्ये एकोऽधिमासः चयमासा- दूद्खमपि मासच्रयमध्ये ऽपरोऽधिमासः। ज्योतिःशास्त्रे, द्णेदयं मेषसुख्येकराग्रिख्िते तु चेचप्रसुखोऽधिमासः। द्‌र्गान्त ऊर्व्नादिकमासि qa राशिदयस्ये waar उक्रः। ननु यया एकाधिकमासोपेताब्दस्य चयोट ग्र मासात्यमकतवं | तथा श्रधिमामद्रयोपेतान्दस्य चत्‌ गमासात्मकलं WA | तचयुक्त च्योदशरं तु श्रतिरादमामं चतुदश क्रापि चेव दृष्टः दूति वचनात्‌ इति चेत्‌, नेष ete: | शअरसक्रान्ततेन श्रधिक- प्रसिद्धियतयोद्ययो मेध्येपूवेस्याधिकलनिषेधात्‌ | तयाच जावालिः, एकस्मिन्नेव वषं तु at भासावधिमासकौ | परारुतस्तच wa: Wear मलोन्लुचः दति, प्राकृतः ufganie TU | Rava चयमासपवेस्यासक्रान्त- मासस्य सम्यकूसपेति कमेण दृति संसपनामकलं चयमासस्य aaa अहसः पापस्य पतिर दस्पतिनामकव | aura, विवादाद्‌ विति प्रत्य ज्यो तिर्यन्ये,- यस्मिन्‌ मासे सक्रान्तिः सक्रान्तिदयमेव बरा

कालसारः | २२७

संसपेों दस्यतो मामावधिमासश्च निन्दितः एतद्रचनसुपजोव्य माघवोच,- चयस्लयाज्या विवाहादौ संसपोंदस्यतो उभो | met Wa तथा AI मलमासो विविच्यते | द्रति चयो त्तरामक्रान्तमासस्य मलतमेव, “उत्तरस्तु AMAT” इति वचनात्‌ नन्वेवं चतुद ्रमासात्मकभावे एकाद ग्ात्मकल- प्रसक्तिः तच्च दादग मासाः सम्वत्सर इति नित्यवत्‌ afafaeg ननु afe केवलाधिमासघं चयो द्‌ गात्मकमपि तदिरुद्ध मिति चेत्‌ क्रचित्‌ चयोदग़मामाः मन्बत्सर र्ति at तथा सति चयमासोपेते चयोद्‌ गर मासात्मकेऽपि अन्दे दयोरसक्रान्तयोः परित्यागे सत्यवशिष्टाः ससंक्रान्ता एकादगेव मासा द्रत्यतो नित्यवच्छति- विरोध दति da दिसंक्रान्तियक्रस्य रयमासस्य मासद्रयलेन गणनात्‌ | तथाच सतिः, तिश्यद्धं प्रथमे पूरवो दितोयेऽद्धं तदुत्तरः। मासाविति qu fy चयमासस्य मध्यगो दति चालनमंस्काराभावे इदं वोध्य “न चलति यदि वौ तन्मासयगं विचिन्त्य" इति वटेश्वर सिद्धान्तोक्रः | wa मलमासे निरूपिते वर्या वर््यान्युच्यन्ते | aa पेटोनसिः,- श्रौ तस्मात्तैक्ियाः val stew मासि WAT: | जयोदशे तु सर्वास्ता निस्फला दति कौ्तिंताः॥

+. गदाधर्पड्धतौ

निस्फला cam: काम्यकमेनिषेधः। दृष्या दिसवेकाम्ये तु मलमासे विवजयेत्‌ | इति Waa: | नित्ये नेभित्तिके कुर्यात्‌ प्रयतः सन्मलौ म्चे | दरति इदस्पत्यक्तेनित्यनेमित्तिककरणं। अधिमासे निपतितेऽप्येष एव विधिक्रमः। दति सतेरारम्भममाभ्भिमध्ये मलमासपातेऽपि पूर्वारसकाम्य कायमेव | आ्रआरम्भसमापनेतु एद्काल एव,- असूया नामये मासा तेषु मम BAA: | त्रतानां चेव यज्ञानामारम्भाञ्च HATH: इत्युक्तेः यत्त॒ काठटकग्टहय,- प्रटृत्तं AMAA प्राक्‌ काम्यं कमं समापितं। Wad मलमासेऽपि तत्समाप्य ana: इति तत्‌ सावनमानप्रदत्तरृच्छ्रचाद्धायणं डि सचादि विषचं | गाग्यैः, श्रपूवेदे वतां दृष्टा Wha: खाननष्टभागंवे | मलमासेऽप्यनाइत्ततौ ययाचां विवन्लयेत्‌ तयाचाप्वं दे वद्‌ भना पूवेतौयेयाचे निषिद्धे मलमासे प्रक्रान्ते दिचेष्वदःसु गच्छत्सु यदि कञिद्धालो वालग्रहब्रह्मराचसादिना maga यदि वा रोगदृद्धिमेदितौ स्यात्‌, यदि वा afenfaan: स्यात्‌, यदि वा राजद्रोह श्रापतेत्‌, यदि वा अभिचारः केनचित्‌ परारभ्येत, तच मलमासस्य समात्निप्रतौचायां वालादिवाघादिकं स्यात्‌, तस्मात्त्रतो कारस्य कत्तेमुचितलादात्ययिकका्येषु द्य

कालसारः | २३९

नपेचणस्य wafiaatq “aaa यजेता भिचर्यमाणः” दत्यादि वन्तंमानायेशानकच्प्रत्ययान्तश्ब्दादिभिः समानकाललाविग़रेषाच मल- मासेऽपि तादुश्रकमैणामारम्भः समापनं कारयमेव ! नित्यनेमि- स्िकयोरपि यद्‌नन्यगतिक, तदेव aware ara सगतिकं तु कायं | तथाच, काटकग्टद्येः मलमासेऽनन्यगति कुर्यान्नेमित्तिकौ क्रियां | गरद्यपरिशिष्टेऽनन्यगतिकानि यया,- वषट कार-दोमाखपवे WRIT तथा | मलमासेऽपि ara काम्या दृष्टौ विवञयेत्‌ i AATZITS मायिहोत्नोपासनवेश्वदेवादयः | RSH सोमयागादिकर्माणि काम्यान्यपि मलोस्तुचे षष्ठोश्चाश्रयणघानचातुर्मास्यादिकान्यपि मडालयाष्टकाश्रा्धोपाकर्माद्यपि कमे यत्‌ | सखसखमासविगषस्य fated वजयेन्मले तथाच दसन्ते विदितस्य सोमयागस्य मलमासे वजेनेऽपि एएद्धमा सेऽनुष्टानसम्भवात्‌ सगतिकलं | एवमादि सगतिकनित्यानां वजेनं selfs: काठटकशशादादौ सिद्धा | मात्ये,- आधानं यज्नकर्माणि प्रायशित्तरतानि कुर्यान्मलमामेऽपि WHT ARI सक्रान्तिर दिति मामे कूर्यांदाश्रयणं नवा।

ROE गदाधरपद्धतौ

दूति पेढोनसिना विकल्ितवाद्‌ाश्रयणस्य सगतिकागतिकयो- रदाहरणं विर्द्धं। जातेष्टौ चेऽवसिते यथयानुष्ठानं, तया मलमामेऽप्यव सितेऽनुष्टातुं श्रक्यलातसगतिकनेमित्तिकलान्नातेष्टिन कार्या | एवमादिसगतिकनेमित्तिकानां asa | चन्द्रसूयेग्रे Bla आआद्धदानजपादिकं। कार्याणि मलमासे तु नित्यनेमिन्तिकं तया it दरति यमवचनादगतिकनेमित्तिकानि ग्रदणस्तानादौनि कार्या- प्यव जन्द्रमरणन्तेवा गौ चादौनां सावनंमानप्रत्तवात्तदाचरणं | ''सूतकादिपरि च्छेद” इत्यादि तदचनसुक्तं | खतिसग्रहे,- alana पुखूतिः सोमन्तोन्नयनं ad मलोम्बु चेऽपि gata निमित्तं यदि जायते जातकर्ममान्यकर्माणि नवश्राद्धं तयेव | श्राद्धजातकनामानि येन संसकारसत्रताः मलौम्बुचेऽपि कन्तेव्या Te काम्याञ्च aa गोतमः, दानकमंणि यच्छ्राद्धं नवश्राद्धं तथेव च। TEU पुंसवाटौ तत्‌ पूवस्य परस्य नवश्राद्धं तु.-चतु्ं पञ्चमे चेव नवमे cue तया यदट्‌ दौ यते जन्तो स्तन्नवख्रा मिव्यते पुंखवादिपदेन पुंखवनसौ मन्तो नयनजातकमेनामकेर एवदिनि- ्रामणणन्तप्राश्रनानां संग्रहः | तथाच ग्रतानन्दः+- चूडार्वाकूमङ्गलं कमं मलमासेऽपि कारयेत्‌ |

कालसारः। २४९१

तेषां सखावनमानेन षिभिः परिकौत्तनात्‌ एवं च,- नामान्नप्राशनं चौलं विवादं मौन्जौ वन्धनं | farsa जातकर्मापि काम्यं टषविसजेनं Ba गुरौ Wa वाले दद्धं ange | उद्यापनमुपारम्भं रतानां चेव कारयेत्‌ इति द्धगाग्येवचने जातकर्मादौनां यो निषेधः प्रातिखिक- कालेषु कद्‌ाचिदनुषितानां तेषां कालान्तरेऽनुष्टानपकच्चे वोद्धव्य- fafa स्वे समन्जषमिति acta: | दस्य तिः.- नित्यनेभित्तिके कुर्यात्‌ प्रयतः सन््रलौस्तुचे award गजच्छाया प्रेतश्राद्धं तयेव गजद्ायालचणं लिखितं | अस्या afafanafa पुनवंचनमेव- जातौयानां मदावेग्राखौप्रख्तोनां aN नित्यनिटत्यर्थमिति केचित्‌, तन्न रोगं चालभ्ययोगे सौमन्ते पुंमवे तया azelfa मसुदिष्टं पृव्रापि दुख्यति दति मरो विवचनात्‌ | तथाच टरस्यतिवचने गजक्ायापद श्रलन्यथो गोपलच्णएमित्यवगन्तव्यं | Bawa कालादर्गोयसग्रद- कारिकायाः- रोगश्राज्तिरलभ्ये योगे आद्धबरतानि a दति मलमासे कन्ते्यलेनोक्तं। मवंनित्यकमेणणं मासदयेऽपि RAIA BHAT मलमासेऽपि cig युगादिश्राद्भराने च्यः 31

२९ गद्‌ाघर्प इतौ

काम्यस्यापि मन्वारिश्राद्स्य,- मन्वादौ य॒गादौ मासयोर्भयोरपि | इति मरौविवचनादुभयचाप्यनुष्टानं | WA BATU FEI न्तत्वेन AWE मन्वादिश्राद्धं यगादिश्राद्धवदुभयवापि काये- भित्ययेः HAVA सग्रदकारः,- युगादिक मासिकं श्राद्धं चापरपािकं। मन्वादिकं afaa कुर्यान्रासद्रयेऽपि दति) श्रापरपाचिकं (श्रमावास्याविदहितं)। तेर्थिंकमिति प्वेदृष्ट- तो येविषयं | मात्येऽपि,- दर्भं चादरदहः श्राद्धं दानं प्रतिवासरं। गोग्तिलदिरण्यानां मासेऽपि स्यान्मलोन्जुचे एवं षति, सम्ब्सरातिरेकेण यदि ara मलोम्बुचः तच चयोदगे mg कुयां दिधुसंषये दूति चग्यश्रट्ङ्गे क्रिः काम्यामावास्याश्राद्ध्‌ विषया इति ama | याज्ञपवत्क्यादौ तियिवार विहितं काम्यं श्राद्धं द्रष्टं प्रतएव जावालिः नित्यं नेमित्तिकं चेव arg galas | तियिनच्चवारोक्ं काम्यं नेव कदाचन दति कौयुमिः,- अन्दमग्वघरं दद्यादन्नं चापि सुसञ्चितं सम्बत्सरे विदद्धेऽपि प्रतिमासं मासिकं अष्टकाश्रद्धूस्य नित्यलात्‌ प्रेतपचश्राद्धस्य नित्यकाम्यलाच

कएलसारः | R83

AUUANTAl वचनवलात्तयोः USA एवानुष्टानं, aa तयाच “HUMANA श्राद्ध” इत्यादि काटकंग्रद्यवचनं पूर्वमुदाइतं। दारोतोऽपि- उपाकमे तयोगे काम्यसुतसवमष्टकाः | मासदद्धो परा कार्यां वजयिला तु aes गुरफि- afgarg तथा सोममग्याधेयं महालयं | राज्याभिषेकं काम्य कु्याद्भानुलंघिते॥ नागरखण्डऽपि,- नभो वाय नभस्यो वा मलमासो यदा भवेत्‌। aaa: पिद्टपचः स्यादन्यत्ैव तु aga: | ्रचाषादौमयिकत्य सप्तमपञ्चमो eat “MEAT: प्रयमः पञ्चः" इति वचनात्‌ | श्रब्दोदङ्ुम्भमन्वादिमदालययुगादिषु। इति कालादर्भोयषंयदवाक्ये तु मदहालयग्रब्देन त्च विशेषस्य माचच्योदणश्यां( वा faafaanfafa माघवाचार्याः। तस्मादधिमासेऽपि खवेया महालयश्राद्धं, WIENS, तदनु- सन्पिलान्नान्वष्टकाश्राद्धमपि कायं मासिक्राद्धं मलमासे ara रत्यहं प्रेताब्दोदक्म्भदानमपि कायं, aa at तच वा षष्ठे मासि षाण्मासिकं भवेत्‌। चेपकिकं तरिपच्चे पूरं स्यात्तदनन्तरं

~~~ ~ ree

जण -

(१) मघाचयोदश्यां |

२४४ गद7धरपद्धतौ

दति कात्यायनोक्तौ चत्र वा aa वा शद्धे मलोष्हचेऽपि वा तदनन्तरं षट्‌ चलारिशेऽक्लौत्ययः। दति षट्‌ चत्वारिं शदधिवस एव चेपचिकश्राद्धस्यानुष्टानात्‌ मलमासेऽपि चैपचिकओराद्धं षाणएमासिक- मच ऊनषाणएमासिकमित्ययेः पषाएमा सिकान्तःक्रियमाएतया तस्य षाएमासिकसन्ञा | vasa area यद्‌ स्वरपि वा चिभिः। नयनाः सम्वत्सर सेव स्यातां षाण्मासिके तदा दूति काल्यायनोक्रिथ। तथाच प्रयमषण्मासाभ्यन्तरे मलमःसखुपातेऽपि षष्टमासपूव- तिथिरेव प्रयमषाएसासिकस्य काल इति सिद्धान्तितवात्‌ मल- मासेऽपि ऊनषाणएसाभिकश्राद्धं “यच वा aa al” Tam) WE- मासम्डतस्यापि दाद्‌ प्मासस्याधिमासले तत्रैव सपिण्डीकरणं कां हासेतः,- असङ्कान्ते fe कन्तेयमाब्दिकं प्रथमं fas: लघुदहारौतोऽरि- प्रत्यब्दं दादे मासि कार्यां पिण्डक्रिया ea: | कचित्योद शेऽपि स्यादद्य त्यक्ता तु वत्सरं द्वितौ यवर्षाद्‌ाब्दिक एडमास एव, मले | त॒याच, सत्यत्रतः,- : ay ad तु aig मातापिचोग्डेतेऽदनि। मलमासे ANG याघ्रस्य वचनं यया faq मलमासम्टतस्य कद्‌ चित्तस्येव मासस्य वर्षान्तरे awa तन्म्रलमास एव श्राल्दिकिमप्यनुष्टेयं | तथाच,-

कालसारः | २६९१५

वधं वधं तु यत्‌ श्राद्धं Bars तन्मलोस्तुचे कुर्यात्तच प्रमो तानामन्येषासुत्तरत्र तु चेटौ नसिरपि,- मलमास्न्टतानां तु आद्ध यत्पर तिवत्छरं | मललासेऽपि HAY नान्येषां तु कदाचन | नूतनस्त्रो गमने, विवाहोत्तरं चन्द्र वन्दा पनाख्ये कमे मलमासे- ऽपि कायं | तयाच खत्यन्तरे,- सोमन्तं प्रेतकृत्यं AMA नवः TTT | मलमासेऽएि ane fafanfated यत्‌ नूतनमपि गयाश्राद्धं तत्र कन्तेये, ्रधिमासे जन््रदिने चास्ते Tent: | त्यक्तव्यं गयाश्राद्धं favs टदस्यतौ दति वायुपुराणोक्तेः। waned विचय्येते स्कान्दे गणेशव्रतं प्ररत्य,- एकमासं दिमास वा षएमास वत्सर तया | Raq गणएनायस्य व्रतं दाद ्रवार्षिकं दति एकमाससमाणयदिमाससमाप्यषण्सा ससमाथयवषंसमाप्यदा- श्वषेखमाप्ेषु पञ्चसु wy वषंसमाण्यत्रतपचस्य प्रतिमासं प्रति- बएक्चतुर्योकन्तैयतेन विदिततान्तदषमध्ये मलमासपाते चयोद्‌श्रसु मासेषु कायमेव “चयोद्‌ श्रमाखाः सम्वत्सरः" इति wa: चयो- दश्रमासात्मकलादपि aie ननु “च्चा तु दिवेः" दति वचनेन agd उत्तरमास एव कर्तव्यं पूवसमिन्रपोति चेत्‌,

zed गदएधर्पद्धतौ

तादृशवाक्यानां मलमासस्य उत्तरमासगेषलप्रतिपादकत्मिति माघवाचार्येरक्रलात्‌ “काम्यत्रतादिकर्मण्णं श्रारमभसमािविष- aaa” दृत्यन्ये। तच “weet नाम ये मासाः" दति aaa लिखितं तया मलमासे श्रारम्भषमा्रौ एव जनिषिद्धे। आ्रारम्भसमा्योमेध्य- पातिन्ययिमासेऽप्यारसरकमेणेऽनुष्टानस्य शिद्धान्तितल्रात्‌ |

यदि भाद्रमासेऽधिमासः, तदा way प्रारम्भः, श्रावणे तु समापनस्य विडितलात्‌ | भाद्रमासेऽधिमासपातेऽपि कथित्‌ विरोध दति, aga सम्बत्सरपचमाभित्य प्रत्त चेन्मलमासेऽप्यनुष्टेय- मेवेति सिद्धं नन्वेवं सति श्राश्चिनमासेऽधिमासपातश्चेत्‌ दुर्गाश्रर- ama: कथं भवेदिति चेत्‌ उच्यते श्रारभस्य समाश्चिखेत्‌ दत्यादि वचनात्‌ षोड़गशदिनात्मकः WTI FTA: |

साद्धेमाषात्मकलं कथमिति चेत्‌ ? उच्यते। “dauarfear: मासाः" दरति न्यायेन दर्गन्तमासपच्चे यो भाद्रपदस्य BWI: एव पौएंमास्यन्तमासपचे wad: तच श्राश्चिनमासात्‌ qa छृष्णाष्टम्यादि दर्णन्तं टदिनाष्टक समयो मलमाषः। WEI- भिनमासश्एक्तपच्चान्महाष्टम्यन्तं दिनाष्टकं ud मिलिला साद्धमासा- aaa नवदिनादिषु पञ्चसु पसु श्रशक्रतया aay श्राथिनएक्त- प्रतिपदि एव समारम्भः कायेः।

नवादपञ्चादव्यदडहेकादरूपाः WAVE: | तेषु पूरवपूरवा्रक्तः परं परमेकं waa gala | vad प्रनापतिः,-

SUAA व्यं कव्यं दुरगोत्सवं तथा। उत्तरे नियतं कूर्यात्‌ va तन्निष्फलं भवेत्‌

कलसारः | R89

यथा षोड्ग्राहपक्त श्रद्यारभ्य मदाष्टमौपयन्तः दरत्युलेात्‌ कद्‌ा वित्तियिषृद्धौ दिनाधिक्छेऽपि दोषः। तावन्मासाधिक्येऽपि कावित्छतिरिति स्वे सुखं | ay इरिखापदक्तिणयनयोः कारिकं | यद्‌ विष्ण शयिते त्रतादिगदितं याभ्यायने aa तत्‌ कायें श्ारदवाजपेय दतरत्कमं प्रतौक्तासदं | नारोनूतनसंगमो नवगयाश्राद्धं गोदावरौ,- खानं नूतनचन्द्रवन्दनविधिः सवं परं पूवेवत्‌ WRIA BAA St वितलुयाद्याम्यायनेककंट- asa तौ लिगतेऽलिगेऽपि सुदनारममप्रवेशौ वुधः। Sale ततुयादलो निखिले याम्यायने चागतौ- amet नरसिंहमाटगिरिजादरौनां प्रतिष्टाविधिं विनायकव्रतादौोनां दरिखापदक्चिणयनयोरेवोक्तवात्तयो- रपि तेषां करणं। एवं शरट्‌वाजपेयस्यापि एवमनन्यगतिकं प्रतौचासदहं कर्मापि तत्र काय्ये प्रथमपर्वान्तरं कालविलम्बे बहतर दोषस्य वच््यमाएल्ाद नयोरपि नारोनूतनसङ्गमः कायः) गयाश्राद्धं प्रेतपच्फलाधिक्योक्ररण्द्ध- कालेऽपि प्रतिप्रसववचनस्योक्त्च कायमेव | गोद्‌ावरौखानस्य सिंदट दस्पतावेव विडदितवात्तत्कायं। दश्पत्यो- नवचन्द्र वन्दा पनस्य विवादानन्तरमेव विहितव्ात्छमाचाराच तदपि कायं | श्रन्यत्सवे मलमासवदोध्यं सादिवचनान्यणुक्तानि | नित्य- नेमित्तिकसवनिषेधस्य दरि शयनद्‌ चिणयनयोरौत्सगिंकलेऽपि

BS गदाधरपद्धतो

श्रावण waaay दानिर्भाद्रपदे तया

पननौनाग्रस्तयाशिने ahaa स्यद्धंनानि

AMM भवेद्धक्तं पोषे तव्करतो भयं

दृत्यादि मात्छवचनाद्‌ याम्यायनानाद्‌र वद्ध रि श्यनस्याप्यनादरेए

शरावणकान्तिकयोग्टेदार म्भपरवेगरपरसकरौ “Mize ूपककिक्रिय(\)- मिथ॒नघरा लिखति” इति वयोतिवेचनेन सौ रमानेनेव wercar- परवेशयोः सिद्धान्तितत्वात्‌ दरिशयनात्‌ पूवे ककंटमासे पतिते तया हरि गशयनोत्तरं aware सिते गटहारमप्रवेभौ art जातु दरिग्रयनमध्ये। एवं माद्छादिवचनस्य सावकाश्रले किमिति निषेधोकल्लघन arafafa सम््रदायविदः। टसिकमासस्य द्चिएणयनान्तगंतवेऽपि मात्छोक्रवचनेनेव ग्टद्ारम्भप्रवेशकरणं | विवादविषये ज्यो तिःग्रास्े,- |

वातो व्षमनोजमिच्छति तथारभ्योऽयनं चोत्तरम्‌,

स््लोनामानम्दतं fase मुनयो माण्डव्यशिष्या जगुः।

चेचं प्रोऽद्य पराशर स्वकययत्‌ पौषं दोर्भाग्यदम्‌,

आषाढादि चतुष्टयं Was केशिमरदिष्टं दिजः

षाद घनघान्यभोगरदिता, नष्टप्रजा आवे,

वेश्या भाद्रपदे ऽख्िने मरणं, भोगार्थिंता कार्तिके |

पौषे प्रेमवतौ वियोगवजङ्ला Va मदोन््रादिनो,

गरेषेष्वेव विवादिता सुतवतो मारौ सण्डद्धा भवेत्‌

Pe Py

= ` = - --~ -----

(९) युकककिकरिय इत्यादि

कलसार्‌ः | Ree

waa स्रौलिङ्गमित्यथेः। तयाच वर्षाः शरदिति खतु- au, दूति ककंटादिसौरमासचतुष्टयं वन्यं दृत्यथेः | श्राषाढ़ादिवह्गनौदावाषाढ्ः कैखिदिष्यते। माण्व्यादिवचो दृष्टा Ala सन्त्ययापर्‌ श्रस्यायेः। श्राषाढ़ादिचतुष्टयमित्यच sete: श्रादिरयेषां ते श्राषाढ़ादयस्तषां चतुष्टधमित्येतद्‌ गुणसं विज्ञानो asate: तथाच श्रावणदिषु विवादः कायैः, MHS तु काये VATU) एवं दिणायनमनादृत्य डञचिके विवादसमा चारः sae: “सौ रमासो विवाहादौ” इत्यक्तेराषाढ्ादि शब्दानां मिथुना दि परलमेव त्रगति- कानां खूतकाद्यश्रौ चग्रदणएस्तानादि नवस्तौ सङ्गमेन्द्वन्दापनादौनां दकिणायनमास्षटेऽपि करणं मादभेरवादौनां प्रतिष्ठादि- वाक्यं श्रयनप्रकरणे लिखितं | त्रय गृर्वादित्ये कारिका, जो वेऽपयस्तमितेऽध्वरादिकरणं ग्रस्तं प्रतिष्ठात्रत- चौरो दा दण्ट प्रवे रसद नारम्भा faasyt fe षट्‌ | ग॒र्वादित्य उशन्ति सद्मकरणएदौन्यच्र तारष्वान्‌, जो वश्चेद्‌ दितोऽयवाप्यतरुणएः त्याज्ये विवादं TAA शुरावस्तं गते वर्ज्याः प्रतिष्ठो दादमेखलाः | टहारम्भप्रेशौ चृडत्येवं षडेव ठु ्रग्याधेयादिकं सवं गुरा वस्तं गतेऽपि च। कू र्वीततन्निषेधोक्ररभावादिति निधिं

«

32

`

गदाधरपदडतौ

विस्थराशिं संत्यज्य उदितः स्याद्‌युवा यरः | रविरागरिसमेतोऽपि कदाविदुदितो युवा गुरावयुवति त्याज्यं विवादं प्राह चाङ्गिराः। aa तु जतमुदादं त्याज्यमाङ्मेनो aT: गुरुणा संयुते सयं इक्र चास्तमुपागते | असोम्यदिदसे ata जतो दादौ विवजेयेत्‌ वाले नवदिनं प्रोक्तं BE चेव VAT |

वादं दद्धं गति NA इएभकमे दिवजेयेत्‌

“गर्वादित्ये गुूदयेऽपि काथं were इति गम्यते दति

निवन्धङतः

aq fever र्यात्‌ सिंदददस्पतावपि गयाश्राद्धं गोद्‌ावरो- aq पुंसवनादिकानकवलान्तानि खकालेषु चेत्‌ षट्चायात्ययिकागतिग्रद्णएका दयालभ्ययो गास्तथा नव्यसी गमनं सो मयजनाङ्गाघधानसेमाध्वरान्‌ |

रय दरएक्रास्तमये | सन्ध्यास्तद्गतवाल्यवाद्धेकवगशान्नष्टः कविः प्रोच्यते- ऽन्याधानाद्यखिलं fe दच्येसुदितं तच्ाधिमासे यथा | एकशचेदुदितो युवा दितिखताचार्यामराचाययो- aay प्रविद्ाय सवेमितरत्कत्तव्यमेकं जगुः

"न त्यक्तव्यं गयाश्राद्धं fase टदस्यतौ” इति गयाश्राद्धं काथं तत्काल एव मोद्‌ावरौखलानस्य कन्त्॑यत्ात्‌ तरां तत्‌-

7.

|

कलसारः। ~ `

करणं | पुंसवनसो मन्तो न्नयनजातकमेनामकरएनिक्रामणननप्रा गनानां _ संस्कारषटभ्मेणां कालस्य नियतलात्तेषां करणं निषेघधवाक्येषु च्‌ड़ादोनासेवोक्रलाचः केवलं विदितकालेव्वनुष्टेयः, waa काला- न्तरे तत्करणप्रसक्तो सिंददटदस्यतौो तानि स्वंथानुषेयानि। तच तिथिनक्चश्टुद्धिवत्‌ कालप्रद्धेरपि अ्रपेचणोयलात्‌ तथाच कालप्रतौचासहकर्मणां अ्रगतिकानां प्रेतकछलत्याप्नौ चादौनां ग्रहणा द्यलभ्ययो गविडहितकमंणां करणं दोषातिग्रयश्रवणन्नवय- स्तौ गमनमपि कायं “aA ऋतुं कालं एच्छत्‌ दति श्रुतेः सोमयागे श्रष्णद्कालस्यानिषिद्धवात्‌ Arey सोमः Aa: | तथाच तदङ्ाधानस्य सुतरां करणं। “यागकरणनिषेधोक्रिस्तु श्तिपुचाभिचारादिकाम्ययागपरा इति याज्ञिकाः aa निषेध- वचनानि, ग्नोनकः,- लानं तोयेगतित्रतत्तृरमदादानप्रतिष्टादिकं। भिंदस्ये faquiisa nud कन्तुस्तया aaa aan gates दत्ययेः | शातातपः माघ एव यदा माधो सिंहे चेव यद्‌ गुर्‌ः, wa At तथो द्वाहं wena विवन्जंयेत्‌ शतानन्दः माघे माघौ वदि पौणंमासौो, तस्यां विधौ सिंहगते जीवे! नोदादकर्मात् कामरूपे, समा चरट्याम्यदि शि प्रशस्तम्‌ |

नदः

गदाधरपद्तो

माघे यदि माघो स्यान्मदामाघः उच्यते। यज्ञोदादौ Hala यावत्‌ सिंहगतो गुरः मदामा्घौ विनेवाह माण्डव्यः feet गुरौ | विवाहवजं कर्माणि कुर्य्यादिति वचः रुण श्ुतिवेधत्रत चड़ानवग्रहयन्नप्रतिष्ठार्घाः |

विभवनस्ये जौवे कार्या asqr विवादस्तु

aaa दा वित्य विषयं | च्रतएव राजमान्तेण्ड,-

arat ust विवादं मुतििवर विधिं यागसदमप्रवेशौ, प्राखादोद्यानहरम्यामरनरभवनारम्भविद्याप्रदान।

Matas प्रतिष्ठां मणिरदकनकाधारणं क्वैते ये, त्यस्तेपां दरिज्ये गुरुदिनकरयोरोकरागश्रिस्थयोशच

गरौ दरिस्ये विवादमाङ्गर्दारौ तगेप्रमुखा मुनीन्द्राः | यदा माघो मघसंगता स्यात्तदा तु कन्यो दहनं वद्‌ न्ति मघाग्डच्तं परित्यज्य यद्‌ा सिंहे गृरुभेवेत्‌ |

विवाहस्तच कन्तव्यो सुनिभिः परिकौ्तिंतः॥

AMAT देवो पुराणे

सिंदसंस्यं गुरं Wa सर्वारम्मेषु वजेयेत्‌ | may सिध्येत महाभयकरं भवेत्‌ पुचभ्राटकलक्ाणि दन्यात्‌भोघ्रं Ty: | कारको ANA नाशं सन्तानं रोयतेऽविरात्‌ देवारामतङ्ागेषु प्रपोद्यानग्टद्ेषु

fase मकरस्य गरु यनेन वन्नेयेत्‌

कालसारः। RVR

दत्यादि alafaagaaa: सिंहटदस्पतो विवाहो पनयनादि- कर्मकरणमन्द हे Yates दत्यादिर्वोदाइतोक्तिवलात्‌ देशाचार- स्तावदादौो विचिन्य दति सिद्धान्तितवात्‌ श्रपिवा कारणा- गरणे प्रयक्रानि प्रतोयन्निति जेभिनौयन्यायाच्च वित्रादोपनयन- नवतौयेयाचादिकं स्वेया कायं दति सिद्धान्तः। अ्रस्मदेष्ा- WY तथेव दृश्यते राजमानैण्ड,- wad सन्ध्यागतः पञ्चारस्तमेति दिनचयं | दिनानि पञ्च yaa सवेकमं(\) विवजेयेत्‌ वाल्लो दिनचतुष्क Ugg: पञ्चा दमिग्यते | ae सन्ध्यागतः एएक्रस्तिधाप्येवं विवजेयेत्‌ तथाच सन्ध्यास्तमितल वालत्वटद्धवेषु WAY एकस्य नष्टलं | तच स॒वेकमेवजनं | खदस्यतिः,- बाले वा यदिवा दद्ध QA चास्तमुपागते। मलमास दवतानि वजयद्‌वद्‌ गन मलमासदृष्टान्तोपादानान्मलमासे यावनिषिद्धं, तावत्‌ सवे- fas निषिध्यते | सकलकाम्यान्यपि वरज्यासि तया, श्रपूरवेदेवतां दृष्टा We: स्यनेष्टभागेवे | मलमासेऽप्यनाढत्ततो यया चां विवजेयत्‌ तच विचारान्तरमाद शतानन्दः गरभागेवयोरेको यदि स्यादुदितो युवा | विवादवन्जंमन्यानि कूर्या दित्या asc:

५१) सन्ध्याक्रम्म |

२५९ दाधरुपद्धतो

न्रद्य सिद्धान्त, रविणासन्तिरन्येषां ग्रहाणामस्त उच्यते | अरवागृद्धंमधस्तात्छात्‌ मो चावाद्धं करी श्रवाः ज्यो तिःसागर,- तया मलोम्तुचे मासि सुराचार्येऽतिचारगे वापोकूपतडागा दि क्रियाः wren area प्रतानन्दसग्रहे,- कुजप्रटक्रवुधा काणां फलं वक्रातिचारग | दस्यतेस्त॒ तन्नास्ति पूवराशिगतं फलं तया, सत्यं विवादयन्ञा दि विषयं वचनं तत्‌ | किन्त नष्टइतावाप्तौ मनोरथवचः AT यथाचारं गताः सवं गहाः स्यः खफलप्रदाः | नष्टप्राप्तौ तु फलदः पूरव॑राशरिगतो गुरूः दति अरय जन््ममरणाद्यशौ चविचारः | तचादावस्मत्छतप्रषद्धिखारकारिका लिखिला साकिवचनाजि लेख्यानि वाद्यं चाभ्यन्तरं दिविधमिति मतं कन्तो चं तु वाद्यम्‌। देडे स्यात्तदिनेऽपौत्युभयविधमिदं ज्ञा तिजन्मादिजन्यम्‌ कालल्तानापनोदं यदवधि विदितौ sea तथायम्‌ Wars: सरवैवर्शेष्वपि लगति सतां यच कुचाप्य ग्नो चम्‌ | कच्च शो चं दि विधं, वाद्याभ्वन्तरभेदात्‌ | तथाच देवलः,- amid दिविधं प्रोक्तं वाद्यं चाभ्यन्तरं तथा इति

क{लस्ारः। 228

श्राभ्यन्तरं RAM चं प्राय्ित्तापनोद्यमघलचणं ग्रन्थगोरवभया तन्नाच विचार्यते) वाद्यमपि fafad, nice कर्मानदवरूप- मेकं श्रौ विखत्वाश्रयद्रवयस्यापौति। ददं वाद्याश्नौचं जन्म- मरणादिना जायते, स्त्रौं खतुप्रसवादिना च। तच वच्छयमाण- कालविशेषेण खानेन चापगच्छति। कालोऽग्धिकमं ग्डद्वायमनोज्ञानं तपो जलन्‌ | पश्चात्तापो निरादारः सर्व्वऽमौो Whesaa: tl “वश्नेणणोजलम्‌” दति कालो दशदादिरिति विज्ञानेश्वराः। देवलः,-जनने मरणे नित्यमशौ चमनुधावति | सपिण्डान्‌ freqagq यत्र कचन तिष्टति पिदवन्धवः (शमानोदकाः) यच क्चनेति एकग्टडे अन्य- चापि aay) जननं मरणं ज्ञातसेवाशौ चनिमित्तं। तस्मादि- दे शादि वश्रात्‌ विलम्बेन रवे तु श्रवशिष्टदिनैरेव शद्धिभवति तथाचादित्यपुराणे,- रपि दादयदरौचोश्च दतके waasft वा श्रविन्ञानेन दोषः स्यात्‌ श्राद्धादिषु कथञ्चन | कौम, दे शान्तरगतं Bal GAH शरावसेव तावद्प्रयतो मत्यै Wass षमाप्यते रदस्य तिरपि,- श्रन्यदे श्म्टतं जातं त्वा पुचस्य Haq च। श्रनिर्गते दशाहे तु शषादोभिरविंप्रदध्यति सापिष्टयो azure चिदिनमपि समानोदकल्वेऽपि यावत्‌,

२५९ गदाधरपडतौ

ज्ञानं स्याज्नन्मनास्नोरपि भवति समानोद्‌कल fe तावत्‌। agian लेपभाजो जनकप्रशतयः पिण्डभाजोऽय पिण्डोत्‌- eet स्यात्‌ सप्रमशेत्यपि भवति सपिण्डत्मासप्रमं तत्‌ जोवः सप्रदयान्ताननिगदति पुरुषान्‌ व्याप्य चेकोद्‌कल्- मन्नञाने जन््रनास्नोरपि भवति तदभ्यन्तरे तननिदत्तिः | एवं सत्येव यस्मान्मनुवचनसुरा चाय्येवाचौ विरुद्ध स्यातां तत्‌ सुधौग्रा विदधत सुविचाय्यैव जीवस्य पचतम्‌ रदस्य तिः, दशाहे सपिण्डास्तु uf wags | जिराचरेण सकुच्यास्तु साला एष्यन्ति गोचजाः सपिण्डा मात्य, लेपभाजश्चतूर्याद्याः पिचाद्याः पिण्डभागिनः | पिण्डदः सप्रमस्तषां सा पिण्डं साप्तपौरूषं मनुः,- सपिण्डता तु पुरुषे ana विनिवत्तेते | समानोदकभावख जन्मनाम्नोरवेदने एतद्याख्याने मेघातियिः। 'खप्रपितामदहस्य चयः प्रपितामहः तदन्वये यावन्तः wale वस्य सपिण्डा” दूति। समानोद कभावश्च निवन्तंता चद्‌ ग्रात्‌ | दूति इदस्य तिवचनं | मन्वयविपरौोता तुया सतिः सा शस्यते॥ दूति सखवचनविरोधादेव नाद्रणोयमिति केचित्‌ agay चतुद पुरुषादं जन्मनामज्ञानेऽपि सुमानोद कभावः चतभ

कालसार्‌ः। २५०

पुरुषमध्ये जन्मरनास्नोरज्ञाने मनुवचनस्य सावकाग्रलार्‌ रदस्पति- वचनस्य निरवकाशलेन वलवत्चम्‌ | तचास्मत्पद्ये सपिण्डसमानोदकयोः पौर्वापयंविपर्यासो निवन्धे- WRIT: | एकाग्रेरणनग्रेरपि मरणएदिनावध्यशरौ चन्तु Ay, zivtg देवतश्चेददनमपि कतं रौ किकेनाग्निनास्य | नास्या शौ चमेतत्तनधकुलमुवां किन्तु दाहो यद्‌ग्थुः, ओतेनास्याद्निना स्यात्तदवधि गदितं पणेद्‌ारेऽस्य तदत्‌ ओओ ता्निमतो दाहात्‌ ya ज्ञातौनां पुचस्य अण्न चाभावः | aaa BRA VA: संस्कारकस्मणः | द्धिः wad दाहान्मतारस्त॒ यथातियि Tare: wa: | जातुकणेः,- एकाग्रमरणादूद्धंमग्रौ चं आद्धमेव + यस्य तु चयमद्भौनां तस्योद्धं' दादक्मणः ag तचिपक्तार्‌यच्छराद्धं स्टतादन्येव तद्भवेत्‌ | ANAT कारयेददादाद्‌ादिताम्रेदिजन्मनः श्रतएव विज्ञानेश्राः “आआहिताग्नौ पितरि देशान्तरगते पुचा- दौनामर्वाक्‌ संस्कारात्‌ सन्ध्योपासनादौनां कमणां लोपो नास्ति दति लिखितवन्तः तथा चादहिताग्रेदेवाक्लोकिकाग्रिना दादेऽपि पञ्चात्‌ ओ्रौताभ्निना यदास्विदादः ततःप्रश्टयेवागौ च, ततप वैमगौचं नास्ति, एवं निर्णोते arfaa पितरि aa que are

and, ज्ञातौनां मरणादृद्ध॑मिति श्ड्धिगच्छकारव्यवस्या face | 33

२५८ गदएधर्धडतौ

AMAA पणेनर दारस्य उक्रवान्तद्‌ा देऽपि ततःप्रश्रत्येवा भ्रौ चं | तयाच कन्दोगपरिण्ष्टे- विदेशस्धस्य मरणे अष्यौन्यभ्यज्य सपिषा | द्‌ दयेदूपयाच्छाद्य पाचन्यामादि पूववत्‌ mega पर्णानि श्रकलान्दृषचाहता | दाहयेद्‌ स्यिसंख्यानि anata सूतकम्‌ आता परिपाख्ा, सूतकं अगौ चम्‌ | दम्पन्योरादितान्योरपि मति तु वितानाञ्चिनेकस्य दा, पञ्चादन्यस्य ग्टत्यामर णिजनिमताथिना लौ किंकेन | दादेऽणौचं दादावधि भवति पर्‌ शल्युघखावधि स्यात्‌, - ्रौताघानस्य मध्ये यदि भवति ग्टति्छेयुचद्ावधि स्यात्‌ | दम्पत्योः पूतस्य श्रौ ताभिना दाहे पश्चान्मतस्य वच्छमाणोत्ा लौ किकारणिजन्येना्च्रिना दाहे मरणदिनावध्येवाभौ चम्‌ | पशथा- qaafa वचने लो किकाच्रिनेत्यक्ते रा दिताद्भिलाभावात्‌ | तयाचा~ दित्यपुराण- श्रादितान्योस्तु दस्यत्यो स्वादौ वियते भुवि। तस्य Se: पिष्डस्त टग्धव्यस्विभिरधिभिः aya दे दस्त दग्धव्यो लोकिकाञचिना | saifzatg ददस्तु दादयो खुद्याभनिना fas: तद्भावे पलागशोत्येः पतैः कार्यैः पुमानपि | श्रतेस्तिभिः तथा षच्छा शरपतरैविंधानतः - वेष्ितव्यस्तया पश्चात्‌ छन्लमारस्य चमेएण |

कानलसार्‌ः | २५८

ऊर्णाूरेण संवेश्य vanes यपे: सपिण्डेजेलरंमिम्रेदग्धव्यश्च टया्चिना | a स्वर्गाय लोकाय खादेत्युक्ता Saya: aurfy: (लोकिकाथिः) एवं मति आदिताय्ेरित्यच निष्ठान्त ्राहिता्िपदे साङ्खप्रघानक्रियोपरसप्रतो तेरादिताथिधर्माः साङ्- प्रधानाभिनिदत्तयन्तरमेव | तथा स्ते कमेरंस्काराणां तद्यं- लादिति जेमिनिना पञ्चमाध्यायदतौयपादे क्तप्रत्ययान्तस्य क्रियो प- रमप्रतोतेरेव सिद्धान्तता। एवं AMAA यजमानमलरण ना- डहिताश्चिलविधिरिति मरणदिनावष्येदागो चम्‌ | arma क्मेणां नो भवति किल निषेधान्वयो येन छा, तस्मिन्‌ सन्ध्यादिके स्यादपि विदितनिषिद्भूलयोगादिकल्पः | faq स्यात्‌ पयद्‌ासस्तदिद मभिदहितं aaa यद्‌ यत्‌, सन्ध्यादि स्यादुपास्यं भवति fe तदभोचादभिनेष्वदःसु तयाश्रौचे कर्भनिषेधविचारः | तच कात्यायनः,-- gaa कमणां त्यागः सन्च्यादौनां विधौ यते इत्यादिषु ama कमणां निषेधः, येन विदितप्रतिषेधं विकन््ः स्यात्‌ किन्तु waza: यत्छन्ध्यादिकुपाखं, तदन्यचाशौ च- दिनेभ्य इति तया विष्एपुराणेऽ- खव॑कालबुपस्धानं सन्ध्ययोः पायिबेययते | रन्यत्र सखूतकाशो चविभ्रमात्रभोतितः इति, विभ्रमो (भयं विनाप्याङ्घुसता) wa निवन्धङतः जननमरख- गौच एव पर्युदासः सन्ध्याया त्रकरणएलप्रतिपार्‌कवडननिमथ-

२६० गद्‌ाधरपद्धतो

णात्‌ | विभ्रमातुरभयेषु खुति सम्भवे काय्यैतेव असम्भवे त्वकरणे- sfa a दोष द्ति तात्य्येम्‌ | मन्ध्या स्मात्ताधिहोमः श्रुतिपटनसुखाः पञ्चयन्नाञ्च दाना- दाने स्मात्तं कमं चिविधमदिमरूकसंक्रमसानद्‌ने | दभेख्राद्धादि faa भवति तु भवेन्नातकर्मापि षष्ठाद- हादयक्तं प्रेतकमेदगमदिनमय Baya यदे ग्रहो (ग्रहण) ) श्रो चे कषाञ्चित्‌ कमणां लोप एव, केषाल्ि- न्तन्य्रध्येऽपि करणं कंषाित्तदनन्तरमेव करणमिति व्यवस्था क्रियते | a3 जावालिः, सन्ध्यापञ्चमहायन्ना नेत्यकं सतिकमे aaa दापयेत्तेषां curera पुनः क्रिया दति ननु सन्ध्याया अरौ चेऽप्यपरित्यागः, Tae चरा, सन्ध्यामिष्टं चर्‌ होमं यावन्नौवं समाचरेत्‌ | त्यजेत्‌ aaa वापि त्यजन्‌ गच्छद्घोगतिम्‌ दूत्यच वरोधाभावः, कथमिति चेत्‌ ? उच्यते, पुलस्यवच- नस्य मानसिकषन्ध्याकरणे तात्पय्येम्‌, तु aad सन्ध्याकरणे | WAR BAR चेव सन्ध्याकम समाचरेत्‌ 1 मनसोचारयन्म्न््ान्‌ प्राणायामगठते दिजः दूति वचनान्तरात्‌, श्र्नलिप्ररेपमाचस्य वच्छयमाएलाच | नेत्य- HUST ्रावण्यककन्तैव्यनेमित्तिकानामपि रग्रहः शअननारयका- म्यानां तु aaa सवेया निटज्तिः। तया काल्िदासचयिनिनः+-

कालसार्‌ः। २६२१

‘ma कमे faut त्याज्यं" दति faut (fae नैमित्तिकं काम्यं च) रविसंक्रान्ति्लानादिकं नेमित्तिकलादज्छेम्‌ | नैमित्तिकोच्छदः कर्तव्यो fe कथञ्चन | दूति वाक्व॑स्य प्रामाण्ये सूतिका दिमध्यपतितजातकमंसञ्चयना- दि विषयल्मिति सदंनिवन्धञ्चतः | यमग्रह्ख,- दान प्रतिग्रहो होमः खाध्यायः पिदटकमे प्रेतपिष्डक्रिया वजेम गो विनिवन्तंते तेन दशेष्टिकादिश्राद्धानां पिष्टकमंत्वान्निदत्तिः। दोमोऽच Ba, ओओ तस्याप्यचासुषेयतात्‌ | तया पारस्करः, “नित्यानि विनिवर््तेरन्‌ बेतानवजं” इति। माकण्डेयः- षष्ठेऽद्छि राचियागन्तु जन्बदानाञ्च कारयेत्‌ | रच्णोया तदा षष्ठौ fant तच faxva: जन्प्रदानां षोड्ग्माठणणं षष्ठो षष्ठौ देवौ fant fant याप्य श्रत्यन्तसयोगे दितौया | प्रजापतिः, एवं प्रेतक्रियायान्त्‌ पूर्वाश्च area | सत्यन्त रे, ग्रे शावमाशौचं विमुक्तौ सूतकं स्तम्‌ | एवं ग्रहसुक्ररपि स्ञाननिमित्तत्म्‌ i श्रतएव लिङ्गपुराणे, चन्द्र येग्रहे सायात्‌ तके Baasfa वा श्रलायो म्डत्युमान्नोति सायो पापं विन्दति तद्‌ विददितश्राद्भदानादिकमयचर कायम्‌ तया तचैव,- सूतके wake चेव दोषो wea | तावत्कालं भवेच्छुद्धियावन््ृक्तिनि दृग्यते |

VER गदाद्यरपड्तो

रच यत्‌ एएद्यभिधानं तद्‌ानश्राद्धार्थमेव, gau eae प्रानैः यत्त॒, सूतके wae चेव दोषो TEs | सानमाचं Yana ओआद्धद्‌ानविवज्नितम्‌ दति गौड्दे भौ यसम्बत्सर एतवा क्यम्‌ तच मूलं दृश्यते aig चेपलचिकेकादटग्रदिनविदिते afer मासिकान्यु, नान्दोत्पननं सपिण्डौङृतिरपि भवेदूनषाणएमासिकं प्रेतसाप्रे स्तिष्पक्ताभिदितमपि भवेद्‌योजनं नो निरग्नेः, fan श्राद्धान्यणौचव्यपगमदि वसे aaa भवेखः योजनं सपिण्डोकरण | सतिः मासिकायं तु dna कदाचिन्यतद्धतके | वदन्ति mgt aera दरं वापि aatfaa: मासिका मासिकाभिधये कमेणोत्यथेः ) तथा एकाद्‌- श्रादश्राद्धस्य ऊनमासिकसन्नतात्‌ देपचिकश्राद्धस्य साद्धंमासिकलात्‌ ऊनषाणएमा सिकोनसाम्बत्सरिकयोः षाणा सिकसन्ञतात्‌ सपिण्ड कर- ua द्वार्‌ श्मासे विदितलाच्च एकाद शरादनेपक्तिकोनषाणञाभिकोन- aga रिकसपिष्डीकरणानि माचिकम्राद्भवद भो चानन्तर दिवसे Raina aa यत्‌ “an इति पक्ान्तरं तदो चान्त- दिने विघ्ने सतोति वोध्यम्‌ “एकादशे नवश्राद्धे" दति वच्छमा- Wik: एकाद ्ादश्राद्धपरस्तावे तस्य ऊनमाधिकसनज्ञतवं वक्तव्यम्‌ | नन्वेवं सति,- आ्रद्यश्राद्धमण्द्धोऽपि कूर्यादका शेऽदनि | कन्तुस्तात्कालिकौौ LEE: पुनरेव खः

(२) प्रेतेसासौतरि carts |

कलिसार्‌ः | न्े६रे

दूति agama का गतिरिति चेदुच्यते, wa केचित्‌ विनज्ञानेश्वरोक्िखितमपि तदमिप्रायमुन्नोय दादशादाद्यश्यौवचि- लतियादिपरतया समादधते aq सम्यगिति vata: | तया- शौचापगम दूति दिष्णना सर्वसघारण्छेन एकादशादम्राद्धम- श्रौ चापगम Wate | माद्छेपि,- तत एकादशे तु fanttatena a | चत्रादिः Gaara तु भोजयेदयतो दिजान्‌ दूति चन्नादौनामशौ दान्त एकाद शरादरत्यसुक्तम्‌ अतएव कल्पतर्कारे्ेतेऽदनि तु कन्त॑व्यमिति याच्वल्की यवचने एका- द्‌ शाहपद्‌ मशो चान्तो पलद्वणएमिति व्याख्यातम्‌ | राज्ञां q cua: पिण्डो दाद्शेऽहनि stad | वैश्यस्य पञ्चद् गमे HAWG टग्रमस्तया Wee दशमः पिण्डो मासे परं fe दौयते | दूत्यादि पुराणोक्तौ प्ररकपिण्डदानस्य चचादीनां दाद ग्दि- ना दिषूक्रवात्‌ पूवेसुत्तरषोड्ग्राधिकाराभावात्‌ अतएवाचाभि- युक्ता BG Ag अश्एद्धोऽपोल्युक्रः कन्पतरूकारादिभिरना- दूतत्वेन अ्रननुष्ठानलचणमप्रामाण्ठं CIS: | Bava पणेदादादि- ्रय्॒नत्यद्याशौचादौ श्रौ चान्तदिन एव CASTER AAMT: BPA | तेकाद्‌ श्रा दपयंन्तापचेति कामधेनुकारः। श्रतएव श्राद्यश्राद्धसिति संज्ञा ब्राह्मणस्य सत॑वर्णात्तमवादधिकन व्यपदरेशा- भवन्तौति न्यायादेकादणशोक्िरिति fag दि arg श्राद्धमिति Ta: काल्लाद्‌ भेकारादृतलेन प्रामा्वमङ्गोकायेम्‌, तहिं ae

२९४ गदाधर्पद्वलौ

यानां वेकल्तिकं तदिति ate नव्वस्मट्‌भौयानाम्‌ एवं facfy- पुचेण साग्रिकस्य पितुः fare मपिण्डोकरणं कायमिति यदचते तदशनौ चान्त एव कायम्‌ | “देये पिणं श्राद्धे" Tega मामिकाथे दत्युक्रौ, मंग्टहौलाच |

चर्पग्यस्पशेनो MIAH मदा स्तानमचाप्यमन्लम्‌ |

प्राणात्य: समन्ताः परमिह तदपो शानयग्मर समन्तम्‌

साविव्याः प्रास्य नोराजज्लिमिद परिक्रम्य सन्ध्यानिषेधे।

qa वन्देत BAST भगवतो बन्दनादौनिन स्युः afa.— Gas मन्त्रवत्‌ कम स्मतं नेव समाचरेत्‌ |

्रपोशानदयं मुक्ता तथाप्राणङ्तौरपि

एवं प्रातःसानं मन्तरदितं कायम्‌ | विषम्‌ चचाण्डालादि- सपर्रवि दितस्तानस्य शो चेऽप्यमन्रकलात्छुतरामचाप्यमन्तरकलम्‌ | ननु,- Barat मलं ye att प्रूयप्रोणितम्‌ |

श्रत्वा रमोन्‌ YR Beart विषभोजनम्‌

दूति जावालिवचनात्‌ भोजननिमित्तयोजेपस्तानयोरणशौचे ऽपि कायैलमिति चेत्‌, न। नेभित्तिकानामप्यत्न निषिद्धलात्‌ | श्रयवा एतद्ाक्यस्याशौ चेतरदिनेषु सावकाशलेन स्वकम॑त्याग- रते निर वका प्रल्ेन ada तद्याक्येकदि शोक्नस्मानैहो मदानयो- रपि कायंलपाताच् aaa नेभित्तिकस्य निषेधे चण्डालादय्यश्य- aifafanaaa नेमित्तिकलादकरणं प्रसज्येत दति चेत्‌, | शरक्रिविषयः मुह्दन्तमप्रयतः स्यादित्यापस्तम्बोक्तनिषधपरिपालन रूपेण श्रो चस्य कार्यत्वं तु नेमित्तिकलात्‌ |

कालसारः | २६५

मन्ध्यानिषेधे पेढौन सिः,“ सा विव्याऽचलिं प्रिय प्रद्चिणं कत्वा दूयं नमः कुर्यात्‌ एतावत्‌ कायं दति | तस्मात्‌ waar जपो ara: | जपस्य fafaacufafa केषिददन्ति, तन्न चार्‌ वाचनिकऽयं शङ्गाया श्रनुदितवात्‌ | किञ्च “पूवां सन्ध्यां जपंस्तिष्ठेत्‌" इत्यादिना भ्रच्नलिप्रचेपजपयोः सन्ध्यायां प्राधान्या निषेधस्य निरवकाशत्वं खादिति axa वाराडे afin राघधमश्े- “उच्छिष्टे चेव वा me भगवदन्दनादिकम्‌" दति गणनात्‌ भग॑वदन्दनादिक काय्येम्‌ उच्छिष्टे लेपाद्यशौचे। amie सतकाद्यप्र चं | MO again निखिलनियमनं काल्तिकादित्रतेषु, ्रारश्चष्वेव देवापतितिवितरणे किन्त वान्येविधेये यद्दाघान्तेषु कायं यजनवितरणे पञ्चगव्या शनान्ते, तदनायंचरेय रजसि परमुपोग्यादमोयाम्ब॒ wast | लिङ्गपुराणे, प्रारभे तु व्रते पश्चादग्ौच यदि जायते | श्ररौरनियमः कायः प्ूजादानविवजितः श्रप्रौ चान्ते ततः ताला पञ्चगव्यङताग्रनः | देवं प्रव्वौक्तविधिना(९ द्चिणं दापयेन्तदा भवेद्रजखला नारो यद्येवं व्रतवामरे | भवितव्ये तद्‌ाण्येवं श्रौ रक्तेशयुक्तया यस्मिन्‌ fea भवेच्छद्धा विधिं तस्य समाचरेत्‌ |

(२९) संपूज्य विधिना | :3 4

२६९ गदाधस्पद्टतोौ

व्रतस्य WANs नेव Vad भवेत्‌ oN श्रङ्किराः,- प्रारब्धदौघेतपसां नारौण्णं ast भवेत्‌

तेन तद्व्रतं तासासुपडन्यात्कद्‌ चन qua एष act ज्ञेयो मूचपुरौषवत्‌

ततोऽर्यान्न प्रदुच्यन्ति चरेयुरेव तद्व्रतम्‌ aut— नियमस्था यदा नारौ प्रपश्येदन्तरा रजः | gutagq ता राचौः गेषं साला व्रतच्चरेत्‌ गारूडपुराणे तु पच्चान्तरम्‌,- चरन्येदानादिकं कायं कायिकं खयसेव तु दति त्रतए्रैकादग्नोप्रस्तावे, माधवाचा्याः,-स्त्रौणणं रजोद्‌गेनेऽपि ब्रतत्यागः। किन्तु देवाचेनादिरदितं सूतकाद्‌ाविव उपवास- ara कायंमित्यादि | देवार्चार्चान्यगोतरेदेरिगिरिग्रगिवाब्रह्मप्रूजा नित्या, मानस्देकाद्‌ गो श्रोमधुरिपुयजनं मानस वा्चान्ते | आरं पूवरिक्थेत्रतखुरयजनं स्यादयारब्धजाणे, स्तो चाद्यं तौ्ंयाचाद्यनुदिवसमिह weary समाप्यम्‌ देदार्चर्चा देवप्रतिमायाः प्ूजेत्यथेः | त्रतदूपं सुरयजनं शरत्‌- कालौनदुर्गो्छवादि पूवैरिक्यैर श्यौ चात्‌ पूवैसच्चितद्रेः। जप एव जाप्यम्‌ MT गङ्गागयादि 1 याचा श्रौगुण्डिचादिदेवोत्छवः। quva सर्वैक्मनिषेधेऽपि “नाचयित्रा तु यो ys” इत्यादिवि- गेषवाक्यै ` विषएन्द्महर दुर्गाणां पूजायाः कायेवगशद्धायां नेमित्तिक- लात्‌ स्वानजपवत्‌ निषिद्धतवेऽपि, श्रय सूतकिनः Gat वदाम्यागमचोदिताम्‌ |

कालसारः। २६७

साला नित्यं निव्॑यै मानस्या क्रियया तु a tt वाद्यक्नियाक्रमेणेव ध्यानयोगेन प्रूजयेत्‌ | दति यमोक्निवलान्मानसौ पूजेव कार्या पुष्याञ्नलिचयद्‌ानं चरष्टपुष्यिकाप्रूजा alata afyzafafed तन्न चार anf विषये तयो विंधानाद शौ प्रसराभावात्‌ | यत्त राघचवभट्रेन,-जपोदेवाचनविधिः काय दौचालितेनेरैः | नास्ति पापं यतस्तेषां सूतक वा यतात्मनाम्‌ | दूति लिखितं तद श्रौ चाभावकलात्‌ यतित्रह्मचार्या दि विषयम्‌ | तया च,- श्रसपिण्डग्टहे नौला gaara: सद्‌ाभिवः। द्रति वाक्याद्‌मगोचग्टडे पूजा कारयितव्या। सदाशिव दल्युप- लचणादिष्वादिदेवानामपि। एवं सति “afafeatet त्याज्या यावन्नोवं तदचंनम्‌'' दति इयभौष॑वा स्य ब्राद्यमणन्तर- द्वारा acura विरोधः) स्कान्दे, चन्द्रशरमेणो वेष्णवार्चाप्रतिज्ञायां+““मया भक्तया TANS nae पूजनं aa” इति वाक्यं भगवतूप्रौ तिरूपफलकामनया यावन्नीवकृतमद्कन्यस्येवादयःमति केचित्‌, वम्तुतस्त॒॒ नित्यारभायाः विष्एपूजायाः सन्ध्या दि नित्यकमेवत्‌ श्रौ चेतर दिनविषयवमेवेति aq समज्ञमम्‌ | एकादश्यां तु मानस्येव पूजा, खूतकेऽपि नरः Slat प्रणम्य मनसा दरिम्‌ | एकादश्यां asia व्रतमेतनखुष्यते म्दतकरेऽपि wala एकादश्यां सदा नरः | दूति वारादोक्तः

=

acc गदाधस्पद्धतौ

माधवोये तु पच्तान्तरसूुक्तम्‌ | तया एकादशो प्रत्य, मात्स्ये,- सूतकान्ते नरः साला प्रूजयिला जनादंनम्‌ | दानं दत्वा विधानेन aaw फलमश्चुते दरति सूतके waa चेव चिष्वशौचं विद्यते यज्ञे विवादकालं देवयागे तयेव दति वाक्यात्‌ प्रारभग्ररत्कालौनदुर्गो्छवादिन्रतेष॒ नागौचम्‌ | श्रग्रौ चिद्रव्यस्य पूजानरतेऽपि तद्‌र्थपूवसञ्चितद्रवयेः पूना | इदस्य तिः,- विवादोत्छवयन्नेष न्तरा saga | पूवेसङ्धःल्पितं द्रव्ये cata कदाचन लेद्,- RAAT YARIS ual यत््रकल्तितम्‌ | za तेन यजेद्धौमांस्तथेवोत्‌पादितेरपि पैठोनसिः,- विवाददुगेयज्ञेषु याचायां तौयेक्मणि | तच Gah तद्त्‌ कमं यज्ञादि कारयत्‌ विष्णः, ब्रतयन्ञविवाहेषु श्राद्धे मेऽचेने जपे | प्रारमे BAR स्याद्नारभे तु सूतकम्‌ Tate सहस्रनाम दिस्तवो पलच्तणएम्‌ | सवैसङ्धन्िते ऽथ तस्िन्ना शौ चमु च्यते | दूति यमोक्रः! तस्माट्टतानां तत्तत्कमेसु नाग्नौ चम्‌। किन्तु aE दिनसखाध्यानि प्रारब्स्तवपाठजपहोमादिकमाणि कालगप्रतौचासदानि चन्ति श्रगौ चमध्येऽपि प्रत्यहमनुष्टाया नौ चान्त एव समाप्यानि दुरभिचप्राणर कता श्रमकरणविपत्यादिदे शरादिभङ्गा- दिष्वारम्भः समातिः स्तवपठनजपादेभेवेतां दोषः |

बै पीपी

काललसारः | २६८

पूर्वारम्भे विवादव्रतमद्‌नजलाधारदेवप्रतिष्ठा- दानश्राद्धादिरच्छरादिकमघपतने स्यात्छमाप्यं तदापि नागरो चम्‌ कचिदित्यनुट्रत्तौ ब्राद्ये- NRG: WT मदादाने रोगिणणम्‌ | दु भिंचप्राणर चायं छतयज्ञस्य देहिनः weg स्थितस्याय पुचदारांश्च रचतः। ग्रहो पतापगश्रान्त्यथं क्रियमाणे anata तयोपसरगात्खं देहं WATTS नो भवेत्‌ | ayes शान्तिमात्ीपलच्णम्‌ | दच्ः,- खस्यकालं fat सव्वैम्‌ शौचन्तु परिक तितम्‌ | श्रापद्नतस्य aay खूतकेपि सूतकम्‌ विष्णः “न देवप्रतिष्ठा विवादयोः पूव्वसम्बतयोः” देवप्रतिष्ठा- पदं सखव्वेप्रतिष्टोपलचणम्‌, विवादपदं ब्रतादे रुपलचणम्‌ | याज्ञवल्कयः, खविजां दौ चितानाञ्च an कश्मंणि gaara | सजिव्रतिब्रद्यचारिदादब्रद्य विदां तया दाने विवादे यज्ञे संग्रामे देशविक्षवे। च्रापद्यपि कष्टायाम्‌ मद्यःणौचं विधौयते बराद्धे- निमन्तितेषु विप्रेषु प्ररे श्राद्धकम्मेणि | देडे पिदषु तिष्ठत्सु ants विद्यते कचित्‌ ङन्दोगपरि शिष्ट दौचणात्‌ परं यज्ञे हच्छरादि तपश्चरन्‌ | अ्रदिपदम्‌ प्रारब्धकर्म पलकच्तणम्‌, तस्मादेतेषाम्‌ प्रारमले- ऽणौचस्याबाघकलान्‌ यागवत्‌ ममाश्निरित्यभियुक्राः |

२७० गदाधरपद्धतौ

च्छ्रा द्यन्तङ्गदो जभुजिकरण दादभोक्तोने दोषौ नित्यामक्तस्य छच्छरादिकविधिषु स्मारम्मणे नापि eta: | Malt नाम यज्ञे वरणमुपयमादो तु नान्दौमुखं स्यात्‌ ग्राद्धादौ पाकसिद्धित्र॑तविधिषु «age उक्नोऽपि सते | amid नो भवेदित्यनुटन्तौ, ब्राद्धे,-- नित्यं ्रतपरस्यापि छंच्छ्रचान्द्रायणादिषु | faa बच्करहोमादो त्राद्मणाद्विष भोजने तयाच सन्ततक्रच्छरचाद््रायणाद्याचरणणग्रोलस्य रच्छराद्यारभ- samy नास्ति | रच्रदोमादिममाप्तौ ब्राह्मणएभ जनकमंणि द्‌ाढ- भोक्तोश्च नागौ चम्‌ | विष्णः श्रारम्भो वरणं यागं सङ्कन्पो व्रतमच्रयोः नान्दोमुखं विवाहादौ are पाकपरिष्िया निमन्त्रण तु argsfa श्रारम्भः स्यादिति wea: | त्रतजापयोरिति पाठान्तरम्‌ निमन््रणपचचस्यास्मटेभे नाद्र एव “श्राद्धादौ तु पचिक्रिया” इत्यादि wat केवलपाक- सिद्धूरेवो क्रत्वात्‌ | MMB सपिण्डानृत दूतरजना दाद्रन्तदेयोदो- Biswas कामाद्‌नवदिततयायुयेदां वा ममाघाः | yg तु दातुः पतति मति azarqay मन्यजेय- यागोद्वाहादिमध्ये सति ठ्‌ यद्परे ata age: मनुः, उभयत दशादानि .कुलस्यान्नं भुज्यते | यद्‌ान्नमल्ि तेषान्तु दणणणडेन विशुध्यति.

कलसार्‌ः | नसि

उभयचर लके BAe Vas: | wie दाटय्रौ चोञत्यादि पुराणएवाक्याद्‌ा तुर ज्ञानेऽनम्याद्‌्टवेऽपि, उभाभ्यामपरिज्ञाने DAR Ha दोषन्‌ | एकेनापि परिज्ञाते भोकरदेषसुपा३डत्‌ दूति षर्‌ चिग्रन्मरतवाक्यादूषः | या तु,- सखूतकेऽपि कुलस्यान्नमदोषं मनुरनत्रवोत्‌ | दति यमोक्तिः। सा ज्ञातौनां खदग्रान्नभुक्रिपरा. श्रशरो चमस्ये यनेन भोजयेच्च मगो चजान्‌ | दूति ब्राद्धयोक्तः | ्रादित्यपुराणे,- विज्ञाते भोकररेव स्यात्‌प्रायञ्धित्तादिकं क्रमात्‌ विष्णःऽ-त्राह्मणानामशौ चे यः सदेवान्नमस्राति तस्य तावदेवा- शौ चं यावत्तेषामशौ चं, antes प्राययित्तं कुर्यात्‌ ¦ दति एवं सकामाग्नौ चानभोजने प्रायञ्धित्तोक्रस्तन्निषिद्धमेव | श्रक्रामभोजने तु श्रौ चिममाश्ोचाचरणम्‌ | श्रादित्यपुराणे,- wag a सम्प्राप िप्रे दातुविंपद्यते | यदा क्ित्तदो च्छिष्ट्रोषं त्यक्ता ममादहितः॥ aaa परकौोयन जलेन शचयो दिजाः विपद्यत इति जायत दत्यस्याप्युपलचणम्‌ तया षट्चिग्रन्मत,- मुच्नानेषु fang लन्तरा Baas | ° श्रन्यगे दो दकाचान्ताः स्वे WIA रताः

ROR गदाधमर्पद्धतो

पुनः श्रादित्यपुराण,- विवाहयन्ञयो मध्ये सूतके सति चान्तरा | DAA Weyl दाता Hay WHA दद्यात्‌ दापयेत्‌ TAI: A YA श्रो चप्रयक्तदोष दति Ha: | विवाहइयञ्नयोरि ति सात्‌ सवो पलच्तणम्‌ | तया wefanaa,— विवारोत्सवयन्ञेषु वन्तरा श्तखतके | atta प्रदातव्यं भोक्तव्यञ्च दिजोत्तमैः प्रतान्नं सूतिकान्नं यदि परसदने कापि सूते तदास्या- प्योत्थानं नान्नमाद्यं पर शवपतनेऽप्याश्यमा निंतेन | उत्थानं जन्मतः स्याददनि तु द्‌गमेऽयाग्िमत्‌स्िदात्ो- Waa श्टत्य श्रौ चेऽस्थिचयनपर तः इतके वा दितोऽदयात्‌ भुञ्नौतेत्यनुटन्तो, मनुः,- saa ूतिकानन्च पु्ययाचान्तमनिदग्म्‌ इति | पर्याचान्तं श्राचमनस्यानस्यम्‌ | यमः,- प्रेतान्नं सूतिकान्नञ्च दाद्‌ शाहं यवान्‌ पिवेत्‌ | दूति watat प्राय्ित्तोक्तः तदन्नयोरभच्यता | प्रेतान्नं प्रेतमुदोश्य एएविनापि दत्तम्‌ | सूतिकान्नं afanigfem पक्रम्‌ | श्रापस्तम्बः,- ्रनुत्थितांयां सुतिकायामन्तःप्रवेन | sam, श्रप्रौचानधिकारिणोऽपि यस्य रहे तिका,

लसार्‌ः | २<३्‌

तदुत्यानपयन्तं ages भोक्तव्यमिति | एवं पर गोचे वे डे स्थिते तावत्कालं भोक्तव्यं दति “उत्थानं जन्मतोद्‌श्मदिने' दूति नामकरणप्रस्तावे पारस्कर सउ लिखितम्‌ aq sarah चेटोत्यानादाशौचं सूतकवदिति पारस्करद्धचान्तरे एकादग्दिने उत्थानपद्‌ प्रयुक्रमिति चेत्‌ ? उच्यते श्राउत्याना fears ATSt ऽभिविष्य्येता। तया उत्थानदिनममिव्याणा गो चमिति ) एका- znfea श्रग्नौचापगम इति afafacte: | ्रङ्गिराः,- दोषञायिरोचिणणम्‌ | दतके शरावं ane वस्िमञ्चयनात्परम्‌ | च्रन्नसचप्रटत्तानःमाममन्न विगदिंतम्‌ भुक्ता पक्तानमेतेषां विरा तु zat भवेन्‌ | श्रव्रिहोचिणणं सदान्नदानणौोलानाञ्च ग्डतकाशोौचे पञ्चदिन- प्रशत्यामान्नग्रदणे Gat श्राद्यदिनतोऽपि आअरमाननेग्रदणे दोषः पक्कान्नभक्षणे प्रायशित्तम्‌ | श्र्रषोमो यपयन्तमपि fe मतं दौकितस्वान्नमाश्यम्‌, किन्ापद्येव सोमक्रयण दद कते भोज्यमेवं विपत्तौ | यज्ञेऽपेच्छं हि यदयदद्रविणमिद्‌ मवम्धाष्य वाद्यं तदन्यत्‌, चातुःप्राश्ये तु uy हि निगदितमाधानकम्ब्ाङ्गग्ते धौम्बः,- ब्रह्मोदने सोमे मोमन्तोन्नयने तया | जातश्राद्धे नवश्राद्धे भुक्ता चान्द्रायणं चरेत्‌ ब्रह्मोदन आराघानाङ्गग्त चातुःप्राण्य, Ba walt: was:

प्राश्न्तौति विधिः। सोमोऽग्रौषोमोयपग्रपयन्तम्‌ | “nate 35

२७४ गदाधरपड्तौ

मस्थायां यजमानस्य गहे भोक्तव्यम्‌"दति wa: ““क्रौतराजको भोज्यान्नः'" दति आयवेणश्रुतिरापदिषया क्रौतो राजा मोमो येन तयोक्तः | श्रापस्तम्बः,- “यज्ञां वा fafafes भोक्रयम्‌"*। wae, यज्ञायम्‌ यावद्‌ द्र्यमपेकितं तावति द्ये yaad अ्रव- श्रिष्टादो चितस्यान्न भोक्तव्यमिति एतदप्यापदिषयमेव | दुग्धेदध्याज्यतेलाच्ननफललवणदौ द्र मांसेषु मृल- कादौ काष्टे मूलोषधघटणसुमनःग्रस्यप्रा कष प्पे पक्रं मक्थौ यवादौ पचनविर हिते तण्डलादौ दोषः, किन्त्वाप्रोचौ दद्यात्‌ पर उत वितरेदाददौत wa वा मरोविः,- लवणे मधुमांसे पुष्यमूलफलेष | शराककाष्टदणेव्वेवं द्धिमपिःपयोऽप तेरूौषधाञ्नने चेव पक्तापक्तं Bass | पण्येषु चेवं wag नाशौचं श्टतसूतके wa yaad द्धिसादचर्यात्‌ दुग्धपर पक्रं मक्थुमोदक- गुडादि saa तण्डलादि | सत्यन्तर,- लवणं सपमा सञ्च पुष्पमूलफलानि काष्ठं WH ठणं तोयं द्‌धिच्ौर तं तथा sey तेलम्ननं waaay नित्य शः। anita गदहाट्याद्यं खयं Way मूलकम्‌ एतत्‌ सवैमग्रौ चिग्टहगतमपि wa गद्यमाणं दोषावहम्‌ | चरप्रौ किना चेदौयेत तरिं दृष्टमेव तथा भ्रश्य चोतरदौयमान-

कालसारः | २७५

मपि दोषावदम्‌ | श्रच वाक्ये एष्कान्नपदन तण्डलाद यदणएम्‌^९) | ननु वाक्चदयेऽपि श्रश्रौ विग्टहस्ितजलस्यापि याद्यवमिति चेत्‌, न। तस्य व्वत्यन्तासम्भवे वयाचितविषयलात्‌ | श्नन्यथा,- Ban तु यदा विप्रो ब्रह्मचारो विग्रेषतः। पिवेत्पानोयमन्नानात्‌ सम्यक्‌ Bary WHA वा पानौोयपाने Fala पञ्चगव्यस्य भक्षणम्‌ | दत्यादयङ्धिरःग्रष्टतिवाक्यमनयेकं स्यात्‌ “भोजनकाले अभौ- Wd तु श्रन्यस्य गटदाज्जलमानोय awa” दत्याद्यपि व्यथं स्यात्‌ | विप्रादा्ौ चयुक्ताद्लनप्रटतिभिः संस्कियाभिर्विंशोध्यम्‌, धान्याद्यं याद्यमामं गदितमपि विपत्तौ तु पक्रानवन्नैम्‌ विप्रैः सत्श्टद्रजातेः परमिह तु पणः क्षिकास्तायिकास्या, ag Sar च्रतोऽसिन्‌ रजतमपि हिरण्थादिकं ग्राद्यमाडः | श्रङ्कगिराः,- संस्कारः शष्यति दयाम धान्यं तेन श्चि स्तम्‌ तस्माद्धान्यं ग्रदोतयं ग्टतिखूतान्तरस्वपि पकान्नवजं विप्रेभ्यो aula चचियात्तया। वेण्वेभ्यः सवेधान्यानि WHIT याद्या: पणणस्तया संस्कारः दलनादिभिः। “एतच्चापद्तस्य दति कन्यतसर्‌- काराः ताविकाः कषिकाः पणाः, पणानां agate: रज- तादौोनामपि ्राह्यलमित्यभियक्राः | पूर्वाग्रौ चेऽपि तातः सुतजनुपि विलोक्यास्यमस्याप्यदृष्टा,

ete

= & (१) तण्डलसक्थ्वाट्‌ ग्रहणम्‌ |

र्‌ गद्‌} धरतो

वा नाडो च्छदनात्‌ प्राक्‌ इविरभिषवणात्‌ गोसुवर्णादि दद्यात्‌। ela षण्डपुव्योजेनुषि भवति संसर्गजाशरौ चपाते, पित्रोस्तद्ग्टद्यवित्तेरपि स॒तप्रसुखा वेश्वदेवादि qa: श्रभिषवणात्‌ स्नानात्‌ | प्रजापतिः, श्रशौचे तु aga Gas यदा भवेत्‌ | कन्तस्तात्कालिको Rig: पूर्वाग्रौचं वाधकम्‌ च्रतएवेतद नापद्‌ विषयम्‌ पारस्करः,-“जातस्य कुमारस्या- च्छिन्नायां नाद्यां मेधाजननायय्ये करोति" दति जातकम्म उक्वान्‌ | शद्खःलिखितौ,- “game नाद्यामच्छिनायां गुडतिल- हिरण्यवस्तप्रावर णगो धान्यप्रतियहेऽप्यदोषः' afta weet ङुमार- प्रसवनिभित्तदन्तद्रवान्तरपरि यदेऽप्यदोषः | सुमन्त्‌ः+- सूतक तु मुखं दृष्टा जातस्य जनकस्ततः | छवा सचेलं सानं तु Wel भवति ततच्षणात्‌ मम्बन्तः,- जते ga पितुः खानं सचलन्त्‌ विधो यते | एतदाक्यात्‌ पुत्रमुखद णेनाभावेऽपि पितुः क्ञानम्‌ कन्योत्‌- पत्तौ तु पितुः स्ञानाभावः | तथाचाङ्किराः.- नाशौचं विद्यते ga: daiga गच्छति | रजः सखवति wiui तच पुंसि विद्यते ga: पितुः Tamas स््ोजननात्‌, यस्या रजः, तखा एवाङ्गा शौ चम्‌, पितुः) जननौस्पग्रेने तु पितुरपि सानं वच्छति। तथा च, `अङ्गाशौ चापगमा्थें दुदिढजनुषि ज्ञानाभावः एवं “लानो पस्यण़रनादेव पिता श्रद्धः" दति वाक्यस्य, पुंजननविषय-

कालसारः। २७७

त्वम्‌ नपुंखकोत्‌ पत्तावपि wae: YAS SNA क्लानाभावः। तथा जेभिनिषटचं “विरो धिधमेखमवाये weet स्यात्‌ ayaa” द्ति। श्रतएव एतत्‌ सवे विविच्य कालिदासचयिनिभिरणुक्षं “"पुचौमज्जननतोऽय स्वेजननोस्पभं eure ufa:” इति gat ( पुचवान्‌) तु तातादि शब्दः प्रयुक्तः ग्टहपतेवच्यमाणखग्टहस्यि- तद्‌ दिटप्रसवनिमित्तादिरंसर्गाश्रौचे पुवादिद्दारेव वेश्वदेवादिक- रणम्‌ | सर्वार्थलादेश्वदेवक्रियादौनामलोपः | तथाचाद्गिराः+अशोचं यस्य संमर्गाज्जायति ग्टदमेधिनः | क्रियास्तच WER ख्द्याणां तद्भवेत्‌ BYU खदभवपुचादरौनां, ग्दद्रवयाणां दत्यथंः | समात्ताौ कमे किञ्चिन्न भवति तु कतः पौ णेमास्य्चरुख,- दारअल्रात्‌ समाप्यो भवति किल तदाग्ौ चपातेऽपि दर्ग | ओरौ ताद्नावधिद्ोचाङ्तिमुखमखिलं नित्यकर्माप्यणरोचे, सानात्तत्‌कमेष्णद्धेः खयमपि कुलजेरन्यगोजख काय्येम्‌ यद्य पि,- Bad हावयेत्‌ Bla तदभावे Barada | तया,- कृतमोद्नसकूथ्वादि तण्डलादि रताहृतम्‌ | Aes चाहतं प्रोक्तमिति व्यं विधा वृधेः 1 दति इन्दो गपरिशिष्टे उक्तम्‌ | जावालिना पि,-जन्महानौ वितामस्य कर्म॑त्यागो विद्यते ग्रालाग्नौ केवलो होमः काय्यै एवान्यगोचजेः दत्यक्तम्‌ श्ालाम्निः aaa: कवलश्ब्दात्‌ पच्च दि पिण्ड- पिटयन्ननिषेधः |

२७८ गदाघरुपद्धतो

पिहयज्ञं चरु दोमममगोतरण कारयेत्‌ | दूति जातुकणवाक्यात्‌ चरूपिण्डयनज्ञयो विकन्प इति। तयापि,- खतकं मन्त्रवत्‌ कमे स्मात्ते नेव समाचरेत्‌ | दृति सतेनं किचित्‌ सआतत्ताग्नौ कुवन्ति किन्तुं aratar- वपि पौणेमास्यचरौ हते वमावास्यायामश्रौ चपाते aaa समापनमेव | पौ णंमास्या दि टद्‌ रान्तमेकं कमं प्रचचते | रत्यक्तः | ata तु पारस्करः, नित्यानि विनिवन्तैरन्‌ वे तानवन्लम्‌ वेतानिकानि नित्यान्यच दगैपौणंमास्याख्यणा यिदोच- चातुर्मास्यादोनि। व्याघ्रपाद्‌: “ata कर्मणि तत्कालं प्रातः Riga” | amare wag यजमानस्चेत्यथः | मनुः,-- “न तच तत्कमे क्वाणः सनाग्योऽप्यश्विभेवेत्‌” सनाभ्यः सपिण्डः ama ओरौ तेष्वा्लिजं श्रसगोचालाभे कमं कुर्वाणो नाप्रुवचिभेवदित्यपि शब्दाः नित्यः सोमोऽपि तद्त्‌ पश्र्परि तयोः पवेसलान्न कार्या, वन्ते पवेप्छश्नौचं यदि पतति नवान्नेष्टिर चागते स्यात्‌ | नागौ स्याप््रवासो भवति निजचत्यात्तवेस्याद्धिपत्तो, सोऽप्यचाथ want भवति भवेत्‌ पवेपाते तु सोऽपि॥ निषूढपश्एवन्धसो मयो नित्ययोर पि पर्वान्तरसावकाश्रलात्‌ नाश्रौ- चेऽनुष्टानम्‌ श्राश्रयणमय्यन्तिमपवंगतमनन्यगतिकलात्‌ श्रन्ते- काय्येम्‌ |

कलसार्‌ः। (0

gat शतके चेव यस्य भायां रजस्वला | प्रवासे गमने तस्य पुनराधानमिष्यते दूत्य ग्नौ चे पल्या रजस्यपि प्रवासः निषिद्ध एव तयाणात्या विके काये एद्धिविधानादेव विपत्तौ तु प्रवासे कायं squares कायम्‌ | तथा प्रवेशो पस्थापनञ्च पवेसन्निधावावश्कलात्‌ काय्यैमेव | पिचोमेध्ये दश्रादं यदि भवति सुतः मा्चिको दग्रेपाते, Gaal पेचयज्ञं सकलमनुचरे च्छ्रो तद गोक्ररत्यम्‌ | श्रस्िस्तावत्सपिण्डो करणम्डषिगिरा यन्निषिद्धं विना aq,- नो am: पिण्डयज्ञस्तदि तर विहितश्रौ तलोपः कुतः स्यात्‌ रूतिसग्रहे,- शादाभ्यन्तरं यस्य सपिण्डोकरणं भेत्‌ | प्रेतलं सवेदा तस्य यावद्‌ाग्रूतमश्चवम्‌ | कार्ष्णाजिनिः, सपिण्डोकरणं कुर्यात्‌ पूववच्ाभ्निमान्‌ सुतः परतो दशराचाचेत्‌ कुह्टरब्दोपरोतरः दूतरोऽनचिः | जावालिः, नासपिण्डाधचिमान्‌ ga: पिटयज्ञं समाचरत्‌ | पापो भवत्यकुदेन्‌ fe पिदा चोपजायते “श्रमपिण्ड सपिण्डनमरला' दूति कन्यतर्काराः | एवं दशामध्ये cima मपिण्डोकरणमाच्स्य निषिद्ध त्वात्‌ मपिण्डोकरणं विना पिण्डपिटयन्नानुष्टानस्य निषिद्धूवात्‌ तमेव विना ओरौतमन्यद्‌ कमे काय्य॑मित्यभियक्ताः | मातुः पिण्ड- पिद्यज्ञ प्रवेश्राभावेऽपि,

२८० गदाधरुपद्धतो

एकाद श्रादं faa च्र्वाग्दर्गाद्ययाविधि | ्रूर्वोताथिमान्‌ gat मातापित्रोः मपिण्डनम्‌ दति वाक्यान्मातुरपि सपिष्डोकरणं aaa पिण्डपिदयन्ञ- करणमिति | माद्‌ णा हमध्येऽपेवम्‌ विमातुस्व॒ war एव सपिण्डनमिति वच्यते | साभिस्वकाद्‌ शादे यदि पतति कुषदाद शादेऽयवान्या- प्रोचे छवा सपिण्डोकतिमपि तनयात्‌ Atacama | यागोऽशौचे समायो यदि भवति रजो योषितो यागमध्ये, तच्छद्धौ तत्छमािस्वघविगमभवे पवेके जातकेषटिः टदस्यतिः+- algae वाद्धि arf: qatafowaq | waive मध्येऽपि कुर्यादेवा विग्रङ्कयन्‌ दूति gaa माग्रिकते दाद्‌णादे द्‌णेपातेऽग्नौचेऽपि दादशाडे मपिष्डोकरणम्‌ | एकाद शाददिने iad तु एकादशा एव ) च्रप्नौ चानन्तरं gaa तु च्रशोचापगमदिने सपिण्डनम्‌ देये fagufaan: | | ब्राह्मे, Bela मधुपकाश्च यजमानश्च खलिजः। पश्चाद्‌ शाह पतिते भवेदिति निश्चयः तदङ्ग दोतदौ चस्य चे विद्यस्य महामखे | स्तान्‌ aaa यावतन्तावन्तस्य विद्यते खविजां मधुपकंग्रदण्णनन्तरं यजमानस्य दौक्तायाः पश्चात्‌ पतितमण्ोचं तत्क्मसमाश्तिपर्यन्तं भवतोत्यथैः तथाचाशौ चेऽपि यागसमाप्नौ दोषः यागस्य मध्ये पन्नौरजोदभेने aq शएद्धावेव

कालसारः | २८१

यागसमाश्चिः यस्य पत्नौ अ्रनालम्बृका स्यात्‌ तामवरुध्य चजेतः ` दूति श्रतेः

श्रनालम्बृका (रजोवतौ) मौतमपि जातेच्ादिकं श्रौ चाप- गमपतिते श्राद्ये पवि काय्य, नागशोचमध्ये। तथाच पवे- मोमांसायां चतूर्याध्यायदतौयपादोनविंश्ाधिकरणएस्य संग्रहकारिका माघवोये,-

जातकर्मानन्तरं स्याद शौ चापगतेऽयवा | निमित्तसज्ञिधेरा्यः कर्तप्द्ययेसु त्तरः

दति। श्र्रौचानन्तरकार्या जातेष्टिर शौ चानन्तरपतिते wa | “य इच्छा पशना सोमेन वा यजेत सोऽमावास्यायाम्‌ पौर्णमास्याम्‌ वा asa” दति श्रुतेः। सामान्यतः सर्वासामिषठौनां wim विधानात्‌ |

अङ्गा श्रौ चं समये भवति दि aah व्याप्य तूर्याहमस्मिन्‌.

खण्डे भागं and तु जनुषि कुले aaafag वपतुः |

मातुः सत्यन्तमेव स्पुगरति यदि पिता तां तदन्तः सु्त्या-

श्रो चोऽङ्गा शौ चय॒क्ता श्रपि कुलजनना(\) ह्या दिसर्वाधयोगे wat ततः सञ्चयनादृद्धंमङ्गस्पा विधोयते |

ततः परव॑मङ्गा गो चभित्य्ैः | श्रङ्किराः,- चतुयेऽदनि aaa: संस्पर्शा ATE तु | Say पश्चमे Sa: ava तया fam | शद्रस्य दशमेऽयेवं aims जिभागतः।

(१) कुलजजना |

२८२ गदाधरपद्धतौ

चचस्य पञ्चम दत्यादि तु ्षचियादौनां दादशादाद्यभो चप, च्रखदेपर तु मवेवणानां दशाहाग्रौचपच्ाश्रयणात्‌ चतु्ेऽइन्येवाश्यि- चयनमङ्गाशौ तावत्‌ | दे३लः,- श्रौ चकालात्‌ विज्ञेयं स्पशेनन्तु चिभागतः | aaa तु सूतिकां विना कुलेऽङ्गा शो चाभावः | तथाचाङ्गिराः,- aaa सूतिकावजें संसय्र नेव दुख्यति ata a विग्रेषः;- अन्यास्तु मातर Wad awe व्रजन्ति चत्‌ | मपिण्डाञ्चेव deur: सन्ति स्वंऽपि नित्यशः श्रह्खःलिखितो,-- “स्ानोपस्पग्रेनादेव पिताणद्धः, नाङोच्छेदनात्‌ पर शरा चपय्यैन्तं मातुरषयङ्गा शौ चम्‌” | तया दारोतष्च,-- “श्रत ऊद्धंमसमालम्भनमादशराचा- दितिःः। देवलोऽपि,- “माता waeurea”’ इति | यदि पन्यां प्रष्ूतायां at: सम्पकग्डच्छति | सूतकन्त॒ भवेत्तस्य यदि विप्रः षडङ्गवित्‌ पारस्करः,- “aay पितुन॑तरेषाम्‌' इत्यनेन षड्ङ्गविद्पि argu: पिता सूतिकास्यगरं दश्राचपयन्तमङ्गा णौ चोत्ययैः। saat qaqa स्ञानमाचम्‌ | तयाचाङ्किराः,- wa खूतिकायाश्च स्रानमाञ विधौयते | ज्ञातोनामपि दिचिचतुरादियत्‌ किल्चिदणौ चसन्निपाते ant- चाप्रगमान्तमङ्गा शो चम्‌

कत्तसार्‌ः | +3

तथा ब्राह्मे स्वेमङ्गमसंस्पश्ये तच ्यात्सृतके सति सूतकमष्े gaa नितरां शतकमभ्ये शतके | fragt wat weanfs भवेदषेमेकं देवम्‌, पिव्यं कर्मापि काम्यं परग्टदपचनच्ोद्रमांसाग्रनं | खाध्यायान्याद्दिकादयत्सवग्यभकरणं चेत्यादि स्यात्‌, किन्त स्वनित्यनेमित्तिककरणपरप्ेलकृत्यान्यपो षण्मासान्‌ स्यादिमातुमेरण Tad व्याप्य भार्याविनाग, चौन्‌ मासान्‌ म्यादशोचद्गदितमपि सुतश्नाढनाभरे चिपचचान्‌ | ame चेत्सपिण्डौ करणएमपि कृतं काम्वरृत्येऽपि इन्त, द्रव्यादानादिरूपेऽधिषृतिरपि मता पत्त Testa तच॥ दानं नित्यनताङ्ग ग्रहणमिहिरसङ्का न्तिदाने UST, यन्ञश्चारामनोौराग्यसुरमद नान्यन्नद्‌ानञ्च प्रत्तम्‌ | दृष्टं त्वातिश्यसुक्ं श्रुतिपठनतपः्नौ तग्राला ्िकार्या,- न्तवंदौद्‌ानसुक्तं afay निगदितं वेश्वदेवोऽपि मत्यम्‌ way द्‌ारमवे तधिरूतिरितरान्नादिभुक्तौ महे नो, दर्णादौ दौपदाने निपवन दृह Was गयायाम्‌ नान्येषां तपेएेनाबव्दिक ta जननौठाषिके नाधिकार, स्ताताब्देऽयास्ति ताताल्दिक इद जननो वषंमध्येऽधिकारः दति चतुभिः कुलकम्‌ | ्रन्याब्दिकादि इत्यनेन fuearfe- तपेणस्यापि संग्रदः। इतरान्नादि दत्यनन मांममाकिकयोः daz: | मदे उत्सवे। दर्गादित्यनेन श्रष्टकाच््टकायगादादौनां संग्रहः | निवपन, निवापः श्राद्धमिति यावत्‌ | दौोपदाने प्रदौपामावा-

२८४ गद्‌ाघर्पड्‌ at

स्यायां दौपदाने | गयायामित्यच्रापि निवपन दत्यन्वयः अन्येषां पिहव्यादौनां दवश्ब्टेन यया पिचोवंषेमध्ये पिदब्यादितपेणएश्राद्ध कायं, तया जनकवं जननोवाषिकमपि कायैमित्ययंः | जननौव्षं तु जनकसांवत्सरिकं कायमितोयान्‌ area: पितुमंदः दूति दुचनाये Rue उपात्तः | fanfaa:— पिता चोपरमेद्यस्य ze तस्यादविभेवेत्‌ | पितेति माताणुपलच्छते | wefafa देद्ोऽपि तया देवौपुराणे- प्रतौ पितरौ यस्य दे स्तस्या ग्विभवेत्‌ | देवं नापि faa स्यादयावद्पणो वत्सरः | महागुरुनिपाते सवेकर्माणि asad मदागुरुः मातापितरो | पुन विश्वामिचः,- सानं चेव महादानं खाध्यायञ्चान्यत्पणम्‌ | प्रथमेऽब्द Bala Ayala सानमिति तौयेक्लानम्‌ “तोथेखानं महादानं दत्येतत्‌ समानम्‌, यमोक्तः खाध्यायो वेदपाठः श्रन्यत॑णमिति पिद- यादि शरृद्धमुपलच्छते | गरातातपःः-- Waly Way मध्‌ मांसञ्च मेयुनम्‌ वजेयेटन्दमेकञ्च महागुरुनिपातने मधु ae मेथुनं विवादः | यमः,- “arse काम्यम्‌”

दूति निषेधं प्रत्योवाच दति सामान्यतोऽशौचप्रकरणेऽपि “तयेव ®

कलसारः | नट्‌

काम्यम्‌ यत्कमं वत्सरात्‌ प्रथमादृतेः दति व्याप्रोक्तः काम्येव्वनधि- कारो नित्यनैमित्तिकयोः | तया,-- saat प्रेतकार्याणि महागुरुनिपातने | qa: संवत्सरात्‌ पूवे नेको दष्टं पावेणम्‌ दरति हन्मः | पिद्ब्यादौनां प्रेतकार्याणि “aiatfes पावें इति कुल- भेदेन दिविधमष्याब्दिकं कायम्‌ | विमाचादिविषये ठहन्मतुः,- पिचोरब्दमश्नैचं स्यात्‌ षण्मासान्‌ मातुरेव च, मासचयन्त्‌ भार्यायास्तदद्धं भादपुत्रयोः | aatfafa श्रेषः। मातुरिति विमातुः पिचोरितिपवेसुक्रतात्‌। कनिष्टमातुः षएमासान्‌ मातापिचोश्च वत्सरम्‌ | दूति वाक्यान्तरात्‌ wae खपिण्डोकरणा कृते काम्वेष्वप्य- धिकारः तथा प्रतियदहादिष्वपि | तया मात्य्ये,- सपिण्डोकरणादृद्धं प्रेतः पावेणभाक्‌ भवेत्‌ | say श्टियोग्यश्च गदष्यश्च ततो भवेत्‌ दृत्तं प्रतिग्रदादि इष्टं यागादि weet भवेदित्यनेन पचः afaare कुर्यात्‌ | ग्टदस्थपदश्य सग्टदहो तद्‌।र॒ एव सुख्यायेतवात्‌ | ननु गटदस्याश्रमविदहितकर्मानुष्ानयोग्यतापरत्मम्तु? दति चेत्‌ न। ल्णाप्रसक्तः सुख्यायसम्भवे लचणाया श्ननङ्गोकारात्‌ | wa पन्तष्टयोः परिगणनं र्वाचाय्यः कृतम्‌ |

तयाचाग्रेयपुराणे,- वापोकरूुपतडागादिदेवतायतनानि च।

¢

२८६ गदाधरपद्धतौ

श्रन्नप्रदानमारामाः URNA मुक्तिदम्‌ तया,-- ग्रहोपरागे यानं खूयसङ्कमणेषु दादश्ादौ यानं पत्तं तदपि नाकदम्‌ कात्यायनः | sifeatg: faaga पिष्डेरेव, तथा ब्राह्मणा- नपि भोजयेत्‌ पर्तेरिति | दष्टलचण मङहाभारते,- एकाचचिद्ो वदनं तायां यच्च इयते | अन्त्वेदयाञ्च यद्‌ानमिष्टं तदभिधौयते जातुकणैः,- श्र्निशोचं तपः शौचं वेदानाञ्चानुपालनम्‌ | ्रातिथ्ये वेश्वदेवश्च दष्टमित्यभिधोयते दा दण्यादौत्यादिपदरन जन्म्राष्टम्यादित्रताङ्गद्‌ानसं्हः | एतेन चेचतोर्यादियानादौनां श्रचानुक्रेनै तत्करणं BATTING | तया वचनवलात्‌ भार्य्यायां विद्धमानायां विवाहान्तरकरण- wa: | एवं मातापिचोवेषं सपिण्डो करणे कते पिदव्यादितपंण- श्राद्धादिकं काय्येम्‌ यमः,- माङ्गल्यमूत्सवं चेव परपाकं भोजनम्‌ | प्रयमेऽन्दे gata योजनेऽपि छते सति ay मांसं wag मेयनं चान्यतपेणम्‌ प्रथमेऽब्दे Gala सपिण्डैकरण छते द्ध मनुः,- दोपदानं गयाश्राद्धं आ्राद्भञ्चापरपाचिकम्‌ | प्रयेऽब्दे gata योजनेऽपि ad सति aaa विवादः, विवादं विना मिथुनलासममवात्‌ ननु

|

कालसार्‌ः | ass

“weaq ततो भवेत्‌” gaat विवादः कायं दत्यक्तम्‌ रच निषेध cava: कथं सङ्गतिरिति चेदुच्यते विद्यमानपन्नौकेन पल्यन्तरस्वौकारो काय्यं दत्यभयोने विरोधः तथा पृवेम- विवादितो र्डतपन्नौ कञ्च विवहदिति निष्कषेः। तदेतत्‌ विविच्य -“नोद्वाहेदारसल्े” दृत्यस्मत्‌कारिकायां निविद्धम्‌ रद्धमनुक्तौ अरपरपाङिकमिति अपरपच्चे विडहितामावास्याश्राद्धम्‌ | एतदष्ट- कान्वष्टकायमाद्यादौ नामु पलच्णम्‌ | BRAVA प्रेतपचश्राद्धमप्ि कायम्‌ तस्य नित्यकाम्बलात्‌। “पितयं परते” दति वच्छमाणोक्तेः माता पिद विषये खहन्मनुः,-

पितयुपरते gat मातुः श्राद्धा न्निवत्तैते |

मातयंपि इन्तायां पितुः argigd समाः |

ममा: सांवत्सरिकं asifaat tee) ददं सन्निडितवाक्येन

मम्बध्यते, पूवेवाक्येनापि |

मातयेपि amet are gata tena |

तस्या वत्सर कुर्यात्‌ प्रेते पितरि कचित्‌

दति mgta:, टति रत्यकौमुदौकारादयः कुर्यादिति

पुनरूपाद्‌ानात्‌ नजः पूवेवाक्ये सम्बन्धश्ङ्गा नास्लेवेति तन्मतं समो- Waa तस्मात्‌ जनकमरणान्दे माठवाषिंकमपि कार्यम्‌ | मादमरणाब्दे तु पिदवापिकश्राद्धमात्तं काय्येमितौयानेव भेदः | श्रमावास्यादि नित्यश्नाद्धानि उभयोरष्यब्दे कार्याणौति भिद्धान्तः। aa विप्रमिभ्रैः “we समाः" दत्यभयच्रापि योजयिता wari निविंग्रानं मादसांवत्सरिकानुष्ठाना्यसम्बद्धयवायाभावादनुसङ्गाधि-

QTc गदाधरपदडतो

करणन्यायमम्भवःद्‌भयोः सवत्छरे उभयोः सांवच्छरिकं कायेमिति यल्लिखितं तन्न विचारसरम्‌ दत्यस्मत्‌ पिल्चरणाः | aut e,—

श्रनुषङ्गाधिकरणेषु श्रसम्बद्धव्यवायाभावो नानुषङकनिमित्तम्‌ | fara श्राकाङ्खादिमद्वाव एव तन्निमित्तमिति विचारितं “पितय्‌- परते" दति वाक्ये ्राकाङ्कादि विरदान्नानुषङ्गपरसङ्गोऽपि श्रनेनेवा- खारस्येन “मातयपि चः इति वाक्यस्य प्रामाण्ये areata विकल्प दति तैरणुक्तम्‌ ग्ङ्घसतौ तदाक्यस्योपालमादप्रामाण्य- WEI दूरापाम्तेव। यच्चोक्तं विकन्य दति तत्रापि प्रष्ट्म्‌ किं वाक्यो विरोधाददिकन्प दति कच्यनोयम्‌ ? श्रयवा स्मत्याचारयो- रिति? तच प्रयमः, उभयोर्वाक्ययोरपि संवत्सरे areata- तसरिकानुष्ठानाभावम्य स्पष्टमभिदितवेन विरोधाभावात्‌ तस्माद्‌ ददितौयः पतच श्राश्रयणोयः सोऽप्ययक्रः तयाचारस्य रत्यकौसु- afeg ्रलिखितलेन श्रनादृतलात्‌ सूत्यपेचयाद्यन्तरितप्रामाण्ठे- नाचारस्य दुवैलवमिति भिद्धन्ताेत्यलमति विस्तरेण विस्तरस्तु श्रस्मत्‌कृते एष्द्धिमारे द्रष्टव्यः दति wae |

श्रय वाद्यागश्नौ चष्द्धिः |

aq वर्णा getfuenfafcena: सङ्राश्चानुलोग्यो-

त्पन्नाः wat तेऽभिषवणद्रवयः प्रातिलोम्योद्धवा्चेत्‌ |

fanart wt Rf: स्वात्‌ सुतजनुषि दिनैख्तिंग्रता alive,

योषित्‌पुसोचंमलान्ननुषि गरुसदृग्‌भागतस्तिंशरतेव I यद्यपि,- प्ररध्येद्‌ विप्रो द्‌ग्राडेन arenes मिषः |

कानलसार्‌ः। <

वेश्यः पञ्चुद्‌ एादेन wet aaa wafa दति मनुनाोक्रम्‌ | तथापि,- सवेषामेव वर्णानां दूतक Bah तया | भ्रादाच्छद्धिरथ वा दति शातातपो saat दत्य ङ्गिरोवाक्चात्‌ श्रस्मदभे सर्वेषां वर्णानां दश्रादाग्रौचममा- चारः दश्राहेन दत्यादौ गतेनेति wa.) अरनुलोममङ्राणामपि दग्रादाग्रौचम्‌ | तथा ब्राह्म, शौचाशौचं RIT WRIST ST: | दति। प्रतिलोमसङ्गराणणन्त मूचपुरौषोतसगवत्‌ मलापकषे- स्नानमाचम्‌ प्रतिलोमा waeta” दति मोतमोक्तस्षां विध्यनधिकरारात्‌ | यत्त एका हाच्छध्यते विप्रो योऽ्रिवेद्ममन्वितः | व्यदात्केवलवेदजो faut enfafen: तचा,- मम्यकं विनित्तानां प्रेतं नेव सूतकम्‌ | दृति पराग्ररवाक्यं तत्कलोतरयु गविषयम्‌ दशा एव विप्रस्य मपिण्डमरणं मति। कन्त्पान्तराणि कुर्वाणः कलो स्यान्म्रोहकिल्विषौ दूति हारोतोक्रः। तेन गुणतारतम्यादिनाप्यणरौचम्द्भोचो कललो aed जन्मनो ऽष्युपलच्तणं, fae qarecfa पेढोनमिः,- “afaat qaaat ami विग्रतिरातरेण कारयेत्‌ मानेन स्त्रोजननोम्‌' दति पुचवर्तो, पुरुषजननो मित्यथैः। मामोऽच मावनः, Wa तन््रामस्यवोक्त वात्‌

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८५० Tel धरपद्धतो तया ग्रह्ुन्यासो,- सूतका दि परिच्छदो दि नमासाब्दपास्तया | मष्यमग्रदभुक्तिश्च सावनेन प्रकैत्तिंताः॥ दरति, ननु पुच्रकन्ययोयेमलतया जनने तु मातुः केन ufefcfa चत्‌ ? wa केचित्‌ यमलतया पुत्तकन्ययोजंनने प्रथमतो aaa fam: gat वा, तव्जननेनेव मातुरशौचम्‌ प्रथमतस्तस्येव quad, दितौयस्य तन्नान्तरोयकलत्वात्‌ तदननुवन्धत्रेन प्रथग- MURATA दयोरप्येकसंप्रयो गजन्यश्एक्रशो एितजन्यवेन एकता | तन्म्रन्दमेवेति श्रस्मत्‌ पिदचरणणः | तया, TRU लघु Wea लघुना नेव तद्‌ गारः दति वच्छमाणदन्मनुवचनेन लघुनः पुच्जनना शौ चस्य गुरुणा स्तोजनना शौचेन वाधात्‌ मासेनेव मातुः WHE: | श्रयो च्यते,- वद्धयदघादहानि निभित्ताद्‌ागतान्यपि | दति वचनात्‌ पुचजनना शरो चस्य वलवच्वमिति। तदपि मन्दम्‌ लघुगुरुविचारस्य उच्छेदापत्तेः | “न वद्धंयेत्‌” इत्येतस्य तु ww- चस्य दशादप्रभातश्रवे विदिनदद्धिनिषेधपरत्रभिति वच्यति तथाच कन्यापुचयोयैमलतया जनने स्तौजननेनेव मातुर शौ चमिति सिद्धान्तः | योषित्‌ मासाडतौ स्याच्छुचिरभिषवणात्‌ स्यगेने भ्रौ चतय, त्र्या डे पञ्चमार खवविर वतो चद्रतौ स्मान्तृत्ये | षण्मासान्‌ माससद्ेरपि गतदिवसे: wuts सष्त्या-

कालसारः | रर,

प्रौ चोऽयो सर्वतो दशदिवस्परं ओ्रौतृत्‌स्प शंयोग्या वशिष्टः, ““चिरा ते रजखला एएविर्भवति” चिरा गते दति शेषः। शङ्ख, WEI भत्तशचतूर्ध्कि wer देवपित्ययोः | za कमेणि faa पञ्चमेऽहनि प्रध्यति भक्तेरपि पादसम्बाहनादिव्यापार एव शद्धा, स्मरात्तेक्मणि। fare श्रौ तकर्म शद्धा तथाच कात्यायनस्चम्‌,- “TIT उद्‌- क्याया दौचारूपाणि विहाय दत्युपक्रम्य चिराचान्ते गोमयमिश्रेए उदकेन खापयित्वा परिघानादि करोतिः इति पञ्चमेऽहनि तु समात्तेकर्मसु अरभिगमने चाधिकारवतोति सिद्धम्‌ चतुंदिनराचौ श्रभिगमने चाधिकारोऽस्पायगे एर दितपुचोत्यत्तिरूपटौषसदिष्णो- रिति प्रवं लिखितम्‌ | aq यद्यपि केचित्‌,- एकाकिन्यो विवाहादौ देशभङ्गऽयवापदि | उपोषणन प्ररध्यन्ति सद्यो नार्यो wear श्रचिः,- THA YT जाता पुनरेव रजखला | अष्टादरश्दिनादर्वागश्चिवं विद्यते | एकोन विं शतेरवगिकादं fanagea | यस्यास्तु नियमेनाष्टादगशदिनमध्ये wat रजोद्‌ग्रेनम्‌, तस्याः स्यादेव चिराचागशौ चमिति विजञानेश्वरा यवस्यापयामासुः | तथापि एकाकिच््यादरौनामपि तथाचारो द्यत दत्यस्माभिः aafatya faaga यद्यपि wert वणे विशेषे लग्नौ चविभिन्नलसुक्तम्‌ | तो तु प्रयक्‌ शौचं सवंव्ण॑ष्वयं विधिः |

२९२ गदाधरपडतौ

दृति मनक्तः सववणंस्त्रो माघारणोऽयं विधिः ठतो यमासमारभ्य TWA तु यवस्था ब्राद्ये,- षण्मासाभ्यन्तरे यावत्‌ गभंखावो भवेद्यदि | तदामाससमेस्तासां दिवरेः शद्धिरिष्यते श्रत Sg खजाल्यक्तमशौ चं तासु विद्यते तासामिति ववचनात्‌ खजाल्यक्तमिति लिङ्गाच सववणस्तो - साधारणमिदम्‌ | श्रत SSAA: सप्रमादि षमस्तमारेषु saat सतजनेन सवया मातुः सूतकाग्ौ चमेव “प्रजातायाञ्च दश- Tama” दूति aaa afar ena ओ्रौतेऽधिकारः। यत्ते ब्राह्मणे चच्तिया amr seat दप्भि्दिनेः। गतैः शुद्धा dum चयोद्‌ग्भिरेव दरति ब्राह्मवचनम्‌ | तदनृढापरम्‌। यदा VATA मासाशौच- पच्चाभिप्रायम्‌। शादमेवा शौ चन्तु सर्वेषामपरे विदुः दूति दग्रराचाशौ चपचस्य BHET सवेवर्णानामादृतलात्‌ | सूतिका स्वैवर्णानां शारेन विग्ुष्यति | दति वचनान्तरेण सवेस््ोणामपि द्‌शराचात्‌पर wiat- ग्यलमेव | खावः स्यात्तयेमासावधिरय कथितः पात च्राषष्ठमासम्‌, amd कुले स्यात्‌ अवनमिह पितुः स्यादयापप्रद्तिः | Big Hua foaguyal जातम्डत्यां तसखोत्‌-

कालसारः। २९३

aut तिखो faut: स्यः afafa यदि ग्रः पू्ंमचाप्यशौ चम्‌ समतिः,- श्राचतुरयाद्धवेत्‌ खावः पातः पञ्चमषष्ठयोः | श्रपप्रसवसन्ना स्यात्‌सप्रमाष्टममासयोः खावपातयोः सपिण्डानां सद्यःगौ चम्‌ ष्मा साभ्यन्तर मिति ब्राह्मो क्रो वाक्यगरेषे,- सद्यः चं सपिण्डानां गर्भस्य पतने सति | Tea: गभेखावे पितुः स्तानमाचम्‌ ““सप्तमाष्टममासयोस्त at aa शते जाते कुलस्य चिराचम्‌” इति हारौतोक्तौ जातग्रब्द- लिङ्गात्‌ सपिण्डानां चिराचाशौ चमेव पितुरष्यनयोमसियोसत्य- हारौ चम्‌ | जोवन्‌ जातो यदि प्रयान wat वा यदि जायते | gan मातुरेव स्यात्‌ पिचरादौनां चिराचकम्‌ इति डन््मनुव चनात्‌ दारोतोक्रङ्ुलगब्दस्य पिचादिपरलेन व्याख्यानाच। मातुर शोच तु wats लिखितम्‌ सप्रमाष्टममास- योरपि वालजोवने सपिण्डानां सुमानोद कानां यथायोग्यं सन्यणा- aid उत्सं सि दमेव | | सर्वेषां प्रेतजाते भवति fe नवमादेषु मासेषु पूणे, जातप्रेते तु वक्नजेनुरवधि द्‌शाहहाघमङ्ग द्वितं | ज्ञातोनां aaa afe a fumafa: तिमध्येऽपि नाडो. केदोद्धं तच ताते जनुरवधि दशदाघमन्येषु नाचम्‌ | नवमादिमासे सटतजाते, पारस्करः. गभं यदि विपत्तिः स्याद्‌ शाद सूतकं भवेत्‌

२९४ गदाधरुपडधतौ

नवमादिमासजातन्तो तु कौर्म Haase वालस्य यदि स्यान्मरण पितुः | AAG सूतक तत्‌ स्यात्‌ पिता वस्युश्य एव सद्यः शौच सपिण्डानां कर्तव्यं सोदरस्य तत्‌ सूतकं जनना शौ चमित्ययेः aurea पिचोजेननावधि- द्शराचम्‌ | सपिण्डानां ea दति वचनात्‌ पितुरष्यङ्गाशोचं दशादान्तं TART वस्था सुस्थिरा अन्यप्रकारा व्यवस्था यथया टृदत््रचेताः+ - qeu जोवितो वालो यदि पञ्चलग्टच्छति | मातुः एएद्धिरंशाडेन सद्यःगौ चास्तु गोत्रिणः सुदत्त मपि नाडोच्छदोपलच्णम्‌। या चान्या वस्था, नाङ- SAT पूवे वालमरणे युनर्हारौतः,- “जाति at wa लाते पुनर्वाद शाद सपिण्डानां” | दद्‌ नवमद्‌श्मादिमासविषयम्‌ | पुन- waaay सप्रमाष्टममासयोः व्या ग्नौ चविषयलेन व्याख्यानात्‌ | द्‌ शादाभ्यन्तरे वाले प्रस्थिते तस्य बान्धवैः | mam ane adams विधोयते दूति टृदन्मनुवचनाच सपिण्डानां ट्‌ श्रादमेव | जातमाचस्येति कौ मवचनात्‌ नाङोच्छेदात्‌ yaafa सद्यःगौ चम्‌ दति व्यवस्था aaen नाद्धियते | धमेसन्दडे “सखस्य प्रियमात्मनः इति याज्ञवल्क्येन श्रात्मु्टधेमे प्रामाखस्य सिद्धान्तितलात्‌ “यस्मिन्‌ 2a gaat” दूति agg aq विज्ञानेश्वरः पञ्चमषष्ट- मासयोगेभेपाते कुलस्य fas, सप्रमादिषु जातश्ते सटतजाते वा

कलंसार्‌ः| VEY

fanments, दग्रराचान्तर्वालमरणेऽपि कुलस्य सूतिका शौचं wanna व्यवस्था पितम्‌ तदपि amen आद्धियते च्य “प्रकतं जातमाचस्य' इत्यादि वचनात्‌ मवत जातशब्दानां जातमाच USA तथाच नाडो च्छदोत्तरं दशामध्ये वालमरणे मातापिचो- रित्यनुखत्तौ पारस्करः “अन्तः खूतके चेदोत्यानादाशौचं सूतक- वत्‌” इति। Beare: |) श्रा उत्थानादिति पददयम्‌। तया पिचो- जननावधिद शराचावसानपयन्तमेव च्रगौचं TIA | ज्ञातिविषये तु शुः, वालस्तन्तदं शादे तु Yas यदि गच्छति | सद्यःशौचं सपिण्डानां प्रेतं नैव सूतकम्‌

एकः प्रेतः परखच्छसिति यमजयोस्तद्वदे कोऽच जात-

प्रेतोऽन्यः प्रेतजातस्तदिद जनिमनादृत्य सत्यो वलिलात्‌ |

सद्यः चाः सपिण्डा जनुरवधिद्‌ शाहं पिताङ्गाएविः स्यात्‌

सद्यः शोचे त्‌ श्िष्टाविदधति सकले era चान्यत्‌

यमलजननेऽप्येकस्य जवने अन्यस्यम्टतो, तथेकस्य श्टतजननेऽन्यस्य जातश्टतौ जातमात्रस्य “armaments a” दत्यादिवाक्येभ्यो जननापेचया ग्टतेवलियस्वस्य वच्यमाएवाच ज्ातौनां az: श्रो चम्‌ | पिचोदं श्राचाग्ौ चं श्रङ्ाणोचं मातुः सम्ब णा शौ च- मुक्तमेव श्रस्मदेशे ““दिसन्ध्य aq इत्याहः" दत्यक्तिमनादुत्य सद्यःशौचे BAMA: | “मद्यःगौचे स्लानमाचं पाकत्यागो विद्यते” cata fast: |

qa fost रदात्राङः aa उदितमदम्तच्चदं तु RAI प्राक्‌,

ved गदाधर्पद्धलो

ज्ञातेः सद्योऽदरेकं व्यदमुदितमधोदन्तचडत्रतेभ्वः सवषां Ways तघमपि रदनक्तौरक्म व्रतोक्त, काले तेषामभावेऽप्यघ उत भवने तन्तदु्तं द्य चम्‌ एकाद ग्राद्ादुत्तराग्रौ चविचारः कौर्म, ्रजातदन्तमरण fasttarsefaad | जातटन्ते faurs स्यादिति शास्त्रविनिश्चयः मपिण्डानां तु याज्ञेवरुक्यः,- श्रादन्तजन््नः सद्य भ्राचडानेशिकौ मता विराचमाव्रतादेशणाहशणराचमतः परम्‌ aa दन्तजननादयः काली पलक्तका दूति कन्पतरूकारादयः। तथाच दन्तजन््रकाले दन्तानुत्यत्तावपि वालण्डतावदर प्रो चम्‌ | एवं चूडाकाले च्डाया अभाबेऽपित्यदा प्रो चम्‌ Qa एव ठतौयाब्दं चड़ाकरणाभावे श्रङ्गिराः यद्यपयजृतच्‌ड़ोऽपि जातदन्तश्चसंखितः | द्‌दयिल्वा aura मणो चं व्यहमाचरेत्‌ इति एवं उपनयनकाले उपनयनाभावेऽपि सम्पण भौ चमेव | तयाच ब्राद्ये- अनुपनौतो विप्रस्तु राजा चेवाधनुद्धंरः | च्रग्टहौतप्रतोदस्ठ वैश्यः URI म्रियते यच तच स्यादणरोचं व्यमेव दिजन्मनामयं कालस्तरयाणां षड़ान्द्किः॥ पञ्चाब्दिकस्ु शद्राणां खजाल्युक्तमतः परम्‌ |

कालसारः। acs

a3 fe गर्भाषटमवं ब्राह्मणादिचरयाणां उपनयनधनुगरेदण- प्रतोदयदणकालः | WRU Gee वस्त्रग्रहणएकालः | ततः va वालब्डतौ fay! AGE वालश्टतौ सनयरणाश्ौ चं gaa भवति एवं चो पनयनस्य कालो पलचकलत्वमुक्तम्‌ | एव दन्तजन्मादिषु बोध्यम्‌ यन्तुः WAI पञ्चमे मासे दन्तजन्म् GEN | एवं ब्रह्मव्वेघकामस्य पञ्चमेऽब्दे उपनयनम्‌ | WAS च्‌ड़ा- करणं तच दन्तजन्मायुक्ता शौ चमेव | तथाच जावालिः, बतच्डाद्िजानान्तु प्रतौ तिषु यथाक्रमम्‌ | दगादख्यद एकाहः Weal fe निगणः द्विजानां (दन्तानां ) aa प्रतोतिपदोपादानाद कालेऽपि azn यथोक्ता शौ चम्‌ अन्यया नतचूडादि केच्वव्यक्त स्यात्‌ पिः पुचौग्टतावारदनमदरतः सवदोद्धं व्यहं स्यात्‌, भ्रातुः स्नानं तथाद्यरमपि रदनात्‌ चौरतः प्राकूविवादात्‌ | ज्ञाते: सद्यः चुरात्‌ WATKAT वाग्टानकालं BE स्यात्‌, वाग्दानेऽनुष्ठिते तु व्यदसुभयक्ले चेत्‌ विवादो fam | कन्याशोच कों अ्रजातद्‌न्नमरणे पिचोरेकादमुच्यते | दन्तजन्मो द्धं रढत्यन्तरे,-- AWARE प्रत्तासु BAHAMAS च। मातापिचोस्िराच स्यादितरेषां यथाविधि कन्यामरणाधिकारे पुनः कौम श्रादन्तात्‌सोदरे सद्य श्राचडादेकरात्रकम्‌ |

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०२९८ गदाधरपड्तौ

्रप्रटानात्‌ चिराचं स्यादिति शास््रविनिखयः सपिण्डानां तु ब्राद्यः

MAG FTA ama विधौयते ततो वाग्‌ दानपयन्तं यावदेकादसेव च॥ अतःपर yagrat चिराचमिति निश्चयः | वागद्‌ाने तु ad तच ज्ञेयं चोभयतस्यदम्‌ पितुरस्य ततो दत्तानां ata CAAA चं स्यात्‌ सूतके BAR तथा

Ba चूड़ानन्तरं वाग्‌दानपयेन्तं सपिण्डानामे काम्‌ वागदानकालानन्तरं वागद्‌ानकर्मानुष्टानपय्येन्तं हम्‌ | तथाच मतुः, स्तौणमस्तानां तु चहाच्कष्यन्ति बान्धवाः |

saga श्रविवाहितानां | aura विष्णः “eatut faare: संस्कारः” | इति

“यहात्‌ शएद्यान्तिवान्धवाः'' इत्यनुदत्तौ, wetsfa— “mq aiat तु कन्यानां" दति वाग्दानकमंष्षनुषठिते तु विवाहपयैन्तं पिटक्ुले भा विभन्तकुले यहम्‌ पितुवेरस्य चेति पूर्वेणान्वयः | उभयत दुत्युकतावपि पितुवेरस्य safe weret विवाहानन्तरं wage wants, पिदङ्कले ठदस्यतिः,-

पाणिग्रदणिका मन्त्राः पिदगोचापदारकाः |

भन्तेगोचेण atu देयं पिण्डोदकं ततः एवं सप्रपटौ करणणनन्तरम्‌,-

नोदकेन वाचा वा कन्यायाः पतिरूच्यते।

कलसारः | REE

पाणिग्रहणएषंस्कारात्‌ पतितं सप्तमे पदे दति ata: | aya fatraquaa यद्यप्यादि पुराण, सापिण्ड्यं स्यात्त कन्यानामदत्तानां चिपररुषम्‌ | CAAA, तथापि aaufatturd awarztaareat: | ततो दत्ताना- भिति wgaraatq fuege सक्तपद्मनन्तरं नाग्नौ चमित्ययेः | केवलं तदत्तरमयपि fast: अहं वच्यते | षष्ठो लाखो रदेषु चुरकरण दडाब्दस्ततोयोऽब्दषट्‌कात्‌- मासदन्दा धिकाद्छात्यर उपनयने वाकाप्रदाने कालः | चरब्देऽतोते दितौये ददनमथ पुनः शद्रजातेर गौत, भेदोऽयं षष्ठवषेः परि णएयसमयस्तन्तमारभ्य प्रणम्‌ नाद्ये अ्रजातदन्तो वा मासे aa: षड्भिगेतो वहिः दूति षणएमासस्य दन्तजन््रकालल ““टन्तजन््र सप्तमे मासि"? दूति सद्रधरलिखनं तु व्निबन्धविरोधात्‌ सवथा नादेयम्‌ | मनुः+- चृड़ाकमे दिजातौनां सवेषामेव धमतः प्रथमेऽब्दे हतौयं at awa अ्ुतिचोदनात्‌ इति तच चृड़ा कार्या aarge” दति याज्ञवसक्योकेरस्मदेभे हतौ यवषं एव aera दति सिद्धान्तितम्‌ यद्यपि,- गर्भाष्टमेऽष्टमे वान्दे त्राद्यणएस्यो पना यनम्‌ | राज्ञामेकादभे aa fanaa यया कुलम्‌ दति याज्ञवरक्यविश्वामिचौ तयापि श्रशौचाधिकारे, दिजन्मनामयं ata: wiut चव षडान्दिकम्‌ |

२०० गद्‌। धरुपद्धतौ

पञ्छाब्द्किस्तु शद्राणं खजात्युक्रमतः परम्‌ दूति atgtat चेवणिंकद शादो चपचाअ्रयणेन च्यद्वा गो चस्य षष्टवर्षाधि कत्वस्य उक्तात्‌, गभाष्टमपक्ताश्रवणएेन दिमासाधिकवषे- षटटूानन्तरं उपनयनकाल दति सिद्धम्‌ वागद्‌ानकालविषये बरद्धिगत्सकारेः,- श्रष्टवर्षा भवेत्‌ गौरो | गौरो वा वरयेत्कन्यां नौलं वा टषमुत्सजेत्‌ | व्यष्टवषीऽष्टवषों वा इत्यादिवाक्ये: वाग्‌दानं प्त्यष्टवषेस्य सुख्- कालत्वावगमा दित्युक्तम्‌ | पञ्चाननस्तु वाग्‌दानकालस्य सुनिभि- रनुक्तलात्‌ उपनयनकालस्य वाकूप्रदानकालवलेन प्रमाणसम्भव Tare agg दविमासाधिकषड्‌ वषानन्तरं विवादकाल दति विवाद्धप्रस्तावे प्रमाणणन्युक्रानि ! यत्त Rigged उक्त, तन्न रुचिरम्‌ “ष्टवर्षोऽष्टवषों वा” tae गर्भाष्टमपरत्म्‌ “च- षटवषां Hae” इति वाक्व तु कन्याया गौरौलप्रतिपाद्‌कम्‌,. तु विवादकाखप्रतिपादकम्‌ गोरः बेतिवाक्ये फलातिश्रय उक्तः, नतु विवाहकाल दति याख्यानात्‌ | स्तरो पुस्योस्तु सम्बन्धादरण प्राग्‌ विधौयते | दति नारदोक्तेः amare विवाद्धप्राक्ालौनलसिद्धः i सतरां मासद्रयाधिकवषेषद्भानन्तरं बाकप्रदानस्य काल दूति सिद्धम्‌ | BY वालमरणे द्‌ादकालविचारः | दिवषेमध्ये वालमरणे निखननम्‌, याज्ञवस्क्यः,- ऊनदिवषें निखमेन्न कुर्याद दकं ततः |

कालसारः | ३०१

मानवोये a— ऊनद्धिवषेकं प्रेतं निदध्यर्वान्धिवा afe: नास्य कार्योऽयिसंस्कारो नास्य कायौद्कक्रिया ALY काष्ठवत्‌ त्यक्ता क्िपेयचत्यहमेवदि दति

“arg काष्ठवत्‌ त्यक्ता” इत्यनेन दृष्टान्तेनाप्रणंदिदषं भ्रमौ निधाय) श्रौ दे दिकेषु seta भवितव्यमिति दिज्नानेश्वरादयः। germ चो क्तिस्त संवत्सर चड़ाभिप्राया दति

यचप्यहनततत्‌डोऽपि जातदन्तञ्चं रुस्यितः | दाषित्ना तथापेनमशौ चं यहम चरेत्‌

taffeta awaits dete जेयं दति एवं “ऊनद्दिवषंस्य ereant पाचको” इति केषाञ्चिल्िखनं सम्य- गित्यवधेयम्‌ “श्रदिवकं मातापिचोरेकराचं चिराचवा शरोर मदगध्वा निखनति" दति पारम्कर्मे वजातदन्ते एकरा, जा- तदन्ते चिराचमिति वाशब्दो waar) तथाच ठतीया- fead मरणे चड़ायां कतायामङतायामपि दाह एवेति सिद्धम्‌ | शद्राणणं सव॑चाशौचे त्राद्यणसाग्येऽपि wage विवादकाललं, तदवधि quistd दत्येव भेदः। तच प्रमाणवाक्यंप्राग्‌लिखितम्‌।

aat afa: समा चेत्‌ श्टतिरपि aah पूवेजा ण्न चगरेषा-

हेः एद्धिर्दौघेमाद्यं परमपि लघुनो वाधकं स्यात्‌ मदक्‌ चेत्‌

दोघं चाल्पं पुरोजं परमपि शतकं शोधकं सूतकस्य

त्यक्तो दक्यां क्रियारृत्‌ग्डतपतिवनिताद्तिकाः पुचवध्वौ समानजातो या शौ चसन्निपाते विष्णः. “aaa Aa यद्च-

(१९) निखाय |

२०२ गदाधरुपद्धतो

परं जननं स्यात्‌, पूर्वाशौचव्यपगमे इद्धः” राचिमध्ये दाभ्या, प्रभाते दिनचयेण श्रशौ चमध्ये ज्ञातिमरणेऽपयेवमेव। तथाच ज्ञाति मरणमष्ये गडनकान्तरेऽपि पूर्व॑गेषेण af: “रा चिग्रेषो श्रव- fast यत्रेति aw रा चिग्रेषपद मन्या हो राचपर” दति पञ्चा- ननः तस्मिन्‌ cat प्रभाते दशदकल्ये दिनत्रयेण दृत्यथेः | तथाच शङ्खः, “MT चेदन्तरा प्रमौयत जायेत वा wafusta- fea: arene दाभ्यां प्रभाते fafa” इति तथाच ena ऽहनि तदुषसि सजातोयनिमिन्ताशौ चश्रवणे दिविदिनरद्या- प्द्धियेयपि रतिषु विदिता, तथापि “aagacarefa” इति मनुनानिषिद्धा तथाच विददितप्रतिषेधाद्‌ विकन्यः। तदुक्त भटे.

च्रथवान्तयद्‌ा श्रौ चनिमित्तं किद्िदापतेत्‌ |

तच्छगरेण faufs: amma भविष्यति

वद्धयेद घादानि निमिन्तादागतान्यपि |

विकल्पे सति यथादेश्राचारं व्यवस्था, दत्यस्मटेश दश्रमाद-

प्रभातप्रयुक्तदिभिदिनृद्धिनांद्वियते | तया देवलः,-

परतः परतः एएद्धिरघटद्धौ विधौयते |

स्यात्चेत्‌ पञ्चतमाद ङ्ध: प््रंणप्यनुशिष्यते |

RHA | पञ्चतमादद्धः Wa: पञ्चमदिवसानन्तरं सजातौ-

याग्रौ चदद्धौ सत्यां परतः परेणश्रौचेन श्एद्धिः। पञ्चदिवसात्‌ gai सजातोयाशौचद्द्भौ पूर्व॑णश्नौचन शएद्धिविधोयत इति। तथाच पूणः दृत्येतत्पदमा्त्या ब्ास्येयमिति दृत्यादौन्यपि

कालसारः | ३०३

“न qagacuretfa” इत्येतेन fafagara aafeatta au दे शराचारं यवश्वितानोति araen विचायन्ते | श्रतिक्रान्ते दश्राहे तु चिराच्रमग्रविभेवेत्‌ | दत्यादि मन्वादयुक्रमपि भ्रस्मदेे ममाचाराभावात्‌ वस्या प्यते अतएव विज्ञानेश्वरर्नाना दिवसग्रोधकवाक्ान्युद्‌ दत्य “a माचाराभावान्न Ba” इत्युक्तम्‌ च्रन्तर ङ्गग॒णएवद्वावेन श्टद्धि- विचारो RAIA: | श्रय मजातौयविषये उग्रनाः,- खन्या शौ चस्य मध्ये तु claims भवेदयदि | पूर्वण vfs: aq खकालेनेव प्रट्यति ठदन्मनुरपि,- FAN लघु वाध्येत लघुना नेव तद्गुरः | श्रतएव श्रन्पकालोनमरणागौोचस्य दौर्ध॑कालौनसतकं are कम्‌ दूति हारलताङृता यदुक्तं तन्नादेयमिति तयोविंजा- तौयलात्‌ Badal यस्वा | श्रङ्गिराः,- अनिदंश्राहे मरणे पञ्चात्‌ aac यदि | dagen aaa तत्राोचं खवन्धभिः देवलः, मरणोत्यत्तियोगे तु गरौयो मरणं भवेत्‌ | षट्‌ चि शन्मते,- ग्रावेब इध्यते afaa afa: शावशशोधिनौ | छृद्भािः,- gaara दिगुणं ma waa दिगुणमात्तंवम्‌ श्रत्तवात्‌ ददिगुणा सूतिस्ततोऽधिग्रवद्‌ा दकः शवदाहको दाहादिप्रेतकमेकरत्ता पुच्ादन्योऽपौत्यथेः। पवेस्माद्‌- त्रो त्तरमशौ चं वलवदित्य्थंः। ततोऽपौति पाठे सूतितोऽपोव्यर्थः।

२०४ गदाधरुपद्धतौ

द्ध मनुः,- श्रावस्योपरि शरावे तु छूतकोपरि खतके। गेषादो भिभेवेत्‌ प्रएद्धिरूदक्यां खूतिकां विना ओ्रौरामायणे सोतां प्रति, श्रनुसूयावाक्यम्‌,- नातो विशिष्टं पश्यामि वान्धवं वै कुलस्तियाः | पतिवन्धुगे तिभत्ता देवतं गुरुरेवसः तथाच क्रियाकत्तरि सूतिकां चियमाणएपतिकां रजस्वलां fad त्यक्ता अन्येषां पर्वा चेन प्टद्धिः। oa प्रति foantwe बलवनत्वेन वच्छमाणएलात्‌ तस्य क्रिवाकन्तृलेऽपि श्रकन्तुलेऽपि पिद- मरणेनैव प्द्धिः। तत्समानधमेवात्‌ agratar श्रपि | तथाच पुचवध्योरपि पूर्वा्नौचग़ेषेण रद्धिरितिस्युणानिखननन्यायेन उक्तम्‌ चतुभिः कुलकम्‌,- पिचोभैत्युः शादहात्परमपि ग्टणयाट्‌दूरगोऽपयात्मजशेत्‌ खालोपोयाद्रेवासास्तदवधि दशादान्यश्रौचौ नियम्य | fad erate carey यदि छतं प्रेतपिण्डाद्यतौते ऽब्दे कर्यादगौ चे faaafa विदिते गेषघसतेविंश्एथ्ेत्‌ पिचोराश्रौ चमादयं परमपि सकला गरौ चसंशनोधकं स्यात्‌ तचादौ मादणग्डत्यां पितुरूपरितने नाशौ चेन द्धिः तातद्यैकादश्ाडे भवति agua: स्वेमेकाद शादो- क्तं कर्मायो तयोः ख्खम्टतितिथिदिनाद्ेव कर्मापरं स्यात्‌ माता ताताघमध्ये यदि भवति wal तत्समापाद शादा- न्तं ud कमं वहते रदिनपरतः परिणो वद्धेयिला |

कालसारः | ३२०५

तचाद्यवोन्‌ दितोयेऽहनि वितनुयात्‌ सक्तपिण्डानयास्याः,

पिज्ीरेकादशादहोदितविधिमपरादहे पर aaa: i

मध्येऽनब्दं चेदिमातुः मरणनिश्मनं मज्जनं चोपवासः

पुचस्य स्याद णोचं दग्र दिवसमतौते तु वं चिराचम्‌ |

पचचिष्न्तनिं पका भित उभयदिने area चिसन्ध्य ,

यावत्‌ सर्योदयं यन्निशि शटतकरजःखूतयोऽदस्तदे कम्‌ पिक्ना्शौचे विरेषः पेढोनसिःः- पितरौ Saal स्यातां दूरस्थोऽपि fe gaa: |

mat तद्दिनमारभ्य eure want भवेत्‌ श्राप्रये,- पिदमाचरपघाते तु च्राद्रेवासा ह्युपोषितः | amass प्रकुर्वौत Vaated यथाविधि

aa: us: पिचोदर्‌शादोत्तरमरण्रवणे सावोदकं छव!द्रवासाः तदवधि दश्ादोक्रनियमान्‌ कृत्वा नित्य स्लानोद्के छवा द्‌ शा- हम शो चमा चरेत्‌ वधौ नत्तरमपि मरणश्रवणे तथेव सवै gaia | केनचित्‌ क्रियायामङृतायां तु मवं पिण्डादिकं कर्मापि कुर्यात्‌ | दशामध्ये waa तु “प्रोपितश्चेत्‌ प्रेयात्‌ अवणप्रखति कतोदकाः कालविगेषमामौरन्‌” दति स्वेमाधारण्छेन पारस्करोकतेः केनचित्‌ क्रियायामारभायामपि स्वैनिखमवान्‌ गेषदिनैः waa) एवं पिच्रोदैगान्तरमरणे व्षैऽतौतेऽपि दग्रादाचगौ चविधानादच्छमाण- नानानियमविधेश्च सर्वा गोचापेचया पिचौ चं गुरुतरमेव तस्मात्‌

तदणोचं va परमपि सर्वागौचमगशोधकभेव | 39

Rod गदाधरो

श्रचापि fare: सत्यन्तरे,- मातयते प्रमोतायामश्एद्धो वियते पिता | faq: शेषेण शएद्धिः स्यात्‌ मातुः कुर्यात्त प्चिणैम्‌ दति मातरि गतायां पथात्‌ यपिहमरणे उत्तरभाविनापि पिदमरणेन एव शषद्धिः। satan पितुरेकाद्‌ श्ाइहदिने कार्यम्‌ “faearumaaa पञ्चान््ाहमरणे तु faacild समा पश्चात्‌ ufaut प्रिय एएद्धिः, पगेषमाचेण, श्राहा- नन्तरं ufaut समाप्य दयोरक्ताद एादकत्यं काय्य” दति विज्ञाने- QU: | एतदन्येऽपयस्मटे भो या निवन्धृतः संमेनिरे च्रच यत्‌ केचित्‌ “git वा परतोऽथवेवमनयोर्मातुः पिताशोधकः दति कारिकां निवध्य पिदवियोगमध्ये aa quia दिने mean माटठ रियो गमप्ये यच gatfa दिने पिहवियोगे चोभवयापि faa- वियोगदिनमारभ्य दशादोरावेः WEE: | तथाच महाभारते, मःता भखा पितुः पुचो यन जातः मस एव सः। भसा wagfent, एतेन पिदपुचयोरकात्मलप्रदशेनेन मात्‌- रपेया पितुरेव परमान्तरङ्गलं चितं रति युज्निमूचः। तन्न रुचिरम्‌ “मातुः कुर्यात्त पिषः दूति वाचनिकेऽये न्यायाव- तारस्यानुदितलात्‌ यु्निविरद्धलाच्च | तयाच माता, war, दति नारौ दप्रकरणेऽभिहितम्‌ तथापि यपितुराधिक्योकनिरयद्यश्रौ च- प्रयोजिका स्यात्‌ श्रौरामायणे, wal, च, “उपाध्यायादशर- पिता” दत्यादुक्ता,

केलसार्‌ः | २०9

गभधारणपोषाभ्यामेभ्यो माता गरेयसो | Tater, उपाध्यायाद्‌शाचार्या Hrewatat श्रतं faar ava तु पितुर्माता गौरवेणातिरिच्यते : दूति मानवभविष्यपुराण्वाक्यन वन्दनादौ मातुराधि- wagiaa aramid किमिति awant स्यात्‌ | fag “चअन्तरङ्गभावेन ऽरद्धिविचारो कलौ cam fag पिद शमेऽहनि पिदक्मषमाप्नौ सखन्यावश्रिष्टायां एव माढमरणे मातुं ्रदिनविदितकर्मणं खल्यकालेन कत्तमगरक्यलेन पक्किणो प्रतपं विनाऽनिर्वादात्‌ दिदटवियोगमध्ये मादमरणे प्चि- Wat य॒क्ततमः सवेत्राप्यशौ चपाते एकाद शाइकर्मानुडानस्य ` श्रग्नौ चान्तदिने सिद्धान्तितिलात्‌ पर्ठिण्णनन्तरदिने दयोरणयेकाद प्रा wag कामिति विन्नानेचराभिप्रायः मासिकादरौीनि तु खख- मर एति वष्येव कार्याणि sofas सखमरणएदिना वध्येव | aa विमातुविग्रेषो दरेण्णेक्तःः- पिदपल्यामतौतायां मादवजं दिजोत्तमः | संवत्सरे aad तु चिराचमशचिभवेत्‌ दरति सुवत्छरात्‌ पूवं दग्रराचमित्यथैः | विमातुर्माटलमलान्‌ श्रवणदिने स्लानोपवामावुसर्ग सिद्धौ 1 च्ङ्गिराः,- दिमन्ध्य सद्य दत्याङस्िसन््यमदर्च्यते | एका राचिदिने = पिणोत्यभिधोयते | afawit यया पिष्डव्यवस्या, सा पूक्पद्यं निवद्धा |

३०८ गदाधर्पद्रतौ

aa सतिः त्य हा प्रौ च,- | quasfs चयः पिण्डा दितौ येऽधि चतुष्टयम्‌ | ठतो यद्धि चयः पिण्डाः पत्िण्छां प्रथमे चयम्‌ दितोयेऽङ्कि सप्तस्यरिति खण्डाण्टुचौ fafa: | सद्यःग्रौचे स्तानमाचसमाचारात्‌ पदेऽस्माभिने निवद्धम्‌, चिसन्ध्यमदरित्यक्तम्‌। तत्र रातौ दूलक्रादिपाते गणनं कथं स्यात्‌ ? दत्यपेचायां जावालिः, Walaa समुत्पन्ने Ba रजमि aaa | yaaa दिनं ग्राह्यं यावन्नाभ्यदितो रविः चतुणां प्रमाणानि | vat पत्या सदहाभ्मिं प्रवि्रति यदि वाग्रौचमेऽनुगच्छेत्‌- मेदेऽप्यत्नोभयचोभयम्टत दिनयोः पत्यो चेन wie: ata चेदतो तेऽप्यतुगमनमिदा शो चमेव चिराचम्‌ विप्रानेवानुगच्छत्तदितरवनिता अन्यु: दवियाद्याः व्याघ्रपादः,- गतं पतिमनुव्रज्य wat चेत्‌ ज्वलनं गता | तचापि दादस्तन्लेए एय गस्यिक्रिया भवेत्‌ नवश्राद्धं सपिण्डान्तं ममाय स्यात्‌ सर्‌ दयोः | aq ग्टत्यदभेदेऽपि नवश्राद्धानि यद्दिने भन्तैयैत्‌ क्रियते पत्या चपि तत्रैव तत्किया | चतुर्थ्या दि ओाद्धंः नवश्राद्धमिति पृवेमुक्तम्‌ | बे शरम्यायनः,- एकदित्यां समारूढो दम्पतो निधनं गतो | प्रयक्‌ पिण्डं श्राद्धं ओदनं एक्‌ प्रयक्‌

कनलसार्‌ः। Rod

एकपात्रे अन्न पक्ता faut fafasy दद्यात्‌ tay एकचित्यां समारूट् व्रियते दम्पतौ यदि | तन्त्रेण श्रपणं कृत्वा प्रयक्‌ पिण्डं समापयेत्‌ दूति वाक्चान्तरात्‌ | च्रचापि पिर्डपद्‌ प्ववाक्चात्‌ श्राद्धोप- ल्कम्‌ | एकां fafa समासाद्य walt यानुगच्छति | ague: त्रिंयाकन्ता तस्याञ्च क्रियां चरेत्‌ दूत्यादि वाक्ये्मरणदिनभेदेऽपि सपिण्डान्तरृत्यस्य पत्या सद्दोको पत्यशौचेन aig: कंमुलिकन्यायमिद्धा | wag: खन्पावग्रष्टायां राचौ भर्तष्टतो परेद्युदाहारम्मे सदगमनेऽपि दिनमेदः सम्भवति | एवमचचिप्रवेश्रं विना पल्या द्‌ादाद्यापन््र णेऽप्यन्नमेकभाण्डे सम्पाद्य waa दद्यात्‌ | vale तिथिभेदे तु नवश्राद्धेषु aaa | श्राद्धानि मासिकादौनि खततिश्योदयोः एक्‌ दरति वाक्यात्‌ | सदगमनानुगमनस्मरेकदिधिलात्‌ णादमध्ये- ऽनुगमने पत्यशो चेन ute: शाडोत्तरमनुगमने त्‌ पुचाटौनां चिराचमणशोचम्‌ | श्रिताय: प्रदातया दश्रपिण्डाख्यडेन तु | alana तोते तु तस्याः श्राद्धं विधौयते i दति पेडोनस्यक्तेः अ्रचिताया श्रनुगमनकन्त्रः पुनः पेठोनसिः,- | म्टताजुगमनं नास्ति AW! AGA |

are गद्‌एधरुपद्धतौ

दृतरषां तु वर्णानां WAS परः सतः gua चितिं ममारह्य विप्रा गन्तुमहंति | च्रन्यामां चेव नारोणं स्तौधर्मोऽयं यवस्धितः stag: पणदाद्ो यदि भवति द्गडान्तरे वा agg’, ज्ञातोनां दात्यजागां तदवधि तदघं सवयेव चिराचम्‌ प्ता दादयो निरप्रेयदि भति द्‌श्ादान्तरे Tae, Riz: स्यान्न अहः स्यात्‌ यदि भवति तदृ द्धं तदेव हः स्यात्‌ छन्दोगपरि रिट “agama” दति वाक्ये “ततः sata gan” दूति यदुक्तं, तत्‌ श्राहिता्चिविषयम्‌ | एतत्‌ तु.- यम्य तु saad तस्योद्धं दाइकमेणः | दत्यल्यैवानुवादः | यद्यपि arg च्राहिताग्र रित्युपक्रम्य, “श्रनाहिताग्रदे हस्त॒" इत्युक्ताः एवं पणेनरं दगध्वा चिराचमप्रुदिभवेत्‌ | दूति साग्निनिर्चिसाघारण्येन दाद्ावधि चिराचाश्ौचसुक्रम्‌ | तथापि श्रौताप्नदभरादावष्येवा शौ चमिल्यक्तवात्‌ द्‌्ाहमध्येऽपि पण- दादे तद्‌ त्तराशौचस्य समानपिषयतेन वाधकत्म्‌ | fara द्‌ श्रादमध्ये Way मर एक्ञानावधिकस्य श्रौ चस्य भिन्नविषयतया पंद्‌ादनिभित्ताग्ोचेन वाधः | प्रत्यत दौधेकालीनेन द्गरा- चाप्योचेन अन्यकाल्तनस्य परणद्‌ारनिमित्तचिराचाण् चस ary: | ननु निरभरेरपि पणेदाहनिमित्तचिराबोश्णौचं दश्रात्राभोचस् बाधकमस्ति चेन्न तस्य दशणदोद्धंपतितपरदादसावकाशत्ेन भिन्नविषयतया बाघकलासम्भवात्‌ |

कालसारः २९१९

स्रेरेवास्िदादो भवति चयिनिनः कालिदाखा श्रवोचन्‌ तचाभौरं अहं स्यादिति निगमविदोऽनये gare तरवन्ति ऊढा gat vad यदि पिहम्दने afaus तु fast, तस्या wai तयोर्वा चिदिनमपि टतौ यच कुत्रापि वासे विदेगस्येत्यादि पूर्वादादतकाल्यायनोक्तौ “पाचन्यासादिपूरव- वत्‌” इन्युक्रलात्‌ पाचन्यामाथेमेव पुनद्‌दप्रछत्तः। सापरेरेवास्ि- aie: चिरातागशौचानुटृत्तौ कालिदासचयिनिनः ““दग्येऽस्यिपां नरे” cia) तच टीकायाम्‌ “एवं wat aay,” qdaz- ary अदहाशौ विधानात्‌ ततसन्नियोगग्िष्टाखिदादडे अदा नौ चेव दूति area तदन्ये सहन्ते पणंढादापेचया मुख्य sfearz पणेदादोक्तस्य तिराच्ाशौ च्य कथमतिदेशः स्यादिति, तस्माद्‌- ख्िदाहे दग्राहमेवाश्नौचं तयाच वशिष्ठः, “श्रादितागित्‌ प्सन्‌ fada, पुनः संस्कारं ला wa द्वागौचं" इति तत्र ga: संस्कारपदोपादानादख्यिदाद एव ware दूति पणदादइवि- चारः Gam | कौं, दत्ता नारौ पिदग्टहे प्रधाने सूयतेऽयवां | faaa वा तदा तस्याः पिता wafafafea: | प्रधाने ena, पितेति मातुरपलक्तणम्‌। वरिष्ठ; “gay नातु wiai चिराचमशोचं विज्ञायते" इति faster 1 ठदस्पतिः,- marty चिरा स्यान्द्द्ाररुनिपातने | gfeaut तु विन्नानां स्वेवरष्वयं विधिः

BR गदाधस्पद्धतो

दु दिदपदममभिव्याहारात्‌ महागुरू पितरौ विन्नानां विवाहितानां, तच awe दत्युपाद्‌ानाभावात्‌ aq कुचापि सितौ zfeeut fadty ग्टतावन्योऽन्यं अदं, रदोत्यत्यनन्तरं यदाकदाविर्‌द्‌ दिद्टमररे fast: चिराचाशौ चस्य उक्तेऽपि पुनर- पाटानं ears “qq कुत्रापि” इत्यस्य प्राप्ययेञ्च |

सन्यासो प्रेति चेत्तननिश्मयति सुतस्तदिने araga, नोर दवेव सद्यः Whar यतिनोऽप्यातुर स्याभियुक्ताः त्यौ केचित्तयेति aaa दृह परे तन्निरस्येव gui शोच दाहादिङृत्यं परमितरणग्टदस्था विगरेषं वदन्ति

“gaara शान्तर स्यषन्यास्यनग्रनमदाष्वनिकानामुद क- दानं काय्येम्‌” दति सुमन्तवाक्छात्‌ “स्यस्ते सद्यःशौचं विधौ - यते” इति ब्रद्मवाक्याच्च सन्यासिग्टतौ पुचस्यापि तदिने उद्‌क- द्‌ानमाचम्‌ श्रवणे सद्यःगरोचमेव श्रनुक्तोऽप्युपवासः कार्यैः यन्त वच्यमाणप्रचेतो वाक्य जलदानस्य fafiga तस्मथमदिनव्यति- रिक्रविषयम्‌ एवं च्रातुरसन्यासिमरणेऽपि सद्यःशौचमिति केचित्‌ | वस्दुतस्तु समन्तुक्तो सन्या सिपदोपाद्‌नेऽपि “सन्यते az: श्नोचं विधौयते इति वाक्ये सद्यस्तपदे निष्ठान्ते साङ्गग्धान- क्रियोपरमप्रतोतेर्दौकित नियमे साङ्गदौचायापारोपरमप्रतौतिव- त्वं तिकन्तेयताय॒क्तस्य सब्रया सस्य wa ayaa Afaaaatefa तदुक्तं परवेमोमांखापञ्चमाध्यायदटतोयपादे | “परेण्णवेदनात्‌ टौ चितः स्यात्‌ स्वं दौत्ताभिसम्बन्धादिति” | प्रेषोच्चारणमाचेण सन्यस्तवा-

=

(र) प्रतौतरदौच्तो परमे |

कालसार्‌ः | २९३

भावात्‌ WHA सद्यः गो मित्यस्यापवाद स्याभावात्‌ गादा नौ चमेव | एवं Bagel wafers सत्यस्तपरं fy श्रातुरस- व्याषिनो देवाव्नौवने, may परिचरेत्‌ मम्यक्‌ त्यजेद्‌ादकारण्णत्‌ | दति ओरोधरखाभिवाक्यात्‌ सवं एव मरणोत्तरसस्कारा ग्टद- स्था विग्रेषाः | सद्यःशौचे दि वर्णौ apfar भिमतश्चो पदकर्वाएको a, कौचित्‌ सोऽपि त्रतेऽस्मिन्‌ गतवति गदि तोऽशौ चवान्‌ वा चिराचम्‌ पित्रोष्ेव्यां तु दाहादिकमखिलविधिं सोऽपि gata किन्त, प्रेतान्न नेव खादेनिजनियमयुतो ज्ञातिपन्पकंदोनः कन्दो गपरिगष्टे- त्यजेत्‌ सूतके कमं ब्रह्मचारौ aA कचित्‌ | दौकणात्पर यन्ने छच्छरादितपश्वुरन्‌ पितयंपि 2a नैषां दोषो भवति कदचित्‌ | प्रो चं कर्मणोऽन्ते स्यात्‌ BS तु ब्रह्मचारिणम्‌ सूतकेऽगौ सवकं ब्रह्य चर्य्या्रम विदितम्‌ | मनुरपि, श्रादिष्टौ नोदकं कुर्यादात्रतस्य ममापनात्‌ | aa a दकं gaiq चिराचमण्ट विर्भवेत्‌ श्रादिष्टं ad अ्रस्यास्तोति च्रादिष्टौ amet | याच्य वस्क्यः,- अर चाय्येपिचृपाध्यायान्निदहत्यापि व्रतो त्रत |

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२९१४ गदाधरश्पद्धतो

सकटान्नं नाश्रौयान्न तेः सह संवसेत्‌ aq विज्ञानेश्वराः, माता पिता पितरौ, vafawarfa AN ब्रह्मचारी तरत्येव, पुनरस्य व्रतभङ्गः। कटश्ब्देन aN लच्छते | कटसदितमन्नं सकटाने ब्रह्मचारी नाश्नीयात्‌ नचागौ- fafa: सह संवसेत्‌ एवं वदता याज्ञवरक्येन wreratfeafa- रिक्रप्रेतनिरैरणे ब्रह्मचारिणे aay इत्युक्तं श्रतएव वभरिष्ठः, (ब्रह्मचारिणः श्रवकर्भणो तरतान्निटटन्तिरन्यज मातापिचोः', इति विज्ञानेश्राणमयमभिप्रायः पिता मा त्येकगेषः | काटशब्दः waar, तच्राशौ चे wala) श्रे श्राचार्य्यापाध्यायागौ चम्यानादृतवात्तददिषये fafafaag “पित- यपि aa sui? इति वाक्यं fe ब्रह्मचारिणः पिदमादण्टतावपि तदाश्रमविदितकमंप्रतिपादर्‌कम्‌ | तु पिहमाद्प्रेतकर्मनिवार- कम्‌, च्नन्यथा याज्ञवरुक्यवशिष्टवाक्यविरोघः स्यात्‌ ब्रह्ाचारो दिदिघः,- दिविधो ब्रह्मचारौ स्यादाद्यो द्युपकर्वाणएकः | दितौयो Afsana तस्मिन्नेव ब्रते खितः i दूति catm: एकाहं स्यात्‌ प्रयाते मरणएमनुपनोतासपिण्डेऽय सद्यः- प्रौ चास्तचादि गि ल्विदिजनिचयमतौ दुपकारादिकारः | अन्यानिर्वाद्यकाेष्वपतिषु निजेव्वेकश्वमोपतोष्टो, वेद्यः Wa शढपानुचरनृपतयो दामद्‌ास्यावमात्यः।

दारौोतः “एकादमखपिण्डतः'' इद मनुपनोतासपिण्डपरम्‌ |

किः ~~

कालसारः | ३१५

wate विष्णः,- नाग्रौचं राज्ञां राजकमंणि, व्रतौनां त्रते, afaut सचे, कमणि राजान्ञाकारिणणं, कारूणां कार्कमेणि | प्रचेताः,- कारवः शिल्िनो वेद्या दासद्‌ास्यम्तयैव च। राजानो राजण्त्या्च सद्यःगोचाः प्रक सतिता कारवः खूपकाराद्यः | गरिल्तिनो बद्धंकिरिचकार णो चिक- चेलनिरणेज कतन्त॒वायाद्‌यः | दासस्तु.-श्रधिकारौ तुयो यस्य दासस्तस्य ahaa: | दति लघुह्ारोतो क्रलक्षणः | ष्यासः.- fafaaat यत्‌ gad तदन्येन श्रक्यते | तस्मात्‌ चिकित्सकः wi द्धो भवति नित्यशः पराशरः, “ae चेकन्ति ब्राह्यणाः वहवो ब्राह्यणाः सम्भूय यस्य द्रटदधिभिच्छन्ति तस्य सद्यःशौ चमित्यर्थः | या ज्ञवरक्यः+- “यस्य चच्छन्ति afar” श्रतएव “ae चेच्छन्ति नरेन्द्राः दति शातातपोक्तौ asaafaafaaa तस्मादेकेनापि मूधा भिषिक्रन यस्य cad, तस्य सद्यःग्नौचम्‌ पराशरः, “aer- मात्यास्तथैव श्रग्रो चऽपि शिन्पादिकमेणमन्यानिर्वाह्धि तैरेव जिच्िप्रसलिभियेज्नपाचादितच्णादिकं कारयिला तत्‌ क्म काये, afa तेषां amag तात्कालिको शएद्धिरित्यथेः। एवं सति ग्रौ- पुरुषो त्तमकेचे ओजगन्नाथादिमूत्तिंनिर्माणदौ तच्छिन्िनां अष्ौ- चाभावममाचारः THA एव करोपादेः खेच्छयाम्भो विषश्डगपतनो दन्धनेवंदयुताम्य-

ard गदाधरपडतौ

स्ताम्चाय्दरौ पिषटष्टि्रपचभुजगगोग्टङ्गिदं रा दिददिंखेः | राज्ञा पिप्रेण नष्टेऽनगशनण्टतमदापापिनोखाभिगश्स्ते, सद्यःगौचं तु पणा त्वनवददिततया दुग्डैतौ सयाच aera कोपादेरिति agate: संग्रहः वेध्यां दुगेतावपि विधि- विदिते दु मेरणऽपौत्ययेः। परा शरः,- ्रपमानाद्‌य क्रोधात्‌ SET परिभवात्‌ भयात्‌ | seu वियते नारो पुरूषो वा कथञ्चन पूयग्योणितसंप्रं ्रन्धतमसि दारुणे | षष्टिस दखवषां णि” त्वात्मानं वसेन्नरः गोतमः,- प्रायोऽनग्रनश्रस््रा्िविषोद कौ दन्धनपतनेखच्छताम्‌ | Wi डग्वनग्न्यन गरनाम्भोभिग्डेतानामात््मरचातिनाम्‌ | पतितानाच्च नाशौचं शस््विदयुद्धताश्चये तया, व्यापादयेद यात्मानं खयं योऽन्युदकादिषु विदितं तस्य amity नाभ्रिनाणुद्‌कक्रिया विष्एपुराणे,- ala दे्न्तरस्ये पतिते मुनौ wa | सद्यः vty तयेच्छातो जलाम्दुदन्धनादिषु रएत्यन्तरे,- VR मरणे विप्राच्छङ्गिदंद्रिसरौ पैः | च्रन्यान्त्यज(९)विषो दन्धेरात्मना चेव ताडनैः

(९. अन्त्यान्यज | (र) षष्िवर्पसदखाणि |

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कलकस्ारः। २२९७

aga सवेगाजाणणं विषाद्याकषंणेऽपि ar | fanrfamigag रो दार) हा दि भिस्तया येषामेव भवेत्ते वे कथिताः पापकमिणः। पाषण्डमाथिता्ेव मदापातकिनस्तया स्तियश्च व्यभिचारि आररूढ्पतितास्तया | तेषां स्ानमंस्कारो are सपिण्डता ante मनुः, डिम्भादवदतानाञ्च विद्युता पाथिवेन च) श्रा दवे इतस्येति परासु खदतस्येति बोध्यम्‌ | अनन्यया, मदाभारते, awa प्रवन्धेन उक्ता उद्कादिक्रिया qui स्यात्‌ ददं सद्यःगौचं क्रोधादिना वुद्धिपूवेतया यच मरण- WEI, तचावस्वितं भवति प्रमादेन vet विधिवाक्येन विदित- ख्गपातादिना दुरमैरणेऽपि सुम्॒र्णाशौ चमेव। तयाच शद्खुाङ्गिरसौ,- अय कथित्‌ प्रमादेन सिवतेऽन्ृदकादिषु | तस्याश्नौ चं विधातव्यं कार्यां चास्योदकक्रिया द्‌ धिकिकंमेदारोगैः पौ डित पुमानपि प्रविशेत्‌ ज्वलनं Ste करोत्यनग्रनं तथा तया,- खयं देदविनाग्रे तु काले प्राप्न मदामतिः। उत्तमानाभ्रुयान्नोकान्‌ नात्मघातौ भवेन्नरः यत्त, gaa क्रियालुप्नपत्याख्यातभिषकूत्रियः | त्रात्मानं घातयेत्‌ यम्ब ग्छग्वन्यनगनाम्बभिः |

३९८ गदाधरुपदतौ

तस्य चिराचमाग्रौचं दितीये लस्थिसञ्चयः | ana az दला चतुय आद्धमाचरेत्‌ दरति शातातपवाक्चं, तस्य सगुणनिगेएल विचारस्य कलौ तर - विषयलात्‌ कलियुगेतर विषयत्वम्‌ | एवं कालिद्‌ासचयिनिभियंद्ध पराङ्सुखदतस्यापि कालान्तरे gat थत्तपदाशौ चं लिखितं, श्रन्य- चापि यट्धावस्यापितं, awa कलौ तर विषयमेवेति ज्ञेयम्‌ नष्टे मातामहे तु श्वग्रररगुरूषु वा मातुलेऽगौ चमुक्त, त्यक्ता ata विदधति सुधियतस्तम्मियाणां नागरे | नाचौ ब्रह्मवित्छात्‌ सकल दह यतिनेषटिकब्रह्मचारौ, वानप्रस्थो ऽप्य त्तिरेरिभजनपरः त्यक्रष्द्यापि WE: यद्यपि खतिषु मातामदश्वग्एरगुरुमातलानां मातामहोश्च्रूग- रुपन्नोमातुलौनां ्यदपचचि्धायग्रौ चभुक्तम्‌ तथापि तदनादृत्य maze तन्मरणेऽपि वार््ताश्चव्णेऽपि वा खानोपवासावेव ममाचर- न्तौति शिष्टाः ya तत्तत्कमेणां anafag श्रगोचाभावसुक्ता ददानः यतिप्रष्टतौनां नेवा ग्नौ चमित्याद नाग्रौचौत्यादिना। यद्यपि,- amafaagufterengfaet तथा | ्रापद्यपि कष्टायां सद्यःशौचं विधौ यते दति याज्ञवरक्याद्युकतिषु त्रतिप्र्तौनामपि सद्यःगौचं साधा- रश्येनोक्रम्‌ | तथापि,- नेटिकानां वनस्थानां यतौनां agarfcaa | aT awa सद्धिः- इत्या दिवाक्यादेकदण्ड्यादिमकलमव्यासिनां afenaguifz-

कालसारः। ३१९

दाढन्रह्य विद प्रतिग्रदनिदटत्तवानप्रस्यानां स्वया नाग्नोचम्‌ | ama विद्यते कविदित्यनुटरत्तौ, वानप्रस्यस्य सवैदा,- प्रति्रदाधिकाराच निद्रत्त्य विद्यत इति छन्दोगपरि शिष्टोक्रेः प्रतिग्रदनिदत्ततवं वनस्यानामिति वाक्ये- ऽप्यन्वेति | तथाच agfaararat amid कुर्यात्‌ उपकर्वाण- कत्रद्मचारिणोऽगौ चाभावेऽपि पिद विषयेऽ चस्योक्रलात्‌ afea- ब्रह्मचारिण एवाशोचाभाव उक्तः। यदि शृद्रोऽपि पुचकलचादिकं त्यक्ता वैष्णवो भवति तदा तस्यापि यतिवद्‌ गौ चाभावः सुव॑धर्मान्‌ परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज | दूति सवेवर्णाश्रमसाधारण्टेन भ्रौभगवदुक्तेरिति वदन्ति| हरि पदस्य उपलचणलात्‌, रा दि सवदेवेकभक्तानां व्यक्तग्टदाणां नागशोचम्‌ | योयो यां यां तनं भक्तः अ्रद्धयाचितुमिच्छति। तस्य तस्याचलां west तामेव विदधाम्यहम्‌ दत्यादिभगवदुक्रः | मवेदे बनमस्कारः ana प्रति गच्छति) इति पुराणन्तरोक्तश्च दाद US शव्रस्यानुगमनकरणे स्ानप्राणयमास्या gifean षजातेरिदमपि रुदिते यावद्म्धञ्ितिः स्यात्‌, Ss चाचाममाचाद्भवति fe ए्एचिताऽयो शृद्रस्य विप्रा दां UWE शवस्यानुगममपि तया रोदनं जातु HU: सजातौयग्रवस्य द्‌ दनवदनानुगमने केवलस्पगरं मजातौ-

BRO गदाघरुपद्धतौ

याद्रास्यिस्पं afeuquafa रोदने ज्ातिभिननानां निर्दरणादयणो चापगमायं सानं प्राणायामा | तयाच याज्ञवल्क्यः, परवेश्रनादिक कमं प्रेतसंस्पशिनामपि | saat तत्‌चणाच्छुद्धिः परेषां लानसयमात्‌ संयमात्‌ प्राणयामात्‌, परेषां ज्ञातौनां | अङ्गिराः प्रेतसंस्पगेसंस्कार त्राद्यणो नेव gate | ay वाष्यञ्चिदाता सद्यः लाता एविभेवेत्‌ तचाग्िदातुः Sata सद्यः चं तत्कमंण्येव नान्यतः बोधायनः, शवोपस्यशंनेऽनभिसन्धिप्रवे खचेलोऽपः स्या सदयः एरविभवति, अभिमस्िप्रवं fausaquary श्रभिसन्धिः धाना दिकेच्छा, सचेलोऽपः सषा Bay: | श्रसपिण्डं दिजं प्रेतं विप्रो निदेत्य aad | विद्ध्यति चिराचरेण मातुराप्तांश्च वान्धवान्‌ यद्यन्नमत्ति तेषाञ्च दग्रादेनेव एष्यति | तअनश्नन्ननमक्तेव देतस्िन्‌ ze वसेत्‌ दरति मनूक्तिस्ु कलौतर दिषया अ्रनुकन्पेच्छया प्रेतं ज्ञातिमज्ञातिमेव वा | wal सचेलं स्यृषटाचिं छतं प्राश्च विषष्यति द्‌ तिवाक्यान्तराच नाशोचाधिक्ादर दत्यस्मदेभौ याः | |

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(९) स्थिसंचयनावधि | |

कनसारः। ३२१

याज्ञवल्क्यः, नारं welfe wae साला विप्रो विश्एष्यति | aaa तु निःक्तेदं गामालभ्याकंमौ क्ते एतत्‌ सजातयाश्िविषयम्‌ | ब्राद्ये,-- wae यावदस्थौनि ब्राद्णएस्याइतान्यपि | तावत्तदान्धवस्तच रौति Para: सद ततः साला भवेच्छः द्धि स्तत्‌स्यु्ठा चमनं चरेत्‌ ऊद्धमाचमनमिति यावद्‌ स्थिमञ्चयनं क्रियते, तावदान्धवः उदासोनोऽपि रौति चेदित्यर्थः। सजातौयविषयञ्चेतत्‌ i च्तिय- | वेश्वयोः कलियगेऽभावात्तच्छवस्य विचारो इतः शद्राणं वहनद्‌ हनादिकं ब्राह्यणेः सवया BAA | ब्राह्मणे ददेत्‌ Uz fas aga ari मोदाद्गध्वा ततः GTA: WHIfA पराग्रयेद्‌तम्‌ उपवासरतः पञ्चात्‌चिराचरेए विष्ध्यति दति प्रायखित्तोक्रेः, त्राद्यणे नानुगन्तयो तु Vet कयद्चन। दति याज्ञवस्फ्योक्तः | विपरिदग्धाश्च ये शद्रा गतिं तेषां ब्रजाम्यदहम्‌ इनि जेमिनौयरामायरे भरतवाक्ये दोपोक्रश्चत्यलमति विस्तरेण प्रतस्पो दिवा afafu निगितु fear ग्राम उक्तः प्रवेशो

| यद्धाद्‌ाय दिजाज्ञामतिविपदि ga: सोऽवधिन प्रतौच्यः , 41

३२२ गदाधरपद्धतौ

पुचाणणामाहृरेके क्षवनमिति परे सवेसापिणड्यभाजां केचित्‌ प्रेतावराणणं afaenafetsy खियम्तननिषिद्धम्‌ पारस्करः “प्रेतस्पशिनो यामं प्रविग्रेयरानक्तचदगशेनात्‌, tat रेदादित्यस्यः" प्रेतस्यर्गानुटत्तो दारौतः,- शब्राह्मणानाम- नुमत्या वा” तथाच यदा यामप्रवेशं विना श्रात्यन्तिकः कायेनाश saga, स्प भिनोऽगरक्रिर्वा, तदा ब्राद्मणन्ञां ग्टदौला पूौक्ता- वधिसुकत्य यामप्रवेगशेऽप्यरोषः | सत्यन्तरे,- गङ्गायां भास्करे SF मातापिचोगेरोर्मृते मुण्डनं चोपवासश्च सवतोरयेष्वयं विधिः वजेयिवा gees विश्रालं विरजां गयां , wa मरणे afad पुष्करं गयां दति पाठान्तरम्‌ श्रत यन्ण्डनमुक्त तन्ातापित्नोमेरणवधिदश्माद wai उपवासो aay एवेत्यसमदे समाचारः | पिदमाचरपघात दूति च्राभ्नयोक्तेः देशविशेषे तु गङ्गायामिति वाक्ये मातापि्ोमँतेऽदहनि दति पटिला माद पिदमर दिनेऽपि ait कुवन्ति | BRET त, शरादरेवासाञ्च मक्लिनः श्रुलो ग्रभिदिनेः। मातापिचोः क्रियां gaiq ज्ञातिवन्धुसमन्ितः दति ददस्पतयुक्तौ wae: क्रियां कुयादित्यभिधानात्‌ क्रिवा- कनद श्रमदिनात्‌ पै चौराभावसमाचार ofa करियाकन्तुवैपनम्‌ |

(१) व्यापद्येत |

कालसारः | ३२३

पारस्करः, “वपनञ्चान्‌भाविनांः' श्नु पश्चाद्धावयन्तोति अ्रनुभाविनः, प्रेतकनौ यां सस्तेषां aay प्रेतच्येष्ठानां वपनमित्यस्याभिप्रायः | केचित्त्‌- तच त्याज्यानि वासांसि केग्रश्मञ्रनखानि च| दूति याज्ञवरक्योक्तः स्वखपिण्डानां चौरमिति | पच्चयेऽपि स्तौणां नेव चोरम्‌ | प्रायधित्ते समुत्यन्ने प्रतहृत्ये a योषिताम्‌ | निषिद्ध वपनं केचित्‌ तौर्थेष्वपि यथेच्छया दति स्मृतेः। स्यादा चायंमातापिदमरणएदिनात्‌ दाद शादानघोति, स्यात्‌ भिये गुरौ ऋलविजि afaafa चोणि स्यदिंनानि। ग्रामान्तस्ये wa नाध्ययनमभिदितं नौयमाने दृष्टे, खग्रामौणे wa नाग्रनमतिनिकटग्रामगेऽपि प्रमौते HVA श्रापस्तम्बः,- “वेरमरणं गुरुष्वष्ठास्ये त्यम्‌ तया मातरि पितर्याचायं दादा इति | वौरमरणएमेव वैरमरणमिति श्रध्ययननिटत्तिरित्ययः gay प्रतेखित्यनुसङ्गः | श्रष्टाख्ये च्रष्टकायां) | उपनौय वदेदेदं BIW: उदादतः। दर्युक्तलच्णे श्राचायं | “तिक्‌ यज्ञरुदुच्यते"' दत्युक्तलचणो विजि | याज्ञवसक्यः,- व्यहं प्रेतेष्वनध्यायः भिव्यलिग्गुरुबन्धृषु | तया,- श्रमेध्यशवश्चद्रान्तयश्पपणानपतिता न्तिके श्ननध्ययनानुटत्तो नारभिहे,- “Aaa शवं दृष्टेति” |

828 गदाधरपद्धतौ

मनुः, खग्रामे यामतो वापि afaae तेऽपि वा qatar घौमाना घमग्रोककारणात्‌ खग्रामे (खग्रामोएे)। यामतः afaad सन्निरृष्टयामोणे cae: | वर्षान्‌ पञ्चोत्तरांञ्ेत्‌ पितरि an गते नागतिर्नापि वार्ता, aay द्ाद्णरान्दान्‌ तदुपरि निखिलं प्रेतकर्मादि काय्येम्‌ Maga कञ्चिदायात्तमपि एतघटे प्रास्य dare काय्येम्‌, जाताद्यं aa नेदाजिनघ्तिवपने मेखलादण्डभिक्ाः.॥ Taq संकेतः सोऽप्यचल उपवसेत्‌ दाद शाहं BE वा, तस्म्ादागत्य पूवां स्तियमपि विवदेन्तदिनाशे तयान्याम्‌ साप्रेरायु्रतौ ष्टि सिद भवति पुरोडाश्रकोऽष्टाकपाल, gaat निरप्र्चरुरिद ठ्‌ मतः सोऽयमायुश्रताख्यः प्रास्य vagal fayt, श्रचले (पवंते) जाताद्यं कमं, जातकर्मादि- पुनःस॑स्कार TAU | माकंण्डयः,- गतस्य भवेदात्ता यस्य दादश्वा्िंकौ | प्रेतावधारणं तस्य कन्तेयं सुतवान्धवैः पिता प्रसितो यस्य वार्त्तां चागमः | ऊध पञ्चद श्रादर्षात्‌ कार्यां पिण्डोदकक्रिया सुततुल्या वान्धवाः सुतवान्धवाः दति मध्यपदलोपिसमासः | अनन्यया पितेत्या दितद नन्तर वाक्यस्यासलग्मता स्यात्‌ | तयान जातुकणेः,- पितरि प्रोषिते यस्य वात्ता नेव चागतिः।

= = "ना

कालसारः। ६२५

ऊद्ध॑पञ्चद शादर्षात्‌ कत्वा तत्‌ प्रतिरूपकम्‌ कुर्य्यात्तस्य संस्कार ययोक्तविधिना ततः) तद्‌ानोमेव सर्वाणि प्रेतकार्याणि सञ्चरेत्‌ हारोतेन त, प्रोषितस्त॒ पिता पुत्रैः प्रतीच्छो fanfa: समाः| ae: पञ्चद्‌ग्राद्वापि पञ्चान्तवद्‌ा चरेत्‌ दूति विश्रतिवषेपच उक्तः पत्तो नाद्धिवते दति | विडितक्रियस्य Maa: तस्य दैवादागमने, ठदन््मनुः,- जोवन्‌ यदि समागच्छेद्‌ vag नियोज्य तम्‌ | उद्धत्य खापयिलास्य जातकर्मादि कारयेत्‌ दाद शाद AA कुर्ययान्िराउमयवास्य त्‌ | सालो दद्धेत्ततो भार्यामन्यां वा तदभावतः i श्ग्रोनाधाय विधिवद्भत्यस्तोमेन वा यजेत्‌ | तयेतैन्द्रा्चिपग्ररना गिरिं गता तचत्‌ इष्टिमायु्रतों gaifefeaig aaa | wz साग्नेः। निरग्स्ठु weta Saga: | तदुक्तं गद्यप्राय- शित्त, “श्राहिताप्रः पुरोडाग्र एव श्रनादिताप्नेयरुभवति, दतिः | पुनरूपनयने asia मनुः,- वपनं मेखलादण्डो भेच्छचर्या ब्रतानि | वन्तन्ते दिजातौनां पुनःसंस्कारकमंणि तच इहन्मनूक्रवचनस्याथक्रमः कालदशेकारिकायां स्फुटसुक्तः। यदा गच्छेत्‌ पुमान्‌ जोवन्‌ पेव्येऽधिकसंक्कतः | एतक्म्मे स्थापयित्वा तसुदास्य WH aa |

ard गदएधरुपड्धतौ

waa जातकर्मायेरुपनोतं विधानतः | दादशाद faua वा विहितोपोषणं व्रतम्‌ गिरावागत्य पूवां वा तदभावे परां faq | Beam saat चरुणायुश्नतेन दति कारिकयोः | दत्यप्ौचकारिका | ay छृतानग्रनादि प्रतिज्नापू्व॑कान्तजेलस्य रवाष्नौवने गटदा- अमं कन्तुकामते प्राययित्तं च्रनग्रनमधिृत्य श्राग्रेयवारादयोः,- कारयेत्‌ चौणि aspifa fa चान्द्रायणानि वा | जातकर्मा दिसस्कारः सं्कर्यात्‌ तं तथा पुनः श्रनुगमनेऽगौ चस्य उक्तात्‌ ततमसङ्गादनुगमनं विचाय्यैते | AVIAN प्रकृत्य व्यासः, यदि प्रविष्टो नरकं यदा aT: सुदारुणैः | संप्राप्नो यातनास्थानं गहौतो यमकिङ्करैः तिष्ठते faamt दौनो वेश्चमानः खकमेभिः। व्यालय्ारौ धया व्यालं वलादुद्धरते विलात्‌ तदद्न्तारमानोय दिवं याति सा वल्लात्‌ | afea..— aa भत्तरि या नारौ समारोद्ेत्‌ डताश्ननम्‌ | सारुन्धतिखमाचारा Bits महौ यते तिखको खोऽद्धकोरौ यानि लोमानि मानुषे। तावन्तयन्दानि सा सगं रमते चोमया सड व्यालयादोत्यादि | तया, माहवं पकं चेव यच कन्या प्रदौयते |

कालसारः २२७

पुनाति faa नारौ anit यानुगच्छति तच खा भर्तृपरमा परा परमलालसा | aisa पतिना ag यावदिन््राश्चतुदंश्र agat वा पिषघ्रौ वा कृतघ्नो वापि मानवः। तं वे पुनाति सा नारौ दत्याङ्गिरसभाषितम्‌ घाष्मौनामेव नारौणमपम्रौ प्रतपनादृते | नान्यो धमा fe विज्ञेयो aa भत्तरि किचित्‌ यावन्नाग्मौ ददहेत्‌देहं aa पत्यौ पतिव्रता | तावन्न मुच्यते नारौ स्तोगशरोरात्‌ कथञ्चन | साष्यौनामिति स्ववणेसाध्योनामित्ययेः | महाभारते,- said मुदिते दृष्टा प्रोषिते मलिना छशा | aa faaa a vat at el नेया पतिव्रता दूति स्व॑वणेषाधारणप्येन AMGUIA: | तच वालापत्यादिस््रौएणां नाधिकारः | तयाच व्याघ्रपादः,- faaa समं भन्न ब्राह्मणै गोकमोदहिता | ्रब्रज्यागतिमाप्नोति मरणादात्मघातिनो शरन्यच,- उपकार चरेद्न्तर्जोवन्तौ तया war | करोति ब्राह्मणौ Hat भन्तः शोकवतौ सतो तया,- सखेरिणौनाच्च aout पतितानाच्च योषिताम्‌ | नास्ति aaifaaan: पतितौ fe तया fe at i

२२८ गदाधरपद्धतो

पतिदिट्‌ खेरिणो नारौ नानुगच्छत्‌ कदाचन वालापत्याश्च गभिष्यो द्य ्टरजसस्तया रजसला राजसुते नारोदन्ति चितां WH | पारस्करः,- वालसवद्धेनं त्यक्ता वालापत्या गच्छति | रजस्वला दूतिका रचेद्गभेञ्च गभिंणो श्रन्यच,- eatafs उदक्याया डते भक्तेरि वे faa: | तस्यानुमरणार्याय स्थापयदेकराचकम्‌

तयाच,- “रजश्चतुयंदिने सदगमनेऽधिकारः” ब्राह्यणएस्त्रौ णं |

पतिदेहदादकाले एकवितावेव सहगमनं नान्यचितौ तच “war- नुगमनं नास्ति" दति पेटौनसिवाक्यं लिखितम्‌ | पुनस्तदाक्यमपि,- या स्वौ ब्राह्मणजातौोया सतं पतिमनुत्रजेत्‌ सा स्वगेमात्मरघातेन नात्मानं पतिं नयत्‌ प्यक चितिमिति उश्रनोवाक्यमपि लिखितम्‌ i amy चच््रियादिस््लोणमेव पतिदाहानन्तरं यद्‌ कदाचिदपि विद्धानि ग्टदहोलानुगमनमिति fag | तदिधिश्च ब्राद्ये,- दि शान्तरगते तस्मिन्‌ साध्व तत्‌पाद्‌ कादयम्‌ | निधायोरसि तचित्ता प्रविभेत्‌ जातवेदसम्‌ aq कैशिदुक्रम्‌,- “स्ःकामा प्रयादिति श्रतेः.

च्रतिप्रटद्धुखरगाश्चिकामाया९ ) एव श्रयमनुगमनोपदप्र इति

(९) खर्गादिकामायाख। ‘éSCS

न्यो

> 1लसारः | BRE

पुरुषाणामिव स््रोणामयात्मदननस्य sfaruemeaurafad | काययमित्यागद्धितं, तन्न, स्तौणामनुगमनस्य प्रायथित्तलान्‌ | तथाच प्रायञ्धिन्तप्रकरण, WEs,— ब्रह्मन्न वा BAR वा महापातकदूषितम्‌ | भरत्तारसुद्धरेन्नारो प्रविष्टा सहपावकम्‌ एतदेव परं स्तौएणं safari विदुवंधाः | परचेताः- वितौ परिष्वज्य विचेतनं पतिम्‌, प्रयाति या मुञ्चति देहमात्मनः) रत्वा fe पापं शतलक्तमप्यसो, पतिं ग्हौत्वा परलोकमाप्रुयात्‌ मत्यनुगमने च्ात्यहत्यारोषाभावः सफ़र टसुक्तो त्राय, खग्वेद्वादात्‌ साध्वौ स्तौ भवेदात्मघातिनो महगमननियुक्रमन्ललिङ्गा Ta: तथाच मन्तः “द्मा नारोरविधवाः मपन्नौराञ्जनेन मपिषा संविग्न्त, अनश्रवो) च्रनमोवाः सुरन्ना त्रारोदन्त्‌ जनयो योनिमग्रे" दति। दमाः नारौः नाय्यैः अविधवाः भचतँवियोगरदिताः मब्िग्रनत संशेरतां किंविशिष्टाः aval: पतिव्रताः | aaa अन्ननसंवन्धिना सपिषा विशिष्टा इति शषः रताच्ननादिप्रसाधना दत्यथः। अनयवो अछृतरोदनाः णोकमोहरदिताः संदृष्टा दति यावत्‌ salar: श्ररोगाः, सुरन्नाः शोभनाभरणणः | किमथमारो हन्त्‌ इत्या ग्रा

~

(१) अनखवो |

३३० गदाधरपद्धतो

श्रयेयोनिमुत्तमयोनि जनयो जनयन्यः च्रारोहन्त्‌, श्रारोहणए- मचानुयानम्‌ | एवं रजखलादियतिरिक्तानां सर्वासां सहमरण ऽधिकारः | ननु कायकारणयोः सामानाधिकरण्धस्य शास््रसिद्धलात्‌ कथं पनौ गतानुगमनेन पतिगतद्‌ रितापरवेस्य चय दति चेन्न पति- पल्योः सहकन्युलेन श्रथिद्ो चा दि साध्यखर्गादि वदुपपत्तेः श्रान्त त्यादि वाक्ये पत्यनुक्रूलायाः पतित्रेतालात्‌ समरणे तस्या एवाधि- कारे fagsfa,— श्रवमन्ति याः ya पतिं दुष्टेन चेतसा | aid याश्च सततं भत्त णा प्रतिकूलतः भर््ानुमरणे काले याः कूवंन्ति तथाविधाः | कामात्‌ क्रोधात्‌ भधान्मोहात्‌ सर्वाः पूता भवन्त्यृत च्रादिग्रशति या anal ad: प्रियपरायणा ag गच्छति सा नारौ भर्चानुमरणे गते दति उतश्नब्दश्रवणात्‌ पत्यवमाननकर्चयादरौनामपि परलोक- aifa: पापचयस्ेति तत्साधकलेन चारिताथ्यैमिति। पत्यौ शते या faaa सा पतित्रतेत्यनन सदगमनस्य नित्यवाद्रजोगर्भादिना पतित्रताया श्रपि सहगमनाभावेऽपि ब्रह्मचय्धांचरण्णन्न व्रततिः ) तथाच विष्णः “aa भत्तरि age तदन्वारो दणं वेति” सखत्यन्तरे, सवे विधवाघमनुक्ता,- ; एवं धमेसमायुक्ता विधवापि पतित्रता

(९) मते |

कालसारः | 4 ६।

पतिलोकमवाप्नोति भवेत्‌ क्रापि दुःखिता तया,- Wasa समाप्यैव agree wafwar | म्र्रज्यागतिमाप्नोति हरि खाभिवद्‌ चरेत्‌ दूत्य्रिप्रवेशविचारः | श्रयेत्‌ प्रासद्गिकतया स्वँ दादमेदा faa तचादौ सन्निहितल्ादथिप्रवेग्दादषिधिः। नारदः,- श्रगनिप्रवेभे नारौणं fa ana महामुने | सलानमङ्गलसस्कारगषणाच््नघधारणम्‌ मङ्गलश्च तया Ga पादालक्तकमेव च। Trl दान fauthay प्रश॑सासत्रमेव नानामङ्गलवाद्यानां अवण गोतकस्य | मङ्गलसंस्कारो नूतनवस्तालंकारादिः। दानं ब्राद्मण्दौोनानाया- ्थिंभ्यः, प्रियोकरिः मवेच म्रियभाषणम्‌ प्र गसासलवे aT तंनपरम्‌ | aa पतिं समालिद्ध या वद्धि प्रविविच्यते | सा स्नाता yaad weal प्रायथित्तादिकं क्रमात्‌ वेतरण््रादिदानानि car पायेयकान्यपि | नववस्रयुगच्छना गन्धमान्यादिग्षिता सिन्दूर कञ्जनलोपेता छताक्तालक्तन्दूषिता | + श्ोकमोदहादिरदिता नानावाद्यरवाज्िता चिपन्ति पथि लाजादौन्‌ चितायाः सनिधिङ्गता | तच प्रेते वितारूढटे पाच्रन्यासे तु ara

२२२ गट्‌ाधश्पद्धतो

श्रासोना प्राङ्मुखो तोयपात्रमादाय साच्ततम्‌ | रय ेत्यादि दे यन्तं ब्राक्यसुचायं WaT मम॒ सभन्तुकाया त्रद्धदत्यादिनानाविधपापक्यपूवेकचतुद्‌ ग- न्रकालावच्छिन्नविशिष्टखगंप्रा्य पतिश्ररोरेण सह श्रथिप्रवेश- मदं करिष्ये | दति सङ्कल्प्य मन्त्रेण प्रायंयेन्नातवेदसम्‌ | लमथिः स्वभावनज्न aaa जगरः HAAS BAIE: पावकोऽसि प्रधानतः यथाहं खं निजं कान्तं मनमा कमेण भिरा श्रनुरक्ता तथा दव Vhs जन््रान्तरे पतिम्‌ | “त्वमग्र agi अ्रखुरो मदो दिवसं शद्धो मारतं gat शशिषो- लं वातैररुरै्या रिषं ae पूषा विदधतः शासिनुन्ना(९) | दृति mia चिताश्ि fa: परिक्रम्य vefau “दमा नारौरविधवाः सुपन्नौराञ्जनेन afer संविग्रन्त्‌ अन- श्रवोऽनमोवाः BAL Ae जनयो योनिम” | दनद्रादयोऽषटदिकूपालाः साकिणः सन्तु कमणि दृद्द्रियाणि शतानि मनो श्रतानि पञ्च च॥ प्रत्या गन्तुमना नाक प्रविशामि डताश्रनम्‌ | सवेँन्द्रियाणि दद्यामि प्रविगशाम्यग्चिमयदम्‌ पत्या सदेव यास्यामि warn पतिदेवता | पेतिपावकरूपाय area मम विग्रहम्‌

(१) शासिनूल्ना |

कलसार्‌ः | २२३

दूमं मन्तं ससुचाय्ये पावकं प्रविगरेत्‌ सतो पतिदिट्‌ सख्वैरिणो नारौ नानुगच्छेत्‌ कदाचन श्रय aul Balad पुत्रो मन्लमनूहितम्‌ | aad पटिवा wae’) जङ्याद्‌ाङ्तिं दयोः तौ एथकूकत्य दग्धव्यौ एयगस्थिदिति ad | ्रन्यत्सवेवाक्यानि लिखितानि इति सदगमनविधिः(र अरय सखुतिरनखलखोद्‌ाडे faze: | लापयिला चतुर्थेऽङ्क खताग्टतुमतों दहेत्‌ | श्रतिक्रान्ते तु ena स्ापयिता प्रतिकाम्‌ SIS चत्तयोर्जाता मध्ये यदद्‌ शादयोः | तदा तामसुशन्नद्बिः स्तापयिला घटे जलम्‌ mye पञ्चगव्येन पुष्छभ्भिरभिमन्त्तय तत्‌ | स्तापयिला दहेत्‌ इच्छं ततः HA: रवस्य रः QUag— “MaMa: Bea: खदुघाञ्च vaya: | षिभिः संश्तरसो arguaad दितम्‌ पावमानो feria दमं लोकमयोऽपयसुम्‌ | कामात्‌ सम्बद्धंयन्त॒ नो देवदेवः समादिताः॥ येन देवाः पविच्राणा श्राह्यानं पुनते सद्‌ा तेन मदखधारण पावमान्यः पुनन्त माम्‌ प्राजापत्यं पविचच्च गतोद्‌ामदिरणए्सयम्‌ | तेन ब्रह्मविदो वय प्रतं ब्रह्म पुनौमहे॥

(९) तन्ते (2) इति अभ्निप्रवप्रविधिः।

२२४ गदाधम्पद्धतो

gm: पुनाति महसा Gala सोमः खस्तवरुणः प्रमोत्या | यमो राजा प्रसूनाभिः पुनातु मा जातवेदा मोजयन्त्या पुनातु यस्तमसस्तो (रमे सवं सवेजिगोषमाः | तपमस्तपसे Da gaat खचोऽत्रवोत्‌ aa गभ वसतः Wag यज्जनायमानस्य किञिद्न्यत्‌ | जातस्य यचचापि yagat मे तत्‌ पावमानोभिरहं पुनामि यद्‌ न्तिकाञ्च^ दूरज्ञा भय विदन्ति मामिह) पवमानस्तु सोऽद्य नः ufaau विचषंणाः यः पाता पुनातु नः। यत्तं पवित्रमविव्यमग्रे विततमन्तरा | ag तेन पुनौदि नः यत्ते पवित्रमचिवदग्रे तेन पुनौदि। बद्ध सवैः gaits a) उभाभ्यां देवसवितः पवित्रेण waq मा पुनोदि विश्वतः fafag देवं सवतो वण्िष्टैः-सोमधामभिः। aq? ga: gfe नः। gaa मा देवजनाः gad मनसा पिया | विश्चेदेवा gala मा जातवेदः पुनौडि माम्‌ | दिरण्यवर्णणः Waa: Waar प्रचक्रमु दिला वन्द्यभापः॥

(१) तपसस्तापे | (२) यद्न्ति यच दूरके | (३) सवेन |

कान्तसारः | २३५

ma पवित्रा वितता er’) सुनाभिः वा देव सविता पुनातु। हिरण्यवर्णः प्रचयः; पावका यासु जातः कश्यपो या atzA | या श्र्चिं गभं दधिरे सुवर्णस्तास्ता arg: wey स्योना भवन्तु | यासां राजा वरूण जातिमध्ये सत्यानृते अ्रवपश्यं जनानाम्‌ | यासां देवादि विकृणखन्ति भिचया अन्तरो aur निविष्टाः या श्रञ्चिं गभं दधिरे सुवर्णस्तास्ता च्रापः स्योना भवन्त्‌ | शिवेन वा चचुषा wag शिवया तन्नो पस्य शन्त्‌ aed) ठत- खतः एएए्वयो याः पावकाः तास्ता आपः wy स्योना भवन्त्‌ | रापो दिष्टेति खक्चयम्‌,- वस्त्रान्तरतं छना दादयेदिधिपूरवकम्‌ | उदक्यां वा प्रखूतां वा यद्यगां CSA छच्छरमेकं Wala पञ्चगव्येन wats eat wen प्रायञित्त कुर्य्यात्‌ दति खूतकोदक्यादारविधिः॥ ay गभिंणोदारतिधिः। गभिष्धाञ्च say ग्भजौोवनग्रदूःया | विमोच्य गभं crue निचिप्य सखोतमां परे स्रतगभेभिन्नकन्ता पतिः Be समाचरत्‌ | WAG छच्छरदयं AYA दा दवादकाः निचि गभं खोतस्यां पर agi परं जनाः

a ~~~ ~~~

(१) ह्या

२२९ गदाघम् पद्धतौ

पत्यादिना सगोचिणा श्रग्रो चानन्तरं प्राय्ित्तं कत्तैव्यम्‌। यथाद विष्णघन्नात्तर, चतुर्णामिव वर्णनां afaay प्रेततां गताम्‌ | दहेत्‌ वदे यस्तस्य कथं प्ररद्धि वि घौ यते भक्ता तस्याः प्यक छवा गभंस्योल्लेखनं खयम्‌ | तेन मधनाभ्यक्तं WANA STRAT Wada तेन प्राणायामशतेन च। उपोष्य पञ्चगव्यञ्च anuiga दचिणणम्‌ दवा ब्राह्यणमुख्याय Wad नाच ana: | maga पतिः Bw रुला WAI छच्छ्रदयं कता तटिनि उपोष्य ्रपरदिनप्रभाते प्राणायामशतेन ga: पञ्चगव्य पानानन्तर aegefaut सगभां गां eat द्धो भवति | दूति गभिणणेदादविधिः। श्रथ अ्रनुपनो ताविवाडितकन्ययो दाइ विचारः | भ्रूमिसंस्कारवन्न स्यात्‌ दर्थ प्रकलेर्विना | अरसंस्छतप्रमौतसख ee: काय्य निर भ्चिवत्‌ अरस्योदककरिया कार्य्या दग्रपिण्डाश्च पूरकाः। विना caeufzafiafual नाखिसञ्चयः सद्यःशौचं सद्य एव शपिण्डाखत्यदाप्ररचौ | प्रयमेऽद्कि चयः पिण्डा दितौ येऽद्कि चतुष्टयम्‌ ठतो येऽङ्कि चयः पिण्डाः ufeut प्रथमे चयम्‌ | दितो येऽहनि सतत स्युरिति खण्डाश्चौ विधिः

RIAA: | 339

gaat कन्दकां ट्ग्खा पिता हत्वोद्‌कक्रियाम्‌ | विनाशि सञ्चितं ददात्‌ द्‌प्रपिष्डान्‌ चिभिरिनेः।॥ श्रद्धिवषेग्टतं ग्रामात्‌ वहिः ware वारिण | यमगायां ततो गायन्‌ waaay स्मरन्‌ गन्धमाच्येरलङुत्य wala निखनेद्ुवि | वने fe काष्ठवत्‌ fagr क्रर्वोतोद्‌कक्रियाम्‌ श्रपि वा ददनं काय्यं पक्तेऽस्मिन्नदकक्रियां | द्त्यसंछतप्रमोतदादः | Wa पुचस्य उपनयनकाले प्रापनेऽप्युपनयनाभावे एवं प्रेतरत्य- माच्येते संपूर्णा शौ चञ्च तिभिवंति यो विकन्य उक्तः, चूडा कालानन्तरं ब्रतकालपयेन्तामिप्रायकः; ददानौन्त श्ष्टेरपि चड़ाकालप्रे्रानन्तर्‌ areata क्रियते पिषण्डादिकम्‌ एवं दु दितुविवादकाले प्राप्ताश चस्य चिदिनलादेव fafafes: पिण्डा- दिकं काय्येम्‌ | दत्यस्छ्तप्रमोतकृत्यम्‌ श्रय पतितप्रेतक्त्यम्‌ लिश्चा मध्येन मरणमुटिश्य खात्घातिनम्‌ | Taras afeaarq खिपेयर एचिस्यले श्रनु टिश्यात्मदन्तार पतितं त्राहुयक तितम्‌ | गङ्गादितोयं प्रलिप्य तप्तरुच्छर समाचरेत्‌ .. HUT दासौ HARA कुलटारत्तवेतनाम्‌ | श्रष्रद्धघटस्तां चिः प्रत्रूयात्‌ Waene

(१) RBIs | 43

Ve

गदाधरपद्धतो

डे दासि' गच्छ aaa तिलान्यादाय wate | nyy तिलतोयन तं घटं र्चिणमुखोम्‌ sativa पापिनो नाम विनय जलं पदा | दृति मप्रपिता दासो ब्रह्मदन्नमुकाभिधा॥ तिलोदकं पिवेति ददिरभिधाय घटौजलम्‌ सतिन्ञं वामपाटरेन विनयेद्‌ एएविस्यले समापरेऽव्दे क्रियाकन्ता ware ज्ञातिभिः सद दग्ध्वा पणेनरं quigurefafeat क्रियाम्‌ दश्रादादत्सरं यावत्‌ खे खे कालेतु MT श्राद्धानि Gal FAA नारायणएवलिं ततः॥ HVAY यदा चेषामोदधंदे दिकमिच्छति | तदा खतादहात्तत्‌ कूर्यात्‌ प्रायञित्तपुरःसरः। Te चान्द्रायण तप्रलच्छरदयसनमनितम्‌ प्रत्यान्नायविधावष्टधेनुदानं प्रकोत्तितम्‌ | दादेऽस्रां दिगुणं कायं तद्‌ा पयैषिते शवे च्रभावेऽस्धां ("पणेनर दादेत्तचतुगणम्‌ | चरन््यजा तितं ql दग्ध्वा छंलोक्तनिष्कतिम्‌ मन्त्रवद्‌ दनं कर्यात्तद्‌ सषु यया विधि साभ्रिश्वेत्‌ पतितः प्रेतस्तदद्रिमष्य॒ निकपेत्‌ | पाच्राणि eat gaia प्रागुक्तपतितक्रियाम्‌ दति पतितप्रेतरत्यम्‌ |

(१) अलामे |

कालसारः | BRE

अय पणनरदादविधिः।

कन्दोगपरिण्ष्ट,--

श्रस्यामलाभे पर्णानि (“सकलान्यृणेयाटता |

दादयेद स्िमख्यानि ततप्रति सूतकम्‌

श्रता परिपाचखा | श्रिसख्या तु षच्याधिकं naaaq | तयाचादित्यपुराणे,- ~ त्ये (~ तदभावे पलाशत्यः पचः are: पुमानपि | A ac

श्रत स्तिभिस्तथाषश्चा शरपचविधानतः

वेष्टितव्स्तथा Aa रुष्णसारस्य चर्मणा |

ऊर्णाखरेण वध्वा तु प्रलेप्रयस्तया पत्रैः

सपिषटेजेलसंमिगररदग्धव्यश्च aurfaar |

[Vault WYRM सटन्तपलाग्रपत्राणां षशचत्तरचिग्रतैः

पुरुषप्रतिनिधि agar auld” QUT

्रादिता्िदिजः कश्चित्‌ प्रवासे कालचोदिते

~A ~

दश्नामद्यनुप्रात्न तस्या्धिवेत्तते We

प्रेताय चसंजञेयं भ्रूयतां मुनिपुङ्गवाः |

छष्णाजिनं समाम्तोय्ये gig पुरुषारूतिम्‌ |

पलाशानां सदन्तानां विभागं ate याज्ञिक |

(१) wants | | (2) [ ] बन्धनिमध्यगताः पद्भुयः कियति पुस्तके सन्ति |

३8 ° गदाधरश्पद्धतौ

warfingaalg योवायाञ्च za च॥

उरसि fand दद्ाद्‌द्रे विश्रतिम्तया।

asta श्रतं दद्यादङ्ःलिपु द्भेव ai

षटवे टषणयोदे द्यादष्टाद्धं मेद्‌ एव च।

gaiga wd दद्याचिषतं जानुजद्गयोः

पाद्‌ाङ्गुलिषु दग्र GHW ततोन्यसेत्‌

ऊर्णास्तेण वध्वा तु प्रलिप्य तया यवैः॥

प्र पि्टैजैलस मिश्रेदेग्धव्यश्च तथाञ्चिना ।]

रसौ सर्गाय लोकाय खाहेत्युक्ता सबान्धवैः

एवं quat दग्ध्वा चिराचमण्टचिभवेत्‌

अयं ae: समाग्चिनिरभ्चिमाघारणः। “गतस्य भवेद्रात्ताः

दूत्या दिवदनम्ये तया निर्णैँतलान्‌ एवं पणनरं रुपाद् पूववद्ध- ait) चन्दना दिवस्तज्ञो पवौोतमाच्य्टतादि gat च्राज्येन मादाय प्रद्किणं छा मुखा्रिमन््ेए च्रपसव्यस्तमश्चिं fata निरप्रदयात्‌ | चिभिरश्वत्धपचेदेर्भवयेण varia afi प्रज्वा शिरःस्थाने दद्यात्‌ एवं दाहे कते द्वष्णोसुद कधारां परितो दद्यात्‌ माग्रिकानामन्यत्‌ पाच्रासादनादिकं सवं वच्छमाण- हितायिविधिना कुर्यात्‌ एतसिन्नगौचे चिदिनाग्रौ चवत्‌ पिण्डव्यवस्था,

yaa दिवसे देवास्त्रयः पिण्डाः समाहितः |

fama चतुरो ददयादस्िसञ्चयनं तथा i

(१) इस्तद्ये |

कालसारः | २४९१

चोन्‌ प्रदद्यात्‌ ठतौयेऽद्कि वस्त्रादिचालनं तथा द्ति पणनरदाहविधिः। अय निरगिदाहः। तचादौ खदाभ्यन्तरस्डतस्य fare: यदि ग्हाभ्यन्तरे दुवेलभ्य प्राण गतास्तदा वान्धवेग्टेहात्‌ Wy ब्राह्मणनयिच्च yam धान्यपिघधानमन्नपिधानं नवकपदोंश्च wzelar शवो वदहिरनयः। समाचारादद्धेमा्गं गनैः गनेर्गला श्रन्नपिधानादिकं प्रक्रयं ततो जलाशयं कन्तेवयम्‌, यत्र देशे जलं नास्ति मरसो वा विद्यति नटोनाच्च कथा कार्य्या वक्तव्यं वा fea हिमम्‌ तद्ग्टदथ्यितभुक्रायुक्तमवश्टन्मयभाण्डानि त्यजेत्‌ इति विग्रेषः। दादहाथं दएकाष्टादौनि Haat शृद्रदारा नेतव्यानि, प्रमादात्‌ WRIT नयने तत्कालं ATCA) शेभाशरुवान्यवेसुक्त" दूत्यादिष्मृतेः, aaa रोदनं काय्येम्‌ पुचादित्राह्यण्दारा निर्या- सप्रधानवनस्पतिवटस्षच्ोद्‌म्बराणामन्वतमस्य निर्यासमानौय चन्दना- गुरूकप्रण्गमदजातिफलानि पिष्टा मिर्रौर्त्य शवस्य समोपे Bal Baad संगोधयेत्‌ | ततः wat ततैलाभ्यां खापित- निर्यास गन्धसह्दिताग्यां शरवमभ्यज्य जलसमोपं नयत्‌ | तच ॒करु्रानास्तौयं द्किणशरिरसं समाचारादत्तरभिरसं वा उन्तानदेह स्थापयित्वा, गयादौनि तोर्यानि @ gut: ग्िलोचयाः | कुरुकचञ्च WHI यमुना सरिद्रा॥

२४२ गद्‌ाधरपद्धतो

कौशिकौ चन्द्रभागा सव॑पापप्रणभरिनो।

भद्रा काशो सरजुगेण्डको पन्नगा तथा

भेरवञ्च वराहश्च तों पिण्डारकं तथा

sfuat यानि तीर्थानि चत्वारः सागरास्तथा

दरति पठिला मनसा तानि तौर्थानि ध्याला गन्धमाच्येरलङ्कतय

नासिकादयतचचृदयकणदयेषु सपच्छिट्रेषु सप्तददिरण्छश्रला का.णनि सिधा वस््ेणच्छाद्य कोलादलवाद्यं(र सम्पाद्य श्रामपातचरेणन्नमा- दाय शअरश्चिपुरःषरं प्रेतमनुगम्याद्धुपयेऽद्धेमुतद्ज्य श्मानं गला पचादिः wa saat दच्िणसुखः सव्यं जान्वाङ्च्छ रेखा कर णावनेजनकु शरास्तर णपिण्डद्‌ नप्र्यवनेजनजलाज्नलोन्‌ नाम- गोचाभ्यां कुयात्‌ ततः क्रियाकर््ता Alar ब्राह्मण्दारा दारूमञ्चयं सम्पाद्य सते भिप्रदेशे बड्कल्षटणे दुर्वादिकमुत्पाख गोमयेनो पलित प्राचोनावोतौ दक्षिणमुखः सव्यं जान्वाच्य कुप्रगोमयङ्शोदकपाच- (रन्यासादिपरिममूहनादौन्‌ पञ्चग्दसस्कारान्‌ Va सला श्रग्रिमुप- समाघायाग्नेद्तिएभागे चन्दनादि सुगन्पिकाष्टेन feat रचयिता समाचाराचतुभिः सह शवं ग्ण्दोला acaaafy प्रदचिण्णैरत्य ` नामोच्वाय्ये वारत्रयमाहय चितायां कुशानास्तोय्ये उत्तानं दचिण- ग्रिरससुत्तरशिरसं वा निपात्य ज्वलमानमभ्निं कला,

रवा तु दुष्वृतं कमे जानता वाप्यजानता।

नत्युकालवशं प्राप्य नरं पञ्चवमागतम्‌

(१) हिरखश्कलम्‌ | (र) कोलाहवाद्यम्‌ | (२) ०प्राचाणासाद्य |

कालसारः | २९२

धर्माधमेखमायुक्तं लोभमोदसमायतम्‌ दहेयं सवेगा्ाणि दियान्‌ लोकान्‌ गच्छतु खादहा॥ dal Mwah प्रदचचिणोरृत्य ज्वलमानमभ्निं fate ्रसोनो दद्यात्‌। ग्रवसम्नन्धपरिधानोत्तरौयव्यतिरिक्रं az wezifefead एकदेशं वा ्सशरानवासिभ्यश्ाण्डालेभ्यो दद्यात्‌ माधु दग्ध्वा ्वलत्काष्टचयद्‌ग्धव्यत्य शवस्य किञ्चिद्‌वश्रिष्टमवस्याप्य द्‌ादकेः सह प्रादेशप्रमाणनि सप्तकाष्टानि गहौवा चितायां ay- प्रदचिणानि छवा प्रत्येकं तानि प्रषिष्य ढुटारेणोरमुकोपरि स्त प्ररारान्‌ Bar “marae aw नमः? दूति anne: पटिला सव्यमादत्य पु्ादिदादकाश्च सव चितां wan: पद्धिकरमेण,- ACCS यमानोऽपि गामश्वं पुरुषं ILA वैवसखतो eufa सुराप दव दुम॑तिः॥ दति यमगाथां waaay पठन्तो वालानयतः कला जला- WA गच्छेयुः, sfa निरभ्रिदाहः। श्रय केवलस्मा त्ता यिमद्‌ादः | Tat चरुमसगोतरेण अपयिला शालां खआत्तपाचाणि चरू ध्यक Wa शकटे संस्थाप्य “श्रपेत,, दत्यध्यायं जपन्‌ द्‌ किणं दिशं गच्छन्‌(* श्रद्धे पये च॑रोरद्धं दला wares गेषं पिण्डं दद्यात्‌ | परिसमूहनादिसंस्वतश्मो वदिं निधाय चितां विरचय्य पूर्वत्‌ प्रवं स्ानादिभिः UA,

(२) गच्छेत्‌ |

२४४ गदाधर्पडतो

चितौ प्रागमौवमजिनमास्तोर्खखोत्तिरलो मकं | aa प्राक्‌ गिरं प्रेतं निघायोत्तानग्रायिनं दिरण्यश्रकलान्यस्य मुखे afanatent: | कण्योख fafafey सटतासुरमि खचं aq नासिकयोः माज्यं wae शिरमोऽन्तिकं | पाश्चयोः giana” सुष्कयोररणिद्यं zfaw करे वञ्रमूर्वामेध्ये उलखलं | saat मुषलं चाच मन्तं चापि विनिकिपेत्‌ aaa निकष्य ate दद्याद्‌ दिजातये | चितिमध्ये सादयिला दचिणमुखः स्व्यं जानता ताक्तां कु्रसुष्टिः अस्मात्‌ लमधिजातोऽसि वद्यं जायते पुनः | “git ania लोकाय QE” इत्युक्ता जयात्‌ गेषं पूववत्‌ स्मात्ताव्रिन्दो गपल्यास्तु निर्मरिव छवा तु gad कमे” इत्यनेन वरादपुराणोक्तमन्तेण दादः दूति स्मात्ताभिमद्‌ादः। प्रय साथिकद्‌ादः। तच विशेषः सायमाह्गत्यां तायां grated: प्राक्‌ यजमानण्टतिश्द्धायां तदेव प्रातराङ्तिर्देया। तस्य होमस्य सायमादिप्रातरपवगलेन एककमेणोऽवशिष्टलात्‌ | saa चेद्यज- मानः पुन नप्रातर्हामं guid अ्रद्चिदोचमध्ये हवियेदणादि

(९) स्पशकले |

कालसार्‌ः। Bey

प्रागासादानाचेन््रलगद्, तदा “fast गादपत्ये दादः। अासना- gs चेदाहवनोये दाहः। WITHISNTH चन्द्रतिस्तदा स॒ पदाथः GAIA: | एवं कते पौणमास्यां द्‌ त्‌ पूवं मरणशङ्ा तदैव fan पिहयज्ञर हितां ante कुर्यात्‌ पौ णैमाखादिद्‌ शन्तत्ा दिष्टः | दयमन्चेष्टिरित्यु च्यते, णवं ॒प्रारभचातुमास्यस्य सुनासिरौयान्त समापनं, यदि साङ्गप्रधानं कन्तुमसमयेस्तदा चतुग तेनाज्येन पुरोऽनुवाक्ययाज्चाभ्यां प्रधानयागाः कार्याः, नायनयोः करण- पर्स्यानादृतलात्‌, तदककरणएविचारो लिख्यते, एकर्ैव खमाचारात्‌ | दुवेलस्य यजमानस्य गादपत्यपुर स्तात्‌ स्थापनसुचित- मपि नानाश्ङ्गया क्रियते तथा कल्प्यते मरणानन्तरं युचः साल्वा प्राचौनावोतौ दचिणमुखः सत्‌ सकृत्‌ परिसमृहनादि- पञ्चग्डमस्कारान्‌ छता श्रादवनोयद्‌चिणाग्रो उद्धत्य शंस्यनर्या- धाय्येषु करोषचणंगराल्मलोदलषणादि गर्भास्तिखो उखा श्रधि- faq तावत्‌ संता पयेत्‌, यावन्ताखचचिरत्यद्येत |

आवसश्ये satan चरूमधिख्रयेत्‌ ततो ग्दतदि इं पूववत्‌ संस्याप्य ward परिधाप्य यन्ञोपवोतं दवा श्रलङ्गारैरलङुत्य खुगन्िद्रश्येरुपलिप्य शकटे निवेश्य सन्तापजानद्नौन्‌ उखास्यान्‌ यक्‌ श्रसन्तापजौ Waa waged wea कुरां स्िलान्‌ सर्वाणि ओओोतस्मानेयज्ञपाचाणि सप्त दिरण्यश्रकलानि नापि चरकाष्टा दिसवसु पयुक्तं wae तस्मिन्नादाय we तु santa ग्रादयिला शकटं efaut नयन्त: |

सपिण्डाः,- अ्रहरदनोयमानोऽपि गामश्र gay an “(+

aud गदाधरपद्धतौ

्रैवखतो दष्यति सुराप <a दुमेतिः॥ यमाय वाङ््गिरस्पते“ पिद्मते खाहा।

दृति च। श्रपेताध्यायं waenfae यमषक्त पटन्तोऽनु- nega: च्रप्नौनां यथा निर्वापो भवेत्तया रच्युः। यदि नद्यादौ afa:, तदा प्रागुक्तेन विधिना शकटेन दाददेशं प्रति नयेयः तत श्रावसथ्या्ि चरोरद्मागें BA दद्यात्‌ ततो नद्या- fama शचौ दणवह्ले उद्धुतच्लौरिफि लतौषधिकदुरवासुन्ना - qua sara wae fan realy PUTA तके 20 पञ्चभ्च- संस्कारं BAT WIIG संस्याप्य ततः श्रष्टप्रक्रमे पञ्चश्दसंस्का रपूवेकं अ्दउनोयं cfaufa eta efaurfi स्वापयेत्‌ | सभ्यावसथ्य- योरेग्रान्यां निधानं | तया मायखायनः(२)-.सभ्यावसथ्यावाडिताग्े- हनकमं प्रयज्येल” |

दृति, चितादेशात्‌ प्रागुदिच्यां दिशि पच्च प्रक्रमानातिक्रम्योत्‌- eaaifa | ततो नयं शौस्यान्तरा काष्टानुचितिं कत्वा प्रेतस्य केश्र- प्स्रनखच्छेदन रीवा द्च्छयातोद्धरणेन तं विपूरिषं इत्वा vara सर्पिषान्तरभ्यज्छ पुरौष्केशादौनि निखनेत्‌ ततस्तं॒पदेवन्नव- वस्त्ादिभिरलङ्कत्य प्राग्‌ मवं रष्णाजिनमास्तौय्यािन्‌ प्रेतं प्राक्‌ शिरससुत्तानं निवेशयेत्‌ ततः an दिरण्यश्रकलानि(? ge- नामिकादयदृग्‌दयकणदयेषु fafay wae? stata यज्न- qrarfa उत्तानानि कता सादयेत्‌ |

—_———_—

(१) अाङ्किस्खते | , (२) श्राद्ायनः | (३) प्रलाकाः |

कालसारः। २४७

तद्यया,-

तपरौ ax चिणकरे, करस्यपुष्करामनुदाज्दण्डां रिक्रा- quad वामकरे | उरसि प्रत्यकूद्ण्डां yat वामनासिकायाः(८९) ्त्यकूदण्डं वेककतं सवं कणंयोः प्रत्यकूदण्डे प्राशिच.रहरणे | शिरसि प्रणणेतां ea’) faut कृत्वा पायोः उदरे प्रषद्‌ाज्य- प्रणो प्रत्यग्दण्डामिलापायीं। शिश्न शम्यां दषणयोररण्णै | वच्ना- भ्रिदोचहरणोखादिरखवाणां ABBYU स्थापनं |

अवशिष्टानां दारवपाच्राणं «sala सादन सन््रयाश्मय- पात्राणां कपालानां yo we निचेपः श्रयोमयानां ब्राह्मणय दानं, स्मानेपाच्ाणामपि स्मारत्ताग्चिमत दवासादनं, ere तेनाग्निनेव। ततो दकिणएतोऽग्रिभिरादौपनं चितायाः | तत अज्यस्यालो Hur: खव aq waar Ua श्राज्यस्याच्यामाज्यं निष्ूप्य mesa च्रधिथित्य खादिर खवाचि दवणणै संटज्याज्यमसु दास्य grag सवेण सददध दौ लाऽ्निदो चद्वष्टृपरि समिधं ठा वञ्चोपग्रह आदवनौये समिधे eur दचिणामुखः maaan सव्यं जान्वाच्य प्रेतमुखसंलग्रं वह्धावाङ्ति जुह्यात्‌ |

तद्यया,-

्रस्मात्वमित्यस्य way i च्रादित्य wei wag निर्क्रि- sez: wfazaat श्र्मात्मधिजातोऽमि दति मन्त्रेण via दति इदमग्रये दति त्यागः।

(१) उप्भ्टतं | (२) वामनासिकायां |

(३) प्राशित | (४) पं (५) च्व

३४८ गदाधरपद्धतौ

अरस्मातचम्‌ श्रस्मालमन्ल्ेणामाविति प्रयमान्ना Gear अपि wala ङ्गा न॒हेनेव eta) शवं agt छत्वा प्रागग्रं agqefaueed प्रत्यग्द्ण्डाममि- हो दवण मुखे प्रत्यग्द्ण्डं खादिरस्रवं दच्चिएनासायां | एवमेषोऽद्रिमान्‌ यज्ञपाघा(यधसमचन्वितः | लो कानन्दानतिक्रम्य पर ag a विन्दति एवं aufeatfanaguat vat यदि faaa, तदा चौर- tfea: aat विधिः कायः) श्रादितान्न्योदंम्पत्योरेकस्थादौ मरणे श्रपर स्यार ्घन्तरं निर्माय wagte: कायैः | किन्तु पल्या श्रादौ ATT पुमान्‌ पल्यन्तरं उद्राद्या ग्नि यदि कुर्यात्तस्य auras: gaq स्यात्‌(र) | श्रय दाहकाले अन्युपग्रमे दादविधिः। यदि वद्धिविनण्येत दद्यमानेऽग्रिहोषिणि | द्‌ग्धाविश्रिष्टारणिकवद्धिना तं पुनद हेत्‌ सकलारणिनागे तु ware जले चिपेत्‌ ॥२) अय विदेगग्डतसाचि ग्रवस्या(*नयनाशरक्तौ तचैव ae) कत्वा रस्थि sala पुनः मपाच्रकतयाऽस्यिद्‌ादः Aa: | तया पराण्ररःः श्रवस्यानयनाग्रक्तौ तदस्यौनि समादरेत्‌ |

(१९) शा I (२, satfeatfaets: | (द) इत्यमपपश्रमविधिः | (४) अथ विदे श्म्टतसाभ्निकदाष्दः। (४५) are |

क्तसार्‌ः ! Bed

श्मप्रानग्धमो SATA free च्येडधिताम्‌ श्रास्तोय्ये छष्णमजिनं तदग्योनि पुमारुतिम्‌ | निर्मायाज्येन चाभ्यज्य सादयेद्‌ AIT पुनः॥ यज्ञपाचाणि विन्यस्य देदाडतिपूवेकम्‌ | मेषं wa माग्निकदाडे उक्रम्‌ | दत्यस्यिदादः साग्रिकष्टेवेति Wana | श्रयोत्सनार्रिदादः। उच्छन्नािदिविधः। मारणिपाको- ऽरण्धादिरदितचेति, तच मपाचपच्चो मरणानन्तरं प्रतः प्राचौना- वोतो दचिणमुखो पञ्चग्रसस्कारान्‌ पूवेवत्छला तच परवारणः स्थापयित्वा अरिं मन्थौयात्‌ | तच मन्तः “asada जहतो AUS सकामाः मकन्ययन्ते यजमान मा w संजायन्तु ते दविषे माद्नाय स्वगंलोकं प्रेतमिमं नयन्त्‌ दति, मथित्वा aay mead संस्याप्य श्रादवनोयद्‌ डिणान्नयोः पञ्चग्ड संस्कार पूवकं aut विहरणम्‌ ! तत अच्यम्यालौ, कुशाः, खवः, खक्‌, एका मभित्‌, च्राज्यं चत्यासाद्य स्यान्यां तदभावे शरा- वादिपात्रे राज्यं निष्टप्य गादेपव्ये wf gi: BARR संमाजेनं श्राज्यव्योत्यवनावेचणं छत्वा खचि faut एटताङ्तिं war श्रादवनोये प्रजापतिं घ्यावा खादेति AW ज्यात्‌ ततो गाहेपत्या वनौ यद्‌ दिएणाभ्चिषु श्ष्क करो षचृणंद्लषणा दिगर्भास्िखः उखा श्रधिभित्य यावत्ताखद्मिरुत्पद्येत तावत्‌ सन्तापयेत्‌ ततः

३५० गद्‌1धरपद्धतौ

म॑स्कार पूवकं स्मार््तायिं afuanfy सपाद्य स्थापयिता तेनाभ्चिना Kamau We मपादयेत्‌ | ततो sacs संस्थाप्य गन्धादिना aay aaa परिधाप्य wae निवेश्य तान्‌ मन्तापजानोन्‌, पवंयज्ञपाचाणि कुग्रतिलादिमश्रखणेशरकलानि() स्यापयित्वा दाददेशं नयेत्‌ wants: सारतां wwe wetar पुरतो गच्छेत्‌ भमनात्‌ प्राक्‌ | श्रहर र्नो यमानोऽपि WAY पुरुषं प्रम्‌ बेवखतो दष्यति सुराप दव दुमेतिः॥ “यमाय त्वाङ्गिरस्पते पिष्टमते are” इत्यादि gaaq परिवा,- सवं अनुगच्छेयुः | AATEC: पथाद्धंपयान्नदानं प्ररतवत्‌ | भ्संस्कार पूवेकं fafa छता प्राकूशिरसं efaufegan saad स्थापयिता मुखन।सादयचवद्धधकणेदयेषु खणेशकलानि दत्वा श्ररण्धा दिस्थापनपूवेकं पाचदानं प्ररूतवत्‌ कुर्यात्‌ efauatsfy- भिरादौपनं चितायां श्रग्रोनां तत्र स्थापनम्‌ चाज्यं पूर्णा तिवत्‌ संत्य चतुग्ेहौतं कछला ageat दल्िणासुखो वाग्धतः सव्यं जान्वाच्य श्रस्मालमित्यस्य मन्त्रस्य, sifeq ऋषिः, गायन्या निर्क्िष्कन्दः, afgeaar, चोमे विनियोगः | ्रस्मालमधिजातोऽसि यद्य जायतां पुनः | aa स्वर्गाय लोकाय aie! इति amu efauty awed दरदमग्रये इति त्यागः | अन्यत्‌ wa प्रकृतवत्‌ |

(१) श्लाकाः।

= I tl मके णे

कालसारः | २५१

श्ररण्छादिरदडितव्वपे तु नवौनारणिद्धयं खवसूचौ संपाद्य तेनाऽभ्चिना yaad सवं करर्यात्‌ इति विशेषः | दत्युत्सनाभ्िदादः | श्रय पुष्करेषु दाहः, भद्रातिथौ want चिपादच्चं यदा afa: | तद्‌ा चितौ श्रवारोपे ad कुर्यादिमं विधिम्‌ an: प्रतिकृतिं कतरा तौ क्षत्रियविप्रयोः | वर्यस्य fas: शद्रस्य गो मयेनारतिं तया i संयोज्य मधुद्भ्याज्येः शवेन सह द्‌ दयेत्‌ | चिपुष्करे दे wan दडेदेकादिपुष्करे दति पुष्करदाहः। एतत्‌ शान्तिरेका शा हे वच्यते | ay क्रियाकन्त्‌ विचारः | मनु मरोचो,- aa पितरि qau क्रिया कार्यां विधानतः | बहवः Waal gat: पितरेक तरवा सिनः स्वेषान्त्‌ मतिं छता waa तु यत्छतम्‌ | द्रेण चाविभक्तेन स्वैरेव छतं भवेत्‌ लघुदारौतः,- सपिण्डोकरणं यावत्‌ प्रेतश्राद्धानि vies | ` प्रथक्‌ नैव gan ga ware रपि क्विन्‌ मरो चिः,- नवश्राद्धं खपिण्डच्च श्राद्धान्यपि sien | एकेनैव ane संविभक्तधनेष्वपि

२५२ गदाधरपद्धतौ

एतेन सवैः णां विभक्तानामविभक्तानाञ्च मध्ये ्येष्टेनेव कार्यम्‌ | देवात्तद भावेऽन्यपुचस्याधिकारः | तचापि विग्रेषः,-- aremfaay gay विद्यमानेषु ait: कनिष्ठोऽपि ङर्यात्‌ | च्रोरसपु चिका पुचेरजग्‌ दृजकानो) नपौ नभैवद्‌ क्रो तङतकखयंद त्त- सदोढ़ापविद्धान्‌ दादश (वानुक्कता ““पिण्डदरसयेषां पूर्वाभावे परः परः दति यानज्ञवल्क्योक्तः। देवात्‌ Gaara, wgaeaa र्छत्योः,- अरसलगो चोऽप्यसवद्धः vata प्रददाति यः) उदकं पिण्डद्‌ानञ्च ame समापयेत्‌ ब्राह्मे Banta: सगोचो वास्तौ दद्याद्यदि वा Gara प्रयमेऽदनि at दद्यात्‌ दश्राहं समापयेत्‌ विष्णपुराणेऽधिकारिणः,- ` Ga: ata: प्रपौचो वा agar भादसन्ततिः। सपिण्डसन्ततिरवापि क्रिया नुप जायते तेषामभावे सवेषां समानोद्‌ कसन्ततिः | मादपचछस्य पिण्डन dagt योजनेन कुलदयेऽपि daa wife: कार्यां क्रिया नृप संघातान्तगेतेर्वापि कार्यां प्रेतस्य सल्किया उत्सनबन्धृरिच्छन्दा कारयदवनो पतिः पूर्वाः क्रिया मध्यमाश्च तथा चेवोत्तरक्रियाः चिप्रकाराः क्रिया द्येतास्तेषां भेदान्‌ yews मे

कालसारः | २५

चअ दाहान्दा्यायुधादिस्यर्णायन्ताश्च याः क्रियाः

ताः पूर्वा मध्यमा मासि मास्धेकोदटिष्टसंज्निताः।

प्रेते पिहत्वमापन्ने सपिण्डोकरणादनु

क्रियन्ते याः क्रियाः faa प्रोच्यन्ते ताः नृपोत्तराः।

पिहमादशपिण्डेम्तु समानसलिलैस्तथा |

त्सङ्ान्तगेतेर्वापि राक्ना वा धनदहारिणा।

पर्वा क्रियास्त AMET: पुचा्येरेव दोत्तराः

दौ दितैर्वा avis कार्य्यासतत्तनये स्तथा |

QA कन्पतरूकाराः, मादठपक्तख पिण्डेन रवद्धो माहसपिण्डः |

माह पच्तख जेन संबद्धो माटसमानोदकः। GRR syst यम्य सख तथा, तस्य रिक्याद्नात्‌ तख क्रिया, अन्ती मरणं aa भवाः | मासि मामौति एकादश्ादादिसपिण्डो कर णणन्तप्ूव क्रि योपलद्णम्‌ | तच पिदमाहसपिण्डाः पूवेक्रियामेव कुयरनेत्तराः। मध्यम- क्रियायां दयेतेषामनियमः | उन्तरक्रियायान्त्‌ पुत्रा दा भराद- सन्तितिपय्य॑न्ताः। दो दिरैस्तत्तनयेरिति पुचिकापुचविषयम्‌ | तत श्रपुचविमादविविधक्रियायां खमाटकमणि दव सपनौपुच- स्याधिकारः |

व्तीन।मेकपनौनां येका पुचिएो भवेत्‌ |

सर्वास्तिनेव पुरेण प्राह पुचवतौ मनुः

द्रति aga: सवभिवे संघातान्तगेतानां राजनियुक्तानां येषां

केषाञ्चिदष्यधिकारः। | गुरूः करोति faarut पिष्डनिवेपणं षदा |

45

२५४ गदाधर्पद्धतो

छता तु waa my खजातिविदितं यत्‌ भ्नातूर्भाता सयं wa agral चन्न विद्यते, तस्य wid: सुतशुक्रे यस्य नास्ति सदहोद्रः॥ दत्तानामयदत्तानां कन्यानां geasfa ar 1 चतु ऽहनि aut कुर्वीरन्‌ सुसमाहिताः मातामददानां दौदिच्राः कु्ेन्यहनि चापरे | तेऽपि तेषां प्रकुवैन्ति fadtasefa स्वेदा जामातुः BUBBA तेऽपि संयताः | मिच्राणणं तद पत्यानां ओतरियाणणं गुरोस्तया भागिनेयसुतानाञ्च स्वेषां लपरेऽहनि | | शराद्धं Aaa प्रयमं साला शला जलक्रियाम्‌ राजि za सपिण्डे तु निरपत्ये पुरोहितः | मन्तं वा तद्‌ गौ चन्त दिला) पश्चात्‌ करोति सः॥ ब्राह्भणएस्न्यवर्णानां करोति कदाचन | कामाल्लोभाद्वयान््ो हात्छवा तज्जनातितां ब्रजेत्‌ ti gat: Safa विप्राय कच विट्‌श्टद्रयोनयः। agen: gaat करोति कदाचन सखमाता Hea तषां तेऽपि aay कूर्दते | aa, भाता वा भ्नादपुचश्च भागिनेयोऽथ विट्‌पतिः। दौदितचरश्ैव शिष्यश्च usa पिण्डदाः स्मृताः ऋष्यप्रटङ्गः,- gat भ्राता पिता वापि मातुलो गुरुरेव च।

~~~

(१) पिता। (२) चो | |

कालसारः | ३५५

एते पिण्डप्रदा Sar: सगो चासव वान्धवाः | एतद्‌त्यन्तासम्भवविषयम्‌ | सम्भवे तु ङन्दोगपरि श्ट तया,- कूर्यादनुपनो तोऽपि आद्धमेकोऽपि यः सुतः पिदयज्ञाङतिं पाणौ ज॒ङ्यान्मन्तपूरवैकम्‌ aq पिता दद्यान्नानुजस्य quay: | जायायाः पतिः कुर्यादपुचाया श्रपि कचित्‌ माकण्डेये,- सर्वाभावे far इयः खभटेणममन्तकम्‌ | तद्भावे नृपतिः कारयेत्‌ खङ्भुटुम्बवत्‌ सजातौयेनेरेः सम्यक्‌ दादाद्याः सकलाः क्रियाः | तया स्त्रौएामप्येवमेवेतदिति सर्वाभावे faa दति पनी व्यतिरिक्तावसद्धादिस््ौ विषयम्‌ भरातुर्भ्रातिति वाक्ये श्र्वागेव पल्यधिकारद श्नात्‌ | स््ोणमप्येवमिति asia सम्बन्धेन पिदव्या- दौनां पुरुषाणां एकादशादादि, तादृशेन सम्बन्धेन स्तीणमपि काय्यमिति। stacy सगोचादिसद्धावे पती नैव करोति, “सर्वाभावे इति माकंण्डयोक्तेः | स्तौणमपि यच्रमन्तरवत्‌- कुर्यादिति विधिस्तत्र मन्तपाठे दोषाभाव दति श्रौद्दैदिक मन्लवत्‌ पाठोऽप्यविरद्ध इति प्रवं tela) परन्त्‌ केषाचि- RTT ze faafeaaiut श्राद्धादिकर्त॑लसमाचारो दृश्यते, सोऽपि ami | पितुः पुतेण ana: पिण्डदानोद कक्रियाः | तदभावे तु vat स्यात्तदभावे तु खोदरः॥

२५६ गदाधरुपड्धनो

दूति ब्राद्योक्तः। खष्यप्रङ्गोक्तौ वान्धवा दति बह्कवचनोक्ते- स्तिविघा श्रयधिकारणः। ते छन्दोगपरि शिष्टे आत्ममातुः BB Gar safe: Wa सुताः | च्रात्मात्‌लपुचा्च fava श्रात्मबान्धवाः faa: पितुः aq: gat पिठ्माटसखसुः सुताः। पिदटमातलपुचाश्च विज्ञेया पिदढवान्धवाः मातूमातुः BA Gar मातुः faa: wy: सुताः मातुर्मातलपुचाख विन्नेया मादवान्धवाः ग्नः पुच्छः,- प्रथमेऽहनि aay तदेव स्यात्‌ दशाहिकम्‌ | पुचान्तराभावेऽनुपनौतस्यापि पुचस्य तौ याब्दरूतचूडले णदान्तकमेसु मन्लपाटपूवेकमधिकारः | तथा मनुः द्यसिन्‌ युज्यते कमं यावन्न ज्ञौ निवन्धनात्‌ | नाभिव्यादारयंडद्य सखंघानिनयनादृते ae वेदः खधा निनयनं Vana | सुमन्तः, अननुपनोतोऽपि इर्त Ray Vea hea यदयम छतचृडः स्याद्यदि «arg चिवत्सरः तया,- क्र्य्यादनुपनो तोऽपि आरद्धमेकोऽपि यः सुतः। पिटयज्ञाङ्तिं पाणौ जड्यान्‌ मन्त्रपूर्वकम्‌ एवं दतौयाब्दढतवूडस्य मन्लवदौदधंदेदिककरणे fag रत-' पञ्चमाब्दचूडस्य केमु तिकन्यायेन सिद्धोऽधिकारः | | यन्तुः Baws aaa उदकं पिण्डमेव च।

कालसारः २५७

खधाकार WANA ATSC कारयेत्‌ दरति व्याघ्रवाक्यम्‌ तप्मथमान्दङतचूड्विषयमिति काला- दशंकाराः। श्रय द्‌गशादाभ्वन्तरकाय्येविचारः) वशिष्ठः ग्टहाण, प्रत्रजिवापप्रस्तरे wea श्रामोरन्‌ | रौ तोत्यन्नेन वा वत्तैरन्‌। शअरपप्रस्तरः शरश्रौचिनां शयनासनायै- GUAT: प्रस्तरः | aq: fafanaafafe: wetfefaguac: | छदस्यतिः,- अरधःग्व्यासना दौना मलिना भोगवनिताः। श्रत्तारलवणन्नाः स्यशेग्धक्रौडा सनास्तथा quash तुरौये wee सप्तमेऽपि च। नवमे वाससां त्यागो नखलोन्नां तथाऽन्तिमे गौोतमः,- “ब्रद्धचारिणः wa” | विष्एपुराणे- शय्वाखनोपभोगञ्च सपिण्डानामपोय्यते | तस्वाख्यिमद्चयादृ्धं सयोगो तु योषिताम्‌ मा कंण्डेय पुराण. तैलाभ्यङ्गो बान्धदानामङ्गसंवादनन्त्‌ यत्‌ तेन चाप्यायते जन्तुयचास्मन्ति खवान्धवाः | पुनगौतमः- “aid भक्येयराप्रदानात्‌ ' अन्यत्र मरण माजेयेयने मामं भक्तयय॒रा प्रदानात्‌ ्रा्रये,- BRR बन्धवः प्रेतमपमब्येन ai चितिम्‌ |

२५८ गदाधरपद्धतो

परिक्रम्य ततः सानं Ha: सवे सवाससः परेताय ततो दय॒स्तौ स्तीन्‌ चेवोदका्लोन्‌ | दा यश्वनि पदं दत्वा प्रविगोयुस्ततो ग्टहम्‌ अरतान्निचिपेदक्छो निम्बपच face ar द्रत्युक्ता पुचस्याधिककाय्यमुक्तम्‌ | sua wala wat क्रीतलबामनो भवेत्‌ | याज्ञवल्क्येना पि, क्रीतलब्धासनादुक्ता, पिदयन्नरुता देयं प्रेतायान्नं दिनचयम्‌ | दति पुचएेति शषः। BRR दाहं Hal तया पुत्राणां afgafmaraaut वा सवं नियमाः। सानोदकदानमांसानशरन- परान्नानग्ननान्येव सपिण्डानामिति समाचारः | विष्णः सवेपापविण्एद्यायं मघ्वश्रमविना शनम्‌ | तस्माजनिधेयमा काशे SWIG पयस्तथा शमदिनपय्येन्तम्‌ | अरन्यच,- प्रथमेऽहनि यदव्य तदेव स्याद्‌ गाडिकम्‌ | Ag WIAA यनेन भोजयेच खगोचजान्‌ | च्रशरक्तौ मरो विः, washes त्रौये तु पञ्चमे नवमेऽपि वा। ज्ञातिभिः सद भोक्तव्यमेतत्‌ प्रेतेषु दुलभम्‌ ब्राह्मये, समाप्य द्‌ शमं पिण्डं यथा शास््सुदाइतम्‌ | ग्रामाद्वहिस्ततो गत्वा प्रेतस्ुष्टे वाससो अरन्यनामाभितानाच्च त्यक्ता सानं करोति च। केशरश्श्रुनखानान्तु यत्त्याज्यं तन्नदात्यपि

कालसार्‌ः। २३५९

दरत्यादि विधिः प्रतक्रियाकालसष्ट Wage यत्याज्यमित्य- नेन वच्तःकच्चशिखोपस्यरो्नां न॒ वपनम्‌ नखानामय्रभागकन्तेनं एव प्रथमदिने क्रियाया श्रनारम्भे चतर्थादि दिनेषु ्रखिसश्चय- नस्योक्तवात्तद्‌न्यतमदिने क्रियारम्भः प्रथमेऽच्छि तुरोये वा सप्तमे नवमे तया | ्रस्यिसश्च यनं काय्यं दिजैस्तद्ो चजेग्येहे संवत्सरे वा ans wang प्रदौ यते | दृति dana: | श्रत एव वषेमध्ये यदा कदापि प्राप्ते दग्र मादे सुतरां कियाकरणएसमाचारः। सन्यासिनां दादाद्यभावः। त्राद्ये,-- चयाणामाश्रमाणञ्च कुर्व्यादादादिकां क्रियाम्‌ | यतेः fafaa ara चान्येषां करोति सः॥ महदाभारते,- दग्धव्यो qual विदुरोऽयं कद्‌ाचन। ज्ञानदग्धग्रोरस्य gaziet विद्यते किञ्चिदिति दाद्ादिषपिण्डान्तविषयमिति कल्यतर्‌काराः | प्रचेताः, एको दिष्टं जलं पिण्डमा गो चं प्रेतसत्कियाम्‌ | gata पावेएादन्यत्‌ yaaa भिचवे कर्थ्यादि काद श्ादेऽस्य wad afawaa | एकोदिष्ट यतेर्नास्ति चिद ण्डग्रहणा दि | सपिष्डोकरणभावात्पावेणं तस्य सवदा | | wneiwantfant आद्धम्‌ : ब्राह्मणदिदते ताते पतिते मङ्गवजिति |

US गद्ाधरपड्धलौ

ययत्वरामाच्च ततो देय येभ्य एव ददात्यसौ

दत्युक्तः,-- एवसुक्तासु पूवेमध्यमोत्तरषूपासु तिद्षु क्रियासु एकेन क्रियमाणाखपि ये केदित्‌ पुत्रनियमा उक्तास्ते सवं सर्वेषां कार्यां एव GARNI फलसामानाधिकरण्यनियमात्‌ | एकेनापि aaa क्रियया सवेषां VaR प्रयक्‌ WMATA: अन्यया तेषां प्रत्यवायपरिदाराभावात्‌ | सवषां च्रधिकारितेन सम्बन्धात्‌ | यत्त॒ “waar मतं कत्वा” cafe: ज्येष्ठस्य add नियमः अतएव तस्य यावदुक्तमासि( त्रह्मचय्यमतुल्यलादिति न्याये फलिम स्कारावचनेन व्यदस्यापिताः८९) ते स्वेषामपि फलिवादा- वन्तेन्त TARA | तया फलिसस्कारजनकानां नियमानामलतौ अन्येषां किद्धित्संसकारदानो फलतारतम्यभेव स्यादिति। एवं यजमानस्याग्रक्रौ यद्यनेन केनविच्छराद्भादिकं क्रियत, तदा यज- मानस्येव प्रूवैदिनोक्तदिनविदितसवेनियमकरणं, तु कन्तुः Bae an: फलिलाभावात्‌ | ननु यजमानसूछगरक्तौ अन्याङ्गव- दन्योऽपि नियमान्‌ guifefa चेत्‌ फलिसंस्काराणमन्य- ङतानां यजमानयो(दग्यतापादकल्रात्‌ | तया चोकं षष्ठाध्याये, फल्लिसंस्कारास्वन्येन क्रियमाण“ यजमानस्य योग्यतां जनयन्ति दूति ननु सचे कयं खलिजां फलिषखकारा इति चेत्‌, उच्यते तच पफालिसस्कारा तेषां योग्यतासन्पादनाय, किन्ह साराणां कन्तसप्तद्‌ गशतासम्पाद नायेति fea |

(९) धावदुक्त खशः | (र) अव्यवस्थापिताः। (२) योग्यतानापाद कत्वात्‌ (४)

कालसारः | ९९९१

श्रथ गङ्गायामय्यिप्ररेपविचारः | विष्णः, “वतुं दिवसेऽख्यिसञ्चयनं डयुस्तषाञ्च गङ्गाम्भसि प्रचेपः।" यावद सिमनय्यस्य गङ्घाम्भसि fasta | तावदषेसदखखाि खगेलोकेऽधितिष्टति द्‌ शादाभ्यन्तरे यस्य गक्गातोयेऽख्ि मन्नति | गङ्गायां मरणे यादृक्‌ तादुकूफलमवा प्रुयात्‌ यमः,- गङ्गा तोयेष ware ane KURA: | तस्य पुनराटस्तित्रेद्मलो कात्कयञ्चन श्रादित्यपुराणे(९, तन्नयनाधिकारिणएः+ अरसयोनि मातापिदपूषेजानां नयन्ति गङ्गाम्भसि ये कदाचित्‌ | सद्भावकस्यापि दयाभिश्रता- स्तेषां a तौर्यानि फलप्रदानि कुलद्यं aay वजेयिला मातापिच्रोजेन्मन्दुम्याश्रयन्च श्रखोनि वान्यस्य नरो avy waa लभेते दुष्कृतं सह्वावकस्य शरद्धभावस्य safaaee दति यावत्‌ | aay चेत्यनेनापि प्रायिकल्वात्‌ सुद्देवोच्यत दति नारा- यणएभाय्ये | तया,- मातुः कुलं faege वजेयिलवा नराघमः |

(१९) आदिपुराणे | 46

३६२ गदाधरुपद्तो

श्रस्थोन्यन्यक्लुलो त्यस्य नौला चान्द्रायण च्छ तिः तत्‌म्यानात्‌ सकलैर्नोत्वा कदावि्ना्धवौ जले कचित्‌ faufa सत्‌पुचो दौददित्रो वा स्दोद्रः॥ तत्‌स्थानात्‌ अ्रथिसञ्चयनात्‌ | तप्प्रहेपविधिरादि पुराण, स्नाता ततः पञ्चगययेन सिक्ता दिर ण्यमध्वाज्यतिलेश्च योज्य (९) ततस्तु ग्टत्‌ पिण्डपुटे निधाय पश्यन्‌ दिग परतगणोपगू ढाम्‌ नमोऽस्तु धर्माय वदन्‌ प्रविश्व जलं समे प्रोत दति fata | उत्याय भाखन्तमवेच््य खये efaut विप्रमुख्याय दद्यात्‌ | एवं कते प्रतपुरे सितस्य at गतिः स्याश्च ABET श्रस्यायः,- Walt lal ततोऽस्थौनि पञ्चगव्येन सिक्ता काञ्चन- , मध्वाज्यतिलेः संयोज्य श्टत्पिण्डे निधाय दकिणासखो“नमोऽस्त धर्मयेति” वदन्‌ जलं प्रविश्य “समे प्रीतो भवतु इति जले चिपेत्‌ ततः उत्याय Gal दृष्टा छत्ताध्ययनसम्पन्नाय ब्राह्मणाय efaut किंञिद्द्यात्‌, दति | श्रय आद्धकालो निरूप्यते | तादौ श्राद्धस्हतिः | (९) योन्यं

कालसारः | २९३

यमः,- ये यजन्ति पिन्‌ देवान्‌ ब्राह्मणान्‌ स्ताश्ननान्‌ | सवग्व तान्तरात्म्मानं विष्णमेव यजन्ति ते दानेन विधानेन लभन्ते चतुरो वरान्‌ | धनमन्नं सुतानायुदेदते पितरो श्वि श्रायुः पुत्रान्‌ an: खगं कान्ति gfe वलं तथा | GUA सुखं धनं धान्य प्राभ्रुयात्‌ पिदप्रूननात्‌ श्रन्यच,- रतिग्क्रिवेरा कान्ता भोज्यं भोजनश्रक्रिता | arate: सविभवा रूपमारोग्धमेव आद पुष्यमिदं प्रोक्त फल त्रद्यसमागमः। हारोतःः- सवेकामसंयुक्तो Wea विन्दति एवं वेत्ति मतिमान्‌ तस्य आद्ध फलं भवेत्‌ उपदेष्टानुमन्ता लोके तुल्यफलौ खतो | HRT दोषं तु एवाद,- अ्रेयोऽधिगच्छन्ति यत्र arg विजितम्‌ » च्रपि qe: फलेर्वापि तथा द्युदकतपेणेः अविद्यमाने gala नेव श्राद्धं विवजंयेत्‌ | आआद्खरूप मनुः, किप्रखौकारपय्यन्तस्यागो द्रव्यस्य यः पिन्‌ | sfea मुख्य ag तत्तदाङ्गमितर waa श्रतणएवापस्तम्बः,- तयेतन्मनुः(९), श्राद्ध ग्रब्दं कमं प्रोवाच प्रजा- पतिः निःखेयषाथे, aa पितरो देवताः ब्राह्मणस््ादवनौयार्ं

(९) अथेतन्मनुः |

२६४ गदाधरपद्धतौ

मासि मासि कार्य्याऽपरपचः। स्याद पराः श्रेयानिति आद्ध मिति शब्दो वाचको यस्य तत्‌ तया ब्राह्मणस््ादवनौोया्थं दति त्यक्तय द्रवयप्रतिपत्तिस्यानलनेत्यरंः। तया faeafea द्रव्यत्यागो विप्रख्ोकारपयन्तः श्राद्धमिति wad) विष्टरब्राह्मणएकश्राद्धेऽपि पञ्चात्‌ ब्राह्मणएस्वो काराल्रचणएसमन्वयः |

रेविकश्राद्धेऽपि,-

वसुरुद्रादितिखुताः पितरः श्राद्धदेवताः | दति स्मृतेः, एते वे पितरो देवा देवाश्च पितरः पुनः।

दति मन््तलिङ्गाच, देवानां यपिहलोकसम्बन्धेन पिदलात्‌ यमायमारोनां पिदलाल्नचणएसङ्गतिः | आ्राद्धानुकल्पदिरण्यदाने तु यथोक्तरचणसत्वात्‌ सम्यगेव लक्षणसङ्गतिः |

एतेन आद्धम्य द्‌ानलं सिद्धमिति गङ्गा तौरेऽन्यपुण्स्थानेषु प्रतिय्रदस्य निषिद्धत्वाच्छराद्ध निमन्तणम्‌ तेषु खोकाय्येम्‌ ननु गयाश्राद्धादौ केवलपिण्डदाने खखत्वंसपरखला पन्तिफलकत्या - रूपस्य द्‌ानस्याभावात्‌ कयं दानतेति चेत्‌, उच्यते परसत्रा- पन्तिने दानपदार्थान्तगता, प्रतिग्रहस्य टठृत््यथेतवात्‌ staan विधे- यल्राभावात्‌ | चेवं प्रौतिदन्नादिसखौकार इव मन््रादिनियमो स्यादिति ar) भोजनादौ दिङ्मुखादिनियमशेवादृष्टाय- तात्‌ किंच, यदि परखत्रापत्तेदनपद्‌ाथीन्तगंतत्वं «arate विवादप्रकरणे “पिता प्रत्तामाद्‌्य* दति पारस्कर प्रत्तामित्यनेन प्रतिग्रहसिद्धेरादायेति ay स्यात्‌ किञ्च,

(१) व्यक्तरव्य |

कालसारः | २९५

मनसा पातचमुदिश्य ततो wat जलं feta) विद्यते सागरस्यान्तस्तस्यान्तो fe विद्यते इव्युक्तत्यागमाचस्य elas स्यात्‌, दति प्राञ्चः | वस्तुतः प्रति- ग्रदस्वाङ्गलादङ्गनां प्रधानदेशकालान्वयिलात्‌ दानकाले प्रतिग्रहे समग्रफलं प्र तिग्रदाकरणे तु seas | वचनान्त परोचद्‌पनस्यले काम्यकमेव्यङ्गवे ग्वे फलमिति निष्कः मेयिलास्तु यागदान- हो मविलक्णं उत्सर्गाभिधमपि त्यागमाङ्नः | पुष्करि्छत्सर्गादौ ्न्रह्मम्तम्बपय्यन्तानां सखौकाराभावेन दानलाभावात्‌ त्रयमेव न्यायः परोचदानखल दति तस्िद्धं age दानवम्‌। तया. श्राद्धं नामादनौयस्य द्रव्यस्य प्रतोदेन wear त्याग इति वद्‌ द्धिविज्ञानेश्वरेरपि दानवसुक्रम्‌ तया, पिदभ्यो ददातोति प्रत्यचश्रुतावपि दानलम्‌। नन्व पिणं प्रतिगरहोदलत्वाभावात्‌ ब्राह्मणस्य प्रतिग्रहदत्ऽपि दानविधौ उद्‌ श्वत्वाभावादुदेश्यते मति प्रतौ ग्रहौतुरोव सम्मदानलात्‌ सन््रदान- रहिते दद्‌त्यथः, कथं सङ्गच्छते इति चेत्‌ उच्यते उदटेश्यलं तस्येद मिति ज्ञानविषयलं तच ब्राह्मणस्यास्ति | अ्रपमव्य ततः war पिष्णामप्रद्‌ चिणम्‌ | faquig कुशान्‌ शृत्वा उश्रन्त स्वित्यचा पिन्‌ Rag तदनुज्ञातो जपेदायन्तुनस्ततः | दति याज्ञवरक्योक्तादावावाहनेन प्रतिमाया(\) देवतावत्‌ न्राह्मणएस्यापि पिद लाद्‌द्‌ खलो पपत्तः(\) ; अन्यया प्रोचेत्या दित्राद्यण-

(१९) प्रतिमायां | (२) उद्‌ श्यत्लोपपत्तिः।

ace गदाधरपड्धतौ

नुज्ञादिकममद्रतं स्यात्‌ | “पिहभ्यो रोचतां, यथासुखं वाग्‌यता- जृषध्व "भित्याद्यणयसङ्गतं स्यात्‌ wavs ^ “'श्रमुकसगो तैत तुभ्यमन्नं aut नमः" दति ब्रह्मपुराणोक्तौ पिदगोचोचारणमेव, a निमन्तितत्राह्यणएस्य | ननु “fogs यजते” दृति ae: श्रा्भख्य यागत्वमिति चेत्‌, न। तच चजतेद्‌नाथेत्पच्चाश्रयणणत्‌ | दानायेत्े तु यपिद्टनिति दितौयाविभक्रिरनुपपन्नेति चेन्न fagafem यजते दति व्याख्यानस्याङ्गो करणत्‌ | “त्यागो द्रवस्य यः faga” stufa मनूक्किरेवा् प्रमाणं एतेन यजत दूति वचनमव्रलम्ब्य AEA त्यागतवं यागदानोभयरूपत्वे चेति यु क्तिजालं वितत्य वदन्तो निरस्ता ua) तच ब्राह्मणभोजनं प्रधानं, उत पिण्डदानं रहो खित्‌ उभयम्‌ |

यदा पिद्रनुदिश्य zuma एव, इति aes) “fanal- कार पय्येन्तः दत्यक्र्ाह्मणभोजनमेव प्रधान, पिण्डदानमिति केचित्‌। अन्ये तु पङ्किपावननिमन्तणापाङ्गभोजनदोषामद्रययक-

आद्धद गेना द्भिकप्रति यरहानध्याया दि दगेनात्‌ ब्राह्मणभोजनं प्रधान- ¦

मिति कर्काचार्ययास्तु,- गयाश्राद्भभोश्रपिण्डदाने शान्तनुदस्तो- त्थानद गेनकेवलपिण्डद्‌ान विधिभ्यः पिण्डदानं प्रधानमिति | नारायणभट्रप्रम्तयस्तु “Guy प्रधान दति | तथा च, wt Eda देवस्याः पदस्या faqs: | नरकस्थाश्च एष्यन्ति पिण्डदं त्तेखिभिग्धैवि i

(a) अमुकामुकगो >तत्तभ्यमन् ° | (र) वमेत | (3) थनेतेति |

CO ररक

कालसार्‌ः | ago

दति ब्राद्यमणभोजनपिण्डदानयोः समकच्तया फलश्रवणं | नन्वेवं सति शअग्नौकरणस्यापि प्राधान्यमिति चेत्‌, aq नाम, नेतावताऽनयोः प्राघान्यदानिरिति | ननु मघादौ पिण्डाभावात्‌ कथं श्राद्धफलसिद्धिरिति चेत्‌, उच्यते, सोमयाजिनः सान्नाय- विरहेऽपि प्रधानसिद्धिवत्‌ फलसिद्धिः aang यपिद्लटिश्व ZUG एव प्रधान, गया्राद्धादिविहितकेवलपिण्डद्‌ानेऽ- afte “विप्रस कार पय्येन्तः” दति मनृक्निस्तु दानरूपे श्राद्ध प्रति्रदस्याङ्गत्वेनायप्राप्रत्वादेव विप्रखो कारां परोऽनुवाद्‌ एव | अन्यया “त्यागोद्रखस्य यः पिन्‌" seufa व्यथं स्वात्‌ aa श्रसुक(४स- गोकैतदित्यादित्राद्मोक्तिः प्रमाणम्‌ |

ननु पिण्डद्‌ानसदितश्राद्ध छत्रस्य पाकस्य च्रादावेव पिच्चट गेन quad कथं पिण्डदानमिति चेत्‌, उच्यते वपाप्रचारदद्‌- यादयङ्गप्रचार विप्रकषेवत्तावत्कालव्यापो प्रधानपदाथेः पिण्डदानं | उत्पत्ति विधावेकवश्रवणात्‌ सोमवत्‌ वा एक एवाभ्यस्यते | यदटा- प्टयुरोडाग्रवत्‌ देवतासमारकतवेन तत्सन्निपातिमस्कारविगशेषोऽङ्ग पिण्डदानम्‌ ब्राह्यणएभोजन काल एव कत्छपाकस्य पिददेगरन त्यक्त- त्वेऽपि पिण्डदानकाले पुनः खौकरणं खिष्ठरुदद विरद्ध मिति स्वै ARIA |

प्रय श्राद्धकालाः | याज्ञवसरक्यः,- श्रमावस्याष्टकाटद्धिः रष्णपक्ाऽयनदयम्‌ | द्यं त्राद्मणएमम्पत्तिविषुवत्‌ सुय्येसक्रमः

_——— ey

(९) अमुकामुकगो वेत रभ्यमन्न ° |

२६९ गदाघधरपद्धतौ

व्यतिपातो गजच्छाया GEN wear: | aig ufaafega argarar प्रकौसतिताः | aumasaa: सक्रान्तिसाम्यं gata इति waar | योगविशेष दत्यथेः। श्रस्य पारिभाषिक wana awwata- प्रकरणे लेख्यम्‌ | HABIBI तु महालयश्राद्धप्रकरणे लेख्यम्‌ | राद्धं प्रतिरुचिरित्यस्वायः राद्धं काय्येमिति यदा रुचिर्जायते तदेव श्राद्धकाल TAU: | श्रय आद्‌ शब्दायेः | मरौ विः,- प्रतं पिद्टेश्च निदटिश्य त्याज्यं यम्मियमात्मनः | aga aad यद्यत्तत्‌आआद्धं परिकौ्तितम्‌ | टदस्यतिरपि,- daa भोजनारंञ्च पयोद धिरतावितम्‌ | श्रद्धया cad यस्माच्छराद्भ तेन निगद्यते ti तच श्राद्धं नित्यनेमित्तिककाम्यभेदेन जिविधम्‌ aq प्रति- दिनश्राद्धामावस्याष्टकान्वष्टकायुगादिश्राद्धानि नित्यानि aq प्रमाणं वच्यते | नैमित्तिकानि काम्यान्यप्यादह गालवः dase सपिण्डान्त सक्रान्तिग्रहणेषु | सवत्सरोदङमभञ्च दठद्धिश्राद्ध निमित्ततः तथा,-- तिथ्यादिषु यच्छ्राद्धं मनादिषु युगादिषु | अलग्येषु योगेषु तत्काम्ये समुदादइतम्‌ य॒गादौनां नित्यकाम्यलाद्चापि ग्रहणम विरुद्धम्‌ | तिश्यादि- fafa तियिवारनच्चयोगकरणेव्ित्ययेः तानि awa i

कालसारः। २६६

विश्वामिचः, श्राद्धानि दादभेत्याद-- नित्यं नेमित्तिकं काम्यं दृद्धिश्राद्धं सपिण्डनम्‌ | पावेणं चेति विज्ञेयं गोष्ठ) प्ररद्ययमष्टमं कामाङ्ग नवमं प्रोक्त cian दमं स्मृतम्‌ | याचाखेकाद्ग्ं प्रोक्तं Gaye दादश पुनः

fazazaq ufaa,—

च्रहन्यहनि यच्छ्राद्धं तनित्यमिति कौलतितम्‌ | वेश्देवविरौनन्तद्‌ शक्तावुदकेन ठु एको दिष्टं तु agg तन्नेमित्तिकसुच्यते | तदप्यदेवं Hue ्रयग्प्ाना प्ेद्धिजान्‌ कामाय विदितं काम्यमभिप्रेतायंसिद्धय | पावेणेन विधानेन तदणेक्तं खगाधिप agi aq क्रियते arg दद्धि्राद्धं तदच्यते | aq प्रद्चिणं काय्यं yates agatfaat गन्धोदक तिलेयुक्त कुर्य्यात्पा चचतुष्टयम्‌ श्र्घाथं पिदपाचेषु प्रेतपाच् प्रसेचयेत्‌ ये समाना दति दाभ्यामेतद्‌ जेयं सपिण्डनम्‌ | नित्येन तुल्यं शेषं स्यादेको दिष्टं स्तिया श्रपि श्रमावास्यां यत्‌ क्रियते तत्पावेणसुद्‌ादइतम्‌ क्रियते पवेणि an तत्यावेणमिति fafa:

~= ~न ~ ~ = ee tee re

(२) शाः। 47

२७० गदाधर्पड्धतौ

गोष्ठयां यन्‌क्रियते arg गोष्ठोश्राद्धं तदुच्यते | बहनां विद्षां मम्पत्सुखायं foeena क्रियते एद्धये यत्त ब्राह्मणानाञ्च भोजनम्‌ | ugafafa ania वनतेय मनौ षिभिः निषेककाले Ba सोमन्तोन्नयने तया ज्ञेयं quan चेव arg कर्माङ्गमेव देवानुद्दिश्य तु श्राद्धं यत्तदेविकमुच्यते। हविष्येण fafusa सप्तस्चादिषु यत्पुनः गच्छन्‌ देग्रान्तरं यत्त श्राद्धं Haig सपिषा याचाथमिति ama wat संशयः ग्ररोरोपचये थाद्धमर्योपचय एव पुश्छयंमेतत्‌ विज्ञेयमौ पचायिकसुच्यते उपवो तिनेत्यन्तं ददि खाद योज्यम्‌ afe: पुचजन््रादि शेषं स्यादित्यन्तं सपिण्डने योज्यम्‌ श्रपिकारेणए fear: सपिण्डनं काय्य, एकोदिष्टपदेन वाषिकं faa: कायंमित्यथंः | तया यान्नवरक्यः,- एतत्‌ सपिण्डोकरणएमेको दिष्टं स्विधा ata अनावास्यामत्यन्तसयोगे दितोया तेनामावास्यां प्रायेति व्याख्या क्रियते वेत्यत्र पवेपदन सक्रान्वाद्यष्टकान्वष्टकादिपरि- गरदः | WAS कर्त॑समुदायः, मम्पत्‌सुखाथं आ्राद्धसामयौ सम्पद्‌ यत्‌ सुखं तदथं बहनां विदुषां केनापि निमित्तेन युगपत्तौयंश्राद्ध ara दै श्कालादिवग्रात्‌ एरयक्‌पाकाद्सम्भवे wae श्राद्धसामगमो-

कलसारः | (9

मम्यादनेन यत्‌ राद्धं तद्रोष्टौजाद्मित्ययेः | निषेककाल दत्यादि ओओ तस्मात्ैकर्मोपद्लणएम्‌ | एतच्च कर्माङ्ग्राद्ध दद्धिश्राद्धवत्कायम्‌ | "कर्माङ्गं दृद्धिक्तं” इति waren कमाद्गसन्ञाकरणं श्रकरणे कनेवेगृ खद्यो नायम्‌ | दविक तु नित्य्राद्धवत्‌ | तदनु- eat “नित्यश्राद्धवत्‌ कुर्यादिति” पारस्करोक्तः। गच्छन्नित्यादि- MIATA देशान्तरगमनसमये, वाचां समाप्यागमनानन्तर ग्टद्प्रवेगे चेत्ययः सर्पिषा सर्पिःप्राघान्येन याचाङ््राद्धमित्ययेः | Togs शरौरोपचयदेतौ रसायनादौ Hua इत्यथः ¦ एतत्‌- वचनक्रमेण श्राद्धकाला विचाय्येन्ते। तचाष्टधाविभक्रस्य दिवसस्य पञ्चमो भागो नित्यभ्राद्धकालः | तया द्वः, पञ्चमे तथाभागे संविभागो यथाहंतः | देवपिटमनुव्याणं कौोटानां चोपदिश्यते संविभागं ततः हृत्वा Wea: षभुक्‌ भवेत्‌ | यथाहतो ययायोग्यम्‌, र्विभागो विभज्यान्नस्य प्रतिपादनम्‌ यद्यपि fag ““न्रधिलेः पाणिनेवाघैः दृत्यादि विधिरस्ति, तथापि अ्णुदधवयेत्या- युक्राशरक्रपचमेताभित्य श्रन्नादिकं स्थापयिता quefeaiaa वा उत्सगमा चरतु नान्यत्‌ किञ्चित्‌ तया छन्दोगपरिशिष्टे,- श्रपयेकमाप्रयेत्‌ विप्रं पिदयज्नायेभिद्धवे | aaa नास्ति चेदन्यो भोक्ता भोज्यमयापि वा

R92 गदाघधरपड्तौ

चरणुद्धत्य ants किद्धिदन्यो" ययाविधि | पिदभ्यश्च मनुखभ्यो दद्याद इर हदिंजः पिटभ्य दद सिल्युक्का खधाकारमुदाहरेत्‌ | ₹न्तकार मतुयेभ्यस्तदन्ते निवपेदपः(९ ्रन्नोत्सर्गाथंमन्ते जलं faufequ: तथा सनकाद्यन्नद्‌ान- मपि नित्यश्राद्धाङ्ग। तच्च व्यक्त समन्यन्तरे,- नित्यश्राद्धमदेवं स्यान्मनु्येः ae Maa | gufany एतन्नित्यश्राद्धं एकस्मिन्नेव पते षटपुरुषात्मकतया कुवन्ति | केचिन्‌ पिचादौनां एकपचं मातामदादौनां एकपचं कुवं- न्ति श्रस्मद्‌ःदिङक्गलेषु yaa sua पचदयं, षाटपुरूषिक चान्य दिति पच्रचयं(र कुवन्ति aa कन्तेमोंसाभिवे मद्छमांसा दिकं देयम्‌ | देवान्‌ fuga समभ्यच्यं खादन्‌ मांसं दोषभाक्‌ | दूति नित्यश्राद्धाभिप्रायेण मनुनाग्यनुज्ञातलात्‌ | एवं च, SAUCE: श्राद्धमन्नाच्नोदकेन वा | पयोमूलफलैर्वापि मां सवजेमदेवतम्‌ दूति वाक्यं वानप्रस्थविषयम्‌। काम्यमां सवजेनस ङ्ल्यकन्तं विषयं वेति Haq. श्रस्मदादिङ्लेषु तु एतदुभयवाक्यानुरोधेन sae

(९) अन्य | (२) निनयेत्‌ | (3) पचच्यात्मक० |

कालसारः | 2093

famuseiaa मांसद्‌ानम्‌ षाट॒पुरुषिकपतच्े एव मांसदानमिति समाचारः शमो चोनः | मांसमन्न तया Biz ws यच्ोपसाधितम्‌ | दत्यक्तेश्च | एतन्नित्यञराद्धं श्रपुचभादपिट्वयादौनां एकपुरषा- त्मकं काय्येम्‌ भ्राच्ादौनामुत्तरक्रियाखपि कन्तलोक्तः | केचित्त जोवत्पिटकस्यापि साग्निके, जोवत्पिटकः ate कर्य्याद गिते दिजः | येभ्यो वापि पिता दद्यात्तेभ्यो cara साग्निकः | दूति gana ates fata qa | “aq जौवन्तमतिदद्यात्‌" दति प्रत्यचश्चुतेः | सपितुः पिष्छत्येषु अधिकारो विद्यते) दृति विष्णएरतिविरोधात्‌ तथा जोपत्पिटकस्य साग्निकले- ऽपि पचान्तमेव वेश्वदेवं नित्यश्राद्धाभावद्ेति समाचारः समोरोनः नित्यश्राद्धवेश्वदेवादिकं तु यपिदपुचभ्राचादौनामविभक्तानामेकेन करणे सवषां प्रत्यवायपरि हारात्‌ सवे; एयक्‌ प्रथक्‌ काय्येम्‌ एकपाके निवसतां fuezafasreaq | एकं भवेत्‌ विभक्तानां तद्‌व स्वाद्‌ BY Ve TEA: यद्यपि,- एवं मह वसेयुर्वा VaR वा VATE | gua हि aed waa धर्म्याः परयक्‌ क्रियाः | दति ब्रह्मलोकप्राघ्यादिफलायं पुनः काम्यतया एक्‌ yea

२७४ गदाधरपड्तो

करणं afqaarat aaqata | तथापि तयाचारः कदापि दृश्यते | तथापि- पितरे यच पज्यन्ते तच मातामह्या श्रपि। दृति गौतमोक्तं मातामहादिश्राद्धस्य पिदश्राद्धाघौनलेन ्रवि- भक्तमपन्नौध्रादरणामपि एकेन नित्यश्राद्धे ad Aaa खमाता- मदाद्यथें पुनः पचान्तरं क्रियते एवममावास्यादिश्राद्धे्वपि प्रयककरणएरूमाचाराभावः | AQUI भवेच्क्राद् मुक्ता यद्धं तु नेमित्तकम्‌ | दर्युकतेनित्यश्राद्धे आद्धदिनविदहितश्राद्ूनियमाभावः गद- खाभिनोऽनुपनौ त्वे तु नित्य्राद्धस्यास्य पञ्चयन्नान्तगतवात्‌ करणण- भावः | पारस्कर खुचे समावत्तनसुक्ता,- “Awa: wast दति समावन्तेनानन्तरमेव पञ्चयन्ञेष्वधिकारोक्रः | रपि वा वेद्‌तुच्यलाद्‌ पायेन निवत्तरन्‌ दरति we जेमिनौयखूचाच,- स्मृतीनां बेदतुल्यलादुपायेन उपनयनादूद्धं स्मात्तधर्माः प्रवन्त रन्निति तस्यायेः अविभक्तानां प्रावासे टहान्तरावस्थाने एथकू- पाके सत्यपि प्रयकूवेश्वदेवकरणम्‌ | लौकिके वैदिके वापि sates जले चितौ वर श्ठदेवस्त॒ कन्तयः पञ्चसनापनुत्तये दूति श्रातातपाययक्तौ पञ्चटनादोषस्येव वैश्वदेवनिमित्तवमिति एकेन as कुचापि तत्‌करण( दोष निन्तेरुत्यन्नलात्‌ एतेन

——

(१) करणा |

कान्तसार्‌ः | २७५

पाकम्य वश्वदेवनिमित्तलमाण्ड्य yah यदश्वदेवान्तरकरणं तन्निरस्तम्‌ पाकस्य वेश्वटेवनिमित्तवात्‌ श्रतेः अरय क्रमग्राप्रनेमित्तिकश्राद्धस्य कालविचारः | आ्राद्धकालनिगमोक्रकारिका याः खदेशवुघतोषकारिकाः। श्नन्यदे ग्रमततापकालिकास्तास्तनोभ्य॒दितयुक्रिकालिकाः तया च,- qauiq सप्तमादृद्धं सुहर्तात्‌ दश्रमादधः। एकोदिष्टख कालोऽयं GRU श्रमात्‌ परम्‌ सुहन्तेचितस काल श्रमावास्यस्य AAAI | परतः पञ्च qeul: पादेण्येतरम्य तु Wie प्रथमादू द्धं यन्बह्धत्तचतुष्ट यम्‌ | तदभ्युदियक्राद्धकाललेनावधारितम्‌ | एकोदिष्टस्य कालेन लभ्येत दिनदये। qeu दशमादावप्येको दिष्टं तदा भषेत्‌ पावणस्य तु asd: पञ्च घे परिकोौल्तिताः | तेषां परेोऽष्टमाच्छस्ता अष्टमस्तद सम्भवे | दिनदयेऽपि लभ्येत arya प्रथमादरः | पूवं वा सुख्यचोदना लोकवत्‌ प्राह जेमिनिः तत्रादौ नेमित्तिकस्य वार्षिंकश्राद्स्यावश्यकलं भविष्ये, श्ट तेऽदनि पितुयस्॒ कुर्य्याच्छराद्धमादरात्‌ | aaa वरारोहे वत्सरान्ते श्टते;हनि नाहं तस्य महादेवि प्रजां wetfa at हरिः |

३७६ गदाधरपड्धतौ

तया,-- पण्डिता ज्ञानिनो वापि मूखां योषित va ar ii Bale समतिक्रम्य चण्डालाः सप्तजन्मसु | श्रतानन्दसग्रहे,-- श्राद्धानां चेव सवषां AE WAT स्मृतम्‌ | तत्‌ yaaa Hala अकुवेन्नर व्रजेत्‌ फलं चाह दरि दरससुच्चय,- ग्रहणानां मदसखेषु AAAI, | लतोऽचयतरं याति म्बु कुर्यान्मतेऽदनि aq दिविघम्‌,- vatfes पावेणं चति | यमः, सपिण्डो करणादूद्ं प्रतिसंवत्सरं सुते: | मातापिचोः प्रक्‌ कायमेकोटिष्टं श्टतेऽदनि aq भविव्योक्तिरष्यक्रा | यमदश्निःः agg सदपिण्डत्रमोरमो विधिवत्सुतः | ead द्‌ शेवच्छ्राद्धं मातापिचौः wasefa | पावेणविधिनेत्यथेः | एवं amas एकोदटिष्टसुक्त मनुना पावेणमुक्रम्‌ | एवं उभयोयेवत्रोदिवत्‌ विकल्यः। aq यवत्रौदि- विकल्पे निन्दो क्रिनांस्ि | दूह a— ततः प्रति सक्रान्तावुपरागादिपवसु। चिपिण्डमाचरेच्छरा दमेको दिष्टं श्टतेऽदनि एको दिष्टं परित्यज्य पावेणं यः समाचरेत्‌ | a देदपिल्द्ा स्यान्माटभ्राटविनाश्रकः

| रः

ATH: | 899

wate पावेणं कुवन्नधोऽधो याति ara: | auaargetara: प्रेतेषु तु ततो भवेत्‌ i दरति माद्योक्तो निन्दोक्रेः, कथं faa दति चेत्‌, उच्यते fe निन्दाऽनिन्दयं निन्दितुं sana | श्रपि तहि स्तुत्यं स्तोत्‌- fafa न्यायेन उदितानुदितदहोमवददिकल्पोऽस्तु | ्रतएव कल्य- तस्कारेस्ठुलखवललादिकल्य tata ¡ कर्काचारधैरपि देशक्गला- चारव्यवस्यय्युक्रम्‌ कल्पतरौ श्रोरसक्तचजपुचषान्यनन्नीनां याऽ वस्या उक्ता, साऽस्टेग नेवाद्धियते, विज्ञानेश्ररेरपि नादृता एवं दे.शक्ला- चारव्यवस्थया उभयोविंकल्य दूति, यत्न यत्र प्रदातव्यं सपिण्डो करणात्यरम्‌ | पावंणन विधानेन देयमग्निमता सदा | दूति माद्छेऽपि प्रतिप्रस्वोक्तरेकोदिष्टकलेऽपि साभ्िपुदधेण श्टतादथराद्धं पावंणविधिनेव कायैम्‌ aur चिद्‌ ण्डिसन्या सिनो- BASINS पावणएमेव | श्रापस्तम्बः,- एकोद्दिष्टं Gala सन्यासिनां सवेदा | श्रहन्येकाद्गरे प्राप्रे पावेणन्तु विधौयते सपिण्डौ करण्राद्धं TN सुतेन वे | चिदण्डग्रदणादेव Fad नेवगच्छति तत्पननौनामपि रतादश्राद्धम्‌ | तथा प्रेतपच्चामावास्ययोग्हैताद- श्राद्धपाते पार्वएमेवेति वच्यते श्रय पावंणि कुलेऽपयेको दिष्ट विधिः! 48

३७८ गदाधरपडतौं

रा पस्तम्बः,- पुत्रा ये wat केचित्‌ feast वा पुरुषाश्च a | तेषामपि देय स्यादेकोदटिष्टं पावेणएम्‌ दति तया ओआ्रद्धा्दाणमपि yafuearetat तत्पननौनामपि ष्टतादभ्राद्धम्‌ सवकुरेष्वपि एको दिष्टमेव तया सा्िकानयिकैः सवै- रपि श्रामावास्वाप्रेतपच्योरपि तन््रताहे एको दिष्टमेव काय्येम्‌ | श्रनयो लेत्तणम्‌ | कण्वः,- एकमुदटिण्य यच्छ्राद्धसेकोटिष्टं प्रकौस्तितम्‌। चौनुदिश्य तु यत्तद्धि पावेणं मुनयो विदुः॥ दति। तएव पर्व्॑मावास्यायां भवं पावैणमिति, alfrarae न्टतादादौ श्रभावेऽपि पारिभाषिक्पावेणलं चिपुरुषोदेगेन fate- तलाद्‌ मावास्यसाम्येन प्रत्तम्‌ | एवं काम्यश्राद्धेष्वपि ज्ञेयम्‌ | BY सटतारखरूपम्‌ | व्यासः, मारुपच्चतियिसष्टे यो यस्मिन्‌ त्रियतेऽहनि | yee AMA Way तस्य afar इति | AAR दिष्टराद्धकालः। व्यासः,- एकसु दिश्य यच्छ्राद्धं देवहोनं विधौयते | wales तत्रोक्त wats तत्मरकौ स्तितम्‌ Hawa भागे एको टिषटमुपक्रमेत्‌ | च्रावत्तेनसमोपे वा aaa नियतात्मवान्‌ इति | तया पर्वोक्तपञ्चद्‌ गधा विभक्तस्य दिवसस्य गन्धवे- कुतपरोदिएसंज्ञकानां सप्तमाष्टमनवममुह्ृनानामेको fern प्रतोतावपि,

कालसारः | BOE.

WC कुतपे ATE कुर्यादारोदिणं बृधः। विधिज्ञो विधिमास्थाय रोदिणं तुन लङ्भयेत्‌ Chet लङ्गयद्यस्त॒ ज्ञानादनज्ञानतोऽपि ari आसुर तद्धवेच्क्रद्ध्‌ पिएं नोपतिष्ठति दूति श्चोकगौतमोक्तेः करुतपरोदिणावेष कमेकाललेन व्यवसित | श्रत एव,- Geld सप्तमादूद्धं मुद्टत्ताद्गमादघः। दति fuer: | क्‌तपलच्षणं वायवौय,- दिवसस्याष्टमे भागे मन्दोभवति भास्करः स॒ कालः कुतपो ज्ञेयः faaut त्मच्तयम्‌ दति तथा तन्बृहन्तेदयव्यापिनौ तियिरेको दिष्टे aga तच षोढामेदे सति wagta agrat सन्देहः! परेद्युरेव agyat परेदयुरेव उभयत्र तद्धा प्तौ उभयत्र agree वा परद्युरेव | aq हारोतः,- noises: feu चापराद्धानुयायिनो | सा are पिटकां पूर्वाद्ानुयायिनौ॥ छृहन्मनुः+- यस्यामस्तं विर्याति पितरमस्तासुपासते। तिथिस्तेभ्यो यतो दत्ता द्यपराद्धः स्वयंभुवा वौधायनः+- उदिते देवतं भानो पिव्यंञ्चास्तमिते रवौ | दिसुद्टतन्तं चिरद्धश्च सा तियिदेव्यक्रव्ययोः॥ दत्याद्यपराद्भसायान्भास्तमयव्यात्िविषयसा मान्यवचनवलात्‌ |

ave TeTUTyRAt

तया उभयवयार्िपच्चे मतुरपि,- दयाङ्ृव्यापिनौ चेत्‌ argare तु Yaur तिथिः | qifaga कन्तेव्या चिसुहन्ता भवेद्यदि उभयदिने साग्येनेकटदे णव्याप्नौ fad: साम्ये खद्धो It दिने राद्धम्‌) तिथेः wa तु Wg: श्राद्धं, पूर्वोदादइतखर्वादि- वचनात्‌ | तदचनस्य दैवपिच्यसाधारण्छेन निर्णतलात्‌ suafer वेषम्यरोकदे व्याप्तौ afea महतौ arfa:, तदिने एव श्राद्धम्‌ | aaa निणैयः पावेणश्राद्ध वक्तवयः | दति एकोदिष्ट्ाद्धकालनिणेयः | श्रय पावेणश्राद्कालः | तच ययाकालप्राप्त्राद्ध विषये“च्रपरान्हः पिद्णन्तु* इति woah, “यस्यामतं रविर्याति” दति न्मनूक्रिः “उदिते दैवतं भानाविति' बोधायनोक्तयः साधारणेन waar “च्रप- use: पिणं” दति तख. | इद्धगौतमः,- ware पिनो या स्ाद्छेको दिष्टे तिचिर्भ॑वेत्‌। इति, अरपराद्भव्यापिनौ या पावेषे सा fafedaq इति | तथा चापरान एव WAT ZR | WHY पञ्चद श्धा- विभक्तस्य दिवसस्य दग्रनेकादश्रदादग्ात्मकः चतुर्थी भागः। नतु मनुना तु, - तया आद्धस्य पर्वाक्ादपरन्छो विभिष्यते। दूति दिवसापराद्धंमेवापरन्भलेनोक्तम्‌ दति चेत्‌, उच्यते।

(१) यदा | (२) श्चतिरुपि |

म,सस्ारः | BS

कदाचित्‌ कार्ययवश्रात्‌ WaUsige सदसा aaa सति दिवसा- परभाग एव काय्येलं A WN इत्येव तात्पय्यैम्‌, तद चनस्येति बोध्यम्‌ यच,-- Qt gen विख्याता दशर पञ्चच सवंदा। तचाष्टमो ARM यः कालः कुतपः खतः i श्रष्टमे भारो यस्मान्मन्दौ भवति सवदा | तस्माद नन्तफलदस्तन्नारम्भो fafuad BE सुहत्तात्‌ FAIA यन्मुहन्तेचतुष्टयम्‌ | मुद्धन्तेपञ्चकं वापि auaaafanda fa areal यथाकालप्राप्त्राद्भविषये कुतपस्य प्रारम्भकालत्- मुक्ता नवमादिसुहत्तानां आद्धकालवमुक्तम्‌ | तेन मध्याङ्हसम्बन्ि- नमपि नवममुहन्तमादायेवामावाखेतर पावेणएथ्राद्कालो faa: | aq एव anenrafist,— qaue”® तु geut: पञ्च ये परिकौ्तिताः। तेषां परेऽष्टमाच्छस्ता अष्टमस्तदसमवे दति। तया सति श्रमावास्येतर पावणेऽधिक नवमसुह्न्तेस्य प्रवेशो प्रछतापराद्ूस्य ‘eta | fay, सप्तमात्‌ परतः दति यदस्म- eae: wan तदप्यष्टममुद्धत्तेस्यारम्भाभिप्रायमित्यवधेयम्‌ | qa षोढा भेदा saat) ay पूर्वेयुरेव तादृ्ापरद्व्याप्तौ पू्ैयुरेव परेद्युरेव agiat परेदुरेव ग्राद्धम्‌ | दिनदयेऽप्यपराक्ह- at पूर्वदयुरेव “ge वा पूर्वं दोदनेति" जेमिनौयन्यायात्‌,

(१) प्रावणस्य मुह्धतत्तास्तु पञ्च परिक त्तिताः।

३८२ गदाधर्पड्धतौ

दयादव्या पिनौत्या दि aay | दिनदरयेऽपोति संग्रहो wears gar दिनदयेऽप्यपराक्े वयाघ्यभावस्तद्‌ा Gazeta | qq मनुः,- “यस्यामस्तं taaiaaear’ | गिवरहस्यमोरपुराणयोरपि,- प्रायः प्रातरूपोव्या fe तिथिदेवफलेष्य॒भिः | मूलं दि पिददष्यथं पेच(“्चोक्तं मरषिंभिः मूलं तियिमूलम्‌ “Ua मूलं तियेः प्रोक्तं was: काल- को विदः | दति नारदौयोक्तेः | व्यासः, श्रह्यस्तमनवेलायां कलामात्रापि या fare: सेव प्रत्यान्दिके श्राद्धे नेतरा पु्छदानिदा नारदौये,-- पारणे मरणे नृपं तियिस्तात्कालिकौ स्मृता पित्येऽस्तमनवेलायां wer gu निगद्यते दति साकचयमपि प्रतिपादितम्‌ | गोभिलः, सायाद्धव्यापिनौ या तु wad सा उद्‌ाहता। शिवरदस्यन्नद्यवेवन्तनारदौ वसोर पुरारेषु,- शच्च quay’) पितुः साम्बत्सरं दिनम्‌ | पूवेविद्ध मह्र्वाणो नरकं प्रतिपद्यते ननु WUE परेयुः कुतपकाले सच्वात्तटिन एवास्तु दति चन्न, पूरय सिथिमूललास्तमयव्यािरूपगुणद्रयसद्धावात्‌, Fay स्यारभ्भकालत्ेनो पादानात्‌ व्वस्थापकलाभावाच। यदा दिनदये वेषम्येणेकदे श्व्यािस्तदा afer महतौ व्यास्निस्तदिन एव श्राद्धम्‌

Xs CE,

(२९) dat | (र्‌) Gwar |

कालसारः | <==

दिपराद्कव्यापिनोौ चेदाब्दिकस्य यदा fafa: | महतो यच तदिद्धां प्रशंसन्ति मरषयः इति aaa: | दिनदयेऽप्यपराद्ेकदे व्याप्तौ wean waenerfiga aq तिथेः साभ्ये खद्धो परेद्युः ag | तस्मिन्नेव od तिये; चये रकः श्राद्धं खवेदर्पादिवाक्यात्‌ | एतेनः अ्रपरान्छद यव्या पिन्यतौतसख तु या fate: | चये पर्वा तु क्त्या wet कार्य्या तथोत्तरा दरति, बौधायनो क्रिरेतत्समानार्थिंकरेव wala waded) श्रच were किञ्चिन्नोक्तम्‌, त्‌ दद्धि पततोत्नेखनेव चारिताय्यादिति वोध्यम्‌ | ननु, तिश्यादौ तु भवेद्यावान्‌ plat दद्भिः परेऽहनि | तावान्‌ ग्राह्यः पद्युरदृषटोऽपि खकरणि | दति स्मृतिमुपजोव्य उत्तरतिथिगतदद्धिचयप्रक्ेपेण saw रचावच्छिखामणिमाधवाचाय्येनिणयस्य किमित्यनादरः कत दति चेत्‌, उच्यते | BT: रटतेमुलाभावेऽपि स्वदे गाचारोपष्टमरेनेव माधवाचार्य सतादृशो fame: छतः कन््तर्‌कृत्मखतिभिस्तथाऽस्रदेौयेः प्राचौनेरन्यश््टिरपि खदेशाचारविसद्धः fadat छत दति श्रस्माभिरपि नादृतः। ननु HEE केिन्नकीतैमदतां माधवाचार्य्याणां निणेयः कथं Vt दरत्याग्रहः क्रियत दति चेत्‌ a किञ्चिदेतत्‌ i यदि माधवाचाय्यैव्यवस्या सवत्रेवाद्रण या,

३८४ गदाधस्पद्धलौ

तिं वच्छमाणामावास्माश्राद्धेऽपरा्कालोनो देशं ्राल्दिकवन्मत दूति पञ्चधाविभागपकच्चमादृत्य तत्‌छूतां चअवस्थामनादुत्य चिधा- विभागपच्वः किमिति तैरष्याद्वियेत | श्रय तिव॑क्तयम्‌,- येनास्य पितरो याता येन याताः पितामद्यः। तेन गच्छेत्‌ सतां मागं तेन गच्छस्तरिग्यति द्रति मनृक्तेरमावाश्छायां खदेगाचार एव ह्यत इति | तदि खदेशाचारोपष्टस्मेनैव AAA नादरण्णोयेव तस्मादखदेशरसमा- चार विरुद्धा माधवाचय्यव्यवस्यासमदेभयेः श्राद्धविषये ahaa Tat दूत्यमावाखेतरपावेणग्राद्भकालनिरयः पारवंशिभिः साम्बत्सरिके योच्यः। विष्ठवशादपराद्कासम्भवे STAT स्वेपावेणएश्राद्धकरणे- ऽप्यदोषः। तया यासः, सखकालातिक्रमे कुर््ाद्रातः प्रवे ययाविधि | व्याघ्रपादोऽपि.- विधिज्ञः अद्योपेतः सम्यक्‌ पाचनियोजकः। रादेरन्यच कुर्वाणः खयः प्राप्रोत्यनुत्तमम्‌ BY, श्राद्ध कर णणक्तफलम्‌ | श्रतएव सायाद्धस्य गौ एकालव्मिति कश्चिद्विरोधः तथा दिवारमभ्स्य तस्य रात्रौ समापनेऽ्यदोषः। “न AMIRI gata ava चादि वा भोजनमासमापनादिति ्रापस्तम्बोक्तेः |” यत्त॒ स्कान्दे उपसन्धय Fala पिपरा कथञ्चन | काल Brat प्रोक्तः श्राद्धं तच विवजेयेत्‌

कालसारः। ३८५

द्ति। तत्‌ षति सम्भवे तत्र नादरणौवमित्येव परम्‌ | किन्तु रात्रौ We gala राच्सौ कौत्तिता fe ar सन्ध्ययोरुभयोश्चैव सय॑ चेवाचिरोदिते दति ager रा्यादिषु श्राद्धारम्भः सवेया ORT: | श्रा- सम्भवपक्ता ये उक्तास्ते काम्यश्राद्धेषु नादेयाः | श्रावण्यककष्मणमेव MURA ATMA | तथा मण्डनाचाय्याः,- FIRS WAR FA AU श्रक्यते | गौणकाल्तेऽपि AeA गौ णोऽप्येताद्शो मतः॥ दूति) एतादृशो मुख्यसदृशः | तया यच यच दिनदयापराद्ध- व्याप्तौ we: ag निर्णोतम्‌ तत्र केनविन्निमित्तेन पूर्वैदुरकरणे परेदयुरप्यनुषटेयम्‌ शअङ्गलो पार मङ्गवेगु्छसदहनमिति तिधिगेष- AIG SY काम्यनित्योभयसाधार णः तयाच, काम्यत्रतप्रसङ्ग माधवाचार्य्याः,- सुख्यतिश्यन्तराये q तिधिग्रेषोऽपि wee?) | tfa1 यत्त॒ माधवाचायैराव्दिकपरित्यागे = yaarears- च्ादसम्भवे राचावपि तदारम्भः काय्येः Te aHe Me: कद्‌ चित्‌) area | a लोकविदिष्टं धम्मेमप्याचरेन्न तु | दति याज्ञवरक्योक्रेः, “रातेः ga यथाविधि। राचेरन्यच

(a) खौकायः | (2) ग्टद्यता° | (३) कदाचिदपि | 49

३८६ गदाधरपड्तौ

कुर्वाणः" इत्यादि मनूत्यादेशच ननु तदहि आल्दिकिलोपः प्रसज्येत दति चेत्‌, aigfan कालस्य विहितत्वात्‌ तथाच मरोः, श्राद्ध विघ्ने समुत्पन्ने श्रविज्ञाते स्टतेऽदनि एकादश्वान्तु कर्त्त यं BUI fanga: दूति सन्पैविप्रोदेगेनो पुनट्रेयाद्यमम्पत्तौ, एव,- श्राद्धविघ्ने ससुत्पन्नेऽविज्ञाते ्टतेऽहनि | कु्य्यादन्रेन कृष्णाया मेकादग्यां विधुक्ये विधुक्ये ci) एतक्छष्णेकादण्वा मस्भवे “em वापि मनो- feu’, इति Waa | का्ष्णाजिनियेक्तमादः-- च्रापन्नोऽप्यान्दिकं नेव qateaa करिचित्‌ | Haq तद्मायान्तु BU वा हरिवासरे हरिवासर एकादग्गौ। तया भार्य्यायां रजखलायामपि ्राल्दिकं पक्ानेनैव काय्यं, नामेन Bar वापि। तथा लोपाचिःः पुष्यवत्‌ खपि दारेषु पिदे भस्थोऽपयनञ्निकः | Kaan कुर््याद्धेश्ना वामेन क्रचित्‌ हारोतोऽपि,-खाद्धूविन्रे दिजातौनामामश्रादुं भ्रकौत्तितम्‌ | श्रमावास्यादिनियतं माससम्बत्सरादुते॥ मासं मासिक सम्वत्सरमाब्दिकं इत्यथे एवमन्यान्यपि हेमामश्राद्धविधायकवचनानि श्राल्दिकेतरपराण्येव |

कालसारः | २८७

ननु,- Beet समनुग्राप्रे यस्य भार्य्या रजसखला | पञ्चमेऽदनि तत्काय्यं तत्‌ ङुरययान््रतेऽहनि waa: का गतिरिति चेत्‌, उच्यते, अरपुचा त्‌ यदा भार्य्या arg पत्य॒राव्दिके | रजखला भवेत्‌ सा तु कर्य्यात्तित्पञ्चमेऽदनि दरति श्रोकगौतमोक्रिसमानायंमेवेति वोध्यम्‌ केवलं चन्र qantas श्राव्दिकपाते श्रामेन ar वा तच्छ्राद्धं कायम्‌ | तथाच गोभिलः; द्ग विग्रहे fast: प्रत्यान्दिकमुपस्यितम्‌ | च्रनेनासन्भवे Sa कुर्व्यादामेन वा aa: i दशं रविग्रहणे तत्‌परनवैयामचतुष्के पाकाभावादनासन्नवा- दामेन VA AW AAW, मुत्वनन्तरं श्राद्धकालसम्भवे पकान्ननैव तत्करणं खतःसिद्धमेव दत्यभिप्रायः। wet तु ग्रहणात्‌ पूर पोषमाम्धां कदाचित्‌ याद कालमन्भवे पकान्ेनेव, कद्‌ चिदमम्भवे त्‌ तत्नापि डन्नामेन वाद्दिकश्राद्भम्‌ | तथा वौधायनः,- श्रन्नाभावे दिजाभावे प्रवासे पुचरजन्मनि। हेमश्राद्ध संग्रहे दिजः WE: सदाचरेत्‌ दति ग्रातःतपोऽपि,- | श्रापद्यनप्नो AT चन्द्रसर्यय्रदे तया श्रामश्राद्ध दिजो ZUR! दद्यात्‌ सदेव fe एवमादिवाक्यानि विद्यनाथमिभ्रादिभिरतरैव लिखिला ua.

३८८ गद्‌ाधरुपद्धतौ

ग्रस्तास्तमिते चन्द्रे यावत्‌ स्यान्नो दयस्तच नाग्नौयादित्यग्रननिषेधाद- चापि ब्राद्धयणासमोवेन इहेन्नामेन वा कुर्य्यादिति egw | श्राद्धा- नन्तरं प्रतिपन्तिकम्मणः खभोननस्याप्भावादित्यलमति विस्तरए | श्रामादि लचणएमाह वशिष्ठः; NY Aaya WE: ws धान्यमुच्यते | ara faqufaam खिन्नमन्नसुद्‌ाइतम्‌ श्रप्नोचन fan a श्रणौचगतदिन एवाब्दिकिम्‌ | तथा खव्यष्ररङ्गः;- श्राव्दिके सैव संप्राप ste जायते यदि। ama a यतिक्रान्ते तेभ्यः arg प्ररोयते तथा- एचिग्टतेन दातव्यं या तिथिः प्रतिपद्यते | सा तियिस्तस्य कर्तव्या खन्या वे कदाचन श्रत चानन्तर दिनेऽपि विन्न तदुत्तरदश्रं आब्दिककरणम्‌ | तदाद गोभिलः,-- देये प्रत्याल्दिके aig वन्तरा ग्डतद्धूलके | श्रौ चानन्तरं कुर्य्यात्‌ तन्मासेन्दुचयेऽपि वा | दर्ुचयेऽमावास्यायाम्‌ देयेऽवश्यकन्त्ये। श्रौ चान्तदिने मलमासपाते तु मलमासानन्तरभाविदगे एवाब्दिकम्‌ | मलमासम्डतानान्तु Ale यत्मरतिवत्सरम्‌ | मलमासेऽपि RAY नान्येषान्तु कदाचन दति `पैडनस्का यस्िन्मलमासे aa: कालान्तरे af मलमासे सति तस्येव तच श्राद्धमिति मलमासप्रकरणे सम्यगि- ¦ |

| |

कालसारः| ave

चारितवात्‌ | शद्रेण तु श्रव्दिकमपि श्रामेनेव हेमेव वा are, सव्वेया पक्रान्नेन। तया गालवः,- तोर्थऽनद्मावापदि देग्रभङ्ग रजस्यपि | हेमभ्राद्धं दिजः इर््याच्छद्रः इुर््यात्‌ सदेव fei शरातातपादिवचनमणक्तम्‌ | शद्रः सदेव Vea: सुतरां श्द्रस्य दर्णादिश्राद्धं वच्छमाणप्रेतश्राद्धानि Bawa ary हेमामयो विकल्पो जो दियववत्‌ समवलः | ननु,- श्रामश्राद्धन्तु Was एकोदिष्टन्तु मध्यमे | Mauss तु प्रातटेडधि निमित्तकम्‌ दूति श्रातातपोक्ररपराङ्तं वाधिला years एव श्रामभ्रादं विहितमिति चेन्न एवमादि वाक्यानां कल्पत रुप्र्टतिष्वना द्‌ तले- नानुष्टानलचणाप्रामा्यात्‌, दति AeA! वस्तुतस्तु प्रायित्त- दानादौ श्रामद्रयकवेष्णवभ्रा विषयतवेनास्य वाक्यस्यो पपन्तिः। दान देववेन wale एव कर्तव्यवे तदङ्गस्य Brew सुतरां तच विधा- नात्‌ Wasa | एवञ्च सति कालाद महता प्रवमे- नास्मिन्‌ विषये यल्लिखितं awa निरस्तमेव तथा aang यत्र यच प्रसक्तं स्यात्‌ तच तचापराद्धादिकाल एव काय्यं स॒व्या Wate | WRU तु सुतरामपरा्धादावेव। VISA प्रत्येकं fieafem दिर ण्धोत्सगंमाचम्‌ ततेतिकन्तंयतायाः करैर लिखनात्‌ | द्रत्यामश्राद्धनिषूपएम्‌ |

२९० गदाधरो

श्रयाज्ञातश्टता दहा दि awa: | प्रवासम्टतस्य Aaya टदस्यतिःः-- यद्‌ मासो विज्ञातो विज्ञातं दिनमेव तु। तद्‌ा द्याषाद्के मासि ara वा तदिनं भवेत्‌ ज्ञायते wareaa प्रोषिते संस्थिते सति | मामद्य विज्ञातस्तद्गं तयाब्दिकम्‌ दिनमासौ विज्ञातौ मरणस्य यदा पुनः| ्रस्यानमासदिवमो याद्यौ garner दिभ्रा॥ भविष्ये, दिनमेव a जानाति ard aa aq यो नरः। मागे गौं तथा भाद्र माघे वा afed भवेत्‌ पूव्वीक्तया दिगेति गतादादज्ञाने यथया qa तयाचापौ- त्यथः तेन प्रस्ानमासदिनज्ञाने aged) प्रस्थानमासमाचन्ञाने तन्मासौ यद ष्य यणम्‌ प्रस्यान तिधिमाचज्ञाने श्राषाडाद्यन्यतम- मासेषु तस्यास्ये गरंदणम्‌ | मरणएमासमरणदिनप्रस्यानमासप्रस्थान- दिनानां मर्व्वषामन्नाने तु खवणदिने तद मम्भवे श्रवणएमाससम्बन्धिदशं श्राद्धम्‌ | तद्‌ाद प्रचेताः,-च्रपरिज्ञाते BAMA अ्रवण- दिवसे afar) aa saz | afufaaats मघायोगेऽपि (*पिण्डद्‌ानम्‌,- छते नेमित्तिकं काम्यं श्राद्धं यस्त॒ मघेऽदनि | दद्यात्तञ्ज्येष्ठपुचस्य arm: श्यादिति निञितम्‌ दूति का्ष्णाजिन्युक्तः, श्राद्पद्‌ मच पिष्डदानपरम्‌ |

(१) मघायोगे पिण्डदानं |

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कालसारः | २३८१

छते नेमित्तक काम्यं यद्धं ay मचेऽहनि | दद्यात्‌ पिण्डञ्च awa च्ेष्टपुचो विनश्यति दति सत्यन्तरात्‌ इति नेमित्तिकतलन लक्तितस्याव्दिकस्य एको दिष्टपावेणएमेदेन कालौ निरूपितौ च्रयमापराद्धिकभ्राद्ध- कालोऽमावास्यायतिरिक्रमवेपावेणश्राद्भेषु He | सपिण्ड कर णान्त- प्रेतख्राद्धानां weary नेमित्तिकवेऽपि प्रयगुपाद्‌ानानाच तल्षिखितम्‌ | HY काम्यश्राद्कालाः। विष्णःः-श्रादित्यसक्रमण विषुवद्रयं तिगरेषेणायनदयं aaa जन्मचेमन्यद्वञ्च,- एतांस्त॒ श्राद्धकालान्‌ वे काम्यानाद प्रजापतिः | श्राद्धमेतेषु ATA ACA RUA विषवतौ, मेषतुलासंकरान्तो, श्रयनदयं, मकरककंटसक्रान्तौ, रविसंक्रान्तिपदेनेतासां(९) प्राघ्रावपि पुनयैहणं फला तिगशरयार्थम्‌ | दृद मक्रान्तिश्राद्ध दिने दानं भवेत्तदिन एव, आद्भूस्य दानल- निणयात्‌ | श्रथ रब्यादिवारेष रदस्पतिः,- श्रारोग्यञचेव सौभाग्यं श्रत्रणा च्चा पराजयः | सर्वान्‌ कामान्‌ प्रियां विद्यां धनमायुययाक्रमम्‌ सूर्यादिषु वारेव्वेतच्छराद्कक्ञभते फलम्‌ | ववादि करणेष्ववं आ्राद्ङृद्धभते चणम्‌(२) |

(२) रविसंकान्तिपदेनेव तासां | (2) फलं |

३८२ गदाधर पद्धतौ

तया प्रतिपत््रम्डतिषु याज्ञवल्क्यः कन्याः कन्यावेदिनश WRG सुतानपि। ad छषिञ्च वा णिव्यं दि शफे प्रपास्तथा ्रद्मवच सिनः पुत्रान्‌ खणेरोष्ये aR | ज्ञा तिनरेयं सर्वकामानाप्नोति श्राद्धदः सदा प्रतिपत्‌प्रशतिष्वेका वजेयिला चतुद गौम्‌ | Wau तु हता ये वे तेषां तच प्रदौयते॥ कन्यावे दिनो, जामाढन्‌, पग्रवोऽजादयन्तदरूपं द्रव, चूतं, चूत- जयमित्य्यः। afaarfasy तयोर्लाभो दिश्रफाः, गवादयः | एकग्रफाः, श्रश्चाद्‌यः ब्रह्मवचेखिनः | टृ त्ताध्ययनसम्पत्तिरिय्यते ब्रह्मवचेसम्‌ द्क्ततेजो युक्तान्‌ सकूथे, तामसौ खकादिसहिते, खणरूप्ये | कामान्‌ काम्यन्ते ये ते कामा इति युत्पत्या खगेषुचपश्चादीन्‌ एतानि चतुश्फलानि रृष्एपचप्रतिपदादिखिति विन्नानेश्वराः | “ष्णः faa विभिखते इति स्मतेरिति तेषामभिप्रायः चतु- दे ोनिषेधविचारो महालये लेख्यः | श्रय कृत्तिका दि नचतेषु यान्नवरकयः,- f स्वगे qraaiayg wa wa वलं तथा पुत्रान्‌ Seay सौभाग्यं wate सुख्यतां War ्रृत्तचक्रताडैव वाणिव्यप्रतौनपि श्ररोगिवं am वौतश्रोकतां परमां गतिम्‌ घनं वेदान्‌ भिषकसिद्धिं कूषयङ्गामप्यजाविकम्‌ |

ATTA: | ३९३

श्रश्वानायुख विधिव्द्यो वा श्राद्धं प्रयच्छति रुत्तिकादिभरणन्तं कामानाप्रुयादिमान्‌। ्रासिकः श्रट्‌धानञ्च व्यपेतमद मत्सरः खगे निरतिशयसुखं, तेजः श्रात्मश्रक्यतिग्रयः, wei निभय- लम्‌, चेच ब्रो द्या दि फलवत्‌, वलं wz, Sey ज्ञातिष, ज्ञाति- Satara vain: | सौभा, जनमियवम्‌, मुख्यता श्रग्रणोलं, म्रहत्तचक्रता प्रत्त चक्र मण्डल येन तथोक्तस्य भावस्तन्ता चरप्रतिहताज्ञेत्यथैः | परमागतिः ब्रद्मलोकप्रा्भिः | ay योगेषु मरोचिः,- रनतिकादिषु way श्राद्धे यत्फलमो रितम्‌ | विष्कुम्भादिषु योगेषु तदेव फलमौरितम्‌ इति, ववादिकरणे argued रा दिवारवत्‌, तक्ैवोक्तम्‌ | श्रथ मनवादिश्राद्धान्यपि काम्यानि, भविव्यमाकछयोः.- श्रश्वयुक्‌-श्णक्तनवमो का्तिकौ दादौ faa’ | हतौया VAG तथा भाद्रपदस्य फाल्गुनस्याप्यमावास्या पौषस्येकादग्नो सिता | श्राषाटस्यापि anal माघमासस्य सप्र | AAA कृष्णा श्राषाटस्यापि पूर्णिमा | कात्तिकौ फाल्गनो set चेतौ पञ्चदभोति च। मन्वन्तराद वञ्चेता दन्तस्याचयहेतवः |

[77 ~~~

(१) feat | 50)

३९ गदाधरषद्धतौ

aa द्वादशो सितेति भितग्नब्दस्ततौयायामथन्वेति atest सितेति दग्रम्यामिति। तथा चामावास्याष्टमोव्यतिरिक्राद्याः तिथयः रक्ताः, पुनः पुनम्तथाश्रब्दो पादानात्‌ | यस्च श्रश्वय कूएक्ञनवमोौ - त्यादिद्द्धगर्गोक्रौ तियिभेद उक्तः, मङ्कल्पान्तर विषयः | मन्वादिषु फलं मात्ये,- aa arg विधानेन मन्वादिषु युगादिषु, हायनादिदिमादाखं fagui ठत्चिमाद्रात्‌(“ भारते,- या aa युगाद्याञ्च तिययम्तासु मानवः | साता त्वा दत्वा जघानन्तफलं लभेत्‌ aay युगादौनां ग्रहणेऽपि तच agri नित्यलमपोति उभयात्मकलात्‌ विचारो नित्यप्रकररे लेख्यः तथा वच्यमाणष॒ अर्द्‌ याद्यलभ्ययो गष तथा,- RATA यच्छ्राद्धं Geeta यथाविधि | उपवासादिक यच्च तदनन्तफलं Waa | दत्यादौनि बहनि काम्यश्राद्धानि aa तच guarfa, विस्त- रभयान्न लिख्यन्ते | ay दद्धिरद्ध, तच नैमित्तिकम्‌ | नैमित्तिकमतो वच्छे श्राद्ध मभ्य यात्मकम्‌ दूति माकण्डयपुराण्णेक्रः | तच्चावश्यकम्‌ | तथाच ALAS, दृद्धिश्राद्धमरुला यो ठद्धिकमं समाचरेत्‌ |

(२) Aldea |

कालसारः २९५.

टद्धिर्ना aga तम्य खयञ्च नरकं जेत्‌ भारतेऽपि, अष्टका ये चाभ्युद्‌ यास्तौ यचा तचो पपत्तयः | पिद्रणमतिरेकोऽयं मासिकार्य्याद्‌ ya: स्मृतः दूति मासिकारवादभे्राद्धादित्यथेः | एतान्यावश्वकानोत्यचः द्धिः पुचजन्मादिग्भं तच आद्भूमिति कन्दोग परिश्रष्टविष्णपुराणण- य॒क्तभ्रौ तस्मात्ते न्ति विषयम्‌ | तथाच छन्दोगपरि शिष्टे- कमादिषु सवषु मातरः सगणाधिपाः | पूजनया: sada पूजिताः gaafee ताः पूजयन्ति श्रभ्यद्‌ यसाधनेन Tuga पूजाफलोक्ते पूजास्यानतदुपकरणानि तच्रेवा द, - प्रतिमासु nara लिखिता वा पटादिषु | afa वाचतपुच्नेषु aay एयग्‌ विधैः | तच प्रतिमा दिपक स्फटिकादिनिमिंतलं, प्रभ्रपदोक्रः समा- WW अचतप्च्नपच एव | तथा,- SIA वसोद्धारां सप्तवारान्‌ एतेन तु कारयेत्‌ पञ्चवारान्‌ at नातिनोचां चोच्छ्रिताम्‌ च्रायुव्याणि शान्यथं agi तच समादितः | षड्ग्यः पिदभ्यस्तद्‌ तु आरद्धद्‌ानसुपक्रमेत्‌ तथा, श्रसहृद्यानि कर्माणि क्रियेरन्‌ कमंकारिण | प्रतिप्रयोगं नेव स्यमातरः ्राद्धकमे

२९६ गदएधरुपद्धतौ

एतदेव तच विदणणेति,- श्राघानदोमयोञचैव वैश्वदेवे तथेव वलिकमेणि दं aware तयेव नवयन्ने UWS वदन्त्येवं Hata: | एकमेव भवेत्‌ श्राद्धमेतेषु A YUH BaF अतएव सोमयागे तु पुनः पुनः प्रयोगे माद पूजा दिक भवत्येव | नवयन्ञोऽच श्राग्रहायणापरनामिका नवाननेष्टिः | कर्मादि वित्यस्या पवाद स्तचेव,- नाष्टकासु भवेश्राद्ध Ale आराद्धमिग्यते | सोष्यन्तौ जातकमं प्रोषिता गतकमेसु waa श्रासन्नप्रसवायाः सुखप्रसवाथं विदितो मः | faarerfe: कमेगणो उक्तो गर्भाधानं TAA यस्य चान्ते | विवादादावेकमेवाच कुयात्‌ श्राद्धं नादौ कर्मणः कमेण स्यात्‌ प्रदोषे आद्ध मेक स्योद्रोनिष्कालप्रवेशयोः, | श्राद्धं युज्यते कन्तु प्रथमे पुष्ठिकमेणि दलाभियोगादिषु q षटसु कुर्यात्‌ एयक प्रथक्‌ ,. प्रतिप्रयोगमन्येषामादावेकन्तु कारयेत्‌ | टदत्पचचुद्रपशरखस्यथं परिविश्व(तोः east: कमणो ये तु तयोः श्राद्धं विद्यते

(१) शख |

कालसारः | २९७

द्‌ गराग्रन्धिनेकेन विषमदृष्टकमेणि | छमिदष्टचिकितसायां वे गेषेषु विद्यते मादप्रूनायामपि(* गणकमेण्टपवादस्ततरैव,- गणशः क्रियमाणे तु माणां GHA सक्‌ | Wada भवेच्छरद्धमादौ एयगादिषु यच यच भवेच्कराद्ध तच तच मातरः; ब्राद्य,- कमेण्ययाभ्युद्‌ यिके मा ङ्गल्यवति शोभने | जन््नन्ययोपनयने ars पुचकस्य वा | पि्न्नान्दोसुखान्नाम तपयेदि धपवेकम्‌ | विष्णुपुराणे कन्यापुचतविवादेषु प्रवेशो नववेश्पनः | नामकमंणि वालानां च्डाकर्मादिकं तथा मो मन्तो नयने चेव पुचादिमुखद भने | नान्दौ मुखं पिद्टगणं पूजयेत्‌ प्रयतो wet | चृडादिकं इत्यादि गब्दस्य सस्कार मा चो पलक्तणवा दिनिष्कम- णान्नप्राश्नादिष्वपि afeatg | तया, यज्ञोद्ादप्रतिष्टासु मेखलावन्धमोचयोः | पुचजन्मटृषोत्सगें दद्धि खा द्धं समाचरेत्‌ | इत्यत्र यज्ञशब्दोपाद्‌ानात्‌ मदादानादावपि sears कायै

` lL: a ee

(१) मादपूजाया चपि |

३९०८ गदाधरपद्धतौ

एवञ्च, नानिष्टा तु fags श्राद्धे कमे बेदि कमाचरेत्‌ | दूति गश्ातातपोक्रौ वेदिककममपदेन सामान्यविधिः सखष्टः, संहियत fanaa इति न्यायात्‌, | पुरोडाशं चतुद्धा करोति, आग्नेय चतुद्धां करोति, दति उप- सहार वच्छन्दो गपरिशिष्टा दिगणितवेदिककर्मपरं बोध्यम्‌ aa दन्दो गपरिश्िष्टादौ “तातो गोभिलोक्राना” मित्यमिधानात्‌, गोभिलोक्रटद्यमाचे ठद्धिश्राद्धं विधौयते | दति श्राद्भादिष्वपि तदुक्तेः | प्रसङ्गान्निषेधो रटद्यान्तरकमे- णोति चन्न, शाखान्तराधिकरणन्यायेन ग्द्यान्तरकमेष्यपि श्राद्ध- विधिनिषेधप्रटन्तेः | केवल तु, यन्नान्नातं खशाखायां पारक्यमविरोधि यत्‌ | विद द्विस्तद्‌ नुष्ठेयमभ्भिदहो दिकमेवत्‌ दरति aga: | usw: fae: इत्यादौनां खद्यान्तरकमेणि ्रटृत्तिः। तदु परिष्टात्‌ we भविष्यति एवं यथयाश्रृतार्ािखितौ यानि कर्माणि विधिक्शेनायेवश्रेन वा एकस्मिन्‌ दिने क्रियन्ते | रधानं रोमश, यद्रोत्छख क्रियमाणं जातकर्मादि, तच प्रतिकम- ASIA दिनान्दौमु खश्राद्धान्तकमेणामारग्याचारः१ संगच्छत एव | श्रत एवोत्छयेकदिनक्रियमाणेषु कर्म॑सु तच न्यायेन सछत्करणमिति यत््रा्तौनैरपि कै्चिल्िखितं तत्‌ केरपि नाद्धियते। तच कन्तु निरूपणम्‌,

(१) AlSATATE: |

कालसारः | ३९

पिदण्यः पिता दद्यात्‌ सुतसंस्कारकममसु | पिण्डानो दहनात्तेषां तस्याभावेऽपि तक्कमात्‌ दति श्रा उदहनादित्यचाडोऽभिविष्ययेता, कन्यापुचदिवादहेष्विति विष्णपुराणोक्रः तथाच विवाहमभिव्याघेत्य्थैः | तच्,-नान्दौभ्राद्धतिधिं कर्व्वादाये पाणियहे qu: | अत Se खतः कुर्यात्‌ खयमेव तु नान्दिकम्‌ इति सतिः सुतसंस्कार कमेखिव्युक््च पुत्रस्य संस्काररपप्रथम विवाद एव पिता कूर्यात्‌ | दितौयादि विवादेषु ga: खयमेव, ओौउत्पिटक- alg विगेषाधिकारप्रतिपाद कवच्छमाणदारतोक्तेः | पितरि जौव- त्यपि पितामदादोनां amar ूर्यादिति fag) एवं पुच- मातामहादीनां दितौयादिविवाडे नान्दौसुखश्राद्धमितिच fag | a7 परिशिष्टं वाक्यं वच्छते | एवं खति खपिदण्य cay खगब्देन खतमातामहादिव्यात्तिः तस्य पितुरभावे तक्तरमात्‌ संस्कार्यपुच- दु दित्रादिक्रमात्‌ संस्कायेपिचादिग्यो मातादिभ्योऽपि दया- दित्यथेः अतएव, भ्राता वा wTeuat वा सपिण्डः fnew ua वा) मद पिण्डक्रियां रत्वा कुर्यादभ्यद्‌ यं ततः दति लघुदारोतोक्रभरातरादेः ame उपनयनकन्तुत वा विवादोपनयनाचथं संस्क्ायंकन्यापुचादि पिदमाटमपिष्डोकरणं sar सस्कायंपिचादिभ्यो द्द्याद्‌न्यृद्यिकञ्राद्धमिति गम्यते तस्मात्‌ पितुरूपरमे मस्कायंपित्रादिभ्य एवाभ्यदयिकरं श्राद्ध दद्यादितिसिद्ध | वायवोये,-

geo गदाधस्पद्धतो

अन्वष्टकासु set गयायां श्टतेऽहनि | अच मातुः wR श्राद्धमन्यत्र पतिना सद्द गौतमग्रातातपो,- माट्भ्राद्धं ठू पव स्यात्‌ पिद्रणां तदनन्तरम्‌ | ततो मातामहानां agt श्राद्धच्यं सृतम्‌ विष्वेतेषु wig भोजयेत्‌ ब्राह्मणान्‌ WHT | तथाच, नवपुर्षात्मकमाग्यद्यिक AA | एवं सति षड्भ्यः पिहभ्य द्रयक्तिण्कान्दोग्यविषयेवेति ज्ञेयं | utfag: yu ददादवसानदिनादृते | सभरत पिण्टमाचेभ्यस्तश्चिरासां चतः War दूति छन्दोगपरिशिष्टोक्वन्तरेण तत्‌स््रौणां साम्बत्सरि क्राधं विना आद्भान्तराभावात्‌ | aa पिद्टपितामद्प्रपितामदानां ना- न्दोमुखनामकता | तथाच, कात्यायनसचम्‌,- “नान्दौमुखा; पितरः पितामहाः प्रपितामदाश्च ent द्रति खधां प्रयुञ्ौत युगरा- नाग्रये"दिति | अच पितर दत्यारौनासु पलचणएत्वान्माटवगेस्य aqme नान्दौसुखनामकलम्‌ “ay नान्दोमुखेभ्यशच nee: आ्राद्धसुत्तम" दति areta:, “नान्दौमुखेभ्यः पिढभ्यः पितामहेभ्यः प्रपितामहेभ्यो मातामद्ेम्यः प्रमातामदन्यो दद्ध प्रमातामरेभ्यश्च Waa” दति गोभिलदचञ्च | यत्त, ब्राद्यमाव्छयोः,- पिता पितामददञ्चैव तयेव प्रपितामहः | चयोऽपयशरमुखा्चेते पितरः परिकौत्तिताः

कालसार्‌ः | Boe

तेभ्यः पव्वेतरा ये प्रजावन्तः सुखेधिताः

ते तु नान्रोसुखा नान्दोखष्टद्धिरिति भण्यते

ये स्युः पितामदादृद्धं ये स्यर्नान्दौमुखास्िति

प्रसन्नसुखसक्ञास्तु माङ्गलोया यतस्तु ते |

दति यत्‌ दद्ध पितामदादौनां नान्दौमुखत्रसुक्रम्‌ | तत्पिचा-

दिषु fay stag द्धप्रपितामदादिच्रयाणां त्राभ्युद्यिकश्राद्ं कायंभिल्येवं परं ज्ञेयमिति कल्पतर्काराः। मा टपूजावसो द्धा रायुग्य- मन्तजपनान्दौमुखश्राद्धानां परस्रषमन्धवेन नान्दौमुखश्राद्भस्या- वश्यकलात्‌, इति नान्दोङुखश्राद्भूस्य wena ढन्दोगप- रिशिष्टादौ यक्तमेव savas विप्रभिभ्रैः पित्रादि चिके जोवति नान्दोसुखभ्राद्ं केवलं Areas कायैमिति यल्लिखितं तद्ररा- पास्तं। fay stag विष्ना पावेणनिषेधात्‌ विकतिलाच इद्धि- श्राद्धस्येति नारायणएभायये यल्लिखितं तदपि afat नाहयादि- वाक्यस्य विश्रेषविधिवेन कल्यतर्‌कारव्याख्यानादाचारविरोधाच्च। एवं मात्रादिचये जवति उपरितनयुरुषचयस्य sig) एवं माता- महादं चिकस्यापि | एवं तच कस्यचिन््रणे उपरितनपुरुषं प्रवेश्य श्राद्धं काय्येम्‌ | तद्ध विष्ये, “gate: are” दति यदुक्त, तच प्रयम- सुह्न्तादू्धं qenvaqeaafafa ज्ञेयम्‌ तच्छरादकालः maa- पौये,- प्रातटद्धिनिमित्तक” दति gem: | मात्छे,- उन्सवानन्दसन्ताने यज्ञो दाहादिमङ्गले |

मातरः wa पूज्याः पितरस्तदनन्तरम्‌

ततो waaay विश्चेदे वांस्तयेव a |

४०२ गदाधरपद्तौ

aq यद्यपि ्रातातपायक्तविधिरस्ति तथापि श्रग्रक्तौ पिण्ड- दानदिरण्षद्‌नव्राह्मणभोजनोत्सर्गाणएां saa, शषटत्राह्मणएभोज- नोत्सर्गाणं उक्रवाच श्टव्राह्मणभोजनोत्सगंमाचरन्ति श््टिः। शाभ्यद्‌ विकग्राद्धम्य नेमिन्तिकवेऽपि सत्यो नान्दौसुखे वसुरिति वच्यमाएवाक्याःसत्यवसुसन्नयो वि्ेदेवलं श्रष्टव्राह्मणएभोजनं दुत दति चेत्‌, उच्यते चिष्वप्ेतेविविगयुक्तरेकैकभेकेकस्य द्वौ दौ चौँस्लोन्‌ वा द्धौ फलग्धयस्भिति sarge et दाविति च्राभ्यद्‌यिकश्राद्धविषयमिति कल्पतरुव्याख्यानादटपावेणणद्‌ावयुग्म- ्ाद्मणएनियमादिति स्मृत्यन्तरात्‌ पावैफे ag काम्ये आभ्युद्‌ यिके दत्यभिघानाच् | माचादिचिकंस्य पिचाद्चिकस्य मातामहादि-

चिकस्य शआ्राद्ूस्यानेषु waa daa भोजनद्यं भोजनदय- `

मिति भोजनषटरं fagzarat स्थाने भोजनदयमिति अ्रष्टभोज- नानि सिद्धानि शम्भवे उक्नविधिना करणं समोचौनम्‌ नाच तियिद्ेधविचारावकाग्रः afefea एव तददिघानात्‌ |

wat aa gala दान्चैव favua: |

नेमित्तिकन्त gata are दानच्च राचिषु

यज्ञे विवादे ararat तथा पुस्तकवाचने |

दानान्येतानि शस्तानि fafa देवालये तथा

दूति भवियोक्ते ual विगाहे afeare प्राप्तमपि दिपव

समाचरन्ति मविष्यदिवाइस्य दिवसस्य निभित्तवाद्राचिप्रसङ्ा- भावात्‌, प्रातदटद्धिनिभित्तकमिति कालविधानात्‌ wat sige निषेधलाच। इदं दद्भिख्ाद्धं ama करियते तच दैवादिन्नपाते

कलसार्‌ः| gos

पुनयेस्मिन्‌ fea विवाहादिकमेकरणं, तददिने तदङ्गानां माद- परूजावसोधारायुव्यमन्लजपदद्धिशराद्धानां पुनः करणम्‌ | प्रधानस्याक्रिया यच साङ्ग तत्‌ क्रियते पुनः | दति छन्दोगपरि श्िष्टोकेः। अरय सपिण्डीकरणएविचारप्राश्नौ तस्येकाद्‌ प्रादादिखाद्धपूवै- कतात्‌ एकादशादादिश्राद्धान्यच्यन्ते। याज्वर्क्य््ध प्रातातपो,- aasefa तु ang प्रतिमासञ्च“ वत्सरम्‌ | प्रतिसम्बत्सर चैवमा यमे काद्‌ गेऽदनि | च्रचाहःगरब्दस्य तिधिपरतेनेव गडततियौ मासिकान्याव्दिकं MPAs A एकादशा एव, तच सावनमासोक्रः( अत- एव तैपच्िके तियिदेधविचारावकाशः | इन्दोगपरिण्ष्टे- alien प्रतिमास्यानि राद्यं षाएमासिके तया | सपिण्डौकरणञ्चेव श्राद्धान्येवन्तु षोड्ग्र अच षाएमास्केि ऊनषाएसासिको वाषिके। एकाहेन तु षणएसामा यदा aria वा तिभिः) न्यूनाः सम्बत्सरयेव स्यातां षाएसामिके तद्‌ दूति तदुक्तेः षण्मासद्वयान्तक्रियमाणएतया षाणएमासिक दूति नारायणभाष्ये षाएमासिकयोः चिदिनन्यूनलात्‌ वाक्यान्तरोक्रदि- दिनलपचौ नाद्धियेते |

(२) प्रतिमासं तु| (२) सावनमानं

9०9४ गदाधरुपद्धतो

दादश प्रतिमास्यानि arg षाएमासिक्रं तया | aufaarfeea चति श्राद्धान्येतानि stem दूति जातुकण्य॑न,- sara सखपिण्डोकरणात्‌ कुर्यां ्द्धानि षोड्ग्र | दूति पेढौनसिना,- aigifa vign war नैव कुर्यात्‌ खपिण्डनम्‌ | दूति गोभिलेनापि चैपङिकं प्रवेश्य खपिष्डौकरणं त्यक्ता घोड्ग्र श्राद्धानि उक्तानि | यत्त्‌ः- दादशाहे चिपच्े वा षएमासे मासिकाब्दिके | श्राद्धानि षोड्गरेतानि deat”) मनौषिभिः॥ दति व्यासोक्तो दादशादोपादानं तदेकादशाडे दैवादादपेते- को दिष्ट्राद्धकरणे बोध्यम्‌ | एकादणेऽङ्ि Hala प्रेतसुदिश्य भारत | दादर atfe gata afar चयवाहनि दूति कोर्मोक्तः | यच्च,- ऊनषाण्मासिकं षष्टे Ara चोनमा सिकम्‌ | चेपकिकं चिपक स्यादूनान्दं ददप तथा दति गालवोक्तौ ऊनमासिकोपाद्‌ानं तदेकाद्‌ ग्रादस्य दाद WEA वा नामान्तरम्‌ |

मरणात्‌ दादशाद्े ara चोनमासिकम्‌ |

(2) Sa नि।

कालसारः | Boy

दति गोभिलोक्तः। एतत्‌ कालादरैऽनुमन्धेयम्‌ श्रनयेव fem श्रन्यान्यपि वाक्यानि समाधेयानि | सपिण्डो करणणदर्वाक्‌ यानि argifa stem | एकोदिष्टविधानेन कूर्यात्‌ सर्वाणि तानि सपिष्डौकरणादूद्धं यदा कुर्यात्तदा पुनः | प्रत्यब्द यो यया कूर्यात्‌ तया gaiq तान्यपि दृति पैठोनस्यक्तः सपिण्डोकरणश्राद्धपूवंश्राद्धानां पूरवेक्रि- कोदिष्टकालवत्‌ कालव्यवस्था BA तदादावप्येव faqs सवकम काय्यम्‌ | तया जातुकण्षे+- sg चिपचात्‌ यच्छ्राद्धं म्टतादन्येव तद्भवेत्‌ | श्रधस्तत्कार येद्धौ मान्‌ ९) श्रादिताप्र दिंजननः कन्दो गपरिश्ष्ठेऽपि,- आद्धमग्निमतः काय्यं दादहादेकादगेऽहनि | दति | श्रजिः,- Had Baar ठ्‌ ब्राद्यणन्‌ भोजयेद्श्र | च्राद्यश्राद्ध निमित्तेन चेकमेकाद्‌ परेऽहनि I सत्यत्रतः+- एकाद गेऽद्ि WAR प्रेतायमेकादत्राद्यणानामन्त्य aus नानाभच्छयर सपानादयैः भोजयित्वा विधिवत्‌ पिण्डदानं यथा चर ्रिद्योच जहोति यवागु पचतौत्य् पाटक्रमाद्थक्रमोवलवन्तर- दरति न्यायात्‌ यवागुपाकानन्तरमचिदोचहोमः तदद्चरापि आद्धा- नन्तरं दानं दला दश्दानपाजणं भोजनमित्ययंः 1 मौोरामायले

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(९) कास्येद्‌द्धादादिताभिं।

Bod गद्‌7धर्पद्तौ

श्राद्धानन्तरमेव नानादानानि प्रतिपादितानि। aatet नप्राच्छा- दनम्‌ | प्रतस्याच्छादनायन्त प्रयमं वासनो प्रर्मे दलान्यानि देयानि प्रेतकालोचितानि दरति पेढौनस्यक्तः प्रमे नवे ततो wane भवि्यो- त्तर विधिना विस्तरभयात्‌ a लिखितः। स्मृतिः गोग्ददिरण्ववासां सि cana जलं तिलाः | TA प्रपानवं चैवं प्रेतदानानि वै दशर भविययोत्तरविव्णधर्मोत्तिरयोः,- वस््रयानाश्चगोग्डमो शय्याच्छनारनानि | परेतकाले प्रश्स्तानि दानान्यष्टौ विशेषतः च्राग्रये,- श्रासनं तेजसं पाच लवर गन्धचन्दनम्‌ | धूप gag age लोहं ष्यञ्च रकम्‌ ्रोद्यादिनानाद्रव्याणि दा स्यात्‌ भुक्तिसुक्तिभाक्‌ अन्यानि काष्टपादुकादौनि स्कान्दादिधृक्तानि पद्धत्यनुसारेण देयानि ) तानि विस्तरभयान्न लिखितानि। यदि दैवान्मरण- दिने गतादपञ्चकसय दानाभावः तदा सवषाभादौ तत्पञ्चकदानं | एकाद ग्ादश्राद्धमपि भिद ण्डिसन्यासिनः पावेणएमेवेति प्राक्‌ लिखितम्‌ | अय Zag: | यमः,- एकाद गशाडे प्रेतस्य यस्य चोत्‌ ज्यते इषः | मुच्यते प्रेतलोकात्‌ खगेलोकञ्च गच्छति

क्ासलसार्‌ः | god

वद्किपुराणे,- प्रतभावमापन्ना ये चन्ये भ्राद्धवजिंताः। टृषोत्सगंण ते सवं गच्छन्ति परमां गतिम्‌ तदकरणे प्रत्यवायोऽन्यच्,- एकाद श्राह प्रेतस्य यदि नोत्‌ ज्यते दषः | Gad सुख्िरं तस्य ca: आद्धशएतैरपि श्रुतिरपि करोति ante ane वा जलाञ्जलिम्‌ | प्रयच्छति यः ga: पितुखूचार एव सखः एकादशाहे देवादकरणे, आये, एकाद णड प्रेतस्य यदि नौत्‌ ज्यते a: | मुच्यते प्रेतभरावात्स षण्सासेऽ्यादिकादिषु तचाषयसामर्थं, भविष्योत्तरे, कात्तिक्यामयवा माष्यामयने वा युधिष्ठिर | चेत्यामय ठतौयायां वेशाख्यां दाद्गेऽङ्धि वा aa दादगादोक्तिः। दादग्राहे giant: कन्तेव्यः afagqu तु दूति वाक्यात्‌ चखल्ियविषय एवेति चेत्‌, न। दादश afaarmtea सत्वात्‌ afe तदचनस्य का गतिरिति चेत्‌ | तख ware चचल्ियस्य गाद शौ चपक्ताश्रयणादिति समाधेयम्‌ | विष्णम्मृतौ तु ्राश्रयुज्यां वा cama | पुनयेमः,- एष्टव्या ava: पुजास्ततैकोऽपि गयां त्रजत्‌। यजेत वाश्वमेधेन ate वा टषसुत्‌ष्टरजेत्‌

gos गर्‌चरपड at

लोहितो यस्त॒ ata शिरः पुच्छस्त॒ पाण्डरः | ताम्रः खुरविषाणभ्यां खनोलो ay उच्यते Aq: खुर विषाणणभ्यां इत्यधिक टदस्यतिराद | माद्य विष्णधरमेत्तिरयोः,- चरणा मुखं पुच्छं श्चेतानि यस्य गोपतेः | सुलाच्चारसवण्स्तु नोलो ay उच्यते नोलदषाभावे waste दषा देयाः वद्किपुराणे- “भाग्य wey: wa” इत्यादिना सवेवर्णानासुक्तलात्‌ विधवायाः fat मरण टषोत्सगः, जौ वत्पतिकायाः | यदि qaaat नारौ faaa पत्युरग्रतः | au नेवोत्‌ श्जेन्तस्या यावत्तिष्ठति तत्पतिः दति गोभिलोक्षेः। श्च पूर्वाह्धादिकालस्यानुक्तावपि सौकर्याथमादावुत्‌ष्न्य श्राद्ध कुवन्ति इति) रय पुष्कर विचारः | वराहसंहितायाम्‌,- पुनवेखत्तराषाढाकृत्ति कोत्तर फाल्ग॒नो | पूवेभाद्रविशाखे Ysa खचपुष्कराः दितिया सप्तमौ चेव etiam तिथिरेव शनिभेमो tfaaa तियिवाराः प्रकौत्तिताः हानिवां यदि वा रद्धिभेय रोगोऽयवा भवेत्‌ | न्टतोऽपि निगृणो वापि श्रवो येषु wey

कालसारः। Bok

चिपुष्करे Ta गटहाति wat erat दयं तया एकेन तु भवेद्रोगो.° द्यरथंद्ानि निरिरेत्‌ तस्मात्‌ वारञ्च wag तिथिं aaa लच्चयेत्‌ | राजमान्तेरड,- fagut wifafa योगो दाभ्याञ्च दिग॒ण्णै भवेत्‌ एकेनैव भवेद्धानौ Taya प्रजायति | तथा, चिपुष्करन्तु aad waa चिगुणणौ भवेत्‌ | श्रोको वा जायते aa चिगृणएस्य सग़्रयः॥ aa शान्तिवेराहपुराणणदयुक्रविधिना कार्या दति! तददिनेऽसम्भवे We Wafer कार्य्या | दादशाहे ब्राह्मणभोजनं कुवेन्ति। एकाद गशारोक्रभोजनस्य तदिने प्रेता शेषस्य चिपयन्तं सत्वेन करणास भवात्‌ | Bit Sat ततो विप्रान्‌ भोजयेद्‌ परेऽदनि | दति पेठोनस्यतोश | श्रपरेऽहनि दाद ग्राह इति निबन्धेतः। aq मासिकनिणयः | मासिकानां प्रतिमासकन्तव्यलं प्रागुक्तं . तच करणाग्रक्तौ मरौविः,- सख्यं are मासि मासि च्रपर्याप्ताटरतु प्रति | दाद ग्राहेन वा करर्यारेकादह दादशापि वा॥ मासि मासि दति मुख्यः ve: ्रपर्याप्नावसम्भवे मासद्यान- न्तर आद्भदयं | तचाप्यशक्तौ eenfufeacien आद्भानि। तद-

(१) HARTA | 52

Bre गदाधर्पद्वतौ

सम्मते एकस्मिन्नपि दिने दाद्‌ गशश्राद्धानोत्यथैः एवं मासिकाप- ay तन्मध्ये तदन्तकाल कत्तं व्यवेन ॐपचिकोनषाणएासिकोनसाम्ब- त्छरिकषपिण्डकरणापकषेः सिध्यति | अथ मासिकेषु साभ्भिकंका्िनिराश्नोनां वस्या प्रथममासिकरं साग्रेदादावध्येव | ae चिपक्तादिति vata: | निरयिवदेकाग्रेरपि मरणावधि | एका््च्मरणादूद्धंमशौ चं आराद्भमेव यस्य तु चयमररोनां तस्योद्धं दादहकमेणः | दूति जातुक्ण्धीक्रेः दितौ यमासिकादिक तु सा्ेरपि aa- तियिष्वेव Sofas तु नेव शृततिथ्यादरः। षट्‌चलारिंश्रदिन एव तस्यानुष्टानम्‌ | aura का्णांजिनिः,- FATA मासेषु बद्धंमाने^") समेऽपि वा | aufaa चिपदे स्याश्मताहे लितराणि तु भविय्ये,- पिकं waza चिप तदनन्तरम्‌ | इत्ते WaT | कात्यायनोऽपि,- यत्र वा aa वा मासि षष्ठे षाण्मासिकं भवेत्‌। sofaa चिपक्ते पूर्ण स्यात्तदनन्तरम्‌ यच वा त्वा दति ug मलिनेऽपि वा तदनन्तरं षट्चला- fixes: |

(१) पिषमाहे |

कालसारः BX

ay षाणएमासिकम्‌ तत्‌पूवेदिने ऊनषाणएमासिकम्‌ | aa पैढोनसिः,- षाणएलासिकान्दिके श्राद्धे स्यातां Gata fe | एकाहेन तु दति वचनमण्यक्रम्‌ | aaa प्रयमषण्सासाग्य- न्तरेऽधिमासपते a, श्रधिमासं welaa षषटमासपूवेतियावेव ऊनषाएमासिकं कायम्‌, यच वा तच वा दति warm: | ay दितौयषाषसासिकम्‌ | तस्य ऊनसाम्नत्छरिकमिति नामान्तरम्‌ | परद्युराल्दिकं arg परेद्युः पुनराब्दिकम्‌ | दूति mga: | एतत्‌षणएमासाग्यन्तरेऽधिमासपाते सति चयो- श्रमासिकपूवेतिथाबेव ऊनसाम्बत्सरिकम्‌। दादश्मासाः सम्व- व्रः कचिच्योदशमासाः शम्बत्सरः” दति श्रुतेः | नतु चअन्दम्ये श्रधिमासपाते तच स्वेकमेनिषेधात्‌ तच मासिकं श्राद्ध काय्यै, किंवा कुच वा ara, दति az, गभस्तिः,- एको दिष्टं weg तनमे त्तिकमुच्यते | तत्‌ ara पू्वमासेऽपि कालाधिक्ये waa: gaara मलोच्त्रचे | विष्णधर्मोत्तिरे,- सम्बत्सरस्य मध्ये तु यदि स्थादधिमाभिकम्‌ | तदा aaten मासि क्रिया प्रेतस्य वापिकी॥ भरद्ाजः,- अधिमासे तु यच्छ्राद्धं कूर्यात्तदधिमासिकम्‌ | दति afuarafated श्राद्धं च्रधिमास एव कायम्‌ |

8१२ गदएधर्पद्धतौ

मरौचिरपि,- प्रतिमासं wars apis प्रतिवन्छरम्‌ | मासद्रयेऽपि कन्तेयमन्यया किल्विषौ भवेत्‌ दाद ्रमासे च्रधिमासपाते दादगमासष्टतादपूवेदिने ऊनसाम्ब- त्रिकं ara, तस्य सपिण्डनपूवे दिने विधानात्‌, सपिण्डनस्य मलमासेऽपि विधानात्‌ | तद्वाक्यं सपिण्डोकरणप्रस्तावे वाच्यम्‌ | मासिकादौनां देवादकरणे च्टय्यग्टङ्गःः- मामिकान्दे तु aaa यदि fan: प्रजायते | मासेऽन्यस्िन्‌ faut तस्मिन्‌ कु्यांदन्तरितं तदा कण्वोऽपि,-- नवश्राद्धं मासिकञ्च यद्‌ यदन्तरितं भवेत्‌ | तत्तद्‌ तर सान्तन्त्याद नुष्टेयं WIA च्न्तरितं wad wea समानतन््लात्‌ श्ररतमा सिक उन्तरमा सिकश्च उन्तरमासग्डताहे काव्यंमित्ययंः | श्रन्यच,-एकाद्शे AABTS Bate मास्िकिऽपि वा | अल्दिके faud श्राद्धेऽतोते कथचन I र्यात्तत्‌क्रमणो दभ्रं चदा कायवश्ाद्‌ बुधः | एकदेव समस्तं तत्‌ सपिण्ड करण्णन्तकम्‌ समारभ्य विधानेन पक्रान्नेन समापनम्‌ | aviaa fan तु श्रभौचानन्तरदिन एव काथं, cate प्रस्ताव उक्तम्‌ प्रेतयाद्भानां मध्ये एकस्य भ्रमादकरणे पश्चात्करणए- Haq) समक्काणं षोडग्र्ाद्धानां एकतमाकरणे षोड़गानाम- ूर्वाणामनुदये qa द्‌रपूरववद सिद्धेः |

कालसारः | ४९१३

च, यथाक्रमेण पुत्रेण कार्या प्रेतक्रिया सद्‌ा | पतितापतिता वापि एकोदिषटविघानतः॥ दृति जावाच्युकरेः तथा,- BARAT प्रेतश्राद्धानि यो नरो धमेमो हितः | ददाति नरक याति faefa: ae ग्राश्चतम्‌ दूति देवलोक्तेथ, कमरूपाङ्गसिद्धो कयमपूर्वेत्पत्तिरिति वाच्यम्‌ सवेश्र्चधिकरण नित्यकमंण्ङ्गानां यथा गशत्यनुहानस्य सिद्धान्तलात्‌ | तथाच कन्दो गपरि शिष्टे, सर्व॑कमेखु दैवादन्ययाक्रियायां तस्मिन्‌ कर्मणि सत्येव सुकरले यत्काय तदाद, (\प्रटरत्तिमन्यया guiq यदि मोदात्‌ कयञ्चन | यतः तदन्यथा जातं\) तत एव समापयत्‌ च्नन्यथाङतेः तत्‌प्रयोगमध्ये AAA यत्काय तत्तत्रैव, aaa यदि जानौोयान्मयेतदन्यया क्तम्‌ | तावदेव पुनः कुर्यात्‌ नाट्रत्तिः स्वेकमेएः | नाटत्तिः साङ्गप्रधानादत्तिः देवान्‌ प्रधानकमेणो रुतौ, श्ङ्गस्याक्लतो यत्कन्तेवय, तनत्तनैव,- प्रधानस्याक्रिया यत्र साङ्ग तत्‌ क्रियते पुनः | तदङ्गस्याक्रियायान्त्‌ नाटत्तिने तत्‌क्रिया तदे ण्यसमाधानायें विष्ण॒स्मरणम्‌ | तथाच योगो याज्ञवख्क्यः,-

(१) प्रत्त | (२) ae |

ere गदाधरपद्वतौ

श्रज्ञानात्‌ यदि वा मोदात्‌ प्रच्यबेदष्वरेषु यत्‌ | स्मरणादेव तदिष्णोः सम्यो स्यादिति स्मृतिः तयाच क्रमरूपाङ्गसिद्धये विष्णस्मरणं कायम्‌ ननु,- सपिण्डोकररे an प्रयकूत्वेनो पपद्यते | प्रयक्त्वे तु ad पञ्चात्‌ पुनः कुर्यात्‌(» सपिण्डनम्‌ i दति हारौतोक्तया सुपिष्डनानन्तरं पतितमासिककरणे पुनः सपिण्डनप्रसङ्ग(र) दूति चेत्‌, एतद्वाक्यस्य प्राप्तपिदलोकप्रेत शा- स्तो लंघन प्रवकप्रयद्करएपरत्वात्‌ | तथाच, प्रतानामिद wast ये मन्तरैनियोजिनाः | saat दि waar: सुपिण्डोकरणे छते aaa विनिस्तीर्णः प्राप्नाः पिहगणन्त ते a: afawtad प्रेतं एयक्‌पिण्डे नियोजयेत्‌ विधित्नस्तेन भवति पिदा चोपजायते | दति श्रातातपोक्ना पिदलप्राघ्यनन्तरं सपिण्डोकरणं निषिद्ध, मासिके पतिते षोड्ग्रश्राद्धासम्पत्या पिदलोकप्राघ्यसिद्धौ एयकर- णेऽपि दोषः | नन्वेवं सति,- यस्य सम्बत्सरादर्वाक्‌ सपिण्डो करणं छतम्‌ | मासिकं चोदकुम्भं देयं तस्यापि वत्छरम्‌ दत्यङ्गिरोवाक्यस्य का गतिरिति चेदुच्यते मासिकं मासि मासि ब्राह्मणभोजनं त्‌ ओ्राद्धूभित्ययेः |

(६) काय्यं | (र) सपिण्डौकर प्रसङ्गः |

कालसारः | ४२५

तयाच भरदाजः,- mag सपिण्डोकणं यस्य aU भवेत्‌ | ब्राह्मणान्‌ भोजयेनो वा प्रतिमासन्तु वत्सरम्‌ दति | नोवेति ओआद्ध निषेधः, दति निवन्धल्नतः अचर वाशब्द एवका- रा्थैः। पिहमरणणन्दे कन्तव्याकन्तैव्यविचारोऽश्रो चप्रस्तावे लिखितः | ay सपिण्डोकरएविचारः | Wa श्रसपिण्डौरुतः प्रेतः चुत्तषापरिपौ डितः आत्ता दुःखान्यवाप्नोति वातनां निरयेष्वपि ततः पिदलत्मापन्नः सखवेभोगसमन्ितः | अरचिष्वान्तादिमध्यस्यः प्राप्नोत्यम्दतसुत्तमम्‌ | वष्णधर्मोत्तरे,- कृते सपिण्डोकरणे नरः सम्बत्छरात्‌ परम्‌ | Wass समुत्सृज्य भोगदे दं प्रपद्यते अरय सपिण्डीकरणकालाः | श्रातातपः,- सम्बत्सरे तु ana म्पिण्डो करणं विह | सपिण्डौकरणान्ता ज्ञेया प्रेतक्रिया वृधेः सपिण्डो कर एश्राद्धं देवपूवं नियोजयत्‌ दति | ama, सपिण्डोकरणश्राद्धस्य पाबेणत्मिति श्रमावास्येतर- पावैएकालेनेव व्यवस्था | वौ घायनः+-“य मम्बत्सरे gu सपिण्डोकरणं चिपक्ते वा ठतौये मासि षष्ठे वा एकादशे दादशद्े वा एकादशाहे वा दति |

Bred गदाधरपद्धतौ

आश्लायनः,- “sy सपिष्डोकरणं स्यूतं सम्बत्छरे faud वा यद्‌ दवा ठद्धित्मापद्यते" दति |

श्रत एव शातातपः,

र्वाक्‌ सम्बत्सराहृद्धौ सम्प वत्सरेऽपि वा

Gatafa:,— “aaa मासि मासि arg कुर्यात्‌ सम्बत्छरान्ते विसजंनं नवमास्य" cae faa सपिण्डीकरणं नवमास्यं नव- faaia िष्पाद्यमित्ययथः। एवं सपिण्डोकर एस्य खातम्त्येणेव नव कालाः। यत्त कल्तरावुक्त(*) उन्तरमासि agt निशितायां पिण्ड- पिदयज्ञानुर)धेन सपिण्डोकरणणपकषं इति ¦ तत्‌ वर्षान्तपच- प्राधान्यप्रद शेनायं तु खातन्त्यनिटत्ययं एवं गयायाचाथे स- पिण्डनापकषेः.९) |

दद्धिश्राद्धो गयां गच्छन्‌ सद्यः कुर्यात्‌ सपिण्डनम्‌ |

द्रति देमाद्वि्ेतवचनात्‌ च्च गच्छिनिल्युक्ता दौपद्‌ानं गया्राद्धमिति वषेमध्े गयाश्राद्भस्य निषेधा warns ATA | गयायातैव HAW दत्यस्मदट्रसमाचारः | देशविशेषे तु गयाश्राद्धमपि कुवेन्ति। त्त्‌, ara कुलधर्माणां gat चेवायुषः चयात्‌ |

दति उग्रनोवचनं तद परविक्षवज्यौ तिषिकावधारितायुःसमाप्त- विषयम्‌ तेष कालेषु कन्त विगरेषा भविय्ये,-

सपिण्डो करणं कुर्यात्‌ यजमानस्वनम्निमान्‌ |

(१) कंल्पतरूकारादावक्त | (2) सपिग्धोकरणापकषः | .

कालसारः | 8२७

आअनादहिताद्नेः प्रेतस्य प्रूणऽब्दं भरतषभ क्तरि afaa तु कार्ष्णाजिनिः, सपिण्डोकरणं कुर्य्यात्‌ पवेवद्वाभचिमान्‌ सुतः | परतो दशरा्राचत्‌ PRTETITIAT: द्‌ शराचात्परतः कुहखत्‌ एकाद णद FRAA इत्यथः दत- tafe श्रब्दोपरोत्यथेः। “श्रमावास्यायामपराहे पिण्डपिदयन्ञन चरन्ति” दति श्रुत्या साग्रः पिण्डपिद्टयन्नस्यावक्यकलात्‌ | तथाच गालवः, - सपिण्ड करणातरेते पेटक पदमास्यित | च्राहिताग्नः श्रनौवाच्यां पिटयज्ञः vata aq यत्‌ सपिण्डो करणमुक्त, तदे काद गाहे दशेपात एव बोध्यम्‌ | तथाच भविष्ये, यजमानोऽच्चिमान्‌ राजन्‌ प्रेतश्चानश्रिमान्‌ भवेत्‌ | दादश्राडे तदा काय्यं सपिण्डोकरणं सुतैः यजमानः, कर्त्ता | कन्दोगपरि शिष्टे एकाद शाद faa पूवं गौद्ययाविधि | निवेत्त्ये श्राद्धं कत्वा द्वाद शादे सपिण्डनं काय्येम्‌ | गोभिलः-- afgay यदा aut प्रतश्चानय्निमान्‌ भवेत्‌ | दाद्‌ दे तदा काय्यं सपिष्डौकरणं सुतेः तथाच दादग्राहे दशेपाति तु agate एकादशाडे एका-

दशणादश्राद्धं Bal दादशाहे सपिण्डनं काय्य, अत एव दाद गैका- 53

४१८ गदाधस्पद्धतो

दे afe «fa वच्छमाण्टहस्पत्युकौ एकाद शरास्य पश्चादुक्िः | एकाद ग्राहं निवत्त्ये दति स्फटमुक्तं च। र्वाक्‌ सपिण्डोकरणणत्‌ gerd श्राद्धानि षोडश | दतयक्तः, एकादग्राहे दाद्शापि वा दत्यक्तञ्च एकदिने षोडग- आ्राद्धानां करण्मविरद्धमिति शलपाण्ादरयः | दादशदादिकालेषु सपिण्डो करणेखिमे | माग्यनग्रिलविधयः कन्तुरेव नियामकाः दूति स्पतिसद्गदोक्ेः दाद गकाद्‌ ग्राहयोरन्यतर स्मिन्नेव afi: कर्ता gaara | विस्तरस्तु AGS द्रष्टव्यः एवं सति facacfa काय्यैवश्रात्‌ दाद्‌ णदहादिषु सपिण्ड - करणएणचारोऽपि ्रविरद्धः एवं faadsfa बोध्यम्‌ तया सुमन्तः, प्रेतश्चदादिता्िः स्यात्‌ कर््तानश्रियद्‌ा भवेत्‌ | मपिण्डोकरणएं तस्य कुर्य्यात्पक्तं तौ यके किन्त निर्िकेन साग्रिकस्य faq: सपिण्डोकरणं faa एव ala Taq: | यदा कदाचिदपि प्रमादात्‌ साग्निको दादशडे एकादशाहे वा सपिण्डनं gaia, निर्चिरपि सािकस्य पितुः चिपक्ते सपिण्डनं कुर्य्यात्‌ तव्छननिदितोन्तर काले कुर्य्यात्‌ | तया गोभिलः, दादगशादादिकालेषु प्रमाद्‌ादर्‌ननुष्ठितम्‌ | -सपिण्डोकरणं कुर्य्यात्‌ कालेपृत्तरभाविषु द्‌ गद्ये तु ana पिण्डपिदटयन्ञव्य तिरिक्रद ग्र क्तसवेश्रोत-

RAAT: | Bre

कर्मानुष्ठानम्‌ | तया मादटसपिष्डानन्तरमेव पिण्डपिठयन्ञकरण, माटद शरादमध्येऽचेवं दर्णातुरोधेन अरौ चप्रकरणे लिखितमनुमन्ध- यम्‌ आदितो वत्पिटकवे तु पिष्डपिटयन्ना नारम्भपचसयेवा ट- तलात्‌ मादसपिण्डनं श्रनादिताग्निपुचवत्‌ wise चिपक्तादौ वा कूर्यात्‌, पिण्डपिटयन्ञाभावात्‌ एतेन प्रमोतपिद्कस्यापि मा्चि- कस्य faarate: खकाल एव सपिण्डनमिति faga पुचस्य साग्निकत्वे एकादशादटाद हयो गरेपातेऽशौचेऽपि दर्णालुरो सेन सपिण्डनमित्यशौ चप्रसतावे लिखितं श्रग्ौ चानन्तरं stat तु च्रशौ चानन्तरमेव( सपिण्डनम्‌ च्येघभरातुरुखनाम्निवे यदा भार्या मरणदिना श्राघानानधिकारिले साग्निकेन afaeararfa पिण्ड- पिद्यन्ञानुरोधेन एकाद शादहादौ सपिण्डनं कार्यम्‌ | ज्येष्ठो भ्वातानभ्चिमांखेत्‌ कनिष्टः साग्निको wad | कनिषटेनेव aaa सपिण्डोकरणएक्रिया इति खनेः

एम्बिधे विषये कनिष्टनेव उत्तरषोडग्कं काय्यं दत्य्थतो भवति, साभ्रिकस्य कन्त्दाविंशरतिदिने दर्भ॑पाते तु, arena वा gaiq, दति वाक्यात्‌ आ्रद्धविवेककारा एकाद श्रादादिदाद- wg दिनेषु Baas: | तथाच एकादशाहे एकाद्‌ शादश्राद्ध wer तदिन एव प्रथममासिकम्‌ | दादशाहे चैपचिवां छता ada दितोयमासिकं | चयोद्‌ श-चतुदं श-पञ्चद्‌ हेषु टतो य-चतुर्थ-पञ्च- ममासिक्रानि। षोड्गशाहे ऊनषाएमासिकषषटमासिके | मम्नदश्रा-

~~~ ee —— - `:

(१) अश्चौचापगमदिने सपिग्डनमिव्यपि waza | (2) द्वाद श्राहेऽपि |

४२० गदाघधरपद्धतौ

छटादणोनविंरविगरैकविंश्राेषु सपतमाष्टम-नवम-द्गमेकादश्रमाभि- arf) दाविं्ाहे ऊनमाम्बत्सरिकद्रादशमासिक्रं wat तैव सपिण्डनं, तियिष््धौ तु दाविंगोऽद्भि ऊनसाम्बत्सरिकं चयोविंशेऽङ्धि द्रादशमाबिकसपिण्डने कार्यं यदा लेतदन्दमध्येऽन्तिमिमास त्यक्ता मघ्येऽयिमासपातः, तदा तत्संख्यकदिने श्राधिमाभिकश्राद्ं। ततः परदिनेख्वपरमासिकश्राद्धानि। द्ाद्‌श्मासे वधिमासपाते द्रा विगेऽद्धि श्राधिमासिकानसाम्बत्सरिकद्वादशमासिकसपिण्डनानि कार्य्याणि श्रयमाचारः सवेशरिष्टसखतः यत्तु कंशचिदच लिखित दद्धि निमित्ताभ्यदयिकम्राद्धेऽपि श्रनयेव रौत्या एकाद शादमारण्य zignfea सपिण्डनं area, दति तद्भरान्तिमूलम्‌ raat विगेऽन्येव दद्धो atfasisma सम्भवति, नान्यत्त। तथाहि, “ag- sai इद्धिरा पद्यते दति गोभिल, “श्रय सपिष्डोकरण” दूति ्रश्चलायनसते यो दृद्धिनिमित्तः सपिण्डनापकषः उक्तः, तच, “प्रागावत्तनात्‌ we: कालं विद्यात्‌”, दूति गोभिलद्चान्तरेए “पूर्वाद्धे दैवतं aa” दूति waar दद्धि्राद्धसय watz विधानात्‌, रुपिण्डनस्य पावैणलेन woe विधानात्‌, तयोः खमा- धानाय तत्सननिदितपूरवदिने एव सपिण्डनापकषे इति स्वे निर्ण त- fafa, द्वादभ्ाडेन वा कुर्ययादित्यस्यान्यच प्रटत्तिरेव |

aq एव तथाचारो दृश्यते agi. दद्धं fafa पिण्डे कते तच विन्नवश्ात्‌ दद्यभावेऽपि पुनः सपिण्डनं काय्येम्‌ |

BE eee

(१९) ताचारो दृश्यते |

कालसारः | ४२९

“प्रेतानामिद सवषां” दति पूर्वोक्रग्रातातपोक्या पिद्रलप्राप्य- नन्तरमेव पिण्डनस्य निषिद्धलात्‌ | श्रय दादप्रमासस्याधिमासत्े सपिण्डनविचारः | तच,- saan हि कन्तेवयमाब्दिकं प्रथमं fas: | दति हारौतादिवद्कवचनेः पर्वोाक्रमलमासलिखितव्यवस्यायां(९) दादश्मासस्याधिमासत्वेऽपि तदधिमासिकदाद शमा सविदितश्राद्ध- सपिष्डनानि aratua tei विषये we sated मासि वापिकश्राद्ध पुनः ATA | च्राब्दिकं प्रथमं यस्य ngala मलन्तु योदश तु सम्प्राप्ते Hala पुनराब्दिकम्‌ दति व्यासोक्तेः। एवं ्रपछ्य।ब्दमध्ये सपिण्डने Hash giise पुनराब्दिकश्राद्धकरणम्‌ | श्रच यत्त॒ ats: तिथितचाकारो,- qa सम्वत्सरे आद्धं षडश्रं परिकौौत्तितम्‌ | तेनैव सपिण्डत्वं तेनेवाबग्दिकमिष्यते | दरति हेमाद्वि्तवाक्यात्‌ gases क्रियमाणत्‌ आदधात्‌ ययोभयं faaefa, तथा अ्रपृष्टसपिण्डनाद पि उभयो निर्वाहः, पृं वत्सरे श्राब्दिकान्तर | गोभिलेन gases सपिण्डौकरणमभिधाय अ्रत- ऊद्धं सम्बत्छरे सम्ब्रे प्रेतायान्नं दद्यात्‌ यक्िन्नहनि प्रेतः स्यात्‌ दति खतरे श्रा्यान्दादू द्धं साम्वत्सरिकविधानाच, दति, तन्न युक्तिसहं |

(१) पूर्वाक्तमलमासलिखितव्यवस्थया |

BRR गदाधरपद्धलो

पूर॑ऽब्दे सपिण्डने तरद्िने पुनराब्दिककरणश्रङ्धायां तेनेवाब्दिव; तन्लसिद्ध मिति हेमाद्विध्तवाक्वस्याभिप्रायः। aq एष पूणं दत्येवोक्तं त्रपकषं दति यन्त aa wa ऊद्धंभित्यक्त तद्ाषिकश्राद्धस्य प्रव्यन्दमवण्वकरणायमिति af श्रनि शततियेर पराहव्यापितलं(*) तस्मिन्नहनि सपिण्डो कर एस्य(२) उक्तत्वात्‌ तदनुरोधेन तददिने तत्यृवेमासिकस्यायि wafaet® करणम्‌ | श्रपुच्रस्यापि रुपिण्डोकरणं | तया लोपा्िः+- सर्वाभावे खयं पल्यः खभन्तंणाममन्तकम्‌ | सपिण्डोकरणं कुय्धुस्ततः पावेणमेव दति एव श्रपुचायाः स्तिया श्रपि, तथा पैठौनसिः,- ्रपुचायाख्च पल्यास्तु पतिः कुर्य्यात्‌ सपिण्डताम्‌ | शवा दिभिः wearer: सपिष्डोकरणं भवेत्‌ एतद पि सव्वाभावेऽपि वोध्यम्‌ | ननु,- श्रपुचस्य परं तस्य नेव कुर्य्यात्‌ सपिण्डताम्‌ श्रश्रौ चमुदकं पिण्डमेको दिष्टं पावेणम्‌ दति। agar ये wat: केचित्‌ पुरुषा वा स्ियोऽपि वा तेषां सपिष्डनाभावादैकोदिष्टं पावेणम्‌ I

(९) अपराहव्याप्तिः | (र) सपिण्डोकर्णानुखानस्य | (3) खअन्यतिधावपि |

कालसारः | 828

दरयकतिदयेनापि सपिण्डोकरणाभावः प्रतोयते, दति चेन्न तदुक्योः प्रजाः चोत्पाद यितवाः दृत्यथंवाद्‌कतया निषयात्‌ | अ्रविवादहितस्य तु सपिण्डनाभावः | दाद्‌ शात्‌ वत्सरादष्वेक्‌ पौगण्डमरणे सति सपिण्डोकरणं स्यादेकोदिषटादि कारयेत्‌ दर्यन्यत्रोकतः पौगण्डो वालकः श्रादिपदेन varenre()- प्राद्धाद्युपसद्गनहः यच्येतानि कुरत एकोदिष्टानि stem | fanaa) भवेत्तस्य दत्तैः श्राद्धशतैरपि द्रति Sarwan सपिण्डनं विनापि एकाद्‌ शादश्राद्भामिधानात्‌। पितामदादिभिः पितुः सुपिष्डनम्‌ | तथाच भरदाजः,- पितुः सपिष्डोकरणं तस्य पिडादिभिः सह पुरुषाणं सव्व॑षां तदत्कुर्यात्‌ सपिण्डताम्‌ पुरुषार्णं पिद्ब्यादौनां | एतेन यः afyefuar परेत्य पित्रादिभिः मह gaia इत्यर्थः | स्लोणामपि सुपिण्डनमावण्यक्‌ | तथा विष्णः मपिष्डोकरणं स्तोणां काय्यैमेव यथा भरेत्‌ | यावज्जोवं तथा कुर्य्यात्‌ ag प्रतिवत्सरम्‌

तासां सपिष्डोकरणं पितामद्यादिभिः सद |

= Se (१) रकाद श्या याद्वदानाद्युपसंग्रहः | (२) wa

४२४ गद्‌घ रपद्धतौ

तथाच ग्रहः, मातुः सपिण्डोकरणं कथं काय्यं भवेत्‌ सुतैः | पितामद्यादिभिः ag सपिण्डोकरण waa इति पत्या चकेन ana सपिण्डीकरणं स्त्रियाः | सा aaa fe तेनैक्यं गता मन्तराङतिव्रतैः दूति यमवाक्छम्‌ | यच्,-- गतं यानुगता नायं a तेन सहपण्डिताम्‌ | रहति सखगवासञ्च यावद्‌ाश्रतविक्षवम्‌ दति। श्रन्यारोडेऽपि शतातपवाक्यम्‌ तत्फलश्रवणात्‌ काम्य, दति तन्नाद्भियते | एवमन्येऽपि ये स्तो विषये भेदाः स्मृतिषु उक्ताः, ते देवादि विवादोत्पन्नपुचरविषया दति कैरपि aia | पितामदादिजोवने ब्राह्यहन्दोगपरि शिष्टयोः,- aa पितरि aera विद्यते पितामहः | तेन देयास्रयः पिण्डाः प्रपितामहपूवंकाः सुमन्तूरपि,-- चयाणमपि पिण्डानामेकेनापि afawaa | पिदलमश्रुते प्रेत दति धर्मो व्यवसितः एवं पुरुषत्रयस्य नियतलात्‌ पितामहे जवति प्रपितामदा- feaagu पितामहप्रपितामदयोजे वतो द्ध प्रपिता महादिचयेण सह सपिण्डनम्‌ | माद विषयेऽपि ब्राह्मे | मातयथ aaa a विद्यते चत्पितामहौ | प्रपितामहो प्रवन्त काय्येस्त चाप्ययं विधिः

ऋलसार्‌ः। 8४२५

दरति पूववत्‌ सन्यासिनां सपिण्डनाभावोऽगौ चप्रसतवेऽकेखि | देवात्पितुः पञ्चात्‌ पितामदहादिमरसे तेषां पुचान्तराभावे पौचा- दिभिः सपिण्डनं काय्यै | तथा कन्दोगपरिशभिष्टे- पितामहः पितुः पश्चात्‌ waa यदि गच्छति | पौ चेशेकाद ग्राहादि कर्तव्यं आद्षोडग्रं | | नैतत्‌ पौञेण ale] gaaida पितामहः | दति पितामहपौ शब्दः प्रपितामम्रपौचाद्युपलच्षणम्‌। षोड्ग्र- शब्दस्य WHA Wat | तथा x, एकाद शणाददादि पिण्ठीकरणा- न्तानि गगद्भान्येव कुर्य्यात्‌, दर्गाब्दिकानि cad: सपिण्डो- कर णानन्तरं पितुरेव तच्धेवोक्रौ तद्विधानात्‌ तया च, पितुः सुपिष्डतां स्वा कुचान्मासानुमार्किम्‌ इति | मासानुमासिकं दशंभराद्मिव्यर्थः। एतच्च श्राद्भ्‌मातच्रो पलचणएमिति नारायणएभाय्म्‌ | यस्य पिताग् छतः तदवर्षमध्ये पितामदप्रपिता- महौ पञ्चा ःतौ, तस्व पिदमपिण्डनकालप्राप्तौ चतरु पिष्डनाभ्या- भेव anat सह faq: मपिण्डनं कार्यम्‌ तेव, aaeat संकाय परी पौचप्रपौ चकः | पितर तच रुखर्य्यात्‌ इति कात्यायनोऽत्रवौत्‌ पापिष्ठमपि neq we पापकतापि ar; पितामदेन पितरं कुर्य्यादिति विनिश्चयः

ob

AR गदाधरपड्लौ

ga नारायणभाग्यम्‌ प्रेतभावापन्नमपि पितर निस्तोषंप्रेत- भावेन च्रनिस्तोखप्रतभावेन वा पितामदन सह ufe gaia, सपिण्डयेदिति शास्तौयो विनिश्चयः | ततश्च शास्तन धिते कानुप- पत्तिः | यदा त्‌ संस्कुर्यात्‌ दति निश्चय दूति पाटः तद्‌ाचमथेः | विष्णधर्मोत्तरे,- afes विविधरयन्नैः पूजितो aay केप्रावः ) प्रतलोक नते यान्ति तया ये afyetfau: ये चान्ये समरे हता इति पाठान्तरम्‌ | इति श्रध्चिदो्यादेः प्रतदेहप्राधिर्नाम्ति। भ्रतोऽसो LeMay पितामदन WEA श्रद्रदन सस्कर्यात्‌ सपिण्डयेदित्यथेः इति एवं पितामहोप्रपितामदोभ्यां च्रसंस्कताभ्यामपि सह मातरं सपिण्डयेत्‌ इत्यथः। “काय्येः तचराप्ययं विधिः, इति argia: | इमानि सपिण्डनान्तप्रेतकमे णि ग्रहण- दिनेऽपि garaa एव कार्य्याणि | WARS प्रकुर्वोत पक्तानेनेव सवेदा | खयं पाकं प्रकुर्वोत सगोञं वापि कारयत्‌ श्रपत्नौकोऽपि सिद्धानैः कुर्य्यात्‌ aretha sien | दति प्रचेतोवाक्ये सवेद्‌ापदोपादानात्‌ | ay पुचधिकापुचकत्तु क(\सपिण्डोकरणएविचारः | तत्र पुजचिकापुतचरप्रशंसा, याज्ञवसरक्यः,- iat धम॑पन्नौजम्तत्समः पुिकासुतः | afar एव gy दति वेति विज्ञानेश्वरा श्र्थान्तरमप्या्ः |

(२) सपिण्डोकरुणादिविचारः |

कालसारः | ४२७

मनुः,- आज्यं विना यथा तेलं सद्भिः प्रतिनिधोकतम्‌ | तथैकाद्‌ पपुः स्युः पुचचिकौरसयोविना दौ दिन्नो खिलं रिक्थमपुत्रस्य पितुदंरेत्‌ | एव caret पिण्डौ पिते मातामदाय च॥ पितुर्मातामदस्येति यावत्‌ मातुः प्रथमतः पिण्डं इत्यादि वच््यमाएवचनञ्च | ढन्दोगपरि शिष्टे मातुः सपिण्डोकरणं पितामद्या सदोदितम्‌ | यथयोक्रनेव कल्पेन पुलनिकाया चत्सुतः इत्युक्ता पुनस्त मानवोयं च- मातुः प्रथमतः पिण्डं निवंपेत्पुचिकाखुतः | दितौयन्तु पिद्प्तस्वास्ततोयन्त्‌ पितुः पितुः तस्याः पितुर्मातामहस्य तस्याः पितुः पितुः प्रमातामहस्य | अच नारायणभाग्यम्‌,- “पावर प्रथमं मातु- ददात्‌ तद नुप्रमातामहस्य तदतु मातामरस्य | श्रनेन पार्वंणोप- देशेन सपिण्डनमुपदि ष्टम्‌ अतएव, ततः प्रति वै प्रेतः पिहसामान्यमाभ्रुयात्‌ | दति हारौतेनोक्तम्‌ | तथाचो RAT, पितुः पितामहे यन्दत्यूलं' सम्बत्छरे Bai: मातुर्मातामहे तन्ददेषा काय्यं सपिण्डता मातामहे मातामदहादिचये, पितामहे खन्द दित्यभिधानात्‌ |

४२८ गदाधरपदतौ

बोधायनः, atfenq प्रथमे पिण्डे मातरं पुचिकासुतः। दितौये पितरं तस्यास्तृतोयं पितामहं दति लोपाचिः,- मातामदस्य गोञण मातुः पिण्डोदकक्रिया | कुर्बोति पुचिकापुच एवमा प्रजापतिः एवं सति व्यवस्था क्रियते पुचिकापुचो दिविधः। मातामडे- नैव सम्बन्धो मातामहेन स्वपित्रा सम्बन्धेति | क्रमेण AAG, तच वशिष्टः,- ्रभ्राटकां प्रदास्यामि aw कन्यामलकतां | Rai यो जायते ga: मे gat भविव्यति॥ मनुरपि,- यदपत्यं भवेत्तस्यां. तन्मम स्यात्‌ खधाकर | इत्याद्यः | कात्यायनः, अ्रपुचोऽद प्रदास्यामि तुभ्यं कन्यां भवानपि | पुचार्थौ चेदि दोत्पननः at gat भविष्यति दूति दित्यः | तच मातुः प्रथमतः पिण्ड इत्यादि विधिर्मातामडेनेव सम्बन्धस्य उभयसम्बन्धस्य तु उग्रनाः,- मातामद्यं तु माचादि tea. पिदपूवैकम्‌ | मादतः पितो यस्मादधिकारोऽस्ि धमेतः

(१) भवेदस्याः |

लसार्‌ः | 8२९८

Waa मातामद्यादिदेवताकं कम॑, मातामद्यादि, saa सम्बन्धो वेद्यस्य, श्राद्धं quia मातामहा पूवकं चेत्यर्थः | तदाद इऋय्यप्रटङ्गः,-

यस्माद्‌ भयसन्बन्धेः पुचिकायाः सुतोद्यमसौ | Wa मातामहश्राद्धं पशचात्पैटकमा चरेत्‌ |

तथाच मातुः सपिष्डोकरणं मातामद्यादिचयेण द्वि विधाभ्यामपि काय्यं पावेणश्राद्धं तु मातामदेकसम्बन्धेन माटमातामदमरमाता- महानामेव काय्यं उभयसम्बन्धेन तु आदौ माटमातामदप्रमाता- महानां ततः पिदपितामदप्रपितामदानां श्राद्धं कायै इति पु्िकापुच्रकन्तुकसपिण्डना दि विचारः |

उक्रकालेषु सपिण्डनासम्भवे गालवः,-

सपिण्डोकरणश्राद्धसुक्तकाले चेत्‌ छतं | UZ wa रोदिण्ठां मितमे वा समाचरेत्‌ व्ासोऽपि,- सपिण्डोकरणएग्राद्ं प्राप्तकाले चेत्‌ छतम्‌ रौद्र इर्तेऽथवा मैते कन्तव्यं वा स्तानि दति सपिण्डोकरणावचारः |

श्रपहष्य सपिण्डने ad नित्यश्राद्भवत्‌ किञ्चिदन्नं जलकु प्रतिदिनं मन्त्रं यावदयं 1 तया पारस्करः,-“्रदरदरन्रमस ब्राह्मणयोदंक्ुम्भ दद्यात्‌ पिष्डमेने निग्टणन्तौ ति" |

aa पिण्डपचस्व नाचारः |

waa सापण्डोकरणं यस्य मम्वत्सरात्‌भवेत्‌ |

४३० गदाधरपद्वतौ

तस्याप्यन्नं सोदकुम्भं दद्यात्‌ सम्बत्सर fas दूति याज्ञव्कयोक्तः। फलं मात्छे,- यावदब्देच यो दद्याद्‌दकु्भं विमत्सरः | परेतायान्नसमायुक्तं सोऽश्वमेधफलं लभेत्‌ WARIS दद्यादन्नं चामिषसयुतं | दति दति चदामिषदानमुक्त, तदस्मदेगे नाद्वियते | वह्कषु वाक्येषु श्रामिषाभावात्‌ | पुचस्य तस्मिन्नब्दे श्रामिषभोजनाभावाच ॥°॥ श्रय क्रमप्राप्रममावास्या दिपावेणश्राद्ध्‌ | विष्णः, --श्रमावास्याः तिखोऽष्टकाः तिखोऽन्वष्टकाः, माघौ- news रष्ण्रयो दशो तरोहियवपाकौ इति | एतांस्तु आद्धकालान्‌ वै नित्याना प्रजापतिः | आराद्धमेतेवष्वकुर्वाणणौ नरकं प्रतिपद्यते cfa प्रत्यवायश्रदणात्‌, नित्यशब्द पादएनाच्च | एवं वच्छमाण - ग्रनोवाक्यादिषु वोप्‌साञ्रवणच्च शैश्राद्धादोनां नित्य पार्वंएलञ्च भविष्ये Mega | श्रहन्यहनोति भविष्ये, प्रतिदिन- दिदितस्य यननित्युलमुक्त, एतेषां तु पार्वेएलमुक्तंतदितिकन्तेयता- yenaraia इति विरोधः | तथाचोग्रनाः,- कुर्य्याद्‌ दरदः aig प्रमोतपिढको दिजः सा्चिकोऽनग्निको वापि दँ दशं विशेषतः तच सर्वेषां आद्धानां अमावस्या प्ररुतिरिति श्रदावुपद्दिष्टलाच्च सा

"षक

कालसारः | ९३१

विचाय्येते। तच साधिको निरभ्निकश्च प्रमौत पिह कोऽधिकारौ एतचा- मावास्याओद्धं साग्चिकेन पिण्डपिदयन्नानन्तर काय्येमिति fare: | मनुः,- पिष्यज्ञं तु faa विप्र्चन्र चये ऽग्निमान्‌ | पिण्डान्ाहायेकं 41g कुर्य्यान््ासानुमासिकम्‌ पिण्डानां मासिकं आराद्धमन्ादायं fazaur: | दूति पिण्डानां पिहियज्ञसम्बन्धिनामनु पञश्चाद्‌ादाये काययै- मिति दशश्राद्ध वुधा विदुरित्यथंः | यदा, ततः प्रष्ति पितरः पिण्डसन्नां तु लेभिरे | दूति माव्योक्रेः, पिण्डानां पिद्रणं aarera arfenefa- जनकमिति श्रन्राहायं मासिके इति कोषात्‌ | च्रयमयेः,- afar: पिण्डानां मनुक्यानुगतखेति समो चौनः। चन्द्र चये चनद्रक्योपलक्तितकाल्ते ्रमावास्यायामिन्य्यंः | तथा श्रुतिःः-“तदेतदिष वै सोमो राजा यद्वन्रमाः एताभ्य ufa daa तत्कोणे देवानामन्ने पिदन्योदद्‌ातिः' इति ्रत्यन्तर॑च,- “मासि arfeisna’ fafa” | afand इन्दो- ngfcfng | कात्यायनोऽपि, पिण्डान्वादायेक श्राद्ध कणे राजनि nad | वासरस्य तोयां ग्र नातिसन्ध्यासमोपतः राजनि we कोणे sam विनष्टे च्रमावास्यायामित्यथैः गरश्राद्ध प्र$स्यते | किं इतरपावेणएवरदस्वापि कालो oat नेत्याह,-

(१) मासि मासि वोऽग्रनमिलि |

४२२ गदाधरपद्धतौ

वासरस्य दत्यादि, पूर्वाह्णो वे देवानां मध्यदिनं मनुग्याणएणं श्रपराहः fuaui दति श््युक्तचिधाविभक्रदिवसस्य टतौोयभागदहपेऽपराके zig | ननु afe पञ्चधाविभागे श्राद्धे निषिद्धस्य सायाहस्या - पत्र ग्रहणं दत्याग्रद्भाद नातिसन्ध्येति। श्रतिसन्ध्यासषमौ पतेन मायंकालात्‌ YA मुहत्तदयं दगंश्राद्धे ass) सुहन्तंदयत्यागे किं विनिगमकमिति चेत्‌ उच्यते सायान्दः चिसुहटत्तस्त॒ तत्र Big कारयेत्‌ | दूति areata, HE qe Faq यन्भुहन्तं चतुष्टयम्‌ सु हनत्तेपञ्च वापि सखधाभवनमिय्यते दति श्रत्यसम्भवे चयोद्‌ गमुदह्टन्तपयन्तं aie सामन्येन विकल्ि- तस्यापि कालस्य दिनिगमकलं। अतएव श्र दृष्नयप्राचौनानां सद्नहकारिका | मुहर्तादट्‌ग्मात्‌ VW | सुहत्तचितय काल अ्रमावास्यस्य | इति एतेन नारायणभाव्यानुगततियिततले च्रतिश्नब्दखारस्यात्‌ सुदत्त माच त्याज्यं दति यदुक्त, तन्नाद्वियति, नापि तन्मतं युक्ति सद, यदि अतिश्ब्देन मुह्धन्तंमारस्य परिग्रहः, त्यागे afe विनिग- मनाविरहात्‌ दण्डादेरपि त्याज्यं fa स्यात्‌ दूति तथा सुह्धत्त दयेव त्याज्यं | ननु स्वेतियौनां चयमाम्यदद्धयः सिद्धाः तच कथं ET वयवस्येत्याकां चायां qc चाह एव | यदा चतुद गोयामं तुरौयमनुपूरयेत्‌ |

कालसारः | BRR

अमावास्या रोयमाणा तदेव भाद मिय्यते Wena पूवंदिवसो गद्यते वद्धेमानाममावास्वां लक्तयेद परेऽहनि | यामांस्त्ो नधिकान्‌ वापि पिटयज्नस्ततौ भवेत्‌ | दति वच्छमाणेत्वनुरोधात्‌ | waemard इत्येकं पदं | तुरो we, चयादिकं पूरवैतिश्यपे चयैव | तियिच्ये शिनोवालौ तिथिदद्धौ कहता साम्येऽपि gene वेदवेदङ्गबेदिभिः दरति प्राचेतसौयोक्तौ स्फुटलात्‌ तथा Steam पूर्वा पर दिवसोययाकचतु्‌ं ्वपेया saad} श्रमावास्या यदा चतुरं परवदिवसौयथामं शअरनुपूरयेत्‌ तरव चतुद ोपूवेदिन एव श्राद्धः एतेन भाय्यानुगततियितवे Sear न्टनकालव्थापिनौ- त्यादि यल्लिखितं, awa परास्तमेवेति बुद्धिमद्धिरविभाव्यं | ननु Geka चन्रमा दृष्यते तचामावास्यां sata, दृति भृत, Be राजनौति ल्दुको, मानवीयोक्तौ wari are सुक्र, तत्कथं पूवे दिने चतुद गौ सते चन््रदेनेऽपि श्राद्धमिति- fattuarngy परिहरति एव,- Ugh Uses देनं नेति wear: | तत्‌ च्यापेचया ज्ञेयं रौणे राजनि चेत्यपि यस्मिन्नहनि weet भवतौत्यभिप्रायात्‌ यददस्तित्या दि श्त्या Sle दइत्यादिरूत्या चद्रचयरूपायां श्रमावास्यायां ziarze

Heat प्रतिपाद्यते तु चतुद मिश्रा निषिध्यते cad: अतएव 99

== BRB गद्‌घर्पद्तौ

दृश्मानेऽयेकद्‌ा दति गोभिलद्चं | दृत्यं गढ तचत्‌ दं भौ विषयतां सकटयतोति एवाद Bata दृश्यमानेऽपि तचत्‌ ट्‌ श्यपे चया | ननु तिं अमावास्या प्रतौचण्णेया वा ? दत्या्रङ्गाया एवाद,- अमावास्यां प्रतकेत तदन्ते वापि निवपेत्‌ | तदन्ते चतुद रेषे निवपेत्‌ श्राद्धं कुर्थ्यात्‌ दति ननु श्रमावास्यायां weaet भवति, तत्कथं चत्‌ देशो शेष दरत्यप्युच्यनदत्या IR] चन्र चयकालमादः- HASH WAST: BUT भवति चन्द्रमाः | श्रमावास्याष्टमांगर ततः किलल wae: चत्‌ देण्यष्टमयाममारभ्य त्रमावास्यासप्तमयामान्ते समप: चयः ततो ऽमावास्याष्टमयामे चन्द्रोत्पत्तेरारम्भः इत्यथः | किलेति च्रागमवारत्तायां | एवं ZIG अमावस्वासु व्यवस्यासुक्ता मागेगौषं- य्ये्टामावास्ययो विंषषं एवा, - श्राग्रहायण्यमा वास्या तया ज्येष्ठस्य या भवेत्‌ | विगेषमाग्यां aad चन्द्रचारविदो जनाः त्रभ्यामिति दलोपे पञ्चमौ इमे श्रमावास्ये प्राप्य TAU: | चन््रचारविदो ज्योतिविदः अच रक्त प्रतिपदादिमासा्रयणेन मागेभोरषपौ ea EAT AA ATE ATA Wa | सवेग्रन्ध- कारल्लिखनादाचाराच | aa विशेषं एवादः saga प्रहरेऽतिष्ठते WAM कलावशिष्टः | तदन्त एव चयमेति aaa ज्यो तिश्चक्रविदो acta tl

कालसारः | ६२५

aq श्रन्‌ मास्य न्दु चराद्य प्रहरे अन्यदशरषु तु चन्द्रचयकालवेन(* अभिमते चतुदश्यष्टमयामरूपे इत्यथैः चतुयं- भागो कलावश्िष्ट safe) ऊनञ्चतुर्थभागः चतुथंभागाद्धं WAS: कलाया svat भाग इति यावत्‌ कला पञ्चदणौ- = कला चतुथंभागो ay कलाचति दन्दस्मासरः। ते अवण्ििष्टे विनष्टे यस्य तयोक्तः तदन्ते wae अमावास्याया- मित्यथः | faq समय चयं age: कलाया अपचय e ~~ = व्यापार एति प्राप्नोति श्रनयोरमावास्ययोः चन्द्रगतिवलचण्छात्‌ चतुदशष्टमयामे हयः किन्त दर्गाद्ययामप्रखतिद्‌ष्टमवाम- साध्यः चयः | अनयोरपि देयो मेलमा सयुक्त वर्षऽन्यद्‌ शं सिव चय दति fanware एव, - = यस्िन्नब्द्‌ दादग्कख Ga: तस्ति तोयापरिदृश्यो नोपजाघते एवं चार चन्द्रमसो विदिला aia तस्मिन्नपराह दद्यात्‌ यव्यश्रब्दो मासवाचौ। यस्मिन्‌ वषे दार्‌ग्रयव्या एको way दति चयोदशमाषा waa: | मलमासः पततौति यावत्‌ तस्मिन्‌ ag चन्द्र WIG प्रहरे दति पवेसमादनुषङ्गः ठतो यापरिदृश्यः ठतौय- माचया परिदृश्यः नोपजायते चतुयंभागो कलावश्िष्टो भवतौत्ययेः | मलमासयुक्ाब्दस्तु एकस्मान्मरमासात्‌ चअब्ददया- नन्तरात्मकः | ठतो यवर्घं मलमासस्यावश्यंभावात्‌ | चारः गति-

(१) परथमत्वन | .

8२६ गदाधरुपद्तौ

fans: तस्मिन्‌ चन्द्रे रपरा पूर्वोीक्रविधाविभक्रदिवसस्य eata- भागा दयमुहत्त चयषूपे | एवं कौोयमाणणपक्तं, तचाग्रङ्गया चन्रत्तयं fasta ददान समाप्ते व्यवस्थामाह एव,- सम्मिश्रा या WSR श्रमावास्या भवेत्‌ क्षित्‌ | खवतां तां विदुः केचित्‌ उपेष्वमिति चापरे या श्रमावास्या तिथिः चयटद्धिरदिता सा समेत्युच्यते | म्त्भेनावस्यितेति स्तभ्मितेति कल्पतरूकराद यस्तामाह्धः, या समा- मावास्या ae संमिश्रा भवेत्‌ तां खवेतां wat समतियि- जयति वौ धायनोकेः समा मित्यर्थः क्रचित्‌ उभयदिनापराहदय- सम्बन्धसम्भवे दत्ययेः | केचित्‌ वुधाः fae: जानन्ति आरद्धाय इति पेषः, aigret स्तौक्वेन्तोति यावत्‌ | wat दुधाः यूयमिति my, दति रतोः wast सखवोकाराद्धेतोः दति ओेषः, उपेष्व- मुपगच्छत श्राद्धाय Baar was: | केवलं विद्मः श्रपरे- चति चकारः समुचये, “साम्येऽपि कुहज्ञंयति? प्रचेतोवचने पूवैदिनस्य निषिद्धलात्‌, कात्यायनोऽपि waza क्षिदित्यादि saad | एतेषां वाक्यानां सावका शलं वच्यते | वद्धंमाना पचे ववस्थां एवाह,- वद्धेम।नाममावास्यां लक्तयेद परेऽहनि | यामास्तोनधिकान्‌ वापि पिद्टयन्ञस्ततो भवेत्‌ प्रतिपद्यपि gata arg sigfaet faz: | प्रतिपदि चन्द्राद्यकलोपचयव्यापार विशिष्टे काले wararer-

ATTATE: | B39

मांश tat: wa तदेतदेष वै दति पूर्वोक्रमरतयक्ष्रुति विरोधात्‌ विरोधाधिकरणन्यायेन weeded मला वद्धंमानाखतिरनादर- णोया दूति केचित्‌, तन्न ante stead सर्वा बेष्टितवया दति रतिः, श्रौदम्बरौं eter गायेत दति श्रतिः, तच wags सति शरतयुक्तस्श्रनस्य श्रत्यन्तासम्भव दति afamat विरोधे श्रतेवलौयस्वं निर्णीतं

प्रकते तु वद्धेमानारूत्य विरोधेन चो वमाणाश्ुतेः सावका- wary विरोधाधिकरणविषयलाभाव दति कैञिन्‌ समाहितं वस्तुतस्तु तदेतदेष वे इति भृतिः च्रमावास्याश्राद्धं कामिति प्रतिपादयति, नलमावास्यायां चौ यमाणल प्रतिपाद यतति, यदुं यद्दस््ेव॒दत्यादि पूर्वीक्रवचनेन दशंश्राद्धस्य ara निश्चित्य श्रमावास्या तिधेस्ते विध्यं कात्यायनेनेव उक्तमिति कञ्चित्‌ विरोध- प्रसङ्गः चयविषये नारायणभाय्यानुगततियितवादौ तुरोय- भागो नकलाविशििष्ठता विनाग्रञ्च दति दयं चयपदट्‌ वाच्यं दरत्यादि महता प्रवन्धेन यक्निखितं aque दरति अस्मदि ्नोयपूर्वा- चाय्यलिखितचयप्रकारः सविगरेषस्तच्छ्राद्धकालविचारश्च स्पष्टतया लिख्यते,-

चन्द्र चयः चन््रान्यकलाया Haya विनाशः चाकंसक्रमणवदति- खन्मकालमाचयो गात्‌ अ्रन्यकलापचयमाचमित्येवं aa पौरमास्यां ्न्तिमिकलो पचयक्रमेणए पौ खंमास्यान्तिमचणे संपूर्णः wet भवति

ततःग्रति fanfafaataret प्रतिपद्‌ादितियौ एकैकादि(९- | ` ~^ (१) रखकेककन्ताच्तयक्रमेण |

९२८ nzryxuzat

कलाच्तयक्रसेण WATT: सप्रमयामान्ते VENA कलानां चयात्‌ afaxaaa तिष्टति तस्याश्च ततः प्रति क्रमेण चये श्रमा- वास्यायाः सप्रमयामान््य्णे Way चय Tea श्रन्धकलायाः चयः सन्यूणतिचिमाष्यः ततः चिंग्रल्ञिधिकाधिकासु प्रलिपदाद्ये- जकतियिब्देकककललो पचयक्रमेण पौ णंमाम्यन्ते संपूणश्चन््रो भवति TQS: ATMA sea लेमाम्यनन्तरयो स्वपरपक्षयोः प्रतिति यिकनैको पचयक्रमेण WSIS प्रहरे WERT: कलाया- श्रष्टमो भागः warm कला fafefa | तेच कलाष्टमाशः चतुदश्वष्टमप्रहरान्ते विनश्यति | agent तु कला अ्रमावास्याद्य- त्षणप्रशत्य पचयक्रसमेण अमा वास्यान्त्य्णए एव Bari विनश्यति | AAU CAAA SA मलम सयुक्ताब्दे अन्यामावास्यास्विव चतुट्‌श्य- मयामादिदगसप्रमयामान्तः कयः तदेतत्‌ स्वं ज्योतिः- aac”) | एष॒ चन््रक्यो पलक्ितः कालो यस्मिनदनि निधाविभक्तदिवसदटतौ यभा गा चमुद्भन्तैचये लभ्यते तदैव ATE! वाखरसेत्यादयकतेः, तत्रापि afe पवद्यरमावास्या चतुद श्वष्टमयामं afin श्राद्धयोग्यकालव्यापिन स्यान्‌, तदा चतुदंभोगरेषसमाश्जि- रपेक्तप्तोया | अन्यथा चत्‌दश्यष्टमयाम एव॒ Ay, भ्रमावास्या- मित्याद्युक्त : |

सौयमाणणपन्ते तु यदा wen Wa आद्भयौग्यकाल- व्यापिनो परेद्युः श्रमावास्या दासवत्‌ gH चन्द्र्तय- विशिष्टा स्यात्‌ यदा हामस्यादन्पलात्‌ चन््रचयविश्िष्टापि

(२) अवगन्तव्यं | (2) यदा att

कालसारः | gee

स्यात्‌, तच उभयत्रापि चतुदश्यष्टमयाम एव Wg, यदा went- यामं TATA: |

यदा तु wa: चतुद दिवस्यापिनो यदा राचिमपि सयति, परेद्यु खाधिक्यात्‌ श्रमावास्या श्राद्धकाले चयविशिष्टा स्यात्‌, तदापि रुब्ूर्षायां चतद्ण्यां ag, चनद्रचयविशिष्ट- काललाभात्‌

यदा तु wag: चन्द्रचेयविश्रिष्टा चतुद आद्धकाले स्यात्‌, परेद्युः हा साधिक्यात्‌ श्रमावास्यापि आ्रादकाले चन्द्रचयविशि्टा स्यात्‌ | तदा केवलायां ्रमावास्यायामघेवर arg) aa राजनि wad दति चन्द्रचवयविशिष्टका लस्य WMATA Baas ्रमावास्यातिधिमाचमप्रग्सत Wael तद्भावे aurea प्रति- निधिवन्‌ च्रमावास्यामात्रसेव BAIT |

WAG तु यदा AAS Wy: आद्धयोग्यकाले चय- विशिष्टाधिककालव्यापिनौो स्यात्‌, परेदयुरल्पकालव्यापिनो स्यात्‌ तद्‌ पूर्वेद्युः आद्धम्‌ |

ang पौणेमासञ्च पितुः साम्बत्सरं दिनं) पूव विद्ध मंङर्वाणो नरकं प्रतिपद्यते

दूति नारदौयोक्रःः

afaat या wae दत्यायुक्ेश्च कल्यतरावपि यदा च्रमा- वास्याया ufgaat किन्तु स्तम्मनोभयदिनयोः श्रपराद्ध- सम्बद्धामावास्यासम्भवः। तदा yafea एव श्राद्धं We) BVT

(१९) अमावास्यायां Ag |

Bye गदाधरपड्धतौ

राजनि wea दति लिखितं यदा तु पूर्व्यः अ।द्कालेऽच्य- कालव्ापिनो जअममाऽमावाम्या५ स्यात्‌, वा परेद्युरधिककाल- व्यापिनौ स्यात्‌, तदा परेद्युरेव arg) साम्येऽपि कुहन्ञंया- दूति प्राचेतसौ योक्त; श्रधिकव्याप्तैवलवलाञ्च।

बद्धेमाना पत्तं तु यदा दिनदयेऽपि algae चन््रच्य- विशिष्टकाललाभः, तदा परेद्युः श्राद्ध, उभयत्र चन्रतयवे fT समानलेऽपि परेद्युरधिकममावस्टतियिलाभात्‌ ) यद्वा परेः श्राद्धकाले चनद्रहयविश्िष्टा स्यात्‌, केवलं बद्धमानामावास्या यामचयात्‌ किंचित्‌ श्रधिकं यामच्रयं वा agar तदा चन्द्र चयमनादृत्य केवलामावास्यामात्रे परेद्युः Wg, बद्धेमानाममा- वाखयाभित्यादयुक्ेः। मलमासयुक्तान्देतर वर्षु मार्गौ षंपौ णमा सोच्येषठ- पौणेमास्यत्तरथो स्तमावास्ययोशच द्रलयवेलक्तण्यस्य भितलाचतुदश्यां आआद्धमम्भावनाऽपि नासि तेना यद्‌ा निधाविभक्रदिवस्स्या- पराहप्रयममुहन्तेचयेऽमावाष्या तदिन एव agi यदि तु az चासबाडख्या दिनद्रये श्रपि चिधाविभक्रदिवमटतौ यभागादसुदहन्तं- चये Waa wad तदा दिघाविभक्रदिवमदितोयभाग- रूपापराहे यचैव FRU BATT लभ्यते asa aigfafa aa समसनम्‌ |

गँशटिकालस्य swag Naa तत्कालो विचाय्येते। चन्र चयोत्तरदिन एव दष्टिकालः | “Gag: पिदभ्यो निकरौ परेदु देवेभ्यो ददातौ"ति Aa | भ्रतणएव azar जौवत्पिटकमस्य

(९) अमावास्या स्यात्‌, परेद्युः |

कालसारः। ४४१

पिदयज्ञाभावात्‌ ्रमावास्यायामेवेष्टिः, दत्यभिप्रत्य चतुदश्यामे- वोपवास दव्युक्तम्‌ यागकालखरूपमाद खद्‌ गरातातपः,- पावेणो यञ्चतुयां श्र ara: प्रतिपदस््रयः | यागकालः विज्ञेयः प्रातयक्तो मनोषिभिः | तच,- यष्टव्यं चतुधार यागेः प्रतिपदः कवित्‌ , रचांसि तदविल्पन्ति श्रुतिरेषा सनातनौ | दति कात्यायनोक्तः wine दुष्टवेऽपि,- सन्धियदपराह्े स्यात्‌ यागः प्रातः परेऽहनि कुर्वाणः प्रतिपद्धागे चतुर्थेऽपि cafa | दति इद्धश्रातातपोक्तः, चतुयभागेऽप्यदोषः | कुर्वाणः प्रति- पद्वागे दति यदुक्त, तत्‌ मागं ौषयषठप्ूलिंमो त्तरद भयोः, चौ य- माणापक्तेऽपि प्रतिपदि waeny, वद्धेमानाप्धेऽपि प्रतिपदि स्वेद गेषु, कदाचित्‌ समापत्तेऽपिवेति बोध्यम्‌ सवच रौयमाए पच्च faa चथा, यद्‌ चनद्रचयानुरोघधन wei ag, तदा चदि अमावास्यायां पवंचतुयों शप्रतिपदाद्यप्रजयरूपयागकालो लभ्यते, तदा पवंहतौयां गेऽपि यागः ara: | तथाच BTA qautsn ठतौये वा कार्य्या दष्िदिंजातिभिः। दितोधास [दितं यस्मात्‌ दुषयन्त्याश्वलायनाः इति | ्राश्वलायना tam ग्वेद विषयमेतदिति केचित्‌, तन्न |

अविर्‌ द्धपारक्यधमांद्परस्या ASTANA | 56

९४२ गदाधरपद्धतौ

तथाच छन्दोगपरि शिष्टे, - यन्नान्नातं खग्राखायां पारक्यमविरोधि यत्‌ | विदद्भिस्तदनुष्टेयमग्निदोचादि धमेवत्‌ इति | श्रच प्रसङ्गात्‌ पौरमासेष्टिकालोऽपि निरूप्यते | कात्यायनः, Vay मङ्गवादू खख ' प्रागेवावत्तंनाद्रवेः | मा awa विज्ञेया सद्यः कालविधौ fafa: au विछ्घतेष्टिविचारः। यद्‌ yale Wale वा सन्धिः तद्‌ प्रातरेव प्राप्रयोः प्ररति- fast: कस्या श्रादौ काय्येता दत्यपेक्तायां श्राह श्रापस्तम्बः,- प्रकृतेः पूर्वाक्रत्वात्‌ BA श्रन्ते स्यात्‌ इति | श्रपूर्वां faafa: प्रकृतेः समाप्तौ स्यात्‌, प्रतेः पूर्वोक्रतादित्य्ैः। aa कात्यायनो विग्रेषमाद,-- श्रावत्तनात्‌ प्राक्‌ यदि पव्वेसन्धिः eat तु तस्मिन्‌ प्रति faa: | aaa यागः परतो यदि स्यात्‌ तस्मिन्‌ fama: प्रकते: परच mada परतः सन्धिः स्यात्‌ चेत्‌, तदा केवलो faafa- यागः सन्धिदिने ara: प्रकतियागः परबेत्यथेः। सर्वासामिष्टौनां भेपौरखमाषौ प्ररतिः श्रा्रदायण्छाद्यो विकूतयः, काम्या- दृष्टयोऽपि | पच्वादिचतुःकालः(", कन्दो गपरि शिष्टे,

——————

(९) प्रच्तादिचरूकालः |

काल्तसारः | ६९३

पच्वाद्‌वेव Haid सदा पच्चादिकं चर्‌ gale एव gaia विद्धेऽप्यन्ये मनो षिण: | पच्चादौ प्रतिपदि विद्धेऽपौति ददितौवारहितेष्टिकालस्य प्राप्नो सत्यां दितौ यासदितो निन्दितः | प्राप्नो तुस एव यागाङ्ग- fafa i aa मम विज्ञापनम्‌ | नारायणैयभाव्याय विरुद्धं यन्रयो दितम्‌ | सखद शा चाय्यैमण्छद्‌ास्ापनायेव ABUT: अरमावास्यानिषिद्धानि | ्रमागास्यायां areata arena Yaar परस्य च। सतिः,- श्रमावास्यायां faq कुशांश्च समिधस्तया | वौर्धावस्थिते^?' ata हिसायां ager भवेन्‌ गो डोयचिन्तामण तु,- सायंसन्ध्यां परान्नं राचौ भोजनमेयने aa मांसं तिला पिष्टंर) ्रमावस्यादिने त्यजेत्‌ एतद चनस्य देशान्तरे श्रादरः। तस्मादस्मटेणे सायंमन्ध्यां Hater | ग्रातातपः,- वनस्यतिगते सोमे wa a तु yaa |

(a) च्छिन्द्यात्‌ | (र) सवेचावस्थिते | (3) तिलपिदधममायां विवजयेत्‌ |

8९8 गद्ाधर्षद्धलौ

तेषां मासकृतो Etat दातारमनुगच्डति," होमग्रन्दोपादानादिदं सा्चिकपरमिति केचित्‌ aaa qufafa केचित्‌ पठन्ति वस्तुतस्तु होमश्रब्देन वेश्वदे बद्दोमस्व ग्रहणात्‌ निरग्ररपि निषेधः | ada श्रपवादोऽन्यच्र | Jaa मातुलान्नं VATA तथेव पितुः पुच्स्य vara परान्नमिति स्मृतं एवं सति, AWA q यो भुक्ते a ya एयिवौमलं fa बौधायनो क्रिगं द्िंतश्चगरर घनो पजो वनविषया(२) श्र ग्रा न्नस्य ठत्तिः स्यादिश्ररटेन्यं करोति यः |

ति महाभारते त्तिनिषेधात्‌ एतेनासन्ति कार्या afa:— faafa दौरुधो ag dane निशाकरे |

ga वा पातयत्येक agsat विन्दति

पवेणि ठणमपि fara इदं पुष्यपचरच्छेदनं पृजाथं- गर्शएश्रषाव्यतिरिक्रपरम्‌। पयु षितपुष्यपचरयो निषेधात्‌, परतिदिनाद- रणस्य विदितवाच्च, विहितस्य निषधायोगाच्च समिधा दिच्छेदनं तु निषिद्धमेव तस्यान्यदिनेऽपि सम्भवात्‌ |

कुं पच पुष्यं गवामयं eufa च। टन्दुलोपे caf छेदने समिधस्तया gua समिधादानमसम्भवपरम्‌ | वोर्त्सस्थ इति |

(९) अधितिषति | (2) गद्दितश्छ्ुरधनोपजौवनप सा |

कलसार्‌ः | ४९५

atg तस्मिननदोराते va विश्रति चन्द्रमाः | ततो वोस्तु वसति प्रयात्यकं ततः क्रमात्‌ | दूति विष्ण॒पुराएवाक्यात्‌ अरमावास्यामध्यभाग एव अयं दोषः | नाद्यन्तयोरिति केचत्‌ वस्तुतस्तु श्रमावास्यातियिमातेऽयं दोषः | निषेधोऽमावास्यायाभिति कल्यतरुछद्‌ वाख्यानात्‌, ्रमावास्यातिथौ चन्द्रप्रवे श्रखवणाच्च। तया अरतिः, एता राति षोडश्या कलया सवंमिद्‌ प्राणग्टदनुप्रविश्य ततः प्रातर्जायते | तस्मादेता राच प्राणश्डतः प्राणन्‌ fafa रपि कृकलाश्रस्येति तस्मादयं निषघः पुरुषाय एव | am ख्ञाला पिष्भ्यञ्च दद्यात्‌ कष्टतिलोद्‌कं | aa विधिवद्‌ दद्यात्‌ सन्ततिस्तेन aga दूति वचनात्‌ सन्तति कामस्य सलानतिलतपेणश्राद्धानि ससुदि- तान्येव काम्यतया कुर्य्यात्‌ अन्यनिषिद्धममावास्यातिथिप्रकरणे लिखितमनुसन्धेयम्‌ | पत्यौ wales तु लघुदहारौतः,- अमावास्यादि नियतं प्रोषिते घ्मचारिणण | पत्यो तु कारयेनित्यमन्येनाप्यलिगादिना दूति द्गेश्राद्धममाचारः अय सप्तपिदठकामावास्या | भाद्रपदामावास्या मत्त पिदढकामावाखेद्युच्यते | तयाच कन्यतरो,- श्रमावास्या पिव्येण नक्देण संयुता ¦ सप्नप्रकाराः पितरो जाताः कमलमम्भवात्‌

५४६ गदाधरपद्धतौ

तेभ्यः पूजा कन्तेवया तच सर्वात्मना qe: पिण्डो देयस्तयाष्टाङ्गः AS काये सवेदा पिच्च मघा, तदयक्तामावास्या भाद्ररपदामावाच्येव | WATE तद्यो गाभावात्‌ | wa नेमित्तिकं काम्यं दति wafafeqatal- जिनाय नित्यश्राद्धे मघायोगे यः पिण्डदाननिषेधः, तज्जिदत्यथं पुनः पिण्डदानमचोक्तं, अन्यथा श्राद्धं काव्ये दत्येतावदुक्तं स्यात्‌ | पिण्डस्या्टाङ्गानि ब्राद्धय,- मधु साज्यं जलं चाघं पुष्यं धूपं विलेपनं | वलिं दद्याच्च विधिवन्‌ पिण्डोऽष्टाङ्गो भवेत्तथा इति ARMA | BANA WA घवलसग्रहे,- पौषे तु वक्कलचतौरपायतः तपेयेत्‌ पिदधन्‌ | प्रयाष्टकान्वष्टकाश्राद्ध्‌ | वायुपुराणे, पिददानाय मूले स्युरष्टकास्तिख एव augg वरिष्ठा हि पूर्वा चेन््रौति भाष्यते प्राजापत्या दितीया स्यात्‌ eater वेदै दिकं | RY WI: सदा कार्यां मांसैरन्या भवेत्तथा Wa: कार्यां ठतौया स्यादेष द्र्गतो विधिः। asa fe पिणं वे नित्यमेव विधौयते या चाप्यन्या चतूर्थो स्यात्तां gaia fanaa: | तासु WE वुधः कुर्य्यात्‌ सवखेनापि नित्यशः .

कल्लसार्‌ः | 889

नित्य प्राप्रोति Baifa परचेह ated |

पितरः पवेकालेषु तिधिकालेषु देवताः

सवं ग्दस्यमायान्ति निपानमिव धेनवः |

यस्य ते प्रतिगच्छेयरष्टकाख॒ दयप्ूजिताः |

मोघास्तस्य भवन््याग्राः परचेह नित्यशः

मूले Met प्रधानस्याने श्रमावास्यायाः स्थाने दल्यर्थः awe

दानश्रब्दोपादानाचच BATE अमावास्याखाद्भ(वद्च कर्तव्यता, दरति बोध्यम्‌ as फलविग्रेषकामस्यैव चतुर्थौ seat कार्यया। नतु सा नित्या तस्यां या चाण्यन्टेति विगरेषत दति पद्‌भ्यां नित्यवा- भावस्य wala: | विष्ण्ृतौ, शरष्टकाचयस्य अन्वष्टका य्येव नित्यलेनाभिधानात्‌ ' हेमन्तशि शिर योस््रयाणामपर पच्वाणामष्टम्यां अष्टका इति शौनकात्‌

पौषादिरिषु मासेषु छ्णपचेऽष्टका(*) wary

दति स्मृतेश्च श्रष्टकाश्रद्धात्‌ परदिने चअन्ष्टकाश्रादध।

श्वस्ततोऽन्वष्टका (२) द्‌ ति वचनात्‌, शोऽन्वष्टकासु दति पारस्कर सूचाद। शः अष्टम्या उत्तरेद्युः चरष्टकामनु भवन्तौति श्रन्का दति eft हरभाव्यम्‌ | तथाच तिथिदेधे यदिने श्रष्टका्राद्धं तत्परे दयुरेवान्वष्टका - श्रद्ध तु नवमौतिधिनियतता। savy श्वःपद्‌सुपात्तंन तु नवमोति तस््ान्नवम्यतुरोधेन we एकदिनं विहाय तच्छ्राद्धं waa काय्येम्‌ | चाष्टकादिने श्राद्कदयमिति सिद्धम्‌ |

(२) अमावास्यावत्‌ श्राद्धेणिकनतैव्यतेति बोध्यम्‌ | (२) अद्ःकाभवेत्‌ | (३) अन्वद्क्य इति वचनात्‌ |

४8 घ् गदाधस्पद्धतौ

नन्‌ चतूर्थोमष्टकामभिधाय सर्वाष्टकामाधारण्येन फलस्य दोषस्य उक्रेरषटकाचयस्येव wer श्रपि are इति कैथित्‌ लिखित- fafa चेत्‌? उच्यते) यदि तच्ितयसाम्बमस्याः स्यात्‌ तदा वायुपुराणे, देवताद्रव्यविधिर्क्रः स्यात्‌, किं तच्चयानन्तरं अष्टका होति वचनेन नित्यवमभिधाय तदन्तरं चतूर्थो उक्तेति तस्या श्रनित्यतलं स्यष्टमेव उपक्रममध्ये यत्कयनं, तत्तस्या श्रष्टका- नापकलकयना्मिति ज्ञेयम्‌ | एवं कालाद, मागें माघे पौषे प्रोष्ठे फालगुने। ष्णपचेषु पृञ्द्युरन्वष्टक्यं तयाष्टमौ दति श्रष्टकापञ्चकमिति afafad तदनयेव दिशा परास्तम्‌ | एव- मु पाष्टकायां यच्छ्राद्धं लिखित, तदपि वानित्यम्‌("। पितरो aa पृज्यन्ते aa मातामहा श्रपि। श्रविश्ेषेण कत्तव्य विग्रेषान्नरकं व्रजेत्‌ ! दति गौतमोक्तेः, षटपुरुषात्मकपाव॑णब्राद्धमष्टकासु काय्यैम्‌ अन्वष्टकायां मातरि saat aratfefa: we दति वचनात्‌, “अन्वष्टकासु wet च" इति वायकौयपुराणोक्तेच अन्वष्टकायां माचादिपुर्षचयमधिकम्‌। तथाच नवपुरुषात्मकं श्राद्धम्‌ छान्दोभ्येसतु मातरि सटताधथामपि अनष्टकायां षट॒पुरुषात्मकमेव WE काय्येम्‌ कषुंसमन्वितं मुक्ता तयाद्यं AIST |

(१) तदपि निन्यम्‌ |

कालस्ार्‌ः। BBE

्र्याब्दिकं Tey पिण्डाः स्यः षडिति fafa: u तया, योषिद्धयः एयग्दद्यादवसानदि नादृते। दति ङन्दोगपरिशिष्टोक्रः। कुम afad सपिण्ड करणश्राद्धम्‌ |

मातामहानां यः कछला ASU anaes | | तपेणं पिण्डदान नरकं चेव गच्छति | दति वचनात्‌ पिदवगंश्राद्धानन्तरमेव माढवगंश्राद्म्‌ तद- नन्तरं मातामदवगे्राद्धम्‌

aa कित्‌ यक्षितम्‌, एतद चनस्यामूलवेन श्रागन्तुक्रानामन्ते निवेश दृति न्यायेन मातामदहवर्गानन्तरं काय्येमिति तदाचार - विरुद्धलाद नाद्‌रणौ यन्तेव एतद चनस्य सवगरष्टादृतलेन प्रामाण्ात्‌ |

(*चरन्वष्ट काखन्वष्टक्यमनग्रः आद्ध मिष्यते |

दे वेग्यञ्च fuawq arewy यथाक्रमम्‌ |

afgarg माचादि गयायां पिदपरवेकम्‌ |

पिता पितामहशेव तथेव प्रपितामहः

माता पितामरौ चेव तथैव प्रपितामही,

मातामदप्रमातामददद्धप्रमातामदाः

तेषां पिण्डो मया दत्तो द्यचय्यसुपतिष्टताम्‌ | दति शाच्यायनवचनाच् |

(१) अद्का खन्वद्क्यमनप्नः | 57

९५० गदाधर पद्धतौ

an विप्रमिग्रेः पु राणप्मृत्यपेचया ZEEE awa भ्रन्व- कासु सर्वासां पाश्र॑मक्थिसवयाभ्यां परिषते पिण्डपियनज्ञवत्‌ स््लौगभ्यश्चो पसेचनं KY दूति वचनादन्त एव BMY | श्रन्वष्टका- कमणि तया दग्रेनादिति | तन्न रुचिरम्‌ तथा fe यनज्ञवदित्यन्त- मेकं सूम्‌, स्वोभ्यश्त्येकम्‌ | उपसेचनं AY सुरया aqua वाज्ननेनानुलेपन शू BIA |

तच प्रयमस्यायेः, VACATE मर्वासामष्टकानां कमे भवति दति Te: | केन द्र ेणेत्याकाङ्खगयां पाश्चेषक्थिसबयाभ्यामिति wane sawed छान्दसम्‌ | परूसम्बस्धिग्याभिति शेषः परिदते

tn ~ [विप्‌ waa: प्रच्छादितं श्रावसथ्याग्रिषदने | इतिकन्तेयतापच्यामाह |

पिण्डपिदयज्ञवत्‌, wie पिण्डपिदटयनज्ञविधिना | श्रय दितौ यस्ूचायेः' यपिण्डपिषठयनज्ञव दि त्यनेन पिचादि चयस्य

पिण्डदानं प्राप्तम्‌ ततोऽधिकमुच्यते स््रोभ्यञ्येति मादपितामहौ- | प्रपितामहौभ्यः पिण्डान्‌ ददातीति Ta: चकारः समुच्चये aa |

सामान्योऽपि wine: पिचादिसान्निध्यात्‌ माचादिपरः)

श्रय ठतो यस्यार्थः, केवलं wala: पिण्डान्‌ दद्यात्‌ किन्तु उपसेचनं कुर्य्यात्‌ | कयेत्याकांत्तायां सुरया ada कुतेत्याकांचायां ayy स्यातेखित्ययेः। केवलं सुरया किन्तु तपेयत्यनेन दूति तपणसाघधनं सक्यपादि, तेन aa वौराच्ननं तदभावे लयेकि- काञ्ननम्‌ | श्रनुलेपनं सुगस्िद्रव्ये चन्दनादि 1 खजः अतिप्रषिद्ध- सुरभिपुष्पमालाः | चकारः समुच्चये दद्यादिति शेषः तथाच द्टमावसथ्याभ्निषदने कर्मान्तरं वष्टका्राद्धविषयम्‌ | श्रनेनेवा-

कालसार्‌ः। ६५९१

खारस्येन भ्रन्वष्टकाकमंणि दति यो हतुरुपन्यस्तः सोऽप्यसलद्रः | एतत्कर्मानन्तरं are यदि योज्यं afe एतत्क्मषद्धतौ भागयेऽपि प्रयमरेखा्यां, ्रस्मत्पितः श्रमुकग्मेन्‌, एवं पितामदप्रपितामदहयो - रित्यवनेज्नादिकं लिखित्वा दितोयरेखायां ्रमुकगोते श्रसुकदेवि saa: इत्यादि लिखित्वा, एवं पितामरौप्रयितामद्यो रित्येव लिखितम्‌ तु मातामहादरौनां किबिदिदितमिति माता- महा दि श्राद्धन्नो पा पत्निरिति सुघो भिरवधेयम्‌ | ay युगादिनिरूपणएम्‌ | माघौत्यादि विष्णद्छतिवचो व्याख्यायते माघो aragia- माकौ मघायुक्ता पौणमामौ माघौति निरुक्तेः प्रौपयूं रष्ण- चयोदौ आश्चिनहष्एत्रयोद त्ययः त्रौ हियवपाकौ इत्यत व्रोहियवपाकोपलकितकालमाचा्रयण वयवस्यापत्तिः दति काज्िकप्रज्ञनवमौ वेग्राखश्टक्ञदतोया ग्राह्या इति युगादि- चतुष्टयमित्ययः | तथाच ब्राह्मे, वेश्राखशक्तपक्ते तु दतोयायां aa युगम्‌ | कार्तिके WATS तु उता नवमेऽहनि तथा भाद्रपदे कष्णचयादण्यां दापरम्‌ | माघे तु पौणमास्यां घोरं कलियुगं रतम्‌ aang तिथयो यु गाद्यास्तन विश्रुताः दति aq भाद्रपदे रृष्णवयोदण्यां इति प्रएक्तादिमासाश्रयणनाध्िन- कृष्ट चयोद गोत्ययंः |

BYR गदाधरपद्धतौ

भविष्येऽपि.- वे्राखग्रक्गस्य तु या दतौया, नवम्यसौ का न्तिकप्रगक्तपचे नभस्यमामस्य तमिखपचे, चयोदश्ो पञ्चदशो माघे एता युगाद्याः कथिताः पुराणे, श्रनन्तपुण्यास्तिययश्च॒तखः | पानौयमप्यच तिलेविंमिश्र, दात्‌ पिदभ्यः प्रयतो मनुष्यः श्राद्ध छृतं तेन समाः सदस, | रहस्यमेतत्‌ पितरो वदन्ति | aq मासेऽपिकारेण श्राद्धे सुतरां फलातिश्यः | तयाचमाव्छे,- छतं arg विधानेन मन्वादिषु युगादिषु | हायनादिदिसादख frat ठश्िमावडेत्‌ Rg aa जपो ea: Guiana कल्यते | इति एवमादिवाक्यानां श्र्िदो चादि नित्यकमेसु फलो किंवत्‌ प्रशंसा- परतात्‌ एक्र्मापाद कलम्‌ | तस्मा दिभ्रमि प्रेरेतच्छ्राद् चतुष्कं थक्‌ काम्यं तेन धुरिरोचनयोर्देवतातमित्यादि afafed, aaa पूतिकश्राण्डायितमिति मन्तव्यम्‌ तस्मात्‌ पुरूरवोमाद्रवसो रेव) देवतालसमाचारः समोचिनः |

(२) एरस्वोमान्रवयोरेव |

क्सार: |

यत्त भविय्ये पुनः कुचचित्‌,- नवम्यां शरक्तपचस्य कार्तिके निरगात्‌ कतम्‌ | दूत्यादिमाच्यवाक्यमपि तत्कन्पान्तर विषयमेव | छतं

an: निरगाज्निगंतसुत्पन्नमित्ययंः |

श्रय मालया Za |

Zead:,—

नभस्यस्यापरः Gat aa कन्यां sasha: |

महालयसन्नः स्यात्‌ गजच्छायाङ् यस्तया तच्च नित्यं काम्यच्च तच आद्धाकरणे दोषमाह, गाग्येः-

खयं कन्यागते Ae यो कूर्यात्‌ गटहाश्रमो |

धनं gar कुतस्तस्य पिहठनिःश्वासपोडया ग्राय्यायनिः फलाञ्रवणएमाडः-

नभस्यस्यापरे aa तिथिषोड्ग्रकं यत्‌ |

HUA aa चत्यात्‌ कालः श्राद्धकर्मसु

am वा यदि वा मध्ये aa कन्यां रवित्रैजेत्‌ |

पचः सकलः guaa ag विधोयते तयाच,- |

GW: कन्यागतः BA पुण्यः wy पञ्चमः |

कन्यास्यार्का जितः Ga: मो ऽत्यन्तं पुण्य उच्यते टदन््रनुः,--

श्राषादटोमवधि रला पञ्चमं पचमाथिताः |

ays

सत्य-

=~ 8५४ गदाधरपद्धतौं

काङ्कन्ति पितरः fast भ्रन्नमघयन्वदं जलम्‌

तस्मात्तवैव दातव्यं cana निष्यलम्‌ | फलमा जावालिः,

पुत्रानाय॒स्तयारोग्यमेश्रयमतुलं तथा

प्राप्नोति पञ्चमे दला श्राद्भकामांस्दथापरान्‌ aq कन्यानियमः,

श्राषाटौमवधिं Bat यः स्यात्‌ Gay पञ्चमः |

तच Bis AHA कन्यास ऽके भवेन्ना दरति मनूक्तः तच पचश्राद् माच्छे-

कन्यां गते सवितरि दिनानि दश् पञ्च च।

पावेणेन विधानेन तच are विधौयते पावरेनेति दगेविधिनेत्यथेः |

द्गेश्रद्ध तु यत्‌ प्रोक्तं पाव्वैणं तत्‌ प्रको त्तितम्‌ | दूति श्रातातपोक्तः |

यत्त्‌,- कन्यां गते सवितरि यान्यहानि ठु षोड्ग्र |

क्रतुभिस्तानि तुल्यानि तेषु दत्तमयाच्यम्‌ ti

दूति ब्रह्मवाक्यं, तत्‌ fafuagt वेदितव्यम्‌ | काष्णाजिनिः,-

नभस्यस्यापरे पचे are कूर्यादिने दिने |

aq नन्दादि ay स्यात्‌ नैव वर्ज्या waew 1 Gayle चतुदंश्यपि वर्ज्या श्रन्यपक्ेषु व्यव |

कलसार्‌ः | ९५५

USAT ब्रह्माण्ड,-- च्रधरयुकूङृष्णपत्ते तु श्राद्धं काय्यै दिने दिने। चिभागदोनं va वा विभागं दृद्धिमेव वा तच पत्तश्राद्धाधिकारिणः | wat.— श्रधचिदो चि-जितक्रोध-स्लातक-ब्रतचा रिणः. | पचश्राद्धं प्रक्वेन्ति नेतरे तु कदाचन दिने दिने दति Tan सकलः पच्च इत्येकः पचः। चिभागडौ नमिति पञ्चमो मारणभ्ये्यकः पच्वः। दठतौयो भागः विभागः संख्याग्रब्दस्य टृत्तिविषये परूरणयेतमिष्यत दति age | तेन Sa पच्मित्ययेः | च्राद्यम्यापि भागस्य तौयतव चालिनौन्यायेन ate) कला तु षोड भाग caret तथा दशनात्‌ | faamfafa दशम्यादिपचः, श्रद्धंमित्यष्टमोप्रखति- पच्चः, इति कन्पतर्कारादिभिः मवेर््याष्यातम्‌। एतच्च “ay अरपर- पचे mg faewt दद्यात्‌ पञ्चभ्यादिद्णान्तमष्टम्यादिदग्रम्यादि सवस्मिञ्जिति" गौ तमस रानुगतं | कात्यायनोऽपि, “अपर प्ते ्राद्ध- az चतुर्थ्या यददः सम्पद्यते सप्तम्या Hes यददः सम्पद्यते, wa चतुद शाकेनाप्यपरपक्तं नातिक्रसेत्‌” दूति i अचर wa पूर प्रशस्तं, APIA Bafa सिद्धान्तात्‌ | ननु विभागौ नमिति पत्चस्य भागचयकरणे षष्टयादिलं प्रतौ- यते इति चेदुच्यते

(१) ब्रद्य चारिणः |

Bud गदाधरुपद्धतौ

प्रतिपत्मतिष्वेकां वजयिला waenta | Taw तु हता वे तेभ्यस्तच प्रदौयते दूति योगौश्वरोक्तः | य॒वानस्तु ZY यस्य areal प्रदापयेत्‌ | चत्दृण्यां क्रिया कार्य्या wat तु विगर्हिता द्रति स्मत्यन्तराच्च | चतुदृश्या fafagarat विना भागव्रय- विधानेन पञ्चम्यादिपक्तः gaz एव | ननु fawuatat षश्वाद्येकादशदिपक्तौ gamit, तौ किमिति नोपन्यस्तौ इति चेत्‌ उच्यते aura विष्णधर्मोत्तिरे,- उत्तरात्‌ त्ववनाच््राद्ध BE स्याद्चिणयनम्‌ | चातुर्मास्यं तचापि say ana हितम्‌ प्रौष्ठपद्याः परः पक्तस्तचापि विगरेषतः | पञ्चम्यद्ध तचापि ena aatsafa मघायुक्तापि तत्रापि wet राजंस्तरयोदभे दति क्रमेण प्रागश््योक्तिरेव, नतु स्वया षणष्टचायेकाद शादि- पन्चौ | ननु चिभागदोनमित्यादिपक्तेषु उत्तरो त्रलघुकालो पदे शात्‌ द्‌ प्रम्यादिपक्तस्य सन्निधानाच्च चयोद्‌ ण्यादिकः पक्ोऽस्तु नाष्टम्यादि- पक्षः दति Sq, उच्यते wet पक्लोपक्रमात्‌पक्षस्येव विभाज्य लात्‌ ASAT: WIAA | उपक्रमस्यश्रत्यनुरोधेन दुवलस्य क्रममाचस्य वाधेऽपि चतिः |

कलसार्‌ः | 8५७

सवं पच्पदानुषद्ग विनाऽनन्वयात्‌ पचस्येवानन्तरनिदिष्टलं | ea पुनः we चिभागस्य श्रदधैतान्वयौ चित्यादु पक्रमा- नुरोधेन चिभागान्वयेऽपि मासादिव्यवच्छेदाय पक्भागान्वयेन पच्चोपस्थितेः ceed सन्निधानम्‌ पञ्चम्यादयष्टम्यादिपचौ गौ तमा- दि भिव्धक्सुक्तौ एतेन argfaaaafgafafed, तत्‌ सवै पूतिङ्कुश्राण्डायितमिति मन्तव्यम्‌ | तेः पुनर्यल्लिखितं कृष्णपक्षस्य पञ्चद्‌ शर तिश्यात्मकस्य विभाज्यत्वात्‌ दिने दिने इति Towa पच्श्राद्धपत्तः | ततः पञ्चद ्रश्राद्धानि दूति। एवं तिथिद्धासे एकस्मिन्नेव दिने श्राद्धयोग्यतियिद्रयलाभ ख्राद्दयमिति डेयमेवेतत्‌ | “नेकः श्राद्ध दयं कुर्यात्‌” दति वाक्या- देव एकदिने समानजातौषस्य आआद्भान्तरस्य निषेघात्‌ | उक्तपचचतूष्टया शक्ती पञ्चम्या BS जन््रनचचादिवजिते afai- faq एकस्मिन्‌ दिने sig area, | तया स्कान्दे नागरखण्डे, RAAT पञ्चमे wa कन्यासंस्थे दिवाकरे | एकस्मिन्नणद्दोराते ततः श्राद्ध करोति यः 1 तस्य सवर यावत्तप्नाः स्युः पितरो प्रुवम्‌ | पञ्चम्या ऊद्धंमित्यच भवियये,- हसे वर्षासु कन्यास्ये शाकेनापि ग्टहे वसन्‌ | पञ्चम्या उन्तरे दद्यादुभयो व्रयो खम्‌ पिहमातामदयोः कुलयोः wufaa खणमित्यवग्वं शोध्यभित्ययः | तचैकदिनपक्ते वच्यैमाह गाग्यैः, 58

४१५८ गदा धरपदतौ

नन्दायां भागवदिने चयोदश्यां चिजन््रनि | एषु WIS Fala Wet पुच्रधनच्यात्‌ wfaaqea,— चिजन्मनि चिपापेषु कविनन्दामघासु 3 काम्यश्राद्धं Fala यतोपाते दिनच्ये दद्धगाग्येः,- प्राजापत्ये पौष्णे पिच भागव तथा यस्तु alg yaaa तस्य gat विनश्यति नन्दाः प्रतिपत्‌ षष्ठैकाद्‌ण्यः भागंवदिनं waa, चिजन्मनि जन्मदिने जन््रनच्चे AACN च, एतदष्टमचन्द्रना द्यादे रुपलक्तषणम्‌ | चिपदनचच्ाणि कृत्तिका पनवेख त्तर फल्‌ग॒नो वि शा खोत्तराषादापून्बे- भाद्रपदानोति षट्‌ प्राजापत्यं रोदि यपिचक् मघा पौष्णं रेवतौ व्तौपात इति विष्िवषटत्यो रुपलक्षणम्‌ | मराभारते,- नचचेए Hala यस्मिन्‌ जातो भवेन्नरः | प्रोष्ठपदयोः काय्यं तथाग्नेये भारत I दारुणेषु सव्वेषु शुक्रवारे वन्नेयेत्‌ दारुणानि ज्यो तिःग्रास्ते,- दारुणं चोरगं Te te नैं तमेव इति MT WATT, रौद्रं wel) Ue च्येष्ठा। awd मूला मघायां पिण्डदानेन च्येष्टपुचो विनश्यति दति भविष्योक्रौ यो निषेधः, पकच्राद्भसङकन्पेतर विषयः |

फलसार: ४४६

तया माकण्ड्यः,- पच्श्राद्ध चयोद श्यां सपिण्डं श्राद्ध मिष्यते | संकल्पस्य वशादेव मघायां चेव तत्तया I संकल्पना कुर्वत संकल्प्य यदि शक्तिमान्‌ | पिद्भिनैरक यायादेकविंग्रतिमेव a: दूति। श्रादिता्िस्तु पचादिप्रकारचतुष्टयाशक्रो सछृत्कर णप चनद्र- चयविशििष्टामावास्यायामेव मदालयभ्राद्धं कुर्यात्‌ | पेटयज्ञिको iat लौकिकेऽग्नौ विधौयते दैन विना ्रादमादिताग्नदिजन्मनः दति aga: यस्मात्‌ पिदटयज्ञाङ्गश्वतोऽग्नौकरणदोमो ल्मीकिकेऽप्नौ विधौयते किन्त दकिणाग्नौ, सतु दभ्रं एव। degen विद्य- मानत्वात्‌ | WIGS यददः सन्पद्येत अमावास्यायां विशेषेण दूति वश्रिष्टोक्तः। यदा farfag अमावास्यायां महालयं कुर्य्यात्‌, तदा चनद्रच्यविश्िष्टायां श्रमावास्यायामेव दति तस्य नियमः। किन्त महालयश्राद्धस्य दूतरपावेणात्वात्‌ “सप्तमात्‌ परतः पञ्च सुहत्ताः पावेणएस्य caw तु" दत्युत्यनुसारेण यस्मिन्‌ दिने तादृ शपावेणकाले दशः स्यात्‌ तदिन एव महालयश्राद्धं कुर्य्यात्‌ | महालयश्राद्ध धूरिरोचनयो दं वताचम्‌ | काम्येन नित्यलभिद्धः | पावणेन विधानेन कुर्य्यादापर परिकम्‌ | विश्वेदेवाः प्र चाच विज्ञेयो धूरिरोचनौ दति स्मृतेश्च श्रचाधिमासपाते wea एव महाल्यश्राद्धं काय्येमिति कालाग्रद्धिप्रकरण लिखितम्‌ |

४९० rere Rat

श्रस्सिन्‌ कन्यागतापरपचते दैवाच्छ्राद्धा सम्भवे ब्रद्माण्ड,- यावच कन्यातुलयोः क्रमादास्ते दिवाकरः | तावच्छ्राद्धस्य कालः RISA प्रेतपुर तथा कन्यां गते सवितरि पिदराजानुशासनात्‌ | तावत्प्रेतपुरौ War यावद चचिकद ग्नम्‌ ततो ट्चिकमायाते निराशाः पितरो नुप। पनः Quad यान्ति शापं द्त्वा सुदारुणम्‌ | दूत्या दिवचनात्‌ तुलायां aaa alga) येय दौपाचितेति वचनस्य श्रमावास्याप्गरंसापरवम्‌ | यावद्‌ चिकद्‌श्रनं दति वचनात्‌ टशिकेऽपौति केचित्‌ तन्न आचारविरद्धवात्‌ युक्तसदलाच | तथादि sfyaena यावदिति awa प्राणते नतु दृ्िकमामः। अतएव याव कन्यातुलयोरिल्येवोक्तम्‌ ततो टिकमायाते cans waar टिके श्राद्धप्रसङ्गोऽपि। किं यावच्च कन्या- तुलयोरित्या दिवचनेस्तलायां wa सवच प्राप्नो “सामान्यविधिर स्पष्टः संदधियेत विशेषतः द्तिन्यायेन, येयं दौपाचिता राजन्‌ ख्याता पञ्चदगौ भुवि। तस्यां दद्यात्‌ ed पिद्ृणणं वे महालये दति सुमन्तुवचनेन कार्तिंकामावास्येव saa विहिता | श्रतएवास्य प्र्ंसापरलम्‌ फनलोलेखाभावात्‌ | श्रािनस्यापरे पके प्रथमे afd तु यस्तु श्राद्धं प्रङ्र्वोत सोऽश्वमेधफलं लभेत्‌

कालसारः | ९६२९

द्रति माकंण्डयवचनन्त्‌ केवलकाग्य्राद्धान्तर प्रतिपादयति | तु नित्यश्राद्धम्‌ सन्यासिनो मदहालयश्राद्धं दादश्चामेव | तथाच araata,— सन्यासिनोऽपयाब्दिकादि ga: कुर्यात्‌ यथाविधि | महालये तु यच्छ्राद्धं दादश्यां wats ay पावेणविधिनेत्यथेः श्र dagen नियता। aa दादण्यां यतिनियमः तच भ्रन्यश्राद्धस्यानिषेधात्‌ | मघाचयोद्‌ गोयाद्धः शंखः,- ्ौष्ठपद्यामतौतायां मघायुक्तां चयोद्‌ ्ौम्‌ प्राथ aig दि कन्तयं मधना पायसेन मनुः,- यत्किविन्मघुना मिश्र प्रददात्त्‌ चयोद भम्‌ , तद्ष्यल्यमेव स्यादर्षासु मघासु | यत्किञ्चिदिति श्रनिषिद्ध्राङ्धद्य विषयमेवेति area a तु दविष्यद्र्यम्‌ | सामान्येन श्राद्धेषु NERV उक्तलात्‌ | विष्णएधमेन्तरे,- मधघायुक्ता ततापि wear राजंस््रयोद्गौ | तत्राचयं भवेच्छ्राद्धं मधुना पायसेन घ॥ ATS], श्र युज्यं छष्णायां zatewut मघासु | ्राृडुतौ यमः प्रेतान्‌ पिद्नथ यमालयात्‌ विसज्ेयति waa छवा शुन्यं ax Gta |

ad? गदाधस्षडधतो

चधात्ताः कौत्तयन्तश्च Tad स्वकं छतम्‌ कांचन्तः पु चपौतभ्यः पायसं मधुसयुतम्‌ | तस्मात्तांस्तच विधिना तपयेत्‌ पायसेन तु मघ्वाज्यतिलमि्रण तया waa चाम्भसा | MAAS परग्टदाद्भक्र यः प्राघ्रुयान्रः भिचामातरेए यः प्राणन्‌ सन्धारयति वा खयम्‌ यो वा aagaze प्रत्यदं खात्म् विक्रयात्‌ श्राद्धं तेनापि ada तेसतेद्रेयैः समितेः चयोद्ां प्रयन्नन वर्षासु मघासु Vil नास्मात्‌ परतरः कालः आरा द्धष्वन्यत्र वत्तेते यच warm पितरो गहन्त्यम्तमचखयम्‌ gq सवच वर्षागरब्द श्राषाच्छवधिपञ्चमपच्परः आश्वयुज्या मित्या दित्रद्मो क्रिसमानत्वात्‌ | अर्त मधृसपिषोः दानं अक्तयफल- कामिन एव, तू सवषां नियतम्‌ | aezifa गयास्थश्च सवमानन्यमस्रुते | तथा वर्षाचयोदग्धां मघासु विग्रेषतः॥ इति याज्ञवरक्योक्तमनूकरिखार स्याद्च | कन्यागतापरपच्वा धिकारे,- तचापि महतौ gar aver पिषदैवते | eq पिण्डप्रदानं तु segs) विवजेयेत्‌ दति देवोप्राणोक्रः | मघायां पिण्डदानेन ज्येष्ठः gat fasta |

कालसारः। ९६२

दति स्मृतिसमुच्चयोक्रेश्च, पुचिणा वर्षाचयोदश्यां पिण्डर हितं श्राद्धमेव) काय्यैम्‌ sifeaa: पिचर्चनम्‌, “पिण्डेरेव ब्राद्यणा- नपि भोजयेत्‌” दति कात्यायनवचनं पिण्डपिटयन्ञपरमिति तैरपि यगादिवत्‌ पिण्डरहितं श्राद्धं काय्येमेव | ज्येष्ठः प्रयमोत्पन्न दति प्राचोनाः। विद्यमानपुचाणणं ज्येष्ठ दति मदनपारिजातादयः। SUG चयोदश्यां श्राद्ध a: कुरुते नरः | पञ्चलं तस्य जानौयात्‌ च्येष्ठपु चस्य निचितम्‌ दूत्यङ्किरो वचनेन मघासु कुवेतस्तस्य ज्येष्ठपुचो विनश्यति | दूति वचनेन आआद्धनिषेधः पिण्डद्‌ाननिषधपर एव पूवीक्रवचनात्‌, केवलमघायां केवलचयोदग्यां श्राद्ध विधाना | तथाच वायवौये,- मघाखु कुवन्‌ श्राद्धानि सवान्‌ कामानवाप्नुयात्‌ | प्रत्यत्तमचितास्तेन भवन्ति पितरस्तया मघानक्तचस्य पिदेवतलात्‌ प्रत्यक्तमिद्यक्तं। विष्णएधर्मोत्तरे, - प्रोष्ठपद्यामतौतायां तथा छृष्णच्रयोद्भ | aig श्राद्धकालान्‌ वे नित्यानादह प्रजापतिः दति, तत्र॒ यद्भौ डस्तिथितच्चकारैः केवलमघायां केवलचयोदश्यां श्राद्ध विधायकवचनं विध्यन्तरकन्पनागौरवात्‌ ्रवयत्यानुवाद्‌- इत्यक्तम्‌ तन्न रुचिरम्‌ नित्य गब्दोपाद्‌ाना नुपपत्तेः | श्रमावास्या

(२९ ) BISA

= 8९४ गदाघधस्पद्धतौं

तिखोऽषटका दत्यादि विष्क्नादिना केवलचयोद्श्वां श्राद्ष्मा- चाराच | ननु-- पितरः स्पुदयन्तयन्नमष्टकासु मघासु | तस्मादद्यात्‌ षदा युक्तो विद्तयु ब्राह्मणेषु दूति शातातपवचने मदा शब्दोक्तावपि केवलमघायां किमिति aig क्रियते, इति चेदुच्यते एतदपि तस्यां च्रयोदश्धां मघा- योगस्य प्रायः सम्भवात्‌ योद भे पर मेवेति वोध्यम्‌ केवलमघार्या यच्छ्राद्धं तत्काम्यम्‌ तथा मघायुक्रचयोद्‌श्वामपि काम्बम्‌ नेवलचयोद्‌ पो ाद्न्त्‌ नित्यमेवेति सव्वं समच्ञसम्‌ | गजच्छायायोगे तु फलाधिक्यम्‌, तथाच यमः age: पिद वत्य इसद्येव करे सितः | याम्या तियिभवेत्छा दि गजच्छाया प्रकौत्तिता सत्यन्तरे,-- quad चयोदश्धां wafer: करे रविः। यदा तदा गजच्छाया श्राद्धे पुण्यैर वाप्यते पिद्देवत्यं मघा, aren fafa: चयोद शौ, करः ₹स्तानचच माव्छे,- गयाश्राद्समयोगाः, भरणे पिदपचे तु महतौ परिकोत्तिता | तस्यां श्राद्धं छतं येन गया्राद्भकद्भवेत्‌ यदेन्दुः पिद वत्य saga करे fea: | याम्या fafaiaa सा fe गजच्छाया प्रकोत्तिता WUT: पञ्चमे Ga गयामध्याष्टमो स्मृता |

कालसार्‌ः। 8६५.

ait गजच्छाया TITS तु पेटके I दूति महालये योगविग्रषफलम्‌ | ग्रस्तस्य महालयश्राद् विचारः | ब्राह्म, तपेणोयाख्चतुदेग्यां लप्तपिण्डोदकक्रियाः | mau निता वै तेषां तच प्रदीयते॥ वे दति नियमवाचकम्‌। तथाच “वसन्ते ब्राह्मणेऽ्नौना ama” दतिवद्‌भयनियमः। चतदृश्यां शस्वदतस्य एव श्राद्धम्‌, नान्येषाम्‌ | ग्रस्तस्य चतुद श्यां नान्यस्यां तिया वित्ययेः | तच तस्य श्राद्धमेव एको दिष्टविधिनेव | तदाडइ मरौविः,- समवमागतस्यापि पितुः गशस््हतस्य a | एको दषटन्त कन्तेवयं पिद्रणां q महालये समलत्मागतस्य छतसपिण्डनभ्यापौत्ययंः | श्रस्रहतसन्ञा पारिभाषिक | तथाच भगवतौपुराणे,- पक्तिमद्यण्गेयं तु प्ररङ्गिदं दिनखेरेताः | पतनानग्रनमप्रायेवे चा भि विषवन्धनेः Bat जलप्रवेशेन ते वे शस्त्रहता: स्मृताः | दृ इन्प्रतुः,- सरता रणे व्याघ्रैः कुम्नोरेश्च WSs: | उत्पातेन वज्रश्च ag तेषां चतुद्‌ भौम्‌ | : मरो विः, विषश्स्तरश्चापद्‌ादितियग्‌त्राद्मणएघा तिनाम्‌ | 59

४६६ गदाधरुपद्धतौ

aaz श्यां क्रिया काय्यो श्रन्येषां तु विगहिता घातमेषामस्तीति घातिनः, तेदेतानामित्यथेः | देवोपुराणे,- श्राहवेषु विपन्नानां जलाचिष्डएुपातिनाम्‌ | चत्‌दटश्यां भवेत्‌ पूजा दयमावास्यां तु काभिकौ.॥ aa काभिकौ पूजा षाटपुरुषिकमपरपच्तश्राद्धम्‌ | ्रपरपक्तप्रकरणे प्रतिपदादिष प्रतितिधिफलकामना उक्तास एकदिनकर णएपक्ते ग्रस्त पिटकस्य पुत्रस्य नाधिकारः, कामना- पेच्तायां wea श्राद्ध aaa दँ काम्य श्राद्धं कुयोदित्य्थः | च्रमावास्यायां फलन्त्‌ वायवोय,- सर्व्वान्‌ कामानवाप्नोति खगं चानन्यमश्रुते दूति एतेन मचाचयोद श्यां तस्य नाधिकरः | तथाच स्मृतिरपि, मघाभ्राद्धं Fala Baal श्रस्लघातिने रत्वा तु विधिवन्तसमी tq दर्शं समापयेत्‌ विधिवदिति षारपुरुषिकश्राद्धं कुर्य्यात्‌ tee श्रशरस्तेण हताः केचित्‌ aq शस्त निपातितः | तेभ्यः पिण्डचयं देय कत्तयमपरेऽहनि दूति शशास्तान्तरात्‌ कत्तव्यमिति मातामदवगसखापौति- गेषः। “पितरो aq yaa” इति गौतमोक्तः। एवं सति “aaqgat श्तिकाम” इति दारोतोक्तिः, चतुदेश्ामायद्धं नद्धि- रिव्यापस्तम्बो क्रिः |

कालसार्‌ः | 8 ६9

जातिश्रेये(* चयोदग्वां चतुद्यां बह्प्रनाः | Naa पितरश्चाच ये शस्त्रेण हता रणे दति मनूक्रिरपि पचश्राद्धसङ्कल्पविषयेव केचित्त दशम्यादि agate quem निषिद्धैव care: | तथाच मनुः,- SUI दश्रम्यादौ वन्जयिवा waewta | आदधे प्रशस्तासिथयो ययेता तथेतरा दूति दति मदालयश्राद्धम्‌ ्त्यन्तनिद्धंनस्य (रनित्यभ्राद्करणाश्कौ, aaa विधिना ag चिरब्दसखेह निवपेत्‌ | हमन्तयो्नवर्षासु warns द्रति मनुना aaa श्राद्भचयकरणऽपि प्रत्यवायाभाव ga: | अत्र VAI मासस्यास्फुटलात्‌ Weare मत्ये aaa विधिना ag चिरब्द खे निवपेत्‌ कन्याङुममटषस्येऽकं ष्णपक्तेष BT aa दिनममावास्या दति प्रतिभाति। तच्चया शक्तौ खान्दे,- च्राषाच्छाः पञ्चमे पत्ते Hara दिवाकरे | एकस्मिन्न्यहोरातचरे तच श्राद्धं करोति a1) तस्य सम्वत्सर Taya: | पितरो ध्रवम्‌ इति कन्यापरपचश्राद्धप्रकारचतुषटयात्‌ एरयगेवमिति बोध्यम्‌ इति)

----- =-=

(१) ज्ाति्रे्म्‌ (र) सवंनित्य- |

७६८ गद्‌ाधर्पद्वतौ

श्रय प्रदोपामावास्याश्राद्धम्‌ | तच नित्यं फलाश्रवणात्‌ कस्मिथिदाक्ये wate: काम्यमपि | वाक्यरन्नावच्याम्‌,- तुलां प्रत्यागते aa श्रमावास्यातियिभेवेत्‌ | उपास्तममय दौपान्‌ पिन्‌ ददयाच्छतिः whe nf: wfaftfa दिवोपोषितः दति खतिरनमालायाम्‌ | तुलास्ये भास्करे दग्रे श्राद्धं कला पराहिकम्‌। दीपदानं ततः कुर्य्याद्‌ पास्तसमये रवौ उपास्तसमयः तिमुहटन्तात्मकः प्रदोषकालः | aura ज्योतिषे, तुलासंसे सदसा शौ प्रदोषे श्तद्गेयोः | SAHRA नराः JA: feet मागेदभेनम्‌ इति | तच gaqfeat श्रमावास्याया श्रभावेऽपि उपास्तसमये तत्सग्बम्े प्रदौपदानं तचेव दश्राद्धादिकं तु परदिने। रमा वसति यद्राचौ aa दौपं प्रदापयत्‌ | aud पिण्डदानं arg चेवापरेऽहनि दति सपतेः यदोभयदिने प्रदोषव्याश्धिः, तदा परदिने दोपदानम्‌ | दण्डके रजनोयोगे दस्य स्यात्परेऽहनि | तदा विहाय yaa: परेद: सुखरात्रिका दरति ज्यौ तिषवचनात्‌ | उभयदिने प्रदोषव्याष्यभावेऽपि परच, पूव्वीक्रपारणनुरोधात्‌ | wale ये प्रङुवेन्ति उल्काग्रहमचेतसः

` `

कानसारः | ade

निराशाः पितरो यान्ति शापं दला सुदारुणम्‌ दूति ज्यौ तिषवचनाच। दीपदाने सायंसमागम एव कालः, SUGARY TYRANT | तदिधिश्च परिशिष्टे AMA भास्करे दर्शं उपास्तममये रवो | wane पिटंस्तरीस्तरोन्‌ प्रदद्यात्पिटयन्ञवत्‌ शरत्पकत्रौ दिपिषटैरनुखिन्नेस्त WIR: | श्राधारैरेविषा दौपान्‌ प्रददाद्न्धले पितान रजसालङ्ते VA प्रस्तं तिलदभकेः | श्यामावन्लोजकु सुमेर चि तेगन्धपुष्यक्रेः कार्पासवत्तिभिद्चैव शान््र्यकंविवजितेः | वसामेदो विर हितेन वेश्नि कद?चन | दद्यादन्यत्र Ve धूपं गगग॒ल्‌ सपिषा | ज्यो तिर्लोकमवाप्रोति तुलास्ये दौपद्श्रिते। पश्यन्‌ वै दिश्रमाकाश्ं वेश्वदेवपुरःसरम्‌ पिन्‌ पितामहानन्यान्‌ शये ए्रयकूष्रयक्‌ | श्रायुवलं धनं पुचमारोग्यं सुमनोरयम्‌ | award प्रदोपं दला ग्रसन्ति दातरि | fazasaq तपेणवत्‌, “faeasg तपणमिति” कात्याय- नोक्तेः। तेन विश्च देवानां प्रतयेकसेकेकं दौपान्‌ दद्यात्‌ सनका- atat दौ ati faeut ata ata विमाचादौनां पुरर दितानां पिदयादौनां एकेकम्‌। Fa प्रमाणमस्मतङृताचारमारे

BOR nzTacysat

खिन्न-पूपमय-ताक्र- ट्लवत्तिकं दौपं प्रत्येकमेकमेक पूवदिगाकाश पश्यन Baw fant देवेभ्यो दद्यात्‌) ततः TAR एतौ erat हन्तेति watfemant पश्यन्‌ सनकादिभ्यः प्रत्यकं at at लेपौ दयात्‌ तदनन्तरं श्रसुकसगोच भ्रसमत्पितरसुकगर्मन्‌ एते दौपास्तभ्ये खधा नम दति द्किणएदिगाकाशं wae पिचरादिभ्यः nae Sata Fara दद्यात्‌ ततौ विमाह-पिषव्यादिभ्य- खावाहनमन्तरेण प्रत्येकं एककं दोपं दद्यात्‌ | रमु कसगोचे ्रसमज्येष्ठ- मातरेष ते aia: सधा नम दति दद्यात्‌ | तत च्राद्रंकनारिकेलेच्‌- खण्ड -क्रसुकखण्ड-ग्यामाकलता पुव्यकपदिंकादोनि सवच क्रमेण स्तया निक्ोतितया श्रपसव्यतया सखमपेयेत्‌ ब्राह्मण भोजनम्‌ | श्रच्डिद्रावधारणम्‌ | तत उल्का द्‌ शनम्‌ | तच ग्रदणएमन्तः ATE, श्रस््रशस््रहतानां zara! तद्‌ शयो उज्ज्वलज्यो तिषा देइ देयं योमवत्तिनाम्‌ दानमन्त्रः, श्रद्रिदग्धाञ्च ये जोवा येऽप्यदग्धाः कुल मम्‌। उच्चलज्योतिषा दग्धास्त यान्त परमा गतिम्‌(* विसजेनमन्लः,

पिदलोकं परित्यज्य श्रागता ये मालये | ee (९) ऋत्वादिदेवताः सर्वाः fart महषयः | सर्वे ते यपगच्छन्तु अनया ज्वालया सदह | कस्मिंश्चित्‌ पुस्तके इदमधिकम्‌ |

कालसारः ` ४७३

उज्ज्वलज्यो तिषा aay प्रपश्यन्तो aaa ते ततो wear Haga aut eta दधात्‌ |

दति प्रदौपामावाम्यश्राद्धम्‌

अयनवान्नश्नाद्म्‌ | aa निन्य | तथाच शातातपः, नवोदके AAA ग्टहच्छादन एव च। पितरः स्पृहयन्न्नमष्टकासु मघासु तस्मादृद्यान्‌ सुदा युक्रो faze ब्राह्मणेषु दूति सद्‌ाग्रब्दप्रयोगात्‌ 1 नवोदके वघौपक्रमे |

अन्यत्र दोषोक्निरपि,- त्रौ हिपाके कर्तव्यं यवपाके पार्थिव | तावाद्यौ महाराज विना me कथयञ्चनन तथाहि त्रौदहिपाककाले टिके, यवपाककाल्े मेषे नवा- amare यस्मिन्‌ कस्मिंशिटिवसं नवानश्राद्धदयम्‌। श्रचास्म्मट्‌े यवगोधूमयोः aaa प्रचाराभावान्‌ केचित्‌ यवान्नश्राद्धं कुवन्ति | aa नवान्नतिथ्यादि, ज्योतिःगास्त्े- भेषूगरादिभिवान्यषु विभौमग्रनिवासरे | RAIA कुर्य्यात्‌ नवान्नफलभच्णम्‌ | नवान्नं नैव नन्दायां aa Wares | रृष्णपक्ते धनुषि तूलायां कट्‌ाचन 60

898 गदाधरपद्तौ

afga maag तु नवान्नं शस्यते बुधः | यत्कृतं धनुषि श्राद्ध म्गनेचासु राचिषु॥ पितरम्तन्न ग्टहन्ति नवान्नामिषकांचिएः | पूव फाल्गुन पूर्वाषा पूरव॑भाद्रवमघा दिजाश्चषा द्र वजितेषु नचचेषु दृत्ययः | नन्दाः प्रागुक्ताः श्टगनेचारात्रयस्तु GA ज्येष्ठापराद्भगे | ganrnaatefa रिक्ताः तिथयो वन्याः | लग्रष्णड्यादिक agaraq किञ्चित्‌ | aq श्राद्ुम्य Waa श्रपराहः कमेकालः। एतच्च पिण्डादिरहितं सङ्न्पश्राद्धम्‌ तयाच माकण्डयः,- ग्रहणे व्यतौपाति नवग्रस्यसमागमे | यगादौ षडग्नेत्यां ग्ट्दाच्छाट्‌न एव च॥ नित्यश्राद्धे संक्रान्त्यामपिण्डं द्भ मिग्यते तच शिष्टानां सग्रहकारिकाःः- मघावयतोपातनिशाकराकौपरागसक्रान्तिय गादिकेषु | iz गदां नवग्रस्यलाभे wig fans प्रवदन्ति धोराः॥ नावाहनं नार्घविधिने arial क्रियाविकौणे चापि facet: | नाचय्यदानं सौमनस्यं नैव सख्धघावाचनदकिएे “व्तीपक्रमश्राटन्त॒ हमन्तमौ श्वरषासु" इति वचनैः प्राट्‌ कालाद्यदे्ाद्धनैव चरिताथंमिति परयक्श्राद्धं gated) तच श्राद्भकररे तु फलाधिक्यमिति |

कनलसार्‌ः | 8७१५

अय भौग्राष्टमोश्राद्धम्‌ माघमासं प्रत्य घवल सङ्गह, अष्टम्यां सिते पक्त भोप्राय तिलोदकम्‌ | aay fafuaga: सवे वर्णा दिजातयः॥ श्च फलाख्वणान्नित्यत्वम्‌ | ara मासि श्रिताष्टम्यां सलिलं भोद्वमेणे | Wg ये सदा Gad स्यः सन्ततिभागिनः | दूति पुराणणन्तरोक्रः काम्यत्मपिि | भविष्योत्तरे, THe माघस्य दद्यात्‌ ware भोजनम्‌ | संवत्छरकतं पापं तत्‌चणादेव नश्यति दिजातय दरति सम्बोघनम्‌। स्वे वर्णा दरति उक्तात्‌ ज्ेष्ठवष- स्यापि ब्राह्मणएस्यावश्यकल शएद्रस्वाप्यधिकारो मदालयादिख्विव नित्यकाम्यलात्‌ | ब्राह्मणो Wave यः करोत्यौ इदैदिकम्‌ | तदणेवमसौ याति wealth Wa दूति मरोपिवचनम्‌ | सवणेभ्यो जलं देयं नारुवर्णं कथंचन | दति वचनं भोश्रश्राद्धतपश्योर्वाधकम्‌ 1 ATU ये वर्णा ददयर्भोश्नाय नोद्कम्‌(\) |

(१) at जलम्‌

god गदाधर्पद्धतती

मवत्सरकूत पुष्ये तेषां नश्यति मत्तम दरति ea) भग्नस्य वसुलाच्च। वद्धून्‌ सूद्रान्‌ तया दित्यान्‌ नमस्कारसधाकितान्‌ | एते सवस्य पितर एष्वायत्ता हि मानुषाः दति वसूनां पिदल्तेः। तच तपणमन्ः, ्रेयाप्रपद्यगोचाय(\ मांछतिप्रवराय च। श्रपुचाय दद्‌ाम्येतत्‌ मक्िलं भोश्नवमेणे श्राग्रमावचन तु, मोषः शान्तनवो at: मत्यवादौ जितेद्दरियः। ्आभिरद्भिर वाप्रोत्‌ु(?) पुच्पौचाचितां क्रियाम्‌ एतच्च आगन्तकलात्‌ सवे वणानां पिहतपेण्णन्ते काय्येम्‌ | aq गौ स्तिथितत्वकार यदुक्तं aE वणेज्येठवात्‌ अन्त कार्ये अन्येषां आदाविति, तदयुक्रिविरद्धम्‌ भौश्मवमणो aga त्राद्यणएस्यापि पिहलात्‌ | श्रतएव इरि भक्रिविलासे वेष्णवकारिका,- माघस्य चाष्टमं श्टक्तामारभ्य दनिपञ्चकम्‌ | तपयेदयवाष्टम्यां AA भागवतोत्तमम्‌ नित्यतपेणतः पञ्चात्‌ सलिलान्त उदड्मुखः | निकी तितपरं gar meas महात्मनः। इति | अस्य श्राद्धस्य एको दिष्टकाललात्‌ एको दिष्टकालेन यवस्था, वैश्-

(१) वैयाग्रपद्यसगो चाय | (र) आप्नोति

कालनमारः। 899

देवानन्तरलं वेयाघ्रपद्यमगोच Baga इदमन्नादिकं तुभ्य aut नमः दति अन्नोत्सगेः काय्येः ददं भौश्नवर्मणे दूति त्यागः। जौवत्पिताऽपि Hija aud यमभौश्रयोः | दूति वचनात्‌ जोवत्पिहकेणापि भौश्रतपेणं काय्येम्‌, नित्य- aig. श्राद्धस्य नित्यल्ऽपि जोवत्पिटकम्य श्राद्ेष्वनधिकारात्‌ नेव WIE काय्यैम्‌ | MNafqensa श्राद्धनिषेधमादह कात्यायनः,- सपितुः पिहकृत्टेषु अधिकारो दिद्यते | जोवन्तमतिक्रम्य किड्िदद्यादितिश्रुतिः॥ सपितुः विद्यमानपिलटकस्येत्यथः | कतुः, अष्टकादिषु संक्रान्तौ मन्वादिषु यगादिषु | चन्द्र सुय्थेग्रहे पाते च्छया yaaa: जौवत्पिता नैव कुर्य्यात्‌ wag काम्यं तयाखिलम्‌ | च्रामभ्राद्ध WIAs आद्भद्धापरपरकम्‌ जोवत्पिटकः कुर्य्यात्‌ fae: ey तपेणम्‌ | सत्यन्तरे,- गया यानं gee faamay तपणम्‌ | जौवत्पिटकः कुर्य्यात्‌ gag forest भवेत्‌ अतएव, aa पितरि a पुचः श्राद्धकालं विवजंयेत्‌ | येषां वापि पिता दद्यात्‌ तेषामेके प्रचच्तते |

BOS गद्‌चघर्पद् तौ

दति मरोौचिवचनेऽपि करणपच्तानाद्रः eva) एके cam: दति BY ग्रहणग्राद्धम्‌ | तच नित्यं काम्य a श्राद्धं प्रकुत्य कोौम॑,- नेमित्तिकं तु कन्तव्यं ग्रहे चन्द्र सु््य॑योः | वान्धवानां मरण नारक्मे स्याद्तोऽन्यथा ii काम्यानि चेव आद्धानि शस्यन्ते ग्रहणणदिष | मदाभारते,- सवंखेनापि AVE BIS वे राङ्दभेने | अकुवोणएस्त॒ नास्तिक्यात्‌ पङ्कं गौरिव सौदति॥ व्यप्रङ्गग्रातातपो,- चन्द्र सूच्यग्रे चेव श्राद्धं विधिवदाचरेत्‌ | तेनैव सकला wat दत्ता विप्रस्य वै करे विष्णः राहृदश्रनदत्तं fe आद्धुमाचन्द्रतारकम्‌ | गुणवत्‌ सव॑कामोयं पि्णासुपतिष्ठते सवैखेनापि ल्कनापि नाच कालव्यवस्थया ग्रहणएकाल एव विधानात्‌ | तच श्राद्ध BAA VAT वा तत्र वचनं त्रामश्राद्भ- प्रकरणे द्रष्टव्यम्‌ | एतच्च अग्रौ चेऽपि कायैम्‌ तच प्रमाणएमश्मै चप्रकरणे उक्तम्‌, दूति ग्रदणएश्राद्धविधिः | |

कलसारः। Bee

तोये श्राद्ध तन्नेमिन्तिकम्‌ | देवोपुराणे- अकालेऽप्यथवा काले AUIS तया नरैः | प्रातरैरेव सदा काय्यं कर्तव्यं fazaqua | पिण्डदानं हु तच्छस्तं पिद्रणामतिदुलेभम्‌ | ag ब्राह्मणं नेव waa कथञ्चन ्रन्ना्थिनमनुप्राप्तं भोज्यं तं मनुरत्रवोत्‌ | सक्युभिः पिण्डदानच्च संयावेः पायसेन व। कन्तव्यम्डपिभिदृष्टं पि्याकेन गुडेन वा देयन्त्‌ तिलपिण्ठाकं भक्तिमद्धिनेरः सदा श्राद्धं तच कन्तयमर्घावा इनवल्नितम्‌ | श॒ष्वांषगटघ्रकाकानां नेव दृष्टिहतञ्च यत्‌ तथाच aque प्रयक्‌ तौ थप्रा्धिनिमित्तकं काय्येम्‌ | तत्छानाङ्ग तपेणन्तु प्रयकू aan तस्िद्धः | तपेणएश्राद्धयोः तौयंप्रात्निनिमित्तकल्रात्‌ एकदिने च्रनेकतीप्राप्नौ तयोः प्रतितं करणम्‌ | तौयेप्रार्चिदिने aque तोौयप्रा्िनिमित्तकलात्‌ atar- शक्तस्यापि मन्स्तानादिपूवेक तपणमावश्यकम्‌ श्रच काल- व्यवस्था प्रा्चिकाल एव तददिधानात्‌ | विलम्बो नेव कन्तेव्यो नैव विघ्नं समाचरेत्‌ | दति तदचनान्राच अचाकाल दत्यक्तावपि cat ae प्राप्रावपि नैव श्राद्धम्‌ | आसुरौराचिरन्यच तस्मात्तां परिवन्नेयेत्‌ |

४८० गदाधर्पद्धतौ

दूति यमग्रातातपाभ्यां ग्रदण्व्यतिरिक्ररात श्राद्धमाचम्य निषिद्धवात्‌ पिण्डदानमाचस्य नित्यश्राद्धासम्भवे विदितत्रेन नित्य- काम्ययोस्तदप्राप्नावपि sama पिण्डदानादिविधिना साद्र॒ण्ष- fafa बोध्यम्‌ तेन wat साङ्गश्राद्धकरणमिति मिद्धम्‌ | दूति पार्वणप्रसङ्गात्‌ नित्यनेमित्तिकश्राद्धानि उक्रानि। श्रय गोष्ठोश्राद्धम्‌ | तत्‌ खशूपमादौ याख्यातं। तत्र कालो श्रमादास्येतर पावंणएकालः तौयंप्राघ्यादिकालो वा, अरय प्ररद्यायेश्राद्धम्‌ | तच श्रमावास्येतरपावेणश्राद्ध कालः | कमेोङ्ग BIg तस्य कालो विधिश्च efgargafefa प्रवे मुक्तमेव | ay दैविकश्राद्धम्‌ | तच gale: क्मकालः | gate दैविकं aa श्रपराहे तु पटकम्‌ एको दिष्टं तु मध्याह्न प्रातटेद्धि निमित्तकम्‌ इति माव्योक्तः, yale दैविकं ag काय्यैमभ्यदया्िना | दूति शातातपोक्रश्च, BY याचाङ्गश्राद्धम्‌ | तस्य यारापूवंकालौनलात्‌ कालविग्रेषापेरा तौच॑प्रसङ्गात्‌ तौयंयाचादि विधिरपच्यते | महाभारते, अरचिष्टोमादिनियमेरिष्टा विपुलदधिंणेः |

कएलसारः | Bsr

तत्फलमवाप्नोति तौर्याभिगमनेन यत्‌ तया,- यथा शरौरस्योद्‌ शाः केचिन्मरध्यतमाः सताः | तथा एथिव्यासुदेशाः केदित्यष्छतमाः रताः प्रभावादाद्ुतात्‌ wa: सलिलस्य तेजसा | परिग्रहान्मनोनां तोर्यानां guar war तोयंपदेन चेचस्था्यभिधेयलात्‌ पुरुषो त्तमक्तचक्ुरु्ेचगयादिपु तोयंयाचाफलं तदवस्थानदानश्राद्धादिफलं स्वे साधारणमेव | तथाच कुरुचचप्रस्तावे महाभारते,- ब्रह्मच महापु्पमभिगच्छूति भारत | मनसाप्यभिकामश्च gees यधिष्िर पापानि विनश्यन्ति शुय्येलो गच्छति | माव्ये,- देवेशि सुवेगद्यानां स्थानं प्रियतमं मम | मद्धक्तास्तच गच्छन्ति विष्णभक्तास्तथेव तया,- तच चेष्टं इतं दत्तं तपस्तप्नं छतं यत्‌ सवेमचयमेवास्मिन्रविसुक्र ana: | एवमन्यान्यपि विस्तरभयान्न लिखितानि। श्रतएव कल्पतरौ aware वहनि चेचाणि लिखितानि। तौर्यादिन्नानादिफलात्‌ wang तदद्‌ श्रयाचायामपि फलम्‌ |

(१) खगन्ोकं | 61

8८२ गद्‌ाचरप zat

तया ग्रहः, तीयं प्राप्य wea aa तोयं समाचरे त्‌(« | aaa फलमाप्रोति तौयेयाचाभितं a au दति। KAVA महाभारते, तोर्ययाचोपक्रमप्रसङ्ग-- यस्य पादौ हस्तौ मनश्चैव सुसंयतम्‌ | विद्या तपश्च कौ्तिंश्च तोयेफलमन्नुते पादरस्तमनःसयमाः HAW अगर्खदे शगमननिषत्यदत्तद्‌ानादि- निर ्तिङुसंकन्यनिदत्तयः। विद्या तोयेगुएविधिज्नञानम्‌ | तपः उप- वासतौोयैवासादि कौ न्तिः रुचरिततलेन प्रसिद्धिः तथा+- प्रतिग्रदादुपाटृत्तः amet येन केनचित्‌ | हकार विसुक्नञ्च तोथंपलमश्नुते अकल्कको निरारम्भो aan जिवेन्द्रियः। विमुक्तः सवेसङ्गस्येः तोयंफारुमश्मते श्रकल्करकः eather: | निरारम्भः श्रयीपान्ननादिव्यापार- रहितः | स्वेसङ्गः श्रविदितासक्रिः। तथा,- कामं क्रोधञ्च लोभञ्च यो जिला तौयेमावसेत्‌ | तेन किञ्चिन्न प्राप्त तौर्थानुगमनाद्धवेत्‌॥ तौर्यानि तु यथोक्न विधिना रुञ्चरन्ति a सव॑द्‌ःखसद्ा धीरास्ते नरा सखगेगामिनः दुःखसहाः शरोतातपा दिक्तेशसदिष्एवः |

(१) समाचरन्‌ |

कालसारः | ४८द

ब्राह्मे, गङ्गादितौरथेषु वसन्ति मव्छा- देवालये ufaaay नित्यम्‌ | भावो च्दिताम्ते फलं लभन्ते तोर्याच्च देवायतनाच्च मुख्यात्‌ भावं ततो इत्कमले निधाय तौर्यानि सेवेत समाहितात्मा | अकोपनश्च राजेन्द्र सत्यवादौ जितेद्दियः। ्रत्मोपमश्च zag तोयेफलमस्रुते पुनः शङ्खः aA यस्य हस्तौ पादौ मनद्चैव सुसंयतम्‌ | विद्या तपश्च कौ्तिञ्च तौयंफलमश्चुते | दूति यदुक्तं तत्‌ तौयं्लानादयङ्गम्‌ याचाप्रकरणमन्तरेरी ata: | कौ्तियक्तस्य तोयंयाजायां Avert चाधिकारकथनात्‌ श्रभिग्रस्तस्य a तौयेफलाधिकारः, केवलममिश्रस्तत्दोषनिटन्तिः स्यादेव | तथाच वायवोये- तोर्यान्यनुसरन्‌ TT श्रदधानः समाहितः | छृतपापो farsa किं पुनः एएद्धिकम्बंत्‌ तियेग्योनिं गच्छेच्च कुदेशे नेव जायते | खगं भवति वे विप्रो मोचोपायं विन्दति BATU: पापात्मा नास्तिकोऽच्छिन्निमग्यः। हेतुनिष्ठश्च wa तोयेफलभागिनः |

~ पिप

९८५ गद्‌1धर्पद्धतौ

शद्खोऽपि,- sui पापकृतां तौ भवेत्‌ पापस्य संचयः | ययो क्रफलदं तौयं भवेच्छान्तात्मनां नृणाम्‌ ब्रह्मचारिप्रतौनां तौययाचायां विगरेषोऽस्ति ब्राद्ये- या तोयया कथिता gate: ता प्रयक्ताप्यनुमोदिता at aga विधिवत्‌ करोति सुमयतो गरणा चानुयुक्तः सर्वस्वना ग्र लयवा नृपस्तु, स॒ ब्राह्मणानग्रत एव छता यज्ञा धिकारेऽप्ययवा fast. विप्रस्तु तौर्यानि परिभ्चमेत ata फलं यज्ञफलं fe Baa. प्रोक्तं सुनोद्धेरमरप्रभवैः | यद्यस्ति यज्ञे.प्यधिकारिताख, वरं ग्रं ग्टहधर्ममाञ्च स्वं # एवं गरदस्थाञ्रमसख्ितस्य, Ret गतिः पूवैतर निषिद्धा सर्वाणि तौर्थान्यपि चा्चिदोच- तुच्यानि नैवेति वयं वदामः दूति ओ्ओोताथिमतः तौर्थगमने निषिद्धेऽपि स्पननौकतया afi neat गमने भवत्येव फलम्‌ | सहा ग्रिमान्‌ सपत्नीको गच्छेन्तोर्यानि aaa:

ATMEL: |

सवेपापविनिमुक्तो यथेष्टां गतिमाभ्रयात्‌ दति वचनात्‌ केवलं ओओोतकमाषिरोघेन तीर्यच्ेचयोः स्ान- गरेना दिकं काय्यैम्‌, श्रौतकमेणः सर्वतो वलवत्‌ fafaafy खदारेषु परिकस्प्यलिंज' तया | प्रवसेत्‌ area विप्रो awa चिरं कवित्‌ दति कात्यायनोकरः, श्र्या्थो प्रवसेद्धिद्धान्‌ धर्मार्थो कदाचन | दूति शिष्टस्मर णत्‌ आपत्सु प्रोषितोऽद्िवेलायां वाग्यतः प्रतिदिनमद्नौन्‌ मनसा ध्यात्वा मन्तो BA ज्ञाता त्रतयेत्‌ दति हारोतोक्तः, चृत्‌ खिललौकतवगेस्य परिश्यतस् ग्रचुभिः | द्गेदयं प्रवासोऽस्ति परतो नाडिताग्निवत्‌ इति प्रमाणिकोक्रे्च प्रवासस्य तौ्ैसानादयर्यताभावेन यनज्ञ- विरोधाभावात्‌ | एवं seas तर्य वाचैव कार्य्या, after भावात्‌ ars निर्रिवत्‌ यातचा aa aterm sca सखात्तैवेन समवललात्‌ | घर्मा्यप्रवारो यज्ञाधिकारवत एव निषिद्धो- केवलं ara: | तस्य यज्ञाधिकाराभावात्‌ यज्नपदस्य Sarfy- साध्ययज्ञपरलात्‌ अन्यया पञ्चयज्ञाधिकारस्य चअन्धपट्कादि- साधारण्येन श्रवयावत्तैकल्ापत्तेः। एवं समाचारोऽपि we यत्‌ afafafeaa तौर्थस्तानादि फललीमेन afg fae तोय स्ञानादिकरस्े तत्फलं स्यादेव। केवलमविहितप्रवासकरणाथं वेश्वानरौ कार्य्या दति, तन्मन्दमेव |

gud गद्‌ाधरप दतो

महाभारते,- बहपकरण्ण यज्ञा नानामम्भार विस्तराः | meet पा यिव्रैरेव TITEL, यो दरिद्रैरपि विधिः शक्यः ary नरेश्वर तुल्यो यज्ञफलेः Gaeta यधांवर दत्यादि वाक्यपर्य्यालो चने यज्ञस्येवाधिक्वयप्रतौतेः, ओतकर्मा - पेया स्मात्तममेणो दुर्वलवाच। तौधस्तानादौ कुचवित्‌ यज्ञा- दप्या धिक्यमु क्रम्‌, तत्‌ यजन पम्यगमकमिति जेयम्‌ किचाग्निं परि- त्यज्य॒प्रवासे तदन्तमरणे महानन्थं saga आआचारविरो- धश्च स्यात्‌ | अय तोययाचाविधिः। ज्राद्य,-- यो यः कखिन्तोथंयउान्त्‌ गच्छत्‌, सुमयतः ya स्वगेहे कतो पवामः प्रयतस्तुष्टचित्तः, सम्यूजयेद्धक्तिनम्रो गणएग्रम्‌ देवान्‌ पिन्‌ ब्राह्मणं ञ्चैव साधून्‌ धोमान्‌ सप्रोणएयेन्‌ वित्त ग्रक्या प्रयत्नात्‌ | प्रत्यागतश्चापि पुनस्तथेव देवान्‌ पिद्रन्‌ ब्राद्यणएन्‌ पूजयेच रच उक्तफलकामनया AAS GHB VS रतोपवसो- mad पूजयिल्वाभिष्टदेवं संप्रज्य आ्राद्धं कत्रा तब्राद्यणन्‌ पूजयेत्‌ | “flea वित्त शक्तये" त्यनेन वि रेषतो घनवना fags काय्यैभिति

क्रलस्लार्‌ः) 8 ८७

विधौयते प्रत्यागमनानन्तरसपि देवत्राद्यणएपूजनं wee! एतच तो येयारउाङ्ग नित्यम्‌ येन तीयं va waa, तेन तु पुनरागम्यते तस्य प्रत्यागमनोक्रदत्रताप्रजनाद्यभावः। गयायाजायां तु वायवौये,- उद्तश्चेत्‌ गयां गन्तुः arg छत्रा विधानतः | विधाय कपटौवेशरं ग्रामं कला प्रदकिणम्‌ | ततो ग्रामान्तरं गत्वा श्राद्ध शेषेण भोजनम्‌ | ततः प्रतिदिनं गच्छेत्‌ प्रतिग्रहविवजिंतः। द्त्याचधिकमङ्ग aa) प्रयागव्यतिरिक्रतौ्यगमने यान- निषधे प्रमाणद्भेनात्‌ तीर्यान्तरे यानगमनेन विरोधः दति AMARA: “गङ्गायां भास्करे चेत्र” इत्यादि वाक्यात्‌ कीर्य- mga: fre कगशवपनात्मकमुण्डनञ्च कन्तँसंस्काररूपं तो यंस्तानदान्ाद्धादिषरूपकर्माङ्गम्‌ | चन्त दे वलवाक्यं तौ यन्य्नु- क्रम्य तद्‌ येमभिगम्व तरतो पवारनियमयुक्तस््यहमवगादमानः चिरात उषिता स्वेपापेविमुच्यते सखम्तिमांश्च भवतोति, adharsr- प्रकरण" स्ञानात्‌ Pay काय्येम्‌ | एवम्‌, च्रनुपोव्य चरिराचन्तु तोर्यान्यनभिगम्य 32a काञ्चन गाय॒ दरिद्रो नाम जायते) दति महाभारतोक्रौ तोयाभिगभनकाञ्चनगाद्‌ानविरातापोष- wifa दारिद्याभावफलानौति जेयम्‌ | चेचतोर्यादिष्‌ परकी- यत्वाभावात्‌ तच यच Hath ग्राद्करणे दोषः |

S60. ei a

(९) तत्तोर्धेयात्राप्रकम्गात्‌ एयगेव कार्यम्‌ |

गद्‌ाधरपड्धतौ

५0 =+ =

श्रटव्यः पवेताः पुण्या नद्यस्तोर्यानि यानि च। सर्वा्छस्ामिकान्याज्नने fe तेषु परिग्रहः | दूति uate: |) पुण्याः gesent: चेचाणि दति यावत्‌ | तेषु परिग्रहः sya कस्यविदपौत्ययैः तौ श्राद्धतपेणयोनं कालापेचा ) श्रकालेऽप्ययवेत्यादि पूर्रौक्रदेवपुराणणोक्तेः | तौचद्रयोपपन्तौ कालमवधारयेत्‌ | दूति दहारौतोक्तेथ तौयेश्राद्धं जोवत्‌ पिह कस्याष्यधिकारः | महानदौषु सर्वासु तोयेषु ward | जोवत्पितापि Hala ware पावेएधमेवित्‌ दति मैत्रेयग्यपरिशिष्टोक्रः | परा्थतोर्ययाने प्रसङ्गान्तो्प्राप्तौ चापि फलमाद पेठोनभिःः- घो दशांगं लभते यः परायन गच्छति ag तीयंफलं तस्य यः veya गच्छति प्रतिकृतिं quaat तौ येवारिणि मन्नयेत्‌ | asad age अष्टभागं लभेत सः

तच मन्तः, कुशोऽसि त्वं परविंचोऽसि ब्रह्मणा निमितः पुरा afa खाते खच सायात्‌ यस्यायं ग्रन्धिवन्धनम्‌॥ दति शिष्टाः Nett

अरय Uy श्रौ पचारिकराद्धम्‌ | तस्य॒ शररोपचयनिमित्तरसायनादि प्रयो गकालौनत्वात्‌

gaa: कालः, दृति द्वादग्रविधश्राद्धकालाः तम््रासाङ्गिकञ्चाद्ध-

कालाश्च निरूपिताः |

कनलसार्‌ः। BSE

श्रय जोवत्पिटकस्यापि श्राद्ध विगरेषेषधिकारः | मेयग्द्यपरिग्ि्टे,- विवाहे पुचजनने पित्ये्छां सौमिके मखे | तोये ब्राह्मण श्रायाते षडेते जोवतः पितुः जो वत्पिटकस्य श्राद्धकाला ways: | पित्येष्टिः चातुर्माग्येषि- विशेषः श्च faareud दितौयविवादपरम्‌ श्राद्य विवाहे पिुरधिकार इति ga निर्णोतलान्‌ | रच हारोतेाऽपि,- अरनिष्टिकोऽपि gala जन्मादौ आ्राद्धकश्णि) येभ्य एव पिता दद्यात्‌ तानेव दि पावेणम्‌ | इति माहमरणे तु तम्य माट्डताश्राद्भ AIGA ; MY महपिण्डतमौरमो विधिवत्‌ ga: | कुर्वोत भेवच्छ्राद्धं मातापिचोमग्डैतेऽदहनि इति पिढ्ुल्यलेन यमद म्रिनोक्ततात्‌ ०॥ रय ग्रादधुवेश्रदेवयोः क्रमविचारः | भविष्ये, eat AIS मदावादो ara faesy वैश्वदेवादिकं कमम ततः RAAT fay श्रादित्यपुराणे,- freq सन्त्ये विधिवत्‌ वलिं कुर्य्यात्‌ विधानतः | ama ततः कू्य्यात्पश्चान्‌बराद्भणभो जनम्‌ व्यासाऽपि,-

यदा alg पिदणभ्यम्त्‌ दातुमिच्छति मानवः; 62

ge गदार्पद्धतो

वेश्वदेवं ततः wand निदत्त श्राद्धकमेणि बद्ध गोतमः+ - fassigaaal तु वैश्वदेवं करेति यः, sad तद्वेच्क्राद्ध faeut नापतिष्ठते कार्ष्णाजिनिः, श्रृत्वा पेटक ae वैश्वदेवं करोति यः। arate तदभवेन्‌ श्राद्धं foal नापतिष्ठते पटौ नमिः, पिदटपाकात्‌ Hagel aqea करेति a: | BIL तद्भवेत्‌ च्छाद fagat नोपतिष्ठते aig faa विधिवत्‌ वैश्वदेवादिकं ततः | कर्य्याद्‌ भिचा ततो दद्याद्ध.१न्तकारादिक तथा) मनुः,- उच्छषणं तु उत्तिष्ठेत्‌ यावदिप्रा विसजिताः ततो गृदवलि दद्यादिति धर्मा ्वख्ितः ग्रदवलिग्रब्दो श्तयज्ञाभिघायको वैश्वदेवादि नित्यमदायन्ञो- पलचणपरः दति कन्त्पतरूकाराः | स्मृत्यन्तरोऽपि,- nerfafaearat यतोनां ब्रह्मचारिणं | पिदपाको दातव्यो यावत्पिण्डान निवपेत्‌

(१) न्तकारादिकं |

कालसारः | Ber

इत्यादि बङ्कवाक्चपर्य्याो चनया पावेणेकोदिष्टरूपोभयपिदट- श्रा द्धानन्तरमेव सा्रिकनिरथिक्ैरपि वैश्वदेवादिकं काय्ये | यत्त परि शिष्टे, aaa UAW Ble एको दिष्टे तथेव श्रग्रतो वैश्वदेवः स्यात्‌ पश्चादेकादगेऽदनि दृति, तच्छान्दोग्यविषयमेव,-- श्रद्धे प्रागेव कुर्वोति वैश्वदेवं तु aria: | एकाद शण्डिक gat तच द्यन्ते विधौ यते दति सालकायनोक्तिरपि प्रवोक्रिममानत्वात्‌ तत्परमेव | एवं, याजुषाः सामगाः पूं ASAD a agar! अयर्वाः पाकणेषण वैश्वदेवं तू कारयेत्‌ दति शौनकोक्तौ यट्‌यजुवदिनामपि श्रा्परवैलं, तन्‌ वाज- सनेयोनरगशाखिपरं इति निबन्धङतः | यदपि- वैश्वदेवाह्तौरावर्वाक् ब्राह्यणभोजनान्‌ 1 जुया त्‌ तयन्नादि Arg छवा ततः स्मृतम्‌ दति ब्रह्माण्डपुरालाक्ौ श्रग्नौकरणानन्तरं वैश्वदेवः, तदनन्तर रा न्राद्मणभो जनम्‌ | तदुत्तर ग्लयन्ञादि tama तदपि शाखान्तरविषयम्‌, चअ्रस्मच्छाखोनकर्मक्रमविरेाघात्‌ | fuga any दत्यादि बह्कवाक्यविगाधाच्च |

(२) बद्धः (२) PRAIA |

Be? गद्‌ाघम्पड्धतो

पित्रथं निर्वपेत्‌ पाकं वेश्वदेवाथैमेव वेश्वदैवं पिच्यं दां वैश्वदेविकम्‌ इति (“लोकाक्षिवाक्यम्‌ | aenfand श्राद्धूपाकात्‌ पृथक्पाके ्ैखदेवं कर्वताजेवादृतम्‌ दाग ieee: दभेग्राद्धस्य- सवश्राद प्ररतिकलात्‌ मवश्राद्धपर त्वमेतस्य दति श्राचा्याः | यदपि लोकाकिवाक्यम्‌,- पक्लान्तं कम निर्वत्य वेश्वदैवं साथ्चिकः। पिदयज्ञं ततः कुर्य्यात्ततो ऽन्वाहाय्यकं बुधः दति तदपि शाखान्तरपरम्‌ | पिटयन्ञं तु faaw विप्रश्॒न्द्रचयेऽत्रिमान्‌ | पिष्डा चादहाय्येक arg कूर््यान्मामानुमाभिकम्‌ दूति मनृक्तिविरोधात्‌ | पचान्तमन्राधानम्‌ | पिष्डान्वा दाय्येकं ziaig एवमादिषु यत्सा्चिकपदं aq waaay! नतु माग्रिकानध्धिकयोः कमभेदायं इति बोध्यं। यन्त, वैश्वदवमकलेव Ate कुर्व्यादनग्चिकः | लो किकेऽप्नौ SA ओेषः faeut नोपतिष्ठते दति परि गिष्टवचनं, तदपि पूर्वीक्तव्यवस्थायेम्‌ | यत्त॒ कँश्चिललिखितम्‌ सवेकादिष्टानां वचनात्‌ नि्य्राद्धा- नन्तरं करणम्‌ |

` (९) लोलाच्िवाच्छं | |

कालसारः | ४९ रे

तया जावालिः, पावंणं त्वभिनिवेत््यं wares समाचरत्‌ दति | fausrgafa पावंणमिति तच सवग्रब्दो पादानं चिन्त्यम्‌ | तथाच जावालिना,- यदेकत्र (\भवेयातामेकेादिष्टं पावेणम्‌ | पावेणं लभिनिवत्यं एकेदिष्टं समाचरेत्‌ दल्युक्रम्‌ aa एके दिष्टपदेन माद साम्बत्सरिकादि परिग्रदो- पिदसाम्बत्सरिक इति मवेर््याख्यातम्‌ | श्रस्माभिरपि वच्छते, तस्य पथगनुष्टानाभावात्‌ इति तथाच waar पिदठमाम्बत्स- fra प्रसरति। fa नित्यश्राद्धस्य पावेणलमिति mrad लभ्यते wert नित्यश्राद्धविधेः पावंणभिन्नलात्‌ कालमेद्‌ात्‌ वैश्वदेवौ नलाच | यदि श्रमावास्याश्राद्भस्य सर्व॑श्राद्धप्रुतिलात्‌ पावेणलं नित्यश्राद्भस्यापि इति afe एकेादिष्टाद्भादौनामपि पावेणल स्यात्‌ | इत्यलमति विस्तरण | यत्त॒, विप्रमिग्ररक्रम्‌, - विसज्जेनं तु प्रयमं पिदपेतामदेषु वे | Taya पावेणश्राद्धमुक्ता,- ततस्तु वैश्वदेवाख्यं कुर्य्यानित्य क्रियां qu: दति विष्णपुराणेक्तौ पावणश्रा ङ्खोनेनका दिषटश्राद्धो त्र- काले auea दति, तन्न रुचिरम्‌ | तत्र पावेणश्राद्ध पचस्यो दिष्ट-

----- ~~ --

(१९) समायातां |

९४८४ गद्‌एघस्प डतो

लात्‌ तदनन्तरता उक्तेति प्रत्युत वैश्वदेवस्य श्राद्धोत्तरकालताविधे- रुक्रलात्‌ अनेकवाक्येषु च्रविशषेण श्राद्धानन्तरो क्ख | यद्यपि तेरन्धेरण्युक्तम्‌, faga ama faeut नेापतिष्टत दरति वडवचनप्रयोगादकेदटिष्टस्य व्याृत्तिरिति तदपि मन्दम्‌। तच बह्वचनस्या विवक्षितत्वात्‌ | प्रत्युत एकव्चनोपादाने तु पावेणणे- TAA: प्रसक्तः स्यात्‌ वङ्कवचनोपादानादुभयोरपि साधारण्छेन प्रतोतिरिति कश्चिदिरोधः। मवेमेतत्पर्य्यालोच्य षट्च्धिंश्रसरत- कारिकायां साधारण्येन आआद्भपदसुपान्तम्‌ | प्रातिवामरिकेा eta: श्राद्धादौ क्रियते यदि | देवा व्यं nef कव्यानि पितरस्तथा दति | माव्छेऽपि,- faa प्रणिपत्याथ पय्येव्या्चिं समन्रवत्‌ | वैश्वदेवं प्रकुर्वीत saa afaaa च॥ दति | केवलं माटश्राद्धस्य wawa एको दिष्टलेऽपि वैश्वदेवानन्तर- मेवानुष्टानम्‌ | fast: srg समं प्रापे नवे पयषितेऽपि ar | faaus सुतः कुर्य्यादन्यचासन्तियोगतः दति कापणजिन्यक्रनित्यश्राद्धस्यापि यपिदटसम्बन्धित्वेन बल- वत्वात्‌ नवे पश्चाद्धवे पयुषिते चिरन्तने yan ce: अन्यच मातापिदव्यातिरिक्रश्राद्ध, आससि: Bea अन्तरङ्ग लमिति यावत्‌ एवं सुतरां पिदव्यादिश्राद्भात्‌ waa वैश्वदेवः क्यः दति fagai aaa सति मादश्राद्धस्यादौ नित्य-

कतसार्‌ः। BED

श्राद्धादो BABA भवतु आ्राद्धानन्तर तैश्वदेववलिकमं काय्यैमिति चेत्‌, उच्यते वेश्वदेववलिकर्मो त्तरत्वमेव नित्यश्रादस्येति सुतरां श्रादौ वैश्वदेववलिकमं दति fag) एतदस्मतृकताचारसारे ZB- व्यम्‌ इति। श्रय देवप्रूजाश्राद्धयोः कमः | श्राद्धदिने पाकस्य पिवृद शेन छतत्वात्‌ सिद्धमन्नं इत्या दि शतवचन- स्यापि तच विदितत्वात्‌ श्रादौ aig काय्वंमिति प्रतौय्ते | किञ्च पिण्डदानान्ते,- यत्किचित्पच्यते गेहे aw भोज्यमयापि वा | अनिवेद्य vine पिण्डमूले कथञ्चन | आद्धकाले,- ततेाऽननं ABA नेकव्यज्नभकवत्‌ | चोव्यपेयसन्छद्धं यया शत्युपकन्ययेत्‌ दत्यादिक्चनेः रादौ श्राद्धं कार्यमिति प्रतीयते | तया,- पिष्णपसुक्रगेषेए यष्टयं देवतान्तरम्‌ | तथा, faend तु यो दद्याद्धरये परमात्मने रेतादाः पितरस्तस्य भवन्ति varie तया,- इरे निवेदितं मम्यक्‌ देवेभ्यो जृह्धयाद्धविः | पिहभ्यञ्चापि azar फलस्यानन्यमाभ्रुयात्‌

Bed गदाधरपद्धलौ

दति वचनेविष्णपूनायाः प्राथम्यं प्रतोयते एवं सन्देदात्‌ aquaza faut छत्रा आद्धायमेकभागं द्‌वायमेकभागं सम- कालमेव परिबेषयन्ति | पिष्डदानसमकालं विष्णं प्रूजयन्ति | केवलं यषामन्यदेवा श्रपि श्रभोष्टाः ते आद्धपरिवेषणसमकालं zaarena परिवेषणं कृता पिण्डदानानन्तरं वैश्वदेवात्‌ पूरवे पूजयन्ति | पिद़षस्य विष्णो रेव fafagara प्रतिदिनविहिता- भौष्टदे वता पूजनं वैश्वदवात्‌ yafafa faufaare ॥०॥ इति। श्रय पावेणेको दिष्टयोः क्रमः जावालिः, यद्येक भवेयातामेके दिष्टं पावेणएम्‌ | पावेणं लभिनिवेत्य एकोादिष्टं समाचरेत्‌ पावेणं श्रमावास्यादिविदितं। एकोटिष्टं एकोटिष्टक्कुले मादसाम्बत्छरिकम्‌ स्वेषां पिदव्यादिमाम्बत्सरिक माचन्तर साम्बत्सरिक च। एकोटिष्टक्रुलेऽपि पिढसाम्बत्सरिकम्‌, तस्य पुथगनुष्टानाभावात्‌ | तच वचनं वच्छते | यद्िप्रमिभ्ररक्तं माट- साव्वत्सरिकं wafer पाकस्य तन्लवेऽपि एकाटिष्िभिर मावास्या- आ्आद्भानन्तरं Ana) पावरिभिः पुनदेदताभेदात्‌ प्रागेव श्रमावास्याश्राद्भात्‌ पृथक्‌ कन्तव्यम्‌ | काल्ादग्रमते इतरपावेणस्य कालभेदात्‌ दति) तन्न xfaca fast: आदधे समं प्राप्ने दति पिदश्राद्स्य प्रथमत वाचनिकत्वाच | पिच्नोस्तु पिदपूवेलं सवे आरद्भकमेणि ! दूति कालाद्प्रामाप्याच | कालभेद दति यो दतुरुपन्यस्तः

RITA: | 8<9

सेाऽथप्रयोजकः। वाचनिकेऽर्ये युकतेरनवकाग्रात्‌ | अन्यया एको- दिष्टस्य कालभेदात्‌ wats तन्मतेऽपि स्यात्‌ दति निपुणमतिभिविभावनोौयम्‌ | तयाच दृरग्रष्टठकायुगादिपरेतपद्चेषु मादमर णेऽ्ौ चान्ततिदिततेन

वा माटष्टताद्रा्ध प्रसक्ते वा दशादिश्राद्धानन्तरं मा दम्टतादशराद्ध काय्येम्‌ केवलमन्वष्टकायां माहमरणे च्न्वष्टकाओराद्धेन तत्छान- सरिकभ्राद्ूस्यापि aaa सिद्धिः। Vaasa fears fer तन्रसिद्ध्‌ | Wawa पिदमरणे mae रिकश्राद्ध भअ्रमावास्यादिपाव्णन

श्रमावास्यां चयो यख्य प्रेतपक्तेऽथवा पुनः

mad तस्य ada नैकादिष्टं कदाचन |

दति शखोक्तः। श्रमावास्वां दति श्रव्यन्तसंयोगे fede | श्रमावास्यायामित्ययेः। श्रमावास्यापदं श्रष्टकादिसर्वपर्वोपलचणं | तया च, गाग्येः,-

पवेकालो MATEY यदैव त्रयं भवेत्‌ | Wat तत्र कर्तं नैको दिष्टं कदाचन दूति,

Ysa पावेणिनामपि मातामदाद्यधिकदेवताविषयतेन gar वास्याश्राद्ध्येव तन््रलात्पुरूरवो माद्रवसेरेव देवतावमिति कर्का- चा्याः। त्र Arena, श्डता दश्राद्स्य नेमित्तिकतवात्‌ नित्यात्‌ नेमिन्तिकस्य वलवत्वात्कालकामयो देवतामिति, तन्न न्याय्यम्‌ |

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(१) तत्र | 63

४९८ गद्‌ {धरपद्लौ

Safaae तन्तवे मातामदादौनां प्रवेशाभावः प्रसज्येत किंञ्च एकदिषटक्ले विशरेदेवाभावेऽपि श्रमावास्यादिवलेनेव पुरूरवो- माद्रवोर्देवताल, पावैणिनां श्टतादस्य वलवच्वात्‌ कालकामयो- दवतालमिति सर्वानुगतो न्यायो स्थात्‌ तस्मान्ना कालकामयो- दवतालं, सकृद नुषितमनेकानुगतं तन्लम्‌ इति शामान्यतन्त्त- aqua) यदा तु एकोदिष्टिनामपि श्रणैचादिनाऽमावाख्यादिषु पिह साम्बत्छरिककरणएम्‌ तद्‌ाऽमावास्यापावंरेन एकोदिष्टं प्रसङ्ग सिद्धम्‌ ननु एको टिष्टपावेणयोः कालमेदात्कय प्रसङ्गसिद्धि- रिति चेद्ते। दविःव्वासादितिषु seit ^प्रयाजनखखालु- छानान्तिष्ठन्तं ux प्रयजन्तौति पशौ कालभेदेऽपि प्रसङ्गवत्‌ | श्न्योटेशेनानुष्ठितस्वान्यचोपकारसपादनं प्रसङ्ग दति प्रसङ्गलचणम्‌ | च्रमावाखादिषु षारपुरुषिकश्राद्धे कृतेऽपि षाटयुरषिक Praag qa: काय्थ॑मेव | तया श्राद्धेतरकर्माधिकारे माकंण्डेयपुराणे-

नित्यक्रियां faeui a केचिदिच्छन्ति सत्तमाः।

fagut तथैवान्ये पृथक्‌ पूवेवदा चरेत्‌ |

पृथकूपाके वेत्यन्ये केचित्सवेमपूवेवत्‌ |

दूति aga पचा उक्ताः | तच प्रथमपच्सयैवासमदैगे Baa |

तसमात्‌ विप्रभिग्रैरमावास्याश्राद्धदिने तद दविंहितं षाटुपुरुषिक- नित्यश्राद्धं श्रमावास्ाराद्धनेव तन्त्ेसिद्धलात्‌ कत्ते दति

(९) क्रतौ | (२) प्रयाजस्य |

कलसार्‌ः। Bed

यल्लिखितं | तदव्यन्ताचारविरोधात्‌ माकंण्डयपुरारेकपदाश्रयणा- चानाद्रणौयमेव इति श्रथ एकदिने बहश्राद्धनिषखेयः | दकः+- नैकः ged कुर्य्यात्‌ समानेऽहनि कस्यचित्‌ यज्ञं वलिं चेव देव्िंपिहतपणम्‌ दत्येतत्‌ काम्यश्राद् परमिति वचनान्तरात्‌ | तयाच जावालिः. Wig Bat तु awa पुनः श्राद्धं तदिन | नेमित्तिकं तु ane निमित्तानुक्रमो य(९) Ad: आद्ध Bal पुनःखराद्ध कुय्यादैकवासरे यदि नेमित्तिकं स्यादेको य) भवेद्यदि सघातमरणे श्राद्धकमः | ररस्पतिः,- एकाहनि विनष्टानां बहनामयवा दयोः | तन्त्ेए अपणं कला पृथक्‌ पचे प्रकल्पयेत्‌ कृत्वा पूरव्टतस्यादौ दितौयस्य ततः परम्‌ | aaa ततः aa सन्निपाते लयं क्रमः बहनामेकोदटिष्टानां सन्निपाते इति शषः

(१) कमोदयात्‌ (2) स्यादेको |

= गदाधरपदतौ

क्रमज्ञानाभावे A— भवेद्यदि सपिण्डानां युगपन््ररणं तदा | सम्बन्धासरुत्तिमालो च्य तत्माच्छराद्धमाचरेत्‌ इति | सपिण्डपदोपादानात्‌ ददं स्वे मातापिदव्यतिरिक्रविषयम्‌ | युगपम्मरणं जले वा ग्हदादादिना वा इति ज्ञेयम्‌ | मातापिकरोस्त॒ सहगमनेऽन्यप्रकारेण य॒गपन्दमरणे वा एकदैव ब्राह्यएभदेन पवेमध्यमेान्तररूपाणां fafaurarafa क्रियाणां करणम्‌ | तथाच देवलः, पिचोरूपरमे gar: क्रियां कुख्दयोरपि | Hawa नान्येषां संघातमरणेऽपि | श्रनुम्टतौो सहगमने शद्रस्वोणा दशादमध्येऽनुगमने च। महाभारतादिषूभयन्नापि श्रनुमरणादिपदप्रयोगात्‌ fueargat- युगपत्‌ करणेऽपि श्रादौ पिदटकमे war ततो माठक्मं क्रियते, दूति | यपिद्टपूवैलमपि संगतम्‌ सहाग्रिप्रवेेः तिथिभेदे a मादसाम्बत्छरिक यथातिश्यव। रुपिण्डनान्तक्रियायामेव मातुः तियेरङ्धोऽणनाद रात्‌ | एतद गौ चप्रकरणे लिखितम्‌ | एवं सपन्नमाटणं बहनाम्यश्रिप्रवेग बोध्यं तत्न यस्याः gat विद्येत तस्य fauna साम्बत्सरिकस्य तथाविधिकरणे श्रधिकारः। एवमपुचपिदव्यपल्याद्यगरिप्रवेभेऽपि वैश्वदेवस्य खचन्तरमादटसाम्बतस- fra पूर्वानुष्ठाने सिद्धेऽपि च्रथिप्रवेभे तु मादसाम्बत्छरिकस्य पिद- साभ्बत्छरिकाघौनलात्‌ अ्न्वष्टकायाभिव पश्चादनुष्टानमविर्द्धम्‌ |

कालसारः | yor

श्रमावास्यादिनित्यश्राद्धा शक्तौ संकनल्यश्राद्ध काय्येम्‌,- AMR पार्वणश्राद्ध यथावत्कततेमचमः | पिण्डार्घादिविदहौन तु सकल्पश्राद्ध माचरेत्‌ श्रग्नो करणमधं चावाहनं चावनेजनम्‌ | पिण्डश्राद्धे प्रकुर्वो पिण्डदौने विवन्नं येत्‌ खधावाचनलो पोऽस्ति विकिर ्ैव लुप्यते ¦ श्ररय्यद दिणाख स्तिसौ मनस्य तथापि दति वाक्यात्‌ | श्रय वा पिष्डमाच देथम्‌,- पिण्डमाच प्रदातयमभावे दरव्यविप्रयोः | अ्रद्धादनि तु सपराप्रे भवेज्निरण्नाऽपिवा दति धमेक्रिः भ्रमावास्यायां तु तचोक्तविधिना षट्‌ पिण्डाः | ्रष्टकायामपि तथा श्रन्वष्टकायां तु कन्दो ग्घव्यतिरिक्तानां नव पिण्डाः | कान्दोग्यानां षट्‌ पिण्डाः | जोवन्माठकाणां तया दरति पिण्डमाचद्‌ानपत्ते यवस्या ° | पिण्डवलिपक्े,- ay भोज्यं तया पेयं यत्किञ्चित्‌ पच्यते दे भोक्रयं पिएण तद्‌ निवेद्य कथञ्चन दति शआ्राद्धप्रकरणे यमेनोक्तवात्‌ नवभाण्डे पिष्टकादिकं हत्वा ददतोति समाचारः | पिण्डमाचदानासम्भवे उपवासः | सवेृष्णपच्वाणां श्राद्धकाललं वेजवापः,- BMI राद्धं प्रकुर्वीत अन्नं dag पक्ता, कृष्णपक्च दशम्यादौ aa चित्वा चतुदैभोम्‌ |

५०२ गदाधरुपद्धलो

श्राद्धं प्रशस्तास्तिथयो ear तथेतराः यथा चैवापरः पचः छृष्णपच्चादिशिख्यते तया Alga पूर्वाह्णादपराह्ञा विशिष्यते हारोतः,- सम्वत्सरः प्रजापतिः तस्यो दगयनं ग्ररक्तोऽदः पूर्वा श्च carat द्विणयनं तभिश्रः रािपरपराहूश्च तत्पिदर्णणं इति। Wa: Ware: तमिश्रः HUTT | aE ,— पयो मूलफले राकः कुष्णपचे सवेदा पराधौनः प्रवासौ निधनो वापि मानवः मनसा भावग्रदेन We दद्या्तिलोद कम्‌ | नाञ्नन्ति पितर्चेत्ति कुला मनसि at नरः॥ राद्ध Het भ्या तदेदाद्रधिर a a | पिवन्ति aaa कुवन््यय पदे पदे तस्मात्‌भयेन elas तपेयेत्‌ सततं बुधः पक्तान्ते निवैपेत्तभ्यो छपर वेद्‌ वित्‌ च्रचोक्तं तिलतपेण श्रत्यन्ता सम्भवदिषयमेव | तथा विष्णुपुराणे aaa वा यथाग्रत्तया कालेऽस्मिन्‌ afar: | भोजयेताचर fara भक्ता विभवतो नरः श्रसमयोऽन्नदानस्य धान्यदानं खश्रक्ितः | प्रदास्यति fanaa: eat वा पिह दिणाम्‌ ee नक्त पितृन्‌ | |

RIGA: | Yo 2

तच्रायसामथ्य युतः (“कराग्धात्रखित) सिलान्‌ | प्रणिपत्य ददिजाग्धाय कस्म चित्त प्रदास्यति तिजैः सप्ताष्टभिवांपि समवेतान्‌ जलाञ्जलौन्‌ | भक्तिनयः समुदि ण्य qaqa प्रदास्यति

यतः Safad are गोभ्यो वापि गवाङ्किकम्‌ | श्रभावे प्रोणए्यन्नस्मान्‌ श्रद्धा पूतः प्रदास्यति सर्वाभावे वनं गला ककतमूलप्रद्‌ेकाः | सूर््यादिलोकपालानामिदमुचेः पटिय्यति

मेऽसि वित्त धन चान्यच्छ्राद्धोपयोग्यं खपिदठ्न्नतोऽस्ि। au wat पितरो aaat भुजौ कतौ aafa मारूतस्य ततचायन्नादयुष्गेः पिचद्येगेन काय्यै, waa ससु टि श्यः |

सत्यन्तरेः-

auate गवे दद्यात्‌ पिण्डान्‌ वाऽप्यथ निवपेत्‌ | famed: fags वापि तर्पयेदधिधिपूवकम्‌ ्रग्निना वा Temas BAS समागते | तस्मिञ्चोपवसेद्वाङ्ि जपेदा श्राद्धं हिताः(२)

श्रन्यच,-

किञ्चिदयाद शक्रस seqarfea fae |

सव्र) atsanararenrfeanrafaaa उक्रः। ग्रक्रस्य

द्र्ादियक्तस्यारोगिणः | श्रमामथयं तु वशिष्ठः, आ्राव्याग्राहा-

(९) कुशाग्रसदहदितान्‌ | (२) afeai | (३) सवैः |

५०४ गदाधरपड्धतौ

यण्योञ्च श्रन्वष्टकासु पिन्यो दद्यात्‌ निगमा श्राडहिताप्रः faaed fasta arguiafa वा भोजयेत्‌ wane) श्रपरपके यददः सम्पद्येत, श्रमावास्यायां तु विगरेषेण श्रष्टकातोयेतिथि- ्राद्मणद्रयसम्पत्सु चिकोषत इति सव्र कुष्णच्चस्य यस्यां कस्यां चित्तियौ agigan ततादिताग्रर्नाधिकारः। cla विनेत्यादिनान्यदिने निषेधात्‌ | दचिणाग्ब्‌ इूरणस्य दशं विद्य- मानलाचेति yaga निरप्रेरपि दं करणं तस्य sana उक्रत्वात्‌ | देवलेन तु, ्रनेन विधिना ag कुर्य्यात्‌ सम्बत्छरं सकृत्‌ दिश्वतुवां यथान्यायं मामि मासि fea दिनं दति सम्भवासम्भवतारतम्येन Fea: पचा उक्ताः तच सरत्‌- करणएपच्चः कन्यायामेव | तस्यां आरा द्धेऽतिभस्तवात्‌, दति frase: AY ग्टरपाकपरित्यागकालाः | प्रचताः+- काम्ये व्रते यज्ञे fagui चेव वत्सरे | मोत्सवे यतोपाते gaara परित्यजेत्‌ wfaat,— विवादोत्छवयज्ञेषु माता पिचोण्ठेतेऽहनि Ze Ba vad पूवेपाकं परित्यज्येत्‌ समृतिसमुचये,- काम्ये व्रते तया यन्न Wate यदा भवेत्‌ |

RIAATE: | 5 “श्वी

खतके wad चेव प्रवंपाकं परित्यन्येत्‌ शिष्टाः प्रेतरत्ये,- चिपच्वऽवाऽय षण्मासे सपिण्डोकरणे तया | पूवंपाकः परित्याज्यो षटतादात्‌दाद शेऽहनि श्रयामावास्यादि राद्ध प्रकरणे देवलः, तयेवामन्तितो दान्तः Bal प्रातः सदहाम्बरः | WHA Aa: पातरैरन्नारम्भं सबान्धवः | mata पाकारम्भमित्ययेः। सहाम्बर दत्यनेन aaze- धारणएमुक्रम्‌ | एकवस््ाभावे नग्रलप्रसक्वा वस्वपरिधाने सिद्धेऽपि सव््लोकतेवैयर््यात्‌ | सवान्धव दत्यनेन सपिण्डानामपि पाका- धिकार उक्रः। श्रामन्तितमामन्तणमस्यास्तोति श्रामन्तितः छतज्ञातिनिमन््ण cay: श्र तिथितवकारैः श्रामन्तितो निमन्तितः सुदद्धिः खजनेख्चेति यडा ख्यातं तन्न चास सुददादौनां यजमानकामन््रणस्यासंलग्नलात्‌ TT वाक्ये पाकत्यागानुक्रदा- femgy नवभाण्डेषु पक्ता श्राद्धं Aaa तद्वाण्डानि vans मिश्रयन्तिन तु पूवेपाकं त्यजन्ति) श्रय नित्यविहिततिलतपेणनिषिद्धकालाः | ब्रह्माण्डपुराणे, fresrg रवौ wa सप्तम्यां निशि सन्ध्ययोः | सक्रान््यां जन्मदिवसे कूर्य्यात्तिलतर्पणम्‌ | पुनस्ततरैवा पवादः, श्रयने विषुवे चेव ग्रहणे चन्द्रष्ग्यैयोः | 6-4

५०६ गदाधस्पद्धतौ

उपाकमणि stan युगादौ पिढवासरे

र? श्एक्ररिने वापि दुखेत्तिलतेपेणम्‌ |

Ad fafafand गङ्गायां प्रेतपच्चके |

निषिद्ध ऽपि दिने कुर्य्यात्तपेण faafafaaa i

एवमय॑कानि मरोच्यादि वाक्यानि विस्तरभयात्‌ लिख्यन्ते |

पिढवासर Tas श्टतवासर दति Arey पाठः। Bat मकरककंट- emai | amet तच्तष्टये पिद्वामरे पिदमाढसाम्बरि- कयोः। तियितरिग्रेषे wart | तस्या एव तिथेः पूवम॒क्तवात्‌ प्रेत- gat महालयपक्ः। तथाच ययायोग्ये श्रयनादिपरतपचान्तेषु रतिग्एक्ररासरःदियोगेऽपि तिलतपेणं काय्थमेव | GIST राचा- वपि तिलत्पणं aaa तद्भहणस्य तञव nea) garg राचि- सन्ध्ययोर्नेव॒ तिलतपैणं, श्रपवादाभावात्‌ श्रयनादियोगाभावे तु रषिवारादिजन्मदिनान्तेषु नेव तिलतपेणम्‌। एतिन सक्रान्ति- निषेधोऽयनविषुवव्तिरिक्राष्टुसक्रान्तिविषयः। पिदख्राद्धनिषेधः काम्यथ्राद्भादि विषयः | केचित्त श्रष्टकान्वष्टकादशभश्राद्धानां श्रप- वादोक्रावनुपादानात्‌ तददिषयेऽपोति^) तन्न।

saga चन्द्रमसो रश्च रिष्वषटकाखष्ययने दये

पानौयमप्यच तिलेदि मिश्र cafe: प्रयतो Ate:

Wg BA तेन समाः Wea रहस्यमेतत्पितरो ana दति

विष्एपुराणोक्तौ seats तिलतपेणस्य विहितत्वात्‌ |

(९) Seam | (र) afeaatsatfa | -

कालसारः | ५०७

नोलषण्डप्रमोक्ण श्रमाघास्यां तिलोदकैः | वर्षासु दौपके्ेव पिदर मनणो भवेत्‌ | इति महाभारतमाच्छयोदं रं तदिघानात्‌ waters | यच्च प्रारौनेरुक्त waa विषुवं देवेति वाक्यस्य orang एिद- साम्बत्सरिके fan इति तन्न। तस्िन्नेव agree aa एतदाक्वरगेनादप्रामाण्ग्रकाया च्रनुद्‌ वात्‌ | उपाकम॑रृषोत्सगं गादौ श्टतवासरे एक्रद्ष्यैदिने चेव दु वेत्तिलतपेणम्‌ | दति ACSA निषिद्धदिने तिलतपे दोषः ख्तौ,- निषिद्धं दिनमासाद्य यः कुय्यात्‌तिलतपेणं | रुधिरं तद्भवेत्तोयं दाता नरकं aaa एतत्तो यातिरिक्रदिषयं aaa तु Ana तपेण सतिलोदकः | चन्यथा HATS: विष्ठायां भवेल्छमिः दूति रतेः श्रय दृन्तधावननिषिद्धकालाः | नारसिंहे, प्रतिपद्य्रषष्ठोषु नवम्यां चेव सत्तमाः | दन्तानां काष्टसयोगो ददत्यासपघ्रमं कुलम्‌ महाभारते, भच्येच्छास्तरदुषएानि पवेखपि asia | ग्रास््रदृष्टानि काष्ठानोति मम्बन्धः पर्वालि चतुदश्यष्टम्वमा-

Ye c Tea प्ट तौ

वास्यारविसक्रान्तयः। wa नित्यदन्तधावने काष्टनिषेधात्‌ काटे- नापि सुखायेदन्तधावने भोजनोत्तरादृष्टायदन्तधावने वा afafacte: | स्मृत्यन्तरे, - श्राद्धे safer चेव विवाहे सुखटूषिते | ब्रते चेवो पवासे वज्ज येद्‌न्तधावनम्‌ तया,- भचयेदट्‌ न्तकाष्टमेकाद श्यां नरेश्वर | श्रादित्यदिवसे चेव तस्मादेनो मदद्धवेत्‌ दूति केचिदच दौचाकर्माङ्गवेन दानहोमप्रतिषेधवत्‌ आद्धा- qgaa काष्टकरणएकं दन्तधावनं यदि प्रतिषिद्यते afe am- वाज्यभागयोरिव विदितप्रतिषेधात्‌ विकल्प ada दति भयन सुखायेंदन्तधावननिषधः(२) कल्यनोय दति, तन्न व्रतोपवासदिवसे खादिता दन्तघावनम्‌ | गायत्याः श्रतश्रः gat wa: una विध्यति i दूति कर्माङ्गभेश्प्रायखिन्तविधानस्य वेयर्थयापत्तेः | ननु afe श्राद्धदिनेषु सुखायेदन्तघावनं पूववत्‌ काय्येमिति चेन्न सवंभोगविवज्जितः दति वाक्यात्‌ als भोगत्रेन एव aw निषेधात्‌ भोजनोत्तरदन्तधावनस्याप्यत्न निषेधः। fafa पूवं- प्रायित्तोक्गः।

(९) प्रतिषेधते | (र) zaurqafatea: |

कालसार्‌ः। ग्र

निषिद्धदिनेव्वपि प्रकारान्तरमापैडोनसिः,- sara वा निषेधे वा काष्ठानां दन्तधावनम्‌ | पन वा fangs fasted समा चरेत्‌ | स्मृत्यन्तरे, कुह्भषष्ठयोनेवम्यां पादौ दन्तधावनम्‌ | quia कास्तु fasta: सदेव fe | व्यासः, sala दन्तकाष्ठानां प्रतिषिद्धः) दिने तथा | wat दादश्रगण्ड्ष विदध्यादन्तधावनम्‌ तथाच दन्तकाष्ठनिषेधं दाद ग्रजलगण्डषाणां अद्ध पणस्य

समो विकल्पः, श्रतएवासमेगे सवदा श्राग्रपत्रेरेव दन्तधावनं कुवन्ति दरति समाचारः eu गण्ड्षपकव श्रायुम्बेलमिति RaW वनस्यते

Tat जलगण्डुष इत्यहः काय्य धान्यमसि varie aay तरखमसि रत्यादयः काय्येः दति तरसमयाधिकरणन्यायात्‌ |

quay तु नोहः तस्यापि काष्ठवत्‌ वनस्तिजवात्‌। निषिद्ध दिने- स्वपि जिङ्कोल्ञेवः ara एव, जिह्धोल्ञखः सदव fe दत्यृक्रः |

श्रय प्रसङ्गात्‌ शओ्राद्धपूवदिनकृत्य्राद्ध दि नृत्य निखयः | तच निमन्ल्णएकभक्तादि विचारः देवलः,-- sagt निग्तः खस्यः श्रद्धावानलरः Wee: | समादितमनाश्चाच क्रियायामसरृत्‌ सदा a कन्तास्मोति नित्य दाता विप्रान्निमन्त्रयेत्‌ |

(१) निषिद्धे | (र) प्रतिधिद्धदिने। (द) तच्च

५१ ° गदाधग्पडतौ

निरामिषं saat सवेभुक्रदिने(* गहे saya aga त्राह्म्णास्तान्‌ निमन्ल येत्‌ gaat समानार्षौ युगमानात्मशक्तितः निरामिषमित्यनेन दविग्यभोजन | सर्व॑कमेष्वपि हारोतः,- aaa दैवपित्ये श्रौ पवस्यमन्नाति दति उपवस्तं उपवासः aa fed श्रो पवस्त्यं तश्दयिष्ठं हविः | पूर्वेयुनिमन्त्रणागरक्तावपि कतत पूर्व्ये विव्यभोजनमेव साधारणं दूति कल्यतसुकाराः | स्व भुक्ता YR यस्िन्‌ तथा ्रसम्भवे कुतश्चित्‌ कारण्णत्‌ निमन्त्रण सम्भवे | ATA: प्रवराः | वाराड,- वस्वो चोदककर््तासमति जानता, खानोदलेपनं afa कला विप्रानिमन्लरयेत्‌ | दन्तकाष्ठं विष्जेत्‌ ब्रह्मचारौ एचिभेत्‌ शरूमिं safe चि्णश्रउणणद्‌ दिगुणणेपेतामिति प्रषः | वि्जेद्राद्यणदिभ्यो दद्यात्‌ दति कल्यतरुकाराः | aq तदयायिभिरप्राचौनेयेद्‌न्तकाष्ठदानं लिखितं, तत्‌ कल्प- तरकाराणं किमभिप्रायमिति यत्‌ लिखिते, तन्न समो चोन | निमन्तितन्राद्धणायं न्तकाष्टदानस्य वच्छमाणवेन पूवेदिननिम- aug शराद्धकत्तद न्तकाष्ेनेव तदन्तधावनस्ोदितलरमिति तदनि- प्रायात्‌ प्रातरेव दन्तधावनस्य काल इति qage न्काष्टद्‌ानं उचितमेव इति सद कल्पतरुकारः | (९) जने (न्न मोरो

कासारः | ५११

मार्कण्डयपुराण,- निमन्तयेत gag: पवौक्तान्‌ दिजसत्तमान्‌ | sata तददिने वापि fear योपित्मसङ्धिनः भौचाधमागतान्‌ वापि काले संयभिने यतीन्‌ | भोजयत्‌ पाणिपाचादयेः प्रमाद्य यतमानसः; | निमन्लेणं प्रहृत्यो ग्रनाः,- चतुरवरान्‌ दति। दौ दैव एकैकं वा पिदहमातामदहवग योः WILT: प्रात्तःकाल चामन्लणमिति | मनुवोधायनग्रातातपाः.- दौ देवे पिदत्ये Da एकौकसुभयच्र वा भोजयेत्‌ सुमन्टद्धोऽपि प्रसव्टेत विस्तरे सत्क्रियां देशका शौचं argwenc: | पञ्चेतान्‌ विस्तरो . दन्ति तस््मा्नेहेत विस्तरे त्राद्येः- दे शकालधनाभावादेकेकमुभयनत्न वा शेषान्‌ वित्तानुसारेण भोजयेदन्यपेश्सनि यस्मादत्राद्मण्वा ल्याटोषो asatt भवेत्‌ | छो विना मौननाश्रः आआद्धतन्तरसय विति; | उच्छिष्टोच्छिष्टसंस्पशेः इत्यादि | याज्ञवरक्यः,- मातामहानामप्येवं तन्तं (९च व्रैश्दे विकम्‌ |

+ --- ~ rr oo

(१) तन्त्र बा

UR गदाधरपदतौ

श्रतएव सपिण्डौकरणएव्यतिरिक्रग्राद्धषु wane एवाद्ियते | uaz? तु महालायादौ माचाद्भाद्यणभावेन द्रौ विनाशादि- दोषाभावात्‌ धनाधिक्याच्च देवे पच्रदय faeat पचच्रयं मातामह ansfa qaqa कुवन्ति | माव्ये,- यः साधुभिः सनिमन््रयेत्‌ इत्यनन्तरम्‌, तस्य ते पितरः Far आ्राद्ूकालसुपखितम्‌ | श्रन्योऽन्य मनसा ध्याला सम्यतन्ति मनानवाः तया,- ब्राद्यरेश्च सदाश्रन्ति पितरा दन्तरौ चगाः | agua श्यन्ते भुक्ता यान्ति परां गतिम्‌ साधुभिः सनिमन्त्रयेदित्या दि.“ खयं (??निमन्त एासम्भवे | भवितव्यं भवद्विश्च मया आआद्धकमेणि | दूति लिङ्गन सखनिमन्त्रणस्य gear | यमः निमन्चितो दिजः fae नियतात्मा भवेत्सदा | छन्दांस्यधोयोत यस ag तद्भवेत्‌ साऽपि नाधोयोत इत्यथः हारोतः,- (रपूरवद्युमेन्लितान्‌ विप्रान्‌ पितरः संविशन्ति वै। यजमानं तां रातिं वसेयुनिंयतास्ततः

निषि णि rh ian

(२) संनिमन्तयेदिति (२) खयं निमन्लणस्य (३) पुर्वैदुरामन्तितान्‌ |

कालसारः | YRS

RIQIA,— तदः एएचिरक्राधनेऽवरितेा श्रप्रमत्तः सत्य- चादौ स्यात्‌ भ्रष्वमेथुनश्रमखाध्यायान्‌ AMAT श्रावाहनात्‌ चअ उपस्यशेनात्‌ श्रामन्तरितश्चेवम्‌ श्रा उपस्यश्रनात्‌ भोक्तणं अन्त्याचमनपय्येन्तम्‌ तथा च्रनिन्द्ये गमन्तिता नापक्रमेदामन्तिते- ऽन्यद्‌ न्नं WHAT |

यमः,-

केतितस्तु यथान्यायं ब्राह्मणा दव्यकव्ययेः | कथञ्चिद्‌ यद्‌' ° तिक्रासेत्‌ पापः सूकरतां व्रजेत्‌ ब्राह्मण तु सुखं ला देवताः पितभिः सह तदन्न समुपश्नन्ति तस्मात्तन्न व्यतिक्रमेत्‌ केतनं कारयित्वा a याऽतिपातयते दिजः) (रब्रद्यवध्यामवाप्राति शद्रयानो जायते sarang यः Ale अन्यस्य कुरूते चणम्‌ | सम्वत्सर छतं ya aw नश्यति दुर्मतेः

श्रामन्तित दति प्रायकमेणि निष्ठाप्रत्ययः तयाचामन्लएन प्राप्तः स्वौङतामन्त्ण दति यावत्‌ ea श्रामन््रणं कुरुते खौकरोाति, एतेन रतनिमन््रणएसखौ कारस्य तद तिक्रमे देषः | तु प्रथमतेऽसखौकुतनिमन्ल्णस्छ दति जयं।

बराद्य,-

श्रामन्त्रित्चिरं नेव कुर्य्याद्‌ विप्रः कदाचन | देवतानां पिद्रणं दातुरन्यस्य चेव हि

(९) यो ऽनतिक्रामेत्‌। (२) ब्रद्यदत्यामवाप्रोति | | G5

५१४ गदाधरपद्धतौ

चिरकारौ Hagen पच्यते नरकाचचिना | पुनयेमः,- श्रा सन्त्य ब्राद्धणणन्‌ यस्तु यथान्यायं पूजयेत्‌ | श्रतिचोारासु छच्छरासु faantfay जायते शङ्खः, निमन्तितस्तु a: श्राद्ध मैथुनं सेवते दिजः | श्राद्धं दता भुक्ता युक्तः स्यान्महतेनमा अतएव देवलवाक्ये sant यदि गच्छति दति स्तौमाचोप- aqua | श्रन्यनिमन्तणपक्ते argue श्दरण aay निमन्त- Way | Wes ब्राह्यणेनापि निमन्णौयम्‌ | तया यमग्रातातपौ,- Ris ब्राह्मणएस्यान्न ayaa निमन्तितम्‌ | तथेव टषलस्यान्न' ब्राह्मणेन faataaa ब्राह्मणानां आद्धयोग्यलस्य प्रायोऽभावात्‌ पश्चादनुकल्पपन्त मतुरा, एष वै प्रथमः GS! प्रदाने इव्यकव्ययोः BARU जेयः सदा सद्भिरनुष्ठितः माताम मातुलं Bala YRC गरम्‌ | दौ दितं विटपतिं वन्धुष्ट लिग्याज्यौ भोजयेत्‌ एतेषां श्राद्धयोग्यल गु एर हित्येऽपि निमन््ौयत्मित्ययेः | तच नियोगक्रमे दारोतः,- विद्यातपोऽधिकानां वै प्रयमासनसुच्यते | ब्राद्यणाभावे विष्टरत्राद्यणकभश्राद्ध, तया श्राद्खबभाय्ये,- नाह्मएानामसम्वत्तौ छवा दर्भमयान्‌ दिजान्‌ |

कास्तसार्‌ः | ४५२५

श्राद्धं छवा विधानेन पश्चाद्‌विप्रषु द्‌ पयेत्‌ सत्यत्रतोऽपि,- निधाय दभविष्टरानासनेषु aarfea: | ्ेषानुप्रेषसंयुक्त विधानं प्रतिपादयेत्‌ एतेषां श्राद्ध योग्यत्रग णरा दित्येऽपि निमन्ल्ण्णे यतमित्यखः | मालयामग्िलात्रादह्यणकग्राद्ध | तत्र स्मृतिः, सालयामग्लायां अद्ध यः कुरूते दिजः। गयायास्तरिुणं gay लभतेऽसौ संप्रायः॥ ae सालग्रामभिलाये तु यच्छ्राद्धं क्रियते नृभिः | तस्य agifan स्थानं ठप्राश्च पितरो दिवि एतयो ्त्राद्यणएल्पच्त wena एव निमन्त्ण, तत्‌पूर्युः, तेषां नियमाद्यभावात्‌ | यत्त॒ fanfas: ्रनिन्येनामन्तितो नापक्रामेदित्यनक्रमणएायैलेन च्रचेतनेऽपक्रमणाभावान्निमन्लणं कायेम्‌ | निमन््णस्य तु प्रेषला- भावेऽपि यदुत्कलदेभे तदनुष्टाने, तत्‌ किंनिवन्धनमिति जानौ मः, दति लिखितं तन्न विचारचार्‌ | प्रेषानुप्रेषसंयुक्तं विधानमिति मवश्राद्धेतिकन्तेव्यतायां कायेवेनो क्रलात्‌ | श्रचेतने प्रैषानुप्रैषयोः८) aang तर्युनत्वमुक्तमिति तेनेव निमन्लणएस्टा्युपलचणात्‌ | भवन्तो मया निमन्तणोयाः निमन्तिताः स्म दृति प्रेषानु्रैष- सद्धावच्च | दति)

(१) सतत्‌ वचनं पुस्तकान्तरे दृश्यते | | ~ =a (2) परेषानुपेषयोरकरण शङ्कया द्यक्तत्मिति तनव |

५९६ गदाधरपद्धतौ

रय श्राद्धस्थामविचारः। याज्ञवल्क्यः, परि भिते sat देगे दक्िणाप्रवे तथा! यमः,- eq छमियुतं faa सङ्गोणानिष्टगन्धकम्‌ | an चानिष्टग्रब्दञ्च वजयेच्छराद्धकमणि tt efaursau स्लिग्ध विविक्र naan | ग्रचिदे गश परोच्छाश् गोमयेनोपलेपयेत्‌ amy fafaayg तोयेषु नदोषु च। विषिकरेषु देशेषु दष्यन्ति पित्रः सद्‌ा पारक्ये श्टमिभागे तु fagut fata यः agfaarfafuefa: signa विहन्यते a तसम च्कराद्धानि देयानि पुण्येष्वायतनेषु नदौतोरेषु तीर्थेषु खश्मो प्रयत्नतः supe नितम्बेषु तया पवेतसानुषु गो मयेनो पलिपेषु विविक्तेषु wey faa ufea उपहरं पवैतान्तिकं एतेन पुण्छायतनादौ परकौयलश्रङ्धा। एतच्च तोयेख्राद्धपरसङ्गलिखितायामटवोत्यक्तौ : स्फ़टमेव UAW UAHA, ब्राह्मे जघान दानेवौ विष्णः पूर्वै तु मधुकैटभौ | ad महेन्द्रश्च ततः wal तन्मेदसारता ततोऽयं मेदिनो सा लोके विगौयते जनेः | तस्माच्छराद्धे पञ्चगव्येलैया शोध्या ata:

कलसारः। ५९

गौरण्ट्तिकयाच्छन्ना प्रकौणेतिलसषंपा | उक्तस्थानानामसम्भवे परग्डे Bis ब्राद्धे- परकौयग्टहे यस्त॒ खान्‌ fuga aves: | तद्ूमिखा मिनस्तस्य हरन्ति पितरो वलात्‌ BIA ततस्तेभ्यो TIGA जोवताम्‌ | श्रगरभागो रच आद्धोयद्रव्यस्य तेभ्यः agfaarfar तद्भूमिखामिषु जोवल्सु च्रानतिकर fafeze तेभ्यो दद्यादित्ययंः। जौोवतामपि दूरस्थानां waa कार्यम्‌ | मून्यदानाग्रभाग- दानयो हर णएनिवन्नैकत्वेन वैकल्पिकत्वात्‌ | श्राद्धविघातनिवन्तैकलेन तद ङ्गलात्‌ श्राद्धेऽपराद्रतिलादोनां wwe मनुः, अ्रपराहूतिला Tal वास्तुसम्पादन तया | afe: स्प्टिदिंजाञ्चाग्याः ्राद्धकमेसु सम्पद्‌: दर्भाः पविचर vais दविष्याणि स्वेशः | fad पञ्च पूर्वोक्तं विज्ञेया waar: वास्ठुसन्बाद्नं द्किणाञ्रवणत्वाद्युपलेपनादि करणम्‌ स्पष्टः ARTI श्रन्नवयञ्चनसन्पादनम्‌ | स्पृष्टिः Ware: खादुत्वसन्या- दनं प्रथमपविचपदं मन्लपरम्‌ दितोयं इएच्याचारादिपरम्‌। हव्यमच वेदिक Fa | दर्भाः तिला गजच्छाया दौदितरं मधुमर्पिषौ कुतपो नोलकण्टश्च पविचाण्याद पेटके नौोलकण्ठो नोलटषः, सोऽच पैटककर्मप्रसङ्गाद्‌क्रः।

५९१८ गद्‌ घर्‌ पद्धतौ

मदाभारते,- वद्धंमानतिलं आ्राद्धमचयं मनुरत्रवोत्‌ वद्धंमानतिल fanaa | चैटौनमिः,- तिला दौ हिचक्तपा दति पविचाणि ae सत्यं चाक्रोधं शौचं away wafer | विष्णः,-- कुतपः छृष्णाजिनतिलसिद्धायेकाचतानि पविच्राणि रक्तोप्रानि दद्यात्‌ | वायपुराणे, कृष्णा जिनस्य सान्निध्यं ena दानमेव | रचो प्रं ब्रद्मवददं्यं पशयन्‌ Gai दापयेत्‌ हारौतः,- दभर ्खिम्तिलेदेत्त gutaaga दिवम्‌ विधिना araqgau aay परिकल्प्यते काञ्चनादिषु दभ्ि्मन््वत्‌ प्रतिवादिताः। पिद्रणा मत्य यान्तयम्दतं war मदोभिभिः aut ओ्राद्धमन्तवजितं | इयं दर्भादौनां विध्यानुपूर्व्यादि- सद्धितानां स्तुतिः काञ्चनादिषु पाचेषु दति शेषः प्रतिपादिता- arg दति we: | इति aaa TST | हारौतः,- तिला रचन्ति देतेयान्‌ दर्भां रचन्ति राचसान्‌ | रच्न्ति ओओत्रियाः पद्ध खातके दत्तमच्तयम्‌ यमः,- वेद्‌ विद्रचति वन्नं यतये दत्तमच्तयम्‌ | विष्णः,- तिलेश्च सषपैर्वापि यातुधानान्‌ विवजेयेत्‌ उग्रनाः,- HIT दभाः समाख्याताः कुतपा टषयस्तया | दु दितुञ्धैव ये yard दौ दिचाः प्रकीर्तिताः afa: ्रासनविग्ेषः।

"गणो

कानसार्‌ः। ५९५.

श्रातातपः,- wifes खङ्गमित्याड्लंला टाद्यद्धि जायते | तस्य wee यत्पाचं दौ दिचमपि तदिद्‌: दिवषस्याष्टमे भागे मन्दोभवति भास्करः | कालः कुतपो नाम पिदरणां दत्तमचयम्‌ 1 चेढोनसिः,- कुतोऽपि श्राद्धूबेलायां श्रोजियो यदि दृष्यते श्राद्धं पुनाति वे तसात्‌ कुतपस्तन संज्ञितः प्रच दौ हिचकरुतपयोरनेकायेत्रात्‌ एकतमो पाद्‌ानेऽपि आाद्‌- सन्ठद्धिभेवतोति BARAT: | ब्राद्ये,- afafaze: करुणो राजतं पात्रमेव टौ हितं कुतपः कालब्छागः छृष्णाजिनं तया गौराः छृष्णास्तयारण्छा म्तथेवं चि विध्रा स्तिलाः | पिदरं aaa ष्टा दगरेते ब्रद्यणा खयम्‌ | तथा,- दभेम॑न्त्रे स्तिलेर्ह्ना रजतेन विना जलम्‌ | दत्त हरन्ति रखांसि amigara केवलम्‌ | AQ ,— AWB: खद्गपाचञ्च यश्च॒ नेपालकम्बलः | रूप्यं दर्भासिलान्कागो दौ हिचश्चाष्टमः wa पाप कुत्सित मित्याह्स्तस्य मन्तापकारिणः। शरष्टावेते यतस्तस्मात्‌ ga दति fagar: इति। ay signa श्रातिश्यविचारः | यमः,-- भिचृको ब्रह्मचारौ भोजनार्यमु पञ्वितः | उपविष्टेख्वनुप्राप्तः कामं तमपि भोजयेत्‌ यस्य वे यजमानस्य नागरे ye यतिस्तथा |

~ ५२० गदाघधरपद्धतों

श्रनिष्ट महतं तख रते रक्तसाङ्गणः कागलेयः,- प्रजये चक्राद्‌ कालेऽपि यतिं सन्रह्मचारिणएम्‌ | विप्रातुद्धरते पापात्‌ fags माटगणानपि | yaad aa यच्रापि यतयो ब्रह्मचारिणः aefa पितरो देगः a याति परमाङ्गतिम्‌। च्रचेयन्ति दातार Gary दारान्‌ पितुस्तथा तस्मात्‌ सवप्रयन्ेन ्रचेयेद ग्रमागतम्‌ | श्रलाभे (पभ्यानिभिकचृणां भोजयेद्‌ब्रह्मचारिणम्‌ तदभावेऽणदा मौनं ग्टहस्मपि भोजयेत्‌ | ्रद्धचारिमदसैस्त॒ वानप्रस्थ शतेरपि ग्टदस्थानां खदखषु यतिरेको विशिष्यते | गन्धमाच्यफकैयेव भोजनैः चोरसं्छतैः संपूजयेत्‌ यतिं arg faeui तुष्टिकारकम्‌ | AGU तपसो प्रूजनौयो fe नित्यशः Awd सुरतं यस्मात्तस्मात्‌षडभागमाघ्रुयात्‌ | जाप्यं योग यज्ञश्च यतस्तस्मि स्तय स्थितम्‌ तस्य प्रणमः प्रजा दत्त भवति चाचख्यम्‌ | ग्टदस्थस्याश्रमं गच्छट्‌ब्रह्मचारो यतिस्तथा स्याद्यं पानं फलं पुष्ममात्मानमपि वेदयेत्‌ | सन्ततं योगयुक्तानां बौतरागतपखिनाम्‌

(2) ध्यानभिच्तणां

कालसारः। BRR

सर्वारम्भनिदत्तानां vata दत्तमच्यम्‌ | यतये वौतरागाय दत्तमन्ने सुपूजितम्‌ चोखते श्रद्धयापि कल्पको टिश्रतेरपि AGU यतिश्चैव पक्ान्नखामिनावुभौ | पवमानाः Gawd नागरः Was पुनः योगिनं समतिक्रम्य गृहस्य यदि भोजयेत्‌ तत्‌फलमकाष्रोति गोचं सवं प्रतापयेत्‌ योगिनं समतिक्रम्य पूजयन्ति परस्परम्‌ | दाता भोक्ता नरकं गच्छन्ति सदह area: श्रपरस्परद्‌ानानि लोकयाचा घतः | तस्मायनेन द्‌ातखमन्यया पतितो भवेत्‌

सब्रद्मदारिण ब्रद्यचारिसदहितं, वेट्येत्‌ निवेदयेत्‌, गोचं कुलं प्रतापयेत्‌, च्रतिक्रान्तो यतिरिति गेषः। waa: धर्म cae प्रयमान्तात्तचिलप्रत्यघः |

श्रातातपः,--श्रतिधियेस्य नाश्नाति तच्छ्राद्धं प्रशस्यते |

शुतट्नदिहौनेञ् सुक्रमभ्रोतरियैश्च यत्‌

तथा, श्रातिश्य रदिते श्राद्धे Yat वधा fear |

ठया तेनान्नपाकेन काकयोनिं व्रजन्ति ते

मनुः,- ब्राह्मणं भिचुकं वापिं भोजनार्थसुपल्ितम्‌ |

नाद्णेरभ्यनुज्ञातः शक्तितः प्रतिपूजयेत्‌ aa श्राद्धं निरसनौयाः |

मनुः, चण्डाल Wey छुकटख तथैव

66

५२२ गदाधरपदतौ

रजसखलाश्च* wey नेेरन्नश्रतो दिजान्‌

होमप्रदाने भोज्ये यदेभिरभिमोचितम्‌ |

24 कर्मणि fay तद्गच्छत्यययाययम्‌

घ्राणेन सूकरो दन्ति पक्तवातेन HFRS |

at a दृष्टिनिपातेन स्पशंनादरजस्तया

श्रययाययं | az करियते तदिपरौतं | कुक्कटः पच्वातेनेत्या- देरयंः, याउति देभे कुकुटादौोनां पक्चवातादि सम्भावयते | तावतो दे शाद्पनेयः?) इत्ययः | BIH WE | श्राद्धकाले aa यमः,-

कुक्कटो faquey काकः श्वा विंड़ालकः।

टषले पतिश्च ठषलः षण्डो नारो रजखला

तुककेटः पचत्रातेन दन्ति आद्धमसटतम्‌ |

प्राणन faguey aay रतेन a ti

aq दृष्टिनिपातेन मार्जारः अवणेन तु,

टषस्तोपतिः प्रदानेन Vet इषलस्तथा(२)

aaa हन्ति वे षण्डः wha तु Teer

ae: काणः कुणिः fast Tet भवेत्‌

ऊनाङ्गो नातिरिक्राङ्गष्टमाद नयेत्ततः | देवलः,- Dare: पतितः कुष्ठो sat पुद्कसनाभ्तिकौ

HRS: शूकरः शानो वन्याः We तु दूरतः

वो भत्सुमद्एचिं aA मन्तं धतत रजसखलाम्‌ |

| = (~ ` [141 ~ ------- ` --_-------` emt

(२) रजस्वला | (2) दपनेया इत्यथैः | (३) saat |

लसार्‌ः। yRs

नोलकषायवसनं feaat तु वजेयत्‌ शस्तं कालायसं सौर मलिमाम्बरवारुसम्‌ | aa gated वापि argy परि वजयेत्‌ Tana: मलिनाम्बरं वस्ते श्राच्छादयतोति मलि- भाम्बरवाराः त) महाभारते,- रजखला या नारो afsat कन्यकास्तथा | निवापेनोपतिष्टेत संग्राह्या नान्यवंग्रजा | निवापे ्राद्धकर्मपाकारम्भे। अन्यवंशजा मातापिहवं yaaa | dag यापारयितव्या Taye: | विष्णः सम्बते आद्धं qalq (eat पश्येत्‌ श्वानं विड्वराहं WRRRS प्रयनाच्छराद्धमजप्य दगयेत्‌ | पुनविष्णःः-न wag: श्राद्धं पश्येयुः शद्रा पतिता महारोगिणः | उग्रना + विड्वरादनक्लमाजारङुकटश॒द्रर ASMA RA ATA दूरमपनेतब्याः | हारौतः,- दैवे वा यदि वा fay सुरापौ aq eam Tae पुखलो वा रचसां गच्छते fe तत्‌ वायुयुराणे,-- नद्रादयो पश्येयुः gaa व्यवस्थितम्‌ | गच्छन्ति तेस्तु दृष्टानि faa पितामहान्‌ सवेषामेव श्चतानां चपारुवरण(? खतम्‌ | तां त्यजन्ति तु ये मोहात्ते वें agrzat fea:

(२) कन्यका तया | (2) तपसां वश्यां |

५२४ गदाधरपड्धलै

semana) gar: शाक्यजोवककापिलाः | धर्मान्नानुवर्तन्ते ते वे agizat जनाः रयाजरौ उयासुण्डौ छयानग्राञ्च ये नराः | महापातकिनोये चते वे aqreat जनाः॥ कुलल्वमानिकाः waar व्याघा सुष्टिकमल्षकाः | कुकर्मसभितास्ते ते guar: परिकौत्तिताः ufafigage बे सादं गच्छति दानवान्‌ देवतानाण्टष्षोणाद्य पापवादरताश्च ये॥ श्रसुरान्‌ यातुधानाश्च Fada | श्रपुमानपविद्भश्च Geet waa श्वा यैव रन्ति ख्राद्धानि दग्ैनादेव wan: | श्वविर्‌शएकरसस्युष्टं दोघेरोगिभिरेव पतितैमेलिनेस्ेव द्रष्टव्यं कथञ्चन | च्रं पश्येयरेते यन्तन्नस्थाद्भ्‌ यकयोः उत्‌खष्टय प्रधानायं संख्कारश्चापविसमृतः | हविषां संछ्कतानां तु yaaa fe माजेनम्‌ ग्टत्संयुक्ताभिर द्वस्तु Wawa विधौ यते | सिद्धा्थकेः छृष्ण तिलैः कार्यश्चेवाउकरणएम्‌ गुरखू्खाथिवस््ञाणां दशनं वापि aaa: | इदस्यतिः,-- स्दपाकषण्डपतितशानः द्करङ्क्टाः | रजसखला चण्डालः श्राद्धे कार्यासदभैनाः

(१९) इद्धश्रावलकेगरदथाः |

कलसार्‌ः। pe

ufefaa प्रदद्याच्च fadat विकिरेन्महोम्‌ | ष्रमयेचोपविष्टस्छु a ate afsaras: कुङतमानिकाः सत्कुलाभिमानेन त्यक्राचाराः TAA: | पाषण्डविगेषाः | दुष्टिकमल्लको मागधः | ्रपविद्धस्ठ,- मातापिदभ्यासुत्सृष्ट तयोरन्यतरेण वा | aaa प्रतिग्टक्ञोयादपविद्धः उच्यते i इति मनूकसकणएपु चविगेषः | वस्त्रः काग: away उक्तदोष- दुष्टमपि sgt श्दयुक्षजलसम्माजेनादि कागद ग्नान्तं हृत्वा नियोज्यमिति समुदायाथंः प्रधानाय आ्राद्भायं | खपाकः च्रन्त्य- जजातिविगेषः ॥०॥ श्रय विश्वेदेवाः | टर रस्पतिः,- क्रतुदच्व वसुः Gay ATS: कामस्तयेव Wefty रोचनञ्चैव तथा चेव पुरूरवाः माद्रवाञ्च तयैते तु विश्वेदेवा प्रकौ्तिताः। tims made: wot नान्दौमुखे वसुः नैमित्तिके कालकामो काम्ये धुरिरोचनो | पुरूरवा माद्रवाश्च Was सुदादइतौ उत्पत्तिं नाम वै तेषां ये विदुने दिजातयः | wage: aa: श्रद्धासमन्वितः श्रागच्छन्त॒ महाभागा विश्चेदेवा वरप्रदाः | ये aa) विदिताः श्राद्धे सावधाना भवन्तु ते

(९) धूरिः। (२) चाच |

HR गदाधरपडवौ

टष्टि्राद्धमच द्रयत्राद्यणसम्पत्ता विच्छया यत्कियते तदेव | शातातपः, उद डःमुखस्तु देवानां पिद्रणं zfaurqe: | प्रदद्यात्‌ पावंणएश्राद्धे saga विधानतः श्रातातपः,- नित्यश्राद्धमरेवं स्यादेकोदिष्टं तथैव | माटश्राद्न्तु WR: Weed Wega: एक्‌ योजयेदेवपूर्वाणि श्राद्धान्यन्यानि यत्नतः | देवं भोजय च्छ्रा धं AMY प्रवत्तं येत्‌ BUI लवलुम्यन्ति सदेत्यासुर राचसाः | तत्पूवे aga | वाय॒पुराणे,- नाप्रोच्छ स्पशयेत्‌ किञ्चिच्छ्राद्धे देवेऽथवा पुनः | उत्तरेण दरेदेद्या zfawa विसजंयेत्‌ वेदिरच दबिणाप्रवणण दिश्राद्धदेशः। देवे cane | मनुः,- देवकार्याद्धिजातौनां पिदकायें विशिष्यते देवं fe पिदकार्यस्य पएरवमाप्यायनं waa तेषामार चश्छतन्त्‌ पूवे देवं नियोजयेत्‌ रक्तांसि दि विज्लम्यन्ति शाद्धमारच्वजितम्‌ देवा्यन्तं तदेत पिचाचन्तं तद्भवेत्‌ | पिचाद्यन्तं वौहमानः wie नश्यति सान्वयः agra यपिदश्राद्धप्रधानन्दतस्य wafgat wea a खतः प्रधानम्‌ Ite तु सर्वतो रक्लाकरम्‌ | दैवाद्यन्तं देवे आद्यन्तौ श्रारम्भावसाने Ge तत्तथोक्तम्‌ एतेनैतदुक्तं भवति, निमन्लणादि Zag’ विषजेनं विपरौतं कायेम्‌

TIAA: | YRS

देवलः,- aga क्रियते कम पेटके ब्राद्धएणन्‌ प्रति awa तच ana वेश्वदे वत्यपूवैकम्‌ दति | ay विधिपरिभाषा। मनुः,- प्राचौनावोतिना सम्यगपसवयमतन्तिणा | पिश्यमानिधनात्‌ कायं विधिवदभपाणिना श्रतन्त्िणा Raw श्रपसव्यं वामपा श्रानिधनात्‌ ्रघमाप्रः ` कात्यायनः,- चण पातयेन्नानु देवान्‌ परिचरन्‌ सदा | पातयेदितर जानु पिष्टन्‌ परिचरन्‌ सदा Weed काल्यायनः,- श्रावाहनादिवाग्यत उपस्पग्रेनादा- मन्तिण्ेवं. arg पिण्डपिष्यज्नवदु पचारः | faa fenuig दर्भान्‌ पवित्रपाणि्द््याद्‌।सौनः waa प्रभ्रे पङ्कम्‌ धन्यं एच्छति, सर्वान्‌ वा fag इति वचनात्‌ तपैणद्यपि faa द्विगुः anita समाचरन्ति तु र्जुभिरेव | श्रय कुशाः | वायुपुराणे, रलिप्रमाणः ग्रस्ता वे पिहतौर्ेन संश्रेताः | उपमूले तथा लूना WIT कुणोत्तमाः तया,- WAT: WlSe BHAT Aaa: Went तया | वौरण्णश्ोलपाश्चेव लम्बा वर्ज्याश्च नित्यगः UAT: सस्यष्टाः, प्रस्तरोऽत्र पिण्डप्रस्तरः | प्रस्तरः कुश्रसुष्टिः | Weyl: भद्रमुस्तकः | चोरकुगाः प्रत्यग्रजाताः। चायको चार्योटणं।

(९) व्याम्लितख् |

५२८ गदाधरपडतौ

उलपः कुशसदृशः aufany: | लम्बाः छउक्तप्रमाणद्‌धिकाः। हारोतः | Mad efaut दिशं गला द्चिणग्रायतान्‌ wear दर्भान्‌ ्रादरेत्‌ श्रापस्तम्बः,-- समूलस्तु wen: fagut आद्धकमंणि मूलेन लोकान्‌ जयति शक्रस्य महात्मनः ब्राद्धे,- गोकणदौर्वा् कुशाः सरृच्छिन्नाः समूलकाः | पिहतौ्थन देयाश्च दूर्वाः श्यामलमेचकाः काशाः HUT वच्यजाख् तया ये TUATHA: | aaa) शादलश्चैव षडदर्भाः परिकीत्तिं ताः श्राद्धे व्याः प्रयनेन TPT: सगवेधुकाः ूर्वाद्याः कुश्राभावे प्रतिनिधिलेनोक्ताः | तथाच गोभिलः,- तेषामभ वे शकट णएश्रर षवच्यजसुतवनल(९ गुष्ठवजं सर्वटणणानि ष्कटणं अकयुक्रधान्यदणं शोषंसुतवणवा जतिविगरेषास्तन्तट्‌ श- प्रसिद्धाः पिच्जलः पविम्‌ तत्छमाः प्रादेगश्माचाः साया दृति यात्‌ | समादिताः fazian: | श्रय award चूषेविशेषाः नाद, मण्डलानि कार्याणि नेवारे शूनेकेः श्रमैः गौरण्डन्तिकखा वापि प्रणीतेनाय भञ्मना पाषाएचूखमद्धौ खेमा इतं तच तजेयेत्‌

(९) मोञ्जलाः Wears | (२) ववसं .

RAGE: | = श्रय श्राद्धे ्र्घादिपा्राणि। ब्राह्म, श्रस्तभाण्डानि वर्ज्याणि पिद्टदवतकमंणि | खुवष्छताब्ररोप्याश्सस्फारिकश्घुश्ररक्तयः भिन्नान्यपि हि योज्यानि पाच्राणि पिदकमंशि , प्रथिवौ पिदभिर्दुग्धा पात्रे रौप्यमये पुरा सखधाण्डतञ्च तस्मात्तत्तेभ्यः प्रियतर सद्‌ा | रोप्यपाकेऽघेपाद्यादि(* तस्मात्‌ (\खच्छ्ेऽपि कारयेत्‌ दला हेममये पा भगवान्‌ स्छात्‌ मानवः | दला Tana पा सवेरन्नाधिपो भवेत्‌ पलार ब्रद्यवचंसो श्राश्वत्यं राज्यमाभ्रुयात्‌ | यात्रे श्रौदुम्बरे दत्वा सव्वग्धताधिपो भवेत्‌ zat amas तु प्रज्ञां पुष्टिं भियं लभेत्‌ | TSH ATA दला पुष्यं लभेत सः सौगाग्यं वाय ATTA GY सम्पदम्‌ श्चेताकंमन्दारमये द्वा मतिमान्‌ भवेत्‌ | विल्वपाते धनं वुद्धिं दौघेमायुर वाप्नुयात्‌ | श्रय पद्मपुरं दला सुनोनां वल्लभो भवेत्‌ सिक्तं ayearat ययासम्भवमेव वा श्रस्तभाण्ड विग्रोएभाण्डं | फरण पा काकोदुम्बरपाचम्‌ वायुपुराणे तथापि) पिण्डभोज्येषु पिणं रजतं मतम्‌ : श्रमङ्गलं प्रयनेन देवकार्येषु asa

(१) srarfe | (2) सच्छ्ापि | (3) त्ाघंपिर्डभोन्येष 67

y २० गद1घर्पद्धतो |

अरय चन्दनादि विचाय्थेते। ऋन्यच,-- ग्येतचन्दनकपूरकुकुमानि इएएभानि च) विले पनां दद्यात्त्‌ यच्चान्यत्‌ पिदव्नभम्‌ विष्णः,-- चन्दनकपूरकुङ्मागुरूपद्यकाष्टानि श्रनुलेपनानि इति | BIg देयादेयपुष्यविचारः | ब्राद्ये,- Wa: सुमनसः अरेष्ठास्तया पद्मोत्पलानि गन्धरूपोपपन्नानि यानि चान्यानि Bam जवादि कुसुमं भाण्ड रूपिका() कुरूष्टिका(^) | quite वजेनोयानि are कम्मणि नित्यशः जवादोौत्यादिशब्दादेवं रक्कुसुमम्‌ | रूपिका श्रकंकुसुमं, quan पोतद्धिण्टोति कन्पतरूकाराः | व्येषु ब्राद्धे,- उग्रगन्धोन्यगन्यौनि दृष्टानि विकच्छंयेत्‌ | TE उग्रगन्पौन्यगन्पौनि चेत्यटचोद्धवानि a पुष्पाणि asatafa रक्तवणान्यसारिणः रक्रेऽपवादः तेनेवोक्तः,- जलोद्धवानि देयानि रक्रान्यपि विशेषतः | वजये दित्यनुटत्तौ विष्णः उग्रगन्धान्यगन्धानि कण्टकिजातानि रक्रपुष्याणि सितानि quanfa कण्टकिजातान्यपि | जलजानि रक्रान्यपि दद्यात्‌ | न्यच, श्राद्धे जात्यः प्रशस्ताः स्य॒मे्लिका छतपुष्िका जलोद्धवानि सव्वाि कुसुमानि चम्पकम्‌

(१) रुषिका | (२) कुरूगटकाः |

कालसारः | ५२१

तुलसो गन्धमाघ्र।य पितरस्तुष्टमानखाः | प्रयान्ति गर्डारूटढास्तत्यदं चक्रपाणिनः | We ठत॒लसोदानात्‌ पिणं efacsar जातो पुष्यस्य सामान्यतो विग्रेषतञ्च श्राद्धे विद्दितलात्‌ “atat- शेनमरैए निराशाः पितरो गताः इति वाक्यस्य प्रामाण्येऽपि पोतजातिपरत्वमेव ०॥ धपः | ~क त्राद्येः- चन्दनागुरुणे Wa तयेवो गोर पद्मकम्‌ | तुरुष्क गुग्गुलु चेव एताक्तं य॒गपददेत्‌ छतं केवलं दद्यादयुष्टं वा दणयुग्गुलम्‌ | विष्णुः मधघुष्टतसयुक् गुग्गुल दद्यात्‌ | तुरुष्क सिद्धकरसः ठण- गग्गल गगगलभेद्‌ः ~9 9 «~$ अय ety: | शद्खु,-- एतेन stot दातव्यस्तिलतेलेन वा ga: | वममेदो द्वं दौपं vada विवजंयेत्‌ विष्णः, वसा ARTSY Stary दद्यात्‌ श्रय वस्रद्‌ानस्यादश्यकता | नरादयः अनङ्गलग्र Yaa वितरेत्तदयुगं श्भम्‌ | ६1 ^ 9 CAN वासो fe सब्वेदे वत्य सव्वदे वेष्वभिष्टतम्‌ | aaa क्रिया नासि यज्ञा विद्यास्तपांसि | तस्मादस््राणि देयानि श्राद्धकाले विग्रेषतः |

yar गद्‌्ाधरपद्धतौ |

अय नानाद्रव्यदटानफलानि।

वाय पुराण,- ath Bean सव्वेमात्मनखापि यत्‌ प्रियम्‌ सव्वं fagui दातव्य तदेवाच्यमिच्छता tt जाम्बृनद्‌ मयं दिव्यं विमानं सूय्यसन्निभम्‌ ! दिव्यास्परोभिः संप्रणेमन्नदो लभते चयम्‌ श्राच्छादन चयो दद्यादरतं ्राद्धकमेणि। श्रायः प्राकाश्यमेश्वय्यं रूपं लभते सुखम्‌ यन्नोपवोतं यो दद्याच्छराद्धकाले तु धमंवित्‌ ¢ पावनं सवेविपाण्णं ब्रद्मदानस्य तत्‌ फलम्‌ कृते विप्ाय यो दद्याच्छाद्काले कमण्डलुम्‌ | ayaa घेनुद्‌तारमनुगच्छति चक्रबद्धेन^) योद्‌ दाच्छाद्भु काले कमण्डलम्‌ | धेनु लभते दिव्यां घणष्टापदतदोहनाम्‌ tt तूलपूरं तु यो दद्यात्‌ पादुके आद्धकमेणि ज्रोभनं लभते यान पादयोः सुखमेव व्यजनं aden दला विपुाय सस्वतम्‌ | पाभ्रुयात्‌ स्यगयुक्तानि पुदानानि wets च॥ ATS द्ात्‌न्राह्मभ्यः सद्‌ा बुधः दिव्ये लभते चचुरवाजियक्तां स्तया रथान्‌

(१) सवा | (2) चक्रवद्ध च|

कलसारः। ५२३

शरषठ च्छच चयो दद्यात्‌ पुष्यमालाविश्वूषितम्‌ | प्रासादो दय॒त्तमो war गच्छन्तमनुगच्छति + शरणं Tea सुशरय्यासनभोजनम्‌ |

Wig दता यतिन्यस्तु ways मरौयते सुक्तावेदूय्येवासांसि vata विविधानि च। वादनानि मुख्यानि श्रयतान्यवुद्‌ानि विमानं पुष्यकप्रख्यं सब्वेकामसमच्ितम्‌ | चनद्र्ष्यप्रभं fea विमलं लभतेऽच्यम्‌ श्रष्परोभिः परिदतं कामगन्तु मनोजवम्‌ | सगन्धवेविंमाना्यैः Wala: समन्ततः दिषेः पुष्यः प्रसिञ्चन्ति जलदष्टिभिरेव च, गन्धर्वाष्य॒र सस्तत गायन्त्यो वाद्यन्ति च॥ कन्यायवतिमध्यस्या हसिताभरणस्वनेः | gata विवोधन्ते सततं fe मनोरमैः श्रश्वद्‌ानसहस्रेण रथदानग्रतेन |

दन्तिनां सहस्रेण यत्‌ फलं लभते नरः दद्यात्पविक्रं यो गिम्यो seq arcana: | सखणं निष्कसदखस्य फलं प्राप्रोति मानवः

वितस्य प्रदानाद्धि नान्यः) दान विभिष्यते | तस्मात्‌ सव्वप्रयन्नेन देयं दानाभिरचणम्‌

(१) तन्तुवारगामम्भसः | (२) नान्यत्‌ |

५२४

गराम्पद्ध at |

afear सव्वेदेवत्यं पवि सोमपायिनाम्‌ |

दानं fe जोवितस्याङ्कदानानां परमं बुधाः लवणेन सुपूर्णानि arg पाचाणि दापयेत्‌ | रस।स्तमुपतिष्टन्ति uy सौभाग्यमेव

तिला निचुस्तथा भोज्य arg सत्कत्य दापयेत्‌ | faarfa लभते लोके aly सौभाग्यमेव पां तेजसं दद्यान्मनोज्ञं ्राद्धभोजने |

पाच भवति कामानां विद्यानां धनस्य च॥ रजतं काञ्चनं चेव द्याच्छरादधेषु यः पुमान्‌ | दला लभते दानात्‌ प्राकाम्यं धनमेव aa age यो zaqyfe कुम्भोपदोहनाम्‌ | गावस्तसुपतिष्ठन्ति nat पुष्टिस्तथेव

दद्यात्‌ यः faetafy बह्धकाष्ट प्रयन्नतः | कामाभ्निदौश्ं प्राकाम्यं सौभाग्यं रूपमेव द्न्धनानि चयो दद्यात्‌ feo: शिशिरागमे | नित्यं जयति संग्रामे भिया युक्तश्च दीप्यते सुरभौ" तु स््ञानानि गन्धवन्ति तयेव च। पूरयिता तु पाचाणि ae aqe दापयेत्‌ THAT महानद्यः सुखानि विविधानि a | द्‌ातारसुपतिष्ठन्ति aay पतित्रता;

(१) समरसानि,

कालसारः | ५३२५

ग्रयनासनद्‌ानानि मयो वाहनानि | श्राद्धेष्वेतानि यो दद्यात्‌ सोऽश्वमेधफलं लभेत्‌ | गोसवमञ्मुते |

तस्मिन्‌ लोके वसन्‌ मोदेत्‌ स्यन्दनेस्तु सवाहनैः |

राजभिः पूज्यते वापि waging asa |

वणेकौ ग्रेयपचोतं(९) तथा प्रावार कम्बलम्‌

श्रजिनं चौ मजं ag प्रवे स्टगलोभिकाम्‌ |

zat चेतानि विप्रेभ्यो भोजयित्वा यथाविधि i

प्राग्नोति श्रद्‌धानस्त॒ वाजपेयस्य यत्‌फलम्‌ |

ag नाय्येः Bearg पुचत्याञ्च fares

वशर तिष्ठन्ति क्तानि aaa वनामचम्‌ |

चौ मक गेयकार्पासं HAAG तया

श्राद्धेष्वेतानि यो ददात्‌ कामानाश्नात्यनुत्तमान्‌ |

RAH ANA तमः ्य्यौदयो यया |

भ्राजते विमानाश्ये नचनेख्िव चन्द्रमाः |

प्राकाम्यं रश्वयेविग्रेषः, whe: प्रथमप्रख्ता गौः, वणेकौगरेयं

पौतवर्णणदि(*रज्जितकौ गेयं, प्रावार कम्बलं श्राच्छादनयोग्यः खच्छ- कम्बलः | stat afe as, das अलिखच्छपद्रनिमिंतं श्रमि(*) दति प्रभिद्धं waaay गजास्तरणएकम्बलः | तथा,- राजत रजताक्र वा fagal पाचमुच्यते।

a

(२) पणें (२) पौतवर्णादिकोशेयं | (ड) कटिच। (3) चम |

५३६ गदाधरपद्धतो |

रजतस्य कथया वापि दशनं दानमेव च। ्रनन्तमचयं UW राजतं दानमुच्यते एवमन्यान्यपि फलान्युक्रानि विस्तरभयादिर म्यते | इति | श्रय आद्धे देयद्रदयविचारः। ag fafadt,— धमण वित्तमादाय पिदभ्यो दद्यात्‌ मनुः,- यद्धविधिरकालाय यचानन्याय कल्यते पिदभ्यो विधिवदृत्तं तत्‌ प्रवच्छाम्येषतः तिलेर््रौ दियवैमषिरतिमूलफलेन वा | दत्तेन मासं dred विधिवत्पितरो नुणणम्‌ at मासौ मव्छमांसेन चन्‌ मासान हारिणेन तु। अनरम्रेणय चतुरः शाङ्नेनाय पञ्च a षणएमासान्‌ शाग्र “मांसेन पाषेतेनाय सत्त तु। अष्टावेणएस्य मांसेन रौरवेण नवेव तु दशमासांस्तु ठष्यन्ति वरादमद्दिषा मिषेः। श्र शकूम्मेयोस्त॒ मासेन मासनेकाद्ग्रेव तु सम्बत्‌सर तु गव्येन पयसा पायसेन वा | qg way मांसेन afaatenarfaat कालशाकं महाशल्कं खङ्ग AMAT मधु | श्रानन्त्यायैव कल्यन्ते मुन्यन्नानि wan: Sita मेषमांसं yoo: चिचण्टगः। एणः AWAIT ररः शम्बरः | गवयपदं पयःपायसयोरपि विशेषणम्‌ |

i ~~ ~~~ ~~~ ~~~ ~ ~~~

(१) @Tq |

कालसारः | ५२७

वाद्खोणएसस्य लक्षणं निगमे,- चिपिवं विद्धियच्वौए श्रेत ब्रद्धमजापतिम्‌ | वार्दखोणएसं तु तं प्राह्याङ्किकाः faenafe कुष्णगोवो रक्तशरिराः श्रेतपच्लो विहङ्गमः | सवै वार्दधौणएसः प्रोक्त दत्योषा नैगम रतिः frat मुखेन कर्णाभ्यां जलं पिवतोति चिपिवः। जलपान काले सुखवत्‌ agen विललितकणेयोर पि जलमय्ये प्रवेणान्तया कयनम्‌ | Berne रोहिताकारा मव्छविश्रेषाः टरच्छल्काः कामरूपेषु प्रसिद्धाः पामराणामपि nema इति व्यवहार्या, | “ARTIST Haar” दति यमोक्तेः। यमः,-- Waa सूद्ररुमितान्‌ | Wawa प्रकन्पेत खड़मांरं पिहच्ये | पिद्टच्यो गया ज्ञेया तत्र दत्तं महाफलम्‌ तथा, यत्किचिन्मधुना यक्त तद्‌ानन््याय कन्यते उपाकृत तु विधिना मन्ल्ेणन्नं तथाकृतम्‌ गावयम्‌ | मवयमांसं सुद्रसमितान्‌ एकाद्‌ ्रमामा नित्यः उपा- छतं मन्लविदहितं ted अन्नं awed उपाङ्तमेव कात्यायनस्चम्‌,- ay ठसि्याम्याभिरोषधोभिमासं द्धिः, तद्भावे मूलफलेरद्धि्वा सदानेनोत्तरास्तपयन्ति कागो चेषा श्रालव्याः शेषाणि Atat वा स्वं सलानादत्य पचेत | उत्तराः तिखः फलमूलाद यः उच्छः VASA) QTM: BATRA: |

(२.) अनद्‌ हः | 68

५३८ गदाधरपड्धतो

विष्णः,-- ्राकंः rata: प्रियङ्गुनोवारेमुत्ेगौ धूमश्च मासं Med | तथा RAIA AMT, वार्ौणएसमां सं खड्गमांस- भित्यच्याय | पेठौनसिः,- तेन मासं प्रौणएाति कालग्राकन दिमासं यवागूप्रप- anu faa दत्यादि। उग्रनाः,- चतुरोमामान्‌ छृष्णसारङ्गण | ng. war पारेवतानिचृन्‌ श्दोकाभव्यद्‌ाडिमान्‌ विदायेंञख्च भारुण्डं श्च ओ्राद्धकालेऽपि दापयेत्‌ लाजान्‌ मधुष्टतान्‌ दद्यात्‌ HRW WATAT सद याचका द्धे प्रयनेन श्रटङ्गाटविग्रकेतुकान्‌(९) पारेवतं जम्भोराकारं फलं, काश्ौरदेशे तु as® wg द्रति प्रसिद्धं, ग्टदौका द्राक्षा भयपदस्य कमेरङ्गफलवाचकल्ात्‌, sag इति प्रिद्धफलवाचकलाच, अ्रविरोधात्‌ समाचाराचो भयमपि ग्राह्यं दति बह्निवन्धरतः। विदार्याश्च जलप्रभवाः कन्द्विग्रेषाः | भारुण्डो जलप्रभवः कन्द विग्रेषः। केवुकं तदत्‌ जलप्रभवः कन्द विशेषः | मनुः,- सुन्यनानि पयः सोमो मांसं यच्चानुपस्मृतम्‌ | श्रत्तारलवणएं चेव प्रत्या दविरुच्यते देवलः, धानाश्च मधुमंयुक्ता ददशचैव सगोरमान्‌ | TA: फलमूलच्च सवं दद्याद मत्सरः गोरस्पदोपाद्‌ानात्‌ श्रामिक्तासारप्रखसौनां गव्यानामेव Tae

~= --~~~~~------~ ~

(९) भरण्डाश्च | (२) ्टङ्गाटकसकेवकान्‌ | (a) इति

~

कालसारः | ५२९६

मराभारते,- सवेकामेः यजते यस्तिलैर्यजते fags कपुर श्यामाकं रि चुभि्ैव fagut सादेकामिकम्‌ | कुर्याद्‌ाश्रयणं ag vty सिद्धिमाप्नुयात्‌ श्वामाका दस्तिनामानो वद्धितान्‌ यज्ञनिःषतान्‌ | प्रसोतिका प्रियङ्गुश्च ग्राह्याः स्यः श्राद्धकमंणि | =~ एतान्यपि समानि स्युः श्यामाकानां सद्‌ा गुणः But माषास्तिलाञ्चैव श्रेष्ठाः स्ययेव्रालयः | EAS महायवा त्रौ दियवास्तथेव मधूलिकाः BU: श्वेता लोहिताश्च ग्राह्याः स्यः श्राद्भकमेणि विल्वामलकण्टद कापनसात्रातदाड्मिम्‌ | ° © भपारेवताकोडं GATTI \ कशेरको विदा यश्च ane तथा faga’® तमाल WARY AIA भोतकन्दकम्‌ | कालेयं कालगशाकञ्च सुनिषणं सुवचेला 9 e 9 ™~\ wf ate min दधि चोर चेश्चवेचाङ्करस्तया | कट्फलं AST RIA लङ्च मोचमेव ककेन्दुख्रावकं वारं तिन्दुक मधुमाङ्यम्‌ | वक्तं AOA परङ्गाटककटफलम्‌ famet मरीचं चेव पटोलं ददत फलम्‌ |

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~ ` te - ~ ~~ = -=- =

(१) विसं |

yes गर्‌ चम्पद्धतौ

सुगन्धिमव्यमांमञ्च कलायाः Bava एवमादौ नि चान्यानि खादूनि मधुराणि च। नागरं चाच वे देयं दौधैमूलकमेव प्रमोतिका wae शप्रमिद्धं धान्यं, महायवा वेणुयवा, मधूलिका धान्यविगरेषः, योनालभेदो देवधान्यमिति गौडाः wea विरषणं aa: श्वेता लोहितायति arate काभ्मोरप्रसिद्ध फलं | कोवि- दारः श्रेतकाञ्चनारसदृप्राः) तालकन्दः तालमृरूोति प्रसिद्धं NaHS ग्रतावरो। Wane wean! कालेयं तिक्तः शाकविग्रेषः, कालाख्यं शाकं करालाख्यमिति गो विन्दराजः। सुनिषणे राङ्गरो(- सदृ जलप्रभवं शाकं) सुवचेला Bananas, खाविर्त्ता दति गौडाः Fa: wy दति प्रभिद्धं शाकं मण्डगाकमिति गौडाः | HEM कट्‌फनलढ फलमेव | WHT ZIT BACT द्रा मोचः कदलोफलं | HH: वदरौविश्षः। नागर |usl, art अद्रंकप्रजतिकलादाद्रेकस्यापि देयलं मूलकं दिविधं, faw- मूलक दौघंमूलकरं चेति | तच awarungiar पिण्डमूलकमन्येव निषेधात्‌ | वायुपुराणे दौचम्‌लकस्य देयत्वेनोपादानादौघेमूलकं देयमेव | माकंण्डयपुराणे,- यतननो दिसगोधमौ तिलसुद्गाः ससषेपाः | प्रियङ्गवः कौविदाराः निष्पावाश्चाच शोभनाः

(QQ) गङ्गरोसदृ |

कालतसारः | ५७१

निष्यावा सिम्बौसदृशा दक्तिणापयप्रसिद्धाः। तत्ादृश्वास्सिम्बस्य दानरमाचारः खादुमधुरलाच (Oa fequrea,— मधुकं रामठं चेव BIT मरौचं Waa ख्राद्धकर्मणि श्रम्तानि सेन्धवं चपुषं तया रामठं दिङ्गुः। पुषं खुखासिकापरनाभिका ककंटौ मधूरला- त्ज्नातौोयत्वा दान्यककंटोनां दानममाचारः | श्रतस्तद्‌लामे फलम्‌ ले- रद्धिरिति कात्यायनस्चे, श्रापोमृलफलानि चत्यापम्तमनोक्या, ्द्भि- मूलकलेन चेति ager निजिद्धेतरस्वाद्‌ मधुरम्‌लफालमा चस्य सामान्यतो विदहितलादालप्र्तोनां दानसमाचारः अय वर्ज्याणि | हारोतः,- विषश्च ea ate व्याधितियेग्गतं यत्‌ प्रणमन्ति वे ates यच मन्लविवजिंतम्‌ वायुपुराणे, वजनौयानि वच्छामि आद्धकमेणि नित्यगः | करम्भधान्यान्यन्यानि रौनानि रसगन्धतः अवेदोक्ताश्च निर्यासा लवणन्यषराणि | दुगेन्धि फोनिलं चेव तथा वे पल्वलोदकम्‌ लमेद्यच dats नक्त यद्धेव र्यते श्राविकं मा्गमोष्रं सवमेकशरफञ्च यत्‌ ` माददिषं चामरं चेव प्रायो asy विजानतः | GMa WaT: |

(२) अादिव्यपुगागो |

५७२ गदाघरपद्तो

माकंण्डयपुराणे,- पितयं मे प्रय््छसखेत्य॒क्ता यच्वापयु दतम्‌ | वजनोयं सदा मद्धिस्तत्पयः aignafa cafe फेनिलं Wea तथा प्रद्रोद्‌कम्‌^५ | यन्न सर्वायेसुतसष्ट यच्वाभोज्यनिपानजम्‌ तदज्यें सलिलं तात सदेव पिहकमेणि | श्रभोज्यं निपानजं पतितादिकारितपुष्करिश्षा दिजल | माव्छे,-मसूरषणनिष्पयावा राजमाषाः कुलथ्य काः | पद्मविल्वकधूसढरपारिभद्राटषूपकाः देयाः पिटकायेषु पयण्द्छात्राविकं तयं कोद्रवो दारविवेरं कपिथ्यं मधुकातसौ एतान्यपि देय।नि पिहभ्यः प्रियसिच्छता | पारिभद्र पान्निहद दति प्रसिद्ध। राद्ध, धिगाकं तया aq ad वावधि(र)वजितम्‌ | वजये चेत्तथा चान्यान्‌ सर्वानभिषवानपि zfunta शाकविशेषो efeefear दरति प्रसिद्धम्‌ | हारौतः,-- पालद्ा(<नालिकापोतिकाभ्रियुद्धसुकवात्ताङशस्लणक- फोल्‌माघभसखर ुतलवणानि श्राद्धे दद्यात्‌ नालिकाह्लपौति मगचादौ प्रसिद्धः श्राकविष्रेषः। wan NAM | WIT रामकपू रं कफलु जलप्रभवं शाकं | हारोतभाय्य ATG भवम्तरकपोचत TANT श्राकविग्रेषौ काश्मौर-

(१) प्रसभोदक। (२) दधिवजिंतं | (२) पलछ |

कालसार्‌ः | UBS

प्रसिद्धा विव्युक्रवान्‌ माषनिषेधोऽच गौरमाषपरः रष्णमाषाणां देयल्वेनो क्रत्वात्‌ | विष्णुः, पिप्पलो मु कग्धस्त णा सुरो सषेपसुर सकु श्राण्डालावुवार््ता - पालद्यातण्डलो यककुखम्भपिण्डम्‌लकमदहिपषोक्तौराणि वजेयत्‌ | राजमाषमद्धरपयुषितृतलवणानि Malaya UHI: | सुरसं तूलण्र शाकम्‌ | HEAT, अश्राद्धेयानि धान्यानि कोद्रवाः पुलकास्तथा | feyxay स्वेषु अलाबु लसुनं तथा पलाण्डुगशो भाच्जनकौ तया WARIS | रुश्ुण्टकान्यलात्‌नि' AW लवणमेव | ग्राम्यं वराहमांसं यत्‌ यचेवाप्रो्चितं() भवेत्‌ | aust विडश्चैव श्ैतपालौ तयेव ai ARCATA वज्यां दृद प्रटङ्गाटकानि a | वजेयेल्लवणं सवं तया जम्बूफलानि magay रुदितं तथा आ्राद्धषु वजयेत्‌ | aq दिङ्गोनिषधः खरूपेण दौयमानस्य | दयान्तरसंस्कार- कत्वेन तस्य पूवे विहितलात्‌। zara गाजर इनि पञ्चिमदे शप्रसिद्ध- मूलभेदः | ुखुण्ठकानि कचाकममानप्ररुतिकद्रव्याि पिण्डो प- मानि। कृष्णलवणं सुवचेला HUT aay छष्णाजोर कं श्गैतपालौ काकजङ्घा | मवश्रन्दो पादानात्‌ सेन्धवलवणसासूद्रलवणयो ₹ंविष्ययो-

(१) खुखुण्डकानि (२) aaa प्रोषितं | (र) छष्णाजोरकः |

५९४ गदाधर्पद्धतौ

रपि खरूपेण दानम्‌ वस्यान्नवयच्नन्नादेः समोपे wa रतं तदवच्तृतं | aa feat एवं रुदितं ate TE. ग्दस्तणं खरम शिग्र weg सुमुखं तथा

कुश्नाण्डालाववात्ताकोको विदारां श्च वजेयेत्‌

faut ade चेव तथा वै पिण्डमूलकम्‌ |

शतञ्च लवणं सवं वंग्राग्रञ्च विवजेयेत्‌

राजमाषान्‌ AQUI को द्रवान्‌ कोौरदूषकान्‌ |

लोहितान्‌ टच्तनिर्यासान्‌ आाद्धकमंणि वजेयेत्‌

मरौचा दिनिषेधोऽपि दिङ्गवत्खरूपेण दौयमानस्धेवेति बोध्यं ama वंश्करोरं। कोरदूषको वनकोद्रवः। राजमाषो ड्ग दूति गौडाः ¦ पिण्डमूलकश्रब्दस्य पिण्डसार्‌ दति प्रसिद्धमूलपरलं केचिदद न्ति कोचित्त दरणएपरलं तदुभयमपि विचाराखहं तयो मूलशब्देन व्यवहाराभावात्‌ तया कोषाद्यभावाच्च वन्तेल- मूलकदीधैमूलकयोरेव मूलक ग्रब्दप्र सिद्धेश्च | अचर कल्यतरूकाराः,-- ततोऽन्नं awe दति वच्छमाणग्रद्खेत्चा विहितस्याव्यव-

(*'हर णो यद्र व्यस्य यथालाभसुपकल्पितस्य श्राद्धसरूपसम्पाद कलं, तद - भावे तु श्रविहिताप्रतिसिद्ध विहितसदुश्रमुपादातयं यत्त॒ आद्ध- प्रकरण एव प्रतिषिद्धं तत्‌ प्रतिनिधिल्ेनापि नोपादेयं। यच तु फलविगरेषसंयोगः तस्य आद्खरूपसम्पाद्‌ कत्वे सति तत्‌फलबिगशेष- सम्पादकत्मपि aa फल्लविग्ेषसंयो गः तेषां 1<व्यवदङ्गत्ात्ते- र्विना आ्राद्धाङ्गानिष्यत्तिरेव | ad निषिद्धं गोमदिषमांसादिफल-

(१) भ्यवद्धरुणोयद्रव्यस्य |

ATAATE: | ७५

faa fated, तत्‌ तत्फलाथिनेवोपादेय, तु आराद्खरूप- amend | यत्त॒ यस्मिन्व zu पिटटस्षिकालान्यौयस्ं ग्दूयस्तं वाः | तन्तस्येव द्रव्यस्य वस्था विग्रेषापेच्या बोद्धव्यमिति | ्रालुफलकदलोङ्खुमहरितक्यादौनां कषायवङ्ललाद्‌ानाभाव-

एव को मलतालफलस्य मघुरलादेचलमिति केचित्‌ तदन्ये सहन्ते |

फलं तालतरूणान्तु Ya नरकण्टच्छति

दति वचने पक्रापक्षसाधारण्धन निषेधात्‌ दिडमोचाशराकादे- ₹ं विब्यत्वेऽपि तिक्रलाद दे यलमेव (चाङ्गरि शाकः, घरद्रदे शप्रसिद्ध- MARSA HATA AAA ATTA देयाः | पकतिन्तिडोना^) माधेयेसाहित्यादानखमा चारः | लवणएलात्‌ समुद्र जलप्रमतयो देयाः | अरय परिवेषणविचारः |

परिवेशस्तु we: स्यात्‌ भायया पिदटघ्तये |

पिहदेवमनुख्याणां areal यतः fear | मनुटदस्यतो,-

पाणिण्वां quae खयमननस्य afgad |

विप्रान्तिके fogs ध्यायन्‌ ग्रनकेरुपनिकिपेत्‌

सुकं ह्यभाग्या हस्ताभ्यां यद न्नमुपनोयते |

तदिम्र MAGA: सहसा द्‌ष्टचतसः |

गणानपूपशाकादयान्‌ पयो द्धि हतं मधे |

(१) : (2) गा। (३) लेम्बाडदेलेम्बाड | (४) ति्तिडौ फलस्य | 69

५९६ गदाधरुषद्तौ

विन्यस्य प्रयतः सम्यक्‌ भ्मावेव समाहितः भच्यं भोज्यञ्च विविधं मूलानि फलानि च। चयानि चेव मांसानि पानानि सुरभौणि च॥ उपनोय तु तत्स was: सुखमादितः | परिवेषयेत्त परितो गणान्‌ सर्वान्‌ प्रचोदयन्‌ यद्यटो चेत विप्रभ्यस्तन्तद्‌ याद मत्सरः | ब्रद्योद्याश्च कथाः कुर्य्यात्‌ पिद्णमेतदौ ष्ठितम्‌ अन्तस्येति gata षष्ठो afed पूरितं उभाभ्यां qa हम्तद्रयेना सम्बद्धम्‌ गणान्‌ श्रप्रधानानि दत्यपूपादि विशेषणं, भोजनेऽन्नस्येव प्राधान्यात्‌ WTA awa दवितौयगुणानौत्य माधर्यादिगुएणन्‌ कथयनित्ययेः | देवलः, स्थितैव निशतः कर्ता सुदितः सादरः wea: | ततो विषदमानोय भोजयेत्मयतो दिजान्‌ + विषद्‌ विमलं | Tg. उष्णमन्नं दिजातिभ्यः शरद्धया विनिवेदयेत्‌ | अन्यच फलमूलेभ्यः पानकेभ्यश् पण्डितः भोजयेद्विधिवत्‌ पश्चात्‌ गन्धमाल्योज््वलान्‌ दिजान्‌ | अन्यचेति उक्तफलम्‌लान्येवानुष्णानि देयानि | (*"वच्छयमाणं याज्ञवल्क्यः, अन्नसुष्ण हदिग्यञ्च दद्यादकरोधनोऽत्रः | आपस्तम्बः - नेयामिकन्त्‌(\› यच्छ्राद्भ Geass दद्यात्‌ |

(* ) ट्‌यवच्छयमागा। (2) नेया{मकं |

कानलसारः | ५8७

मर्पिमींसमिति प्रथमः कल्पः, saa तैलं गाकमिति ¦ मघासु चाधिकं श्राद्धकल्येन सपिः ब्राह्मणान्‌ भोजयेत्‌ मासिकश्राद्ध तिलानां द्रोण येनोपायेन saad तेन भोजयेत्‌ ¦ समुदितान्‌ मभ्भोजयेत्‌ | अस्यायः, नेयाभिक अमावास्यादि श्राद्ध तत्‌ at विना ददात्‌ अधिकं मण््ाह्मणान्‌ भोजयेत्‌ ओाद्ूकन्पेनेत्य- न्यः | ate वेकल्िकमपि तैलं देयमिति ara) तिलानां द्रौ णमुपयोजयेदिति argued येनोपायेन waarfefa मोद्‌कादिप्रकारेण समसुदितान्‌ गुणवत इति | ब्राद्ये,- surg परि दग्धञ्च तथेवाग्रावलो दितम्‌ | भशकरौकौटपाषाणेः केतरेयंचाघुपद्रतम्‌ | पिण्याक(मयितञ्चैव तथा तिलवणञ्च aq | सिद्धाः कता ये भच्याः yas लवणोकूताः बाग्दृष्टा भावद्‌ष्टाञ्च दष्टो पदतास्तथा | वासमा वाऽवधृतानि वर्ज्याणि आरद्भकमेणि उष्णान्नमित्यच श्रत्युष्णान्नमित्ययेः | उष्णान्नदानस्य वज्कवाक्ये- क्तत्वात्‌ | Mawr वच्छमाणनिषेधाच श्रगरावलोहित Ogura सिद्धाः छता इत्यादेरयेः, येषु सिद्धेषु उन्तर- काल प्रत्यच्तलवणप्रतपः छतः माकंण्डयपुराणे,- भच्ानानि करम्भ इष्टका छतपूरकाः | ant दधि सपिश्च पयः पायममेव |

(१) पिरधाकं मथितं | (2) तपयक्ताग्रमाग |

५४८ गद्‌ाधरपद्धतौ

लिग्धमुष्णञ्च यो दद्यादग्िष्टोमफलं लभेत्‌ | दधिगवयमसख्ष्टं लेद्यान्नानाविधानपि gal शोचति राद्ध वर्षासु मघासु च। तेन भोजयेचिप्रान्‌ तं wat समुत्सजेत्‌ TA: खो संयुक्ताः wal नित्यमच्याः | स्यश्च सम्वत्सर प्रोता श्रो रभेमेषकेणकेः सक्यून्‌ लाजान्‌ तथा पूपान्‌ कल्माषान्‌ qaqa: सह | सर्वि; fagrfa मर्वाणि cyt tae भोजयेत्‌ करम्भो द्धिमिभिताः सक्थवः | TWAT: कामारखण्डाः | छतं wat समुत्सजेत्‌ तथा तेन पाच प्रणयं यथा तं चरतौत्यथः ayant: चिपिटकाः | विष्णःः- प्रत्यच्लवणं दद्यात्‌ | ग्रातातपवज्ि्टद दच्छातातपाः,- म्तद ्तास्त ये सेहा लवणव्यञ्ननानि सैन्धवं लवणं यच्च तथा मानसमम्भवम्‌ il पविते परमे aa प्रत्यरमपि नित्यशः | दातारं नोपतिष्ठन्ति भोक्ता भुञ्जौत किल्विषम्‌ तस्मादन्तरितं देयं Wag णेन वा | प्रदद्यान्न तु हस्तेन नायसेन कदाचन दृद्धगातातपलघुदारौतौः aaa तु पाचेण यदन्नं स्मदोयते | भोक्ता fared भुङ्ख दाता तु नरकं ब्रजेत्‌

कालसारः | ५४९

यमश्रातातपौ,- खतं नखेखतुभिंञ्च यो ददात्‌ प्राणिना तम्‌ | दाता पुण्ये चाप्नोति भोक्ता पापमति ब्रजेत्‌ तथा,- मासिकं फाणितं mH गोरसं लवणं ठतम्‌ | दस्तदत्तानि भुक्ता दला सान्तपनं चरेत्‌ हस्तदत्ता या भित्वा सलिलव्ञ्जनानि च। yar anfaai याति cat खगे गच्छति मनः, राजते्भाजनेरेषामयवा रजतान्वितैः वायपि श्रद्धया दत्तमच्यायो पपद्यते हारौतः,-- काञ्चनेन तु पात्रेण राजतौदुम्बरेण वा द्‌त्तमच्तयतां याति खडगेनायंरुतेन | श्राय्यैकृतमच चेवणिकनि्मिंतमन्यद पि पाचमभिमतम्‌ | विष्णः,- ्तादिदाने तेजसानि पात्राणि फंलुगुपाचाणि प्रशस्तानि at | दृद शातातपः,- Wa तु Bway ay श्राद्धे भोजयते faa | तच दाता पुरोधाश्च भोक्ता नरकं त्रजेत्‌ अयज्ञ यं प्रत्य पेटोनसिः,- लोहानां सिसकायसपाषाणरोन- पाचाणि तौग्मपाचाणि वा। लोदानामपि सौसकायसापेचया निद्धारणं दोन श्रतिचुद्र | मनुः,- नाखमा (*पातयेज्नातु कुषेन्नानृतं वदत्‌ | पादेन Wiss चेतदवधृनयेत्‌

(१) (a) eB त्‌

५५० गदएधरुषद्धतौ

ae) गमयति प्रेतान्‌ कोपोऽरौननृतं एनः | पादस्पशेसतु रचांसि दुष्ठुतानवधू ननम्‌ ERAT पापकारिणः | देवलः,-श्रश्रु पातयेत्‌ Wg sea दसेन्मियः | विभ्रमेन्न क्रुध्येत्‌ नो न्दिजेच्चात्र कुत्रचित्‌ ma fe कारणे श्राद्धे नैव क्रोधं समुत्सजेत्‌ ्राथितः खिन्नगाचो वा तिष्ठेत्‌ पिदसन्निधो Wa श्येनकाकादौन्‌ पक्षिणः प्रतिषेधयेत्‌ | agar: पितर स्त ममायान्तोति वैदिकाः कारणे क्रोधस्येति wie: | समुत्सजेत्‌ अ्रभिय्ात्‌ ahaa: उपाश्रितः विष्णुः नानमारुनमारोपयेत्‌ पदा स्पृशेत्‌ वा युतं कुर्यात्‌ | दष्टं निवेदितं वन्नं भुक्त जघ्न तपः श्रुतम्‌ यातुधानाः प्रलुम्पन्ति ग्नौ चश्ष्टदिजन््नः यथा क्रोधेन यदत्त भुक्तं BATA पुनः | उभयं तद्धिलम्पन्ति यातुधानाः सराच्तसाः पिद्न्नावादयिला तु नायुक्तप्रभवो भवेत्‌ | तस्यां नियम्य ayy अद्या आद्माचरेत्‌ तथा, अक्रद्धपरि विष्टं fe arg भौएयते foes श्रयुक्तप्रभवः श्रयुक्तस्य अ्रसम्बन्धप्रलापादेः प्रभवः कारणं तन भवेदित्ययेः

(१) अख

कालसारः। ५५९१

बौधायनः. BAZ परमः AA WA वन्ञानमुच्यते। Waa TATA: स्याल तघनौऽधमः सतः शरद्धया शोध्यते." बुद्धिः agar शोध्यते? मतिः | ASA प्राप्यते ब्रह्म श्रद्धा पापप्रमोचिनौ | तस्मादश्रदट्‌धानस्य दविनाश्नन्ति देवताः मतिरञच्छछा | बुद्धः प्रयगुपादानात्‌ मनुः, यद्‌यद्‌ददाति विधिवत्‌ सम्यक्‌ अद्धासमन्ितः | तत्तत्थिदणणां भवति पर चानन्तमच्यम्‌ यमः,- यथा धेनुखहखेषु वत्सो विन्दति मातरम्‌ | तथा श्राद्धेषु मिष्टान्न मन्तः Dat पिन्‌ हषेयेदत्राह्मणं सखष्टौ भोजयत्‌ ब्राह्मणां च्छनेः | अनाद्यनासकृत्‌ चेतान्‌ गुेश्च परिवेदयत्‌ भच्यभोज्यगुणनुक्ता भोजयेत्‌ ब्राह्मणान्‌ गनैः | aes: सेतिहातैश्च wang waa ATA: प्रयतः प्रसन्नमना: Bet भोजयेद्‌ ATAU YE उत्सादयक्तः | यमश्रातातपौ,- यावद्ध विष्य भवति यावच्छिष्टः प्रदोयते | तावद्स्नन्ति पितरो यावन्नाहं (२।द्‌ दाम्यहम्‌

pe ~—

(१) शोधते | (2) श्रोधते | (३) द्‌ाम्वद् |

५५२ गदाधरपषद्धतो

ब्राह्मणानं ददच्छुद्रः WATA ब्राह्मणे ददन्‌ | तयो रन्नरमभच्छं स्यात्‌ भुक्ता चान्द्रायणं चरेत्‌ दस्तेन aga az तत्किमानो यतामिति | तदपि शौद्रं wad wa शौद्रम्‌ we: परिवेष्टितं भवति mlz We Were अद्धायोग्यमित्य्थः। किमानौयतामिति र्ट यद्‌नौतमन्नादिकं तदपि wie | हारौतः+-पंया(९ चेवोपविष्टेभ्यः समं गन्धादि भोजनम्‌ | पत्वा विषमं cura area दापयेत्‌ याचिता दापिता दाता ते खगस्य भागिनः | HBS CUTAN सुच्यते कमेणएस्ततः | तस्मा दिदान्‌ नेव दद्यात्‌ नाभियाचेत्‌ दापयेत्‌ एकपंक्छपविष्टानां विषमे यः प्रयच्छति SHA Ud deat अन्नं Vela यश्च तत्‌ | कुनदौसेतुकारस्य कन्याविघ्नकरस्य पत्या विषमकारस्य निम्कृतिरनो पपदते कुनदौ खल्पजला सेतुना तत्मवाहस्य विच्छ द्‌ात्तदुपजो विनां axat पोड़ा जायते | दारोतः,- यस्त्वेकपडक्या कुरुते विशेषम्‌, सेदहाद्याद्रा यदि वाधेहेतोः | षिप्रणणेतस्मतिबेददृष्टाम्‌, ‘at ब्रह्महत्याश्टषयो वदन्ति

(९) WRAT |

कलसार्‌ः | ५५२

याज्ञवरूक्यः.- निरङ्गषटञ्च यच्छ्राद्धं वदहिर्जानु यत्छतम्‌ | वदिर्जानु यद्ुक्तं सवेमेतासुर त्रजेत्‌ मनुहारौततिष्ण शातातपो Hae: ्र्युष्णं सवंमन्नं न्याहु्ौरम्तेऽपि वाग्यताः दिजातयो त्रूयुदाता(%) ger देत्रिगणान्‌ वाग्यता इत्युक्तावपि पुनहेविगुणनभिधानो क्रिरस्तम्॑ता दि ना- ऽपि हविगेणप्रतिपादननिषेधपरा | | देवनलः+- तराद्मणएश्च तथा We: प्रसब्रेद्धियमानमः | पेटकाननमुपाग्रोयादंक्रान्तः प्रमन्नवान्‌ . पररन्नवान्‌ प्रसन्नः तया,.- अन्नपानकश्रतोद्‌ विधिग्यो ह्यवलोकितः | वक्तव्ये कारणे संज्ञां कुवन्‌ yatta पाणिना अन्नादिदानायं दाताऽवलोकितः ant हस्तादिना aya quia | एवं AMA कारणे खौकारे८ः) Sat ग्रद्खःलिखितौ,- ब्रह्मणा अन्नं गणटोषेरभिवदेयुरन्योऽन्यं wea: AST प्र्ठतमिति qu: aaa रस्तमंज्ञया यावद्भमौ यावदप्रणं यावत्‌ aa तावदश्नन्ति पितरो च्रन्यच फलमलेभ्यः | aug अछतप्रणंमं | Magar wal भोजनपाचं यावन्तिष्टतोति Te: | तेन भोजनपाच ateng |

ay, उद्धरेद्यदिपाचन्त्‌ ह्मणो ज्ञानद्‌ वलः |

[र

~~~)

(१) दात्रा | (२) ata Bat | 70

५५४ गदाधर्पदतो |

हर न्ति राचमास्तस्य भु््रानोऽन्न सुन्दरि | यमः.- यस्तु पाणितले ye यः स्वाय तयाश्रुते | तम्य पितरोऽश्नन्ति agama प्रशंसति ag नियुक्तो भुच्नानो प्च्छेल्लवण्णदिषु। उच्छिष्टाः पितरो यान्ति प्च्छतो नाच संगयः॥ दातुश्च पतते arsfagt wing भिद्यते | सवाय फंत्कारसर्हितं विष्णः,-श्रप्नौय्‌ agg वाग्यताः वेष्टितभिरसो रोपानत्काः पोटोपहितपाणयः। मनुग्रातातपौ.- यदेष्टितिगिरा ye यद्ग दक्षिणामुखः | मोपानत्कश्च VEE ae रासि भुजते दवलः,- योऽप्रसननेमना YR मोपानत्कोऽपि वा aa: | प्रलापगोलः क्रद्धो वाम fan: पिटदूषकः॥ neaafy at ye नायायते faga | यो वेष्टितशिरा ye यो वा as fanfeara 1 यमः,- यदेठितशिरा ag यद्ु्क दषलौपतिः मोपानत्वश्च wae यत्त दत्तं तिरस्नतम्‌ तत्व दानवेद्धाय ब्रह्मभागमकन्पयत्‌ | उद्धत्य पाणि विदशन्सक्रोधतिषया नितः

RIAA: | ५५१

श्राद्धकालेषु ayR तत्‌ प्रीणाति वे fags: arg तिस्मयानने स्यात्‌ क्रोधान्न Trae faz: असतरृतम विज्ञातं umd परिचचते श्रातातपः,- sana कटौ wal कूयाद्भा चानुलेपनम्‌ | एकवासा योऽ्नोयान्निराणाः पितरो गताः उपवौतौ ततः Qaiga: द्धऽनु लेपनम्‌ | निदक्तः ्रिखावनं ara fate धारयेत्‌ | सव्यादंसात्परिभरष्टं नाभिदेग्रे यव्श्ितम्‌ | una तु तं विद्याद्र दबे पित्ये षिवजेयेत्‌ यमः,- अरग्रारुनोपविष्टस्तु यो ys प्रथमं दिजः। बहनां पण्यतां सोऽन्नं usaat हरति किल्विषम्‌ श्रयासनोपविष्टः पद्धिमृ द्न्यपविष्टः | ग्रातातपः,- हस्तं ware aga: पिवेद्धुक्ता दिजः मद्‌ तदनमसुर शक्त निराश्राः पितरो गताः भुक्ता भोजनं ममाप्य च्रापोऽच्र भोजनान्तचलकगताः | यश्च भुक्तं gaya यश्च तेलामिघारितम्‌ | ` रजसखलाभियदृष्टं तद्रे रचांसि गच्छति कैशरको विपन्नश्च चतं श्भिरवेकितम्‌ | afaa चावधूतच्च तदे रासि गच्छति | amma तेलाभिघारिते दुष्टं अवधूते वाससेति रषः |

५५ गदाधम्पड्धतो

उग्रानाः,- नियुक्त यः 4g यत्किञ्चित्परिवजयेत्‌ | पितरम्तम्य a मामं aria प्रतिपेदिरे यत्किञ्खित्परि विष्टमरोचमानमपि aunts किञ्चिद्‌पि भच णे यमित्ययः | श्रय fame मांमभक्तणाभक्नणविचारः,-- चतुदेश्या दि पवेखपि aad छतनिमन््रणस््ौकारेण मांसं भक्षणोयं | Wag मांसभक्तषण- दोषापेक्षया आद्धौयमांमत्यागे दोषगौरवात्‌ | तया मनुः. यथाविधि faa यो ate नात्ति मानवः | प्रत्य पष्रडतां याति मस्मवानेकविग्रतिम्‌ यमदारोतौ च, नियन्तु यद्‌ राद्ध यस्तु aid खादति यावन्ति पश्रोमाणि तावनेरकमन्नुते दति | किन्त. विनां fe वधो यत्र aa माच्छनृतं वदत्‌ | तत्यावनाय faataye: सारखतो fas: दत्य यया सत्योक्तौ विविधे दोषश्वयस्वात्‌ कूटसाक्धिवम्‌ रत्वा पञ्चात्‌ प्रायञ्ित्तं, तथात्रापि वेदिकम्रायश्चित्तं कार्यम्‌ | नन्‌ अरच्यादिप्राप्रमांसवजेनप्रतिषघधोऽयं, तु पवेविदित- मांमवजेनप्रतिषेधविधिः, विदहितप्रतिषे विकन्पापत्ति* रिति wa यया fe zifa-

—— —— -

(2) विकन््ापत्तेरि ति |

कलसार्‌ः | ५५०

तस्व क्रव्दानद्ोमपाकप्रतिषेधः पुरुष्राथेलौ किकवे दिकस्वंदोमा- दि प्रतिषेधकः सोमाङ्गवन विधौयते | दत्त्येमां रभक्तणस्य पुरूषायमांसनिषेधवाधकलात्‌ | यथा वा ayaau मांसादि wigaa निषिध्यते, एतदेवाभिप्रेत्य HUA Sea | aq मांसवजेनात्‌ wa तद्टवपिचचेनगेषमांमस्य तु नियु- करस्य शआ्राद्धोयमांमवपिषयं तचाभक्स sigan दति 3a ब्रह्मचारि यतित्राद्यणएकप्रद्धे तु मांसं मध मवेयान Fa | विना मानेन मधुना विना दचिणयाग्रिषा | wa श्राद्धकमं स्यात्‌ यतिषु ग्राद्धभोजिषु॥ इति wa: | ननु Uden: कन्त्तरुकारादविभिरनादृतलान्‌ मस्धिग्धप्रामाण्ठक - fafa ewe | मधुमांख्योः श्राद्धे दानाभावे दोषप्रतिपाद कवचनं नेवास्ति। faq फनलायंनेवोक्रम्‌। यत्यादित्राह्मणकमश्राद्कऽपि बह फलप्रात्तिरुक्ता इति, तन्नोभन मधुमां सयोरदानन्नेव | योगोश्ररेण, ब्राह्मएः काममस्नौ याच्छ्राद्धं ्रतमपोडयन्‌ | दति मांसभोजनं यत्याद निंषिद्धमेव | पाते पतितमन्नौयान्घमां मविवजितम्‌ | यतिधमधृक्तमित्यलं प्रपञ्चेन ननु हत नित्यमां मवजेनस इन्येन निमन्तितेन wees नामादिकं weg वेति चत्‌, उच्यते | हच्छरचान्द्रायणादि कन्त रिव छतनित्यमांमवजेनमदुन्यस्य fanaa नङ्गकरणमेव BA: ¦ स्वौकारानन्तरमपक्रमण एव दोषस्य निर्णो-

५१५८ गदाघग्पद्वतो।

तत्वात्‌ | यदि रतनित्यमां सवजनम ङ्न्पेन गरम्टनापि भरान्यादिना निमन््रणं स्वोक्तं | तद्‌ा यतित्राह्एकश्राद्धवत्‌ मांमरहितं श्राद्ध यजमानेन कास्यम्‌ | ननु यतेः प्राययित्ताधिकाराभावात्‌ तद्‌त्राह्मणएकश्राद्धे फला- धिक्याच्च तथा निर्णोतं कुतनित्यमां मवजनेन newa तु भक्षणस्य क्रतर्थत्वान्‌ भक्तषणनिद्रत्तिनियमस्य पुरुषायलवात्‌ प्राश्येत वा यज्ञाय लात्‌ दृति न्यायेन asfaar पश्यात्‌ प्रायथित्तं कायम्‌, यथा aa टौतितानानेव «fant प्रष्ठषडदममाभ्नौ aed परष्टयषडहे मध्वाग्येत्‌ दति कमाङ्ग मधु श्रग्िला पञ्चात्‌ प्रायश्चित्तं तददिति चत्‌ न। yaad प्राक्ितं मांम मर्‌ ब्राह्मणकाम्यया | दैवे नियुक्तः arg वा नियमे तु विजयेत्‌ दति यमोक्रेवेजेनो यमेव मांसम्‌ ¦ बजनटोषस्य तनियमपर- चात्‌ मधुमां सयोः wana विहितलात्‌ | रविष्यान्नेन वे मार पायसेन तु वत्सरम्‌ दति योगियान्नवरक्योक्तः कास्यभो जिन्यायेन मांसरदहित्रा- Zag ATU | ग्रालग्रामश्िलात्राद्मएकश्राद्धे तु मासं देय- मिति केचिद्वदन्ति | युक्ति WE 1) मालग्रामभिलाचक्रस्य भक्तण- प्रसङ्गाभावात्‌ विष्णवे मद्या देया दति वाक्याभावाच दति, तदस्मभ्यं रोचते भक्षणाभावादिति यदुक्त हेतुः परूजायामपि वक्तव्यः स्यात्‌ तयापि तेय॑दुक्तं शिलाचक्रस्यादवनौ यवत्‌ प्रति- पत्तिख्यानोयलं दैवतमिति तदपि मारम्‌, आरद्धस्व याग-

क1लसारः | ५५९

तलमुक्का त्राह्मणस्वाहवनो यस्थानोया इति तैरेवोक्म्‌ तया सति यतित्रद्मचारित्राह्मणकथ्राद्ध तयोरपि प्रतिपन्तिम्थानतवेन सन्यासिलाद्यभावात्‌ मांमदानं yea, किमिति तेनाङ्गोरुतम्‌ | fag अस्मन्मते sige नेव यागरूपलमित्यक्तं वाक्याभावादिति यो Baden: सोऽपि नाद्रणणेवः। | ्रह्मविष्णभशिवाना्च कलौ ata चाचंनम्‌ राज्ञः भियं कुलं दन्ति तस्मात्‌ तत्यरिवजयेत्‌ एवं बत्यादि ब्राह्यणएकश्राद्ध दव शलग्रममगश्लिाचक्रब्राद्यणक- Ble गयाधिकफलोक्रमोंसाभावे दोषानुक्रख फलसम्बन्धरिहितमां- सदानमनुचितं दत्यस्माकं सिद्धान्तः | कन्त: पवमांसाग्रनादिकं प्रतिपत्तिकर्मावसरेणः लेख्यं ॥०॥ अय श्राद्धोच्छिष्टदानविचारः। त्रापस्तम्बः,-- चातद्ुणयोच्छिष्टं Ta | BARU श्राद्ध भोक्रगुणरदिताय | मनुः,- AE Bat उच्छिष्टं टरषलाय प्रयच्छति | मूढो नरक याति कालसुचमवाकूगश्िराः।॥ आद्धभोजो स्वमुच्छिष्टं gaara टददादि चेत्‌ | मूढोऽनिष्ठुतिः प्राह प्रायञ्चित्तन प्र्यति प्राय्ित्तं दिना तस्य निष्कतिनास्तोति are इत्यथः | AGS, स्वो षटद्रायानुपेताय श्राद्धोच्छिष्टं द्‌ा पयेत्‌ | यो ददाद्रागसम्मादान्न तद्गच्छति वै fas

A a ~ ~ ~> ~ - ee om

(१) oantaat

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= ५६० गटाधचर्पड्धत |

तस्मान्नटे यमुच्छिष्टमन्नाद(९) श्राद्भकमंणि | अन्यच दधिरूपिभ्यां गि्याय सुताय च॥

aaa द्रधिरुपिभ्यामिति दधिसपिव्येतिरिक्रः उच्छिष्टं कस्मेविदपि दातव्यम्‌ दधिषपिषोम्॒ गिष्यपु्रयोरपि ग्राद्धभोक्न- गरुणोपेतयोरण्यनुज्ञा दति कन्पतक्काराः Vol

ay जपविधिः |

कात्यायनः,-

“aaa जपेत्‌ वयादहतिप्रविकां गायचौँं सप्रणवां wafaat Tata पित्यमन्त्रान्‌ युरुषद्ुक्तमन्यानि पविताणि च") Tent: कणब्वपाद्‌ दृत्याद्या रुचः, यपित्यमन््ा उदरैरितामवर- दत्यादयः, afaatfa प्रातरद्रौयादोनि।

वौ घायनः.-- .

tata सामानि खध्ावन्ति यज्ञ षि ची मध्वोर्चात्य(*पविचाणि areas पटेच्छनेैः मनुः.-खाध्यायं श्रावयेत्पिव्ये waatearfa देव fe आ्ख्यानानौतिदासांश पुराणानि खिलानि खिलानि दरिविश्ादोनि। माव्छे,- ब्रह्मविष्खकरद्राणां स्तोचाणि विविधानि च। cymes वावनानि सखश्रक्तितः दद्र थन्तरे तद्ज्ज्येष्ठमामसुरोवरः |

—_ -

(१) श्न्नाद्यं | (२) अश्रत्जपेत्‌ | (३) amare |

कस्सार्‌ः |

तथेव शान्तिकाध्याय मधुत्राह्मएमेव मण्डलन्राद्मणं तदत्‌ प्रौतिकारि यत्पनः विप्राणमात्मनश्चैव तत्सवं समुदौरयेत्‌ नाद्ये, वो णएवेणध्वनि वाय fata निवेदयेत्‌ ॥°॥ aq पिष्डविधिः | त्राह्मे,- तच efaugaai arat वेदिस्तया दिगि) waar) आ्द्ग्दमिशतुर द्ुलमु च्छरिता तथा,- मध्वाच्यस्थालिसयुक्त सवेवयननसंयतम्‌ | उष्लमाद्‌ाय पिण्डन्तु छवा विल्वफलो पमम्‌ | दद्यात्पितामदादिभ्यो दभेमूलाद्ययाक्रमम्‌ | तया, दद्यात्‌ क्रमेण वासांसि ग्रेतवस्तरभवा SUT: | गते वयसि दद्धानि खानि लोमान्ययापि वा ti gta aa नवं दद्यात्‌ ww कार्पासमेव च। ष्णानि नोलरक्राक्रकौ गेयानि विवन्नेयेत्‌ वायवोये,- qaiuqgeay कौ ग़रेयञ्च विवन्जंयेत्‌ | aaa शां प्राज्ञो यद्यया इतजा(२) भवेन्‌

en ~~ ~~~ ~~~] बब बब] -~~-]]~-~~~-~-~~-~~--]--~-~-~-~~-~~~__

५६१

(९) दस्तमाचाद्धेभूमिष् (२) घाणं। (8) यद्यप्यद्टतजा |

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५९२ गदाधर्पद्धतो

aa cus श्चेतवस्त्रद शायतिरिक्रविषयम्‌ | “aaa” sfa—zaaa ब्राद्धोक्तः | पिच्रादिखरूपञ्च मनुः,- aga वदन्ति fuga axiga पितामहान्‌ प्रपितामहान्‌ तथादित्यान श्रुतिरेषा सनातनो याज्ञवरक्यः,- वसुरुद्रादितिसुताः पितरः ओ्राददेवताः। Dua मनुष्याणं पिन्‌ arga तपिताः दूत्या दिवाक्येभ्यो यद्यपि श्राद्धे वखादौनां देवतालं प्रतौयते | तथापि “श्रसुकसगोच एतत्तभ्यमस्ठु” दूत्या दिवाक्येभ्यः पित्रे पिता- महाय प्रपितामहाय इत्यादि aay गोचनामसवन्धेविशेषकोत्तनेन खजनकादौनां wena wud टरेवतात्मिति श्रतणएव वखादि- रूपेण gar) “य एवं विद्वान्‌ faa ana” दूति पेडोनस्क्ेः : मनुविष्ण्‌.- श्रसंस्तप्रमोतानां त्यागिनां कुलयो षिताम्‌ | उच्छिष्टं भागधेयं स्वाटूर्भषु विकिरश्च यः॥ उच्छेषणं ग्दमिगतमजिद्धस्याप्रटस्य दासवर्गस्य तत्पिव्ये भागधेयं waa faa पिदकमंसि। कुलयोषितां त्यागिनामकरणेऽपि

कलस्तोत्यागवतां (पचस्यमन्नं अमंस्छतप्रमोतानां wages दासवगस्य |

(१) पाचस्थमघ्नं |

कालसारः | ud ®

हारोतः,- च्रायुदः nya: पिण्डो दितौयः qa: स्मतः | ऋषद्धिम्रदस्ततोयो वे तस्मान््यममाग्रयेत्‌ या पन्नो पुचकामा स्यात्‌ मध्यमं पिण्डमन्नोयात्‌ | प्राजापद्टेन विधिना तस्मात्‌ पुचदः wa: “्राजापत्यो विधिरपां ल्वोषधौनां रसं प्रा्यायनोग्तं गमे uqe” दूति मध्यमं पिण्डं प्ये प्रयच्छति | aaa पितरो गभं कुमार पुष्कर खजम्‌ | यथेह पुरुषोऽसदिति a wat प्रस्नाति दति samara: | मनुः+- एवं निवेपणं war पिण्डा स्तां स्तद्‌ नन्तरम्‌ | गां विप्रमजमग्निं वा प्राश्रयेदष्यु वा fata पिण्डनिवेपणं केचित्‌ पुरस्तादेव gad | वयोभिः खादयन्तयेतान्‌ प्रिपन्यनिलेऽप् वा पतिव्रता घमेपन्नो पिदपूजनतत्परा | मध्यमं तु ततः पिण्डमद्यात्‌ सम्यक्‌ सुताथिनो श्रायुश्नन्तं सुतं विद्यात्‌ यशोविद्यासमच्ितम्‌ | धनवन्तं प्रजावन्तं धामिकं साविकं तथा प्रलिपन्तोत्या दि पूर्रौक्रजला निलयोर कुवादः पचचिष्या दि विघानार्थः। इरस्यतिः,- श्रन्यदेगशगता पन्नो गभिणौ रोगिणो तथा | तया तं जोणेटषभन्कागो वा भोकमरंति तं aga fare |

५६४ गदाधरपड्धतौ

वायवोये,-प्राययन्‌ दौ घमायुञ्च वायसेभ्यः प्रयच्छति | Tame मनुक्रपरछिपदं वायसरम्‌ | efaut ब्राद्ये,- सुवणषूष्यपात्ाणि मनोज्ञानि एएभानि च। रस्तयश्ररययानानि aagifa ग्ट्दाणि च॥ उपानर्‌पाद्‌काक्चचामराण्यजिनानि च। asia दक्षिणां पृष्धामिति मञ्चिन्तयन्‌ ददि दरिद्रोऽपि aurnfa दद्याद्िप्रषु efaura रस्पतिः,- इतमश्रो चियं wre इता यज्ञासवद चिणः | तस्मात्पणं काकि्नों वा फलं पुष्यमथापि वा प्रदद्यात्‌ दरिं यज्ञे तया समफलो भवेत्‌ ननु, यतिब्राद्मणकश्राद्धे कथं द्चचिणदानं, aa गावो दिरिण्यञ्च यतेयस्य प्रतियदः | तादृशं कल्मषं दृष्टा प्रेता्नौ चं समाचरेत्‌ दति यतेः प्रतिग्रहाधिकाराभावात्‌ इति चेत्‌ सत्यं श्रा्धदक्लिणायां सुवणं रजतं वा नियम्यते तस्मात्‌ फलादि दानस्य श्रसाद्गु्छसम्पादकवात्‌ हरोतक्या दिफलमाचस्य MRR कौपौनयोग्यवस्तरस्य वा दाने प्रतियहे कित्‌ विरोधः | “mater: पितरो नः सन्त्‌, दातारो नो हि agat.” दत्याशौर्वादास्त॒ नियमेन श्राद्भाङ्गतवेन आमन््रणस्ौ कार विधिनेव तेषां खोता दति' श्रागौर्वादाकरणस्य पुर्षाथेलेन दुवेललात्‌

केनसार:। ५६५

amaze savas वलवच्वात्‌ नियुकरैयंतिभिरपि नियमेना- mata: कायां एव | दति माग्प्रदायिकाः | इति त्रय ओआ्राद्धोत्तरकम्म | देवलः,- निदत्त पिदमेधे तु रोप प्रच्छाद्य पाणिना | MAI eat HT HAA गेषेण भोजयेत्‌ ततो ज्ञातिषु aay खान्‌ त्यान्‌ प्रतिपूजयेत्‌ | एकोदष्टे तु गेषं तत्‌ ब्राह्मणेभ्यः ससुत्जेत्‌ ततः खयं तद्भु्ौत पुनभ जनवजेनम्‌ | प्रच्छाद्य, निर्वाप्य | यमः,- ज्ञातिभ्यः aad दत्वा बान्धवानपि भोजयेत्‌ | रदस्पतिःः- एवं दवान्‌ पिदन्‌ तांश्च तपेयिला विधानतः पुच्टत्यादिमहितो weet भोकरमरति श्रोचिया भोजनोयाः स्य नव सप्त wate | ज्ञातयो बाग्छ्वा निःखास्तधेवातिययः परे प्रदद्यात्‌ दकिणां तेषां सवेषामनुरूपतः | श्रातातपःः- शेषमन्नमनुज्ञातं Yala तदनन्तरम्‌ | <8: wre तु विधिवत्‌ वुद्धिमान्‌ सुसमाहितः ब्रह्मे भगिन्यो बान्धवाः पन्या: IgE सदेव टि वन्दिमागचद्धताञ्च तौय्येचिक विदस्तया WAM: श्राद्धेषु ना शयन्ति मदद्यश्रः | तस्मात्तेऽपि विभक्रव्याः सकलञ्च विभज्य

५६६ गदाधरुपद्तौ

श्रापस्तम्बः,- “सवतः समुपादाय Maras waar यथोक्त" ग्राखा- aug marca | यथोक्तं ETA चतुर्यादिनवश्राद्धादिष गरेषभोजनम्‌ | agg यच्छिष्ठं we प्यषितञ्च यत्‌ Zayas” भुद्नोत कदाचन दूति विज्ानेश्वरोद्धतोक्तः | afae:,— आदधे नोदाषनोयानि उच््छिष्टान्या दिनकच्यात्‌ | aia वे सुधाधारास्ताः पिवन्तयक्घतोद काः उच्छिष्टं प्रषटञ्याद्धि यावन्नास्तमितो cia: | चौोरधारास्ततो यान्यचयाः सञ्चरभागिनः खोतन्ते तरन्ति | नोदाखनोयानि ufastieeerfa gare: | “सञ्चरभा गिनोऽन्यस्मनेद त्तमन्ने सञ्चरति यत्‌ तत्‌ सञ्चरः, तत्‌ ये yada दासादयः” इति RAAT: | ब्राद्ये,- 3a याते ततः aa faa पात्राणि चाम्भसि, fafata प्रयतो wat सर्वा्धोसुखान्यपि दितोयेऽदनि सर्वषां भाण्डानां खालनं तथा | अनन्ता जायते दिः पिणं यन सवेदा अरय यजमानस्य ब्राह्मणानां नियमाः मनुद्‌वलटरस्पतयः,- at fant ब्रह्मचारौ स्यातश्राद्धभोक्ता तयेव च।

(१) विप्र |

कान्तसारः | ५९७

च्न्यथा वत्तेमानौ at स्यातां नरकगाभिनौ तथा,- तस्मात्‌ प्रदाता भोक्ता श्राद्ध नियमितो भवेन्‌ | श्रच्॑कार्चितश्चोभौ भवेतां नाकगा मिनो afaeeg शातातपौ,- श्राद्धं दला मुक्ता मेथुनं यः प्रयच्छति | भवन्ति पितरस्तस्य तं मासं रेतसो भुजः यस्ततो जायते गौ दला भुक्ता पदकम्‌ | विद्यामवाभ्नोति चौणायुद्धैव जायते माव्छं,- एुन्भोजनमध्वानं चूतमायासमेथुनम्‌ Wigs आ्राद्धभो क्व सव॑मेतत्‌ विवन्नैयत्‌ खाध्यायं कलदञ्चेव दिगखप्रञ्च सवदा | ्रध्वगमनमाक्रोश्ोपरि काय्येम्‌ | “श्रष्वगमनमाक्रोगरपूरणं" द्रति दारौतोक्रैः। त्कालप्राप्रमपि मेथनं कायैम्‌ “ऋत्‌- aaa परिइरेत्‌"” दति शङ्खुःलिखितोक्रेः | निगमः, “a क्रधेयात्‌” इति ° श्रद्धत्ते ; पर गटहभोजनादि निषेधः दन्तधावनताम्बूलं चौराश्यङ्गमभोजनम्‌ | रत्यो षधपरान्नञ्च आराद्ध कत्ता farsa श्राद्धं कत्वा पर श्राद्धे Ya ये faze: | पतन्ति पितरस्तेषां लक्षपिण्डोद्कक्रियाः

५६८ nziwaugat

ननु “ada: समुपादाय इति भ्राद्धगेषपकद्रवयमानचस्य

भोजनं प्रति प्तिवनो क्रम्‌ | प्रद चिणमनुत्रज्य भुश्ोत fazafana |

दति याज्ञवर्क्येनाणक्र तच आद्धगेषस्य काकादिस्गरं शेष- भक्तणं काय्यं वेति चेत्‌ ? उच्यति “पुरोडाशक्रल्रथेकपालेन तुष्टानु पिवति <faaq परप्रयुक्नद्रव्योपजोविवेन श्रप्रयोजकलात्‌ दितौया निंद गेन प्रतिपत्तिलाच्च काकादिस्ष्टगेषस्य भच्वएलोप एव तददेगु्छसमाधानायं विष्णस्मरणमेव BAA |

ननु श्रमावास्यादिपवसु मांसभोजनस्य निषिद्धतात्‌ स्वेशेष- yang प्रतिपत्तिवेनावश्यकलात्‌ कच्चा भच वा वेति ? सन्दह- प्रतिपरस्तिकमपिक्या “श्रयेकम्मेणोवलवत्वमिति' वलावललाधिकरणे निणयात्‌ | आध गेषमांमभक्तणस्य प्रतिपत्तिकण्मलेन दुवललात्‌ सवं मांसभचणनिषेधस्य श्रयेकमेत्वेन वलवत्वमिति गेषमां सभच्णं नं काय, दति प्रे BA

पव निषेधस्य पुरूषाय्ात्‌ शेषभक्तणविधेस्तु Aaya पुरुषाय AAU: RATE वलवत्वात्‌ श्राद्धगेषमांसं साग्निके facing भक्तणोयमेव | “मा fear सर्वाणि श्वतानिःः इत्यादि निषेधस्य “च्रग्निषोमौोयं पष्टमालमेत' दत्यादिना विदितेतर विषयलनेन निणेयवत्‌ ““केवलपिण्डदात्रा aia भकचणोयं” मांसदाना- भावात्‌, इति सम्मदायविदः।

(१) “केवलपिण्डदान विपत्ते तु मांसं भच्तगौयं” |

कालसार्‌ः | ade

ननु तहि मरालयपचश्राद्धादौ सवंश्राद्धपूवंदिनेषु “facrfas- सषृट्‌ भुक्ता” wane निरामिषभोजनस्य श्राद्धाद्गरोषमां सभचवणस्य कथं व्यवस्थेति चत्‌ उच्यते | उपयुक्तस्य संस्कारादु पयोक्रव्यसस्किया | गरोयसो प्रशा ज्तिस्तु(९ तेन दृष्टं प्रयोजनम्‌ | दूति मैचावरणदण्डाधिकरणन्यायेन निरामिषभोजनमेव ara, विदितनिराभिषभोजनात्‌ कन्तुसस्कारात्‌(? वा उपयोच्छमाण- संस्कारात्‌ श्राद्धगरेषभचणस्य उपयुक्संस्कारलेन दु बेललात्‌ Ba नित्यमां सवक्नेनसङ्कल्येन कर्चा ्रषमां सं weal वेति चेत्‌ ? उच्यते | श्राद्धे मांसदानं काम्यमेवेति कतमां सवजेनसङ्ल्पेन मांसं देयम्‌ | यदि भ्वान्धादिना श्राद्धे aia दत्तं स्यात्‌ तदा (र“पुरूषायंसमा- an: काम्यं नित्यस्य aa” इति न्यायेन क्रलयंमवाधेन गोदोरह- प्रवेशवत्‌ सङ्कल्पस्य बलवच्वाचचच मांस asa) किञ्च॒ ओ्राद्धग्रेषमांम भच्यत्‌ दत्यादत्यविधिरपि नास्ति | ननु “waa: समुपादाय" दति स्वपदस्य का गतिरिति चेत्‌ ? उच्यते स्वंपटस्य सवंनामलेन विग्रेषरूपेण उपस्यापकत्वेऽपि मांसस्य काम्यतेन नियतवद्यारूढलाभावात्‌ मांस तिरिक्रदविः- प्राशने प्रतिपत्िसम्भवात्‌ | “ज्ञातिप्रायं प्रकन्ययेत्‌” दति ager मामस्य ज्ञातिभोजनादौ

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(२) प्रशास्तु (२) कत्त संस्कारात्‌ | (3) प्रुष! सम।धत्ते |

~) ho

५७६ गदाधर्पद्धतौ

प्रतिपत्तेर्ययाकयञ्चि निर्वाहात्‌ कतमां सवजेनसदङ्ःल्पेन ate asa | श्रत एव विज्ञानेश्वरः,- “यजमानस्य ait तु aurea” दति aga, तेनैव ज्ञायते कतवजेनसङ्ल्येन त्याचं अन्येन भच्छमिति एकाद्श्यपवासादौ तु “उपवासो -यदेति" ` एकादभोप्रकरणए लिखितवचना दाऽजेन गरेषवदाघ्राणमाचप्रतिपत्तिरिति ° श्रय ्राद्धादौ( गोचनामपदादयुद्धारणविचारः | पारस्करप्रचेतसौ,- श्रष्येद्‌ानेऽन्यसङ्कन्प (९) पिण्डदाने तथा चये गोचसम्बन्यनामानि यथावत्‌ प्रतिपादयेत्‌ विष्णः,- “नामगोचाभ्यामुदङसुखेषु"” इति ब्राद्येः- प्रद चिणद्च निग्टेज्यात्‌ गोचनामानुमन्तितम्‌ | न्दो गपरिग्िषटे- गोचनामभिरामन्त्य Treaty प्रदापयेत्‌ | शद्ुःलि खितौ,-- aaa पाणिना दण पाणिमुपसमाधाय एकैकं चिभिरामन्त्य भ्रसावेतत्‌ दति fafa: गोचसम्बन्धनामभिरिति। एवमन्यान्यपि बहनि वाक्यानि सन्तौति श्रादौ नामप्रयोगो यदा गोचप्रयोग दृति az, नामगोत्रे समुचाय्ये श्रयवा गोचनामनौ | दति विकल्पं इति केचित्‌ Cagag नाग्टरौतविग्रेषशे (2) `ऽन्न संकल्पे | (२) वसतु |

कं {लमसार्‌: | ५०७२

विगरषये बुद्धिरिति न्यायेन विगरेषणएस्य yauafag: गाचस्यादौ प्रयोग एवेति, समाचार श्चेवमेव बहनां |

faim, | .. सम्बोध्य नामगोचाभ्यां प्रतरत्यं श्ारिकम्‌ |

TY समापयेत्‌ wa गो चसम्बन्धपूवंकम्‌

दति तेः, Gaal पञ्चात्‌ गोचप्रयोगः। सर्वेषां शाहिक- मिति सपिण्डोकरणणान्तक्रियो पलचणम्‌ | aa ““सन्त तिर्गाचजननक- लानि" दति. पय्थोयपाठात्‌ at विग्रषरदितेति विगेषलाभाय तदादिग्वतपुरुषेण कुशरिकादिना खषिणवच्डिन्नो गोचश्रब्दाचैः | यद्य्यनादिस्स्कारे wag श्रनादिपुरूषसम्भवः तयापि कौशिकस्य ये पित्रादयः पूर्व॑, ये तत्पुवाद्योऽर्वाश्चः ते सँ attra गोचान्तरेभ्यो area: कौग्रिकोपलकितपुचरपौ चपर- maa गोचश्रब्दाभिधेयाः ¦ एवं गोतग्रब्दस्य परन्परारूप- धम्मेवा चिलात्‌(९ तद्धम्मेविशिष्टयक्तिलाभाय ants इति तेनाव- च्छेद कयुरूषसमानपुत्रपौ ATT दत्येद विगरेषण विगेव्यभावात्‌ कौगश्िकसगोच varfefaeat भवति

अत एव स्मृतिःः-

सगो चां AAA नेच्छन्दाइकम्मेि |

“samara या पितुः इत्यादि | मराभारते,- पराशरसगोचस्य sea सुमहात्मनः |

दृत्यादि निशः |

(९) परास्परारू्पधमविश्िशवयक्तिनाभाय।

Yor गदाधर्पद्धतौ

ननु,- भ्रमु कासुकगो तेतन्तभ्यमन्नं खधा नमः | दृत्यादि ब्रह्मवचनं, “वेयात्रपद्यगोचाय'”दृत्यादि awry कथं सङ्गच्छत दति चेत्‌, sea तच धम्मवाविगोचपदस्य amt लचणा यदा मध्यपदलो पिससासेन सकारस्य परित्यागः तया दूति देश्ान्तरोयसकाररदितप्रयोगोऽपि कथञ्चित्‌ सङ्गच्छते गो भिलः,- गोञं स्वरान्तं सवच गोचम्यारय्यकमणि | गोचस्तु aga प्रोक्तः wal चेवं मुष्यति aasa पितः प्रोक्रः पिता तपेणकमश्मणि | पितुरचय्यकाले तु श्रचयां ठत्निमिच्छता शर्न्नर्घादिके काय्यं शर्मा तपेणकश्मेणि शर्मणोऽचय्यका लेऽपि faut दत्तमचयम्‌ तच ब्राह्मणादि चतुवर्णानां शम्मान्तलादि विचारः यमः:ः- wal देवश्च fare aal राजा awa | TA दत्त वेश्यस्य दामः शद्रस्य कारयेत्‌ तथा ब्राह्यणस्य नामान्ते शर्मपदप्रयोगो देवपद्प्रयोगो वा दति विकल्पः एवं चचियस्य वका राजेति वैश्यस्य gat दत्त- दति axe दाख दृत्येव नाच विकरः, wala agua वर्मान्तं चचियस्य वे वेश्यस्य TARA दा सान्तं शूद्रजन्मनः ` दूति वाक्यान्तरादिति केचित्‌ | वस्तुतस्तु ब्राह्मणानां पुरुषनानः श््रान्तलं, Barat देयन्ततं va चतरियवेश्ययोरपि gafeat-

PIAA: | ye

fate: | तथा ब्राह्यणस्य श्रमुकश्रमां agar देवौति प्रयोगः। चचियश्य श्रमु कवर्मां ्रमुकरान्ञौति प्रयोगः | वेश्यस्य श्रसुकरप्रो- मुका दत्तौति प्रयोगः। WER aA श्रसुको दासोऽसुका दाषौति व्यवस्थेति वदामः | यत्त श्रसुकदासगर्मा दति त्राद्मणेरपि प्रयुज्यते, ay दास- दति दानपाचवसूचिका लो किक्येव संज्ञा, शास्तौया। “erat- wa दानपात्रे" रत्यादि विश्वप्रकाश्रादिकोषात्‌। एवं कररथ- धरादिसंज्ञाः कुलविग्रषेधु ज्ञेयाः एवं देवश््मा टति यत्‌ कुल विगरषे परयज्यते तच देवपदस्य देवतुनच्यलप्रतिपाद्‌ कलेन लो किकसंज्ञालमिति afaface: | दति तिधिनिणेयः | ay नखचाणां तत्र कर्तैव्यविशेषाणां निण्यः | सम्यणेतिथिवत्‌ सम्ुणेनचत्रे सन्देहः खण्डनचत्रे तु रिष्णधमंत्तरे,- उपोषितव्यं aaa यस्मिन्नस्तमितो(. रविः। युज्यते यर वा राम fanta शशिना ae दृति श्रस्तमययोगो निग्ोथयोगश्च रत्युभयसुक्त | तत्र श्रस्तमय- योगो मुख्यः aa: निश्ौययो गोऽन्‌कन्पः | तचोभयच योगोऽति- प्रशस्तः | यदा ठ्‌ wag: केवलनिग्ौययोगः, परेद्युः केवलास्तमय- योगः, तदा परेदयुरेवोपवाबः श्रस्तमययोगस्य मुख्यवात्‌ प्रातः-

(१९) व्रस्तमियाद्विः।

७8 गदाधरपद्तौ

सङ्न्पकाले नचचमच्वाच्च यदा दिनद्येऽपयस्तमययोगाभावः, पूयः केवलनिश्ोययोगः, तदा पूर्वंद्य॒रूप्रामः। निग्ोययो गस्य ्रनुकन्पत्रनापि ग्राद्यवात्‌ | यत्राद्धरातचादर्वाक्‌ तु aaa प्राणते faut तन्नचचद्रतं कुर्ययादतोते पारणं भवेत्‌ दूति सूतेः, त्रतमच उपवासः। दरति नकजोपत्ासनिणेयः॥ ०॥ BY नचवेकभक्रनक्र विचारः | नाच तियिवन्म््याह्भप्ररोषव्यातिवयवस्या, किन्तु पूत्राक्तो पवास- वद्‌ व्यवस्था तया स्कान्द तत्रवो पवसेदृ afamtareut भवेत्‌ | उपवासे यदृक्त स्यात्तद्धि नक्तेकभक्तयोः दति नचतरैकभक्रनिणेयः ०॥ श्रय तच ब्रतनिणयः | ब्रतादौ द्दयवयाघ्येव BAST | तया तिष्णधमोत्तरे,- सा तिचिम्तच्च aaa यस्यामन्धदितो रविः। तया कर्माणि gata Bagel कारणम्‌ aq यद्यपि daicanta एव प्रतोयते, नतु परिमाण- विगेषः, तथापि तियिवत्‌ चिसुहत्तव्या्िरत्रापि ग्राह्या तस्याः सर्वषाधारण्येन प्रटत्तलात्‌ | aa, afe नच्रैकभक्तनक्रोपवासेष्वपि न्यायो og इति

कृन्लसार्‌ः | ४४

aq | तेषु कालविग्रोषस्य प्रातिखि कववेनोक्रः | यदोभयदिने नच्तचस्योदये विमु त्तवयाभिः, तद्‌ ब्रतदानयोः पव दिनेऽनुष्टानम्‌ | सवंकमकालव्याप्नः। खनचचपूजायाः ब्रतान्तगेतलात्‌ त्रतवड्ुवस्या | या तु कालमाधकौये उपाकर्मविषये,- श्रवणं Ant ग्राह्यं उपाकरणकमणि | दरति कारिका। सा वद्कुचविषयेवेति पृटमेव निर्णीतम्‌ | aa विचारान्तरं। कमं दिविधं। श्ररोराच्रसाध्यं दिनमाध्य चेति | तच्ोपवासोऽदोराचसाध्य इति तचानुपपन्तिः। एक- भक्तनक्तयोरपि श्रन्पकालनिष्याद्यभोजनरूपतवऽपि तस्मिन्नहोरातर भो जनान्तर परित्या गखदितभो जनस्य एकभक्रादि रूपलात्‌ श्रदोराच- साध्यलसुपपन्नं | दानब्रतश्ाद्भानां श्रन्येव काय्येत्वा टि नमाध्यतं | तच aaa कथमहोराचसाध्यवं, कथं वा दिनसाध्यलं दति चेत्‌ ? उच्यते | तज्ञच्णं पारिभाषिकं तया माक॑ण्डयः,- तन्नखचरमहोराच यस्मिन्नस्तमभितो रविः। यस्मिन्नदेति सविता awed दिनं भवेत्‌ तथा उपवामादौ नाचचादोराचो ग्राह्यः श्रदोराचस्य aaa खुय्यौस्तमयकालं नचत्रयाप्या भवति दिनस्य तु नाच्तचतव सर्य्योद यव्याघ्येति निणेयः ॥०॥ ` | aaa श्राद्ध कालनिणयः | वोधायनः,- मा तिधिम्तच्च aga यस्यामन्यदितो रविः)

(२) इति चेत्‌, न्‌ |

५७६ गदाधर्पद्तो

बद्धं मानस्य Vee हानौ व्स्तमयं प्रति इति तया तियिवन्नच्चश्रादव्यवस्या jot

श्रय योगनिएयः |

विष्कुम्भादि योगानां उभय दिनयाक्षिवे उपवासादिकं पूरेचुः योगो यदा निगौयमाच याश्रुयात्‌ तदा तदन्तापेचायां पारणस्या- सम्भवात्‌, wat पारणएस्य निषिद्भूलात्‌, “ततोऽदन्येव पारणं” ट्ति पूर॑द्युरेवोपवामः | दानत्रतयोस्तु उद यत्रिमुह्धत्तवयािर्याह्या | श्राद्ध तु कमेक्ालव्याभिर्याद्या tel

श्रय करणनिणयः | ववादिकरण्णनां तिथ्यद्धेपरि मितलेन दिनद यव्या्चिसन्द होऽपि नास्ति। तस्मादु दयेऽस्तमये वा यस्मिन्‌ दिने करणसद्‌भावः तस्मिन्नेव दिने कर्मानुष्ठानं) यदा q पूर्व्यः सायंसन्ध्यामारभ्य परेः उदयात्‌ प्रागेव करणं समाप्ते | तदा कथमिति चेत्‌ ? उच्यते करणेषु निणयस्यानुक्रतेऽपि भद्रान्यायो योज्यः | तथा भटद्राविषये भविब्योत्तरे,- afaa दिने भवेद्‌ भद्रा तस्मिन्नदनि भारत | उपवासस्य नियमं कुय्यान्नारौ नरोऽपि वा यदि wat भवेदिष्टिरेकभक्तं दिनदये | कां येनोपवासः ष्टादिति पौराणिको विधिः प्रहरस्योपरि यदा स्यादिष्िः प्रदरदयम्‌ | उपवासस्तद्‌ा काय्येमे कभक्रं ततोऽन्यथा

कालसार्‌ः) ५७७

uefa fab: सज्ञान्तरं। उदयादारभ्य यावदस्तमयं विष्टि- सत्तायां नास््ुपवासे सन्देहः | यदा तु प्रदरमाचं विष्ठिनास्ि | तस्योपरि प्रदरं विष्टिभवति तदा रत्छदि नव्या पिविष्टेरभावे ऽयेकदेश्रवयात्ैः सद्भावात्‌ तस्िनेवदिने उपवासः अन्ययेत्य नेन एकदे श्वयापनेरभावो fates: | तस्मिन्‌ Ge समनन्तरातौ तव्याक्यो क्त काय्यं | यस्तु भद्रात्रतं सङ्ख्य अदोराचसुपोपितु WHAT | gat भद्रायुक्रघटिकासु yal | तया भविष्योत्तरे, प्रातः संपूज्य तामेव तब्राद्यणच्च ख्वशक्रितः | ततो भुञीत राजेन्द्र यावद्‌भद्रा जायते च्रयवान्तेऽपि भद्रायाः काम्बतोवाग्‌यतः श्रविः | किञ्चित्‌ waa प्राज्ञो यावद्ुद्रा प्रवत्तते इति, ae. चरमभागे यदा VAAN: | तद्‌नोँ एकदे ग्भद्रा- योगिनो दिनस्य प्रजाद्यनरलात्‌ अशक्तस्य भद्र प्रवेशात्‌ प्रागेव भोजने ma सति ayaa प्रजादे रनुटेयत्वात्‌ भद्रारदितेऽपि काले प्ूजा- दिकं विध्यते यद्‌ तु भद्राया चन्त भुङ्के | तदा कम्मे कालव्यापिग्ास्ात्‌ भद्रोपेतकाल एव पूजादिकं कम्म काय्यं पक्त- दयेऽपि यदि घटिकासु fafea भक्तयेत्‌ ; तावत्‌ Hz TATA: gaa-afa यदि ववादिकरण्षु कस्यापि विशेषस्य ग्रास्वेणनादू- तलात्‌ भद्रायां eae न्यायस्यातिक्रमे कार णाभावाच्चायं निणेय- प्रकारः सर्वोऽपि योज्यः। एवं तिथिनक्तत्रयोगकरणानां काल- fang: कतः | 73

५७८ गदाधर्पद्धतौ

रविवारादौनां सप्रानां श्रहोराचपरिमितत्रनिष्ेयेन सन्देहा- भावत्तद्‌यवस्था कता | दति | ay रविमङ्खान्तिकालनिणेयः |

ज्यो तिःग्रास्ते,- मेषो ayy मिथनं ane: सिंह ईैरितः | कन्या तुला इञ्िकथ धनुमेकरकुम्भको मोनखेति दाद गेवं रविभंक्रान्तयो मताः|

aa विग्रषान्तरं वा, aaa विषुवे दे चतसः षड्रेतयः | चतसखो विष्णपद्यञ्च सक्रान्त्यो द्वादश सताः MAK दे द्वद गद्‌किणायने | विषुवतौ तलामेषो(. गोलमध्ये ततोऽपराः धनुमियुनकन्यासु मौने पडीतयः | टृषटचचिककुम्भेषु सिंहे विष्णपदौ war

तासां नेभित्तिकलात्‌ स्ानदानादिकमवग्धं कां

तथा श्रातातपः,-

संक्रान्तौ यानि दत्तानि हव्यकव्यानि दाढमभिः | तानि नित्यं दद्‌त्यकः पुनजंन्मनि जन्मनि रविसंक्रमणे पुण्ये ara यदि मानवः | सप्तजन्मन्यसौ रोगो दुःखभागौ जायते

~~~ ~ ~~~

(१) तुल्यामेषे |

कालसारः | ५७६

मक्रान्तिकालस्त्‌ देवोपुराणे,- खस्थे नरे सुखामोने यावत्‌ खन्दति लोचनम्‌ | तस्य चिशत्तमो भागस्तत्यरः परिकौत्तितः तत्पराच्छतभागस्त॒ चटिरित्यभिधोयते | चटेः सदखभागो यः कालो रविसंक्रमः॥ तच विग्रेषमाद देवलः,- संक्रान्तिसमयः Gat cus: पिशिते चेः | तद्‌योगतोऽप्यधश्चोद्धं fina: पवित्धिताः। ददं सक्रान्तिपूर्वापरकालोनषष्टिदण्डात्मकतदुपलदितादोराच- परि(मिततदिन एव उपवासस्तेलस्तौ मांसतो रा दि वल्नेनं | aaa विग्रेषः, तच agafae:,— श्रतोतानागते Ga दं द्वदग्‌दचिणायने | चिंश्रत्‌ ककटके नाद्यो मकरे fanfa: war: टरदस्यतिदेवलग्रातातपाः,- gaa fanfa: gat मकरे विप्रति: परा | वन्त॑माने AMAT नाख्यस्मयतो दशर 1 पुनदेवल श्ातातपौ,- षडश्रोत्यामतौतायां षष्टिरुक्तास्तु नाङकाः | qual विष्णपद्याञ्च प्राकूपञ्चादपि षोडश्र | वन्तेमाने रवाविति शेषः | एतत्‌ सवच सम्बध्यते तेन

I A ~~ =-= -----

~ ५८० गराचरपद्धतों

maze cat” वन्तमाने पूर्वा fanfaate: ger <a: उभय- चेति तुलामेषयो रित्यथः, तु wae दति कछत्यकोमुदौकाराः। वग्िष्ठः,- श्रद्धराचाद्‌ घम्तस्मिन्‌ मध्याङ्कस्योपरि क्रिया उद्धं संक्रमणे चोद्धंसुदयात्‌ प्रहरद्य तथा, ag चेद दरा विमक्रमणं भवत्‌ | प्राह्दिंनदयं पुण्यं yal मकरककंटौ यस्मिन्‌ दिने श्रद्धरावादधः क्रान्तिः, afea दत्यथः। दिन दयं दिनाद्धंदयं vafeae gute परहिनस्य पर्वाद्धंमित्यथेः | श्रदराचादित्यादि yaar | देवौपुराणे,- श्रादौ पुं विजानौोयात्‌ यदभिन्ना तिथिभेवेत्‌ | Rea यतोते तु विनज्ञेयञ्चापरेऽहनि तया संक्रान्तिकाल्ोनतियियदा श्रमिन्ना 'पूवेदिनगामिनो | afe श्रादौ wafea gu विजानौयात्‌ शर्थात्‌ तिथिभेदे उत्तरदिने gu विजानोयात्‌ एवं dguigua संक्रमणे तत्कालोनतियियेदि प्वंदिनगामिनौ- उभवदिनगाभिनौ वा, उभयाथापि प्वेदिनमध्यान्ादूद्धं ge विजानोयात्‌ सक्रान्ति- कालोनतियियंदि परदिनगामिनो, तदि परदिनाद्धंमेव ga set yufafa वाक्यस्य दिनद्यव्या पितिथिकेऽपि प्रत्यविशेषात्‌ | asta व्यतोते तु संक्रान्तौ यदि तिधिरेकंव, तदापरेऽह्ि युं विजानौयात्‌ इत्ययः |

(९) अके |

RIAA: | ५८१

बद्ध गाग्येः,- यद्यस्तमनवेलायां. मकर याति भास्करः | प्रदोषे Asta वा सानं दानं परेऽहनि AG Ag वा संक्रान्तौ ददधिणायने | पूवमेव दिनं ग्राह्यं यावन्नाग्युदितो रविः भविव्यौत्तरेऽपि,- मिथुनात्ककिसक्रान्तियेदि areata: | प्रभाते at निभोौये वा qutcefa gaa: यद्यप्ययमाचारः कन्यतरुकारंने लिखितः, तथापि सवदेभ्रौय- शिष्टपरिग्टीतलात्‌ अस्मदेभोयैः स्वेरपयादृत एव | ननु, af संक्रमणे पुण्यमदः aap प्रकौ तितम्‌ दूति छद्धवशिष्ठेन स्वेस्याद्धः पुण्यत्सुक्रं “sea विंशतिः पूर्वाः” इत्यादिषु कालविशेषाणणं quagai | देवलेन तु,- या याः सन्निहिता नाद्यः तास्ताः पुण्यतमाः खताः। दति सनिडितनाडोनां guaga तत्कथमिदं स्वै सङ्ग च्छते? दूति चेदुच्यते | सननिदितनाडोनां पुण्छतमलवं, wafea- नाडोनां पुण्छतरवं, ARIS: पुण्यलमिति, दद्व शरिष्टदेवल- वाक्ययोः पुण्यतमलस्य स्पष्टत्वात्‌ श्र्यात्‌ “waa fanfa: पूर्वाः" ट्ति तद्युवदितनाडोनां qaata fag यथोक्दादशसकरान्तोनां यथो क्रपुष्यकालेषु मन्ादिनाममिः प्रत्येकं सप्तधा

५८ दांधरुपद्धतो

विग्रेषो देवोपुराणेऽनुमन्धेयः,-- waa कोरिगणितं we विष्णपद) फलम्‌ | षडगोति avant षडगौत्यां wa qu: विषुवे गशरतमारसखरमिति | ब्राहुधे,- नित्यं दयोर यनयो नित्यं विषुवतोदयोः | चन्द्रा कयोगरदणयो व्येतिपातेषु wy अरहो राचो षित, स्नान आद्ध दान तया जपम्‌ | यः करोति प्रसन्नात्मा तसू स्यादयं फलम्‌ | दति उपवास उक्तः, ग्रहस्येतरेषां | तया रतिमोमांसायां,- श्रा दित्येऽहनि सक्रान्त्यां यणे चनद्रख्ययोः | उपवासो कत्तेव्यो गटदिएण gf तथा विष्णपुराणे,- विशाखायां यद्‌ सय्येख॒रत्यंशं ठतौ यकम्‌ | तदा चण्ड विजानोयात्‌ afaatfact स्थितम्‌ कनिकायां यद्‌ा aa: waning गच्छति | विग्राखायां zataia तदा ज्ञेयो दिवाकरः तदैव विषुवाख्यायां(?) पुण्यकाले विधौयते | तदा दानानि देयानि विप्रेभ्यः प्रयतात्मभिः॥

--- ~~~ ~~~ --- = ~~

(१) अहोराचोषितः | (२) विषवांशोऽयं `

कालसारः | ५८३

दरति पारिभाषिकोऽन्यः guar) नतु मेषतुलापरन!म- विुवकालः | देवौपुराणे,- satay स्ानकिगिषा लिखिताः | तादृप्रकाम्यकमोणि ततर तत दृष्टा कार्ययाल्ति , मेषसक्रान्तौ विगेषः, विष्णधर्मोत्तरे,- मेषसक्रमणे भानोरमेषदानं महाफलं | तया,- यया तया प्रपां दला नागलोके महौोयते | इत्यादौ प्रपाग्यान ^ तदु पलेपनरन्नवारि धानोक्ुखरशरावदान- परि चारकजननियोजनेषु फलान्य॒क्तानि | भविष्योत्तरे, प्रपां दातुमश्रक्तौ विशेषाद्धशनेमाश्रयान्‌(र) | प्रत्य UGH: कपेटीवेष्टिताननः ब्राह्मणस्य Ze देयः शो तामलजलः wf: | तस्वेवो्ापनं कायं मासि मासि नरोत्तम | मण्डलेरिष्टकाभिश्च waa: सव॑कासिक्रेः | Sigma mgt विष्ण ब्रह्माणं area तथा | सलिल? stafyat तु मन्त्तेणनेन मानवः एष ध्मघटो दत्तो ब्रह्मा विष्णशिवात्मकः त्रस्य प्रदानात्सकला मम सन्तु मनोरथाः

(१) Sutera | (2) sai दातु मग्रे वि्रेषादम्म॑मिषभिः | (२) सतिलं |

५८४ गदाधरपटडतौ

तद सम्भवे श्रशवत्यतरुमूलसेचनं मामचतूष्टयपरन्तं aaa लिखितं | नन्दोपराणे,-- केवलजलदानमपयुक्तम्‌ः योऽपि afanerata जलपानं प्रयच्छति | नित्यदघ्नो भवति खगं युगशतं नरः zfa | सुमन्तः, विपरभ्यः Ta” कचं fret विषुवे पुमान्‌ | मक्थूशच श्रकंरामिश्रान्‌ दद्यात्‌ सजलककंरोम्‌ गरराखापूरै(र) पानौयं खानं दद्यात्‌ प्रपासु च। मक्रौणनाय मासांम्तोन्‌ मम लोके aetad दूत्यादि | यामनगरमागा्दिषु प्रपादाने कपिलाकोटिदानादि- फलं लिखितं | विस्तरभयात्‌ न, लिख्यते | fa सक्रान्तिनिण्यः | परथ्पौरजसखलालकालः | श्रतानन्दमग्रदे | सगऽ निदाघस्य तन्््येऽपि दिनत्रयम्‌ | रजस्वला स्यात्‌ पएथिवो कृषिकम्मेषिगद्िता निदाघस्य Tae: सौरखेवेति विज्ेयं | खं was म्टग- शिसोनच्चगते टषान्ते मिथनादौ Say) सछगगिरोनकच्चस्य टष- भिथुनोभयरभिभोग्यलात्‌ | तथा वृषान्तदिन मिथुनसक्रान्ति- दिनं तत्परदिनं चेति दिनितचरयमिव्यथः | योग्यलात्‌ | sara मिथनस्यादौ तन्मध्येऽपि दिनत्रयम्‌ |

(१) पादुक | (२) सरासुवर्यपानौयं ae

STAAL: |

दति वाक्यान्तरात्‌ | awe भिथुनमध्ये मियुनदितौयदिन tay: wat दिनचयस्य निरन्तरलरात्‌ ° श्रयागस््याघं विचारः | aga दकि शास्ितिसुपक्रम्य श्रौभगवदचनम्‌ faw- दस्ये,- ये त्वां तच fad भक्तया नादंयिष्यन्ति मानवाः | तेषां साम्बत्सर पुण्यं मत्मसाद्‌ाद्वेन्तव ये लां महा विधानेन पूजयिष्यन्ति वारुणे | श्वेतदौपं गमिव्यन्ति ते नरा मप्मसाद्तः॥ दूत्यगर््याघेस्य नित्यकाम्यवेऽपि, SMTA भास्करे कन्यां सचिभागेस्तिभिर्दिनैः | ay aque ये सन्ति महोदये | afta वाक्यान्तरात्‌ | महो यस्थानमुपक्रम्य, यस्तु भाद्र पदस्यान्ते उदिते कल शोद्धवे | Ay Caleta सर्वान्‌ कामान्‌ लभेत सः | दति भोमपराक्रमोक्ेखच नास्मटेगे तत्समाचारः सचिभागेः fafafea: aatenfea: नयने सिंह दत्ययः। महोदये तन्नामकस्दानविगेषे भाद्रपद्‌ ण्ब्दोऽपि सौरमास- विषयः vane विष्णएधग्म- श्रालिङ्गदेवपय्यन्तं यो दद्याद्‌ टतकम्बलम्‌ | 74

ace गदाधस्पद्धतौ |

जागरं नृत्यगोतादयैः सकृत्‌ Har पवि मन्वन्तरसदस्वाणि शिवलोके मदोयते | पर्वणि मकरस्क्रान्तो “aa aa रवित्रेजेत्‌"' इति वाक्या- न्तरात्‌ | at मकरं “मकरो ware” दूति ज्योतिः शरास्रात्‌ ०॥ नदौनां रजसखलाल् विचारः | छन्दोगपरिशिष्टे-- यव्द्यं आवणणादि सवां नद्यो रजसखलाः | तासु सानं Bala asifaar समुद्रगाः घनुःसहखाण्यष्टौ च. गतिर्यासां विद्यते ता नदौग्रब्दवद्ा ale परिकोत्तिताः॥ तद्‌ पवादः पुनस्तवेव,- उपाकर्मणि stat प्रतस्ताने तथेव चन्द्र सयग्रडे सैव रजो) षो विद्यते AAS: | समुद्रगाः साक्तात्‌ समुद्रप्रविष्टाः। श्रन्यथा, यया नदौ नदाः स्वं समुद्रं यान्ति संस्ित्तिम्‌ | दृति मनूक्ेः, सर्वासां नदोनां परम्परचाऽिप्रवेशात्‌ दोषा- भावः प्रसज्येत | धनु; परिमाण विष्णधर्मात्तरे,- दाद्‌ ग्राङ्गलिकः शङ्कसतद्यञ्च शयः खतः

(९) sat at

कालसारः | १8

तच्चतुष्क धनुः प्रोक्त क्रोशो धनुःसहसिकः श्रयो SE! HA दोषाभावो जलान्तरासम्भव एव। एवं “a- दूष्येत्तौ वासिनां” इति मदनपारिजातष्टतायां स्मृतावपि बोध्यम्‌ Aq एव व्याच्रपाद्‌ः,- aaa करूपवापौनामन्येनापि समुद्धते | रजोदुष्टेऽपि पयसि याम्यभोगो | sara अन्येनापि घटादिना, आ्रावणादिदयं सौरमासविषयम्‌ | तया ककटभिथुनयो रजोदोषः,- रादौ ककौटके नद्यः सर्वां एव रजस्तलाः | चिदिनन्तु waists wer सज क्वौ यथा दूति wat सौरमासे एकारेण समुद्रगानां नदौनामपि (*¶्रएद्धिवकयनात्‌ | दिनचयेऽपि गङ्गायां दोषः, अस्या दृष्टान्ते - नो पादानात्‌ अत एव देवलः,- गङ्गा यमुना चैव ्रचजाता सरखती | रजसा afin ये चान्ये नदसज्ञकाः | TAMA सरखतौ ङुरकेच्रगता सरखतो | नदाः गोणद्यः | ते च,- शोणः सिन्धदिरण्ाख्यकाकलोहौ तपपंराः | WAZA नदाः सप्तपावना ब्रह्मणः सुताः

(९) शचित्वकथनेनव्यक्तौ छतत्वात्‌ |

५८८ गदाधरुपद्वतौ |

यन्त, भागौरयो कालिन्दौ नमेदा सरखतो। विोका वितस्ता गौतमौ रृष्एवे णिका | तुङ्गभद्रा भौमरथौ" तापौ चेव पयोण्िका | दाद्‌ प्रेता महानद्यः पापिनः पावयन्ति ताः दति वाक्यात्‌ समुद्रगापदं महानदौपरमिति प्राचौनाः। तन्न, समुद्रगापदस्य यौगिकायेत्यागेन श्रप्रसिद्भूरूढ कल्पनायां मनाभावात्‌ | दति मोरमास्काय्यौणि ॥०॥ अथ TEU | तच बद्धगाग्यः- पूिंमाम्रतिपत्सन्धौ Us: सम्णेमण्डलम्‌ | ग्रसते चन्द्रमकंञ्च टगेप्रतिपदन्तरा पर्वान्तिमभागः स्यगेकालः | प्रतिपदा द्यभागो मोचकालः | तदुक्त बरद्यषिद्धान्ते,- यावत्कालः पवेणोऽन्ते तावत्‌ प्रतिपदादिमः। रवौ न्दुयदणानेदाः aati मिभितो भवेत्‌ श्रनेहाः कालः | विगशरंषोऽन्यो ज्योतिःशास्त्रे द्रष्टव्यः | जावालिग्रातातपौ,- संक्रान्तेः पुवेकालस्त॒ षोडश्नोभयतः कलाः | GREAT यावद्‌ श्रेनगोचरः

(१) भौमस्था। (र्‌) माः |

कालसार्‌ः | ५८८

तच “areas सायात्‌" इत्यादौ स्नानादौ नैभिल्तिक चन्र सर्य्योपरागमाचस्य निमित्तवश्रवणेऽपि वाक्यान्तरेण यावद्‌णंन- गोचर दति निमित्तस्य विगरेषणान्तरमसुपादोयते | “यावन्नौव- afaets ayaa” दति जोौवनस्य निमिन्तलश्रुतावपि ma प्रातजृदहोति इति वाक्यान्तरेण सायं प्रातःकालावच्छिनजो वनस्य निमित्तच्वत्‌ सक्रान्तिपुण्यकालसादच््यादेवभेवं fata: | aa चाचृषन्नानं दिचिकच्षएस्वायिलान््रूपेण निमित्तविग्रेण, द्‌ग्रन- ATS सरानश्राद्धादेरसम्भवात्‌ | aq wa walut— “aeunmfavada निमित्तता WI एव ज्ञाने दशंनपद्स्य मुख्यत्वात्‌ | तेन मेघाच्छननतायां खानादिकं ata इति तेन चा्षज्ञानविषयस्य मनुव्याधिकारं area दति खपरसाधारण्टेन निमित्तलाटन्धादेरपि स्लानादा- वधिकारः | एव, जन्मभे AAAI सप्तमे चाष्टमे तथा | चतुय दादगे चैव कुर्यवाद्राङद भनम्‌ दति निषिद्धनचतरेषु शेनाभावेऽपि स्ञानादिकरणएमावश्छकम्‌ | 7d, नेचेतोद्यन्तमा दित्यं नास्तं यान्तं कदाचन नोपरक्र वारिस्थं at मध्य नभमोगतम्‌ दति agat uscd खय्‌ पनस्य निषिद्धलात्‌ कथं राज्ञ ay wast स्यात्‌, दति चत्‌, सत्यं दय्येग्रणे ज्ञातेऽपि

५६० गदाधर्पद्धतो |

यदपरं दन प्राप्तं तदेवानेन fafag i नतु प्रयमद्‌भरन। रतो

कथित्‌ विरोधः। दभेनसन्दहे वशिष्ठः, यासदशरेनमातरेए यदि दानि'°मंदद्वयम्‌ | जायते यदि सन्देदस्तस्मात्तत्‌ परि वजेयेत्‌ स्मृत्यन्तरे, चन्द्र कग्रदणे चैव यो alate मानवः | सप्तजन्म कष्टौ स्यादुःखभागो सवेदा व्यासः,- दृन्दो लंचगुणं GU रवेदं शगुणं तया | गङ्गातोये तु aaa दन्दोः कोटौ रवेदंश गवां कोरिसदखस्य यत्‌ फलं लभते नरः | तत्‌ फलं जा्भवौ तीये रागस्ते निशाकरे दिवाकरे तु ae दप्सद्चसुदादतम्‌ | चन््रसूय्धग्रडे चैव योऽवगाहेत जाक्रवोम्‌ ata: waaay किमथेमटते महोम्‌ अ्न्यकालसाना दि न्दु्रदएे लक्षगुणं | खय्येग्रणे faa: | माव्छे,- गङ्कनखल्ते पुण्ये प्रयागः पुष्कर गया | कुरुरे तथा पुण्यं रा्कग्रस्ते दिवाकरे

(१) चाथेद्धानिः।

तद्‌ गगण

कालसारः | YER

कोटिजन्मकृतं पापं पुरुषोत्तमसन्निधो |

रुला सय्येयहे ala विमुञ्चति महोदधौ

श्जन्म्रकृतं पाप प्षानानेश्यति पुव्करे |

WAAR पापं गङ्गासागर सङ्गमे

जन्मान्तरसहस्रेण यत्पापं ससुपाजिंतम्‌ |

तत्सवं सन्निहत्यायां राज्गयस्ते दिवाकरे सन्निदहत्या कुर्‌ चते तौ य॑ विग्रेषः | महाभारते,-

मदहानदोषु चान्यासु aa कुर्यात्‌ यथाविधि | यथा विध्यक्ः साङ्ग स्ञानमदृष्टार्थमिति बोध्यम्‌ | ATR A

महानदयोऽस्मत्‌क्ताचारसारे द्रष्टव्याः |

च्रसम्भवे WE

नदौकूपतडागेषु नदप्ररूवरेषु |

नद्यां नदे देवखाते सरसोपूदधता्वृनि

उष्णादकेऽपि वा लायात्‌ ग्रहणो चन्द्र स्धयोः | उष्णाद्‌कमातुरस्येव |

्रादित्यकिरणेः प्रतं पुनः प्रतं वद्धिना |

श्रतो (“चखाष्यातुरः wrarzaed (रचन सुय्धैयोः | दति arate: |

(१) वाधातुरः | (२) ऽप्यष्णवारिण। |

५८२ गदाधरपद्धत |

एवश्च, Ba जन्मनि dart ग्रदणे wea: | aga चेव स्लञायादुण्एवारिएा दति निषेधो नातुरविषयः | एतत्सवैमभिप्रेत्य वयासः,- मवं गङ्गासमं तोयं सवं ब्रह्मसमा fear | aq भ्मिमम दानं ग्रहणे चन्द्रसुय्येयोः भौ तमुष्णो दकात्पूण्ध पारक्य परोदकात्‌ | दूत्या दि माकण्डयो fa नित्यस्तानेऽस्मत्‌ छताचारसारे द्रष्टव्या | यदवो पुराणे का्तिंके ग्रहणं 3s गङ्गायमुनसङ्गमे इति awa गङ्गासममित्यनेनेव चरिताध॑मिति विस्तरभयात्‌ लिखितं aed नदौषु रजोदोषाभावः पूवं लिखितः | व्यासः चडामणियो गमाद | रविग्रडे Bat सोमे सोमग्रहे तथा | च्‌डामणिरितिष्यातस्तत्रानन्त फलं भवेत्‌ वारेष्वन्येषु यत्पुण्यं ग्रे चन्र सव्येयोः | agg कोटिगुणितं ग्रसते चूडामणौ स्मृतम्‌ ग्रहणनिभिनलकं Ag नित्य काम्यमिति दर्णदि्राद्धप्रकरणे लिखितम्‌ | यमग्रातातपौ,- सानं द्‌ानं तपः Bigham राडदगेने |

कालसारः। ५९८२

aga राचिरन्यच तस्मात्तां परि वजेयेत्‌ कल, | यया aay gay सूय्येस्य ग्रहणे दिवा | सोमस्यापि तथा wat सानं दानं विधौयते कौ कर काम्यानि देव श्राद्धानि शरयन्ते ग्दणादिष ग्रदणदिनपतितवाषिकथ्राद्भधादौनि ग्रहणएनिमित्तकश्राद्ध Sal श्रामद्रयेण वेति qaqa! यदणे श्रामश्राद्धपक्त पिण्डवन्नेनमि- त्यपि लिखितं | नवश्राद्धा दिरुपिण्डान्तप्रेतछृत्यानि पक्रान्नेनेव दति सपिण्डोकरणएप्रकरणेऽ Fi ब्रह्माण्डपुराणे, amy जायते नृणां ग्रहणे wee: | वान्धवानां मरणे राद्कस्पशं विश्रांपते | रवेरपि ततः साला दानादौ कल्यते नरः| ग्रहणे ग्रावमाशौचं विमुक्तौ aay waa इति maga स्लाननिमित्तलमसुक्त) षर्‌ चिश्रन्मते,- सर्वेषामेव वर्णानां Gan राङदशने स्राला कर्माणि gaia श्टतमन्न परित्यजेत्‌ प्ररत Gaus | qa aa, स्त्यन्तरे,- Uggaa भवेत्‌ स्नानं ग्रस्ते दोमो विधौयते |

(१) ग्रास्यमान। 75

Yes गदएधरपद्धतो

मु माने wae सुक्तौ (“होमो विधौयते ब्रद्मतैवत्तं,-

सान स्याद्‌परागान्ते मध्ये WA: सुराचेनम्‌ | fravea,—

सूयन्टृग्रदणं यावत्तावत्‌ कुरययाज्जपा दिकम्‌ |

खपेन्न भुञ्रौत eat yaa gaat: खद्वग्रि्टः,-

सवेषामेव वर्णानां निमित्तं राद |

सचेलं भवेत्‌तानं सूतकान्नं वन्जंघेत्‌ ग्रहएकाले ततः पूवं यावत्‌ पक्त, AGA सूतकान्न,

पञ्चादपि सुञ्नौतेत्ययथेः दति माधवाचाय्यौः |

ATE]

BIE WAY ग्रहणे चन्द्र सूस्ययोः

ge’ कोटिगुणं मघ्ये gta लनन्तकम्‌ | नौघायनः-

खरो चरियोऽ्रोतियो वापि पां वापाचमेव ari

विप्रनरवो वा विप्रो वा aed दानमहेति द्‌चः+-

सममन्राह्मयणे दानं FATT ब्राह्मणब्रुवे

श्रोचिये WARS पारे लानन्यमश्रुते

(१) स्नान | (र) ग्रहणकान्ञे |

a -- --- --- --- ~~~ - --- ---

कलसारः | yey

पाचलच्षणएं याज्ञवल्क्यः, विद्यया केवलया तपसा वापि qraar | यञ aafad चोमे तद्धि पानं प्रचच्ते | महाभारते,- wfania: सुवणे वा धान्यं वा यद्यदि ्छितम्‌ | तत्सवं Tet देयमात्मनः अय cesar weet रारिदिवसुविपथसिन द्‌ ग्रहणम्‌ तत्र काना- दिकं area | तदुक्त निगमे,- खय्यग्रहो यदा cust दिवा च््रगहस्तथा | तच लानं Qala तदा दानं ङ्ुचचित्‌ ग्रहणे भोजनाभावमाह मनुः- चन्र य्यग्रहे नाद्याद दयात्‌ क्लाला विमुक्रयोः | श्रसुक्रयोरस्तगयो दृष्टा साला परेऽहनि | गहे ग्रहणे, स्यशेकालमारभ्य मोक्तकालपय्यन्तं गहणकाल दूति माघवाचाय्यौः ग्रहणात्‌ परवेमपि भोजनामावमाद व्यासः, Tages सायं ग्रिग्रहात्‌ | ग्रहकाले नागन यात्स्राला!९) ग्रहविसुक्तयोः qa शशिनि ya यदि स्यान्बहानिश्रा | श्रसुक्रयोरस्तगयारद्याटृष्टा परेऽहनि

(१) सत्वा स्रायात्‌ |

५९६ गदाधरषद्धतौ

साद्धेप्रयमयामादूद्ख genus महानिगेति लच्छौधरः | पूर्वकाले भोजनविधेविग्रषमाद sgafue:,— ग्रहणं चट्भवेदिन्दोः प्रथमाद्‌ धियामतः | मुज्ञ तावन्तनाल्यूवं पञ्चिभे प्रथमादघः | रवेश्चावत्तेनादृद्धमर्वागेव निग्रोयतः। चतुयप्रहरे चव्याचतुयप्रहरादधः wat परयमयामात् ^^ चन्द्रग्रहणं चेत्‌, तदावत्तेनान्मध्याङ्धा- ad सुनोत | राचौ पश्चिमे चेत्‌, राचिप्रयमयामादर्वाक्‌ yaa दरति ख्यस्य तु दिवावर्तनान्मध्वाद्धा दद्धं ग्रहणं चेत्‌, तद्‌ निनौ- यतो ऽद्ेराचादर्वाक्‌ भुञ्नोत | श्रक्रश्चतुयप्रदरे चेत्‌, राचिचत्थंग्रह- रादधो YAGI: | चन्द्रयदणे यामचयेण व्यवधानं सय्यग्रहणे यामचतुष्टयेनेति तत्पर्य्यायः | तया स्मृतिः सूय्यग्रहे नाश्रोयात्‌ Wa यामचतुष्टयम्‌ | चन्द्रग्रहे तु UA वालदद्धातुरे विना वालदद्धातुर विषये तु मात्ये,-- अपराहे AWS AVE तु VPS! Yala, asa Vara पूवं युक्रिमाचरेत्‌ Twas ग्रस्तोदये इद्धवग्रि्ठःः- ग्रस्तो दये विधोः va नाहर्भोजनमाचरेत्‌ |

(२) ee

कालसार्‌ः | ५६७

उभयोगेस्तास्तमये ग्टगु-- ग्र्तावेवास्तमानं तु Tats प्राभ्रुतो चदि | तयोः परेदुरदये लालाभ्यवदहरेनरः समयस्य ग्रहणनिषेघधकाले भोजने प्राचचित्तमाइ कात्यायनः, चन्रखथ्येदहे Yat प्राजापत्येन wafa | तस्मिन्नेव दिने yar चिरातेरोव qafa नलु afm दृष्ापरेऽद्दि सुन्नौतेव्युक्त; मेघादयाच्छने भोनव्य- मिति wa | चन्द्र खय्येगर हे नाद्यात्तस्िन्न दनि yada: | रादोविसुनिं विज्ञाय साला कुर्वत भोजनम्‌ दूति इद्धम तमस्य वचने शास्तन्ञानस्य विवक्षितल्ात्‌ | अतएव BAYAN स्यत्यन्तरे,- मेघमालादि दोषेण सुक्रयोरनवे्तणे | MAMA ततः कालं Yala सानपूवेकम्‌ एवं afe परे्युरुदयात्‌ प्रागपि शास्तज्ञानसम्भवात्‌ तदेव भोजनं प्रसज्येत दति चेन्न तयोः परेदयुरुदये स्तालाभ्यवहरोदहोरान्न wine इति वचनद्रयन तदप्रसङ्गात्‌ | नन्वश्रौ चान्तरे waaay निषिद्धः 2a ae a वा? दूति सन्देहे व्यात्रपादः,- स्मात्तकम्मेपरित्यागो रादोरन्यच Bay | श्रौते satu तत्कालं खातः एद्धिमवा्रुयात्‌ | चः, श्रयने विषुवे चेव चन्द्रसूर्यग्रहे तया |

५८२ गदाघरषद्धतां

BAU aa: TA: मवंपापेः प्रमुच्यते श्रत (ua लेङ्गादौ यद्‌ पवासच्रयसुक्त, तत्सव पुत्रिण काय्ये। ARIANA छृष्णेकादग्रौ वासरे | चनद्रसूय्येयहे चेव कुर्य्यात्‌ gaara wel दति नारदोक्तेः। ग्रदणस्तानश्राद्भादिक'र) दूतकम्डतका शौ च- योरपि काय्यं दत्यग्रौचप्रकररे लिखितं | किन्तु agiat सूतक- सतकयोरूपाद्‌ानात्‌ श्रा्तेवा गो चज्रियाकन्त॑ शौ ay त्लानादौनामभाव- समाचारः | ग्रहणे स्ानमन्तः, स्टस्यान गम्यतां Wet त्यज्यतां VRAFA: | परमचण्डालयोने चं मम पापच्चयं He | ग्रहरकाःले aaa वाधिलास्येव प्रवेशः | ्देवनिमित्तपाञ्चदग्यवन्नेमित्तिकलाननिरवकाग्रलाचच | मु क्तिस्तानमन्लः,- यथापदो विमुक्रोऽभिराहोवेदनसङ्कटात्‌ | तया रोदिणौनाय suet मां विमोचय सुग्रहे तु प्रयममन्त्े सूयेसङ्गम TE: | सुक्तिमन्ते सज्ञाया नाय्य | यदहण्योरपि दिनचरयमन- ध्याय दूति अनध्यायप्रकरणे लिखितम्‌ | ग्रदणविषयेऽस्मत्‌रुतग्हद्धिसारकारिकाः,- पूवं स्यातृग्राखयामाद्‌नग़रनमघमपयष्णर श्चतुष्कं यामानां शौतरस्मेस्ितयमभिदितं ग्रासयामाद्धस्तात्‌ |

(९) Za (२) ameter |

ARIMA: | ५९८

cat गरस्तोदितलं गतवति चतूर्यामकान्‌ पृवेतोऽपि, yaad गतो तो यदि परदिवसे agared तयोस्तत्‌ श्रौ तस्रारत्तादिकमीण्छपि रविशरशिनोः स्यगरेहा शौ चमध्य, awe सयष्टमन्नं ए्तमपि तदितोऽदहानि चोष्छधोतिः। श्राद्धं यद्राषिकान्दं यदहणकूमयजं दा Aza: पदायै, हन्नावास्याद यानैः परमिह निखिसं पमरेतत्यं पक्षैः चन्द्रे गरस्तास्त एतत्यरदिनपतितं वार्षिकं श्राद्धमामे, Sar वा प्रवैवद्यादिति कतिविदितैर्विप्रमिभरलेखि | Sara: आद्धसिद्धिभवति हि पुनर्भोजनं यननिषिद्धः तत्‌ श्राद्ध ्राद्यणणेऽतिक्रमितुमिह वचोऽस्तोति युक्तिः कृतापि दति ग्रहणएविचारः | अयालग्ययो गाः |

तच सामान्यतो गाग्ये.-

मामसंजञे यद्‌ WI चन्द्रः HATA: |

गुरूणा याति संयोगं सा तियिमेहतौ War ¶्ङरगणे तायाम्‌,

एकराशिगतौ स्यातां यदा qafamact |

सा पोणेमामौ महतौ स्वेपापद्रा स्मृता महतौ तिधिः महाचेच्यादिनानोत्ययैः | महामाध्यादियोगेषु तौयेविगेषेषु फलाधिक्यमाद गाग्येःः-

महामाघो प्रयागेषु नैमिषे फाल्गुनो तया

सालग्रामे AVG कताः पुण्यस्य हेतवः

६०० गद्‌ धरपद्धतौ

गङ्गादारे वैशाखो ssl पुरुषोत्तमे | ्राषाटौो वै कनखल केदारे Brant तया agai प्रौष्टपदौ कुजाद्रौ महाधनो | पुष्करे कात्तिक काणवक्जे मागप्रर्षो तथा च्रयोध्यायां मदापौषो कता सुमहाफला | विग्रषतो मदावेग्राखो, स्कान्द, Bish कामुके MA मकरेम्थेऽथवा fas | प्रिमा रविवारेण तुलास्ये गनेश्वरे वरौ योयो गयक्ते विग्राखक्तं यदा शरौ ARMs तदा ज्ञेया को रिसु्येयदा चिका कोरिजन््रह्नतं पाप दृष्टा ओरोपुरुषोत्तमम्‌ | मदावेशास्यां मुञ्चन्ति ald Bat महोदधौ महाच्ये्टो, कौर्म we गरः शषौ चैव प्राजापत्यगते Tat | पौणमासौ गरो saat महाच्ये्ठौति सा Gat मद ज्येष्ठां यो गच्छत्‌ चेच भ्रौ पुरुषोत्तमम्‌ | ब्रजेत्‌ पदानि यावन्ति कतुतुख्यानि तानि तु qa war दरेर्घान्नि nar ओरौ पुरूषोत्तमम्‌ | विश्रम्य विधिवत्‌ arama vfaalay वे क्रमात्‌ प्राजापत्यं रो हिणणीनचचं | प्रकारान्तरं तु फलाल्यतान्नाद्वियते। श्रयं योगो गङ्खयामपि | तया AG AIA ठु यः Wad पुरुषः युरूषोत्तमम्‌ |

ऋलसार्‌ः।

विष्णलोकमवाप्नोति ate गङ्गाम्वमन्ननात्‌ विच्रारष्णचतुदं गौ, पुष्करपुराणः-

कार्तिके भोमवारे तु यदा हृष्णचतुरट्गो |

तस्यामाराधितः स्याणएनेयेत्‌ fragt भ्रुवम्‌ |

यां काञ्चित्‌खरित प्राय aug चतुदणोम्‌

यमुनायां विगरेषेण नियतं तपेयेद्‌ यमान्‌ |

यमाय PAA Bq चान्तकाय च|

श्रौदुम्बराय cara नौलाय परमेष्ठिने |

टकोदराय विवाय चिचगप्ताय वे aa: |

एककस्य तिलेमिंश्रान. atq दय्ान्नलाज्लोन

मम्बत्सरकत पापं तत्‌चणादेव नश्यति मदाकान्तिकौ, विष्णपुराणे,-

विग्राखायां यद्‌ qayta ठतौ यकम्‌ |

तदा we”) विजानौयात्‌ क्तिकाशिरमि स्थितम्‌

afaarat यद्‌ we: प्रथमाङ्को भवेत्‌ कचित्‌ |

महतो मा तिथिज्ञेया स्तानदानेष चोत्तमा

यदा याम्यान्तु भवति तिथौ aera कचित्‌ |

तिथिः सापि argu षिभिः परिकोत्तिता

पराजापत्यं यदा we तिथौ तस्यां नराधिप

सा महाका्तिकौ प्रोक्ता देवानामपि दुलेभा॥

का ~ = | --------- ~ `

(१) चक्रं | 76

Oo} WET धरपद्धतौ

मन्दे चाकरं गुरौ वापि वारेष्ठेतेषु fae चोणष्येतानि काणि खयं प्रोक्तानि ब्रह्मणा तत्राश्चमेधिक Ge स्नातस्य भवेन्नेप दानमक्तयतां याति पिदरं तपेणं तया रोदिणौप्रतिपत्‌, श्राग्रय,- ्रनुमन्यामतौतायां प्रतिपद्रोदिण्णै wet यदा भवति संयोगः कात्तिकान्ते विगरषतः | मुहत्तेमप्यद्ोराञ यस्मिन्‌ युक्राऽपि लभ्यते रोहिणो प्रतिपचन्द्र श्रष्येदानं महाफलम्‌ | टृश्चिकस्यो यदा भानुः caret प्रजापतिः 4 घष्टिमिनिदितं qu भौमे वा यदि वा zat | तस्मिन्‌ काले नृपश्रेष्ठ कुरुक्तनाधिकं फलम्‌ | ग्रानामश्चमेधानां फल प्राप्रोत्यसप्रायम्‌ | एवं ज्ञात्वा विशेषेण गन्तव्यं पुरूषो मम्‌ atfeafafed gw स््ात्वा चेव मदोदधो | aq विधिरस्मत्‌ङतन्रतसारे द्रष्टव्यः| तचानुमतिखरूपं कटग्राखाया,- “या yal Wea सानु- मतिः योत्तरा सा राकेतिःः। राका aaafaga पोणेमासौ faut aar | अनुमतिराकाश्ब्दौ माच्छन्रद्याण्डयोः,- यस्मात्तामनुमन्यन्ते पितरो Faq: सह | तस्मादत॒मतिर्नाम प्रिमा प्रथमा Bar

Fae राजते यस्मात्पौणंमास्यां निष्ाकरः | रज्ननाद्धेव चन्द्रस्य राकेति कवयो faz: टृद्धवगिष्टः+- राका चानुमतिञ्चैव पोणेमामौोद्यं विदुः | राका संप्रणचन्द्रा BIA कलोनानुमतिः War ufags पुनस्तस्मिन्‌ सेव राकेति कौ लिता अन्यच,-- पूर्वोदिते ABSA पौणमास्यां निशाकरे | पूणिमातुमतिज्ञेया पश्चादस्तमिताकंका(९ 1 यच वस्तमियात्‌ Ga पूणेखन्दरुपागमत्‌ | युगपत्‌ सोत्तरा राका तद्‌ा भवति yfwar मरोदध्यमावास्या | ata,— amarfa faatarat सागरे aq कुचचित्‌ स्तात्वाश्वमे घावग्डयस्ञानस्य लभते फलम्‌ | तया,- सागरस्योद्‌कं Val प्रतिगण्डुषस्या | सोमपानसमं पुष्य वारिणा “eA तु तथा, मागरस्योत्तरे At खगस्य दक्षिणे | तच स्ञावा तु aay sar श्राद्धादिकाः२ क्रियाः दत्यादि | तया तचैव,- विश्राखायास्तुरौयांगरे चन्द्रे गते रवौ |

(a) पञ्चास्तमितभ। सकरा | (2) पूजादिकाः |

९०४ गदाधरप्रद्धलौ

तथा Band भानौ षड्गणं फलमश्रुते

तयेवात्र गते GA षड्गणात्‌ wn फलम्‌

मोमवारे विग्रषेण माक्तय्वफलदा BE:

तया,- तस्यां मो च्ान्तमे aa देशे श्रोपुरूषोन्तमे।

दृत्यादि |

प्रविश्य मन्दिर राम सुभद्रां सुरारण्णोम्‌(*।

HU प्वेवज्जश्चा प्रणवं प्रणम्य cafe पुरषोत्तमेऽधिको विधिः कौम zea: |

तया,-मदाज्ेष्टवां तु यत्पुण्मस्यामेव fe तत्समम्‌ |

तच शिनोवालोलच्णम्‌, टद्धवजिष्ठः,-

दृष्टचन्द्रा ममावास्यां ग्रिनो वालो प्रचचते |

एतामेव कुह मा नेष्ट चन्द्रं ASV: | तया चतुद्‌गोमिग्रा भिनोवालो प्रतिपम्मिश्र कुहः मा्छन्रह्याण्डयो :,-

afefa कोकिल्लेनोक्र य(वत्कालः समाप्यते |

AAA SHAT चेषा श्रमावास्या BE: सता

श्रद्धाद यामावास्या |

महाभारते,

त्रमाकंपातश्रवणेयुक्ता चेत्‌ पुखखमाचयोः |

agiza: विज्ञेयः atfeafafea फलम्‌

i

(२) सुरार्णिं |

कालसारः। ६०५

तस्मिन. काले तु राजेन गन्तव्यं पुरुषोत्तमम्‌ | सागरे विधिवत्‌ साला दृष्टा नारायण प्रभुम्‌ को टिजन्माज्निंत' पापं नाश्रयेत्‌ तत्‌क्षणाद्भ्रुवम्‌ खानः दान तया जगप्मक्तय्यफनलभाग्‌भवेत्‌ व्यतौोपात्तयोगः, स्कान्दः,- माघ Teas पाते वारेऽकं श्रवणं यदि | agiey: विज्ञेयः atfequae: war | feaa योगः श्रस्तोऽयंन तु राचौ षडानन, नान्यः पुश्छतमः काल योऽरदधोदयसमो भवेत्‌ तावत्‌ गजेन्ति पापानि सुवह्नि महान्त्यपि ) यावद द्धौद योऽभ्येति स्वेपापप्रणग्रनः।॥ च्रद्त्रा लङ्कितो येन प्राकृताग्यद यस्य हि ag Waa: प्राङ्करद्धौदयमिमं वुधा: श्रद्धादये and सुनिदेवगणाचिंते। पापान्धकारान््रच्यन्ते भवेयुविमला नराः agigd महापुण्य सवे गङ्गासमं जलम्‌ | यत्‌ किञ्चित्‌ कुरुते दान तदान मेर्सम्मितम्‌ | safe | पातो वबयतौपातः | विधिरस्मत्‌छृतत्रतसारे द्रष्टः | चरथ भद्राष्टमोयोगः। ग्रतानन्द सद्खन्हे,- पौषे मासि यदा विप्र प्रक्ताष्ठम्यां वुधो भवेत्‌ |

(२) सद खाकंग्र दः |

०६ गदाधरपद्धतौ

तम्यां तस्यां महापुण्या wet vata कौत्तिता तस्यां दान तया ara तपेण दिजभोजनम्‌ | मत्रौतय aa देवि दगमादखिकं भवेत्‌ महामाघोौ, वायुपुराणे Saye यदा शौ रिगसः fee चन्द्रमाः | भास्करे Bata महामाघोति सा स्मृता राजमान्तेण्ड,- quart भवन्त्यन्या: कामं नक्तच्योगतः | माघ va तु माघो स्यात्‌ मकरस्ये दिवाकरे वायवोय,- Baya पापनाभिन्येकादश ब्रह्माण्ड, पुनवैमौ देवगुरौ निग्राकरे, निगररवारेऽमरप्रज्यकेऽयवा | qa रवौ ANA टदस्यतौ, valent स्यात्‌ wa पापनाभिनो aga aay तपोऽचितं(*) डतम्‌, यत्किच्चिदस्यां किलं धमेसच्ितम्‌ | श्रनन्तपुण्छानि भवन्ति तस्य वै, स्थेयात्‌ कोच्छधिक फलं तया RUTH वा Wary यो नरः, संपूज्य aU रजनोसुपोषितः |

~ ~

(९) ऽजितं |

RATAN: | ६०७

एतेन पापं द््जन्ममिः छतम्‌ जेघ्नौ यते तस्य सदखमाण्य तत्‌ वायवोये,- कुम्भे वा यदिवा मौने फाल्गुनेकाद्भ भिता पुव्यक्तगु रसंयुक्ता मदापापप्रणभिनौ बाराड,- एकादश्यां शिते पन्ते qed ay सन्तम | तिथौ भवति ar प्रोक्ता विष्छना पापनाभिनौ तस्यामार्‌ाध्य गोविन्द्‌ जगतामीश्वर परम्‌ | SAMAR WAG नाच संशयः यश्चो पवासं gea तिथो तस्यां द्विजोत्तम | सवेपापविनिसुंको विष्णलोके महहौयते दानं यदौयते fafeq समुद्दिश्य जनादैनम्‌ | होमो वा क्रियते त्वामचयं कथितं फलम्‌ गोषिन्दद्राद्भौ | ताक्तपुराणे, - फाल्‌गनस्यामले va Fay दिवमाधिपे | जौने धनुषि योगे शोभने रविवामरे gad यदि मष्रणा गो विन्ददाद्े खता | गो विन्ददाद शः प्राय गच्छेत्‌ श्रौ पुरषोत्तमम्‌ तरतमा पथ्ये तच्चैव विष्ण॒सायुच्यमाप्रुयात्‌ ACARI ENA फलमाप्नोति मानवः

०७ गदाधरुपद्वतीी

प्रकारान्तरं ब्रह्माण्ड, awe भास्करे राजन्‌ मकरे चाङ्गिरःगनौ | दादश क्तपचस्य Gae जायते यदि गोविन्ददाद्ण्ौ नाम महापातकनाभिनोौ | तस्यां छत्व धिल्नान दृष्टा ओ्रोपुरुषोतत्तमम्‌ Ogqafafed गङ्ामवगाद्य विधानतः | चयोद ग्रमहा्येष्टवाः फलमाप्नोति मानवः Wa प्रकारदये योगतारतम्यात्‌ फलतारतम्य एतत्‌प्रकार- दयं भ्रौ पुरुषो तमत्त एव | यत्त,- यत्र कुत्र हरेः स्याने यः कुर्य्यात्‌ त्रतमौ दूरम्‌ | दति, aqaa aa कुत्रापि इति ज्ञेयं अन्यया “पञ्चतोथे(\) नरः कुर्य्यात्‌" दत्याद्यमङ्गतं स्यात्‌ | सामथ्यं उपवासः, अ्रसामथयै विथ | तयाच ताके वालबद्धातुराः कन्या येऽसमर्यां उपोषितुम्‌ | विव्यभोजन sat विष्णप्रजननतत्पराः पुनः प्रकारान्तरं विष्णधम्म,- फाल्गना मलपक्तस्य Gas दादौ यदि | Mazen नाम महापातकनाभिनो तस्यासुपोष्य विधिवत्‌ नरः alana: | ्ाप्नोत्यनुन्तमां सिद्धिं पुनरात्तिदुलेभाम्‌

(२) qaafated | (२) पच्चतौ्यौँ।

ATMA: | ट्‌ og

विष्णधमेत्तिरोक्तं तु पुरषो चमचतेच्रगमननियमः, तचानुक्त- तात्‌ | राजमात्तेण्डोक्रप्रकार त्रयेऽपि एवं वोध्ये तया च,- सयोगो दाद्‌ गोपुष्ये कुम्भमंम्ये दिवाकरे ; तया,- Sa तोग्ममयेखमालिनि निगरानायोपगृदे गरो दादश्चां विधिवत्‌ विधाय विविधां gat et: agar | पूपं प्राश्य दविव्यमच्यृतकथां wey यपो हत्यघम्‌ | दाद्श्वां विधिरेष पुख्यविगमे कायौ au: agar दाद श्वां wave प्रशिनि गरुयुते कुम्भसस्ये खरां, पूजां छला सुरारेषिधिविदितदविः प्राशयेत्‌ wage gat हं ` ने Verney विधिममुं वासुदेवस्य छतम्‌, दादश्यामेवक्घर्ययान्न fe विहितविधिद्राद गौमन्तरेणए पुरूषोत्तमब्यतिरि क्रस्थलेऽपि योग उक्तः तया च, गोविन्द- seman गङ्गायामणक्तः | मदापातकमनज्ञानि यानि पापानि ata = गोविन्ददादश्ौं प्राप्य तानिमे इर seta दूति पद्यमपुराण्णेयमन्तलिङ्गात्‌ | शिष्टाः,- पुनर्वखुवृधोपेता चे मामि भ्िताष्टमौ | तस्यां नदौषु Blea वाजपेयफलं लभेत्‌

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गद धस्पद्धतो

HART रविवारेण बुधवारेण चाष्टमो |

श्रङ्गारकदिने प्राप्रे चतूर्थो वा WENT

मोमवारे वमावास्या सय्येपवेग्रताधिका वे प्राखमाममयिक्ृन्या दित्यपुराणे,-

NEAL ऽ्यमावाम्यामश्चत्यच्छायवारिणा

स्नान प्रयागस्नानेन मम पातकनाश्रनम्‌

रय व्यतिपातयोगः |

ठदग्म्रन्‌.;-

श्रवणाय्िधनिष्टाद्रानागटेवतमस्तके |

यदयमा रविवारण वयतौपातः उच्यते नागदेवतं wae | aKa Bafa: | भगवतो पुराणे,

स्नानं दानं तथा होमं श्राद्धं देवाच्चनम्‌ तथा |

व्यतौपातेषु aay को टिमन्निहिताधिकम्‌ दुत्यादि विधिस्तत्रैव द्रष्टव्यः |

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aeufs aa दिने स्तानच्च जप एव

रहस्ग शितं प्राङ्रिद मेव दिनत्रयम्‌ |

प्रथने वाजिनो यान्ति दितोये मारयिस्तया

ठतोये सविता तेन ua तत्‌ स्यात्‌ दिनचयम्‌ एवमादि योगेष तोगविरेनियमः |

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कालसारः। re

ATATATAT योगः) सतिः, करतोयाजलं प्राय यदि मोमयुता कुहः ्ररुणोदयवेलायां सव्येयरदप्रतेः समाः तच स्तानमन््ः,- करतोये सदानौरे मरित्श्रष्टे सुविस्तरं | पुष्धान्‌ भ्रावयसे नित्यं पाप इरकरोद्धवे gars देशविग्रेषान्‌ | गङ्गायां योगः व्यामः,- अमावास्यां भवेदारों यटि श्रमिसुतस्य वै | गोसहस्रफलं दद्यात्‌ स्तानमातेए जाक्छवौ भिनौवालो कुहर्वापि यदि मोमदिने भवेत्‌ | गोमदस्तफलं दद्यात्‌ स्तानं यन्मौनिना कतम्‌ ATR SIA: | स्कान्दे, वारुणेन समायुक्ता मधद्ृष्णत्योद भौ | गङ्गायां यदि लभ्येत कोरिस्ेग्रहेः ममा |) श्रनिवारसमायुक्ता सा महावारुणौ स्मृता बरभयो गसमायुक्ता wat ग्रतभिषा यदि मदहामहेति विख्याता चिकोटिक्रुलसुद्धरेत्‌ वारणं शतभिषा | मधुः चेचमासः कुलं पुरुषः |

९९२ गदाधरपद्वतौ

Bq प्राचोनगोौडेः,- सानं कुवन्ति या aes ्रतभिषाङ्गते | सप्तजन्म wage विधवा दुर्भगा ध्रुवम्‌ चयोदण्यां ठतौयायां emery विग्रोषतः। शद्र विर॒क्षचियाः ala नाचरयुः कथञ्चन दूति प्रचेलोजारालिवाक्याभ्यां स्तौश्ूद्राणां वार्श्यादौ खानं निषिद्ध, Mui तु महादोषश्रवण्णद्‌ करण प्रत्यवायाभावाचेत्यक्तम्‌, तन्न AGUA यादृच्किकस्तानपरलत्वात्‌, केवलनचचरपरत्वाचेति सिद्धान्त Tas | रच यत्तियितच्चकारेः राचावपि aorfeaaa | दिवाराचौ गङ्गायां सन्धायाञ्च faved | BIA YY हेऽणयद्धततन्नलेः द्ति ब्रह्माण्डपुराणे | गन्धवेवाक्यद्च,- sat रातौ प्राप्रवता जलं ब्रह्यविदो जनाः गदेयन्ति जनान्‌ सर्वान्‌ वनय्छाननेपतोनपि अचाजुनस्य प्रतिवाक्यम्‌, समुद्रं हिमवत्पाश्रं नद्यामस्यां दुम॑ते। रात्रावहनि मन्ध्यायां कस्य गुप्तः परिग्रहः aaa देवनदरौ खममम्पादिनौ तथा | कथयमिच्छमि(^* तां रोद्ध नेष Way: सनातनः

जनकानि Rt ---~----~-~-~ rn = ~~~ --- a

कानलमार्‌ः | G8

अ्रनिवायेमसम्बाघधं तव वाचा WY तयम्‌ | Ue यथाकामं ge भागोौरयोजलम्‌ दूति राचिचराधिकारमसुपकरम्यादिपवेणि | मवे एव प्रभः कालः मवे द्‌ ग्रस्तया प्रभः | Hai जनप्तया UTS स्नानादौ जाङ्कवौजल्ते द्ति भविष्यपुराणे सामान्यतः प्रतिप्रसवात्‌ पाचमधिकारो। देवलः,- महानिशा तु विज्ञेया मध्यमं प्रहरदयम्‌ तस्यां स्नानं कुर्वीत काम्यनेमित्तिकादृति qq महानिगशायामपि काम्बनेमित्तिकस्नानं प्रतौयत दति लिखितं तन्न विचारचार्‌, प्राचौनाचारविरद्धं | तथादि, ufe fearcrat चेति सामान्यं वाकं काम्ययोगेऽपि प्वत्तेते | afe तद्राक्येकदेशोक्रोद्धूतजले वारुप्ादिस्तानमपि दुनिवारं यदि तु आदिपर्वोक्रसामान्यवाक्याधोगेऽपि wera ara, afe समुद्रेऽपि सवेयोगे राचौ स्नानं केन वार्येते | यच्चो- दातं स्वे एव प्रभ tafe तच सवे एव WH काल दत्यादौ खस्य खार्यं सामान्यत दृत्यादिना ata दूचितं। तथादि, मामान्यवाक्यादिग्रिव्य मवेकालस्य यदि arared, afe पिचादि- मरणकालेऽपि योगखानमनिगाय्वेम्‌ नापि तथाचारो दृश्यते यदपि महानिगरेति देवलवाक्यसुपात्तम्‌ | तच काम्यपदं काम्यत्रत- पर तु सवंकाम्यपर | नेमित्तिकपदं चन््रग्रहणादिपर | तथा- चेतदाक्यस्य व्याख्यानार्थं देवलस्येव वाक्यान्तरम्‌ |

६९४ गदाधरपड्धतौ

राङ्द शनसक्रा न्तिविवाहात्ययदद्धिषु | नद्यां स्तानादिक कुय्यनिशि काम्वत्रतेषु इति तस्मात्‌ सर्वया Tat योगखानम्‌। दिवैवयोगः शस्त दूति स्कान्दोक्तो Beha) मङ्भन्पवाक्ये तिश्युन्नेवानन्तरं वारणोयोग- carga “निमित्तानां सवशः” दत्यायुक्तेः °

्रोनोलाम्बरराजगवंभिधया ख्यातो इरेकष्एग्रनाय- प्राप्रगजातपच उदश्चद्यो याजयृकः aut: |

PATA राजग रगंदाधर सुधोस्तस्वात्मजः कौ शिको- ग्रन्थ संश्रयनागश्रकं रचितवान्‌ ओौकालसाराभिधम्‌

दति कालसारः समापनः |

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Gadadhara, Rajguru Gadadhara-paddhatau

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