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Cottection, Or Orientan “Works

PUBLISHED BY THE ASIATIO SOCIETY OF BENGAL, NEW SERIES, No, 1347.

मुग्धबोधं व्याकरणम्‌

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BY VOPADEVA 2 = With the commentary of Rama Tarkavagisha,

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71170 WITH NOTES BY

| ` SIVA NARAYAN SIROMANI | LATE PROFESSOR, SANSKRIT COLLEGE, CALCUITA, AND | AJITA NATH NYAYARATNA, , VOL. L FASO. V.

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PRINTED BY UPENDRA NATHA CHAKRAVARTI, AT THE SANSKRIT PRESS, , & Nandakumar Chawdhury’s 2nd Lane~

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AND PUBLISHED BY THE ASIATIC SOCIETY OF BENGAL, 1, PARK STREET.

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No, 1, PARK STREET, CACUTTA AND OBTAINABLE FROM THE SOCIETY'S AGENTS, Mr, BERNARD QUARITC

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HARRASSOW ITZ, ‘BOOKSELLER, LEIPZIG, GERMANY

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““BIBLIOTHECA INDICA. Sanskrit Series Advaitachint? Kaustubha, Fase. 1-3 @ /10/ each R AiterBya कोप, Vol, J, Fase. 1-5; Vol. JJ, Fave. 1-5; एन III Fase, 1-5, Vol. IV, Fase, 1-8 © /10/ each Aitereya Lochana ea ie Amurkosty, 1 i wAnu Bhighya, Fase, 2-6 @ /10/ each Agutuans Didhiti Prasarini, Fasc. 1 @ /10/ Agtasbliasriks Prajiitpiramita, Fasc. 1-6 @ /10/ Ach Atmatattaviveka, Fase. I wgvavaidyake, Fase, 1-5 @ /10/ each ys 8१80908 Kalpalats, (Sana. and Ti'etan) Vol. J, Fase. 1-10 ; Vol. 11 | Hane. 1-10 @ 1/ ०८ é 9 Bhatt, Vol. J, Fase. 1-2, Vor IH, Fasc. 1 @ /10/ each ... ibs a S'rauta Sintra, Fase. 1-3 Vol. II, Fase 1-* @ /10/ each हिक ire bla Dipika Vol. 1, Fase. 1-6; Vol. 2, Fasc. 1, @ /10 each wasangraha ... ve ao a dha Fase. 1-4 @ /10/ each... ०१६ a a dharma Purina Fasc 1-6@ /10/eatn “... Podthtearyavatara of (१९११, 1१6. 1.6 @ /19/ each ie Cantinatha Charita, Fase. 1. Shang dogans, Fasc. 1-2@ /10/ench र. ^ a ie किण of Senekrit Books and M85., Fage. 1-4 @ 2/ each ... ee Rstapaths Bréhmaga, Vol I, Fase. 1-7,° Vol II, Fasc. I-5, Vol. 11" Fase. 1-7 Vol. V, Fasc. 1-4 @ /10/ each et Ditto Vol. VI, Fasc. 1-3 @ 1/4/ each Ditto Vol. VII, Fasc, 1-5 @ /0 =. 2 Ditto Vol, 1X, Fase. 1-2 ssi GetasShasriké Prajhaparamits Part, I, Pose. 1-17 @ /10/ each Maturvarga Chintamapi, Vol. 11, 178९. 1-25; Vol. LI. Part I

Ditto Vol, LV, Faso, 7-8, @ 1/4/ ench + Ditto Vol. IV, Fase. 9.10 @ /10/ ekavartika, (English) Fasc. 1-7 @ 1/4/eack =... कि Siitra of Qankudyana, Vol. J, Fasc. 1-7; Vol 1}, Fase. 3-4 > 9०. 117, Fase. 1-43; Vol 4, Fase. 1 @ /10/ each By ण, Fasc. 1-8 @ /10/ each ... Kriyé Kaumud}, Fase 1--2@ /10/each —.. 8880049 Paddhati KAlastra Vol. 1, Fase. 1-7 @ /10/ each : Ditto Ach&rasBrah Vol. IT, Fase, 1-4 @ /10/ each... de Gobbiltya Grihys Sutra, Vol. 1. @ /10/ each - ae Vol, If. Fase, 1.2 @ 1/4/ each a ^ Ditto (Appendix) Gobhila Porisista = ,,, sed ' Ditto Gribya Sangraha i... पि ae nih Fas. Iw, ५२ la a, Fase. 1-7 @ /10/ each =... tantra, Faso 1-6 @ /12/ each ene eee *Korma Purina, Fase. 3-9 @ /10/ each ,, 1.) en Faso, 1-2 @ /10/ each [कि er ae ee adana Périjits, Fasc. 1-11 @ /10/ भनी ; S-bhigya-pradipddydta, Vol. |, Fase. 1-0; Vol. I, Fae. 1-12 Vol, LIT Faso, 1-10 @ /10/ eac ies +

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मग्धव्रोधं याकरणम्‌ |

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मुकुन्दं सच्चिदानन्दं प्रगिपरय प्रमीयते | मुगधबोधं व्याकरणं पो पक्लतये स्रया

नमो vitae’ ्रह्मादिरेवाकरहन्दवन्दित, पद्मलयेशाचिषरोजराजिते | , कन्दपदर्पान्तकपादनौरजे सन्तु प्रणामा वरदो दव्रजे

पञ्चाननं चन्द्रकला विशुद्धं नादं" दधानं प्रकतिप्रयुक्ञम्‌ 1

व्यस्तं wad खरितं सुसिहं चाष्टोदिं तं विगुणं नमि दनुजकुल- विपत्त-सुख-दुग्धायि-गभो- सदसत समाना रेजिरे यस्य arg: | मुखर-खन-खरोक्ि-ष्वान्त-विष्वंस-भानो स्तिभुवन-वुघ-वक्तःतेत.पोयुषहषटः

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* agate wager garg कतिपरयटीक्षारिणन्धः परिथिर gear: |

मुग्धबोध व्याकर गम |

तेन व्याकरणं ad कलियुग दृष्ट भवार्थी नरा- नन्नानात्तमानमान्‌ करगयां मो सुग्धवाघं मुवि | पाणिन्यादिमतावनोकबपरः Uta क्तौ तस्यैता सुधियां प्रमोदजननीँ Ztat तनोति स्वयम्‌ ! गुणवदर्गुणे नेया टाषर्तिह aaa: | मतां सूबननजा दाषः परिष्कारः सतां पुनः परेऽ पाणनोयन्नाः केचित्‌ कानापकाविडाः। एके विद्यानिवामा^ are प्नािप्तसारकः | इह खलु मकनग्ि्टेकंवाक्रतया प्राररि<तम्रन्यसमा्ि- नित्रधकौभूतामाारगदुग्ष्टदा गजनकेश्रनमस्काररूपं मङ्गनं कुव्वन्‌ frafnarg आद्रा wat ईनवघ्नाि मुकुन्दसित्यादि। ननु aa नमस्कारादभिमतसिद्धिः, Agana कादम्बश्यादाव- समाप्तः Aza गिशपानवृधादं ममाप्तथर्दि। wa, इद fagt माभूदिति कामनया शिष्टिः क्रियमाणस्य तस्याभिमतममासि प्रतिवन्धकभूतविघ्राभावः फलम्‌ अ्रसमासिमं कादम्बथारौ विघ्नस्य mga ˆ ate सद्रसरजनसाध्यं शतन साधयितु naa | ग्ि्पालवधादो तु स्वभावमिदविघ्राभावाग्मधःलं विनव समासिः। Waal तत्र नमस्कार एताम।त्‌, कायवाद्मनाभिरव तवसम्भवात्‌। wa प्रायथित्तवदिघ्रनिशथयेऽधिकार इति वायं, तकन्देडऽपि शिष्टाः nada यत इति wart अनुप- खिलारातिनृपनोनां रथ करि तुरग पदाति सेना-सेनाप्ति-समा- दरणं नस्यादिति दिक्‌

मह लाचरणम्‌ |

मदिदानन्दं “afer मया व्याकरणं प्रणोयतं इत्यन्वयः संश्वाभो चिञ्चासावानन्दशैति सच्चिदानन्दः य-सः श्रमम्‌ भावे शठ, लोपोऽस्यसोगित्यादिना अकारलोपः, पश्चात्‌ सौ 77, Bare लुपि, सन्‌ सवः (१)। चितो संज्ञाने fafa वित्‌, विशिष्ट ज्ञानम्‌ श्राङ्‌पूमे cafe data, घञ्‌, आनन्दः, ज्रनवच्छिवप्रेमा- सपद ,भूनंसुखसिति यावत्‌ | ` तथाच “सत्यं विन्नानमानन्दं ब्रह्म" दूति खुतैः। मचिटानन्दं किविग्ष्टिं? मुकुन्दं, सुक्निदटातोति डप्रन््रये मनोषाददिलासू्त्॒टसय मुङ़मारेगः। यय पि मिटा. नन्दगब्देन ईश्वरएवोच्यत, तथापि सस॒न्नणां यागयोगादयनष्ठान- दारा सुक्निदाटलक्ञापनाय सुुन्दमितिविशषणौयम्‌। यदा यवगम्रनननिदिष्यासनादिसाभ्यमुक्त at दाता भवति, भक्ता भोषटफलप्रदो भवतोति ज्ञापनायु प्रगिपत्येति caw अयोः, ard: ध्ादंनजः aaa इति aa, uaa इति नो गः प्रधानप्रणयनक्गियायाः पृव्वकालोनतवं प्रणिपातस्य daa , तदुत्तर कानौ नलं प्रणयनक्रियायाः पसं नच्यत | ब्रभिधानादेकघतवम्‌। यद्यपि निपून्मैपतघ्नलयैस्तथापि भकिगहा तिगयपूर्र्क- खापकष- बोधकव्यापारविशेषन्नापनाय प्रशब्द इति। व्याकरणमिति arE- quay, व्याक्रियन्ते yer प्रकतिप्र्ययपरि- aan सिदशब्दा श्रननात् वा, पै वानटि शुधूङ्ति शुः, पशवात्‌ fggdsrat शेम प्रमीयत इति प्रू नोजप्रापगे व्यधः,

तस्मात्‌ टे तै यक्‌ च, किलात्र णुः, प्राग्वब्रोण द्रति णः।* ननु

(१) निद्य,द्ति पाढानरम्‌।

8 मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

warts व्याकरणानि सन्ति, किमनेन saa श्राह सुखबेःध मिति मुग्धः सुन्दरो बोधो यस्मात्‌ तन्मण्धबोधं, saat प्रकरणशदधया भटितिपदपदायेन्नानं यस्मात्‌ इत्यथै; यदा मुग्धानां मूढानां बोधो ज्ञानं यस्मात्‌ तत्‌ तथाच सर्वेष! विशिषटन्नानजनकतया श्रत्युपादेयमिनि। मुग्धः सुन्दरमूदढ्योः रिति धरणिः | बुध्य बोधे घञ्‌, शुः ननु ग्रन्यक्लतां ज्ञान awa, किमननेत्याह परोप॑ललतये इति परेषामुपकतिः परोप कतिस्तस्य परोपक्ततये, उप्रकतिरुपकारः | रकता प्रहत्तिस द्रवत्‌ फलानुमन्धानं feat) यद्वा पराचासावृपलति्चेति परोपक्लतिस्तस्य, परा Ae, aay खोयपरकौयोपकाराय तधाच, रणि रोदसौं चास्य "यावत्‌ कौर्तिरनश्वरौ | तावत किनायमध्यास्त gaat dad पदमितिस्ररणात्‌ खोयोऽप्यपकारः। केचित्त चिच्चासावानन्द्ेति चिदानन्दः, पश्चात what चिदा नन्दति सचिदानन्दस्तमिति यगभे-यसं स्वोकुव्वेन्ति, यस्य क्म धारयस्य) Tang (तत्पुरुषलात्‌) हिदयोरेवेति। aa, जिनेन्द्र बुद्दिपादाः-- काला (१) ईति सूत्रे दे ब्रहनौ जातस्य ersara दूति तरिपदतत्युरषं खो छतवन्तः | ्रतएव यसप्रकरणं GARTH daa चिच्चासावानन्दश्चेति सच्चिदानन्द इति। यंदा चिच्च

(१) कालाः परिमाखिना (२।२।५)- परिच्छेद्यप्रचना gaa कालाः THe हे अहनी जातस यद्व REET. यख fe जननादू दिनेष्य गतं, द्महनात दरति Waleed दति पाणिनाय।

मङ्गलाचरणम्‌ |

१। ओं नमः शिवाय | (tei १।, नमः। १। शिवाय $|) इति नमस्कारभूतम्‌ | ‘gravee तौ चिदानन्दौ, सन्तौ चिदानन्दौ यस्मात्‌ सतं। तथा तचचन्नानं खगौदिमुखश् यस्माद्‌ भवतोति | १। श्रोमिति। विविधा चास्य शास्लस्य प्रहत्तिः उदेशो aay utter चेति | Seq उपदेशः, सटागिव-परमाल-खर्प- ब्रह्मण उपरेशः (१)। यतः, सिद्धं सिदसब्बन्यं खतं श्रोता परवत्तते शासादौ तेन वक्तव्यः समबन्धः सप्रयोजन इति सिदी- fata, भयः प्रयोजनं, सिदश अर्य तत्‌, fata सह सम्बन्धः सिदसम्बन्धस्तम्‌ aa किं केन wala fafa ' जिन्नासायां, fai प्रयोजनं शिवम्‌ यतः, प्रयोजनमनुदिश्र मन्दोऽपि प्रवत्तते। aga, सवं स्यैव हि शास्रस्य . क्मणोवापि कस्यचित्‌। यावत्‌ प्रयोजनं नोक्तं तावत्‌ तत्न Wea इति | तथाच शिवाय शिव- प्रयोजनाय श्रोह्ारप्रतिपाद्याय तस्मे परमाव्ने नमः| सिदसम्बन्धप्रकारमाह। TA बुद्धया समर्याधातरिगुङ्‌क्ते तदिवक्तया मनस्तदज्किमाहत्ति प्र॑रयति मारुतम्‌ वह्किमार्तसंयोगात्‌ ature वागिन्द्रियस्य च। “सच्छा वाग्‌जायते gad एव कथितो ध्वनिः

(१) नामकोत्तेन मिति यावत्‌, ओमितिशब्दूबह्मण ciate: | (९) किप्रयोजनम्‌, केन सह व्याकरण किस्मकारः सम्बन्ध |

- सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

AUTH ASA यदा वायु्चलति रद्दियः 1 पश्यन्तो वणरूपा वाक्‌ तत उत्पत्तिमहति मध्यमा पदरूपाध ATAU वैखरो | इति वाचामवख्थाः स्म खमध्ये तटिन्द्रियम्‌ श्रथप्र्योर्वाक्यात्‌ गुतादतुमितान्मलात्‌ | विशिष्टं खं मुखं राति frac तैव वैखरी | जायते प्रादुर्भवति तथाच भगवदाकयम्‌-- ्रोमिल्येका्तरं ब्रह्मण्व्याहरन्‌ पामनुस्मरत्निति। एतेन शंशब्दरित्यादि-वहुनं ब्रह्म॑णोत्वन्त. दशाध्यायिरूप व्याकर. गस्य MAG, शूद्राष्मनधिकारन्वञ् aaafafa | अथ aa. देशना | हतवारड जिदं खलु तालु Fal दन्ताम्तधाष्टावथ नासिका च। वण॒प्रकोष्टानधजरईदमेदानित्याद चाष्टावृपरेशंतोऽित्‌ तधाचाहः शिक्ञाकाराः-- अष्टौ सखानानि वर्णानामुरः कण्ठः facet | fame care नाधिकौष्ठच्च तालु इति किं पुनः कस्य प्रयतः (१)। wranuqurd विघ्ठतलवं तधैव | संहतलवं वर्णानामन्तः WIA उच्यते TATE! | (२)

(१) vubgrcaraga आभ्यन्तरो व्यापारविरेषः। (२) Wea रेषतस्पुषटतव शिष्टत्व संटतत्वश्च वरणानां अनश्रयल्न अभ्यनर waa उच्यते। रतेषामाभ्यन्तरतै वर्थत्त्तिप्रागभाित्वात, तथ ना

" मङ्गलाचरणम्‌ |

$ a 2 २। शब्दः। (शं। १। शब्दः zn) शब्दैमेङ्कलं स्यात्‌ इति प्रयोजनाभिपैयसम्बन्धाः |

इदमादिमङ्गलं, तथाचाह मनुः-- ओंकारघाथश्राब्टथ STAAL ब्रह्मणः YT | ae भित्वा विनिर्थातौ तेन माद्गलिकावभौ इति aa aifeqat इत्यत्राधशन्दः waar, बहुलं ब्रह्मणौति ्रह्मणन्दोऽन्तमङ्गलं MARTA तथाच, मङ्गलादौनि मङ्गलमध्यानि मङ्गलान्तानि , शास्राव्याहतंप्रसरा्यायुभ- इपाख्याटग्रोढकाणि भवन्तोति सुतैरिति | यदा श्रकारो- कारमकारप्रतिपाद्याय ब्रह्मवि्माशिवामकायै नमः, fara कल्याणाय | एकै. तु उभयोरुपासकव्ात्‌ उभयनमस्कारः, श्रथ वा सूत्रतद्योनिलिघ्रसिदये इत्या * ननु प्रक्तिप्रत्ययपरि- कल्पनया ayes ` प्रतिन्नायामनेन कः साधुशब्दो ्युत्पादित इति शङ्कां निरखब्राह इतोति। इतिशब्दः प्रक्रान्त परामर्भी। तथाहि at नमः भिवायेति नमस्कारसब्म्‌ | २। शं शब्दे; | किमर्थमेतयोरुपरेणः ? fara faraway

WMA प्रयल्तप्ररितो वायुः प्राणो नाम ऊमाकरामचुरः्र्टतोनि स्थानान्या- हन्ति, ततो वणं तद्भिव्यञ्चकध्वनेव्वा उत्पत्तिः, ततोत्प्तेः प्रागृयदा जिह्नामो- पापरमघ्यमूना नि तत्तदणोत्यत्तिखयानं ताल्वादि सम्यक्‌ wafer तदा स्पष्टता. एष्‌ यदृ स्यशन्नि तदा रैपतृष्ष्टता, समोपावस्यानमात्रे शंहतता, दूरत वितता | अतर्व दूचयशानां तालव्यतवाविशर्षोप तालुख्नेन सह जिह्वामरारोनां चप्रगोज्खारणे VAY सम्यक स्पशे., यकारे O17 खः, शकारोकारयोः समीप gchar iaicha avait धिनो।

AMAT व्याकरणम्‌ |

श्रोतं खोता प्रव्तते। शाखादौ तेन aaa: सम्बधः सप्रयोजन दति। तथा सिदसाष्वसमभिव्याहारात्‌ fas; श्राध्यायोप- युज्यते इति हेतुलन। ननु नित्यानां द्णीनां साध्यलभेव कुतः इति aq सत्यं, तेषां व्यञ्चकवायोजन्धत्वमादाय साध्यल- व्यवहारो ननु वर्णानामिति | शब्दे; शमिति, शब्दः परम्रया काव्यरचनादिदहारा रेडिकं, यागयोगायनुष्ठानदारा पारलौकिकं खगमोचचरूपं Ferry भवतोत्यधे; इत्यादि, इतिशब्दः प्ररान्तपरामर्भो। शं श्दरिति वाकन प्रयोजनाभिपेयसम्बन्धाः, प्रयोजनं कल्याणम्‌, श्रभिघेया वच्यमाणसाधुशब्दाः, सम्बन्धो जन्य- जनकभावः, प्रदर्भिना इति fe) wa साधुशब्दब्यत्पादनाय area करिष्यमाणः परामृशति | साध्वसाधुशब्दान्‌ प्रतयेकमुल्िख्य साध्वसाधुशब्दपरिज्ञानं युगसहसेणाप्यश कय, शब्दानामनन्तलात्‌ | aaa बहुतरविगेषावच्छत्रसंग्राहिकंकंका संज्ञा विधेया व्यव- SUI | तथाच, Gat परिभाषा पिधिनियम एव च। अतिदेशोऽधिकार शच षड़्‌ विधं सूचरलक्तणम्‌ TAA | VACUA BUG AIGA: SH, Bat wa इक्‌ इत्यादि | परितो व्याएता भाषा परिभाषा | सा दिविधा न्यायमूला ज्ञापकसिद्धा ai यथा शिवेहौत्यादौ स्थानिवदादेश इति न्यायात्‌ ्रादिष्टाङि अवणं- लोपः रान्नी इत्यत्र सदानोऽङ्ञोप इति नित्यमकारलोपः, श्राटो- पोरित्यत्र निरनुबन्धस्य ग्रहणेन सानुबन्धस्य ग्रहणमिति ज्ञापनात्‌ विधानं विधिरप्रा्िप्रापकः, कचित्‌ वर्णत्पादनरूपः क्रचिदभावरूपः, तस्येव भेदौ' नाशनिषेधौ, कचिदादेशरूपच्च यथा

संन्ना। | स्यायन्ताधिकारः। सब्धयध्यायः | अथ संन्ना।

31 अङ्उङ्लक, TNS, हयवरल, TUATA भटधधम, जः TUT, वफडढथ, चटतकप, We साद्यत्ताव्याः | ( ्र-म।१॥, श्रादयत्ताख्याः ein) |

एषां मध्ये ये वगाम्त श्रादिवणाक्नवणममाडारमज्नाः खः |

रामाणां, गिवायोन्नमः, अनन्तः, मुरारिरित्यादौ नुमाि fafa: सामान्यप्रा्क्रायेस्य* विशेषावधारप्‌ नियमः, यष हतहा इत्यादौ नियमः | were अदतारो पणम तिदेशः यथा भव्यं भाव्यमिलादौ श्रचेलातिदेश्वादयः। yaa खितसख दस्य परसूबोपखितिरधिन्रारः, यथा सद गे घं इत्यतः सह शब्द्‌ [दिशेचोरिव्यादावनुहत्तिः। उक्तयोः (१) कथं सूत्रतं- अल्याक्रमसन्दिग्धं सारवद्िखतोमुखम्‌ | अस्तोभमनवद्यच्च सूत्रं सूत्रविदोविदु रिति (2) द्भनात्‌ |

कका ye

NR MRC इश उश ऋष्व लख्श्चतेग्रदूडउ लुपप्रोः

(१) ओं नमः शिवाय शंशब्द्‌रियनयोः।

(२) qarachafa—serat संज्तिप्रवणविन्छासबध्यम्‌ कन्दं ददमेतदन्यहेति बरङिभेदाजनक्म्‌ | सारवत्‌ निष्कष्टाथयुक्तम। विश्वतो ब्र wT प्रत्तम्‌, अस्तोभ निरथकशम्द्‌च्जितम्‌ | aaj असोलर्त्वा दोषमून्यम्‌ |

© quay च्धनार् ठ्‌

द, तेभ्यः कितं करोति, श्रद्रउचऋषकप TS इत्यत ककारं विनाश्द्रउ SMATTE HT: TW LAA stad करोनि, एवं ङकारं विना HES STM wa. मन्या तीभ्यः ओरी इत्येताभ्यां चितं करोति, तधा fart saad अ्रुठत्तिरिल्यधः (१) | चतवारि etfs, waar एकदत

कङड्चां चावयवत्वे '२) हादिवदिच्वंन स्यात्‌ | एषामर्मन्िव्रा-

जो अन्त द्त्यादिना चादिपाढात्‌ (३)। हश्च यथ व्च इत्यादि

a: हादिसान्ता Gaara: अन्तश्च WATT श्रन्तौ ताभ्यां सह आदि; saat राजदन्तादिल्लादादिशब्दस्य पूव्मैनिपातः भाकपा्िवादिलामष्यपदलंः, , श्रायन्तौ आख्या येषां ते aT न्ताख्याः (४) | एषां मध्य इति, एषां अकारादिसकारान्तानां स्य धान्‌ वैणीनपेच्य य'आंदि स्तेन सह "यान्‌ वणौ नपेच्य योऽन्त- aed योऽवयवश्च तेषां daa: (५) | अतएवोक्तं समादार-

(१) दग्धं परपदे सभ्बेधां qaratat अनुद्त्तावपि यन्धप्रयोगादुसारेण तत्ततधन्ना बेट्तद्याः। तैन च्यर्‌ दूक दृन्याट्िवित्‌ उक इन्याटोनामप्रयुक्गत्वादना- देयत्वभिति। wag: “अक्‌ tarfedar यथायोग्यप्रयोजनसदिश्य योज्या" afa ar-fa |

(२) दइन्दममासावयवत्वे afa |

(२) arfefafafcfa वच्छयमागद्तरे चादिगयो अचां पाठादित्य्ैः।

(४) a@feaferaa ae अन्तखङूपोऽन्तस्ितो यो वर्णस्तमाटाय सन्ना भवेत्‌ | यथा अक्‌ Wea: | करचिञ्ध अन्ताव्रयव-खङूप्वणंमाटयेष्टृचैः। यथा BTCA |

५) अन्तश्च अन्तश्च अन्तावित्येकगेषे wharrmaea seat दूतो aut अन्येन इन्दसमासारयवोभूतवणां wy cana: | "एषामिति अभेदसभ्बन्वे

Gat | ११

Bl इत्‌ AAI ( दत्‌ ।१।, कते ।४। ) कस्मैचित्‌ aA वशः cae: स्यात्‌ तस्य- हसं WAT

RATA | यथु अचि asa dwar: SATCU, |

~~ -~-~ ----- "~~ --- ~~ ~ - = ~-- --- eee ~ ~ [व यी हि 7 ` ' 7 -

संज्ञाः स्यः, सम्यकूप्रकारेण ्राहरणविधायिकाः(१) संन्नास्तेषां भव- aaa | aaa यदि सर्वेषामादिवर्णेन सदह मरव्वेषामन्तः सकारः सर्वेषां संज्ञा भविष्यति तदा सन्धीन्‌ वर्णातुिख्य एका- ALIA AAT Bl नतु TATRA दति (२)) प्रत्याहार हि-श्रक्‌ च्‌ श्रव भ्रम्‌ WT इक्‌ इडः इच्‌ इन्‌ (उक्‌) (2) ऋक्‌ एङ्‌ एच्‌ एद्‌ एच्‌ हल्‌ व्‌ ह्‌ थन्‌ यम्‌ यप्‌ वम्‌ जम्‌ जप्‌ जम्‌ णड णम्‌ णप्‌ भाम्‌ भव भाप्‌ भम्‌ ठम्‌ ज्‌ GT खप्‌ खम्‌ छत्‌ चक्‌ चप्‌ शम्‌। एते aarfing शब्दाः प्रत्याहाराः

cet | छते इति निमित्ता व्य, एति गच्छतीति इत्‌! .कस्मेचिदित्यादि | कस्यचित्‌ कायस्य हैतोरुचायमाण उपदिश्य

षष्टो, मध्ये द्येक रान्ताव्ययशद्धोऽधिकरणमात्रवाचो anaea ये वणां दूति | का-सि | “मध्यगब्द सेह मध्यावयववाचित्वे यकारसकारयोः ine खादिति दर्गारासः

(१) सम्यक wate म्रन्धोपयोगितेनेयधः। याहरणम्‌- मेलनम्‌ |

(२) वच्छमाणफभोत्यटिवद्‌ येन केनचिरेकाक्षरेणेकां सन्नामकरिष्य- दिव्यः | “रिति बह्धषचननिहूशात संन्नानां नानात्वं न्नापरितिसमिति' | ar-fa |

(३) आचायंप्रयुक्गाः संन्नाश्तवारिथत्‌। anata तु प्ररमतमतुर्य खक्लतटीकायां उक्र दूति घन्नायाः प्रयुक्गावा््ापि उक बच्चा ङतेति।

१२ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

La) ५। बत्‌ ATL ( ies, वत्‌ ।९1, TATU) | अश्राश्ररे दति tad क्रमेण सविश्वसज्नं स्यात्‌ | वत्‌ शब्दात्‌ दरईैद्रे द्रव्यादिषु च। खणएन्‌ नास्ि।'

मानो at sais स्यात्‌। तथाच ब्राचार्यर्यत्‌ यत्‌ काय afeda यद्दुपदिष्टं तत्तत्‌ प्रयोजनमुदिश्यैव इत्‌ dst क्षता | तेषां तु प्रयोगकाले अनवस्थानं श्रन्वथमंन्नाबनादि्याह तस्ये व्यादि | तस्य इतूमं्नकवणखय काये काथकाले ATA: अप्रयोग cara: | ननु wa इडः एर्जित्यादौ यथा प्रत्याहाराथसुपरटेशः aga, am कथं नाकारादोनरामिति qa, आदिशब्दस्यावय- वाथैलात्‌। Fara स्वरपावयवाधे इति। save प्रयोगकाने अनवस्थानं data यथत्यादि अचि अकारादिः नववणेमात्रघटितप्रल्याहारे «ASAT अक्‌र्ड्‌एजित्य दिसंन्ना- WAAR SOT | एवं दक्ष अकारस्य प्रयोजनान्तराभावात्‌ उच्चारणप्र्राजनकलमव।

ul इति agamrafed qauia दं, वत्‌भब्दः wea, Way लुपपरीकं दं, स्वश्र धथ श्च तत्‌ नन्वक- वर्णस्य dttad fata, wana चरिताघलवात्‌। यथा प्रादे- गिनिव्यमंन्नाव्रयं तश्राचापौति वाचं, इह फलभदाभावात्‌, Aa तु गिनिव्यानां फलभेदेनावश्यविभ्रेयत्वमिति | नापि तिवणाौकसकसंन्ना वाचा, एकात्तरेणेव चरिताधेलात्‌ गौरवाच्च, यतो मात्रालाघवे-

नाचाथा; yaad मन्यन्ते इति स्मरणात्‌ तस्मात्‌ संन्नात्रथेण

GOT | १२ संत्नित्रयमुपखाप्यते। aay Te HAT AARC तस्य waist, यदा दिक्षणोश्चरिताकारस्तदा तख घ्ना; यदा बहत्तणोच्चरिताकारस्तदा तस्य, प्रस्ना, AANA एक- हिचणीश्चरितलं विना बहुचणोचचरितलवासश्यवात्‌। तथाचाहुः शिक्षाकाराः |

एकमात्रो भवेत्‌ Ser fearat ay उच्यते |

तिमाच्रसत प्रुतो ज्ञेयो aad चादेमाततकमिति

अत्र त्रिमात्रपटं agarose) एफ तु अश्च आच

ma सौत्रलात्‌ सन्धिः बहलं ब्रह्मणोत्यङ्गः, तथाच छन्दोवत्‌ सूत्राणि भवन्तोति भाष्यमिवयाहुः धदिति आग्रब्टसमभिव्याहा- रात्‌ ्रचल्वैकमातल्दिमात्रत्वहमात्रलध््ंण AER wae तेनड ईदू दति, ्रादिनाउक उश % ऋरे TF रह ३। (९) way waaay wand anata खणएज्‌ नास्तोति ब्युत्वभेणान्वय सेन'एणर्रो्ो३ रेरेरभरोभर इति। भ्रनच्‌ल्वात्‌ (२) प्रतच्य प्रच्य इत्यादौ खल्वाभावात्‌ सखस्य तन्‌ पितोति तन्‌ स्यात्‌|

(१) “केचित्त खवरियेकपट्‌ं मत्वा द्र xy इूवयाटोनां संज्नानयं सिं wate, तन्ते कथमसिद्खोपमानत्वं सङ्गन्छते अष्टतयत्‌ दधि ved दति प्रयोगे qeeraae यथा खादुत्वम्‌ अर्धतो दधिभोजनहारा सिद्धति तथात्र कल्मन। दिव्याः | का-सि।

(२) इयो्वयञ्जनयो दाभ्यामङ्गमाबराभ्यां यद्योकमात्रा भगेत्‌ तदा प्तच्छेव्यादौ एकमातलश्च Waar we aq fuatfa कठं तन्‌ खाटिव्याशङ्भया अनचत्वात्‌ व्यञ्चनानामज्ञभिच्रत्वात्‌ अचा मेव हु खदोर्घप्न तस प्ाविधानादित्बधैः|

१६ मुगबोधं व्याकरणम्‌ |

६। अपोऽक्‌ समोगं खक्‌ ( जपः १।, भर्‌ eh, समः १।, णः १।, WAM, ।९। | समानो जपोऽक्‌ परस्परं THT: स्यात्‌, WH साम्य- न्वेकस्थानत्म्‌ | रचयं एद GUN A Sl: कर्ाः। द्वयं TH TW TMT TT यास्ालब्याः। ऋतयं TSS TUT MM Axa | Gad ATS BA A AT Al Seat: | SIG TW AWA A At Wl ABI: | एषां मध्ये यो येन समः तमा तत्र Aa: |

जपः। जपः्टक्‌ः(१) प्रत्याहाराः | जपाकौः पथक्‌ दकर- णात्‌ अप्‌ अपेनेव ्रक्‌ Wada Gnas कुश्मक्रार इत्यादौ सह गं घः। MATSHITA, स्धानवेषम्यात्‌ पग्टकोविधानं, तन होतृकार LAN! खकारेण सह ऋकारस्य घेः साम्यमिति समस्य भावः साग्यं ब्राह्मणादिलात्‌ wi: | एकसखानत्मिति एक- स्थानोचरितत्वमित्यधंः। एः प्रत्याहारः uae A = डति करटाः AW भवाः, शरोरावयवाद्‌ दति यः, एवमन्यचर। उभयत पाठात्‌ एर AWAY, TM AWGN, वकारो दन््यौष्ठयः। नच अत्रयम्‌ THAT; (२) HUET इत्यादि वायं, अन्यान्याश्य-

5 = -_—_—_ ee ~~~ - - ------ ate -*-~-_-~~~-~~ * tee -- == ~ --~ «

1) जप + Pit wa: | (२) कव दति कृशब्दाज्जलसि Quy

सत्रा | १५ दोषात्‌ (१)। सवणं इति परे एषामिति एषां ्रश्रा ग्र एं Hanes दयादिवरगानां मध्ये येन वर्णेन समो Tata सामान्येन विधानेन AA ्रारेशः.स्यात्‌ नतसमादेणः। यथा Wait yan इत्यादि | ततेति परप, पूयस्य परनिमित्तकसामान्यादेधे ulate सम आदेशः | यधा शान्तः श्रित इत्यादि | तत दति पौ, प्रय पू्जनिमित्तकसामान्यादेगे पूष्ववणेस्य सम श्रादेशः | यथा वागृघरिः ब्रजभसोरित्यादि। अनियमे प्राप्ते वचनम्‌ अत्र aefa—

aa प्रान्तं यदिधयं दन्तं" cared हि तत्‌ |

ala यत्‌ तस योगी स्यात्‌ प्यन्तं यस्मात्‌ परन्तु तत्‌

यस्य खाने भवेत्‌ कायं तैत्‌ चन्तं समुदाहृतम्‌ |

पयन्तं गम्ये परे वाये यस्िन्नुपपदै हि तत्‌

कचिद्यमत्ययतो (२) न्नेयमिदं प्ाणिनिसखतम्‌

यथा--रुहये धै इत्यादि, बरे लतो त्रिमित्यादि, acre

रित्यादि, तआरआदिगेचोरिलादि, . जसशसोः गिरिल्यादि, at safe ut तु qaranad waufafa (११९ ) (2) प्रयन्नसाम्ये। प्रयत्रास॒-

= = = we ~+ -- ~~ ~ ~ = —-- =

(QQ) सच दोषः खमप्रहसपिक्त-महसापेल-प्रहकत्वद््पः। तथाच वर्णानां waren कर्तव्ये F द्युक्तो सभ णाचन्तानमेकस्थानलन्नानमपेक्तते, एकस्थानत- प्ानमपि सुषलन्नानमपर ते इत्यन्यो्छाच्रयरोषापर्तेरित्ययेः।

।२) व्यत्ययस्तु Fras: लञोऽईइणौ रे इत्यदौ बोध्यः |

(३) ताल्लारिस्या नमाग्यन्तरमरयत्रश्े्ेत दूयं यस येन तल्यं तन्मयः सवण सन्नं खादिति xia |

१९ मुग्धबोध व्याकरण |

0 © | चपोदिताकानिता गाः | (azar i, उदिता),

- ¢ अका भ्रनिता २। णः Ul) उकारेता aaa इद्रहितेनाक। णौ छते |

आम्थन्तरोणाश्चलारः Bearer ईरिताः। वाद्या विवारसंवारौ खासो नादश्च घोषतः॥ अ्रघोषश्चाल्यप्राणख महाप्राणोऽष्ट ते मता FATT: | अस्मन्मते तु ्ास्यसाम्येनेव fas: | © | चपादिता। उत्‌ इत्‌ यस्य उदित्‌ तेन, चप्‌ प्रत्याहारः चटतकपद्रति तैन, उदितति चपैत्यस्य विशेषणं, नास्ति इत्‌ यस्य सोऽनित्‌ तैन, ्रकेत्यस्य विशोषणम्‌ | aaa az कपा एतं यदा उदितः स्थुः तदा. णं हन्ति, एवं श्रक्‌, TITIES

[9 ^ fi © एते यदा इद्रहितास्तदा णं खह्नन्ति इत्यथः (१) |

(१) “aq aera विगेषपरत्वात्‌ कार्यानरासम्पाटकोभूतोरिञ्चपः समानव्णप्राहकतवं, तन मघोनस्तुड.वत्यल् aS: समानवण्णीयाहकत्वम्‌, Wal- कारस्य कार्य।लरमभ्पाद्करत्वात्‌, काययान्तरन्तु एतत्कायातिरिक्रकायं बिदचो- वेनसि | ewarfafa ava कास्यसखद्धप्द्‌ह्ताकः समानषणायाह- कल्यं wet teal Pays जयनपोऽभेश्रादित्वाद्‌ स्यादिषु प्ररभितम्‌। HAA CAAA काप्यनाशारक TAA LATM ATH CATR ATR fasarfagaginag केचित्तु टभोयाग््िष्य न्ञापक्रत्वेन प्रत्ययादेशयोः समानवमाग्राहक्रत्वः नास्ताति व्याख्याय मघोन इन्यत getty समानवणांपाह- क्य्भियचुः। तन्न युकं fe: भिः दु द्रव्येतयोज्टोः समानवणापाहकत्वा- पत्तेः, तत्रेव ईइ दृत्यकशन्नाक्रन्तकाग्यस्वद््प्य दसेकारप्रयोगेणाप्राप्रत्- सिति ्नापकमग्‌विषयमव, अतएव तेषां मते सतुचभिरिव्याटौ दोषः किन्तु मघोन दत्व गत्यभाव varia सिति | "का-सि|

संज्ञा १७

| इडोऽगलेडः शुः ( इडः ६५ अर भरल एड

bal, णुः १५, ) TS! साने We WA US एते गसंज्नाः यः

= -------------

~ Cl इङः | Flt Wey एड तत्‌, एङ प्रलाहारः, यदा naa दं, एषां यो येन सम दूति नियमात्‌ इदुनोरपि एकार start भवतः तु ऋकारस्य लकारस्य qi ऋकारे तरयोऽज्‌भागाः सन्ति तक्मध्यवर्तौ तुरौयो रेफ इति (१) इकारो- कारभागस्वेऽपि (२) TTT (2) Ata शसं; तु TAT ; एवं खकारेऽपि (४) | इङ दति षौ निद शात्‌ एङ एव एङ, यधा प्रजते परोखति इत्यादौ णुः "गुण इति परे

-----़ = - - ~ -- -- - --- -—

(१) अद्यायमाशयः “STH रपरः (3: ६। अण ।१८२रपर्‌ः 9)) दरति पाणनि- सनम्‌ | BATS स्थाने अण अधात्‌ ye saa त्रयो वणां रपरा भवनि। रदति रलयोः सन्ना | Wala छकारोऽपि VBA | तेन BONA AT, इर, उर UA | | US स्याने aa_|rigin Bary: |

(२) यद्यपि wert दर, St द्यप भवतस्लथापि |

(१) गुणसं्ता्मे दूति शेषः,

(४) लयोऽजभागाः सन्तोत्यनेनान्वयः। तवर इल्‌, उन्‌ इद्येतयोरप्रयोगार्‌ waa गुणसंज्ञः | अतएव कातकोयशिद्धानेन शकार तयोऽज्ञभागाः द्रव्यादि एवं कारेऽपीत्नं TRAUMA ATTY A “तकंवागौशस्तु पाणिन्यादिमतमव- लम्बा हे aay Wey, “स वत्र णुविधायकष्ते इडः प्राप्राथमियं संनता, तेन Wes इत्यत्र ware: mfg: आद्गिचोरित्यनेन इको गेभौरित्यनेन wee ुविधानेनेव इडः प्राप्रौ अनर Ke उपादानं व्यर्थमिति वेद्र,-खमौजरुषिरिति- वत्‌, उदेष्छविधेयभावान्वयात पदेन aes इत्य्ोपस्थितत्वात्‌ अन्न परेन इडःस्यानकततेव्यारलेडः वाच्यमिति त॒ केवलारलेडः | अतः कार्येण कागुपस्वाणते, तेन व्रजवदेतिष््े त्रिपरटेन काथ खद््पाजपस्थाप्यते, अच चरानेज्‌ द्यत्र अचग्रहणारि 'चुक्रम्‌ | "दै षत्वादििणंएकारयोरेकारः उवण-

Qc AAA व्याकरणम्‌ |

अच आरालेज्‌ त्रिः (श्रवः €, भ्रा भार्‌

area एच्‌ ivi, तरिः १। ) | एतं तिम॑त्नाः ख्यः | ; €^ 0 ^ सूः १० प्रपरापसंन्यगनुनिदुव्यधिसूत्यरिप्रयस्म, लप्यपाङ गिः (प्र-्राङ।१॥, गिः er) | एते विंशतिगिमज्ञाः & | aaqratat aat, नानिक्रमेऽनिः, पधो गतौ |

पपिः पटाध-सम्भाव्य-गदहान्‌ज्गा-ससुचयं

| -~---- = = mere

€l अचः। आश्र शर्‌ श्रान्‌ एेच तत्‌, एच्‌ प्रल्ा- हारः, aaa सान्तविधेरनिल्नलादहा Tee: ; TI पूव्व- वत्‌ हदिरिति ue.

go] प्रपरा। प्रथ परा 7 aq0g ay, faq अवथ Waa निश्च ea faa अधिश सुख se परिथ ufaa श्रभिश्च अतिश्व अपश्य sag mead विंशतिरिति खरूपकथनम्‌ |

Saute | Wawel खतो पूजार्थो गौ, यथा स्तुते, श्रतिगतुते। अतिक्रमे afas गिः, फलोदयेऽपि क्रियाप्रहत्तिरति- क्रमः afaq, यथा afafeafa थालीनिव्यादि। गतौ card गो, यधा परिषेधति अ्रधिसेधति द्रव्यादि | याभ्यां पयधिभ्यां योगे waaay: aaa जदाति, गत्यघघुममभिव्यादतौ पयधौ

ee a

HRCHMUAT: | aatsafqet acat रलयोः समन्वात्‌ RAW कटषण- वणयोः खाताम्‌, ससुटायसाम्याभवे आंशिकस।स्यखापि granite’ fa- Zureig |

Wat | १९

दूवयं, (१) तथाच श्रधिपरौ श्रनरधेकाविति परे fa: पदार्थे त्यादि | agree सम्भाव्यय nel अतुन्ना समुदचयश्च तत्‌ तिन्‌, भ्रप्रयुज्यमानपदस्यायेः पदाथस्तस्िन्‌, यथा सर्पिषोऽपि स्यात्‌, ayatsfa ख्यात्‌, विन्दुपदस्यार्थं श्रपिशब्दः (२) | Tae: सश्रावनं योग्यतेति यावत्‌, यथा ्रपि सिञ्धेनूलसदस्म्‌ | गरहा निन्दा," यथा अपि qaiq हषनम्‌, aft feaq carey ब्राह्यणकः | श्रनुज्ञा प्राकाम्यं, यश्रा अपि मिच्च त्रपि सतुहि यथेष्टं कुरु इत्यः | समुच्चयः परस्यरसू्ेषः, यथा अपि मिच्च aha तुहि, उभयं कुरु इयथः, सतयैत्र.षलाभावः फलम्‌ STATA करणात्‌ Haga, गौणातुकरणयोरिति निषिधात्‌ नतु चादिगिनिरित्यतः प्राक्‌ friar fact कथमिङति चेव, धुम॑न्नायाः प्राक्‌ गिसंन्नाविधानंधीोः प्राइनियतेप्रयोगापर, तेन प्रह नयति प्रणाग्रकः, प्रक्ष्टमेजते प्रेजकः इत्यादौ Taya स्तः, तु प्रगतो नायकः, प्रनायकः, प्रगत एजकः प्रेजकः इत्यादो ^), gant व्यस्येति सत्वाभावात्‌ | कथं तस्य व्यलमिति, चादि

पाठात्‌ (४) नन्‌ प्रजयति अभ्यागच्छति प्रतिर्ते Foret

(१) अतए उपसगथय alana तु वाचकत्व मव्युक्तम्‌ |

(२) अनर यप्रनुज्छमानविन्द पदस्याथ afaaa दूति का-सि। पटार्भोल्यत्व अपि सिञ्चति aa सिद्धी इति दुर्गादाषः।

(३) प्रनायक Taal प्रारीनामध्याहृतगतिक्रियां र्युपसगत्व नतु नयनादि- क्रियां प्रतोति। अतणव प्रभतोऽध्वानं प्राध्व द्यत गेरध्वन दत्यप्र्ययः।

(४) gaat विररेषणभावापन्ने सतोः, वयसे ति-व्यखम्यज्ञकारति नेय, सत्वाभावात्‌-समासलवाभावरात्‌ त्वगुते इति पूवं णान्वयः | धातुप्रकरण-घटित- ल्य विधेः पूरं व्यखम्यतकार्योत समासविधानात्‌ समासाभावे यतं नखारिति-

२४ Aaa व्याकरण

११। भ्वादिधः (्वादिः a, घुः १।) |

भू-सत्तायामिल्यादिगणो Yas: स्यात्‌ |

क~ = -~--- -- - --- -----~-~-~ - ae awe ees eee eee eee

£ £ 9 AW प्रकर्षाभिमुख्यसामोप्यगमनं ita कल्यते, तदन्वयव्यरिरेकानु- विधानादिति(१) चेत्‌ न, वधार्थराधां चमामृषामिति feast

~ ¢ 9 ¢ © धोरेवामेकाथत्वकल्यनात्‌, प्रत्ययानां प्रज्त्यघन्वितस्वाटबोधक- ara (२) अतएव गर्यो तकलवं, वाचकलं, द्योतकत्वं fe सामान्यशब्दानां विगरेषतात्पश्य ग्राहकत्वम्‌ प्रतिष्ठते इत्यत्रापि विरोधिलचण्या धोर्ममनोपस्यितितात्पथ्मंगराहकलत्वमिति | तथाचोक्तं कामधेनौ ^क्रियावचतरमा्यातुं प्रसिद्धेः प्रदर्थितः | manasa मन्तव्या श्रनेकार्था fe धातवः| तथाच भदौ सहस्र भोऽसौ WIAA, भ्रकरोदिन्यथः

११। भ्वादिः भूरादियेस्य गणस्य सः, तद्संविक्ञान-

खचितम | नेन प्रनायक्र इत्यत्र उपसगत्वाभावात्‌ समासाभावे रत्वं नस्यात्‌ | Aan इत्यत्र खल्ुपसर्गलात्‌ गेर्षरित्यनेन णोऽपि नसत | अतएवोन्नं Samad want स्वेदा अव्ययत्व निद्कयोगे कथितं ya afcfufcaa: प्राट्यदा agar भवति age तसख्योपसगत्व, यदा a fagain तदा तदखाव्ययत्यिति | प्रनायक प्रगतो नायको AREA grat प्रादयो नोप्रसगां अपि तु तत्रतिद्छपकाः। तेन तेषां चाद्िगिण पाठात्‌ निपातत्वेऽव्ययत्वं सिद्धमिति'।

(१) अन्वयस्त तत्वे तत्मत्ता व्यतिरेकस्तटसक्त्व ATU, ततश्च प्रजयती्यादो eared प्रक्षाद्यथैः, wefa afwa तद्र्थाभाव इत्येव मन्वयव्यतिरोकाभ्यां WAIANAE TAA: |

(२) प्रजयति wart जिप्रष्टतीनां wast प्रलतित्वम्‌ तु प्रारौना म॒पसगायाभिति।

सन्ना | २१

हः पएरव्वौवाचकभूशब्दस्य पुरसंत्रां निरखब्राह भूसत्ताया- मित्यादि गणशब्दः समूहवचनः तथाच भूसत्तायामित्यादि- दथगणपठितानां त्रि्रावाचिनां घसंक्ेयथः। क्रिया तु कचित्‌ सिद, श्राकाशादेयदस्िलादिकम्‌। कचिदसिदा, तण्डलारैः पाकायाधितक्रमरूपा पूरव्वापरोभूतावयवा (१) साध्येन विवच्यते'दूति aga, यावस्मिदमसिद्धं वा साध्यतेन विवच्यते | श्राथितक्रमरूपत्वात्‌ सा क्रिथेत्यभिधोयते (2)1 यदा क्रिया waa: (१) परिखन्दनाधनसाश्चः, यधा गमनादि, wate स्पन्दनसाधनसाध्योऽपि, यथा अ्रतख्ानादिः | गरे पाठाभावात्‌ श्रलपयति वर्पयति संत्नपयति दयार yay (४)। गण्पाठात्त श्वेतते मेघः, रज्यते रविः, नोलति तमालवनं, भोणति कोकनद्‌, स्पृशति वायुः, विशेषयति अघं, | anata’ a, जानाति शिवं,

(१) पूं परोभूतौ खवयवौ gered, gatsaitsfeaad aq yar स्थालोख्यापनं, अपरावयवो जलतर्डुलदयपणम्‌। अतणएबोक्तं विलित्यतक्रुन- व्यापारः पाक “fai

(२) fey faa सत्तारिकं, असिद्धं अनिवयं तणाभावारिकरं वा, यावत्‌ यत्‌ समस्तं वसतु eda प्रयल्लादिक्रयाद्पत्वेन विवच्छते, चखाञ्चितक्रमर्पत्वात्‌ आश्रितं nie ्रमद््णं Galata: येन तत्‌ आच्ितक्रमद््पं तद भावस्तत्वात्‌ सा क्रियेव्यभिषोयते |

(३) अस-नश प्रष्टतिश्ाच्यानां सत्ताभावाटीनां पू्वापरोभावस्याभावात्‌ कर्थं क्रियात्वभिन्याशङ्पाह यदहेति | पूर्वाचायंलतगणपठितानां भ्वादौनां वाच्यैव किये निष्कर्षः |

(a) िषटप्रयोग।हुसारीदं wad ( ध।तलक्षणं ) faey एते ( अलप्यती- चाद्यः ) युक्ता द्येष।मथवत्तेव मास्लीति कौतन््-टीका |

२२ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

१२। सिद्यादिः क्तिः (सिलयादिः किः १। स्यादिस्यादिश्च fade: स्यात्‌ |

=== = --- = ~ ee = ~~~ --~--- -~ ---- --- ~ --- ~~ --~~~--- ~ ~~~

सुखमिच्छति, शतं देष्टोल्यादौ गुण -विगेष समवायादीनां क्रिया- ल्वभेषेति शब्दिकाः प्राहुः (१)। भूसत्तायाम्‌ we भुवोयुकत रिहाथैकधने waar दोषः। यद्यपि विकल्ये बा, fana वि, we अवधारणे, इत्यादौनां feared, विकल्पते दत्यादिप्रयोगात्‌, तथापि वादौनां विकल्मा्यथेयोतकलाच्र घुसंन्नति | ज-ज्विग्रतोनां सीत्राणां गणे पाठासच्ेऽपि ध्वधि- कारे पाठादेव धुसंज्ना। दगरगगा fe, म्बादादादि जुहीत्यादि- दिवादि-ख्वादयः qat: | तुदुषादी तनादि क्रौचुरादो दम an चुगदेजवन्ततादेद ya fae विकख्ितजान्तानां ञेरभाव- aq पुलार्घोऽ्र पाटः। पूव्वचाय्यंकतधातुपाठाभिप्रायेणिदं सूतितम्‌, अन्धा खकतगणकमेण शि स्तन्‌मु विषत्यादोनाम्‌ इरि्वादेव सिद्ध प्रग्विधानमनथकं स्यात्‌ | धातुरिति परे

१२। सिव्यादिः।, faa faa at सितो तावादौ यस्य a सिल्यादिः। तद्ुणसंविज्नानहः इन्दात्‌ परः भूयमाणः शब्दः प्रलेकमभिसंवन्नानोति ames uarfeanfeafa | स्यादथ एकविंशतिः त्यादयः साशोतिशरतसंख्यका वच्यन्ते | विभक्गिरिति att

ननन => ~ ¬ ---- ~ -~---~ ~“ ~~ -~ ~~~ ~ ~ ~~~ te en ter ns - ~~~ --- *--^~

(1) तति मेष genet शितप्रभ्तीनां गुखारिवावकत्वेऽपि गणपाठात्‌ धाठलमिति दर्थितम्‌ | एवं गड वट्नेकदेये, द्रव्य;पि वत्तमानख गण्डेधां तुतं,

संन्ना। ९२

१२। कदव्वान्य कदिवहष्वेकश्‌ः |. ( कदव्बानि qin, एकदिवहषु ou, एकशः ।१॥। ) aaa वचनं क्रमात्‌ क-दन्व-संननं स्यात्‌, तानि क्रमा- देत -दि बहुष्वर्थेषु प्रयुज्यन्ते

ET Le Ree re

१२। कद एकम्‌ एकम्‌ एकशः deal चशस्‌ एकशब्दस्य ससम्बनिकलत्वात्‌ (१) fa fanfare क्तरिति। रथेष्विति | अर्थशब्देन सित्यादयोररथा यन्ते | तेन रामः, wT, देषैगंम्यते खगे इत्यादौ लिधुभ्थां लिकर्वादोरेकत्दिल्रवदल- विवक्तायां कहव्वानि भवन्तोत्युथेः (1 यद्यपि कहव्बभेक दि वड- sam; इति afut fee वनिरहेणः कचित्‌, व्यभिचाराथः। तथाहि, विंशत्यादेरनाहत्तौ वे कम्‌ भिंशव्यादिपरादैपव्यन्तिभ्यो वे वां स्यादनाहत्तौ। एकोनविंशतिः शराः, विंशतिः शेल- afaai, versace: अनाहत्तौ किं, हे शते शूराणां, विंगती- घटानामित्यादि। तथाच शतैस्तमचणामनिभेषहत्तिभिरिति रघुः | तिष्यपुनव्बसुभ्यां मै चे इम्‌ तिष्य * एकः, jada दी, Vda चेव्वे दं स्यात्‌। तिष्यश्च yaaa तिष्यपुनन्वैस्‌ येते ति्याधग्रहणात्‌ पुथपुनव्वस्‌ सिदपुननसू इत्यपि fae.

गण्ड दूत्यपि सिद्धमिति wast) afe vas इति कविकस्षदरमः। यतर दरव्यनिहंशसल तच्चिष्टक्रियाविशेष उपलच्छते दूति मेत्रेयवोपरेवौ | केचित Re इति शब्द्ख व्यत्य धैमेषायं waa नत्रखान्यन प्रयोग त्याह" feta दीक्षायां दुर्गादाषः।

(1) शम्बज्िस परेचतवात्‌।

२४ quad व्याकरणम्‌ |

प॒नर्व॑सख्लोरिति किं, राधानुराधाः (१)। मै fal, तिष्ये जातः पनञ्छखोजाीतौ इति जातार्थ-त्-लुकि तिष्यश्च पुनव्वसू ते faagasraa: | चे fa, afere: एव grag येषां ते तिष्- पनव्यैसवः, ये दृष्टिदोषेण विपर्ययेण पश्चन्ति इत्यथः ववे किं, एकतवे माभूत्‌, तेन तिष्यपुनव्यैसु इति (२) wal fe इन्दो विभाषप्रैकवद्धवति saa ज्ञापकमिति जाल्यर्थादसंख्यया व्व ara | waaay aaa a a वास्यात्‌, नतु संख्यया योगे ara यवः सम्पद्रा यवाः, मौरियं ara zat इत्यादि। सम्प बानं जातिवाचिविेषणल्वात्‌ | (२) वसतुधर्मखरूपस्य योऽधेः स्यात्‌ परिचायकः | सा जानिराहतेगेम्या उपदेश्रादपि कचित्‌ श्रसंख्यया fa, एको त्रीहिः। के विं, ब्रोदियवौ भ्र्धति कि, काश्यपस्य प्रतिक्लतिः काश्यपः,(४) जालोति किं,देवदत्तो यन्नदत्तः। ले्र लैमर गम्यमाने के व्वं वा QU तं गुरः युयं गुरवः महाशयः महाशया cane अ्रविशेषणास्मदो | अविगरेषण-

wae के हेच व्व स्यात्‌ वा। श्रहंव्रवोमि वयं ब्रूमः, wat

(१) राधे विशाखे दे, AGT: सप्र चतस्रो वा, तासां ET IBAA | अन TASTER |

(१) जातिमाह्वस्तुधनरं ति |

(४) यद्यपि Mag चरणः सहेलुक्तेरस्य जातित्वमख्येव तथापि नाः जात्यभिधानं चिकीर्षितं अतएव “जात्याख्यायामेकञस्खिन्‌ बव चनमन्यतरख्या'" fafa पाणिनिः(१।२।५८)। wa खाख्यायासिति किं काष्यपप्रतिङ्तिः काश्यपः | भवत्ययं जातिशब्दो नत्वनेन जातिराख्यायते fa तहहि ! प्रतिगति रिति। काशिक्ना। |

(र

सन्ना | २५

१४। त्यन्तान्धौ दलौ (श्न्तान्यौ, gu, द-लो १॥ क्यन्तणन्दो दसंन्नः स्यात्‌, Wang लिसन्नः।

aa, वयं qa: | अ्रविगेषणेति fa, we पटुत्रवीमि | वयमप्रगन्म- मनसः इति तु विशेषण विेखभावस्व कामचारात्‌ WAT एव faraway | यदा तु wae एव fanaa तदा स्थात्‌ फलानोप्रोष्टपदम्यो भे इे। फलुनोभ्यां weary दे व्वं वा स्यात्‌ नचत्े | Ya फन्गुन्यौ पूव्वैए; Heya: ; पूवव प्रोष्ठपद पूववाः प्रोष्ठपदाः | प्रोष्ठपदाग्रब्टेन माद्रपदाश्ब्दस्यापि ग्रहणम्‌ | भकि, mega माणविके | वरप aay तु TMA: | amie: देच af frat सयात्‌ वैल्वजादेतु वा

वरषा शारा WET लाजाः सिकता डलोकसः।

बहुलाः कत्तिका आपो वसन्ते q दशा मघाः।

अविन्नाताधकाः aa यथा तव सुताः कति |

FAA वल्लजश्वासरसद्व्मसराः समा |

समाः कविभिरुक्ताः सुमनसः सुमना अपि॥

१४। wate | faced यख waar, त्वन्त Waa तो, ca faa at) कवन्तरेन लुपरक्तिकस्यापि asa, दं तसाविति ज्ञापकात्‌ लिद्गसंन्नायाः प्राक धु-क्ति-दसंन्नाविधानात्‌ y-fa- दभ्रस्य लिङ्गसंन्ना इत्यथे; (१)। तेन हन्‌धो feq अम्‌, श्रन्‌

१) अनुकरणख्यले तु धाठविभक्तयोरपि fara खात्‌, वचा ya: प्राप्रो a aa, 4 aie ar vere |

AMA BATA |

AS e Pi)

१५।. लुपि सखादयविधौ t

(लुपि 9, ।१।, सब्यादयविधौ १॥ )

afafa लोपे ad यो queen: सिन स्यात्‌, तदादास्य चयो विधिःसचनस्यात्‌। ama नस्य लुप्‌, (१) भवनोल्यादेन्‌ स्यादयृत्यत्तिय दरिडिरौ पोताम्बरः इत्यादौ समुदितस्यावय्रवस्य क्यन्तत्वऽपि समुदितस्य fader तस्यातवन्तलात्‌ अन्यणबदेन इद्ाध्रवटनयवतोग्रदे, तेन रामो AS WA प्रपर वान्दल्याद्रोनां निलमिति। चाथरवरयरे नानथेकस्येति, परिभाषया अनधवतो ग्रहण fafa वाय. परिभापावाः क्राच्कितात्‌। एष उन्यासुतो याति खपुष्पक्रनगशखरः |. HAMAR गगग्रद्गघनुदर इत्यादा तु समुदायस्य वायाप्रमिद्वावपि faa, खण्डः प्रसिदः। प्रक्‌ सग्रहणादिति at (२) दं az, लिनिङ्गम्‌ (२)।

१५। afi श्रादौ भवः श्रायः, अर्ामौ आद्येति ्रदाः,(४) रद्र ्रद्यः.(५) WMT यस्य Ata, मामान्यत्वात्‌

(१ तत्न ननित नस्य नुत्व्िघानात्‌।

(२) पाणिनीये ''अ्रधव्रदधातरप्र्ययः प्रातिपदिकम्‌ ' १।२।४५। इति प्रातिपरिकग्य प्रथमनत्तणम्‌ | “"छन्तद्धिनममासाञ्च' | | ४६ | दति हितीय aaa | तत्र समासस्य एयक्‌ GEM बन्याप्नुताद्ग्दानां प्रातिपटिक्त्य मिव्यु्म्‌ |

(२) प्रातिपदिकमिति परे।

(४) व्यादिरवणं इत्यथः |

(५) अन्न आदरिति पञ्चम्यनन, तेन ane anfgratgaa aterm: खादय saya: | अतएव भो यन दू्यादौ नाकारनोपः।

सन्ना। २७

alae, पश्चात्‌ आदय way sry are, क्लोवाकोवयोः wld ar q afata aa तस्य विधिराद्यविधिः, ततः सन्धिश्च आद्यविधिश् तौ (१) (लुजिति वर्णुनामदशनं विच्छद इति यावत्‌ | यद्यपि विण इति, भरिया एति, इह, रेवा aa, भो अव, राजभ्य, राजभिरित्यादावुक्तरूपण (2) सिध्यति तथापि सथिग्रहशं स्यादिनुपि (र) सथिन्नापकमिति। waar सन्िग्रहणात्‌ afaqaa सन्धिरिति वच्यति। शाङ्भिषु पिपन्तु इत्यादौ षत्वं स्यादेव अनव्णाभ्रितलवात्‌ |, मघवान्‌ इत्यादौ तु नो लुप्‌ फेधाविति प्रषतिनान्तस्यैव ग्रहणात्‌ ननो लुप्‌। लुपि युक्तवत्‌ fag संख्या (8) लुबिति यो qual युक्तवत्‌ प्रक्षतिवत्‌ निङ्गसख्य स्याताम्‌ ग्रङ्स्यापरत्यांनि अङ्गाम्तेषां निवाम saa

(१) सन्धिशन्दनेह सन्ध्यष्यायद्ूजविह्ितकथयभ्मिति बोध्यम, arafafa- fraq आदिथन्द्य wage सब्र लुप्रस्येतयनेनान्वयः। तेन नप्रख ओआट्वखेस्तस्य व्रिधिन स्यात्‌ aava राजम्यामित्यादौ आक्िममवीति नाकारः| एवं वञ््रमाचरे द्रति जौ टिलोपे कपि Hale वञ्त दूति fara at स्यान्तद्याराषिति tae लपि लप्रम्यादिगसात्वेन जकारस्य we दुरति FTE म्यात्‌ तेन वज cat) तथा नप्रव्य आदटिरषण्स्तत्िमित्तङ्कोऽपि पिधिन स्यात्‌ aa राजभिरित्यादौनरेम | ataq tare बहेऽमीये दत्येकारमग्य afafard तञ्विसित्तकषयाकारलोपस्यापि निपेधद्श्नेन wfagfaa yaa आटि विधेनिषेषेनेव तद्रिमित्तविघेनिषेघग्यापि प्राप्रवान्‌ मो थन cael ण्डनेऽत धति नाक्रारलोपद्ूति gaigigaaa |

(२) अआद्यविधिशिषघेन।

(२) स्वाद्यनप्रकरणोयद्त्रेण लुपौत्ययः |

(a) Sama aT लते यथा सन्याद्यविधिनिषेधस्तथा कचित्‌ afga- प्रत्ययानां लपि तदृन्तणब्धानां प्रसतिप्रक्षङ्ग पचने दातारमिति प्ररं मतमःबेटय are qaifa |

36 मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

WAS लुपि wET जनपदः | एवं पञ्चालाः YT कुरवः | लुपि किं, लवणे संस््तः, लवणाल्लुक्‌, लवणः सूपः (१)! द-मेदात्‌ | कचित्‌ dea प्रकतिवत्‌। am aafane गिरैरदूरभवानि वनानि खलतिकं वनानि (२), वरणादिल्ात्‌ (3) We लुप्‌। afafag प्रक्षतिवत्‌ यथा -हरोतक्याः फलानि, हरोतक्यः फलानि. विकारे फले सुप्‌ से व्वविषयस्योत्तरदस्मैव धुक्ञवद्ाव

दूति माषं, मथुरा पञ्चानाश्र मघुरापञ्चालाः। व्वविषयस्योत्तर-

दस्येवेति fa, पञ्चालमधर। एकस्मित्रा दयन्त वद्दयपदेशिवच्च | (४)

(१) नवणः्ञगिति eae लुकि aa नुपकर्ाभावान्नपृव्वोक्त कायंमिति।

(र) aq खसतिक्षशब्दख ted न, “कवन वचनमेव |

(३) वरणादेश्र | ,वरणारेश्वतुष्वर्थपु उत्पश्य त्यस्य नप स्यादति afga- टीकां बातुरर्थिक्प्रकरणे षच्छतोयुकर, वर षादित्वादिति।

(४) दूटानीमाद्यनरद्धायः fasta एकसिच्धिति। sag, arate सिन्‌ | १।१।२१। दूति पराखिनोयक्बून्रटोकायां तत््वगोधिन्यां “सत्यन्यस्मिन्‌ ae gat नास्तिम aife: | स्यन्यशखिन्‌ ae wl नास्ति सोऽन्तः दूति लोकें प्रसि, तदुभमयमेकख्िनच्रसद्ाये aqaafa तत्र अ्यन्तव्यपद्ि्टानि कार्याणि aacasaafaen’ दूति अद्यायमाशयः aa fear वर्णाः सन्ति aa यख्य yar नास्ति एवाद्यः, यस्य परो नास्तिस cary इति am युज्यते लोकरप्रसिद्धः। यत्न वु एक एवं वस्तत्र कथमद्यन्तव्यवद्ध)र ॒दत्याशद्धव्राह असहाये wafaa asta आद्यनवत्‌ कार्यमतिदिश्यते आरोषयते। आाद्यन- afefa आद्यनयोरितेति सप्रम्यन्ता्खग्र्ययः। चाद्मननिहैशेन यत्काय वितं तदत्रापि भविष्यतो्धः। अतप्व dtu: te सारौ eu तिडः शन्दाभ्यांषो ad लोकप्रसिदधनिरुक्राटिलच्चण्य विर हितत्वेऽपि णन्तेत्रिराद्यच दरति afg: wa | च्ाययतोति नृपो जित्यन्येति efg:) एवमन्यत्र व्यपरेशिवञ्चेति। अख्ायमथः--“वियिष्टोऽपदेशो व्यपदेशः सख्यो व्यवहारः सोऽखासतीति व्यपदेशो स॒ख्य gia यावत्‌, तेन ae सिति तच्छब्रोधिनो |

सन्ना | २९

१६ | चादिगिनिः (चादिः९।, गिः १।, निः १।) चादिगेणो गिख निसन्नः स्यात्‌।

एकस्मत्रेसहाये विषये भ्रायन्तवत्‌ का्यमतिदिश्यते, व्यपदे गिवच्च सौपः. तङः, आदिवच्वादा चो fa: | एवम्‌ श्राय- यति डत्यादावन्तवच्चात्‌ fa.) wa ऋदन्तल्लात्‌ BT एवम्‌ इः कामदेवः तस्मिन्‌ भ्रौ ्रन्तवक्वाड्डौ | व्यपदेशिवदिति, व्यपदेशस्तादरपयेण कथनं विद्यते ag ayant तद्त्‌, एव (१) यथा-एकोऽच्‌ यस्य एकाच्‌ तस्मादिन्र स्यात्‌ रवान्‌ इत्यादौ |

gel चादिः। श्रादियस्य चादिः तद्रणसंविन्नान- हेन चस्यापि निसंन्ना। चादििथा। "चं योषद्‌ वषड़ङ खधा सदह समं साकं पुथ हन्त fai at तु faq यदिवाऽथवा चण चन

(१) भिन्नान्येका्यौति eae टीकायां “समदखमानप्दार्थोऽपि अन्यपदार्थः Bla, व्यपदेश्य-व्यपदे शिवद्धावात्‌। यथा--भोभनशरोरः शिनापुन्रः, जनाहंन- चाक्मचतुधै UT ्युक्रवता ahaa व्यपदेश्य ° व्यपदेशिवद्भावो बह्धव्रो समास एतेति दशितम्‌ ; तत्र यन बद्धव्रोहो समसमानपदार्थान्यपदा्थयोरमेदावगम- war व्यपदेशिवद्धाव दरति निन्कु्टाधः।

say कार्तिकेय सिङ्धान्तेन अन्याजाद्टिरिति ख्त्रटौकायाम्‌- “कन्यपदाथ- समस्यभानपद्‌ाघयोरोकाधप्रतपाद्कत्वः gafae ब्धव्रोहिसमासख स्नाप्तिम्‌ यथा--षोभनशरोरः यिनापुव्रः, जनादटूनच्वाकच्तुध इत्यादो खवयवावयवित्व- सम्बन्धे नान्यपटार्थाभावादेकाधैप्रतिपादकलम्‌ | WATT सन्धङता कल्या णोपञ्चमा- रात्रय दूति सुख्यपूर ण्या उदाहर खानन्तरः कल्या णपञ्चमोकः पच्च इति प्रत्युराहन्य रातिः yeaa afa qaq सुश्छत्वमिनयक्तै fala |

Re सुग्धवोधरं व्याकरणम्‌ |

प्याइङ्ग हंहो नहि। किंवा वे afea कुवित्‌ पठ सुवं हाहेति. है नवा तावदाढृमलं कणेतिथमदं सत्यं हिकं वाव ₹। ननं qaqa wer नकिरा शश्वत्‌ किसु प्राडथो वैलायामुत इ' तथाहि feet war धगाहो रथो मावायां वड्हो कुदो वशमये नोचेदयि uma खाहा ere धिगाण वौषडहदावग्यं BAA चैत्‌ संवत्तश्राच WH सुम्‌ मौ WS मा किनकिम्‌ सुना। ननु जाहोखिदाहोस्ित्‌ are कचि- देतिखपि यावत्‌ शंसु न्‌ चेदेव viel यदापि हं कतै Na धार्‌ खकं नोचेत्‌ ग्यच-कि-प्रतिरूपकाः (१) wee वौषट्‌ aur खाहा अलम्‌ एतेषां waa पारः ्रव्ययोगाधः (र्‌) कञ्चित्‌ खाहा ae समं साकं सादैमलमिति सखशदौ, at sadta: शनेरिलयपि चादावाह। परि are प्रप. श्रनु श्रतिसुश्रपि श्रध प्रति उप देषां भागमथ्यीदायथैयोतकतवात्‌ gaits पाठः। गिप्रतिरूपकाः ्दत्तमवदत्तमित्यादि श्रच॒प्रतिरूपकाः TIT ऋदणएभ्रोरे श्रौ इति।, क्यन्तप्रतिरूपकाः वने af रस्ति wa ta इत्यादि | दभेदात्‌ द्रव्यहत्तिचादौनां fad, तेन पशः पुरुषः खाहा अम्नायो, तथाच खाहयेव हविरभजमिति रघुः निपातानां alana तु arama, (2) तेन रामसय

(१) wa चादयः साकल्येन परिसंखयातुमगक्याः | aga “दयन्त इति संख्यानं निपातानां विद्यते | प्रयोजनवशादते निपात्यन्ते पटे a2” इ्ति।

(२) चादयोऽसत्त्वे १।४।५७। इति एाशणिनिः। अदरव्याथाश्चाद्‌योनिपात- सन्नापपयुरिति त्तिः। लिङ्गं ख्याच्वितं दूव्यसिति तज्चबोधिनी |

(२) ‘fama जेया उपसगांच्च mea) द्योवकतुन्‌ क्रियायोगे

WaT | २१

१७। गमितोऽन्ाचोऽन्तऽन्लखादौ | ( WHA: १॥, WATT ५।, भरन्ते O1, WMT et, रादौ 3 ) 1 रित्‌ यस्योचयते. तस्यान्यादचः परः, निदन्त, feeua स्थाने, मिदारौ स्यात्‌ १८ | परस्य (परः व्यः १।

Waa: परो य. त्यसंन्नः स्यात्‌ |

wen: देवस्य aqua इतिवत्‌ रामो न, देवश्च इत्यादौ षी स्यात्‌, AA: सादृश्यादि दयो तर्कलात्‌।

१७। शमितः णम्‌ प्रत्याहारः, इति इत्‌ येषां तै मितः अन्ते भवमन्यम्‌, TAG तत्‌ अचेति अन्याच्‌ तस्मात्‌ ware, .ण्यिस्येति' षोनिर्हेशात्‌' यस्य fufaafefa- feat तस्यायं नियमः यथा पयांसि पंस्कौ किलः पमान्‌ रामाणाम्‌ safe: पोनि््नियमात ग्राहो पच इत्यादौ स्यात्‌ |

परः परशब्दस्य ससम्बस्िकलात्‌ प्रकतिसुप- श्थापयतील्यत we प्रकतेरिति (१)। नतु वहगत्तः वहुपटरिल्यादौ

लोकाटेवगत। शमे gag, निपाता अप्रिद्योतज्ञाणवनतु वाचकाः, तेषां वाचकत्व तु घट समुञ्चय इन्यत यथा सम्बन्धे षष्ठो तथा wy द्ग्यत्रापि arqiufa: | इटानीन्तु wages रच्वणया सञ्चयवावित्वाञ्धकारय तद्मोतक्त्वाच्च aeifa दुर्गाटासः।

(१) प्र्यात्‌ प्रथमं क्रियतेऽसाविति naa, लिङ्गं wae) प्रतीयते येनाधैः प्रत्य xfa efefcfa कातन्त्रहत्तिः।

३२ मुग्धनोधं व्याकरणम्‌ |

221° TF. aat 1 (अंश्रः।१॥, नु वी १॥)। अकार उच्चारणाथेः, विन्दुदिविन्दुमातौ वर्णौ क्रमाचरुधिसन्नौ स्तः २० |. H+ परी मन्यौ | (क + ayn g Nate ॥)

कपावुच्वारणा्यौ, AAA FAAAL वण क्रमाुनो संननौ स्त;

वहोरप्रत्ययतवप्रसङ्गस्तस्िन्‌ सति aga इत्यत्र गर्तोत्तरादित्य- तेन Saad वहहुगर्तीय इत्यनिष्टं स्यात्‌ इति चेत्र, wad: पर इति दिगलक्तणा पौ, निरश्विहितोपलक्षएतवात्‌(१) लेव; प्रागि- त्यत्र waren पोविघानःत्‌ तस्य त्यलमिति दिक्‌ |

१९८। WWI AW दत Gans ey, WT अतो, नुश् विश्च तौ उच्चुरणाय इति प्रयोजनान्तराभावात्‌। नुरनु- सारः विबिसगे इति प्ररे | |

२०। H+ Gn! कमन॑अपजथतो। यद्यपि कख- पफयोमुन्यावित्यतर yet: खाने क+पा)" विति क्ष हरि + काम्यः कष्ण ? पाता इत्यादि सिध्यति, तणापि सूनौ नुवोनां शत्वविधो Atal Aaa AAA इत्यस्य न्नापनाधं ame संत्नाविधानमिति। तन उर + काये उर wm पैण त्यादौ णत्वम्‌ रि + काम्बः दरि? पाता दरत्यादौ यलत्वम्‌।

=-= ~~ ~" ee ee ~ -------~~ ~ ----~ ~

(१) दिगनक्षणा पौति- सामान्यतो दिगवाचकशब्द्योगे पञ्चमी्यधः | निं afa—aaq वथा faena afefed तख उपल यत्वात्‌ प्रतिपाटकलात्‌ परशन्द्‌- सेति wey तेन प्रतेः प्रवत्‌ afafag manta पूरणबोऽपि mags: खादित्यधः।

सन्ना | २२

२१। हा भास्‌ (डः १, कस्‌ ।१।)। हकारो भससंन्नः स्यात्‌ |

दति datz: |

तथाचाहुः faa: walaarer अ्रनुखारविसज्नोयजिन्ना- मूनोयोपद्मानौयाः, एषां सामान्येन पदेशः खरता wafaat व्यन्ञ- नता परगमनाथमिति। मूजिंद्वामृनोयः नोर्पाष्मानौोय इति परे !

२१। होभम्‌। भमप्रल्यादारेण यद्‌ fata तदकारे-. wifa भविष्यति इति, तेन वहितमिल्यादौ esta qi यद्यपि शषमान्त PAE wet अघुन्नुदित्यादि सिध्यति, तथापि एद प्रल्ाहारस्यान्तदकारमन्ददनिरासाथेमिदमिति कथिदि- ati aqaq एकखान प्रयत्न विशिष्ट त्रणेदयौभाव-ज्नञापनाय दस्य परयगुपादानमिनि(१)। vata चपनैदिताऽकानिता णः, लुपि स्वायविघो, णमितोऽन््याघोऽन्तेऽन्त्यस्याटाविति afad, तथापि संज्ञायाः प्राधान्यात्‌ संन्नापादः। पादोहि एकार्था वच्छत्रसूत्रसमूहः।

अथ मौ रामाः भवति भवतः इल्यादौ सन्धेरुपयुक्तलात्‌ सव्वधामादो सन्धिं निरूपयति afag संहिता, संहिता तु परः स्त्रिकषः, चार्वमाचा-कालातिरिक्ल-कालानुचचरितत्व सन्युचचार इति aga, संहितैकपदे नित्या नित्या घातूपस्रगयोः | सूत्रेष्वपि तथा निलया सेवान्यत्र विभाषया इति |

= ~~~ ~ ----- - =~~ ˆ~ - ~ = “~

(१) दो कत्‌ xfa खतेखेति ty: |

२४ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ अध afar: |

२२। सह रें ध; (सष ।९।, रे He) शे परे jae Wa सह धैः स्यात्‌ मुरारिः, लक्सोशः, faqaa:, धातुः, गक्गदन्तः, STATE: |

२२1 सह लुधप्रोक्तं दं, afafafa afafes qorata!e) ` नियमादाद पूर्वस्येति : were सा काक्षतवात्‌ प्रनतस्य क्लिविपरिणामादाह Fafa एजभमोः शेषेयोरभावात्‌ श्रक एव घेः सुरारिरिलयादि, मुरनासरोऽसुरस्यारिः, wat ईशः, विष्णोमत्‌सवः. धातुः किः, शक्तनामा कथित्‌ भक्गथामाव दन्त थति, होत्चारित लकार sfa वाकं, शाकपाधिवादिलान्मध्य- पदस्य लोपः | Maca इति नच्छन्ति परे(९) WaT सह Ga: स्थूलः, GAT सह श्रागतः पिता इत्यादौ सहशब्दस्य yaaa प्रतीतावपि वालुकाभिः सह. afew घटं करोति इत्यादिवत्‌ अरतैकलप्रतोतिरिति, waaay, अतएव सुरारिरिव्यारौ एक

एव घः

(१, नियमबायम्‌-तख्जिच्धिति निदि रे परस्य (112184) दति पाखिनि- सवम्‌] मप्रमीनिह्‌प्ेन विघोयमानं ara वर्णानरेणाव्यवहितख ye बोध्य fafa रतििः।

२) @atea दोस प्रयोगो नाक्तोति प्राणिनिक्रमटीश्चराविति दगादाषषः।

"मन्धिः। २५

२२। आदिगचोग्री ( भात्‌ ५, इक-ए्चौः €॥ wat १॥ ) ।, अवर्णात्‌ परयो रिगचोरवर्णेन AE क्रमात्‌ Tat =: | Euan, दामोदरः सन्धि ग्रहणात्‌ afarquia सनिः araafe:, शिवल्कारः, aud, सुकुन्दौकः, Ua, भवीषधम्‌। २४। गरधोरनेधिन एङ्ऋकोः

(शः ६।, धोः al, अन्‌-एध-इनः ६।, एड-ककोः En)

२३ आरत्‌ आदिति पौ-कान्त दं, ्रकाऽनिता at waa दति तस्मादिवयत्तरस्येति (१) नियमक्टाह श्रवणात्‌ परयोरिति। छषोकेण इति, हषोकागि इन्दियर्मि नेषामोगः। दाम cH उदरे यस्य इति वाक्यम्‌ afaaemfefa- सम्िग्रहणात्‌ लुपि नेत्यादावितिशेषः, रक्तरूपैण(र) राजभ्यां शाजमिः frat एति भो भत्र इत्यादौ fas, सन्धिलुपि सच्धिप्रकरणोयसत्रक्लतलुपिन सन्धिः, एवकारस्य व्यवच्छेदात्‌ (2) स्यादिलुपि सन्धिरित्यधेः। माघवस्य दिः, शिवेनोचारित SATU, SUA एकत्व, मुकुन्दस्य WH: स्थानं, FUE TH, भवस्य मोषधमिति वाक्यम्‌ | दूगीचोरिति षौनिरशात्‌ तत्छमादेणः।

.-~ -~ - -- ---- ~ ~~~" ~

(१) नियमन्चायम्‌ -तख्ादिन्युत्तरख { १।१।१७ ) दति पाणि निनम्‌।

पञ्चमीनिर्हपेन क्रियमाणं काये वर्णानतरेखान्ययहितख् परस्य पतेयमिति afar)

(२) तत्र अआद्य्िचिनिषेषेन।

(३) अन्ययो गव्यवन्सेदाटित्ब्ः।

- ३६ AUN व्याकरणम्‌ |

गेरवर्णात्‌ परयोरेधिनवच्ितस्य धोरेडऋकोरवणन सद क्रमत्त्‌ Wal KT | प्रेजते, परोखति, woreefa) अनेधिन;, किं-उपैधते, अवैति | २४। ta) एध्‌ दन्‌ तौ खरूपौ, तयोः समादरः, ufaq अनेधिन्‌ तस्य, एङ्‌ ऋक्‌ तो तयोः, WI सड चेत्यनुवर्तते। wae वरदौ, इन गतौ एनदुभयभिन्रस्य wT वयवभ्रूनयोरेङ्ऋकोम्तद्गेरवरण¶त्‌ (१) परयो रित्यघः, नेन प्रगत UAH, WAR: इत्यादौ शात्‌ गनममभिव्याहनस्य प्रादेरेजनतौ- त्यादेरगिल्वात्‌ (२) म्बादिपराठे दटकाराभावात्‌ परतरो. दाहरिष्ति।

(2) agfcfae aa घातो. quafady area: | (२) saq मोयीचन्दरे --घातवन्दरोप्मर्मस्य सम्बज्धिनो rata परयोरेडः कटको amet amy प्रगत रजको यस्मात्‌ दूति श्वाय प्रेजक्र दूव्यत् प्र उप्रस्गो गमेटव नत्वेजेरिति। यातु प्रल्टाथन प्र््धेन ay प्राद्िमभास स्तटापिप्रंजकदूति। प्रानं क्रियायोग णमोपसगतवं, अन्तु करुयोगेनाचुष- सगेत्वाटिति'

कालिकेयसङ्कानोऽयाडह -

अतर गिरुपभगः "परारीनागुपभर्मत्वं धातुयःगे मव्यटा| अव्ययत्वं लिङ्ख- योगे कथितः पचर मि रिति न्छायात्‌ घातुयोगिप्रादौनां faaafafed ae पहणात्‌ धातुसम्बन्धिनोरेडङकशोः प्राप्रारपि पु्हगं धात्वनरसम्बज्धिगेर- वेन सह अनेन गुणदद्मभावाथस। एन मध्यप्ट्नोपसमासेऽख्यानधिकारः खचतः, तैन प्रगता ण्जक्रायसखातस VAY दन्यत्र मध्यपदृस्य गतभागस्य लोपे तल्षम्बग्धिनः प्रशब्दस्य णजघातोः सम्बन्ध'भावाच्नणुरिति। नलु प्रगत xfa क्रान्तं नाम, एजक दूति mara’ नाम॒ तदूयोगिप्रादरित्वं कथं सम्धवतीति चेत्‌ सव्यं, प्राकर Walaa wa णकानक्तान्ताद्नामयोगे किन्न निवर्तते दन्यवनन्वनश्य iv iia दनयुदारता प्रदृशितत्वात्‌ | ale

सञिः। २७

२५। लिधोर्वा ( लिघोः a वा ।१।)।

लिषोसत gata ara वा स्यात्‌ प्रकौयति व्रैकौयति, प्रोघोयति प्रौघोयति, प्रार्चीथति प्रयति, , प्राल्कारोयति प्रल्कारोयति |

२४ fats) श्राटौ निः पश्चात्‌ धुस्तस्य fas सत्यारम्भो नियमाथेः(१) अ्रनेधिन इति नानुवत्तते पूर्व्वौक्तदेन गेरवर्णत्‌ परयोलिंधोरेडऋकोरवर्णेन सह क्रमात्‌ Wat वा स्त इत्यथः एधिनो faafa दर्शयति प्रैकौयति इनलगतौ (२) एकः तं इच्छति, क्योऽम्बयादिति क्य श्र॑द्धे एकोय, घुसंन्नातिवादयः, व्यखेति प्रस्य समासः, एवमन्तर eats प्रोङ्धारोयति इत्यादौ परत्वादवणेलोप"(>)

धातधद्योतकानां प्रादीनां धात्वन्तरसम्बन्धित्वाङ्गीकारे uae एजते प्रेजते त्यादावपि क्तान्नङप्रधातुयोगित्वे एजधालादिसम्बन्धाभावात्‌ सव्वनराखाविषय द्रति वाच्यम्‌ | ममस्यमानपटसम्बख्धिप्रादीनां तद्थद्योतने पटमेटाभावात्‌ अध्यपटनोपसमासानुपपत्तेः। प्रादीनां द्योतकत्वः आख्यातनिष्मत्रघातुयोगे Qa, अतएव प्रलष्टः एजते इत्यत प्रल्टा्स्तु एज्ञघातना द्योत्यत तेन धालन्तर- त्वाभावादखख विषय इति। ननु प्रसक्तं प्रतिषषिष्यते दति न्णायात्‌ समासनिष्पच्न- uaa दूत्यत्र नाममम्बज्धिन we: सन्धिः कथं प्रतिषिध्यते दूति Aaa. यद्यपि afaqugq नाम दति प्रागभिरूत्र तथापि तेषां क्रियावाचक्रत्वात्‌ कचित्‌ धातुत्वं aafgaa, तेन भूस्थोयोजननत्तेऽकमिन्यादौ we दत्यादौनां क्रियात्वेन व्यवहुतत्वात्‌ ज्रन्यत्रापि तथा चिन्त्यसिति।

(१) fawrifa जियमसनरभित्यधः।

(>) ओआखणाद्िकः aera: |

(२) विप्रतिषेषे परं काय्यम्‌ | (१४२) दूति पाणिनिः। तन्यचनपिरोषे परं काद्य स्यात्त दति इत्तिः।

३८ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

२६ | लोपोऽखोमाडेः। (लोपः १। FH a, श्रोम्‌-श्राडोः ७॥ ) श्रवणस्य WAST: परयोर्लौपः स्यात्‌ ` भिवायोबमः, faafe, ब्रह्मोतं, राजिः | स्थानिवदादेशः इयोर्विंभाषयीमष्ये विधिनित्यः |

२६। लोपः WAT AE तौ Bat तयोः, पुनर स्योपादानं सदादिनिदचधं, लोपपदोपाटानात्‌ शब्रौति निहत्तम्‌। शिवायोब्रम इति लोपोऽप्यादेश उच्यते इति न्यायात्‌ wifaraa wai वोरिति यकारस्य नुप। शिवहि इति ate: qarfeanfe शपोनुक्‌ गिध्वोनित्यसापेक्तललात्‌ रादौ श्रादि- गेचोरिति शुः पश्चादनेनाकारनोपः। ब्रह्मोतमिति wreqes उङ्‌ शब्दे कः(१) ब्रह्म वेदः तस्य श्रा सम्यक्‌ प्रकारेण उतं उच्चारित fafa यावत्‌। राजपिरिति or सम्यक्‌ प्रकारेण षिः श्रषिः रान्नोऽषिः राजर्षि;(२) स्थानिवदादेश इति खानमस्यास्ि सानो ूव्वखितः, खानक सखानिवत्‌, भादिश्यते असौ श्रादेशः, परख्िन्‌ gafautaa इति गेषः(२) | तथा परनिमित्तकपूव्व- विपी aaa अचः wa आदेशः खानिवत्‌, खानो यथा

(१) बेजधातोः क्र उतमिति केचित्‌।

(₹) राजपिगब्द्‌ः प्रायः कन्यैधारवनिष्पदच्रएव प्रयुज्यते दृह तु खतो ट.हरणशा्ाऽयमिति।

(2) स्थानिवदादेश cafgda परखिन्‌ पूर्वविधाव्य इ््यंशोयोज्छ इयथः |

सन्धिः। ३८

काथाणां निमित्तं भवति anes, तेन पिवति गणयति ताहि इत्यादो शुत्रिजवादयः स्युः भ्रतिदेशकाय्यं कचित्‌ नस्यात्‌, यथा-नुनुदिघं Qnty टान्त-चप्‌-जव्‌ भेषु way षडःकङोरेवं fra fastitg जिस्तया(१)1 wy खानि- qq स्यात्‌ | संयन्ति दनो यादेशे मस्य नुः, नय स्थानिवत्‌ | कथं क्षिग्वक्त, यं दृष्टा यस्योत्पत्तिः तस्य सन्निपातः, सत्रि पातविधिरनिमित्तं तदिघाताय इति न्यायात्‌ 4:1 दद्धयत इत्यादौ इकोयनादेशे खादनचोति श्वस्य दिः, खानिवत्‌ प्रतिदोवु इत्यादौ प्रतिदिवन्‌ शब्दस्य पौपरे सदान इत्यलोपे व्यनच्‌ तयीति घेः, ्रह्लोपस्य ख्ानिवक्लं | यायावर इत्यत्र याधोयेड यायायधोवंरे SAAT TARTAN arate इति यकारलोपः, श्रकारलोपो खानिवत्‌। को स्त इत्यादौ लोपोऽख्यसोरित्य- कारलोपो दान्तकीर्यये arate स्थानिवत्‌ | ओमाडेः स्यानिवत्वातिदे शादो माङ्भिन्र दान्त अरस्य विषयः जक्ततु- रित्यादौ अदधाघसादेशे हनगक्ेव्युडलोपः भपभासोरिति घस्य क, उङ्लोपो शानिवत्‌। we इत्यत धाधोर््वै, शपोलुक्‌, हादिरिति दिः, श्रादयोरित्याकारलोपः, भभान्तस्यति खेदस्य

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(१) acaearc:, fafa’, NA: यलोपः, gra द्रति पटाने यत्‌ काय" तत्‌, चप्‌ जम्‌ एते प्रत्याहाराः एषु away आदो स्थानिवत्‌ णवं way कम्‌ इति प्रत्याहारः | ve दूति warsifa fafya | ae दूति we me इत्यनेन fafea) wy कर्तव्येषु जि जिलोषः स्यानिवत्‌। तथा fare: —fafa st au? यत्काय afaq waa fafs atl स्थानिवत्‌। Har PUBSSTAU A |

४० AUNT व्याकरणम्‌ |

धः, पथात्‌ wad धस्य भपएभासोरिति ae श्राकारलोपोन स्थानिवत्‌। गोन्ति इत्यत्र गोमत्‌ लेपने गोमधो अन्तात्‌ क्षिः, fam? मकारस्य नुः, Tata जपे अम्‌नौरिति अमे श्रकारलोपो wifaaq पिरि इत्यादौ पिषधोरहिःनणो a इति aa जप जमनोरिति caren न्‌ स्थानिवत्‌। दाद माचक्षाण इत्यादौ जौ fafa दादे इति घः धाकं इत्यत्र भाभान्तस्येति waren जिः खानिवत्‌ एवं धाक्‌ धाग्भ्या- मित्यादौ चपज्वारपि(१) 1. याग्र्टि रित्यादौ यजघो यंङन्त- अप्रन्तात्‌ क्तौ षड जिलोपौ खानिवत्‌। पापक्तिरित्यादौ यडन्तजन्तात्‌ पचधोः at afe जिलोपो सखानिवत्‌। नावधतीति(२) fafa नौः saa afe fat सखानिवत्‌। वादयन्तं प्रैरिरत्‌ अर्वोव॑दत्‌ इत्यादौ अादिकायये(र) जिलोपो सखानिवत्‌। ननु कथमौद्धारोयदिति (४) चेत्‌ स्यं भूयो- ऽमगादेरिति सूत्रमक्षला अरजादिय्रहणभेवं श्रपयति aaa लक्षणं nana दति, तथाच एक्स्यामो लोप पराममादाय fa: क्चिदपवाद विषये उत्सर्गोऽभिनिविशते इति न्यायात्‌ sane- wife वा अ्रकारनोपः तैन safe safe, तथाच arqufs

चपिजवि कत्तव्य जिन स्यानिवर्ट्गयि्धः।

~~

(१ नावमाचरे दति जौ तिपि र्पम्‌

(2

x « ~ £ (qi जेः प्ररे afeq? ser खादिका त्थः]

ओओङ्कारोयेति नामधातोट्िपि eae) अत्र जोम्‌ शष्ट परे अमागम-

(४

ART HG लप्यत दत्याशहूव्राह्‌ नन्विति।

सन्धिः | ४१.

२७ | एषैऽनियोगे ( एवे 9, ्रनियोगे ) अवरंस्यएवे परे लोपः स्यात्‌ अरनियोगी | | aaa, नियोगेतु-भ्रदयव गच्छ. *

| वौष्ठोत्वो; सै (बा ।१।, ग्रोष्टोललोः ७॥, से ) TAPS भ्रोष्ठोललोः परवोर्लोपः स्यात्‌ वा से सति विम्बोष्टः विम्बौष्टः, खुलोतुः watt: से किं तवोष्ठः

a ~~~ eee ~~ == ee ee ee ~

महाराज इति चण्डो, पूव्वंवाशब्द्व्यवखया वा। ननु Wea सूवादानुवत्तते कथं निल्मिदमित्याद दयो रित्यादि, विभाषयो- वरशशब्दयोरित्यर्थः

२७। Ua! नियोगो ब्यापारविग्रेष;, नियोगः अनि- योगस्तस्मिन्‌। सामान्यशब्दस्य विथेषपरत्वात्‌ अनियोगेऽपि साटृश्यसम्भावनातिरिक्त लोपः, तेन इदेव वयं घोराः, faa ओः अियंमन्या इत्यादि सादृश्यसन्भावनयोसु चर्व Tat: तदद्येवाभूदिति। एके तु सादृयनियोगेऽपि वालेव गच्छ मालेव तिष्ठ इत्याहः

act वीष्ठो। Wea wigs तौ तयोः, सः समास- स्तस्मिन्‌ | विम्बोष्ठ इति, विम्नाविव भ्रष्टौ यस्य इति वाक्यं, एवं स्थलशासावोतुश्रति सव्रिहितालामे विप्रक्लष्टं विधिरपेचते इति न्यायात्‌ वस्य दस्य ्रोष्टोतुभ्यां स्तस्यावयस्य तयोर्लोप इत्यथः, तेन हे Tage ते, हे राजयुग्रीतुस्ते, हे देवदन्तौष्ठकमलं

४२ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

२९ चीसै लतो त्रिं (बो-शे 9 तु ।१।, ऋतः त्रिं२।)। अवर्णात्‌ पर ऋतो त्रिमाप्रोति NS रति Tare: | ae किं परमत्तः | लन्तस्य agate: |

ते, 2 टेवदत्तौतुव्याप्रस्ते इत्यादौ नस्यात्‌ (१) वाशब्दस्य व्यवस्थावा चितवात्‌ प्रष्ठः प्रोष्ठपदा प्रोषठोति(२) नामजात्योनित्यम्‌ | तवोष्ठ इति, वक्षे तु ्आश्रोष्टादोष्ठं wie, तस्मिन्‌ (३) नवोष्ठ, तवोष्ठं इत्यपि लोपोऽस्येत्यएदिना faa भवति |

ret त्रोसे। at तोया त्रया सः बौषस्तस्मिन्‌। fa विप्रिणम्याह श्रवत्‌ पर दति, तथाच प्या श्रव्यवदहित-कऋत- ऋकारस्य faaq ऋत-ताकारस्य'। marge इति maa ऋतः पोडित इत्यधेः, एवं gaat ऋतः Aare परमन्तं इति परमश्रासाहतस्रेति यसः। कथं नात्तः कालमपेक्तत इति चेत्‌ ्रादपूव्व-ऋधोः कते आसः carat योगः। नचा- नेनैव सिदे किमधमिदमिति वाच्च ऋतशब्देन शौतत्त इत्यनिषट- वारणाधमिदमिति |

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(१) रणूटाहृरणेष अवर््यानशन्देन सह तत्परक्तिनोरोेतशन्द्यो समासाभावाच्रावण्य लोप fa |

।२) प्रोष्ठोटषः, Neuer नकच्तत्रविरएेषः, Wel मत्यवियेष्रः।

(१) atone परे द्यैः

afar: ४३.

Zo | प्र वसन वद्र AAAT <A काम्बल्‌- WU: | (कण --कम्बलस्य ९।, ऋणः १। ) |

एषामवणत्‌ परम्कणो त्रिमणप्रोति | sure, प्राणं

321 खाच्योरीरोददिण्वी | ( ख-प्र्षयोः en, ैर-

ऊहिण्यो, १॥ ) अनथोरवणौत्‌ aad त्रिमाप्रुतः खेरः, श्रचौहिणो

= न्न ~ ~ ~ ~

२०। wt ऋणाणैमिति ऋणादृणं, (१) प्रल््टखण, चत्सरेण टेयखणं, वत्सतरायमृणं, दश" ऋणानि सन्ति यस्मिन्‌ देशे नद्यां वा दगार्णो देशः दशाण न॑दौ, ऋणं जलदुगभूः, कम्बलाय - ad कम्बलाणमिति। एषामिति किं aap carte

२१। art खेर दति कि गतौभनुदि, (२) मावे घञ्‌ feugait: Wa su सखेरः(र), काशिकायां सखेरमिति ata, AMARA ईैरस्याकार उच्चारणाथस्तन दैरेरिणोरपि ग्रहणं, at ad खरिगोति व्याख्यातम्‌ खेरा इत्यत्र स्यात्‌ श्रनूभिधानात्‌। adifenfa अन्नान्‌ afed भोलमस्या इति वाक्यम्‌ णल- निर्हणात्‌ रेनायामेव। ससेपस्यादेरिति वा शत्रविधानात्‌ पाशकख्ियां वा शत्र अत्तौहिणो, अ्रणत्वपक्ते अ्रत्तोहिनोत्ेके |

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(१) ऋणस्यापनयनाय यदन्यदणं क्रियते तदणाणमिति fagrmatee | {२} afe tra cae: |

~ 2. 3, = Qh तकंवागोशएमतं खेर इरति go fey: |

४४ FANT MATT |

२२। प्रस्योटोब्ुहाः। (परसय ६।ऊद्‌-जदि-ऊहाः१।। | एरस्यावर्णात्‌ परा एते तिं यान्ति प्रौढः, प्रदिः, प्रौहः

22 | AGT (are, TIUM ail)

्रस्यावर्णात्‌ परावती त्रिं वाप्राष्रतः। प्रषः प्रः, प्रषः

२२। WA) शाकटायनसम्मतल्ादृहग्रहणम्‌ Me इति wea: कः, एवं कतिः प्रोटिः, ऊहसाहचय्यौत्‌ ऊदनिर्िष्टकषह्यो- ग्रहणम्‌ तु वहनिष्यत्रयोः, (१) तन प्रोद़ोभारः, प्रोढ़ोरघानां द्र्यादि (र)। एषं areistadafi wie: wife: 1 प्रोह इति ऊहनमूहः भावे घन्‌ |

३३। वेष fasta इष्य सपे घञ्‌, Ae इति ष्यणन्त- निहशः (२) एष दूति श्रनव्ययसाद चर्यात्‌, तेन प्रेष्य गनः (४) इत्यत्र यवन्त स्यात्‌ गर्धोरिति नित्ये प्रासे वचनमिदं | नित्यमिति परे (५) |

4

(9) ऊद्‌ <fa ae: तीन faorfeafafa agai मतम्‌, रहोग ऊट्‌ दति कथं शिध्यतीति सुघोभिचिन्यम्‌ |

(२) ऊदोदौ aa वह निष्पद्रौ |

(१) नतु MSeqa xy wat: qret यपि र्पम्‌ | wa तुमा एष xfer

(8) saree गत दूत्यधः |

(५) प्रषः प्रेष्य दूति पद्यं ईषधातोः कमेण घञि ष्यखिचर्षः te xfs स्थिते गुणे aa सिद्मिति feaqra शेर |

afar: | ४५

२४ | मनौषाः ।--( en ) मनोषा्या निपात्यन्ते | मनोषा, KAT, ला लोषा, शकन्धुः, कुलटा, सोमन्तः, पत्‌च्नलिः, सारङ्गः |

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२४.। मनो शष्दव्य॒त्पाटनप्रस्तावैऽ्थे कार्याभावात्‌ मनौ- षाशब्दः खरूपपरः, (१) तस्य THA बहलानुपपच्या afafer- मनोषाथब्दो गणं सूचयति(२) तथव भाव्ये “यज्ञक्तणेनानुत्पन्नं aaa famanfae’ fats 1 तस्य fafeg कविदणं विपथपैः कचिदणविकारेः क्षचिहर्णगमैः, कचिदर्नानः कचिष्ठालथाति- TAMAR तथाच - व्णगमो वर विपरयेयश्च दौ चापरौ वणविकारनाौ धालोस्तदर्थातिशयेन' योगस्तदुच्यते पच्च विधं निरुक्षमिति २) सनोषादिवैया-मनोषा eater शकन्धुः समर्थो रथष्या पिशाचः कपिलो efaa: | | मर्तो लुलापो जिनो यस्क- fra मयुरो हनूमान्‌ हषो सिंद-बते सारङ्ग. कारस्कर-किष्कु- SU TAT AYA दृहाश-दूणा्-वैरःशतायाः

= eae = ~ ~~~ - ---- ~ ~ ~ ` =-= ( = ee ce yy

(१) अन्दब्यत्पाद्नप्रकरणे वाच्ये, काग्थभावात्‌--तन्तत्का्यांणां साकल्येख खक्तणनि्थाभावात्‌। SET: TINTS खद्पनिरटूशः, a: शब्दो व्यत्पाद्यः सएव खद््पतो fafee care | एतनेगंविधाः weer निपात्य इति Gfwafafa |

(२) yanfe-wereara wee संस्चका भवन्तोति न्यायादित्यथः।

(१) धालव्थांतिशयेन धातूना मनेकाधेत्वकल्यमेन | fred वेदाङ्गशास्छविरेषः। Say, शिश्चाकल्यो व्याकरणं frag उ्योतिषन्तथा छन्द्देति षडङ्गानि बेदानां वेदिका विडुरिति। fae प्भञ्चनमिति हेभबनद्रः।

४६ qual व्याकरणम्‌ |

कुदाल कुसुम्बर कु क्रा | यथायथं षोडश-काग्दिशोक-कास्तोर- पाररमसकराथ | सस्ोर भद्रङ्रणाग्निमिना वलाहकोडम्बर- विष्किराश्च। अद्रदृदासस्तथता दिवौकुाः शदोदनीदुम्बर गोष्यदानि | पतज्ञलिमंस्करि -लाङ्लोषा-ऽपरखरापस्कर तस्करा परस्परा ऽवस्करमन्तितान्तमं मध्यन्दिनाऽन्योन्यमनोषितच्च | लोकम्युणो धृन्नैटि-शोणिताभीं प्रतिकभोऽश्वल-हदस्पतो | समशनमटविदक्िगतारं इनुमदुदूखलसुष्णङ्करणम्‌ कौचक- कुलटा-लोकम्म णं तेलम्पााऽङ्गगगव्युनो | प्रायतत प्रायचित्ति- जोमूत-वनसख्ति-गन्धर्न्वाः। अरलामास्टमदगरनं किष्किन्धो- लुखनमाव्यम्‌ | श्चैनम्प्राताऽणेवो Gat चनुम्धव्या पृषोदरः | भ्वा्ूमिन्धः wild केशवाच्यमुषर्ुघः। उमशानमन्तिषत्‌ इन्द" परोक्तं पुदलोऽन्तिमम्‌ ब्रनभ्यासमित्यः card दूडभो ब्राह्मणस्तथा प्रलुम्पति रजसु्दमन्यदयश्च वाडुलिः we व्रोऽन्यत्कारकच्च रिथधन्दरः किकोदिविः। चर्ग्ठतो राजन्वान्‌ aqua aug: | भुवलोको मनुषकच्चाऽङ्किरखन्चतरेतरम्‌ | नभखच AHCI WAG प्रयोगतः

मनोषेत्यादि fae सपणे Gaara सरोरिति feat भाष श्रः मनत For, wae ईषा श्रनयोटर्लोपः मूदन्यान्तः, ताल- व्यान्तम्तु हलोग samt इति केचित्‌ शकसख्य टृपतेरन्धुः कूपः समोऽर्णोऽख्य समथः रथेन पाति रघष्या नदौ वहिष्टादिलात्‌ षः। पिशितमभ्राति पिशाचः। कपयस्तिष्ठन्त्यस्मिन्‌ कपिलः एवं दधिव्यः। मरना दन्ता मर्तः भ्र लुनाति Yat महिषः |

afar: 8४

जितमनेन जिनः यशः कोति यस्क: निकाम्यते निष्कं हिर रम्‌ मह्यां रौति, मेज इति रौति वा मयुः हनुरस्यास्तौति हनूमान्‌ | ब्रुवन्तः सोदन्यस्यां amt (१) ferenfa सिंहः अव अत्तरविपर्यैयः रतेस्तननं(२) | arcane यस्य सार॑ङ्ग;(२)। कारं करोति कारस्करो ee) कारकरोऽन्यः। कयते waa खग- रवादिल्वौत्‌ कुः किष्कुः केनोभ्यते(४) Fant सोमानमन्तति सोमन्तः केशविन्यास, wart सोमान्तः कं नं दपयति wen: | धुरं भारं ध्रियते ( धरति) धुरन्धरः 4 दुःखन दाश्यते ZETA | दुःखेन दाश्यते दूणाश: ARAM शतात्‌ परं परःशतं वेः इति कचित्‌, एवं परःसदस्रमित्यादि। कुं उदालयति कुदालः। faa तुम्बुरुः THAT धन्याकम्‌ कौ Taher Hae: | ययायधेत्यये यथायथं Maa षड़धिका दश षोड़श | कां दिशं गच्छामोति चिन्तयन्‌ पलायितः कान्दिभौकः | कु ईषत्‌ कुत्सितं वा ait प्रान्भागोऽस्य ATA पारं करोति पारस्करो देशः मा क्रियते श्रनेन मस्करो वेणः aq ईषत्‌ तोरं सस्तौरम्‌ अभद्रं भद्रं करोत्यनेन भद्रङरणम्‌ safc: अ्रग्निमिश्चः। बला- aed कमनेन वलाहको Aa: उद्र तोऽम्बरं उडुम्बरः | विकि- रति विष्किरः शकुनिः। वेदहपाठात्‌ विकिरोऽपि। awe अहं

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(१) व्रतिनः सौटन्यद्याभिति कुत्रचित्‌ as: |

(२) रतिं अन्ुरागं तनोतीव्यथेः।

(३ सारङ्गवातकादिः, खन्यत सारङ्क द्ति।

(४) कोनु aaa उभ्यते gaia इत्यधेः | "equ ठे घञ्‌।

४८ मुगधवोधं व्याकरणम्‌ |

हसति uzeeta:(e) | sereera दति afer: त्यस्य भाव. स्तथता-। Nia: ara यस्य दिवौकाः, यद्यपि दिषेव्यकारान्तो- प्यस्ि तथापि वान्तादोकारनिहक्यधं पाठः शद ओदनो यस्य UVES: | उड्म्बरवत्‌ उदुम्बरः गवां पदं गोष्पदं गोभिः सेवितो देशो मानच्च पततां न्नानिनां भ्रञ्नलियस्मे पतन्नलि- रनन्तः। काम्यकाणि मा कर्तः शोलमस्य मस्करी ‘fas: | इलोषावत्‌ लाङ्गलीषा | श्रपरे श्रपरे अपरस्पराः क्रियासातसे, mace: 'सार्था गच्छन्ति श्रविच्छदेन यान्तोत्यधः ग्रपकरो- तोति WTR रथाङ्गं, भन्यत्रापकरः। तत्करोतोति तस्करश्ीरः | परे परे परर क्रिया विनिमये अवस्करः पुरोषे, शरन्यतावकरः भन्तिकादन्तितः कस्य a: | ्रन्तिकात्‌ तमे तिक- लोप sara: | दिनस्य ध्यं मध्यन्दिनम्‌ | अन्ये we क्रिया- विनिमये अ्रकारसयीकारे भ्न्योन्यम्‌ मनसा ईपितं मनोषितम्‌ लोकस्य sit मन्‌ लोकम्पृणः, लोकम्पृणमिति केचित्‌। धूरिव जटा यस्य धृच्छटिः थिवः। शोरितम्ौ यखास्ति शोिता- tt) प्रतिष्कशः पुगोयायो (२) अन्यत्र प्रतिगतः कशां प्रति- कशोऽखः। अ्ठास्तिष्ठन््यस्िन्‌ सोऽशखलयः(२)। avai पतिः

en SS -- -~ ~= i ४) ~ - ee ee - -

(१) «gag हशनमिःयर्थेऽपि मृनोदाहरणे टात्‌ षखिति wo) Fe वाच्ये एव निपात्य xfer |

(२) प्रतिपू्क कणेः पारितवान्‌ दरति सिद्गानकोशदो |

omg “arang प्रगेच्छाभि wa aa प्रतिष्कशः दूति athe |

(३) wer चलट्लत्येन ay xa तिषतौति डे aye इत्यलरटीकायां

ata |

सन्धिः | ४९

वहसतिः सुराचाव्यः। सममश्रनं समशनम्‌ ।, Wait वयः प्चिणो यतर, अटविः भ्ररण्यम्‌। दकच्तिणतोरमित्यर्थे द्चिणतारं, efaug तत्तीरञ्चेति.वाक्यं, Tener दक्तिणतोरमपि इन्‌- मान्‌ qaaq | ऊर्धं खन्यते VAT | उ्स्य करणे मन्‌ SU- रणम्‌ चौक fa act शकः वणविपय्यये कोचको वंग eam: | कुलान्यटति कुलटा भिन्तुक्यां अरसत्या्च(१)। लोक- म््रोणमिति लोकम्पृणवत्‌ तिलपानोऽस्यां क्रियायां तेलम्पाता पिद्टक्रिया। अद्गन््स्मिन्‌ sed qa गवां युतिः गव्यूतिः क्रोणयुगम्‌ प्रायात्‌ चित्तचित्योः सुम्‌ (2) प्रायश्चित्तं प्राय्ित्तिः | जोवनं जलं ad senda जौमूतो मेषः वनस्य पति; वनस्मतिः aa) गानं धर्मोऽस्य गन्ध्वैः। अश्वस्येव स्थाम (वनं) यस्य aaa द्रोणपुतैः | ब्रास्पमरदं ufasr- याम्‌ WANT शद्ध गनम्‌, षदं नैच्छन्ति कचित्‌ किञ्चित्‌ ध्यायते faa अस्मिन्‌ किष्किन्धोऽद्विः। उन्खनसुदूखल- वत्‌ आश्वग्यंमहुते, अन्यत्र Wa कम शोभनम्‌ श्येन पातोऽस्यां क्रियायां श्चैनम्बाता खग्ना अशेः" पानोयम- तास्ति अणवः केशादित्वादे सकारलोपः | दुःखेन ध्यायति दन्यः |

।१) ' अटतौन्यटा प्रचाद्यचिटाप्‌। कृनख अटा कुलटा। afe a कुलम्‌ चअटतौति faega तदा कम्भरयणि डोपि कुनाटोति सखात्‌"--ङूति aw- बोधिनी।

(२) शित्त चित्तिशब्दौ निखयार्थौँ | तथाच प्रायोनाम तपः ita चित्तं निखव खच्यते। anfaqadga प्रायचित्तमिति way निच्रयसंगुक्तं पापचवमान्‌- खाभनत्पेन निचितमिग्यथेः।

५० AUNT व्याकरणम्‌ |

aqufrafa घेनुश्व्या | पएषदुदरमस्य एषोदरः श्राष्टखन्धे मन्‌ atefaa: | एषदुद्ानमस्व एषोदयानम्‌ | केशिनमवधोत्‌ कैशव;ः। श्राधारयति ब्राध्यायतोति वा, श्राग्यः। उषसि वध्यते उष :, उषोबुध इति कथित्‌ शवानां शयनं यत्र श्मशानम्‌ श्रन्तिके सौति श्रन्तिषत्‌। et et इन्द, qa’ रहसि चार्थच वरे मिधनयुम्मयोरिति धरणिः अ्र्तिभ्यां परं परोक्तं, एधोरसि साधयन्ति केचित्‌, तन्मते अत्र पाठः परशब्द ऽनिष्टवारणाथः gaa गलति पुद्रलः शरोरम्‌। अन्तिके भव इतये Ter, मे कस्य लोपः, अन्तिमः | यहा अन्तिकात्तमः ्रक्षतिप्रत्यययोः क्‌-त-लोपे fan: | वेङपाठात्‌ अरन्तिकतमञ श्रनभ्यासे दूरे इत्य; (१) Wa ग्रनभ्यासमित्यः, परिहायसनत्रिधि- रिध; पशाद पंादम्‌ दुःखेन दभ्यते वच्यते gear i वाहितं पापमनेन ब्राह्मणः गवि wife प्रस्य सन्‌ Aral प्रलु- स्मरति गौ; अन्यत्र प्रतुम्मत्यश्ः | (२) रजस्येव GAAS भ्रजसुन्दं नगरम्‌ | WIGS भन्यदोयम्‌ | वाग्‌वादस्थापल्यं वाडुलिः प्रगतं कल्मषं पापमस्य प्रस्कव्रकऋषिः। AM कारके दन्‌, भ्रन्यत्‌- कारकं इरिरिव चन्द्रो रमणोयः, ₹इरिथन्द्रो राजा किकोपूर्वं- दिवधोः कौ दिषेदिव्यारेशः, faalfefa: चातकपत्ची aa अस्या uf waa नदोकदस्योः। राजा श्रव्ास्ि राज-

~= -~---~--~-~ ~ -- NS Asn i,

({) इचः गम्यः Kaw: ठे aT | (x) तम्पतीति defen तुपघातोल्तिपि eva, प्रसम्मति गौः fer सीध; |

afz: i ४१

३५ यलायवायावोऽचौचः | ( यल्‌-भय-चघव्‌-्राय्‌-भ्रावः Qui, भवि 91, इचः EI ) इचः खानेय्‌वूरल्‌ अ्रय्‌ Ha भ्राय श्राव एते श्रचि परे क्रमात्‌ A! aaa, विष्णौशो, waa, लीक्लतिः, हरये, Was, नायकः, पावकः |

--- --- -----~* = ~~ ~~~

न्वान्‌, सुराज्ञि देशे, Waa राजवान्‌ दष्णोऽष्वः THU: | छष्णोवसुः aay: | भुवर्तीक इत्च सस्य रेफः। मनुरिव मनुष्वत्‌ | श्रङ्किरा इव अङ्गिरस्वत्‌ | at इतरे क्रिया. सातत्ये इतरेतरम्‌ नभ इव नभत | मुक्तिं zeratfa मुकुन्दः, avai सुक्तिद्च। मनो मधाति मन्थः कामः गेषं प्रयोगानुसारेण FAA | अन्धस्याऽपो कान्तस्य दंन्राशदै से। सोतान्तभिन्रस्यान्यंस्य दन्‌ स्यात्‌ रागादौ से सति, श्रनावितौ। अन्याचासावाशाचेति श्रन्यदाशा। रवं भ्रन्यदाभीः भ्रन्यदाखितः अन्यदास्था TA: अन्यदूतिः भ्रन्धद्रागः श्रन्यदुत्सुकः We शब्दस्य वेहपाठात्‌ श्रन्यार्घोऽपि भ्रषोत्रयन्तस्येति किँ भ्न्यस्यान्येनं वा श्राशा अन्यशा (2) |

३५। aa. यलाजिचः प्रत्याहाराः एच इति पोक्षान्तं दं (२) यलस्यावयवापैचया यथाक्रमसुक्नम्‌ anaa इति the

= न्न eee

(1) “्दि्श्दा एते कथश्चमत्मादयन्न सत्यवयवा्य नायः काय्य" दूति तच्वमोधिनी | एते WAITS: शब्द्‌ TTT: | (a) इच दति ee परीव्व(न्तमित्यपि कचिष्मादः।

५२ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

३६ वाव meta | ( बा igi, अव ।१।, गोः gl, दान्ते 3। ) | गोरिचः खाने श्रवः स्यादा श्चि परे दाह्न |

गवेशः, wate: | दान्ते किं गवै |

अस्वकानि चन्त॑षि यस्य चाम्बकः,` लोचनं चन्तुरम्बक्रमिति © शाश्वतः | विष्णुश गश्च तौ, घाला waar तो, दराक्लतियस्य

दरति वाक्वानि।

२६। वाव। अरव दूति लुप्तप्रौक्रं दं, एथक्‌ विधानादका- Tate | दम्यान्ती दान्तम्तस्मिन्‌। गोरिच इति श्रन्येज- भावादोत इति Sor गेण इति wantin से afta. द।न्तत्वादवः। चिघ्रगविद् carat लान्नण्किलात्र खात्‌(१) |

(१) लाक्तणिकन्वान गौगत्वाट्ति,। एतेन गोरिच इत्यत्र Bas गोगन्द्‌ स्येति तकंवागौशग्यागयः।

yaad इजच)वनुव्रत्तते। CA ममुटायस्य प्रयोजनाभावेऽपि नाघवा- टनुवरत्तेनं वसे!रश्येत्यतर प्रस दमृ-पिधान-नाधववत्‌ | ननु ara ay: सै cia aa- satefagy aa zraqed age निमित्ताचोऽपि सम।सावयव-पटाटिलन्तापनाय तेन गरेण इत्यादयः सिङ्धाः। अन्यथा खजाश्रगाप्र. परमगवः, Taret खवा- देशाप्तेरिति। का-सि।

amt MicM agua गवाषादेरिति WA उकारस्याप्यवादेगे चित्रगवा- चायं cafe fagfaae fa gute: | सिडन्तकोमुरान्तु aaa विभाषा गोः ( ६।१।१०२ ) दूति खतोदाहरणो चिलग्व परमिन्युटाहृतम्‌ |

गवो waa खयां य्वोरित्यादिना वक्षारलोपाभावस्तु ततद्त्रोयवाशब्दस्य व्यवस्यावार्चित्वाद्ति दर्गादरासः| का्िकेयसिद्खानस्तु wat afta त्रिया एति विष्णा 3a द्चाद्युटाहरणनाद्याममास एव विषयस्य न्नापितत्वादितयाह।

सनिः | ५३

३७। गेन्द्रगवाक्षौ (mu)! (१) नित्यम्‌ | २८। अयां area | of wai EM, AY: &॥, लुप ।१।, वा ।१। } दान्ते खितानामयादरौनां sata स्यादा रणड हरयेहि, शरदं शम्भविदं, थियाएति यियायेति, विष्णाउत्कः विष्णावुत्कः |

३२७। 4a, गबेन्द्रध् गवाक्ष ati गवामिन्द्र इति वाक्यम्‌ गवामन्तोव WaT, वातायने एवाभिधानात्‌ waa प्राण्यङ्गे गवामत्नोव गोऽ्तं इति, श्रसंज्ञायां नित्यमकारलोप दति भाष्यम्‌ Mss गो wa मित्यन्य |

रेट श्रयां। यचवचतौ तयोः। भ्यामिति बनिर्हेगो गणाः, तेन अय्‌ अरव WA WT इत्येषां सामान्यतो ग्रहणां (र)तेन अरव्ययमाचक्ताण WA AT-M WAIT, मूलवखमाचन्ताण

(१) प्रचरद् सुद्धिन-सग्धवो ध-पुस्तकेषर ""गबेनद्र-गैवा कौ fare” भियंणो व्गव्य- त्वेन fafe'e: | तच्च समीचौनं मन्यामहे, बह्क-टीकाकार-मत-वरिरु त्वात्‌ aay “nag गवौ" दूति ga. नित्यमिति ठत्तिः। अल प्रमसाणानि- दुर्गादासेन wg wage विभाषादयमध्यवत्तित्वादस्य नित्यत्वमिन्युक्रम्‌ | कात्तिकेय- सिङ्खान्तेनापि वकंत्रागोगवरत्‌ समासवाक्यं लिखित्वा “faafafa ठत्तिः, वाहय- मध्यव्रल्तितव।त्‌ नित्य ' भियभिहितम्‌ | अतोऽत्र पुस्तके गवेन्द्रगवाक्चाविति एयक wana fafe ea |

(२) यथा कथमपि अक्षाराक्षाराभ्यां खवयोर्योगनिष्पच्ता खयवारयो arent मतुप्रव्व्लादि्ानामेने्यधेः।

४४ Ara व्याकरणम्‌ |

३९ णएडोऽतः ( एडः ५।, भरतः ६। ) |

दान्ते fumes: परस्याकारस्य लुप स्यात्‌ हरेऽव, विष्णोऽव |

a ~~~ ~~~ ~ ~= ~----- ~~ -~------~ - ~ ~~~ ` -~-~-~ ~ ---~----- --

रस्ते मूल रास्ते WAIT त्यादि वाशब्दस्य व्यवख्धायाचिलात्‌ इषे fae, तेन श्रव्यहसति qaafe हषे किं भ्रव्यय॒सु मूलवसु श्रात्‌ किवन्तस्वोरेव नित्यमिति केवित्‌। पश्यन्ति, दाउ पश्यत इत्याटौ faa उजि युरलुवित्यन्ये श्राद्‌ व्वोरलुम्ेति सि अयामिति faery भ्रज्योरनादोहं सि नित्यं लुप्‌ (१) तेन डं शिवं afta we, wy as TATA, areca:

तस्या उदयः, साध्वौ ven? साध्युदयः इत्यादि | श्रनादयोरिति fai, <4 उषतो a AACS, खधैः | अन्लयुोरिति किं ayaa: | इमि किं wat: wah श्राद्‌ रवावोषत्‌खष्टतरौ वा अवर्णात्‌ दान्ते शितौ यकारवकारावोषतृश्बृष्टतरौ वा स्यातां safe परे। तयाथाः श्रायः पट एर, पथ्वेडि इति रूपदयम्‌। ईषत्‌- wea fe उश्ारणस्थानशेधिल्यमिति (2) |

२९ | US. एङ्‌ Taree श्रत इति तपरकरणात्‌ परटवा- गच्छ त्यत्र स्यात्‌| | वादयमध्यसखत्वात्‌ नित्यम्‌ विश्षविधा- नादयवावनेन वाष्यते।

(१ अचोजायेते अरव्लो | यच ae at at) sent a at यौ चेति aay: | अचः स्याने जातयोरनादिस्ययो्वव्रयोनि्यं TT खात्‌ SF परे |

(२) अत्र मरे खयाटोनामेकपदोयत्व एव॒ यवयोलपर्तेन wu a दूति, पत प्ठव्‌ इति.पुव्रप्ठमाय्‌ दूति, पुलप्रठ भा द्वारौ माभूरिति द़गांदासमतम्‌ |

सथ्िः। ५५

Bo | Weary, (गोः, aria) et. गोरति atsafar: | गो-श्रग्रं Tarr गोऽग्ं। ४१। नाजोऽन्तोऽनष्ड्‌ निः Ta (न ।१।, WILL, श्रोऽन्त; १।, WATS ।१।, निः १। भः १।,

४०। गोः। पूव्मैसृत्रादत इत्यनुवल्ये क्ति-विपरिणमादाद ्रतोति वाश्रब्दस्योभयपक्षाथितल्वाननिषेधपत्त भ्राखरोयतेऽत्र (१) | तथाच दान्ते सितस्य गोशब्दस्य अरति यतां प्रापतं तन्न भवति वेत्य्ः। तेन गो अरग्रमित्यत्र av "सन्धिनिषेधः। परै वाव गोरित्यवादेशे गवाग्रभिति, उभयत्यक्तपते गौऽग्रमिति। वा हयेन QIAT |

set नाजो + अरजिति ana दं, श्रो श्रन्तो यस्य श्रोऽन्तः, AWE ware, अचो ` विशेषणं, निरित्यस्य उभय- aaa | मण्डकगत्या walfa भ्नुवत्तते, तथाच श्रज्‌मावनिः श्ओऽन्तनिश्च भ्रवि सन्धिं नाप्रोतोत्यथेः | तैन जाकु उ, जानु wa Waa, AY उ, ALTA मध्वत्र Tata नेर्गुणोभूत- लात्‌ सन्धिः(२)। अजोऽन्तः इत्येकटत्वे सिदे विभिन्रद कर णमेवं

(१) गो अयमित्युटादहतवताचाये अकार परे mae सज्विनिषेधोऽपि स्यादिति चितम्‌, away गोरति वा सज्िरिति cet सज्धिविभाष्यते ठत षा- ef frag अकारप्रजेषेण सन्धिनिषेधो विभाष्यते एत्य! शद्धा वा शब्दस्येति |

(a) रएषामचि प्रे सज्िनिपेधात्‌ अचः प्ररखेत्‌ सन्धिभं विष्यतीति क्य fafa | का-सि।

५६ FUNG व्याकरणम्‌ |

अञ्‌मात्र Warren निराङ्वजेः सथं नाप्नोति wa (2)! श्र-अनन्तः, ईष्वरः, उ-उभेशः, अष्टो Tara, ay एदि | aware किं

मर्यीदायामभिविधौ क्रियायोगेषदधयोः।

्राकारः afeq प्रोक्तो, वाक्यस्रणयोरडित्‌

भ्रालवबोधादैकदेशादालोक्योपरतैषरिः।

श्रा एवं AMAA, श्रा एवं तत्‌ क्षतं मया |

ज्ञापयति श्रोऽन्तनिमधिरलत्य यः रुन्धि; सोऽपि स्यात्‌, तेन श्रहो Wa, नो Wa इत्यादौ aaa qui afta योग

_ ~ - ~~~ eee -- ne

() (मूले wom इत्यषन्विकमङ्गोरव्याह) चयोञ्जन्त दरति एथककर णाटचपटरेन तन्मात्रं प्रतीयते| अन्यथा व्रजवद्रलजनिम इत्यादित अजन्त- सेव गाभ्भिःस्यात्‌। fag at दूति gen पाटेनापि stem) अन्तपहं Wey अन्लावयवोयमन्वेरेव निप्रेधो- नतु सव्ववर्यांनामिति न्नापनाणम्‌। ऋन्तावयप्रोयसन्धिश्च खशिपर एव सम्भवतीति च्वि पर एव निषेधः। aae- चयात्‌ यजमात्रप्रतयोरपि अचि पर एव सन्धिनिषेध दूति बोध्यम्‌| तेन अनन्त अरैशान अहो vane ef: wes, नच अनन्त कद्याटिषु awe सुख्िख्यानिवक्वामावाटेव सन्धिनिषेधद्छ vag इति वाच्यम्‌, यश्य यद्ध सज्विनिष्रेधस्तचिमिलतजमन्धेरपि निषेध दृत्यवष्यवक्रव्यत्वात्‌ | अन्यधा गङ्ग खत्र द्त्यादावपि यक्नारलोपः प्रसजेत्‌ आत एष अवगखित-मवमतावन्नाति चवमानितन्च परिभूते भङ्गलानन्तरारभ्धप्रञ्रक्ात्‌ सेष्वयो खथ ceracife: संगच्छते | नतु श्ण एहि caret अतात्परख gate: कथमितिचेत्‌ ani, यादौ war सिलोपे पदशंन्तायां पवादृदूरह्वानादौ yaa सन्धिनिषेधः दूति दुगादाषः। `

aia ca यद्यपि येन पिस्तटन्त्ेति न्यायात्‌ ोकारपदेन arar- रान्तो लभ्यते तथापि aay, खन्तावयव्य सन्विनिषेधाथे नतु षसटायद्य, तेन Kqraryy vere सख्धिःश्यषदेवेति का- fay

सन्धिः | १५७

विभागः कत्त (१) पूखसव्रादाशब्टं श्नावनुव्यं तस्य aaa विकल्पयन्ति, तेन क्ण इति wufa दरतावेषेति केचित्‌ | चकारोऽनुक्ञससुच्चयार्थः (र) यथा परे -

gata तु वास्य wars भरुविभाषया ।* पर्य्यायेण तयाददुहेदयोरन््वयोरपिं अनन्ययोरथाटूरे भवेत्‌ प्रल्यभि- वादने | Aa गोत्रस्य चैवान्याजस्तोगूद्रानसूयके श्रथ पूजा- प्रतिक्तेपानुयोगेषु (2) वाक्यतः इवान चिता योगै, तथा प्र्ोत्तरे तु रैः भ्रथान्तयाच्‌ घेदि सकलस्य प्रयये गेव भने श्रथ qae निन्दायामसूया सम्मति-करधि तथा विचा्यमाणानाम- धान्त्याजङ्गयोगतः त्यादि-सापे्नक-त्यादेराशिषि प्रेनिन्दयोः | ama सदानाञ्च प्दमाख्याने भवेदथ पूजा-परशच-विचारेषु तथा प्रत्यभिवादने एचः ब्रुखादिमागः स्थारन्यमागस्य युद्धे त्‌ः। नतु देच, इति प्राह लौकिके शांकटायनः |

वाक्यस्य मध्ये घौ WTS Qatar greta सति, खाभा- विक-प्रयन्नातिरिक्र-प्रयतोचरितलं दूराह्वानं तस्मिन्‌ सति | कष्णरे एहि, एहि awa, पक्त wate) तथा ( अर्द्र )“ऋ्धि्ो रुसेन्नको धावच्‌ carey yal स्यात्‌ TEA सति | रेवदर त्त एदि, एहि देवदत्त, पत्ते देवदत्तहि। asia fa ufe सु-

(१) Taq नजा योगस्स विभाग सखख्धिनिषेधः सज्धिञ्च भवतोत्यधः।

(>) अतुक्रानां ससुद्धयः सम्बन्धोऽथा यख सः। अव अपरेऽपि केचित्‌ नियमाः सन्तोति चकारेण दूचितमित्यथः।

(१) प्रतिक्तेपल्िरख्कारः, अनुयोगः Tari

५८ BUTT व्याकरणम्‌ |

रथरे Wa WATA Fau (१), सुरथेहि aafefafa awe एहि अन््ययोरनन्ययोश्च हहयो(२)रच्‌ QTE FETA सति। अम्ब हर्‌ हेरे wa, we अभ्व, पक्ते अग्रह श्रम्बरेहे हायम्बरे Bagi है wel मम्बोधनाघ॑दयोतकौ | स्लोशूद्रानसूयकभिन्रानां (३) प्रतल्यभिवादन नासा Tae धाव- न्याचः श्रुः स्याहा। अभिवादितन गुरुणा प्रयुक्ताभिवादक- स्याशौ; प्रत्यभिवादनम्‌ apa भव वशर, श्रायुष्मान्‌ भव गाग्यरे। नामगोत्रयोरितिकिं प्रायु्रान्‌ भव वल्ल! स्तौ- शूद्रादा तु श्रायुप्रती भव afi, MAA भव नापित, रायु WI भव जाय अदूरः्थौऽयमारन्मः. दूरे तु Gata | पूजा- aay वाक्छानामन्याच्‌ भ्रः स्यादा yaataaed ष्यपि- साधारणश्रुताधं (#) शोभनः wefa aay, aa भोः किमाययंर, wa यादमित्यायरे, श्रयमप्यदूराथः। इवार्थ- चित्‌शब्दयोगे वाक्यानामन्त्याच्‌ श्रुः स्यादा राजचिदूब्रूे राज वहदतौत्यधः प्रश्नोत्तर हे रन््याच्‌ श्रुः स्यादा | कटमकार्पं fee mae प्रतिवचनं | भत्‌ सनेऽयं दि रुक्गस्यान्याच्‌ पर्यायेण ्ः स्यादा कणरे कणेर Ay गम्यते, कर्णे Tel क्त गम्यते | निन्दायर्थषु देः पूप्वदस्यान््याच्‌ श्चुः स्यादा ब्रज्जनरे अजुन धिक्‌

(१) gay gafaata अन्याचः स्र्वाद्यादिव्यथः। AS

(2) we दति waar |

(३ Waray az: |

(४) qaUAwaRT TE WITAT |

सन्धिः | ५९.

त्वा मित्यादि इदमन्य व्राप्ुहनोयम्‌ (१) सन्दिग्धे aft तच्व- परीता विवारः, तदिषयाणां वाक्यानां पूव्वदस्यान्याच्‌ H: स्यादा अद्रे नु रब्नः। EWAN * व्यायन्त-सापे्तव्यादयन्तस्या- NLA: स्याद्वा | AF MSY YT बुध्यसे Trey | अन्यत्र Ay क्रोड WE कूज। ब्रागोव्याद्राद्यय्षु चानङ्गयोगीऽपि व्याद्यन्त- सापरेत्त्यायन्त स्यान्त्याच्‌ प्रः स्यादा | रुद्रं भजर चिरं जोव्याः। wa धान्यं लुनोहिरे अजाच्च Ta) खयं दुग्धं YER उपाध्यायं तक्रं पाययति

प्रश्नाख्यानयोः सर्व्वेषां दानां WTA ञ्जः स्यादा | WAR: alga यामन्‌ अग्निभूतेर्‌ अ्रगमरे' GAA ग्रामान्‌ भोः। पूजाद्यर्थेषु एच त्रादिभागस्य परुः स्यादा, . अन्यभागस्य युत्स्यादा तु हनिष्यन्नस्य एचः शोभनः, खल्वसि wags, पूजायाम्‌ (१)। आगच्छरेद्रः Hage अग्निभूतर्‌इ, Wa होतव्यं टौक्तितस्य wees, विचारे आयुष्मन्तौ भवतं वत्सरउ, प्रत्भिवादने। uy किं शोभनः खल्वमि eq) दूरे तु गोभनः खल्वसि wag दस्य एचन्तु भायुल्यौ wad कन्धेर इति पूर्वेण शः अत्‌ युतौ यत्र यत्र शरुस्तत्रेव विकल्यः, यत्र aarfa qfeafea: तत्र सल्यभावः, यत्ानवि तत्र प्रसङ्गादुक्तः श्च प्रकरणं छान्दसमिति पर शाकटायनस्त्‌ भाषावामपि अतएव लिखितमस्माभिः।

अन्यत्रापि चद्वाद्यखवपि, धिक त्वामिति।

go मुग्धवोधं व्याकरणम्‌

४२.। व्वहऽमौखे व्व-इ Ol, Tal ऊ-ए = रषे ।१। ) |

af निष्पन्नो sat शब्दो, हे fama ईदूदेदन्त् सन्धिं नाप्रोति।

अरमा, इरी-एतौ, विण्‌ दमौ, गङ्ग दमे

ae किं wera, बध्वधंः |

मयादायामिल्यादि 1 ware सोमा, afafafatfaenfa:, क्रियायोगो धातुना ae waar, ईषटर्णाऽल्याधेः, क्रमेणोदा- हरति आमबोधादिति। त्रा श्रामवोघात्‌ TARA भ्रा THEM एकरेशं व्याप्य हरिर आआालोकि सम्यकप्रकप्रेग दृटः ग्रा उपरतेरोषदिरक्नेजनेरित्यधः अ्रङद्टाहरति श्रा एवमिति मथादा महिमा, दूति ae, AWS तवान्तःकरगस्य एवं एताटणौ AAT, अथात्‌ .मया यदुक्त तत्‌ तयान कतं इति भावः ; तच ब्रह्मि agra वाक्यभेदे चेतमोति धरणिः भ्रा एषं भवना एताटक्‌ कथमुच्यते लदाया्मया यदङ्गोतं ततकृनमेवेति पूव्वंवाक्यीनन्तरं समरणं, उभयत्र afar |

४२। atl व्व दख तत्‌ तस्मिन्‌ श्रमो इति ga- प्रोक्तान्तं दं, खे इति लुतप्रोव्वं दं, ईश्च एथ त। भिव्रदाभ्यां व्वहयोः क्रमेणो दाहरति wal देणा इत्यादि गङ्ग दमे इति द-निष्यन्रस्य एकारस्य निषिधात्‌ पचत इमौ इत्यादौ स्यात्‌ | uaa wa इत्यादौ तत्रिमित्तलाव्राकारलुप्‌। अचौत्यनुवत्तते,

तन कामवाचकात्‌ MIG म्री ई, efa दधौ इति स्यादेव,

सन्धिः। ६१

४३। स्योदेतो |

( सि भ्रोत्‌ > स्योत्‌ !१।, वा ।१।, इलो ।७। )

a जात wart: सन्धिं वा नाप्नोति इतौ परे

विष्णो इति विष्श-इति विष्णविति | एवं मधु मधू। नजा निरदिं्टस्यानित्यलं तेन॒ असुकेऽत, भ्रतएव Weal मात्‌ पर ईदूदेत्‌ सन्धिनं स्यात्‌, अकेतु Wa स्यादिति परे, दें सम्येऽप्तमनोदये, मणोवादयश्च सिदाः। मणौ भ्रादोनामिकै एव नान्यत नतेन मणो wa मणो इति। ad भ्रादयसु-मणौ arated चेव जायापतो जम्पती | वाससो रोदसो चैव पैचुषौ carat तथा दति यद्यपि कादम्ब- खरण्डितदलानि पद्कजानि; प्रशस्तलिर्गखतानि केशिदन्त- लतानि, शात्रवं यथः पपुरित्यादौ इवा्थाऽपि वशनब्दोऽस्ति, तथापि इवे अनिष्टवारणाधमिदम्‌ waafafa अमधोर्भावे घञ्‌ wos (१) श्रमो रोगः श्रस्यास्ति भ्रसौ wat) बध्वधं इति बध्वा श्रय इति वाक्यम्‌ |

४२। स्योत्‌। सौजात श्रोत्‌ wea शाकपाधथिंवादि- लाब्मध्यपदलोपः। विष्णो इति। सन्यभावपत्ते ओरवादेशे श्रयामित्यादिना वा लुप्‌, लुवभावपक्ते विष्णविति। सौजात waa: गवित्यत्र WRT माभूत्‌ |

(१) जननध्र canfeat Wars |

मुग्बोपधं व्याकरणम्‌ |

४४ उज्‌ Warts वा। ( उञ्‌ ।१।, WATT ५।, तु ।१।, रचि 9, ।१।,.वा 1१। ) | उञ सन्धिं वा नाप्नोति दृतौ परे, णपात्‌ परस्तु वो वा स्यादचि उ-दति, विति ¦ किम्ब्तं किमु vay

४५। वेक्‌ खश्वाणऽसे। ( वा ।१), इक ।१।, खः १।, ।१।, WT ७|, WA a) दक्‌ सन्धिंवा नाप्नोति, खश्च वा BST परे, नतु से, दान्ते | mghsa गिरत area ।' असे वि-- दथर्चा

४४। उञं safe प्रग्राः इताविद्यनुवत्तते अरत are इतौ ut इति। षप प्रत्याहारः तस्म्रादुजो asta वेत्ययेः। इतोति पूर्व्वेण नित्यं fara प्राप्त विकल्यः। पत्ते fafa किम्बुक्तमिति सनत्रिपातलक्षणस्य विधंरनिमित्तलात्रनुः | रूपान्तरलात शमयुमाचक्षाणः wig उ, MA दूति Wi fafa इतितु garni a) णपाानुनासिको aaa | किमु उक्तमिति व-विधानाभावपक्े नाजोऽन्त इति afa- निषधः, उपदेशावसख्यायां केवलाचो ग्रहणात्‌ वागशब्द्व्यव- खया इतो sa: सानुनासिको घाटेशः तन a. इति इत्यपि

४५। बेक्‌। इक्‌ प्रल्याहारः। णं: श्रणस्तसिन्‌ शङ्कि अव्र इति खविधानसामध्यात्र यः। वाशब्दस्य व्यवखा- वाचितात्‌ अ्रदान्तऽपि कचित्‌, यथा ~ भ्रौ श्रत्ति, प्ररि अत्ति,

afar: | ६२

४६ क्यक्‌ | ( ऋकिं ७, श्रक्‌ ।१। ) I awa afar a नाप्नोति ऋकि परे खश्च वा स्यात्‌ | ब्रह्मा ऋषिः, ब्रह्म-ऋषिः, ब्रह्मषिः।

इति श्रच्‌-सन्धिपादः।

sata इत्यादि worse इरेरच् इति वाक्यं, इदन्तु ( १) भाष्यमते परे तु नित्यसवच्छनात्‌ नदा अग्र इत्यर्थे नदौ अन्धः, नदि अश्मः, aaa इति निले तु नद्यधमिति स्यादेव | ४६। ऋकि। गकम प्रत्याहारौ१ ware इति नानुवत्तते, तेन महा ्ासाह्षिश्चेति महस्कर्षि, मक्षि महषिरिति। तथाच उच्चाटिति-रुचिर-ऋचां चाननानां चतुणा मिति सूय्यशतक्े। भरतापि. नित्यसवज्जनात्‌ wal इत्यादि उदाहरन्ति केचित्‌। वा ee व्यवस्थावाचितात्‌ गीः पराच्छतीत्यादौ स्यात्‌ भ्रव्र "केचिदाहुः --“कऋतोरलाहद्लट- wat लोपस्ताभ्याम्‌ घश्च” ऋकारर्य ऋकारे परे रः wart परे लः स्यादा, ऋतो लोपश्च वा ऋदृदतोः परयोः, रलाभ्यां परयो ऊद्टतोचख पिदृणं, fed, frad पच्च पिटकणं, पितृणम्‌ SEAT, PIAA, TTA: पक्त हाल खकारः, होतृकारः इति प्ररे तु, ऋत ऋदृताहदृछद्भ्यां

eS > ~~ 9 = ~= = - +~" wee ~ = =

ee ine mm ee

१) समासमालवजनन्तु।

६४ मुगधबोधं व्याकरणम्‌ |

al Wal Y द्‌ Bar| ऋकारस्य ऋकारेण सह रेफभाग- CATH ऋत्‌, ऋकारस्य कारेण सहं लभागदययु्त aq वा स्यात्‌, खकारस्य तु ऋकारेण सह लमागहययुक्त नृ वा।

होढ ऋकारः, WS लकारः इत्यत्र CAAT, TATA | TAS ऋकार इत्यत्र TART पचे यथा प्राप्तम्‌ «Wea

तु वा शब्दस बाहुल्यात्‌ ऋकि ऋको च-समस्यभाव-खाः प्रवत्तन्ते | तथाहि faqd, पिढणं, पिद्टणम्‌ | प्राख्को घभावात्‌ “सद्धरेर्ध"इति चं कतेऽपि खः। स॒ रेफभागदययुक्घः | ऋकारे त्रयोऽज्‌भागाः सन्ति तन्मध्यव्ती तुरोयोरेफः। इकारभागः र्वा उपध उव्यभाक्‌ प््हभागवणाभो रेफस्तन्मध्य संखित इति श्क्लाकारवचनात्‌ ऋकारदयादेशे घस्य Wa रेफ भागदहयासिदेः तैन पितृत इति (१)। कचिदपवादविषयेप्यलरगो- ऽपि निविधते दति न्धायात्‌ यलायवायाव ति रलौ तेन forge, पितृकारः, गनुकारः। |

श्कोयलन्‌ aisha 1 शकः क्रमात्‌ यलन्‌ TW AT अरणं श्रचि ut) भ्रनावितो। दपियतवर, ayaa, कन्तुरत्, शक्तलतर | एवं सेऽपि। चियम्बकः, भूवादय इत्यादि, va दधि wa zaa इत्यादि | wa किं eaten | ofa कि-दपि तिष्ठति।

(१) रेफभागदययुक्ग ware तेन पितृणा भित्यन्ख टीकां टिप्पनी ufcfae Zea |

—— "~~ mice ee ee Sema es eS See etn > acacia

हस्‌-सन्धिः |

४७।. स्तु श्मिः BATA | (ag ।१।, चुभिः VM, TH ।२।, अशात्‌ ५। } | ARCA शकारेण चवर्गेण वा योगे शकारचवर्गौ क्रमात्‌ प्राप्रतः, तु शत्‌ परौ सचित्‌, शाङ्कि्नय भरशात्‌ किं प्रश्रः ४८। Efe: ष्यदान्तटोः | ( ष्टुभिः gil, az iat, अषि ७।, ब्रदान्तटोः yt) | ४७। सु शुभिः तुश्च तत्‌, चवच्चते खवः तेः, अवयवापेक्तया व्वं, यथा --अ्रचः.भ्रचामिति, ya तत्‌। इविषये व्वनिर्दशात्‌ (१) नञ्‌ तत्पुरुषः, कञ्‌ UT, WA तकार इत्यादौ स्यात्‌) एके तु अष्यचता्प्पिरिति ज्रापकौत्‌ दान्तचौः परस्य wea स्यादित्याहुः | TAT AY इत्यादौ चजाभ्यां qa इति केचित्‌ (2)1 सस्य शत्वं यथा aufaa इत्यादौ दान्तादान्तसाधारणोऽख्य विषयः, भ्रतणएवाद (न्ते प्रलु- दाहरति wa इति प्रच्छ धोः खपरकेत्धादिना ag, fas, at: शूटाविति छस्य शः

ae eer -०------०-> -.~ re et a ie eee --------- ~ ~

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(१) सुभ्यामितिकनतवय शभ रतिकरग्णात्‌

(२) “aq ऋचसन्विरिति अष्यचताच्येपपिरिव्यादिन्नापकात्‌ विभक्तयन्त चर्गान्तात्‌ परौ सकारतबर्गौ शकारचवर्गौ स्यातामिति बोध्यम्‌, न्नापक त्तापिताविम्बयो लक्तणमनुसरन्तोति न्यायात्‌ | तेन नजखम।सः शंजधात्रिन्या- दयः शिड्धाः। किच्च अचशु नजगु caret सभयोः परयोखवगख eq: ऽपि विमक्तयनल्याभावात्‌ चपः सख तालव्यशकारत्यम्‌"-- द्रति दु्मांदासः |

ge FUT व्याकरणम्‌ |

सकारतवर्गौ पकारेण टवर्गेण वा योरी षकारटवमौं क्रमात्‌ Maa, नतु षकारे परे, टान्तात्‌ टवगात्‌ परौ तहौका, च्रिर्टोकके। श्रषि विं सत्‌ ष्र्ठः। श्रटान्तटो

किं 92-4 | ४६ WAT षश॒वति षमगय्यः | ( १॥ )। एतै निपाल्यन्ते |

५० | FAA | (ले9, लः १॥ तोः al)!

ले परे तो लकारः ea) Awa, faerfaafa

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gc) एमि; एमिरिति पृव्वैवत्‌। 2a aq, a तस्िन्‌, carat दान्तः चासो cafa a, नसः अ्रदान्तट्‌ स्त्यात्‌ | TATA दान्तटवगात्‌ उच्चायमाणौ सकारतवगा- fara: | तेन षट्‌ सन्त इत्यत्र तनि छतं श्रदान्तलेऽपि प्रागदान्त- uaa ्टुलमिति। व्वनिदहंगात्र॒यधासद्यम्‌। द्यतु वत्तथवराह सकारतवर्गाविति श्रसापि दान्तादान्तयौव्विषयः |

४९। षाम्‌ THT षरवतिश्च षखगरो (१) ताः। शरतुकरणात्‌ aaa षरणामिति नुमि प्राप्ते णौ निपात्यते नवतिनगर्योदन्तटोः werent wa निपात्यते। नगरोति aifapfacary षडनगरभित्यतर खात्‌

५०। ले। aaa शति लौयत इति भावे wa; तस्य लय इति वाक्यम्‌ यदा alae ्रस्िन्‌ लयः, लयो यस्येति

eee = = ~ ~ =. _~~--~ tins -----~ ~~ -----* me ne न~ +

(१) wat नगरीति दु्गादाषः, wat नगराणां समाहार xfa mates: |

हस्‌-सन्धिः | | ६७

यलो fend निरनुनासिकः सानुनासिकः | जमोश्नुनासिक स्तेन तत्स्थाने सानुनासिकः ५१। स्रो नुं MST ( मोः ६॥, नुः १।,.मासि On, श्रदान्त ) श्रदान्ते खितयो मेनयो नूः स्यात्‌ भसि ut) रंस्यते, वुंहितं। विग्रहः | ननु यलस्य सानुनासिकत्वं कुत इत्यत श्राह यलो दिभैत्यादि। नास्ति रो यस्मिन्‌ सोऽरः, यल इत्यस्य विशेषणं तथाच रभिच्रयलो feat द्विप्रकारः, एको निरनुनासिकः अनुनासिकलत्वधश्मरहितः, (१) अपरः सानुनासिकः अनुनासि- कत्वधग्मसदितः। तथाच शि्ाकाराः--्रन्तस्थन यरलवा ईषत्‌- wet, रेफवज्िताः दिप्रमेदाः . सानुनासिक निरनुनासिक Say | जम इति, जमः WPT | अनुनासिक इति अतु पश्चात्‌ नासिकया sad a: सोऽनुनासिकः। TAG अरनुनासिकणएव तेन हेतुना तत्स्थाने श्रादेशः सः सानु- नासिकः स्यात्‌, निरनुनासिक <a | विद्ालिखति carat सानुनाभिको लकारः | एवं Awad संब्वत्सर इत्यादि ५१। Sl) मचनवच तौ तयोः। दान्तोऽदान्त स्तस्मिन्‌। रंस्यते इति रम धोः स्यते वुंदहितमपि हदि aet कत, इरिचावुन्‌, अनेन नस्य जुः |

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(१) निराज्ञढ दूतिवदत्र खतुनाशिकथन्द्ख धम्डैपरतया faga: |

६८ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

५२। अपे जम्‌ नो |: जपे 9, जम्‌ ।१ नोः ६॥)। ‘sera fare नो जपे पर अम्‌ स्यात्‌ | शान्तः, श्रदधितः। ५३। वा त्वर्यपेऽरयम्‌। ( वा | तु 1१, ATAT OF, WTA ।१। ) | दान्ते Were वा खितस्य नो रेफवजेयपे परे रेफवजंयम्‌ वा स्थात्‌। यमो ऽनुनासिकः। यययम्यत यंयम्यते, हरिम्रज हरि

भज कम्पते इति पत्र निलयम्‌ | at किं रंरम्यते

५२। जप Toa प्रत्याहारौ शन्त इति शम्‌ धो क्ते जमुजोभस्यणाविति a, पात्‌ पूर्व्वेण नौ कतै Waa A: | afga इति अकिक्‌ sent (१) क्, इम्‌, नुण, पश्चात्‌ पूर्व्वेण नौ, छते Tat ङः wa yaaa aiftagqaw तबोरेव ङम्‌ तेन जंजप्यते द््यादौ निधे, किन्तु प्ररसूत्रेण विकल्यः (2) भापोति क्षतं सिद्धे जप दति करणात्‌ इन्दांचकार इत्यादौ आमोनो नं नित्यं जम्‌, गौरवादर्थाधिक्छमिति।

ual ata नास्ति afaq सोऽरः, भरर्ासौ यप- afa तस्मिन्‌। एवं अरथामौ यम्‌ इति सः। avait VATE | Weta इत्यनुवत्तते, सिंहावलोकितन्यायेन दान्त इत्यपि; श्रत श्राह दान्तेऽदान्ते इति यंयम्यते इति यमधो

यङः जमज्ञपत्यादिना नुण्‌। इह सामान्यनोग्रहणात्‌ यम्‌।

१) wag faganacufafa दुगादासः। (२) sama इत्यादौ जमजपेत्याटिना अहुखारागमेन तद ay खान जातत्वाभावान्र निद्यमिबर्धः।

इस-सन्धिः ६९

५४ दान्ते मो ऽसबाजो इसै नुः। ( दान्ते,ऽ।, मः ६।, श्रसम्नाजः 21, इसे 9, T १। }। दान्ते स्थितस्य मख इसे पनुः स्यात्‌, तु सम्राजः | , शिवंस्तोति। ब्रसम्बाजः किं सम्राडिति `

Ud aaa वंवम्यते, saad, लंलग्यते इत्यदान्ते। दान्ते तु स्यन्ता, संयन्ताः, WANT, WANT, Waa:, daa इत्यादि कम्मत इति कपि चलने, तै, ददि्छाबरुण, a नृरितिनौ कते जपे जम्‌ इति | वाशब्दस्य व्यवस्थावाचिलात्‌ हकारस्य व्यवधानेऽरयपरऽरयम्‌, तेन fare, किरः, किंवह्वलयति किंन लयति, किंल्‌द्भादयति किंह्वादयति, fare, fag’ , किम्‌द्मल- यति, किंदह्यलयति (2) 1 ae इति किं —fe हादयति ,

५४ दान्ते . दस्यान्तोदान्तस्तस्मिन्‌ | AAS WATS तस्य faaafagarq संराजते ` इत्यादौ स्यात्‌ (२)। “at विरामे” इत्यन्यः। रामं, रामम्‌ | दान्ते किं गम्यते इसे किं ? श्रहमव |

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(१) “नमयवलाः परभूता यिन्‌ तस्मिन हकारे परे पटान्ते मकारस्य स्याने यथाक्रमं नमयवला वा भवन्ति। यवलाः सादुनासिका निरजुनासिकाख भवन्ति, Re a सानुनासिक्रानाभेव पिधानम्‌ FA इति KE अपनयने Fa छल सञ्चलने घटादिः ह्य इत्यव्ययं गतदिनमभिधत्ते। काटो सखे दूति Mayas: |

(२) दति शब्दन were शब्दो यञ्ञि ee aas वच्छंनमिति बोध्यते | efeq— येनेष्टं राजसेन मण्डलेश्वर यः। शालि यथ्यान्नया रान्नःस Valencia तेन शं योभनं राजते Se चन्दर इत्यत्र खादेवेति दगादासः।

७० मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

५५।. पुंसः सन्‌ खणम्परेऽस्ये | ( पुंसः ६। सन्‌ ।१।, GT 9।, श्रमृपरे ७।, WS 9 ) | पुंसो मख सन्‌ स्यात्‌, WAT खपि परे, नतु ख्ये | खो किलः भ्रमृपरे विं- पं्ोरम्‌ | wea विं deta |

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५५। पुंसः रम्‌ प्रत्याहारः भ्रम्‌ परो यस्मात्‌ तसन्‌ स्योऽख्यस्तस्मिन्‌, खपोत्यस्य विशेषणम्‌ पुंस्कोकिल इति guia alfaaata रति वाक्यं विधानसामर्थ्यात्‌ पुन स्यान्तलुक्‌ एवं पं्करोति पुमितिपदं करोतीति वाक्यम्‌ पंखानमिव्यादि | पं्ीरभिति एंसः रमिति वाकम्‌ पुं ख्यात एति पुसा स्यात इति वाकयम्‌। सन्यतुनामिको नोव समसु सुमि सब्रपि। 'नो रलुनासिको वा स्यात्‌ सनि, सुमितु समः सन्‌च वा शात्‌ सकतानां (2) maifea सवेष (२) इयोदयोः | APA भवन्त्यष्टावष् स्युरनुनासिके | मतै dten at Sar; कज्लट-गरुतिपालयोः (2) avait संसत deat संस्सुक्षता dean संसक्ता dent संस्स्कर्ता संसस्कता saat संखन्तं संस्स्कर्ता संस्कर्ता संसक्ता TM संस्पस्कतां कज्जट गुतिपालयो

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(१) Baa Tat वणानां! (र) Bat सक्तानां | (१) कल्लटसरुतिपालयोलराख्य रैग्राकरणविपेषयोः।

दस-सन्धिः। ७१

५६ नो ऽप्रशामश्कते (नः €| अप्रगामः ६।, छते ) | दान्ते लितस्य नस्य सन्‌ खात्‌, WAIT छते परे, तु प्रणामः | शाद्धिम्डिभ्ि, चक्रिं्ताहि श्रमृपरे किं सन्‌त्‌सरः | WANA: किं प्रणान्तनोति ५७। कांस्कान्‌ a’: पिवा। ( कांस्कान्‌ ei, न: ।१।, पि on, aT ret) | कांस्कान्‌ कान्‌कान्‌, नु :.पाहि नुभूपाहि

मतमेदात्‌ षोड़शरूपाणि (१) केचित्‌ सनि मलोपे चल्नारि यथा--सस्कतपं सस्कर्ता ACHAT VAT TATE;

५६। नो। aun ana ael ण्धिन्डिन्धि ईति छिदधोटि खश, नणो न, 2fa:, सनि वानुनासिकः शाङ्धि - fafa इत्यपि चक्रिंस्वाहि इति तायते इति नताः, at 4 आचरेति क्ति, fe, wafer, wa तु ब्राधुरदादिरप्यस्ति इत्याहः सानुनासिक चक्रिस्वाहि इत्यपि

५७। at. कानिति दोवान्तस्य कानिति stared, नृन्‌ इत्यस्य पकारे सन्‌ वा स्यात्‌ कास्कानिति। सानुनासिक TSI सनभावपतते कान्‌ कान्‌ बोष्ठार्थे fe: नृनित्यस्य

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(१) “fewarcaa wart fawart quad साहखारसाजुनासिकमेटात्‌ षटप्रकार, ada दिककारमेदात्‌ इादशपरकारमेतदेव wie दयितम्‌" इति गोयोः चन्द्रः!

७२ मुग्धषोधं व्याकरणम्‌

Wo | AU ea श्चकन्‌ शस्‌सश्सिवा। (HU 2a ङः i, चकन्‌।१।, W शस्‌ श्सि9, AT Ig!) | दान्ते fare नस्य चन्‌ थे, णस्य ठन्‌ शसि, zaat स्तन्‌ सै,

छश कन्‌ एसि, स्यादा WAY: TY TTT: YAT- षष्ठः सुगणषषटः, षट्‌ तृसन्तः षटसन्तः, सन्स: सन्‌सः, WITT: प्राङ्षषटः |

५९ चपोऽबै जब्‌ | (चपः ६, भ्रवे ७, जब्‌ 121) | दान्ते fare We ag स्यान्‌ रवे परे। वागोशः, चिदटरपः।

———

पकारे पञ्चधा-नः पाणः पाहि नस्ाहि। aaa निपा तनात्‌ सन्‌ विश्व पचे नृन्‌ पाहि नु साहि दति परे |

AS) COAG A, नश्च णश्च नच्च इन्ध तत्‌, तस्य एष्वकार BACT) चकः प्रत्याहारस्तश्मान्रमितं करोति, तेन चकन्‌, तथाच चकोपितच्तुणां इत्यधेः, भ्रतएव यथाक्रमं दशयति दान्ते खितस्येति सच्छम्भूरि्यादि- नस्य चनि छते श्रागमो Tae सदुग्रहणन Wee (१) इति न्यायात्‌ नखादा- ara सरोर्नुरिति तुः, पञ्चात्‌ अपै अम्‌, शहोषपादिति वा eI चनभावपत्त सञ्‌ TT सुगणट्षष्ठ इति शसः TATE लश्रापनाधं सूरन्येनोदाहतम्‌ | एवं ठनि वा छत सृगण्टशभः सुगरटशम्भरिति, एवं सुगण्टसाधरिति argue श्त्यारि 1

(१) ABA वश्य स्यानजातः। ACTFUA WHA तहत्‌ नायते vars | अन दुर्गादाषः-मणटन डः दूय पश्चम्यनत्वे चकि ठतेऽपो्टसिद्धौ wae wag विधानं aaa चनादीगां' पटानला्मिबाड्‌

हस्‌-सन्धिः।

&०। अमे अम्‌ at | (AR 9, जम्‌ 121, TTR) t दान्ते fare चपस्य जभे परे जम्‌ वा स्यात्‌। WaT: एतदृसुङुन्दः | ६१। लये।.(७))। त्ये मै ut दान्ते खितस्य चपस्य जम्‌ स्याच्रित्यम्‌ चिन्मयं, वाङ्मयम्‌ |

Se eT A, TE LE TS ES Mea RS

५९. चपो saad) waren | परवकारेणावप्रत्या- wit न्नापयव्राद चिद्रूप इति

६० SM प््मैसूत्राचप इत्यनुवत्तते रच यद्यपि अन्ते चपजवाविति विधानात्‌ (१) वाकारं विनेव एतदुमुङुन्द इति सिध्यति (2) तथापि वाशब्द एवं तनापयति, विरामाभाषे दान्ते भापश्चप्‌ एव, विरामे चपजवावित्रि, तेन (३) परसूत्रस्य साधे कत्वमिति wage इति |

६१। @1 दान्तसितस्य wre नित्यं जम्‌ स्यादित्य्ः। से जणनङाभावादाह लये इति विदामकमित्य्े मयट्‌ |

[1 LE RS A AL ASA

(१) चपजवाविति विधानात्‌ वच्छमाण-कपभसोरिति Ga द्रति we: |

(२) दूति शिष्यति -एतद्शङृन्द द्यत्र एष चासौ कुन्देति समासे लप्र faufaaaa दान्तत्वे fax विरामपरतया wel जवि aa टकारो मवध्येषेत्या- शङ्भयाह तथापोति। Tagune saa तु दान्तत्वेऽपि तिरासाभावात्‌ wT भसोरित्यनेन AT

(३) तेन अत्र खबरे विकलपविधानेन | अन्था चिटमयसिश्यनिरं ara |

98 quad व्याकरणम्‌ |

६२। शरोश्वपात्‌ वामि ममी (शदो; ६॥, चपात्‌ ५।, वा el, भ्रमि 9, छ-भभौ १॥ ) | दान्ते खितात्‌ चपात्‌ परयोः श-हकारयोः क्रमेणामि पर क-भभौ वा स्तः तच्छिवः तच्‌शिदः वाग्घरिः वागृहरिः। afa fa—araatiafa | ६२। स्वामडोऽचि fe: | ( खात्‌ ५।, णडः १।, अ्रचि ol, दिः et) खात्‌ परो दान्ते खिती wet fe: स्यादति at | TAN, TAA; प्र्ङ्डा ता |

= न= नकन ee —- = -- ----- ~--~ --~- ---~ -~----~ ee ~ ~ -~~------- --

६२। शोः Ta wa तौ तयोः, छव भम्‌ तो, भम्‌ ्र्हारस्तम्पिन्‌ च्छव इति चासौ शिवश्चेति वाक्यं, पतते तच शिवः एवं वाकूुत्तः THAT TAHT वाक्‌. श्मशानं ; अनयोः परयोः शस्य नेच्छन्ति चान्द्राः (१) वाग्धरि- रिति, एषां यो येन इति नियमात्‌ प्राक्‌ समो भम्‌ पथात्‌ चपो जब्‌ व्रि्टुगूभसति तिषटवृहसति इत्यादि |

६२। खात्‌। WE प्रत्याहारः सुगो इति सुगणयति दति fata, wareda fe: खादिति किं- महानयं, were | सनयडन्तो दहिरिति fae व्य-णडो दिनं स्थात्‌, तेन सनन्तात्र सनिथते इति भष्टवार्तिकम्‌ सत्रिच्छायामिति निर्हेयाच सूत्र

(१ अनयोः लकारमक्रारयोः शख दइत्वसिति शेषः. तथाच "लमृपरख्य नेति कातन्त्रम्‌" दति सक्निप्रसारमृत्रम्‌

हम्‌-सन्धिः। ७५

६४ कोऽचः। (ष्टः ९, भ्रचः५।)। अचः WERT दिः Arq |

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कतं विकृल्ययति नजोऽनाविति निर्हशात्‌ अनो fe: तेना- नन्तः भ्रनेक दत्यादि (2) | ६४। Bl Wa प्रत्याहारस्तस्मात्‌। दान्त इति arg

वत्ते ABRAM शदो खपादित्यादिना वानुवच्यं तस्य व्यवस्या- वाचिलात्‌--

परस्परानपेक्षायां दात्तात्‌ aeta वा भषेत्‌ (२) |

अरमाङऽलात्तथा विश्वजनाटशेति कौत्तितम्‌ i यथा - तिष्ठतु gal sia देवदत्तेव्यादि (२) नित्यम्‌ | माङ्वज्निताभ्यां amet विकल्यः। मौरैच्छप्या Wer, कष्णरेच्छिन्धि auafafa माङ्मु माच्छादयति। दांन्ता- दिति किं ेच्छयति, पूर्वेण नित्यम्‌ विश्वजनच्छतं विश्वजन- छतं, दधिच्छाया दधिद्काया sarfe छान्दसभित्यन्ये (४)।

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(१) ‘aq areqatiratat चिष्योरिति, यहनन्दिपचादे णिननान्‌ षे दति, सनृयडन्तोहिरि्यादिन्नापकादसमासेऽस्य faust बोध्यः। तेन सनन्त यडन्त तिडन्नाः शिद्धाः। सलिब्गशास्त्ः cafe द्यादौतन्नापकसिङखयानित्य- त्वात्‌"--कासि।

(२) uceuta यत्र नालि तल्लापि पट्ान्तरो्षादत्तरग््छो नित्यं भेवति SAA अत्रानेकाचार्याशामसम्प्रतिरेव-- दूति गोयीचन्दरः। aa Haas] एाद्पदृख परस्पररमन्वयो ख्यात्‌ TAME: |

(३) नात्र परस्यरापेक्ला, वार्यो भिन्नत्वात्‌ - इति Mates: |

(४) अख wae sat अचीति पाठः awy एकेषु ga, संप्रसार $पि "'द्ोऽवः" इत्य eal “अच SHURE: सर प्रे हिमवतो लक्रम्‌।

og मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

अचो ERAT यपः। TA पराभ्यां हकाररफाभ्यां रभित्रयपो दिः स्यादा wea प्रतत, Ofer Sem, सूयः सूः, शै qu: serie) अचः विं-संङटते | यपः विं-वषा अरग्रहणसुत्तणयेम्‌ |

खाटनचि। खात्‌ परोऽरो यपो feat स्यात्‌ अ्रनचि। Sema संयन्ता, कुप्यते HI खात्‌ किं-वाखोः भ्ररः fai-wir, | अ्रनचीति किं-दधि। विरामेऽपि-नक्‌ नक, अरन्‌. भिव्लात्‌ (१) घौदपीति कैचित्‌-वाद्‌ वाक्‌ वाग्‌ cere

रात्‌ स्‌ शफात्‌ परः शस्‌ वा दिः स्यात्‌ Tafa | मम्यते म्यते | अनवि किं मधेणन्‌ |

यल-गप- खप-शसेभ्यो णप यल-एष-खपाः। र्यः एतै क्रमात्‌ इयाः UAL! उल्का उल्का, VE: शलः, amit ait, स्कन्धः खन्ध इत्यादि

पुत्रादि-पुतरपुत्रादिनोस्तोऽनाक्रोणे | पत्रादिन्‌ इति शब्दस्य पुतपुत्ादिन्‌ इति शब्दस तकारस्य fe at खात्रलाक्रोगे। एतान्‌ पुत्रपत्ान्‌ वा अत्तं Mawar सा gafet एवा- दिनी पुत्चपुचादिनो पुतपुतरादिनौ, व्याघ्रो मलौ वा केचित्‌

अन्न गोयीचनदरेण “खरे परे पति इन्तौ प्रमादपाठः, यतो नेत्‌ पाणिनि सवै वमौचनदरादिन्डतम्‌ | एवं सति हौच्यते यादौ हितं खात्‌" Laat खरे परे दूति निराज्लतम्‌ होच्यते इति हक set दयस्माह्वाबे ते।

कातन्तेऽपि दिर्भापं खरपरब्डकारः" दूति तरे टीकाकारेण “ATTA पर दूति ततृपुरुषः ya: खरः परो यस्मादिति wee: तेम Beata FT दभाव, विच्छयते इति faute एवे' सुङ्गम्‌

GQ) यजञभिघत्वात शिरामस्येति गेषः।

हस्‌-सन्धिः। 99

६५। WORT: खस्‌भावो BATA (ROMA: ६॥, खस्‌भ वोः On, चपजबौ १॥, अन्ते O1, च।१।)। भप-भसयोः स्थाने खस-भबयोः परयोः क्रमात्‌ चप-जबौ

स्तः, facta शिवच्छाया, weer |

= = wee

पुच्हतो पुच्जग्धो इत्यपि “are: saree कि-पुत्रादिनो yayatfeat वषलि भूयाः | मू-नो-वयः। एते दयाः AT उर + + कण उर?१पेण्‌ उरः; केण ue उर + केरोत्यादि परस्परानपिचायाभित्यादि शाकटायनमते, TARA तु उपेतं" Zhe प्रति मेदाभावात्‌। लोपो वा य-समभसे इसादुय भासस्य | Taq परस्य यस्य ये WIA समभसे लोपः खात्‌ वा।* आस्ये भवं MWe आस्यं, wad (१) इयते जगयति ऊमयति पिष्टि fawet- त्यादि। षात्‌ किं, शय्यते wat) भसस्येति कि, शाङ्गम्‌ समेति किं तक्षी अभ्व-वभ्न-मभ्चां रोये। एषां रस्य लोपो वान्स्यात्‌ ये। WAG वभ्यते मभ्यते, aA भ्रश्यते इत्यादि | ६५। WAL भपादयः प्रत्याहाराः क्रमादिति- WI खसे चपादेथो AAS wat भवे विराभे ती तथोः स्यातामित्यस्याधः प्रकीर्तितः शिवच्छाया इति शिवस्य हाया इति वाक्यं, छस्य छोऽच

प्रि

(१) wet लेमे गतो Kae भावे र्पम्‌ |

वि-षथिः।

६६ वैः सोऽशसन्ते छते | (वेः ६। सः १।, श्र शसन्तं OL, BA 9) | वैः सकारः स्यात्‌ WATT छते पर एषणधिन्यः, र्ट. कप, विश्णुखाता शसन्ते तु-कः त्सरुः | ६७ सै तु क-ख-परफे वा। (से, तु 1१, क-ख प-फ 9", वा ।१।) |

~ - -- - ~ --- - ------ -- -* --

इति feasea gare चः। च्छतोति weer (१) निश्चला चपः ay वा परसि | चपस्य खथ स्यादा शसि दवश्यामा दक्‌ श्यामा भ्रफ्सरा; ्ररराः षद्सन्तः ALA, तथ्‌ षष्टः AAV! | शसि किं वाग्हरिः। |

दूति हस्‌-सन्धिपादः।

६६ वेः। भस्‌ श्रत्ते यस्य सः, सन्तः WMATA | छत्‌ प्रत्याहारः तस्य. विशेषणं तेन भषन्तभिवरे छते इत्यध; कष्णथिन्ः दति, भगेन से कतं चवगयोगात्‌ शः। एवं हरिष्टौके

zai} इत्यत्र गात्‌ षः |

६७ सेतु। सः समातस्तसख्िन्‌ | भाखर इलादि, भासं करोति, भासा खरस्तोच्छः, भासां पतिः, मासा पैररिति वाद्यम्‌ | परे तु भाःकर इति नेच्छन्ति | ब्रतरादुः-

(१) नजपूबवोत्‌ शो य॒ लूनी द्यदम।त्‌ पातो इर्ये ्ियां रूपम्‌ |

` वि-सन्धिः। 92.

वैः सकारो वा स्यात्‌ क-ख-प-फेषु परेषु, से सति भाष्करः भाःकरः, भाखर; argu, भासति; भाःपतिः, arene भाःफंर्ः |

सदा ऽयस्तमसौ; कार्ड वास्तोर््वाचो दिवःपतौ | भ्रातुः Ya शुनः कणे पिण्डे तु मेदसो मतः | नमः पुरः क्रियायोगे तिरोऽन्तर्धौ पराभ | निरदुराविवदहिः-प्रादुशचतुरान्तु कखे पी | श्रव्यासो ऽपरदखस्य पाश-कर्णीःकुशा-क्षञि काभि-कंस-कुम्र-पाते, पटे तु स्ाच्छ्रोऽघसोः। SOU: क-ख -प-पोऽथा सेपरि वा स्यात्‌ क्रिया रये | हिशतुस्िशक्षत्वोधऽधाव्यस्य सश्च वेरपि, क-काम्ब-कल्य-पाशेषु, TATA वेः सदा | TH सःषःकखपफे वाशब्दस्य व्यवखया।

HT Ae वः सः स्यात्‌ काण्डादौ Fafa) श्रय्ाण्डः तमस्काख्ः वास्तोष्पतिः, वदष्ठादिलात्‌ षः, वाचस्मतिः दिव- aft: भ्रातुष्पुत्रः, इकः सः TT Tf षः, शएनस्कशः, पञ्चभ्यः ष्या wan) Acfaw: | क्रियया सद से नमःपुरसो वं; सः AMAT नमस्कारः, नमः शब्दस्य सात्तादादिलात्‌ वा सविधानात्‌ नमः; aafa च।

अन्तधानपराभवयोस्तिरषो षैः सः तिरस्करोति तिरस्कारः तिरस्त्य, वा स-विधानात्‌ तिरःक्षत्वेति |

निरादीनां कखपफेपरे वे; सः। निष्क; द्ष्करः श्रावि-

to BUNT व्याकरणम्‌ |

कारः वरिष्कतं meq चतुष्कपालमित्यादि | सव्वं ष्कः सःषःकखप्फ faa

पाशादौ 2 श्रनुत्तरदखम्य श्यवललंस्याऽसन्तख वैः सः। श्रयो लोहः पाशो we sae, भ्रय द्व ॒कर्णाव्या- भ्रयखकणी, wegen wat: भ्रयस्तुशा, भ्रावन्त- faemq श्रयः-कुशोति। श्रयः-करोतोति saad जाति- fata: | वजः कामयते aaa: wae: | जयन्तस्य कमो ग्रहणात्‌ श्रजान्ते माभूत्‌, तेजः कामः भ्रयखंसः (१) चतुःष्टिपलामकपरिमाणाधंग्रहणात्‌, न्यत्र श्रयःकंसः; श्रय- au, प्रातिपदिकग्रहये लिङ्कविश्ष्टस्यापि ग्रहणं Ta: भ्रयस्कभोति J ण॑ ara श्रयस्मातौति। safe fa w: कामः। श्रपरदसयेति किं, wang कामाधैयधःकरोषु इति ate: |

vere परे भिरोऽधसो वेः सः 81 शिरस्यदं quad | से किं शिरःपटे करोति, sac? करोति श्रपरदखसयानुदततः प्रम-शिरः पदं परमाधः-प्रदम्‌

दसन्तोषन्तयोः से aft ae Fat षैः सः। सपिष्कुण्ठ यजुष्पाठः से किं तिष्ठतु aft: पिवोदकम्‌। भ्रपरदखस्यानु- हतत; परमसपिः-कुखम्‌ |

श्रध क्रियया परख्मरापेक्षायां इसन्तोसन्तयोरसेऽपि way षैः सो वा। सपिष्कुर्‌ agus, पै aft: कुरु ag:

(1) अयसः कंस इति षरहीडभाषः।

fa-afar: | ue

६८। शसि शस्‌ ( यसि ७॥ शस्‌ ।१५) I वैः शस्‌ बा स्यात्‌ शसि प्ररे रिश्ते हरिःगेते, सन्तष्षट्‌ सन्तःषट्‌, शिवसश्सेव्यः शिवःसेव्यः |

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ug, श्रथशब्दात्‌ पर्दखस्येति नित्त, तेन परमसपिष्कुरु परमयजुष्यठ इत्यपि क्रियान्वये किं, परममपि; कुण्डम्‌

दहितिचतुरित्येषां कखपफेषु षैः सोवा सात्‌ वारेऽथं। दिष्करोति त्िष्खठादति चतुष्यटति। प्ले fe: करोति इत्यादि | चक्षलोऽये किं, चतुष्कपालभिति पूर्ण नित्यम्‌ ¦

श्रयानन्तरं aaa सस्य कै, कादौ नित्यं सः खात्‌। कस्येदमयः Wasi, आमन: पवैदच्छति पयस्काम्यति, पयस्कल्पं, धनुष्पाश इत्यादि अन्यस्येति कि, अधः, श्वःपाश्र; |

रेफस्य वैः काम्यभित्र कादौ सः स्यात्‌.। Wes, Tee, wan इत्यादि काम्येतु गोःकाम्यति। अव्येति किं खः- कल्पं | अयसाण्डाटेराक्तिगणलात्‌-

TAY कः कः इत्ययं कसः, एवं कुतः; कुत श्रागतः कौतस्कुतः क्रिवन्तः सद्यःकरोस्तत्र भवः क्रतुः साद्यस्कः, सदा- सकारः, FEMI LAT | अयस्कार्डो लौहमेद इत्यादि

TH परस्य वेः सस्य षः स्यात्‌| प्रयोगा यथाख्यानं दशिताः। (2)

६८। शसि शस प्रल्याहारः ₹दरिश्शते इति से ad सिच

१) afer पुस्तके अतर ""चतुम्कपालमित्याटौवेः से टान्त्वात were दकः सः दत्यक्र"मित्यभिक्तः पाठः।

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टर्‌ HUA व्याकरणम्‌ |

ge |, कख-पफयो मन्यो | ( कख-पफयोः ७॥, मन्यौ १॥ ) वमौ क्रमात्‌ वा स्यातां कख-पफयोः परयोः ` हरि + काम्यः हरिः काम्यः, मणे + खनिः at: खनिः, कृष्णणपाता HU: पाता, भक्ति"्फलति भक्तिः फलति ७० अतोऽहव्य; | (भतः ५।, अत्‌-हवि 9, 3:21) | श्रकारात्‌ UY FHT: स्यात्‌ भ्रकारे इवि परे शिवोऽयः, शिवोवन्यः |

सन्तष्षट्‌ Tara भ्रषौतिविजेनात्‌ vad शम्विधानमिति, तेन श-परे शष-साः स्ुरिपय्धः। खपान्ते afe लुव्वा खपान्ते शसि परेवे लप्‌ स्यात्‌। कथचोतति alata कसतीति पके कः अतति इत्यादि

६९८ AQ कश्च खथ तत्‌, पथ फथ तत्‌, पथात्‌ कखच्च पफञ्च ते तयोः | मण्डुकगत्या WEA इखनुवत्तते, तेन वासः aa, कः णाति saret gan a erat) TIRE व्यवखा- वादिलात्‌ ख्याधौ खात्‌, तेन शिवःख्यात इत्यादि

७० | WA | इव्‌ प्र्याहारः परबकारेण। अपोऽक्‌ समो कटक्चेति न्नापकात्‌ dafaenre (१) शिवोऽयं इति षैरुते श्रता eat शुः, पथादकारलोपः ; अन्यथा उकारस्य वः स्थात्‌ (२)

(1) gafae ura अतोऽडगयुरिति खमे अतोऽत्‌ दूति निदंशात्‌।

(९) अन्न अशसन्त इया तुत्त नालि, अनिष्टतवात्‌, तेन राभोऽश्रातीति खारेवेति दुगादाः।

वि-सन्धिः। ty ७१। अ-भो-भगोऽघोभ्योऽबे लुप्‌

(अ भो .भगोऽघोभ्यः yu, अवे Ol, लुप्‌ ।१।) | अवर्णात्‌ भो भगो श्रघोभ्य्च, परस्य Fag स्यात्‌ अवे परे रद्रा नमस्याः, भो रे, भगो रक्त, भ्रघो यज | ७२। वाचि। (य।१।, ariel, af)! अवर्णात्‌ भो भगी अघोभ्यश्च परस्यवे af वा स्यादवि पर शिवयुग्रः शिवखग्रः Wawa मो Waa |

O21 Bat: भो भगो रघो इति सम्बोघधनस्येकदेशानु- करणम्‌ (१) ! परसूतरसापेक्ललात्‌ serfa नोदाहृतम्‌ श्रव- प्रत्याहारः परबकारेण इत्याह रद्रा नमस्या इति | नमस्या इति नमःशब्दात्‌ नम्रस्तपोवरिव त्यादिना क्यः, नमस्यः, तस्य घुसंज्ञा, ततस्तव्यानीयया इति डे यः, पश्चादसाल्लोप इत्यकार- लोपे, लोपो वा य-समभसे हसात्‌ य-समभसस्येति वा यलोपः, ततो लिद्गसंक्नायां स्यादयुत्मत्तिः ,

७२। यवा शिव उग्रद्ति वेनपि सनिः यद्वयस् faquem सिव, ईषत्युषटतरो योऽनेन विधौयते वाशब्दस्य व्यवस्धावाचित्वात्‌ भ्रवर्णदचि at दान्तो वा लघुप्रयब्नरतरावपि स्यातां, तेन तयाया; तयाः, yaar रायाः पटवेहि uzafe पटएदि लपुप्रयत्रता हि उच्चारणखयानशेधिल्यम्‌ (२)

ननन -- ~ ---------~ ~ ----~--~-~---------~---"~---~-- ~~~ ˆ~"

(१) मोः भगोः अधोरि्येषां fra विहवेत्वथेः | (२) शेयिल्यं मन्द्प्रयलता

८४ aad व्याकरणम्‌ |

७३ रिचो sey (र।१।, इचः ५, अवे 9 ) इचः परस्य वै रेफा wed पर हरिरयं, aaa: | ५४ रोऽचः। (ce, wey) अचः परख रेफस्य पे रेफः स्यादवे परे | तरातरव, धातगंच्छ | oul खपिवा | (afro, atin)! श्रचः परख रेफस्य रेफः स्यादा खपि परे। Mua: गोग्यतिः गीःपतिः

~~~ ~~~ ~~

एवं उजिश्रात्‌ यः (१) तैन देवदत्ता एकविंशतिः, देव-

दत्त एकः, Wa निलयं वैनुप्‌

oa) fea रदति ganged)! खरूपभङ्गनिरासाय अनुकरणलाद्‌ वा विः, इव्‌ प्रयाहारस्तस्मात्‌ ब्रतापि श्रव- प्रत्याहारः परकारेण इत्याह चतुर्भुज इति, चलारो भुजा यख दति वाचम्‌ (2)

os! रो। रदति षोक्रन्तंद्‌। ae इति छते सिह OH ग्रहणं-प्रायम्‌ | (र)

७५। खपि MUTATE | AANA से तु कखपफे वेत्यतः इतयनुवत्तते, तेन इयं गोः पतिरसाविल्यादरौ UIT I

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(१) उजि परे अवर्णात्‌ परद्य Fal छात्‌ |

(२) चतुभज दूति साभान्यविशेषन्यायेन पर्त्र्योदाहरणं सवितष्ठचित- fafa नाशङ्ूनोय, कायिगतविपेधापे क्षया तत्‌पूर्छनिमित्तगतविरेषखानरङ्गतवा बवन्वादिति afaq |

(३) पर्छते रचोऽलुष्टत्तिं विना wpUlafcanefartcay: |

fa-afar: ८५

गोपंतिरिति गिरां पतिरिति वाक्यम्‌ गोष्यतिरिति श्रय ष्काण्डादेराक्ञतिगणलात्‌ से तु कखपपफं वेति वैः से, दकः सः षः इति षः उभयव्यक्ञपक्षे (१) गोःपतिः गोव्वीण इत्यादि एवं श्रहपति" ब्रहस्पति; wenafa: श्रहःपतिः, धूप॑ति; धुष्यतिः pout धूःपति। यदपि सामान्येनोक्तं तथाप्यभिधानात्‌ way (२) |

एकाधिकरणे प्रचेतसो was) प्रचेतसो वैः रेफः स्यात्‌ वा एकाधिकरणे राजव्रिति शब्दे परेनृतुसे। हे प्रचेता राजन्‌ प्रचतो राजन्‌! एकाधिकरणे किं जुहुधि प्रचेतो राजन्‌ गच्छ सेतु प्रचेतोराजन्‌ भोः (2) नान्तग्रहणात्‌ Tae (४) प्रचेतो राजन्‌ गच्छ |

(१) खपिवेतिसे क्ेयुभयोरमरापनपकतं इत्यथः |

(९) एतेन निर्‌ भुर अहन्‌ एषामेष विसमगेख् पतिशब्दे पर खादिति श्ञापितम्‌ अतएव आशो पतिः गीःणढ त्यादौ खादिति इरगदासः। गोष्मतिरित्यव “xe निपात्यमिन्न्छे" cafes: पाठः| संलिप्रसारे तु सन्िपादे १६५ dea aa गोष्पतिरित्यसापुरिग्युक्रम्‌ | ° :

अमरटोकायां गीष्पतिशब्द्‌ तु “गिरां पतिः va कस्कादित्वात ery fcfa रघुनाथः| भरतस्तु “fact पतिः गोष्मतिः सेतु कखपफेवेति स., मनोषादित्वात्‌ wea, साभाव्रपकते कपफयोमून्याविति उपाप्मानीये मीर्पतिरिति ; तद्भाव ua खपि वेति रेफे गीर्पतिः; तदृभावपक्ते frame स्थितिरेव, गौमपतिरिति। एवं चाद्यं चन्द्र-कीरसामि-वोपरेव-स्ुभूल्याटीनां सम्मतमेव | अतएव गौष्पति- रित्य्षाधुरिति कश्य चिहठचनं ya मिया |

(३) प्रचेता राजा यथेति विग्रहः।

(४) Muna राजघातौ परेन Cares |

८६ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

७६ ATSY रकौ | (न 1९ TH: ६।, रक्तो ओ) अह्नो रेफस्य वेरेफो खात्‌ रेफके क्तौ परे। Ea: श्रदस्करः, TEI: | 09 | हयेतत्तदोऽनञकः सै लप | ( इसि ol, एतत्तदः ५।, TAA ५।, सेः ६। लोपः )। नञकृवजञीदेतदस्तदश्च परख वे लोपः स्यात्‌ हसि at | एष aw: fay: | भ्रनञकः किम्‌-त्रसः; शवः, एषकोरुद्रः |

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oe) नाङ्कः रच्च ee fae तत्तस्तिन्‌, सो्रलान्रुण्‌ Va ware विशेषपरत्वात्‌ राशिरूपरथन्तराणां (१) रेफेष्वेव, तेना्ारजनौल्यादौ निषधो स्यात्‌| श्रहोरात्र इति एकटेणविहञतमनन्यदडवतीति न्यायादिति ati aay रेफ ara निषैधात्‌ ्रहोरजनो श्रहीरमशोयमिलयाह, wa sa रेफ- इति (२)। सिलोपे च। we: सिलोपे वैः tata? | दोरघाहो Ww: Eat हेमन्त दल्यादि। F किं way. हेमन्तः लोपग्रहणात्‌ लुकि माभूत्‌--दीर्घाहषैनम्‌।

७9 एष तत्तस्मात्‌, नञ्‌ TH चतौ, तो > विदय यख्य तत्तस्मात्‌ सैः विं Tere गम्यते

था नाना" नणि

(१) Came साम। (२) सखहोरान्न इति न्न।पकाट्‌।चायं चन्द्रभतमेवावलसम्नितमिति बुष aaa इति।

fa-afaz: | ec ददि garg: | (दुः ६," fe o1, घे; १।, च।१।, (AAW) = HT ६। ) दकारस्य टकारे परे, रेफस्य रेफे परे, लोपः स्वात्‌, TAA WITT घः रूढः, इरोरम्यः। अनुः fa—azg: | दूति व्ि-सन्षिपादः। दति qaqa: |

en:

ut पादपूरणे | श्राभ्यां AA लोपः स्यात्‌ पादपूरणे waar, एष इति प्रोकान्ते परे + यथ -- सैष दाशरथी रामः सेष राजा युधिष्ठिरः 4 . एवैष (९) रथमारुद्य मथुरां याति माधवः पादपूरण इति fa, एष च्िणोति, एष एथिवोपालः पालयामास भेदिनोमिति। एषेति fa, एव ग्रोहरिः पाया- डईेवक्यानम्दवदैनः | oc) Vl sa रच तत्तस्य, A अद तस्य BF शति रदौ जन्यां क्त, We, ठभात्तस्य धः, भिरिति धस्य ठः, aaa लोपर्घौ। ae इति avy हे, a, ऊदि्लादिमो- sara साधनं पूव्यैवत्‌ वि-सन्धिपादः (2) | सन्ध्यध्याय sfa-- एका्थावच््छिव्रः पादसमृदोऽध्यायः

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Q) wae दूति माधवविशेषणम्‌, ware दित्वम्‌। (२) wa कचित्‌ एत के लोकोऽयं टश्यते--

at | Arad व्याकरणम्‌ |

रयः | श्रजञन्ताध्यायः। स्ना | ७६। सै-सि भौ जस्‌, भम्‌ श्री शस्‌, टा भ्याम्‌ भिस्‌, भ्याम्‌ भ्यस्‌, उसि भ्याम्‌ भ्यस्‌, इस्‌ Tr राम्‌, fe ओस्‌ सुप्‌ (लेः सि-सुप्‌।१॥ ) स्यारोन्येकविं्रतिलं; प्राणि प्रयुज्यन्ते AW eS पा; सि-ङस्योरिकारघेतः। col far Wa at at a ot aT | ( विशः ।१॥, प्रो--खः १।॥ ) | स्यादोनि, aif तरीणि क्रमात्‌ at st at at a ot at amfa & | oe] M1 स्यारीनीमेकविंशतिः waa दं, सौव्रलात्‌ taal पानां fa ङस्योरिकारस्य ae faery ्रनिर्दिशालात्‌ खाँ wafer खयादय इति खयैषम्बुजा्य marfzar ब्रथेनियमः कायः, wat तु खादौन्येव विधोयन्त, श्रतो नायं व्यधः | col fami चोगि atfa fam: ated चम्‌ प्रा

शरीमहोपदेवचसा eatayenteat सन्ध्यध्याय एव विट्तस्तखामला टिएपनी। संसाया जातहदयानध्वानसन्तापििनो श्रीरभेण पाणिनिमते garg सन्तन्यते |

ONT | GE

८१। amet fe धिः। ( सम्बुद्धौ ७, सिः १।, धिः: ) 1 सम्बोधने विदितः सि fade: स्यात्‌ ८९। स्यमौजस्‌ घिः | ( fa aq भ्रौ aa | et, fa: १। ) fa aq भ्रोजस्‌ एते धिमंन्नाःस्युः।

दोनां च-सः प्रोचेव्यादि। परेतु waar, हितौया, ढनोया, चतुर्थो, पञ्चमी, षष्टो, सप्तमौल्याहः। ग्रन्यक्तन्मते प्रयाटेनदादि- पाठादौप्‌ ्रतएवाभे सदानुक्ञेऽसादिप्रयाः, क्रियान्तःकालाष्व- नो ota इति स्वौ लिङ्गनिरशः aa: |

cll सम्बुदौ। सम्बुद्धिः सम्बोधूनं, चेतनाचेतनयोः खितयोराभिसुख्येऽभिधाने, at fafeaa ata fraser: एके तु वेकश्यादिना श्रचेतनस्यापोल्याहः weafefifa परे।

८२। wal! सिञ्च waa Wa जश्च तत्‌ प्रममौषि- रितिक्षते सिद्धे स्यमौजम्‌ इति ad, सुख्यलाक्षणिकयोमध्य सख्ये काथसंप्रत्यय इति परिभाषाज्ञापनाथम्‌, तेन सख्यावित्यत् atfafefa त्रि; स्यात्‌ (१) श्रम्‌जसोमंध्ये पाठात्‌ भ्रौकार- इयस्य ग्रहणम्‌, अन्यथा व्युतृक्रम निर्हेपो व्यधः स्यात्‌ सब्वे- नामखानसिति परे |

a a cre ee यान > -~---*---~--~----- ee ~ -~----- ---- ——e ad

(१) दादिपटितखेत यौकारख fads, तख स॒ख्यत्वात्‌ : तु यख कख. चित्‌ ख्याने जातस्य, तस्य लाक्तणिकत्वात्‌ इत्याशयः |

०१२

he AAT व्याकरणम्‌ |

८३। far ati) (शिः ९, ate 9)। नपुंसके fata धि सन्नः स्यात्‌ | ८४ दानवत्‌ सभि ( दान्तत्‌ ।१५ रमि 9)

सभयोः परयो SAAT ATA सात्‌ |

८५। भी लिष्वो इसभासोगन्ते

( भौ on, निष्वोः au, हमभसोः On, अन्ते ७, Tiel) |

= > ^+ ~ Cw Cn जव

भौ प्ररे यत्‌ काय्यं वच्छम ततस TAT ख्यात्‌, WaT चतयोः |

cat शिः क्ती fatafa एवकारेण गिभित्रा यवच्छिद्यन्ते, वारिणो इत्यादौ नमवमहत्र इति श्रः

, ८४ दान्तवत्‌ ्रधिकारात्‌ स्यार मभयोटान्तलाति. रणः, तेन Yat पुभ्यामियाटरौ वायम्‌, नतु रंस्यते waa इत्यादौ मनो ननिषिधः |

८५। भोनिष्वोः | Rena धोभमन्तं भिरि्यथ्रः | faye mad भिरिति ad fas Uae, नद†न्ते धोर्दान्तादान्तयो- भिकायैज्नापनाथ, तेन कम्बाता शकृस्याता इत्यादौ स्वाैरिति HATA: | MATa, sel, wats waz, श्रवक्‌, प्रथक्‌ इवादौ मकलोप-ट-षड-कड-घाः स्यः (2)

11) कस्त्राता दूत तर दरति त्रिभि हतैः संयोगः, तेषु रेफो भिः, तखिन्‌ re wt xf Watney दानलाभावात्‌ खादः सोलोप दूति aay: | एवं शक ध्याता CAAT कलोपः, MAA, Bala, अवोद एषु agar ऽपि

aa | et

८६ | इसोऽन्तः फ़; ( हसः १।, भन्तः.१।, फः ९1

हसो fanaa फसंन्नः स्यात्‌!

८9 सव्वं fara उभ उभय भवत्‌ aq लवैकं aa faa नेमाः, अन्यान्यतरेतर डतर डतमाः, त्यद्‌ तद्‌ यद्‌ एतदिदमदः किम्‌ Bae युष्रदः, पुव्व॑परा- वर द्त्चिगोत्तरापराधरान्तरखाः fa: |

( सब्ब- नेमाः cil, अन्य - SAAT ९।।, त्यद्‌-युखदः Vl, पूव्यै- खाः et, खि: १। )

--~ -- -- ~~~ -~-- ~ ~~~ ---~-~ ~

८६ हसो अन्तः परे aaa: | fafea— प्रागभावः ्र्वं्ाऽत्न्ताभावय | इह तु प्रष्व॑सालयन्ताभूवयोर्महणम्‌ त्रन अरुणः पयः रामः द्या दो atfa: | दस इति दभेदः स्यादिहस- ज्ञापनधेः, तेन anitatat a fa, वष्टि इत्यादौ डः\१)। aise फः इति क्रते दान्तातिदृशात्‌ (२) wit राजभ्यां पुभ्यां पञ्चानां इति fae wane, मुख्या णिकायो म्ये सुख

काथसंप्रयय इल्स्यानित्यत-ज्ञापनाधं, तेन राजतः |

यथाक्रमं THANG VASA) WAZ, अवक, अधोक्‌ एषु दान्तत्वेऽपिभौ परे AS: AS घाः भवन्तीति

(१) “ee दृह qeta, War नः फर्मी्यन फरहकेनयेट सिङ्गी मवयोः शयगमहणा रिति दुगादासः।

(२) सभयो;परयोरिति शेषः,

९२ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ | दभेदो गणमेदा्धः एते पश्चतिंयत्‌ शब्दाः सिसंन्नाः ख्यः।

समो STS, व्यवखायां Yarra ऽवान्तरो ऽरि वहिर्योगोपसंव्यागे, खस्न्नातिधनाभिधः

_.. ~ ~~~ ~ -- - - -~~~ -~ ----" -- ----~1----~---------

८७ | wa) सर्वश्च विष्व्चेति च-सः (१) | लत्‌-लौ भन्धाय- व[दकौी Ut तु लच्छब्दं नाह; (२) डतर -डतमौ a, येन विधिम्तदन्तस्यति न्यायात्‌ तटन्तानां ग्रहणम्‌ | एश्गन्यतरसखय ग्रह- गात्‌ अन्यतमस्य fads, तेन ्रन्यतमाः अन्यतमायेलादि | भाषे तु अ्रन्यतमस्यापि शिसंन्नाविधानात्‌ saat भ्रन्यतम- fafafa उभ wawat सिभन्नाफलं(२)--उभयोः faded उभधने, भवत्या धनं भवदनं, लतेलयादि |

` समोऽतुचय swrfe | समं, सत्वसमानयोरिव्यमरः। सम-

_... --- - ~~ ~ --~---- --~-- - -~-- ee ~~

(१) सिद्धानक्षौषदयां “आमि सर्वनाम्न ष्ट" (ऽ ।१।५२) इति दत्र ew उभयगब्दृख हिग्चने नास्तोति कयट", अस्तोति इरदत्त TAHA गोयौ- चन्द्रोऽपि game २९२ Ware “ए क्रवचनबह्धवचनविषयस्तु उभयग" द्याह क्रमदोश्रे चुबलषारे “Yatguat जसि वा" (229) दूति सूत्रयित्वा उभयशब्दग् जसि वा fadsuaq “swat अमित्रा दूति त॒ डान्दसलयादोध्य fata तच्त्वमो धिनी | शिम स्वा धरः, नेम दत्य |

(२) तत्वबोधिन्यान्तु “जयदेवोऽपि प्र'युङ्ग-तदधरमभुरमधूनि पिवन्तमिति, लत्तोऽन्यख्या अधर दूति विग्रहो नतु तवाधर दति * * > aaa सषा aaa CAAT |

(३) Sq gat इत्यनेन sun eat विभक्तय wicafa फलस्‌ | तथाच “उभौ Ba उभाभ्यां हेतुभ्याम्‌ उभयोद्ृत्वोरिति अन्यथा षष्ठो Sanat इति षठ खा पटिति कातन्त्र चतुटयरज्ञि २। VARGA VHT |

संक्ञा। é3

शब्दस्य सकलार्थे वत्तमानस्य fads नतु समानार्थे WH प्रयोगं वच्यति नमः समस्मादिति। arerat qatar इति "दिगृदेशकालवाचिता व्यवस्था, तस्यां पृव्वरयो नव स्िसंन्नकाः, यद्नं- पन्वादयो व्यवस्थायां स्युः सव्वैनामसंत्नकाः | व्यवसा कथिता लोके दि गदेशएकालवाचिता इति

श्रन्यत्र दत्तिणाः प्रगाधकाः प्रवोणा इत्यधेः | उत्तरा; कुरवः, पराः लोकाः येष्ठा TAH, अचराः कनिष्ठा इत्यादौ area चेति निषेधः (१)। एकै तु. स्वाभिैयापेच्यावधिनियमो व्यवस्था ; अवधिमेयादा सोमेति यावत्‌ ; aaa खाभिक्षेयानां दिग्देशकालानां ate: कार णलत्वेनापेत्तणोयो "योऽवधिनियमः सएव LAE! |

श्रत्ान्तर दति wa पूर्वादौ, पूरपूस्तस्यां, वह्र्योगो वदहिःसम्बन्धः वाह्य इति यावत्‌, उपसंवोयते श्रपिधोयते यत्‌ तत्‌ उपसंव्यानम्‌, esac, वहिर्योभिभिन्नं ag केनचिदाच्छादित- मेवोच्यत (२) तथाच वहिर्यौगोपसंव्याभयोव्त मानोऽन्तरशब्दः पूभिन्नविषयः fads vam अन्यत ब्रह्मशिवयोरन्तरे विष्णुः मध्ये इत्यथे: |

(१) fay व्यवस्थावाचित्वाभ।वाद्खिषेष इत्ययः।

(२) केन चित्‌- वस्त्रान्ते णेत्यथेः | वस्तान्तरेणाच्छादितमधोवास उपरषव्यान- fafa यावत्‌| sag संथिप्रसारे gaa २९६ ख्यकस्त्रे “Bar याटका शुप्रपरिधानीया अत्यः" इति।

९४ HUANG व्याकरणम्‌ |

च्ट गौण्यास्याचवीसासे |

( ।१।, गौखास्वाचनोसासे 9, )

गोले, संज्ञाया, चे, ws भ्रसे च, ते fader aa | ce) Fafa atl (aor जि on, atier)t

34 fata a a afa az |

afmatfe—aifay wag a, ofa ae a, a a: भ्रत्नातिधनाभिषः, तथाच ज्ञातिधनवाचिच्छगब्दस्य खिमंन्ना waa: | यथा-खाय धनं ददाति, खाद यतत दरिद्रः खस ज्ञातम, खश्नाडनादिलते ज्ञातिधनयोः सामानाधिकरण्य वतमानः खणब्दमते (१) नाभिधत्त इति (२) |

CO} नगो। मध WaT तत्‌ सासं, त्राः सामं alata, ग्य भावो are, गोश्यव् aren "थ तमाम तत्‌ तक्िन्‌। गोखमप्राधान्यं, ara: दतीयासमासयोग्यवाक्य, तै पच्च विंश्च्छन्दाः। प्रयोगा wa वच्यन्त--ग्रतिसव्धायेल्यादयः।

८९ * चे yam faafaay प्राप्ते विकल्माधमिदम्‌ |

(१) तेन्नातिधने Kara: |

(२) “तथा परेषां युधि वेति पाथर" दूति प्रयोगदृशनात्‌ “aur समुद्राद्परे परे दपा दूति दृ्भनाङ्च MATER प्रेठवाचकखापि VEN सब्नामतयस्‌। “aur दयेषामपि मेरिनीग्ताम्‌ ` इति माषटथनात्‌ हयश्दोऽयन्न गणे पठनोयः। तथाच श्रोपतिः- कतिना हयमणत्न गणे पढते, अपिशब्दात्‌ प्रथभप्िमावपि। शरणदेवस्वाह - व्य्रस्यितविभाषया ऽन्यत्रापि खागमदति। प्र्चिप्रथमावपि usage, तेन पञिमखां दि, प्रथमस्मात्‌ इति प्रयोगः - द्याह कातन्त्र चतुय २५ संसक्ते कविराज; |

संज्ञा | ९१

९० पूर्व्वाद्यल्य प्रथम चरम तयायाहेकतिपय- नमाः (au) एते सप्रदश शब्दाः feta at स्य॒ जसि परे | ८१। तीयो fefa | ( ata: १।, fefa or) तोयान्तः शब्दः fads: स्यादा ङिति परे ९२ पृव्वौऽन्याद्ङ | ( Ger: १।, अन्यात्‌, wl, उड ।१। ) अन्यात्‌ वर्णात्‌ पूर्व्वो ay SSAA: स्यात्‌} <३२। अन्लाजादिष्टिः + ( अन््याजादिः १।, fe: et) अन्त्यो योऽच्‌ तदादिवणेष्टि संज्ञः स्यात्‌

at दिग दिग्वाचकानां 2 खितानां खिसंन्ना स्यादा उत्तर- पूञघोदिशोरन्तरानं या दिक्‌ सा तस्ये saga, उत्तर- qara fen इत्यादौ दिगृवाचकानूं at खिसंन्नति।

eo) पूर्व्वा सप्तदशेति पूर्वादयो नव, तयायौ ait हौ, अन्ये षट्‌ |

९१ | तोयः | व्यस्य त्यखरूपैनानवश्थानादाह तोयान्त इति |

९२। Gal we भवोऽन्यस्तस्मात्‌, दिगादिलाद्यः | BE, उपधा इति परे

९३। अन्त्या) अन्योऽच्‌ where स. wat afa- विष्टानां well योऽच्‌ तदादि रित्यधेः | यत्र तु wa: परो नासि

९६ मुखवीपं व्याकरणम्‌ |

<४। लुकि तव | (तुकि 9, ।१। ततर or) t टुगिति लोपि क्ते यो queafing परे यत्‌ कार्थं Aa ATT! eu खरादि-नि-चिचं व्यम्‌ | खरादिनि-रिद्यं १।, वं १।)। खरादिगेणो निश्कारेतस्या व्यस्ताः खः |

--~-------- ~ ~ ~~ - ~~~ -- ~ -- -~ ~~ ~ ~~ ~ -- ~~~ ~~ ~ re eter ~~ ~~ ~~ ens

तमेकस्यैवान््ाचो व्यपदेशिवरेकस्मिन्‌ इति न्यायात्‌ (१) वयप देशिवद्वावेन fea, तन हरौ शम दयादौ इकारादेरलोपः | ९४। तुकि लुशधोः faa, चयङकादिलात्‌ (२) कड्‌, लुक्‌ पुलिङ्ग: | ततेति निमिरष्षमो, तथाच-लुक्‌ शब्देन यख लोपः क्रियते तव्रिमित्तकपूरखकायं खादियर्षः | , ९५। खरादि | .खरादियख सः, यस्य चित्‌, चिश्वा- सौ wate वियः darq चसः। खरादियधा- खनं aa aa वं निकषा सामि खयं fae सवस्ति प्रादुरतौव भोखि सना प्रायः ME TAA a ald aq vi fear किन तिरोमिष्या fam खः पुनः, सायं नाम चिरं fate सहमा दोषा विनोषा वहिः

"-----~- -- "~ ------- ~ - ~ *---------- - --- - -- ---~- --- - ee ~~~ ---~ ~~~ ~~

१) ea Brew sc प्रवे ४) संख्यङ्रिष्पन्यां gear |

(२) wefcaa निष दश्चधातोरुपत्यये यथा च्य तधान्ापौच्धः| दथा wifaata न्वडकरादीनाश् (912130) कुलं खारिलुङ्गम्‌ तकं वागोपेनापि चजोः कगोरिति शूबटोक्ायां न्यङक्रादोनाश्च। एषां चजोः am a’ इति वार्तिकं हतस्‌। गायौचन्दरेय त॒ सुवनपारे प्रथभश्व्ररीक्रायां ˆ शुगिबब्युलञ्चं नाभ aya: कवन कपमि"य्गम्‌

सन्ना £9

भरस्याहो we व्चिराय Tasty जोषं fat कु TH,

साचिद्राक्‌ परमं aot खल at द्यः सुष्टु दिश्या चिरात्‌ |

नोवैरोषदये विषा यदि मनागव्वागभोच्छं एयक्‌

तृष्णोमा सपदि wae भटिति arey सद्यः क्ते

TAI ननु प्राध्वं युगपदत wafa |

SUIT सनाग्रातः समन्ताद्‌ TAT:

प्रागन्तः साम्प्रतं स्थाने विष्वक्‌ प्रति fates |

चिररात्राय धिङ्मङ्क चिरस्य हो.ऋते शभम्‌

WET ऋषुगमाड्वाय हिरुक्‌ स्युः कुत-श्राटयः।

तसन्तादास्तथा प्रोक्ञाः येषं नेय प्रयोगतः (१)

कुत-्रादयः कुतः-क-कुहेत्यादि सत्र ये निपातितासत |

तसन्तादयाः तम्‌ दा fe दानीं we स्तात्‌ एन safe भरात्‌ aa wea) खरादिपठितानां aad

ee Se ==> ~ ==

१) कारिकोक्ता अवययशन्द्‌ाः-

स्वर्‌, नक्तम्‌, सभया, दथा, व, निकषा, सामि, खयम्‌, निःपमभ, खस्ति, WEN, अतोव, भोम, दव, सना, प्रायस्‌, TAG, दुःषमम्‌, कम्‌, कामस, 7G, शम्‌, fer, शिन, तिरस्‌, मिथ्या, fare, शरस, पुनर, Tae, नाभ, चिरम्‌, feta, सहसा, दोषा, तिना, उषा, वहस, अखि, आहो, अट्‌ अ. वत्‌, चिराय, कट्‌, Gly, जोषम्‌, चिरम्‌, कु, प्रगे, साचि ZA, परमम्‌, WI. खलु वरम्‌ ह्यस्‌, ay, freq, चिरात्‌, tee, दषत्‌, अये, विद्ा, afe, मनाक्‌ अर्वाक, अभोच्छाम्‌, wee, aig. ऋ, सपदि, प्रसह्य, भटिति, प्याट्‌ अङ्ग, सद्यस्‌, ठते. ऋञ्मसा, नतु, च, प्राध्वम्‌, युगपत्‌, वत, सम्प्रति, SYS, अस्तम्‌, सनात्‌, प्रातर्‌. समन्तात्‌, बलवत्‌, सुस, प्राक्‌, अन्तर्‌, सास्भतम्‌, स्याने, fawn, wefa, कि्भिल, शिर Trae, धिक्‌, ag, face, हो, Ba, गभम्‌. अद्धा, BYR, Wal, aga, हिरुक्‌, ga-aIea , तसन्ाद्याः

au AMAT व्याकरणम्‌ |

Ed | PASTA: खः ( हसः १, श्रनन्तरः १।स्यः )। ञ्जचानन्तरितो हसः DAW: स्यात्‌ | <७। युत्‌ म्बाव दौ (युत्‌ ।१।, खो ।१।, एव ।११ दी ।१। ) | इदन्तो नि्यम्बोलिङ्गो टोस॑न्ञः स्यात्‌ | चारीनां यौतक्षलम्‌, ग्रतएव चादि-खराद्योः परथशुक्तिः खरादि- राक्घतिगणः | at ब्रव्यय्मिति oF | ९६। SH | नासत्यन्तरं यस्य मः। अरचाननरित sfa- अ्थाटचति maa, अनन्तरतः mated इत्रः स्यः, संयोग इति पर ` ९०। aA 1 इथ wa at, ताभ्यां तमित करोनि, तन tga नभ्यते येन विधिम्तदन्तसयेति न्यायादा Seca दरति एव शन्देनाम्तो लिङ्गः व्यवच्छिद्रते (१) (२) सेनान्ये स्ये carat स्यात्‌| बद्प्रयस्य कृष्णाय अ्रतिलह्मयां रज्जि इति श्रवधवम्तीलात्‌ (३) fasfafa भाष्यम्‌ ग्रन्यकक्मते तु बहु

Tae श्रतिनच्मौ इति टो, aelfa णे

(1) अस्तीनिष्ं नियस्तोलिङ्कमिन्नं व्यवच्छिद्यते निराक्रियते। freee लिद्रगद्धस्तु “य खन्रय यद्रपेण स्वौलिङ्गगन्टस्तसिनद्रेवाच तदूपेण्व afe लिङ्गा at भर्जति तदा नि्स्ोलिङ्गः तेन गोरण्दृदय पुस्वेऽपि MTS ननित्यस्योनिङ्गत fafa दुर्गादामः।

(२) तेन सेनानीगन्दृश्च नि्यदछोलिङृमिन्नतेन |

(३) अवयव स्ीत्यात्‌ WITTY प्रेयरोग्द्ख TRA नि्यस््लीरिङ्ग-

मन्ना | fe

स्८। नास्लोयुवः (न ।१।, Wa ।१।, LAA: ६।) इयुवखानीवोदूतौ दौसंन्नौ स्तः, नतु स्तौ | €< | वामि (ariel, afao )। युव ईदूच टोसंन्नो "वा खादामि परे, नतु स्रो १०० | wal युच्च fefa | ( स्तो ।१।, युत्‌ 1१।, ।१।, डिति जअ ) स्तोनिङ्ग इदुटन्तो निलयस्त्रोलिङ्गः इयुव age Chis: स्याद्वा ङितिपरे, aq at |

€८। arat) यृदिव्यतुकंत्ततं स्रो wet) इगुव- सखानाविति,--खानमस्ति यटोस्तौ, अण-आदिलादः, स्थानो ; इयुवोः स्थानौ इयुव्स्थानो, दटूलावित्यस्य विशषणम्‌ | एतन टो्नानिषेधात्‌ 2a: यम्‌ faa दत्यारी ष्यमृशसादेर्नोपो स्यात्‌ श्रस्वोतिकिं-ह fea ata स्वीरिव्यादि।

ee. वामि द्युव दरदूदन्तौऽस््रौ चेत्यलुवत्तेत अ्रस्ती- aa. स्रो णामिति निलयम्‌ |

१००। ll चकारात्रित्यस्त्रौलिङ्गः sya इदृदन्तोऽस्ती चेत्यनुवत्तत, इह पुनः स्तौ ग्रहणं पाच्चिकस्तोलिङ्गस्य ॒इदुटन्त- स्यापि प्रा्यथेम्‌। तेन मत्ये मतये Fa धेनवे सुमत्यै सुमतये

~ === ~ = ~= --~ = "न~~ ~ ~~ ----~** =

लात्‌ अनर दुर्गादासः ^ TAT AAT प्राकप्राप्रा नदोमंन्ञा पचात्‌ Veatch निवर्तत दरति मन्यमानौ दहे अतिलच्छि विप्र, हे aetate aU, अतिलच्छतर "विप्राय धनं देहि, अतिलच्छप्र US खतो्युदाहरत दति

१०० सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

१०१। अष्यचताच्येष्‌ पिः ( अरष्यच्ताेप्‌ igi, fa: १) | धिवरजस्यादेरच तसंज्नावचयकारावोप्‌ एते पि-संन्नाः स्युः १०२। संप्यावडडलयतु-कहु-गमा नेपि | ( संख्यावत्‌ १।, डति घ्रतु-बद-गणाः eu, ।१।, दपि 9 ) | इत्यतु-बह-गणानां सहयावत्‌ काय्यं स्यात्‌ नलोपि |

gia gaat इत्यादि इयुदसानयोरोदूतो सु नित्यस्लोनिङ्ग योरेव, तेन सुधिये स्ये cared स्यात्‌ द्युव ईैदूतोरपि पु मिवान्यदा्थे मूरिथिवे भूरि afer भूरिुषे fra, aft यणा भूरिता भूरिभृणां भूरिभुवां स्तीणामिवयादौ cesta ्षैचित्‌। वाशब्दस्य व्यवखया विगत aI वो; wa caret शसि दसंन्ना, तु डिति, तेन विगत cre ये १०१। WAT! नधि -रधिस्तस्याच्‌ WA, रच्च यश ती vat, तौ तो wat चेति ता, wae तायो ga तत्‌। नजयुक्षवश्चायादाह (१) धिवजस्यादेरिति | १०२। संख्या संख्या एव संख्यावत्‌, डतोति त-त्यानस्य (२) ग्रहं, तेन पतिरित्यस्य ग्रहणम्‌ (२) ब्रतुशब्देनाल- AA ग्रहणम्‌ AEA TATA | एतषां संख्यातिदेशः कतिश

(१) नञयुङ्गवद्नमायात्‌ निषेधो यच्जातोयद्य विधिरपि तच्लातीयखेति

न्यायाः | (०) तत्यान्तद्य तद्धित डविप्रययानद्। (३) प्रतिष्न्श्य बोणाटिक ज्नर्‌डतिप्र्यनिध्न्नलात्‌। `

अजन्तपलिइ -शब्दः |

रामस इति सिते--

१०३ | arfa: फी (सोः au, fai, फं )। सकाररेपयोविः स्यात्‌ परे Wa: | श्रोजसोः afar: | रामौ रामाः।

Smee मयं ~ ~~~ -

afam: यावच्छः तावच्छः बहशः WAT: दूत्यादिसिद्यथेः | saifa विषयो, aa निषेधात्‌ यावतो बद्नोत्यादि

दूति गमौरामतकवागोशक्षता संन्नापादटिष्यनौ समाप्ता |

१०२ सखोः। सचरचतत्‌ ख, Wat स्न, सच खर तौतयोःसरोः; तथाच सकारस्य रेफस्य सकारर्फस्य विरि aa) तैन रामः गोः चतुरो वारान्‌ yea चतुरित्यादि श्रतएव ग्रन्यक्लता रात्सस्येति सूत्रं कतम्‌ (१) भौजसो सन्धिरिति त्रि्घीविव्यथेः |

(१) राद्यसख-, | २।२४ ) रेफात्‌ संयो गान्तखय ees लोपो नान्ये? wifaana ) सुद्धतुटिते(रत्यख टीकायां “चतुरिति चतुर शन्द्‌ात्‌ इच Safad चत॒सं षति fea wifa: फे दूति हिवचननिदेथात्‌ एकरेषाहा रोफशकारये स्थाने caer fafcaa AMITMAA |

aa दुरगादासस्तु चत॒रोवारान्‌ त्यये चतुर शब्दात्‌ शुचि wa tHe पिष अति शस दत्य wage व्यवस्याथाचित्वात्‌ सचि परे नित्यं विसमे om wiz: Hats इति सख डोप छवः frat चत्रिव्याह |

१०२ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

१०४1 खटौभ्यां ध्यम्‌शसादर्लोपः | ( खटोभ्यां un, धि-श्रम्‌-शषारैः ६।, लोपः et) खात्‌ दौसंभ्नकाच् पर्य धैरम्‌गसादेख लोपः सात्‌ रे राम रामं रामो।

१०६४। खदौ। खश्च aaa ताभ्यां, waa शमचनतौ, तयोरादिः अ्रमूशसादिः, धिश्च श्रमूणमादिश्च THE, dee मौत- लात्‌ | धातारं पितरमिल्यादौ तु विप्रति परं काथमिति(१) न्धायादादौ fam | ननु रमृच शम्‌च तौ, तयोरः अम्‌शसः, धिच श्रमृशसश्च AAT: घ्यमृगसनोपः दति aa fas ्रादिगब्टख aed, कचिदन्यतोऽप्रि धिनोपाधं, तन गन्धव्यवावि-त.शब्दस्य घौ हेते, तथा महान्‌ इः कामो Te A तसय धौ हे मरे, aor: fay ऊः महानस्य तख धौ हे महा इव्यादौ रएडोऽपि प्र्नोपः। भोः हे भगोः हे wah इत्यत्र कथं धिनोप इति, अभोभगोऽघोभ्य इ्यारिन्नापकात्‌ (२) |

AAR मातः पुत्रे माढमुती घौ महाङ्कलसम्भृताया मातुमुल्यापत्यस्यापि सुतिमाढमृतिस्तस्या गम्यमानायां ASHA मातः स्यादौ परे ya aay) F गाग

मात 2 बात्लौमात ya धन्योऽसि पुत्र कि-गार्मीमाठके कन्ये

(१) वृल्यबनवि रोपे पर are erfzaaanfufaaae एत्तिः (11842) (२) कभोभगोऽषोभ्य शयत्र शिसगलोपविषानात्‌ |

अजन्तपलिङ्ग-शष्दः १०१

१०५ | शसनामि चः | ( शस नानि ७।, घः et) रसि नामि परे खस घः स्यात्‌ |

धन्यासि | सुतौ कि-दासोमा्ठक पुत्र। माताशब्दहारेव सिद्ध गामीँमाढक इत्यनिष्टनिवारणा्धमिदम्‌।

१०५। शस नुमो AXA ्राम्‌ नाम्‌, गमकलात्‌(१) सः | शस नाम्‌ तत्तस्मिन्‌ | दौसंन्नस्यं खभावघेत्वे स्वमनुवर्तयत्राह सखस्यति नुखिकोऽच्नामि इति soa नुम्‌सहितामो ग्रह- णात्‌ शाद्गिणामित्यादौ स्यात्‌। चामि कते सिष्यतोति वाचयं, रामागामि्यादौ घं खामावात्रुमोऽभावप्रसङ्गात्‌। नापि नुमाम इति खग्रहणात्‌ भविष्यतोति "वायं, तिरूगां gufaaa चरि- TIA! खखानजलात्‌ भविष्यतोति' ara, सह एन वत्तमानाः, विगत दूषा a, agi at at इत्मादौ नुमूपरसङ्गात्‌(र) वहः येत्र तान्‌ AREA | परे तु. लृकारे घेलाभात्‌ सवणदर्घे ऋकारस्तन THA TAY: | अन्ये तु लकारभागदयगुक्ञ लुकारस्तेन TRUS] इत्याहः |

qa Wawa पंसि a: 1 खकारस्य Tarte जसोऽकारेण सहेः स्यात्‌ पुंलिङ्ग। बहलययोयेषां वा तौ age तै बहम: | परे तु बहू बहुरित्यादि |

(१, तदर्थबो घक्त्वात्‌ | नाम्‌ द्युक्तो चमो नयुक्त आम्‌ रत्ययेप्रतीतेरित्यधः।

(२) अल दुर्गादासः--किञ्च अणम्‌ पहेनेवेटसिङ्धौ मामोति ad आगमादेष- योरागमविधिर्बलवानिति न्धायस्वोकाराधेम्‌ तेन meatier आदौ ata Baza नखात्‌ | एवं Waa BATT TVS स्थानिवश्वेन हुखपरत्वात्‌ यथा

१०४ HUNT व्याकरणम्‌ |

१०६। पसि तु शस्‌ न। (पसि 21, तु।१।, WH el, न।१।)। खात्‌ परः शस. स्यात्‌ पुलिङ्ग रामान्‌ | too | टा-मिस्‌-ड-डसि-डसोसा-मिनेसयात्‌- सख-वीसोऽतः | (दा-भोसाम्‌ ann, cate gill, Ta ५।) श्रकारात्‌ परेषामेषां याने एते क्रमान्‌ A: |

१०६। Ufa deafaw शब्दानां शिषटक्षतपरिभाषाविष- यतं, तु हषणादिमच्चम्‌, दारकनलन्रादौ तदभावात्‌। एवं warrant श्रपि। aga

medentfaaraqaar ufeafara: | सर्व्ैवसुंगता CAT, शास्ते पुंस्वादयस्रयः | ये तु लिङ्गादिसम्बन्धाः प्राणिजातोयगोचराः | तेऽभ्यपायाः संस्कारे दारादिषु तटारिषु॥

रामान्‌ इति-अ्रनेन ने हते पूर्वण धः (१)। कथं सान्‌

वोन्‌ इति ? saa, मूतपूष्यैखमाचि्य शसो नादेशः |

१०७। टा लन्तलात्‌ एमीति नातुवत्ततै, Wa: क्लोषेऽपि,

तिन ज्नानेनेत्यादि। रष wa करणं fasta: निन्लरसादिति

may नक्ञार्विधानं तथा अभो तुमागमो नखाट्ति greasy नामीति wae | aera यः विषुः, wy एनवक्ततेयःसष्ठाः विगत दयात्‌ सवोः aut, at व्याशिति | (1) इर्गादाषसतु वहहिरङ्कविधेरनंरङ्गख लवक्वदादौ Ae शते प्बाघ्न NATE | TAY GAS पो्वापर्येयाचायद्ापि सतमेतदिति मन्यामहे |

श्रजन्तपलिङ्क-शब्दः १०५

१०८। ृरगोऽदान्त नोऽवकुष्वन्तरेऽप्यतदा्च- VAGUS: AAAS नकाचकोस्तु वा |

(T 41, शः १।, Meteor, नः €), अवकुष्वन्तरे 1,

afr 12 | श्रतदात्‌ ५।, तु ।१।, अपक्तयुवाहः , TAT: €।,

ARIAT: ६।, तु ।१।, aT rel) |

सिद्धम्‌ | वेष्म्येरित्यत्र वस्भ्योस्ये रिति aa fad अदीसग्रहण,

श्रु ग्रहपेन लाक्षणिकस्याप्यतो ग्रहणमिति न्नापनाथम्‌ तेन, येन aaa: तेरिव्यादि। एवमन्यतापि कविदनतोऽपि ङसः स्य- विधानाधेमिति। तधाच--

| नवं नवं परिलिप्य पुराणमरपकषतः |

अतिजरस्य fuga कन्या वषशतं गता

दूतिश्ठदतिङन्तः (१) | उट्‌ धिस्यात्तर alt aa: किमनुश्ु्यते दति उदपिमिच्छति, क्ये सन्‌, प्रचायनि उदधिस्या गङ्गा, तस्था उत्तरे उदधिस्योत्तरे

दूति (2)

(१) कातन्नेऽपरि Sere दूत चतुष्टयटत्ति aan ea नवं नवमिति ara aya इऋषिप्रयो गादिति चिन्यमिव्याद कविराजः।

(२) अतःपरं ब्ध पुस्तकेषु wT AT सखे वट्न्तख ans विजने वने sua sefafa क्रिया aifeauta नदन सन्‌ cafes: पाठः| aaa Wad कोहगुपयोगित्वं तत्‌ सुधोभिथिन्यम्‌ |

alae great तु--""उ<पिष्योत्तरे at जम्भला नाम creat | तखाः खरणमातेण war भवति gawd” age अने अनकारान्ताटपि डन्षःख द्यकम्‌ |

१०९ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

षकारत्‌ रेफात्‌ AMS परस्य Bare सितस्य aw गः स्यान्‌, ग्रव-कवग पवग व्यवधानेऽपि |

यत्रदे स्ततो ऽन्यत्र गतात्त्‌ निमित्तात्‌ ata, सादि हितमेपा स्यादिना सहितस्य, पक्षादिवजितस्य, स्यात्‌, तस्ये-

वेकाचः सकवगचान्यम्य, वा स्यात्‌| TAT

CCl घु ।षचर छश, तन्तसमात्‌, Ved सौत्रवात्‌ | दस्यान्तो दान्तः, दान्तः ब्रद्रान्तम्तस्मिन्‌ | WIA FA पशतं प्रवकुपवः, तरम्तरं व्यधयानम्‌ अ्रवङ्गुष्वन्तरं तस्मिन्‌ aw तत्‌ दश्चति तदृ, AEA VAT तस्मात्‌ GRA FI श्रद्ध तत्‌, तत्‌ अतत्‌ तस्य ब्रप्र्युवाह्नः 1 ईप्‌ स्यादिश् तौ Scare, मादरप्तयादो मेप्प्याद), ताभ्यां ae वत्तमानः समष्सयादिम्तस्य | पैकाऽच AS A VAY, एकाज्‌ कुश तत्‌, तत्‌ नकाच्‌ कुः तस्य, एम्बं ata परमभागी अनदादिचुकोः GaN ममानदस्य- fafanifzax: | यद्यपि कुणानि पुष्णाति इत्यादौ टुभिषट इत्यादिना मिध्यति, तापि To दत्यादिसिदयधं ग्रहणम्‌ | यद्त्यादि -यम्मिन्‌ रे नकारः तद्वित्रदख्यात्‌ पकार रेफ वर्णात्‌ परस ARITA सात्‌ कताभ्यामोप्याटिभ्यां gaa पक्तादिभि aa णः स्ादिचर्थः। ABATE एकाच्‌ Ranga ट-भिब्रः सम्बन्धिनो वा स्यादिल्यथः। एतन एकाच्‌ कवगयुक्ञ-द-मम्बन्धिनो नकारम्य णो नित्यं स्यादिव्यथः। पकादैरुभयतापि निषधः | CHIT को्यं्ा-हवरहणौ वन्तयुगाणोलयादि। एकाचकु-भिब्रय- हरिमाविषो इरिभाविनौ, aifsafan ्रौहिवापिनौ। mae:

अजन्तपलिङ्-शब्दः | १०७

नात्‌ स्यादेनकारस्यापि wa, तेन रम्यविणा, ओरोकाभेण्‌. Maram योभावेन इत्यादि | पक्ञादेमु-रम्यपक्ेन रम्ययुना दौ घङ्किल्यादि | aera दति किं- रामान्‌, ब्रोदिक्रापिन्‌। sagt इत्येव, TZ TAU सव्यवाये माभूत्‌ | यथा -महाराजानां,"वराटिका- नाम्‌, ऋतूनाम्‌, अरानानां, रानां, रसानामित्यादि सादि- हितेति किं-पौरस्य भगिनी वीरभगिनौ इन्यादि (१) वाशब्दस्य व्यवसा वाचिल्वात्‌ कचिदन्यत्रापि तघादि--

सदगेयनभिन्रस्य सिप्रकदैवनस्य न्व |

नास्रयनामि तु arse: सिध्रकादयाम्त्‌ fawar |

(१, अत्र wa णवं सुनी पूव्वं सम्बद्धो रन्यो तु परगामिगौ चत्वारोऽयोग- AERA णत्व-कम्भीगयचो मताः द्रुते दगांदासेन | TRIM AH < Uae विति aw टीकाथां “Tat graradaeq: स्वरता र्त्वं वधो व्यजञ्जनता परगम- नाथं सिचयुक्गत्वाच्चान पुनरुक्रम |

aia caste दभ्फयति रञ्जयति रम्भयति Keel भसुपरत्वाद्‌ ब्रलव्रता सोनू; रत्यनेन Bel नद्यानुखारे जपे जग्नोरियनेन पुनरनुखारख्य जकारादिः wai कनति qa कन्दति रुन्धन्ति इत्यादौ a तघद्‌धु प्रषु नस्पानुखार नरचुखार नकारे aaa यिप्रतिषेधो यद्वाथितं तदूवराधितमयेति न्याया- सत्वं नस्यात्‌ दूति। न्तुछननिदाक्तक्षिखः, जधोर्र सुखः, ag समयो cael नकारे परेऽलुख।राभावात्‌ पूव्वनकारख wa efafcarfear परनकार- स्यापि णत्वसिति। किन्तु fafec निर्भिन्नः निदा प्रमिन्रः इतादौ पूब्धेपदस्य- fafaars ape ग्यनुकारोति wary रप्खाद्योरकतरेण नकारख सम्बन्वाभाव्रा- खत्वं खादेव ¦ अत्रापि शतवभिन्येके | दव्यप दुर्गादासः | तकवार्गाशमते करल तव्यादीनि सभ्बादौ दृष्टव्यानि | say काशिकायां ` अतिहितलचष्यो एतयप्रति-

पष. सम्नाद्षु Fea” इति (८) ४।३९.)।

१०८ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

मिश्रकाशारिकाग्रं पुरगा कोटरा za | काथर पोयुच्ताः खदिरान्तः-प्र निः-शराः। WANT नसः प्रादेवद्चात्तु वाहनस्य | faaqul वयस्येव हायनस्याघ चान्तरः | हनाऽदेगेऽयनस्याध दे पानस्य खतः | वा aay गिख्यादेः पानस्य तु ध-भावयोः। दिव्राज्वह्यां वनसख्त्योषधिभ्यां हि वनस्य waa णो faa तिमिरादरेवनस्य श्रनाङ्द-र व्यवाये दान्तषादपि मन्यत। चाटौ सथ नाघान्ता रस्ता परिवत्तनम्‌ (१) Salar .परमानन्दः पम्निनरवाहनः नरनाराययो वारिनिधि वातिधिगित्यिपि। दप्रो्याचाथभोगौनः२)स्विनेव्रः सर्वनाम हरिनन्दो सुरानन्द: खभानुः परनन्दनः। गोघनः शासववाक्यानि बित्रभानुः पुननेवा | ुत्रंहो नमन; सूत्रनड दन्दुभिपैवनम्‌ | आचार्ययानो-विनयनी दुत्रदि-हरिनन्दनौ | परिगहनं परिनगरं परिनदनं शरनिषवेश-शरनिवासाः | हरिनगर-सुमन्तनेव.दभानृपालु व्यादि GQ) प्ररिवत्तेनं रोनख्वानजातौ रिन्‌-रनावपीन्यधः। (२) माहभोगीण saa तु मागोगाय fea: इयं ने ते एकपदत्वात्‌ शत खाटेव |

श्रजन्तपं लिङ्-शब्दः | १०९

शअरतदादित्यनुवत्तते | संन्नायाम्‌ ऋगयनभिव्रस्य ,उन्तरदस्थस्य नस्य नित्यं णः स्यात्‌, सिप्रकादैः परस्य वनस्य नस्य शूप इव नखा यस्याः सा TIT रावण्मभगिनो ; शूपनख्या इत्याषः | नारा श्रापोऽयनमष्य नारायणः तघाच-- आपो नारा द्रति WaT रापो वे नरसूनवः अयनं तस्य ताः पूं तेन नारायणः स्मृतः वहु" wa, तस्य विकारे ष्णः, संन्नापून्वैको विधिरनित्य इति न्यायात्‌ ब्रामभावः, वदं चश्चरल्नुः, वदं रव वार्ड, वादव नासिका we a वारहीणमः, दुरिव नासिका यस्य दुमः, एवं खरणाः खर- गसः (१) ग्रामौ; अरग्रहायणी.रत्तौहिणोत्यादि | सिषप्रकादे^नस्य चति सिध्रकावणं fared शारिकावणं वनस्याग्रे श्रग्रवणं, राजदन्तादिलात्‌ परनिपात; पुरगावणं कोट- रावणम्‌(१) संज्ञायामिति किं --चनासिक ; सिघ्रकादेरिति किम्‌--इन्द्रवनिल्यादि | श्रसंज्नायां कार्याटेवेनस्य नो णः | AMT वनं कार््यवणम्‌ egad yaad पयु च्तावणं ख॒दिरवणम्‌ pad tad निवणं शरवणम्‌ WATT | अथ प्रादेः परस्य नसस्यनो शः। प्रगता नासिका यस्य प्रणसं मुखम्‌, एवं eta परिगसमित्यादि |

(१) भान्नेठ्रि ति aa अस्यलाच्नामनोत्यादि्ात्तिकरतं द्रव्यम्‌| (र, पनाम Maia Bae तक्वागोशटोक्ायां “कोटर किं शुनुकाद्योवन- faatatay fa a:

११० arated व्याकरणम्‌ |

ATES, वाहनस्य ATT | उद्यते aq तदाद्यं, ठे a7, उ्चतेयेन दाहनं धैऽनट्‌ यथा--दभस्य वाहनं दर्भवाहणम्‌ दृत्ुवादणं शकटम्‌, एवं शरवाहणं धनुः | वाद्यात्‌ किं - दाति areat गार्वाहनो रथः, (१) यदा तु दािर्गाग्यय वोदृब्यम्तदा aifaarem: गाग्यवाहणशच भवत्येव |

वयसि ma त्रिचतुरग्रब्टाभ्यां परस्य हायनस्य नो गः। dfn हायनानि यस्य fase वल्लः, एवं चतुहायणः वयमि कि--विदायना चतुदाख्ना TAT |

aa afa चकारस्य व्यवहितनान्वयः। Wen गम्य अन्तरः परस्य हनो WAT a नो mi) अन्तन्यत अन्तहणनम्‌, एवम्‌ भरन्तरयणम्‌ wan किम्‌ अन्तदननो टेश, अन्तर यनो em | |

aq टे वायेऽतदस्यात्‌ षृ: पानस्य नो णः। पीयते यत्‌ तत्‌ पानं, टेऽनट्‌. सुरा पानं येष ते सुरापाणाः प्रायाः, Alcor: उनीनराः, मोवीरपाणाः (२) वाद्भौकाः, कपायपाणाः गान्धारा vate: यद्यपि प्रायाद्िशव्टा देशविशेपभृता न, मनुषे वक्तन्त, तथापि टेशमम्बन्यहारेगैव मनुष्ये प्रहन्ता, अतो देपरेनाभिपीयन्ते | यदा सुग पानं यस्विन्‌ देणे इति हेन टेभो ara. | टेश far सुरापानाः शूद्रा इत्यादि

वेल्याद्ि 1 fale: परस्य नदयादेना वा गः गिरिणो (१) रथोऽन्न तदुभयखासिक दयः | (२) MAC काश्चिकं काजिदतिभाषा।

अजन्तप लिङ्ध-शब्दः ११९१

गिरिनरी, गिरिण्ड faftad, वक्रणदो वक्रनदो,, वक्रणितम्बा वज्निनम्बा स्त्ोलिङ्गगणे पाठात्‌ एसि स्यात्‌, तन वक्रनितम्बः गिरिनद इत्यादि | आक्षतिगणोऽयुम्‌ वेति aerate: |

yaar धभ।वविदितस् पानस्य नो वाणः att पौयते अनया क्षीरपा च्रोरपानो, ATT पानं लोरपाणं त्तोर- पानं ध-भावयोः किम्‌ --उद्रेण पोयते wary उष्रपानो पाव |

हौ aaa, feaaisa: सन्ति ययोः तौ ताभ्यां, वन- स्यतिथ भ्रोषधिश्च तौ ताभ्याम्‌ बनसखत्योषध्योिंत्राज्वतोः ष्वनस्यनोवा णः alfeat ब्रोदिवनं, गिग्रवशं शिग्रवनं (१) नौोवारवगणं नोवारवनं, शिरौषृवणं शिरौषवनम्‌। दित्रपज्वती रिति किं-राजमःघरवनं पारिभद्रवनम्‌। बनृस्सव्याषध्योरिति किं-विदारौवनम्‌ (2) |

फनी aaafadal Fara फनयपुष्पगाः (र) |

ST: फलपाकान्ता लता गुल्प्ाश्र वोरुधः इति कस्य- चिन्मतम्‌ | faare तु-

aes: कुजो sat वनस्पतिवेनेर्हः |

Wit नगाऽगमश्रव MTT FAW: Wa:

पुष्पं विना फन्वान्‌ फलो वनस्पतिरुडम्बरादिः फलयपुष्पे उपगच्छन्तिये हत्तशब्दे नोयन्ते पाणिनोयसखरसाचकार समु-

(१) शयुः TAH: सजिना इति भाषा ३) विटारो शुक्तभूमिकृश्ाण्डः | (ह) दत्ताः पुष्मफलोपगा इत्यन्यत्र UTS: |

११२ मुगवोधं व्याकरणम्‌ |

sama: (१) कैचित्त दू्वावनमिति प्रलुराहरन्ति, तब्राहत- मस्माभिः, दूर्वागब्दस्योषधिपर्थायलात्‌ |

तुखादौनां नख णो निलं खात्‌। तुभाति तुभ; Baa त्यादि एषं विष्कमनाति हरिनाधः रमानाथ दयाटि। रौन्‌ acacia नरोनत्ति इत्यादि | रीनृखानिलात्‌ रिवनेोग्रहणं, पेन नरिनत्ति ननर्ती्यादि। भारिशन्दादन्यन््ोरपि ग्रहणं, तन कुर्वन्ति Garey इत्यादि ्राक्तिगणोऽयम्‌

तश्रा तिभिरदेः wea वनस्य नोणो fad BIT! तिभिरवनम्‌ दरिकावनं भद्रिकावनम्‌।

अरनाडनत्ादि। awe aE, भ्रनाडच तत्‌ cafe ्रनाङ्दम्‌, अनाडदचच BA, तन व्यवायस्तस्मिन्‌ | WS द- व्यनाये उत्तरदस्थस्य नस्य णो निलयं स्यात्‌ दान्तषादपि। यथा -माषकुशवरापिनौ चतुरङ्यागशन waaay रज्गप्यमानं

दुष्रानमिल्यादि ware रिं-पर्थ्यागहम्‌ |

(१, चकारेण वनस्पतेः ससुद्धयः, वनस्पतयोऽपि टचा दूत्यः | Hala चकारात्‌ वनस्तिश््धेन sat wares दूति निष्कषः | अतएव “स्यपि भेदे टकवनसखनो- स्डिभेरेन गहय zea सिति कारिका aaa यस्यास्तु पुष्पम फली वनस्परतिक्नंय", ते उडम्बराद्यः। cat इत्यादि ये पृष्ममुपगच्छन्ति फनमुप- गच्छन्ति उभयसुपगष्छनोिते yma: | wt at वनस्यतिः सोऽपिर्त्तो भवरति,नतुयो दत्त सोऽवश्यं तन्स्पतिरिति विशेषः| aro दूत्यादि-ओषधि- शब्द्‌ दिदन्तादक्थाट्िति | maura अन्तो विनाशो यासांताः फनणकाना ओषध्यः ताड़दूर्बादय. | नता दूत्याटि लता विततिष्यो जातोमालव्यादयः। VAT सखन्धथाखा Tra पाखोटाद्यः (arate: सेग्रोड़ा xfa भाषा) दूत mates: |

अरजन्तप लिङ्ग-्ब्द्‌ः | १११

god) क्ति-भमि (2) | ( श्रा ।१।, क्ति-भमि 9) अकार रकारः स्यात्‌ के भ-म्र-वेषु परेषु रामाभ्यां रामेः, रामाय रामाभ्याम्‌ | to | व्व रये | (ae, fara, tea) WHIT URI स्यात्‌ HA सभयोः पर्योः।

रामेभ्यः, रामात्‌ रामाभ्यां रामेभ्यः, रामस्य रामयोः।

१०९ | श्राक्ति। मच "वच म्ब भथम्बच भम्ब RUA afaqi wearer क्िविपरिणात्लेन aq इत्यनुवत्तय ब्रा प्रकार इति त्भमवैषिति wea व्यादेमवैयोरित्यथः, तेन रामं ज्ञानमित्यादौ नघः (2) |

११०। Al सच भच त्तस्मिन्‌ श्रदित्यनुवन्तते, तेन उमाभ्य इत्यादौ Al) व्याः सकार भकाग्योरभावात्‌ स्यादावस्य विषयः। ब्युत्क्रमनि्हेगात्‌ क्षचिद्ाधक Te वाध्यते, तेन मान्यवरेभिः गन्यव्मैवरेभिः (2) दति वौद्प्रयोगः J

१) आक्तिमभव्रोति wey पुस्तकेषु पाठः। fag तकवामोशरौकायांमम एषां व्यासषराक्यानुसारेखास्य मते भम्बोव्येव पाटः। wet aiewacs भख पञ्चाच्याटिप्रकरणे मवयोः साधकत्वात्‌ समचोनोऽप्येष दूति मन्यामदे।

(२) ननु राममिव्यादौ कथमाकारो खात्‌ अक्रारलोपभ्य सार्थक्त्वाट्तिं न्न हर विश्णमिन्याटौ तच्छ साधकत्वात्‌, वस्तुतस्तु भवयोः साहचर्यात्‌ विभक्तेराद्यवयवरमकारे परे इत्यथः; अतण्व लां सामित्यादिसाप्रनाय ङ्यो. मकारे तेऽपि सभमोष्वाडः carat वरिघाद्धत।

(३) माल््यषरेभि; गन्धवरेभिरिति aerate |

१५

११४ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌

QU नुमा BAAR, | (GHC), We: él, FAN ARN: ५! ¦ वात्‌ A त्राणा रनान्त ETAT WIA कटी 7H स्यात्‌ | SMA रामाणाम्‌, गमे गमयोः। ११२। क्गिलात्‌ कृतो {सात्‌ सः प्रो ईदान्त नुव्यन्तरऽपि णास-वस-घम साटाञ्च | (क्िनात्‌ ५।, कतः १।, अरमात्‌।१।, मः १।, षः १।, ब्रदान्त 9, AMAT 9, अपि ।१।, ग्रौम-वस-त्तम ATT ६॥, ।१। ) कवर्गादिनाच परः कतः मादा SHAM: सकारः भामादैश् षः स्यात्‌, नु-वि व्यवधानेऽपि एल-षल रामेषु एवं मुकुन्दानन्द्गा वन्दादयः |

१११। नुमामः। रच पच तत्‌ णं, संख्या तत्‌ ut चेति तत, खश्च टौ आप्‌ aT तत्तस्मात्‌ येन विधिम्तदन्तस्यति न्यायादादह रषनान्तति सुख्यनात्तगिकया- मृस्यस्यव ग्रहणं तु नात्तफिक्यति न्यायात्‌ प्रियचतुरां प्रियपश्चञासित्यादौ स्यात्‌ बह्प्रयसोनामितयत्र अ्रवधक्खो- तेन fafa माष्यम्‌ |

११२ | fare) HA इलथ् तत्तस्मात्‌ सात्‌ Vara, दान्तोऽदान्तम्तस्मिन्‌, qa faa तौ, ताभ्याम्‌ ब्रन्तरं नुव्यन्तरं afaa | शासश वसथ घसथ् साद्‌ ते तेषाम्‌ अन्तशब्दः mae sare दमध्यग दूति, तेन दधि सिद्ठति हरिरिल्यादौ

श्रजन्तपलिङ्ग शब्दः , ११५

श्यात्‌ अक्लतसत्वात्‌ शासवसचसां ग्रहणम्‌ | ATs: क्र तसतेऽपि किलमित्रादपि षल्ाधं favs aed, पेन quae ऋतोषाट्‌ इत्यादौ स्यात्‌, नतु तुरासाहौ walarerfaarel शासादेस्‌ faares, तेन श्रशिषत्‌ उषितः जन्ततुरिल्यादौ खात्‌, तु शास्तो- त्यादौ | कवगंग्रहणात्‌ वाक्त प्राङ्षु इत्यादि नुव्य त्रेऽपोति- सर्प्पोषि धनुःषित्यादि at नु-ग्रहणात्‌ पसु इत्यत्र AT सपिष्ठु धनुष्षु इत्यादि शसि वा शस्‌विधानात्‌। क्षत इति fa—fad (१) wuafaarte |

सेऽग्नब्यःसोमस्य अग्निशब्दात्‌ , दयवयवात्‌ सोमस्य सः षः स्यात्‌ शे सति अ्रमनोषोमौ, देवताच डो नस्मादिति कि ज्यो तिरम्िनिः सोमो लता तयो श्रग्निसोमौ, अग्निश्च दश सोम ते श्रमनौीसोमाः।

मातापिद्टभ्यां weal तु यन्ताभ्य्म्‌ | राभ्यां परस्य सखसुः सः षः स्यात्‌, waar वा से सति। माष्वसा पिटष्वसा मातुःष्वसा मातुःखसा पितुःष्वसा " पितुःखमसा इत्यत से ष्या लुग्बा |

निनरौभ्यां खः: aay नेनव्याश्च खः सः षः स्यात्‌ कौशनेऽघं से सति निष्णातः कुशलः, तथाचातिष्यनिष्णा वन्‌- वासिमुख्या इति भटः नदौष्णः, तथाच ततौ नदौष्णान्‌ पथिकानिति wie:

(१) fare at प्पे Sree कः।

११६ सुबोधं व्याकरणम्‌ |

दिवि meat सदो देवै श्रभ्यांसदःसः षःसखात्‌ मे, सति 23 वाय दिविषदः amet देवाः, अन्यतर द॒मत्‌। कपिप्रतिभ्यां खनब्नार्तयोर्गा्िसूवयोः। श्राग्यामनव्रा; क्रमात्‌ सः पः स्यादनयोरधयोः से मति। कपिष्ठल कपि, सनकात एलिङ्कः। प्रत्शितं सूत्रं पाणिः, सुविग्रह मिथः | स्तरस्य दत्तामनयः। TATA FT स्यात्‌ WAIT रथयोः से मति। पिष्टसो aw कुशमुष्टि, विष्टो विटपी दभमुष्टिः पोटाद्यमासनमिल्मरः waza विम्तरः। वृगोभ्यां मनो नानि। आभ्यां मनोत नानि सः षः स्यात्‌ से सति। मरं सनाति दृषा गां सनाति गोषाः afafas: स्तानस्य णब्दनासि) WaT स्तानख्य सः षः स्यात्‌ meatier से सति|, श्रमिनिष्टानो विसगेः तथाच वचः सयष्टाभिनिःष्टानमिति माघः। वेकल्िकमिदमिलन्य शष्द- faa अ्रभिनिम्तानो aay: | दूलारेति नारि वा तुभात्‌। इलात्‌ पररः एकारे परे षः स्यात्‌ नालि से सति, ara at) सुरणः, इरिषैणः। भात्त-भरणिषणः afta carie नामि किं-एणोसेनः। एति fa—faatar agti दलादिति किं---विषुमञ्चतौति fan, स्ियामौप्‌, प्रचोऽघषोपोघः, विषचौ सेना ve, daze, fase, गतभिषक्सेनः | प्रात खोऽग्रगी। प्रातं परख खख eT aye सं

श्रजन्तपुलिङ्-शब्टः | ११७

, सति saa वाचे | प्र्ठोऽग्रगामो, एवं प्रष्ठा भ्रग्रगानिशो तथाच सव्वेनारोगणप्र्ठामिति afe: अन्यत्र प्रखः। श्रवात्‌ स्तस्मराखयनिकय्यो१। अ्रवादाख्रये निकटे स्तम्भे; सः षः स्यात्‌ से सुति ग्राममवष्टम्थास्ते, ग्रवा्टैभकेना (१) श्रौ ज्नित्येऽपि(२)- श्रहो मह्नस्याऽवष्ट्म दति चन्द्रः अन्यत्र शो तेनावस्तब्धो जडोक्तत sar | निरम्तप्येकशेवने। (२) निष्टपतिवद्धिं राजा, aaaat इत्ययेः। वदहिंष्ठादोनाच्च | afee: qua विपूति-विषमं नौपेविका कुष्टलं निःषुति निःषितः सुषाम-विपितं निःषाप्न नोषचनम्‌ दुःषामा निषयः'सुषृति-विषयः दुःपेध-निःप्रभि feat दुन्दुभिषेवनं परिषित fae: सुप्रधो मतः| अग्निष्टोम सुषन्धि-विष्टलमपृष्ाम्निषठ-गोष्ं तथा- ऽम्बष्ठाम्बष्ट दिविष्ठ कुष्ट -परमेष्ठाङ्गष -दुःषन्धयः | निःषघोऽङ्गरिषङ्ग सुषट-ए्तनाषाहं जनाषाहम- ग्निषटुदृष्ट -प्रतिष्णिकाः परिषयः शद्क्ट-सव्येषटरौ गोरिषक्शरश्च निष्णातो निष्णातश्च परिष्ठलम्‌ | waaay भूमिष्ठो ज्योतिष्टोम-श्मिष्ठलं रघष्याच ऋतोषादं निःषमं दुःषमं विषु

—- ~ = - -- ~ ~ - oe

(१) निक्रटोभूतेत्यधेः। (९) ओरौ च्छित्यं प्राणनं बलद्चेति गोयोचन्दरः। (९) निरः सकारस्य तपतौ प्ररे णः खात्‌ Gad सेवनेऽथ से fa |

११८ AMAT व्याकरणम्‌ |

ageing विष्टारो गविष्ठिर युधिष्ठिरौ

wast saga: tas favfaafa

yfasisgiaaga निषटबयोऽनुष्टुभा सह

सर्येशोऽपषटु water दुःषूतिञ्च मनोषिमिः।

षट्‌ सप्ततिरिह प्रोक्ताः शेषं शिष्टप्रयोगतः।

afefa तिष्ठतोति वरिष्ठः सुपृव्वे षम aaa पचादान्‌

सुषमम्‌। faust wet: fir विषति | विषमं पुनवेवत्‌ षिच- Wea; नोपैविकेति ae 1 शल खाने पचाद्यन्‌, पथात्‌ aaa: ङु सितं वा खनं कुष्ठम्‌ निपूतिः परजवत्‌ निपूर्वात्‌ भिञजनगवन्ये, ita ना, शराभ्यां a, निपितः। सुपुवव-पी नाग्रे मन्‌ सुषामा | विषितं निषितवत्‌। निःषामा सुषामवत्‌ | पिचधोरनट्‌ नौपैचनमिति जयादियः। दुःषामा सुषामवत्‌। fa qa a aa wa निषयः। सुषूतिविषृतिवत्‌ विषो, निषय- वत्‌। पिष fast घञ्‌ दुःपैधः। धाञि धारणे get fa: afer, सः, निःषयिः। शयो स्तिष्ठति fre: दुन्दुभः सेवनं दुन्दुभिपेवनं ` quifeara णः पररिषितौ निषितवत्‌ | fay तिष्ठतोति वरिष्ठः सूषरधो दुःपेधवत्‌। qua: स्तोमः, we: स्तोमः ब्रमिष्टोमः। सुषनिनिःषय्िवत्‌। वैः प्रक्षिणः स्थलं विगतं खननं वा विष्ठलम्‌। ब्रपतिष्ठतोति soe इति न्यासः at तिष्ठतीति अरनिष्ठः। गावस्ति्ठन्यत्र गोष्ठः weal fasfa wars: मनौषादिलात्‌ खः श्राम्बष्ठ इति कचिटन्यतरा- alfa a: दिवि तिष्ठतीति दिविष्ठः, घ्यान लुक्‌ कौ भूमौ

अरजन्तणन्निर-षाद्द्‌ः | ११९

afad वा तिष्ठति बषः परम तिष्टतौति परमेष्टः, घ्या नुक्‌ अङ्गो तिष्ठतीति अहृष्टः दुःषञ्िनिःषन्धिवत्‌ | fart दुःषेधवत्‌ अरङ्गरिषु सङ्गा यस्य सोङरिषङ्कः। wat तिष्ठति सुष्टु, UAT डः, खरादितात्‌ व्यम्‌ पएरतनां wed एतना- BIZ, तं पृतनाषाद्म्‌, एव HAGUE ; श्रषाढट़ृन्तत्वेऽपि षः | गण- पाठसामथ्यात्‌ LAMA AMA इत्यादौ स्यात्‌ F जल सतौ भ्रग्निष्टुत्‌। दुष्ट सुष्टवत्‌। प्रतिपू्धस्रातेरादन्ताडडः, ततोऽल्याध कः, कापि पर प्रकारस्य दकारः, प्रतिशिका | परि षयो निषयवत्‌ शङ्ष्टोऽङ्गष्टवत्‌ सव्ये तिष्ठति area: रौगा- fear ऋक्‌, कित्‌ अनोपश्च, सव्यष्ठा सव्येष्ठरी wast: सव्यष्टभ्याभित्यादि। wa तु अरदन्तस्यानादन्त्य षत्वं नेच्छन्ति, तमत सव्येख इत्यादि गोरोव सक्थि ae गौरि. षकथः, गणपाठात्‌ खः। निपृव्ये aT धोः a: किच निष्णातः निष्णातिश्च परिष्ठनं कुष्टवत्‌। मोरो खानं भौरुानम्‌ | भरूमिष्टोऽग्निषठवत्‌। ज्योतिष्टोमोऽग्निष्टोमवत्‌ ; खपान्तशसि लुप्‌ वा शम्या खलं शमिष्ठलं गणपाठात्‌ खः क्त्र खामा- वस्तत्र स्यात्तन शमोखलमिति। रथेन पाति cam नदौ, मनोषादिलात्‌ सुमि अरत पाठात्‌ waa alate yaar षाषमिव निःषम-दुःषमो सुषमवत्‌। fag aut: प्रादिरे विषु च्यम्‌ श्रायुष्टोमो ज्योतिष्टोमवत्‌ विपूव्यस्तुधोचेञ्‌ विष्टरः पङ्तिच्छन्दः, waa विस्तारः पटस्य गवि fac: गविष्ठिरः, Bra लुक्‌ एवं युधिष्ठिरः परमे उपपदे खाधोरित्रौणादिकः

१२० मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

परणेष्ठो घ्या लक्‌ उपपूनं सम्भधोघञ्‌ उष्ट्र; गेकष्टो$ ्रषठत्रत्‌। faved eat: किप्‌, तिष्ट पुज्जिष्ठोऽग्नष्ठवत्‌। | अरह्कनिषङ्गोऽङ्गरिषद्गवत्‌ | ईव॒न्तादपि -श्रुलोषदग TENE: mada: dager: | aqua तिष्टप॒वत्‌ सव्ये तिष्ठति was: ष्या लक्‌ AIS सृष्टवत्‌ सव्ये तिष्ठति इति क्षप्‌ स्येष्टाः ष्या लुक्‌ gate: निःषूतिवत्‌ आक्तिगणोऽयम्‌ |

सुखादि वदप्रतेः। सुखादेवयेहृप्रकषतथ सः पो स्यात्‌ से सति।

सखः परिख्ितिदखो दुःखितश्च परिखितः। निम्तमृश्च (१) प्रतिम्तः कमरा-लमरो तथा | watt .हरिकितुश् धूमरा fafwag कपिसतुः .परिखन्दोऽभिसुसू (२) प्रयोगतः |

वह -त्य-पुव्व सकाराः भवे, वथा वहुमेतुरित्यादि आकति-

गगोऽयम्‌ |

(१) “निस्त दूति नि उपसर्गः | face निष्ट" इति गोयो चन्द्रः |

(२) afagata gata: समन्तात्‌ किष, ₹षक्ञोप दग्यकारलोपः, सपेष- हिति डः, व्यनचतयीति धः अभितः |

“अभिसुद्धरिति सनन्तात्‌ किय eat प्टानत्वात्‌ पत्यभावे लौतरेषेति नियमाभावे प्रतो प्रप्र परत्वं निषिध्यते" इति afm? >८६ GA Matar “ata a aig, सन्नन्ताट्खत्‌ कियतो लोप रत्ये दौषः -दूति तश्व- गोधिनौ | wfafa—c 2 | vio काशिका दर्व्या |

अजन्तपंलिङ्ग-शब्दः १२९१

११२1. से जस्‌-ड-ङ्सि-डौनामि-ष्ै-समात्‌-

faratsa: | (सेः ५।, जम्‌-ङ्‌-ङसि-ङोनां ६।), भ्न स्मात्‌-स्मिनः १।॥, श्रतः ५॥)।

अकारान्तात्‌ खेः परेषामेषां खाने एते क्रमात्‌ स्युः

सव्वं सन्वेसम TATA सन्यैसिन्‌ |

११४। आत्‌ सुमामः। (रात्‌ ५।, सम्‌ ।१।, आमः €)

FAUT खे: परस्यामः आदौ सुम्‌ स्यात्‌ | Ta-va | waaay | शषं रामवत्‌ एवं विश्वाटयो$कारान्ताः |

SHIRT दान्तः उभौ उभौ उभ्राभ्याम्‌ उभाभ्याम्‌ उभा भ्याम्‌ उभयोः उभयोः जसि- नेमे नेमाः शेषं सव्यवत्‌ |

११२। सखः। सव्वतो जयमिच्छन्ति पुत्ादेकात्‌ पराजय- मिति कचिदपवाद विषयेऽप्युलर्गोऽमि नि विशत बति न्यायात्‌ |

११४। आत्‌ पुनरादूग्रदणात्‌ः सर्न्वासामिव्यादि सनम स्मित्रिति पूवण स्मिन्‌ विश्वादय इति। उभशब्दो इन्त दति नित्यमिति शेषः। we सििषंन्नाफलं त्पादयोऽर्थार्थेति aaa सर्वव fa: aT यथा-+उभौ तू उभाभ्यां equi उभयोदहललोरिव्यादि | उभय इति तु उभशब्दादवयवा- घंऽयट्‌ व्येन साधितादुभयश्ब्दात्‌ wa स्तो, तु इमित्य- ननिधानात्‌ तेन उभयस्मात्‌ उभयेषामिल्यादि एकणशब्टात्‌ एकत्वसंख्यावाचित्वात्‌ क्भेवर। दशभ्यः (१) संख्या संख्येय- i (१) | कहोरवपयंननिं ora fin प्रागियर्धः। सक्लिप्रसारे रि aca aaa दे feat विशतिः faa: Glut वा इत्यद!हरणानि सन्ति|

१६

१२२ सुबोधं व्याकरणम्‌ |

११५। पूर्व्वदिः सप्ात्‌-सिनी वा ` ( पूरव्वादिः ५।, स्मात्‌-सिनौ en, वा ier) तो Goreng पूर्वात्‌, पूनयैसिन्‌ gat शेषं मेमवत्‌ एवं परादयः|" समोऽतुच्य LATTA: नमः समस्मात्‌ पूत्वस्मा TATA श्रमेधमाम्‌ सुमेधसामन्तरस्मं सतां wa स्रयग्धवे |

afata, नतु संखयाष्ठ न्तः, तन घरस्यकः ब्राह्मणानामष्टाटश zante स्यात्‌ HAMIL Tq स्त एव, तन एकौ एकेषामित्यादि

११५। WaT! ताविलुकञेरकारादेव, (१) तेन पवस्य: पूववैस्यामिल्यतवर ख्यात्‌ | अतएवात्‌ सुमामः इत्यत प्रादित्यसखय arqafa: | गेषं नमवदिति | oa पवां इत्यादि

तनोकतं गोयोचम्दरेय ` दे स्त्रियां विंशतिः far दति संस्येयारयोऽत्र संख्यान अतएव पिशषशविशेष्यभावः। स्तीणां जेति विंशतिरिति पदटमतानुषञ्चनोयम्‌ अतर संख्यामाव्ाधता | अतएव गुणगुणिनोः waaay vet, fanfare संख्येयाधतां संखयामात्रा्॑ताञ्च टयतुसदाहर णदयसुपन्यस्ता टत्तिक्ारेसौवं सूचितं fiuanfeme: सवं एव संख्येयाः संख्यामात्रा्ां वेति xargs ये संख्याशब्दा संख्येयाः, अनणएव हिन्द संख्येयाधता टृथिता। यत चया दृश्यः dena: संख्येव ria, ततःपरं विशव्यादयः संख्याने संख्ये चेयाह्कः एतदपि व्यभिषरतोति रूवयितु बात्ताङुरेषा गुगसप्रुक्तलुदा- gafata’ |

) तौ sfret, यौ dae इूत्ननेन अकारात्‌ uth eat qa-feat भेशत ae: | एतन पूर्वारिरिति Ga Vie Mle विषयो व॒ स्तियामिति भ्रापितम्‌।

श्रजन्तपलिङ्ग शब्द ¦ १२२

समायेषु परायेषां सुक्येऽर्यान्तराय यदुखाय नमः खाय Ha Hers why श्रतिसव्वाय aaa साध्वन्यानां सखिददिषे। कालावराय RISA पूर्वाय जगतो नमः जसि--साध्वन्धे साध्वन्याः। जसि--धल्ये अल्पाः शेषं रामवत्‌ एवं प्रथमादयः feataw हितोयाय, fe तौयस्मात्‌ ददितीयात्‌, हितौयस्मिन्‌ हितोये। एवं ठतोयः।

निजरः।

- = --- —— _—-- -- ~ - ~ ~~ ~ -- - ---- ree

नमः समस्मात्‌ इत्यादि - खयम्धुे ' नम saa: | तस्त कौटृणाय समस्मात्‌ WAH, सकलात्‌ ूवेकालवर्तिने पुनः alent? अमेधसां ware, मूटानां वाद्याय ya: कोट. शाय? सुमेधसा ब्रन्तरख, ज्ञानिनां हदिखाय। पुनः कीटाय ? सतां खस, साधुनामाकोयाय इत्यधेः क्रमेण प्रलयुदाहरति समाथेव्यादि--शाङ्गिरे नम इत्यन्वयः। तस्मे कीटणाय ? एषां गोपालानां समाय तुल्याय पुनः कौशा Ty जगु पराय ष्ठाय | (१) faad नमस्यते द्त्यत meant सुत्यं, अर्थान्त- राय प्रयोजनान्तराय घश्चाधकामाय दत्यधंः। पुनः कौटयाय ? यदुखाय, यदूनां खाय Wats पुनः कोटशाय खाय घन- खरूपाय (२) पुनः कौ्टथाय ? WHEE शेविताय इत्यथेः

(१) “एष जगु समाय लाव जगन्बमयत्वादित्यधंः। रषां जगतां मध्य पराय asta निश्चलादित्यथः" दूति दुगादासः। (२) agatfafe au: |

१२४ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

मौखाख्े्यखछो दाहरणमाह-घ्रतिसत्यीय श्तयादि gaia सरधना faa नम sua) ते alent? श्रतिसर््वाय सर्ममतिक्रान्तायै। पुनः कौटयाय ? खाध्वन्यानां afafed, साधवश्च wa तेपा, यथाक्रमेण साधूनां सस्ये, samy अमाधूनां दिपै शद्वै इत्यथः अरत सान्तविधेरः निलत्वात्‌ नाकारर्ः, १) पुनः LETT ? जगतः कालावराय, काकेन कनिष्ठाय ya: को्टणाय जगतः कालेन पूर्वाय, ूञैकालवत्तिने ज्येष्ठाय दयः |

चे जमि वैत्यस्योदाहरणमाह -जमि साघ्वन्ये साध्व्या इति |

पर्वा ्यच्े चस्योटा हरणमाह प्रलय अरन्या इति एवं प्रथमे प्रथमाः. चरमे चरमाः, दितये दितवाः, उभये उभयाः, इये हयाः। ary am इयेषायपि मेदिनीखतामिति तु दयं हैतम्‌ इष्यन्ति ea सधे क्विप्‌, saad, वाशब्दस्य व्यवस्यति परे ae श्रीः, कतिपये कतिपयाः इति

तीयोडिति इत्यस्य) दाहरणमाह - हितीयस्मै ददितौयाय इत्यादि |

दतरेतरान्योन्यपरसखगेऽप्ं कक्षव्यतोदारे सिथामारेराम्‌ वा aiataat: प्रौवर्जितक्गौ परे क्व्यतोहारे एते निपादाः faa, एभ्यः परस्या अमादितः स्सौनपंसकविषये श्राम्‌ वा स्यात्‌ | इतरेतरम्‌ इतरेतरं faa: कुलानि वा परश्यन्ति। इतर- तराम्‌ इतग्तरेण स्वीभिः कुनवा भोज्यन्ते। इतरतराम्‌ दूतरेतरखो

=-= [1

१) चेक्याञ्चदषहोऽरिल्नेन हमादान्ो नेति। 3

श्रजन्तपलिङ्ग-शब्ट्‌ः १२५

११६ जरस्‌ जगाचितु।

( जरस्‌ ।१।, जरा ।१।, BAT ऽ, Bre)

जराशब्दो जरस्‌ वा स्यादचि"परे।

-निजरसो fase: निर्जैरसं निर्जरसौ निर्जरसः निर्जरसा

केचिदादाविनाताविच्छन्ति, निजेरसिन fase: निर्जरसे निजरसः निर्जरसादित्यादि | पचे हसे रामवत्‌ faa: कुलानि वा खद्यन्ति rp इतरेतरम्‌ इतरेतरस्मात्‌ स्तियः कुलानि वा विरमन्ति। दतरेतराम्‌. इतरेतरस्य faa: कुलानि वा स्मरन्ति। इतरेतराम्‌ दइतरेतरस्िन्‌ fea: कुलानि वा अनुरज्यन्ते | एवम्‌ WANA, अन्योन्यम्‌ * परस्पराम्‌ पर- स्मरम्‌ इत्यादि इतरेतरादोना क्रियाविशेषणत्वेऽपि waa खभावात्‌ स्तः। अन्यथा ब्रन्यर््ददलात्‌ इतरेतरान्योन्याभ्यां परस्य मस्य तादेशः स्यात्‌। केचित्तु तादेशमपि, तेन इतर- तरत्‌ इतरेतराम्‌ इनरेतरं कुलानि | एवम्‌ ग्रन्योन्यत्‌ अन्योन्याम्‌ अन्योन्यमि्याहुः। स्तोक्तोवयोरिति किम्‌- इतरेतरं पुरुषाः पश्यन्ति श्रन्योन्यमिमो faazaa: क्रियाविरेषर्ते तु इतर at पुरुषाः पश्यन्ति |

११६। जरस्‌ पूव्यैसूत्रादानुवत्तत | प्रकरक्णत्‌ ATU, तेन जरा Fa इत्यादौीनस्यात्‌। परत्वादादौ क्ती जरसादेशः नतु fama, तन निन्नरसं fase fas: fasizar मित्यादि , तु-शब्दोऽनुक्तसमुच्चयाघः, तन अतिजरस्स्य fans

१२६ Faas व्याकरणम्‌ |

११५। We दन्त युष निशा पृतना मासासन ` सानुं नासिकोदक हदथाखक्‌ aa शक्तत्‌ शष दीषः-पदद्‌ युषत्निश्‌ प्रन्मासासन्‌ खु नसुदन्‌ TAT यकन्‌ शकन्‌ MT दोषगः शसादि-पौ

( पाद--दोषः; gut, पद्‌--दोषणः eu, शसादि-पौ ) | एषां खाने एतं क्रमात्‌ स्यु वां श्सादौ पौच परे पदः पदा प्ड्याभिल्यादि | दतः दता दङ्भामिलयादि।

कन्या वषशतं गता इत्यत्तानच्यपि जरसादेश इति कचित्‌ निज्ीरसिन निज्लरमादिति तु परमतमिल्याद afafeanfe | निलैतैरिति शसकरणाव्र निमित्तापाये नेमित्तिकस्छाप्यपायः। भाष्ये तु अ्रतिजरेरित्येव |

११७। पाद पादश ` cara युष्च निशाच एतना मासथ श्रासनश्च सानु नासिका उदकश्च हृदयञ्च VA Uae wa शोषञ्च दोषं चते, we व्यत्ययात्‌ प्रो पच्च दच्च aay faz चण माम्‌ चश्रास सूश्च Sea ada aay शकष शोच टोषं्चते। शम्‌ श्रादियंस्य सः, शसादिश्च fra तत्‌ तसन्‌, dea सोत्रतवात्‌। पौ शोषं भवः maw: कशः, are wafaanfe, at शसादिष्वेवति परे (१) सुपदो, व्याप्रपदो कुले बति तु ह-सेपादादेभे पात्‌ पत्‌

() Sma दर्गादाकेन “शसारदियहृणेन ततप विभ्तोनिराषाव्‌ ala ataite प्रितेऽपि तत्न ar fefa |

अजन्तपलिङ्ग-शब्दः १२७

पाविति पदादेथः। केचित्त दीर्षपदौ दौषदोषणौ haere इत्याहुः | चिभिन्रस्यादेरचः पिलवात्‌ (१)। वा अब्दस्य TARA कचित्र स्थात्‌, कचिदन्यत्रापि, तेन--

पादस्य पदतदधेय-हति-काषि-हिमाज्यातिगे a तु शब्द घोषमियनिष्के। पादस्य पत्‌ स्यात्‌ श्रतटये इत्यादौ च, शब्दादौ तु वा। पादाय हितः पद्यः पन्या, पदतिः, पत्‌कापषो, पिमं, पदाजिः, पदातिः, पटहः पच्छब्दः, पद्चोषः, Ufa, पत्रिष्कम्‌ पते orem दत्यादि yaeaa इति किं--पादयं पादाय वारिणि।

ऋचः शसि। ऋक्‌ सम्बन्धिनः पादस्य पत्‌ स्यात्‌ शसि (२) परे पच्छो गायतं जपति। ऋचः किं--पादशः कार्षापणं ददाति।

गोपहतयोः पदः पादस्य पदः स्याद्‌ गोपहतयोः (२) | पटगः, पटोपदहतः |

दन्तभषेयोदंच्छोषणौ तयाचोः। अनयोरेतौ नस्तः करमादनयोः। दन्ते भवो दन्यः, सुलभौ णऽपतय ग्योलभगोभिः, सृगभोष्णा युक्ता arate! तिथिः। श्रचि किं-शौषण्याः केशाः

afa टादिखस्योदकस्योदन्‌ धि-वास-पेष-वाहने वा तु

(१ अनायमाशयः--केचित्‌ पण्डितः शसाटिषेवति नाष कुवन्ति, तेषां मते ala कौकारख्यापि त्वात्‌ aareu खाद्िति।

(२) शचशसि प्रत्यये इत्यथः | (३) गे उगते KA

[

१२८ सुगवो व्याकरणम्‌ |

mia) दादिखस्छोदकखय उदन्‌ स्यात्‌ नानि, rel च, भारादौ तु वा। उदकख मेष; उदमेधो नाम कथित्‌, तख्ा- पल्यम्‌ श्रौदमेधिः। उदवाहः, उदपानः कूपः, श्रनपेच्चितावथवार्था संत्रेयम्‌। उदकं धोथते aa उदधिः समुद्रः, भ्रसंन्नायामप्यदधिः कुः, उदवासः, weit एरटो पिनष्टि चमन्तः, उदवादनः। उदभारः, उदकभारः | भारादियथा- भारद्ारौ वाहश्च चिन्दु-वौवध-शङ्गवः | श्रोदनो वजविष्रयी (१) amet मनः प्रकीत्तितः।

TAPAS, पूरयितव्ये वा। श्रस्यदहसादेर्दकसख्य उदन्‌ स्यादा पूरयितव्ये उदकस्य Fa उदङ्कः, उदकङुमः | स्यहसादेमु उदकखानो पूरयितव्ये किं उदकगिरि,

परदस्योदो wife) परदस्योदकस्य उदः erate लोहितोदः alle: लवणोटः afer किं - लवणोदकः कुमः |

नासिकाया नम्‌ तम्‌-तुद्रावग-नगरये। नासिकाया नस्‌ स्यात्‌ तसि ag वणनगरभिव्रे ये नस्तः, TE, AE quay ठ-नासिक्यो वणः, नासिकं नगरम्‌

हदयस्य AVIA: ष्ण-थोक-रोग-शल्य तुवा। इदयस्य Eq स्यात्‌ लासकतेखयोः परयोः, वातु णादौ HATA: HHT Awa हच्छोकः PAT, FAA | पतते सौष्रदयमित्यादि |

पाददन्तेति ad छान्दसर्मिति ut | sane निभि सानम्‌ aaTqgafane Efe विनिहितरूपः। दोष्णां वलात्‌

१) विषय xara face दूति प्राढानरम्‌।

अजन्तपुलिङ्क-शब्दः | १२९

११८ | सदानोऽल्लोपोऽम्बस्यात्‌ पौ वा TST: | ( सटा ।१।, WA: al, अत्‌-लोपः १।, भर-म्‌व-स्यात्‌ ५।, "पौ 91, वा ।१।, तु ।१।, FST ७॥ ) ्रनोऽकारस्य नित्यं ata: स्यात्‌ पो पर, Fey’ वा, नतु WAY वस्याच्च परस्य TW: AUT | ११८ 1 नो लुप्‌ ST (नः नप्‌ ।१।, फे ७।, WaT 9 ) नस्य लुय्‌ स्यात्‌ wat परे. युषभ्यामित्यादि | stata युषणि युषे मानः मामा माभ्यामित्यादि।

इत्यादिप्रयोगदशनात्‌ भाषायां भ्रनयक्तता कतम्‌ \

११८। सदा Wal aim, मचववचम्ब,म्बच तत्‌ स्येतिम्बस्यः, ae: ्रम्बस्यस्तस्मात्‌ दश्च ङश तौ aa: | BIW: पौष्णः धात्तरान्न इत्याद्यनेनेवं सिद्धं हइनषनष्टतरान्नामिति सूत्रमेवं ज्ञापयति, ताये waa WAY नाक्रारलोप दूति, तन राजन्यः मूरैन्य इत्यादि सिष्यति। ger वाधिकारनिहच्यधं सदेति, (१) अन्यथा जरसादेशः पटाद्यादेशाख नित्य ives: |

११८ ati नइति प्रक्नतिनान्तस्य नः। लेरधिकारात्‌

© © [ ata | तथाच प्रक्तिनान्तस्य ले नस्य लुप्‌ इत्यथः, तेन राजा

१) “केचित्तु सदेति aad गौत चेत्यथः, तेन पूजितपृष्णः पौतयुष्ण Karte cars: --का-सि। 29

१३० मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

१२० सद्या वि-सायादाद्गोऽहन्‌ डो [सद्या वि-सायात्‌ ५।. वा, ।१।, अङ्कः १।. श्रन्‌ ।१।, डोऽ) सह्या-वि-सायेभ्यः WETS इत्यसय श्रहन्‌ वा स्यात्‌ afs erefa ers, afs व्यहनि as, सायाङ्ि साया- इनि सायाङ् |

विष्ठपाः विश्वपौ विष्वपाः, वि्ठपां fara

१२१। घोरा लोपोऽच्यघौ

( घो; ६।, ्रा ।६।, नोपः १।, hs 9, wat ot )

धोराकारस्य लोपः स्यात्‌ अ्रघावचि परे। विश्वपः, farsa विश्वपाभ्यामिन्यादि। एवं ग्रङ््ादयः | घोः किं- हाहाः दाहा हादाभ्यामिल्धादि। शषं विखपावत्‌ इरः | ज्ञानो amare: wea) तु प्रशान्‌ भवान्‌ भवन्‌ अहत्रिल्यादरौ कथं सुलनमाचत्ताणः सवव्रि्याटौी लुप्‌ नं स्यादिति, उच्यते, अरकारखयानिवद्भावात्‌ | परेकरेशिनः (१) पदादयोऽपग्व्दा इत्याहः ये तु पदादयः एक्‌ शब्दा दति वदन्ति तेषां मत पत्‌ पदौ पद इति भवन्ति |

१२०। संख्या संख्या विथ सायञ्च तत्‌ तस्मात्‌ | as इति सर्वेकटेशसेख्यातमंस्याव्यादित्यादिष्टाङकः, wa प्रौ eraifa डौ श्रहत्रादेणे वा wat: | पत्ते दयदनि इति उभयः waaay EIS | TAA |

१२१। wits a इति qaata दम्‌। धिरधि

कि को ——

({) केचित्‌ पक्त sera |

ब्रजन्तपंलिङ्ग-शब्दः १३१

१२२ युह्गामौ य्‌

( युद्धयाम्‌ yn, Wes, ZR) |

THT ATA UT AY क्रमाटिकारोकारौ प्राप्रोति इरौ।

2221 गार्धि-जस्‌-डित्‌सु |

( णुः १।, धि-जम्‌-ङित्‌स ७॥ ) स्तस्मिन्‌, अरज्‌-विशेषणम्‌ | अर्धलाघवात्‌ पाविति ad, तथाद्धि पैरष्यच्‌नाखेपप्रक्षतिकत्वेन विलस्बप्रतिपत्तिकत्वादाद अ्रयघाविति। “तद्ेतोरेव तदस्तु किं तन” इति न्यायात्‌ कचित्‌ गब्द्नाघवादथलाघवोऽपि wera इत्रि। विश्वप इति विश्व uratfa पाधोः fas एवं सोमपः | तातं तायते इति तातताः तान्‌ ताततः | हाहा इलब्युत्यत्रपच्तमाञित्य इदसमुन्लम्‌ | BIN जहाति इति व्युत्पत्या हाद दति केचित्त, ब्राह्मणवाचकस्य आशब्द्स्यापि्रः पश्य, टेडि, fatafa (१)। अस्मन्मते तु राः पश्य, रेहि, विगर्मति इत्यादि। कथं क्रो यप्‌ से षति? daar | (२)

१२२। युद्धयाम्‌ इख तो, ताभ्यां afad करोति। श्रवयवापेतच्तया दम्‌ इह लाच्शिकयुतोऽपि ग्रहणात्‌ whet चित्रगरू इत्यादि स्यात्‌ यु इति दोहदम्‌

१२२। Ufa | इत्‌ येषां ते डितः faa जश्च ङितश्च ` (#) विरमतीति शलनं सपर्यन पदम्‌।

(२) आवन्तभिन्नानामप्याक्रारलोपर दति वातिकम्‌) अतएव चाये

तन््तमवलभ्बम ATLAS: FY यपसे इत्यादो क्रारिशब्ट्खाष्याकारो ay द्रति दमीटासः।

१२२ HIT व्याकरणम्‌ |

बदुतो णः स्यात्‌ धौ जसि डिति परे HTT

| waa ल्यलक्षणम्‌ 2 हरे हरिं हरो इयोन्‌। १२४। टादसश्रास्तियानु ना

( टा ।१।, अदसः ५।, Wie, Wheaton तु ।१।, ना।१।}।

दृटुद्रयामदसश्च परष्टा ना स्यात्‌, नतु स्वियाम्‌ |

हरिणा हरिभ्यां हरिभिः, eta हरिभ्यां हरिभ्यः aay डित दूति जम्‌ साहचध्ादलाक्षणिकस्यव (१) ग्रहणं, तन मल्ये सख्ये इल्ाटौ स्यात्‌ eat विहितेषु धिज्ञम्‌. ङित्सु fram: | तेन श्रतिनदे चितगो इल्यादौ खात्‌ नतुरेनदिर सुभ्व इत्यादी वरतनु मम््वदन्ति Haz | सुलतु सल्मलद्गरणाय ते इल्यादौ तुर मे पनस्तनादिलादूपि सुभू ada खः। (२)

१२४। टा स्तौ भ्रस्तो तस्याम्‌ | श्रदोग्रहणं सव्धैकाया- नन्तरं मात्ख्घावु इति qa, तेन भ्रमु मुय इत्यादि स्यात्‌ | दिलिङ्गस्य तु यदा dea हत्तिस्तदा area, तेन पटुना पृसा इत्यत्र स्यात्‌, तु पदु ख्या karat |

१) armra डत waar |

(०) want दादि | येन केनापि naga प्रययनोपे प्र्ययमम्बन्धि जायं स्ारिति। यथा रालाद्व्दौसेरनपि दोषः] एवं वाचामीशो era canal लुक ले चेति लुकशब्देन famaly कते विभक्यन विहिता परदरु्ना सिद्वा इति दुगराषः।

त्लक्षणसिति काथयमिग्यद्य विशेषणम्‌ | तचाच व्यःप्रचयो नश्यते उप- लभ्यतेऽत्रेति लक्षणम, अधात्‌ प्र्यद्य लोपे तन्‌ प्रे विहितं यायं agaatta | का-सि।

अजन्तपलिङ्ग-शब्द्‌ः | १२३

१२५। SAS लोपः | ( ङस्य el, TS: ५।, लोपः १। ) एङः परस्य ङसिङसो Sa लोपः खात्‌ "हरे; हरिभ्यां हरिभ्यः et: हर्योः इरोणाम्‌ | १२६। AM S डौः ( aati un, S €।, डोः er) | CATT परस्य SS: स्यात्‌, दत्‌

१२५। Sa] एडो ग्रहणं “Barres: wed, तन तेः देः गोः द्योः महः स्मृलोरित्यायपि स्यात्‌ (१)

१२६ geri डः युङ्धयामिति पूठ्यवत्‌ | युता ङरौ दरति क्ते हरौ शम्भाविति सिद्धं भवति, ci सति fawae- सूबडा वित्यङ ग्रहणं विनापि विंशतीविति सिध्यति, तथापि St करणं, येन विधिस्तदन्तस्यति न्यायात्‌ प्राप्तसमुदितादेश- निहच्यथंम्‌ (२)। अथवा लोपसलरारेशयोः auent fafa- बलवान्‌ इति न्यायात्‌ व्य-खस्तिशब्दस्य' खस्तावित्यनिष्टवार- णार्थम्‌ | कामवाचिन eA तु भ्ादयन्तवदेकस्ित्रिति न्यायात्‌ at इति |

(9) 4: 2: दति age देने, Fae तु टेवने इत्यनयोः fafa qua) महां चारौ उयेति मोः | ya sae खतोः। (९) शूकारारोक्राराभ्यां aferea Sfcamt दकारोकारान्तथन्द्षहित

A

खेव ङरौकारम्रसक्गिनिदन्यचेमित्याश्वः।

१२४ AMA व्याकरणम्‌ |

Ro 2 लप हिति वितेलेपवहौ ( टेः al, लोपः १।, डिति 9, विंशतेः €, तः at, तु 1१, wer 9) डिति पर पूव्वे्य टे atu: स्यात्‌, विंशे Gea रो दर्यः हरिषु एवं श्रोपल्यमििरव्यादयः। १२८। स्यां सै Sle ( सष्यद्मां \॥, सेः €।, डा ।१, WH et) | सखिशब्दात्‌ ऋकारान्ताच्च परस्य से डां Brag षैः। सखा aa: किं -ई सखे | १२८ | at fa: | (ato, far a) we ऋकारस्य fi, सादो घौ पर सखायौ सखायः, सखायं सखायौ ससोन्‌ |

ee

१२७। datn a डिरडिसिस्मन्‌। fintdeast- विति, डो विंशतौ पूर्वेण (१) टिलोपः | डिभिन्रे डिति data: | यथा--विभ्ः, विंशतिमाचष्टे विंशयति लादि (र)

१२८। AAG! सला BI तो ताभ्याम्‌ नधिरधि- स्तस्य श्रधेरिति meat कचित्र स्यात्‌, तेन भर्जन सखा AY: कृष्णस्य सखिरजेन इति भारते आष॑मिव्न्ये।

१२९। Wi पूरवेसूत्रादधेरित्यनुवत्तते ऋताइवर्यीत्‌, तैन हे सखे इत्यत्र fa:

(\) gare अदय सरस पुष्वापेने्धैः। (९) डिवच्लंनात्‌ तडित्‌ एव aye afafeee, तेन विं तिमा

श्रजन्तपलिङ्ग-शब्दः १३४

१३०। सख्यष्टाङितामा-ए-उसुसौ | ( सख्यः wl, feat en, श्रा उस्‌ उस्‌ श्रौ ।१॥ } सख्युः परेषां टा-डितां aia mM उस्‌ उस्‌ श्रौ एते क्रमात्‌ स्य; सख्या सस्ये सख्युः सख्युः सख्यौ शेषं हरिवत्‌ | १३१। Wats) (wa: ५।, श्रसे ) पतिशब्दात्‌ परेषां टाङतां खाने श्रा रए vaya श्रो एते

१२० सख्यः इदयषां ते ङितः, era fea ते तेषाम्‌ आश्र एथ उच्च उथ भ्रौ ते, Gaara लुक वि-सन्धयभावौ सख्या सख्ये AG: सख्युः wal) सख्यो इत्यत्र लाक्षणिक- त्वात्‌ शुः। कचिदपवादविषयेऽप्युलर्गौऽभिनिविश्यते saw, सखिना वानरेन््रणेति। भाषे तु गौख्यऽपि अतिसखा अतिसखायौ अरतिसख्या इत्याद्युक्तम्‌ न्यासे ' तु सस्य्प्राधान्य एव. पैनातिसखिः श्रतिसखो अत्िसखिना इत्यादौ स्यात्‌ इत्युक्तमिति (१)

१२३१ wal सः श्रसस्तस्मिन्‌। पतिना नौय- मानायाः पुरः शक्रो दुष्यति गते भृते प्रव्रजिते wT

ee तः ~~~ --- = “~-------~- ~~~ ~~~ -~--~~~ -- an. ~>

विंशतयती्ारो fefugsfa अतिदिष्टत्वात्‌ तिलोपः, किन्तु सामान्यडिति ferry wa afa, ar-fa | (१) “श्ियान्तु निन्येषन्तत्यात्‌ सखो सख्यो मख्य sarfe गोरौवत ज्ञोवेऽख प्रयोगः तथाच-सखा fag सहाये ना वयद्यायां मखो मता दति मेरद्नो। यनु अहो शिशुत्वं तव खरडितं खरस्य सख्या वयसाप्यनेन Tia नेषते वयसा द्यस्य विशेषणं स्या इति, तत्य सेव अजहञ्ङ्गत्वात्‌ | अतएव हेत॒स्वद्‌बह्म- ay समिति cq: —xfa eatera: |

१२९ Tra व्याकरणम्‌ |

MATT स्यु नतु से! पत्या प्ये पत्यः प्यः पलौ ae विं- - यौ पतिना दद्यादि शेषं हरिवत्‌। कंतिशब्दो बानः।

१२२। इतिसञ्चाणो जस्‌शसो लक्‌

( इति-संख्या-ष्‌-णः ५।, जम्‌ शसोः ६॥, नुक्‌ ।१। ) |

इलन्तात्‌ षान्त-नान्त-संख्याया्च परथो TAT न॑क aia कति कति कतिभिः कतिभ्यः कतिभ्यः कतोनां कतिषु एं यति तति | .

डइति-व्य-ष्णान्तसंख्यास्मद्‌-युमटः सटशास्तिषु |

area: संख्याशब्दा बान्ताः | पतिते ual पतौ जौवति या नारौ उपो व्रतचारिणौ | ge हरते भर्तुः मा नारी नरकं ब्रजेत्‌ दुहितु; पतौ सौतायाः पतये नम इति qeaq (१) कान्दममिति परे

afanet ara इूनि। श्रनि्धितवरहूलविगेषाधेकलात्‌ दूति भावः।

१२२। Siri षचनच णण, संख्या चासौ चति संख्या ण, डतिष dary तत्तस्मात्‌ | उतिडत्यन्तः, संस्याष्ण षान्त नान्त संख्या TATE उत्यन्तादिल्यादि (a) |

डतिव्य इतिश्च ay ष्णान्तसंख्या que waa | १) पृष्ववत्‌ afar बानरनरयो तिवत्‌ | [र ७) एभ्यः ्ञोवेऽपि कति फलानि षट पत्राणि पञ्चमूलानि दव्याटौ जस्‌. शसो. धिं वाधित्वा ata अष्टो अष्ट फलानि शादो डो लुक्‌ चयात्‌ | नच

निसिन्तगतविद्यषतो जिक्गगतविपेषश बरवन्वात्‌ सव्वा{श caret यथा fade fafzafanrcea वाधिवा जणथषो रत्नेन fa: खात्‌ तशार्रापि शिरेवास्ु

श्रजन्तपलिङ्क- शब्दः | १२७

१३३२ wae arta | ( तेः ६।, WTS ।१।, नामि ) तिशब्दस्य sare स्यात्‌ नामि परे, ङ्चखिादन्स्य खाने | व्याणां fag दिष्टो दान्तः।

ara: पूव्वेवत्‌ | विषु लिङ्गेषु wear: समानरूपाः, एषां fer कतप्रयोगरवलक्षखं नास्तौत्यघः(१) | डति-व्य ष्णान्तसंख्यानां FA एवायं नियमः, पूव्यसूतरेण May कतेरित्यनेन मुख्य एव लुमि- धानात्‌। तंन प्रियकतोनि सुखस्तोनि प्रियषंषि प्रियपञ्चानि कुलानोत्यादो स्यात्‌ wag प्रियंकति इत्यादौ स्यादेव एषां afayara प्रियाः पञ्च सियो यस्य प्रियपचचा युवा इल्यादौ पवद्वावः |

तादय इति। तारौनाभेकलतवदित्वायोघकत्वात्‌ aaa श्रयं नियमसत्वष्टादणणनब्दपयथन्तो, विंशत्यादैः क्रविधानात्‌।

१२२। ail श्रामोत्यकरणात्‌ कचित्र स्यात्‌ तथाच नोणामपि समुद्राणां युगान्ते तु समागम इति टदतिङन्तः | सुख्यस्येवायं विषिस्तेन श्रतिज्रोणाम्‌ भन्ये तु गौषेऽपि अति- त्रयाणामित्याहुः |

(१) एषां पुसरोनपुखकजिङ्गविद्धितकाग्य' arated: | अतएव yyewyrt शसो नकारः विघधाखति। एवं कति faa saa पाच्छछोखाटोव्यादिनारपनस्यात्‌, wy far इत्यत्र नान्तत्वादोप्‌न खादिति। नच निजित्तगतश्िशिषतो लिङ्कगत विशेषस्य serena cafe caret यथा fedmfifeafamcied afi जमशोरित्यनेन शिः श्यात्‌ तथानापि fatata द्रति aia.

१८

१३८ HUNT व्याकरणम्‌ |

१३५ wet oe क्त ( wet em, 2: él, अरः १।; ator) CAT टेरकारः स्यात्‌ ज्ञो TF दौदौ, दाभ्या हाभ्यां, हयोः इयोः

= वातप्रमोः वातप्रम्यौ वातप्रम्यः |

१२४। waa) afaem हि गाधेः, सखिमंन्नसयेव ae णात्‌ श्रतितत्‌ विप्रः, श्रतितत्‌ खरो, अतितदो कुले caret स्यात्‌ मूत्र STATS: सोत्रलात्‌ | दभा यौ इत्यत्र भाव्यमानः) aq शं दङ्धानि दति ज्ञापकात्‌ भ्रकारखानिचेऽपि रंग्राहकतम्‌ प्रकरणात्‌ क्राविति प्रापे क्तिग्रहणात्‌ FMEA तमि गौणऽपि खात्‌, (३) दिशन्दम्य तमि स्यात्‌, तेन ब्रतिलान्‌

श्रतिमान्‌ इत्याद, स्यात्‌, तु,तत्तः मत्त; दित इत्यादौ |

डतिव्यप्णान दू्याट्िना दग्यन्ताटौनां लिद्धवयं सास्यनियमेन लिङ्गविदितकाय- निषेघाद्िति दुगाटामः।

(१) भावयमान उत्ाद्यमान Bem: प्रयश्च ति यावत्‌।

i) gaeaalitaste Fear, सख्यं तु तमि प्रयये परे enfze |

aa कार्सिकेयमिशनतः "न ayy डः क्रातिति वायं, o caret तद्‌- गद्य अक्ारव्यवपाने सत्वाभावादनिषटापत्तेः | टेविहिताकार प्रतिभेक्गात्‌ सलं स्यादेव | नतु wet ee क्ताविति छते परहतिभक्तत्ार्‌ मलाटिकायये भवित मति कथमेतट्गौरवमिति.. ...उदत्तपन्यः समरधिकेफनमाचष्ट दूति न्यायात्‌ चदरारीनां मध्ये दुप्रटखदोगौँे क्िसन्नाभावेऽ्यत्विधानाचमिदयाह | अव्र प्रकरणादेव fant जिखद्रं, विद्यमानतिभत लतस्यानजातस् प्रा्यथम्‌ तेनमतौते यतः तत दूथारटि। अतएव faqyzael तसौति वद्गथयात्‌ fate: सङ्गच्छते"... cary | at ce at दति यच्च ad तत्मक्रियानाष- वाधमिति कञ्चित्‌

AHA AT-M: ९२६

१२५। युतोऽम्‌शसो Aastra: | ( यतः ५।, WANT: ell, मौ eu, अदोधोः ५। ) | दो-षुवजौदोदृदन्तात्‌ परयोरम्‌गसोः खाने क्रमात्‌ म-नौ स्तः। वातप्रमी वातप्रस्यौ वातप्रमोन्‌ वातप्रम्या वातप्रमोर्म्यामिल्यादि। एवमतिलच्छादयः (१) सुधोः २३६ धो रियुवचि ( धोः €1, इय्‌ -उव्‌ ।१।, अचि or) घोगोदरूतोः ena क्रमादियुघौ म्तौ ऽचि परे। सुधिवौ(र) सुधियः इत्यादि एवं दग्रो-यवक्रयादयः | प्रथोः। १२५। युतः इश जघ तौ, ताभ्यां तमित करोति, युत्‌ तस्मात्‌, WAT TA at तयोः, मच नच तौ, ete ya तत्‌, तत्‌ Aly तस्मात्‌, पुव सौत्रतात्‌ वातप्रमोमिति arama WT मा-घोः ah | एवं ककन्धुं wa, ऊरयमौणादिकः। केचित्‌ चस्ियामोपि दीम्॑नत्वात्‌ वातप्रमी वातप्रमीः, ऊपि ककन्धुं HAY: TATE | ge) धोः। इयचउव्‌ चतत्‌ | ya ग्रत sfa fai "4 1) uaafaacgrrea xfa aa र्येव daa एवकारेण नियस्तालिङ्क- शब्दश wea षिदह्धिता, aa प्रयोगात्‌ पाल्िकत्वेन नटोसंन्नाभावात्‌ धातुत्वा- भावाज्च वातप्रमीब्द्षदेषां पमिति |... ..-..-भाष्यकारक्रमटीच्ररो तु पुयोगे- saat नटोत्यमङ्गोल्य सव्वेविभक्रिषु स्तोलिङ्गवदुटाज दहतु रिति। कासि, आदिगन्दात्‌ afar ब्धमरेयसो्यादयः। ऊकरारान्तेषु इह अतिचमू. अतिवधूम्रष्टतयः।

(२) शोभना wae gut, किबन्तत्वादद्य wad aia विच्रिबन्तो fe wad जहाति aerfa वेति वचनात्‌ fa | का-सि।

Se gerard व्याकरणम्‌ |

(201 कव्यायनेकाचोऽखाददृनूपुनवं्षाका-

Taanqafaaral |

(कव्याद्यनेकाचः &1, TATE ५।,अदन्‌- सुधियो; ६।,वौ१॥)।

काद व्यौदेरनेकाचश घो रोदूतोरस्यात्‌ परयोः क्रमात्‌ यवौ सत: प्रवि परे, नतु टनुभू पुनभू वर्षाभू-काराभूभ्योऽन्यस्य भू mee सुधियय प्रवी प्रध्यः दूयादि णवं दोष्यादयः।

वव्याद्यनेकाचः fa --qefaat wera जिं - यवक्रियौ | नी; नियो

विपरिणम्यातुवत्तयन्ाह टूनोरिति। एवं सुभ्ौ-यवक्रादय इति | ्रादिगशब्दात्‌ इभिच्छति इति क्किप्‌. ई: दयौ इयः, एवं उमिच्छति दति ऊः उवौ उवः इत्यादि प्रकरणात्‌ Aaa, तेन qT इत्यादौ स्यात्‌ (१) | |

्रोश्ोरादिडसोना far आदौ garsfa दयुवौ वा i | त्रिवादिः क्राादिः ga: यो. अनुकरणारिचन्यः।

gor aa व्यंच कव्यं, कव्यमादियस्य सः, कव्यादिग्र SARA तत्तस्य, स्यः AW: तस्मात्‌, टं पुनश्च वषाशच काराच ता Wat यस्य सः, तस्मादन्यः न्‌पुनवेर्षाकाराद्यन्यः, चासौ

(१) सुध्यादयः पुवदिखादौ इयादेशाभावं द्शितवताचार्येय अनाचोति खाद सेवेति न्नापितं, सामान्यग्रद्दोऽपि कविहिशेष्रपरो भवतोति न्यायात्‌ ।* “किञ्च qruafegafaafata aaa कर्िटृन्यललापि भवति, तेन तरासाह पुरोधाय धाम खायन्धृवं ययुरिति कालिदासः। विेषविधित्वाहोषेखखापि बाधक्रोऽयं, तेन et सुधियि xara एति दुर्गादासः।

श्रजन्तपलिष्ग-शब्दः १४१

भूषेति, पश्चात्‌ Tala तौ, हन्‌पुनवर्षाकारायन्यमूसुधियौ, तौ श्रहनूपुनवषकाराद्यन्यभूसुधिवौ तयोः यच वच at! धोरिति धोरवयवभूतयो रित्यर्थः | त्रलित्यादि, विति हिंसा्व्यं तस्राह्वधोः faa, हन्‌भूः स्तो सपचक्रयोरिति, दकारादौ मेदिनो। हन्भूः स्तौ कुलिशे चक्रे zeq: स्तौपं्योरहाविति दकारादौ faa) दनुमेरूप्रत्ययेन निपातितमिति भाष्यम्‌ कारास्थाने करं ufsar aw: करभ्बो करम्ब इत्यादि। एकदेशविक्ततमनन्यवद्ववतोति न्यायात्‌ कारभ्वो दूति afaere: | एषामियुवीदृद्धिब्रलात्‌ स्यां दोसंत्नायां 28d हन्‌मूनां काराभ्बे काराभूणामिति।

यदा स्याद्युत्मत्तः प्राक्‌ मस्ततेवायं विधिरिति भाष्य, तेन दषह्धियः कुधियः श्रभियः wafer: नानाधियः दातलुवा, वरथिकभिया पलायमानस्याभो विषंसुखे निपात इत्यादौ स्यादयन्तेन सेन स्यात्‌| afaafuafa away षो-विवच्येति ara | व्यानां wa ita विधानादोषद्धिव इत्यादौ स्यादित्यन्ये। वस्तुतस्तु EAA AAG MN AA AA aT UAL ay इत्य- करणात्‌, उत्सगत्वादा Lafza इत्यादौ स्यात्‌ (१) | cares

(१) दन्‌ हिसा age wate: | एषां निङ्धाथनिरंयस्तु, टनृभूः स्तो afew चक्रे CA MMT Cesta विश्वप्रकाशात्‌ | एुनभूःखात्‌ दि्‌दायां दनम पच्चम- aaa: | पुननैवायां वर्षाभूःस्तियां Farry अञ | का राभूनिंगडस्थाने क्रिवाया- मपि चेष्यते दूति कोषाञ्च। केचित्तु कारास्याने कार पठित्वा ATA कारण्व गर्यदाहरन्ति | तथाच काराङ्धेष्ते दूति वामनः | वर्षाडनुएनःकारादृश्व इति चान्द्रः | SITU घञन्तो त्तो भाष्ये दश्यते इति रक्ितच्च। ace

१४२ सुग्धवीोधं व्याकरणम्‌ |

१३८ न्यापदौभ्यो ङ्गम्‌ | (नो-राप-दोभ्यः ५॥, ङः gt, आम्‌ ।१।) | नोशन्दादापो दाश्च परख ड-राम्‌ स्यात्‌। नियाम्‌। रषं सुधोवत्‌ भ्रग्रणोः श्रग्रखौ ङौ-ब्रग्रखाम्‌ शेषं प्रपीत |

इति दोधोधोः faqs दिषिष्वादय इति लिपिकरप्रमादः। यतो दधिपृमै स्यतैरुत्ये निपातनमिति (१)। आदिना नारौ. वाचरतो नार्यो विप्र, मानमिच्छति मान्यः, सखेवाचरते सख्य इत्यादिसंग्रहः श्रवयवस्तोत्ाब्राथा इति माथम्‌ शुद- धियाविति get धोयंयोरितत वाच्छम्‌ |

१२८। न्याप्‌। ate ama दोच ताः ताभ्यः। नौलख गौणागोणग्रहणे, तनातिनियां प्रियनियाभित्यादि अग्रखामिति aa नयतोति क्किप्‌, wasfa रएकटदेशविक्लतमनन्धवद्ववतीति

at पटित्वा करण्यौ ate cafe केचित्‌ हनृम्बारीनां दयुवस्थानभिच्रानां नियस्ोत्वाहीशंन्नावामाटौ नुमागमे , टनुभूनामि्यादि | किन्तु टनुभूणद्धृस्य wi- वाचित्वे पाकिकम्तोलादमंन्नाभावे हनृभूनामिति | अर्पि अचोति खारेरेय aa mitt दद्याटो anes दति दुर्गादासः कारापदवद्यापौति काशिक्रा। ६।४।८४।

mae ौयस्येति यन्यारितख पु लिद्प्पीगब्द्खात यकारविधानेन "सष्टधीः प्रहा धीरिति नि्यस्रोतवे gute alae [दिति वच्छमाणवरचनेन यदा श्ाद्य्मत्तेः प्राक शशटेवायं विधिरिति मतमनाहतमाचेखेति। tafga caret तु कंदिदपवाटविषयेऽ्य॒त्‌समौऽभिनिविशते एति wag यवौ दूति केचित्‌|

(१) दध धारणे दः | दधिं dat खति, weg दित्वादूप्रयमे TERT निषा- तिता इ्मरटोका।

अजन्तपंलिङ-शब्दः १४३

१३९ त-तज-खादौयो STAT: |

( त-तज-खात्‌ ५।, ईैयः ५।, डः १।, वा ।१।, उः १।) 1

तात्‌ तख्यानजादर्णात्‌ खाच्च परदादोकारजात्‌ यकारात्‌ परो ङिङ्मो S उः स्वाहा A: GH लुन्युः लुन्यः। VA: VSL!

wat हरिवत्‌ साध्यः

शम्भः TAL गग्धवः, mai Tay Taq, TAT ware wafa:, शम्भवे WaRgi ग्युभ्यः, Wath WaRat WaRa;, wart: शम्भोः गनां, Wah wart: wag 1 Swat |

एवं विष्णु-वायु-भान्वादयः।

---~ * .------ --- ~ ~~~ ~~~

न्यायादाम्‌ | एवं ग्रामखामित्यादि | बडग्रामरिनि कुले caret परलत्वा मण, पुवद्वावपक्ते तु स्याद्व (१) |

१२८९ | ततज। ताञ्जायते तुजः, तश्च तजय खश्च तत्तस्मात्‌, दयो यः (२) शयस्तस्मात्‌ प्रकरणात्‌ कव्यादौत्यनेन Hawa ग्रहणात्‌ सख्याः इत्यादौ स्यात्‌ सुल्युरिति सुतमिच्छति सुतोयतौति fay युर्लौपोहसौत्यनंन यलोपः, अनेकाचूल्वात्‌ पू्वंष यः अनेन उः। लुन्युरिति लूघोःक्श्तस्य नः, गेषं Wea बत्‌ एवं are: प्रस्तोम्युरित्यादि (२) पचे ga इल्छादि वेति नच्छन्ति परे |

(१ अआआमितिषः|

(२) धोरोकारस्यानजातो इव्यथः अत्र मण्डकश्र ताधिकारात्‌ धोरत्य- जुवर्तते cia दुर्गादासः |

(२) Swe मः सामः, YS C-SI म. nee. afamaifa किष , पश्चात्‌ ani welt शब्दयो ङसि रूपम्‌ |

(88 मुवो याकरणम्‌ |

१४. क्रष्टोसुनसतत्रधौ घौ सियाच्च त्रोटः ६।, तनः ६। ठन्‌।१। भ्र 9, घौ | स्िथां 91, च।१।)।

METS तुनः खाने ठन्‌ स्यात्‌ Wt घौ परं faary, इत्‌

(१२८) सखुह्यामिति। क्रोष्टा, ₹हे क्रोष्टो (१२९) घौ त्रिरिति क्रोष्टारौ क्रोष्टारः were aera

१४०। क्रोष्टोसुनः। पिरधिस्तस्मिन्‌ गौणेऽपि वड ्रोष्टुणि वनानि, wa हेऽपि aa: इति कौन स्यात्‌ पून्मवखाया- मृदन्तललाभावात्‌ | बहवः MITT यसखयामित्यादौ ठि ऋदन्तात्‌ गभवरोपि agargt get इत्यादि (१)। खियामिलयुक्ञेः करः aig करोष्टरभ्यामित्यादि। एवं पञ्चभिः agi: क्रौतमिल्यत्र aa गे स्रोत्यघ्य लुकि पचचक्रीष्ट वनं पञचक्रोषट्ठ मृव्यनेलादि (२)। gare निवात समुदितस्यवादेशः (२) wae fre घावलस- इति एनिपेधाघम्‌ |

(१) mista बको पूरियारौ arate पुंस्वेऽपि सष्ठदायख etary waren रेवति -का-बि।

(२) “ad पञ्चमिः कोष्टरोभिः क्रीतमिति वाक्यं ताथतिषये fart ष्ये ययोलीप दूति द्पोलोपे गर्मयग्वा द्यादिना बव्रिद्िव्रोपे सखटायख alata हणो fagat अवयवच्त्रालवात्‌ हण प्शकोष्टु दति arfa |

(३) क्रोटोखलोम्तन्‌ दूथनुङ्खा तुनसनुन्‌ इति कथलुक्गमि्याह पूति ! पच qa | समुटितखयंष वुस्थाने एव eared, अन्यया हो fared एवः यादिति

waaay we: | १४५

१४१। वाच्यघौ (वा ।१।, अचि ७), श्रघौ 9) क्री्टोसन स्तन्‌ वा स्यात्‌ श्रघावचि at | क्रोष्टन्‌(१, MIT १४२। कतो डो दधः (wea: ५।, S १।, डः १।) | कारात्‌ परो stage ईं डः स्यात्‌, इत्‌ ।' क्रोष्टुः क्रोष्टुः क्रोष्रोः क्रोषटुणाम्‌

१४१। ara धिरघिस्तस्िन्‌ | अरस्योपादानं स्यमौ- जमो fanart, तु धिमामान्यस्य,(र) तेन बहूक्रोष्टनो वने इत्यत्र नस्यात्‌ वा पाविति afaa क्रोष्टो साघुरिव्यत्र खटद्रोयेदति क्रोष्टं इत्यनिष्टं स्यात्‌ श्रत्रापि गौणे वंहुक्रोषट्या TERE TAT इत्यादि क्रोष्टन्‌ करोषटणां इति चाद््रास्तद्मतमवलग्बा क्रोष्टन्‌ ्रोषटुणां इति | इदं नेच्छन्ति परे | छताज्ञतप्रसङग यो विधिः एव नित्य इति न्यायात्‌ (३) मादौ नकारनुमौ, तयोनाटेशस्तेन MIE MEAT AAA: |

१४२। ऋत इति षौव्यत्यये प्रौ इरिति fewrq रिलोपः।

१) सामतं naa wey शुद्वितेषु सग्धबो पुस्तकोष शसि क्रोष्टून्‌ आमि कोष्टूनाभिनयेके कमे पटं दृष्यते | तकवागोशमते तु शसि क्रोषटन्‌ क्रोशन्‌ wate a करोषटुणाम्‌ करोषुनासिव्येवाचायसमरतसिति प्रतौयते। तदख्ाभिरपि तथेव स्िगशितम्‌। द्गांदासोऽपि शसि ateq क्रोष्टून्‌ द्रति प्द्दयमाचाय सम्प्रतमित्य!दह |

(2) aa fa: aa cuaa विशेषविदहितसेव्ययेः।

(९) ufeafautaa saasfa वा, यद्माहिषेः प्रर gages. प्रसङ्गः प्रसतिर्गिद्यते यद्य aren ay fafa: aur नित्यः, एव fata gerafa®:

१९

१४६ सुग्धबोधं व्याकरणम्‌ |

१९६२ | a feat: | (शः a, feet on) HATTA T स्यात्‌ St a Tats क्रोष्टरिक्रोष्रोः। पतते हसे शम्भृवत्‌ | Be: Bal Be: इत्यादि, वातप्रमोवत्‌। एवमरतिचम्बादयः। सुभूः THA सुमुवः इत्यादि सुधोवत्‌। एवं कटगरू-खय्भादयः। सुन. Va सुखः इलयादि प्रधौवत्‌ एवं हनभू.खनष्वादयः | धाना, ठनन्तक्रोष्टुवत्‌ ¦ धौ -ह धातः। एवं नम्‌ होढ पौतादयः। पिता, हे पितः | पिता माता ननान्दा ना ATE ATS ANAT |

जामाता दुहिता ठेवा ठनन्ता इमे दश I

१४२। णः। fea faa तो तयोः। बयतकरमनिर्हगात्‌ (१) = e + गे ~ ऋतः tuaify गग्राहकतवं, तेन हे ufsanaa इत्यादो धौ तोऽपि शुः अनुकरणात्‌ (२) सिदमित्यन्यः। एवं जसि परठित- गमनः इति पतते हसे इति -स्यमौजमभिन्रेऽवि हश Yaa: | वातप्रमं।वरिति ata ee शमि इृहन्‌, Sq वातप्रमौशब्दस्य वातप्रमो, इह्ृगब्दस्य हृदि इति गेषः। अरतिचमूशब्दस्य शसि प्रागभवतो्यथ | दूति न्यायात प्रहृते गमो नकार आमोनुम तुनः स्थाने दणि aa waa भगितु महति अतस्तातेव दणादेशात्‌ ge खातामिति। एतेन शसि meq आमि meant ATER क्रोषटुणामिति केषाञजिन्बतम। 1) fwerlfcaga fa शेषः| (२) WATT waa: ममत्वादिि्यधः।

अजन्तपलिङ्क- शब्द्‌ | १४७

१४४ | घावश्वषटणः | (घौ ऽ।, श्र-खरूढणः ६।)। घो परे ऋकारस्य गः स्यात्‌ नतु wea पितरौ पितरः, पितरं पितरौ | शेषं घाठवत्‌ एवं*जामाट भ्रातादयः | १४५। at नामि a | (लुः €।, वा ig, नामि 9, घः १।) शब्दस्य नामि परतो घेः स्यात्‌ वा। नृणां कृणाम्‌ शेषं पिवत्‌ |

अतिचमूरिति अवयवस्ौलादिति भाष्यम्‌ (१)) सुभुवाविति म्म्बादिभूभिन्रलादुव्‌ | दनन्त-करो्टव्दिति- ये तु शसामि टन्‌ नैच्छन्ति तन्मते शसाम्‌भित्रं इति no) धौ हे घातरिति शुदशेनार्धसुक्तम्‌ | पितेत्यादि <8 दश ठनन्ता रपि ठनन्ता qua) एतदन्ये dean अपि नन्ता saa, तन नोधो रोणादिक-ठव्ये सन्‌, नेष्टा Hea नेष्टारः इत्यादौ शुः |

१४४ घाव खसाच तुश्च तत्‌, तत्‌, WAST तस्य | खरूशब्दस्य ठनन्तत्वातिदेणात्‌ एनिषधे far खरूकहणं, कचि दतिदेषकाय्येमनित्यमित्यस्य ज्ञापनाथेम्‌। तेन शंस्तरौ शंस्तरः TM WA इत्यादौ qi कनञ्जटम्तुं शंस्तारो war Tale |

१४५। नुव्वा। wa नियमो atisfa, तेनातिनुणां

श्रतिनृणामिति।

~ ~~ ae += ~ = = ---- - -- ------~ = च्छ => ~ = =

(१) समते अतिचमूनिति।

Th सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

१४६। ओरौ घी (श्रोः gt, ग्र ।१, घौ ७) MATS VAT: स्यत्‌ घौ परे। गौः गावी गावः। १४७। ब्रामृशमोः | (आ ।१।, श्रम्‌-गमो; OM) | MATS प्राकारः स्यात्‌ रमि शमि पररे। at गाव गाः, गवा गोभ्यां इ्यादि। (१२ ५) Sas नोप इति गोः गोः।

१४६। MA) ओरित्यत्र मामान्यण्ब्दस्य विशरेषपरत्वात डिदोव्यान्तस्येव ग्रहणम्‌ तेन स्मृत उर्यन स्बुतोः AW: § चित्रगो इत्यादौ स्यात्‌ | नौः वौ प्त्री स्यात्‌ | नौपखरा- देशयोः खरारेशविधिवलवान्‌ इति न्यायात्‌ नौः ai: दरत्यादौ एडो धिनोपः (१) |

१४७ ' श्राम्‌ WAT शम्‌च तयोः Wha सामा न्यस्येव ग्रहणात्‌ गां दां, उना सह वत्तते सोः तं सां, wai aetfaanie खात्‌। कथित्‌ पूर्त्रापि सामान्यस्य ग्रहणात्‌ wat: Ae: सौरिलयाह (२)।

(१) {1*9 Bag टोका gear | मह उना aaa सो awd सौ aa सौरि दि |

अजन्तस्तोलिङ्ग-शव्दः | १४९

१९४८ | रे रा सभि | (रं leh, रा ।१।, सभि 91) रे Wet TAIT SR sats राः रायौ रायः, राभ्या- मिल्यादि। म्लः ग्लावो ग्लावः इत्यादि | इति waar पुंलिङ्ग -पादः।

अरजन्तस्तीलिङ्-शब्द्‌ः |

१४८ आबौव्‌भसात्‌ सै लोपः | (आप्‌ईप्‌-हसात्‌ ५।, सेः gt, लोपः १) , arg Sut wate परस्य से लोपः स्यात्‌| SAT

-- --~ -- --- ~ > ~ -- ee ~“ ~~~ ~~

१४८। रे। सच भच तत्तस्िन्‌। गौणेऽपि सुराभ्यां कुला- भ्यामिति स्थात्‌ नानामोरपि (१) रदेश इत्यन्ये, तन्मते सुराणा कुलेन सुराणां कुनाना्मिति। अस्मन्मते तु सूरिणा सुराया सुरोणां सुरायामिति।

दत्यजन्तपलिङ्कपादः।

१४९ Wat) WT चद्‌ wae तत्तस्मात्‌ श्रावि- त्यनेन डापोग्रहणं, पिदूग्रहणात्‌। उभेति श्रव caret म्यः कित्‌ उडा सह ऊट्‌ बाद्ुश्यात्‌ खः खियामत wie! कर्चिदु-माशन्दो- ऽभिधायकलवेनास्या अस्ति, भ्रगे्रादिलादः पश्चादाप्‌। तथाच

~~ ~~~“ ~~~ ~

११) टदाविभक्तौ आमिचेल्यधः।

११५० मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

१५० | यौरापः | (३ ।१।, श्रः १।, श्रापः ५।) श्रापः पर Wt स्यात्‌ | SA SAT: |

उमेति माता तपसो निषिदा पश्चादुमाख्यां सुमुखो जगाम इति कुमारसन्भपरे ware (१) ननु खान्तस्याराल्लप्‌ इति fant वागिल्यादि सिथ्यति faad हमोग्रहणं, गोः after ata: ज्ररादिति निषेधादिति वायं, तहिं श्रावौत्रात्‌ सेर्लोप इति aa क्रियतामिति चेत्र, एवं aaa: श्रवया इत्यादौ लुपि aya उमङ्विषैः (र) wet हमोग्रहणं, नोपः खरादेणयोः quem विवि्धनवान्‌ इत्यस्य ज्नापनाधञ्च। एवं मति राजा वेधा इत्यादावपि घैः (3) | १५०। atta: | घकरणात्‌ जरसौ इति

नाना EE A > = 9 = ~ Ce = ~ ~~ ~~~ ~ ~ a ~

(१ उमेति। संन्नाग्रद्धानां यघाकधक्चित aaa: araifa ary: 1s: शिवः तं fama जपतीति माङ्लि we हनजनाद्रमादेरिति डप्रत्यये उम दति शब्दात्‌ स्तियारप्रि उमेति पम्‌ उमेति माना तपसो निपिद्धा पश्ादुमारां सुमुखो जगामद्ति कानिरामस्य afaaafa दुगाटासः। (नतु उमाशब्दृस्य वस्तुतो व्य त्र्याधायकं तरियेवकाराधैः ) |

(२) अयुक्त डसड विधेरिति--अयुक्तख्य नुपि मति ane अआटिविधेनिपेषाद- प्रप्र उसडविधेरि्यथः। उसडपरिधेरिचस्ोपनच्चयत्यात्‌ faz घुगि्यादौ दादौनाञ्च यहणमिति।

(९) एषं षति autre aa wart aden) खरा देशश्य बनवच्वात राजेतर आदौ Ae पचाद्रोनुप। हसो ग्रहणं विना वेधा ष्यत सक्रारहय मयोगे are gray दू्यादेवनवन्चादाौ दलोपे वेध द्निषटं खात्‌ अव्षोधोरिद्यत्र असनटिङ्ग्येव रोविषानात्‌।

भ्रजन्सस्तो लिङ्क-शब्दः १५९१

१५१। facta | (धि-टा-श्रोसि अ, ue)!

भ्रापरएः स्यात्‌ घौ टौसोश्च परतः। उभे।

उमां उमे उमाः, उमया Sawai उमाभिः।

, १५२। जनत्‌ यन्न्‌ (feat em, यम्‌^१।)।

आपः परेषां feat यम्‌ स्यात्‌. मद्रत्‌। उमायै sari VARA, उमायाः उमाभ्यां SAT, उमायाः saat: उमानाम्‌ |

(१३८) न्यापदौभ्योडेरामिःति उमायां, उमयोः उमासु, एवं दु्गामायास्िकादयः |

१५२ | ख. स्यम्‌ खश्च | ( खः ५।, स्यम्‌ ।१।, खः १।, 1१) | खरावन्तात्‌ परेषां feat UA स्यात्‌, Yara खः |

१५१। धिटौ। धिश्च cra ste तत्तस्मिन्‌ | sata fai विपरिणम्याह अरप दूति। सिनोपमा्रितय (१) एः

१५२ feats ङददद्येषां ते तेषा धमो इत्‌, AAT AAA: (2) 1 उमायामिति अप्‌ ग्रहणात्‌ श्रादौ SUA पञ्चाद्‌ यम्‌ सव्वस्यामित्यत्र स्यमागमलवात्र यम्‌

१५२। खेः। डितामापश्ेत्यनुवत्तते। स्थम्‌स्वावित्य-

(१) त्यलोपे अलक्तणभिदुक्तः | (२) डिति waatiefag feat यम्‌ विधानं, gente विभक्गिभाजि- त्वात्‌ टाभिस्‌ इ्यादिना ङग्रष्टतीनामयाद्यारे निटन्यथ{मिति दुर्गादासः |

१५२ Tuas व्याकरणम्‌

THA TAA: WIA: TIT | श्रामि सन्मसाम्‌।

शेषं sataq | एवं विश्वादय श्रावन्ताः |

AGC TATA ATA

fedtew हितीयावे, हितीयस्याः दितीयायाः, दितीयस्या हितोयायाम्‌ शेषमुमावत्‌ एवं तीया |

१५४। सुभृदौदाजम्ार्थानां घौ खः |

(सुभृदोदाजब्बार्थानां ६।।, घौ ७, खः १।)।

aT दा दाजम्बाधानाच्च खः खात्‌ धौ परं 2 war येषमुमावत्‌। एवमक्ञानायः। इचः किं - हे ware, है afar | करणात्‌ पृष्वस्यव at तु डिताम्‌। इसम्‌ इति क्तम्‌ रसे wear द्रत्यादिषिद्धययेम्‌ (१) |

१५४ BA हातचौ येयां ते, wear swat येषां तै, दपचश्च ते अव्वायाधेति त, सुमरय दोच दयजग्बाधरीशच तेषाम्‌ विमानना सुमु कुतः fugue) हा पितः क्ञामि 2 सुभ बहन वं विललाप इलया प्रयोगदथनान्‌ TET, दोश्नामाह- चर्यात्‌ स्यामेव तैन 2 VL पुरुष इत्यत स्यात्‌ तथाच गिरो सुभूम्तव पादपद्ं भजन्ति get कवयोऽसुरारे इति रकाह्नादय इति, ्रादिना 2 aa eau इत्यादि। प्राददन्ते fa | एतनाशब्ट्‌ परे नाहुः |

(१) नतु इख्यभापटसिद्नौ समेति कर्थभिति चेत्न, अखै xarfeara® सक्रारप्ररत्वाभावे मभ्य दृत्यद्याप्रहत्तेरिति दुगादाषः।

अजन्त स्तो लिङ्गशब्दः | १५३

जगा। (११६) जरम्‌ जरावितु। जरसौ। फैबिटादावोल- समिच्छन्ति जरसौ जरे। जरमः जराः इत्यादि पाददन्तेति, नासिका-एतना-निशानां नस्‌-षएत्‌-निशः नसः नसा नोभ्या- भि्यादि एतः एता णृह्यामिव्यादि निशः निशा!

१५५। TRH भाज यज व्रज रुज खज त्रश

भस्‌जां षड्‌ भौ

(श -भ्रम्‌जां e111, षड ।१।, भौ 9)

शान्तानां कान्तानां TAFT TS स्यात्‌ भौ परे |

१५६। षोडः HI (Mal, इः १।, फे 9|)

षस्य डः स्यात्‌ फे परे। निडभ्यां इत्यादि" va Wa उमावत्‌ |

गोपा, विशखपावत्‌ |

मति दरिवत्‌, alata a ma aoa Zt aT! मनी; aa ९५५। श्रा। TS SaaS BIE यज व्रजथ BAA WAY AWA मनसृजख ते तेषाम्‌ षडो fewewa) रत्तितस्ु राजादिसाह चर्यात्‌ wea शस्य षड, तेन निज्‌भ्याम्‌ निच्‌शु निच इत्याह (१) इह सामान्य-शग्रह- णात्‌ गिरिवेश्मानमाचक्षाणः गिरिवद्‌, एवमश्मानमाचक्ताणः ्रडित्यारि।

१५६। षौ। इह सामान्यषग्रहाणात्‌ षट्‌, उसाणमाच- are उडत्य्रादि।

~= ~ ~~ --~ rr = ~ =

(१) तन्मते निश्ाथन्दात्‌ भ्यामि afa a quia | 20

१५४ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌

quel या डितामम्‌।

(द्याः ५।, feat ६॥, भ्रम्‌ ।१।॥)।

याः परेषां डितामम्‌ खात्‌. इत्‌ मत्यै मतये, मलाः मतैः, मयां मतो एवं गुति-खृति वुदमादयः।

१५८ faat विचतुरो सिचत वत्‌ atl

(feat ७), विचतुगोः en, तिष्ट wae ।१।, ऋवत्‌ ।१।, fit 9)

वरिचतुरोः खलो लिङ्ग क्रमात्‌ तिखचतसरौ सः त्तौ परे। तौ छवत्‌, तेन ुत्रिघाः | fae: faa: faafa: fae: तिभ्यः तिषधरां तिरूषु

टेरत्रे AA | दे दाभ्या इाभ्यां दाभ्यां दयोः इयोः

गौरो गौर्यो-गोयः, गौरि, गौरीं गौर्यो we, गौय गौरोभ्यां गौरौभिः ( १५७) याड्तिामम्‌। गौर्ये ath गौरोभ्यः, गोधा: Wea गौरोभ्यः, ara: गर्यो; MAT, गौथां गौर्यो; गोरोषु एवं वाणो-कालो नद्यादयः।

१५७। द्याः ददुषां ते तेषाम्‌ मदे दतयादौ लाच- fanaa U1 या fea इति कतं, श्रागमो वद्क्गस्तद्ग्रह- रेन ख्यते दत्य स्यानिललज्नापनाथम्‌, तेन षटत्‌ सन्त इल्यारौ- टभिरित्यादिना स्तो; Taq |

१५८। स्तियाम्‌। तिच चतुश्च तौ तयोः, त्रिचतुरोः रित्यनुकरणात्‌। faaqdae feat हत्तिसदेवादेशस्तेन

WAM लिङ्ग-शब्द्‌ः | १५५

wat: | अनोबन्तत्वात्‌ सिलोपः | शेषं गोरौवत्‌ एवम्‌ अवो-तन््मादयः।

स्तो, fal प्रियास्तिसखरो यस्य a प्रियतिसा, प्रियाश्चतसखो यस्य प्रियचतसा इत्यादौ स्यात्‌ नतु frat ख्यो यस्याःसा प्रियत्निः, frara- त्रो यस्याः मा प्रियचत्वारिव्यादौ। क्ताविति प्रकरणात्‌ प्रापे लिग्रहणात्‌ प्रियतिष् froze कुलमित्यत af स्यादेव, तु तिख इच्छति तिकाम्यति, चतख इच्छति चतुर्खति, तिषणां प्रियः तिप्रियः, चतद्धणां प्रियः चतुः्रियं इत्यादौ | केचित्त प्रियतर प्रियचतुः कुलमिव्याहः। कश्चिदाह साक्षात्‌ aaa विधानां जिग्रहणमिति। ofaat इति- उक्ता ufaat इति स्युः, तेन प्रियतिसुणि कुलानि प्रियचतभुरि कुलानि परत्वात्‌ घः(१) | अतासकरणात्‌ (2) प्रियतिखः aad: प्रियतिखो धनमित्यादौ डुः अमो इति fai प्रियतिसा प्रिय चतसा(र)। तिरं

(१) उक्ता wfqat 5m: नसमहन्र इति वध्यमाणद्नेण aed निषिध्यते इत्यधेः।

(२) अन-नणुत्रिषाद््त्र, असकरणात्‌ - एन HAY सह सः समासस्तत्‌ करणात्‌, अशब्दे नात्र अक्रारकाय्ये TBS | तथाच गु त्रिश्च aaa पत्रिषां Cast समास करणात्‌ खकारस्यानजातकाययर्मयि wai तेन ङसिडसो रकारख्यनदूरिति।

(३) अभो-णु विषां दति | एतेषां निषेधादेतदन्यत्‌ ara भवतोति न्नापि- तम्‌ उक्गञ्चदुर्गाटासेन “खातिहेशिकमनित्यमिति न्यायात्‌ सौ ऋषटिति बोध्यम्‌, तन सष्यह्धय।सितिकेड ` ष्रति।

१५६ मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

चतद्णामि लन श्रागमादेशयो रागमो विधिबंलवान्‌ इति न्यायात्‌ नुमि निर्चतसादेगे azarae घेः (४) |

लच््मोरिति wand: ईकारस्य मुम्‌ च। श्रवोतन्तादय दलि आदिना तरो रोहो संग्रहः यदुक्तं

रवी -तन्चौ तरो Teal ALS ्वृणामुणादितः।

स्तौ लिङ्गवत्तिनामेषां सेर्तोपो कदाचन

( ्रनोवन्ततया लोपो गौणे BAT ) |

(8) अनर्‌ सूते कार्तिकेयसिङ्गनन --प्िवतिसा -अत कथं “संख्याया डो बहोरिति शूत्रेण डप्रत्ययो स्यात्‌, तल WAT मियेषपरल्वात्‌ उदाहरण न्नापकाञ्चसंख्यावययाभ्यां परात्‌ संख्याराचङक्शन्दात्‌ परविानात्‌ Wa तदभावा च्प्रसङ्गः। चनि रन्धङता छत्‌ Lag रात्रि दूति विथेपकथनात्‌ गुषाद्य तिरिकगस्थले एतयोदौघच्छव्रतलं नातौति ज्ञापितम्‌ | तेन मौ प्रियतिसा इयत मख्युद्धय।मिल्यनेन से डां प्रियतिषट्णामियत खात्नुम्‌ | नन्वेवद्चेन्‌ शि प्रिय faa द्यत्र युणादयतिरिक्रार्यस् खधोम्यामिन्यनेन शमोऽकारलोपख सम्भवो ऽसतु tq | तेन त्रा cae ष्या ने गक्रारो वत्ते | तेन अकारायै मपरिनस्छात। **** aca डःसिटःमोः प्रियतिन्त द्यत्र टतो डो दुरियनेन अकारकर्यंहनस्यादिति ary सुङ्गच्ठते। एवमत कानागप्रकासतु तौर खर" ( तौ faag aaa} विभरिसरे परे रंरेफंप्ाप्रतः | कातन्ते चतुटयष्टत्तौ १६८) दूति सवं सर्व्वापयादकं मता शसो नमाराभावें चक्रः| वयं तनातेकवाक्यनया अव्रयवस्त्रीचमङ्गोर्य तथ्य तटभावमक्राग्म | अत्र त्रिरच्येव निषिद्धः; तत्र मेड दूति तरिशे्ान्‌। तराचच््यात्‌ युरिति wars निषिद्धः | तेन सम्बोधने हे प्रियतिस fraaq uta यद्यपि प्रिता arama नदे ननन्दु UTA aA Sf निषेधात्‌ तद्भिन्न-दन्तानां हननत्वातिदेभेन एतयोम्तुनन्तत्वसम्भवा घावखद्हण दयत हनन्लवच्जनात्‌ TART TERT TAT नास्ति, तथापि aafgat cate गुग- निपेधकरणां गाड्योरिचनेन णुयनिपेधार्धम | तेन et fuafafe aq faafandifa | अधेष प्रियाल्लिसलो यत्र कृले दूति वाक्ये प्र्ययभासुटायिक- miata परङ्ञतिसासृद्‌विककायस् wa आदौ wate: ततो

श्रजन्तस्तो लिद्ग-शब्दः | १५७

१५८ स्तौ भूषु (wat ।१।, भूः १।, धुः १।) | स्रोगब्दो Hey Yds: स्यात्‌ (१२६) धोरियुवचि feat fea: | १६०। स्तौ ATA: | (स्तौ ।१।, वा ।१।, ्रम्‌-शसोः ७॥) स्तो -णब्दो WAST aT स्यात्‌ अमि शसि परे fad at तियो faa: स्रोः, सिया ahat सीभिः, faa स्तौभ्यां स्वोभ्यः, स्ियाः Ghai स्तोभ्यः, स्तिया; fea: ai, feat feat: स्तोषु

१५९ स्तोभः स्तो भ्त तत्‌, ka सौत्रत्वात्‌, fut दंवा। इयुवविधानाथभिदम्‌ |

१६०। MAT भ्रम्‌ च.शस्‌ तौ नयोः) yal ग्रहणं भ्नुनिहच्य्थेम्‌ fad flaw: इत्यव श्रादावियादेथः नत्वम्‌गसादेर्लौपः, धुत्वातिदेशविधानात्‌। fet इत्यादि- नाम्तोयुव इत्यत्र wast Sara warfare: | एवं atufaarel नुमि अजभावाब्रेयारेश{ ˆ मौगे तु ्रति-

frufasta amie) तेन faafre प्रियनिष्धखी प्रियतिसुखि श्त्यादि ^“ #* #* * wrt ते wife तिष्चतसरोर्विकलखसुक्ता प्रियतिष् प्रियति प्रियचतद् पियचत्र्ि्वुदाहृतम्‌ | * * * * एवञ्चेत्‌ प्रियतिसा प्रियचतणा दूव्यादो इदन्ततवात्‌ कथमीप स्थात्‌ दूति उेत्‌ सत्यम्‌ | पूरव्वाषस्यायां ऋटन्तत्वाभाग्रात्‌ दूति Sagres: | तच्चयुक्गोम्‌ | यतः क्रोषुशब्दृख पूरव्वावस्थायाम्‌ च्टदन्तत्वाभावात्‌ खयमपि क्रोद्रीवयुटाहृतमेव | वस्तुतस्तु नरुं ख्येत्यनेन संख्या- चक दोपरिषेवाःदयवघेयम्‌ |

१५८ मुगवोधं व्याकरणम्‌ |

यीः थियौ शियः, 2 खः, डिलयामि भमैदः-यिवे fai, fart: धियः, जिया; भियः, het थियां, धियां fafa, ty

सुध्यादयः पुवत्‌ |, BE धौः, प्रहृष्टा धौरिति frawia सुधी प्रध्यौ "योलच्छ्मोवत्‌ | |

Gq मतिवत्‌ साध्यः। धेनुः Aa धेनवः इत्यादि

वधू गौँरोवत्‌ वधूः वध्वौ वध्वः इलादि। एवं चमू- तन्वादयः।

भुः योवत्‌। भूः शवो aaa care wa: हे ae |

एनभूः TAT! सुभूः पंवत्‌।

खमा धाठवत्‌ | माता पिवत्‌ |

दौ गोवत्‌ | Ber Gag ` नौः aaa |

दति श्रजन्त स्लोजिङ्पादः।

feat बहस्ियामित्यतर नुम्‌ दौमंत्नाभावात्‌। यौग्रब्दस्य fefa आमि पा्िकटोसंज्ञाफलमाद-डत्यामि az दति स्यो, व्युंवदिति भोमना पयस्याः सा सुधीरिलस्या- famatara दोसंज्ना, एवं प्रह्ण्टा wae: सा प्रधोरिति। शोभना चासौ alata gut, प्रकृष्टा चासौ पीति प्रपौरिलत्र ये से froma est स्यादेव एवं wad: प्राक्‌ सेऽपि दौसंज्नति faite: 1 शोभनं दधाति, क्रिप्‌, सुधौः। चमू- तन्वादय इति - जवन्तपत्ते TAM ग्रहणं, अनवन्त GANZ वत्‌। सुनुषदिति-कब्यादौलनेन यथा सुनूकारस्य वादेश-

श्रजन्तक्ञीव लिङ्क-शब्दः | ११८

१६१। क्रौवात्‌ खमो ऽधेर्मोऽतः। ( ज्ञीवात्‌ yl, सि श्रमः ९, अधेः ६।, मः १।, अतः ५। ) | अकारान्तात्‌ ATHY परस्याः सेरमथमः स्यात्‌ Ala हे Ta |

ee --~--~---- ,~ ~~~

स्तथास्यापि। fare निन्यस्नौलात्‌ दौरंन्नायां gat पनम्‌: gad gaat: gaat yam पुनम्बाभिति विशेषः एवं © 5 वषाभ्र-काराभू-हन्‌भूनामपि . एषां निल्स्तोलन्तु- |] © e [> ~ प्रननवायां agra: feat faaga Wa | gaa: स्यादिरूढृायां eq पत्नगंवजयोः काराभूनिगडस्थाने क्रियायामपि were ॥.इति कोषात्‌ वर्षाभ्रुशब्दस्य भोणादिपाठारौपि वर्षाम्बोत्यपि परे तथाच भागुरिः- भाथा tae वर्षभो शक्नो तु महुरस्य चेति वर्षभो कमठ दुलौत्यमरः। सुभूः पुंवदिति-उवः enfaawa टौसंन्नाभावात्‌। weafefa—aa war शसि खमूरिति विशेषः सुराः पुवदिति- शोभनो रा यस्या; दति वाक्यम्‌

दइत्यजन्त स्वो लिङ्पादः |

१६१। क्गीवात्‌ fea भ्रम्‌ तत्तस्य, धिरधि स्तस्य ज्ञानमिति मविधानसामर्ध्यात्‌ wa: Balt लुक्‌। स्यमोरमि क्षते जरातोऽग्बेति विनैवाजरसमिति सिष्यतौति वाखं, जरसादेशे

अनदन्तल।त्‌ स्यमोलं क्रापः |

ee --~ i te rere ~= ~

१६० quad व्याकरणम्‌ |

१६२ कीवाद्‌ यौः | ( क्गौवात्‌ a, ।१।, WN १। ) | ्तोवात्‌ पर WC स्यात्‌" STA

१६२। Sasa: शिः | ( जस॒शसमोः ६॥ शिः १) ¦ Mary परस्य जमः शमश्च शिः स्यात्‌, इत्‌।

१६५। नुमायमादौ भमन्तरलादौ तु बा। (नुण ।१।, श्रयमादौ O1, भर्मन्तरलादौ 91, तु ।१।, वा ।१।।। MTS भौ परे नुणग्यात्‌, नतु AAT, भसन्तरनया-

Tet Fal By I

१६२ क्तोवायौः। इति लुपप्रोक्रं दम्‌ पुन; क्ौव- ग्रहणात्‌ ्रनतोऽपि श्रोरौम्तेन वारिणो पयमौ इत्यादि |

१९२। जम्‌। शित्‌ करणं गिः क्तौ इति विशेषणाधेम्‌ |

१६९४ न्यम, यमस्यादिः यमाटिन यमादिरयमादिम्त- faq | भम्‌ ग्रन्ते ययोम्तौ, रथ लथ तौ, भमन्तीच तौ गनौ चेति तौ, तयोरादिः भासन्तरलादिस्तस्मिन्‌ fa विपरिणम्ब ata भौ इत्यन्‌दत्तयनब्राह alae शौ ur इति। श्रयमादौ किं---वहवो यो येषु तानि aefa पद्यानि बहूप्रशामि इत्यादि | भमन्तरलादौ तु अनृज्जि af सुवन्‌लि सुवलि इत्यम वच्यति

अजन्तक्तोवलिङ्क-ग्रष्टः | १६१

१६५। नसवृमहत्नोऽधो Tow घौ (नम्‌ ब्रप्‌-महहत्‌ नः gi, WAT: ६1, धः १।, WAT 9, घौ 91) | ममन्तस्यापा महतो नान्तस्य धुवरजस्य घः स्यात्‌ Aut ` घौ पर ज्नानानि। दो.प्रौवत्‌ ad रामवत्‌। एवं वन-घन- फनाटयः।

१६६ तोऽन्यादर्मोऽनकतगत्‌ ( तः १।, श्रन्यादटे; ५।, मः ६।, अ्रनकतरात्‌ ५। ) | WAN; पश्स्य WA AMA: स्यात्‌, A त्वेकतगत्‌ परस्य | may wal wea | हे अरन्य पनन्तदत्‌ शपं एुवत्‌ एव- मन्यतरादयः भ्रनकतरात्‌ किम्‌-एकतरम्‌ |

१६५ AT! नस्‌ WTA महां नश्च तत्‌ तस्य, धुरधुस्तस्य, धिरधिम्तस्मिन्‌ धिवन्छनादक्तीवेऽपि राजा मोमा इत्याद) घः। गौीणऽपि त्रयं विधिम्तन सुविहांसि सुराजानि कुलानि इत्यादि |

१६६ Atl War आदियस्य म॒ awit, THAT श्रनकतरं ATT | ASAT स्यमो रित्यनुवत्तयन्राह स्यमो. रिति। sae: किं--भ्रन्यतमम्‌ | भ्रन्यतमदिति area) भरन्यदिति कित्‌ |

सिङान्तकोभव्यानु टेः ६।४। 321 षत GA अन्टतम शब्ट्ख त्वन्थतमदित्यतेत ofa: |

2?

१६१२ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

१६७। जगतोऽम्‌ वा ( जरातः ५।, श्रम्‌ ।१।, वा es) | जरा शब्दात्‌ परस्य BAW श्रम्‌ स्यात्‌ वा। Wray TAT AA Aart, श्रजगांमि ्रजगणि। पुनस्तदत्‌। AG पवत्‌ | | (११७) पाददन्तति गोपष्ृदयोटकासनानां भौषन्‌ दुद नामनः। गोर्षाणि गोषा गौषभ्यामित्यादि। ete ger हृद्ामिवल्यादि। sea उद्गा उदभ्यामिल्यादि। त्रामानि ग्रासा भ्रासभ्यामित्यादि | प्रत्ते शप ्नानवत्‌। १६८ | ats खः (MIF ऽ, खः १, ) |

ata घस्य स्वः स्यात्‌| योप, न्नानवत्‌।

१६७ WU] मदत्‌ Bata: | जरमादेशनिमित्त काऽमो नित्यलाज्नरमादेशस्य नित्यत्वसन्दहनिगसाधं वाग्रदण मिति कथित्‌ (2)

१९८ Ia) BNE aaa स्यति लभ्यते द्याह RT घस्यति। ata इति निदृणात्‌ येन विधिम्तटन्तसेति न्यायात्‌ TUATHA स्वः, तन गरीपमि्यत यकारस्य खः,

एवं मह एन वर्षमानं सं tafe | प्रकरणाह्तरेव, तन भ्रानि अ्रषु-

¢ 6, ~

1} व्राणा aera श्िकयोमु मद गसिद्यद्ानित्वन्नापनाय' तेन

wafer बेभरभयेर्यन्दः| water जरसारेधाभावपत्ते अजरमिगयत्र खमाटिदोप wafwa: urz:

अ्रजन्तक्गोव लिङ्ग-शब्द्‌ः १६१

१६९ Bat लक्‌ ( सि-श्रमोः eu, ल्ग्‌ ।१। ) क्रौवात्‌ परयोः स्यमोनुक्‌ स्यात्‌ वारि १७० नुिको ऽच्यनामि | ( नुण ।१।, एकः ६।, भचि |, भ्रनामि 9) ° दगन्तस्य क्तोवश्य नुण्‌ स्यात्‌ रवि परे, नल्लामि। वारिणो वारोणि। |

गो दूत्यादौनसखः। उनाभ्यां व्रनेभ्यः इत्यादौ Afag afery- aay इति न्यायात्‌ अ्रमिहदःस्रो नस्यात्‌ (१)।

१६९ स्यमोर्नक्‌ सिख भ्रम्‌ तौ तयोः |, किं विपरिण- स्याह क्रोवादिति।

१७० | नुख्षिकः इक प्रत्याहारः, श्राम्‌ अनाम्‌ तस्मिन्‌। नञ्‌ ARIAT, स्यादाच्ेव (2) तेन वारोदम्‌ इत्यादौ स्यात्‌। वारिणो दति गिच्वादन्ते, रादौ नुण पथात्‌ ई। वारौणोति जसः शिस्तम्मिन्‌ नुखयमादाविति qu नसवमहव्र इति घ॑: (२) |

(1) अन्तरङ्ग प्रकृतिषटिताग्धेखले वहिरङ्गं प्र्यघटितकार्यम्‌ असिद्धम्‌ Bag wade: | अत क्रोवलिक्रषब्द्ख योऽन्त्यरौषस्तख्य हखविधानात्‌ प्रत्ययषटितरोर्षस्य Bae स्यात्‌ तेन वनाभ्याम्‌ Kael Wa) अतएव संज्लिप्रषारे सुदन्तपादे “aaa रिति es शत्रस्य Sarat प्रशतेरन्धोऽप्रतिः प्र्यादिः | प्रत्ययादेः सम्बन्धे सतिक्तोमेप्राप्रो Wal भवतोति गोयीचन्द्रः)

(२) gan जातोयख प्रतिषेधो विधिरपि ताटगजातोयद्येति न्धायारिग्यथः|

(१) अनामोति कि वारीखाभित्बादौ अन्तरङ्कवादादौ तुणि ठते हश्लपरत्वा- भावाञ्ुमागमाभावे.टख्डिमासिताद्विदोषो खादिति दगँदासः।

१६४ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

१५१ | wat वा। (we won, aie) t इगन्तस्य क्तोवस्य Jat स्यात्‌ धौ परे रे are F वारि। वारिं वारोगि वारिणा वारिणे वारिणः वारिणः वारिकः वारणां वःरिणि वारिगोः। हसे हरिवत्‌ | १७२} प्॑वदाग्ोक्तप॑म्कं टाद्यवि पवत्‌ ।१।. वा ।१।. अर्घाक्गपुम्कं १, टाद्मचि 9। } दगन्तं क्वम्‌ ग्रेन Mae पवत्‌ वा म्यात्‌ Arata श्रनाद्ये अननाटिनि इत्यादि शधं वारिदत्‌। aaa किं aaa

wT |

१७१ mur विधानमामर््ात्‌ afa atm: सुध सुधि, म॒नो दमन्‌. सुधातः ayia, = लिखिनगमने निगितगम्‌ल' इन्यादि |

१५२ पवर्‌ पुमानिव परवत्‌ wa तुन्यप्रत्र्तिनिमित्तेन उक्तः पमान्‌ येन तदर््पुं्म्‌ टा ग्राद्रिध्स्य टादिः टादेग्च टादाच्‌ तस्िन्‌। तथाच येनाथन wa वत्तत तम

—_ :

नर्द एसि वत्ततं तदा टाद्यविपुरवादित्यघः। टाऽच्यविग्रषात्‌ Sifa उदाहरति अ्रनादय safe) भ्रनादिगव्दः प्रतर्तिनिमि. त्तन (१) पर्ावयोवन्तते | श्रनादये अनादि, णवं पट पट इ्यादि zsfaq wat कत्तृणा इत्यादि पालुन इति पतु

मदः, पौलोविकारः फनमिव्यथं विहितस्य “फले नुवि”? )

(1) श्रादिरडतत्वद्पेखाधने्यधः |

्रजन्तक्तौ fay १६१५

१७३२ दध्यस्थिसकथ्यक्रो SAE |

( दधि भ्रखि-सकधि-श्रच्णः ६।, WTS ।१। ) |

एषाम्रनङ स्यात्‌ टाद्यचि, werfaat (११८) WaT sata: SMI ew OH: SH: द्री; दघ्रांदभ्नि दधनि दक्नाः। IE aft षन्‌ एवम्‌ ufe मक्यि ata

ofa सुधिनौ रसुधौनि 12 सुध Fafa दो प्रोवत्‌। सुधिया सुधिना इत्यादि! car meted: |

मधु मधुनो मधनि। हे मधो मध) दौ प्रौवत्‌ | मधुना मगुभ्यामिव्यादि। एवमरम्बु-मान्ादयु; (११७) पाटटन्तति सु वा। afa arafa इत्यारि ae: |

aa घाणौ धातृणि धौह ara: Fura) et प्रौवत्‌।

धात्रा wan इत्यादि | एवं न्नाट-कत्रादवः।,

qa, wea हत्तलप्रवत्तिनिमित्तेन पसि वत्तत. ala तु फनत- ्रत्रत्तिनिमित्तन इति उक्तपृस्कम्‌ |

१७२ | दध्यश्ि टधिच श्रखि सकि अ्रक्तिच तत्‌ तम्य एषां गौगैऽपि wre, तेन भ्रतिदध्र सुसकघ विप्राय

safe क्तोवानुहत्तः दधिर्नाम कथित्‌ तन. दधिना इत्यादौ स्यात्‌ खनोति--दइदं नच्छन्ति परे (१)

१) मातुश qual cta fagranigats |!| ७9। श्वस्य fa | aaa तन्वबोधिन्यां यथा मासःप्रतना-साननामिति वारत्िकिकारोक्तयेति- भावः | स्तः प्रस्थः सात्र श्तियामिद्युभर्य नङ्क; सातुग्दष्तख नपुंसकत्वे Guay सन सामूनोति। yfea सन्‌ शानन्‌ gaara |

१६६ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

१७४। एचो युत्‌ खं ( एचः ६।, युत्‌ ltl, WA) प्रय (१) प्रदानो प्र्यूनि१ Bute wat हौ प्रोवत्‌।

yaar warat इत्यादि | afc 2) सुरिणोसुरोगि। 2 at 2 aft सुरायासुरिणा

मुराभ्यामित्यादि | सुन्‌ (2) सुनुनौ gata | 2 oat 2 सुनु सुनावा AAT

safe | sfa aaa क्तोवनिङह्पादः।

दति अजन्ताध्यायः।

१५४। एचो गरुत्‌ इव उश्च तत्‌, AAA युत्‌ एचः खं परावतो युत्‌ स्यादिः | एचः कर्मत्वात्‌ एषां यौ यन इति नियमात्‌ श्रना ma नियमोऽयम्‌ | प्रद्यु इ््यादि--प्रहष्टा दायस्य कुनग्य दूत्यादिक्रमेण वाकम्‌ |

इत्यजन्तनपुमफपादः |

TTA, |

(1) प्रहा द्योः aut aera aq nay एुगयं ्रद्योर्यागय | ३) शोभनो रा wa यम्य तत्‌ सुरि कुन, QT: Fare | (३; शोभना Aaa तत्‌ पतु ज्ञनं, एनौटरेणय |

( १६७ )

३यः | WARTS: |

PTE

हसन्त-पुलिङ्गगब्दः | १७५। दिमक्त्‌-जचादौ fe ( दिरुक्त-जक्तादो en, दिः १।)। क्ततदित्वशब्दो जच्चादिश् दिसंन्नः स्यात्‌|

अ्रमरगुरुसम-ग्रोवोपदेव-प्रणोते प्रकरण-परिपाटो-जन्य-शोभा-विभाते। सुमति-जन-विनो दिन्यद्ते quay प्रविनसतु क्रनाध्यायेऽच टोका दितीधे

१७५। दिर fea यस्य सः (१) जन्त श्रादियस्य सः feama जक्तादि् ali जक्तादियथा--गसप्त जक्लादयः gia afa- जागत्ति-शास्तयः | दरिद्रालि-चकाम्तो दौधौोषेव्यौ afeat yaa प्रयोजनाभावादत्र dat क्रियते। amid परित्य्य ददिसंन्नाकरणात्‌ कचि स्यात्‌, तेन afaara प६ौचवान्‌ eefaary caret नुण्‌ स्यादिति afaq |

१, हयो वारौ उक्त कथनं age लं. | wa दुर्गादाम --aa हेरेक्घेऽपि हि- स्क्रजजाटो दूति fered, wafafsafauerg विरुडम | अतणएव्हौहो माषादि- माकौ स्यादतुरित्यमरः। एवं BM कनुमेत्यतराप्जोध्यम्‌ | ees. टोधोमेशी fa at वेटिकावान्मनेपद््ने विभङ्गिव्यत्ययात्‌ परसेपटे agiae fcfa अन-

Sfe णरस्यदयाभिति qe अदोधवुः अथवयुरिति कामपेनो वोपदेऽ TUF |

१६८ ANG व्याकरणम्‌ |

१७६ हो टो at ( हः ६), ढः १, भो 9| ) | हस्य टः स्यात्‌ भो परे (१४९) प्रा्रोबभसात्‌ से ato (६५) भपभासोरिति aos; वा। far लिड्‌ लिहौ लिहः, fad निह faw:, लिहा लिडभ्यामिवयादि | १७७। MT (दादेः ५, me)

टकागदेहख घः स्यात्‌ भौ ae |

१७६ | होट: | भावित्यकतनं दर धोभये तयारन्त हस ट्‌: स्यात्‌

१७७। दाषः हो भौ इव्यनुवत्तत ्राद्रिख a तस्मात्‌ | तथाच दादिवर्णात्‌ परख हस्य इत्यथः तेन धुक्‌ धिक्‌ धक्‌ दव्यादरावुकःरादेरपि दस्य घः। भरुक दरोदमाचक्तानः प्रोक्‌ दूत्या मुहादिलात्‌ घड दादरधोिस्य इति भाष, तन दाम. निहमाचक्ताणः दामनिकं इव्ादौ स्यात्‌ wife गण-पठित- टादि-धारिनि परे | तन्मतं दामलिट्‌ दमनिड्‌ दामनिड्भ्यामि- aufe | va q दादेरिति डस्य fanaa, श्रव्यवधाननामम्भवात्‌ VATA BAM म्यात्‌, लनकान्‌ व्यवधान तन WH प्राक्‌

मित्रप्रक्‌ इव्याद्याइः (१) |

(q) एषां मतै गनकाजग्व्धने zrafafsaii2 प्रत्यदाषरणम aq 1 द्गद्रास.--डमव्यवधानन्तु सजातोयलादृव्यवधानधत्‌ | तेन द्राष्ुङजागरे पि ध्राकधागप्रागम्यामियादोयाड।

हसन्तपलिङ्ग-शब्दः | १६८

१७८ भभान्तखादिजवां भभाः फ. UTA सध्वेऽन्त च। ( कमान्तस्यादिजवां en, भभाः el, फे 9, घोः ६, तु ।१।, Wer Ol, अनन्ते OL, ।१। ) भभान्तस्यादौ खितानां जवानां wat: स्युः फे परे, धोसु मध्व अन्त च। धुक्‌ धुग्‌ दुहौ Se, दुह दुष्टौ दुहः, gar धु्भ्यामित्यादि।

got | भभान्त | MA! श्रन्तो यस्य तस्य, तद्गुणसंविज्नान- हन भभसदहितौ जब Wea amet जव भ्रादिजव aut ama भभान्तस्यादौ fear जवां भभा इत्यदः (१) तन गोदुहमाचन्नाणः गोधुक्‌, गहभमाचन्नाण; गईप्‌, इण्डभमा- aan: Sw, इत्यादौ गडयोन घटौ ददेहमाचक्ताणः 42z, देवदेह माचक्ताणः Saez, इत्यत wat नेच्छन्ति कचित्‌ देवटेक देवदेग्भ्याम्‌ wale) घलत्वमिच्छन्यन्य। सश्च धवश्च तत्‌ तस्मिन्‌, अनयोरकार उच्चारणा्ंः, तन धत्त, Trea, धच्यति, yur इत्यादौ स्यात्‌ TA यथा-श्रधाक्‌, गुदधोयङ्‌- लुकि अ्रजोघोट्‌ दत्यादि पूर्वसूत्रात्‌ भा विव्यनुहत्तौ फंग्रहगम्‌ एकवर्यव्यवधानेऽपि, da wa, मित्रध्रुक्‌, इत्यादि जवामिति

fa —aarfaq 1 व्यधधोः सनि विव्यत्लति, वस्यावर्भंयत्वात्‌

(१) एकाज्‌-व्यवह्ितानां एङाच्‌-हस-व्यव्रह्ितानाश्च जवां WA खः, नतु हय जाटिव्यवहितानासिति | मोवीचन्दरे णापेवस॒क्तम्‌ र्र्‌

१७० मुग्धबोध व्याकरणम्‌

१७६ मुषं TS वा भौ ( Het ai, घड।१।, वा ।१।, मौ ort) सुहादोनां TS वा स्यात्‌ भौ az | मुक्‌ मुग्‌ मुट्‌ FS मुह Ye:, सुर मु मुहः, सुहा मुग्भयां मुडभ्यामित्यादि | एवं दह ay an fay: |

waa | केचित्‌ विभ्यति care: एक तु पूव्ववदिव्यादुः (2) 1 श्रत wal भभा इति लिपिकरप्रमादः। एकाचौ वगो भप्‌ भष नतस्य मध्वारिति (८।२।२७ पाणिनिस्‌त्रात्‌ waua दिजिद्र- माचक्षाणो हिजञिट्‌ द्त्यादौी स्यात्‌| (2)

१७९. मुदाम्‌ व्वनिदेमो गणाधेः दादे इत्यनेनास्य योगविभागो नक्‌-सिदयधः, इानुदत्तः |

(१) त्रिवयद्चतीच्ाङ्रित्यषः।

(२) अतर जबां भभा दूति लिपिकरः प्रमार्‌ दरयु्तवत। तक्शगागन BRT करणात्‌ प्रागपि तादकपाठद्यास्ित्वभर्चिक्र्माप Gary | तेमशश्जाभिरादट्‌ संन्ाप्रकरणे AC IRS कैति BA प्र्ाहारोण्टरेये तकंगमीग्टता efafe wat a zine | तदत्र जवां कभा दूति ata एव पाठो निवेशितः | जकारश यमक्गनुचिततवेऽपि एं्ेपक्थनाय यथागयंग जब्त तथा aaa चतु च्यषटत्तौ “इवतुधानग्य धातोसतृनोयारैरादिवतुथव्वमरतवत' (१६२) xf aq हतोयेरति margafy, मंज्जिप्रतारे तु | तुयानम्तृतौयोऽज wat भादी ` इति सुनपादरय ५८ सते अज TART तनैव ike aa xin ज्जि जम-जश्यते दृयदद्तम। व्रतः पाणिनिक्रमरोजश्रयोरैकमः द्यते | तनातेक पा ्यत्ये vafaq सत्रे एकमा कायार्धमेक्सन्नाखाकरयः Taq AA GA HATA wat नेति वङ्गव्यमस्तु। हिजिद्कभाचक्षाण दिजिट cared नपि सन्धाद्यविधौ cma नञा fafieufaatet

waar fay शब्दः | १७१

१८० वाहो वी पौ श्वेतात्त वा ( वाहः €।, Arie, Wie, पौ 9), खतात्‌ ५), तु ie, वा।१।)। वाहो वा शब्दस्य भ्रौ; स्यात्‌ पौ परै, श्वेतवाहमु वा | विश्वौहः विश्वौहा इत्यादि शेषं लिड्वत्‌ १८१। WATE (अनात्‌ ५, जः १1) TATU परो बाहोवा ऊः स्यात्‌ पौ uty We: wet sate |

~ = eee = -+-~ emt A

१८०। Met! परसूते भ्रनादिन्य्ेः भ्रवर्णादस्य विषयः |

१८१ श्नना। श्रः ग्रनम्तश्मात्‌ भवणभिन्रोदित्यधः, तैन गान्यहः, ANTE: इत्यादि (१) ननु yaaa श्रौकारं विनापि ऊटि श्रादूटो त्रिरिति त्रो विश्वौहः विश्वौहा इति चेत्‌ सव्य, वेचि त्ाध्रमिटमिति। यद्वा पूर्सूत्े पौ विधानात्‌ दा लूनौ fa दानिस्तां वहति दातिवाट्‌, aera erate: इत्यनवणा- दपि गओ्रौरिति खामो। दात्य इति रायः <2 छान्दस- fafa az |

Marr AT कथं सङ्गच्छते तत्‌ सुपोभिदिन्यमिति प्रयोगरल्लमानायां हतीयः विन्छासे ''कतोयाद्यासतुखहान्ता गणोक्ता धातवो यदो" ति १४॥ BAW HATTA ware fafea: | qatar सुरिति afa: | संजमते Wwe संप दगयुदा- हरणम्‌ |

(१) “यादगजातीयख विप्रतिषेधो विधिरपि ताहग्ज्ञातोयद्येति ग्छायाद- मव्पटेन अव्ंसजातीयोऽजेव पाहो तु इषः ATT पूर्बसत्रमवण- feud हसविषयनश्च, , एतत्‌ Gafarutas विषयमिति ana "मिति दुगाहा,

१७२ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

१८२। अनइुचतुरोऽणागौ fire: | ( WASH चतुरः £. भ्रण्‌-प्राणौ gu, Fret: on ) | ग्रनइहषलुरथ धौ UT AM घौ परे MT स्यात्‌, दत्‌। 3] होन: at | (ee, न: १. ao) VASE हस्य नः स्यात्‌ मौ परे। BST! रे WAST! MASS WASTES: | WASH: VASAT | १८४ | सरम-ध्वस-वम्वनदां SS फ़ ( सखम्‌ ध्वम्‌-वसु WATT ६।॥, दडः ।१।. HO) |

एषां ze स्यात्‌ फ़ परै, ब्रडाविता श्रनट्द्रामिनादि।

१८२।, WAL WAST चतुश्र तत तस्य, ग्रण्‌ ब्राग तौ. fay fae at तग्ोः, अ्रनडुचतुर इति दयोरनुकग्णात्‌ क्षम्‌ ममादागत्‌ aaa, निमित्तविधय््ोम्न aaa तरात्‌ Bea |

१८्२। RTA AAT हकारमावादाद ्रनडह fa | aartsare Sarena: ग्रनड़ानिति। wae मोऽपि, तैन अ्रत्यनदुन्‌, प्रियानड़ान्‌ इत्यादौ स्यात्‌। पियानो इतित पडतोन्यादिना वा निपातनात्‌ |

१८४। सम्‌ सखद ay वसुय श्रनडंय॒ तेषाम्‌|

का्तिकेयस्‌ “ग्ण निपपात अव्गजातोयोऽङेव पाहो तु इषः |e , कै [च

4 hd marrgmeta. तेन wage care (tare) प्रयोगरन्रभानायां दतीय- favre `'अनवणाच ऊ. (१८२) दूति सतादुदाहरुण अचः fay उर

हसन्तपुलिद्ग-शब्दः। १७२

१८५। भ्वेतवाषऽवयाजुक्यशासपुगेडाशां STE | ( ्वेतवाह -पुरोडाां ei, STE ।१। } | एषामन्तस्य STS स्यात्‌ फ़ परे, डडावितौ | , १८६ अत्व्मोऽधोः सी चाऽधौ ( अ्रतु-प्रमः €।, श्रधोः ६।, मौ ७, घेः १।, WH) अत्वन्तस्यामन्तस्य घः स्यात्‌ अपो मोप, नतु धोः। ्वतवाः |

वस्विव्युटित्रिदेगात्‌ चग वम्त (१) fafa waa, सुवः, इत्यादौ स्यात्‌ विद्धोरपवादोऽयम्‌ (२) 1

१८५। श्वेतवा ATTA भ्रवयाव SAUNT पुरोडाभ्र ते ताम्‌ श्रत्वमोऽधोरिग्यत्राधिकाराज्ञरवालन्तस्याऽमन्तस्य घविधानादेभ्यो sfafa क्तम्‌ इदं छान्दममिति परे |

१८६ | श्रत्व श्रतु श्रम्‌ तत्‌ तस्य, YUM, धिरधिम्तस्मिन्‌ भ्रवित्युदितरिदशात्‌, गच्छन्रित्यादौ स्यात्‌। गोमन्तमिच्छन्‌ गोमान्‌ (२) इत्यादो तु जादित्वात्‌ yasfa अधुपूव्यैख धुत्वाङ्गोकारात्‌ घः

ate: alata) qcafceley महेश्य विद्यतौह xagred इरुषोत्तमेन | उरसो cag सं्तापूववं कत्वाच्च fran दूति agtar |

(g) पटरिद्धातीययैः।

(>) qurmarifzanaarctaar fanafafrcafaae: |

(१) aa altsvarigfa at पश्चात्‌ fafa इसह्लोप इति क्यप्त्ययख अकारयक्षारयोरलोपे गोमत्‌ इति faa सौ Ere |

१७४ मुग्धबोध व्याकरणम्‌

१८७। STM वा। (eae: ६।, धौ ७, वा er) saat Hat at ar ey Bara: हे शवेतः | WAATSt WAATH:, श्वेतवाहं श्वेतवा Wale: खतवाहः, water aaarer खेतवोभ्यामिनययाटि | (११२) किलादिति षः। तुराषाट्‌ तुराषाड्‌ quart तुरासाहः, तुरासाहं तुरासाहौ FTTTH:, तुगषाहा FATS: भ्यामिव्यादि। चत्वारः चतुरः, WAR चतुभ्यः। (१११) सुमाम एति चतुर्णाम्‌ | १८८! ग्डो विः मुपि। ( रडः; ६।, विः १।, सुपि on) | ग्डोविः स्यात्‌ सुपि पर, लन्य पेफस्य चतुषु प्रिथचलवाः, प्रियचलः, प्रियचल्लारौ प्रियचतलवारः प्रिय-

aan प्रियचल्वारौ forage: प्रियचतुगा प्रियचतुभ्याभिव्यादि।

gto! सङः षटं नित्यमिति परे १८८ TS: अनियमे प्राप्न (१) नियमोऽयम्‌ विकँ cua 4 श्ररादिति विधानात्‌ fa: (a) afacafefa are

(1) Rut Taare {गे प्राप्रे ca | अतएवो fag सयारम्भो faaurafa |

(२) ग्यानद्यारादि्यव्र अरादिति faqueatarg | अतएवोक्तं दर्गादासे, “द्ानद्या रारटित्यत्र armefa निघ्रपद्श्तापरकात्‌ रात्‌ रषयो लोप इति।

इसन्तपलिङ्क-शब्दः | १७०५

(१९५) नसव्महन्र इति घले, (११९) नो लुप्‌ "राजा, हे राजन्‌, राजानौ राजानः, राजानं राजानौ (११२) ्नो- sag: | रत्नः, रान्ना राजभ्यामिव्यादि। S—afa राजनि।

(११८) अ्म्बस्यादिः्यज्ञे ब्रह्मणः यज्वनः दर्त्यादि गेषं WHAT |

१८६ हनपृषाय्यमेनोऽपी सी भौ a: |

( हन्‌- दनः a1, WHO, सौ ७, Wool, घः १। )।

एषां घः स्यात्‌ Ta सौ परे शौ च|

तदा 2 ठतरहन्‌ हतदणो तत्रह णः, हत्रहणे eae |

१९० | Cal BI BT AT | ( WAL el, Hg, WU, Tay गः १। ) PAA जातस्य ङस्य घ्र; स्यात्‌, तस्य नस्य णो स्यात्‌।

तन्मते स्यान्तस्यारादिति नजा निदिं ्टस्यानित्यतात्‌ wid रड- भिन्ररेफस्य fa:

१८८ न्‌ श्च पूषा भ्रमा Teg तत्‌ तस्य, धिरधिस्तस्िन्‌ | सिश्योरेव नियमात्‌ sagt) इत्यादौ aaa मत्र इति aa) इन दूति क्रिबन्तस्य ग्रहणं, तेन nae varie) हवरहणाविति एकाचकोरिति नस्य णो नित्यम्‌ बनो ग्रहणं श्रतु-मन्‌ भ्रन्‌-द्ून्‌-नभग्रहण श्रयवदुग्रहणशाभाव इति त्नापनाधं (१) तैन यशस्वी त्यादावपि स्यात्‌|

1 येन Gafnq प्रकारक अतृभागानाटीमां पहशमिति न्नापनार्णमिन्र्ः।

१७९ मुग्धवोधं वयार्करणम्‌ |

aan: ean ववहभ्याभित्यादि | एवं पूषन्‌ श्रथमन्‌ शाङ्गिन्‌ यशखिन्‌ WT: | १६१। पशो fe feat (qu: ५। fe: १।, डि; १। att) पूषि पूणि पूषणि १८२। मघोनम्तुडः वा तिष्यो; ( मघोनः at, TS ।१।, वा el, क्रिप्योः ou ) | मघवन्‌ THA तुड्‌ वा स्यात ङ्गौ पौ ए, उड़ावितौ १८३। त्रिदा am at ( व्रिदचः' e!, WE: ६।, नुग ।१।, घौ 9| ) उकारेन ऋकारनोऽचय् AM स्यात्‌ घौ परे, नतु हः। १८०। इनो fata क्षिबन्तस्य ग्रहणात्‌ ब्रगीतयादौ खात्‌ i gag इति एकाच्‌-कुल्वात्‌ नित्यं गलनिपधः। १८१ TM) इदं नच्छन्ति पर| १९२। मघानः। faa fom at aa. ame व्यवस्यावाचिलात्‌ मघवहचनन्लानिदार्नमित्यत्र क्नंकापि स्यात्‌ (१, | १८२३ faci Ja कशह, सदत्‌ यस्य a faq, faz (1; जन दरगादासोऽपि क्तौ परे शिह्ितयात्‌ amt तनशि बनो त्यनक्तणमिति न्यायन प्रापर्ङ्गायस्य aie तन्ति fauasty मजा निर्दट

afaafafa न्दायात्‌ array ata: मघवह्धनिरियादि स्यादिति कित्‌ | AAT मधवहज्लक्लानिटानमिति safe yuataare |

इसन्तपंलिङ्ग-शब्दः १५७

१८४। स्यान्तस्याराल्ुष्‌ फे ( स्यात्तस्य €1, WW, ५।, लुप्‌ ।१।, H 91 ) स्यस्यान्तस्य लुप्‌ स्यात्‌ H Ut, नतु रात्‌ परस्य। मघवान्‌ मघवा, हे मघवन्‌, मघवन्तौ मघवानौ मघवन्तः मघवानः, मघवन्तं मघवानं मघवन्तो मघवानौ |

_ - wea ~~ - ~ ~ = = =-= --~

aa तत्‌ तस्य अजिति क्िचन्ताचग्रहणात्‌ fare we इत्यादि १।।त्‌ चामा feafa हिः, दिरद्िस्तस्य; तथाच तान्तु स्यात्‌ इत्यथः, (र) नेन seq जागरिष्यत्‌ saat नस्यात्‌, जगन्वान्‌ जजाख्वान्‌ इत्यादौ तु स्यादेव | गामन्त- सिच्छन्‌ गमान्‌ इन्यादौ पूर्व्वोदित्लमाथित्य स्यात्‌

१८४। स्यान्त। स्यस्यान्तः WAT, रः FAT aia! कथं चिकीषं इति? पस्य रङिटठोटि दति रे रलोपै

(“ae दूति अ्ुगतिपूज्ञनयोरिग्यस्ः गताव fafa नूप्र नकारस् यणं, तेन ure arg) ष्याद्‌, अन्यत्र age varie | * ˆ गजर BMI TT तेनायमर्थः Hi परस्य MAAAT OWA खात्‌. AVG q खादेति | aI Teq दधत्‌ पापचन्‌ tary जज्नन्‌ जापदिन्यादि। बभूपन्‌ faxlufaaret a नोषपो- ऽतोऽदटेचोरित्यमेन gag शपो नोप्स्य स्थानित्त्वात्‌ हवे परत्वाभावनुण BNI eefzaiensty TASTE aad gaara स्थानिवत्त्वात्‌ suufafefa गदम्‌ | नोपोऽ्योभाडोररिति लोपोऽतोरटेचौरिति इषा ज्ञो पोऽगितो्येतम्योऽम्यद्धनेण aay अकारलोपश्य स्यानिष्रत्वानङ्ोकारात्‌। AQ वीजं सकोऽज्ञोपोऽच्यस् द्यत दण्यम्‌ हेः परात्‌ शरबन्ाट्न्यखत्‌ दिवान्‌ जजाग्ट पान्‌ जग्मिान्‌ जगन्वान्‌ wafeaq ware ge ares ति ईगादामः।

(२) मेन fafweazaata arate तानहेरिति।

१७द मुवो व्याकरणम्‌ |

१८५। भ्रद-युव-मघोनाम्‌र्ववौऽते पी ( युव-मघोनां al, उः Ul, वः gl, FA 91, TW) एषां वशब्दस्य उः स्यात्‌ A at, aq मघवनः AAI, मघवता मघोना, AMAR म्वभ्या faarfe |

शुनः शुना युनः zat safes |

श्राद्वितिन वि; चतुरित्त्र रेफमकाव्ाविसगः (१) नञा निदिषटस्यानित्यत्वात्‌ रफात्‌ शमो लोप दति कश्चित्‌ |

मघवार्निि(२)--नभ्य aren मघवा्निति ut) छान्दस मिति चान्द्राः ¦ aga भाष्य -“ग्रव्यगस्त्‌ AAT faa ered fe त"दिति (a) भाषायां प्र्योगदगनादेवानन तुड़ति कतम्‌ तथाच विजत्निति fangt मखषु मघवानमौ इति fe.) पौ मघतरतंात्यादि वच्यति।

१९५। युव वा ग्रुवा APT Va ताम्‌ | मघी नामिति नान्तनिरहगात्‌ नान्तानाभेव, तन मघवत caret तुड माभूत्‌। ननः wating | गौणऽप्यवरं विधिः, तन प्राप्न: qaqa, भ्रतिप्रघोनः TIA इत्यादा स्यात्‌ ते तु भौवनम्‌ द्त्यादि वच्यति।

'! १९१ BAT षी

(>) महते gma Kerra निपातः| धातुपारायणे तु मधो ANKE योगक्रतुबि्यमरटीज्गायां रषुनाथः।

iy) एवं ATR मघम्‌ शब्दस्य भाषायां नालि प्रयोग दृयक्त भवति ( दरति नाष्यटौकायां कवटः।

इसम्तपुलिङ्क-गष्दः | १५९

१८६ भअव्वगोऽनञन्तुङ Bat तु 1. (अर्णः ।, भ्रनजः a1, TE ।१।, A Ol, WAY Ol, तु ।१।) नञ्‌ वजेस्थाव्यैणो नस्य तुङ्‌ स्यात्‌ ्रसौ a परे

WAR WAT, WHA Wala Waa, भ्रव्यता अर्म ara tafe) श्रनञः किम्‌ waal wade, gaan अनर्व्वागः, इत्यादि शेषं asqaq

reo | प्रथिमध्य॒भुत्ां धितोनमौ घौ

( पधि-मथि-ऋमुक्तां ei, इनोः ev, नमो १, घौ ont पथिन्‌ मथिन्‌ ऋभुसिन्‌ एषां थस्य नम्‌ स्यात्‌, TATA चाकारः, घौ परे |

१८६। भरव्यै a विदयते नञ्‌ यस्य तस्य, सिरमि- स्तस्मिन्‌ त्यसामन्यग्रहणात्‌ wart, wand इदम्‌ ्रात्मतम्‌, रवयैन्तमिच्छति अव्यति इत्यादौ स्यात्‌ सदहसरटगन्मैगन्प दति तुसेक्तनुकि लुकि a तेति निषेधः | केचित्त भ्रन्ैन्तं गतः अञ्यैद्गत इत्यादौ से क्तनुक्यपि स्यादित्याहुः (२

१८७ पथि ¦! पन्थाश्च मन्याख ऋमुक्लाच्च ते तेषाम्‌ घश्च दच्च तो तयोः, नम्‌ चश्रषतौ। गौषेऽपि श्रयं विधिः, तेन भ्रपन्या; श्रतिपन्याः इत्यादौ स्यात्‌।

(२) सहसतहक्‌ इन्द्रस्य अव्यां घोटकल्ख Ts KAT: | (>) खमते तु aafa wis तमेति निषेधेऽपि नञा fate ्टमनित्बमिति म्धायात्‌ wararatafata दुर्गादाषः।

१८० मुग्धषोधं व्याकरणम्‌ |

१८८ | AICI | (Zar, ariel, सौ 91) |

प्यारीनां ZU स्यात्‌ सौ परे। Ta: पन्थानौ TATA, पन्यानं पन्यानौ |

ges लोपोऽच्यघी ( लोपः १।, afa 9, wat ot) पथ्ादौनां 2 ata: स्यात्‌ श्रघावचि पर प्र; प्रधा परिभ्यासिन्यारि। एवं मगाः, RAAT: | (१३२) उतिसहृयाण्ण इति परञ्च परञ्च पञ्चभिः wa:

पञ्चभ्यः |

१९८1 टेः नान्तत्वात्‌ घं fag टेगाविधानात्‌ :१। पन्या; carat नररनोपः। डः साविति कते सिह (a) fore परमूत्ाधम्‌ |

१९८ | mt चिरिम्तस्मिन्‌ ¦ अध्िग्रहणन नज युकरवद्यायेन Baya, तेन waa ऋमुत्तिगो Mata स्यादिति कथित्‌। santa: क्रचित्‌ saatsfa निवि शरत इति न्यायात्‌ कचित्‌ घाववि प्राप्तटिनौपनिवारणाधेमि

त्यन्य; पूव्वैवत्‌ गोिऽपि, तन Got HA इत्यादा स्यात्‌

(1) नेःपम्बरारेगयोः स्वरारेगो विधिवथनकानिनि ज्यायराद्ति HT | (३) सौ प्रर प्थ्यद्रीनां gatte चाकारं यद्युपि var इ्याद्यः मिष्यन्ि aqua: |

शसन्तप्रुलिङ्ध-शब्द्‌ः | १८१

२००। नो नामि | (नः ६।, नामि 9, घः १।)। नान्तस्य नामि परे घेः स्यात्‌! पञ्चानां, पञ्चसु २०१। वाष्टनो जस्‌गसो डी; | ( वा ।१।, wea: ५।, WANA eu, डौः १। , | अष्टनः परयो जमगरमो डौः स्यात्‌ वा, दत्‌ | AZT अष्ट, ATT ATI २०२। ST at at | (इग ।१।. क्तौ |, वा Qt; | ATA Stra वाक्तौ परे, दत्‌ अष्टाभिः wef, HINA, TOM, TEVA, WEA, TEA, अष्टासु WEF |

zoo] atari लुपि arafafufifa निपिषे प्राप्ते विधि. रयम्‌ गौणे नुमभावात्‌ घौभावम्तन प्रियपञ्चजमिव्यव स्यात्‌ |

२०१। वाष्टनः Ha णप तौ तथोः | विधानसामर््वात्‌ लुक्‌ वाध्यते, SANA AANA | एवं परमाष्टौ परमा | मुख्य एवायं विधिम्तन प्रियाष्टाना विप्रा इत्यादी स्यात्‌|

२०२। Sti fasfaad मिहे ग्रहणात्‌ गोणेऽपि St at, तन मौ प्रियाष्टाः पत्ते प्रियाष्टा, start प्रियाष्टौ प्रिया- टाना, जसि प्रियाष्टाः faarera:, श्रमि foaret प्रियाष्टानं, गसि faarer: faare:, टादिकतौ faarer frarer, frarenat प्रियाष्टम्याम्‌ carte | St faare प्रियारि, प्रियाष्टनि तथाच

साष्टे शत सुवक्ण्नामिलयमरः।

१दर HUNG व्याक्षरणम्‌।

203) धोर्मा नः afl (धोः ६, मः ६।, नः, १, फम्वि 9 ) धो WS A: स्यात्‌ फेमेवे aT) प्रशान्‌ प्रणामो प्रशमः, प्रणामं प्रगामौ, प्रशान्‌भ्यामित्यादि | २०४। इदमोऽयमियं पंखियोः सी ( इदमः él, श्रयम्‌- इयम्‌ १1, पसियोः ७॥, मो ) | श्मः पुलिङ्ग लिङ्गयोः क्रमेणायमियमं स्तः सौ परे श्रयम्‌ २०५। टोमोऽदमश्चक्तो। (दः €।, मः १।. Wee: ६।, ।१।. क्ता | दर्मोऽदसथ TA A: सात्‌ क्रा AT |

दमो इभे, इमम्‌ इमो इमान्‌ |

२०३। धोः। फथ,मच, च, तत्‌ तद्धिन्‌ मव्योयथा- sata, sina: जंगन््ः जगन्वान्‌ cafe |

208 | इदमः श्रयच्च STE तौ नुपप्रीदम्‌ 0) | मान्त- निरगात्‌ a ZU. Yai al चते तयोः | परमूत्रनकग्रहणात्‌ अनेन साकोऽ्यादेणौ इटंविप्रः बदम्बीनि से कनक लुकि aafa निवधः। स्िमंन्नस्येव विधानात्‌ ्रतीदम्‌ ष््यादौ a स्यात्‌। एवं परत्रापि |

२०५। Zt) warfare परतात्‌ मः (2) |

(1 श्लियोरिद्यनन यथ्राबश्छाधम्‌। ley धिप्रतिपेयं ut कायमितिन्यायाट्िधः। enigma त्र सथ्य faufahiqane eralszeqqe ब्राधकन met तोरिति sag y एव्च्ाह।

इसन्तपंलिङ्ग-शब्दः १८२

२०६। टोसौदमोऽनकोऽनः | (zr wife 9, इदमः ६।, अनकः द), WAU) | WAR इदमः टौसोः प्ररयोरनः स्यात्‌| अनेन २०७ सभ्यः | (af oi, १।)। WAR FA: ्रः स्यात्‌ FW FT aT (१०९) आरक्तिंभम्ि। श्राभ्यां। २०८ | भिस्‌ भिसोऽदसच्च ( भिम्‌ ।१।, भिसः ६।, श्रदसः ५।, ।१। ) | भ्रनक इटमोऽदसश्च परस्य भिसो भिरेव स्यात्‌ , नत्वम्‌ | (११०) व्वे सभ्यः एभिः (१२४) टे, (२०५) दस्य मते, (११३, से, पश्चात्‌ २०७) श्रः। अमी TATA एभ्यः, WAY WAY एभ्यः, we Waal: ' एषाम्‌, way भ्रनयोः एषु waa. किम्‌ -

२०६। टौसौ | टश्च we तत्‌ तस्मिन्‌, नास्ति ्रक्‌ यस्य सः तख ! Leal ग्रहणम्‌ wear निहत्ययम्‌ |

२०७ MBIA भच तत्‌ तस्मिन्‌ ब्युतृक्रमनिदृशात्‌ नात्तणिकिस्यापि, तैन gat एषामिव्यादो स्यात्‌ ;१,।

“~ a २०८। भिस्‌ रनक इत्यस्यादस इत्यतान्वयः, तेन भ्रम॒क-

~ =>

(१) “aa aan cfs मओऽरसारथत्वात्‌ waaay भयोः परयोरिमज्स्यापि

१८४ HUNT व्याकरणम्‌ |

२०८। लयादिव्यासभोसूङ्गिखिख वाक्‌ प्राक्‌ टे यक दश्च

(व्यादरि-खेः ६, वा।१।, WAR, WTA ।१।, टः ५।, व्यक ।१।, टः १।, ।१। )

लयाश्चन्तस्य व्यस्य म~ -भोमवजक्तचन्तसखेः सेय टेः पूर््वोऽक्‌ स्यादा, WHA दय |

guna इमकाम्याम्‌ दमकंरिव्यादि।

faa a स्यात्‌ मेम्‌ श्रदमयरत्यकरणात्‌ कचिब्रस्यात्‌, तेन इमं गुणः मषः स्वगं गता दति इदमर्थंइदगच्धसय इत्यने | २०८ व्यादि | fa aifere मः, TT Me AM, तत्‌, TANIA, अषमोम fara मः, चामा सिति श्रमभोमकिखिः, afer ae प्रमभाम्‌क्तिखि् far तत्‌ तस्य | ded Waar! व्यभ्य कः व्यक्ः। WATT उच्चारणाधः। त्यस्य कम्यद दनि na) wa मामान्यगन्दस्य किगरपरलवात्‌ मभभ्रोमवरजेक्यन्तानां युमदमम्ववनामेव टेः प्रागक्‌ स्यादित्य, तिन त्यका मय्रका तलग्रकि मयकि भवनका भवतकि इत्यादो स्यात्‌ नतु MART TARA इत्यादा १, मभभ्रोमि तु AW क।मु, युवक्राभ्यां गुवकग्राः, WAR श्रावक्राभ्यां श्रावकयोः, wane waa मवकतारित्यादि। कथित्‌ तृ तकत कदां ia खव चाभ्यां तङौभोतः| अकोःप्ाप्निपक्त णयष्टमिड ददं वचनम्‌, अनन

मभयोः परयोरिभङपरयोगनिध पाय fafa entera: | 1} अव्र केवनसर्ःपृतराक्ख्यान्‌ नतु क्यनलेरिति।

हमन्तपरलिङ्ग शब्दः | १८५

लकनोरिव्याद (१ व्याद्धव्यगरोन्तावत्‌ भवतकि. प्रचलकि sani धकित्‌ ferga, अनि, वक्रि, sau इत्यादि aft धानात्‌ Wet ज्यम्‌ यश्चा TATA CABS PATH स्यात्‌ WAT: | श्रनुकम्पायुतानत्रोतौ aE जालिप्र्नक्

अन्यमुच्चः उच्चकंः, WMATA कम्य काणा वा Away, दयायां पचति पचतकि, ga: श्रमो श्रमक्ौ, कुद्िताः wa HAR, AAT -'२) इन्त ते Gas, रन्तणव्दोऽनुकम्पा्ैः, भोः शोकात्ताः AA ATA: | भवतां HAR: कठः कतमक इत्यादि | मगिव्यकर्णात्‌ a: fa मामिगब्दयष्टःप्रागक््‌ म्यात्‌ ¦ तेन कः, मामि.४. इत्यादी नस्यात्‌ | युमकभ्यं WaT. saa aT: mia! इभ्यम्‌ इति छतधि भकागम्धानजत्वात्‌ भोपनत्तिन- त्वात्‌ ary |

तृ्णौमः काण शनै तु aE) तृणौम्‌शब्टस्य काण स्यात्‌, शाने तु कड, णङ्ावितौ तृगौौकामासत विज्ञा,

amin: तृशौंगौनः ब्रग्ाघनाघरेमिदमिनि।

(1) सव्यविश्रेति GA "परे HEX नाद franna ae किदिति 2) नोतिः सदाचारव्यव्रस्यितायन nafafaadt दति afaqar? सुबन्त पाटे २८९ BAR staat गोयोषन्दरः। ३) टमक cad fara पूचेम्गि सिद्धेपि तदङ्ग णाद््यधः। 8) भामि Kea | १) fawaprae: gates माभूदिति tn: | 28

१८६ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

२१० रीटौसीदैतयोरनोऽनृकतौ ( at ar ग्रामि 9, इद्‌ एनयोः an, एनः १।, aaaT 9 ) | हां Data ava इदमेतदोरिदितयोरेनः स्यात्‌ उक्स्य प्यादुकत an fafs इरभक्तं fraraa गिवाचकम्‌ | दमादिमान्‌ वित्त णवान्‌ एनावेनांसत वपत्रान्‌ अनन पृज्ञितः HUTT गिरिभोऽर्बितः। mai गवः स्वाम) faa स्वामी WaT: (१३४ व्वदारगःक्ती। कःकौक्र इत्यादि (१७८, भमान्तस्येति वस्य भः। भत्‌ भद AAT aT: वुधा

मुद्धासिल्यादि।

२१०। eters दाच टायर ata aq तस्मिन्‌ | इदग्र एतय तौ amt: | अटन्तनिःगात mle एनत्‌ | wy पयात्‌ उकिरननि- mary कचित्‌ मे जर्नयपरि एनं धितः एनन्छरितः, एनेन कनं Waa, एनया: पुत्रः एनतपृच इन्याह faders विधिः, तन wate अ्रल्रतद्ियाद्रौ स्यान्‌ कथिदल्यनदिव्याद। दमं विद्यादि -दमं इमौ दूमानिश्यत्र क्रमेण एनं एना एनान्‌ इति। एवं स्तरक्रोवयो; एनां एनग्रा, एनत्‌ एमेन इत्यादि | त्वमेव

afed wa गहप्राप्रयष्तितु इमप्रक्रव्यनगम्यत्यन्धय (2) |

(1) अतर wa दृगादरासन गन इति प्रज््यनरमर्प्यासि Tag विद्यामध्न जथा HATA द्यारदाहूतम।

हसन्तपं लिङ्क -शब्दः | १८७

२११। युजिरोसे नुग्‌ धौ

( युजिरः ६।, असे 9, TT ।१।, घौ अं)

युजिरो युज्‌ब्दस्य नुण स्यात्‌न्घौ परे, नतुसे।

,२१२। TEAS युङ्‌ ay दियश्णचिक्‌ qua टक्‌ We सृगुष्णिहां कड्‌ aT

( च॒ड--उशगिद्ां et, कड्‌ Iti, भो on)

चवगीन्तानामच्चादोनाच्च HS स्यात्‌ भौ पर।

(५१) सरोन॑भस्यदान्ते (५२) AT जम्‌ नोः (१८४) स्यान्त- स्यारान्रप्‌ फे) गुड युञ्जा युज्ञः, AM AR युजः, युजा वुगभा- मिव्यादि। ;

aa fa—aqa aya सुयुजः इन्यादि | युजिरः कि--युक्‌ समाधिमान्‌ | श्रन्‌चक्रुन्‌च.युजामेव प्राक्‌ RS एयग्ग्रहगात्‌, तन--गन्‌ wal वन्नः safe |

(१५५) ग््काजेति पड्‌। (१५६; WS 1 राट्‌ ag राजौ गजः| एवं विभ्राट्‌ Zaz रित्राट्‌ विश्वश्ट्‌ परिरट्‌ |

॥'िं - ~~ ^ ~~~ ~

२११। युजिरः। सः श्रमस्तस्मिन्‌ दइरित्रिहशान्‌ युजि- घौ युनाधित्यस्य ग्रहणं, तु युज्योज समाधावित्यस्येति वच्यति गुर्‌ समाधिमान्‌।

२१२। aE अित्यनेन पूजाघ्स्याश्चतेः, नुणि - गत्यथ- स्यापि ग्रहणं पथगृग्रहणादिति - चवगान्ततवेन fat ब्रज्ला-

टौनां पृथग्‌ ग्रहणं नियमाध्र, तैन खन्‌ प्रत्यादौ ्रादौ BINT,

१८८ मुखवोध्र व्याकरणम्‌ |

२१३ | अषतगजोऽदा। विश्वगाजः él, अ्रत्‌ ।१।, श्रा ।१। ) विग्वराजोऽमारय्य ग्रा स्यात्‌ भौ TF

विश्वाराट विश्वाया विश्वराजौ विष्ठराजः।

कड,१,। स्रगिति aaa: fafa निपातितस्यव ग्रदरणान्‌ स््र्ट

eu, +

त्यादौ a wid एवं fenaiefa, तन ferfaanfe r ग्रस fafa aa gaa wat: figgerer गणान्‌ गन्नुखडिति स्यान्‌ | frmafafafefa तु santa ग्रपनादिप्येःपि ae zat यत्नति fan, waa ear टध्रगिति vot: fafa fanfare ग्ररैणान्‌ aay yefaadt am. zfafa ent, fare ग्रहणान्‌. दक मक्‌ AIA TATA) स्या, aq द्ृषटमि्यादो"। of amit: fafr wa एतम््क्‌। अ्रन्यत् wefaante) णवं aaa: किपि ga, wera मृषटमित्यादि। eta यत्ति faa, ग्रह्वप्राद्रोरितिजिः। पररित्रजन।ति किणि fanaa a)

२१३। विष्य! भाविल्यनुवर्त |

(1 समु ईयत TTA ya नड्‌ OE "TIATARE AIT ETY a

afemRit gy मत्वा उग्णभनग्नाद्िमाघनाय “ARI aa Hen’ दूति

BARNA | TRAE, HIM ue द्यौ निर TAIN aT HAY aay

चड़ TAA WAT गकारे पात्तकारथ्य ART TMAR | ARAVA |

तु र्ग्णःभगन दन्याद agen, sea fa चमः क्गानिति aq ae

3 fr

हमन्तपंलिङ्ग-गब्दः १८९

२१४। सादेः सो लोपः कोऽषटन्यरत्तः। ( स्यादः €।, मः gl, नोपः १।, कः €।, श्रषटृन्यरत्तः €। ) | स्यादौ fara सस्य लोपः स्यात मौ परे, ae qa पटभ्यामन्यस्य स्थाने जातस्य TA | Wz as! (६५) भपभमोरिति मस्य दः, (४०) मुशुभि- यृशादिति ` watt wen: इत्यादि ऊर्व जग. अज्जो TS: द्रयादि, wlan ऋलिग्‌ ऋतिजौ ऋलिजः इत्यादि | श्रवाः, aaa: डे रवयः, ग्रवयाजौ अवयाजः, ब्रवयोभ्यामित्यादि। २१५। wet तदोः सः at |

( त्यदां el, तदोः en, मः १।, मौ )}।

२१४ स्यादः भाविव्यनुवत्तते | स्यस्याद्दिः स्यादिम्तस्य | 04 S7 Al पदा, नाभ्यामन्यः पटृन्यः, पुटृन्य्च TAY तत्‌. तत्‌ WIAA तस्य तथाच षटृख्थानजातस्य रत्भित्राजातस्य कस्य नोप इत्यथः, तैन विविट्‌ निनिट्‌, sent: state इत्यादौ स्यात्‌ | तु पिपक्‌ गोरक इत्यादौ wal gq गोर्‌ इत्याहः | ग्रमाङ्क्तोत्‌ इत्यादौ तु सव्यैविधिभ्यो नलोपविधि्लवान्‌ इति mara wet स्यादिलुपि नुकि aq) कस्ताता शक्सथाता THM तु सकयोदान्तलाब्र लुप स्यात्‌ ' १) aR इति Tara स्यान्तनुपए्‌ एवं भभ माचक्षाणः भकं इत्यादि |

(i) एतहोज ८५ Gare टोशायां दरदटयम्‌ |

१९० मुग्धमाधं व्याकरणम्‌ |

चद्यारीनां तदयोः सः स्यात्‌ सो परे | खः ata sare स्वत्‌ | एवं तद्‌ एषः एतौ एते इत्यादि |

(२१०) दीटौसौदेतयोरेनोऽनक्ञाविति प्रयोगम्‌ FEAT

ore | युष्दश्नदो सारौ युवादौ Aaa

aaa तुम्थमन्नी तवममौ सि जस्‌-क-ड-उम्‌म्‌

[ युट्‌ wea: ६॥, शरो १।, युव शरावो १॥, युग्र वयौ Qi, लद्‌-मदौ Ct, तुभ्य म्नौ १।।,तव AAT १. मिह जम्‌ ङ-डसृसु i) श्रनधो; क्रमात Went: एषु परपु क्रमात्‌ स्युः

२१५। matt ज्निरभो गणाः | स्िम॑न्नस्यव विधाः नात्‌ ्रतितदित्यादौ नस्यात्‌ मण्डकगन्या वा अनुव्य तस्य व्यवस्यावाचिलात्‌ सेरोलाभावे eraser: AT वा, तन AYR: अमुक दति। दश्दंवदिति-- इमं विहोव्यादिक्रमेण न्य fama: |

२१६ युद कयोरधैस्यापि ग्रहणात्‌ इति वच्छति तत लकी युवावौ maa, क्तर्कछध wate: लकरदरामिति निद्रगज्ञापफान्‌ it) | तेन तव समप उपलन्‌ लश्चधि भ्रधिलत्‌ ad लं भवति agate लत्काम्यति लद्यति waa लदतौव्यादि

स्यात्‌ नतु गताभ्यां कृतं युप्मतेक्षतं युवयाबधि प्रधियुपत्‌

(¡, aignoate युप्रटशमद्लवकमटामि'त रते युगाक्यतुक्गा चदि १५ = es ib a Z 6 faca frMma tn Busway es युवाप्रारेगो tH via प्कादिचिधः।

सन्तपं निद शब्दः | १८१

229 | ङध्योमः। (seat: én, मः eb) | गुमदटम्मदभ्यां परस्य इत्यस्य प्रय मः स्यात्‌ | तम्‌ AFA | २१८। मभमीप्वाड्‌। ` ( म-भ-अम्‌ MT ऽ॥, ATS let) | युदम्बदोराङ स्यात्‌ सेमे aft Aart aF | युवाम्‌ आवाम्‌ TA वयं, AT मां युवाम्‌ Wary | २१८ | WHA ङमि-भ्यम्‌-ङम्‌-मामां न-इभ्यम्‌- त-त-डाकमः | (wat मामां ei, न--त्राकमः “ei ) | युखदम्प्दृभ्यां प्रेषाभेषां स्याने SUA A ay MAA एनं क्रमात्‌ स्युः, इत्‌ FW WANA | | quarter | एवं अ््मदाऽपि। दधिव्वाश्रयोरण्युदा Bitar ज्ग्राणि। 2291 SF) asa serene: | २१८। AM मथ भच श्रमृच Wa ते तपु। oem. मनिर्दशात्‌ लं ae गमत्‌ Wag इत्यादौ मभयोमे-तौ, ATS | २१८ ona oma भ्यञ्चतिचः। एवं नय इभ्यञ्चति। तग्रोरक्रार उन्चागणाथ;। सामृग्रदणात्‌ गौण आकम्‌. तन रनिलय्राभित्यादी स्यात्‌| णमयद्रणं म्तोद्ावयो विधानां तन षोः कुलानि वा युष्मान्‌ प्रप्यति caret स्यात्‌ | 1, * इति-व्य-षोत्याट्नि fagfateanafarara पुंि तु शसन Gee प्राप्रो fay fagy शसो afaura fafa दुर्गदामः।

१८२ AUT व्याकरणम्‌ |

220) ue _zienta |

(एड ।१।, टा डि-श्रामि 9 ) |

युभदस्पदोरेड स्यात्‌ टाष्योः परयोरामि च, इत्‌ |

तग्रा लया युवाभ्याम्‌ sara ग्रुप्ाभिः ब्रह्मभिः, तुभ्य मद्यं युवाभ्याम्‌ ब्रावाभ्यां AWAY अस्मभ्यं, तत्‌ मत्‌ युवाभ्याम्‌ भ्रावाभ्यां FAI Bag, तव मम युवयोः WAIT, युभाकम्‌ श्रस्माकम्‌ |

afaaaa ब्रतिमयाम्‌ श्रतियुवय्ाम्‌ wera ब्रनि- THA TARA |

(२१६) क्र दगोरथेसयापि ग्रहणात्‌ CRC Ce

तधि मयि ग्ुवयोः Waal: Fay WATT |

२२०। एंड मुख्य सुमि श्राकम्‌विधानात्‌ ATT विषयः | कदयोरघ्रस्यापि भदणादिति- ग्रपिगब्दोऽत्रावधारणाये- was -काधयोर्ुमदसदोस्तनरदो, हाययोवुष्यदस्रदोयुवावौ ह्ावेव eral, नतु मिजमड-डममु, विगरषविधानात्‌ (१), तन लामतिक्रान्तः fad, लामतिक्रान्तौ ब्रनिलां, arafa-

1) अतर दुर्गादराम - `ननु agra wt लदाद्यारेगः कथमिव्याणडयार कदयोरत्रद्यापि यहगादिति। ततचायमग्रः- गरदो मूले naa भिजम इ-ड.म स्वकपयहणात्‌ तेषु परपु ताह-यृय-वय-तुभ्य-महय-तत-ममाः wer, नि-जमारे-गन्यतर quae एङ्गवरचने ut az faraq परे

Tat यद्धवचने परे astray) ata a प्ररिमङ्गिमनारत्य ay zqaray mat इले ard wea BEtariend’ fafa |

एए.0. 43 हसन्तपलिद्ग-गब्दः १९८३

क्रान्ता afta, तम्‌ अतिलाम्‌, तौ अतिलाम्‌, तान्‌ अतिलान्‌, तेन afaaar, ताभ्याम्‌ श्रतिलाभ्याम्‌, तैरतिलाभिः, तसै अति. तुभ्यम्‌, ताभ्याम्‌ ब्रतित्राभ्याम्‌, त्यः श्रतित्रभ्यम्‌, तस्मात्‌ श्रति- लवत्‌, ताभ्याम्‌ श्रतित्वाभ्याम्‌, तभ्यः अतिलत्‌, aq ब्रतितव, तयोरतितधो;. तेषामतिलयाम्‌, श्रतित्वाकमिति परे, तस्मिन्‌ afaafa, तयौरतिल्वाः, तषु afaarg |

मामतिक्रान्तः ब्रत्यहम्‌, मामतिक्रान्तौ afaara, मामति- क्रान्ताः waaay, तम्‌ श्रतिमाम्‌, तौ ufaara, तान्‌ अति- मान्‌, तेन श्रतिमया, ताभ्याम्‌ अ्रतिमाभ्याम्‌, तेरतिमाभिः, ad श्रनिमद्यम्‌, ताभ्याम्‌ श्रतिमाभ्याम्‌. aa: श्रतिमभ्यम्‌, तस्मात्‌ श्रतिमत्‌, ताभ्याम्‌ ब्रतिमाभ्याम्‌, aa: अतिमत्‌, तस्य श्रतिमम, तयोः afaaat:, तषाम्‌ अरतिमयाम्‌, अतिमाकभमितिपरे, afaq afaafa, तथोरतिमयोः, ay भ्रतिमासु |

युवामनिक्रान्तः afar, तौ afaqarm, ते अतियुयम्‌, तम्‌ भ्रतियुवाम्‌, at अजतियुवाम्‌, तन्‌ ग्रतियुवान्‌, तैन ब्रति- qaat, ताभ्याम्‌ अतियुवाम्धाम्‌, a: ब्रतियुवाभिः, तस्मे भति- तुभ्यम्‌, ताम्थाम्‌ श्रतियुवाभ्याम्‌, तेभ्यः अतियुवभ्यम्‌, तसात्‌ परतियुवत्‌, ताभ्याम्‌ श्रतियुवाभ्याम्‌, aa: afaqaq, तस्य afaaa, तयो; अतियुवयोः, तषाम्‌ ब्रतियुवयाम्‌, अति- युवाकमिति परे, तस्मिन्‌ sfaqafa, तयोरतियुवयोः, तेषु afaqarg |

mary श्रतिक्रान्तः श्रत्यहम्‌, तौ waaay, afa-

१९४ मुग्धयोधं व्याकरणम्‌ |

वयम्‌, तम्‌ श्रल्यावाम्‌, तौ waaay, तान्‌ TAA, तेन TAI, ताभ्याम्‌ श्रत्यावाभ्याम्‌, तैः त्रत्यावाभिः, तस्र wfa- मह्यम्‌, ताभ्याम्‌ AMANITA, तेभ्यः अल्यावभ्यम्‌, तस्मात्‌ श्रव्या वत्‌, ताभ्याम्‌ RAIA, तभ्यः श्रल्यावत्‌, तख afaaa, तयो- र्यावयोः, तेषाम्‌ बअरयावयाम्‌, Wararafafa पर, तस्सिन्‌ TAA, तयोरल्यावयोः, तपु श्रल्यावासु |

गुमान्‌ श्रतिक्रान्तः भ्रतिलम्‌, युञजान्‌ श्रतिक्रान्ती, अति. युमाम्‌, Tard श्रतिक्रान्ताः प्रतियुयम्‌, तम्‌ afaqea, तौ श्रतियु्ाम्‌, तान्‌ श्रतियुख्नान्‌, तेन श्रतिगुमया, ताभ्याम्‌ भ्रतिवु्राभ्याम्‌, तेः भ्रतियुाभिः, तम ब्रतितुभ्यम्‌, ताभ्याम्‌ ्रतियुपाभ्याम्‌ तेभ्यः अरतिगुमभ्यम्‌, तस्मात्‌ श्रतियुषत्‌, ताभ्याम्‌ अतियुपराभ्याम्‌, तम्य श्रतियु्त्‌, तस्य श्रतिनव, तथोः afaq- पथोः, तषाम्‌ प्रतियु्मय्ाम्‌, अरतिग्रमाकमिति परै, afaq श्रतियुप्रयि, तयो अ्रतियुमयोः, तषु ग्रतियुमासु |

WR अतिक्रान्त MERA, तौ Way, ते भ्रतिवयम्‌, तम्‌ UTA, तौ RAMA, नान्‌ WAT, तैन TOA, ताभ्याम्‌ भ्रवयस्माभ्याम्‌, तः ब्रयम््मरामभिः, तस्ते afar, APA भ्रस्माभ्याम्‌, तेभ्यः TTA, ATT TATRA, aR WAAR, त्यः भ्रत्यस्मत्‌, तस्य॒ अ्रतिमम, तयोः Waa, Aa yaa, waraatafa परै, तस्मिन्‌ अर्म्मयि, at: TaN, तेषु श्रत्यक्मासु। एवं MAAR ATE

इषन्तपुलिङ्ग- शब्दः | १९५

लामाचष्टे लदयति, अ्रतिलटत्‌, त्वदयिष्यति। मामाचषट मदयति, भरमोमदत्‌, मटयिष्यति 1 युवामाचष्टे यु्मानाचषटे वा quafa, श्रयुयुष्मत्‌, युष्मयिष्यति आवामाचषटे श्रस्मानाचषेवा श्रस्मयति भ्रमिम्मत्‌, ब्रस्मयिष्यति |

्ञायैयोजिकिवन्तयोः a लन्मदौ कार्वयोर्जिकिविहित- योर्यभटस्मदोस्वसमदौ स्यातां ञौ परे। लामाचत्ताणः त्म्‌, तौ तवाम्‌, ते त्वम्‌, तं लाम्‌, तौ लाम्‌, तान्‌ लान्‌, तैन तथा, aafa केचित्‌, ताभ्यां ताभ्याम्‌, तः ताभिः, तस्मे लम्‌, ताभ्यां ताभ्याम्‌, RI तभ्यम्‌, तस्मात्‌ AA, ताभ्यां त्वाभ्याम्‌, तभ्य: तत्‌, तस्य ल, तथोः त्वयोः, तेषां वयाम्‌, लाकमिति परे, तसन्‌ लवि, तयोः त्योः, तषु ATs |

एवं मामाचक्ताणः मम्‌, श्रहमिति केचित्‌, माम्‌ मम्‌ | माम्‌ माम्‌ मान्‌ मया, मेन इति कंचित्‌, माभ्याम्‌ माभिः। मम्‌ माभ्याम्‌ मभ्यम्‌ | मत्‌ माभ्याम्‌ मत्‌। a wat: aay, माक- fafa परे मयि मयोः arg (2) t

दाघयोरतिक्रान्तवत्‌ | हार्धयोस्तयोरतिक्रान्तवत्‌ सि-जस्‌-ङ- ङस्‌-वल्लं युवावौ स्यातां क्तो युवामाचक्ताणः AA युवाम्‌ युयम्‌ ¦ युवाम्‌ युवाम्‌ युवान्‌ Yaar, युषेनेति केचित्‌, युवाभ्याम्‌ युवाभिः

(१) तथाच-त्वं ददाति धनं fafgee देहि wa fara | त्वं गच्छन्ति हरेः स्यानं मं गच्छन्ति िष्रालयम्‌ h त्वाभाब्रस्ताणाय CATT: | एपमन्दरिन्यकगं भपुरद्नेन

१९९ AUNT व्याकरणम्‌ |

तुम्यम्‌ युवाभ्याम्‌ FRAT युवत्‌ युवाभ्याम्‌ युवत्‌ तव FAA: युवाम्‌, युवाक्तमिति at) युवयि युवयीः युवासु।

UIA इावःमाचन्नाणः THA ्रावाम्‌ वयम्‌। WA ग्रावाम्‌ ग्राउान्‌ | श्णवया, अादनति चित्‌, ग्रावाभ्याम्‌ sata: | AWA आवाभ्याम्‌ आावभ्यम्‌ | AAT AAA ब्रवत्‌ | मम श्रावया; MAINA ग्रवाकमिति पर। ग्रादयि ्रावयाः ्रावासु।

ववाव्रयोम्बाद्ाद्या; गस्‌ भिम सुपस तु St) बाधयोम्तयो- स्वाद्रादादेणाः स्यः ते, ST गम्‌ भिम्‌ सुपस्‌ परपु, इदरत्‌ | TA भ्राचत्ताणः लम्‌, तौ नवाम्‌, ते WAR, तं ताम्‌, तो युवाम्‌, तान्‌ युषान्‌ |

MIG भ्यमामोम्तब्रडः व्वा्रयोम्तयरोवडः स्यात्‌ ZT: परयोः, AST तु भ्यसमि श्रामि च, werfadt | तन त्या, नाभ्यां युवाभ्याम्‌, aorta: तरख तुभ्यम्‌, ताभ्यां युवाभ्याम्‌, तभ्यः गुप्रभ्यम्‌, TIA, गुडभ्यमिति कवित्‌ A वत्‌. ताभ्यां युवाभ्याम्‌, तभ्यः FWA AW AB नव. तग्रा; aa, तषां गुष्मय्राम्‌ yaa, युफाकम्‌ युधाकमिति ati तस्मिन्‌ far, तयोः FAI, AY TATA |

एवमस्मानाचक्तागः WA आवाम्‌ aA! मम्‌ AAA ग्रमान्‌ | स्दा MATT अरमानिः। मह्यम्‌ WAT ब्रस्मभ्यम्‌ ama, असूभ्यमिति कवित्‌ मत्‌ श्रावाभ्याम्‌ WAY WAT | मम श्रावया; अ्र्मय्राम्‌ असयाम्‌, Waray अरसाकमिति परे।

स्थि BIA TAT

हमन्तपलिङ्ग-शब्दः १९७

थे तु मपयन्तख्येति (१) पाणिनोयभूत्रे मान्तस्येति कमे fas परिपदोपादानं अ्रधिकभागव्यवच्छदा्धं, तैनाधिकमभागव्यव- च्छटाभावे नेते तराहाद्यादेभा भवन्ति इत्याद्ः, तेषां मते q—

युषःम्पोरव्रड डायडो तु गममौ-म-सुपि -टाद्योसि। जि किवन्तयोर्युमदम्बमदोर्युमम्मोरन्‌ TE स्यात्‌, STG शमि afa dat भकारे सुपिच पमे, we 4 टाद्योरोसि च, नडाविनीौ |

गुवामाचक्नाणो युमानाचन्नाणो वा-गुष्ं qd, तौ युषां, ते गुमा युष, तं युषां, तो गुषां, तान्‌ qara, तन युष्या, qua केचित्‌, ताभ्यां यमाभ्यां, ते; वुष्साभिः, तस्त युमं AG, ताभ्यां गुषाम्यां, तेभ्यः यर मभ्यं FRA, तस्मात्‌ युष्मत्‌ युत्‌, ताभ्यां यमाभ्यां. aw युष्मत्‌ AIM, तस्य युष्म युष, तथोः वुष्योः, तषां qwat गुषयां, युष्माकं युषाकमिति परे, तस्मिन्‌ युयि, तयोः युष्योः, तेषु गुषासु एवम्‌ ्रावामाचक्ताणः श्रस्मानाचत्ताणो वा WA TAA, ती श्रमाम्‌, ते WAY श्रमम्‌, तम्‌ WA, तौ'ग्रसाम्‌, तान्‌ असान्‌, तेन श्रस्या, wafa केचित्‌, नाभ्याम्‌ wana, तेः ब्रसाभिः,

(Q) ७।२।९१--द्ति प्राणिनोयश्त्रम्‌। were aq मपय्यन्तख्य द््यधिकरारोऽक्नि, तेन wa युद्टखटोरादेशा मपर्यन्द्यांशख्येग भवन्तिः एतेन यदा मपद्यन्नाद गात्‌ परतो यु्रदख्मरोरन्योऽपि भागः खान्‌ AST तयोस्वाहाद्या- देशाः म्यः TAA युप्रदृखरौ falar भव तमोदटा मकारात्‌ परम्‌ ब्रंधान्नरः भावान्‌ तयोवच्छमाणा अन्‌ अडः डा as एते आदेशा wafa, ag त्वाहाद्या दूति फनिताथः | अतणएव्राल् कैयटः "कजिन मान्तयोयुश्रदृखरोरा- रेशावेच्छन्ि, मपर्यनयहणं fe यत्र परिशि्टद्ासततादेशा्धमिति। परि शि्टाभाये भाव्यमादे्ेरिति ब्ुषन्तीति |

१९८ quad व्याकरणम्‌ |

२२१। दीचीषीगां dea ले-मे वा-नी घस्‌ नसौ वाऽपादवाक्यादावचवाहाहेवादग्दश्यधं स्वा-

al aT | (दो-ची-पौणां ain, कैः ai, हे; २।॥, ववे: २॥।, TH en, वां-नौ।१॥, वस्‌ नसौ १॥, बा ।१।. श्रपादवाकादौ WA aT

SAE UT FEMS: Bil, ला AT ।१॥, तु Ul, WAT 2)

AH WAY श्रसम्‌, ताभ्याम्‌ WANA, तेभ्यः THA प्रसभ्यं, तस्मात्‌ WAT WAT, ताभ्याम्‌ भ्रमाभ्याम्‌, तभ्यः WAT अमत्‌, तस्य TH प्रम, तग्रा; TA, तषाम्‌ WATT श्रसयाम्‌, श्रस्माकम्‌ श्रसाकमिति पर, तज्िन्‌ ्रखि, तयाः wat, तपु भमासु।

्रहतिप्र्यययोरादेयाव्रच्छलयन्यः (१) तकत युट्‌ युषौ युमः, भः TAT ग्रमः इत्यादि, तथाच YW इन््राहहस्यतं ग्रम्मो- a वाजिकवमव safe) ,,

२२१। et era at a at a ara, तचमेचतौ, वां नीतो, वथ AW aT | पादश्च aera a aaterfe: पाद- arenfe:, पादवाक्यादिः ्रपादवाकयारिम्तम्बिन्‌। पादः श्नोक- चतुर्थोभागः वाक्यं साकाह्पदममुदायः, तु निराकाहूपद- समुदायः, तन Ted प्रच तव पुत्रस्तिष्ठति saa aq |

i) प्रशनििकिरन्तो बुत्‌ wey, प्रयः मियोज्ञमाद्ः, एतयोः स्याने शह्िता यदा नव्यरिवि फश्च चिन्मतम्‌।

हसन्तपलिङ्-शब्दः | gee

xy

गुदस्मदो saint ज्ञैः सहितयो स्तम, दै वौ-नौ,

ववे वेस्‌-नसौ, AUT स्याताम्‌, TAT gaily ला-मा, नतु पादस्य वाद्यस्य चाटौ fea, चवादैरदशनाधटश्यथ- पुभिय योग

दामोदरस््वावतु मापि मित्र),

ददातुतमेऽपि सुदं Fae: |

निदन्तु तें विष्णुरघानि मेऽपि,

रक्षत्वसौ वामपि नौ मुरारिः॥

टदातु वां नावपि शग HT,

करोतु वां ओ्रोदयितो दयां नौ।

पुष्णातु at नोऽपि हरि धनं वो

ददातु नौ, इन्शुभानि वो नः

दभिररथो येषां ते, दक्‌ wee, ब्रहि टश्र्धा श्रहगृहश्यधाः ; पथात्‌ चथ वाश्च इश WEA एव weet ते, a भ्रचवाहाहवाऽटगृ्श्यथः तेः। तथाच-चायोर्योग, ये धातवो दथना्था श्रचाक्ञुषन्नानाथेतया प्रयुक्रास्तेथ योगी एते wear aft दृष्यर्थानां चान्ुषन्नानमेवाधे दति are, यनः - पशः पश्यति गन्धन gem पश्यन्ति पण्डिताः राजा पश्यति करणाभ्यां भूते पश्यन्ति वव्यैराः इत्यायुक्तेः। ara ara at

दामोदर इत्यादि 2 faa दामोदरस्वा लाम्‌ श्रवतु, मा मामपि। faafa सववैतान्वयः। दै faa मुकुन्दस्ते तुभ्यं मुदं हं

Roo Arad व्याकरणम्‌ |

श्रपादवाक्यादौ किं- युष्मानवलविरतं कष्णोऽस्मान्‌ पातु AFT: | श्रचादियोग कि - तुभ्यं AVY टश्यात्‌ सरं गोविन्दो मह्यमेव शम्‌ | Maw arate लामालोकयति पूजकम्‌ टटातु, मे मद्यमपि। मित्र विष्णुस्त तव अघानि पापानि नि- हन्तु, aarfa 2 faa मुरारिवां युवां Taq, नौ त्रावामपि। 2 faa कणः श्म कल्याणं वां युवाभ्यां ददातु, नौ अ्रावाभ्या- मपि। ग्रोदेयिता यस्यमः, faa ग्रोदयितः योक्लष्णा वां युवयोः सम्बन्ध दयां करोतु, नौ wait: मख्वन्धःपि। ईइ मित्राणि हरिर्वा युष्मान्‌ पष्णातु, नोऽस्मानपि। मित्राणि हरिवो युष्मभ्यं धनं ददातु, नोऽस्मभ्यमपि। मिव्राणि हरिवो युष्माकं सम्बन्धं म्रशुभानि हन्तु, नाऽस्नाकं Wea sf यु्मान्‌ ग्रत गोविन्द इति तु पादादौ WAT] पातु MET दति वाक्यादा। त्च --मंसारमागर मग्नान्‌ ग्ुप्मानवतु ana.) fe माधुजनानन्दवदनः करुणानिधिररित। एवं त्वामामनन्ति प्रक्रतिमिल्यादि कुमारसग्मव च| तुभ्यं मद्र मिलयादौ गरष्टयागाब्राटिगः। एवं तहगिनमृदामौनं तामेव पुरषं विदूरिलादौ एव-ग्ब्द्योगाव्रादेणः। एवं ग्रामा युव WAS, ग्रामो गुवयोद स्वं, ग्रामो YATE स्वम्‌। तया ग्रम्मदाऽपि। यदा तु गुष्मदकह्वयां योगस्तदा स्याटेव, तन

BU BIT Al पातु cael स्यात्‌| Maw दव्यादि-

हसन्तपएलिङ्ग-शब्दः | Rok

२२२। सदानृक्तेऽसादिग्राः। ( सदा tei, अनूक्त on, अमादिप्रपाः yi) भ्रनयोरेते भ्रन्वादेशे नित्यं शयुः, नतु aged प्रन्तात्‌ परयो; युयं ad विनोता स्तत्‌ पातु वो नो महेश्वरः | यूयं वयं दितास्तेन सोऽस्मान्‌ पातु सवः fra: |

aw: शिवः माम्य wat wat लां पूजकं आलोकयति ।वचारयतीत्यघ्रः। Wa इन्न-नोकछडोरपेत्ता-विचारयोवत्तमान- त्वात्‌ नत wea; | एवं यदाऽटगटण्य्न युष्मदम्मदोर्योगस्त- त्सव्ययिनातु योगम्तत्रापि faye: तन Tam खं समोच्य गतः इन्यादावपि स्यात्‌| २२२। मदा उक्तस्य पच्ादुक्तं अनुकं तन्तिन्‌ भ्रादिना पूञयेवत्तिपदेन सह वत्तमानः मादिः, arfeardt mafa सादिप्रो, wfeat अ्रमाद्ो तस्याः मूथममिव्यादि | युं विनौता, वयमपि विनीताः, तत्‌ तस्मात्‌ कारणात्‌ वौ Fwy नोऽस्रानपि मरैष्वरः पातु। ब्रसादि- ्रोलुदाद्ृरति यूयमित्वादि ad हिता, वयमपि हिताः, मेन कारणेन शिवो नोऽस्मान्‌ पातु, a frat at गुमान्‌ पातु, aay weary yaaa विकल्यः। MATRA सामान्यपून्मादामन्तपतत्‌ | सामान्यपूव्ात्‌ कदान्तकार्थादामन्त्यादेते भ्रादेणा; faa Bs (१। = Ba

1) “gananearen-fasta: fawmgaaa विकल ati नित्यविषा १६

२०२ मुग्धबीधं व्याकरणम्‌

222 नाविरेष्यान्याद्यामन्ात्‌

( ।१।, श्रविग्रेयान्याद्यामन्तयात्‌ yt) |

विगेयपूव्ैमनामन््पूञयैच्च हित्वा अरन्यसादामन्तारेते ment A a: |

श्मोऽस्मान्‌ cH लच््मीग सेव्य नोऽवाव मन्ये नः।

सुपात्‌ सुपादौ सुपादः, BATS सुपादो | ्ेयाक्ररणते खं, Hat वयाकरणौ वां स्वम्‌। कान्तेति fa कातराः कुमाग FAH F, कातराः कुमारा वः aA) एकरार्घति किं--देवटत्त यन्नदत्त युवयोः स्वम्‌ सामान्यपूव्वाटिति fai -- देवदत्त जटिल तव खम्‌ |

२२२ नावि विशिष्यत यत्‌ तदेष, विगेष्यञ्च अन्यच्च तै, 4 mat यस्य तदिगियान्यादि, विग्यान्यादि श्रविगेथान्यादि, श्रविशष्यान्यादि तत्‌ श्रामन््ाचचेति तत्‌ तस्मात्‌ अरमन्त सम्बोधनम्‌ तथाच -केवनामन्पूयैयोविगेषणामनतपूनैविः गरेयामन्वापुत्ोष wt wim a a) विगरेयामन्तापून- faa रामन्वभिन्रपदपूनवामन्तापूत्वयौच yaaa विकल्य इतयग्ः(१)। malta इति फेवनामन्वापूत्रत्वावरिपिधः।

main सेव्य इति विगष्यामन्वपूनवविगषणामन्वापूबलतवात्‌

नम्र | यनेतरषेक्प्र्यमिन्नापोहेतः सामान्यम्‌ | यतम्क्रालादरिगन्ः सामान्यतः देष्दत्तादिगन्धस्त्‌ विगप्त्ति विति श्डकग्धवेये न्यायपरननाननपारम्त्रम।

qi dag पृत्यपटरह्ितात्‌ पपरष array ocala afcfa निष्ण नि anizra: | |

सन्तप॒लि ङ्ग-शष्दः २०१

२२४। पात्‌ पत्‌ पौ। ( पात्‌ it, पत्‌ ।१।, Gol) | पादः पत्‌ खात्‌ पौ uz | सुपदः मुपदा सुपाद्यामिल्यादि | (२१२) चुडति कड्‌ (ue) नस्य लः (५२) aS! (१९४) स्यान्तस्य YT] प्राङ्‌ ABT प्राञ्चः, प्राञ्चं प्राञ्चौ एवं क्च तिथच्चोदच्चादयः।

निप्रिधः, किन्तु पूर्व्वनेव विकन्यः एवं छात्रा गुणिनो नः खं, छात्रा गुणिनोऽस्राकं afaafzi श्रव सव्वेन दति ्रामन्त्ा- भिन्रपदावक्रियापून्ामन्तापूव्बलात्‌ निषेधः, किन्तु पूव्वनेव विकन्यः। दीनं शङ्कर मा र्त णं गम्भोमेप्रयच्छच इति, उचितानुचितं रचयामि देवितं इत्यादि देवि ase सदा दास दति तु नजा नििष्टस्यानिल्ल्वात्‌ |

केवलात्‌ समानाधिकरणादधुजात्‌ धेजभिन्रात्‌ केवनात्‌ समानाधिकरणात्‌ परयोः बु्दस्रदोस्त WIM: A गोमतां quia खं, दण्डिनोरयुवयोः खं, प॑शलस्य तव॒ खमिल्यादि। केवलात्‌ fa—ain: ag at करोतु। समानाधिकरणात्‌ किं-सदा मा गिरिगोऽवतु। अ्रधुजात्‌ किं- भक्तस्य ते महादेवः सदा तिष्ठतु मानसे

२२४ पात्‌ संख्यासपमानादित्यादिनादिष्टस्य wafers ग्रहणम्‌ पादशब्दसमानाधख पाच्छब्दस्यापोति केचित्‌। ufefa eres: | योगविभागात्‌ क्रचिदन्यतापि, तेन हिपदा विपदा wa इत्यदि |

२०४ AMAT व्याकरणम्‌ |

२२५। अ्रचोऽक्ञोप घश्च

( ग्रचः gl, Wel, लोपः १, घः १। ।१। )।

AAAS लोपः स्यात्‌ पौ पर, qae धः | Tats: प्रतोचा प्रल्यभामित्यादि।

२२६ | तिद्यैगमुम॒यगदमुयगुदचां तिरश्रामुमड- चाटमुद चोदौ चः |

( तिथक्‌--उदचां ani, तिरथ्च-उदौचः aii)

एपाभेते क्रमात्‌ स्युः पौ परर, fara: तिरा नियम्या भिल्यादि। ब्रसुमुग्चः ग्रमुमृदईचा ब्रसुमृयग्भ्यामिलादि। एव. AAAS | Fels: Tatar उदर्भ्यामिल्यादि गेषं पूत्मैवत्‌ |

२२५। श्रचो। ग्रदिति quate ey) ब्रचद्रत्यनकार- नि्हगात्‌ FAB TAS, WAVY, गवारा SAT नस्यात्‌ रवाभावपत्ते aa MST) गौरति वा, मा-ग्रन्वः श्राग्रज्ना afa i लुप्रनकारस्य तु ata गाचा नोच: नचा, Azta: नट)चा इव्यादो WaT: "खादेव (१) प्रतयः इति Wet ऽकारनापै तत्‌पूवाव्यवदितष्वस्येव धः। तेन मरुतं wata तान्‌ मरुः इत्यादा व्यवहिते स्यात्‌, TI TT AAT: इत्यादो खादेव |

२२६। तिथक्‌। fare भ्रसुमुयड्‌ श्रदमुयड्‌ see नते aura fava भ्रमुमृडच् ब्रदमुदच Bete a I

।:) Wa एवक्रारण दोषद्यापमद् sia सूचितम्‌] तदुक्तं गङ्गाधरे दूति aaa fafa: तैन स्यमावटोघाट्पद्गोप्रः यारि fa

waar hay शब्दः | २०५

(१५५) mesa चस्य षले, तत्रिमित्तस्य शस्य सते,

(२१४) BTS सोलोपः। सुट्‌ ae gaat सुः cafe |

(१६५) नस्महव्र इति ait ( १९४ ) wre लोपः | महान्‌ महान्तौ महान्तः, महान्तं महान्तौ महतः, महता मह- attfaante |

भवन्‌ भवन्तो भवन्तः, भवन्तं भवन्तौ भवतः, भवता WARIT- मिव्यादि। रशेषं मददत्‌।

(१८६) श्रतसोऽपोरिति- गोमान्‌, शेषं wae, एवं यश- zea: |

२२७। भगवद धवहवतां भगोऽघो-भो AT A | (भगवत्‌ WIA भवतां Eu, भगो-्रघो-भो ।१।॥, वा ।१।,

धौ 91) |

भरस््िनि्शात्‌ प्रयोगेऽपि afar वा-सन्धिविधानात्‌ अमुम्बोचः ब्रदम्बोचः इत्यादापौति कथित्‌ एषां किम्‌--श्रसु- gia: श्रदद्रौचः ante: इत्यादि | २२७ भग। anata अघवांश्च भवांश्च ते तेषाम्‌| भगो श्रघो्च भो ते, gamle दम्‌ एते सान्ता श्रादिश्यन्ते द्त्यन्ये (१) श्रत्र भगवदघवदुभवतां धौ वाऽतो डोरिति aa सिद (1) wa केषु weay "भाष्ये aafecuses aga इदिति “we farsa agar fearafua: पराठमेटोऽज्ि | ware: सुधीभि vfa |

२०६ TANG व्याकरणम्‌ |

एषामते क्रमात्‌ स्युवा धौ पररे। भगोः 2 भगवन्‌, 3 रघोः हे ्रघवन्‌, हे भोः हे भवन्‌। शेषं Tae |

(१९२) श्हरिवयुकषे नुग्‌--ददत्‌ ददती ददनः vena एवं जच्त्‌ नाग्रदादयः।

(१५५) श्राजेति we—faz विड्‌ विभौ विशः, विं विशौ विशः, fant विड्भ्यामिव्यादि।

(१७८) मुहां aS दति- नक्‌ नग्‌ नट्‌ नद्‌ नगो नशः, नगं नगौ नः, नभा नगभ्यां नइभ्याभिव्यादि।

(१८५) पेतवाहति sae - पुरोडाः, 2 पुरोडाः 2 पुरोडः, परोडाभ्रौ पुरोडाः, पुगोडोभ्यामिल्यादि।

(२१२) afsfa कड्-र्क a सथो खः Bm ANAT मिल्यादि। ava Tua दष्टषो दषवः, दष्टगभ्यामिव्यारि | षट्‌ षड्‌ षड्भिः पड्भ्यः पां षटसु |

TEMA, भो भगोऽघोभ्य इत्य भगोमाव्रिध्यऽपि सामान्य भो-ग्रहणाधस्तन भो हताः भो भ्रमराः भोयमराः इत्यादौ स्यात्‌ Aa Hagen नेच्छन्ति at गेषं गरौमहटिति-(२) gaara स्मन -डवतुप्र्ययान्त.भवत्‌-ण्दस्येव ग्रहण मिवयङगम्‌ | श्रतएव Naa: पूर््वोदाष्रतः |

।>) मंन्चिप्रमरे मुबनषपाटे pen एत्रद्य एतत 'खव्ययोऽपि भोः MRM, तेन भौ arya wt za यन्नद्त्त famfaar: | तथाच भाष्यम्‌ - waaay भोः शा, नपा भवत पर्वति रि क्रम "भगोः aE WN ब्द aA चत

दषन्तपुलिङ्ग- शब्दः | २०७

२२८। सषेसुस्‌-सजुषड्धां TS HST (सष-दम्‌-उस्‌-सजुष्‌-ग्र्वां ai, TE ।१।, Hor, WH ६।)। सस्य खाने जातस्य षस्य इसुसः सजुषोऽद्ृश्र रङ स्यात्‌ फे

परे, नतु क्षान्तस्य | २२६९ व्यनच-तयोको धोर्घोऽकृगकगोऽखेः | (fa ॐ, श्रनच्‌-तयि ॐ, इकः 21, धोः ६।, घः Ul, WHT दुरः ६।, श्रेः ६।) 1

धोरिको घः स्यात्‌ fate a, नतु कुगगेः, नचसेः, नाचि तये a)

प्रिपटोः पिपटिषौ पिपटिषः, faustat पिपदीःषु। एवं चिकौष्पदयः।

२२८। सपि सस्य षः सषः, ATT इय सजय TET तानि तेषाम्‌ नत्त अरन्त तस्य। दस्‌उसौ aed, सजुष्‌ प्रक्षतिषान्तः, श्रहन इति नञपृत्वै हाकोऽब्रन्तः |

¢

२२८ व्ये रच वच तत्‌ तस्मिन्‌, तासौ यचेति तय, wa तयच तत्‌ अच्‌ तय, श्रच्‌तय waaay तस्मिन्‌ कुरच Fla तत्‌. तत्‌ Maret तस्य खिरखि स्तस्य | (१) पिपटोरिति ant रि अनेन घः। एके तु दान्तेत्वात्‌ Saatfasl इमन्तला- सेन्या व्यवरस्यितं, तन्मते भगो देषदत्तयत्नदृत्त विष्णभित्रा vanfenaay fa aaa गोयोषन्दरः |

(१) Smaart रेफ वक्षारेचद्ति वक्तव्यं afeta TUR तत्‌ पिं इत्य यनवतयोत्यनेन क्रमसब्वन्धाभावाधे भिति ARIAT: |

२०८ HUANG व्याकरणम्‌ |

दोः दोषौ दोषः | (११७) पाददन्तति दोषन्‌ वा| दोष्णः दोषः, दोष्णा दोषा, दोषभ्यां दोर्भ्यामियादि।

(२१४) wre: at रोपः। विविट्‌ fafas विविक्तौ विविक्तः, तिविडइभ्यामिल्यादि।

पिपक्‌ foun पिपक्तौ पिपन्नः पिपगभ्यामित्यादि। एवं गोरक्‌-दिधन्तादयः।

सुपो सुपिसौ सुपिमः, सुपौभ्यां, सुपीःषु एवं मतुः

विदान्‌, विहन्‌ विहांमौ विदहांसः, विदां सं fasted |

Be sary: तन्मते विकी saa गत्‌ सस्यति मनोपैरड्‌- fuatwe विरिति तदसत्‌ मधपैसुम्‌ मजुषङ्ामित्यत्र सपोऽ awa निरथ्रकलापत्तरिति। sana तु cfs at दति पूनैगेफ- लोपेऽपि रादरङ्व॑ज्नात्‌ विः,१) दिवमिच्छति दिव्यति इत्यत भूतपूव्मैनित्रमाित्य घः। श्रनच्‌-तयौतिकिं -गिरौ गिरः (२) धुरं वहति ya इत्यादि श्रकुर दुर इति किं--कुखात्‌ ष्यात्‌ | ्रस्रिति किं--विव्यतुः। Wi fe aft: धनुरित्यादि।

(1) ga (sc TST frais सतख टोकायां “fei स्यन्‌ तु acifefa जिधाना दिति wave दर्णा समतेक्वाक्यतयाद्यामि स्तत्र ।२) विद्धि टिप्पनी इता | वस्तुतस्तु TH वरिःमुप्रोति aa cauifefa प्रोथ, तनरातिपरथ्य Teta विरिद्येव तकव्रागोगख्यागयः। तए TEE As नादतविर्नयिनतम |

>) नथकार-माहवर्यादत्र यच प्रत्ययस्वर, तेन मारगरः UTA: पिपदीरोकगः mitral प्यारा दोष द्याद तति दुर्गादासः | जअन aie fa ATV fafa Hye. |

इसन्तपंलिङ्-शष्टः २०८

fafafsfa क्षान्तवज्ञनात्‌ ce. एवं लिलिडित्यादि (१) पिपगिति षढान्यस्यान-जलात्‌ कलोपः गोरगिति रच्चवज्ज- नात्‌ कनोपः। द्विधगिति दादे ₹स्य घत्वे घस्धानजतवात्‌ HAT | दन्यमान्तस्य उदादरणमाद टोरिति। ce qe

नतमिति कचित्‌,२) ; aa, दोभानित्यत्र उलापत्तः, तान्तसान्त-

(१) ma "परे तुरङषार्‌ प्रति षल्वद्यासिङत्वात्‌ faat लिनः); wets: ayfaaifrarg frafan पाठः|

२) ware eatenn—aticfa ey दूमनन्तेणण caraq fafa wat वाच्य मनापाद्रित्वादरकारस्य ओकार अम्बह्ारट्िलयान्‌ पर्वे सर्पेति TS TANS aH दमम Kelaticeadea द्मधोडामि ठति मान्तोऽय्मिति म्या मने ए; मोरग्‌ द्िघन्नादय द्रति पानगरद्धोदराहरणाननरं Dene मृद्रहूनशन्‌। aaa टोप्रानित्यादौ canfwyq टभितान्‌ खतो- खन्‌ न्ये तक्रबागीगमतानुसारेणाम्य सले aaa सच्चिव्रो युक्तः| न्वत ब्धा मनभट्मानःका नास्माभिः प्रचरतृपडतरुक्ञद्किता। तत्र दुगादास॒मतं प्रागेव दभितम्‌। ^

भिद्धान्नकौमद्यां ' लुभ्विसर्जनीयगर्वयवायेऽपि ` icy. pac दूति BAR त्तो “zaete, डत्वसामर््याट्िनोपः, पल्व्यासिङतवाद्रत्वविसर्गो ` CUT | एतन षानत्वमस्य प्रतीयते| |

कातन्ने चत॒षटय्त्तौ “मुर टोषां घोषवति रः" दूति २०) सूत्रस “CRATE जसन्तस्य Wa nay att भवति पोषवदूषिभक्गौ xfa ठन्नौ सानोऽयकक्तः ( घोधयत्‌ dat waa हवसन्नासमानार्था)| षल्वापत्तिषारणाय aq से fafea: | तथाच "घोषवति CT ware ie Ct भवतीत बयादसिबलाद्द्य प्रतियोगी free: साधितो wafai सपि way दोःषिति।| अन्यथा eter धनेरुम Taste द्रति प्राययस्यन्यात्‌ षत्वमे¶ ख्यात्‌ विसर्गे हते परते परद्धपं भवतीति ust |

संशिप्रषारे भुबनपारे we Baa et ‘IN Vale "ति fognta स्यानि- Bq. Nazi पान्तो eva |

%

२१० सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

२३० वसो वः RAAT: | (वसोः €।, वः १, Ba ।१।, श्रपि।१।, उः १।,मतुप्योः 9॥) | वमो शब्द्‌ दममहितोऽपि उः स्यात्‌ मतौपौचपर। विदुषः fagat (१८४) सखस्ध्वस्‌वस्विनि ex) विदरद्मा- firarfe | fear पचिवांसौं पेचिवांमः, परचिवांसं पैचिवांमौ पितुष, पै बुषा पेचिवद्गामिव्यादि जगन्वान्‌ जगरनवांसौ जगन्वांसः,

जगन्वांमं जगन्वांमौ aaa तब्रिमित्तस्यं (१) नस्य मल -

योरेव दत्वनिप्रधात्‌। दोभ्यामिव्यादौ तु सस्य at aa सिचिोवे sfa रः सुपौर्ति सुपूत्भात्‌ पिम्‌ कि लिपि इत्य्मात्‌ किप्‌, दसन्तलात्‌ fs a: | एवं तम घ्वान सुतः इति

२३० quit) इमा मह वतमानः सेम्‌। aga पिथ तौ तथोः। श्रपिशब्दानु केवनवमावस्यापि ठः, तन विदुषः

विदु्रान्‌ दलयादा स्यात्‌। aaa शवयादि- निमित्तापाये

भरतमेनेनापि स्वत तरोभव्याक्ररणद्य “TAIT CEM: शजगङ्गोखच फे ry’ दति सूतररीक्ायां “Sfcfs दमधातोपैणाट्क्होम, सभयोस्तु पटानव- टि्यातिरदेगकक्ायग्य कंविहममिदारात्‌ पत्य, तत मब्यस्यने ज्ञातव्य गस्य रहः, ततः विनोपः, cefagy न्यायस्वाकः णमिति प्रथमं सिनोपः। fx at समयोः मधप fama: | टोषाविनयाटौ षय wre दधुनैवता पानमानपत्तहवमेशा- त्रितम्‌ रोषथन्ोटाहरयन्तु vefrurangae विविक्तणद्धादिप्रयुदाहर- Waa प्रद तक्घत्रागोगममातसानप एथ ae रोचते एति भङ्गयन्तरण efaatafa एकि

(oy wuranrct नि्भिन्तंयखसतक्च | धोमानि fa But मथन विधानात्‌ |

हषन्तपंलिष्क-शब्दः | २११

२२१ इन-गम-जन-खन-घसामुङलोपो ड- ऽच्यगो

(हन-- घमां el, उङ्‌ ।६। नोपः 2, Wa, अवि 9।, श्रगौ O1) |

एषामुडलोपः स्यादणावचि, नतु

नग्मृषः. जग्मुषा जगन्बह्यामित्यादि एवं जग्मिवान्‌ |

(१६५) ग्रधारिव्यक्गः, ofeq सुहिंमो af¥a:, सुदिन्‌भ्याम्‌। ध्वत्‌ AAT ध्वमः, MATA! एवं AT! SHIM, उकथगाः हे VAIN: SHIN उकथगासः, उकयशोभ्याभिव्यादि |

नेमित्तिकस्याप्यपाय इति न्यायात्‌ जगमुष दूति feat श्रत aaafa | :

२२१ AL इन्‌ चगम्‌ इत्यादि च-सः। उडिति qa ata दम्‌ (१)। डः we: तस्िन्‌। भवति णुयसिन्‌ तस्िन्‌ घस त्यत्र सामान्य-घसग्रहणं, तेन घसधोः we श्रादि- स्य uaa सुहित्रिति सुपूव्वत्‌ हिसि कि हिंसे किप्‌, द्दिक्वाव्रग्‌, नसब्‌मष्त्र CIT धुवल्ननात्‌ घेः, BATT ध्वदिति waa-wt: क्षिप्‌, खस्‌ष्वम्‌ इति ee) एवं सन्‌ष-धोः क्षिप्‌, खत्‌

= ~~ "~ =+ ~ = “~ ~ ~~ ~ -- ~= "~~ ~~~ =>

(१) “sala xfa fag उङन्तोपकरणं fergedttus xfs ea एषां wre’ सिति गङ्गाधरः|

= ~-~ ~~ ~--+ = --- ~~~ ~~ ~ -

२१२ qed व्याकरणम्‌ |

२३२। पुंमोऽमृड्‌ घौ (पसः ६।, गरुड ।१।, Wot) | पंसोऽमु स्यात्‌ घौ परे, उडावितो। पुमान्‌ gail पुमां मः, gat पुभ्यामिव्यादि | २३३। & ईशनम्‌ पुरुदंणोऽनहमो घः | (सेः ६।, डा ।१।, BHAA पुरंदरम्‌ अ्रनहसः ५।. ग्रधः £€।} | एभ्यः परसय सेडा स्यात्‌ नतु धः SAAT | 2341 ड-डनौ ओशनमः। ( ध्रः ६1, इनौ १॥, वा ।१।, STAM Ye | उशनमः ute gS sat वा म्तः, SSA) रह उगनहं उशनन्‌ sma, SAAR SAAT | HAS, FAAS, BAA WATA: | णवं YHA | वधाः, वधः, sant वधमः द्रवयादि।

(१८६, ग्रधोरिवुक्रः, सुवः Baal |

२३२। uni डदन्यस्य विधानाघ्रः। उदित्‌ नुग | पुमभ्यामिति समि टान्ततात्‌ वा यम्‌, तन पुभ्यामिव्यपि

२३३। सड उग्रनाच पुरदंशा श्रना (१) तत्‌ म्बात्‌ डिच्चात्‌ टिनापः।

zag) धः। डय saat (२)। इत्‌ टिनोपः।

1) श्रना SATS | RANT ys | BART कानः। (=) aad मन्तोधने CUayla TRU मामं तधा नान्तमधाषटनम्‌ cfa|

era fae: | २१३

२३५ Wee: सेरौ; | (श्रदमः ५, सेः ६।, रोः ei) श्रदसः परस्य सेरौ: स्यात्‌। WaT .२२६ मात्‌ स्वर्घावुस | ( मात्‌ ५।, AY १।, उ-ऊ en) Meat मात्‌ परौ खर्घावदूनाव्ुनः श्रम्‌ २३०७ एरौ व| (एः १।, ।१।, Aon श्रदमा मात्‌ परो बं निष्पत्र एकार स्यात्‌! भ्रमौ, प्रमुम्‌ WMA! (१२४) टादमथ्चास्रियान्तुना श्रमुना

२३५। श्रदमः। प्ूववसूवरात्‌ वाऽनुवल्य तस्य व्यवस्या- वाचित्वात्‌ साकोऽदमः सेरोवा स्यात्‌। तेन Waa ग्रसुकः श्रसुक दति। स्वियाम्‌ want agar ्रमुका दइति। क्तौवे WHA VARA We दति (2) 1

२२६ मात्‌ खथ aa तौ, Sa Ha ती। एृथङनिरहेयात्‌ सन्िः। aaa वाऽनुवन्य तस्य व्यवस्था वा चित्वात्‌ श्रसुक Twa सादपि sare: |

2201 एरो एरिति किम्‌--ग्रमूः fea: श्रमूनि कुलानि श्त्यादौनस्यात्‌॥ FA

इति हमन्तपृलिङ्गपादः

(१) “Mag सेन्‌ aa नङ्गन तनेति निषेधात्‌ wet तदोरित्यख दोभो- Seam quryt ae: wea: कुलमिति gaigra: |

२१४ AA व्याकरणम्‌ |

TI प्रमोभिः, WAC WIT भ्रमोभ्यः, WAM TPA श्रमौभ्यः, TAT AAA: भरमोषाम्‌, श्रमुमिन्‌ भ्रमुयोः TALS |

दूति दइमन्त-पंलिङ्ग-पाटः।

हसन्त-व्तपैलि द-गशरष्दः | २३८। नहा धङ्‌ भौ ( नहः ६।, धड़ ।१, भो ७) | नद्धो इख धडः स्यात्‌ भो | उपानत्‌ उपानद्‌ उपानहौ उपानहः, उपानहाम्‌ | (२१२) चडिति कड | उशिक उणिङौ,उण्णिभामिव्यादि। २३८ fea ate सौ (दिवः ६, ग्रौड ।१ i मौ ol) | दिव ute सात्‌ at ot) यीः; दिवौ fea: |

२२८। ART) धकारेऽकार BAUM, होट AE बाधकम्‌ |

२३८ fear गोणेऽपि श्रयं विधिस्तनातिद्चौरित्यादि। साविति विषयतो, तेन farmer दिनमिल्यादौ स्यात्‌ (१) |

(१) “अग्यन्नोऽयं द्विशः were | क्रिबनश्य डोः aifaafe यः दरुवािय।दृ ति मधुखदनः। ' द्यौः wa: | दीव्यतीति किप, danger ve ट्‌" दति गङ्गाधरः| विषदा xa विषा द्यो atwlafa वाका

CARA सिङ्क-ग्ष्ट्‌ः | २१५

२४० | वाम्या | (aries, what 1, wre ten) fea are wrq ar भ्रमि uti यां fea fear दिवः, feat! X21] GRAS! (उ-हसि 9, oe ।१।) दिव उड स्यात्‌ samt हसि परे। दुभ्याम्‌ गोः fat गिरः। एवं पूः ( १५८ ) feat चिचतुर इति चत | चतसः aaa: चत- सृभिः चतरूभ्यः Ae: WET TAT | ( १२४, २५० ) टेरतवे wea) का के काः इत्यादि, सन्मा- वत्‌ | एवं यदू (२०४) ददमोऽयमितौयम्‌ | एयम्‌ दमे दमाः, दमाम्‌ द्मे दमाः, WAIT श्राभ्याम्‌ श्राभिः, अस्ये TATA श्राभ्यः, TAT:

२४०। वा। पूव्यैवहौगेऽपि, ga अतिद्याम्‌ श्रतिदिव- मित्यादि (१)।

२४१ BRITE दय तत्‌ तश्षिन्‌ | वैति नानुवन्तेतै, ata नो लुज्वाधौ इति वाग्रहणात्‌ (२) उवं यथा दिव ae ag

fawafer wage गोगत्वेऽपि arfafa पिषयसप्रमोविधानात्‌ मेलु्यपि aera विमनद्ौ इति स्थिते ata a xfa Be |

Q) “समानाय्य ange द्यामिति सिद्धेऽपि waaay qateratg: Cratfefa faq | वस्तुतस्तु तत्र | अमृश्सोरिति सति) wees गहणम्‌, aaa गोणख्योरिति wz: तेन अतिटिव cee अमि अतिद्याम्‌ खति- दिवम्‌, aa ठु अतिद्यो cme खतिद्यावसिति गङ्गाधरः|

(र) विमाषाहयमध्यव कित्वात्‌ निव्यतवमिव्य्धः|

२१६ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

शराभ्याम्‌ WNT, WAT श्रनयोः Way, WAT भ्रनयोः ag |

सक्‌ सरजो सजः, ARTF |

( as, २५० ) टेग्े प्राप्‌ Bra ar safe, मन्री- वत्‌ एवं तद एनद्‌ |

वाक्‌ वाची वाचः, वाग्भ्याम्‌

अरप गरदो वान्तः। (१६५) नमव्‌महव दूति घः। भ्रापः, प्रपः।

२४२} भ्यपो SS | (मिञ), श्रपः ६, दडः।१।)

mot TS स्यात्‌ fy at 1 श्रद्धिः ART: ब्रह्मः श्रपाम्‌ WIG |

fea fest fem, fenarfarrfe | एवंदहक्‌।

विट्‌ लिपौ feu, fagenfaanfe |

मजः HAUT मजुपः, मजभ्यां मजुःपु एवम्‌ श्रागोः | 2 ) nm ८९.

यूव्रतिरिव्याटि | उ-माहचथात्‌ gata दान्त एव तन दिवि भवं टिव्यमित्यादौ स्यात्‌ (१).। दययन्नमिव्यादौ तु स्यादेव |

२४२ भ्यपः। टेऽकार उक्चारणाधः, डः इत्‌ गौगेऽप्ययं विधिम्तन वहमामिनचादो स्यात्‌ श्रधिक्ारात्‌ wea, तन Wi भारः WAIT इत्यादौ स्यात्‌ मनुरिति qa: क्षिप्‌, जुपा सदह वर्तमानः सनः, the व्यनच्‌तयौति धः। प्राग

रिति sreqea maa: faq तस्मिन्‌ इङ्‌ एत्‌, दानलात्‌

नद aartafa दानवनिषे वात्‌) SH_ ART ‘sre परं ठाने

स्थितस्य शव्यं भम्मयम्तत्‌माह- चर्यात्‌ vite दानस्य दति।

AAA लिङ्ध-शब्दः २१७

(२२३५) Wea: th | श्रमो भ्रमू अमूः, ्रमूम्‌ भ्रमू श्रमूः, ग्रमुया त्रमूभ्याम्‌ ब्रमूमभिः, अमुष्य श्रमूभ्याम्‌ अ्रमूभ्यः, ्रसुाः AUT श्रमूभ्यः, श्रसुयाः AYA: WIA, WAIT अमुयोः wa |

इति हसन्त-स्तोलिङ्ग-पादः।

षत्व, THAIS, व्यनच्‌तयौति घः | श्रयं मूरैन्यान्त दृति केचित्‌ (१) aa, स्रोत्वाशोहिताशंसादिदंष्योरिव्यमरकोषादौ दन््यसान्ते पाठात्‌ oe

दूति सन्त स्वो लिङ्-पाटः ye

(१) "आङ्पूर्वात्‌ ae a लु शासने एवयद्मात्‌ fafa wtgfegae cada ATAITS दकारे Wee MWS पटानत्वाभाव शासवसषसेति षत्वम्‌ ततो जिङ्गसंन्नायां खादेरत्पत्तौ स्य जातख ve रडः खात्‌ | wavy war साधयित्वा एव्ला्ोरियाह। अन्यथा इूसन्तत्वेनेव रहः सिद्धे पणिनिकातन्तयो श्थरगाशायहणमनथक खात्‌ | दगसिं होऽपयषम्‌ | श्रीपतिदत्तोऽपि सज्ुषाशिषोस्तु Feary SHUN रेफ द्याह | ननु गिभक्तातन्नेराटौ षत्वशखत्पमप्यास्ता मिति चेत्‌ wal, areal wet पष्ट णातोति Quai, ग्ह्वातोति सडोव्यारौ दोषा Wa Caley THIET मृद्धन्यणकारस्य एधगयदणं गौरवं खादिति विभ- ayaa रादौ wel क्रियते केचित्त विष्णो वेषाः स््लोताोह्हिताशषाहि- Cea ' रि्मरसिंहेन दन्यान्तम्ये पडितमाथोः धन्यं मत्वा आोरव्याठौ Lear Met रङः _ Kate fcfa दुर्गाहाषः।

रष

२१द सुग्धक्रोधं व्याकरणम्‌ | इसन्त-करो वलि इ-गब्दः |

(eae) स्यम नुंगिति। (yes) सखसध्वमवस्िति TE स्वनडुत्‌ खनडहौ ( १८२ अनडुक्तुरोऽणागाविति। aasife | एनम्तदत्‌ | शेषं पवत्‌ चलारि।

AST |

2431 mld al नुवा घौ,

(att 9. नः ६।, लुप्‌ ।१।,.वा।१।, धौ 9) |

नपुंमकर नम्य नुप स्यत्‌ वाधाप्प। Faw ब्रह्मन्‌, ब्रह्मण ब्रह्माणि | ग्रहः रङ्गो रहन) अ्रहानि, अहाभ्याम्‌।

किकंकानि। इदम्‌ द्रम दमानि।

waa wast wafy, ब्रमानि wafs, wal रर्जा श्रसम्याम्‌ ब्ररूमामिनादि।

ऊक sat ऊन्‌जि ala) सुवन्‌ सुवन सुवन्‌लि स्वलि

( १६४ AMARA भमन्तरनयारादौ तु वा AT

उकारनो नु चिन्मात्रस्य ना्या |

त्यत्‌ aia | एवं यत्‌ तत्‌ एनत्‌ (२१०) Waal तु

एनन्‌ गवाक्‌ गोचौ गवा्चि। fara facat fafa

२४३। MT) प्रप्रा विभापयम्‌। afranfe—aawa इतिवत्‌ विन्हागमसन्ददनिरासाधमि-

हमन्तक्तोवलिङक-शब्द्‌ः | २१९

एवं at) यक्तत्‌ aant यक्तन्ति, यक्रानि यक्षन्त, यकभ्थां यक्घद्भयामिव्यादि | एवं AT ददत्‌ ददतो | दः ग्रत नग at २५४४। देः णतु नुग्‌ सौ। (द्रः ५।, शतुः et, नुण ।१।, भौ 91) | देः परस्य शतु am स्यात्‌ a Mat) ददन्ति ददति। एवं HAL जाग्रदादयः। तुदत्‌ ` Pay आआदौपोः। (ara ५।, Seat: on) RINT] परस्य गतु AM स्यादा Tat ईपि परे

तुटन्तौ तुढतौ तुदन्ति भात्‌ भान्तो भातौ भान्ति पचत्‌।

टमुक्तम्‌ | गवागिलति--एवं गोऽक गो अ्रनित्यपि। एवं पर इति - अरमुसुयक्‌ ब्रमुमुचौ ्रमुमुयद्चौव्यादि 1,

२४४ इः श्रप्राप्त विभाषेयम्‌ |

२४५। MAL ईश्च ईप्‌ at aa वाशब्दस्य व्यवखा- षाचिलात्‌ स्यव्रन्तसामान्यस्यापि, ठन भविध्यन्तो भविथतीत्यादौ वानृण। तग्रा -याखन्याः प्रियभवनं TERRA, अव्याक्षेपो भविन्त इति प्रयोगाः (१) |

(१) प्रकरणात्‌ दति क्षोवद्यैष | अन्यथा तदम xe तुदतीयं इृ्याटायपि प्रषक्तिः खादिति गङ्गाधरः, कऋव्रारेराक्ारनोपेऽपि स्थानिरच्चात्‌ क्रीणन्ती क्रोणतोग्यादि इ्यप्ययमाह | Hida AAAI १०८ Garena करोष्य- तीति प्री |

२२० सुग्वोधं व्याकरणम्‌ |

२४६ | अयनो निलयम्‌ | ( Waa: ५।, नित्यम्‌ १। ) श्रपो यन परस्य शतु नित्यं am स्यात्‌ ई-ईपोः प्रमो; | पचन्तो पचन्ति | Stary दौबन्तौ टौव्यतन्ति | खय्‌ स्वपौ ( १६१५) नमब्‌महन्राऽ्धो घः। aif, खपा ( २४२ ) भ्यपो ees हिः (aac) सपेति रङ्‌। धनुः धनुषो wife) एवं हविः | पयः

पयमा पयांसि, पयमा पयोभ्याम्‌ | we: way wala) प्रौवत्‌।

इति इमन्त-क्गो लिङ्‌ पादः |

२४६। ATL ATA यन्‌ चतत्‌ तस्मात्‌ पूय्वसूव्रात्‌ वाऽनुव्य तस्य व्यवग्ादाचितवात्‌ विच्छायन्तौ विच्छायतीत्यव् कन्य (१।। भ्रनायन्तात्तु तुदरादित्वात्‌ गे विच्छतो विच्छन्तति ita विकल्यः। खवरिति sitar आपो यस्मिन्‌ तत्‌ ब्रन्ायां

नाऽकारस्यः (२) #

इति हसन्त नपंमकनिङ्ग पाटः

र्गादरासस्तु fae a गतो cae frengiare ara cfs arava wf famiaaifa fanfare | 3) argtat waftfafayata प्रयपपुर्‌ tarda a nay खदिरः

अव्ययग्रब्दः | २२१

अव्यवशन्द्‌ः |

२४७ ATR त्तेः (व्यात्‌ ५।, AA ।१।, लेः él) |

व्यात्‌ परस्याः HAH स्यात्‌ खः प्रातः चवाहा | Te sua; धिक्‌ धकित्‌ प्र परा हरिवत्‌ war |

289] व्यात्‌ व्यमव्यवम्‌ अव्यक्रलिङ्गमित्यथः। श्रव्यक्त- लिङ्गात्‌ नपंमकलव प्रतिपादितम्‌(१)। एतेन शास्वान्तरे भ्रव्ययस्य aaafaud व्यधमिति। व्यानां लिङ्गक्लतप्रयोग- amar श्रलिङ्कत्वमिति वायम्‌। युषरदस्मरदोस्तदभाषे- नालिङ्गत्वे तदिशेषणानां विलिङ्गत्वानुपपत्तः अतएवोक्तं डति. व्यष्णान्त cafe | तथा `पटमंन्नकास्तिषु समा युखदस्मत्तिड- व्यग्र"मित्यमरः (२) व्यविशेषणानां तु ल्लौवलेकत्वे एव “क्रिया- व्ययानां मेदकान्येकलवेऽपि" (2) इति क्रौवलिङ्गमंग्रहे ्रमरको- घात्‌। तधा सनातनं स्वरपि येन मनोहरमिति | लुज्‌कर- णात्‌ श; द्य इत्यादौ भ्रत्रसोऽधोरिति घः

(+) सामान्यलात्रुसङमिषुकेरि्यथेः | aga “wed fay लिङ्गेषु wag 4 विभक्तिषु | sete स्वेषु ag ofa तदव्यय सिति aq aia पिशेषद्पं प्रपरोति तद्व्ययमिति। विभक्गिष॒त्पाद्यं menace प्टृत्याथेमिति |

(a) कमरकोषे निङ्गारिरु पहर ्डानिमा कारिकेयम्‌ | अखायः-संख्या- वाचकानां ष-नकारान्तानां कतिशब्ट्ख षडिति मन्ता, तचाच TAT: षट्‌ कतिचेति परष्त्रम्‌। ते fay समा fagaafetacigat cee: | तथा ay दशमत्तिडन्नमव्ययड् fay सममित्यधैः।

(१) क्रियाण्ामव्ययानाद्ध भदक्षानि विेषणानि एकतवे, खपिकषारात्‌ क्रीते afc: |

२२२ मुगवोधं व्याकरणम्‌ |

२४८ उदः सः TAA: |

( उदः ५, सः ६।, यास्त au) |

उदः परयोरनयोः सस्य लुक्‌ स्थात्‌ | उलयानम्‌ उत्तम्भः | २४९ वातोऽवापयोः |

(वा ।१।, ग्रतः ६, श्रवाप्योः ell) |

ग्रवाप्योरकारस्य नक स्यात्‌ वा। वगाहः श्रवगाहः, पिधानम्‌

श्रपिधानम्‌।

मौगानुकरणय्ाः व्यात्परम्याः क्ते नक्‌ नस्यात्‌ गौीगा- नुकरणयोः। प्राप्तं स्वयम्त maT, श्रति्वरो नगाः, प्रात, gig) अनयोः किं- परमञ्च तत्‌ खथति तस्मात्‌ WaT: waz द्रति,

२४८। उदः। TT स्तनय तो तयौः। मिंहावनोकित न्यायेन वा-ग्रदृणात्‌ तस्य व्यख्यावाचिलात्‌ Heed THAT, (१) तन BRUT नाम रोग द्व स्यात्‌

२४९ ata | way श्रपि्च ती तयोः त्रभिधानात्‌ wae ada गावेव, wT धाजोरेव श्रकागलुक्‌. तेन वत- रति श्रनरति, वतंमः Wades, वगाः श्रवगादः, पिनइम्‌ sfaad, पिधानम्‌ अपिधानम्‌ इव्याद्र स्यात्‌| नतु अ्रवगच्छति

श्रपिज्नयति carat श्रवमादचर्यात्‌ गिसं्नसया्पेरव, तन विप-

रोगधं खन्द्धात)रपि सनोप Kaa: |

BH! खादयन्ताध्यायः। २२३ waa: |

२५० स्वियामत अरप ( स्विधाम्‌ ol, WA ५।, ATT ।१। } | स्तोलिङ्गे खितादकारान्तादाप्‌ स्यात्‌ | मेषा, म्वा | afa धास्यति, त्रपि नह्यति afaafaanet स्यात्‌, गर्हायां गिल्वामावात्‌ एतत्त भागुरिमतनोक्तं, तथणाच-- वष्टि भागुरिरन्नोपमवाप्योरुपमगयोः | टापन्चापि इनन्तानां ज्ञुधा वाचा दिगा भिरा॥ इति <n

दति व्यपादः ‰॥

दूति इमन्ताध्यायः समाप्तः We

२५० स्तिया स्तियामित्यापादमधिकारः। श्रत दृत्यनेनं लाच्णिकादपीति, तैन स्या सा इत्यादौ wae स्यात्‌। तटाद्रोनान्तु यदा wie विवच्छते, तदेवाबादयःस्युः, नतु एंसवक्तौवत्वविवच्तायामिति आवादयसु साधुल्लाधमेव विधी- यन्तं मेप्रेति -मे्ट मेधायाम्‌, wena सेमक्ञात्‌ सरोरित्यः, Tyrer (१)।

(१) faytat स्तोत्वपिवक्षायां खाद्युत्यत्तेः प्रागेव यथासम्भवमाबादयः खः। त्यदादोनाम्त टेरत ब्रत्यात्रिति खयस्करम्‌।

२२४ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

९२५१। हसाहा। (सात्‌ ys, aries) t स्वियां हसन्तादाप्‌ स्याहा वाचा वाक्‌, fem दिक्‌। २५२। मनो डाप्‌ | (मनः ५।, डाप्‌ ।१।)। feat मनन्तात्‌ डाप्‌ स्याहा। सोमे mart, पामे पामानौ | २५२३। BIT (Fo, way)

२५१। इमा यदपि मामरान्यनोक्तं तधाप्यभिधानादिशेषता way तन-

“gar वाचा दिगा क्र्वा विपाशा स्रजा Sar | गिरोशिदा देवविशा पत्ते भुदागदिगादयः |”

Ize श्यवसख्यावाचित्वात्‌ क्चिव्र स्यात्‌ फचिब्रियं तन, हिपात्‌ वरिपात्‌ चतुष्यादित्यादौ स्यात्‌। हिपदा, त्रिपदा, चतुष्पदा (१) winrar ऋण्विषये नित्यं स्यात्‌ (२) |

२५२ मनो मवरित्यनधकस्यापि ग्रहणम्‌ तैन Qual सुधर्माणं ममे, agafza agafzarat स्वियौ तधा रामा- यणे “स्वभावयंव नारोणामेषु लोकेषु दृश्यत विर्हधश्मायपना भ्राठभदकरः faa.” |

२५२। ह। वागन्दस्य व्यवस्थावाचिलयात्‌ डावभावपक्तऽपि

(1) 298 मात्रव्यटोक्गाद्ररया।

(>) “कथिदङ्ल्पनेतटिन्कति। हिपदी fever दिपाहक ' दूति रंचिप्रमारे तर्बितयाट्‌ ^ GAG टीकायां गोयीचन्द्र: |

Met | २२५

faat 2 दितादनन्तात्‌ डप्‌ eet! बहुयज्वे षु- यज्वानौ २५४। इपर चाम्व्यात्‌। ( ईष्‌ ।१।, ।१।, भ्रम्बस्थात्‌ ५। ) | मस्य-वस्यान्यपरादनन्तात्‌ 2 खितात्‌ स्ियामोप्‌ डाप्‌ स्यादा | वदहुरान्नी TRUTH बहराजानी | २५५। काप्यनाशौरकैऽदिदयत्तत॒च्तिपादेः | ( कापि 9), श्रनाशौरके 9, श्रत्‌ ।१।, इत्‌ ।१।, भ्रयत्तत्‌- त्तिपादेः ६। }

्आावोपोनिपेधः। तैन बहुयुवानौ सुमघवानौ पुथधावित्यादौ स्यात्‌ | किम्‌--श्रतियन्वानी |

२५४। द्रैप्‌। मच वचम्वं, wy तत्‌ स्येति au, म्बस्यः भ्रम्बस्यस्तस्मात्‌ तुल्यविषयत्वाद्यतानः सदानोऽल्लोप qaqa विधिस्तन aeqar पूः, सुमघवा दीरिव्यादौ स्यात्‌, श्वयुवमघोनेल्यादिनां पावुलेऽल्लोपाभावात्‌ | बहु watt पुथावित्यादौ मन्‌संख्येति ईपएनिषेधः, तस्याद- विषये चरिताधलात्‌। तथाच तनुमवजितनोकपालधामौमिति। पते बहुमोमानौ agaia इत्यादि वहुराक्नाविति बहवो राजानो ययोनगर्य्योस्ति इति वाक्यम्‌, एवं TEAM ayaa बहु- तक्ताशावित्यादि।

२५५। काष्य। कादाप्‌ काप्‌ तस्मिन्‌, atfafs wa:

Re

२२६ सुबोधं व्याकरणम्‌ |

ग्राशीरर्थाकवजं कापि परे रकारः इकारः स्यात्‌, नतु यत्‌-तत्‌. faara: | सर्जिका कारिका | ants तु ज{वका। ASTRA

"यका सका, लिपका Waal चटका।

्ामोरकः मान्ति ्राभौरक यस्मिन्‌ मः अनाशौरकम्तस्मिन्‌, कापीत्यस्य विशषणम्‌ (१) faq श्रादियेस a चिपादिः, यच्च तच्च fanfea तत्‌, aq अ्रयत्ततृत्निपादिम्तस्थ, प्व waa जोवकेति आगिपौ्यननाकः। fanafa faq. धातोरिजुडलत्वात्‌ कः fara, खां कः पथ्ादाप्‌ | चिपादियथा- सिपक Waal चव चटका धागकष्टका | करकाधित्यका प्रोक्ता चरकोपत्यकडका | अनका TAQ पिटका वासकत्यपि। WEA Ay पितयेग्र तारका भटगंगवोः। वत्तेका NHAT UAT वग्मदे वणका। अर्य प्रक्रतिकाः२) मत्व नरिकामामिक्र विना। uy faa—ufear तारिका वर्तिका वगिंका। कुन afaxata कथित्‌ | ग्राक्लतिगणोऽय्म्‌ | () अतर मून अनाशरकै दूति बद्टोकाङार-सममतः पाठ | RATHI तु अनागोरक्रङ दृतिषाटरं सला आगेर्कथ्यक MT aR: नास्ति श्राभार्कको

afafafa faqe ठतः. जन्तु atte य्चागोरमो afafata वात्र अनागोरकै caaaaefagcariuacttang |

ts) QR ar -~ ether चयप्रज्रतिः प्र्ययम्वङुपः ककारं यणा area! बद्धाः पठनिककारयुक्ता La fauret vat yy | पूवा जिन्न fn wer

Me: | २२७

२५६ | देषसूतपुकन्दारखन्नाजभसखाधुतयक्ोरवा ( देष धुत्यक्योः eu, वा ।१। ) हादर्घयवजयो; HAMAR इकारः स्यादा कापि दिके दके, चटकिका चटकका, भ्रायिका way t

धुत्ययासु नाविका क्रलिका।

२५६। दष YA al, नतो ब्रभुव्यौ,कचयच तत्‌,

अधुत्ययोः क्य, WA A, एषश्च, सतश्च, Yas, BRIT, खथ WA, AAT, भस्त्रा तत्‌, तच Aya a तौ aa: दिके इति

दनग्यखान्‌ पचारद्लादनि कृरादित्वाटूगुष्णामाज पुत्र aaa सवाध कया | चटका-चट मेदे पचादित्वादन्‌, सवाथ कण | Caza: Wafsy: दयात्‌ तस्य al चरज्ञा aay: | पुमपतये WAT: QI Was Yl Bact: | दटका-द्षधोनाम््ोति तकः। कर्षा WHY Ta: | AMAA ्यख्माद्नाम्नोात्यकः। अधिन्यमा उप्रन्यका अष्यु- पाभ्यामृ्खासचयोस्यकच्यमरटोका। एड़का-एड़कोमेष, ‡ड्मते काम्बलिकः ईड डः नस्तुनौ anaes: निपातनादगुण इ्यमरटोकायांभरतः। अद्य अजारि- पाठान्ेष्‌। पिटक्रा fae! पिटक्ञस्विि्यमरोक्त-पिटिकगब्दूख feat कपम्‌ | घामका--वामका सिंहप्योति जटाधरः | बाकम्‌ दरति भाषा | अमरे हु वारिके- त्यस्ति। अरका--प्ितिरि श्राङ्ाशनत्वात्‌ पिसम्बग्धितवे अचरं वाच्येर्सात| सच ग्ाडकानो गौणचान्दर पौप्रमाघ-फान्गुनमासोय लष्णा्टमीद्प fa) afar पितरोऽग्य{मिति anata नास्नोति aang: | अन्यत अरिका-खारोर्पार- wiufang: | तारा dada, aig: कोका! न्यव तारिका टाकोनि काशिङक्ञा| वत्तका- शकुनिः प्तौ | खन्यत व्तिकेति orga: | प्राचां मते वर्चा nafs, उटोचान्तु वर्सिकेति काशिक्ञा। ७।१।४५। गतरएवात्र eae दासेन गक्रनौ वा तु वत्तकेक्तम्‌ | THAT प्रा्रणमेद्‌ दूति काशिका | अन्यत्र विका नटाटीनां बगात्रिभेप्रक्रारिका Tear "सन्यविगेषख व्याख्या Saal चे ' ति तक््वबोधिनी| afeat eat) at कायति कं शब्द, कामयतेवा डः। विकेत्यपि पाठ. | मामिक्रा- मभद्यसितिष्णे बमकाटेयः।

ARE सुबोधं व्याकरणम्‌ |

दिग्रौटेश्वे पश्ादाप्‌ aa Wet wa परशषादिः। एवम्‌ एषका एषिका। एषेति निदेशात्‌ एति इति पूर्वण नित्यम्‌ चटवि- केति चटकाशब्दात्‌ खा कः yfaaarfeat: भ्राथिक्ेति धुभिद्रलाटिव्वी | एवं भ्राठव्यका भराठव्यिका (१) sanfe | नायिकेति नोजधोगेकः श्राप घुवज्ञनात्‌ पूर्वण नित्यम्‌ | राप धयेधोनोपादिलवात्‌ धस्य टः आचा ततः खाये कण्‌ श्राश्धिक्रा | धुवज्जनात्‌ पूर्वेण नित्यम्‌ यथासंस्याभावक्नापनाधं नायिकेति धोर्यकापेणोदाद्रतम्‌। कसय यथा -गित्तां कायति कं शब्दे गि्ताका, शिक्ताका एव fafa इत्यादि afaafa a भवा इत्यर्थ त्यताद्यचिरति लप्र्ययः तनः स्वार्थं कण्‌ एवम्‌ इनयिका ग्रत लिका दाचिणायिको इत्यादि त्य इति स्वरूपस्य निषधात्‌ Z- विका दूरेत्यका(र) त्यादौ स्यादेव | ग्रत खन्नाजानां गौण्यपि, तन वदुखिका agaat, वर्निका tenant, वद्वजिका TRAT- त्यादि | दादौनां फेवनानाभेव (र) तैन परमद्िकं (४) इति पूर्वण नित्यम्‌ अन्येतु नमे सेरिति सूत्रयित्वा नच्छन्ति, परमदकरे परमेषका इत्यादौत्याहः | भस्वका (५) भम्िका इति परगमूतिगेव सिदे भम्बाग्रदणात्‌ faufant, निभस्तका दति गौख्येःपि स्यात्‌

इति ut |

(\' are शब्दात्‌ पेऽ व्य प्र्यभव्य श्तियां Que | (२, श्यन्‌ दूरादेत्यप्र्यय दूति aT aaa: |

३) सपाशत्रयवभिद्धानामिव्यधैः|

४) प्ररमेहेरूतिज्रम्पुधारवः।

Qa) war atg-aaafang, ara xfa art |

सत्यः | २२९

२५०। STATA SATS ( वा ।१।, ATT ।१।, ।१।, Wa: €।, Waar ) श्रापः स्थाने जातोऽकार cere स्यादा कापि, तूक्त CAS गङ्गिका गङ्गाका गङ्गका | उक्तपंस्कस्य तु शिका | २५८। fe tyreaeretty | (23 BW, नङ xy वाह नदादेः ५।, प्‌ ।१। ) षकारेत Calta उकारेत ऋकारेलो नान्ता-दृदन्ता दशो वाहो नदादेख ईप्‌ स्यात्‌ fara |

~ - ~ ~---= ~~ ~ - i -~- ee स, ~~ --- —- a nes cee tears

२५७। वाञ्च चकारात्‌ इदित्यनुवत्तते | SATS तस्य गङ्गिकेत्यादि गङ्ग शश्टात्‌ ala कः केऽकः सख इति खः। पूव्यैसूते भग्वाग्रहणात्‌, भस्ताको, निभस्नाका cay) gfe केति चक्रपुस्कत्वात्रित्यम्‌ | एवमतिगङ्गिकेत्यादि |

RUS ATI TAS Va RA AG, | दत्‌ IU a, az uifere सः नदादिः, पात्‌ fest ऋष्व wey वाद नदादिष तत्तस्मात्‌, णस्त्वं सौत्रत्वात्‌ | भवर शिब्रदादिभ्यः मुख्य एव, श्रन्यस्मात्‌ मौणामौणयोरिति। तेन agarat अतिकुरुचरा वहनदा सुमत्या दव्यादौन स्यात्‌| विदुषो, सुविद्षो (१) परचन्तो, बहपचन्तो इत्यादौ स्यात्‌ स्तनन्धयोति षैटष्टिछात्‌ |

({) शोभना fagtay यखां garfafa | एवं aes प्जन्तो aarfafa |

२३० AUNT व्याकरणम्‌ |

Qye | यथयोलीँपोऽयुक्ग पौ

( ययोः en, लोपः १।, WT ay 9. पौ ot) | इवर्णावणयोर्लोपः VT] TATA पौ पर | (१).- वेणवो वराक | २६० काडाचौी चानालयपयषणााय्य | (I Tt ७), ।१।, भ्रनाति 9], प्रपग्यषास्य eI) |

TUM नोपः स्यात्‌ श्रयाक्क्तौ पौ परे, काड्नरौ

च, नलाकारे। गर्मी

२५९ ययोः ST AT तयोः, 99 fan तत्‌, तत्‌ afaq safe, तस्मिन्‌ ब्रुक्तो, पावित्यम्य fang प्रथग्द- करणात्‌ प्रष्ठः प्रयानिद्यादो स्यात्‌। वे गावीति विष्णुदेवता यसया दवयरथ ष्णः। वराक।ति जधा; षाक; श्रयुक्गो किम्‌ ? ऊर्णायुः रामेणल्ादि |

२६०। कथ यथ faa तत्तस्बिन्‌, पुसं मौ्रतात्‌। भरात्‌ sary तस्मिन्‌ अ्रगुक्गिपाविव्यतुद्रत्तस्यव fanny | गार्गीति गगस्यापत्यमिल्ययं णयः कये गार्मायिनि, इय गा्गयते, चौ गार्मीक्रोति इत्यादि रपे किम्‌ ? मेतयायते (र) | अना- दिति किम्‌ ? areata: वाद्छायनः।

(1) पकात्त उद्रहरणमादङ। TIA, | (x) सित्रद्यभापः सनव तद्काचरतीति इः।

wien | २२१

२६१। Galera तिष्यपुष्यख्य ष्णामतस्य- Bay भंषी ईपि यः। ( सूगागस्यस्य ei, तिष्यपुष्यस्य ६।, Waare €), $येपोः ol, AM 3।, $पि ७।, यः €। ) एषां यस्य नोधः स्यात्‌ Lad): परयोः, aaa पिच मारो श्रागस्तो चातुरो।

~+ ~~ ~~~ ee ---- eee ~ ~

२६१। सूश्च wa तत्तस्य, fauy पुष्यथ तत्तस्य, QUIT AA तत्तस्य, Fay ईप्‌ तौ तयोः, भं न्त्रं, तत्र ष्णः तस्मिन्‌ quae $्येपोः, ति्यपु्यस्य भणे, WA ईपि यलोप इत्यथः सौरोति सूर्यो देवता wat इत्यं ष्णः, ययोर्लोपः, षि्वाट।पि aaa यलोपः | एवमागस्तो( १) चातुरो चतुरस्य भाव इयं ब्राह्मणादिलात्‌ ष्णाः, सामान्यण्णाग्रहणात्‌ aaa यनोपः। एवं aa} भ्रीवितीत्यादि। aatfa—-aarei पूरणौत्यर््रऽयद्‌ भूषणौ ति-मूषयतेऽनया Gaz. विदुषीति- fat ag: कमुः। सरोमतोति-खौरस्ति wer इत्यर्थे मतुः भवतीति-भाधोडवतुः पच दिव तुद-भा एभ्यः शद दण्डो ऽस्या Wee इन्‌ wags ईपि। uname ईप्य- लोपः श्वन्‌ शब्दस्य ईपि वस्य उः। मघोनसुङ्‌ वा पि, पतत वघ्य उः Aaa mat क्रोष्टोः feat ठन्‌ ईप्‌ क्रोष्टो प्रत्यच्‌ शब्दात्‌ $पि भ्रचोऽल्लोपः खस्य घय | Wael पूजायेनन-

(१? अगस्यारेवता अधिश्ाता अदखयाड्विष्णः, efaa fea |

२३२ arated व्याकरणम्‌ | z—aat भूषणौ उ- विदुषो ग्रौमती भवतो (२४६)

अरधयनोनित्यम्‌, पचन्ती, दीव्यन्ती (२४१५) श्रादोपौः, तुदन्ती तुदती, भान्ती भाती | न-दर्डिनो gaat रान्न शुनो, मघवतो मघोनो क-कतीं MIR पन्‌च- प्रतोचौ Wa, तिरवी faagt, मुमुचो श्रदमुर्चो उदोचौ | वाह-भारौरो Wael खेतबाहो श्राद्यहो | नटो मल्लौ गौरो।

लोपः। ईपि तिच श्रसुसुयच्‌ श्रदमुयच उरच्‌-एषां तिरथा- arent: | मारवादगष्दादोपि are: ar at) षेतवाहौति ware वा aa: | श्यति sang: | नदोव्यादि aaa पि णयमव्छस्यति यलोपः। नदादिवंधा-

नद-मह देहं ATT चोरं,

दिव गरौ पुरतट-नट चनम्‌ |

श्रनडत्‌ कोन महदण

गवथ.मुकय-मव्छ-मनुष्यम्‌ |

देहन-गडजं-मच्डप-मण्डं

निष्कन-विकनं पुष्कल-पिण्डम्‌ |

गाह पृशुःप्रव SUT सूच

केकय -एधिवं भाट पिण्डम्‌ |

पाण्डर गोरं पुचतानन्दं

THA HITT AH |

कन्द्र-कदरामनक AT:

बदरा धातक THH-FIA |

स्तोत्यः 222

नाट-मटादृक-मालत-सुपं पिष्यल-वेतम-कन्दल-विल्लम्‌ ्रारट-मारट पट-शुष्कागडं

द्रौण-पुणौ कण्-काकण-पात्म्‌ | तप-गम-काकल-केदन-कवाटं कापातक-पुटमतस.वराटम्‌ | गन्रक-मर्डल-कूट-मूलाट

सूर्‌ -दरौतक--गुई-रूपाटम्‌ | quae विभौतक माकन्दं वेयसि-किंशोरस्तरण-चिरण्टम्‌ (2) | वकर-तनन कुमार-बधृटं

नामनि केवल-(२) भषज-पापम्‌। | प्रारङ्ावर-भाग-समानं (2)

- ~ ^ 0 . रेचकं द्‌वक-भिन्लुकवगम्‌ |

~ -*-~~----- ~ ~~~ ~~~ ~ ~ ~~ ~" -----~~

(१ fataz उधूट शब्दौ योवनवाचिनौ दूति fagraatedt | facet eer gaat at पिन्नारि्टहोपिता। चिर पित्रादिष्टहे खटति, एषोदरारिरित्यमर रोज्ञा।

(२) संप्रसारण नाष्बोतु्रक्तं ' afga पाट्‌ >४ स्तम्‌ ) तत्र केरल दूति। केरनो ज्छोःतिःगमेषश्य नाम| कागिकायान्तु सत्ता ऋन्दमोरिलुकतेम्‌ (४।१। १९; | ्रौवरलेति पाणिनिः ।४।१।३०) केवनो न्ञानभेट्‌ xfa Sieh, सन्यविरेष दति wag: |

(श) omtenag: काशिकायां दन्तरादिदष्यतै ७।।।४०)| mat दूति संशिप्रस।रे | काशिकायन्तु auc दति दश्यते sities’ | समानो टन्दोषिणेषख नाम, दति Malay: |

R 9

२३४ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌

वौखौगोघौटोटो दीव्य स्तोधोपरीदो तौ चोपोष्यः | Rat दौचघजिद्र् भाग्य रजखनी | मामक्रायक्षती (१) शृङ्गः AAPA PART | aa भोनिङ्िगनस्विभौरिकयौन्दाहमानयः। saree faut लिकिः, TTT, - कटाश्मरो, विषाद्यारिः पुच्छः प्रोक्ताऽग्रहायगः। सूक साधम सौधाम-मानामह पितामहाः | युधाधिकार-नव् कुण्डनाटव माठनम | उपमानात्‌ पत्तपुच्छाद्वत्त राद्धिणरेवन ऋष्यादिपञ्चानां जातिवाचिल्वऽपि युडलात्‌, पिगङ्गाटरित्- याणां ववाचिव्वेऽपि ब्रन्तादात्तलात्‌,गष्कुनादकपश्चागता जातिः वाचित्वऽपि निचस्तौतवादप्राप पाटः। द्रौणगद्धाऽस्बवाहन्यां HEN WATT नित्यम्तानिङ्गः | अवय्रस्यपि तरण तनन वयन्यः पचगाःतर afeam:, तथाच सुना दुहिता guifa fanny: | wad काोसप्यादौनां पाटः। प्रौन्दाहमानिमी fafe प्रानन्वि्रोहादमानि Saat णायेडवाधनाथ्ः पाठ; (३) |

भौरिकि. भौलिक्योः क्रौद्यादिपाटात्‌ (६) भारिका भोनिकया qe मामङ्ञोटूरताििपय नामि mats: | (2 ma itfgeat—aiy tend शद्रा. फस -aaqamyfaaar- mary द्राणो aateanfafa मोयाचन्धः।

(१) 999 दूतस्य टोकाद्रष्टव्या। (4) >" पत्य टाका awa |

water | २२४

२६२। णच्‌गसाहनो TSG वा तु Fs (ण चर्व मात्‌ ५।, वनः ५।, TH ।१।, ईप्‌ ।१।, वा ।१।, तु ।१।, 2 91) |

दत्यमि। कटो arf: | अ्रश्मरो रोगमेदः। विप्रीद्यादिषुच्छो

~ ~~~ - ro ee cere eet

यथ्ा--विषपुच्छौ शरपुच्छौ कवरपुच्छौ मगिपुच्छी। we हाय- नमस्याः अ्रग्रहायगं]। अधिक्रारोऽस्यस्याः, aq ्रादिलादः श्र पाठादौप्‌ ग्रिकारो। उपमानात्‌ पत्तपुच्छौ यथ्रा- शुकपक्ती सिंदपृच्छौ रोहिणो रेवतो नच्तत्रम्‌ श्राकतिगणोऽयम्‌

चजातेरितः। इटन्तान्मनुष्यजातरोप्र स्यात्‌ कुन्ती gaat erat ग्रौदेयौ faitafaarst faa). इतः किम्‌? दरत्‌ (१) gaa: किम्‌ ? तित्तिरिः वडानि;।

ईपि mre वा णायना लाहितादेम्तु निन्यम्‌ | wre णाग्रनः सादा ईपि लोदितादेम्तु निलयम्‌, दत्‌। गार्ग्यायणो वाद्छायन), पत्ते may वद्यौव्यादि | लौहित्यायनी कात्यायनी | लोहितादिगंर्गादौ ज्ञातव्यः |

WAT माण्ड कौरव्याणां Saat ary एषां ङायनोवा स्यात्‌ इषि, डः इन्‌ | ्रामुरायणौ माण्टुकायनो कौरन्यायणौ WATT कारव्यादोप्‌ | पतने wat माण्डुकी कौरव्या इदं नच्छन्यन्ये | कथं कौरवी सेनेति ? इदमर्थे ष्छादीप्‌।

२६२ TW! श्रे वसथ तत्तस्मात्‌। वनो नान्त

त्वादौपि fas aa विधानम्‌, faa रडविधानाधं, तैन aed

१) faz fa काशिका AAU: |

२१६ quad व्याकरणम्‌ |

wea: खमाच्च विहितात्‌ aa fq स्यात्‌, वनी TE faci हेतु बा। श्रवावरौ Wat efteaa बहुधोवरो बहुधीवा

२६२ AAT: संष्यादिदाम-वयोऽग्रहायनाै।

(स्‌ ।६', नः ।१।, ।१।, ऊधम्‌ सङ्यादिदाम वथोऽव्दाय- नात्‌ ५।, हं 9 } | वहधोवानो Tera TSE] (१) णत्तखमादनोरढपाति कतौ ग्रवावरो प्रौवरौ वहुधोवरं। २' वदधरोवेव्यादधि सिद्रावपमि बरहुगत्वरौ वहसृलरोयाटि मिद्व्रंवातु इति aaa, ईपचाम्बम्याद्विवय- म्बस्यादिवयक्तेः। waratifa aim श्रपरमारणे, weed, farsa. नाड, Wt ग्रद्‌। धौयराति ain निप्र, दामागहाकपिैति St हरिदृश्वरौति हरि पश्चति समति करनिप्‌।

२६२ स्रग्ोधः। इति quan, इति प्राक्त, a वयोऽय्रं BIA, WIA वयौ वरस्य चामौ डायनयति a: | दाम वयोऽग्रदायनय at, म्या ब्राद्विरमोम्ती, at तौ at चेति संद्याटिदरामवगरोऽव्रहायनी, way संव्यादि- दामवमोऽघरदाग्रनं AAAI) जधमः मंस्यादिदासः

¢ संष्ादिवया;्रहाय्रनाच स्विग्रामोप्‌ स्यात्‌, ऊधमः मस्य aq |

(ETS दृत्यनी वड्धनाहि रमाम ईपनाम्यस्येव्यनेन पो dala Tafa at ufawia, ad au दुद्‌ दृ दत्मियाणद्रयादह afafa | (८ agaiilaagiutite arat aerfafa |

water | २२७

ऊधसः सहयापूव्मीत्‌ दानो वयोऽथ-हायनाच्च Fa स्यात्‌ ₹,

सस्य नः स्यात्‌ WaT feerat feeraat |

२६४ जातेरतोऽमस्वौ-युङ्सत्काण्डप्राक्प्रान्त- शतेकादिपुष्य सम्भस्राजिनैकशगपिण्डादिफल- नादि- मूलात्‌ |

( जातेः ५।, श्रतः ५।, अस्तौ --मूनात्‌ ५। ) पोनोप्रीत्यादि-पौनमूधो यस्याः सा, दामनो ( TH) यस्याः मा(१) दौ Baal वयो यस्वा; सा इति वाक्यम्‌ faa? श्रतिदामा (2) | wera: किम्‌ ? सुदामा | वयोभ्यकिम्‌ fa- हायना गाला | (२)

२६४ Wa! उड यस्यमः, मच AWA प्राक Way शतञ्च एकञ्च तत्‌, तत्‌ श्रादियेस्य तत्‌, तच्च तत्‌ gwafa तत्‌. सं भस्ञ्च अजिनञ्च wag wry fawg aq, aq रादियेस्य तत्‌, तच्च तत्‌ फनच्चेति तत्‌, आदियस्य तब्रादि, नादि चतत्‌ मूनञ्वेति तत्‌ पथात्‌ स्वो युङ्‌ सदाद्यादि- quy समाद्यादिफनलञ्च नादिमूनञ्च तत्‌, तत्‌ अ्रस्तोयुड्‌-

(१) यांगांदहाभ्यां रच्जभ्यां वनाति Ga: |

(>) दाम अतिक्रान्ता, या षड्धा सतो रज्ज खिनन्तोत्यथेः

(३) कानता शरोरावस्था वयः | दुर्गादामस्त प्राणिनो गतपरमायुव्य wate वयां चत्वारीतेपरके, azre:--wa aafe awa हिताय नार्जितं धनं तीये तपस्तप्रं चतं किं सरिष्यमीति त्रीण्णी्यन्टे, यदाड्धः {पिता cafa कौमारे मत्ता रतत यौवने। पुत्रसतुख्थािरे भावे a al ara ग्म्वमहतीति |

23 सुगधवोधं व्याकरणम्‌ |

जातिव।चिनोऽकारानात्‌ स्ियामोप्‌ स्यात्‌ नतु स्रो -युडादेः। मृगो हंसौ शोतपाको eager मंत्तिका वेश्या सत्पुष्पा संफना Mazar | जातैः किं --मन्दा। ग्राह्ञतिग्रहणा जाति निङ्गानाच्च सर्वभाक्‌ | मकदास्यातनिर्ाद्चा May चरणे: मह |

गार्गो कटो ara |

मतकाण्डप्राकरप्रान्तगतकादिपुष्यमग्भम्ताजिनकंग्रणपिर्डादिफलनना- दिमूनं तस्मात्‌ मृगोति-- मुख्य एवायं विधिः, तन zea भूः, वहम प्रूरिलादौ स्यात्‌ अतपाकति माति पाका यस्याः मा द्यत्र रन जानिरुयतऽतो जानग्भौणलम्‌। एव मोदनपाको गोवनौ शङुकणव्यिदि | म्तिक्रति -एवं पिपौ- निका वनाका cafe) वेश्येति ~ एवं ण्या द्रव्यादि | मत्‌- पुष्पति-एवं काणडपृष्ा प्राक्पुष्पा प्रान्तपुष्पा ग्तपुष्या एक. पुष्पा | एभ्यः किम्‌ ? शङ्कपषमो चोरपुष्पौत्यादि सम्फलेति- एवं waar भ्रज्िनफना एकफना शणफना पिर्डफना एभ्यः किम्‌? पूतिफनौ तानफनौत्यादि। ब्रमूनेति--न मन्ति मूनानि यस्या इति वाक्यम्‌ | नञः किम्‌ ? वहुमृन) गतमूनां | जातिः fay? wager खूनफना, निमृना अतिः, समूना vata: |

श्रय जातिवाचकग्रष्टश्नापनाध्ं जातिनक्तणमाद, भाक

तौति | भ्राक्रियतं वयन्यतेऽनया senafa: श्रवयवसंखानादिः |

Ate: | २२८

खद्यतेऽननेनि ग्रहणं, धम मान्यभिहत्वेन स्नौत्वाभावात्रेप्‌ | WT क्रनिः THU यस्याः मा। यदा wee इति ग्रहणम्‌, ्राक्लत्या- ग्रहणं यस्याः मा ्राकछनिग्रहणा ABM इत्यध; तथ्राच मृगसिंदव्याघ्रादिषु गृङ्गगटादिसंम्थानव्यड्या मगत्ादिजानिः। एतन गुणक्रिययो जपतिरनिराक्लतति ्राह्मगलवादिजात्म dat- ANNA, तत्सं खानस्य जात्यन्तरसंस्थानसाम्यात्‌ | श्रतो लक्षणा- tare --निङ्गानाच्च सव्वभागिति। या लिङ्गानां पुस्तोक्तौ- वानां मर्व्बाणि रूपाणिन भजत सापि जातिः। तधाचाव्रिलिङ्ग- शन्देवायापि जातिरिव्यर्धः। तन ब्राह्मण च्षतिववेग्य-शृद्राटौनां स्तोपुमयोपत्तमानत्ादसन्निङ्गभाक्‌पदटवाया ब्राह्मण्लादि- जालिः। तटत्वादेस्ि लिङ्गभाग्वाच्यतवाब्र जातित्वं, तटोत्यत्र नदादिपाढादौप्‌ (१) |

ननु देवदत्ततादेरसव्वलिङ्गभाग्वा्त्वेन aa जातित्व- मित्यत me मक्लदाख्यातनिग्राद्यति! मक्तरेकवारमाख्याता पदा मतो निर््राद्या निश्चयेन ग्राह्या इत्यथः तथाचापव्य- निङ्गभान्तु ब्राह्मणादिषु उपटेग््यद्या जातिरित्य्धः। उपदेशो

fe एकस्यां व्यक्तावेकदा कताऽनेकव्यकिषु तत्त्रत्ययनि्मित्तं

(?) अन्‌ ` तटत्वादिजानिम्तिनिङ्गभ।कपट्वाच्यत्वो पि स॑स्यानव्यङ्गतवात्‌ पूवव wars afar’ प्यवम्थापितम | अथवा aerfeuraretfa ति पाठान्तरम्‌ | अत्र गङ्गाधरोऽपि "एषं तट।दृरपि जर{तख.संस्यानन्ङ्गत्वादि' त्याह | सि न्तकौशद्या- मपि "जातिरग््रीविपयादधोपधात्‌ aide) दति eae eat aafaayar जातिः AraC aA TA LVR AMMA | तक्वागौषेनतु नारौ wens: पठितः| कातन्तरटीक्षायां सजिप्रलारेऽपेविति |

२४० FUNG व्याकरणम्‌ |

भवन्‌ सकृतव्यतिव्यापक दृहाभ्ु गम्यते | यथा एकक ब्रामण मदुपदिष्टेनेकेन wad ब्राह्मणोऽयं ब्राह्मण इत्यनेकब्यर्तिषु प्रतीतिः, तया देवदत्तादौ, तस्य संत्राशव्दलनेकमाव्रहत्तिलात्‌। एतत्त AAA जातैरपयुक्ं१) aie wa कषणे वा गवादि-पि्डं मक्दुपदिष्ट गोलादिजातिः पिण्डान्तरेऽपि गोरयमिल्यादिज्नान- faaten भवति, उपदेशस्य तथाभूलमाधनलतात्‌ | एतिन afta निरवयवा नित्यानेकव्यक्गिसमवायिने।ति।

पारिभाषिकौं जातिमाह, mae aut सह इति ya- पोताद्यपत्यमिद पारिभाषिकं गोत्रम्‌ यथा गाग्यः are इत्यादिः analiza derma, तत्म॑खानस्य जान्यन्तर . मंस्यानमाम्यात्‌, वा मञ्निङ्गभाग्वायलम्‌, गाग्यः गार्गी गागं कुनम्‌ इव्यादिप्रयोगात्‌। we wy! श्रय पारि-

4) एतत्‌ महटास््तनिाहेति हयोरपि जातिनच्ेणयोया जनीय मित्यधः| यः नक्तेगहयन नक्ितापि मरदद्यातनि्ह्या भ्रति मा जातिरिति निष्कः | sary मल्िप्रभार्‌ तर्बितपादे ४८ छस्य टोज्ञावां गोयोचन्दरण्‌- yaa. हयेन व्ययस्थिताया or ma: ब्वपमाड रहदार्यातनिरयाह्धिति रते जत tra fama naa परिमबराग्षठ qed द्गितयान्‌ | तथाहि एकत्‌ wat मङदराष््यात। जातिदणानरश्निन्यपि खनते मह्य मयरानरं fae यन याह्या भतरति। तक््ाद्ञा निद्या प्रयेकं परिममाप्राच। aT ate दका aaa, waren पिर्डानरः्पि agin) afe चन्ति aa, fowsfaara जातिविनाभात्‌ पिण्डानरे जातिर्नोपनभ्यत। ale wax परि ममाप्रानवस्यात तद्रा यत्राद््याता afayfa fous सव्वाक्ना wer कि पनः पिगड़ाने | anafe परिममाप्रौ सया vin एष वटति, a जाति | a fe arent ज्ञातिणवति खनक्रलप्रसङ्गाद्ति।

wer | 282

२६५। गृगादोतोऽखम-स्योडः,

(गुणात्‌ ५।, वा ।१।, उतः ५।, अ्र-खर्‌ -स्योडः ५।) | भाषिकजातिलवात्‌ माग्यमानिनी वाद्छयायनमानिनौत्यादौ पु aga; तु वैवाप्रपदोभाय इत्यादौ, arfaargcaar निनोौवयक्ेः। चरणं शाखा, .वेदेकदेगः aatfene:, तु क्रियावचनः (१) ; कठादि रूपचरणस्याध्ययन क्रियामग्बन्धेन वत्त- मानलात्‌। तथाच कटादिश्ब्दोऽध्ययनविगेपमाच्षाणौ यदा तदध्वयनमम्बन्धात्‌ भ्रध्येटपुरुपेषु awd, तदा क्रियैवास्य प्रवत्ति- निमित्त, मेव पारिभाषिकी जातिः, venta पारिभापिकजाति- तात्‌ कठौ चरको कटमानिनौ कटीभाय इल्यादिः स्यात्‌

नच्तगचतुष्टयाव्याप्यलात्‌ मन्देति जातिः। गार्गोति- maa ati गोतरनिहितयोः एणयायं डदै" युङलाद)प्‌- निपेधे सिह पुनरजादौ यङ्न्तानां पाठात्‌ नह qearetufa- पधः (२) | कटोौति -कटो ब्राह्मणः वैदकटेग्रस्तन प्रोक्तम्‌ wa यः साऽपि कठम्तस्म्रात्‌ सियामननप्‌ (2) एवं कौयुमौ

२६५। गुणात्‌ सख्य उङ्‌ यस्य सः। खरुः Wars

१, कठारिणश््ष्तदध्ययनषाचो्य्धः| अतएव सिद्धानजोषदयां ४।।६१। सत्रस्य ett "अपायप्र्ययानः Wenders शब्दो जातिकाथ' लभते Sea" CIT |

(2) wafgite २७७ GAS टोकायां FEAT |

(३ कठशाखाध्ययनविशिहा स्तोत्यधः। यद्यपि स्त्रोणामध्ययनः प्रतिपिङ तथापि पुरा्ल्ये BARTS तदाह यमः-- AUTH नारीणां मौक्नावन्धन- मिष्यते | खध्यापनश्च वेठानां साविल्रोवचनं तधा इति तत्वगोध्िनो |

२१

२४२ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

गुणवाचकादुकारान्तात्‌ सियामोप्‌ खाहा, नतु att: स्यो S41) wal aa खर्‌ Mey वरः पाणः गणात्‌ कि av fafanasafa एग जातिषु हश्यते | ग्रःप्रयथ्ाक्रियाजय मोऽमच्छप्रजञतिर्गणः॥ धनु; | GUI ATS तत्‌, तन्‌ ग्रवर्म्थोडः तस्मात्‌ गुणवाचका fefa—am afa गुणवाचकः, घर mH) वतुनोपादमेदोप ATTA {) हति द्रय वत्तमानाद्‌कागान्तादिव्यधः। Betfa- - मादृवगुणविगरिष्रा इव्यय | cS गुगवादिणब्न्नापनापर गुगनन्तगमाद, मच safe | awa ga, aa निविशते नदराययति, aafa ततः मच्वादप- गच्छनि। यत्रा श्वामो गुणः पृञ्यमास्रादिफनमाग्रयनि, पश्चात्‌ पक्रदणायां ननो ऽपरगच्छनि | एृथगजातिषु rad इति-- UIA नाना जानवो येष, तपु दृण्यत यथरादंमादिपुयः शक्ता fe qm ez:, गङ्ाट्िषु erat) एतिन nam जानिन गृण: |

fe द्रव्यममवायिनोौ (2) जातिः मच्वादपगन्छनि, जन्मनः

1) वतुनोपाट्िचब्यायमाग्यः ga qufzaq गुणमनमाचरे दूति व्ये जौ pity Sheva गुण gia नामधातोः प्रचाटितवाटनि गुण सदमट्चधः। ग्रत" गुषवचनेभ्यो मतुपो नुगि ` दूति पािनायतार्तिकन्च।

>) ww: मब्बन्धगिणिधमादृषतायथ्ः। सम्वन्धः दादीनां wat wT रुणङम्मणोः। AY जते wT समाय प्रद्ोरतित CT TY: |

ware | २४९

प्रथत्याविनाशादाधारस्यापरित्यागात्‌ | नापि जाति; प्थगृजा- faq ema, ब्राह्मणएलादैगवादिष्वसमवेतलात्‌/१) | इदन्तु स्वरुप- कथनम्‌;२)। नापि सत्ता २) गुणः, द्रव्यगुणकश्चसु वत्तमानलात्‌, नचमाद्र्ादपेति। नन्वेवं कश्चापि गुणः, we यदा सक्रिय वनि तद्रा मत्व निविगरते, यदा निस्क्रियं भवति तदा मच्लादपैति, एयग्‌जातिष्वपि टृग्यते, यथा गम॑नादिक्रिया मनुष्येषु दृश्यते तया गवादिष्वपि gma, अतो fanadare aria इत्यादि aaa उत्पादः, क्रिया व्यापारम्तस्माजातः क्रियाजः, क्रिया- जंऽक्रियाजः नित्य इत्वरः तव्राचात्वाद्यं घटादिरूपम्‌ अनुत्माययं परमाग्वादिर्परम्‌ (४) कश्चणम्तुत्पा त्वमेव नानुत्पाद्यत्वं, तस्य जन्यत्वात्‌ एवं ५) घटादेमहत्तवादि कमुत्पाद्यम्‌, आआकागादेमह- wifzaaqurafafa 1 एवं मति द्रव्यमपि गुणः; द्र्य (६) हि

(१) समवायसम्बन्धेन वत्तमानल्वाभागात्‌।

(२) गुणयेत wim: |

ig) ल्व्यगुणकम्परत्तिजातििभषः। तथान्नो्त भाप्रापरिष्छेटे - सामान्यं fafad प्रोक्तं परञ्चापरमेवच। द्रव्यादितिकषटत्तिष् सत्ता परतयोच्यते ति Urata जातिः

(४) परमाणुः एथिव्यादिमूतचतु्टयानां हयणकानासवयवः। निष्यः शिर्रयवः। तत. खच्छममपि नास्ति। तचाचोक्त--निषान्त्राच सा द्वेधा निता खादृण्नक्तया। अयातु तदन्दा दधात्‌ सेवावयव्योगनीति। परभाणुदयात्मकं णुकं, नररेणुश्िशन परमागा-परिमाणस्‌ | तथाच वेदक परिभाषा जाला- न्तरगते BURL ध्वंसो विलोभ्यते | बसरेणम्त शितेयस्तिशत। परमाणभिरिति।

५) षटादे द्पषद्त्बथः |

(€) weverfeny | तधाच--किव्यपतेजोमरुढे{।म-काल-ट्ग्दे्िनो-मन षति aa zante |

२४४ AUN व्याकरणम्‌ |

eee | Ureptarfe-erearsaat |

(पाद्‌-खाङ्गतः ५।, TA ५।, वा ।१।)

द्रयारशङ्ऽअयवभूते (१) निविशत, तदवयवसंयोगविनाग्रादपति, पृथग्जातिषु ema, भ्रवयविद्र्स्यात्पाद्यलं निरवयवद्रव्यस्या- नुत्याद्यतम्‌ श्रत श्राह श्रसच्छप्रलनिगिति। मच द्रवयं प्रक्तिः aural यस्य मः मच्प्रक्ञतिः, मच्प्रक्लनिरमच्चप्रक्लतिः, द्र्य

भिन्र इत्ययः | एवं मनत्यपि व्यवच्छदफनकतात्‌ (२) एवत्यव

धारणं दृष्टव्यम्‌, THAT ्रभावरऽनिव्यामिः स्यात्‌| घटाभावस्य az निवेशात्‌, azafaara aa तदपगमात्‌, पएथगृज्ातिषु दग्रनात्‌, ध्वंसस्य उत्पाद्यतादव्यन्ताभावम्यानुत्पाद्यलात्‌ 3) तथाच द्रव्य

भिन्रस्य यम्य क्चिदधिक्रगी द्रव्य दरव्यमाचरऽभिनिवशः, aang

गम इति दयं, नि्वगमात्रं कचिदधिकरणे (४) प्गृज्ातिषु end, कवचिदृत्पादनायरत, afafaad, गुण द्यथः। यथोक्त धद्मानाक्रान्तलवा्‌ TAFT AA |

zee | पाच्छा। परादिल्यनन मंस्यामूप्रमानादिवादिना

(i) द्रत्यममवायिमारणः फपानादर।

>) व्यव्रन्छटर इतरव्पाष्निः। तथाच zafaga सनि द्रयेतरादर्ति aries: |

iy) अतिव्याप्िनज्रगदरोषधगेपः। सच ग्रनश्ये नन(गमनङ्पः। दर fey गुगनक्णनच्यः, aq नसणगमनं उतटोषः स्पादत्यः। गुणः aan gufuge मति sumasiafraqal भावं वक्षणानुमरगटोधं दशयति घर्ननि। प्रतिवोगित्यमसम्बन्धन घटापाषोष्रटःन्नि।

farazey Qraniet

सनोत्य | २४१५

पादः शोगादेः TET इकारातृताच्च श्तियामीप BET, नतु wm: त्रिपदो विषात्‌, sitet शोणा चण्डो चण्डा, feast विन्बोष्ठा खाद्गगत्‌ किं-- स्वाः स्यादटद्रवं aa प्राणिखमविकारजम्‌ |, दृष्टं तत्रातत्श्मपि agarefn खिलम्‌

दिष्टस्य ग्रहणम्‌ शोण आदिरस्य सः , पाच्च गोणादिश्च aire इच amare | ज्ञिरक्गिम्तस्याः, aaamfedt विशेषणम्‌ (१)। तिपदो- व्यः पादा यस्याः मा इति वाक्यम्‌, एवं हिपदौ हिपात्‌ चतुष्पदो चतुष्यादित्यादि। भोति अनुदात्तान्तवणीदित्यनेन(र) नित्ये प्राप्तेऽनेन fara: 1 चणर्डोति श्रप्रापतौ विकल्पः | शोगादिवधा--

णशोग-माधारणारान-विशाल-इय-शङ्टाः (२) |

क्रपाग-क्रपणोदाराः कमनो विकटोऽच्चतिः।

श्रङ्त्यंदति -कल्याण्‌-यषि-वस्ति-विश्ङटाः |

aera wat चण्डः पुराणीऽङगदिपचिमाः |

alae चन्द्रभागा वषाभूसत yafaary |

श्रहुगन्व-टन्त-कगहद्च गङ-कर्णोष्ठ मित्यपि |

पुच्छ-नेतं तथा गाचै-जङ्महमादिरोरितः॥

(१) अध्रपर्यानोचनया पराद्राद्भिः सडह सम्बन्धासङ्धतेरित्यर्धः।

(२) मारे समणोति हूत्रष्य रोश्ायां वातिकं दटव्यम |

(३) सरेषु पस्तकं तालव्याट्रियम्‌ | शन्तु काशक, कातन््र-सिङ्धानकौसदो- afanarty गोणादटौ, अभरकोषे शन्द्कसटूमे तालव्यारि-डरट-श्टोन ह्यते टनरादिकु रेगी-वियेष-वाचक् सख षड्टोति qufafa केचित्‌

२४६ मुग्वोधं व्याकरणम्‌ |

TEST द्रवत्वात्‌ YMAT WRAY! सुमुखा शाना श्रप्राणिखितल्वात्‌ | सुशोफा विकारजलात्‌ | BAM सुकेशा रथ्या, श्रप्रागिखस्यापि प्राणिनि every |

हयशब्दस्य जातिवाचित्वेऽपि युडलात्‌, wafa श्रहति ज्रं हति एषां ल्याद्यन्तप्रतिर्ूपकलात्‌, यशिवस््योः त्धन्तलात्‌, aria खाङ्गवाचिल्ऽपि स्योडः खाडस्याजादौ पाठात्‌, षाणां AAAI पाठः) परेतु गौरारौ इयमादम्तव्र, BATT गतयाजनगामिन्यति हगिविभे दश्तनाद्‌। ब्रह्ादिपथिमाः यथा-- मृदङ्गौ सद्दा ख॒नान् स्नात्वा हगनान्धौ श्रोषधिरिति fad, नदाटेराङ्ञतिगगलयात्‌। दारटन्तौ किब्ररक्रग्टौ तौक्ताग्र चार्कर्णी विग्वोषठो कन्याणपुच्छो सुगतो १) gaat दौवजङ्गाति। पक्त चारुदनतेत्यादि | चन्द्रभाग चन्द्रभागा नदौ। एक्ट विङ्ञतमनन्यवहवतौति न्यायात्‌ चान्द्रभागौ चाद्द्रभागाव। तथाच- चन्द्रभागा चान्द्रमागो चान्द्रभागा चन्दरिका। चन्द्रभागा मवोक्ता नदीग्रष्ा प्रक।त्तिता

दति west: | वभि वपाभूः Hat) खाङ्गादुदाहरति,

({) agifend? तङ्कशामोगेन पितो aang: काशिक्रा-स{िप्रम।र- मिानक्ोमदट कातन््टीक्षासु दृश्यते | wan Twa RAT CATH GAA स्छायपञ्चाननपादेः | प्रयोगरत्रमानायान्तु कबाद्क्रणे "दन्तो कवट-गावाङ्क-षङ्ग पोटराटिङ्ात्‌ Lit ५।५ Ga Vet "द्ाद्ना जहरु नाष नेत्राणां पर भियत्रम्‌ |

स्त्यः | २४७

सुस्तनी सुस्तना प्रतिम, प्राणिवत्‌ प्राणिसदटशे खिंतलवात्‌ | राजौ राजिः | केमु दुडिः मतिः।

-- ~ -- ~ ~ "~-- ~~~ -~- ee

सुमुवोति-- शोभनं मुखं यस्याः सा इति वाक्यम्‌ | खाङ्धदौख एवाम्य विधयः। एवं दौघनखो dave तुङ्गनासिकी gy नासिका इत्यादि |

aa aipaanare खाङ्गमित्यादि। द्रवो ` घश्मादिस्त- faa, aa काटिन्यादिदखखशरविगरेषवत्‌, प्राणिनि तिष्ठतीति प्राणि- स्थम्‌, विकारो दाषस्तस्माज्नातं विकारजं, a विकारजमविकार- जं यत्‌ तत्‌ ay स्यात्‌ eefaanfe—-aaqe अरप्राणिखमपि aa प्राणिनि दृष्टं चेत्तदा खाद्गम्‌ arefa प्रागिर्दशे प्रतिमादौ fad म्तनादिकश्च तदत्‌ प्राणिखवत्‌ खाद्गमिव्यधः। श्रद्रवादि- पटानां व्यात्रत्तिमादह वहखदेव्यादि राजो राजिरिति राज- धोरिसू्यः। एवं -

रोण मसो सूचो शारो वोचो वैणो मणो Hz | ait रजनो पतै ्ोणिरित्यादयः क्रमात्‌

अरक्गरित्यनेन क्यधेस्योपनच्तणत्वात्‌ waite; भ्रजोवनिः काड।रिमकार्षीः सव्वं कारिमकाषमिल्यादौ स्यात्‌ क्यन्ता- दपि कश्चित्‌। मा गानक््ञानौँं सृणालोति तु स्ञानशब्दात्‌ भावे षणं कते षिक्वादोप। परे तु णग्रहणादोकागन्तादपि, तेनो amiatfe, तधाच-तां atfaa समायान्तोमिल्यादिप्रयोग Tay: | निषेधो यज्नातोयस्य विधिरपि तल्नातोयस्ेति न्यायात्‌ कदिकारादेव, तैन सुगन्धिः युवजानिरित्यादो ख्यात्‌

र४८ HINT याकरणम्‌ |

२६७ धात्‌ क्रीतात्‌ (धात्‌ ५।, क्रतात्‌ a) | धनेन क्रौयते स--धनक्रोतो

२६८। ATS | (ज्ञात्‌ ५।, ब्रह्य 91) धारिल्यव। श्रभरलिपतौ, श्रभ्रेण निप्यत a

vec | खाङ्गाइ | (स्वाङ्गात्‌ ५।, F 91) ख्वाद्गत्‌ परो F feat यः क्रम्तस्मादोप्‌ स्यात्‌ गहभिन्रो

२६७ धात्‌। धनक्रौतोति-क्रौधोः क्रः, स्यायुत्यत्तः प्राक्‌ Beara मर भे श्रनेनेष्‌। मा fe तस्य धनक्रीता प्राणेभ्याऽपि गरोयमोति तु भ्रावन्तेन मह सादिति ot | aq q waataiare: | धादिति पौनिष्टयादव्यवदहितरक्रीत- शब्दादे पत्यथः, .तेन धनसुक्रोतव्यादौ स्यात्‌। क्रौतान्तादपि कथित्‌, aaa धनसूक्रलोत्यादि। धात्‌ किम्‌ ? राजक्रौता(१) |

२६८। क्तात्‌ धात्‌ क्ान्ताद।प्‌ स्यात्‌ धस्यान्यले सति{२) | अ्श्रलिक्तीति- -श्रल्येनाभ्रण ` छव्र्यधंः। एवं मूपनिप्तं पातर, sacfant निद्रत्यादि। wa किम्‌ ? qaqa भङ्गिः |

२६८ स्वाङ्गात्‌ षति क्षान्त ca: | गहमित्रौति-- गरो ललाटाखि, wat feat यया दति वाक्यम्‌ एवमूरुभिब्रौ गलोतृकत्ता केणविनुनौत्यादि स्वाङ्गात्‌ किम्‌ बहता मु- mats किम्‌? पादर्पनिता। परतुनञ्‌ सु-वद्‌ मु मास वलग

ig) TIM lat, राक्तेतिकत्तरि तीवा। (ग. warty यादुयरतपत्तः प्राक धमास xf दुगदिषः।

स्तीत्यः | २४८

२७० THAT: | (वा ¦ १।, अच्छन्रात्‌ ५।, जातेः ५।) | आच्छादनजातिवन्जीत्‌ जातिवाचिनः परात्‌ सितात्‌ azo स्यादा | इततुमचितो इत्तमचिता | ward -वस्तच्छवा | २७१। पनयामप्रालकरान्तात्‌। (पन्नपाम्‌ 91, अ्रपालक्ान्तात्‌ ५।) पएुवाचकादपानकान्तादौप्‌ स्यात्‌ भायायाम्‌ |

मोपा | पानकान्तात्त--गोपालिका |

--~ ey me wen ee ee ee

दुःखभिन्रात्‌ कतहमादन्तोदात्तात्‌ क्ञादोपमाइः तदुग्रन्यङ्गता सङ्गादिति विग्नपणात्‌ अक्षता सुता इत्यादि वांरिनम्‌ |

२७०1 वाच्छब्रात्‌ च्छव्रोऽह्ब्रस्तस्मात्‌। wqufaaifa --द्तुभत्तितो aat at दति वाक्यम्‌ एवं वरकंटृष्टौ शुकजग्धौ सुरापोती, oF ठकटृष्टत्यादि जातः किम्‌ ? मासक्लता पोता | क्रादिति किम्‌? केगप्मिया।

२७१ पत्रपाम्‌ | पालकाऽन्तो यस्य पालकान्तः, पालकान्ताऽपालकान्तम्तस्मात्‌। नञः साटृश्यद्यीतकलात्‌ (2) पुवाचकादकारान्तादित्यधः गोपौति-गोपस्य प्रीति वाचं. पवाचकगोपगन्दस्य खखामित्वे सम्बन्धे वाय fea

(१) स!द्ग्यन्तु पालकशब्द्ख पुस्वेन अदन्तत्येन च. तन पालकभिन्नात्‌ पुवाच- काट्दृन्तादवाय fafa: | अतएव पुसः vat दून्यादौन खान्‌, कट्न्तत्वाभावा- द्ति। "पलपामित्यनेन पुवाचरकाद्िति लभ्यते| तघा पालकान्नवजंनाट्‌कशारा- न्तद ame fafa इदन्बुग्धनोधम्‌ |

रर्‌

२५१ RMT व्याकरणम्‌ |

२५२ ब्रद्मरद्रभृवसव्वसरडुन्दरवर्गादानङ च। ब्रह्म- वर्णात्‌ ५।, भ्रानङ्‌ः | १), ।१।) | एभ्यः CANA खात्‌, AAAS ब्रह्माणी रद्राणौ | २७३ | मातुलोपाध्यायत्नवियाचाच्यमू्य्ध्याहा।

(मातुन Wald ५, वा ।१॥ |

afa: | एवं व्यो anit शुद्रो्यादि। मीपरालिक्षनि - मोपानकम्य पत्नीति वाक्यम्‌ एवमश्चपानिक्रव्यादि। पुवाचकात्‌ किम्‌ ? प्रजाता (१)।

२७२ | ब्रह्म ब्रह्मा AZT मवध मतथ BA इन्द्र वर्णय aaa ड्खादन्यस्यान। ब्रह्माण।ि-्रह्मणो भाया इति area) एं रद्रा भवानो मरव्वाणां मृडान। LEM वर्णान] मण्डकरगत्या AAI तस्य व्यवम्धावराचित्ात्‌ महैन्द्राणौ श्रक्राणा। तथाच --चार्धामा ARTY RTT गज्वाडिनीति२.। पतु ब्रह्मणं ef) तन्त ब्रद्माण- मानयतोति saat: दात्‌ प्रसिनिपणि पिचवादीपि ब्रह्माणं; एवं mart पिवानां ईग्वरागोव्याद्‌ः। महन्द्राणाति महतो चामौ इन्दराण} चनि वयत्यत्तः |

२१३ | मातुनो | मातनय sangre सत्रियश श्राचार्यय् FAA WAT AAT | मातुनानातिःमातुनम्य पतौ ति वाक्यम्‌ |

१, "प्रजातति प्रजाता 1 | नायं शद्धः पुमो area

fa afagqare नङ्धितपादे ay @aw टाज्जायां Malas: | २) संजिप्रमागाट्‌ौ aaart yatta |

water २५९१

मातुनानो मातुनो। war लौपरमपि विकनल्ययन्ति, तदा मातुलेव्यादि तदाशन्दो व्यवखाप्यः। आचाथानो, अतर णत्वम्‌

208 | दषाकप्यनि मनु gang कुसित्र wat A Zee | (arate --कुमौदात्‌ ५।, TS ।१।, ।१।) MA TANT स्यात्‌, TTS त्षाकपायो श्रगनावौ

मनायी |

न्येतु इत्यादि येतु td विकन्ययन्ति तन्मते मातुना इत्यपि। तदस्मकते ATTY व्यवस्थया ज्ञेयम्‌| एवम्‌ उपाध्यायान saga, स्वयं व्याख्यातौ चेद्पाध्यायौ उपाध्याया श्राचा- व्यस्य vat श्राचायानौ, स्वयं arent चदांचार्या (१) | मन्थस्य पन्नो सूरो, देवतायां ( सूर्ग्याणी?) (२) सूया च| afaararat: vat afaat wall, जातौ क्तत्रियाणौ afaa, warm अय्या afa | २७४ | वषा हपावःपिश्च ्रगनिश्च मनु पूतक्रतु् कुसितय (१) wate eaaat स्यात्‌ wfaat afaataaf | उपाध्यायायपा- ध्यायो areretanfa 4 aa: आचायानो Aya atzay afadt तथा I उप्राध्यायातु (UNATaT” - RAAT AT स्यं सन्ल्याख्यात्‌ सा eral दूति agtar | (२) रो कन्ती, मानुपोयम प्रति सिङ्धानकौषटी। wa auratfa लिपि

करपरगादृपाठः। अतएव "सयापोतु्र'हरणं पाणिनि सर्वम कमरीश्ररा. शाममम्मतलाङ्खय fafa दगाटारः।

२५२ मुगधवोधं व्याकरणम्‌ |

294) नागौ सखौ यवानौ यवनानौ हिमान्य- ग्ण्यानी मनारौ प्रतवित्ान्व्वतौ wal भाजी गोग

कुमोटय तत्तस्मात्‌ पदनीत्यादौ वाग्रहणात्‌ नित्यमिदम्‌। nats निय्रसात्‌ पूनक्रतुर्वराद्मणोव्यत्र म्यात्‌

२०१५ नार निपानौं sifaia द्यकः - BO नग्याजानीा नारो मग्न) AES दृषा यवो ववान।, वमानानि सुभनिः।२। यवनानां लिपितवनानं अन्यतरे यावमा ator) fearat दिममंहनिः | मदारखमरणग्वानेः | मनो; Gal Barat, मना aya") , पतिरम्भ्याः मा पतिवता मभक्तका, AAA

qa नध, अन्यतर परिमित) सना | BRITA Waal ४)

(१) दरद्िषणा उप्राशदः gmat) पन्दुर द्रः कलित" -Reanefany

म्तद्रवामो च; pate: मदम afgadanr wera, कमाट्ित fay sla

afzat |

> Para eT TT |

(१) fafaraT-wwtay |

18) MAI VATA ‘era दृति uflota wag fagTanatiy "सनरस्य an sis faa gangenl aacaenfa प्रभानतमा सरम मामानािक्गरगयाभा वदपर wae निपात | प्रनुदाररणन्तु qT RRR शानायां परदः Lahey | MSA Bet atta WaT HT MT नपा APH | तथान Set catia प्राचोक्त WATER UT AR, अ[मिमामानासिक्षरणया wrarpquianie' fa नस्ता | तक्वानोगमतेत्‌ श्लौ wae! गणं | Marie saad mela wae yA) RA BAT RH!

गमवचन इति waza: |

स्रोव्यः | २५९

नागौ श्यलौ कुग्डौ काली कुशौ कामुकौ घटौ कवरी

नोल्यभिष्वाः | ( नारौ - श्रियः eu ) एत निपात्यन्ते |

गभिणौ, अन्यत्र श्रन्तव्यती | पत्नी पाणि्छङीती (१), अन्यत्र पति- fra eat ग्रामस्य।

समानेक पुच-मपिण्ड-दौर भ्राठभ्यथ 2) एभ्यः va: पतो निपा्यते 21 समानः पतिरस्याः aval, एवमेकपवौ aie uatatfe 1 = किम्‌ ? एकपतिः at ग्रामस्य |

भ्न्यसपादवा हदः पतिरस्याः geval हदपतिः, wana स्थनपनिः किम्‌ ? अ्रतिपतिः। ग्रामस्य पतिरियं ग्राम- प्नोति afaq |

भाज पक्तायाम्‌, अन्यत्र भाजा। गोगो धान्यादिवहन- पात्रमेदः, भ्रन्यत गोणा नागशब्दोऽत्र गुणवचनः, नागौ WAT | जातिवचनात्तु पूर्व्ेगेवेप्‌ यथा--नागौ करेणुः नामी ares यो, waa नागा (२)। wat रक्तिमा भूः, अन्यत्र खला (३)।

(१) सिङ्धानकौमन्धां “पत्युना arent ( ४।१।९९ ) दूति eae st “यथिय val, Waa फनभोक्रीयथः, दम्पयोः सहहाभिकारात्‌' द्वयम्‌ |

(श) ATI: खगक्या्-गजगत-स्थौल्यगुण-योगात्‌ खशक्यार्थ-सर्प॑गत- देष्यगुणयोगाञ स्ये टं वस्वनरे वर्तते | तत्र यद्रा स्थौलयगुणवग्यां कद्या- fagaa तदेव तखाटीप सावत्‌ रेष्यगुणष्यामित्यायय दूति दहन्ुग्धबोधम्‌ |

(१ जल मग्रून्टल्ललरिभभूमिः।

२५४ quay व्याकरणम्‌ |

HU पातरौ, Wa FR जारजा | कालो Han, wa काना ग्रोतुमणक्षा। gt लोहविकारः फाल इति, aaa FM रजुः कामुकौ मथुनिच्छावती, Waa कामुका धनस्य | घटादल्यले घटो पात्रमेदः घटोत्युपलच्षणं, प्रायथोऽल्यलविव- त्तायां लिङ्गसामान्याटोप्‌, तन मदौ पटौ छत्री dnt मृणानौ- त्यादि। प्रयग इङ्गः अरन्या ge: TAH इत्यादौ स्यात्‌। कवरो केशवेशः, रन्यत्र HAT BAT |

नोनात्‌ प्राखोपध्याः नोनो गौः, नौनो प्रोपधिव 2) कुवलय .टन नोना कौकिना वानचति इति तु नीना THY र्यः AAT नोना। ATT कुवनवटनवव्राना कुवनव्टन नौना, एवं any मिक्ता नोना इ्मरः। मौना HF 2) र्तितु जात्यभिधान संन्नायां वेनि कचित्‌ (२)। नञपृत्च गिपोर्जायायाम्‌ अगि गिगुना विना जाया द्रः |

पाणिहौनौलुदायाम्‌। पाणिगृहोतोऽख्याः मापाणिीतौ

1) नीनगद्कदूतिभापा|

(१) कद पीततण्डना, धान्यविगेधः. कङ्गनि दूति ATT |

(२) gant मिका नानयमग्यय zatat— ‘atafa म्तिज्ञातिभेधय{मति म्भः | अन्यतु नानाति पादं मन्दसाना नीना प्राग्यापभ्योरिति रप्यय्ं नाम- तलयमाद्धः| यवदरायः#८ + नावा काचवणा, निति afaattename | अतण नीनात्‌ प्राग्योपध्योरिति नियं ोपप्राप्रे नीनेति रात्रनपाटो नयक waren Cf quater: 1 नौन्धा रक्तं “नीन्या अरत्नि व्यन्‌, नीना | अतण PATA AAT कोकिमति प्रयोगः, ग्रतोन Sie दूति ममापेयम्‌। WAIW- मतिया णम्‌ | यदातु नाम णव धवं तदा “वा सत्ताया मिति इषमा पपर ya 7a टारिति तु वयम्‌ rae |

lea | २५५

२७६ पतौ शक्तौ बुवत्यनड़ाहौ वन्येन frat भगिगौ रोहिगौ लोडिन्यसिक्री पलिक्नी ari

(पडतो -पलिक्युः ei, वा ।१।)

पत्ते -पइतिः शक्तिः युनौ saget शेता war हरिता भरिता रोहिता लोहिता भ्रमिता पल्िता। श्रसिक्ती अहहा, पनिक्री वडा

जाया, AANA इवयश्रः, अन्यत्र तु उपचागात्‌ पादि. प्रयोगः (१)

अनुदात्तान्तादणदोष्‌ ब्रनृदात्तान्तवण्वाचिनृः स्ियामंप्‌ म्यात्‌ RMT श्रवलो माणद्वौत्वादि। श्रनुदात्तान्तादिति faq? aw कपिना घवना इव्यादि। इदं नददिलात्‌ सिड- मिति कचित्‌ भ्रन्तोदात्तस्य छन्द विषयत्वात्‌ |

२७६ पदतौ पादस्य हइतिरिति वाक्यं, wait: किः, अकरिति fara प्राप्ते विधि;ः। शकधोः शक्तौ sete: , बहि तु ग्निः युंबन्‌गन्द्स्य नान्तत्वादौपि सिदे ag निपात्यते, अ्रनान्त- at वस्य उः। Taye sf at ary निपात्यत षेत- एत हरिन भरित-रोहित -नोहितानां वभेवाचितवात्‌ भ्रतुदात्ता- न्तादणयत्‌ इत्यनेन नित्यमौपि प्रापे वा ka, तस्य नय निपात्यत | भरिता हरितो मत दूति fava: भरितशब्दं परे नादः | श्रसित-

Sag काशिकायां `कथं wae wat! उप्मानाद्धविष्यतो fa (४।।।२३ |

२५६ HINT व्याकरणम्‌ |

209 मनृसंव्याखसखजादेः | (न ।१।, मन्‌ संख्या ग्रजादेः 4!) | एभ्य ईप्‌ A VA! सोमा, पञ्च, खमा AA, WHAT ATA | (१०२) qatera: —araat बह्नौ | पलिताभ्यामौप, vat: ma निपाव्यत वाग्रब्टस्य व्यवस्यावाचि- त्वात्‌ प्रियतरो प्रियत्रिः विगतं विणति, दूति| २७७। मन्‌ सवमा AHI तौ, तावादौी ययः aT | मन्‌ संख्या GAA तत्तस्मात्‌, YS संत्रतात्‌। ममेति--नान्ततवादौपि ara fate: | पञ्चति-नान्तस॑स्याया एव दईपनिपिप्र दव्यन्य। सामान्यतो निपिधात्‌ wae oat एकेवयादरौ स्यादििल्यकरे। स्मेति ऋटन्ततलात्‌ प्राप्त fate: | स्वस्रा दिवया-.- Sal माता AAA निसो या ननन्दरो, दृहिताव्र समाख्याता ant कंनचिदिष्यत amare श्रतेति -जातिवाविलाटौपि प्राप्त निषधः | भ्रजादियथा-- ग्रजा्वा मूपिका विप्रा काकिना वड़घडका। परपुष्टा परभना चटका वत्तका AAT शद्रा जानी THAR वडयत्तक्िमः करः तथा HAAS स्यातां पृत्ापररात्‌ परौ Vali बानात्तमा wer कनिष्ठा मध्यमापि a

GF FBS गुद MIS गफ बान भगात्तराः॥

walter | २५७

कर घोणा शिखा नासा गिरो भुज गलान्तकाः। aca aaa नच Tareas नामनि agra कतमितौ जातप्रतिपत्री हे मलौ अजादिदादशभ्यो(१) जातिवाचकत्वात्‌, बहकरादिभ्य(२)ि- त्वात्‌, बानादिपन्चभ्यः पन्नं पर॑वाचकलात्‌, स्योडगुदादयन्तभ्यः BIKA, स्वाङ्गात्‌ AAA क्रान्ततवात्‌, ईपि प्राप निपेधः। उदाहरणानि यथा -- बहुकरा यत्करा तत्करा किङ्ग GAIN अ्रपरहायणा पू्वेहाणा ब्रपरहाणा, इद पाठाम॒त्वम्‌ (२) म्बाङ्गस्यो यथा --सुगुनफा YT गुदा- fq --सुगुदा qatar इत्यादि | संन्नायां तु-शृपणखा कालमुखा गौरमुखा | warfa तु-शुपनखो शुपनखा | arpa छतादि- यथा--केशजाता स्तनजाता (४) द्रव्यादि अ्रनारसिकोदरा aga. नासिकोदरमिन्रा बह्वचः खाङ्ग- वाचिनोऽजादौ पठिताः (५) जघना महानलाटा इत्यादि | नासिकादरात्त्‌ - तुङ्नासिको तुद्गनामिका, महादरो महोदरा cate | मह-नञ्‌ fagaraygaafa खाङ्गानि सकेश्रा waar विद्य- माननासिक्गेव्यादि |

(१) बू द्रापर्यन्तभ्यः | (२) हाणपर्यनो>धः |

३) यत्व्करणे विचतुभ्य॑गं saga हायनघेनुक्रहान-ब्द्ख qa प्राप्राव्िदसक्रम्‌ |

(४) खङ्गा cae: प्राप्रौ निषेषः।

अजादौ पठिता दति परत्राप्यनुटत्तिः।

२२

२४८ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

खाद्रषमुदायान्ताश (१) werd पाणिपादं यस्याः सा कल्याणपाणिपादा प्रखाद्समुरायान्ताखु-- कल्याणं विद्यमानं मुखं यस्याः सा कलाणवियमानमुखौ पूवयसुतरे (2) पूवद ग्रह- रात्‌ सह-नज्‌-विद्यमानपूव्यवयवानि खाद्भानोव्यथोऽतस्तेनापि निषेध इति परे (2) |

ष-कोगलाजादावटात्‌ UT ASI) षकारान्तात्‌ A लात्‌ अजादात्‌ श्रवटाश्च णः wa भ्रादिष्टा यङडशाजादौ पठिताः | गोरक्ष खापल्यं गौर्या, एवं पौतिमाथा शाद॑राद्या इत्यादि | AAT भाजाद्या WIAA | AST यथा--

WUNTATIAS यड रूपोत्तमयोः सियाम्‌ | मो तस्यावयवेभ्यश् प्रोद्यादिभ्य्च वा कचित्‌ करोडिरापिशलिलौडि(४)व्याडिरापकतिस्तधा मौरिकिर्भोलििः शानाखनि-कापिष्ठलोत्यपि | सौधातकि्ौपयतस्तथा ayaa AA: |

चकथतः शेकयतौ भोजसु त्विय तधा |

Git युवत्या, क्रौद्यादौ Ii शिष्टप्रयोगतः

(१) खद्गषणदायः खाङ्गपाचक्गसमासातरय षोभूतपदसमूहः द्यन्तो वेषां Alea: शद्‌ Barat पठिता Kare |

(२) अव ्िद्यमानगदधपू्वकत्ेऽपि कवमोप carne ree शति |

तकत्रागोगोऽ$पि इतो ततपतरे इयय टीशयां मे watfecariee

e 7 MP ^ 5 ष्व waraeguteiata पृजोचादव्यपरस्याप्रित fafa दच्छति। Aare विद्यमान शब्दय पृष्यपदतवाभावाद्नेपनिपधः |

(४) atfefcfa कचित्‌ ure: |

ater | २५९

(१) तिप्र्तोनामन्छसृत्तमं, तस्य समोपम्‌ उपोत्तमं, उपो- तमं ययोस्तौ तयोः, AA श्रनार्षौ तयोः | wa faa तौ तयोः तथाच गोव्रविहितयो रूपोत्तमयोरनाषयोः wait च््रियां यङ सात्‌, ङः इत्‌ | करोषगन्ध इव गन्धो यस्य करोष- गन्धिः करोषगखषथ (२) तस्य wast कारोषगन्या। एं बाद्राक्या वाराह्या इत्यादि अनाषयोः किम्‌ वाथिष्टौ वैखा- मित्रो रूपोत्तमयोः किम्‌ ? ओपगवी कापटवौ। इड गोत- शब्देनापत्यमाचसुपलच्यते। ma किम्‌ ? भदिष्छत्रे जाता आदिच्छतो। wut: किम्‌ १९ ऋतभागस्यापत्यं सोति (प्रत्यये) ्रात्तभागो, ऋतमागस्यानन्तरापत्यमित्ययें शि विधाना- दात्तभाग्यति।

maga Mawar गोतस्याभिमताः कुलाख्याः पणिक भुणिक मुखरास्तभ्यः षणे यं पुणिकस्य waa पौ- शिका भौरणिक्वा मोखया इति |

करौद्यादिदभानां शेचौपयतादिचतुणं we ae क्रोडस्या- पत्यं wl wer) श्रापिशल्धा लाद्या श्रापत्तित्या afar भौतिका शणलाखल्या कापिष्ठल्या daar dagen वैद यत्या aaa nagar इत्यादि भोजखयापत्यं स्तौ भोज्या त्रिया, waa भोजो। aaa al सूत्या युवती, NIT Tat |

err ee ~ ter eR ap Ea a a ee A a a te = meee

(१) कारिकां व्याकरे | faqaediat-—aget लिङ्गानामित्यचैः। (२) करोघं- शएव्कगोभयम्‌।

२६० मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

२७८। उतोऽयुङ्रकादे नु॑प्रागिलातैरप्‌ | ( चतः ५।, प्रयुङ्रल््वादेः ५।, व्रप्राणिजातेः ५।, ऊप्‌। १। ) | स्ियामुकारन्तात्‌ वृजातैरप्राणिजातेश्च ऊप स्यात्‌, नतु गुडो wate कुरः Hay प्रारिजतिसतु - धेनुः युङ्‌- THUY WIT: रलः हतुः |

= --- --- ~~~ ~ =, =-= = ----# - -~

वा afafefa दैवयन्नि sraafa सात्यमुग्रि (१) कार विहि इत्येषां वा as) tara दवयन्नो were भौचहत्तो सात्यमग्रा सा्यमुग्रो कारविद्या कार्ेविद्धो | aa तु पारिभाषिकगोव्रषहितयोः णष्णयोगेव यड्‌ विधानम्‌ | श्रनन्तरापये देवद्या याज्नदच्या इति “क्रचिदन्यताऽपि" दूतिसूतरं (२) विधायादुः। एवं “वयस्यचरमे” इति सूत्रं (२) विधाय faatar तरुणो विरण्टोत्यादि उदाहरन्ति कन्या वाना वला होडा पाका मन्दा विनता इत्येषाम्‌ श्रचरमवयोऽघत्राटौपि प्रापे श्रजादौ पाठ इत्याहः (४) |

२७८ | ठतो उड़ यस्य मः, रजुः श्रादियस्य सः.युङ्‌ cafes तत्‌, तत्‌ श्रयुडगज्नादि तस्मात्‌, पुंसं सौत्रतात्‌ | प्राणो श्रप्राणो, नाच श्रप्राणौ चतत्‌, तच्च तत्‌ जातिधेति

तस्याः कुरूग्ति-कुरगनब्ः कुरुदरेगखमनु्जातिवाचौ एवं

(१ संश्चप्रमारे शा्यमरयिरिति। | तङ्ितपारे 1६ सतम्‌ ) | (२) संक्तिप्रमारे तड्धिवपादे १५ Gaz | (९) सं्चिप्रमारे afgaare ४० सत्रम्‌ | (४) सकिप्रसारे तर्डितपाट्‌े > तम्‌|

स्त्यः | २६१

२७९ | वामं TAT शफर AE सहित भंहितो- पमानादूरोः। ( वाम--उपमानात्‌ ५।, ऊरोः ५। ) | SATS: रम्भोरूः | २८० | तन्वादेर्वा ( ware: ५।, वा en) | तनुः तनुः TH च्चः

दूति स्वौल्यपाद्‌ः |

ब्रह्मबन्धुः धौवन्धृः, एतो कस्याचित्‌ ब्राह्मणजातौ वर्तेते, तधा कारूरित्यादि। ककन्धूरिति--ककंन्धुशष्दो वदरोजातिवाचौ,एवं wars, catefcanfe | धैतुरिति दभिब्रप्राणिज्ातिवाच- कत्वात्‌ स्यात्‌। एवं क्ृकवाङुः भ्रोतुरित्यादि तथा श्रष्वथ- रिति चरगवाचिलवात्‌ पारिभाषिकजातिवाचो (१)। रल्नुरिति ्रप्रागिजातिवाचौ, एवं हनुः wR: (२) करः ay: इत्यादि श्राक्घतिगणोऽयम्‌ |

२७९ | वाम | वामञ्च लक्षण शफ सदश्च सहित संहितख उपमानञ्च तत्तस्मात्‌ वामोरूरिति वामौ मनोषरा- TE यस्थाः सेति वाक्मम्‌। वामादोनामनोपम्या्ं वचनम्‌ | सफल- सम्फलःम्यामित्यन्ये | रमोरूरिति- रण इव जरू यस्याः सा। एवं करिकरोरूरित्यादि |

२८० तन्वा ag: भ्रादियस्य सः तस्मात्‌ तम्रिति।

[

(१) कध्वग्युः यजुष्वद्वित्‌ ऋत्विक (२) यन्त्रविशेषः टेको इति माषा।

ce ee es

२९२ aerated व्याकरणम्‌

Pash, पैन वरतनु सण़वदन्ति FAT, ततु स्मरहरः णायते इत्यादौ स्यात्‌ | तनादिवधा- ततुशशुररभींः AE पष प्रियङ्गवः | awe, कुरिति प्रोक्ता तन्वादौ सरयुस्तथा ame व्यवख्यावाचित्वात्‌ नानि वाहन्त-कमण्डलु- agen नित्यमूप्‌ खात्‌ संन्नायाम्‌ भदरवाह, कमण्डलुनीम कादित्‌, कटूनौगमाता | नानि किम्‌ THAT: | शभः दरदं निपात्यम्‌ | शरस्य wat शगः | rare त-लुकि | श्राप दैप ऊप लुक्‌ स्यात्‌ त-लुकि | बहुलाः afaararg जात इति ष्णस्य लुक्‌, लुकिन तवेति निषिधात्र त्रिः, त-तुकि श्रापौ लुक्‌ बहुलः, रापो लुकि प्रक्षत्यव- fafa: एवम्‌ श्रखिन्यां जात इति agian पो लुक्‌ श्र त-लुकि किम्‌? बहुनानाम्‌ श्रखिन्या् पतिः बदहुलापतिः

भरखिनोपतिरिति |

इति Sau: |

कारकम्‌ | २९२

कारकम्‌ २८१। ल्धथसम्बहुाक्ता्ं प्रौ ( व्यथ-सम्बहि-उललायें ७।, परो ।१। ) Ia सम्बोधने त्येरक्रार्थे कते सति प्री स्यात्‌ क्ष्णः थोः श्रानम्‌। विष्णो सर्व्वोऽ्ची जोवनः पाता दानोयः प्रभवो लयः

rt ---- et ee -- = ~ ~ ---- ----~ ~~ --~~~ ~ _~~--~--~------------------------ ~~

२८१ क्थ (१,सेर्थो ल्यः, उक्घासावधंशेति सः, WaT सम्बदि्च varie तत्तस्मिन्‌ | wat (१) fe खाधौदिपश्चामकः, केषाञ्चिन्मते खाधादित्रामकः। यदुक्तम्‌-(२)

“सार्थो gaz faye संख्या awarfeta च। श्रमो vga लिङ्कार्थास्तयः केषाञ्चिदग्रिमाः" इति। तत्र खार्थो विशेषणं (३), द्रव्यं विशेयम्‌ ( 8), fay प्वादि, संख्या एकत्वादिः, कश्मादिर्ढादिः। तथादि गौनिंत्या (५) इत्यत्र

- न= ~ ~ न~ ~~~

(१) द्यादिभिलिङ्गानां ङ्पाणि farce eiziarauta निश्पयति ल्य व्याटोति इर्गादाशः।

(x) शब्द्‌ नोञ्चाखमाणेन age प्रतिपाद्यते | तद्य चब्द्ख तदस्तु Waar शं तषयेति प्राशः

() भ्येष्ति ay: | तत्र लिङ्गा cara चन्दाथा इति faa: |

(४) पिशिते सब्डध्यते वेन तत्‌ विशेषणम, दतरव्यात्तकमिति याषत्‌ |

(५) भिचिष्यते गिगेषणयपदेः सम्बुष्थते मम्यक्‌ ated यत्‌ तदिेष्यम |

(६) गो्जातिनित्येमथः) तत॒ fame ध्वंसप्रागभाषरहितत्यमिति। लादिशक्तिषादिनो ब्रेवाक्गरणा xainq एषयिदरभिरषठदान्रुतस्‌। भोभांठश- मतश्चेतत्‌।

२६४ Aras व्याकरणम्‌ |

खरूपं (१) विेषणलात्‌ खाथेः। शब्दो wa (२) प्रतिपादयन्‌ दौपवत्‌ खरूपमपि प्रतिपादयति जाति; शद्लात्‌ द्रव्यम्‌ (2) | एवं(४) पटोयः शुङ्गः, Ney घटः, पाचको Aa:, दण्डो Ia इत्यादौ जातिगुणक्रियासम्बन्धाः erat विशेषणत्वात्‌,गुणघटमे त्रचेत्रादयो द्रव्याणि विशेथत्वात्‌। गौः सन्दर (५) इत्यादौ तु शक्याख्रयतया

(१) गवाद्िशद्धखङ्पम्‌. तदपि fag. तथाहि "न चालि पत्यो लोके द्रो यत्र भात दूति सं्चिप्रषठारख गोयीचन्द्ररुतटोक्षाया व्याख्यात्‌ अभिराभव्दद्यानङ्ूारः|

(>) शब्दलद्प्स्य qed प्रतिपाद्यपतिपाटश्योरमेदाप्तिं vera facafa शब्दो ह्यधमिति-दोपो यथा अर्थे घटादिकं वसतु प्रतिपादयन्‌ न्नाम विपयोकृषमन्‌ त्तानविषयोकरणमङकालमेवेत्यधः खङ्परमान्मानमपि प्रति- पाटयति बोधयति, तथा गवाद्गिद्धोऽपि अधमभिषेयं गोवाटं प्रतिपादयन्‌ सखद्परमि प्रतिपादयति। एतेन wnfengaquafy fagreat भव्रतोति फलिताः |

(३) जातिरगोत्यम्‌। शक्यत्वात्‌ शक्गिषिषयल्वात्‌ | शकङ्गिसतु awe दयम्ौ eM दूतीश्ररेच्छार्पेति तार्किकाः। आपुनिनषङेतसंयदाथम्‌ छामातमपीति केचित्‌ | तजन्तानन्तु व्याक्ञरणादिभ्यो भवति। तदुक्त “श्नि TH व्याङरणोप्रमानकोषप्रवाक्याद्‌ ग्यश्हारतञ्च। वाक्यश येषादिटतेवदन्त सान्भिश्यतः fagues ear xia arg” दति।

(४) varefaat विे्यपिगेषणमावं दशयतु wafafa; पटीय carte -प्टलवसमनाधिक्गत्णो गुणः, न।नगुणत्िशि्टाभित्लो षटः, पाक- क्रियाश्रयाभिच्ो भेत, टडसम्बन्धप्टभिन्नयेतर दयें शाद्धबोधाः।

(५) जातिश्गिवादिभते जातौ लौन्द्यादिगुणानाममश्वात्‌ गौः सुन्दर ग्याहो शाद्दगोधानुप्पजिमाशद्य cares गौ; रन्द्र इति शक्या यतया wal जाति- सदाश्रयतया। व्यज्गिः-षक्ञारिमदूगोप्णडः| तदुक्रमभिरमेख “नन्वेष व्यक्तेः पटाध्ाभावे गौभज्चवतीदयादौ कचं वयक्गिप्रतोतिः, जतिर्यद्ेरविनाभावात्‌ ग्नि प्रतोतिरिजिरोष इति। (ब्यक्ेररिनाभाषात्‌ व्यक्तिं विना जातरनवस्याना- feu ; 1 |

कारकम्‌ | २६५

aafata द्रव्ये, जाति ara दति यद्यपि (र) प्रयोज॒ननिवा- कारितया व्यक्ञयो जातेभित्रा एव, तथापि ता एव वयक्षयस्ि- रोहितमेदा जातिरुचयतं यदुक्तम्‌ “श्रधैक्रियाकारितया भिन्ना व्यक्तय एव च। ` ता एव व्यक्ञयस्यक्मेदा जातिरुदाद्रता" इति

धर्धक्धिरोरमेदवादिमपैनेदम्‌। fag ara: (२), HY A ज्ञानमित्यादौ एकयैव सिक्तया विरेषविघानानुपपत्तेः। नापि (३) HQT व्याधः, एको हौ बय इत्यादौ स्यघेताकल्यनात्‌,

"-*-- ~ ~ ~ ~ = ~ ---- ---- ~ ~ ~~~ -- ~ = ~= ----- -- te -- -----~~ er <r

(1) येचजातौ ufe वटन्नोऽपि धम्यधग्पिणोरमेदमङ्गोकुव्वन्वि, तन्ते गौः सन्दर Karel कबिदिरोध इति दश्चयितु' aaagrwefa यद्यपौति। प्रयोजनं yanrorte, afqatgafcs जातो सम्भउति तदा निरवयवत्वात्‌ | waa: गवादयः। विरोह्ितिभेदा-ति सहितः खननिव्यक्तः भेदो यसखास्तचाभूता एतेन जातिव्यक्तयोरमेदभावषः प्रति्पाद्तः। wags नैयायिका ‘area fram: पटा LATS: | जात्यादयः wafer टव प्दख्ाभिपेय दूयः। तत्र आतिः समव्रायः, तैन समवायम्बन्धेन Marana Anza श्नि रिति तैषां मतम्‌ तथाच ' 'तत्तच्नाच्याढतिविपिष्टतन्तदुव्य ङ्गिनो धातुपपक्या कामाना ufaaterafafafaeaal विश्ाम्यतो"ति was सिद्धान्त Sura |

(२) लिङ्गार्धजच्चपे उत्थकमप्रा्ं लङ्गं स्लारिकं name एवन त्‌ प्रच याः| तख प्र्ययाण्तवे दोषमाह sarfe |

(१) संख्याया अपि सिङ्कव।च्यवमिव्याह नापौति। लयणताकलखनात्‌ संख्याया दूति ay: | तथाच enigma एकहमाटिमंख्यायाः ब्द्वाच्यत्वख् कप्र्याटिलर्थः। swag ' तानि क्रमाटेकदिरष्वथषु प्रवुज्यन्ते। हिशब्दो. हान्तः। नरादयः संख्याशब्दा sat एति सन्धकारेण। fag “faye मिनिमुक्गात्‌ सुः पद्व्वामव्ययादिति, ऋद्रव्यवाचिनामनव्ययानामव लिङ्कसंखया- विनिसुङ्गत्यम्‌ wey लिङ्क विद्ते एव द्रति रंपिप्िसारे कारकपदे

२४

२९६ Aaa व्याक्षरणम्‌ |

स्यादिविषाननु argaraa(e) परे तु प्रकषतिप्रययौ प्रखथ- विशिष्ट प्रयय धं (२) सह ब्रूत दययङ्ेर्याधमप्याइः एवं ठादि- रपि। अ्रख तु खार्थादिवतुष्वर्थेषु विषयः, टादिषु विशेषविधा- नात्‌। यदुक्ञम्‌- “एकै एकक इत्यन्ये हाविव्यन्ये तयोऽपरे | चतुष्कः पञ्चकः केचित्‌ चतुष्के सूत्रमु्ते॥" विकमते तु (२) दधि पश्यतोव्यादौ चम्यक्रकृमुमसुवा-

य) a as = ~~~ ~= ee ee ~ - ----- - (+ न=

५३ Gaw टो कायां गोयीचन्द्रः। MATE विकारो तथाच ततेव BA दृत्तिकारेण एकचनहिव चमब्र्धवचनानां संन्नागद्धानाम्‌ एकं वतोग्यादिक्रमेण व्यतया Haat अन्व्धतां प्रदृश्य “एको हाभ्रि्याटौ waa: प्र्येनानद्यते कैवल्लाप्रयोगिलादि wat संख्या fe प्र्ययाये इति प्रतिणादितम्‌। गोयोचन्द्रो- ofa “aa लिङ्गः प्रातिपरिज्गा्योऽङ्कोहत इति प्रतिभाती'"याड |

(1) wat arfrarrat संख्यापि यदि लिङ्गाथस्तदा उक्गाथांनामप्रयोगद्ूति नियभात सथा दिव्िधानं कथ ि्याशद्याह खादति सापुलार्थे--पदसा पृतवाधं नापदं शालते प्रयुद्चातेनि भाष्यवचनात्‌ |

is) weary Wearanifzny | सह गुगपत। SATA “प्रलयाः निनखः्ैबोधकल्' प्र्ययानामि"ति। रतदनुकरनं जमरभतं प्राक्‌ टोका टिप्न्यां दितम्‌ तत्र टोकायां MART ` पञचकप्े तु संद्याङ्गमरादयः vafaer एव पिभर्िभिर्यो्यनते, यथा wae एकराधगिगेषो guerre द्योते ++ arg सति पञ्चकः were एति खोशम्‌। तद्धादुभय थापि व्यवस्या सोकरण्धोया अगिरतोधात्‌। कोऽत्र काकरटन्परोक्चायामिव निबन्वातिशयः, खच्छानुरोधात्‌ कंचित्‌ किडिदान्रयणोयमि युक्तम्‌ |

३) fawniza: dermis प्रयया्धमाङः। तके टपि प्ण्यती- waret षिभङ्गिनोपे कथं तह्मती तिरि्याङ़ लिक्षमते लिति दधि पष्यतोति दधिः वमकद्तनायय cama: | रङ्ग - प्रतौ श्म शिष्य प्रत्ययो याति anaifafa |

कारकम्‌ | २६७

धितवसनादिवत्‌ क्ि-जनित-संस्कारविशेषारेव संख्या कर्मा यव- गमः) भ्राठृको त्रोहिः (१) wer ब्रोहिरित्यादौ लक्षणया परिमेयो त्रौदिद्रव्यम्‌, परिमाणन्तु खाथ इति, तख्माच्छक्लि- लक्तणान्यतरसम्बन्धेन न्नेयमातरं वसत we इति |

सम्बोधन दति -खितसख्याभिमुख्यविधानम्‌ (२) श्रत ल्य- घोतिरिक्रत्वात्‌ यां प्राप्तायां वचनं, यथा--हे विष्णो हे विष्णु हे विणवः,भो वत्त भो हक्तो मो क्ता इत्यादि व्येरिति-्रस्योप- aaa (३) पोताम्बरः, न्नातरामः, “विषहन्नोऽपि daar खयं हित्तमसाम््रतम्‌,” “aafanfea: var समारोदृमसाम्मतमि"-

(१) यटा केवन अ्ाद्क्रशब्द्‌ः प्रयुज्यते तदा शब्दो fe aru: परिमाणं र्यम्‌ यदा तु areal Afefcad प्रयोगस्तदा लक्षणया पररिभेयो ष्टव्यं परिमाणाच्च qi. तस्मात्‌ शक्याधवत्‌ लच्छार्घोपि दरव्यभिति। aaa हि टत्तिविशेषः, सा s—geren’ तदुक्तो ययान्योऽर्थः प्रतीयते। ee: प्रयो- जनाद्वासो TAT AT AT AGT |

(२) स्थितस्य fase vee’ afagefrrd विन्नापनीय- विष्रयधोधनाय afuaalata सम्बोधनम्‌ उक्तञ्च हरिणा सिद्धखाभिकतखो- भावमात्रं सम्योधनं विदुः| प्राप्राभिसुख्यः yar: faarg विनियुज्छते इति। अचेतनेषु तूमचारात्‌, यथामो दच्े्यादि। अव्र प्ूबोौक्रलिङ्गा्थातिरिक्तमर्था- न्तरम्‌ उदे श्यत) पं प्रतीयते, तेन Seavey षीप्रा्निवारणणाव एषम्‌- fautafata |

(8) उषलजबत्वात्‌ खप्रतिपाटृकुत्प सति सेतरप्रतिपादकत्वात्‌। शव्या- wWeasty समाराव्ययाभ्यासक्े फारकेऽपि। न्नातराम LAT न्नातो रामो येम इति वाक्ये मासेन wat उक्गः। साम्प्रतमव्ययम्‌, युर हे साय्मतं स्थाने Kaa | अनेभाययेन पिषदकः, पन्था Kad ata

२६८ TANT व्याकरणम्‌ |

त्यादौ सव्याभ्यामुक्तऽपि प्रो। फे walfa—afee क्रियानिमि्च- भूतं ane, तेन मृदु भूयते इत्यत्र मदनो नोक्ञार्धता(१) Tee पलक्षण (२), शिवो देवता we शेव इत्यादौ waaay | को रामः, का प्रोता, ददं न्नानमित्यादौ उक्ञलाभावेऽपि wa पौ ये तु सव्वं हि वाक्यं क्रियया परिममाप्यति षति न्यायादस्तीत्याय- [9 C $ 4 weed, तन्मते स्यथ ग्रहणं कणः शरीः ज्नानमित्यादौ खधमात्र- mater प्रोविधानाधं, क्रिया्याद्वारस्य व्गतात्प्यानुरोघात्‌ | wala पथक्‌ प्रोदिधानात्‌ द्याटोनामनुक्ग एव ॒विषयः। तयेरक्ञानां क्रमेण (2) उदाहरणं मन्यै दव्यादि | मत्यै द्यस्य षट्‌- aan | सर्व्वौऽ्यते wads an, aan जौव्यते जोवधोधे- © fi (क, oe, oO an saz, Wa: पाति पाधोचं ठन्‌. मन्माय दौयतं दापोर्भऽनोयः, भरन्यवापि प्रयोगत इ्युक्तः। सव्यात्‌ प्रभवति प्रपूव्वभूधोजंऽन, सर्ववं लौयते लोधोडऽन्‌

(१) क्रियानिबित्तमूतं -क्गियायाः arca@ed, येन पिना ae भव्ति तत ae fafaafama:) क्रिगराश्िषगव्य कम्परन्नायाभपि क्रियानिमि- ्भृतकारक्रलाभावात्‌ Weta aq नोक्राधव्वमिति। बमौलंत्ताफनन्वपे बच्छति।

(२) दृद arena, कचित्‌ कारक्भिच्नग्यणक्गाधैलात | यचद्योक्गलात्‌ - aa afgaa W877 सम्बन्धग्योक्गत्यात्‌ | द्यत्र Mala WA: | She gutta “तथाच वाक्तिके तिङडहत्तद्किनसमादरमिष्िति हितीयाद्यो भवन्तोति" |

(३; द्येशक्कानां कारकाणामिति UT: | परमण -पन्धकश्िद्टकारत्- क्रमेण |

कारकम्‌ | २६९

२८२ कमीक्रियाविेषेणामिनिविशाधिभीड- सखासन्वध्युपावस-डं टं दी | ( wa—S ei, su, Bie)! ata क्रियाविशेषणम्‌ ufufafamese cde स्यात्‌, तव aH

~~ ~ ~~ ~ = ~ --- --- ~ ~ ----- - ~~ ~~ ~~~ -~~ rr ---- ~ rer

२८२। क्रियायाः विशेषणं क्रियाविशेषं, fam: निविशः, श्रमेर्निविशः श्रभिनिविशः, tie Ura UTE तत्‌, श्रधेः शोङ्खास्‌ श्रधिगोङ्स्थाम, श्रु शरधिश्च उपय wa तेभ्यो वसः, श्रभिनिविश्श्च श्रधिभोङ्ख्यास्‌ प्रन्वध्युपावसश्च तत्‌, तस्य डं तत्‌, wa क्रिया विरेषणञ्च प्रभिनिविशाधिशोड- खासन्बध्युपावमडश्च तत्‌ यत्‌ क्रियते, करतु; क्रियैया यदाप्यते तत्‌ wae) तचचिविध, नि्यैचयं विकाय्यंप्रापयञ्चेति ततर कर्तः

aut करम्पणि मनु | त्तौ कार्य मियुकतम्‌, तदपि कम्टरैसमानाैकम्‌, ww: wife ष्यण | “are feared, करोतेनिखिलक्रियावाचक्लात्‌ | अत्र क्रियाव्याप्यतवं क्रियाजन्धफलाश्रयत्वं, गच्छतोयत्र गसनजन्यविभागा- खयतया Ysa, एवं BMA व्यागजन्वसयोगाचयतया sacra कम्मौ्ापतेः। किन्तु क्रियान्यधातवर्धतावच्छेदकफलाययत्यं धात्ययं सच्चिविट- फलशालिलमिति यावत्‌ waa | एतेन गमनजन्धदिभागदख गमधाल्थं तामव- च्छटजतया TANT पूरेण eae, उत्तरटेशसयोगावश्छिन्नक्रियाया एव MANTUA) तथा उन्तरदेशसंयोगश्य व्य जधात्वधं तानवनच्छेदकतया Mane कम्परतवं,पूष्वदेशव्िभागावख्छित्क्रियाया एव wwe | नचयामं गच्छति aq maha क्रियाजन्धपात्वधतावच्छेद्‌कोभूतखयोगवि- भानाश्रयतया हंयोगविभागयोय क्तकरोभयनिलात्‌ कतुः कम््ीलापत्ि-

२७० सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

रामं नमति सानन्दं ध्मानभिनिषिश्च सन्‌ | खो शोऽधिगेतेऽदहिमपिष्ठितोऽबि- मध्याख घोषं मधुरामनृषय | यो दारकाम्युषितो विङुर- मुपावसच्चावसतात्‌ EA:

क्रियया यख्योत्ादः प्रकाशो वा तत्रिब्ये, यधा कटं करोति, पतर प्रयते दद्यादि क्तं; क्रियया यस्या; प्रक्ततरन्‌च्छेदेनो- च्छेटेन वा श्रवस्यान्तरापत्तिम्तहिका्य, यथा वस्तं wala, काष्ठ ददतोत्यादि। करः क्रियया ant विगेबसिदिदंणनेनानुमानेन वा यत्र ज्ञायत तत्‌ प्राप्ये, यथा वेदमधीते, qa पष्यति इत्यारि। काष्ठं wa करोति, सुवणं कुण्डलं करोति caret काष्ठं faa, मखकुण्डले निंद्य | यदुक्त यद सञ्जायते Ya जनना यत्‌ प्रकाशते (२) | afaae विकाथच्च कर्य इधा व्यवशितम्‌ |

~ --- - - ~ = ~ ~ ^ ०, (त 7 1 ee १1 111

रिति वाच्यं, क्रियायां एरकोय्यविशेषगखय विवकितत्यात्‌ | तथाहि परको- यक्रियाजन्दभाल्वयताच्छेटकोभूतफलरयानित्वं कम्ु्यसिति | प्ररु सविषयक्ष- प्टायांभिधायिनि जानाति एष्छतिकरोति gfe यतते caret a विषयष्वा- wurmaaata fa reac: |

(>, यत्‌ पूं अत्‌ पथात्‌ जायते, ay पृष सिति शेषः पात्‌ लक्रना प्रकाशते तदुभयमपि fare |

कारकम्‌ | २७१

प्रषतयच्छेरसम्भूतं (१) किचित्‌ काष्ठादि भखखवत्‌।

किञ्चिद्‌ गुणान्तरोत्य्या सुवर्णादि विकारवत्‌ (2) |

क्रिया-क्त-विशेषाणां सिदिर्यव्र विद्यते (३) |

, दशनादनुमानाहा तत्‌ प्राप्यमिह कथ्यते

परे तनौसितमपि कश्मान्तरं, तदिविधं, प्रतिकूलमप्रतिक्‌-

यथा-भ्रोदनं बुभुक्तुविषं भक्तयति, ग्रामं गच्छन्‌ ठत्त- मूनमुपसपति इत्याहः | तदस्मश्मते निवे्यविका भिन्न प्राप्य- मिति wait प्राप्ान्तभूतनिति। Sat ग्रामं गच्छतोत्यादौ उत्तरदेशमंयो गावच्छित्रगतिक्रियाव्याप्यलात्‌ ग्रामस्य saz fadd ल्जतोल्यादो पूव्वदेशविभागावच्छिव्रत्यागक्रियाव्याप्यलात्‌ FAS टत्वम्‌ भरतएव गमिव्यज्योर्नेकपायता (४) इति सुखं

-- "~~ - -~ --~ ~ -~-~ - ~~ -- ~~ ~~~

(१) “wait: quire उष्ेटो franret सम्भृतं प्राप्न काटि. किम्भृतं? भस्मवत्‌ HART | षट्‌ पुनः सांद्यमते, areas श्गिद्पेण ww: सन्भषाटिदयक्रमिति aa ते fe कारणेषु शक्गिरूमेण काययोषस्वितिरि- न्याः" -ष्ति कातन्त्र २१९ छत्ररोज्ञायां कविराज्ञः।

(२) गुणान रोत्यक्या खवस्यान्तरापादनेन हेतुना frarcea qawatfega fafga हवर्णाटि। अवापि पष्ववत्‌ सांख्यमतमनुसरखोयम्‌ |

(३) यब म्ण विद्यते waa) “aerag षटं करोति कुण्डलं somaret लतिषाष्यव्यापारनिष्मन्चानां षटादोनां तत्ततक्रियाबिर्ेऽपि कालान्तर प्राय यथा षटोऽयं क्रियाजन्यः कृण्डलमिदं क्रियाजन्यभिति विशेषः fefanta® तधा शालान्तरे तख ore: क्ियाजन्ध्तये arate fa कासि,

(४) सभानाधेता। गच्छति व्यजतौवयुभयलन धावं लद््पर्य परिख्न्द्म- ्पव्यापारद्यामेरेऽपि धालर्धताश्ेदकफइङ्प्योरत्तररेथसं योग पूष्वदेएविभा- गयो्भेदात्‌ |

ROR eared व्याकरणम्‌ |

गच्छति पापं anata गौणगतित्यागकियाव्याप्यलात्‌ (१) सुखपापयोढंलम्‌। एवं पुष्यमाकषति रमन्‌ इत्यादौ लच- णया कर्तः क्रियाब्याप्यलात्‌ ance ठलम्‌ वलिवन्धमा चष्टे वलिं बन्धयति, कंसवधमाचष्टे कंसं घातयति इत्यादौ बन्धवधा-

स्यानकर््तुः क्रियाव्याप्यौ वलिकंसौ, कथानुबन्धस्य तज्रिवन्ध- नलात्‌ (२)।

क्रिया ध्वधेः, तद्दिरेषणस्य एकल नपुसकतवं च, क्रियाया

( १) उत्तरदेशमंयोगानुक्‌न परिख्यन्दनादिङ्प्यापारो हखयगति", सख्य ame पू्रेशविभागानुकूनपरिष्यन्दनादिद्ण्ययापारः। ge गच्छति पापं MIATA TASS: सरणापादिभिः कन्तः एम्बन्धसतद्नाय्च एतावन्मात्र प्रतीयते, लच णया फलमाव्रद्य WIAA, तु उत्तरदेशमयोग-पूछरेशि- भागानुकरूब-परिखन्द्नारिक्षभिति गतिद्धागयोरत्र गोषत्वम्‌ | गोणलन्तु se खिक्त्वमिति |

(२) बन्धवधथन्टौ भागे अलन्ौ | waaay कंसस्य वधः दूति कमार षष्यरां षोसमासः। प्ादाख्यानेऽ्ये जो कते लङःमहिनाभिति ब्ुवचन- निहशारलोलुकि करिव्विमित्तापाये नमिन्क्याप्यपाय एति न्दायात्‌ हन्तेः प्रहमतिषह्नाष Suse RATA षी निवत्ते | खतपवोक्र,-"प्र्ययोद्धद- लोपे प्रलत्यार्पस्तिरिष्यते। शटनतनिष्टत्तौ सभासोरपि निषत्तते' इूति। तिन बन्धनषननक्रिययोः wate हितोया तिषटति। ततो बलिं बन्धि कसं षाति देवाभ्यां तिएशपो। एतेन दद्यापि बन्धनङ्ननङ्रियाव्याप्यो विकलो, तथा STRATA ; कियाव्याप्यौ बन्धप्रधाविद्यायाति, तचापि गन्धवधारामकतुः क्रियायाप्यौ वतिकंसाविदुङ्खा तत्र हेतुमाह कथानुबन्वदोति- कथाहुबन्धश RUA अनुबन्धः सम्बन्धो यद्य ताहगस्य बन्धश्च afquaqaara वरिकं सज्विताचात्‌ (तो वनिकंडौ निबन्धने हेत्‌ चाश्रयादिति याबत्‌ यख तद wiry वङिङतावाशिय बन्यत्रधाद्यानद्य प्रवसितत्याहिति निष्बर्षः। अनया Can वहिकंरथोर्न्धप धाया नकः कियाव्याजलय दर्भि्ताति |

कारकम्‌ | R92

fagdeafafaraaarg (१) साधु; पाकः, साधू पाकौ, साधवः पाकाः caret क्षदभिहितो भावो द्रव्यवत्‌ प्रकाशते Tae सं कलवादयः ia (२) टल्वातिदेभाततु (a) ay नयतीति BVA सदुन्यो इत्यादौ कव्याद्यनेकाच इति यः

राममित्यादि | सन्‌ wit: ध्मानभिनिविश्च मानन्दं यधा स्यात्तथा रामं नमतीव्यन्यः घश्माघेयालौनाभिनिवशोत्तरराम- विषयक-सानन्दभिन्रनव्याश्रयः मत्रित्यधः। Att घोषमध्यास्य पथा्मथुरामनष्य afsafafea: सन्‌ अअहिमधिशेते। aa दारकामध्युषितः सन्‌ विङ्करढमुपावसत्‌, म॒ नोऽस्माकं त्‌ (४) इदयमावसतारिल्यन्वयः।

कल्याणेऽभिनिवेशः. याया संज्ञा यस्मिन्‌ यस्ित्रभिनिविशते

aufufafazaaa:, अ्रताधिष्ठानं कुर, ग्टहेऽपिष्ठानमित्यादौ तु

(१) क्रिया पृनरेशद््प्येति बेयाक्गरगा KM MATT) तस्मादेक, TAA QIRA |

(२) guafeata दरूयत्वातिटेशात्‌ सदृ भिहितमागस्य एषग्‌र्पत्वसुक्त, तेन तस्मात्‌ त्वादयो WITT | अतणएप्र "अष्टयगद्पक्रियाया 3रेषणस्ख aA May ति सभं चप्रमारे कारकपाट्‌ ५८ स्त्रम्‌ कद्ःभद्धितमाषस्यापि कर चिद्ध्रयगष््पत्वम्‌, wfazianafaafafa न्यायात्‌ | तेन aye रति- afeuats रुखोकरणा तः व्याहत मि्यार्‌सिञम्‌ अल सञ्चार दतस्य WIT qua तदूव्विभेष्रणदख रतिमन्द्राष्पो्यख Tas नपु षकववश्च।

३) क्रियाशिगेषणद्येति a4: |

(४) gfefa “uate: एथकभय्द्‌ दये ' इग्याणयनेनक्तम्‌ |

२५

298 सुग्धवीधं MaATTA!

कवचिदपवादविषयेऽप्यह्र्गोऽभिनिविशत इति न्यायात्‌ (१) waa | ala उपवभति, ग्रामे उपवसति इत्यादौ तु wae aafaae डम्‌ ' तथाच ala wa वा वसन्‌ सन्‌ तिरात्रमेक- रात्रं वा उपवसतीतयधं; यदुक्तं -

वसतावप्रयुक्तऽपि देशोऽधिकरणं मनम्‌ (2) |

saga तिरातादि कमम चोपवसेः सतम्‌ इति भाषम्‌ | eh तु अरनगनाधस्यापवसतरिह ग्रहणमित्याहुः। तक्ति एकादशोसुपवसन्ति निरम्बभक्ताः, उपो रजनोमेकामिव्यादौ सदाध्वादिना टम्‌ एतषां टत्रिधानात्‌ war श्रभिनिविश्यन्त, यो्नाहिरधिययति इत्यादा eam (a) रणे राजानमपिति- BAMA खात्‌, एषामटानाभमेव ग्रहणात्‌, रण राजानमपेत्तते द्वध: (8) 1

-~-- 8. १777) 7711 ~= = = ee = == eee = = - ~ - = = + ^~ ~~ ~~~ ~~~

(1) moat विगेषविधिर्सगः सामान्यविधिः। ara चाद्धिन्‌ अपवाद विषये अभिनिविशते इयनिक्रर सक्ता तदेव efnafata |

's) अत्र तीधद्पो देशो aafgunqmerts पदश्ाभिकरणं जरात fart: |

१) तथाद “मण्डने मण्डनाकारो रेखा बाजिमयी ay) सव्यापसयये हि Ha aparfafem चय saa उधिहितद्तिकम्मयिक्तः| एषं "बनं रध्युषिताः we पिजिगोषोगताध्वनः। मार चोदृश्वानहा रीता मन्तयादर ्पयक्गा दूति TH | अलाप अधुपितेति कमणि क्तः |

(४) अत अपिपृशचस्याधातोरपेक्ञारयत्यात्‌ AMAA, तैन रणे द्धि. RTH A कमलम्‌ अत्र गङ्काधरः "रयो दूति गव्यमानद्य धातोरभिक्षरणं, तेन रणख्िवाराज्ानमपेसते' दत्ाह।

कारकम्‌ २७५

waa | देशाध्वकालभावं वादेः | ( देथ-अ्ष्वन्‌-काल-भावं १।, वा ।१।, Wes ar) षटेर्पुभिर्योगि एते ठसंत्ना वा a: | नदौवनेषु चोषित्वा क्री गा द्रलेष्वहनि गि च॑क्र मित्वा प्रियानोतिं रामो रक्तीवधै खितः a

२८२। देशाष्व। देशश्च WAT कान्तश्च भावश्च तत्‌। नास्तिटंयेषां तेतेः। देशो नदोमूधरकन्दगदिः अध्वाष्वमानं करयोजनादि। कालो सुहत्तायनवत्सरादिः (9 f; भावस्तदथ-त्य परो वधारिः (१) करो हस्तमानम्‌ नदरित्यादि। नदोवनेषु उषिता bal © 9 षासं क्रत्वा क्रोशान्रन्नषुं wefafan चंक्रमित्वा इतस्ततो भ्रमणं क्रत्वा रामः प्रियानोतिं सोताया आानयनविषये wie’ रचसां वधविषये ितोऽतिष्टदिल्यधेः एवं कुरून्‌ खपिति, कियन्त- mart तिष्ठति, मामं खपिति, प्रतिं वसति, पत्ते कुरुषु खपि- तोल्यादि। sahara नद्य उद्यन्ते, AMAA, मासः aa इत्यादि स्यात्‌ विकल्पते तु नदोषु sua जनेरित्यादि। MS धवः सत्तादयरथेषु वत्तमानाः |

भवम = = = = == "~ ~~ = ~ ~+ =-~-~ ---~ ~~~ ~ ~~. - -~--~--- - ~ ~ *~ ---- ~ ~ ~ न~ = ~ = ~~ ~~ ee

(~ # 8, कि है (1) तद्थत्यपरः- सभव अर्धा यद्र तदथः, सचासौ wafa aaa, परो यस्मात्‌ षः। षकः ` बधाद्ः।

२७१ FATT व्याकरणम्‌ |

तथधाच-- सत्ता निवासासन fafe हदि क्रोडा रुचि स्यन्दन जोवनपु | aa fafa ata fama नजजा wal afa wea WITTY | YET जरे जागरणे WHA सप्र AUST मदेषु दुगनौ यत्न BA (१) नादक्रतौ धवोऽढा टभ्याविवन्नावगतः मढा | (२) तथ्ाच भागुरिः- “धातोरन्त तत्ते धालध्नोपमंग्रहात्‌ | परभिहब्विवन्नातः कर््मणोऽकन्िका faa (2) 0” इति। कोचित्‌ मद्रप, famed पचति fated पयते, oF

राव्रावोदनं पचतीौव्यादिकमिष्यत sare: | इदं नित्यमि्यन्ये।

१) wa we दरचयि urs: | yet विशच्यागः।

०) Barer दुर्गादासः, यथा दौ्ेन्यःद्रिपु चा वर्तमानास्तु धातत" | ART MATAR यतनलसादकमाकःः | नोटिन्याद्षु aay प्रोनाये ति धातवः| तहदट्भाग;कमाकाः व्यमहन wat wRMAT दूति।

(२) धातेःर्यानर aa यधा प्रापगा ARR Te ATR Wed बहति, waaay aa, नट ala पालन सह TAT उपसंथरहान्‌, यथा प्राणान्‌ MITAA MMI BAA भाल्थनोपर्ममहादर्माकता | WT तपस्यति मनः BT. ufa ary garersfy | प्रियया भवति. आनते da career | कमणो.

sframat aa श्रत्‌ जनः|

` कारकम्‌ २७७

vce | सदाध्वादि व्याप्ती aa: सिदे तु धम्‌।

( सदा ।१।, श्रष्वादि ।१।, व्याप्तौ o1, wa: aul, faz 9, तु।१।, धम्‌ १।) |

सव्दर्पभिर्यीगी ब्रल्यन्तसंयोगी श्रष्वादयो निलयं gis: स्युः, श्रधसिदौ तु WAST: |

wa: छष्णोऽन्वितः क्रोशं मासो Tae खितः | गुरूपदेशं निलो anaes वाङ्मयम्‌

२८४ मदा ब्रध्वादियस्य तत्‌ दैगनिदच्यथमध्वादि cama ofa: साकल्येनाभिसम्बन्धोऽविच्छेद इति यावत्‌ तत्र(१) wae सिहिरथेसिदिः फलप्राप्तौ क्रियापरिव्यागस्तत्र | सर्व्वरिति श्रढमदैरित्यथः |

भृत्यरित्यादि- कृष्णः वाद्यं wed माभ्यां मामाभ्याम्‌ MAT AANA इत्यन्वयः | BU: AEM: ? गत्यै; maf, minaffaamart व्याप्याविच्छदेनानुगत cat) पुनः कटशणः ? Aa Tae fam, मासदयं व्याप्याविच्छेटेन faa CUI पुनः Blew: गुरुपदं नितः, गुरुवचनेऽत्यन्तासक्र cau: | क्रोशमिति गौणटत्वेन नोक्तं, न्यादिअवन्ताटगव्यर्था qe ठे टव्यमाष्ुयुरियक्गः। माभ्यामिति via फलसिइलात्‌(२)।

(१) eat अग्चनसंयोग स्यतं, तदथ हि अन्तं विरामं खतिक्रानः अन्यन a wal संयोगेति अत्यनसंयोगः निरन्तरसन्धिक्षषे इत्ययं | (१) बध्ययनयोजनद waeve सिद्धलवार्ग्िथेः। एवं mang

रद मुग्धबोध व्याक्षरणम्‌ |

भरसरभूतनिथा लरेलेव ठलमिति माघे भ्रत्मृततरियान्तरवेय- नैन व्याघ्यधमनुकपेति। यदुक्ग-- कालमावाध्वदेथानामन्तभृतक्रियान्तर | सर्वेरककर्योगि क्ीलमुपजायते इति TAMA मामः Yaa, मासौ Far, मासाः Yaa Carel सुष्यटाभावात्‌ ai sa कचि विदधति, aaa We: सुप्र दत्यादावव्या्िः। मुख्यदढाभावेऽटतलाह्वावे a इति कथित्‌, aad मासं सुप्यते, क्रोशं सुप्यतेऽननेति। एकादश्यां ayaa दति तु वागब्दस्य व्यवखया पूवणैव विकल्यः (१)। जन्म जग्म यदभ्यम्तमित्यत्र कालावच्छेदिकायां क्रियायां कानो- पचारात्‌ (२)। क्रौं कुटिला नदोति क्रियाध्याहारात्‌ (३) | व्याप्तौ किम्‌ मामयोरध्येष्ट, विच्छटेनाधोतवानित्यधैः प्यप- वादोऽयमिति at (४) कानाध्वनोरेवायं विधिरित्यन्ये।

धाकोऽधीत दयाटि, अनुषारो वेदांगत्रिगेषः। अन्यतर मासं ेदानधयैर faufy warfare: |

11) एज्ञादश्चां नभश्चोतैयत व्याप्ति a at क्मात्मि्याधङ्कय सभा- wt) yar vary तव्य व्यवस्यागाित्याहिकखः, परे एकाटभीभिति। तए रङ्गा गोसुपत्रमन्ि fate दयत ठदाध्वारिना टमिचकगम्‌

(२) sage क्रिया पलात्‌ चध्वङालाट्नितलेऽपि जदा ala कथं हितीये्या MATTE जगपदाथक्षसमादुसन्तिक्रिया क्ञानावच्छेटि- कानोऽवष्ठेदङ्ञो पिगि्टपीहेत्य arened | अतः क्रियायाम्‌ उत्यत्तिक्रिया- यां कालोपचारात्‌ क्रियेव काल दकः कानलारोगत्‌ MAT कमं चम्‌ जक wala पयस ते तदतुगष्छतीति वाक्यशमाप्कपादालरम्‌ |

iq) भवते व्यमानलवात्‌ नदी क्रोधं व्याप्य कुटिना भवतीद्धः |

(४) अपवादो शबेषिषिः। ब्या्यभामे eget erfgares |

कारकम्‌ २७८

२८५ | घोऽजौ ञः शब्दाशन-गति-न्नार्थाद-ग्रह- टश-प्ो-रखाद-नौ-क्रन्दाय शब्दाय द्वादासुतघवदहाहिं- साभन्नो इह-क्ष-माभिवादिदहशस्तु वा |

( घ; १।, श्रजौ 9, अः al, णब्ट- गोः ६।, श्रखौद- भक्तः, él, माभिवादिदहशः €| तु ।१।,. Ae tel) |

श्रजन्तानां शब्दार्थीदोनां यो घः अन्तानां टं BWIA FT खादादेः, इदेसु ar | acy; घोऽजौ जिरजिम्तस्मिन्‌ wea aay afaa gra, wat येषां तै। नासि ढं कर्म येषांते। शब्दा शनगतिक्नार्थाश WII WA टश्च ZW तत्तस्य, YS Maa नास्ति सूतघो यस सः, चासौ वहति a | fear अहिंसा, तस्यां wa a) wey नोय क्रन्द अयञ्च शब्दाय RIA Wey श्रमूतघवद्श श्रहिंसाभक्त तत्‌, तत्‌ अ्रखादनोक्रन्दायथष्दायहवादाप्‌तघवहाहिंसाभक्त तस्य श्रमिवादिः सः, श्रभिवादिष ca तौ, मै श्राकनेपदे तो मभिवादिदभौ। डाच काच afuanfeem ane Weal sata: weer धव इति यावत्‌। यधा ya पाठयति, fast शासं वाचयतोत्यादि। श्रणनाथा भोजनाथ यथा (१) -भ्रा्रयति fanaa, पाययति ord जलित्यादि। प्रीतोऽहं भोजयिष्यामि भवतो भुवनत्रयम्‌ दत्यादौ मोणभोजनार्ध-

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(1) अत अचनार्थानां गलाधःकरणमालार्तयेन पानार्थं अपि भोञजनार्घाः।

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रद QUA व्याकरणम्‌ |

गीधमध्यापरयद्‌ गोणन्‌ याज्जिकाव्रमभोजयत्‌ | खधामागमयच्छवुन्‌ भक्तांसच्चमवोधयत्‌ | ध्यमस्थापयद्‌ विण्शु्वेदानग्राहयद्‌ विधिम्‌ | देव्यानदशयच्छङ्गं AYAATIAT गाः खादारेणु -रक्षंसखखादयदनाययदूहृलोक- माक्रन्दयत्‌ कपिभिराययदाशु रामः। शब्दाययन्‌ रिपुमजहवदादयच्च यलानवादयदभक्तयदिष्टमच्यम्‌ सारथि -हिसाधयासु वाहानवाहयत्‌ Wanchai:

लात्‌ (१) SA MAA गमनार्घाः, यथा गां व्रजं गमयव्यज दूत्य दि। प्रपेगारोहणतरणप्रापणार्थरा afa गलयर्थास्तेन प्रावेशय- सअन्दिरिमध्यमेनं, तामङ्गमारोष्य सुतां wae, प्रियामुटन्वन्तमतौत- रहरिः, ननु मां प्रापय प्युरत्तिकं, रावणं गमय प्रीतिमिव्यादौ(२) ma .२।। तन्मते सितं भिनिखरा सुनरां मुनवपुपिसारिभि; सौध- faara लश्भयन्‌ दिजावनोत्रान(४.निशाकरं शभिः शविसितां

(1) उपभोगाथत्यात्‌ | अतर भोजनस्यानन्द्‌ जनकववध मुख्यभोजनख सा- रण्वषवाद्रणलम्‌। तथाचोक्तं गोवीचन्दरेय "यचा बभुत्तितख भोजनं परमा- wea तथ। छवनल्लयभोजनमपि परमानन्दृर्ट्‌ fa |

(२ सिध्यतातिगेषः |

(१ Ba *'्तनवातपरसुतृपुक्रतामषो कमने कमलन््मयदश्भसि `| "यशर Agfaza मरुता गनप्रासमतुनोय लम्बित" KERB Ae |

(४ ब्रा इयत याजद््यपिप्राढः।

कारकम्‌ | २८१

देसु -गेलानहारयत्‌ कौोथान्‌ ऋचैवृ्तानजीहरत्‌ कपोनकारयत्‌ सेत्‌ वानरैरपि राघवः | स््माभिवादयते cary जानकीं लद्यणेन Tat रामेण चामानमदप्ंयत BAT:

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वाचमवोचदच्युत इति तु श्रपवाद्विषयेऽध्युसगेस्य निवेशात्‌(१) | अरन्ये तुप्रावेंशयदिव्यादिषु उपसल्नं नोभूतध्वर्था गतिः प्रतीयते(२) दयाः | AMAT न्नानार्था यथा, बोधयति fret wa, stata aa fearfed, घ्रापयति जायां पुषयं,(३)स्रथेयति गातं कामिनौ- faanfe | wer: सत्तायथौः, यथा आसयति सुतं, शाययति ufafaente खदु शाययति सृतं, मासमधिशाययति पतिमि-

(१ शसितिमरेति प्रयोज्यकसुन कम्प्रत्वमिति शेषः | अत्र अच्युतः सितं शनेर्वपुः तरां fafa लम्भयन्‌ वाचम्‌ अोचरिनयुपयोगिशाक्याधः |

(२) उपसच्जनीभूतो गुणोभूतः प्रवेशादि््पधाल्ये। यदादौ गतिः प्रतीयते| तथाच प्रवेशस्वभ्यन्तरप्रा््भिः, पावेशयदित्यल विशधातोरभ्यन्रप्राष्नि- फलिक्ना गतिरधेः| ततय प्रेथाद्यथद्छ गौणत्वे गयथ सखैव शख्यत्वाद्‌ गत्यधतवेनैव प्रातेयटि्ा दिषु बञयनकनुः HATA) एयम्‌ चारो -आरीषणाय गम- fates: | अआरोषणफलिक्ञा गतिरर्धः] अतीतरत्‌--तरणाय अगमयदिवरः। तरणङ्वागाधजलपारप्रा्निः। प्राप्य -प्राप्र water: | aa प्रा्निफलिका गति- रथः। रएवमेवाभिराममतम्‌ | fad सितिश्ने्यतर तु “aafema लभिर्मम- मधापषज्जनोभूतं प्रापणाचमाह, अतः fafa कनि Maher: |

(९) गोयौ वन्दरेणापेषसराहृतम्‌ सिद्धा नकोमदयान्तु १। ४।५ सपे “ea त्ञानसाभान्याथां नामेव सृण, तु तदिरेषा्थानामिन्यनेन qaqa, तन सरति निघतोन्याहीनां स्ञारयति धापयति देवदत्तेन" एलुकम्‌ ` सरन aa च्म aa त्‌ खेरणाविति दते माष्यप्रयोगारेव कम्र तवं बोध्यम्‌" दूति तवेव तच्वत्रोधिनः।

२९

२८ मुखवोधं व्याकरणम्‌ |

त्यादौ भ्रोपाधिकष्टतेऽणि (१) खभावसिंहाटलमाराय श्रजा- aaa टलमिति wai सदतव्यवहारो हि कतुः क्रिया- वयाप्यटनेव, भ्र्था Me yaa इलादावपि ठे a: स्यात्‌। तथाच-“विवगपारौणमसौ भवन्तमध्यासयव्रासनमेकमिन्द्रः। वि- वेकटट लत्वमरगात्‌ सुराणां तं मेधिलो वाक्यमिदम्बमापै"॥ एवं Wag खात्‌, wT qa wuts acarfae- MAR) 1 परे तु wed षन्ति भ्रयन्तु“्रजिग्रहनत्तं जनको घनुस्तत्‌ येनादिदत्‌ दल्यपुरं पिनाको जिज्नाममानो वनमस्य वाद्ोहसव्रभाङततौदरघुनन्दनम्तत्‌” शश्रयाचितारं हि देवदेव- afe मतां arefad nara” इत्यादिप्रयोगात्‌ खहोतवान्‌ भ्रव न्नानाधेलनेव en: मिहे, ग्रहणं अ्रदशनाग्रतऽपि स्यात्‌, तेन fad प्रोतिं दयति प्रकाययतीययः। एवं न्नानाग्रल- ऽपि गोग्रहणं कविदरन्यव्रापोति soars (x), तैन “पुरहृतदिषो wd Jara यानस्य वाजिनः। sata aa निभिय प्रामन्न- facaraa’fefa ate: 1) शूरसेनं पौरुषं त्याजयति। “मुका जालं विरपरिवितं व्याजितो दवगत्या” देवदत्तं शतं दाप-

eee meee = == ~~ +

(१) आओआतिरेगिज्मकमज्ते;पो्यधः। bay (२, Ba वच्छमारावाततिक्रसनेय MTA TATE | (y करप anerfatnatay अकमौक्ननस्तणकायनिपे धाः रमा Vara |

५) Saale aan समधिक waraae fa न्यायादित्यधः।

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कारकम्‌ | २८३

यतीत्यादि स्यात्‌ (१) अत्र॒ खादादद्दिंसाधमक्तामगनाध- तथा ANAT गत्यथतया, क्रम्दशब्दायद्वामढतया TTT तया प्राप्ते निषेधः। जोऽभ्यवहाराधतया (a), ait ठाविवक्षया (2), शश्च निचये प्रापे, अ्रभिवादयतरप्रापे, विकल्यः। ञः स्यादौ, कञः सटलादप्राप्त विभापति भाष्यम्‌ गयमध्यापयदित्यारि | गोषा गेयम्‌ श्रध्येयत, गोपान्‌ गयम्‌ ग्रध्याप्रयत्‌ गोपा यार्भिकान्नम्‌ ayaa, गोपान्‌ यान्निकात्रम्‌ श्रभोजयत्‌ | शत्रव; खधामागच्छन्‌, WA स्वधामागमयत्‌, शस्त- पूतान्‌ कतवा स्वस्य धाम खानं गन्तं प्ररितवान्‌ इत्यथैः भक्ता- Way AMAA, भक्तान्‌ तत्वम्‌ श्रबोधयत्‌, परमानानं बोधित- वान्‌ इत्यथः watsfaea, way ब्रस्यापयत्‌, waa कर्मणा धर्ममस्तिष्टनोति लाकगिक्ादिना wat खापितवान्‌ इत्यथैः | विधिवदानष्ह्वात्‌, विधिं वेदानग्राहयत्‌, द्मां वेदबोधितं कथम कन्त प्ररितवान्‌ इत्यथः gam शक्तिमप्यन्‌, ठेत्यान्‌ शक्तिम्‌ ्रदगयत्‌, खां af प्रकाशयितुं प्रेरितवान्‌ इत्यर्थः गावो वेणमश्रन्‌, गा वेणुम ग्राषयत्‌, वेणुशष्ट्श्रवणमकारय-

(१) यषटचल्यजदप्रदतोनामञ्यनकलुः aaa सञ्सम्मतम्‌ अतएव “द्यादयोसाधव द्रति वाभट" Kaa जुमरेण क।रकपारे १, GAB wet | aaa रोक्षायं “अन्ये त्‌ एव॑तरिधान्‌ बहन्‌ सहाकविप्रयोगान्‌ इदा कुशकाशावल- ब्यनन्धायेन किमपि marcas fare गोयोचन्दरः। फुशषटितविधिना काशोऽपि ग्टहुते दति न्यावाधेः।

(२) भोजनाघतव। |

(र) Yarda नेय वा कारयतीव्यादौ कर्म्राणिवक्ावामिनर्धः।

१८९ Brad व्याकरणम्‌ |

दित्यथ;। विष्णुरिति gaa प्रयोजकघः। खादारेख्विति कपयो रक्ांसखखादन्‌, कपिभो रक्तांखखादयत्‌, ate प्ररित- वान्‌ इत्यधेः कपय जईलोकमनयन्‌, कपिभिरु्ैलीकमना- ययत्‌, लोकान्तरमगमयदिलयधंः | कपय भराक्रन्दन्‌, कपि. मिरातरन्दयत्‌, रोदनं कारितवान्‌ त्यथः कपयो रच्तसि श्रायन्त, कपिमौ रकतांस्याययत्‌, प्रापितवानित्यधेः कपयः शब्दायन्ते, कपिभिः शब्दाययन्‌, राम इत्यस्य विशेषणं, सिंहनादं कारितवान्‌ इत्यध; कपयोऽ्नन्‌, कपिभिरलूहवत्‌, रिपुभिः सां सहां कारितवान्‌ इव्यछः। कपयो रिपु- aed, कपिभो रिपुमादयत्‌. भो पेरितवान्‌ इत्यथः कपयः शंलानवहन्‌, कपिभिः शेनानवादयत्‌, भ्रानायितवान्‌ दूतयथेः। कपय इष्टमच्छम्‌ THA, कपिभिरिष्टमच्यमभत्तयत्‌, श्रभिनपितं वस्तु खाटयामास SEM) सब्बे रामः प्रयोजकघः | वाहाः परायमवहन्‌, वाहान्‌ पांधमवाहयत्‌,भर्लुनं वोदृम्‌ अर्वन्‌ परितः वान्‌ दथः हरेः सारण्यक कनलात्‌ ठतम्‌ वाहा भ्रोन्‌ GHAI, खादयामास इत्यथः Wa भक्तधोहिसाथलात्‌ घस्य तवम्‌, उभयत्र हरिः प्रयोजकषः। कोशाः शेलान्‌ प्रहरन्‌, RAT TAY THA, Wad प्रेरितवान्‌ इत्यधः। ऋचा FAM श्रहार्षः, WHAT श्रजौ हरत्‌ | उदाहरणदयेन विकस्य दर्गितः। कपयः सेतुम्‌ WHI, कपोन्‌ सेतुमकारयत्‌ | वानराः रेतुमङुव्यैन्‌, वानरः सेतुम कारयत्‌ उदाहरणेन विकल्पो द्गितः। staal हहानभिवादयति ख, जानकीं हदानभि-

कारकम्‌ | २८५

२८६ | याच्‌ दु तरि प्रच्छ wag are fa at वहः दणि ग्रह क्ष्‌ मन्य मुष्‌ प्रचाद्या घवो fret

वादयते स्म, wart हदहानभिवादयति स्म, लक्मणन getafa- वादयते ख, नमस्ककत पे रितवान इत्यथः | भ्रभिपूव्यै वदकं वाक्‌- सन्देशयोनत्यथः, wa प्रेरणे जिः दयेन विकस्पो दर्भितः। सत्त राघवः प्रयोजकघः। सोता UAT AAI Wa, SAT सतां रामेण श्रामानम्‌ श्रदर्शयत, Sen F efa मम्‌ एषामिति किम्‌ ? पाचयत्योदनं सूटेन श्होत्यादि। ut तु गौणक्रियापै्तया wa सुख्यक्रियाग्याप्यत्वेन ca fas नियमा्धं- मिदमिति ब्रुवन्तः (१) पाचयल्योदनं सूदेन zeae: (2) श्रन्ये तु उभयप्राप्नौ परलरात्‌ घले प्राप्ते विधिरयमित्याहः |

२८६ याचजाथ याच्‌जा wat येषां तै, पच wean येषां

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i) सिङ्धान्कोद्यां | {1 ४।५२। खत्रख टीकायां “नियमाधसेतत aa fafa org: | शणिजथनाप्यमानद्य यटि भवति afe गत्यर्थाही नासेव wufcfa | तिन पाचयति टेष्दत्तो यश्चदत्तनेत्यव प्रयोच्छे कक्ञेरि५+* तीया fewfa say —qufimarat खातन्ह्वात्‌ प्रेषणे क्ता aa: | नियमात्‌ कम्परु्तायाः ख- चभो ाभिधीयतद्ति। uae कतः स्वधर्मेण कतीययेत्यधै" दूति तक्वो धिनी। काशिकायामि "एषामिति जिं? पचत्योदनं टेवरत्तः, पाचयत्योदनं रेव- देने" तदाचरुतम्‌ |

(>) war केषुकित्‌ पुस्तकेषु "पाचयन्योदनं GE स्पेन ष्टहोति wat हल- aye nagrefe त्वपि पाठः| प्रयोगरलमानायामपि दिक्माकधातुप्रश्रणे

२८६ सुबोधं व्याकरणम्‌ |

तम्नधयेऽहं ate, यो गोपे दुग्धमदुग्ध गाः |

पफलान्यवाचिनोदृहचान्‌, वात्ती; पप्रच्छ वल्लवान्‌ |

ररोध गोकुलं मोपोरत्रवोच्च मनोहरम्‌ |

गोपालानन्वशात्‌ केलों व्राजयं जिगाय तान्‌

हन्दावनमतषौद्गासच्छिशूनवहदुवरजम्‌

जहारारण्यमाभोरीदेत्यान्‌ प्राणानदर्डयत्‌ |

जग्राह यज्वनो भोज्यमकषत्‌ पूतनां बलम्‌ |

ममन्धासृतमग्ोधिं मुमोष fefasia aq |

योऽसौ पचति नोकानां पुणखपापं सुखासुखम्‌ ते पचादयः, पञ्चात्‌ चस, FS येषां तै। कन्तुः क्रियाव्याप्य- त्वात्‌ मोत्तादोनां टलं सिम्‌, waa तु मो्तादिरेतूनां छष्णा- दनां cet विषीयते (१)। तमधयेऽहमिव्यादि। यः ae: गोपेः सह गोदोहनादिकं कृतवान्‌ तमहं मोच्तमधेये इलन्वयः। शमम वरं मृगयते, देवान्‌ वरं हणौते cael तु मृगिहजोर्याच्‌- जाधलवात्‌। यो गोपां eae) यो aa फलानि भ्रवाचिनोत्‌, हतान्‌ संघटयन्‌ फलान्यादरे दरत्यधंः यो वन्नवान्‌ वार्ताः पप्रच्छ, जिन्नाखममिधातुं प्रेरितवान्‌ इत्यधः। गोपो- atgt ररोध, Mater खापयन्‌ गोङलमाहगादित्यथः | ६२७ Ga “गा्यारेरनिनः कतनत स्यादिति कमता। अन्धां टानपाकादि- क्रिवाखान्तु विभाषया + + # लूरितक्ोममाहपिदषथजां स्िवभन्रं पाच

येट्ति श्रादक्से" KART | (1) अतयव कम्र हेतदृहरेरिति कारकपारे ९। कमरीश्ररखम्‌।

कारकम्‌। ९८७

यो गोपीर्मनोहरम्‌ waa, प्रबोधैवाक्यं कथितवान्‌ इत्यथैः यो मोपानान्‌ कैलोन्‌ भ्न्वथात्‌, केलिं देशयन्‌ विनौतवानित्य्ः | यम्तान्‌ गोपालान्‌ wa जेतुम्‌ भ्रशक्यं गुं ay केलिविषये जिगाय, अजयं qe स्वौक्त्य जितवान्‌ इत्यधेः यो गाः हन्द वनम्‌ Tawa, प्रापयामास यो व्रजं तच्छिशून्‌ गोवसा- नवहत्‌, नौतवान्‌ त्यः | भ्राभोरोररण्यं TET, TAT TH प्रापयामास waar) यो दैत्यान्‌ प्राणान्‌ अदण्डयत्‌, प्राणान्‌ खीला शशाम TAT यो यज्वनो भोज्यं जग्राह, सोक्षतवानित्यधः यः पूतनां वलम्‌ भ्रकषंत्‌, पूतनां विक्त्य aa निनाय इत्यधेः योऽश्मोधिमभतं aaa, Taqwa खृतसुलयापितवान्‌ इत्यधेः यो दितिजान्‌ दैत्यान्‌ acad qa खण्डितवानित्यथेः। यो लोकानां पृखफापं सुखासुखं पचति, पुं सुखं पचति, पापम्‌ श्रसुखं पचति, प्रिणमयतोौ- त्ययः | तण्डुलानोदनं पचति carat तु प्रञतिविकारभावैनेक- मेव ठं, तेन तण्डुला Mea: पचन्ते इत्यत्र यथेष्टं fecyfauaa गोणमुष्यव्यवहारः। एवं ढादि विहितल्यन प्रज्ञतैरेव संख्या waa | यदुक्त,-

विकारभावे waata कम यतस्ततः |

fanaa प्र्ययययेष्टता

प्रक्षतैविक्घतवापि ada हयोरपि

वाचकः WHA: संख्यां wefan awd तु इति।

You TUNG याकरणम्‌ |

wool feat धं षा। ( दिवः ६।, Hei, वा।१५ )। दिवो धं Jaret) we रक्षान्‌ वा Amat |

~~~ ee -----~ - ~ --~ ~~ ~ --- = --* --~- ~ ~~ ~~ भणे

एवम्‌ एको वत्तः पश्च नका भवतोत्यादि। wanes पियं wa वदति, जायां प्रियमाधष्टे, सुतं वाचो जगाद, राजानं हितमुपदिशति, क्रुहमवखानं याचते श्रवखातुमनुनयतीलधंः | केचित्‌ वदत्यधं wef दृह यद्यपि न्यादौ aay: पठितसख- धापि गोष्टे त्यविधानाय याचादौ द्रष्टव्य; (१) | तथाच “Zarge- रख्तमम्बनिधिमपे" इति भारविः aa न्यादौ नोवडद्जभेव पाठ श्ति परे |

२८७। feat) दिवः क्रोड़ायैसैव ग्रहणम्‌ दिवो घं दं स्याहा | वाशब्दस्य व्यवखया धपचेऽपि सटल्वातिदेशात्‌ श्रदलक्षणं कायं स्यात्‌, पेन भर्ता clare, भरैः देवयते BAT Ye, भ्रचाणां देवकः, Tani देविता wea एव युः; नतु भ्रचदेवयते तर गुरः, परचेदेवकः, भ्रदविता द््यादयः |, Wea SAT | एवं मनमादेवोनि ढात्‌ षण द्याह; परे | वलुतसु(पचादानि मदादित्वत्‌ शपि संत्नायां त्रा लुक्‌ इति “तेनादु्यषयद्रामं सगण सगलोचना” इत्यत्र तनेति दिवो धं न्‌, किन्तु दुद्ुषेरिति wag श्रच्ेदवक twa वा Mery:

1 ~ शक mt ere ~ ^ ~~ ~ te,

(१) बाचादिण्धाद्परिगणमे बहधा मतभटोऽङ्ि, afgefautfeszar- ठति GR शूदरोभषिणतोति।

कारकम्‌ Rue.

ve ad धिक्‌षभयेत्यनन्तरम्‌ इत्येके, तक्मतै मण्टुकगत्या ढमतुवत्तते cad व्याख्या (१) |

गैः क्रषदुोभम्‌। गः परयोरनयोमं cist स्यात्‌ पो- ऽरोन्‌ परिकरु्यति, aa: पति संदुष्ति, toca: परिकरुष्वन्त, खलेन पतिः संदृद्यत इति (२) |

अनुजनो जम्‌ अनुपूर्वस्य जनो जं ठसंननं स्यात्‌| लक्षणो राममनुजायते, पथात्‌ प्रभवतोल्यधः। एवं पुतमनुजाता कन्या २)! ढत्व विधानात्‌ Tala रामोऽनुजन्यते। Wa जनेस्तत्‌- yaaa जन्मनि वर्तमानतात्‌ सढलमिद्येके (४ ) | aa: किम्‌ रामात्‌ संजायते Efe: |

~

() अन्‌ का्तिक्नोयोऽपि "षटं aa विकसमयेव्यख पाति केचित्‌, तनति कमटरीयोऽतुकर्तने मर्डक्गतिन्यायानद्ध)कारः, क्यौ धिकारसचिलष्टवाद्तल- apatafa ary |

(२) उत्तरचरिते gery लपोक्गो “war पुनरेभ्य एवाभिटूग्धमस्ेन" Tare त॒ wlacvarefanasayaqutsfufafaaa इति न्यायात्‌। ` संक्रष्थसि कषा fard freq’ भां मेश ' दति भटो ८।७६ लोकस्य टोकायां qua लभावा- feat सोपसर्गौ सजम्पकाविति इगेमतमाढतं, कियाव्या्यद्य कम्पीतात्‌” इङ्ग भरतेन |

(३) अषौ कुमार स्तमजओोऽनुजात दति रषौ ६।७८।

(४) wa तत्मदेन जन््रोरख्ितिः, तेन कसय चिच्लन्मनो यत्‌ पूर्व्वौकरणं तख पूरे कारणं तञ्जिन्‌ येन जनान aay fafgora ga क्रियते med जगह प्ैअमेरर्थः। ae लभनानन्तरं aa अदुलननर्मिति फलिताथः। एतेन लननपूर्वोकिरणादकूल जनगख धातु शा च्यतवेन yaya aera तदेव धात्वधताव- चटकं फलं. तदाचयत्वात्‌ प्रे राभख Hal) तएव मव्य्थादशोश्वासेति वश्छमाचङ्ब्रख ठोकायां राममतुजातोऽ्युतः शिश्रमहुजोर्णोऽगनत Kay AY

२७

२९० सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

| धिक्समया निकर दान्त न्तगो नाति. यैनतेनाभ्युभयपरिसव्व॑तो विनतंऽभिपिप्रयनृपदा- प्यधोऽधिभिः | ( धिक्‌-पिभिः२।। ) 1

एभि्यरि हो खात्‌ | | वौपषयश्भावचि्कऽभिम्तेषु भागे परिप्रती | श्रनुम्तेषु सहार्थे avait मता विद्‌

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यजो si धट यजधोढभे weds क्रमात्‌ स्याताम्‌ पशना इद्र यजते, पशं रुद्राय ददातोलय्धः |

२८८। धिक्‌ श्रमिष उभयश oft wae त, तभ्यस्तम्‌, उपरि waa भ्रधिश्च त, इयय ते उपयधोऽघययति पश्चात्‌ धिक्‌ समया चल्याटि च.मः। धिक्‌ निभ्ननिन्दयोः। ममया- निकषागश्दो ` ममोपार््ौ। हा विषरारशुगर्तिषु। sae मध्याथः। भ्रन्तरेण ते विना व्यतिरेकार्था; vata zat $पोलनेन विदितिनत्यान्तः | श्रतिरतिक्रमार्थः। येन-तेनौ वा- टकताढगर्ो भरभिन xara: (१)। sadadan- दथा दिरक्ताः। अन्यषामयवििषमाड वौेल्यादि। द्रग्यगुण- ्रियाभिपृगपत्‌ प्रयोक्ष्यामि च्छा वीपा कस्यचित्‌ प्रकारस्या-

एष्वयोरेतयोः प्रयोगे wey प्चान्ञननं ze पच्चाच्लरणञ्च तद्य कम्पं ख्यात्‌" van दुर्गाद्‌,सेन।

(१) अभित दूति artnet) तथाच “हामोप्योभयतः-णोघकाष्धा- निहसेऽभित" gaa) उभयत दूति खभाग्रादुभयाचैक्म। परित. aaa दूति इयं समनादयम्‌, तथाद -“इमनतसतु प्ररितः इतो famfaeata” ce: मरः |

कारकम्‌ | २८१

धिग्‌ लोकमोश्बराभक्षं, समया.माधवं रमा | निकषा गिरिशं गौरो, et लोकं कैशवद्दिषम्‌ HUT SAT AMTY, नान्तरेणायुतं सुखम्‌ द्तिणेन हरिं रुद्रो, गोविन्दमति नेश्वरः येनेथं इरिरीशस्तं तनेशमभितोऽ्काः | रामक्ष्णावुभयतो WAN, परितः परे प्रमथा; मव्वेतः सव्वं, शर नेशार्चनं विना सुक्गिनरत्तऽयतोपास्तिं. भूतं भूतमभि प्रभुः भक्तो विभुमभि, प्राज्ञो गोविन्द्मभि fasta | eft caramel, et प्रति इलाइन्म्‌ विष्णुमन्व्चाते भगः, शक्रादय उपाच्युतम्‌ | लो कानुपग्ुपर्यास्तेऽधोऽधोऽध्यधि माधवः

-- ~~ ^~ ae ~ -~ eee = ~~~ ~~ ~

पत्ति (१) रित्यम्भावः fas लक्षणम्‌ तेषु वोरादिषु भागी

परिप्रतो | way वीपादि-चतुष्वथषु सहायं चकारोऽनु-

maquaa-() स्तन हेतावपि, यथा कारौरो(२) मतु वर्षति,

कन्धामनु शोक इत्यादि |

धिगलोकभित्यादि। ईश्वराभक्लं लोकं धिक्‌ (४), ईरा

ume aaa निन्दादिकं भवतोत्यथः | माघवस्य समोपे रमा

(१) (x) (३) (४)

= ~ ~ -~ ~ - ee eee

WRIT: Brew रोतिर्ग |

अचुक्तानाम्‌ aafaatat agyqq: सबद Rut aq we: | कारीरी बक्तवियेषः। कारीसोदेदकं awa करोति देव इति पेषः। षष्ट पषादिकैयं हितीयंति।

२९२ FUNG व्याकरणम्‌ |

watt: ।` गिरिगस्य समोप.मौरौ दुर्गा कैशवदिषं लोकं शा, anafedt लोकस्य विषाटः शोकः पोडा सव्पैदेव शत्यधः | ब्रह्मथिवयोमेध्ये क्षणः श्रचतमन्तरेण विशुपूजाव्यतिरेकैण सुखं wale: हरेरटूरदक्तिणे (१) रुदरः। गोविन्दस्याति- रमिता ईष्वरः दशं येन हरिः, ईशस्य area हरिरपाखः, तं रिं तेन ईशः, हरम्तादगुपास्यं शणः ; एतनाभिन्रा वित्यधेः | $मभितोऽ्चैकाः, शिवस्य ata पूजका sam) राम- लणावभयतः, रामक्ञशयोरुभये पाश्वंऽचकाः। प्ररे Was परितः, गोपैशस्य इतस्ततः परऽ्चकाः प्रमधाः सर्वं सव्यतः, समस्य इतस्ततः प्रमध्गणाः। STA विना शर्की. दैशाच्वन- afta कन्याम भवनीतयधरः | ayaa उपास्तिं उपामनाम्‌ ऋते विना ofa भवतोलधरः। मोऽचयुतो भूतं भूतम्‌ अभि, सव्यभूतानां प्रभुरिव्यथः भक्तो विभुम्‌ भ्रमि, विभोः कञ्चित्‌ प्रकारमापव्रः (२) weet गोविन्दम्‌ श्रि, गोविन्दं लक्योक्ञत्य प्रा्नस्तिष्ठति। अरभैरुदादहरणव्रयेण परिप्रत्योरपि Faq (२)। भागे उदाहरति vet नच्छ्मोरभवत्‌ | हरस्य भागी इना-

नं पम्‌ अभवत्‌ एवं वो सादिषु अ्रनाङ्गयम्‌ awa तु विशु-

मतु, fama ay wats भर्थात्‌ afk) भ्द्यनमुप se

4) ma agile arenas वेनोऽपीति GA agers एनप्र्यय fa ufamand छूचितम।

(2) fawfaaa ufquratog इति garters: |

(ह ezrecufafs te: | अभेर्दादरणषु अभिख्यामे परिप्रतियोगेऽपि HUG द्यगयः|

कारकम्‌ | २८२

ताचोनाः शक्रादयः एवमथ्य॒तमतु . शक्रादय इति ` लोकानु- परपरि लोक नामुपरि समौपे माधव भासते, श्रधोऽधः श्रधः-समोपि माधव wie, wate दतम्ततः समोपे माघव भ्रास्तं cera! ¥ समोण्यें दग्रंहणात्‌ नेह -“उप्य्यपरि quai चरन्तीण्ठर- qua.” श्रतिदूरे उपरि चरन्तोत्यथः। यदा उपरिबुदोनामुपरि ईश्वरवदय शरन्तोत्यथेः(१) | qafaufatta प्रपावाधितलात्‌ सम्बोधनार्घमाव्रद्योत- Rarer “हा तातेति क्रन्दितमाकख्य विषः" “ar पितः ane हे सुभ्व and विललाप स” इत्यादौ सम्बोधने मा qs) “शाखि fast हता भूयो हदयानासुदेजयैः" इति तु उपपदविभक्तः कारक- विभक्तिगेरोयसौति न्धायात्‌ (३) |

(१) at arena हिर्क्रोपरियोगाभ।वाच्रेति भावः।

(2) wanna: पितः, क्रासिष्े a4 दति भद्रौ it: alae व्याख्याने भरतसेनः - “शिक watanizene wyoreena ata तह्िषयः। साभान्ेन wins nyse oad पिदसम्बोधनम, aa a हिनोयेति इगः। वस्तुतस्तु हाशन्द्‌ are दुःखं खविष्रयमेष, पििशब्देन तख सम्बन्धाभावः, awe इितीयया भवित- व्यम्‌ "-इ्चाह | दुगाटासोऽपि "यत्रतु area: पोड्ायां हाशब्दः प्रयुज्धति waa पोडायोग्यत्वास्त्रात्‌ तैन योगे हितोवा स्यात्‌, तेन yr तातेति क्रन्दितमा क्षणयं fave दरति Ty: | हा राभा रमणा जगदेकवौर FT माय er रघुपते जरिश्वपे तसे भामिति महानाटरकमित्याटौ सम्बोधने प्रयनेबेत्याङ्‌ |

(१) “या पद्ान्तरसम्बन्धेन विभक्गिविधीयते सोपष्ट्विभङ्गिः| कम्पादि- asnfafam विभक्तिः कारकपिभक्तिः | उपपट्तिभक्तिरिषये कारकविभक्तिपाप्नौ fa eifefa शङ्कायाभाष उपपद्विभक्रेरिति। हा इतेत्यवदायोगेनप्राप्नां हितोयां बाधित्वा wajfe विहितेन ga कम्पय sag प्रथमेव भवति" इति सशिप्रषारे कारक्षपाटे ५८ सनटीकायां Mays: |

२९४ FUNG व्याकरणम्‌ |

ce साधन-हेतु-विशेषण-मेदकं धं, करा घल | (साधन -मेदकं १।, धं १।, कत्ता १।, घः १।, तरी ।१।) | नैतैः पु्येन भूषाभिनानना दृष्टः थिवो जनैः।

यावता मथादामिविष्योः। मादाभिविध्योवत्तमानेन यावना योग हौ स्यात्‌ नदीं यावदग्ण्यानो, “यो नमेत्‌ शुद्र due fas वा इरिमेव वा। मव्यैयातनाभोगो यावदाहत- संप्रवम्‌” ॥(१) रथ्यां यादत्‌^२) दष्टो रेव इत्यादि was: किम्‌ ? “ara दि प्राणास्तावटाशा विवडते" इति (2) |

२८९ माधन साध्यते श्रनेनेति माधनं, धैऽनट्‌ यदया- पारानन्तरं कचौ क्रिया निष्याद्यते तत्‌ साधनमित्यधः। aaa सति तज्नन्यजनको हि व्यापारः। यथा परशुना काष्ठ छिनत्ति (४), मनमा जानानि, पाणिना भमयतोत्यादौ ेदापर- शुमंयोगव्यापारेण श्रासमनःसंयोगवब्यापारेण चष्टादिव्यापारेण

(1) आहृतसंप् बितर wares wear भूतानां Wye ल्यः, मा एम्यक YAR अभूतस्रवः। आभूतसअवं ATTA TATA faraw: |

13) श्यां पन्धानमभिभ्यापय चरघः।

(३) शोलांन यावता पर्ची चेति केचित्‌| साभाद्‌ यावदहं Neat cfs दुर्गादि. |

४, खन तद्धद्धेन पररुगह्यते, अतः VEN संयोगे हति वमाने तत्मरपुजन्छं ददनं हिदमोभाषः, तस्य डेद्नख ATH: Wain, | oT veM- व्याप्रारलतृसं वोगद्पव्यापारानन्तरं wat क्रिया निष्पाद्यते अतः परशुरेष साधननिति।

कारकम्‌ २९५

ेदनारैनि्याश्चलात्‌ साधनत्वम्‌ ea पथा याति, “कायेन मनसा वाचा इरिराराधितो मया" द्त्यादौ इयोखयाणामपि SII साधनलम्‌। खास्या पश्यते इत्यादौ तु खाल्था- दव्यापारानन्तरं क्रि यासिहेर्विवच्चितलात्‌ साधनत्वम्‌ | यदुक्तम्‌- क्रियायाः परिनिष्यत्तियंदपापारादनन्तरम्‌ ` विवश्यते यदा तत्र करणलं तदा स्तम्‌ वसतुतस्तदनिदश्यं हि ag व्यवसितम्‌

wren पच्यत इत्यषा विवक्षा दश्यते यतः

हेतुः फलसाधनयोग्यः यथा विद्यया यशः, धनेन कुलमि- धादौ कोच्यादिकमङव्वेब्रपि विद्यादि स्तत्‌करणयोग्यलया eq: | भन्ये तु भ्रन्वयव्यतिरेकनियभेन ज्नापकोऽपि हेतुः ; यथा धूम- वच्वेनाग्निमानयं uaa शत्य ्रान्बयव्यतिरेक नियमेनाग्निमत्वस्य maa धृमवच्वमित्याइः | तथाच (१) यदधीनाः कर्तः प्रहत्तिः हेतुः, wea साधनमिति साधनरहेत्वोमदः (2) |

विशिष्यते सम्बुध्यते येन तदिगेषणं, विदयमानसम्बन्धप्रतियो- गोति यावत्‌। यथा जटाभिस्ताप्रसः, भिखया परिव्राजक Carat जटादैविदयमानसम्बन्धप्रतियो गिला दिशेषणत्वम्‌ (२) |

= ~> =

(१) ag gate wre लुनातोत्वारावपि दाबारेरेवलेनेगे्टसिद्धौ शाषन- महणं कयमित्याश्द्याह तथाचेति,

(२) “acy wat व्यापारयति, tag कत्तारभमिति रचितः *न#शप्रयो- लनद्पहेतोरपि Atal sar, बचा -शज्रुषया गेखदठतापेताभिति कुमार" दति faatagre: |

(९) सम्बन्ध swafas: | तयोहंयोरेकोऽहवोगो अपरः प्रतियोगी |

२९६ quad AAC |

दयति सामान्धावगमे (१) इतरेभ्यो व्यवच्छिनत्तोति मैटक- भितरव्यावत्तकमिति यावत्‌ यधा--काकेगृषं, तेण हात मद्रा्तीत्‌ श्त्यादौ काकादेर्विद्यमानसग्बन्धाप्रतियोगिलेऽपि मैद- waa (२)। तथाच विेषणं विद्यमानं, भेदकन्विद्यमानमिति विगरेषणमेदकयोभेद ae वलतसु Aeneas जटाभिस्तापस इत्यादौ far विशेषग्रहणं क्षविदन्यवापि तौविधानाधं, तन -

येनाह्भिविक्ारम्तदङ्ात्‌। येनावयबेनाङ्धिनो शहानिराधिक्यं वा awa तदङ्कवाचिनस््नो स्यात्‌ यथा मुखन विलोचनः, TAT काणः, पादेन स्च, पृष्ठेन FT wane निमित्तनेमित्तिक- सम्बन्धे dint चरौ स्यात्‌। प्रकत्या सुभगः, धान्येन धनं MIT गाग्यैः, जात्या विप्रः, जक्मना ठः, व्वभावेनोदारः, खर- पेष प्रियं वदः, प्रायेण वैष्णवः (२) समेन धावति, (४) सुखेन याति, aaa पचति, “तत्रागारं घनपतिष्डहादुत्तरेणस्मदोय"मिल्यादौ

्रज्ञत्यारनां सुभगादिना सदामेदैऽपि शतरव्यावस्तंकलयात्‌ भेद- यथा जदाभिन्तापड caret तिदयमानत।सब्बन्वे" जटास्तापमे TAA) अतो- sa ज्ञटानां बिद्यमानतासम्बन्धश्य प्रतियोगित्वं ताप्सम्य चानुयागितवम्‌ | एतेन ्नुयोगित्वं सष्बन्धश्यःधारत्वं प्रतियोगित्वं तस्वाचेवत्वसिति।

(1) सामान्येन साधारणेन धमण र्टहाद्निष्वधः, wine wae सतीत |

(२) उजुशत्वारिनेति पेषः। इतरेण गुरोर्दोपारवणेने्वधंः |

(३) वेष्णवरब्लवभूवस्वं प्रायथद्द्‌ चैः |

1४) food धाश्रतोति प्रयोगोन दयादिति संजजिप्रमारे areca? of षत Heart Mates: | प्रयोगरलभालायान्तु जारश्विभश्जपरक्ररणे ६४७ gat “समेन धावति बमं urate” Kam |

कारकम्‌ | २८७

कलम्‌ तथाहि प्रजतिगशब्टेन साहजिक्न उच्यते, अभेदसत्म्ेः, (१) तिन साहजिक।भिचः सुभगः, घान्याभिन्ं घनं, गोताभिनत्रो are: गर्गकुलोत्पब्र दत्यादिक्रमे णान्वयबोधः परे तु Fares we मादः श्रनेन तोविधानाय we छतेति।

करोतोति क्ती, aad, क्रियाचिहहावगुणत्वेन (२) विवक्षितः साक्षात्‌ क्रियाश्रय ति यावत्‌+ यथा रामो रथेन व्रजं याति, क्ष्णा भवतोत्यादौ गत्यादिक्रियासिद्ौ रामादर्गणत्वाभावाद्‌ घत्वम्‌ |

= ~~ = en -~---~ -~-------~--~-~-- ---- --- ee “~ कभ Mm

(१) अमेदृषरपरथ इति मतानरमान्िव्योक्त. खमते तु इूतरव्यावस्तकत्वात्‌ मेटकत्वमेव acta: | तथाहि खमावेनायं guint त॒ अदहुाराटिना। सभगत्वमिदम्‌ अलङ्कारा दितद्चभ गत्वाद्भिद्यत एव, wy प्रलतिथब्द्ए भेटयतोति तख भेटृक्तवं, तेनेव तोया च| खत प्रह्याद्भ्य उपर्ख्यानमिति पाशि नीयवासतिकम्‌। उपशख्वानं वक्रव्यिल्र्थः। “org वज्गव्यं, कसुकरणयो- स्तृतीये fegq, * * * प्ररत्याभिङ्पः, प्रलतिरतं तदखाभिर््यम्‌। मारग्योऽखि गोतेख--एतेनादहं aera” इति भाष्यम्‌ `गम्यमार्नापि क्रिया करणादिग्यपदेशनिमित्तं भवति। इह करणन्तरव्यदा्ठाय प्रलतेरोव करणत्वं विवर्तितम्‌ खभावेनावं शतोऽभिर्ूपो त॒ वच्त्रालङ्करणादिनेत्वथैः" दूति daz: |` cay गम्यमानकरोतिक्रियाकरणतवात्‌ fea fafa तक्वबोधिनौ | कातन््रमतेऽपि रषूदाहरणेषु करणे amar) तथाच -“प्ररत्यादौनाभपि करणत्यमस्ति, भवतेगम्यमानत्वात्‌ ; तथा हनिद््पभवने प्रतिः करणं, याच्चिक- भवने प्रावः शरणं, THA भवने Ma कर्ण fafa कातन्नटीका | संसिप्रषारे $पि “Safegmare रिति कारकपदे of शतटीक्रायां “Maury वात्छ- caret aa क्रियापदं नास्ति तत्र सम्बन्धमातं प्रतोयते, aq कापि क्रिवा। a fe क्रियया तिना क्ुकरणे सम्भवतः, तयो" क्रियापेत्तत्वात्‌, तात्‌ हतोवा यदातु wa carte गम्यते तटा BUA इतोया, ware गोब्रादेरिति प्षञ्चाधं मिलक गोयोचन्दरेण |

(२) अगुणत्वेन प्राधान्ेन।

२८

२९८ TUM व्याकरणम्‌ |

Hamed पचतीत्यत्र पदिविक्गोदनायः (१)। ware faa नाक्रियामिहौ aa गुगलाभावात्‌ way यदा तु विकि wae AeA: Tad खयमेवैति टघविषयः, ततः प्ररे जौ विक्रेदनार्थपचिसमानार्थस्तदा पाचयति awed चत्र इति एवं यदा निष्पादनाधः हदा चैः करोति ; यदा निष्य्यधे- स्तदा क्रियते कटः खयमेवेति। कविस्‌ विद्ये पचे- tary तण्डलस्य क्रियाग्रयलात्‌ awa: पचतीति वि्ञद- नाथस्य तु प्ररणाधक्रियाव्या्यलात्‌ तर्डनादैटंलमिति यदा ततुङ्रियावयाप्यटस्य wed विवच्छत तदैव क्कत्तत्यादः काष्टं पचति, परशन्डिनत्ति, Mat पचतीत्यादौ काष्ठादौनां गुणला- मावविवक्तया wa) AMT यदा काष्ठारौनां क्रियानिष्पत्तौ धलादिन विवच्यत किन्तु गुणलाभावो fared तदा घलमिति प्येवसितोऽपरः | agai निषत्तिमात्र aaa मवतरेवास्ति कारक | व्यापारभदापिक्चायां करणलवादिसश्चव; इति |

पाचयत्योदनं सूदेन खहौव्वादौ तु पाकक्रियासिरौ qe तद्मरणक्रियामिद्गौ सहितो गुणल्वाभावादतं, तवाख्यातनोक्ञ- लात्‌ खहोखव प्रो, मृदनेखनुक्षत्वात्‌ तौति सूय पश्यति, भवं जानाहि, रामं जानामौत्यादावपरक्ञानामपि Sarai गुणता भावविवक्षायां घत्वमिति।

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OW) विङ्ञि्तिरयवभेधिल्य तञ्जनक्षव्यापासो शिङ्गेटना |

कारकम्‌ | २९९

Reo | सषवारणसमोनार्थाथं विनापृथङनांनादैः। ( सह-नानाद्येः ain) | एभिर्योगे at स्यत्‌ |

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प्रहठत्तावप्रहत्तो वा कारकःणां श्वरः अप्रयुक्तः प्रयुक्तो वास कत्ता नाम कारकम्‌ इति। नेचैरित्यादि। नेव्रसाधनक-पुणरैतु भूषा विरेणएक-नाम- व्यवच्छित्र-बहलवाग्रय जनकत्तंकातौनदगशेनविषयः भिव इत्यः aarti विषयमंयोगव्यापारेण साधनत्वम्‌ | GW Huet, तस्य भिवदशनफनलसाधनयोग्यत्वात्‌ डतुतवम्‌। भूषाकामहिवलया- दौनां विद्यमानसम्बन्धप्रतियोगितया विगेषणलम्‌ नाम dat, तस्य द्रतरव्यावत्तकलात्‌ भेदकलतवम्‌ | जनानां दशनक्रियासिदाव- गुणत्वाहइत्वमिति | २९८० | सद सहश्च ANY समच HAW Wags, Aca: येषां ते, नाना श्राद्यो येषां तै, सहवारण्समोनाथार्थाश्च विना पधक नानाद्याश्च तै a:1 एभिरिति-सदार्थादिभिः विनादिभिश् योग aa) यद्यपि सामन्यनोक्तं तधाप्य- भिधानादिगेषतो च्यम्‌ तथाहि सहार्धयोपी गोरे at, मौण- ay परम्परया क्रियागुणद्रव्यान्बयिलम्‌। yau सहागतः पिता, पित्रा सह wa: gai, वतिय ae Hat गोमानिव्यादौ पितरादानां साक्तात्‌ क्रियायन्वयः, तु पुत्तारौनामिति। गम्यमानं; सहाधंरपि, हदो यूनागत इत्यादौ खात्‌, वूडडा जभ

३०० AUNT व्याकरणम्‌ |

aguredisaat, भेदेनालं, तेन समोऽस्ि कः। विकारे रहितः nar, सताम: शिवाश्चया at ata विना, wa: एक्‌ विश्न, तत्‌ पुनः | नाना शमना, रामात्‌ बषणाघोक्षजोऽवरः

eee + ee mete ~ = = = oe * = --~~~~ -+ --~--~ ~ ---

द्त्यादिन्नापकात्‌। एवं साकं माहं समं सजरमादिभि- यौगिऽपि। वारणाधां wat मासम मा इत्यादयः, यथा श्रलं विलब्बनेत्यादि परे तु वारणाधेयोगे तीं नैच्छन्ति (१)। समाः सटाः, यथा गोपेन Gert sfc: | समा नेत्यादिना गोपस्य तुल्यो हरिः श्यादिषुषौ च। “aed गतमपनिद्रचूतगन्ध"- रित्यादौ तु धञ्मवाचिनापिब्रोति। “गिरिशस्योपमा नास्ति alfa लक्मीप्तसुला" इत्यादौ Gaara Mi a a स्याद नभिधानात्‌ (२) गौरिव गवय caret A स्यादिवशब्दख साद्श्यद्योतकलवात्‌ (३) Hara ऊनद्टोनरहितादयः। यथा

(१) “गम्यसानापि क्रिया ercafrrmt प्रयोजिक्रा | अलं site) शरभेण साध्यं नास्ती्यधंः| xe साधनक्रियां प्रति शरम. करणम्‌" एति “हेतौ ( २।१,२४ ) दूति aa fagreratect |

(ग) ware ^तुन्धार्येरतुनोपमाभ्यां हतीयान्यतर दया fafa सिद्गानजौमदो | तत्र तु तक्तवबो धिन्यां we तह तनां यदारोषति दनगरासरमे(त erfaere:, ष्फः टोपमं मूनिभितेन येनेति wea) उच्यते सहगुक्गऽप्रधाने दूति दतोये वृक्क | कुमारसम्भव Lies न्ोकटाङञावां मह्गिनायोऽप “अव तुनागरदख ater: वाचयत्‌ तदूयोगेऽपि तुल्या्ेरतुनोपएमाभ्यामिति तदीयाप्रतिेषः, तव शूर सहशवाचिन एवे ayer दित्याड |

(९) तश्वबोधिन्छाभपि ^पदानरमेरपेश्रय ये तृश्यार्थाेषामेव ayer गौरि गश्वद्चार ने सग |

=== = => - =-= ~~

कारकम्‌ | १०१

२९१। काके भाङ वा) (काले 9, भात्‌ ५।, ७।, वा ।१।)

-—

एकैनोनः. प्रखेन होन इत्यादि ब्र्धयोगे यथा धान्येनाधः | सतामर्थोँ हरेभक्तधा इत्यादि विना शब्दयोगे यधा --भ्विना TAT कोऽन्यो वा enawfaniqay” | एवं धिक्समयेत्यादिना हो, श्रन्यारभ्यार्थारादित्यादिनापौच। यथा--“^इरिं विना विना रामाहोकुनं गोकसङ्कलम्‌” विना शब्दवत्‌ पथडनानादयश्च योगे होप्यौ चेति परे (१) 1

wearer इत्यादि शशा सह weiss: Enh: किप्‌ ट्‌ ततस्तौ भेदेन रनम्‌. भरत्‌ शिवविष्णोर्भेदो वारणौय दूत्यधः aa fata विष्णुना वा क; समोऽस्ति कोऽपौ- त्यथः। mafia: कामक्रोधादिभिः रहिनः होन sera: | सतां सुधियां शिवाज्चयाधः, शिवपूजेव प्रयोजनमिलयर्थः। गेन विना aia, गिगार्बनाव्यनिरेकेण विवर्भसम्पत्‌ भवतीत्यर्थः | शम्भविश्वेन WER, WATE चराचरजगतो fire, संसारस्य aca तहिं पुनः शम्भुना नाना, शिवात्रान्यत्‌, तेन विना पदा्थौभावात्‌। श्रधोक्षजो विष्णुः रामाइलरामाद्ेण एकवस्सरेणावरः कनिष्ठः। एवम्‌ भ्रादयगरब्देन मासेन Yar, MAY कलहः, गुडन मि इत्यादि |

२९१। काले। कालवाचिनो नकछ्षतरादिति-तेन ga:

se चका a 77 दि ~ ~~~ - ee - ~~ ~= ee ~ ~ ~न

(१) २।२।१२। पाणिनि कारिका gear;

३०९ Aad व्याकरशम्‌ |

कालवाचिनो wary at ख्थाहा

रोहिश्यामभवत्‌ eat रोहिण्यासोशच चण्डिका | २९२। मानादौपसायां टे |

(मानात्‌ ५, वौसायां 91, 2 01)

शतं शतं पयोऽपप्यत्‌ वकषान्‌ विष्णुः शतेन गाः |

दिद्रोरेन क्रीणाति, पञ्चकेन क्रोणाति, दिद्रोरं पश्चकम्‌।

क्या ~ >

काल yaa विहितप्य (१) we gfe काले व्षमानावक्तता- feat: | रोदिण्यामिति -रोदिश्या युक्तः काल इत्यर्थे fafe- तस्य ष्णस्य लुकि कानवावितवात्‌ रोहिणोनक्षतयुक्तकाने इत्यः | उदाडरणदयेन विकण्पो दभितः। एवं पुष्यं yam वा नवाव्र- मग्रोयात्‌ cafe 1 काके किम्‌? रोददिष्यां चन्द्रः, रोहिणधि- हाठदेवनायां चन्द्र इत्यः इति किम्‌ ? प्रद पुष्यः पुष्यायुक्ः काल इत्यधेः |

२९२। मानात्‌ | मानवाचिनो वोषायांढ़ेत्रो वा Bry शतं शतमिव्यादि--विषणुः शतं शतं vary गोवक्षान्‌ पयोऽपो- प्यत्‌, शतेन गाः पयोऽपोष्यत्‌। वत्या वौसाथखयोक्तलाव्र fa: | संख्यापि परिमाणमिति (२) कंस्यचिश्मतमतणएवोक्कं शतं थनमि- त्यादि दिद्रोणेन क्रौणाति द्द्रोण क्रोणाति दिदरोशपरिमितदरव्यं

।) नशतेभ्यो युक्ते ata इति वच्छभाय-वार्तिकरत्रेणेति ca: |

(२) wang wenfearate परिमायमुच्योे। अत्र तु संख्यापि। अतएव amare दूवसापरिष्छद्क्य ayer परिमाषदयरुख्यावाच यङ्‌ साह कात्िङ्घयः।

कारकम्‌ | RoR

R221 संन्नो ऽसमृती | ( संततः gi, प्रख्यृतौ ) | स्मरणादन्धसिब्रथं वत्तमानस्य were जानाते ठं त्री स्यादा संजानोष्व aia संजानो हि ततः शिवम्‌ | २९४। सन्दानो iowa निलयम्‌ | (सन्दानः ६।, Hol, THA OF, निलयं १।) |

~ ~ ~न

murat: | SY दौद्राणौ परिमाणमस्य इत्ये छतष्णेनोक्- ara दिः (१)। एवं पञ्च पञ्च परिमाणमस्य saa विहित-क- त्यनोक्ञताव्र हिः (२) इटं नेच्छन्ति परे (2) | २९८२३ संन्नो। समो श्ना; संत्नास्तस्य afacafa waa) iat dada, पे खम्‌ oad dary, anacaatafa मम्‌। दयेन विकल्यो दशितः कति तु रणः awa wa परत्वात्‌ (४) ca कछत्येत्यादिना षा त्रौ वाध्यते। ततस्तदनन्तरं शिवं संजानोदि समर, इत्यत्र सरणाथत्वात्र म-्रौ। ख्यणटदयेशाम्‌ इत्यनेन षो च, तेन शिवस्य संजञानोहि इत्यपि २८४ सन्दा समो दान wera aa र्मरो- (१ अन faqaara तङ्धितप्रत्ययेन वौ्चायेद्योङ्गत्यात्च हित्वम्‌ | (२) we wy पन्‌ कोणातीत्यधैः। (३) परमते aa परिच्छिद्येति क्रियामष्थाङ्ुत्य शतेन चतरं खया परि श्छिद्य गाः पयोऽपौष्यदिति रुमाघानम्‌ दिदरोष्ेन xangt प्रहत्यादिभ्यि उपसंखान-

भिति वार्तिकेण हतोवेति | (४) विप्रतिषेपं we काद्यमिन्ङगः |

१०8 TUN व्याकरणम्‌ |

सम्पू वैदानसम्बन्धिनि अधने मे भ्रौ खात्रित्यम्‌ | संयच्छते गो येषं he: संयच्छति faa | २६५। aa दित्सासूयारोर््यारिद्रो श्याह- शरस्यहिशप्राधोकचाप्रतिम्ुप्र्नुगृधाय्य्था भ॑ षी Meal | (wat ४।, feat—uraut: १।॥, भं १।, चो ।१।, area ie!)

oe —— ne ~ ~~ ~ ~ -~-------- ~~~ = (= त,

ऽधश्चम्तस्िन्‌। प्शास्तविरुहावारोऽधश्मः। गोः लश्मौग गोप्या ष्टं संयच्छते सम, श्रभिलषितं दत्तवानित्यथः। गोप्य रतिदानेनाध्मः (१) भिये श्रोणः ee संयच्छति, यत्र wh शास्र विरुहतवाभावाब्र मत्री |

२८५। यख दातुमिच्छा fears wre प्रति तौ, ताभ्यां शुः सः। प्रतिष श्रतु तौ, ताभ्यां गृःसः। स्थाय ET aay सृष्टि mo yaa शत श्राप्रतिश्ुष प्र्नुगृख धारि ते, तेषामस्ति, दिला van क्रोधश्च थाच tive give 4 चते। तश्च प्रथः (२) प्रयोजनं तदधेसदचैख्य

(णी भो nn dant ame Seen ee ~= ~~~ ee 9 कीक

) बरोएष्देन यः fear tree पर्ये रतिदानमधम्पौ एति सूचितम्‌ | (२) afacfarnaaneataate वच्लाषाज्जिकसूुत्रेण aw एति eau | इगां दासु wemaara प्रयोजनं निदरसिचेति greet argh, ware चौ Vatrquataafacfafamac: | ततद चारो अदः प्रयोजनेति चैः, AQ wives: एतं aaret मिष्टः, तदर्धं एव ताथ खाप शयः, ततः ताह तादथंदधेति रक्षे Gate ताद्य तसन्‌ | यत्‌ प्रयोजनं तका.

कारकम्‌ | ३०५

aa दातुभिच्छा, भ्रसूयादयः, श्यादैरर्थश्च यस्म, तद्‌ UA Gg, aa चो, तादर््ये | ददातु सद्यः ससुखं हरिः, AUT गोपो गणोऽसूयति कुष्यतौ्यति | स्म रोचते gufa तिष्ठते इते- ऽशाषिष्ट यस्ते WEIN

= ——— ~ --- ~ ~ --~ ~~~,

भावस्तादथ्यम्‌। wa दातुमिच्छा इति-ेन खच्छया क्रिय- Ary eta (१) at लभनंस भसंज्नः। यस्य पुनरादानं नासि तदानमित्यधैः। श्रतएवर भगवान्‌ पाणिनिः “कणा यमभिप्रैति

११ =~ 9 iS सम्मदान"मित्याह (2) 10 तेन विप्रायगां ददाति, arora fate: प्रतियच्छति इत्यादौ (2) स्यात्‌, तु प्रतः पृष्ठं

waaay. यख fasfaerarefe aquifers: | यथा stata पठति, wise ara प्रयोजनमिन्यथे. | सथकाय धूमः, wane fread cee: |! अतणएव नरकाय प्रदातव्यो दोपः gare रेवता ` Kay मरकाय नरकनित्तये Kae षति wre- भटवां यास्येत्याह। तकषागी एमते wales afqefafcia लक्षणया सिद्ध fafa बोध्यम्‌ |

(1) दीयति यत्तद्‌ दानमिति amaze, दोयमानं वस्तु caw |

(a) दानक्रियारम्भष्ठा कत्ता यमनिरत संबधनाति सम्बन्धुमोद्यति षा तत्‌ कारकं सब्यद्‌नमंन्नरमितख्य इति तच्वब्ोधिनो। sway कम्पा दानक aa यमभिप्रेति तत्कम्प्री गख सवभागित्वेनो हिष्योकरोति aqugiatata एतेन त्यक्गुख्यज्चमानटरव्यस्य खलत्वभागित्वेनोह्‌ श्यत्वं शस्मदानत्वसिति |

(९) wa प्रतिदानेऽपि माषदानख खेच्छाटतत्वं एनरादानविरङितत्वञ्चास्ति, तेनाल्न VATA |

२५.

३०१ मुग्धवीधं व्याकरणम्‌ |

गर्म राध्यति रामार क्षणाय स्ते व्रजे wary पर्या लोचयदित्यधेः | विभोष्रणायाशय्ाद Wey प्रत्यश्णोद्‌यशः। प्रतिन्रातवानित्वधैः | ददाति (१) राश्नो Te ददाति(२) रजकख वस्रं ददातीव्यादौ waa भयं ददाति, भयानि दत्त सोताये शल्याटौ तु खप्रयोजन- मभिलष्यतो घस्यामन्धसतोऽपि भयस्य देयत्वेन विवक्षणात्‌, भ्रतएवोक्गं ददातु सद्यः सुखमिति। एवं विवक्षावशात्‌ aa वसुनो दानं तव्रापिन। यधा- सममब्राह्मणे दानं हिगुं ब्राह्मणब्रुवे (2) | TUG शतसाहस्रमनन्तं वेदपारग इति मनुः परे तु पूजानुग्रहकाम्याभिः सद्रव्यस्य परापणम्‌। दानं तस्यापेणखानं सम्प्रदानं प्रकोत्तितम्‌

म्य a ~ - ~ --~ -~--~ -~-~--~--- --~ ----~--*--~ ~~ ~~ ~ --* ~ [वि

(1) षषटपरेनात एषद्नं लच्ते तेन बुडादौ पराजितः षन्‌ Asawa पष्टद्थनं दटातीष्धैः। यत्‌ yeena लुभिः wi तद्द एुनरादानं arate | किगवत Ween खेच्छया क्रियमाशलाभाषात्‌ AMAT AA द्र्य नरम ढागलम्‌। विद्या्हारेणापेषक्रम्‌ |

२) अनत पूजानुगहकाम्या सन्नति eager! खखावपरि्रागेन यश्च प्रख्य जत्एत्‌पाटविवमिश्छा धम्पराद्यभिशन्बन्िनो सतिर्भषति तत्‌ हम्म दागमि्धः। एतेन tr ee cerita दचछाविरषाच्च weft बट धन्या यभिसन्बन्धिन्या war दण्डं ददाति, तदा TS TOS TTA शटा. गत्वं wraltfa >।९ आातन्बद््ररी क्षायां efacia: |

(2) “auteratfgdenrtagey नियमव्रतैः।

नाध्यापबति aria y Say नाह्धखतुषः ॥' दवबङ्गिराः।

कारकम्‌ ०७

रामः, प्रलयण्शात्तस्ये लच्छमणोऽन्धग्टणात्‌ कपिः 1 रामं वदन्तं प्रो सायाम्‌ इत्यधेः सर्व्वा धारयते सव्वं BATS भज Fae |

गुरुदेवदिलातीनां भावणषया कतं हि यत्‌।

ध्यानावनतिदानेश्च पूजा माननमुच्यते

विरूपोकत्तनिःखानामकुव्सापूव्यैकं हि aq |

पूरणं दानमानाभ्यामनुग्रदह उदाहृतः afafeq फलमुिश्य टानयन्नजपादिकम्‌ | क्रियते कायिकं यञ्च तत्‌ काम्येति प्रकौत्तितम्‌

दानपात्रं सम्प्रदानं विधा वच्च निरूपितम्‌

देहोति प्रेरणात्‌ किञ्चित्‌ प्रेरकं याचको यथा ACA याचत नेव ATT TH मन्यते |

अनुमन्तुकतभेतत्‌ स्याहुणवानतिधियधा |

सोकरोति माहदामयात्र निराकुरुते तधा

भनिराकत्तकं तत्‌ Tee चैत्यः (१) क्षपानिधिः ।॥

fa सुख्यसम्प्रदानमन्यव्र तूपचारादित्यप्याहुः | aaa गुणेषु दोषारोपः। क्रोधो नेत्रलौहित्यादिहेतु-

वित्वविकारः। जिघांसा |

tat waar: सचि: प्रोतिविशेषः। sre

सदूयाद्य्थनां yat घस्य यं प्रति कोपः। | Taatat

तजि TG मक ee meee

(१) daar aT: |

Jot मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

प्रयोग घी यख्य प्रोतिं कफरोति। ars arena प्रयो यो बोधयितुमिष्टः। खहिधोः प्रयोगे arate: | crate: प्रयोगे यदिषयो विविधप्रशचः। ब्राप्रतिु-प्रत्यनुग्रोः प्रयोगी गम्यमानप्राकुक्रियायायोषः। धः प्रयोग यो धनखामौ aie: स्यादिय्धः।

ददालिति। यसमै हरये गोपौगणोऽमूयति ख. (१) BAA दोषमारोपितवान्‌ यस्मै गोपौगणः कुप्यति w, यं प्रति नेवलौ- हित्यादिकं क्तवान्‌। aa ईष्यति ख, यं प्रति छान्तवान्‌(२) | यसै रोचते स, यस्य प्रोतिविषवोभूतो गोपौगणः यसं द्रष्ति खम, गोपोगणो यं हिंमितुमिष्टवान्‌। यसे गोपौगणम्तिठते सम, यं प्रति स्वाभिनाषं बोधितवान्‌ wait मम्‌ २)। wa जगते @, श्रपङ्कवानो गोपीगणः हरिं aq बोधितवान्‌ | यस ब्रश fae, श्राघमानमालानं यं बोधितवान्‌। यसे खृहयति ख, यमौ सितबान्‌ |

YU: WHF रान्ना ष्त्यादावदरलाद्वावे मम्‌ स्प्हगीया

विभूतय शृ्यादिदगंनादिकष्ययत्यन्यः (४) |

~ ~~ = = ~ = ~

(१) अह उपतापं करोतोति agua कण्डाट्त्वात्‌ कये rata मामधरातोल्लिप।

(२) भार्यानोद्यतोति ara भायीं प्रति ata, ज्रिनतु परेदृष्मानां तां WAR TAU: |

(३ प्रतिक्तानिणेयप्रक्ञागे caraata ae: |

(४) verte eats yong: स्यहवति canet द्‌ क्रियाव्यायतया दाव, क्रियाश्न्धन्धदिषदया भतवभिति afeq |

कारकम्‌ | १०९

यक्षै गोपीगणोऽशषत, (१) यं प्रति गोपौगणः शपथादिना सखस्य acne बोधितवान्‌ a हरिः सह्यः सुखं ददाल त्यन्वयः | गर्मो मुनित्रज रामाय राध्यति सख, छष्णाय र्ते स्म, As स्थाने विविधपश्नेन रामक्षणयाः mag (२) पालोचितवान्‌ इत्यधेः खादि-राध्नोतेरपि ग्रहणात्‌ विप्राय Wate | रामो विभौषणाय राज्यमाश्श्राव, यग प्रत्यशृणोत्‌, याचमाने विभौषये राज्यं यशोऽप्यङ्गोक्षलवानित्ययः | तस्मे रामाय THAT: caw, कपिद्धनुमांखच wang, विभोषणाय राज्यादिकं दातुं शंनो रामस्य Manes कतवानित्यथेः infra AM: प्रयोगे गम्यमान-सामान्य-प्राक्क्रियाया ग्रहणात्‌ याचन- शं सनभिव्रत्वेऽपि | यथा गृगवद्धाः प्रतिश्षखन्ति मध्यमा भोर नीत्तमाः। WUT MAM नेव महिधाः (२)

-- ~~ - ~ ~ ~ [ -~ <~ ---~ ~ -----~

(1) anitfa शपरथाशीगेत्यतुकारे इति मम्‌ | (२) wa विसं कोटगितोति पाठान्तरम्‌ (8 सीतां प्रति राश्णलोक्गिरियम्‌। हे मीरु weg: प्रा्यमानेभ्यः wifafead क्रियताभिनयुपदेषटुभ्यः मध्यमा एव प्रभवः faerie तेः प्रबुक्ताः wren अन्व्यमिन्युपगच्छन्ि, नतु हिधा मादृशा उत्तमाः, ते हि खातन्त्मा्‌ wats हिताहितं जानन्तोति भावः। way अरतार्थाः प्रभो ग्टखड्धवः स्तुतिं RET: एव Agfa, तेः प्रवुक्ताः धनादिकं दात्‌ अभ्युपगच्छन्ति , श्वप्र सिद्धये खाषक्ञभ्यो यच्छन्तोत्य थः, aed मद्िधाः| खतः प्रसिद्धत्वेन परसतुत्नपे लत्वात्‌ | षति wh cool दति भरतब्याख्ा। share त॒ WaT ETS गस्बमान-

११० सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

caret शवणादिप्राक्क्रियाया घी भ॑ खात्‌। सदाः we स्वो धारयते, सतां waa wae खगंमोशादिरूपधनसखा- way: शिव इयर्थः (१) war तु eae खिताविति wafer VE पवध्वंसे एति ati वणुतसु शङ्‌ खितो, wa wee, wat धत्य, एङ wee इति aati ग्रहणम्‌| तथाच धनं प्रियते, तिष्ठति, साध(र) स्तनं धारयति खापयति,साधुधनखितिप्रयोजकषः Yara sweat: wae साधुर्न धरति धरते धारयति षा, रक्षति, भ्रव साधू र्ण्क्ता UAT उत्तमः एवं साध- धनं धारयते भ्रवध्वंसयति, सापुरधननाशप्रयोजकः eral ot at wa तद्मयोजके पू्ववलामिनि साधौ चे प्रातिऽमैन भमिति साराधेः। एवं विप्राय शतं धारयति चेतः, विप्रस शतं fart, खरूपेणावतिष्ठते, तच्छतं Ga पानि खापयति care: |

~~~ ~ ~~~ (न~ ~ न~ ~ RY NH Ae 09 ाकड

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शरवणप्रासकरिवायाः we: र््रानलस्गम्‌ तथा भावभणेः पूर वे भर्तन्ति प्रभो्ां्यमिति पेषः, अर्वान्‌ प्रहवाक्यमाशण्यं तत्रतिणलबनः प्रमोह्य व्तने, तेभ्यो mare: प्रतिष्टणवन्नि, वबभेतदः कराम CATA | अन्‌ arate gamer, तखाः wat सहनं भवतोति अतएवात्र ae: वानीदेनोक्गं चश्यारिप्रावक्िवाया षोभ खाहिति। ( बद्धिग्हारे कारण्पदे २५ BAST टोका दृष्या )

(1) दयानतया eet मष्ठंहायिनः frre मवदृरतवेन frye एति gatgre: @few धारोति पृथङ स्थितो ews: | were wea परिथोधनभ्‌ | wa ae धनं welt तश्च षब्यदानत्वम्‌, यचा दरिद्रः que wa धारवतोति। का-डि।

(१) शाप्रत्तन्ः।

कारकम्‌ | ११९१

तम्‌ इदृशं शिवं मुक्तये भल, भजनप्रयोजनं af: | एवै युपाय दाङ, रन्धनाय खालोत्यादि |

अनुक्ञचतुमन्तढात्‌ भ्रप्रयुक्षस्य चतुमन्तख sist स्यात्‌। wera व्रजति, काष्टमानेतुं wees: (१) गुहाय संनते, Te WY Tred करोति; पत्ये ओेते, पतिं प्रोणयितु शेत cee wana किम्‌ ? curred asta

चतुमवभावात्‌ | aad यो भावत्यस्तदन्ताश्चो स्यात्‌ पाकाय व्रजति, we व्रजतोत्यथः। एवं yma व्रजतोत्यादि भ्रव यद्यपि area गम्यते तथापि नियमार्धेमिदं, तेन Wied पाचको व्रजतोत्यादौ षे चतुमधत्याब्र स्वात्‌ |

उत्पातेन बोध्यात्‌(२)। वाताय कपिलिका विद्युत्‌, कपि लिका- विदयुदुत्प तिन श्राष्यमानो वाबुरित्ववे;। एवमातपाय लोडिता faafeanfe |

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(1) weal याति फलान्धाङसु' यातो इति शिङ्गान्श्ौचरो Tey areal इति प्रापमिः य्यः, यागक्रिवायाः फलार्धतवाभावात्‌ | erecaret डि यागक्रिया. areca फलकग्ञ्मिन्यरेतत्‌ः- दति क्रिवायौपर्टखेति ( २।४।।४ ) छत्रटोकायां तन्वबोधिनो |

(2) “feat शुभाशुभख्वको yafeste उत्पातः, तेन ज्नापितेऽके वन्त भानाञ्जतर्वौ वज्ये्धेः। वाताव--वातश्च wifuders’ दूति परिक्रयणे vane ( १।४।४४ ) फबटोकायां तक्ववोधिनो | कपिलिका िद्युदुत्पातः, तेन ज्ञाष्डभानो ातलतचचतो भवति “वाताय कण्लि विदयुरातपायातिलोडिनी | eat सब विनाशाव दुभि चाय fear wig”) इति माष्यम्‌ |

११२ quae MATT |

Vee | MATa THEA सुख Are खधा खलि नमोभिः

( शक्ता्धं- नमोभिः ain )

एभियपी at eq

दव्येभ्योऽलं Bie, WT वषट्‌, ait fed सुखम्‌ ख। हाग्नये, खधा पितरे, afer धात्र, नमः सते 1

१, ~ -------~----~- -- -~ --~-~-~~ ~ ~ = nen mine ~ ~~ ~~ ~ --~-= ~ ~ ~

२८६। शक्ञा। Mate येषां तै शक्ञा्थाः, शक्तपयाप्त- प्रभुप्रोधालमादयः। दल्यभ्य इत्यादि-देत्यानां सम्बन्ध समर्थो हरिः। एवम्‌ “wa प्रदाषः प्रियसङ्गमाय," शक्तो AAT AAT, (१) tal हताय प्रभुरित्यादि। यदा wayne ईश्वरवाचौ तदा a = 4 : eins zy (en wa, (२) तन ममायं प्रभुः खामोल्यथंः। महौ "नाप्राधौरस्य waa” (a) इति दशनात्‌ शक्ञाधयोग ्यपौत्यन्ये (४) शक्नो मतो रान्न दत्र राक्नोन क्ताधेयोगः। वषट्‌ ATRL खधा, ढानार्ध-

(1) "खलं योगे चतुर्योगरुतिर्मा स्ति "चतुरा caterataetts fa निल्लसमासे बाक्यभावाटिति के चिदर्टानि। शक्तो ag aga दूयत कारकेव्रिभक्तया प्रच भया ब्रधितत्वात्‌ we fa बदु" -wfaqert कारकपारे -८र Ga Warez |

(२) प्रभ्वार्योगे षष्परपि ery: | Ome aaafa’@ ont atau fcfafa- erg | तेन mee faaa’-- ति fagraalaet |

(३) welt ve | creme परति folrualiafcay) कथन ee FaTTE apie प्रभवति Kan) प्रोचुञ waive इति कविकल- yar) cave WAT |

(४) “mages gerd’ दति संशिासारद्नम्‌ ( कारकपदे ८१) |

कारकम्‌ | 222

दयोतकाः (2) gat वषडिति सूग्याय दीयते इत्यध; art हितं, सहयः सुखं, Uta ग्रहणात्‌ मताभिव्यपि। प्रामाद्यद्‌- गुणिनां fearfafa afe: (२) श्रगनये ater, waa दौयते zag: | एवं far खधा। wa खस्ति, die: कुशलमसु इत्यथः! सते नमः, सतां सम्बन्धे प्रणाम cats सामान्यतो ग्रहणात्‌ HUTT कुसुमं नम इत्यादौ त्यागार्थेनापि स्यात्‌ (३) नमस्छत्य सु नित्रयमित्यादौ नमःगब्द्‌ यो तितप्रणत्यधेक्षजो व्याप्य त्वात्‌ टत्वम्‌ (४) रावणाय नमस्कर्य्यः, नमश्चकार देवेभ्य cael तु प्रणतिवाचकनमःशब्दस्य क्रियाव्याप्यतलात्‌ ca (५) स्यादेव |

1१) “वषट खघाखाहा नम एषां व्वागार्थतया सखटानतवेनेवेटसिद्खौ एक पहं मन्तानर्गतानामपि प्राय्धम्‌ | तेन शिखायै बषट्‌. गिरभे खा, पिदटभ्यः airgai, हृदयाय नम cane निद्कम्‌। नारायणं नलस्य rare उपपटप्रिभतोः कारकव्िमितिगरोयकरोति न्यायात्‌ wala - दरति gatere: |

(२) भटी 19 1 ३८। इन्द्रजितं प्रति विभीषखद्योक्निरियम्‌ | गुणिनां माल्यत्‌-प्रश्टतोनां गुणवतां साधूनां वा fed प्रति. खव प्रतिरध्याहार्ः, प्रामा- aq अनव्ितोऽभवदित्ययः | way हस्रलिखिततकंवागोशटो जा पुस्तकेषु fea- fafa पाठः | लं्चिप्रसारेऽप्येभम्‌ सद्ितपुस्तके तु हिते षति पाठो रश्यते।

(३) ""जष्णाय गन्धो नम TAY ख-खव-ध्व स-पूयक्ञारोपितखत्वाच्रय द्धः; नेन ऊष्णसम्बन्ध्यारोप्तिखत्वाश्रयो गन्ध Lae: | एवच सम्बन्धाधत्वेन षषी शषयेऽख शिषयः" -इ्ति व्द्यालङ्कारः

४) खत grata प्रशतिश्राचङः, waa तद्योतक्रः, तकात्‌ प्रण wal त्रिषयतार्प-फलाश्रयत्वात्‌ इनिनविति कश्ैलम्‌ | अतएव नमस्करोति देषाजित्यन्‌ उपपदविभक्तेः कारकविभकतिगरायसोति न्यायात्‌ कम्यैत्सिति शिद्वानकोकदो |

(५) sa ममः शब्द छेति iy: | “नमस्कृ कर्हाब - दहिक्महुकूलयिवभि-

४०

११४ सुगवो प॑ व्याकरणम्‌ |

२८७। ठे नाशिषिं वा | (29, ।१।, fate 9, aT igi) | सह्यः एतां वा शं भूयात्‌ |

18 ers me [भ्व me ere 1 NTE ERED UR OREO

afatfga watsartaa) वलिरलिताभ्यां प्रयोजन- वायर्धेन योग चौ स्यात्‌ कुषेराय वलिः, विप्राय cfaa’, ब्राह्मणा यवागूरिलयादि निले प्रथोजनारधा्ेन वा्यलिङ्कता चेति (१) a |

्यथविकारे सम्मदयमानादमेदे करष्यथेधुभिर्यीगि aa मानाच खात्‌ विकारे, तु भेदविवक्षायाम्‌। मूत्राय यवागूः सम्पद्यते, मूतरूपैण यवागूः परिणमतोत्यथः। एवं उच्चाराय कल्पते माष इत्यादि विकारे किम्‌ ? मूत्रं यवागूः सम्पद्यते, भ्रव विकारो विवत्तितः, किन्तु कारणतामाव्रम्‌। भेदेतु aa यवाग्वाः सम्पद्यते, यत द्यादिना aay |

२८७ | Zari श्राशिषि गम्यमानायां यस्य सम्बन्धो ऽवगम्यते तस्माच स्वाहा, नतुठेसति। यद्यपि सामाग्येनोक्ं तधाप्यभिधानादिगेषनो sa, तथाहि कुशनायुष्य-प्रयो जन हित- मुख-गोभन्धरेव योगी Haq) महाः साधनां ge मवलित्यः। एवं सद्धा: सनां वा श्रायुं जौ वितं, प्रयोजनमधः, पष्यसुपका- रकं, शग सातं, शोभनं भद्रं वा भवतु भूयाहा श्ल्यादि।

= == ~ (दि

wee + ~ ere

we: | wd want नमस्कु दूादावपि"- दूति fegraratydt | तमति एषू- दाहरणे “बहक रतुमन्तदात्‌," दूति चतुर्धी | (+) बच्छमाय-चतुमीतत्‌पुरपपहरणे वात्तिङ्फवमिदं द्द्यम्‌ |

कारकम्‌ ३११५

zen) परिक्रियोपध्रेवा। (परिक्रियः ६।, घै ऽ, ariel) | waa मुक्तिः परिक्रीता परिविष्य कषारिभिः।

[1

खस्ति गोभ्यो ब्राह्मणेभ्यो भूयादिति पूवण नित्यम्‌ (१) fea- सुखयोरुमयतर पाठोऽनाशिष्यपि विकल्या्ः 8 तु शिवस्तव करोतु शम्‌। ठे fatug पाडन्यादिसग्मतः। आशिषि किम्‌ ? भायुष्यं (2) प्राणिनां एतम्‌

rect परि परिपूव्यक्रोजो बैतनादौषधैचोवा स्यात्‌। नियतकालं war (2) खोकरणं परिक्रयः। सदिर्विणोभेक्तव मुक्तिः परिक्रीता, विष्णुसेवन-वेलनेन सालोक्यादिरूपा afafa- बहा इत्यथः श्ररिभिः शतृभिः रुषा Fae) उदादरणदयेन विकलो दथितः एवं द्रोणाय द्रौरेन वा परिक्रीतो aaa: (४), किञ्चित्‌कालपयन्तं सखोक्ततवानित्यथ; परेः किम्‌! शतेन क्रो तोऽश्वः। परे WT धस्य भत्वमाहः (4) |

te gen न~ ~ ~ + ~~~ ee ee ee जा eye =. Ag Se

(1) wheat “andfarqratafa yet बाधित्वा aqua भवति। wafer गोभ्यो भूयात्‌। afer ange: दति काथिङ्ञा (212 १६),

(९) wrgeecfanre: |

(१) शतिवेतमम्‌।

(४) wre: aE: |

(५) अव दत्रे द्गादासः “axe परत्र वा शब्दऽषण्यदक्तये fan इव नध्यवन्तितेऽप्यख विकखाे वापर fay) वापहयमाशिषोव्यद fas क्ययेभिति बङ्गाधरः।

११६ AAT व्याकरणम्‌ |

२६९ | गल्यधमभ्यदे वेष्टावन्नेऽनध्वाकाकशकश- गालनापन्रे वा |

(गलयर्धमन्धटे 9।, चेष्टावक्ञे |, श्रनष्वा-भ्रब्रे o1, वा ।१। ) |

NAIM S RATA TT वेष्टावज्नयो धौ स्यादा |

२८९८ गत्यथ | गतिर्थौ ae a, च॑ मन्यश्च तत्‌, तस्य ठं afaq चेष्टा vast तत्तम्मिन्‌ wat ब्रनध्वा, काकश्च शुकश्च WTA नो WAY तत्‌ नतत्‌ श्रकाकशुकमृ- गालनावन्रम्‌ | पुनः अनध्वा तञ्च त्तस्मिन्‌ नजदहयसुक्तं यधा- क्रमदशनार्धम्‌। चेष्टायामिलयङ्गेगे तिरिद़ पाद विद्रणालिका, तन fad गच्छतौत्यादो स्यात्‌, ग्राश्याधलात्‌ (१) चेष्टा काय- maaan, परिस्पन्दनादिनन्नणित्येके। तन्मते fad गच्छतोत्यादौ गहं प्रविशति इत्यादिवन्र स्यात्‌ २)। वाशब्दस्य व्यवस्थावाचि- लात्‌ wait नयति, हं प्रविशति, गिरिगिस्वरपमारादति, ari तरति इत्यादौ स्यादेव ; ग्रामाय ग्रामं गन्ता, वनाय वनं गमन- भिल्यादौ टे पिन स्यात्‌| ग्रामस्य गन्ता वनस्य गमनभितया- adifa भागहत्तिः २) cag area यां मिहहायां ग्रामाय मम च्छतोत्यादिषु समो गमच्छत्यादिना ब्रढलाख्जप्रािनिगसाध- मिदमित्याहुः (४)

err 1 षि 7 १71) = =

॥१) याम्योऽ्लीनः। स्तिया ay सङ्गच्छते TRU: | (२) वव्द्यमाण वागद्ध-व्यवस्ययेति शेषः,

(१, लति षौ वेति भागहत्तिरिति magica | (४) अव्‌ पुन्धापहगं परत्र शिहत्यचमिति गङ्गाधरः|

कारकम्‌ ` ars

व्रजाय व्रजति ओशो ast व्रजंति केशवः 4 Al SUF AAS AT मन्ये aT खल चेष्टावन्ने किं--मनसा हारकाभेति लां मन्येऽहं जनार्हनम्‌ अध्वादौतु - गच्छत्यनन्तः पन्यान तला काकं AAA |

ल्वा शायेति- मन्यतरयेन ठेनानादरो गम्यते ततेव चो, तेन त्वा शयत्र स्यात्‌ गच्छत्यनन्त इत्यादि - श्रत मुख्यस्या- wal निषेधः मुख्यलन्तु माक्तादभिमतदेशप्रािहेतुल्वं, तेन उत्पथेन (१) पथे गच्छतौत्यादौ ख्यात्‌ Ta पथः साक्षादभिमत- देथप्राप्तो व्यव्रहितव्यापारवच्चन गोशतम्‌ (२) ला काक- fafa—at काकं मन्यते, काकादप्यपक्ृष्टं मन्यते इत्ययः | एवं नलवा Ya Aa, A लला शृगालं मन्य इत्यादि (३) परे तु प्राणिमात्रे fata (४) काकश्कग्रगालानामैव निषेधे

1१) कुपयेनेन्मर्थः|

(२) अत पन्या: सासात्यम्बन्वेन नाभिमतदेशप्राप्रिहेतःः अपि तुस पन्या una अभिमतदेधपदवाच्यः, aise उत्मथव्यापारदङ्पव्यवहितव्यापारवन्वेन गौणत्वम्‌ तथा efagert कारकपदे tos छनटोकायां गोयीष्न्द्रः - ""यनाव्यना पन्वाने गच्छति तब खामाटिवत्‌ पन्था एव गब्यः तत्र चतुचौँ भवती- ae care | fearangare ‘nanfafea अध्वग्टेवायं निषेधः यहा तु उत्पथात्‌ van एवाक्रभितुमिष्यते तदा चतध wae सुकरम्‌ |

(१) धूकःगद्यादोनां दच्छायभागः, “न त्वां नाभं सन्टे यावत्तीणं

नाव्यम्‌ त्वास्नमष्ं ae यावद्शक्गं ate fafa रंजिप्रसार कारकपदे yon GAG Ufa |

(४) भभ्यकनूगयनादरे भाषाऽप्राणिषुर।३ 19) एति पाश्िनिषने mfewa निषे षभपनोमेल्रषं एकम्‌ | sates निषेधादिति निषेधनप्रनोबेति यब weal |

are मुग्धवोधं ATCT ३००। यतोऽपायभौनुगसापराजयप्रमादादा- नमूत्राशविरामान््हिवारगं जं पौ | ( यतः \।, भ्रपाय-वाररं १।, जं १, पो Ie) | यत एतै.तत्‌ RAT स्यात्‌, तत्र पो

a,

surg.) aud afaq शका wa: पाठः (१) भन्ये तु प्राणिषु काकश्गालावैव वजेयन्ति | १००। यतो भ्रपायो fade: भोय, जगुा गया

faufaafa:, पराजयः सद्‌ मगक्ञिः, प्रमादोऽनवधानता, श्रादानं नियमतो amet, भूरत्य्तिः प्रादुभीवध्र, वाणं रका, विरामोऽशरहया चित्तनिदत्तिः, भ्रन्तदिरन्तरीनं, वारणं प्रहत्तिविघातः। यत एतै इति - श्रपायाद्यवधिल्रेन यदिवद्यते ads ख्यात्‌ | तचिविधम्‌।

निर्दिष्टविषयं किञ्चिदुपात्तविषयन्तथा |

श्रपेलितक्रियद्धेति विधापादानमुश्यते (२)

शुतसाध्यक्रियं यत्‌ स्यावरिदिष्टविषयन्तु तत्‌ |

ऊद्मसाध्यक्रियं यत्‌ स्यादुपात्षविषयन्तु तत्‌ |

श्रपेचतितक्रियं तत्‌ wre यत्‌ क्रियाशृन्यभेव fen

(1) शिद्गानकौहद्यानु “ग लां पुने श्रमं दा we इत्यत्र प्राणितवेऽपि भवदे heme काथिकरायां भ।प्येऽेवरभेष | (x) अपादानं वे विष्य मन्दत पन्ये cra दण्टे।'“वनाहिद्योतते feat: ma निग्र वाङ feet? पियति), निः विद्योतते cae इहं रयोग Tae) त्ते अन्‌ निःहरखपृथडपियोतभनेष ` विदयतेरधैः।

कारक्षम्‌ | ११८

विभीषणः career, खातुरभौतो, gaan: |. पापात्‌, पराजितो दुःखादप्रमन्तो विधैः, aa: |

(गणी ee a 7 ee —.

क्रमेणोदाष्टरणानि--हच्ात्‌ पणँ पतति, चघनादिद्योतत विद्यकोधात्रिःखत्य विद्योतत sem: गरोन्नेभ्यो(१) माधुरा भ्राच्च- तरा इत्यव नियमेन उक्कषक्रिया गम्यते। नियमश्चावश्यकता ये तावदाद्यतरा भवन्ति, ते eat उल्क्ष्टसुखभाजो भवन्ति waa: | Ud मायुरेभ्यः खन्ना दोनतरा waa नियभेनापकरष- क्रिया गम्यते।

श्रपस्रतो भेषादपसरति मेष cael एक स्यावधिलवं farene | यदा तु विवच्यते तदा भैषावपसरत इति एवं awa पशं पततीति घम्बन्धमावस्य विवस्षितलात्‌ |

तत्र भोत्राधयोर्यो भयहेतुः | पराजयेत्‌ सोढ्मशक्यम्‌। प्रादा- we नियमतो वाग्रहणस्य wren) उत्यत्तिकर्तुयत्‌ कारणम्‌ प्रादुभावकन्तं दादयो पलग्रनसखानम्‌ श्रन्तहान- कत्त यख्यादशनभिच्छति। जुगुा-विराम-प्रमाद-वारषार्थानां afafad (र) एषामावधित्वविवक्तायां जसंन्नत्यधः (१) |

[11 sero mormon REE EYE mmr

Ui MIyarg wana उङरणाङ्गे west शंसिः, ATPase Weta: | ATEN बेरेकरेषः।

(१ Sa fintwatfgag : |

h) maura ag rede, विरामख aarsat, प्रभारख ay विषबक- लमव्रधानसम्‌, UTES वः प्रहन्तिषिषयसन्षदपाटानमिति बुहग्ुग्धनोधम्‌ |

(श) षिः eter |

१९१० बुग्धवोधं VAT |

srafadt, qaatat, भातुसरातो faa, भवात्‌ | विरनोऽन्तर्हितो दुष्टात्‌, थोकात्‌ रामेण वारितः |

विभौषण इत्यादि विभोषणः पदाद्भरष्टः. लङ्काया रामसय निकटं गत इति यावत्‌। कौश; ATT TATRA, तख aaa wae: | कुञ्चिकयैनं भाययति श््यादौ तु ्रवधिला- arava ज्ञतम्‌(१)। पापात्‌ जुगुणटितः, पापं निन्दनं ततो निषत्तः | aya: पापमेव निभित्तम्‌। दुःखात्‌ पराजितः, दुःखं ae षमः, पराजेः दुःखमेव सोदमणशक्यम्‌ Wa रिपून्‌ परा- जयते श्रभिभमवनोत्यथः। श्रविः प्रमत्तः, श्रगाम्तविहितात्‌ कमणः प्रमत्तः, प्रमादस्याशाम्तविहितक्र्व निमित्तम्‌ (२)। यदा विषः अप्रमत्त इति, शब्दो निधे, wel aa, पशचान्निपैधाधा- कारेण सह सम्बन्धः, ग्रामं गच्छलोतिवत्‌। एवं धनात्‌ प्रमाद्यति cafe (३) सत भ्रात्तविद्यः, पण्डिताज्रियमतो खहोतवाश्चः | गुरोरध्ययनस्य निथमपूत्वेकल्वात्‌ नियमतो वाकस्य सत भ्राख्या- दत्वम्‌ ; एवसुपाध्यायात्‌ शरणोति पठतौत्यादि | अनियम तु Ae Na शृणोति | सुनैवि श्रवसो जात उत्यब्रः, विभोषणस्य सुनि- निमित्तक्ञारणम्‌। जायमानस्य vata: कारणम्‌| तदिविधं, सम- वाथिनिर्मि्तश्च। तत्र यल्लमप्रतं (४) कायमुत्पदयत तत्‌ समवायि, यथा रतिविष्डाट। जायते, वोजादद्रो जायते इत्यादि cafes 1१) कुद्धिश्ा (२) आवेधङ्मए्यन हित दवः |

(8) wafayad यदनवधानं तहानिन्रषः। (wafer समेतं सभवायशब्यन्भेन ater इदिद्नषेः |

कारकम्‌ | २२१

fafaret (१) ae चक्राहटो जायते, gary प्रमोद जायते (2) cathe समवायिकारण प्रत्यासब्रमव्टत-सामध्मसमवायि कारणान्तरमित्यन्धः (२) यथा तन्तुदयसंयोगात्‌ पटो aaa दति। THI शरो जायते, गोमगरादुशिको जायत इत्यत्र शृष्कादि समवायिकारणं, शरद्ादिसमवौ यिशरादैरष्यकसिदत्वात्‌ (8) श्नात्‌ रावणात्रिजेरामोयंसवातः ; रावणएव विभौषणस्य भय- हेतुः। एवं काकात्तिलांस्रायते saa तप्राणिनि waqu- चरणोयं, भयस्य प्रागिधरलात्‌ भवादिरतः संमारमञ्रडाय तस्माच्रिदत्तः ; विरामस्य भवो निभित्तम्‌। दुष्टादन्तहित, अमनो रावणाददशनमिष्टवान्‌। रामेण शोकादारितः, Na, प्रवत्तमानो निदः, वारणस्य निमित्तं शोकः! एवं यवेभ्यो गां निपेघति, कूपादन्धं वारयति सत्यात्‌ wala, भ्राचाराचलति,

मि 0 = 0811 कः = ~ ~ --- ~ ~ ~ - - ~-~--- ~---- ~~~

(१) खभ्यामन्दट्न्वयव्यतिरेज्नाचुविधायि निभित्तकारणम्‌।

(२) यदात्मनः प्रमोटोभव्रति अस्ना समत्रायि कारणं पुत्रो निभि arcufafa |

(९) wert:-eanfaarce ward स्थितं, ard fafed साथे कारणत्वं यख तत्‌, तन्तुहयसंयोगात्‌ wl जायते caret संवोगोऽ्षमवायि कारणं अतएव “खसभवायिक्ार्णतवं ganas भवति, aguay wards सम्बमिलणेः,' इङ्गं पिद्यालङ्कारेष |

(४) एचगभावेनागवस्विततवारिबधः कारकपदे "'जन्यधेकतत meat’ दूति ११ Cae करनटोग्रद्नख afd गोयोशन्द्रटोकां विद्यालङ्कारटिप्पनीश्च war- लोच्य परोऽत्र उद्विज्जलवियेषः, eam Nase, eR faeces ww श्टङ्कगोभये भरदटचिको प्रति निभित्तकारणे, नतु समवायिकारणे इति तेषां मतमिति प्रतोयते | तक्दगोथस्तु अण्यकविद्तवं समभायिकारखत्वनिति मन्दमानः WEMTAAT चरढ़ङिको प्रति इभवाविकारणलमाहेति मतभेदः

Be

९२ सुरधवोधं व्याकरणम्‌ | २०१। भन्यार्भ्या्थाराद्वहिविनते प्रतिपय्य- पादिक हतये | ( भर्य--ग्द; BN, RAMA 3, ।१।)। एभि्यागी हेतौ यवन्तस्याये पौ खात्‌ | प्रा व्याप्तिसोमोस्याऽन्यौ रतिदाननिधौ प्रति

Re enn a A ES eee A 1 117; ad, 2 4

विप्रादस्तं weifa saret गौशागौणापायावधितवेन faafea- लाललम्‌ | एवं सति BHT यदि मां पश्येत्‌ तदा भवं सृद्यूरिति मनसा तं प्राप्य ततो fad इत्यादिक्रमेेव गौणापायतवात्‌ fat भ्यादिग्रहणं प्रपश्चायमिवन्ये। व्यापराडिति, zeit रततितः स्वाथ canal farerenfaafaaa yarn ग्रहण- मिति at |

२०१। WAT Mary TEA area येषांते, feta दृष्टाः शब्दाः दिक्गरद्दाः, अन्यारभ्यारधथ wee वद्धि विनाच ऋतच प्रतिय परिय श्रप्य mea feaner aa | यपीऽो यवधः, हतु यव्रयष तत्तन्‌ येन विधिस्तदन्सस्येति न्यायाद यव्रन्तस्यति

भराङादौनां नानाथतवादर्थविगरेष एवात ग्रहणम्‌ इत्याह wre व्यापि serfs: प्रतिदाननिधाविल्यागमग्ासनस्यानित्य- लवात्‌ ar प्रतिदाने परोवर्त, प्रतिनिषो मुख्यसट्शे प्रतिरव EIA वधः |

नेतरष््यादि | ईथानादिष्णुनेतरः fanaa: 1 एवं gue:

कारकम्‌ | २२४

नेतरो वि्शुरोशानात्‌, भवात्‌. प्रति सोऽ्यते ओोऽख्मदारात्‌ वहिस्वत्‌, शं विना नार्थो gored

नयेऽसुरवगा इत्यादि परे तु नोचार्धेतरथब्दं Treat (१)। भवात्‌ प्रति ora प्रारभ्य भिवोऽचयते भर्षादख्ाभिः। स्कन्धात्‌ प्रत्येव सपक्लवानोति ुमारसम्पषे lat त्वारभ्याधे- शब्दं WIR ग्डन्तोति (र) | मस शिवोऽसमदारात्‌ wana समोपवर्ती त्वदहिस्तव gant) क्विदपवादविषये- ऽप्यतृसगस्य निवेशात्‌ “करस्य करभो वहिः, “वहिरम्मोज-

वनस्य वानरा” इत्यादी पौ | हषादर्ाहिना शं न, हषाहते नारौ भवतोत्यधेः maa: रेवायाः waa adit मोच्तः। केगवात्‌ प्रति प्रयसः, AWS प्रधानसटगः श्रनन्तात्‌ परि विष्णोख्यागात्‌ त्रयः काथिकवाचिकमानसास्तापा भवन्तौत्यधेः | एवमपानन्तादिति बोध्यम्‌। श्रा मव्योमृल्युपयन्तं हरिः

(१) अन्यारादितरक्ते एति २।२।२६। erfefaaa इतर शन्दख एग पष - मल्लि, feyerateat “xataew प्रपञ्चाणासि may तत्र तच्वनोधि- न्धासपि "न दतरस्वन्यनाचय)रियभमरोक्तनीचाथययेदं यमदणमस्तीति वाच्यं * + पञ्चभोविभकत carta सिवता fame अश्न््तेऽपि erate ava निङ्धीरऽधिकेनेत्यारिख्त्रेण निद्धारे vgear सिङ्त्वादितरशब्दो vagy «fay

(2) धक्‌ eeteaaama:—unfafea aout प्चमोविधानं afer; faq “ane पञ्चमीति ea कात्तिक्याः weafa भाष्यप्रयोगात्‌ प्रण्डतियोमे weal fa बिद्धानकौसटो। तत्र तच्वबोभिन्यासपि “कान्तिक्याः प्र्टतीति भाष्यं शदखता कंयटेन तत आरभ्ये्यवभिति प्रयुक्तम्‌ यत रवाबा्यंणारभ्या्चं Kaw चातखे प्रकटितम्‌ |

१२४ HUNT व्याकरणम्‌ |

we: प्रयतं Wall: Ware: केशवात्‌ प्रति प््नन्तात्‌ WAT, WTA: eat हरिः |

cee 7 1 me ee ee «~ ---- ~ ee ~ + ~ ~= (777 1 11 ememeeen one >~ -= „~~~ ~ ~

ant: विष्णुराराश्यताम्‌ भर्धादस्माभिः। भा सकलात्‌ सवं चराचरं जगदभिव्याप्य ब्रह्मासि sa दिकगर्देतिकरणा- दिग्देशकालार्थपूव्यारौनां भ्रा-भाहित्यान्तानां भ्रचुत्तरदानाश्च ग्रहणम्‌ श्रत श्राह पूव्वः छषशाद्राम इति ; MUTT Yaa जातो बलराम CHA: | AYA उत्तरकाले जातो गद CATT | एवम्‌ द्यम्‌ WA: Yat दिक्‌, भरयमस्मात्‌ पूर्व देषः, माघत्‌ yar: पौषः, उत्तरा areal काश्या, दत्तिणाहि वनाब्रदो, “उत्तराहि वसन्‌ रामः समुद्राद्रक्तसां पुरम्‌” इति भटः, प्राक्‌ ग्रामात्‌, प्र्यङ्नगरादित्यादि गम्यमानदिक्ष्देरपि, लेः सि W जसिल्यादिन्नापकात्‌ श्रानन्दादिव्यादि। यद्यपि ईतु बध दूति सामान्येनोक्गं तथापि विग्र षतो sa, भवति fe व्याख्यानतो विद्रषाथप्रतिपत्तिरिति। aatfe—

श्रे ऋणशे हेती पौ नित्यं, ga हेतो श्रस्ियां पीवा स्यात्‌ शतात्‌ AT, गतस्य RI वन्धने हेतुत, Wi प्राप्तायां वचनम्‌ | घात्तु- शतन बश्धितः, जन्तबन्धः WAS प्रयोज कघलत्म्‌। जाया हह; जादोन वहः, पारिखाव्याशक्घः पारिखाल्येन सुक्घः, पारि Gia awe इह गुणशब्देन द्रव्याभितगुणस्येव ग्रहणं, किन्तु सम्बनवरूपस्य परा धरूपापग्र्येति(१), daafsca धूमादि-

(1) 'सम्बज्धिलालरमिति-्ाभ्रितमाश्रमियः | पराधङ्पापच्रमिति- परः साष्योऽथा बोध्यो यशसपरारःप्रथ्याण एति Arg, तख EU wa: UTE

कारकम्‌ | १२५

ब्रद्मारूवासकलात्‌, Tea छश्थाद्रामोऽवरो गदः। a भानन्दादौ खरः शलादासनाटौरतेऽलकाम्‌ a “~ a“ 0 WAT Alaa उपविश्यत्यधः।

en ere aaron eee ee me sie Ce ee. +~

त्यादि(१) | स्ियान्तु- विद्यया qa: | स्रीशब्देनाद्येतूां ग्रहणात्‌ घटो नास्ति इहा नुपलब्धरित्यव्र निषेध; (२)। एवम्‌ भ्रप्रयुक्घख्य यवन्तस्य टे पी स्यात्‌| यथा tae: शिवः cere a: गरेलादासनादलकाश्यां पुरं Sat पश्यतोत्य्धः चैलादिति 2 भ्रासनादिति इत्याह aaa इत्यादि! ठडादन्यव वलेनानयति वलेनाक्तष्य vara: | Wary:

प्रशरोत्तरयोः | WAG: पो स्यात्‌ कुतस्वम्‌ वनात्‌ aT

By ~~ ~~ ~ ~- ~ ~~ -----~-- -- ----~--*~--~--

तहाप्चमिवर्धः। anfe लाद्यादयो बडायाचितासद्ोध्यभूताच्च एतिन कन्यया शोकः, वसनेन र्पमित्याटौ भवति, कम्याया अनाित्वात्‌, TTT व्याप्यत्वात्‌ - इति fraragre: |

(१) “gare: ष्मो वा| अन्धात्रितत्वेन विवक्षितो युष ewes यथा wad षङ्धिमान्‌ धमात्‌" | - दूति प्रयोगरन्नमालायां कारकगिभङ्गिप्रक- रखे ६६८ शनं | “ose पशः, वङ्किसाध्ये धूमो Fa: waft wwe afy- कार्यत्वं तथापि तदतुमितिहेवत्वेन Fae) अत्र भूम टृव्यत्येऽपि विश्चितपटाड्‌ गुखत्वमू्‌ एवं क्रियाया अपि gees विक््ा। * + * * ब्याहि- fafueq हेतोः पशषटस्तिवश्च'न्धातुमितिक्ञारणत्वाटन्यद्य wee पव्वेत- wfyrafivar धूम [दिद्ेनोरिचर्धः। VAT Y HT KETTT- YAR TTTS- fafa प्रति afeara-yarquaania कारकमिति" ईति ager) विभाषा गुथोऽस्ियाम्‌ ( २।१।२५ ) इति पाश्डिनिद्छवम्‌ तत्र शिद्धानकौषदयां “fer- षेति योगविभागाद्शुखे fearg कंचित्‌ धमादग्निसान्‌, aria वटोऽहुष सन्धेः CT |

(९) सन उपशश्विणन्दख स््ोत्वेऽपि ariterafrgenrg पशे पडनोति |

are Tua व्याकरणम्‌ |

Zoe | वाराः | (ar ie, भारादरथैः gin) | दूरान्तिकार्थैः पौ SITET | TAGES यो दूरं पापादुःखस्य सोऽन्तिकम्‌। २०२। समारथेनाथ्यलसाहितसुखेनिंदारे सम्बस ठेचषौ। ( समाध-सुसेः an, fait ७। सम्बन्धे ७।, 2 ७,

q भ्रागच्छोत्यादिक्रियाध्याह्ियते तव gata (१) पौ स्यात्‌ यत्रतु नाध्याह्नियते तत्रैवास्य विषय इत्यन्ये | वमुतमतु उपाज्ञ- विषयत्वात्‌ yaa निः ख्येलध्याडारात्‌ |

३०२। वारात्‌। weet येषां पै a TITER. समोपयोरित्यत wie दूरान्तिका्चैरिति |

स्तोकाल्यकतिपयज्लच्छरात्‌ wea) he we Hat स्थाब्र तु सक्छ (2) 1 SAAT: स्तोकेन YR) एवम्‌ wage wafe) awafaag स्तोकेन मधुना मन्तः धात्‌ किं? सतोकं याति।

RoR ममा। समोऽयो येषां तै, साच aw a a, anat तौ स्तातो | पात्‌ समाध एनय भाव रिख भ्रस्‌

( 1) अपादानत्वात्‌ यतोऽपायमीत्यनेमैव | (९) UM xa wlaretat वरियेष्यगामित्ये सति Rad) लोकादोग। tmatfedear हेन वाततिवत्‌ बल तेभ्य Bitar araae पे पद्मी; |

कारकम्‌ | १२७

एभिर्यीगि एषु षी स्यात्‌ यः सव्चैस्य समो यख दचिशेनोत्तरा खितः |

ee = ~> = -- ~~ = = rr ® --- - ----~----- ~ --- --- ~~~ et

तस्‌ सातौ हितश्च gee तानि तेः। जातिगुणक्रियाभिः सजातीयव्यवच्छेदो fe fate) विशिष्टधौहेतुः सम्बन्धः, स॒ चानेकप्रकारः, खखामिल्‌-जन्धजनकत्वावयवावयवित्व-प्रति- योग्यनुयो गिल्वाधाराधैयत्वादिः। एभिर्योगि इति- समार्थेरेनादि- ल्यान्तैर्दितसुखाभ्याञ्च योगे, जात्यादिभि्वस्मात्‌ सज्ञातोयादयव- WIM, सम्बन्धस्योभयनिष्ठत्वऽपि सम्बन्धस्य निरूपकात्‌ (१) खाम्यादैः। यदुक्त-

मेद्यभेदकयोः (२) fae: मम्बन्धोऽन्योऽन्यमिष्यते

दिष्टो यद्यपि सम्बन्धः षष्टुयत्पत्तिसु भेदकात्‌ | महाकविप्रयोगदशनेन धुविशेषाणां यत्‌ caa faafad तसात्‌ घौ सख्ादित्यधेः।

यः सन्मैस्येति-यः wae शिवस्य समसतुल्यः, पूर्वेण al

aware द्तियेन, ददिषस्यां fefq खितः, gaa tt a | यः aaa sau, sata दिशि faa, yau at a) at तुषीं ay) यः सव्वैस्य जगतः safe, यः aaa जगतोऽधः, यः CAS जगतः पूथ्यैतः पूत्धकालवर्तो,यः GAIA जगतः पञ्चात्‌ उत्तरकालवर्तो | पश्वादित्याच्येन निपातितम्‌(र)। एवं पुरस्तात्‌

(! ) भेदकात्‌। (2) गिशेषयविपेषणयोः। (३) अपरधन्दात्‌ प्रश्चिमथन्दाहा साम्या आत्मयवः तयोः Tee fare: |

aac मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

उपर्यधः पववत पषात्‌, यस्याखिलं हितम्‌ | STU, तस्य देवानां वयस्य, पदयोभशे

ee 1 [कि | = ~ ~ -~----- ~ ~-~ * , „~= eg ~--------- - ~ ~ -->~ ~ = (भौ

ग्रामख, उपरिष्टाहचस्य, उत्तराद्ग्रामश्य इत्यादि एतेषां ग्रणं दिक्शष्टयोग प्रा्ठपोवाधनायेम्‌। कफोणिः goa इति Saray पौ यस्य ॒देवस्याखिलं चराचरं हितं भित्र यष्वाखिलं जगत्‌ सुखं प्रोतिजनकं, तस्य देवस cea भजे चरणौ 83) तखेत्यवयवावयवितवक्म्बन्धे षौ एवं चैत्रस्य धन, मेव्रस एुचः, कायस्य Ye, जलस्य घटः, घटस्याभाव इत्यादि श्रादिना राहोः शिर इत्यत्र तु saz ws ae कोटशख ? देवानां ade, केनापि(१) गुगन देवेभ्यः प्रकषष्टसय | देवानामिति fatten, पदयोरिति दे षौ। एवं “माषाणमग्रौ- या”दिति भाषम्‌ “न ब्िष्ति aafafe’ fa afe: 1 “at ल्म रपरकुरुते यया परेषा”समिति भारविः “नारायणस्य बुक- रोति" इत्यादिशिष्टपरयोगाः। एषु सम्बन्धमाव्रविवक्षया पोति ati यथपि इति aan तधाप्यभिधानादिशेषतो way) यधा-

खअल्धदयेथां वा| एषां 2 षौ वा खात्‌ विशोर्येति, शम्भोः aif, भङ्गस्य दयते दुगा, भक्षस्य ke हरिः, यथेष्टं विनि- युङके(२) इत्यथः पते विष्णुमध्येतीत्यादि |

कओ PUNT) येन wT यदसु लोके प्रकाशत, तस्य

(1) अनिष्वेदनीदेन। (x) watile eerie: |

कारकम्‌ | १२९

गुणस्त श्नात्‌ गुषन्तरोत्यादनमुकष(शस्तव्र AA FZ at वा स्यात्‌ पटस्योप्कुरुते पटं वा (र) सूचनावक्तेपगसेवेत्या- दिना मम्‌। भरसन्तापिज्वरि-रोगाीनां खायघले सन्तापि-ज्वरिभि- त्रानां रोगार्थानांटेपौ वा Maree रोगाधस्य(३) घत्वे सति ) रोग- चौरस्य रुजति चौरं वा, अमययौरस्य (४) भ्रामयति चौरं वै त्यादि। भ्रसन्तापिज्वरोति किं? सन्तापञ्चीरं सन्तापयति,ज्वर चौरं ज्वरयति | खार्धघले किं नदौ कूनं रुजति | नाखादिनाथयोर्िमागिषोः। नाव्यारेहिंलायां नाथस्या- fafa गम्यमानायांदेषौवा स्यात्‌ चौरस्य नाटयति (५) चोरं वा। atanferat— नारि क्राथिरुञ्जामिदिपनौञ्‌ naa एव हि | प्रनि निप्र प्रनिभ्यसलुं हनोऽथ पिषूररिव्यपि। नट ai, क्रथ कि वधे, उत्पृचजम वधै ताडने च। चुराटोनाम्‌ एषां जगन्तनि्हगात्‌ यत्र नारि क्राधि उल्लासि इति स्वरूपं, तत्रवायं विधिस्तेन दस्युमनोनटदित्यादो स्यात्‌ (६) | fedta at aa, चौरस्य दिषन्‌ चौरं वा भ्रशतन्तस्य तु चौरं

~~ -~ ~ -~-*---~ ~~ -- --- ~ . -- ---~ ~ 2

(१) सच प्रतियत cee

(2) wal fe शुक्धुणेन लोक प्रसिङस्तख इर्णान्तरोत्‌पाटनसुत्कषं इति। (श) रोगवाचकथन्द्ख।

(४) Baath wae Eta |

(५) अधःपातवतोव्वयैः।

(६) अनीनटदिः्यत्र sat we aria कपाभाशादिन्बषेः।

४२

३३१० मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

३०४। ज्नोऽन्नाने धै | ( जः 21, Ward |, 8 01) 1 शम्भो कुन्दे जानोते, भक्या जानाति श्रम्‌ | MUA साधनेन FHT NAIA इलधः, Maw जानातिः।

tfe एवं चौरस्य प्रणिहन्ति farefer प्रहन्ति faefa चौरंवा। fag dans, चौरस्य पिनि चीरं वा भ्राभौ- दभिनलषितप्रापगच्छ।, नाथते Ga ye वा। waar: किं? पिनष्टि धानाः (१), वटुरब्रं नाथते, याच इत्ये; | पणि-व्यवद्रोव्यवहारे। व्यवहारोऽत्र ॒दयूत-क्रयविक्रयौ | शतस्य पणते व्यवहरति गतं वा (२) व्यवष्टारे किं? शलाकां व्यवषरति, गणयतोत्यधः | दिव्ागेसु नित्यम्‌ | व्यवहारे मगदिवधोरटे षौ वा खात्‌, wig नित्यम्‌ naw प्रतिरोग्यति (३) शतं at) aig शतस्य दोव्यति। व्यवहारे किं? विष्णुं दब्यति, स्तौति sera: | wana भावे। भावल्यान्तानां समुयधौदौनां टै षो निलयं खात्‌ 1 मातुः ea, वि्णोः सने, भक्स्य zat इरिका, भक्षानामोश्यते aaa, शतस प्रतिरोव्यते TTT (४) | २०४। WTI न्नानमन्रानं तस्मिन्‌ 1 शम्मोरियादि। qa

(1) धाना श्टवने द्िबामिमरः, gala |

(२) प्रणते ga प्रतिजानीते, गवहरति क्रोणाति िक्रोषोति ब। Ka: |

(१) प्ते gael: |

(४) एषूटाहरणेह हदशा शामपि करतीक्वादोनां भावाववालानाभरुके wifey fant षठीति।

कारकम्‌ | १३१

oul टेप्रार्थानां ari: ( ठष्यर्थानां en, aries) t AFITS इरिस्तृषः, पूणः शान्तेन शङ्करः २०६। SA MUAH MAG TAT वसु-भौलार्धटन्‌-भव्यर्शाथं गिनि (ca ॐ), क्षति ऽ), भ्र-व्य कि उक लवतु खल w उत्‌ शजं रान वषु Mazar Nara णिनि ७)

~ ~ - --- i

विणौ शभ्भ्रथम्‌ इति बदा प्रवत्तत, Aaa VAT: साधन- लादलवम्‌ (१)। प्रमामकन्नानस्य asta सपिषो जानो इत्यादौ araasfa स्यात्‌, रमस्य staasfa प्रमाभिन्रल्वात्‌ | दूटं विकन्ययन्ति परे! तन्मते अश्मना मुकुन्दे जानोते इत्यपि। ania fa 2 uma जानाति शङ्करम्‌ इत्यत्र प्रमामकतवात्र स्यात्‌ 1

३०५। BR) afacat येषां ते तेषाम्‌ | दष्यथधोः प्रयोगे

षौ वा स्यात्‌। भृक्गारस्येत्यादि। उदाहरणयेन विकष्यो

Ran

efaa 1 एवं फलानामलमाशिताः (2), wadenigawatata भटः (४।११)

ace) दटभै। टश्च घञ त्तस्मिन्‌ खलः भ्रधं wit यस्य सः शोलमर्धो चख स.स चासौ तयेति सः भव्यच्च WAY

~~ _ ~~ ~~ ——

(1) wa wade: “ggg धिकरण कशम्धत्तामख्य searg कुन्द विषयः क्न नाभावः, अतोऽन अन्नानार्धत्ताघातोः warts साधनम्‌, किन्वेतद्गातो nfgatfafcarefavawafafa | अतएवोक्तं पर्ययं जानातिः fray |

(२) फलेरशमनब्मायितास्ृप्द््मथः, Grae AT ङ्गः | WR ७।१८।

११२ मु्धवोधं BATT |

व्यादिवजं कति प्रयुज्यमाने 2 चै ष! यात्‌

जगतां कारकः क्ष्णः छ्तिर्मररिपोरियम्‌ a, तै wit awa, चासौ fafa सः। cere व्यच किष STE MATT सन I उच्च Nae Way aye Whee तंच भव्य्णाधरिं्च तत्‌ तत्‌ भ्रतत्‌ ate |

जगतामिति- eat जगतां चराचराणां कारकः; कर्मा, जगतामितिटेपां। इयं एथिव्यादिचराचरमवी खष्ट्ररिपोः कनिरत्याया, wile fa: मुररिपारितिघ्रे पौ | qaqa हातुत्य तस्य व्यवखावाचिलात्‌"धारवं रामोदमुत्तमं" | १) “वहि. gat Waa तला राजक्षला पिता gay frat स्यात्‌

wzaife | कः परुषः हरि संमतवन्‌ मन्‌ uted वा्कितं $यिवान्‌ प्राप्तवान्‌ ? अपि तुप्राप्तवानव | इरि कौ टृशम्‌ ? एतल्ल- गत्‌ Ber दधिं धारयन्तम्‌ खषटेति क्ञाचत्यधिच्चाहातम्‌ एवं घटं करत, पयः प्रायं पायं, विप्रं meter गत इत्यादि | दधिमिति धाधोः जिः, दिगालोपय्, रविशषणलात्‌ ठम्‌ पुनः कोटम्‌ ? एतत्‌ जगत्‌ शारकं संहरन्तम्‌, गृधो शुकः पुनः tema? कान्‌ उ्रातवन्त, ai ulema, उत्पृन)धोः

11) भद्रौ ६।०६। घायदूति ग्रमव्यपरेनति प्रययः। urd: धारयद Fred: अने धायरिति व्यादि लति प्रयुज्यमानेऽपि आमोद मित्यत RET | (>) भटर ६।३०| खनं genfca ar mt पिता SITY AA राञ्ज

शवा राज्ञानं कतवान्‌ agafaye Md कनतपविन्नानपूर्मेवेति तत्राह भरतः व्यासा अत्‌ रालकतयेति gfan aasty wr xfs Bite |

कारकम्‌ | १११

व्यादौतु - षष्ट दधिं यारकमतदर्धकान्‌ उब्रौतवन्तं, यतिभिः सुदशेनम्‌ | wid, हरि, जिशुरघानि संसुवन्‌ मुदं दधानोऽथितमौयिवान्‌ क;

शं दाता इत्‌ कदागार्मो erat मोच्तख्गं गिव

may: | पनः कौोदशम्‌ यतिनिजितेद्दिवैः सुदशेनम्‌, श्रनायासेनानोकनोयं, ETH: खलर्धोऽनः। एवं “पापिना दुष्करो wa: सुकरो धाश्िक्रेण स" इत्यादि। “कोषदण्डसमग्राणां faR- षामस्ति दुष्कर" मित्यत्र तु सम्बस्बमाव्रविवक्ञायां षो, नजा fafe- एटस्यानि्यलाहा | पुनः ated यतिभिन्नातं, ज्नाधोर्टेऽतीते कञः एवं त्था STAT, मया ज्ञात इत्यादि पुरुषः कंशः भधानि पापानि जिष्णुः, पापस्याभिभवनशोलः, faa qa एवं wa प्रः, सुखमिष्टः, गासं विन्दुः, कन्धामलङरिण्णुरित्यादि | “तव सव्मैगतस्य सम्प्रति शितिपः सिप्रिरभौषुमानिव,” “सत्यस्य amr नरकस्य जिष्णु"रिति तु सम्बन्धविवक्तायां षौ, नजा faferen- नितखलाहा हरिं संसुवन्‌, QU: शद (१) पुनः कोथः 2 मुदं दधानः, इषं धारयमाणः, घाधोः शानः। भ्रान इत्यनेन कानस्यापि ग्रहणात्‌ चक्राशो जगतो इरिरित्यादि। अधितं शयिवानिति wail: wy) शिवः कदा इत्‌ इदयमागामो, भागमिति भर्थाश्ममर गमधोभंविष्यति चिन्‌ faa: कौटशः१ शं दाता

(१) दखकङ्यमानयोगेऽपि निषेधः, तेन हरि ोष्यन्‌ सलोष्यमागो वा वातीति gatere: t

१९४ grad प्वाक्षरशम्‌।

२०७। कामुक सड डा्ेन | ( कासुक-सत्डाचै aR)! कामुकेन seamen विहितेन हेन योगि FT घौ श्यात्‌ | यो शच्याः कासो wa: सतां तस्येदमासितं।

ot te renee

शंधष्टो Areva: ware वदन्िभं wat: a गातमैणा निगद्यते CaaTacatT: | तथाच बेयोदानग्रील CATT: | दाधोः mare ठन्‌ wars शिवो Aree दायौ, मु्गिङुपधनं ददाहु भर्धाकद्म्‌। मोक्ष Wea) भ्रावश्यक पिन्धपि निषि इति कित्‌ यथा भ्रंग हारौ दायाद इति। sve BUTT:

चतुमर्धगक प्रायः। चतुम्धेविहिती यो णकसतसिम्‌ प्रयुल्यमानेटेषोन स्यात्‌ प्रायः। मुनोनां विपिने भङ्गं भोजको यालि माधवः | qa भोक्तु गच्छतोत्यधेः प्राय इति किं! वपेथतख पूरको जोवति, पचपौचाणां दर्धकोऽस्तोलखव निषधः। यस्य टस्योक्तानुक्षलग्यव्रहारस्तव्रेव षौ, तेन ary पाचक श्त्यादोषोन NT

२०७। कामुक स्च इतै, ऽथो यसः, «aa क्वेति सः, Ngee सडडाधंक्षश्च तत्तेन यो लखा cafe -यः TRU eT कामुकः aa कामयते, यः सतां ज्ञातः धोरेज्नायते श्राधोः श्राच्छार्ेत्यादिना वर्धमाने ङ्गः तस्व eared तेनाजरोप्विष्टम्‌। भ्रासपौप्रौग्यगतोष्ठादिना

कारकम्‌ | १२५

३०८। ल्यभावक्तासधुशकसदरे घे वा ' ( q—ae 9, चे 9, वा ।१। ) श्ये भावात सनो विहितं भ्रं wag हित्वा भन्धत्रस्टेषेषौ WITT |

we eter pee ee ace ~ ~ ~~ ~~ ~~~ ~~ ee re ne

awata क्ञः | एवमिदभेषामुपगतम्‌, इदमेषां any भन्रस्य carfe पूरववशाप्राप्े विधिः।

भोलितादिनावातु कान्तेन | श््भूना शोलितः, हरिणा रचित sanfe प्रजाभिः कान्तः प्रजानां वा। तथाच “कान्त efcae द्व प्रजानाम्‌" इति।

३०८ श्य। भावेक्तः भावक्षः, Wa wae तत्‌, स्िया- aul ख्यक, ख्यणकं प्रस्यणककं, ठेन सह वत्तमानं स- SH, WATTHT तत्‌ सदत तत्‌, स्य भावक्षख भस्त्ाणकसटश्च तत्तन्‌ स्यस्तव्यादिः | त्वधेत्यादि- लया छष्णोऽचचयः मम चस HUI पूज्य La) भ्रध्धोटें ay दहइयेन विकश्यो द्चिंतः। एवं weal करणोयं तव ल्या वा त्यादि | वाशब्दस्य श्यवसयावाचित्वात्‌ स्ये यत्र॒ weal; waaay aq इयोन स्यात्‌ तेन क्रष्टव्या ग्रामं शाखा कपिना, AAT प्राम- मजा नरेण, प्रतुशिष्य; शरियो whqorenaa, कां दिशं गन्तव्यं मया Kanal स्यात्‌। यत्रतु sala Nema aa पब्ब Ga, तेन गेयो मानवकः सान्नानिति, गायतोति गवः, 8 at ANT | यश्य हष्णस्य येन AU वा भत्र ज्ञातं ज्ञानं हत-

२२१ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

तधा मम HUE: ज्ञातं Wa FAVA | av: छति इति aa, चिकोषा यस्य भेदिका

> - न्न ~ = ~~ = = न~ ~~ eee = = ~~ = ~ ~न ~~~ * ~+ == =-= -

मित्यधः। एवं हात्र दवत्ेण वा हसितं गतं व्यादि यख awe aa ada वा aan: कति; करणम्‌ यख BUS येन क्षणेन वा ष्टे हूतिहंरणम्‌ Baws fr सढादहोरपि भावे वय इति भागदत्तिः। एवं शब्दानामनुशासन- AAA श्रादार्येश वा, गवां दोषो गोपस्य गोपेन वा इत्यादौ स्थात्‌, स्रोविहिताणकभिन्रसढक्ृत्‌लात्‌ परे तु निषेधो यल्ला- तीयस्य विधिरपि तच्नातौयस्य xa: परिचग्ा गुरूणा भिधस्य fray वा, उपासना पितुः पुत्रस्य पुत्रेण वा, जागया रतेग्का- तरस्य Bay वा, भकरणिः yas जात्यस्य जाल्यन वा ष्त्यादौ स्यात्‌ द्लोविहितकुत्‌लात्‌,न तु शब्दानामनुशा्नमाचार्येण, गवां दोषो गोपेन इत्यादौ श्रस्लो विहितल।दिवाइः (१) TaN दाहरति विकीर्षव्यादि। यख क्ृण्य ae: चिकौषो कर्तु निच्छा, waa: शंस्यादः | यख कृणख दृषटभदिका भेदो नाश षति यावत्‌। एतन कृष्णस्य रष्टिखितिप्रलयकम्मकर afafa भावः| षडठयोरभयत्र पूर्व्वेण षौ निलयम्‌ एवं चिकौ- at रैरालोकानां, मदिका wee तमामिति। मदे fai afa-

(॥ समपि ges शति हतिरिदहाहरवक्नापकात्‌ परभते्वाद्ता म।दरकीदेति | धन्द्‌नाभहपाठननाषार्यंल array षा Karten waa व्यवशयप्य मिति का्तिकेवब्द्नः।

कारकम्‌ | ३१७

मुररिपोरियम्‌(१॥ यत्र हिढधुमा कताः ठहयमनुकष, तत्र इयोढयोः पूर्व्येण at) तन AW मोक्षस्य याचको wa! दोग्धा दुग्धस्य गोः AU: VATA गव दोह; HWA (२) इत्यादोत्येके | सख्य एवेत्यन्धः। यदुक्त कदय दु्टादीनाम॑ुकगं स्यात्‌ wat यदि। afana समाचरे षष्ठीं प्रधानकन्मणि इति aaa दोग्धा गां पयधो हरिः गौणदे एवेत्यन्धः त्म तै दोग्धा दुग्धं गवां हरिरिति। परे तु उभयप्राप्तौ Haifa सूबान्तरं विधायेकस्मिन्‌ कति प्रयुज्यमाने SAA: प्राप्ता षो एवैत्याहः तन श्रूतं समुद्रस्य बन्धो वानरः, wae सुभगारोषस्य दूतोभि; परमान्नेन, गवां दोहः aaa, हारयिता दुग्धस्य गोपेन हरिरित्यादि टदघप्राप्तौ किं? वनस्य गोपस्य यापयिता हरिः, दुग्धस्य mom हारयिता

(१) we fal हतिसररिणोरियभिति लिप्किरप्रमादपाठः, अख सकम्प त्वात्‌ साधोवृद्धिः, fam: efafcanigats प्रशा हन्तव्यं, तथ पू fara wt दतएवोक्क कार्तिकेयेन `'कञ्िदनेश afracfeafcafata प्रचुदा- चुतवान्‌; ब्याङ्श्टक्षतवं केनापि संस्थापितवान्‌, एष त्रातकबानिति जिन्त्यभिति।

(२) wa टो एति भाषे अल्‌, qe: लतिङुतिं नेतटाररणन्तापकात्‌ सकम्पकाद्ातोर्रपि भवे प्रणयः खादिति सापिितम्‌। तेन Bene कम योऽलुक्रतवादभवत wife wa wafers शंयहः-सस्त्रोविहितश्षद्धिसतु ait wet नियम्यते, एकदा quant कम्पस्य wate | तन्यादीनां waa इबोरेव डि गेष्मते।

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हरय HAT व्याकरणम्‌ |

२०८। खामौभ्वणधिप्रति erate arta प्रतिम्‌ प्रसूत कुशलायुक्त निपुण साध मुजधर्नादर प्रौ च। (खामि-- सुजर्थः २॥, नाद्र ७, AY ।१।, ।१।) | स्वामो मुकुन्दः सव्वधा, मात्तौ मन॑ष्वधोतच्तजः। निष्यङस्तिरयु गोप्योऽपले मातृरुटलयजम्‌ हरिरिलादावुभयोढयोः yan षो एकक्षतोति किं ? ्रोदनख पाको ब्राह्मणानाञ्च प्रादुभावः (१)। ३०८। खामौ | aA इवार्थो येषां तेः | बाम्यादिभिः मुजधेत्यान्ते्च योग क्रियाया अनादर गम्यमाने पोष्यो स्याताम्‌ सखामौ मुकुन्द इति। witneda पीष्योपिकन्मो दशितः। एवं मर्वेषां सर्वेषु वा grat: ्रधिपतिर्दायादः (2) प्रतिभूः २। प्रसूनः (४।। कुशनायुक्ञाभ्यां तात्य््यःभिधानं, तन शिवार्चाय्रां fraratar वा कृशन AAT वा भक्गम्ततपर इत्यथः अन्यत्र कलामु कुयनः, रथ्वायुक्रोऽश्वः निवड say) निपुण- माभ्यां पूजायां पत, श्रपूज्ायां पौ एवाभिधानात्‌। मातरि साधु- निपुणो वति पूजायाम्‌ vga तु faqgtee निपुणः areal Uw: |

(१ यत्र तवमेक am: प्रयोगे BANAT हृयोरपि शंतोरं यते, निबमो waar matty, गवां रचा दोषो MTA" fa संखिद्रषारे कारकपदे ! ८" GA Maer: |

(a) हषो areay यादवानां शा टायाद्ः। टायादोच्रार्तिः।

(१) dada प्रतिभूः, मनज्ाः प्रतिम KAT, जामिनृ एति भाषा | ४, तश्च त्न वा WEA: |

कारकम्‌ | ३१९.

२१० कालभावाधारं डं at | (काल-भाव-श्राधारं १।, डं ei, पौ igs) सामोप्याश्चेषविषये व्याष्याधारथतुर्व्िधः | विश्य इति mens fad fafa रात्रौ faq वारान्‌ AY: प्राप्तवत्यः | at दिवसस्य ‘rq: | दहयेन ute दशिते। एवं रातौ रातेवी "पञ्चकत्वो wea! धाचल्योऽपि सुजधम्तेन कतिधा रात्रौ रात्रेवी मुडके इत्यादि कालाडडादे- वाभिधानात्‌ कांस्यपात्रं feiss, wqadt रातिं yea CNNSI AMA! Woe रटति, मातुः क्रागन््याः, wea क्रोशन्तो मातरमनादत्य वारंवारं गला saa.) क्रोशन्त्या इत्यप्याहायम्‌ रुद दित्यस्येव निङ्गविभकिव्यत्ययेनान्बय इत्येक |

पश्यतोहर इत्यत्र मंन्नालाब्रित्यंषो, नतु Mae at मामन्तरा स्वाभो. साधुपिप्रो मातरं प्रति, निपुणो मातरं परि, त्वया सद खामो, तुल्यो गोभिः खामो, get गवां सखामोत्यादो तु पूव्वैविप्रतिषेेन हयादय wa aw) अन्येतु प्रत्यादो era नान्धा क्िरित्य्थे सूत्रयित्वा (१) we वत्तं प्रति कुसुमानि सन्ति, देवदत्तं प्रति कुष्यति, लां प्रति खामो, महचनं प्रति मात्तौ, केशान्‌ waa इत्युदाहरन्ति

साध्वसधुभ्यां ali ant योगे at स्यात्‌। साधुः क्णो मातरि, भ्रसाधर्मातुके। नियमाथमिदम्‌।

२१०। कान कान भावश्च भ्राघारथ aq) कालः

हितोया वच्छ नान्या fafa: प्रत्माद।"वितिक!रकपादे २०० ऋभदोश्रर GAT |

२४० TUT व्याकरणम्‌ |

ta शरदि गोविन्दो Mai firefed विधौ | कालिन्द्यां, कानने, कैलो कुशलः, सकशे खितः

~ “~~~ ---~ ~ -~ -*--

तषणदण्डमुहत्ती दिः | प्रसिदकालक्रियाहारेण क्रियान्तरण्या प्रसि कालं येन .साधनभूतन वक्ता लच्तयति Gee wa) परेतु यस्य क्रियया क्रियान्तरं नश्यते इह भावः। भरत क्रियाशब्देन ay सामानाधिकरण्य faa एव साधनभूतः यथा दश्- मानास गोषु यश्नरत्तो गतः दुग्धाखागत इत्यादि qa भतौत- गमनक्रियादारेण दोहनादिक्रियाश्रयेण साघनभूतन दोहनादि- क्ियान्तरस्याप्रमिष्ठवत्तमानादिकालं वक्षा लक्षयतीति दोष नादिक्रियाश्रयो भाव इत्यधेः (१) भरसामानाधिकररण्ये क्रिया- ष्ट एव साधनभूतः। यथा mete गत varie: ye Te Hal YER शयत्र एकस्याः क्रियायाः सम्बन्धिभेदादटः(२) कलायमानेष्वाम्नेषु चेतो गतः, UNA TIA कलाय शव मानं येषां ते तषु, क्रियान्तराभावात्‌ सत॒खित्यध्याहाथम्‌। एवं धने मुखं, धनं सति सुखं भवतोत्यधः (२) |

(१, amarmaear fafa: सङ्गता लिपिकरपरमादेप्रसता-बति (३) fafga- रिमीमालोश्य guifufyanfafa |

(१) तेन क्रिवानर दह fmategatn wre: |

(१) em सूते wifdadategra: “काङभावयोः दप्रभो^ति कलाप्छनम्‌। we व्याखामि इगि: - अधिकारात्‌ fatqengred, विरेषषभूतयोः कालभावयोरपत्‌ aratiggta समो भवतोति माद्याय चरटि पुष्यन वाक्दाः, गोष दष्मामालागतः। कालभावयोरिति fey यो जटाभिः चकत CUTE यो alge टेषदत्त दूति atywatyr, प्रविद्धा करियेव fy पिष fry) we टोकायां fasten... fatge qaeee, तञ शिङनेष

कारकम्‌ | २४१

भवति गाप्रसिद्गं हि सयमरिङगः परख fried भवतीह प्रशिबेचारि भावः क्रियाप्याय दाष |

एतेन कियाव्ाचक्पदृह्यस्य aq रिशेषणतिरेष्यत्वमवगम्यति, तत्र विरेषण- क्रिवावाचक्प्टात शप्रमोति प्रतीयते। तद्यथा - दह्यमाना गोषु गत इन अनिर्प्तिगमनकालश्य fate गोरोडगक्तांनधिधेषणं प्रशिङ्गम्‌, इतर ग्यावत्तं कावात्‌। अत्र दूतरव्यावत्त॑शमेक विशेषणम | aay गमनटोषन- बाचकयोगतदुह्यमानयोरप्रसिडप्रशिङककाक-वत्तसागयोपियेष्यविरेषणवोवि येषणौ- भूतात्‌ दुह्यभानपटात्‌ प्रसिङक्ञालवरतमानात्‌ मप्रभीति, तत्यदसाषचन्यात्‌ तेन शह साभानाधिकषरणया् गोष्िन्यादिष सप्रभोति। गभनवाशञ्जपटद्य सम्बन्धे दतरव्याश्सं कत्वेन दुह्मानण्य faved, गवादेः सम्बन्धे समानाथिकरणत्वेन wa विरेषण्भिति। कचिदिपेषणश् fayafa भिगेषयेावधायते दति सखरखाटिति वाक्याथैः |

खनोऽनेनेतदुव्याख्वानेन यद्य भावेन भारन्षणमिति पाचिनिच्तं वक्गष्यिति | खमते एतग्डरतेककराक्यनया विशेषपरतया वा विरेषणखभूतयौः कालभाग्योः खप्रमीति बोध्यम्‌ | fave’ कतोयाप्राप्रौ तदपवाटिकेयसमिति। तए पञ्चम्यां ad watfearfer afesimanfafewe कानधियेषस्य gfe तत्क "कजं वरित्वेनाधिक्ञारिविगेषप्डोभूनग्य अन्ते या सप्रमो सा नाधिक्षरणे, ay जटाभिः सभु तिवत्‌ जालविरेपणत्वेम तद्खाधकहतोयाप्राप्, faa कानभा- वयोः सप्रमीत्यनेन तदू्ाधिका पुनः सप्रमो विधोयते, wefe पएष्यनि शाच्छरा xfarq | अतः कसंविगेषणोभूगख्यापि wire सप्तम्या वैदिककियानिभित्तत्ये MSW इति सत्तमङ़ाषाययेचरणाः |......

यख भागेन भाव्लशणनिति केनविदुक्रभिति रामानन्दः yeaa वाक्यत्वादश्यायमथः- यद्य fran भावेन क्रियया अर्थात्‌ प्रसिद्धलाख- क्रियया दोषगाटिक्रियया भावलक्षणं क्रियान्नरलसणम्‌ अर्थात्‌ अप्रसिडकान- क्रियान्तरं गमनादिक्रिवान्तरं went. कश्रौगयमट्‌, क्रियावाचकण्दो भाव eae: | wen यदेति at करि षो. भावेनेति ace इतीय, aa वेम क्रियावावकशद्धेन क्रियया करखमूनवा urrawefaanfe व्याख्यात ग्यम अला गोष दुहभानाखागत caret यद्ध दोहनक्रिदावाचकशनख क्रियया रोरनाटिप्रडिद्धलाशक्रियवा क्रियान्तरं गजभाद्यप्रशिद्धकालक्रिवान्तरं wwa, होहनाहिक्रिवावाचकडुहामानयन्डो wire शप्रमो, तदिरेषत्वात्‌

१४२ AAT व्याकरणम्‌ |

प्ाभियन्ते परम्मरया क्रिया यत्र भ्राधारः, घटाग्रय इति

यावत्‌ (१) यदुक्तं - ^कर्तुक्ीव्यवहिताममाक्तादाग्यत्‌ क्रियाम्‌ | उपकुव्यैत्‌ ज्रियासि शाम्तयिकरगं मतम्‌ (२) ॥* चतुर्िध इत्याह मार्मोप्येतादि मामौप्यं समोपलव, मैन

एकः सामोपिक (३) श्राधारः. यथा नद्यां घोषः प्रतिवसति cart

तेन ag सामानाधिक्षरगयान तन्साहवर््याह गो च्या सप्रमोति। अतएव तिरो उरि cua तिधोरुटयक्रियया faarat गोविन्द्श्य रभणक्रिया लज्जिता xm: fagy भवतोतिस aT |

gufasisaaa दुर्गाटामव्िद्यात्रागोशोऽपि ^अन्रोटितगद्धग्य szafmar- वाचक्तया{{्िकरमात्यान ayaa तदिगेष्यस्य त्रिधाराप मप्रस्यनव्भि'याह। अतुभूतिखद््पाचायं णापि क्रियाननमां भाव vag यव्य प्रसिद्क्रियया आप्रलिद्क्रियानज्ञणं farted माय दूति व्याश््याय वर्षति देव चौरो यात, uaayarfafa परतितोऽरातिरिनदराङूतमेव।

एतिन श्प्रसिङ्क्ञानक्रियाहारेण क्रियान्तरस्याप्रसिङं कालं येन साधनभूतेन wal amafa a इह wie, aq क्रियावाचक्श्द्टन सह सामानाधि wend ्रियाच्रय एव्र माधनभत, यथा देवदत्तेन दृह्यमानाव्‌ MT यत्ततो गत card अतीतगमनदारेण टोषनाटिक्रियाययण साधनमभरतेन गवा दो afefmatacamtay वत्तमालाद्कानं war नयति, टोहनाट्क्रिया say गव्रादिर्माव vara: | यङ्ामानाविक्रगये क्रियाण्ड्धण्व भावः| यचा wate मत varie) eerecaste sien विधौ त्िधोरदबकरियानन्तरम, अनेन विधाविति प्रा. उदित दति afeitrwena प्रीति तकवागोशभङडाचायेभतं भया aTanwafaane |

i) आधियने तिनि | षदाश्रयः-करुस्यक्रियाहारेण ककम्तथा ST क्रियाहारेण कमक आश्रय दयैः |

ig) कसुकरानयतरहारा क्रिवाश्रयलमधिकषरवत्यभि्थः।

(३) श्मीपदेस्याधारत्वविवशया समीपे भव KANT: |

कारकम्‌ | २४३

जले घोषष्य वाषलुपपद्या नदोगशष्टेन aqaaic तौरसुप- aad | णवं गङ्गायां घोषमव्छौ स्त इत्यत्र TEINS वाचको ल्त ama युगपडुत्तिदयविरोधातरैवंविधः प्रयोग इति भहूः। सामोपिकस्य ्रौपक्ञेषिकलेनेव सिदे पृथगुपादानं, लक्षणया क्षयपदाधस्याप्याधारतन्ना aa, तेन अहल्ये करि- wafers अङ्गल्यग्रनिषटिटस्याप्याधारत्रमिति (१) |

आश्चेषः संयोगः, पृथकमिदयोः सम्बन्ध इत्यथः, तेन एकं ग्रोपक्चषिक श्राधारः। यथा कटे WY, स्थाल्यामोदनं पचति, aa सिंहः प्रतिवसतोत्यादि।

विषो शद्मनन्यतभाव-बोध्याखयकोयोपसखानोयादिः, तेन भव एको वेषयिकं WMT: | यथा AAT शब्दो जायत, धन्यं वेदाः प्रमाणं, तों वसति (२) गुरो वसति (३) इत्यादि श्राकाश- शब्टयोरविनाभावसम्बन्धः। एवं धम्मवेदयोर्वोध्यवोधकभाव- सम्बन्धः तौधवासयोराखयाश्रयिभावसम्बन्धः। गुरुशिष्ययार्‌- पास्योपासकभावसम्बन् इति सव्वेद्रास्य विषयता |

व्यासिः साकल्येनाभिमम्बन्धः, तेन रएकोऽभिव्याप्क (४) आघारः, यधा तिलेषु तेलमिल्यादि यद्यपि तिलतैलयोः संयो-

(१) अङुलिनि्ष्खि करि शतस्याधारलमङ्ुल्यानित्यथः (९) दरूरगमनेऽपि तीधैमाच्रयं हत्वा वसतोत्यधेः।

(९) गुद्हपओीष्य सेवभानो षतीव्य्यः |

(8) अभिव्याण विषतोषिधेः।

१४४ बुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

३११। भधिकोशार्धापाधिभ्यां | (अधिश्न-पय-प्रथ-ठप-प्रधिभ्यां।) | भधिकार्थेनोपेन खाम्यथेनाधिना योगे पौ खात्‌ गुणा उप परार ध्यविष्णोरधि हरौ ET:

ee ------- --

~~~ ee धि Re ee eter ११०

गादोपश्चेषिकलवेनेव fafeaarfa देगविभागाभावात्‌ (१) संयो- गव्यवहारो नासोति एथगुपादानमिति।

रेमे इत्यादि गोषिन्द्‌ः थरटि शरत्काले गोपोभिः सह ta क्रोडितवान्‌। उदित विधौ विधोरुदयक्गियानन्तरम्‌। waa विधाविति प्रो, उदित दति तद्िशषणशलात्‌ प्र

aga

faaua हि afay विभक्गिवचने ये |

तानि सर्व्वाणि योज्यानि विरशेषण्परैष्वपोति

कालिन्द्यां यसुनासमोपै, कानने वनकदेधे, केनो क्रोडाग्रयते कुलो निपुणः, सकले सव्यमभिव्याप्य खितः (२) परं तु वेषयिकत्वेन सिदइत्वात्‌ (३) कालश्च एधगुपादानं भावस्य उसंन्ना्च ङुव्यन्ति।

aces ates परधिकश्च tae तावर्ध ययोस्तौ, उपष प्रधिष

Ot ए. ` 7:

।१) यल्कख्िन्‌ Bi qed देतानतरे तदभावः प्रतीवते, तत्रेव संवोगब्यव- काराद््धः|

(a) देखो कुशलः ewe स्थितः गोरिन्दः धरहि विधौ उडिते बाशिन्शां wat गोपीभिः gy रेमे cwsg: | तकेवागायेन सलनिह्‌ हषारेक व्याखातम्‌।

(४) अधिकरणं नात तिपक्ञारम्‌, व्यापमोप्ञेषिकं देष विकनिति भाषम्‌

कारकम्‌ | ३४५

३१२। Sarat | (टेन wag at) ढेन योगी निमित्तात्‌ घो ea | TAY रजकमवधोत्‌ RU: |

ककन ~~" " ~~ ~~ ~~~ --- -~-------~---- em ~~~ - ~ - ----~ --- NE NN ~~

तौ, भ्रधिकषथार्यौ तो उपाधौ; चेति तौ ताभ्याम्‌। गुणी इत्यादि-- उपग्रब्देनाधिकार्थो ated | fami उप परार स्युः, परार्हा- दप्यधिकाः स्युरित्यधेः एवमुप खायां द्रोण (१) इत्यादि ta: खामो, ख-सापेक्षः (२) तथा यस्य खामौ यस्य खं ताभ्यामेव पायेण पो, खसाभित्सम्बन्ध स्योभयनिष्ठलात्‌ | सुरा अधिररौ इरिखामिका cae: | एवमधि सुरेषु हरिः, सुराणां इरिः arte: एवम्‌ श्रधि ब्रह्मदत्ते पञ्चालाः, भ्रधि पञ्चालेषु ब्रह्मदत्त इत्यादि | ३१२। sat) भरधेशब्टोऽत्र निमित्ताय care निमिन्ता- दिति। afafafaat क्रिया तस्मादित्यथंः वस्खिति-रजक- वधो हि वस्लनिमित्तक एव एवं- यशि हौोपिनं हन्ति दन्तयोहन्ति कुञ्लरम्‌ | वालेषु चमरीं न्ति af पुष्थलको हतः इति। सोमा अरण्डकोषः, पुष्यलको गन्धसृगः। sara किं!

[2 1 1) ne

wa केयटः अद्यास्रयोमेटासद्धेदानान्ानन्त्यमित्याङरिति | व्यापकौपन्ेषिक- भिख्ल बेषयिक्लम्‌ तथाच ^एतदातरक्गं wa वेषयिक"भिति amg HVT: | (१) greufcarad qrcufcararefas faa: , (१) खाभित्वं fe खल्यभपेन्तते cad | ४४

१४१ FUNG व्याक्षरणम्‌ |

asa रजकं श्न्ति। a fal: aaa रजको मृतः। Bat aii प्राप्तायां fafa: | area या बाधकमिति कित्‌ (2)

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(१) “निमित्तात्‌ andar’ दूति पाणिनोयवाल्ञिकम | “क्रियाफनमिद्‌ निमित्तत्वेन faafqaa यत्‌ क्रियायाः प्रयोजकं age: क्रियारभ्भस्ततो हेताविति हतोदाया प्राप्रायां सप्रमौ विधीयते| तश्च निभित्तद यदि कम्पषा Gan: wearer भवेत | वेतनेन धान्यं लुनातौति सप्र भवति, वेतन धानेन संयोगाभाशा^द्ति Faz: |

“निमित्तमिह फलं, योगः संयोग-समव्रायाञ्नक" दूति सिद्धानशौमटो |

“sa: कप्मरयुपष्टञचात प्राप्रे तु सप्रमीम। वतु्धोताधिकामाङभूर्मि- भागुरिकिभटा दूति भन्तुहरिखरमात रम्पीणि होपिनं gate तम प्राप्न होपनिं setae) गित्ताय fad इनात्यादौ eat: कणि faut dante fre fea a aquest टनकेगलगाटिघ्रेव प्राणिनामुपटश्भार्यसंयोगब्योपगभात| मुक्ताफलाय afta हरिणं पनाय fad fasfa wafraneeaia |) का मोतिरोतिरियती रषुर्ंगशीर भाखाद्गे जरति यस्त arte: Kael तु करिण्युपष्टश्चमपि earned प्रापमिति नाधः िन्वाषटन्‌ मयादी"ति manta परकारिकायां जगदौशः। नषृशब्धन्द गेखरमतिऽपि मुक्ताफनाये्यव क्रियार्घोपपद- लेति ( लक्रचतमनढात्‌ | वीं मुक्ताफनान्याहनुमिन्यधेः |

“samara afta इरिणं पनाय इयारयोऽप्प्रयोगाः। अथवा सूक्ता wee करिणं हरिणं पनेष दयेव पाठ” पतिदुर्गादामः।

“fafaara कम्पीसयोगे” दूयनुशामनात यक्किञ्जिनकम्यप्रकारक्षमोधजनक wana निवामकः। waaay कमषोधकपदभमभियादहारेख कम ्रकारक्बोधजनकत, वथा why दोपि इनतीन्यादातिति क्ारकषषक्रम्‌ |

अन्न माघवोटीका-नि्भित्लात्‌ andala दूति नलणसलोक्रव्याख्यायां way Tawarly कषा दति वोप्ेवोक्गोदाहरणमपि गच्छति, वर्िषय- यधे्टविशियोगप्रकारकेष्छाधोनरजककर्ुक-ङननानुकूनलतिमानिदाकारककतर ae ज्जिनुमुक्काफभाय करिगांङरिणं पनाय्याद्५योगविरोधः] ( अधा लगटोशभतसदुतम, awe प्र्टरितम्‌। | तवते वोप्टेवोक्गायोगितेषः ae TMU THR तारगसन्बन्धाभरात्‌। जगदौमतातुारिणसतु १५१ गोपदेवोक्गायोगो engtcta वदनि। agg शिद्वान्तवागादमतसेव ery |

कारकम्‌ २४०

२१२ MATS (क्तेन २, 201 ) | क्ताहिहितेनेना योग टे पौ स्थात्‌। वैदेऽधोतो। २१४ निर्बारेऽधिकेन क्रियान्तःकालाध्वनो- श्च पोच। | (fret? ७।, wfaaa २।, क्रियान्तःकालाध्वनोः ७॥, १।, पौ ।१।, ।१।)

Ae कपालुष्वकादे रुद्रेकादशकषेऽधिकम्‌ |

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२१२। mat) क्तादिन्‌ क्तन्‌ तेन वैदे श्रधीतो इति-श्रधोत- added इष्टादित्वात्‌ भावक्ञान्तादिन्‌। किंकश्मकमध्ययन- मित्याकाङ्क्तायां पश्चात्‌ aaa: तस्मादनुक्तादनेन atl सुख्यटग्रहणास्मासमधोतो carl खात्‌ war किं? क्तं पूव्वेमनेन Hagel कटम्‌ (१) |

aes | निडर क्रिययोरन्तः क्रियान्तः, काल भध्वाचतौ, क्रियान्तञ्च तौ कालाध्वानौ चति तयो; क्रियान्तःकालाध्वनोः। निर्दारे गम्यमाने भ्रधिकशब्देन योगे क्रियाइयमध्यवत्नि- कालाध्वनोख पोष्यो Wary |

चेवसुक्गकारिकािरोषः, कम्रुपरब्धारि्यद्य कमप्रकारकगोधजनकधात्‌- योगारि्यधरप्णात्‌ AAT प्राप्नोच्छार्थे, सा चेच्छा wads फलवन्वेन वा, सक्र फलायेग्यादौ सक्ताफशमाहते faa दूति वोपरेगोक्गप्रयोगः सापुरिम्थव- चेयमिति।

(१) अपीतीति “cere’fcfa, कतपूर्वीति “agageta” इति वच्छमाण- षात्तिकसन्येन इन्‌ Rom eS gat इति Gas तकंवागोषटीकषा gear |

३४८ FAY BATT |

सूचष्टकाच्छिवं ध्यायन्‌, yalar wife वा ताहात्‌ Fal Natasa पशय बस्षदयाद्‌ विपुम्‌ |

ee = = जक

खष्ठमिल्यारि - तं शिवं ध्यायन्‌ यहि arene yaar इत्यन्वयः ।, श्रत्र॒ध्यानभोजनक्रिययोरन्तववैत्तिकालव्राचकात्‌ utent गित शिवं कोशं ? कपानपु Ae, श्रकादेरकभ्यः (१) HS, Jar षो च। पुनः कौं रुद्रेकादगके एकादगरदरषु (2) मू्ये्टकात्‌ अरष्टमूत्तिभ्योऽधिकम्‌। एकादशानां संघ इले क॒ एकादश्रकम्‌, एवमष्टकमिनि। wert जनः योजनलकेऽका पश्चत्‌. नक्नहयात्‌ विधं पश्येत्‌ श्रत मू खिति-दणनक्रिययोर- नत्ल्यध्ववाचकात्‌ पौलो | मव्ैत्रोदाहरणदयेन Gta दर्भित | एवं नराणां नरु नरेभ्यो वा ्षत्रियः शूरतमः, गवां गोषु गोभ्यो aT aU क्तौरिणी, श्रध्वगानामध्वगेषु wat वा धावन्तः शोप्रनमाः (र) WI YM इयर द्याहाहा भौक्ञा, va faa क्रोशे क्रोशाहा लच्ं॑विध्यतोलयादि। निहरणऽभिधानात्‌ पौ, तु सव्व्ल्न्य (४) परे तु विभक्ञवति निर्हारणा्रय एव पौ, तु पौष्याविति। यथा यत्तभ्यो माधुरा भाक्तः, MYT: AAT दोनतग इत्यादौ AWS माधुरेषु माधुरतल any इति विभामात्‌। निर्ारणत्वात्‌ पौसिदावपे्तितक्रियत्ेन

१) काटि wren प्रोक्ता sar: |

(२) रद्राद्कराद Bat cay: |

।३) नराश्चाभि्यारम्य farerscny क्रमात्‌ सत्रियं जातिः, हष्ठो ge, ura क्रिया एभिः बजातीयवयक्च्छेटो दर्तः |

(४) “केचित्‌ पञ्चमो च" दति dfanwic@ay ( का- १६७।।

कारकम्‌ | २४८

३१५। सौमान्त्धार्गात्‌ प्रौ चान्ते (सोमान्तर्‌-मार्गात्‌ ५।, Wig, ।१। WAT ७) | मोमनाघाच्छतं क्रोशा | क्ष्णः WITT VTA 1 UE ATAT TA कति क्रोशाय जाद्कवौ ,

जत्कन्यनात्‌ तस्माज्चशसादिकं भवनोत्याहः (१) एवम्‌ श्रधिक- शब्दयो पौँ नैच्छन्त |

प्रतितोत्सुकाम्यां बोष्यौ शराभ्यां योगे ae स्याताम्‌। am: any वा प्रसितस्तत्पर इत्यध; |

भरारादर्थभ्योऽमच्े Cet च। weal वत्तमानेभ्यो ga- न्तिकार्थेभ्यो state: सयुः। श्ोदूरं gtr दूरात्‌ दूरेवा यः, पापाचिकटं निकटेन निकटात्‌ निकटे वा सः। परेतु at नेच्छन्ति। vara किं दूरः पशुः (२)।

२१५। सोमा सौखोरन्तमागः सोमान्तर्मागस्तस्मात्‌ (2) चकारात्‌ पो इ्यस्यानुतत्तिः. क्विदेकदेशोऽप्यतुवर्तत दति न्यायात्‌ अरवधिभूतयोरन्तव्यैचयेष्ववाचिनः (४) Met स्याताम्‌,

(1) अद्यायमाशयः :- च्रोकेभ्यो मारा अद्यतरा प्यव यथा निर्ारण- त्वात्‌ पञ्चमो सिध्यति तथा अपेजितक्रियापाटानत्वेऽपि अपरेकितक्रियं तत्‌ खाद्‌- यत्‌ क्रियामून्यमेव्टो्य्तेः | ततश्च अपाानत्यकसनात्‌ कारकषवेग बहलार्णास्‌ wifgatfggay चशसप्र्ययोऽपि सूत्‌ तेन गणादेकाको geet cae गथ Tarifa |

(र) gu grater | wa gorge विथेष्यगाभित्वम्‌ |

(१) Seca: भान्तः | चारौ सगदेति दुर्गादाषः।

(४) खषध्वेबाजजिनः सध्वपरिमाखवाश्का नह्ञक्रोए्योजमादयः।

३५० सुग्धवोधं MATT |

२१६। वादथोऽयपिंकक्तेः सेसु सर्वाः | (त्रो-पादयः १।॥, ब्रथार्ेक्तेः ५।, सेः ५।, तु ।१।, सर्वाः १॥।)

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aM गम्यमाने। मोमनाघ्रादित्यादि -सोमनाधाच्छतं क्रोगाः क्ष्णः, .सोमनाधाव्रिःख्त गतक्रोगान्तं कणः सोमनाथादयुतै AMT जाङ्वी, मामनायाब्रिःढवयायुतक्रोशन्ते AKT LAT: | उदाहरणयेन viel दगिते। सोमनाधादित्युपात्तविषधरलात्‌(१) पी | wa किं? गद्ायमुनयोमेध्ये कति क्रोणः कियन्तः क्रोशा XAG: |

तत्‌क्ञालात्‌ पो भ्रवधिभूतयो्मध्यवत्तिकालवाचकात्‌ पती wee गम्यमान सति कात्तिका श्राग्रहायणो मासे, कार्नि- कौमवधीक्ञत्य मासान्ते श्राग्रहायणोत्यधः। एवं Tear माघो मासे इत्यादि अन्ते कि पौपौमाष्यामेष्ये कति दिनानि |

ate) UT) at ्रादिर्यासां ताः, wat एतु, भ्र्धौ- ऽधो aw सः, एका farang सः, भर्घार्धेन एकिः, श्रथार्थैक- faery निमित्ताधगब्दसमानाधिकरयष्ठिरि्यधः। ay wai इति-भर्धाधसमानाधिकरणात्‌ सिमंन्कात्‌ प्रादय दयैः मक्यार्थनेति- भुक्तिर्मोगः | एवं yet शर्धाय भुकगेरर्थात्‌ सक्तरथेस्य भुक्ावयं मुक्यार्धेन ger wala सुक्ञर्थात्‌ ance

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(1) लह्युषष्यक्रिवत्वात्‌।

कारकम्‌ | Rut ©. orn NN se अधार्येनेकक्ञे लं खादयः स्युः, AT सव्वाः | भक्ार्धेनार्थय मुक्तः किं कायं नार्यतेऽ्ुतः |

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मुक्तौ , भ्र्े। एवं हेतुकारणनिमित्तादियोगेऽपि। तथाच wae Pitre हातुमिच्छव्रिति रघुः | हैतब्दयोगे Safa ut) fa art कैन gray ae कायाय कस्मात्‌ कायात्‌ कस्य aire कस्िन्‌ कार्ये wat नाच्यते केन हेतुना पूज्यते wee: | एवं को हेतुः कं हतं केन हेतुना कखे हेतवे कस्माहेतोः कस्य हेतोः कस्मिन्‌ Bai इहे निमित्ते erat निित्ताभ्यां इयोर्निमित्तयोः इयोः प्रयोजनयोभेवक कारणेषु इत्यादि। परे तु सामान्यलेस्लपादिकोः खरेल प्रीं नेच्छन्ति | Wa तु Ata सव्या; MUTE: | सामान्यलेखाा- दिरिति कश्चित्‌ कथित्‌ तुद्दो्यौ नाह। ईतुकारणनिमिन्न- शब्द्समानाधिकरणादित्यन्यः |

aa प्रान्तं afeda ह्यन्तं तत्‌ प्राप्यते तु यत्‌।

वान्तं ATS योगी स्यात्‌ प्यन्तं यस्मात्‌ परन्तु तत्‌|

यस्य खाने भेत्‌ कायं तत्‌ न्तं समुदादतम्‌ |

wat गम्य परे वाख यसि्रुपपदे तु तत्‌ |

कषचिषयत्ययतो safad पाणिनिसश्मतम्‌ (१)

11 1 pelea, Reem ore © Ae wen erent Been ee ~ er ~ ~~“ ~~ ee ~~

(१) एतत्‌ अपोऽक्‌ समो णड दूति सत्रटीकायासुक्गम्‌ | पएनरक्गिसु अदय कारकप्रकरणेन ey {1 पिशन्बन्नातुरोधात्‌ | away दृग्वलोटाषरण तमेव टिणन्वा दरषव्यम्‌ |

१५२ TUNG ब्याकरणम्‌ |

२१७ 1 संन्नाः कभ्‌। (शराः en, क॑ ढधधमभजड़ः HAM: St

इति कपादः |

२१७। dens) प्रकरणादसिन्‌ पादे या या संत्ना व्यधः | Ta wes uaa ag Br cial षणां संत्नान्तरमाह क्मिति। कं कारकं, तश्च श्गिस्तस्यानेकरूपलात्‌ (१) gay शक्जिमन्र शक्गिसस्येखवभावस्यानकर्पनाया aqme (२)। द्रये- कारकव्यवदारम्तु शङ्गिगक्तिमताभंदस्याविवदितल्वात्‌ पुष्पाणि साहयति, परशृन्किनतति, सालो पचति, दोखि परयो गौभ्यो गवां वा, धनं यादति राजभ्यो र्रांवा, रिपौ कोपः, पुष्य खषा, “तपोवनेषु खृषटयानुरेषा"तयादौ दादयो तु भाद्यः, विवच्ा- वशात्‌ कारकाणि भवन्तौवयुकगेः (र) दह कारकागामुभय- प्रातनिषन्देहे भादिक्रभेणेव प्रहत्तिः। यधा विप्राय ew वलं

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(|) weer करणत ककुदादानेकखद्पलयात्‌ |

(२) एश्रखमभवश्य तेय द्रव्यश्य गकारैः अनेकप युक्तं तमात्‌ Tal गवा टिक शङ्कि शक्रिः | साच रङ्गः आरचेयद्पाश्चाधार fear a fase | तैन जातिगुखक्रिदादूव्यादीनाययति। यतः शक्रििगिष्टजान्यादः warty fananfa: कारकम | यद्यपि जा्यादृवः शर्निमनो =+ शक्गयस्तथ्ा|प तषु area व्यशारदशनं अनि-गङ्गिमतोरमेद्य fafaneafeat कारिकेय शिद्वानद्ारयः।

(8) feaanfafgamrain सायात्‌ | तेन जेच्छय। पामे गच्छतीद्नादिप्रयोगो mama दति षाग्मट्‌।विक्ञ दति दुर्गादराषः।

कारक्षम्‌। ` २५३

zuifa, घुष्य(रोध्य शरान्‌ चिपति, उपविश्वौ्ति्ठति wiz, गहं प्रविष्य निःसरति, श्रस्येष घटः पश्येत्यादि | यदुक्तम्‌ - अपादानसम्मदानकरेणाधारकश्चणम्‌। , कर्तुथान्योन्यसन्देहे परमेकं प्रवत्तते॥ इति विप्राय gata, विप्राय ज्ञाघते, वरायादूय कन्यां ददाति, विप्राया्चयिला भनुर्दीयते इत्यादी- उत्‌सगस्यापवादेन TVA गुणस्य | वाधा विधीयते यस्मात्‌ ततोऽनेन बाधिता इति 1(2) चैत्ोऽखेन ग्रामं गच्छति इत्यादौ तु प्रघटान्तव्यवख्ितां क्रियां चैत्रादौ केनापि प्रकारेण व्यापारितां निषदं पषान्रजा वोगः। करणं कारः क्रिया, एव साध्यतेन मुख्य एषामि- wa कः, (२) जात्यपेत्तया एकतवं, कारकं, त्रियानिमित्तमि-

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(१) विप्राय द्रह्यतीत्यादौ कम््ीत्-रुमदागत्वोभयप्ाप्रौ परत्वात्‌ क्त्वं कथं भभूटिषाग्ङ्यादह उत्‌मग शेति यस्मात्‌ आपवाटेन तिथेषषिधिना छत्सगख साभाग्यविचेः, प्रधानेन समापकक्रियया quamwae असमापकक्रियाया बाधा विधोयते, ततस्तस्मात्‌ अनेन RITES ATTA TATA नियमेन अक्षमापक क्रिययाच वाधिता-वतुधीति on | ae featenfe विशेषनियमेनान चतु. ्ेपाभूरिचवः। तकवागोभेन TATED कन्धां दटातीयुक्गं इगादाससतु वरभा- कन्दं ees, कन्थां दातुः वरमाह्ववतिवा Key सम्प्रदानं बापिल्वा wa प्रहस्तमित्याषट। एषं सति “च्छाद्य चाञ्जयित्वा ग्रतश्ोलवते खयं। WINE दामं War arg way: walfaa इति कथं संगच्छते तत्‌ quifa- चिन्त्भिति।

(8) केऽकः खोदे तु वेत्र टोकायां “eve एषामिति" बा्तिकक्मेख VWs प्रसयः।

४५

१५४ Arad व्याक्षरशम्‌ |

लय्ः(१) | aed विप्राय at ददाति इलव यथा विपरानुमतिहारा ne प्रियानिमित्तल, तथा द्रस्य apt पवतोत्यादावपि तख- लादिषम्पादनहारा चैत्रस्य त्रियानिर्मित्ततात्‌ षाः कलापत्तिरिति चेत्‌ सं, sae दये पचत्यादिकं नापिती, किन्तु धनादिकमतो a क्रियानिमित्ततम्‌ fad, परशुना दादयुकने पश्यति, feat इव्यादिकमपैत्तत एव | wa: क्रियानिमित्तलं कलमिव्येके (२) | कवधहारा क्रियान्वितं कत्वमिति कथित्‌ aa, विषहत्तो (पि संशा खयं इत्तमसाम्यनसित्यादावग्याप्तः (2) 1 वमतुतलु अव्यव्य्थाहारक्षते सति (४) क्रियावयिलं कलम्‌ चेत्र Awe पचतीत्यादौ खर्वहारकत्वमेव। विषदन्तोऽपि संवा इत्यादौ स्यथ -

(१ Sarcamagara लोके ufaarsararey निमित्तपर्यायः वटि we- प्रययानः खात्‌, तदा WANA साना BTA | एवञ्च सति क्रियास्त कारकपदेनानिधानं भवेट्ति जयाट्त्ारोनां मतम्‌ | भाघ्यकारस्तु करोतीति arcafaare” दूति संचिप्रसरे कारकपदे प्रथमसूव्रग्य टोक्ञायां गोयीचन्द्र

१) कारकचम्रेतु सममदानाटेरनुभतिप्रागनहारेष तगडनादिमस्यादनहार इम्बन्धिनोऽपि पाक्षाटिक्रिथानिमिन्ततेन एम्बन्धिनि, चेव तण्रलं पचतीत्याह daresay रिुङ्गम्‌।

Bre cemanel क्रियातिजिषके यतिव्याप्निशरशाय विभङ्कयचहरेति कारङ्चक्रम्‌। खमते क्रिवाविपेषपणलापि बारक्रवाङ्गाक।रात्‌ HATTON zat द्चितः |

foray yaetanfamaaaia कपौखि प्रथमा, नतु शमुोविङितिप्रचये- Hawg | anwar विभक्तया विषषटशद्य क्रियान्यिलाभातात्‌ arcana wraqrfgi care: |

।४। Ga क्यवरहागा fmareafgerfafe पाठो aye प्केष TAA | AAT fawure विपडकोऽपि भंवद्धयाटाषयाप्रेजारप्ययाए्सानिः | way fats wenery दूति मता ufega via |

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कारकम्‌ | १५५

erway भ्रव्याप्तिवारणाय लौ भ्रव्येति विरेषशोयमिति गुर-

विप्रतपख्िदुगेतानां ufageata भिषक्‌ खमेषजैः माषाणाम-

श्रौयादित्यादौ तु शवधदारेणैव क्रियान्वयात्‌ चाः कल्वमिष्टमेव, ठे

षोविधानादिति (१) तथापि कर्तुकर्यव्यवहितत्वादाधारस्

कारकल्रापरसद्गः स्यादत wie दादि कमिति (२) दिक्‌। (३) इति क-पादः।

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(१) एतेन fruaqqaerc fmarafaafafa दलं नक्णघटक्म। aay अव्यय भिघ्रलिङ्गार्थाहयारकत्वे सति येन केनापि प्रकारेख afe क्रियान्वयित्वं भवेत्‌ तदा तद्यपि कार कतवं छाटिचयधैः।

(२) आधारष्य कत्तुजस्मान्धतरहारा क्रियान्वयित्वाद्व्यवभिन्नशिङ्गा्यांहारक्- त्वेन कारक्त्वाभावात्‌ कश्यरादिषर्‌काश्यतमत्वं कारङत्वमित्वष्यवक्रव्यम्‌ खतः शवाचर्येयदटधषमभक्ञडाः करत CARA 1

(९) अल दगादासः--अधैकवाकयम्‌ | गुरुणा fade ce: खाद्यते, अव खाट्यतेम्‌ दवज्मो षोऽभाषरात्‌ गौणक्रभाख Cats उक्रत्वम्‌ गुरुणा शिष्येण ue खादते, गुरुष्ा शिष्य are पाद्यते! waaltatiaga q गुरुणा शिष्य Cw खाट्यता सोकं पादयते, अत्र शिष्य खाद्यते: प्रयोञ्छत्वेन गोणकनत्ततय- $पि waa दू्याल्यातद्य प्रघानद्यापि कमोत्वादुक्तत्वम्‌ | wi गुरुणा शिष्येण wired urea, गुरुणा शिष्यः ल्लोकं श्राव्यते एतयोरेक वाक्यत्वे Feu शिष्य wear पाचयता सोकं श्राव्यते wre विप्रं ag विप्र aad Tamtanaeste पष्यानोयते विप्र द्ति। wa प्ति आल्यातशखयापि कन्तु पिहहितत्वेन कमाण सम्यन्धाभरपात्‌ आनीयते दूति कम्प विहितत्वेब सुतरां ame sara) एवं भया लतम्‌, aE प्ष्यामो्ादोनामेक्वाक्यत्वेऽपि अह ad पश्यामोत्वादिकषमेव, मधनेनाख्यातेनो Ray | खतएव ^रङख्वदलङ्गनषसमूडा सरामि वानीरग्डहेष wnfa’fa रघो ।३।५। भया सप्रमदं सराभोव्दधः।

व्याण्यातास्तिबाट्यः. तेषाञ्च प्रधानत्वं वाक्यङमापकत्वात्‌ | अतएव आख्यातेन वक्यशमाप्निः। एवश्च पिधिनिपेधयोदिधिरेव बलवान्‌ तेन राजानं पाठयवु ख।दयतो्न्‌ दादयतेनिषेचेऽपि पाठयतेः कश्रलमिति। कक्रववशतेयोतयेके

१५१ quay व्याकरणम्‌ |

समासः २१८। sat सोऽन्वये |

( Sar १, सः १।, TAT ७) | हयो अह्नां वा दानामेक्यं AAT स्यात्‌ aN सति

eo |

acc) eam! दंक्यमिति टश्च टतैदै, टश्च दश्च दश लानि दानि, दैच टानि चतानि दानि, तेषामश्चम्‌। एकस्य भाव Gal, ब्राह्मणाटिलात्‌ णयः एकशेषं मन्वानोऽप्याह (१) हयोत्बहनामिति। टदानामिति ayaafsafaafaas, तथाच

अरनिकदानामैकदलं देयं wie स्यादित्य; (२)। तच्च Taq दूति urg: ( वाक्यतमाप्रिरिति शेषः| हत्यास्तव्यादयः। ant fe रामेष वनं गतं, रामो रां तवान्‌. साभुभिः रामः BAA: | एषु भव्यार्क्रिया- wierd afer; रामो जगतां कत्ता. रामो जगतां संहारकः, रमेण खगः सुगम दूयःटो भवनात्यादिक्रिवाखामध्याहारः विना वाक्समात्िनांसीयत्ः।

() eM हयोतरर मिवयुतवतानाग्धण Ga दानाम श्म देच दानि तेप्रामियेक्ोपः सचतः| चकोपो वरत्तितिणेषः। तथाच शिङ्गान- कौरुग्रासक्गगोपप्रक्गरगो, - "टततङ्ितिसमातसक्गधमनादानधातषपाः Ve CHa! | परार्थाभिधानं ufas) ठन्ययारमोधकं पाक्यं प्रहः| हषा, नौश्को- लोजिकशच + ^ यथा राकः gen) अनयो (िग्थिममामः, श्रव्वपदरत्रिपरहो वेति" प्र्ययान्भविनापरपटार्वानलभत्रिन वायो fafaeton परार्थः, चाभिभधोयने येन तत्यरा्याभिधारनमिति तच्वयोधिनी। ऋातन्त्दीज्ञायाभपि परार्थाभिधानं दृर्सिरि्यक्ता परश्यानाकोयप्याचग्य यदृपमण्लनपदेनाभिधामं भा afafras दूति qranay | नपुणयः द्वरे तु “+सुत way प्राधाखित- खार्थोपस्यापकलाभात्रान efaa मानं, feuds aay तत्तहवमूषदपार्षाः VR भाय METH” CAAT |

(२) SAMA UT चन्द्‌ः। समपूतखादोरेकोकरण।चत्यान्‌ | तवा

Wary: | १५७

कायम्‌ यथा-वन्धौ चरणौ eye इत्यथे, लष्णचरणीौ वन्यौ इति स्यात्‌, नतु aural चरणाविति।

श्रन्वये सति कायम्‌ भ्रन्वयो fe परस्मरसम्बन्धरूपः (१) सच कचिदिशेषणरूपेण, कचिदहिशष्यरूपैण इन्दे तु सर्व्वां दानां

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fe समसनं समाः, सममनमेकोकरणं तदनेकस्येव सम्भवति, कत उक्तं gat बह नामिति। :

“केचित्‌ टेक्यमिति खाद्यनव्ाद्यनानां age, तेन कित्‌ argent यो रज्ये, कचित्‌ स्याद्यन् याद्यनयोरेकयं, कचित्‌ खाद्यनस्याद्यनयोरेक्यं कास्‌ | ठषमेकरेषच तद्यन्तानाभपि | क्रमेणोद्‌!हरणानि- अखातं पिव्रतद्ति सतत. सच्यते यस्यां क्रियायां सा अस्रोतपित्रता एवं एड्िष्वागता रएडोरमित्वादयः। खादान्तानां प्रचरप्रयोगाः। wane तु भवति भवति चच भवति cae भवन्ति यथा-नक्रोधोनवच मात्स बोभो नाशुभा मतिः। भवन्ति ठत- पण्यानां भक्तानां पुरुषोत्तमे xia) UT ERAS | वस्तुतस्तु Baa पाहूं, seat समासो दुक्ता्ंडूति सथवम्यौतिडहितसतेकवाक्यत्वात्‌, सभारदान्वये नाश्ामित्यनुभृतिख्ङ पाचार्य {विहि तदत कबाक्यत्वाद् | तथाच दानाभिति खाद्य न्तानाभित्यधः, तलेत्र agi स्याद्रन्तानासिति व्याख्यात | अश्रीतपिवतेत्या- wag भयरव्यंसक्रादित्वात्‌ कम्यषारयसमामे निपात्यन्ते, एते कोधादयो WIAA Te, कर्त्ये frase fern, एकदिषड्धघवेषु प्रयुज्यन्ते दति वनात्‌! यहा तिबन्तप्रतिङ्पकाणामव्ययानां समास wane’ afa afeaa: | एतेन केषर यदि समासत्वमङ्गोक्रियते, ताते युश्चावित्शादौ शोषः पुरतः स्फटोभगष्यतीति

अश्चोतपिकतिश्याटौ “अतएव आश्यातमासख्यातिनेति मयूरव्यंमकारौ णढात्‌ ware” दूति तच्ववोधिनी।

(१) अन्वये सतोति यदुक्तम्‌ अञिन्नशथं व्यतिरोकमखेण “armas” इति ंिप्रसार क्त्रम्‌ (wares oy) तत्र Maley -सष्वंषासेव पानां खार्था बोधने गमकत्वमस्ति, तश्माहिकेषो टिनव्यः। वाक्यार्थे गमयति बोधयतीति wes: | कष्टं चित दूधाद्षाक्ये योऽर्थः प्रतीयते एव wefaq दादि समारेऽपीति away > गसकोऽगमकः वाक्याधेबोभगाव अशभ

gue SUNG व्याकरणम्‌ |

साहित्यरूपेशान्वय इति ' arafaada शेकविधायकं लक्षश. मयेतदियुक्म्‌ ware लष्णस्येखस्य चर णातित्यनेनेव सम्बन्धा वन्दयावित्यनेनेकयमित्याह-न तु aya acufafa णवं WH: पत्तो राजपु Laat स्यात्‌. नतु भाया Tw: Fat देवदत्तस्य carat (१) | Wee UAT मातङ्गः, ATA हषल्यो भायां यस्येत्यादौ तु सापेक्तमसमयं भवतीति wary सः (र) | केचित्तु प्रतिबोगिकारकाभ्यां सापेत्तलेऽपि (३) सः यथा are दासभार्या, RUA इतपुचः, रामाय दत्तकुसुम ईति |

द्धः | पण्य sea कटमियेकं शक्यं. चितो विषण॒मिबो गुरुकृजमिति हितीवम्‌, ma “हिनोदाया गताद्यरति तू ङ्षो भषति aan) यत हभद्यमानयोः Val: प्ररस्यराव्यपेक्ानक्णः सम्बन्धो विदयते sas गमक्षावम | यत्र एनर्वाक्भटात्‌ परस्पर णव्यपे कायां ema मालि तत्ागमञ्गलम्‌ | ee शति एकार्ीभाव्रलकणः सम्बन्धः, तहिषेचनन्तु परस्य्ररव्यपेश्षायां विद्यत एव | TIM TINT aT पुरुष द्यत्र शक्ये योऽर्भऽतरिगम्यति नसौ राजपुरुषचटात, ware सति दिवशनबश्पचनयोरनभिगमात्‌ | अतोऽत्र सपि समद्मानवोः परश्यरव्यपे्ाचक्तणसम्बन्धे बाक्याचवोधनासम्बन्धाब् THe: | ++ + उपरि face: पुरो came सर्यि परस्यरव्यपेजालशणसम्बन्ये भावादेव वाक्याथ बोधनाशग्बन्धवेनागमकत्यात षषठासम।सः। तद्ात्‌ वाक्याधबोधरक- त्वमेष NAA सभातकारकमव्रगन्वयमित्ाह।

(aga दति परेन cre cfs wee सम्बन्धाभावात्‌ |

(२) अपर्य ey वतमानं arte erarefamm: | aed पदम्‌ अमष वाक्या्थागोभरक्षमिधैः। ततद we रासो मातङ्गा एवादौ रानमतङ्ग- meat: दारे ष्येति पदम इदराजण्ड्यो विष्ये ष्णभावं नाषगसयति। wn शेति ue fasta रालमानङ्काद्तिक्मलोन दयात्‌ | एवमन्यत्रापि।

(8) प्रतिवोनिपदं विथेथविपेषणातिरिक्रषम्बन्िपदसिव्धः प्रतियोनि पठेत MITTIN ETE शाश्ङ्खवेऽपि।

समासः | ११८

धद्क्ञम्‌- प्रतियोगिपरारन्यत्‌ यदन्यत्‌ कारकादपि। ठत्तिशब्देकदे शस्य (१) सम्ब्धस्तेन नेष्यते यथा ATA हषलोभा यः प्रवीरं पुच काम्यति RIA राजमातङ्गा षति स्युः प्रयुक्ञयः। चतस्य दासभार्येयं लूनचक्रो रथो मया | शरेः शातितपत्रीऽयं वक्ादिति षतां मतम्‌ इत्याहः | अ्रषपानाधिकरणसापिक्षस्य गमकत्वेन साभ्युपगमात्‌ समाना- धिकरणसापैचमसमथं भवतोति कचित्‌ war तु समस्तस्यासम- स्तेन ॒नित्यापैक्षेण सङ्कतिरित्याहः (२)। सः समासः। चतु सव्वंदार्यप्रधानः, सर्बदार्थाप्रधानः, उत्तरदाधैप्रधानः, पूव्वेदायप्रधानः। यथा इरिरौ, पोताम्बरः, नोलोत्पलं, aa भरितः, इरिज्रातः, विरामो, भ्रधिच्ि इत्यादि (३) |

reece em + > ~> ~~ ~~ ~ ~ ----~ ~~~ ~~ ~ ~ „~~ ~~~. et ~~~ “~~~ -~--~ ~~

() सम.समिष्पन्नणब्दो हसतिशन्द्स्स्यकरे cere |

(x) एतत्‌ रंशिप्रसारखलस्‌, समाश्पादे iy) नित्यापि कलेखासमसेना- ढंतकम।सपटेन समस्तख शतसमाश्ख परख एकटेयेन सष्ेति शेषः, सङ्कतिर्वय- बोधो भवतोति शेषः| “निन्ापेशता कारकाणां क्रियपेकेया, सम्वन्विषनद्‌ा- are सब्बन्ध्यन्तरापेसयेति। अतएव शह्ृरख प्रटारे रथात्‌ पातितकषारथि frarel सङ्कतद्रटष्या | uate कथम्‌ ? उच्यते-निव्यष्ठापेगे तट्धोभिधाम- Wa: खभावसिद्खत्वात्‌, अन्यत तद्यासम्भशाटि"ादि wea: |

(९) एतेन हनः सव्वैपडार्थप्र धानः, बश्नोहि- सर्बपटार्थाप्रपानः, कम्पैधार्य SUCUTEAUTH:, TATE दवियुरव्ययीभावषेते पूवयैपदाप्रधाना vara wafer |

३६५ FUT व्याकरणम्‌ |

३१९ | भिन्रान्येकार्धदादिसद्याव्यादौनां च-इ- य-ष-ग-वाः | | ( भिब-व्यादोनां en, च-वाः १॥) |

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२१८। faati भित्र ware waa a, a aat रेषां तै, हो भादिर्यासं ताः, ara संख्या व्यश्च तानि, तान्यादयो येषां ते, पथाहिवरान्येकार्था् हयादिसंख्याव्यादयश्च ते तषां, चख इष यव ष्च गव वश ते। इन्हात्‌ परः यूयमाणः शब्दः प्रयेक- मभिसंबध्यते (१) इति न्यायात्‌, संन्निसंन्रानां समसख्यताश्च यथा- संख्यं दर्शयव्राह (2)—faaratat दानाम्‌ इति।

परस्मरभिन्रा्धानां दानां wade) पदार्थो हि जात्या क्तिव्यक्तयः। जातिधः, भ्राक्ततिरवयवसंखानादिः, afar: खरूपम्‌ | waa नौलघरटयोरिलत्रापि चः, पदाधतावच्छेदकयोः परस्प्रभिन्रतात्‌ | श्रमभेदविवक्तायां तु यः स्यादेव। एवं हरिहरावित्यतर वमुताऽभेदैऽपि पदाथतावच्छदकयोः खिति. संहारयोभदाद्वद Tae | तथाच पद्जन्यप्रतिपत्तिविषयभेरे दति पथषसितोऽघंः।

भअन्धाधानामिति - श्रसमस्यमानदाथपगणां (३) समस्मा

(1) अखनिरुंबष्यो एति कीडत्तरि प्रयोगः| अमिरबक्नातोति afer पाठः।

(२) fagratfe व्यादीगःभिति हनत्‌ परे amareytignagr: प्रदेश afndryfa | अनर संन्चिनां fuqiuiziat संप्नानां wyrelarg समशंण्यत्यभपि Vafcfa बोध्यम्‌ | वथारंख्यं यथ कममिग्यधः।

(क) घमद्धमान-पटा्यातिरिक-प्टाधवोपकामामिन्रधः।

समासः | २९१

भिन्नानां दानां wade, श्रद्यार्थानां दानां was, एका- घोनां दानां यमेन्नः, इपादिक्वन्तपू्वदानां षसंननः, सहयापूवमैदानां गसंत्रः, AAA TIT: स्यात्‌ नानां दानां सो WAM: | यथा ATS वानरो यम्‌, आरूढवानरो हषः ट्टः क्णो येन, टष्टैकष्शः पुरुष इत्यादि समसमान- पदार्घोऽपि कचिदन्यदाधः स्यात्‌, व्यपदेश्यव्यपदे शिवद्गावात्‌ (१) | यधा शोभनशरोरः शिनापुच्चः, जनाईनवषात्चतुथे एवेत्यादि एकाथानामिति--परख्मरसमानाधिकरणानां सो aaa | यधा नोलोत्पलं, परमामा इत्यादि | इपादिक्तयन्तपूव्धदानामिति- यदि समस्यमानानां दानां gaara हयादिक्नीनाभेकतमान्तानिं भवन्ति, तदा सैषां दानां सः weet भवति यथा क्लष्णमात्रितः कष्णात्ितः, मासेन ga: AAA: युपाय दार TITS, पापाय पापभयं, TTS सखा छष्णसखः, TAS कतं पूरव्वाह्नक्तमिन्यादि | संख्यापूत्वेदानामिति - समस्यमानानां दानां पूव्यैदानि यदि संख्यावाचकानि भवन्ति, तदा तेषां तार्घादौ सो गसंज्नः। यथा पञ्चगुः, विलोकौ, पञ्चगवधन इत्यादि |

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({) अब्र व्यपदेश्यः समद्यमानप्टाधंः, व्यपटेयो समखयमामपदार्थातिरिक्ञ Wee: | कथिद्भहव्रोहो व्यपटेष्यख व्यपरेशिखङ्प्त्वम्‌ तथाच कार्तिकेवः- बमषनोय-पदार्थातिरिक्रपदाथबोधक-यच्छन्दार्यो इयय टिस्तु ब्त हिमा- सनिष्यञ्चपदखार्थो we इति व्यपदेथो, areafenfaem, तद्भावात्‌ तद्ख- दपतवात्‌ व्यपरेठख queue अर्धात्‌ समद्यमानपटाथदख् wae), (रष (४), २९ (2) feorat gear |

४6

242 TUNG BATT |

~ 0 ~ २२०। क्त लकल च। (Mg), FRI, BO, Fie) से खितायाः ज्ञ लक्‌ स्यात्‌, Ae परै

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व्यपूव्यैदानामिति-समस्यमानानीं दानां यदि पूव्येदानि व्यसंत्तकानि भवन्ति, तदा तेषां कादौ सो वसंन्नः। यथा प्रधि- छणमित्यादि |

दह एकत्र संन्नादयसमावेशाभावात्‌ विशेषर्षोधितानामे- वेताः (१) सन्ना Far) तेन पञ्चमाः, स्यः, खःपतितः, पचगुः, भ्रधिरोत्यादौ हादिसंन्नानतुगादय इति। भ्रन्यधा सर्वषां दानां भित्राधलात्‌ aaa: | चो इन्दो, ठो बहु- aife:, यः कश्चषारयः, षस्तत्परुषः, गो दिशः, वोऽव्ययोभावः | ait षविशेषाविति परे। एषां सामान्यतो लकणान्यक्षानि विशेषन्तु तत्तद्रकरणे विरि vera: |

२२० केलक्‌ भ्रधिकारात्‌ शत्यगुर्तते were से खिताया एति। से ata areata: क्रिल; प्रक- रणात्‌ स्वादिरेव, तैन पचतिरूपं पचतितरामिति ले करत्‌ यतस्य: AA इत्यादौ तु स्यादिखानजलेऽपि खरादिपाढा्तद्‌- नतानां तहितानगतलात्‌ तसादैर्ुक्‌ लक्षरशात्‌ स्यादि- निमित्तं काय्यं स्यात्‌, यधा सिप्रा: गवायित इत्यादी

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(१) शिशिषणगोधितानां - तद्धा विषये vanfe-vefqings fafg ern fame : |

wrens) २१९

इन्द्रसमासः (च) | दतरेतरवोगी समाहारे चो हिधा इरि हर इरिहरौ ब्रह्मा ware शव ब्रह्माथ aT:

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W fa, भ्रा भरमश्सोरिति। asad राजपुरुष इत्यादौ तु विराममाधित्य ae नो लुप्‌ स्यादेव |

इतरेतरयोग चेति (१) चो हिधा दिप्रकारः, aa एकं इतरेतरयोगः | इतरस्य इतरेण सह योग इति, परदस्यरापेक्तषावय- वमेटानुगत(२र)स्तज्र इयोः प्राघान्यात्‌ हं, ARAL प्राधान्यात्‌ a स्यादेव | यथा हरिहरौ awradar इत्बादि |

अन्धः समाहारः, तिरोहितावयवभेदः, किन्तु समु- दितभिव्रभेदस्तस्ये कत्वात्‌ क्षम्‌ (र) यथा समोटशदं, ` वा कत्वचं धवखदिरपलाशम्‌ श्त्यादि। ससुटायिभ्योऽनन्यः समुदाय

(१) ave इनः एति अतभूतिखलङ्पाचाथेसवम्‌ तत सद्धवान्वाचमे तरेतरकशमाङहाराषार्थाः | तवर सष्ठञ्यान्वाचययोः समाशो नासि परखरान्या- वात्‌ tat गुरुश्च भजस्वेति प्रेकमेकक्रियपभिषम्बन्धे qaqa समासो नासि) Whaat भिक्षामट, यदि wafe गाञ्जामवेतिक्रमेख fanaa: cared समादो नालि, acacia: इतरोतरयोने समाहारे we इनरमासो मवतोाह इतरतरयोग इतीति कालिं केयः।

(१) परष्यरभपेश्षने इति प्रशरापेराश्नादथा अवयवाः समाशषटकोधूत- पानि तेषां भेदस्लमतुगत care: |

(2) तिेह्ढितावबवमेदः-अआप्रघानावयवाधंः संतिप्रधान इति यावत्‌ fas सहदितभिल्मेटः- सषहहितजिन्नः स्ठदायख्ख भेदो aa तादः तख VATPTTS दषठहायसेकत्वारेकव चवम्‌ |

२१४ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

दति द्थनात्‌ (१) लश येकं सतर, से चेति एकं सुमित योगविभागः कर्तव्यः तद्मादिष्टसिहिः। कवित्‌ निषिहं (२) स्यात्‌ तथाहि,--

नौजःसहस्तमोऽग्मोऽक्नस्तपसः TTY तपाः। areas एभ्यस्या लुक्‌ स्यात्‌। Matt श्रोजसाकतपुचः (2), सहसामुकं, तमसापिहितम्‌, श्र्मसाग्रतम्‌, भ्रद््रसानिष्यादित, तपसाक्नतम्‌ | तथाच तमोजसानिजितदेवराजं दृष्टा रथं तप- arafafefafa बोध्यम्‌। तपः शब्दात्‌ fanaa भ्रस्ममते तु नञा निर्ं्टमनित्यमिति न्यायात्‌। तधाच तपःक्ञशाः शान्दुदः कुरहम्ता इति भष्टिः gala किं षह श्रोजमा वत्ते सौजाः तेन कतमिवयग्रे सौजः कतं, सहौजःकतम्‌। सततनेशतमोहतमिति भारविः | उदन्दश्रःपरिपूतमूत्तिरिति माघः (8) |

पंजनुषोऽनुजान्ध | श्राभ्यामनयोः क्रमात्‌ त्रा लुक्‌ स्ात्‌। पुंसानुज: | पुंसेत्यलुग्विधानादैव wa तौ, qaid प्रत्यनुजल्वेन पुंसो हेतुलादतौ वा तौति (४५) जनुषान्धः, जनुजंक तनाः |

।१। मनु ग्रमोटगटृमानवेत्यत्र कं प्रसेकानयसतव्राह ससटायभ्य इति - दतिद्शनादितिग्यायात्‌ | ममुदावषसुटावयोर,दाङ्गो कारादि |

(>) समद्यमानण्ठरानां व्रिभक्गिनोपो enfeare: |

(१) “कोजमाक्लतभिचयस्य समासनकपर्ये सति Magara इत्यत्र पुमः welware, afsitsia waft) तैन ज्ओोजमारतस् ददं ataetantafa” | संशिप्रषठारे समामपाटे gat @aw टीका |

(४) एप्दाहरणेषु वरोलस्तमोऽन्मःशब्दाना gaazartargy लुक्‌ |

W) Sega द्धं अलग्‌विधानहामण्यादतर were हतोवा। went

इत्धसमासः | १६५

मनसो नशान्नायिनि च। भमनसङ्या लुक स्यात्‌ संश्नायाम्‌ भ्राश्नायिनि शब्दे परे। मनसारैवो avenger aaa | avait किम्‌? मनोदत्ता कन्या। मनसा Tard शोलमस्य मनसान्रायी योगी, Teas एधगुपादानम्‌

UTA: पूरणे | भामनस्या लुक्‌ स्यात्‌ पूरणत्यान्ते परे WIAA: श्रामनापश्चमः। ` जनाहंनञ्चालचतुधं एव इति तु भाला चतुर्धोऽस्येति डः (१)

व्याकरणाख्यायामाक्पराभ्यां चाः। व्याकरणे व्यवङ्धिय- माणा Bs तस्यां गम्यमानायां Waa GT YR स्यात्‌ भाकनेपद्‌, परस्मैपदम्‌ (२) भरासनेपदे माषा उकतिस्य ्रालनेभाषः, एवं परसरेभाषः |

स्तोकान्तिकटूरार्थक्च्छरात्‌ कते प्या: स्तोकायर्थेभ्यः कच्छाञ् Wiel परे प्या लुक्‌ स्यात्‌। Sarge, Targa, श्रन्तिका- खगः, भरभ्यासादागतः, दूरादागतः, विप्रज्ष्टाटागतः, KTM: | aan इति तु alter) क्ते किम्‌? waa |

बलब्राह्मणाभ्यां कारशंसिनोः। प्राभ्यां AT YA श्यात्‌

a --~ ~= ~~ ~ --- ~ ~~ -~--- ---- ~ ~ —-— --- --- - = = ee.

wyararad प्रति पूष्वलातद्य Yqanwfa Yat aMnafe “यद्ायजः gary पुंसानुज" इति सिद्धान्तज्ौसदी |

(1) मन्बभ्धपदरा्े बहव्रीह्िरिष्च्यते, अन्दपटाथ्च रमखमानेभ्योऽतिरिक्गो भषति खल तद्भावात्‌ कथं weasels Aa सं, अव्यतिरिक्रार्यऽप्यन्धषडा- vet भवति, व्यपरेष्छयपदेशिवङ्भाशत्‌। वथा शोभनशरोरः शिलापुलक दति गोयोषन्दरः |

(९) अव area चतु्धौ | aa प्रहतिषिलतिभावविर्हात्‌ रन्धनाय खालौ- fary we gates: ? लग्‌ विधानशानर्थ्यात्‌

११९ सुग्धबोधं AACA

क्रमादनयोः। वलादनौचित्यात्‌ करणं बलालारः (१) ATA वैदेकरेथप्तत sym शंसितुं Haws ब्राद्मणाच्छंतो wien विशेषः |

चेपेष्यावा तु ys! तेपे गम्यमाने था लुक्‌ खात्‌, gure तु वा। dee कुलं, दास्याः पतिः, दास्याः yer, erage: | 82 किम्‌ विप्रङ्लं, विप्रपुचः |

वाक्दिक्पश्यतो गुक्तिदण्डहरे। एभ्य एतेषु क्रमात्‌ जा लुक्‌ स्यात्‌। बाचोयुक्गिः (२) दिशोदर्ः, पश्तोष्रः (र) CAAA CATA: |

भरट्सः WIA NATH TAHA UHTATAy | WET! घ्या लुक्‌ खात्‌ Wag रोनणकान्तङुले णकान्वपुचे भ्रमुा- पत्यं, welfare णायन, भ्रामु्यायणः, विख्यातपिषकः, अमुष्य कुले साधुः, भामुष्यकुलोनः, साधौ प्रतिजनादे्शोनः। wre कलस्य भावः, मनोन्नादिलात्‌ रकः, प्रासुष्यङुलिक्षा एव- सामुपुत्तिका इति भावयधरभूतवदष्नैकारात्‌ ware इति विशेषणम्‌ (४) |

ऋतो विद्यायोनिषम्बम्े।

mene ee ree cee कय

WEA ध्या लुक्‌ स्यात्‌

(1) बलातृकारारङ्िणवो हि प्रजा भवनोल्वादिधिदप्रयो गदात्‌ बलात्‌-

कर एूषरनालग्‌ दृष्ट दति। (२) Baum वाक्‌ वाचोवृक्गिरिमरटोका। वाषोवुहविर्ाग्नोति wee. कलदूमः | (१) खकारः |

(४) कुल एवशन्दाभ्यां wanwary mite षा वदलुग्‌िधानें, तत्‌ भावि भेऽवेद्य भूतवच्वस्तीकाराटि्ः |

दइन्दसमासः। ` १९७

ूर््जो्िरदयोवि यायो निसम्ब्वादितले' सति। ोतुःशिष्यः, होतुःपचः, पितुरन्तेवासो, खसुःपुचः। ऋत इति किम्‌ ? मातुल- Om: विद्यायोनिसम्बन्धे किम > होढधनम्‌ (१)

वा werent: पितुस पितरि। ऋदन्तात्‌ ध्या लुक्‌ स्थात्‌ वा भनयोः, foggy पितरि। मातुःष्वषा ASEAN, होतुःष्वसा waver, दुहितुःपतिः <efeaufa:, पितुःपिता foafom पितामष्ः faafaar तत्पिता प्रपितामह इत्यमरः |

दिवो ere नाजि। दिवः धा लुक्‌ स्थात्‌ दासे afer दिवोदासः, aafait: |

एनः एच्छलाङ्कलेफयेफसि शनः धा लुक्‌ wey नाकि गम्ये। शनःपुष्छः, NAA, TANG, TAT, WN नाम चतुष्टयम्‌ |

कविदन्यत्रापि। उक्षलचणेरप्रापतेऽपि था लक्‌ स्यात्‌। वाचस्पतिः, वास्तोष्पतिः, ferafa:, शनस्क णः, देवानांप्रिय (2) शत्वादि प्रयोगानुसारेण न्यम्‌ |

गोऽहइसन्तात्‌ घ्या नानि गोशब्दाददन्ताइसन्ताञ्च परस्याः

eg a Pe का

(1) कथं श्वाए्नः, भरादरोकलेऽसा पुरेव, हिवचनबहवचनान्वोलुन्भ- wate इति गोयोषन्दर |

(९) देवानांप्रिय इति मृखं cer) तथाच “quify देवानां भविं जनबन्तोति हेवपशुत्वादिति सनोरमाया are) (मनोरमा नाम लिद्धान- कौडहहोटीका)। बद्धनागरदितत्वात्‌ संसारिणो quiet a यागादिकशराण्यतु- तिषनः एरोडाशादिप्रहानहारा trad wife जनयन्ति | ब्रह्मन्नामिगसतु तथा, तेषां गद्यहुहानाभावादतो गवादिस्यानापन्नत्वात्‌ मूर्खाएष देवपथव" ufa तक्ववोधिनो | area टेवप्रिव xfs)

१६८ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

घ्या लक्‌ arg dary! गविष्ठः, गविष्ठिरः, वद्िष्ठादित्वात्‌ षः। Meee -वनिकिंगकाः, वमेकथेरकाः, TIM, meade श्यादि इसासु-युधिष्ठिरः वद्िष्ठादिलात्‌ षः। लचिषारः। लकसार इति तु तक्‌ सारो यस्येति हः एभ्यः किम्‌ नदोकुकुटिक्षा। नायि इति किम्‌ ? were: |

ait य-मति-योनिषु। & a, मतो aay TUT WaT: घ्या TRA! WE भवः दिगादिलात्‌ यः, भव्यः, TE मतिः, श्रषुथोनिः संन्नायामिति सः। पूरव्वदादिति किम्‌! परमाश्रतिः।

मध्यान्ताभ्यां गुरौ एधग्विधानादनान्नि। WATT, श्रन्त गुरः पूव्यादिव्येव, सग्मध्यगुदः। कथं AWE भ्रनतगुर- रिति ? मध्ये quae एति इः मध्यगुरः TTT गण शति दान्दसम्‌ (१) |

WHAT खाङ्गादकामे। मूईमस्तकवर्जात्‌ खा़- वाचकात्‌ A GH नखात्‌ नतु AMS परे। करण्टकालः, उरषिलामा | “am चकारोरश्वाशमाशए" | भरमूहेमस्तकादिति किम्‌? मूनि शिखा यख मृरगिखः, मस्तकशिखः। wart किम्‌! genta.) ब्रहषादिलेव, ्रह्लित्राणः, गिचरः। खङ्गा दिति किम्‌ ? weal, whafa: |

घन्बन्धे वा। घञजन्तवन्धे परे खाङ्गादखाङ्क्च त्या लुक्‌

ककण ^ SOs sna ~ ag Le मि LL SS भिदि wee ee te Oe ere

१, बन्दोददणमिति।

CAAA: | २९८

स्यात्‌ वा | करेवन्धः करवन्धः, चक्रबन्धः चक्रबन्धः, उरसिबन्धः staan: | श्रहसन्तादित्येव मण्विन्धः, रुप्तिबन्धः |

बहुलं पर AeA | TA छदन्ते घ्या लुक्‌ स्यात्‌ तत्‌पुरुषे ति बहुलग्रहणं (१) नित्य विकल्पनिरेधायेम्‌। स्तम्बेरमः, के जपः, पङ्कर्‌हः, AIT, WaT, काण्डेरुह इत्यादौ नित्यम्‌ सरसिरुं सरोरुहं, वनेचरः कनचरः, दिविषद ave: इत्यादौ fame: | कुरुचरः शण्डिलिणायो साङ्गाश्यसिद् (२) इत्यादौ लगेव we द्रति ।कं ? समसख्यः, विषमखः, कूटस्थः, कायखः, BETA इरोतकौ तथाच कपालेन करख्येनन्दुशेखर इति दण्डो कथं gfze: was दति वाडन्यात्‌ वदिष्ठादिपाटात्‌ षः। पव्वेदाटेव तैन नोलसरोरुहं महावनचर त्यादि |

दय-शरग्राहट्‌-कालाज्े वष-चर-शर-वराततु वा एभ्यः घ्या लुक्‌ स्यात्‌ परे, वषादेसतुषा। दिविज्ञः शरदिजः प्राषिजः कालेजः, AT: वषजः, ATA: च्तरजः (2) Nts; रजः, ata: वरजः | एभ्यः किम्‌ ? WAT, VET, खलजः |

कालनान्नः काले तरादौ च। वेत्यनुवत्तते। कालनानः ष्या लुक्‌ स्यात्‌ वा कालथब्द्‌ परे, तर-तम-तन्‌-चतरां-चतमांसु च। YARNS FARA, पू््वेाह्वतरे Patent, पूर्वी ह्वेतमे

(?) बह्कलं - बहवः ( प्रकाराः) ware, चड़ाटित्वाक्षः। अथवा WHE ( प्रकारान्‌ लाति egiaifa बह्लम्‌, आदनत्वात्‌ डः। तद्ध afefafedt ष्यात्‌, कचिच्चिषिद्धं खात्‌, कचि्ठा खात्‌, कचत्ततोऽन्यद्पि खादित्यचं <a सावार्येण | (२) साह्य देथविरेषस्तत्र wafefe: | (2) चरो मेषः सर Tee 89

290 सुग्धवोधं AMATI |

qalwat, पूलयीहतनः पूववाद्गतनः पूततां पून्वाह्नतरां ूर्वाहेतमां Wawra | एवमपराहृकाले भ्रपराह्गकाले sanfe | veaanfeaa | रा्रितशयां जागत्ति। रकालादास-शय-वासिषु। कालभिन्रवाचिनः स्या लुक्‌न स्याहा वासशयवासिषु वनेवास; (१) वनवासः, खेशयः खशयः, ग्राभेवासौ म्रामवासी, ब्रन्तेवासो. श्रन्तवासो श्रकालादिति किं पू्धाह्णणयः। श्रहसन्तादिल्येव गुहाशयः भूमिश्यः। कारनाजि हसादौ बिककषंकपश्पालादयेः पालनाय UM Sat A करः, कर एव कारः, तस्य नाम कारनाम, तसन्‌ वाच्ये हसादौ परे घ्या लुक स्यात्‌ वा हलेदिपदिका इलदिपदिका, देया इयथः | हौ हौ परादौ परिमाणमस्य शत्यं संश्ादेराभोच्णे कः, पादः पदादेशः, तार्थं ग-मः, खभावात्‌ सतव, त्येन (x) wie योते युधे युय पशुः Tay: यूथपः देय इति। हसादौ किम्‌ ? श्रविकटे श्रविकटे (2) उरणौ देय इयं भ्रविकटोरणः। भ्रहसन्तादित्येव नहौ- दोहनः (४) | परे तु कारः पारिभाषिकनियम इत्याहुः (५) |

~~~ - -~ ~~---*~-~---~- ---------+"~ --*----- ---~^~+= =-- ~ =~~

(1, अतएव रजन्‌ वमेवासशताद्भयात्तानिति wig: |

(१) कप्रत्ययेन |

(8) अवोनां मेषाणां agra अविक्टः, पोलतिलेत्यादिना कटप्र्ययः, was ठोकादां agra अविभेत CaaS |

(3) wart गोजन्धनरौरषरत्रायां दौहनो za दूति fraqragre: |

(५) प्राचां देधे arcana यत्मिद्धं तञ्जिन्‌ वाच्ये सतीवशाशयः। तथाच कारनाज्जि प्रायां हलादौ ६।१।!° एति पानद | प्राशं हेये यत्‌ शारः मान AM PALAU इलदनादत्तरखाः सपम्या war भवतीति कारिका।

इकसमासः। 202

२२१ | पवत्‌ सेः | (परवत्‌ ।१।, सेः al)! शे सितस्य सेः पवत्‌ खात्‌ सेच परे yaaa |

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ये तु निर्विषयं (१) arcareatfa पठन्ति, ant स्तृपिणाणः द्यदाहैरणं भवति | वसुतसु विकस्पेनायं प्रतिषेधः+।

२२१। एंवत्‌ से त्ये चातुवत्तते। से खितस्येति-सत्यैसिन्‌ से त्ये खेः पुंवत्‌ fears: | तेन पूरव्वपदिमे, water: प्रियः wafua: पूर्व्वप्चिमे दत्यादौ “4 मौख्ाख्याचे"ति चे खि- संन्नानिपेधसतस्य जसादेरिकाराद्यारेणाभावफलकल्वादुत्तरदस्येव खिसंत्नानिषेधम्तेन Gace vase, चसे gaa सिसंत्रा- निषेधाभावात्‌ श्रतएव पूर्व्वोत्तिरे इत्यादौ नोत्तरपदस्य dagra:, तस्य सिसंन्नानिषैधात्‌। यदा से wee वाक्चसखितख खेः पुंवद्भावः (२) पूर्वोत्तरे caret तु दिबििशेषण्त्रादापि पूर्वोत्तरे इत्यादि त्ये यथा wre: स्मतः, Tae सर्वत्र, एकस्या भावः एकल, सर्व्वामिच्छति सव्व काम्यति, पूर्व्वा पुरस्तात्‌ ware | श्रात्‌ समाम इत्यत्र श्रग्रहणन्नापकात्‌ स्यादिल्ये पुवदयावः, तेन सव्वा सवव सवी LATS स्यात्‌ | भताइः-

द्दुदन्ताजाद्यदन्ताल्माचतरशरेत्‌ CAAT: qa; पूव प्रयोक्षव्यं बह्ृनामपि पूजितम्‌

(1) प्राग्रेथप्रसिद्त्ेति विेषणगन्धसित्यधः |

(२९) el? ferme श्रित्य से what सवित वाक्यस्थितख खे रित्वयः | तेन gored caret बाक्यावश्यायां उभयोः वद्धाये पथाद्‌ सणासे दिग्विधेषण स्वात्‌ इनराप।

३७२ मुग्धो व्याकरणम्‌ |

समाक्षराणां भता यद्यत्‌ पृतं MAT A |

संल्यानामल्यरूपाणामधधादिषु इयम्‌ |

बाध्यत वाधकलञ्च ज्ञेयं पव्वीपरक्रमात्‌

यथा हरिहरौ THRU श्रद्युतशङ्करो

गिवगौर्यौ पितापुत्तौ माढताततनुदधवा; |

भरणोक्लल्तिके areas विंशतिमपनो |

धमाधौ Tse कामार्थौ मधुसपिषी |

श्रादन्तावश्रण्ब्टो Maral परिकीर्तितौ

पक्तेऽयंध्चाविल्यादि शेषं Fat प्रयोगतः (१) 1

माठताततनृडवा इत्यत्र तातापैन्तया मातुरभ्यहितलम्‌ (2) |

“गभधारणपोषाभ्यां Aaa गरौयमो aa: | एवं माता- पितराविति। गुधिषठिराज्छ॑नौ, विप्र्तचियविट्‌शूत्रा इत्यादि- भिये “भ्राता ज्यायान्‌.” “वणः क्रमेणे"ति सूतरदयं Tara | arama तु जन्मवणंक्रनाम्यहिततात्‌ मिदम्‌ एतत्‌ मर्व प्रायिकं, धूमाग्नो, नत्तगदेत्‌, ममुदराद्रो, काकशुकौ, कागकुश- वषछज(२)मिव्याटि शिषप्रयोगतः |

(*\ इयोग्रह्लनां वा पटानां मध्ये fafgacd afe ददनं. उदनं अजाश्रादृन्तं | अलखाच्‌तर ( अने निपातनात्‌ खाय तरः अन्यथा ब्रह्प्र yey नियमो खादति तत्वद्रोधिनौ ( वत्‌ तदा तत्‌ पट्‌ THE ANAT पब VANE लता प्रयोक्तव्यं एवं बहनां मध्यं यत पूजितं, TARTU AAT भानां गक्तत्ागां RAATY तथा अलप्राणां संशयानां यद्‌ यत्‌ पूवं तत्‌ क्रमेय पौव्वापर्यानुसारेण प्रयोक्रयम | अपधम््रादिप हवं परयोक्गव्यम स्ते च्छयति शेपः | एषां पूर्वोक्तानां ane बाधक्गतन् पूनापरक्रमात्‌ ae) MATT यथेति। अधैषरादयो यथा -- धम्मो quest carte | (२) अभ्यह्ितत्ं गुरुम्‌ |

१) ara: Fo afer | उनखड़ Kia भाषा।

VRAATT: | ROR

३२२। ऋतो डा aad सगीवविदं चे | ( ऋतः gl, ङा ।१।, तत्पत्रे 9|, सगोतविद्ये 9|, चे 9 )।

२२२। ऋतो पुत्च् त्तस्मिन्‌, mag विद्याच a, समाने Wafer यस्य ,तत्‌, तसन्‌ तच्छष्टेन ऋदन्तः परामृश्यत LAT भष- कटने Ya चेत्यादि। तथाच ऋटन्तानां चे डा स्थात्‌ कदन्तपुचयोः पूर््वोत्तरटयोविद्यायोनिसम्बन्ध- वाचिलवे सतौत्यधेः। तत्रादौ योनिसम्धन्धोदाहइरणमाह माता- पितराविति-माताचपिताच तौ, पिता gaa तौ इत्यादि वाकम्‌ रएवं मातापुत्रावित्यादि garaged gat (१) दुहिताकजौ इति स्यादिति कञ्चित्‌ | होतापोताराविति- होता पोला चेति वाक्यम्‌ | एवं नेष्टा उद्गाता नेष्टोद्वातारौ (2) दातापतारौ नेषटोद्वातारो ते ईहातापीतानेष्टोहातारः, समस्तयोदंयोः Yas पूर्ोत्तरदव्यवस्थाया भ्रविर्हत्वात्‌। हाता 4 drat 4 Fer हाठपीटनेष्टारः त्यतन wa से सर्व्वा टिदम्‌ दिदं, मन्धान्तदसुत्तरदभिति पूृन्धचार्यव्यवसितम्‌ अतः पटशष्टन व्यवहितलात्‌ (३)। हाद्पठनेष्टारञ्च seat a a डाठपादनेष्टोद्नातार wae तु स्यादेव, समस्तासमस्योईयोः

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(१) wale sary garfaalaam: |

(२) नेष्टा विक उश्चगायतीति ogra, सामबेदविदबराह्मणः।

र) खवर पोषटशब्द्ख उत्तरपदत्वाभावात्‌ शोशब्द्ख पूथपदल्येऽपि तख WATS खन सात्‌ रवं नेषुरब्द्ख उत्तरपटतयेऽपि पोदथन्द्ख पूथेषरला- भावात्‌ तख्ापि wate डः दयादिति बोध्यम्‌ |

१७४ TAA व्याकरणम्‌ |

चे खितस् wens डा स्यात्‌ Wet TT परे सगोत्रविदय। मातापितरौ, पितापुत्रौ, होतापोतारौ |

एनसे पूर्व्वोत्तरव्यवस्थाया after (१)। शोत्रादौनां ऋलिखिशेषवाचिनां समानविदासम्बन्षः कात्यायनेन दगितिः। यथा ब्रह्मोहाट-होवध्वयं-त्ाह्मणाच्छंसि-प्रसतोढ मेचावरुण-प्रति- वाठ-पोठ-प्रतिच्छतच्छदाक-नेष्मनीप्र ब्रह्मण्य ग्रावशुदुबरेढ विहणोतोति सगोत्विदे किम्‌ 9 व्गश्रोतारौ |

शरवायुरेवतार्ध॑स्य तस्सिन्‌। वायुभिब्रस्य देवतास्य चे ङा स्यात्‌ श्रवागुदेवता्थे me at) इन्द्रासोमो, इन्द्रापूषणौ, इन्द्रा हहतो, मितावरुौ, भ्रगनावि्ण , सूथाचन्द्रमसौ | इह दैवता- शब्देन येषामेकेन मन्तेण ये; veal J सषदानमुक्तं तेषामेव ग्रहणं, तेन ब्रह्मप्रजापती शिववेग्रवणौ खन्दविशाखौ रविचन्द्रौ इत्यादौ स्यात्‌ तधाच रविचन्दरावपि नोपलधिताविति az- कपरः way दति किम्‌ ! प्रग्निवाय्‌ वाखम्नौ |

भ्रमे सोमवरुण्योः। weet स्यात्‌ सोमवरणणब्दयो- देवतार्थे चे। भ्रनोपोमौ भ्रणोवरुणौ |

लवे कुशस्य श्रदेवार्ोऽयमारख्ः। कुशस्य St श्यात्‌ लवशब्दे परे। कुशोलवाविति वाख्मौकिप्रयोग;।

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(१) मरयोरिष दभलाहभरतयोरएपि पदयोः पुनन qatwcayy- wet अविरदरगेदभिपरावः।

इन्डसमासः | 294

३२३। चगेक्धवं क्रीवम्‌

( चगेक्यवं १।, क्लीवम्‌ १। ) |

Vaal Tae वख ws स्यात्‌ |

दिवौ द्यावा ue, ufamt दिवस्‌ च। ute ut feat यावा स्यात्‌, एथिव्यान्तु यावैदिवसौ च। | ate भूमिश दयावाभूमी, द्यावाक्षमे देवताधेस्ैव विधानात्‌ द॒सरसो इत्यादौ स्यात्‌! भ्रनोवन्तभूमिशष्दस्येव वेदे सटदानेनोक्ञतवेन देव- ताधैतवादोबन्ते स्यात्‌। तथाच Tal भिन्दन्‌ द्युभूम्योरिति qar- शतकम्‌ परदग्रहणात्‌ ware एव, तेन ayfaaan wart स्यात्‌ योश्च एृथिवो दिवखधिव्यौ, यावा- पृथिव्यौ feafafa afanafarara fa: |

उषासोषसः देवताथस्योषसः परदे at उषासा स्यात्‌ च। ठषासानक्तं, उषासासूर्यौ |

aaa तौ त्रिमल्यवेष्णवे। वेष्णवभिन्रे fafa पदे परै wae डा नस्यात्‌ चे। afar मश्च तो टेवते WE भगनिमारतं हविः। भ्रग्निवारुणोमनजारोमालमैत। aga तु भराग्नावेष्णवं चरु व्रिमति किम्‌? rere are

३२३। At) चश्च गञ्च तौ तयोरैक्यं viel, चगेक्यश्च aa तत्‌ चश्येश्ममित्यादि - रेकं समाहारः, चगयोरित्यधः। सषखणएकणएव। an समुदायिभ्योऽन्धः समुदाय इति न्धाया- saa सिममेन तु alae विधोयते येतु समुदायिभ्योऽनन्यः

२०९ arated व्याकरणम्‌ |

समुदाय very:, तै एकंलातिदेथाधं एथक्‌ सुर कुवन्ति | प्रनेकार्घाभिधायिनः शब्दस्येकार्थाभिधायितवासश्चवात्‌ (१) वश्च दूति प्रधिस्लोव्यादौ पूवदाधेप्ाधीन्यात्‌ (2) लिङ्कक्घतप्रयोगवे- लचण्याभावे प्राति उकमत्तगङ्कमित्यादावन्यदाधतवादन्यलिङ्कतायां प्राप्तायां वचनमिदम्‌

उपन्नोपक्रमं पै तदादिलकथने। Toad श््युपन्चा, भ्रातोऽन्तःयह रिति डः। उपक्रम्यत इत्युपक्रमः, 2 घञ्‌ उपन्नोपक्रमान्तं ats Vey, तयोरुपन्नोपक्रमयोः प्राथम्बस्य प्रतिपादने सति। सबश्नस्योपन्ना सर्वन्नोपन्नं वेदः, सबन्तना- दावुपन्नायते इयर्थः आच्चस्योपक्रमः भ्राद्योपक्रमं यत्नः, Oe नादावार इत्यधेः | कैकय्युपन्नं वत बह्नयेमिति भटः | तदा- दिलक्थने किं देवदत्तोपन्नाप्रकारः (2)

छाया बहनाम्‌। ward पै क्तोवं स्यात्‌, सा चेद्हनां सम्बन्धिनो Tarai छाया हच्च्छायं, विच्छायम्‌ (४) बहनां किं? awe हक्तोर्वा हाया वचच्छाया |

Wy सभा, खहेऽमनु्ाराजराजार्थाभ्यां | सभान्तं

ञव स्यात्‌ सद, गहे तु मनुष्यभित्रेभ्यो राजभिब्रराजार्चभ्य् |

(१) 4a सशदायिभ्यः पञदायो भिद्यते दयाङसन्मते ससदायिनामने- कत्वात्‌ तदभि धायकख शब्द्ख एकाथांभिधायकत्यासम्भ eA स्वात्‌, अतस्त दध ते एकत्वव्िधायजं एथक सतं कृवन्तोत्यधः | यतरद "एकं सभाष्ारे" इति fanart हनासप्यरे २५० GAR |

a) कधोल्याद्यययवपदार्चद्य प्रधानलाटितरः |

() अन्‌ उपन्ता Mama नलादयन्नानम्‌ |

(8) fa; wat

इरन्धसमासः। ROO

देवतानां समा संहतिः देवतासभं, "एवं दासीसभं, स्तो सभम्‌ सङ्गे किम्‌? दामीनां सभा हं दासौसभा। खरे तु रःस, पिक्ाचघभम्‌, श्रमनुश्च शब्दस रच्ःपिशाचादौ sary! ठृप- सभम्‌, इनसभम्‌ (१) कौचकवधे तु दपतिसभामगमदहेपमाना इत्यत्र ृपतिश्ब्टो राजविशेषवाधौ, तु राजसामान्यवाचौ | WAT चन्द्रगुप्तसभा इत्यत्र स्यात्‌ Tui पति्यत्र सभायां सा कृपतिसभेति कश्चित्‌ अराजेति किम्‌ ? राजसभा | "रहे किम्‌ ? राजसमभमिति पूर्वण | `

उशोनराख्यासु कन्या | उशोनराख्य-जनपद-प्रतिवद-ग्रामाशां ang विषयभूता कन्यान्तं Fae खात्‌ Waal कन्या सौशभिकन्य॑, भ्राहरकन्यम्‌ उशोनराख्यासु किम्‌ ? दाच्निकन्या |

वा तु हाया-सेना-सुरा-शला-निशाः। छायाद्यन्तानि षे क्तोवानि wat) sae हक्षयोरवां छाया हचच्छायं, रसेन, यवसुरं, गोशालम्‌, भ्रखनिशं | पके ठत्तच्छायेत्यादि |

व्य-संख्याभ्यां Tay य-गे व्यसंदख्याभ्यां परः क्तसान्तपधः wit ae येषेगेच। विशिष्टः प्या: विपथम्‌, sea: पन्थाः way विरद्ाधेविगशब्दात्‌ कुशब्दाचान्ययति चान्द्रा; तथाच व्यध्वो दुरष्वो विपथः कदध्वा कापथः समा दत्यमरः। वाटः vay मागेषेति विकाण्डयेषेऽदन्तपुलिङ्गपथदशं नात्‌ तेनैव समासे सिषमिति रायः। cnet प्रयाति एकपथं, इयोः

~ ~ ~ oe

बो - ~~~ -

(1) इनो कपरति | cage कपे पद्माविति fae: | ya

२७द मुखवोधं व्याकरणम्‌ |

can: हिपयं, चतुणां पथां ` समाहारथतुष्यधम्‌ | भाभ्यां किम्‌ ? aera: | पथ इति किम्‌ ? प्रपन्याः (१) श्रव दि-व्यविशेषणे श्रहर्ादिव्यविशेषणं क्वं स्यात्‌ | भरब्ादियधा- wag सरकं विमान-मलिनं मानं we मोदकम्‌ WH एय सुवग-वण-रचकं TE क्रमं गोमयम्‌ | वचं छत्र-पवित्-पद्म-चषकं Ti तमानाट्कम्‌ सारं गाटक-कपटाैद-नडुं पिन्याक-कन्दौषधम्‌ कासारःत्रत वासराऽङ्न-नखं RATT वल्कलम्‌ शोष.खारु-पिधान-वेणु-वन्य-पर्रोव-कोलाहलम्‌ | माषोयोग-दलान्कार-कवचं कान्तार-देहाश्रमम्‌ | Wald तितउ (२) प्रवाल-चरणं sa खलीनं मुखम्‌ | जोवातु-वसु-कुलिग्र ध्वज मुम्त-कुञ्- द्रोणोपवास-कुमुदौदन-शूल-कष्टम्‌ | भराकःश-कोश-पटलामलकावतंसं परख त्रण.स्तवकं संक्रम सानु-गृह्गम्‌ तन्तु-करर्डक-कुटिम-कच्छं सङ्गम -सम्बल-तार्डव-पुच्छम्‌ | वेम-च्छड्नि-पातक-चमसं युं विटम-करिरं दिवसम्‌ | पारावारात्रथ-गतमानं युप-युगन्र-दिन सन्तानम | CW AAG पल्लव-षर्ट चरणं तोरण-नप्रर सुरडम |

= ~ "~~ ~ et cee

(1) अन्न reise’? दूदप्रययनिषेभात | (२) वालन तितउः gujarat: | चावनं {तित प्रोक्गभिति रत्रक्षोषः।

इन्धसमासः। २७९

रप-कष्ण-चन्दन-वंशं किशलय-दोहट-गिखर-किरोयम्‌ | कम्बु-तड़ागं कुतपं aa हिष्क-दोपं पोठक-निष्कम्‌ तूय-सेन्धव-राष्ाणि वर्ष-निर्थास-वास्तवम्‌। कटकं वारवाणोऽथ पद्मं भवनमासनस्‌ ald wat कुसुमं aad ठं सुखम्‌। ' वसं दण्डं वसन्सातपतं wet तादयः anfefecaaa वेदिकलादसग्मताः (१) 1 भ्रददादिः समाख्यातः शेषं FT प्रयोगतः ्षमित्यादिना कोरकतेलादयः। श्रइर्चादिपाटादेव at काटोनामक्षेऽपि ज्ञीवलम्‌ | व्यविशेषणं यथा--ग्र्यं खः, परमं प्रादुरिव्यादि।

+ ~ ~ ~~ ~~~ ee Se Are,

(१) waateat पुंनपुंसकलिङ्कनतवं पाणिनये दितम्‌ | तथाच agg: पुंसि दूति पाशिनिखलम्‌। २) aia) अमरसिंहेनापि पुंनएुसकसंयरे ay- जाटिः पठितः) aggica: Maafa क्रभरोशरखनश्च, समासपदे ace: ततैव meee ^गब्दद्पाच्रवाचेयं दिलिङ्गता क्िदथमभेदेनापि व्यव्रतिषते। यधा wags निधिवाखको पुंलिङ्गे, जलजे उभयलिङ्ग षित्रादोज्ञा तथाचाङः लिङ्गमपिष्यं कोकञाश्रयतवार्" काम्‌ | अधमभेदेन लिङ्गव्यवस्या अन्वैर्क्घा ; तथाच “मकरन्द age माशिकदलय वाचकः | अद्द्खाटिगखे पाठात्‌ पुनपु शकयोभपु "रिति थाश्तः।

wanes तु wae क्तोवमिति ज्ञोवलिङ्कविधायकमाचा्यंस्नसपजीव्य अद्शीहोनां क्ोवलमपि भवतोगयेतत्षहवमायैष वार्तिकं ad, नतनेनेषां fefe- तवं निराठतम्‌, अन्यया अदशखाटौ वारवाणशब्द्ख Fase uTewA |

warea: शब्दाः पुलिङ्ग दति पेषः वेदिकत्वात्‌ अवर अबद्धारौो aufeq विदुषामहममताः। तथाव पुंनपुंसकशंपे “agytet इतारीनां dena वे द्किं प्ुबमि"त्रभरः |

4To मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

२२४। वेवधान्चट-पष. हो; (Tay ५।, बु-ट-ष-इः \।, भरः १।)

-- -ह------- ---

~~ = ~ ~~ == ~~~ ~ ~~~ ~ = ==> == = >~ ~न

२२४। THT! चस्य एकं THe तस्मात्‌, बुं दय ष्च तत्तस्मात्‌। दषयोरकार sae | चैकयादिति- कतसमाहारचादिव्धः | वाकलचमिति | वाक्‌ तवक्‌ द्भ समाहत इति वाकम्‌ श्रस्याकारल्स्य तत्वात्‌ नदन्तस्ाविति दान्तखनिषैन विराममाभित्य कड्‌ एवं सुवाकसूप्राच्छं(१) यौखजमिति। एवं वागू्लमिल्यादि। चे किं पञ्चानां वाचां सम।हारः पञ्चवाक्‌ एक्यमिति किम्‌ ? प्राहर्‌शरदौ | at हि इन्दो विभाषयैकवहवतोति न्यायादृयदा समाहारस्तदा प्राहद्‌- शरदम्‌ इति स्यादेव |

मरापितूवरेनाङ्गानामें चे। प्राणङ्गादिवादिनां tat स्थात्‌ | हस्तश्च पादश्च हस्तपादं, भिरोग्रो पम्‌ “मुखनासिकाभ्यां यो निष्क्रामति प्राणवायुः" | “ग्रोवाकुचतिललायेषु नित्यं खेदः प्रशस्यते” इति वेदा “गण्ड सुम्बो ललाटात्तिकच्ोरभगमूरसु" इति arama) "नत्ास्नामिकावाइ्दयेभ्य इति चण्डो | sft तु दधिपय-श्रादिलत्‌ मिदमिति। gaat मुखमहिते नासिके मुखनासिके इनि शाकपाधिवारितवात्‌ मध्यपदनोपः, पुटहय- भेदात्‌ (2) दितम्‌ ud बर ्ाढुचिसहितानि ललाटानि इत्यादौ सः, प्रागिभदाह्नलाटादै्वम्‌ चण््यान्तु ar: तूथाङ्गगब्दोऽत

(१) Tew quiz हवो समाहारः | पृच्छतीति प्राट्‌ | (9) मासिक्षाया दूति रेषः।

TRAN: | ३८६

धवर्गानतादषषहन्तात्‌ SATS: खात्‌। वाक्च AAT हयोः समाहारः वाक्च, That, शमोटशदं वाकतिषं पौीठच्छवो- पानकम्‌ |

"~ ~ --~--> ~~~ ~ ---~ --~ -- ~~ - --~-- ~~ -- ~~ ~~ - ---~~--- ~ ~~ -----~----~ ~ --~ ~~ ~~

भरभं-भादिलादत्यामतस्तेन तृथवदमास्छयः(१) | चदङ्गवादनं faw- मस्य aera, एवं पाणविकः, wane माहेङ्किकपाणविकम्‌। मृदङ्गपणवमिति लप्राणिजातिवाचिलवात्‌ | भन्ये तु एधक्‌ तूया ्गनद्रवोशगरो (र) गरहणं व्यतिकरनिरासाधे(३)तेन शस्त्रो शङ्कावित्यादौ स्यात्‌ प्राखङ्गस्याप्राख्यद्गे नापि स्यादेव, यथा - वाकूलचेनाति- safe भरिरित्याः स्ववाँ fe इन्डो विभाषयेकवहवति इति न्यायात्‌ वाकृत्वचनेति परे रथेन चरन्ति रथिकाः, पदातीनां समूहाः पादातानि, भिक्तादित्वात्‌ ष्णः, cara पादातानि रथिकपादातं, इस्तिघोटकम्‌। इसत्यश्वरधपादानं सेनाङ्ग स्याश्च तुष्टयमित्यमरः। इष्यन्ते पननाङ्गनि इस्यश्वरधपत्तय शति तु श्रवहुते शेनाङ्गानामेक्यनिषिधात्‌। पारिभाषिकसेनाद्गग्रहणात्‌ खरोषरशारि(४)गिरस््ाणां ग्रहणम्‌|

खेनोश्यामलुवादे चरणानाम्‌ चरणः शाखा, भ्रं -भ्रादि- ale) भ्रतुवादे गम्यमाने चरणाध्यायिप्राणिवाचिनां चेका स्थात्‌ टोपरयोः खेनोः प्रयोगे सति। प्रमाणान्तरावगतस्याधेख्य

1) दरयवादकपर Kary |

(*) तत्रशेणस्तद्वादकः |

(8) ष्यतिकषरोऽल्र विश्ङ्षन्यक इति। ४) खअनश्रादोनां एडासनम्‌ |

३८२ मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

शब्देन सषीर्तनम्‌ भरनुवादः। कठा कालापा (१) कट- कालापम्‌ NAGY, कठाख कौधुमाख कंटकोधुममुदगात्‌ | यदा कटादोनां प्रतिषठोदयौ शब्देनानेते तदैषैदमुदाहरणं, वदा ्रमगिवोपदेथस्तदा उदगुः कठकालापा श्यादि। watt: किम्‌ ! भनिन्दिषुः कटकानापाः। खां किम्‌ ? तिहन्ति कठकौषुमाः |

अक्तोवयलुःसोमयागानाम्‌ क्रोवलिङ्गभिव्रानां यजुर्बेदवि- हितमोमपानोपलक्तितयागवाचिनां चे रकं स्यात्‌ | ware श्र fea प्रकाश्ठमेधं, asta श्रतिराताञ् साह्वातिरात्रम्‌ | wat: वेति किं राजसूयवाजयग्रे यजुरिति किम्‌ ? xyes (2) | सोमयागीति किं दशेपौण मासौ |

पाठनिक्टानाम्‌ श्रध्ययनेन प्रत्यासन्रानां चे रयं खात्‌ यस्त वदेदमधश्नानं विना क्रमात्‌ पठति क्रमक: प्रथमपादो, यव तस्येवाधमधोतै वातिकः, करमकवार्भिकं, पदककरमकं पदानां क्रमख पाठः प्रयासः (र्‌)। छात्रीपाध्यायं, गुर्‌ भिखप्रतयासत्तौ पाठ एव निमित्तम्‌ पाठेति किं 2 पितापुत्चौ | निकटानां किं ? यात्निकमोमांसकौ |

धप्राणिजातोनाम्‌ प्राणिभिव्रनिष्ठा या जातिस्तहाचिनां चे

(९) कलापिना ata दन्दोऽघौयते कालापाः |

(>) सामवेद विडो |

(३) wala पकः | क्रममधीते क्रमकः बेटाभ्याशो पदमधीो्व क्रभ- aia दूचध्ययनामत्तिनिमिकते पदक्षक्रमशरंते। एतिमधीते वातिकः | amet Re हत्तिमधोते xawarefetatad कमववास्तिकाशंते दति बुष्न्‌- स्ग्धबोधम्‌ |

इन्समास्तः | ata

Cat Sy! भारा THAfem शलाका, शस्तो Bieta, भरारा शस्तौ प्राराशसि घाना wear, शष्कुलि: पिष्टकभेदः, धानाथष्कुलि, दुमभलम्‌ cheat नु विविधासरु्ेला दति तु तरप्रधानाः शैलास्तरगेला दति थाकपार्थिवादिलात्‌ afar तेन (१) faemfefa ut) "एवमिह ae वद्रामलकानि सन्तोति। saratfa fate विप्रचचियौ। जातोति fai ? विश्यहिमालयौ। एवं रूपरसगन्ध सरणः, गमनाङुश्ने इति गुणक्नियानिष्ठाया जातरभावात्‌ (र) ` भिब्रलिङ्कनदोदेशनगराणाम्‌। भित्रलिङ्कगनां नद्यादिवाचिनां चे शेकं स्यात्‌ aga नित्यस्तौलिङ्कलात्‌ ae: सह चे ve विषयः | गदा शोणश्च गङ्गाभोणम्‌, दयरावति (२) राढामगधं वरेन्द्रोमगधम्‌ (४) WIR नदोग्रहणात्‌ देशोऽत्र जनपदाख्यः। तेन कलास गन्धमादनञ्च कलासगन्धमादने इत्यादौ स्यात्‌ | मधुराकान्यकुलं, मथुरा पाटलिपुत्रम्‌ | नगरस्य देशत्वेऽपि ग्रहणात्‌ ग्रामरवाचिनां नगरवाचिना सह, नगरवाचिनां ग्रामवाचिना सह नस्यात्‌ तेन जाम्बवश्च प्रामः यालूकिनो नगरो जाग्ब-

(1) तर्गेलवियेषपरत्वेन, तु जातिपरतवेन्धच |

(२) वाढन्‌जातोयद्येति न्यायात्‌ fering द्रव्यजातोयदयेव सहयं, तेम द्परशगन्बाः गभनाङ्गश्चमप्रसारणानि caret a खात्‌ इति बृरन्‌- सग्धबोधम्‌ |

(३) @yiy जलोतछेपको नरमहः, इरावतो Tet |

(४) vial गोङोयराजषानो |

१८४ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

anata, शौ नगरं Farm ग्रामः Mata | करित शौगयकेतवतमितयाह भित्रलिङ्गानां किं गङ्गायमुने, राद़ाव- tant कान्यङ्नपाटलिपुचे। भवष्कुतशृदचुद्रजन्तुनि्यविरोधिनाम्‌ एषां ta स्यात्‌| रजकतन्ववायं, तक्तायस्कारं, भिह्नधोवरम्‌ | इति भे यान्ति दिवसाः समं रजकनापितेः इति Gate) येन qe पात्र पनगठनेन विना शुध्यति वहिष्कृतः शूद्रो यथा चाण्डाल vised | दंगमथकं, यूकालिक्षम्‌ (१) पृद्रजन्तुरनखिः स्यादथवा शुद्र एव gq: | श्तं वा प्रतो येषां केषिदा नकुलादपि (२) इति Ue एव एति यत्य इत्यध; भर्म हि, प्ठस्गालम्‌ नित्यविरोषिनां किं देवासुराः, gaarwar waa तेमित्तिक- fatty: | गवाश्वादोनाम्‌ | गवाण्वादौनां चे Tat निलय स्यात्‌। गवाश्लाटो गवाश्वं स्यात्‌ Yaa गवाविकम्‌ | THU: चाण्डालं EAM

ee ~~. - ~~~ ~ ~ --* ~ ~ ~“ “~ ~~~ "~ eaten ~~~ amene भि

(1) ware लिकाव तत्‌ war मतकु षा ङन्‌ कति भाषा | लिका gered fafa xfa ara | लिखा cafe |

(२) अनख्िः--वद्याश्ि विद्यते केवल नु चम्पधोखितमासमाबमसीदय्ः परतो ATH वेषां एतं खा ne शेषः| wa WAU बहवपरः, WASPS: | शा गङृहारिति-गङुण्परिभाषपयनो लनः UIA. fre: | सर्प पाहशतलात्‌ नश्जरपयंन्तभित्रेतरेष कशशभाद्रणोयमिति Tralee: |

STATA: | २८५

दणोलुपं सलोकुमारं दासौदारं कुटोकुरम्‌ | भागवतोभागवतं care शरपूतिकम्‌ | कुनाहामनकेरातसुष्ट्ात्‌ खरशभौ तथा | मांसात्त थोपितं शवाः frat पुरुषोऽरल॑नात्‌ | शक्ष्परोषं सूत्रा id Fa प्रयोगतः॥ गवाश्वमित्यादि निर्देशात्‌ ats गोऽ्तौ इत्यादौ पश्तवा-

दिकल्यः इड केषाचिदिकल्ये प्राप, दामोदासानाम्‌ एकशेष- मिरासा्धः, auf_ena पाठः। चार्डालमित्यस्य निल्यविरो- धितात्‌ fad खविरोधार्थः पाठः। cunt, दभंपूतिकं, कुनवामनं, कुलकंरातम्‌, sam, veut, मांसथोणितं, शटो पिटं, भर्नपुरुषं, मूत्रणकत्‌, मूतरपुरोषमिति | ्राङतिगणोऽयम्‌ |

परत्ति-वत्ष-मग-पश-पान्य-ठ ग-व्य ज्ञनानां वा पच्यादिवाचिनां चे क्यं स्यादा हंसचक्रवाकं,धवखदिरपलाशं waged, गोमहिषं, alfead, quasi, afer) येषामव्वान्तानां दधिपयभ्रादौ पाठस्तेष। व्वान्तानाभैव Fay, oY इंघचक्रवाका इत्यादि मृगाणां पशुलेनेव सिदे एक्‌ ग्रहणात्‌ सृगवाचिनां पवन्त रवाचिना सहच tai स्यात्‌, तेन रुरुमदहिषरा इत्यादि। अत्राप्राणिजातौनां निले प्राप्त विकल्याधः पाठः| येषां सर्वव fe cal विभाषयेकवद्वतोति न्धायात्‌ विकल्यः सिः, तेषां पाठो वऋतिकरनिरासा्धः (१) ware “हनुमन्‌ कौदृशं wel नरवानररत्षसा" fafa wf: | (1) freqearatarfaatac एव समभार द्धेः |

४९.

१८९ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

विरुाद्रव्याणाम्‌ सहानवशितानां भद्रव्यवाचिनां चे रि wer) gata शोतोशे, crac जन्ममरणे, विरहेति किं? कामक्रोधो। waafa किं? खर्गनरकौ, tie उदके (१)

WAIST TANITA ATU | एषां चे रेकं वा स्यात्‌| CUMIN पाठात्‌ HAAS इत्यत्र स्यात्‌ श्र्ववं, GNI, TAA | UF भ्र्मवषवे इत्यादि |

सेनाङ्-फल-सुद्रभन्तु-पर्ति-ठक्-मग-धान्य-ठणानामनवा- न्तानाम्‌ | भ्रव्वान्तानाभैषां चे Rat a स्यात्‌ canary बदरामलके, यूकालिस्ये, हंसचक्रवाकौ, TATA, Teal, ब्रोहियवौ, qari |

दधिपय-भ्रादोनाम्‌। भ्रनवान्तानां दधिपय-भादौनां चे रकं खात्‌

दपिपय-प्रादियधा- दधिपयसो ऋकसाभै, स्कन्दविशाखावाद्यवसाने | सर्पिमधुनो श्हामेषे खगौपवमौं ब्रह्मप्रजापतो मेधातपसौ हरिकौषिकौ | भ्पवर्गोपनिषदो परित्राजकगेखिकौ चिववेथवणाविष्मादहिषो दधिसर्पिषी।

~~~“ ˆ“ ~---- -- -- ------ ee -~-- -----.~--- अजको

(1) खन शोतोग्थन्द्यो डक पिपेषणत्यात्‌ दव्यवाचित्रभिति |

दन्धस्तमास्षः | ato

WRAY तथा AMAT भ्रध्ययनाक्तषपः | उदूखलात्त मुषलं प्रोक्ता भ्रतोनविंशतिः (१)॥ शह aufefena केषांचितित्ये प्रापे रिकनिषेधः भ्रध्य- यना्षप्‌ श्यादि--भ््ययनतपसी, उदूखलमुषले, vwrafeat इति गणपाठात्‌ घं इति चावयवानामियत्ताया, वा तु सामोप्ये। चसावयवोभूतानां दानामियत्तायां गम्यमानायां प्राघतमेकयं ययात्‌. ससामोप्या- याभियत्तायांतु वा(२)। दश eaten, wa arefeaare- faat:(2) उपदशा(४) दन्तीष्ठाः उपदशं दन्तौष्ठम्‌ | उपदशा इति ew, समोपिप्राधान्धात्‌ aq ठपदशमिति व-षः, arate प्राधान्यात्‌ कम्‌ | षदं प्रकरणं (५) नियमा, प्रा्यङ्गादोनां (६) समाहार-च एव, दधिपय-भ्रादोनामितरेतर-च एव, भ्रन्येषां faa एवेति

EY LS OE A TN er ~न" "~ ~~ ~ "~ ---- ~ ~~ ~~~ ~~~ acm

(१) एषु विधाः का्तिकेयः। कोपिकः cyt) येखिकः शिखावान्‌। वैश्रवणः कुवेरः द्म इन्धनम्‌ | वहिः कुथः एूति।

(२) Karan शंखा सीमा Vas: | सामीप्येन त्तं माना या Kaw zat गम्यमानाया वा दात्‌ |

(8) swam प्राचिदर्यसेमाङ्गानामिचयनेन प्राप्रमेक्यं निषिद्धम्‌ |

(४) दशानां समोपे ये ते उपदशाः, नव एकादश वा KAU: |

(५) इन्दे कवद्धावप्रकरयमित्धैः |

(९) faqanetcare प्राख्यङ्गाहोनामिति।

uc सुग्धबधं व्याकरणम्‌ |

२२५। जर्वव्॑ठौवपदोष्ठवं धेन्वनडष्ावषटोरावः स्ीपंसी वाडमनसे छक्सामे दारगवाच्धिभुवादयः | माध्या (१)। |

दूति a: |

२२५। ऊव्वै। ऊरू श्रष्टोवन्तौ तत्‌ पादौ श्र्ठो- वन्तो (२) तत्‌ धनुघ भ्रनडुंय॒ नौ। sea गात्रि a स्तौ पुमांश्च तौ) वावी aay ते। ऋक चमामचते। दाराश्च गौश्च तत्‌ ्रचिणो aad तत्‌ इति वाक्यम्‌। दभदः समाहारेतरेतराकारयज्नापनाथः | आदिना नक्ञश्च दिवा नकतंदिवं, दयोरथिकरणाथतवनाधैयषापेचलादमामर्येऽपि (३) सः। रातिश्च दिवा रात्रिन्दिवम्‌, wea दिवा ्रहदिवं प्रतिदिनमिव | ऋक. यजय ऋग्यजुषम्‌, उदूखलमुषलं, तग्डुनक्तिवरं, चिषरयवाह्ौकं, विष्वक्सेनाजेनौ चिताखातो vrata yadral aay विशेषणविशे्ये, विेष्यविशेषणे द्यपि कथित्‌, स्रातकराजानौ प्रतिष्ठात्रे शूद्राचार्यौ मर्या- दाभिविधौ गिरोजानू पाण्ु्टतरा्रौ। उदूखलादोनां सुषला- दिभिः सह चे पूत्निपातः। एवं जाया पतिश्च जम्पतौ

(१) निपात्या द्धः (२) अष्ीवान्‌ जातु (३) aa fest Kana: खभाञेन cal fet द्यधिकरणवा चकलम्‌, ततय alsfeatwaral मोऽगश्यमेतराचैयमपे कते रति सापेन्तलम्‌ ang

© ~ fq मपे क्मममय भवतोति wlan ठमाससम्भावनाभानेऽपि जिपातनात्‌ ware इति प्रयभिनोऽधः।

इन्दसमासः | ३८९

दम्पती जायाया जन्दश्ादेभौ वा पे जायापतो | माता पिता मातरपितरौ। मातुर्मातराटेशो वा। पितु पितर दति छ्षपणकस्तग्मते मातरपितगभ्यां मातरपितरयोरिति पचै मातापितरौ दलादिसंग्रहशेषं (१) शिष्टपरयोगानुसारेण बोध्यम्‌ | अहोरा इति निहृेणात्‌ श्रह्ठोरात्राटोनां पंसूबमपि निपात्यते | अरहोरात्रादियंथा -

्रहोरातादिषु प्रोक्ता राताङ्ान्ता ब्रहान्तकाः।

पुणयाह-सुदिनाहाभ्यां विना(र)धीदयम्तधा

सूक्तवाकोऽनुवाकश शेषं रयं प्रयोगतः

अहश्च रातिश्च श्रहोरा्रावपि इतरेतरयोगात्‌, तथाच बो

रात्ाविमौ get इति एवं पूव्यैरा्रः, Gate, भपराहः, ers: ame: दत्यादि पणाहषुदिनाहयोव श्ननात्‌ पाह, सुदिनाहम्‌ | श्रम्‌ ऋचः wea: सरकः (३) इत्यादि एषां पूर्व्वेण Hae! श्ररैशचादेराक्षतिगणत्वात्‌ पख्यरात्रं fram गत्यादि वचधोधञ्‌ वाकः, TAMIA वाकोऽनया Waa कुलेन वा ्रनुवाकः, एवं सूक्तवाकः इत्यादि एषां पाठसामर्थ्यात्‌ च-स-भिव्रसेऽपि पुंस्वम्‌ (४)।

नन ~~ ~~ ~ =-= +~ -~-- ~ -- - ~ ~ ----~* ~~~“ ~~ “~-~- ee ee

(१) जख्ष्वौवादिगणावभिषटम्‌ | |

(२) qaary-gfeargnat विना यष्ान्तक्ना Kare: |

(१) सरक tad मद्यम्‌|

(४) अतएव पूर्बोटाषरणे बोह्िणा स्ोह्ञोशयोविेषणत्येऽपि yee

इगितभिति।

३९० FANT व्याकरणम्‌ |

एकरोषप्रकरणम्‌ |

पंखिवोर्यमिन्रयोः firert ना वयमावक्षतमेदयोः पंखियोः पमान्‌ fret) देवश्च देवो देवौ गौरयं गौरियम्‌ शमौ गादौ शलयव्र॒लयक्षतभेदाभाषैऽपि भ्रधक्तमदात्‌ स्यादेव त्यभिन्रयोः किम्‌ Wena, इनदरन्दाखौ(१) लिङ्गमान्रक्ञतभेदे विधानात्‌ इन्द्राविति कथित्‌ तथाच - वरुणाविन्द्रौ भवौ walt wet (२) इत्यादि |

गोतयुनो्गोत्रम्‌ | त्भि्योगो व-युव-्ामयोगौ तयान fired (२)। गागं गा्म्यायणञ गार्ग्यौ गोशरयुनोः किम्‌ ? गर्गगा्यायशौ गगेगार्यौ wafer: किम्‌ गाग्यवाद्छायनौ | भगवित्तस्यापत्यं भागवित्तिः गोग्ेऽदन्तात्‌ शिः। भगवित्तस्या- पत्यं युवा, कुका-सौवोरगोज्रात्‌ शिकः भागवित्तिकः (४) भाग- वित्तिश्च भागवित्तिकश्च भागवित्तिभागवित्तिकौ इत्यत्र खात्‌, त्यातिरिलङ्गषाधक्ततमेदात्‌ | भागवित्षौ xfs कचित्‌

सतौ ira) त्यमिव्रयोगोयुनोरगो्रत्यान्ता सलौ धिषयत, सिया: पुवदावष | गामी गार्ग्यायण गायो, गायो

+~ -- ~ ~~~ ~ ~ ----~--- ~ --~--- ~ * ~ -~ - ~-* ~--~- -- -- = -- -~ ~~~

(१) परेव प्रहतिभेहात्‌, पर रैपुप्रयय-कत-मेदेपि अागडगदेथ्य प्र्य- भिच्चत्वात्‌ ततृशतभेदाच्र खाट्ष्धः।

(2) दर्णद वरूणागो दू दोक्षयेषः।|

ly) व्वभिद्वयोः प्र्यमानहतभेदवोः गोवा्-वुवाहत-तदितप्र्यानयौः। मोबु्ायोभेश्सतु तङ्धितपारख प्रथमष्वरटीक्षायां ea: |

(४) ware लोदोरगोतरात्‌ श्णिकषो भवतोति तद्वितपारे आरोहत एति ame टीकायां वच्छति | भागवित्तिन्नो aren tery: |

CRIA: | Tam

गार्म्यायणौ गर्गाः (१) ere} (२) दाक्षायण ert त्वभिब्रयोः किम्‌ गार्गोवाद्छायनौ।

्गोवाक्गोवयोः कवं वा -तु कच्च त्यभिन्रयोः क्गवाङ्गौवयोः ats शिष्यते तसमात्‌ कच्च वा WaT शकरा शक्तश्च Ta, पचे श्ञानि | त्यभिब्रयोः किम्‌ 2 सितघवलश्क्तानि, हिमहिमान्यौ।

भ्राठखसख्रोः yugfettaiagel | wearin पुच्च- qfeat: gu: frat arate खसा aad, gue दुहिता gat °

अतरणानेकखुर-गराम्यपश्संघेषु Sl) भरतर्णानामनेकखु- राणां ग्राम्यपशूनां ayy at frat) दमे ware द्मा WHA LAT WHT | इमे गावश्च Car गावश्च इमा गावः। अतरणेति किम्‌ दमा वलाश दमे वत्सा एमे वसाः, इमा amare CH वकंरा्च इमे वरक॑राः (२) श्रनैकखरेति किम्‌ ! दमे Ware द्मा ware <a war: | ग्राम्येति किम्‌! इमा सरव इमे ररवश्च दमे र्रवः सङ्ग किम्‌ ? ahaa गौशेयम्‌ Tay गावौ |

व्यदाद्यन्धयोखूयदादिः। व्टादन्धयोरूयदादिः शिष्यते | स्यश्च Ste a) मग्रव तौ। यख fare यौ। दादीनां यत्‌ परं तत्‌ frat; wae चतौ, यञ्च यौ, यञ्च एष

(१) अनर awe गगयस्लविर्‌ारीखमेन व्ण बुक | (१) दशययापव्ं wfaearca eat हाशोति। (३) ब्रश्ञङ्णः प्रशुरित्रमरः।

३९२ सुग्धवोरधं व्याकरणम्‌ |

एतौ, तश्च युवां, सु लश्च पच्च वयं, aT aT al | त्यदादियेधा-त्यदृतद्यद्‌ इदम्‌ भ्रदप्‌ एतद्‌ एक fe युदखद्‌ भवत्‌ किम्‌ इति। सरूपाणा Haare: | तुस्यरूपाणाभेकः शिष्यते एकस्यां तौ ठक्च धच ठचो, Te, दत्त ठक्च ae) are mee गाग्यश्च गर्गाः। माषो athe: (१) माषो मूखैः माषो माषक(२।स्ते माषाः प्रचो विभौतकः (३) wet रथावयव TE पाशकस्ते प्ताः पादाः रश्माहतुांशा इत्यमरः एषामधमैदेऽपि सारूप्यमेका तुपू्वींकतवात्‌ (४) | TE सरूपाणां लोनाभेकयेष इति मते तु हत ठच्च भर, दत्त ठच्च aw जम्‌ इति fad एकस्यामौ-्रादिज्ञावेकः गित sated निवर्तन्ते | सरूपममुदायात्‌ क्तायाभेकस्यां wt परतः एकः fag: fae ऽधवान्‌ ससुदायमभिधत्ते। यदुक्नम्‌- सरूपसमुदायादहि विभक्तय विधौयते एकस्तत्राथवान्‌ fae: समुदायार्धवाचकः इति ह्च दत्तश्च हकषावित्यादि वालग्गन्यन्तये क्न्तेनाधैकथनं,

ee ~ ~~~ --* ~

(१) साष्‌क्डाद दूति ara | (२) शुञ्धपरिभाखविेषः। (३) वयेहागाङ दूति wat | (४) Tar अभिन्ना आतयो णा हुकरमो येषां तेषां भावस्तत्वात्‌ | अतएव aN हि मात्रां erent विद्यत Tara गोयोचनदरेख |

दन्दसमासः | RRR

श्रवा(१न्योन्या्थौनुप्रवेशात्‌ एकलाभावात्‌ इवे भवत एव नतु कमिति यदुक्गम्‌।

सष्टभावविवक्षायां त्तिदन्ेकेषयोः |

करमणायप्रतीतौ हि स्यात्‌ दिवचनादिकमिति (२)

कयन्तानाभेकशेष इति मतै "तु जिर्विमह्निः। विभज्यते

सथर्घाऽनयेति विभक्तिः कारकं, तथाच एकस्मिन्‌ कारकै विवक्ति सति सरूपाणाभेकगेष इत्यथः एवश्च सव्यं (२) सिष्यति। किन्तु हच्चयों्ाणां वा पुष्पमिल्यादाषेकलेपि सरूपाशाभेकेष- निर्देशादेव खात्‌ (४) |

"~~~" A OR -~~ -------~-- “~~ --~ gene mi ee ~~~ ~~ --- --- ~ ------~-- ener ce nearer

(१) say cay टत्षाविधादौ विभक्तयनेनार्थकथनख Tremaine: कत्वसनाइत्य यदि पिभक्यन्तानाभेवेकेषः सीक्रियते तदा पूरैषदलोपे एक- षचनान्तमेषोत्तरपदं शिष्यते दरति कणं TH शकते दृत्याशद्याह अनेति। अत्र विभतयनानाभेकेषस्यरे | अन्योऽन्ार्थाुपेथात्‌,- सद्मा णां पूप. पदार्थानां अर मपां सम्बन्ध पक्वात्‌ रकतवाभावात्‌-एकलैव woe हिब पपदा्थंवःचकत्येनेकयचनायोगाव्‌ |

(२) सहभावविवक्तायां साह्यसब्बन्वे aafae एति इन्देकयेषयो्त्तिः व्यापारः, तन्न इन TANT वा adie: | fe wang कमेणा्थप्रतीतौ- हन्देकथेषषटकोभूतपटानां एवगधप्रतीतौ, साहित्यसन्बन्धाविवक्तायाभिति यादत्‌ | द्िवचनादिकंम सात्‌, सहित्यशम्बन्भेन परस्यरार्थाहुपरवेशद्ैव feenfefaare कत्वाटिच्धेः। अत्र सहृभावत्रिवस्षाया खावष्यङतवमेव, Bear पयः प्रयो vache गौयश्चस्यकम्द्ौणोरेकषथेषापत्तेरिुङगम्‌ |

(3) बद्पाशां लिङ्गानामेशयेवः, squat विभक्यन्तानाभेकशेष इति मत-

waferere: | : + (8) weatqaret वा पृष्पजिति शि्प्रवोगे पृष्यमिगयेकश्चनानपट्‌ं fare. वचनान्तेन BAIT VE कथमन्बेतीत्या शङ्धवाह किन्विति- aq पुष्पभिन्येकयेष- fares, “सद्पाणाभेकरेष एकविभक्ताविति २। ६४ | fanaa सङ्पाणामेकणेषविधानसाम््यारेव खादितः |

yo

२९४ मुगवोधं व्याकरणम्‌ |

बदुव्रीहि-समासः। (ह) पोतमग्बरं यस्यासौ Harada इरिः। नौलमुल्चलं aqa- स्यासौ नीलोज्वलवपुः ष्णः | (१०८) षृ णौदानेन fa हरिभाविणो इरिमाविनी, se यभावेन | रम्यविणा, Masa रम्यपक्ेन, रम्य-

यना, TTT | aN

~ -- - - ~~ -~--- = eee ----- ---- - ~ ---* ~ ~= =

नच एकगेष श-विगशेष इति वायं, पथिभ्याम्‌ ऋग्भ्यामि- त्यादौ THT vasa | च-विशैष wate इति afaqs तन्मते पथिम्थाम्‌ ऋग्भ्यामिल्यादौ तु सान्तविधेरनित्यलात्‌ इति चत्‌ यु्नाविल्य्र युजाविति wa) पूर्वज्ञानाभेकशेषमतं (१) देच दानिच तानि दानि caret gy कत्वन्तेनाधकधनं, तथाच AUT “खल्वक लभ्योऽनेकवुदहिस हितेभ्यो निष्पत्तिरपतावुद- स्तदहिनाश्ाहिनाश" इति एकत्वे एकलानि इत्येकशेषं विधाय व्याख्यातसुदयनाचार्ये रिति waat किं ? ब्राह्मणाभ्यां are णाभ्यां दत्ता गौः। Bat Tal पदार्थे (२) प्रत्यकं अब्दाभिनिषै- शाप्‌() यावन्तसते पदाथास्तावतां शब्दानां प्रथो प्राप्ते एकशेषो विधौयते तथाच vere शब्दाभिनिषैश् इति भाथम्‌। एवं पञ्च- get (8) Tage पश्चपूलो cage: इयादि खात्‌।

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[1

1) सष््पाणां लीनामेक्षगेष दूति मते इत्रः |

(२) प्रतिव्यक्ति wearer सतलैः |

(१) शब्दप्रयोगनिवमात्‌।

(४) Ju: get च, पूलोपिढा दरति भाषा, पा्रविषेषच |

बहुब्रोहिसमासः। ३९१

दूह सम्ानलिङ्ानां सरूपारामिलयेव, तैन माता जननो, माता (१) धान्यस्य, तौ माढमातारौ इत्यादौ स्यात्‌ |

समार्थानाश्च | समाधीनां विरूपाणामेकृः शिष्यते वक्रद- wae कुटिलदण्डश्च तो anew कुटिलदणर्डौ वा ,

मातापित्रोः ्वशरशुरयोः पिष्ठशएरो वा मातापित्रोः पिता, TATA: श्रः शिष्यते ati माताचपिताच पितरो, मातापितरौ were श्शूरशच खशरो ATT | इति चः ( इन्दसमासः )

इदानीं ह-सं विशेषतो निरूपयव्राह पोताम्बर शत्यादि wale:

श्रप्रान्तान्याधीनाम्‌ एकार्धीनां S21 दयादिह्यन्तान्या- धंपराशां समानाधिकरणानां दानां हः स्यात्‌। Weel वानरोयंसश्रारूढ्वानरो FA: | श्रारूढा दा बहवो षानरा यं आर्टृष्ठदबहवानरो ea: निजिंतः कामो येन निजितकामः, उपनोतं भोजनं aa उपनोतभोजनः, एवम्‌ उपनी तवदुभोजनः | निःखतो जनोऽस्मात्‌ fread, णवं निःखतहिजनः | शुक्तः पटो यस्य शुक्तपटः, एवं एक्तमहापटः। उपितो विहगो यस्मिन्‌ उषितविहगः, एवम्‌ उचितबहुविहग इत्यादि, sae, नोचेमुखः, उहाइरित्यादौ .उचेरादौनाम्‌ श्रसत्ववाचिलात्‌ (२) सामानाधिकरखयाभावेऽपि गमकलात्‌ सः |

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(१) मातीति माधातोसतृन्‌, परिमाणकारीत्छधेः | (३) गुख्िवाबक्रत्वाभाषात्‌।

२८१ TURE व्याकरणम्‌ |

खरादिपटिततात्‌ (१) सामानाधिकरण्यमभ्युपगन्तव्यमिति कचित्‌। sfeadta नासिदोष cereal श्रसिनास्तिशब्दौ क्यन्तप्रतिर्पक्रनिपातौ | प्रान्तान्यार्थानान्तु हृष्टे देषे गतः (२) एकार्थानां किम्‌ पञ्भिर्मक्ञमस्य प्च मुक्नवन्तोऽसय TTT नमिधानात्‌ खात्‌ तथाच-क्त्तडितसमासाश्ाभिधानगम्या दूति भाम्‌ |

संस्याटूराधिकासब्रव्ानां संख्ययरंस्थया संख्यावाचिनाम- gett व्यानाञ्च संस्येय्तिसंस्यावाचिना स्ट हः स्यात्‌ | दौ वा तयो वा हिवराः, विचतुराः, पश्चषाः, लक्तकोटाः एकदान्‌ दिवसांस्तिठेत्‌ सपता्टे्िनेयास्यति वार्थ एवायं सः araten संशयो विकल्यः, संशयस्येव उभयपचपरामशंतलेन व्वविषयल्ात्‌। भूरे दशानाम्‌ इमे श्रटूरदशाः (३) भ्रधिका दशानाम्‌ इमे ब्रधि- कदशाः, WHAT दशानाम्‌ दमे प्रासब्रदथाः, समोपे दथानाम्‌ द्मे उपदशाः, उपविंशाः। यदा समोपिप्राधान्यं तदा इ-सः, यदा समोपप्राधान्धं तदा aa eft) संख्येय दति किम्‌ ! भ्रधिका विंशतिर्गवाम्‌

दिनानां विदिगि (४)। fegarat हः स्यात्‌ दिङूमध्या- ख्यायाम्‌ | yorere दषिणस्या् fetes या दिक्‌, सा yeh

का A a etn nr

(१) खरारिपराठेनाग्ययलवादव्ययानाद्धानेशार्थलारित्रधः |

(२) प्रयनतं प्रषमान्तं Ue Bee: सषखमान-पदाथातिरिक्-पटार्थो det तेषाभेार्थानाभपि भासो छादिति दशयति हरे दति |

(९) मव waren Bare: | एवं परव

(४) दिशो विदिक्‌ fearfamac: |

agaifeaara: | ३९9

दक्िणा, एवं पूर्वोत्तरा, उत्तरपथिमा | दिङडनामग्रहणात्‌ यौगिके मा भूत्‌ (१) तेन Gara कौषेधाश्च दिशोर्मध्ये या fea इत्यत्र खात्‌

चोष्यन्तयोः सरूपयोर्ुरे व्यतोहारे | परस्पर-प्रहरणादिरूप- क्रियाकरणं व्यतीहारस्तव् तुख्यरूपयोस्ती्यन्तयोर्यु्े वाये हः स्यात्‌। wey दण्डय प्रहत्य षदं युं ad, corte Ady केशेषु welar श्राक्तष्य वा इदं at हतत, केशाकेशि we- मित्यन्तभावितञर्थत्वात्‌ वत्तितमित्यथेः। sae भिब्रघलात्‌ aq स्यात्‌ (२) अनभिधानात्‌ | aefafa खक्तटम्‌ afwaa चचियेण une षदं युं हत्तम्‌ इत्यादौ तु alma स्थात्‌ एवं प्रहरणाकषण ग्रहणान्धक्रियाव्यती हारे स्यात्‌ तेम रधे रथे खिता दं ge त्तमिति। सरूपयोः किम्‌ vee सुषलंख प्रहत्य ge ठत्तमित्यादौ स्यात्‌ ge किम्‌ ? हस्तेन स्तन ular ददं क्रोडनं सख्यं वा त्तम्‌

Fant ae अन्तेन Geni वत्तमानख्य ae शब्दस्य व्रान्तेन सह हः ख्यात्‌ पुतेण सह श्रागतः सपुत्रः, सच्छात्रः | दृहोभयोसुख्धमागमनम्‌ | तुल्ययोगे किम्‌ ? “सदेव दशभिः पुचेभौरं वति गहभो"ति, विद्यमानैः पुेरिव्य्थः | सपत्तः सधमा wate: Tad aU: समद इलादौ तु नौषै-

पो कक

(9) रेन्द्मादि यौगिके दिङ्ना वाच्ये सतीत्व; | (१) अन्यया कन्तभांषितञजचत्वं विना |

३९८ BUA व्याकरणम्‌ |

मख दूतिवत्‌ पूर्वेषेव सः (१) | तथाहि सह विद्यमान प्लाव्य wanfe वादम्‌ | तुल्या प्रायिकलवात्‌ इति परे प्रानान्याधे- लादप्रापे सूवचतुष्टयसुङ्नम्‌ (2) | |

विगेषण-सि-क्ानत प्राक्‌। एतानि पूल्धीणि स्ह पोता au, चित्रगुः। कृलालकर्त॑को घटः , गिरिप्रधानो देशः, समुद्रान्ता महो, षिपरपूवबौ वर्णाः, चूतादयो wan, aaa: सन्तः, FATA FOr, एतोत्तरः सूपः, कष्णखामिका गोपा coral तुं कुलालादिषु घलादोनां साध्यत्वेन प्राधान्यादिशेथ- त्म्‌(३) Wat प्राग्भावः (४) ANAT: AAMT! | यत्र गुण- शब्देन ag सः सोऽस्य विषयः (५) दरव्यषाचिना ay @ विशेष- शतमेव सिदलात्‌ | कतसच्छकटः (१)) RATNER: | सखिविे- षणाभ्यां सद यत्र सः मोऽस्य विषयः | त्रातराम इत्यादौ च्राता- दैरविगरेषणलेनेव सिष्टलात्‌ |

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(१) were साहहि्यमयः. अतः सामानाधिक्षरगयाभावेऽपि पूलनियभेन गमकत्वात्‌ खरादिपाटाहवा समाम CATT: |

(*) wengtarfe qt सड्समे्नतं एत्रचतु्टयमि्यधः।

(३) सामान्यतः aqawrnfensgrat विरेषशलेन पूञनिपातः कलानारौ- arg परनिपात उचितः, xe तु कलानारिषिद्यादिगु्या कलेप्रधानादीनाभेष विगेधत्वम | SHE दह शास्ते साधं प्रधानं, asa प्रधानं हि विरथं खार्‌ प्रधानं विरेषणमिति। `

(४) कतुपरधानादि शब्टानामिति ty: |

५) जत्र Marea gers: सर्बधन्द्षातिशयाधः |

(६) array विशेषणलयेनेव सिद्धे पन्रषणात्‌ क्रान्तविभे णाभ्यां emg TAS प्रागभाव दू्नेनोदाहरणेग शितम्‌ |

वष्ुत्री हिषमाषः। ३९९.

सिसंख्ययोः संख्या संख्यानां त्वस्याः खिसंख्ययोहे से संख्या प्राक्‌ स्यात्‌, संख्यानां दशेदल्यरूपा हावन्धौ यसमात्‌ Ua, Wa | सप्त गावो यस्य सप्तगुरित्यादौ तु विेषण- तात्‌ gata हिताः, eat |

ष्यन्तात्‌ पद्मादिः was प्रहरणाधेः। 2 पद्मादिः न्तात्‌ प्राक्‌ स्यात्‌, प्रहरणाधसतु सोक्ञान्ताभ्याम्‌ | नाभौ खितं पद्मं यस्य पद्मनाभः, गें खिता दुहिता ae: सा दुडिटठगभा, पद्महस्तः, कमर्डलुपारिः, गड्कण्ठः, अर्ःशिरा (१) इत्यादि usta: किम्‌ ? करटकालः, उरसिलोमा, घश्चहत्तयः | दण्डपाणिः शूलपाणिः चक्रपाणिः श्रद्युद्यत senfe: प्रायिकोऽयं qaa- निपातः तथाच “तसुद्यतनिशातासिं प्रत्युवाच जिजोविषु"रिति afe: “seqaatgagé: (२) परितोऽनुविद"मिति माघः

्ञान्ताजातिकालसुखादयः। जातिकालसुखादयः क्तान्तात्‌ प्राक्‌ स्युः सारङ्गजग्धो, पलाण्डभक्तितो। मासजाता सुखजाता, दुःखजाता, भ्रलौकजाता इत्यादि | प्राप्तोदकः, खपा्ञतपश (2) रिति तु प्रायिकलात्‌।

श्राहिताम्यादिषु वा। प्राप्तः पृव्वनिपातो वा स्यात्‌। wifeatia:, wage, जातदन्तः, say, पोततेलः, Hawa, जढृभायः, गतायेः, पक्त भ्रम्याहित इत्यादि

ee et eR URNS ~---= ~ ----- -¬> -----" ---- ----- "~---- ---- "= -- -= ~त RN RRS

(१) गड्‌ गलगणडः | अरः सतं wal च| (२) उदगर्थेति गुर्‌ डने fa उद्यमे श्यात्‌ wi (३) उप्राहतो देवसदिष्य इन्तव्य दतयधेः |

४०१ qa व्याकरणम्‌ |

ह्नत्तोपमानाश्ेदख्य लोपो 2) घन्तोपमानपूर्वसख (१) दख लोपः यात्‌ दै परं हे। कणखित इति वलं ace इति घ्या भुक्‌, wefan कालोऽस्य कण्ठेकालः, उरसिखितानि लोमानि va उरसिलोमा उ्रसुखमिव सुखं यख घष्मुखः। उपमानावयवखवोषटाद(र)रपमानलसुपचारात्‌ | tana कुव्यैति ते वेयधिकरण्येऽपि कण्डेकाल cert waa खितादि- ud इत्तावन्तमृतमिलाहुः एवं उद्ुखमित्यादौ तु उष्टादिशब्देन लक्षणया मुखमु्ते | एवं परत्रापि बोदव्यम्‌ |

पविकारसमुदायथादैः। विकारससुदाययोविहिताया षौ ATATATS लोपः स्याह (२)। सुवर्णानां विकारः सुवणविकारः, सुवणदिकारोऽलह्ारोऽस्य सुवर्णलङ्ारः | कैशसमूहशुा भख ange: | विकारससुदायेति किम्‌ राजदुहिता भाया यस्म राजदुषिढटमाथः। MATT इत्यत्र शासरशब्देन लक्षणया WANA YA |

प्रादेः BEATA वा। प्रादेः छदन लोपः खादहा।

प्रपतितं परं यस्मात्‌ प्रपणं, प्रपतितपरं; |

नजोऽस्यर्घानाम्‌ | नजः परेषामस्यथवाचिनां दानां हे लोपः Ser दे परे भ्रविद्यमानः gate aye, भविदयमानपुचः।

मकि कात

।!) सप्रव्यनदं उपसागप्दङ पथं यदे्र्धं |

(२) उपमानम्‌ खषयवो यस्येति विग्रहः

(१) विज्ञारशद्‌ हसू हवाचक्षणन्दे परे वा षी मवति, ततृषश्नपरं षे वद्य arequge लोपः qrfgare: |

aealfe समासः। Bot

३२६। नञऽनी वाज्‌भसीः | (नजः al, WAY Cu, वा ।१।, WEBI! On) | नञोऽचि परे भरन्‌ हसे श्रः स्यात्‌ सृ वा।

=-= ~~ ae ec

रम्यविशेत्यादि - रम्यो “विः at यत्र वने तेन। Prat सितः कामोऽस्य तेन हरि -भावयितं शोलमखाः सा दाना- मेक विधानैऽपि धात्‌ क्रोतादिव्यादिन्नापकात्‌ स्यायुत्यत्तः प्रागपि कानांसइति। तश्राच गतिकारकोपपदानां (१) afs: समास- वचनं प्राक्‌ सुवुत्परत्तरिति भाष्यम्‌ ahaa इति -गओ्रीखितो भावो यस्येति वाक्यम्‌ |

३२६ नजो WT AT A | ग्रहस्‌ तौ तयोः। नाख्यन्त इत्यादि-श्नन्तो नाशः ad अतिः इदं नित््मिति Ut) तेषान्तु नान्त-नयुतावसन्मतो WH सामान्य-स एव विषयः, 2 पूरणोत्यत्र हग्रहषात्‌। तेन अ्रब्राह्मणः श्रनोश्वर (२) दूल्यादावपि स्यात्‌। वाशब्दस्य व्यवस्थावाचितात्‌ -

am: प्राणिनि नित्यम्‌ a गच्छति इति अगो हषः, waa जक्षत cae: प्राणिनि तु waaay नगावगौ

त्यादयन्तेऽन्‌ VI | Baa परे भनौ स्यातां नित्यम्‌

aTaa गम्यमाने। अरपचति जाल्मः (२) भ्रनघख पाप इति। wae किम्‌ ? पचति Sa |

ee =-= =-= =

(१) गतिर्पसगः। ig) weet दूति fare: | (३) ae पु जानातीति निन्दा।

५.१

४०२ quad TACT |

नास्यन्ती यस्यासौ अनन्तः नान्तः भ्रद्युतः ATMA: |

~~ RS ee = ककन ~

a गि =------=- = =

नक्षत्ादिषु। नक्तत्रादौ न॑जोऽनौ खाताम्‌। nt नक््रादियधा- and मसुचिर्नाको नपान्रक्री नपषकम्‌। नवेदा APR AZ ATA नख इत्यपि

छरति mat वा and त्तरच्योखलले चदा- देशो मनीषादिलात्‌। सुश्चतोति नमुदिः सुचधोः far: | area दुखं यत्र नाकः पातोति नपात्‌ anh शद्‌ तनूनपानं प्रलुहोतोति भिः पातयतोति नपादिति fanart दति कथित्‌ i क्रामतीति (१) नक्रः क्रमधोर्गमादिलात्‌ डः। नस्तौ पुमान्‌ नपुंसकं मनोषादिलात्‌ सलौ ख्य लोपः, श्रक- विधानश्च वैत्तोति ater बिदधोरम्‌। नासि gare AGA | राजते WANT! WA साधवः Tan: A TAT श्रसत्या श्रसत्याः area fat व्वविषय एवायमिति uti तिकाणतु नासत्यो देवभिषजौ इति सूथपतौ der स्या नाघाविनिःरतलात्‌ ब्युत्द्यन्तरेेति नासि खमिद्धिय- मस्य नखः। नेकं यशो यख्य saga, नैकशुणाः, नैक- वौत्निरिलयादौ व्याणां दानां हे नजोऽनादेथो खात्‌, परदयोरजभसोविधानात्‌, से wah Ace

TT भोम ES SE! oe re ene प्क

(१) gr@afafa du: |

agate ware: | ४०४

२२७। ARMA जातीयघासकरविशिषटे तु

तौच |

(मदत्‌ ।६।,त ।१।,अा ।१।, एकार्थे ७।. जातोय- विशिष्टे9।, तु Ul, Ae, Tie) |

AKA भ्रा ख्यात्‌ Tata, जातोयादौ तु तौ च। महावलः |

३२८ | पवत्‌ Maden: स्वियां डा-मानि-त-

ल-शसन्ततरादौ चार्य |

(पवत्‌ ।१।, स्रो igi, same: १।, feat 9, डय-- तरादौ ७।, ।१।, श्ररूप्ये Ol)

[9 ~----~

२२७। महत्ते महदिति yada दम्‌ तौ इत्यनेनाप्य- न्वयात्‌ दति लुप्प्रक्षं दम्‌ श्रा दति लुपतपीक्षं दम्‌ एकोऽथ यस्य तस्मिन्‌। जातीयश्च are ace विशिष्ट तत्तस्िन्‌ महाबल दति - महदलं यस्येति वाक्यम्‌ ¦ एकार्थत्वात्‌ महादेव इति येऽपि खात्‌। जातोयादः!वसामानाधिकरण्येऽपि महतस्त- त्योराकारः एथग्विधानात्‌, तेन महतो महत्या वा प्रकारः महाजातोयः, महतो महत्या वा घासः महाघास्र इत्यादि पूय सूव्राहानुवक्यं तस्य॒ व्यवखावाचितवात्‌ WE महान्‌ भूतः महद्भूतशन््रमाः, भप्रहतो महती भूता मष्द्भूता बराह्मणोत्यादावभूततङ्गापे खात्‌ एकां किम्‌ ? महतः पचो

---¬ ~~~ > errr:

महत्पुच्चः | ३२८। पवत्‌ एकप्रहत्तिनिमित्तेन उक्षः पुमान्‌ येन

४०४ ATT TATA |

इक्षपखः Gitar: पयत्‌ सयात्‌ Care सलिङ्ग, डादौ

नतु रुप्य |

anaes RS ER me IE

सः | शस्‌ Tet TS सः, तर भ्ादियंखमपः , शसन्तशासौ तरादि- सेति सः, S74 मानौ aa लश्च शसन्ततरादिश (१) THAT | प्तं सूत्रात्‌ रथोऽरूसतयिन्‌ एकाथै द्युव care एकाय सलिङ्ग इति चिकगुरित्यादि वच्यति | एकाथ- लात्‌ हहा चासौ माथा चैति हहभाया caret येऽपि aq एकषप्रवत्तिनिभित्तन एकबुद्िग्राद्यलेनोभयाथेख सनिक्षटलादैक- ्रहत्तिनिमित्तनोकपुखस्येव एवहावः (२) | तेन द्रोगोभाय (र)

() “avery दप चतरां घतमां aw) द्टेयक्त TAT कलो देश्यो- देभीय cate) ae पराण्रो द्यश्रशम तराद्यः”- दति दु्गादाबः।

(२) कोऽपि शद्धः afeq wefafafadt पुरमांससुक्का प्रदर्तिगमित्तानरे सियमभिधत्ते, कोऽयेकसिन्रेव प्रत्तिनिमित्ते पुमांसमभिधाय स्वियमनिपक्ते। भित परह्षनिभित्ते उभवावानिधानं प्रहे बर््ययाह्लात्‌। एक्त्ति- निमित्तं suaratfeard afgaey रक्डद्विपाह्मचात्‌। अतस्तदुप्रहणमेष युज्छने, ्रतणगह--एकखिन्‌ vafalafan एूति। इद्रभारयोति कन्यीधारयः, aya नाम एामान्यगगेधो cena प्रटत्तिनिभित्तं, तमेकमधसुपादाय अषौ स्याश्च awa, एवः परुषः eat सीति | तशारेकशिन्‌ प्हत्तिनिमितत eqn, उत्स) भधति, स्तियाश्च वत्तते। भा्यागद्दे alias उत्तरपदे पर एलिङ्गसेत दप भरति * # + द्रोणौभार्येति रोणोगबदेनाणक्त एष पमान्‌ पुनरेकिन्‌ vefutafad, यस्मात्‌ पररिमायषिगेपं प्टत्तिनिमिनष्ठपाहाय ufcarfufa पुंसि वर्तते। जातिगिगेषुन्‌ पाराय स्तियां गवाद्न्यां वर्तते, यन्न गावोऽदरनि का गवाहृनी Meera ¦ Tae द्रोणौ wafaq प्रषटति- निभितते save: - षति रंनिप्रसारे समासाद्‌ ४२२ शनरोक्रायां Tete |

(९) नतत द्रोण्या, कथं भायां सम्मति ? श्तं, गौरा क्या WARE |

वुव्रोहि समासः ।- ४०१

इत्यादौ स्यात्‌ द्रोणशब्दः परिमाणे पुंसि, काष्टाम्बुवाहिन्यां faat वर्तत, wit भित्रप्रहत्तिनिमित्तेन बुदिदयग्राद्यतेनोमया- घाभिघानस्य श्िप्रक्ष्टलात्‌ (१)। एकाश्ं स्त्रियां किम्‌ तरुणौ प्रधानं यस्य तरणोप्रधानः। Srl यथा-मौरौवाचरति गौरायते। दथेनोयां मन्यते भां चेच दर््रनोयमानो भार्यायाः, पड़ा भावः पटुता पटुतम्‌, इग्रमनयोरतिशयेन शुभ्वा gaat शश्रतमा, wear, पटिष्ठ प्रटोयसो, शक्तिमा aaa aw: देश्या बदेभोया हदपाशा, पटु चरौ, ween देहि बहश इत्यादि I. wea किम्‌ ? शम्नारूप्यः | एकस्या WIAA एकरूग्यं तस्याः ततः, तस्यां Aa, तया प्रज्ञत्या (र) तथा. तस्या वेलायां तदा तर्हिं इत्यादौ पवत्‌ सेरिति dara: | aa लजात्याख्य इति वच्य- माणेनेव प्रयुता पटुत्वमिल्यादौ सिदे इह तल्ग्रहणात्‌ कविद- न्यव्रापि, तेन -

श्रपत्याधष्णेयभिन्ने are जातीये स्ये पुंवत्‌! यथा चस्तिनोनां संघः हास्तिकं, saa इटं श्येतं वासः, श्रमनावी देवता we wa: खालोपाक इत्यादि। श्रपव्याधेष्णेये तु रोहिण्या श्रपत्यं रौहिणेयः aaa saa feet अजथ्या (३) भूभिरिति।

| Re ~ > ~> -न = ~ --- - = > ~ = = ee ~----- ~ ~ NT याक

तथाहि Paha Tawar द्रोणोषदधी परत्वात्‌ | अथवा wrataze भार्या-- सदशर्सणोवाप्रत्वादिति प्रयोगरल्नमालाटोज्ञा|

(9) wefafeaens | (>) WaTdey |

ig) warner fers manag: | wa श्यनूप्र्यपे प्रेऽपि yagre |

४०१ AUN व्याकरणम्‌ | २२८। नोपतौककोङपूरण्याख्यायुयक्षषिका-

cated जातिखाङ्गपतमानिनि | (न ।१, जप्‌-रित्तं १, जातिलाङकप्‌ ।१/ तु ।१५ प्रमानिनि 9) | जवन्त, AMAT वा केन TATE, पूरणौत्यानत, संप्ा- भूतम्‌, एम्‌ उम्‌ रज्ञाधेविकारायेवजे ित्तासश्च, cat स्यात्‌, जातिखाङ्गविहितिवन्तन्तु मानिन्‌ वजं।

-----~ ~--- ---- ~~ --~ en ~~~. ~ ~ * -~--~ -~- ~~~ ~~~ ~= ~~ ~~~ ~~~

कुक्वादैरण्डादौ FRAN: एवत्‌ स्यात्‌ श्रष्ादौ परै | भरसामानाधिकरण्ये भरस्य विषयः। कुया we बुक्टाण्ड, war Wt amet, मृग्याः पटं सृगपदं, काक्धाः शावकः काकशावकः, प्राप्ता जोविक्ां प्राप्तजोविक्ता, हितीया भिक्ताया हितीयभिक्षा, उत्ताना शेते उन्तानणया प्रजाताभाया यख WANA, प्रसूता भाथा यख warura इ््यादि भिष्ट- प्रयोगानुसारेण Tay प्रजाताप्रसूताशब्दयोग्भविमोचकल्वप्र हत्तिनिमित्तेन स्तिया हत्तिन एंसि, (१) नित्यस्नीलादव्र पाठः |

२२८ नोप्ता। तख प्रक्ष ती, ताकयोः कः ताककः, ठः यस्य Tey यख सः, faut यस्मात्‌ तत्‌, इष ठव तौ, Fat aya, भ्रवयवापिक्तया हं, cre विकार

> ~ ~~~ ~ = ~ - ~-- *----~ -- -- ~ - ~= - --*--~ ~= =-= deerme

(1) warangrnat ferat गभविङ्गौ वसेत, एंति गर्भौल्िनिभिकषः पादाय, यथा प्रज्ञाता ब्रवः, गभाधानद scapes दयः शति Waza |

agate ware: | Boo

२३० पूरणौ प्रिया मनोन्ना सुभगा gaat GAT कान्ता वामना वामा चपला बाला समा सचिवा तनया efea खा कल्याणी भक्तो |

( पूरणो - भक्तौ 9)

एषु परेषु vay स्यात्‌

तौ, तावर्थौँ येषां तै, gat रकषविकारा्था्च ते, विद्यन्ते तै यत्र fod तत्‌, तश्च तत्‌ रिच्यश्चेति पञ्चात्‌ ऊप्‌ ताककोड्‌ः पूरणो wer भयुख्रक्लविकाराथेणि्यञ्च तत्‌ जाति are ते, ताभ्यां ईप तत्‌, मानौ wart तस्मिन्‌ उदा- इरणन्तु वामोरूभाग्य इत्यादि वच्यति |

१९१० पूरणो पूरणो प्रिया चेति इन्दः | एषिति- पूरणार्धत्यान्ते प्रियादिसपदगगब्देषु चेत्यथः। भन्ये तु चषाना- तनयथोः खाने SATACAANY:, वालावामाशब्दौ नाहुः | इड दरव्याथेप्रियादि साहचर्यत्‌ दत्यान्तस्य भन्यमानद्रव्याथेसखय भक्ति- शब्दस्य ग्रहणात्‌ भावत्यान्तं निषेधः यथा Aagd—ezafa- darafa, रघौ - टृदृभक्तिरिति (क) | कान्ताशब्दं परे नाहुः कोडादोत्यादिना at पुवद्वावात्‌ इस एवानयो विंषयः।

~ ---- ~~ ~ -- = ---- ~+ -~- -~ ~ ~~ --~ ` ~~~ ~ ee “~~ ~ ee ee

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(क) THe; तन्‌ सद्धिनाय --ढद्भक्तिरित्मत serge fear: Yafeunfert इंवद्भागो दुर्षैटः, afaatfefafa निषेधात्‌ भक्गिन्द्खय fratfey पाडात्‌। अतो हदं भङ्किरखेति नएंसशपूथेपो बहव्रीहिरिति गणव्याख्वाने Ty भज्गिरि्ेवभारिषु gauze गपुंबकत्यद् frafyaay सिदवरभिति समाचेवम्‌ |

R08 सुग्पवोधं व्याकरणम्‌ |

सपद्गादीनाश्च | सथव्रादोनां प्रापु खात्‌ रुपतरौ- are) सपद्ोहन्दारिका (१) सपनतयादियधा- सपव्रानडुहो Ufewasrel रवतो | एृथिवौ सपन्रादाविह प्रोक्ाग्रहायणे |

eee ER NN FS LD यी

afaatca अटाद्यनिषत्तिमात्रण्ते ‘veafanel लिङ्गविेषश्वानुपकारतात्‌ | etaafafaras: तश्मारृसत्रोलिङ्गलात्‌ eeufargara प्रयोग Kafa- प्रायः। ज्यासक्ञारोऽयेवम्‌ | भोजराजस्तु कम्परसाधनसखेष भक्गिषब्ददय प्रियारि- wary भवानोभर्निरि्वादौ wearer Wage nieve: ददृभङ्गिरिषारो भावसाधनत्ात्‌ पुवद्धावरिद्धिः yauzeare”’—xia | Haga yang १७ area afgareciatia gear |

` “grad नषुषकम्‌ | दद्‌ भतिरयद्च टद्भक्तिः। स्तोवविवक्तायान्त॒ ददा- भक्ति." दूति शिङानकौषदो।

“कदां निद्तिमावरपरतेनात दद ष्धप्रयोगाद्च लिङ्गपिधेषकिवकेति भाषः लिङ्किगेषविवकतायान्तु दभक्रिरियादिशि्ये प्रियाटिषु भक्गिणड्‌्णड" xfa तकषवबोधिनौ |

“ददृभज्गिरितवारि afarfareiong gauge आषेतवादिति भागहत्ति" दति ठं्षिाषारे।

आषलादिति भागहर्तिरिति शद्वानानर, ह्या्पणदं खशिद्गौ प्रमाणमूतं ल्चणमपे ते एचभिप्रायः - एति Males: | प्रयोगरल्नमानायान्तु-“अयमेव मभाराध्य इति विदुदाभिषन्धानं भक्तिः, तद्चकभङ्गिण्देन पुंवत्‌, यथा महती- भङ्गिनानेन नूनमाराधितो हरिरिति agavnferarage वु वत्‌ भवति विरलभिष्डांनपु्मोपषार fai ददृभङ्गिरिति गणोक्रखानिचलाद्‌ङः। अपिच UAT RUA ATET THT | दद्‌ किनदिवयाक्षाङ्कायां भक्तिरिलयन्बयः | इं ufaze दद्भक्गिः। एवं शानतोेगश्लिमितनयनं दटमन्गिमवाभ्या षति a) यदा wget इष्टो भतिभेङ्गिमानिति नाश््यतुपपत्तिः" शृङ्ग ( ९३६) भवान्धादषटवाषो ufsdfmatete aayurca दूति Agta |

(1) हन्दारिजर Ber इन्दसो च।

ayatfe समासः। ४०९

३३१। गवावादेः खोऽने गौण्यीऽनौयसः। (गवाबादैः ६।, खः १।, We 9, WA of, भनोयसः ५।) | श्रत्ते सितस्य गोः राप ऊपश्च खः स्यात्‌ TITAS सति,

नलोघ्रसः | Way: ध्वस्तमायः कालतनुः | Suey बह्गरयसो

३३१। गवा श्रावादि्रसख सः, Ne wafer तत्तस्य प्रं सौश्रतरात्‌ गुणस्य भावो te तसन्‌ ईयोऽनोयस्‌ तस्मात्‌ तौयस इति-द्यसः प॑रसयेषः प्राप्रलखो स्यात्‌ इत्यधेः | तेन सुप्रेयसो कुलमित्यादौ ala दति खो a स्यात्‌ |

नादपिष्यल्यादैः शअदपिष्पल्यादेः प्राप्तखो स्यात्‌ हं fore अदईैपिप्यलौ अ्रईखारौ परव्वैनगरीत्यादि ae fare: किं१ प्राप्तो जौविकां प्रा्तजौविकः, भापब्रजोविकः।

Sadie ईयसो एव खो स्यात्‌ THT: HAS यख सं बह्ुप्रेयसो पुरुषः Ha वा गौणत्वेऽपि ka: Fata: स्यादेव @ faq? अतिप्रेयसिः खलः, उपप्रियसि प्रेम

लाघबारेकत्र सूत्रदयोदाहरणमादह शोतगुरिव्यादि। ar गौयंस्येति वाश्च, Ma Tagger: (१) पटौ महो पटौखद्यी, पै भार्ये यस्य पदौखदुभाये waa wine पवह्वावः, एकाथ स्नोलिङ्गोत्तरदे एतदिधानात्‌ यच तु ww भाथस्तव्र य-गभहः। एकार्थे किं ? कल्याणा माता Hee `

~~ ~~~ =^ ~~~,

(१ भीता teen गौः facet यद्यारौ Mages इति गङ्गाधरः| ५२

४१. AUNT व्याकरणम्‌ |

अगारे (२२९)--वामोरूमायः रसिकाभायः पाविका- भायः षठौजायः दत्ताजायः मैधित्तौभायः। areata: ¶ु- Satara भ्रमानिनि किं -ब्राद्मणमानिन | युमादेमतु वैया- ATTN: सौवभाथः काषायकन्यः डैममुद्रिकः।

geared तु ( २२० )-

~ = ed ~~ --~ tee ~~ a a ee ee

माता। चियामिति कि! anit परधानं येषां तै तरुणोप्र- धानाः। ध्वस्तमाय इति-ष्वसा नष्टा La कालतनु- रिति-क।लौ कषणवणत्यधः(१) गवावारैः किम्‌ ? श्रतिलक्सीः | वामोरूभाथ इति--वामोरूभा्या यख इति aq) एवं धोबनपूशचासो बाला चेति धौबन्धूवालेत्यादि (२) रसिकाभाय दति-रसं वेत्ति इत्ययं दकः रसिकेति त-ककारोड | पाचिका- माय इति--पदतोर्थे णकः पादिकेति wa ate | ताककोड विं? पाका भाया यख पाकभायः (र) शष्व- भायः | षष्टोजाय इति-षखां पूरणोलथं घट्‌ एवं पच्चमौभाय cafe |

दत्ताजाय इति- यद्यपि संज्नाग्ब्दानाम्‌ vagarfafaa faery

= = न" ~~~ ----- ---= Re ~~ ------ ~ ~~~ ~~~. 1

(1) wate बाधितत्वात्‌ ईबनखोटाषरणं बख्त्रीहौ सक्भषतीति TUT: | काली तनवौ कारतहः, पूर्व Cag, अनभिधानादूषः कप्रचयाभावे we इति gate: | वस्तुतो समासान्तमिभेरनित्रलवात्‌ कप्र्यः, अतएव अतिशच्छमोधद्द्‌ः fay दति गङ्गाधरः|

(२) २७८ त्र्य टोका gem |

(९) WaT बरेद्यधः। तथाच cata एव पिुवचनः, एषं एम्कभाय दखत्रापोति गोवीचनद्रः |

agaife समासः | ४११

उश्नयु कलामावेनेव पुंव प्रापिस्तथापि णास लिधुंन्नादिशब्द- वहत्तादोनाम्‌ भ्नेकद्रव्याभिनिवैभितवात्‌ उलपुक्लम्‌ “दत्त- YAM नाम प्रशस्तं Taxa’ hela wa | तथाच eae प्रहत्तिनिमित्तेनेव दत्तः पुमान्‌ car alfa पंखियोप्त्ततै भतो निषिध्यते (१) एवं -गुप्ठभाय इति। | मेधिलोभाय इति-मिधिलायां भवा इत्यं ष्णः ब्राह्मणौ - भायै इति - जातिवादिलवादोप्‌ | सुकीशौभाय्यं इति-खाङ्ग- त्वारोप्‌ जातिखाङ्गेविति किं? कुमारभागः। युवती जाया यस्य युवजानिः | तथाच “गुवजानिर्घनुष्यागि*्रिति मदिः, कुमारलादिजातिवाचिनस्‌ कुमारोभाथ ware: ब्राद्मण- मानिनोति-्राह्मणौ मानिनो यस्या दति aad (२), ब्राद्म- णोम्‌ sat wat इति वाक्येऽपि एवं सुकैशमानौ दोधक्ेथमानो भार्यायाः (३) मानिन्‌भिन्ने जातिखाङ्गेप एव॒ नियमात्‌, दत्तामनिनौ पश्चमौमानिनीत्यादौ निषेधः

~ = ----- ~~ ~ ~

(१) नह्ययं नियम एकद्व्याभिनिवेथिभिः संन्नाशब्द्‌ भतव्यसिति। तथाहि देवदत्तादिशब्दोऽनेक्दरव्यसं भूतः प्रवुज्यभानो MR उपपद्यते, यथा शास्त्रेऽपि urerfeneg: | या व्ेकट्रव्याभिनिवेशिनी केना, at प्रति नेवायं निषेधः क्रियति। #* # % संक्नाब्दानामपि केषाञ्जित्‌ प्र्टत्तिनिभित्तमस्येप सप्रप्णादिष्त्‌) यना- प्यर्थान्यत्वं नासि तत्रापि षद्पप्र्टत्तिनिसित्तशपादाय ऋभिचेवे saat तत्रा fud wafafafad dem: एभान्‌ ते caveat इति संिप्रनारे ४११ @a- टीकायां गोयोषन्द्रः| दानक्रियानिमित्तः feat ifaw संत्ताभूतोऽयमिति भाषितपुंखलवमस्तोति सिद्धानकौश्चटी। दत्ता इति asia ससान निभित्तत्वेन पुंसि टत्तिसम्भवादुक्गपुंख्कता दूति विद्यानिवासः।

. {२) अव्र क-प्र्ययाभाववोजं १११ नख टोजायां वच्छति। (९) gaat दोषेकरेणो मन्यते भावयामिति वाक्ये मनधोसषारितात्‌ शिन्‌,

४१२ मुग्धवोधं श्याकरणम्‌ |

२२२। पूरशीप्रमारीभ्यामः।

(2 ७। पूरणो प्रमाणोभ्यां YN, wy) |

्रभ्याम्‌ श्रः खात्‌ ३। (२५९) ययोर्लौ पोऽयुक्ती पौ कल्याशौपञ्चमा रात्रयः, कल्याणोप्रिः। qera पूरणो ग्राह्या, तेन - —_

ee ~ Oe ~ ---- ~--~--= =~------------ =>

ee = ne en कन न= - ~ - ~~ ~ ~ ----

स्याटेव (१) | वैयाकरणभाय इति- व्याकरणं Faas वा cara षणे wax णिदि; सौवश्ठभाथ इति -खण्ठस्यापलम्‌ दले षणे वस्र उम्‌, रिति त्रिः। काषायकः इति-- कषायेण रका दूये णः Santen इति -ईम्रो विकार इयर शः

३२२ पूरणी प्रमाणो (२) ते ताभ्याम्‌ कल्याणो- पञ्चमा रात्रय इति - कल्याणो पञ्चमो यासां रात्रोणं ताः (२) qatar परे कल्याणौ्यस्य पुवहवः। एवं कल्याणोप्रिय cua frome ot) एवं कल्याणोमनोन्र दृल्यादि। गोण-

~~न" "~~ = ~~~ re -------- --- -----~-----~ re er

हति प्रयुज्यमाने भायांभितिदे षौ, मानिनि परे पुंवदागः| अतएव सकेशमानी wratar इति एुलिङ्गप्रयोगोःऽपि ary: |

(१) aq जाहमखमानिनो सुक्ेथमानिनीद्याहिवत्‌ दत्ताभानिनी we: सानिनीव्यादौ मानिनि aisha कथं पुवद्भाव द्याशङ्धयाषह मानिनृभिच् दति। तथाच यत्र anfafafetanq खाङ्गिहितैबनाहा मानिनृशडो मिध्यति ततेव degre | दत्तापशभोश्दयोसु तथालमिति निषेधः।

(९) grains परणप्रययान्ता Tea; what अमया दूति प्रमाणी |

द) पञ्चानां पूरणो प््चमी, मोऽसंख्यादेरिति मट। कखाणी प्रशा TER Ufaate cifay ता रात्रयः बल्याणोपद्वमा। द्रति दगादाहः।

teense ee eS ~~~ ~--- ~ -~-- —— - =

व्न्रोहि समासः | ४१२

२३२ दुतः कः। Swear ५।, कः १) टसंत्नकाटदन्ताचच कः श्यात्‌ ₹े। कल्याणपश्चमोकः पत्तः रात्रिः पूरणी aren देति gaat सुख्यतम्‌ स्वो प्रमाणः |

err = ee ne ee a A ES NN a ग्यक

सुख्ययोर्मुख्ये arena ति न्धायेनात पूरणोप्रियत्यतर मुख्यपूरणोग्रहणमित्याह gent पूरणो ग्राह्येति भत्र श्रनयोरित्यधेः (१) | एतस्य फलं दशंयन्‌ ate सू्ान्तर- सापैक्चलाव्‌ सूत्रयति |

२३२। AM) दौ कश्च तत्तस्मात्‌ | कस्थाणपश्चमोकः पक इति- कल्याणी पञ्चमो राति स्मिन्‌ पक्ते सः इहान्यपदायं पक्षे पच्चमी रातिः परम्परया प्रविशतीत्यतो गौणत्वम्‌ कल्याणो- पञ्चमा रात्रय दत्र तु भ्रन्यपदार्थभूतासु रात्रिषु पञ्चमी साक्तादेव प्रविशति इत्यतो सुख्यलमिल्याष रातिः पूरणो वाया चेति yaa मुख्यत्वमिति पव्यैत--कल्याणोपच्चमा रात्रय इत्यत

(1) अनर पूरणप्र्ययान्ते परे एुवद्धावनिषेचे प्रर प्र्ययान्नादप्र्यषिधाने उभय शख्या पूरणी ae) तेन हेतना कल्याणो vew रावियेसिन्‌ US UY: कल्याणपञ्चमोक Kas VENUE Maras] परे षुषद्गाव- निषेधो नाभूत्‌, wareamatsfa नाभूत्‌ ततो aa: दति कप्र्वः। * * + समासवाच्यानां योऽसाधारणधन्प्ैः तत्वं सखवत्यम्‌ aay समासवाच्यार्ना Taare अखाधारणपर््नो रावितं, तन्तु ताह रातिषु पञ्चम्यां रात्रावपि aaa, खतो सख्यत्वम्‌। कराणपञ्चमोकः पक LT समासवाच्यः TY, TAA coal: पतव, तसु प्रतिपदादिपञ्चद यतिण्याककाल एव वर्तते Tray दति भेटः- दति sutere: |

8१४ मुखवोधं MATA |

cara: (१)। सौप्रमाण इति- खौ प्रमाणो यसेति वाम्‌ yar प्रमाणोलस्वाप्रधानस्यापि ग्रहणादः। alert ow प्ताभावाव्र TART: |

मध्वादि-कायैनावादिभ्याम्‌। मध्वादैरेकलावेनावाै्च कः aie | प्रियं मधु यस्य प्रियुषुकः, sare: | मध्वादियधा-

manage: भालि नथा दधिततपिषौ (२)

लबा नौर्येन wart: | नावादिवधा-

PAST पयो च्छः एमान्‌ पञ्चेह कौत्तिताः।

ara विं? रे नावौ यख feat

लियामिनः। हऽन्दाधमूतायां सियामिनन्ात्‌ कः सयात्‌। aya वाग्मिनो यस्यां सा वह्वाम्मिका सभा। feat किं? बहदन्तो राजा (2) |

कद्यज्ञतसान्ताभ्यां वा कदन्तरोसंन्रकात्‌ भ्रकतसान्ताश्च

नन

(1) wa रातिः पूरणो पूरणपययानवाच्या उमासवाच्या कात्‌ पूरण- HEATH ATT SHERYL RATT भवति, दूति हेतोः पूवत getter इरे Vee सप्यलम्‌- दूति गङ्गाधरः| पूरर्यपि रात्रिः. समासवाश्यापि रातिः एति हेतोः पूरे कल्यायीपश्चमा इति पूर्वोदाहरे पम्या wer areata | यद्यपि पृश्ठभोरात्ीतररातरेरपि TATE weeafa, aerfe बयापकलतात्‌ रातरिद्पेण समाना्धतेति| were पश्चमोकः परश Kea TUTE रभासवाच्यवात्‌ षेदोऽलीति पूरण्या Beat नाशीति कासिकेयेः।

(र) ay, Saray, उर्‌, थाहि, नअ पुकः अवदः, दपि, एच |

(र) पे अदवतसभाानादेति वहरनिक़् इति Me: | बहद्णडोति पाटानरम्‌ |

बदुप्रीहिं समासः | ४१५

कः स्यात्‌ वा हे। (१) ayaa: agate: Bay, सुवधूकः छदा; किम्‌ ? सोः सुभ्वः (a) बहुमानः बडमानकः TE योगिकः aga | कछतसान्तात्तु- प्रियपथः, faye |

माख्यायाम्‌ संज्ञायां गम्यमानायां oe: कोन स्थात्‌ I विश्वो देवो यस्य विश्वरेवः,. विष्वयशाः |

ईयः खाङ्गाधनाडोतन्तौभ्यः 4 tae: खाद्गार्थाभ्यां aret- TARAS को खात्‌ TERA, बहनाडिः कायः, बडतन््ोः aati erp fe बडनाडीको दिवसः, agate वीणा, ूर्व्वंण वा (३)

भ्रातुः सुतौ | (४) Pare लच्छणः, पुण्यभ्चाता विप्रः सुतौ किं बहश्राढठकः AT: | fac: ware: (५) 1 निता प्रवाणौ शलाका यस्मात्‌

(१) अत्र य्माटृढतसमासान्तात्‌ छत्रान्तरेण कप्रत्ययो प्राप्रस्लश्मारेवारत- समासान्तात्‌ ane: आनेन विभाषया विधीयते। अतएव ठदननरौकंन्नकात्‌ द्यतः दूखनेन नि प्राप्रे अङतसानादिष्यनेनाप्राप्नौ विभाषाये' शति एवगुक्त- भिति बृहन्युग्धनोधम्‌।

(>) areas इत्यनेन टोसंन्तानिषेधात्‌।

(३) दैप्रत्यवानतन्त्रोशन्दो धमनोवचनः। aretfa fere fat माग दति गोयोचन्दरः। yaw हूय लत cata |

(४) wigrat गम्यमानायां warenerq को दयादिः स्तुतिरत्र Taya भवतीति गोयोचन्द्रः।

५) निर उत्षरखा. प्रवाणया TBA को मतीलधः | प्रवाति बे यूतो caw अधिकरणे अनट्‌, एचोऽथिल्याः इवयाकारः नोऽचोऽन्तर Katy खयम्‌ | यद्या शखाकायां षसं युज्यते सा प्रवाणोति गोयोषन्दरः। fagqafe: पटः afar (व इति बृहनग्धवोपम्‌ |

४१६ BAT व्याकरणम्‌ |

338 | सदः सौवा। ( QW: १।, सः १।, वा ।१॥) सदस्य सः साहा | सह मात्रा वत्तते योऽसौ TASH: AAT! |

निषपवाधिः "पटः कविदन्यत्रापि ब्राद्मणमानिनो fea नोग्यः, वितुलितक्षवरौ शवरोल्यादयः। ३२४। AR सह इति ध्यं प्रो, श्रतुकरणात्‌ तस्या भ्रलुक्‌ समाढक इति-वाकाखय.सानुपूर्विकलात्‌ सह मात्रा वर्तते एति वाक्यमिति परे (१) सह समानम्‌ उदरमख सोदरः TNT | “a सोदरस्यातिमदोदतस्य" इति भटिः। हे इति किम्‌? aeaat (2) | गोहलवक्ष्वागिषि freafafe गम्यमानायां we सोवा खाइं। खस्तिते चेतराय सगवे went सहलाय सष्- vara सवस्य सहवल्ाय एषु किम्‌ ? afta ते सषपुच्ाय | संन्नाधिद्यानुमेयग्रन्यसमापिषु निलयम्‌ way सदस सो निलयं स्याह Tada सह वत्ते यत्‌ तत्‌ सालं न्त्रचक्रम्‌।

ममि neem ree ee

(†) wares xfa वाक्य साुपूविकलात्‌ सङ माना aR दूति वाकयं शा्दायाः gafar | वे त॒ भात्रा सह्‌ वर्तते इति वदन्ति तेषां भते सङग निपातः, ew नसाव्वेलिकः तख त्‌ एरषादावृङ्गतादिति केचित्‌। ° ° 8 CATV प्रथमनान्दपदाथवतोहिरेनाङ्गो्तः। वण्टे तु प्रचमा- मान्यपदाषे बनी हिममन्दमाना मात्रा सहितः सभाक दूति इतीयाततृपुरषं वदन्ति, Taga, छते सषृष््पेण निह थात्‌ सहितखारेथादप्पत्तेः सहिष्ये योगे way दूत हतीयाया अर - षति का्तिक्षेयः।

(३) ayaa दूति वाक्ये सदपूेक धातोः कमिप |

agaife समासः। 8१७

334 | Ware: षः UTE: | (सकष्यच्णः ५।, षः १।, ATF ७।) | grat 2 षः स्यात्‌ खाद्गे। दौघसक्थः, पुण्डरोकवद्तिणौ यासौ पु्डरोकाचचः। खङ्गे किं ? दौचैसक्धि शकटम्‌ |

२३६ | THAR: | ( दाङ्णि ot, sees ५।}। पञ्चाद्गलं दाङ |

~~~“ ~ --. ~~~ aN

एवं सपलाशं सशिंशपं खलम्‌ सकाकलोको द्रोणः, काकस्या अधिक इत्यथः साग्निः कपोतः, हे कपोतपातात्‌ भाव्यग्नि- रनुमोयते इत्यग्निरनुभेयः | एवं सप्ििशाचा वात्या (१) साङ्गान्‌ Gerad, भष्ानां समां यावदित्यधेः। ` ३२५। war सक्थि श्रि वेति सरकेष्यति तस्मात्‌ खाङ्लक्षणमुक्ञम्‌ | खाङ्गवाचिभ्याम्‌ भ्राभ्याम्‌ इत्यधेः | पुण्डरोक- वदिति-पुण्डरोकं सितपद्ं, घ्यन्तोपमानेत्यादिना वत्‌श्ब्द- लोपः। fara feat दीषेसक्धो पृण्डरोकाच्तोति ae सकधोति- शकटस्य प्राणिलाभावात्‌ इति भावः हे किं? टोधसक्थि देवदत्तस्य |

३३९। दारु Waele दारुणि ors षः स्यादे। पञ्चाहलमिति--पद्चाङ्लयो यस्िन्‌ इति वाक्यम्‌ भ्रहूलितुस्या-

(१) swat अतुमानश्रतया साच्ारहपलभ्यमानोऽव पिशाचोऽचनोवते। हुये विकल एव, सहविदयुक्षः सपिद्युष xfa Mayas: |

५२

४१द FANT व्याक्षरणम्‌। २२७ | दिषेमृष | (fea: ul, ae: yi) ३३८ | नवोर्लौपीती asa |

( वीः an, लोपौतौ १॥, ते 9; we 9 ) | नख लोपः खात्‌, BATA wy खादचि ये ते। दिमूरैः |

२१९ ARIAT डोऽवहोः। ( सह्गयायाः ५।, डः १।, श्रवहोः ५। )

8, 1 1 eater ten ee ee

वयवयुकतं धान्याययुत्तेपणकाष्ठमु्यते। दारुणि किं ! wangfe- SO द्यत्र स्यात्‌

2201 fea! fea faa तत्तत्‌ शराभ्यां परस्मात्‌ मृदुः षः स्यात्‌ हे।

३२८। a नच तौ तयोः, लोप aie ती, ay यश्च antag, एति we विेषणम्‌ feat इति- दौ quia यस्य इति वाक्यम्‌। एवं व्रयो मूर्बानो यस्व तिमूहेः। श्राभ्यां किं agaet) श्रोद्यथा--वाहवि; aaa इत्यादि | WAHT (१) कचिव्र BY तुरासाहं पुरोधाय धाम mana ययुर्ति कुमारसम्भवे |

२२८ संख्या बहुवजाया इति--वहोर्पलक्षणत्वात्‌ उष- गणा इत्यत्र खात्‌(र)पनाह्नतषानसलात्‌ उपगणका इत्यपि (३)

1 rn ~~~ = = ————

(1) वाच्ये Karten तेऽच्ये इति करणादिः | (x) अलम गखवच्छाया yafy वज्गव्यनित्भिप्रायः।

(१) उपगणा दन्न डे षति अवति ङ्प feet नाशीति पणव््छनय फलं Tafa aay

See - -- --- ~~~ =

SEATS समासः | ४१९

बहवर्जायाः aR डः स्वात्‌ हे। पञ्च घट्‌ परिमाणं येषां ते पञ्चषाः, उपगताः दथ येषां ते उपदशाः। बष्टोसु उप- वहवः | २४० नाभ नानि | ( नाभेः ५।, नानि |) पद्मनाभः |

ee ee

बहवजनात्‌ संस्येयहत्तिसंख्याया एव ग्रहं, तेनाषटमिः सद वर्ते wet पश्चाशदित्यवर ख्यात्‌ (१) पञ्चषा दति we at oe a इति वाक्यमिति ot) एवभुपदशा इत्यत्र दशानां समीपे येते उपदशाः, नव एकादश वा इत्यधेः | संख्यादूरेत्यादिना(२) यत्र सः ततेवायं विभिस्तेन भोभना दश येषां ते सुदशान इत्यत्र स्यात्‌ इत्यपि परे (२) उपवष्टव इति -संख्यावड्डतोति संख्याल्ाति- देशात्‌ प्राप्तौ निषेधः | |

सोः खः-प्रातभ्याम्‌ | सीः पराभ्यामाभ्यां डः स्यात्‌ ₹ह। शोभनं AISA सुखः सुखौ सुखाः, सुप्रातः Baral Bora: दिवसाः | तथाच «सुप्रातमासादितसग्मदं तत्‌” इति af: |

२४० Ma संज्ञायां गम्यमानायां arate: स्यात्‌

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(, Vertes एकाटिर थच्छतिपययंन्तथब्दः शं ख्येयटत्तिरेव तु संखयान- त्तिः, wares इः! विंधत्या दिशं खयावाचकः शब्दः संख्ये यदत्तिः संख्यानट्तिख | wer विंशग्ाटोनां संख्यानह्तित्वं तदा तस्मात डोन खात्‌ तेन अहाभिः waa सा पञ्चाशदित्यव दयादिति कार्तिकेयः अन सान्‌ awa सौ Bret Xfs गङ्गाधरः २०१ छत्र टोका ZeAT |

(९) १९९ एषं दर्टव्यस्‌

(९) qare-afa-senfafa शंशिप्सार नम्‌ ( १२२)

fo FRAT व्याकरणम्‌ | २४१। लोबोऽनर्वहिभ्याम्‌ | ( area: ५। भन्तर्‌-वहिभ्यां wu) ग्रनतर्लोमः वदहिर्लोमः। ३४२.। नञदुःसोः TAM वा (ATE: ५।, TAT: 4l, Tit 1) | परसकथः श्रसक्धिः। `

~ we ~~~ ---- eR en ——. ~~ ------न _ ~~~

पद्मनाभ इति-नाभिखितं पद्मं यस्य इति वाक्यम्‌ (१) “प्रजा warren fea तु सान्तविधेरनित्यतात्‌ श्रसंन्ना- aret (२)! एवं नाभिखिता ऊणा यख, मनोषादिलात्‌ खे, STA मकटः | ऊरनाभिरित्यन्ये | तथाच “naferat विना काथमूणेनाभेरपौयते” इति भटवार्तिकम्‌ |

२४१। wal! Tata इत्यादि-भ्रन्तग॑तानि लोमानि यस्य, वहिगंतानि लोमानि यस्य इति वाक्यम्‌ | श्रत नासीति नानुव्तते एथग्योगात्‌ | राभ्यां विं Agata aa

२४२। नञ्‌। एभ्यः परात्‌ सकृधौ डः खात्‌ 2 वा। भसकंय दति- नास्ति सक्थि यस्य इति वाकरम्‌। saat रिति। एते उदाहरणे श्रखाङ्ग एव श्रये, (2) ATF तु षः पूर्वगेव

(१) wa नाभिरश्येति अथवा vy नाभावेति व्यधिकरणो बह्व्रोहिरितिं १३५ Ga टीकायां गोयोषन्द्रः|

(२) ऋअरविन्द्‌नाभिपदेन aa एरारिलभ्यते, तु dual, fawuaia अनुक्रलवाटिति कात्तिकेयः।

(१) सक्थि छदः शकटङ्कमिेषश् |

वहुत्रीहिषमासः। ४२१

२४२ अस्‌ प्रजाया; (भस्‌ ।१।, प्रजायाः yl)! अप्रजाः सुप्रजाः |

२४४ मन्दाल्पाच तु मेधायाः | ( मन्दार्पात्‌ ५।, ।१।, तु ।१॥ मेधायाः ५) Ta: सुमेधाः मन्दमेधाः

परेतु षह हलिब्दस्यापि ग्रहणात्‌ see: श्रहलिः दुलः दुष्ंलिः gee: सुलिरिव्यप्याइः | wa तु नजसुदुर्भ्यो हलिः सक्थिसक्तिभ्यो यथाक्रममुक्ता wee: भ्रहलिः सुसक्थः सुसकथिः ua: gute: इत्याहः इलसक्ग-शब्टाभ्याम्‌ एव सितात्‌ चान्द्रा इलिसक्तो wafer) एकस्िन्रथे प्रयोगदयसिदयथम्‌ अकतसान्तात्‌ कविधानाधञ्च इलिसक्िग्रहयमित्यन्ये। एतत्‌ wa Taare वाशब्दस्य aren सिदमिति तरेयम्‌ सक्ति- रिति सन्‌जधोः जिः

२४२ Wa वैति नानुवत्तेते, watt चिरित्यत् वाग्रहणात्‌ नञदुःसुभ्यः प्रजाया wae! भप्रजा इति। एवं STA: सप्रजाः, भ्रतलसोऽधोरिति a: (१)

२४४। मन्दा चकारान्रञ्‌दुःसोरित्यनुवत्तते | ATT AT ARTY परस्या मेधाया we ae) wae इति। a दुमधाः सुभेधाः THA: परे तु नजदुःसो्मेधाया wa नित्यम्‌

(१) Ty नञरेरव्यवङ्ितोत्तरत्वमपे शितं, तेन ge ofan प्रजावखव छयणिप्रज इत्यादौ afefa दर्गादाबकात्तिकेयगङ्गाधराः।

४१९ grated व्यकरणम्‌ |

oo wae] wary ५। W121) सुधर्मा |

<

भसत वेत्याहः, THA मन्दमेधाः मन्दमेधः qa: w- मेधः दव्य पि. (१)

Rey! WaT) लन्तलाकान्दाल्ादयो नाङुवत्तनते, तेन सामान्यतोऽयं विधिः सुधर्मेति नसव्मत्र इति a) एवं सन्दिग्धा acai vanfe इह कैवलघदखैव ग्रहणात्‌ wat wha gee, परमः सुधर्म्मा यस्य इति वाक्ये WAT: इत्यादौ AIA! परमः शोभनो wat यस्येति वाके परमसुधरमा इति स्यादेव, कैवलध्ीशष्दस्य इ-सावयव-

लात्‌ (a) | i hei (1) नि्मसिच परतामेधयोः (५।४।।२२) एति पाणिनि व्रम्‌ “निय-

apne विधाना तेनाखनेधस दूति शिध्यतोति हत्तिक्ाराटय' दूति त्व बोधिनो | “एवं तं निच्ययह्शाटन्यनापि भवतोति Gat श्रोतियलोेव ते राजन्‌ भन्दकषशासमेभषः। अहषाकडता afern तक्वा्ेद्चिनी” | दति कायिका अतएव तकववागीयेन -अन्दक्ञाु वा" Keg परेषामब्र मतभेरो दधित xfer

(x) “धम्पौट्निच्‌ केवलात्‌” दूति पाणिनोव सूरं ( ५।४।१२४ ) | केवलात्‌ Emery परो यो wena बहनोहेरनिष्‌ दात्‌] weet | केवलात्‌ किम्‌ ? परमः खो wel यस्येति fare बहोर माभूत्‌ #** * सन्दिग्ध साध्व मोचारो भमघ्ारवपूपटो गवरोहिः। एवं TCHR Tay. _ कमि arate) दति रिद्गानकोररो | कापिक्ायामषेदमेव परमथासो we परमखः, धर्मो बद्धेति वदा विष्हति तदा परभणधभो्पि eran इति meth where? तु-^अहतरभासानराद््ौन्‌" ( हभाशपारे ४६. छलं !। वधन, energy तो way एते, शाक्ादृ्तर्ाणो वेदिता इति

Neat ease: | ४२३

२४६ नञ्‌ सुचिवुपपाच्चतुरीऽः | ( नञ्‌-सु-ति-वि-उपात्‌ ५।, चतुरः ५।, षः १।)

षीम

सुटणसोमहरितालम्भादन्ताहारयोः | .खादिभ्यः परात्‌ दन्तं MIT वत्तमानात्‌ जश्भश्रव्दादन्‌ TE | शोभनो जग्भो दन्त MINT वा यख FHM, SIAM दन्तोऽख ठण्जग्धा, इरितजग्मा एभ्यः किं परतितजश्मः। “दन्तयोरन्तय Fe दन्तो जश्मस्तधाशन"मिति ददरः

efaurctineraafed 1 द्िणात्‌ acetate, we व्रणे दयाधक्लतो भवति। दकशिणखितमीकमस्य efatat मृगः (१) 1 waa afer: शूकरः | भाष्यम्‌ | शतसमासानरान्त-परमः GUM यद्ध परमतघम्पः अहुपाङित- gawd.” wang) तत्र गोयोचन्दरः-“अक्ञतं समासान्तरं यत्र ताद्य ब्द्‌ाइडनोहाषन्‌ भवति। + * + साचात्कुतो wal एतेरिति वाक्योपदथैनं विपदे ब्र हवन्‌ भवतीति शषनाधम्‌ | बेवलात्‌ पूथपदात्‌ प्ररो यो धर्म अ्दस्त्यादन्‌ भवति, पदस्ठदायात्‌, अतस्तिपरे aware भवतीति चन्द्र बर्मानजयादिव्यादयः। तच्विराश्ठाय भाष्यियुक्म्‌ नहि प्रयदचङ्तिर्वाष- mat भवति परमः प्षर्ोऽखयेति घण्डषब्देन सह प्रथं meet wy: ज्रीह्हिः| प्रभः शोभनो walvafa निप्र बवरोषो पु परम्ठधर्मां cae भवति| अतुपालितक्लधश् इति प्रथनं ष्टोसमासस्ततो वडव्रोहिः। चह ufaage धर्मरऽखेति बहनो हवन्‌ भव्रति | कंतशषमासानलरोऽब Teal, weal: |) चन्दरग्वलामो विकसेनानमिच्छलः इति| तकंवागोषेन भाषयक्षारकनदोश्ररयोमेतमहङ्धतभिति प्रतोयते लतसमभार्ूव्व पदात्‌ धादनू खादिति कास्तिकेवः।

(th दमं wager | दखिणमद्गं बणितमख arta cared दति काथिका। wa जाते ae दशि कग दति Taw: |

४२४ Brahe व्याक्षररम्‌।

एभ्यषतुरः भः खात्‌ TAGE: सुचतुरः | 389 | wag: | (भात्‌ yl, नेतुः ५।) |

२४६। AM नञ्‌ ga faa विश्च उपञ्च तत्तस्मात्‌ saat इति-भ्रवि्यमाना धर्राधैकाममोक्ा्चलारो यख सो- SGU, | रसुचतुर शइति--णोभनाश्तल्वायो यख्य a एवं वयञ्चलारो वा मानं येषां, रयो वा चलारो at इतिवा त्रिचतुराः(१) fararaard यस्य विचतुरः | उपगताश्चलारो येषा, aT समीपे वा उपवतुराः।

२४७। भा सगनेतेति- मृगो सृगथिरा Fat यसाः सा। एवं हस्तनेता पुथमेत्रा रातरिरित्यादि यख नक्षत्र उदयसमकालं राविः MATa तत्ता नेढ इति |

गर्नासिकाया नम्‌ च। गैः परस्या नासिकाया भ्रः स्यात्‌, तस्षिन्‌ नसादेशश्च हे प्रगता नासिका प्रणसम्‌ VAG सुखम्‌ | नासिकां प्रति. प्रादेरगिलेऽपि गतादिक्रियागुगतलात्‌ गितम्‌ (२), गैः किं? शोभना नासिका cee सुनासिकः। श्रनु car ब्रासिका यस्य सः श्रगुनासिकः।

"ग = "नन

. (१) tera डो बष्टोरिति mee बाधकोऽयं अग्र्य इति करा्तिक्ेवः।

(२) “ouenty” (५।४।।।९ ) दूति पाणिनीयस्बम्‌ उपश्गयडं प्रारीनाहठपलचणं, नासिक्ाशन््खाक्रिवाचतेन तं प्रल्युप्रसगेलवायोगात्‌ क्रिवावोगाभागेऽषुपषठगेलमस्िति aya) सापके अधपिसावकमिद्ययोभाे उपषगात्‌ gratia शद षलपक्कात्तदा-~ दरति तष्वबोधिनी ,

ayaife समासः | ` ४२५

भर्लाच्राजि खरखुराभ्यान्त॒ वा त्यलुक्‌। wating परस्याः नासिकाया प्रः स्याह dwrai, तस्मिन्‌ नसादेशश्, खर- खुराभ्यां परस्यालु त्यस्य वा लुक्ष्‌ स्यात्‌ gia नासिका यस्य qua: वार णसः। नाचि किम्‌ तुङ्गनािकः 1 स्यूलात्त- खथुल- नासिक वराहः खरा तोदा नासिका भस्य ati: खरणसः, BCU; YU: |

वेः ata) वैः acar नासिकायाः भ्रः ae, तस्मिन्‌ Gay (१) भारेशौ, चकारात्‌ नसादेशः विगता नासिका we विषः, विग्रः, fave.) तथाच “विना इतवान्यवा"” इति भट्टिः (2) 1 विखुरित्येके |

सुदिवाद्याः 1 afearat अ्रदन्ता निपाल्यन्ते। शोभनं दिवा यसय सुदिवः,(२) णारिकुत्तिरिव aface शारिकुत्तः, चतस्रो Saal यस्य चतुरखः, (४) णा इव पादा यख्य एणोपदः,

LAL LLL LLL TE LL TY GY LT ना Rie,

(१) we सिड़ानकोखदयाश्च खु इत्यन ख्य इति दृश्यते |

(२) नसादेशं बाधित्वा यादथ एव निचयं भवतोति werfead, तन्निरासाय ५विनक्षा हतव्रान्धषा” इति भङ्िपरियोगो दशित दरति गोयोचन्द्रः। शिङ्गान- Saggy —“ad तद विनसा हतबान्धवा दूति भह्िः विगतया mfenat पसितेति व्याख्येय” सिबयुकम्‌ विनक्ति प्रथमान्तं, किन्तु serge ढतोवान्त fafa भाष इति तशलबोधिनो।

(१) दिशाशन्दोऽयं खभावाद्धिकरणाचपरषानोऽव्ययम्‌ शोभनं दिवा अद्येति शोभगभिति ware विशेषणं, शोभनं दिवाकाले aaa इति ११७८ टीकायां Mares: |

(४) भारिः wet) safe: कोटिः।

४०४

४२९ quad व्याकरणम्‌ |

280 | संद्यासूपमानात पात्‌ पादोऽस्यादेः। ( सह्या-सु-ठपमानात्‌ yl, पत्‌ Iti, पादः १।, We WINS: ५।) | एभ्यः TSA पात्‌ स्यात्‌ हे, तु MMe: | दिपात्‌ सुपात्‌ व्याघ्रपात्‌ | इंस्यादेलु हस्तिपादः |

~ =^ ~ ~~~ ~न ee ee ee _--~ =-= me - ~ ~ -- ~+ =^ eer

भ्रजपदः, प्रोषटपदः (१)। Myfeafay काले स॒मोधूल CTA | २४८। FST! FA सुश्च उपमानच्च तत्तस्मात्‌ दिपादिल्यादि- दौ पादावस्य, व्याप्रपादा इव पादा यस्येति वाक्यम्‌ इस्यादेसु-हस्तिपादः दस्यादियया- हस्तो कटोलः ASA TRAN गणिका महान्‌ | दासो कुशूल cael इस्यादौ परिकौत्तिता; (2) शह महच्छन्द स्यानुपमानल्वेऽपि पाठात्‌ क्रबिदलुपमानादपि पादख पात्‌, तेन गूढौ पादावस्य गृटृपात्‌ पादसमानारधपात्‌- शब्दे नैलन्यः |

() प्रोहो गौ" wale creme Meus xfs feared: पाड. गन््रमानार्थेन venga एषां fefafcfa wer, aagennfafe गोयीशन्दरः।

(र) कढोलचरडानः। TBM घान्याधारविषेषः We शति द्यावः गण्डोलःवाटुल इति खयात - द्रति दगा दाश-कार्तिकेय-गङ्गाधराः। अपरेऽपि कतिपये श्छ शृक्यारिगणे पाणिनौवेः gaat) तक॑वागोेन ठु संशिप्रसारभत- तु्तम्‌ |

ayatte समासः। 8२७ॐ

३४९ कुम्भादेरीपि। (कारैः ५/, $पि oi) FAS: परस्य पदस्य पात्‌ सात्‌ ईपि ats (२२४ ) पात्‌ पत्‌ पौ ` gat शनपदौ ईपि कि? Az: | २४८. gas शपोति विषयपतो (१) तथा fearaa- दायेभूतायां FAS पादस पात्‌ wre कुम्रपदोति-ङकुम्भा- विव पाटावस्याः, शतं पाटा war इति वाक्यम्‌ कुम्भादि- यथा- कु्रजालशताटेकल्लष्णङग्यरैशूक राः | सूत्रगोधाशकदासोसूचोकलसनिव्यैयः (2) afagtu: शितिव्याणो विष्णुश्च कथिता इमे (९) दह वीषाचिदुपमानलत्वात्‌ gaa fae नियमा्धैमिदमत are शपि fa ङ्श्मपाद इति (४) दैपोलक्षः पाच्छोणादोत्यत वाशब्दस्य व्यवस्या कु्भाद्यादिपाच्छब्दात्‌ faat नित्यमौप्‌ (५)।

(1) तिन रपि कत्ते care 1

(३) fata xara निरपूष्येको विपूष्वेकच पाट्‌ cae: | कुशि; विकलाङ्गे विष, ठशविशेषे yfe |

(३) efenercuagartigne वाणविष्ण॒शन्दौ eat) शलत्‌शन्द्ख तन्न॒ दन््ादिररं गछति! शिद्धान्तकोषदीमते दुम्भादिगणः ` हालिंथतसंख्यकः | काजिक्षासते वयोविंशतिरंख्खक्गः | खउभयनेव यरच्छन्टो तालव्यादिद श्यते |

(8) एतत्‌ gat विमा पूजद्नविष्हितपाादेथोऽनिषायये दूति गङ्गाधरः|

(५) परष्डोणादीत्चख पेकद्सिकत्वेऽपि अन्‌ tu नित्यः अन्धा “gan:

४२द aaa व्याकरणम्‌ |

२५० | व्यतीहारे चिः gaat घीऽनच्या वा।

( तीहार ७, विः १, पूरैः १।, घेः १।, प्रनचि 9, भ्रा ।१, वा ।१।)

व्यतीहारे यो इस्तमात्‌ fa: स्यात्‌, wae षैः खात्‌, भ्रा वा नलचि।

कैशेषु केशेषु weal यद्‌ युं प्रहत्तं-केशाकेगि।

CUA दर्श VET यद्‌ YX प्रहत्तं- दण्डादण्डि |

सुष्टामृष्ट सुष्टमुष्टि, बाहावाहइवि बाहृवाहवि |

श्रचितु safe |

इति =: |

LOL EE

que | व्यतो। otek प्रहरणादिरुूपक्रियाकरणं व्यतो- षारस्तसिन्‌ तरो्न्तयोरित्यादिना (१) यत्र हस्तत्रैवायं विधिः| दण्डादण्टोलादि-चिचवाहयात्‌ ag) मुष्टामुष्टोति-े gos- स्याल नेच्छन्ति षां at तु सुषटौमुषटीलेव। दिदण्डयादयश्चयन्ता निपयलन्ते। दी दण्डावस्यां त्रियायां हिदण्डि प्रहरति feefe उभयापाणि दिसुषष्येकपद्यपि | उभादस्युभयाहस्ि उभापाखुभयान्नलि | उभाकण्युभयाकणि उभयादन्लुभाष्लि |

° =----~ -- ~~ -- = ~= ~~ ----- ~ ~~ --- = ~~ ---^~ ee ~~ we

te = का

स्लिवाम्‌" दृयनेनापीष्टसिद्नौ दपोति यहणमन्ंकं शात्‌ यदा शप्‌ eat a fx तद्व TRA TaN | अतएवाह ta fa gerne इति-द्ति gatete: | (1) १९०७ FB दर्व्यम्‌

बहुत्रीहि समसः ४२९

संहतपृच्छयुभादन्ति निङ्ख्यकरपिं इत्यपि | उभावाहभयावाइ प्रो्टपदयतर WIA भ्रतोभयग्रष्ट्स्याप्रयोगैऽपि उभयापाणि इत्यादौ उभशब्दस्यी- भयाटेणः उभावा उभयाबाड दूय aaa निपातनात्‌। कणौ fag (१) धावति, Mee गोः पदं weer धावति इत्ये fagaate प्रोष्ठपदि इति defo विगणपाठात्‌ क्रियाविशेषणा- नामैवाभिधानाद्‌ fewer शाला इत्यादौ स्यात्‌ धनुषो छन्‌ प्रायोवातु नानि | धनुषो waa) प्रायः are संन्नायान्त॒ वा। गाण्डोवं धनुयस्य गार्डोवधन्वा wear इत्यादि प्राय इति किं! टतधनुषमष्ाय इति geet: | पुष्पधन्वा पुष्पधनुः कन्दपः संप्राज्लातुनो Wat AIG) संप्रा्यां जातुनो न्नुः स्यात्‌ ₹, HTT वा| संहतं जानु यस्य संज्नः। प्रगतं जानु यस्य प्रनतः HE MY IT HEY: HEAT: | सुसंख्याभ्यां वयसि दन्तस्य ea: | FWRI संख्यावाचकाश्च परस्य दन्तस्य ZA स्याह वयसि गम्यमाने। Wl शोभनां दन्ता WA Yeq षोडशदन्‌ कुमारः, feeq वत्सः (३) वयसि fat > दिदन्तो गजः faci नान्नि। स्तियामन्यदाधेभूतायां दन्त्य ददः स्यात्‌

(१) fagrer arene दूति कार्तिकेयः (र) डः दम्‌, अनृस्वितिः। डिन्वादन्यख wet} , (2) शिशु्वाष्या त्विह गम्यते इति तक्वबोधिनी |

8११ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

2 संतनायां गम्बमानायाम्‌(१)। दतो, फालदतो। नानि किं 2 EAT | धग्रान्-श्यावादिभ्यां वा। भ्रप्रानतात्‌ श्यावादेख परख TATA ददः स्यात्‌ हेवा। कुन्दकुद्रलाग्रवहन्ता यख कुन्दङुद्रलाग्रदन्‌ RHA, श्यावदन्‌ श्यावदन्तः (2) | श्यावारोक(२)वराहाहिषमूषि शग्माः | शिखरः शमी श्यावादौ दथ वौर्तिताः ककुदस्य Rca we FW! भवश्यायां गम्य- मानायां ककुदख HHT स्थात्‌ ₹, AY TAs) | भ्रजातं कङुद- मख THAN वकः, खुलकङ्घत्तरणः (५)। भ्रवखार्या विं! wage: | ककुदिव ककुदं गङ्गादि, तोरि ककुदानि चस्य fangfage: (६)

योनि Se Sees SS

(1) एथन्‌योगात्‌ संख्या भ्यामित्वश ववघीत्यश्च fafa: |

(२) शावः खात्‌ कपिष इलमरः, लष्णपोतमिश्नो वणं विपेषः।

(१) अरोका अच्छिद्रा टना अख शः खरोकद्न्‌ अरोकट्न एति तश्व- Ran | won निर्टीँतनिरिति कायिका ्यावारोकाभ्यां ठत्तायाभेव पिभाषा दपि काशिक्ा।

(a) बरि्दात्‌ परख ATE HEE UTE UI गम्यमाने KAT: |

५) कालादिल्ञता वसतु षव्श्तयोऽवख्या दूश्यते अवक्नातककषत्‌, बाढ Kees | पणंककुत्‌, स्यभवया Kees) उ्नतजङ्त्‌ हद्वया Cee: | wenn, बलवानित्धः। यटिकङ्त्‌, नातिष्यूलो नातिङ्ञए दूचधै- षति कारिका (५।४।४६)।

(६) agent wate we ककृदमिलच्यते। शेद्धिथिश्चरः wera स्िकङ़त्‌ fal तहं ? एतेषा पतत (वरेषद्धेति कारिका (sites )

agate समासः | ४२१

` व्यङ्गां काङुदख काङ्त्‌ पूणोत्त॒ वा art परस्य काङ्द-

शब्दस्य काकुत्‌ साडे, Gata वा। विगतं काङुटमस्य (१) विकाङुत्‌, उत्काङत्‌, पूशकाङत्‌ पूर काकुदः |

weet हदयस्य faa, | भ्राभ्यां मित्रशचरोः क्रमात्‌ हदयस्य त्‌ ME! Mat हृदयमस guia, दुष्टं हृदयमस्य Seq ue भ्रनयोरिति fae qeea: साधुः, दुदघ्र ae: | ara किं aged मित्रम्‌ |

जायाया जानिः। जायाया sift: ere gaat जाया यस्य युवजानिः, ठदजानिः (२), तथाच “युवजानिधेलुष्पाणि"रिति भरटिः।

इति agatfeaata: समाप्तः |

HTM समासः (यः)

इदानीं यमाह परमश्चासौ इत्यादि

व्यवत्‌ यन्तम्‌ इतःपरं सूत्रे यत्‌ ष्या निर्दिष्टं तदयवत्‌ स्यात्‌ | ग्रतिदेणादरय पव्वैमिति qeafaara: |

विथेषणानां विशेष्यः विशेषणानां fate: ay यः स्यात्‌ I एकार्थनां दानां सो ade SM! तत एकाधता

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(१) तालु काङ्दषच्यते दूति काशिका ( ५।४।।४८ 1.

(x) यद्यपि ज्ञानिः सौमन्तिनीवध्वोरिति भेदिग्धादौ rua, तथापि बुवती जाया ae इति वाक्ये युवजाब दति निवारणाधेः सत्रकर खमिति गङ्गा WO. we wie इति खवहकत त्बमाघान्तविषेरनित्यलन्नापना्ंमिति इरगादासः।

४३२ FANT व्याकरणम्‌ |

सामानाधिकरण्यम्‌ (१)। तश्च भिव्रप्हत्तिनिमित्तानाभेक- feat aft (२) सा विशेषरविगच्यरूपाणाभेष भवति (a) aa waranty प्रहत्तमनेकप्रकारि ag प्रकारान्तरेभ्यो व्यवच्छिद्य एकत्र प्रकारे व्यवखापयति ARTA विशेषरम्‌ (8) एवं axe 'तदिपे्यम्‌। प्रमाता wa GANAS जोवामतः - परमामव्यावर्ेकलादिशेषण-

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(९) wart एकङ्पम्‌ afwafafa यावत्‌ अधिकरणम्‌ आश्रयो वयोः प्रत्तिनिमित्तयोः ते समानाधिकरणे, तयोर्भावः सामानाधिकरण्यम्‌, भााधें ष्णाः |

(२) भिन्नप्षट्तिनिमित्तानां-भिन्नानि एचगृभूतानि एषटत्तिनिमित्तानि चक्य- ताष्दक ध्मा येषां ते भिन्रप््ट्तिनिभित्ताशेषाम्‌। अव्र विद्याहद्भारः- भित्र प्षटत्तिनिमितते षदाचतागच्छेक्े वयोरिति बड्नीहिस्तेन भिच्रम्तिनिभित्तयोः गब्द्योरि्े- इूधाह नोढोत्यलमितत्र॒नोढल्भेव aang तथा उत्यबत्वमेवोत्मल पन्दश प्रसतिनि मित्तम्‌। waltafeg शये उत्मलङ्पे एत्ति वत्तं बिद्यमानतेति यावत्‌ सामानाधिकरण्यं भवति |

(१) विशेषणमिति -पिपूष्वात्‌ रिष्‌ इषो तु विशेषे इग्यश्मात्‌, fax fx अदर््ोपयोगे carey युलादेषो करये waz, fafa अनेनेति विेषणम्‌ | araican: परिरेपोकरण भिति दुर्गादासः |

(४) सामान्याकारेण -सामान्यङ्पतवा विपेष्यलेनाभिमतातिरिज्रहस्तिधम्यै- तथा kare: | प्रश्त्तमिति- रण्ये क्त, व्तमानमियधैः | यनेक रीति- ऊमेकषधम्पोससानाधिक्षरखमिव्धेः | वस्तिति--वसतुपटं दितोयान्ते पदार्ध- परम्‌। व्यवश्िय-व्यावश्यं Kee) एकत ॒प्रकार-द्ति विषयसप्तमौ, विषवोऽत्रानन्दषह्धावः। व्यवस्यापयति--नियामयति, त्यात्‌ प्रकारात्‌ खनति रिकरी्रोतोब्न्ः गति िद्यालङ्कारः। इतरेभ्यो ब्वच्छेदकलात्‌ aga, एकबप्रकारे व्यवस्थापरकलयाद्वरेषणस्‌ | Wey भेदय प्रकारानरेभ्यो व्यव्दय UIA HAN व्यवस्थापनोयं विरेयश्चत्यल मिति wees: |

MAINA समासः | ४३३

लम्‌ | went मैदयलादिशेलम्‌ एवं नोलीत्पलं, पुत्नवद्‌- wei, पाचकपुरुष इत्यादि यथपि नोलादिवत्‌ उत्मलादोना- मपि इतरव्यावत्तकल्व, तथापि नोलाद्या्रयलेनोत्मलादोनां प्राधा- न्धादिगे्लं, नोलादोनामुत्यलादयायिततेनाप्राधान्यादिधेषण- त्वम्‌ (१) अतएव नोलाटौनामुत्पलाद्यधोनलात्तत्ततिङ्गवचनतवम्‌। कुलङुण्ठः कुर्डङ्लः, (2) fravaz: पटुविखमष्टः, caret हयो विंयेषणत्वेऽपि विशेषणविशेष्यभावस्य कामचारादेकस्य fait- त्वं करप्यते। श्रभिधानात्‌ य-सः क्षिचिन्रित्यः, afar खात्‌, क्वि दिकश्यः। यथा कष्णसपः लोहितश्यालिः ; रामो जामदग्न्यः भजन AANA: ; नोलोत्यलं नोलमुत्पलमित्यादि (३) विशेषणस्य

---- - ~ ~ - - ---- ~~~ ---~ - -- - -- ---~-~-~ - नि

१) नीलशब्दो हि geen द्रव्ये ठत्ततवादा्रधानम्‌, saan जाति- इक्या द्ये TAMA प्रधानं ; यतो गुखः east ga प्रवर्तते निवर्ते च, अतो यणः gE अनाकरभूतत्ारप्रधामम्‌ | जातिहि द्रव्यद्योत्पत्तेः प्रभया विनाथात्‌ ya aT MUA, खतः खा दूव्यद्याल्मभूतत्वात्‌ प्रधानम्‌ wy श्तं कागमा- कमेत दूयत एवं व्यप्रख्ितं; anfe केतगुणयुक्रखय amar व्णान्तर- बुक्रोऽपि an आलभ्यत ए, तु Maguay द्रव्यान्तरमिति wale: ( खमाशपारे ८९ Gara ) |

(२) कुगत्वश्च क्रियायामलखरं कारव, Foy wean षति ठभवोरपि दुखशन्दलम्‌ | TMS यद्यग्यालगु खतवरं Fara एष्युखत्वं तथापि कशखयासामानाधिकरणयं बोध्यम्‌ केचित्त कुणठकुञ दयत स।मानाधिकरण्डं विषयतेव, कण्डयन्द्श gauze चेकविषयत्वाटिति भाव एति पिद्याबहनाएः।

(३) wfafgata ate प्राह समासे efeawfy wed xfa Wa nagefafcay अतएव कसौधारयादपि cy मतुप्रत्ययो भवति, जष्ण- weary uaa oft | महि बह्व्रोहिष्वा सोऽ प्रतिपादयितुं शक्यते, qT” uaa दूति) एवं डोद्ितथालिरित्याव्ययि। केचित्‌ नोलोत्यसभित्यल्लापि नित मेष सभां मन्यन्ते, यतस्तदपि ढम्‌! अतएव गोषोत्मलवद्यर दति भवति,

४५५

४१४ quad व्याकरणम्‌ | दतरव्य व्येन fateda ay यः। तिन दत्तः fim, लोहितस्तचकः, शः पाण्डर cael खात्‌ (१)। wage: भिंशपाहत्तः इत्यादो यरा भालादोनां विथेषहत्ति. मीवधाथते तदेव फलक्चयोवत्तमानत्वात्‌ सामान्याकारेण nanan विशषणलवात्‌ (२) इति कथित्‌ | ta एवेलन्धः | बहनां दानामपि यं कुषबराह carey wens) wa तु बहनां दानां च-हन्य सं gaia, महश्च तन्रोल्च तदुत्मल- चेति, पटौ चापौ श्याभा चासौ कन्यक्षाचेति, रान्नोगोः ifr avait पदोष्यामकन्यका राजगोक्षीर- निल्यादिप्रयोगापत्तः भे सर्बान्तदस्येव परदलेन त्याल-पंवद्‌- भावाकारत्याभावप्रसङ्गात्‌। यगभये महानोलोत्पलं पटश्याम कन्यका, पोगभषोसे राजगवो्चीरमितितु स्यादेव। बहनां

न्नीतं शरः| *>» * रामो जामदग्न्यः, अव्लनः कात्तवीर्य इयत राभाक्छनशब्द्यो रनेकषाथत्ते रभयोरेष व्यवच्छोययव्यवच्ेदकताद्िधेष िेषय ar’ विद्यमानेऽपि समास इति mate: (१।६।।७) | we we are- वोर्याज्लुनो गाम राजा बाहदङृक्षष्दिति ? मेदमहोशदितिवत्‌ wigare: कायं इति विद्ाब्कारः।

(1) इश. पिपा ufa—ee हि figured व्यभिचरति, यतः प्र्ञारानरेभ्यः प्डाचारिग्विलं व्यवच्छिनत्तोति भवति तद्य finer feted, इको fader: | विधपाषेसु दशतं व्यभिचरतीति शशो fetus, चिप fade इति nae gates पिेषण विपेप्यतवाभावान्न erie इति गोदोषन्दरः। व्यभिशरति aorta |

' (२) यद्यपि इशे vee पिंशपालं लातिः, फले चान्या, तथापि पिंशपा- पदाधवद्ध-दानाग्यधर्ो fda तिति बोध्यमिति freee: | weg तदिव प्रकरणाद्वा Tare एशाभगतलरा भवितव्यतेव दभातिन-इतिः मौयोषमदर 1

HUNT मासः | ४१५

दानामपि awa लोज्ञलयापि रश्व गौ were पुरुषेति, चश्च YMA व्राह्मण WATS UN गवाखपुरषाः पश्चभुक्षवद्वाह्मण इत्यादि स्यादनभिधानादिव्याइः ग्रन्यक्लश्मते तु मतौलोत्‌- पलम्‌ इत्यादिप्रयोगाभावनिषयेदस्ति, तदा राश्नो गवाश्वपुरुषा इत्यादिवत्ताहटशप्रयो गाभावोऽनभिप्रानादिति प्रत्याख्यौतम्‌ | तथाच कालाः परिमिरिनेति (१) पाशिनोव दत्रे काला एति वनिं शाच्िदोऽप्ययं सः, तैन हे went जाते wets विग्रहे दाहजति safe खादिति न्यासक्घतोक्तमिति१) अरभिधानात्‌ कचि- दन्यतापि- एकादौनां यः। एकादोनां स्याद्यन्तेन TE यः स्यात्‌ एका चासौ शाटो चेति एकशाटो ware: पष्यैनिपातः। सव्यै- वेदाः एकादियथा,- एक WY जरत्‌ YA समान नव मध्यमाः | जघन्धचरमो वोर पराणाऽपर RAAT: | मध्यः प्रधम एकादाविह पञ्चदश ख्यताः सामान्यगष्टेनोपात्तलात्‌ कार्षीपणायपुराणशब्दस्य दृह ग्रहणम्‌ षिभेषणएविशेष्यलादेव fee एकपर्डितः wana: जदत्माचक इत्यादौ पूबनिपातार्धोऽयमारः (र) पूव्यैकालसय पूव्यैकालक्रियावाचिनः परकालक्रियावाचिना

ain 1

(१) शखञ्ञन्द्ं सञ्धिदहागन्दभित्ख टोका gear ( ez) | (२) अन्यथा waretat परिडितङोनाञ्च इयोरोव विधेषणतात्‌ gayest Woy इत्याटिषदनियमः wa |

४११ UAT व्याकरणम्‌ |

ae यः खात्‌। भदौ ज्ञातः पकादलुलिपः ्ञातानुतिपः, लून- प्ररूढः, लिप्तवासितः, बदताहितः, श्ञापरितभीजितः। इदमपि ूतमैनिपाता्थम्‌ |

दिकतंस्ययोर्नाजि fenfer: संख्यावाविनश wre- न्तेन तह यः स्यात्‌ नानि गम्यपाने। Ge चासाविषुकामशमी चेति पूत्वुकषामगमो (१), चतु्षिदयाः, were, सप्षयः। भरव से एव संत्नाप्रतोतेः वा्याभापेऽपि बालबोध्नायमर्धकथनम्‌ | नामि किम्‌ उत्तरा gar, Te ब्राह्मणाः दिशेषणत्वारैव fad नियमा्मिदं, तेनाना स्यात्‌ (२) प्चपुराणानां enfeg पच्चपुरंषगामिन्य द्यादयोऽसाधव tara (२) शिष्ट प्रयोगदशनात्‌ saa कदिदनास्रःपौयन्यः। चतुर्हिमोधा-

(1) पृष्वषुकामद्मीति देशविपेषमतेति प्रयोगरल्नमाला।

(२) कधं afy “निनोक्ञनाचेन हटा wefan” दति कालिदाशः } विलोक. WHATS HTT! नच समहारे हुः, हिगोरिति डोपूप्रशङ्गात्‌। मष matted कलम्‌, “वदि तितोकोगणनापरा खात्‌” एति प्रयोगविरोषात्‌ | चोत्तरपर इति शसाः, ति्टतलुरषलेह goer) अत्रोच्यते | लोक- wala लोक्मतदायप्ररः। त्र्यो लोकस्िलोकः, चाक्पार्थिवाहिः - दूति प्रौदममोरमा तत्ववोधिन्धामेवमेव | सह्धिनायमते विोशषनायेन cam उत्तरपददिगुरभ।घः। रपुवंगे १।४\ WKS टीका दया |

(2 “श्चपुराचः प्श्चुपुराशानां ददश इाटयोऽषाधव" दूति संशि डर दृष्यते ( समाहपारे ८९ BAR) षदचपृरपगामिन्य एति त॒ तत्र aR | “ad तद पञ्चपुरषमामिन्य दूति} दन्दृशोऽयं प्रयोग दूति वाचन, थवा गिषावोगद्थेनात्‌ का्नाश्नापि रुंखायाः समासो भवति तियुश-बतृ्े- षष वगय: wees अधप तिशख्यो ge Kael वाक्ये दाश्पार्थिवारिः त्वात्‌ माष” इति गोयीषन्दरः |

WANT TATA! | B29

मवमन्य मानिनी, दिचन्द्रन्रानमित्याश तु aad दिशां समा- ercagfes, दयोयन्द्रयोः समाहारः दिषन्दरमिति गसात्‌(१)। पत्म aig भवः infin इत्यत्र तु कालवाचिपूर््वब्द्‌- स्येकादिलात्‌ सः (२) |

कंतरकतमयोर्जातिपरतरे। .कतरकतमयोजौतिप्रश्रे एव यः स्यात्‌| कतरकठः (2) कतमकठः जातिप्रग्रे किं? कतरः पाठकः |

fan: क्ेपे। क्षेपो निन्दा, तस्थौ गम्यमानायां किमो यः स्यात्‌ | किंराजायो रक्षति महीं, (४) किंगौः यो वहति भोरम्‌। BA fate को राजा पाटलिपुच्चे wuss किंशब्दः

निन्द्यानां निन्दनेः। निन्दाविषयाणां निन्दाकरणेः (4) सहयः स्यात्‌। वैयाकरणथासौ wafeafa वैयाकरणखपूचिः निष्प्रतिभ इत्यथः (६) याञ्जिककिलवः श्रयान्ययाजनाढण्णा-

--- ~~ ~~ -~--- ~~~ ---- *-- --- ~~~ ~~ ~ --- -- - ---- -- -~--- -~-- --

(१) ननु wayatieg नायं earewer कथं wafentatfamtel समाषः? अत अह-चतुद्धिगिति। saqeat दिथां समाहारः चतुदिक्‌, चतुदश tar wafentar इति varaqyes: | इयोचन्द्रयोः समार दति fees, पाला टित्वात्‌ ehenuts इति arated: |

(९ अन पूरण काशवाचिल्य, तु दिग्वादित्वम्‌, ware “cargtat य” दूत्ममेनेव wate: |

(8) Marg wed: सेति जातित्वमिति।

(४) भङोरशणं fe रासो धम्पखलदकरणात्तश्य निन्दति Mayer: |

(५) निन्दनेरित्यमेन निन्दासाघनानां निदेयात्‌ निन्दादिपरोपादने ang fafa eftafafa Twa |

(६ wafaftfa—a: ट्टो निष्ुतिभत्वात्‌ खं चयति कहो गगन fadyefafa, wa frercfaa’, निष्फरव्याकरखाष्यवभत्वात्‌ geet |

6१ UAT व्याकर्न्‌ |

पर aed: | तािंकदुरदरूटः (१) नालिकं vere: | निन्धानां किं? वेयाक्षरणसौरः, wa वैयाकरणत्वं fare’, किन चोरलम्‌ निन्दनैः किं ! कस्तो fam: | विगेषख पूवनिपा- ay दम्‌

पापाशकथोनिग्येः। fanfare: सह पापाणकयोयः wary) पापनापितः, भ्रणकनापितः (२) पापाणकशष्टौ सहश्यपरिन्नाननिन्दावचनौ निन्दस्य पुब्ेनिपाते परनिपा- ता्ध॑मिदम्‌ |

ठपमानख्य संमान्यवाचिना। उपमौयते येन तदुपमानं, सादृश्येन खभित्रपदाधेपरिवायकम्‌ var) उपमानोपमेय. ata साधारणौ wa: सामान्यम्‌। तदाचिना सह उपमान- वाचिनो यः ae) mete श्यामा (३) शसोश्यामा देवदत्ता,

दूति देवटः| fe सष्वनमेव निन्दा, चिन्त निष्मुतिमत्वमव्र निन्दाष्पं मर्भितं प्रतीवते। शिष्ृतिभतया fe tarecey निन्द्यो भवति। यतो व्याश्ररशाध्ययनरंमेदनशम्बन्येन Taree प्रहत- एति गोयी षादरः |

(3) TERE दति - दुल उत्ेपे। gua) Stufem: कूटप्र्वः। लमन्डतापोति रुक्‌ ररयोरेकलश्षरवाश्वख दूति wea afta च। अबुक्गिवादी इष्टः युङ्गिजलानन्‌ wre wee दूति, यो उुङ्गिमलामन्‌ ufaanfesnacad भवतोति वहति इर्‌कट-पएति प्रवोगरल्नमाडा STAT |

(x) कुपूय कुद्धितोऽ दय शेदगद्यां शकाः ear crac) feta: gfe: we दृति भामभाला | ~ (१ Wane wet, अला tues: | wet gefcar “cy पू ut ween लावदिष्ठमिति दयित aifaahay दवथदः प्रदुष्छो"- इति रिद्रानकशोहहो। वे दामानं षमममिषाय शामान्यवति gat वर्ने, तेभि.

कीधारय समासः। ४१

ean (१) शाटौ। सामान्यवाचिना किं? cae शव वलाहकाः (२) | उपमानश्येति किं? देवदत्ता इव श्यामा। कशचित्‌ श्यामत्वं Tugun शस्तीब्टो देवदत्तायां वन्ते, अतः सृमानाधिकरण्यमित्याह aut श्री चासौ श्यामा चेति वाक्यम्‌ वचनसामध्यौहंवधिक्ररण्येऽपि यव twa) एवं परत्रापि। उपमेयस्य व्याघ्रादयः सामान्धाप्रयोगे। उपभेयवाचिनो

AA: षह यः खात्‌ सामान्धस्यप्रियोगे सति। पुरुषोऽयं व्याघ्र इव YAMANE: व्याप्रादिवयधा-

व्याघ्र पुङ्गव area सिंह करौ रवषेभाः (२) |

वराह महदिषाकषं पद्म Hat हस्तिनः |

कमलं ONS नागः केशरो हषभो रिः |

aqua: fanaa कड़ारोऽन्ये प्रयोगतः

सामान्याप्रयोगी किं? परुषो are श्व शरः | शूरत्वमिदह उपमेयोपमानयोः पुरुषव्यापघ्रयोः साधारसो wa: |

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धोवन्ते। वचा WET श्यामा KAA TATU उप्रनानोपभेययोः साधारण भमौ वचनः तद्मादुद्वायां रेवदत्तायां भलर्धोवलोपाटभेटोपथाराहा वरत इति भवति सानाण्ववाजो- इति गोयोचन्दरः |

(१) इलो ष्ठेनो yards, एंवद्धावः। wife wane feat पडतीधक्रोत्वादिना निपातनात्‌ ford |

(२) अन्‌ बलाहकणन्द्‌ खपमानोपभेययोने काधारष्धमोवाचो। नलाः way मेषः|

(8) क्छोरवः घिं मसष्खयी a |

४४१ मुरबोधं व्याकरणम्‌ |

Seue: aaifear wae | Tae: (१) wafer ay यः स्थात्‌ WATT | भ्रग्रणयः Aaa: छता; अेरिङ्कताः (2) | गेखादिवधा-

fa; कुदुमसुदकं पूगः |

कुशलं निधनं कुसुमं कूटः |.

इद्रः तिम पण्डित मुण्डम्‌

निचयो निपुणो देव विशिष्टम्‌ |

अमणख्पलो राधि दं ्दध्यापकः पटुः |

ब्राह्मणः स्षच्ियो भूतो वदान्यः RIT Be |

बुहमविशिष्टयो; खाने पदाथविषयशब्दौ पठलन्यः। क्तादि-

यंधा-

Ba भूत समान्रात सभ्भावित निराक्ताः

गत Sa समाघ्लात समाश्यात विकल्पिताः

मतावधारित ख्यात मङ्ग ara युतानि च।

कलितोपज्ञतान्नातावधारितमुपाक्षतः (2) |

एकविंशतिरतोक्ता शेषं Sa प्रयोगतः

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(१) श्रेरादव एति श्वि्टलात्‌ भेणिशब्दद हुलेकारानथ त्रेषोति टचे. कारानल aye | ** येणिपूगकूटाः समूहवाशक्षाः- दति प्रभापकाभिका।

(र) यदाद fear एव we: ह्यस्‌ शतारटा सभारो मेष्त दलाशे- my Wee: येय इति| एकेन fran velar मे लोवन्ति तेषां शमूहः safe: | न्तानां तु कुगतीति नित्समाषः परलात्‌- ब्ेणोढंतम्‌। शठ चो चेति दोषे-दति तश्ववोधिनो |

(१) हंचिप्रसारे कित wea कखित एति पाठो ema |

HAW समासः | ४४१

खेणोभूतः पूगोभूत इत्यादौ तं अदादिलवात्‌ (१) सः। qa किम्‌ ? श्रेणयः क्षताः |

्रनञ्‌कख सनज्‌ङ्ञेन | ब्रनञूक्ान्तस्य सनजल्ान्तेन सह यः स्यात्‌ (२) AS तदक्ञतच्चेति ware क्ञतभागसम्बन्धात्‌ क्तम्‌, श्रक्ततभागसम्बन्धात्‌, WHAT, अरवयवधर््श समुदायस्य तथा व्यपदेशात्‌ (२) एवं feared, सुक्ताभुक्ञम्‌ इत्यादि |

क्षतादेरपक्षतादिना कछतादैरपक्षतादिना सह यः स्यात्‌ | RAG तत्‌ अ्रपक्ततञ्चेति छतापक्ततम्‌, ज्रभिमतानमिमतयोर्भागयोः कंरणाकरणात्‌ (8) भुक्च्च तदभ्यदितलात्‌ विसुक्गच्चाशोभनलात्‌ yafaya (५)। कियते कियत्‌प्रत्यागतं गतप्रत्यागतम्‌ (६) |

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(१) व्यख ग्यलुकारेत्यादिना satfeara tara: ) उग्थारिस्यले aereifa संिघ्रह्ारमतम्‌ (waaay ५२ सनम्‌ )। यरि WE समासोऽयं, तदा चिुप्र्ययान्तानां ब्रेणयादो नाम्‌ अभूततद्खावेऽथे अवगते कथं समासः? अत आह च्रदाटिलादिति। लतभूतव्यतिरिक्तख चिप्र्ययस्तैवाभाव इति गोयीचन्द्रः |

(२) नञमात्राधिकेन नञ॒रह्ितं समस्यते दति छलार्थः, तेनेह fay Ty - दूति तत्तबोधिनो।

(३) नतु छताल्तमिन्यादौ कथं सामानाधिकरण्यं, ह्येकं वसतु ad |re- कतच्च-द्ग्याशद्भयाह कंतभागेति | “एकटेणकरणात्‌ aay, रकटेणान्रया- करणात्‌ तदेषाक्तम्‌ द्रति तत्ववोधिनो | शतं किञ्चिन weg तर्डलादि, wat किञ्चित्‌ तण्डलस्यान्वाटि दूति ठताङतं तण्डलाटिकमिति प्रभ।पकाशिका |

(४) छंतापशतभियनाप्यसलाश्निगम्यते, यत्‌ लतं तद्धेवापक्षतं fred लत- जिबर्थावगमात्‌- एति Gaz) अकरणारित्यलं अपशस्ते नज करणमप्यकरय- भेषाप्रशसलत्वात्‌ दति विद्यालङ्कारः।

(५) विशब्दोऽव अथोभनलत्वं द्योतयति विद््‌पवत्‌ - द्रति गोयोचन्द्रः।

(६) गतप्रत्यागतं खोकजन्धविधेष इति प्रभाकारिका |

५६

४४२ FANT व्याकरणम्‌ |

यदा तु ya गतं पात्‌ प्र्यागतभिति वाक्यं, तदा पूञ्ैकाल- स्येति सः क्रयश्चासौ क्रयिका (१) चेति क्रयाक्रयिका, मनोषा- दिलात्‌ a: | क्रयावयवत्वात्‌ क्रयः, क्रथिकावयवलतवात्‌ क्रयिका दूति अ्रवयवधर्ेण समुंटायस्य तथा suena: | एषं ‘Yet पुटिका फलाफलिका मानोक्मानिक!ए इति (२) सदादिपूज्यमानयोः पल्यमाननागादिभ्याम्‌ | दादेः पृज्य- मानवादिना पूज्यमानवाचिनो नागादिना सदह यः स्यात्‌। संवासो पुरुषेति सत्पुरष+। सदादियेधा-- सन्महत्‌ परमोलृष्टोत्तमाः पश्च सदादयः। पूज्यमानेन किम्‌ सन्‌ भृः, विद्यमान इत्यथः उलृषटो गौः, पादुृत इत्यध; Mare नागेति गोनागः नागादि- यधा- नागो SARITA FRSA वयो AAT: | व्याप्रादिलारैव fas सामान्यप्रयोगेऽपि यसविधानाथमिद, तेन AMAIA: शूरः (३) नरहन्दारको बुधः प्ज्यमानसयेति किम्‌ ? मेती नागः मूर्खतात्‌। जातैः पोटादिप्रशंषार्थाभ्याम्‌ | जातिवाचिनः पोटादिना ्रथंसावाचिना षह यः स्वात्‌ इभ्या करेणुः, पोटा स्रोपंस-

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11) ऋयशब्द्‌ात्‌ Bere कः, स्नोत्यविव्रशयामाप, काष्यनाशोरके इचा- दिना ककारस्य CATT: |

(२) yzaret पुटिश्ना देति, way तत्‌ फलिका चेति, मानश्च तत्‌ छक, नका चेति वाक्यम्‌

(३) इन्दं Qu प्रधानत्वं वा afe ae, गोहणेत्यादिना श्टङ्गाटिलात्‌ आर शप्रत्ययः | उन्दारकरः सुरे पुरि मनोभ्रग्रेयो fery इति मेटिनी।

RAW TATA! | ४४३

लक्षणा, इभ्या चासौ पोटा चेति इभ्यपोध, गोवेहत्‌ पोगदि- यंधा- पोटा वेहत्‌ वशा धत्त॑स्तोक योचिय धेनवः | ्रवक्ञा युवतिग्िश्तथा वस्कयनोत्यपि अध्यापकः कतिपयो दथ विभिरिहेरिताः॥ (१) वक इव वकः पुरुषः "वासौ पूर्ति वकधृत्त इत्यत्र निन्यानां निन्दनेरिल्यनेनेव सिच asad इत्यादौ अनिन्दा वचनम्‌ | पूर्तकठः “जनयति कुमुदभ्बान्ति धुक्तेवको हि बाल- मद्छाना"सिल्यादयोऽसाधव ca, उतर्मलात्‌ पिशेषणविशेष्य- aaa साधुत्वमित्यपरः। wa प्रमाणशब्देन रूढिशब्दानां मतल्िकादोनामेव ग्रहणम्‌ (२) गीश्वासौ मतल्लिका चेति Taafaat गोमचचिका गोप्रकाण्डं faute: विप्रतन्नजः (2) | qa: पलितादिना। युवन्‌श्ब्दस्य पलितादिना सह यः स्थात्‌ युवा चासौ पलितञ्चेति युवपलितः |

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(१) उभयव्यञ्मना पोटे्वभिधोयते ( सनष्सश्रादिगुक्ता सखी ) | ग्टिरेकः ATCA | पेतुः MTGE वथा बन्धय वेहत्‌ गर्भोपघातिनो वन्क- यथी aeqrar—cfa काशिका ( २।१।६१ ) | प्रयः अभिनवः, दुग्धपानाधीन- जीषनो wat ge शा cae) संजषिप्रसारे अध्यापक इन्यत अध्यायक दति पाठो दश्यते। अधिपूर्वादिङो wa: दङ्खिरायादेषत्र दूति matey: ( षभासपादे १०२ BAA ) |

(२) मे यौगिकाः प्रशसलशोभनरमशौयादयो ये विेषवचना शुचि- खादयो ये गौरा त्तया प्रशंसां गसयन्ति सिंहो माणवक इगयाट्यस्ते सख वयदषन्ते-द्रति प्रौढमनोरमा तज्वबोधिनी च। | (8) मोमतद्धिङेयेवमारोनां शोभनः प्रशस्तो गौरिचर्धः। “सतह्विका सचद्धिका प्रकागडसष् agat प्रथस्तवाचकान्यमूनि" CAAT: |

४४४ मुगवोधं व्याकरणम्‌ |

पर्तितादौ तु पलितः खलतिव॑लिनो जरन्‌ |

mat नामग्रहरे लिङ्कविधिष्टस्यापि meu, तैन युवती चासौ पलिता चैति युवपलिता बुवजरतीति।

ल-तुलार्थयोरजाला। खसंन्रकत्यान्सानां तुतयार्थानाश् जातिभित्रवाविभिः सदह यः खात्‌। भोज्यो्णं पानोयशोतं, भीतपानीयोष्णपानोयादयोऽसाधवः दलन्ये शौतगुणयुक्तं पानोय- मित्यादिवाक्ये शाकपाथिवादितलात्‌ सिहमिलन्यः। तुलष्ठेतः सदटशष्वेतः | तुल्यमहान्‌ प्रहटगमहान्‌ द्लयादौ तु सदादिललात्‌ प्राप्तः सोऽनेन बाध्यते परतात्‌। तस्य तु महापुरुष इत्यादौ विषयः ware fa भोज्य ्रोदनः।

वरगणनां वी; | वणवाचिनां ववाचिभिः सह यः स्यात्‌। HUIS: RUA, सारङ्शवनलणब्दौ (१) मुख्यव्र्या ससु- दायहत्त, अवयवप्रसिहः समुदायप्रसिहिवलोयसोति न्यायात्‌ | aunt हि क्णावयवसम्बन्धात्‌ समुदाये वत्तते इति गौण- सामानाधिकरण्यात्‌ yarns यो विधौयते (२)। तत्र racist कृष्णशब्द स्येव पूव्मनिपातः। यत्र तु श्रवयव सम्बन्धात्‌ AIST Aa कामचारात्‌ प्रागभावः, यथा AUTH: TAY इति |

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(q) सार्कः शवसे विषि्रमरः

>) अत्र ष्णारिशब्दा यवयवविशेषहारेावयविनि वत्तंमाना एष, शरणा वयदहारेश | wat सख्यभावेन साभानाधिकरण्याभावादपराप्रौ Gay कम्यधारयो विधीयते दि टृ हनग्नबोधम्‌ |

HAAN समासः। ४४१

कृमाश्चाः अमणादिना क्रमारोब्दस्य यमणादिना यः श्यात्‌ कुमारो चासौ श्रमणा (१) चेति Farce शमधोनेन्यादिलादनः। श्रमशादिसु-

रमणा तापसौ दासौ बन्धकी कुलयेत्यपि। तथा प्रव्रजिता गर्भिंखयत्र an wafer: ˆ

कुमारस्य खदादिना Farrar weafa Farce: कुमारौ चासौ wel चेति garvas | werferar—

मदु uz ufwa चपला निपुणः | कुशलाध्यापकमप्यभिरूपः

गहादोनां कुमारोसामानाधिकर्छे स्तोत्वभेव विशेषणत्वात्‌।

चतुष्यदां afer चतुष्पदां जातिवाचिनां गर्भिण्या सह थः स्यात्‌ | मोगर्भिसौ श्रजगभिंणो चतुष्पदां किं ब्राह्मणो गभिंणो, शरभो गभिंणो (2) |

मयुरव्यंसकायाः। मयुरव्यसकायाः शब्दाः यसंन्नकाः निपायन्ते | व्यंसयति छलयति व्यंसको धत्तः विपूव्धादंसधो- Ua: | मयुरासौ व्यंलकञ्ेति मयूरव्यंसकः ा्रव्यंसकः काम्बोजमुरडः | यवनमुण्डः |

एषोहादयोऽन्याय अन्यार्थे वत्तमाना; एहोहाद्याः मयृर- व्यंसकादित्वात्‌ यसे निपात्यन्तं। ufe इहेति यव wate ama तत्‌ रएरौहम्‌, ufe यैरिति aa कणि वर्ते तत्‌ रदियवम्‌, एहि वाणिजैति यस्यां क्रियायां सा एहि-

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(१) शम्या सद्ध्रासिनो। (२) शरभः शलभः

४४६ सुखवोधं व्याकरणम्‌ |

घाणिजा, एहि लागतमिति wet ्रिया्यां सा एडिखागता, प्रोह कटमिति यस्यां सा प्रोटकटा, प्रोहकदेमा भराहरवस्ना भराहर बेला भ्रा्रवितता उद्वरचहा कन्िविचक्तणा, भिन्धि लवश- faut यस्यां क्रियायां सा भिन्धिलवका, पचलवणा, द्र उतृरुेति यस्यां क्रियायां सा रहरोतृषजा, उहम विधमा उत्मत- निपता wtferae, उदक्‌ चश्रवाक्‌ उक्चावचम्‌, उश aaa उ्नोचम्‌, श्रावितश्च उपचित भ्राचोपचम्‌, भावितश्च पराचितश्च श्राचपराचं नि्ितश्च प्रचितञ्च faand, नासि fafeeu ufaga: नकिश्चनो वा, पोताखिरकः भुक्ञासुहितकः परो्यपापोयान्‌ शपच्चमो इृहदितोया स्नालाकालकः उत्पत्य पाकला जाता, निपत्यरोददिणो जाता, विषख्श्यामा जाता इत्यादि | उदहरोतङ्जत्यादोनां व्यादिस्तादिना क्रियासातत्य इत्यादिना सिदेऽसातयार्थे गणे पाठः पोललाखिरक cartel से सन्येक- alg पोलाशिरकस्य दम्‌ tae ण्ण पेलाखिरकं भौक्नासुहि- तकं प्रौ्पापोयसम्‌ इत्यादौ रिन्त श्रादयचो fa:

हन्तं canter चै। unter गम्यमाने मयुरव्य॑सकादिलात्‌ wa यसे निपात्यते, यदि यसो घमाह। जहि जोषटमिति यः पुनःपुनराह जदिजोदहः (१) जदि्तम्बः safesie Swear: |

व्यादिस्तेन क्रियासातये aaa त्यादन्तेन ay क्रिया- सातल गम्यमाने यसे मयुरव्यंसकादिलात्‌ निपात्यत श्रग्रोत

भना = ee

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(१) VE Kae जोड aly दति पाठभेटो दश्यते |

| ४४७ |

RAAT समासः | (यः) | परमशखासावाला चेति-परमामा | darn विच्चासावानन्दषंति- सदानन्दः | २५१। कोडादिः dag यजातोयदेशोये aa तज्ञाः | ( कोडादिः १।, परवत्‌ iti, जातोय ANF 9, तते of तु ।१।, ्रजाव्याख्यः १।)

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पिवत इति यखां क्रियायां सा श्रग्नोतपिवता प्रचतभ््तां खादतमोदता इत्यादि |

शाकपाधिंवाद्याः। शाकपाथिवाद्या निपात्यन्त। शाकः शक्तिः प्रधानं यस शाकप्रधानः, शाकप्रधानः पाथिवः शाक- पाथिवः, मेरनामा महोत्‌ मेरमरोगत्‌, सुग्रोवनामा कपिः सुग्रोवकपिः, योहषनामा पतिः yeasts, qaqa नाधिका सुशखनासिका, जिगुणोक्षता जगतो तिजगतो, wel- वशिष्टं शृतम्‌ (१) श्रदश्रतम्‌ इत्यादि! शकपाथिवादिराक्लति- गणः श्रविहित-यस-लक्षणो मयूरव्यंसकादौ द्रष्टव्य श्राक्लति- गणत्वात्‌ एषां मयुरव्यंसकादौतां यान्तर स्यात्‌, तैन प्रमो मयुरष्यंसकः।

२५१। कोडा कोड पूरणो चते परादौ ae सः। यश्च जातीय देशय anfaq) तश्च wa तत्तस्िन्‌ `

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(१) vweafawa एतमिति कचित्‌ पाठः;

४४८ मुगवोधं व्याकरणम्‌ |

कोडपूरखादिः पवत्‌ खात्‌ यादौ, aaaty जातिरसत्ना- वम्‌ | पाचकस््नौ पच्चमभाथा |

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faa Wea + 4, 4 a स्तो यत्र सः, कोङ्पूरण्यादिरित्ादि। कोडदयो नोप्ताककोडः इत्यादिसूत्रे ये पठितास्ते पवत्‌ स्यः ये जातीये SNS परे। पाचकश्लोति पाचिका चासौ at चेति वाक्यम्‌ एवं रिकभाया इत्यादि पर्चमौ चासौ भाया चेति वाक्यम्‌ दत्तमाथां मथिलभाय werent म्रहानवभौ

117 ed

सन्दरप्रिया कल्याणमनोन्ना इत्यादि वैयाकरणभागा सोवश्ठ- भाया काषायकन्या हेमसुद्िका ब्राह्मरमानिनौत्यादि तु निष धाभावात्‌ Tata सिहम्‌ | नोप्ाककोडः इत्यादिना येषां निषेधः प्राघ्सतेषामेवानेन पुवद्वावः, तेन मक्तिकाहन्दारिका द्रोणोभाया कुमारोतन्नजा श्ल्यादौ खात्‌ जातोये पूर्वेणप्राप्रे देशोये कोडादिलादग्राते विधियेथा-ताकिकजातोथा कारकजातोया ताक्रिंकटेणीया इत्यादि wma इत्यस्य विशेषपरतात्‌ शुणवचनस्येव तलयोः एवत्‌, तेन पच्या भावः पटलं TAH caret स्यात्‌, तु ase ema पाचिकालं व्यभि. चारिणोतवम्‌ त्यादौ ये तु क्रियापि गुणः इत्याहुः aaa पाचकत्वं व्यभिचारितम्‌। तन्बोलमिल्यादौ ठु नोपाककोडङ्‌ यादना fate) अवि्यनेन यस्मात्‌ ऊपसम्भवस्तस्तस्यापि ग्रहणात्‌ | कोड्पूरस्ादोति किं ? ब्रह्मवन्धूवाला(१) | यादौ किं

~~ - ~ --- = ~ ~ ce rn तको

(१) बघमनाद्मणजातीया wea

कर्मधारय समाः| ४६९

३५२ | दिवाष्टधिका eraser faemea

FATT TATA वा

(fearerfaat: qu; दात्योऽष्टाः qu, बिदशादे ol, WRAITH 1, तु ।१।, अ्रनशोतौ |, वा ies) t

एषामेते क्रमात्‌ खयः "दशादिविके, दत्वारिंशदादि wa भ्रशोतिवर्जेतुवा। इयधिका दथ द्वादश, तयोदश, ब्र्टादश (.

इाचत्वारिंशत्‌ हिचत्वारिंशत्‌ अनणशोतौ किं हय्ोतिः।

रसिकाभायः, पञ्चमोवाचरति पश्चमौयते, sand पाचिकां मन्यते पाचिकामानिनो, afeat दत्ता carota, पाचिका कल्पा हमौरुप्या ब्राह्मणोदेश्या सुकैशोकल्येत्यादि |

२५२। fear) हौ तयश्च श्रष्टचते, ते; सहिता भ्रधिका;, दइयधिकत्रयधिकाष्टाधिका इत्यथे | दाश्च तरय wera ते। दश श्राद्या येषां ते दशाद्याः, बयां दशाद्यानां समाहारखिदशाद्य, पातादिलात्रेष्‌ तसन्‌ Tet समूहः षट्‌ कम्‌, WATE तत्‌ षट्क- Gfa तत्तस्िन्‌ ब्रभोतिरनथोतिः warm) एषाभित्यादि- feareq इत्येतेषां खाने हा त्रयस्‌ अष्टा Lad WM: क्रमात्‌ स्युः दशादितिकसंख्याशब्दे परे दित्रा्टानश्वेदधिका भवन्ति निद शायशब्देन दशविं्तितिंशतशब्दानामेव ग्रहणम्‌ WIZ अभोतिवजनात्‌ wey एते Wem इत्यथः ह्यधिका दश दादि शाकपार्थिवादिलादधिकथ्ब्दलोपे दादयादेयः। णवं

हाविंश्रतिः तयोरषिंश्तिः ्टाविंशतिः दाविंपत्‌ त्रयल्िंत्‌ aS

४५ मुशवोधं व्याकरणम्‌ |

aya) वैकोनसेकादरकान्नी सद्यायाम्‌ | (वा।१।, एकोनख gi, एकात्ग-एकात्रौ CH, बह्यायां 9) | एकद्विंपरतिः एकाविंशति रकरोनविंशतिः |

२५४। WAST धः षग (सखि-प्रहन्‌-रान्नः ५।, षः १, WH OF, ।१।) एभ्यः षः सात्‌ st FH a: प्रियसखः परमाः महाराजः |

"न~ =-= = ~ , ~---- * - -- -- “~~ ~~~

श्रष्टाविंशत्‌ इति एवं दाचत्वारिंशत्‌ fearing azaat fing वरिचलारिंशत्‌ इत्यादि एवं पञ्चाशत्‌-ष्टि-सप्तति- नवति-शब्दे परेऽपि दयथोति; त्राशीतिः; श्र्टाशौतिरिति सह @ a: 1 एषु किं ? दिशतं विरतम्‌ श्रष्टशतम्‌ इलयादि |

२५२। वेको। एकादश एकार तौ वाहयमध्य- वत्ति खात्‌ नित्ये प्राप वाग्रहणम्‌ परे तु जनार्नजः प्रति. aara विधाय एकशन्दस्यादुगागमं कुष्वैन्ति (१) varsfinfa: एकान्रविंशतिः एकोनविंशतिखु अनशब्देनेव |

२५४। सख्य पगे चेति षरगाव्यरश्कासे यसवानु- कतोत्यत श्राह ये चेति (२) षकारस्येवधैतात्‌ परदेभ्

=== ------~ SE ~= ~~ =) 9 = ~ = (र "+~ «~ ee a

(1) warfegwe ree दूति पाथितिः।६।१।७६। रकाहिरमज प्रवा दयादेक were नजो fiw समासे बते wang anata उोगश्भिगात्‌ ware अतुनासिङविक्खः। war finfa:) were विंशतिः cargfanfa: | catafiufafcard दति रिडानकौहदी |

(२) धगे Maerenwag षगात्‌ परबक्नारः परवोक्षवलातीय CWT

कर्मधारय समासः | ४५१

२५५। सववैकरदेशसश्यातसद्ाव्यातेकात्रैकेऽ TSS: (सव्यै-व्यात्‌ ५।, ।१।, एकात्‌ ५।, Tiel, To, TH: ६।, TE: १।) एभ्यः परस्य WHY इत्यस्य खाने TE: स्यात्‌ यादौ AA aa |

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एभ्यः दत्ययेः, तेन सखिसुत ` इत्यादौ स्यात्‌ प्रियसखं इत्यादि -प्रिय्ासौ सखा चेति, परमश्च aewafa (१) महा खासौ राजा चेति वाक्यम्‌ (२)

२५५। सववंक | सव्यश्च एकदेश संख्या व्यञ्च TWANG | एको Aaa, tat नेकं तिन्‌ wa caries सव्यैशब्दात्‌, एकदेशवाचिनः पू्धादैः, संस्यातशब्दात्‌, एकशब्द- भिन्नात्‌ संख्यावाचिनो, aera परस्याहन्‌शब्टस्याहृदेशः स्यत्‌ to समाहारभित्रेगेच। पूव्वैसूतात्‌ इत्यस्य fifa

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कमौधारयसमासमेषातुकर्षति तु जतीयादौत्त are FT FR a xfs का्तिकेयः।

(१) agretarat एुंसवभभिधानात्‌ |

(x) अत्र कार्तिकेयः ^द्रतोवाषाश्ठरशसे सखः प्रापिशङ्रिरित्यत सखिषन्द्‌ समानाथकसखशब्देन ससख इति। किंवा सखिण्न्धादशआरिलादप्र्ये sq कतिश इतिच gency) अधवा रुखिशब्दात्‌ खां ष्णः शखः तेन EE aterm wee) एवम्‌ आगाभिवर्त॑मानाहयुक्तायां निधि परिणीव्मरो्ग सभासान्तविषेरनि्वत्वात्‌ सिद्धम्‌ किंवा अओागाभिवत्तेमानाभ्याम्‌ agnat am इति लिपदतुषरुषादरणम्‌ | अथवा आगाभिवसमानयोरङ्ोगुक्गं वोर्गो यतेति बहोहिष्या समाघानोवम्‌ | बे तु tweens कलयन्ति wat कम्र वारयकमासेनेव विद्वलिति।

BYR TINT व्याकरणम्‌ |

३५६। प्राग्वन्नो WISE | (MIVA ।१।, नः ६।, शः १।, WA xl, WHS ६।) | सन्नाहः TAN: | एकात्त एकाहः | wa दूति किं? विभिरहोभिजीतः are: | २५७) कौटग्ामात्‌ तच्छ; | (कौट ग्रामात्‌ ५।, TAT: ५।) कौटतक्षः |

ee ~ a ~~ = ~-- ~ = ~ = ना = > ~~

परिणामेनानुहत्तः षे परे इत्यथः, तेन fragete: सुर श्लयादौ कतसान्तलात्‌ को स्यात्‌ (१) |

२५६। पाख masa पृ: भ्रवकुणन्तरेऽपोति प्राप्त, तथाच षकार रेफ-कवणेयुक्ञाददन्तात्‌ परस्याङृस्य नो शः स्यात्‌ भ्रव-कवग- पवगे-व्य वधानेऽपि सतीत्यधः। ware इति- aay तरह ति वाक्यम्‌, एवं years: श्रपराह्न १ति। we fa किं? दोर्घाखहानि यस्यां रोधाड्को शरत्‌ (२) एकाह इति- एकश्च तदहयेति वाकम्‌ ane इति--ता्धे गः, प्र्यदाहरणाथ- मिहोक्तमिदम्‌। प्रा्वदिति किं? dears: ae इत्यादि | संख्याताह इति कञित्‌। नेये विं ? दयोर ङोः समाहारः ETE: | सरवेकदेणदैः किं ? GANA |

२५७। कौट Wet wT षः स्यात्‌ यादौ।

© nemo eee eee -- ~ ~ == ~= ~~न --* = ~~~ . पि nen eee

(Q) केचिन्न अतर अट्न्ताद्धाटेशविधानं ce राधकं, तेन Hfaerarefaya- उदये ऽभिनिषिधते दूति ग्धायात्‌ sate पूयत षाचयो नाङ्गे द्वि का्तिकेयः।

८१ अव दोर्षाहद्धिति faa मानल्ादोपि wafafa |

कर्मधारय TA! | ४५१

२५८ जातमषदहादुच्छः | (जात-महत्‌-ठद्ात्‌ ५।, SAT ys) जातोक्षः, ATA:

२५९ शनोऽव्यप्राणणुपमानात्‌ | (शुनः ul, भ्रति-्रप्राण्युपमानात्‌ ५।)। श्रतेः प्राणिवजादुपमानाचच "शनः षः सात्‌ यादौ | श्राकष द्व श्वा aA: | प्राणिनसु व्याघ्रद्व श्वा

ग्याप्रश्वा

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aizra इति-कुवयां भवः कौटः, कौटशासौ तचा चेति वाक्यम्‌ (१) |

३५८। जातः एभ्यः परादुक्षः षः स्यात्‌ यादौ जातोक्षः इति-जातचासौ उक्ता चति वाक्यम्‌ रवं महोक्तः sete: | यादौ किं? मोक्ता शिवः।

२५८ शनो उपमोयते यत्‌ तदुपमानम्‌ उपभेय- मित्यधः। श्रप्राणौ तदुपमानं चेति तत्‌। भ्रति ्रप्रा्ुप- aay तत्‌ तस्मात्‌ श्राकषः (२) वेति उपमेयस्य arate त्यनेन यः | भ्राकर्पो aa fet पाशके शारिफलके कोदर्डा- भ्यासवलनि श्राकषणेऽपि पसि स्यादिति मेदिनी ्नृशब्दो व्याघ्रादौ ey आङ्ञतिगण्लात्‌। यदपि ` भ्राकर्षशब्टोऽपि

(१) Sere: खालयसख्वानघीनकमोत्णीतुशारनमिति गङ्गापररः | (९) भअालष्यतेऽमेनेति आकषः arrest दति भाषा।

४१४ TUT व्याकरणम्‌]

२६० पूर्वो त्तरखगाञ्चानतैः सकः ` (पूर्वै-उत्तर-गात्‌ ५।, ।१।, WAR १।, TAY wi) | एभ्यः Getter ्रतिवल्ोत्‌ Ca: षः खात्‌ यादौ पूवसक्वम्‌। `

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याप्रादौ aud (१) तथापि शन्‌शबदस्य श्राकर्ष॑शब्देन सष यः, (x) उपमेयवाचिनः उपमानवादिभिवधाप्रादैः सह यषिधा- नात्‌ (२), दृह तु उपमेयवाय्ाकषेथब्दः। एवं व्याप्रषठेति प्रयदा- षएरणेऽपि। परे तु (४) श्रप्राणिनि वत्तमानात्‌ उपमानवाविनः शनः श्त्याहुः। एके तु भराकष इव प्राकषः (५) areal श्वा चेति प्राकषश श्याहुः, मृते आकर्ष दव श्वेति दर्भनात्‌। wat उपमोयतेऽनेन इति धै भनट्‌ (६) |

३६९० Wali Yara cute are तत्तस्मात्‌, प्रतिः wafa: तसात्‌ | पूरवोक्तादिति-श्रपराणुपमेयवाचिन care: | षव सक्धमिति -पूर्वशब्दः way: पूवयवयववाची, सक्थिशब्दो-

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(1) रतेनाश्षयब्दखापपमानल्वमावातोलषैः | (२) शागङपभेयामाकर्पश्चोपमानं लावा अव अम्रधारयो कर्तव्य KATE (१) उपमेय व्यत्य रि्गेन ठपमेयपदश gaffe: सूचितेति wre: | (४ दकारोऽ THA | (५) शशया षन्दखेवाकष्तखयाधै Kar: | < (£) अतेदहाषरणमतिश्चोति वच्छति। तब “कतिक्रानः श्रानमतिनशरो वराहः जववानित्रधैः| अतिशः See: wren cae: afew शेवा अतिनोचेचधे" cfr afar ५।।।६६।

HANA TAS! | ४५१५

२६१। देशाद्‌ ब्रह्मणः कुमश्हयान्तु वा | (देयात्‌ ५।, ब्रह्मणः ५।, F-ACATT ५॥, तु ।१।, वा ।१। | कुतो aw FAW: ब्रह्मा |

२६२। सरोऽनोऽयोऽश्मनः संन्नाजालयोः | (सरस्‌-भ्रनस्‌-भयस्‌-भ्र्मनः ५१, संभ्रा-जाल्योः अ)

मष्टानसं saad लोहितायसं कालायसं पिण्डाः भसृताश्मः~

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ऽपि तदवयववाचौ (१) yore तत्‌ सक्थि चेति वाक्यं, पत्यै सक्थ sfa at) एवमुत्तरस कथमिति | फएलकसकधं- फलकं शरावरणं च, फलकं सक्थि इवेति वाक्यम्‌ तवापि सवव पूव्ैवदूहयम्‌

ace) रणात्‌ eat जनपदः, तदहाचिनः परात्‌ ब्रह्म शब्दात्‌ षः स्यात्‌ यादौ,वातु कुमदडयाम्‌ कष्ितो ब्रह्मेति- ब्रह्मशब्टोऽत्र ब्राह्मणवाचौ | ATTA ब्रह्मशब्देन सह यस इति परे एवं महांासौ aw चेति महाब्रह्म: AMAT! VT भ्रवन्तित्रह्म इति वच्यति |

२६२। सरो। सरस्‌ श्रनस्‌ भ्रयस्‌ भ्रश्मन्‌ शतयेतेभ्यः नानि जातौ षः स्यात्‌ यादौ | महानसभिति- मदश्च तत्‌ wrafa, उपगतश्च तदनश्ेति, लो हितञ्च तत्‌ प्रयेति, कालश्च तदसति, पिष्डश्चासावश्मा चेति, भ्रकतशासौ भश्मा देति वाक्यम्‌ सरः शब्दस्य तु मण्कमरसं जालसरसमिति वच्यति | एषु जालसरस- महानस-लोहितायस-पिण्ाश्माः संन्रायाम्‌ | मण्डकसरसोपानस~

(नान ene enemies

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(1) शकचि छः, सक्धि me एमागूरुरिष्ममरः।

४५१ AA व्याकरणम्‌ |

२६३ | स््कदेशसद्यातपुण्यवर्षादौ षादरः | (सव्यै-दौर्घात्‌ wi, रात्रः ५।) | रात्रेरवौकदेशे वत्तमानः पूर्यीदिरेकरेशः। पूवैरावः भपररावः | ६४। WAM ( गोः yw, ward ७। )। गोशब्दात्‌ षः स्यात्‌ यादौ, AY AT | परमगवः।

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कालायसारृतश्माः जातौ aa: किं? सतरः मदहाशा। चन्द्रसरः हतवनसर इत्यत चन्दरहेतवनण्ष्टो WW AF समुदायो, विगरेषनिषठसंत्ागव्दस्य सम्बन्धादुत्तरदस्य विशेषतः (2)

२६२। सव्वं सव्यशव्दादेकदेशवाचिपूर्बादिः संख्यात- पख-वरपा-दौरघेभ्यषच परस्या रतेः षः खाद्यादौ। Yarra इति- रातिशब्दोऽपि लक्षणया पूव्धवयवे वत्ते प्य चासौ रात्रि सेति वाद्यम्‌ पूवं रातेरिति ot) एवम्‌ भ्रपररातरः TAT इ्त्यादि। wat चासौ ufaaia सबवराव्रः, संख्याता चासौ ufaafa संख्यातरातः, gar चासो रातिरेति पुखरातरः, वषाणां रात्रिः वषौराव्रः, दोषौ चासौ afaafa दोघ- Ta) परेतु वर्षादौेशब्दौ arg) त्रिरा्रम्‌ ofa caret संख्याथादरातरङ्कलिभ्यामः। यादौ किं? ywafa- SAAT: |

३६४ गो यादाविति-ये षे arafaat Sar) परम

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(१) dwaqwary गोयोषन्दरः- “यो ataefafaacareeta विथेषे wea © एव egret aun” दति

कर्मधारय AAT | ४५७

२६५। नावोऽर्बाद्‌ गेच (नावः ५।, WaT] ५।, गे 9), ।१।) MATT परात्‌ ATI: स्यात्‌, Wars गी अर्ैनावं।

गव इति -परमश्ासौ mata वाक्यम्‌ एवं gafaret गौश्ेति पङ्कवः, षां गवां समाहारः पह, Tat गौः राज गवः, स्तियां परमगीत्यादि | wa किं? पञ्चभिर्गोभिः ata: weg: | ala इति वाच्य एव, तेन पञ्चभ्यो गौभ्य श्रागतः पञ्चगवर्प्य इति स्यात्‌ (१) परसूतरे गग्रहणन्नापकात्‌ |

२६५। नावो ब्रहनावमिति ate तत्‌ नोति वाक्यम्‌, aq नाव इति at) एवं दयोनीवाः समाहारः दिनावं, तरिना- वम्‌। wae किं? पञ्चभिनौँभिः ala: पञ्चनौः। वाद्य एव निषेषात्‌ eat नौभ्यामागतः ह्विनावर्श्य इति (२)

कन mn चक = ~ ~~ -- -- ~~ -- - ~ ~ = = ~~ ~~ -- ~ -~ --- -- ----*~~-- ~ -----

(१) हेतम्यो मयटरद्योवा। जेभ्यो न्वाविभ्यो हेतुवाचिभ्यश्च आगत्य waz Guy खादिति दषेकाटिव्याश्विच्छमाणद्त्रटीकायां वार्तिकम्‌ |

(२) अङ्कात्‌ पराच्नौशण्दात्‌ षः खात्‌, सति was aT ताथभिन्ने fant च, अयसे शोऽथद्चकारेणेव सङ्गतः, पुनरगे द्त्यनेन अर्थान्तरोपन्यासो वघा- नौ शब्दात्‌ षः ख्यात्‌ गे कर्थात्‌ अतद्भिता्यं इिगाविव्यपरोऽथः। तत्र agitat नास्तीति। ware दूति षिशेप्रणख उभयपक्े योगः। *** feataanainfagui नाषां समाहारः हिनाकं लिनाषसिति गङ्काधरः।

अता्ये गे इयसा तदत्तावपि एनम पहं हिममासे अद्गब्दातिरिक्रपू्- पदस्यापि प्रायम्‌ | तेन हयोर्नागोः समाहारः हिनावस्‌, यत सं ख्यावाचक्षा- दपि गोशब्दात्‌ षः| दुनगकारय्रहणात्‌ यप्योगिटत्तिरसतु दयागङ्खया चकार aye तेनेव तावतुक््येते। दरति कार्सिकेयः।

५८

४५८ Aaa व्याकरणम्‌ |

२६६। खाय्या वा| ( खाया; ५।, वा ।१। ) wien werd | षति यः) |

तत्पुरुष समासः (षः) | क्ष्णमा्थितः कहषणाथितः '

२९६ GA | WEY परसा: खाया; षः arena ताधंमिब्र भरईैखारमिति-्चैश्च तत्‌ खारी चेति वाक्यम्‌,

we तयथा इतिपरे। इयोः खार्यः समाहारः frat दिखारि, त्रिखारं त्रिखारि, erat धनमस्य दिखारधनः safe षामावपनचे frarft: तिखारिः ल्ियाभिति are: | वाशब्द व्यवखावाचिलात्‌ ्रईैखारमित्यतर क्गोवत्वम्‌ | WHAT: staal भर्ैनावसमित्यत्र fafagafata | sf यः।

इदानीं ware लण्णमाचित vere |

हा wifaaa: षः। erarenfrend सह प्रः खात्‌ wurfaa इति एवं कष्टं चितः कष्टाधरितः, बैदं विदान्‌ षेद- विहान्‌। विप्राय वैदविदुषै इति भारी भ्रावितादिवधा-

पभाचितचितविदांसोऽतीतात्यस्त(१)बुभुतवः।

[कि meee:

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(1) afgatare | अक्वाशोऽतिक्रमः सोऽपि गतिविपेष एषेति क्रि आदिकिमूचि नो anata दूति २।।।२॥ पाचिनिष्ठते तत्चवोधिनो |

तत्पुरुष समासः | 8५९

भरापव्रपतितप्राप्तगमिगाभिवुभुश्वः गमिन्‌ गामिन्‌ शृत्यभयपाठात्‌ भध्यायेरिन्यपि वा त्रिरि war भ्रौणादिक इनि गमोति परे। शराक्तिगणलयात्‌ सुख- मोषः wee, दिषदोधनिराकरिण्ुः, * हंसमर्डलदयतिजिष्णु- रित्यादि | (१ खटायाः HA AA इयन्तायाः Geter: FF गम्यमाने area षह षः AY खदरारुढ़ जालः (2) खटराश्चुतो जात्य sean fara द्धेः | tat खटारोडणमात्रेण .यख निन्दा सोऽभिधोयते किन्तु येन कैनाप्यनुचिताचरणेन यस्य निन्दा इति। ve वाक्ये निन्दा गम्यते इति वाक्याभावात्‌ नित्योऽयं सः सवाक्यो यः समासः स्यात्‌ विकल्यः सुसम्मतः वाक्याभावे तु नियं स्यादिति शब्दविदो विदुः aa किं खटुमारूढोऽध्यापकः fra ध्यापयति | कालानाम्‌। दन्तानां कालवाचिनां mad सह षः स्यात्‌| दिनं संक्रान्ता दिनसंज्नान्ता सुहरत्ताः, ofsaresr

(न कण का

(() समासविधिषु लश्चणषपलस्षणभिति ग्धायात्‌ क्रियाभियेषणसखापि, तेन नितान्क्षासः निकामप्तखो नित्यभीरः मन्दगामोत्यादि इत्यपि का-सि।

(२) अननुक्नातो गुरुणा wgrares: खङ्ष्दो बह्किताचारलाद्विनीतो- ऽभिप्ोयते इति का-सि।

लाश्मोऽतमौच्छकारो खारि्मरः। वेदं वरतानि «wae समाहत्तेन fe खटा रोदृव्या ब्रह्मचब्यं एव भूलिशयनारहऽपि यः खटामारोषति ATE: | Sas तेन खड़भारोषतु वा fafagrazrave: सर्वाऽपि wereg दु चते | द्रति तक्वबोधिनी।

४६० सुग्वोधं व्याक्षरणम्‌।

crest, किरणाः, ava प्रमितः (१) मासपरमितशन्धः मासं प्रमातुमारवानिलर्धंः। areata प्रतिपदशन््रेण सष सम्न्धात्रायन्तसंयोमः (२) | व्याप्तावन्येष्च | अव्यन्तसंयोगे इन्त कालवाचिनः क्ञान्तेना- येष स्यायन्त; सह स्यात्‌ मानौ स्थितः माषखितः वधं भोग्यः Wit FEA सुखं FEARS सत्यैरात्रकल्याणो सव्वै- रात्रणोभना। इति gis: | "श्रध तोषः | त्राः ममादैः। अन्तस्य aaa: सह षः स्यात्‌। पित्रा समः पिटममः waar wary समादिवधा-- समोऽ्ँ निपुणः पूव ऊनाध्रे सदशावराः। aa, कलह-पप्रा्यऽप्रादिमिश्रौ (2) मताविह AAAS TA एकोनः Gavia; विकाररह्ित इत्यादि mi नामग्रहणे लिद्गविश्िष्टखापि ग्रहणम्‌ इनि न्यायात्‌ गुर सटटगौत्यपि प्रादयप्रारिमिग्र इति-धान्यप्रभिश्रः गुड़मिश्र इत्याटि। श्रस्याक्षतिगणलात्‌ भय विनः भ्रस्वशृन्यः प्रकटजरा (४) गमनमन्यरः वयोज्येष्ठः विरह्टशः aes: गुणाधिकः वन्पुविषुरः

हुद्गविक्रनः गुरुतुल्या इत्यादि |

(१ अलमाल ATA Canta आरिक्स्यैणि कर्तरि HE: | (a) प्रतिपदशन्द्रेण सद स्यमि सम्बन्धे नाद्यनसयोगः। एतेनात्र QTR बन्येशेःत परद्वस्यायिषयो दशित दति। “h ) were ofefas: खप्राटिभिथ cau: 1 1६) प्रकटेन प्रलिताद्प्रकारेन दचध दूति विद्यारह्ारः।

AMET VATE: | ४९१९

तोक्षतगुणवचमेन तया क्षतः" alam, तौक्षतश्रासौ गुश- वचनखेति। Yaw गुणवचनः कभावेऽमोल्य्र्धेऽनय्‌ | यु; पूवव गुणे वत्तिला पथात्‌ द्रे वर्त॑ते गुणवचनो, तु गुण- मात्राभिधायकः yaar, तेन तन प्राटवमिव्यत स्यात्‌। अन्तस्य त्यन्तायक्ततगुणवचनेन Ty षः स्थात्‌ WEA HA: खण्डः शद्धलाखर्डः, गिरिणा aa: काशः गिरि काणः प्रमादेन क्षतो मूर्खः | प्रमादमूखेः। खण्डकाणादयः खण्डननिमीलनादौ गुणे वत्तित्वा (१) "रात्‌ तदति द्रव्ये वर्तन्ते MEAT शस्त्रमेदः (२) गिरिः शिशक्रोडनद्रव्यं (2) प्रमाटोऽनव- धानता | Serer तरयन्तशक्लादि वायक्कता इति तरङ्ञतेति किम्‌ ? अन्ता काणः, द्यत यन्तन श्रता काणं क्ते, किन्त- न्येन केनापि भागत्तिम्त चन्तेनात्ता काणत्वकरणादक्तिकाणः स्यादेबेत्याह। गुणवचनेन fare गोभिन्वैपावान्‌ (४) गो शब्देन लक्त- सया गव्यसुयते। परथतष्ननिभुखरः शरदन्तुरः इत्यादयसु पोषेण सुखरदन्तुरशब्टयोरगुणवचनत्वात्‌। विरेषार्थावगतिः शब्दसिद्दौ कतमर्धीवगतिनिमित्तमथनियमं मण्डपादिवदतिक्राम- तौति तीषस्यैव वाक्यारधेव्यवसाघटकलात्‌ इत्यन्ये (५) | समादेरा- क्रतिगमलात्‌ Te इत्यन्यः।

YY

(१) दृव्यगुणोभूतत्वात्‌ क्रियापि gw इति वैयाकरणानां मतमिति गोयीचन्द्र | (द) "याति इति भाषा

(३) भिरिखक्ुरोगविगेष इति कित्‌। (४ वपाभेदः। --

(५) मतु सम्बन्धतविक्ायां wee सति पदभात्रनिष्पततिरभषति, वाक्यार्ध- व्यवस्वा तु हतीयासभासेनेव घटते. अत्रा प्रतीतितिषयभप्रतीति श्वावा-

BR TA व्याकरणम्‌ |

amit: छता बहुलम्‌ धथयोर्विंहिता या त्री तदन्तस्य MAA सह षो बहलं स्यात्‌ | नखलुनः चत्रच्छित्रः ufeea: हरि्ात शत्यादि। बहुलग्रहणात्‌ गलेचोपकः पादहारकः cereal क्धन्तरस्यापि' षः (१)। दात्रेण लुलवान्‌ पर्ना farang caret स्यात्‌ धयोः किं भिक्षाभिरुषितः, wa हेती बो = सुतिनिन्दयोर्यैः। सुतिनिन्दयोगम्यमानयोरधघविहितत्यसख् eae: सदह षः स्यात्‌| करचेतव्यानि पुष्पाणि (र) बाध्य च्छेदयानि णानि(र) विष्ेरुपासो विश्वोपाखः शम्भः, शुना लेटः wee: कूपः (४) भ्रनयोः किं काकेन पातव्यं जलं, मेत्रेण गम्यो WH) बहलातुहत्तसतृणोपेम्यं नेन उपेम्य॑ ज्वलनम्‌ श्यादि स्वात्‌, नात्र सुतिनिन्दावगम्यते। पूव्वस्ेवायं विधिः aoe CT |

दर्षव्यवस्येति। wifacefntarafe: विषयम्‌ अर्थावगतिनिमिक्तं wecfeat हतमन्वयनियममपङ्रतोति अतिक्रामतोग्यधेः। तथाहि मरडपथन्द्‌दतत्ाधै- विषेषावगतिः wad पिवतीति wefeat हतमन्वयमतिक्राभतोति सभाशपारे त्र टोकरायां गोयोषन्द्रः |

(1) इतोयायाविहहितः waret विभक्रयनर्छापि भवतील्येः |

(९) अवसतुतिः। w नाम मश्रखि fornia यतः करेणापि wate |

(९) way निन्हा।' एवं नामाशारभिदं यत्‌ बाष्मेषापि बिद्यते |

Aa) निन्दा मस्य अनारेवववोद्धावनं निन्दा, एष्भनादेवोऽयं यतः भिरपि faye) अधवा अतापि सुतिः, रवं नामाह्नोदकषः कूपः यतः भिरपि fag? |

तत्पुरुष समासः | ४९१३

dana सं्कार्येण चान्तस्य संस्कारवाचिनः daa वाचिना सह षः स्यात्‌। swt उपधिक्त Tem: दध्योदनः गुडन निशा धानाः गुडधानाः, गुडपूपा इत्यादि WaT: wart मणिभुङुटं मस्तं जलगगेरौ 'दधिभाण्डं धान्यज्घशूल दूत्यादथसु wayat रध ति यसे थाकंपाथिवाटिल्लात्‌ मध्यपद्‌- लोपः। इति ate: |

श्रथ चोषः।

था AMA: | GAN ANS: सह षः स्यात्‌। कुवेराय

वलिः कुवैरवलिः। बल्यादियंघा | afafeage चैव रच्तितोऽन्ये प्रयोगतः |

श्राक्ञतिगणल्ात्‌ वरप्रदेया कन्धा, गुरप्रदेयाधिकनिखहोऽ्थी, पिढदानमित्यादि |

fand: nae mea) तादध्यै विदितश्यन्तस्य faafa- वाचिनः wafrafeat ae षः ख्यात्‌ युपाय दार युपदार, कुण्डलाय हिरणं कुण्डलदहिरण्यम्‌। wea रन्धनाय खालो भवाय Ga | Weare: alae रन्धनखालोत्यादि तु Tq |

fast प्रयोजनार्धाधेन वाच्लिङ्गता प्रयोजनवाचिना waned सह Uae ष, ख्यात्‌ fad, वा्लिङ्गता च। ब्राह्मणाय पयः ATAU: सूपः ब्राह्मणार्था यवागूः वाथ- लिङ्कताविधानात्‌ यत्र arafage नास्ति तत्र aq तेन दृपाय was | मशकार्थो धूम; इत्यत्र मथकशब्देन लक्षणया

४६४ FUNG MATT |

मश्कनिहत्तिरभिपीयते, sameq प्रयोजनाय; (१)। wa maaan चोषिधानाभावेऽपि प्रयोजनाधेग्रहणं निहत्तिरूपप्रयोजनवायर्धश््न चीषविधानाथेमिति कथित्‌। मथकस्याधौ निहत्ति्यस्ात्‌, इति व्यधिकरणरनेयन्धः | दति चोषः ' श्रथ पोषः

प्या aa: प्यन्तस्य Yaa सह षः स्यात्‌। पापामूक्त

पापरुक्घः। सुक्तादियेया |: qa मीतिरपत्रस्तो जुगुसा-भोत-निगताः | eat: परतितोऽपेती भयापोटौ मताविह

अस्याङ्ञतिगणलात्‌ हथिकभोः ब्रधभ्मजुगुषुः तदन्यः हत्तयृतः भाखदृग्रावोदतः बैदवदष्कुत इत्यादि भनमिधानात्‌ चित्र स्यात्‌ महाप्रासादात्‌ प्रतितः महाभोजनादपद्रस्त sare दूति पौषः।

a7 घोषः |

सम्बन्धे क्षता ध्या: सटा aaa क्रोडाजोविकयोः। aaa went विहिता या षो ame स्यादन्तः सद षः स्यात्‌, प्रौड़ाजौविकथोविहितणकान्तेन तु नियम्‌ 1 रान्न; युरुषः राजपुरुषः विप्रवक्नम्‌। Teal गवौष्ठर इत्यादौ खामी रत्यारिना- fafeaasfa ससन थव, सग्बन्धषीवा- WER aa TUN चकारेण तदनुकषषणात्‌ | FEMA यथा

हि = _— i area tos ees a . neonate fener ---- - - ~ --- -- _ ae:

(४) सथक्निहत्तिप्रवोजनको wa Tere: |

तत्पुरुष समासः | 8६५

wat aaa: एधोव्रषनः, पलाशानां शातनं पलाश्शातनम्‌ दत्यादि त्रोड़ायां - पुष्यभक्जिका, मदनभच्िका, पुषप्रचा. यिका जोविकायां- दन्तलेखकः, नखलेखकः, वितरलेखकः ; निल्यसाहाक्चाभावः (१) | करीडाजोविकयोणि कौ वक्ञव्यः क्रौडा- जोविकयोरिति किम्‌ ? eae भोजकः |

निद्रे सड थेक्तेन च.। निर्धार वर्तमानडयोर्विहित- केन योगे विहितायाषी तदन्तानांषौ स्यात्‌ नराणां चचियः शूरतमः, गवां ष्णा चो रिण, अध्वगानां धावन्तः MH तमाः, (२) Tet त्रातः, नराणं पूजितः | “Aas राममहितः कषतवा"निति तु भतोतक्तान्तेन घत्रयाः सात्‌, wearer: सादा (२) | ददमेषामुपगतम्‌ (४)

SS SN es ~~~ „=>

(3) wawfasanfefiafa te: |

(२) “कधं तहं पुरुषोत्तम द्रति ? aarfaataa, यदैकरेथो नियते, यच faaite हेतस्तत्‌तितयसच्निषौ ward निषेध दूति “हिवचनविमञ्येति" @A Baz: | यदा परुपेषूत्तम इति निद्खारणसप्रम्याः “उं्ताया “समिति समासः चेवं “न fagtca” इति qq) खरे भेदात्‌। enter’ fe gaz प्रहतिखरः। षटीसषमारे त॒ अनतोदात्तत्वं खात्‌" दति प्रौदमनोरमा } ^# # # ware, “संत्ताया^भिति समासस्य नित्यत्वेन सपद विग्रहासङ्गतिप्रसङ्गात्‌ | wea केवटोक्गसमाधानमे¶ सभीचोनमिति नव्याः" दूति तत्चवो यिनो। “aay fagicvad सप्रमोसमादोऽपिन खात्‌. fagice ष्टीसप्रम्योर्थतोऽमेटात्‌, षीसमासनिषेध- वेफल्धाञ्च। गवाभित्यादिवाक्यस्यितिरेव फलति वाच्यम्‌ समभास- विकल्यत्वादेष ठद्धिद्धः- षति प्रयोगरत्रमालाटौका |

(१) राभेण afer इति कनतुविह्ितटतोवया ढतीयासमाबः, peat wre सहित इति सम्बन्वे षी |

(४) अलाभिकरणे wy |

५८

४१३ सुगदोधं व्याकरणम्‌ |

samt ढे। 2 षै चथा प्राप्तौ ai sar तदन्त शो स्यात्‌ गवां दोहो गोपालन, समुद्रस्य बसो TAC: | उभयप्राप्तौ टे शयनेन aa नियमः (१) aaard निषैधस्तेन दु- भिका विप्रख, अर्या दरिद्र इत्यत धाः स्वात्‌ (२) श्रोदनपाकः पूपकारस्य इत्यत्र तु मोदनस्येति सस्वन्धविवत्तायां घो, ततोऽनेन निषेषः। | ठरकाभ्यामहोचादिभ्याम्‌। होत्ादिभिन्राभ्यां ठनन्त- शकान्ताभ्यां सष MATA भो खात्‌ पुरां मतता, श्रां We, Tes भोजकः, तरडलस्य पाचकः | भ्रहोत्रादिभ्यां किं इवि होता शचौभत्त | पत्यधेमनतग्रहणात्‌ Vere भत्ता धारकं द्यत्र निषेधः | सत्रिययाजकः देवपूजकं इत्यादि | होतादिवंधा- होता CEA AL हन्ता याजकपूजकौ | गणको रथपङ्किभ्यां (३) छ्नापकः परिषारकः। उस्नादको इत्तकाध्यापकाश्च परिषैषकः (४)। प्रयोजक द्म Ata: शेषं श्यं प्रयोगतः रधपक्गिभ्यां परस्य गणकस्यषेह पाठात्‌ ग्रहाणां गणक इत्यत्र

(1) असली विहितषद्योगे cf हतोत्यत्ेति te: | (x) भरिक्न।टोनां सोपरिडितशलाथयलात्‌ पूर्वोक्तनियभाभाने पहीसमासः खदेषेतिमाक्रः। ` ~र) काशिकायां सिद्वानरोहदयां gran पडङ्गिरियत्र पत्तिरिति पाठो हृष्यते | (9) शंिप्रसार द्रहनुग्धनोपे परिवेषक Kay तादव्यशकाते दते |

तत्पुरुष समासः | ४९७

प्रतिषेधः | श्राक्ततिगशलात्‌ fanaa: सम््रदानबोधक दरत्यादि ठन्‌साहचयात्‌ घविहितणकान्तस्येषेह ग्रं, तेन्‌ तमोभेदिका चन्द्रस्येत्यादौ षः. स्थात्‌ भावविहितलात्‌ | व्यक्च्छव्रानपूरणेः | 'व्यसंन्नकक्तदन्तेनः, शढशानाभ्यां, पूरण त्यान्तेन न्तस षो स्यात्‌ ब्राह्मणस्य Far, विप्रस्य WHA, देवस्य कुव्यैन्‌, ्राद्मणस्य कुर्वाणः, waa सब्बन्धविव- षायां षो विप्राणं दशमः, छात्राणां पश्चमः (१) 1 एभिः fal? लदुपरि, मदुपरि तथाच--यतृढफ़ऽरौन्‌ westa समुद्र मतराम चे"ति भटिः। यस्याः क्रते इति aay | द्रव्यामगुणेः। ये गुणा गुरे गुणिनि वत्तन्ते ते द्रव्याल- गुणाः, ते; सद UAT MT स्यात्‌ | पटस्य शक्तः जलस्य भोत- faarfe | aga कदाचिन्न प्रयोगोऽस्ति गोश्क्गोगुण इत्ययम्‌ | तैनेवमादिषु प्राप्तः समासोऽयं निषिध्यते इति (२) 1

दृह वेशष्िकशास्रीयाणां संख्यासुखदुःखादौनां aed, तेन गोशतं मतसुखं लहःखभित्यादि यदुक्तं -

वेशेपिकगुणा ae संस्यादुःखसुखादयः। weal Mad सौोतादुःखमित्यादिदशेनात्‌

(१) कर्थं तद्धि ^“ताश्यश्दरषहाद्धितरे कतानो"ति ? प्रमाद एवावभिह्येके | rere see षु षठ उञ्छात्मकः षठ इति षा व्याख्येयमिति प्रौदमनोरना | (र) शयादिन्यकारिकेचम्‌।

४६८ Tua व्याकरणम्‌ |

errata किं ! चन्दनगन्धः, कन्यार्ूपं, नदीघोषः, फलरसः, करभे इत्यादि, गन्पादिशष्दानां कैवलगुण लतवात्‌ | aga ~ कटाचित्‌ प्रयोगीऽस्ि चन्दनं गन्ध इत्ययम्‌ चन्दतस्वेव गन्धो हि सप्रधानं प्रतीयते (१) | एव ूपादयस्तस्मात्‌ समासो विहन्यते इति पटशोज्ञं Wad वचनकौशलं गात्रमा्हवमिल्यादौ भाव- ल्यान्तानां केवलगुणवत्तिव्यत्‌ षः खादेव तथाच- वधा गन्धादयः Wet गुण मावव्यवख्िताः | तथा शोक्गयादयस्तेन पटशोक्तादयः समृताः इति भागुरिः wa तु भावल्यान्तेनापि काश्णणादिना fated काकस्य कणप, बलाकायाः शौक्तामिलयत्र निषेधः, भ्रथगौरवमिलयादौ तु स्थादेवैत्याइः एव॑ (२) पुरुषोत्तमदेवेनाष्यु्ं, न्या्कारादिभिसु नोक्गमिति। समानाधिकरणैः समानाधिकरणे; gat सह स्यायन्तस Ot A स्यात्‌ | सुन्दरस्य देवदत्तस्य धनम्‌, We WA मातङ्गाः

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(1) agaftaag) रामानन्दोऽेवमाह, यथा -ततस्येगणैः wt aa wa | तत्स्थः SreqQuemyarsanariehe: सह षन्ख ततपुरुषो भव aay: | यथा-शन्देनगन्धः feed फलरस Katie) गन्धादयो युण रव aaa कद्‌ चिदुगुणनीचादि।

(२) एवमित्यनेन ' काकं arurfaanfed लक्षितमिति | काशिकायां fayraateara एवभेव “अनित्योऽयं गुणेन निषेषः। नदयिषं शंन्ना- marae feenfefaeag | तेनाधगौरवं बृद्धिमान्दयसित्यादि faqy” इति fegraatedd |

तत्य॒रुष समासः | ४६९

समानाधिकरणैः fate राज्यो गौरवं, कष्णचरणौ वन्द्यौ | तख तीव्रो गन्धः, चन्दनस्य WENA इत्यादौ त्न्वयाभावात्र स्यात्‌ (१) इति पोषः .. श्रथ WIT: | स्याः TW: AAT AVS: सह षः°स्यात्‌ TAY WNW: WAT! | शोण्डशब््‌ः सुरापे रुूदृः, इह तुपचारात्‌ अधृत इत्यभिधोयते | नन्वऽचैषिति क्रियामावादधिकरणलत्वा- भावादेव at at इति चेत्‌ सत्यं, प्रसजिक्रियाया दत्ता(२)वन्त- मावाहिषयपो भौरादियया- शौण्ड कितव data vate व्याड पर्डिताः। fay साहसिको caaqa निपुणः पटुः | कुशल पलो we: शष्कपक्षावधोत्यपि मध्यार्थान्तस्तथा बन्धः परे शिष्टप्रयोगतः श्रधिशब्दस्यापरेयप्राधान्येऽव्र पाठः। यथा व्राह्मरेष्वधि ब्राह्म शाधोनः, परेष्वधि पराधौनः, श्रध्यत्तरदात्‌ सदेव ईनः कैवलाधि- प्रयोगाभावात्‌। मध्याधस्यान्तःशब्दस्यािकरणप्राधान्ये पाठः | यथा वनान्तर्वसति, वनमध्ये वसतोल्यधेः। भ्रधिकरणप्राधान्ये ऽधिशब्ट्य पूव्वेपदाथप्राधान्येऽन्तःशब्टस्य तु व-सः। यथा afafa श्न्तवणमिति (३) भ्राक्ठतिगणोऽयम्‌ |

"न~~ ~~~ „~~~ ~~ ~~~ --- ee me Seeman Stent ee = ~ = rr eens

(१) अन्न गन्धादिना ware: GATT सम्बन्धोनतु तोत्रादिनेयसमासः

(२) wat समासे cae: | ,

(३) waded वनमध्यवत्तीं वनव्यतिरिक्रो मध्यभाग Sea) तप्पुरषे त॒ वनमेव लध्यभूतमित्बधेः- इति Malas: |

Boe quay व्याकरणम्‌ |

waa नियमे स्य-संन्रक-यकारत्यीन्तेन सह घ्यन्तस्य धः ष्यात्‌ भ्रवश्यकरणोयले गम्यमामे सति माके एव aad माम- देयं, माषे मपि सति ऋणम्‌ भ्रवश्यं दातव्यमित्यथः। एवं वषे- aa, atead साम, माघकरणौयम्‌ | जगक्ञतमित्यादौ तु शौर्डादेराक्लिगणतवात्‌ | येनेति fa ceria खात्यम्‌ |

तत्राहोरात्रावयवानां क्तेन At च| ततेत्यख, दिनावयव- रात्रावयववाविनश्च SAAT सह षः स्यात्‌, निन्दाया aa wa तव्रक्षतं, तस्येदं Maar, श्रादयचो त्रिः मध्याङ्गतः, yeaa, worsen | भ्रवयवेति faa? षद्धि ad, रात्रौ aay “fern: frag: राविहत्तमावैदयत" venfe धयोः कता बहुलभित्यनेन ata निन्दायां प्रवाहे मूत्रितं प्रवाहमू तरितं, (१) भस्मनि इतं wargay, उदकविशीरष॑म्‌ (२), अन्धकारनटितर्मित्यादि | प्रवाषादिना मूतितादिना मुख्या- यमपहाया्थान्तरमभिधौयते, तथाहि प्रवाहष्व भ्रनादेये कार्ये, मूतितमिव निष्फलं प्वत्तेनमिलयभयोरेव सुख्याधेत्यागात्‌ निन्दा गम्यते (२) इत्यादिक्रमेषार्धो steer: |

(1) बथा श्ञोतश्ि qfat किञ्चिटवरिष्यते wears इति प्रयोगरलमावा- oar |

(३) विधीये गहितमिवयैः| ° ° जञबानरिततवात्‌ केनापि fata सातभतो निष्लल्वसिति निन्दा-दरति प्रयोगरल्नमाराटीका |

(र) रए्वषिधा हि ण्डा Bete RAMI चेषं गमयनि, नापि gat, woes fe greg: weg: मे पूजायां परव्तने, wraredtsfa बे कुल्यायां, तेऽपि Wear क्वा | wear पूभारेपयोरनधिगभ इति इभारपरारे ४२ षत्रख री शवां males: |

तत्पुरुष CATE: | ४७१

Beat | ष्वाङ्कार्थेन सद स्यन्तस्य षः स्यात्‌ निन्दायाम्‌ त्ंष्वाङ्क; (१) ala wang इव स्थित cad: एव॑ Meare, नगरवायस इत्यादि |

पात्रेसमितादयः। तेपे सम्यमानें पातरेलमितादयः MA निपाल्यन्ते पाज (२) एव समिताः सङ्गता पुनः क्रचित्‌ कार्यये पात्रेसमिताः, आखनिक (२) खाते वक इव भ्राखनिकवकः, वको यधा खातगतभेव भक्षयति तदत्‌ यो खटहगतमेव भक्षयति नान्यश्र गच्छति स; मातरिपुरुषः प्रतिषिदशेवोत्यधे; (४) | उडम्बरे ATA इव THU उडग्बरमशकाः, यथा उदुम्बरमध्ये मशकाः एकखा एव नान्यत्‌ पश्यन्ति तथा ये श्रटृ्टदेशणान्तरास्ते इत्यधेः | पिण्डयामेव शूरः पिरडोशूरः भन्यकाथाक्षम wea) od गडेविजितोत्यादावपि निन्दा गम्यते |

पा्ेसमिता आखनिकवको मातरिपुरुष उडम्बरमशकाः |

पिष्डोशूरो ग्डहे विजिती गेहेनर्दी Feat | Hew Tam Teast ava: |

omen

AG = ~ ~~ --------~* en ee.

ew

(१) wate: काक्ः। Mowe Karel yaleq Gerdufcenta तीर्थादि-

चन्दानां wargifeuagiarg Mase cia | Aang दति wea Ae ung fod ख्याता तहदन्योऽपि aed षष aaa wTE द्व अनवस्थित. तोषै-

WE Lae, wa प्रत्यनवस्वितत्वभेवाम केप दूति समाखपारे ४२ सतख टीक्षायां wales: |

(a) भोजनक्षभये care: |

(९) wreqertg wa विदारे इत्यस्मात्‌ खनो उडरोकेकषका इत्यनेन दकः |

(a) प्रतिखिद्धसेवोति यः प्रतिसिद्धमाचरति मातरिपुरुष उच्यते | Hatt were निषिद्धं तददम्दनिषिदच्रणेन aut aaa इति गोयोचन्दर |

BOR मुग्वोधं व्याकरणम्‌ |

गो्टेपदित Ea र्ट TANG: |

उड्म्बरक्लमिः WaATEA, कूपकच्छपः

करणेषुरतुरा्व कूपमण्डूक इत्यपि |

कर्णेटिरटिरा Hea प्रयोगतः

येषां गणे व्वान्तता तैषां प्रयोगेऽपि बान्तता। तथा हतस पातरेषमितेरिति ale: पातेसमितादौनां हातिरिक्तसान्तरं नं भवतोदयेतदपि sa, तैन परमाः पातरेसमिता इत्यादौ a: | बहुपात्रेसमिता श्ल्यादौ ₹हः खादेव |

वनेकशेरुकाद्या aha वनेकशेरुकाद्याः Me निपालयन्त संत्नायाम्‌। वनेकशेरुकाः वनेकिंश्काः पुरुषोत्तमः नगाधिराज्न इत्यादि वनेकशेरकादोनां पात्रेसमिता यन्तगेतत्वे fae var. विधानमनिन्दाधेम्‌ | पुरुषोत्तमः नगाधिराज saa निर्हरण दति fate प्रि वनेकशेरकादिपाठात्‌ deat इत्यन्ये | परे तु संत्नायामिति सुत्रथितला वनेकिंशुकाः वनेकशेरका शलयुदाह- रन्ति। ते तु यत्र समुदाये निहायमाणो निर्डारणदेतुषेति wa aaa a निदहारण इति निषेधस्तन पुरषोत्तम इत्यादौ निषध garg: | यद्यपि इया दिह्यन्तपूव्वैदानाभेव aaa उङ्षस्तथापि प्रयन्तपूत्चैदानामप्यभिधानाजन्नेयमिति तथा च।

नञः नजिति ae स्यायन्तेन सह षः स्यात्‌ (१)

न~ ~न न~~ = ज~ ns Re "० ~ ~ ~

(i) ,.सबन्तेन षष THAME: समासो वाभवति। खभावा- इत्तरपदाप्रधान दति सं्तिपरहारे ( समासपारे १म रतम्‌ ) तवर गोयषन्द्रः- “एवमनेक मित्यत ्वयनचचसर पद्‌ धप्रधामतये रिष्यति, तथाह्यव्र भमवधात्‌

तत्पुरुष समासः | ४७३

त्ाद्मणोऽत्राह्मणः। नजीऽ्यो fe हिविधः पर्यदासः प्रसज्य प्रतिषै- wafa | यदुक्तम्‌-

marae विषेयेत्र प्रतिषेधेऽप्रधानता |

पर्थदासः विश्रेयो यतो ततरपदेन नञ्‌

अप्राधान्यं विधेयतर प्रतिषेधे प्रधानता |

प्रसज्यप्रतिषधोऽसौ fara सह यत्र नञ्‌ इति |

MATEY (१) इत्यादौ परपदार्थसट णाधेकलात्‌ विधेः प्राधान्य,

प्रतिषधांशे तात्मथाभावात्‌ प्रतिषेधस्थाप्राधान्यम्‌, भ्रतएव way दासनञः परदेन सह परस्परसापेचचत्वात्‌ सः। fafeq Hoary इत्यादौ art, तात्यदाभावात्‌ विधेरप्राधान्ये, प्रतिषेध शब्दप्रयोगात्‌ तख प्राधान्यम्‌, श्रतएवोत्तरदेन सद प्रसज्यप्रतिषेध- नजः करोत्यथक्रियया सह सम्बन्धेन परस्रसापेचलाभावान्र

----- ~ "~ ~~~ EY Oe [9 ति ` ee *---- - ---- --~~-~ -- tr en ००००००००

दित्वादावथें एकववख्यारोपितखाभिधाता wane उपात्तरुख्य एव दित्वारीन्‌ छभिदघातोति carer | wane सामानाधिकरगयाद्येकवचन- मेव नियतम्‌ | aa—“ate: man: ate: प्रखितनेका” cfr, अनेके अनेकेषाभिति बह्कवथनमयि कंचित्‌ समाधीयते, चरन्तु तद्भतहरिणा व्यव- ferafafa इस्ता नाङ्गोठतं, वतो “भवन््यनेके जल्ेरवोभ्प्यः” waves दति ठत्तिह्तोक्तम्‌। यदा विजातीयानामर्थानां प्र्येकमनेकत्वं विवच्छते, aver अनेकस्यैवाने कत्वे हिवन षद्वचने सपि भवतः| waa सट्रश्च उभावनेकौ, धवश्च खदिरश्च पलाश प्रत्येकतया इमे अनेके धवसरद्रपलाशा इयवानेकशब्द्‌ प्रयोगो areas, BARI हन्दराट बाधि गतेः | अनेके राच्यः खण्डशः प्रोतं शास््रभियेकतव्टसेरेकख विद्यते एकत्वं येष्विति वाक्ये ब्व्रीहिः कायेति |

(१ रच्च सादण्येन wigaTal बाद्मणभ्वमः सन्भवति, एव गौण्नाद्मष- MASH उच्यते cas दति विद्याशङ्कारः।

.

४७४ मुगधवोधं व्याकरणम्‌ |

ai नन्वेवं षति gaa wate saa श्रसूम्पश्यानि मुखानि, yaa daa श्रपुनगेयाः wan, श्रां भुत TUE ब्राह्मण श्ल्यादौ कथं दूति चेत्‌ aa, हि ज्रियया सह सम्बन्धः सनिषेधकीरणं, किन्त श्रगमकलं ; तथाहि mazar गभकलवात्‌ सः; fates gate serena: गमकलात्र इति। यहा sadoafa सुखानि सूथ- विषयकदेनवद्वि्रानि सुखानि, मेत्रकर्चकपुनरगेयभिनत्राः Mar, खाइकशकभोजनवहिन्नो बराह्मण इयर्थात्‌ परथुदास एवेति (१) | देवदत्तेन भूयते, खोयते इत्यादौ क्रियया सह सम्बन्धात्‌ प्रसज्यप्रतिषेध इति दिक्‌ | may नजोऽधः Wise: | यदुक्म्‌- त्लादृश्यमभावश्च तदन्यत्वं तदह्यता | प्राश्यं विरोधश्च नञर्थः षट्‌ प्रकीर्तिताः

~~~“

यथा अव्राह्मणः, अपापम्‌, Baz: पटः, waza कन्या,

w+ ~ ^ न= = ~ em = ~~ ee =

(१) “अशक्ता भवता नाथ सुहर्तमपि सापुर"- cea agafa nase प्रतिषे षाध नज सव्पुरुषसमासो वचेयािमर्षटोषषटकतया रुक्त दत्यपक्रम AAT A -“नहु.गव्राइमोलो बाह्मणः BEV राजदारा salen अरुकेयल्नापि प्रसच्छप्रतिपेपो भविघ्यतोति ay, safe यरि भोल्ञगादिद्पक्रियांपेन नञः सम्बन्धः खात्‌ assy ततर प्रसञ्धप्रतिषेधलं बह शक्यम्‌ | तथा, िचेव्यतया प्रधानेन तद्धोज्धवेन HATA नञः बश्बन्धात्‌ |

यदद्ः- श्राद्भोजन्ोलोह्टि यतः wat प्रतीयते | तद्धोजनमात्रं तु कत्त रोनेविधामतः॥ इति। wana दे क्रिययेव सह्‌ सम्बन्ध दूति दोष एष |”

तत्पुरुष समासः | BOY

भको वेश्या, भमुर any: भ्रसितम्‌ cara र्द्िविषयल्वात्‌ साहश्याद्यवगमः | वीदित्तु नसं येऽन्तर्भावयन्ति, aaa उद्धे मुख इत्यादिवत्‌ विशेष शविगिः्थल्वमवगन्तव्यम्‌। नौलोऽनौील erat नञो द्योतकलादप्ाधान्येन विशेषणत्वात्‌ ya निपातानियम इति न्येतु तदसदेवेत्याहः (१).।

षती गुणवचने: (२) | agar गुणिनि वतन्ते ये ते गुण- वचनास्तैः सह षदिति व्यस्य षः स्यात्‌ $षत्पिङ्लस्तस्या- त्यं ेषतपिङ्गलिः एवं दईषदिकट+ ईषत्मौतः ईषदुब्रत (र)

{!) चन्र maltese: -नजसमासं कालापाः कम्ड्मैधारयसमासेःन्तर्भाषयन्ति। तदसत्‌, उभयगतविशेषणविशेष्यभावद्याप्रसिद्त्वात्‌। अनोलमित्यलल तिशेषण- विेष्यभावस्यानिय त्वात्‌ पृष्वैनिपातानियम खादिति।

aq कात्तिकेवयः-ब्णशन (सदशः). सरण्यन (विरोधी), रान्नोन ( मेदाश्रयः) द्यादिवाक्यमङ्गोरु्य अबाद्यः BET: अराज LAS तत्पुरुष एव वाच्यः} यद्‌ APCs WIAA We उच्यते तदा नजः पाश्स्या- भाव्रवदर्धक्रतया aayata एष षति ध्येयमिति केषाञ्चिन्मतम्‌ वस्तुतो- SATYUINA नाद्मणसटशः ATH ाभावः, नद्मयादन्य CLITA षट्‌ लभ्यन्ते | तत्र यदा यब्राह्मणपरेन ाद्णष्ठशः कथ्यते तदा AUT नच्ेणया बाद्णसटश् उच्यते, नञ पदन्तु aU दयोतयति, नान्वमये, तेन हयोरेकरार्घता, तएव कम्पधारयः खीक्रियते। वदा नजोऽधैः सदशः, नाद्मण्ख स॒ख्याय तदेव इथोर्भेरेनकायैताभा्रात ATT TT कथ्यते | मतभेतद्हयं Fre cH eA 4a, * * # किमहो तदसदिष्यक्ता wayarcastigad यत्‌ सांज्तिप्रशारिकेः waters तत्कथमिदानीँ सवा बुद्धभिति।

(२) वचनात्‌ गतशेक्गापीतादयः क्रियाचन्दा कत्र eg इति विद्याशङ्कारः।

(8) tagqa इति दैर्थादिद्पपरिमाणायेतेन गुखाधेक इति षिद्या- WET

४७९ मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

इत्यादि tener इत्यत गार्यदरवयायित-गुणक्रियथोरल्यल- बधकलेऽपि $षतो masa सदह षो द्रष्यवाचिलात्‌ (१) |

ूव्यीदेरथिमकलते। waa तत्तमानेनांगिना सह पूनादेः षः स्यात्‌| पूर्वं कायस्य एव्वैकायः अपरकायः उत्तरकायः Wale: Us; ears: पञ्चिमरातः। “उपारताः पञचिम- रात्रगोचरा"दिति भारविः। यद्यप्येकदषे षमुदायोपरचारत्‌ विशेषरविधेखयोयसेनेव पूव्यकाय धति सिध्यति तधाप्यवयवा- वथविसम्न्धथाः पै aaa इत्यायनिष्टरपनिरासा्थेमिदम्‌ | पोषेऽसि राजदन्तादिलात्‌ परनिपात इति कञ्चित्‌, तन्मते तु नेदं सूत्रमिति wae किं ? ga कातराणां, पूवं वर्षाणाम्‌ qaaal इति तु वद्यस्यांशिन एकलवात्‌ (२) |

्ञोवाई तुय हितीय aaa चतुध तुरोयाणां वा। ज्ञोव- लिङ्कानाभेषाभेकले वत्तमानेनांशिना सह षः स्याहा। रै कायस्य sear: (2), qafwer दितोयभित्ता ठतोयभिक्ता

(+) माम्बेश्द्खेति de) अत्र॒ गोवीचन्दरः -“गुएवचनेनेति faq? cig, अयं जातिशब्दो दूव्यवचनः गाग्बदूव्यावितयुशक्रिययोः स्तोकतां गभत" wag: WAVER, यथा गोतर दूति जातावुत्करषांभावात्‌ तद्मञ्जक्ख TAG qve nae गमयितु' प्रक्ष्य.” |

(२) “aq यदापि ङषनाल्ि, तथापि एकलन्तु विद्यत एव तघाचोक्गम्‌- श्राएोटार वषाः सिकता लोकश इत्यादे रबड्तयेऽ पि बड्वचन"सिति Males: |

(१) अद्ध नरुदकमिति urfafrgag (२।२।२) | “समप्रविभागे अद शब्दो -नएुंरकभाविदटलिङ्गलखेदं यह णम्‌ यद्धं मियेत्चएु सकमेकटेभिनेकाधि- करणेन समदते, तत्‌ पुरषव समासो भषति षरोसमासाप्वादोऽयं योग" - fa कारिका माये वु -“कवमद्ंपिपङोति समानाधिकरणो भविध्ति।

तत्वरष समासः | ४93

चतुधेभि्ा तुरोयभिक्षा। पत्ते कायाम्‌ तघाच “ware भक्षितं मथे"ति भाषम्‌ एवं भिचतातुमित्यादि एकल किम्‌ wa धान्धानाम्‌। श्ररैपिष्यल्य इति तु ्रदैपिष्यलो अरधैपिष्यली श्रैपिष्यलो इति एकशेषात्‌ श्रस्यानित्य-

Wee ~ ee ee

ayy सा पिप्पली अङुंपिप्मकोति। शिध्यति। परत्वात्‌ षषीशभासः प्रात्रोति। अथ पुनरयमेकटेशिसमास ऋअरम्यभाशः षष्ठीसमासं वाधदि। इष्यते षठीसमासोऽपि | तद्यथा -अपूपाङ्ग' मया मितं, gray मया लब्धभिति। एवं पिप्पल ईजित्यपि भवितव्य” xaar ufufraafad प्रचाख्यातम्‌। “gfagarg भाष्यकारः प्रमाणतरमधिकलच्छदर्थित्वात्‌"-- दूति केयटः। ^एतत्‌ स्मरं ‘ocafag दन्दतत्पुरुषयो'रिति Ga भाष्ये प्रत्याख्यातम्‌ | तथाह्ि-अई- पिप्मलोति कष्प्ौधारयेख सिद्धम्‌ wae दष्टाः शब्द्‌; अश्यवेऽपि cae दति waa | समप्रविभागादन्यलत fe anata गतिः| अङ्गारः, अद्धंजरती- यम्‌, अदं वेणसम्‌, अक्रम, अङ्ंविलोकितमियारिद्थेनात्‌ | समप्रविभागे वोशभाशं बाधितुं qafaefafa वाच्यम्‌। षषटोसमासख्यापि Ceara | तथाच कालिदासः प्रागु प्रेमा शरोराद्धंहरां इहरखेति”- ईति प्रोद्मनोरमा। तक्वबोधिन्याभप्येवमेष | संजिप्रसारेऽपि avenge सद पाणिकसमास् sa ( समासपारे सूत्रम्‌ )। अतएव तकंवागोपेन भाष्यकारक्रमटोख्रयो्भतमतु- era) “od ofa लिक्रेनाष्यद्ंयब्देन अर्या दरति स्यात्‌| नायं पिरोधः, तद्ापीष्टलवात्‌, यतो भाष्यकारेण ae नपुशकृभिति पाणिनिलश्चणमेव निरस्तम्‌ | wwifewfa नपुंसका्धति at ख्टाचम्‌। असमोजनं भोजनायमिन्यादि- शिश्मयेम्‌ अपरशब्टोऽ्यन्येरत्र प्ते, तत्कम््मौधारय-षोसमासाभ्यासेव साधनी- यम्‌। BEG, Bley, अद्गजरतीयराकचयटत्तेरष्यडंख दतोयासमाखः। हुषभगयोरद्धेन वेसं भवतोति वाक्येऽपि तन्मयोगो टदण्यते”- दति गोवोषन्दरः | विधिना तभद्वेशसमभिति कुमारे yar; प्रेमा wag हरेति Wa १।५० ; मक्धिनये¶ तु “अङं हरतीति अङ्ंहरा, एरोरखाद्हरां शरो रा्हराम्‌ | कलपुरन्धरादिवत्‌ waa सचटायतिेषकत्वात्‌ सभाः, eer ATS समप्रविभागवयनतवात्‌ BETO खात्‌"- TARA |

got मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

wares wi कायस्येत्यादिवाक्यसक्वऽपि वाग्रहणं पाततिकपौष- शनापनाधेम्‌ तैन व्यह्लष्छवानपूररोरिति Mafia: (१) |

कालानां परिमाणिभिः (२) काशवाचिनां परिमासि वाचिभिः सह षः खात्‌। मासो जातख मासजातः, दयो HAA इयहजातः हे THA जातस दयहृजातः (१) यद्यपि द्रीणादृक्ञारोनामेव परिमाणलं प्रसि, तथाप्यत्र कालस्य गौण- प्ररिमातमवच्छेदशतुलात्‌ (४)। तथाहि मासो जातखेत्यारौ माषादयो जातसषम्बन्िनो; सूथगतोगमयन्ति इत्यवच्छेदहेतव बति (4) |

हया प्राप्तापब्रयोः। भ्रनयोहयन्तेन सष षः स्यात्‌। प्राप्तो जोविकां प्रा्जोविकः श्रापव्रजौविकः। जोविकाप्राप्तः afar

[गी भी ee

(1) महु भिलात्ंभिव्ादौ पूरणाधेकशन्दयोगेऽपि व्यल्छब्ानपूर षैरिच- गेव कथं षहोसमाशनिषेष दयत याड Geant |

(२) प्ररिभोयते परिच्छिद्यते यस्तानि परिमाणानि परिष्छेदक्षानि, aed सनोति परिभायिनशेः।

(१) “वद fe ननाद भारो गत wea दूति ष्यवह्तियते। तत्र व्यव्हारकानजननलक्षणयोरनराठभावौ Hal जननहारा जातमपि परि. च्छिनन्त्ेवः- ति प्रोदमनोरमा। “कालो ae मासेन परिच्छिद्यते। तथाहि शिवान्‌ कोऽ जतद्येति wt माष vente प्रतिवचनं, परिच्छिदयमानस्सिंगदरातमाकश एव crea” इति कैवटः। ary इति atch चभाहार षति वाक्ये हिुःरमाषः, werercry vanfeat षः।

(४) कालल सगडश्ारलोधषेः, अखगडकालखानवभिते नावच्छररेदला- भवात्‌ अवोदः अन्धनातिरिङ्गता इति विद्याश्डकारः |

(५) are ॒शव्वज्धिनौ्जातदूव्यानामतुभूयमानलननावरिका afer: गतीर्बोषवन्तीति, खारित्वगतोन।मन्धनातिरिङ्गलगोधदेतवो मवन्तोद्यधं इति विद्याहङ्कारः।

~ - ~ ~~ ~ = ~~ ~ ~ ee -~-~

ATTT समासः | ४७९

पत्र इति ्राचितादिलात्‌ प्राता जोविकां या सा प्राप्तजीविका आपव्रजोविका इत्यत्र तलग्रहणन्नापकात्‌ VARTA: (१) एवं हितीया भिक्ताया दितोयभिक्ला इत्यादावपि |

again: लेन खयं सामि इत्येतयोव्यसंन्नयोः क्षान्तेन सह षः स्यात्‌ खयं wa age arta, (२)° सामिङ्ञतम्‌ सामिशब्दोऽदैपर्यायः, तेन cere ग्रहणात्‌ नेमिक्ततम्‌ भरैल्त- मित्यपि कथित्‌। लदन्तग्रहये कारकोपसगेपूव्ैस्यापिः गरहश- fafa न्यायात्‌ खयं चिरविलोनः खयं धन्धगत इत्यादि (३) |

कुप्राद्योनिंल्यम्‌। कु इत्यस्य प्रादेश away स्यादान्तेन सर षः स्यान्नित्यम्‌। नित्यस खपदविव्रहाभावात्‌ पदान्तरेणाथे- कथनम्‌ | कुसितः पुरुषः कुपुरुषः, ईषल्नलं काजल, WAT: प्रगतः प्रपतितो वा पुरुषः प्रपुरुषः। fafael विरो वा पुरुषः विषुरुषः, दुष्टो जनः eet, शोभनो जनः सुजन इत्यादयः शिष्टप्रयोगानुसारेण न्नातव्याः |

्रान्तादावल्यारैदया | क्रान्तादावये वत्तमानस्यात्यादेदयन्तेन

~~~ ~~ „~ ---~ ~~ --~- ~ - --- ~~~ >

(१) प्राप्ता जीविक्षायेन यया येति बह्व्रोह्िसमाशाग्रयणेन धरिताधत्वेऽपि प्ा्प्रिय इत्यादो पुवद्भावो खात्‌ | प्राप्रराज् इत्यादौ समासान्तप्र्योऽपि खयादित्यततस्तत्‌ एरषसमासाश्रय यमिति बोध्यम्‌ एति दहन्ुग्धबोधम्‌।

(a) समारेकपदत्वे सति फलं दशयति खायं घौतमिति।

(३) ga Bada समाशावन्ध्वात्‌ तदन्तयणं तावद्धवत्‌ सोपसगेख we समासः} अत ary agate कारक्नोपसगौ gat यज्ञात्‌ कारकोष- पूरण कारकोपगीपूमैख लटन्तखेति te: | कारकोपसगाां sy समशलोऽपि शत्‌ waa हदुदहयेन रहते Kee: विगेष्समासेन fos सानि- ugar पूरथेनिपाताधे बाभिपहणभिति गो वोचन्द्रः।

४दम मुवो व्याकरणम्‌ |

ay नित्यं षः are भतिक्गान्तो व्ैलामतिवे्ः, samt विदां उदिद्यः (१) |

AVIAN क्रष्टादावथे वत्तं मानस्यावारैसख्यन्तेन सष निलयं षः स्यात्‌ WARE कोकिलया भवकोकिलं ` वनम्‌, TIRE: कोपफिलेन भ्रवकोकिलो ठतः सथब्दः क्त Tae | aaa वणा dan, परिणो वोरुद्धिः प्रिवीरत्‌, सद्त- मशनेन' समशन, प्रतोतोऽचेण wera घटः, सुशद्गतो वैलया सुवेलः, भ्रधिगतोऽचेण was घट इत्यादि |

ग्लानादौ प्रादेश्या। न्लानादावधं TWAT पथा- देशान्तेन सह निलयं षः स्यात्‌ परिग्लानोऽध्ययनाय प्रथध्ययनः, पापं कुमार्ये भ्रलंकुमारिः (२) wine पातिकः दूति कथित्‌, तदमतेऽलं कुमार्थे इति वाश्यमपि। उदुयुक्तो गुहाय wage, श्रभिगतः युतायाभिश्रुतः |

क्रान्तादौ निरादैः प्या। क्रान्तादावधें aware fae:

ee = = = -~ = -~ == = -~ -~-* ~~ ~~ --~-* -- = ~~~ ~ ~~ ~न = = ee eee

(१) उभयत्र गवाग्रादेरिति qe: | नहु अाघानख तेन war पिधीयते, ठत्तरपटायेप्रधानसत्‌प्रषः। उच्यते-तख व्यभिचारो प्रागेव प्रतिपाद्तिः। यो बेलामतिक्रानः एषात्र प्रधानम्‌। Vary अतिवेल ofa दति ब- नष्टापि सिष्यति। wisi aie, feat ama. मैवं; यदि बहवरोहिः aragr अतिनरि अतिभा प्यादौ arfewer’: (यतः कषः) एति निरं कः शात्‌, यतिराजं तारो टः (षः) खात्‌, अतिष्भं इत्र अन्‌ (water) दयात्‌, अतिजाय इतन जानिः खात्‌- द्रति गोयीषन्द्रः |

(२) gare जम धम्‌ अलं समः अलंकुमारिः, तादष्येषतृदीयम्‌- दूति प्रयोगरत्रभाकाटौक्गा |

त्प रष समासः | Boe

२६५। AAA! te, we) परं व्यं get स्यात्‌ से सति | राजानमतिक्रान्ता ्रतिशजो, भ्रति, wers:, भ्रतिसखिः |

प्यन्तेन ae नित्यं षः स्यात्‌ ¦ निष्ठुम्तो वनात्‌ निणः, श्रपगतो ग्रामात्‌ अ्पग्रामः, अन्तगतो मुखात्‌ अन्तमुख zante |

क्विद्न्यव्रापि। एतैः adda: सस्तव्रापि. भि्ट- प्रथोगदश्रनात्‌ षः स्यात्‌ पुनाराजः ga: भूतपूव; (१) पनः- fae अविनाभूतम्‌ श्रविनाभावः सहभावः भन्यधोपपत्तिः (र) waaay इत्यादि |

श्रस्यायन्तेनापि कतोपपदस्य। खायुत्पत्तेः प्रागपि छदन्तेन aves निलयं षः स्यात्‌ Fat करोतोति ङुश्नकारः, त्ति गरहः, धनक्रौतोलयादि हरिमाविनोल्यादौ तु रिनिोऽन्याधलात्‌ Tata: |

हयारिनिमिन्तस्य प्रत्यादेः। enfefafawe प्रत्यादेः कुप्रादेरित्यनेन um: षो स्यात्‌। aad प्रति विद्योतते fraq, अरमिमन्धरल्न॑नतः प्रति खिला गतः, जिगत्तभ्यः परोत्यादि।

ago! aq! व्यमिति सविधायकलक्षणे Afafeeete-

ककमा कम ~ ~ Mean RNR

(१) दनाराज ग्ल दण्डको रान इत्यनेन, एनगेव इत CATS दलेन अप्रा्वविधानाैः सभारपिधानम्‌। gage एति भूतः पूमिमषेः+ एवम्‌ अध्वा गन्तव्यः ऋध्वगन्तव्य इति।

(२) अन्वयोलस्तिरिति अन्यार्थोपपर्तिरिति पाठानसर्म्‌।

६१

दये quad व्याकरणम्‌ |

aaa, तेन पूैकायः aifamalaral पूर्वादोनां पूर्वनिपातो, मतु शाकं प्रति इत्यत्र प्रतैरिति। भ्रतिराजोति-भ्रतिक्राना राजञानमित्यादिरूपेणाधेकथनमिलन्ये। सख्यदहोराज्नः षः षगी दूति षः, भिादोप्‌। भ्रतिश्लोलत्र शनोऽलप्राखयुपमानात्‌ efi) sas saa wares इति पे सर्वंकदगेत्यादि- नाहोऽहादेणः। पू््दारषप्राधान्येपि पविधानखेव्यादि फलम्‌ एवम्‌ श्रतिनदि; श्रतिभत्त रतिर इलयारौ कादयोनय्यः अ्रहलात्‌ | अ्रतिखिरिति--परदाधस्याप्राधान्याहौणलेन गवावादे- रिति @ |

wazanfey पररम्‌। प्राप्पूव्मैनिपातं दं राजदन्तादिषु पठितं चेत्‌ परं खत्‌। दन्तानां राजा राजदन्तः fanarfad famdae नगनमुपितं मष्टलुटितं (१) अ्रवक्तिबपक्ं श्रपितोदस्तः Sas: | सप्तसु Gana लक्षणस्य विष्यः उदूखल- मुषलं तण्डलक्तितं चित्ररथवान्नोकं विष्वक्सेनार्खनौ चित्राखातो wala genet any विगषणविगेष्ये स्नातकराजानौ प्रतिष्ठालिरे शूदराचा्यौ मथादाभिविधो गिरौजान्‌ पाणु्टत- UA (२)। भ्रलावु्च कक्कभूश् त, Egat परदे एति लः, पै META ता ्रलावुककंनयुन्‌म्बः। उदूखलादिभिमुषलादोनां चे परनिपातः। विशेथविशषणे द्रत्यपि स्यादिति कित्‌।

= Reema ae Teeny gegen ~न = = --- we ee cme 1

(en weafeafafa संक्िप्रतारे कषटल्चितभिति पाशिगीवे। (२) gateretay तु कित्‌ ayer कखविद्नम्यशितिलात्‌ कडित कनिहारिवात्‌ परवत्तिलप्सक्ञो तच्चिरास इति हह कर्णो धम्‌ |

तत्पुरुष TATE! | BER

२६८ संष्याव्याद्रावाङ्कलिम्यामः। ( सख्या-व्यात्‌ ५।, रात्रि ्रङ्लिभ्यां ५।, श्रः ) | संद्याया are पराभ्यां रात्रङ्कलिभ्या-मः स्यात्‌ यादौ, नतु mre | अ्रतिरातरः wage: | हरिणा तातो हरित्रातः ¦ विष्णवे दत्तं , विष्णुदत्तम्‌। च्युतात्‌ जातम्‌ भ्रद्युतजातम्‌। RUT सखा लष्णसखः,

"~~ ate, este! races oe eee ee ~~ - —— awe eC - --

एवं वनस्याग्रे श्रग्रवनं, Talat गणो AW, वाणस्य वारो वारवाणः, अन्तरं VE wea (१) ब्रन्तरशब्दोऽत्रान्याधैः, श्वः परं परश्व इत्यादि शेषं गिष्टप्रयोगानुमारेण ज्ञेयम्‌ |

३६८ | संख्या Awana यादावित्बनुवत्तते इति नच तत्र यसे संख्यावाचिनो रातेः दाविधानात्‌ षगयोरेवाश्य विषथ इत्यत श्राह यादाविति। तत भि्लात्‌ स्ियामौज्विधानात्‌ संख्याग्रहणं कत्तव्यमिति वायं, रात्ान्ताना- महोरात्ादिलवादेव wag संख्याव्यादिति क्निदंशानब्र यथासंख्यमित्यत भ्राह--अ्रतिरातः wage दति तु हयोः रात्रः समादरः दहिराम्‌ एवं निगतमद्भुलिभ्यो निरष्लं, दे wea परिमाणमस्य aya चेतरं, etre भूमिः। “aya tataga’ fata तु यवमानार्घरोऽङ्कनशब्दस्त थाच “AEA यवो मत” इत्यमरमाला awe दति--सख्यज्रिति षः wet

न~~ a a =-= ~~~ ~~~ ~ = ~ ~---~ ~ ~~~ ~ ae ee ~ ------~ ------- -- ~~~

(१) ग्टहानरमित्यल विशेष्यत्वात्‌ ग्टहृशन्द्ख कम्डधारवे प्ररवत्तितनिरासः | Uae गणपाठसामर््या दिति हकुग्ध |

४८४ aerated व्याकरणम्‌ |

ARATE, WATE, ATTA, WATE, ARATE, राज- गरवः, TIT: | २६५ | मुख्यार्घोरसः | ( सुख्यार्धोरसः ५। }। मुस्याधादुरसगब्दादः खात्‌ यादौ weit, Felton: waa) पएरपेषु उत्तमः पुरषोत्तमः, श्रवन्तिषु ae

अव न्तित्रह्मः | ufa a

~ ~~ on, ~~

[व

ara इति-महतो महत्या वा घाप इति वाक्ये, aan पर AKAMA: | ग्रामतत्त इति-ग्रामख तचा इति वाकं, कौट- ग्रामादितिषः। सृगसकधमिति - ङ्गस्य सक्थि इति वाक, पूर्वत्तरसगादिति षः। जालसरसमिल्यत्र सरोऽनोऽयोऽश्मन ति षः। कालस RIAA सरः कालसरसं alfaage इति uti cana इति-गोरताधं इति oo वर्षारात इति--वर्घाणां ufafefa वाक, सब्वेकदैशेव्यादिना षः।

२९९ सुख्या। भुस्योऽधो ae तत्‌ qe, तञ्च तत्‌ उरश ति तस्मात्‌ श्र्ोरसमिति - sae उर इति वाच्छम्‌। ठरःशब्दो सुर्य हदयवाचौ, लक्षणया प्रधानाधः, तथाहि यथा रः शरौरावववानां प्रधानं तथा Barat प्रधानमिलधैः | मुख्याधथादिति किं ! aaa wate) ग्रवत्तिब्रह्म इति- श्रवत्तिद मदः, AT ब्रह्मा ATT | एवं FULT: कान्य कुनत्रद्र इत्यादि देणदिति किं ? देवत्रा नारदः।

[ ४८५ | दिश-समासः, (गः) | तस्यार्थे विषये, वाये अ्रपल्यार्थण्णिकादिकम्‌ | प्रो्ाजादेः, समाहारे, गस्तिधोत्तरदे परे I पश्चभिर्मीभिः ata: पञ्चगुः |

wee ~~ ---,* -- ee --~ ~=

श्टानों गमाह ताये इदि गस्तिधा विप्रकारः, तत्र AMA एकः, समाहर एकः, wate ut एक इति) तस्यार्थे RATA] AMA सच्चाषात्‌(१) AAT शयत्र एकस्या; ह्या एव विषयत्वं वालं देत्यधं इत्यत we विषय इत्यादि soar शिकादिकच्च (2) विहाय ्रजारैस्तखा्े वाये, शिका- दिकस्य wade aera विषयभूते इत्यथे; (३) यथा पञ्चसु

~~~ -~-------- --- -- -- --- --~ ~ ~~~ ~~~ ------~ -- er re ----+~---=~+

(१) wate afgreara छतगस्षात्‌ कतदियुशमासात्‌ ame तद्धितप्र्यख अजादे सारेदति रषः सच्वाएक्वत्‌ विद्यमानता विद्यमानत्वेन TATU: |

(२) श्णिरेव ण्णिकः. छन्दोऽदुरोधात्‌ wre कः, femafanfaae दूति दुर्गादासः कात्तिकेय-गङ्गाधराः |

(a) अपत्य चैण्णिकाटिश्ष्य Pare afgaara विषय एष हिगुने त॒ are इूयभिप्रायः।

wa दुगौदासः- यत्र तख्याध विषये समाघः क्रियते तन्न तद्धितप्रत्ययोत्मत्तेः ूष्वोवस्यायां समासे कते ततः प्र्ययोलत्तौ दद्यादि, तेन इयोमौ तो रपत्यभित्यव्‌ WAS व्णप्र्यस्योत्मततेः पूवमा स्थायं हिसा एतयो रेकपरोभावे पश्चात्‌ ष्ण- प्रये शते हि शयसयेव एवौ संख्यारंभद्रादियादिना eft ad हेमातर इति। एव पञ्चानां मापितानामपयं पाञ्चनापितिः। वाच्ये तु यथा पञ्चनिर्गोभिः क्रोतः qyufcaa wate वाच्ये करणज्ारकात्‌ ठकेकादित्यादिना प्र प्रव्यप्र्यद्याचें वाच्ये समासेनैव afar saree उक्काथामाभप्रयोग दूति wate तद्धित पर्य्या नुतयत्तौ natch we अजादेरिति किं gaye: दिसून स्वारौ विषये एम gare: are वाच्ये एति। काल्तिकेय-गक्गाषरा- दप्येवमाडइतुः।

४८४ AMAT व्याकरणम्‌ |

कपालेषु dea: सूपः पश्चकपालः सूपः, हौ वेदौ fe. Ra वा fete: fea इत्यादौ demas Bway ठक्लाधौनामप्रयोग दूति न्यायात्‌ area: | पद्चानां नापिता- नामपतयं पाञ्चनापितिः, enat qabat até दिभौपिकं, हिखा- रोकः, ्रैष्ारोरः, पञ्चानां abet .भृतपू्वौ गोः पञ्चगगरुप्यः, पशस बराह्मणेषु साधुः TAME इत्यादौ was विषथभूतलेनानुक्नलात्‌ दयः स्युरेव ण्एिकादि cada aefa इत्यादौ fafeat "यः णिकम्तदाद्या, wef इयादि- विहिता 3 त्याः संन्नायाभेव तेषां, वैद्यादिभित्रषवर्थेषु येऽजादय- स्यासतषाञ्च ग्रहणं तेन पञ्चगुरित्यत क्रीताधस् प्रहतोत्यादिलेऽप्य- संज्ञायामण्णिकादिलादा्ये गः। संत्नायान्तु पञ्चभिरलौहितेः mtd पाञ्चलोहितिकमित्यादौ विषय एव गः णणिकादिलात्‌। erat सुवर्णाभ्यां क्रतं femafta दिसुवण, frawea दिषहस्- मिल्यादौ संन्नायामपि वा ae विधानात्‌ विषये वाऽपि गः। एतत्‌ सव्व तारे विशिथ वक्गव्यम्‌ (१) |

(१) तहितार्थोन्तरपदसमाष्ारे दूति प्राणिनिष्ठत्रम्‌ | (२।।॥५१ | ) wa परिषयहिगुरेव दश्यते तु षायदिगुः tetra यत्र वाच्यहिगुः पाणिनि- भते तल्लापि तद्धितप्र्ययो भवति years भदिगोलु गने" ( ४|।।८द ) ध्नेनं wes sage तद्धितगर्चयख लुन्भरति। “afe तु तद्धिता्ये वाच्ये इति व्याण्ायेत afe dante caret तद्धितो खात्‌। तदश सम सेनेशोक्त- त्वात्‌ | हिगोलं waver ति qreatensta तद्धिता तदितो भवतीति कखना- प्रतिप्तिमौरवभिति भाव.” दूति तच्वबोधिनी | संलिप्रहरेऽणे्सेद sete त॒ कातन्नरमतभतुङतमिति प्रतीयते। तथाच--^पाकिनिना तद्धितार्धविषव एव eae बला परदाुतलच्चख afare saw “ania” ante qaifa

i --~ >~ - -- ee,

१1

हिगु-समासः। RTO

२७०। गेकयादतोऽपा्रादेरीप्‌ ( गीकयात्‌ wi, Was ५।, WaraTe: ५।, kare) गैक्रादकारान्तादीप्‌,स्यात्‌, तु पावरादेः अयाणां लोकानां समाहारः 'तिलोकौ | पातादेमु--दिपातं तिसुवमै, चतुर्युगम्‌

goo) Har) Tae गेक्यं तस्मात्‌ पाचमादियेस्य प्ात्रादिनँ पात्रादिरपात्रादिस्तस्मात्‌ "निषेधो यल्नातीयस्य विधिरपि तल्लातोयस्य इति न्यायात्‌ पातरादिवजनेनेवात इत्यस्य लाभेऽपि भतो ग्रहणं छतसान्तादन्तस्यापि प्रायं, तेन षोडश- राजो द्दिधुरो पञ्चराजौत्यादि। पद्वराजशब्दस्य पाचादौ पाठात्‌ पञ्चराज्ञमिति माघम्‌ तिलोकोति--ईपः पित्वरणादेव चगेक्य- वमित्यनेन क्रीवल्रमतो fauatafafar एवं पञ्चपुलो सक्षशतीत्यादि। ननु समाहारस्यानेकष्ठत्तिलात्‌ कथमेका- पूपोति चेत्‌ सलं, दानक्रियया wate (१) वा एकस्याप्यपूपस्य बहुत्वमध्यारोभ्य समाहार इति (२) पात्रदेस्तित्यादि-दहिपातं

व्िहितानि। ** * यत्र वत्र परमते लगस्ति तत्राखन््रते afawa, aq लम्‌ नास्त तत्र fanaa समासोऽयमिष्यते दरति” - द्रति चट्यहतो २६५ छत टोकायां क्षिराजः।

(१) सश्चव्रमेख दरेण, तथाच-षम्भ्यमः साहसेऽपि दात्‌ सम्यगादस्यो- रपि-ष्तिमेदट्नी। canada त्वरया Kae, fear टानखाल्चितत्वात्‌- दूति विद्यालङ्कारः।

(२) दनक्रिवाया agar एकाप्ूपखापि wee संगच्छते | तथाच TAH: पृषं ष्टहोत्वा सभ्यो ददातीति द्पेण TRATES बड्त्वषध्यारोग् समाहार दूति पाखनोया व्यवध्यापयन्तोति कात्तिकेयः।

gat GANG व्याकरणम्‌ |

२७१। वानापः। (aie, भन्‌-्रापः a) (९) भरनन्तादापञ्च प्‌ खाहा। परच्चकशनीं पञ्चकश, fect faweq | २७२। ATA मानात्‌ AUST ( ताये ७, मानात्‌ ५।, कारडात्‌ ५।, तु tl, TAF 9) | anneal, विकाणर्डो ta: तेते तु विकारा भूमिः।

eee =-= ~ re = ar,

त्रिभुवनं विणं चतुःशतं. squad चतुर्मुखं पश्चनावं पञ्चगवं हिखारमिल्यारि शिष्टप्रयोगानुसारेण बोध्यम्‌ aa ofa fai 2 त्रिजगत्‌ पश्चपटु |

२७१। वा मण्डकगत्या संस्याव्यादिलतोऽकारातुष्ट्या, वा AAAI TTA लाभः (२)। वाणब्दोऽत्र समु- wae: | तथाचानन्तावन्ताभ्याम्‌ प्र ईप स्यादिवय्धैः। तेन vaaa facafaanfe खात्‌ भ्रसेपस्तषंत्नकतवेन पञ्चकर वितक्लोलयत्न नकाराकारयोर्लोपः।

२७२। ताथ इषहाकारत्यो AANA, परत्र वा ग्रह- णात्‌ (३) त्थ मानधेकादोप्‌ स्यात्‌, काणगब्दात्त्‌ Be

RTT ae 1 ~ ~ न~ ee

(१) (वा||), wey खयापः॥५।) इतिवा पदष्छेदः।

(२) केदितत्‌ लगडूकगश्या रंख्यायादिति खत्रादतोऽहवत्तनमङ्गोकुमेन्ति, तच्च a, स्विहितखोपोऽतुषटत्तिषेन निराक्रङ्कतात्‌, GA क्नारख कभेऽपि aE: व्याद्याबगौरवाद् दति area: |

(१) अवर बपर्यो नातुगर्ततेऽनिष्टलात्‌, वापि argesa ण्व गा u¥- णात्‌। रबेषानुवत्तते इष्टत्वात्‌ | ceateqettat प्रहत्तिनिषटत्तो arntata न्यायात्‌ दूति कात्तिकवः।

दिगु-समासः। yte.

293 परुषाद्या (पुरुषात्‌ ५। वा ।१।) | तिषुरुषौ विपुरुषा। faad fant तिनावं, विखारं व्रिखारि, are: |

ed wpe ere a eee

fat वशे | anemt—aa भ्राट्का मानमस्या इति वाक्वम्‌। ua at द्रोणौ मानमस्या fegtat इयादृकौत्यादि ।, धिका- Wifa—aa काण्डाः परिमाणमस्या" इति वाक्यम्‌ एवं दिकाण्डोत्यादि waa परिमाणाधविदहितस्य मात्र-त्यस्य लुक। ada इति किं fanart भूमिः दिकाण्डा चेचभक्तिः, सेव- भक्तिः सैतरेकदेशः। मानात्‌ किं ? wafeos: क्रोता waren feast विशता इत्यतापि स्यात्‌, सुपच्चालादौ संख्यापूव- परिमाणा संवसरसंख्यानां एथग्गृहणेन कालघंख्ययोरपरि- माणयैलात्‌ समाहारे तु दशशतोत्यादयः स्युरेव |

विस्तादितकम्बस्यात्‌। तथे मानार्थेभ्य एभ्य पन स्यात्‌। इहे fad मानमस्या हिविस्ता हपाचिता दहिकम्बल्या

३७२ पुरु! ala गे मानार्थात्‌ पुरुषारोप wren तरिषुरुषोति- जरयः पुरुषा मानमस्या इति वाक्यम्‌ एवं हिपुरुषौ दिपुरषा परिखा विसखमिव्यादि- त्रयाणां ससौनां समाहार दति वाक्म्‌। MAT TSR, MCAT, नावोऽदारे च, खाया षेति षप्र्ययः। तिखारि--षाभावपक्ते चगेक्छुवभिति Saag ज्ञौवेखः। ate इति- त्रयाणाम्‌ पष्ट समाहार sfa वाक्ये, सस्यहोरान्न एति पि सर्वेकरेश cas एेक्धनिषिधाव्‌

६२

४९० मुवो व्याकरणम्‌

२७४ | दितरर्व्वाश्चसैरः | ( दितेः ५।, वा ier, Ware: ५।, भ्रः १।)। ered erafa, दाङ्गलं तिराजरम्‌ | TY गावो धनं यख्यासो wanaua: हिनावधनः दिखारधनः etsfna: |

दति गः।

नन ~ = ~~~ + ~ "~~ ~---~ ° ---- ----= -- = ~~~ —_ —— ~ ~~ = ~~ = -~~ = ~ ~~

TET नाङ्ादेशः, श्रहोरातरादिलात्‌ dey) एवं ETE: | Ta तु WATS: ETS: त्राह इत्यादि स्यारेव |

208 | fea) वाग्रहणात्‌ मानात्‌ ताध इत्यस्य fate: | तधाच हितिभ्यां परादज्नलेरः wret ata (१) दयञ्नल- मिति--दयोरज्ञल्योः समाहार इति वाक्यम्‌ पत्ते erafal एवं aad arafa, erage जलमस्य Tae: दयज्नलिजल sane) ara तु enarmafenat ata: erafa:) ene भित्यादि-संस्थावयादित्यः। उन्नरदगमाह पञ्चगवधन इति श्रादौ fafa देहः, पश्चात्‌ was परे पून्धैयो Sat गैः,

कि =

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(१ afgere faa} भवतोति तक॑दानी्मतम्‌। पाञिनितिलोचन- कमरीञ्जरगङ्गाराणामपि मतमेतत्‌ दर्गादासङार्तिकेयौ त॒ “इितिभ्यां act THe: अः शाहा afaare feds हादञ्नलो परिमाणमख epee जलं, पक्त अपर्ययाभामे ललवाचितात्‌ लोपम्‌” Katya: | Teeter इति vl GaTey- दृत्तावपि कथमव वा मङ्कमिति तौ area: |

[ ४९१ |

अव्ययोभाव-समासः, (वः) | वः सामोप्य-सादश्य-साकश्याशुक्रमर्िषु t वो सा-पथन्त-योम्बत पश्ादर्थानतिक्रमे शब्दपरादु्भावाभाव-वौगपदयेष्नेकभा

~~ ------ ---- ~~~ a ~~

Mewar गोरताये इति षः (१) एवं दिनावधनः दिखार- धनः दिखारौघनः ersfia इत्यत्र नावोऽरहौत्‌ गे च, खाद वा, waren इति क्रमेण षः, षिःङोऽङ्ारेषः। अह्णो जातख दयहृजात इत्यादौ विभिः षः, पश्चात्‌ waa दयो मैः भभि- धानात्‌ उत्तरदे गसो नित्य एव, तेन पञ्चगोधनम इति स्यात्‌ GY तु AAI: संघः, तत्र ता श्रत्यमेनेव सिदे समाहार षति क्तं daar ara गनिराकरणाधेमित्याइः (२) परे तु दिग्वाविपृव्यैदानामपि agar yereat शालायां भवः deena: gent शाला प्रिया भ्रख्य पूव्येणालाप्रियः इत्यदा इरन्ति दूति गसः

carat वमाह धः कैत्यादि वपूरव्वदानां सो वस उक्तः |

eo

(1) तादथार्थप्रतिपत्तिक्षरे weatet खत्यपि पदमध्ये खभासविद्हितका्याे उक्षरपदे हिगुरभिह्ित दूति गङ्गाधरः|

(२) “तङ्धितार्चे eargre faq: शंखयायाः" दति सद्भिप्रसार त्रम्‌ ( ware: पारे {१९ )। Ae पञ्चानां गवां समाहार दूति वाक्ये सभासान्तप्रत्यये शते, rere ofa, afgarafet गोचन्दात्‌ समाशाननिषेषात्‌, Tygfiaaa भवि- नव्यम्‌, तु पञ्चगव LATTE शभाषहार द्ति। तथाच समाहारस्यलेने warfare gare इति भावः। Mal टी RAT |

४९२ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

२७५। वात्‌ RATATAT |

( वात्‌ ५। क्तः at, मः १, WA, Wan al)!

श्रकारान्तात्‌ वात्‌ परस्याः क्ते मः स्यत्‌ नतु PAT: |

कञणमधिक्तलय प्रहन्ता कथा. रधिक्लण्णम्‌ |

aa: विं RUA समोपात्‌ गतः, STRUTT गतः | कर.सामोप्यादर्धेषु (१) गम्यमानेषु व्यानां दानां स्यादन्तः सहाभिघानप्रामाखाप्निलयं खात्‌ | क-सामौप्यादयथैदादगैकधा श्रगेकप्रकार इत्यथैः। परसू्रसापेत्तलादिह नोदाहृतम्‌ |

२७५। वात्‌ wear इति aM दकरणं “लुक्‌ परा'दिलता- ननुवत्तनाधेम्‌ णमधिक्ललयेलयादि | यद्यपि एति सामान्य Aa तथाप्यभिधानात्‌ दीध्योरये एव ज्ञेयः! एवं स्तीष्वधिक्चत्य कधा प्रवत्तेते अधिस्तीलयादि। sag छै एव वसं wafer नित्यलादस्य होघन्तदेनाथेकधनम्‌। उपकललष्णादिति - श्रप्या द्यस्य प्रयदाहरणेनेव सामोप्योदाहरगं दशितम्‌ एवं FAA समोपम्‌ उपदुखमित्यादि "दण्डकान्‌ दततिणेनाहं सरितोऽदरौन्‌ वनानि च" ल्त एनयान्तदततिरेनति ae सामीप्याधतेऽपि सः अ्रनभिधानात्‌। गदस्योपरि तिष्ठति, परि शिरसो घट waa सामोप्याधस्याविदचितलवात्‌, wan एपरिगरदश्य fea

(१ ऋतन सानीय-रदश्य-साकल्य-योग्यत्ामां धमु शाचक्ेन निषुणात्‌ एवं वश्छमाणोद्‌।हरय खले पस्िवादश्येन निहेयाश्च suds Bla, तेन उप दण भूमिः उपशष्णं भूम्या द्रषारि, wey विषो नल्लोति गङ्गाधरः |

प्रव्ययोभाव-समासः | ४९३

३७६ तीप्री ati ( ater an, वा ।१। ) उपक्षणं उपक्घशेन काम्‌ Toe SUR खितः | 2091) लुक्‌ प्ररात्‌ ` | ( लुक्‌ ।१।, परात्‌ ५।) ` अकारान्तादन्यस्मात्‌ वात्‌ परस्याः क्ते लक्‌ स्यात्‌ २७८। सह; सोऽकाले | ( सदः gt, सः १।, भ्रकाले ॐ) | सदस्य सः स्यात्‌ नतु ATs | et: wet सहरि, काके तु सद्पूर्वाद्वम्‌

ae en ~ ~” ~ ~~~“ ~~ =-= a emer ne <n pene enero ७००

२७६। तौ अकारान्तात्‌ वात्‌ परयोसीष्योमः खाहा वाशब्दस्य व्यवणावाचितात्‌ सुमद्रम्‌ उन्मत्तगङ्गम्‌ एक विंश्ति- भारद्ाजभित्यादौ समृ दिनरटौसंख्यावयवेभ्यः स्यान वा मादेणः।

२७७। लुक्‌ वेति नानुवत्तते, ज्गौवाहेत्यतर वाग्रहणात्‌ | ञे रित्यनुवत्तते इत्यत श्राह क्लेरिति।

got) ae! वादित्यस्यार्थैवणत्‌ क्तेविपरिणामः, तेन वे इव्यर्थः | हरेः सटः पति सहरि gaftaa गुणभूतेऽपि wea वः, सादश्येत्यमेन गुणागुणभूतसाटृश्यग्रहणात्‌ | एवं wen: fae: afafa, et: aed सहरि गुरोः, सकिखिं कुक्ुरस्येत्यादो | किखिः खेखोति ख्यातः wate: | तथाच “किखिः made स्या"दिति faa: ; वानरोति केचित्‌ स्-

४९४ AUNT व्याकरणम्‌ |

ata सह सकलमत्ति cau) WEAR अनुष्ठ मद्राणां wafe: सृमद्रम्‌। विष्णुं fad प्रति प्रतिविशु। भ्रमिग्र्यपयैन्तमधोते सागि। ` रुपस्य योग्यं भगुरूपम्‌ fare wary प्रुरधिवम्‌। - शक्ञिमनतिक्गम्य यथाकति | शरैः me: mgt: इतिहरि omen: भ्रपापम्‌। चक्रे युगपहेहि waa यावकः श्चोकासतादन्तोऽ्तप्रणामाः यावच्छोकम्‌

A TY LE RELL Pr eS teen ee wee os 2 ere ee cee reenter enemas nnn

पूववाह्मिति-पूववहस्य सदटणमिलयर्धः। area fatura सहस्य सः। ठरेन सरेति- यदे azawld aa तखाशेषलवं

साकल्यम्‌ सढणमत्ति ठणमपि परिलयजतोत्यः | ज्येहमतु- करम्येति-श्रलुकम (१) waa, भरुच्येषठं प्रविशति व्येष्ठा- TATU प्रविशतोखधेः | मद्राणां (२) aafefefa—gag वर्तत मुभिकतं वत्ते, मद्राणां भिचाणां वाधिष्येन ऋरि; प्वत्तपे cart: | यदा समः प्राधान्यं तदेव वसः। यदा समृरेरप्राधाग्यं तदा प्रादि. लात्‌ एव, यथा TART: मद्रा समद्रा इति, wae मद्राणां

[ष यकाय —— भान ence

(1) र.तुक्रमशात्र यौगपद्यं, तैन चेहपरिहाराभावियिट-पमेधारिरिति Rrarayre: | ‘aga’ खाइ अनुष्ेहमिति- चेष हीनो भूवा watt | UUM पूवत नायेन agar योगे हितीया, त॒ wafe, अन्यथा कार wares समासे faz Tae एषगपडणं पिफलं खात्‌! अवाढर्भुक्ञोऽयं कभधातु"रिति दुर्गादरासगङ्काधसे।

(ae रेभे तथानन्दे पमान्‌ दः प्रको न्ितः |

यहा महरा रभे Feat तनेति शाषनम्‌ दति गङ्कषरटतजोषवषनभ्‌ |

TTA समासः | ४९१

विशेष्यमाणलात्‌ | विष्णुं fra प्रतीति--यदयष्यख नित्यसच्वात्‌ वाक्याभावः, तथापि पिक्समयेत्यनेन atarai प्रतिना elfen मानधेक्धात्‌ वाक्रखितिः। dene सेनोक्षतवाच दिः भ्रमि- wars’ दति-यद्यप्यत् "साकव्यभ्रस्ति, तथाप्यम्निग्रय- पथन्तमधोते ततोऽन्यब्राधीत, इत्यस्यासाकल्याथै वचनम्‌, एवं सालोकमधोते, भ्रसकलेऽप्यष्ययने श्रालोकपयैग्तं पठतीत्ययः। रूपस्य योग्यमिति-श्रनुरूपं ददाति, रूपस्य योग्यं ददातीवयः शिवस्य पश्चादिति-भ्रतुशिवं भक्ताः दवमनुरथं पादाताः, रथानां पश्चादित्यधः। मेघटूतै- “तदनु जलद ओोष्यसि ओोत्रपेय?- मिति तु ata: sa खिवजनमिति परे (१) शतिमनति- क्रम्येति- यथाशक्ति ददाति, एवं यधाबलमधौोते इत्यादि इरः शब्दस्य प्रादुभतमिति ~ प्रादुभीवः प्रकाशः, हरिशब्दो लोके प्रका- शते cere: (२) एवम्‌ इतिपाणिनि उदिक्रमादित्यमित्यपि (३) | भभावस्योदाइरणमाहइ पापमिति aura; संसगाभावः (४) सं

"=-= ~~~

({। खन सथ्येनामचन्टेन सडह खव्ययोभावसमासो भवतोति पाङिनीवानां मतमित्यर्थः | अतएव तदतु इत्यादो नाव्ययोभावः |

[२) द््पपरेण षष्यन्तेन Bing सह प्रकाशाथस्य इतिशब्द समास दति प्रोदमनोरभा तच्वबोभिनो | शब्देति महश्वात्‌ ह्मालयो नान इव, तथा दिीप एति राजेन्द्रित्वारौ समासः, अचपरकानार्तात्‌--इति faqragit: |

(2) उतृशब्दोऽपि WEINER, तथाच afer —“sq परकाये fawn a’anfe— fa विद्याशङ्कारः | ~

(४) यदापि प्रागभात्रो ध्वंशोऽत्न्ताभावद रसंषगाभावल्तयापि सामविका- wares एवात्र Ela इति विद्याबङ्कारः।

४९४ gerard व्याकरणम्‌ |

q ्रतियीभिनिरूपणाधौननिरूपक एव, (१) तैन प्रधाव (२) करानावप्रषवसामावोपमोगामावानां ग्रहणम्‌ भरता्थोभावो ्त्तरदाधाभावः, यथा ward, मचिकाया प्रभावो निमक्चिकम्‌ दूत्यादि। ब्राह्मणो भवतोत्यल ्रसव्यप्रतिषधनजा ब्राह्मणत्वं निषि्यत, मोरो भवतीत्यत अन्यो ्यामावैनाधौन्तरं निषिध्यत, भरतो नास्युभयताथामावः, अर्धशव्दसयात्र वसुपरलात्‌। WAT- भावौ Waa दुयवनं, दु्भिचमित्यत् नोत्तरदारथाभावः, किन्तु यवनादिषम्न्धिन्धा ऋडेरिति। wera: ata भ्रतिभोतम्‌ (र) wan वसन्तस्यातिवसन्तमिल्यादि | भलयोऽतिक्रमः, प्रध्व॑सा-

(१) यद्य्यभावद्य निर्प्णत्वेन नासि az, तथापि यद्यासावभव्रः awa faut) तद्ेदाञ्धाभावखाणपकसितो नेट दूति कातन््रटोकषा (292%) |

(र) याभावः कंविहेये सयेवाभावो raat, ame vafefa कातन्त्रटोक्षा| अधविरोधो अभावः अर्वाभावः serrate एष, अन्योन्या- भाव्य तु waa प्रतियोगिताव्छेद्‌+मैष पिरोधाटित्वाणयेन अथप्दशपाततम्‌ | BAR समास उत्तरपटा्धाभावद्योतङः नजनजसाधारणाव्ययेन भवति| नञ TAU AST अनयोन्धाभावत्रोधकः सयत, बंरिदिमत्रवो कोऽपोघगयो- fate: ; anes निम्धरिकम्‌ अप्ापमिच्ादिवत्‌ अनुपलम्भ दयादीगामभाव- बोपक)ऽपि a afa | वस्तुतो नाधप्ययोयाद्ययदख एवग्‌ सहृणात्‌ प्रागभाव तितारणाथे विद्यमानपटाधपतियोगिताद्योतनाण्द्चाध पदकं, तेग प्रागभव्राभि- nay कपे अधटमिचयादिने प्रयोगः वा ve शण्टष्कारेरभावबोष- नाय fauazefaare:, रएषामलकतयाधताभावेन तत्रतियोगिक्षाभाव- fag: एवन सि्गानजौहटोरीकायां वारानायेन।

(2) . वद्यपि कथय चिट्तीतत्वे कथ व्ह्तमानलयेऽपि अतिथोतमिति भवति, तापि शोत इतुप्रधवंसेऽयं रयोग दति विद्यालङ्कारः। अतिशोतं थोतान्यतीतामि ARIAT दति प्योगरन्नरमाला |

अन्ययोभाष समासः | ४९७

भवेः (१) नाव्यन्ताभावः किन्तु भीतादि्रध्वंसः संसर्गा- भाव एव (२) | यौवनस्य नायमुपभोगकालोऽतियौवनम्‌ अनि- कम्बलमित्यादि गतोपभोगसु (३) विद्यमानस्यैव योवनादैवत्त- मानकाले खपभोगाभावः wat. ना्घामौवोऽतयगरश्ेति। चक्रेण युगप ति- यौगपद्यम्‌ एककालता, सचक्रं fate, युगप- wai निधेदहत्यथः (४)। सहः सोऽकाले इति सदस्य सः ata पदयेखिति afaenizaaraty, तेनावधारणे गम्बमाने-वावदिति व्यस्य नित्यं aq इत्यन are यावन्त aatiz 1 भश्रवधारणमिय- तापरिच्छेर, इयदेवेति निश्चय sam (५)। यावच्छोकम- चअतप्रणामाः, (६) एवं यावदह्मोजनपात्रं तब्राह्मणानामन्त

-~~-- -- ----~ ~ - ~ ~~~ ~ ~ ~ ------ -~- ~ ~~ ~ ~ ~~ ~ ~~ ~~ ~~~ ~ --- - ~~ ~=

(१) अतिक्रम इति-अतोतल्सिग्यय दूति विद्यालद्ूारः।

(२) अर्थाभावसतु esta कचित्मदे्े वस्तुनः संसर्गाभावः, तु वस्तुनः प्रध्वंसः, अतः saga अर्थाभात्राह्भिद्यते इति गो वोचन्द्रः।

(१) अत्र तु उपभोग्य काभयिक्रात्यन्ाभाव caw) wy syst afefafa उपभोगः उपरभोगवत्तमानक्राल Kae) गतद्ासादुपभोगचेतिः BAN, उपमोगवत्तंमानक्षालमभाव इथं इति विद्यालङ्कारः। wafa नोप्रभोगकालः, किन्तु गत आगमिष्यति तेति कालोपाचेध्वेशः प्रागभावो Fae | यह्ायकषपरभोगक्षालाट्न्य एवेत्यन्योन्याभाव द्धं इति प्रयोगरलमाला ( ८९८ छ. ) |

(४) Fareed sty granary युगपञचक्रमिति वाक्य समासः, तेन चक्रं युगपच्चिधेहि नत्वनेश्वारभित्यथं इति चिद्यालङ्कारः। हे विष्णो एश्दधिन्‌ कशे चक्रेण सह गदां पारय द्यं दति इगादाषः,

(५) शंख्यया परिमाेन वा खन्दूनानतिरक्गीकरयभिलरष इति विद्या VET | =

(६) क्षोक्षायाभियत्तया प्रणामानामिवत्ता faafaar इवं इति दुगादाभः।

६२

gee मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

यख (१) wage आनल (२) इत्यादि भ्रवधारणे किं? yaa दत्तं तावदु, कियदत्तं faagafafa नावधारित- मिल्यधः(२)। एवमसादृश्यायें वत्तमानस्य यथेति व्यस्य वसस्तेन ये ये तथाभूताः यथातधमिति,'ये ये हा वधां ब्राह्मणास्ति- हत्ति यथाशक्ति ददातोत्यत्रानुक्रमात्ततिक्रमयोः gata इति Hea तु यथाहदास्तथा युवानः (8) JUTE निषेधादश्यत्र स्याटेवेति त्रापितम्‌।

Tae प्रतिनाऽल्ते wa वत्तमानेन प्रतिना सह व्यस्याव्यस्य वो निलयं स्यात्‌। खःप्रति सायंप्रति सूपप्रति शाकप्रति, ante: स्तोकमित्यधंः (५) wea किं ? त्त प्रति chad विदयुत्‌, act waite विद्योतते sera:

vafefaaquanaart परिणा यूतपराजये। दूत- पराजये गम्यमाने परिणा eat निलयं वः सात्‌ एकेन परि एकपरि दिपरि त्रिपरि चतुष्परि। एकादिश्व्देरक् एवाभि- धोयते, दयूतपराजञय इत्यस्य सम्बन्धात्तधाहि एकेनाक्तेण eft तमित्यादिङ्गमेणाधः, तथाच पञ्चभिरसैः शलाकाभिवौ पञ्चिका

—— -~ ~ = -------ज--~-- णः = = = rece me oe eee ~ = = न~ ----~ ¬ ~~

(1) arafer भोजनपात्रायि वत्तने तावतो ब्राह्मणानिय्धः|

(र) यान्तो Sars wy ar षटवा सन्ममत्ति तावदेवानय दूति गोवीचन्द्रः |

(३) संख्यानिश्चयः परिमाणनिश्चयो षान at tae इति विद्या RIT | |

(४) “eyaent युवान TATU: |

५) नसखप्रति दारिद्र दति प्रयोगरव्रभाशा। afte aaefy gw meee: | एषम्‌ BAA चाक्गपरति - इति THAT |

अव्ययोभाव-समासः। gee

नाम ad, तत्र यदि परञ्च sam भ्रवाद्धो वा पनन्वि तदा पातयिता जयति, अन्यधापाते पातयिता हारयतीति एवम्‌ saat, शनाक्रापरि-श्रक्ेण शलाकया वा परिहारितमित्यधः। दृहाक्तशलाकयोरेकलतवे (१) वत्तेमानयोरेवायं सः खभावात्‌, हि खभावार्थों निमित्तान्तरमपेच्तते इति |

अनोटेष्येसमौपयोः। श्रनयोर्वत्तमानस्यानोः स्याद्यन्तेन सह ` वो निलयं स्यात्‌। अनुयसुनं मधरा, agaa Aaa

° iJ . Q n~ नुदन्तं नदो, aaa qatar way) ufsaarenaida सः, सामोप्यधर्मवाचिनसु gata! यथा श्नु, wae सामौप्यमिव्येः | wat: किं हच्तमनु विद्योतते fread, od

©

MART इत्यथः |

alfa नदोभिरन्या्थे। नदौवाचिभिः शब्दैः सहान्यदा्ें MAMAS स्याद्यन्तस्य वो नित्यं स्यात्‌ संत्नायां विषये! उन्मत्त- ay, सीहितग (२), wate, तूष्णींगङ्गं -- चत्वारि देशनामानि

gt ---

(१) मतु हिलषड्कत्वयोरिव्यवः।! तथाच अक्ताभ्याम्‌ aa: शलाकाभ्या- भिचादि नोटाह्त्तव्यम्‌ अनयोहित्वाहिनिषेधादिति प्रयोगरब्रसःदा (eon @) way परिहारितभिव्यधकथनेनेतत्‌ खचितं, अक्ताटयः करणटतीयान्ताः सम- यन्ते इति--दति शद्यालद्ारः।

(२) कतिमेगवत्तया अनवरतं तीरभूमिभङ्गक्ारिखौति CHa इव WET afeq, सत्िकादिलोषहितयोगात्‌ लोहिनी गङ्गा afefafa frre ofa प्रयोग- रत्रभमालाटीका एतत्तु SRA नतु बाक्यं ; तथाच--^नित्यसमासत्वात्‌ चाक्यमेषां विद्यते" इति गोयोषन्दरः।

४०१. सुवो व्याकरणम्‌ |

नानि विं! ther गङ्गा aferq ोत्रगङ्ो देणः। भरना विं ! क्षणा चासो Tar चेति कछ्षशषेन्रा (१) | faseraren: | तिष्ठद्ग्वाद्या वप्॑त्नका निपाल्यन्ते | तिष्ठद्म्बादिषु fasay ्रहद्गु चायतीगवम्‌ | खले संङ्धियमाणाभ्यां लयमानाञ् संरतात्‌। लनादृयववुष YA पूयमानात्‌ TATA | TAA पुण्यपापाघात्‌ समा श्रध समं समात्‌ | भूमिः पदातिरिव्येरौ सुनिर्दुरपरात्‌ समम्‌ प्ररं प्रसं प्राह्मपमव्यं प्रदक्तिणम्‌ | सम्प्रल्यसम््रलेकान्तं तथापदिश्रमित्यपि | wefan कथिता ज्ञेयं शेषं शिष्टप्रयोगतः तिष्ठन्ति वहन्ति श्रायन्ति गावो यस्मिन्‌ काले कालः तिष्ठद्गु वहद्गु भ्रायतोगवश्च (२) खले यवा यस्िन्‌ काले म॒ कालः खलेयवं, संक्कियमाण्यवं लुयमानयवं dard लूनयवं रवुषमित्यादि पूना यवा रिन्‌ काले कालः Yaad, पूय- मानयवम्‌ | AAA, समाः सवत्र श्रायतोमसम्‌ | एव पुयसम

~~~ ~~~ eee - ~ ^~ ~~ ------ -- ~ ~ ---------- ~ ---- ~ eee ---~---- ~----~~*

(१ वत्रा नदोपिणिष दति सिङ्खनकौमश्धासणदिष्टतिः। तकश्वबोधिन्वां तारानायहतसि ब्रानकौमरोरौकरायाश्च लश्वेणोति पाठो दश्यते, काशिकायान्तु quae दूति। mH ATA: पञ्चसु इस लिखितेषु आद्भपुर्तकेषु गृढु- प्रक्ाशिक्षानामिह्नायां प्रयोगरत्नमालाटोश्रायान्च (cic Ql वेगवा इति प्रो ama) संचिप्रसारे चैना दति

(२) कतिषु प्रहोष राति at) वह प्रातःक्ञानो fet gatst at) आवतीगवं प्रोषः। सलं पाश्यादिमटनस्थानं. खलेयवं वसन्तः। लयमानयवं पिशिरः। waqt हेमन्तः ईति प्रयोगर्नमाला agra च(६।। छ) |

परव्ययोभाव-समाषः। yor

पापसमम्‌ TIAA | aad भूमेः समभूमि समंभूमि। एवं सम॑ vetfa समपदाति पूव्यैदाधेप्राधान्य एव वमः, परदा्प्राधायरे तु समभूमि; समपदातिरिति.य एव समा; पटातयो यसिन्‌ समपटातोति पारायणम्‌ wae वा सममादेशो frat तनात्‌, समभूमि समंपदातोत्यनये | समाधेसममिवि व्यस्य भाभ्यां सह वस इति कश्चित्‌ शोभनत्वं समस्य सुषम, निःषमं दुःषम अपरसमम्‌ ud naa रथस्य प्ररथं, wad प्राहमपसबयं प्रदक्षिणमिति परदा्प्राधान्यात्त -कुपरा्ोमिल्मिति एव सम्रतिशब्दं पटित्वा ्रसम््रतोति पठितं वके क्षपे सान्तराभावात्‌। एकत्वमन्तस्य एकान्तम्‌ | दिथोमष्यमपदिश्रमिति ! भस्याक्षति- गतवात्‌ भ्रप्रदत्तिणमित्यादि(१)। इह यद्यत्‌ काय्यं लक्षणेन सिध्यति तत्तत्‌ सव्वं निपातनाजन्नेयम्‌ | तिषठद्म्बादौनां वादन्यः सो स्यात्‌, यधा परमं fasey त्यादि वससु खादेव, तथाच-- ^श्रातिष्ठदृगु जपन्‌ gaat प्रक्रान्तामायतोगवश्सिति महि; (२)

श्रभिप्रत्यो राभिमुख्ये लक्षणया वा भभिमुख्ये वत्तमान-

(१) ऋत्राप्रदश्चिणस्म्मयोः एथक्पाटस्तेतेषां समासान्रनिषेधा्ं इति हन्मग्धभोधम्‌ | VEG हस्रलिखितेषु अट एकेषु संचिप्रसारे अप्रदशिण- fama अपटिखसिति, काशिकायां तारानायशतसिङानकोसदीटीकायाञ् waceferefata पाठो saa |

९) wgte) 985 तन्न भर्तः %तिषन्ति स्थिरोभवन्ति गावो afaq a तिश कालः, रालः प्रथमनाडिकरा, तत्र डि शिश्रान्ा गाषः Wag इने | आयन्ति गोष्ठं सावो afaq कले सखायतोगवं कालः agtafannac:, प्रायथस्तलेष गवानयनात्‌" cla |

Hor सुग्धबोरधं व्याकरणम्‌।

योरभिप्रत्योलंच णेऽ विहिता या हौ तदन्तेन ae वः श्याहा। स्भ्यमिनि प्र्न्नि, परते afd प्रत्यमिनं शलभाः पतन्ति, भ्रमिं लच्यौक्त् शलभाः पतन्तीत्यधः श्रत्ागिलंच्षणं, पन पतङ्गानां पातो लखत, तयोलश्यलक्तणसम्बन्धो यथाऽभिप्रतिभ्यां aaa तथा शष्दशक्तिलराभाव्यादाभिमुख्यमपि द्योत्यते, waa wat भिमुषमेव पतङ्गाः पतन्ति पारख पृष्ठत शय्यः (१)। wifagel fa गद्ामभिवसति (२)। wameria किं? aH प्रतिगच्छति, परा ्मधुराशलितो दिश्नोहात्‌ uta fara इत्यथः | Ala लक्षरे हो किन्तु इति।

भाट्पयपवहिरशचां प्या एषां प्यन्तेन सह वः TET! अापाटलिपुच्चं परितरिगत्तम्‌ अपत्रिगर्तं (2) वहिर््ामं mrad इष्टो देवः। पे श्रा पाटलिपुत्तात्‌ परि fans इत्यादि | वहिरादिसाहचयादाङ्ादौनां योगे Faq पौ तेष्वयेषु (४) एवेह ग्रहणं, तेनापगतः शब्दात्‌ भ्रपशब्दः WONT: qa दादौ क्रान्तादौ farcre: ar fa a: (५) वदिरङ्को गुण

"णमी 11 ` कायाय ~~ APTS ~^ = ~ ~~ ~ ~ ~ ~~~ „~

(१) तथाच अन्निन्ताणरं एलमकत्तेकमगन्यभिससं पतनमिति भोधः |

९) अव afta लच्छलत्तणपम्बन्धी aaa, व्वाभिसुद्यमिति गोयीचन्द्र |

(९) अपपरो बज्ञनार्यौ पति प्रयोगरद्रमाला। तेन तिगतताम्‌ tet यिषा cardi विगततैषन्दो लाोरसब्रिह्ितरेयविरेषश्य va |

(४) Aa अपपरि एवयेतयो्जनाये एव, are cae सर्यांदाभिग्ध्यो रेवेति बोध्यव्यम्‌ |

(८ एतनेतद्मतिपादितं कराना दधन्ति [रक्गोऽदध पिषय इति गोयीचन्द्र

श्रव्ययोभाव-समासः | yo

द्यत्र लन्यदायैपराधान्यात्‌ इ; वदिर् anata (१) इति तु विेषणविश घतेन यसात्‌ |

पारे मध्ये MT) mt मध्ये इत्येतयोः aaa सह स्याहा। पारेगङ्ग, atari | qafaeara घ्या श्रलुक्‌ Ua पारे गङ्गायाः, मध्ये ATA | गङ्गापारं, काभोप्रध्यम्‌ इति तु षौषात्‌। एकै तु अगरऽन्तरोर्हणं लत्वा अग्रे रामख शभे रामम्‌, अन्तःप्यागस्य भन्तःप्रयागमित्यपयाडः ~ `

संख्याया विदाजन्नैकयोगेः। बिद्या जन्मना वा एको योगो यत्र, तदाचिभिः सह संख्यावाचिनो वः स्यादा) हौ सुनो व्याकरणस्य, दिमुनि व्याकरणस्य, विद्यया पाणिनिकाल्यायनयो- मुन्योरेको योगः (२)। पूरैरारथप्राधान्य एव वस्तेन हिमुनि- रागम इत्यत्रा्यदाथेप्राधान्यात्‌ हः एके तु वा aaa इति सुत विधाय दिमुनि शब्दातुशि्टेः, दिसुनिरागम xorg: (३) हौ गागं लोकानां fear दश्भारदाजं (४) दयोर्गाग्धयोरदशानां भारदाजानाख्च जक्मनेकयोगः। एके तु अनेकसंख्याया एव वसं विधाय एकमुनिभाषस्येत्यारि प्रल्यदाहरन्ति

समाहारे नदीभिञ्च। ममादारेऽथे नदौीवाचिभिः सद

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Q) fea aeqaifa, प्राक्‌ चासौ सामशेति वाक्यम्‌ |

(२) जनकताशम्वन्धे sae, उभयोरेव व्याकरणजनकलतवात्‌ इति विद्यालङ्कारः।

(१) wagrafatatacagarel |

(४) भरहाजवंगोड्धवानां दयरंख्येत्यचैः।

१०४ मुगवोधं व्याकरणम्‌ | got शदृविपराहुयच्चेतोमनोविदधुपानधिमव- हिदिवनडदिक्‌ चतुर्यत्तदोऽः ( शरद्‌-तदः ५।, भ्रः )।' एभ्यः भः खात्‌ षै उप्रदम्‌।

(acinomae ee, cet NER EONS I 7 em rn npn on rs Cat

संस्यावाचिनो वः स्यात्‌। Talat: समाहारः feng, सप- गोदावरम्‌ (१) | समाहारे किम्‌ एकनटो |

२७९. शरत्‌ aes विपाट्‌ saa चेतश्च मनश्च विट sare हिमां fag cite ्रनदुंख दिक्‌ चत्वार यञ्च तश्च तत्‌ तस्मात्‌ | उपशरदमिति - शरदः समोपमिति वाक्यम्‌ | एवम्‌ उपविपाशम्‌ उपायसम्‌ उपचतमं प्रतिमनसं प्रतिविश्म्‌ उपोपा- ava उपहिमवतम्‌ उपविदं प्रतिदिवं nwage प्रतिदिशम्‌ उप- TITY उपयदम्‌ उपतदम्‌ दति वे किं? waa दिशां समा- हारः चतुरहिक्‌, तथाच--"चतुदिगोशानवमन्धय मानिनीश्ति कालिदाषः। wat तु पथि-हश्‌-उपसत्‌ कियदनसः शरदादौ पठन्ति, भ्रयश्चतोमनोविददिसु नाहुः |

oem श; ee ~~ ~---~--*~ ^~ emcee Te ~--- ------ ee SS NEES Sct

(1) व्यप गोदवररो wes, तथापि स्पद्शमभिव्याहारात्‌ ततेन तथां ्राहनमन्तषटतसप्रनदयो wed, ती्ैत्वेना विशेषात्‌, तेन गङ्गा agat गोदाषरो रसतो WAG सिन्धुः WAT KT: अवमगययोभावो दिगो- बाधकः विभेषत्वात्‌ | नहु पञ्चमदमिचते दिगुश्मासक्षरणे कोरोषः oa समाहारहिगौ RING VNC BATT खान्‌, अव्ययीभावे तु पश्मीभिन्रसभ्य- विभक्ते Tara eft) अतएव सप्रगोदावरं quar दति सप्रव्यनादिप्रियोगाभाव एव दोष दर्थः इति प्रयोगरब्रमाशारोक्षा ( ace )

भव्ययोभाव-समासः | yoy

३८० जराया जरस्‌

(जरायाः &!, जरस्‌ Ui, ।१।) t

उपजरसम्‌ |

२८१ | सरजसोपग्रुने | (सरजस-उपश्मे en) faata |

२८२ | सम्परःप्रयनुभ्योऽच्छः | (सम्‌-परस्‌-प्रति-्रनुभ्यः ५।।।, WT ५१) समक्तम्‌ |

So RD “~~ “~~~ ~~~ काकण

३२८० जरायाः भ्रः are तस्मिन्‌ जरसादेश | उपजर- समिति-ज्रायाः समीपमिति वाक्यम्‌ |

ह८१। Al) सरजसच्च उपशुनञश्च ते। रजसा सह सकलमत्ति सरजसं, साकल्ये वः, सहः सोऽकाले इति सदस्य सः। ३ेतु सरजसं पद्ममित्यसाधु। सरजसतामवनेरपां निपातः इति किराते चिन्यम्‌। शुनः समोपम्‌ उपशनं, खयुवमघोना- fafa ते निषेधेऽपि cela निपातनात्‌। सहोपाभ्यामेव निय- मात्‌ sata: प्रतिश् इत्यत्र wa इत्यनेन सूत्रेण भ्रत्योऽपि स्यात्‌|

३८२ 1 सम्परः। सश्च परख प्रतिश श्रतु तै तेभ्यः एभ्यः परादश्रुः भः स्याह समक्तमिति-भ्रच्तौः समोपमिति वाक्यम्‌ पर इति क्तसान्ताक्षशब्दे at मनोषादिलात्‌ परिणषब्दखा-

६४

१५०९ सुश्धवोधं व्याकरणम्‌ |

aca) अनः (भनः भनन्तात्‌ भ्र; खात्‌ वै। TATA | ३८४ क्रोवादा | (amare ५, वा ।१॥ |

उपचश्मं उपचर |

दिष्ट.परस्‌ इत्यस्य ग्रहणम्‌ | TA: परि परोक्षम्‌, GE पथप- वहिर्चामिल्यादिना' वः (१) wa तु ofa sf] परि परोत्त मिति वोपायं इत्याहुः | एकै तु TA पररः परोक्तं, पार- खारादिलात्‌ सुम्‌ दत्याहुः। भक्षिणो प्रति प्रत्यक्तम्‌, अभि प्र्योराभिमुस्ये इत्यादिना a1 वोसायारिव्यन्यः were az दति तु इन्द्रियार्थेन त्तशब्देन प्रादिसात्‌ wat: समोपमनक्त, सामोप्ये वः।

३८२ भ्रनः। अरध्यालमिति-्रासानमालनि at भ्रधि क्त्य WA, काये a | Ta चोर्लौपीताविति नलोप aar- रित्यादिना ्रलापः।

३८४ MA क्तीवलिङ्गादनन्तादः साहा वे। उपचर frarfe—ate: समोपसिति वाक्यं, सामीप्ये a: | एवं ware प्रयः, वोषायां वः |

(१) अशुः पररभिति feay * * ° निपातनात्‌ परद्योकषारारेशः, परो चम्‌ परोशा fatenfe अधं आद्यचि-षति ति्वानकोषठदी। अशुः परमिति- अषिधय द्यैः, हत्तिषिषये अलि इन्द्रियमालपर दूति तश्वबोधिनौ |

षट्‌ घमासाः। Hood

acy | भपनदौपो्माखयायहायणौ गिरे व्वा ` (भाप्‌- गिरेः ५, वा ies) उपसमिधं उपसमित्‌, saad उपनदि | दति a

षट्‌ समासाः | २८६ | पथ्यपपुरः | (पथिन्‌-श्रप्‌-पुरः ५।, से 9) | एभ्यः भ्रः स्यात्‌ से सति| सखिपथौ, रम्यपथो देशः, महापथः, दल्िणापथः, aqua, saad, विमलापं सरः, विष्णुपुरम्‌ |

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३८५। भष्‌ भप प्रत्याहारः | भप नदौ पौण- मासो भ्राग्रदायणणौ गिरिश्च तत्तस्मात्‌ भावन्तात्रद्यादेशच श्रः स्यादा वे। पुन्यैग्रहणं परत्र निह्यथेम्‌ उपसमिध- मित्यादि- समिधः समो पमिति वाक्यम्‌ एवम्‌ उपटश्दम्‌ उप- तितम्‌, परे उपसमित्‌ इत्यादि | उपनदमित्यादि-नव्यादोनां सखरूपस्य ग्रहणं, नदा; समो पमिति वाक्यम्‌ एवम्‌ उपपौणमा- सम्‌ उपपौर्यमासि उपाग्रहायणम्‌ उपाग्रहायणि safe उपगिरि, “श्रनुगिरगरतुभिवितायमानाभिति माघः (१) इत्य- व्ययोभावः।

३८६ पण्यप पन्था WE पूश्च तत्‌ तस्मात्‌

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(१) चिशुपाशषे o 1 2, fad ठभिषितन्वमानाभित्वधेः।

Yow सुग्धवोधं MATH |

२८७। दान्त्गर्ीऽपोऽनात्‌ | (दि-प्रत्तर्गीः ५।, १।१।, भ्रः १।, WA gl, TAT A) | एभ्योऽनवर्णन्तभ्योऽपौऽक्षार ईः स्यात्‌ etd भन्तरोपं समौपम्‌ | अनात्‌ fat ? प्रापम्‌

रे८८। समापानृपौ ( स्माप-नूपौ eu) | निपाल्यौ समापो देवयजनं, wat देशः | दति सामान्यम्‌, wa: षटृसूदाहरति सखिपधाविल्यादि | सखा परग्याश्च तौ, रम्यः पन्या aa, महां्ासौ carafa, दत्रिरस्यां पन्या दरदं दच्चिणोत्तराटाहो इति ला भ्राकारादेशः। चतुणां पथां समाहारः, पथः समोपे, विमला रापो यस्िन्‌ विश्णुपुरमिति- विष्णोः पूरिति ara) यदपि श्रदन्तः पुर शब्दोऽस्ति तथापि पुरब्देनानिष्टनिवारणाथमिदम्‌।

३८७। द्यन्त हौ ware fae तत्‌ तस्मात्‌, भः waaay, एति gana टम्‌। दिगशब्दान्तःगब्दौ प्रनदन्ता- वैव श्ननवर्गान्ेभ्य इति गीविशेषणम्‌। एभ्य इति-दिषब्दा- दन्तःशब्दादनवर्णान्ता eae: | हौपमिलयादि - दिता ्रापो यत्र दूति वाद्यम्‌ | एवम्‌ भ्रन्तगेता AIT यद, सम्यगापो यत्रेति | एषां रुद्शब्दलादेतदत्यत्तिमातम्‌ | एवमनोपं प्रतोपमित्यादि | प्रापमिति-प्रगता श्रापो यत्र इति वाक्छम्‌ | एवं परापमिति।

asc] aati निपातो wafan® wa श्राह समापो देवध्रजनमित्यादि समौचोना भ्रापो aa, श्रलुगता at यत्रेति

षट समासाः | ५०९.

२८९ सम्‌ तुम्‌ मनः-कामे, ऽवश्यं ल्य,

-न्लोपरं, सम्‌-मांसी तु हित-तते पाक-प्चने वा.

(सम्‌ तुम्‌ itt, मृनः-कामे ॐ, gad ici, ख्ये 9, WANG २।, सम्‌-मांसौ१॥, तु ।१ . हित-तते 9, पाक- पचने ७), वा ।१।) |

सम्‌ तुम्‌च मनः-कामयोः, TaN खे, भन्यलोपं याति.; सम्‌ हित-ततयीः, मांसः पाक-पचनयो at |

समनाः सकामः, TRAN TRIE, Vata, सहितः संहितः, सततः सन्ततः, मांखाकः मांसपाकः मांखचनं मांस- पचनम्‌ |

वाकम्‌ | अन्यत्र समोपमन्वौपमिति भन्ये तु MATS पूव्यादपः समापमिति साघयन्ति |

२८८ | सम्‌। सम्‌ तुम्‌ इति Game, (१) सम्‌ तुम्‌ ती, HAMAR | मनश्च कामश्च त्तस्मिन्‌ भ्रन्यस्य लोपः TANIA | सम्‌ मांसञ्च तौ हितञ्च are तत्तखिन्‌ पाकश्च पचनञ्च तत्तस्िन्‌। aged! ल्य तव्यादौ हित-तते मांसः पाक-पचने इति प्रदहयकरणात्‌ सम्‌मांसा- वित्यनेन यथाक्रमं दशेयति सम्‌ हित-ततयोमांसः पाकपचन- योरिति | सकाम इत्यादि - सम्यक्‌ कामो यख, सम्यङ मनो

~~~ ~~~ ene > momma

(१) शस्‌ षति aq षति लपप्रथमेकववनं सनःकरामाभ्यां वधारुख- निरासाधमिति इगादास-कान्तिकेय-गङ्गापराः।

ure Aerated MATA |

eo | WUSTTRM: | (धुरः yl, WATS ६।, भः १।) | राजधुरा | THA तु TAY |

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यख, रन्तुं मनो घख, रन्तुं कामो यस्य दत्यादि वाक्यम्‌ | भ्रवश्य से इति -भरवश्यं शब्दस मयूरव्यं सकादिलवात्‌ ल्यान्तेन सह वा यसः i wt तु wad सेव्य cfr तथाच भट्वार्तिकं - “सम्ब न्धानुभवोऽवश्यमेषणौयच fafa” xf सहित श्यादि- सम्यक्‌ हितं ord येन एति वाक्यम्‌ सततमिलादि- सम्यक्‌ ततमिति प्रादिस्तः (१)। वाशब्दस्य व्यवखावाचिलात्‌ सातल. fara निलयम्‌ मांसपाक (२) इत्यादि - मांसस्य पाकः, माषस्य पचनम्‌ इति वाक्यम्‌ समांसौ लिति - तुशब्दो भिब्रक्रमाध- स्तेन ae पूर्वोकञेसिभिने सबन्धः षवश्वं गिप्रादुरादि- व्यवधानेऽपि (3) | wanda: भ्रवश्यप्रादुःरेव्यः ्रवष्याङ्गोकर- शोय द्त्यादि।

३८० धरो धुरः भः सात्‌ से, तु प्र्षसम्बन्धिन्याः | usytin—ast धूरिति वाक, स्ौलादाष्‌। भरपुरिति- wre भूरिति वाद्यम्‌ प्रत्नो रघावयवचक्रसम्बन्धिकाष्टवि- TAS WAIT एवं दद्र शत्यादि

(1) अत्रापि we ततमद्ेति बव्रीहिरिति इ्गांदास कार्तिकेय गङ्गापराः।

(२) Where दयत सक्तारलोपख श्यानिशच्वाश् feel इति entere: |

(१) अन्यलोपं यातीति पेष.

षट्‌ समाषाः। ५११

२८१ चः। (ऋचः ५।)। ऋचः परः भः स्यात्‌ से। wey}! २९२। नञूबहोर्माणवक-चरणे | ( नथ्‌-वषोः ५।, माणवक-बश्े 9) | WAM माणवकः, AT "चरणः Tea" TIA साम, THR GNF | 362 प्रत्न्ववात्‌ सामलोम्नः | ( प्रति-भनु-्रवात्‌ ५।, areata: wl) प्रतिसामं प्रतिलोमम्‌

ana

२९१। Wa भ्रैंमिति-भर्धम्‌ ऋच इति वाक्यम्‌ सप्त ऋचो यस्मिन्‌ सपतर्चो मन्तः

२९२। नञ्‌। नञ्‌ APT तत्तस्मात्‌, Ge सौत्रलात्‌ | माणवक चरणश तत्तस्िन्‌ नञवदुभ्यां परसा ऋचः भ्रः ख्यात्‌ क्रमात्‌ माणवक चरण्योवाखयोः (१) भ्रदरक्‌ सामेति (2) --भ्रक्लतसान्ततवात्‌ वा के WAR बह्ुकमित्यपि

३९२ प्रत्य waa भरतु Was AMA! एभ्यः पराभ्यामाभ्यामः स्यात्‌ से | प्रतिसाममिति- प्रतिगतं साम इति प्रादिसः, प्रतिगतं साम wafa वा हः, साम साम प्रति इति aera aa. एवं प्रतिलोममिति) एवम्‌ waaay भठु- लोमम्‌ WAAAY भ्रवलोमम्‌ |

1

(1) साखवको षट्‌, wea बेदादा (२) सान संकरश्च बेदांचविषेषो |

४५११ AUNT व्याकरणम्‌ |

२८४। अच्छोऽचचुषि ! (TO ५।, Tae 9|) | गवामन्तौव गवात्तं। चशुषि तु विप्राचि।

२९५। ब्रह्महसिराजपल्यात्‌ (१ वर्चसः | (्रह्म- पथात्‌ ५।, THe: ५।) 3 ब्रह्मवच्चसं हस्तिवेसं राजवशचसं पल्यव्च॑सम्‌ |

२९४। Tal) भनेत्राधादततुः भ्रः स्यात्‌ से। aad इति (२)- गावो जलानि तेषामन्तोव गवाक्तं पद्मादि, वातायने eq पंलिङ्ग; (२)। एवं पुष्करम्तौव gad, लवणएमश्चीव लवणात्तं, Waa उपमेयस्य व्याप्रादैरिति ae. faurare: vara इति तु इसात्‌ | विप्राच्ौति--विप्रख ्रत्तौति षौधात्‌।

2241 AMI ART हस्तौ राजा पल्यञ्च तत्त- स्मात्‌ एभ्यः परात्‌ वच॑सः श्रः स्यात्‌ से। ब्रह्मवर्ब॑समिति- ब्रह्मणो वच्च दति वाक्यम्‌ | एवं हस्तिवचचेसं राजवर्च॑सं परवश

~= ~~ ~ ~ ee - = ~ -----~ -~ -- - ~ ~ ~ - a= = re te en Rte oie ~~~. ~

(१) “aq प्रये्यपपाढः। we काशिकाटत्तौ steag waa पठितत्वात्‌ alugictarat तत्वबोधिन्यां पलं atewgdifa welt माघ. भोजोति व्याख्यातलाञ्ज। र।सतकवागौधेनापि welds पठितं व्याखातश्च" दरति इृहनृग्धगोषम्‌। शंचिप्रसारेऽपि wae पराढः। कातन्ते We- तयेव ( ९८५) |

(२) कदद्यपिधिष्टे लचणाततापनाधभेव cane, रमारषटकल ae—efe गङ्काधरः|

गाषः क्गिरणाः। afer caret पषीरमास.- दति an वोधिनी।

षट्‌ समासाः | ५१२

३८६ समवान्ात्‌ तमसः | (खम्‌-भ्रव-श्रन्धात्‌ ५, तमसः ५।) | सन्तमसम्‌ |

aco षोवसौयस-श्वःघेयसे-निःगेयसम्‌ | (ष्वोवसोयस-निःखेयसम्‌ १) | एते निपाल्याः |

समिति वच्वस्तजस्तधाच--“ तेजःषुरौषयौनच" TART: “पलमुन्ानमां सयो"रिति al पलमुम््ानमहतोति पल्यम्‌, उन्मानप्रकारेण ca दरव्यमिल्यथः। waa तु परलालरच््वा वैष्टयिला ब्रीहैरवस्धापनं पल्य मित्युक्तम्‌ | यत्र पलालरल्त्वा athe वेष्टयिलाखापयन्ति तत्‌ vatafa धातुपारायणम्‌ |

३८६ सम | एभ्यः परात्‌ तमसः भ्रः स्यात्‌ से सन्तमस- मिति - सन्ततं and तम इति प्रादिसः। एवम्‌ walt तमः परवतमतम्‌। भन्धयतीति अन्यम्‌, Tae TAA अस्मात्‌ पचादित्वादन्‌, Wary तत्‌ तमश्चेति अरन्धतमसमिति यः (१) |

geo) श्वो निपातो यथं विशेषे, तेन wifi Fae met वसीयश्च wa वाद्ये यसे ver fanaa) वमुमत्‌- TRAY, तुडमदहिनामिति मतोलक्‌, जोमंषेति डिष्ठादुकार- लोपे atta: शक्या श्रेय श्राह शखोऽन्नागतेऽह्ि वसौयः

क~ ~ = ~~~ ~~~ ---~--* „~~ ~~ ~ ~~~ === ~~~ ~~~ ~~ ~ ~~~ ~~ "~ ~~ ~~ -~

(१) यत्‌ तमः wat करोति तदुच्यते + #* * अदन्त THEME सन्तस- urfefedt लचखमिदं सन्तम दया दिष्टपनिटत्यथेस्‌ - दूति गोयीचन्द्र; (३११८) rd गारेऽग्धनमपं सोरेव्रतमसन्तमः। fare रनमसम्‌-इघमरः।

६५

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५१४ AUNT व्याकरणम्‌ |

३९८ | तप्रान्वाद्रष्सः। (तप्ष-श्रतु-्रवात्‌ ५।, रसः ५।) तप्रहसम्‌ | २९९ | प्रलुरसानुगवे (परलरस-अनुगवै eu) एते निघाले | ्लोवसीयसम्‌ (१)। एवं प्रशस्यशव्दादौयसुः मेयः, wad निःश्रेयसम्‌ (२) उभ्रयत्र मयुरव्यंसकादिलात्‌ सः। यदपि णः- शब्दोऽनागतदिनाथ; वसौयःगरेयशब्दौ waa तथा्युज्छितावय- वार्थेन समुदायेन शभमाह निपातनात्‌ निशितं श्रयो निः- aaafafa प्रादिः २८८। तप्ता एभ्यः परात्‌ रहसः भ्रः स्यात्‌ से | तपरदस- मिति- तप्तमिव an, ary तत्‌ रहृश्चेति वाक्यम्‌ | ae यहवेत्‌ वाक्यं तत्‌ anced fag: इति (२) | एवम्‌ WANA रहः रतुरहसम्‌ | श्रवकलितं रहः श्रवरहसमिति प्रादिसः (४)। २८९८ We! उरसि प्रतिवत्तत प्र्ुरस, (५) Ba a | (१) शोवसोयसम्‌ कल्याणमय xia कातन्त्र aco |) तन्मते खदखोयम्‌ Ue: 1 (२) जखग्रेयसं कल्याणम्‌ | fazed निर्वाणमिति कातन्ते ( शेय द) | (१) दथवा--^परेशानधिगस्यं fe यद्रो वद्धित्रवरत्‌ | any तदरहशेति wanced fag: ॥" द्रति प्राद्मनोरमा। (४) अवहीनं रह दूति प्रादिममासः, अधा अवहीनं निन्दितं रदडोऽख्ि- चिति द्त्रीहिः —<fa Males | तत्वबोधिन्यामेषमेष | अवगतंरह दति इर्गादाष-का्तिकंयौ | (५) प्रद्रश लोम दूति कातन्ने ( २९० छ)

षट्‌ समासाः | १११५

Boo) गीरध्वनः। ओः ५, भ्रष्वनः ५) | प्राध्वो Ta: | ४०१। प्रागडदकक्ष्टात्‌ भूमेः | पाष्ड-उदक्‌-क्ष्टात्‌ ५।, भूमेः ५) | पार्डभूमो देशः| गवामनुदीधम्‌ WANs शकटम्‌(१) अ्नोदष्यमामौप्ययोरित्यादिना वः | Wa उरः उरः प्रति wae, वोषायां खः गवां पञ्चात्‌

अनुगु, पश्चादर्थे वः।

४०० गीः परादध्वनः अरः स्यात्‌ a प्राध्व इति -- प्रगतो- इध्वानमिति वाकं, ङ्प्रायोनित्यमिति सः। प्रगतोऽष्वा येन दति वा इः

४०१। WW एभ्यः WAT भूमेरः स्यात्‌ से। पाणु भूम इति--पाण्डुमूमिय स्न्‌ देशे इति वाक्यम्‌ एवं पार्डु्चासौ भूमिश्चेति परभूमा उदोचो भूमिरस्यां नगययाम्‌, उदौचो चासौ afaafa वा उदगभूमा। कष्टा भूमियस्यां नगथां कष्टा चासौ भूमिति वा क्ष्टभूमेति। कटाने क्ष्ण इति वदन्ति केचित्‌ (2) |

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(१) गौरिव शकटमपि दोधभिव्यथे इति गोयोचन्दरः | (२) पाणिनीयवात्तिके काशिकायां संलिप्रसारे Cea way इति पारो sega} वथाच- | शष्णोटकपाणड्पूर्व्वा या भूमेर प्रयः खतः | गोदावर्या agra संख्याबा उत्तरे यरि दति afar | कातन्त्र तु जरेति ws: १९२ A)

५१६ मुखवोधं व्याकरणम्‌ |

४०२। सड्याया नदौगोदावरीभ्याञ्च |

(सह्यायाः yi, नदौ-गोदावरोभ्याम्‌ wn, ।१।)।

पञ्चनदं सप्तगोदावरं, दिभूमः प्रासादः।

Bog | निसः शसो डः

( निसः ५।, शतः ५।, डः ९।)

निखिंशः निश्र्वारिशः | ,,

४०२। संख्याया संख्यायाः पराभ्यां नदोगोदावरोभ्थां भूमेश्च भ्रः स्यात्‌ से। पञ्चनदमिल्यादि - पञ्चानां नदीनां समा- EIU पञ्चनदं, सप्तानां गोदावरोशं समाहारः सप्तगोदावरम्‌ | चकारात्‌ भूमो aafa

goa) faa. faa: परात्‌ nears: सात्‌ से। fafein इति निगेता fara इति वाक्यं (१), क्रान्तादौ fare: प्याइ्तिषः wae एव विषय दइतिपरे। एकेतुषाषान्य एषैत्याइः। एवं निश्चत्वारिंश: निष्पञ्चाशः। शत इति fa? faufe: निःसप्तिः इत्यादि |

गीष्टश्ाद्या | Mears निपात्यन्त गोष्ठं wa गोष्ठः (2) एुरुषस्यायुः पुरुषायुषं, घोषः (३) Fay समाद्े द्यायुषं,

(१) निगतानि तिंधतो निद्खिंशानि वर्षापि sare, मिगेतस्तिशतोऽकुलिभ्यो fafein: we xfa शिडानशौशठदो।

(२) एतेन सप्नम्ोतत्पुरष एवेति नियमो दभितस्तेन षटोततयषे The car दति तक्षवोधिनो |

(९) ga नभवति, पुरुष IAG पुरुषायुषीष्ति काक्षा (५।४।७७) सम सान्तरे भताति गोयोचन्द्रः (२७५ छ) |

षट्‌ समासाः | ५१७

४०४। सृल्सुरभिपृते ग॑न्धादिर्वातूपमानात्‌ | ( सु-उत्‌-सुरभि-पूतेः ५।, गन्धात्‌ ५।, दः १।, वा ।१।, itl, उपमानात्‌ 4) | afar, wafer, पद्मगन्धः

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च्रोपि भरायुषि समाष्तानि sarge, समाहारे गः (१) दिस्तावा विस्तावा fe:, wad यन्ते यावती वेदिः करणोधेसि कथिता ततो दिगुणा विगुणा वा श्रन्यस्मिन्‌ यत्न दय | क्रियया सद सामानाधिकरण्यात्‌ हिविशब्दात्‌ सुच्‌, तयोस्तावतोशब्देन मयूरव्य॑सकादितवात्‌ सः (२) एषां विेषा्ंविेषयोनिंपातनात्‌ गोष्ठस्य खा MSU, पुरुषश्च WIT पुरुषायुषो, दयोसखरयाणां वा श्रायुः हयायुखपायुदिस्तावती रल्लरि्यत्र स्थात्‌ |

४०४ 1 सूत्‌ सुख उच्च सुरभिश्च पूतिश्च तत्तस्मात्‌ एभ्यः पराहन्धात्‌ इः स्यादुपमानान्ु वा सुगन्धिरिति--शोभनो गन्धो- ऽस्येति वाक्यम्‌ एवम्‌ उद्रतो गमोऽस्य खद्रन्धिः, सुरभिगन्धो- {स्य सुरभिगन्धि, पूतिगेन्ोऽस्य gfanfar यद्यपि सामान्ये नक्त तापि एवास्य विषयः श्रत यदा समवायसम्बन्धेन (२)

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(१) eafgat तु watery: इयायुः- दति गोयीचन्द्रः ' श्८२ छ) |

(२) तावतीशब्देन arya टव्यदत्तिना संख्याशब्ट्ख सामानाधि करशय।भावात्‌ विशेषणसमासो भवतीत्यत आह -मयूरव्यंसकारितवादिति- दति गोयीचन्द्र |

(8) नतु संयोगसम्बन्वेन care) अतएव परगन्धेन matte खादिति कार्तिकेयः | “गन्बसेतवे तदेकान्तसहणं swag” इति पाणिनोयवात्तिंशम्‌

ute Tras व्याकरणम्‌ |

(५।४।।९५)। “card एकदेश दव अविभागेन लच्छमाण xa: | गजि षं सनिनं च। gufaatg: | नेह -धोभना गन्धा TALIA सुगन्ध अपाक" दति सिद्धानकोषठरो। “cg qeatfer vy संहरणं aq दव्यवाचिन दूति फलितोऽचेः। असि गन्धधब्दो द्रव्यवचनः, वङ्ति जलमिदं पिनि wary xafaragaca ast fafear इति द्यनात्‌। गन्धस्तु सौरभे wa गन्धे madras | एव द्रव्यव्चनो awe पुंि.च wa: y इति कोषाङ्ख।

एतेन ‘weber: पृष्पसगज्धिरादरे, “भग्नबालसदकारषगन्धौः दादि व्याख्यातम : केचित्त तदेकानशब्टेन सखाभाषिकत्वं विवञ्ित्वा TARY Tas: | तथाच भट्टिः -“्राघ्नायिवान्‌ गन्धवहः सुगज' दूति | व्याख्यातश्च जयमङ्गलायां -गन्धखेति दकारः समासानो न, गन्धव तटेकानसहणमिति वचनात्‌ सुगन्व अापणिङ दति यथा -द्ति। wavs भग्नवालसहकार सुगन्धौ दधादीनां प्रामादिकं gad टत्तिहतोक्तम. इति प्रौदमनोरमा। wary सारमतेऽपि गुणवाचिनो गन्धादेव naa नतु दरवयवाविनः | तन्मते खाघ्रायी- वाटि wfguatt wae दृष्ययाचित्ात्‌ दू: तथाच एथिव्या एव गन्ध तीलात्‌ गन्वप्रहो गन्धवान्‌ भवति, किन्रविन्द्वयतिषङ्कवन्वात्‌ day समवायेन grag शति विशेषणं sured गन्धगन्दोऽरविन्दमाचे | भाषेतु भग्नवालसषङारघ्ठगन्धो मधुनि दूति गुणवाच्येव TV, TERA. मणात्‌ ay युखवत्‌। ae मटरवा्तिकं - faargeragesta प्रात्वन््यधि Weary रसानगन्ालदन्धं सम्ब सांकरामिका गुणाः पवने तु गन्धसंक्रान्ति नौलि तद्यापार्िवत्वात्‌। ये तु वैरेषिकादयो गुणसक्रानिं मग्ने, तन्मते भग्नव्रालसहकरब्गन्ध दूति भवति ; अतएव गन्धाहेति चान्द्राः- दति गोयी we: (४९६ छ) | आघायोति wat २।१०; गब भरतः-द्धदरभीयासे सभवेतखव TR पडणस्‌, अब तु परस्यरया UGTA WaT: | मगज्िरिति पाठे faarcetanfear सगन्धशन्दात्‌ era fer) क्रचिन्न समवावध्याद्वारात्‌ चगन्धिः समोरण दूति प्रयोग इति पाणिनीयाः) अग ग्धादृषां एति कालापा" इूति। सह्खिनाथमते गङदानपुगग्धिना, वदुर युक- ददयुच्छसुगश्यः ( माषे ६।५०), aut fe ama वारिधारा ware: छगन्विः wer Barer ( Ma) दादयः प्रयोगाः कवोनां निरङ्कथषात्‌ सोढव्या दति। ( रघो ४।४५ सोक टो gear)

षट समासाः ५१८

Boul नार््चायां खतः सस्यादेरः | (न itt, Watat ॐ, Baa: ५।, सस्यादेः ५।, श्रः १।)। खतिभ्यां परात्‌ सख्यारेरो स्यात्‌ पूजायाम्‌ | , शोभनो राजा सुराजा, vfanda राजा अरतिराजा | sata किं? ara fame: afana: |

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गन्धो वत्तते aareMara-—“arafa वान्‌ गन्धवदः. सुगन्ध” sfa मद्धिः। कस्तुरिकाश्गविमहेसगन्धिरिति ara उपमान- विवक्तयेति पद्मगनिरिति--पद्मगन्ध इव गन्धो यस्येति वाक्यम्‌ | एभ्यः किं ? दुगेन्धः

भृतिल्यादेमासादिकः। भतिर्वेतनं, aa विहिती यस्यस्तद- न्तारेमीसादिकः स्यात्‌ से। पद्धास्य भृतय waa कः, wat मासोऽस्य पञ्चकमासिकः। एवं दशकमासिक इत्यादि। श्रस्यापि एव विषयः।

४०५ | ATI सुश्च अतिश्च तत्तस्मात्‌ सखा भ्रादियेखय तस्मात्‌ सख्यारेरिति- सख्यदहोरान्न इत्याद्यारभ्य (८) aa येभ्योऽकासो विहित स्तेभ्यः पूजाधेखतिभ्यां परेभ्यो अः स्यात्‌ | सुराजा, भ्रतिराजा-कुप्राद्योनित्यमिति षः। सख्यादेः किं ? शोभनं सक्थि यस्य सुसकधः, अव्यक्ता विप्रः। ad: किं? परमराजः। भन्ये तु परूजाधेखतिभ्यां wa संख्याया डोऽपि स्यात्‌ ; सुदशा ्रतिदशा ब्राह्मण इत्याहुः |

नकन > ~ क~ = = ~~ => ~ ~ ~~~ --- --- --- ~ -“- ~~~ ~ ~ ~~ ~ - ~~ ee ~~~ ~

(5) गेरध्वन इति ward g— दति दर्गादटाष-गङ्गाधते।

५२० सुबोधं व्यार्शरणम्‌।

४०६ | किमः aa, (किमः at, वेप 9) | किंराजा |

४०७ | नजोऽष्वै | (नजः ५।, भ्र-ह-वै 9) नञः परात्‌ TAT खात्‌, तु ह-वयोः। AVA | ' ह-वे तु भ्रनपं सरः, 'अधुरम्‌ | ४०्८। प्रधोवा। (प्यः \।,वा।१।)। पध WaT * SS तु GUM देशः, श्रपथम्‌

५०६। किमः चेपो निन्दा, तस्यां वत्तमानात्‌ किमः सख्यादेरो स्यात्‌ | किंराजा, Haat राजेत्यधेः एवं निन्दिता धूः यस्य तत्‌ fary: शकटम्‌ चपि किं ? कषां राजा किंराजः।

४०७। AM) वश्च तत्‌, तत्‌ तस्मिन्‌ इवभिव्र षे नञः परात्‌ Ta wa! श्रषवेति-न सखा दति वाक्यम्‌ “नञः” इत्यनेन षसः यद्यपि नञ इत्यनेनैव सिध्यति, तथापि नजः स्यादयन्तेन सह ह-वस-त्नापनाधंमहव दलयक्म्‌ wat सर दति -न सन्धापो यस्मिन्‌ सरसोति वाद्यम्‌ | अुरमिति -ुरोऽभाव दति वाक्यम्‌ |

४०८ | पथो इवभिवे से नञः परात्‌ पथः भर; BNET अपयमिति-न प्रया इति वाकम्‌ | व्यसंख्याभ्यां पथ इति ala aq | पके sua इति श्रयो देथ शलयादि-नास्ि प्या यक्षिन्‌ देशे, परधोऽभाव इति वादम्‌ |

षट समाः | ५२१

४०९ | कत्‌ करचूतिस्थवदे | ( कत्‌ ।१।, Hiei, भरच्‌-जि-रथ-वदे 9 ) कोः खाने कत्‌ स्यात्‌ शे भ्रजादौ परे | BEA HAT: |

४१०। काचे | .. (का ।१।, भक्त of काचम्‌ |

४०९ कत्‌ We fay wa वदख तत्तस्मिन्‌ | कदन्र- fafa—afaaaafafa वाक्यं, कुप्रायोनित्यमिति षः a कुस्सितास्रयः awa, gfan रथः agi ae इति- वदतोति वदः, पचायन्‌। णिति fae ब्राह्मणः भ्य चूतस्य यस एवाभिधानात्‌ gad रथो aaa स्यास्‌(१) |

जातो STi suns परे जाती वाच्यायां कौः कव्‌ स्यात्‌ कत्तृणं नाम जातिः। भजातौ कुत्सितानि ठणानि।

४१० का। Wa परे कोः काः Baqi कान्त- भिति -भ्रच्मिन्दरियं, sfaanafafa वाक्यं, कुप्रायोर्भित्यभिति षः। भक्त इत्यस्य सामान्यतो ग्रहणात्‌ aad safest यख काचो विप्र इ््यताचतिशष्टात्‌ षे छतऽपि खात्‌ |

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(१) पापङ्त्सेषद्े कु द्यम रक्तस्य Baa सरहणंगनठ्‌ एथ. arama, तेन कोः एचिव्या ofa: कूख्ित Kane खादिति दर्गादाश-कार्सि- केव-गङ्गाप्रराः।

६९

१२२ AUNT व्याकरणम्‌ |

gee, पधिपुरषे.वा। ( पथि-पुरषे ol, वा! ।) | कापथं कुप्य, कापुरुषः कुपुरुषः |

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४११। पथि। vary पुरुषश्च तत्तसिन्‌। कोः काः

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स्यात्‌ वा पथिपुरुषयोः पररथोः ¦ कापथमिति--बुसितः प्या द्यः. व्यसंस्याभ्यां पथ एति क्तोतलम्‌ (१)। एवं कुपरथमिति

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(9) अत्र सेषु प्रचितेषु सदवितसग्धनोपषसतगरषुसृले काप्यद्ूति पुन्ङ्ग पाठो eat, चन तर्कवागोशसमातः “व्यसंख्याभ्यां प्रच इति क्तोवत््‌ दथु्गतवात्‌ | alfaaarte तकंवागीशमतमनुदतवान्‌। दर्गादासगङ्घाधरः मते तु पु लिङ्गपाठः। wave पाणिनीयवा्तिकषश्मतम्‌. “पथः संखया- mares” दति वारि aaa | सिद्वालकोशषद्यामपि क्रोबलिङ्गपाठो दश्यते! प्रधः ुख्याव्ययादेरिति नपुंशकत्वसिति aa तक्वबोधिनो | संक्षि सारेऽपि “gfqa: पन्या; काप्रथम्‌ | कुप्थमियषापुः" Kaa (२४६ ष) संद्याव्ययात्‌ प्रथ दूति नपु सकषत््‌। वृपथमियसापुरिति-पथषन्देन समासे नित्यं कादेणः। परथिशद्दसभानार्न प्थशब्दनापि क्तीषत्वाभाव दू्यभिप्रायद्ति Weg: | ` वयध्नो दुरध्वो विपथः कटध्वा कापथः समाः दथमरः, "्यध्वो विपथ कापथाविति रमषय, दूयृभयतापि एंलिङ्गपाो eA “पथिन्‌ Ue 4 ame संख्यः टो्यनेन नपुंसक्रतमि्यतः aes eae) गतिः पब मागदेति विकाण्डयेषः"-दू्मरटीकारां रपुनाधः| प्रौदृमनोरमापि षरवचने ज्वी शतवापत्तिनिराताय serene Tae “न चेवं विपध- faqrafy काप्यो arg, कटेशख इरंभत्वादिति we रषये तत्‌- सम्भवात्‌, FOAM: पर्थवाने" द्याह भरतस्तु -कुत्वितः पन्या: कापथः प्रथपपुरश्तिञजः। यद्यपि पथः रुस्याव्ययात्‌ पर दति षत्व anita faye लोकाग्रयत्वात्‌ विपथ कापयौ vate” द्याह | प्रौदमनोरमा टीकायां ईरिदोचितोऽथेभमाह wat समाधीयते -भरतमते विपथकापधौ एंखपोद्यपिकारात्‌ क्ोवल्वमप्यायाति | अमरे यत्‌ कापरथ एति नद्‌ श्सददन wana ay सिध्यति तकमरागीभेनापि agama) एवं सति पाणिनीय

षट्‌ घमाकाः। १२३

४१२। TST). (कोः €।, ईषद 9) | tose काजलम्‌ |

४१२। कत्कवी TIT | (कत्‌-कवौ १॥, F191, भ्रग्निशखष्णो ©) wafer: कवाग्निः aria, weet कवोष्णं कोष्णम्‌

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कापथ इतितु दषदथ अ्क्रारन्तेन पथगब्देन। परेतु कप fafa निल्यमाहुः। कापुरुष इति - कुत्सितः पुरुष saa दैषदधं कोः पुरुषशब्दे परे वा कारेय इति भागठत्तिः, तन्मते ईषत्‌ पुरुषः कापुरुषः कुपुरुष इति

४१२। at) पुनः कग्रहणं पथिपुरुषयोरननुवत्तनायैम्‌, भरत श्राह काजल्समिति। एवम्‌ ईषल्नवणं कालवणम्‌, ईषदादो यत्र कावाद इत्यादि | ईषदनरं कान्नम्‌, Saeed कार्तम्‌, ईषदा- कारो यस्स काकार carat | अनेनाचि कदारेशो वाध्यते, श्रपिक्तितविधिलात्‌ परलाच्च(१)। तथाच भारविः- देवाकानिनि कावादे वाहिकाखखकाहि वा। काकारेभभरे काका निख- भव्यव्यभखनि (२) |

४११। कत्‌ ase कोः कत्‌-कव-का; स्य॒रम्युष्णयोः

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वान्तिक-सिद्धानकषौसरी संलिप्रसाराणामसन्दिग्णमतमतद्टे्य तकवागीशटीकाजु- यायिन्यञ्ञित्‌ शग्धबोधे काप्थमिति क्लोवलिङ्गनिदूशमेव ganas इति |

(१) कोरोषदथे Kaas यत्‌ काटेशविधानं तटशष्यमीषदथमपे चते, afequ एव तदहिधानादित्यपेक्षितविधित्वम्‌ | परत्वाद्ति- विप्रतिषेधे प्रं काग्थेलिति WaT NIU LAG परवर्तितवादित्यधः

(र) किर।ते 1५२५

४२४ AUNT व्याकरणम्‌)

४१४। ` ज्योति sane राति नाभि बलु fine लोहित ata Sat ब्रह्मचारि chet पी पचे समानः Fi |

(ज्योतिः-- पते ७, समानः १।, स: ei) | समानं sitfa यासौ -सभ्योतिः।

ural: | कदन्िरिति-परे तु afte ut काकवादेशौ नाहुः। कंदुष्णमिति-अनौषदर्धऽपि same at कोः कत्‌- HAST TTA |

११४। ज्योतिः | एषु चतुरृशसु परेषु समानस्य सः स्यात्‌| सज्योतिरिति - aang तत्‌ ज्योतिधेति वाक्यम्‌, एकादोनाच दति यसः एवं सजनपदः सरात्रिः सनाभिः सवनु; सगन्धः सपिण्डः षलोहितः सङुच्तिः सवैणो ब्रह्म वैदः, तदध्ययनाघे aed तदपि ब्रह्म, तच्वरतोति award, समानो ब्रह्मचारौ सत्रह्मचारो, तस्यैव वैदाख्यख ब्रह्मणः Ted व्रतं चरतीत्यधः। (१) समाने तोधं गुरौ वसतोति wate एकरुरः, समानतो्शब्दात्‌ तत्र वासिनोल्य्ं शेय त्ये समानस षः (२) ware: पतिरस्याः सन्नो, दपि पतिशष्टख cae? समानस्य सः। समानः पत्तः

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(१) aargaatercr fre: सब्रह्मचारिश KAT: | (1) fadard ae खात्‌, तेन gard ate merce मेषां ते शमाम- तधा xfa— इति gatere-arferag-ngract: |

षट्‌ षमाषाः | ५२४

४१५। रूप नाम गोत्र स्यान वशं वयो वचन धम्म जातोयीदय्यं AT | ( रुप-उदय oy, aries) | सरूपः समानरूपः | दति. प्-पादः।

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सहायः सपकच्तः। प्रे तु गन्ध पिण्ड लोरंत gia वैणोति पञ्च arg: | wer तु fausfaararg: (2) quate: |

३१५। BIL एषु दशमु समानस्य सः स्याहा। सरूप दूति- समानं ed यस्येति वाक्यम्‌ | एवं सनामा सगो GUA: WIT: सवयाः सवचनः सधमा समानः प्रकारः सजा- तोयः, समान उदरे शयिता इत्ये यः Mizar: | परे समानर्ूप इत्यादि परे तु उदयथभिन्रेष्वपि नित्यमाहः धर्म्ोदिथभिन्रेषु वति are: |

अरिष्टादिविद्का्थेसख ad घः। रि्टादिभिचस्य fase घैः स्यात्‌ ATMS परे, दातरमिव fas कणं यस्य दात्रा aT हौ गुणौ यस्य दिशुणः, तदाकारं fas कशं aaa दिगुणाकणेः, गुणशब्टोऽत्रावयवाधेः। दयोरङ्ल्योः समा्ारः हलं, तदाकारं fas कणे यस्व दाह्कलाकणेः। इह fay- शब्देन पशूनां साभिविेषसम्बन्धन्नापना्धं करे दावाकारादि

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a er ne eer an en ee = ~ ees

(x) foapafafcmty खप्रान्‌ गन्धादीन्‌ चतुरो नाहः | ( veo |) |

१२६ सुवीरं व्याकरणम्‌ |

यत्‌ क्रियते aaa ग्रहणं, तेन staat: माकं इत्यादौ .न स्यात्‌ | forty रिषटकणः रिष्टादियंघा - रिष्ट-खस्तिक-पश्चाट च्छित्र-च्छिद्राणि qa: | firraaty रिष्टादावष्ट शब्दाः प्रकौत्तिताः॥ विश्वस्य दुनि fare a: स्यात्‌ aye ut) विष्वं aaa विश्ावसुः | | श्रपीष्वारैरिको ae पील्वादिमिव्रस्येगन्तस्य घेः स्यात्‌ वहथब्दे परे | वहतोति वह. पचाद्यन्‌, कपिं वहतोति ated मुनोवदं शमौवहम्‌ (१) पोषवादेमु पोलुवहं चारुवदमित्यादि | इकः विं गन्धवहः | ग: काग इगन्तस्य गः काशशब्दे परे धः स्थात्‌ निकाश दति पचाद्यन्‌, नौकाशः अनृकाशः। इकः किं ? प्रकाशः। गेषेजयमतुये बहुलम्‌ Ha: स्यात्‌ घजन्ते परे, तु मनुषे Te) aye कचित्रिलं, कचिदिकल्यः, afafaty:, क्चिदन्यत्रापि। यथा श्रपामा्गः वोमागः नोक्तेदः नीहारः नोशारः नोवारः, हतौ प्राकारः, गभे प्राषाद sary नित्यम्‌ भरन्त प्रकार प्रसादः | WAM: प्रतोहारः प्रतीकारः wae नोकारः भ्रतौसारः परौहासः, परते प्रतिवेश इत्यादौ विकल्यः। wae: प्रहारः विसारः परिषशः इत्यादौ निषेधः (२) |

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(1 रष्दाशररषु “लोका चयलात्‌ Meret वाच्यस्‌" इति Mate: | (२) नोज्ञेदः-मिक्विद्यतीति क्तरि wer) कपासा्ः-अपडशन्यनेन xfa ave va, amare इति खात चोषधिविपेषः। tyra fea)

घर्‌ भास | ५२ॐ

GH सुखमस्य Haw: ufamge उत्तरामुखंः दस्िशामुखः इत्यादो गिभिन्रखाप्यघजन्तेऽपि। अमनुष्ये fa? निषाद- चाण्डालः |

क्षिबन्तरुचाटौ कस्य | गः "कस्य (१) किबन्तरचादी परे घः स्थात्‌। अमीरुक्‌ aq maz परौतत्‌ उपानत्‌ कख-- मश्मावित्‌ ख्गावित्‌ (2) 1 frat: किं? तिम्मारग्‌ aw a तिम्मरुक्‌ (३) a

que: afe arg वैरुदधयोः ^ gue a: aq सदि,

re en eee ~~, - ~~~ ~ eee ---- ~~ ~ ~~~ ~~~ ee ~---+~- ~. ~~ ee ^

ware: प्रावरणम्‌ नोवारो धान्यत्िषः| प्राकारो तापिति- वेशने बाच्ये | र्टहभेटे प्रासाद द्ति-टेवानां quay ग्टहविशेषः। प्रक्रियते दूति कम्यैखि घञ्‌, प्रसोरन्ति अत्र इत्यधिकरणे घञ अन्यतर प्रकारः प्रसाद्‌ दति-- प्ररो षिेष., प्रसाद्‌ Beer ay) प्रतीवेशः-प्रतिषिशतीति कत्तेरि ws | प्रतौकारः-प्रतिकरणमिति भावे घञ्‌, अथवा प्रतिकुब्वन्यनेन दूति करणे | प्रतीहारः - प्रतिहरन्ति स्नापयन्ति तेनेति प्रतीहारो grey नीकारः- निकरणमिति कृश frat इत्यखात्‌ भावे षञ्‌ | adterc:—afeacufafa गतो cea भावे war प्ररिहसनं परिहासो, भावे sory विस्रतोति विषारो मल्छः- इति गोयीचन्द्र; (212 @)

(१) कद्यक्रारक्द्य।

(र) अभिरोचते इति अभिपूर्वात्‌ eee दोप्रापि्यस्मात्‌ wife किप्‌; निष प्राद्योरिति समासः निवत्ते द्रति ey, निपूरववात् दत रः दु वत्तने Kerang waft क्रिप। प्रवतोति प्राथ ata षु रेचने KANG कत्तेरि क्किप्‌ | परितनोतीति पररीतत्‌, यम सन तन दूयादिना नकारलोपः, SE तन- परितीति तन्‌ | उपानत्‌ न्यौ बन्धे किप, THIS भौ दूति we) मम्परावित्‌ - aay विध्यतोति व्यध्यो are इ्यस्मात्‌ कारकपून्वत्‌ किप, पहसखलपाद्योरिति लिः। wa warfaq व्याधः |

(१) मात्र उःसगपष्यंख कारकपूव्वेखय वा ee: क्रिबन्तता |

५९६ BUNT याकरणम्‌ |

tq रधयोर्वा तुरः षैगसं सहति, erxsayey इति विष्‌, तुराषाट्‌ एवम्‌ ऋतीषाट्‌ Taree व्यादि विरोहति किप्‌, वोरो WE क्षौ, वौरुत्‌ विरत्‌ शधधोः क्षिपौत्यन्ये व्रिवधतीति ware, बोवधः विवध इति 1:

शनो दन्छादौ। दन्तादौ परे.शएनो घः खात्‌ | शनो दन्तः वादनतः घादष्।

दन्तादिर्वधा- दन्त दंष्रा कणं कुल (१) पद पुच्छाः षडौरिताः |

वराहशष्दोऽप्यत, एतेन खावराहाविति कचित्‌ |

पदपुच्छयोर्बेति aren, aaa खपदः खपुच्छ cata

चितेः कै भक्ततसान्ताहत्यनेन विहिते कै परं freee धं, स्यात्‌ एका चितियेख्य एकचितीकः।

कोटरकिंशलुकादयो वनगिर्यो alfa: कोटरादेवैनशष्द परे, किं्लुकारेगि fas परे धः स्यान्नानि। कोटराणां वनं कोटरावशम्‌।

कोटरादियधा-- कोटर शारिक सिप्रक पुरगा far ofa

Tee प्रोक्षाः। किंएलुकानां गिरिः किंशलुकागिरिः। किंशु लुकाश्ननभन्ञनलोदहितक्कटमिति cee प्रोक्ताः। नाभिकिं? कोटरवनं भक्ञनगिरिः।

fore मिव्रनरयोः। विष्स्यानयोष॑ः स्याब्राजि।

"भीषम कत aE ~~~ ~~ ee 9 =

(1) कुल xara wfanart yy इति (२।०८्‌) क्राशिक्ञावां इन्द षति ( ९।१।१७ ) पाठभहो wage |

en ene ~ ~

षट्‌ समासाः | ५२९

विष्वाभिन्रो नाम ऋषिः, विश्वानरो नाम कथित्‌ |

नानि किं? fart fad यस्य विश्मिधो विप्रः, विश्वे नरा यस्य विश्वनरो राजा।

अष्टनो वक्रादौ अष्टनो घे; स्यात्‌ वक्रादौ नान्नि। श्र वक्राणि यस्व अष्टावक्रो नाम्‌ ऋषिः, अष्टापदं सुबणमित्यादि alfa किम्‌ ? अष्टवक्रो aa: |

गाकपालवोयुक्ञहविषोः | ` मोश्द परे यक्ते बा; कपाल- शब्दे पर हविषि वाद्ये अष्टनो घः श्यात्‌ ्र्टभिर्गोभिर्य्॑म्‌ Wells शकटम्‌, WY कपालेषु dad श्रष्टाकपालं इंविः, उभयव तां गः। युक्तहविषोः किम्‌ अरष्टकपालं विप्रस्य, समाहारे गः।

इष्टकारेधितादौ खः। दृटकादेः खः स्यात्‌ चितादौ at) ईटकाभि्ितम्‌ इष्टकचितम्‌, इषोकायास्तुलं इषो कतूलं, मालां भर्तुं Ware मालभारोत्यादि | तदन्तस्यापि (१) पक्ेष्टकचितं सुज्नषोकतूलं, मल्लिकामालभारि्य इति दण्डो |

आवोपोनौनि बडलम्‌ altaya खः स्यात्‌ नानि | agay कचित्‌ निलय, क्चिदिकल्यः, afafate:, afae- पूव्येविधिः।

यदुक्तं -

vafea निहत्तिश्च विभाषोक्तषिधिः कचित्‌ शरपृत्वेस्य विधानश्च age स्या्तुल्विधम्‌

(१) पदान्रपूरकरेटकादिन्दृशापोत्यधेः। ६७

५३० FUNG व्याकरणम्‌ |

कन्या कुला यस्मिन्‌ ey कन्यकुनो दशः, शिलां वहतीति शिलवद, शिला प्रखोस्येति fared नगरं, मन्दुरायां जातो मन्दुरजोऽश्ः, tant मित्रमस्य रेवतिमिव्रः, Ofer: gat ufefaga ए्त्यारौ निलयम्‌ . शिंशपखलो शिंशपाखलौ, प्रमद- नं प्रमदावन, रेवतोपु्रः रेवतिपुचचः, कानोदासः कालिदास इ्यारौ विकल; लोमकागहं लोमकाषर्ं नान्दोकरः नान्दो- घोषः aretfanra sane fata) wee मुसुक्छजटकश carat wamatafa, बाह्यात्‌ |

अनो वियुवृव्यस्य यूतो वा परदे शप शयु ूतो व्यसंनन- RTS IEA: खः स्याहा परदे ग्रामणोपुचः ग्रामणिपुवः, धोबन्धूपु्चः wae | भ्रलावूककं्धहनमुफलमित्यव ETAT Wa तु Yul, से तु सव्वान्तदख्योत्तरदलात्‌। यदा WaT Hayy भरलावुककग्धौ, ते न्‌भूशच श्रलावुककन्ु हन्‌म्बः, तासां फलम्‌ श्रलावुकक मुदनूसुफलमिति तु स्यादेव(१) | ईवादेलु गागीपुच्ः aged aye शक्तौ भूतम्‌

भवः कंसादाहदतो च। भवः कुसादौ परे ऋत्‌ श्रत्‌ खष एते बहुलं Bl भुवः कुषौ भासनमस्य भकंसश्च waTy भकुस्च भकस इति wera) एवं भुवोः कुटिः wate: कुटिः भुकुटिः,. भरकुरिकेति। war तु anna xeny:!

Tt Ae teeny --~~----------- - --- -------- ate anata

(1) waaaracuetat erates: |

षट शमासाः। ५३१

तधाच--तन्द्रो प्रमोला श्चकुटि कुटि भूकुटिः fanfaa- मरः ae स्याह्ासने पुंसि

यङ ई; पुत्रपत्योः. प। शणष्णगोरनाषयोरिल्यादिना विहितस्य ae (१) $: स्यात्‌ पुत्रपत्योः परयो; षे सति। कारौष- गन्ध्यायाः पुचः कारोषगूषीुच्च , कारोषगन्ध्यायाः पतिः कारीषगन्धोपतिः, एवं वाराद्ोपुचः वाराहौपतिरिल्यादि षे किं ? कारौषगस्था पतिर्यस्य कारोषगस्यापतिग्रोमः १८.

बन्पौदहेवातु मातामाढमाद्केषु। यङ ईः स्यात्‌ बन्धौ हेसति,वा तु मातादिषु। कारोषगस्या बन्धुरस्य कारोष- गन्धोवन्धः, कारोषगस्या Aas कारौषगन्पौमातः नारौष- गस्यामातः, कारोषगन्धौमाता कारौषगन्यामाता, सान्तविधै- aaa कः, कारोषगन्धोमाठकः कारोषगभ्यामालठक इति। माठकगब्दस्य भ्राकारान्तमातादेशो वचनसामर्यात्‌ मनोषादिलाहा सव्वं सुखमिति (२)।

इति ओरोयोरामतकंवागोशमद्राचाय्यंविरचिता wae टिप्यनो सम्पूणं |

„~~ ~------~ ---- ~ *-~- - --~ - ~~~ ^~ ~~

(१) २७७ ame टीकायाम्‌ खज्ञाटिगथो zea: | (x) समासविधिः साकष््येनोक्त ware: (

| ५२२ | तदितः (तो |

४१६। बाहायतोऽवावादैग्गादिन॑डादैः पिद. घ्वसादेरेवलयादेः शषशिवादेः शि-ष्ेय-शा-ष्णायन- गोय-णिक्‌-शा ATT .

( वाद्वाद्यतः ५, श्रत्याबाटेः Yi, गर्गादिः ५।, AIS! ५।, पिटषसादैः \।, रवत्यादेः ५।, गेषभशिवादेः ५. शि-शाः ert, श्रपत्ये ७) |

एभ्यः परा एते क्रमात्‌ ATTA

Stel वाद्वा) वादरादिवंस्य मः बाह्वादिः, मच we तत्तस्मात्‌ | भ्रतिश्च राप्‌ तो want, तावादौ ae @: 0 0 मो श्रत्ाबादिः aaa: गग श्रादियरख aaa) श्वतं श्रादिर्यस्य aaa. गिव श्रादधियसख सः, fear शिवादि awa पुं Mae! fers णेयश्च गश्च णायन waa णिकथ wa ते। एते सप्त ठभिन्नेभ्यः (१) सप्तभ्यः क्रमात्‌ 0 स्थरित्यधः। श्रपत्य इति-भ्रपतनादप्त्यं, यो व्यवहितेन जनितः सोऽप्यपलयं भवव्येवेति। afaq वाच्य यस्य सम्बन्धोऽवगम्यते तस्मात्‌ न्तात्‌ भवतीत्येः। यद्यपि श्रव्ये इति arava

">~ --- --~* ~-~ ~~ ~~ ^= ~~~ ~ -~--- ~~~ ~ ~~ ~ ---- ~ oe -- ~ = ° ~ "न~~ ~~~. ~~

(1) बाह्नाद्यतः अन्रमाबदेरि्यादिभिन्नपरेश्य care: |

तडितः | ५२३

तधाप्यभिधानात्‌ गगंनड़ादिभ्यां °गोतापत्य एव तत्र किं गोत्रमिति चेत्‌, भ्रतो्ते-

पौवादि गोत्रमेकस्यस्लतर, gE भवाद्यचि (१)

तश्मादेवासख्ियां युनि, aw qe, Haag वा 1

वंश्ये samuel तु wig पौचप्रसत्य॑वा *

जोवति भ्रातरि ज्येष्ठे कनोयांसु उच्यते

agat वान्यस्मिन्‌ सपिण्ड सति जीवति

पूज्ये ae युवा वा स्यात्‌ Hara वा युवाऽयुवा (२)॥

= = = -- = अः =, , Se ~ "= a Smee Sle ~ ~~ --~ ~= ~~ ~>

(१) भभद्य्धमि दिति अजञाटितङ्गितप्र्यये विष्ये car) wafe: परत्र

स्फ टीभविष्यति | ` (*) कातराणां बोधरौकर्ययाथः तर्क शागोश-न्यायपञ्चाननटीकातः गदल

सुस्प्टमेकत्र व्याख्यायतेऽयं aU: |

“narfe mag” -पौवादि पौतरादयप्यं गोत्रं Matyas | “एकस्यस्तव” -- तत्र॒ afaq गोत्रापत्ये एक UT त्यः अप्प्रत्ययः व्यात्‌. नतु TATA मेदेन प्र्ययान्तरोत्मत्तिरित्धैः “ae भवाद्यचि”-भवाद्यग्हिते अजादि तद्धितप्रच्यये विषये षति तद quem लुक भवे तीणः | ^तस्मारेवा- स्तियां यूनि" युनि वाच्ये शति तस्माटपव्यप्र्यान्तादेव प्रत्ययान्तरं खादिति येषः। स्तिया प्रौरयां वाच्यायां प्र्ययान्रोत्य्तिने भवति। “तत्र लुक्‌ तत्र afeq भवाद्यचि {षये युवाधेप्र्ययस्य लक भवतोति शेषः| “शायनसतु वा?--मवाद्यचि fart बुषाचप्र्ययोः waa WaT a वा श्यात्‌ | “aw aaa खात्‌ पोत्ाष्यतेय्‌ वा" - वंश्ये पित्रादौ जोवति सति पौव्रप्रभ्योरपर्ं miameaue बुषा बुवसंततकं स्यात्‌ “जोति श्वातरि eat कनोरयांतु उच्यते" यत्र हो प्रपौत्ौ जातौ तत्र eae भ्रातरि जोवति सति कनीयान्‌ बुषा उच्यते “द्धतरे वान्यस्िन्‌ सपिण्डे सति जोवति '-पिष्रादौ wis भ्वातरि atfaqqara fai erg तत्राह डतर xia) अन्यस्तु ठृद्धतरे सम्बन्धे वयोभ्यां sae सपर fuearet पितासहृभातरि वा जोवति सति प्रपौत्रः वा

428 TUM व्याकरणम्‌ |

भरादेजचां यख. भवेत्‌ तदादिः परागदेय।एड्खिम् त्यदादि | हदं तधा गोत्रपरोत्तरं दं वा नामधियं प्रणयन्ति हः (१) श्रस्यायमधेः- यत्‌ Tara तदोतं परिभाग्त (a) | त्चिन्‌ faafad मैदेन (३) श्रप्य-त्योत्पत्िप्रस्गे नियमः क्रियते एकस्य ईति। तत्र गोत्रे एक एव PTA: तथाच एकस्य त्यस्य तत्तद- पत्याथबोधकलमिति। यथा -- गगस्यानन्सरापत्यं गाग्यस्तत्यत्रो- ऽपि गाग्येस्ततपुच्ोऽपि गागं इति |

विकलेन युवशं्तो भवतोति ds: | “qa ag युवा वा खात्‌^पूर्वोक्गवत्तणेन यदय gran भवि, तदपि प्रपौत्ाद्यपयं gee पूजायां वा gat era) ay एदे श्रकं यत, तटपि विकलेन युवसंज्ञ खात्‌ एद्रन्नान्तु वच्यति! “gaat वा युवाऽबुवा- कृल्घायां गम्यमानायां zat वा विकल्पेन अयुवा भवति | (१) तर्कवागीशटोडायाः THT सश्षटमेकतर व्याख्यायते लल णम्‌ |

अचां अध्ये रात्‌ रेच यख ma आदिः भवेत तत, तथा aired प्राच्यदेशाभि- धाने TE सत्यम्‌, यख TRG आदिभेवेदि्यधः। अथ दादि चदादिगयं, तथा MATA MAR अपश्यप्र्ययः ut येषां, तादृशानि पदानि उत्तराणि उत्तर

7 ^ ~ =-=

पटानि aq, mene पटं दडः ay दद्रत्नकं प्रणयन्ि कथयन्ति। नामधेयं wang वा frees इं प्रणयन्तोति TT: |

(२) वद्यापि अप्तयं एत्र एव ae तथापि अपतनाट्प््यभिति व्यया wafers जनितेऽपि पोत्राद परिभाष्यते। अत्र गङ्गाधरः यदयष्यमिधानात्‌ quae: केवलकन्धापुत्रवाचो तथापि परतति वंशो येन तदपद्मिति अन्वधनिरेथस्तेन अपत्या प्यमपि seme, अतोऽत्र ॒तात्र्यात्‌ पुत्रपौत्र प्रपोलादौ are कन्याया वाच्यायां एभ्य एते क्रमात्‌ ख्रि्धैः|

(३) प्रतिव्यङ्गिमेटेन |

तडितः | ५२५

तस Mase भवाद्यचि ata इत्यादिना प्राप्तो लुग्न wate: | यथा गगेस्यानन्तरापल्यानां Bar: गार्गीयाग्कावाः, एवं यासतोया वदौया इत्यादि. भवादोति किं गर्ग्येभ्यो हितं गर्गोयम्‌ | अवि किं ? गा्येभ्य श्रागतः गगेरूप्य इति

Tava a लोपिनो युनि व्वान्तस्य कहयोरलुक्‌ विदानामपत्यं युवा वेदः, विदानामप्ये युवानो वेदौ, देदशष्दात्‌ यूनि ara ष्णौ at श्यद्‌ ्ततियेत्यादिना wea) aera Tae तु युनि लुगृभवत्येव यथा, dea वैदयोरवा भ्रपत्यानि युवानः विदाः, एवम्‌ उवा इत्यादि aq युन्यपत्ये विवच्चिते कस्याः WHA भवतोत्यत श्राद् तस्मादित्यादि |

तस्मादेव मोचादेव युवत्यो भवतोति नियम्यते, feat a भवति यथा -गगस्यानन्तरापत्यं गार्ग्यः, गाग्य॑स्यानन्तरापल्यं मुवा गा्यायशः, एवं wean | दक्तस्यानन्तरापत्यं दात्तिः, तस्यापत्यं Fal दाक्तायणः, एवं TAA: | उपगोरनन्तरापत्यम्‌ ञ्रीपगवः, तस्यापत्यं युवा भौपगविः, एवं कापटवः नडस्या- नन्तरापत्यं नाडायनः, तस्यापत्यं युवा नाडायनिः, एवं चार- यरि;ः। feat erat गार्गीँल्यादि।

ततेत्वादि- तच्र भवाद्यचि विषये" युव-व्यस्य लुगभवति। यथा GLKA AAU फार्टादृतिस्तस्यापत्यं युवा फारटा- हतः, सोवोरगोत्रलात्‌ फाण्टाद्तिमिमताविति शः, फाण्टा- तस्य दात्रा एति faafad we लुकि गोत्रत्यान्तात्‌ सः प्राप्तः, फाण्टाद्रताम्डात्ाः एवं भागविन्तस्यानन्तरापत्यं भागवित्तिः,

४५२१ UAT याकरणम्‌ |

भागवित्तेरपत्यं युवा भागवित्तिकः, रेवत्यादिल्ात्‌ शिकः, तख छात्रा भागवित्ता इत्यदि

wang वेति-णायत्रिति नान्तनिर्हशणात्‌ शणायनणायन्यो- ग्रहणम्‌ | तथाच भवादयचि विषये युव-ल्स्यायनो Yar भवति | यथा गब्यायानां era गागयायणोयाः गर्गाः, तथा AMAT Tat, यखस्यानन्तरापत्यं यास्कस्तस्यापत्य qa, इति तिकारिल्लात्‌ शयनिः याककायनिः, तख छात्रा या्कषायनोया यारकोया त्यादि | warafa किं ? फार्टाहत- ङ्प्य इत्यादि |

प्रसद्मदाह वंश्ये जोवतोति--वंशे भवो वंश्यः पित्रादिः, afaq जवति सति पौतरप्रथतरपत्यं युवोच्यते, गगं गाग्य' गाये जोवति सति गाग्येखापत्यं युवा गार्ग्यायणः, नडादिलात्‌ WaT: | तुशब्दोऽत्रावधारणाधः। युवेव गोत्रमिति।

श्रसति वंश्येऽपि ज्येष्ठे ्रातरि जोवति सति कनोयान्‌ भराता युवो्यते। गाग्यख हौ पुत्रौ जातौ, तयोः कनोयान्‌ युवा, वेष्टा गास्य एव ज्येष्ठ भरविद्यमाने कनोयानपि गाग्ये एव

gaat शत्यादि-सप्पुरषावधयो waa: afew, aa wamqcafaata सपिण्ड foes पितामदश्वातरि a वयोधिक लोवति dreareqaa वा युवा भवति। fuaa पितामह- भ्रातरि वा वयोऽधिकै marae गार्ग्यायणो गार्ग्यो वा। SWANS सृते वा गाग्य एव |

पूज्य इत्यादि-णासान्तरे परिभाषणाद गों ठह पूनायां वा

तदितः | ५२७

युवो यते भवान्‌ गार्ग्यायणो गार्ग्यौ वा पूजायामितिकिं? गाश्यं एव | garatfafa—a ये -युवान sare निन्दायाम्‌ भ्रयुवानो वा भृवन्ति | गार्ग्यायणो गार्म्यो त्रा जां serfe ददानो ठदहलक्तणएमाइ, श्रादेजिल्यादि-भ्रन्नां मध्ये यख अत्‌ tq wife age दाः प्रणयन्ति। यधा मालाया इदं मालोयम्‌ | शिवस्य विषयो देशः थवः, तत्र भवः शेवो, श्रौप- गवोय इत्यादि | प्राग्देशाभिधानेऽचां मध्ये एङादि यत्‌ तदुदम्‌ | यंधा- एनीपचनो देशस्तत्र भव एनौपचनोयः | एवं गोनदोयः भोजक- टोयः, गीमतोया wer ufsfa faye अदिच्छत्रे भवः भादिच्छतः, wage: प्राग्देश इति किं? देवदत्तो नाम वाहोकमग्रामः, Aa भवः देवदत्तः, गोमतामिदं गौमतम्‌ (१), प्राग्देशसु - प्रागुदोच्यौ विभजते हंसः ल्ोरमिवोदकम्‌ | विदुषां शब्दसिद्थं सा नः पातु शरावतौ (२) त्यदादिरपि ठद्मु्यते | त्यत्र भवस्यदोयः, Waele इत्यादि | तथेति- एवं गोत्रं णादि परं यैषां तानि गोत्रपराणि(र) उत्तराणि यस्य तहोजपरोत्तरं, दमित्स्य विशेषणम्‌ (४) यथा

[1 a IN

(१) अत्र गोमचछन्दृख्य तहे णवासि वाचकत्वात्‌ CEST: | (२) शरावती नदटोषिथेषः। (३) पदानोतिेषः। (४) रथं पटं cae ्कमित्नधेः |

ष्ट

॥३द FAA व्याकरणम्‌ |

४१७। fae त्रिरायचः सुभग-सुपश्चालायोसत

दान्दानाम्‌ |

(fart ot, त्रिः ९, भ्रायवः i, सुभग.सुपश्चालादयोः Ql, तु ।१।, दयन्दानां ९॥ yy

wat मध्ये प्राद्यचो fa: स्थात्‌ fafa तै at, मुभगादेसु हयोदयोः, भुपश्चालादेसु WAT दस्य | genie एशगारीयन्डाव एवं हृदकाश्पोय vente | ut तु fanaa हरितकाल्ययोवृलं नेच्छन्ति, तेन SETHI: ारितकात दति

नामधेयं वा वदसुयतं। यथा--यन्नदत्तोयः aed safe. wafer: da (१) यथायथं विरि anaatg वक्तव्या fa |

४१७। रित्ते। श्‌ दृद्थस्य a शित्‌, णिश्चातौः त्ति शित्त तस्मिन्‌, आदिश्चासौ भ्रचेति waa तख, सुभग सुपद्चा- लश्च तौ, तावादो ययोः तौ सुभगसुपश्चालादौ तयोः, हे TAIT तानि, तानि तानि दानि चैति दगरन्तदानि तेषाम्‌ aaa दति श्रजपिदया बोडव्यम्‌। waar श्राग्िशश्धिः ona: श्यादिष्यव खात्‌ तु काशिरित्यादौ, wa श्रादित्वाभावात्‌ याह wa मध्ये wae दति। भ्रोडलोमिः श्रौडुलोमो Seater | एव शवललोमिः श्वललोमो needa | ने तु शेषादिलात्‌ प्रनित्‌ शणः

eee = -- ~~ -- -* ~~~ ~~~ --~ = = "= en ae eng नोन कक

(१) मोत वुव-एद्द्पाः।

तरितः |

४१६

(zac) न्वोर्लौपौतौ fee, वाहोरपत्यं बाहविः, उप- विन्दोरपत्यम्‌ भ्रौपविन्दविः, vert भौड्लोमिः,

अग्निश्णोऽपत्यम्‌ प्रागिशभ्धिः। ल्णस्यापत्यं काणि;

--- --- ~~~.

बान्रादि्ंधा-

Tae eel

वाहुः कुनामोपचाकु शिवाक्षन्तरहन्मतम्‌ (१) | भद्रश्माग्निशस्षाणौ Sac कश्यपः युधिषठिरा्ज्लनौ रामः aura Saar: | शाल्वो दशरथोऽनड़ान्‌ पश्च-सभाष्ट-लच्तणः Saya MUTA गद-माय-शराविषौ | शङ्भेदि-सुनामानौ सेन-लोम-शिरोऽन्तदाः (2) ष्णौ भौषेःशिरस(३घाघ चटाकु-खरनर्हिनौ | पष्करसद नो गत्त(श)द्रौणए-जोवन्त-पर्परताः भअजधेनुच TER उदङ्‌ नगरनडिनौ |

चुडा सुमिता दुश्धित्रा भगला छगला तथा वका ध्रवका set हिडिम्बा चेव मूषिका सवश शकला चैव ATA कारुवाचिनः SEEM नाजि, वेद-प्राकारनर्हिनौ |

सस्य लोपो भवेत्‌ ष्णौ सहुयोऽ्रोऽमि तौजसाम्‌ (५)॥

जा AEE ~ ~ =-= ~~~ ~

(१) कुनामन्‌ soars शिवकर अन्तरहत्‌ |

(२) सेनान्त लोमान्त-शिरोऽन्तानि werent: |

(१) ` ष्णौ परे face: श्वाने अरिष्टशोषौन्शन्द्‌ cera: | (a) दएष्करसद्‌ wate इति इयम्‌ |

(५) सद्यस्‌ अन्धस्‌ अभितोजस्‌-एषं at परे लोपो वक्तव्य इत्यथैः 1

५४० HUAN व्याकरणम्‌ |

भकौगिषे mage लोप्रः शौ शायमेऽप्युतः। उपवि्दुव्यास-विष्बौ निषाद-वरुडौ तथा | षट्‌ सुधाता चर्ालो व्यासादौ परिकौक्िताः॥ इह कैषाच्चिदप्रापे पाठः, भदन्तानां णिवाधकवाधना्ः | भ्न्तरहतोऽपत्म्‌ भ्ाम्तरहातिः, सुभगादिलात्‌ ददयोतिः। कश्यपस्य fag (१) प्राठात्‌ काश्यपिः काश्यपेयः काश्यपः | युधिष्ठिर दिदयोः कुरव॑शतवात्‌, रामादिपद्चानां हि वंशल्वात्‌ शिवादिष्वाधनार्धः। दप्ररथस्योभयत्र (2) पाठात्‌ दाशरथिः दाशरथः, तथा श्प्रदोयतां दाशरथाय मेधिलो"ति उभयत्र(२) MAST: पाठात्‌ श्रानुडुहिः Wasw: | लक्तणशब्दस्य दह Hater (४) पाठात्‌ arate: लाचण्यश्च एवं सेनान्तानां (५) हारिपिणिः हारिषिखः। सरस्रशिरसोऽपल्यं साहखभोधिः; णौ fata: शोषटेगः, एवं हाम्ति्ीषिरित्यादि पष्करसदोऽपत्यं पौष्करसादि, सुभगादिलाहयोदयोत्रिः | द्रोणादित्रयाणाम्‌ उभ- यव्र(१) पाढात्‌ द्रौणिः द्रौणायनः, जैवन्तिः जेवन्तायनः, पातिः पाज्चैतायनः। मण्ट्कशब्दस्य fay पाठात्‌ मारटूकिः AERA: area: | उदो चोऽपत्यम्‌ भ्रौदच्चिः, मनोषादिलात्‌ STATS: मूषिकाशब्दस दृह गोधादौ पाठात्‌ मौषिकिः मोषिकारः। सवर्णाया उभयव (9) पाठात्‌ सावि; सावि कः कारवाचि-

~-- ~---- renee ~ --~ ~ ~ ~> em ee ~ ~ ~ = el

(१) argraarifefieticn | (५) उभयव पाठादिति शेषः| (र) -argrat शिवाटौ च। (६) argrel न्दो ष। (8) बाह्वाहौ गर्गादौ (3) बषङ्काटो रेवत्नादो च।

(४) वंच्छमाणङुव्वाहिगणे।

तदितः | Use

४१८। AA दानतोऽखद्ग-गयङ् व्यड्-व्यवहार- व्यायाम-खागत-खष्वर-णशनः | ( at: an, युम्‌ itl, दान्ते ७।, भ्रखङ्ग-- शनः &। ) | आद्यचः ख्याने जातयो दान्ते,खितयो्ैवयोः खाने क्रमादि- सुमौ स्तो णितितेपरे, तु Byte:

नाम्‌ इह कुव्वादौ पाठात्‌ तान्रवायिः तान्रवाव्यः,, नापितिः नापित्यः | seq नाम कथित्‌, तस्यापत्यम्‌ Refs, Tey wet यौगिकशब्दात्रिषेधाथैः पाठः। एवं खाशुरिः। नामीति किम्‌ Wee: खशयः (१), तथा च- “श्वौ देवरश्यालौ" द्ति। सङ्गूयसोऽपत्यं argfa:, wt सलोपः एवम्‌ afar, भ्रामितोजिः। इष्टाकौशिकै wee: पत्यते, कौशिके तु नड़ादौ तथाच णौ ष्णायने उतो लोपो भवति। तेनाकोशिके orate, कोथिके शालङ्गायनः |

४१८। Tl यच वचतो तयोः, दष ve gq, ताभ्यां afad करोति, युम्‌। carat दान्तस्तस्मिन्‌। ara AYA व्यश व्यवहारश्च व्यायामश्च स्वागत स्वध्वर णन्‌ तत्‌, तत्‌ श्रष्ठङ्गव्य ङ्व्यड्व्यवहारव्या्रामखागतखध्वर शं स्तस्य | qaqa दत्यलुवन्तयत्राह were इति। पित्ते wet wafa कते carefa: | उदाहरणानि वेयश्िरित्यादोनि वच्यति | भाच दति किं? दधिप्रियोऽष्वः सघुप्रियोऽष्वः शाकपाधिवादि-

(1) कृ्व्वारेरषिदित्ाटि amare fase a: |

१४२ मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

४१९ शार खर एवः Sia See Ta पवः वन्‌ CAAT खाध्याय खग्रामकन्यगरोधानां

ए्वापदन्यहोसु वा तिति वादेः |

( हार -ज्यध्रोधाना ६।॥,' खापद-ग्यष्ोः al, el, वा 1१।, Wel, Tel, इति or, wares €! ) |

हारादेरदितोयस्य न्यग्रोधस्य ay स्यात्‌, शापदन्यहोल्‌ वा,नतु खारै-रिकारदौ पै।

वेयि: सौवख्िः। खङ्गादेतु खाहि; anf: व्याडिः |

LY 1 NA NS re a 17 7 1 1)

लाश्मध्यपदलोपै दध्यणः मध्वः, तस्यापत्यं दाध्यखिः, एवं माध्वश्िः | दान्ते शति किम्‌? va a गतौ शठ यत्‌, तखेदं शे यातमित्यादि। ननु कथं हयाशोतिक इति वव्र, (१) सुपच्ाला- दिपाठेन पूष्यैदखानिमिन्लात्‌ (2) |

४१९ हार Taare न्यग्रोधषेति एकन्यग्रोधः, दानर- नुपलकित vam: (२) हारश्च खर खथ खसि खादुखद्ख TAT एवा UATE खथ साध्यायश्च खग्राम एकन्धग्रोधञ् ते तेषाम्‌ MITT AEA तत्तस्य, पसं सोत्र-

"ष Sh A = 9 Ne AoE

(१ दयगोतिशन्दात्‌ कणि यकारण कथम्‌ एम्‌ लाटिचाचद्याष चपञ्चाखादीति।

(२) gave अनिभित्तलवात्‌ ठडिनिमित्तोभरतयुस्‌निषेधारिचधेः। अव wfafa “aatyrt wa स््रो?ति विषितो न्‌, तरम शात्‌, तदन्त खाथंशादति दच्छति| तेन aswel व्याक्नोचीत्यारि।

(३) पदानरेखाहतशभास Kaw |

तदितः | ४५४३

४२० व्यासादेडक्‌ wt (१) | ( व्यासादेः €।, SH ।१।, ष्णौ op) 1 वेयासकिः सौधातकिः | भ्रात्रेय: शौश्यः।

त्वात्‌ भादियस्य सः ादिस्तस्य, wife: gh: (२) एतेर्षां यवयोरदान्तलवात्‌ Was, खानेऽजातत्वाच्च equa ˆ aaa भिदम्‌। पूयैसूत्रोदाहरणमार वैयगििरिति ~ विगतोऽग्बो ae व्यश्वः, तस्यापत्वमित्य्धःदन्तल।त्‌ fu: यस्यादाविम्‌ पात्‌ fai एवं शोभनोऽ्ो यख खण्डः, तस्यापत्यं सौवश्िः | प्र्ुदाहरति-खाङ्किरिति, शोभनमङ्गं यस्य खष्ग, तस्यापत्यम्‌ इत्यादि वाक्यम्‌ |

४२० ` VAI) व्यास दिवस्य सः तख war देडंक्‌ स्यात्‌ णौ परे वैयासकिरित्यादि- व्यासस्यापयं, सुधातु- way इत्यदि वाक्यम्‌ fewer, wi वैकि; नेप्रादकिः वार्डकिः चार्डालकिरिति। एषारग्यन्यक-हश्णि- कुरभ्यश्ेति Wart बाह्वादौ पाठः। येऽत्र (2) गोत्रवाचित्वेन प्रसिहास्तेभ्यो गोतवाचिले शिः, तेन बाहुर्नाम कथित्‌, तस्या- पत्यं वाहव शल्यादि |

(१) व्यासादिबांहृदययनलगतः, व्याक्षाद्विगडालान्ताः षट्‌ |

(९) पदानरेण gare पूर्वाश्यवोभूतः, wee: अगण रिरित्ययैः) नोक्ञ- इनप्भ्टतिशब्दानां प्राप्निश्वमनिरासाथेभिरं वचनम्‌ |

(३) ange |

५४8 मुखवोधं व्याकरणम्‌ |

we z-afaaient युव-रेलंक्‌ शवात्‌ दात्‌ चत्रियात्‌ crate gad Gea स्यात्‌ कुरो््रह्मणस्यापल्ं कौरव्यः (2) तस्यापत्यं युवा कौरब्यो (2) ब्राह्मणः alas तु कौरव्या- यणिः। दृत्‌-विदस्यापल्यं te: तस्यापत्यं at वैदः। एव- मौसः। श्त्रियात्‌- फस स्यापएलयं IRE! तस्यापत्यं युवा फलकः | एवं वासुदेवः भ्रानिरष् इत्यादि भारषात्‌-वशिष्- स्यापत्यं वाशिष्ठः तस्यापत्यं युवा वाशिष्ठः एवं वैश्वामित्रः | भगः शब्दो नडादिः, are (2) aaa alae: तेगत्तातिरिक् भगस्यापत्यं भाभिः तस्यापत्यं युवा भार्गायण इति

war इूति-भरषरपत्यं शेयः, क्ेलंकि ययोलोपः, व्रः waz इति-एभस्यापत्यमिति वादम्‌

भत्रयादियेधा-

अत्रिः शुभ-सृनाम-दत्त-श्वलाः भालुक् जिद्नाभिनौ (8) |

शाकम्बान्यतराजवस्ति-शकलाः कपूर वोजाणिनः (५)

विशवक्रन्दि शलाखला-परिधयः ag: खड रोऽजिरः।

शाणोवौ भरतो उकणु-ककलासौ areata fem: (६)

न= ~~~ न~ ^ „~ ----- ~ ~ ~--~-~~-~-~--- ~ ~~~» - ~~ [

अतर कुरुगन््‌ात्‌ कथा टिलवात्‌ Waa: | अन को एव्यधढदात्‌ feet तानेन लुक aa anuferie हमेरप्यभिति | छनामनु जिश्ाशित्‌

शाहम्वि अन्यतर सवस वीज alr न्‌ अणोवभारत wy दिप्‌ |

(१ (४ (१ ` (8 (५ (९

तदितः | ५४५

गङ्गा विमाता विधा शलाका

किशोरिका विष्टपुरो मयूरः 4

प्रवाहणालोदृ-सुटत्तमश्म-(१)

कुमारिकाशोक-सुद्त-गोधौः (2) वायुदत्त अनाकाम्नू-लेखुभ्ू-गन्धपिङ्गलाः (र)। WATE बलौवदीं हरितो (४) विश्चित्तथा WATT: शनाहारः खरोन्मत्ता कुवेरिका (५) : रुक्िणौ रोहिणो ब्रह्मक्लताकाए्यायनौ (६) इरः विश्रो, भ्रुवो श्रुवः शये, वाशिष्ठे श्यामलन्नणौ (७) अष्णयो हयजिकारान्ता (८) वडवा शुक्रले मता (€) विकणः काश्यपे प्रोकतस्तवैव हि कुषोतकः (१०) अ्भ्विका चतुष्यादः पाण्डु-मण्डकदुष्कलाः | मातापिलष्वसुः Wat डकारेददितिदितिः |

श्रतिशब्दस्य ऋषिवाचकत्वात्‌ शे We पाठः। भरतादन्तानां

--* ~ - ~ --- = ~--- ~ ~ ~ ~ -----=-- - -- = ~=

(१)

(2 (8) (४) (५) (६) (9) (G (€)

प्रवाहण Alas UTA AW |

क्रमारिका aut |

कत्र गन्वपिङ्गला अन्यन शुद्धपिङ्गला द्यपि पाठः|

एत लय KANT: | wae feq waa अटन्‌ sata ure: | खडोन्मत्ता दूति कुवेखिकद्तिच पाठः|

ब्रह्मत आकाशायन।

वाशिषे वाच्ये श्यामलक्षणशब्दावतरय।दी

funwarafagr feacfafaer इक रान्ता रिप्रश्टतय ware: | शुक्रपराचथेविथिष्टायं वड्वाशब्दोऽल्या टिनान्यनर |

(१९) वत्करणं शब्दः कुषीतकशन्द्‌ब काष्यपे वाच्येऽत्रादिः।

ge

५४६ FANT व्याकरणम्‌ |

पाठोऽतः fares: | शलाखलादिशब्दानां श्रावौवन्तानाम्‌ अदानां (१) नरोमागुषोसंन्नकानां शिवादिलात्‌ शे we पाठः| शलाखलः waa नामनि शमाधलशष्टोऽपोति कञित्‌। ae agus: पिद्गम्वर्णा्थकः | तथाच मेदिनिः -“कटूखिषु स्वण-पिद्गे नागपनां मातरि स्वियाम्‌” इति क्ञकलास-रोहिगी- श्रजवस्तिप्रभृतयो येऽत्र चतुष्पाजातिवाविनस्तेषाम्‌ waqut- व्लातिवाचकलवेऽपि Ware: पाठः विधवाशब्दस्याबादिलात्‌ ष्ये fat पाठः यदा दुःशोलाभिधायो तदैव बाधनाधेः। प्रवादण- WEY सुभग-सुपच्चालादयोः पाठात्‌ प्रावाहणेयः प्रवाहणः | MATA पाठो गोधागब्दादेरारस्यानिल्यलन्नापना्ः म्पुवो- soe aaa, Wa भ्वादेशः भव दूति किं णालाकाभ्रयः लेखाभ्रथः, UI Wale) श्यामैयो वाशिष्ठः, लाच्तणेयो वाशिष्ठः ; श्रन्यतर श्यामायनः लात्तणायणिः away) was इयादि- हरेरपत्यं हारेयः, एवं ade: mar इत्यादि awa दूति किं? दाक्ेगपलयं दात्तायणः, gram) ma इति किं! मारोचः सौरुचः। वडवाया We वाडइवेयः शुक्रलः, WaT area) sada: काश्यपः, कौषीतकेयः काश्यपः ; waa व्रकणिः कौषीतकि; | चतुष्याद इति- कमण्डलुखतुष्पदजाति- विशेषः, तस्यापत्यमिति GF उक्ञापाधं सूत्रमाह |

मीम ~ --~ ---~ ~ ~~ “~ ~----- cee fee ---~----~--~~- ~ ~~~ , == * ~~~ ~~~ ~“ “~~ „~~~

(1) पारिभाषिकषब्गसन्रकभिन्रानाम्‌।

afaa: | ५४७

४२१। भओर्लोपोऽकद्रुपाण्डोरेये | ( ah: gl, लोपः १।, अकटू-पाष्डोः &, एये 9 ) | उव णस्य एये परे लोपः स्यात्‌ लनयोः। क्रामर्ड लेयः | aly AAT: पाण्डवेयं; गाङ्ग्यः (१) 1 area: यौवतेयः |

४२१। wat कटुश्च WET तत्‌ कदुपार्ड तस्य ि पुरत्वं मौतल्वात्‌ | WHA उकारलोपि कामण्डलेयः. एर्व गिति- बाहोरपत्यं शरैतिवादहेयः। काद्रवेय इति नागमाठवाचकश्य नैह (२) ग्रहणं, तस्छोबन्तत्वात्‌ ष्णयप्रापः(२) पाण्डेय इति | शिवादिल्वात्‌ शे पाण्डवः | दौष्कुलेयः दौष्क्नोनः। माटठष्वख- पिदठष्वभ्यां wir डित्‌, areata: पेढष्वसेयः, पिटखसरा- दित्वात्‌ माढष्वसरौयः पेढष्वस्लौयः | श्रदितेरपत्यम्‌ ्रादितेयः, कुरव्वादिल्वात्‌ रादिन्यः, एवं दैतेयः ca: श्राक्लतिगणोऽयम्‌ |

श्रावाद्युदाहरति area इति- मद्या श्रपल्यम्‌ इति वाक्यम्‌ | ud यौवतियः (४) मोपणेयः कौम्भकारेयः। अ्रनिताका गो द्यते, तेन जम्ब्वा श्रधत्यम्‌ जाम्बेयः (५) |

(१) शूले गाङ्गेय wag तकंवरागोशमतेि अत्ररारित्वात्‌ Wa: |

९) दढ wat | (३) श्८५ Bae टीका FEAT |

(४) qaacoa atta; अत्र युवत्यनडाद्णोति fanaa गुवन्‌- शब्द्‌ त्‌ ana तिप्र्ययस्ापि अबादित्वात्‌ Wa: | पच्छोशाटोग्यनेन we रूपि aa त॒ युवत्या अपत्यं यौवतियः। अत्र ईबन्तत्वात्‌ gati a इति दुर्गाटास- कात्तिकेयौ |

५) दृष ऊबन्नोदादरणे कामग्डलेय cafe बोध्यम तत्न कमण्डल- नाम कावित्‌, तश्चा अपत्यमिति aa: |

५४६ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ )

४२२। कल्यागौ सुभगा दुर्भगा व्कौ रजकी वलीव ज्येष्ठा कनिष्ठा मध्यमा परखानुरुष्यनुदषटि कुलटाभ्य TA: |

( कल्यागौ -कुनटाभ्यः yin इनेयः १)

सौमागिनयः दौर्मागिनेयः |

mara | नदौवजितात्‌ Para era षणेयः स्यात्‌ दात्तेयः गोप्यः श्रनद्या इति किम्‌ ? गोणा गोदावरो गोशः(१) | अवदाभ्यो नदोमानुषोमंन्नाग्य इति षणे पराप्(र) षीय- विधानम्‌ एतत्‌ (२) ग्रन्यङना माहेय दव्युदाहरणेन च्रापितम्‌ |

४२२। HAT कल्याणी सुभगा दुभगा बन्धकौ रजकी वलोवर्दी ज्येष्ठा कनिष्ठा मध्यमा OTA aqufes अनुटृश्टिथ कुलटा ताः ताभ्यः। जरतोखाने रजकोति लिपिकरप्रमादः, जिनेन््रवुहिषारेन जुधौरढव्येन साधितलात्‌। रएष्यभ्तुृशभ्यः पूैखितःयन्तनिर्दिषटस्य णं यस क्रिपिपरिणामात्‌ इनेयः स्यात्‌. षकारणकारं विनेवादेशः (8) | श्रतएव पिच्लादौप्‌ गित्वाहिः, (५) तन काल्याणिनेयोलयादि।

---* “= -* ~ ~ ~ ~~ ~~

(1) अतरएव मूले mga ' दूति आआबन्तोदाहरणं सङ्गच्छते, TPIT नटोवाचकषवात्‌ |

(२) शिषाटौ “अङ्गा मातुषोसंन्ना adda मता दृह ea: शिवाटितात्‌ षणो प्रप्र cary: |

(र) एतत्‌ हमचोऽनदया इति वाजि कष्ुम्ोक्तविधानसिन्यधैः |

(8) एय Kaa: स्यारि्यधः।

५; सख्ानिवग्वादेषेतट्तकाय सिद्धातीति wife: |

तडितः | ५४९

दतो लृगिनेयस्य परस्तियाः |, परस्तौ शब्दात्‌ परस्य इनेयस्य

दतो लक्‌ स्यात्‌ पारस्नेणेयः, सुभगादिलान्‌ ceatfa: (१) इद सत्य्घकुलटाया ग्रहणं, तेन सत्याः कुलटाया श्रपत्यं कौलरिनियः, भ्रत्परदेरा्ञतिगणतवात्‌ tite: | असल्यास कौलटेरः कौलटेयः | सौभागिनेय इति। सुमगादिर्यैया -

भग जङ्गल त्‌ सिन्धु धतु वलजटोत्तराः (२) |

वध्योगोऽगारवेगञच (२) शतङुम्ध-परस्ियौ

इह-सव्वे-परादिसु लोकः (४) प्रयोग इत्यपि

श्रमिहत्या aqfaear कुरुपञ्चाल एव

श्रधिदेवाधिभरूलौ च, ण्ये राजपुरुषो मतः|

सत्वात्‌ पुरुषभूमौ तथाव्रान्तरहत्‌ सृतः (५)

श्रन्वादिशतिकोऽपि (€) स्यादनुसंवत्सरो aa: |

श्रस्यहेत्यस्यदत्यौ (७) तथा कुरुकतो मतः

स्थात्‌ पुष्करसदिल्येव सूतरपूव्यैनडः स्मृतः (८) |

श्रभिगमोऽनुद्दोडश्च प्राग्देशनगरान्तदाः (<)

^~ ----- -- ~ - ~ -- ~~ -- ----

(१) इगीदासस्तु परस्तोशब्ददिनेथे aa सुमगारिपाठसामर्य्यात्‌ ययोर्लोप CMATS लोपाभावे सगो aaa aie cars |

(२) भगान्त, जङ्गलान्त, हृदन्त, fear चेन्न, वनजान ब्दा स्यथः |

(९) ऋङ्गारवेणरिति पाख्पिनोये।

४) Kwara: सष्यलोकः परलोक LTT: |

(५) wage: व्वभूमिः, अन्तर हत्‌ KU: |

(६) अनुशतिक care:

(3) अस्यहेति, गश्यत्य Kare: |

(८) सबनड vara: | (६) पाच्ये देशे वाच्ये मगरानचन्दा Kh: |

५५० Tras व्याकरणम्‌ |

मन्द्रानतघादिवृरणा सन्ने Waar श्रपि |

श्रथ प्रवाहणः AT, cara दपि (१)

श्रहदिपरिमाणश्च भषैदाद्यननद्यदि |

श्रनोरोऽशुचिषेवाचेत्रक्षाकुशलौ मतौ |

सुभगादिरिति स्थातोऽसंस्यस्तन्ेषु ताज्धिवेः॥

भगादोनि दान्युत्तरदानि येषां तै। सुभगाया श्रयं

सौभागिनेयः | हयो्दयोतनिः। एवं सौभाग्यं Auber) महत सौभगाय dae, उद्गातापिषु छान्दसः क्ुरुजङ्गले भवः कौर्‌- जाङ्गलः कंश्चित्‌ जक्गलपेनुवनजान्ताः सुमगादौ पतन्ते wad कौ सजद्गलः Sata: सौवगेवनज इति सृष्टो भाव, सोहादं दौहदम्‌. ex मृख्यख (२) ग्रहणात्‌ आदिष्टस्य (२) तु सोयं मौष्टरमिति que दरदं सौहादं गकञप्ानः fray, मध्यपदलोपात्‌ क्मिन्धु, तत्र भवः शाङ्गुतै्वः सिन्पुशब्दः कच्छादिषु पयते, तेन तदन्तविधिरपि शः। वैनं समूरै, भ्राषेनवम्‌ | मौवणैवालजम्‌ वध्योगशब्दो विदादिश्तस्यापतय z: वा्यौगः, WATT वाभ्वौगिः। भ्रगारैशुनामा कशचित्‌ तखा- प्यम्‌ श्रागारवेगवः, एवं शातकोमम्‌ | परिया भ्रपलयं पारसेषेयः, wae a) दृष्टस भव Uefa: लोकोक्तरादिति

~ ~~~ ---~~ ~ -~-~ ee Oe er * ~~ ~ „= et ne -_-- ~ ~ ~~~

(१) at परे प्रवाहणगब्ध्‌ः चभगादिः शयानः प्रावाङृशेवद्दोऽपि xfa एवं, चरभगारिरिचधः। प्रावाहृणेयशन्द्ख सभगादिपाठटफलं परत wal भव्िधति 1”

(२) qafeee gaan: | (१) टव षढ्स्थागजातसेचधः |

तडितः ५५१

शिकः | सबलो विदितः arate: , परलोके भवः पार- लोकिकः | प्रयागे भवः प्रायोगिकः, श्रष्फमादितलात्‌ fara: | श्रसिहत्यायां भवः असिदहा्ः। चतसखो विद्याः चतुर्विद्याः चतुरिद्या एव चातुर्यं. चतुर्व्णपदिल्ात्‌ खः | परे तु faar- खाने Fears: | करुपञचाले भवः wera: भ्रधिदेवे भ्धिभूते भवम्‌ श्राधिदेविकम्‌ श्राधिमोतिकम्‌, अध्यामादितवात्‌ शिकः। राजपुरुषस्य भावः, ्राह्मणादिलवात्‌ ष्णयः, राजौर थम्‌ | wir विं राजयपुरुषस्यापत्यं राजफुषायणिः wagered waded, सव्वेभूमेनिमित्तम्‌ fac: संयोग उत्यातो विदितो वा साव्बमोमः। भ्रन्तरहतोऽपत्यम्‌ श्रान्सरहातिः अनुशतिक- स्येदम्‌ श्रानुशातिकम्‌। अनुमंवत्सरेण दौयते अनुसांवव्सरिकम्‌ | wage: प्रयोजनमस्य भ्रास्यदहैतिकः, गणपाठात्‌ लुक्‌ WA wastage: were: ष्णः। अच परेकदेशिनः अस्यहेति- श्रस्यहत्यो शब्दौ asf: भ्रस्हत्यशब्दोऽध्याये ava! कुरकतस्यापत्यं कौरकात्यः, गगोदिलात्‌ wi) पष्कर- सदोऽपत्यं पौष्करसादिः, बाद्रादित्वात्‌ fa: सूतरपूव्बति- ai yt यख्य, चासौ नड्घति सुतनडः, तस्यापत्यं सोतरनाडिः। श्रभिगमस्च्छति श्राभिंगासिको गुणः। भनु- wiga पठति ्रावुहोडिकः प्राग्देशेति-नगररूपमन्तदं येषां तै प्राग्देथे ana सुभगादयः (१) Feat भवः

===» न~ क-म > pee NT OY ~ = ~~~

(1) वेषां थन्द्‌। नामन्ते ancagiste तादशशन्दा यदि प्राचां देथमाभानि Wafer, तदा ते चभगादव CAT |

= “~ ~ ~~ -- ~ ~~

११५२ QUAN व्याकरणम्‌ |

Weare: sear: 1 wea शति किं } महनगरे ` भवः माहनगरः। नेन्द्रा. इति -षद्रोऽन्तो यख्य इन्द्राः, धं श्रादियख रषादिः, afeadt वरुणेति घादिवरुणः, इन्द्रान्तश घादिवरुण्ष,"तौ विद्येते ary au, तच्च इति-तच्छ- aq देवतोयते, तासाः इन्दः तस्िन्‌। तथाच देवतानां चे सति उक्तलक्षणदेवतावाचकशन्दाः मुभगादौ एल्यन्ते। तेन ufaq "मरुच्च, तो देवते we, भ्राजिम्रारतं क्रियते। यो दैवतादन्दः सूङ्गसम्बन्पौ इविःसख्बन्धौ वा तत्रैवायं विधिः। इहतु भवति-क्कान्दविशखः, त्राह्मप्रजापत्यम्‌ नन्द्रानतर्वादिवरुणा इति विं Maa, रेनद्रावरुणं (१) ef: दहतु स्यादेव-रनद्राम्नम्‌ श्राग्न)वारुणम्‌ (२)। श्रध प्रवाहण इति -भ्रधानन्तरं प्रवाहण्रब्दोऽतरपादिषु पत्यते, Wawa तख ग्रहणं, तेन प्रवाहकस्य पल्य प्रावाहइणेयः, तस्यापत्यं युवा प्रावा- इणियिः। एतदादिषववं (२) सुपश्चालादावपि पन्ते तेन qaze त्रि-विकल्यः, प्रवाहरेयः प्रवाहेयिः। श्रहादोति- प्रादिषासौ wala saa, भत्‌ भ्रनत्‌, WaT Taq यस्य तत्‌, परिमाणविगेषणम्‌ तथाच भ्रकारभित्रायच्‌ श्रहादि परि- माणं सुभगादौ प्यते wea क्रीतम्‌ भरारद्रोणिकम्‌, ्रादै- कौडविकम्‌ भनदिति किम्‌ ? भ्ररैप्रखेन mag ्रा्प्रखिकम्‌।

--- ~-~ ~ - = .- ~~ = न= —— ~~~ = ree

(१) अव खवायुदेवताधेसेति इृन्द्रन्देश्च इन, ava दोषा दिवम्‌ | a) थत्र यग्नेडनेँ सोसवरुणयोरिति ङो (a) WAT BURT: Ter

afea: | ५५३

wiinfeay इति कित्‌ सुपन्नालादिलात्‌ अर द्रौणिकम्‌, श्रदैकौडविकम्‌। एवम्‌ WM waaay, भाशौचम्‌ भरशोचम्‌, प्रा्तेतन्रम्‌ भरेतन्नम्‌, अकौशलम्‌ wale, भ्रनि- पणम्‌ श्रनैषुणम्‌ इत्यादि wee: सभगादिः aa तान्विकोसक्तः, तेन उदकशस्यापत्यम्‌ श्रोदकशोदिरित्यादि प्रसङ्गसङ्गत्या (१) साहिव्येन (2) सुपच्चालादिरिह निरूप्यते |

सुसव्वार्घाज्जनपदा, भ्रयामद्रा दिशश्च (२) ते

प्राग्‌ ग्रामनगरा दिग्भोऽवयवादृतुवाचिनः

संवत्सरसु संख्याटिः, संख्या संख्यादिरेव |

श्रथानपरिमाणश्च संख्यादि चेदनामनि॥

भरभविथति संख्यादि वषे, प्रोष्टपदासु

भध प्रवाहणः Wa ष्णेयान्तशच इत्यपि

wefe प्ररिमाणच्च भवेदायजनदयदि |

प्रनोश्वरोऽशुचिशेवाक्तैवन्नाऽकुश्लो मती

पनिपुणख, कैऽप्यतायधातथा-यधापुरो

सुपश्चालादय चते कथ्यन्ते को विदोत्तमैः

सु सव्व WE इत्येतेभ्यो जनपदाः सुपञ्चालादौ पठिताः, तेनं

सुपञ्चाले भवः सुपाञ्चालकः, एवं सव्वेपांञ्चालकः। भधानन्तरं @ जनपदा मद्रभिन्रा दिकुपूव्वोशद्वन्ति तदा सुपच्चालादौ

(1) पुभगादिगणव्याख्याने सुपञ्चाराटिगणोज्ञेखेनेत्यधंः।

(२) शने Qu सपञ्चाबा योरितयेकब पाठेनेत्यधैः।

(श) fen इति प्शचम्यन्वं, तेन टिन्वा चज्णब्देभ्यः परवर्सिन KAU: | ®

५१५४ YUNG व्याकरणम्‌ |

Cara | यधा पृव्वपाश्चालक .उत्तरपाश्चालक; दधिणपाश्चालकः। nag इति किं पौव्वमद्रः, भ्रापरमद्रः | दिम्वाचक्षभ्यः meen. वर्तिग्रामनगरवाचकाः सुपश्चालादौ यथा पव्या चासौ इषुका- ममो चेति, ततर ‘wa: पूर्वैषुकामशमः पूजका सृत्तिकः। नगराणां तात्रत्‌ - पूव्वसिन्‌ पाटलिपुवे भवः पूर्वेपाटलिपुतरकः पूनवेकान्यकुल्ञः। नगराणां ग्रामग्रहरमेव fae भेदेन यत्‌ उभयोरपादानं तत्‌ सम्बनभेदप्रतिप्यधम्‌ (१)। तथाच fraqe- समुदायं पूर्वषुकामशम्यारि ग्रामनामधैयम्‌, इष्ट तु रिग्वाचकं विनेव पाढठलिपुचादिशब्दो arcane) पूयी ग्रामवाचकसमु- दायस्य दिकूपूव्यावयवादुत्तरख्य त्रिः। इह तु दिषाचका- ज्रगरस्योत्तरस्य त्रिरिति श्रवयवादिति-कतुशब्दसख समभिव्या- हारात्‌ ऋत्ववयववाचिगः पृब्वदात्‌ ऋतवः सुप्श्चालादौ पवयन्ते | यथा-पूर्वं वषाणां (२) पू्ववषासतत्र॒ भवः पूव्ैवारपिंकः, पूर्ष- हेमन्तः भ्रवयवादिति किं? पूर्वासु (२) वर्षासु भवः aha. वापिकः। संख्यापूर्यसंवल्षरः सृपश्चालादौ vat यथा हौ संवसरो व्याप्याधोष्टो तो भूतो भावी (४) वा हिशांवसररिकः।

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(1) दिगवाचक्षथ्द; सह सम्बन्धेन यो भदस प्रतिपर्तिनिसित्तमिवथेः।

(२) वर्षाणां पूर्बोभाग xara: |

(९) अतीताखिच्धेः।

(४) अधोष्ट स्व यापारितः | eat tata क्रोतः। भूतः खशत्तया Mae: | भावौ ताह ठवानागतकषाल दूति feqaratee | भासमधीटो nares qaereca कायिका (ur) ८०) “नहु ware acd Wee क्रियते, तेन कथं मासो व्याणते ? अभ्यषशचभरणे fata; तत्र फव- शैतवा क्रियया सादो व्या णमानलाभ्यामेव ST KE TA”

तडितः | ५५१५

denqadenfa सुपश्चालादौ, यथाह षष्टो व्याप्याधीष्टो खतो भूतो भावो वा दिषाष्टिकः, दिसाप्ततिकः" दिषध्चादिशब्दाः संख्यासु वत्तमानाः कालाधिकारोय-त्यसुत्मादयन्ति (१) संख्यादि शानवल्नितं परिमाणमसंन्नायां सुपश्चालाटौ aati ama Fea मानमस्य हिकौडविकः ena सुवणषभ्यां wd दिसौ- वशिकम्‌ नामनि इति किं? प्राच्चलोहितिकः पाच्चकपालिकः। sata इति किं? erat शानाभ्यां क्रतं हेशानम्‌। अक्र केचित्‌ वा कुलिजस्य ग्रहणं, तेन दहिकौलिजिक्ं दकुलिजिक मित्याहः | अभविष्यति संख्यादि वषं सुपञ्चालादौ पवते हे वर्षे व्याप्या- Wet wd ait वा हिवाषिकः विवार्भिकः। भविष्यति तु alfa वर्षाणि व्याप्य भावी, वेवषिंकः। तथाच -

यख त्रैवर्षिकं (२) wat निहितं अत्यन्त |

श्रधिक वापि विदेतस सोमं पातुमति॥ दति aerate: |

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(१) कालाधिकारे यः प्रत्ययो विहित qa: सएव BIA! Bau ठेकाटि MQ टीकायां “ara” इति वच्छ्यभाखवात्तिकेम ष्णिकः |

२) वषद्याभयिष्यति ७।३।१६। इति पाणिनिः। vera उत्तर बर्पशब्दराचामारेरसो Tawa | हिव ater wat भूतो वा दिवा्षिंकः। लिवाषिकः | अभविष्यतोति किम्‌ ? यस्य asfes धान्यं fated श्वयडत्तये | धिकं वापि विद्येतश्सोमं पातमति। alfa वषांणि भाषोति तैव्दिकभिति काशिक्षा।

सिदान्कौखद्यां तडितेषु कालाधिकारे पूर्बोक्रखतरखेष्ठा त्तिः “उन्तरप्रदख fe खा^दिति। farrier: | भविष्यति त्‌ दैवरषिंक (युदाहतम्‌ |

वषेद्याभविष्यति शति शंशि्रसारे af? ४९ सनम्‌ | हे वे यधीतो om: हिवाषिकः। भविष्यति तु हे वे भावि द्वैवर्षिकम्‌ इति afer) अवर गोबोचनदरः-ंश्लावाचकात्‌ पर्य TNE afer शिति परे शनतरपदखादौः

१५६ सुगवो व्याकरणम्‌)

एति जातारधो fafetad, aa यो विहितसतसिन्‌ प्रष्ठ पदशब्द GUHA vt: यथा- प्रोडपदा नाम नकर, ताभियुज्ञः काल cat शः, तखाविशेपे तुप (१) प्रोष्ठपदा, तत्र जात दयें ऋतुनच्रात्‌ शः , प्रोष्टपादः। दूति किं! प्रोष्ठपदास भवः कुशलो वा इत्यथे शो प्रोष्ठपदः | प्रोष्ठपदा दति नि्हेणात्‌ तत्म्याथ-माद्रपदाशब्दस्यापि ग्रहणं, तेन भादरपादः, श्रजे तु भाद्रपद ्ति। श्रय प्रवाहणः wa इव्ादिप्रयोगाः प्रथिताः | कैपीव्यादि आडइरिति शेषः, तैन भ्रयाधातथय श्रया- Mya, परमते तु ्रायधातथ्यम्‌ भ्रायथापुथमिलपि |

शषा 1 ~--- ~ a &

“0 4

afguafa. अभविष्यदये Safar विहितः | हिवाप्रिक दूति तु पूर्ववत्‌ fea ° + यश्य are धान्यं Pa पातुमहतीति भाव्ययेऽब्र afer: | मुद्रित कथचिषपुपद़ याक्षरण पुस्तकस्य दङद्धिप्रभरणे “(दशः परदामदरा- wi fafa ro @ae@ ant देवार्षिकं wat, तैगार्पिकं wrafafa, तधाव्रिघद wafaq कलाप-व्या$र पुस्तकस्य त॒षटयटत्तौ “efeciat से” दूति ४११ aay टोकायां भातिन्यरये तुह वर्पभावि देवापि कमिति लिप्किरप्रमाद्‌ः, अन्यधा अभविथरथं संख्यादिविषधन्दसोत्तरपदटृषद्गिं नियम्य मविथटूर्धज ्र्ुदराहरणे . प्नक्लसयेवोत्तरपटस ed: स्ववधैवारङ्गगेः, काथिका-सिद्धानकौररी ठंिप्रशार- छग्भवोधटोकाक्रारश्ण नाधन्यायपञ्चानन-लतदट नगो धमत विदत यख asita unafafa जलोकस्तु APA षटटितमाध्यावे se जकखण्डे नारदं प्रति नारायणाश्च ze antes ured निहितं भूतिसिद्ये बूति war पदितः, विद्या्ठागरेण उत्तरचरितद प्रधमाङ्क शोमपोती्यख erat mega: पाठः! एवं महुसं ताया एकरादधाध्याये oF WA “वद्य वेवार्भिकं भङ्ग पर्याप शटचत्तवे" दति पाठो ष्यते यतोऽत्र यदुरश्खं तत्‌- पुपोभिदिन्यभिति | * (१) दधे ज्ादिषद्य टोकायां “विषे लुबि'ति वारि द्वम्‌ '

तदितः ५५७

४२२। चुद्रागोधाभ्यी वैरारो ( सुद्रा-गोधाभ्यः ५।॥, वा ।१।, एरारौ en) | नाटेरः न्यः, गौधारः Fae: गौधेयः | गाम; वाद्यः जामदम्यः पाराय; |

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४२२। Bell Wars Mara arena: | sifsea- TUT: | TAA एरविधानकषामध्यात्‌ क्षा vitae खितिः नुद्रादिभ्य एयस्य एरो वा स्यात्‌ प्ुद्रादयसवद्नहोनाः . गोल- होना: सडह गोधया गोघादिभ्य wea we नित्यं स्यात्‌, at शब्दस्य व्यवस्थया |

मोधादयसु---गोधा जो र्गौ चेव पण्डः काकी मूषिका |

नाटेर इति- नवया अपत्यम्‌ इति वाक्यं, प्ते area: | एवं यदा कुलटाशब्दोऽसतोवाचकस्तटा कौलटेरः कौलटेयः, MANA | श्रङ्गहोनायासु काणाया Wet काणेरः area: | एवं alee कोलेय इत्यादि। गौधार इति- गोधाया भ्रपत्यम्‌ इति वाक्यं, चद्रादिप्राठात्‌ गोरः, श्रत्ादौ Tea पाठात्‌ Wes इति। जडइस्यापल्यं ASE, सृग्या wa मार्गारः, TBAT पाण्डारः, AM श्रपल्यं॑काकारः, मूषिकाया अपत्य मोषिकारः, बान्नादिलात्‌ मौषिद्दिः।

चटकाभ्यामेरो, लुक्‌ तु faa चटकाश्च चटकाया परश्च Was ेरः स्यात्‌ wae tre लुक्‌। vata

५५८ JUANG व्याकरणम्‌ |

चटकात्‌ शेयः (१) WHA चटकाया वा aa चाटकैरः! fanaa चटकस्य चटकाया at qua सौ चटका | ama इल्यादि-नतु ग्गादि-नडादिभ्यां ata एव श्णा- Waal, तत्‌ कथमपल्यसामान्यं विहित (२) इति त्‌ wat जामदग्नाः पाराशथ इत्युभाभ्याम्‌ ` अनन्तरे UTA, द्रौ णायन त्यत्र WTA दशनात्‌ सामान्येनोक्षम्‌, भन्यतान्तर एषैति भावः (९)। गख Maret गाग्यः, श्रनन्तरे तु भरतः शिः गागिरित्याटि | anifern— गर्गो वाङ्ञतो (४) रेभो व्याप्रपादवटः (५) शठः श्रजो विलस्यग्निवेशौ (६) जरमाणो WATT: हतो विश्वावसुः wet वश्म-धम-पुलस्तयः (9) | संख्छतिवेदभहोनयोगोवाभसूषसे (८) मधुः विपेऽथ लोहितो मण्डर्जिंगीपुरगुहलुलत्‌ः | कपि-बोध-वतर्डास्बाङ्किरसेऽप्यथ करिकर

---- ~~" क9

(1) Ga चटका चटक ताभ्यामिलयेकेषः | wanferd टश्श्द्शा- दक्गत्वेऽपि छत्रकरणादट्व तस्मात्‌ शेय CAV: |

(२) Ey इति शेषः।

(१) अनरे व्यवहिते पौत्ाहौ Ma वाच्ये इयः |

(४) वल्य, arafa | (६) विलि, अग्निवेश | (५) ब्याद्वपाद्‌, अट | (3) waa, पशि

(८) शंखृति, बेदभ्यत्‌ होनयोग, अभासे ster: |

afea: | ५५९.

wey -शंसित-चजिन्द्(१ )-मनायो-मर-कच्छपाः | मन्तुः शङ्‌: AAT VACA (2) CA-A AG: HIRATA तशुक्त-गकलेन्द्रहः (2) कालोऽगस्ति-विरोहिती हषरहमूर्नवो a: (४) पिप्पलः wat भण्डिल-शण्छिलो च्‌. चिकितो दस्भस्तिकिचो (५) भिषक्‌ गोकक्षाररकावुलुक -मुषलो सुरा सुलाभ्येकल्‌ (६) जातो मन्तित भिष्णुज्ाऽ्मरथ गोजुन्दं ae कुण्डिनो a श्रनडुद्यन्नवल्वौ पशवल्क पराशरः | जतूकणंः wate: पूतिमाषञच पिङ्गलः | Aral seeing कुटोभव्नमदग्नि | लोहितादिश्च करादिगेगदौ परिकौर्सितः a गगस्याऽन्तरापत्यमिति वाक्धं, WI ययोर्लौप इति श्रकारलोपै त्रिः। feat पिच्लादीपि गार्गी, शायनपक्े गार्ग्यायणो एवं सव्वेश्रोहनोयम्‌ | इह पुलस्तिशब्दपाठात्‌ व्वे पुलस्तयः पुलख्य- शब्दस्य तु वे deer इति। यद्यपि aera क्रते पात्‌ am wi acum ईति सिध्यति, anfa a लुकि बैदथत इति सिद्धेः पाठः, तत्रतु वैदभव्या इति। वाजशब्दोऽसे गर्गादिः, तैन वाजस्यापेत्यं वाच्यः; से तु

9 दग वा Nt ene tan RO le etl ECO AIELLO re ae te ee rn Phen ककण

(१) सतु, इन्द्‌ | (४) ठषगखथ, THT | (२) कत, तण्ड, AT (४) दल्भ, तितिश्च | (8) शकल, Tew)

(६) WKY, अररक, उलक, GIS, Yr, Gatley, एकम्‌ |

५६० HUNT व्याकरणम्‌ |

४२४। श्रोदोतोऽज्यत्‌ तक्तदृय-कडाः। ( tema: yl, Wea ।१।, सक्षद्य-क्य-डयाः-१।॥ ) ्ोदौडया USE: ATHY यः WEN ay स्यात्‌| ANAT! | 'नाहायनः ATAU: दाक्षायणो पैढव्वसलोयः माढष्वसीयः रेवतिकः भ्राखपालिकः | यादवः श्राङ्गिरसः

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सोवाजिः। एमेना्ेषां केपि Maver त्यादि | माधव्यो विप्र; ala माधवः |

शकलान्ताल्लोहितादेः (१) wre feat wrafaaa तन लौहित्यायनौग्यादि कपैरन्तरापत्ं काप्यः, feat काप्यायनी, एवं बोध्यः बौध्यायनो, वातण्ड्यः aaa अनाङ्गिरसे तु काप्यः बोधिः, वातण्डः शिवादिलात्‌ शः भ्रनाङ्किरशेऽपि गगादित्रात्‌ णः, वातण्ड्यः, feat वातण्ड्यायनी aaeiia कित्‌ |

४२8४ Wel; Wate त्स्मात्‌, भ्रजिव श्रव्वत्‌, तश छश्च तौ तक्षतौ, TAT: तक्लद्यः, तक्तद्यशच We इय R1 बाभ्रव्य इति-बन्रोरपत्यं शाः, नोलोपौताविति उवण- WAMU, TASTY यलायवायाव इत्यवादेशः कीक एवाभिधानम्‌, भन्यत वाश्व: तनुद्धाने तन्तुरिति saz: |

कतो सुगिविगेषः, तखान्तरापल्यं काल्यः, सियां कात्यायनी |

~+ ~= ~“ ~+ ----~- eee ~ ~ ~ ~= ~ ~~~ - = ~ = ~ twee cee

(q) गर्गादौ लोहितन््‌ाद।रभ्य शवपन््‌ नेम्यः श्देभ्य KA |

तदितः | ५६१

age: प्रथोजनमग्रे वश्यते। गर्गादैराक्लतिगशत्वात्‌ वामरथ- शब्द; कग्वादौ AAT: | वामरधस्यापत्यं AAT, ववे तु वम- रथाः, feat वामरव्यायनौ वामरयो, वामरष्यस्यापल्यं युवा वाम- Tada, वामरथ्यस्य eat वामर्या; ` सङ्काङघोषलचणानि वामरथानि, (१) वामरथगष्दौदश्रोेऽप्युपचारात्‌ (२) | कुव्वादेरभिद्ोराजण्वशराच्चनिक्मनोस संख बुव्यदेर्गोते- sma ष्णगोऽषित्‌ स्थात्‌, इत्यथः, गोणजश्वशरेभ्यसु भ्रनित्‌ द्तृशन्यो, इत्यथः, मनोसु ययोग संख इत्‌ कुरोरपत्यं कौरव्यः कौरव्यौ कौरव्या इत्यादि, feat कौरव्यायणो कौरव्या | कैचित्‌ कौरव्यायणोति नित्यमाहः। एवं aera: array aaa: feat लात्तणया इत्यादि कुर्बादियधा-- कुर कवि गगेर-गणिका-कूटं, शकल शलाका सत्यंकारम्‌। राकः शशरो मति-मङ्गषं, तक्ता लक्षण-वड़भोकारम्‌ | एरका-मुर कगोरि रथकार परिका। पिण्डोमूलेन्द्रजालौ वाक्‌ शकभ्भूरविमारकः (२) |

Pecan A ean क~ ~ ee ees —- —_—

(QQ) वामररखापव्यं वामरण्यसतस्येमानि ( संषाङ्कवोषलशणानि ) इति वाम- रथानि अन्न बाभरव्यशब्दात्‌ संघारिष वाच्येषु ^ ष्णा-टात्‌ शंव द्षोष- क्षणो” दूति वच्छमःणवात्ति केन शूटमर्थं ष्णः, तिन्‌ "अपर्यष्णयख लोपे वास रथानीति | बार्भिंकन्तु विकारसंवेति qae dams द्रष्टव्यस्‌ |

(९) नहु वामरथशब्द्ख्य गगाटित्वात्‌ कथमपच्सामान्ये ष्णं दूत wy वाभरथशब्धादिति | उप्चारात्‌-गोत्रलारोपादित्यणेः।

a) पिण्डोमूल, carte, वाच्‌, wary. अविभारक्।

७१

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५६२ मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

एकजित्‌ श्यावनायञ् पिष्टमत्‌-पथिकारिरी। हन्ता भर्ता गावो दामो्णोषिरिनस्तथा (१)। भवः श्यावरधः श्यावपुच्चः SALAS मताः कारवः, Afad सम्राट्‌, Afar: केशिनो भवेत्‌ रे भरातुवम्‌ तस्यैव (६) Fa: केनचिदोरितः। .यमादिल्यादितिदैवाऽपष्लायादिपतिदितिः (३) पषादियंथा- पण्व्-कुल-राषट्ाध-गश-वासु-धनं वसु | विद्या-शत-नर-चेतरं प्राण-धान्य-सभा-जगत्‌ रथकारणब्टोऽच जातिवचनः, faferrwagy कारुलेनैव प्राप्तः nt भवतीति शकशूरिह पाठबनता्मकारागमः | हारिणः व- wee, बाह्वादिल्ात्‌ इारिषणिः वेष्वक्सेनिः | एवं तान्तवायः तान्ववायिरित्यादि | सम्राजोऽपलयं सामाज्यः, ्षतियः। waa बाहारेराज्ञतिगणलात्‌ सासराजिः। कैशिन्या waa afin, श्ये फेशिनारेः, अन्यधा पंवद्वावै (४) केश्यः खात्‌ | भरातुरपलयं

आरादेव्यः (x) श्यस्य वम्‌, पिठष्वसखादिलात्‌ arate) कसय-

[कि 77. 7 1 ~~~

(1) दमोष्णोषि, दन |

(२) भ्वाष्टणब्दात्‌ श्ये सति तख wes वेम्‌ भवति, दत्‌ |

(३) यम, afer, अदिति, प्ादिगण-भिन्रणदद्‌पूषक पतिशण्ट्‌, हिति |

(४) पुवद्धाववार्िंकद्तरं ac SAE टोकायां दृष्टव्यम्‌ |

(५) त्राग्यौ saree feet waa: | aa: यनुरपचन्च बराह अव ferue द्दिक्लनं, तेन सामाग्यहिरे त॒ भ्राषदिट। भ्वादपुत्ः पनु wraanfafa महेश्चरः। त्ते भ्वादषन्देन भाता गल्ेति HRA दूति प्रयोगर््रभाबादोक्ा |

area: | ५६२

fant वेणगब्दस्य कुव्वादिलात्‌ वेषः, तथा ae ws रेय- मरव्लनच्च इति वेणाच्छन्दसोति पाणिनिसूचाच्छान्दसमिदम्‌ | यमस्यापत्यं याम्यः श्रारदित्यख्ापत्यम्‌ भ्रादिव्यः, खये खलोपः(१) श्रदितरपत्यम्‌ भ्रादित्यः प्रजापैरपल्य प्राजापत्यः, एवं वेश्वपत्यः fetta दैत्यः पश्वाद्यादपतसतु --पाशुपतः जागत्यत दति Raise | गोरपत्यं गव्यः रान्नोऽपत्यं राजन्यः, त्षचियेऽभिधा- नम्‌, अन्यतर राजनः .मनृवत्यादिना नियमेन नलोपः{श्नपन्‌ इति नियमान्न उङ्लोपः खशर स्यापत्यं शतशः , संन्नायां बाद्ना- fear शखाश्रिः। मनोरपत्यं मनुष्यः, ये सन्‌, इत्‌ नाडायन दति-नड्स्याम्तरापत्यम्‌ इति वाक्यम्‌ | नादियथा- | ay भण्डित रोहिण ne पुटं

पद (२) काण चरं गिरि चक्र कुटम्‌

विद काश वनं FA धुम जलं

किर चिव सुरं We ale नरम्‌

भडिलो weet भडतः wafa-(2)

quent ana: खदिरो मिमतः।

चरकः शकटः शलभो बदरः

fart: खरप सुमनोऽज-जनाः

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(1) अदितिशन्द्ख qaigt पाठात्‌ र्ये आदित्यः, दित्यशन्दद्यापि तत्र पाठात्‌ पुनर्ये ATT इत्धकारबकारयोर्लोषः।

() पाद इति पाशिनोये।

(a) प्रहतिरित्तर naa इति संशिप्रशारे, प्रहत इति पाखिनोये।

a == ~ a

~------- +~ *

४५९४ HUANG व्याकरणम्‌ |

सायकं दासकं किङ्कर दुगे कातर काखनल (१) पिङ्गल wear | भण्डिल कोशल qua विशालम्‌ भरातप चूप२)मश् विम्मम्‌ भोजः खरप पञ्चाल arated धरितरिः। MAT गोभो गोलात्त (३) जलन्धर युगन्धराः gare शिंपा काव्यो वोत्ताहावितिररेतिको (४) 1 भ्रानडुदाललनो THY श्यामो वाग्मो सप इन्द्रासुष्यो fag: (५) काश्यो राजव्य तिक fase: | दोपः प्राणो दास मित्र सुन्नाकं ST शूद्रकाः | sania: यविष्ठा विश्वानर हंषकः। ABTA ६) सख्-खजर-चममच्च ऋक्‌ MU हस्तो वेख()वाप्यौ सुक्तत्यः शोण-कामुकौ | ब्राह्मणोडम्बरालोह द्रोण जोवन्त WAT: | खनाऽखलाग्रदण्डं (८) स्थात्‌ शलङ् सु द्यकोशिके | वाण््टितु वणो विरे क्णो जातत पूरुषे (1) कातल दति पाणिनीये le) पाणिनीये संजिप्रसारे चप cag Wasa द्यते | (१) गोना षति पाणिनीये। (४) वीक, arg, इतिश. पतिक | ५) लिगु दति पाणिगोये। (६) अक्ामनशब्ट्‌ः पाणिनये a fanart द्यते | (3) weg दूति पाणिनीये संप्रसार च। (८) शन, अश्र, बम, दण्ड |

afea: | ५६५

दभ भ्राग्रायणे way gaara |

are ऋषावग्निशद्धा wreecig भागव

भारहाजे तु Waal भरदाजः शपस्तथा |

भातरयेऽच yas क्रो ्ोरषुक्‌ सदा मतः |

णान्ता शान्ता Waal zara हरितादयः

शिंशपाया श्रपत्यमित्यर्थे -.भादाद्यचो णित्ते faisrar दित्य-

वाट्‌-खयो-दौघेसतर-देविकानाम्‌ शिंगपादटौनां जिन्त पर wera: स्थाने त्रि-प्रसङ्गे भरात्‌ स्यात्‌, शांशपायनः (१) अ्रानड्ह्य efa— गगोदिष्णयान्तः | भरल्ल॑नस्यान्तरापत्यम्‌ TS ATTA: बाह्नादि- तवादाच्ल॑निः। एवं साप्रायनः सातिः, पञ्चानामपत्यं पाञ्चायनः बाह्ादित्वात्‌ ofa: वेर इति पेणो नाम राजिस्तस्याप्यं हहेकोशलाजादेरिति (२) we, वैग्यस्तस्था पत्यं युवा Sera: ्रतएव ख-टृ-त्तचियरपेभ्य इति लुक्‌। द्रौणायगोऽखलयामा दति तु ga Mader) शलङ्कोरन्तराप्य WAR AT: ष्णायने उतो लोपः। इदमकौथिक्ते. कथिक तु arerfe: 1 वाणायनो वाशिष्ठः, sara वाणिः कार््णायनो विप्रः , अन्यत काशिः जातख्यान्तरापत्यं sara: पमान्‌ पुरुष इति

ws my TA A a -- ee ~~ ~--- = ~^ renee ~~~ ~~~ ~

(१) शिंशपाया विकारः शांशपो cae cafa | feat लाङ्गलं, तं ayatfa दि्वाट्‌ षभः were erate: | garg दूति करा्यायनः। दितिं वहतोति दितिवार्‌ कश्यपसतद्याच्जात दूये gare दूति कचित्‌ | wise दरति खातो जलचरपश्चिषियेषः। tafe भवं च्रायसम्‌। area भवं दा्ष॑सत्रम्‌ देषिका नष्टो, aa भवं टाविकषटक ( प्रयोगरल्माला १५९१९ छ.) |

र) कुभ्ारेरिति ४२८ eae टोका दृष्ट्या |

४६६ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

किं १जाताया भरन्तरापत्यं saa: | प्रातिपदिक्षग्रहणे सिङृविधिष्ट- खापि ग्रहणमित्यस त्रापकमिदम्‌ | दा्भावणः भाग्रायणः (१) mara दार्भिः। भारगायणसेगत्तः (२), भरन्धवर भागिः। भौनका- यनो वद्धः, अन्यत भौनकः, विदादिलात्‌ दः भआनििशश्मायणः ऋषिः, weer बाद्वादितवात्‌ भ्राग्निभश्धिः | शारहतायनो भागेवः, भरन्यतर॒शारहतः, विदादिलात्‌ टुः भरात्रेयायणो भारदाजः, भर्यव्ातैयिः मारहाज्ञायनः थापायनडातेयः, sare भारदाजः-- ऋषि-ष्णः, शापिः -भ्रतः शिः क्रोष्टोरपल्य RETIN, उतो लुक्‌ maa) द्टप्रकोणिक इति कशित्‌। मोवविहित्णान्ता गोतरविहित्णान्ताश्च नडारौ caret, तस्मादेव नियमात्‌ युनि mala: | मूते गाम्यीयण इति गगस्यान्तरापत्यं गाग्यः, तस्या- पत्यं युवा इत्यथे Waa: Wiha णास्य लोपः(२)) एवं वाष्यायन इत्यादि | मूले दात्तायण दति दत्तस्यान्तरापत्यम्‌ इति टा्ति- ware युवा दाक्षायणः, एवं प्राक्षायण इत्थादि। fea गगस्यापत्यं युनौ mere दाक्तोति च्ियां युव.व्यनिपेधात्‌ | दाच्तायणौ तु दश्षखापल्यं दाक्षायणः, feat पि्लादोप्‌। गोतराधं इति किं ! सोमो देवता भ्रस्य सौम्यस्तस्यापव्यं सोम्यिः सुतङ्कमस्य faare: सौगङ्गमिखस्यापत्यं adage: , शेष-ष्णः | एवं टरान्ता हरितादयः | इरितस्यान्तरापत्यं हारितः, विदा्यन्तगेण-

TR PETE I ~~ = 9 ~~~ - ~= = ~ ~> te =

(१) आआयायष्ठो सुनिभदः। Qa) fame wa: एत्रादयपद्ं ant: | (३) aaerettary आक्षारवन्कगाद्‌ | `

afea: | १६

त्वात्‌ टः, सस्यापल्यं युवा हारितायनः परस्या भ्रपल्यं (१) पार- शवस्तस्यापलयं युवा पारशवायन इत्यादि | पेलादेः (२) War लुक्‌ tae परस्य qa युनि 'विहितखय लुक्‌ स्थात्‌ पौलाया wast ैलस्तस्यापत्यं युवा पेलः। एवमुदो चोऽपत्यम्‌ भ्रोदच्धिस्तस्यापल्यं युधा भौदच्धिरि- व्यादि पेलादिवधा- पेल wefe-afate साल्कामिथ सात्यकिः | भरोवरज्योदमत्लौदशहि(२)थालङ्कयस्तथा | गोपासद्यौदभेघो देबखान्योद गायनो | श्याफल्कीदक्ितो राहत्ततिदैवौसिहायनि; | पिङ्कलायनि वाल्कायनि पङ्कायनि वारुणि श्णान्साना- aot “arat शेधावेहयादे"रित्यनेन ofa fat श्रप्रा्याधं एधगुपादानम्‌ | प्राचां waraene: | प्राचां ata यः शिस्तदन्तात्‌ युनि विहितस्य Ware लुक स्यात्‌, तु ENS: | पन्रागारस्या- wT UMMM युवा पान्नागारिः) aeneyg

DS A a 7 NN ES ne ie ~> =-~ ne

(1) षरस्त्रोशन्धख emt | अत्र Males :— अत परस्त्रीणब्देन भिच- जातीया BY वाच्या, STU शब्द्‌: माद्मणेनोद्ायाः Wal अपत्यं Wey, wea वु UTM aa: |

(९) way stertefcafy पाठः| taqratcaad वालि; gerd gat wfafcagrecey |

(२) काथिक्ञायां cymes उद्बद्धिरिति पाठो इष्यते विद्धानशोचच

arg उदशुद्धिरिति।

५६द सुग्धवोर्ं व्याकरणम्‌।

fayette afe: त्यातयं युवा वेहायनः | धारणस्णा. न्तरापलयं धारणिः तस्यापत्यं युवा धारणायन इत्यादि | व्यादियधा- afe धारणि वाल्मोकि प्राणहतिश Zafar: | तौखस्यासुरि-देवोहि पौशि-पैख कि-वेरकि कारेणपालि-वेकणौं कातिष्याहिंसको तधा arizenfaat पौष्करसादि Safi | SAHAMTATTTA तथा दंवयजिर्मतः

भरत MATT प्रायात्‌ भरतगोताश्च युनि विहितस लुक्‌ ष्यात्‌ | अन्नं नखान्तरापत्यम्‌ भ्रालनिस्तस्थापत्यं युवा भाल्लना- यनः | GAS बाधकोऽयम्‌।

पदषवसखोय शल्यादि पिदरष्वसुरपत्यमिति aa णोयः, fawrfe:, fart पेढषस्ोया, पेढलस्लोयाभाय (१) इत्मादि। पिदषलरादियधा--

पितुःखसा तधा मातुः, खसा, भ्रतुरण्द्‌ भवेत्‌| कुल्ायां शायनिशैव सौषोरगोत्रसश्भवः

भादठशब्दात्‌ रोयोऽरित्‌, पैन भाव्रौयभाथ इति (२) a

सौवोरगो वसश्ववो णायनिः (३) gata पिटष्बस्रादौ पत्यते, तादपि प्रणिक्ौयः। वसुन्दस्यापल्यं यामन्दायनिः तस्यापलं

~+ ~ ~-- - ~ <~ ~~“ * ~~ - ---~-- - - ------ ~ -~ =^ ~~~ = ~~~ ~ = = ee ee

(१) wa युलक्तपिक्ञाराषंवख्लणिसानत्वान्न Vag: | (२) अत शित्तान्ततल्वाभावात्‌ एुष्ड्धावः। (३) होवोरगोवराप्रणऽे दूतो बो षावनिपर्यसषएटनाः यदे! CATT |

afea: | yee

युषाऽरिद्यः, यासुन्दायनोयो जाः, रेवत्यादिलात्‌ यामुन्दाय-

निकः। एवं सौयामायनोयः सौयामायनिकः, वाष्णायणोयः

वा्णांयनिकः तथाच- यमुन्दश्च सुयामा वाशेस्तभ्यः फिञः (१) Sar: सौवीरेषु Kara Bt योगौ शब्दवत्‌ सूरत्‌

दति aerate: हौ सोयश्णिकौ fired पू्वेवत्‌ प्रयोजनम्‌ (६) | रेवतिक दति - रेवत्या श्रपत्यम्‌ इति वाक्यं, ययोरित्यादिना

दकारलोपः firs, स्त्रियां रेवतिको श्राखपालिक इति श्रं पालयतोति भश्वपालः षण्‌, तस्यापत्यमिति वाकम्‌ | शे्वत्यादिवथा- रेवत्यष्-म फि-इारपूव्देपालोऽथ कुत्सने (2) 1 गोत्रस्य (४) बाइल्याददाः सौवोरगो व्रजाः कणशग्राह-ठकग्राहौ कुकटाच्षसतवेव | हकवद्यी सवणा परे शिष्टप्रयोगतः अ्-मशि-इारेभ्यः पालो रेवत्यादौ vad जयादित्यसतु

waar मणिपाली इारपालौति स्लोलिष्मङ्गोकरोति। न्दा तु हारपालादोनामदन्तनिर्हेशः। भधान॑न्तरं गोचरविदहितत्यान्ताः

"=" ~ =" - -- = ---------- ------ -- ~~~ ~~~ -~--------~-----+

(१) पाणिनीये फिञग्रत्ययः, त्कीषागीशम्ते णायर्निः।

(३) ¥agrafefafcere: |

(श) पितरं विन्ते माला quetuisvae gafa arfirat | (४) Waweace Ma, wang at: fea Mafea: |

७२

१७१ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌

सोलिष्ठाः gerat trae पव्यन्ते। यथा- गाग्यां saat युवा गागिको आसः, म्लबुकायन्या waa युवा म्तीतुकायनिको जाल्मः, मिमतादित्वात्‌ गाग: न्लोतुकायनश्च जाल्मः गोतेति किम्‌ ? कारिकेयो sem: | far: इनि किम्‌ ? भ्रौपगविः। कुकायामिति किम्‌ ? गार्गेयो माणवकः (१) Fat इत्यव, तैन Matt ये हदास्तेऽपि बुल्लायां वाहु्यद्रेवयादौ पवयन्ते भगवित्तश्याप्रलं भागवित्तिम्तस्यापलयं युवा भागवित्तिको जाः, WFAN Ts TIT भागवित्तायनो (२) जाल्मः | ढणविन्दोरन्तरापत्यं ताण विन्दवः तस्यापत्यं युवा ताणेविन्द्‌- faa: | श्राकशापस्यान्तरापत्यम्‌ श्रक्रादेराक्रतिगणलत्ात्‌ श्राक- श्रापैयः, तस्यापत्यं युवा श्राकशापेयिकः। wr तु श्रत्रादि- पठितल्वात्‌ श्राकशायनशब्दस्येव भ्राकशायनैयिको जाल्मः इति वदन्ति, तब्र | तधाचाइः--

भागपूरनवेपदो वित्तिदिंतोयस्ताणं विन्दवः।

ठतोयस्बाकशापियो Marg (2) ठग्बहलं ततः (४) 0 इति at |

wee ecm eet ~ ~ ~~ ~ === = == = ~ अ~ + + ~~न "~~~ == ~ ~~~"

(॥) warfa गम्यां सपद युषेति वाक्यम्‌ “भातामहादेरुपलशणार्धोः sa प्रयोग इति नालि कल्ला? इति anfarar

(९) गोबशु्नतानां गढ़ारौ पाठादव्र WaT: |

(2) Marq गोबविहितप्रह्लगानात्‌।

४) ततन्ञक्लत्‌ भागविच्यादिषन्धभयात्‌।

तितः | ४५७१

४२५। मनृवर््नानवर्ग्रोसेनोऽनोऽध्वात्रनो-

पल्यष्णऽविकारष्णाभावकम्मय LH लोपः |

( मनवल्नौन्‌वर्मो स्येन" €।, भ्रनः él, भ्रष्वामनः &।, भपत्य्णे ७, श्रविक्ारष्णाभावकये si, ‘BR 9 , Itt, न-लोपः १। )

ठक्‌ शिकः। ददग्रहणमिह स्रोनिवरत्यधेम्‌ (१) + सौनोर- गोत्रजा इति किम्‌ ? भ्रौपगविर्जाल;। कुत्ायाभिति किम्‌ भागवित्तायनी माणवकः |

ओेषानुदाहरति यादव efa—aeata कशचित्‌, तस्यान्तरा- पत्या णः श्राङ्गिरस इति -श्रङ्गिरसोऽपत्यम्‌ इति वाक्यम्‌ (२) | मुनौ तु गिवादिल्वात्‌ (र)। एवम्‌ Moma: माधवः मारोच इत्यादि |

४२५। मन्‌ मनं वल्लयतीति मनवच्ः, चासौ श्रन्‌ चेति मनृवर्ननान्‌, स्यादिन्‌ aq, मनृव्नान्‌ TTT उक्ता स्यन्‌ तत्‌, AAI AAT तस्य WaT चश्राताच तत्तस्य विकारोऽविकारस्तस्मिन्‌ ष्णः श्रविकारष्णः, भावश्च HT चत मावकश्मणो, भाक्कश्चणौो श्रभावकश्चणौ,

(१) सौबीरगोत्जः दूवुहकेरपच्य्त्ययान्ताः ौवोरगोनोतपन्नवाचकाः चन्दा ष्ट्न्ते। ते चापत्यप्रत्ययान्नत्वादाद्खरदद्गौ दृद्रंत्तका भवनि, तथापि ee पहं, तचावि कर्त्री लिङ्कशब्द्-जनषट्यधमिति ara: |

(2) अन अङ्गिरा नाम alae |

(१) चिषादौ कुष्यन्न्नदष्णय waa: |

५७२ मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

मनृवलस्यानो वीणः SA स्वात्‌ परस्येनय पपतयाधै- ष्णो, भरनो विकाराधवजं G vrata ये च, ध्वामनो- रोने, नलोपो GIy! याल्वनः भाद्रवर्षणः She चात्रिः | |

aa: वाशिष्ठः aad: waren, परात्‌ भ्रविकारणश्च प्रमावकनीयख तत्तन्‌ | area: इति--यव्वनोऽपलम्‌ इत्यर्थे णः बोर्लोपौतौ asa इति प्राप्रनलोपोऽनेन निषिध्यते मनवस्ते इति किं ! agama: सौसामः। भ्रपत्य्ण xfs किं? wae परितो रथः THT रयः (१)। मनृवर्लानितयकतः वणो वर्मे प्रात वद्ग्रहणादाह भाद्रवगमणः दति--भदरवश्षणोऽपत्यम्‌ इति aay! णवं mae इत्यादि) dew व्यादि-- यद्यपि मनृवज्ञेत्यनेन नलोपप्रतिषधादुचणोऽपि प्रतिषेधः सिध्यति, तधा- पुरणः एृथग्‌गरहृणमेवं त्नापयति, भ्रपत्यष्णातिरिक्े नलोप- निषधो भवति, ta are पदमित्यत्रानोऽविकारणणे (२) निषेधो नस्यात्‌ चाज्रिण दइति--चक्रिणोऽपत्यम्‌ इति वाकं, श्येनो नलोपः। wea are योगविभागः क्तव्यः, तन क्रचिद- न्यत्रापि (३) aarfe--

[थ कवा re Mies Os ae ey Nee A memtnte:

(y) कव सननवाद््ोपे प्रापे अप्याधन्णाभाशान्र wees (२) abafaan दूटमधेविहितणे ve: | (३) anfafag-aaraisty earfefa रेषः।

afar: | ५७२

ब्रह्मणो AAAI! ब्रह्मणोऽपत्यष्थे नलोपो स्यात्‌ जातौ | TMU ब्राह्मणो जातिः (१) श्रपत्यष्ण इति किं ? ब्राह्मो नामोषधिजातिः। नाती किं ब्रद्मणोऽपल्यं ब्राद्म^शति। पशि गणि wife’ केथि .विदधिनो "वा तु हितनागरः। एषामपत्यप्ये नलोपो . खात्‌ हितनान्नसु ati पकिनो- $पत्यं पाणिनः, एवं गाणिनः गाधिनः कथिनः defer: fea नासनोऽपत्यं ₹ैतनाम्नः हईैतनामः। द्नोऽकलाप्यादेरनपत्ये | इमो "नख at a Ay, a तु कलाप्यादेः श्रनपत्यष्णे at) सखाग्विणः मेधाविनः। wea तु मेधाव शृत्यादि। कलाप्यादेसु कलापिन ददं कालापम्‌ | कलाप्यादियधा- कलापौ saat grat तैतिलो तथा HAM APA स्यात्‌ सब्रह्मचारिशिखरिडिनो | कलाप्यादौ शिलालो नव शब्दाः प्रकौत्तिताः क्मचर्खणोरताच्छोल्यकोषयोः। ताच्छोख्यभित्रे कमणः कोषभिन्रे चश्मणो नलोपो स्यादनपत्यष्णं। कार्णं चा णम्‌ भअरताच्छोख्यकोषयोरिति किम्‌ ? काः कर्बशोलः, चाः कोषः | efwefan: ्णायने, जिद्याशि-वािनोलं wana: | नलोपो a स्यात्‌ दर्डिनीऽपत्यं दाख्डिनायनः, एवं wife- नायनः। जेद्यारिनेयः वासिनायनिः।

(:) अत्र मनन्द्यापि अप्ष्यो aay: |

४७४ TUT व्याकरणम्‌ |

were: fut) प्रधना लतो wa: oat, तमधोते वेत्ति षा प्राधव्वणिकः\ शव इत्यादि | गिवस्यापत्यमिति वाकम्‌ | भिवादिवंथा भिव तच गा AGA मयुरो वतण्ड भूमो मुनि afar यस्काः | पधा विपाशा कणं Far मणक वोधानभिमान चण्डाः aaa Gata रेख कर्णः ख्नालको wa सुपिष्ट पोनाः। agra भूरि नभाक पिष्टाः पक्नारको afar कोकिलाः (१) पटको awa: शोफौ विरूपाः कलब्धनः। मन्नोरको AAS THETA (2) Tae wet वधिरक sear प्रोह -वत्तुलौ mat जटिलको गोफिलिकोलकुखा भलन्दनः खललरकोऽनमिन्ञानः ककुत्‌खः पौण्णिकस्तधा | wfieau कुटाराथखेना लोहितिक्षापि ष। ऊणनाभयिपिटकः सपत्नो प्रो्टिकस्तथा। लः साखा TASS: कुठथन्धकहष्णयः पहा मानुषौ संन्ना गदोरसंन्ना मता TE भारहाजे तु शः स्यादातये च्छगलो मतः

[129 so

1) को्िला, cars (१) कोड, wee

AAG ae 1 om

तितः | yoy

wet विकर्णोऽथ atose: परिषिकोऽपि च। दशरथः ANAT कन्यायाः W भवेथा विवेश्यास्िवणो विश्रवससु रवणोऽपि a) विश्रवणो भनोव्वौ सन्‌ गःरसत्प्रमाकीतः ष्हादन्तानां पाटः शिताधनार्ैः | इयजिकाग्रन्तानां सौत्या- न्तानाश्च शेयवाधनायेः। ARE कारुवाचकलयात्‌ श्िबाघनाधेः तच्छोऽप्यं तायः, मनवर््ान्‌ इति amar नलोपो स्यात्‌, कुञ्बादिल्लाक्‌ ताक्षण्यः agar भ्रपत्यं गाङ्गः, श्रव्ादिलात्‌ गाद्गेयः, तिकादिलात्‌ गाङ्गायनिः। पोलाया waa पेलः, भअतपादेराज्ञतिगरत्वात्‌ पैलेयः परे तु कचित्‌ ्रपवादविषये उल्र्गोऽभिनिविश्रत इति न्यायात LATE: एवं साखखाणब्दस्याप्युदाहरणौयम्‌ जरतकारूशब्द्‌ अबन्तस्तन्बादिपाठात्‌ ऋष्टिषणशब्दस्य सेनान्तत्वात्‌ खण्णि- areas: | कुरवंशोत्पत्रा ऋषिवाचका श्रन्धकवंशोपनव्रा दश्णि- anata सव्वं िवादो card | कुरोः- नाकुलः, साहदेवः | ऋषैः - सूले वाशिष्ठ दति--वशिष्ठस्यापत्यम्‌ इति वाक्यम्‌, एवं वेलामिव: | अन्धकस्य - श्वाफल्कः, ee: दष्णेः-वासुदेवः, भनिर इत्यादि) ननु स्ववषां व्याकरणानां माहेशमूलक- त्वेनाधुनिकङवृ्न्धकहण्णिवंशवाचकानां कथं पिवादौ पाठ दति चैत्‌ सत्यं, शिवस्य सव्यज्नत्वात्‌ तत्र तेषां सङ्लनम्‌ यहा ऋषेरनादित्वात्‌ कु्ृ्यन्धकण्णिवंशा एवानादयः, भतएव तेम्यङ्यविधानमित्यदोषः। भहद्वानां मानुषोसंत्नानां तावत -

५७९ Wate व्याकरणम्‌ |

fefrarar saat Sfara: चेचित: गौतमः seer नदोसंन्नक्षानां तावत्‌. यभुनाया «wae यामुनः, श्राव्या waa teas: avez शवयादि। wan शति fa? वासवदत्तेयः चान्द्रभागेयः (१), शङ्गस्याप्यं MET भारदाजः, waa शोदङ्कि;। इगलस्यापत्यं . कागलः war, wea हागलायनिः। विकरण स्यापत्यं वैको वाद्छः, sara वरकरिः। कन्याया ` भ्रपत्यं कानोनः कशः area) fader wal aay: | विश्ववसोऽपत्यं cen: वैखवणब मनोरपत्यम्‌ wae ¦, तस्िश्षनोः सन्‌ वा, इत्‌, ATAT: UF मानव इति। विदादेर्गोतेऽदषेश्षानन्ये Z: (2) विदस्यान्तरापत्यं az: | एवम्‌ whee: | feat frerreta वेदो इत्यादि विदादिवधा- | विद oat भरदाजः किलातः कुशिको हरित्‌। विश्वानरः कश्यपोऽपस्तम्बो हद-रथोतरो | कूचवारशरहन्सौ रथन्सरगविष्ठिरौ ऋष्टिषेण fart ast वि्ठविष्टपि gate हिता पुः प्रतिबोध-ननान्दौ | wana: प्रियको धैनुदध्योग-शुनकावपि

~~ ~~ ---*- ~ „~ ~^“ ---- eine कः ite oe emer ee

(1) शब वन्द्रभागा-पर्याय-वान्दरभागा-बान्दरभागीधद्‌योरण्वतर चात्‌ षठोयः। अन्धा TEM Ul | (x) विहा लापव्ाये टुः arg खवथिषतिगेणयेषे gear)

तडितः | yoo

wate किन्दासो वऋयस्काकान्धका रपि

महाकुलः verge निषादोऽध परसियाः-

परश, गोपवनः fang मामज-विन्दवः |

अश्वावतार-श्मोभक्ष-श्यापरौ, समुदोरिताः

अत्र ये शब्दा श्रदृभिवाचकास्तेभ्योऽनन्तराप्र् एव Zl

waza ae: पौनभेवः दौहित्र श्व्यादि। ननु कथं कुशिक- स्वानन्तरापत्यं कौिको विश्वामितः , कधं वा व्यवहितापत्य CUBANA सप्तमः काश्यपानाम्‌ ATA इति (१) चेत्‌ सत्यं, क्षचिदपवाद विषयेऽप्यसर्गोऽभिनिविशत इति न्यायात्‌ ऋषि wa (२) भवितव्यम्‌, अथवा तस्येदसिवय्धे wa परसिया waa पारशवः, F परण्वादेशः। WA otal भितब्रजातौया स्रौ aren, Taga पारशवो विदुरः तथाच--पारशवः पमान्‌, परस्त्ोतनये we दिजाच्छदरासुतऽपि इति मेदिनौकारः। र्धान्तरे तु पारस्ेणेयः। बाद्वादेराक्लतिगण्लात्‌ विदस्यान्तरा- ua पेदिरित्यादौ शिः, तु ऋषिष्णः। यद्यपि शिवादित्वात्‌ sq aa वैद इत्यादि सिद्धति, तथापि विदादेः एधक्‌ टुविधानं मयडवाधनाधेम्‌ |

(1) काद्यपानाजित्व कथ्यपशब्द्खख वपिदारिपाठात्‌ बिदादेर्गोतरे षति वालिं वदते बहुवचन पिहित टुप्रचयद्य वच्छमाखगगेवस्कषिडारोलयादि- wae कये नु गभवतोतया श्या कचिरिव्यादि | गगेवसवोत्यादि ने तकेवागो- रेन विहारैः परख टृपज्नयसैव लुग्भवतीति वच्छते। अत्र षिष्णेन Kee. व्येन वा साधितत्वाच्च लु गिं |

(द) fartfgenfefa ae: |

98

you मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

SUSI | SHS स्यात्‌, एधगयोगादपल्यसामान्य उक्स्यापतयम्‌ We, जानपद इत्यादि | उतादियधा- sal जनपदविनटौ धना, विकच-मद्ानद-तर्रं धैनुः। भरत-महानस-पृथिवो देव, पडक्तिजेगत कुर-पश्चालम्‌ उदपान REITER ATTA महान्‌ | इद्रावसान विकर-वरिषटबु्िगनुष्टभः SMT: सुव MATT रथन्तरः हृहश्रध्यन्दिनिञ्चाध aan qu भवदिदह खदश्यानन्तु देशेऽस-व कयो(१)5 शे हषक्मतः (२) | ग्रोभ्रोऽहत्त समाख्यातः शषं ज्यं प्रयोगतः दृह कुरुशब्टस्य पाठात्‌ कुरोरपत्यम्‌ इत्यथ कौरव इति जयादित्यः। सत्त्शब्टो वलन्तस्तसखय टं AW, sade सालन्त;ः। पाठबलात्‌ उदख्याने भव श्रौदखथानो देशः श्रे तु उदस्थानः कथित्‌ तस्यापत्यम्‌ श्रौदस्थानिः। arenes a वाच्ये टुः वाषदः, THT तु वषेदः TW) नतु शटृयोः कौ faite ति चेत्‌ सलं, शान्तवाषेदस्य सदं WITH: | THA तु वाद इति fase: | wee दनि हत्त न्दः, हत्तम्‌ wad afaq, au: sen एति किं ? at तरिष्टुविति ऋतुनहत्रा- दिति ष्यः, तस्मादिक्षारे मयद्‌ ग्र॑ंसम्रयं, दरान्ताहिकार गरेभरमिति विशेषः `

--= -~ =-= ~ = = = ~ = =-= ~ = se

ee ae ee =-= le

(1) असे wears ane: ) ।२) पाणिनीये aufema vafefa as: |

तदितः WOE

४२६ | ARMA GST ष्ये ( सञ्ा-सं AAT] ५।, मातुः 1, Te, Wes ) | हेमातुरः।

४२७ नन्‌ पैश्ियोः,। नन्‌ ।१।, पंल्ियोः an) 1 पौलः सेशः |

४२८। कुञ्चादेर्णायन्योऽस््ीववेऽप्ये | FMS ५।, णायन्यः १।, Weta oO}, अपत्ये ७। J | FAST णायन्यः स्यात्‌, भतुस्तरियां,नचने। MAI: त्राघ्नायन्यः | Mag कौञ्ञायनो कौच््ञायना;

--- ~ ~ =-= = ~= = aes - er ee *~--~- ey

४२६। TSN Vy भद्रश्च तत्तस्मात्‌ संख्यावाचकात्‌

समो भद्राञ्च परस्य मादठश्नब्दस्य ST स्यात्‌ षणे, fewreara

सौत्रलान्र विः। हमातुर इति--हयोर्रातोरपत्यमिति ara,

शेषात्‌ ष्णः. एवं ष।रमातुरः |

४२७। मन्‌। Yate स्तो तै तयोः। भ्रनयोर्नन्‌

स्यात्‌ ्णे।

BIT TMS! BM व्व सनतं, सीव्वम्‌

sete तस्मिन्‌ samme, gaa सामान्यविधानात्‌ !

रयं (१) नड़ायन्तगंणः णायन्येन ष्णायनो बाध्यते, तेनानन्तरा प्ये rd

anfe: 1 कौच्ञायन्य इति - कुच्स्यान्तरायत्यमिति वाश्म्‌ |

एवं ब्रान्नायन्धः।

०० Te SR en

(१) सयं agi: |

५८० मुखवबोधं व्याकरणम्‌ |

बुल्नादियंधा - Sal ब्रघ्नो बुधो लोम-भस-ग्णाः शठो गणः शाकः शमा विपाशा शरा संगः प्रकौत्तितः तिकादेणशनिवषादेलु यम्‌ च। ` | तिकादेरपते wafa: खात्‌, हषादिस॒ णायनेय॑म्‌ च, इत्‌ तिकस्यापलयं तैकायनिः, क्षितवस्यापत्यं कैतवायनिः | तिकादिंधा तिक .कितवौरस-तेतिन ate, भौरिकि मौलिकि-बन्यारम्‌। चौपयतः FTAA यन्न APT लाङ्गट-शूद्र यमुन्दम्‌। SMA लोमको रुप्य-ग्राम्य-ध्वाजयता उरः | शाखा वालशरिखा gan: गेकयतस्तधा sean: खग्रामोऽध कौरव्यः Bat aa: | गोकश्यषन्द्रमाः चेतयतो रक्तान्तदा मताः हयमचः शान्ता देवरथोऽमित्रोदन्धं (१) प्रको्तितम्‌ | सतरिथाधे-कौरव्यः पत्ते (२), तेन जनपद-खान्सस्य ग्रहणं नतु ङुत्धादि-खानस्य, तु ब्राह्मणवचनस्तस्मात्‌ Tae | जनपद-शान्तान्तु कुरोरपत्यं युवा कौरव्यायपिः afer: | रथान्तासावत्‌--गोरचखापत्यं गौरत्तायणिः भ्राखरकायि- रित्यादि हाचः ष्णानात्तावत्‌ -कर्तुरपत्यं ant: त्यापलयं

= ~ = = ~ tee

~ ~~~ कक

(१!) असित्र, Serr | (२) कुरुशद्दनेति ae: |

तदितः | ४५८१

काज्रोयणिः। बन्धव eee ब्राद्मणवचनः, तेनाव .भत्राद्- शात्‌ णायनेने लुक्‌ एवं कंायनिः, पैवायनि;। ere इति faa? Danfa:, wa: शिः।

वषादिर्यधा mS दशु कोशल छाग. AUT: |

वषादेस्तावत्‌-वाध्ायशिः दागव्यायनिः का्माधायशिः, goufeary aria: | कोशनलशब्टीऽत्र जनपदवचनः। ननु कथं कौगस्थायनिवक्ञभामिति भिः उयतै-- कृजानेरित इति $पि कौश्रल्यायनो, तस्या श्रपत्यं युवु इत्यध भावादितवात्‌ ष्णेय- स्तस्य लुकं विधाय स्नोत्यस्य लुकि कौशल्यायनिरिति परे | वसुतलु तिकादेराक्ततिगणशलात्‌ णायनिरिति तथा कौशवल्यकाार््या- भ्याश्चेति पाणिनिसूत्रम्‌ |

दहादनपत्यान्ताहा पुवान्ताहाकिनादेसु कंच अनपत्यान्ता- दुघसंन्रकात्‌ णायनिव्व स्यात्‌, पुत्तान्तात्‌ वाकिनादिभ्यस, तेषां तु कन्‌ स्यात्‌ १९त्‌ | भ्रास्रगुप्तस्यापल्यम्‌ भ्रास्रगुप्तायनिः नापि- तायनिः | एवं त्यादायनिः, तवापत्यं तादायनिः, युवयोर्युाकं वा woe arwerafa: | कथं भावतायनिः ? वाशब्दस्य व्यवस्थावा- विलात्‌ | पक्षे ्रास्रगुधतिः नापितिः व्ादस्तस्यापत्यं युवा त्यादा- यनि; | हदादिति किं ! दैवदत्तिः याक्रदत्तिः भरौपगवः। भनपत्या- दिति किम्‌ १९ भौपगविः। garg - गार्गौप्रकायसिः। गार्य रिति yada fa कन्‌विधानाथः पाठः, शायन्ध- भावपक्षे गार्गो पुचिरिति रूपत्रयम्‌ वाकिनारेस्तावत्‌- वाकिन- कायनिः वाकिनायनिः बाकिनिः।

४८२ मुग्धवोधं व्याक्षरणम्‌।

वाकितादियधा- वाकिनश्चशि mt काको-ल्घा ata च)

, काकंव्यव्िगावत् aa: सप्त प्रौर्तिताः (१)

परेतु कनं विक्रह्ययन्ति, तन्मते वाना रूयम्‌

रठह्ादायनिनव्या | ame agent: | ewdsafueneta- fant स्थात्‌ श्रप ्हतुकस्यापतयं गलुनुकाग्निः, प्च ग्लौचुकिः भ्राहिनुम्बकायनिः आहिषुम्बकिः। वाहष्यात्‌ afaa भषति, तेन दच्तस्यापर्यं दातिः श्राचिरित्यादि |

युनि लुक्‌ waa. शख णायते; परस्य युनि विहितस्य शस्य लुक्‌ wy! तिकस्यापत्यं तेकायनि; aaa युवा तैकायनिरिल्ादि |

करलाददादिनो (२) येनणेयका दादेस्लौनः। दादिभिन्रात्‌ कुलात्‌ णेयक एत खयुः दपूववदौन एव कुलखापलं कुल्यः Fala: कौलेयकः, बडुकुखः बहृकुलोनः बाइङुलेयकः, AMAA! 2) | दादेमत भ्राव्यङ्कलोनः खोत्रियङुलोनः।

wen == = ~~~ ~ ~~

` (1) बनं पराकः षोऽद्यास्लोति afer, अतएव निषातनादिगन्‌ | ame एधते दूति mite: एषोदरादिख।दादिलोपः, शकन्ुाहितवात्‌ परद्पस्‌, गार धकायनिः। चमन गद्द्‌भ्यां नोहयाटितवाटिनिः वश्िवभ्रिणोनेलोपसेति गण- aaa, बाग्दिक्ञायणिः वान्दिकयखिः। दूति त्वत्रोधिनौ।

(९ अदारिगः दं ण्टम्‌ अादि्यख तत्‌ दादि,न दाहि अदादि were अदाटिनः| कृल गढ्द्‌ विशेषणत्वात्‌ क्तोवलमिति।

(१) बहङञलारिषु toga जलमिति वाक्ये बहाये ततृपूैवसय बहकृलथन्दशय प्रहारिभिन्रलारित््ैः |

तितः | ५८१

SUenti केयक-णौनौ वा। अभ्या परात्‌ कुलात्‌ ` शेयक- सोनो क्रमादा खाताम्‌ दौष्कुलेयकः, area दौव्कुलेयः, परे दपूव्वैलात्‌ a it Lareigeata:, canfeary भाहा- कुल; प्ते महाकुलोनः `

्षच्रादियो जातौ सत्रशष्टाज्लातावपद्ये , श्यः स्यात्‌ afaa: जातिः जाताविति किम्‌ ? aha: 1

सौवोरगोत्रात्‌ फाण्टाहृति मिमतात्‌ श-शायनो सौवोर- Mary फारटाद्रतैमिमतान्च ण-णाप्रनी स्याताम्‌ फारटादृतंः wai युवा फाण्टाहृतः सौवोरगोत्रलात्‌ are विषयः, फाण्टाहृतायनिः | एवं मिमतस्यापल्यं मैमतः मेमतायनिः परे तु waraata ब्युत्क्रमनिर्हेात्‌ (१) यधासंख्यमिच्छन्ति, तन्मते WIRE: मेमतायनिरिल्येव | सौबोरगोतादिति किम्‌ ! फाण्टादतायनः मेमतायनः।

देवष्थिवोभ्यां खणो वा श्राभ्यां क्रमेण QT वा स्याताम- पत्ये | tama देव्यः. एयिव्या sual पार्थिवः, feat देव्या पार्थिवा, उकल्षादिलात्‌ देवः पार्थिवः, देवो पाधिवी।

AAAS MANY ब्ब खामन्‌ इत्यन्तादः स्यात्‌, MATA न्वे ्रखठलामा नाम कञ्चित्‌, तस्यापत्यम्‌ Wana: उड्लोरोऽप्र्यानि esata a किम्‌ भोडलोमिः श्रोडलोमो

er rrr त, ae ee ree re ee ew ee --- ~ - ----~ --~ पष्ठः

१) सते मिभतफाण्डाहुतेरित्यदुक्वा फाण्ाह्तिभिमतादिलुक्ते fcr: |

~ ~=" ~ ~~~

४८४ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

safe ददुः, शतु, हयङ्‌-मगध-कलिङग-शूरमात्‌ | woe रात्रि देणतुरूख्यकच्तत्धियात्‌ टः ख्यात्‌, दाड-मगधादेस शः पश्चालानामपद्यं राला वा दरधे पाञ्च, वदेहः दयजा- देषु wr: are: सौह्मः मागधः कालि भौरमसः। रुदादिति किम्‌ ! पञ्चालस्य ब्राह्मणस्यापलयं पाश्वालिः हृतो शलाजादादगान्वारि-शालयात्‌ we | गान्पारिशाख्ेय- भिन्नात्‌ दादिकारान्तात्‌ कोलादज्ादाश्ापत्ये राजनि WE स्यात्‌ | टृष्णयोरपवाद | ददात्‌ - भ्राग्बष्टस्यापत्यै राजा वा WS, सौवोरस्यापलं राजा वा aA: | दकारान्तात्‌- कुन्तेजंनपदचत्वियसापत्यं राजञा at Ae, भ्रवन्तेरावन््ः, कोणलस्य कौशल्यः, Wee भ्राजाद्यः, चियामजादिलादाप्‌, WAST कौशल्या AIAN | कौन््ावन््योसतु Fatt wart | कुशकुन्यव न्तिभ्योऽपत्य we लुकि grata इति to डित्‌ पतिपुत्रौ ae श्राव्वष्ठोपतिः श्राग्बष्टोपुव्र श्त्यादि। MATT MATA गान्धारः WAT, पूर्वण टुः | कुरन्यादिभ्यो खः पाण्डोडि्च कुरो निपूव्ैशब्देभ्यो जन- परेभ्यो खः खात्‌ woe राञ्नि च, डि पाण्ोः। कुरोजन- पदस्यापत्यं राजा वा कौरव्यः, कथं मापै--“कुङकुरकौरव स्यः,” तथा वैणोसंहारे-“संरश्यतां कौरवा” इति ! उश्तै-जन- पदाविवश्चायां, विषयो देश cart शे वा (१) तस्येदमिल्यधे

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me ecco

(1) fourceg fe aaa ctarat शह्काधिकारात्‌ परं “faut Ba” इति ufeaqa reae |

तडितः yoy

४२९ गगे यस्व बिदादि wafa कुत्धा्गिगो वशिष्ठ गोतम रुढालुग्‌ व्ेऽस्वियाम्‌ | ( TH— STAY, लुक्‌ ।१।, व्ठे 9, Ahaat or) ।.

वा। कथमच्चच्तिये “कौरव्याः ama” इति ? उपचारात्‌ | न्यादेः-- निधनस्यापत्यंराजा वा नेधन्यः नैपुखः नैषध्यः पाण्डोजंन- पदस्य चषचियस्ापत्यं राजा वा पार्य; , डिति ट्िलोपः। र्ट्‌ दति किं? महाभारते पाण्ोरप््यं area: | fe aa पार्ुरहेशः | छडग्बरादेः (१) णणिः। रूढ़ादपत्ये wis चेति। za बाधकः उड्गम्बरस्य जनपदस्य क्षतन्ियस्यापत्यं राजा वा Wes म्बरिः तैलखलिः | उडुम्बरस्तिलखलो मद्रकारो युगन्धरः | fay: शरद ण्ड कलकूटोऽग्वकस्तथा | प्र्यग्रथो नव प्रोक्ताः परे शिष्टप्रयोगतः कैकय-प्रलय-मित्रयुनां far यादेरियः एषां यादेर्भागस्य fad द्यादेशः स्यात्‌। केकयस्यापत्यं कंकैयः, प्रलयादागतं प्रालेयं fed, मितरयोर्भावः मेतेयिका, 'गोत्रचरणाखकः | ४२९.। गगे। गगेश्च यस्क विद ते श्रादयो येषां तै गगेयस्कविदादयः, पै wy भ्रत्रिख कुतश अद्धिराश्च वरिष्ठश्च

मी Se TS T= RE ee Yt SY we )

(१) उदुम्बरादेरित्यपि ats: | 9४

५८९ Bua व्याकरणम्‌ |

देशत॒ल्ास्यः चत्ियो ee wa: परषाुक्ञानां लयानां a विहितानां लुक्‌ स्यात्‌, तु खियाम्‌।

गर्गा; वाः, यस्काः लल्लाः, विदाः wae, गवः श्रत्रय; कुलाः ब्रह्विरसः विष्ठाः गोतमाः, ory! वाः कलिङ्गाः | खियान्तु भागव्यः। |

गोतम Sea AMA! Kea ब्युत्मत्तिमाहइ देश- तु्याख्य इत्यादि तथाच गगादि-ष्णः, यखादि-श-षणायन- णि-शेयाः, विदादि-ट्‌ः, प्रति-णेयः, भगुङुसाङ्गरोवरिष्ठगोतम- शः, रूटृ-णा ट्‌ एङ्‌ | fy दत्येषां ववे लुगित्यधेः HAT. हरति गगा इत्यादि क्दयोमु गाग्य; गार्ग्यो. याः यातौ, वेदः वेदो, Waa, Waa, भागवः भागवी, ale: कौन्ती, श्राङ्किरसः अ्र्किरसो, वाशिष्ठः वाशिष्ठो, गौतमः गौतमो, ww: शराङ्गो xenfe; एवं a लुकि से गर्गाणां धनं गर्गधनम्‌ ्रङ्धनमित्यादि। a विहितानां व्यानामिति किम्‌ aera area भ्राननिवेश्यश्च ते गाग्यवाव्याग्निवेश्या;। एवं मायौ वाद्छौ what ते गा््बवाद्छामिषेश्ा vane लुग्‌ स्यात्‌ परेकदेशिनमु एकवचनान्तानामपि इन्दसमा- साधैवाक्ये समासे , एकार्थामावात्‌ सहमावविवचचायां बहते तुगित्याइः | तैन गगवक्ामिवेशा इति उदाजः, परियवाद्गा इति प्रयदाजष्करिति। गगेषिदादौ oat |

तितः ४८ॐ

यककादियधा-- यसको लद्च-तक्ताऽयसुख-भलन्दन-ठणकणौः (१) | भण्डित भञ्‌ Gut ufea-afget सदामत्तः | क्रोष्टुमायो कहिर्योगः कम्बृलहार.कषैकौ क्रोष्टमानो धिषपुटोप्रिमखल-पादका, (3) RUST: MST दस्तथा कटुकमन्यकौ (र) | वकसक्धः शोषंमायः पिण्डोजङ्गस्तथेव जक्गरथ-भोर्षमान-लत्जा TAFT | उरकाशोऽजवस्तिख विभिः कुद्विरिभे तयः

यस्काटयः षट्‌ शिवादयः, भण्ड तादयः पञ्च नडादयः, भ्रज- AMARA, TANS: | शेषाणामदन्तलात्‌ शिः। यक्ता देराक्षतिगणलवात्‌ पुष्करसच्छब्टोऽपि, तेन पौष्करसादिः पौष्क- Taal, वे पुष्करसदः।

AWA MAM प्रा्यभरतेषु ALA शब्दात्‌ प्राच्य-भरत- Mafafera MA लुक्‌ सात्‌ व्वे। प्राच्यगोते--पन्नागारस्वा- न्तरापल्यं पात्रागारिः wand, बे पन्नागाराः भरतगोते- यौधिष्ठिरिः Afafett युधिष्ठिराः। रएवमा्ल॑निः srt wera: | awa इति किम्‌ ? मेमिः मभौ Ga:

अरगस्युकृरिडिन्योरगस्तिकुर्डिनौ शराभ्यां गोतेत्यस्य व्वे

(1) लह श्यत लक्ष xfs पाठानरम्‌। (२) पिषपुर, उपरिमेश्वल पादक इत्यत्र पदक cafe ots: | ३) कटक इत्यत 12% cafe पाठः

you सुग्धवोपधं व्याकरणम्‌ |

तुक्‌ श्यात्‌, ofa सति sam कुर्डिन्योरगसिङुखिनावादेशो क्रमात्‌ सतः। भ्रगस्यरपान्तरापत्यम्‌ Whew: भ्रागस्यः, श्रागस्यौ a श्रगस्तयः। afte wa गर्गा दिलाव्‌ शाः कौण्डिन्यः कौरडिन्यौ बे afar: | a

तिककितवादैश्चे। faa: fanata ata mafa- हितस्य we चै लुक स्थात्‌ व्वे। तेकायनयश्च कंतवायनयश्च तै तिककितवाः। उपकलमकाः उलककुभाः उरसलङ्टाः श्रमनि- वेशदासेरकाः वह्ृरभण्डोरयाः पफकनरकाः वकनखगुदपर- UT! लङ्कशान्तमुखाः छषणाजिनक्ष्णसुन्दराः अ्रषटककपिष्ठलाः दत्यादि। चे विं? तेकायनयः कौतवायनयः। वे fa? तैकायनिश्च कौतवायनिश्च तेकायनिकेतवायनी |

उपकाटिभ्यो वाऽचे उपकादिम्यो a विहितस्य गोव- त्यस्य WT TY व्व लुक्‌ ATT | उपकाः भ्रौपकायनाः, लमका; लामकायनाः। उपकलमकाः श्रोपकायनलामकायनाः। बे किम्‌? श्रोपकायनश्च ल।मकायनौ श्रोपकायनलाम- कायनाः। उपकादि्यैधा -

उपक्ष-लमक-सुपिष्ट-मयुरं जटिलक -वधिरक-हण्णिक-कशेम्‌ |

पिष्ट-कपिष्ठल-खारोजष्ाऽनुजक-शलाखल-कलसी करम्‌

कासक्घरक्नो निदाघ मन्द्कः कष्णसुन्द्रः |

कष्णाजिनोऽवतौरश ava: छष्णपिङ्गलः

उलुकं-दामकर्टौ चाऽवटावक-कुषोतवौ |

श्रतुलोमराऽनभिहितः प्रतानोऽजपधस्तथा

तदितः | ५८९

` उपकलमकौ नडादौ, सुपिष्टाद्यः सप्त शिवादयः, waaay वाह्वादिः, ओेषाणामटन्तत्ात्‌ श्णिप्राप्िः

गगविदादयः wea: a गर्गादटैविदादेश्च षे वत्तमानस् mea विहितस त्यस्य लुक स्यादा |

arene mata aa गगेधनं गाग्यैधनुम्‌, एवं वदस्य वेदयोवां धनं विदधनं वेदधनम्‌।

रूढ़त्‌ कम्बोजारे नित्यम्‌ | कम्बोजादे Key उत्पत्रस्य राजापत्याधव्यस्य लुक्‌ नित्यं स्यात्‌ 'कम्बोज-जनपदस्यापत्यं राजा वा कम्बोजः

कम्बोजादियंधा-

कम्बोजः MHA खश्च यवनः शक इत्यादि |

feat कूङुङगन्यवन्तिभ्यः | एभ्यो राजापल्योत्पब्रत्यस्य, स्त्रियां लुक्‌ स्यात्‌। ङरोजनपदस्वापत्यं स्रौ wet वा क्रूः, उत इत्यादिना ऊप्‌। एवं कुन्तो want, साडो लुकि टृजातेरित दति =u |

परतच्ाप्रा्य मगं-यौधेयादैः प्रा्यमोत्र-भर्गादि-यो्रयादि- भिब्राद्राजापत्योत्पश्नस्य ware (१) frat लक्‌ स्वात्‌ शूरसे- Tage सनौ UM वा शूरसेनो, इडविड़स्यापत्यं wt रान्न वा द्डविड़ौ saa Zu, मद्रस्यापत्यं खो Til वा मद्रो, दरदोऽपत्यं स्तो रान्नौवा दरत्‌ इत्यत दयचः शस्य लुक, लकि fq मद्र-शूर- सेनाभ्याम्‌। भरत fa fa? कौशल्या wera) भरप्राय-भर्ग-

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(१?) अक्ारमाब्लप्रययदख।

५९० मुखवोधं व्याकरणम्‌ |

वौधैवारैरिति कं! creat R28 मागधो are बाह uteri लादि। anid: मार्गी Raa) कधं “पराक्‌ कैकयौतो भर तस्ततौऽभूत्‌” भरादयप्रक्ञतिरेव ! नदादिपाठािति arate: | भगादियधा- भर्गः TEM कश्मीरः ATT PATA शातवोऽलुभवकैव भगोदिः परिवर्तितः Hine: - वषयो भौभरयोल्यादि च्ियामिति चकारेणा गुकषणाव्र saa (2) गोपवनादैः | Maaneilare TE स्वात्‌ श्रयं विदाद्यन्तगेणः | गौपवनाः, Nore गोपवनयोः कुलं मौपवन- कुलमित्यादि |

उक्तोऽपरल्याधिक्षारः।

शो वेत्यादौ यमादिभ्यस््पत्यवत्‌ | स्यादन्ताहञः शः स्यात्‌ वेच्यादिष्येषु, यमादिभ्यसु भ्रपत्यवत्‌ त्याः खयः वैद्यादिर्यषा-

वेत्ति भ्रधोते रकम्‌ | ga कालः। दृष्टं ara परिहतो- TH | उकृतम्‌ संतं भच्छम्‌ त्रतशयिता पौणमास्यस्िन्‌ श्रख देवता समूहः विषयो ease) भ्रादिरस्य uma) संग्रामः तदस्यस्मिन्‌ देशे निवृत्तः निवासः श्रदूरभवः | विकारः। भवथवः। भवः। व्याख्यानम्‌ प्रायभवः। जातः क्षतः करोतः। लब्धः कुयलः चतरं ह्यते संभूतः | साधुः पुष्यत्‌

vee:

(1) अलुष्तते इति येषः।

तदितः | yee

४३० ठषे कात्‌ Warners चानित्च। (ढघे 9, कात्‌ yl, शौक कण Wty इयाः ei, ।१।, भरनितः १।॥, ।१ ॥) कात्‌ परा एते Fa सेतो sree ठे घे are

पच्यमानम्‌ | उकम्‌ | दैयमणम्‌”। मृगो व्याहरति | अख सोढम्‌ sma: | प्रभवति | गच्छति "अभिनिष्क्रामति ofa nat wa) एकदिक्‌ we निवाष;। `भरस्याभिजनेः। we मक्तिः। च्यते | aR) उद्यते प्रोक्तम्‌ उपन्नातं क्रतो ग्र्यः। इदम्‌

यमादिस्तावत्‌ -यमः भादित्यः afta: कलिः दितिः भरदितिः पृथिवो देवः श्रपण्ताद्यारिखयानान्ताः उततादयश्च पश्चादियं Parl उदादरणानि तवर aa वश्यामि।

दिल्यदितिभ्यां Wa: भाभ्यां वैद्यादौ Wat स्यात्‌ दितिं वेत्ति भ्रधोते वा दैत्यः, एवं भ्रादित्य इत्यादौ श्यः, aa ्रादितेय इति |

४३० sd) टश्च तत्तस्िन्‌। कं कारकम्‌ ष्णी- कश्च कण्‌ tag द्यश्च ते। नास्ति इत्‌ येषां ai चकारेण प्व सप्तत्या ATRIA | तथाच भरतलयास्तत्रत्याश्च त्या एका- दथ सेतोःनितशाभिधानाहविन्तौ खथ |

ढादिलयधिक्रियते धात्‌ प्राक्‌ |

AUNT | ढात्‌ परः ष्णः ख्यात्‌ Awa ws वेया-

४८२ UA याकरणम्‌ |

am वैति भरधोत वा ताकिंकः, पदकः, क्रमकः, वैया- करणः ; वाचा क्तं वाचिकं, पाणिनोयं ; शक्या बुध्यत ऽसौ श्ञोकः, याष्टोकः, free gat रातिः तूमो, पौषौ ; चत्ताय ay: शच्चियः, ara हितं afer ; गधुशया TAA; ATT: ; इह भवं एेहिकं, कादाचिक, ग्रामौोणः, ग्राम्यः, मृरैन्यः, नादेयः शालोयः, नागरः, WAT: |

em ~~ ~--- - --------- - -. = ~~ eee = = ^

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करण इति व्याङ्‌ पूर्वात्‌ क्घोरनट्‌ णुः we, व्याकरणं वेत्ति wae वा sad षणः रिते युम्‌ fa: वयोरिलयकारलोपः। एवं प्रभाकरोपलश्ितो ग्रः प्रभाकरस्तं वेत्ति WHA वा प्राभा- कर इत्यादि |

णिक sane: षष्टि्रतपधार्म्यां af; same: शिकः स्यात्‌ पष्टिपथ-परतपधाभ्यान्तु fra 1 उपचारात्‌ उक्थ- शब्द भ्रौक्धिकाधेः, तं aft wha वा भौक्थिकः लौकाय- fea: ठक्धादियया-- उक्थो लोकायत; WA: पुराणं संहिता शरत्‌ | वषा वसन्तो SHA: VHA: संग्रहो गणः | भ्धव्वां भिथिरो ठत्तिशश्चाधव्पण-लक्षणम्‌ | न्याय-न्यासावनुपदाजुगुणमगुणा भ्रपि॥ fever विपदा न्योतिरायुर्बेदः क्रमैतरः। यन्न AA ARIAT JACM: पदः क्रमः

afea: ५९४

चेरमप्रथमाभ्यान्तु गुणोऽ क्रतुवाचिनः। भ्राख्यानाख्यायिक (१) चेतिहासो वे लक्षणोत्तराः श्रधर््माद्या्भिषविदयान्ता wa कल्यादिवल्निता; | सूतान्ताश्चुथ काल्यान्तास्तधामिन्ननुसूरपि भरथव्वीणं वैच्यधोतै वा भ्राथन्मरणिकः, ek नलोपः। नेयायिकः नेयासिकः, योर्यम्‌ द्ूतोमि far. गतुकल्य- शब्दं परे पठन्ति (२) वसुतसु कश्यान्तलात्‌ सिध्यति | चारम गुणिकः प्राथमगुणिकः। क्रतुद्यचिनः क्रतुविशेषवा विनः | भआश्ठमेधिकः वाजपेयिकः राजसूयिकः wera ग्र्यान्तर्गता- पैचितस्य वणनम्‌ यवक्रौतसमधिक्षत्य कतो न्य इत्ययं ष्ये छते कचित्तस्य लक्‌, तं वेच्यधोते वा यावक्रोतिकः प्रेयङ्गविकः | मूले ताकिंक इति (र)। भाख्यायिका प्रबन्धविशेषः, तभधिक्तत्य क्षतो ग्रन्यः, we लुक्‌, तं वेत्यधोते वा vad णिकः वासवदत्तिकः सौमनो- रिकं इत्यादि लक्षणोत्तरा दति-लत्षणशब्द उत्तरो येषां, गोलक्तरिक श्राखलक्षणिकः | भ्रधरमाद्यादिविद्यान्ता इति- are विधिकः वायसविदिकः। watery धारविद्यः चंविद्यः भङ्गविद्यः | भरधानन्तरं कल्या दिवलिनितः qatar शति- संग्रह सूत्रिकः वार्तिकसुविकः। कल्यादिणु काल्पच्‌त्रः। wena

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(1) व्ाख्यानविेषषाविनः, आख्यायिकाविरेषवाचिनद्च। (९) तातादुशारेणेबाश्माभिरपिसपटित sata: | (१) आखयानोटाहरणमितिरेषः।

७५

९.४ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

दति-माढकषलिकः पाराशरकल्िकः | भ्नुसूनौम गन्यविगेषः, तं शह्यधोपै वा sed शिकः |

दमुसुक्तान्तादिकस्य कः। VF ay | इसन्तादुसन्ता- दुकुप्र्याहारात्‌ ATHY, परस्य इकश्य "कः स्यात्‌ MITA furaae कलविधानात्‌ fod fa: षष्टिपधं Gea वा ष्टिपथिकः षष्टिपथिकौ शतपथिक्षः शतपथिको |

uate: कः टादिल्येव | पदादिरवेद्यधोते वार्थे कः स्यात्‌| मूते पदकः क्रमक दति। पृदादियंया-

पदं fara क्रमः साम मौमांसोपनिषच्च षट्‌ |

रिक्तकः मोमांसकः, Gsm: खः |

प्दोत्तरदादिकः। पदसुत्तरपदं यत्र तस्मात्‌ इकः स्यात्‌ aU वार्थे पूव्यैपदं वै्यपोते वा qaufer उत्तरपदिक इति एकदेशिनतु परदोत्तरथब्दादेव दकः, पदोत्तरपदिक द्याह: श्रानुपदिकं इति उक्धादिवात्‌।

श्रनुत्राह्मणारिन्‌ | उपनिषद्वागातिरिक्वेदव्याख्यानं ब्राद्मण- Ala, तस्य ET श्रनुत्राद्मणं, सादये वसः, तदे्यधोते वा शअुब्राद्मणो भ्रतुब्राह्मणिनौ भ्रनुत्राह्मणिन इति चाद्द्रासु wera साधयन्ति इतिः चिन्हम्‌

द्यु वाधते हृन्दसः Tas) Salas इयः खात्‌ वा, afaq छन्दसः Maren छन्दोऽपोते wifes: पचै छान्दसः, AAS नानुहत्निः |

Gary संख्याकोडो लुक्‌ सूत्रवाचिनः संख्ाप्रक्ततैः कोडो-

तदितः | yey

ऽध्येढबेदि तोविहितस्य त्यस्य लुक्‌ eq) पापिनीयमट्टवं (१) सतं teat वा अष्टकः पारिनयः , दशको वेयाप्रपदीयः संख्येति किं महावा्तिकं aa aha वा मादहावा्निकः। mle दति किं? चतुष्टयं aa aaa a चातुष्टयः |

weaagala) wegaiq wiqate लेः परस्याधयेढ- afenfifeae we लक्‌ "स्यात्‌ सवार्धिकं वेक्यधीते वा सवात्तिंकः संग्रहः, एवं date: सासः, पञ्च षेदान्‌ वैच्यधोते वा ताचि वाये a:

प्रोक्ताश्च | प्रोक्तविहितत्यान्तादध्येटतेदिनचोविंहितस्य त्यस्य लुक्‌ स्यात्‌। पाणिनिना ata वेत्ति watt वा पाणिनोयः faat पाणिनोया, अपि्रलस्यापल्यं श्रापिशलिः, तैन प्रोक्तम्‌ श्रपिशलं, तदे ्यधोते वा भापिश्रलः स्ियामापिशला, षिच्चेऽपि गोणशत्वात्रप्‌ |

कल्प-मूत-च्छन्दो ब्राह्मणानि तदिषयाणि एतानि प्रोक्ञा- धिकारत्यान्तानि श्रष्यदवेदिष्टविषयाणि भवन्ति भ्रनन्यत्रभावो fanaa: | तथाच प्रोक्घत्यान्तानामध्येट-वेदिठ-विषयता-व्याप्य- विषयताकल्वमिति पथवषिताधेः (२)। एतेन खातन्ताम्‌ उपाध्यन्तरयोगे arg fara) . कल्पस्य तावत्‌- कश्यपेन

~ नक ee ~ ~

= जा re ne re Enea ED Se

(१) wet अध्यायाः परिमाणमस्येति अष्टकम्‌ |

(x) अन्द्ःप्शतिभ्वरटेव परोक्ता प्रययः खात्‌ यदा परोक्घप्रत्ययानेभ्यः शब्दभ्यः परं बेक्यधोते Aaa प्रत्यय लङ्ञोपञ्च सम्धाव्यते। नतु कठेन परोक्तं कट- fafa खातन्त्रमश प्रयोगः aq) तेन कठेन Wal कठम्‌ कठं बेत्यधीति वा कड षेव वाक्यमपि arg | अतणएवोक्तं कठेन परोक्तमधोते इति CETTE

१९१ FUG व्याक्षरणम्‌ |

ia कल्यं (१) वे्यधीपै ar काश्यपो, waaay ware णिन्‌ (२) तस्मादध्येढवेदिव्रौः णः, तस्य लुक्‌. तुकि सति भरनेन प्ोकतस्याध्येटपदिठविषयत्वे लिङ्कवचमे (२) भवतः। एवं कौभिकी। दृह waa ग्रहणात्‌ Rag इत्यादौ स्यात्‌। Faw तावत्‌ -पारागर्थण wa fagad वे्छधोते ar पाराशरौ भिक्ुः, कन्दो fing: (४) Tare नटः, छशाण्वो नटः; (५)। छन्दसस्तावत्‌ -कटोः ब्राह्मणः, तेन प्रोक्तं छन्दो व्यधो वा कठः, मोदः Tae: Walat वाजसनेयो ब्राह्म- णस्य तावत्‌ - तर्डिना विप्रेण प्रोक्तं ब्राह्मणं (2) Fes वा ATW शावयायनो रैतर्यौ एषामिति किम्‌ ? पाणिनोयं व्याकरणम्‌ |

श्रगोत्रणि.कग्वादिणपाहहादौयो भवादौ गोतरविहितणान्त- वजिंतात्‌ कण्ठादिशयान्तवजितात्च ददसंत्रकारोयः स्यात्‌ भवादिष्व्थेषु | गार्गीयः वाकौयः शालयः wala: श्रौपगवोयः aay, मदोः wala इत्यादि | गोत्रणि-कणदिणाभ्यान्तु ala: काखः ज्ामदन्यः। Mara इति किम्‌ ? garda

net osm ——se mF नि nen emia dimantdemmmmnmmeantine ame aemes eral

(१) यागक्रियोपदेथको पेदाङ्गपन्धविरेषःक्लः।

(१) चिनृषिधायक्श्तं परतर वच्छति।

(8) लिङ्गवचने इति प्रोक्गखेत्यनेनान्बयः।

(a) wee रों fuga Feta भेति। fre: परित्राद्‌ कमन्दी. WAT |

(५) थाश्रोयव TUTTE इन्‌ |

(६ मग्तेतरभेदभागो ब्राह्मखम्‌ |

तितः | ५९७

fara: सोतङ्गमः, तस्येदं सौतक्मौयम्‌। wr इति किम्‌ £ करो देवताऽस्य काणः, तस्येदं BAA |

वाचः प्रा्यभदताच , प्रा्यगोत्रष्णगन्तात्‌ भरतगोत्रष्णा- are era दयः त्‌ ware ूर्ववेणाश्ाप्तेऽनेन विधोयते Greta aela: काथोयौः। दाच इति किम्‌ ? पात्रागारः। प्रा्यभरतादिति किम्‌? दान्तः gra ननु कथं लागौोय इ्युदाद्रतं, काश्यादेणिकशणिकयोवि धानादिति चेव, aa चेदि- शब्द्-समभिव्याद्त रेशवाचक-काभोश्रब्द ग्रहणात्‌ इह गोता- UA ग्रहणं, तु देशवाचकस्येति |

HBS VR दहादित्येव। ककारोडः खकारोङश 22 वर्त मानादृद्ादोयः स्यात्‌ भवादौ कोडङ्णास्य वादोक ग्रभेभ्यशचेति शिकण्णिकयो्वाधनाथेमिदम्‌। भ्रावहनकौोयं टौघनकौयम्‌ भ्राखल- कोयं कौटशिखोयम्‌ भायोमुखोयम्‌। हडादिति किम्‌? सौमुखम्‌ |

ग्राम-कन्वा-ङृद-पलद -नगरोत्तरदात्‌ | ATATA ALTE MATS. कात्‌ हद्ादोयः स्यात्‌ भवादौ दाच्षिग्रामोयं etfaaate दाक्षि. दोयं दाच्तिपलदोये दाक्िनिगरोयं मादहकिग्रामौयमित्यादि | हदादिति किम्‌ ? महनगरे भवः माहनगरः। उत्तरदादिति- किम्‌ वाहग्रामं वाडूनगरम्‌ वाद्दोकग्राभेभ्यचेति णिकश्णिक- योर्बाधकमिदम्‌ |

TURRETS | हष्ठादिति निहत्तम्‌ भारदाजे नानि Va वत्तमानाभ्यां पयक्ञकशाभ्याम्‌ ईयः स्यात्‌ भवारौ | पर्णयं कक णौयम्‌ | मारहाजदे्भिन्रे तु पायं काकणम्‌ |

yee मुगवोधं व्धाक्षरणम्‌ |

गहादैभवतततु दङ्‌ गहादेरौयः खात्‌ भवादौ, wae. बद श्ये दडः च, शत्‌ गोयम्‌ भरन्तरोयम्‌ | गहादियधा - गहान्तरौ नेमि-समानशासौ दत्तात-काठेरगि-धन्विनचच | wifefa-ardefa-qaraen भौरि; समः शेशिरिरत्तरश उत्तमो विषमो भौजिरन्तखो मगधासुरौ | इृधुप्रापरपक्ाषाधमश्ाखा सधा भवत्‌ (१) शीङ्किरत्तमशाखश व्याहि-खाहायनो तधा | दष्वनोकोऽम्निशम््ा शौद्धि-वाराटकौ तधा I एकश्च वाल्मोकिरवसख्यन्दन पार्तः (२) | एकग्रामो sani: कामप्रस्तयेकतः। श्रामिन्रेयकपलाशौ (२) मुखतः Mavfa | isa हदासेभ्य Mafra: णो, येऽदद्ास्तभ्यो जनपदलात्‌ रको, ये तु Wanda व्वभित्रप्रा्यभरतात्‌ णो aaa पाशवतोयः, व्यटेर्लौप इति टिलोपः। कामप्रखगब्दात्‌ प्रया- लात्‌ शके प्राप्ते विधानम्‌। पव्ववदेकतीय इति aren श्राक्लतिगणोऽयम्‌ | भवच्छब्दस्यान्सस्य TE भवदोयः। CRATE लऽमतुषे पव्तगब्दा्मनुषे वाच्ये शयः स्यात्‌ भवादौ, मुश्यमिब्रे तु वा wala मनुष्यो राजा वा, पव्य- तीयं पाबतमुदकम्‌ |

(1) Wa, खपरपक, जङ्ग अधमयाख। ।२ पातक | (x) आमिति. wagers |

तितः | १९९

MAAC | देशवा चकाहत्तोत्तरदादौयः ख्यात्‌ भवादौ |

हकगर्तीयः। उत्तरादिति किम्‌ वाहगत्तम्‌ awa ग्रामेभ्यश्ेति शिकण्णिकयोवप्रनायेम्‌ |

प्राचि तु कटाः ।*प्राहेशवाचिनः. कटपूव्वादोयः स्थात्‌ भवादौ कटनगरोयम्‌ कटघोषौयम्‌ aan इति किम्‌ काटनगरः।

सख पर-देव-राज-जनस्य कंथ एभ्य श्यः स्यात्‌, एषः कन्‌ च। खकः (१) परकोयः देवकोयः राजक्नोयः 'जनकोयः भ्रागम- शासनमनित्यमिति न्यायात्‌ खयं देवौयमित्याद्यपि। तधाच धनमहरहदेत्तं सोयमिति शिष्टप्रयोगः वामनधरदासौ तु खस्य ददं सौवमित्याहतुः |

एथिवोमध्याञ्च मध्यमश्च पृथिवोमध्यशब्दात्‌ शयः स्मात्‌, तख्िन्मध्यमादेशच्च | मध्यमोयः |

वेणुकादेशित्‌। वैणकादेरोयो पित्‌ खात्‌ भवादौ वैशु- कौयम्‌। वैण्कादिर्यथा-

aya चिश्रकमुत्तरपदकं मध्यमपदकः प्रखयकमन्धत्‌।

भन्यदित्यनेन श्ारदोयम्‌। वैएकादिपञ्चानां areata ष्ण प्राप्ते पाठः। भ्राक्नतिगणोऽयम्‌।

—— crt ~~~ NS ME Re

(१) धनमहर हर्‌ तं स्कोयभित्यशाधुरिति परशुप्तिर्ति स'शिप्रसारे (४३९) दारादोनाद्ेग्यत वामनेन षश्पटारेन wae सोषमिलयुटाहृतम्‌, swfucta खःदेरित्यत्। wag कंचिट्पकाहमिषयेऽुलयरगोऽभिनिषिथते दति vere | दति mater: |

१०० सुगवोधं करणम्‌ |

ाश्वारैिंकणिकौ। arene: परौ रिकशिकौ ख्यातां भवादौ कािक्रा काशिकौ चेदिकषा चेदिकौ | काश्चादियंधा afte वेधद्यत-मोदमानाः संषा-गोवासन-साधठामदरम्‌ सुरङ्ग-सम्प्रातयुपराज Fes कालोदकाला श्रपि सिमुभितः। - शकुलाटो हस्िकषः SAA ACTA | प्रापकाल-दिरप्याभ्यां दासमित्रेण daa: i दासग्रामो SATAY युवराजयुतस्तथा | ara देवराजो व्यासोऽरिन्दम एव च॥ सौधावतान इत्यष्टाविंशतिः समुदोरिताः। कारशिचेरिभ्यां जनपदलात्‌ णकः, सम्पातिशब्दात्‌ व्वभिव्र- प्रा्यभरतगोत्रष्णन्तात्‌ णो, येऽत्र दासभ्यः शयो, येऽददा- सत्यः शो, हस्िकरषशबदारेशवाचकादुदन्तात्‌ Faas बाध्यते देवदत्तशब्दीऽत्र प्राग्देणवाचकः, तखा्ृहसंशकल्वादोये प्रे विधानम्‌। वाहोकम्रामवाचकातत्‌ (१) देवदत्तः | हहादाहोकम्रामाहा तूशोनरग्रामात्‌ वाहोकग्रामवाचकात्‌ हत्‌ फिकश्णिकौ स्यातां भवादौ शाकलिका श्राकलिकौ मान्यविका मान्यविको। seere माहनगरम्‌। उशौनर- गरामवाचकासु ब्राहजालिका राष्रजालिकौ सौदभेनिका सोदथनिकौ, पे प्राद्रजालीया सौदगनोया |

आजमा ना जक ~> 9 oe ~~ ~ a -- ~ = ०० ~ ~ --+ ~ 9 ~ ete ~ *

(१) बाषोढदेणोवपराभवाचकात्‌।

afea: | ६०१

देणे युङम रवचनाम्यां रकोऽस्थाजः | ददाद्युङो देश्वाच- AGA HATA णकः स्यात्‌ भवादौ तु SUA: (१) सांकाश्यकः काम्पि्कः मागध्यकः। धन्वन्‌शब्दो मङृवाचो, पारेमध्ये इत्यादिना "वप्रः, अन इत्यनेनार््रः (२) पारेधन्वे जातः पारेधन्वकः, एेरावते जहतः एेरावतकः Bag wees इदं सौप्रख्य' सौप्रस्यदेशे भवः gets: ख्याजो यकारः ATCT नोयः, तस्यासिद्ठत्वमिति पार्णिनोयाः |

वह्प्रखपुरान्ताच्च वहान्तात्‌ प्रखौन्तात्‌ पुरान्ताच्च देश- वाचिनो sar शकः स्थादृभवादौ पैलुवहकः फाल्गुनो- वकः, मालाप्रसखयकः, नान्दोपुरकः Wag परसृतरेण fee परग्रहणं प्रायां, तथाहि नाद्धोपुरमुरोचम्‌। दडादिति किं wage |

प्रावि लौ ae: प्राचोति टेशविर्रषणम्‌ ईकारान्ताद्रफो- ङश प्रागदेशवाचकात्‌ ददात्‌ णकः स्याहवादो माकन्दो -- माकन्दकः, काकन्दो-काकन्दकः। पाटलिपुत्तकः एेकचक्रकः, एक चक्रशब्दस्य प्राग्देशे रएडादिलात्‌ ददहसंन्ना। ददादिति किं? दशपुरे जातः दाशपुरः। प्राचौति किं? दात्ताभितोवः सौवीरनगरोयः | दात्तामित्रौ सौवोरनग्ररो, एत उटोचदेशस्छे

जनपद-तदवधिभ्याम्‌। हद्वादे शवा चिना जनपदात्‌ जनपदा-

aS ee = ~

(१) शयाषातुषाधितयङरोडङः wares: | (२) समासान्तः BHAT TANT |

98

१०२ Quay व्याकरणम्‌

ata (१) शकः BINT ्रामिशारकः, प्रप्रा्यतात्‌ पूर्वेगा- ्राप्तिेन एकः। श्रादशेकः। जनपदावधेसतावत्‌ Wye: श्वामाप्रनकः। नतु जनपदावधिर्जनपद एव ग्रामः, किमघं afe एन्‌ गरहएमिप्रि'पेत्‌ aa, तदवधिव्रहणं वाधकवाधनाधं तैन anne: waa गर्तोत्तिरदादितौयं बाधिचा जनपटा- क्रक एव स्यादिति वामनः | व्वदिषयादष्ठदाच्च श्रहदात्‌ हाच जनपद वाचिनस्तदवधि- वाचिनश्च व्वविषयात्‌ णकः स्याहवादौ णेययोरपवादः | श्रहद्ाजलनपदात्तावत्‌--श्रङ्गाः WEA: (२)। श्रहद्वाज्नपदा- बधेस्तावत्‌ AAAS: WARMTH, WHR: ALARA: | ्द्वाज्नपदात्ताषत्‌ - Al: SPH: | ददाजनपदावधेस्ता- वत्‌-कालन्ञराः कानञ्जरकः। विषयग्रहणमनन्यत्रभावाथं (र) तेन जनपदैकेषवहत्े मा भूत्‌। वैन वत्तनो वर्तनी TTA ता वत्तन्यः, aaa: (४)। ननु वात्‌ Tata wa सिच किमधं चकारेण तदनुकषणमिति उचयते- ब्राह्मणेभ्यो दधि दोयतां तक्रं कौण्डिन्याय एति न्यायात्‌ व्वविषयात्‌ serena विन्नयेत्यटोषः (५)

=+ oe et rn acre ee ---- ~ ~ te -~- -* = —- 6 ap ae ew ra ees

(1) wrazaret अवधिकेति कमयो धारयाव्ननपद्द््प एवाप्धिलमभ्यते- इति तक्वबोधिनो।

(२) अङ्गा जनपदासोश् भव AEA: |

(९) यः walt निलयबहवदनान्क्ततैवायं विधिरिति मावः।

४) वर्तंनौषु भवो कर्तन

(५. अथमेव तक्रब्रौ रिफिन्यन्याय दूष्यते - पूते fe जनपर्सामान्य

तदितः go

वत्तीऽग्नि-कच्छ-वज्ञोत्तरदात्न्‌। वर्तादयक्तरदात्‌ देथवाच- कात्‌ हद्वादहदाच्च णकः स्याद्मवादौ | णोययोरपवादः। चक्राणि वर्तन्तेऽत्र चक्रवत्तः TUS TTA घञ्‌ त्मा्च क्रवन्तंकः | एव॑, कानाम्नकः चारर्वीच्छकः Grama) वर्तागिकच्छवक्ता- न्तादिति aa सिद उत्तरटग्हणं a RATATAT, aa argaa: | कथं बाडवत्तकः इति ? sad - बहवो वन्तन्तेऽत् इति ब्यत्यद्या बाहवत्तेकः | WATS: | waTeeMaT aaa T: स्याइवाटौ धौमकः घौषस्यलकः | घमादियधा-- धूमो घोषखली घोषपुष्मो दाग्डायनस्छनो धासरान्नो सुरान्नो तीधं-पल्लो-गशादनाः (१)। afta राजहं भत्तालीवनव्यैरावयी (२) HAA माठरो ARPA SSA FATE (२) | MATA MAA-ASS-ATUTTAT: हौपाऽन्तरोपोल्यिनो-द्याहाराऽरुण -कुत्तयः | uafanfea प्रोक्ता सााहारथ महाखलो

_.---~ ee meee --- -~ ~= = ~~ -+ “~~~ = ¬“ ~ ~~ = ~ = ~~~ ~~ -- ---~ ~~~)

earq wat fafya:, यथा बाद्खसामान्ये ,दधिदानम्‌ ; WF तु बह्कवचन- विषये पिष यात्‌ खकः, यथा कौण्डिन्ये तक्रदानम्‌ | ततञ्च बह्कवचनादेपि YF WH WY यारभ्यसाणः ASAT णकः CH] THY बाधकः arfefa चज्ञारेण eggiaa cau: दति पदम्चरो |

(1) wales Fal षत्यपि UTS: |

(2) wat, BTA

(१) wae, BHR, Boge दूति पाठत्रयम्‌।

६०४ मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

नगरात्‌ FAA mate: निन्दायां प्रावोश्ये नग ग्रब्दासक्रः BRAN! नागरकः चौरः प्रवीण | aa. प्रगीख्धयोरिति किं नागरः gael acerg पयि न्याय विहाराः्वाय-हस्तिषु वातु maa अरखारेतषु वायषु गक; स्याहवादी, गोमये Gai श्रारखको मनुः न्यायो विद्धारो ऽध्वायो हस्ती च। Maat गोमयः away | एष्विति किम्‌ आरण्याः पशवः | कच्छारेन ततृ्ययोः सावाचकात्‌ कच्छादैर्मनुषये ATT वाद्ये गक्रः BRA | काच्छकौ मनुष्यः, काच्छिका चु, काच्छो नखः, काच्छवां हसितं, काच्छको विवादः। काश्मौरको मतुः काश्मौरक्रो नखः काश्मोरकं इमितम्‌। कच्छादियथा - कच्छ AMT कम्बोज मधुमत्‌ कुरु सिखवः। कुतूभर-विरूपौ हौपाऽनुप-विजापकाः। माखाऽङ्गाराऽनुषण्डा्ाऽजवादहो TATE इह माखगब्टपाठो वद्यप्राणणप्रा्यधेः | साखादपदातौ | साखशष्टात्‌ पटातिभिन्रै मनुष्ये मनुष्यखे वाये एकः स्थाहइवादौ 'साखक्तो मनुः, सारकं हसितम्‌ | पदातौ तु are: पदातिव्रजति नियमाय वचनम्‌ | गी-यवाम्बोष वाषठादिल्येष। साखको गोः, afar यवागूः | वर्णो; waa | वर्णनम नदः, वणनद्समीपवाचिनः

तदितः | ६०५

MAT णकः स्थाहइवादौ। शिकस्य वाधकभिदम्‌। कौन्धकः भन्यत्र काल्िकः।

वातु कुस-युगन्धराभ्याम्‌। शराभ्यां wat वा wearer | कौरवकः कौरव गः |” waaay कौरवको मनुः, कौर- विका चुडा, कच्छादिपाठात्‌ , थोगन्धरकः यौरन्धरञ्च गौः | RATS, एताभ्यां हहादपौति (१) नित्ये ute विकल्पः

कुलात्‌ सौवीरे! कुलशब्दात्‌ सौवीरे वाच्ये WH: स्याद्ध- वादौ कौलकः सौवोरः, अन्यत्र कनल

पाधैयाऽऽनत्त-विदेह-पाण्डकात्‌ एभ्यो शकः स्याहवादौ | naar युङत्वेऽपि went वचनम्‌ श्रानत्तविदेहयोजन- पदल्वेऽपि अजनपदाधम्‌ | पाणडकशब्दात्‌ कोड णस्य बाघना- UA | यथा-पाथैयकः श्रानत्तेकः वैदेहकः पाण्डककः |

दाषट्ादियः। राटशब्दादियः स्याइवादौ राष्टियः |

दूरोत्तराभ्यामैत्य-णाद्चौ श्राभ्यामेतौ क्रमात्‌ स्तः भवादौ | दूरेत्यः श्रौत्तराहः।

नटौ-कच्ति-पार-दिवादिभ्यः णशेय-शेयकेन-याः | नदादैः शीय; कन्चयादैर्णेयकः पारादेरौनो दिवादयः स्याहवादौ नादेय: वाराणसेयः। नदयादियथा-- °

नदौ वाराशसो दावा (२) वामा कौशायनो महो

Rat खादिरो दामा कौशाम्बो Sarat (२) भिरिः।

A OO RD

(१) अनयोः CYTATTHATEIA | (2) gaat द्रत्यपि ate: | (९) Saaterfa ure: |

Gog सुगवोधं ARTA |

aren दावीं पुरं glam, वडवा हष |

चम्पवनभिति ata नद्यादौ कोविदोत्तमेः। Vea हहासेभ्य श्यः, येऽहदास्तभ्यः शः, हहकारान्ताखकः Tt WHT वाध्यते | areaat , व्रषः, अव्यत, वाइवः। कचरे

स्तावत्‌ -काश्चेयकः (१) IOC ` कच्ःदिवधा | कचुप्िषष्करं हस्तो पुष्कल ग्राम यौवनम्‌ |

कुण्डो (२) चर्यगतो माहिती गरौवा तु भूषणे |

Feary यलोपोऽस्िब्रसौ aa: कुलं शनि (a) |

सं्ायां नगरो पञ्चदशे परिकोत्तिताः।

TIA करहभूषा | कौडयकः Wa गेये यनोपः | कौक्तै- यकः GE) कौलेयकः Bll Ba संन्नायां नगरोशब्टः पट्यते नागरेयकः। जातौ तु नागरः। पारादटेः-परोणः earth: | ारादियधा-

प्ाराऽवाराऽवारपार-पारावारा द्मे AAT: |

ग्राम पञ्च पारादावाहुः पण्डितसत्तमाः॥ दिवादेः--दिवि भवं दिव्यम्‌ दिवादियंथा-

दिव्‌ प्राग्‌ वागुदक्‌ प्रष्यक्‌ पराग्रामभिल्यपि

जदहाऽपराशाऽधमार्दत्तमादमिदह कोत्तितम्‌ | ग्रामभब्दस्य fag (४) पाठात्‌ ग्रामेयक; ग्रामोणः ग्रासय

(१) कुल्हिताश््रवः aaa भवः | (२) कशणिड़न्‌ | (8) afaq dak एर garage यनोपः| असो aR कृिषन्द्‌- ein fa rey pang: कत्मादिः। क्रन्नयषौ परादौ fered

तदितः goo

कापिश्यादेः ष्णायनो वा तु रह्नोरदप्राणिनि। ' कापिश्याः णायन; स्य इवादौ, wtq दभिन्नप्राणिनि वा। कापिशायनः। कापिश्यादिर्यधा- कापिभो afe-qafe चतुष्कं परिकीर्तितम्‌ (१) कापिशौशब्दाददसंज्कादौयः, Ria: अ्रहदादपि व्विषया- दिति शको बाध्यते। राङ्कवायणो राङ्वो गौः प्रारिनोति किं? रावः कम्बलः। श्रनरोति किं? राङ्कवको मतुष्यः। TENE: कच्छादौ aya | रुप्यीत्तरदारण्याभ्यां णः | रुप्योत्तरदादरण्याचच णः स्याह्ध- वादौ। WHS, णस्यापवादः | ठदसंत्नकात्त॒ मारिक्वरूप्यात्‌ युडो एको बाध्यते, णवि षानात्‌। शरण्यः स्ियामारण्या गौः | दिकूपव्वदादनामनि दिक्शब्देन दिगृवाचकोऽभिधोयते। feaga दं यस्य तसात्‌ श्रसंन्नायां णः स्याद्ववादौ | पौर्वशालः, श्रोत्तरणाला खो. fea saw तार्थ यस इति at (२) नामि तु ya चासाविषुकामशमो चेति पूर्वेषुकामशभौ, तसात्‌ प्रागदेशनगरादिभ्य इति भ्रौत्सगिकष्णे सुपच्चालादित्वात्‌ TAT दस्य fa: दगृहणं खरूपविभरेनिरासायम्‌ | मद्रात्‌ zt दिकूपूव्वेदादित्येव। दिकपूरव्द्रशब्दात्‌

(१) कापिशो arty, परि, ofe बाह्धिरिचतर ष््किरियपि are: | (२) स्वमते gat चासौ शानाचेति. aat भष इति वाक्यम्‌ | परमते त्‌ qaar शालायां भवर दति ae |

got मुश्धवोधं व्याकरणम्‌ |

टः खावादौ पूवद्य सः | dha: | समद्रा दिश इति पथुदासात्‌ (१) पूवद fir | | बहचोऽन्तोदात्तादुदोयगामात्‌। उदौयगामवाचकादन्तोरा- AEWA रैः टः स्याइवादौ | णस्यापत्रादोऽयम्‌ | माहनगरम्‌ | महनगरशब्दस्य यसः खरेणान्तोदात्तलात्‌। उदो्गाम्रादिति किं, मारः मध्वदेशग्रामलात्‌ एः बह्वच इति किं ? वालः watery शः। भरोदास्तादिति विं भाकरोधानम्‌ | ufaq शास खरलकणाभापरऽपि हदोपदेणादन्तोदात्तादिकमव- गन्तव्यम्‌ | खरलक्षणानि नोक्ञानि भ्रस्ित्रनतिप्रयोजनलात्‌ |

MACS | तौरोत्तरदाच्छब्टात्‌ टुः स्याहवादौ शेयः योरपवादः (२) पारवलतोरं काकतोरम्‌ |

कव्याभवह्यां शिकः | श्राभ्यां शिकः Great शेययो- रपवादः कान्िकः, भावतः canary शिकस्य कः | गहादि पाठात्‌ भवदोयः | भवदित्यव्र डवलन्तख ग्रहणात्‌ शवरन्त- ITT भूत्‌. तेन भावत इति।

wet aera प्राचि। उव्णान्ताषेशवाचकात्‌ णिकः BRU, प्राग्देे वत्तेमानादुवण लादृहादेव, नान्यस्मात्‌ | मरौ ata मारकः उवरणान्तादिकस्य कः fafa fa एवं ACHAT: MATT: | MATTE कख कै छते कैकः इति खः, देणे इति किं ? nies वेणवः। प्राचि gery भरादृक जम्बुकः नापितजग्बुकः। उवणौ दु्ादिल्येव णिकः

(१) gugrarerfafane: | (२) Qe, Cay Bears Ker: |

तितः | ९१०९

sufefa नियमात्‌ ्रहदान्मा भूत्‌, तन परवासुशब्दस्य पाण- वास्तवः एवं माल्लवास्तवः |

कालेभ्यः। कालवाचिभ्यः शिकः खाह्वादौ मासिकम्‌ श्राईैमासिकं सांवत्सरिकम्‌ श्रौदसांवस्रिकं.(१) ययाकचचचि- quae काले व्तमानादपौष्॑ते, तेन कादम्ब पुष्यिकः नेहि पलालिकः (२)। Magee arenes इति वाच्यं, गौण्या काले वत्तमानेभ्यो नच्ततवाचिभ्यः शणविधा- नात्‌ कारेभ्य इति व्वनिरेगः खरूपविधेनिरासाथेः।

WIS शरदो, वा तु रोगातपयोः। आहे वाये ATTA णिकः wrsatel, रोगे आतपे वाये at | ऋतुष्णस्य वाधको- ध्यम्‌ शारदिकं ग्राहम्‌ खां कन्धविशेषः, तु सहावान्‌ पुरुषः शारदिको रोगःःश्रातपशच, प्ते शारदः |

वर्षाभ्यो, वा तु निशाप्रदोषेमन्तपूर्वाह्कापराङ्धेभ्यः वर्षी शब्दात्‌ faa: aaa, निशददेलु वा। वापिकम्‌ नेशिकं ad, प्रादोषिकं प्रादोषं, ₹हेमन्तिकम्‌। हेमन्तस्य ष्णो तलोपो वा। हेमन्तः saa | तथाच--“हेमनोषु रजनोषु शेरते” इति afaam शिष्टप्रयोग उद्वावितः। पौव्वाह्किकम्‌ अ्राप-

~ ~~~ ~ ~~~ --~- -- - ------ ---- ~ --- ~ ne ~ ~न a ~ ---- -- - =

(१) कथन्ति “nace तमसो भिषिद्धये"' इति कालिदासः। “अलु- दितौषशषरगेति" arches | षमानकालोनम्‌। पराक्वालोनमित्यारि च? अप भथा तैत इति प्रामाणिकाः -दूति सिद्खान्कौसदी | `

(२) कटम्बपुष्मसाहवर््यात्‌ कटन्बपुष्मः कालः; त्रीह्ि-पलभ्लाहचयथात्‌ जी हि-पलालः कालः ; तत्न मवःकादग्बपुष्िकः बर्िपलालिकः।

OO

११० Tasty व्याकरणम्‌ |

ufsaq | ot लत्रादयविर इति em, पूर्वाहेतनम्‌ भ्रपरा- तनम्‌

we: शिकस्य तम्‌। wane णिकस्यादौ तम्‌ खात्‌, इत्‌। शोवस्तिकम्‌ | ननु त्यत्रायविरेत्यादिना व्यष्टनाभ्यां बाधिष्यते, तत्‌ कथं णिक इतिः चेत्‌ सतम्‌, श्णिकस्य तम्‌विधान- सामर््यात्‌ शिकोऽपि। तत्रोभयगणपाठात्‌ we स्तन इत्यपि |

सपूतैदादक्षत्‌ feagira यञ्च yada ae वरत॑माना- genera शिकः स्थात्‌, दिकपूव्वेदात्त्‌ यः णिकश्च भवादौ गौतमादिकं वालेयादिंकम्‌ दिक्पूयीत्त पोनीर्हिकं पूर्वी alfanfea दक्षिणाय दिवादित्वात्‌ पराद्ामपराश्मिति नित्यम्‌ उभयत्र दग्रहणं खरूपविधैनिं रामाम्‌ |

ग्रामजनपदेकरेणादिकूपूर्व्वाद्षात्‌ टणथ | ग्रामेकदेशवाचिनो दिकपूववादहाखलनपदेकदेणवाचिनो feaqatcers oat स्यातां भवादौ यस्यापवादः पौनधार्िकः पीवधार्षः दाचतिशा- शिकः दाच्तिणाैः | ग्रामजनपदेकदेगादिति किं पौन्धादिकं yarerfafa gaa णिक यौ

प्राहष TG प्राहटशब्दादेखः Weare प्राहषैश्यः | णत्वविधानं प्राहषैण्यमाचक्षाणः WATT इत्यत्र Tay |

WAS: साधारणे। साधारणे वाये ATT: स्याद्वाद मध्यो वैयाकरणः, नोत्तमो नाधम vet) व्यत्राद्यचिरेति प्राप्रमखाप्वादः।

तडितः | ६११

होपादुपसमुद्रात्‌ णाः TaRaata वर्तमानात्‌ stare ष्णाः स्यादवादौ | कच्चछादिलात्‌ Ward कृतत्खयोणंके प्राप्ते विधानम्‌ Sei, “dol भवन्तोऽनुचरन्ति चक्रम्‌” अंनुप- समुद्रात्त देषः | TAMA हेपकः। ˆ ` ऋतुनक्षतात्‌ ष्णः | ऋतुवाचकाब्ततरवाचकण्च ष्णः स्याड- वादौ कालशणिकस्यापवादः 1, tet, पोषम्‌ | कोडःकच्छपनदादेध BMS: Fe: पलद्ारेख ष्णः स्याइवादौ नेलोनकः निलोनकशब्दाद्नवोऽन्तोदात्तात्‌ Zu प्राप्ते विधानम्‌ इच्छाकुषु जात रच्चाकः इच्चाकुशब्दात्‌ “Men” श्त्यनेन fua afaar ष्णः स्यात्‌, waetefa व्विषयादिति ait wat वाध्यते ट्‌ण्योरिच्वाकोरुतो लुक्‌ कच्छादेस्तावत्‌-काच्छः काश्मोर इत्यादि कच्छादिः प्रागुक्ञः। Keel ये जनपदवाचका श्रहदास्तेभ्योऽदष्ादपि व्ठविषयादिति wa ma विधानम्‌। उवर्णान्तात्त्‌ “ten” इति श्णिकवाधनार्धम्‌ कच्छशब्दो a नित्यबहवचनान्तः, तस्मात्‌ ष्णो बैत््यादाविति ष्णे सिह पाटः कच्छादेनृतत्छयो रिति णकवाधनाथः। विजायकशबष्टात्‌ कोङ्त्वात्‌ ष्णो fat दृतस्खयोरिति शकबाधनार्वः पाठः। कच्छादेदेश एवाभि. धानात्‌ | यल यादेस्तावत्‌ -पालदः पारिखः। पलद्यादियंधा- परलदो परिखा गोष्टी पर्षदाहोकपर््वताः | WARS: शूरसेनो TEARS: USAT | तक्तोदपानलोमानि गोमतो कमलभिदा।

६१२ मुरवबोधं व्याकरणम्‌ |

सभिषैला यक्तत्‌ स्या पौणमासौ तरयोदभौ | ग्रमावस्या त्वमावास्या नेकती प्रतिपत्‌ शरत्‌ | परं वनं गिरिः पश्चदशो dame: फले | पव्वेखपि पलद्यादौ शेषं गिष्टप्रयोगतः गोष्ठौनैकबोगोमतीगब्दानां वरादोकग्रामलात्‌ प्रसक्ञयोणिक- णिकयोवाधकं ईदन्तलचए-एको बाध्यते वाहोकशब्दख कोड- लात्‌ शे fae aa पाठ एवं च्नापयति येषां लक्षणानां हदाहद- सामान्यविषथस्तेषां aautat वदविहित ईयो बाधको भवति, तेन श्ओौलुकषे भव areata, वाहकरूपै भवः वाहकरूपोयः caret ale बहचौऽन्तोदात्तादुटौचग्रामादिति at वाधित्वा $य एव भवति | afartar सख्या पौणमासो व्रवोदभौ श्रमावस्या भ्रमावास्या प्रतिपत्‌ पञ्चदभीश्ब्दानां पाठः काल- शिकवाधनाधंः शरच्छब्दस्येह वेणुकादौ पाठात्‌ शारदः शारदोयः। पुरवनगिरोणाम्‌ इह नयादौ पाठात्‌ पौरः पौर्यः वानः वानेयः गेरः ata: इति सांवल्सरं फलं, सां वस्रं प्व, अन्यत्र सांवल्रिकशणम्‌ | शेषाणाम दो ग्रामलात्‌ प्राण वाधनाधंः पाठः | TNA | प्रखोत्तरदाच्छ्ष्दात्‌ शणः स्याहइवादौ argive: माषक्िप्रः, वहचोऽन्तोदात्तादुदोयग्रामादिति प्रा्तट्‌णो बाध्यते | निवासात्‌ प्ृणयोमध्याश्मध्यमश्च चरणे चरणे वाच्ये निवास- वाचकात्‌ एषो मध्यशब्दात्‌ णः स्यात्‌, तख्िन्‌ मध्यमादेशश |

तडितः | ६१९

walang निवासोऽस्य माध्यमः कठः अनिवासस् तु एथौ- मध्यादागतः मध्यमोयः कठः, Tala मध्यमेति रयस्य वाधर्कमिदम्‌ | aca इति किं ? मध्यमौघ्रः शूद्रः

` युखदस्मदो at aaa "अया" ष्णो सोन at a इवादौ | हदादोयस्यापवादः८ यौभ्ाकः यौष्ाकौणः, प्ते युभदीयः। एवम्‌ wens. श्रास्राकौनः wae | ननु ढापिकारो धादित्यतः प्राक्‌, तत्‌ ` क्रं ठाधिकारे भवादि- निरूपणमिति चेत्‌ सत्यम्‌ भवादिपरितगच्छत्यादयये ढान्तात्‌ भवादिव्या भवन्ति. अतएव प्रसङ्गदुक्मिति |

गच्छति पथिदूतयोः ढादिति वत्तते ' weeded यधा- विहितं त्यः स्यात्‌, यो गच्छति सचेत्‌ पन्था दूतो वा भवति। Qu गच्छति पन्था दूतो वा Ate: पन्या दूत्च। ढात्‌ धै त्य; AMC कान्यकुजः वाराणसेयः रद्रि इत्यादि पथि. दूतयोरिति किं? मधुरां गच्छति साधुः।

अभिनिष्कामति हारं ढादिल्येव श्रभिनिष्कमतीत्य्ये यथाविहितं त्यः स्यात्‌, यत्रिष्कमति तत्‌ हारं चैद्ृवति। quafaqaa निष्कोमति हारं at हारम्‌। एवं माथरं कान्यकुलनं वाराणसेयं राद्धियमित्यादि हारं निष्वुमणक्रियायाः साधनलन प्रसिषं, तदिह खातन्तयण fated, यथा सा्वसि- न्डिनत्ति। हारमिति किं मधुरामभिनिष्कौमति पुरुषः |

अधिज्ञव्य करतो ग्रन्यः। fear भरधिक्षत्य एतदपेक्षया दो | भ्रधिक्षत्य श्रारभ्य afta इव्यथः श्रधिक्तलेत्यसिन्नये

६१४ सुगवोधं व्याकरणम्‌ |

यथाविहितं चः खात्‌, यः छतः ग्रयेहवति सुभद्रामधिक्ञव हतो war: सौमद्रो wa) ग्न्य इति किं? दभद्रामधिक्तत्य कतः प्रासादः |

भराख्यायिकाम्यो लुवृषहलम्‌। , भास्थायिकाभ्योऽधिक्ञय जतो ग्रन्थ इत्यं उत्पब्रख त्यस्य बहुलं तुप स्थात्‌ वाष्षषदत्ता- मधिज्ञल्य क्तो ग्रः वासवदत्ता. सुभनोहवा vant) बहुलं किं dace |

सोतान्वेषणादैरोयः। 'ठात्‌ सोतान्वेषणादैरधिक्ञत्य क्षतो wa इयं ईयः स्यात्‌ शस्यापवादः। सोतानेषशोयः | सोतान्वेषण-यमसभं रचोऽस्र-गुणमुसख्यावपि fngae: | भिषु- रन्दो नाम रोगः।

श्रदेवासुरादेशं | देवासुरादिभिव्रादधिक्ञत्य क्तो ग्र श्य देयः स्यात्‌ चे सै सति। श्येनकपोतौयो ग्रयः, किराताजननोयः, warrenty: | देवासुरादेसु दैवासुरः राच्तोगन्धन् इत्यादि | परे तु रत्तोऽसुर-गुणभुख्यशब्दौ टेवासुरादौ waa सोतान्बेषणादौ पठन्ति तेषां मतै राक्तोऽसुरं Hagel प्रयुना- गमनोयम्‌ | येषां इन्दसमामे यप्रतिैधधस्ते देवासुरादौ दृष्टव्याः |

शिको रकल्यादौ। दादिव्येव र्षतोल्ायर्धषठ ष्णिकः स्वात्‌। समाजं र्ति सामाजिकः। ढात्‌ षै a रक्षति ठष्छति aaa af धारयते क्वाति समवैति हन्ति तिष्ठति nacefa करोति धरति प्यति वत्तयति श्राह भ्नुष्ष्छति

तदितः ११५

गच्छति oie: wa: भूतः मावो अंति नित्यमेति पचति सम्प्रवति भ्रवहरति वहति इरति भावति एवं शाकानुब्कति शाकिकः। प्रतोपादेवंत्तते।, ढात्‌ ` प्रतोपादषत्ततीः्थे शिकः स्यात्‌ यदपि हतधोरकमरकलात्‌ छभावस्तथापि धविशेषणलवात्‌ seer | प्रतोपं यथा स्यात्तथ), वर्तते प्रातोपिकः। प्रतोपादि- येथा-- प्रतोपः प्रतिकूलश प्रतिलोमानुलोमनी | परिपार्खानोपपरिमुखानुकूलमित्यपि प्रमूतादैवक्गि। ढात्‌ प्रभूतादेबङ्ञोत्य्थे ण्णिकः स्यात्‌ प्रभूतं यथा तथा वति प्राभूतिकः प्रभूतादिवंघा- प्रभूतः प्रतिभूतोऽत्र पर्यापिन सडैरिताः। amen नित्यशब्द्च कायशब्दस्तथेति षट्‌ I पदव्यारेस्त्ावति। टात्‌ पदव्यादेस्तदावतोव्य्थे णिकः स्थात्‌ पदवो वक, पदवीं घावति पादविकः पदखय पशथादङुपदं तत्‌ धावति रालुपदिकः। भाक्रन्दत्यसिन्‌ भ्राक्रन्दो देशः, तं धावति प्राक्रन्दिकः। माथोत्षरदाच्च दान्मायगब्दोक्तरदाहावतीत्यथे श्णिकः स्यात्‌ दर्हमाधं (१) भावति दाण्डमाथिकः शोल्कमाचिकः।

माघशब्ट्‌ः परथिप्यायः।

११ न~ ~ ~ + ~~ ee ~ = ~ ~~~ - = =^ - meee ~~ = 99०9

(१) दण्डाकारो साधः पन्या TUBE: |

११६ मुग्धवोधं व्याक्षररम्‌ |

पदोत्षरदात्‌ Ufa | ढात्‌ पदोत्तरदात्‌ Tare रिकः स्यात्‌। Deluca) उभयत्र उत्तरदग्रहएं aya निषधा्म्‌ (१)

श्रथललामप्रतिकग्हा्च Sa एभ्यो , णहातोल्य्े णिकः ama! अथं खद्नाति भाधिकः; लालामिकः। कण्ठं ae प्रति प्रतिकर्ं, तत्‌" खह्वातोति प्रातिकरिडिकः।

समूहात्‌ समवेति। ढात्‌ WABI समवेति इत्यध णिकः सयात्‌ समृङ्.समेति सामूहिकः सामवायिकः |

खः परिषदो, वा तु सेनाया; ढात्‌ परिषच्छब्दात्‌ समवे- aa खः स्यात्‌, शिकस्यापवादः, सेनायासु वा। परिषदं समवेति पारिषद्यः, सेनां समवति सेन्यः सेनिकः।

मृगमव्छपरचचिभ्यो ef) व्वनिदेशः खरूपविधर्निरासाधः | Sut मृगमह्यपचचिवाचिभ्यो हन्तौल्थे शिकः स्यात्‌| मृगं हन्ति मागिकः, रौरकः, afta: नेयहुकः, श्वापदन्यकोसु बति वा युम्‌, पे व्याद्ुकः, इक a1 माल्छिकः शाङडनिकः प्रौ्टिकः पािकः हारोतिकः मायुरिकः | पातलं, तान्तादिकखय कः।

परिपधात्तिष्ठति परिपन्यञ्च। ढात्‌ परिपधात्‌ होये तिष्ठतीत्बयं faa: स्यात्‌, afaq oftware पररिपग्या- देणश्च। परिपथं न्ति तिष्ठतिःवा पारिपयिकशीरः,. प्यानं

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() खन्‌ हानादिवरुङ्घा पदोत्तरराहिति aed tenet faturefafa भाविः |

तडितः | ६१७

परिव्रज्य via तिष्ठति Gee) परिपथपर्यीय; परिपन्य- शब्टोऽस्तीति ठत्तिकारः।

निन्यात्‌ प्रयच्छति | शास्तरोक्तव्यवहा रादि रुदव्यवहारी निन्य, तस्मात्‌ ढात्‌ प्रयच्छुतोयर्थे णिकः स्यत्‌! दिगुणाधं द्रष्य दिगुणं, feqd प्रच्छति देगुणिकः। यदा उत्तमणेः cage दिगुणाधं लला प्रयच्छति पञचात्तदर्धयति तदा दिगुणं निन्य, यदा ange प्रयच्छति पाषटिगुणं ग्ण्हाति तद्‌। दिशुणं निन्द्यं शास््रविहितल्लात्‌ एकै, तैगुणिकः |

aygaa ae: निन्याहदिशनब्दात्‌ टात्‌ प्रयच्छतोल्यर्थे faa: स्थात्‌ ठदिशब्दस्य दधुषारेशथ। ददथ द्रव्यं afe:, दिं प्रयच्छति वाहंषिकः। यदपि ठिगब्द पयायो इधुषौशब्दो- ऽप्यस्ति तथापि हदिशब्देनानिषट-निवारणा्थमिदम्‌ |

कुसौददगेकादशाभ्यां भिकः निन्यात्‌ कुसौ दशब्दात्‌ टात्‌ दशकाद शब्दाच्च प्रयच्छतौत्यधं षिकः स्यात्‌ कुसीदं हदिस्तदरथं द्रव्यं कुसोदं, तग्रयच्छति कुसीदिकः। eat दशां and, एकादशथन्द एकादशार्थोऽपि उपचारात्‌ दशसु वत्तते, अरत: सामानाधिकरण्यात्‌ दश चते एकादश चेति यसः, दभेकादथ प्रयच्छति दशैकादशिकः दशेकादशिकौ, दश एकादशा प्रय- च्छतीत्यधं : (१)

(१) दशसंख्यैव एकादशसंख्या येषामर्थानां arg प्रयच्छति quate fine: | दशस HA टदटेकादशसंख्यकान्‌ प्रतारणया बोधयति, प्रस्शिधनवेलाया- भेकाटथसं ख्यकयहखायेति निन्द्यत्वसिति हह्न्ूग्धमो धम्‌ |

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६१८ Aras व्याकरणम्‌ |

TREC करोति seat करोतीत्ययें शिकः खात्‌ ष्टं करोतीति शाब्दिको वैयाकरणः, दादुरिकः कुलालः र्ते वान्दभाण्डविशेषः, भार्डंस्कारकालं दर्दुरं शन्दविशेषं करीति इति रचित, |.

धर्मादेशचरति। ढात्‌ धगादेषरतोत्ययं णिकः खात्‌। धश चरति धाद्िकः। चरणमत् सेवा, तन कदाचिदाचरणे मा भूत्‌ ।.धद्यादि्वघा-- `

wdrasitaeraredt गोदानसहितास्तवा | श्रादित्यव्रतमिल्येते पञ्चेह समुदोरिताः॥ अरवान्तरदीक्तादेडिन्‌। टादवान्तरदौच्चादेडिन्‌ स्यात्‌ चर- तौल्यं अरवान्तरदोक्तां चरति श्रवान्तरदौत्तौ त्रयोऽवान्तरदोक्नात् देवत्रत-तिलव्रतम्‌ |

अष्टाचलारिश्रतो Ha ढादष्टाचत्ारिंशच्छब्दात्‌ चरतो- aa feq इकश्च स्यात्‌। शिकस्यापवादः। श्टाचलारिश- षाणि व्रतं चरति श्रष्टाचलारिशो ब्र्टाचलारिंश्रकः।

चातुख्चाख्ानां यलोपश्च wae wala तौ स्याता, तयोयलोपश्च। चातुक्षास्यानि व्रतानि चरति चातु्रासो BAG area; |

नान्नि ललाटङ्कटाम्यां waft) ठाभ्यामाभ्यां पश्तोलं शिकः स्यात्‌ संन्नायाम्‌। ललाटं पश्यति लालाटिकः, यः सेवकः शिष्यो वा प्रसादचि्कन्नानाय प्रभोगुरोवां ललाट- मेव पश्यति, यः सेवकः fast वा कायात्तमः सोऽभि-

तहितः। ६१९

धोयते (१) कुक्टशब्देन कुक्कुट पातयोग्यदेशोऽभिषीयते, तं देशं पश्यति कौक्ुटिको भिक्षुः, यः इ्ुक्षटपातयोम्बमल्य तरदेशं पश्यन्‌ गच्छति इत्यथः |

पारायण-तुराय-चुद्रायरोभ्यो वत्तव ति। टेभ्य wert aaa faa: स्यान्‌ पारायणं वेदस्य शाखस्य वा सम- स्ताध्ययनक्, तुरायगं (२) यक्षविशेषः, चान्द्रायणं व्रतविशेषः, UMA FACTS A T: | arena वत्तेयति पारायणिकः यद्यपि पारायणं fre गुरौ awd, anfe शिष्ये एव त्य इति ware: | एवं तौरायणिको यजमानः, तु याजकः। चान्द्राय- fanart | |

तदन्ताच्च (३)। देपारायकिकः ईतुरायणिकः gare ativan: |

anaemia | ढात्‌ संशयशब्दात्‌ भ्रापत्रेऽथं शिकः स्यात्‌ | संशयः सन्देहः, तमापरत्रः सांशयिकः संश्यवानिति | न्यासकार संशय्यमाने wert त्यसुत्मादयति, तु संगशयितरोति, तदह नामसम््तम्‌ | sara “सांशयिकः संशयापन्रमानस"

इत्यमरः (४)

1771) --- ee es ~ ~ ~ ~~

(1) “लालाटिकः प्रभोभालद्थो waters a” carat: |

(२) संशिप्रसारे तुरायणमित्यत्र sutiaufafe पाठः | ऽश८्छ्‌.) |

(३) पारायणाद्यन्ताञ्च शब्दात्‌ Teas श्णिकः खादिष्ये |

(४) स्थाणुर्वा पुरूषो वेति संशय विषयभूते स्थारवादानेव प्रथय दूष्यते शन्देग्धरीति भावः| कथं तरं “हां थयिकः संशयापच्चमा "स" दूति चेट्नाह्धः।

~=—

६२० मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

Saran’: प्रच्छति | ' टात्‌ सुख्ातादैः एच्छतोदय्े णिकः aq सुस्नातं sata सौखरातिकः सौखरुधिकः। र्ना तादित सुधिशयारातरयः मुखशब्दात्‌ |

योजनादै्गच्छति ढात्‌ योजनादिगेच्छगोत्यथं श्णिकः सात्‌ | योजनं गच्छतीति वीजनिकः। योजनादिवयंधा-

योजनं गुरुतल्यच्च दारा गुरी; परादपि (१)। शतं क्रोशात्‌ योजनाच्च (२) gata षडोरिताः॥

पथः भिकः। टीत्‌ पयिश्न्दात्‌ गच्छतौल्धे धिकः स्यात्‌ प्यानं गच्छति पथिकः feat पथिको |

नियं णः प्रयश्च ठात्‌ पथो नित्यं गच्छतील्यथं शः ख्यात्‌, afaq प्रयादेथश्च vad नित्यं गच्छति ora) fear OTA |

कारेम्योऽधीष्टशतभूतमभाविषु। व्वनिरदेणः खरूपविप्रिनिरा- साथः | Rau कालवादिभ्योऽधोष्टे तै भूते भाविनि at शिकः खात्‌। wile: संच व्यापारितः, भतो वैत- नेन क्रीतः, भूतः सत्तया वयाप्तकालः, भावो सत्तयाऽ्याप्त- कालो भविथतियः। सदाध्वादोति टं, मासम्‌ valet मासि- कोऽध्यापकः | मामं मनः मासिकः शलयः मासं भूतो मासिको व्याधि;। ard भावौति मासिक saa) aang भरणे

“~~ ~~~ ------* ~> ~~~ ak ~~ | etree een ०७9

era way’ afaq विषये प्रियः away इति। इति तन्त्वबरोधिन |

({) GRR, परदार KATE (२) क्रोशतः, योजनशत TATE |

तदितः | ६२१

qed व्याप्य क्रियते, तत्‌ ad ताभ्यां मसो व्याप्यते षति उश्यते -यदधं हि ते क्रियेते तत्फलभूतया क्रियया मासो वाप्यमानस्ताभ्यामपि व्याप्यत इव्युच्यते उपचानात्‌ | संख्याब्दोऽपि यदा.काले संख्येये वर्तेते तदापि व्यः। हे ष्टौ wart भावौ वा दिषाष्टिकैः दिसाप्ततिकः, मुपञ्चालादिलादुत्तर- दख fa: |

मासात्‌ य-णोनौ वयसि। टान्मासादयस्यभिधेये एष्वेषु सोनौ स्याताम्‌ (१) मासं भूतो, ara वा मासः मासन माणवक इति पुरुषोत्तमः | परे भूतऽथें श्रभिधानमित्याहः (२) | वथसौति किं? मासिकः कश्रकरः।

गाद्यः। ढात्‌ क्षतगात्‌ ममिादयस्यभिध्रैये यः स्यात्‌। दौ मासौ भूतः हिमास्यः।

परमासाखाणिकौ ढात्‌ क्रतगात्‌ षरमासात्‌ वयस्यभि- wa yard faa एते स्युः षरमासान्‌ भूतः षारमास्यः घाणमासिकः षण्मास्यः विधानसाम्यात्‌ नेको लुक्‌

इक-णयाववयसि | टात्‌ क्ृतगात्‌ षरमासात्‌ वयोभित्रे भूतये cae खाताम्‌ षरमाखिकः षारमास्यो रोगः

i EO ET OT

(१) यद्यपि एषर्थेषु दृष्यत अपीशटाटयशल्वारोऽलुषरतन्ते तथापि योग्यतया यथासन्भवमनरुटत्तिः खात्‌, तेनात्र अपीषटश्टतयो्ना त्तिः एवं परल्लापीति |

(३) अपीरादोनां चतणामधिकारेऽपि सामर्यादुभूत इत्येव, सम्बध्यते fe मासमधीशटोभ्टतो targa काचित्‌ ataaat शरोराशस्या गम्यते इति त्व त्रोधिनो |

GRR सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

पमाया धनो, ATH वा। ढात्‌ समाशष्दात्‌ KA: खात्‌, waa वा, wag) समामधोषटो तो भूतो भाषो वा wale: | गास दं समे TM धतो भूतो भावो वा दिस मौनः, पते हेखमिकः।

गाद्रात्राहःसंवल्षरादोन-श्णिकौ, ate लक्‌ वा, few वति निलयम्‌ Sax एभ्यः कछतगीम्य दैन feat खातां एष्वथेषु, वर्षात वा ga, चित्तवति तु निलयम्‌ रातो भ्रधोष्टो भूतो भावी वा दिरात्रीणः, हैरात्रिकः। endl: देयङ्िकः। fevaatty: दिषांवसरिकः, सुपश्चालादिलात्‌ उत्तरदस्य fir: | हिवर्षीणः दिवाषिकः दिवषः, भ्रभविति संख्यादिवर्षमिति ame त्रिः। भविष्यति तु वषे भावी दैवषिकः। दिवर्षो वलः, निलयं तयोर्लुक्‌ | चिन्षवतोति किं दिवर्षीसो हिवाषिको दिवषो व्याधिः।

परहेति। ढात्‌ श्रहतीवय्थे शिकः स्यात्‌ वस्रमदति वासिकः खेतष्छतिकः |

SWAT: | ALBA यः स्थात्‌ दण्डमरति CUT कश्यः दण्हादियघा-

TV: कशा वधो मेधा मेघार्घौँ मुषलं घनम्‌ | मधुपकं इमो व॑ः भागोदक युगं पणः

RENT areas दक्तिणाभ्य tay Bay एव्योऽहतीत्यं

श्यो यञ्च er) कटक्गरमहंति seria: werd: (१)

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।१) पाणिनि REET पव ५१६९) | TEER ANTS: काटभागः

तदितः १२३ सखालोविलोयः ख्ालोविष्यः (१) दक्षिणौयः दच्चिष्डः |

पात्रादेय-यौ ढात्‌ पा्रशब्दाद्ति LUG Tae स्यात्‌ | पात्रमहति uray: oraz: यश्रलिग्भ्यामिय-खेनौ ainefa “त्र eRaTanaTy प्रति क्ाहति चैत्ये "दय-णौनौ क्रमात्‌ स्याताम्‌ यन्नमरईति यन्नकश्माहति वा afen व्राह्मणः era) ऋत्विजमर्ति ऋत्विक्‌कमाहति वा भ्रालिजोनः यजमानः ऋलिक्‌. | छेदादेनित्यमहंति ठाच्छेदानित्यंमईति इत्ये ष्णिकः स्थात्‌ | नित्यम्‌ wefa छैदिकः (२) मदिकः छेदादिर्यथा- छदो भेदस्तथा द्रोहो नत्तकषें fat भेत्‌ विरागस्य विरङ्गो(रे)ऽथ संयोगञ्च संप्रति | संप्रेषणख्च dawnt दशेह परि को्तिताः।॥ विरागं नित्यमहति वैरद्धिकः, णिक विरङ्गादेथः | शिरण्डेदात्‌ aa शिरः a) ढात्‌ freee नित्यमेति इत्ययं शणिको ay स्यात्‌, तस्मिन्‌ शिरसः Matera | favad नित्यमेति गैषच्छरिकः wor: | (कुंडा, भूषो दरति भाषा )। कडङ्गरीयो गौः मीवारपाकादि कडक्गरोयै- रिति cy: | : (१) स्यालोषिलं qe आकाशदेशसरमरन्ति स्वालोविलोयास्तयुला इति marry: पाकयोग्या gare दूति सिद्खान्तकोसुदो | (२) द्वदिको fae, faquesera—xfa सिडान्कौषदी। gafca- प्रतिपाटमपरमेतत्‌- दूति mates: | भाष्ये तु नित्पहण प्रत्याख्यातं, Gate

मस्तु दति तहाश्य इति मनोरमा ( ५।१।६४)। (३) विरागशब्डेदाटिः, तख षिरङ्रारेशः खात्‌

६२४ ` समुग्वोधं शाकरणम्‌ | .

पत्ति र्मवल्वहरतिं च। दादितेवथेषु णिकः ख्यात्‌ सश्चवलयरधोऽत्र सवः श्रापेयश प्रमाणानतिरेकः | तधाच- “सम्भवः कथितो हेतावुतयत्तौ मलकेऽपि च। श्राधारानतिरिक्गले seam एकव” दति विशः | अवहरलर्धोऽवहरणं संहरण मिल wet पचति aa वति (१) भरवहरति वा प्रासिकः कौडविकः कटाहः। यद्यपि me पचति ay प्राखिक इत्यत cafe समवो विद्यते, तधापि we पचति ब्राह्मणो परंखिकोत्यत्र anata त्रिनापि पचत्यधे- दनात्‌ पृथक पचति ग्रहणम्‌ | पात्राऽऽचिताऽऽदटृक-विस्तादोनो वा। टेभ्य एभ्य एष्वर्थेषु fa: स्यादा पात्रं पचति सम्भवत्यवहरति वा पत्रोणा। एवं श्राचितोना भ्रादृक्षोना विस्तोना (२) खालो। os पात्रिकौत्यादि। गात्‌ fae ar) रेभ्य: sate: पात्रादिभ्यः faa Sara स्यादा Tag) पाते पचति सम्भवति श्रवहरति वा fearfaat दिपाच्रौणा, aufafaat enfactar, erefaat eneatar, fefaferat हिविस्तौना | oa णिकख वाये लुकि (३) “are माना"दिव्यादिना ईपि feast हयाढृकौ ्राचितविस्ताभ्यान्तु भ्रजादिलात्‌ ह7ादिता दिविता sm, लीप्‌। yar तयाणां (४) षिकश्णिकयोनं faite: पृथग्योग उत्तरार्थः |

~~ - —— - ~~ = ery

() wfwa समावेश्य | 4 $ (२) आचितं द्दभारपरिमाणम्‌ | fare तोलकभानम्‌ | (१) वच्यमाणष्तरेगेति पेषः | (£) पराब्रायितादृक्रानाम्‌।

तदितः | ६२१४

कुलिजाक्ुकतिकणििकेनाः ढात्‌ क्ञतगात्‌ कुलिजात्‌ लक्‌ पिक fax <4 Ua SG: एष्वयेषु | fegfast, “art मानाः दितोप्‌, fegfafaal ईैकुलिजिकौ दिकुलिजोना |

वंशादिभ्यो भारादत्यादौ (१) | ढात्‌ वं्ादिःपून्धैभाराददति दत्याद्यर्थं लुक्‌ पिकः fay $a: सयात्‌ | वंशभारं वदति इरति भरावहति वा वांशभारिकः वाजा fra |

qt aaa TAY aura कुटजाः He: AAT सद्वा दश प्रोक्ता वंशादिरिह' कोविदैः कैचिद्धारशब्दस्यादारेण वंशादोनां विरेषणाहारभूतिभ्यो वंथादिभ्य इत्यधः, तेन भारभूतान्‌ वंशान्‌ वहति वांशिकः वाख- faa sang: वहति उत्किप्य धारयति हरति रेणान्तरं प्रापयति | प्रवहति उत्पादयतील्य्धः

FAA केको टाभ्यामाभ्यां क्रमात्‌ इक इत्येतौ स्याताम्‌ एष्वर्थेषु | द्रव्यं वहति इरति श्रावहति वा द्रव्यकः वज्िकः (२) |

UA शताद्ये कावशते | टाच्छतशब्दात्‌ ब्र तील्यादयर्थेष॒ यदक wan ata, नतु ati शतमहति पचति सम्भवति अवहरति वहति वा शत्य; शतिकः कम्बः aA इूतय्रयतर प्रकषत्युक्तसंख्यायास्यवाचस्य dead भवति aa aA alg

(1) आदिपदेन इरति अवति द््येतयोगर हणम्‌ | (२) वक्छथब्दो गूल्धवाचो इति गोयीचन्द्रः ( Faq) |

९२१ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

हैन शतमध्याथाः परिमारमस् शतकं निदानमिवयादौ प्रया शरतथ्देन उक्तायाः संस्यायास्यवा्यस्य faery eat स्यातामिति। शत्यः शतिक्षः कम्बल इत्यादो त्यवाच्यस्य aaa dda. किन्तु येन क्रीतसतसैवेति |

संख्याया श्र.ति-शदन्तायाः कः टात्‌ लन्त-शदन्तवजात्‌ संख्यावाचकात्‌ कः स्यादर्ादौ पश्चकः बहुकः गणकः अ-ति-शदन्ताया इति fa साप्ततिकः चलारिंशत्वः, तादि- कस्य कः। श्रवार्धैवतस्सिशब्दस्य asa डतरप्रतिषधसतेन कतिकः |

finfa-fdnart चासंन्नायाशु उकः | टाभ्यामाभ्याम्‌ श्रह- त्यादौ कः स्यात्‌, waar ऽकः। विंशतिकः तिंश्लः। असंन्नायान्तु विंशकः तिंश्रकः।

वतोः HAA वा TAT कस्य इम्‌ वा सात्‌, इत्‌ यावतिकः यावत्कः तावतिक; तावत्कः

कंसार्दाभ्यां षिकः | टाभ्यामाभ्यां षिकः स्यात्‌ ब्रहतयादौ | कंसिकः कंसिकी (१) ब्रहिंक; अर्की |

काषपणाहा तु प्रति ढात्‌ कार्षापणात्‌ षिकः खात्‌ भरहंत्यारौ, तमिन्‌ प्रतिरादिष्यते वा काषौपणिकः प्रतिकः।

वसन-सहस्र-शतमान-विश्रतिकात्‌ शः sr wa खः ख्यात्‌ अहंत्यादौ "वासनं सारसं शातमानं Fafa |

Oe ere ope re कन

१) Wap wegr ves कंस ईति गोवौषन्दरः (६११

तदितः ६२७

शूर्पात्‌ zat वा। ढात्‌ शूर्पात्‌ zat वा ख्ादहत्यादौ | णििकस्यापवादः। sia: (१) wa भोर्पिकः।

गादध्यदोदेरसंन्नायां लुक्‌ ढात्‌ कृतगात्‌ अध्यचैपूर्ववान्नाह- त्यादौ ये विदह्ितास्यासषाम्‌ भ्रसंत्नायां लक्‌ स्यात्‌। दिकंसम्‌ अध्यैकंसम्‌ (2) दिश TESTA अ्रसंज्नायामितिकिं arg- लोहितिकं (२) पाञ्चकलापिकम्‌' श्रव त्यन्त नाम इति (४)

सदसख-तमान-सुव् -का्षापषेभ्यो aT! ठेभ्य एम्यः कत- गेभ्योऽध्य्पूर्वभ्य्च श्रहत्यादौ विहितप्नां wat लुक्‌ स्यादा feavaq अध्यरैसहस्रं दिशतमानम्‌ अध्यदईैयतमानं दिसुवणेम्‌ श्र्यदैसुवणं दिकार्षापरणम्‌ अध्यचैकार्षापणम्‌, पचे feared अध्यतैसाहस्रं हिथातमानम्‌ अध्यईश्लतमानं दिसौवणेम्‌ अध्य्चै- wad, सुपञ्चालादिललात्‌ were दस्य fir: दिकाषीपणिकम्‌ | दिप्रतिकम्‌, एवमध्य्ैकाषौ पणिकम्‌ भध्यैप्रतिकम्‌ (4) |

विंशतिकादोनः। ढात्‌ क्ञतगात्‌ अध्यशपूव्यैच्च विंशतिका- ala: स्यात्‌ रहत्यादौ दिविंशतिकौनः पध्यदैविंशतिकौनः ; लुग्‌बाध्यते |

a A A ye en eer CL A TT TS ०००१५

(१) squweg: परिमाणवाचोति गोयौचन्द्रः (8.0%) |

(२) अध्यद्ध -अध्यारूढृभद्धं यकन्‌ तत्‌, साद्ैकमित्य्धः।

(१) पञ्च लोहिन्यो gar परिमाणमस्येति विरहे लोहिनीशब्दस्य Fags होहितद्पापरत्या सिद्धमिति टहन्ुगधबोधम्‌।

(8) परिभाखविशेषख माभयेये रते इति तच्ववोधिनी |

५) काषापणद्वातु प्रतिखद्ति काषांपणथन्द्ख वा प्रतिरारिष्छते।

६२ मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

पाद-पण्माषरात्‌ योवा त॒ रत-शाणत्‌ | ठभ्यः क्तगम्यो- satqeira wat यः स्यात्‌ EAT, शत-शाणाभ्थान्तु वा | दिपायं (१) fer हिमाघ्म्‌ श्रध्यदैपादाम्‌ श्रष्यदमाथम्‌ | शतशाणादेु॒दियुम्‌ अ्ध्यरैशत्यं ,पञचशाग्यम्‌ TaTATS, ad दिशतम्‌ श्रध्यैशतं परञचशाणम्‌ अध्यदैणाणम्‌ |

खारौ.काकिनीभ्यामीकः ववलाभ्या्च | ठाभ्यां हतगाभ्याम्‌ शराभ्याम्‌ AIA केवलाभ्याच्वाहलादौ ke: खात्‌ दिखारोकः भर्यदंखारौकः दिकाकिनीकः अध्यदंकाकिनीकः खारोकः काकिनोकः।

दितिः शाणात्‌ ष्णो वा। fe Fa-qaatq भाणत्‌ अ्रहत्यादौ शणो वा स्यात्‌ Fart sma, पते पूर्वेण वा यश, fara, त्रिशाखम्‌, उभयलयक्रपत्तं लुक्‌, दिशागं विशणमिति

agia निष्क-विस्तात्‌ शिको ar) aq दि fa बहपूर्वात्‌ निष्कात्‌ fara fuat वा स्यात्‌ ब्रहलयादौ। हिनेष्किकां भिनेष्किकं वहनेषिकं, feafaa faafaat agaferd, पते feta तिनिष्कं बहुनिष्वं fafa तिविस्तं बहुविस्तम्‌ |

उक्तो रत्तत्यादिः।

युग-रथ-प्रासङ्गात्‌ यो वहति। Faq एभ्यो वहत्य य; स्यात्‌ |

= ~ =

(१) अनर दण्द परिमाणवाचकखेव सहणान्र vet: | पदारेष- विषौ, चरणवाचकखेव यहणात्‌- प्ति, टे कुरधबोधम्‌ सिङ्ान्तको्द्या- मघ्येपम |

तदितः ९१९९

युम वहति युग्यः रथ्यः wager: (१)। गादपि-दहियुग्यः, दिरथयः, दिप्रासङ्भपः |

नानि तु जनात्‌। टाज्जनशब्दात्‌ WAT य: स्यात संज्ना- याम्‌ जनं वहति जन्यौ वरस्लिग्धः (र) जनोशब्दादधूवाच- काद्य इति जयादित्यः"।

UU Waa ढात्‌ धुरशब्टात्‌ वहत्ययें Wa श्न एते स्युः | yt वहति dea: घुरोणः yar: |

सन्नेदच्तिणोत्तरादराया ईैनः\ ety सव्य दिपून्वीत्‌ घुरा- शब्दात्‌ वहत्यर्थं ईन; स्यात्‌ waytt avfa सब्यधुरोणः दक्तिणधुरोणः उत्तरधुरौ णः

एकधुराया लुक्‌ च। एकधुशेणः एकधुरः (र) |

शकटादइलसोरात्‌ ष्ण-श्णिकौ गाच्च। ढात्‌ शकटात्‌ कत- mez शशः waaay क्रतगाच्च शिकः स्यात्‌ aad) शकटं वृति शाकटः, शकटे वहति देशकटः, इलं वहति इालिकः, सरिकः, दे इले वहति दंहलिकः safes: |

धनगणाभ्यां यो लब्धरि | टाभ्यामाभ्यां ass यः स्यात्‌ | धनं लब्धा धन्यः, गण्यः भोलाधट्णो टे पौ |

--------- --- OO Ol -----~ -9 ee ~ ~~ -----~-- ~~~ | ee, =

(१) वह्ानां दमनाथे वहारु स्कन्धे Aaa तत्‌ प्रासङ्ग दति गोयीचन्द्र (once)

(>) वर्य fara इति षष्ठोसमासः। तथाच-जन्यो जाभातुः fer सखा चेति ल्िप्रसारे (coe) |

(१) गौणत्वात्‌ गवाबारेरिति Wei: |

१३१० Faas व्याकरणम्‌ |

सोऽधात्‌ (१) प्रथं लया PRT: |

बणादपे | ढात्‌ वथाद्तऽ्ये यः स्यात्‌ IT WIAA, तं गतो वश्यः | | |

स्वादेः पतरपथयहं कग-यात्रारोनो व्यश्नोति टात्‌ सवय- पवात्‌ पत्रादैवयाप्रोत्य्थे रनः स्यात्‌। aad वाप्नोति स्ध- पत्रीः सारथिः, सबैपधोनो रथः, Wate वासः, सनवकम्नणिः पाणिः, सववैपात्रोण TSA: |

भाप्रपदात्‌ प्रप्नोति दादाप्रपदात्‌ ्रप्रोतीलर्थे नः खात्‌ | mined प्राप्रोति श्रप्रपदोनं वासः (2) |

walang भकत्तयति | सर्व्वाब्रानि मयति aerate fire |

MITT | अनुपदं बका भरनुपदोना उपानत्‌, पदप्रमा- Gay |

श्रयानयात्ेये भ्रयः प्रद्तिणम्‌, श्रनयः प्रसव्यम्‌ प्रदत्तिण- प्रसव्यगामिनां शाराणां (2) यस्िन्‌ परेः (४) सम्राेशः (५)

A -~~~----- =“

(+; खथशब्दाह्नन्षरि वाच्ये खो waiter | स'शिप्रसरेऽपि एवमेष | पाणिनोये “अन्नात्‌ ण” इति सुतरं दश्यते (४।४।८५)

(>) यत्‌ पादाग्रपर्थनं पतति तदाप्रपटीगम्‌ | यौगिकतात्‌ अप्रपरोमं माल्याटि च-इ्त्यमरटोक्षा।

(x) शाएणाम्‌ अशयुटिञञानाम्‌

(४) पररः पर्ारेः।

(५ सभवेशः परहानाभिति es |

तदितः। ६२१

सोऽयानयः। ढादयानयश्दान्नेयेऽ्े $नः स्यात्‌ .भयानयं नेयः भयानयोनः भारः (१) परम्पर-पुत्रपौत्र-परोवरेभ्योऽनुभवति। टेभ्य रभ्योऽनुभवतोत्यर्थे oH स्यात्‌। परश्चापरञ्चानुभवति, qa निरयात्‌ परम्प्रोणः | yaq पौवश्चानुभवति ' ya tate: | qara—“aait पर. म्परोणां तं पतपौतीयतां नये"ति भद्िः। परांख्ावरांखानु- भवति, सूरे fataraia, परोवरोणः। त्येन विनापि.परम्मरणष्दो दृश्यते तु परोवर इति पारादेर्गामिनि ढात्‌ पारादेगौमिन्ध्ये ईनः स्यात्‌ पारं गामो पारोशः पारादियधा- पारावारावारपारपारावारं (२) प्रकीत्तितम्‌ अत्यन्तमनुकामच्च पारादौ कोविदोत्तमैः saat यक्ालंगामिनि। अष्वानमलंगामौ भध्वनोनः अध्वन्यः | भ्रभ्यमित्रादोधेनौ च। ठादभ्यभित्रादलंगामिन्यये $य ईन एते स्युः भ्रभ्यसितरम्‌ cama भ्रभ्यमितोयः श्रभ्यमित्रोणः श्भ्यमित्रयः | भ्रमिवाभिमुखम्‌ लं गच्छतोत्यथे;। भविष्यतरिहेशो वैचित्ार्थः, गन्तुमात्र त्यः |

(१) देशिश्येन वामेन सृहायनं गमनं प्राप्यितश्मित्यथे tfa गोयीषबन्द (229%) | (२) धार्‌ अवार BACT पाराबार।

१३२ मुग्धबोध व्याकरणम्‌ |

समां पमीनतुगवौनायशवोनाः एते निपालन्ते | समां सभां विजायत (१) समांसमोना गौः, SO RLUELET (२) अनुगु गोः पशादलतंगामौ भ्रतुगवीनो गोपः। रद्य शौ वा विजायते श्रद्यतोना गौः, ्रासत्रपरसवयक कथमदाश्वीनो, वियोगः विजायते श्यस्यानुहत्तेरिति जयादिवः (२) ° निपातो शधविगेषै। |

oat धिकोरः

धात्‌ .धादिव्यपिक्रियतै घादिल्तः प्राक्‌।

fat aaa रौव्यति जयति खनति जितं कतं मवति तरति चरति जीवति इरति fart काय्यं लभ्यं सुकरं परिज्यं dard dee उपसिक्ते वर्तते caret क्रीतं गच्छति sed युध्यते दृश्यते शूयते इति। धादेषव्ेषु शिकः खात्‌ इलेन दोव्यति जयति खनति जितो वा हालिक; जितं tifa mea भरैजितं द्रव्यम्‌ भ्राचिकम्‌। धादिति विं दैवदत्तेन जितम्‌ |

"~~~ ~ ---~--~----- ~ ~~ ~~ --.~~--- ~ -- +~ ~~.

(१) Swat सां विजायते” दयेव प्रािगिर्म्‌ (५।२।१२) | समां मामिति वोपमायां छवनषदायः प्रहतः | विकायते at धारयतीति we aes | MIT श्डलःपि Tar aaa दूति serra ae हितोया * * * gare Barge.” इति काशिका |

(र) सभांशभोना सा यैव afaay nqat gare: |

(९) पाणिनोयव्याकर ये “gat समां fran” (५।।१२। fa Gar दननरम्‌ “aeatarses” इति सूत्रम्‌ ५२।१३) | तत्रापि विजायते इचतु- वत्तते। नहु तहि aaa वियोग एति कधं पवृतीयाशङ्कायां “afer विजा यते दति नाहुवसेयनि, area निपातनमिन्राङरिचकगे जयारिग्येन

afer: | ६१२

` वाक्‌-कायास्थां हते धाभ्यामाभ्यां कतऽ ' शिकः स्यात्‌ |

सूले वाचिकमिति। एवं कायेन क्षतं कायिकम्‌ - श्राभ्यामिति far? मनसा कतं मानसम्‌) तथाच हेमसूरिः-- “कायिकं ताचिक्र तत्‌ स्यादाचा कान यत्‌ क्तम्‌” इदह | इदमपाणिनीय- भिति (१)।

तरति। धात्‌ तरती्धय श्णिकः; स्यात्‌ कार्डपूलेन तरति काग्पूलिकः! एर्व ढणपूेन तरति तापरलिक;. गौ पुच्छिका

दको नो-दाचः। धान्रौशन्दात्‌ इच दकः स्यात्‌ faa स्याप्रवादः | नाविकः feat नाविका। घटिकः। area | SH (2) THD कः। °

चरति धाच्चरति sad शिकः स्यात्‌। eur चरति दाधिकः, दत्ता भक्षयतीत्यधः। इस्तिना चरति हास्तिकः, हस्तिना गच्छतोत्यथः 1 चरेरभयार्धग्रहणम्‌ |

"~ +----" ---- ~" -- epee ap en erp nee

(१) अष्यायमाश्रयः मूले वाचा तमिति वाक्ये वाचिकभिति agergay दटभपाश्षिनोयं पारणिनिसभ्मतं a) तथाच “वाचो व्याहतायायाम्‌" (५।४।१५) दति पार्थिनिद्धत्रम्‌ | “orga: प्रकाथितोऽरयो यखास्तसछां वाचि वत्तेमानादाक्‌- शब्दात्‌ BTS ठक्‌ प्णिक ) प्रत्ययो भवति पूर्वमन्येनोक्ञायैत्वात्‌ न्देथवाग्‌- argaaaea | वाचिकं कथयति व्याहृतार्यायामिति किं मधुरा वाक za” दूति क्राशिज्ञा। सन्देशवाग वाचिकं स्यादि्यमरः। वाचः सन्देशे safafa agiatat रषुनाथः अतएव वाखा aafaae वाचिकमिश- पाणिनोयनिति।

(१) SA प्र्याहारः| Ge

६२४ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

uate: fire: | धात्‌ पौरेशरल् पिकः स्यात्‌ aie चरति पपिकः। सिया पर्पिकौ परपव्देन ₹इसयादिनयनाधा any नोरंयते। पर्पीदिरवथा- पर्पाकष (१) <a न्यास व्याल जालाक्षिमैव पादस पद्‌ भवेत्नित्यमष्ट प्पादयः खताः पादेन चरति पदिकः | आ्ाकषौ निकषोपलः | इह श्राकष- TRUSTY. श्राकषिकभायै इत्यत्र कोडल्वेऽपि ॒पुवहयाव- निषेधः न्यास-व्यालशब्दयेेररित्ते युम्‌ HATA एक- वाधनाधे; पाठः| MATE | धात्‌ छगणाचरत्यरथे धिको वा स्यात्‌ गणेन चरति गणिकः ागणिकिः वेतनादर्जीवति धादेतनादैरजीवत्ययें णिकः खात्‌) वेत- गिन जोवति वेतनिकंः। त्रैतनादियंधा - वेतन-वाह जालारैवाह-ग्रेषण-शक्ञयः | दरडो-धनुरुपखानं सुखशा तथेव शिर-पादौ घनुदंर्हो पनिषरेशभेव रपस्तिरुपदेशश्च wafien कोर्सिताः aa क्रय विक्रय क्रयविक्रयादिकः। ax एभ्यो जीव्यं धकः स्यात्‌ वस्नेन जोवति वद्धिकः, क्रयिकः, विक्रयिकः, क्रयविक्रयिकः।

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(१) पाणिने त॒ कष इयत अश्र दूति पाठो उछति (४।४।१०) चाकर पति प्ाढानरमू। “कषात्‌ om” दूति पायिगीयश्नम्‌ (४।४।९)

तदितः | ६२१

भरायुधादोयच | भ्रायुधैन जोवति agile: श्रायुधिकः। व्रातादौनः। ये नानाजातीया अनियत-हत्तयः शरोर- Aare जोवन्ति ते व्राताः, तत्वर्मापि ब्रातं, तेन जोवति avatar fam: | उकङ्गादेहरति | धादुखङ्गादेहरत्य्थे णिकः स्यात्‌ उत्‌- सङ्गेन इरति ग्रौसङ्गिकः। उतङ्गादियैथा- उत्सङ्कपिटकोष्रा उडपोत्पतभेव | ware: षिकः। धाडस््रादेः"ˆ षिकः स्यात्‌ weiter णिकस्यापवादः। भसरया हरति ufaa:, faat भस्तिको ! मस्तरादियथा - मसांऽसभार भर्टाऽसेभार भरणं तथा wearer Meare Meare: wala: विवध-वीवधा्यां ar) विवधेन इरति विवधिकः वेवधिकः। feat विवधिकौ वैवधिक्रौ एवं बोवधिकोत्यारि | कुटिलिकायाः णः। धात्‌ कुटिलिकाशब्दात्‌ हरव्यर्थे ष्णः स्यात्‌| कुटिलिकाशष्देन कुटिला गतिः अ्रग्रवक्रा लौहादिमयो afea उच्यते! कुटिलिकथा कुटिलगत्या व्याधं इरति वश्चयति कौटिलिको am) तधा कुटिलिकया श्रग्रवक्रलौहयध्या प्रहारान्‌. इरति कौटिलिकः ATA: | भर्षदयुतादेनिवत्ते। दकच्चदूतादैनिवृत्तेऽथे शिकः स्वात्‌ अयेन नि्त्तम्‌ भरा्ञदूतिकं वैरम्‌। अक्षदूतादि-

© यथधा-

६९६ Grad MATT |

SAQA जाया पारख "कृ णटकर्हनम्‌ यातोपयात WGA गतागत गमागमम्‌

यादितापमिवयाभ्यां aan | धाभ्यामाभ्यां क्रमात्‌ क-कणौ नतां निरते याचितेन निवृत्तं याचितकम्‌ : भ्पपूतवमेड प्रति दाने यपि ्रपप्मिल्य निवत्तम्‌ आपमित्यकम्‌ aa पौनिरहेशो. {तुकरणात्‌।

कालेभ्यः काथ लभ्य सुकर परिजयेषु च। व्वनि्हृशः सररुपविप्निरासाधंः। भेभ्यः क्षालवाचिभ्यो निर्वृत्ते कायादिषु शिकः arg) मरेन नित्त मासिकः आहैमासिकः सांवतरिकः। एवं मारन काथः लभ्यः सुकरः पररिजण्यो वा afaa sarfe |

समादैरधोष्टादिवत्‌। धात्‌ समादनिवैततेऽयं श्रपौष्टादिषत्‌ ध्रधाविहितं लाः खः। समया निवृत्तः समोनः हिसीनः देसमिकः, द्िरातरीणः हेरातिकः, ददन: रेयद्िकः, feds करोः दिसांवस्सरिकः, हिवर्पींणः हिवापिकः। दिवषः, वित्तवति frat तुक्‌ हिव वह दरतयेतत्‌ पुरुषोत्तमेनो क्रम्‌ |

प्टिकः। निपाल्यः। षष्टिरात्रेण पच्यते ष्टिको त्रीहिः।

dae) धात्‌ संसृष्टं शिकः खात्‌ द्रशान्तरेश यजि. ated तत्‌ dee दघ्ना dee दाधिकं, शाङ्गवैरिकषम्‌ (१)।

मह-वणाभ्यां शंनो | धाम्यामाभ्या क्रमात संख्ये इन्‌,

~~ == =, ~~ ene

1) BACH बादरम्‌ |

afer: ६९७

एतौ ` साताम्‌ aka dee: ate ओदनः, चन Wee: चूणिनोऽषुणः ` लवणाहुक्‌ लवणेन HEE: लवणः सपः | लवरशश्नन्दो-

ऽत द्रव्यवाचो (१) |

aaa उपसिक्ते। tet व्यञ्जन-वाचिभ्य उपसिक्ेऽये शिकः स्यात्‌। ear safaa दाधिकं, शाङ्गवेरिकम्‌ Bai इति किम्‌ 2, उदकेनोपसि MTA: |

श्रोजःसदोऽग्रसो वत्तते। We एभ्यो awasa शिकः स्यात्‌ saa aaa श्रौजमिकः, साहसिकः, भ्राख्रसिकः.।

सम्पादिनि। धात्‌ सम्पादिन्यर्थे ष्णिकः स्यात्‌ सम्प्रादो maga: (२) कणवेष्टकाभ्यां सम्पदि कारवेष्टकिकं सुखं, बरास्नयुगिकं शरोर, वस्त्रयुगेन विशेषतो श्राजत इत्यधेः

RTI a) धाभ्यामाभ्यां सम्पादिन्यय यः स्यात्‌] कर्मणा GATS BANG, FA) वेषोऽत Ararat 1

मूल्यात्‌ ` att धागृ्यवाचिनः wae शिकः स्यात्‌ yaa मूल्येन क्रतं wifes, नैष्किकम्‌ मूल्यादिति किं? हस्तेन क्रीतम्‌ हान्तात्‌ व्वान्ताच्च त्यो भवति श्रनभिधानात्‌, तेन प्राभ्यां weal क्रोतमित्य्ये स्यात्‌। यत्र तु WATS

ee

(१) gare लंवणशब्टो लुकं प्रयोजयति" युणदाचोति काशिका (४,४।२४ | ;

(२) gwWienw: सम्पत्तिः, ऽणेमेति यावत्‌| तथाच सम्पद्यते aig ata यत्‌ तव्‌ सम्पाहि |

ait सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

संस्यप्ररावगमे areata an भवस्येव | यथा हारा क्रोतं' हिकं पञ्चकमिवादि। कं qeataal atc मोहिकं माधवं वनः मिति सेत्‌ सलं, तत्र भवल्यभिधानात्‌। दकेन GRA माषैश a क्रयणं सम्भवति |

शरतादैरदईलयादिवत्‌ | धात्‌ शतार्दरहत्यादिवत्‌ यथाषिहितं ल्या; खः Mae) शतेन क्रतं ae शतिकं, हिकं पञ्चकं finfaa arafaa यावतां, कंसिक, काषापणिकं प्रतिकं aed, शौपं॑शौपिकं*, दिवंसम्‌ श्रध्यरैवंसं, दिसुवण दिशौव्ं, fefinfrata: fend, fenat fend, atta, ame fenre दिशानं, दिनेष्किकं हिनिष्कमिलयादि |

उत्तरादेः Ua गच्छत्माद्तयोः। धादुत्तरादिपूत्वात्‌ पथि- शब्दात्‌ गच्छति आते चाऽथ शिकः स्यात्‌। उत्तरपधेन गच्छति weal वा श्रौत्तरपधिकः, weds लः aft " पथिकः उत्तरादियधा -

उत्तरो वारि कान्तार जङ्गल खल TET: | TH सपहोत्तरारौ कोविदैः प्रिको्तिताः

ुष्यतै। धाद्यु्यत्थे शिकः स्यात्‌। eer qua साहिकः, धनुषा गुध्यते धानुष्कः, उमन्तलात्‌ LAN कः |

शक्तियष्टिभ्यां शौकः। पाभ्यामाभ्यां युध्यते, शोकः स्यात्‌) मूले wer बुध्यत शादि। प्ररे तु wale किन्तु प्रान्तादिवयाइुः (१)

Fees cca ___

(1) तथाच ब्ग प्रहरशमदयेति arate दति करायिका ४।४१५६)।

तदितः | are

wat टोव्यत्यादिः।

रागादरकते। धाद्रागवाचिनो' Tas ष्णः स्यात्‌ यद्यपि (न्‌जधोरनेकाथेतव, यथा भो जने रज्ञः, रत्तो मौः, तधाप्यत लस्य वणोन्तरापादनं THU | कप्रायेण ta काषायं, माचि, कोसुम्भम्‌। कयं काषायौ wee aut, हारिद्रौ gaze पादौ? इति तु उपमानाइविंथति। कषायेण Talfaa काषायौ, हरिद्रया रक्लाविव हारिद्रौ 'इव्यघंः। रागादिति किं? पाणिना TAT |

हरिद्रा महारजनाभ्यां रणो नोल्यासूबनित्‌ धाभ्यामाभ्यां THA TT स्यात्‌, नोलीशब्दात्‌ टणोऽनित्‌। हरिद्रया rc. हारिद्रं, माहारजनं, नोल्या Ta AA चान्द्रासु नोलोशब्दात्‌ श्रमाहः |

ary को, ला्षारोचनात्त्‌ िको, वा तु शकल-करमात्‌ धात्‌ पौतात्‌ कः स्यात्‌, लात्चारोचनाभ्यान्तु शिकः, शकल- . कमाभ्यां ण्णिको at) पीतेन wi पोतकम्‌। लाक्षया रहं atfaa, रौचनिकम्‌। शाकलिकं, arefaat ; पचते q:— शाकलं, कामम्‌ |

नसत्रेभ्यो युक्ते ae) Ra नच्ततवाचिभ्यो युके वे्यादिल्वात्‌ ष्णः स्यात्‌, यो युक्तः कालशेद्रवति। मूले तिष्ये रत्यादि, ष्ण कते qatawmeanfer यलोपः | णवं पौषौ। aq कालेन सद सव्वैदेव नत्ताणां योगः कालस नित्यत्वात्‌, तत्‌ कथं तिष्यौदिना कालविशेषोऽभिषोयते इति चेत्‌

१४३ सुबोधं MATT |

सद्यं, गह्ययं घोष nfaaafa. verrel यधा गह्मण्व्देन तलमौ- पातीरसुपलकत तथात्रापि Taenfefuana: समोपसरषदो दा WAI तदा daw उत्पद्यते | . तथाच तिथसमोपसेन चद्रमसा युज tae | aaa इति ' किं! wT युक्ता “afar. काल इति किं gee garrett: |

भ्रविशेषि तुव्ठलश्रवणाभ्यान्ु नानि | hat नक्द्रवादिभ्यौ विहितणस्य तुए खात्‌, Wag सत्रायां, wanfe- विशेषो यदि नाभिधौयते। अदय पथः we मघा। wa यावात्‌ aa कालो ate कालोऽ्ोरावरसतस्य विरेषाभावात्‌। वशेष एति किं पोप रात्रिः, came: | waa gait महत्त; WA YA, WUT Ufa: |. विगेषा्ोऽयमारश | प्रायामिति किम्‌ 2 आष्ठली रातिः, च्रावणएमहः। सत्र gfe शुक्ञवद्वावः। भवादोयः। कतचात्रचतरवाचकात्‌ यक्ते कालेऽ श्यः स्यात्‌। ति्पुनवपवीयमहः, wa fragagedtd, राधालुराधोया रावि, Wa राधानुरापोयम्‌ | Wad वाभि विेषा- विषयोः प्रवत्तपे। दति fas frre gua avai UM: कालः| . परिहत रथे rq परिधये ेचादिलात्‌ णः घात्‌ घः पणितः ष॒ रथयहवति। वेण परितो रथ; at रषः वार्यो रुः, विकारभिवरे शे नलोपः। कालो रषः, सममा ae वख पतकीषयवो afeaga

तडितः | ६४१

प्वति, यधा छातेः परिहत रथः | रथ इति विं wae परि- हतः कायः |

TIAMAT ट्णः, SY TAMA | धाभ्यामाभ्यां र्णः स्यात्‌ परिषठतरथेऽ्ं | पाण्ट कम्बलात्तु इन्‌, “देपेन परितो रघो Say UH, Taal रथः, धाणटुकम्बसो रथः |

हस्त-यथाकधाचाभ्यां यसौ aa कार्ये च। धाभ्यामाभ्यां क्रमात्‌ यणौ स्यातां दौयतेऽये कारं हस्तेन दौयते काय्य वा हस्यं, यथाकथाच शब्दो व्य-समुदायोऽनादरार्धः | यथाकथाच दौयते काय्यं वा याथाकथाचम्‌!

छन्दसो यो fafaa उरसः wa धात्‌ छन्दसो fafara- ऽथे यः स्यात्‌, उरसो यः Wal छन्दसा इच्छया fad छन्दस्यं विश्वम्‌, उरसा fafaay उरस्यम्‌ ग्रोरसम्‌ |

पूरणान्तात्‌ at ग्रन्थं गह्णाति, तस्य लुक्‌ पूरणत्यान्तात्‌ ग्रं खह्वाति इत्यथ कः स्यात्‌ तस्य पूरणस्य लुक्‌ च। Ta ग्रहणयो ग्यो रूपा दिरेव (१) पूरणत्यान्ताभिघेयः। दितोयेन रूपेण ua waifa feat वटुः, ठनतोयेन रूपेण va गह्वाति तिकः, लुकि qauafa: | ग्रन्भिन्नग्रहपे तु पञ्चमेन दिनेन ax wafa, हितोयेन sata cw ब्टह्वाति wi wast दृश्यते चाषः, रवेन भूयते WAT, मनसा wad मानसः, efira- नाधः। इति धाधिकारः |

„~~ ~ -~ ---*~ ---~~-~--- “~ - -~

(१) रपं यमन्यानामाहतिः।

५८.

६४२ AUT व्याकरणम्‌ |

arq| ` घादियधिकारो जादित्यतः प्राक्‌

ट्टे सानि घात्‌ दृष्टये वै्यादितात्‌ शः स्यात्‌, यत्‌ ष्टं ,तत्‌ साम चैद्गवति। वशिष्ठेन दृष्टं साम वाशिष्ठं वेखा- मितम्‌ | शो feat sara विहितः णौ feet खात्‌ fen | ze साम विंशं, डिति Zeta: | aud साम। एवम्‌ श्रौ शनम्‌ Mad साम | यमारिभ्यस्वपत्यवत्‌ दति | aaa ev साम यासम्‌ श्रादियम्‌ भागयं कालेयं देव्य देव प्राजापत्यं पाशपतं श्रोसमिलयादि

वामदेवात्‌ यः। घाहामरेवशब्दाद्यः स्यात्‌ ee सामि | वरामदेषेन दृष्टं साम वामदेव्य साम।

तोयात्‌ ष्णोकः। तीयान्तादत्रार्थे ata: स्यात्‌ हितेन ष्टं साम हेतीयोकं ता्तीयोकं ata

गो त्रादङ्वत्‌। ब्रपव्यान्तेभ्यो Feng sar Ta विधया भ्रवा्यते MU दृष्टे सामन्यं। Ponda दृष्टं साम wma साम। स्लुनुकायनिना दृष्टं साम ग्लोचकायनकं साम, वेदेन दृष्टं साम Fe साम, गागं साम, दातं साम |

नानि afar: छते घादचिकादैः कतय षण, स्यात्‌ ममुदायेन ist चेहवति। मतिकाभि; कतं माचिकं मु। मचिकादिवधा-- °

मिका पुत्तिका गमत्‌ सरघाः परिकीर्तिताः | पौत्तिकं गातं सारघं, मधनः eT

तरितः | ६४३

AR मर वरटा वातपात्‌ (१) टेणः। चेभ्यः एभ्यः कति ZU: स्यात्‌ | aaifa: छतं RE ari वारटं वातपं मधु |

कुलालादेणकः। धात्‌ कुलोलादेः aise शकः स्वात्‌ arf) कुलालेन कतं कौलावकम्‌ ,

कुलालो गिरिकः सेना चण्डालः परिषदधुः | HUT वरुडोऽनङ्ान्‌ FAR उरस्तथा नाह्मणो देवराजश श्वपाकः परिकीर्तितः | fates कुलान्ादो परे शिषटप्नयोग॑तः

क्ते wa) धात्‌ wast बेत्यादिलात्‌ षणः स्थात्‌, यः क्तः aca भवति। वररुचिना क्तो ग्रन्यः वारस्चः प्राभाकरः यमादेसतु याम्यः आग्नेयः प्राजापत्यः काक्तेयः देव्यः Za: tia: | भवादिललात्‌ पाणिनिना क्लतो ग्रन्थः पाणिनोयः। शास्तविगोषणत्वात्‌ aa पाणिनोयमिति Hay एवं काशक्लत्‌स्नं कार्सित्यादि।

Ta | धात्‌ Wa वेद्यारिलात्‌ ष्णः स्यात्‌ प्रकर्ष णोत Wa व्याख्यातं अधीतंवा, नतु ad, छते A इत्यनेना- वगतल्वात्‌ | यज्नवल्केन प्रोक्तं यान्नवल्क, प्राभाकरं, गौतमम्‌ | qa maafaa wean प्रोक्तमिति वाक्यं, काश्यादिला- faa-fuat | feat शाव्यैवर्िका शणाव्वैवश्िकोति। एवं व्यासेन war संहिता वैयासिकरा वैयासिकौ,। एवं पाणिनीयं, पणोऽस्याम्ति पणौ, तस्यापत्यं शे पाणिनः, परयादि लाब्‌ नलोपः,

ee

oe (त ({) वरटा शत्य वटर, वातप इत्यन्न प्रादप इति पाणिनिः।

{५8 quad व्याकरणम्‌ |

भवान्‌ पाणिनिः, gra: पूज्ये, तेन Ma) न्यासकार पयोऽसि फलादिलादिनः, तस्यापत्यम्‌ wa: शिः, तेन गों गहादिपाटादौय vane! गोरा णसु भरापिशलिना प्रोक्तम्‌ भ्रापिशलम्‌, एवं काखेन प्रोकं लाम्‌ पमादेषु याम्यं प्राजा- पलम्‌ Wars कारेयं पाशुपतम्‌ श्रौकमित्यादि | उख तित्तिरि वरतन्तु-खण्डिक्षासोयन्डन्दसि। faz एभ्य- ग्डन्दसि विषये ward wa: स्यात्‌ कल्पसूत्रहृ्दोत्राह्मणानि तदिषयाणि इति तदंषयता sea ma छ्दोऽधोते शरीोयः तत्तिरोयः वारतन्तवीयः खाण्डिकौयः। छन्द सौति किम्‌ उखेन प्रोक्ताः श्लोकाः ATT: छगलिनो शयिन्‌। ` घाच्छगलिनः Wat छन्दो विषय णेयिन्‌ स्यात्‌। कलाप्यन्तेवासित्लाशिनोऽपवादः। हगलिना Ma SIMs qaan प्ोजञाहनगित्यनेन श्रधयेटवेदिटष्णस्य तुक्‌ एवमन्यव | शोनकाैेणिन्‌। घाच्छोनकादेन्डन्दसि विष्ये mara faq aia) शौनकेन wa छन्दोऽधीते शौनकी qt परौनकादिवधा-- शोनक; स्कन्दः पेयः शाम्मेयः पुरुषायुषः। शापायनो THA देवदशेंन शारः | खम्-वाभसनेयो तलवकारेण संयुतौ | खाढायनो रल्लभारः कराय इह कौर्तितः। कठशाठौ Maar षडभिदंश मनोषिभिः॥

तदितः | ६४५ कंठटश्याठाविति समुदितस्यात्र ग्रहणम्‌ कटशाटाभ्यां प्रोक्तं छन्दोऽधीते काठशाटौ | केवलात्त लुक्‌ वच्यति येऽत्र aurea ईयः wag: शणो बाध्यते | , कलापिशिष्याऽकैलापिवेशम्पायनयि्भ्यः aa: कलापि, fra: कलापिवरञभ्यो व्रेशम्पायनभिषयेभ्ययच दन्दोविषये wiasa faq स्यात्‌ | aa, कनलापिथिष्या्चलारो इरिदश्कगलो तथा | उपनलसतम्बरु्ाध वैशम्पायन शिष्यकाः | पलिङ्क(१) कमलाऽऽलम्बि कठट-ताण्डय-कलापिनः ष्यामायनोऽपि ऋषभोऽरुरिरेते नव स्मृताः (२) | हरिदुणा wa न्दोऽधौते हारिद्रवो एवं पालिङ्गो ननु कलापौ वैशम्मायनशिष्ः, तच्छिष्या दरिद्रादयश्चत्वारो वैशम्पा- यनप्रथिष्या भवन्तीति वैशम्पायनशिष्यहारेणेव सिध्यति, कि एग्‌ग्रहणेनेति चेत्‌ सत्यम्‌, wa कलापििषयग्रहणं साक्ता- च्छ्थिन्नापनाधैम्‌, wet कठगिष्यस्य खाड़ायनस्य वेशम्पा- यनशिष्यत्ात्‌ शौनकादौ पादोऽनुचितः। खाड़ायन- शब्दस्तत्र पठनोय इति वादम्‌, wa प्रथिष्यभ्यो णिन्‌प्रस- giq1 भ्रकलापिन इति किं कलापिना प्रोक्तं छन्दोऽधौति कालापः , कलाप्यादिलाव्रलोपनिषेषाभावत्‌ नलोपे इकारलोपः |

(१) Way Key पाठः, (२) mun यत war अरूशणिरि यतर ारुण्टिरित्यन्यत्र पाठः|

९४६ मुग्धबोधं व्याकरणम्‌ |

कठचरकाहुक्‌ घाभ्यामाभ्यां छन्दसि विषये MALE BATE स्थात्‌। कठेन प्रोक्तं छन्दोऽधीते कठः, चरकः | छन्दणोति fa काठः शोकः

ऋषेः काश्यय-कौशिकासिन्‌ we च.।" घाम्यामाभ्यां क्य safe वाये mas णिन्‌ स्यात्‌ यस्यापवादः काश्व- da ita wel न्दो aha areal एवं कौशिको ऋषेरिति किम्‌ ? इदानोन्तनकाश्यपगोत्रः काश्यपः , तेन Wa कल्यं छन्दो ant काश्यपौयः कौरिकौयः, gare) aware: नु्टेयविधैविधायको ga: कल्यः। काश्यपेन wf site श्लोकः काश्यपोयः न्नोकः | Wat इह छन्दो नागुवत्तयन्ति

पाराथथगशिलालिभ्यां भित्तुनटसुत्रयोः (१)। घाभ्यामाभ्यां क्रमात्‌ भित्तुनटसूव्योवाययोः प्रज्ञाये रिन्‌ सात्‌) प्रारा- श्ण प्रोत्तं भिपुसूत्रमौते पारा्रो भिदुः, श्यो बाध्यत शिलालिना प्रोकं नटसूत्रमधोते शेलालो az: |

कन्द-कयाशाभ्यामिन्‌। घाभ्यामम्यां क्रमात्‌ भिन्ुनट- सू्योवाययोः ass इन्‌ we! weet प्रोक्तं भिक्नसुव- मधोते aire भिकः, amas प्रोक्तं नटसूत्रमधीते क्था नट; भित्रुनटसूव्रयोरिति fai > andre: arate: श्लोकः |

षिप्रो्तयोतरीह्मणकल्मयो te यान्नवतकयादेः | awa दिभिब्रात्‌ षात्‌ छषिपरोक्ञयों ह्मणकखयोरणिन्‌ खात्‌, उप-

~~ ee

(1 GaN प्रमकरमाभरम्बधते | भिक्‌सृत्रनटशन्रमोरिवर्षः |

तदितः eee

निषहागातिरिक्तवेदव्यास्यानं ब्राह्मणं | meaaa we बराह्मण- wna शावायनो, पिङ्गेन da: कल्यः Get कल्यः यान्न- ANY WTI: WATT: yea: | यान्नवल्कपादिभ्थो वे्यादिविहितष्णस्य . प्रक्ञाधिकारविर्हितरलाभावादध्येढदिद- विषयता मा भूत्‌ | asta faa: प्रक्ताधिकारविहितत्वेपि स्यात्‌ (१), कल्यग्रहथेन" ततर We: काश्यपकौगिकासोनः कल्पे इति कल्यस्येव ग्रहणात (२) |

दति घाधिकारः।

अत्र aaa साधुः त्ेव्रियः यन्निय दति मूले लिपिकरप्रमादः, भात्‌ त्याभावात्‌।

जात्‌ जादित्यधिकारो Seq प्राक्‌

श्रागते। जादागतैऽयं वेद्यादिलात्‌ ष्णः स्यात्‌। मूले मथुराया safe, ष्णे भ्राकारलोपः त्रि्च। एवं ate इत्यादि यमादागतः याम्यः प्राजापत्यः पाशुपतः ्राग्नेयः ओ्रतः। भवा दित्वात्‌ mata: काशिकः राष्टियः नादेय इत्यादि। IASI तस्यव ग्रहणं, तेनेह स्यात्‌ सुघ्नादागतः षन्‌ ठत मूलादागत इति (३) |

(१) wasafesfaraa दूति शेषः

(2) तथाहि agate अध्ये्टेदिटविषयता afe aaa कलमदहण- मनर्थकं ख्यात्‌ | वसात्‌ ततैव क्त्ये वाच्ये अधेटवेदिटविषयता, अल मेति सिध्यतीति दन्युग्धतरो धम्‌ |

(१) “कआद्यपादानादागते" , दति िप्रसारद्वम्‌ ५०१) तब्र॒गोयौ- चन्द्रः -म्राद्शन्द्ः प्रथमपय्यायः। प्रथममपादानं विद्धेषो azerq तसाटा-

६४८ मुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

sama: शिकोऽशएणडिकादैः | जभ्य प्रायश्ानवाचिभ्य ्रगतैऽधं णिकः सात्‌, नतु शुख्डिकारैः। भायः खामिग्राच्नो भागः यिब्रत्मयते तदायश्यानम्‌। शल्कशालाया प्रागतः शोष्कशालिकः भ्राकरिकः। व्वनि्शः खरूपविधेनिराषाधेः | शएण्डिकारेसु -शएर्डिकादागतः wife | शख्डिकादियथा-

एणकः ककणस्तोध-भूमि-पण-ठ णोपलम्‌ | उदपानं Uiwag शण्डिकादौ नवैरिताः

कृकणपणयोः पाठः, पशज्ञकणाद्‌ भारदाजे इति fre बाधनः | तोधख धूमादिपठितस्य शकवाधनाथेः उदपानख उसादिपरितस्य टृशबाघनाधैः ! श्न्येषामायखानवादिलात्‌ णिकनिपेधाधः पाठः |

विद्यायोनिसम्बन्ाहतः। fared योनिक्षतश्च सम्बन्धो यस्य aad जात्‌ भ्रागतैऽधं faa: स्यात्‌। FATT: “eae: Waa: खादकः, उकूप्र्याहारादिकस्य कः विद्या योनिसग्बन्धादिति किं सवितुरागतं सावित्रं काचम्‌

पितुयश्च। faa पिढशब्दात्‌ य-शिकौ स्याताम्‌ पितुरागतं पित्रा पेढकं,पूष्यैवदिकश्य कः |

vam कः जाहिदयायोनिसम्बादनदृदन्ताखकः स्यात्‌ Tas उपाध्यायादागतम्‌ भ्रोपाध्यायकम्‌, रेतामहक्षः मातामषकः मातुलकः।

- ~~ - ~~ ~ -~ ------~ ~~ *~ ~~ ~-*~ +~ ---“~ ee ~~ => ~~~ -- -----~ ~ ~ ~~ --- ^~ * ee ere

गतेऽथ दरण प्रचयो भवति| बआदियटणं किमर्धम्‌ ? यटा भगधादागश्छत्‌ दचगूलाटागतः, तदा इृच्तमूलधन्दात्‌ टण्‌ भवतोति।

तडितः | eve.

Sqeh मययृरप्यौ वा जभ्यो कृवाचिभ्थो हेतुवाचि- म्य WMA HAL SAT स्यात्‌ देवदत्तादागतं, देवदत्त मय देवदत्तरूप्यं। पचे देवदत्तं, वपते देवदन्तीयम्‌ |, एवं यन्नदत्तमयं यन्नद तरं यन्नद्॑तोयमि्पिदि हतुभ्यस्तावत्‌- समादागतं सममयं सैमरूप्यं। प्ते समौयं, गहादिलात्‌ Sa: एवं विपरममयं feared विषमीवं | ननिरहेथः खरूप- विधेनिरासा्ैः |

अप्ादङ्वत्‌ | श्रपत्यान्तभ्यो धेऽ येभ्यो ये त्या विहिता- स्तभ्य MAAS ते त्याः स्युः श्रौ पगवादागतम्‌ श्रौपगवकम्‌, वेदः गाग; दाक इत्यादि

प्रभवति जात्‌ प्रभवल्य्ं वेच्यौदित्वात्‌ ष्णः स्यात्‌ हिम- वतो ग्ग प्रभवति हैमवतो गङ्गा। दारदो सिन्धुः aay याम्यः प्राजापत्यः पाश्पतः Aida: Alea इत्यादि | भवादिन्वादु गाङ्ग्यः काशिकः राष्टियः area इत्यादि |

बालवायासमो विदूरश्च जात्‌ बालवायात्‌ प्रभवव्यये खः स्यात्‌, खे विदूरादेशश्च वालवायात्‌ (१) प्रभति वेदूरयौं मरणिः। परेकटेभिनसु विदूरशब्दात्‌ wet विधाय agai साधयन्ति (२)।

धन्चादरयोऽनपेते जादश्राटेरनपेतऽ्ये यः स्यात्‌ धना ठनपेतं wary) wafer --

(१) बालवायो देशिशेषः |, , (२) *गविदूराजज्यः? इति पाणिनिदनम्‌ (४।२।८४) |

एन्‌

eye मुगवोधं व्याकरणम्‌ |

धार्ध्यायपन्यानचलवारोऽत् प्रकौत्तिताः। इति जाधिकारः।

डात्‌। डादिवधिक्रारः थाः प्राक्‌ |

waged) sq प्रात्रवाचिन sei षरद्यादिलात्‌ शः खात्‌। पात्रं गौज्ञनम्‌, sea भुक्येच्छिष्टम्‌ | शरापेषहत mea; शरावः, कापरः। पात्रादितिं किं? पाणावृहतः

afwargaanfaaft; व्रतेन यः Gta व्रतश्यथिता, तख्िन्‌ sry ख्डिलात्‌ tenferrq शः स्यात्‌ खण्डिले aaa शेते खाख्डिलो ब्रह्मदारौ व्रतमिति meat नियमः |

Wad भच्ये। इत्‌ संतत्य वेत्यादितात्‌ शः स्यात्‌, यत्‌ ded तत्‌ wa चेत्‌ भवति। भवार (१) संता; भाष मदाः, TST: (२) पूणा; ' खर विषद्-मभ्यवहायं भद्यमिति जयादिव्यादिभिरतर रुद्रका खरमभ्यवहाथं भृष्टसुहादि, विष्रदमभ्यवहायम्‌ श्रोदनादि। wa दति विं पुष्पटलैन सस्तो मालागुणः |

ew: शिकोवा तूदखितः। crew: संछतिऽये णिकः; स्यात्‌, satay (२) वा दधनि संतं दाधिकम्‌ तन संखत- मिलत दधिक्नतमेवोकषाधानम्‌, इह तु द्रव्यान्तरेण लवणादिना राधारभूतं दधि संस्ियत इति मदः wa तु दक्षि संखत- मिलधविवत्तावां णोमा भूदियेतदथमिव्याहः। उदखिति सतम्‌ श्रोदशिलां, तादिकस्य कः पते श्रोद्खितम |

"~= mn - ~ -~ ~

—_ ee --~ ere

(1) भाः मज्जनपात्रम | (३), fast: सालो | (३) sefaq बम्ब तक्रम्‌ |

तडितः। ६५१

aU Wa: | डात्‌ Atel aes We Wa: स्यात्‌ सोरे संता सैरेयौ यवागूः शूलोखाभ्यां यः। डाभ्यामाभ्यां संस्कतं wa sq यः स्थात्‌। शूले संस्कतं शूल्यम्‌; उखायां संस्कतम्‌ Tal मांसम्‌ भवे। डाद्वैऽय बश्यादिरत्वात्‌ ष्णः स्थात्‌। शन्न भवः ae, मारः, tafe भवः खौयमः | आदाद्यची faa भिंश- पैत्यादिनाद्यच रात्‌ Ua ered दातिकम्‌ was याम्यः प्राजापल्यः पाशुपतः आग्नेय sta warfeara गार्गयः काशिकः राष्टिय इत्यादि | भ्रध्यातारः णिकः। डादध्याकादेभवेऽ्ये शिकः स्यात्‌। अध्याके भव ब्राध्यासिकः। अध्यात्बदियेधा- अध्याल्ममुपजानृपकणं स्यादुपनोवि | अधिभूताधिदेवच्च खग्रामोडंन्दमं तथा | WEEE: समानादि-लोकोत्तरदमेव खाध्याय-चतुगथं कदाचिदिह षोडश | श्रध्यात्ादाविद प्रोक्ताः समानोऽन्ये प्रयोगतः | megane: षट क्तवा (१) ्राधिभौतिकम्‌ आधिदेविकं सुभगादिल्वात्‌ हयोदयोत्रिः। wera ऊदहुसमानाथः समानादेस्तावत्‌ - समानदेशिकः समानग्रामिकः। लोकोत्तर दात्तावत्‌-रलौकिकः पारलौकिकः, दयोदंयोत्रिः चतुर

-- -- -- - --------* -- - nae =>

~~~, ---~~ == ~~ ~ ~~

94 (i) अव्ययौभावसमाषनिष्मन्नाः।

१५२ मुवोध व्याकरणम्‌ |

मः चातुरधिकः। TT UST ग-वाये लुक्‌ व्यख WA tfeafafa एवं कादाचिम्‌ | समामे भवः सामानिकः। भरखाज्ञनिगणलात्‌ शै wa: afar | वादन्तःपू्वात्‌ |! ST हनवात्‌ HAART wae {शकः Eq अन्तरगारे aa: आन्तरगारिकः ATE fea: | ्न्तःशब्दस्याधिकरणग्रपिदलात्‌ aa वसः | ग्रामात्‌ पथतुपूर्वात्‌ STF waa पश्चनुपृत्धाद्‌ ग्रामाद्‌- भवेथ ष्णिकः ATA परिग्रमि भव; पारिगामिकः श्रानु- ग्रामिकः। ्राभ्यामिति किं? सूने arate: ग्राम्य इति पारा- दित्वात्‌ a: दिवादिलात्‌ a: | प्राखङ्कदिगादिभ्यां at देवादेमु णित्‌। इभ्यः प्रा्द्ग- वाचिभ्यो दिगादिभ्यथ् vaca यः स्याट्‌, गन्तु टेवारेः। मूले मूरैन्यमिति afe मवमिति sary एवं हृदयं करट maar faenfe | दिगादेस्तावत्‌-दिगि भवं दिश्यम्‌ दिगादियेधा - दिक्‌ पत्त सृग-प्यानाऽनोक-णवि(१।रहो(र)गणाः | वग मिव्राऽन्तरा$ऽकाण-वेग-कानादयो (र) मुखम्‌ | जघन मेघ-युधाऽन्ता नाय-धायावुखा(४)पि च| मेषऽनुवंभो वंभ संन्नायामुटकं मतम्‌

श्रत ये हदास्तभ्य ईयः Tie णो वाध्यते। मुखजघनयो;

Rr > - -- - ~~ -

प्राखद्गवचनलेऽपि ग्राखङ्भित्रेऽपि यप्राघ्यधः पाठः | उदके

~ ~ ~ ~~~. - ~~ -- ~ ~~न

(१ साचिन्‌ दन्यत्र पाठः | (a) काल, arfe | (9) रहसण्न्दः। (४ उसाश््द्‌ः।

तदितः | ६५२

भवां उदक्या रजखला नात्र प्रक्तिप्र्ययार्थन शब्दृहत्तिः। संज्ञायामिति किम्‌ श्रौटका मत्स्याः टेवादेस्तावत्‌- देवे भवं दव्यम्‌ यद्यपि यमादिलात्‌ cafafa सिध्यति तथापि.मवाथ देवमिति वारणाथम्‌ Neatfewat -- देवः पञ्चजनं Ga ग्मोरौऽथ वमे परे परिमोरानुसीरोपसौशपठणभेव प्योषठोपकन्दापालुगोते परिमुखं तथा परिन्वनुगङ्गानुमापानुयव्चव हि॥ श्रनुवंशं परिखनलाऽनुपधानुतिनन्तथा | अनुसूपमथो यज्ञे चतुधा प्रकोर्तितम्‌ अर्रानन्तरं at शब्दाः परिमरैरादयः सप्दटश वसे देवादौ पवन्ते | पू(१)मनुवंगशब्दोऽवकषे। परिमुखमित्यव मब्वेतो- भावाधे-परिगब्दस्य योगविभागात्‌, इह व-सग्रद्रणन्नाप्रकादा व- सः (२) चतु मासेषु भवः चातु्माघ्यी aw | मूले नादेयमिति नव्यादिलात्‌ wa) शालोयमिति aar- टोयः, शालायां भव इति वाक्यम्‌ नागर इति ष्णः |

AAT येयेयाः। डादग्रशब्दात्‌ इय दैय एतेस्यभवे्य |

न~~ ~ ~ = -- ~~~ * -- -

~ -- ~~ --~- eee -----~---~ |

(१) gaa fearerfarre: |

(र) वल्जन।थध परशब्देन सह पञ्चग्यन्पटखाययौभाव tf योगः। अत "अआङगयपवद्हिरनचां ar दूतिवात्तिक aa Bs द्रष्टव्यम्‌ | परि श्ड्धेन सह पञ्चम्यत्तमिनच्रपदखाष्यव्ययोमा दूति faa: | aaa शुखं प्ररि परणख- मित्यव्यया भावः। चरानरमग्याश्रोयते वसप्रहणेति। अथवा अव्ययोभाव समाङनिष्रादितशन्दानां मध्ये परहणाटेवाव्ययोभाव इत्यध. |

६५४ सुगवो व्याकरणम्‌ |

४३१1 Be लीप ऽनाराच्छश्चतोऽच्ये ऽयो | ( BE: €|, लोपः १, अनारात्‌-शष्ठतः ६।, TTT ol, प्रयौ $| ) | पौनः पुनिकः, aver वाहोर्व॑ः। gaz] नदं तसौ लश्टर्थे (न।१।, S et, तसौ eH, तु les, WIA |, ।१ )

मूले शअ्रग्रामिति, भरग्रियम्‌ श्रगरौयम्‌ | परेकदभिनः तदन्तादपौ- safer तेनालग्रामिलादि |

४२१। व्यटेः। व्यश द्धिः टिः ar wee शच्च तत्‌, तत्‌ ्रनाराच्छश्तत्‌ तस्य Wa यश्च श्रयं तसिन्‌। नाम्ति qafaq सः श्रयुस्तस्िन्‌। Tafa व्यस्य ata: स्यात्‌ ्रचिते युवलितेये च| पौनः पुनिकं इति एनःपुनभेव इति वाश्चम्‌, भध्यालादेराक्तिगण्लात्‌ शिकः, saa टिल्लोपः। श्रयाविति किम्‌ श्रह॑गुः |

विषो खणोको। डादहिम्शब्दात्‌ ats खलोकौ स्याताम्‌ मूले are इति, पं वारकः, वदिर्भव दति वाद्यम्‌ waa a पूर्वेण टिलोपः |:

४३२। नदम्‌ we याविद्यतुवर्तपै। तश्च wa ati धरसि wat यस्य तक्िन्‌। तदित्रिति fates परथैसेति नयायात्‌ ूषवेदमाचिपलोलत we qa zit सादिति। wa wafer त॒प्गिमाभित्य 2a ada निलयते परमाम wf

तडितः ६११

अथावचि ये चतेपूव्वं cde a स्यात्‌ तान्त सान्ती तु अस्यर्थे | ्रारातोयः शाशतिकः।

आराद्व दति वाक्यं, ब्रहसंन्नक॑त्वादोयः अनेन दल्निषेधान्र चपोऽबे जव |

WET क्ये, द्ये चे पूर्वं दसंज्ञंन स्यात्‌ गाभिच्छि गव्यति, गौरिवाचरति गव्यते इत्यादौ Saal वाव Weta इति अवादेश इति, एवं तडितमिच्छति तडत्यतोत्यत्न चपोऽवे aq, नमस्यति इत्यत fa: | |

waa: श्णिको वान कञ्च, डाच्छष्वच्छन्दात्‌ feat वा स्यात्‌ शिकस्य कञ्च मूले शाखतिक इति, शश्वत्‌ fay कालेषु भवः विद्यमान इत्यथे; ay शाश्वतः टेर्लोपः चपोऽबे AAT |

अहि awfe afa हति कलसिभ्यः (१) ष्णेयी ग्रोवायाः Wa) Sy एभ्यो भवार्थे शेयः स्यात्‌ mara: waa श्रहौ भवम्‌ आद्य वास्तयम्‌, स्तौति व्यन्तप्रतिरूपनिपातस्य धनवाचकस्यास्तिणब्दस्य ग्रहणम्‌, ्रास्तेयं Aad दात्तेयं कालकेयं aaa ग्रैवम्‌ |

agfafaarqanatata: | डाभ्यामाभ्याम्‌ ईयः स्यात्‌

(1) कलसिशब्दोऽत Bara | तथाच ar:—aafeacfagey” agat- नोड्यन्त[त- दूति afgany ४७६ BA गोयोचन्द्रः |

gue मुग्धवोधं याकरणम्‌ |

Wit) Weal भवः TENT: जिह्वामूलोयः कथं Zeta: पाश्वतीयः (१) ? गहादिलात्‌।

गाना डादर्गानताहवेये श्यः स्यात्‌। कवर्गे भवः कवगींयः vata: वर्गान्तादिति ff: व्य; दिगादि- लवात्‌ यः।

ane येनौ डादर्गान्तात्‌ नश्च एतै स्यः भवे. नतु एदे वाये। quail भवः wae: कष्णवमोंगः- RUT: | शब्दे तु कवर्मीधो वर; |

मध्याकरमोयदिनखोया दस्य नुम्‌ च। डा्रध्यादेे (२) स्युः भवेऽ, दस्य नुम्‌ च, उम्‌ इत्‌ मध्ये भवः माध्यमः मध्य- मौयः माध्यन्दिनि; मध्वौयः *

कणललाटाभ्यां कोऽलङ्कारे। swat we कः स्यात्‌ WH! कणं मवोऽलह्वारः कणिका, ललाटिका, यखापवादः। प्रलङ्गार इति किम्‌ ? करयं लनाकम्‌ |

यामाजिनान्ताहृक्‌ Si लामा न्तादजिनान्ताद्च भवेयं विहितस्य स्य तुक्‌ स्यात्‌। waanfa भवः ब्र्यामा का. जिनः भिंहाजिनः।

ग्र्यादनेकाचः शि कः.। इात्‌ ग्र्यवाचकादनेकाचः णिकः स्यात्‌ भवैरथे। दृष्टो भवः एेष्टिकः orga) एकावशु सुपि भवः सौपः aw

(i) छतर पाश्तम्‌ बन्द्योरव्लारोषे टे ata: | (>) मण सोय ट्निख ta pat: |

~“ ~~~ ˆ ~~ ---~ ~~~ seimeymnenanmnshotiurme meer

तडितः | ९५७

बह्चोऽन्तोदात्ताच। डादर्न्तोदात्तादद्चो ` TATRA शिकः स्यात्‌ WY wy षल-णत्वे aaa: षात्वणलिकः, स-सखरेणान्तोदात्तः(१) | भरन्तोदात्तादिति किम्‌ ? संहितायां भवः aifea:, प्रादि-स-खर्युदात्त, पूरववणेव्ुसिडे अनन्तोदात्ताद्‌- qed: ष्ण एव, एृयग्विधानात्‌ | ऋष्टक्पुरथरणाख्यातेभ्यः'।' WTA ऋकशब्दात्‌ YT खरणशब्टात्‌ भ्राख्यातगब्दाच ` डात्‌ शिकः स्यात्‌. भवेऽ, पञ्चसु होढषु भवः पाञ्चहोढकः, ऋचि भवः आरिकः, एकाच्‌- लात्‌ णस्यापवादः, पौरश्चरणिकः ्राख्यातिकः, भ्रनन्तोदात्ततात्‌ ष्णस्यापवादः | ऋषेरध्याये। डादष्यभिधानग्रन्यवाचकात्‌ wasa faa: area वाये ऋषिशब्द उपचारात्‌ ग्रन्विगेषम भिघनत्ते | afas भवः वाशिष्ठिकः बेश्वाभिविकः। अध्याय इति किं? वशिष्ठो ऋक्‌ | यन्नक्रतुवाचिभ्याम्‌। seat यन्नवाचिभ्यां क्रतुवाचिभ्याञ् णिकः स्यात्‌ भवां श्रनन्तोदात्ताथे भारः नवयन्ने भवः नावयन्नि कः | क्रतुभ्यस्तावत्‌- राजसूयिकः वाजपैयिकः क्रतुभ्य इत्येव सिदे यन्नग्रहणमसोमयाग यथा स्यात्‌, पाञ्चोदनिक्षः (२)।

——— ~ --~ ~ “~~~ -~----~

(१) शै समासे खर उटात्तादिस्तेनम (२) सोमसा्थेषु यगेष्वेतौ ( क्रत॒यत्तशब्दौ ) प्रसिद्धो , तन्रान्यतसोण- gaa सिद्धे उभयोरूपादानसामध्यादसोमका wis <gyad दरति सिद्धान्त कोटो (४।२।६८) | ८३

६४८ सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

पुरोडाश्पौरोडाशभ्यामरित्‌। डाभ्यामाभ्यां ग्राभ्यां भवेऽ णिकोऽणित्‌ स्यात्‌ | ‘qaterm: पिष्टकपिश्डः तत्र भवः एरोडागिकः | पुरोडाभिकौ ऋक्‌ पुरोडाशसंारको मन्तः पौरोडाशः aa भवः.पौरोडाशिकः पौरोह्भिको | पौरोडाश शब्दादन्तोदात्तात्‌ पूर्वेण शिकविधाने पौरोडाशिकः पौरो- डाधिकौति सिर पौरोडाशग्रहणं पवहावनिषिधामावाधेमिति | ष्ण MAINS यश्च | डादग्रयनादेराहवेऽये षणः स्यात्‌, छन्दसलु TU | ऋगयन भवम्‌ भरागयनम्‌ | ऋगयनादिवधा-- ऋगयन-विद्या-निगम-न्याय्रं छन्दोभाषोत्माद-पुनशक्गम्‌ (१) | छन्दो विचिति-छन्दो विजिनो-छ्दोमान-व्याकरणानि | शरङ्विद्या तयोविश्या पदव्याख्यानमेव | छन्टोव्याख्यानोपरनिषच्छित्तासंवन्षरायपि उतूपातख सृहत्तश्च चैत्रविदा aaa वासुविद्या निमित्तचच faa परिकीत्तितम्‌ छन्दसि भवः eee: Ered) सथस्ात्‌ शिक वाध्यते | सरथाः Y यलोपः ।. UTA भवः सारवः, Ta यलोपः | भव किम्‌? सरयुं जातः सारयवः। जाते। डादिव्यव तल्नातेऽ वे्यादिलात्‌ णः स्यात्‌ | भवजातयोरयं भेदः, भवो विद्यमानः जात उत्यब्रः | WAT जातः

7 77 1) on. ५१ ee aa ~ bane ~

(१) इउन्दोभाषा, SATE: |

तदितः | ९५९

SY माथुरः यमाटेलं याम्बः , आदित्यः arta: काल्यः marae: पाशुपतः ar इत्यादि। भवादिलात्‌ गार्गौयः, शालोयः Tea: कालिकः राष्टि इ्यादि |

प्राहष इकः प्रावि जातः प्राहषिकृ^ रएष्यस्यापवादः

नानि शरदो WH: | डाच्छरच्छब्दासकः स्यात्‌ TAT aa AAT Vest | शरदि जाताः शारदका मुदाः cuts safer g शारदिकं, वथाप्रासम्‌

मूलाद्रीवस्करप्रदोषपूलधाह्वापरा हात्‌ कः Sey एभ्यो जाै- ऽधं कः स्यात्‌ नानि। मूले जातः मूलकः, आद्रायां जातः आद्रकः, कैऽकः इति खः। WaT: प्रदोषकः WIT श्रपराहकः, शरनाजितु यथाप्राप्तम्‌ ^

पथः Tae) के पथः प्यादेशश्च पथि जातः aaa: |

अरमावास्यामावस्याभ्यामश्चवा। डाभ्यामाभ्यांकः AT वा स्यात्‌ जातेऽधं संज्ञायाम्‌ अमावास्यायां जातः अमावास्यकः श्रमावास्यः पक्षे पलयादिष्णः AAAS: | एवम्‌ अमावस्यकः श्रमावस्यः आआमावस्य इति |

सिन्ध्वपकराभ्यां कः श-टणौ डाभ्यामाभ्यां जातै्थे कः स्यात्‌ WET क्रमात्‌ स्याताम्‌ सिन्धौ जातः सिन्धुकः, wt सैन्धवः, कच्छादिषाटात्‌ कृतत्‌ष्ययोणकस्यापवादः अपकरे जातः भ्रपकरकः, SY श्रापकरः। एतत्मथन्तं' नामनोव्येकदे शिनः

तिथ-पुनन्धरु-खाति-हम्ता-विभाखा-बडलाभ्यो YR एभ्यो जाताथेस्य त्यस्य लुक्‌ सयात्‌ | तिष्ये जातः तिष्यः gag:

६६० सुग्धवोधं व्याकरणम्‌ |

खातिः दृस्तः विशाखः, agar: कत्तिका; तासु जातः बहुलः, तस्य लुकि MIA लुक्‌

aaa वा। नच्त्वाविभ्यो जाताघत्यख FAT सखात्‌(१)। भरषिन्यां जातः wel त्य gt wine लुक्‌, पते ग्रान | qaqa आश्वयुजः, रोहिणः Afew, safer ariste:, अभिजित्‌ आभिजितः, faa: चेतः, वणः ब्रावशः, रेवतः रेवतः |

वकशालात्‌। वलश्लगब्दाज्जातायव्स् तुगा स्यात्‌! AAU जातः AANA: पे AAA: |

फगुनोशतभिषगभ्यां Zr Waal जाताधेत्यस्य लुक्‌ वा स्यात्‌ लुकि सति mares at स्याताम्‌। फर्गुन्धां जातः फरगुनः, टपकषेऽपि फस्गुनः। fei फरगुना फदगुनो च, टे ad रिच्चादीप्‌। उभययङ्गपक्षे फाल्गुनः, फाद्गुनो (२) शतभिषजि जाता शतभिषा, डिति टिलोपः लोप श्रत श्राप, डाभावपतते शतमिषक्‌, लुगमावपक्ते शातभिषजो

यविष्ठाषाद्ादोययोयौ वा। wnat जाता्घल्स्य लुग्वा स्यात्‌ नुकि ईयः णोयश्च वा ्रविष्ठायां जातः श्रविष्ठः शरविष्ठौयः खाविष्ठोयः, लुगभावपकते ` ग्राविष्ठः। श्राषाढ़ायां जातः Tas: Wasa, सुगभावपत्ते आपादः | Ta तु wet इखादि,

(9) विशेषविधिभेषोऽखय विषयः। (२) उभयं लक्‌ यप्रद्चयश् तबोरमावपक्ते णो ्िवाभीपए्‌।

afea: | ६६१

तथाच “यद्रोहिणोयोगफलं तदेव भवेदषाढ़ासहितै चन्द्र" दति वराह Tats: | |

सानान्त-खरशाल-गोालाल्ञग्‌ नित्यम्‌ एभ्यो जातरथैत्यस्य लुक्‌ नित्यं aq arent जातः, शगोखानः महिषस्धानः खरशालः (१) गोशालः! एभ्यः fa? खाने जातः खानौयः माददिषशालः |

स्तियां चित्रारोह्हिणोरेवनोभ्यः 1. श्राभ्यो जाताथेत्यस्य नित्यं लुक स्यात्‌ feat वाचयायाम्‌ चितायां जाता faat, रोहिणो taal कन्धा, उभयत्र नदादेराक्ञतिगणतलादोप्‌ स्यामिति fa? चित्रायां जातः aa: रौहिणः रेवतः।

मघादेः | मधघादेजतायत्यघ्य लुक्‌ स्यात्‌ (२) मघासु जातः माघः, WAG जातः श्राष्ठयः, प्रोष्ठपदास जातः प्रोष्- पादः, सपच्चालादितवात्‌ श्रन्यदख व्रिः `

क्षत -क्रीतेषु डादित्यनुवत्तते | डादेष्वरथेषु बे्यादिलात्‌ ष्णः स्यात्‌। BA छतो लब्धः क्रीतो वा he माथुरः। यमादेस्त याम्यः wife: ्राग्नेयः कालेयः प्राजापत्यः पाश पतः wa इत्यादि भवादिलवात्‌ गार्गीयः mea: राष्टियः इत्यादि |

FAS | SIF quad बेच्यादित्ात्‌ ष्णः स्यात्‌ AW

> 3 ~ ---- ~~~ $~ -~--- -- ~ === eo नक

(१) खराणां शालाद्तिवाक्ये वातु कावा सेना gtr शाला fam इत्यनेन HIM BA! sg (र) नश्चतेभ्यो वा carat प्राप्न ग्‌ निर्षिष्यते।

६५२ TAT व्याकरणम्‌ |

कुलः ale: एवं मधुरः | यमादैसु area: We इयादि भवादिलात्‌ गार्गीयः नादयः ufga vente | परश्यादेरकः। डात्‌ पथ्यारेरकः स्यात्‌ शलाय पथि कुशलः पथकः पर्याद्रियधा - पन्या; पिचण्ड निचयाशाङादा Bret नया-कषं जवै; पिशाच; पण्यादवचेह ena सिहा ( १) माथादिशााणि" वुपैषिचाय | MANHUNT कः ST एभ्यः FTA कः स्यात्‌ करौ कुशलः रुकः शकुनिकः ब्रश्निकः। प्रायभव | डात्‌ प्रायभवेऽधं वे्यादिलात्‌ णः ख्यात्‌ Zw: परायमवः WAM बाह्येन भवः AT: ATT | यमादेसु याम्यः श्रादित्यः aaa; प्राजापत्यः पाशुपतः Stat इत्यादि भवादि- लात्‌ गार्गीयः area: रष्टय दयाटि | उपनोयुपानृपकणत्‌ णिकः। उभ्यः एभ्यः प्रायभव शिकः स्यात्‌। उपनोविनि प्रायभवः श्रीपनोविकंः, do जानुक; श्रोरिकंख कः, ग्रौपकणिकः। wat) डात्‌ सम्भूतेऽये वे्यादिलात्‌ शः खात्‌ श्रव TAMA SAAT नोयते भवजाताभ्यामतुगता्धलात्‌, किमु भराधाराधैययोरनयुनानतिरिकषता शपे waa: tw: मारः |

"~~ ne =

(१) fear अनुरशिष्टाः।

तडितः | १९३

यमादेस॒ याम्यः आदित्यः area; area; प्राजापत्य ite इत्यादि भवादिललात्‌ atta: नादयः ufga carte |

कोषादस्तरभेदे Wal डात्‌ सन्भूतेऽ्थे वस््रविशेषे, are WA: स्यात्‌ कोषे समृतं aed क्ञमिकीषोलयं वस्तरम्‌ वस भेद इति किं ate: कमः

कालेभ्यः साधुपुष्यात्यद्यं मानेषु | Ser कालवादिमभ्य एष्वर्थेषु warfearq. यथाविहितं व्याः स्युः हेमन्ते साधुः पष्यति प्रयते वा हैमन्तिकः हैमन्तु: हेमनः, वासन्तौ कुन्दलता, शारदाः शलयः, Uae: तिला इत्यादि gar विकसने. शठ GUY | इषपचौज पाके, ढघे शानः, पमानः

उप्ते उभ्यः कालवाचिभ्यः vise भवादिलात्‌ वथा- विहितं त्याः स्युः हेमन्त उप्यन्ते डेमन्तिकाः हैमन्ता हेमना यवाः, प्राहषे्यास्तिलाः, शारदा सुतरा safe | एथग्योग उत्तराधः (१) |

WAG णकः डादाश्युजोशब्दादुपेऽये शकः स्यात्‌ | आ्रश्वगुज्यामुषः अआश्वयुजको माषः, sagt श्राख्िनो पौणंमासौ |

ग्रोवसन्ताम्यां वा। डाभ्यामाभ्यामुकषेऽये णकः स्यात्‌ वा। ग्रो SH: AWA: वासन्तकः, पके Aw: वासन्तः | देय wit) उभ्यः कालवाचिभ्यो- देयेऽथे भवादिलात्‌

——— =

eee oH Ree Oe me ee ee eee ieee -_—

(१) ore gaa fagats सिद्धे एवग्विधानं परनाहुडत्वषभिति- भाविः |

६१४ FURY व्याकरणम्‌ |

यथाविहितं wat: खयः, यद्यं | aed वेदववति। मसे Raed मासिकम्‌ भाहमासिकं सांवसरिकं, wat देयर्यं साम्यं परलयपदिलात्‌ शः |

र्य -कलापि यतै-वुषादकः। SO: कालवादिभ्यो देयः भरकः स्यात्‌| यिन्‌ कासेऽश्वयः फलिनः, मयृराः कलापिनः (१) यववषमुत्पयते कालः साहचयादशखलादिभि- रच्यते | WAS SATAY WaT कलापकं यववषकम्‌ |

गरो्ावरषमाभ्यां णिद्‌। डाभ्थामाभ्यां Sarat भ्रको पित्‌ स्यात्‌। MA देयमृणं Tway, भवरसमायां देयमृणम्‌ भ्रावरसमकम्‌ | अ्रवरसमाशब्दनागामिवल्षर उचते

संवल्सराग्रहायणोभ्यां ae) डाभ्यामाभ्यां देयेयं शकणणिकौ स्याताम्‌ | deat देयमृणं Hata सांवल्षरिकम्‌ आग्रहायणकम्‌ श्राग्रहायणिकम्‌। नतु वेति क्ते सिहे णका- ‘wad कालवायिलात्‌ शएिको भविष्यति किमिद शिक- विधानेनेति चेत्‌ सयं, पलदादौ फलपव्वैणो; (२) संवत्सरशब्दस् पाठात्‌ देयणलेन wa faafad (2) fas बाधिता ष्णः प्रवत्तते, तदाधनय vefafa

व्याहरति ati कालेभ्य इति प्रवत्तपै। इभ्यः काल- वादिभ्यो व्याहरतीत्यधं भवादिलात्‌ यथाविहितं लाः a, यो

०० ~~~ ~~~ | या ०.०७०.०७9 99

(1) यक्जिन्‌ कारे मयुराः कलापिनो wafer क्षालः बलाएति। (२) फले पर्वण वच्ये CTE ५, (x) देव्य फलविवच्चायामिब्धेः।

तद्धितः | १६६५

व्याहरन्‌ खगसेहवति निशायां व्याहरन्‌ (१) खगः .नेशिको नैः, प्रादोषिकः प्रादोषः, डमन्तिकः डमन्तः, mare इत्यादि खग इति किं नि्चायां arecat: | कालेम्धः इति किं वने व्याहरति मृगः

णिको नियुक्ते ले$वियुकतेऽे fern: स्थात्‌ दारे नियुक्तो टोवारिकः, wat नियुक्तः घाश्चिकः।

श्गारान्तादिकः.। डादगारान्तावियुक्ेऽये इकः स्यात्‌ देवागारे नियुक्तः देवागारिकः |

निषिइटेशकालाभ्यामधोते श्णिकः। डाभ्यां निषिद्गदेश- कालाभ्याम्रधौोतेऽथं शिकः स्वात्‌. चतुष्यथेऽधोते चातुष्पथिकः चातुदभिकः।

कटठिनान्त-प्रखान-संखानेभ्यो व्यवदरति (२) Sw एभ्यो MATA TA णिकः स्यात्‌ | वंशकठिने व्यवहरति वांथकटि- निकः प्राखानिकः सांखखानिकः।

वसति निकटात्‌, पिकस्त्वावसथधात्‌ | डात्रिकटशब्टादसतोत्य्े fan: स्यात्‌, Taare पिकः | निकट वसति नेकटिकः, भ्राव- सथिकः | सियाम्‌ भ्रावसथिको भ्रावसथिकभायः, पुंवद्भावः (2) |

एथिवीसव्यैभूमिभ्यां ट्‌ण-ष्णौ षिदिते। डाभ्यामाभ्यामेतौ

(९) शब्दायमानः, (२) Weta इत्यत्र WaT इन्यपि कचित्‌ ars: | (१) खिन्नान्तत्वामाषादिविशेषः।

cy

६९९ ।मुग्धवोधं व्याकरणम्‌

क्रमात्‌, स्याताम्‌ fafa) पृथिव्यां विदितः (१) पावः, wana विदितः साव्वभौमः, सुभगादिलाहयोदयोररिः। लोकं सर्॑सोकाम्यां fara: परसिषहे ai भाभ्यां प्रसि विदिते चार्थं णिकः सीत्‌ लोके प्रिद्दो“धिदितो वा लोकिकः, साव्वलौकिकः, दयो्योनिः | कालेभ्यो gat कावा भववत्‌ 1 उभ्यः कालवाचिभ्यो दोयते कार्यो वा अधं भववत्‌ ल्या; खः।. मासे दीयते कायं वा मासिकम्‌, श्रार॑मासिकं सांवल रिकं mate हेमन्ते हैमन- मिल्यादि | Yee: Ui | डाहुगषटदैदीयते कारे वा श्रे णः सयात्‌! व्युष्ट (२) दोयते काथं वा वैयुष्टम्‌ ब्यष्टादियंधा- यष्ट-संघात-निल्योपवास-तीर्धःपरवेणनम्‌ प्रास-निष््रमो पोनुमूलाऽग्निपदमित्यपि यः साधौ | डात्‌ Maar यः खात्‌ सामनि साधुः Faget योग्यो वा सामन्यः। एवं ब्रह्मणः HAT: सभ्यः | प्रतिजनादैर्णीनः। डात्‌ प्रतिजनादै्णीनः स्यात्‌ साधावधे | प्रतिं साधुः प्रातिजनोनः प्रतिलनादियंधा- परतिपश्चमहदिखसष्योदिजन-संयुगौ 1, TAFT खलं सम-परायुगम्‌ | qequing प्रक्षा दश एकाधिका Ta:

(१) विदितो त्नातः प्रकञारित care: दति कारिका ।१।४१) | (2) ae प्रभाते |

तदितः | ४६७.

` जनं जनं प्रति प्रतिजनं aterai वसः,प्रतिसंयुगोनमिल्यादि | श्रमुष्य कुलमिति घ्या लुक्‌, अ्ौसुणक्सीनः (१) ware: परिषदो खश्च डात्‌ भक्तशब्दात्‌ साधावधं णः स्यात्‌, परिषदसतु ws. भक्ते, साधुः भाक्तः शालिः पारिषदः पारिषद्यः परे तु परिषच्छन्दात्‌ णं नेच्छन्ति | ware: fara: | डात्‌'कथाटेः साधावर्थे शिकः स्यात्‌ कथायां साधुः काथिज्ञः 'कथादियथा - कथा वितश्डा.जनवाटनौघो गुणोप्गो 'वेणुगुहौ निवासः शक्तपवासो विसुधा ate: प्रवास-मांसौदन-संग्रहाय | faatg: छष्णविदायुवंदौ निसुधा तथा | कुख्प्माषापूप-संग्राम-सङ्गाताः पञ्चविंशतिः | पध्यादेः WI: | डात्‌ Tae: साधावं wa: स्यात्‌ पथि साधु पेयं, खापतेयं घनम्‌ पथ्यादिव॑या-- पन्थाश्च खपतिच्धैवातिथिवसतिरित्यपि सतोर्थाद्यो वासिनि डात्‌ सतोयशब्दात्‌ यः स्यात्‌ वासिनि ara Wala वासो wae, एकगुरुषमोपे यस्य वासोऽस्ति OT: | सोदर-समानोद्राच्छयितरि। . डाम्थामाभ्यां शयितं यः स्यात्‌ सोदरे शयिता सोदयः समानोदः। सगर्म-सयुधाम्यामनुज-सदचारिणोः b डाभ्यामाभ्यां क्रमाद- नधोरधयो्यः स्यात्‌। समानो गभः सगभ: तताजुजः wy

Oe ny ~ _— z 3 * - =+ "क --- ~~ ~~~ ~> oe oe purses

(१) अत्र अदसः ष्णायनशण्णोनणश्ान्तकृलय्कान्तपुल्रषु cia षात्तिक्रस्‌।

६६९ | मुखवोधं याकरणम्‌ |

४३३1 शङ्कोऽद्कोऽनोने | ( TH: ६, भरङ्ः १।, wala 9) | sifeay | Sq इाहोनः। मुपाच्चालकंः अर्दभाञ्चालकः।

---- ~ -----=-* ~* ---* .~----- ,~ ~ = --- re ne re eee

समानं युधं aad तत्र सहार" सयूषय;। अनये तु GET. farang: | |

४२२। श्रो ईनः श्रनोनः तस्मिन्‌ तथाच श्रन्‌ द्यस्य दैनभिव्रे तावि गुभिन्रे तये श्र इत्यादेशः स्यात्‌ श्राह्धिकमिति —afs भवमिति वाक्यं, कालवाचिल्वात्‌ णिके- ऽनेनाद्कादेशः | ereta इति रें weal श्रधोष्टो भूतो भावौ वा इलं गात्‌ Tare: संवत्रादितोनः, (१) सान्तविधेरनित्य- लवात्‌ Banda (२) सव्वेकदेशेल्यादिना नाहाटेशः(र) | Waar ‘Ta LATAATTTIAT Ta Basha ASTeM: |

मुपञ्चालादेरन्यस्य दख त्रिं दथयति सुपाश्चालक इति- शोभनाश्च ते पञ्चालाखेति सुपश्चालास्ततर भव vat नविषयाद- हदाति णकः (४) | पश्ालानाम्‌ भरम्‌ प्रदैपद्चालासतर भवः भररैपाश्चालकः पूव्ववखकः। पश्चालादिः प्रागुक्ञः

(१) ६२२ पन्ने वात्तिक्छवमिटमनुखन्धेयम्‌ |

(२) दीन दूति तिषयहियुनिष्यादिततवात्‌ wegen Karate पेषः। (x) स्वेकदेथेधादिखपरे षरे एवाङ्कादेष THR: |

(४) ९०२ पते वा्तिकङ्वमन्ेषणोयम्‌।

तदितः | ६६८

दौवारिकः सौवरं सौवं Mafra: Paes sae शौवं ओोषनं Gand सौवं सोवाषयायिकं सौवग्रामिकं नेय. रोधम्‌ एकेति किं न्याग्रोधमूलिकम्‌ भौवापदं शापदं, नेयदकवं न्याङ्कवम्‌ तौगणिकम्‌'। इारखरेत्यादिसतरस्यदाहरणमाह दावारक दत्याद-- दारे faga इत्यथ ण्णिके वस्य उम्‌ पश्वादृत्रिः। खरमधिक्लत्य कतो ग्रः WAT, खः aA भवं सौषवं, शे व्यटेरिति टेर्लोपः | खस्ति वच्यति सौवस्तिकः , सस्ति यथ! स्यात्तथा वक्ति खोवस्िकः, प्रभूतादिल्वात्‌ णिक इत्यन्ये खादुमृदुनि संस्छतं सौवादुख्दवं भक्त, eat aT वेल्यादिलाद्‌ णः weds भवः वेयल्कसः WAL हारादौ पठन्ति, तेषां मते fanatical व्यकंस्तं स्यति व्यकंखः, पिलिकादिलात्‌ रस्य लः, त्र भवः वेयलकस इति भ्राद्यचः खानजातलात्‌ यस्य द्रम्‌ aye त्रिः। श्वो भवं शोवस्तिकम्‌, sa भवमिति पाठो लिपिकरप्रमादः। कालवाचिल्ात्‌(१) शिकः तख तम्‌ (२)। तथाच शौवस्तिकत्वं विभवा येषां व्रजन्ति तेषां दयसे कस्मादिति भिः शनि भवं wad मांसम्‌, भ्रविकारण्णे नलोपाभावः | स्फाक्लते भवं Gawd, wr खादिरः asada छतमिति ta) खे धमे भवं ae खपरदेवरा जजनस्येत्यत्र (2) भ्रामाधखगष्टस्य ग्रहणात्‌ इह खस्य

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(9) श्वः परदिने wafaererarara |

(र) तद्य श्णिज्खाटौ तक्ञारागमः। ६१० पे वार्षिक मनेव्यम्‌ |

(९) ५९९ पत्रे खपरदेशरानेत्याटिवास्तिकस्जेख eile way भवति कथमन सोव मितयारद्याह मराक्षाथेयादि।

ade मुख्वोधं व्याकरणम्‌ |

धनार्षलम्‌ ।* वामनध्ीदासौ तु भ्रामाधेखणब्दश्यापि wea सोवमिव्यप्याहतुः | खाध्याये भवं सौवाध्यायिकं वेदाध्ययनं, खग्राने भवं सोवग्रामिकम्‌ श्राभ्यामध्यामाटिलात्‌ णिकः यद्यपि खाध्यायखग्राधषष्टयोः ane श्ररणनंव सिदहिस्तधापि अन्धाटि खितखशब्द्स्य स्यादिल्येतदध एथगनयो ग्रहणम्‌ (१) द्गटौकायान्त॒ BUA इत्यत्र खगमनमिलयक्या खगमनं वक्नोत्य्े सोवगमनिक इति वत्तते। न्यग्रोधे जातः नेय ग्रोधशचमसः (2) | न्याग्रोषमूलिकमिति--्यग्रोघमूलेन dey sae शिकः शन इव प्रदमख्य खापदः, शनो टन्तादाविति घः, तत्र भवं MT पट, पत्ते सापदमिति, पलदादेराक्ञतिगणल्वात्‌ णः, भ्रथवा क्चि- दपवाद विषये उसर्गोऽभिनिविशते इति न्यायात्‌ ्णः। गौ भवं नेयहवं न्याङ्कवम्‌ (२)। खागणिकमिति-खगरेन चरति, श्वगणाहेति भिकणिकौ, णिकपके दकारादौ णित्ते वख उम्‌। इ्कारादिभिन्रे तु खादंष्रायां भवः Maree: इत्यादौ wea भ्रत्रापि शनो दन्तादाविति षेः। भत्र खादः eye एका- रादौ तै वस्य उमनिषरधात्‌ हारादोनां सर्वेषां पित्ते सामान यवयो(४)रिमुमौ स्यातामिलधः | भ्रतएव न्यग्रो पयेकेति विगेष- शस्य साधकल्मिति। '

(१) तेन ater पूरयतीति खीौदरिक carte शिब्म्‌।

(र) Gh व॑टटलः, चमसो यश्नपाब्रमिरेषः।

(१) न्धष्कुमुगविशेषः।

५) पटालखितमिन्रयोराद्यशः स्याने अरज्ञातयोरणीवर्षः।

तदितः gd?

४३४ विकार agarad fea atatet | विकार-खार्थादौ © )

एष्वर्थेषु चते त्याः स्युः ।,

४२४। विकारश्च ara maa इदञ्च feqe aaa ते श्रादयो यस्य. afaqi श्रादिशब्दः प्रत्येकमभिसम्बध्यते इन्दोत्तरश्रुततवात्‌ + . प्रहृतेरवखान्तरं पिकारः। सः समूहः शब्दस्य प्रदत्तिनिमित्तं ara: | ददमिति सम्बन्धमातोपलचणम्‌ | हितमिष्टसाधनम्‌। सायः प्रक्त्य्थानतिरेकः ते त्याः स्युरिति-- fa Ga wr ष्णायन wa ita aula कण णोन डय एते केतोऽनितश्चेति अ्रभिधानात्‌ wae sara: |

St व्या दत्यधिकारः प्राः प्राक्‌

विकारे | wenfeartsa बे्यादिलात्‌ ष्णः wef afa- काया विकारः मात्तिकः sia: प्रासादः नजा निर्दि्टस्या- नित्यत्वात्‌ श्राश्मन दति कित्‌ | तथाच--“यञ्चापमाश्मनप्र्यं सेषं wasagae fafa afe: warad तु ददम भविष्यति

प्राण्योषधिष्ठकतेभ्योऽवयमे were एभ्यो विकारेऽवयवै चा वेच्यादिलात्‌ णः स्यात्‌ प्राणिभ्य्टणो वच्यते, तच्ैवोदा- हाथम्‌ i, इह प्राणिग्रहणन्तु wa: परे ये त्या वक्ञव्यासते प्राखोषधिहसेभ्यो विकारावयवयोरनयेभ्यो विकारमात्रे भव- म्तोति च्नापनाथम्‌ भोषधिभ्यस्तावत्‌-मूव्यीया विकारोऽवयवो वा मोवः, एवं Shea: | दत्तभ्यस्तावत्‌ - पलाशस्य विकारोऽवयवो

१७२ HUA व्याकरणम्‌ |

Set Pere: हेमः भ्य rire, भिाशां समूहः पं आक गारिदधं राजकं, गुरोभौवः गौरवं यौवनं साम्बं वेय राज्यं सौहाै, वि्णोरिदं वेवं लदोयं माधवन aay |

Seah aes A ea ay BN oN a eye

वा पालाः, िथपाया विकारोऽद्यदी त्रा aia: , Tae स्याकारः। उ-प्राशि-रजतादिभ्यष्टणः। न्तात्‌ उवणौन्तात्‌ प्राणि- वाचकाद्रजतादेब TU: श्यात्‌ विकारावयर्वयोः। देवदारो्विंकारो- $ऽवयबो वा देवदारवः, Raya, कपोत विकारोऽवयवो वां कापोतः , मायुरः, शुनो विकारोऽवयवो वा शौवं मांसं, THAT विकारोऽवयवो वा राजतं Hee, काश्चन, तथाच--“पुरौं cea काञ्चनो"मिति af.) “arent वासयष्टि^रिति कालिदासः परशरव्यम्य विकारोऽवयवो वा पारशवः, france fearaader लुक्‌ वच्यते (१) रजतादिवेषा- रजतं काश्चन लोष्टं सोसं रोहितकसतधा | उदुम्बरः पोतदार तिकण्टक-विभोतकाः | ACA नोप-दार-परशब्योऽत्र कोत्तितः WAU: | शन्तादनुदात्तादेविंकारेऽवयवै चाथ za: स्यात्‌। दण्डिनो विकारोऽवयवो वा दाणः, दाधिलयः, कापिदयः। पलाादेषा WAT पलाशारैस्तयोष्टणो वा BIT पालाशः, परे Were, पालाय पिकारः पालाशमयः।

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(1) प्रए्शव्यगनो हि परुषन्दात्‌ हिते यप्य-निष्नाहतः I"

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