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Parbard College Library

FROM

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la deptiy) i {4 ^ 1१५८५ 1837

BIBLIOTHECA INDICA ; A

COLLECTION OF ORIENTAL WORKS

PUBLISHED BY THE

4814710 SOCIETY OF BENGAL.

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New SEnriegs,

A ^ (7

Nos. 539, 546, 554, 568, 580, and 583.

THE NIRUKTA. WITH COMMENTARIES. EDITED BY

PANDIT SATYAVRATA SAMASRAMY,

VOL. III.

YCALCUTTA : PRINTED BY J. W, THOMAS, BAPTIST MISSION PRESS, 1886.

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निरुक्तम्‌

( निघणट-भाष्यम्‌ ) जम्बूमार्गाश्रमवासि-भगवदु गाचाये-विरुचितया

चव्वर्थास्यटीकया सहितम्‌।

ओ्ओलश्री

व्गदेभोयासियातिक्षमाजाभ्ययेनया व्ययेम

का श्धीतवेदादि-वङ्गसामगेन

PTAA eZ TATA

सम्पादितम्‌

वतीये ALT: | कलिकातारानचान्याम्‌

वाज्िख्मि्न यन्त्रे मद्धितम्‌ | एक ष्टाः १८०८

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© ~*~ BIBLIOTHEGA INDICA;

A (oLLEcTION OF ORIENTAL Works

PUBLISHED BY THE ASIATIC SOCIETY OF BENGAL, New Sznizs, No. 539.

सभाष्यदरतस्ति-निरुक्तम्‌

THE NIRUKTA ITH COMMENTARIES . EDITED BY 7 PANDIT SATYAVRATA SAMASRAMI. VOL. III. FASCIOULUS I.

CALCUTTA : -

PRINTED BY J. W. THOMAS, AT THE BAPTIST MISSION PRESS. AND PUBLISHED BY THB ASIATIO SOCIETY, 57, PARK STREET,

Bon | 1886. ` _

LIST OF BOOKS FOR SALE `

at THE LIBRARY OF THE frsiatic p OCIETY OF > ENGAL, No. 57, PARK STREET, CALCUTTA.

SND OBTAINABLE FROM =

THE SOCIETY'S LONDON AGENTS, MESSRS. TRUBNER & CO.

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OP i

-BIBLIOTHEOA INDIOA.

` Sanskrit Series. Atharvana Upanishads, (Sanskrit) Fasc. I—V @ /10/ each.. Ra. 2 Aévaléyana Grihya Sitra, (Sans.) Fasc. I—IV @ /10/ each 8

Agni Puréna, (Sans.) Fasc. I—XIV @ /10/ each ०० Pe Aitareya Aranyaka of the Rig Veda, (Sans.) Fasc. 1—V @ /10/ each .. Aphorisms of Séndilya, (English) Fasc. I ne as _ Aphoriama of the Vedanta, (Sans.) Fasc. III—XIII @ /10| cach as Brahma Sitras, (English) Fasc. I -.. on Bhémati, (Sans.) Fasc. I—VIII @ /10/ each =, , 24 +. See Brihad Aranyaka Upanishad, (Sans.) Fasc. IV, VI, VII & IX @ /10/ each Ditto (English) Fase. II—III @ /10/ each be eo Brihat Samhité, (Sans.) Fasc, I—III, V—VII @ /10/ each ae Chaitanya-Ohandrodaya Nataka, (Sans.) Fasc. II—III @ / 10/each .. Chaturvarga Chintémani, (Sans.) Vols. I, Fasc. 1—11; 11, 1—265; गा,

~ 69 RD Em @ © 0089 Co oud we

1—9, @ /10f each Fasc; oe ie a . 28 4 Chhéndogya Upanishad, (English) Fasc. [1 = ०, oe 0 10 108६9 Ripa, (Sans.) Fasc. I—III @ {10 each .. ae oe 1 14 Gopatha Bréhmana, (Sans. & Eng.) Fasc. I and II @ 10| each ae | 4 ७०7081४ Tapani, (Sans.) Faso. I ee ‘00 ee ee 0 10 Gobhiliya Grihya Satra, (Sans.) Fasc. I—XII @ /10/ each .. eee 8 Hindu Astronomy, (English) Fasc. I—III @/10; each... ००, 1 ld KaAatantra, (Sans ) Fasc. ~ VI @ 1/ each ee ` ® eo 6 0 Kathé Sarit Sagara, (English) Fasc. I—XI @ 1/ each “a ०» 11 ¢ Lalita Vistara, (8878. ) Fasc. I—VI @ /10/ each . 9 13

Ditto (English) Fasc. I—II @ 1/ each ०९ oo 2 0 Maitri Upanishad, (Sana. & English) Faso, I—ITI (in one volume) = 1 14 2110686 Darsana, (Sans.) Fasc. II—XVI @ /10/ each ee ०० 9 6 Mérkandeya Purdéna, (Sans.) Fasc. ए-- @/10/each .. oo 2 8

(Continued on third page of cover.)

अथ प्चमाध्यायः 1, W प्रथमः Gs. eee ॐइम्‌। सक्जि afeeeta नदीन॑म्‌। dard

मेषम्‌। वाष्ठो वां इवान्‌ स्तोमे दूते Yaa |. वेादृतमेा। ज्ञानानां स्तम दूते Yaa! नरा मनुष्या त्यन्ति कर्मसु दूते जवतेवा द्रवतेवेा वार- यतेवा (दुता देवाना मसि मन्ना मिन्धपि निगमो भवति।ऽ) वावशाने वषटेवा वाश्यतेवी। स॒प्त खसृर- रुषीवीवशान इन्यपि निगमो भव॑ति। वार्यं उशेतेर- थापि वरतमम्‌ | तदा eaters वरि ठं गोपयत्यम्‌ | तदायं इशीमहे वर्षिष्ठं गोपायितव्यं गोपायितारेा॥ युयं स्थ युष्पभ्य मिति वान्ध ॒इत्यन्ननामाध्यानीय' भव॑ति आमचेभिः सिष्वता मय मन्धः। आसिष्वता- मचैमेदनीयग मन्धाऽमचं पाच ममा असिन्नदन्यमा

* Cad au’ ws, ख, a

“बेङ्खतमे”क, ख, a

“वं नरा” क, “sant” च|

§ बन्धनोचिद्ानमेत Hay cat H-G-1-TGAY (we Teo, ५, vy, ९)।

{| ““मोपितारोः" क, ख, |

q “aq’’ क, च्छ, x | 1

R निदक्षम्‌। [ पुवषटकम्‌ ,

qafafad भवति at पानात्तमेऽप्यन्ध उच्यते नास्मिन्‌ ध्यानं भवति दशन मन्धन्तम इत्यभिभाष- AA मपीतरोऽन्ध रत॑स्मादेव | पश्यदक्षण्ठान्‌ वि चेंतदन्ध इत्यपि निगमो भवति १॥

““सल्िम्‌(\)”-- दति *। एतदनवगतम्‌ श्रयोप्रतौतिरष्यगव- गम्य इत्युच्यते ल्णासन्यल्लख संस्कारः खल्वपि way भिन्यु च्यते wad सति, कचिन््रहत्यादः संसकारब्यानवगमः ; कविदया- प्रतौ तिरेव ; कचि दुभयस्याप्यनवगमः, यथास्िन्तेव सखि मिति; fanraa fa vgn भवति ? प्रकरणादक मेघाभिधेयम्‌; भ्रन्य- वान्योऽपि कथित्‌ स्यात्‌! प्रकरणविशेषादेव्‌ एवं सवैतरवोपेचित- शस्‌ प्रकरणसामथ्यच्छन्दोऽप्यधै कर भजते। “ale मविन्द्च- २२ गदोना मपा - °जानादु हौनाम्‌” विशवावसेदवगन्धवैधेय ards | घौ सादने विनियुक्रा तजो परिपिक्ते गन्धरवनामभि- पतिका wfaar यजमानखेति aver gree मियं मध्ये मैनायप्तोथके "सच्ि' “datay”’, श्रद्धिः aftafed, सवतः परिखतं, धीतं ar “मेषम्‌”, ्विन्दत्‌, wea पुन लभत ? “वरणे नदना" यच मदना ara, गच्छन्ति, तजा- ज्ञभत ; अन्त रिचलेके CAT: आद ;- लन्धानन्तर कि मकरात्‌ ?

De nn ------~-------------- * gute veg Te ewe Ewe (र), किच्च ४०४६० १४ Te | 1 etd मविन्दु्र॑दे wala मपा होदु रो Sanaa | प्रासां waits युतानि arafer दथ परिः जानादुरोनाम॥- रति we सं० ८,०, ९०,९।

LHe LOTS LBe] नेगमं काखम्‌ | ¦

दति उच्यते ;- शश्रपाटणात्‌' श्रपाटतवान्‌, उद्ाटितवानिष्यर्चः | "दुरः WE श्राह ;- कस्य ? उच्छति ;- “queasy st wat मेधः, मधि या व्रजति, यासां त्रजश्डते गोष्ठ खतः, ता SAAT श्रापः ; aTat निगेमनदाराणि श्रपाटणोत्‌ | था एता एवं्चणा श्रापः, श्रासाम्‌, अरस्य इनद्रस्य ‘aaa: विश्वा- वसुः “प्र वोचद्‌,-्रन्टतानि' नामानि, कान्देसम्ंतियुक्रामि ; तानि हि नित्यत्वादग्डतानि ore ;- कस्मात्पुनरस्येद्रस्याग्टतानि प्रावा चदासाश्चापाम्‌? दति | उच्यते, दतः ;- यस्मरादसाविष्धः ‘za’ दातारं मेघम्‌ श्रयम्‌ श्रासाम्‌ “Mla श्रयनानाम्‌, wot दारेषु श्रपाटतेषु, दानाय समया भविष्यति ;ः--दत्येवं "परि जानात्‌ परि- श्षातवान्‌। परिन्नाय शश्रपारणोत्‌ दुराऽव्रजानाम्‌ | तस्मादसयेद्ध- स्या्टतानि नामानि प्रावेचदद्धिश्चानेन प्रकारेणेगद्रेए सवं मेवेदं जगद्‌ भ्रियत दति श्राखा मपि aaa हेतुना प्रावोचदिति एव भेतस्मिन्‌ मन्त्रे “चरणे aga श्रविन्दत्‌' श्रपाणोख दुरोऽशाव्रनानाम्‌, दश्च परिजानात्‌-शृत्येकवाक्यताथसम्बन्धात्‌ “सज्जि"”-ष्दो मेघ- विच्चेषणएम्‌ उपपद्यते

श्रय वा श्रय मणस्य मन्त्रस्य पादव्यत्ययेनाथैः स्यात्‌ ;- sald मेष मविन्द दलभतेन्रः प्व्यमाणः, काविन्दर्‌? चरणे गदौनाम्‌, श्रपाम्‌, श्रन्तरि लेके | लन्धा चस एव दृनद्रः, तं मेघं, दकं दातारम्‌, श्रहौनाम्‌ sat परिजानात्‌। परिज्ञाय समर्याऽय मिति ange दारा पाटृणात्‌ | WMATA मपा मधो निगमनाय तत एतानि fa तानि, ्रम्टतानि उदकानि, सष्य-षम्यत्कराणि प्रावोचदिव प्राकयय-

9 निरतम्‌ | [ प्वेषटकम्‌ ,

दिव;- श्रषाविन्रो गन्धव, श्रां प्रजानां sta मेभिरूदकैरसाहमे रिति “ब्रा गन्धवेः, तस्य मरुताऽपरसः'- दति श्रूयते * amfexat गन्धव समुपपद्यत एव ; गोः age धार- यिता इति गन्धव; {

-"वादिषठः(९)* दति 2 एतदमवगतम्‌ “वोढतमः'--इत्य- ama: | “वारिष्टो वां ° -°लम्मिना” | गायचौ विश्वमना वै यश्वस्येय माषम्‌; पितवा व्यश्वस्य प्रातरनुवाकाश्चिमयोः ग्रस्यते | ‘aa’ हे नरौ! dar मेव वोदुण्णां स्तोमानाम्‌ श्राङादणाख | एव एष ‘aes: श्रतिश्रयेन वोढा, आ्र्ाहतमः, अरय मेव "दूतः" द्व युवां “डवत्‌ श्राह्यदित्यथेः। योऽथ भेवंक्षचणः; ‘ata’ श्रस्मत्‌- मरितः, नित्यकाल मेव "युवाभ्यां" “तु भवित्यथेः हे “श्र्ि- मा" afar! इति सम्बोधनम्‌ | “सोमे दूतः"-रतयेतार्वां समान- विभष्वन्तलाद्‌ ““वादि्ट" शदः सोमविगेषण मिन्युपपद्यते

मिगमप्रसक fared ;—“aaen” श्रि हि “नराः” उच्यन्ते; ते हि “नृत्यन्ति” गात्राणि, पुनः पुनः प्रक्िपन्ति “avg” उप- स्थितेषु तान्यनुतिष्ठमानाः

* “ara धारथितेन्द्रः। ° * + aaa खरंयति feafa देवननिति wah THe इत्यादि FETT) १भा० cove ९९ de |

t Tr—uste ९, ९९, ००, Rau, २०८, vor! RUT? १०५, १९, ४५१ पर {We श्पार खर, १९० cyte owe |

“araraf?-weqret xem १भा० wwe ६१० (९)

§ र्भा ४०४६० uye |

| “atest वां उवानां सोमे! दलो वत्रा | art yater ॥?-- ति ye ९, ९, te, ६।

५. Late १९] Ana काखम्‌ |

«दू तो(९ जवतेवा ware; fe गच्छति | “qaqa” mega | “वारयते” ; fe वारयत्यनथीन्‌॥ “qrama:®)>_efy श्रमवगतम्‌ †। “agar are, “वाश्वतेवा” शब्दार्थस्य वावश्रानः खात्‌ सुप्खस्ररूषौवीवशानः ° -°पूषणस्य" जितस्या्तस्येय माषम्‌ wat fargo परातरनवाकाश्चिनयोः शस्ते “aw “ag खसारो भगिन्य ta पाद्यर्चिषः सभानजग्मलात्‌ श्रयवा VE Bua खसारः; ता हि ae wifa ‘SEM? श्ररोचनाः, दौप्ता इव्यथः या Waa afer, ताः, afi. "वावशानः कामयमाने वावश्ययमानेा वा, we कुवः "विद्धान्‌" santa मधिकारान्‌ जानानः, "मध्वः" qaw विषः gh, “cern ag इतवानेषां लोकानां “दृ a? TUNA, | एव ता SG त्वा देन मभिव्यश्यिला जना- नाम्‌ aay श्रादित्यस्य मध्ये यदन्तरिक्तं तज, "येमे" ततोपनि- यमितवान्‌ तद्धविः “पुराजाः” अरश्निः; fe सवेदेवेन्यः प्रथम एव जातः", | “इच्छन्‌, ‘af रूपं ‘qaue’ पृष्णः, श्रादित्यस्य कथं नामाषावादित्यो Tae Wa? श्रतोऽन्तरादित्यस्य येमे तघा-

% १्भा० ४०४० ay | + ure Beige eg ! | ah { “SH SHLAA farang उक्लीभारा दशे aq | anit नारि प्राजा CNA afa म॑विदत्‌ पूषणं ॥*-- दति we Too, ५, ee, ५।

_~ R t § तथा चेतरेयकम्‌,- “eye देग्यानिः- दति ९, ९,९ किञ्च “ay परसि

१९ REALE LT WUE VL प्रथमजा ऋतस्य TT दवेभ्यो Gara नाम ।-इति सार Wie GTXe 0,2, ९।

¢ नियम्‌ | [ पुवषट्कम्‌ ,

सवेत awa श्रविदत्‌ श्रलभत इत्यथः। एव steed श्रादिल्यः dea दृत्यभिप्रायः एव मच “खयवावश्चानः'"--दृत्यनेन षामा- माधिकरण्पाच्छब्दसारूपयाख “वावश्रने""-दृत्यस्य RNG शन्दार्य- लश्च उपपद्यते

“वायेम्‌४)५--इति * अननवगतम्‌ टणोतेयेदरयितव्य भवति, तदायेमिल्युच्यते श्रथापि कदाचिद्‌ same vata Asa fafegafa, तदुच्यते “तदायं टणौमर०-- ०यद्यमा” 1 विश्वमनख दय मार्ष॑म्‌ मेनावरुणे at ‘aera दणणीमहे" वरयितव्य॑ वरणा धनं रणणीमरे डे aac! ‘afte’, 'गोप- यर्थ “गोपायित”, यद्र णाद fared: श्रय वा गोपयल्ध गोपितारो se धनध युयं भविग्यथ, AGAR श्रथ वा awe Grae यद्भवति, तदृणोमहे। किच्च ; नित्यकाण मेव भिचा- वरणायमाणः "यत्‌" "पान्ति" रक्तन्तोत्यथेः, तदुणोमहे एव मच मिनावकणायंमाणो यत्‌ पान्ति इत्यनेन सम्बन्धात्‌ “वार्व'*-ष्ब्दो धनविगरेषण मिल्युपपद्यते

“श्रन्धः(<*- दति qaard मनवगतम्‌। ्राध्यात्नौोय मित्यथे- प्रतौति: प्राथनौय मन्नं भवति सर्वदेव ““श्र्वयैवो uragra °देष वष्टि" 21 खतसमदसमरेय माषम्‌ रात्रिपथ्याये wea

[०0 "षयि षकारस्य)

* भा० ४०४ Te ९४. पंर। Saga edad वरिष्ठं मोपयत्य॑म्‌ fawt यत्‌ wife ada) यदय - मा॥- दति we सं*९,२, ९९, tT vue eevee ti § Chiat भरवेन्द्राय सोम्‌ मा्म॑जेभिः सिद्चत्‌ा मश्च मन | arat fe atc ut wa पौतिं awe ee_ तदिद्ष वष्टि w—xfa weds RGU LI

५अ० Cate Le] नेगमं WBA | ११

हेतु; we विमियुक्षा awa were याच्येषा हे “श्रष्व- यैवः! a’ प्रापयतेम सोमम्‌, एतस्माङ्धविङ्धनादुकरवेदिम्‌, श्राय, ERT) अथय वा भरतः धारयताप्नेर्परि। ततथेनम्‌ ‘sasfay saa: पात्रः, एभिः सामचमतेः, वषह्कारे प्राप्ते श्रा सिश्चत' तसिन्प्नै। ‘ay’ मदनोयम्‌ , vata ‘war’ | कस्मात्‌ पुनरेवं त्रवोमि ? शतः- यस्मात्‌ "कामो हि वौरः' कामथत at: ox: ‘we’ सोमस्य ‘a2’ सरव, निव्यकाल मेव ‘Ty पान fare: तस्मात्‌ कारणात्‌ ‘Aka’, तसमै ‘ea? वपि wxre, एतं Vay किमेत मेव केवलं साम मेव कामयते ? ने ae ;— “तदिदेष afe’ तन्त्छोमप्रदान मेष इन्द्रो वष्टि कामयत शव्यथैः;. केवलं राज्रिपयायेखित्य्थः। तस्मादासिदखत va Wa मा विलम्बध्व मिद्यभिप्रायः एव मच दानसम्नन्धात्‌ "अन्धः" -चष्दो- sary उपपद्यते। पठित मपि साश्नमामसु ° श्रनेकायेलात्‌ सन्दि- इते was निगम उपान्तः

निगमप्रसक्त मुच्यते ।- श्रमन्नं पारम्‌; wat असिम श्रद्न्ति” TARA: | श्रमा-षन्देन पुभरयेदमिभिंतपरिमाणं किचिद्‌ भवति, तदुच्यते; हि तेषां परिमाण मस्ति, यावकस्तभ्भिन्नदन्ति। “धां पानात्‌" Daa fe तेन

aaa उच्यते किं कारणम्‌ ? “मास्म, “ani” दशनं छतं “भवति चचृषो दृ ष्टि-निरेधाक्लोकिका रपि दशेननिरोषे षति “र्न्तम शृत्यभिभाषन्ते”। ““स्तियः Balen मे

९६ भार pow ge (र)।

= fauna [पूवेषटकम्‌।

पिता शत्‌” *। श्रस्छवामौये जायते; arenes स्ती-शन्दा मिरच्यते पालयिद्यः एवैत: सत्यः BETA जगतः | एत एव रश्षया माङौभिः श्राध्याल्सिकोभिः अनप्रविश्छ प्राणिथ्रोरेष्वन्नपकरिं gate, ततः ितिरूपजायते; एत एव वषप्रदानेन wad जगत्‌ जायन्ते; तस्मात्‌ जाणात्‌ ‘fera: एताः नान्‌ - इति नकारान्त पदम्‌। ख*- दति पदपूरणे एव। तानेवंक्षवणाचगौन्‌ पालिन्‌ सतः मे' ममेति मन्तदूगात्मानं निदिंश्ति ada पुंस Ws: | एत एव रश्मयो 'बङ्प्रजानाः' इत्येवं ब्रह्मविदः ste एत एवान्नपक्तयादिनेप- कारेणोपदुवन्ति | WTAE एत एव बद्धे सवायप्रकाशिरनाप- छवन्तोत्यभिप्रायः। आदित्यान्तरपुरुषो हि बद्यधिदेवता, तद- वयवन्ताखच॒ रयः, तेन waa sea पुरुषस्य fanaa, उपरमति श्रतस्तेषां बह्प्रजानल YI | श्राह ;- कः पनरे- तान्‌ रश्ोनेवह्ुणयक्तान्‌ पश्ठतोति ? "पश्यदक्एवान्‌ वि Yager’ at fe seer भवति, clea, विज्ञानवान्‌, वेदाथेविन्नान- वान्‌, वेदाथविन्ञामेनोपजनितप्रश्ञः, एव ताभ्यां गृणाग्ां युकान्‌ पश्न्नास्ते नित्यकां नित्ययक्रत्वात्‌ | TATE योऽन्धः श्रध्यानवान्‌? शअश्रुतवेदो पनिषत्कः, मन्द बुद्धिलवात्‌ “न विचेतत्‌" Fatt याथा- वयतः पश्यति, विजानातोत्यथेः चः पुनः एवम्‌ एतान्‌ याया- वयतः पश्यति, एव "कविः" aren भवति, परिनिष्ठितविद्य-

* “जिवः gmary ने पस wig: पण्छ॑दचचाम्‌ वि wag: 1 कूषियेः gw tar faq ver fangs fagtuarda ॥५-- रति we ve Rs र, 90 |

A, “Ge Cate RBe] मगम RUA | é

cane परिनिष्ठित विद्यवेमेव “पु चः" परुषो बनोऽ'हसस्त्ातः। waa Hague, शम्‌, ar चिकत' $म्‌--इति पडपुरणः। “श्रा चिकेत एवैतानेवम्‌ श्राभिसुसख्येन यथावत्‌ waft. Fate मूढः यञचैतानेवं पश्नि, एव "पितुः" रपि "पिता भवतीत्यथैः; हि आआधिदेविकम्‌ mana श्रभि सम्यन्नो भवति; नहि तस्य पिता नाम कश्चित्‌; fe det जनानां पिता भवतो- marae: | एव Rafer मन्तं य॒ ware भवति एव पश्पतोत्यस्य सन्निधो "न विजा नात्यन्ः*-अन्द्‌ प्रयोगात्‌ BMT तमः श्रन्धः'-णब्देनेच्यत श्युपपद्यते॥

sda भूरि धारे पय॑सती असज्यमामे इति वाव्यदस्यन्त्याविति वा बहुधारे उदकवत्यौ वनुष्यति- न्तिकमानवगतसस्कार्‌ भवति वन्‌याम aqua इत्यपि निगमो भवति। दीधंप्रयज्य मति ये वनष्यति वयं अयम पृतनासु Sa) दीर्प्रततयन्न मभि जिघांसति या वयं तं जयेम पृतनासु gen दुर्दिंयं पापधियं पापः पातापेयानां पापत्यमानेाऽवाङेव पततीति वा पापत्यतेवा स्यात्‌ तरष्यतिरप्येवङकम्भा दरेण युजा न॑रुषेम वच॑ मित्यपि निगमो भव॑ति भन्दना भन्दते स्तुतिकम्मेणः पुरुप्रिये भन्दते धाम॑भि कविरित्य॒पि निगमो भवति a भन्दना उदियत्ति

2

te fauna | [qeuema,

प्रजाव॑तीरिति V1 अन्धेन मद्‌ाइना यादि तूयम्‌ न्येन मदने गच्छ सिप्र माहंसीव भाषमाणेत्यसम्य भाषणादाना इव भवत्येतस्मादाइनः स्या*हषिनदेा भवति नदते स्तुतिकर्मणः | नदस्य मा रुधतः काम्‌ अआ ग॑न्‌। नदनस्य मा रुधतः काम आगमत्‌ संरुढप्रजननस्य ब्रह्मचारिण इन्युषिपुव्या विलपितं वेदयन्ते २॥

- Cg (९)"*-- दृतिं श्रनवगतम्‌। ““श्रषज्यमाने दति वा” -द््यथपरतोतिः; ५अुरष्यन्धाविति इति a —efa “श्रम॑खन्तो भूरि o——e यन्मनुदितम्‌” ti भरदाजस्छेय माषम्‌ | अ्भिज्ञवस्य डस्य पश्च मेऽदनि दरतोयस्वने वेश्वदेषे wea द्यावाषएटयिवोये निविद्धामौये खक्े शस्यते ‘sage seat sdf ATG परस्परतः, एते दयावाएयि्यौ रिधारेः बहदकप्र्रण- सभावे एव ; श्रवा aw तं धारयिन्चौ "पयखतो' उदकवत्ये ^चतम्‌' उदकम्‌, दे waa ‘ela’ प्रपुरयेते ; इतरेतरखम्भोगेन | सुरते" श्नोभनछते ; श्रथवा ्रोभनानां खाधिकारम्युक्षानां कमर्ण mat) श्ररखिग्रतेः शक्तकर्मणौ इत्ययं; “Tra? दौप्यमाने द; खः तेजाभिः। ‘we’ ‘qarae’ भूतजात ‘Teel? राधसो EE EE Remi ites eee

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भार ४०९ Yo ल्पर | अस॑खमतो ufdint, viet Ex gut कते. इरित राज॑नौ भवनस्य UCT GH रतः सिनं यक्मनहितम्‌ wv” दति we You, ९, ६४, 0!

wwe Cat? रख] नेगमं कारम्‌ | १९

राधयिश्यो। ये एते wae धावाएटयिया, ते ‘aa ward “रतः, उदकं “सिश्चम्तम्‌ः श्रभिमते ari fanaa पुमः सिष- न्तम्‌ } ‘ay ‘artery मनब्हितम्‌, wet, शस्व-सम्पत्कर मित्यभिप्रायः। एव Rafer मन्त “भूरिधारे"-दल्येवमादिभिः समानविभक्तयन्तत्वात्‌ “श्रसश्वन्तो'?--दति दय तराए्यिकौविशरेषण सुप- पद्यते ““श्रसज्यमने इति" हि ते सज्येत परस रतः “ager ar? श्रनुपकियन्यौ श्रविपयस्यनयौ वा ; हि ते उपक्तौयेते विप स्येते वेति

“वनव्यति(=“--दूति “ean” qe वतमानः, ““श्रन- वगतमंस्कारोा भवतिः" ` “afagr जना इमे--ग्मन्यके earl) नाभाकस्याषम्‌ महाव्रते HV wat श्रस्याः VATA: षट्‌ पादाः। eat पुनरनक्रम्थां भरौनकरेनागनिं मस्तोषोत्यत soa जागतानि Ae wal श्रनुक्रान्तानि, तेषा ata मध्ये ‘erat ‘aq यदा ‘ca’ ‘say’ येऽखरौयाः परकोयाख्च उभयेऽपि ‘fa gan’ व्यत्ययेनेतरोतरमं sigan विजिगोषुतया (तनाः स्तया "गिरा वावा; श्रथ वा "तना धमेन निभिन्तमूतेन जेतथेन पुरक्लतेन वियन्ते तंदा wary श्रसाभिः श्रसररोयेः नृभिः? मनुषः dfedt भूवास्तन्ते

* quite ४०९ ve १९ te |

t “afergrn जमा TH forge wat भिरा। aaranra filed साघु छाम पतन्या वनुयाम वनुष्यता मभ॑ना मन्वे समे ॥१५-- दति we go ९, & २५, VI

RL निक्तम्‌ | [gauze म्‌

‘av? धुवाभ्यां efeat: सासद्याम' पुनःपुनरभिभवेम कान्‌ ? एते “एतन्यवः, एतना मस्माभिः we कर्तुम्‌ इच्छन्ति, तानभि- भवेम fay, "वनृथाम awe? ये एतेषाम्‌ श्रम्माभिः Be TIT एव AQUA Wea wea, vaty वनुष्यतः Aaa TH WH Ta कथं पुनरेन्म ? उष्यते यथा,+--नभन्ता मन्यके समे" यवयोरनग्रहाद्धन् इत्यभिप्रायः | एव ॒भेतस्मिन्‌ मन्ते “सामद्याम एतन्यतः-इत्येत्िन्‌ सङ्गा माधिकारे वनुख्यतेेग्यथे gard; fe सङ्गमे इमनादन्यत्‌ कर्तव्य मस्ति, यत्‌ क्रियते

“दावण युव म॑ष्ुराय ° ---° सु 3a)" | afasde area जगतो तार््तौ यसवनिकौये मैजावरुणस्ध wa विनियुक्ता हे शन्रावरुणौ !' ‘gaz युवा मित्यर्थः “mata नः, यज्ञाय warn ‘fay’ जनाय wR मनुव्यजनाय, श्रसमठवंकामाय ‘afe मत्‌, ‘aa सुख यच्छतम्‌ दत्त मित्यर्थः ‘Sedna’ “Saray”, नित्ययायजुकम्‌, अग्निहो जिणम्‌ श्रति यो वनु्यति' “safe जिर्घासति” यो निदन्तु मिच्छति fa ae? द्युचयते,- वयं जयेम तनाय" सङ्गमेषु ‘gay “efgd” पापधियं, पापया धिया fe crosman मभि जिर्घांसति। एव मनापि marae “qaafa:” waa: | श्रन्यप्रयोगविषयत्वार्‌ भाव्यकारेण निगमदयं पठितम्‌ i

* ‹"दृन्दरावदणा यव म॑ष्वराय॑ मो Pa जनाय मदि णै यच्छतम्‌ Gaia सतिये बमष्यति बयं जयेम एतत दद्यः ॥?- दति we उ०५,९,९,१।

use Lote Rae] Ana काणम्‌ | १९

व्याख्यानप्रसक्र मुच्यते ;- “पापः पाताऽपेयानाम्‌" श्रपेधान्य- लेद्यानि यानि, तान्यषौ पिबति, विषयप्रसक्र त्ययः “पापल्य- मानः"? पुनः पुनः पात्यमानः, तेनैव पापेभ कमंणा। “श्रवारेव” नरक मेव प्रति “पतति” wet, तस्माद्‌ “वाः, पापः

“aqafa, adagar’ हन्तिकमत्धथः* ““खभच्छुभुमिं ° तर्षेम ड्रम" सिष्ठस्येय area जिष्टप्‌। श्रविवाक्ये दतौयसवने, वेदवे शस्ते, Baa aM, निविद्धानोये waa भवः उरभासा वयम्‌, safer “aay दवैः सहिताः “श्रमि वः स्यामः श्रभिभवेम gum वयम्‌ डे ‘fers: "विभुभिः प्रत ae: युस्माभिः ‘waar स्वेन बलेन, एतेषा मभिभविदणां ‘watfa’ यलान्यभिभवेम किञ्च; "वाजः" श्राम्‌! ‘wag’ कस्मिम्‌ ? व्वाजमातौ' सङ्गमे; ‘CRW युजा" dame सन्तो वय॑ “तरुषेम ena ‘ay’ wa मित्ययैः श्रमिभवाधिकारात्‌ तरब्यतिग्ययें उपपद्यते |

‘Saat’ 1, भन्दतेः स्हतिकर्मणः” स्तुत्यं ata | “fat यश्ाना०--ग्धामभिः कविः” ? विश्वामिनस्येय anda i

© ware ४०९१० ts qe!

teauduficte वः era fat विभभिः weer शवसि। वजा gat वतु वाजंसाता fare यजा तदवेम TIT +? eh we Po ४,४,९५।,९।

{ श्मा० ४०९ ge (ao |

§ “पिता ज्ञाना weir विपश्ित विमामं सृप्िेयनं वु चतम्‌। चा f¥- an शदसौ uftater परश्रिया भन्दते धामभिः कविः ॥'?- हति we de

८, २०, ४।

९४ fauna | [पृषट्‌कम्‌ ,

wae प्रथमेऽहनि श्राग्निमारते शस्ते, नि विद्धानोय, वैश्वानरोये am wads पिता asa? पालयिता चन्नानाम्‌, श्रधनिः,, ‘sgt marta "विपश्चिता" प्रज्ञावता मपि मध्य Arar, 'विमामे' विनिमाणं छत्रस्य जगतः ; श्रग्निनेव छ्िेनादिकमेदारेण शत्रं अगद्धिनिर्मौंयते "वयन wera मेव ‘areata’ खवि- लाम्‌, विज wa aarfa: विशिष्टं ameter मिन्येवं मन्यन्ते | योऽय मेवंहवचणाऽभ्निः “श्रा विवेश" 'रोदसो' द्यावाषएटथि्यौ ““रि- aaa’ बङख्ूपवयेन, मेवङ्गणयुक्र मग्निं "पुरप्रियः' asarafia: स्तोता, ‘aaa’ स्तौ ति, ‘urate’ नामभिः श्रनेकैः प्रकारैः, "कविः" क्रान्तदभेन wae पुरुप्रियो fe स्तोता धामभिरद्नः किमन्यत्‌ Gas क्यात्‌ ? तस्मादुपप्यते WAIT मख्य

“ख भन्दना उदयन्ति ° याचनात ”* | भौमोऽजिः, wae मार्षम्‌ जगतौ शप्र श्राव ; पवमान धौजव्‌--इत्यष्टाचला- fima avant एकचलारि न्तम पावमानसमो | यदिम मयान्नं कमपनमेन्तत्बुयामड मेतं सामं तजेति, एवं नित्यकाल मास्ते ‘a’ एष साम्यत मस्िंसोमकमंणि उपनोते हे साम ! तव भन्दनाः, स्ततः "उदियन्नि' उदौरयति। प्रजावतः" प्रजासंय॒क्राः, प्रजालिङ्गा cae: ‘feng’ विश्च मयतोति विश्वायुः, खवेच्ापरतितप्रन्ञान दत्ययैः; saat वा विश्वायः। ‘faa’ wana, नाम-बन्धु-

© “gy भुब्दमा उदि यनि परजाक॑तौवि्ायवि्ीः TUT अदंदिवि। ब्रह्म भरना ` ब॑द्रयि सज॑पस्यं Ta tegfark wand ATA W7— दति We Yo ०,२,९०,६। We Yo दम UGTe १८्०(--१९२-२९ब०) (— ve He |

५अ०९्पा० Be] नेगमं कारम्‌ | १४

कमे-रूप-सम्बन्धात्‌ स्तुतीताम्‌ ; नान्ना, बन्धुभिः, कमणा, रूपेणेति Gh) (सभराः, सुश्ताः, सुपुष्टाः; स्थानकरणानुप्ररानवल्यो युष्मद्णेरलङ्ताः | “शरदिं वि' श्रनि वा राचो च, रात्रिपर्यायाभि- प्रायेण नित्यकाल मेवेत्यभिप्रायः कं पुमरथे मुपेत्य स्हतौरूदौर- यति ? ‘ag प्रजावत्‌" wa प्रजसंयुक्रम्‌ भोक्रसरितम्‌ श्रपि "रयिम्‌" धनं गो-हिरण्ठादि | शरश्वपस्यम्‌' 9a: पतनखमर्थेः we: संयक्रम्‌। ‘Da’ त्र मस्माभिरस्िम्‌ कमंणि। “इन्दो सोम! टद RNG ‘Areata’ Wada एत ay मभिगरे्य स्हतौ- रुदौरयति भन्दना उदियर्तौत्युदौरणसम्नन्धात्‌ स्तय एताः “agar “WAT इत्युपपद्यते | पव माख्यातपदसम्बद्ध सुदा- हरणं "पुरुप्रियो vad धामभिः?--दति(९११०२९प ०), ददन्तु मामर्ूप-सम्बद्धं “a भन्दना उदियत्ति प्रजावतौः-द्ति (wage Ride) उभयथा प्रयोगोऽसतौत्युभय सुपप्रदग्ितम्‌, श्र्य- प्रयोग विषयचाच्च

"“श्राहनः(१९)०१-- दति * एतत्‌ पदः सम्बोधन मनवगतम्‌, श्रप्रतोयमानार्थलात्‌। “श्रा हंसि"-दत्यवंप्रतोतिः “न तिष्टति निमिंषन्येते०-° रैव चक्रा? यमस्य यम्याञ्च मवादखकरम्‌; तत्र यम्येय माषेम्‌। यमौ मेयुनाय प्राययमानां ब्रवौति;- रे यमि ! ache साम्प्रतं रह वत्तत दति, जिन्त तिष्टन्ति" gat

* ule gee ge Qe +a frafa a मिनिषन्त्येते carat ae दृहये चरन | GIA ACTVar wife oda fa TE रय्यवचुक्रा।?- दूति we सं ७,९,०,२।

| fanz | [ पूवषद्‌ कम्‌ ,

मपि, एते जनाः रन्धून्ेषणतत्परा इत्यभिप्रायः श्रपि च, निमिषन्ति श्निमिषाः, श्रादरवन्त दग्यभिप्रायः। के पुनस्ते? इत्युच्यते ;- “एते देवार्ना" खण्डाः; दृद एतस्मिन्‌ लेके ‘um’ स्पाश्यितारः, कतारूतानां कमेणणम्‌ के पुनसे ? दति उच्यते;- Sve, राचिख, उभे सन्ध्ये, खयाचनरमसो, वायुश्च, अरन्तरपरुषख दत्येवमादयः ; gaat किंचिदविदितं परोच मस्ति इत्यभिप्राधः। amt ब्रवोमि ;--श्रन्येन' अन्यङ्ुलजेन केन चित्‌ परुषेण, ‘aq’ मत्तः, त्वम्‌ हे शश्राहनः !' मयनं ‘arte’ ‘ae’ “fara? “ar सि दवः” Wa HAT “भाषमाणा” लम्‌, नाइ मेतदसभ्यं stg ANGE तउ ; किं पनः कतुम्‌? तस्माग्मन्तोऽन्येन मेथुनाथे चर "तेन" एव ay ‘fa aw चभ्युद्यच्छख ara मैयुनकमणि रथ्येव चक्रा" Trem Ta; यथैक मकं रथचक्रं दे श्रभ्युद्यतः, एव मेकमनस् मुपपाद्य तेनेक- waa मनसा waa ऽपि WAT, लश्च तस्य कामिनः ama, स॒ तव, तेनेव सद तवैतसिन्नर्थे ware मस्ति, मया ag मेतक्िनरथेऽभ्यु्यच्छमाना मां mee कन्पयित॒ मित्यभि- प्रायः एव date washers “are - wane यमो-विषयं सन्धानम्‌ stead “व” fe यमं तयाऽनेन दुवैचनेन तसात्‌ सेव खन्नोध्यते wea! शति | "एतस्मात्‌" एव कारणात्‌ श्राहइनः खात्‌”, यो ऽयम्‌ उपदेशः स्तिथै, श्रसावपि fe aw सन्निधो सत्ये, आदन्यत टव ae त्वात्‌; ae श्रयभ्रियो वे पुरूषोऽमेध्य aie स्ाव्नायत दति fanaa

१५्न१्पार रख०)] Ana काणम्‌ | १७

"°नद्‌ः(१९)--इति * एतद नव गतम्‌ “'चछषिः नदो भव्ति?” षति mew पयायेण तत्ववचनम्‌ “नदतेः स्तुतिकमंणः" इति ्यत्यन्तिः। नदिता वा नदतीवेत्ययंप्रतोतिः | “nee मा रुधतः ° ° धयति मन्तम्‌, 1। श्रगस्यलापासुद्राःव्रहमाचारिखक संवादे लेपासुद्राया द्य Asa) सा श्रत्रवोदगस्लयं भत्तारं भमि- प्रेत्य “मदस्य Coane” afeaar देवतास्तोतुः RAMA 'रुधतः' संरु वतः इद्धियग्रामं ‘ar’ माम्‌ श्रयं कामः ‘say’ श्रागतवान्‌, येनाहं साम्प्रतं Tey) खा पुनरेवं जने। किम्‌ "दतः" एव श्रा लातः' श्रसष्डरौराञ्नातः, मनेापरि द्यभिव्यकोऽसखमत्पौडनाय ;- श्रथ वा aga? शअ्रगस्शरोरात्‌ ? पुरुषगणानु्मरणाद्भि fae: कामे जायते-श्रमिव्यन्यते, परुषस्य स्त्यन सरणात्‌ | श्रत एव “सरः” - दति काम उच्यते तस्प्ादुपपश्यते Tat वासच्छरोरात्‌;- मुता वा नद्‌-शरौरात, कुतः? शति लाने far de वां अन्यत एव ‘gafae’ श्रय मागतः स्यात्‌? इत्येतदपि तक्ता a जाने इत्येवं विलपमाना कामान्ना ‘roger राणर्षिपुचरिका ‘equ’ रेतसा वविं तारम्‌ , wa नोरिणति' भिखयेनाधिकं वा दोषेण गच्छति; यदि ममासावृपरि प्रजननं fatragia, तता नायं कामा मागमिव्यत्‌, इत्येवं दोषेण गच्छति “रिणातिः इति गतिकमेसु पठितम्‌ {। श्रय वा Saar "नोरिणाति' उपगच्छ-

* auto ४०९४० Yel | | t aE मा रधुतः काम्‌ Watga GI जाता अमत्‌; Fahey @rdragr ~ हषण. नौ feats He मधौरा यति असमम्‌ w’— दूति ae सं १,४ ९२२,४

भा° RYO To ६४७० (Vs) | 9

१८ निक्तम्‌ [पूर्वषटकम्‌ |

Har: ; इष्टपुरुषान्‌ चिन्तना हि कामान्तायाः स्तिया: खभाव एव तस्मादेव मण्ठपद्ते। ‘wh’ शिरबुद्धिं ब्रह्मचयं “WAT सक्घुसवद्धिययामा धयति" पिबतीव चेतसा, चचुर््या वा पश्यति “षन्तं चेतसा व्यावर्तमानं, तस्याः सकाशात्‌ AWW तबुद्धं तथापि धयत्येव “uate, नदति इत्येवं गतिकमसु पठितम्‌ * एवं लपामुद्रावाक्ये “नदस्य qual मा मागमत्‌ कामः" इति प्रकरणाद्‌ पिनैदण्ब्देनाच्यत wage “dag प्रजननस्य ब्रह्मचारिणः रत्युषिपुश्या विलपितं बेदयन्ते"-इति निदानप्रख्यापनम्‌ ९॥

नयस्य द्यावीप्रथिवी we नान्तरिंं नाद्रयः सामे we: | WMATA अनपे गामान्‌ गोभि- रषाः जम दुग्धाभिरक्षाः लोपाशः few ers मत्साः | छियतिनिगमः पुवः छरतिनिगम उत्तर इत्येके ऽनूपे गोमान्‌ गोभियेदा ियत्यथ सेमे दुग्धाभ्यः छरति सर्वे छियतिनिगमा इति शाकपणः राच मिति सिप्रनामाशु Baal भव॑ति। प॑तचीन्वर स्था जगदय- च्छच मभ्रिररुणेाज्जातवेदाः! पतचि wax स्थावरं जगमश्च यत्तत्‌ fan मभरिरकराज्नातवेदाः |

# भार ९८० Te vewe (९) 3 तद्रौष्पनो RUT | “लजनद्यदिच्डाच'' ख, { “मप्निरबशोव्लातवेद्‌ाः”* ख,

UUs श्या इर] नेगम काणम्‌ | १९

ऊतिरवनात्‌। श्रा त्वा रथं यथोतय इत्यपि निगमो भवति। हासमाने इत्यपरिष्टाद्याख्यास्यामः।* aaa पड्भिरुप सषैदिन्द्रम्‌ | पानैरिति वा स्याशनैरिति वा (स्यश्नैरिति att) ससं पक्त मविदच्छचन्तम्‌ | सखपन मेतन्माध्यमिकं ज्योतिरनित्यद्‌शनं तदिवावि- दज्नाज्वल्यमानम्‌। दिता सत्ता स्वधया Way: | दध सत्ता मध्यमे स्थान उत्तम्‌ शम्भः सखभः | qt 4 Al Sa | ब्ग मिव व्रात्याः प्रषाः॥३॥

“सामे श्रक्ताः(\२०--दृ्येते पदे। श्रच AI इत्येतत्‌ Ut Way, WU चानेकाथैम्‌। Waa सम्बन्धादुपलच्तणाये सेामगब्दोऽच समान्नातः। कथ aa“ यस्य॒ शावाएयिवो"-रत्येत- देवादाहरण aa उपलक्तितं wa? wa fe श्रता त्येष शब्दः, समशब्देन सम्बद़ः; यथया ग्डतश्ब्देन, मेषण्रब्दः -“मषो भता- a भियन्नयः,"- इत्यत्र, यथा वा “त्रभ्निनै ये"? - द्व्यच िशब्दः||| अच वा्नोति-पन्ते wat tf we शब्दस्य सुपुष्टतर्‌ उदादरणाथा भवति तश्मादय मनन्तर उपलच्छयते श्रन्पप्रयोगविषयत्वादस्य nae प्रतिपत्यथे Baws: waa एकपद समान्नाति प्राते सति॥

* क-ख ज-पक्षकेष्विरेव छतौयश्ष्ड" समापनः |

+ qamifeatnaa aan हश्यते कग पलसाक्रेष | { “wa मेतन्नष्यमम्‌'- इतिक, 4, ग।

§ भार १२० To LaWe (८)

|| भा० २२० Te १द८० (१)।

# निशम्‌ | [ पवैषटकम्‌,

“न धस्य द्याव ° --° स्थिरा” ° रेणमाम विश्वामिषष्ड पुषः, awe माषेम्‌ VR छक खयस्ठन्नामेकाहः, तचयं निष्के- व्यशस्तं निविद्धानौये शस्यते (न qe द्यावाष्रथिवौ' यद्य TRE wanfaar महिमानं “ware? व्याश्रुत werd: | ननः ‘wa उदकम्‌ ; तद्धि धन्वत्यन्तरिचलेाकात्‌। ‘a wafteq’, “नः ‘axa’ पवता; wast महिमानम्‌ किं तरिं? सेम vara: मिमान मश्रोतोत्ययः कथं पुनम॑म्यते साम wae afe- मान मस्रोतोति ? इतः,--'यद्‌ we मन्युः शधि नोयमानः' qar- LUXA मन्युः क्रोधः सामेन पौतेन षता मदसामच्यादुपरि waut नोयमानः प्रायमाणः शरणाति ‘ate’ यदपि aie ys wag शचुबलं भवति, तदपि sua, हिनस्तोत्यथः | "रुजति" 'शिराणि' शपि दृढानि aaah भिनत्तोत्यथः। एव मेत- सिन्‌ aa age “waa: wat इत्येष शन्दो few "इत्येव मेके, मन्ताथेविदो मन्यन्ते

“अनूपे गोमान्‌ ° तोते” स्तषा माषम्‌ दती पावमानो सौमो ayy रेभे “गोमान्‌! गोभिः सिता चदा ‘sar’ faafa, निवखति ; श्रथ तद्‌ा सुयप्रषवात्‌ तस्य देशस्य "सामे दुग्धाभिः पुनः पुनः दुग्धाभ्योऽंप aha: चरत्येव i, कथं पुनः चरति? इति। उच्यते,- “समुद्रं संवरणानि' सभुद्र faa

* “"न चस ्यावौ्थिवौ धन्व ares’ ante शेम wer) wa

च्व र॑धि मुगेयमामः gui at, qorfat farcifet u? दूति we संर ८,४,१९४,१। ~ ~ bee N bd .

“खनये गोमान्‌ गोभिरकाः sa द्गषाधिराः | Bay SACI

ant मदाय वे।ष्वे॥*८- दति we सं 0, u, te, ४।

१च्ध९पा० शैख ] नैगमं काण्डम्‌ Re

संवरणान्युदकानि ; उदकानि fe देशान्तरात्‌ azn, तानि यया स्वेभ्यो देशेभ्यः रत्य समुद्र माभिमुख्येन ‘saa’ गच्छन्ति, एवं wang, समः saat गतेभ्यः deq oe: प्रति तरति Aaa श्रथ यदेवं naif, तेन सेमेनामावास्यार्यां सान्ना- ययेन दकप्त इन्द्रो “न्दौ waite, यजमानस्य waa ‘area’ हिनस्तौत्य्थैः ““निताषयति, निवदेयतिः*- एति हन्तिकमसु पठितम्‌ * wa Rafer मन्ते “दियति-निगमः पूवैः" पे गोमान्‌ गोभिरत्ताः"-दत्येषः (२०४०२ oto) “चरात-निगमः SAT “Arar grata” इत्यत (२०४०९ otjo) | एवम्‌ “Ta” मन्त्राथविदो मन्यन्ते ae तथैबपव्याश्यातम्‌। “aa” uaa चयोऽपि ““च्ियतिनिगमाः” “दतिः “aragfa:” श्राचार्या मन्यते। यस्य द्यावाष्यिव्यौ निवासः, धन्व, a waftd निवासः; किं तदि? सेम एव oe निवामः तस्य सोमस्य faa? इति उच्यते,- यदस्य aanfy wut नयमानः, प्ररणाति ae रुजति सिराणि। समान मन्यत्‌ पृवेणेवायन “sere गोमान्‌ गोभि रकाः" इत्यत्र निवा- साथेतेव पठस्सिन्नेवायं श्रय सोमे दुग्धाखपि गोषुघः निवसति, fra: कन्त शक्यन्ते इत्यभिप्रायः। मेते सवः जयोऽपि “कियति-निगमाः'--इति “magia.” श्राचाया मन्यते “ा्रम्‌(\५- दृतिं एतदनवगतम्‌। श्राग्रु श्ननतं

*# भाग REQ ve Lewe (२९), २०) तभेष्नौ | ATT | र्भा. Boo Te Vey |

RR निदक्तम्‌। [ पृवषदटकम्‌,

भवति--इति शन्दसमाधिः “fer नाम'"-एत्यभिधेयवचनम्‌ | “यो garda e—e जातवेदाः दयं ₹विष्याङ्कोये खक तत्‌ पृनमृदधचता ्गिरसेन दृष्टम्‌; वामदेथेन वा VI पश्चमे- दनि श्राग्निमारूते wa निविद्धानोयं तद्वति ‘a’ aff: ‘Vara आहता देवानाम्‌, श्रथमः' प्रधानः, AAAI: सकाभ्रात्‌। देवजुष्टः देवैरासेवितः “खं समाञ्जन्‌' समुचित- वन्तः केन ? “श्राज्येन' “श्रादटृणानाः' सेवमानाः, भजमाना TTT: | aa किम्‌? इति उच्यते ;- "सः qatar’ asf: पतिः, यदेतदितस्ेतखु पतति ; इतरश्च पच्यादि, ‘qr wary cafe, "जगत्‌ यदेतब्नङ्गमादि | तस्य किम्‌? इति उच्यते ;- तत्‌ सवं प्रलयकाले ar’ चिप्र मात्मसाद्‌ ‘andra’ “atta” जात- aa afm) मेतस्िन्‌ मन्ते “ara मिति" इव्येतत्‌ “far- नामः" पतजि-खावर-जङ्गमानां fancenefa: कि मन्यत्‌ कुयात्‌? तस््ादुपपद्यते चिप्रनामेति

“ऊतिः(५५०--इति 1 भ्रनवगतम्‌ ।“श्रवनम्‌'--इत्यथैप्रतौतिः | “mang”? रकणादित्ययैः। श्रा ला रथं यथो o—e सत्पतेः ty प्रियमेध्यारषम्‌ दे wx! ‘a’ लाम्‌ “श्रा वन्तयामसि" श्राव- कयामदे | किमर्थम्‌ ? ‘saa’ waa रक्षणाय, ‘gare’ सुखाय

# “ला garda प्रथमे देव॑ CHT YA ATE UAT: dawtac खा wagers मपरिर॑रचाव्लातवेंदाः॥.- दति we de ८, ४,६०, ४।

ft & We ४०८१६५० Yo |

t “QT ar TY यथोतये चलाय awarate | qfagfa ative fay af 8 सत्पते ॥१- दति we सं ९, ५, १, ९।

४० Late Bue] नेगम॑ काग्डम्‌ | Rg

कथं पनरावन्तयामहे ? इति उच्यते,- रथं qa शक्रो fe afar यथा रथ मावरत्तेयेन्‌, एव मावत्तयामद्े वयं at म्ठतिभिः किं्नचणं ania मावर्नयामहे ? उच्यते ;- ‘afa- कुर्भिम्‌' aga मनेकप्रकाराणं कर्मणां anita “खतीषरम्‌' च, sat मभिभवितारम्‌। हे gry शविष्ठ बलिष्ठ! ‘ama’ सतां पते ! एव मावर्तनेनैकवाक्याभिसम्नन्धेन “ऊति weal TINY इत्युपपद्यते

“'हासमाने(^९)- दति * “उपरिष्टाद्‌ व्याख्यास्यामः? ; “श्र पर्वताना सुतो उपम्धात्‌?-ए्त्यत्र† |

“पडमिः(९०/१--इति{ श्रनवगतम्‌। “पात्रैरिति वा qua रिति वा“-दति श्ब्दसमाधो “एवा महा dat o—e faq arin’ adt नाम वैखानसः, ada मार्षम्‌ thi एष एतस्िन्‌ am स्दतिप्रकाराऽधिहतः ‘yar एवम्‌ श्रनेन प्रका- रेण वन्तमान ! हे दन्द! “HEY श्रसुमन्‌! प्र्ञानवन्‌! बलवन्‌! वा "वक्षयायः स्ततिवक्रे, मदते यजमानाय, पृवेकल्पान्तरौणाय ; पुवैकन्पान्तरौण एव ‘aaa’, “पड्भिः सेमपानैरभ्युदितेः, श्रय वा गणस्याश्नैः स्त॒तिगतेः, ‘wid’ sae, अन्यकल्पान्तरी- एम्‌ इन्द्रम्‌" ‘a’ तेन तथा ‘war’ दयमानः, श्रनुखियमाणः "करति? waar किम्‌ ? “खलम्‌ खस्ययनम्‌। ‘aa’ यज-

* भार Bet ye Gey

tue Se wre ९, ४,५।

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§ “शवा महो WET वधाय aye: fees By दिन्ब्म्‌ सु cam भ॑रति ufeaar x मूग fafa विच्च माभाः॥- जन सं ८, ५, tu, ९।

Re fanz | [ qauzaa,

मानाय wat त्रवोमि,- aga ay मेतस्मिन्‌ कन्पे aga, ASE, ता एवैताः सतयः, याभिर्‌ मुपासप्पे साम्प्रतं भवन्तम्‌; त्व मेवं fan, aa वन्तमानाय यजमानाय मधिकारं जानानः, कुरु aaa fey; ‘ce quay ‘vay wei न्रौहिववादि, ‘aay’ dues ‘afaf च, waafareg ‘fan’ एतत्‌ सवम्‌ ‘stay’ wfiqeianag यजमानाय भाव- Ua एव मेतसिन्मन्ले चब्दसारूप्यात्‌ प्रकरणा “पड्भिः” इत्येतत्‌ पानाभिधानं स्पाननाभिधानं बेत्युपपद्यते “ससम्‌*८-- दति * श्रनवगतम्‌ खपनम्‌'-एत्यवगमः | “प्र मातुः प्रत॒रं ०-° उपय wa’ शद शवानरस्य, अग्रव wana, wat mata दय माषेम्‌। wea! चिष्टष्‌ प्रात- रनुवाकाश्िमयोः wad ‘A मातुः प्रतरम्‌ AMY’ THAW गततरं गहरं, मातः wafaarg: मेः, aft वोरधः' दग्धुम्‌ “छप wiq ‘sit’ ऊर्ंवत्यः, प्रच्छाद्य गमेनिस्नरपरदे्म्‌, तिन्‌ जिष्रप्रद थे वन्तेमानाः, तच fe ताः सुविदद्धाखच भवन्ति कथष्य॒न्‌- इपसपत्‌? इति उश्यते,- प्र मातुः प्रतरं गद्य मिच्छन्‌ gard म' AWAY मातुः यथा कुमारः, प्रकघंण गृद्यतरं सवोद्गेभ्वः WIAA, सनपानम्‌ इच्छन्‌ Baad; एवं योऽप्नि; बङो- afya श्मेनिद्यरप्रदेभे कमार एव wanda भिषापषपंत्‌। ava

* ute ४०८ yo १९ Yeo | “प्र सातः रतरः गृद्ध मिष्डन्‌ Heltra Tee: view | ed zug मविदब्छचर्णा, fefcsid रिप खपे शमाः दूति we सं ८, ९, १४, ₹।

५० Cate awe] मेगमं ATA | Rv

faguad ‘ftftsiv पुनयुनराखादयमानम्‌, weet ‘ta’ शर्या एव wa: ‘ere’ उपस्थाने; fad? fe aa man aq उपतिष्ठन्त दति निद्र एषेपस्थो मेः तस्या एव (अन्तः' मध्ये इत्ययः तस्िननवंश्रचणे wae, मभिम्‌ “श्रविदत्‌' कित्‌ विः WRN वा श्रोषधौराखादयन्तं ad पुनरविदत्‌? दति उच्यते,- ‘ad पक्रम्‌' afaza, यथैव खपनन्नौलं “माष्यमिकं ज्योतिः” वैधुताख्य पक्त मभिव्यक्तम्‌; वषास उपयेवस्थामादयन्नेनैव इश्यते, एवं निदं म्‌ प्रविष्ट मपि am afa मतिमहत्वादचिषोऽविददे- वाप्छत्‌ ° | ‘agua’ रोयमान fae निश्यरेऽन्योऽनप्रविष्टौ ॒विन्नायते, श्रभ्निस्ठ fadcetsfa खया gen famed एवे- त्यभिप्रायः। एवङ्गणयुक्रोऽिः ददं नाम करेतु-दत्थेव wire get मासाम्‌ माष्यमिकं व्योतिदृश्ठते, ततः ““श्रनित्यदशेनम्‌”, तपाद नित्यदभेनात्‌ “खपनम्‌”--दव्युच्यते .; पकं नामाभियक्र मिल्युच्यते एव मिह श्रन्दसारूपात्‌ श्रयाप- पत्तेश्च ““खमम्‌"--दत्यनेन शब्देन सपन मुच्यत दत्युपपद्यते 1 ““दविता(९९०--दइूति t श्रनवगतम्‌ “Sua "इत्यवगमः + "यस्खद्धोता पूव श्रे ° -- ° देवव्रती" ट।. कतस्य वश्राभि- seq भाषम्‌ feed प्रातरनुवाकाश्चिनयोः wat हे भग-

* “od पम्‌, Te ag मिवः इति सार are |

{ खायणशव्याख्यया विराभोऽव दएव्यम्‌ यास्कालिप्रायाऽथयबष्छढः |.

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§ “ववोता पर्वे अग्रे gant am दविता चु सा quar We: TENT चमं प्र यजा चिक्लिोर्था Arar wat देवदतो ।- दति we Wey, ९, ६९, | a

4

षद निम्‌ पूर्वषद्कम्‌

वम्‌! ‘aa!’ एयिवौख्ान ! * ‘aq’ ae, श्यः ‘ad’ हता मध्यमस्यानेा वायुः 1; श्रसावपि fe दूता देवाना मिति श्रयते, श्रादता afa mg गिवखतः"-दटति। वेदयुताऽग्निरिति केचिग्न्यन्ते। ‘asta यष्टेतरः। ‘feat सन्ता" <u चस्य विद्यमामता ;-““मध्यमे खाने” वैद्येतभावेन, “ona च” स्थाने ख्यभावेन | ‘quar? was, ehsarat ववादारेण। यः “wy? “geen.” सुखस्य. भावयिता ae किम्‌? इति उच्यते,- तस्य we वायोडेन्निलाभ मन्वात्मनेा रौिलचर्णा ufa . मतिलाभ agar; ` “वायवे श्रपन्तेजः, तस्माद्‌ वायुरगनि aafar—tia विज्नायते हे aq! ‘naw प्रकंण यज, देवान्‌ हे ‘fafa,’ चिकिलन्‌ ! श्ानवन्नित्यथेः ‘ae’ एवम्‌, "नः" MUS यागं कुवन्‌, तं ग्ट, यं FCS धाः अध्वर" धारय aw "देववोतौः TAMIA: एव मच अष्टसाङूणाद्यापपन्नेशच “fan —xard दध faa सुपपद्यते “mi —efa 2 श्रगवगतम्‌। (ब्रा्याः*-श्ल्यवगमः। “ae मन्ये०--* Dafa” काष्वञ्च॒मेधातिधिः, प्रियमेधाङ्गिरसः रेन aN ददृग्तुः। तबेषाभिश्चवस्य area

“द्धिः एयिनौख्यानः?- रति पर दे का००,९, १। ““बायर्वेन्दो वानरिचच्छानः?-- इति पर Zo का००,९ ९। J we Go ४,६. १०,। किच्च यता अभ॑वद्‌ निवत (आन We ९, ४, RR, ९)” -- इत्याद्या अपि Kear: | § र्भा० Be exe दपर | aye way GAGA AL wah) खभि्रन्ति Garfil a दति we de u, 0, १८, ६।

५अ० Care शखर] नेगमं काखम्‌ | Re

हितौयेऽहनि मरूलतौये wel अनुचरद wad डे भगवन्जिग् ! ‘ag ta’ यद्यपि लाम्‌ न्ये" यजमानाः ‘ath’ afar, ख्ति- ल्णाभिः ‘Gah तपथित्ोभिराङतिभिः श्रम ache’ अभिगच्छन्ति, श्रभिव्यान्नुवन्ति, तथाण्यस्मानेव प्रत्यभ्वेहि किं कारणम्‌? TA, यस्मादेतेऽस्नाभिरतिरिक्षया भक्तयाऽन्येभ्यो चजमा- Sha: सकाशात्‌ त्राः" “aan”, “Hen” य॒ परसवसयक्षाः प्रति- प्रहिताः ‘an म' “ग्ग faa” cat लकाः ब्रात्याः ‘saree’ मागेधन्ते त्वाम्‌ ; तस्माद्‌ भक्तयतिरेकात्‌ विषेतारस्मानेव प्रत्य- fe एव मेतकिन्मन्ते wares “त्राः” - इति wa खुभका SUA TATA: va

वराहा मेघो भवति वराहारा वर माहार माहा- ffefa ब्राह्मणम्‌। विध्यदराहन्तितो अद्रि मस्ते त्यपि निगमो भवत्यय मपीतरो वराह तस्मादेव इहति* मलानि acat मूलं ठंहतीति। वा। वराह मिन्द्र रमष मित्यपि निगमो भवत्यङ्किरसेाऽपि वराद उच्य॒न्ते। ब्रह्मणस्पति षभिवैराहेः। अथाप्येते माध्य- मकाः टवगणा aurea उच्यन्ते। पश्यन्‌ हिरण्य चक्रानयेदष्टान्‌ विधावतेा TTB ४५।

* “बहति” क,

“quetfa” क, ख,

t “माध्यमिका? छ, ¦ परः एतिपाठविकडः।

$ र-य-पणकये। गाज CBI, कष्छसद् र-व।द्पविड यषः |

गिवक्तम्‌ | [पूवेषट श्नम्‌ |

Teh *, अनवगत मनेकाथेश्च “मेः, तावद्‌ वराह उच्यते; सख fe “वराहारा भवति” तष्ट वर मुदकं माष्ारः। “ay are मादार्षरिति ब्राह्मणम्‌" ; निवैचनस्य दृढप्रतौ- व्यथं ब्राह्मणं Away प्रद्चितम्‌। यथा मेघो वरादश््देनोच्यते, aug निगमः ;- “mag मातुः waagqe—e शरदि मखा। नधा नामं गोतमपुचस्सेय माषम्‌ | रन्दो चिष्टप्‌ ' अभिजिद्‌ विश्वजिन्‌- भदहाप्रतादिषु आद्ोनिकेषु weg श्ररोनखक्रे माध्यन्दिने सवने ब्राह्म एाच्छं शिनः wat विनियक्रा रस्य इत्‌ मातुः, Fe नगन्निमातुः ate "सवनेषु, प्रांतःसवन-माध्यन्दिनि-ढ तो यसवनेषु, "महः महतः ‘fad’ महान्तं समभागं "पपिवान्‌" पौ तवान्‌ Fat "चाव. ar’ arefa शोभनान्यन्नानि, श्रन्यान्यपि wife भक्यिता, Refafa, तेन सामेन विडद्धबलः, सद्यः एव "पचतम्‌" ; परिपक्त मुदकदान समथ मेघं दि "विष्णुः" xx, सथ्डतारनां वेष्टा प्राण- भावेन “मुषायद” श्रसुष्णादित्ययैः “सदोयान्‌! भ्रभिभविढतमः क्रथन्पुनरसुष्णात्‌? इति उच्यते,-“विध्यदर्‌ाहं तिरे श्रद्ध मस्ता" | वराहम्‌ मेषं ‘faa कथन्पनः विष्यदराम्‌ ? इति उच्यते, "तिरः अद्िम्‌ war दूर एवावखितश्य "अद्रि" वम्‌ असा TAAL: एवं Afar सुषा यण्छंश्द सम्बन्धाद्‌ "वराहः मेधः'--दव्युपपत्निः॥ Sma मपौतरे वराह एतस्मादेव" wat श्रपि हि वरं मलस्य avert मारर्त्येव “at at qe रहति" उद्यष्छतोत्ययः .

# yute ४०९ To °पंर | qae मातुः खव नेव सखो सः पिततं प्पिवाखवद्रा i मवायदिन्णु ' पत्तं रौ याम्‌ farce त्रि afk मला ॥- इति we do 4, ४, ९८, ९।

१अ०्९या० Bwe ] ana काद्डम्‌ | RE

यया श्रय मपौतरो वराह-बष्दः ढन्दसि वराद rasa, aaq निगमः ;- “विश्वेत्ता विष्णुरा* ----° एमृषम्‌”* काण्वस्य पुरसृतेराषेम्‌। Gxt “विश्वा दत्‌ av विश्वानि एव तानि ववष्णुः sara’ | ‘sama’ वञ्जविक्राम्तः, 'लेषितः' सन्दौपितः इद्रः वाक्येन यदि ‘av, श्ट्वितःः-द्ति पदविभागः†; तथापि शलेषितः'--द्येकं पदं कलेव निर्क्रम्‌, परोचकशतवाशन्वश् ¦ भान्ययाथ उपपद्यते कानि पुनस्तानि ag area? दृतिं उच्यते ;-- शतं महिषान्‌" बहन्‌ महता aH श्राहरत्‌ faaquia? इति उच्यते ;--“शोरपाकम्‌ wey प्रायणोयास्य मादितः शला ये क्रियन्ते तान्‌, सामक्रत्रमित्यभिप्रायः gm पनरा दरत्‌? इति उच्यते ;-- वराहम्‌ श्रसुरम्‌, .षरारैरूपेणाव- fea स्ववा मसुरार्णां ae एमुषम्‌ मेदस्यानौयम्‌ “are याय मिन जंघान, AS HVE; यदयं वराह मिष VAG भेकनिभरत्याः पुरां पार दल्यु्यते'?--दव्ेवं ब्राह्मणं मेजायणौयके ; तदमवादिनौ शेषा wat) तस्मादच वराह Waa ways

“fam विन्डाराभरदुदक्रमस्वेषितः। भूतं सङिवाम्‌ Oceans rod वराद fay wary v°— faq we Te du, २०, ४।

+ “वाऽ वितिः।”-- रत्येकं पदकाराः wafer |

t “sar wat निखद्ेति हाणिकमतमेदेभ fear याजना Hewes तावत्‌ ,-- # © * | रेतिषहाखिकपचे यरकत्राद्यरे <fawe च्यान्ायते।-इतिसा wie (we Yo Gu, २०, ५) “SIT बा इद्‌ भरे खशि भारगैत्‌, afar प्रजापतिवायभव्राचरत्‌, दमा How, तां बरार भूलाइरत्‌“- इति तण do ९,९, “श बरा रूपं रवोपन्य॑मखत्‌?-- रत्यादि Feo त्रा०९, ६, U1 “SE नाति वरादेण Gaia गतवाङनगा?- रत्यादि लंग qe ६०, ९, ८। “ar मेमर्षं दति बरा खव्वघागः>- एति we Bre १४, ६, ९, ६९ | इत्याद्यतिडासिकानाम्‌।

Re निदक्तम्‌ | [ पृवषटकम्‌,

“श्रक्रिरसाऽपि वराहा उच्यन्ते” “सदं सत्येभिः ° व्यामर्‌” ° | WTA WIA Aaa ATU काम्यपशौ ayy fafrem मेनायणौयके ‘a ‘aguafe’, “सत्येभिः खलदयवादिभिः, ‘afefir’ समामख्यानेः, ‘wefs दोरभिमद्धिः, ‘fa uaa: विविधधनवद्धिः, ‘auf’ वरषद्धिः afaafir, ‘ace’, ‘amafefa, adarafaafr:, प्रवगथैकणि ; श्रय वा यन्नखेदिभिः, यत्तसादयिटभिः, यन्नसद्धिवा एवङ्गणविश्ष्टैरङ्गिरोभिः सरितो बरह्मशस्यतिः "गोधायसं" गाः वाचः धायितारम्‌, wat वा; मेषम्‌। ‘acer अदारयदिति विपरिणामपराचतत्वान्मन्तस्य दारयित्वा “द्र विणम्‌" उदकं ‘aaa’ व्याप्नोतोत्ययेः। एतस्या ate श्रङ्किरर्षा fanqfay नासि वरादशन्दवाच्यवं, ahi तु एतस्मिन्नङ्गिरसो लिङ्ग मस्तोत्यथः। ।-

“aga शन्त ०-° मनन्त] | ‘aa शंसन्तः" खतं स्यं वा प्रशं- wm, पि ‘ay श्रकटिलम्‌ अतिकाल मेव दीध्यानाः ष्यायमानाः, सब्बेभ्ताना मुपरि समचेतस दव्यभिप्रायः। दिवसयु- त्रासः, द्योतनवतः, ‘gta’ mada: Gen, "वराः" विद्रिधाना

* “gi सत्येभिः सखिभिः Nufetrurag’ वि धैनरीरददः। त्र्मषस्परतिदे वभिगैरारे वेमेखंरेभिदैकि ष' वानर + ?- रति we सं ८, ९, १९, ९। we de to ufo we दट्षम्‌। |

थेव at रयं दितोया, अत द्मां दगेयति; ew g (खञिरपःः- एति पसप VAG रव TAM | दकपाठस्मेषः,- “तं van शल दोध्याना f<q aaret seca कौराः। fet ge afdcet adr ewe ww प्रथमं

Har #” इति (we We ८, १, Wuge ९.-- १९०, ४, (oye ९)

alae tute sue] नेगम॑ काण्डम्‌ |

मानां वक्तारः, श्रयितारो वा मेधावित्वात्‌। ‘fad पद" वि प्रति asa: प्राप्तं “अङ्गिरसो दधानाः | यत्पदं स्थानं ज्ञानसदितस्य Rae: फलपराकाष्टा, ता मङ्धिरसे दधाना uaa: चेतसा ; विषद्धपरश्च- त्वात्‌। “awa धाभ प्रमं aaa” ‘age’ aq ‘nad qa Walaa मनाट्निलकएं ‘wa’ स्थानं aaa ‘Aaa जानत द्यैः एतदेवेतस्या wfe श्रद्गिराशिङ्गं get एष निगमो भावयकारणोदाइतः ;ः-““श्रङ्गिरसेाऽपि वराहा उच्यक्े"-इति॥ “safe एते माध्यमका रेवगणा वरादव Gera” ; ""मर्-

y रद्राः"--दत्येषमादयः° श्रङ्गिरसा शुषिषमाष्या मपि शभक, तस्मान््राध्यमकत्वेऽपि सति श्यगुद्ुव्योक्राः ये तावम्महता वराह- घरष्देनेच्यन्ते, तयेव निगमः ;ः-एतत््यन° —o वराहम्‌ | राहृग- ण्य गोतमस्वेय मार्षम्‌ “्राविदुदद्धिमरूतः'"- दतौयश्चैतसिक्षेव कर { हे मरुतः ! “एतद्‌, ‘ae’ बलं योद्माकौणं योजन मेति योग मागच्छति, विजितारिलात्‌ भवतां युज्येत इत्यथः तख que किम्‌? इति उच्यते ;- “सखद यन्‌ मर्ता वः' wate यत्‌ सवेर्षां मनृव्याणाम्‌ यस्य मध्ये युष्मान्‌ "वराहम्‌" परेषा waut Gea, उदरेणान्‌, “हिरण्छचक्रान्‌" सुवणेविक्ृतसक्राम्‌ः “श्रयं दान्‌ श्रयामयाम्‌ रथामधिरूढ़ान्‌ ‘aura’ नानाप्रकारं

# gure ४८९१० ३यअ० wwe ©), (€) |

+ “cama यं जम मचेति Tay यन्मदतो तमो बः | पश्यम्‌ डिरशयक्रा- गयादंट्ान्‌ विषधावते बराम्‌ ५?- रति we Pe ९, ९, १४, ५।

{ We संन kt, te, geome ९, ६४ वर |

RR foram | [ पूवबदकम्‌,

धावतः, "पश्यन्‌ स्तौति, "गौतमः, तदेतन्न योजन मवेति। अरे fad; श्रद्चतगव्ययेष्य RIN) एव मच प्रकरणे मरता are Gea दत्युपपत्तिः। मरुतादयो हि सवे एव माध्यमका देवगणा area उच्यने। तेषां शखान्तरषु wer निगमा; | निगमानपलम्पौ “माध्यमका देवगणा वरारव उच्यन्ते", एतद्‌ asaya मरत्खेव योज्यम्‌; तेषां सप्तसप्तका गणा ब्राह्मणे हि श्रूयन्ते; -- “ते Gaga मरुतां गणाः'*--दति, त्मादेव मथयुपपद्यते |

एवं away भाव्यकरारस्य एकदे वता विषयेऽपि कदाचिद्‌ वराइ wet wae, तदणपे कितव्यम्‌। तद्यथा+-'“दिषे वराह age ; कपर्दिनम्‌" एति Tex उकः ॥४॥

सखसराण्यश्ानि भवन्ति ख्यं सारीण्यपि वा खरा-

दित्यो भवति रनानि, सारयति। vet शव स्वसराशीत्यपि निगमो भवति wait अङ्गुलयो भवन्ति (सजन्ति कर्माणि wat इषवः शरमय्यः शर wa: शयाभिनं भरमाणो गभस्योरित्यपि निगमो ‘aaa देवो भवति यदेन मचन्तयकी मन्त्रो भवति | * Cqerd मध्यश्धाना Fea, तेषां सदतः प्रथममाभिने wea’ इत्यादयो WENT | Te Ro To vk hI

qusy ‘area? इति | `". t we ye ‘A, a4, “1

§ “cafe”. =, ख, a1 || बन्धनोविदानमेतपाठे ऽयं cat saa प्रकेगेव `

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UAT मन्नं भवत्यचेति मूतान्यका sar भवति dan: + wafer (४)

“सखसराणि(९९)'-- ति, श्रनवगतम ) “खयं सारोणि"- दव्य- वगमः। “अहानि! -इत्यभिधेयवचनम्‌; तानि हि सय मेव सरन्ति गष्छन्ति। रपि वा “खर्‌ रादित्य” श्र उच्यते “स एनानि सार्‌- धति" ata सखसगणोत्यु्यन्ते faazarate —o खररा- fo’? मधुच्छन्दस way) श्रग्निष्टोमे प्रडगे शस्ते गायत्रे ze Suze waa हे “विश्वाः y way’ ae प्रति लरमाणाः ; ते fe याज्निकं कम प्रत्यागन्तं त्वरन्ते saya मामग्ने सतम्‌ श्रागन्तः श्रस्माभिः श्रमिषुत मेतं सेमं प्रति श्रागन्तः श्रागच्छत हे ‘awa’ त्वरणश्नोलाः | कथं पुनरागच्छत ? “उसा दव खख- राणि" यथा ‘sar’ was, "खसराणि' श्रहानि प्रति, णोर मागच्छन्ति, एव मागच्छत एव मस्मिन्‌ रश्छिसम्बन्धात्‌ 'खमराणि - दृत्यदहानोत्युपपद्यते |

“gai —efall, श्रनवगतम्‌ ““शरमय्यः”- दत्यव्रगमः। “gaa.” श्रमिषेयाः। ‘we, प्रणा तेः” हिसायंस्य (sate qe); fea

© ““यदेनेनाषेन्त्यके”, क, ख, ‘sem’ क, छ, “gen” { quire ४०९५* ete} § “fade arer aye: सुत मागन तषे यः। IIT wduift - xin ऋ° सं० १,१,९,९। || र्भा ४०९ पए ११प०। | | A

निक्तम्‌ [पुवेषटकम्‌ 9

fe तेन। “mafia fee ° गभस्त्योः" | WRU: WAY a घु प्र wa वाज॑सातय ति पावमानं सौम्यं ont दद्ग्रतः। पिपौलिकमध्यास्तिख्लोऽनष्टभः षडद्धहरत्यः, तासा मियं दितौया श्रमि ततदिथ' एतं सामं हे अ्रभिषोतारः! पुनःपुनरभिरतेत्यथेः। ‘Saar अवणौयेन aay) ae पनरभिततदि ? इति,-“शया- भिः भरमाणः अरमयीभिः इषुभिः यथा कथित्‌ कं तद॑येत्‌ धगद्धारयमाणः, एव मेतं सोमम्‌ एभिः ग्रावभिः 'गभस््योः' बाहोर- वखितैरभिततदिथ यूयम्‌। किच ; एव मेतं Bi श्रभितदंयन्तो ye वसतोवरौभिरद्धिराप्याय ‘eg कञ्चित्‌" कूप faa कित्‌ ‘saat’ महतः “श्र्तितम्‌ श्रोणं कुरुत ; मदत देवजनौचघस्य- Gay mrad क्रुरुतेत्यमिप्रायः एव मिदाभितदं नक्रियासन्बन्धात्‌ eA WET इषव उच्यन्त TAIT

"्रके;(१५)?--इति t, श्रनेकाथम्‌ “दवः” तावत्‌ स्प एवाकं दृयुच्यते श्राह किं कारणम्‌? उच्यते ;-- "यत्‌" Gara “एनं दवम्‌ “श्रन्ति” स्तोतारः “चरका मन्लो भवतिः" कि कारणं? “aq”? यस्मात्‌ “saa” मन्ल्ेण “aif” aga: “me मन्नं uafa’ fa कारणम्‌ ? तद्धि “wefa तानि" यो fe पश्यः, aay मपि संस्कारविशरेषेण dea पूजा क्रियते, प्य

*cmafa fe श्रवसा स॒तदियेत्य क्िंव्लनुपान मितम्‌ waif भरमाणो AUST ॥**- इति we ge ® WY, 1 १) | | 4 Q, e,

+ qe ye é, ९) eo ge |

{ {भा ४०९४० ६४१०

प्र Late दरव ग] ANH MITA | १५

aaa nag) “शका टको भवति” एष प्रसिद्धः | श्राह fa कारणम्‌? दति, उच्यते ;-“खंट्त्तः” सङ्गतः, date: ; “कटु- किला" कटुकभाषेन भवति ५॥

गायन्ति त्वा गायचिखेऽ्चन्त्यकं afr: | ब्रह्माशख्वा Wana Bey मिव येमिरे गायन्ति त्वा गायचिणः प्राचन्ति Asa AAA ब्राह्यणासू्वा# शतक्रत उद्योमिरे ay सिव वंशा वनशयो भवति वननाच्छयत इति वा पवो रथनेमिभवति यदिपनाति भमिम्‌। उत पव्या रथाना मद्रि भिन्दन्त्योजसा। मरुतः छरपविना व्य- य्रित्यपि। निगमौ aaa: | eet व्याख्यातं धन्बान्तरिक्षं धन्वन्त्यस्मादापः। तिरा धन्वातिराचत इत्यपि निगमो भवति | सिन मन्नं भवति सिनाति बूतानि। Ba ar सिनं भरथः सखिभ्य इत्यपि निगमो भवति | इत्या!- मुथेत्येतेन व्याख्यातं स॒चा deat: | वसुभिः सचा- भुवा वसुभिः awa) चिदिति निपातेऽनुदात्तः पुरस्तादेव व्याख्याता ऽथापि पश्ुनामेह भवन्युदात्त्ि- दसि मनासि faareafa भोगाश्चेतयस इति वा श्रा दूत्याकार उपसगः पुरस्तादेव व्याख्याते ऽथाप्यध्यर्ये

ape ee: Ae wee

* “ब्रद्याणसत्वाः' क, च्छ, म। “करपविनध्यथुरिन्यपिः"-रतिक, ख, म। { “भवतौनया-" क, ख।

९९ frame | [ पुयंषटकम्‌ ,

CWA | अभर BAG | श्रमे भ्रा Wastrsashfa* ea ्योततेर्यशे वा wat att Wat Ta मधि रं पेहि | wang wat रं धेहि (५)।

इति पथ्बमाध्धायस्य प्रथमः पादः ५,९.

थथा तावद बोऽकष्न्देन उच्यते, तथेष निगमः ;- “गायन्ति at गाय॒चिणो ---°यमिरे"‡ मधुच्छन्दस श्राषम्‌। अनुष्टुप्‌ | tat हे waafax! "गायन्ति ला गायचिणः" eafa at सामगाः, सामभिः wan मकिंणः' पूजयन्ति लाम्‌ खगः दातारो मज्तिणः। एव मनेन प्रकारेण सवं एते “ब्राह्मणाः” arn कर्मणि हे ‘mamat’ 1 “उद्र मिव येभिरे' vafar वंशमिव at स्दुतिभिः दविर्भिंख; थश्चषु aa महिमानं ag- aaa: “dat वमश्रयो भवति”; वने शयित vara | “वननाच्छ्रुयत दति वा” सभ्भजनाद्‌ वा afafa: एव मच दवः “शअरकं- Weg ने च्यते :

aragiamgaraa “qeags afaa:?—cage एव निगमः (eugegde); श्रकिंणो fe मन्तिण एवाभिप्रेतः

seg प्रसिद्ध एव, तेन निगमसदभिधायक नेवास्ति

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“ofa COr—efa*, श्रनवगतम्‌ “wafadafa”’—ea- भिधेयवचनम्‌ “az वि पनाति alan”; a fe विपृनाति af भिति पविः॥ “ga छा ते° ° भिन्द ग्योजसा† श्दावाशच- aq areal हे मरूतः! येषां वः fatrifag माविभवितुं काले शक्रिरस्ि, ते धूयम्‌ ‘oq a श्रपि किंचन काले ‘gaya’ aga दव ‘cecal’ नर्या, माध्यमिकाया वा विपवं- agt युय मेव ‘aya’ शोधयितारः ‘Sor’ चित्राः, तिरेहिताः ‘aay’ एतस्मिन्नन्तरि्तलोके | ‘sa’ श्रपि ; कञिखिदभ्युद्रमन- काले प्रापे य॒श्माकं “रथानां पव्याः' या रथनेमयः, ता एव “Aa ud "भिन्दन्ति" “श्रोजसा' बलेन, कि सुत यय भित्यभिप्रायः एव मेतम्मिनरय॑संयोगात्य विशब्देन रथचक्रनेमिरभिसम्बन्ध्यते त्रा- ह्मण मपि सेतसिन्नेवा्यं चातुमाटेषु सान्तपनं इविरधिरुत्य "देवा पै ठस्य ममे नाविदस्‌-^तं मरतः चुरपविना wy” सान्तपनं सन्तपंस्तसमात्‌ सान्तपना? इति एतस्िन्नपि ब्राह्मणे चक्रनेमि: सुरधारारृतिस्तोच्तएपवि रिव्युच्यते, तस्मादुषप्यते | श्रन्यप्रयोग विषयत्वाद्‌द्‌ादरणदयम्‌

“वच्चः(९९)'--दति, व्याख्यातम्‌ | "डपा अदि शन्ध्यवः""-- qaqa? ii

* श्भा ४०९ Te US Ge |

“3a Ga Tey att वसत HAT | खत Tar carat afk fix. गरा जसा? रति we Bou, ke, ४।

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^ धन्व(९०)१,-टति °, श्रनवगतम्‌ "धन्वन्ति? दत्यवगमः "शश्रन्तरिक्तम्‌"- दत्यमिधयवचनम्‌ “"धन्वन्यस्मादापः+"- एति नाम- BAT ₹ेहनिदषः ;-- “यः परस्याः०--°दति fea.” t 1 श्रभचि- पुज वल्सद्धेय माषम्‌ Bow दध्रास्य नवमेऽदन्याप्निमारतस्य wae जातवेदस्ये an निविद्धानोये शस्यते ‘a’ श्रग्निरादिव्या- त्मनावख्यितः, “परस्याः परावतः, परस्या मपि परावति adarn, “तिरः तोणेतम मेतन्मददन्तरिचं ‘wer सखेन प्रभावेन Aa “श्रतिः gata, ware प्रति ‘trea’ एव, प्रकाशत wal श्रने- मैव मतिमदहतापि तिराधोयत श्त्यभिप्रायः। तस्य किम्‌? द्यु श्यते,- नः" Beara ‘aq ‘af’ waa: सादयतु नाश्रयत

faa’ दुन्‌ दृत्यथः एव मसिन्नादित्यस्ततिसम्नन्धात्‌ “धन्व” भन्दोऽन्तरिक्ताभिधान मित्युपपद्यते

““सिनम्‌(-)*--टति], अ्रनवगतम्‌ “सिनाति दति शब्दय क्रिः | “ga भवति'”- दरत्यभिधेयवचनम्‌ “सिनाति तानि? वप्रा Mae: ; अन्नेन हि स्यि शतानि ae i “दमा वां °- सखिभ्यः fenfarda arty) तार्तीयसवनेषु उक्थपग्यायेषु

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+ “qn परस्याः परावत॑श्िरि धन्वाति रोच॑ते iq wb wafer fay: yr— इति we de ८, ८, wy, eI

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§ “दमा वां भूमयो मन्यमाना यवावते gel अभूवन्‌ wafer: वदथा URI at येन a पिन भरथः ofa W— दति we Pe a ule, ९।

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स्तोमाभिभरंसमे मैत्रावरुणस्य wa विनियुक्षा। हे “इन्द्रावरुण !' "दमा af? युवयोः ‘waa’ gaa यायास्तैलेस्तोदटभिरूदोरथा- महे, at पुनरेता wa “युवावतेः aed, भवद्यां तडते यज- मानाय ‘A’ यथा ged "तुज्या" दानायाभिमताना ada “त्रभवन्‌' बश्डवुः यतो त्रवौमि ;--हे ^न्रावरूणो !› क्र त्यत्‌ तत्‌, युवयोः ‘aw aren गतम्‌? शयेन" माहाभाग्येनैताभिः स्ठतिभिः श्रभिषटुतौ सन्तौ “सिनम्‌' sei भरथः, (सखिभ्यः, समान- स्थानेभ्यो यजमानेभ्यः io wy मेव हि प्रायेण यजमानैः प्रार्थत ति ““भिनः^-अरब्देना तान्न मभिपौयत दत्युपपत्तिः व्यभिचारि ल्वाद्भिधानानां “सिनम्‌"-इ्त्यादोनि खेखेऽभिधानवर्गे पठिता- न्यपि* af Faas प्रकरणे समान्नाता दोतसिन्नैकपदिके प्रकरणेऽनवगतसंख्ताराभिप्रायेण, कानि विद्नेकाथाभिप्रायेण

"दृत्या(९९)१--इति †, एष निपातः; “श्रमुया"-दत्यनेन व्या- ख्यातेाऽषटमेऽष्याये fy

““सचा(९०--दति ट, श्रप्रतौता्थी निपातः “सद'"-दृत्ययै- प्रतौति, | Confit eT ° ° मथ्ना? श्यावाश्रस्येय मा- षम्‌ चिष्टुप्‌, ज्योतिग्मतो हे ‘afar एताभिः अम्यादिभिः देवताभिः "सचा भुवो” सहितौ azar, “खजेषसौ aentat, टमं

* “सिनम्‌? दति fre ९अ० ° खष्ठेऽद्मं पदम्‌ (रभा. RoR Ve) |

t र्भा ४९० एन १०१० |

{ याम्कौयद्तौये इति भावः | पभा० एष्य एपा० Uwe (१९०६०) Ram |

§ UUs ४९० १० ro Te

fate वरेन चिष्छमादिटीगुवरे्ुभिः सच्‌] wat) सृलाष॑मा year यण सु सेम पिबत सिना ॥-- पति we do ९, ३, ९४,

e ge निक्तम्‌ | [पृववट्‌कम)

"सामं" “पिबतम्‌ पौत्वा Sagara ad मभिपरतं कुरुत fa- त्येव amlarsat एव मिहाग्न्यादि दरेवताभिषम्बन्धात्‌ “सचा cag सहयोगे भवतोत्ये तदुपपद्यते

‹.चित्‌”(९९)--दति°, एष “निपातः” ; “ser” तद्या, ‘aa fag यः शवा पश्च कृष्टो" इति ¦ “पुरस्तादेव व्याख्यातः” वििदव्येषाऽनेककष्ा- इत्यत्र ti ““श्रथा पि” श्रय मेव “उदानः आद्युदान्तो भति, ततः “पश्ररुमाम भवति" | तद्यथा,--“चिदं - सि मनामि धौर॑मि- एति राजक्रयणो गोग्ठतौ पेषेष्यते ;- ““विद॑मि मनासि"--द्ति॥। श्रतः पुनरोतद्‌ ब्राह्मणे यास्यायते- “fazatfa यद्वाव विचिकि्ते”- इत्येव मादि श्राष्वयवे

“ag amg fe **, श्राकार उपसगः; परस्तादेव यास्यतः" “श्रा इत्यवीगर्यै?-इति tt “श्रथाप्युपमायं दृश्यतः निपात- त्वेन “जार श्रा भगम्‌" दति {}। “warfa” कदाचित्‌ “mag दूश्यते", “अधोत्युपरिभाव भश्च वा" दति यथाय मध्येऽपि भवति, तथा “ma at aaa निगमः। “az प्रियया

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¢ we do ८, ८, २९, २।

{ शभा ve To Uae र्पार we |

§ राजक्रयणौ = सोमक्रययौ, यया गवा सोमः क्रौमो भवति, “सोमो बृ राजा र्ति चरतेः (६, ४, ९. ब्रार)।

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we mre २, ९, ४, ६-१०। C.

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धां ° - ° वितनोति मावि्ने*। अधुना पदविभाग मख UTE कारः करेति, उपसगेविभागोपप्रद शेनायेम्‌,-“श्रभ्र, श्रा, श्रपः"”- efi अधुना “शा - इत्यव्ययं ब्रवीति, श्रपोऽभेऽपौति", am स्याच्तदेवेोक्रं भवति “mq at आपः""--दति प्रतिभाने waaay माषम्‌ Fala प्रथमेव जगतौ अज्र पुनः Aa शापः wea “sar विश्ेदेवाः, eat एव वा देवताः" द्यनेन ब्राह्मणदश्नेनापां विग्येदेवल समुपपद्यते तत्‌ पमः सकं श्रभिश्नवस्य षड्रस पञ्चमेऽनि तौयसपमे वैश्वदेवे wa wea | 1 | ~ “कद्‌ प्रियाय ura मनाम ‘aa fare’ सुखाय प्रियाय ‘ura’ Tae वैशदेवाय, aM तानेव विश्वान्‌ रेवाम्‌ थो (मनामहे, त॒ एव Gowan: तत्‌ खानं प्रापयितुं समथा इत्यथै मनामहे सवाग विश्ेषणन्येवोत्तराण्यपि aes खल चाय) We खबलायेत्यथेः। यच सख मेव ae भवति, तज परकौयं बल AMIS; यथेह लाके ‘@aqy’ थच खमहिम- छत मेव ant भवति, शांयौगिकद्रष्यकतम्‌ ‘ae’ aga धाने | मत-प्राद्यये मेव ‘ad’ मनामह ; म्वा चोपामर दत्यमभि- प्रायः। “श्रामेन्यश्य' सेना माध्यमिका वाक्‌, सा यत्र ; we Tee?’ रजे सकः, श्रन्सरिक् लेक इत्ययः ; तख रा, उपरि "यद्‌ waa? यो मेधः; तज या श्रापः शवख्िताः, ताः ‘aq’ | ‘auray’

* “me frard Wet मनामडं खच्चचायु GNI AY वयम्‌ शामेम्यल्य ce St acy ST YI Ear विंतनेति arfeay nw दति we You, ek, ९। marae बे सवे देवताःः- रति रेण wre ९,९.९१ ““विन्रेदेषाः = सर्वे Sa” दति Bye द्र कार ९,४,१५। 6

sz निश्क्नाम्‌। [ प्षटकम _

सम्मजमाना “वितनेति' विसणाति वष्ठभावेन | "मायिनो, प्रज्ञावतो, माध्यमिका वाक्‌ at: ‘aay’ वयम्‌" एवमारिगृणयुक्राः, तासा मेव WANA YTS: WI .मनामरे' याचामहे wa एव fe श्रषि चापः वर्तन्ते दति IEEE इत्युपपद्यते अय चैव मन्यथाख्य मन्त्रस्यार्थः सात्‌;- कद्‌ fray’ सुखाय प्रिधाय Saal ‘ura’ स्थानाय, qa वयं aay कथं नामैतत्‌ श्यामं सुद्धे प्रियं aay खमदष्वश्ध स्या दिष्येव ae विश्वान्‌ देवान्‌ ममामरे | “मदेमहि, मनामर”- दति याचजाकश्मघ पठि- तम्‌ * कतमाः पनरपा याचामहे? इति उच्यते ;-श्रामेन्यस्य रजसः" श्राभिसुख्येन मनमो यस्य रजसेाऽन्तरिच्लेाकस्य यदभ्र मुपरि qua, तसिन्नमे ‘aa’ “दणाना' सम्भजमाना (मायिनो माध्यमिका ara “वितनाति' efearaa, ता! मनामहे याचामहे qe) —e fat, श्ननेकार्थम्‌ “चथ वा wel वा--षत्यभि- सेयवचनम्‌ | “ad ते चिपरिन्नतयः ° - ° रन्न धि” वयिष्ठस्या- घम्‌ faetal महाव्रते मददुक्थे दचिण og शस्यते हे ‘fafa!’ ex! “अतं ‘a aa “ऊतयः श्रागमनानि सन्त्‌ क? “सुदासे श्दाने were, एतस्मिन्‌ यजमाने, aaa मनुगहाणए, यया नित्ययान्येवायं यजमानः स्यादित्यभिप्रायः श्रागतस्य सतः तव ‘ave शंसा" बहनि सोजाणि सन्त्‌ “उत रातिः away’ श्रपि

* quite ९५९१० दर Lem (१५४), (१९)।

श्भा ४६९४० cede

tude fafigra सदासि yer wer खत रातिर जहि बर्धुवेनषो agra ga मधि रलः पेड,“ रति चन dou, Ge, UI

UGe रपा] Ana कार्म | 88 `

इरिदेत्तिरस्ित्येतदेवानुवर्ततै | एवश्च मागत BIE चन्‌ VT, यन्‌ Ota हे वधः, वधयितः ! "वनुषः awe’, योऽस्मान्‌ शन्तु भिच्छति मत्या मनुयः; तख यद्‌ aaa, तत्‌ "जदि! इला तस्य dary, fram RaW असमा सु ‘gay “अननं यगो वा” "त्रं च' ‘ufe setae: ‘wa’ धनम्‌। एव Rafa शचरवधषम्ब- न्धात्‌ “gamer “यशा वा शन्न ay? उच्यत दृ्युपपनिः; दते fe wat यशोऽन्नं वा भवतौति॥ “ge द्योतते: दति, wa मेव हि yaa दौत्तिभैवतौीति ad यातयिद ष, यशस्तु दीप्तं प्रका सखभावादिति

दति faanent दशमाध्यायश्य (पञ्चमाधयायस्य) प्रथमः पादः॥ ५,९१॥

fama: पादः

पविचं पनातेमन्त्रः पवि waa) येन दैवाः पविवेणात्मानं पनतं सदेत्यपि निगमो भवति। रश्मयः पवित्र मुच्यन्ते गभस्तिपून इत्यपि* निगमो भवत्यापः पविच्र मुच्यन्ते | शतपविचाः खभया मद्न्तीबष्द काः afa: पविच्र मुच्यते वायुः पविच्र मुच्यते सामः पवि मुच्यते खयः पविच मुच्यते इन्द्रः पिच मुच्यते | aha:

* “मभद्डिपतो छभिरद्विभिः चुत एत्यपि- एति रू, च। as

98 निक्तम्‌ | [पूबषटकम्‌ ,

पविच AT पुनातु वायः सामः खयं इन्द्रः पवि ते मा परनन्बित्यपि निगमो भवति। area: (६)

“पविज्म्‌(९५)'--टति*, अनेकायम्‌ “पनातेः"- एति धतु- मिहमा गभिवेवमाभिप्रायः। “मन्तः पविच मुच्यते"-दत्यभिधेय-

Tag | “यन दवाः पनन्त at aera पविज्रत्- mara नियमः | पविज्रस्य वसिष्टसदहितस्छ वा श्राषंम्‌। पावमानो सौमो येन" "पविनेण' wey “देवाः, खविग्‌-यजमानाः रात्मानं पुनते ‘aay सतत मेव waa कब्मंणि यख मन्त तत्‌ साम्यैम्‌, ‘ay asad वौय्वता “शख्धारेणः बडप्रलरेण प्रविरलेन "पवमानः पुथमानः, सामा मां पुनातु मन्त्ेणीव देवा Ufa जमाना aa पनन्ति, तस्मादुपपद्यते तेषां देवत्व मिति; fe दतरेषां देवानां पाप afa, यत्‌ yaa “न वे देवान्‌ पापं गच्छ ति इति विज्ञायते। तस्माटेवध्न्द नाज खलिग-यजमाना Tee | ते डि इविषां दातारः, याचनेन श्र्थिनः तस्मादुपप्चते तेषां रेवतवम्‌॥

“ogy: पवि gee”; ते fe wat पावयन्ति “वाचस्य- aa पवश दष्योा ayigat गभकिपूतः दरो za ; Waa

> qute ९१९० tude |

१९१९२ ९९९१९१९१ ERLE LEU “बेन देवाः पथिचेशाप्रामं पुगवे सद्‌ा तेन Tweety t पुम. भामः ॥१-- दति ate Po Ge Qo ४, ९२, ८.५

UG AgTe Lae] नेगमं ATA | ७५

Gat भागोऽरिं {-दत्येषा रपा यर्यरर्े fafaant wa! वाचस्पतिरिद्रः, at पश्छतीत्येत म्यं avery ‘a’ वषितः, aut प्राखाङत्या उष्टं कर्ुरादित्यय चा “पवख' Gua ; याभेतावन्तरितो समतौ anergy व्याप्रुवानौ निषिच्यमा- गरव ताभ्यां पवख ्रपि वं प्रागण्यभिषवात्‌ 'गभस्िपूतः' एव रथ्िपृतः। किञ्च ; देवः" लं दामादिगुणयुक्षः | देवाना मेव रानादि- aeantat पविच्र मसि पावयितासि। किं सर्वेषा मेव? नेद्यु- च्यते,- यषां भगोऽसिये ता मभिषवादिक्रियया भजन्ति खविग्‌-यजमानाः ; ते qa देवलेनाभिप्रेताः पावनसम्बन्धात्‌; होतरषां देवानां पाप afe yaaa किञ्चित्‌

“पवमान म्या ° घन्वसि'” ° एतं मन्त' area | efantrasarnfafuae: wada fat: “9 च्राशवः”- इ्येतस्याष्टाचलारिं शद चस्य क्षस्य चत्वारि ता wet cue दृष्टाः; aver चतुल्तिंशन्तमौ { रे "पवमामः पूथमान | सेम | ‘maf ‘ugar पविमयेन, atin पवित्रेण yaar, लम्‌ "मदि" ‘ad’ उदकम्‌, उद्कलेमाभिषम्पन्नः, area सुपगतः,

> qe aye Yoo, ६। |

+ “ant प्रा्ाङतिः सम्यनादित्य मृपतिहते ।'- एति we रव ०९ wie!

{ we de ०,९, US, ४.- 6,0, १, १४ we

§ we de ९, ६., tae!

|| पव॑मान ager वि wrefy air a fear waufa Tae | मम॑दिपृतो afacfefu: Bar ay बालाय wate ॥*?--दति |

निश्कम्‌। [ पुवेषदट्कम्‌;

निष्छजोषः, खच्छा त्वा तता द्रौएकलश्ं प्रति ‘fa धावसिः। कोदृशः पुनः WH ल्वा एतां Tae ae त्वम्‌? इति, उच्यते ;- ys तावद्रण्ठेऽवस्यितः, “गभस्िपूतः' रभ्ििपूतः घन्‌ लतः ATW MAT सामस्ढरण -विक्रय-विधानेन, नृभिः" खविग्यज- मनेः श्रद्रिभिः' यावभिः ‘ga’ श्रमिषुतः तता “मरे "वाजाय' sara "धन्वसि" aqd जगद्धारयितेऽयाय। कथ नाम शत squat मभिनिष्यदयेत, ठष्टिनिमि नेनेव्येत ad vce रष- भाव मापन्न दराणएकलशं प्रति ‘wale’ प्राप्राषौत्यथः? छरा fa’ छय्ये इव पूजनौयः एव मल्ति “गभक्िपुतः"-दव्येत- खात्‌ पावनसम्बन्धाद्र रोमां पविचत्व मु पपद्यते कंिन्‌ “प विन्नवन्तः परि are मासते""- दति, एष निगमे विधौयते

“ara: पविच मुच्यन्ते"? ; ता श्रपि fe पावयनि। “रतपन्निः खया ° -- ° sera” sega fgg) वभिषटस्ाषम्‌। अत- पविनाः' बङपावयिच्यः, याः देव्यः, ‘quar saa सरिता wet ‘aga’ Sy रानादिगुणयक्ताः, देवानां दानादि- गणयुक्षाना मेव “पाथः पानं सेमास्यम्‌, श्रपि यन्तिः श्रि गच्छन्ति ताः, waar श्रापः, “इनद्रस्य मिनन्ति हिंसन्ति तानि aati येनाभ्रवधानन्तर मविलम्बमाना वषभावेन प्रचर- न्तोत्यमिप्रायः। या एताः, एवङ्णयुक्रा श्राप, ताग्वाऽद्यः “faye?

# me Uo ०, ९, ९९, ₹। | + ““छतपविनाः खषया मद॑न्तोदं Meera मपि यन्ति wre) aT CET A मिमन्ति ब्रतानि feapal {a धतव॑व्लदात ॥*-- दूति ४, ४, ९४,

ry. धग श्पा० देर] भगम काणम्‌ | ge

सन्द मानाग्यः ‘eal’ शविः, “घतवत्‌' घुतमिच्रम्‌ “जुरा हे शछलिजः! श्रन्ति ता ₹रविरित्यभिप्रायः॥ एव मचापः ““पविच्र'-शब्देनाच्यन्ते, शअरब्देवतत्वादस्य AAT |

अन्यादयोऽपि ga पविचशभब्देनेच्यन्ते; तेऽपि fe wai एव पावयन्ति “श्रभ्िः पवित मा पनातु, वायुः शामः खय =m: ufaa ते ना पुनन्तु ॥'*- “त्यपि निगमो भवतिः*। निगदप्रसिद्ध एवेष निगमः (2)

“Are —efq *, श्रनवगतम्‌। “तुदः इत्यवगमः | aga: व्ययनार्थस्येति (तु ° उ०) घातुनिर्हश्रः। wafad तेद saad; afg aa भवति दोधेलात्‌ कूप दृव्येके (4)

पर्‌ त्वा दाश्वाग्वोचेऽरिरम्रे तव॑ खिदा। तोदस्येव शरण श्रा महस्य Trae मेवाभिच्चयाम्यरिर- मिक कच्छतेरोश्वराऽप्यरिरेतस्मादेव यदन्यदेवत्या श्रप्रावाहतयो इयन्त इत्येतद्‌ Sys मवश्यत्‌।। तोदस्येव आरण श्रा महस्य | तुदस्थेव शरणेऽधि महतः ara: मुं अच्नः। TAWA Fave: खश्च इत्यपि निंग- मो भवति। शिपिविष्टो विष्णरिति विष्णो नामनी भवतः कुत्सितार्थीयं पूवं भवतीत्योपमन्यवः (9)

“पुर्‌ ला दाश्वान्‌ वंचे --° मरस्य" aaa

श्भा" ALR Te Oe | ‘anaaq”’ क, ख, | { wes २,९, ९९, ६।

es मिसक्तम्‌ | [yauema ,

शराषेम्‌। STR प्रातरनुवाकाश्चिगयोः श्यते “पर ला दाश्वाम्‌ aS रागवान्‌ AE wat Bad! ला मरं ‘Aare’ ला माहया- मौत्यथेः। किं पुनः कारण मन्या रेवता उच्य ला माहथामि ? हति, उच्यते ;- यस्मत्‌ ‘aft: wit! तव खित्‌ आ?-इत्येतद्‌ fared सुचिर मपि विचार्यं ae मरिरेव सामाना मुशारणे। we; tart एव, समर्याऽह माषयामि at सोतुं as दातु भित्यभिप्रायः। किं पुनः कारण मन्या देवता way ला मेवाङ- धामि ? इति, उच्यते--दतः;- यस्मात्‌ ‘Aree इव धरणे श्रा मरश्य' qaaa fatite we frase कुपस्योपरि ae mee: | "मदस्य" मदत cares “शरणे विले “a” हिंसायाम्‌ {रथा पर), तस्य शरणं विखलम्‌, तदिदारितं भवति ; तथाहि शभे faa afeifay ag श्राप गच्छन्ति, ae खमस्य AYA प्दणध्रक्रिपरिदहाणं भवति, एवं तवानेकाञ्चानेकदे वताख्चाङतौ- श्साभिः HSM: प्रतोच्छता सामथ्येपरिहाण मस्ति, श्रता देवताना aaa त्व मेवातिविशिष्टोपकारे wen, aa: at मेवाहयामि॥ एव मज शब्द सारूप्यादुपमा्यापपन्तेखच “ताद ”-चब्दस्य श-प्रदेश्- स्याभिधायकलमिल्युपपद्यते। तथा चक्रम्‌, “arena निरेत्याद् अतुदंश निखन्यात्‌“- इति * सदसे निश्माे

frat श्रपि श्रसत्‌-प्रदेश्ः† ताद cared | तक्पारेतदपि gaw ख-प्ररे्रस्छाभिधायक faa

* “योऽद्धा मिति निवपति ware हुखदिनम्‌”- र्ति का०५,९, ९८। Soman मे वासदित्यस्माकम्‌ ; “शप्रजापतेमखमेलम्‌ु हिलोयम्‌ (मण तरार १० एम °,” - इत्यादि वृतेः |

४० रपा० Awe] नैगमं काण्डम्‌ | ४९

“aft, श्रमिचम्‌; च्छते" इति निगमप्रसक्रम्‌। wera: हिंखाथेस्य (गढ °प०)। “Katia: एतस्मादेव” धानाः wa रेवत्या श्रद्मावाङतयो Kawa, यस्मादन्यदेवताश्च श्रन्यदेवताश्चा- परिश्ष्यया श्रग्रावा्तयो Baa; WRG ग्डणश्क्रिपरि- eu मस्ति; नच नायते wa fae ca निषिक्रा ara: कापि गच्छन्ति, ता भ्राङतय इत्येतत्‌ सामान्यं Tea मवेख्कन्तदूक्‌;- तिदस्येव शरण wt मस्छ'?- दति; ““तुदस्येव शरणेऽधि मतः? -द्त्यथः॥

"'सखञ्चाः(२५)१-- दति *, saan “सु -्रञ्चनः"--इत्यव- गमः “सं भानुना ०--° मेता” †। श्रतरेराषंम्‌। Sat चिद्टुप्‌। यस्य यजमानस्य नित्यपापयुक्रवात्‌ तेषु तेषु aig वसितः afi: श्रा TET WEAR: अभिह्यमानेा वा, “UTS.” Farag: eu ओभनगमनः, खेन प्रकाशेन ‘AMA’ सता BAg "घय aa’ सङ्गच्छते, संस्यद्धंते वा; waa ्रतिरौप्नलात्‌। तस्य यजमानस्य किम्‌? इति, उच्यते ;-'तस्मे' एव ‘wa’ Saat, WTA, “उषसः, ‘gear विभान्तोत्यथेः | waa afasaararsfz: नित्यकाल मेव aalu संयतते, तस्यैव WERT: सुप्रभाता रात्रयो भवस्ति,- नेतरस्य यञ्घनः waft) श्रपि एवम्‌ श्राह श्रयञ्वापि weifadiat दरिद्रः कञ्चित्‌ ‘exe’ इश््राथे ‘ga-

* gute ४११६० urge | “सं भूानुमी यतत खय ाजकने aig: WUE | ता WaT उषो SEI दम्य सृनवमेत्याइ ॥१?-- दूति we dou t= hl 7

we निलक्षम्‌ | [पवबटकम्‌

वामः श्रमिषुणमः समम्‌ (ति, carla कष्याएाभिव्याहारिणः सुप्रभाता एधाषसः,-कि सुत यः सुनेतोद्यभिप्रायः॥ एव मिन्‌ “gay संयतते”-- इत्यनेन सम्बन्धात्‌ “खाः = an” अञ्चतेः (भ ° °) nae दमा दित्युपपद्यते

“शिपिविष्टः, विष्णः “दति”, एते “विष्णोः” एव “इ नामनौ भवतः, ay ““ग्िपिविष्टः(९)'- दति *, एतद्‌ गृणपद्‌ मनवगतम्‌; परेण चानेकार्थेम्‌ शिपिविष्टः, aa <q fadfea दृत्यर्यप्रतोतिः। अस्य सम्बन्धादब ““ विष्णा(र८०-ग्ष्द्‌ः। समानरातः। यया “रकाः waa सम्बन्धात्‌ “Qa’-we: “सामो श्रचा"-दति। नहा Tura विष्णा-्रब्दः खमाश्ातः, देवतापद्तवात्‌ १। अ्रनयादयो- रपि माकाः चत्‌ “qa”, तत्‌ “ofearttd भवति" ^दति" (“चापमन््रवः'? Rea मन्यते यथा कुख्ितार्थोयं तथोदा- रणाय मेव fadaq दभेयिव्यति॥ २८७)

fa मित्ते विष्णो परिचष्य भत्‌ प्र यद्वघ्षे शिपि- विष्टो अस्मि। मा aul away गह रतद्यदन्यरूपः समिथे बभूथ y किं ते विष्योऽप्रस्यात मेतद्भवत्यप्रस्या- Gilt यक्नः प्रत्रप्रे शेप इव निर्वेष्टिताऽसमीत्यप्रतिपन्न-

Yee Tr.

* धमा ४१९९० रषषर

र्भा ४९६९ ve Cede)

{ र्भा ४.९ ४० जयन र्व (RQ)

§ बष्छति षर Zo wie ¢, 2, © | इल CUtiqgy खच्च |

eGo रपा श्र) नेगम काखम्‌ | ५९

रश्मिरपि वा प्रश॑सानामेवाभिपितं स्यात्‌ किं से विष्णा प्रस्यात मेतद्भ वति प्रापनीयं यदुत प्रब्रूषे शिपिविष्टो- ऽस्मौति प्रतिपन्नरभ्मिः शिपयेऽच tata उच्यन्ते तैगा- विष्टो भृवति। मा वपी ्रखदपं गृह एतत्‌ | वपं इति रूपनाम दशतीति सते यदनम्यरूपः समिथे सङ्गमे भ- वति संयतरश्मिस्तस्यो्रा भूयसे faders ig (८)

“fa मित्‌ a”, “aad श्रथ--एति ° वसिष्ठदधैते श्राव | विष्णा शिपिविष्टसखावारम्भरण्णोये चरः, तदेते याज्यानुवाक्ये ; वाजपेये चै सप्तदभरे wa शस्यते; सामातिरेकशस्ते तोयसवने कि ङ्प लम्‌ ? इति ष्टः चिपिव्ष्टोऽस्न्युक्े श्रमन्तर प्रक्रियते; “कि भित्‌ विष्णोः"-दटति †। कि मेतदेवैकं विगतरसश्िखटपं "परिशच्छः परिष्याख्यापनोयं भवति, नान्यानि ङ्ूपाणि तर सन्ति, aaa “प्र ववक्षे पुनःपन््र॑षे। see मग्तः “falafae: रसि" दति “aq दव fafearsenfa”; “श्प्रतिपन्नरश्िः' fe ga उदय- काले निव्टितिः शेप-खरूपेा भवति, तस्य तद्रपगणयो गित मकुलत्छिताय मिल्युपपद्यते “श्रपि वा” “श्रश्ंसानामेवासिप्रेतं स्यात्‌" प्रशसायक्रगण मवतन्नाम स्यात्‌ “श्पिविष्टः"-दति। sare; कथम्‌ ? इति, उच्यत ;- “fue”, “wa” असन्‌ mia “रयः उच्यन्ते, वं सूर्या सुहनत्ततः "तेः" भिपिसजद्नैः arq-

we seu, २६, ९;६। ऋण Boul ९, ९६, ९।

५२ नि्बक्तम्‌ | [पूबेषटकम्‌ ,

रश्मिभिः राविष्ट", तस्मात्‌ ""गिपिविष्टः"-दत्गुश्यते* एव मेतद्‌ ्यत्पाद्चमामं प्रसामामेव भवति ; नाद्चलपमासम्बद्ध मित्यभि- प्रायः। ₹ह "विष्णो !› कि मेतरेवैकं ed तव "परिवच्छं' ““प्रश्याप- गोयम्‌ श्रस्ति, यदेतडुदयकासे प्रतिपन्नमाचेवु रश्िवु नान्यानि रूपाणि परस्या पनोयानि खन्ति। “aga” एवं “र्वे -भिपिविषटो- रसनो ति प्रतिपन्नरश्िः"” प्रतिपश्नमानेषु रश्सिष्िति। विजानौमस्त- वतद्रपदयम्‌ | श्रता ब्रमः;ः-"मा वणा श्रस्मदपगद् एतत्‌, (माः एतद्‌ ‘ad: रूपम्‌ “शरस्मत्‌' श्रस्माक मतः प्रख्यापय किं तरि? ‘aq गृह एतत्‌' ded लुरव्धेतद्‌ “शिपिविष्ट -अन्दवाच्य quae पम्‌; श्रथ वा वालरफिसंयुक्रम्‌। किं afer “agen” येनान्येन रूपेण ‘afaa’ Cama”? ‘ary’ “aafa’'t “संयत- रश्मिः” सम्बद्धानेकरशिजाणः, तदेव a माध्यन्दिनं खूप मनेक- रश्सिविकचं प्रकाश्यसखेत्यभिप्रायः। तद्यानाष्टष्टं asray भवति “ag” एवाथस्य waa यथा प्रश्॑सानामैतदिति, “saw” wre एव प्ररताया we: “waa निर्वचनाय” ; wa हि खशन्दे नेवाश्च प्रशंसानामल मुच्यते ३८८) ii

प्र तत्ते अद्य शिपिविष्ट नामायः सामि वयनानि विद्वान्‌ तन्वा खणामि तवस्‌ मतब्यान्‌ Wa मस्य

= कन dou, ©, २४,० WANA सार भा. रवमेव। “परा we fae खरूपं परित्यब् छनिमं erent धारयन्‌ EET बसि- BH साद्य खकार | आानह्गृषिरमया प्रत्याचष्टे ।- दूति War रव चा बाख्ा- TH स।यषः |

५१० रधा awe] नेगमं कार्डम्‌ | ४५३

रजसः पराकं तन्ते sa* शिपिविष्ट नामार्यः प्रशंसा- म्याऽह AMAT MAA AAW मसीति वा तन्वा wifa तवस मतव्यांस्तवस इति महता नामधेय मुदिता भवति निवसन्त मस्य रजसः पराके पराक्रान्त श्राषटणिरागतहणिः। sree सं संचावद्ध ्ागतदणे संसेवावह | एथुजयाः Vass: | पूथज्या अमिना- दायदस्येाः प्रामापयद्‌ायुदंस्थाः (€)

प्र तत्‌ ते श्रद्य"--दति †। शिपिविष्ट! विष्णो ! "तत्‌" "ते तव ‘ata’ ‘nerf’ तत्मरशसार्योय aa पश्यामि; यदन्ये कुर्छिता- ate पण्छन्ति। "वयुनानि" युश्मदिषयाणि meni “विदान्‌ नानानमः। किञ्च ; “walise मस्मि” यसमादोश्वरः qtr gala, य्नट्गणाभिश्चः, AY waa) waa” “sie मसि" श्रयं tat, मदनुग्रहाय समथेः, तस्मात्‌ Wietfa तत्ते मामेति विस्ुटतर प्रशंसानामल मिति। यस्तं सव्वेगुणसम्यन्न ईरः, ‘a ar त्वा मं श्टणामि' सतोमि। "तवसं" महान्तम्‌ शश्रतव्यान्‌' श्रमहानदम्‌; आत्मनिन्द्या Yad | वन्नमानं निवसन्तम्‌ ? “शरस रजसः" श्रन्तरिकलाकस्य "पराके" पराक्रान्ते स्याने, दूराद्‌ दूरतरे fran स्तौमि “श्राघुिः(९< दति 1, श्रनवगतम्‌ ^श्रागत-इणिः"- दत्य Fete. emia ety ie ASL mn a

° ad बस"? एति क, ख, अण्सं ४, ९, wu { र्भा ४९२ ९० ade,

us निरताम्‌ | [garam ,

ana: श्रागतदोिरागतक्राधो वाभिधेयः “ufe at Fagan e - °नेा भव ° भरद्वाजस्य माषंम। गायची पौष्णे ge | एदि" श्रागच्छं हे "विमुचः" विमेचयितः! प्रजानाम्‌ तमेभ्यः, TI! aa ! गपत्‌" नप्तः ! watsfasraa, श्रप्रेरादित्यः-दत्यनया- पेया ATS BA! श्रथ वा मनुब्याएा मेव AAT स्यात्‌ ; TH afamar aaa जायतेऽभ्भिः, saa gat जायते ; यदुकर मन्युपस्थानेः-- “एव प्रातः मरसुवति?- दति ty “aga? श्रागत- Zia! “खं चावे “.ंसेवावहे"। “वाम्‌ wat qa! qa wae’ रहयिता, गमयिता, प्रोत्छपयिता लं ane ‘a’ Car | लङ्दयप्रतौश्च एवाहं यज्ञपरारषा naa) यत्‌ तल मुदि, ल्थयुदिते प्रोक्छपता मयं ay इत्यभिप्रायः एव मय मन खयै- सम्बन्धात्‌ “श्राचुरि"-ष्दो दौतिवाचकः। दौश्ति-कश्चसु पटित एवायं “ee, इणिः(^“- दति {। क्राधोऽपि इणिरित्युष्यते, Ba, ee, इणिः(₹१--¶ति 2; तदपि प्रकरणवश्षादुप- चितव्यम्‌॥ | "यच्याः(५.*- इति ll, श्रनवगतम्‌। “ए युजवः'"- इत्यवगमः |

* fg at रिं मचा मपादाघु सं संचावदे | Celera at भव ५५- एति सं* ४, Rt, ६।

+ खध्रि मादित्यः सायं प्रविग्रति, तादपि trad cen | ow Fe Fara} erga, owe wifey मध्रिरमु समारोहति, यद्ाडूम earth ear दने ५” - इनि तित्तिरिज्ितिः (वग ate सं २,९ Fe) | J र्भार १४८४० १अ० ९० Ge (€), (६०) डौप्यन्याम्‌।

ध्भा ९९९४० रेखन १२८० (a), (९), (२ डोष्पन्याम्‌। || र्भा. ४९९४० = Yo |

५० २पा० Uwe] नेगम काण्डम्‌ | ५५

|

“यन्‌ किः एतासु ° - ° दायुदेसाः”* | विश्वामिनरेय मार्षम्‌। चिष्टुप्‌। शन GR are दशरात्रस्य दितौयेऽहमि मरवतौये wa weal ‘da नकिः" मिक कञ्चिदपि "एतनासु' सङ्खगमेषु 'खराजम्‌' श्रपरापौनराज्यं ‘fear दिविधेनापि बलेन सांयौगिकेन श्नोरसेन च, "तरति, जयति; स्वया यो जेतुं शक्यत इत्यर्थः|

1; = ee श्रथवा ; “दिता aca’ दिधेकधा वा, बडधा वा aaa ‘gaara’ ‘daa fav da कञ्चित्‌ इन्तु शक्रोति ‘aa मनुव्यतमं ‘eftet’

a} 6 9 bon} 6

VIE स्यातारम्‌। “दनतमः' खरतमख यः स्वभ्य दे खरेभ्यः, "सत्वभिः ae Bay warden: शस्यश्चर थपद्‌ातिलकपैः atari: बलेः, qty बलविगरेवेरेव। श्रय वा ; खलग्रम्द विशेषण मेव “a अन्दः स्यात्‌,- saga: we: बलेरिति ‘sagan विौणंजवः “श्रभिनान्‌ श्रायुः'। कस ? ‘gar’ मेघस्य, weTG; मड रोमि। इदं नाम करोवित्यभिप्रायः॥ एव म्र शब्दसारष्यात्‌ वधाधि- कारा “PITT: = युजवः”--दल्युपपश्यते ॥४ (९ )॥

afi नरो दीधितिभिररण्योरहं स्तश्युती जनयन्त प्रश- स्तम्‌। दरं गृहपति wayyy दोधितयोऽङुलयो भवन्ति धीयन्ते करम॑स्वरणी प्रत्यत रने WAT समरणा- श्नायत इति वा इस्तच्युतो CANA जनयन्त प्रशस्तं दूरे दर्भनं शदपति मतनवन्तम्‌ (१०)

* न्वयं नकिः amy स्वराज" fem acta कतमं इरिष्ठाम्‌। tama: wafaa षेः Tea wfamreregen: +? दूति we Pe ९, ९, १६३,९।

ud मियक्तम्‌ | [पूवेषट्कम्‌;

“श्रयण म्‌(९९) दति ^, श्रनवगतम्‌। ““श्रतनवन्तम्‌-इत्थव- गमः॥ “afd नरो०- मयग्येम्‌” वसिष्टद्धाषेम्‌। विराट्‌ चिष्टप्‌ मात्रत Wea क्रे प्रयमेवेयम्‌ { are दभ्रा चस चतुर्येऽदनि श्राग्िमारूते wa जातवेदस्ये GR प्रथमैव १। ‘aq’ avant: ‹दरोधितिभिः श्रलिभिः ara परिणद्य, उन्तराणि ‘SETA CENT ₹दस्ताभ्यां प्रच्यावयन्तः “UTE” सकाशा afd जनयन्त" ‘ane? प्ररस्य faa “दूरेदृशं दूरे दनम्‌ “ग्टहपतिम्‌', “श्रथर्यम्‌ ^श्रतनवन्तम्‌'” गमनवन्त मित्यथेः एव मज maa: TEMA (ग्ड ° ° ) सारूप्यादन्यधिकाराखापि “श्रयः” श्रतनवानित्युपपद्यते “दौधितयोऽङ्गखयो भवन्ति”; ता दि “धौ- यन्ते" “aug” अ्रनुष्टोयम्नानेषु “aay? “त्युत” प्रतिगतः | qa”, “nig.” वा स्यात्‌ “समरणान्नायते-हति वा” ; STE: fe ‘aac’ खमागमनादग्रिजायते ५८९ °)

रकया प्रतिधा पिब्त्साकं सरांसि चिंशत॑म्‌ इन्दर सम॑स्य काणुका रकेन प्रतिधानेनापिबत्साकं संहे- त्यथः इन्द्रः सम॑स्य काणका कान्तकानीति वा करान्तकानीति (वा HARA ||) Vs समस्य कान्त afa वा कणे घात इति वा कणे इतः कान्तिहत-

* श्भा. ure we ९९पं०।

We Sou, ९, २९, ९।

t ““खाश्धप्रखगे विश्वजितः? - दति to खा०४,६। “efyax एत्याप्रिमादतमः-- दति खा० &, & | || बन्भनोचिङाकामेत Gay इश्यते च-परूके |

UUs पार ge] नैगमं काणम्‌ | ४७

स्तचेतद्ाच्धिक्ना Aeon चिं शद्क्यपाचाणि माध्यन्दिनि सवन रकदेवतानि तान्येतस्िन्‌ काल रकेन प्रतिधा- नेन पिवन्ति तान्यत्र सरांस्युच्यन्ते चिंशदपरपष्स्याशा- Tat स्विंश््युवेपक्षस्येति नेरक्तास्तद्या रुताश्चान्द्रमस्य श्रागामिन्य ATI भवन्ति रश्मयस्ता च्रपरपक्ष पिबन्ति तथापिं निगमो भर्वति i मसिति * मधितयः पिब- न्तीति। तं पूर्वपक्ष श्राप्याययन्ति तथापि निगमो भवति | यथा देवा WY माप्याययन्तीति & 1

“काणका(*९)०--टति {, श्रनवगतम्‌, श्रनकाथं “कान्त कानोति वा, क्रान्तकानौनि वा, छनकानोति वा", इत्येवमाद्याः WEZAATYA; | “एकया प्रति ०-° काणका' 21 क।एवस्य कुरूसुतेरिय माषम्‌। गायत्रो श्रौ "एकया प्रतिधा? एकेन प्रतिधानेन, सश- mfafedaa चेतसा "पिबत्‌! पिबतौश्धः ‘ara? सहेत्यथेः। कानि पुमः पिबति ? सरांषिः। कियन्ति ? श्रितम्‌ कस्य पुणानि पिबति ? "समस्य किद्गुणयुक्रानि ? "काणका' “कान्तकानि', प्रिया णौत्ययेः। श्रथ “a” सोमस्य “mans”, रखिलं सरांसि साम्य पणा- Aare चरथ “वा” “anata” daa, what इन्द्रार्थं मेव श्रय “ar” “oR.” यस्मात्‌ “Bae arn” aAarafa-

ee RR ee a ee ee ee = me ee 8 ee ee

© न्य qefa” - र्ति qa) efregaa. | ५९ ४० ९९ te ब्रटयम्‌। t माचेकाद्शणठसमाभिः रू-च-पकयोः। { ध्भा० ४९६ ६९१० | § we de Cu, २९, ४। 8

qx fauma [yaueme_,

धत्‌। अन्ययेन्द्र विशेषणं मेव स्यान्न atifaigoqi we, aya? इति, उच्यते, -“श्राघातःइति a” श्रा कणे घातं पिवतौति यावत्‌, कणे इन्यत त्ययः ; “कणे इतः" “कान्तत” -दृत्यर्थं कामः, पाथना, कणे, टतिसमानाथाः* ; कामे याऽभितः, ` कणे ea,” इत्युच्यते, इतेपानाभिलाष हृत्यथः। एव मेतत्‌ काण्केति at विशेषण faxfatqu वा? पानविगेषणं वा? स्वव॑षा afarma प्रष्टतत्वात्‌ एवं ye विकस्प्यमानस्यानेकाथेता पि दर्भित्रैव wafer i

यदेतरक्र मसिन्यन्त्े ".सरांमि fanaa’—cfa, श्रम्याभिघय- विषयप्रस्या पनप्रसक्र faz qua ;- “तजेतद्याञ्चिका वेदयन्ते तजै- तस्मिन्‌ चिशच्छब्दे एतदभिधेय मयेवम्त॒ याञ्िकाः वेदयन्ते" कथय- यन्ति “चिं्रदुक्यपाज्ाणि म।ध्यन्दिने सवन एकदेवनाजि”-इति ; ` तच हि मध्यन्दिने सवने उक्यपय्यायाः चयाऽप्येद्रा एव भवन्ति, चिष्वपि चेतेषु दशं चमसाः, तदभिप्रायेण त्िंभत्‌-स तंसोत्यकं मन्त- Tai agers “सरकाः” श्रभिप्रेताः १। सोधु-षरका cate कस्य चित्‌ त्तेचजियस्य यानि तान्यक्थसम्बद्धानि से(मपाबाफि “gaa” प्रतिधानेन “पिबन्ति” Dew, “तान्य सरास्युच्यन्ते”-

* ““कनति"*- दत्य कान्तिकर्मेसु पाठात्‌ १भा०१८८ Te RET |

“Cantey बा cag asa नब sate रद्य नवभिवेहिष्यवभाने we! , wa स्तोमे दशम ग्रहति i’ इति रज wre १, ९।

{ खमा प्रर दति पय्धायवचमम्‌ ^ यदु fad पदब्धग्टङत, तदु ayret चर्त्वम्‌ 2 -- दति eo we ९, €।

सरकः = ATA TT तथा डि“ वरक(प्यततबेदम्‌?'-- एति qe को ९, ९०, ४२ Sty, रच्छ ।दिजन्यो wafeae: (Vinegar) wer fe fea Gy माइ, ^तरेयः Wace: सोधुरपकमधुगक्रवः। hw veces Ty: सन्छ aurea: दति ) “aa ग्द्वरखरसादिभिः?ः--दतिश्वाग् fac q-e We |

UUs पा (we) ANA MURA | ५९

wae याञ्निकामा मभिप्रायः। “जिंशदपरपचस्याहाराजाः, निंशन्‌- gare tem.” “तत्‌” तत्रैवं सति “याः एताः'” “चाद

a” exafe भवाः wea, “श्रागामिन्यः प्रतिपद्‌ दितौयाध्ासु तिचिष्वागच्छन्तोति। किं तासाम्‌ ? दति, cera; -““रश्षयस्ता gaya fafa’) यथा aad “तथापि aaa “fara” ;-- "य afafa afara: faafa’—cfa wae मपरपल्ञे पीला ते gene: “cage” प्राप्रे ya: “श्राप्याययन्ति” शरा-पूरयन्ति यथा चेतरेवं “तथापि” aaa “निगमः? ; - “वया दषा Bye माप्याययन्ति"-दति

"यया देवा BIS माप्याययन्ति, afafa मक्तितथः पिषन्ति। तेन द्ृनद्रो वरणो हृहस्पतिरष्याययन्त yare गोपाः ॥- दति राजयञ्च-ग्टदो तस्स वेश्वदेवश्चररनं रूप्यते, ay प्राक्‌ सिष्टशतो sia याज्याङतिह्धयते। "यथाः येन प्रकारेण, दवाः" सुयैरश्जयः ‘sae समम्‌ “श्राप्याययन्तिः yaad एव मनेन प्रकारेण हे amar! लाम्‌ ‘wx’, ‘aqu’, ‘ewafa’ एते भुवनस्य" तजातस्य गोपाः" गोप्तारः शश्राप्याययन्तु' ्रायुष। धनेन | faq; “यथाः येन प्रकारेण श्रक्ितिम्‌' valu समम्‌, “अर्ति aq’ gaa "पिबन्ति, तथा लवा मपि इविदातारं सन्तं पिबन्त, उपजौवन्तु एते देवाः ति। aang “a मक्ततिम्‌'-दति पाठः, तेषां मक्तति मकितयः पिबन्तिख त्वा मापाययन्ति- त्येवं ओोज्यम्‌ *

-

रिणी णो णिग

° यन्या" Fe पश्चमध्यायौयसप्तमकण्िका, TEIG AVN HA RCM |

qe निरक्नम्‌ | [ पुवषटकम्‌ ,

श्राह ;-““एकया प्रतिधापिबत्‌"- शृत्येतसिग्धन्त * “aa रासि find farg:” पिबतोत्युक्तम्‌। नेरक्रपचेणाक्रम्‌,- “तङ्‌ या एताश्चाद्रमस्य श्रागामिन्य श्राप भवन्ति रश्मयः, ता waa पिबन्तिःः-एति ; तदेतद्रभिषु wey, चन्द्रमसि पौयमाने, सवै मेवेद मसम्बद्धं भवति ?-इति, “एकया प्रतिधापिबत्‌"-इत्ये- तष्य मग्त्येन्रलात्‌। cafe ““श्रक्तिति मक्तिनयः पिषन्ति*--दति cheat पाग-सम्नन्धादादिश्य उच्यते; श्रादिव्याऽपि fe wx-mwe- Aiea va -“अरघावादिल्य शद्रः"--एति famad 1 तदवयव- warg रयः, श्रादित्येन Te समासव्यासस्तुतिभाजः1 awe: खश्वपि उदके एव ard; “पयः(९०), ge), मेषजम्‌(२९)- दृत्युदकनामसु पठितम्‌ [ aad सति यानि तान्युदकानि शरांस पञ्चदभ्रादः-सम्भतानि साक मवस्यितानि भवन्ति चद््रमधि, तानि aa: = इन्द्रो रभ्षिभिरपरपक्ते पिबतोति। एव मेतत्‌ aa मुपपद्यते एष Fangs ti

छअधिगर्मन्त्लो भवति गव्यधिरृतत्वादपि वा प्रण- सन मेवाभिपितं $ VASAT शमीध्वं सुशमि शमीध्वं शमोध्व मभिगवित्यभ्रिरप्यभिगुरुच्यते। तुभ्य चओतन्न्यभिगो wate: अधृतगमनकमवननिन्द्रो-

# पु ud ge tu १०।

+ “aret भक्िखा इचय्य यास्यामः" - इत्यादि | पण्देग्का० ०,९, १--४। { aT? ९९ Te LHe ६९ Te (Re) गोप्पन्याम्‌, (१८), (ee) |

§ “Csuarrrmafaia” + cf क, ख, ज।

awe एपा० अख °] aaa काकम्‌ | ६९

ऽप्यभिगरुच्यते अभिगव ओह मिन्द्रायेन्यपि निंगमो भवति | श्राङ्गष,+ स्ताम आआघोषः। रनाङ्गषेणं वय farsa | aaa स्तोमेन वय मिन्द्रवन्तः॥ ७८१९)

“श्रतिगः(*९)०,-- दृति t, अ्रनवगतम्‌, अनेकाथेञ्च। “श्रनिशुमेन्ता भवति” are, किं कारणम्‌? उच्यते ;- “गवि श्रधिशृतलात्‌ सोय मधिग्ः सन्‌ श्रभिगरित्यथेः। गवि योऽधिकृतो wer श्रतिगुः। “ata वाः" गोरनित्यलात्‌ “aura मेव” एतत्‌ “श्रमि- aa” स्यात्‌ afar कश्चिदसि देव्यः रमिता, तस्यैतत्‌ प्रशासनं स्यात्‌, सम्प्रेषण faa!) कि कारणम्‌ ? ““तच्छब्दवत्वात्‌" | तथा ह्यस्य मन्त्रस्य श्रपनिग ्रन्दवत्वं यदेतदक्र समुपपद्यते | तदनेनैव मिगमेन “nfant शमोष्वम्‌''- दति 3 ‘afuat ay एव यूयं शमो- wa “ग्रमयष्वम्‌'” एनं प्ररु मिति “Zar: शमितार श्रारभष्वम्‌ ०°मेदम्तोके तमये ° श्रतरिगो शमोष्वम्‌ः'- दति | प्रषः हे

°श्राग्रासाना मेधपतिभ्यां मेधम्‌" रवितारवच्छमित।रः°

® “भवत्याष्ुष'- रति क, ख|

+ श्भा ४९४ ए० Te |

“अधि देवानां रेताऽऽसौत्‌, खरमं we ws, We A Ol aT fanifa? —xfa te wre ९, t, 01

§ Te We ₹२, 8,2!

|| “ean शसितार qrteeg मत समुष्याः * * * उपनयत मेध्या दुर चखाश्ा- खाना मेधपतिभ्यां मेधम्‌ * ° * प्रास्मा aie भरत» * * सुणोत बहिः ४५१ न्वेनं माता मन्यता मन पतान भाता सगभ्यऽमसशा सयथ्यः** ° xterm मस्य पटे fata श्य चसममयतादु बतं sy मन्ववदटजतादकरिच्च ag feu: ओं एथिकौ' adie * * * cay वच माख्छातात्‌ परा ART अपि-

| fawn! [पूववद्‌ कम्‌ ,

देव्याः! शमितारः! श्रपि हे (मनुष्याः! Sarg “उपनयत एनं GA एताः मेध्याः" * (दुरः” धन्नग्टददार इत्ययः। शश्राशासानाः प्राथैयमानाः, ‘Aaa’ t ana भमरो- Manat मेधम्‌ एनं at श्मयितुम्‌। fag; प्र॒ wet afd WUT WATTS पशवे सञ्ज्ञप्यमानाय GT सुष्मुकम्‌, पुरलाद्धार- यतेत्यथेः{ कश्च; कणत विः, शरस पशवे खञ्न्न्यमानाय, उपाकरण मेनं दभ मपास्यतेत्यथः ?। किञ्च ; ‘waa माता मन्यसाम्‌' एनं शज्न्नप्यमानं माता श्रनुमन्यताम्‌। wa’ मन्यतां “पिताः श्नाना and: शश्रन्‌'मन्य्तां सदगर्भौयः, सहेादर ray “raat? सेनं सखा ay? सदट्‌यचारौ; त्रन्‌" मन्यता सेन Alar: मञ्न्रपयते- व्यभिप्रायः। किञ्च; “उदौोचोनाम्‌ we पदा fauna’ seq पाद मेनं षञ्ज्ञपयतेत्यैः। किच; gina मख चलः, ततः ययम्‌

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war वपा aqfecmentdare वारयध्वात्‌ * * * aa aq a: BUA IMI BB सला TIT क्पेवांषाच्छिद्रेश्रोणौ कवबान्खेकपणं।ठौोवन्ता बद्ध तिरस््र AMIS खन्ोच्यावयतादु as गाज मध्मानूनं छृएतात्‌ #** ऊब. watt wifes खनतात्‌ * **।९॥ खद। रचः denny * afag मद मा राविष्टोरूकं मन्यमाना मेदस्लोके तनये रधितारबद्छमितारः ** * भिगो water Bula शमोष्वं शमोष्व मभिमो * © 1 © 1? -दूतिरण्त्रा ९, UI

* “Cane aw? दति द° aTe २, ९,

“यजमाने मेधपतिः, * * * यजमान मेव तत्‌ खेन मेघेन सृमदडयति ; wet रवाः यस्यं वाव कस्म देवताय पश्णरारभ्यते संव मेषपतिर्ति यदेक- Ran पशः स्यात्‌ “मेधपतये"- इति त्रूयादू यदि दिदबत्यो षपतिभ्याम्‌- इति, यदि esta `मेधपतिभ्वः"-- दति; तदे स्थितम्‌›- इति To wre ९,९,९।

प्रेयो बव et प्रश्नं fe साऽनप्रा्वतेति तक्तादस्प्निं प्रकाङ- दन्ति दति te wre ९,९,९।

§ Canara बे पृ्ः,प जेव तत्‌ उवेतानं करति, Thee Aree, CI

५ष्ध° रपा owe] भेगमं कागदम्‌ | a

wa "गमयतात्‌'। ‘ara’ श्रन्‌ प्राणम्‌, “श्रवश्जतात्‌! | IG’ धरोर विधारकं प्राणम्‌ ‘saftey श्रन्ववख्जत। ‘fem’ शश्रोचम्‌' श्रन्ववशटजत fags “उपाकरणेन' दर्भेण ‘aw साकम्‌ ‘WHYTE वचम्‌! शश्राच्छयतात्‌' श्राच्छातेत्यथेः। ततोऽनन्तर मेव ‘aT’ "नाभ्या श्रपि शसः" TATRA प्रशस्तात्‌ प्रदे शाद्‌ वपाम्‌ “उतखि- दतात्‌ उदरत। किञ्च; श्रन्तरेव' श्रभ्यन्तरत एव, ‘SATU’ Te WYATT "वारयष्वात्‌!। "शेन मस्य, wWarafa wars वा पाकेन "वत्तः, उरः “कुरुत! प्रशा ate’, “शला दोषणौो--दति बाह्नो- रेवेतदभिधानम्‌ श्रवयवश्ः ; च्च बाज्ज-शब्दः प्राये्णासयोः वर्तते, श्रा ्रारत्निसन्धानो बाह प्रस्तो कुरुत | खधित्यारतो,--दत्येकः। WAM: WN Ha ana तौ ्रलादोाषणौ ZAGAT प्रशस्तो कुरत warnraat faarat कुरतेत्येके। “aa-we- कश्यपा-कवषा-सेकपरष्वाङृति विश्ेषवचन सिद्ध साधनं स्यात्‌" एति fe नैयायिकाः पठन्ति। "कश्यपेर्वाखा' कश्यपाविव sat कुरत | किञ्च ; "अच्छिद्रे stay श्रविकले कुरुत “कवषोष्ट' aad गति- समयं gaa; कवतिगत्यथैः, “wad, कवते, गवते" दति गति- aire: fafa उर्‌ afar एव कुरुतेत्यथैः “खेक- gor करवौरपत्राणौव “sla श्रस्िसंयुक्रा कुरुत “वद्ंगरति- wa वक्रय: †, ता अनृष्योच्यावयताद्‌” या एता वङ्क्रयः पथवः {, ता श्रनुष्ठया श्रष्टानक्रियया प्र्यावनसमययेव प्रच्यावयत किच ;

° र्मा २९९२० एष्य १४० (९२९), (RO), (९८)। “afgnfacae वङ्कयःः- र्ति कौषि० mre ६०, ४। { ‘Trae मृरभूतान्यख्ौ बह्धिदन्दव। व्यानि? एति ae यर्वा ०९१.४)।

८४ निशक्तम्‌ | [ पे षटकम्‌)

‘aay’ ‘ae’ Saar’ श्रविकलं ‘away’ geal fre; -ऊवध्यगोडम्‌' ऊवध्यं यः पाथिवो ww, wae deutfa, तम्‌ °, उत्तरश्चालालस्य खनतात्‌) Ra र्तः FAA Beary रर्तासि suet: | किच्च ; "वनिष्ठम्‌' दृष्टा मा fae’ मा ण्दंकरि- ष्याः | उरूकं मन्यमानाः" उल्‌कवन्तं वनिष्टु मन्यमानाः ; उलूका दि भयङ्रलात्‌ Ter जनेः विरायते,--श्रय qe gaa दति तदाश्ङ््या उलूकषारूप्यादनिष्ठोमो राविषत्युच्यते। हे श्रमितारः | "ने दस्तोके तनये रमितारवच्छमिनारः' नैतत्‌ aa Barat रवितारवत्‌, qag dg वः स्यात्‌; श्ररवणभोलं वः पु्र-पौतं भविग्यतौ- व्यभिप्रायः। हे “श्रभिगो “शरमोष्वम्‌' एनं a7 ‘guia शरमोध्वम्‌' यथा wa’ सुश्रमितः खात्तथैनं 'णमोषध्वं' हे “श्रभिगो !› मा प्रमादं रिग्यय i एव मेतस्मिन्‌ fae शमितः श्रभिगोः। प्रशासन भिन्येत- दुपपद्यने, तस सम्बोध्यवादस्िंख ग्रेड ¡ यथासम्भवं प्रशासनानि द्रष्टव्यानि ;—“aret afi भरत-दइन्येवमादोनि 2 11 “afrrafagaa” श्रष्टतगमनेाऽसावित्यभिगुः। “qa खात- ०मेधिर"” li कुशिकपु चस्याषम्‌ बिरार पाशिष्ट-

गद्य @

en a ee ee ~~~ ~ ~~ ~~ ~ मक = ~~ -

* Cahay वाऽ way सियं वा खोषधोनां sfrsr’—xfa te wie &, 0, C1

“अतिगे देवानां शमिता पापो निप्रभिता afaeasaad तं निप्रमोटभ्यख् ुभ्ययद्डति??- दति te त्रा० २,१९,९।

{ भ्रेषः=न्िजां Set कयष तथा दयोतरोयश्रतिः,- “प्रेष मन्छम्‌ तत्‌ भेषा- ut Sera? र्ति द, १, ^तरैवेणिः भ्रैषानम्नोति (यर are १९, ve, इत्यादयख FTA |

§ to wie ९,१,९। पर ९१९० Rede (सप्न्याम्‌)।

“a तन्त्यभिमो गचोवः खाक! wy मदक wag कविशगणं। ay- Al MAA WaT जषध्व Afar ।**- दति we de a, , ey, v1

QW श्पा० ewe] नेगमं कारम्‌ | qu

सोके* ae विनिथक्रा। हे “श्रभिगो' श्रष्टतगमन! ‘wea.’ aga! "तुभ्यं लदथ मेते “स्तोकासः' विन्द वपा atta श्रोतं wif (मेदसः ‘gaa’ यख तवेतदनतेते, त्वं कविध्रः' प्रलरणे प्ररणे कविभिरभिषुतः, “बहता महता “भानुमा' भाषाः शश्रागाः' ्रागच्छ श्रागल्य चेमानि ‘ear ealfe यानि स्ोका- wifa, तवदथे मेव शसरम्ति ‘aaa’ संसेषख हे “मेधिरः away! Tay: एव मज “श्रभिगो-रत्यञ्चिर्कः, ABTA THT मुपपद्यते॥ .

'दृनकराऽयभ्िग इच्यते” तस्यापि a कञ्चिद्‌ गमभधारयितासि “सा इद्‌ --°राततमा” नाषस दय मा्ष॑म्‌। श्रहोन- खक भ्रस्यते aa’ इन्राय श्र हमि" प्रभरामि स्तोमम्‌, श्रयो प्रय दव, श्रन्न faa; यः ata: afd करोति, तं प्रभरामि। ‘aaa’ महते ‘qua’ त्वरमाणाय "माहिनाय महमाय हाजे। किच; ‘ada खकसमाय, स्हतिषखमाय; यावतौ स्दतोरदौयते तावानेवासौ भवति, माहामाग्यात्‌। “त्रभिगवे' श्र्टतगममाय, श्रप्र- तिहतगमनाय, एवं ल्रकणाय ‘gare’, ‘atya’ श्रं प्रापयामि ‘agifa’ wife राततमा दातव्यतमानि यान्यषावेवाहंति, तानौत्यभिप्रायः॥ एव मस्मिन्तभिगन्दे दृनद्र-विगेषणलारिद्राभि- धान मिल्युपपद्यते

° पर खोकानुकयन इद्‌ GHAI Ge ए, ve | THs तवसे तराय प्रथोम Ue लोम" माद्दिनगाय। छयोवम्‌ाय।१

re Se भिन्दुय अर्द रत्त॑मा vw —cfa we सं ६, ४, ९७, ६।

९९ निखक्तम्‌। [ qaazern,,

Sma") —efe *, अनवगतम्‌। “ata” श्रभिषेयः | “grata —afe श्न्दषमाभिः॥ “warpage —ega gh” 1 freq | gaa चितस्य वा AU पतितस्याषम्‌ | Gaga चरोभाद- ष्यवते WaT | Uta अनेन (वयम्‌, “RTE श्राघोवणोयेन -स्लोमेन इन्द्रवन्तः" . इन्र संयक्राः . 'स्छामः वयम्‌। (तत्‌ तता faa ‘ea’ एव श्रनवखण्डिताः सन्तः, सव्यान्‌ waar ‘af’ भवेम | तदेतत्‌ “नः” वै मपि faa? वरुणः 'मामरन्तः प॒मःपुनरमद- यन्तां पृजयन्तु। श्रदितिः पूजयतु ‘fea’ पुजयत्‌। रयिवो" पूजयतु उत ety पूजयलित्येतरेवानुव्तेते एव मच Hay “्ा्गुष-ष््दे मोक, -ऋ्दषारप्यादरयापपततेश्च (९९६) -_ -

आपान्तमन्यस्तपलप्रभमा धुनिः शिमौवान्डरमा arial सामो विश्वान्यतसा वनानि नावागिन्द्रप्रति- मानानि 2a: श्रापातितमन्यस्तप्रप्रहारी (शिप्रप्रदा- री Gana!) सेमे बेन्द्रो वा धनिङ्खुनातेः शिमीति कमनाम्‌ शमयतेवा WHATS SRT यत्सोमस्य पूयमानस्यातिरिच्यते तहजीष मपाल्जितं भवति तेन-

* श्मा० ४९४ ze १९ पण |

+ “cares वय fags ष्याम जन wea ag fad बद्धो मामङन्ता मदिति; चिन्धः ofqat उत ot 0" इति qe de ६,०, २२, 81

{ wamifasrnda aq ews क-ख ग-प्खकेष ` “aqerwo’—xcfr शाथ-सम्पादित M-waaqe:, “waar” —xfa रोथ-सभ्पादित ^ परक पाठ “area चिप्रखारोः-एत्यव हत्नि-पम्मरतः पाठः

अन Rae ye] नेगमं काणम्‌ | qo

Sit सेमेऽयाप्यैनद्रा निगमो भवति* | कजीषी व्योति दयरस्य भागा धानाशेति धाना ae fear भवन्ति फे हिता भवन्तीति वा वयां ते हरीं धाना उप कजीषः! जिघता मित्यपि निगमे भवत्या- दिनाभ्यासेनेपदितेनापधा ated बभस्तिरन्निकमा सामः सवीण्यतसानि वनानि नावागिन्दर प्रतिमानानि दश्नवन्ति यैरेनं प्रतिमिमते नैनं तानि दमनेवन्त्यवागे- वेन $ मप्राप्य विनश्चन्तोतीब््रपरधानेत्येके नैघण्टुकं सामकमेाभयप्रधानेत्यपरः श्ण शु अश्रुत इति वा ATA A xf वा। अरव शा रुधदाः। शअवारधच्छम- शा वारिति॥ (१२)॥ | | इति पञ्चमाध्यायस्य दितीयः पादः ५, श्रापान्तमन्यः(*५);”- इति ॥, श्रनवगतम्‌, परण चानेकार्थम | श्रापातितमन्यः"--दृत्यवगमः। 'श्रापान्मन्यः"?--ट्ति ्रेश्या- fava रणा रिय माषम्‌ freq खग्यस्तव्येकाहे निष्केवच्ये वि- नियुक्रा ्रापादितरोश्धिः, उत्पादितमन्यवै शवभिः संग्रामे, पभम" "द्पहारौ Famer, सेमे वोरो वा”. शुनि धूनयिता

* (भषतिः?-इत्यश्पड रव च-पणढे |

“satura.

{ छजोषि"” क, कलौतिन्‌', | § ““द्मवन्त्यव।रेवम'" क, ख|

|| ९४ ४१४ ge १० wo)

4 ऋ० सं ८, ४,१९४,६।

qs नियक्तम्‌ [पवबटकम्‌ ,

कम्पययिता weet aan ‘fader खाधिकारविदहितेन क- Har कषौवान्‌ ‘MEA हिं सावान्‌। ‘aay यदि सामोाऽभिपरेतः, सस्य जोषिव qd; श्रयेन््रोभिऽप्रतः, तस्य तयारश्चयोः जोषभागाः * waste ऋजो षित्वम्‌। एव मय age: waza वा; afeig पके सोम्य एवोऽदधंषः, afary vasa wale: पादः समेनाभिसम्बन्धयितयः ;- एवङृणयक्षः "सामः, खएतानि'विश्वानि' खव णि “श्रतखाः ्ननुपक्ौणानि वनानि" उदकानि, इतराणि वा वनानि वनस्यत्याख्यानि, खेन afear व्या्नोति; fe तेषा मधिपतिः एव मेते चयोऽपि पादाः सौम्या भवन्ति ont एद ya,—' "नावीगिष प्रतिमानानि देभुः" दति। नैनम्‌ शं प्रतिमानानि, येः प्रतिमौोयन्ते सोजाणि, तानि दशुवन्ति, नाभिभवितु again किन्ति ? श्रवागेव तान्‌ पुनात्येव तसा- foarg war "एनम्‌"? waa “ante” एव “विनश्यन्ति”, नोपमा कुवन्ति; हि तेवां विनाश्रः। एव मेव पाद्‌ शद्रः एव मुभय- प्रधानत मस्या We |

ome ठव मन्यथास्या खच उभयप्रपानलम्‌ दौ प्रथमौ पा- दावैन्रषेन AAAI, ठउतोयणाद Hes we: पादः wena afreaafaag: | ate मेवङ्णविभिष्ट cx, श्रापारित- मन्युः दप्रहारो, धुनिः, भिमोवान्‌, wea, लोपौ च; मेन fax मेवम्प्रभावं प्रतिमानानि दश्नुवन्ति किन्ति ? अवागेतवैन मप्राप्य वर्तमानानि विनण्डन्ति एव मेते च्य शद्रा: पादाः ;-दा- व्तमानानि विनश्ठन्ति एव मेते ज्य रद्राः पादाः; दा-

* “agand नरष Srawangey”— एति Werle (Yo Ae Go १९, ee) | red प्रावनिनिंव्काणितिरस faye: |

>. 6 स्न्णपा० खन] ANA काष्डम्‌। qe

वाद्यौ चतुश्च श्रयं ठतौयः सोम्यः,“ सोमो विश्वान्यतसा वनानि" —tfai यः “ara, स्वाण्यतसानि वनानि" afear व्याप्नोति, यश्च “ox प्रतिमानानि दशवुवन्ति तौ सेमेद्राविदं नाम कुरता भित्याज्नोयोाज्या

“ga” पुनः “gaya” yaa aa “दति” एवं मन्यन्ते ;- “नै चष्टकम्‌'' vat “सामकर्म'--इति ; तेषा मियं योजना,-य wx श्रापातितमन्यः ; दप्रडारौ, पुनिः, शमोवाम्‌, UTA, VAT च, Bra va रतानि वनानि दृद स्वे याप्नोाति;। चेन प्रतिमानानि दश्ववम्ति | किन्ति ? एन मिन्ध मप्रायैव विनश्यति | एव मिन्द्रपधानेव मवति wa मस्या ay: तरिधा समासा्यौ बेादव्यः। तथाहि भाव्यकारेण fia: समस्य खजौषिलोपपादनमाये are भाव्य कारः °,-“यल्छोमसछ पुयमानस्यातिरिच्यतेः' रखादन्यदसार मति- रिच्यते, “तदू जोषम्‌"-दत्युच्यते तद्‌ “aaa” श्रपवजिंतं

भवति", कल्कश्चतलासां “aa”? संयोागार्‌ “चजोषौ सामः उच्यते॥

Coy? afan पके “tx: ager भवति, एतस्िन्‌ पकते द्धस्य खजो षित्वामिधायकः एषः “निगमः भवति" oT शजोषित्व मनुपपन्नं मन्यमानो निगमं पठति ;-““खजौषी वजो दषभः०-° मदितद्र { afta aria freq) जेण

* ares (भिषण्ड़-माष्यकारः == निदक्रकारः)|

+ wafer पिष्टलादिति भावः। सथा दि,“ माद्रे शिलापिष्टं wee ar ene भवेत्‌ --एत्यादि करकसखचणम्‌ are fae we & Ge I

t “meh wat cave Cree राजा जडा सामपावा aa दरिभ्या भप यासद्‌ वै माध्यन्दिन wat मत्छदिग््र.॥८- दूति we We 4, x, १९, ४।

ee निसक्तम्‌। ` [ Tawa,

तदाम्‌ “WH, वेण तद्वान्‌ ‘ag’, ‘ew’ विता कामा- नाम्‌, ‘OMY बलवान्‌, राजाः श्रधिपतिः, ‘eqer WAT, 'सामपावाः Wee पातव्यथेः। एवहगणयुक्त we, “AMT "हरिभ्याम्‌" warat रथं तम्‌ श्रधिरद्य 'उपयासत्‌' उपागच्छत्‌ I ‘qe श्रस्म्रानाभिमुख्येन, “माध्यन्दिने aaa’ एतस्मिन्‌ प्राप्ते ‘eq? उगगम्य APY माद्यताम्‌, VAMNTAA सामेनेत्यथैः॥ एव मेतस्पिन्‌ मन्त्रे "खजोषो' इन्र OM तत्पनरेतदृजोषिल faxe विज्ञायते, केन कारणेनेत्यतस्तदुपपादनाय माद.- “इयारस्य भागः दति | इयारेवाशयोरखेन्रस्य भागे az- जोषम्‌ “शाना” प्रसङ्गगादच धाना SAT: *। तदुक्रम्‌ः-“इयै- दधाना इरिवतेः'- दति तेन इरिस॑यागेन खजोषेण afaq- waa इत्या इन्रस्य खजोषित्वम्‌॥ ` आह “ea” कस्मात्‌? उच्यते ;- ता हि “ane हिताः” भवन्ति ; aq “वा” म्नाद्रादवताय्यं “ae” फलके “feat.” निहिताः “भवन्ति” तच हि ता विषशायन्तेति दादभयात्‌। यथा जोषं धानाख दयारश्चयारिद्रख्य wey निगमः ;- बर्मा ते हरो धाना उप जोषं जिप्रताम्‌ - इति। अच ननाम्‌" ष्ये तस्िम्पदे एषः “arf.” भातुः, “aaa” भक्षणाय घ;

© ara करकः सक्कबः प्रतोवापः पा दधि। diva रूप vier खा- निचा वाजिन्‌ wy ’—xfa qe ao go te en |

“xftadt इये शाय wr’ दति we deg, २, 0, ९।

{ “amt ग्डहयवे जिवः --एूति qo Go ₹,०, ४०।

Uwe ९६४११ १६०० ष्टयम्‌।

Use शपा CBP] नेगमं ATA | et

“Corfarrvaraarafenaraut ATTA” श्रादावभ्यासेनापरितेनापधा मादन्ते, warty. निभित्तन्ठतेन उपधा मकार area, arate ““वसिभसाश्लि (पा ° ६,४.९ ००) इत्यकारलेाणः, ततो wa छते, जगते हते, बन्ध! भित्येतदर प॑ भवति “धानाः: सामाना मिन्राड्धि पिब aut ते श्रौ धाना उप जोषं format मा- Teas faye! यत्वा च्छर्‌ cay पतरौ कामौमदंथा इत्थम्‌ सुन्वति यजमाने तख किं aren gy Bale यश्स्यागर oe यद्चद चोकमतां तत्तयाग्द्धातयज' | हारियाजनास्यायं प्रैषः 2 श्छ!” ‘aig’ aaa ‘dra | शलिमानाम्‌ एतेषाम्‌ खभुतं TH “पिब च' ae हारियाजनस्य समस्य ° | fag ; ‘aura’ भसयतां नतेः तव एतावश्चा ‘ee? एताः "धानाः, ; “उप खजोषं ` nate उपजिच्रता सटजोषश्च | श्रा रथचषण पिश्चख' जठरे शाम any हे cease रथगमन ! ्रासिषखं किञ्च ; “यत्वा vey यदि at एच्छत्‌ zy aaa aan हे ‘ear वर्षितः ! "पनी कामोमदयाः' पौतर्वांस्वम्‌ ? श्रते ब्रूयाः, मस यजमानस्य नाम ae; श्रसिन' ‘gaia साम मभिषुणखति “यजमाने! | ततः सा यरि पमरपि vata "तस्मे परितुष्टः लं “कि ace’ किं दत्तवामसि ? ततः तां मरति qarj—ag’ ‘eae शोभनं वयम्‌ श्र AA THAT यज्ञस्य WaT उद्रुचम्‌' यदसावनेन

* ““हारियाजन मेतत्‌ सञ्न्नकं धानामितितम्‌”- दति सार भा० (we de ९, ८९ ४) किष; “इर्यारञयेर्यौजनं यस्िमये तथोक्तः, तस्य खाभिलेन

सम्बन्धौ दरियेाजनः। हे (इरियिजन | इन्द्र दति चाग भाग me xo ९, ९९, ६९)

OR fauna [पवेवट्कम्‌

uaa श्रागखवान्‌ प्रायितवान्‌ श्रष्ठत्‌, तत्‌ सवै मह मदाम्‌; ‘aye’ teat सुच दोपि ae मदा aa fa बना, aq “श्रो कमताम्‌' यद्यत्कामितत्रानयं यजमानः फल AE कर्मणः, “A सवं मेतत्‌ ‘aa’ प्रायित मेव श्रत्‌"; a कथिदख्य ब्टषा कामे बश्धवेत्यभिपरायः। हे ‘eta’ मपि योऽय मेवङ्गएविभिष्ट दृन्रः, तं aefeat "यज °*--दति एव मच “et उपजिघ्रताम्‌"--एत्ये- तस्माद्‌ विश्ेषलिङ्गात्‌ छजोषित्व मश्वयोः ; च्रश्वयो गा ्छजौ पित्व खचतितलल्षणया दशस्या पपद्यते

“qr CO—<fa, श्रनवगतम्‌† “श्राथिनो?', “sarfaa” "दति वावगमः। cafe = भोघ्राथिनौ = भोत्रव्यापिनौ कुया, नदो ati श्वाभिनौ पुननाडौ; खा fe थं रौरं व्याप्नोति! एव ेतदिह विग्द्ममान मनेका्ं मपि भवत्येव “कदा द॑सा खोचं०--° Taree’ —efa Ty HVT दुर्भिनराषम्‌ उश्ि क्‌। tara खक्ष प्रथमेवेयम्‌। हे "वस" वमन्‌ ! wax! "कदा" ata काले ‘Gray एतन््मयोदौरितम्‌ ‘ae यजमान “दयेत, कामयतः, कामान्‌ प्रा्ेयतः, लाम्‌ ‘que’ उपरोव्छति | ‘aa’ va ‘a’ gearea विषपेमाणएम्‌; नारीव वा, अथवा

* “यजेति षच्याङूपम्‌*- रति य° ate सं° १९, ९४। तच्चैव “यजेति न्दा भैय्याया रूपम्‌ ; fare खोचियामृङूपयारनमरः yor मसते यजेतिषष्दो 29:9 —thh मद्ौधरः।

र्भा ४९४ ve ude |

t “कदा क्तो ad war ert मभा दधुः | TY षतं बाताप्याय Xft we do ८,५, ९९, १। ;

= _ ५अ० BqTo १वर| ANA कारम्‌ |

श्राध्यास्मिको नाडो, शरौराञितं रसम्‌। श्रा, कतमत्‌ सोत्रम्‌ ? दति, उच्यते ;- यदेतत्‌ ‘ava aa’ सामं ware सुत मभिषुतं प्रवर्तेते, "वाताणाय' उदकाम्‌ एव Rafe “व्सश्ा"--दत्ये- तत्‌ नाद्यभिधानं कुद्याभिधानं वा शअष्दोपपत्तेः, श्रथापपत्ते- Ufa ८८९२९)

हति निर्क्रटसै दशमाध्यायस्य ( पञ्चमाध्यायस्य ) ` दितौयः पादः॥५,२॥ |

@ate: az:

CHAU GAA ऊरुभ्या AYA उरुवा TT- ऽस्या HUT अष्छारिण्यपिं वाऽप इति ewararer- तेरष्ानीयं भवत्यादशेनोयं व्यापनीयं वा स्पष्ट दभ॑ना- येति शाकपुणियंदप् इत्यभक्षस्याप्तो नामेति व्यापिन- स्तद्रा भवति रूपवती तदनयान्न मिति वा तदस्यै दत्त मिति वा तस्या दशनान्मिचा वरुणये रेतश्चस्कन्द तद- भिवादिन्येषगभेवति (१३)

“sgn --दति ५, श्रनवगतम्‌। “श्रष्एराः”-दत्यभिधेय- वचनम्‌। ““उवेभ्यम्नते"--दति बयत्यत्तिः उर्‌, मदर्‌ यशाऽभि- वयाञ्नाति wy वा “out” मेथने wa पुरुषम्‌ “aya” या-

* gure wry ze te पर| 10

निरक्तम्‌। [पूवंबद्कम्‌ ,

भ्नोतौति उवाश्रिनौ सतो उवशोल्युच्यते aq “वा” “उर्‌” महान्‌ “nen” “an” कामः, सेय मुरुवभिनौ सतौ sama च्यते 1 एताः अब्दसमाधयः अधुना “RM Tad शब्दं warren नित्रवीति। श्राह ;-“श्रष्सराः'' कस्मात्‌ ? उच्यते ;- सा fe “ngrfray” भवति, aa: प्रति नित्य मेव सरति; तत्मभवलात्‌ तदेव तस्याः fra सुद- कम्‌, TMNT | श्रय वा Vay Waaam “श्रपि" चेव मन्यया स्यात्‌ ;-“श्रष्ः--इति' एतत्‌ “ङूपनामः “श्र-सातेः" तिषेधपृरवष्ध एते. भचणाथस्य (sate प.) ; तद्धि “च्र-खानो- aq’ श्रमदनोयं “भवति” ; fe aged, किन्तहि ? “श्राद- wie? तदाभिमुख्येन स्थित्वा द्रष्टव्य मेव भवति चचुषा ; पुन- मुं खेन भक्तयितव्य faa. “ard वा” व्यापन मर्हति ““पराञुयातै (खा" पर)", तद्ध वा we: ; तद्धि नायनेन efit gar, Naar व्ापयितव्यं भवति | “ad दधनायेति? “शाकपूणिः” श्राचायौ मन्यते; होतदस्ष्टं दशनाय, किन्त? we aaa: “यदण्छः- ase” पुरणादुक्रम्‌,-^श्रपि arg इति शूप नाम, wura.”; a fe तद्धच्छते, किन्तरिं ? दृष्यते तदिति। ay “mga”? श्रष्यः-ब्रष्दवाच्यतवप्रस्यापक एष निगमः; यदेनश्चरूम यदप्सखकमा वयथम्‌”-इति। “agra UTA qaurat यदि श्िये। यरेनखङ्मा वय यदष्यख््लमा ad यदेक- द्यापि धमपि एनसताऽवयजन मसि rer” —xfa °। वरूणप्रघा-

# qo aye Go ३०, ९० | त्च Wis Uz |

° RUT? Lae] नेगम काखम्‌ | oy

खेषु करम्भपाज्रदवने पौयजमानयोमेन्तः ; ‘agra’ “वयं' किञ्चित्‌ एनः" चकम, "यत्‌" ‘TE’, “यत्‌ सभायाम्‌, “यत्‌, ‘efx’ प्रजनने निमिन्त्ते खति, ‘ay’ अन्यत्रापि करिद्रामादिभ्यो "वयम्‌, ‘vay ‘aaa’ waa, ‘aa’ चख श्रयः “awa यदभद्य- भक्तां तवन्तः, ‘ad’ किञचिनदेष्रानेकप्रकार मेककस्यापि श्रावयो- Safa निमिन्तग्धतं gua किञ्चित्‌, 'यदेकम्यापि धंश" तदभेक~ प्रकार मेकस्ावयाः कम्मेणि भिमिन्ग्डतम्‌,- यच्च महत्‌ शतम्‌, धश्च प्रथक्‌ छतम्‌, यश मानसम्‌, यच्च शारोरम्‌, तस्य सर्वस्य एनखा- ऽस्माकं श्रपनयनं एत्वा ततः शश्रवयजन afe’ मरुतां & विः! RANA) प्रघासान्‌ वामरहे। “मरुतः--एत्यता विशेव- लिङ्गान्म्ारुतव मस्यावसोयते यद्‌ “श्रष्ठः*--दव्येष we: श्रभ- waa दृष्टः, तस्मात्छाधूक्रं “श्रपि are एति रूपनामा- प्यातेः-इति (७२ ze ९९१०)

श्धना यदुकरं “व्यापनोयं वा”-दति (७९०९२ °), “ary व्यापी (खा °पं) sara ary इति तस्छायस्य ea भिगमं त्रवोति;- “sat नामेति व्यापिनः,- एति यथा naif: श्रभियाघ्यथेः, तस्या श्येतदुपनाम भवति, तथैव निगमः ;-'एूथिवयाः पुरोष HUQ नाम, at at faa श्रभिग्टणन्न ga) Bayer घृतवतो - सौद प्रजावदस्मे द्रविणा यजखाञ्चिनाध्य सादयता fay त्वा? इत्य ग्रिवयने दितौयायां चितावाश्रिन्यो नामेष्टकाः, ताषा मेकश्या मय सुपधानमन्त्रः। "षथिद्याः' पुरोष मसि' पूरसिश्यसि। दे rem!

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© ge are ge ६४, ४।

fru [पवेघटकम्‌ ,

saat नामः; ‘at ‘are एवङ्ुणयुक्षा edt ‘fey सर्वे श्रमि गरणन्त' श्रभिषटवन्त॒ देवाः, fae; खा लं स्तोमषट्ठादेव उदो रितिन सतोमेन सृष्टा “वुतवतो' उदक -संकषेषिता शर श्रप्रिचथने ्रासोद्‌। fag; श्रञ्िना' शरधिनौ देवौ maa? “खादयताम्‌ TH ATH तौ fe सच्चानोतौ चया a सादयितयेत्यमिप्रायः। एव मजापे- ्यद्ययसयाष्छ इत्युपपद्यते, TE लणाथासम्भवात्‌॥

एवं तावदप्यरा इत्यस्याभिधानस्या waa Haga उपपादितः; me ‘Waa सुपपादयियन्नाद ;-- “तद्रा भवति BT aay? | रा मलय, तेनापसणन्दवाच्यमैन BIG तदतो सा HITT: तद्रा भवतौत्येव सुकरेऽपि afa tae मल्वथेता गद्यत इति मन्य माने भावकरः, VI मेव मतथे ATS, यदुक्तम्‌ खूपवतोति खूप- संयतेत्यथः तस्या एव सर्वया षिद्धः प्रति विशिष्टं रूप मित्यमिप्रायः। श्रथ “al” एव मन्यथा स्यात्‌,“ तदनया" श्र्-्ब्दवाच्यं रूपम्‌ "श्रान्त" स्रोत aa gated) wafer va रा" इत्यय मादा- aie: | अरय ‘a’ एव मन्यथा स्यात्‌,- “तत्‌” श्रष्यण्न्दवाच्यं |I afafin मिव “ua”? "दन्तम्‌" विधाचा तथाहि ते तस्ादति- ्रयेनानयापि लच्छते wafer Weed दानायः*

“तस्या? एवङ्गणविभिष्टाया उवेस्धा श्र्ठरस “astata”’ “Geaaquar tat “eee” waa) “AA” तष्याथेष्य Cofaafern”? “gat wr भवति -- ९८९३)

° cure ५६४ ४० ख. eet... .!UO!!COC we (४) | “मेजावदलं प्रगाथ ames fam राचिवेदः,- र्ति Xo त्रा ४,९,४। खदकनामनु (रभा० ६०४ Te) शेत.” इष्टयः |

yee Rute रख °] नेगम AIBA | ७9

उतासि मैचावरुखेा वसिष्ठोर्वश्या ब्रह्म्मनसेाऽधि- जातः द्रष्सं स्कन्नं ब्रह्मणा दैव्येन विच्धैदेवाः पुष्करे त्वाददन्त॥ Bale मेच्चावस्णा वसिष्ठार्वश्या ब्रह्म- म्मनसेाऽधिजाते AY स्कत्रं ब्रह्मणा Sala द्रः संगतः Vata भवति सर्वे देवाः पुष्करे त्वाधार- यन्त पुष्कर Hace पाषति भूतान्युदकं पुष्कर पूजा- कर्‌ पुजयितव्य मिद्‌ मपीतर त्‌ पुष्कर मेतस्मादेव पुष्कर agent वा पुष्यं पुष्यतेर्वयुनं वेतेः कान्ती प्रत्ता वा॥२८(१४)॥

“उतानि मै्ावरणः”--इति †। वरिष्ठ सपुचस्येय माषम्‌। तस्यैव afaftxe ati 'उतः-एति, श्रयम्‌ “श्रपिः-णन्दा्यं वन्त मानेाऽधस््याया af a जन्मनो वचिष्ठस्याके, ते सम्भावयति ar gata wa_j— “विद्यतो च्योतिः०-°जभार"” { "विद्युतः" विशेषेण, dad देदौप्यते इति विद्युत्‌ = उवनो- ति; wena “ज्यातिः' vain | तस्मात्‌ "परि" परिताऽधिकं सञ्िहानम्‌' उन्ति- न्तम्‌, जायमान मित्यथैः | “मि चावरूणौ देवो 2 aa’ “श्रपण्यतां! “ला”

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Cgnaamal’—tfa &, ख. a, “सश्मतसानेयं?- दूति ङू। पर्‌ः ख-ग-पस्तकयेः "सम्मतः सानौयोः- दूत्येव शाधिततया द्यते, efagiseds मेव छन स०४.,९, २४, ९। { “faqat श्योतिः परि सृश्चिदामं सिजावदखा यद्पश्तां त्वा तत्ते जननो ae बसिद्ठागस्योयत्‌ ar fax अाजभार॥*- दति we सं० ५, २९, § fart: पण Ke ९०, ९, ८। AHH पर | ६०,९,२।

a निरक्तम्‌। [पूवेषट्‌कम ,

त्राम्‌" ‘ad ‘a तव ‘sa’ एकम्‌ & "वसिष्ठः ! ‘ea’ श्रपि ‘aa (लाः “amet विश्च आजभार" “ane efa: ‘fam’ aaa प्रति, मनुव्यलाकम्‌ शश्राजभार' श्राइतवान्‌› ‘Aq’ तेः तव facta जन्म

उतासि' श्रपि चासि भेचावरुणः हे "वसिष्ठ !› कथं पुन- भिचावरुणयोरत्यन्नाऽसि- किं ade ? न, wea, ‘saa सकाशात्‌ & Berry “मनसाऽधिजातः' ara | fag; निर्वौज एवासि, मनेऽभिधानमावादुत्यन्नः ? न, Tea किन्तरि? ‘zw mma, उष्रशो-दशनात्‌ “खन्न मिचावरूणयोाः। ‘ager ‘ga’ देवानां खग्डतेन, खग्यजःसामाख्येन स्तवन्त: “विश्वेदेवाः मा एतद्‌ wat पतेदिति कुभस्घापरि ‘wen’? उदके, श्रन्तरिके वा शला" लाम्‌, तेन WRU सदेकता मुपगतम्‌ श्रददन्त' श्रधारयन्तेत्य्थ॑ः॥ एव मेतस्मिन्‌ “AG स्कन्नम्‌'?- इत्यादिना सम्बन्धेन “उवेननो ”- शब्देन WET” - इत्युपपद्यते

“Tey किल तेजसा निदधे वसिष्ठः, भिचपरिग्ण्डोताया gaan सुत्यन्नो वरूणतेजसा जातः'?- दति पुराणणत्‌ श्रूयते, az पयपेक्तितव्यम्‌*

श्रनेकविधा मन्त्राणां विषयः ; वसिष्ठस्येय माषं युप्रदशचाच प्रयागः, -““उतासि'- इति ; तदेतदिरद्धाथं मुपलच्छते ? नेत-

दिरद्धम्‌, नित्यच्लान्बन्त्रार्णां भवति * “वष्टो वाराः पुरूरवाः पतिः" इत्यादि CdR Mae पुरूरवस He waa? —canfe wT ए, ४, ९, १९; १६९, ४, ९, १। + बसिष्ठेत्यादिगोजमामेति Start वाका इनिः?

Uwe इपा० देर] नेगम कागहम्‌ | ce

श्राह ; रेतः कस्मार्‌ “द्रसः"--रत्युच्यते? हि रेतः-सञ्च्नकेा रमः, पुरषस्याङ्गादब्रात्‌ “aya”, स्तोयोनेः “grrr wafer” भकणोयो भरणोयश्च एवं Wes: (sare प) भरतेश्च ge) यथासम्मञ “द्र्एः"”--दत्येष wet द्रष्टव्यः

पुष्करणन्दे।ऽने काथः, मिद प्रसक्तं व्याचष्टे; -““पुक्तर मन्तरि्तम्‌; तद्धि “पुष्णाति शतानि शअ्रवकाश्रदानेनोपङ्कुवत्‌। “उदकम्‌” श्रपि “पुष्करम्‌”; तेन fe पूजा क्रियते, पजाकरवात्‌ पुष्करम्‌ | श्रथ वा “पुजयितव्यम्‌"* पूजनाहं मात्मन एवेति पुष्करम्‌। “TTA” “raga? पद्मम्‌ ““एनस्मादेव' कारणणत्‌ ““पुष्करम्‌"”-- इत्युच्यते; तदपि fe पूजाकर पूजयिवयम्‌ ओाभनलात्तस्य | चरथ “ar” “gent” तदिति “पुष्करम्‌” ; aya fe तसन्‌ वपश्नान्‌ भवति

पद्म-प्रसङ्गात्‌ पुष्य-गब्दं निरा ;--“पुष्य॒पृष्यतः--दति। पष्यतिः विकसनाथः (feo प°) ; तद्धि faafad भवति

“वय॒नम्‌(*=)'» दूति ®, waren, श्रनवगतम्‌। “वेतेः” -- दति धातुनिर्दैणः; वेनम्‌-दटति न्यायम्‌ “कान्तिवा' अभिधेया “प्रज्ञा वा” २८(९४))

MATA ततन्वत्‌ BAW वयुगवश्चकार। तमेोप्रन्नानं ततन्वत्‌ तं GIT प्रन्नानवच्चकार वाज- परय वाजपतनम्‌ | सनेम वाज॑पय मित्यपि निगमो भव॑ति। वाजगन्ध्यं गध्यत्युत्तरपद्‌म्‌। श्याम॒वाजगय्ध

© र्भा. ४९९६ Zo १८ Ge |

fi ¢ Te PLC Ce [uquzna,

मित्यपि निगमो भवति | el TEA | कजा वाजं गध्यं यय॒पन्नित्यपि निगमो भवति गध्यतिमिश्री भावकम्भा | ्राग॑धिता परिगधितेन्यपि निगमो भवति। कौरयाणः कतयानः पाकस्थामा कोरयाण इन्युपि निगमो भवति | तौरयाणस्त्‌ णयानः। तौरयाश॒ उप यादि यत्नं मरुद्धिरिनद्रससिंभिः सजेाषा इत्यपि निगमो भवत्यहयारोहींतयानः। अनघया छणुद्यहयाणेत्यपि

नगमो भव॑ति। हरयाणा इरमाणयानः। रजतं इर याण इत्यपि निगमो भवति। afta: कमणि- कर्मणि स्थिरः। प्रत्यृत स्तोमान्‌ व्रन्दी ब्रन्दतेष्ेदूभाव- ART: (१५)

दन्तमाऽवयन - ° खधावः,” * भरदाजस्याषम्‌। Faq TR GR Be दशराचरस्य नवमेऽहनि मरत्वतौये शस्त्रे शस्यते | ae aaqufafast हे भगवन्निद्र ! यथागुणं ला मवाचाम। "ख त्मम्‌ “इत्‌” एतन्‌ Wat ‘aay “श्रवयुनम्‌' भ्र-प्रन्नानल्तएं “ततन्वत्‌! एव तं a aaa लाकं स्वेन sae सन्तनोति ‘aau वयुनवत्‌" “प्राणो x, तस्मादयं उदेति, प्रणादा एष उद्ति, प्रारेऽस्तमेति?- षति क्रम्‌ 1 तस्याप्राण इन्द्रः, छयस्याद वहतः,

= "घ दशना ग्डकार। Sar a att खमतस्यु धामे यन्तो मिनन्ति खथावः ॥११- दूति we स०४,९, १९, ३।

“sag wea चादित्यः सवखि भूतानि प्रयति, meta ITT TAT awa ।**- इत्यादि te Ato ५,६.,९।

स्र देया RW) नेगम काखम्‌ चद

तं wd मुद्गमयत्‌। तेन ‘adw "वयुमवत्‌ चकार" एतस्नगत्‌ भ्ञानवत्‌ करोाति। तस्मात्‌ स॒ एवेन्द्र एव समुच्यते ;-खर्थण a AANA चकार कतवानसौत्धथैः। यस्व मेवम्परभावः तस्य "कदा" कस्मिन्‌ काले ANT मरणध्माणा मन्या: “WATT श्रमरणएधर्मिणः “धाम, स्थानं ‘geen: यष्टु मिच्छन्तः “न मिनज्ति"। श्रयन्ति हे ‘quay wae सवरैवतं चापरिकतिष्टं यानम्‌, waaay यज्ञेष्िल्यमिप्रायः एव fae “तमः ततन्वत्‌ Baw”, “वयुनवत्‌ चकार-दटति श्रनेन सम्बन्धाद्‌ “वयुम१-ग्रेन प्रजान faqea दृत्युपपत्तिः। काग्यथेलव मपि कविदुपेच्यम्‌; wea वा Gay याच्यम्‌

“वाजपस्त्यम्‌(*९)',--इति *, अनवगतम._। “वाजपतनम्‌*- इत्यवगमः “तं aera: पुरोरुचम्‌ ° are” †। पाव- मानो dati wate ऋजिश्वा छक्र ददृशतुः, aaa ‘av एनं सोम हे “सखायः !* विजः ! पपु रारुषम.› saat aia, “यूयं वयं च" सम्यक्ताः सन्तः, हे ary मेधाविनः! ‘sma’ arya वयम ववाजगन्ध्यम› प्रति विशिष्टान्नषमान- गन्धम्‌ ; BY वा वाजग्रहोतारम्‌ ; श्रय वा वाजसस्िश्रयितारम्‌। fry; ‘ate सम्भजेमहि "वाजपसयम्‌" वाज aga, azarae मिति मन्यमानः सन्तो माभिमुख्येन देवाः पतन्ति गच्छन्ति,

ure ४१९ we age | + awry: Tues यं qa ) | रयः Ware गाजंनन्धय' ate ara पश्यम्‌ +? -- इति we Yoo, 8, eu, ll

= निदक्तम्‌ | [पवषटकम्‌ ,

वाजपन््यः सामः, तं नित्यकाल् मेव वयं भजेमहि॥ एव भज जरष्द पारूप्यादयो पत्तेश्च ““वाजपस्लय'*-श्ब्देन साम उकः

““वाजगन्ध्यम्‌५.)*--टति °, एतदपि पड मेकश्िल्तेव निगमे fran, केवलं शमाचायानक्रम विपयासः+--“वाजपस्यम्‌› वाज- गन्ध्यम्‌?--दत्येष समाख्रायानक्रमः‡ ; निगमे पुनः “ura वाजगम्ध्यम्‌, ata वाजं पस्यम्‌”- दति 2

«“गध्यम्‌(*९)०-- दति ll, अ्रनवगतम्‌ यदणोय मित्ययैप्रतौोतिः। “anfa कुत्सेन ° पायाय गष Tq” वामदेवस्याषेम्‌ Pat जि्टुप्‌। श्ररोनद्धके चतुविंश उक्ये माध्यन्दिने सवने मैचावरुणप्टयं wea श्यते | हे भगवन्निद्र ! ‘ale कुत्सेन" खषिणा स्‌यमानः, अय वा ‘Oar वके णाभ्यद्यतेन, ‘wey समानगमनम्‌› अभिवदन- रथ मार्य, श्रय वा ‘are’ wader परानोकम्‌। “श्रवस्य रिरक्षिषुः atta, aafegy परकोयान्‌ ‘ate’ oa इव केनचिद्‌ "वातस्य जवेन यासि। तथापि गच्छन्‌ “ear. Woe: ‘tury’ द्वरो धावति त्वयि waa एव लवा मृदतुः। व्व भज ‘aq ऋजुनेव मार्गेण काचिदन्या गतिं धावमानः; “वाजं गध्यम्‌" वाज भिव गरणा भोक्तु माभिमुख्ये युयृषन्‌'

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“यासि waa he | ATTA बांस चय लेग्धानः | WUT वाज ay येषम्‌ कवियेद्दन्‌ पायय भूष॑त्‌ n72— इति - dea ४, te, tl

UGe दपा. इर] Ana कारम्‌ | cB

पुनःपुनः सभिश्रयि्यन्‌, श्रात्मानं wah: ag "कविः" क्रान्तदैनः। "यददन यस्िन्नदनि ‘area पारणाय शरचरूणा सुपरि. चेतः करोषि; पारयितव्ायेत इति वा, तस्िकवाहनि तान्‌ सवान्‌ sare अतिक्रम्य वर्तसे इत्यथः पयग्टद्धात्‌, TACIT, श्रत्यक्रामत्‌ -दत्येते श्रषतेरथाः एव मेतस्िन॒ शब्दसार्प्याद्यापपन्तेख -गध्यम्‌”--रत्येष शब्दा “ETA.” - दत्य पपद्यते “मध्यतिः(५९१-- दूति °» श्रप्रतोताथः ' पुन रेाष-"“मिओरौ- भावकम? “श्रागधिता परिगधिता०-- मोच्या शता” th भावयव्यस्याषंम्‌। शश्रागधिताः sizer श्रामिश्चिता ai "परि- गधिता' परिमिश्रोरता armat मया परिषवक्रत्ययैः। "या "कथोकेव" प्रतिकं कथोकेव; ar fe गकुलजातिः का faz कशा मिति भ्ूयतेऽशमेधे {। सा यथा मदकाले प्रतिक मति- तरां परिष्वजति; हि तस्याः परिष्वजनस्लभावः। एवं याम ‘at aye’ परिग्टह्ाति बाडभ्याम्‌। परिग्टह्य "ददाति" "या- दुरौया' श्रादरवतौ ; श्रयवा थादसा रेतःरेकेन तदतौ “यादः” -दत्युदकनामस् पठितम्‌ ९। are; किं ददाति ‘ame’? इति, उच्यते,- याप्ुनां' मेयुनाख्यानां ‘war शतानि aya cad: या एवम्परकारा, सा मम भोज्या" पन्नोत्यभिप्रायः एव मच ae सम्बन्धात्‌ शब्दमार्प्याच्च “गध्यतिः"” मिश्रौभावकर्भेत्युपपद्यते

© ure ४९९ ve रपं | ot

Tt Carafaat परिगधिता या कणशौकेवु are! ददाति म्य याचु-रधेया uy at Tat Wat ॥**- tha we सं० ९, t, Ut, C!

{ “ant fang” —xfa यन are de २४, RC!

श्भा. ९१९० र९पंर १अ० Lawe (४८) ale |

<s fanaa | [ पूवैषटकम्‌,

““कौरयानः(४९)-- ति *, श्रनवगतम्‌। “saa: —ray- गवमः। “यं मे दु रि °---°धावमानम्‌" मेध्यातिथेः काणठ- WGA यान मनया प्रशस्यते | ‘a’ “A मम (दुः, दत्तवन्तः, "मरूतः" ex’ च। "पाकस्थामा" विपक्प्राणः, "कौरयाणः, dear: ‘faaat arr सर्वेषा मपि यानानां श्रन्यप्रतियदोदर-शक्रार्नां मध्ये आत्मना तदेव ‘afd’ शओाभनतमम्‌; श्रनेकरन्रविचि्रत्वात्‌ ‘fafa <a’ व्यातिश्चक्रम्‌ “उपधघावमानंः दृश्यते एव मच चन्द्‌ घारूप्यादर्थापपन्ते्च “कौरयानः = छतयानः"-दृल्युपपद्यते

“तोरयानः(४५५-- इति, अरनवगतम्‌ ““वरग्यैयानः"-- दत्यवगमः। “sad यत्‌ तला परि द्वा शरभ॑व गदे भराय परत विश्चे। तौरवाए उपपाहि as म॒रुद्धिरिद्र सखिभिः सजाषः 1” - दति ‘end जातमात्रं विश्वेदेवाः ‘aq’ ‘ar at "ययेग्धषन्‌' परिग्टडोतवन्तः, "महे" मते “भराय भरणाय, महान्त age: ae सकामं करिष्यतोत्यनेनाभिप्रायेण सः" लं हे ‘Vesa!’ ex ! “तौरयाणः' त्वरितथानो ला 'खपयारि' saree ‘aga’, मर्द्धिः ‘afaf’ ae “सजाषाः' सम्प्रौयमाणः। उपागत्य SAH Aas: समड्धंयेव्यभिप्रायः॥ एव मजागममसम्नन्धात्‌ “तौर- धानः = दरणयानः--इल्युपपद्यते

# gure ४९९ ge १८ ve |

+ “Ga afr CAGE are ara कोर॑याणः। faust तना याभि मपेव fafa धाग॑मागम्‌ इति de ५, ०, १९, ६। |

{ Ueto ४९० Feo श्पंर।

§ We Fog, २, ९९, RaTe |

9 धग हेषा इख °| ANA काण्डम्‌ | cy

“्रद्यामः(*५)?-- इति *, श्रनवगतम्‌ | “श्रह्ोतयानः"“--दत्य- ana: “ववया वयं०---° एद हयाण” + वामदेवस्याषेम्‌ | चिष्टप्‌। अग्नये रक्तोप्रे शरष्टाकपालः, ay fase: पराऽनुवाक्येषा, मे ्ायफौयके | डे भगवन्‌ ! मे “त्या वय॑ः सधन्यः, समानधनिनः यदेतदखदरहे धन मेतदावयोः तत्सहेत्यभिप्रायः। थत एव मतो मूमः; - ^लोताः, saa रचिताः सन्तः, (तव ‘malay प्रणत्या तत्रैव प्रणयेन ‘waa वाजान्‌" प्राप्रुयामेऽन्नानि। किच; उभा शंसा" उभाव्रपि शंसितारौ,- यश्चाग्रता नः पापानि शंसति, wy ष्तः, तावभावपि ‘gga’ जहि हे सत्यताते यज्नतनितः ! किञ्च; “्रनष्टया' श्रमुष्ठानेन ‘safe कुर कम्मणेतत्छम्पादय यदहं ब्रवीमि | डे ‘sega! श्रलल्नितयानेत्यथैः एव मच “ब्रहयाणः”- इत्यनेन श्रद्रोतयानोऽ्चिर्च्यते उपपद्यते हि देवताया अलजित- यानत्वम्‌

“erat. (tO इति {, अ्रनवगतम्‌। “दरमाणयानः"”- इत्य- ° सुषामणि” एति 2 | faa-

: ‘6 1 यमे वगमः। “ay सुक्तणायने° मनसा तरैयश्वस्येय माषेम्‌। Blum. यान मनया wan ‘Seay खजुगामिनम्‌ रथम्‌! “रजतम्‌, रजतमयं रजतविष्ठं

¥ १भा० ४९९ ge (qe |

“an ay संध्य १. SAGA Wat are वाजम्‌ | सख्भा शसा By WA SF EAT era ॥*-- दूति we Go ev, ९९, ४।

{ र्भा ४९०९ TO oye |

“27 मृर्षायैन रजतं Bae) रथ य॒त Hama सषामंकि।"" रति ° ९, २,१९४ ९।

८६ निसक्तम्‌। [पूबवद्कम्‌ ,

वा, Gm Wa श्रसनाम' लवन्ता वयम्‌। पनलंथवन्तः ? ‘gear | semua दति कञ्िदासोत्‌ ; तसन्‌ यजमाने, ‘xara’ ““दरमाण्याने?, नित्यकाल मेवाभिप्रखितयाने, सुषा- afw ain सामास्य gaat; तस्मिन्‌ यजमने ताष्ुशः दो दातेत्यभिप्रायः॥ एव मन्न शब्द सारूप्यादर्यापपन्तेख “दरयानः = हरमाणयानः"-- इत्युपपद्यते

““च्रारितः५५०)-- दति °, श्रनवगतम्‌। NATTA सामे AS; “qa: इत्य्यप्रतौति. at wdrate—owarag” BPE माषम्‌ Ysa दश्राजरश्य मवमेऽदनि मरू लतौये wai मिविद्धानोये aa शस्यते ‘ay इन्द्रः “raat? गग" "गोपतिः | किञ्च; वः" शश्रारितः कमणिकमंति faw श्रारितः सवान्‌ सामान्‌ भ्रति योऽवख्ितः। केन ? देवतारूपेण सवषु स्तोमेषु चावस्थानात्‌। यः कर्मणि श्रग्मिहाजादौ ‘faw नित्यः; aa किञ्चन wa yaaa दत्यमिप्रायः | वोडो खित्‌ संस्तथश्यापि दर्पितस्यापि ‘a’ इन्रः “श्र-सुन्वतः' श्रभिषव मङुवाएस्य ‘ay.’ वधयिता। Hay aa ‘agen मरत्छदितम्‌, इन्धम्‌, ‘aera’ सखिभावाध एतस्मिन्‌ कमणि "हवामहे" श्राह्याम इत्यथः एष मयम्‌ “श्रारित- WETSUIT “प्र्येतःः"--इल्युपपद्यते

र्भा BLO Te eye |

“ar edrat a गवां aifat am अरितः aa fanafe fat: | Marfefext या खतुन्बतेा aw Read Gee उवामरे॥- इति we ८० ६; ©, ९९, vl

१अग देषा awe] aaa area | ८७

mC” - दति *, अनवगतम्‌ श्रन्दते्टेद्भावाथसयः, ; धातरेवाय anata: ३८९५)

fa यद्‌ दृणि ware asta शुष्णस्य चिदु af नो tracert | निद णस्ि यच्छसनस्य मृुद्धनि शब्द्‌ कारिणः शुष्णस्यादित्यस्य (च) येषयित्रू रारूयमाणे वनानीति वा वधेनेति वा। sae वोलितेत्यपि) निगमो भवति वीलयतिश्चऽ ब्रीलयतिश। संस्तम्भक- WIM yaa संप्रयुज्यते निष्यपी water भवति वि- निर्गतसपः सपः सपते' स्फशतिकम्भेणः। मा ने मघेव निष्षपी परा et: | यथा धनानि विनाशयति मा ae तथा परादाः | तूणाश ** मुदकं भवति त्रं Waa 11 तरुणौ शं a गिरेरधीत्यपि निगमो भव॑ति | qr मदिष्छचकं tt भवति यत्‌ सभ्यते (१६)

१्भा० ४९८ एण exe |

गाश्येतत्‌ -S-1-THRT |

t, §, || खज सवे बव Gara इ-पाटो ख-पकङ्धे।

रष र्व पाठो एजिशता प्राधन्येन स्वपेत परस्तात्‌ (१भा०४१८०), साय सम््मतखेष रव | TT YZ eM “विनिगतपसाखखरश ana’ दूति पाठो wad ; रष क-ख-पसाकयोः ““विनिगैतपसाः aq पणते दति “विनिमेतपस पसः सपमे? दति we) ““विनिगेतपसाः। पसः सपतेः दति च।

oe “पराद्‌ स्तषा, क, ख, ङः |

+t “qa aga” a, ख, ग।

tt “afeqwaa” ख|

cc निरक्तम्‌। [ पुमे वट्‌कम्‌)

एष ud निगमः ;- “निथद्‌ gufd>-—eaaft” ° स्यद्येय aq; श्राङ्गिरसस्येयम्‌। watt watt पुन fix एवाङ्गिरसः पुच्रल मापन्न (निरणएक्षिः निवण्यषि। ‘aA’ we हे भगवत्निनद्र ! मेघं दला श्सनस्य' ““श्रन्दकारिणएः'' वायोः ‘asf उपरि ‘swe चित्‌ः “शोषयित, रपि भगवतः “श्रादित्यस्यः" ‘afer? श्डद्भावकतुः ; श्रादिल्येन fe परिपच्यमानं dee मपि दरतिन्दुकादि गदु भवति, नस्मादसौ wet तस्येव कर्मकारिणो मण्डलं yea ‘Tea’ स्तनयितु-ष्र्ं eau. "वनाः वनानि fafaafa: ag avg “वनानि उदकानि fafaont ते शक्िप्रतिघाताऽस्तोत्यभिप्रायः। afeig ad “वधेन'"- एति निवंचनम्‌, तस्िन्‌ va "वना"--दत्येष शब्दौ मेघ-वधनेति योज्यः। दकश्ब्दख तस्मिन्‌ पक्तेऽध्याषहार्याऽभिवजेन- खम्बन्धात्‌। ‘arate’ प्राग्धितेन, श्रदोनेन, तिन्‌ करमष्याभि- मुखेन, "मनसा, "वदणावता' हिंसावता ‘aa’ “wer faa श्रद्यापि a कमं 'कछृणवः' करोत्येव, श्र-सुकर Aa; तप्माद्रवोमि;ः- कः at परि"? कोारन्यस््ला उपरि वन्ते, त्व मेव सवग्धतानि परिगम ama दृत्यथेः एव मच “ब्रन्दि”-बन्देनादित्य GA) तत्पनरे- तरख्यष्टं॒ग्टदुभावकरणाद्‌ादित्यस्छ afea मिति wat ब्रन्दि- wae ख्टदूभावायोपपिपादयिषया तब्रोडयतिना संस्लस्माथेवाचिना सद सम्बद्धोऽच AA: प्रयोगः

© “fqe—eqat | STRAT मम॑सा ब्दंदागता यद्खा चित्‌ खवः करा परि ॥५- दति we de १, ४, ६७,

५यअ० Rote owe] Anz काकम्‌ | <a

ततो निगमात्‌ ब्रन्दतेहिं शद्‌ भावार्थता स्यष्टतरेति दशयति; -“श्रवरदन्त वौडतेत्यपि निगमे भवति” श्रपि पूवाऽपयं weat tafe we: “वौडयतिख्च त्रीडयतिश्च'” एतौ इावपि ““संस्तम्भकमौाणौ?,, “Ga” wa अनन्तरेण afer, यस्मात्‌ समानवाक्यता Fart “प्रयज्येते”। तस्माद्‌ ब्रन्दि-षन्दख श्ठटू- भावादेव सुपपच्चते | “हेवा -- STA?” ° ग्ट मदस्याषंम्‌। HTT) aka Bl "तत्कले" तत्‌कम “देवार्ना, “देवतमाय ' देवनमस्य Swat, यत्‌ “श्रश्रते' ज्षथान्यभवत्‌, “दृढा! दृूढान्यपि सन्ति मेघढन्दानि। किञ्च; ‘saga’ ग्टदून्यभवम्‌। कानि पुनस्तानि श्ठदून्यभवम्‌ ? इति, उच्यते ;—atfgav’ धामि वोडितानि ब्रौडितानि सन्नद्धानि द्पितानि, अरसुरकुलानि; अन्यानि वा यानि कानि चित्‌, तानि श्टू न्यभवन्निति। किञ्च; “उद्‌ गाः BAY उदाजद्‌ गाः, उदगमयदपः। “श्रमिनर्‌' "वलम्‌" मेघम्‌, श्रमणा" सुयमानः। fea; mE’ अ्रनाश्यत्‌ "तमः" ayaa fag; '्यसक्तयत्‌ a’ way श्रादित्यम्‌ अव्यवधानकरणेन रो डयतिना प्रयोगाद्‌ त्रौडतेरथेव्ेपरौत्येन ब्रन्दतेग्डेदुतायेव RIVA नभसः एव मच्रात्रदन्त वो शतेति व्रन्दतेः, त्रीडयते- वन्दिना प्रयागोऽन्यत्र कञ्चित्‌ द्रष्टयः1॥

i “atarat देवतमाय कल TAHA THEM Tam | उदु गा we afters WEN Te a 17 तमो a च्युत्‌ सखः ॥-- दति we सं* 2%, ९, २।

we सं ९, ४, ९०, ४-\ WH EAT | 12

ge निरक्तम्‌। [ पूवषटकम्‌

‹०निःहषपौ ५९)? दू ति *, श्रनवगतम्‌ “विनिगंत-पषाः'”- दति शन्दसमाधिः। “सौ-कामः'” पुख्चलाऽभिषेयः‡ ; हि निन्ये निगत-ग्ेप एव भवति “स्पश स्यतेः” | “स्यश्रतिकमेणः'” qa वतमान, -- शेपः; तेन हि स्तौ स्यष्ठते “प्रति त्‌ ख्छा०---° पर दाः” METAL at! चि्टुप्‌। भगवननिन्द्र ! ‘aa’ wera ्रत्यदभिः प्रतिपश्वतोव, श्या षा er स्हतिः “नोधा विदय जरितारः-दत्येतस्नान्निगमात्‌ स्टतिर्नौँ येति प्रतोयते 11 “दस्याः शचा; दाखयितुखव “श्रोका न' ओक दव, निवाख मिव। ‘ae’ श्राभिमुख्येन, wea ममुप्रवि्य | “सदनं खानम्‌, यत्र तया नौोथया स्त्या सनत्तयम्‌,-यस्तवाभिमतो शणः; waa af नाम सा मेष स्तोता Bary, साधु खादिति, मथ मनुप्रविश्चैव भवतो इद्गतम्‌ ; तेनार्थनात्मान मभिसम्बन्धयिला

, © श्भा ४९८ go ye |

of “Fafrarrea:?— इत्यपि पाठा Ufmargaa रव (रभा० ४१८ ge |

: [ Waa = Shee, cf g योगात्‌ प्रतौयत रब परः Yeon खेर wrawe मेतदुक्षिपरन्धारेवेति ee |

§ “जिण्पौ == विभिनतखपा विनिमेतरेषे ater दासौपतिः।-- इति सार भार (We He ९, ०, १८, ४)।

|| “Som सपतेः?” इत्यपि पाठे इतिलत्यश्नत रव (र्भा. ४१८१०) |

T “fag षप समवाये सपति समवेति योऽन्या wren th ag: Re TaTgy | निनेतो नित्योडतः सपः RIT यद्य Mga निष्वपः। Tegra: दकारः दति साग्भा० (we Pe ९, ©, ६८, \)।

०* Coe यत्‌ ख्या MU KENT aE Seat ATM ary) we qr at मववचषेतादिन्मा जे aay निष्वपौ ocr er u— cht we de 4,0, ६७८, ४.

{1 We संर, १, ९६४ . `

ym aqre awe] Ana WIA | ev

एतन्म सदन मित्येवं “जानतो' तदेव शश्रगात्‌' नित्यकाल मेवा गच्छति श्रतएव मतः BHAA वयं भवतः। श्रध" एतस्मात्‌ कारणात्‌ वयं ब्रूमः; हे "मघवन्‌! MBA’ पुनःपुनः क्रियमाणत्‌ एतस्मात्‌ कर्मणः, श्रात्मस्तत्याश्रयण्डतात्मान मस्मान्‌ परा दाः OUT THT ; उण्नामय तत्‌ कमेसाधनानि | कथं पुनः क्मसाधनानि ? कथं पनम परा दाः? "मचे निष्पो' यथा धनानि नित्यविनिगेतरेपेा विनाशयति एवम्‌ “नः” अस्मान्‌ तम्‌ ‘ay अ्रवमादयिष्टाः धनश्तास्त्व वय मतो रकलेत्यभिप्रायः एव मच अन्दसाङ्‌णादयचौपपनेख्च धननामसम्नन्धात्‌ frat” निगत- gar, ATA दृल्युपपद्यते |

दणोध्म्‌(९०)'- दति *, arama) “उदकं भवति” इत्य- भिेयवचनम्‌। “gui” fe fara, तत्‌ “waa” व्याप्नोति; quma मिति प्राप्म्‌। श्रपठितं चैतदुदकनामसु; तेनाप्रतो- ताम्‌ प्रति श्रुताय ०--° मूतये ty मेधातियेराष्षम्‌। गायत्रो शौ रात्रिपवाये waa Aaraque प्रथमे wa विनियुक्ता डे ॥विग्यजमानाः ! ara प्रतिश्रुत मालिज्य सुपगच्छता fas स्हुतिभिराङयिव्यामोति, ad 'प्रतिशताय' ‘a’ qua मुपकरणाथे मेतसिन्कमेणि ‘wae’ ve प्रगल्‌मम्‌। ‘Sa wee "सुशिप्रः ger सुनसं बेनर महम्‌ “ऊतये' तर्पणाय; श्रय वा

># श्भा० ४९८ ९० १४ ve | + “प्रतिं भा वो चूषत्‌ VALU गिरेरधिं। वे सुशिप्र मतये ॥१?- ति wmode a, ९; ४।

९२ निबक्तम्‌ | [पवषट्कम्‌

भवता मात्मनख्च रच्षणायेति स्यात्‌) कथग्यनराह्यामि ? “aura fatale” यथा ‘aura “गिरेः afr मेघस्योपरि वतमान माहृयन्ति agifeat wat) एव माहयामोति एव मच गिरिखम्बन्धात्‌ ^रणोशम्‌” उदक मिन्यपपत्तिः

““लुम्पम्‌((९),१--इति *, अ्ननवगतम्‌ 'श्रदिच्छनकं भवति'- इत्यभिधेयवचनम्‌ “यत्‌” data Gea “quad” चलति, तस्मात्‌ रपं ata मिति न्याग्यम्‌ ४८९६)

कदा मत्त मराधसम्यदा FT मिव MAT | कदा नः शुश्रवद्‌ गिर इन्द्रा अङ्ग। कदा मत्तं मनाराधयन्तं पादेन सम्य मिवावस्फुरिष्यति। कदा नः aria! गिर इन्द्रो अङ्गाङ्गेति सिप्रनामाश्वित मेवाङ्कितं भवति निचम्पुणः सेमे निचान्तणो निचमनेनं प्रीणाति wy (१७) |

“कदा मन्त arid ०--° स्रा ay” 21 गोतमस्येय माषम्‌ | उष्णिक tal तातो यस्वनिकेषु उक्थपयायेषु ब्राह्मणाच्छंसिन:

wat विनियुक्ता | “कदा' कञ्चिन्काले मनते" are “श्रराधसम्‌' श्रनाराधयन्तम; यः fax areata, सत्या ₹विषा च, तम्‌।

qure ४९९ ze ude 1

+ “frarregcfa” ख, ^“मिवावस्फरिष्यति” ङ, tT mata” क,

$ wo ye ६, ९, ९, 81

च्य gate use] नेगम Wz | ट्श

“पदाः पादेन स्फुरत्‌" श्रवस्फ रियति, अभिहिमिव्यति दृः ““स्फुरति(९५), सफल ति(\९)१--दति वधकमसु पठितम्‌ * किञ्च “कदा नः कद्‌ा श्रस्माकं परिचरणमानानां स्हतिभिहविभिंञ्च रवत्‌” stata गिरः ‘ox, ay’ सिप्र मित्यथेः। serena परिचरिहणा firg: श्रोग्यति गिरः, wat समद्धयियत्यार्षः। श्रनाराधयिलूंश्च कदा पारेनाभिहनिग्यति ? कदा श्रनाराधयिज्रा- राधयिचोविभेषं श्नाखनीत्यभिप्रायः खरूपेण तावदेषोऽस्य मन्त- सार्था मया ays, भावयं पुनर लकः “पादेन aa faa वष्फुरमि"” 1--त्येव मघोति; तथा a—“agr नः प्ररणेति गिरः" {-इति ; तदेतत्‌ “an मिवास्फुरसि"--“्ररणोति गिरः” -दत्यनयोभाव्यवाक्ययोः पुरूषो qaqa caret aware wf “गिरः आवस्फरसि'?--दति मध्यमपरूषयोगः प्रतयत्तशतलक्त- णाभिसम्बन्पो aay “कदा नः शरणोति गिरः" इत्येतत्‌ पराकृतः एव AAR दुयाज्यम्‌; यद्येष भाव्यस्य सम्यक्‌ पाठः? श्रय पुनरसम्यक्‌ पाठः ? सम्यक्‌पाटठोऽने्ट्यः | श्रदन्त्‌ लचये,- VAG मया मन्तो व्याख्यातः, एव सम्यक्‌ पाठः स्यात्‌, --“पारेन aq भिवावस्पुरिव्यति"-“श्रोव्यति गिरः"--टति; तथाहि मन्त्राथैस्याविरोाधौो age 21 acta वासिन्‌ काथित्‌

® ure ९८९ ewe te Ge |

““निवावस्यु रिष्यति--दत्येव तु पाठो दश्यते रू-च-पुरूकयेः

{ “aa नः श्रयति भिर दत्येव पाठो दश्यते तच ङ-च-पसकयेः।

ङ-च पणक्येरेव मेव दश्छतेपाठः। तथाच cag टततिप्रन्यस्यामराषत रव लव तानः Ys: कल्पितः, रू-ष-पख्का खषटत्यनसारत रव छिञख्िताविति

89 €8 निशक्तम्‌। [ anemia,

परचता we, काचित्‌ प्रत्यचताः Wasa दुखधााऽख्य भायद्याभिप्रायः श्रदिष्छवकं fe पादेन qeard watt तथाचानाराधयितरगिनाशोऽमौष्ट इति “चु्प'"-गर्देनादिच्छन मभि- wad tt

“निचुस्यणः(९९)--इति ^, श्रनवगतम्‌, अनेकाथञ्च ““निचु- ay: सेमा भवति' ,-इत्यभिघेयवचनम्‌ “निवान्तषएएः'- इति शब्दसमाधिः fe निचान्तो भरितः “maria” (९७)

पलींवन्तः सुता इम उशन्ता यन्ति वौतये Ti

लम्मिनिंचुम्य्‌ पणः पलनीवन्तः सुता इमेऽद्धः सामा कामयमाना यन्ति वीतये पानायापां गन्ता निचुम्पुणः समुद्रोऽपि निचुम्यण उच्यते निचमनेन पूयत अवश्या ऽपि निचम्पुण उच्यते नीचैरसिन्‌ कणन्ति नोचेदंध- तीति वा ada निचम्पुरेत्यपि निगमो भवति निचुम्यण निचद्धणेति पदिगन्तुभवति यन्पद्यते (१८)

“gala: सुता दमे ०- ° निद्न्यणः | कच्तो माम श्राङ्गिरसः, qaq मार्ष॑म्‌। गायत्री शन्रौ राजिपयोयेषु awa पयाये होतुः शस्ते विनियुक्ता “पनोवन्तः' पन्लोभिः श्रद्धिः, तदन्तः |

® gute ute ve ९पंर।

यर दपा. CBs] नेगम काणम्‌ | ey

“सुताः” श्रभिषुताः ‘ca’ समाः ‘own’ “कामयमानाः वं ‘af’ देवान्‌ प्रति, ‘Raa’ * कथं नामास््रान्‌ देवाः पित्रेये रित्येव ay कामयमाना दव यन्ति कि मेतदेव ? नेत्युच्यते पनःपनरेष 'निचुम्यणः, सामः “aot? Rau सहितः, तासु तासु क्रियासु प्रदौयमानः श्रस्माभिदं वान्‌ प्रति जग्धिः" एव भवति, गन्तेव भविष्यति एव fae सामाधिकारात्‌ ““निचुष्पुण'”-शब्देन सेषम उच्यत द्दुपपद्यते

“समुद्रोऽपि निकन्बणः"”-एति “उच्यते fe “fae aaa’ उदकेन “qua”; उदकं fe निचम्यत इति faqaaay ग्दग्योऽच fara: |

“श्रकाडयोऽपि निचुम्पुण उच्यते" “नोचैरसिन्‌ कणएन्ति” अब्दं कुवन्ति Em मवश्टयेश्यो पाश्ेव चरन्तोति निचुम्पुणः | श्रथ “वा” “नोचे safer aria “दधतोति" निचुम्पुणः तानि हि तत्राप निघोयन्ते। “say निचुम्पुण निचेरुर सि” -रत्यनेनाभिषाद्या्ु प्रद्रोयन्ते सामपाच्राणि हे श्रवश्य अरवश्टयदेव ! हे वरुण ! Aenea! ‘serfs’ नौ चेरणभौला- ऽसि freer नोचक्षणने zat wee यन्नग्यहेऽवतिष्टसे। त्व मेवङ्कृणविशिष्टः “श्रव दवैः देवकृतम्‌ एनः यारसिष॒म्‌” श्रव यत्ति नः दवेः सरितो cand रेवनिमित्तम्‌ देवापराघम्‌;

* “"वौतये- दूति मशपाठः। tency निचम्यश्च भिचेखरसि निचभ्यवः। खव देपर्दवहत मेभ यासिष मव मनौमेत्येहतं पदुराग्शष aafevedife —xfe ae are सं ए, ४८।

९९ निखक्तम्‌ | [पृवषट कम्‌ ,

मेनः। श्रव यक्ति ‘an? सहितो ‘area’ ATER,

एनः ; 'पुरुरावृणः' पुरोः महतोऽपि द्देवरिषः, देवरेाषणादस्ात्‌

पाहि एव मच “Presque उच्यते निचुङ्कुणेऽप्यनेनेव व्याख्यातः

“पदिः(९९*--दति *, श्ननवगतम्‌ “गन्तुः एष fage: तो “भवति” “यत्‌ aed” यस्माद षौ पद्यते गच्डतोत्यर्थः श्रभि- धयः wat; fe नित्यकाल मेव पतितो भवति ६। ९९८) Il

सुगुर सत्‌ सुहिरण्यः खनौ इषद॑स वय इन्द्रा दधाति | य्वा यन्त॒ वसुना प्रातरित्वो मु्ीज॑येव पदि मुत्सिनाति सुगर्भवति सुहिरण्यः खश्चा† ay. चास्मे वय इन्द्रो दधाति WAT यन्त मननेन प्रातरागा- मिन्रतिथे म॒क्षीज॑येव पदि मुत्सिनाति कुमारो मु- aie मेचनाच्च शयनाच्च! ततनाच्च पादुः TEA: | “fa: स्वः कृणुते गृहते बुसं पाद्र॑स्य निर्णिजो Hua ाविष्कुरुते भास मादित्यो गूहते बुसम्बस मिनयुदकनाम ब्रवीतेः weed) संशतेवौ ged पातयन्युद्कंऽ रश्मिभिस्तत्‌ प्रत्यादत्ते (१९)।

इति पथ्चमाध्यास्य ata: पादः ५, ३.

* ure wre ve ९५ de |

“afvce we’ a,

{ “eaare” ख, “Srqare ततनाण् समद्रा", © |

§ “यदवे wires क, ख, “agg त्वातयत्यद्‌ क?" |

BIBLIOTHECA INDICA ;

A (oLLEcTIon OF PRIENTAL | Works | PUBLISHED ae THE |

ASIATIC SOCIETY OF BENGAL ` New Senizs, No. 546,

सभाष्यटत्ति-निरुक्तम्‌

THE NIRUKTA WITH COMMENTARIES, EDITED BY PANDIT SATYAVRATA SAMASRAMI VOL. IIL. FASCICULUS II.

9 CALCUTTA :

PRINTED BY J. W. THOMAS, AT. THE BAPTIST MISSION PRESS. AND PUBLISHED BY THB 4814770 SOCIETY, 57, PARK STREET,

ध, | ion 1885. ag

LIST OF BOOKS FOR SALE

AT THE LIBRARY OF THE

prsiatic POCIETY OF PENGAL,

No. 57, PARK STREET, CALCUTTA.

AND OBTAINABLE FROM

THE SOCIETY’S LONDON AGENTS, MESSRS. TROBNER & CO.

87 +त 59, Lupeatr Hirt, Lorxpon, E. ©,

BIBLIOTHECA INDIOA.

Sanskrit Series Atharvana Upanishads, (Sanskrit) Fasc. I—V @ /10/ each.. . Re. 3 2 Aévaléyana Gyihya Sutra, (Sans.) Faso. I—IV @ /10/ each =. | 8 Agni Purana, (Sans.) Fasc. I—XIV @ /10/ each 8 12 3 2

Aitareya Fate of the Rig Veda, (Sans.) Fasc. I—V @ /10/ each :

Aphorisms of 58741198, (English) 7 10 Aphorisms of the Vedanta, (8978. ) Fasc. III—XIII @ /10/ cach oe 14 Brahma Siatras, ( English ) Fasc I ee ee ee ee 0

Bhémat{, (Sans.) Fasc. I—VIII @ /10/ each. ee Byihad Aranyaka Upanishad, (Sans.) Fasc, VI, VII & IX @ /10/ each ..

D tto ( nglish) Fasc TI—III @ /10/ eac ee * | Brihat Samhité, (8808. ) Fasc, I—III, V—VII @ /10/ each 93 Chaitanya-Chandrodaya Nataka, (84०8. ) Fasc. II—III @ /10/each ..

| +-4 @6 @ कडु 6०2 है @ © tHe N= @ © [=>]

4 Chaturvarga Chintémani, (Sans.) Vols. I, Fasc. 1—11; 1, 1—25; ITI,

1—11, @ /10/ each Faso oe ०७ ae Chhéndogya Upanishad, (English) Fasc. II .. a 10 Daéa Ripa, (Sans.) Faso, I—III @ /10/ eac oe 14 Gopatha Bréhmana, (Sans. & Eng.) Faso, I and II @ (10 4 Gobhiliya Gyihya 800० (Sans.) Fasc. I—XII @ /10/ és 8 Hindu Astronomy, (English) Fasc. I—III @ /10, eac ०9 ee 14 Kathé Sarit Sagara, (English) Fasc. I—XIII @ 1/each .. 1 9 Lalita Vistara, (8808. ) Fasc. I—VI @ /10/ each ee o 18

Ditto (English) Fasc. I—II @ 1/ each ~ 2 0

Maitri Upanishad, (Sans. & English) Fasc. I—III (in one volume) ०, 1 14 Mimémsed Dargana, (Sans.) Fasc. II—-XVIII @ oh each .. ee 10 10

' Markandeya Purana, (Sans.) Fasc, IV—VII @ ho each .. oo 2 8 Nrisimha Tapani, (Sans.) Fasc. I—III @ /10/ each + oo 1 14 Nirukta, (8808. ) Vol. I, Fasc. 1—6 ; Vol. II, ०५56. 1 & 6, @/10/each Fasc. 7 8 Nérado Pancharitra, (Sans.) Fasc. 1V @ /10/ eac ०१ 0 10

(Continued on third page of cover.)

Nrisipha Tapanf. (Sans.) Fase. I—III @ /10/ each Rs Nirnkta, (Sans.) Vol. I, Fasc. 1—6 ; Vol. 11, Fasc. I—IV@ /10/ each Faso Nérada Pancharétra, (Sans.) Fasc. @ /10/ each ०७ oe Nyaya Dargana, (Sans.) Fasc. I and III @ /10/ each : Nitisfra, or, ‘The Elements of Polity, By Kémandaki, (Sans.) Faso. II~-IV

Parisishtaparvan (Sans.) Faso. I ee Pifignala Chhandah Sitra, (Sans.) Fasc. I—III @ /10/ each.. oe Prithiréj Rasau (Sans ) Fase. I—V @ fi / each oe ee

Ditto (English) Faso. .. oe oe Péli Grammar, (English) Fasc. I and II @ /10/ each ०७ ०७ Prakrita Lakshanam, (Sans ) Fasc ee ee eo Parasara Smriti (Sans.) Fasc. I and II ०७ oe rr Rig Veda, (Sans.) Vol. I, Fasc. 1V .. ०० Srauta Stitra of Xpastamba, (Sans.) Fasc. I—VIII @ /10/ each ee

Ditto ASvaléyana, (Sans.) Fasc. I—XI @ /10/ each oe

Ditto Tétyéyana (Sans.) Fasc. I—1X @ /10/ each

Séma Veda Samhité, (Sans.) Vols. I, Fasc. 1—10; II, 1—6; III, 1—7;

1V 1—6 Vv 1—8 @ /10/ each Fasc oe ee

` Bshitya Darpana, (English) Fasc. I—IV @ /10/ each ०७ Saikhya Aphorisms of Kapila, (English) Fasc. I and II @ /10/ each .. Surya Siddhfnta, (Sans.) 1786. IV... ee ०७ ` ०५ Sarva Darénna Sangraha, (Sans.) Fasc. II = - , ०० oe Safiknra Vijaya, (Sans.) Fasc. II and III @ /10/ each ee ०७ 58१९1158 Pravachana Bhashya, (English) Faso. JIT ee Saikhya Sara, (Sans.) Fasc ०९ ee Sufruta Samhita, (Eng.) Fasc. I and II @ 1/each oe ०९ Taittiriya Aranyaka, (Sans.) Faso. I—XI @/10/each ०, os Ditto Brahmana (Sans.) Fasc. I—XXIV @ /10/ each .. ०१ Ditto Samhita, (Sans.) Fasc I—XXXII @/10/each .. ०७

Ditto, Pratiéskbya, (888. ) Fasc. I—III @ /10/ each .. Ditto and Aitareya Upanishads, (Sans.) Fasc. II and IIT@ /10/ each Ditto Aitareya S’vetésvatara Kena [8६ Upanishads, (English) Fasc Land II @ /10/ each ०९ ee Tandyé Brahmana, (Sans.) Fasc. I—XIX @ /10/ 6860) .. | ee Uttara Naishadha, (Sans.) Fasc. LI—XI1I @ /10/ each ०० ` Vayu Purana, (Sans.) Vol. I, Fasc. 1—6; Vol. If, Fasc. 1—4, @ /10/

eac h F asc e ee oe

Vishnu Smriti, (Sans.) Fasc. I—II @ /10/ each ०७ Yoga Sutra of Patanjali, (Sans. & English) Fasc. I—V @ /14/ each ..

‘The same, bound in cloth as oe oo ०७ Arabie and Persian Series.

Alamgirnamah, with Index, (Text) Fasc. I—XIII @ /10/ each ००

Ain-i-Akbar{, (‘'ext) F I—XXII @ 1/4 each , oe

Ditto (English) Vol. [ (Fasc. I—VII) .. oe

Akbarnainah, with Index, (‘Text) Fasc. I—XXVI @ 1/4 each ee

Badshahnamah with Index, (16४४) Fasc. I—XIX @ /10/ each oe

, Beale’s Oriental Biographical Dictionary, pp. 291, 4to, thick paper,

4/12; thin paper... Dictionary of Arabic Technical Terms and Appendix, Faso. I—XXI @ 1/4each र, oe ०१ Farhang-i-Rashidi (Text), Fasc. I—X1V @ 1/4 each Fihrist-i-Tusi, or, Tasy’s list of Shy’ah Books, (‘Text) Faso. I—IV @

/12/ €8©}) .. oe Futih-ul-Sham ऽ» 840 (Text) Fasc. I~IX @ /10/ cach .. ee Ditto 42601, (Text) Fasc. I—IV @/10/each = १, ०* Haft Asman, History of the Persian Mansawi. (Text) Fasc. I oe History of the Caliphs, (English) Fasc. I—VI,@ 1/ each .. ve Iybalnamah-i-Jahangiri, (८४) Fasc. I—III @ /10/ each os Isabah, with Supplement, (‘'ext) 34 Fasc. @ /12/ each .. ` ०७ Maghdzi of Wagidi, (‘Text) Fasc. I—V @ /10/ each ०७ sais Muntakhab-ul-‘lawérikh, (‘lext) Fasc. I—XV @ /10/ cach oe

(Turn over.)

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Muntakhab-ul-Tawfrfkh (English) Vol. IT, Fasc. I Rs, Muntakhab-ul-Lubéb, (Text) Fasc. I—X VIII @ /10/ each, and Fasc

XTX with Index @ /12/ te Mu ’fsir-i-’Alamgiri (Text), Fasc. I—VI @ /10/ each oe Nukhbat-ul-Fikr, (Toxt) Fase. I. a Nizémi’s Khiradn4mah-i-Iskandar{, (‘Text) Faso. [and II @1/each .. Suydty’s 1487, on the Exegetic Sciences of the Koran, with Supplement,

Text) Fasc. II—IV, VII—X @ 1/4 each si,

Tabaqat-i-N dsirf 0) Faso. I—V @ /10/ each ee ०५

Ditto 7 lish) Fase, I—X1V @ 1/ each ee ee Tarfkh-i-Firds 87811), (Text) Fasc. I—VII @/10/each = ,, ०० Tarikh-i-Baihag{, (Text) Fasc. I—IX @ /10/ each ०५ oe Wis 0 Rémin, (Text) Fasc. I—V @/10/each =, , ०५ ee

ASIATIO SOOIETY’S PUBLICATIONS

Asiatic Resparcues. Vols. VII, IX to XI; Vols. XIII and XVII, and Vols. XIX and XX @ 10/ each ,, R Ditto Index to Vols. I—X VIII Procegpinas of the Asiatic Society from 1865 to 1869 (incl.) @ /4/ per

No. ; and from 1870 to date @ /8/ per No Journal of the Asiatic Society for 1843 (12), 1844 (12), 184; (12), 1846

(6), 1847 (12), 1848 (12), 1849 (12), 1850(7), @ 1/ per No. to Sub-

scribers and @ 1/8 per No. to Non-Subscribers; and for 1851. (7),

1857 (6), 1868 (5), 1861 (4), 1864 (5), 1865 (8), 1866 (7), 1867 (6),

1868 (6), 1869 (8), 1870 (8), 1871(7), 1872 (8), 1873 (8), 1874 (8), 1875

(7), 1876 (7), 1877 (8), 1878 (8), 1879 (7), 1880 (8), 1881 (7), 1882 (8),

@ 1/8 per No. to Subscribers and @ 2/ per No. to Non-Subscribers

कि. B. The figures enclosed in brackets give the number of Nos. tn each Volume

General Cunningham’s Archeological Survey Report for 1863.64 (Extra No., J. A. 8. B., 186

Theobald’s Catalogue of Reptiles in the Museum of the Asiatic Society

(Extra No., J. 4.8. B., 1868) = ,,

Catalogue of Mammals and Birds of Burmah, by E. Blyth (Extra No.,

J. A. 8. B., 1875) ०५

Sketch of the Turki La guage as spoken in Kastern Turkestan, Part II

Vocabulary, by R. B. Shaw (Extra No., J. A. 8. B., 1878)

A Grammar and Vocabulary of the Northern Balochi Language, by M

L. Dames (Extra No., J. A. 8. B., 1880) oe

Introduction to the Maithili Language of North Bihfr, by G. A. Grierson,

Part I, Grammar (Extra No., J. A. 8. B., 1880)

Part II, Chrestomathy and Vocabulary (Extra No., J. 4. 8. B., 1888).. Anis-ul-Musharrihin _... ०७ os Oatalogue of Fossil Vertebrata ea ५६

Ditto of Arabic and Persian Manuscripts .. Examination and Analysis of the Mackenzie Manuscripts by the Rov W. Taylor .. Han Koong Teew, or the Sorrows of Han, by J. Francis Davis Igtilahdt-ug-Sufiyah, edited by Dr. A. Sprenger, 8vo. ee oe Inéyah, a Commentary on the Hidayah, Vols. II and IV, @ 16/ each .. Jawami-ul-’ilm ir-riyazi, 168 pages with 17 plates, 4to. Part I 9 Khizénat-ul-’ilm ee ee Mah4bhérata, Vols. III and IV, @ 20/ each _.. ee ve Moore and Hewiteon’s Descriptions of New Indian Lepidoptera,

Parts I—II, with 5 coloured Plates, 4to. @ 6/ each Purana Sangraha, I (Markandeya Purana), Sanskrit ०७ Sharaya-ool-Islam ee eo oe oe ee Tibetan Dictionary ee ee eo ०९ ee

Ditto Grammar oo ee ` ७४ Vuttodaya, edited by Lt.-Col. G. E. Fryer oe ०७ ‘is Notices of Sanskrit Manuscripts, Fasc. I—X VITI @ 1/ each we

Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. ए. L. Mitra a

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11 20109

“ue शपा eB] नेगमं कारम्‌ | ९०

RUTH e सिनाति * } aalad श्राषम्‌ एव ‘qa’ भवति, area एव सुहिरण्यः, भवति एवै “खशः, भवति ‘eer’ awe ‘wa? ‘aa’ ‘oxy 'दधातिः ददाति श्र, तस्य किम्‌ ? इ्ति। cua ;— “यसा sso agar प्रातरिलः'? प्रातरागाभमिन्रतिधे! fe प्रातःपातरन्यानि गदाखमभ्बेति, तेनेव arava ‘afte: !*- इति “arama” matt ‘aga’ waa चधाविप्रशननेन प्राणर शेन | "सुखोजयेक aaa, “कुमारः” “पदिः पतितारं afeua “उल्सिनाति way जिनाति, ana, metal सन्ियच्छतौत्यथेः। यथा fe— श्रतिधिरष्वगो भवति, पतन्‌ चृधितोऽन्नसंयोगेन कस्य चिद्‌ afeet atsafaed, एव मेतत्‌ खात्‌ एव मच पतौ “qfe’-waarea; हि अतिक्रममाखः पाश्या बध्यत eye

‘sata ateare” सा हि अवमु्यते पक्िणः पादे, “सय- are” सोयते बध्यते हि तया gat) “aware” 1 सा हि परिणो बधाय तन्यते। एताग्वः क्रियाभ्यो यथासम्भवं “मक्ोजा"-दत्येतद- भिधानं भवति

“qq. इति {, श्रमवगतम्‌। “aga.” xara ih: | साते कौवातु ---° qua” Gl agMey माषम्‌ Bet)

qe संर ९, १०१९ 1 ऊ-पुखकारिक्ेषु सवेनेव मूरुपरखकंष “ततन चः पत्येव पाठः। { र्भा ४९९१० cate | | § "साते Druga wet fate a सौनाहमपं मृदः समयं jeo—— °मुच्य- ` मे ॥*?- दति we Geo, 0, te, ४। 13

és निसह्षम्‌ | [ पृवषटकम्‌ ,

जिष्टुप्‌। awn मूतये nea) हे यजमान ! ‘ar ‘a’ तव ‘Nag? लोविका, या भगवतः यस्य तापप्रकाशङुदयास्तम- यरषादानादिलच्णा प्रडन्तिः, saa सौरये कर्मणा wera त्वं लोवसि दृत्यमिप्रायः। यत एव adage कारणात्‌ तऋोभि;ः- ‘ae खयस्य "विद्धि" विजानौहि ; aaa स्ठतिषविदानादिल- णः प्रत्युपकारः BA | “मा लम्‌ WE उवाय, "एतादृक्‌ VATE सुपकारम्‌ “TAT? मा decd कार्षौ; प्रतयुपकारायाख मभ्युद्च्डसेत्यनिप्रायः रपि ‘eae aya एतन्न्‌; RAAT VE AWA, THAMIA; शः द्यवा way, का fe az बेद?- कस्य कदा ब्टयुरिति लै तक्छतानि भरोभनका- यणि मन्यमानः, He WIT खयोयेत्यभिप्रायः आद, - का पुनः यस्य gefe: जोवातुः? इति “arte खः wud गुरते बुसम्‌” “श्राविष्कुकछतः प्रका्ोकराति खभासा सवे भिद्‌ मुपभाषितं व्यवहाराय कल्यते, ‘a श्रादित्यः ‘ned’ deat रभ्फिभिः "बुसम्‌" उदकम्‌ किञ्च; ‘a’ "पादुः तत्पद्मं agar मवभाखनेन चरणदानादिकन्तः ‘ne’ यस्य 'निणिजः' उपनिरंज- यतु: तमः-पद्ूदिग्धानि खष्ूपाणि सखेन प्रका्चोदकेन धौतानौव करोतौति ` fafia खयः, ae निणिजः। “म मुच्यते नापरमतोल्य्थैः श्रत एव मय मद्य तवोपकारे wet श्रतः प्रत्युपङ्रुष्वास्ा दत्यभिप्रायः एव मन अन्दाथैापपत्ते “पादुः पदनम्‌'"-ृ्युपपद्यते॥ “aa मिन्युदकनाम" * “Aaya”

* gute ९९६० यअ. १९७० (ee) I

Aue ४पा० Lae] Ana काण्डम्‌ | €<

शब्दा यस्य (wate qo); तद्धि weagafa i “भंशतेवी"” तद्धि भ्रश्यते (दि ०प०) सेधात्‌। “यद्‌ वषन्‌ पातयत्यदकम्‌'” श्रा दिव्यः, “ag” “afta. प्रत्यादन्त"-दति समासतो areata” AVISVATY GM (९९)

fa fanart रथमखाध्यायख (पञ्चमाध्यायस्य). तोयः TT ५,३॥

चतुथः पादः

wana भवति विदतज्योतिष्को वा fana- च्योतिष्कोा वा विक्रान्तञ्यातिष्को वा (२०)

‘“ga(( fq +, श्रनवगतम्‌, ` waaay “aa” तावत्‌ “Sagat भवति”; fe “विटठतव्योतिष्कः"” प्रका्ितज्योतिष्को भवति, तस््ादुकः। श्रय “वा” ““विरटतच्योतिष्कः'"- दति ठकः; तदि तस्य faad ज्योतिः,. Maan; दतराणि उष्णानि anata खयारौनि, तान्यपेच्छय 1 श्रय“वा” विक्रान्तन्धोतिष्कः am: ; तस्य हि विक्रान्तं ज्योतिः, दतरेभ्यो ग्रहनचच्तारकादिभ्यो atid: खका- शात्‌ एते चब्दसमाधयः (Re)

* UUTe BRe Yo Ya We 1 + quale मेव व्योतिरजापतितं wha भवति, सत रव विष्ठत awa) “खना MCHA’ TNT VIG FATA (रमार ४०३४०) |

१०० निबक्तम्‌। [पूवेषटकम्‌ +

रुणो ATHY ठकः पथा यन्तं TEM हि उज्नि- wa fast ava प्र्छामयी * - वित्तं a qa रादसो\॥ अरुण ्रारोचनेा मासककासानां (खाबै- मासानां +) कल्ला (भवति 1) चन्द्रमा इकः पथा यन्तं ददश awa मभिजिदहीते निचाय्य येनयेन योष्यमाखो भवति बन््रमास्तश्णुवद्िव yeti जानीतं मेऽस्य ावा्थिव्धावित्यादित्योऽपि इक उश्यते Dare २५॥

“श्रद्णो मासर्‌०-- "सदसो | farsa माप्य करूप afar, कुत्स्य वा श्राषेम्‌ पद्भिः षैग्वदेवो “शरणः, “शारा a” आभिमुख्येन we जगते रचयिता खया after | माषषत्‌, “art agarerat का” माषश्र्दसम्न- न्धादङ्धंमासक्रन्टोऽष्याइतः; तानपि wet नि्मिमोत दइति¶्। “सधमा?” ‘ea are ;- कि करोति? एति, उच्यते ;--“"पया यमौ" ददश हि” नकजमण्डलष्याधोऽदखितः ‘car स्वेन मार्गेण an? ‘<r पश्यति “नक्तचगणम्‌,;- मा मन्धकूपे पतितं - » “‘yeyrral” wi

Hag इश्यते ऊ-ख-प्खकयोः |

{ मेतद्‌ इष्यते क-ख-म-परकेषु |

माज शष्डसमाश्निः eaters, खष्ठप्रतोकवाक्धविददा चेषा we do t,o, ९२९, ९।

1 goals भासकदेनं तु चन्द्रह्येति सन्वाना भाष्यकार भासाना मित्यद्येव SIT सयेमाखाना भित्यारेत्यस्ाकम्‌।

A. UTe श्पा० रख०] ANH RA | Yok

पश्यति, यदि नाम ada aufgzag भस्यास्रायेतापदो मा भिल्यभिप्रायः * किष; “उज्जिहोते निचाय्या तष्टेव ए्रश्बामयो वित्तम्‌” यथा कचित्‌ "तष्टा wer “एहरोगो, afar “तच्छवन्‌"* उच्छं द्नास्यदे बयं Mey वा ?-श्त्यनेनेत्करो ग्वा ‹मिषाययति' पश्ति, एव॑ “axa” श्रणुष्निहोते “an? नक्त- aq “ateyare:”,—agar मयाद्य atm इति एवं ‘free’ “तष्टा” @a qelq दग्रेनेन ततसरेव ““श्रभिजिहोते, aaa सदड्ेदेतोत्यथः | एव AG येनार्थः, मय मादरेणोङ्ककायो हि war पश्चति†; मया लस्या्यी नास्तौतिमा qatar मागम्‌। एव मतो त्रवोमि;- श्रपि तावत्‌ हे “रादसो !' ‘fav? विजामौतं ‘se’ बितच्यार्िप्रलापस्य योऽथः विदित्वा उत्तरत मा awa कूपात्‌ श्व्यभिप्रायः॥ एव AW श्रङुण-त्रन्दान्‌ AAR SATE “टकः = PAN” | चन्द्रमः शब्दा ATA CYT YT, तयाया- पपत्यविरोधात्‌॥ | |

aut शाखिनां “मा सत्‌" इत्येतत्‌ पद्यं भवति 2, तर्षा सत्‌ मां ददे wean, यदि प॒मःपुनः पश्येदवश्छं मोरयेदस्या श्रापद्‌ः; पथा तु यन्तं नचत्रगणं पुनःपमः aia मा मिल्येव- मादि योच्यम्‌

“श्रादित्योऽपि ठक sea” “यद्‌ weR” यस्मादसौ तम WISE, AHS २॥

* दूपपतितस्य जितर्षरिति tte: | t,t पश्चति चन्द्रः; war जितेनेति वोध्यम्‌ | $ सम्पद्क।रपाठतसयेव खरश्तेरिति भावः।

१०९ fanaa | [ पुबषद्कम,

अजेदवीदश्चिना AMA वामास्नो यत्स AQAA कस्य आरह्वयद्षा अशिना * वादित्येनाभिग्रस्ता ता Aaa प्रमुमुषतुरित्याख्यानं + वापि इक उच्यते विकन्तनात्‌। cafe वारण उरामथिः। उरण मिः उरण ऊणीवान्‌ waar qed aes वा टृडवाश्िन्यपि eared शतं मेषान्‌ दव्य TH दान मृजाश्र नं पितान्धं च॑कारेत्यपि निगमो भर्व- fal जोषवाक मित्यविन्नातनामधेयं जेापयितव्यं भवति (RR) I

““श्रजादवौोदयिना०---° विषेण" 2) कचषीवत ada आ्ि- मौ faq प्रातरनुवाकाश्चिनयोः शस्यते | “श्रजोरबोत्‌' ““श्राह- ea” श्राह्कतवतौ “san” शश्रश्विनो !' युवाम्‌ वर्तनभौला "वन्निका' कदा पुनराहयत्‌ ? एति, उच्यते ;--श्रान्नः' ास्याद्यदेनां ‘at युवाम्‌ “श्रमुश्चतम्‌' ‘eae’ श्रादित्यस्य उवाः किल “श्रा- दि्येनाभिग्रस्ताञ्धिनौ” श्राह्ृतवतौ, “ता मश्िनौ प्रमेाचितवन्तावि- ल्याख्यानम्‌*-एतसिननर्ये वेदयन्ते निदानविदो agen, तदणयुपे-

` * “ggaqrifyar”? क, मन “श्रमुसच्तुरित्याच्यानं”” म, © | = 9 a { ‘are इत्यजिन्नातनामभेयं”- दूति क-ख-न-पुखाङ्ेषु हत्ताविडवमेव; पर Tags “जाषनाकम्‌'*-दत्येव TTT (भा०४६०७०१२प०), निमनेऽ्यव wa i ~ ~“ § Cqarenetuat cena \ fa AIA यथः Slag जतं विचा

अरदतं fate 1 रति we सं १, ८, १९, ९।

“Geo Bute इर] नेगम काखम्‌ | oR

कितव्यं मग्धायमिलैयाय ° एतख यवयो महाभागम्‌ | freq “विजया ययथः araz.” | ‘frre विजय मिच्छन्तौ aat aaa: गच्छयः, ‘ara’ समु चितम्‌ “ag, मेघस्य शिखर मार्ह | किञ्च ; यवा मेव ‘aay उपद्रवं chien छत्रस्य जगतः, “वि- are: विश्वगश्चनौ ; aiat गतौ भवा, मेधनालेनेदं a8 मभि- प्रच्छाद्य, ततः ‘ae? इतवन्तो स्यः ; "विषेण" उदकेनेत्यथेः यथाऽस्िम्‌ कशब्देना दित्य उच्यते, तथाऽऽख्यानादुपेकितव्यम्‌ 1 ‘ony ठक उच्यते", “fat” विविध मघो शन्ति TAZA: | “aaifggme-—e faa धिया” { प्रगायपुचस्य HAUGH | सताबृदतो | महाव्रते चाज्नोतिषु विनियुक्ता शटक- faa’ ठकोऽपि, oar सखारमेयोऽस्येद्धस्य जिद्यत एव "वारणः" वार विता श्चरणाम्‌। fa सुतान्यान्युपकरणानि? “उरामयथिः' “उरण मयिः”; उरान्‌ मेषान्‌ यो agra उरामयिः। पनरस्यन्म्य ansafa’, वयुनेषु" प्रन्नानेषु ; यदेवासोौ विजानते आ्राख्धषलयं wafafa, तदैव।सौ श्राग्धषति | aw तवैवं सवीपकरणसम्यन्नलम्‌ हे श्र! ay लम्‌ (दमम्‌ "नः" TTA स्तोमम्‌" उपश्रुत्य “safe श्रागच्छेमं uy शप्र प्रकर्षेण “चित्रया' चायनौयया कर्मनौयया ‘fray बद्या सरमा fe देवश्टनो श्रयते 2 तत्पुच्रनप्रभिञख्च देवार्ना

* Sara} eae यक्िका ana यवं मरा मासत्याभमक्तम्‌। "दूति (wae संर १, ८, ९०, 8), VARIA सायशोयं द्रश्यम्‌।

we do १९, ८, १०, ४; ६९, LUMA पय्यालेाश्यावित्यथेः |

{ ““हकं स्विदस्य वारण उरामथिरा वयनेष भूषति। सेम म, जोम जजषाण खा मरोन्द्रप्र चिव्याधिया॥-द्ति we de १, ४, ४९, २,

“कि मिष्छनो सरमा (we Ye =, ९, ५, ९८ रत्यादौ Rew |

१०४ निरक्तम्‌ | [पूवेषटकम्‌,

भवितव्यम्‌, तस्मात्‌ श्वापि टक उच्यत इत्युपपद्यते ; इतरेषा मारं कारणां परिवहाभावात्‌ SU मन्त्रस्य VAIS ge: परोाचकतः;-टक्चि- दस्ेव्यस्मात षो योमात्‌ | SAT HOVRA: ;-- प्रागरोक्त्यस्मान्म- ष्यमपुरुषयोगात्‌, खम्बोधनाच देवता faa परोला Beara भत्यस्तोभवति | तदेतत्‌ सर्वेश्ेव्नलणेषु मन्तेधुपेलितथ्यम्‌

निममप्रषक्न मुच्यते ;- “उरणः = अखावाम्‌' ' ऊ्चया ALTA “भवति” “ser पुनष्ंणोतेः"" इति विग्रप्रसक्म्‌। ता शपि न्ोतबाणाथे fare) “Sea” आच्छादनार्थं स्यात्‌, ताभिराष्डन्र उरणो भवति

“sgafeafa cared” येवा ag वाग्ते,- शिवा, सापि ema; विकर्लणादेव | “nd मेषान्‌° ——e भिषजावगवैण्‌ अजो इवौटित्यनया शमानर्षिंयम्‌। श्रतं मेषान्‌" ‘aw’ feara, तया वाग्िते बति परितुष्टः ‘wed’ व्यादिष्टवान्‌ "दानम्‌. येय मेवं waa मभिप्रखिताना aga मथेसिद्धये वाश्यते, aa, श्तं माणां दौयता मित्येव माज्ना पितवान्‌। "ऋञ्चाश्नम्‌' a_qrat नाम राजयः, तम्‌ ‘A WY पुनरोव व्यादिष्टवन्त मतिसादसिकोऽय- मिति “पिताः कुपितः, शापेन “yay? "चकार" छतवानित्यथेः ‘aq एव मन्पौग्ताय पितरभिग्रापेन, ‘wa? श्र्तिणो, ‘area अञ्चिनौ देवौ, ‘faea’ विगतदश्नाय ‘arena’ | ‘zat’ दथेनोयौ afaati ‘farsi? रेवभिषओौ | भयसादयितारौ, “wd? चुः

* “ne मेषान्‌ eat चचदु ca qa मं पितायं च॑कार तखा aw staat विख Grud <4] भिषञावन्‌वेन्‌+- इति we सं १, ८, ९१, ६।

५० पा ome] ATA काण्डम्‌ | १०५

अधनम्‌ अना्ित मन्यत्र कवित, खप्रधान faa: एव मत्र मेषसम्बन्धाद्‌, व्याख्याने नथाथेतोपपत्तिदर्भेनात्‌ “agafwt इक्च्यते--द्य॒पपद्यते

“site (CO इति *, श्रनर्वंगतम्‌ “श्रविन्नातनामधेयम्‌'*- इत्यभिधेयक्चनम्‌ ““जोषयितव्यं भ॑वति" ईति शन्दसभाधिः। जोषयितव्यं विज्ञापयितव्यं परस्मै तद्धव॑त्यस्यष्टलात्‌ (९९)

इन्द्रा सतेष वां स्तवत्तेधतादटधा | जोषवाकं वदतः पञ्रहाषिणान Say भसथश्चन इन्द्राभ्ी सुतेषु वां सोमेषु स्ताति तस्याञ्रीयाऽथ याऽयं जाषवाकं वदति विजश्ञपः प्राजिंतहाषिणेा नं देवौ तस्याञ्नीथः Bia: छन्ततेयेशे वा Wa वा! महीव क्तिः शरणा इन्दर | सुमहन्त इन्द्र शरण मन्तरि से छत्तिरिषेतीय मपीतरा छत्तिरोतस्मादेव BI मप्युपमाथे' वा | छत्ति- वासाः पिनाकदस्ताऽव॑ततधन्वेत्यपि निगमो भवतिऽ | श्वघ्नी कितवे भवति खं इन्ति खं पनराश्ित्‌ं। भवति। छृतं am वि चिंनाति देवने aa faa ant

= qure ४९० Ge te Ge “न्जोषवाकम्‌?*-दूति। “aa: aa ar? रू, qi ear तु “aati a’ रत्येव। { “मन्तरिकः' क, ख, म। § “afr क॑सान्‌ Wt चर्‌ पिनाकः fauar मरोत्यपि नमो भवति--इति रू-च-पुरकयाः ; पर uffaaz: | | “aaa” क,ख, “TET” S| 14

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विचिनेाति देवने fara: fat तवास्तीति शब्दानुकतिः शतवान्वाशोनामकः * सम मिति परिग्रहार्थं aa- नामानुदात्तम्‌ (RR)

“य द्रा सुतेषु, ate भखथस 1 भरदाजस्येय माषम्‌ Beal हे ‘carat ‘a: यजमानः “सुतेषु" श्रभिषु- तेषु सोमेषु ‘al युवां ‘way “alfa” तेषु" कमस “ता- eur सत्यवद्धंयितारौ, यज्नवद्धंयितारौ वा “aw” युवाम्‌ “्रन्नौ- चः" य॒वयोः बमत द्यभिप्रायः “aa” पुन; “योऽयम्‌” ““जोषवाकम्‌' afama किमपि sigs "वदति" “fasrea:” केवल मुदकतो रेऽवस्थितोऽन्यज वा जपननोल एव ; कमकारौत्य- भिप्रायः | तस्य “जोषवाकं वदतः' "पञ्जहाषिणाः हे “प्राजितदो- faut 1” प्रधतयागौ | ““यदिग्धख afirg यिष्ठभाजौ देवतानां तस्माद्‌ ब्राह्मणख्च राजा यिष्ठभाजौ area भिति विज्चा- यते” “देवा, हे “fat” ‘a भसथश्चन" कदादिदिपि तष्य हवौंपषि भकययः; तेन यवयोनासौ asad इत्यभिप्रायः ae “जोषवाकं वदतः", “न भषथः"-षृत्येतद्‌ दृष्टा यः सुतेषु sag सौति, तख भय दत्यतदष्याइतं भाव्यकारेण एव मन विजच्नपस्य भरयतव्याभावाव्नपसश्च चोपा श्टुखाभाव्यात्‌“जोषवाक”- शब्दोऽविन्नातनामधेय frag

* ^कितवान्धाग्टोनेामकः०--इत्येव मेव पाठः स्वे छ-परूकातिर्ङिष ; रभो

US-VISIT रब we Ge ४, =, २४, ४।

RW Byte Bye] नेगमं काण्डम्‌ १०७

"न्हनिः(९०)१--दति *, अनवगतम्‌ , अनेकाथेश्च | ““छन्ततेः'*- दूति waft: “यज्नोऽखनं वा-दत्य्थंवचमम्‌। कन्न मिति न्यायम्‌; att fe दिषतां anu waa, wa agama मायुरेव छन्तति “a सुत्वा sae —— emt waaq” fl नुमेधषः पिवमेधभञ्चेय माषेम्‌। सतेबृदतौ रेन्रौ चतुविश्ादिषु साचिकि- seg माध्यन्दिने ब्राह्मणा च्छंसिमः wa स्तोजियानुूपवगे विनि- anti (तम्‌ ताः हे ‘age प्रञ्चावम्‌ ! ‘read’ faaguart राधः wt मित्र पिच्य भागम्‌ उत्पन्नप्रण्यलाद्‌ महः तचोदेहि ख्थिरण्रौराणां तदेतदस्त॒ नः किच्च; ‘ata रन्तिः" महदिव am, मद्द्‌ वा BAR “शरणाः शरणम्‌, WEA "तेः तव हे cx |" यद्‌ “श्रन्तरिक्षलाक'", ace प्राञ्नवम्‌' किञ्च; ‘a तव gar’ gata बलघम्बन्धानि सुखानि, लद्धोग्यानोत्यथेः। यदा ; सुक्लानि, सुखसाधनानि ; च्र्ठरप्र्ट तोनि प्राश्य महम्‌ तदहं wa सुन्वान; तस्याभिषवकमणो मादहाभाग्येन, येन वत्साय मञ्चयाम्‌, senate fay चामु सेतत्‌ मः TAT मस्तु त्वन्न इद्यभिप्रायः amt fe fate भवति, तेन हि गदस्योपमान मुपपद्यते | यदनु पव्ष्टानाम्‌ अ्रसनापिपासे सतः, तदहं तव गदम्‌ maar मित्येव मन्तेनाप्यपपद्यते इयम्‌ श्रपि दतरा शतिः एतस्मादेव” | qaaal कन्येति था

qute ४१९१ इ. ede) P é 4 वि ~ नम्‌ awe मनुर्‌ प्रचेत रणा भाग सिबेमडे। मरोव शशिः गरणा ' “I TORT A सन्ना a अन्नवम्‌ ॥'-ट्ति we सं ९, ९, १९, ९।

Yes fama | [पवेषट्‌कम्‌ ,

प्रसिद्धा, साप्येतस्मारेव wend:; at fe वस््रावयवेः दुजर्ययिता* भवति “उपमा वा" चमापि छत्तिरिष्टुच्यते तयेतरा gaat उपमौोयते, विकन्तनसामान्यात्‌ सन्ति रिव छंत्तिः कन्था 'हत्ति- वासाः पिनाकष््तोऽव॑ततधन्वा, इति व्याष्यातोऽय मष्टमेऽधयार्या निगमः‡

“घ्नो (<) दति, श्रनवगतम्‌ | “कितवो भवति*-दत्यभि- धेयन चनम्‌ | “खं दन्ति"”-दति शब्दगयुत्यत्तिः खडा इति न्याग्यम्‌। faneram . सुष्यते ;-“खं . पुंमर्‌ात्रितं भवतिः”; तद्धि arfaa माभिसूख्येन भितं भवति खलेन “छतं ad) पि चिनोति —e mam” ly हृष्णसयाङ्गिरसस्ेय माषम्‌ Ratt oat तान्नौंवस्वनिकेषु उक्यपयीायेषु ब्राहाणाच्छंसिनः wet विनियुक्ता | यथाच छतादोर्नां दायानां मध्ये कितवः ‘ad विचिनोति? देवने" श्रास्तारे; अपि नामाच wd यस्मात्‌ ततो येच मह भित्येवम्‌ मघवा" द्रः ‘date’ उद कसंवजयितारम्‌, श्रन्तरिकते, बहनां मेधानां a, विचिनेति,-कतमस्तेर्षां मेघाना भुदकदाने aay: ? दति, तं विश्चाय ages "खयम्‌" सुषु ईरयितार मपाम्‌। ‘a’ “तत्‌ ‘2

‘ghd यिता रोाथ्‌-सम्यादितटटत्निपखकपाठः।

याख्छेयदडतोये इतियावत्‌ qure २४९.४० ल्प - 4८४० एषं rEg

{ रकू-च-पस्तकयेरमव निगमे cmd ; तज लय afe,—“atn सान्‌ (यन बा de ६१, ५९) इत्यादि

§ र्भा ४१९ vo ove |

|| ‘at way fa धिनेति देवने ead’ यण्मुषव्‌ा qa ` जयत्‌ तभ न्यो अम Tey we TU Paani मतनः॥- दूति we yo र, ९४, ५।

wee ate uae] ana awa | १०९

तव ‘wa? कञ्चिद्‌ “्रनुवौयं wary’ तद्‌ वोरकमं तावकम्‌, श्रन्यः कश्चिदनकतु awe: a? श्रपि "पुराणः" उत' नापि ‘aaa’ मव इत्यथैः प्व चक्रुः, मापरे करिव्यन्तोत्यभिप्रायः | रतसम्ब- ae देवनसम्बन्धाच “प्रौ = कितवः? --इव्युपपद्यते

WA मन्त्रस्य WIS_e: Wren, एव विपरिणमयितयः ; अच atm: समाच्िः॥ |

निगमप्रसक्र मुच्यते ;--"“कितवः'"- इत्यस्य शब्दस्य “fa तवा- स्तौति एषा “warqafa:”; fe नित्यकाल मेव दिदेविषुः प्रतिदेविटभिः, कितवः ष्ष्छते- किं तवास्ति, तस्माच्छन्दानृकर- णात्कितव एवासौ ara) श्रथवा ““छशतवान्‌"' श्रयं यथा स्छादित्येव मघो aurea सुदद्धिरन्येः कितवैः; fe तस्मादेव माभ्राखनात्‌ “श्राजनोः?"-मिमित्त-““नामकः” कितव एवासौ ब्व

“समम्‌(९<)०- दूति *, एतत्‌ ““परियहायौयं सवनाम” तत्‌ पुनरोतट्‌ ““श्रनदात्तम्‌''; ““लत्वसम सिमेत्यनु्ामि"-- दति waat | विप्रतिपन्नसखरलाद भाव्यकारेण सखरोाऽवष्टतः, TU चाष्यनेकार्थ- aye भवतोत्येतत्‌ प्रदतं भाव्यकारेण (२९) ,

मां नः समस्य Sar: १.परि देषसे श्रतिः ऊर्न नाव मा व॑धीत्‌ मा नः सवस्य दु्चिंयः पापधियः स्वैता देषसे श्रं हतिरूभ्मिरिव नाव मावधीदूभ्मिरू-

* भार ४९१९० unde “समस्य” दूति। fee we uate ९।

६६० निसक्घम्‌ | [पुवषट्‌कम्‌ ,

WAAR प्रणोत्तव्या भवति नमतेवी तत्कथ मनुदात्त- प्रति नाम स्याद्‌ इष्टव्ययं तु भ॒वति। उने समस्मि- ख्राशिंशीहि ना वसो इति सप्तम्यां शिशीतिदानकम्बो | उरुष्या a अधायतः समस्मादिति wat मुरुष्य- तिरकर्मकः।। अथापि प्रथमाबहुवचने | नभन्ता ATH समे ५८२६)।

“at नः षमख्यग्-न्मा चोत्‌" विषय श्राद्गिरष एता Ha खक ददशं गायनौ WHAT दशराजस्छ adlasefa भरातःषवमे we aM विनियक्ता ₹े भगवन्‌ श्रे ! यु्मत्प्रसारात्‌ ata? ata, “वमस्' vaea, ‘gq’ दुधियः पापधियः, “परिदेषषः' सवतो Tz, qm, श्रतिः वध cares “ऊभिने' aff, यथोभिंनाव माभिसुख्येन गवा वधयति; मैव मंहतिर- शान्‌ देग्यप्रहितोऽवधौदिति॥ एव मच सवैखमादेव ददटुवधानभोष्ट- त्वात्‌ “SAU” - इत्येतत्‌ सवनामेल्युपपद्यते

“ऊर्मिः, Sula” श्राच्छादनाथस्य; सा qreatzata तौर ganna वा यदन्यद्‌ भवति “at: प्रणोत्तव्या भवति" पारगम- ara; “नमतेवा" स्यात; सा हि agtada भवति, पारगमनाय॥

© “ग्कुौदष्याङा"”

“सव्यतो रथाकमा” ङ, “रचाकमेायापि"* © |

§ qe ७० ९, ४, २४, ४।

ध्यर Bute ख] aaa काकम्‌ | १९१९

ate; यदेतत्‌ सम मिति अन्दरूपम्‌ ““श्रनुदान्ल प्रहति"” श्रमु- HANA, “Aa कथं नाम स्यात्‌ ? 'श्नुदान्लप्रकतथो हि निपाताः, उदान्तप्रकतीनि ania भवन्तोति उच्यते ;- द्रष्टव्यं a” एतद्‌, यसमादनु दान्तप्ररतिलेऽपि सति, तसान्नारमेवैत्‌ “भवति!

श्राह; पुनरस्य व्ययो दृष्टः? इति, उच्यते ;--“उतो शसम- feat faite at वमो-दति सप्तम्याम्‌" व्ययो दुष्टः। “fear सखित्व yao ° गोमति" al भरेराषम्‌। सताबतौ | VaR श्राख्याने विनियक्रा “विद्म विजागोमो षयं ‘afea’ सखिभावम्‌ उतः श्रपि ai हे ‘sa वञ्जिन्‌ ! एद ‘ate’ भोग्यम्‌ श्रश्रोपलोव्यत्वं भिज्राणम्‌, यता वयं श्रा tay शआ्राभिसुख्येन faa याचामहे, ते" तव यानि धनानि। किञ्च; ‘sar श्रपि ‘wafer सवेसिन्‌ ‘famlfe नः" देहि sears हे "वसे" वसुमन्‌! दन! पनरागिोहि नः? इति, वाजे" ma wari) हे ‘afm’ हे सुनस!, अथवा हे सदना! "गोमति" गोभिस्तदति wa, war प्रतिष्टापयेत्ययः एव मज eafatafa सप्तम्यां वयो दृष्टः

““उहग्याओा श्रवायतः समस्मात्‌ दति पञ्चम्याम्‌" व्यथो दृष्टः “a ने नधि०-र्खमस्मात्‌”†। अ्तबन्धोरार्षम्‌। श्राग्रेयौ।

* “भविष्या fear मत Qed माते ता व॑जिद्रोमरे। var समशिता fiewife 3 वसो वाजं ufny ara fir ॥**- दूति we do ¢, &, eR!

+ “a wre ग्सरिभ्यः। सना बोधि aw वं HEMT SAT AT: खम- wiq ॥- रति ae are षं र, eC

१९१२ निखक्तम्‌ [पूवषटकम्‌ ,

दिपदा ware विनियुक्ा। यः aaa, यथा- प्रभावं at वय मवेाचाम। खः ववं हे भगवन्नप्ने! नाधिः que “नः” sera भभिप्रायम्‌। “ay qo (हवम्‌ wig मिदम्‌ श्राह्कतख 'उरुष्याणः samara, “yeaa: पाप मिच्छतः समख्ात्‌' स्वेस्मात्‌ पादि एव मच समस्मादिति पच्या चयो दृष्टः

तस्मात्‌ व्ययद शनाृष्टानुविधिग्डन्दसि भवतोति छतवाऽनरान्त- ्रहृतिवेपि सति मामेतद्धवतोन्युपप्चते ° (९३)

इविषा जारा rat पिप्॑तिं पपुरिनैरा। पिता कुटस्य wate: इविषापां जरयिता पिपत्तिं पपुरि- रिति एणातिनिगमौ वा प्रीणातिनिगम वा पिता कतस्य कमंणायितादित्यः शम्ब इति वज्रनाम शम- यतेवा शातयतेवा उयो यः शम्बः पुरुहृत aaa निगमो भर्वति। केपयः कपया भवन्ति कपय मिति पुनाति कम्मे कुत्सितं cord भवति & (२४);

“gza@, चषणि;(०५- इति t, एते श्रनवगते। “हतस्य “वचायिता"-इृ्छेतौ श्दसमाधौो एक एव निगमः —“efad जारो ०- ग्वं णिः" दटति 2 | प्रसकावस्याषंम्‌। waaay | a

* qurtanf< मल ware मेव faa रतदक रब age: पाद्‌, केषचिदु रोथरटटपखकेष (रायग्म, Rove) { र्भा° ४९९९० १८ Go | § Wo Got, ९, UR, ४।

अर Bato शख] नेगम काण्डम्‌ | १६९

रमुवाकाश्चिनयोः शद्धते हे “भरा at! श्रशिनौ ! gana एषः ““च्रादित्यः,', "पिता" पाता, were जगतः ‘ate’ “शतस्य कमणः” सावेभौमस्य साष्वसाधुनः। चवंणिः' “erfem” द्रष्टा, बुद्यधिदेवताभाषेनावस्ितः श्वे्डतानाम्‌ ‘swat जार्‌ः" wat सवेग्डतान्तगेतानां प्राएभावेनावस्यिता* ओरथिता, भोषयिता ! "पपुरि" पुरयिता प्राप्ते काले ‘efaar उदकेन “पिपर्ति पूरयति वा प्रीणयति वा यौ युवा मेवङ्गणयुकेनादित्येन qua, MUG वा, तौ युवा मिमां wares माषं wagaa मित्येव मागोयाञ्या wa मत्र ““कुटस्छ-चषणिः”*- दृत्येते हतस्य चायिते- त्येव सुपपद्ेते नरावच्र ्यावाष्थिव्यावभिप्रेते †, तथोखोदकेगा- दित्यः पूरयिता तस्मादादित्यविषययिता चषेणिग्रब्दसछ ; तैस बुद्यधिदेवताभावेन रतस्य कमेणो gem सुपपद्यते “पिपर्ति “पपुरिःः--शव्येव Rat निगमौ शब्दौ “gaara वा प्रोण्य- त्यी वा” |

qe.C0r—cfa lt, श्रमवगतम्‌ “agata’—rafrae- वचनम्‌ “safaar वा शातयिता वाः-दति weaaret | “्राराच्छतु °--°वाजरताम्‌" कृष्णदा ङ्गिरसस्याषेम्‌। Fg

* “gon खल वा श्वादित्यः wife safe प्रशयति, aged प्राक दृत्याच- अते ।'- दूति to त्रा uu, ९। + ““त्कावश्िनो द्यावाऽयि्याविव्यक्े”- इति ve द° wre ९, ९, ९। I श्भा. ४९२२९४० Ree | § grey ad arya EX a a Wa: पुरत at Ga पेष यवमृदु गोमदिन्द्र gurl धियं जरितं वाज॑रलाम ॥* - इति We Yoo, ८, eee 19

१९१ निरष्नम्‌। [ पृवधटकम ,

माध्यन्दिने aaa स्तोमा तिशंसने ब्राह्मणाच्छंसिन; wa विनियुक्ता हे "पुरत" बह़भिराद्ृत ! ‘a’ एषः, “sca समोपे waa and शुः, तं दूरम्‌ “श्रपबाधख' armas: श्रागाच्छन्दो $ समौपाथेवाचो अन्यचापि चोक्रम्‌,--“श्रारात्‌ प्राग्व्॑ाद्दया- स्मयो "रति किं पुमरपबाधसख ? उग्रो यः भ्न, उदरौ यो ay, तेन॒ श्रपबाधख fay, तं दूर मपवाध्य श्रम" Va ‘ify दहि “यवमत्‌ यतैस्तदत्‌-त्रौहिगोधूमादयन्नम्‌। श्रपि गोमत्‌! गोभिस्तदत्‌-पश्चादिभिः। कचि; त्व मेतदेवश्ुशक मन्य मन्नं ददन्‌ "रपि कुरुष्व इमां "धियम्‌" एतत्‌ क्म, "वाज- va? वाजरमणोर्यां, प्रचरेणान्नेन atafa कर्मणि वमाना रमेमहि, तथा कुर्व्वेद्यमिप्रायः सौरिति कर्मनामसु पटितम्‌,- ‘ah, श्तौ? --इति *। ए३ मचापवाधनसम्बन्धात्‌ ““शम्नः"-द्येतद्‌ वश्नामेन्युपपद्यते | अपठित मेतदञ्जनामसु 1-एत्यताऽप्रसिद्धायेमः दीवम्परकरणादथसिद्धि्भवति

“केपयः(०९,,- दूति १, श्रमवगतम्‌। “ayer” ga सन्तः कपय ea) श्राह ;-“कपूयम्‌” -“ दति” कि gn भवति? उच्यते ;-यदेतत्‌ पापकारौ प्रायचित्तेन “पुनाति कमं Hfaaa”, ae तद्‌ “qa” दुष्यावं “भवति पूयमान मपि, एतत्‌ कपय

भि्ुश्यते ६८९४)

® र्भार RG LHe (९९), (RR) QuTe REE ४० RW ९० Ge (९)- (१८) | T Rute ४९९४० ४प०।

yz 8चा० o@ ०] नेगम काम्‌ | ६६४

VAR प्रायन्‌ प्रथमा देवह्लतयेऽङगडत वस्मनि दष्टरा। ये शेकुर्यत्नियां नाव॑ मारु ata a न्यविशन्त केपयः प्रथक्‌ प्रायन्‌ प्रथक्‌ प्रथतेः" प्रथमा देवहतया ये देवानाश्लयन्ताकुवत अवणौयानि। यशसि दुरनुकराण्वन्धर्ेऽशक्त वन्‌ यत्नियां नाव मारो- ey मथ ये नाशक्तुवन्‌ यक्षियां नाव मारोल्हुऽ मीव ते न्यविश्न्तेहेव ते न्यविशन्त ऋणे val ते न्धविश- न्तास्मिन्रेव शाक इति वेम इति बाषनाम समोरित- तरो भवति रता विश्वा सव॑ना aq मा षे खयं Bat ससो यानि दधिषे। शतानि सवाणि स्थानानि तूखं angel खयं बलस्य ya यानि धत्खांसच मंडसस्ता रं^* धनुवेा कवचं वा कवचं कु अश्चितं भवति काज्चितं भवति कायेऽज्ितं भवलीति वा ॥७ (२५) `

“पर्क प्राय॑न्‌०--° केययः'? †1 पुवेयेव समानाषविनियोगा ; यन्त॒ जगतो ्रयक्‌ प्रायन्‌" थग्‌ wat एव ॒विद्ा-

# “gua: “(gue प्रथतेः)”

^नडयन्ताकुवेतः चवकौयानिः क, ख, | {,§ 6 artis” च।

|| “शेगवः क, ख, म।

“सनौरिततमोः' |

° “"संदसजाशंः' क,ख, |

tt we doo, ८, yo, ut

६९६ निक्तम्‌ | [प्वेषट्‌कम्‌ +

ware; देवयानेन पथा, fazarta वा ‘ary’ हे CK! AMMA देवलाक गन्धवलाकं पनः उच्यते श्रथमाः देक्हतयः' ये मुख्या देवाना माङ्कातारे यत्‌ कर्म॑स्‌। fae; "दुष्टरा, “अन्ये: श्रसद्धि दुस्तराणि शश्रवस्छानिः “samara unify” श्ररृखतः श्रकुवेत fay; भ्ये त्वतप्रसाद्रहिताः wat, ‘afqat नावम्‌ °, श्रारुदम्‌' “artteq”, शेकुः" aa अय पन्य नाशक्तवन्‌ यञ्जियां नाव मारोाढ़ं किन्ति ? विषयप्रधानाः, aya मेव guy मेव कम चक्रिरे ; तेनैव कपुयेन कमणा प्रियमाणा: "ते", Ha “ea” लाके यथा कमानद्टपायां धोनौ न्यविधन्त तदुक्तम्‌ ;--““श्रय दद कपुयचरणा श्रभ्याो- इयत्‌, ते saat योनि मापद्येरन्‌ ;- श्वयोनिं वा, एुकरयोनिं वा, चण्डालयोनिं वा-इत्येवमादि॥ एव मज ये ag: धनियां माव मारेादु मित्येतेन सम्बन्धात्‌ “केपयः = कपूयाः”-- दृत्ुपपद्यते

# “यन्नो तरै सुतभे मोः, wearer बे aaa नो tne सुतम मौ वैच मेव NITY तया खमे" लाक मनिसमरन्ि ।?- दति te त्रा ९, ९. किच्च ; “nga Gak WACTHT Wa at waaay Gaqgt Tiny बासते। तदय) सेरावतौ नावं पारकामाः समारारेयरोव मेवेताल्िद्भः eatrefa —cfa to mre ९,४,६।

“mare vaya? —xaa मेव ufareagia: पर, wafyes: |

t “a इड co@eqca खभ्याराखयत्‌, वे रमशोयां यानि are, जरा qa वा, अजिययेानिवा, वश्यानि वाऽथ इड कपुूयचरवार अष्डारूधानिं वाथेतयेोः Vara कतरेणचन, तानोमानि अद्राश्यसकदावरनोनि भूत।- नि भवनि; जायख-चियसेत्येतभुतोयं श्यागम्‌ i°— इति wre wie ०, te

“Me BOTs OB] aaa aaa | १९७८

शष्दसारूष्यप्रसङ्गा दुच्यते j— FH इति बाङ्नाम'?--दति, हि “समोरिततरे भवति” एतेभ्योऽङ्गभ्यः

"ल्रतुम्‌-श्रारृषे(०४,-द ति *, एते श्रनवगते | ““तरूतुम्‌ः--इत्यस्य “qua ’—efa णन्दसमाधिः | “श्रारुषे-द्त्यश्च “उपाकरूषे”- दति शब्दममाधिः “एता विश्वा०--°वचचः? t ieee वैकुष्टस्येय भाषम्‌ BR खक निविद्धानौये मदात्रते मद्क्ये wea | “एता एतानि, ‘fear विश्वानि, स्वणि स्थानानि त्व सुपागम्य तेनतेन देवतात्मना कुरुष्व निवत्तेयेत्यथेः | are; कतमानि पनः स्थानानि? उच्यते ;- “सवयं खना सदमो यानि दधिषे" हे श्ना सटः बलस्य ya! ‘atfa’ एतानि खयम्‌, एव दधिषे धारयसि, तानि त्व मेव audi यत एवं कुरुषे, wa एवं a मेव धारयिता खष्टा चास्य जगतः श्रत एतस्मात्‌ कारणात्‌ "वराय वरयितयाय, “A तव, “पाचम्‌' एतत्‌ समये प्रदिश्रामः | yaa धारयित ‘aa’ धनं च, सवे aaa ‘aw’ Rea, Aad | "मन्तः? कर्मकरणः, तवेव ‘Ag’ ural, ततैव | "उद्यतं चेनदनेकप्रकार मपि स्तुतिलक्षणं ‘aq, तवेव एव मजर mayen “ठतुम्‌?--इत्येष शब्दः aw मित्येव मुपप्यते करणसम्बन्धाच ; यद्धि कमे, au मेव करण faad कदेभिः तस्मा दुपपद्यते “श्राकछेः?--दत्यच्ापि यद्धि क्रियते, तदुपग-

—————

* श्भा" ४९९२ ge eye |

“car Pargre—eafut बरायते पाज wae, तम ast weet were वचः w—xfa we Yo ९, ९, ९।

{ “a योश ब्रहमत्यपाले- इति wre ब्रा ९, |

१९८ निशक्तम्‌। [ पूवंधट्क्रम्‌ ,

म्याभिमुख्येनेव स्थिता क्रियत इति “उपः-श्ष्टोऽच भाव्यकारे- णाध्याइतः

aa “खना! aga’ —raaarfanafarigigqal मेता aa wat केचिद्‌ area; afafe बलेन मथ्यमाने जायत इति तथा fe प्रकरणविराधो भवति ai gaexa tea लस्य “gat !”-“.खदषः"--दत्यनयोः पदयोरयथयोजना, श्रधिदव- ताभाषेन; प्राण इन्द्रो व्यवस्थितः, तस्येतरो यः प्रजासु व्यादिष्टः प्राणस्त पुचः ;-दृत्येव सुपपद्यते पिदढ-पुचभावः | तदुक्रम्‌ ;--“भ्राणो वा ae मसि, me, प्राणः सवाणि ढतानि-दति°

“gaqa’”—efat, श्ननवगतम्‌ विकन्यतश्चानेकाथम्‌ | “seg, नाणएम्‌"-दृत्यथेप्रतोतिः | “धनवा wad वा"--दृत्यभि- धेयवचनम्‌ ; ताभ्यां fe पुरुषाः शाङ््यराभिकाः, श्रं दसस्वायन्ते | आख्यानप्रषक्र सुष्यते ;- "कवचे, g-afaa भवति" कुटिल मशि तम; fe तस्य खभावः। saat “ayaa” कुरिलोकतं “भवतिः श्रय वा “arasfaan’ तद्गतं “भवति' ॥७(२१५)॥

प्रोणीताश्चान्‌ हितं जयाथ सखस्तिवाह रथ मित्‌ away | RUE मवत Awa मंसंचकाशं सिब्ता नुपाणम्‌॥ प्रोणीताश्वारत्सुहितं जयथ जयनं

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* “Tet वार esa ोवेतानि atife भवति दति ate wre ९,९। र्भा० ४९९ vo ९४ Te | { “श्रौकोताख्रान्दितं” क,

UG पार उख) Ana कारम्‌ | १९९

at fea मस्तु खस्तिवाहनं रथं कुरुध्वं द्रोणादावं द्रौं द्रुममयं भवत्याहाव श्राह्णानाद्‌वह आ्रावहनाद्‌वतो- faa महान्‌ भवन्यश्म चक्र AWAIT AAT fafa वांसच्रकाश मंसचाणि वः+ काश्थानीयानि सन्तु काशः कुष्णातेविंकुपिता भवत्यय मपीतरः काश रतस्मादेव सज्य BAA Awa भवति सिश्वत नुपाणं नरपाणं HIG सङ्गाम मुपमिमीते का- कुदं ताल्वित्याचश्षते fiw कोकुवा सास्मिन्‌ धीयतं जिन्वा केाकुवा केङ्खयमाना वखीनुदतीति। वा को- कूयतेवा (स्याच्छन्द कमणो !) faq जेवा तलु तरते स्तीणंतम मङ्ग लत्वा स्याद्‌ (anwar ९) विपरीताद्‌ यथा ae लतेत्यविपयय॑ः॥ (२६)

“Pa Ara नपाणम्‌" बुधस्य सामपुचस्येय माषम्‌ | Baza aa) ‘Mala’ प्रणयत यवसेादकादिना एतान्‌ “ware उपम्ितोऽयं agra इत्यभिप्रायः भरोणयिवेतानश्रानेभिरशेरप- जातवोरयैः ‘fea’ “ated” ‘sare’ “जयथ, “जयनं at हित

* “Sdguife aa ual “daafe a” 4 I ““रमाच्रुदतोतिः क, ख, r»r ~ t mag दशते क-ख-ग-पुकेषु | § Hay दृश्मते ड-व-पलकयाः | || We ve =u, १९, ci

१२० निक्तम्‌ | [ पूजेषटकम्‌ ,

मस्तु" श्रद्ितोऽपि भयः कञ्चिर्‌ भवत्येव,-- यच स्द्राढपधादयो इन्यन्ते “खस्तिवादम्‌' श्रभिप्‌जितवादहं ‘te “छृएष्वम्‌' “रुर ध्वम्‌"; हे देवाः! एव मेतां साक्गाभिको भितिकन्तव्यतां sar Sw “gana” एतम्‌ ^श्रारावम्‌'” श्राहावस्थानोयं रथं ठता ¦ “श्रवतम्‌' एत सङ्गामर्पम्‌ | “श्रश्यचक्रम्‌ ““श्रशनचक्र'* व्यापनचक्र | व्यापयन्ति fe तच किप्तानि चक्राणि शच्रणाम्‌ श्रय वा “च्रसम- चक्रम्‌” श्रस्यन्ते fe तच चक्राणि ‘seat “saarfo” wife, कवचानि वा “केगखानौयानि" तच “सन्तु a: ‘fega’ उल्सिश्चतेनं UYTARIA | ‘aaa? “नरपाणम्‌", नरा एव ARCMIN एवेच्यन्ते। एव मच “Haaser”? wf guise’ किचित्‌ साधम्येण “aya सुपभिमोते” मन्द्‌ क्‌ एव ay सङ्गमे पमासम्बन्धा दुद्छेचनसम्नन्धाख “-श्रसच'*- शब्देन धनुः, कववं वाच्यत दत्युपपद्यते

ततः “Mela, श्राह्कानात्‌*-इत्येतद्यथा स्थितैव waza निवैवनम्‌। श्राहृयतेऽिननित्याहावः* ददं वन्यत्‌,--“श्रावहः, आवटनात्‌-इति wea विपरिणम्यते, उद्यतेऽखिन्ुदक मित्यावः। “gaa” कूपः; a fe खन्यमाने "“महानवातितः'” श्रवाङ्कतितो Cyafa” गत इत्यथः “त्रसणकेाग्रम्‌ः--दटति केश्र-शन्दो विग्रद- gan; “काशः कुष्णातेः*--इति “fagfaa:” विविधं कुषितो "भवति, quar, wearer “wa adatr cram”,

quad, THMBIT VCS वदिष्पमाखसदाहावद्य रूपम्‌ ।**- दति रे* जरा ४,४,९। |

yA ® ध्ैसयन् gure °| नगम कारम्‌ RRR

"एतस्मादेव" कुष्णातेः “aga” सश्चयकाश्ः। fe “wfea- मातः" मात्राभिः श्रातो “wafa”, “aera”

““काङुदम्‌(°९)?-- दूति *, श्रनवगतम्‌ “तालु - द्याचक्तते”-- शूत्यभिधेयवचनम्‌ | ““जिद्धा, केकुवा”- इत्युच्यते; शषा" चिका- वास्या fag, “af? तालुनि वणाभिव्यह्ययं सुखः “aa”, तदेतत्‌ केकुवाधानं सत्‌ काकुद मित्यभिधोयते “fag कोकुवा कथं स्यात्‌ ? इति, उच्यते ;- णन्दानुकरणएनिभिनन fast याः केङ्कवात्म्‌। ^केकूयमाना” तथाविधं fe सा gare, सालुनि “वणान्‌ नदति"; तसाद काक्वा Faq HHT स्यात्‌ श्राद;- faga तावत्‌ ama “जिह्ा'"-दत्यभिधोयते? इति, उच्यते;- षा fe “Srsar’ षतो जिङ्कतयुच्यते तया प्राणिनारन्न मात्म- न्यव क्ञहति ; तया श्राहृयतोति वा जावा श्रय “ate”? कस्मात्‌} उच्छते;ः-““ तरतेः" धातः; तद्धि “तौणतरम्‌', दतराङ्गभ्यो विस्तोरणत्वेन भवति ““लततेवा स्यात्‌", “वोपरोतात्‌'” श्राघ्यन्ततरै- पयण,-.यथा तलम्‌"-इति | समानजातौ यश्रब्दोपप्रदशनं दृष्ठ प्रतोत्ययम्‌। श्रस्टैव॒लततेलैवनायैस्य “लता"--द्त्योतच्छछ्द रूपम्‌ ““न्रविपर्ययः" अ्रविपर्ययेण भवति ut (९६)॥

qea असि वरुण यस्य ते an सिन्धवः। श्न्‌- छर॑न्ति काकुद" सम्य सुषिरा मिव (सुदेवस्त्वं कल्या- णशदानेा यस्य तव देव सत्त सिन्धवः प्राणायान्‌क्षरन्ति

* aula ere ze re पंर। 16

RRR निक्तम्‌ | [पूवषट्‌्कम्‌ ,

arge सूर्म्यं सुषिरा मिवेत्यपि निगमो भव॑ति y*) (सुदेवस्वं कलयाणदेवः कमनोयदेवो वा भवसि वरुणं यस्य ते सप्त सिन्धवः सिन्धुः खवशाद्‌ यस्य ते सत्त श्लोतांसि तानि ते काकुद मनुक्रन्ति मि कल्या- णोमिं a सुषिर aq यथा? बीरिटं तेटीकिर- न्तरि्च मेव माइ युवं वयते स्तर मिरलेवयांसी- रन्त्यस्मिन्‌ भांसि वा ** तदेतस्या खच्युदाइरन्त्यपि jt निगमो भवति 11) (२७) १॥

“azar श्रसि०-°सणिरा faa” lilly गरियमेधस श्रम्‌ wry 1% “aqui? “gga” शोभनस्व मसि देवः। ‘aw’

* छ-च-पस्तकयोनेएख्येषः पाठः। ; Se 9० |

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§ “मम्‌ यद्य”

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§§ Wael कलयाख्दान दूत्या रम्य भवतोत्यनपाठो र्ावननभतोऽपि क-ख-ज धस्छकेष इन दिदापन्यस्ः। TAG Baas इत्यारभ्य भवतोत्यन्तपाठल क- ख-पएख्छकयारदशाऽपि रभावनभयते, ङ-च-पसलकयेाख दश्यत रमगेतोरापन्यख्छः। ग- प्केतु क-ख-परुकाग्टरोता ड-च-पस्तकाग्ररौतख्योभावेव पाठौ aay fat शव मेव पवापरोभती TBI | तथाच म-प्कानसारत CAG BSS RUA सवपाठप्रदशनायेति।

||| ऋ° सं ९, ४, ०, ९।

४य्य० ayo Youre] ana काण्डम्‌ | Re

तेः तव, एताः ‘aa सिन्धवः, श्रन्तरिचनद्यो वा asergaaargn ; “sat नामासि, fagar नामासि, saat नामासि, मेष- vat नामासि, वयन्तो नामामि, परस्तादरन्धा नामासि" दति भिन्नश्च उच्यन्ते BHAT: | मुद्रा एव वा सपसिन्धुशन्दे ने च्येरन्‌ काकुदं" तालु, ‘statin’, ‘ae सुषिरा मगरोादकनिःसरण- मिम्‌ ‘xa; wan: घमसुवतेत्यभिप्रायः॥ एव मत्र fanaa क्रणसम्बन्धात्‌ “काकुदं = तालु""--रत्युपपद्यते दुर्वचनलं सर्वस मन्त्रस्य wet प्रयोजनम्‌ wag fe क्त या एतस्मिन्‌ प्रकरणेऽधोताः, तासु समान्नातेभ्यः पदेभ्योऽन्यान्यपि श्रननवगतसंखा- राण्नेकाथानि वा सन्तोल्युपप्रदधेनायं छृत्छेय BAT स्यात्‌ *

“PAC —efa †, अ्रनवगतम्‌, परेण चानेकार्थम्‌। भोरस्िन्‌ तन्यत दति भो-तननम्‌, waften; निरालम्बलान्‌ सवं एव बिभेति तदेवं भौ-तननं ag बीरिट fae) श्रय वा TIS नच्चादौनां तन्यन्ते, तदेतद्गास्तननं सद्‌ बोरिट मिन्यु च्यते गणाभिधानपच्तेऽपि यथासभवं योच्यम्‌¡ (२७)

प्र वाजे सुप्रया afetar मा विश्पतीव बीरिट इयाते विशा मक्तारुषसः VA RAT वायः पषा खस्त- नियत्वान्‌ asad सुप्रायणं बहिरषा Ama सवस्य UAT वा पालयितारौ वा athe मन्तरिक्ं

© भिसु-मिशब्द्‌-याष्डयाने ऽराय।ष््याते रव दिते | fF श्भा० BRR Go ९पंर “WPS” - cfs | t cele tea aera मेव सितम्‌।

१२९ निक्तम्‌ | [ पुवेषट्‌ कम्‌,

भियोवाभासो वा ततिरपि वोपमा स्यात्‌ सर्वपती इव राजानो Ths गणे मनुष्याणं cen विवासे पुवेस्या मभिह्भतो वायुश्च नियत्वान्‌ पषा खस्ययनाय नियुत्वान्‌ नियुताऽस्याश्वा नियुता नियमनादा नियो- जनादाऽच्छाभेराप्ु मिति शक्पणिः परीं सी मिति व्याख्यात Aa* मेना मस्या Balada व्याख्यातं सछणिरङ्शा भवति सरणाद णाऽच्वतेरा कचिता भव- तौति ar नेदीय इत्सृण्यः प्रक्र मेयादिन्यपि निगमो भवत्यन्तिकतम ARITA Alay मागच्छत्वि- त्यागच्छन्विति† १० (2c) इति पथ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः Wy. ४.

“पप्र वर्जे quate —o नियतान्‌ 2. वसिष्टस्याषम्‌ चट्‌ श्रवाटजे' “nama” प्रसीत weak ‘gran’ “qua” सुप्रगमनं, यत्‌ ae मभिगच्छन्ति देवताः प्रासो afar "“श्राविश्पतीव बोरिट दयाते”। “श्रा vara” ‘fanaa “are” जगतः “mar वा पालयितारौ वा wea मर्यैकलम्‌। eq पादपूरणः; एवेत्येतखयाथै वा क्र पुनरवख्वितौ vera?

* “'्याष्डयाताः। रनः" च।

7 “भाष सागब्छलितिः

{ रायखषम्पादितिपस्तकेष qsy चतुविग्खष्डान्े रव चतुथः पादः, TWA

पञ्चमः पादः GAR § we घं०४,४,९,२।

UH एपा० १२००] ana काग्डम्‌ | १२५

दति, उच्यते;- “बोरिरे' श्रन्तरिक्ते caer “aft a” अरय मितव्र-शब्दः “उपमार्थे” एव “era”; विशृपतोव ; “स्वपतो दव राजानौ बौरिटे गणे” safe श्राद ;-कस्य पुनः एयाते ? कौ वा एयाते? कं वा श्रथ GE एथाते ? इति, उच्यते ,-““ए्षा” ‘au? “मनव्यार्णा” तासु क्रियासु श्राह्यमानौ Swat? “रायाः” aaa सति, “उषसः, ॒श्रागमनकाले वदतौ ' “odera” एव “afasal”’ प्रथमे vasa | 'वायुः' “a? ^मियु- लान्‌, “पषा “a” ‘qed “agua” खस्ययनार्थ॑म्‌, vara amare waftsta fe देवता श्रागच्छन्तोति “वौरिटम = श्रन्तरिच्म्‌''--दत्युपपद्यते। यस्मिन्नपि ad, गणा बोरिट-श्ष्दे- मोच्यते, afeafa पत्ते, विश्पतौ राजानौ सवदा गणमध्यगतावेव AIA TAVITA एव

are ;- ` नियुलान्‌” कस्मात्‌ ? दति, उच्यते,-“नियते- Saran’) श्रथ “fram” कस्मात्‌ ? उच्यते,--“नियमनात्‌” | नौ चेह नियस्यन्ते। “aware” नियेोच्यन्ते हि रथे “नियुतो वायोः °”--इत्येतस्प्ात्‌ कारणात्‌ विप्रहृष्टोऽपि नियुवच्छन्दो वायु- शब्दे नेव संय जिता भाष्यकारेण ; हि gant नियुद्धिः सम्बसोऽसि

“geg(")—efat, एष शब्दो ^ श्रमः” श्रयं भवति “satay” —“sfa” योऽथ Gh स्यात्‌, एवाथे; श्रच्छेत्यनेनोक्रो भवति, एवं “areata: श्राचाया मन्यते

१भा० १५९९० १० १५४० (te) | Ale ४९१९० ११प०।

२२९ निरक्तम्‌। [पूवेषटकम्‌ ;

^"परि(०९)११, “म्‌ू, “सो म्‌(*९१,--“ दति *? एते “ा- wnat” षष्ठेऽध्याये निपातोपषगप्रकरणे 1

^“एनम्‌(*९)०, ““एनाम्‌(*र)०*- इति t पददयम्‌, ““श्रस्याः-श्रस्ये- maa’ पददयेन “व्याख्यातम्‌” नवसमेऽ्याये 21 निगमाच्चाच ग्टग्याः॥

“ef. —sfa |, श्रनवगतम्‌। “seat भवति"-इत्य- मिधेयवचनम्‌। “सरणात्‌*--दइति यत्पत्तिः। सर इति न्यायम्‌ घरति गच्छत्यपौ दस्तिथिरसि।“ ्ङ्कथोऽचछतेः- दति पयायप्रसक्तम्‌; श्रञचत्यसौ गच्छति दसतिभ्रिरधि। “mafadt भवतोति av’ द्याभिसुख्येन कुरिलोश्धता भवति i

“युनक्त सौरा वियुगा ° -- ° पक्॒मेवात्‌¶। बुध्य aug faeq! वैश्वदेवो खलिकस्ठतिवै, saat मध्यमदान्त- योजने सौरानुमन्लणे पिनियक्रा ‘caw योजयत, देवाः योज- चितारः, सौरा सौराणि, ‘fa (तनुध्वम्‌' वितनुत ‘ear एतानि युगानि, “तेः we ‘ce’ ्रञजिन्‌ च्योनो' 99 ‘aber

१भा० ४९८७० १दषं०।

+ “aaa सवे वेभावम्‌"-ट्ति (ute ४१७०) wae vate yee | “ea. wan कमोमिदििति”- दूति (pute 5१७०) \अ० दपा० veel “a मिति परिप्हार्थोये वा पदपुरश्ो वा दूति (रभा ९९२०) Vee दपा Re |

{ ध्भा° ४९२४० १९पं०।

§ “wer इति weft चोदरं प्रथमादेगेऽन्‌ दात्त मन्वादेमे”- दूति (रभा, ४९५१०) ४२० ४पा० wwe |

|| RUT> BRB Ze RT |

“यनक्न सोर fraar red रते योनौ' बपतेड बोजम्‌। गिरा शुषिः

q सभ॑रा wow ala दत्‌ VQ Wa मेषात्‌ ॥**-- दूति qe aye Ge १६९, ९८ |

ute श्पा०९ण्ख०] ana काणम्‌ | १२७

‘aaa’ तया वपर, यथ। ‘faq’ वाचा यत्‌ प्रा्थयामः, तत्‌ श्रुष्टिः" fan मेक ‘neq’ भवेत्‌; "सभराः" श्रतिफलभारवत्य एताः स्यरोषधयः ‘ay श्रस्माकम्‌ किञ्च ; Agta cage’ “षि vem भवति” यावति प्रदशेऽवश्थित मार्ष्टु शक्रोति, ततोऽपि नेदौयः श्र "पक्तम्‌' Brad प्रचुरलात्‌ ओषधौनाम्‌, ‘War’ श्रागच्छेदम्मान्‌ प्रति; तथा WH बहन वपनेत्यथैः। एव मच नेदोय इत्यनेन सम्बन्धात्‌ “णिरङ्कुगो भवति" शृत्युपपदयते | Wa तु ब्रवते तथा वपत, यथा प्राग्‌ दात्राकषणादुष्टिः Wala दाच मेवास्िम्पक्तेऽङ्-णब्देना च्यते | तदारृष्टसस्यस्य श्र्ुशाभावात्‌ दाच्राकषंणात्‌ प्राग्‌ “्रन्तिकतमं' सच्निरृष्टतम ated पक्षं sree दिति युष्माभिरेव सक्ते सति एतत्‌ वय माग्रासहे,-“पक मोषध anes fafa”

saraamgaaiatara favate इति ९० (ac) दति निर्क्रटत्तौ द्माध्यायस्य * चतुय; पादः ५,

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च्टञ्वयायां निरकरटत्ता जन्बृमागाञ्नमवामिन Beware wit WATS: ( पञ्चमोऽध्यायः) समाप्तः Wy

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9 ewe १६४९१ go “4” द्रष्टयम्‌।

९२ निश्क्तम्‌। [पृवषट्‌कम्‌,

R विं ® ( सज्िमसश्चन्तीनयस्यवराहागा यन्तित्वापविचंपुर- _ १० १९५ १२ १४ त्वाकिमित्तेप्रतत्तग्रि नरणकयापान्तमन्युरुवश्यप्सराउ- ४५ ९९ \e ९९ तासिसदन्नियत्‌कदामत्तपनीवन्तःसुगुरसद्‌ कन्द्रमा- ९९ RR RR २४ ९४ ऋअरुगामायदनद्राप्रीमानःसमस्यदविषाजारःषयक्प्रा- ९९ १५. शण यन्‌प्रीणीतामुदेवःप्रवाटजेऽ्टाविं शतिः ॥* )

इति निरुक्ते पुवेषद्के पथ्वमे7ऽध्यायः॥ ५॥

* gute १४९ go kK” ब्रषटग्यम्‌।

अथ षाध्यायः॥

तच,

प्रयमः WTS Il

——070t 6 !n0——

ॐइम्‌*। त्व मग्ने Uhre मा शुशश्णिरू WaT मश्मनस्परि। त्वं वनेभ्यल्व मोषं धीभ्यल््ं णां पते जायसे शुचिः त्व मग्ने य॒भिरहभिल्व माशुशुश्णि wg इतिचशु इति शिप्रनामनी भवतः afa- VAT छणोतेराशु शुचा aaratfa वा . सनेतीति वा शुक्‌ शे चतेः पच्चम्यथे वा प्रथमा तथा fe वाक्य- संयोग अआ इत्याकार उपसगंः पुस्ताचचिकोषिंतन उत्तर ay शोचयिषुरिति शुचिः शाचतेज्वलतिकमे- णोाऽय मपोतरः शुचिरेतस्मारेव निषिक्त aaa पापक मिति नेरक्ताः १1

“arate —zfa 1, श्रनवगतम्‌ “ae wet समिता वा” स्यात्‌, “ag wa चणिता a. “a मग्न

care: “Sa “Thee, च-पसकेमकिमपि। + ऊ-च-पलकयामाच woah {[ wre art vo e@ Yo 17

१९० faramz | [yauena,

Ufa मा प्रश्य्णिः ° -- °जाय॒े whe" | ग्टत्समदस्मेय माषेम्‌ प्रातरनवाकाश्चिनयोः शस्यते लगती, weal हे भगवन्‌ ! “aa? a दयुभिः" अरहाभिः निभिन्तश्तैः पौणमाखटादयैः एषां मश्यमने नृणां जायसे ; पौणेमास्या ममावस्यायां वादधौ- ama 1 किञ्च ; aq aaa. “ars इति श्ट fa a” एते ““जिप्रनामनो vam” ष्रट-दृत्येतदच प्रासन्खिक मन्यत्रोप- कारं करिव्यतौति। aqai— “gar वायुः, प्ररु एत्यन्तरिे”- vraag मादौ †। “श्राप्टुग्ररुचणिः,- इत्येतेषां पञ्चाना मचराणा are MATRA शश्राश्ु,-दृत्येतत्‌ चिप्रनाम श्रधुना श्ट!-ृत्येतत्‌ तौव aat मतिक्रम्य sat aac निराइ,-““सणिः"- इत्येष दारः शब्दः ““च्षणोतिः' धाते: (तना० Ge) featda aara: (तना० Bo)” वा CITT | मध्यमं त॒ श्रुः दव्ये- तद वरं WS: (eo प०) र्ये श्रय Aree सर्वेरणेतरक्र- रमिधोयते ? दति उच्यतेः-“श्रा्ट “spar” Dar “warfa” हिनस्ति “दति! श्राग्रष्ुकणिः, aft 1 श्रय वा “artsy” “grey” “सनोति” सम्मजति-- “हति” श्राग्ु्टसणि;, afm | qura; सनोतेश्च faa) “sta शोचतः” इति पञ्चाना HAUT ARWafe-we aaa net ्ररुः--एति, adafa- बष्नम्‌। एवं तावदय मेके निवेचनप्रकारः wy efq-nere |

# qo Jeo ९,५४., ९६०,९१।

4 Sait a Tears वाऽप्रिखमाधानं Fata’ रति alo wege tb, wl { wo eo कार ewe Bue Cue |

oat), WT) दूति सिप्रमामचु (र्भा० ९५०० weal

.¶ख०१पा० we] नैगमं काण्डम्‌ ९६९

अथ वैव मन्यथा स्यात्‌ “qqay”’ इयं “प्रथमा” विभक्तिः श्रा ग्रश्एत्तणेः--दति यदकं श्यात्‌, WER भवति-श्राष्डब्र- कणिः"- दति श्राह किं पुनः कारणं प्रथमेषा सतौ पञ्च aaa विपरिएम्यते? इति, उच्यते--“तथा fe वाक्ययोगः” तेन प्रकारेण पश्चमौोषखेन विपरिणामे पञ्चमोलेन fanfare WV awa संयोगेऽ्थसङ्गतिमवति a थथावख्ितसखय | We, कथं Bat ?--इति, उच्यते;- "ल ae मश्म॑स्यरिं la वनेभ्य स्व Ae: दृतयेतान्यक्षराणि बहनि पदानि पश्चम्यन्तानि, तसमादनेनापि पञ्चम्यन्तेनेव भवितव्य मित्युपपद्यने पञ्चमौलेन विष- रिणम दति। श्राएब्रु्णिरित्येतस्छाक्तर प्चकस्य एषः पुरस्तात्‌ <श्रा-दति आकारः”, एष तावत्‌ “उपसगः' | यः पुनरेष श््रु- afuftfa “उत्तरः” श्रनन्तरश्तुरक्तरः शब्दः, एषः ““चिकोषिंतजः"* चिकौषितादथाश्नातः सन्नन्तादिल्यभिप्रायः श्रथ पुनः समस काऽथः? इति, उच्यते;- यः कथित्‌ “श्राशरुणोचयिषुः' श्रादि- दोपयिषुः भवति, श्राग्ुश्रदुचणिः (यजमान इति ara’) तस्मा- AIIM: त्वं हे भगव्न्नद्ने | "जायसे" fa मेतावदेव ? नेत्युच्यते, ay ag’ जायसे, वेदयुतात्मना त्व मेव श्रपनः' "परिः परितः स्वेतः, इतरेतराभिघाताश्जायसे। वं "वनेभ्यः दार्भ्यः। aa ‘arabe wafer @ ‘rut’ मन्यां डे (मपते' मनब्यपते ! “जायसे' श्रमियज्यसे। aah aha इत्यथैः॥

“fa: श्ोचतेः'” equal “श्रय Anat: Be” लोकिकः

* क-पलके नैतदु द्जते।

aR निरक्तम्‌ | [पुवेषट्कम्‌ ,

“एतस्मादेव रति वैयाकरणा मन्यन्ते; नैरुक्ताः पुनः निःपुवोत्‌ सिश्चतेरितरः wfaftad मन्यन्ते; “fa.” fare हि “्रसमात्‌" ˆ पापकम्‌” श्रष्टुचिवम्‌, wafer “faa” भवतौत्येवम्‌। श्रना- प्रिवाच्य श्राष्श्एक्तणिरन्यो वा यः afacfy मथिता तेन किञ्चिदादिदोपयिषुभेवति, वा श्राप्ु्ररचणिरिति॥

इन्द्र आशाभ्यस्यरि windy अभ॑यं करत्‌ आरण दिशे भवन्त्यासदनादाशा उपदिशो भवन्त्यभ्यशनात्‌ काशिमुं्टिः प्रकाश्नान्ुष्टिम चनाद। माषणदा मे- waar) इमे चिदिन्द्र रोदसी अपार aarp मघवन्काशिरित्ते। इमे चिदिन्द्र रादसी राधसी द्यावाषथिव्धो विराधनाद्रोधः कूलं निरुणडि सतः करलं रुजतेविपरी ताहो शोऽविपर्ययेणापारे दूरपारे यत्‌ VU मधवन्काशिस्ते मदान्‌ | अहस्त मिन्द्र सम्पिण्कशारम्‌ wea मिन्द्र रत्वा सम्यिरिड्‌ * परिक्रणनं मेघम्‌॥ (१)

“श्राज्ाग्यः(९*- दति 1, saad मनेकायश्च। “श्रासदनात्‌ ema) “eg श्रा्राभ्यस्यरि ०--° विचर्षणिः" t रत्य

“dfrefe” wa “संपिढदिख। “संपिंडि"” “fais” च। ना तु “सम्पिणडडि"- इत्येव | T शभा ४२०९ Te ATI t “wee eae) लेता जन्‌ विषचवंषिः।- इति we Ge ९, ८७९,

द्थन्श्या० रख ०] awa काग्डम्‌। RR

मदस्येय Aa Maal! Vet श्रमिश्जवस्य दितोयेऽष्टनि usa wad | ‘ey “aang feet fe az भय qed जगताम्‌, “सवेभ्यः नानादिङ्वा सिभ्ये wae: “mare? ‘ate’ करो लित्थथः। are ;- fa wan: पुनरसाविन्रः ?--इति, जेता शवृन्विचधणिः' श्रधिद्रा सशावेभोतिकानां कमैणाम्‌॥ “sum दिशो भवन्ति, श्रासदनात्‌' ; श्राभिमुख्येनं fe ताः saa सन्ना इव भवन्ति। “sr उपदिशा भवन्ति, mara” wernt हि ताः परस्परेणेव

Cafe. —efa *, श्रनवगतम्‌ 'काश्यितव्यःः-दत्यवगमः। “मुष्टिः? दत्यभिधेयवचनम्‌। “प्रकाश्नात्‌--ई्ति निक्चनम्‌ “मुष्टिः -दृत्येतत्पयो यप्रसक्तं free, —“Araarar’ gaia ह्यसौ, "“जोषणादा” तेन fe मुष्यते, “ateatar’ aa fe मुद्यति परः। कि मेतन्ष्टौ ? दति “garda पुरत ce ——omrfatca's frafaaaray fren Ret एष्याभिश्रवयोः दितौयपच- ARM: WTA नाम, TAG Waa, WRAAT AT feet wat; खदान्‌ मलादरफ उदु दरचदत्येताञ्च तत्रैव 2। श्रपि

» श्भा० Bye ए० पं |

+ ‘fa aafaa azfafa” a |

t “gare versa waiter cay मवद wae wr! TF Pa fry रद्स पारे यत्‌ Pera मघवन्‌ काणिरिभे\"- इति we de yk, tu!

$ अमपद्वच्छययमाण्ा Cag ऋखाऽचव माध्यन्दिने सवने अन्छ्‌(वाकनामलिजा WU त्यथः तज, कुणशाङभिति equa पदस्य मिगमाय qearafafe (we सं २, ke, ), खरादशणर दूति पश्चमपद्स्य निगमाय quiag दति (ae deo १, ९, ९, ५.) सुरण कमिति षहठपद्स्य निगमय उदुररश इति (we सं०ट,९, ९.) द्णयचिष्यतोडव ययेोत्ररम ,— १९४, LAU, १९०१० |

११९ ¦ निक्घम्‌ [पवषट्कम्‌ ,

भयवति ayia, “sae saa va ₹हे ‘Qesa! “एकः श्चपि ‘ar श्रमदायः, श्रवोभिः' awa: weraar, विभिष am: घन्‌ ‘gd षमथेम्‌ ‘saw’, ‘eae’ waza | कि मेतावदेव माहाभग्यम्‌ ? नेत्युच्यते, द्द्‌ aaah fer इमे श्रि “रेदसोः “qrarfaart”’, एव मपि “anv “दूरपारे” सरतो 'यत्‌' शसङ्गम्णासि, महे ! "काशिः" तेः “महान्‌* एव मन सदुग्टणसम्बन्धात्‌ “काञ्नि"-शन्दो मुष्यभिधायक दत्युपपद्यते॥ परसक्तानप्रसक् सुच्यते,-ये एते “रादसो” एते “Tet किं कारणम्‌ ? ““विरोधनात्‌” विविधानि fe waraa «ar कूलम्‌" श्रपि "रोधः" उच्यते; तदपि fe “ata” उदक- शलोर्तासि “निरुणद्धि” “get ama: (तु °प °) धातोः ; तत्‌ पनः “विपरीतात्‌ वैपरोल्येन “Bre” पुनरस्येव धातोः “श्रविपवयेण" “्ुणा सम्‌५)*- दूति °, श्रननवगतम्‌। मेघोऽभिधेयः “Maa” ~—tfa शन्दसमाधिः। “aT पुरत ०---° त॒वसा जघन्ध'?। “खद - इत्युदकनाम, उदकदातारं aaa! हे "पुरत !' “exe? “चियन्तम्‌' ्रन्तरित्तलेाके वसन्तं गच्छन्तं वा “TER श्रप्रतौ- कारसमथे छवा ततः पुनः “सन्विणक्‌' ““्म्पिण्ड”, सश्ृणय Gare’ ^परिकणनं” शब्दकारिण faa: एवं तावदेन कुर्‌। श्रथ पुनः योऽय मपरो टचः, ara, मेघः। एन मप्येपरि वहमानः, “पिया

4 QUTe BRO Te Ge | t सूरदान्‌' Fiza वियन्त ave fig ofan कुदादम्‌। af ay’ वद ara’ frare मपाद्‌ भिन्र ORL sae 7 दति wo Pe Rk, eR

Cue Cute २.०] नेगम WIAA | ११५

हिषनग्ोलेम्‌, शश्रपादं” गमनरोनं छवा तत एनं "तवणा बलेन ‘aay sae एव aw बधाधिक्रारात्‌ मेधाधिकाराख “Surg = कणनशीलम्‌"--रृवयुपपद्यते (९)

अलातृणो वल इन्द्र व्रजा गाः प्रा हन्तोभयमानौो व्यार सगान्‌ पथो श्ररुणोन्िरजे गाः प्रावन्वाणीं Giga धमन्तीः अलाठृणोऽल मातदने मेधो वले aaa ब्रनत्यन्तरिष्षे गोरेतस्या माध्यमिकाया वाचः पुरा इननाद्यमानो व्यार सुगान्‌ पथो BRUT गाः | सुगमनान्‌ पथो अ्रकरान्निरन- नाय, गवाम्‌ प्रावन्वाणीः Gaga धमन्तीः आपो वा वडनादाचोा वा वदनाद्‌ बहूभिराङ्कत सुदक भवति धमतिगतिकंम्मा (2)

"्रलादरणः(४)*- इति 1, श्रनवगतम्‌। “Me मातद्‌नः'-द्त्य- वगमः। श्रलाटरणा वल °---° waa!) हे ‘egy योऽयम्‌ ‘saree: “se ae” cafe: श्रातदयितुम्‌। उद्कपूणा "वलः, मेधः; हि श्राटणेत्युदकम्‌। ‘As च, एव श्रन्तरीक् ब्रजतोति; गृणान्तरतादजामि | MIE ;- किं तख ? इति एष गोः' “एतस्याः माध्यमिकाया वाचः” भावत्कायाः भन्द्‌ BIA (परा

# "“मिमेममायः"- दत्येव दत्तिसप्तः, ङ-च-पखकयाञख | श्भा BRO Te LR To |) 1 Te Yo द, २, % ४.

wR निस्क्तम्‌ | [ qauema,

एव ‘wat’ ““इननादर्‌” भवता बधार्‌ भयमानः" बिभ्यत्‌; Baya मस्य बध इति मन्यमानः, ‘an विच्योभवतोत्य्थैः। त्व मनेनेव प्रकारेण एन मेघं विदारयन्‌, “सुगान्‌! ““सुगमनान्‌” "पथः, मागन्‌, ‘aaa करोषि, तवान्‌ वा “निगमनाय, एतां मेघधोदरान्तगंतानां “गवाम्‌? श्रपाम्‌; विदोपें fe afaaa सुखं ताः तस्मा कघोदरान्निर्गच्छन्ति किञ्च; निर्गताः सत्यः ताः 'वाणौः, श्रापः भ्रावन्‌' प्रकषंणावन्‌, रन्ति; श्धमन्तोः' गच्छन्यः यथयानिख मभिसरमाणः, "पुरह्ृतम्‌' उदकम्‌ | यदेतद्‌ दकस्थानं तडागनथादि, तत्रति wat: तदेव रचन्ति ; तद्धि उपदस्येत्‌, यदि Gate श्रापः। एव मापा बवाणो-गब्देनोक्राः; ता; fe “वनाद्‌” वाणोरिद्युच्यन्ते “वाचो वा वदनाद्‌” वाणो रिष्युच्यन्ते। चदा विदौणात्‌ Heal aia मुदकं पुरुहतं भवति वषंभावेनः, अथ तदा तेषा मेव प्राणिना महा दृष्ट मिति-एवमाद्या वाणः वाचो धमन्तौः मुखेभ्यो निगेच्छमानाः, तदेबादकं प्रावन प्रागच्डन्नित्यर्थः॥ एव मच “पुरा इननाद्‌ भयमाने व्यार””--दृत्यनेन सम्बन्धात्‌ “अलाटणः = मेघः-- इत्युपपद्यते

“asf.” प्राणिभिः “श्राह्कतः' श्राह्यते- ममेदं aac भिति, तस्मात्‌ परुषम्‌ “उदकं भवति” “wafer एष “alsa” एव * ; नाच स्त॒तिकर्मैत्यभिप्रायः | स्तुतिकमंखपि fe धमति: पठितः। “wafacd), नदति(<), सरति"-इति tui

* que (२९०, ९४९ T°) Ewe ९४ We ५०)। + र्भा. (RAL, VAR Te) QWe ९४ Ge |

que Late eye] नेगमं काण्डम्‌ | ९३७

"निरजे गाः? दत्य * केचिर्‌ ‘aaa एताः'- एति व्याक wat, तासां fe इन्द्रेण विदारितेषु मेघेषु सुगमनाः पन्यागो निगमनाय भवन्ति, खुयवषलान्नोरजस्कलाच ‘ara वाकोः-- श्त्यत ATTY समान मेव GAG (२)

उदह रक्ष॑ः सहमुल मिन्द्र दशा मध्य॒ प्रत्यग्र खणी- fear कीञतः सललुकं wad aged तपिं रेति मस्य VAT रक्षः सहमुल मिन्द्र मुलं मो चनादा मोष- णादा Areata इश्च मध्यं प्रति शशणीद्यग्र मग्र मागतं भवत्या कियता देशत्सललुकं संलुग्धं भवति पापक मिति Aaa: सररूकं वा स्यात्सत्तरभ्यस्तात्तपुषिस्त- पतेहंतिरन्तेः। त्यं चिदित्था कत्पयं शयानम्‌ | सुख॑प- यसम्‌। सुखं मस्य पय॑ः | विकल ara भवन्ति विखव- Wi | वया इव रुरुः सत्त fage इत्यपि निगमो भव॑ति | aed ओषधयो भवन्ति विरोहणात्‌। atau: पार यिष्ण्व इत्यपि निगमे भवति। ager मञ्जुवानदाम मभ्यशनेन carta | नाभं ततुरिं

= पुर tangs piel { रेतिहासपेणेति भावः। तथाहि हन deg, ९, ५, ५.--एत्येवमादोनां

Bal भाप व्रषटयम्‌। ] (संद "संन “daa? क-म म-षति-पलकपाठः ||

1

VRE निरक्तम्‌। [ पृवेघटकम्‌ ,

vader मित्यपि निगमा भव॑त्यस्कधोयुररध्वायुः छष्विति gaara fran भवति। यो अस्व घायुर- जरस्व वीनित्यपि निगमो भव॑ति (निश्म्भा निश्रथ्य- इारिणः+* )॥४ (३)॥

“सललूकम्‌(९)"*--इति।, श्रनवगतम्‌ “dean दति शन्द- समाधिः, “सरदूकम्‌"- इति “ar? “उद्‌ BE रक्तः” outa Ha” t “egy” एतत्‌ र्चः” सदमूलम्‌' “दनद !', “TAI शरस्य fafa (मध्यम्‌, ‘a’ we भ्रति wolf’ प्रतिजरो- व्यचेः fare, श्रा कौवतः, “श्रा कियतः ar कस्माद्‌ “देशात्‌” एतदुद्र ; यस्मात्‌ वितकयमाणणा श्रपि श्क्य॒वितकंयितु- कियतेः- ऽपि प्रदेधादेतदुद्ेत मिति यथा किश्चिदणस्यावभिव्यते, तथैत- दुद्धरेत्यभिप्रायः तथा Sagga ‘wees’ “agai” dag मप्रतिपकछं कुर श्रय वा “पापकं,” पापतर aaa: कुर्‌-““दति?” एतत्‌ “मेरकः” मैरक्पततेण श्रथ वा “aves” सरणभोलं॥ “वा? (श्रनशोखी) wet GAMA एतत्‌ Bel तत एतत Ve छला स्थानप्रच्युतायासमो Tae ्रद्यदिषे' ब्ाह्मणदेदरे "तपुषिं" तापयिनीं हेति इन्त्ोम्‌, भ्रादृधजातिम्‌, मूलमध्यायच्छेदनाय पनः पुनः “अख eee ee ee

* माश्येतत्‌ क-ख-ग-पुखकेषु पर टत्तिटता तु बष्टयात मेव श्भा ४९२० Teo Qs Ge | we do a, ९२, ४,२९२। ` § “at कियत दूति wrarnca’’—<cfa & | [| “weurte’—xfa metas क-नाम-रभिपुखके |

fate ewe] नेगमं काण्डम्‌ | १३९

विपेत्यथेः॥ एव मच wage मिति लुभेभीाष्नायेख (तुप) शब्दसा- रूपात्‌ संल मिन्युपपद्यते | “सन्तः” °प °) श्रयच सारूप्य मस्ति “ATER वा UA TOR भाव्यकारेण रदाविशेषणदेतत्‌; तख ` fe सम्मा वा नाशनं ante मिति॥

“"कत्पयम्‌(-)?--दति ^, च्रनवगतम्‌ 'कपयम्‌*- इत्यवगमः कपय भित्यवगमे ““सुखपयषम्‌"”- दति पयायेणाभिधेयवचनम | मधुरोदका यो मेघः, साऽभिधेयः। किं कारणम्‌? “सुखं” हि सुखात्यादनमम्‌ “gy” “qa”, aura! “al विदित्था° aera’ t गातुनेमाचेयः, aaa ara ia?’ तं Raq ‘car. ्रमुना प्रकारेण, श्रय वा श्रमुभ्रिन्नन्तरिचलेके ‘aad सुखोदकं शयानम्‌ sea तमश्च t त्वा वाटधानं" वद्धंमानम्‌। मन्दानः ` मन्दमानः, ‘aaa विता, शद्रः, “सुतस्य श्रभिषुतसय, सा- ` मख @ मं पौवा। ततः “ee? aga “wane? "जघान, एवङ्गुणयक्र दन्दः, सेाऽस्माक fad माम करावित्येव arta ल्या एव AAR जघामेति श्रनेन सम्बन्धात्‌ “कत्पय: = सुखपयः = मेघः" इत्युपपद्यते, तस्य वधस्यामौषटलात्‌॥

विस्तुदः(*)'*- दूति ll, अ्रनवगतम्‌ “विखवः'- इत्यवगमः |

ute ४२८४० पं०।

त्य चिद्या कत्पयं याम wal तमपि वारधामम्‌। सं चिकमन्दाने ery BARA खपगया जघान ॥?- दूति we ve ४, ९, Rr.

t “wet तमसि" र्ति मलपाठः; aaa विभक्तिपरिणामेन erent नेत- दिति ar “war तमः*-- र्येव क-प।ठः।

$ “पगथ - दूति मपाठः; तस्यैव Brea मेतदितिवा।

I] १० ४९८१० eyo,

६९० निशक्तम्‌ पिर्वेषदकम्‌,

“erat भवन्ति," इत्यभिघयवचनम्‌ | ““विखवणएणत्‌"*- इति हेतु- निदंणः। “aerate ०---° ay विर” ° भरद्वाअस्तेय माषम्‌ प्रातरनुवाकाश्चिनयोः शस्ते श्ैश्वानरस्य' भगवतः, wh, शश्रम्तस्यः श्रमरणध्मिंणः, "केतुना कर्मणा, "वचसा" चच्तवा दशनेन ‘fev aft यानि ‘aa समुच्छरितानि स्थानानि, तानि विभितानि' विनिभितानौत्यथेः। श्रग्मिप्रकाश्यमानविषयो हि लोकः कमि प्रवन्तेते साधुन्यसाधुनि वा। साधुभ्यः साधुना च, पापेभ्यः पापेन सावखलोकिकेन कर्मणा खकर्मफलभोगायेदं सव विनिम - यत इत्यनयापेक्तयोक्रम्‌,-- विश्वानरस्य ager केतुना दिषेऽपि सानूनि निभितानि”--दति ; afata हि वाच्यधिदेवताभाषेना- वितः सवं मिदं श्यापयति, ततः कमे प्रतायते। तदुक्रम्‌,- “aftary शला मुखं प्राविध्त्‌"-एति†। किञ्च; “तेद्‌ विश्वा" तष्टेव वैश्वानरस्य एथिवोभावेनावस्ितश्य। अयं ॒चािश्वामर cent, ‘feat yar’ विश्वानि भुवनानि, सवद्ठतभावयिदणद- कामि। “qana’—efa qeaarag पठितम्‌ १। ‘gah उपरि

* “qurrcg विमितानि wear साननि दिवे ख॒खतस्य केतुना। तस्येद fag भुवनाधि मंद्धेनि वया टव Wes: सृप्र विनृः॥* टति we de ५९.९।

aa देवानां मनेमा, * * *श्वग्रा मनेाताः सङ्कच्छनोः'- दृत्यादि षर we etter `"तेजेाऽखितं Fart विधौयते, {ख यः afam षातुजदखि भवति यो मध्यमः went, योऽषिष्ठःसा वाक्‌ | wand fe सोम्य! मन खापोमय भाषसेनामयो वागितिःः- इति | wre wre १०, | "सनः क(याप्नि मा इनि प्रेरयति मादतम”- इति गिखाव्नञ्च wares |

"खय मेवप्रिवेच्चानर र्ति गाकपङिः- दूति ge Se का००,५,२।

र्भा० (९९९०) १अ० १९ We (we) |

दर्श्या sue] नेगमं काण्डम्‌ | ९४९

वया Ya’ शाखा इव “ARE: सप्त faqe:” ‘ay edu, “विख: विविधसखलवणाः wat ततः शाखा टव ‘eqs? vet vfuat मद्यादिभाषेन, ततः शाखा शव war wear उपरि, यथा- fred fant mtr च्यन्ते ~ इत्येतद्‌ दृष्टेव मवोचत्‌,- “तस्येदु fart o_o सप्त तिखुहःः- इति एव मच शब्दषाद्ूया- द्यीपपत्तेश् “fage: = aa.” “भवन्ति? दृत्युपपद्यते मुवनः- wea तान्येवोच्यन्त एति केचिद्‌ वणयन्ति; चतुरविधञ्च श्तय्रामः, विखुश्ख वया शव wes: एथिव्या उपरौति। “सप्त -शब्देनापि खमुद्रानेव केचिद्‌ वए्यन्ति; ते fe एथियाः शाखा इव शलच्छन्ते, विखवन्ति

“वो रूधः(<)'--दति *+शअननवगतम्‌ ““विराडइणात्‌"-- इत्यवगमः, “sun भवन्ति"--दत्यभिघेयवयनम्‌। “विराहणातः--दति Safata: “षसौ; प्रति e—e वरध; पारयिष्,; tt भिषज श्रायवेएस्येय माषम्‌ श्रोषधिद्धक्े श्रनुष्टुप्‌ हे ‘sire: श्राषधयः! प्रतिमोदध्वम्‌ दमं ard प्रति, wart प्रति. ari 'मेदष्वम्‌' मुदिताः इष्टाः भवन्तु कोदुश्यो यूयम्‌? ‘aaa QUI, “HAITI प्रकषंण Bad उपभोगायेति प्रखवरौः। याश्च पष्यवन्यो याश्च RAAT याञ्चाफला याश्चपुष्याः, ताः TT: “श्रश्वा ta’ वडवा ca “खजित्वरौः' सह जेः, ‘equ’ esti जिला श्रस्माक मायुषः "पारयिष्णवः" पार्यिच्यः wan एव मक

# gure ४९८५०९१९ de | aaah प्रति मोदष्वः पच्यवतौः gate | we ट्व सिलरोवोरपः पारथिषणछ : n’—<fa we Go ८,४, ८, aI

१४२ : (fazer [ पूवेषट्कम्‌,

“पष्यवतोः प्रमृवरोः"--इत्येतस्प्ात्‌ विगेषलिङ्गात्‌ “वोरुधः ~ Bra- ua.” “भवन्ति--दत्यु पपद्यते |

“naga इति *, श्रनवगतम्‌। त्णदाभम्‌, - दत्य ama | “शश्रश्मुवानदभम्‌"- दति पयायेणाभिधेयवचनम्‌ श्रभ्य- नेन श्रभिव्यापनेन यो vata दिनिस्ति, नकदाभः। “तमु पु o—e म॒तिभिः शविष्ठम्‌” †। भरदाजस्येय ara | रिन्त, faeq) सभ्यातद्धक्र माध्यन्दिने ब्राद्मणाच्छं सिनः wa शस्यते “a मोम" एति †, दयश्च ava "तम्‌ req नः" श्रस्ाकम्‌, ये पूर्वै पितरः पिद्रगणाः, ‘ay erage, ये पुराणेषु पन्ते श्रय वा ‘an? “प्ताः, पूर्वतर मसाह्लोकादमं लकम्‌, ते "नवग्वाः" नवगतयः, श्रमिनवा fe तेषां गतिः ;ः-श्रद्ंमासे- $द्धमासे भवति पिटयश्च परत्यागन्हम्‌। श्रय वा नकनौतगतयः Il नवनोते fe aut मनसा गतिभ॑वति, दद aaa खादिति; “खयं विलोनं पिद णाम्‌?-दल्युक्तम्‌ "विप्रासः-इति, विप्राः = प्राप्प्रन्नाः, पिद्लेकेऽवखिताः। (मतिभिः “त्रभिवाजयन्तः" स्तवन्त श्राषते fawad पुनरिदं मतिभिरभिवाजयन्त श्रासते? इति, उच्यते ;-- ‘saga योऽभिव्यापनमाच्रेणापि aia, कि ee

- # दभा ४९८ ve १४ प° | “a म्‌ नः पे पिलिरो नवग्वाः ey विप्रास खनि वाजय॑गः। Ai aq रि पवेते्ठा मद्राघवाचं मतिभिः विधम्‌ ॥*- दूति qo Yo ४, ९, ९९. २। t wed gee ३। ष्दाप्यनुपदं दमेयिष्यति (१४९९० १०पं०) | $, || ˆ गवगतये नवनौतगतये वा-इति पर Zo कार ९९. ९,७। “नबनोतेनम्यञ्चन्नि;ः- शव्यं वै देवानां सुरभि चतं मनय्याशा मायतं पिशं नवनोतं ममेषाम्‌"-द्त्यादि te ate १,९,९। ˆ |

दवय. Late swe] नेगमं कारम्‌ १७९

सुत वेधेन ? तम्‌। "ततुरिम्‌! यश्च त्वरणएोलः, तम्‌। ‘cadet यश्च मेघस्ायो, तम्‌। श्रद्रोघवाचम्‌' यस्य चाद्रोग्धव्या वाक श्रनति- क्रमणोया, तम्‌ ‘afey यञ्च बलिष्ठः, तम्‌। एवद्एविशष्ट

, त॑ मतिभिरभिवाजयन्त aed, Bsr मिदं नाम करा- वित्येव ANAT एव मच शब्दसाखूणादथापपन्नेश्च योऽभ्य- waa दभ्नोति, AVIA इत्युच्यते

"श्रह्ठधायुः(*“"-दति ®» श्रनवगतम्‌। “श्रकष्वायुः"-दत्य- वगमः। “कृधु” -इ्ति दसनाम "1 ; तद्धि “fang” शव “भवति”, yaar) तस्य श्रकारेण प्रतिषेधे ad ब्रहृधु- दति भवति “त Was CR मस्य --° दरवो मादयध्यै | ‘aw’, वय मात्मनः yaa ‘tae’ याचामहे “हरिवः py लाम्‌। ‘cay Taal श्राह;- यः fans: पुः? इति, उच्यते ;- सः we’ “रायः, धनस्य परिपालने भोगे समर्थैः | किं क््षणस्य grime? इति, 'पुरवोरस्य' हवोरेसतद्तः, ‘saa दासेस्तदतः, ‘tet’ बडनिवासस्य, च्रनेकप्रकारस्येत्यथैः | परिपालनसमथे एव यः केवल मच्यकालः, मोम; किन्ति? ‘a’ श्रसकधोयुः' sear, दौ धौयुरित्यथेः श्रजरः' च, यो TENT इत्यथः ‘ry’ च, यः सु waar मीरयिता। यः

> ure ४९८ go १९ Ye}

Tt र्भा (२९१, २९० Te) एअ ° २७० (९१) |

Ca Mae cs ce रायः Tata वतः Tae | ये Seatac: Vary a aL UT इरिवेा area ॥- दूति wo dou, ¢, १९, २।

LY १४४ निरुक्तम्‌ | [पूवषट्‌कम्‌,

एवङ्एविण्ष्टः ga: ‘aa’ “न्रा भरः amet “हरिवो मादयध्यै WE मात्मन मदमाय तर्षनायेत्यथः॥ एव मच “wqura:”— इत्यनेन दौधाय॒रुष्यते, तस्याभोष्टलात्‌, शन्दषारूप्याच

“निग्रट्ाः(९९)- दूति *, श्रनवगतम्‌ “निश्रथ्यदारिणः"- दत्यवगमः ; निक्षयया दृढया गत्या दरन्तः (३)

अजासः पषण Ta निशम्भास्ते जंनभियम देवं away विधतः aera: waa रथे निखरथ्यहा- रिणस्ते† जन्यं जातरियं wager महदुक्धो वक्तव्य we उक्थ मिति wage वा Faget इवामद्‌ इत्यपि निगमो भवति ऋदूदरः सामो बदू- दरा खदुरुदरेधिति वौ WELT सस्या सचेयेन्य- पि निगमो भव॑ति | ऋदूपे इत्युपरिष्टाद्‌ व्यास्यास्या- मः पुलुकामः पुरुकामः। पुलुकामो fe मन्य इन्यपि निंगमो भवति। असिन्व ती श्रसंङ्कगदन्त्यो असिन्वती qa भूयत इत्यपि निगमो भवेति। कपनाः 1 कम्पनाः क्रिमय भवन्ति मोषथा get कपनेवं * र्भा० ४९२९ ge & Ye | + निश्टष्यदारिणष्तेः' क, ख, “निभिष्यहारिशस्ते--एति राथस-एम्प[ fenat: ^. D. प्खकयोः qa

{ “कपना क,ख, aI § “waa? "क, ख, a

शय्य Cate वर] नैगमं कादहम्‌ r Tex

वेधस्‌ wafa निगमो भव॑ति। भाक्जीकः प्रसिद्वभाः। धूमकेतुः समिधा भाक्जीक इत्यपि निगमो भव॑ति ! रुजाना नद्यो भवन्ति रुजन्ति Heft | सं रुजानाः पिपिष॒ इनद्रश्चुरित्यपि निगमो भवति जर्शिंजवः aT RAAT दूनोतेवा *। faut safest व॑क्तीत्यपि निगमो भवति परि sa मोमना at वर्यौ mae पयगादां घस महरवनेनान्नम्‌ t WY (४)

इति षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः NE, १.

"त्राजासः पषण e——e वन्त॒ finaa:”t | ATSTH ATE “aT वहन्ते" RST? IT, AT Fra “निच्रथ्यदारिणः*?। एवंल्चणा श्रश्वाः, ते श्रावहन्त ‘GAY देवं “रये व्यवसितं “बिभ्रतः धारयमाणाः जन्यम्‌ ““जातज्चियम" उद्भुतभ्चिय frat एव मजर समान विभत्तयन्तवात्‌ शश्रजासः"-दत्यनेत “निश्रश्भाः?- इत्येतद्‌ श्वविगेषणम्‌ | सति चाश्चविशेषणएते “मिश्रय- हारिणः" जो प्रहारिणः, तस्याभौोष्टलादागमनस्य

“हबदुक्य (५९ दति ¶› श्रनवगम्‌ “महदुक्धः-शति, “वक्तव्यम्‌ WA उक्यम्‌--दइ्ति वा" अष्दसमापौ “हव ड्व wat

2 खनेत्‌ बा” क, ख, a! 1 “"मडरव भायाच्रम्‌"- इति ख-पर्तकमये, हते प्राधान्यनया चं Gem { qwe de ४, ८, ९२९, ९। §,॥ “निश्टच्यदहारिशः- दति ह° पाठः| + ध्मा २९९ ४० ९४ Tey 19

९०९ faery | [पूवघटकम्‌ ,

He o——e nae’ | memegati प्रथमे ca Aeraqae wa eumifay महाव्रते, waa. “saa —rfy wa qual, तद्‌ aa हहत्‌ मदत्‌, षदुक्यः ; अया तङ्‌ aa वक्रव्यम्‌, SI: | “हबदुक्यम्‌' इद्रम्‌, “दवामरे' वय माह्- uray, एतसिन्‌ कमणि “खप्रकरच्ञम्‌' qiarsa, dasa “ऊतये, श्रवनाय, रक्षणाय श्रात्मनः। "साधु हष्वन्तम्‌' साधुकारिणम्‌, नित्यकाल Fara जगतः साधु करिव्यामोत्यभिप्रायम्‌ ‘wae तस्यैव तर्पणाय, मागतं सन्त मेतस्िन्‌ कर्मणि त्पयिष्याम इत्ये तेनाभिप्रायणाङयामरे ॥. एव मज (दवामहे"--दत्यनेन सम्बन्धात्‌ “SAG: = ACER, MAG वा--दृदुपपद्यते | एव हि ange भवति, THAT वा एव सुतरा माहयत दति “दू दर्‌ः(*५)*- दति, श्रनवगतम्‌। “दू दरः-दइत्थवगमः भामः” च्रभिघेयः। द्दरेण सस्या ° —e प्रतिरमम्यायु :*॥ | प्रगाथस्य ada बिष्टप्‌ सौमो Was wae चरेः याथ्येषा, समवायिनः प्रायिन्तेष्टौ ऋदूदरेण न्डदूदरेण सामेन;

“argue वामदे सप्रकरक सतय साधु एषम्‌ wea uw? - दूति we सं° ९, २, ९,

+ मेधातियेराषे मिति ana waver fafa waren मिव खअमक्रमणख्ोवि- राधात्‌ eraufetrarg | werqamafasr— ‘seats जिंद्रकरेषातिकिः" इति, “areal मेषातिथिशषिःः- इतिच सायः (wo Ge ¢, २, ६, ९.)

{ “owe वङ्कग्यप्रणसम्‌''-- दति पर Ko wre १९, ९, ६० | Tare (रभा. RRR ५०द्हयम्‌।

ध्मा ४२०९० UT)

| “ददर welt सचेय॒ या arm रिथिडयेश पौतः। खयं यः सामो a ape wer रनक प्रतिरमेम्याय॥८- इति we We (, ४, ९९, ६।

CGo rate yw] RNa काण्डम्‌ १४७

az हि रामस्योदरम्‌, सुषिरलात्‌। श्रय वा श्टदुरय समुद्रे श्यात्‌ इत्येव awed, पाट भिव मनाशद्या। तस्मात्‌ wT सामः, पुनरेष ग्डदूदरः WAZA इत्युच्यते, तेन श्छदूदरेण। ‘ven’ समानस्यानेनेव केम चित्‌ पुरुषेण, भिन्रेण “सचेय ` संसचेयम्‌, मंसेवेयम्‌। पनरागामिषु "यः Bra: ‘ar मां fae. a feera, ‘Tay सम्‌ यथाह मेतेन सामेनाहिंसितः, तथा सचेधम्‌। हे ‘waa’ ox! सामखाभिम्‌ ! ures a fag श्रयं यः सामः”, “न्यधायि wae निहितोऽमाखासौत्‌। येनेमा मापद मापा- दिताः Git वमनद्वारेण "तस्मे" तदथेम्‌ Baran मायुषो चदव- खण्डनं छतम्‌, तंतिपुरणाय न्द्रम्‌" श्रतिरम्‌' प्रतौणे मनव- खण्डितं सवेम्‌ श्रायः" “एमि याचामौत्यथेः। सामवमम्बैगुखात श्रायुषण्डेद माशङूमान TH रोधं मायुयैयाच यजमानाय एव मस्मिन्‌ “wget: = TA.” प्रकरणात्‌, शब्दसारूप्याख

“चदु पे(९५)--“दूति °, उपरिष्टाद्‌ arena ‘weg चिदुदूखधा"-दृत्यज Ty _

पलकामः(१९)- इति ‡, अ्रनवगतम्‌। ““पर्क्रामः'?--दत्- anal “gaa साम मन्तिता ° ° कामु; हि arn’? |

# ute wee go yo |

t Wear Care wwe |

{ पभा. Bye ge ११९ Yeo

§ “qe ware निवे इत्यु पीत ad हुवे यत्‌ सौ माम॑बल्मा aw dog Wawra! हि म्यः ॥*- दति wo deg, ४, ९९, ६५।

Aes निशक्तम्‌ 1 [पुषेषट्‌कम्‌ ,

शगस्य-लापामुद्राखवादे श्रकेवासौ ब्रह्मचारो cat सौमं हरतो aad) ‘cad, wee "सोमम्‌" “श्रम्तितः, अन्तिके श्रवस्दितम्‌ ‘ern चेता ‘aa’ वदिरम्तिकेऽवखित gana, किन्त ? सोतं शन्तं “इत्यु एव, सख एव इदयेऽवखित qaqa ।--^“यत्‌ सौ Brea” श्यत्‌ “सोम्‌ सवतः सर्वप्रकारम्‌ “श्रागः चकृम" पापं छतवन्ता वयम्‌ "तद्‌" श्रयं ata: ‘gaya’ ys सुखविधि- परिणामं करोतु किं कारणम्‌? इतः,- यस्मात्‌ पुशुकामो हि अङकामो fe “म्ये, बङकामवात्‌ ATAPI Ga आगः करेति, तदयं पोतः सोमः ब्रमयवित्यभिप्राचः॥ एव मज ुशकाम-अर्देम पुरुकामे बडकाम उच्यते, "मत्य,-अन्दसामा- मपधिकरण्यात्‌ सारूप्याख ti

““असिण्वतो(५०),-- एति °, श्रननवगतम्‌ ““श्रषङ्खगदगधो - द्यथेपतीतिः Swamy मच्छ o—e weet) Sarnath aetna वा areca वा afta ara freq: श्राग्रेयौ may Rey! भगवतः aa: "मतः, .महित्म्‌ माहाभाग्यम्‌ | ‘gana’ श्रमरण्धममिणः। ary मराणधमिणोवु, fag’ ara- प्रणासु WTA श्राद;-किन्पनखन्भाहयभाग्यम्‌ ? Ti, उच्यवे,- ‘aver wana “इन्‌' इननसमय ene wafea ‘fara’ विविध मिव ते सत्यो “अमभरेते' एकच हरेते हवौषि दारूणि वा समत्य “श्रसिन्तो" “meget” ्रसञ्घगदनधाविव ; अथ वा अषप

* qute wee ye ua ee |

“पंच Wa सता afew WA wets fry नाना wy पित्‌ सं धरेत्‌ अन्व वतौ adie ॥५- रति we de =, ३, ९४, १।

que vate ५०] नैगमं HUA | १४९

यनधाविव waa प्रकारेण we ‘aga arama) रि" श्रपि दारूजातं इत्रिजातं ats— यत्‌ श्रत्तः' भत्तयतः; श्राम्यतः | WATS ATER मद मपश् मस्मिन्‌ मनव्यलेके दति | दनुरूप- घम्बन्धात्‌* agiata श्यालासु दिवचन मेव श्थितम्‌॥ एव मज दनुमम्बन्धात्‌ “श्रसिन्वत = श्रषह्खगदन्धा'?--इत्युपपद्यते “agar —efa 1, अननवगतम्‌। “कम्पनाः”- दति we- समाधिः “क्रिमयः भवन्ति" दत्यभिधेयवचनम्‌ “dri ae T ° ° नेषथा सुगम्‌" { श्यावाश्वश्याच्रयस्येय माषम्‌ i मार्तो जगतो दाशराजिके Frarena veiseafqarea विनियुक्ता “qugraanfaarea:”—xfa खचणात्‌ ?। “श्रभाजि' भ्राजते ‘a’ ‘aaa’, तत्‌ शद्धः" तदलम्‌। ‘aa’ येम बलेन ‘guy मेधं ठद्धम्‌, उदकपुणोम, wy प्रविश्ठ ‘Bray’ सुष्णौय युयम्‌; निद्दकं कुरुतेत्यभिप्रायः। कथम्युनमषय ? दति ।- चै कपनेवं वेधसः'*। "कपनाः" “aa”? “fire ll इव, ‘aye? वेद्धारः ; यथया ge मनु प्रविश्य क्रिमयोऽम्तगतं दारवं रसं वा मुष्णन्ति, एवं युय मुदकं सुष्णोथ श्रथ वा डे वेधः मेधाविनः | इति wale वय मेतत्‌ सम्बोधनं UIA! यस्माद्‌ युय मेवमादिना प्रभावेन युक्ताः

* ““इनृरूपकसम्बन्धात्‌?*-- दति ee |

+ र्भा ४९० ve १४ प०।

{ “quit war मखतो gaa dg मोषथा ew कपमनेववेषषः। Gy a Ar आरमति vargas शिव यन्‌ ममन tye gag un’ —cia we de ४, २, wy, 8 |

§ ““प्रशडायेति weawe end ame --°मादत्या यजेत खा ९.९९.) इति? cfr we de ४, ४, TUATHA सार भाग FUT |

|| “era: ’—xfa - ह° |

cue निरक्षम्‌ | [पवेषटकम्‌ ,

MATHS कारणात्‌ WETS मेव शश्ररमतिम्‌' श्रलमतिम्‌, पयाप्न- मतिम्‌, aftearafad यजमानं quata कर्मणा विद्यया वा यन्तम्‌ इता लोकादमुं लाकं "सुगं" भ्रोभनगमनं waa, aa मपि ‘oa Ray’ हे “सजेाषसः' सदप्रोताः ! गमनानुग्रहेऽस्छ॒वन्तेध्व भित्यभिप्रायः। कथञ्च पननंषथ ? “wafta’ यथा गच्छतः परुषस्य चतुगैमनामुयद्े वन्तते, एव qatar संग मिति एव ` मच टवसम्नन्धान्‌ “क्रिमयः = कम्यनाः'; ते fe ad मुष्णन्ति, मेष- यन्ति कम्पयन्ति यं खादन्ति, खय मेव वा कम्पन्ते चलन- स्ाभाग्यात्‌॥

"भाष्छलोकः(१८)?--टति *, अ्ननवगतम्‌। “खजभाः--इत्य- वगमः। “प्रसिद्धभाः'?--इति पयोायशब्देन निववनम्‌॥ “देवो देवान परिभ o-—e वाचा यजौ।यान्‌” are इवि द्धानस्यार्षम्‌ faq “देवः” ' त्वं दानादि गृणयुक्रः हे भगवन्‌ ! ae! रवान्‌ ‘afer’ सवेता भवसि ‘eda’ aga सदितः। तदुक्तम्‌,-श्रग्र मोमिररा. द्रव देवास षरिभ्ररंसि"--इति it) यस्व मेवम्परभावः, तं at satfa ;—‘ae’ प्रापय ‘ar ea! देवान्‌ प्रति। ‘qua.’ यस्मात्‌ लं मनुव्यदातार avy, तस्मादेतत्‌ कुर्‌ ‘fase’ मधिकार मेतं जानान cafe: | धूमकेतुः धूमप्रन्नानः,

ध्भा VAL Te २१० + “Sar दवान्‌ परिभरष्धेतेन्‌ वरा ना wa प्रथमयिकिनाम्‌। weg

समिधा urwenat wear शाता नित्या वाचा यजौयाम्‌ w—xfa we de ©

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दखन्श्या ०५ख०] नेगम काखम्‌ que

wast ati ‘afaur afaaaa arate’ प्रसिद्धभाः। ‘ax’ मदनः, aufaat रेवानाम्‌। ‘eta’ श्राहाता ‘far’; cat Hae ategrfarta fait होता ° ‘are’ वाग- धिदेवताभावेनावखितः† ‘aaa’ agat,—aratrne ata wa मत “भाच्नोकः = प्रसिङ्धभाः'- इत्युपपद्यते "'हजानाः(९००--द ति ‡, एतदेकं पदम्‌, अ्रनवगतम्‌। 'दजत्यः"- इत्यवगमः | “नद्यो भवन्ति" इत्यभिेयवचनम्‌। "“ङजन्ति nerf” -दति हेत॒निरं्ः -““श्रयोद्धव दमैदः° --- ° दृः? ? शिरण्ठसुपस्ारषम्‌। श्रभ्ि्टोमे faded wet “श्रयोद्धा ca’ यथा कथित्‌ श्रयोद्धा, ‘FAs? दुमंत्तः-वाद्याचषारः। श्राह यथा fa करोति? इति, उच्यते ;-श्रा हि जु" श्राह्यतोव्यथेः माहयति ? ‘aaa’ महाविक्रान्तम्‌, तुविबाधम्‌ः बहनां शचूणां बाधितारम्‌, “जोषम्‌, जो षिण frre | तदुकम्‌, - ‘ana वश्ोः- दति ili मेवम्प्रभाव fax माय मेघो "नातारौत्‌' wage: तन्नु" शक्रोति “we? इन्द्रस्य ‘aah समागमं ‘Aral’ प्रहाराणाम्‌, श्रतरमाणः या एताः नद्यः, "खर्‌ जानाः" ऊमिभिः कूलानि वदन्त्यो सजन्ति, ताः प्रति विभोर्यमामः

» (खपे रेगमां रोता, सोतदेाषषदनं यदुभरवेदौ नाभिः? दूति Ve wre ९, ४, dl

"वाम्‌ वा away’ -रत्येवमादि वटम्‌ रे wre १,५,९।

T auto ४६९ ९० Ge |

§ Swies cae a fe ak महावौर dire खकौवम्‌। mca

समति aurary सं जानाः पिपिष टृन्द्रशयः॥**- दूति we Yo १, ९, Re, ९। || प° ९९ Te RR Ge |

१४२ नियतम्‌ [ queer

‹पिपिषे, “दश्र्चः' cRe श्रातयितव्य इत्यर्थः | एव मन ब्र्दाया- पपत्तेः “नशः. = सुजानाः?--दृत्युपपद्यते

“जुणिः(९५०५--दति *, WMATA! जवनार्‌ वा, द्रवणाद्‌ वा, दवनार्‌ वा-इति शब्दसमाधयः। शक्तिः afer) “जवतेवा? गत्यर्थस्य aft:, “द्रवतेव" गत्ययेष्यैव aft, ““दुनेतेवा"” हिषाथेस्येव ofa: u प्रप्रा at aq e— ° afar aafa” 1 पुरुच्छपस्यावम्‌। श्रतिश्रकयतिच्छन्दाः | vera weasels frente wea श्रश्रवौमि हे Gare: ! waa श्री aay’ ्राव्रौयैः याभिः dann aah किं कारणम्‌ ? यस्मादेष “इन्रः Ga: ‘gay’ श्विता, रकिता ‘afta’ aga ; यच हि प्राणाः परि- इष्यन्ते वियुभ्यन्ते, तच श्रय aaa रक्तिता भवति “दुमैतोनाम्‌ पापमतौना मखच्डन्णां wat भविव्यति। मेत मेव्ुणविन्रष्ट मिश्रम्‌ ‘tay दारयिदढतमं दुमेतौनां पुबःपुनः wal राइ - कथे पुनरषावस्माकं रक्षिता भविव्यति ? दति, उच्यते ;--“खयं' ‘av 2 ररिषयध्ये' रेषणाय भविव्यति ; किबिदणषटलास्माक मिद्ध- प्रभावात्‌ खय मेव विनच्यतौत्यभिप्रायः; का gat? इति, “या नं उपेके Wa!” | ‘ar war "उपेषे" उप श्रागच्छति “श्त

# र्भा ४९९ ye रू Ye |

4 “ott वा ga euariirem परिगम ch दुमैतोनां co eam माम्‌ शयं सा Ramp था मं oft eh) va dan tafe चिता afer tufan’—xfr we de ९, १, te, 81

{ “भविष्यति-दतिक।

$ ‘ar शक्तिः गजसेना वा-इति खर-प्र-रौषनौ |

(अ. tate awe] aaa ea | ९५१

maa: राभिः प्रहिता, सा। “इते dag उति" ° ‘ty इत्यनथकः। ‘ea’ eal raw ‘a’ ‘aafa’ †। mere प्रति ‘faa श्रपि तेः पुनरादरेणापि रक्तोभिः ‘aft जवस्यन्ञापि सतो शक्रिः, aafat; wana प्रति प्रा्यतौत्य्ः॥ wa ay खेपणमम्बन्धात्‌ ““जूणिः ~ धरक्ति-दत्युपपद्यते ““श्रोमना(र९)-- इति ९, श्रनवगतम्‌। श्रवनाय'-इत्यवगमः “युवोः त्रिय ०-°मोमना at वयौ गात्‌" | वसिष्ठ स्येव माषम्‌ | faq श्राश्चिनो प्रातरनुवाकाश्चिमयोः शस्यते हे अरश्िनौ ! “यबा; भयम्‌" युवयोः या ah तां “परि wewia’. सवतः aaa “चोषा श्राद,- कतमा ? इति, ख्यते ;-शछरा afear’ waa दुहिता कदा तां fra सुषःखञज्निका दव Hama ? "परितकपरायाम्‌' रायाम्‌, Be मद्रात्‌; wafer. कालः ¶। fag “ag दयन्त wae wal भिः” wae “दव- यन्तं" देवान्‌ ae मिच्छन्तम्‌ यजमानम्‌ “nay: ‘wefan’. खैः कमेभिः तेन कारणेन ‘a? "परि sama’ परिगच्छति सभासु fag यजमानैदौ यमानं युं प्रति ‘aa’ “si” इविलंक्तणम्‌, रसं परि' प्रति welt ma इत्यथः पुवाहोदोशिनेर्यागकालं

* †, खन सवेचेव "वष्ति'- रति खथकारपाढः खर्परे |

§ Ueto ४२१४० Lode | | 7 |

|| “am faa परि येषाषटशोत द्रा दुहिता परितक्छायाम्‌। यश्वय्नत भवथः wal fu: ufe Be Waar वां वये मात्‌ ॥?- र्ति we dou, ५, १९, ४।

e &y T “aan wre aq wacrarq”’—«fa द° we Ly, ९, ९। 20

१५४ निश्क्तम्‌। [ूवेषटेकम्‌ 1

दुकम्‌,--“्रातयावाणा प्रथमा यंणध्वम्‌"-दति ° मथ पुर- स्कत्य वयोऽन्नं गच्छति ? श्रोमना? “santa” तपंणायेत्यथैः | एव॒ मचािनेाविःसम्परदामसम्बन्धात्‌ शश्रोमना"- इत्यस्य भन्दस्

-“श्रवनाय'” - दृत्येष विपरिणाम उपपद्यते के faza “श्रवनेनान्नम्‌"- इत्येव मघोयते भायम्‌ 1 तेषां योजना,-- ““श्रवनेन तपेन भवते निमित्तेन ‘aden’ “maga”? इति | केचित्‌ “श्रनेनान्नम्‌"-ष्त्येव मधोयते areal) तेषाम्‌, “main”? wan “ge” परिगच्छतौति योजना स्यादिति ५(४)॥

दति निरुकटन्तौ एकादशध्यायस्य (षष्ठाध्यायद्य) प्रथमः पादः॥ ६, ९॥

दितौयः पादः उपलप्रकिण्युपलेषु प्रश्िणात्युपलप्रेपिणी वा (इन्द्र कषौन्‌ पप्रच्छ दुभिघे केन जीवतीति तेषा मेकः प्रत्युवाच शकटः शाकिनी गावा जाल मस्यन्दनं वन मुद्धिः पवता राजा द्‌ भिक्षे नव इत्तय इति सा निगद व्याष्याता)॥१। * me de ४,४,१८,९। क-ख-न-ङू-पस्तकेषु दश्यत रव { मलधषृरौतप्ख्केषु रोथद्होतपुखकेष मेवं कचिदपि।

“प्रकरः - दूति षाठः। || बन्धनौचिज्काकमेतपाठो इवे क-क-म-एकेषु |

fo VYTo श्वर] ANH काणम्‌ | १५५

““डपलप्रचिणो(९२०--टति *, श्रनवगतम्‌ | “सक्तकारिका” afawat; सा हि ^“उपलेषु" यवान्‌ “्रक्तिणाति” feafea एव॒ मश्योपलप्रलिणौ श्ष्दस्छाप्रतोयमानायैसय विग्रडेणाथेप्रतोतिर- वगमः। श्रय “वा, “उपलेषु” “प्ररेपिणौ'' स्यात्‌, उपलेषु aay ward यवान्‌ प्रक्पिति; खा fe गोडेषु प्रसिद्धा। उपलान्‌ वा यतरेभ्यः प्रविपति वििनेतोत्ययः। सेयम्‌ “उपलप्रलेपिणो' षतौ (उपलप्रचिणो--दत्यु्यते (४)॥

काररदं तता भिषगुपलप्रशिणीं नना। नाना धियो TAIT गा इव तख्िमेन्द्रायेन्दो परि खव कारूरह मसि कत्ता स्तोमानां तते भिषक्‌ तत इति सन्ताननाम पितुवा yaa वोपलप्र्िणी सत्तुका- रिका नना नमतेमाता वा दुहिता वा नानाधियेा नानाकम्भाणो ARITA वसुकामा अग्बाख्िता स्मा गाव॑ इव लाक मिन्दरायेन्दो परि सवेत्यध्येषणा | AT- aia wat मपसि शिशाति | उपस्थे प्रकलविदणिग्‌ भवति कलाश्च वेद प्रकलाश्च दम्मि्ासः प्रकलवि- म्िमाना इत्य पि निगमो भवत्यभ्यङ्यज्चाभ्यङ्यन्य- sifa सिषक्ति पषा अभ्यद्यज्चेत्यपि निगमो भव- ate ईशिषे। fe वस्व उभयस्य राजननित्य॒पि

# ure ४६१४० wade!

Lug ` fawaat [ PA :

निगमो भवति। rae छषयणस्य। महः We स्याश्चिना कण्ठायेत्यपि निंगमो भवंति (६)।

"काररद तता ° ° मेन्दरायेन्दो परि खव।*। faxcufy- रसः, aaa aay पद्धिः। श्रौ खदुष्कृताशक्या किला- परिखवति सोमे पापसङ्ोन्तनादात्मप्ररद्धिभविव्यतीति मन्यमान आत्मान मेव निदिंशन्रार ;ः-श्र् तावत्‌ कस्िं्चिदनादिकाले परेषां "कारः, समक्ता स्तौना प्रयोक्ता analy डाढवेना- वसिते वद्िवै यत्नात्‌ प्रियवक्ता लो किकाभिवै'चोयक्तिभिजिविका- परतया ‘aa’ मम पिता पुत्रो वा भिषक्‌" ्रासीत्‌, ब्रह्मा; सहि परायञित्तरोगे उत्पन्ने यज्ञस्य भेषजं करेोाति। यदुक्रम्‌,- "“मेषजषटतो वा एष यन्नो यत्रवंविद्‌ ब्रह्मा भवति"? {। इतरो लौकिका वा भिषक्‌। “ततः- इति सन्ताननाम ; पितवा पचस वा" 21 faafe सकाशात्‌ ga: तन्यते | एव मपादाने कारकं "ततः पिता; पचः पनः तन्यते श्रयं "ततः", कमणि कारे

* इर सं० ०,५४.९६, २। ` tag इलिगविेषः, सवषा उलिजां कायेद्रष्टा जिकेद्विदु भवति। तथाच--"“यदेतत्‌ 4a] विद्याय शक्रं तेन ग्रहान मकरोत्‌” इत्यादि (Te त्रा, ४,०)। ^समद्ाऽसि विन्वग्यचाः?- रत्यादि (ate त्रा १, १, ४.) REET ye are Poy, दद. खपिद्टया। { “awe रेष भिषग्‌ यदू त्र्या यज्ञायैव तदु aval war इरति” इत्यादि Yo ब्रा ४,५४,९। . 6 “a पितर Fang at वाव ay anwefcia’—xfa te त्रा ¥, 2, €९। किच्च “ख तयेव्यक्ताप्ज मामन््रयामाख aaa TAY A मददाडमक ware मिमं यजा fa’ दति to mre ०, ६, eI || “प्रजा tame प्रजा Hare रतत्‌ सनानाति- एति Te wre ९,१.११

श्न श्पार Rw] नेगम काण्डम्‌ | १५४

‘sqanfauy शवनोयानां* cet; “दासौ faafe—eft EMA! दतरेषां सकरनां Yahi “aay “Arar” aarala; सा हि स्नसम्यदानाद्यपकाराये AI aft नता भवति “दुहिता वा” नना स्यात्‌; छापि हि परिचय्धाथे पितुः प्रङ्टोभवति।। यस्मिन aa पिता भिषक्‌, तसिन्‌ पत्ते नना-्ब्देन माताच्यते; यस्मिन्‌ पुनः 92 oat भिषक्‌, तसन्‌ पके नना-्ब्देन दुहिि- eal ते वरय मेव मनादिकाले कस्मिंशिड्‌ जो विका प्रधानाः सन्तः नानापियः' “नानाकमाणःः, यथोक्तेन क्रमेण काररह भिन्येव- मादिना ‘agua’ ““वसकामाः?; कथं नाम ag लभेमहि, येनं पराणधारणं स्ादिति। एतेनाभिप्रायेण “श्रन्‌ गा इव afea” श्रन्वा खिता, at लाक मिमम्‌। कथन्युनरन्वास्िताः a ? दति, गाव हव ; यथानेकेरपकारप्रकारैलौाक मन्वाखिता गावः, एव मन्वाखिताः स्मो वय ana लाकम्‌। लम्‌ “इन्दा! विन्ञारेतदनेनं खदु रितानुकौत्तनेन क्षयितकलाषाः खम इति मन्यमानः, wane amafaag ‘eRe’ इन्द्रायेम्‌ "परि wa’; श्रस्माभिरोव मध्येश्चमाणः कथं वा नपरिखलविव्य्ोत्यभिप्रायः एव मन्न “उपलप्रक्तिणौ = सक्र कारिका” शब्दायापपत्तरिव्यपपद्यते

उपसि(९५२--दटूति }, शअ्ननवगतम्‌ “उपस्ये'”-दत्यवगमः

* शधाना-सक्ग-करणमादौनाम्‌ः- इति we ye डौप्नौ “तथा fe सवनानां कपम'- रत्यादि Te wre २,२९.५ दरषटयम्‌।

ˆ नना” र्भा ०४, ९० इ, Fe |

{ \्भार ४९९ ee ade)

Lys fanart [पूवेषट्कम्‌,

° मन्वेति अमिंम्‌” ° TER TXT aman Qi feqt ayaa aaa wa ग्रस्ते ‘om’ पादतः रख्िभिः इतः लाकात्‌ यदादित्यो ‘amv wer त्येदकम्‌, AT इनदरो मध्यखाने Maa’ भ्रव्यच्चम्‌' श्रात्मानं प्रत्य चितं प्राप्तम्‌, तेन भगवतादिल्येन शोष्णा' seen “श्रत्ति' खीकरोा- तौव्यथेः तदेव मसौ सौरत्य चतुर्ष वाषिकेषु मारेषु एथिवीलाक- निवाभिनां जनानां शिरः प्रतिदधो" fare उपरि दधाति। "वर्यं वरतर भुदकम्‌ †। एव मय मिद्धो जगदपकाराय प्रतिषंवत्छरम्‌ एतां yerarat गाम्‌ ्रादिव्योपषष्टाम्‌, ‘agra उपर्यवखिताम्‌ श्न्तरिचलेके शरासनः “उपसि oa, wa STE, श्रन्त- रिचलोके ‘fauf’ प्र्तारयति। ae प्रतारयति, afea लोकं परति पनर्त्ृजति तत्‌ तेनेष्टं न्यक्‌" नो चैवैषभावेन श्रागच्छति ततः “उन्तानां श्मिः यथानिच्म्‌ “nat एव मज “safe” दव्य शब्दसाशप्यात्‌ BUI “'उपस्ये"--दर्येवार्थप्रतोति; “afa वा fax श्रादित्या भवति" दवयुक्म्‌ {, तसात्‌ ‘wed --दव्यजोपपद्यते fare मादित्यस्य

प्रकलवित्‌(९४)--दति €, saan | प्रकला वित्‌-दत्यवगमः। ““वणिगभवति'"--द्व्यमिघेयवचनम्‌। fe “कलास वेद yaar” |

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© “ag छार gary मति शौग्दोा मरः प्रतिदधौ aaa) चासौ कद्धा- मपसि विशाति qewurn मन्ति ufaa ॥**- दनि we doo, 0, ९०, 8 |

प्भा० २०९ Te (LO), ९६६१० (१०) FEMA |

{ pete ४९६४० ade |

§ र्भा" vay ze ade)

१. दपार RB] नेगम AAA | १५९

कलासम्बन्धेमेवे HRA उच्यन्ते, कला एव हापेच्छ प्रकला भवन्तोतिः; यथा, श्रधिष्टान मपेद्य प्रत्यधिष्ठान मिति ` agua aware nearer भोज॑ना सुराम" * | वसिष्ठस्याषम्‌ \ faga रन्द्रो महाव्रते निष्केवल्ये ead पन्ते शस्यते “दन्द्रेण' ‘ya’ aaa’ दारयितव्याः aan, वेविषाणः' पुनः पुनः व्यायमानाः, “ag: नः श्राप श्व ‘Wel’ केन चित्‌, शश्रधवन्त' श्रगच्छन्‌। TE नोचे frre: | Sea एते सन्तः दम्धबलाश्नौ Gag: dam दत्यभि- ma: किञ्च; "दुभिचासः' सुमिचराण्यपि wat ये श्रतिसन्धान- पराः, ते पुनदंमिजाः। के एनसे? दति,--्रकलविदः' वणिजि इत्यथः | ते यथा श्रमिद्रोदबुद्या किञ्चिद्‌ द्रव्य ae ददति, एव मेते ae: पूवे AMAA WAT श्रधुनेश्रबलेोद्यताः सन्तः ‘as: ‘faut सवोश्छगेवाणि (भोजनाः भोजनान्युदकामि t “सुदासे राजनि, यजमाने वा कष्याणदाने एव मन्पोदकाल्प- दानापमासम्बन्धात्‌ ` प्रकलविद्‌ = वणिग्‌""--दइत्युपपद्यते श्रवयव- प्र्वयवादिकलाः प्रकला-षन्देनेाच्यन्ते, तेषु वणिगेव निपुणो भवति, गण्ितक्कुश्लल्वात्‌ ; तथान्य इति

“श्रयं यञ्वा(९९)-- इति ९, श्रनवगतम्‌। श्र्ययम्‌ श्रभिवडंयन

* ‘ogee दत्यो चेदिंषाथा aot a eer swan MT | Chere प्रकशविन्िमाना जञ्विंखानि भोजना सदार इति we dev, ९. २७,५।

र्भा २९२ Te, RRO Te धननामषु (UE); रभा १९९ Te ९९१० .नभो- जनानति वा षनानति ar” |

{ -रतेन डवा tae महाभिषेके वसिष्ठः सुदासं पञजवन मभिषिषेख लखा- दु सुदाः पजवनः सममं सवतः viadt जयन्‌ waaay मेध्येन" दति द° Fle ८, 8.9 |

§ \्भा० ४९१९ ze प° |

१९० ` निरक्तम्‌। [पू्षटकम्‌,

यो यजति श्रन्यद्धंयतिरच arr. “frag येष atdf प्रदिक्त” *। जिश्वा नाम ain, aaa माषेम्‌। वैश्वदेवे छक चिष्टप्‌। हे मरुतः! ‘Gq’ qurg “tz ZH, azq val ‘fae’ पुनः पनरेकतां गच्छति “xaafa, भिय- कषतिः?- दति गति गतिकमेसु पठितम्‌ aq ama म्येऽव- faa: "सिषक्ति" daa, ‘yar खयः रश्मिभिः शश्रभ्यद्धयज्वाः श्रभि- दधदानः। ते ya मेवङ्गुणयुकता engl Bar “वम्‌ WET "यत्‌ यायः यदा ya मायाय weary प्रति, तदा मा बहूनि वलानि, ध्वजाग्राणि वा रेजन्ते" कम्पन्ते! एतस्िन्‌ “tafe? अन्तरिचे। “प्रविकेः विषिक, fait इत्यथैः एव मच ““पुवा = magus”; fe खरभिपेछं wat, श्ढतान्याभि मुख्येन Et योजयन्नमिमतानाथान्‌ wat ददाति

“दै से(९०)--दटति ‡, ` अनवगतम्‌ . “द जिभेः*-- इत्यवगमः | भगवतत दख नृतमामि o—e महि स्थरं Berna” 21 भरदाज- स्याषम्‌। faaq) गूढस्य दभ्राचस्ा्टमेऽदनि aqaata we wea "नृवत्‌ ते' यथा के चिदुत्पन्नप्रणयाः कञ्चिदोश्वरं मनुर स्ततिभिः सम्भजेरन्‌, वयं at नुतमाभिः' मनब्यतमयोग्याभि : "ऊनो श्रवन्तोभिः avanifa: fafa: daafe’ सम्रनेमरि।

t “fare येष Treat a Vat faufa पषा खभ्यङ ae VA इवं मदतो यख याथ भमा Cara खध्वनि प्रविक्ते॥"- दति we de ४,८,८,५।

र्भा ९९९, २९९ ४० मतिकमसु ve, ee Te (१२), (१९, Tam Fea

र्भा URE Te ९९ Tey

§ ean रन्द्र तमाभिरूतौ वसौमदि वामं ग्रोमतेभिः te fe वख उभयस राजन था रल महि GT बद््माम्‌॥*- र्ति ऋण Ge ४, ९, ८, ६।

द्चन्रपार रव °] नेगम काण्डम्‌ | ६९६१

शामं पार्थिवं वननोयं घनम्‌। “श्रोमतेभिः” श्रवणौयततैः we: | केन पुनर्येन ठंसौमदहि ? दतः, यस्मात्‌ “ta इथिषे, चम्‌, "वख: वसुनः, Wa; ‘sare’ उभयलक्णख्य,-दिव्यख् पाथिवद्य वसुनः त्वम्‌, डे राजन्‌! "धाः war देहि धनम्‌ कोदभं पुने दि? ‘afy महत्‌, amd; “EC बह बुरन्तञ्च बडकालं यत्‌ स्यात्‌, तद्‌ देहि एव aa वसुसानन्धात्‌ “¶के'-दृत्येष wT, “Sfaq”’—eaia समुपपद्यते | | RM, श्रनवगतम्‌। “लयणस्य"--दृत्यवगमः | "a वं vata Tyo——e UTA Ti कचतीवत area श्रा्चिनौ। ष्टुप्‌ प्रातरमुवाकाश्चिनयोः wee ‘gd gat डे “शरश्चिनौ 2 ‘mary’ ws ‘quay? ्चलितरूपां faa श्रदत्तम्‌!। युका मेव महतः ‘ue’ “qave” निवासस्य दातारौ ‘Hear’ षये किञ्च, प्रवाच्यं" प्रकर्षण वचनौयं ओतं तत्‌ ‘ara’ युवभ्यो "शतम्‌, हे "षणौ ? वषिंतारौ यत्‌ ‘area’ षये वधिरौशताय ‘9a’. saa ‘sana’ श्रधिकं दत्तवन्तो BW एव मच दानसम्बन्धा- धिकाराच्छब्दसार्प्याख ““तोणस्य = गटदस्य ”--दूति प्रतीयत “Tae —sfa एके मन्यन्ते। तत्‌ पुनरनुपपननम्‌, “लय ye” —zfa हि भावयकारे निरा (६) |

* gure ४९९२ ze ९९ Te | ane oe ee | = : UF आवाय॒ mat मदनं मरः खोदस्यिना wera sare तद्‌ ववा ua at agit maT ध्यधतम्‌॥*- दूति we सं० ९, = १४६, a) 21

११९. निबक्छम्‌ | [ waaewa,

अपने ते बन्धुः+ वय feels) Wet यातं नासत्या AAT | अस्मानित्यधेः | wR Warafad षभ पे afin | wanfifcad: | अस्मे प्र यन्धि मघवबनूजो- पिन्‌। wand मिन्यथेः। अस्मे ्पाराचिद्‌ देषः सनतरय - यातु अस्रदिन्यर्थः। Ga इव पप्रथे कामे श्स्मे। अस्माक मित्यर्थः | a धत्त वसवो वदनि | असा- खिव्यर्थः। पाथोऽन्तरिक्षं पथा व्याख्यातम्‌ श्येना ayaa पाथ इत्यपि निगमो wages मपि पाय उच्यते पानान्‌। आर चट रासां पाथं नदीना भित्युषि निगमो waar मपि पाथ उच्यते पानादृव, देवानां पाथ उप॑ afer विडानित्यपि निगमो भव॑ति सवीमनि wat देवस्य ad सवितुः स्वींमनीत्युपि निगमो भवति | सप्रथाः स्वेतः थुः त्व AA सुप्रथा सोन्यपि निगमो भव॑ति विदथानि वेंदनानि। विदथानि प्रचोदयन्नित्यपि निगमो भवति (७)

Cm दति 1, एतत्‌ पदं सवं विभक्रयन्तम्‌। तस्मादने- SIE) एक भेव दोतच्छ्द्† सप्तखःप॒विभक्तर्थेषु ata, प्रकरणा दिवश्ात्‌ तस्य नियमे भवति तद्यथा,

- 9 "सोते बन्धुः" गर र्भा BRR Te दपर

९अ^ BIT? ६ख °] नेग॑मं कारम्‌ | ११९१

maaretenda, ae ते बन्धं: ; "कय भिदयर्चः" “तप॑सस्तनरसि प्रजापतेवेणोः परमेण पथमा क्रौथसे wetted Gant) a@ ते बन्धैः पषयम्‌ दति 1। वोमक्रयणंं द्र्था- पाकरणमन्तेषु WHAT: एषो ऽपाकरणभन्तः सोच्यते -है we! "तपसः, ssa: नवं "तमू श्ररौरम्‌ Cafe’ ; “श्रपरेद्धषा श्रजा.-हति- शुकम्‌, “स एता wa: प्ररोचधते""--दति 2 च, तंसांईपपथते sia भजांयाः प्रजापतेः, ववण; वरया ads ‘aga trae भ्रखाकम्‌। 'पुश्न्तो' wafer sete अङ्गभावं gute! wa भनी भभिषटुतय श्रना सोमं ब्रवीति ;- हे साम | अनेन परमे Soe पश्टमा क्रीयसे क्षिं कारणम्‌ 2 omar “वथम्‌ "ते" तवं बन्पु? बन्धवः, विनियोक्रार्‌ इत्यभिप्रायः एव मच प्रथमागैने “aay? wae भामामाधिकरष्यात्‌ श्रक्ष"-दत्यस्य “Ade —Kald प्रय- भया विपरिणामं उपपद्यते

दिनौयायासतावत,--शश्रसे ard माल्या सेधाः” ; HRT: नित्यर्थः”, “at श्यनश्य०---° उषी mer” || water श्राषेम्‌। Freq श्राश्िनो प्रातरमुवाकाश्िभेयोः wat “at

# qe are de ४, er |

“खप्रेखनरसि"- र्ति चद्र॑एवयम्‌ (de are 8०९, ६४;४, ६)।

{ “प्रेयो ara सवः पश्यः" र्ति Lo Are 2, 0,

§ “aaa टग्णप्रौव शाप्यो Cue परात्‌ एति यन are de ९४, १९।

|| “खा ae जवसा मूतनेनाे यातं भासन्या WHIT | इव्‌ Fy at मञ्धि- ना clave: च॑भमाया उषसो | शा ॥- दति we do १,८,९९८,

१६९ निसक्तम्‌। [पुवेषद्‌कम्‌

धातम्‌' “sea? “Saga? प्रति हे area नाष्य ! शश्रखिना श्रधिनो ! mere पुनरायातम्‌ ? ‘wae प्चिणः ‘sae जवेन aaa, ^नूतनेनः नवतमेन \ परिश्रान्त दि श्येनखापि मन्दतरा लवो भवति ‘aera’ मया सद प्रीयमाणौ, परस्परेण वा वाः युवाम्‌। कस्मत्पुनरव त्रवोमि ? तः,- चस्नात्‌ “दवे fe वाम्‌' आहृयामि वाम्‌ aaa श्राह्यामि ; किन्ति ? ‘cave qa: ; युवा gfe ‘wage Rage मया। तौ यवा मेतद्‌ fama श्त्तमायाः' भ्ाश्वतिकतमायाः उषसः" व्युष्टौ" वयच्छेदन- काले आद्कयमामावागच्छतम्‌ एव मच “श्रायातम्‌-दृव्यनेन ana ्रसेः-एत्यस्य “श्रस्मात्‌'- इत्येवं दवितोयया विपरिणाम उपपद्यते .

ठतोयायास्तावत्‌.- “शश्रे समानेभिंषम्‌ ate fin” ; “sear भिरित्ययः, “अरि तकण यद्वणाम "| दनद्रमरत्छवाद्‌ मरता ada) रेन्रो। freq) मात्रत टस्य दथरराजस्य सप्तमेऽहनि aqua wad इन्द्र उच्यते. षत्वं oft ay ‘aay हतवानसि कम, तङिससिन्‌ agra तत्पुनः 'य॒ज्छेभिः' एव wer “अस्माभिः” एव संयुक्ः, "षमानेभिः' समामे, "पौलेभिः' बलैः रहे ‘aay ववितः ! नैकाकोत्यभिप्रायः fa; वय मपि 'रोणिः agit कमाणि ‘sung’ तसिंससिन्‌ सद्धाम

+ भरि चकथं यच्येभिरस्र संमानेभिंहषभ्‌ Sta: | wet fa fe qearar विहग MAT मदतो TAMIA W7—fa we Yok, २, eu, ९।

we रपा० aye] नेगम काक्डम्‌। १९६५

शविष्ठ" बलिष्ठ ! ‘cx केवलं वाञ्च वेफोतर्‌ मूमः; किन्ति ? करत्वा" एव कमंणैव तत्‌ सन्पादयामः, "यद्‌ aura,’ यत्‌ कामयामहे शृत्ययैः एव मच “युच्येभिः”-एत्यनेन सम्बन्धात्‌ शरस eae “श्रस्माभिः"?--इति ठतौयया विपरिणाम उपप्यते॥

चतुच्यास्तावत्‌,-“श्रसो प्र यन्धि मघवन्नजोषिन्‌'” ; “ME fae) “oa प्र यनि.--°द््र fafa’? | चोरस्या- frwaa माषम्‌। चिषटुप्‌ tat लातक्मंणि विनियुक्रा। ‘aa “श्रसन्यम्‌'” “प्र यन्धि" रेदि रे "मघवन्‌" wT! TR! खजोषिन्‌ !› रायः" wre, शविश्ववारस्य' सवा श्रापदो यद्‌ धनं वारयति तस्य, wt? बनः, ae श्रधिपति; aa, तष्य श्रभिल- faat मारां देदि। किञ्च; ‘sq ““श्रस्मभ्यम्‌› ‘ad शरदः” शतं वषाणि ‘Nay जोवनाय ‘an’ दे दि ‘aa’ “श्रसम्यम्‌” बोरान पुत्रान्‌ ‘waa: दोधायुषः देहि रे शिप्रिन्‌!” एव मतर “श्र प्र यस्िि--इत्यनेन याच्ञायँन waa श्रसे'-दत्यसख “श्रस- भ्यम्‌“ इति wae विपरिणाम उपपद्यते

पञ्चम्यास्तावत्‌+ “श्रे श्राराचिर्‌ देषः सनतययोतु"; “श्रस्म- fee.” | “ae वयं ° --- ° सनत्य॑योतु” गर्भस्य भारदाज- way! षष्ट मण्डले Bat, eqs पुनरपि चेय मेव कादौवतः 9 1

“wes uf मषवच्रजोषिन्रिन्द्र रायो विश्ववारस्य भरः | सो WA Uy लोवस धा GS TUT wy णिभिन्‌॥*- दूति सं २, ९, २०, ४।

“we वुं मृते य॒ज्नियस्यापि भद्रे Saws ras सचामाखर्वाद्न्धा खसो YRS देषः सम्‌तयुयेतु॥-दतिषण् ge ४, ©, RR, 2!

१९१ निरक्तम्‌ | [पृवंघट्‌कम्‌,

सुकौन्तिनामा, तेन दमे awa Ter) षष्ठे चाहनि yeqe, विश्वजिति Sd हतौये सवने ब्राह्मणाच्छशिनः शस्ते विनियुक्ता | "तस" इन्द्रस्य "यन्नियस्य' anew "वयम्‌ ‘gual ओोभनेऽध्यवघाये ‘era’ शश्रपि' चास्य भदः भन्दनोये qa “सौमनसे' भोभग॑स द्ये मनसि faa मेव स्छाम | खः, "सामा" इदः, ‘Sara’ धनवान्‌? “श्रो “mara” “श्रारादित्‌' दूरतर awe "दषः" इषं पापम्‌, ततः ‘aaa’ खन्तर्ितं रतं यथा तं पश्येम तथां ; युयोतु" नाश्य वित्यर्थः | एव मज “दे षः-दत्यनेन सम्बन्धात्‌ “शअसेः-इत्ये- ae ““श्र्मत्‌ः"-ए्येवं veer विपरिणाम उपपद्यते षष्टयास्तावत्‌,-“ऊवं पप्रथ कामा aa”; “MATE मित्यर्थः “at At are —e वद्धनाम्‌"* “उदरः” 1-- इत्यस्या एवेय मनन्तरा। श्रा भर" श्राइर। ‘a’ aa) हे ‘cay भगम्‌ भजनोयं धनराभिम्‌, दयुमन्तं" दोत्िमन्तम्‌। आररत्य wares रडि। तथा mad रहि, थया भुक्रभेषस्य प्ररेके" अतिरेके सति ‘fa दधौमहि'। "तेः तव eae ‘Sue’ दानस्सत्यथेः। कस्मात्‌ पनरेवं ब्रवोमि,- प्रतं दरोति ? इतः,- TENA “ऊव इव यथा वडव सुखेऽवखितः Barsfa:, aa: पिबन ‘ane’ प्रथते, एव मयम्‌ शरसे" “aaa”? "कामः, प्रथते विस्तौयेते ‘aa’ ‘ar श्राभिमुख्येन ‘gq’ परय "वद्धनाम्‌! ‘agua!’ एव मच

© Car at भर wa farx gan fat Zaye) धमि 9TH | कवे <a पभ्रथे कामि GA A मा ऽक वसुपतं बद्धमाम्‌ ॥*- इति we संदे, ९, ४, ४। To १९७ ४०४ पर RENT

९. Rate दख] नेगम काखम्‌। we

‘ata: पप्रथेः--रत्यनेन सम्बन्धात्‌ श्रात्म विषयात्‌ श्रागिषः ‘aay --दति “श्रस्माकम्‌"--दत्थेवं षष्ट्या विपरिणाम उपपद्यते

ARTA ,— “GA ध॑न वश्व वदनि"? * श्रव ‘wH— aaa सम्बन्धात्‌ श्रसे'- इत्यस्य “श्रस्मासु"-दृत्येवं सप्तम्या वि~ परिणाम उपपद्यते सप्र शेऽध्याये “सुगावो देवाः सुपथाः”- दति शेष उच्यत्‌ एव 1॥

“qq? —efa ‡, अनवगतम्‌, श्रनेकार्थस्च “senftaa” वावत्‌ पाय उच्यते। तत्‌ पनरतत्‌ “पथा व्याख्यातम्‌” ; “पन्थाः पततेवा"-इत्यत्र 2 “यत्रा खक्ररम्टता °--- ° मिचरावरणोत wa.” | वसिष्टस्याषम्‌। wer: प्रयमेऽद्ंषैः सौय हति प्रतिजन्न waar भेचावरुणो fetta दति) एवं दयार ;-““"छचः सौय चि गो न्त उदेतीत्यद्रपञ्चमाः"- दति ‘aw यदा ‘aw’ gare ‘eS: छतवन्तः “श्रम्हताः" देवाः "गातुः गमनमामेम्‌, उद्यादारभ्य यावदस्तमय इति, VAIN मारः BS: "सेने न' श्येन इव ‘Daz wafy gear: गच्छन्‌ "पायः" ““श्रन्तरिक्तम्‌"” तेन मार्गण श्रय तदा श्रारभ्य भ्रति विधेम ‘al? प्रतौत्य चेतसा युवाम्‌।

© qe Be Yor yal

यास्कौ यदेतस्य wrerer cree दति यावत्‌ we Ze wre. ue, 8, ८॥

{ ध्मा BRR Te ९९ Ge |

§ YUTe २४९ १० Ue |

|| “यत्रा चुक्ररुखता agqaa war दोय॒दचन्वति पाथः vie at ax खदिते fata ममाभिभिजावदणोत wa: ॥- पूति we dou us

we Yoo, ४, ८. खक्तारमे सायषोयंदध्यम्‌।

११७८ fram ` [ पूवषट्कम्‌

"उदिते wa ‘fata’ परिचरेम वयम्‌ & “मिचावर्णि !* "नमेभिः' नमस्कारः ‘oa श्रपि ‘ean एव मच शनो faa पायः-दत्यनेन सम्बन्धात्‌ “पायः = wafteq’— इत्युपपद्यते

श्रपटित मेतदन्तरिचनामस्‌ ^ इति श्रप्रतौताथेम्‌। अथ वेव मन्यया सखात्‌;-प्रथमस्याद्बस्यायैः सखर्यप्रधानलात्‌ उन्तराद्धसी निराकाङ्घः ual ‘aw afar नभसः nea "गातु" छतवन्तः, ‘Maal? देवाः GIs तेन एव yaaa ‘way’ टव 'दोयन्नन्वेति' अनु गच्छति "पायः" तां भयदा मौश्वरोऽपि घन्नतिक्रामतीत्यथैः

“उदक मपि पाथ saa”. ““पानात्‌?। “श्नमि वा gate --° ग्रः सदख्ठचक्लाः वसिष्टस्य Taq STU TIA aqusefa तोये सवने वैश्रदवशस्ते wads रे विजः ! शभिः वदामि वः", एनां ‘eat धियं" ययम्‌ एतान्‌ विश्वान दवान्‌ प्रति दधिध्वम्‌ धारयध्वम्‌। faq; “प्रवा देवता वाच छपध्वम्‌''। श्र त्रवोमि एतत्‌ ‘faar देवगाभिनौम्‌ vat ary स्ुतिलकचणाम्‌ ‘amaze’ किञ्च; “om षष्ट श्राखां पाया नदोनां वरुणः" | वरुणाऽपि देवः श्रादित्यः, “श्राचषे' एव, प्रकथ-

UUTo २४ Te ९० देष (१)- (९१)

“ate ar देवीं भिय दधिष्वु प्र बे देवजा वाचं" acai च्या de wat पाथानदोन्‌ं wag रुरकयत्ताः।॥"- दूति we de ५४,९, ९५, १० लेकय गक खतुष्ण्द्‌ा ; शपि faa gy हिषे, “प्र शक्रा पश्चाधिका away याद्या रकविं्रतिहिपदाः*-दत्यनक्रमणोवषनात्‌, “"बोडनिन्या waar दति दविपदा (९, २.) द्ग्याशङ्लायनग्रासनाबेति।

CU VAIO AB] नैगमं काण्डम्‌ | ९९९

aaa जनानां वषेम्‌, उत्सृजन्‌ श्रार्साः ‘agai? wna, उदकं “पाथः famew: पुनवैरणः? Wed ;-“उ ग्र” UAT, “सदस चक्ताः" बहर थेन इत्य यैः एव मनर पाथः - शब्देन. “TAR” -द्व्युच्यते, नदो सम्बन्धात्‌

“mq मपि पाथ उच्यते”; “पानारेव”। “वमस्यते रशनया ° ध्यावा्रथिवो ea मेः * श्रापरौ-कर वाध्यश्स्छ सुमिः way माषम्‌ हे “वनस्पते !' ‘cera "नियूय" निबध्य देवा- नाम्‌' एतत्‌ aaa ‘ay’ sq vfasaqa “उप afe’ समोपं वहसि ‘faa? जानानः कस्मात्‌ पनरेवं प्रवौमि ? दतः; यस्मात्‌ “खदा तिः खादयति, सः ‘Za’ योदा नि एतानि “eal fa" यानि ‘away’ श्रकरोत्‌, एष यजमानः | वनस्पति मेव Get पुनद्यावाषए्टथिव्यावाह ;- हे श्धावाष्यिदे !* ‘ai? खेवा मपि शश्रवताम्‌' WTA, एनं "इवम्‌" west ‘A मम

"शवौोमनि(९)५-- दति †, अनवगतम्‌ “प्रसवे दत्यवगमः। Za que——e चामि मनः” भरद्ाजस्याषेम्‌ जगतो + गवामयने चतुविंश नाम fadla महः, तत्रेयं ठतोयसवने ्श्वदेवश्त्ते wea | ‘aw’ “सवितुः, षवा्ेप्रसवितुस्तश्च वयं ‘aal- मनिः ‘sa’ प्रसवे साथेग्यनुन्नाने, नित्यकालं ‘aaa’ एव “स्याम'।

© “युं स्पते रक्मया fire टवान्‌ wry Sy बचि विद्ान्‌। खद्‌ तिरेव wuraviaat ararefaat मे॥- दति we de ८, ९, ९९, ६४ {+ श्भा० ४९१९० ९८ पर| oe A NI ^~ { “दव्य वयं सवितुः सवोमनि ब्रह ara वसुन दावन | यो विश्द्य fara qagut fuant प्रस्वे चासि भूम॑नः ॥*- दति we dev vty, el 22

{ee निशक्म्‌। [पूवषटकम्‌,

'वसुनख* wie ‘aad दाने Ae dah, वय सेव wane ष्याम हे सवितः ! "यः" लवं ‘fare’ सवेद्याख्य “दिपदः' मनव्यादेः, ‘ay “quay गवारेः, waa wer, “निवेशने feqat, “प्रसवे a wat, प्रभूः “श्रसि' ° तस्य तव vayufafiee nate दाने वय मेव wpa: स्यामेति एव मजर ‘afaq’— aaa सम्बन्धात्‌ “खवोमनमि'--ष्त्यस्य “भ्रसवेः"-द्येवं विपरिणाम gq पद्यते॥ ` | “उप्रयाः(९९)१- इति †, अनवगतम्‌। “aaa: एयुः"-श्ग्थव- गमः “ey मपरे सप्रथा ° वि ate” t सुतन्भरस्येय माषम्‌। 'गाधनो श्राप्रेयौ प्रातरन्वाकाश्चिगयोः wea ₹े 82! सेव वप्रयाः" “स्वेतः ve” विस्तौणैः अष्टः" श्रासेविता यज- भाः हाता शराहता देवानां भवसि। ‘ate’ arate: सर्व॑ धापि। fe बना ‘aa एव हेतुग्तेनैते यजमानाः एतं ‘ay वितन्वते" विविधं aaa, विस्तारयन्ति एव मच भब्दसारूप्यादया- 'पपन्तेख “सप्रथाः = wat, एथुः”- इत्युपपद्यते ““विदधानि(९९)'?--दति १, अवगतम्‌ ““वेदनानि",-दत्यव- गमः। “होता Zat-— परयोदयम्‌" विश्वामिनस्याषेम्‌।

*# प्रसवे चः दशा, र्मः” क|

f र्भा ४९४१० ९४८०।

t “waa सप्रथा अधि ergy WIT Wea | लया gay Fe तन्वे WP एति we Be Btu, ४।

§ Cee ४९२४ Te ude |

|| “जोत देगो अनश प्र्ादेति मायया | विदधामि प्रोद्यम्‌॥- एति We सए, ९, १९

९अ० रपा० Bye] नेगम काण्डम्‌ | Ror

TIN ्राप्ेयो प्रातरनवाकाश्चिनयोः waa अग्रीषोमप्रण- wa® विनियुक्षा “होताः श्राङ्ाता, aa’ श्रभ्निः, “qari? wa- COUT, “पुरस्तात्‌ WA यत्नकमणः, सोमस वा प्रणोयमामस्य ‘uf’ गच्छति, मायया" खया ayer एषाम्‌ waste ‘faz- ानि' विज्ञानानि श्र" प्रकषण “चोदचन्‌ ्रनुग्डन्नित्ययेः मच अर्दसारूपयादयापपत्तेश्च “विदथानि = वेदनानि”--दृत्युपप- श्यते ie (७)

आयन्त इव wa विश्वेदिन्द्रस्य भक्षत वदनि जाते जनमान्‌ ओजसा प्रति भागं दींधिम समाचिताः खयं मुपति्ठन्ते अपि Arma स्यात्‌ aa भवेद्र मुपतिष्ठन्त इति सवाशीन्द्रस्य धनानि विभष्यमाणाः। यथा धनानि विभजति जाते जनिष्यमाणे खतं वयं भाग मनुध्यायामौजसा बलेनोज ओजतेवेपलते- वाशी राश्रयणादाश्रपणादाथेय भितराशीराशास्तेः। इन्द्राय गावं शिर मित्यपि निगमो भवति | at a स॒त्याशींद्विधिति चः ४९॥

* “खगरौदोमप्रथयते' |

+ “fanaa” क, ख, ब।

t cgeariticartata ??-- दति °-समातः। § He saan: ङ-च-पखकयोः।

YOR ' निरक्तम्‌। [पुवेषद्कम्‌ ;

“श्ायन्तः(९५)- दूति °, श्रनवगतम्‌ “समाभिताः?- त्ये मर्थपरतौति ` “maar vae—e नः -दौ धिमः” बृहती aaue श्राङ्गिरसस्येय ara श्रनराति मितोय मनन्तरा चास्या भराप्रते बृ सहसे विनियोगः “श्रायन्त इव छयंम्‌' इवोऽभ्थक एतस्मिन प्रयमेऽं “खमाश्चिताः'” समन्तादाचिताः ‘gan “oq fem” रायः किम्‌ ? इति,--“विश्रेदिच waa” | “दत - caus एव “विश्वाः विश्वानि “aarfu” ‘exe’ “घनानि, wae खण्डतानि, उदकानि, तेन प्रत्तानि “शिभच्छमाणाः? विभक्‌ मिच्छः ra “वा” त्‌, द्त्ययम्‌ “उपमा खात्‌, मामथंकः श्राह ;- कथम्‌ ? इति, उच्यते ;--“छ्धयं fade सुप- तिष्ठन्ते” यथा खय मदन्यष्टनि र्य उपतिष्ठन्ते, एवं मध्यष्यान fax मुदकेश्र समुपतिष्ठन्ते ae “exe” खण्डतानि “वाणि धनानि उदकानि तेन प्र्तानि, शरात्मना जनानां वा विभक्त भिच्छमा- an. (किञ्च?) “वद्धनि जाते जनमान श्राजषा” यद्र श्रादित्यो वा| ‘agar धनानि जातेः “च” sma जनमानेः “afa- ;व्यमाणे च,” सखेन ‘tee शेयं -“ बलेन” “farsa” तथैव यथाविभक्तः तेन, भत” ‘ani ग्ढतानि उपजोवन्ति, तदैशवयान्‌- प्रत्येव यत एव मता “वयम्‌ श्रपि “aa” भागं" भ्रति

* श९्भा० ४९४ इ० OTe |

t qe ge q, ७, द, 8!

t we de “श्रमाय प्रत्यवद्धाति- इति Te ate wu, pe | § नाशयेत्‌ क-पुखके | `

| “que aie”? क।

श्य. VT? swe] ana काण्डम्‌ | १५४

न्न दौोधिमः' wa ‘wc, wart wa “a व्यं भाग मनष्यायामः-दति भाव्यकारे निराह एव मज श्रायन्त इव इयम्‌'- दति खयेसम्बन्धात्‌ र्पयोाऽध्यादताः, रशिषम्बन्धा श्रायन्तः'--ए्येष शब्दः, समाडमवु पसगावध्याइत्य “समाचरितः” त्येव gaara भव गौत्युपपश्चते

““श्रोजः'*,-““श्रोजतेवौ” इद्यस्य (च श्र०प०) ; “gaara” न्यगधावाथस्य (go प०)* |

Com —efa t, श्रनवगत मनेकाथेञ्च “श्रागिरम्‌"- दत्यथप्रतोतिः | या यजमानस्य ways, ता माभिरं दुरन्ति। एत- सिन पक्ते दध्यभिघयम्‌; तेन fe शाम saa, aan मि्युच्यते श्रवा” “meagan”; ईषद्धि तच्छतं भवति दधिभावात्‌

“ma”? पुनः या “दयम्‌,-र्तरा ata” ? दयम्‌ “aa सेः” ्राङ्पुवैस्य शास्तेः (रदा ०प °) श्रभिलाषाथेखछ

“न्द्राय गाव०--° विदत्‌" {। ग्रियमेधस श्राङ्खिरसस्येय माषंम्‌। मध्यमे राचिपयाये ब्राह्मणाच्छंसिन wa वि नियुकरा ' ‘oxy ‘afee’ श्रथाय ‘ma: श्रागिरः श्रपण पयः, यज्ञे पुनः 'दुदुद्' ay’ मध्वाखादम्‌ "यत्‌" ‘aay wa: ‘cag?

* ante ९९, ९९९ To Lao ९९८. (४९); ९९५ TS Pee ewe (९)। Caras वरतेजसाः- एति afae

र्भा. BRB Yo ९०्द्‌०।

{ “दन्डाय् गाव afc’ eee afag ay यत्‌ सौ age? विदत्‌ 9” एति ऋण्षं०९,५,९,६। `

१९७ | faery! [पुवषद्‌कम्‌ $

GWE कधःप्रदेभे, दोग्धा ‘aaa’ तत्‌ Gee ll एव मज गो -सम्बन्धात्‌ wea “TTA उच्यत इत्युपपद्यते

“gee मितरान्नोराणास्तेः"- एति यदुक्रम्‌, AIT FATT; -“सा मे agra’ गम्यात्‌ wan ते षघमद्धयन्त्‌ खष्टात HVAT पणात्‌ TAT | श्रेडता मनसा नु TK यन्नो देवान्‌ गच्छतु” प्रसरे प्रह्विथमाण यजमाना लपल्येनम्‌ ‘ar “मे' मम शश्राोः,, ‘ear यथाप्राथितैह देवान्‌" गम्यात्‌" WHIT | ‘guy ‘a’ देवाः। श्रूवा मद्य" ; ‘aera’ अपि 'जष्टतरा' प्रियादपि प्रियतरा, प्रश्ादपि ‘qwaw स्ुतादपि gaa | faq; श्ररडता aver ward मनसा प्रिताऽख्माभिः हे ्रष्षर ! त्र मप्मि ‘ary’ “गच्छः "यज्ञः" aly ‘Tar’ "गच्छतु" | a मपि चान्य यज्ञम्‌। तदयं यालामोाऽसावपि देवान गम्यात्‌ एव मच श्रा्ोरेव शश्रशोःः-शब्देनाभिपोयते; श्राशिषो fe देवाम्‌ प्रति गमन ate मिति ॥४॥

यदा तं मर्ता अनृ भोग मान॒रूादिद्‌; ग्रसिष Sa: Wo AAT ते AAT भोग मन्वापद्थ ग्रसितृतम ओषधीरगारीजिंगत्तिंमिरतिकम्भाऽ वा

* “खता देषु" रति याख्छौयप्राढः खदेचेव मूरुपुखाक्ेष

भ्रख्लरो दमंमुष्टिः। wae Are eye, १९६ Bel “यजमान्रः प्रखर (र° wre ९, ९. 2)" इत्यादि बहवम्‌।

{ “manic” क,ख, a1

§ “लामनिनिरतिकमे?” क, | जोबक्तिभिरतिक्रतै”?

१० Wie VB] नेगमं काण्डम्‌ | Loy

खृणातिकम्मा वा Caifasat वा। मूरा AAT वृयश्िकित्वोा महित्व aa त्व मङ्ग वित्से मूढा वं स्मोऽमूढल्व मसि वयं विद्मो* महत्व at त्वं तु वेत्य शशमानः शंशमंानः। यो वौं यत्तैः श॑शमाने टाशतीत्यपि निगमो भवति। देवा देवाच्या कपा | देवे देवान्‌ प्रत्यक्तया AAT BT HIATT कल्पतेवा

५८८)

“चलो गः(९९)-- दति ft, श्रनवगतम्‌ | ““श्रगारोः”-दत्यवगमः Cert त° set's रोैतमस ca माषम्‌ | अश्वमेधेऽश्वस्ततौ विजियुक्रा। “wy एतस्मिन्‌ काले ‘a’ तव हे "अश्च ! .ङूपम्‌' श्रहम्‌ "उत्तमम्‌ SEER “HUA .जिगोषमाण' जतु मिच्छमानम्‌ ‘a’ 8a Baa निमिश्षभते श्रा पदे गोः" उपरि wea tay वेधां ari ate न्नं मेवामुभिंक्लोके जोयते, Tae वेद्या मित्येव समुपपद्यते किञ्च; ‘ae afar काले ‘a? तव (मन्तः मन्यः “श्रनुभोगम्‌ “Tae प्राप्रोति, वाहयन्‌ वा, श्रय परिश्रान्तस्तम्‌ शश्रोषधौः wrth’ श्रोषधौग्टक्षासि गिरि वा। श्रन्ये हि प्राणिनः परिश्रान्ताः चरितं again, लत

© “"सृर्हा वयं सोऽमृण्दस्त्व मसि"; “Aw वयं चोऽमृङस मसि” ख। "मदिः" क, ख, J र्भा. ४९५ ve १्पर |

§ “अनी 2 ey सम पण्यं जिनोषमाष भिष आपदे at) थद्‌ा ०~--° THM: दूति ऋण Ye R, २, ६९, VI |

१७९ निशक्तम्‌ | [ पुवेषट्कम्‌,

सुतरा मेषधोर्भक्तयसोत्येतदधिकं तव एव मच ster waaay “जिगर्तिः, गिरतिकमा वा रखह्वातिकमेा वा“--इत्यु- पपद्यते

Sa, श्रनवगतम्‌। “श्रमूढः"--दृत्यवगमः | मरा wat o—ofanufa: सन्‌" faaeraeriq. faq| परातरनुवाकाश्चिनयोः शस्यते डे भगवननपरे | श्रमूर !' श्रमूढ ! “ATW मुढा; "वयः साः भवता माहाभाग्यपरिन्नानं प्रति मन्दनबुद्धिलात्‌ ‘a वयं बिकिलः' वयं भवतः प्रभावस्ान्तं विजानोमः। हे fsa’ (त्वम्‌, एव शरात्मना महिमानं “मदच्वम्‌" { माहाभाग्यम्‌ ‘faw afe, कस्तवान्यो माराभाग्यस्यान्तं ay मरतोत्यभिप्रायः | faq; ‘wa’ श्यपरिमाणे प्रदेशे उन्तरवेद्याश्ये "वतरिः विशेषात्मा, तव॒ Sue: “चरति समिद्धलात्‌ सुषमुंडखरति त्व मनेन पे णोन्तरवेद्या aafeat "जिया" ज्वालया तानि तानि eal fa "शरदम्‌" wey “रे रियत युवति" at ता माडतिं पुनः पुनः आखादयसि। “विश्पतिः विश्वस्य सवस्य पतिः, मनव्यपतिवो ‘ay we मेवं करेषि हितेषित्वार्‌ यजमानानाम्‌, साऽस्माक मिदं माम कुकित्यभिप्रायः।॥ एव मच ममृढाः- दत्यातमनिन्दादारेख श्रप्निः “wae. Tata सयते इत्य श्रमूर'-शन्दस्य “RET.” त्येष विपरिणाम उपपद्यते

= श्भा. ४९५ ४प० |

t “au WAT वयं fafear afea di मङ्ग fag wa’ वत्निखरंति fawareatcouat aafa विष्सतिः aa ।*- दति we सं* ०,५, ९, ४।

“मदिनम्‌”- इति ख-नामदततिपुखदे।

(Ue रपा gue) नेगमं area yee

““श्रश्नमा नः(९८)०-- दति °, शनवगतम्‌। “ग्समानेः,'--दत्यकः गमः। न्यो at य॒ज्ञैः ° = म॑न्त waa.” 1 दौधेतमस ्राचैम्‌। जगतो च्छन्दः “यः? यजमानः, युवां हे मिनावररणौ! ‘ag: fafarwera: ‘mmata” “wearer” सुकम्‌ “दाशतिः ददाति watfa युवाभ्याम्‌! “कविः' क्राम्तदशेमः, “Bra” आहता "यजतिः ‘aman’ मननसाघनः, विक्ञानसाघन eau: आह ;- तस्य किम्‌? इति, उच्यते ;--'उपाहतं गच्छथः" प्रत्यु- पागख्छथः यवाम्‌, ‘Ate’ श्रष्वरम्‌' श्रध्वाञ्भितानि दवति वय मपि एवह्ुणविशिष्टा एव यते ब्रूमः; सुमति, ओोभन- Wy यजमानम्‌ श्रनु श्छ र्का गिरः एता wage श्रामिमुख्येन ‘man गन्तु मिच्छयो युवाम्‌। “wary ware, कामयमाभाविल्ययैः॥ एव मच “as: श्रमामः- दतिः यज्चसम्न- न्धात्‌ शब्दषाङूयाच “श्मानः = शंषमानः"?--इृत्येक मुपपद्यते

“Zar दत्राच्या, छृपा(९८)०- एति ‡, एते श्रनवगन ।. देवशब्दो MMV उपलकणायाऽक समान्नातः। देवः, देवाच्या, BIT,— cha नि एतामि पदानि। देवाच्या श्यस्य “Zar wafeqar” -दृत्यर्यपरतोतिः। शपाः-दत्यस्यापि “कल्पितया! इत्येव मथै-

१्मा० ४२४ एन स्प + "यावा यज्नं अमानो © rein Sheers यर्जति मन्परसाषैन | डपङ्ष्- तं ब्दो Tey अध्वर मच्छा भिर कुमति am WHT NITE ऋ०९,९,९२१.१। { QuTe ४१५ ४० Rote | § र्भार ४९४ ४० (द<)-गोणनो KUTT | 23

१७९ निरुक्तम्‌ | पिविषट्कम्‌ ,

प्रतोतिः। “भिं होतारं o—e सर्पिषः” *। परच्दपस्पाष॑म्‌ ! श्रतिच्छन्दाः अ्रव्यषटिः | भ्रभ्रिचयने -दषटकापधाने विनियक्ा शरमं “तारम्‌ wena देवानाम्‌ ‘aa’ ‘rea’ दान- वन्तं दाढतमम्‌, ‘ad? वासयितारम्‌ waa जगतः "खनं'- ‘aya’? बलस्य पचम्‌, "जातवेदसं" जातप्रज्नानम्‌ ‘fad जात- agen विप्र मिव जातप्रन्ञानम्‌; यथा fe कित्‌ कञ्चिन्मनुखं समानष्ष्ठोदरपाणएषादं विप्राप्तश्चानं यथावत्‌ लानौयात्‌, एव ay afa यथावश्नाने ‘a’ afm, ‘que’ शोभनयश्चः Sa’ | ‘agar ‘war awa सामश्याद्यया कर्पितिथा, ‘ara. देवान ्त्य्चितया गत्या, “gae’.‘fanfe’ fang ‘wr वष्टः श्राङति- भषम्‌ ‘wafer ज्वालया श्लकामयते वाञ्छति “वष्टि” दति कान्तिकममसु पटितम्‌1 ‘seme’ उपरि gaara पिषः" सर्पणनोलस्य। मप्नि ay मेवं जाने, यथेवक्गणयुक्ः, सद्द mara करोावित्यभिप्रायः॥ एव मच “देवाच्या, Bar” -द्त्येतौ शब्दौ देवान्‌ प्रत्यक्तया कथितयेत्येव सुपपद्यते, शब्द धारूप्यादयापपन्तेख (८)

gaa’ fe afcarantt वां fasiratqea at धा स्यालात्‌ अथा SAT प्रयतो युवभ्या faexrait

+ Cait trate मन्ये arene वसुः खन्‌ evar शुतवेदस" विघ्रः जात- दसम्‌ aka ager दवा द्‌ वाच्यां owt) waa विष्टि ममुः afe wife terete सर्पिषः ॥*?- र्ति we Woe, ९१९, ६।

Auto ६९९ Te KG Cae (९)

१० रपा ¢wo] नेगम काण्डम्‌ | १७९

स्तोमं जनयामि नव्यम्‌ sare हि बहृदाठृतरौ* वां विजामातुरसुसमाप्ताज्लामातुविंजामानेति wa- हाकिणाजाः कोतापति माचक्षनेऽमुसमाप्त इव वरोा- ऽभिप्रेतो जामाता जा suai तन्निम्मातोत वाघा स्यालादपि स्यालात्‌ स्याल Area संयोगेनेति नैदानाः स्याल्लाजानावपतीति वा लाजा लाजतेः | स्य wy स्यतेः yd मशनपवनं शखणातेवाथ समस्य प्रदानेन युवाभ्या मिन्द्रप्री स्तोमं जनयामि (नव्यं) नवतर ममास इत्युपरिष्टाद्‌ व्याख्यास्यामः & (९) ॥.

इति षष्ठाध्यायस्य दितीयः पाद्‌ः॥ g, २.

““विजामातुः(*^)-- दति Il, श्रनवगतम्‌ उपसगेश्यापरिसमा्ययं ठत्तिरजानवगमः “श्रसुसमाप्त इव वराऽभिप्रतः""--इति भावय कारो निराद्य विगतजामादभाव द्व च; यो दप्रात्रजामादभावः विजामातेव्युच्यते; fe दाक्चिणाव्येषु प्रसिड्ः “अश्रवं हि °--° जनयामि नव्यम्‌ ¶। श्रुत्याम्‌ | freq “wit”

© “"बड्द्‌ायितरोाः क, च्छ, 4

“विजामातुरसषमा्नाव्णामातुविनेमावेतिःः क, ख, | { “eran राजतेः? क, ख, : § Tame दशने क-ख-ग-पु HS

|| श्भा० ४६५ ge ९० We |

we de 2,9, ९८, ९।

१९८१ निरक्षम्‌ [पुवेषटकम्‌ ,

अहम्‌ युवाम्‌ हे ear !' “खरिदावत्तरा' रिदातारौ कुतः? “विजामातुः' “अस॒खमाप्नात्‌ जामातः" यो fe श्रषमाप्तजामाद- भाषा भवति, लामाद्शुखोमलात्‌ बज्दनेन क्न्वा पिद्‌- नाराध्य तेभ्य श्राद्मानं रोचयति) ततेाऽपि बहतरस्य WIA दातारा- वह ate भवन्तौ “उत वा घा स्यालात्‌", “वा? दत्य गथेकः wary’ अपि award युवा ae मोषं भवन्तौ; ष्यालाऽपि fe भगिनोप्रियविकोषया aga ददाति। यत एव मह ale भवन्तौ, waa करणात्‌ ‘trae’ प्रयतौ" प्रदानेन, हे warm! ‘aanal’ ‘at’ "जनयामि' उचारयामि, “गव्यं WAU मन्येभ्यः Wr एव मच 'विजामाढ'-शब्देम ^ शरसुखमाप्रनामाटभादः” उच्यते, तस्य बछद्‌ादत्वादिल्युपपत्तिः ““विामातेति," “way? प्रसिद्ध मेतत्‌ ''दाच्विणात्याः ° क्रोना- पति arqea” ae निर्ग णलादात्मनः कौणाति कन्वा मात्मनो भावाय | wary “agearn इव” wet “वरोाऽमिपेतः'" "जामाता? 4 “जा शप्यम्‌, afar’ जामाता; ala fe मेुनेन यवद्ारेश्ासौ fafaatia, तेनास seq: पतिजामाता भवति “are. श्रासन्नः संयोगेनेति” “aera” निदान- विदो awai श्रथ “वा” ““खब्‌-टति “ma” इच्यते; “era” तस्मादसौ amet fare ““लाजागाबपति", तस्मात्‌ are उच्यते 11 “a शणम्‌", “wa: (feeqe)” धातोः. प्रले-

® ‘eifeqren” ASUS: | इव ont ागापदनिवेचनशष्ानं aren मृचितम्‌ |

शचन्देपा०्र खन ] नेगमं का ग्म्‌। १९८१,

qua; तेन fe au किणन्ते “say श्र्नपवगम्‌,, तेन इध्मं पयते “sara: (रया °पर)"” तद्धि शरमयं भवति “श्रो मासः(*९)--““इ ति” *, एतत्‌ पदम्‌ “उपरिशाङ्‌ व्याख्या- wie.” शक्नदशेऽध्याये t “श्रोमासखषंणो एतः""--दत्यच ६८९) ` दति निरकरटकौ एकारग्राध्यायस्य (aera) fama: पादः॥ ६,२॥

ठतौयः पादः

सोमानं खर णं कणि ब्रह्मणस्यने। ककीवन्त' शशिजः समानां सतारं प्रकाशनवन्तं कुर ब्रह्म- शस्यते कक्षीवन्त मिव श्रोशिजः कक्ीवान्‌ कश्या- वानेशिज उशिजः पच उशिग्वषठेः कान्तिकर््मणोऽपि त्वयं मनुष्यकक्च रवाभिप्रेतः स्यात्तं STATA | सतारं

मां प्रकाशनवन्तं कुर ब्रह्मणस्पते (१०) ` “सामामम्‌(*९)०- इति I, श्रनवगतम्‌ ^ सेतारम्‌'"-द्व्य- ama: | “stare BCG *—e aif” ** मेधातिथेः

= रमार eed ve धप |

यास्डौयस्याख्य निदक्तप्रन्वस्य दाद चे ऽध्याये दति यावत्‌| { We Ze १९, ४,

§,॥ “arava” कू, च।

T “ar au, a)

9१० vure ४९ we ede |

ft we सं" १, ९०२४, tl

ATR निरक्षम्‌ | [ पुवेषटकम्‌ 9

काण्वस्याषम्‌ ware विनियुक्ता; “सोमानं am मिति नाह्मणएस्पत्ययोपतिष्ठेत'?- दति क्रम्‌ * समानम्‌” अनेकेषां “ararat” “खातारम्‌” श्रभिषोतारम्‌, माम्‌, “खरण' .ण्ब्दयिता- रम्‌, सुयशखिन “शृषहि' कुरु दे श्रह्यणएस्पते !* कथं पुनः “्रकागनवन्ते कुर” ? इति,-“कीव॑न्ते चाग्िजः” | लघो- पम मेतत्‌ ‘a’ श्रौगिजः' aaa, मिव श्रच करेोाति- सम्बन्धात्‌ “श्रकाश्ननवन्तम्‌'?--दृत्येतदध्यातं भाव्यकारेण | कक्तो- वान्‌" “agra? कच्छया तद्वान्‌ “afa ad aang एवा- faa; wa’; fe ad उत्पन्नः, तदुत्यत्तिस॑योगान्‌ कचौ- वान्‌। “श्रौ गिज “उग्रिः पचः, “ofan” पुनः “ag.” areal) एव मच ^सामानम्‌'--दत्यद्य शब्दसारूप्यात्‌ “साता- रम्‌ समानाम्‌" -दत्येष विपरिणाम उपपद्यते

अपि चैव मन्यथा स्यात्‌;ः-थोऽदं समानां खता, ae- वान्‌ श्रौभरिजः, तमेवङ्गुणविश्ष्टं मां प्रका्नवन्ते छर्‌ ₹े ब्रह्म Waa! १८९०) | ` : |

इन्द्रासामा समघशसम्‌भ्यश्यं aaIY चरूर- faat इव ब्रह्मदिषे mene घोरचक्षसे दषे धत्त

* “सोमान fafa qe area” - इत्यादि साग्भार(आर्म०१,१,२४,९))

ee”, “कच्छाः” eure १९६५ ge Ue cme”? तजेव ९८९ ve १९ Teo | (We Ge ९, १९९- ९९४ . ९, ९९९, -\; ९, ०४ GBI KIT

{ ध्भा० yee vo रख Cae (0)! “उग्िजिः“-- दति मेधाविनामद् (\भा० ६४२ Vo) FEAT |

qe ठपा० ए” } नेगमं कारम्‌ | (sa

मनवायं किमीदिने इन्द्रासामावधस्य शंसितार ad हन्तेनिहसितापसगं श्राहन्तोति तपस्तपतेशरुग्ंश्चयो भवति चरतेवै समुश्चरन्त्यस्मादापो ब्रह्मदिषे (्राह्मण- दषे) कव्य मदते | (घोरचक्षसे ‡) घोारसख्यानाय कव्यं विक्ृत्ताज्जायत इति नेक्ता दषा धत्त मनवाय मन- वयवं यदन्ये व्यवेयुरदेषस इति वा किमीदिने कि मिदानी भिति चरते fa fad fa मिद्‌ fafa at पिशुनाय चरते पिशुनः पिशतेविपिशतोति॥ (११)॥

““श्रनवाय (५९), “किमो दिमे(**),-- इति |, एते श्रनवगते | “श्रनवायम्‌'--दत्यस्य “श्रनवयवम्‌'”--दत्यवगमः “किमोदिने'- rau “किमिदङद्धिमिदद्धारौ पिग्रनः॥ “extra समधशस o——° मनवायं किंमोदिने" T वचिषठस्याषैम्‌ हे ^दृद्रासामौ !” सन्तापन्तं भवन्ता, “May पापस्य “शंसितारम्‌”, ‘sae? . पाप मेव कन्त मामिमुख्येन नित्यकाल मेव याऽवखितः, तं सन्ताप- यन्तम्‌ सं (तपुः युवाभ्यां सन्ताप्यसानः, “स्रं निवा a” चस्रिव afadam. ‘aay’ क्षयं यावित्यथैः। fag; ‘aafae?

© Had शते क-ख-ग-परङ्गेष | + “मदने” a, 9,7 t Maat इश्यते क-ख-ग-परकेषं | , 6 San मब्यवेयमनवयवं”क, ष्ठ, a || ware ४९९ ६९ पंर। T we सं०४,९,५,२।

१८७ निबक्तम्‌। [पूववटकम्‌ »

“arguze”, Kure क्रव्य मदते पृष्ठमांसभक्तयितरे, ‘area’ घोर दर्शनाय, “इषः” सवंलेकदेव्यतां धत्तम्‌ युवाम्‌ “्रनवायम्‌' “gaa” सकल fawn sacar? “aga” “श्रतद्रुहः' ““श्रदेषषः” श्रे ारः “न व्यवेयुः" wad वियोाजयितुं azara अपि श्रहुयुः, तादृशं Sat धत्तम्‌ | “किमोदिने' “पिग्टनाय'' -इत्यथेः एव मच “अनवायम्‌, - इत्यस्य “श्रनवयवम्‌'” ्रवियोजन वा-इत्यये प्रततिः; तथाभौोष्टवात्‌॥

किमिद पिष्एनः; fe “किमिदानोम्‌'" वन्तते “दति” एव मन्वेवमाणः “axa”; (श्रथ “वा” “fafad? aera “दति” एव मन्वेषमाणः “चरतेः; *) हि तस्य Baran “we, weat भवति" ्डदादिसञ्चितो भवति “aia? “खमुष्वरन्ति” fe ““श्रस्मादापः,॥ “mal” ates तद्धि ““किृच्तार्‌ जायते" “farga.” “faut: (ye पर)" धातोः; fe aa मपि पापं “fafanfa” विपव्यतोल्यथः (९९)॥

aug पाजः प्रसिति पृथ्वीं याहि राजेवामवा दभन | ठी मन्‌ प्रसितिं द्रणानेऽस्तासि विध्य Ta- सस्तपिष्ठैः कुरुष पाजः पाजः पालनात्‌ प्रसिति मिव पृथ्वीं प्रसितिः प्रसयनात्तन्तुवा + जालं वा याहि राजे. वामात्यवानभ्यमनवान्त्छवान्बेरा्टता गणेन गतभयेन

* बुन्धनोविद्धाम्तगतानि पदानि ख-प्साके इश्यने। + “पभ्रसदनतिमवा''क, ख, म।

ge Rate द°] नेगम कायेडम्‌ | oo 8

हस्तिनेति ar awry प्रसित्या द्रणानस्तघीति far- नाम तरतेवा त्वरतेवासितासि विध्य रस्सस्तपिषठैस्त- ततमेस्तृत्ततमेः प्रपिष्ठतमेरिति वा यस्तं गभं ममी- वा दृशामा यानि arma | अमीवाभ्यमनेन व्याख्या- At दुन्नामा* क्रिमिभवति पापनामा कभिः कव्ये मेद्यति क्रमतेवा स्यात्सरणकमेणः कामतेवेा | अतिका- मन्तो दुरितानि faa अतिक्रममाणा दुगेतिगम- नानि anwar यदनया विडाऽपवीयते | व्याधिवा भय वा aa परष्ीत्यपि निगमो भवत्यमतिरमा- मयी मनिरात्ममयीं | ऊध्या यस्यामतिभा अदिशत दित्यपि निगमो भवति। qetfa ferry अष्टाति (१२)

““श्रमवान्‌(*५)१--शति lt, अनवगत मनेकाथेश्च | “ATT पाजः ° रकमस्तपिष्ठैः 2 ; वामरेवस्याषंम्‌ अरप्रिवयने पुरुष- व्याचारणे विनियुक्रा ; “राचोप्तेन व्याघारयेत्‌"-दति gag! हे भगवन्नप्रे! “हृष्णष्व' “gaa” एतदात्मौ यं "पाजः, बलम्‌, प्रसितिं

* “xara” ङ, च|

“अदि ुतत्छवोमनोत्यपिः"-- र्ति ङ,

{ vite wad go xo Ge |

$ We Fo ६, ४, ९६, ९।

| “शणुष्वपच्च माराचज्नम्‌"--दृत्यनृक्रमणिका। 24

६८९ निलक्तम्‌। [ पुवधटकम्‌,

म॑" “afefafaa”, वागरातन्त॒ faa, जाल मिव वा। “र्यौ विस्तौणाम्‌ | तत एव मेतद्‌ विसे कतवा ‘aie’ त्वं रक्तास्यभिमुखः। कथं पुनयादहि? राजा ra यथा राजा यायात्‌ “श्रमवान्‌' “श्रमात्यवान्‌”” रो तियुक्रो विजयाय, तथा ववं याहि*। ्रयवा

यथा “'ग्रभ्यमनवान्‌,” tenia: Gear भयदाता यायात्‌, तथा

थाडि। श्रथ वा यथा “war” श्रात्म वित्तवान्‌ सुश्तेन्यो यायाद्‌ विजयाय, तथा यादि। "दमेन “द्राशता'* श्रन्नश्टतेन “nda” सुपुषेन GAT यथा राजा यायात्‌, तथा यादि। श्रय वा ‘Kia’ “गतभयेन”' शूरेण “दिना” यथा यायात्‌, तथा याहि 1 किं; Coal मन्‌ प्रसिति gui”) चिप्र मनु wera गल्या, सम्ततया गल्या “गणानः' रक्तांखि हिसम्‌ याहि। कस्मात्‌ पुनरेव Gua ? इतः ;-- यस्मात्‌ ‘war रसि" “श्रसिता'' dat a रासि प्रति दोप्रायाः श्र्षिंषः। त्व सेव ara "विष्यः एतान्‌ “रक्षः” असाच्छचुन्‌ “तपिषठेः" “ana” श्रलिभिः॥ एव मच राजोपमान- खम्बन्धात्‌ ““श्रमवान्‌ = श्रमात्यवान्‌?-- दव्येवमाययुपपद्यते† पाजःः- षति बलनाम, “'पालनात्‌ ; तेन fe aed "प्रसितिः" ““प्रषदनात्‌” ; “तन्तव जालं वा” उभाभ्या मपि ताभ्या मभिश्यन्त wary aera “श्रमो वा(*९१०- इति , श्रननवगतम्‌ “snaaaa” “श्रभ्यमन- * ‘om राजा खमात्यवाम्‌ रोति्न्नो विजयाय याति, तथा athe” द्तिक। खम fame "भयं वा बं a1’ ets बष्यति द° wre १०, २, ८।

J Mute १९५ रेख ewe (९); ९१९ षायां तदृतिबरढया § र्भा० BRO Te We |

१. दपा Bw] and काण्डम्‌ १८७

वाम्‌-दूति cam माघस्य we *, श्रनेनैव तर्‌ “्याख्यातम्‌" 1 “यस्ते गभ ममौवा e—e मनोनश्त्‌ | water माम बराह्मणः, TAI AGA! TARAS Twat माम सखालौपाकः, ata fafranri ‘av ‘a aa @ fea! ‘aia “waar tensa, “ara “पापनामा fafa” पापप्रदेशे नतः परिरतः उत्पन्नः, ‘aay ‘a’ गत्य ‘wa’ रेते गभ्िंसिता। तम्‌ afi: ब्रह्मणा सदह ‘fac salam’ भाश्यतु। क्रव्याद" ate- भक्तयितारम्‌ एव aa श्रमौवा, -श्त्यस्य “fafa” अभिधेयः; करिम्यपदते हि योन mit समवतोत्युपपन्तिः ^“दुरितम्‌(*°)*- दति 2, अनवगतम्‌। “'दुर्गतिगमनम्‌”-दट्ति

अथैम्रतोतिः। “Guest खनुता awed wegr भवन्तो यत्नियासः पावकाः। श्रतिक्रामन्तो दुरितानि विश्वा शतं हिमाः सञैवौरा मदेम" 'वेशरदेवीं' वाचं “नृता” wary श्रारभष्वम्‌' उपक्रम- ध्वम्‌ AHA तयवंन्नक्णया वाचा “II: ईद श्रनमि्रलः पूताख्च परलेाके भवय 'यज्चियासः' यज्ञियाः यज्नषम्पादिनः। fag; “श्रतिक्रामन्तः' श्रतिक्रममाणा वयम्‌। तस्या वाचा माहाभाग्छेन | "दुरितानि" दुगेतिप्रापकानि कमणि, ‘faa’ विश्ानि। श्तं fear’ शतं हेमन्तानां ‘ada’ अ्रनवखण्डितपचपोजाः ‘Aza’

» भेव WS पुरस्तात्‌ १८७९० wove; ६९९० ude |

MAI aA पाठः खवेमृरपु TAT

{ यक्त गभं ममौवा Tara योजि amma | afae AUST SY निण्नरुवाद्‌

omang ॥- एति we de ८, ८, ९०, ९। § ute ४९०७ ve Ge |

{sc frame | [ पूवषटकम्‌,

इ्यमेत्यथेः एव मवातिक्रमणसम्नन्धात्‌ “दुरितम्‌ = दुष्कतम्‌'"- द्युपपद्यते; तस्य हि श्रतिक्रमण aie मिति "“श्रषा(*८- दूति °, शअननवगतम्‌। श्रपव्ययतिः- इत्यवगमः | रागजातिवा श्रभिधेया भयजातिवे ; तया fe “विद्धः श्रप- वयते” श्रपवेच्यते ara: “श्रमोषां चित्तम्‌ (षड ०सं०८,५,२२.६)' --ए्ति उपरिष्टाच्छषः† शअमति^*८-- रति i, श्रनवगतम्‌ “mata मतिः? अम- far) एव मपि प्रतोयत cane;s— “श्रा्ममयो” ve मतिः

श्रसावरमतिरिद्यु्यते | कञ्चाण ? श्रादित्यः; ae fe श्रात्मप्रकाश्न-

| RL Rt मयो मतिः। “afa व्यं देवं o—e छपाखः"2। aa-

waa श्रतिच्छन्दाः; safe naw sea; ` सामसम्माने चाध्वयेवे ll विनियुक्ता ‘afa wetfa ‘a? तम्‌ शरदम्‌, देवं" सवितारम्‌ ‘sre’ garnfaat यान्यन्तरा तानि वन्ते, तेभ्यः सवभ्यः war “कविक्रतुः करान्तमन्नानम्‌, -सत्यसवं' सत्याभ्यनुन्नम्‌, ‘weal रमणौयानां धनानां दातारम्‌,

* श्भा० BRE Te UR Go | te Moe, Be { र्भा eet go eve | १२८ ९९ ९१२९९ २क १९२ २१९९२१९९ २९९ ९२९ § ““खभित्यं देव सवितारमोण्योः कविक्रतु माभि सत्यसव cau मभि

१९९९ ८९२९६ शर रौमर्न श्‌ प्रियं मतिम्‌। द्धा यस््ामतिभा खदि द्यत हिरष्पाि रमिमोत चकतुः

RRR कपाखः॥*-दतिषा° We We ५,९२,८। || "“सेममाने वाध्वयेवे- दनि

ga ante 8ख °] नेगमं काण्डम्‌ | ९८९

‘af मतिम्‌ श्रभिमन्तारं खवीथानाम्‌, शश्ररवात्‌; ‘fire’ च॑ सवाग्धतानाम्‌। ऊद्खा' ‘ae’ खवितुः श्रमतिः' श्रात्मप्रकाग्रमयो मतिः। आद, कतमा पुनरसात््धा ? इति,-भाःः चाः Safe gay’ श्रद्योतयत्‌ तम्‌ weiss किच्च; सवौोमभि' प्रसभे यस्य सवे मिदं vata; ‘fecanfy’ रभ्िपाणिः, «i भिदं लगद्‌ श“श्रमिमोत' निभितवान्‌ ‘ang: gaat ‘war खया साम्य-कल्यमया | खः" श्रादित्यः, सु श्ररण Tae: * एव मन ‘safa-waa saat श्रादित्यस्य विज्ञान मुच्यते; a fe प्रकाशसतत्वएव नान्य्मकाश्ान्तर AIGA इल्युपपत्तिः

“et —efa t, अ्ननबगतम्‌ ; ^ पुरसिः*.),*- इति aly sae आश्नम्‌--दत्यवगमः ; yates परा पौः- THIN (९२) ti

तां अध्वर SAT aaa Bet भगनासत्या पुर॑ न्धिम्‌। तानध्वरे यत्न उशतः कामयमानान्यजाग्न अष्ट भगन्नासत्यो चाश्विनौ सत्यावेव नासत्याविन्योखवाभः सत्यस्य प्रणेतारावित्या्ायणा नासिकाप्रभवो az- वतुरिति वा पुरन्धिबहृधीस्तत्कः $ oferta: पुर- स्तात्तस्याग्वादेश इत्येक मिन्द्र इत्यपरः बहुकम्मंतमः # pute ९९० ove |

1, vate Bye ge oe | $ “oxfad srg” क, ख, ^पुरन्मिबेडपि रष्क" Cag d

tee निरक्तम्‌ | [पृबषट्‌कमे,

पुरां दारयिदतमो वरूण इत्यपर तं naar स्तौति | <A 7 तु कवितमस्य माया मित्यपि निगमो भव्ति anfefa वर्णनाम रा चतेज्च॑लंतिकर्सणंः afew रुश्ददशिं पाज इत्यपि निंगमो भव॑ति (१३)

ते हि येषु °-- °नास्ा पुरन्धिम्‌” ° | वसिष्टश्याषंम्‌ | वैश्वदेवौ | freq ‘a’ ये ‘fetta’ ‘aie ‘afqara’ ay- सम्पादिनः, ‘Sat’ afaartr रक्तितारः, श्रवनोया वा तर्पणौयाः, "सधय" वैश्वदेवं ward खानम्‌ "रभि सन्ति" श्रभितिष्ठन्ते | किं तेवाम्‌ ? दइति,- arr विश्वान्‌ देवान्‌ हे “ai” एतस्िन श्वर" “ay” “sua: as, ˆकामयमानान्‌"”, ‘yay “fa- ma” श्रविलम्नमानः ‘ate’ “as” ; ‘area “area ahaa” यज, Guia’ यज एव मच यागस्य विघ्रभयात्‌ चिप्रष्यष्टतलात्‌ “afe-xfa किपरनामः'--इन्युपपद्यते अन्यच हि वच्यति “श्ुश- ath = सुखवरौः'-इति ‡, तस्मादेतदनेका्थं मपि भवति

“खद्यो एव नासत्यौ- दति", “श्रोंवाभः'' set मन्यते तौ fe सत्य मेव ब्रूतः, कदाविदप्यसत्यम्‌ तसान्नाषल्यावि- qed fa: प्रतिषेधः प्रकृति मापादयति रथया “age”

*afeute afsarg कमः wae fae खनि afd Za तां WezTe ° Utara ॥- दूति we Yous ९. ४।

¶† इतः Tata WS मेतत्‌ १८४ ve ide |

{ खचवेापरिष्टात्‌ पा० (we |

§ “अथा wens: के ऽइति मनुष्यः सवे" सत्यं वदितुम्‌ ? सत्यसंदिता भे देवा अग्तसंडिता aaa via +? दतिरेग् wie ९,९,९।

१. Rate swe] ama काखम्‌ | ६९१

उदकस्य, (यज्ञस्य वा°) “Aare” नासत्यौ ; तया हि “garage.” श्राचाया मन्ये श्रथ “ar” एेतिहासिकपक्तेण “नासिकाप्रभवौ aaah” 1

“पुरन्धिः” ques aurea सन्दि यते इति वि- चायेते “तत्कः पुरन्धिः ?"-दति “भगः? ae “UTE”, श्रुष्टौ भगम्‌'- दति, “ae” श्रयम्‌ “श्रादेशः? शत्येकम्‌"” श्राचार्यमतम्‌ नासत्यावनन्तरावपि सन्तौ सन्दिहते दिवचम- वाच्यलात्‌ तयोः,-एकवचनान्तलात्‌ "पुरस्धि-शब्दस्य “इन्द्रः” उकः स्यात्‌ पुरसििश््देन, “शृत्यपरं”” मतम्‌ किद्धरणम्‌ ? “a” हि दृः “बडक्मतमः,' separ देवेभ्यः “दोः दति कर्म नामसु पठितम्‌ 2, TG पुर्‌ aw othe; (षचनद्रः। तस्मात्‌ पुरस्धिः Il) इन्द्रः-दृल्युपपद्यते श्रथवा अन्येन पुरन्धिल fixe स्यात्‌;ः- “परां च॒दारयिदतमः'' मेघपुर weraa दारयति | “वरणः'' परन्धिशन्देनेाच्यतेः- इत्यपरम्‌” मतम्‌। किङ्ारणम्‌? “a” fe अन्यत्रापि waa “awa” बुद्या “स्तौति? | तद्यथा, “दमाम्‌ yee नयः समुद्रम्‌" | WaT! वारुणो

© मतत्‌ दश्यते ख.पणाके।

+ We Goo, ४, ९३, ९-९ WS! Fas | fae, RARER “ararqzt- भ्यामत्छष्टम'- इत्यादि

{ खजव मन्ते १८९ Te UR To |

$ \्भा० UCR ४० रेख. VT (Re) |

| माख््येतत्‌ क-परके |

“car aa कवितमस्यमायां avt faq a feu cut रक, azar

gem रारिचितोरवनयः Gaga n’—tia we Po ४,४, ९९, ९।

६९२ निरक्तम्‌ | [पुवंषटकम्‌ ,

faeqi ‘cat’ ‘areal’ swt कवितमस्च' मेधावितमस् (चोत- मानस्य *) मदो" मदतों arat ‘a किरादधषेः a कञिदष्या- धषयितं शक्रोति कतमां मायाम्‌? इति,-^एकम्‌' एत षन्तं वरणम्‌ श्रादित्यम्‌ †, Ag’ एता ‘ser उदकेन रश्मिना नद्यः "एनोः गमनशोलाः खतत gen मादाय श्रादित्यमण्डलं गश्छति एवं नामानि मेता गच्छनयो “श्रवनयः' नद्य इव “समुद्रः feat ‘a gute’ (न प्रोण्यन्ति) (Geng) तेवां रश्नोनां मायाम्‌ एवंश््त्णां भगवतो वरुणस्य श्रा धषंयितुम्‌ः श्रमिभवितुं fang शक्रोति क्िदपि कथयितुम्‌ कथ ard aaa इति एव मच वरुणः प्रन्नया स्यते, धोरिति प्रन्नानाम ||; षा यस्य vaf agt, पुरनिविः। वर्णश्च प्रन्नया Gad, तस्माद्‌ "५ वरणः = पुरन्िः"- इत्युपपद्यते

^ङ्‌श्जत्‌(*९)'-- दति *°, श्ननवगतम्‌ | ^'राचतेज्वलतिकर्मणः'- दति निवैचनम्‌ “राचनम्‌›--एृत्यवगमः। “श्रवा rate

* meas क-पुखङे |

+ “ar ar af: वरणः aie to ato ९, 8, de I

नास्येतत्‌ क-पखके

नाश्यं तत्‌ ख-पुखके |

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““कवितम्य ° ---- 0 Ge? यमात्‌ ‘THA’ समद्रम्‌ ‘ORT उदकेन “म TEER’

परयन्ति। काः? "णनोः" wy qa: ममनण्योखला वा, ‘faqath’ उदकमासे- Gy, अवनयः, AY) बहो नद्यः सवदरादकेन परयन्त्याऽपि नक सपि gag परथमषेति। इदं वर्चस्य मदत्‌ केति | खजा मरिद्विष्वारादिसमग्रापरणपयम wa परमेश्चरस्ययेाचितं awefa वाच्यम्‌, aq वश्णादिरूपावस्नानात्‌; दष त्रचेत्यादि चरतेः + एति सार भा |

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Narada Smriti (Sans.) Fasc. I ee 8, Nyaya Dargana, (8878. } Faso. I and III @ /10/ each

Nitisara, or, The Elements of Polity, By Kamandaki, (Sans.) Faso. II—V |

Parisishtaparvana (Sans.) Faso. I—I1I @ /10/ each oe. Pitngala Chhandah Satra, (Sans.) Fasc. 1—III (2 /10/ each oe Prithiréj Résau, (Sans.) Fasc. I—V @ /10/ each ०५ +e

` ०१५५७ ¢ ish) Faso. I... ५१ ६० 72611 Grammar, (English) Fasc. I and Il @ /10/ each ०५ ५१

` Prékyita Lakshanam, (Sans.) Fasc. I ee ++ ‘Parésara Smriti (Sans.) Fasc. I—JIII @ /10/ each 77

Srauta Sitra of Apastamba, (Sans.) Fasc. I—X @ /10/ each as Ditto Aévaldéyana, (Sans.) Fasc. I—XI1 @ /10/ each 1. 6७. Ditto Létyéyana (Sans.) Fasc. I—IX @ /10/ each ०५

Ditto Sankhyana Faso. L, (Sans.)

Séma Veda Sawhité, (Sans.) Vols. I, Fasc. 1—10; 11, 1—6; Lil, 1—7}. 1४, 1—6; V, 1—8, @ /10/ each Faso be ol Séhitya we na, (English) Fasc. I~IV @ 1 ee Séfikhya A orisms of Kapila, (English) Faso. I and.II,@ /10/each ..:

Surya Siddhfnta, (Sans.) Fasc gig ००.49 Sarva Darfana Sangraha, ag I er ee Safikara Vijaya, (Sans.) Fasc. II and III @ /10/ each Sh ow es Séikhya Pravachana Bhashya, (English) Fasc. IIT, © we. owe ` S4ikhya Séra, (Sans.) I ry ary Sufruta Samhita, (Eng.) Fasc. I and II @ 1/each gy. Foe ES we

Taittiriya Aranya Fasc. I—XI @/10/each = ०, ore a eer = Ditto Brdhmana (Sans.) Fasc. I—XXIV @ /10/ each १, ` ^ oe

Ditto Samhita, (Sans.) Faso I—XXXIII @/10/each,. - |. oo Ditto Prétisdkhya, (Sans.) Fasc. I—III @ /10/ each ... Ditto and Aitareya Upanishads, (Sans) Fasc. II and III @ /10/ each Ditto Aitareya Svetd&évatara Kena

I and II @ /10/ each ००, tee

Téndyé Bréhmana, ( Sens, Faso. I—XIX @ /10/each =. ^, a oe

Tatta Ohintamony, Faso. I & II ( 8.) @ /10/each © seth Peay ०* Uttara Naishadha, (Sans.) Fasc. LI—XII @ /10/ each r

Véya Purdna, (Saus.) Vol. I, Fasc. 1—6; Vol. I, Fasc. 1—6,-@ /10/

each Fasc ०, 99 ` athe ~ ७6 Vishnu Smriti, (Sans.) Faso. I—II @ /10/ each ‘oe Yoga Sutra of Patanjali, (Sans. & English) Fasc. I~V.@ /14/ each ... The same, bound in cloth ०७ ०.५१ ^ „9.4

Arabic and Persian Series | *Alamgfrnaémah, with Index, (Text) Fasc. I—XIII @ /10/ 66 = =, Kin-i-Akbari, (Text) Fasc. I—XXII @ 1/4 each ०७ ee Ditto (English) Vol. I (Fasc. I—VII) .. - . a Akbarnamah, with Index, (Text) Faso. I—XXX @ 1/4 each ee Baédsh4hnamah with Index, (Text) Faso, I—XI1X @/10/each _ ०,

Beale’s Oriental Biographical Dictionary, pp. 2915 - 4४0.) thick paper, @ 4/12; thin pa |

of Ara bio Technical Terms and Appendix, ,Faso. I~XXI @ 1/ eel ee

Farhang-i-Rashid{ (Text), Fasc. I—XIV @ 1/4 each

Fibrist-i-Tas{, or, Tasy’s list of Shy’ah Books, (Text) Fasc. I—IV @

12/each .. ? ०१ with al-Shitn 1 (Text) Fasc. I~IX @ /10/ each ००. ` - oe Ditto 4 2607 (Text) Fasc. I—IV @/10/each .. . , ०१ Haft Aeman, History of the Persian Mansawi. (Text) Fasc. I | ०४ History of the Caljphs, (English) Fasc. I—VI @ 1/ each .. ` ०७ Iqbdlnémab-i-Jahangiri, (‘Text) Fasc. I—III @ /10/ each . _ Isgabah, with Supplement, (Text) 37 Fasc. @ /12/ each ०० | oe Maghés{ of Wagid{, (‘Text) Faso. I—V @ /10/ each ००“ ee Muntakhab-ul-Tawarfkh, (Text) Fasc. I—XV @/10/each .. oo

Muntakhab-ul-Tawérikh (English) Vol. II, Fas. 1 &II@1/each .. (Turn over.)

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_Nig4mf's Khiradnémah.i-Iskandarf, (Text) Fasc. land II @1/each ,. Buydty’s Itq4n, on the Exegetic Sciences of the Koran, with Supplement, = (Text) Fasc. II—IV, VII—xX @ 1/4 each y @ |] ; , e e it , Pabagét-i-Ndgirf, (Text) Faso. I—V @ /10/ each © Cao Pe re _ ' ~ 716... . (English) Faso, I—XIV @1/ each =| ww ee ` - ‘Parfkh-i-Firds Shéhi, (Text) Faso. I—-VII.@/10/each ‘4. °" | 4, ° wire Bite (Text) Faso, I—IX @/l10/each _ ,. ~ ,+९ ' | te Wis 0 Rémin, (Text) Faso. I—V @/10/each we ee ee . Zafarnamah, Fasc. I; ° 5 ‘de = = ee e “iets ee oF 4 a . ASIATIO SOCIETY’S PUBLIOATIONS. `

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- Muntakhab-ul-Lubéb, (Text) Faso, I—XVIII @ /10/ each, and Fase.

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~ (0), 1876 (7), 1877 (8), 1878 (8), 1878 (7), 1880 (8), 1881 (7), 1882 (6), 1888 (5), 1884 (6), @ 1/8 per No. to Subsoribers and @ 2/ per No. to

क, 2. ` - The figures enclosed in brackets give the number of Nos. in each Volume.

- Centenary | ce of the Researches of the Society from 1784—1883 ,.

General Qunningham’s Archeological Survey Report for 1863-64 (Extra

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_ Theobald’s Catalogue of Reptiles in the Museum of the Asiatic Society

` (Extra No., J. A. 8. B., 1868) = ee 7 - ee on a ee ee oe and Birds of Burmah, by E. Blyth (Extra No.,

edie De og pe . = fee eo ˆ ` ee 9 @

, Bketch of the Turki Lan age as spoken in Eastern Turkestan, Part II, Vocabulary; by R. 2. Shas (Extra No., J. A. 8. B., 1878) Je. dregs

_A Grammar and Vocabulary of the Northern 2810001 Language, by M.

<. + LL. Dames (Extra No., J. A. 8, B., 1880) oo ^ “` ` ०४ oe

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Go woes Part I; Grammar (Extra No., A. 8. B., 1880 ee ee , Part II, Ohrestomathy and Vocabulary (Extra No., J. A. 8. B., १88३). ,

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10. : Han Koong Taew, or the Sorrows of Hah, by J. Francia Davis ,, 11. ` Iptiléhat-us-Safiyah, edited by Dr. A. Sprenger; 85०, .. > ae -12. Inéyah, a on the Hidayah, Vols. II and IV, @ 16/each .. 18. Jawdmi-ul-'ilm ir-riyag{, 168 pages with 17 plates, 4to. PartI ` ` ,, 1 4. Khizénat-ul.’ilm 99. ` | . . "०. : : h -0@e `, _0@ : 4. 60 : 1 5. Mahabhérata, Vols. 1 and IV, @ 20/ 6ac ao . „® 9 ` ` ; - 16. Moore and . Hewitson’s- lig rei of New Indian. Lepidoptera, Parts I—II, with 5 coloured Plates, 4to. @ 6/ each ee ee ` 17. Purdéna Sangraha, I (Markandeya Purana), Sanskrit": ,,° °° ° ee 18. . Sharaya-ool-Islam Oe: SWORE SE ee ace ol Ae i ५६५ ‘oe “41 2 ‘ee 19. Tibetan Dictionary ~ . ०४ ae cs Ee aes eae ee + . oe ge 20. . _ Ditto Grammar {~ 9. § ee be ~. - "96. ay " i} . , . ०९ 21, Vuttodaya, editedby Lt.-Col. ७, E, | ~ 8 = "> Notices of Sanskrit’ Manuscripts, Fasc, I~XIX @ 1/ ०००४,, ée°

Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. 2, 1 Mitra ` ee

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WITH COMMENTARIES EDITED BY = PANDIT SATYAVRATA SAMASRAMI VOL. III

FASCICULUS III.”

~ CALCUTTA : PRINTED BY J. W. THOMAS, AT THE BAPTIST MISSION PRESS.

AND PUBLISHED BY THB ASIATIC SOCIETY, 67) PARK STREET.

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Aphorisms of the Vedénta, (Sans,) Faso. III—XIII @ /10/ cach = ` ` ५, - (Sans,) Faso, I—VIII @ /10| कन; +^ Brihad Aranyaka Upanishad, (Sans,) Fasc, VI, VII & IX @/10/ each ,, 1; 00 94% (English) Fase, II—III @ /10/ each ११ ues

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Brihat Samhitd, (Sans.) Fasc, I—I1I, V—VII @ /10/ each , +, 8 18 ~ Chaitanya-Chandrodaya Nataka, (Sans.) Fasc, II—III @ /10/each .. 1 4 Chaturvarga Chintémani, (Sans.) Vols. I, Fasc. 1—11 ; 11 1—25; 7, -

1— 1 1; @ 10/ each Fasc, ^ ‘'«< # ; # . #ै * 29 6 Chhandogya Upanishad, (English) Fasc, 11 ` ., 96 « 0 10 Daéa Rapa, (Sans.) Fasc. I—III @ /10/ each”. ` ee se 1 14 Gopatha Bréhmana, (Sans. & Eng.) Fasc, I and II @ /10/ each ot | 4 Gobhiliya Grihya Satra, (Sans.) Fasc, I—XII @ /10/each,, _ ` ७9 > 8 Hindu Astronomy, (English) Fasc, [- 111 @ /10/ each +s , ` we 1 14 1२६९०78. (Sans ) Faso. I-VI @ 1/each ~; ++ „1११ > ^ 4 हि, Katha Sarit Sigara, (English) Fasc. I—XIIT @ 1/ 686} = ,, 13 9 Kala Madhava, Bena Fase, ; I “4 or ५/० 9 : ४४ oo, 9 10 Lalita Vistara; (Sans.) Fasc, I—VI @/10/each ws ee 3 18

Ditto © =(English) Fasc, I—I1 @ 1/ each © 4३ vous 2 0 Maitri Upanishad, (Sans. & English) Fasc. I—III (in one yolume) .. 1 14 21118 0086 Darsana, (Sans.) Fasc. II—X VIII @ of. each 4. 10 10 re by Purana, (Sans.) 7880, 1४ -- ४11 @ ho each ९९ 3 8 Nyisimha Tépani, (Sans.) Fase, I—III @ /10/ each oe. Om ew Le 14 Nirukta, (Sans. ) Vol. I, Fasc. 1—6 ; Vol. 11) Fasc. 1 & 6,@/10/each Fasc, 8 Nérada Pancharatra, (Sans.) Fasc, LV @ /10/ each 54 ,„ 9 10

८: (Continued on third page of cover.)

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afl 20 1६0४ (He देपा० ५.०] नेगम काणम्‌ १९९

——e waat falarfa गविष्ठिरबधयोराषम्‌। way faeq श्रग्रि चयने दृ्टकपधाने विनियक्रा। “श्रनाधि हाना बध्यते हाता “afa:, ‘aura’ यजमानाय, यष्टव्यतया . देवान्‌ | ‘Sav व्वलनक्रिवायोगात्‌ | भ्रातः wend श्रद्मिहचि्णां wey योऽवतिष्ठते, ‘gaat’ चख शोभनमनाः। ‘afaga’ ` ata ‘aay रेाचिष्णवंणेः ‘sgh? Qed) “पाजः' -बलं qT ‘aufaqa’, ay प्रभावतेा ‘awry’! ‘aaa’ खः सवे मिदं ‘faife निम चयति, बुध्यते देवान्‌ यष्टव्यतया एव मन्य- धिकारादच श्ब्दसारूपयात्‌ “qua’—“sfa”’ एतत्‌ "वर्णनाम ''- दव्युपपद्यते ४८९२)

श्रस्ति हि a: सजात्यं रिशादसो देवासो wena स्ति fe वः समानजातिता रेश्यदारिणा! देवा HRT माप्य AAA: मुदः कल्याणदानः | त्वष्टा ae वि द॑धात राय॒ इत्यपि निगमो भव॑ति सुविद्‌- चः कल्धाणविद्यः | sim याहि सुविदभिरवाडिः- त्यपि निगमो भवत्यानुषगिति नामानुपुवेस्या नुषक्त भव॑ति स्तृणन्ति बदहिरानुषगित्य॒पि निगमो भवति।

+ “बधि हता यजथाय देवानृद्धंा Ge gate प्रातर॑ात्‌ | समिस tyr ~ | ; ~ ~ fi e qnzeh Tia महाम्‌ दवक्षमसौी निर॑मोचि ॥- दूति we संर १, ८, 08,0! + “tnnaifaar’— cia ड, इतति॒ममतञ्च | 20

१९8 निशक्तम्‌। [पवेचटकम्‌,

तर्वशिस्तर्थवनिः। त्व॑णिम॑दा stave इत्यपि निगमो भवति | गिर्वणा देवो भवति Mita वन- य॒न्ति se’ गिवेणसे वृहदित्यपि निगमो भवति 4 (28)

Cage: दति *, श्रनवगतम्‌। “twaarfaat?—cay- ma. | Safa fe वः ° नव्यसे” { मने विवसखतसेय माषम्‌ Vat हतो वैश्वदेवे BR हे “रिग्रादसः' ^रेश्य- gifaa:” ! 8, ‘carey’ देवाः ! यी fe रे श्यति डिंसावान्‌ भवति, aa श्रावुधान्य्छन्ति ^रेश्यद्‌रिः”--ऽति केषिदधौयति faa- चनम्‌ ; तेषां twas fear दारयन्तोत्यथेः | ‘afer’ ‘a’ awa (खजात्धं" “aarrenfam” देवलम्‌, fafa’ aman श्राप्यम्‌' शराप्तव्यं मनये, शरा युय मित्यभिप्रायः चत एव मते ब्रवोमि;- ‘gated’. ययम्‌ अभ्य मन्‌जानोत ) “सुविनायः सुगताय, “सुभोगाय' खाना, ‘gary’ सुखाय पवको खण्डताय, नयसे" भढतराघ्च कथं पुनः प्रोक्त ? इति, "मन्तुः चिप्र free: W मज श्दसारुप्याद्यापपत्तेख “aye: = रेश्यदासिनः॥, twa दा रिणो वा"-रत्यपपद्ते

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+, §, || “रेणयदागिनः'- दति wee |

दख. guts gue] नेगम कारम्‌ | १९५

aga) दृति * श्रनवगतेम्‌ | “सुदानःः-दद्यवगमः। “at ने राखन्‌ °---° विदधातु रायः” 1 वसिष्टसया्षम्‌ दथ waa चतुरयेऽदनि दतो यसवने वरश्वदे वशरस्ते दिपदा एता; शस्यन्ते ‘ay देव्यः, ‘a’ sang ‘Tear ‘ag aman faa- तणाः za? ‘fara’ ₹विदानं an aaa सेवन्ते किष; श्राभिसुख्येन fear ‘trea? exe पत्री श्रतु", ‘aqua’ च। किञ्च; ‘aqdfay’ वरयितव्याभिः afea: “सुश्रणः' खाश्र- यणो ‘a’ श्रस्माकम्‌ ‘og’ (ष्टा, ^सुदचः" “"कख्याणदानः" विदधातु" श्रस्माक्म्‌ ‘tray’ घन faa: एव aa रायः सम्बन्धात्‌ “OTT = कल्याणएदानः'?--इलत्युपप्यते

“सु विद्‌ चः५५,५-- दति †, श्रनवगतम्‌ सुविद्यः दत्थवगमः कल्याणएविद्यः'?-दत्यभिषयव चनम्‌ “ये ततषुदवत्रा os ° पिदभि्षमंसद्धिः” 2। शङ्खस्य यामायनस्ीर्षम्‌ | चिष्टप्‌। aay fazasi खिष्टश्याज्ेषा। ‘a’ "तादषुः, स्तौणेवन्तः, ‘aa’ देवान्‌ प्रति ‘ear’ गच्छन्तः, (हे चाविदः' स्हतिविदः, 'सोमतश्टासः स्तोमक्रत्तारः ‘aa मन्तः स्तोमकत्तरः ily

* Que ४९९ To Ye To |

t “at ar रासनुतिषाचो FAT सद॑सो वर्णान प्रयात वर्दु्ोधिः BATU AT ag war gaat fq THT रायः॥०- र्ति we We ४, २, २०, ९।

{ Wate ४६९ ४० श१देपं०।

§ “a ती्षुदेवजा Avan हेाचाविद्‌ः खोम॑तष्टासा सदः | wit याहि सुविद्जभिरवैाड समयैः केः पिकभिमेसद्धिः ॥?-- दति we Yoo, ९, १८, ४।

|| मन्तः स।मग्रथनप्रकार ञ्च areal महाब्राद्यरे दितौयहतो ययोद्रटयः |

reg ` fawn [पवेषटकम्‌ ,

एवंल्वणः पितरः, तैः साकम्‌ श्रा यादि' हे रग्न !› "सुविदचेभिः' “menqfad:” ‘sare’ श्रस्मानाभिमुस्येन, Aq साकम्‌ | एवङ्गण- चकः "पिदभिः' आगत्य ‘aa एतैः aurea: ‘aay पिद Raa: “धमेसद्धिः" यश्चसादिभिः eatin सुपयाहि | श्रय वा त्यवादिभिः पिभिः wet ara माचादोति। एवं पिद- विशेषणेनैव" योच्य मेतदपि पददयम्‌ एव मच श्टसाङूप्यात्‌ ^सुविदज-शब्दः “कसयराणविद्य'”-वाच्ौत्युपपद्यते

“arama ९)*-- दति 1; mama. “श्रगषक्रम्‌"--दत्यक- गमः। “"नामानुपृवस्छ"-दत्यथवचनम्‌ “at चा चे श्रम ° ---° युवा सखी" { नि्ोकस्ारषम्‌ esate’ दषा- wifag विनियुक्रा। ‘a एव नित्य मग्रिम्‌ श्रा श्राभिशस्य- भाविता; ‘cae’ art, एव ang "बहिः ्रानुषक्‌ः “gaan”? 'स्तणन्ति' ; तेषा मेव शद्रः ‘aay’ नित्यः ‘aur’ खमानस्यानेा gis safe भवति ; नेतरेषा मयज्वनाम्‌ बर्दिः- सम्बन्धाद्‌ शश्रानुषम्‌'-हति “नाम” एतत्‌ “्रानुपुवस्य ara” इत्युपपद्यते

““तु्वफिः(*५००-- दति , अ्रनवगतम्‌ “awafa’—rapeae- wai वशं हि यः सम्भजते, qualia सन्‌ adafafiam: |

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* “foafaauaaa’—xfa ख।

र्भार BRE To Yo Got > waraafyg भिन्धते खृदनिं ब्दिरागषक्‌ येषा भिन्दो युवा सष्ठ wy” ~ इति we de ९, २, ४९, ९।

भार ४४० Te ४पर।

१अ० AUIS ye] नेगमं काण्डम्‌ | १९७

a aif ei o——e दामनि" ° इन्द्रस्य wa भापन्नस्येथ- aida जगतो Bat वेषुवतेऽदनि निष्केवच्ये wea रस्यते | are: ^तुवेणिः' तूवनिता ; rat हि सोतारं तृणे समजते | “महान्‌ प्रभावतः श्ररेणपंखये' श्रन्त रिक्ते fe यद्‌ बलं भवति, तेच रेणवः सन्ति; तस्मादरेण्पेसख भिल्युच्यते “dhe” —tfa बलनामसु परितम्‌ 1, तस्मिन्‌ श्ररेण्पोखे बले अ्रन्त- रिक्ते, agia arty ‘fat खष्टिः गिरिग्एङ्गः मिव ofa: भ्राजते | ‘aa’ aay प्रश्टहोतेन ‘na’ शविष्ठो बलिष्ठ ex: | ‘aq agu ‘sy’? शोषयितारम्‌, ‘sq?’ मेधम्‌, "मायिनं प्रभावन्तम्‌ ‘mea देवान्‌ प्रति saanlau Brae ‘az’ प्रात्र ‘em’ दुद्धेरः शवणाम्‌ “sng? उपय्युपरि आत्मनो भवत भिच्छन्‌ रामयन्नि दामनि, दान्नौव न्यरम॑यत्‌, gaia: एव मच श्न्दारूष्यादरथापपत्तेखं “gate: = तूणवनिः”-दृशुप- पद्यते

““भिवणसे(५८)--दति Il, श्रनवगतम्‌ गगोवेननोयः'- इव्यव - गमः “नोनि; स्तुतिभिः ““एनं वनयम्ति"-टति aaa |

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* “gq तुवशिभेर्शा बरवे निरेष्टे्टिने याजते सुजा wh येन्‌ ge मायिन मयस az दुर + thd crate दाम॑नि ॥'दति ऋण सं* ९, BRL, i

{+ Te ९२९५ ye Rae €. (२४, “Ttafa” |

J vate ९१० Fo रेख १० we (४०) “Tia” |

§ “an wae fe नित्यं शव्यं” इ्तिक।

|| र्भा ४४० पर ote “feet” |

१९७ निगक्तम्‌। [पुवषट्‌कम्‌ ,

“श्रामास पक्त +—e गिवणसे इत्‌” * नृमेधः fie मेधसा वा दय माषम्‌ ददतो Be खक्रं। श्रामासुः श्रपक्रास्‌ गोषु चोरं "पक्षम्‌" ‘Wr’ वत्वम्‌ इन्द्र !। तस्मादामा सतो wa दुद्र इति famed. तदिद ararat eat गवि प्रतं पय दति किञ्च ; “श्रा aa रायो दिवि” श्रा trea ‘aa “रिवि' gait इत्यथैः एव fax gat स्तोढनाद,- wa Tx एवङ्णविश्रिष्टाय वमे न' चमे मिव gad सृष्ट सुगणं ‘aay’ साम (तपत' सखानकरणानुप्रदानवद्‌ बारयतेत्यथः | “सुद्क्रिभिः' arf: स्ठतिभि; ‘oe’ प्रियं "गिव्णसे" cara wine कतमत्‌ yaaa? दत,-हदत्‌' 1; तद्धि fra fae एव मच “faut: = Za” उच्यते, अन्द सारूप्ा- feared ५८१४)॥

श्रते TA रजसि निषत्ते ये भूतानि समरुखन्निमा- fa च्रमुसमीरिताः सुसमीरिते वातसमीरिता माध्य- मका! देवगणास्ते $ रसेन एथिवीं तपयन्ते भूतानि कर्वन्ति आयजन्तेत्यतिकरान्तं] प्रतिवचनम्‌ | अम्यक्‌ सान इन्र कष्टिः | sara fa वाभ्यक्तंति वा यादभ्मिन्‌

+ o@raig ta aca खा खये trea दिवि। घरमे साभमपत। uefa: fee’ fated बत्‌ w?— दति we do ९०९ U8, © |

तख साम STATS MITUATATA ६, %, ६, ९६।

{ “माध्यमिका” ©, “देवमशाये"" ङ, च।

६अ० ante cue] नेगमं RUT | १९९

धायि तमपस्यया विदत्‌। याहशेऽधायि मपस्यया- विदत्‌। उखः पितेव जारयायि ae: | उख इव गोपिता- जायि यन्तैः॥ (१५)

“gam खर्त(*९)--दति *, एते श्रनवगते “श्रसुषमो- रिताः", “सुसमौरिते"--दत्यवगमः। “त श्राय॑जन्त ° ° छौलन्निमाजि"”1† विश्वकर्मणो मै वनस्येय माषम्‌ वेश्वकर्मणौर्भ्या लुदेतोति am मद्भिप्रणयने; तत्न विनियोगः। net’ श्रसुः प्राणः, प्राणश्च वायुः ; “योऽयं वायुः पवत एष प्राणः" दति क्रम्‌ †, तेन॒ समन्तात्‌ शरिताः “श्रसुसमो रिताः” वातसमोरिताः equ: के पुनस्ते? “माध्यमका देवगणाः” मेघाः, इतरे मरुदादयः | ते वातेन समयन्ते; वात एव हि तान्‌ वहति युनरेतेऽवस्थिताः समोरिताः? दृति, खनतेः “quate” fafad fame can “रजसिः श्रन्तरित्तलाके “निषत्तः fase इत्यथैः समोरिताः किं कुवन्ति? दति,-थये तानि anne समस्तानि saa: ‘cara’ तेषां किम्‌ ? इति, - श्रा यजन्ते इति “श्रतिक्रान्तं प्रतिवचनम्‌"' प्रतिनि्हदंश्रः प्रति- वचन मुच्यते, एव पुवेक लि प्रयोगा यच्छब्दः पश्चात्‌ Wa:

* भार ४४० To १४पं०।

{a खागजना afaw सम॑स्रा ऋषयः पूरव जरितारौ नभृलमा। Wat at, ¢ पनिमानि Wo HoT |B १७, ४।

t “AATRIS AB प्राशः" दूत्यादि To त्रा० vw, १।

Ree निदक्तम्‌ | [पुवेवट कम्‌,

पञ्ाप्रयो गाञ्च तच्छब्दः Ge प्रयुक्ो मन्वपाटक्रमेणः; तदेतत्‌ भाष्यकारेण प्रदथित afer aa “a श्रायजन्त इति श्रतिक्रान्तं प्रतिवचनम्‌?*--दूति। श्रायजन्तेत्यश्य पादस्य षमासेनेतद्धाय- कारेण निवंचन सुक्तम्‌ “a रसेन एथिवौं तपंयन्तो wal कुवन्ति” ते मेघाः, रसेन उदकेन, एथिवौं तपेयन्तः, तानि सव्छत्पादयन्ति, fafa एषां कुवेन्ति। श्रा यजन्तः शर वि- णम्‌” उदकम्‌, श्रामिमुख्येन ददति सवं gana, समसी' सर्व- fan तज्ञाते। एवं तान्युदकेन कुवन्ति wei धुना दृष्टान्त माद ;- षयः पूरवे, fea, जरितारः a” Way wal कर्मणा वार्षसद्ख्िकेण aig; afe सवौ भतयामः रवै खृष्टोऽनग्टहोतश्च | एव मच शन्दसाखूपादथापपत्तेख श्रतं "सुर्ः-द्त्येतयोः “श्रसुसमो रिताः*-“सुसमौरिते"-ए््येते we- समाधौ उपपद्येते

Cag °—efa*, श्रनवगतम्‌ “sam इति वा, meant इति वा” शन्दसमाधो। छि" श्रभिधेया; at fe सङ्गमे waa मन्यन्ते-मा मेषा प्रत्यधिता faa मा मेषा परत्यञ्धितेति। श्रय वा “mana वा श्रभिगतेव faaarted अचरन्‌ प्रति भवतोति श्रन्यगियुच्यते “aq सा०--- ° दध॑ति प्रयांसि” t श्रगस्लस्यार्षम्‌ | चिष्टुप शद्धो इन्दोमेषु दितोये-

# ६भा० ४४९ प° १पं०। + “eaq ar ats wlectH wand मदत। safe अग्रिख्िडि Was प्यद्क्वानापौ a Ts दभति प्रयासि +इति we doz, 8

दयन रैपर ewe] नैगमं कायडम्‌ RR

Sef मरत्वतौ ये wa शस्यते | waa eT ते" यदैवं चणा रेषणा afm wmfaqgea aa afear तया fam vara या WAT, WE तद मड्ताऽपि तरनुविदस्षयेव हे इर ! ‘va saz “सनेभि' सिरेकानम्‌ ‘wa’ agen fix पातयित भिति सख्ान्यांयुधानि मेषविंदारणाय ‘gaia’ गमयन्ति! किञ्च; सर्वेषा मेवायुघानां मध्ये भवत्वेव ate: “श्रध्निरिवः ‘aa’? काटे ‘amr’ Walaa wafaa मेषे wa fay; ‘ata Say यथा at Far श्रापो Ad परिवायैीत्मानं धारयन्ति; wi मेतानि मेष्यानि श्यां सि" उदकानि मरत्वा्‌ 2a: arf मष्न- fag augafa दोप भिव परिवाय्ये धारयन्ति॥ शव मचाश्चते्ग- mee (ग ° qe) ‘wayne टटिसम्नन्धादिल्यपप्चते | “arg fal इति *, श्रनवगतम्‌। “याद्‌ ओे"--दृत्यवगमः। “sata मखन्--ण्सा wa RTT” 1) अवक्छारस्येय ATG | जगतो wea “तम्प्रलया--दृत्येतसिम्‌ get sea दतो यसवने वेश्वदेषे शस्यते “व्यारयांसं' awn ‘ae’ "यतुनस्य" (कर्मणि षणटयो वा 2) यतनन्नौखस्य भगवतः Gale, “केतुना” कर्मणा mma वा, ‘afar’ षिभिः स्यते सूयते इन्युषिखरः, a

* १भा० ४४९ ge न्प | च्छायां मद्य agra कुना what चरति org area) याद्मिन wifg म॑प्ख्यथाविदद्य खयं aa at षर करत्‌ ॥*- रति we qo y, ¢, ९४, २। { We सं. मन दं ve aw | $ wiry क-प खङ्गे | 26

Qog निरक्तम्‌। [प्रवटेकम्‌

१दविख्वरम्‌, way “चरतिः प्रचेरति। “यासु नामं ते" ‘arg’ क्रियास॒ ‘are’ नमनं ‘a’ तव हे भगवन्‌ BH! एवं धरन्‌ तासु क्रिया, ‘arg flay “orga” कामे "धायि, मने धत्ते, "तम्‌, तादृशं कामम्‌ “dwar क्रियया शविःस्तत्यादिलक्तणया तव प्रषादात्‌ ‘afta श्रलभतेत्ययेः किच ; “य खयं वते" लां प्रति श्रादरवान्‌ प्रापयति wat: “सः, एव “BC करत्‌" TATA मात्मनाऽभिपेत में करोाति॥ एव मध शब्दसाख्प्याट्‌ "यादृ श्सिन्‌'- त्यस्य “area” -दृत्थेवं विपरिणाम उपपद्यते

'जारयायि((९--दति *, sana "श्रनायि"-द्यवः गमः। ““सास्माकरमि ---- लारयायि चत्त" 1। भरद्ाजस्ारषम्‌। श्रप्रेयो freq प्रातरनुवाकाश्चिनयोः शसते ““साखकेमिः, - दति छान्दस मालम्‌ “छः af” श्रस्राकेभिः' ‘ay सुखैः ata: स्तवे" शयते “Tat न' श्रतिथिखिि। "दमे" यत्ने यजन ‘ar श्राभिभुष्येनावख्ितेः कूयते "जातवेदाः, जातविद्यो वा जातधने वा ‘ea’ Sale: 'वन्व॑नुक्रला' वननौयकमा वननोयप्रन्नानेा ari “अनावो' saat, श्रनाभितै; afar “Ge: पिता ca’ साण्ड “शोपिता? शवां पिता जारजा्यि' “जायि”! यथा साण्डः पु्पौचादिभिरनेकधा प्रजायते एवं any विद्धियमाणः श्रनेकधा

Lal

ute ४४६ ए* yee | | भिर्तसे a tn ~ 3 मूषेरुपिः दते दम्‌ खा लाते YR eM Wate: fra जारयायि यजेः ॥**-- दूति qo go ४, ४, ९४, ४।

शंसन शपा" डम] anti काण्डम्‌ | Rok

जायतेऽच्चिः॥ wa aa जारजायि-दत्यस्य ‘“‘astfa’— दह्रथप्रतोतिः॥ (९५) ;

प्र वोऽच्छा जजषाणासा अष्थरभतं विश्वे अथियोात तराजाः प्राख्युव जोषयमाणा अभवत सर्वेऽग्रगमने- नेति (वाग्रगरणेनेति*) वाभ्रसम्पादिनं इति वापि ara मिन्येतदन्थक मुपबन्ध माददीत। श्रङीदिन्दर प्रसि Tar wate wat दधि पचतोत सामम्‌। wets प्रशितानोमानि walfe चनो दधिष चन इत्यन्ननाम प्रचतिन्रीमोभूतः। तं मेदस्तः प्रति पचरताप्रभी्ा मित्यपि निगमे भवत्यपि वा मेदसश्च पशोश्च साज हिवचनं स्याद्यच दछयेकवचनार्थ; प्रसिद्धः agafa धराला WH पचत दति यथा शुरुध Bet भवन्ति शुचं सरन्ध॑न्ति। ऋतस्य fe शु र्धः सन्ति पर्वीरित्यपि निगमा भवत्यमिनेऽमितमाजा महान्‌ भवत्यभ्यमितो ब्रा | अमिनः सहाभिरित्यपि निगमो भव॑ति। नञ्द्च- तरापे भर्वन्ति शब्द कारिण्यः प्रदिवो जञ्भतीरिषे- त्यपि निगमो भव॑त्यप्रतिष्कतेऽप्रतिस्कनोऽपरतिस्खंलितो aT) अस्मभ्य मप्र॑तिष्कुत इत्यपि निगमो भवति

ee eee + ee

* मेतद्‌ दृष्यते क-च-ग-प केष | + “ae दूति -न-कु-च-पलकानां पाठो हक्निरेन्मतविबडः पर afe q ककसंद्ितायां “acat mauaifca” इत्यपि निगमा रम्‌ (ऋ०्०४.२,९,१)।

१०७ fama (gauze,

शाशदानः शाशाश्मानः। प्रखां मति मतिरच्छाश- दान्‌ इत्यपि निगमो भवति (१६)

इति षष्ठाध्यायस्य दृतीयः पादः ud, 8

““शगिया(९९८- दति *, श्रनवगतस्‌। ““श्र्रगममेन'› श्रयियाः। a0 मेव श्रयियाः+ अनथक एवागर्ष्टे "याकार खपबन्ध उपान्तः- “श्रपि वाग मिन्धतदनरथेक मुपबन्ध माददोत"-इत्यक् भाग्यकारेण | “mi वे यन्न e—e श्रगियोत वाजाः” †। वामदेवस्याषम्‌ | अभवे freq aoa दश्रराचस् पश्चमेऽदनि टतौये wat Gua wel) डे भवः !' चग्माकम्‌ श्रयं" "यक्षः, "यम्‌" we मकार्षम्‌। ame ‘ara’ area, प्रदिवः" प्रकर्घण द्यातमानाः समन्तः, श्रादधिष्वे' धारयध्वे। एतद्‌ ‘ay प्रम्रवौमि। किष ; “natswnr शुगुषाषासा अर्यः” प्रद्धितानि याम्येतानि waif, तानि a "ल्ाषयमाणाः' देवैः सेव्यमाना वा शरात्मना “च्रयिया "अभूत “aaa”? (उत वाजाः" अपि वाजाः! युय aga मेव भवत एवम्‌ ““श्रयगासिनः श्रसम्पादिना वा wa मेव वा= अथिया"' ; तथार्थापपन्तेः शब्दसाशू्याख

“qalO—efa ft, श्रन्ननाम' “पचता(५५)८.- दति, “पचतिः

* ute ४४९ ve ९पं०। “Se Fras कभवोाऽकारि मा qaeeafcer दधिष्ये। भ्र केाऽष्या Wey.

वाषाखा खष्डुरथत्‌ few खथियेत वाजाः॥०८- दति we Go ae, ९, ₹। J, § भार uve ge ode

दयन शपा oye] नेगमं कालम्‌ | Ray

गामोतःः"-दति भाव्यकरेा RAL “Met -- ° थजमानस्य॒ कामाः” ° दय मग्नियुतस वरापनियुपस्छ anda Prey Rat Safe’ भय ₹े ‘oxy प्रसिता, “afer,” kav “aif” “इवौषि', “चनः, श्रन्नम्‌, एतत्‌ श्विरंदणम्‌ “दधिष्व प्रक्षिप mati "पचता, पक्तानि cara ef, श्रत एवं तरवो मि दधिश्वेति उत सामम्‌' श्रपि सामं दधिष्व | ‘gage. अन्नवन्तो वयं दवोषि कामयमानं ‘ar at ‘off erate प्रतिहव्यामः, कामयामहे “aay: सन्त यजमानस्य कामाः” cafe “तरौ षि'--दत्यनेन सम्बन्धात्‌ "पचता द्व्येतदन्न- बिषयं बह्व चन मुपपद्यते॥ “पचतिनामोभ्रतः'*- दूति धातुनिरहंशः

fama सुदादरणं aif, श्रयविशेषदर्शनादसयेति ;- मेदस्तः प्रति पचताग्रभोष्टाम्‌- एति नः परशं मेदस्तः wage मेदो वपासदयोगि, ततः, तेन yeaa प्रत्ययभोष्टाम्‌' Texte (पचता पक्ष भित्धयेः एव मेतदेकवचमं भवति॥

“sfq वा” ““मेदस्'” वपासदयो गिनः; “पशोः” पश्चवदानस्य चाभिधायक मेतत्‌ ; “ard” स्वविषयं “fered सू 17” | सन्ति होवूपाणि दिवचान्यपि age s—Zar ware भिषजा” ty

किं कारण gaa “feagay” एतत्‌ “स्यात्‌"इति ? श्रत, ; aay “यत्र हि एकवचनाथैः प्रसिद्धम्‌” एव, free मेव

+ “अडोदिख प्ष्डितमा wtf war दधिष्व पचतोत abr) प्र लन

भ्रति warafy ला सत्याः सन यञ॑मागश्य कामः ॥'--एति we सं BC bry)

T “द्या Frere, sae) अयं चाप्रिरसौ मध्यमा वायः दूति तमव सहोषरः। यन aT! Gee १, १८

२०९ निखक्तम्‌ | [पुबवटकम्‌

“ag भवति ;-“ुरोला* wi पचतः" दति थथा” 1 “पुरोला ai ---° यविष्ठ्य” 1 विश्वामिच्याष॑म्‌ गायन्तौ eat sifara दिकपालस्य श्रतिराजे यदि faene भवति, त्ययं एरेाऽनृवाक्या भवति (पुरोडाः' gtrenm “पचतः, पक्र हत्यर्थः | ‘gay ada भगवन्‌ ‘at! "व" वः- दूति श्रन्थ केवलं पकः, किन्ति? "परिष्कृतः" qaqa दत्यथैः तं ‘are’ aaa हे (यविष्टव* युवतम ¦ श्रय वा मिश्रयितम! एव मन (परिष्कृतः'--रव्येतस्मा रे कव चनसम्बन्धात्‌ "पचतःः-दत्येकवचन मेव शिष्यति

“दररुरुधः(९९)'- दति 1, श्रनवगतम्‌ “attr भवन्ति," इति श्रभिधेयवचनम्‌। “्रदचं संरन्धन्ति”--एति निर्वचनम्‌ | “धएगुधः'"- दति न्याय्यम्‌ “ere हि प्रधः” दृति ? देवते wy: lly

“ofa (C ef अ्रमवगतम्‌ +^“श्रमितमाजः"--ष्त्य- गमः; म॒ यस्य मचरार्णां मान मस्ति asia waa

* निदक्नमृखपदकेषु तदुत्तिपु रुकेष सवमेव "परा"? इत्येव पाडा ema पर nitrate तु “पुरोगा दति where, ऋकसंहितापाठल्‌ ““पुरोाष्डा-- इत्येत मेव wat way |

“Sater चग WIS वाधा परिष्कृतः लं wre यिष्य ॥*?-- एति we de २, १, २९, ९।

{ श्भा ४४९ ve rote |

§ we He ef, te, 81

"देवते" टत उतरख्िप्रेव काष्ठे (६०,४,४) Ke’ इड पठिताश्न्यो wate: |

हि श्भा BUR Te १प०।

दषः Rate शखर] नेगम काणम्‌ | Rob

“mafaar ar’? gafafyfear यः केन facet श्रमिभः। “मदा दरा ०--"कन्तभिभत्‌" *। भरद्ाजस्याषम्‌ faa शशी दश्राजस्याष्टमेऽहनि awn wa शस्यते, wey प्रहा ऽनयैवै गह्यते “महाम्‌ प्रभावतः, “Fay? मनुश्यवत्‌, “श्राचषशिप्राः, श्रापूरयिता “वषणौनाम्‌' मनुष्याणां कार्मः; यथा fe ave ईरः परिष्टः कामैरवश्ं wa मापूरवति, av भिद्धोऽपि सलोतारम्‌। ‘sa ferer’ श्रपि इयोः स्थानयोः azar: परिदरः “श्रभिनः' श्रमितमाचः, sq at श्रमभिहिंसितः केनचित्‌ केन arian? इति, छच्यते;- "सद्भिः बलेरित्यथैः; See बलमाचाः केम विद्धितपूवी दत्यथेः, wafafefaagar वा Fatale: ‘wae’ श्रस्मदमुगरशाय श्रद्‌ अमाय ‘Atay’ aga | ‘Alara’ वौरकम्णे वषाम्‌, "उरः" महान्‌ परिमाणतः, ‘yay’ विस्तौणा, यः, Woara waft दानायाभिप्रेताना मथानां “सरतः afte: एतैः करिः ष्छविग्िः “त्‌, गयादित्यं एव मच श्रमिन'-ब्देन “श्रमित- मात्रः” ्रनभिहिसितभाजरो वा--दत्युचखयते शब्दसारूप्यादर्थापपन्तेश्च

“जञ्द्यतोः(९८)'*--दति 1, श्रनवगतम्‌। शब्दानृकरणात्‌ ogra. —afer प्रतोयन्ते। “श्रा qa o——o त्मना दिवः।

* “मर I षवदा व॑ शिप्रा उत दिवा wf: Serf | Swarr चा- इषे Marae: we Tan: कतं भिभूत्‌ ॥१- दूति we Yeu ९, ०) १।

र्भा० ४०९ To €्पर |

“खा द्कोरायुषा ष्वा walter) saat अस विते मृतो जणृकतोरिव भानुर att few wW— दति we सं० ४,९, ९, ९।

४९०७ Frama | [पबषेटकम्‌ ,

श्यावाश््याषेम्‌। मारतो पद्भिः शाः श्राभिमुख्येन “अचन्‌' जआातयितव्यान्‌ मेघान्‌ प्रति ‘rea रएतान्यायुधानि “इव्छैः' विकृतानि, warg ‘wel’ wah ‘agua’ se हे ‘aq मर्तः | किञ्च; श्रन्वेनाम्‌' wera "विद्युतः ‘ara: श्रादित्यः ‘ca’ ‘ara’ श्रा्मना “दिवः चुलोकार्‌ शन्त श्रपगच्डन्त्‌ Heat दम्यमानेभ्वः तदन्वेव चापेऽपि we ्रागच्छन्त्‌ कथम्‌? इति.-'जञ्द्मतोः एव" “mearite:” दव ate: “arg” RG.’ MATA इत्यथः एव मज ब्रन्दालुकरणात्‌ “श्राप: = जञ्छ्मतौः"” इत्युपपद्यते

“अरतिष्कुतः((८५--दति *, अनवगतम्‌ “suffrage, अप्रतिरूवलितः वा"इति werent “a a ZIT ° - ° Wa afar: Tt मधच्छन्दस BTS गायनौ | Rat एष्याभिश्चवयोः प्रातःसवगिके श्रावापरे विनियुक्रा, ब्राह्मणाच्छञिनः wal) डे ‘aan ex! वषितः! यः लम्‌ श्रनग्टहौता नः, अखमाकम्‌, ‘ay त्वं ष्टण चत्‌ awa! “ag wae’ sq मन्तरिचरणशेखं मेघम्‌ हे ‘aw waa’ सततदान! श्रपाठधिः श्रपण, छदकदानाये मखम्वम्‌ अप्रतिष्कुतः" She: “प्रतिष्कृतः” परान प्रति पराङ्मुखः wage केनचित्‌, अथ वा “श्रप्रतिरूषलखितः'' सश्गमेषु एव मज श्रप्रतिष्कुत"-षन्दः ““श्परतिष्कुत-वाचो अर्य वा “श्रप्रतिरूखलितः'-वासौ, तथाथा विरोधः

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> र्मा BUR Te ९९ Yo) “खमा aaa qe सनाद्‌ावदणा इनि Sew wa frog: ४*- दति we षुं ९; ९, ९४, ६।

que gute Uwe] aaa काकडम्‌ | ९०९ `

-श्ञाण्दानः(<०)'?-- इति ° , श्रनवगतम्‌ (श्राग्राद्यमानः*- दृत्यवगमः | “safer faite म॑तिर च्छा शदामः" 1 डिरण्छस्दर- पस्याषम्‌ गोसव -पिवधयो्निंष्केवच्ये wats “श्रमि श्रजिगात्‌' श्रन्यगच्छत्‌ ग्रस्य CRU खन्डतः, ‘fam’ उन्छादवान्‌ ay: way प्रति ‘faa? साधयिता श्रच्रुणाम्‌ ‘fafa aaa "टषभेण' वप्रवन्तकेन ‘yt’ मेघपुरः श्रसुरपुरा वा ‘wiz’ | किञ्च; ‘ang agu 24 fae’) a चव भिद्यमानः श्राति- रत्‌ खां मतिं “a दातव्य gan aa’ —xaat मति at “्रातिरत्‌" प्राजहादित्यथेः mime: पुनः पुनः “saree”? TRU एव मच MINA: = STRIATE a, We BVM fatrarefa (ra) n

दति faamest एकादशस्याध्वायम्य (वष्टाध्यायष्य) दतौयः पादः॥ ६,२॥

चतुथः पादः an: स्पणादिद मपीतरत्सुप्र मेतस्रादेव सर्पिवां DY { तल वा। सुप्रकरल्र yaa इत्यपि निगमो भवति | ATA ATE कर्मणां प्रल्ातारौ सुशिप्र मेतेन व्याख्या # ure ४४३ Ze ro Te | “शमि fam चंजिमादध्य waa वि लिन quien Vea सं WaT

waz टय fay: 3 at मति afAT MEINE ॥?- शतिं we Yo i, R&R! 20

२१९० निरक्तम्‌। [पवंघटकम्‌ ,

तम्‌। वाजं सुशिप्र गोमतीन्यपि निगमो भवति शिप wa नासिके वा इतुदन्तेन्नासिका नसते; | वि ere fay वि सूजस् धेने इत्यपि निगमो भव॑ति dar दधाते रंसु रमणात्‌ | चिणं चिकिते vq भासे fy निगमो मवति। दिव्धा दयाः स्थानयोः परिदल्हा* मध्यमे स्थान उत्तमे उत दिबद्ा अमिनः सद्धाभिरित्यपि निगमो भवत्यक्र आक्रमणात्‌ sal वभिः समिथे महीना मित्यपि निगमो भवंत्युराण उरे कुर्वाणः 1 दृत ईयसे प्रदिवं उराण इत्यपि निगमो भवति॥ १1 `

"'इप्र०९)--दति १, श्रनवगतम्‌। सपः" दत्यवगमः। ““सपं- एात्‌,- एति निव॑चनम्‌। “इदम्‌ श्रपि इतरत्‌ प्रम", ““एत- सख्मादेव स्यात्‌, यदेतत्‌ “सर्पिवे तैलं वा; तदपि fe सर्पति। 6८ | 66 Jane 99

grave मृतय ”- इति निगमः “हद्‌ कथं वामहे” द्रति व्याख्यातः शेषः “at बाह, कर्मणां प्रश्धातारौ” निव॑- नौयितारावित्यथः **

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^उर्वपूषःः'क।

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§ र्भा ४४४ इ० १पं०।

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yo १४९ go ११० wag ८१, जैपपन्यां पाठे। gee | भ» aur १९० 0} व्रहयम्‌।

qe gure °] नेगम काग्डम्‌ | २९१

“सुशिप्रः ९)?-दटति +, श्रनवगतम्‌। तत्‌ पुमः “एतेन” एव प्रशब्देन “व्याख्यातम्‌” सपैतेरेवेतदपि 1† ; “far = दनु, नासिक वा, ते aa wa, सुशिप्रः “वाजे सुशिप्र गोमति” fat निगमे “faa स॑खितवम्‌"-रति व्याख्यातः £ नासन्‌ wa नामिकयोशन्वोवा. शिप्र्ब्दवाच्यवे विगरेषलिङ्ग मस्तीति

: “शिप्रे इन्‌ नासिके वा”-्द्युत्का fafaeafay मन्यद्‌- दाहरणं mati ;-“वि we भिपे"-दति। “मादय॑ख --- °प्रतिं ने ome” | कु्छसेय मार्षम्‌ द्रौ जगतौ 1 ZH रा चस्य नवमेऽषशनि मरुलरतोये wa शस्यते “मादयस' शर्षयख 'खम्‌' आत्मानम्‌ Bex’ “हरिभिः, श्रेः, "ये" ‘A तव eran, तैः सह कथं पुममादयष्ठ? इति,+--'विग्यख' faqea ‘far? am, दौरे ey हविभंकणाय, नास्कि वा गन्धात्राणाय; एवं area मिति ‘fae 8a awe ददवा, “जिश्ोपजिद्धिके ar—ait; ante aa Waa किञ्च, ‘AT ला वदन्तु UTS वृष्टाः ST Bae at हरयः VENA प्रति शे "सुशिप्र!" ‘ow’ कामयमानः “हव्यानि etifa एताभि शरमद्मलानि स्तुतिभिरस्माभिरासेवितः श्रति जषसख a: प्रति

® १भा० ४४४ Vo पं*।

Ye ९१९० ४० ११पं०।

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§ Te ११९ ४० (de, तत्रैव “*? Dat पाठो gee |

| “arse wird ox वि aq fat वि era da) ar ar GT इर्ये वरनाशन्‌ wale प्रति ने sve ॥*- दूति ऋण्सं०९, ०, १९, ४।

र्‌ fauna | [ पवषट्कम्‌,

घं सेवख नः कार्मैरित्यभिप्रायः एव मत्र मादनषम्बन्धात्‌, ₹विः- सम्परदानसम्बन्धाख “fay = इन्‌ नासिके वा'-इृ्युपपद्यते यत्तदुक्रम्‌,-““भिपरे इत्युपरिष्टाद्‌ व्याख्यास्यामः" दति *, एतद्‌ व्याख्यातम्‌,--“शिप्रे = इन्‌ मासिके वा^-टति† ^ इलुः, दन्तः (अदा०प०)" धाता: “नासिका, नसते" “नघतिराप्रोतिकमी वा नमतिकमा a’—efa fe aeafat “र्सु (र “--टति 2, श्रनवगतम्‌ “रमणौयेषु"-दत्यवगमः |

“रमशात्‌“-द ति fare “meat अरं o—— THT युवा 27” || सेमा ङतेभागेवस्यार्षम्‌ | freqi wa} प्रातरलु- वाकाञ्चिनयोः waa) “श्रा पनन्त श्राभिमुख्येन पनन्त, ayaa | "मे" मम qua कर्मणि ‘ma’? महान्तम्‌ श्रिम्‌, ‘aaa’ वननोयस्य दविषो दातारः विजः घं ‘au’ वर॑ guia sa दथम्‌, तेभ्यः ‘ofan’ मेधाविभ्यः। aar वरणं प्रार्थनां "न श्रमिमोत' दिनिस्ि। किम्तदि? यथाप्रा्थित मेव षमद्यती- त्र्यः किञ्च ; ‘av अचि; ‘fetw वायनोयेन भाषा am: ‘<q’ रमणौयेषु स्थानेषु युलाकादिषु afasray वा चिकिते" किं णो ‘a’ af? हतिः-जुजुवेम्‌" पुनः पुनः जरावान्‌ शपि

* eto ४०४ ve १९४ Te |

Te ९१०४० १०

J Ze wre ०, ४,४। § श्भा० ४४४ इ० qode |

| rag अत्वं वनदः पमन भिमभ्यो माभिमौत्‌ wig frat fafe- वै. रु भाषा a अवे या म्रा Fal Uy “इति me de bu, ९७, ५।

-- ---- ---- जानः mn णवाय य~~

श्चन gute Cue] ana RMF | RR

Wal, “ABU Bat ay’ इन्धनकच्यात्‌ पुनरिन्धनं प्राप्य qeitafe दो्यमाने मुज्गमुज्ः युवैव भवति एव aT शष्दसारूपादचावि- ture ररसुः-दत्यस्य ररमफौयेषुः- दति विपरिणाम उपपद्यते

^ दिवद्ाः(०५)०--दति ° श्रनवगतम्‌ ‘feafeesr—tta न्यायम्‌ मध्यमे स्थाने वेशुतात्मना, THA सयात्मना | “ga faaer "ति निगमः “aery दः" शति व्याख्यातः शेषः ¡

Cog’ दति 3, श्रनवगतम्‌। शश्राकमणः'- इति न्यायम्‌ | “श्राक्रमणात्‌"--दूति निकेचनम्‌ प्राकाराऽभिषेवः “amt बचिः -——e ust afte” li विश्वामिच्रसारषम्‌ freq श्रप्रेयो प्रातरनृवाकाश्चिनयोः शस्यते “wat मः wm द्व, प्राकार श्व (बचिः भत्ता, धारयिता ? शमि agra | aa? ‘ava? मरतोनां starry) एवं्लल्षणे योऽप्मिः किञ्च; ‘faa a दृ श्छते यः। ‘ga® Baran यज- मानाय नित्यकाल मेव (भाक्जोकः' प्रसिद्धभाः, ufagatfa., मित्योज्वलित इत्यर्थः fag; शवस्य aaa “जनिता, जनयिता | ‘sfaar ssa’ उलिया श्रातो sais प्रलिप्ताः षती

* श्भा० ४४४ go १२ Ye |

we de ४,९,०९१।

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§ र्भा ४४५ Te ede |

|| क्रोम वधि; संभिये मरौमं दिद्चेयः खनव भाकजगिकः। sz fear ofa at BRAT ANT कतना यङा Gy: - इति weder, ८, woes

२१९४ ` निरक्तम्‌। [पृवेषट्‌कम्‌,

देवतादभिषमयैन ety wear "यः, जनयति श्रय वा गाव एव बेखियाः ख्यः, ता श्रपि wet पश्ुकामकर्मणि apd गच्छन्‌ जनयति aq ‘aut गभः, यश्च ^नुतमः' मनुग्यतमः, Ty ‘ag: महान्‌, ‘afq’, ददं नामास्माकं करोालिति॥ एव मच भ्न्दशारूप्यादथ विरोधाच्च “शक्रः = प्राकारः" दत्युपपद्यते ; wat fe amr लैः

“लुराणः(०९)'-- इति *, श्रनवगतम्‌ “SX कुवाणः*--इत्यव- गमः “वेरष्वरस्यं दूत्यानि o—e दिव श्राराधनानि"" 1) वामदेवश्याषम्‌ | FET wa प्रातरनुवाकाञ्चिनयोः wea | हे ounqad! षेः a जानोषे) किम्‌ ? ‘mate’ यज्ञस्य ‘cafe दूतकमोाणि, यानि दूतेन कर्तव्यानि किञ्च; “उभे sar उभावयन्तौ Ueey रोदस्योः “विद्वान्‌ असि विजामौषे। किञ्च; समस्त मप्येतव्नगत्‌ “चिकिलान्‌ः असि; ते विज्ञान भरतोघातोऽस्ति शत््ेऽपि लगति ; विजानीषे वाणि देवताखा- नानि प्रदिवः, एव रसि (दूतः, बिरन्तनः सवर्षां यजमानानाम्‌। धताऽस्मानमिखल मेतस्ििन्‌ कमणि “दूतः दूतवेन ‘tay याच्यसे, मर aq “उराणः, श्रय मपि sa हविः दे वतादशिषमयं as gare: | “विदुष्टरः facut, ममव्यद्ोतुः sara) ‘fea ्राराधनानि'

® \भा० ४४४ ve ude | alata सत्यानि विद्धानुमे खना trea खशि किनान्‌। दृत यये भरदिष SUT विदु रादिव शारोधनानि॥- दति we सं २,६, ०, २।

दअ ome शरव *|] नेगम कारम्‌ २९१५

च्राराढव्यानि देवतास्थानानि * प्रति ay एतानि हवौँषोत्यभि- प्रायः एव मज शष्दसारूप्याद्या पपन्तेख "उराणः" व्यस्य “se कुव णः*--दरत्यष विपरिणाम उपपद्यते ॥९॥

स्तिया आपो भवन्ति स्यायनात्‌। उषा सिन्धूनां षभ स्तियाना मिन्यपि निगमो भवति| स्तिपा स्तिया- पालन! उपस्थितान्‌ पालयतीति वा। नं स्तिपा उत भ॑वा तनूपा इत्यपि निगमो भवति जवार जवमान- राहि जरमाणरोहि गरमाणरोदीतिवा। ग्रं रुप आरूपित' जवार्वित्यपि निगमो भर्वति जरूथं Tee खृणातेः जरूथं हन्यक्ि राये afar मित्यपि निगमो भवंति। कुलिश इलि वज्रनाम कूलश्णतनो भव॑ति | स्वन्धाध्सीव कुलिशेना विवृक्णाहिः शयत ` उप॒ ष्क्‌ visa | स्कन्धा दक्षस्य समास्कन्नो भवत्यय मपीतर स्कन्धः रतस्मादेवास्कन्नं Tae: शयत उप- पर्चनः VM AA TARA: (१७) |

“स्तियाः(००)'०--दति £, श्रनव गतम्‌ शस््यायजाः?- इति waa |

© Cxtred राइति, खमा वे लेके दुरारषम्‌,- दूत्यादि, "ङ्य दुरो दकं Urefa”? cere | te wre ४.९, १५-९।

“fan खुषां wea”? a, ख, “farvaret waa” ङ|

J “arma मपौतरत्‌ स्कन्धः क, ख, ग।

§ भार ४४६ ve ९० पर “ज्ियानाम्‌?।

श२.६ frame | [ पवघटकम्‌ ,

“erat भवन्ति"--एत्यमिधेयवचनम्‌। “wren” संदननात्‌ इत्यथः; ata एव fe पार्थिवाना मवयवारनां deat हेतुता भवन्ति; श्रयवा दिमप्रभावेन ता श्रात्मनैव dem waft | “टृषासि frato——e मधुपेयो वराय ° | भ्रयोवैर्ईस्यत्येय माषम्‌ Uz हे wx! ‘an safe वषिंतासि ‘fea’, ‘far’ वधिंता। ‘feat? स्यन्दमानाम्‌ sore वर्पिता। ‘feat संहन्त्रोएाम्‌ श्रपाम्‌ ; Ba वा संहताना मात्ममैव हिमप्रभावेन। यावत्‌ किंषित्‌ Bead, तत्‌ शवे लदधौन मित्यभिप्रायः। adi ते एवंगुण वि्ष्टाय ‘ea? वषि “A? तुभ्यम्‌ एष "इन्दुः" सामः, हे ‘saw’ वितः! ‘Gare’ पुनः सुनः श्रा्यायते ; श्रय वा पानाच dam, “Sg wy खादुरषसयुक्रः' ‘ayta’ मधुरपेयः, "वराय ay Sarda: एव मज ‘faar-wega ‘iy, संहता वा रापः" उच्यन्ते; शष्दसाष्ष्यात्‌ “स्ये weap: ( zoqe)” त्यस्य

““स्तिपाः(२)--दति 1, श्नवगतम्‌। “स्तियापाखलनः"- इत्य- ara: ‘aa’ श्रभिधेयः ; हि ““उपस्िताम्‌” पादन्‌ “पाल- यति” “a ar पर्व ०--ण्यदिदं wa" ¡ वध्यश्च सुमिचरस्मेय माषम्‌ Freq waa ewe! "यं लां" वध्यश्च

* “eirfy f<ay षभः शचिगा इषा far at षभः feurara चन्त द्द्हषभ पौषाय सवादु रा मधुरथो वराय ॥५-- दूति We Yo ४, ७, २०, १। Tt र्भा ४४६ इ० ty पर|

{ ‘dar परव मौलि बध्यः संमौपे्प्रं द्द्‌ vee म॑; faut उत भ॑वा तनुषा ay tuq यदिदं तं खसे +- र्ति we ge ८, २, te,

(Ue ame रख] Harel काखम्‌ २१९७

"डितः रपि स्वर्महविभिः, ‘aa’ ‘ale सभेभितवाम्‌, उपत्ोरण- वान्‌, तं at मह मपि समिन्धे; a fe ara at समिग्ध्यात्‌। सः" मिष्यमानः श्रस्माभिः ‘ev’ दविः ‘ava’ सं सेवख् fare; एव मस्माभिः दद्य से लम्‌, “खः “गः” “स्तिपाः' कूप इव (तनपा भव; कूपो हि ष्याम्‌ पान्‌ पाल्युदकसम्परदानेन किञ्च; ‘gray’ रागम्‌ ‘ewe’ कतमत्‌ ? "चिरं ते ‘ae’ श्रस्मासु ata इत्यथेः॥ एव मचाविराधाच्छष्दसाङूप्या “fen: = कूपः”- इत्युपपद्यते

जबाङ(०९८)५--इति °, sana ““जवमानरेदि"--दत्येव माया; अब्दसमाधयः। “a मिन्‌ eq qaato—e grefag sare” वामदेवस्यार्षम्‌ “वैशानराय alesd earan:” इत्येतन्‌ वश्वागरोये aR {। "तम्‌" एव हे यजमान! लम्‌ ‘MMA? MAU. वैश्वानरं खयम्‌ समना समागयेव, तदगरूप- थेव स्तत्या "समानम्‌" केन Gren: ? “कवा पुगतौ' खाल्म- पवमषमर्थेन कर्मेण TNA वा। किंक्नशणः पुमयौ Pere तं mara ? “ate WH’ GIG? yaaa ‘gay mew श्रषि' उपरि; खपन्तोव fe gear निञ्चललात्‌ ‘yar’

१भा० ४४९ wo ude |

“त निम्‌ श्वे a vant सपान समिन्रला gam षौतिरकाः। gq खम्‌ धधि UTE प्नरप्रद्प अदत्‌ जवार ॥'- de ३,५, ९, ९।

{ we Go ume we nage | FET UT BE TWAT; पि लाप्रेये तथा चामुक्रम्यते “भद्राः afew qT खाग्रेयं दिजमगन्यारोति (we संग्न (We tae साग भार) |

$ ‘wore’ || “sea at “afer” ख।

28

RLS निशक्तम्‌। [quazan,

चरणार्यम्‌ फथं नाम सौर्येण प्रकाशे लनाद्यरेयरित्यनेनाभिप्रायेण | ‘are’ दौत्निमत्‌ wa? पृवैवगादो "रपः श्रार्पितम्‌' .रिपःः-इति विपरिणामः, wert इत्यथः, शश्रारूपितम्‌' श्रारे।पितं देषः, ‘nara’ AGE Gi तं त्व wai इह वा श्रादित्य श्रासोत्‌, arat परिग्द्योपरिष्टात्‌ arat प्रजानां न्यदधुरिति विज्ञायते एव मज ““जबार्‌ = श्रादिव्यमण्डलम्‌', उच्यते; तद्धि अवमानं गच्छन्‌ नभसा मध्य alrrefa, जायते वा उदेतौत्यथेः ; जवमाम मेव fe तचतजनोदेति। “नरमाणएरेादि"” वा स्यात्‌ ; तद्धि जर- माणं * warts रहति “गरमाणराहि वा” तद्धि गरंमाणं बखानाराहति - | . Cpa)" —e fa *,. श्रनेवगतम्‌ ““गरूयम्‌'?-दत्यव- गमः। “era: (wateqe)"—efa argfade | “ला मग्न समिधा ने ----° सद्‌ नः? t वरिष्टश्याषेम्‌ waa! feat भ्रातरमवाकाश्चिनयोः. शस्ते हे भगवन्‌ श्रमं!” "वसिष्टः" वां छमिधानः' `खन्दोपयन्‌ ‘new’ eid ‘ea गमयन्‌ at प्रति ; Cefn, सेधतिः- दति गतिकमंसु पठितम्‌ ¡ ‘ale यजति "राये" ` धनप्रा्यथेम्‌ ‘aia बजकमेतमं धनशन्नन्धादा बह- दादतम fafa स्यात्‌ ae afaea एव भिज्यसे, तं लां वय

© auto ४४९ ve ude | + “a ae efayrtr safest ered wafe राये odfad) wader खौतवेदेा orca यथं पत सखिभिः ear a ॥- इति we ge ४, ९, ९९, C1 { र्भा We Le Ge (६०९), (१६०)।

य्‌ °» पाग रख ] ana TA २९८

मपि यजाम wi ल्व ‘aera’ बङ्गस्तत्‌ ! ‘aaa’ श्रस्र भिरिज्यमानेा ‘ace जुषखे तद्धविः semi किञ्च ; ‘aay WHIT "पात' रक्त एकस्यैव पजनाथ बज्जवचनम्‌ .खस्ति- fay? खसत्ययनः, श्राग्रौःप्रयोगेः पात ‘a? सदा" fay मेवेत्यथः एव मच जरतेः WUT श्दसार्प्याद या विरे घा “Heya = waa”? उपपद्यते ॥. . ““क्ुलि्नम्‌८९-- इति °, श्रनवगतम्‌ “वज्नाम'"--दत्यभि- धयवचनम्‌। “कूलग्रातनः'--दति waaay: | “set वज —s gay एयिव्या"† Bei. faqs दिरेयस्प- wea | श्रग्निष्टोमे निष्केवस्ये wea) ‘ae इतवान्‌, ` दन्ति a wx: ‘zy मेघम्‌ ‘caawa’—tfa aaa वा विशेषणम, अन्यो वा दृचतरोा यः तमपि ef कथं oni? दक्ि--्यंसम्‌ः विच्छिन्नमस्धिवन्धनं sari केन पुनन्ति ? टति,--वञजेण महताः merry) fag; सकन्धांसि इवः ceme शव; लिनः “nemata agqu’? fagaur विशटकणानि i एवम्‌ “श्रि: श्रगमने मेघः, feqaratsen waa: "उपक "“डपपकचनः”", सन्प- कस्य कत्ता t खलोदकभावेन, war मेव पृथिव्याम्‌ श्रि" ‘waa’ श्रगमयत्‌ | अवम्धानमात्र मेव WA saa: एव मच वधघसम्ब- न्धात्‌ “@faw: = व्ः"?--दत्युपपद्यते * quire ४४९ ve eye “afew” | t अदन्‌ टं eqant ay fal wae ava वयन | Gaidiee —_

og fran +इति we dot. २,९९ ५। { “उपशर्क्‌ खंपपजेनः, wast” कं |

११० निदक्नम्‌। [पृवेषद्कम्‌ ,

| “qa of *, अ्रनवगतम्‌ “तुष्वते;" दानार्थं सेति निवंचनम्‌ "तुञ्जनम्‌'-इति सात्‌ (९९)

THA उत्तरे स्तामा इन्द्रस्य वजिणः। विन्धे अरस्य सुष्टतिम्‌ दानेदाने out सामां इन्द्रस्य विणा नास्य तेविन्दामि समाप्तिं स्तुतेषैईशा परिबदहणा | BEM असुरा वशा छत इत्यपि निगमो भवति (१८)

"तचे ठनचे ---° खट्तिम्‌” मधुच्छन्दस आम्‌ Bet गायो प्रातःसवने ब्राह्मणा्छंशिनः आवापे विनियुक्ा। 'तश्चेतचचे' “दानेदाने” ये" ‘oH entre? दानपरितष्टेन मथा fata: ‘ere वञ्जिणः' चिग्यको,-एमैः etic योग्यः सोत भिति। किं तेषाम्‌ ? "विन्पे' “शरद्य सर्वैरपि ^ तेविन्दामिसृषटतिः “समाति स्यतेः” इत्यथः | धावत्य एव स्तय उपादौयने, ताः स्वी way प्राप्य न्यूगा भवन्तौत्यमिप्रायः एव मज सोमसम्बन्धात्‌ "तश्चः-जब्दो दानपयायवचमः, ठुश्छतेख Tada दर्थ॑नात्‌

“agen 0" इति 2 श्रनवगतम्‌ “परिबरणा”- रतयुपसनं- ध्याहारेणायप्रतोतिः परिवेणा = परिषदि, oftfeer वा |

° र्मा ४४९ इ० ९६ Ge “ag” |

आर संर १, ६, १६४, २।

{ ध्मा शख. ९० we (९) "तुञ्जति" |

§ rato ४४९ ge १४ ge |

fee”, acre” दति चाक समेजेवान्यखयकाएन्विं द-प |

Cue sao awe] नेगमं काखम्‌ | ९२९

“अचा faa रते०---*रथो fen? सयव मापन्नराखे- RUA | गतौ Seti चतुथं पारे "ग्यः, रि, सः" इति पदानि! हे ata! “श्र प्रोारय were "दिवेः श्योतमवते "ह दते" महते, ‘ye? धनसंयुकम्‌, awafidan वा वचः! किल्ललणायेग्धाय we? tfj— eas यस्य" @ मेव शचं धमं बलं वा यस्य; कदाचिदपि यः परकौय भाकाङ्खतौत्यभिपरायः | किञ्च; षतः धर्वंयतः; wan “षत्‌” एव we ‘amy भवति, तदय मर्चेति। किञ्च ; येमेर्धेण ‘ewan’ vegeta, “Tyr मेघो वा ‘quar परिष्द्या often बेन परिहिषथां वा ‘gw श्रवक्‌ "हरिभ्यां" mia तावश्वौ इरी श्ये युक AG AY श्रयेन्देण Puree दूरपातिलाश “डवभः' वषिता हृतः" श्रय तावद्‌ "र्यो हि सः" रंह्णो हि MH: मेषः तथाहि येनेन्रेण पुरैव हरिभ्यां प्राप्तेः 1 प्रहारस्य वक्ति हते मेषः ६, मन्यं एव मच गअ्दवारूणादसुरसम्बन्धा “aga = परिवरेणा""-इत्युपपश्ते (१८)

यो रस्म घ्रंस उत वा ऊध॑नि सर्म सनानि भवति GAT Mel अपाप शकस्तततष्टिं | मूहति

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° “खया fet ww? wae! we ewe ge wear Wom: | EWR अरा eed छतः ctr दरिभ्वं वमा रथोद्दिषः+ इति we संर ६, 8, ६९; I

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थ्‌ निशम्‌ | [पूयघटकम्‌ ,

AAA. मधवा यः कंवासखः॥ -घंस इत्यजा गरस्यन्तेऽस्मिन्रसा wey wEaat भवल्युपेान्रद् मिति वा सेशानुप्रदानसामान्याद्राचिरप्युध उच्यते स्याः ऽस्मा अहन्यपि वा राषौ ata सुनाति भवति wx द्योतनवानपेाषत्यपादइति शक्रस्तितनिषु धम्पैसन्ता- नादपेत मलद्करिष्णु मयज्वानं तनुश्च तनृभाभयि- तारं मघवा यः कवासखा यस्य कपयाः सखायः | न्याविष्यदिलोबिशस्य र्हा! वि भङ्गि मभिन्छष्ण॒ fax: | निरविध्यदिलाबिलश्यस्य catia! व्यभिन- efra शुष्ण मिन्द्रः॥ (ee)

‹ततन्‌िः(*)'?- इति ४, अनवगतम्‌। -^तितनिषुः"-श्रयं wig “यो We Bee ° कवामखः'” { प्राजापत्यस्य षव- दणस्छाषम्‌ | Sati जगतो “यः, ‘sae इन्द्राय ‘da’ “meh”, ‘sa ar “aft वा” ष्यः" (ऊधनि' “राजौ” सामं" “सुनेातिः अभिषुणोति, नित्यकालं मेव a: सामाभिषवे प्रयतते इत्यर्थः, aw किम्‌? ईति,- निश्चयेन ‘gaia’ “द्योतनवान्‌” भवति? श्रय पुनः इता या विपरोतेा भवति, gaq पूवतनंशच “waaay” शतुष्टिताद्‌ “ataq” a मलं कमभिरित्येववादिनम्‌ “श्रलह-

* “भवत्य” छ, FI

“caw? क, ख; संडिताथा aay मेव | { weatfa” a, ख, a)

§ र्भार ४४० ge र्पर “ara fan”

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€Go gyre swe] ana कार्दम्‌ | २२९

fray” “mera” श्रयजनज्नोलम्‌, srw वा ; विष- योपमागपरतया खविन्तं “तितनिषुम्‌" श्रनेकीः प्रकारैः यो वित्तानि afag मिच्छति, तम्‌; श्रश्रदधानम्‌ धरम + शक्रः? शक्रः द्रः, “aa ऊहति- श्रप ऊहति" †- उपसर्गा ग्यासद शनात्‌ ऊष्ेरप्येम्य।सं WISTS छतः ; पुनपुनरपेदति armada { “तमुब्रभमः अरोरशेभयितारम्‌”; ततभटेरेप्रैतद्‌ विणेषणम्‌। यश्च श्रन्योऽपि कवासखः' कपुयमखो भवति 2, मण्यपोहति ‘ae wart ददः; अवश्यन्नावो aw हि विनाश इत्यभिप्रायः ॥के चिनु 'कवासख'- weg “तनू ुभ'- विशेषण सेव वयन्ति ll) इतरो विषयप्रधानेऽपि BAT साधुसन्यकात्‌ कदाचित्‌ प्रपद्येत, दतरस्वसाधुसषप्वादत्यन्त- me एवेत्यनेनाभिप्रायेण एव मच "ततनष्टि-अन्देन “विषयोपभोग धानः" उच्यते, अन्दायाविरोधादित्युपपत्तिः रसः हति श्रहनाम¶, “netstat” gta 1 गोः "ऊधः" उद्कततरम्‌"--दति शन्दसारूपयप्रसक्रम्‌, तद्धि wat शङ्गेभ्य sgaat “wala” “straga—cfa वा; afe faw- Waa Ye We |

t “ard ~ warefa” a |

{ “खपरोऽपभब्द्‌ः पूरलथेः- र्ति are wre पर मेततनिदक्कविददम्‌ ; fe “कपोरत्यपाइति^- रति द्ेनात्‌।

¢ कपुयशब्दायेल परसतात्‌ (१९९१ we) gam | ““कवापक » कुत्ित दष-सृडा- थः इति ate ure |

| “aqara-fadewa वदं यनि” |

AMT were, ५०५० yee ewe (९)

RRs forerearey | [qaaewa,

थते केन faaqufae गोरूदरे ag मिति ““खेहामुप्रदानणमा- न्यात्‌ राचिरप्यध cea”; सापि इवन््ायानाषभिवनश्यतिचेद- क्रान्‌ दधाति °

«इलो बिश्र(=५),,--इति 1, एतरेकपद ममवगतम्‌ “दला- भिलत्रयस्य”?-दव्धवगमः "मेषः, अभिधेयः; fe दलारेतारद- wea श्राक्रोयानि निगेममविलानि deg रेते, ada वा बिेषु दखारुतरुदकं रेते इति दलोवि्ः “न्याविष्यदिलो बिश -— ° मवधौः vaya’! हिरष्यस्रपस्याषम्‌ | Bt freq गोषववि- व्रधयोर्भिष्केवच्ये अद्यते ?। ^न्याविष्यत्‌" “निरविष्यत्‌”” निरताडयत्‌, (इलो विश्रस्य' “इला निलयस्य" Rag ‘gee “दृढानि”, दभं्यामि उदकषंरोधकलमाणि स्थानानि केवल मेतावदेव, किन्ति? “वि्ङ्गिणम्‌ अभिनत्‌" wife जिषठरवन्तं दोभिमन्तं वा विद्युद्धिः, ‘Soe’ बलवन मेवम्‌, “दन्दः” एवं IATA: प्रत्यच्तोश्ठतः। प्रत्यचक्ृतः SUISSE | ₹े मघवन्‌ !› "यावत्तरः' थावदख मेतस्मिन मेघेऽसि तावदेनं जहि ‘ara’ ततर व्यथयनखमथयेम्‌ ats,” aa मस्ि,याते अकिः, तथैनं ager "रु" भातयितव्यम्‌ Tah” जरोत्यथेः “एत-

पमार Bede, ४०४० १० ows (२०)।

र्भा ४४०द्‌* ode 'दूद्ोविष्मः, |

1 “adrfange 0 Farry | यावता मथवम्‌ GARTH aay ny agyt: way ५०- इति we do ९,२,२, tI

§ “aifn मारोनमादारेमारम्‌ Sere wee इनयासदुप WIefaT समाद्‌ We जाखुता अस्तासते निरा विध्यद्ग्द्रारेवं खातः ae किरादेवो न्याविष्यदेन मानक Ww’? रति we प्रर ९। ४०, ४९।

श्वय sure yrae] ANA काण्डम्‌। २२५

न्यम्‌” एतना भिच्छन्तम्‌ एव मच “इलो मिशः = मेघः” शन्दसारू- णादयाविरेधाच (१९)

अस्माद्द्‌ प्र भ॑रा तूतुजानो दवाय वज मीशानः कियेधाः। गोन ud fa र॑दा तिरशचेष्यन्र्ास्यपां चर्ये अस्मै प्रहर तूणं त्वरमाणो वाय वज ATA: कियेधाः faaer इति वा क्रममाण्धा इति वा गारिव पवीकि विरद मेषसछेष्यन्नथोस्यपां* चरणाय शमिर्भरम्यतेः। शमिंरस्यपिृन्मन्यौना मित्यपि निगमो भवति। विष्ितेा विप्रात्तः। | areal अस्य विष्पितस्य पप॑न्ित्यपि निगमो भवति wy (२०)

“(कियधाः(८९,-- दूति {, श्रनवगतम्‌। “faagr”, “ma- माणधा वा-दत्यवगमः ज्ियदप्येदक मपरिमाणं धारयतोति कियद्धा मेघः | क्रममाणो वा धारयतोति क्रममाणधा मेघ एव “SAT दद्‌ ATT "गः aus” 21 नधा माम गौतमः, तस्यय मार्षम्‌ faaqi शद्धो श्रारोनिकेष्वहःसु wetter fafa- युक्रा। हे इन्द्र ! एष Ta, "कियेधाः" “faagr” कियदण्युदक मपरिमाणं धारयति, क्रममाणो वा धारयति | “sa” लं ‘aga

* “Guguautayt” क, ख, a “fama”? faim” ख, ग। J र्भा. ४४७ ए. र्र्पंर। Re Ge ९. ४, ९९, ९। 2५

ard निक्तम्‌ | [पवेवट्‌कम्‌ ,

“त्वरमाणः, ‘ae? avs Saray’ watt यस्मात्‌ त्व aaa तस्मादेव FU gs प्रत्य ay वञ्जप्रहार wasuTa Raq गों पव गोरिव पवापि ‘fare’ विदारय ; यया गोविकन्ता गोः warty “विरदेत्‌* विच्छिन्द्यात्‌ एवं त्र Add मच मव- want “विरद” विख्छिनभ्थि। कथञ्च पुनविरद ? इति,- "तिरा" वेण तिर्यक्‌ गामिना केम पुनरर्थैन विरद? tfa— व्यन्‌ शर्णांसि' उदकानौच्छम्‌ ‘aq’ “चरणाय” ‘sata’, प्रजाभ्यो दातम्‌ एव aang दिश्रकलोकतादापे निश्चरिग्यन्तोत्यनेनार्थन विरद एव मच “कियेधा = मेषः,” शब्दसाद्प्यादथाविरोाघाच “कियेधाः = इन्द्रः'›--दत्येव मेके aaa’; a fe यदपि श्लायते कियत्परिमाण मेतद्‌ बल मिति, तदपि धारयति; क्रममाणो वा शचुबलं धारयतोनि कियेधाः। ud afa दयं थोजना,-यस्मादोश्ानस्वं कियेधाञ्च, तस्मात्‌ प्रहर वञ्च fafa "इ मिः(*)**-- इति †, अ्रनवगतम्‌। “भमणम्‌'- इत्यवगमः | “an —efa निवेचनम्‌। शश्रत्निःः-श्रमिधेयः “दमा aij ---* सविद्यानाम्‌ tT. दिरण्छस्द पस्याषम्‌ प्रातरनुवाका- अनयोः शस्यते डे भगवन्‌ ! ‘aa! cat शरणि' मरण्लक्षणां हिंसाम्‌, vat defi वा ‘ahaa: नः माजेयसख नाश्रयख नः | * “यदा mead जुवं दधात्यवस्यापयतौति कियेधःः। डे इन्द्‌ | रवश्चूत खम्‌”?- दति ate भार |

Uwe ४४० ge yo de | | t “cm मग्रे भरल Matt Ce मध्वाम्‌' मनाम दुरात्‌ | wife: पिता

e! प्रम॑तिः सोम्यानां a fa रप्रषि्टम््यानाम्‌ ॥*?-- दति We सं० ६, ९, २५, ९।

(Ge sure ५०] aaa MIWA | RRS

कतमां शरणिम्‌? शमम्‌ श्रष्वानम्‌” ‘aa’ एतं ससारध्वानम्‌ शश्रगामः गतवन्तो वयम्‌ ; श्रसुश्राल्लोकादिमश्नोकम्‌ | wag wat मंसार- दिशाम्‌, एतां वा संसारशतिम्‌, एनम्‌ श्रावं जवोभवन्तं AAs माजेय त्वम्‌ * कस्मात्‌ पुनरेव मुच्यसे ? इतः, यस्मात्‌ “aria” त्वमस्माकं प्राप्तः, श्रयवा व्यापयिता aaa जगतो afear | “पिता! रक्िता, ‘rary सेमसन्पादिनां मनुव्याणम्‌ प्रमतिः" प्रष्टमतिः। ‘afa’ च, त्व मेव संसारे wrafaat पञ्चाञ्चि- विद्योक्रेन प्रक्रमेण; लदधोन एव sartr मोच्श्च “छपिषत्‌' ख्‌, दश्ैनकत्तासि aq, aaa मेव दभेनं ‘awl’ मनुब्याणाम्‌ | सव विज्ञान प्रकाशेनानुग्द्यास्मान्‌ मोचयसास्मात्‌ संषारादित्यभिप्रायः। रेवयानेनैव पथा गमय, मा पिहयानेनेति॥ एव aa “गमिः = afq:” श्रथाविरोधात्‌ (विश्रेथते)॥

““विष्पितः(*)- एति ‡, श्रमवगतम्‌। “विप्रा ्ःः?-इत्यवगमः | विस्तोणे इतस्येतश्च, स्वतो यः प्राप्तः, विष्पितः। “ga दिवो ° वि fina पषंन्‌”2 1 “यदद्य aa रवोऽनागाः"- ranfay Ga; श्रस्य पुनः क्स्य प्रथमा सौरौति प्रतिजन शोनकः ;-श्रन्याः सवी मैत्रावरुण wal (इमे-दति इयोरेव भिचावरुणएयोः पूजाय बडबचनम्‌ waar वा wate: स्यात्‌;

# “eq भाजवं ANAT ATI” az Way दशते ख-पुलके | { र्भा Bet ge age | a fi fi fi ~ ४॥ § दृमेदि्वो अभिंनिषा sfaafyfgaiar eae नयन्ति | gaa चिच्रयो ay afe ort Gq fa feuney पषेम्‌ v7 र्ति we सं०४,६,९, १।

RRS face [प्वषटकम्‌ ,

श्रसावपि हि afar छक श्रयते शोनकाभिप्रायस्तेवं सति परोच्छयः। ‘<a fasraqumian: ‘fea एत्य श्रनिभिषाः' श्रादरवन्तः 'एथिवयाः" एथिवोलेकादित्यथंः ‘fafaata सुकतदुष्कुतानि कमणि प्राणिनां जानन्तः, “श्रचेतसम्‌' श्रसेतयमानं प्राणिनं कमा- नुखूपेण ay लोकं "नयन्तिः। यत एव मतस्तानरं ब्रवीमि ;- ‘sae प्रहृष्टे एतस्मिन्‌ ant मरणस्य ग्ल्युकाले उपख्िते, (यदि°) "गाधं" संसारगादनसमथं कर्म, विज्ञानं वा afer नः" श्रस्यसाकम्‌, ततेऽस्य “विष्यितस्य' ‹^“विप्राप्तस्यः' संसाराष्वना नद्या ca "पार gay” पारं थन्वित्यरथैः एव मत्र शब्दसारूप्याद्थाविराषाख “fafeaa: = fanra:” संसाराष्वा--इन्युपपश्चते (२०) AMAT महतं पुर वारं पुर त्मना त्वष्टा पोषाय विष्यतु राये नामानो waz: | तन्नस्तखापि महत्सम्भत मात्मना त्वष्टा धनस्य पोषाय विष्यल्ित्यस्मयुर स्मान्‌ कामयमानो रास्पिनि रास्पी wad रसत्व रास्पिनस्यायोरित्यपि निगमो भवयुश्तिः प्रसाधन aa (च्चा waa ऊजं afefaaty निगमो भवति 1) ऊजुरित्यप्यस्य भवति | ङजनीती नो aay इत्यपि निगमो भवति प्रतदल् प्रा प्तवद्ल दरीं इन्द्र Weg अमि स्वरेत्यपि निगमो भवंति &ई (२९)।

© AWA क-पस्तके | मेष पाठः क-ख-ग-पलकेषु, uma qeviag; ent तु warty “med निरा —cfa निगम sear qreiay |

इयर gute due] Ana कार्दम्‌) २२६

"तु रोपम्‌(*८)'?--दति ® श्रनवगतम्‌ “द्रेण पि"--द्त्यव- गमः 'उदकम्‌-श्रभिधेयम्‌ ; तद्धि av asta “तन्न सरीप ° ° माभाने wera.” दोघतमस् श्राषम्‌ | ATR AVI श्राप्रो-खक्र। "तत्‌ मः GIA’ तदस्माकं तरोप सुदकम्‌, “Ar? “ae” tau: “aga, बर्दिष्ठः"- दति awarag पठितम्‌ "पुरुवार" बह्दे श्न्तर माटणेत्यरकम्‌ ; “पुरत्मना' बहृात्मना VARIN YHA, तत्‌ ननः, seus ‘Arar’ नाभौ मध्ये ‘wer’ ‘frag’ fagey anata isa “श्रसान्‌ श्रतुरण्डोतुं “का- मयमानः, ‘wa dere’ “धनस्य पोषाय” wae; au हि षति पश्वः पुव्यन्ति। श्रथवा ‘arty --एइति agta विशरेषणं स्यात्‌; 'नाभानः' श्ररोप्यमानः, किन्तडि? दौप्यमान एव विष्यतु wa aa माध्यभिकस्लष्टेति £ विष्यवित्यनेन aaa, “qty = उदकम्‌"--दत्य॒पपद्यते

“रास्यिनः(<०)'?-- षति |, श्रनवगतम्‌ शरापोः- इति वां स्यात्‌, ररासोः-दइति ars “waa: ar’ शब्दार्थस्य, “रसतेः वाः” शन्दायेस्येव | रपणन्नोला वा रसमन्नोला वा यः, 'राप्तो"। “ga त्यामे----° रास्पिनस्यायोः” क्लोवत श्राषम्‌ Faq वैश्च-

* ule wut ye ¢ Gp

T We ९, ९, ११, ४।

} tate ९९९२० दयन एर (९६), (RB) I

$ “थात मध्यश्यामा देवताः (दर we ९०, ९, १) दत्यभिहत्य चाखेन ग्धा ्यातत्नात्‌ (So का० ९०, द, ९)|

|| र्भा० But ye ede

4 CSN MI यश्मा RAAT बका पाकोणिजा Say 1 प्रवे नपात मपां BU प्र मातरा राख्िनष्यायाः॥- इति we de ९, १, ९, 81

निरन्‌ [पृवषटजम्‌›

देवे ahi "उत ar श्रपि तौ, shat) मे" मम ‘anar ef SHIGA धनेन त््यमाणौ, “ेतनायैः उषसः काले प्रापे व्यन्ता qa’ वौताम्‌ waaat पुरोडाशम्‌, पिबेतां समम्‌ यता anfa,— ‘gtfasy’ मेधाविनः ! fam! ‘saa? श्राहृयष्वं तावश्धिभी | किञ्च; ‘W त्रवौमि "वः, छृएष्वम्‌' “sot नपातम्‌? श्रपि, एनक्षिन्‌ कर्मणि भागिनम्‌। fag; ‘carat? द्यावाएयियावपि enzafa- ara कृएतेव, एतस्िन्‌ कर्मणि भागिन्याविति एतच्च वो ग्रवौ- मि। कं पुनरथ पुरछ्त्य एतत्‌ Gea? इति,-^रास्यिनख्य रायोः TMA वा TAMA वा शब्दकारिणो वषभ्रतस्याद- कस्य AAI, श्रय वा स्तोतु: पच्य प्रायम्‌ “श्रायवः'*-इति मनुय्यनाम* एव मच “राखिन,-शब्देन उदकं स्तोता वाभिधौयते, श्ब्दसार्ष्यादथ विरोधा ““श्तिः(९९)'), “प्रसाघनकमा'” 1 'भाच्जो कः" दत्य नेन { गतायैता मस्य मन्यमाना भाव्यकारे निगमं arena tt के farsa एतं भेष मघोयते “gai वा" ° wey fara वामदेवस्याषेम्‌ गायकौ श्राप्रयो। प्रातरलुवाकाथिनयोः wad | 'वः*--दत्येतस्य “तम्‌?-इति विपरिणमः। हे यजमान

* ध्मा १५९९० ९८९९० ९अ० Ge (te) |

T र्भा० ४४८६० wy पं०।

Jo १४० ge to Go)

§ “ga ar विश्रषेदसं व्यया wae यजिं aaa गिरा।॥- दति we do द. ४,८,९ च-च-पखकयीस्त . are wud (we qe ८,३,८,१ ०- इति निममो rad |

दम० Bote Cue] नेगमं कागदम्‌ | RRL

aq ‘ena’, विश्ववेदसम्‌" सवप्रज्ञानम्‌, ‘exaren’ हविषां Mera, ‘say’ श्रमरणएधमाणम्‌, “यजिष्ठम्‌” यषटुतमम्‌, ‘egy प्रसाधयमि "गिराः स्हत्येत्यथेः॥ एव मच “wefa: प्रसाधनकमा दूतमम्बन्धात्‌

“aga (<९)”--“दृत्यपि”” *, “mea? एव waa: “भवति” | “छजनोतो ate—ega: eaten” गोतमस्याषम्‌ वै aaa | Maat गवामयनस्य दितोयेऽनि शस्यते Faraquy we | “ऋजनो नौ" जुनयनः, Wawst वा "वरणः", “ay श्रस्मान्‌ दता Saag लाक क्मफलप्राछ्यथे नयतु"! ‘fara’ “विदान्‌ wag “श्र्यमा' “दवेः ‘asa’ षद्टप्रोयमाणः नयतु एव मव ‘as'-wea प्रसिद्धं नयनम्‌, प्रसिद्धा वा मतिरुच्यते॥

““प्रतद स(८९”- दति ‡, श्रनवगतम्‌ “प्राप्नतश्च “-द्त्यवगमः। ‘ar श्रभिषेयी। “दृद त्या सघमाद्या--° प्रतदख श्रभि- सूर्‌” 2। नारदस्येय माषम्‌ उश्णिक्‌। मदात्रते arfeuet दषाभोतिः, तस्यां शस्यते डे "दद्र!" ‘ce कमणि त्या ety’ ataat 'प्रतदख' “araag” प्राप्रधनै; तयोदि ऋजोषं धानाश्च धनम्‌; सहि ताभ्यां यज्ञे भागः प्राप्तः। “सधमाद्या wea

# १भा० ४४८ ge Re ye “arma” ti

“qaaia नो वरया fan) wag fast! खथेमा दवः स॒जाषाः 0” दूति we deo १, ९, woul

{ र्भा० ४४९ we ९पर।

§ रूर Mr SYRIA यज्ञामः सोमपौतये। ररौ इन्द्र TATE खनि खर 0” इति we de ९, १६, UR, RI

RRR fara | [पृवघटकम्‌

‘gar’ eat रथे, ततः 'सौमपौतये' सोमपानाथम्‌ ‘aay SATA प्रत्यागच्छ एव मच ““हरो'-दत्यनेन सम्बन्धात्‌ “प्रतदख == प्राप्रवख” अ्रश्री-दत्यु पपद्यते (२९)

हिनाता ना अध्वर देवयज्या दिनात्‌ ब्रह्म सनये धनानाम्‌ कतस्य योगे वि ष्यध्व मूधः ख॒ष्टीवरींभुतना- सभ्य मापः प्रहित नेऽध्वर देवयज्याय प्रिशत ब्रह्म धनस्य सननाय ऋतस्य योगे aA योगे यान्न waz इति वा शकटं Wafed* भवति शनकस्तकतीति वा शब्देन तक तीति वा | अष्टीवरीभतन1स्मभ्य। मापः, (qaqa भवतास्मभ्य मापः) चोष्कूयमाण इन्द्र भूरि वामम दददिन्द्र ay वनमोयम.। एधमान दिद्भयस्य राजा चोष्क्यते विश इन्द्रा मनष्यान्‌ | व्युदस्यन्येधमानानसुन्वतः। सुन्वतोऽभ्यादधान्युभयस्य राजा दिव्यस्य पाथिवस्य चष्वुयमाण इति चोष्कुयते्कंरोतटत्तं queda fare: | उप प्रागा- Aa धायि मन्न। sag मां (खयं) aa AAT

* “wege’ क, ख, म।

"“सुख्वरो भूं arene” क,ख | “ge —" a { इश्मतेऽयं पाठः क-ख-ज-पुर्केषु पर टत्तिखकातः।

§ ^"गद्विशभयष्य" क,ख, म।

|| “व्य सःत्यधेमाना नट ट) ¶ुन्धतः”? क, ख,

VT Wat क-ख-म-परूकेष |

५» “यनेक, wa)

९अ० 8पा° ] AN कार्डम्‌ | RRR

ऽ्यायि यन्नेनेत्याश्रमेधिको aay दिविष्टिषु दिव शषः णेषु *॥

हिमोत(९५)११-- एति †, श्रनवगतम्‌ “प्रदिणतः--दट् gana: "हिनोता ate—oaaarena मापः ¡| wage माषम्‌ ९। श्रपोनपरोयास्डक्‌ waa “हे विजः! ¦ हिनोत" “परिणुत” प्रगमयत, HIT) एनम्‌ ‘mat’ ayy “देवयज्या” “दवय व्याये" रेवयजनायैम्‌ | fae; प्रहिएत ‘Ag’ Bare} ययाश्रास्त- Temay | सनये awa "नः" gare धनानाम्‌ किष ; “WAR? “aga”? ‘ata संयोगे यदेतत्‌ "ऊधः" इव सामपूणम्‌ अरधिष- वणचमे ata, श्रय वा योगसमनन्धाच्छकटं योगः; तद्धि aw युज्यते, तेनाधिषवणचमेणः ऊधसेाऽधस्तादवख्धितेनेति मन्यमान भाव्यकारोा | ब्रवौति,-“यान्ञे अक्टे- दति वा”; यदेतर्‌ यत्न शकट ्याधस्तादुपरि वाभिषवणचमे, एतद्‌ ‘fa व्यध्वम्‌' विभु श्चध्वम्‌ ग्रहचमसम्थात््रादिषु यो निषेकः समस्य, uae विमेचनम्‌ अरधिषवश्वमाधषः ; तद्धि साम उस्सिच्यमाने खयोभवति, यथेतरद्गो- eu दुष्यमानायां गवि एव विज उत्का श्रधुना ता एव सोम- afar wir ब्रवीति, यूय मपि हे श्राप! एभिः लिगि उस्डिच्यमानाः श्रष्टीतरौः" “gare” “तनः “ara” “श्रस्यम्‌'

* माज खष्डसमाकनिः रू-च-पुखकयोः। + र्भा. ४४९ ye uve | { We Yoo, 0, ९९, ९। § “aren Tw कितवे ब्रह्मणः? -दत्यादि रे wre २,९, १५। || “निदक्रकार।*-- दूति grata: qa: | ८)

५१, fray | [ gauze ,

एव मच '-ग्ष्टेनाथेख्य सुतरां प्रकटता भवतौति भाव्कारेण “प्र-गब्दोऽध्याइतः, “श्रष्वरम्‌?-- इत्यनेन सम्बन्धाद्धिगेतेगत्यर्थत मुपपद्यते * 1

“श्रहिणत""- एति “ara” sera इति केचित्‌

“श्रकटम्‌** ^ अदितं भवतिः'। यदा श्रनद्धान्‌ युक्तः, भरत्‌ gafa, aaa fafa “wanaaaifa ar’; तद्धि भाराक्रान्तं wreneafa “many anaifa ar’; तद्धि wen गच्छति

“चेष्कुयमाणः (9, “qtagad(eO—gfa †, एते श्रनवगते। धाठरेवाय मप्रतौतः। एते स॒बन्ततिङन्ते ; तदनयोः पूवं “सबन्तम्‌,, emt तिङाम्‌ दानां aia “चोष्कूयमाण इन्र भरि वामम्‌ दति { निगम grat ˆ ददद" ति fe gaa निवे- चमं चकार भाग्यकारः Ney वनलमानस्यान्तरस्य ““चो- कृयते fan इद्धा ममग्यान्‌^-टति 2 निगम great "चोष्कूयते —we wee “acufa’—cfa निवैचम are arene खभयवापि त॒ चोष्वुयति-गन्दख्चकरोतट सेन द्रष्टव्यः

सोष्कयमाण दृ afc वामम्‌? शृतस्य भरेषः,-- “नि waar दषुधौर सक ° ---* दधि nage ll, हिरण्णुप्याव॑म्‌ Bet ° grere मेतत्‌ समग्र मेव ward सायकेनाडतं सौरतच्च तथेव Cog we Sena निदक्डकाया खडतम्‌?"-- दति | + र्भार ४४९ Yo Bye { We do 8, ९,३। § we Yo v, 0, २९२, ९।

| “fa vada coat om समया मा खलति aa safe) चोष्क्यमाव UF wfc वामं मा परिभ रखादधि प्रष्डः॥*- दूति we Peo ९,२.९१, २।

इच eqs OB) मगमं काणम्‌ | RRL

विषटुप्‌। उद्धिदखभिदे मिष्केवद्धे wea rem न्यबधरात्‌ ‘ead BUT, WE TUG, ‘Tada’ BAI CH) एवे तणान्‌ Say वध्वा, गोधाङ्कलिजवाम्‌ भला “ख मरौ गा श्रजति दृषुभिर्मेषाम्‌ fara ‘aq sofa’ समस्ताः कस्िपति, "गाः" श्रः, श्रयः, bar: दन्दः कसे समजति ? Ge वष्टि। यस्य रान्नो TH कटुम्बिने वा चेच कामयते, Gaz, aaa चिपति, वक्षे nated wad: | एवं Ga मागः TUR HTP; यतः NTI SHUTS: | हे TE! चोष्कुयमाणस्लं ददत्‌ उदकं जनेभ्यः गरि' “aE” ‘ara “वननोयं'” शल -सम्यत्करम्‌, WO यत्‌ कुरुष्व "मा परिः ष्ठः" मा वखिकन्नौलाऽस्माम्‌ प्रति मन्दोरकदाता हपणो ai fate? vegies: उश्नतचिक्लः, war प्रति बहदकदाता भव॥ एव aa "मा of@baht वामम्‌'-रृत्येभिः पदैः सम्बन्धात्‌ “चोष्कुय- माणः" त्यस्य ““ददत्‌”-दन्येव मये उपपद्यते

एव मत्र दानाः "चोष्कुयतिः,, “एधमान दिलभयसय "इत्यम WRIA: | TA शेषः,-““्रठे वोर --° दग्रा Haram” ° | wie बारस्यत्यस्येय माषम्‌ freq Set "दमायम्‌^-इत्येकं पदम्‌ ‘see Te’ wate महं AT भिन्रम्‌, ‘SHY उदुखवञम्‌ श्राररा्यौ दिरण्यासः, wet WTA; “mad wate wa मन्यन्ते" - ofa हि वच्छति श्रथवा ‘od wa प्रति उद्ूकवसम्‌ "दमायन्‌' दमयितार्‌ं चणम्‌ कथज्यनर श्रोषम्‌ ? Tf, aa

° “peace yquy दमायत्रम्य मन्य मतिनेगौोयमानः। रभम नृदिलभयश्य राज। चेष्यते विषु cx मनष्याम्‌ ॥*- दूति we Ge ४,०, ee, ६।

Rad निश्क्तम्‌ | [पृवंघदकम्‌ ,

wey’ देवताविश्चेषम्‌, शश्रतिनेनो यमानः, श्रतिश्रयेन खाभौषेम कामेन FEIN “MAW सुतात्‌ कामान्‌ प्रास्य "-दृत्येवं पुमःपुनः नयमानः। किम्पुनलष्ठक वोर asian? इति,-"एषमानदिर्‌' एधमानान्‌'" दोष्यमानानपि “दहि” “श्रसुन्वतः,, सामाभिषव -मङुवाणान्‌ श्रयज्वग इत्यथैः श्रत एवं प्रपरौत्येन “सुन्वतेाऽभ्याद- पाति" दत्यध्याजहार भाव्यकारः। Uefa? “सुरतस्य लेके-दति साम्याद्‌ गम्यते। ये हि सुगते, दृष्टा इृद्रख्; Wa सुन्वन्ति, ater; इत्यभिप्रायः। उभयस्य राजाः “दिव्य ५” waar “पार्थिवस्य a” मातुषस्य fag; “चोष्वूयते' व्यदश्यति,-- यो "विशः एधमानानसुन्वत इतरां सुन्वतः .मनुथान्‌ अभ्यादसषाति सुरतस्य लेके इति एव मच “एधमान दिर्‌ः-दव्यनेन सम्बन्धात्‌ “चोष्कुयतिः, बुदखनाथः""-दति उपपद्यते -सुमत्‌(</'?-ट्ति *, अननवगतम्‌। ““खयम?- दूत्य गमः | “उप॒ प्रागात्‌ सुमग्म°---° चमा gaa’ 1 दीर्धतमष aga | दिष्टप्‌। अरश्वद्वताका श्रश्वमेघेऽश्रस्तोमोयेन षोडश्ा- तयो gan, avd विनियुक्ता “उप प्रागात्‌" “sq ita” “at? प्रकषण एतु ‘gaq’ “खयम्‌” एव ‘aq यद्नेन “aga” age “cia? “मेः मम aay श्रपि “maf” (श्रनेकविधान्‌ सङल्यविकल्यान्‌ dat, त्तद मेव ; ae मनसा)

र्भा ४४९ ve LR vo | “suman खुमोऽषायि मन॑ दवाना मामा उप Dads: | waa’ fas ऋषयो wafer Carat qe चमा सुगन्ध म्‌॥- दूति We Go va, & eI { AAT पाठः क-पुखके |

Cue sute स्र] नेगम काण्डम्‌ | RRS

enaatfaer: | किम्पृनसत्‌ ? ae arate मर्थजातम्‌। किष; श्रय मपि ‘atave:’ कान्तष्ष्ठोऽश्वः “उपप्रागात्‌” उपगच्छतु "देवा- माम्‌? ‘amt’ यम्‌ एतं वयं देवानां ‘qe’ पोषणाय "चमः कतवन्तः | “सुबन्धेम्‌' शोभनयुपबन्धनम्‌। त॒मेत॒सुपगच्छन्तम्‌ “श्रनुमदन्ति, श्रनुमन्यन्ताम्‌ "विप्राः woe’ मेधाविभगः एव मच भम्दसारूणादयापपत्तेश्च “खसुमत्‌'-द्व्यस्य “खयम्‌ः-एत्येष विप- रिणाम उपपद्यते : “श्राश्मेधिकाऽयं मन्तः" दति प्रकरणोपप्रदभेनायं ATE; मन्त्रायै नि्रैवता प्रकरण मणुपेकितय भिति, atta प्रदश्ितं भवति ` ““दि विष्िषु(<८)*--एति *, श्रमवगतम्‌ “दिव एषणेषु” दत्यवगमः। याभिः क्रियाभिदिव भिच्छन्ति गन्तं ता दिविष्टयः ॥७॥

स्थूरं राधः शतां कुरुङ्गस्य दिविष्टिषु we

समाचितमा चो महान्‌ भवत्यशुरतु स्थवीयांस मुपत्गौा

लुप्तनामकरणोा | यथा सम्पति कुरुङ्गो राजा बभूव He-

गमनादा कुलगमनादा कुरूः छन्ततेः At भित्यप्यस्व

भवति कुलं कुष्णाते विकुषितं भवति दृते व्याख्यातो

जिन्वतिः प्रींतिकम्मा भूमिं aster जिन्वन्ति . fea’ farang इत्यपि निगमो भवंति (२२) इति चष्ठाध्यायस्य चतुथः पादः ६. ४.

© ware use ge we “मपसगेणपो नामकरदा"? क, ख, a | 3

Ars निरक्तम्‌ | [पृवषट्‌कम्‌,

“at राधः e—e adnate” ° ेधातिथेराषम्‌ | बृहतो दान मनया प्र््यते। ‘ae ee महत्‌, “Te धनम्‌, ‘Mary बहश्चसयकम्‌ | Saye’ we, ‘are’ मतः, “सुभ- Te’ share "दिविष्टिषु" क्रियासु दक्तिणाग्डतं सर्वेष्वपि "ठवषु" मनुष्येषु याः रातयः दत्तयः, तासु च; एतदेव we faad वयम्‌ ‘aerate’ मन्यामह इत्ययेः॥ एव ae ‘fefafe’-wea ‘fren’ उच्यते ; arfafe द्युलोक frerat गन्तम्‌

“ee, समाभितमाचो महान्‌ भवति; समस्ता fe तच माचा श्राभ्चिता भवन्ति | खूलप्रसङ्गेनेव OM निरच्यते,-“व्यवौ- ute aq” चो ava, सः ““श्रणः”--दव्युच्यते | अन्ित्ययम्‌ “उप- खगे: “लप्तनामकरणः” येम प्रत्ययेन न्याय्य Raq स्यात्‌, साऽ शप्तो श्रूयत दृत्यथः कथं लपतः? इति,-“यथा सम्प्रति" - दति अस्िन्नामकरणलेापेन प्रयोगसिद्धिः; साम्परतम्‌-इति हि न्यायम्‌, तथापि ayaa मपि वत्तेमानकाशविषयप्रयोगः प्रसिधः; एवमिहाप्यनुशब्दे कुङ्क्गो नाम राजा बन्धव" “Ears” कुरङ्गः; हि कुरून्‌ प्रति quan गते जेतुं वा †। “कुल्लगम- मादा”; wageifa हि नित्य मेव धाति विजेहुम्‌। “ae हन्ततेः;'' हि aga न्तत { “Reha” एतत्‌ “ala”,

‘ete दिषििषु cere gute रुातिष्‌। aaa raf +” दति we You, ©, RR, ४।

“werget भवाय मध्यमायां प्रतिष्ठायां fe a aq Reversal Tarr Tae Lo ATe ER, RI

{ “FCM” ure ave Ge एखन Ue We (x)!

yore रर] नेगम काण्डम्‌ | REE

“sa” एव waa: “भवति, ° “ae gout: (कधा ०प०)”? ; afg “fagfanq” दव “भवतिः”, विष्तौणेल्वात्‌ ““दूतः(<८)--दति , अनवगतम्‌ “जुतः'?--इति न्याय्यम्‌ “saqaat दवतेवा"--इति व्याख्यातम्‌ { 7 “forafa. (2, “प्रोतिकमा'"--दति श्र्यैवचनम्‌, श्रप्रतौ- तायेलात्‌ “समाम मेतत्‌” इग्यच उपरिष्टार्‌ व्याख्यास्यामो इारध्ोऽध्याये | (९२९) |

दति निर्क्रटन्तौ एकादगाध्यायस्य (षष्ठाध्यायस्य) चतुथः पादः ६,४॥ पञ्चमः az i WAASATAT महान भवत्यभ्यमितौो AT | महा अ- मंज वृजने विरपशीत्य॒पि निगमो भव॑ति स्तवे reg wie: | स्तूयते वज्युचा समेाऽनश्राति मनन्लोल- दान adie पापक मज्रिमंदिषमम्‌। अन॑रातिं वसुदा मुप्॑तुहीद्छपि निगमो भवत्यनवीप्रतयुत-

# que २८० To रेख Le We (0) |

¶† प्भा० uve Te Re de |

{ To ११० iyo; Yeo rye

§ Rute ४५० ge ude |

l] Xe Bre 0, vu, U1 क-परके “arena” —xfa पाठो ara t “afaa&vana? w ea) “Tea—” Treg se |

९8४० निक्तम्‌ | [ पृवेषट्कम्‌,

ऽन्य॒सिन्‌ | चन वार उषम मन्द्रजिदहध' दस्यति वया नव्यं मक; अनव मप्रत्यृत मन्यस्िन्‌ Tal मन्दर fay मन्दनजिच्ं मेदनजिनच्न fafa वा इहस्यतिं बहं य* नव्य मकेरच्ैनीयैः स्तामैरसामि सामिप्रतिषिनन सामि BA) असाम्याज बिभृथा सुदानवः अमु समाप्तं बलं विभृता कल्याणदानाः (२३)

“saa. "+ - इति { , अनवगतम्‌। “श्रमाचः'--इति श्ट खमाधिः। “महान्‌ भवति?--दृव्ययवचनम्‌; यो fe महान्‌ भति, AQ माचा; प्रमातु शक्यन्ते, श्रतोऽसावमच द्रयुच्यते। “ma

ष्टुसि Y ] मितो a” am, aafafefen केन चित्‌। “मदा wast 16 |

टजने ° ---° यश्च॒ मम॑न्दत्‌” ?। विश्रामिचस्धाषम्‌ faq शक्रो एष्यस्य चतु्थपञ्चमयोरह्हो मध्यन्दिने सवने अच्छावाकस्य भस्त सम्पातं , नाम aml, तत्रेयं विनियुक्ता (महान्‌ प्रभा- वतः। भ्रमः" च॒ श्रपरिमाणमाचः, श्रः जनेः aga ‘fay विरावणणोलः, ‘gaa दरणम्‌ अ्भ्यदयतम्‌, ‘wz’ अचबलम्‌ 'पत्यते' पातयते। शण्लोजः' धर्षयिट यद राजः,

` = easel क,ख, ग। |

“विष्टय'"्क, ख, ग।

T WHTe aye go (yo -

‘aut wat जने frcumed भवः पत्यते weeteh art fay श्थिको ta यत्‌ सोमासो way WHR ॥"-- दति सं०२,९, १९, ४।

|| एषटपाभिञ्जव षडयो माध्यन्दिनि सवनेऽच्छायाक wore freafiferare-

WERE खाने Nhe wae wie, तजोपोमावनै मेतत्‌ प्रथनं ख्‌ "a1 षि. नच, “CT मू ष्ज्च्डिन्ति ai दूति खा००,६।

१७० yato wwe] ANA RUA | २४१

बलम्‌, तत्‌ "पत्यते" | किश्च; "नाह faare “Aa? याप्नोति “प्रथिवी, नापि द्यौः, उपमानलेन | कदा पुनरेवं भवति ? "यत्‌" यद्‌ .सामाभः' समाः ‘ean’ इन्द्रम्‌ शश्रमन्दन्‌' श्रतप॑यन्नित्ययथः॥ एव मच “श्रवः, "पत्यते, “ख्जनेः--टत्यनेन सम्बन्धात्‌ “श्रमाः = महान्‌,” --दत्यपपद्यते

“चछ सौोषमः(\०९)१- दति *, श्रनवगतम्‌। कारोाऽजानवगतः | “चा समः" --दत्यवगमः। “TE शरुत इन्द्रा ---° BR ्रमाम्या"”1। विमद स्याम्‌ srarcafe: ¡। ahi पुनरेष्रो वा प्राजापत्यो वा वासृक्रस्य वा ayaa! wa weasels निष्कैवस्ये gar ‘ga’? विख्यातः सवासु fea, ‘xe एतस्िन्‌ कर्मणि, “ae “स्तवे विजेतुं खयतेऽसमाभिः ‘agi किंल्ञकणः? “खचोषमः' “wer समः"? यावतैवार्थेन युक्ोचाय्ेते खक्‌ स्तत्यभिप्रायेण, तावानेवासौ भव- azn 9 faa; मित्रो wv मिन इव, gar fe afgarat fast जनेषु am: कुयात्‌, एवं eer "यशः" “oT चक्र आभिमुख्येन सवासु दि करोाति। fama caam करोति ? “श्रसामि' श्रसमान्न मनन्त fae) एवङ्गुण्युकर दशः, माऽसा- भिरिंह सयते एव मच स्त॒तिषम्बन्धात्‌ श्ब्दसारूप्याच “"चछचोषमः = चा समः -दत्युपपद्यत

# शभा ४४० Jo We | "दूह श्रत न्द्रा GHG रव Bae wa | मित्रोनयो जनेष्वा aa सून्या - र्ति we Yo ०,०,९,९। { ““परलादूबृरतो' § “कचोषमः। “यद्याव THA (रार Ge ate खार 2,4, १),-स्त्यादि- कया सत्या समानगख TAS ।-इति सार wre | 31

२४२ निरक्तम्‌ | [पूवेषटकम्‌)

“श्रनशेरातिम्‌(**९)०१- दृति * अनवगतम्‌। “रन स्रोलदानम्‌'” ~ इव्यवगमः। विगरदप्रसक्रस्याप्नोखग्रष्दस्यायं are,—“saate पाप- कम्‌"-टति। aerate रातिदानम्‌, सोऽनर्भरातिः। we- सारूष्यप्रसक्र - माद, “श्रन्नोल म्‌ = शअ्रञ्चिमट्‌ विषमम्‌" तल्घारूया- पपत्तितोऽन्नोल मुच्यते ty “अन्राति---° चोदयन्‌" {1 “^च्रायन्त दव खय्य॑म्‌'"- इत्यस्या अ्रनन्तरेव 2 नेमस्याषम्‌॥ Beh सततौ हे ata! “wna श्रपापरानम्‌ ¶, एनम्‌ दम्‌ "वसद" वसु-दातारम्‌, ‘sy उपगम्योपगम्य चेतखा ‘ate’ | किङ्कारणम्‌? wang भद्राः भन्दनौयाः शरस्य ‘TAA’ दन्तयः | किञ्च; ‘ay “we कामम्‌ ' श्रभिप्रायं “विधतः दधतः, कामिनां कामान्‌ ‘a रोषति" पोड़यति "मनः, ‘exe’ आत्मनः '्दानाय' ‘ager भवति, एवं Gat याचते एव मच शन्दसाङूया- दथाविरोधाचच “अरनररातिम्‌ = अननद्रीलदानम्‌"-दरतयुपपदयते

““श्रनवा(९०५)२--दटूति**, अननवगतम्‌। --श्रप्रत्युतः"- रत्यवगमः। थः “safer? afar भवति, खप्रधान एव, सः श्रनवा"-

* ute ४६४० ge UR Ge |

“awe fra qreafaarce:”—xfa que के० ९, ८, ९९। “wate faq = ware मपि दति ate भान (we We u, ¢, ९४, १)।

“अनमेरातिं वसद्‌ मुप are war Ee रातयः | घा चस काम" विधवे | रेपषति मने दानाय चोदयन्‌ ॥**-- दूति wo सं०९,९, २, ४।

§ Yo १०९ साम्‌ FEAT!

|| “farerea”?

T “खन रातिम्‌ = खपापकदानम्‌, अपापिषखय दातारभित्यथः,"-- साग्भाम।

© १भा० ४६५० Te १७ Yeo |

ईवअ० ५पा० खर] नेगम काण्डम्‌ | २७९

yaa “gagra ठषभं ° नवमानस्य मन्ताः*। अगस्य स्याषेम्‌ बारृस्सत्था faa & स्लोतः | wade’ खेन महिका un, श्रप्रतिगतं कञ्चिदन्यै॑प्रत्यधो नतेन †, ‘ae वषितारम्‌, ‘axfagey “azafasq” $ watt fe तद्य अनाना स्तन faqete: ; “fast, घोषः"-इति fe वाङ्कामसु पठितम्‌ { ‘eee स्यति" ‘aga’ | ‘aal’ स्तुत्यम्‌, ‘aa’ aes farad हह स्यतिम्‌ ? tfa,— गाथान्यः, gfaarcarer: ‘gar’, ‘gee’ सुदोभिमन्तः, ae’ aq ‘ar’ श्राभिमुख्यन faar ‘suf arty, ‘aa’ ‘aqarre’ wat fe मामः aw, श्रहन्यहमि श्रनया सुत्या स्त्यस्य भवति, तेनासौ नवमानः, (तस्य ; श्रथ वा “नवमानस्य १} प्रणासतः FAW | श्रथ वाय मन्या aay: स्यात्‌, शतिहासिक- पकेण,- "मनर जिद" watt हि fast, तख सुतिः ‘areal एव पौरोहित्येन गाथाः स्ठतौनेयति प्रापयति देवान्‌ प्रति एव “सुरो चनः” | तस्येव (नवमानस्य स्तुवतो “रेवा stealer’, मत्ताः" “रस्यति देवानां प्रोदितः” दति विज्ञायते तस्मादेव AVE एव मन्त्ाथाविरोधात्‌ “saa श्रप्त्यु- तः"-दत्यपपद्यते॥ Sartre aa aging बुस्यति" way नव्य मृकेः। गाथान्यः rey qe car qigela मवमानस्य मनाः ॥"-र्ति We Pe vu, te, ९६।

+ “quar = ्वगन्तारं aya नित्यथः-द्ति ye are |

J र्भा० ०४ Vo Uqo ULGe (२९),(१०)।

§ WIG: पाठः क-पसख्के |

|| “सद छेत षदा - शत्या देतरोयके Aza (८,४,६) | तदुत्पत्तिविवरश्ख HAA तद्प्रितेति WS (२,९२.९

२98 fama | [पुवेषटकम्‌,

शश्रसाभि (*५)- दति °, श्रनवगतम्‌। सामोति समन्त मुच्यते, तस्य प्रतिषेधः श्रषामि “च्रषाम्योजा- जत दिषम्‌” †। कस्याम्‌ खतो हृतौ मारुतौ हे (सुदानवः “RENT.” मरुतः! युयम्‌ “श्रसाभि' श्रपरिषमाप्तम्‌ अनन्तम्‌, ‘stay “बलम्‌”, ‘way श्रभिरदधिरूपञ्च बलम्‌ ‘fry धारयथ | श्रषामिधूतयः' श्रषमात्नगतयः। wat धूतिः; “धवति, धावति"- दति गतिकमेसु पठितम्‌ एतत्‌ कुरुष्वम्‌। एवः ‘wager’ water, तसमै हे मरतः ! ‘ala प्रृष्टक्रोधाय दृषुम्‌ xa ‘far सञ्लाकदग्यतां “जत, ल्पत एव मच ““च्रषामि = असुखमाप्तम्‌ऽ-एत्यपपश्यते, श्रथा विरोधात्‌ (२३)

मात्वा AHA गल्दया सदा याचन्रहङ्किरा। af’ मृगं सवनेषु क्रुध ईशान्‌" याचिषत्‌। मा चक्रं ci! समस्य areata सदा याचन्नहं गिरा गीत्या स्तुत्या aft मिव ad सवनेष wad इशानं याचिष्यत इति (weer धमनयो भवन्ति गलन मासु धीयते+*)। wT त्वा विशन्निन्द॑व

* ute ४५१९० ude |

Waren विष्ट्या पदाम्‌ वोऽस(मिषतयः nat wifey aca: परिम म्यव रूष जत्‌ द्विषम्‌ ॥''- दूति we We १, ९२, teu

T श्भा ररेष्ड° (७४), (Ov) te |

§ “खानि = qaqa” क।

|| “ar? a, ख, ग। ` “चाचिष्यतौतिः"क, ख, ग।

मभ मष पाठः G-G-A-THT |

द° ५पा० RBe] नेगमं काण्डम्‌ | २७१

श्रा गल्दा धमनीनाम्‌। नानाविभक्तीत्येते भवत आगलना* धमनोना मित्यचा्थः। (R81)

““गल्दया(१०९)'- दति श्रमव गतम्‌ गलितधानो स्यात्‌, गलितं fe तस्यां Waa i “धमनिभेवति"--दृत्यभिघेयवचनम्‌, नाङीत्यथेः। मावा सम॑स्य O——0 या faa? 1 मेधातियेराषम्‌। Vets SUN! महाव्रते इहतोषदखे विनियुक्रा हे cx! ‘ar ae ar मा क्रोधयेयम्‌ “ay समस्य गल्दया, “गानेन? yaaa, पूरणेन tae ‘ae fara मपि ‘area’ ‘fac’ Man स्तुत्या ‘waaay’ यज्ञेषु कथञ्च gaa चकरधम्‌? cf अरिम्‌ न, ‘ana’ द्व भ्रमणएनोखा aie) कः पुनरसौ? व्याघ्रो वा सिंहा वा; षरि waumar fafa प्ररगालादौन्‌। तेनेश उपमौोयते। यथा टगालादयो लाङ्गुललालनादिनेपचारेणोपपं- भाणः तंन क्रोधयन्तयेव ad सेमसम्परदानपूविकया स्हत्योपसर्ष- माणो मा वचृक्गधं भवन्त fafa | su मतम्‌›-यदि भम क्रोधाद्‌ fafa, arava याचेया इति। “क tu नम याचिषत्‌? ar fe नाम साऽल्ि लके, ईशान मोश्वरं “afaaa’? qareat gf: सिध्यति एव मचेन्रस्य या ‘near धमनिः, यया सेम

* ("भवता wera”? &, ख, ग।

waa agit qeaunfa: ङ-च-पुरतङ्याः, रुपप्रतोकपाटघकरतञ। T र्भा० ४५६५० १४ Te

§ we सं० ४,०, १९; ५।

Red निरक्तम्‌। [पूवेषदकम्‌ ,

श्रागब्यते सा, तेनेव श्रागलनेन उपलच्छमाणा “गस्दा”-इत्ययते; ga मथविरघोऽस्ि। .

"गर्दा धमनिभवति"--इत्यस्य * भाव्यकारवाक्यस्य मन्तं ATA धमनिलिङ्ग विषिष्टं मसतौप्यता विश्िष्टलिङ्ग मन्द्‌ दारणं मवौति,-“श्रा ला fanferdar—efa 1। डे दद्र! श्रा विशन्तु" ‘ar लाम्‌ wea’ सामाः। see पुनराविशन्त ला भिन्दवः ? शश्राग्दा धमनौनाम्‌› याः “Marea” waa, याभिरलुप्रविष्टाः सन्तो नव मड मुत्पादयन्ति; श्रघावादडिन्यो याः; ताभिराविशन्तु। शेषो amity एव fae "घमनी'-शन्दसद्- योगो “गष्टदा?-शब्द इति sear “श्रागष्दा = धमनिः" दति उपपद्यते

“नानाविभक्रत्येते” पदे “aaa —‘aezen’, गद्दा^ एति ; तु नाना्यं। श्राह, काऽभिप्रायः? दति उच्यते, पूरवखिन्‌ मन्ते यद्यपि धमनिश्नब्दो नास्ति, तथापि fina गश्दा-अ्ब्देन धमनिरेवेच्यते। तच “गर्दा धमनौनाम्‌"- दत्येतदेव शापक मित्यभिप्रायः “aezar—zfa दतौयान्तम्‌, ‘aver’ —zfa प्रथमाबडवचनान्तम्‌ | एतदनयोनोानाविभक्रिवम्‌ (२४)

पापासतौ ANAS नारायासो जब्वहवः |

* aqua धमगये। भवन्ति” - इत्येव मदुद्टमृलपजकपाठलखर्ूपः | सा० Go Wo Go ९, ९, ९, ४; Te Alo =, ९,२,९९ { Aare ९४ vo ११७० (४४, टौकाया aay Hq | § Yo २४४ ze ६९ tot || “गलदवः'” क,ख, म।

शय ५पा० rae] - नेगम काण्डम्‌ २९७

पापा AVA ANA ज्वलनेन हीना शस्य- समासु AWW मध्य यनं तपो दानक्मेत्युषिर वे चद- कुरा भास्करा भयङ्करा भासमाने वतोति वा (RY)

““जल्ह्रः(**०),--इति * , श्रनवगतम्‌। ““ज्वलनरहोनाः'--दत्य- ba | वगमः। “a पापाषा०

° कणवामहेः "1 भनौ नान प्रगायपुचः, तस्येय माषम्‌ Veli Veal तस्या मेव earmat विनियुक्ता "नः वयं पापासः" “पापाः” इत्येवं "मनामहे" “aay” | किं दारणम्‌? श्रस्यसमाखपापवे हेतुः, श्रह्मचयम्‌, WHAT, तपः, दानकर्म" श्रय मतम्‌,- एतैरपि युक्रो यो fara, पाप एवेति? aaa. किङ्कारणम्‌? aware’ वय मधनाः। श्रयापि स्याद्ध नवत्वेऽपि सति श्रनाहिताग्मित्वात्‌ ज्यलनदहोनत्वेन waar मितिः? तदपि a! किङ्कारणम्‌? "न जन्ह्वः' वयं ““ल्वलनरौनाः, किन्तर्हि? श्राहिताग्नयो वयम्‌ | तदेतदष्ययनाद्यपा पत्वहेतुग्डतं सवं मस्माखस्ि। किञ्च; 'यदिन्‌चिन्द्र' यस्माद्‌ वयम्‌ ox ‘eae’ वषितारम्‌, एत- faa यज्ञकर्मणि सखायं" awiae सामपानस्य स्यापयितरम्‌, श्रमोभिः सह मया ta: पोत इत्येवं ककारं ‘aways तस्मात्‌ वयं पापाः, मापि वय मरायासः, नापि जल्हवः,- waa मात्मानं मन्यामहे; fe पापाना मधनाना मनाहिताप्नोनां * १भा० ४५९ Go ९८ Go |

“J ~ 1 1 fi e | e | “WTI मनामह नारायासो जब्हवः। यदि म्न्विष्ट्र वषु" सचा | e 1 ° खते षष्ायं स्खवामरे॥- इति we Ge ९, ४, २०, ९।

२४८ निरक्तम्‌। [पुवषटकम्‌ ;

दनद्रः सखा भवतोव्यभिप्रायः॥ एव भच “nega: = AAV AT” अब्दसाङूप्यादथाविरधाच

“'अक्ुरः(९०८)०-- इति *, श्रनवगतम्‌ “भास्करः, भयदूरः, भाखहू वणा वा--दति शब्दसमाधयः (२५)॥

यवं ठकशाशिना वपन्तेष दहन्ता मर्‌षायदखा। afa दस्यं बकुरोणा धमन्तोर ज्योतिश्चक्थुरार्याय (यव भिव ठकेणाश्चिनौ निवपन्तो1) ear लाङ्गलं भवति विकत्तनाल्लाङ्गलं लङ्ग तेली ङ्गलवदा ! लाङ्गलं लगतेहंङ्गतेखंम्बतेवीन्न' THAT मनुष्याय द्नीया- वभिधमन्तो दस्युः बकुरोण ज्योतिषा sea वायं ईश्चरपचो |! येकनाटाः खलु कुसीदिन भवन्ति दिगु- कारिणे वा दविगुणदायिना वा दिगुणं कामयन्त इति व॑ | इन्द्रो विश्वान्‌ बेकनाटां अदंश उत ae पणोश्भि। इन्द्रौ यः सवान्‌ बेकनारानदशः gues. a इमान्यद्ानि पश्यन्ति पराणीति वाभि- भवति कर्मणा पणी ** वणिजः (२६)।

* gute ४५२४० दपं |

नैष पाठः क. ख-ग-पुरकेषु |

{ “लगवे°-- "क, ख, ग।

§ ““ब्धोतिषोक,ख,म।

| “eae: Tar”? क,ख ग।

q “ce: waa’ Ts, ख, ग। te ""कमेष्छापणिख"क।

१० ५पा० Bae] नेगम MwA | १९९

“aq gaurfaare—eqrara”’ *। wala HTS आश्चिनो। fea प्रातरलुवाकाश्चिनयोः शस्यते ‘aa’ यवादि धान्यं ‘eae’ लाङ्गलेन 1। ‘agar “वपन्त” युवाम्‌ श्रना" हे “‘nfaaty amar, aad महानुये सति asia लाङ्गल- कमेणः फलमम्पर्‌ भवतीत्यतः तावेवाश्धिनौ वपन्ता aed "षम्‌? “wa” "दुहन्ता" “geal” प्रपूरयन्ता ‘Agata’ “मरुव्याय'” "दस" aot दासयितारै दंसयितारा वा, कमणां छव्यादौनां कारयितारा वा वषो्यनुग्रेण, एतावेतेविधं कमे कार- यन्तौ कुर्वाणे वा। “श्रभिदस्यम्‌' दाखयितार मनाकालं दुर्भि “amr धमन्तो fated, wel जगदभिपु्न्तौ युवाम्‌ केन पुनरभिधमन्ता; इति,ः-"बक्ुरेण जलसम्‌ हेन, ख्यो तिःसमूचेन च; मध्यग्याने युद कसमृहन, चुम्धाने ज्योतिषा, सस्य मनुग्हाति; तते fig wad जगच yefai किञ्च ; यवा सेव “उरुज्योतिः चक्रथुः" विस्तीणे मविकलं qa: चक्रथुः “श्रायाय' देर पुत्राय, ware; fe ganar मन्धौग्धेतः चनुश्नान्‌ कत इत्यभिप्रायः एव मच ज्योतिःसमुद उदकसमुदश्च “बकुर"-ण्म्देनाच्यते, अन्दाया- विराधात्‌। “ज्योतिषा वादकेन वा"-दति भाग्यपाटः ?॥

“"नेकनारान्‌(*०<)-- ति ॥, श्रनवगतम्‌ ““दिुणकारिणे ar”, ° दिगुणदायिनेा ar”, ‘faquarfaat वा-दति भन्दस्षमाघयः।

* We सं° ९, ८, to, ९। “Sem? To ९९--९०५ Te | यन are Go १९, OF | } <Q अश्विनो | लतमरहामुपहे' रवश्च vera पाठ रव स॒म्यमिति भावः| || wate ४५९ ४* ote | ५१

२५० निखक्षम्‌। [ पवषदकम्‌,

"न्दरो विश्वान्‌----° रलतम” * प्रागाथः कलनाम, तस्यारषम्‌ न्रौ हरतो मदात्रते बादस्यत्यां चाशोत्थां तिनियक्रा। sx: “विश्वान “सवान्‌ "नेकनाटान्‌' “geifea:” ठद्धिजौवनान sega. यैरिदेव जन्मनि gar दृष्टो पुनद्रच्छन्तोत्यथः | ्रथवा “a इमानि एव “श्रहानि पश्यन्ति" विषयभोग प्रधानाः, नासि- कतया ; “नः” पारलो किकेष्वदःस ;-श्रस्य दुष्कृतस्य कमणः काऽपि फलपरिणामा भविष्यतीत्येवं भावि पम्यन्ति; तानभिभवति1। (रला? स्वेन “कमणा” डत पणौन्‌' श्रपि पणौन्‌ “afuafar भवति; दि fanga कमणा व्यवद््रन्ति। याभिरेतत्‌ कमे करोति, याभिः पुमरेवभादौन्‌ दुष्कलक्रारिणो (fal) भवति, “कत्‌ wel? ता मर्यः सेनाः? श्रस्य' Tee ‘aver’ श्रनाधरषिं- तपूवाः परै, ‘afagty’ ary महत्यः “कत्‌ Tan’ चत्र; TX? यद्य “श्रसतृतम्‌' WIE बलम्‌, यनेतान्‌ ₹न्तोति एव मच “बे कनाराः = eae”, श्रथा विरेधादिल्युपपद्यते (९६)

© “egy विशाम्‌ बकना अरम सत क्रला TA CH कद्‌, मरोर qq तविषीः कद्‌ एजन्नो खखुतम्‌॥ दति ae de ९, ४,४९,५। राद थोः पाठग्यतिक्रमख cad |

{ अत रव कुसौदजौविनां मने निन्दा wat,— Geng ay पिक।रेव विप्रान प्एगवदाचरेत्‌”-दति ८, १०९।

{ नतद tad क-पस्के।

§ ““बेकनाडान्‌;-- ata gaat दडिजौयिनेा बाड षिका wea, कर्थं शद्‌ त्पत्तिः ? वे-दत्यपभंशो दिगब्दाय। एकं STE मशिकाय प्रयच्छन्‌ Tt मद [तव्य भित्यभिनयन cenafan, तते दिषब्देमकण्ब्देन नाग्यनौति बेकनाग ari? दति ate Ute |

द््यर्५पा° 8ख °] नेगमं MIWA | Rue

start aft धेतनादित्यासः पुरा weary कड स्थ हवनश्रुतः जीवते नेाऽभिधावतादित्याः पुरा Waa aT FW चानश्रुत इति मत्स्यानां जाल माप- ATA मेतदार्ष वेदयन्ते मत्स्या मधा उदके स्यन्दन्ते मादयन्तेऽन्योन्यं Vaasa वा जालं जलचर भवति जलेभवं वा sand वां हुरेऽदस्वानं हरण मित्यप्यस्य भवति। कण्वन्न हृ रणाद्‌ वित्युपि निगमो भवति सत्त AAS: कवयस्ततक्षस्तासा मेका मिदभ्यद्रा गात्‌। सत्त मयादा; कवयश्वकरस्तासा मेका मप्यधिगच्छर्नह- स्वान्‌ भवति स्तेयं तल्पाराइणं* ब्रह्महत्यां भूणदत्यां सुरापानं दुष्कृतस्य wary: पनः पनः? सेवां पातके zara मिति बत इति निपातः खेद्‌ानुकम्पयेः ॥४८२७)

“श्रभिधेतन(१९०)०-- इति ll, श्रनवगतम्‌। “श्रभिधावत'- दत्यवगमः। “saa eee” Tom aa भाय कारेकेवाचोपप्रदभरनार्थम्‌, एवं aa परिश्नेय माषं fafa ** |

© aq मतस्पारोरणं”› ङ, "राप" ड, च॒ | { `दुष्कुतकमणशः'' क,ख, a § “पनः सेवा?” क।

९9 e || \्भा० ४५९ ए० १४ Ue | we ge ¢, ४, ut, ४। 2

~ fi fi ** येय ममक्रमणिका,--- -^त्याम्‌ नु सका मत्स्यः सामदो मजावब्खिमान्बो- जा बडवा वा मन्या mere अदित्यानखुवन?--दति।

BWR fauna | [udaena ,

गायज्रौ श्रादितेयौ श्रादिल्यासः' हे “श्रादित्याः!* ‘stata a “जोवतः” get “च्रभिघेतनः “चभिधावत यथम्‌ “पुरा CA’ “QU हननात्‌" (श्वरतान्‌ *) श्रसान्सभ्नावयतेत्यभिप्रायः। "कत्‌ स्थ" “क तु स्थ" युयम्‌? येन ROA fay नाभिधावत हे “ea: |” ते Wat arr प्ररन्ति एव मच “पुरा दयात्‌*-दत्यनेन सम्बन्धात्‌ “afadaa = श्रभिधावत'-दत्येषविपरिणाम उपपद्यते

Waa मत्छ वधकारुष्टाभिण्तस्धतदाणम्‌, aeat वा केवि- ऋन्यन्ते “aren, मधौ उदकं we”; ay इत्युदकनाम †, तच हिते स्यन्दन्ते गच्छन्ति “स्यन्दति, कषति दति गति- कर्म॑सु पठितम्‌ 1 “माद्यन्ते” इष्यन्ति “sate भक्तणाय-टति वा”, मद्या fe इतरे तरभक्तजोविनः। “जालम्‌, जलषरं भवतिः; तद्धि जले चरति “जले भवं ar’ जले वा भवति | “nave वाः" जले वा aa इति नालम्‌

““शंद्धर्‌ः(१९९)१०--दति १, श्रनवगतम्‌ “श्रहखानः"--इत्यव- गमः | रा मलयं “श्रह्ृरणम्‌--दत्यणस्य भवति'- दति प्राषङ्गि- कम्‌; एव मपि fe प्रयोगो भवतोति। “चितः कूपे°- ग्रस रादसो-“मप्त मयादा*--द्येत | जितस्येव कूपे पतित-

* meant क-प् खक |

T vate ९९, ९०६ ४० (RR) I

{ rate ९९९१ Te ६४८७० (४); (९)।

§ र्भा० Buy Fo ec Ve |

|| प्रथमा, “fam gisafeat देवान्‌ इवत aaa) wea waft Wag ecu वित्तम way रादसो ॥>- दूति we सुर ९, 9, ९२,९ | GAT न्वित out da दशयिष्यति।

qGeo yqte swe ] नेगम काण्डम्‌ | २४५२

स्यापि एतयोः पूवी BMG वा वैश्वदेवो afi: प्रातरन्‌- वाकाश्चिनयो विनियुक्ता शितः करूपे श^श्रवहितः पतितः, “देवान्‌ ‘ead’ श्रायते, ‘aaa’ र्षणायात्मनः तस्य wert “हदस्यतिः arr “विन्नं श्रस्य रेदसो”-रत्येतत्‌ पुनःपन- waar द्यावाषटयिै ayaa: क्रि मित्येतदसौ श्रावयाञ्च- कार ? इतिः-- away श्रं रणात्‌ श्रदखतः कूपात्‌ श्रा्मनः | ‘av fame arg कुवन्‌ एव मच “NAR: = sista” दत्युपपद्यते, प्रकरणविरोधात्‌

“aq मयाद्‌ाः---° धरुषु तस्यौ” * “सप्त मयादा, सप्त स्वितौः कवयः, मेधाविनः, दिरण्पगर्भ-मन्‌-प्रतयः ‘aaa? छत-

¦ नित्या एव fe ताः, तेस्तु त्मस्यापकाऽनसमरणा्थ गन्थ- सन्द्‌ भाऽभिश्यज्जितः; एतदेव करण मिन्युपचयते “ara मेका fawager गात्‌" “दत्‌! दत्यनथैकः, श्रथ वा। 'तार्षा adr दानाम्‌ "एकाम्‌" ˆ श्रभिगच्छन्‌"* श्रमिक्रामन्‌ “sigara wala” | “गात्‌” इत्येतत्‌, wi: VAG ates ““एका म्यभिगच्छन्‌,- दति कतमाः पुनस्ता मयादा: ? दति, “सवम्‌, “qeartre- णम्‌"--इत्येवमाद्याः1† यः पुनरेतानभिगच्छति, तस्य किम्‌?

“aq मयाद्‌ --न्मात्‌ | GANT Ga GHG Ms पथां fags MAY AG ॥- गति we Yoo, yu, ee, 1 BAGG, —“ON मयद्‌ाः,- BAN ARITA 5 पानम्‌, wer fay, खगया, TG, पारष्यम्‌, खअन्यदुषणमः- एति सप्त मयादाः। यद्वा सेयम --ण््ति निरक्ते निर्दिष्टाः सप्त मयाद्‌ाः।*- दृत्याइ।

२५४ निरक्तम्‌ | [पृवषट्‌कम्‌,

इति,-रः ‘erat’ श्रयनस्य यस्य ‘qu’ aaa मण्डले "उप- मस्य" खवेश्वतोपनिमतुरा रित्यान्तरपुरुषस्य ‘Ae’ निलयने स्थाने, यानि धरणानि धारयद णि स्थानानि श्रप्रष्वेसोनिः श्राग्डतसम्ब- वद्यायोनि, तेषु तस्थौ तिष्ठति श्राद,--कस्मिन्‌ काले दति ? खच्यते,- "पथां faa विषयानप्रवेरमागब्ताना fafxarat “विषमैः विसजेनकाले प्राप्रे, BATH CAE: | मयेदाषम्बन्धात्‌ स्य्टतर एष निगम इत्यता fama उपात्तः, सतिखमाचारख्चानेन nfafafae उपदभिता भविव्यतौत्येवं मन्ते एवोप्ुत्य सवै एव समाचारः विशिष्टः खतिकारैः सन्दृष्टो aa इति* “(बत-दति निपातः, खेदानुकन्पयोः' ““बत(९१९- दति, शमव गतम्‌ ; wane “निपातः दति पदजाल्यवधारणम्‌ | “.खेदानुकन्पयोः "इत्य थेवचन म्‌ (२९)

बता बतासि यम्‌ नैव ते मनो हद यश्वाविदाम | अन्था किल त्वां wala युक्तं परि घजाते लिबजेव

* मनावपि yeaa तथाडि;-(\) खेयम्‌-- ११९ Ge ४४,५०, ९९-१०१; १९ Te ५० (९) तल्पारादशम्‌-- ११० ५४, ४८, १०९--१०९, toe, gor; १९ Ge ५८. (द) ब्रहारत्याम्‌- ९१० ४४, ww, १०२- १८१; १२ Ge ५५ (४) सददत्या- ११९ Ge Fo (ब्रद्मइत्याखमानम्‌) (४) सुरापानम्‌-९९ Ge wy, ५९, ९०-र्८; १९ खर ४९ SaaS कमणः (खतिपातकादौना मन्यतमष्य Ut ख. ९९२९ Mle) पनप्पुनः सवाम्‌- १९ qe ९२०- २२८२ (©) पातक तेम ? क- नख fafa wit g पापकभणां सादाय्यकरक सिति प्रतौयत -१९ Ge ५४, toe -- ९८९ |

श्भा ४५९ Zo yo |

९१“ ५ा० ५ग्ब १] ANA ATMA | २५६

TAA | बना बलातीते * भवति दूषा बतासि यम नेव ते मना wea विजानीमेऽन्या किल त्वां परिषडःष्थते कष्येव qa सिवजेव set लिबुजा 1 व्रततिभेवति लीयते विभजन्तीति व्रततिर्वरणाच NIT 2 ततनाच्च वाताप्य मुदकं भवति वात रुतदाप्याययति | पुनाने वाताप्यं faery मित्यपि निगमो भवति | वने वाये न्यधायि चाकन्‌ | वन इव वाया वेः पुचरश्चायन्िति वा कामयमान इतिवा वेतिचय इतिच खकार शकल्य उदात्त त्वेव मा- ख्यात | मभविष्यदसुसमातप्त्ाथा रथयतीति सिङस्तत्‌ प्रेष्‌ Treads इति वाग एष दवे रथं्यतोत्य॒पि निंगमो भव॑ति (?८५५), da इषे पिन्बत्‌ मसक्राम्‌। अरसङ्कमणींम्‌ ५11 इति षष्ठाध्यायस्य पथ्चमः पादः ६. ५.

* “aqrafaar’ &, ष, ग।

“fasranagar’ a, चख, ग।

{ “faq” क. ख. ग।

§ “खयन ङ, FI || “खदा त्वेतद्‌ाष्ययात'' क, ख, ग। e | ® ! | e ("रथं कमयन fara) “<a ara Cf ar was “Tey { a ¢ कामय दति ar? © i— ee शवेते पाठा एक्तिविदडाः। es द्यतेवाटानिगखण्डसमात्निः ड-च-परतकयोः | tt ना खष्डप्माद्गिः ह-च-पसकयेाः; WIR IRAE Tere |

Rud fauna [ पुववटकम्‌,

“am datfaoe—eogay’* यमौ, यमं बति “gaa.” ‘aq’ दुर्बलदइदयः त्म्‌, रधम समा दइमयस्म्‌ एव मसषन््मया waar: खेद मुप यासि,- नेच्छसि मया qaith त्वं सवया aR, शोच्य दत्य्थः। श्रय वा ‘Aa’ "ते" तव "मनः" खद्ल्यम्‌, “yee इद्त मध्यवसायच्च ‘fase’. श्रयवा aye मयाभिप्रायः;- “श्रन्या किल त्वां" मन्तो विशिष्टतरा योषित्‌, "परिष्वनाते' “aftqecga”’ 1; ततः ‘fae’ वं at तयापद्कतचेत- स्वात्‌ नेच्छसि परिव्वक्रम्‌। कथञ्च पुनरन्या at परिष्वड च्छते ? ‘ama any’, “लिबजेव gaa’) ‘arg’ कच्तजाता ‘sa’ सुदद्धा, ‘fers’ वज्ञ, यथा ‘amy’ श्रात्मना संयक्तम्‌ समौपजं परिष्वजेत्‌ परिवेष्टयेत, ud fae त्वा मन्या परिव्वङनच्छते दति एव aa प्रकरणाविरेाघात्‌ “बतः-इत्येष निपातः खेदानुकम्पयोः॥ श्रच कच््ेव युक्रम्‌"--'लिवजेव रजम्‌” (द््येकः “इव -शब्टोऽनथेकः; अथ बेपमानदय मेव श्यात्‌, aga च, farsa १,-) यथा कचा च॒ लिवजा परिव्वजनोयौ weet परिष्वजेते, एवं परिष्वङ्नद्यते इति

“वाताणम्‌(१९२)०- दति | श्रनवगतम्‌ “उदकं भवति"- दत्यभिधेयवचनम्‌ “वातः” fe “एतत्‌” उदकम्‌ ““श्राप्याय- धतिः mad करेति श्रय वा श्रायायतिदद्यथेः ष्यात्‌; पुरा

* we सं° ०, ९, ८, २।

1,{ उभयबेव ““परिष्बश्यते” | $ MAT पाठः STG |

| र्भा० ४४२ ९० ete |

९अ०५ा० yuo] AN BINA | २५७

वातेन हि ठष्टिश्चत मुदकं संवद्ध॑ते। न्‌ नेरपि--° ager म्यात्‌” ° नोधस्तेा गौतमस्यार्षम्‌ पावमानौ Brat) हे Brat तु मः" fan मस्राकम्‌ “रयिम्‌” धनम्‌ “उपमाख' उपनिभिणदि | नुवन्तं" पुत्रपतरैः सहितम्‌ "पुनानः" पूयमानः | "वाताणम्‌' उदकं प्राय xara) “eR चायगोय मुदकम्‌। ‘faa’ खवः पूय- मानः। किञ्च; श्रतारि' प्रतं AG कर-रहे “न्दो, Bra "वन्दितः" eta: “श्रायुः'। किष; तथा उपमाख, यया ‘ata: जित्य मेव “धियावसुः” कम॑वसुः। इद्रः लां पातु मस्माकम्‌ श्रा जगम्यात्‌" श्रागच्छे दित्यः एव मच “वाताम्‌ = उदकम्‌” श्रधाविराधाच्छ- ब्दोपपन्तेशच

“चाकन्‌(*९४--दति †, श्रनवगतम्‌ “are —efa, “का- मयमानः'?-इति शष्दसमापौ “वन वायो०--° त॑मः gar- वान्‌” +) agmaa ard Baal fava वने a “वने दव” (aa टव १) शकुनिः, स्वे ate वाय मात्मौयं ga न्यधायि! निदधाति ‘faa श्रजातपक्म्‌ यथा तच निहितः “चाकन्‌ “ara” पश्यन्‌, भयाद्‌ fant मिरौ कमाण श्रासौत्‌; श्रय वा “कामयमानः” तदुत्सुकमना WAT एव मय aay gaw नोडश्तेषु शङुनि-

1, 1

6 mn At र्थि avarg ze Tart वाताप्यं विदशनद्रम्‌ प्र afeghe = नदोतायेयु; भ्रातमच्‌ धिंयाव सुजेगम्यात्‌ \*?- दूति we de ०, ४, ६, ४.

+ VATe ४५४ Te ९५. ge | |

“ad नवाये न्यधायि qreeafdat सामरा acarastia | wafer: Wafers Vial wat नयं छतमः रुपावान्‌॥?-दूति we Yo o, 0, ९९, ९।

§ इश्ते ष्म पदे क-पसकं।

33

२५८ निक्तम्‌ | [पवेषट्कम्‌ ,

पुच्धतः, शरएविः व्यपगतसवदोषः युवयोः oI, ata’ हे “सुरप्णौ" भक्तारौ श्रश्िनौ ! Matar; भुरण्युरिति fauna: किञ्च; थस्य सोमस्य "पुरुदिनेषु" बड्व्वहःसु “न्द्रो हाता cxtsargrar भवति, - ममायं स्तोभः स्यादिति किं्ल्तणः qaitx श्राहाता? थः नर्णां नृतमः, agate मपि मनुब्यतमः, शरणा मपि मध्य शूरतम way) "नयः" नृभ्यो दितः, यः “क्पावान्‌' राजिपयी- Gq समभागो एवङ्गणयुकेन यः ata इन्द्रेणापि प्राते, wag ana, ख॒ यवां प्रति ‘asta’ निग्यकाल aa गच्छतोत्यथेः

एवन्तावदेता ग्टच माश्चिनौ मिति रत्वा व्याचक्तते, तदसाधु; द्ध fe करे प्रथमेवेय aq भवति।। aq पुनः प्यस्य षषटेऽ- इनि स्तोमे agara माध्यन्दिने सवने ब्राह्मणाख्छंगरिनः wa विनि- थुच्यते { हे शभुरण्यी wd, देवतानाम्‌ पतौ! एषः स्तोमेाऽसख्मास्‌ निद्दितः, ‘fa व्यपगतदोषः, शकुनिपुच इव, "वने? वनावयवे wd, ‘aay’ पश्यन्निव कामयमान इव वा TRH WE यः स्तोमः, aw किम्‌ ? इति,- यस्ये द्रः पुरुदिनेषु बडव्वद्ःसु आ्काता ws; श्रपि नाम मा मनेन स्तोमेन स्तुयुरिति। fama: पुनराह्णाता यच्छेः ? इति,--नृणां नृतमः नयद्च ल्षपा-

Sh of

वाञ्च समान मेतत्‌ Wadaraa मेव fax: प्रा्ययते, एषः

BF र्मा ९२४० Te एखन Wa Ge (१४) ; २९९ Te eT

^“बने मवेत्वष्टच्चं wheal awa, wom Yau da. अमक्राकास्च बने- नाद्ाविबि ।*- इति ata are ure |

{ “CO बडपाने का WT AS TH aE” दति Gre 0. Ue I

द०४पा० ५०] aaa काण्डम्‌ | Rye

स्तोमः, तं प्रत्यजौगः, गच्छतोत्यथः। Teal एषः सोभेा- ऽस्माभिरदौर्यमाणः, wae गणाम्‌ aera स्यात्‌ ; ""जिगन्तिः° --°ग्ह्ातिकमा वा-षति दयुकरम्‌ *॥ एव मच 'चाकन्‌"- इत्यस्य “चायन्‌"”- दति, "“कामयमानः- ति व” द्यत विष- रिणामावुपपदयेते, ब्दसारूप्यादय।विरेधाच

एतसिन्निगमे पदविभागतः कश्चिद विषाराऽ्ि, त॒ are भायकारःः-“'वा--दति च, a—efa च, चकार शकल्यः"- इति। शाकल्यः पदकारः। तदेतद्‌ विचायमाणं साधु भवति, faer- रणम्‌ ? “उदात्तं त्वेव wera मभविग्यत्‌”*। “एवम्‌” एतस्मिन्‌ पदद्रये सति, यदेतत्‌ ‘wed’ न्वधायौति, एतत्‌ “उदाम्‌ श्रभविब्यत्‌ ; agent नित्य माख्यातख्य निचाता भवतौति लक्लणविदेः मन्यन्ते, चेद AAT. तस्मात्‌ "यः -इति नेदं aqenq किन्ति? (कयः'- इति एकं पदम्‌। किञ्च; “च्रसुसमाप्रश्चाथः” श्रपुष्कलः; एव मेतस्िन्‌ पददये श्नि Way ऽसुखमाप्नो भवति कथम्‌ ? feud fe सति “वा-्ब्दस्यार्येन केन चिद्‌ भवितयम्‌, चेह विकन्पः समुखयों वा कञ्चिदयाऽल्ि। तस्ादाख्यातस्यानुदात्तलाद्शासम्भवाख दिपदतवे, "वायः" -इत्येतदेकपद मेव; “agfaga:” एव सस्यामिसेयः उपपद्यते

* पण you ge od | waataa:, पाणिन्यादिखाकरणखजवेत्तार एति यावत्‌ तया चरङ्बभ- “°यदुहत्तात्रित्यम्‌''-- एति aie ८, ९, १९।

ago निक्तम्‌ [पृवेषट्‌कम्‌ ,

“rafal हूति °» श्रनवगतम्‌ “रथं द्यति"--दत्यवगमः; हयति-शन्दो हि wera; “रथे” fe यः “कामयते”, रथर्यति | "एष Zate—e aaa” 1। श्नःधेपस्या्षेम्‌ पावमानौ सामो | गायो | गावस्त Bards "एषः" सामे Far रय्येति" रुदण मात्मनो गमन मिच्छति। “पवमानः “दशस्यतिः दान मात्मन दच्छति; कथं नाम मां shat दद्युरिति किञ्च; श्राविष्कृणोति' प्रकाश्रौकराति वग्वनुम्‌” वचो वननोथम्‌, दन्त at देवेभ्य इति। एव मजर “रथयति = रथप्रेशुः” रष्टसारूप्यादेत दपपद्यते (९८१)

“samt SO" —efy १, श्रनवगनम्‌ | शरस इभणोम्‌” दूति अ्रन्दसमाधिः। “ae हिवा०-°राति मग्मन्‌"॥। aq दाजस्याषम्‌। चिषे श्राश्धिनो प्रातरतुवाकाश्चिनयोः wea ‘Gu’ बड़ "देष्णं" दानं ‘ai’ aanat यज्ञे यस्मात्‌ डे ‘guys’ बज्ञभोजिनौ ! श्रश्चिनौ ! तस्मात्‌ युवां ब्रूमः,“ ay aif wera Tey’ अन्नलक्तणम्‌ ‘fama’ प्रचारयन्तम्‌, “श्रसक्राम्‌' शरसदुमणननोलाम्‌ श्रनपायिनौम्‌ RET: 5 अरय वा ्रषडःमणश्नौलां

* ate ४५४४ ze ed |

“दष देवा Caaf पवमाने। aft) चा विष्व दाति वगवमम ॥,- दति me Yo ९, ९, eeu 1

{ खजव पञ्चमख्ष्डसमातिः पादसमाश्निख दत्तिसक्मता पर मलविर्डेति रुना नाद्रशौयेत्यसाकम्‌ | wafinesgafre रू-च-पयाकानदतेव प्रन तच wif पाद्‌ यवद्धेति।

$ श्भा० ४५४४० Bye |

| Is te at gene Sat Qa न्‌ रूषः पिन्वत्‌ मखक्राम्‌। STE at ana Belay Cae, aa मन्‌ राति मगगन्‌ Ww दूति ae संर ut, ४, RI

cue dure रवर] ana काण्डम्‌ | Rt

द्याम्‌, ‘cay इ-हेत्रदक मस्मदथं प्र्ारयत मिति सूपत्‌ fara: तद्‌ युवयोबेङदानम्‌? इति,-श्ठतञ्च' स्त॒त-शस्तर्वाश्च सामे युवयो- र्नम्‌ हे मध्यौ" मधुपो ! “सुषटुतिश्च' भोभनामिः afar: ae aa, ‘wary श्राज्यादयः, एते रातिः पुराडाश्स्यानुगच्छति, सवं एते यवयोरेव तस्माद्‌ ब्रवोमि,- पिन्वत मिति एव मच शष्टभारूप्यादथा विरोधा “श्रसक्रम्‌"-इत्यष्य Wea “HaHa” —rae विपरिणाम उपपद्यते इडमिधया, दवा ५*॥

दति निरुक्ता एकादणध्यायस्य (aerate) पञ्चमः पादः ne, ull

षष्ठः पादः il

| ! ) ® | विप्राणां धव BWA | मतीनां साधन्‌' विप्राणां चाध॒व मित्यपि निगमा भवत्य॒नव॒व्रवोऽनवशिततवच- a fast षदिन्द्र इवानवन्नव इत्यपि निगमो भव-

fav १(२९)॥ ““श्राधवः(*.)--दति t ज्रनवगतम्‌। “श्राधवनात्‌”-दत्यव- गमः; च्राकम्पनादित्ययैः | “मसौमदि o—— ° चाधवम्‌? | tare

° पादान्वितमूलपसलकानु THA Vay पञ्चमख्ष्डसमा्निः weaqiceaifry सखौक्रियतेऽ्माभिः, tir faa: प्रामेव | \्भा० ४५४ Te ११९पं०। le “स॑मह ar वय aq देव ger) aMat साधन्‌" fastret चाध वम्‌ ॥*?--दूति we doo, ©, ६९, ४।

१६२ निक्तम्‌ [पृबबटकम्‌

विमदस्याषंम्‌ | शरनुषटप्‌ Greats ‘date at हे “पूषन्‌! ‘fay .मतौनां* प्रज्ञाना aaa साधयितारम्‌; श्रादित्येन fe प्राणिनां प्रज्ञा श्रभियनज्यन्त। किच्च; ये चान्ये "विप्राः" save: सेधा विनः, तेषाम्‌ शश्राधवम्‌' श्राकन्पयतारं खय भेव तया a मात्मना aware ciate, यथा प्रोत्कम्पमानडदयांसते लां स्तुवते एव मच शब्दसारूप्यादथाविराधाञ्च “श्राधवः = श्राकम्पयिता”-

द्युपपद्यते “्नवत्रवः(\९८)- हति *, श्रनवगतम्‌ ““श्रनवक्तिप्रवष्वनः'-टति 2. ~“ | | J T ~n अवगमः “fasaafex --°्यत श्रा aay?!) मन्योराषम्‌।

Fagqi मान्यवे ami श्छेनादिषु fiesta शस्यते “विजेषशटत्‌ विजयकत्‌, ‘ox: दव श्रनवत्रवः" cx द्वानवक्तिप्रवचनः; होन्रस्य केनविदा्चिप्यते ay) Saat qeqa श्रनवचिप्त- वचनः इन्द्र टव, त्वमस्माकम्‌ शशच्रधिपाः' श्रधिष्ठाय पाता ‘wa’ | किञ्च; रे ‘ast’ शरणां सरनभोल ! प्रियं a’ यत्‌ "नाम, तेन at “गणौमसि' नित्य मेव ga cae: fag; ‘fay जातौमा वयम्‌ ‘aq’ "उत्छम्‌' उच्यन्दनम्‌, ‘aa’ aq श्रा HIT’ 1) एव मच शष्टसारूप्यादथं।विराधाच्च “aaqnq: = श्रनवविश्नवचनः'- दत्युपपद्यते (२८)

# quite ४४४ ge qe qe |

+ “fra vats द्वानवन्रवोदः ae मन्यो अधिपा uz | fq a ara सरे स्टलोमपि faut a ag’ यतं चा बृभषं ॥०५-- tft Wo सु ८, २, te,

¢Ue CTs एव] an कादःम्‌। Rda

अरायि काश विकटे गिरि गच्छ सद्‌ान्वे। शिरिभ्बि- टस्य सत्वभिस्तेभिष्रा चातयामसि अदायिनि काशे विकटे काशे *ऽ({,विक्रान्तद््शन इन्योपमन्यवः कणतेवा स्यादणभावकम्मेणः कणति: शब्दाणभावे! भाष्यतेऽनु- कणतीति माचाणुभावात्कण ¡ दशेनाणुभावात्कणेा विक विक्रान्तगतिरित्योपमन्यवः Azad स्याद्‌ (वि- परोतस्य १) विकुटितेा भवति गिरि गच्छ सदानेानुवे शब्द कारि के। शिरिम्बिटस्य सत्वभिः। शिरिभ्बिठ aq: शीयते fat (fas मन्तरिषछम्‌॥ fag ha व्याख्यातं तस्य सस्तवैरुदकंरिति BAR चातयामेऽपि वा fafcfadt भारदाजः कालकणापेतेाऽलश्मी- न्रिंणाशयाश्वकार तस्य aa: कम्मभिरिति स्यात्तष्ठा चातयामश्चातयतिनैाशने पराशरः पराशोगौस्य वसि- स्य स्थविरस्य TH! पराशरः Waarqafeg इन्यपि निगमो भवतीन्दरोऽपि पराशर उच्यते (परा +) शत- यिता यातूनाम्‌ इन्द्रा यातूना मभवत्पर। श्र इत्यपि निगमो भवंति क्रिविर्दती विकर्मनद्न्ती। यचा

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“HRTAWI” क,ख, ग।

t “माचाषूभावात्कादा" ड, CATA”? $|, मतानि ह्रो क-च-ग-पुखकेषु |

२६७ निसक्तम्‌ | [पूवंषट्‌कम्‌ ,

वे fequeia क्रिविं तीत्युपि निगमो भवति करू- खलती छन्दतो * (अपि वा देवं कञ्चित्‌ छत्तदन्तं दृष्टेव मवक्यत्‌ 1) २८३०)

““खदान्वे(९९८)'--दूति { , श्रनवरगतम्‌। “सदानोनुवे, - एति शरन्दसमाचिः। नश्ररायि काण °--- ° चातयामसि" 2। भिरि- fase भारदाजस्य श्राषंम्‌ श्रनुष्टुप्‌ दुर्भिलाधिदे वतोच्यते, कालकणा aT wea: | हे “श्ररायि' “श्रदायिनि 1” दुरभिंकाधि- देवते! श्रय वा.₹े श्रलद्ि! fide पीडितानां दाने मतिः प्रवभति.नायलदम्याभिण्ठतानाम्‌। ‘ard दुरभिंरेण भिग्रतानां ard चदुषोभेवति, sania; श्रलच्छोपलेऽपि aga wergil- fifa प्रतोयते; लाकेऽपिष या विरूपा भरति, awanftfa Brea ‘fase’ chs दुब॑ललात्‌ विकरेव प्राणिनां गतिर्भवति; WATT aga ‘faft गच्छ" माचावस्थानं कार्षोः ‘aera’ “aararaa शब्दकारिके ; दुभिक्ते fe चुत्पौडिताः प्राणिनि निश्वसन्तः सदेव शब्द gaia; sata AL, - पिश्नाचादौनि नित्य मयक्रं wed कुवन्ति ;-पिश्राचाद्या हि प्रण नसुनायन्तम्येति लाके वक्ारा भवन्ति, एतत्‌ प्रसिद्धम्‌ ‘faftfase’ aaa wert: “सत्वभिः, “उदकैः” ; “सवम्‌'- दति छ्दकनामसु पठि-

» "'करूरतो BNA” |

+ नाश्यष पाठाःक ख-ग-८ सकेषु {

{ र्भार ४५५४० ede |

qo we G, ए, UR,

|| “अरायि भिरिभ्िढो भारदाजेऽलकोन्नम्‌ स्त्यन कमषौ |

(Uo {ate शख.) ANH WW! ९६५४

area it “अपिवा भिरिषिढो भारदाजः,, “तष्य मषः | नामभिः" *, तेन यामि दृष्टानि भामानि, सम्भवमसमयानि, स्त॒तिसंयुक्तानि, Add लां ना्रयामः एव मच शब्द्‌ याविरोधात्‌ ““सखद्‌ान्वेः”-- इत्यस्य ^“ खदानेमुबे?--इत्येष विपरिणाम उपपद्यते निगमप्रसक्तान्यधनेच्यन्ते ;- “राति, राखति'"-टति दानकमेसु पठितः , तद्य प्रतिषेधपूरद्य “श्र-रायि'-दति भवति। “कणति, भ्रम्दाएुभावे भाव्यत, -श्रसुकणतौति"" ; “माचाफभावात्‌'” “कणः” स्यामाकारिः, तत्सामान्यात्‌ “दभ्ेनाए्भावात्‌” “are.” | we at “aru, = fanragun’—“gatvaaa:”; विक्रान्तं fe aq दशनं भवति, एकौग्धमलात्‌। “काणः = अविक्राभ्तद मनः दति वा, मन्दचलुषटात्‌। “विकट; = विक्षान्तगतिः,” विलगति रित्यथैः‡ श्रय “वा” “कुटः” घातोः “ana; wat हि ““विज्कुटितो भवति", कुत्तोग्डत इत्यथः “विठम्‌'-दत्यपटित मन्तरिषनामस, तत्‌ पुन- Raq ““बौरिटेन व्याख्यातम्‌” ; TT शक्रम्‌, बोरिट मनमारिकम्‌, भियो ar भासा वा ततिः” 21 तसिम्‌ “fad” यः “aaa”, घः “fatten” मेघः” || “श्रपि वा faftfast acer”, साऽनेन करन “sean: मिनेाश्याञ्चकार"-दइति निदान मन्वाख्या-

* ng oat wire पाठोऽखादृदेषु ety सवेमृरूपुरकेषु | सायरेमण्येव मेव पाठ उड्तः WANG | + र्मा० ९६६१० RWe veo we (४,६)। t “विकटः = famrmnafafcae” क| § Go ६१९ ४० re det || \भा० ४६६ ve ute | ५५

R¢¢ निशम्‌ | [पवषटकम्‌?

तम्‌ ° श्र्यापि योऽलच्याभिश्वता भवति, stew उदकेऽव- तोये छक्र मेतघ्नपति, तस्थालच्छ निं्नण्यति

ˆ परा्रः(*१९)१२- दृति, श्रनवगत मनेका्ैश्च। “que: -इत्यवगमः। “श्र ये weige—— omega? वसिष्टस्याषम्‌ | tx खक eq! प्रकर्षे "ये" ‘MAAS? दत्तवन्तः सामेन, दृष्टवन्तो वा यश्नेषु। हे इन्द्र! Bra’ त्वया ae "पराशरः" 'श्रतयातुः" भकना र्सां यातयिता ; तेन हि tate सज area मासौदिति भारते श्रयते वसिष्ठः" इत्येवमादयः | किं तेषाम्‌ ? efa,—a’ न्ते we’ भोगिनः तव “वषयं सखिभावं ‘aga’ aaa नाश्यन्तोत्यथैः। May श्रथेवङृणयुकेन््तेग्यः ‘Ufa’, “सुदिना शाभनानि दिनानि ‘quar’ fanaa: तेषा मेव सुप्रभाता राचयः इत्यभिप्रायः एव मन ““खछषिः = पराशरः? वसिष्ठसम्बन्धात्‌॥

“द्धोऽपि पराशर उच्यते”; fe “परा परितः “ma- यिता” “यातूनां” यातयितव्यानाम्‌, again मिति। “द्रा यातना मभवत्‌ पराशरः ¶्ति॥ area: षः

““क्रिविदेतौ (९९९० दति ००, श्रनवगतम्‌ “faecal”

* “निदानं ब्ड्यातम्‌”” |

+ ““जपद्ामादिभिरिदं aw मग्रोनाश्करम्‌ः- दूति are ure | { ate ४५५.४० de |

§ “श्रये प्टदादममदुख्वाया पंराद्रः शतयातुर्वसिष्ठः) नत भोजस्य sel स्व्काधा BIN पदिन्‌ युच्छाम्‌ 1“ दति we Fev, २,९८१९।

| we सं ४,९,९,९।

श्भा १६० veo ९९ Te |

R% १भा० ४४६ Teo x Re Wo 1

eae दपा° रर] नेगम कारम्‌ RKO

RANA: | “ad न॑ उदया ०--° बणा" अ्रगस्लस्यारष॑म्‌ | जगतो हे मरुतः !' ‘gary उद्णाः, शरिष्टयामाः, श्रनुपद्दिंसित- सहगताः ययम्‌, श्रस्माक "सुचेतुमा” ओाभनेन प्रन्नामेन, vat "सुमति शाभनां मतिम्‌ “पिपन्तन' पूरयत पालयत वा) केन पनः परयत? कुता वा पूरयत? इति,- “यचा वे दिद्युत्‌" ‘ae’ यिन्‌ मेषे ‘fag’ way fad युश्राभिः, मेव ad "रदति" विलिखति, विदारयति वधायम्‌ किंल्षलणा पुनर्दिद्यत्‌ ? इति,--“क्रिविदेतोः विकन्तनसमयः दन्तेःया रदति कय्यमया रदति ? “रिणाति पश्च सुधितेव” thai यथा “पश्वः, पशोः seth 'रिणाति' एयक करोति, सुधिता खधित्या, ‘agar afteger हिसया, एव मस्मिन्‌ मेघे दिधुदः ता रदन्ति। ततः प्रभ्रष्ट नादेन सुमति wera पिपन्तन एव मजाथाविरोधादायुं (क्रिविदंतौ '-्देनाच्यत दत्युपपद्यते

^ कर्ूःएतो(९९२'--दटति 1, अनवगतम्‌ ““र्नदतो--दत्यव- Ta WR (ee) tt

वामंवामं भ्रादुर SAT ददात्वयेमा। वामं पूषा वामं भगा वामं देवः करूठऊती॥ वामं वननीयं भवत्यादुरिरादरणात्तत्कः करूलती भगः पुर स्तात्तस्या- ग्वादेश इत्येकं FIAT से1ऽदन्तकेाऽदन्तकः पूषेति q

* “ay SUT मदतः सुच तुनारि्टप्रामाः सुमतिं पिपभेन यभावे द्ब्र दति क्रिनिर्दतो fourth पः सुधितेव वरषा ।- दूति we yo ९, ४, ९, ९। १भा० ४६६४ Te १९ Yo |

of frame | [पृवबटेकम्‌ ,

मराह्मणम्‌ | दनो विश इन्द्र मृध्रवाचः दानमना ना मनुष्यानिन्द्र ख्दुवाचः कुरु Wat मिव मामयं शरारुरभि मन्यते | अबला मिव मा मयं बाखाऽभि- मन्यते संशिशरिषुरिदंयुरिद कामयमानेाऽथापि तद- दर्थे भाष्यते वसूयुरिन्द्रौ वसुमानित्यकाथैः। शशः WAAC AAA Ta Caria निगमो भवति ३८(३९)।

“वामेवामं °---°देवः wean”) वामदेवस्ार्षम्‌ TR BRI WET! राचिपयाये प्रशास्तुः wel विनियुक्ता ar वामम्‌ः-एति भ्यस्लायाऽग्यासः; “mate भर्यांस मथ मन्यमते?-ईइ ति fe वच्यति यद्यत्‌ es “anata” शम्‌, ‘A’ तव धनम्‌, तत्तत्‌ हे “श्रादुरेः श्रादरवन ! यजमान! हि यागं प्रति नित्यम्‌ श्रादता wana एवं सम्नोध्यते-डहे श्रादुरे! | न्वामं ददालयमाः। यद्यम्णो ‘ard’ “वननोयम्‌," इष्टम्‌, qraat घनम्‌, तत्‌ wet तुभ्यं ददातः। किञ्च; "बामं पूषा" ददाहु। “वामं भगः, ददातु “ata aa Reel ददाविनग्थे- azarae | ‘HERA rea शएपदल्वात्‌ सन्दिह्यते, “तत्‌” एतत्‌ विषायते-*"कः करूलतो ?'- इति “भगः पुरस्तात्‌” 'कङ्लतो"-्रष्टस्य “ae” एवायम्‌ “wage” सन्निधान- खाम्यात्‌ ।--“दत्येकम्‌” श्राचायैमतम्‌ “qat—efa श्रपरम्‌” |

* (“शवथ्वेखवरिग्दर इत्यपि” =, we de २, ९, ९२, ४।

due gute Rue) निगमं काग्डम्‌ | २९९

किङ्कारणम्‌ ? “a” हि पूषा “marae” | श्राह कुत एतत्‌ ? इति उच्यते,-“श्रदन्तकः पूषा--इति ब्राह्मणम्‌”? (प्राशिच- भागग्राद्यणे हि श्रूयते, ^^तत्‌ पूष्णे पयाजद्ुः, तत्‌ पूषा प्रान्नात्‌, तस्य zat निजघान ; * तखादाङः+-श्रदन्तकः पूषा”--इति †) यत्‌ yatags सन्निधिखामथ्याद्‌ भगः करूलतो सादिति | श्रकारण Raq;— यस्य येना थेसग्नन्धो दूरख मपि तख तत्‌ शरयता gquadiar मामन्तयै मकारणम्‌"- दति न्यायविदः पठन्ति तस्मात्‌ पैव ‘wea egal, चन्दसारूणा- दयापपत्ते्ेति

‘Coa (888) ele 2, Guana दानमन॑सः'"-दव्यवगमः। “an fad car e—e कुत्धाय tat” | अगस्यस्याषम्‌ हे ‘ae! (दनः, ““दाभमनखः' एव एतान्‌ wend "विशः “ama”, “ae” 'सभवाचः' “agate.” कस्मात्‌ पुनरोव मुच्यते ? श्तः,-- "यत्‌" यस्मात्‌ लम्‌ "सक्त प्ताः, पुरः मेघपुर, “्रारदौः" शरत्कालेत्थाः, Saati वा ; सेंवष्छराऽपि हि शरदिव्यु- श्यते,-“स जोव wes way’ tha लिङ्गात्‌ | ae’ सख मिच्छन्‌

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* gigurg तु ˆ wage तदास*-इत्यशिकं दशते |

We पण्ब्रा He ORT | बन्धनौचिक्ानमेतपाठस््‌ क-पुखके wife |

{ "करूरतो-- शब्दः प्रातिभराष्डमासनात्‌ संदितापाठे "कर्त्तः भवति $ Sal यज यज प्रतोकत्येन VET, तज AUNT मेव, AT |

§ र्भा० ४६९ ge ute | |

e@ 1. ९. ~

दनो विभ cog WaT सप्त यत्परः अम मारुदोदेत्‌ रर्यो Sag: द्याने am es Tag ara wah 0" र्ति we सं° ९, ४, 1G, ९।

aie we Ale ९,६, tO!

२७० निरक्तम्‌ | [पुवषट्कम्‌,

लनानां दत्‌, दारयसि। faa; ‘saat: श्रनवद्यादकाः ताः पुरः “wut? श्रपगमितवानसि दमं लकं प्रति “aay 1) खभाव एवंष तव लेकाननुग्डोतु मिव्यभिप्रायः। किच्च; “यनं वरनम्‌"” af: शल्य्थः * सोचे यजमानाय ‘gage asafiad av धनं a’ खम्पादितवानसौत्यथैः यत एव gaat TEM भवान्‌ AT मन्येषाश्च जनानाम्‌, तस्माद्‌ RASTA मपि एताम्‌ azarae: कुरु adenfafa एव मच दनः" cafe पदे दकारे ““दानमनसः'?--दटति एतान्यचराण्यध्या- इतानि भाग्यकारेण, “न"-कारखासरद्योगे विभज्योदादइतः ; तथा- धापपन्तिदभ्नात्‌ “ज्व र"-व्येतच्वाथैपरिसमाघर्थ मध्यादतम्‌ | उत्तरास्तय; पादा Wawra; ‘WA यत्‌ पुरः-दव्येतस्मात्‌ aa- मामसम्बन्धात्‌

“were: (WO द्रति {, शअ्रनवगतम्‌। “सं्रिश्ररिषः* द्य त्रगमः। “watt मिव °---° feg उत्तरः 21 पद्भिः | UR! इद्रपत्नौ एवं त्रवोति,ः-“श्रवौरा भिव, ““श्रवला faa” परिग्रहा भिव "माम्‌ we? अरारः “बालः” मुखं; ५संगि्ररिषुः” संगर मिच्छन्‌ wtht तिव्यनु रि्यथैः। ‘afr मन्यतेः shri व्धाम्खेता मित्येव भन्यते ; SRA बध्या ABat ज्यो वा कथित्‌;

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* र्भा० २९९९० एअ. ९४ We (Re) |

T श्ना ९९९ Te PW १० We (₹०) | Vat ४६९ ge oge |

§ wads मिव ay WUT मम्यते। Gary भसि Afrika म॒दत्ध- खा विच्सादिग्् उरः ५, रति we स+ ४, ९,

अ“ {qe RG ०] aaa काठम्‌ | ७२

‘aay हो द्ामिमवितु मारथासौत्‌”--दत्यास्यानं श्रूयते * “sate afa वोरिणो sa तावदस्मि वोरिष्छेव। केम aaa रेण DT? “इन्द्रपनो'द दर स्याह पनोः-मरखा' यः दद्र “विश्वस्माद्‌” सवस्माद्‌ यश्च “उत्तरः” “जगतः उद्यततरः प्रभावेन, मे वोरः; तदयं वाला मन्यते, येन मा'मभिभवित मिच्छतोत्यमि- प्रायः एव मच “aie संशिशरिषुः शब्दसारूप्यादयापपन्ेश्च

“शद्‌ यः(९९९)०- इति †, saan मनेकायश्च दद मिति यत्‌ किञ्चिदभितरेतं निरदिश्यते, ay: कामयते, एदं युरि्यु्यते “यः” शृत्येष शब्दोऽप्रसिद्धः कामयतेऽयं, तेनानवगत मेतत्‌ स्यात्‌ | “नानाधियो वद्धयव्ः" इत्यनेन { गताथे मन्यमानो भाव्यकारा निगमं ब्रवीति वा्निककारेणाणुक्रम्‌›--“निगमवश्नादत्कब्े भवति पदम्‌”; तद्धितः, तथा धातुः, saeige:, निपाताञ्च HANA सव्या SMB

“aia” "युः" -दृ्येषः , “aed भाव्यते” we कि सुदाहरणम्‌ ? “वशय रिन्रः""-ति, वस्मानित्ययेः “रा श्रश्रायि °-- ° प्रयन्ता" aaa मापन्नष्यद्रस्येय माषम्‌ | |

* “हृषाकपिनामेग्दरष्य om, चेन्द्राणोन्द्रश्षते wa: dwar संविवादं aa- aa? दूति लचव खङ्गा रने सा० Ale |

T र्भा० ४५९१० LRT

t Go ९६४९० & Yeo |

§ “oar खत्रायि aur face पञ्चष wal car यपः। Weada- रथथवेद्यरिन्दर दृद्रायः यति ष्रथका॥*- दूति We Peo ६,४,९१९,४।

|| “अङ्गिरा इन्द्रतुष्य' पच भिष्डत्रभ्यष्यायत्‌, सय wax Cae पनोऽजाय- तेति ॥**--दूत्यनक्रमणो।

ROR निबष्ठम्‌। [पृवबटषम्‌,

श्रौ) freq) ere सषपमेऽहनि मरुत्तोये ब्ररते। चः ‘gay शश्र्रायिः wzorfa, हिनस्तीत्यथः। श्रद्धः, शटद्विक्रमः, अजिष् योधो ;श्रय वा शओरोधयिता योधानां प्रहारैः, gular स्यात्‌, पुनः wuts? ‘fate ena यर्चकेाऽपन्यः सहायो नास्ति, तच एक एव aga दन्ति पञ्चवु प्रा जिंत।युधेश्चपि पदेषु aay fag; स्तोमे a ata vai यः प्रधानः जित्‌ स्तोमः, पश्चदभ् ति fe व्यपदेशः; सेमे प्रभवति स्तोम्न ae प्राधान्यात्‌ कि; यः om: दुय न' दुय श्व gay चः प्रधानः | तद्ध किम्‌? दति,- दग्र: aug? wea) गव्युः" गोभिः तदान्‌ ‘aaa’ श्रन्ेवभिः तद्वान्‌ एवद्ुणविष्ष्टो "यः दषः, सः wag’ धनेषु जनानां दानच्येषु "चयति' दृष्टे (प्रयन्ता प्रकरण दातव्यः एव मन वखयः--दएत्ययं ame: “AERA” | किद्ूारण्म्‌? thet वपु कामयते, सुपूणत्ात्‌ ; परिभेषात्‌ अयं “तददय भाव्यते"”-द्व्युपपद्यते 2 (३९)

fa a awfa कीकटेष गावो नाशिरं दहे त॑पन्ति THT AT AT भर प्रमगन्दस्य वेदा नैचाशाखं मघवन्वन्धया नः। किं ते कुर्वन्ति कोकटेषु गावः कोक-

= सले तु “चुष्यः- इति पाढः। “धौरितिकमेनाम an पोर्यवाम्‌'- इति सायः |

ताष्डादितोयबतोयाध्यायो इध्यो। - { “खः” इति मृरुषाठः "रायः प्रयक, Ware दाता; “इन्द दत्‌ इन्र रव यञ मानानाम्‌ त्या GG: |

व्यर Cate sue] नेगम काणम्‌ Rey

टा नाम देशोऽनायेनिवासः कीकटाः fal रताः किं क्रियाभिरिति पेखा वा मेव^ चाश्िर दृष्टे तपन्ति घर्म म्यं मार नः प्रमगन्दस्य धनानि मगन्दः कु- सीदी माङ्गदो मामागमिष्यतीति! ददाति तदपत्यं प्रमगन्दाऽत्यन्तकुसीदिक्रुलीनः‡ प्रमदका वा Bisa भेवास्ति शेके पर इति प्रेष्यः पणडका वा पण्डकः पण्डगः ? UTA वा प्रादंयत्याण्डावाण्डावाणी इव व्रीडयति | तस्तम्भे¶ नेचाशाखं नीचाशखो नीचेः- शाखः शाखाः शक्रो तेराणिररणात्तत्नो मघवन्रन्धयेति रध्यतिर्वं शगमने बुन्द इषुभेवति (वुन्दो at) भिन्द वा भयदा वा भासमाने द्रवतोति वा ॥४ (३२)

Praag ely 11, अभवगतम्‌ | ‘fagat.”— दति अन्दसमापिः, “किं क्रियाभिः षति, “वा? “fal ते हंखन्तिर ° चन्या नः" ‡‡ विश्वामिचसदार्वम्‌ tty fea

# fed क्रियाभिरभितप्रेला नेव") क, चख, a1

“areat मां मनिष्यन्ति” a, a, ग।

{ “"प्रमगन्दाऽत्यन्तः ate: Geter” क, ख, § “पत्रकः क, ' “पत्रना a

| “aeafa” क, ख,

“mag? a, aa) हजिसम्य्तख।

** ate पाठः क-ख-म-पख्केष्‌ |

TT श्भा० ४५०४० रपर |

tt अर सं २, २, ९६ ४।

४9

२७8 निबक्तम्‌ | [पबषटकम्‌ ,

ex! . थाः (कौकरेषुण अना्यरेशनिवामिषु aqdy “गावः, ताः ^ते' . तव ‘fae’ quart कुवन्ति ? कञ्िदपौत्यमिपरायः | “नाभिरं दुदधे, तपन्ति षमम्‌” नाप्याथिरायं दुष्मन्ते, गापि चम तप्यामानेक्भावं गच्छन्ति; aT Ie, alg अन्याखपि क्रियालिद्यमिप्रायः। यत एव मते ब्रूमः+-“श्रा इर गः ताः गाः ; वयं तव, ताभिराशिरादि विनियोगनेपकारं करिष्याम दत्यभि- परायः faa; uaa प्रमगन्दस्य" ठद्धिनो विना धमम्‌, ure तथा WH मार्‌ ; तदपि fang “are” विनियुश्यते, वयं तद्‌ विनिवोच्याम cafe) “प्रमदका वा” नित्यप्रसुदिते विषयपरः प्रमगन्दः श्यात्‌ “agar वा” ages: nan: स्यात्‌ तयोवा धनानि क्रियासु विनियुज्यन्ते, शब्दसाखूग्यच प्रमगन्द््रष्डे उभयोरस्ि; aa तावणुपद्येते। “नैचाशाखं म॑घववन्धया मः यदेतेषा मन्यतमस्य नोचश्राखाप्रखधतसख नोच- amare gees धनम्‌, तत्‌ * हे ‘aga श्रोत्रं रन्धयः संसाध श्रस्मदशं कुवित्यथैः

एव मच “कोकराः' “fa wan” किं ते रताः? caa ममिव्याार मरन्ति, तेः क्िद्थाऽस्ि; ते देवपिदमनु- व्याणा सुपकारं ganas: i श्रय “वा” “fa क्रियाभिः?” “fa”? एवं “Son”? ते नालिका एवमभिप्राया द्व्यर्थः

e Trang शयोनिषत्यादिता माणा पचएौकादिपरम्परायेन खनेवाधाखः। * + * { नतछम्बसि WH मचाणाखम्‌॥*- दूति SAE Ble UT |

९० पा Bye] नेगम WBA | Rey

एत स्ाच्छब्दसाङूप्याद यैपपन्तेश्च “कौ कटाः = श्रनार्यरे्रनिवासिनः" --इत्यपपद्यते *

“मगन्दः = gaat’ —eaped; स॒ हि “माम्‌ दयात्‌ agate, wag ““श्रागमिव्यति"--दृत्येव मनुचिक्य, परेभ्यो धनानि “ददाति” “तदपत्यं wane, श्रत्यम्तङ्ुसौदिकुलोमः" तद्धिता प्रः, nana; ्रक्षणखस्य'--दति t यथा “nage” प्रमादो: ;- “श्रय मेषैकेा लोकाऽक्ति, परः"-““दइति'" एवं “प्रषः” नास्तिकः “awa” aaa प्रहटतिः; हि “cepa? पण्डं गच्छति, स्तौरूपवात्‌। “प्रादकः""-एतिं “वा” खात्‌; “A” nady ह्यसौ “aaa” ayia: ae aaa गच्छति “श्राण्छौ"। mata तौ “atest”? “mat ga व्रीडयति”; at इसौ पण्डका सुखे पुनर्मैधुने कर्मणि agar “श्राणौ इवे Aveta” सम्भमतोत्ययः 1

“बन्दः(१९८)१- दति १, श्रनवगतम्‌। “दषुभवति"--दत्यभि- धेयवचनम्‌। “भिन्दो वा भयदो वा भाष्मानेा द्रवतौति ar” दति शन्दसमाधयः (ee) ti |

= ककरो मगधः लथादि-कौकटेष मया tar, ce cay वनम्‌। SIAM पो, TAI नदो पुमणपना॥ “एति णम्दकल्पव्रुमतं ay. पराक्वचनम्‌। -

f+ WES: = काखः Ge Yo ९. ठ४-६० ८. ४; €. ev |

{ “aren शक्रोवेः"--रुत्यादि भाष्य मयाद्खात मेव frre |

§ र्मा० ४५० Te ९१० |

Rog भिगक्तम्‌ | [प्वेषटकम्‌ ,

तुविक्षं qad सूमयं धनुः साधुबन्दो हिरण्यः

Sul A WE TW सुसंस्कत wee चिददृषधा तुविक्षं agfaad* मदाविक्षेप वा ते gad aaa सुमुखं धनुः साधयिता ते बन्दा हिरण्यय! wir? बाह (रण्यो ¦) रमणीयो साङ्गाम्यौ TET? अरंनपा- तिनौ गमनपातिनो (शब्दपातिनौ दूरपातिनौ॥) वा ature गमनवेधिनौ (शब्दवेधिनौ दूर बेधिनो १)वा ॥५.३६)॥

| “तुकि ते ---* इद रधा”- दति **। “निराविष्य -- ° सताततम्‌"-इति tt ङुरस्ततेराषं मेतदृन्दयम्‌ शरौ atrewal पूवा ; गायश्युन्तरा Fax! “तु विक्त “.बडविकतेपम्‌” बहनां विरूपार्णा--'“सुषतं' शमनानि हि येन कमाणि क्रियन्ते तम्‌ ; भ्य वा शभनं छतम्‌, खमयं" सुखकरं gyda किन्पनस्तत्‌ ? "धनुः" किच्च ; “साधुबन्दौ स्रि टयः” साधयिता सोमानां इचुसद्कातार्नां वा ‘ae’ इषुः ““डिरण्ययः' fecafaaa cau: | fae; ‘sar ते are’ उभावपि ते atx, ‘ve’

“डिरच्छय',क, क, a

{ बाश्वेतत्‌ क-ख-म-पर्तकेष

§ ““खाङ्काम्बाददुपे'ः 4,8 a)

(0 नेत पाठे इष्येते क-ख-ग-पकेषु

om wo do ९,४, २०, ९। tt We we q,\, Re, A

Cao दपा दंव] नेगम HA | 299

“amar खायते Dat च, श्रय वा “aigrar’ रणयागी, gga’ समलङते, “age “श्रदनपातिने” श्रदनेम हि गमनेन Sam श्चरन्‌ पातयतः “डद टधा! दिति ममे च्यते, aq यै विधयेते तो eam मर्मवेधिनाविव्यर्थः। भाव्य मज सम्यगिव Bega ; तस्य सम्यक्‌ WSIS, तता याच्यम्‌ * | एव मजर धनुःसम्बन्धार्‌ “बन्द = इषुः” (Ve)

निराविध्यह्निरिभ्य रा धारयत्पक्त मदनम्‌ इन्द्रौ we स्वाततम्‌ निरविध्यद्निरिभ्य भ्रा were मादन सुदकदीनं मेषम्‌। इन्द्र बन्द स्वाततं इन्दं बुन्देन व्याख्यातं टन्दारकश्च (RB)

“निरा विष्य--° साततम्‌” †। “पक्तम्‌' agat मेधानां मध्ये यः oat मेघः, उद्‌कदाने समथः, तम, “इन्द्रः, “निर विध्यत्‌* | विद्धा तावत्‌ श्रा धारयत्‌" यावन्निरूदकः dan इति कर्थ निरविष्यत्‌ ? इति,-बन्दं' ‘aman खारृष्ट॒माकर्णोङिला एव मन्राकषेणसम्बन्धात्‌ “TY: = बुन्दः”-दत्ुपशचपते

“ठन्द्‌ म्‌(१९९)- ति †, एतत्‌ पदम्‌ “aren” एव “यास्या तम्‌” ; warty fe ता एव ब्युत्पत्तयो या grew |)

* “ar fram रक मपि पदं विडाय याखन arrears तरेव शिते ॥१.- इति ate wre |

t we सं ९, ६, २०, ९।

tT १भा० ४५० To eye |

Ros निरक्तम्‌। (yaaa,

“aerag” ‘ada’ एव “area” हतौ SRE प्रकरणवश्रादान्यः कञ्चित्‌ * (av)

यंय हाता किर यमस्य HAUTE यत्समश्न्ति देवाः अष रहन्नायते मासिमास्यथा दवा दधिरे हव्यवाहम्‌ अयं या हाता कत्ता यमस्य aaa मभिवहइति यत्स मश्रुवन्ति देवा अरहरदइन्नायते मासे- मासेऽदंमासेऽङंमासे वाथ देवा निदधिरे waaay Qe मुख) तेरेणोतेवं।। महत्तदुख्बं UA तदासौ- दित्यपि निगमे भवत्युबीस मपगतभास AIA मन्त्दिंतभासं गतभासं वा (३५) |

“कि:(९१०५- दति , श्रनवगतम्‌ “कन्ता'*- इत्यवगमः “श्रय या etar—e yaaa’) खचोकस्याग्रेविेरषा देवानां संवादद्क्रम्‌¶, तचयं विघेदेवाना माष॑म्‌। wear

* अम के ,१, ९) २, ९, ९६९; UE UC) “Emre Tt पि मनोन्ननबे्ठयोख्िष"”- दूति मेदि नौ |

+ “S wuts” ङ, |

{ “मनकदितभासंक, ख, a1

§ ute ४४० ge ve Ye |

|| we Wo &, ९, ९९२, ₹।

शु qwy सायणः," सखद्कवयोक्न चं तेजिरोयत्राद्चदम्‌। 'अप्रेलयो wrefet धातर खासनम्‌, वे देवेभ्यो रथं वनः satan सेऽप्रिरबिभेदिःय वायस्य rf मा रिष्यतौति निरायत सोऽपः भाविष्त्‌ तं देवाः TH मेच्छन्चित्यादि (तन Ye ९२. ९. ९.)।

® दअ Kyo अखन] ANA कागडम | ९७९

‘a. saa’ श्रनि, ‘eta’ argtat Zarat एयिवौस्थामः। किं तस्य ? wfi—fe: a ‘ae भगवत श्रारित्यस्य ; safe सकाशात्‌ प्रातरारिश्यः प्रषयते। तदुक्रम्‌,- “एष प्रातः प्रसुवति तस्मात्‌ प्रातवापतिष्ठनत इति *। “यस्मिन्‌ za सुपलाशे (we सं ° ८,७,२ १,९.)--दत्थस्या श्टचि यमत्व मादित्यस्य वच्यति 1। किञ्च $ “कम्‌ श्रपि aw “क मघन्नम्‌ श्रभिवहति”। “कम्‌ इत्यस्ननाम 1, wa मपि we मेवाभिवहति कतमत्‌ ? “यत्‌” एतत्‌ विलक्षणं समश्नन्ति' “wana” “देवाः” श्रञ्जतिरज प्करणव्ाद्‌ भाजनाय | किञ्च $ wy Ra Tee’ अहन्यहनि afaetfaut wey setwarar aera ‘stad’ "मासिमासि जायते पिदटयनचेषु, “agae ऽङेमासे” cindy यस्मदेवङ्कुणवििष्टो ऽय म्भ, श्रय' waa कारणात्‌ एत म्नि सवं “देवाः दधिरे" “निदधिरे “दथवाहम्‌' विषां वेाडढार fame: | एव मत्र WANE "यमस्य'-दत्येतस्माख Frans ‘far cae “कत्ता” - इत्येष विपरिणाम उपपद्यते gear (Uefa १, अ्रनगतम्‌ | ` अरायु --दत्यवगमः | “ऊर्णौतेः"-दति धानि a: 1 ऊणम्‌'-टति सात्‌ “eater” खात्‌ ; तेम हि गभ आते भवति “मदन्तदुरव e—e grr © (“प्रिव शानरः WNIT, तस्य यद्रेतसः प्रथम मद्‌ दोपयत, तद्सावादित्योा- ऽभवत्‌" इति रे° प्रा० २, ९, ६०। { qo So कार १९,२,८।

{ श्भा० ४७९ Yo (१९४) व्र्टबम। 6 भान ४५८४० दपर |

२८० निवक्तम्‌। [पूबषटकम्‌,

द्व एक * | ‘ae? परिमाणतः, "तत्‌" ‘sed जरायु शश्रासोत्‌?, cafae विरन्तनञ्च तदासोत्‌ | येन त्वम्‌ "श्रावितः" श्रारतः, हे भगवन्‌ ! aa! %्रविवेज्निथः प्रविष्टवागसि ‘gay’ feed “रपः किष; “विश्वाः खग तन्वः तव, हे "जातवेदः !* (बहधा ' अनेकेषु अभिधानेषु arate: श्रपण्यत्‌ “एकः देवः" प्रजापतिः, केऽन्यस्ततः तव तनुना मनतं ay मदेतोव्यभिप्रायः एव मच "जरायु" “wea श्देनो श्यते, श्ावेष्टमसम्बन्धा दिल्युपपद्यते tt

“चो सम्‌(*१९),--दति , श्रनवगतम्‌ “शपगतभाषम्‌'”- इत्येवमाद्याः शब्दसमाधयः। (एयिवोः-श्रभिधेया; सा fe रृष्ण- च्छाया { तस्मादपगतभास मिव्येवमाद्याः शब्दसमाधय उपपद्यन्ते (awit

ferarft da म॑वारयेथां पितुमती मूज्नं मसा अधत्तम्‌ छबीसे अनि मश्चिनावंनीत मुन्निन्यथुः सगणं wafer हिभेनेदकेन stars घंस महर- SAN AAA चास्मा ? Gr मधत्त AAA योऽय wie एथिव्या मभरिरन्तरोषधिवनस्यति्ठष्तु afer ay: aaa सर्वनामानं AAT गणनाहुणख TEE

: e e ~ afi |

eae’ fic aera aifafen: प्रमिवेरियापः। fear अपद्‌ बधा ते अप्रं mated C4 wai ॥००-- दूति We सं* ८, ६, ९०, १।

+ र्मा BYE Te ove |

{ ““लसरब्डायाः› ऋदौपे = अपनतप्रकागे, TET —GTeures

“ma”? a

श्र cate स्ख] नेगमं काण्डम्‌ | ९८१

ओषधय उद्यन्ति प्राणिनश्च प्रधिव्यां achat ea नेता * स्ताति स्ताति\ (३६)।

इति षष्ठाध्यायस्य षष्ठः पादः €. ६.

“हिमेनाग्निं o—e aang स्वस्ति” कलोवत श्रावम्‌ freq श्राञ्धिनौ प्रतरदुवाकाश्चिनयोः wari हे ्रशिनो! ‘feay ““उदकेन'' श्रतिप्रश्द्धं “Tara”, श्रमिम्‌,, ‘dey’ “श्रः -लचणम्‌, दर्मांल्ञोकान्‌ दिधचन्त भिव, युवाम्‌ “श्रवारये- थाम्‌" afar "पितुमतोम्‌' “श्रन्नवतोम्‌”” पुराडाग्ाद्यन्न- सरिताम्‌, ‘SIT श्राज्यलकणाम्‌, यवाम्‌ “TUT “WE BAe इविभाजे ; वषोनुग्रदपूविकया श्राषधिनिष्यत्या। किञ्च; “wal- से afl मधिनाव॑नौतम्‌” युवा मेव हे श्रधिन!' “योऽयम्‌” ‘aA ““एथियाम्‌” अभ्निरतुप्रविष्टोऽन्तः, येनेमानि प्यिवोगरभषु उपनिहितानि तिन्दुकादोनि पच्यन्ते, मवेच्योक्रम्‌,-“खबोस- पक्र arta” इति तम्‌ उत्‌ निन्यथुः? य॒वाम्‌, श्राषध्या्च- न्तव॑त्तिन मोषध्यादिरूपेशीव ‘aan ““सर्वनामानम्‌”” fata wa मनेभोषध्यारिरूपेणावखितः, सवे नामभिः winged, si: सवेत्पत्तिदण्नात्‌ ! ama पुरोधाय उन्निन्यथः? दति,-

ऋण सं ९, cee { “प्रि देवयेानिः, खोऽ््ररदेवयेान्या wrsfa ene हिरमरौर ed:

सगन्ाक मेष्यतोतिःः- इति, "रपः सवे देवताः" एति | Te wre ९,९, ३। 36

RGR ` गिरक्नम्‌। [पवेषकाम्‌

+खस्ि' खस्यथमायास जगतः ; सओषध्याद्यभावेग हि a मेव an- CHR एव मच ‘eae way “प्रथितौ "-रृतयु्यते

“गणः, गणनात्‌” ; हि गण्यते बह्संयोगात्‌ “quay” णोऽपि गणनारेव ; श्रपावपि दि गखत एव, दविरणः, निगणः दति निगमप्रसक्तं मेतदुक्रम्‌

STE मन्त AAT TEM मार,-“यद्‌ दष्ट Save उद्यन्ति प्राणिनख एयिव्याम्‌ तदश्चिनो रूपम्‌” asfa- नोरधिकारः, तदश्रिनोमहाभाग्यम्‌ | “Aa” माहाभाग्यलष्वोम wit “एते” अश्वि ware “सेति” (द६)॥

इति निरक्रटन्तौ एकादप्राध्यायस्य (षष्टाष्यायष् t ) षष्ठः पारः ६,६॥

इति ग्रोजमूमागाखरमवामिनः श्राचायं-भगवहु गख एत च्छ्वथायां निर्क्ररन्ना एकादशोऽध्यायः (षष्टोऽध्यायः t) समाप्तः॥

~ --- “~~ -- * ---- - ~

“न्द्‌ माष्यानम्‌ ।- अति खपि age: गतहारे Tera? प्रवेश्य छषाभ्रिमाबापिषत सदानं तेन पिष सूतावश्जिन।वग्नि मदकेनेापशमय्यत wig पौडायन्तरग्टहाद्‌विकलेन्द्रियवमेः सनतं निरगमयता faftw’—xce wey खाम्भा,

t, J श्भा ६४९३० 1" quae

> श्न दपा. सखम] ANA काण्डम्‌ | RTE

\ R R 8 ( त्वमग्मेऽलाठृण्डड हाऽऽजासउपलप्रिणोकारूरह- हते ._ १९ १९ ९१ मस्मेतेश्रायन्तदवाश्रवेःदसेमानमिन्द्रासामाकणुषतां- ९४ ९४. ९१९ ९७ १८ र्‌ me अध्वरेऽस्तिहिवेाऽछत्तप्रवाच्छास्प्रसुश्े Ia ्रस्मा- ९१ RR ९९ ९४ ९५ न. असाददुतन्नक्तुरोपहिनेतामतमात्वानपा पासेायवं- ९७ १८ ९९. १६५ , ८९ _ RR इकेणजी वान्नोबतेषेुं नाऽरायिकाणेवा मंवामं किन्तेतु- | Re २५ Re विक्षन्तेनिराविष्यद्ययेदिमेनाग्चिं षट्‌ चिंशत्‌॥ *) इति निरक्ते yaa ष्ठोऽध्थाधः

(यावन्तो मन्त्राः सव्राखासु, तेषु यानि, गणपदानि लकषणा- रेतः, तानि ख्वीण्ठेव व्यास्याताति॥ 1)

( मगमं BIS VATA)

इति नेरुक्तपु्व हं समात्तः 1

ER

* gute १४९ ge ^+? gama |

रषोक्तिख eftadisa Saas, पर मध्यायसमात्िखचक मितोत्यादि- अाकयाद्ममार मलि क-ब-व-पुखकेष; ख-पसके तु देवत-यःखयारममापक्रमे; | te VRATH BT |

क-ख-पसकयेरेवेष TST ea, अन्यज (न-व-क-च-पुखकेष्‌) कि मपि

(उति पुव॑षद्कम्‌) `

(अथ उत्तरषट्‌कम्‌ )

अथ सत्तमाध्यायः *

नब,

ll Waa. पादः Il

ed 5 ee

ॐहम्‌॥ अ्रथाते देवतं तद्यानि नामानि प्राधा- न्यस्तुतीनां देवतानां तदेवत मित्याचक्षते सैषा देवतापपरीक्षा यत्काम कषियस्यां देवताया माथ- vat भिच्छन्‌ स्तुतिं प्रयुङ्के तदेवतः मन्तो भवति तास्िविधा ऋचः Tiree प्रत्यक्षल्लता आध्या- fame तच trae सवाभिनामविभक्तिभिर्यु- च्यन्ते प्रथमपुरुषे श्वाख्यातस्य १॥

° ख-पसाके तु खतिस्तत्यध्यय रवा सप्तमलेन Baya, अध्यापयन्ति लयं वागेकाचायाः। परः ag समोचौनम्‌ ; निषष्टो तन््ूशदभ्नाभवेन तस्य परि- शिषटरूपत्वात्‌, तदुपक्रमे र्व “व्याख्यातं दवतम्‌-दूति दशना दवतकाणडा- यके ्रषटकात्पर मेव ag निवे म्बाय्यः।

“ata” च, घ-नाम-षतिपरकेच

८९ निक्तम्‌ | [उत्तर षटकम्‌,

ॐनमः ° (समाप्तः चेकपदिकं प्रकरण मघ्यानरैवतं तद्भवति यस्याय मादि; ““श्रथातो वतम्‌” tf) (धावन्तो मन्त्राः सवशाखासु, तेषु यानि गृणएपदानि लक्षणादेश्रतः, तानि edraa व्याख्यातानि ) इयोः प्रकरणयोः-मघष्डुककपदयेोः ; संविन्नातपदानि तु प्रधान- स्ततिभागदेवताविषयाणि saa, सवेमन्टेव्वव्िव्यन्ते; तानि च॒ पुनरमूनि समाल्रातान्यसिज्कछास्ते भ्रन्यादौनि देवपल्यन्तानि १। अतसदयाचिष्याषयेद मारभ्डते।-- ll) “श्रयातिरैवतम्‌"*--शूति “च्रय-श्ब्टोऽधिकारार्थः। शश्रतः-गन्दः क्रमे, VAT aT) प्रकरण दयादनन्तर भिद aa समाश्लायागक्रमप्राप्रं याख्यातव्य मित्येवं क्रमे; दवत मन्तरेण शक्यो दवतापदायः सम्यगवबाद्धम्‌, देवतापरिश्चानातुवद्धस्तखिलः पुरुषां wa; देवतं प्रकरणं व्याख्यास्याम इति वाक्यशेषः a | ` एवं Bar श्राह; किं aad uaaPad प्रफरणम्‌? ईति, खच्यते,- “तद्यानि ° ---° faaread” याभि नाभानि प्राधान्यस्ततोनाम्‌' श्रग्यादौनां देवपल्यन्तानां aaa’, ‘ag’ दैवतं प्रकरणम्‌ - ‘efa’ एव माषायाः शश्राचेखते'; निरूढा रोघ मेतस्िन्‌ प्रकरणे सञज्ञत्यभिप्रायः

* STRUTS रषः; GWT yg कोखकादिमेरेन मङ्लाचरदमेदः सच WHIT ; UMAAT मङ्लावरशन्वादावेवकच (भा० ९४०) |

क-म-घ-परकष्वितः प्रख्य टेवष पाठः (९८९ ve Bas) |

{ शमा ६४५ - १४९ श्ठयोद्रहयौ |

§ १भा० ४४९ Wate veo इढान्तानि |

| नास्येवेबोपक्रमपन्यः क-म-घ-पुखकेष

OUe Lue रय.) नेगमं काकम्‌ | ace

ry

सेवा देवतोपपरो्ा”। सा, या पुरस्तात्‌ प्रकरणएमातचरयोपन्याखे aqea मिदं देवताना मप्राधान्येनेद मिति-“तद्चानि नामानि प्राधान्यम्हतौनां देवतानां तद्‌ रैवत भित्याचक्ते, तदुपरिष्टाद्‌ व्याख्यास्यामः" दति प्रतिज्ञाता सा, इदानीं प्रकारणदर्ये जिक्र यथाप्रकरणोपन्यासेनेवावसरप्राप्रा, सामान्यविश्ेषतः खलकण- सतवोपपत्तिभिः एकैकस्या देवताया उपगम्योपगम्य atta; वतिय्यत इति वाक्यशेषः ईद भिहेक्रम्‌+- प्राधान्यस्त॒तिभाञ्ि यानि देवताभिधामानि, तक्समुदायो दैवतं प्रकरणम्‌ †, तर्‌ व्याख्यास्यामः ईति) तस्य पुनरिय मेव समासतो यास्या यद्रेवतोपपरौषणम्‌, तदभिघानययुत्यत्ति-तस्सतल्युदारर ण-तन्निवैचनानि

तस्पृमरेतत्‌ सवै मपि मन्ाधिदेवतलवण HERAT श्क्यं ग्यास्यातुम्‌ ¶, मन्त्राघौनलयात्‌ सर्वस्यास्य ; श्रता मन््रदेवतालक्षण- विदिधाग्यिषया ब्रवोति ;-'"यत्काम०--° aafa” यदथवम्तु कामयमानः, “खविः' “यां देवतायाम्‌ ' श्रभिष्टुतायाम्‌, ‘area ्रयेपनिभाव मात्मनः ‘cae’ ayer देवताया; प्रसारेनाह

= = re ee ee ~ = = ~= = = = = - “~ ~ -~ ~--~- ~~~ ~= ~ ~ = ~ -~ ee eee -~ ~

कमार १४९२ Te ode ( qo ¶पा०् ण)

तच प्रकरणदय्म, पूवेषटकानमेतं, पूेभागाकमेतं पूवेचानमेतं, वा मैष- ण्डक HART नाम पभा ०३० रेभा ° ९८६ २० FINA

{ निषष्टुषद्चभाध्यायात्मकम्‌, खजव अन्न्यादौनि देवपलाकानि ईवताभिधाना- fa समानातारनि र्भा" ४५९ ४९० ge ) |

नाख्येब पाठः aT ge I - | तचे देवतेापपरोचकं दतोयपादान्तम्‌. ततस ““खथातेऽनुक्रमिष्यामः- इत्यारभ्य विभेषत। य।दख,नम्‌।

T अः- र्भा (re ae) wwe Cate wwe, (र८्८्ए०) एखन दपा UM |

acc निरक्तम्‌ | [डत्तरषटकम्‌;

aga पतिभेविथ्यामोत्येतां बुद्धं पुरेधाय ‘afi rR’, “तदवतः' एव ‘a मन्तो भवति, ° एतत्‌ मन्ते देवतालचणम्‌ | एतेन लस्तणोन waaay Tada | श्रथ वा देवताया AWE देवता दातं समथेति जानानः afi sag येन aaa, सा प्राधान्यस्ततिभाग्देवता सा पुनरियं स्हतिः, चठुविधा -नाषा, वन्धभिः, कमेणा, रूपेणेति ; “स्ततिनामरूप-कम-वन्धुभिः,"- ROAR

एव हि प्रायेणातितरा मपि हिताथोः, तथा यजुषि; arg fe विज्नातासु ayaa fama भवन्ति aang एव wey aalfa ;-“तास्तिषिधा वचः" दति याः काञ्चन सर्ववेदेषु “छचः', ‘at’ war श्रपि ‘fafa’ भवन्ति

तद्यथा ;-““परोच्तरताः, प्रत्य्तताः, श्राध्या ्िक्यखः- दति

तत्‌ Sf सामान्यत उदिश्य seat प्रत्येकं लकणतेा बीति, उदाहरणे दभ्यति i ‘aa af विष्ये पराचषकताना wer मेतक्षच्तणं भवति ;-—‘atranan o——e खाख्यातखयः* ॥९॥

© “घ॒ मन्त्रोऽथाद्‌ भवतिः? ख-नाम ह° |

wat देवतापरिन्नागायत्ु देवताध्यायनाम रैवतं वा प्रसिडं सामरेष्णेयं पश्चमं awe मेव वि्यते। तथा fe aes ज्राद्यणपन्धस्य wes धूनिकाया माड VAG, AMT WYANT AAI TT | VIA ASHE प्रथा व्या क्रियवेश्वना॥ सानां निषनभेरेन देवताध्ययनाद्यम्‌। प्रन्धोऽपि नामताऽन्बवा टेवताध्याय Tua इत्याद लस्य fe aye मार्मवाष्यम्‌,-^अधि- fox: प्रजापतिः शमा वदशस्वशटाङिरसः पूषा सरखतोन्दरप्रोःः-- दति “रताः खामटेवता इति शेषः” --दए्ति तदुग्याष्यानं षायशोयम्‌।

Narada Smyiti (8१08. ) Fasc ` ` छ,

ति 9६४४ Daréana, (8908. ) Fasc. I and III @ /10/ each ०५ Ni{tiséra, or ‘The Elements of Polity, By Kamandaki, (Sans.) Faso. II—V Parigishtaparvan (Sans.) Fasc. I—III @ /10/ each ०० Pingala Chhandah Satra, (Sans.) Fasc. I—III @ /10/ each... = ०५ Prithiréj Résau, (Hindi) Fasc. I—V @ /10/ eac lee ०० ` Ditto (English) Faso, I oe ree Péli Grammar, (English) Fasc. I and II @ /10/ each ve Prékyita Lakshanam, (Sans.) 7 I oe ०१ 1688179 Smriti (Sans.) Fasc. I—III @ /10/ each 82 - ०७ Sranta Sdtra of Apastamba, (Sans.) Fasc. I—X @ /10/ each . ` ०, Ditto Aévaléyana, (Sans.) Fasc. I—XI @ /10/ each de Ditto Léty4yana (Sans.) Fasc. I—IX @ /10/ 6407 . ००

Ditto Sénkhéyana Fasc. 1, (Sans.) =, Sana Veda Sawhité, (Sans.) Vols. I, Fasc. 1—10; II, 1—6; III, 1—7;

IV, 1—6; V, 1—8, @ /10/ vach Faso ry Sahitya Darpaya, (क; Fasc. I—1V f : Sankhya Aphorisms of Kapila, (English) Faso. I and II @ /10/ each .. Surya Siddh&nta, (Sans.) Fasc. IV oe ०९ “क Sarva Daréana Sangraha, क, Fasc. IT ०५ oo te Sankara Vijaya, (Sans.) Faso. II and III @/10/each === ,, ==, ee. Sénkhya Pravachana Bhéshya, (English) Faso. III , ०, : , ०, 8811४08 3679, (Sans.) Fasc. I i ae eh ०१ Suéruta Samhita, (Eng.) Fasc. I and II @ 1/each ewe Taittiriya Arnnya Fasc. I—XI @/10/each .. ००. oe

Ditto Bréhmana (Sans.) Fasc. I—XXIV @ /10/ each .. oe Ditto Samhita, (Sans.) Fasc I—XXXIII @ /10/each.. - ve

Ditto Prétiéakhya, (Sans.) Fasc. I—III @ /10/ each

Ditto and Aitareya Upanishads, (Sans.) Fasc. II and III @ /10/ each ,

Ditto Aitareya Svetéévatara Kena 168 Upanishads, (English) F

1 and II @ /10/ each 9४ ०१ Taéndy4 Brébmana, ( 88208.) Fasc. I—XIX @/10/each १, == ` oe Tattva Chintamani, Faso, I & 11 (Sans.)@/10/each ०, ,. ००.

Uttara Naishadha, (8818. ) Fasc. LI—XII @ /10/ each 94 Véyu Purdna, (888. ) Vol. I, Fasc. 1—6;.Vol. II, Fasc. 1—5, @ /10/

each Fasc ae ०५ ee Vishnu Smriti, (Sans.) Fasc. I—II @ /10/ oe Yoga 8४४४ of Patanjali, (Bans. & English) Fasc. I—V @ /14/ each ` ,* ` The same, bound in cloth "9 od ०. te ve Arabic and Persian Series. *Alamgirnémah, with Index, (Toxt) Fasc. I—XIII @ /10/ each ae Ain-i-Akbari, (Text) Fasc. I—XXII @ 1/4 each ` ` 54 ~ Ditto (English) Vol. I (Fasc. I—VII) 1 | oe Akbarnamah, with Index, (Text) Fasc. I—XXX @ 1/4 each ee Baédsbaébnamah with Index, (‘l'ext) Fasc. I—X1IX @ /10/ each a

Beale’s Oriental Biographical Dictionary; pp. 291, 4to., thick paper, 4/12; thin paper... Dictionary of Arabic Technical Terms and Appendix, Fasc. I~XXI.@ 1/4 each ee ee \ 9 eco Farhang-i-Rashfd{ (Text), Fasc. I—XIV @ 1/4 each Fihrist-i-Tdsi, or, Tusy’s list of Shy’ah Books, (Text) Fasc. I-IV @

1 2/ each .. ति *$ 00 निनि ४११ (Text) Fasc. I~IX @ /10/ each .. a Ditto Azddi, (Text) Fasc. I—IV @/10/each ==, ०५ Haft 4 शह, History of the Persian Mansawi. (Text) Fasc. I ` ०, History of the Caliphs, (English) Fasc. I—VI @ 1/each .. ^. lee. Iqbalndmah-i-Jahangir{, (‘Text) Fasc. [—III @/10/each . .. 1१87080, with Supplement, (Text) 87 Fasc. @ /12/ each .. 218818६1 of Wigidi Text) Fasc. I—V @ /10/ ९400) = ०, ` `

Muntakhab-ul-Tawérikh, (‘Text) Fasc. I—XV @ /10/ each ` ०५

Muntakhab-ul-Tawérikh (English) Vol. II, Faso.1 & वा @ 1 each ..

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Muntakhab-ul-Lubab, (Text) Fasc. I—X VIII @ /10/ each, and Fase.

XIX with Index @ /12/ ae Mu fsir-i-’ Alamgiri (Text), Fasc. I—VI @ /10/ each cs Nukhbat-ul-Fikr, (Text) F

Nizgémf's Khiradnémah-i-Iskandar{, (Text) Faso. land II @1/each .. Suydty’s ४4849, on the Exegetic Sciences of the Koran, with Supplement, (Text) Faso. II—IV, VII—X @ 1/4 each’ .. a: ४७ Tabagét-i-Nasirf, (Text) Faso. I—V @ /10/ each es ‘ss Ditto (English) Fasc. I—X1IV @ 1/ each ee Tarfkh-i-Firds 30411, (Text) Fasc. I—VII @/10/each = ,, es क. (Text) Fasc. I—IX @ /10/ each ०१ ०५ Wis 0 16000, (Text) Faso. I—V @ /10/ each: .. we es Zafarnamah, Faso ee र: Sie oe ०७

ASIATIO SOCIETY'S PUBLICATIONS Asiatic Resnancues. Vols. VII, [X to XI; Vols. XIII and XVII, and Rs

_. Vols. XIX and XX @ /10/ each Ditto Index to Vols. I—XVIII

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Proosxzpinas of the Asiatic ak from 1866 to 1869 (incl.) @ /4/ per `

No.; and from 1870.to date @ /8/ per No

JounnaL of the Asiatic Society for 1843‘(12), 1844 (12), 1845 (12), 1846 (6), 1847 (12), 1848 (12), 1849 (12), 1850(7), @1/ per No. to Sub- scribers'and @ 1/8 per No, Non-Subscribers ; and for 1851 (7), 1867. (6), 1858 (8, 1861 (4), 1864 (5), 1866 (8), 1866 (7), 1867 (6) 1868 (6), 1869 (8), 1870(8), 1871(7), 1872 (8), 1878 (8), 1874 (8), 1875 (7), 1876 (7), 1877 (8), 1878 (8), 1879 (7), 1880 (8), 1881 (7), 1882 (6), 1883 (6), 1884 (6), @ 1/8 per No. to Subscribers and @ 2/ per No. to Non-Subscribers. =, .

क, B. The figures enclosed in brackets give the number of Nos. in cach Volume

4. 0 Review of the Researches of the Society from 1784—1883 .. 6. General Cunningham’s Archsological Survey Report for 1863-64 (Extra No., J. A. 8. B., 1864) 6, Theobald’s Catalogue of Reptiles in the Museum of the Asiatic Society (Extra No., J. A 8. B., 1868) 7, Oatalogue of Mammals and Birds of Burmah, by E. Blyth (Extra No., J. A. 8. B., 1875) ac 8. Sketch of the Turki Language as spoken in Eastern :Turkestan, Part II Vocabulary, by R. B. Shaw (Extra No., J. A. 8. B., 1878) 9, A Grammar and Vocabulary of the Northern Balochi Language, by M L. Dames (Extra No., J. A. 8. B., 1880) ०७ 10, Introduction to the Maithili Language of North by G. A. Grierson, Part I, Grammar (Extra No., J. A. 8. B., 1880) . Part II, Ohrestomathy and Vocabulary (Extra No., J. A.S. B., 1882}. ° 11. Anis-ul-Musharrihi oe ee ee ee 12. Oatalogue of Fossil Vertebrata 13. Catalogue of the Library of the Asiatic Bociety, Bengal = ९, 14. Examination and Analysis of tho Mackenzie Manuscripts by the Rov. _ W. Taylor .. ve 15. Han Koong Tsew, or the Sorrows of Han, by J. Francis Davis ०७ 16. 11६006४ ०-§6 क, edited by Dr. A. Sprenger, 8vo se 17. Indyah, a on the Hidayah, Vols, II and IV, @ 16/ each .. 18. Jawémi-ul-’ilm ir-riyazi, 168 pages with 17 plates, 4to. Part I sca 19. Khis&nat-ul- ilm oF ee ee eo 20, Mahébhérata, Vols. IIT and IV, @ 20/each =` ,, 21. Moore and Hewitson’s Descriptions of New Indian Lepidoptera, Parte I—II, with 6 coloured Plates, 4to. @ 6/ each ०५ 22. ६18 Sangraha, I (Markandeya Purana), Sanskrit ` | > 28. Sharaya-ool-Islam ee ee ee ee ee D4, Tibetan Dictionary . 99 ee . °च ee ee ¦ 25. Ditto Gram ee ee ee. 26. . Vuttodaya, editedby Lt. Col. G. E. Fryer ०५ oe oe Notices of Sanskrit Manuscripts, Faso. I—XIX @ 1/ each.. ee

Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. R. L. Mitra $

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BIBLIOTHECA INDICA; ` &

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PRINTED BY J. W. THOMAS, AT THE BAPTIST MISSION PRESS.

PUBLISHED BY THE ASIATIO SOCIETY OF BENGAL. ` New 328, No. 568

सभाष्यदत्ति-निरुक्षम्‌। =. .-

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THE NIRUK YA. --

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EDITED BY oe : PANDIT SATYAVRATA SAMASRAMI.-——~~ VOL. III. FASCICULUS IY.

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AND PUBLISHED BY THB ABIATIO SOCIETY, 57, PARK ATREBT,

1886. eee edie

LIST OF BOOKS FOR SALE

AT THE LIBRARY OF THE

prsiartic SOCIETY OF PENGAL,

No. 57, PARK STREET, CALCUTTA

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si) 0 Sanskrit Series Atharvana Upanishad, (Sanskrit) Fasc. I—V @ /6| each .. Rs. Agni Purana, (Sans.) Fasc. I—XIV @ /6/ each : Aitareya Aranyaka of the Rig Veda, (Sans.) Fasc. I—V @ /6/ each .. Aphorisms of 88701158. (English) Fasc. I Aphorisms of the Vedénta, (888. ) 2980. 1111-1 @ /6/ each ०७ Brahma Sitra, ( English) Fasc. I ee ge ee oe ‘Bhémati, (Sans.) Faso. I—VIII @ /6/ each oe Brihad Aranyaka Upanishad, (Sans.) Fasc, VI, VII & TX @ /6/ each .. Ditto (English) Fasc. II—ITI @ /6/ each es oe Brihat 8901166, (Sans.) Fasc. I—III, Y—VII @ /6/ each ., ५७ Chaitanya-Chandrodaya Nataka, (8828. ) Fasc. II—III @ /6/ each Chaturvarga Chintaémani, (Sans.) Vols. I, Faso. 1—11; II, 1—26; III, 1—18 /6/ each Fasc ' oe ee ee Chhaéndogya Upanishad, (English) Fasc. II .. ow ee Daga Ripa, (Sans.) Fasc. I—III @ ^| each a. | ve QGopatha Bréhmana, (Sans. & Eng.) Fasc. I and II @ (९ each ०७ Gobhiliya Grihya Sidtra, (88.08. ) Fasc. I—XII @ /6/ + oe Hindu Astronomy, (English) Fasc. I—III @ /6, ०७ ee K4lamédbaba, Fasc. I and II @ + 99 ` oe ०9 ee Kathé Sarit Sagara, (English) Fasc. I-XIII @ /123/each .. = ०* Kurma Porana, 0980. [ . , ०५ ०५ Lalita Vistara, (English) Faso. I—II @ /12/ each ०५ . ee Manutik4é Sangraha, Fasc. I ia ee oe 21108 8६ Dargana, (Sans.) Fase. II—X VIII ah eer ०७ Markandeya Puréna, (Sans.) Fasc, IV—VII @ /6/ 560 =, ००

` Nyisimha 'l'épan{, (Sans.) Fase. I—III 6/ each Nirukta, (Sans.) Vol. I, Faso.1—6 ; Vol. II, Faso. 1—6,Vol. ITI, Faso. 1—3,

@ /6/ each Fasc ^. a 9 Nérada Smriti, Faso J and II @ /6/ 90 ee 99 Nyéya Darfana, (888. ) Fasc. II1 ०७ oo ee

(Continued on third page ef cover.)

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1.01 ङ्क्ष शार देवतं "व 14 धा व°] दवतं कार्छम्‌। (1५1 व्ह

इन्द्रौ दिव wx ईशे एथिव्या इन्द्र मिङ्गाथिने बृदिन्द्र॑रेति aaa वेविषाणा इन्द्राय साम॑ गायत्‌ नेन्द्राहते vad धाम किष्चनेन््रस्यनु वीयाणिप्र वाच fas कामा अयंसतेत्यथ प्रत्यक्षरुता मध्यमपुरुषयो- mea मिति चैतेन सवैनान्रा त्व मिन्द्र बलादधि विन इन्द्र धा जदहीत्यथापि प्रत्यक्षता स्तोतार भवन्ति पराक्षक्ततानि स्तैतव्यानि। मा चिदन्यहि WHA करवा Af प्र गायतोाप Ra कुशिकाञेतयध्व मित्यथाध्यात्मिक्य उत्तमप्‌रुषथागा अह मिति चेतन सवेनाम्ना २*॥

तद्यथेनान्यद्‌। हरणानि श्रानुपूरव्यणेव सप्रव्वपि विभक्गिषु oat दिवि श्च्येवमारोनिः;

न्द्रो द्वि °--° vy. T) रेणोवश्वाभिन्रस्येय माकम्‌ | Val faq) छयस्ठत्येकाइनिष्केवल्ये विनियक्षा। दन्द दिवः" ‘Sa’ tai ‘ca’ एव शएयिव्याः ईट tex? एव . “note te व्षक्मादिना। ‘ex’ एव “पवेना्ना' मेघानाम्‌ ईष्टे ‘ey एव ‘awa’ अ्रतिप्रद्धाना मपि ताना ale i ‘em’ एव

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छ-च-पकयोनाब खर्समातिः + “apr दिव cp tit श्यिव्यादइ्न्दरा शपा मिन्द्र रत्‌ पवतानाम्‌। ORT EW

fag confacregr Reg: Wa येमे wa cy दूति we We ८, ४, ९६, ६५। 37

९० निक्तम्‌ | (sucucwa,

ferret? agezar Me ‘ox’ एव हि "योगे' श्रथैखंयोगे प्राप्तये, ‘Sa ॒परिपाणने ana ‘yay’ श्राकातव्यो नान्यः afagau: wand मित्यभिप्रायः प्रथमाया मेतटदाहरणम्‌। इन्द्र इत्येतस्रादुपपदा दोग Tae प्रथमपुरुष इति प्रतौयते, नोत्तम- पुरुष इति

“ge मिद्‌ ° ---° qua’? मधुच्छन्दस श्राम्‌ महा- ब्रते महद्क्ये शिरसि swat ‘afar’ सामगाः! ‘cx far इन्र मेव युयं हहता सान्ना अभिष्टेत यूय मपि होतारः! Cafes "अर्केमिः' शर्के्ैग्भिः मनः नर मेवाभिदत। wa मपि हे श्रध्वयवः। इन्र मेव वापोभिः' वभ्मियञुमयो- भिः 2 Sanaa’ श्रभिष्टत दितोयाया मेतद्‌ दारणम्‌

“दशते °--- ° सदा" इति टतौयस्या मुदादरणम्‌ व्याख्यातः ta:

“eas Tae --- ° पनस्यवे” | नुमेधस श्राषम्‌ | साजिकेव्वहःसु स्तोजियानुूपवगे दर तोयघवने ब्राह्मणा ्छंसिनः wea विनियुक्ता |

* “gy सिदु मायिने वरदन मकम रकि) ket arey रगृषत ॥**-- इति we yo १, ६, ६९, tI

“ना भिडि warae (we षं ४,०, po, i. Ure Yo we Te ३, 8, ४, ९.)”-रत्यस्या SENT बृ इच्चासकेनेत्यथेः। तथ साम खरण्फमाने ( ९, ६, ९० ) ब्रह्म

t ‘aqua? “ee: wat भवति "एत्या युद पुरात्‌ १९४०

§ \भा० ०४६४० र्य. १९८० (६९)। | पु* We Te (CWo eye rue) Re |

T “ogra wird मायत्‌ विभाय ged seq मुतेः विपदितें cree +“ दति we सं* ९, 0, ९, ९।

Oe wgqte Awe] देवतं काणम्‌ | REL

हे उद्गातारः! ‘era’ avara ‘area’ ‘fagra’ मेधाविने ‘eed’ aed ‘yaad’ छतधमेणे “विपश्चिते विदुषे ‘qed’ पन इच्छते, श्रात्मनः स्तुति भिच्छते age मेतदुदाषरणम्‌ किं qa’? रेर्वरश्वामिवस्येय माषम्‌ पावमानौ stati जगतो यथा र्यस्य रश्ययस्तमर्मां द्रावयि- ay ATAU, एव मेते ‘AYU सोमाः, पापानां दरावणएणोलाः | faa; ‘naa’ naar एतेष्टेचिग्पिः "साकम्‌" ce प्रति “रतेः गच्छन्ति इत्यथः गत्वा "तन्तुं ad’ तन्तु मिव तन्ववयतवाः “परिमगासः' श्रावः परिष्टताः ‘aur again, एष मेतं पातार fag खामिनं प्रत्यमुवन्ति वयाभरुवन्तोत्यथेः कस्मात्‌ पुन- रेवं क्रमः? इतः,- यस्मात्‌ ‘Area सोमः प्रातःसव्नादौरनां सोममवनम्थानानां किञ्चिदपि (शधाम'1) ‘aaa’ पूयते aque RAY, —TX Aaa व्याजरुउन्तोति पञ्चम्या मेतदुदाहरणएम्‌

५६ सय न्‌०-- ०पवतानाम्‌" हिर्यपश्येय माषम्‌! निष्केवस्ये aad ‘exe’ we 'वौयाणि' वीरकमेणि ‘9 वेचम्‌'। ‘arf “चकार 'प्रयमानिः seagate wea ‘aay ase: |

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* “earn रुमया xrafamat मल्पृरासः TEU: साक AI लन्‌ ` ततं परि. wale Get AEA पवत्‌ धाम्‌ किचन दूति we सं००,९,

» XI “इन्द्रस्य Weal UIs Cquifexa eo—e धरिया waif (ge are do ९१,४०)'-- रति मन्त्रवणादु गम्यते

{ oxy वभैयिला खन्यदेवग्ररौर प्रति मच्छतोति a7 chr we teat

इग्द्रस्य न्‌ Hae ware याभि खकार प्रथमानि aati अडत्रहि aa

«! e Tons VGA अभिनत्‌ पवेतानाम्‌॥ - एति we Yeu, ९, BF, १।

२८९२ निर्म | [उत्षरषट्‌कम्‌,

“अदन्‌ afer’ wa मेघम्‌ शरन ततद श्रपः' वों पनः Way -राभिनत्‌" Saga उदकवदनशिराः “पवेतानाम्‌' मेघानाम्‌ | एवमादौनि Taree fawe प्रवोच मिति ष्या मेतदुदाद- रणम्‌

“sg कामा श्रयंखत दिव्यासः पारिवा उत। aay गणता मरः ॥-इति। हे स्तोतारः! ये fear: कामाः,ये पाथाः, ते oR एव उपनिवद्धाः; तं प्रावतः; fe कामाना we) त्यमू षु' तं सुष्टु कामप्रा्यथे णतः स्तुत, ₹े acy’ सप्रम्या मेतदुदा दरणम्‌ `. उकं परेाच्छृतमन्तलच्वणं सादाहरणम्‌

अधुना प्रत्यचरतमन््रलक्तण मुच्यते; तदधिकारार्थाऽयम्‌ “त्रयः शब्दः “श्रय मरत्यव°---°सवेनाखाः "मध्यमपरुषयोगाः” मध्यमेन पुरुषेण aya ये war, ते प्र्क्वरताः। ‘a मिति चनेन waa’ dam, ते पर्यकच्टता; | यच fad शूयते, तचाविद्यमानाऽपि मध्यमः पुरुषोऽध्यादायः * ; यच त॒ मध्यमः पुरुषः श्रूयते, तचाविद्यमान मपि “लम्‌ः-दत्येतत्‌ सर्वनामाध्यादा- यम्‌ ; सम्बयिश्न्दवादनयोः “a fades बलादधि", “व इन्द्र wut जदि" “इति” चे उदादरपे ।-

“ल्मिद्र्‌ --- ° टषेदसि देवजामय: ani ददशः

* “मध्यमपरषयन्ा मष्डात मध्यादाय भित्यथेःः- दूति रौप | “ल मिन्द्र वलाद्धि सदसो ora Wg लनं षन्‌ वेदि इति we yo ८, ८, tt, eI

ऽप रपा" रवर] देवतं कागडम्‌। २९९

aad मशाराजिके पयाये प्रशास्तुः era विनियुक्ता रे दद्र! ‘ay "बलादधि जायसे' “खसः, च्रभिभवनसमयात्‌ *, “ats: तेजसः† fag; ल्व हे ‘ear वितः! ‘cur af वर्विता BATU:

"विन ददर ---* तमः” ty mae भारदाजस्येय AIGA | वेग्टधम्य विषो याज्या Bex! ‘fa जहि" ‘ay एतान्‌ ‘ayy’ muna? शचून्‌ किञ्च ; "नौ चा नोचे: “यच्छ' तान्‌ त- न्यतः' येऽसामिः we एतन्यन्ति, एतनां ad भिच्छन्तोल्यर्थः किच; ‘atsary “aft दासतिः श्रभ्युपत्तपयितु faa तम्‌ ‘suv ‘aa’ ‘naa’, amie: ||

°“श्रथापि०-- ° स्तोतव्यानि” 1 qumatate कचित्‌ स्तोतारः सम्बध्यते। तद्यया+-“मा चिद्न्यद्‌ वि शंसतः, “कण्वा शमि प्र गायतः “डप रेत भिका खेतयध्वम्‌”-इति' चेतान्यदाद- रणानि।-

“मादि —aiga’ प्रगाथस्येय arg बहतो aH

* “Saye? परेषा मभिभावकाद्‌ ‘werq’ खधिः- जातः खसि। wf: पचचम्यथानुबादकः | जादि बधदेतुभूनादु बशाडेतेस्त्वं प्रष्डयाता भवसौत्यथेः ।* tf ate ure |

+ ‘tere: खोजोगाम बररेतु हदयगतं येयम्‌, तख्माद्पि लं जातोऽसि ॥* —tfa aie Ae |

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t ‘‘fa a we aur जहि मोचा यच्छ्‌ raga ai War अभिदासत्यधरं गमया तमः।॥*- र्ति We Pe ८,८, yo ४।

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| ‘aut faaaa, तमः खन्ध्कार मरणरसणं 1499 9199" एति सान्भार

मा चिदन्यद वि सतु सखायो मा FUT न्द, q Ga wy BS स॒ते ABCA चख शंसत -टर्ति we Yo vy, 0, १०, १।

REB गिशक्छम्‌ | (Swcaera,

भोतिषु विनियक्ता ₹े स्तोतारः! “सखायः !› ‘ar ‘wad’ किं ‘faq’ श्रपि ‘aaa’ विविधाभिः स्तुतिभिः ‘ar चं ररिषष्छतः चेतसा मागच्छत Was देवतान्तरम्‌ * किन्ति ? “इन्धम्‌ इत्‌' इन्द्र मेव “टृषफं' वर्षितारं ‘ata’ स्त "सचा" aera, एतमिन्‌ ‘ga’ Mas ‘qs’ मुङश्च हे Bra! उक्थानि “a “शंसतः “HS वः:०--°गायत,' †। कठस्येय aay Reta हविषो याच्या “Hs” अचनपि दृषा चत्‌ क्रौडनग्नोलम्‌), "मारत? ‘ng: बलम्‌, “शअरनवाणम्‌' श्रमात्रित मन्य; खप्रभावयुकर मेवेव्यभिप्रायः, ‘aww रथे fad शोभिष्ठम्‌, ₹े "कणाः" मेधाविनः was: ! ll एतत्‌ ‘af प्र ग(यत' एतद्‌ ay वोम ॥. "“उपगप्रेत ° ou feet: faatfaadaq amar हे ‘ofan स्तुतिक्राष्टार त्वजः ! ** "उप प्र' ‘ca’ गच्छ "चेत-

* “or रिषच्छत। भा दिंसितारा भवत। खन्यदोयख्ठोजोषारणेन aT SUT at भवतः“ तिसा० ute |

t ‘mis वः शध मारत मनवे re रथे श्भम्‌ | कषा श्यनि FATA +१-- इति ° Geo ६, ९, ९९, ९।

{ "जतौढनन्तोरम्‌' a, “क्रौड विदारे Me पर), THT ।**-- दूति “fa- इरशष्योखम्‌'“- दति सार Wie |

§ “मदतां wate * * * यद्वा समृदायेऽनद्‌ाकदेरम “दति ate wie |

|| Sweatt ayia: ver मेधाविन afasr:”— दति ate ure t

“खपु प्रेत कुणिकाखेतयध्वु ay राये waqal सदासः। राजा EF छंङगत्‌ प्रापूगुदमया यजाते बर खा algae ॥*--दति we de २,९, ९; ६।

ee (द्ध Biter’ कुशिकमोज, तद्वा, Ta. दति are We |

Oyo Cyto ewe} देवतं Ww | २९१५

maw’ विजानीष्व मेतद्‌, ate: “राजा” ‘es wa’ ‘aa’ हतवान्‌, सवासु दिलु *, “श्रथ' एव सवैदन्ता श्रमिचो wat ‘av ae प्ररे “एथिगयाः' (यजाते?) यजते ते युथ मेतद्‌ fama उपप्रगच्छत | BIN चेत माश्चमेधिकम्‌ “WIE “Yaa Gay, विधानतः mteraduarmat: योऽय मेतस्िन्‌ ‘gary t RAMUS यजमाने वर्ते

एव मेतेषु यद्मर्गणपद प्रयोगेषु सम्बद्धाः सतोतारः स्तोतव्यामि यानि दृवनान्तानि, तानि परोाचहतःभिसम्बन्पौनि एवंक्ञल्णं मन्तजात Faraz

“sate —egta.” | उत्तमेन yea या वो युक्ता, ता श्राध्याद्धिक्यः। श्रद्--°्नाख्रा" या उक्राः, ताञ श्राध्या- fara जरापि धता मित्येतत्‌ खवेनाम yaa, तत्रा विद्यमान मपि दत्तमपरुषम्बद्ध area मध्या्त्तव्यम्‌; यत्र चोलम- एरुष्म्बद्ध माख्यातपद्‌ं श्रयते, तत्राविद्यमान मपि श्रदम्‌- wand सवनाम श्रध्याशार्येम्‌; सर्न्धिगश्टवादनयोः ९॥

यथेतदिनद्रो वेकुण्टी waa वागाम्भृणीय मिति(र?)

* मन्तस््ानां “प्राक खपाक CEN’ TTT मेव पदानां arena मेतत्‌ | सायष्स "पवेपञ्धिमेत्तरेष Btw व्याचष्टे, समौचौनतरद्चंतत्‌।

"राये" इत्यग्य। ख्यात मेव खितम्‌। सायणस्त 'द्गिविजयेन सनराभायः Woy Baraat

t "खुदासः*- श्त्येव मरूपाठः | प¶जवनस्य cw’ —cfh सायद्ौयोऽथैः।

§ «we दिलोयश्ष्डसमाक्षिः w-4-c wnat: |

Red निसक्तम्‌ | [उनत्तरषट्‌कम्‌ ,

परोक्ता: प्रत्यक्षरताश्च मन्ता भूयिष्ठा अच्यश AT ध्यात्मिका श्रथापि स्तुतिरेव भवति नाशवद्‌ इन्द्रस्य 4 वीयाणि प्रवोच मिति यथेतस्मिन खक्तं* ऽथाप्या- Wa स्तुतिः सुचक्षा अह मक्षीर्भ्या भूयासं सुवचा सुखन सुश्रतकणाभ्यां भयास मिति तदेतदहल माध्वयेवे यान्नषु मन्त्रेथापि श्पथाभिशपोा। अद्या मुरीय यदि यातुधानो अस्मि अधा वीरैदश्यमिविं य॑या santa कस्य चिद्गावस्याचिश्यासा। खत्यरासीद- aa afe तम श्रासीत्तमता गर्ह मग्रं | अथापि परिदेवना कस्माचिद्धावात्‌ सदेवा wey प्रपतेदना- इत्‌ वि जानामि यदि वेद मस्मीत्यथापि निन्दा- प्रशंसे | केवलाघो भवति केवलादो | भोजस्येद पुष्क fala वेश्मेत्येव मक्षखक्त दूतनिन्दा छषप्रशंसा चेव मु्चावचेरभिप्रा येक षीणां मन््हृष्ठयो भवन्ति

“यया एतद्‌” उदाहरण चय माध्याद्धिकम्‌,-^¶इन्रो ° fafa” एवमादि एव मणन्येऽपयाध्याल्िका मन्त्रा उपेताः | fag नाम श्रार्रो ara, तस्याः किल तपसः प्रभावेना- पत्यत fax श्रा जगाम); Agel नाम wa तस्यात्मस्हति-

* “quafergm” ©, tT “are”? ©, च्छु |

रण पाण देख °] रेवतं काणम्‌ | Ree

संयुक्र मेवमादि ब्रह्म WEVA *,—““ate—e भोजगम्‌" “श्रहम्‌' एव भुवम्‌” श्रभवम्‌ "वसुनः" धनस्य ‘Gen’ प्रथमः { "पतिः किञ्च; साम्परत aay मेव पतिः “wee एव Wa: सकाशात्‌ समस्तानि शधनानि' जयामि' 2 शश्वतः" नित्यकाल मेव किञ्च; ‘ary एव “हवन्ते श्रायन्त "पितरं a’ पितर faa, arg ताखानिषु जन्तवः" naan: fang; श्रम्‌ एव ‘age’ दसवते हवींषि, यजमानाय ‘farsi’ यथा भोजनम्‌, wa मिद्यथेः

“इति ate——eut fafa” || शबरुकते एव छने प्रवति, (ति वा दूति?) एवश्चैवश्च “मे aay’ ata श्रारः-कयम्‌? ट्ति। उच्यते+ "गा मश्वम्‌' गां wd “सनुयाम्‌' सक्माजयेम्‌ एतान्‌ यजमानानिति ada मतितरां प्रव्युपकाराभिप्राये सति किमे ga? कुविद्‌" as श्रं “समस sna इतिः

* “ay भव भित्येकाद्‌एष षष्ठ GWT! VARA BHAA छतो इष्ट सत्ि- दमादिर्ह्कचयेषड खय Aa ADT! AWE THAR वाक्षत्वादु "यस्य wet कषिः'- सूति foray ऋषिः ; कुष्डष्यन्द्रस्य सुयमानल्राद्‌ "या तेनोच्यते at taar— दति परिभाषयेन््ररव देवता 1°— cha ate ure | सामः aie TE |

“Gt ut wee qaafrqw धनानि सं जयामि nwa at वने

पितर" MMT ISS द्‌ाश्यषे वि भजामि der cht we Ue =, १, ४,९। “पः मण्य ऽसाधारखः- दति Ye Ure |

§ “ख मित्यकौोभके, ae जयामिति are भार |

|| “दूति बा दति म्‌ ममो ar aw समग्रा सिति। कुवित्‌ Sree fafa ॥* —<fa we Ge ८, ९, ९९, ९। “दति वा इति wane सप्रम GH मायच्म्‌। इन्द्रो रबरूप माख्याय save Fav तद्‌ मौ सविभिदष्ट' सम्‌ खात्रान मनेन SRNBANT | WI रवख्पापत्ररृन्दर षिः, रवदेवता।*- इति साग भार।

38

२९७ निखक्तम्‌। [उत्तरषट कम्‌,

Cay सुदरेभिः०--° मथनो भा".। वागश्चुणौये वागेव त्रवोति ‘ae एव ‘as’, "वसुभिः", “श्रादिव्यैः, (“व्रिश्वरे वेः?) fata 23: सड ता “चरामि स्हतिरूपेण ‘meq एव (‘faar- वरुणा) भिच्रावरुणो (‘sar) उभावपि, ‘cara, (“afaar) अभिनौ (‘sar’) उभावपि ‘fafa’ इविषा ; मत्पुवंकं Efe: सम्प्रदानं सवदेवताभ्य दत्यमभिप्रायः

““परोाच्छताः०-- ° प्रत्यच्तछताञ्च मन्तः”, भूयिष्ठाः णखा- न्तरेषु बद्वः ; “seam” कवित्‌ “श्राध्यात्मिकाः' लच्छन्ते Watt मेव way मधिहृत्य येऽभिव्यक्रास्तदष्ह शास्ते wren- त्मिका उच्यन्ते

“marta” कचित्‌ “afata भवति", “amare”; aa एनराभोया््या किं कारणम्‌ ? safe श्यं रतिः प्रयुज्यते राह, कि भुदादरणम्‌ ? sf) उच्यते,-““बद्रष्य०--णसुक्रे सं ° ९,७९.९) श्रच fe स्तुतिरेव श्रूयते, मान्नौः; पुनेयोज्येति प्रतिपादितम्‌ ।--। “safe” क्विद्‌ “anita,

* “यड युद्रेभिवतुभिखरम्यदड मादिग्येदत विश्वदवेः। ey भिषावर्णाभा विभम्यं fan We मञिनोभा॥५- इति शण do = © १९, १९।

“ay fae योदश सक्तम्‌ qaqa मदर्षेदुदिता creat ब्रद्यवि- SM खात्मान aalq, खतः fe: सक्िलुखा्मकः स्वेनतः परमात्मा देवता, वेन wa airy मन want सवजगद्रूपल सवस्याधिढाननन are ae खव भवमोति खावानंस्तोति।” - दूति साग ure द्द्‌ मवर्टवोङक्ृम' - दत्यच्ते माकष्छेयप्राणाकगतदेवोमारग्ये “Was परः लपन्‌," इति विधानात्‌ WANS सक्त्तिकायाः QI: sry प।ाठयवदहारय।

LS मवे qaqa मृखस्म्मते- aH, मरूपाठतस्यःवनतेर्वीलाभावात्‌।

OW पार देर°] देवतं काण्डम्‌ | REE

स्तुतिः" aaa,—“grare—-eyara fafa? -) “तदेतद्‌” एश्नत्तणं मन्तजातम्‌ “श्राष्वयेवे” वेदे ° “aga” प्रायेण दृष्यते “याज्ञेषु aay” कमंकरणेव्वितरयोरपि t बेदयो- रिषटा्नोरेव भवति, स्तुतिरेव केवला; यचाप्याज्ौरेव केवला, तचापि तस्याथेस्य या दवतेष्टा, तस्याः स्ततियीन्या किं कारणम्‌ ? ह्यनभिष्टूता देवता श्रागिषं ममद्यति |

“mala शपथाभिश्रापो" भत्रतः। “svat qita o——otfq”’ -रत्येक सुदाहरणं दइयोरपि वसिष्ठः किल राक्षस म-दत्यभि- am, सोऽनयश्चा शपथं प्रतिपेदे; परञ्चाभिग्रणाप)।

““्द्या° ---°नेत्याई 2 श्रधेवाहं wa; "यदि यातुधानः" स्याम्‌ ? यदि वा “ara? ‘aay’ तप्तवानदं कस्य चिदपि पुरुषस्य श्रय पुनरयातुधान मेव at सन्तं यो मोच मनुत यादुधानस्

* थजषैति याबत्‌ i

रभ Qa तुद्ित्यस्नाकम्‌; अथववेदस्याप्ररणात्‌ | ayer थे मन्ता साः सवा रव age; यदि waste सोमसम्पाद्यानां सजादौनां मालि दुर्भगं पर मस्येव तचापि कारोय्यादयो यागाः, सन्ति तेष awe सतिमन््ा ाण्तौमै- ATS अचय Waar मन्तेष?-रृत्यस्य “याजञेषः- दति विष्टेषण aga aa. यान्ता अपि मन्ता विद्यन्त एवेति यास्म परिखफटम। way “aga uy वेदा sen —ehe वादिनः प्राभाकराद्ये Matsa: परासाः।

{ “खबकेचिद्‌ज्ः'-इता Vana पूवं वसि्द्य मरत्ममः। वसिष्ठ" ce. खऽसि लं ष्ं ea माच्ितः। अङं वसिष्ठ wit जिघां राचसोाऽत्रकीत्‌ | GAA we ca वतिषटनेतिनः चतम्‌ः-द्ति।?- दूति we yoyo ०, Ble भा०।

§ “द्या भरो यदि यातुधानो अखि यदि. वायस्ततप पदषसम। ewrg वौरद्प्निरि war ar मामेष यतुषानेत्याड॥*- एति we dey oe |

१०० fray | [उन्तरषटकम्‌ ,

भियेव are, “सः” बोरे” पुरैः “दशभिः? fa यूयाः' विययात्‌ विवु- च्यता मित्यभिप्रायः

“श्रथापि कर चिद्‌” “भावस्य” sera “श्राविख्यासा?” wey भवति “नन ग्बत्यु--° चनास " * प्रजापतेः परमेष्ठिन श्राषम्‌ तम श्रासोदितौयष ti faeqi भावटत्तम्‌†

(“तरि प्रारात्पन्नेरष् जगतः ‘wae’ इत्ययं व्यपदेशो ‘areal’, AMMA a? “श्रपि'“श्रष्टतम्‌' इत्ययं ATTA Wal, Watt भावादेव टतरोतरापे्या हि श्टल्युश्चाग्टतं व्यपदिश्येते ‘a’ एव ‘cra? (“प्रकेतः"परन्नानम्‌ श्रासौत्‌, दयं राचिरिति नापि “ae | एते अपि wets यता भगवतो विवखत उदयास्तमयाभ्या सुपलच्छेते ; तदभावे येते श्रपि aren मित्येतदुपपद्यते श्रार--श्रय किं मासौत्‌? इति उच्यतेः-श्रविशष्ट anna “एकम्‌, एव waning ‘ag? श्रासोत्‌, तत्‌-कायेकारणाभावात्‌ “श्रवातम्‌' ‘mary श्रनिति प्राणितोत्यथः; सति हि कायेकारणभावे परमा- त्मनि या प्राणनशकरिः सा पञ्चधा भिद्यमाना प्राणापानादिभाव मापद्यते, तदभावे atatsatfa अवात मनितोल्युपपद्यते eua’ श्रल्ेन श्रस्मिन्नेव परमात्मनि या श्च शक्तेः, तया निमित्त- गतया प्राणितौत्यवशिष्यते ‘az’ agi श्राह, कि मन्यदपि ततः

H Seay मृत्य रासोदगत wate राध्या अक era Sy | write. वातं थया तदेक तखडान्यद् TU किंचनास" इति qo सु ८,९,१७,१।

अभुपद मेव दवितौयोद्‌ादरबल्वेन दभेथिष्यते |

{ नासदासदिति सर्ज aw वियद्‌ादिभावागां टिद्धितिप्रलयायेनां WMATA इदं ठं ATTEN म्ये; खस के TCHS AT,

OTe CUTS शण] देवतं TWA | Ret

परस्तात्‌ किंञ्चिदामोत्‌ ? नेत्युच्यते,- amr wa’ ‘a’ “परः” परस्तात्‌ (‘fe चन sre’) किञ्चिदष्यासौत्‌ i rz मेव तावदति- करा न्तसवविशेषं ब्रह्म BI मशक्य मतो ऽपि परस्तात्‌ कि मन्यद्‌ भविग्यतोत्यभिप्रायः * |

fama सुद्‌ाररण माचसिषख्यासाया मेव | भतम ्मौत्‌०--° जायप्रक॑म्‌,' (तम आसोत्‌" अन्धेनेव ‘Aaa’ (‘qe’) निगृढम्‌ श्रविशिष्टम्‌ (श्रपरकेतम्‌) asta श्रये" भाक्‌ weiter; तदा fe द्रष्टा, दशनम्‌, नापि gaa श्रासोदिव्यभिप्रायः। WA Awe प्रधानसाम्यापन्नं गणत्रय yar मिष्कन्ति; ते हि परमाषं खच मधोयते,- “तम एव खखििद aa sala”, तस्मिंस्तमसि day एव प्रथमोऽध्यवनत्तत'*-दति ‘afew’ सद्भावे लोनं ‘ad मिदं अगत्‌, ward भावस्योपरि लोन मासौत्‌ | (aay) sea उकच्छोष्ठतेन पटमण्डपस्ानोयेन कमणां ‘az श्रपि हितम्‌" इद मेव जगत्‌ ‘male’ सगंकालापेकितं मनादिमच्लात्‌ संसारस्य तपसः तस्यैव कर्मणो ‘afer’ afeal wea कारणक्खयायाम्‌ “एकम्‌' मपि शत्‌ श्रनेकधा उपलथिते सगेकाले प्रतिनियतकमी पभो गाम्‌ “त्रजायतः दति 1॥

* इर खल्ल सायणेन aes भाष्य भाषितम्‌, तच Azzy |

+ “wa qTety ANG गण्ड AY प्रकेतं afae सवं al taza! तुष्डाना- म्पि fea यद्‌ासौत्‌ avgqafear saan w’—<ia we ge ८,९ ६९, |

{ रडापि we grawh) wee भाष्यं उषटय मेव “ere’-qaqreng “aT BAM भवतोत्याभ"--दति AFA |

RoR निश्क्तम्‌। [उन्तरषटकम्‌ ,

“शश्रथापि परिदेवना, wanfer भावात्‌;- सुदेवो we प्रप- तेदमादत्‌, ‘a fa जानामि यदि वेद afa—cfa” उद्‌ हरण |

“सुद्‌ ats omg: * पुरूरवस श्रावम्‌ fed aft देवना “सुदेवः' @ wat दवः स्यात्‌, at नया fraar wart वियक्रो श्डयुप्रपातम्‌ (श्नात्‌) अनावत्तंमानः शरद्य प्रप- तेत्‌! (“परावतं परमां गन्तवे wm’) पतितञ्च दूराद्‌ दूरतरं गच्छत्‌, (ay) श्रय गत्वा ‘dala’ wa: सन्‌ ‘farway भ्रमेः "डपष्ये" उपरि (‘sur’) श्रय ‘UA ता aa मापन्न ‘azar’ विकर्तितारः अष्टगालादयः ‘Tare’ रभखन्तो वेगवन्तः “aq भक्तयेयुः। माद सुदेवः किन्तु सुदेवो awar वियुक्र एता मवस्छा माश्रुया दिव्येव मेषा “परिदेवना” संग्योत्थापनम्‌ 1

“a वि लानामि--° भाग मस्याः" t दीर्चतमस nda श्रस्यवामोये £ ‘a’ एतत्‌ ae (‘fa’) fae 'जानामिः,--"यदि वा इदम्‌ ्रसिः कारण परं ब्रह्माख्यम्‌? श्रय वा ददं

* “देवो दय प्रपतेदनीएत्‌ परावतं परमां weary | अधा nate नि- भवेद पचे नू wal रभसासा Ow ॥'*-- र्ति we संर ८, ४, द, ४।

{ सायदेन स्याः उवेत ण्व यष्टयामारः रतम्‌, तदपि Rowe |

t “नवि जनानि यदि वद्‌ मसि निष्ण, स्रो मन॑सा चराभि। य॒दाम मन ware wages वाचो ua भाग Far ॥?- दूति ee Gee viz, er, ९२।

§ खख्यवामौयं माम ऋगवेद य-प्रथममष्डल.इाविं षएामवाकध्याढमं |W देवेत- waa | eras तज wa सनिग्टोयम्‌ “खङ्गं aH far Hea किच्िषात्‌- दूति खग्वि° १, ९९ GME प्रथमा we WE वामर पलि- लख्य? रति, अत रवेद WET मित्युच्यते दृइत्यानक्रमवों सायलौयं तदुया-

wrag विर्ेषते Reza | || faq, दव, रदम्‌” दति पदकारपठितः Tee

ऽर Loto Rw] देवतं काणम्‌ | RoR

aqara fa walla श्रनयोः का्य॑कारणयोरहैतादेतयोरन्तरा वत्तमानेा ‘fam safer, अविद्या ‘aag’ aaa: सन्देहयन्यिभिः “मनसाः उभे श्रपि दैतादईैते "चरामि गच्छामो- wa: एं सति ‘aan “मा श्रा श्रगन्‌' माम्‌ श्रागच्छत्‌ प्रथमजाः afg:; सा fe सवेद्ियेभ्यः प्रथमं जायते ‘wae’ भगवत श्रादि- त्यस्य eat; aw fe yaar बुद्धिः, प्रोणएसवसंशया, तया सवं faz मसंशयं परिज्ञाय fa मं कारणसनत्व उत दतसतत्व दति | ततः रस्याः" एत्ल-प्रन्नातायाः वाचः" भागम्‌' श्रहम्‌ (‘PHA’) saa, यदियं wen वागभिवदति aga मद माप्रुया faa: *

एव मय मात्मनिन्दापूवक्ा विलापः परिदेवनेव्य्यते ; यदि नाम एवं स्यात्‌ are स्यादिति॥ |

“sara? wag “निन्दाप्रशंसे” भवतः | तथच या, -“केवलाघो भति केवलादो, “areas पुष्करिणीव वेश्मा”-“दतिःः। एते उदादरणे

“मेघ०-- ° केवलारो? { भिचुनेामाङ्गिरसस्तखेय मा- षम्‌ ९। चिष्टेप्‌ ्रददते निन्द्‌ मेघं" वितथम्‌ “aay “विन्दतेः

* mag खात्‌ टत्‌" टूत्येतानि +e areata; सायण्याद्टयानं REQ; वेम wea चा विखुतं भाष्यं BAT |

यथाक्रमेख मिन्दा-प्ररुषयेः वोडयये इति naz |

t “मेष aq विन्दते खभ्रचेताः eat ब्रवौमि cy xy ae | ara we" Tafa aT साथः केवलता भवति केवलाद्‌ ॥'- र्ति we de ८, 4, ee, vi

अम भिर्रिति om, ग्टरौतचतुवाश्रमः, Free वा? Pray मच्ि।

४०8 निरक्तम्‌ | [उत्तरषदकम्‌;

प्राप्नोति श्राह कः? इति उच्यते,-यः शश्रप्रचेताः' श्रप्रटद्ध- ज्ञानः “सत्यम्‌” we श्रवोमिः- "वध इत्‌ तस्य' वध ण्वसा- ऽक्ललाभस्तस्य ; वर मलम ane मित्यमिप्रायः किम्पुनः कारणं माघ मसावक्नं विन्दते ? दति उच्यते,-“न' असौ “श्र्यमणम्‌? आदित्यं ‘gafa’; (ने?) नापि सखायं" समानख्यानं मनुष्यम्‌ ; देवान्‌ पुष्णाति, नापि मनुव्यानित्यभिप्रायः। यत एव मतः केवलाघो. भवति" ष; ‘aera? श्रात्मनेव केवलं योाऽन्न मन्ति, देवपिदढमनु्येभ्यो ददाति, केवल मघ मेव प्राप्नोति। तदुक्र म्न्यज्रापि ;- “भुञ्जते तेश्यघं पापा यें पवन्धात्मकारणात्‌?-¶्ति°। AMT वध एव तस्यान्नलाभ TTA; सत्यन्ने प्रत्य- वेयाददददख्र मित्यभिप्रायः; श्रन्नषयाग एव qa वधोऽभि- प्रेतः1† ।-

के दितेन मनध्यात्मविद प्रचेतसं मन्यन्ते t; Ufa शरौरे विवल्ितः। ‘a श्रयमणम्‌' श्रादित्यान्तरपुरुषं भोक्ारं प्ति, (ने?) नापि ‘ear? प्राएवायुम्‌ ; fe भुव्यमानेऽसरे करणभावं युष्णातौति सखा; केवलं, त्वसावविद्वानात्मान मेव war मज wafa, aa: केवलाघो भवतिः; यदि सष देवताः पश्चेदेव ता Sat, हि ay yaa Fame: स्यादिति॥

° “ववं केवकं HER यः पचत्यात्मकारणात्‌“ दति म° २।९१८।

+ सायक्भाष्ये रष cary yum: | . अजेव ऋषि gaa “अप्रचेमाः'- रति पदस्य -अमष्णात्मवित्‌*- रति अथम्‌ खौकुवंमौति भावः; crease रष मन्त्रः |

§ AVIS सनेारमेशप्माकम्‌, नापि सायणसकतः |

© |e tute शग] देवतं कारम्‌। Roy

“aitsirate —ofawqy” *। दक्षिणा माम प्रजापते- Gfeatt, तया क्र मात्मनः स्तिसन्द्ं दृष्टम्‌। तत्रैषा चिषटेप्‌ grander भोजाय' cet ‘waa’ “ay च्रं “सं anf सम्माजयन्ति eof wan faq; (भोजाय उददनाथे मन्यान्‌ वरानपाख (‘Gaara’) Saga श्रोभमाना कन्या" “are, सख हि ता मरतौल्यभिप्रायः। किञ्च; भोजस्य" द्‌" “Quy we “परिष्कृतः dad 'पुष्करिणौ इवः, (“देवमाना ट्ष") पुष्करदेवनं विमान faa ‘fe चायनोय मिन्ध, तदेतत्‌ सवं म्यस्य जन््मान्तरप्रतित्रिशिष्टदत्तिणासदहितात्‌ क्म॑- णोऽन्येभ्यः कमग्यः सकाशात्‌ फलातिरैकय मित्येव मेषा दविणा- प्रशंसा

यथव fae मन्तदये निन्दा प्रशंसा च, “va aga | qa- निन्दा कषिप्रशंसा a” भवतोति fagatquznary are |

“gato —— oA” | WMTAAT BITTY ATH | fray ‘wa: ar दिव्य'-दइति श्र्षरेवनप्रतिषेधः; aa fe

* “श्रोजायाञ्ख सं wera भोजायाखे कन्या wuarar | भोजस्येद प॑. व्कृरिणौव केशा often देवमामेव चिचम्‌।॥- दति we You ey yy

दचिषायाः प्रजापति-दुरिटले हेतुः we de = ¢ 8,8 साग भा द्रष्टव्यम्‌ |

tT "भोजाय = era"—tfa are ure

$ wave भिवेत्यथः | सायरेन wyeat एतम्‌ |

| We Pe म०९०, woe, wou. ^प्रवेपा एति चतुद" पञ्चमं aw dave कवबद्याषम्‌ ANAT: पजस्याराष्छस्य वा-इति gyre ure |

"समा Qe: afe भित्‌ gee fat cae as aware तज गाय॑; fara ay nia aa fa we efaara मयः॥- दूति yoo ४,२। 3Y

Rog निसक्तम्‌। [उन्तरवटकम्‌,

ब्टवोऽमथाः सन्ति। ‘afa faa कषख'-एति छषिविधानम्‌ तस्यां fe: बवे गणाः सन्ति “वित्ते रमख' खन्य एवोपाभिते “ap” एतदेवेति “मन्यमानः” ; मा वित्तलोभेन aan, निज मपि वित्तं enfaufa, afd पुनरेतस्मात्‌ कारणात्‌ छषख & “कितव | ‘aw तस्यां wat "गावः, सन्ति, (av) aat "जाया, ‘ar’ पुनरेतत्‌ मे" मम “सविता' देवः, ‘wa वरः, (‘fa’) afa- शपत्यरुशासनदारेण विविध ममेकप्रकारम्‌ श्रा “वष्टेः; उभे श्रपि होमे giant मन्वादि दारेण श्रादित्थान्तरपुरुषप्रभवे एव, श्रत द्द मुक्तं सवितेकेतव््मम विचष्ट दति

“way” wit प्रकारेण “उच्ावचेरभिप्रायेः" बहभिः, अरय वा प्रश्टाप्रश्टमध्यमेः मम््ामियक्रिनिदानणकतः “षो” “मन्तदु्टयः' मन्तदशंनानि “भवन्ति ; विद्यमानाना सेव fe wart सखषयो येन केम चिनज्निमित्तेन निदान्टतेन तिन्द्‌।-दष- भ्रोक-प्रशंसारिना मन्त्राणं द्रष्टारो भवन्ति; तु KAT द्व्य fara: | तदप्याषेलुक्रमण्छां निदान माषं उभय सुपेकिनयम्‌ ; परिन्नानाष निदानो fe सख मनेकविषयं मन्त्राय मवबोज््‌, शक्रोतोति। तदत दह लसणोदश्रतो भाव्यकारेण प्रदर्चितम्‌ ° द॥

तयेऽनादिषटदेवता मन्तरास्तेषु देवतेापपरीका यदे- वतः यन्नो वा GAH वा तदहेवता भवन्त्यथान्यव

# मन््ाशां तात्पय्यानेकले Yq: प्दिता; यदि fe ce ea xu ew मेवाथ afte सवान्‌ मन्त्रान्‌ प्रषयेयुः, तदि सर्वेऽपि मन्त्रा रकतात्पयेकाः स्युः

aaa, Wag बरना मषौणां वह्नथान्‌ साषयिलुं बङमन्त्रद्गेमानि cute wa रव gaat मन्त्राणां मेकविष्य fafa मन्त्राणां त।त्पयेवै विष्ये सेतुप्रदभेनम्‌।

YN. जश्न पा. eye} द्‌ वतं RUA | Roo

यज्ञात्‌ प्राजापन्या इति aifsanr नाराशंसा शति नेरक्ता रपि वा सा कामदेवता स्याग्मायोरेवता वासि द्याचारा बहलं लके देवदेवत्य मतिथिरैवत्यं पिक्देवत्यं यान्नदेवतेा मन्त्र इत्यपि शछ्यरेवता देवता- वत्‌ स्तुयन्ते यथाश्रप्रण्टतीन्योषधिपयेन्तानि ४१।

“ag a अ्रनादिष्टदेवता aan” | ददेतद्क्म्‌ ्‌ + "यत्‌- काम कषिर्यस्यां देवताया माथपत्य fren wid परयः, तरेत मन्तो भवति"इति तदेतद्‌ प्रकरदेवतालक्णेषु ` मन्ते मन्त्देवतालक्तण yea; ये त्वनादिष्ठदेवतालिङ्गा मन्त्राः, तेषु. देवता कथ wen ? इति तदेतद्‌ विचाच्यैत दन्युपयुकरस्तच्छम्दः | ये श्रनादिष्टरेवतालिङ्गा मन्त्राः, “Aq” ““देवतापपरौचा देव. ताया wa: at परौलला उपपत्तिते वर्तित इति वाक्येषः।

“यहूवतः यश्चो वा यज्ञाङ्गं वा, तदेवता भवन्ति" यद्‌वतः ant यस्मिन्‌ ay ते श्रन।विष्कृतदेवतालिङ्गा ar. विनियुज्यन्ते, तदवता एव हि ते भवन्ति तथथया,+--“श्राग्रेयो ऽभिष्टोमः”--इति gad £, तत्र चोऽनाविष्कृतदेवतालिङ्गो मन्त स्यात्‌, श्राप्रेय खात्‌ ; प्रकरणाद्धि न्दिग्धदेपतेषु देवतानियम

* ara खष्डसमारिः क-च-पलखकये। ।. `

पर २८६ vot ye;

t "तेष 2am satan, खतः परः The’ घ।

§ “ख वा रषोऽप्रिरेव यद्ग्रि्ठोमखखं यदश्तवंफसादपरिखोमक मधिकज्लोमं सना afqela भित्याचशते”- इत्येवमादि to wre ६,४,५।

Res निर्क्म्‌ | [उत्तरषट्‌कमः

इति न्यायः। “यज्ञाङ्ग वा" प्रातःसवने यो विमिय॒च्ते aaa, यो माध्यन्दिनि शद्रः, यस्ततोयसवने श्रादित्यः ° |

आहः “ay BIA यत्नात्‌” कथं aay दवतापरिश्चान fafa श्रथ पुनरन्य यन्नार्‌ ये aH, येषा मुच्छन्प्रयोगः; “SRA वा एषः"--रव्युच्छल्नता मपि दश्रयत्येव ब्राह्यणम्‌ | तेषुचछलप्रकरणप्रयोगेषु वाचस्तामप्रयोगवि भियो गकन्पषु,--““किं बराह्मणस्य पितरं शच्छसि faq मातरम्‌। श्रतविदस्मिन्‌ वेदय पितामहः ॥*-- इत्येवमादिषु क्य मन्वेया देवता? श्ति। ष्टण, प्राजापत्याः" तें मन्त्राः “दति arian” मन्यन्ते। किं कारणम्‌ ? श्रनिरुक्रो fe प्रजापतिः; श्रनिङक्ररेवताखिङ्गाखच मन्त्रा द्व्येतस्मात्ामान्यात्‌। ` “नाराशंसा; ते “ईति Pear” मन्यन्ते नराशंसोऽभियन्नो वा वच्यति हि,-“यश्न इति कात्यक्यः stata शाकपूणिः? द्रति यश्चश्ब्देन च॒ विष्णुरुच्यते “विष्णवं चश्च” रति विश्ञायते “श्रग्िहिं खयिष्ठभाग देवता- माम्‌'*--दति $, शअ्रतोऽनाविष्कुतदेवतालिक्गो मन्त्र श्राप्रेयः स्यात्‌ I सवैदेवताञ्चयणाच “श्रव स्वी रवताः aa 8 सवी वषति देवतेति विन्नायते || यसिन्नपि पठे नाराथंसो यन्नः, त्िन्नपि

* रे° wie १प० wwe TUG, ete ewe eG | हयम्‌ | इडेव काष्ठे परात्‌ ८, ९, ९।

To त्रा ६पर RWe vye |

§ fe Wie LT? UG PUGET इयम्‌ |

| Ce ्रा* १प० १अ० wwe |

A. Og (me Bue] द्वत कागढम्‌। Ree

पक्ते यज्ञप्रभवत्वादस्य * जगतो aya Bea, श्रपरि य्श्च श्ेष्ठगा- मौति न्यायः के चिन्त्‌ "यन नराः प्रशस्यन्ते, नाराशंसो मन्त्र” दति पश्यन्तो मनुखम्हतयस्ता wad मन्यन्ते तदुक्रम्‌ ; fe agar मनाविष्कृतलिद्गैमन्ते giant, dren तेषा awafgare aqarar fafa i

अपिवा सा कामदेवता स्यात्‌? श्रपि वैव मन्यया ae सा WH, मन्तः, योऽनाविष्कुतलिङ्गः, कामदेवतः स्यात्‌; कामतो होच्छातस्तस्िम्‌ देवता कल्पयितव्येत्यमिप्रायः किं कारणम्‌ ? गुणएपदमयो हि सः; हि त्र दवताभविज्ञानपदम्‌ श्रन्यतमदर्‌वताविशेषप्रस्यापक मस्ति, यतो विषात्‌ कस्याञ्चिदेकर्सया दवताया मन्याभ्यो व्याटृत्यावतिष्टेत, एणएपदानाश्च सर्वेषां सवैदवना- श्रयतादेशचर्ययोगात्‌ सवाश्षां देवताना मिति।

“प्रायोदेवता वा” afaa aa स्यादिति वाक्यशेषः प्राच ति ह्यधिकार उच्यते टवताधिकारे द्यध्ययनपाटठानुक्रमे योऽनाविष्कृतरेवतालिङ्गो wet भवति, ॒तदेवत एवेति बोद्ध व्यम्‌ 1 टद्या,-श्रग्यधिकारे aA Wha एव मन्तो भवति, दृ्राधिकारे Se एवेति श्रय वा प्राय इति ase मुच्यते | तश्चथा+-श्रनतप्रायो SAA CIR श्रनुतबहृल एवेति गम्यते एव मिहापि प्रायोरेवतेन्यके बडलदेवतेति स्यात्‌। किं. कारणम्‌ ?

* ““प्रजापतियक्च wean, यत्नं खट मन NEWT खद्व्येताम्‌”- इत्यादि “प्रजापलिरकामयत प्रजायेय yareag निति, सख तपाऽतप्यत, तपस्पलेम- शोका मद्छलत ए्यिवौ मनारिचंदिवम्‌। * * * ये।ऽसौ तपति, स॒ प्रजापति

ज्र HAMA’ गत्यादि | te Ale © ४,१९.-\,६४,७।

Rr निशक्तम्‌ [उन्तरषटकम्‌ ,

nf द्याचारा asa ara” श्रस्ि ₹होयं लेके बलस्य aa- win प्रसिद्धिः। निर्िषटेभ्यो दरव्येभ्यो यदन्यदवभिव्यते, तत्‌ avy ww भवति aga, afaq fafenfa—ee मे ““रेवरेबल्यं” दव्यम्‌, इदं मे ^“श्रतियिदरवत्यम्‌'", इदं मे ““पिढदेवत्यम्‌'*-इति | aaa निदिं तते राशे दन्यदवभिव्यते, तदेवपिक्रमतुव्याणं सा- धारणं भवति तथा चर्मिर्वपणएक्मंणि षदं देवताना मिति निरुप भिग्दश्यदं नः सहेति शेष मभिखटश्ति सवेषाधारणतप्रण्याप- नायम्‌, एव मिष्दायादिष्टदेवतालिक्गग्मन्तरा शेय न्योऽनारिष्ट- देवतालिङ्गो मन्तराभिः स्पात्‌, Ways बड़देवते वैश्वदेवः स्यादिति॥ |

आ+ क्रः पुनरेतस्िन्‌ विचारे निशथः? उच्यत,--““यान्ञरेवता मन्त्रः” योऽनाविष्कृतरेवतालिङ्गो मन्त्रः यान्नो वा erg शैवतो at) “विष्णु यश्चः"-दूति* श्रिज्नयते। fay: पुनरादित्य एव Heard, geet घ्रमान्नानात्‌ ¦ “ae fafaq प्रवह्ित मादित्यकर्मैव तत्‌” शति हि वच्यति †। तसरादादित्यरेवतः मन्तः, इति wi श्रय वा दैवतः मन्तः, देवता अ्रस्मिन्‌ देवतेति दैवतः; भरविशिष्टं हि देवताल ama षवैदेवताभिवादात्‌ “mfga wat देवताः -इति) विज्नायते, “afga. रेवतार्ना गडयिष्टभागः'"-- दति च। “्रपरिग्रहच प्रधानगामि-इति न्यायः;

* शेर ब्रा age Vqe gue | TATE Tags दपा awe |

{ रे त्रा We Uwe ९क०। § Xo त्रा" पर ume रेखष्डप्रदतिष्‌ Raz |

Que (aro awe] देवतं WBA | ९९.६

तसमदेपरेयः aa: स्यादिति तद्यद्पेहत उकम्‌ “भाराशसा fa मर्कः" --दृति, तदेव कात्यक्य-शकेपूणि-मतेनावशेत aye Sfaafa ; तौ fe मैरक्षाविति॥ :

“Cava: a awl वा awry वा agaat wafea”—raa- मारौना भपरे व्यास्यामामैः ।-श्यदवते; ay? agad प्रधानं हविः; तथथा,+- प्रतिवनं शन्नायं Arse वा, तैतंखारंपरा दषे- लादयः (यर वा ०म ०१,९.), तेनाविष्कृतदेवतालिक्गा न्रा एव भवन्तिः MVR वा। यदेवते चाधिकारे चोदकेन प्रदिश्चन्ते, तदवता एव भवन्ति तद्यथा, कुविद्‌ केति प्राजापत्यग्रहणे विनियोगात्‌ प्राजा - पत्य एव भवति *। agry बेत्याघाराद्यभिप्रायेण ““चछषभोऽसिं आाक्षर्‌ः"--रृत्यना विष्कृतदेवतालि ङ्गः पूं खचासादनमन्तः, सोचे त्रिनियोगात्‌, तस्य प्राजापत्थलात्‌ प्राजापत्यः

“may यत्नात" | wat and कर्मणा मन्त्राणां विनियोगः ? उपाकरण-ब्रह्मयन्ञ-जप-प्रायिन्तेषु नेटिक-ब्रह्मचा- रिण) भयाद वा श्रविदिताषयच्छन्दोशैवतव्राद्यणेन aau t याजयति वाध्यापयति at we वच्छ॑ति, गन्तं वा पतति, प्रवा- मोयते, ° ° ° यातयामान्यस्य कन्दासि भवन्तिः - इतिं प्रत्यवाय- WIT सवेतरान्वेष्या 2 देवतेत्यारभवय स्यान्यचर यज्ञादिति

* “कुविदङ्ग ममखा-शूति we deo, ey, tl “कुविदङ्ग प्रतिभ र्ति mo Yous ९४, tel “face यवमन्तो" दति we de १०, ९९९, ९; य° Are We ६०, Rs ९९, ९; RR, REI

“खविदार्वेयच्छन्दोदेवतमन्तेष^ इति a,

{ Sle Fo Geo Ale श्प्रण र्चः |

§ yaa परयेष्याःम, घ।

RAR निसक्तम्‌ | [उत्तरवटकम्‌,

भ्राजापत्या इति याञ्चिकाः'। प्रजापतितेषुपाकरणादिकमं- awe tia याञ्निका मन्यन्ते; छयनिरक् इत्यनिरक्तासामा- न्यात्‌ “नाराशंसा इति sem” सोया वा amar वेति “शपि वासा कामदेवता wa” भ्रनाविष्कृतदेव्रताछिद्गे मन्ते या विचा- थते देवता, afer दवता स्यात्‌? इति, षा कामतः कल्पया ; TRA इत्यथः | गृणपदमयलात्‌ AG मन्तवाक्यषामच्यार्‌ देवता नियम्यते aa; किन्तदिं ? प्रयोकररिच्छाषामथ्यात्‌। श्रय वा THAT यत्कामस्तं मन्तं TIE. तस्य AMG या देवता श्रधिपतिः, ता मेव तसिन्नभिषन्दपौत। “प्रायो देवता ar’ समान मेव पूवण * | | |

“af द्यदेवता देवतावत्‌ waa’ “यत्काम छपिया देवताया मायपत्य. मिच्छन्‌ afd प्रयद्क,"-दति मन््रदेवतालण सुकम्‌, तदुपपद्यते दवाना माथपत्यसम्न्धात्‌ ; श्रनारिष्कृतदेव- तेष्वपि संविन्नातपदाभावात्‌ कल्प्यते देवता काम्य afuafa- शपि यच्च eq श्रदेवता देवतावत्‌ श्यन्ते ननु तैतश्नकतणं व्याइन्यते ? तद्यथा,-'श्रशवप्र्तोन्योषधिपयन्तानि" एतसिन्‌ aa कानि चित्‌ श्षत्वानि, कानि चिद्‌ द्रव्याणि; श्रश्वादौनि रत्नि,

* पर १०७ प° प° Il Gama लेतदुपरन्धदयैव निष्का ऽयेः,- यश्चाद्न्यज खपाकरणादौ ररश्यष्ट जादि विदितानां मन्त्राणां सर्वेषा मेव प्रजापतिदंवतेति या- न्िकमतम्‌; नेदक्तामां नच तचजाख्ति सममतिः; Aenea तु कचित्‌ (यज नर- AHS अथेता मम्यते तच ) AINE, कचित्‌ कामरेवताः, कविष प्रायोरेवताः प्रकरणानुसारतः FAITE TA |

Vie ४९४-४९१५४ ae, ४.२, ९-९९।

ome tate awe] देवतं काण्डम्‌ | RLR

श्रक्ादौनि gente तानि पुमराषन्न ay चेतयन्ते ; नातौतम्‌, मानागतम्‌ इति; saat ऽपि हिताहितं प्रतिपद्यन्ते तानि कथय मभिष्टुतानि, सातुरभिमतस्याथेख्य पतित्वं करिष्यन्ति ? हि तामि स्लतिनिन्दे विशेषता विदुः श्रपिचाश्रादिषु विति- रपि" काचिदस्ति, त्वच्ादिश्वसावस्ति

अथाप्यष्टो इन्दानि मन्धेतागन्त्ूनिवाथान्‌ 1 देवतानां new मेतद्भवति माहाभाग्याद्‌ देवताया TH AAT बहुधा स्तूयत रकस्यान्मनेाऽन्धे देवाः प्रत्यङ्गानि भवन्त्यपि सश्वानां प्ररतिभूमभिषय स्तुवन्तोत्याषह्ः प्रुतिसावनाम्न्याञ्चं तरेतरलग्माना भवन्तीतरेतर प्रतयः कम्मेजन्मान WAST श्रामेवेषां रथा भवत्यात्माश्च श्रात्मायुध मान्मेषव श्रात्मा सर्वं देवस्यदेवस्य ‡॥ (४)

इति सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः १॥ ॐ. १.

|तस्मात्‌ “a? fae मेधावी “न मन्येत” जानोयात्‌,-

* ““चिक्तिरपि”- षति छ-पाठः। + ““सन्यतामनूनिवाथोाननां क, ख, | { दे व्येत्यस्य दिवेचनं cae छ-च-पख्कयोः। § माज पादसमाकिः क-पशके | छ-च-परकयोख पाद्नियमो नैव | stim महो इग्ड्रानौत्ययाषट्यात मेव छतम्‌ wel तानि ‘cya. के?--दूत्यादोनि \भा०५, a, २९-२९ प्रण्यानि। 40)

qe ` निसक्तम्‌ [उन्तरषदकम्‌ +

समभ्यगविर्द्ध मेतल्षच्येण लच्वण मुच्यत इति .श्रपि gat a मन्येत,--“श्रागन्तूनिवायाम्‌ देवतानाम्‌” मन्यमानः लेके ताव- देते agent मनित्याना agen sin, च्रागन्तवः श्रपायिन- खानित्याः तद्यदि देवताना awa मेव, ततस्तासां तेषां चानित्य- लात्‌ सतिरनथिका अ्रपि “श्त्यचदृश्छ मेतद्‌ भवति” प्रत्य एवैतद्‌ दृ श्यते | यथा-उपकरण मश्वादयः, उपकर्ता ATM: | देवताना मपि चेन्राग्निखर्यप्र्टतोना quate दरिरादिद्धरिग्रभ्‌- तयोऽश्वाः। तस्मादुभयेषा सुपकरणापकन्लव्यतासामान्यात्‌ मतुब्या- खअवद नित्यत्व मिति ana |

aq faat मन्यते नेतत्‌ सम्यग्‌ विधोयत इति, तस्मात्‌ प्रतिखमाधातयय मिद्युपोद्धत्य sat Gaya °;-“माहाभाग्यात्‌ देवतायाः एक WA बहधा Waa” Far, तस्मात्‌ सवे मेतत्‌ सम्यगिति भच्यत दति भागः सेव्यत इत्यथैः | तत्‌ पुनरैश्वये मदत्‌ “शअरिमा afeat खयिभा mf mare मेव tf विलं aa कामावसायिता 1 ॥“- त्येव मनेन मदश्र्थ॑ण भज्यते | मदे तरे श्रयं भजत दति वा महाभागा रेवता, तद्धावो मादाभाग्यम, तस्माद्‌ मादाभाग्याद्धतोरेकोऽपि सन्‌ देवतात्मा बहधा waa, प्ररतिभेदेन वा श्रप्रतिभेदेन वा agar; fants fe भवदयशयपरस्यापकः ;-“"ङ्पं दपं म॒घवा बोभ-

e “श्रतिसमाधातब् मेतदिति ont मच्यतेः*- इति a |

“विभतिभूतिर ख्य मखिमादिक मषटधा-रत्यमरः (१।९८) पातन्नखौय- येगश्टाख्लद्य विभतिनाम-ढतोौयपादे “तवेऽकिमादिप्रादुभावः?- इत्यादिके पञ्च खन्न रिगनमे खन, राजमाभेष्डादि्ष qafeace विशेषत दणव्यम्‌।

Oye Vote ५८] देवतं कागदम्‌ 1 Re

कोति" दति * 1 यथा यथा ae तथा ल्तणं प्रवन्तयितु मदति, दृष्टानु विधानाच्छन्दसः ; छन्द्सि fe aay या वदभिधानं देवतानानालविधिव्यवम्या। daze कथाग्रभादौनि 1 दृन्द्रमरूदादिभ॑वादव्यपदेश्षेतुना गमयन्ति, तदशक्य मपाशितुम्‌ 1 तथा चिम्थानानां amegadif श्विवंहनरसादानलक्तणा- न्यद्नोद्रशयाणां कमाणि farruciequfeats जित्व गमयन्ति, तदपि ama मपासितुम्‌। auras fas मितच॑वदहण मभि मित्यादयोा गमयन्ति निगमा: ९, तद्यश्क्य मपासितुम्‌। चिष्वपि चैतेषु परेषु tae मपरिहोणं देवतायाः wad waar तावदाजित्य प्रतिषमाधानम्‌।- "“एकस्यात्मनेऽन्ये देवाः प्रत्यङ्गानि भवन्ति"? मादहाभाग्या-

रेकस्य देवतात्मनः प्ररुतिभेरेन चाप्रहृतिभेरेन चेति सेतनासेतन- विकरणधभिंलादात्मानं॥ विक्कुवेतोाऽख sai देवाः प्रत्यङ्गानि भवन्ति i श्रप्रीन्रखयानां परस्परापेच्च मन्यवम्‌ ; -श्रनन्यावं aaa देवतात्मना मता Bel यथा चटादोनां wat; हङ्किनि

* “ed क्पंमघव। बेाभवोति मायाः रामसुन्दर पटरिखाम। जिगदिवः परिमङ्ृते मागात्‌ Baws AT तावा n’—vwha we deo ६, ६, ९२. ए। “दन्द मायाभिः Wee: ayy Fag: | we Yo ४,०, eR, २।

दर द्१ेयप्रयममण्डलष्छ जगोविंशेऽनवाके ween anifa i aw कयप्राभोयं

माम TEAMS माद्यं AWA! अनेन्द्रागस्त्यमरतां संवादः प्रतिपाद्यते | taaagr WK कणा WU Baas दति ९, ee, ९, ९।

{ याम्कोऽखचवानपद्‌ मव खयं व्यति

§ “xa fad वस्श afy asta दिशः ससुपणागख्त्मान्‌ रक सदु विप्रा

asul वदन्त्य यमंमतृरिखान ars: ॥*- दूति ऋण Pe kw, RVC || “aaafencaqyfaarg —xfa a, a

२६६ भिखह्छम्‌ | [उन्तरवटकाम्‌ ,

मक्रान्यतिरिश्यम्ते, wearer | चाङ्रान्यनपेच्छ vaya भवन्ति; wfyer मनपेच्छ॒प्रत्यधिष्ठानं नाम भवति तस्मादप्नद्रख यात्सकसय देवतात्मनेऽङ्गानि,- लातवेदो-वाय-भग- प्र्तोनि °, शकुन्यश्वप्रमतयसख प्रत्यङ्गानि एष महानाक्मा शरग्नो द्खया्ङ्गप्रलक्भावेन By मनुभवम्‌ एकोऽपि सन्‌ बधा सयते

“शपि च" एवं हला “सत्वानाम्‌” अरश्वादोरनां “प्रशतिश्वमभिः षयः सुवन्तीत्याङः'” प्रक्रियन्ते wet सवं विकाराः एति प्ररुतिः, सन्नाखलणो मडानात्मा ferami दति ।वद्यति fe,— “a एष महानात्मा TATAIT:, तत्‌ परम्‌, तद्‌ ब्रह्म °-- ° गतात्मा, Sqr तप्रकतिः”“ इति तखा शमा बडलम्‌; श्रनेकधा विपरिणामः स्थावरजश्गमभावेम प्रहतेभ्डमामि बलानि यानि शत्वानां तैरमन्यविषयलं पश्यन्तः का्यंकारणयोरनन्यलात्‌ कारण- महिमभिः तान्यश्वादोन्यभिषटुवन्तौत्याङरात्मविदः। तथयया,- “gta ye एथिवौ ath मात्मामरिंचम्‌”-शव्येवमारौनि 21 aaa a स्थावरजक्रम मित्यवेत्य quad "मूलेभ्यः are, भाखाग्यः सखाहाः-दृत्येवमारिभिसतेन तेन पशेषिकेण स्यावरजङ्ग- मात्मना प्रहृतेरभिनेनावश्यामेनावस्यितो महामेवात्मेष्यते; दवता am मेति यावान्यदपि कि्िरेवम्पकार az-

1 र्भार ue १- WS Reef, cw चोपरिष्टात्‌ | { पर १दअ० पपार awe | | § चण ate de ६१, “चिम सवख" इत्येव तच्चा खापाढा।

शख ° १पा० ५ख ०] aa काखम्‌ are

वताभिमत मिज्यते। waa वलिप्रश्ठतिकमादौ* at CATT It

“‘vafraraarare” एतदुपपन्नम्‌; aa: (शरदेवताः1) देवतावत्‌ स्यन्ते, fam महहानेवाय मात्मा fren: aaa दति प्रकति- सावैनाग्यादिति। afaard नाम, नामनं सच्छया | सवैषिन नाम सवनाम, (प्रकृतेः सवैनाम प्रलतिषवेमाम, agra: प्रकुतिषावै- मायम्‌, तस्मात्‌ प्ररुतिखावेनाग्न्यात्‌ SAT: | यस्मात्‌ भराभाग्ययुक्षा देवता, 2) प्रतिः; ware edaaq नता, तसराङ़तेर्गेताः (्रर- वताः |) देवतावत्‌ स्यन्ते | |

श्रपि चेतदमिहितम्‌,--्रागन्तूनिवाथान्‌ मन्यमानो दरिरा- fegfirafaxiaiat मनुव्याश्ववदमित्यल vag सम्यगभि- aa दति मन्येत'-एति 7 श्रव ब्रूम, मतुख्यधमविपरौतो हि देवताधमैः, अरनेश्वयोकानुव्याणा Fears देवतामाम्‌। तत्‌ कथम्‌ ? इति wat भद्‌ माद्य प्रतिषमाधौयते ;--“"इतरेतर- लन््रानो भव्रम्ति” इतरेतर -प्रशतयो देवाः, Bade; मनुग्याणा भियं शक्रिरसि, ware | मनुष्याणां हि पिता, ga जनयतौति पिता प्रकृतिः; पुनरिच्छन्नपि ga: पितरं जनयति देवानां aa: खया ऽजायत ;-““एष प्रातः प्रसुवति दति विज्नायते,

* QUIT वरोम्‌°-°प्रथमेा बश्िभेवत्योषधि वनस्पतिभ्यः (गोर we we ewe ९८०)” र्त्येवमाद्‌ावित्यथैः।

+ “मतिमां नामन संन्ना-दूतिचख।

†, ९, | भेवेऽ शाः ख-ग-प लकये रे पानो |

१०९९६४० ९४ पंर- ९६४४० eve |

Rts faa! [उन्तरषटकम्‌ ,

तस्मात्‌ weenie: प्रकृतिः षयाच्वाभ्निः सायं जायते, तस्मादग्नेः ख्य॑ः waft) afeatar cae श्रदितिरिति। ्रथाध्याव्येऽपि ;- कोषटयादयपनेनीद इन्रः, बला दिष्ाकाथ्यमानः श्रग्नि रित्येवमादि †। एष सर्वयाप्यचिन्यो देवताधर्मः तासा मान- AMINA | तचेवं VPM मध्यवसातुम्‌,- यया मनुखाणा मागन्तवोऽश्वादयस्तथेव देवताना मपौति | तस्माद्‌ दोषातुपपत्नि- रनागन्त॒वार्‌ देवाख्ादीना मिति

रथ किमथे dba: wit देवता जायन्ते ? इति.-“कर्मज- श्मानः” कमफलसिद्भये लोकस्य श्रप्नि-वायु-दया जायन्ते ; Haha च्छते लाकस्य कमेफलसिद्धिः स्यात्‌--विद्यमान मपि Quad मैश्वर्य- वति प्रख्याति भयात्‌, शैशितव्य ad मप्रतोत्य 21 aag- श्यप्रख्यापनाय जायन्ते |

कमफलसिङ्के लोक मनुजिचक्षन्तः कुतः पुनजायन्ते ?-“श्रात्म- FAA.” योऽसावेकं AAT बहधा सूयत इल्युपात्त, सरवमूर्तिम्थितौ उपरतसवमूत्तिः; प्रलये भावास्यः war, wars षोढात्मानं

* “श्यध्धिवेञ्धानरः प्राष्यावत्‌, वद्य यद्वेतसः प्रथम मददौप्यत, तदसाव।दित्या- ऽभवत्‌” दति ° wre २,९.९० "प्रेव आदित्यो जायवे- दइ्तिखर° जरा ८, aul

“say we वा” -र्त्या्ेतरेयकं ब्रहट्थम्‌ (५, ५, ९)। ““खादित्यो बा अखं aaify मनप्रविष्तिः-द्तिचरण्ब्रा० ८, ६, ४।

{ “"बक्मथ्यमनेऽशिजायतेः-इत्यायतरे यकं चर ब्रष्टयम्‌ (८, ४, ४)

§ “tfrag म्थप्रतोत्या*- इति ख, a

|| अपिचेत्यादि-कमे जनमान tena यासौ यप्रन्यद्य प्रतिवादे aay भिति दुमाचार्योय भिद aed नाखन्मनेारमम्‌।

owe श्पा०५खग] देवतं कारम्‌ | ate

विभज्य जगद्धावं faufa’, TATE दत्यात्मजन््रानः | एव तस्मान्न जायते ? इति चेत्‌, सत्यम्‌! सवे तस्माद्‌ जायते काम- कारेण, देवास्तु मात्मानं पश्चन्तो यागेन ततः कामकारतो Arya! कि मेषां जन्म? यदेषा मिच्छतां सङ्कस्पानुविधायिकमोनु्ूपं यथाकाल AAA कायकारण Had, तदे तेषां wa, तदनो- राणां नास्ति 1॥

TAM सं तस्माद्‌त्मनस्तत्सद्ल्या सुविधा यित्वात्‌ “saat रथः भवति, WAT WA, श्रात्मा श्रायुधम्‌, ATH दषवः, AAT aq देवस्य | तत्र यदुक्रम्‌,-श्रश्वादोनि सत्वानि, श्ररयप्रभृतोनि द्रव्याणि श्रदेवताः- दति ‡, एतदयुक्रम्‌ | देवता Waar, रथादि- eau हि qatar विहत्य प्रकतिभेदेन रथादिसाध्य मयं साधयति सा तद्रूपा सतौ रथादिम्हत्या ख्यते, सा «fa समवेत मयै माशासितं स्तो तस्तेनेव रूपेण साधयित मल मिति

तस्मात्‌ ““माहाभाग्यादेककस्या श्रपि बहनि नामधेवानि॥* aver

` खि तिपरिशमते श्त्यादयः षटमावाः र्भा० ४१० र्पंन् HAM? |

स्व Qa मेत द्सङढतम्‌ यास्कोयवचमतात्पयविरेषधात्‌;नडहिकस्िं शिदपि ware ओआ्मवादिना मनाप्रद्भ्मसम्भवः।

tT पर १९९४० १९प०-- BURT UT? |

द्‌ मपि Bra तथव। Sana 9— cre? अत्मवादिनां ममे “त्मा रव रथः, QA (रव) GA, AAT (र्व) अयधम, यात्मा (रव) दषवः, सवम (रतत्‌ चराचरम्‌ ) CAG Wal (शव) भवति" डि अात्मान wa किञ्िदसोति gaat मेव पद।थाना मात्मलवं तदमगतं देवलं fafaare भित्याव्महावात्मवादिन ऋषये रथादौनपि स्तवन्त रत्याक्मवादिमते लेखने रव याखवचनताश्षय मिति |

|| र्तचामपद्‌ मेव षषे eS ena ; तेन सङ्ृतिप्रद्भने तात्पयेम्‌ |

RRe निषक्तम्‌ | (wuceewn,

मेव fagur मम्दादौनां माहाभाग्यारैर्वयोगारात्मान मनेकधा fagaiim मेकेकस्छाः प्रतिविकारं गामघेयप्रतिखम्भात्‌ तेनैव रूपेण धारयन्धात्मान मिति “यत्कामश्छषियस्यां देवताया aria मिच्छन्‌ स्तति प्रयुक”--दत्यस्य * लक्णस्याव्याघातः, तसमास्सम्यगेवोकन भिति श्रथ वा स्त॒तिसद्कमन्यायेन चतुद गेऽध्याये। “यज्ञसंयोगात्‌ राणा afi लभेत"-दृत्यज पुनः प्रतिशमाधास्यामर

दति निर्क्रटत्तौ दाद्राध्यायस्य (घप्तमाश्यायस्य) प्रथमः; पादः ७,

fata: पादः

faa रव देवता इति नेरुक्ता अभ्रिः एथिवीस्थाना ayaa वान्तरिक्षस्थानः BAT य॒ष्थानस्तासां माहा- भाग्यादेकंकस्या aft बहूनि नामधेयानि भवन्त्यपि वा कमेषएटयक्तायथा डताध्व्यरह्मोह्नातेत्यप्येकस्य सतेऽपि वा gata स्युः एथग्धि स्तुतये भवन्ति तथा- मिधानानि यथा रतत्कर्मएथक्रादिति बहवाऽपि विभज्य कम्पराणि gers संस्थानेकत्वं सम्भोनैकत्वभ्बो- पेशितव्यं यथा एथिव्यां मनुष्यः: पशवो देवा इति

© Geo ९८६४ To ८0० |

९9 Qua ~ चतुरं गेऽध्याये = यास्दौयनेयक्नमवमे दूति Waa | {[ श्व परस्तात्‌ ९, ९, इषटव्यम्‌।

@ Ye रथा० Cae] देवतं Tas | RR

सखानेकत्वश्व * सम्मागेकत्वश्च दश्यते यथा एथिव्याः पञ्जन्येन चख वाखादित्याभ्यां सम्भोगो ऽभ्रिना। चेतरस्य Brae तचेतन्नररा्र मिव ८५) \

“fra एव देवता दति नैरुक्ताः” दति उपोहातः। “Sar देवतापपरक्ा--द्व्यधिकारे वमाने “याकामखषियेख्याम्‌"~ दत्येवमादि मन््रसक्तणदवता सुक्तम्‌ 2, तत्पुगररेवतालारश्वारौनाम्‌ “at at मिनो वरुण श्रयमा ”-द््येवमादिषु area aig “ख मन्येत--इृ्येव arfenfad | “arern- ग्यात्‌ देवताया एक श्रात्मा बधा सखुयते"-दृल्येवमारिना 7 “पुङ्‌ एवेदं wa यद्धुतं यच भाव्यम्‌' '--द्त्येवमारिभ्यो** मन््वाक्येभ्यः-“शअरथाता feria पुरुषस्य '*--एत्येवमा रिभ्यखं ate: --““एष Tx एष प्रजापतिः" दत्येवमा दि ग्बद्चेकात्ये wae मुसौयात्मवित्पकतेण श्राद्यैवेदं सवंम्‌--दत्येकाक्य सुक्तम्‌ tt आत्मविदां द्याद्मन्यपजातविथिष्टमावनाना मात्म रोरस्याना मात्म मय मेवेदं wa मनुपश्चता मात्मायैः सवौ वेदा ऽन्या शवा वाक्‌;

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RRR निबक्षम्‌ | (sucacaa,

ह्यात्मने saz व्यतिगिक्रि मभिधेय मस्ति, aware यद्‌- भिधान मभिदध्यात्‌ श्रय पुनरुपक्रमः पुरुषायस्य,-- प्रथम मनिभ्र्णोफलकस्थानोयन * केवलेनाधियन्ञेन तच चावधाने श्धि- टैवताध्यात्मन्ानं किञ्चिद्‌ विदुषः एयगात्मनेा देवताः पश्यत, परिच्छिन्रफलाभिप्रायस्याधियज्ञं प्रययुलमाणस्य पूवेजन्माविद्यावा- सितान्तःकरणस्याभिधानस्ततिमेदाभ्यां विधिमन्तायेवाद विद्यारसेन aay प्रथगिव देवताः प्रकाशन्ते तदुक्रम्‌,--““श्रय योऽन्यां दवता सुषा .्रन्याऽसावन्योऽह मस्नोति वेद्‌-दति। तदाह “आत्मयाजी श्रेयाम्‌ देवयाजौ वा ? दति, श्राद्मयाजोति Hey” तदेवं ब्रह्म देवता-टलस्य मूलम्‌, काव्य मात्मविदः ्रत्यवभासते ; (यावद भिधानन्त्‌ याश्निकाः, प्रतिविधिमन्तप्रधानात्‌; यचावर्चिव्यते, agen प्रत्यवभासते ‡) श्रत tz मुच्यते, “तिश्च एव देवता ति Fear. fae इति war) एवेत्यवधारणं मितरौ पचो शपेय

कतमास्ताः ? इतिः-श्रश्निः एयिवोख्ानः, वायुः वा इन्रः वा श्रन्तरिकस्थानः, Ba Tara” कये पपत्या faa परिजग्हः ? स्थानभेदात्‌, प्रत्यषलिङ्गादन्याथेदशं नाच ; लिङ्ग fret fe भवति, - विश्वकर्मा wet fas देव श्रादिद्‌ ग॑न्धवौ श्रभवर्‌ feat: wave, पिता जंनितौषपोना मपां गभ व्यदधात्‌ पुरा ?॥” tas,

* “ग्रथमनित्रेशणैरलकखानोयेनः" ख. | + “विधिमन््राथेवाद्‌विद्यावसेन”” क. a1 { नेषोऽभो awd क-पखके।

§ we deo Ue वार To to, Wt!

ewe Rute १ख०] देवतं काण्डम्‌ | RRR

“ae नाभावध्येक मपितम्‌ *”-दत्यन्यायेद्ेनाख “प्रजा afaa जीन्‌ मिचोऽटजताभ्नं वायुं खयैम्‌'- इति “प्रजापति- लाकानभ्यतपत्‌ तेभ्योऽभितपरभ्यो रसान्‌ प्राबृषदभ्निं प्रथिव्या वायु मन्तरिकात्‌ ख्यं faa” —sfat “aft: एथिवौम्यानः, वायुर ्रो वान्तरित्तम्धानः, खयै qari “तिखः”-दति प्रतेः खरूपग्रहणात्‌ स्थानभेदं faa हेतु qadauafa Har मियमः? च्रन्धादोनां एथिव्यादिषु निगमेभ्यः ;ः-““पथिव्यसि जन्मना que साग्निं गभं मधल्या, श्रन्तरिच मसि जन्मना वाखा वाय गम मधघत्थाः; द्योरसि जन्मना वश्रासाऽऽदित्यं गभ मघलत्थाः--दत्येवमादिभ्यो निग- Hz

“area? वा-दति कि भेकस्य पयायवचनावेतौ शब्दौ, उता- भियो भियेते ? इति कुतः सन्देदः ? उभयथा fe प्रसिद्धिः ;- प्रत्भिधानश्चाथभेदो Te,— गौः wa इति ; यथाभिधानभदे- ऽपि चेकाथंता दृष्टा, ee: करः पाणिः इति यथा। wat am: dna दति याज्निकपक्ते तावददोषः श्रयभेदेऽपि ` Saat यावन््यभिधानानि तावल्यो देवताः, श्रय पुनराचार्यस्य खसिद्धान्ता- वलम्बिनः “faa एव देवताः? इति प्रतिन्चाव्रतः कुता वाधिद्ध- श्ष्दयोरथैभेदः? भेदे हि प्रतिज्ञाहानिः स्यात्‌, श्रपिच vasa नेकवचनेन निरदेच्यदन्तरिचस्यान इति; श्रभिधानमातरे भिन्नेऽपय-

# me Ue ८, २, ६७, ९। “प्रजापतिरकामयत” एत्या देतरेयकं RETA (४,४,०) | { सा wre ate eae १० we) परमस्ति तज किचिद्‌ Tene: |

ers निरक्तम्‌ | [उत्तरषटकम्‌,

fataa चाभेदे wafte मख स्यान मिश्युपपन्तेः वश्येकवचनो विशेव्योऽम्तरिषस्थामण्रब्देन विध्यते; इतरथा डान्तरिलम्धानौ दत्यवचत्‌ दयोरविंशव्यथोः। श्रपि “वायवाय(हि दशत्‌ दूति ° वायोः प्राघान्यस्हति सुदाइत्य at निरुच्य aat सोमपानसम्बन्ध queg,—igd सेामस्यावेत्य ““श्ष्टुरए्टे"--दत्येतखिन्‌, “aT a fargra प्ायख, “ary fax: area” —tha नान्य- खनश्रणब्दात्‌ सुख्याभिषम्बन्धिनेा मध्यमात्‌ सामपानं सम्भवतोति mat वायश्रब्दस्यनर श्दस्य समाना्थैतां दृढ मवधाये श्र्धव्य- माणो वायुशम्दस्य मध्यमादथान्तरे af मपयोयग्नन्दवादिन arfaqaie “a मन्यं मध्यमादेव मवद्यत्‌'- दति | उन्नर मपि मुदाजष्ार निगमं “तस्यैषा परा भवति- इ्युपोद्धत्यैतरेद्रा- रेव GMT “WARY वायोयया भक्तो विद्येत्‌, तथा Wa मेव मभिवशेयुः'"-- दति वायुग्दस्यश्र विषणत्वं प्रतौत्य इष्डप्रधानलात्‌ क्षस्य इन्र उपात्तः तस्मादावा्य॑द्य मध्यमपर्यायवचनावेतौ warfafa

सत्यपि पर्य।यवचनतवे मुण्यतरः सम्बन्धा AAAs, तथा वायुवङ्ण््रादिभिः। तत्‌ कुतः? तथा निगमे दशनात्‌ ;- “सा प्रथमा संछ्कतिर्विश्ववारा प्रथमा वरणा fawt fq प्रथमा

* ऋण do ९, ९, ७,६।- पर १०, ६, १।

+ यर बार Gey, ol

{ १०५९४०९ we “RR: साम्य काषुकाः- रत्यादि बष्टवम्‌। § १०, १, ₹२। परखठादिडेव बच्छति।

|| परसादष्छति तदनन्तरमेव ६०, ९, ९--द। परः तज नेवं पाडः

शद. रया० ख. देवतं काणम्‌ | १२८५

हरस्पतिखिकिल ससा इन्द्राय सुत मा जुहोत खारा दति सा प्रथमा सं्तिरित्येतस्जिञ्डुक्रामन्थिनेाहेवनमन्ते यो मध्यमा at णाऽपि fateh: तस्मे RTA सृतम्‌ श्रा जुहेत दति वरूणारौन्य- any विरेवतश्चतु न्तेन शृन्द्र ब्देन ayaa सम्बध्राति तद्धी मध्य- asa, तस्मात्‌ सम्प्रदानेम शामानाधिकरणात्‌ मन्त्रान्ते AVAIL सुखतरः way इति गम्यते; यथा मध्यमस्य ज्यो तिषो मुख्यः aay दद्दर शब्देन, तयेतरयोरपि पाथिवोत्तमयोर- भ्रिखयंग्ष्दाग्याम्‌, प्रसिड़्‌ तरलात्‌ सम्बन्धस्य, तयेतरेजतवेदः- ्रष्टतिभिः सति Mage युक्तं यदम्धभिधानेमं प्रसिद्धतर- सम्बन्ेन पार्थिवस्य ज्योतिष sadn: क्रियते, जातवेद्‌ःप्रश- तिभिः; तथोत्तमस्य खय्रष्देभ उपदेशः करियते, सविदर-भग- प्रश्तिभिरिति॥

कस्मात्‌ पुनर्मध्यमस्य शब्द दयेनेपदेशः क्रियते, पाथिवो- लमयोरेकेकेन ? दति मध्यमस्य हि <t sara fageten- स्थौ तयोरनित्यदशेन एको विदुदास्यः, नित्यदन्ेनस्त aaa: तरिद्धियप्रत्यक्तः। तत्कथय नाम faafa ख्थामेष्वमिमानिन्यो देवताः कमात्मभिरतैषम्येण naga एवोपदिष्टाः स्यः ? इत्यतो “वायुमध्यम- ग्यानः'- दति वाथवाख्येन RAT मध्यमखान समुदिश्यामुख्य- त्वाद्‌ वाच्वमिधानस्य, सुख्यताशेद्राभिधानस्य “न्द्रो वा” —TAIE | एव मुभयं छतं भविष्यति,-्रनुपरतक्रियाव्यापारता मध्यमस्य Tale कर्मात्मना दतरज्योति्वैद्‌ afar भविग्यति, gaa चन्र ण्देन मुख्यः सम्बन्धो ऽपरिहापितेा भविष्यतौल्युभय gaa, -

१२६ निखक्तम्‌ | [उन्तरषटकम्‌ ,

“qraagt वान्रिकम्यानः"- दति तु arfeatnaatat दौ HAA स्तो यथा मध्यमसानस्य, तस्माददोष मध्यमस्याभिधान- दयोक्का विति

श्राह ;- यदिद मभिधानबद्तवं जातवेदो वैश्वानर इत्येवमा- दि, faa सत्यतत्‌ fai छतम्‌ ? दति उच्यते,-^ता्षां मदा- भाग्यात्‌ wane श्रपि बहनि नामधेयानि भवन्ति तासा मेव fragt मन्दादोर्नां महाभाग्यात्‌ रे शयंयोगात्‌ एकात्मान मनेकधा विकुवतौनाम्‌ एकैकस्याः प्रतिविकारं जातवेदः, वैश्वानरः, वरणः, सद्रः, श्रश्िनो, उषा taal बहनि arava भवन्ति, प्रतिख्थानं खप्रजत्यमेद।देकाव्यवदत्रेकलं न॒ जहाति षा सा देवतेति |

“afq वा aavaratq’’) श्रपि चेवं विकरणएधरभिंलादभिन- प्रकतोनां बहनामता। aia ar खं माद्या मविकरुठेतोना मेवा- नेककमेयोगात्‌ TURRACTAT नामधयलाभः स्यात्‌ का दृष्टा न्तः? “वया, हेता, श््वयैः, ब्रह्मा, उद्भाता-दति श्रपि एक- स्य सतः” कुष्डपायिना मयने तच दहि an faa, awa 4 खयं कमं gia; तेषां षट्‌, षोडशानां पयायेण कमं gaa, तत्‌ कमं कुर्वाणाः तदाख्या भवन्ति *; यथा लोके कारक-लावक- पाचकादयः | तदेतत्‌ प्रदर्चितं भवति,- किञ्चिदप्य गौण

* यथा खरवग्रिशोमादो wren Oifea भवन्ति, बोडदानाख तेवां Wrena- येवोद्भाजादोनि ven safe यथासा afew, मेवं कुष्डपायिना मयने; अज ददि समेव dhe विधौयन्ते। तज यजमान रकः, अपरो षड; waa ऋल्िजो दादट-पोद-नेष्टादोनां wafers पयाये gata, तत्त्कमेकरणकाणो ANY wun दति।

स्ख एपार रख] देवतं काम्‌ RRS

मभिघधानम्‌, damaged araratat संज्ञाशब्दानां तेषां कार- कादि शब्देरेष विशेषो यदग्र-नधनादिगुणयोगेऽप्यसति arate, जहति ; कारका दिशब्टास्त॒ करणादियोगसमनन्तरमेव कारकादौन्‌ जद्ति। एव मेतदगौणल् ममिधानाना मपेच्छयोक्रम्‌,--““श्रपि वा कमेष्यक्रात्‌?”- रति श्रपि वेश्वयादुभययापि शक्यप्रतीघात उपप- द्यत wana श्रपि ब्नामतेति

शपि वा vata स्युः एयग्धि स्तयो भवन्ति श्रपि चेवं थोक मे्कंकस्या AAW कमषटयक्ताडा बहनामतां | श्रपि वा एथक्‌ एयक श्रत्यन्तभिना एवोत्पन्तिकेन भेदेन स्य॒रिति याक्निका श्रा ङः,“ यक्‌ fe gaat भवन्ति-इति कत एतत्‌ aria as: ? इति श्रधियन्ने हि स्ठतिनियमे भवत्यभिधाननियमश्ेति। अधियज्ञ fafa व्याख्येयम्‌ *,-““एयग्चि स्तयो भवन्ति-इति | होति हेतौ, यस्मात्‌ एथक्‌ एयक्‌ श्रम्यादोनां सुतयो भवन्ति ।- एयगभनेः-“श्रभ्ि मो "--ए्येवमाद्ाः1, gua जातवेदसः-श्रभ्चि- लिङ्गं खक्षम्‌ “प्र नूनं जातवेदसम्‌""--एति †, एयगिनद्रष- “हरि- wig” $, पयनवायोः--“नियुद्धिः? |, wa खयस्य -दरिद्धिः ¶,

* carat “ay भिति च''-रूत्यधिक खम-प्सकयोः।

we don, १, ९, १९।-उपरिष्टाश दगेयिष्यतौडेव०,४,९। `

1 we dou c, uf, ९।-उपरिष्टा दगेयिष्यतौदेव ०, ४,

§ “रौ” gute १५१, UR Ze (१) we सं ९, UU, ९. इत्याद्यः |

|| “नियुतः पमार que, १५५ ze (९०) mee संर ४,९.११, २. CURT! "इरितः" quate eur, १४४ ze (द) We Ge ९, ८,७, 8. TRF!

RRS निरक्तम्‌ | [उत्तरषट्कम्‌ः

पूष्णोऽजाभिः *, श्रद्‌ णो भिगाभिरषसाम्‌ t स्ततिव्यवद्ारे { प्रायधिन्तम्‌, तदतुपपनल्लश्च पयायवचनवे तेषाम्‌ ते वय afa- नियमात्‌ पश्यामः एयक्‌ एथगदधि-वे चवानरप्रष्टतय इति

''तद्यामिधानानि aaa fe oferta स्तत्यभेदः, एव मेवाभिधानमेदादभिघयभेदोऽपि भवितु मदति ufagat चेदं लाके प्रव्यभिधान मर्येभेद इति, तथैकस्यानेकाभिधानता। तस्मात्‌ wa एयगग्निजातवेदोवैश्वानरादिश्ब्याना मभिघेया इति fafa: स्त॒तिष्वेव fe अभिधानभेदत दति समानाथता tar? tf चेत्‌, ; विधावप्यभिधाननियमदभेनात्‌ —“ate मश- ware निवपेत्‌” इति येनेवाभिधानेन चोद्यते, तेनेव निवेपणा दारभ्य समाप्ते, तसमादसमानायतेति

“यथो एतत्‌” यत्युनरेतदुक्तम्‌ “anemia! श्रनैका- fan एष दृष्टान्तः; दृष्टो डि प्रकतिभेदात्‌ प्रतिकर्मभेदः, सा धरथक्वारिव्यवस्था माहाभाग्यादिव्याचा्येएाज yaa Saar vem: ge एव fe याज्निकपके प्रत्यभिधान aug दति तत्‌ कि मेकं नाख्येव ? तन्नास्ति; गुणतः

# “लाः” LATS १४९, ९४४ Te (४) We Pe ९, ९, ३, ४. रत्यादयः।

““खदष्छो AM”? ६भा० LHR, LUN Te (९) सर ९,९.९९. CAUSA!

{ अवदहारोऽ व्यत्यये Ara) तथा चाप्मिश्लतो जातवेदसः खतिमन््रपागो छातवेदसः स्तौ चाप्रिखलतिपाठ दत्येवमादिः। ““खतिबत्यभिचार,- दति ख- पाठः, ““सखतिभिचार?- दूति म-पाढः।

§ “qtrenufatiqaward भ्रातः सवने? इति (९,२,५.), ^खग्रये- ऽप्रिवतेऽहाकपाखं पराग निवपेत्‌” -श्त्यादि (०, ९, ४.- ०) te we |

[| “इतन परग्य॒क्ठः, चख,

ञ्य RUT? LBP] रेवतं WA | BRE

कथम्‌ ? “ay संस्यामेकलं सम्भोभैकलवं च॑ उपेतितव्यम्‌ सज तसिन्‌ waza सति संस्थानैकलत् ease उपपत्तित शचिन- व्यम्‌ तच दृष्टान्तः+- “यथा yfaat agar: पश्वो देवा दति स्यात्रैकलम्‌, Baia दृश्यते षर स्यानतया waa खाने- कलम्‌ ; एयिवोल्यक्े wart भावेन समान. स्यानम्‌, ते सरव तद ग्रदणेन Waa; एव Fara स्थानयोः एवम्प्रकार मेकल ष्भोगेकलं चोपेक्तितव्यम्‌ सम्भागरेतुक मेकल स्मो नैकत्वम्‌ | Vat नाम इतरेतरोापकारितम्‌, समानकायंतेत्यथैः | तख पुम- मिंन्नखथानाना मपि भवति, कि ay पुमः समानस्यानामा मिति। "यया परयिव्याः asain च, वाय्वादिल्याभ्यां सम्भोगः” कथम्‌ ? ष्रयिव्योषध्यत्पन्ता waren पजन्यवायवादित्यक्न सुपकार मपे- छते तदुक्रम्‌ः--“चयस्तपन्ति एथिवो मनुपाः"--इ्ति ° “श्र भिना तरस्य Bae’ azana,—‘afaa इता दष्ट समोरति, “fea जिन्वग्यग्रयः"*-दति 1 तद्‌वम्परकार मेकल Rana खानेकलाद्धा am प्रतिषिध्यते, लोकेऽपि षमान- कार्यता भवति dat तेषा मेक्य मिल्युच्यते

कः पुमरचा विराघो भेदाभेदे दृष्टान्तः? इति। उभये हि प्रमाणं

© we सं००,०, ९९, २। “CRAIN पजेन्यो वाय रादित्य wad “जशः Gan “एयिवींः भमिं तजसा च्योषधौरित्यथः ‘aah’ efemara: सकापयन्ि | कोटशाः? ‘qa’ बवेदौोना wade wae प्रभावयितारः weyr< Cue: दूति ae aie | ° dog, k Rau! “STE खरवनोयादयाः सेवे "दिवम्‌, चादि. vaya rea देवान्‌ ‘farafn’ प्रौ कयकिः--द्ति gre ure | 42

३९० «fata [उशन्रवट च्छम्‌ ,

भेदाभेदवादिनः--श्रात्यविनेरुक्षयाज्निकाः; हि ते खममीषिकया भेदाभेदौ प्रकण्ययन्ति, किन्तदि? मन्त्रां मुदिश्च तस्माद्‌ वक्रः VAG दृष्टान्तः? उच्यते;-“तच्र एतत्‌ नररादहम्‌ Vat यथा wy मित्यभेदः, नरा इति भेदः; एवं एयिष्यभ्नि रित्यभेदः, water धेश्वानर इति भेदः एव मुत्तरयोरपि स्थानयोः; तथा श्रात्मेत्य- मेदः, लाकाश्च लाकिनसेति मेदः waa सामान्यविशेषधमा TOM पुरुषवद्यापे्तातश्च॒शणप्रधानताऽपेच्ा युरुषानुरागषि- waa:

तच्चैवं षति श्रात्मविद श्रात्मनि चिलनानाले wale तदङ्ग- ्रत्यङ्गभावेन कल्पयिघेकं मात्मानं पश्यन्ति तथा नानालेकले Sent दति faa, तथा faaaa याञ्जिका नानात्वे एव मेषा afatie: श्रस्ति fe शब्दाययोः an-afaamaia तदुद्यपेत्तया अन्वयव्यतिरेकाग्यां वत्तितु' शक्तिः; तु खाभाविक मभिधाना- भिसेयषम्न्धय मङतक मप्रच्यवमानाव्रभिधानाभिघेयौ लदोताम; Wie waa, श्रवभास्यस्य चावभास्यमानता शरङ्गि्यवधानमन्तरेण विनयते ; wea खय मयधोतश विक- wa परेदिकानां पदवाक्यप्रमाणाना मात्रभावानु्यवभरेनात्मवि- सरक्रयान्िका वेदस्य विपयासिनौ मष्यध्यात्माधिदेवाधिवयन्ञषिषय- नियता मथामिधानशक्निं facial भिव मन्यमाना परस्परता विपरयस्यन्ते तदेतत्‌ esata मेदाभेद वन्ति देवताषतत्वं यथायं aqufaamaia प्रष्याति सुपनयत्‌ स्तिष्पकेणात्मनेाऽयैषतलं तयश्डतं मन्तैराविक्कियते | तदुक्तम्‌+-'“तजोपमार्थन चद्धवण

Swe रपा० awe] देवतं MUA | RRL

भवन्ति,-दति °, दग्ितिश्चेतन्मन्त्ेण,-“न लं युयुत्छे"-दइति 1 निष्ितर्हपल्ेन @ विषयेऽष्या्मादौ परमाथैतया ैकात्ये fret, तदन्तलाद्‌ वाचः तदुक्रम्‌,-'भ्यतता वाचो निवननन्ते"- दति{॥ qn

अथाकारचिन्तनं देवतानां पुरुषविधः atria चेतनावदल्धि स्तुतयो भवन्ति तथाभिधानान्यथापिं पोरुषविधिकेरङ्गः संस्तूयन्ते | War इन्द्र स्थविरस्य याह यत्सुङ्गभ्‌णा मधवन्‌ काशिरित्ते। अथापि पौरष- विधिकद्रव्यसंयोगंः। श्रा दाभ्यां हरिभ्या मिन्द्र याहि HAMA सुरणं गृहते | थापि पौरुषविधिके waft | aaig पिब च॒ प्रशखितश्च। आश्रुकशं श्रुधी इवम्‌ (६)

“श्रथाकारचिन्तन देवतानाम्‌" | WY,— माहाभाग्णार्‌ देव- ताया विकरणएधमितवादनियम श्राकारे, श्रय नियमः? नन्वेश्व्यव्या- तान््राहाभाग्यादूवताया इत्येतद्याहन्यते, तस्मादथाकारचिन्तनं देवताना भित्येतदनारभ्यम्‌ ? उच्यते ;- श्रारभ्य मेव प्ररुतिषन्ता मनपेच्छय विकरणं नाम देवताधमा नास्ति, तस्मात्‌ प्रक्तिशिग्यते

» भा० ९९०१० ९०५ पार & We दरषटयम्‌। “agyto—efafaay (we yo ८, ९, tu, द.) टूति चोद्‌ष्ुतं aya RUC ४० तत्‌पवश्च (१०९ To ६९ Go, १०८ एण १८ पर, १०८४० wy wo

९११ ४० ts Wo, ६६५ we १६९ प॑र) RAMA { त° उपर ge!

शट्‌ निशक्तम्‌ | [उन्तरषटकम्‌ ,

देवतायाः श्रपि च, यत एवेश्वरा देवास्तत एवेभयभाविलात्‌ कि माकारवक्वं खभावो देवतायाः श्रय वा निराकारवत्वम्‌ ? एति सतत्वपरिन्नानाय चिन्त्यते

aq तावदियं चिन्ता; fa faz विशेषेण पक्तचय aurfy- न्ताया विषयः, उत वा afeifyzanfar Ga इयेरवतविन्यते ? ए्ति॥

इश तावदात्मविदा मेक श्रत्मास प्रात्रिकारापत्तः wa खद स्तषवाछतिः, सगंख्ित्यो हपान्तसवाहटतिः; तदेव मसावनारतिः, सवारृतिषी ? दृत्यनास्यदश्वताऽस्या्िन्ताया श्रात्म वित्ततः

श्रय पुनयदासावुपात्तविष्छानावस्यो मैरुक्रपक्ताभिमत मञ्निवायु- gourd बिभति, तदापि (प्रत्यचचलादविषयल मस्याधिन्तायाः ।}) प्रत्य्चलान्तेषा मपौरुषयविष्यसख्य तत्पक्तेऽप्याकारचिन्ता विषयाभावा- दुदख्यत एव |

ay पुनयाज्निकानां यावदभिधानं देवतापच्तवादिनाम्‌॥ श्रभ्नि वायुख्याभिधानानि प्रत्यलाथैभिधानमसन्बन्धोनि ; नातवेदेारद्रद्- प्न्याशिप्र्तोन्यप्रत्यवायाभिसम्बन्पोनि; WAT AeA | श्रभिघानानां लाके दृष्ट मारतिपद्‌ाथैवत्वम्‌, श्रनाकाराथव्वबः;

* qrafaren, tenes, याचिकपचदधेति बेदाथेविषमे जयः wer fag |

+ ^“दत्यबास्प्रदभूते” - इति ख, a

{ नाख्ये पाठः ख-ब-पखकयेः |

§ way मेदक्कमते प्रत्यचद टाग्न्या तिरि कखनद्दतदधिहाबपद षो नास्येवेति सिडान्तः, खय मेव श्टतिवाद्‌ इत्य्‌ यते

| भौमांखादभंनद मि तमामेश्धिताना सिति चावत्‌।

द° दपा २०] देवतं काखम्‌ | द्‌

Waa शब्दानां मन्गतानां लो किकर्मतुष्णा दिशब्दैवाखात्मा- काशादिभिवाभिधानवत्वं gua? तैतर्‌ भवति, श्रप्रत्यच्तवाद्रद्रा- द्यभिधानाना ate,—fag खल्वमो र्द्रा दिशब्दाः मनुव्यादिश्ष्द- वदाकारवर्थनायेवन्तः, उत वायात्माकाश्ादिश्ब्दवदनाकारेण? दति॥

एव मय मस्याथिन्ताया याञ्ञिकपच्ो विषयः ““श्रपि वा एय- गेव स्यः"?--इति * श्रतएव याज्निकपक्ादनन्तर मिद मारभम्‌,- ““श्रयाकारचिन्तनं टे वानाम्‌“ ई्ति1॥

fa माकारस्य चिन्त्यते,- fa मस्ति उत नास्ति? हति | यद्यस्ति कौदृशः? द्द दिविधा श्राकारिणोऽथाऽचतनाश्चासेत- नाश तच चेतना मनुष्यादयः, WAAAY पाषाणादयः aa- तद्‌ भवति fa ममौ मसुव्यादिवश्ेतना उत पाषाणाद्वदचेतना द्रवयमावम्‌ ?-दइव्युपोडत्य संशयः

तदय दासाय प्तः परिग्टद्यते,--““पुरुषविधाः स्यः दति एकम्‌” -दति wane मस्ति देवताया श्रण्युपगतम्‌,+-यत्काम equa तदे वतः मन््ो भवतोति ; शति fe zante

agaaa wae | यदि चैव माकाराऽपि! anaa ua भवितु

* qqraray qwaws (ery ve) माडाभग्यादित्यादिना देवस्येत्यकेन qrafaay om, aunt खण्डे (१२९२० ९०) तिवण्वेत्यादिमा vacua पन्यसन्दर्मष नदक्कपचसोक्धः, anges खअपिवाश्यगित्यादिना शेकसोत्पन्तन याश्चिकपकोऽप्युक्क |

+ यदि सेतद्‌ारण्मरणं तमेत्यादि-मतबयापसंडारवाक्यादमन्तरः तु ufse- पशादवयवदितमेव, तथापि याश्जिकपरुदनम्तरमेव मन्यते, खउपसंडरश्वाक्स्य्ापि याञ्जिकपर्पातित्वसतौकारात्‌; खयं ठोकाकारोऽपि Fe य्धिक शवेति।

{ पर ९८५ ४० अर पार कर उटवम्‌।

RRs fararna | (wucaena,

मरति? safe sz पौरषविध्यं मन्तेषु देवतासम्बन्पोनि यत उच्यते, ““पुरुषविधाः ख्यः दति एकम्‌" मन्तेषु cinq दूति वाक्येवः | “पुरुष विधाः" पुरुषप्रकाराः, पुरुषविग्रहा इत्यथः कोऽ हेतुः ? '्वेतनावद्वद्धि स्तयो भवन्ति” “ईहि"-षब्दो Saw ; यस्माचेतनावता भिव Gast मन्ता श्रभिधायका wafer | Wit वतिमंल्यै, उन्तरस्तख्याथं ; तस्मात्‌ पुरुषाकारवियरष्टा इति मन्‌ Sag मपुरुषाकारवियदाणा मपि गवादौना मस्ति? न, नास्ति। हते विवेकचमा आरासन्नचतनाः; wash qa fenfeafataaqu fafad dfamat भवति, मधिरुत्य waa निसेतनाऽय मिति एव मेते गवादयः सत्यपि चैतन्ये श्रासन्नचेतनलास्ञ विदुः श्वस्तनम्‌, लकालेाकाविति wad; तस्मादश्वेतना इवेपेच्छन्ते। पुरुषस्तु वेद श्वस्तनम्‌, वेद लाकाला- at; atanzaa मौोप्ठतोति तस्माद्धि ताहितपरिन्नानात्‌ पौरुष- fasea सिषाधयिषितलादनपच्छसामान्यं विशिष्टवेतन्यः पुरुषो नियम्यते | यथैव चेतयमाना WU पुरुषाः श्रूयन्त, तथेव रे वता अपि। तस्मात्‌ “पुरुषविधः स्युः?--द्त्युपपन्नम्‌ "तथाभिधानानि" यथैव पौरुषविद्य सुपपद्यते चेतनावन्‌- घदृ्सत॒तिभिः तत्मति ताः कारणं भवति, तथैव खंवादछक्रेषु परस्पर मभिधानानि उक्प्युक्षानि सम्बद्धायानि परस्परतः, कयाशटभौोयादिषु gaa भिन्ेव्येवमादौनि ° तस्पात्‌ पौ रषविद्यं देवतानाम्‌

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© Say BUNA, रतेन वा CRA TENG VATA” इति To ज्रा०५, B, ९। ककसंदितायाः प्रयममष्डले जये(विद्रामवाकारक्ष CT कयाद्य सौं नाम SW तज WT ऋचः Ufa तेष Hrs” इत्येषा तोया |

Oe रपा० रख ०] देवतं कार्हम्‌ | Ray

श्रयाणय AIT तुः पारुषविद्यो Zaarara,—“‘ateafafu- ave: संस्दरयन्तेः,। पौरूषविद्याले यान्यङ्गानि, तेः संस्द्रयन्ते | तद्यया,-“च्व्वा न॑ ce alate ae”, “aq शङ्गभृणा मघवन्‌ काशिरित्त'"-

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° ali * शंयोराषम्‌ fag BRT एकादभिन्या Aare पशोवंपाया याज्या "उरू fagta ‘ata’ यः aq (नः) sara ्रनुनेषि* अ्रसुनयसि; खेन सुरतेन कर्मणा गच्छतां गमनानुगरहे वन्त॑से। सर्वज्योतिः' श्रादित्यषमानं प्रकाशेन लकम्‌, ‘aya’, खस्ति' खस्त्ययनाय तस्य ‘a तव वयम्‌ ‘eg? (ष्वा) wat एतो taut शत्रुणाम्‌, “सखवि- रस्य" मतः ‘are’ रस्ता, (-बृन्ता') gent महान्तौ, (‘war’) शरणो श्राश्रयणीयौ नित्यम्‌ “उप स्थेयाम उपतिष्ठे मेव्येतदाग्रासमहे “aq सङ्भृणां agi arfafta’—cfa 1। व्याख्यातः शषः { एव मस्िन्‌ aaa बाङ्गमुटिखम्बन्धद शनात्‌ स्॒त्यस्य््रस्य पौरषविध्यम्‌ ; wart fe वितथाभिधानवं मन्योः, तथा सत्यानथक्यं मन्त्राणाम्‌, Gast थास्तस्य तदर्थलकणग्रतस्य। तन्मा गढदित्यवश्छ aaa पोरूषविध्यं देवताना मिति “maria” श्रय मथयपरे। हेतः पोरुषविष्ये देवतानाम्‌-“पौ र्ष-

* “og मे जोक मनु नेषि विद्धाम्वंव्योतिरिभयं खफि। ear त्‌ oy aft TH बाह GT UAT गरणा ष्मा दूति we de ४,०, २९, ea)

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विधिकैः द्रश्यरुयोगैः" तद्यथा,-“च्रा दार्ग्णा इरिभ्या fax arfe”, “aenttatar सुरथ we a” ।-

AT दाग्याण ° aun: °”, | zug wefa: 1 श्री 1 fagq हे भगवन्‌ ! ‘cx!’ यदि तावत्‌ तव दौ ett सतिहितौ, ततस्तावेव रथे युक्ता, ताभ्याम्‌ (दरिभ्याम्‌) ‘or याहि" श्रय चल्ारः ? ततस्ते; (“चतभिः?), श्रथ षट्‌ ? ततस्ते ("षडमिः,), अरथा- at? ततस्तेः (wore), श्रथ द्र; ततस्तैः (“दग्रभिः,) “a थाहि t | ददं “सामपेयं" सामपानकमं प्रति। किम? इति एवं भूमहहे--श्रय' ‘gay सामोऽभिषुतः त्वदयम्‌, तम्‌ दे “सुमख सुधन ! ‘ar केन faq aa? dard (कः) क्षौः; श्रविल- faa मागच्त्यभिप्रायः

“sq; साम०--° दचिंएावत्‌” 2। विश्वामिचस्याषम्‌ fa- Bq हारियाजनस्यातुवाक्या हे भगवन्‌ ! "दनद ।' (‘wT’) पौतवागसि ‘Way एतसिन्‌ कर्मणि a पुनः ‘ae zy श्र याहि") aaq तव ‘aera: जायाः", "तच ‘wea’ च॒ “रयस्य "निधानं waren, तिमेाचनंः "वाजिनः जिवा

“खा erat इरिभ्या मिन्द्र याद्या चतुभिरा षिहयमानः। erafi< णिः सोमपेय मयं पूतः GHG सा दधः ॥८- इति we de ९, ९, ९९, “aqihea इवेव wd, तथापि सयोविंभतिभेद्‌ात्‌ नानावम्‌) खअतोऽरव- त्व afaqea” - इति सार भाज | { CW Sereda खा यमानः" रत्यग्टङैत मेव fer | 6 “खपाः सम्‌ ae भिन्द्रप्र यादि Sere ra Eww ATT) यथा cag wear निधान विन्नं वाजिन दचिदावत्‌॥- इति we To १,१,१०,९।

©q> QqrTe VwBe] इवतं Mazz | RRS

SyTa ama, ‘efauraq’* waft, ‘gui’ queda तत्त्वे (A) तव ae? aaa aa Wate प्रथाहि

-एव मेतयार्मन्तयोाररिग्टहजायारयाभिसम्नन्धात्‌ पेरषविद्धय मिश्रस्य ; हायेरुषविद्धयो सति सम्बन्धो जायादिभिरस्ति

“शयापि"” श्रय मपर देतु; परुषविद्यो कतमः? ““तारष- विधिरकैः कमभि daa देवताः तद्यथा “शङ्खे पिबं परसिंतस्छ, “a Wad रधो इवम्‌” ।-

“दं हवि°---*प्रखितख"”1 अभ्नियुते नाम Urge, तस्याम्‌ { जिषटुप्‌ श्रौ हे “मघवन! ‘ex इद" “yay आच्यादिकम्‌, “तुभ्य रातम्‌" मनास्माभिः निरप्तम्‌, wa भिर्वेप- णादौ संस्कारकाले। तदि दानौं रे ‘ware!’ (“श्रहणानः) अरणम्‌ “प्रति ware’ प्रतिग्हाण श्रपि ‘qu aay मेवायं ‘gay’ अभिषुतः सामः aft ₹े “मघवन्‌ | तदर्थं मेषैषः पुरोडाशः ‘qm’ त्वम्‌ ae सोमस्य ‘nfaae’ ‘afe पिबच' सख dy भिति शेषः |

“श्रा arate CU me अनुष्टुप्‌ Rl श्रोतारौ यस्य wer श्रपरतिहतश्रवणौ waa, भवति

° “"इ्चिष्ावत्‌ प्रयोजमनवदु wafa”’—tfa are wre | + ददं उविभेववनाभ्वं रातं sft Busy rat WATE | mH gat dary भ्य vale ay ay पिष प्रश्धिंतस्य॥- इति we Ue ८, ९, ९९, १। { “पिब सौरोाऽप्रियतेऽध्िथपी बवा-श्त्येनक्रमको। § “wr स्वदे चरपौरखवः नग चिंद्थिष्यमे भिर इन्दर सास भिमं मम॑ wet. यणशिदनौरम्‌ n?— इति we Geo ६, ६, १०, 8! 4,3

RRs ferarna | [उन्तरघट कम्‌,

Bak, तद्य सम्बोधनम्‌ -हे ‘sag! (an) आभिमुख्येन ‘afr aq लम्‌ (हवम्‌) WET waa FET “नू चित्‌” पुराण दव “दधिष्व' धारय, एताः श्र्र्‌-'गिरः' दयेन किञ्च; भगवन्‌! ‘wey ‘aa मं स्तोमम्‌ ‘am’ लदयक्षस् et परत्यादृतद्य पुनःपुनरपि aaa: ‘ee’ are staal “श्रन- wy चण fay: |

एव मनयोमन्लयोरध्याद्टणरोति श्रामन्त्रणपूरत्र॑का दरश्रवश्पूवका विनियोगः, सम्भवत्यपोरषविषये; a fe गवादयोऽध्याश्रण- Wan: किचित्‌ प्रपद्यन्ते तस्मात्‌ का्यंकारणषत्निवेशा ace वदहेवतानाम्‌, कार्वकारणापें विज्नानम्‌ | तरेव मेतेभ्यो मन्त- wit: fed treafae मन्ल्देवताना मिति (६)॥

अपुरुषविधाः स्यरित्यपर मपितु यद्‌ हश्यते पुरुष विधं त्यथाप्निवायरादित्यः थिवी चन्द्रमा इति यथो रुतच्चेतना वद्धि स्तुतये भवन्तीत्यचेतनान्यप्येवं स्तूयन्ते यथाकछ्प्रतीन्योषधिपर्यन्तानि यथा रुतत्यौरुषविभि- RU: संस्तूयन्त इत्यचेतनेध्प्येतद्ध वत्यभिकन्दन्ति इरि- तेभिरासभिरिति ग्रावस्तुति्यया रतन्पारुषविधिकैद्रव्य- संथोगेरित्यितदपि ताह मेव सुखं रथं ययुने सिन्धुरश्ि- मिति नदोसतुतिर्यथे रतन्पारुषविधिकैः कर्मभिरि- त्येतदपि ताह मेव होतुशचित्‌ पर्वे इविरश्च माश्तेति ग्रावस्तुतिरेवापि वेभयविधाः स्युरपि वा पुरुषवि-

श्य एपा० Ree] Tad काण्डम्‌ | २९९

धाना मेव सतां कमात्मान रते स्ययथा यन्नो यजमा- नस्येष चास्यानसमयः (9)

इति सप्तमाध्यायद्य हितीयः * पादः ©. 2.

“श्रपुरषविधाः स्युः इत्यपरम्‌” दशेन मिति arate: तद्‌- करम्‌ “sary व्योतिषद्च भिश्रोभावकमेणो वर्षकमे जायते, तता- पमार्येन युद्धवण्ण भवन्ति-इति विज्नायते तदाः “श्नेतदसि यदेवासुरम्‌”-दति, “न वं युयुत्से,-दत्यपि चैतदक्ग मेव

“ata त॒ यद्‌ दृश्यते” देवानां किचित्‌ “श्रपुर्षविधम्‌” श्रयुरुषप्रकारं तदिव्ययेः। “aget— afi, वायुः, श्रादित्यः, एथिवो, चन्द्र माः--एतिः" yaaa एतान्यपुरुषप्रकाराणि caaar मते<न्ययान्धुपगमे auf ar! चेतदिष्टम्‌ तसमादपुरुष- विधा अन्वादयः, तछामान्याददृष्टा इृदद्रादयोऽप्यपुरुषविधाः; fe मनुश्यले aa के सिदाकारिणः के चिदनाकारिण दति, ada gaara मपि हि न्यायः तस्मादपुरूषविधा tf n

‘aut एतत्‌ चेतनावदत्‌ fe wae: भवन्ति दति, wean न्यपि waa; यथा-श्रचतप्रष्टतौोनि भराषधिपर्यन्तानि il” तस्मात्‌ चेतनावत्‌ glare ata: पौहषविध्ये देवतानाम्‌, we- तनेष्वणयक्तादिषुं चेतनावत्स्ततेदृष्टलादिति

^ प्रथमावध्यष्टमखष्ठाद्मक रषः प्रथमः UIE: क-पर्न्गे। vile ९१७ Te ९अ० ५पार रख. KEAA | { श्भा ९२९०३० Rede इष्टयम्‌।

$ इतः पर पादेवायं प्रयमदेतुदक्तः ९९९९० ९प०; २९४३० ४पं०। || एभा० ४९४९० wwe एकर ४) - (९९. |

age fauna | [उन्तरषटकम्‌

“aut एतत्‌ पौरुषविधिकैः ae: dere दति,” श्रय मण- हेतः °, व्यभिचरितलात्‌ ; ^अ्रचेतनेषु श्रपि एतद्‌ भवति, तद्यथा —‘qaagfa:” “ra व॑दन्ति ०- ona” 1 | matey | erat प्ावस्ठतिः “एतेः 'यावाणः, श्रभिषवकमं gare: वदगम्ति कथम्‌ ? ^भतवत्‌” wa भिव “खखवत्‌" स्ख्छमिव | श्ब्दबाडद्याभिप्रायम्‌ श्रभिक्रन्दन्ति' श्राहयन्ति सामपादन्‌-- श्रा- गच्छतास्माभिरभिषुतं समं ora fafa “हरितेभिः' Bradaire इरिदर्णः शश्राखभिः, च्रासौः। तज चया दवं ‘fal anfw: गाव्ाम्‌, एतया ‘guar शोभनया क्रियया एते ‘gad: शोभ गद्य कमणः कन्तारः "हेतुः चित्‌ पूर्वः Marla श्रप्न, मानुषहा- तवी ya प्रथमतरम्‌, “इविः' एतत्‌ Brave, ‘wey श्रदनोयम्‌ ‘srma’ wafer | श्रभिषवे सामसंयोगमाच ana सुपचर्यते ग्राव्‌- शाम्‌। तस्मादपौरुषविष्य मितिः; fe aut यथाग्धतान्याख्ा- मि सन्ति, यत्छंयोगेम wan, तददिन्धादौना मप्यययाग्तैवा- ङमुष्यादिभिः सतिः स्यात्‌ तसरादशेतुरथं यत्‌ ““पोरुषविधिकैर- दैः सस्र यन्ते,- इति तस्माद पुरूषविधाः

“यथो एतत्‌ पौरुषविंधिकैः zea: इति , एतद्‌ aft तादृशम्‌ एव” श्रौपचारिकम्‌, Samara भित्यथैः; यथेव हि meaner दु ष्टयमिचारिलार्‌ य्ावप्रश्ठतिषु नं सम्भवति रूप-

* इतः Fares WITH दितोय-इ तुषः ९९१४० ove; १९५९० rie न्दते tafe wary सदखवद्‌ मिनंन्दनि इरितेभिरा समः | विद्धौ ware: Cur gaa हा तुशित्‌ पवं whee are ॥-- इति we Yo ८, ४,९९,१। { ‰.मनबष्यदातुवा" ख, न। § रतद् णुकं Tae परस्तात्‌ पवेद्धिन पे ९१९० Hye; ११४१० रपर

© शन्रपा० देर] देवतं कारम्‌ | Ror

कमात Bad शद्कल्यता aerfearfaty:, एवं ररिरथजा- यादिखतयो रूपकमाच मिति wf “सुखं रथ ` युयुजे far thera - इति गदौखतिः” चारा रतौ यथाग्धताथेलो- पपलिरस्ति, श्रसन्भवात्‌। कथ मस्व? द्युदकाल्मिकाया नद्या awe रथेऽवस्धामं सम्भवति |

“सुखं रथ °---° विर प्थिनः °” यिन्धुचिन्ाम प्रियमेधः पुत्रः, तस्येय माषम्‌ | जगतौ | नदौसुतिः | "सुखं" परेत णा- कस्य, ‘wa? Tew मुदकम्‌ (gay) युक्रवतो “सिन्धुः, नदो ्रश्चि- मम्‌” quay व्यापनेन तदन्भम्‌ उदकरथयम्‌ | तेन वाजम्‌ श्रन्नम्‌ “सनिषत्‌" सम्भजनवतौ उत्पादितवतौ श्रस्िन्‌' “ars? सङ्खगमे यता यते गच्छति, ततस्ठता त्रौष्यादि waq श्रमिमिष्यादयतो- व्यथः ware yeaa मभिनिष्यादयति, तस्मात्‌ तद्य महान्‌" ‘afear माहाभाग्यं "पनस्यते wat stefan | ‘sae saafefane, “खयश्रसः' खायत्तकौन्तः, ‘facaferny’ farqqutaa शब्द कारिण इत्यथैः रथ मिव ्रश्िमम्‌ इति केचित्‌॥

तदेवमादिष्बसम्भवात्‌ सुख्याथेकश्यनायाः, सवेज ङूषकमवादाः स्तय दत्युपेच्यम्‌

“यथो एतत्‌ पौरषविधिकैः कर्मभिः†-दति, एतद्‌ श्रपि arg- भ्रम्‌ एव ।--*हाठशित्‌ पुवं दविरद्यं मात (० सं०८,४,२८,९)'

° “चु रथं aye सिनध faa! तेन्‌ वाज उनिषदुकिश्राज ww We महिमा प॑न ९,तेऽद्‌ गस्य खथग्रसा विरप्णिनः ॥**- दूति we de = RO 8) AW दलनरः TWIT qa रव Rotwe cote; १०२० uve |

ReR निबक्म्‌ [डत्तरवट्‌शम, |

दति” श्रनश्क्तिक्रियया ग्रावाणः यन्ते, पुनर्यराव्॒णां Gang मग्न मस्ति। तख्मादिद्‌ मपि qaqa मेव “एते व॑दन्ति इत्य व्याख्यातम्‌ *

“रपि वा उभयविधा; स्युः” उमयदेतुप्रामाण्ात्‌ 1

“afa वाऽपर्षविधाना मेव ear” एयिव्यादौनां “कमा- त्मान एते स्यः” अ्रपुरुषविधाः क्तितिजलादयः 1। परे तु 2, श्रधि- छातारः पुरुषविग्रहः; एव मुभयोः प्रत्क्तागमयोरप्यनुगरशः छतो भविव्यति “यथा,- an: यजमान” कमात्मा ; षद मेतेनाङ्ग uf@ad, इद मेतेनाङ्ग सुपचोयत हति dea मसुमिद्लोके परति ति विन्नाघते |

. एष Malwa.” | भारते चाश्यानमसमय एष fa- दान्त waa: प्रथिवो, स्तोङूपेणख भारावतारणाय ब्रह्माणं ययाचे श्रप्नि्च ब्राह्मणरूपेण वासुदेवाजुनावभौ Bess ययाचे पुरुषश्ूपणाग्रिशूपेण खाण्डवं ददाद ।-दन्येवमादि

* aera डे तुखिदि्थ॒दादरथभिति याबत्‌ प° eerue pode |

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{ रष रव पिडाकपच्खतु्था Matern: |

§ मकाकारसमकाखव?ि,नस्तविति यावत्‌

|| स्वश्च देवाना मकारविन्न परूषातिललाभाव रव देवाम। भिति याष्कौव- fazer, wie मेव फलदानग्ङ्गिरित्येव दे वल्रकक्पमं चित्यादोना fafa मो- मांसकमत area मिति |

wg Der परमतसश्मतेव, तु यास्कसम्मता, सूले भारतपदष्यादभेनात्‌ fey भारतात्‌ पर tran fafa) warna तु रषत्य।दिप्न्धश्याय मरः 'रषः' कथिताकारचिकनविवारः 'ाष्डय।नसमयः, सवैजंव RATT THATS सहेत इत्यनेन वाक्येन सख विवार डपम्हता याख्छनेति।

** सद्धाभ।रतौथाद््पयद्िखगविं्ं पये कष्डवद् दनं नाम, तदू RETA

श्न दपा. देखन] देवतं काणम्‌ | १७९

तदेतचतड भिश्चते, मन्त्रायेदभेनादेव ।- (१)पौरुषविध्यम्‌ °, (९)्रपोरषविष्यम्‌ 1, (द)कमाथंत्मोाभयविध्यम्‌ †, (४)निव्य मौ- भयविध्य मेवेति षवे चेतदुपपद्यते, मादहाभाग्ये सल्यैश्वयात्‌; कथ- भिव देवता स्यात्‌ - TAH, मूता, एकधा, दिधा, बहधा चेति चया तु THAT मपश्यन्‌ मन्द्‌ शः तथा तथा श्रस्ठवन्‌; waq- वादोषः, फलद णंनात्‌ नानवस्ादगेनवरास्यादृणां परिरेवना- निन्दा दिष्वपि चद्धादौनां कामकारतसद्रूप मवन्धितानां षा खा सतिरेव, निन्दा उक्ञ्च ;-“होना a निन्दा, gata wal दवान्‌ मन्तः सम्यगमिष्टयात्‌ कः शक्ति्तये ऽप्यध्यवस्यन्ति शिष्टाः स्तोतुं waft गतिं यतोाऽन्याम्‌ | ॥-इति ne (७)

इति मिर्क्रटन्तो इादश्राध्याय्य (सप्तमाध्यायश्य) fala: पादः¶॥७.९.

# ge ९१६४० uve “पुषविषाः द्युरिन्येकम्‌"”-- इत्यादि प्रथमः पचो टयः

To ९९८८० Ede “व्पृदषविधाः स्युरित्यपरम्‌" इत्यादि-हितौयः पचः

{ पर दष्ट gris “wfy वेभयविषाः यः" इन्यादि-हतौयः पलो द्रवः | वसते ऽचन्मते तु कतौयपे उभयविष्य मेव देवाना acted, गतु तथ किञ्चिदपि विशेषण मम्बषणोयम्‌।

Fe ९८१० rude “आपि वा इत्यादिन-चतुर्या मोर्मांसकपथो wee: | wy mama Fraley नापि क्रियाता fafiam an देवानाम्‌; wa ea fy oe यत्ता यजमानस्य? दूति cern उपपद्यते तथा डि,-थजमानस्य यथा यञ्चः” (यज्ञः, अनाम्‌, क्रिया, कम दति पय्यायवचनम्‌ ) देवता भवति, द्यापि efaya:, ata अश्निखतिक्रियादौना मेव देवलं TERME; तज TENE we चिदपि देवस्थाकारचिकमे प्रयोजनौयन मद्ठोति मौमांसकमत मणनुगरड- तम्‌ | रतेन वश्दखपुरब्दरसमाममनात्‌ कुखभङ्ृमोतिखापासिता |

|| कारोयादौ च्थाष्दद्गनादिति भावः। दद्‌ सेव wesarerel सानम्‌।

क-पुके fats प्रथमपादसमापिः, क-च-पुखकभेखु wets पाद्षिभानः।

Res निक्तम्‌ [डत्तरबट्‌कम्‌,

तोयः पादः

fra va देवता इत्युक्तं पुरस्तात्तासां भक्तिसाहचयं व्याख्यास्यामोऽयेतान्यभ्रिभक्तीन्ययं लाकः प्रातःसवनं वसन्तो गायनी eq स्तोमो रथन्तरं सामये देव- गणाः समाम्नाताः प्रथमे स्थाने surat पृथिवीति स्ियोऽथास्य कमं वहनष्ड इविषा मावाहनश्च देव- तानां यञ्च (किथ्चिद्‌*) दा्टिविषयिकं मप्रिकमेव तद्‌- meat संस्तविका देवा इन्द्रः सेमा वरुणः पञ्जन्य ऋतव श्राप्रावेष्णवभ्ड इवि त्वुक्यंस्तविकी दशतयीषु विद्यते ऽथाप्याप्रापोष्णं इविनं तु संस्तवस्तबैतां विभ- क्तिस्तुतिः डच सुदाइरन्ति- (८)

श्रथाकारचिन्तनव्यवधानाद्‌ रेवताचयाधिकारस्य तदिगेषविव- च्या तदनुरूतये स॒ एतत्‌ प्रकरोति ;-“.तिखः एव रेवताः- इति*2। थः पुनस्त विशेषो विवत्ितः, उच्यत ;--“नार्षां भक्ि- सादषयं धाख्यास्यामः” ताखा मेव तिषृणां भक्तिसाहचयम्‌ | भक्ति सारणयैश्च, भक्तिकतं वा area भिति। लाकादौना मेवान्यादिभि्जनं भक्तिः, षषवरभावः ayaa तत्‌ किमर्थम्‌ ?

© माख्येतत्‌ पदः क-ख-म-पस्तकेष | + “मप्रिकर्मेतदयाख्य" र, } “faumafa” a | § पुरलात्‌ दितोयपादारक्मे रव यावत (२९०६० ६१०)

शखर BIT? tae] देवतं कागहम्‌। ४४

उच्यते,-श्रमंविन्नातपदे मन्ते भक्षा साहचर्ये घा यथा रेवता गम्येतेत्येवमयं भक्रिंसारचयं मुच्यते

यद्येव सुच्यतां तरि कानि किम्क्रीनि? दति 1 तदुच्यते;ः- “aq एतानि श्रद्चिभक्रौनि'" श्रयेति विशेषाधिकारे -श्रतरिं भजन्ते, SAAT वा भज्यन्ते-दूत्यभ्भिभक्तोमि | कतमामि } “श्रयं ले कः**--दल्टोवमादोनि * श्रग्रिभक्रौन्यवगन्तव्यानि “ये दव~ गणाः समान्नाताः प्रथमे स्थाने” aepats—arwt t, war: ‡; प्रावाणः 3, witwa: | इत्येवमारौनि “agra, एयिकौ; इला- दति faa?’ ‘ca, एयिवो, अ्रद्मायोः- दति क्रमेण

° रथन्तर सामेत्यन्तानि षट, wt रव ब्हव्यानि। पर मितानि क्म नष्छ्मातानि) याद्यातथान्येवेत्यस्माकम्‌।

खाप्रोषब्देन निषष्ड-पदम-दहितोये पठिता cared TEN Vw र्मा ४९१६० दयम्‌ तज तु मानम्‌,- “खयात wife’ —rarey “cater बा- भरोदेवता खनुक्रानाः”-दुत्यन्ता याख्कप्रन्धः परसखादागमिष्यक्ि (८, ९. १.--२,९.)

J Ute ४९४, ४९९, Zou, २, (8); परस्ताच श्वर श्पा० oO न्ख.

§ Ure ४९१४, ४९९ Te १,२, (४) ¦ परस्ता Ee tae Fe We}

|| Wate ४९४. ४९८ Tew, २, (१९) ; TRBIW ewe erie u, (we |

निवण्टु पञ्चमाध्यायस्य प्रथमा खष्ठजये प्रथमस्यानदेवताः समान्नाताः (रभा ४४९-- ४०४१०, ; पराशान “याते ऽनुक्रमिष्यामः- इत्यारभ्य “यजेति qi षः" दूत्यकानि तद्गाद्यामानि owe sure ०-श्च्य०)। तद्ज यानि awe कानि पदाभि, तद्ाच्या एव प्रायभिकदे वगाः ven दति steer! परे तु “येच देवमणाः समन्ाताः प्रथमे ख्याने" car प्रथमादि खष्डवयपठितान) wat सर्वेषा मेव ue, अद्रायोत्यादिखियां wivdeg 'तक्रकोण्ठन्दः- WIAA: |

44

१४६ निडक्तम्‌ ( [उश्तरषटकम्‌,

चक्रये ° क्रमभेदोऽप्रायो तक्छमानाल्यानात्‌ रुनिरृष्टतरा, तथा एथिवोति; तसात्‌ waa मुच्यते ; ततः एयिव्याश्रयसम्बन्धाद्रेनं que, Wrage “श्राप्रौ- मध्ये “तिखोदेबोः? -इत्यज दला, भारत्याः Gera श्रनन्तरं श्रूयमाणा ;- “चरा ने यन्न भारतो Ba मेविफा मनुष्वत्‌ (क ° सं०८,६,९,२)'-- दति कथं एथिवोखाना } इति उच्यते ;-श्रनुयाजेषु षामर्थात्‌ ; “at भारत्यादिन्यैरस्यचत्‌ aad रद्रौयन्न ATA etaaar वसुमत्या" इत्यतः wae Fale वसुसाइचयात्‌ रेवेलयेति afmifefe- सेव्या, Cl: VITA HAAN waar, wie. बाहच- ary भारतौ चुग्धानेति “rere. कर्म" श्रयाद्याप्नेः कम सदभावि, अनन्यरेदतागामि, uaa WHA एव wat wala “aed शविषाम्‌”--दत्येवमादि “afefanfaaq”’ दृण्यमुग्रहा aw विषयः, तदि विषयकम्‌; प्रकाश्ादि atid “agama तत्‌" दति युनक्वन मादराथम्‌; आध्याक्येऽपि यावान्‌ कथित्‌ sare cf “agra संस्तविका देवाः” यैः सह afg: waa. agar,

* freed} पचमाध्यायस्य दितोयखष्छे 'तिखोदेवोः- रति quad तज firey भारतोलाखरखतौषु देवोषु cera रय किय र्द पड मभटम्‌, ‘fea’ तितु तदुः्तरस्िन्‌ WS षड(मं पदम्‌; मचेवच स्ष्छेऽटाकिंगं पदम्‌ "अग्राचौ- धति we: समानायपाढस्म (We ४९९, ४९४ ge) |

भारतौ, इछा, खरखतोः- रवं ऋमपठिताः शरतिमन्त्ेऽद्िन्‌ fret देणे वहा- Mi तिषोर्बोरिति तु खाप्रोमष्ये पठितं cmd (रभा० ४९१९० wwe pee १०.), arerafa चेषापरिष्टात्‌ (Awe रपा ewe), उद्‌ाररिष्यति qaad सन्त्र भाने an fafa तदे तन्धव ततेव ३षग्यम्‌

शख“ देा० Lae] | षतं काण्डम्‌ | ३89.

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“onegay Tea’ —eat विश्वामिवस्येय मार्षम्‌ विराट्‌ अनुष्टुप्‌) श्राग्रयणे विनियोगः हे भगवम्‌ ! TY त्वम्‌ ददः ‘Zar देवे, Wa “Ae दत्तवतः Vile, avai ‘gta’ aque “सुतावतः, sfagqaaa: ‘aga’ समम्‌ (‘aaa’) we agra gaat श्रन्तरा fa faq eel सामपेयाय' सेाम- पानाथेम्‌ “उपयातम्‌' इत्येतदाघ्राखहे

<श्रग्ी वामाविमम्‌"”-द्ति †। सामेन सह संस्तवः गोत- ARH श्रतुषटप्‌ पौणेमासे श्रग्रीषोमस्यामुवाक्या हे “रनौ षोमौ !* युवा मुच्येय शमं" इवम्‌" wert "मे" मम “सु' as श्रटणतम्‌' ‘gaat? वर्वितारो Bar चागच्छतम्‌ श्रागत्थ "प्रतियत" प्रतिप्रष्ठतं, मया ga प्रेखितौ प्रति कामयेथाम्‌ मानि anf ओतम्‌ अला darts ‘aad (दाशे य्वा हविद्‌ातरे ‘aay’ सुखा वित्यथैः

“qa a aq वरुणस्य--दति९। वर्णेन dma: | वाभदेव-

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§ “लेने wit adem विदाम्‌ tea Walt यासिसोषढाः। यथो बजि aq शे चान विशा wife प्र मुसग्धयश्मत्‌ एति we Yo ए, ४, ६९, ७।

Rex गिशक्तम्‌। [उन्तरषटकाम्‌ ,

ष्याम्‌ faq श्रव्ये विनियोगः हे भगवन्‌! aA aa’ (‘ay’). wats यथावत्‌ "विद्वान्‌ जानानः wat मम एते हति "वरणस्य देवस्यः यः awa प्रति ‘ea. क्रोधः, तम्‌ श्नेनाव- ग्टयकमेणा श्रव याश्सष्ठाः' श्रपगमय किञ्च; यः वं "यजिष्ठः धष्टुतमः, zat Wize वत्तंमानः ‘afeaay araay हविषाम्‌, त्प युमः Sia दरोप्यमानः तेषु तेषु कर्मसु (‘faa) विश्वानि सवाणि ‘tatfe इव्याणि (र) प्रकवंण “Te अत्तः सुसुग्धि" qq श्रवयाजयेत्ययः

“mart geal ° --° धुत्त BR’) पञन्येन संस्तवः | भरदाज- wera) fag हे श्द्नौ पजंन्यौ !* wan said “श्रव तम्‌” अवगश्छतम्‌ tat “धियं ददं aa प्रति, मेः मम ‘afaa’ “इवे wart ‘gual खाहृानौ शसृष्टुतिं' tren मिमां oft ओतुम्‌ Bey श्रुता दमाम्‌ श्राम्‌" wae न्यः, एकः “अनयत्‌ जनयतु ; “MA अन्यः, गमे मेना जनवतु तौ यवा सेवं प्रतिंवत्छरं ्रजावतोः' प्रजापंयुक्राः शषः" श्रन्नानि (‘a’) आभिनुख्येन खिला धन्त दन्तम्‌, ‘aa wana मित्यर्थः

“s] Tite —eowqar’t) wafer, dea) au तिेराषेम्‌ mast) wqasg विनियोगः हे भगवन्‌! aa! देवाम्‌" ‘ce gare कमणि शा ay’) श्राहय WHIZ नभे मन्यः प्रलावर्तृभैरिषु WT Un aa wv’ एति we सं०४,८,९९,९।

“wa ar tw vy सादया यानिषजिव। ufc ug fee agar +~ दति We weg, १, ९२८, ४।

Que gute रख] Sad MTA | ३४९.

देवान्‌ ‘area’ "यामिषुं faq’ सवनेषु fag एतान्‌ यथाकालं यल श्रसुना प्रकारेण “परि शषः सवता देवयागनाछङगुर्ष्व एतं UWA, श्रात्मना ‘fay’ Fa Bray "तुना. षह

“sama दविः" | इविर्गहणणात्‌ विष एव सम्प्रदानाथेवम्‌ | या चः ताः संम्तवेनाप्नाविष्णाः षन्ति i— |

“अ्माविष्णु सजेषसेमा वदन्तु at गिरः। दुत्ेवीजेभिरागतम्‌।"-- इति | वामदेवस्छेय माषम्‌ गायकौ श्राप्मावेष्णवे हविषि विनियोगः, डे श्रगना विष्णु' (“जाषसा?) सजेषसौ नित्यं षह जेाषणो नित्यं षमान- Nat ‘at युवा aS (‘car’) एताः यंखमट्‌-'गिरः' waegay ‘ayy वद्ध॑यन्त॒ युवाम्‌ Sgt सत्या मखत्म्प्देयेः “Ye?” चो- तनवद्धिः (वाजेभिः?) श्रन्नेरभ्यु्तै; (ania) श्रस्मान्‌ प्रत्यायातम्‌

“न ववक्‌. संस्तविको दग्रतयोषु विद्यते" ‘a’ —xfa प्रतिषेधः | "त॒"-अन्दोऽवधारणाथः। ‘aa’ सं सविकोः षं सतवयक्ता, "दशतयौषु' दश्मण्डलावयवप्रविभागेन तायत दति cava: waz, aw शाखाः Tua, तासु सवा एकापि शविग्यविनियुक्रा भरस्तमध्य- पातिनौ wa श्रप्राविष्णाः संस्तविको mf) agar सस्त- विकौ, तु दश्रतयोषु। श्रमस्तवेन वा दश्रतयोष्वपि शव्युगे दयति, va मेतन््रया निपुण afaaa इति

श्रथाय मपर उत्छगेः ;ः--श्रयाणाप्नापोष्णं'" “ea” एव, “न तु dua’ afeig इविषि किन्त gan wana wig: waa पूषा “aa” ala संस्तवे afage: “vat विभक्न gfaq waa” “उदाहरन्ति” मेरुक्राः--॥ (ए)

Rue निशक्रम्‌ | [उत्तरषटकम्‌ ,

पूषा त्वेतश्च्ावयनत्‌ प्र॒ विद्वाननष्टपशभवनस्य गोपाः त्वेतेभ्यः परि ददत्‌ पितृभ्योऽभ्रिदवेभ्यः सुवि- द्‌ चियभ्यः। पुषा aa: प्रच्यावयतु विदाननष्टपशुभव- नस्य गोपा इन्धेष हि सर्वेषां भूतानां गोपाथितादित्यः त्वतेभ्यः+ परि ददत्‌ पितृभ्य इति सांयिकस्ततीयः Ue पूषा पुरस्तात्तप्यान्वादेश इत्येक मभिरपरिष्टा- त्तस्य प्रकीत्तनेत्य॒परम्‌ | अप्निहेवेम्यः सुविद्‌चिर्ेभ्यः lags धनं भवति विन्दते्वँकापसगोदशतेवी स्याद्‌ IRA (Ee)

“पषा aa’ —efat Saat यामायनस््ार्षम | चिष्टप्‌ पुमः (वस्य †) करं प्रमोतातुमन्तरणे विनियोगः। बः प्रमोत उच्यते | पूषा" भगवान्‌ “श्रादिव्यः” पथा मधिपतिः, स; (“ar ) ताम्‌ ईतः" मतुव्यलेकाद्‌ विशिष्टेन पथा ्रच्यावयतु, ‘fasta’ श्रय वदितन्ञानः सवत्र ज्ञानाव्यवधानारेव “SHBG: ¢ भुवनद गोपाः" भुवन aaa tar.’ रचिता | उपयवखितः ‘a’ पूषा. wea, (ar) at प्रगमग्य “एतेभ्य,

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Sq शपा रख ] देषतं काणम्‌] Rue

सन्रमण्डलेपान्तवापिभ्यः ‘faa ‘aftzeq’ परिददातु। तद्‌- करम्‌, 'दक्तिणायनात्‌ पिदलाकम्‌?-इति र्मिः शपि चेतेभ्यः waa “देवेभ्यः सुविदज्रियेभ्यः' ये faqar मध्ये निवसन्ति, तेभ्यः परिददात तदणुक्रम्‌,- “चन्द्रमसे वदयुतम्‌"-इति° त्व मेव सुभावपि देवलाकपिदलाकावभ्यररोत्याशौः प्रमोतस्छ उकञ्चः--“ये देवयानाः fweqarg लोकाः terra: षश्च रेम'- शतिं

“q लेतेभ्यः०- दति सांशयिकः ata: पादः” षंश्योऽसि- न्रस्तीति साश्रयिकः, दरतौयः पादोऽस्या चः कथं wart? यया, “Gat पुरस्तात्‌” "पुषा वेतख्यावयतुः- दति ; “तस war- देशः-ई्ति एकम्‌” BAMA तथा व्याख्यात मेव रयः पौष्णाः पादाः, एक एवाद्यः एव मियं विभक्रस्ततिः श्रथ वा ाउत्तरावाप्नेयौ AT श्रययोजना,-पृष्णा प्रष्याितं सन्तं घो- ऽप्निवच्छमाणस्वा मतेभ्यः fast देवेभ्यः सुविदजियेभ्यः परिददातु ; मा पद्भ्यः प्रतेभ्य दृत्यभिप्रायः। तंप्रतं दिष्ट भिताऽग्रय va VMN स्वनान्नश्योत्तरेणाप्यद्मिशष्टेन सम्बन्ध मविदष्यमानं aay waa) “श्रप्निः उपरिष्टात्‌, aa प्रकौरत्तना-दटति अपरम्‌'--दति

“विद्धदु हटिखन्द्रमा खादित्यो ऽत्रिः“ इति परिमरः te sree a a

^दवयानान्‌-द्‌वाः यम।भयन्ति मच्छनिति ताम्‌ (we Peo १,५, ९८, ९.)

ति, “पिद्धग्रामम्‌--पितरो येन मारक मच्छ्नम्त TAS Pe 0, 1 Re ©) इतिच सार wre |

४९५२ fauna | [उन्तरषट कम्‌,

“सुविदत्रं धनं भवति” °,- “विन्दतेः वाः, ('"एकापषगत्‌”) सु-दति एतेन एकेन उपशर्गेण suger! “aati ar (“श्युप- aq”) सु-विर्भ्यां cra sqearat युक्रात्‌ २।द्‌ येषा मस्ति ते सुविदजियाः1 २८८)

अधेतानीन्द्रभक्तीन्यन्तरिष्षजाके माध्यन्दिनं सवनं ग्रीष्मसख्विष्टप्‌ पच्चदशस्तोमोा wear ये देव- गणाः GAIA मध्यमे स्थाने याश्च Kaas कम रसानुप्रदानं TANT याच काचः बलरुति- रिनद्धकमेव तदथास्य संस्तविका देवा श्मिः सेमे वरुणः पुषा रस्यतित्रह्मणस्यतिः पवतः कुत्सो विष्णु- वायुरथापि भिचो वरुणेन संस्तूयते Tu way सेमे ऽभ्रिना चट पुषा वातेन पञ्जन्यः (१०)

“sy एतानि दृद्रभक्तोनि”-इति पुवैवत्‌ सवम्‌ “अन्त

* {भार ९९९ Te भयर एकर (५५) | ON पुरस्तात्‌ “ुविदजः = कल्याल- विद्यः” - इति १९१४० ९, २, १९५४० aude तहोक याश xeaa |

+ “सुविद्जं wrt धनं वा, तद्दे चुविद्चियाः; दान्दसा च-प्रत्ययः ।*- इति wre भार |

t "याच काचििदु'क, ख, a!

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ऽअ देपार देवर] देवतं कारम्‌ |

रिचलाकैः" “इत्ये वमादि 1 “ध्ये देवगणाः समान्नाताः”” मरदा- दयः1। “arg fae” अ्रदित्याचाः

“अथ शरस्य कम" ।-““रसानुप्रदानम्‌"” श्रवश्यायनम्‌, वदि, “saa.” मेषव्धः, याच का awafa:’ wena “दन कमे एव aq’ ef श्रादराथे gaara ; श्रपि कौरपिपौलिका- fay, यद्वलेन क्रियते सर्वम्‌, रृनद्र-कर्मेव तदिति

“ay se संस्तविकाः देवाः” “afi, सामः" -दल्येव- मादयः। तद्यया,-

“sai रोचना दिवः" इति 2 विश्वामिचरस्याषम्‌ गा- aati Qed fafa विनियोगः ₹े ‘ean’ ‘trea’ रोचनो दौपनौ हविषा उदकेन “दिवः “परिथषयः aay’ स्मान्‌ स्वेतः; drag खामिवेन भवेमहि, तथा कुरुतम्‌

* guys ie fata मले द्र्टयम। Aut areas कथंन कछतानि?

+ निषण्ट्पञ्चमाध्यायस्य equim खूष्डयोरोव मध्यमस््यामदेवताः समा- MATAR (\्भार ४०४ ४९८० ए. तेष Brera भिरवोपरिष्टादु मवम-दशम- योः “ख्यातो मध्यस्धाना देवताः” -रन्यारभ्य "मर्ङ्धिः we tied” _ इत्यन्तेन च्छति तम यानि बकयकानि, तान्येव माध्यभिक-^्देवगन?.वाचकानौति चावत्‌ | तथाच “aca: (८), “CRT (€)? -र्त्येवमादौनि प्रएयानि। “Gta ae टेवमलषाः YA ATA”? -दृत्यक्तया चतुथपच्चमख्ढउपटितानां सर्वधा मेव ag जिरणं श्यगपादानमत विशेषप्रखापनायेति।

{ fanfaarqrary ar भिघण्डपच्चमपञ्चमे ^१९) (२९, पठिताः; are समाना खेडोपरि्टादेकादरे “खयात wena: लियः" दत्यारण्य खा खध्याय- परिखमापेः।

“wargt traar दिवः परि बाजष use | तदु at चेति प्र Dia ॥११-- दति we de ९, t, te, ४।

45

Rup fra | [sucacwa,

faa? वो्यैम्‌ (वाम्‌) भवतेः (प्र) प्रशृ्टम्‌ हम्‌ “fa? जाने; येन परिभावयथो यागेषु tea पुरः। अत एव मागा सामेन संस्तवः, -“ृनद्रासामा wat मम्‌'- दत्य व्याष्यात.* वरुणेन संस्तवः,--““इन्दरावरुणणा यव मध्वगाय नः""--इति ा- ख्यातः शेषः 1

"न्रा एषषा" ति ger संखवः। भरद्राजसछेय माषम्‌ | mast रेद्धापौष्छे हविषि नियागः। हे दद्रापूषणौ !' Sara समानस्यानाय, Wea’ Bway च, "वाजसातये ख" -श्रलसननाय ‘Sin’ seat vat वयं नित्यं ay दृद माग्रास्मद

"द्‌ वामां हविः" एति 3 veafiar संस्तवः वाम- रवस्यार्षम्‌ गायनौ शैन्राबादेस्पत्ये हविषि विनियोगः हे शन्राहृदस्यतो !' इदः “हविः यद्‌ वयं दद्मः, तत्‌ ‘fray’ इष्टम्‌ ‘ae’ वाम्‌" WEI यत्‌ एदम्‌ "उक्थं “qua, ‘az. w प्रतिगरेण ae, तख वां प्रिय agi इ्येतदा- WTAE

# yo १८९४० Cae पार Yee | , Fe €, १११९० Ue पपार ewe रने RIS रव ग्याष्टयातः।

{ “CRT 7 73 बयं were qe WAG वाजसातये 4 इति we षु, ४, ८, re, hi

“दं बाम vie: faa fe ava (See मदख WRT १,- रति we सं ९, ०४, ९।

eye देषा Rw} देवतं काण्डम्‌ | Ray

“fag सत्यं --° जिगातम्‌" * agwafiar daa: गस्षमदस्सेय माषम्‌। faa ‘fay ad जगत्‌ “सत्यं याठदिद ata fag; हे (मघवाना मघवानौ धनवन्तो “दन््राब्रह्मण- wal! युवा मुच्येथे। युवोः यवयोः सवम्‌ एतत्‌ way! fag; यतः मर्वैस्येशागौ म्यः, sa (त्रापश्च') आ्रापेऽपि प्रमिनन्ति' दिसिन्ति, ‘aay कमे ‘al’ युवयोः यथास इन्त avai यौ warm एव मनिमहासुभावो, तौ (‘a’) अस्माकम्‌ ( श्रच्छ' ) श्राभिमुष्येन ददं “इविः' 'जिगानम्‌' ्रागच्छतं भोक्षम्‌। (amr) युजौ शव" सश्चारिणौ (arf) वाजिनो Tag विमुक्रौ aug खम्‌ way range?

“ealiqdat e——e मदन्ता पर्वतेन de fea मिच्रस्येय ara faqs हे शनदरापवेताः इनदर पवतौ ! (Zar) देवौ युवा मुच्येये छता महता रथेन, महतेदकर हणेन उदक- दानेन ‘ara’ aaa ‘ca’ waft ‘saga’ tram, Marfa प्रेरयन्तम्‌ ‘gat’ Wash. ततः खे काले ई्जानाना मम्माकं ‘aa’ भक्तयतम्‌ हव्यानि" पुरोडाग्रारोनि “श्रध्वरेपु"। ‘agumy’ “गोभि.” स्तुतिभिः पुनःपुनः प्रतिकर्म ‘sear waa (मदन्ता) मदन्नौ Sua) इत्यतदाशासमहे

* “faa सत्यं मघवाना यके1रिदाप थन भ्र मिगनि at गाम्‌ अन्दे नु वर्य. weal इविनीज््र' uaa वाजिना जिमतम्‌ ॥- ईति we do v,0, 8, ९।

+ “दन्दापवेता बृड्ता स्येनयुमोरिष्‌ खा मरतं सुकराः वौं इब्दान्यध्वु- रेष देवा वदयां मौपिरिन्ठंया मदन्ता ॥-दति we एं UU Le, UI

Rug निरक्तम्‌ | [उत्तरषघट कम्‌,

: ््राकुत्ा o——o समासि" ° कु्छेम संस्तवः श्रवस्यो- we! freq (carga) रे दन्राङुसौ ! (‘quart’) वहमानो उद्ममानौ wa! gat न्रवे। श्रा वरन्त वाम्‌” “श्रह्याः' war: Safa? ‘aw’ नित्यं कमेणे। ary कर्म॑णा परितापितः wafer "निःषोमद्ःः ‘fara’ सवतः we षधस्थात्‌ समानस्यनादन्तरिच्लादह्यः श्रपः। ततः steer कालं कुर्वाणौ "मघोनः" मदहान्येतानि "तमांसि, “इदः, इदयष्य काद्‌ कामि अ्रनाकालभयकृतानि ‘are’ वारयथः दत्येतदाशासररे

“eatfay °---° ara” विष्णुना संस्तवः वसिष्ठ स्याषम्‌ freq! चरधातब्यां विनियागः। रहे शद्रातिष्ण ! याँ gear’ खिरोकताः “अम्बरस्य नवतिं नव पुरः मेघस्य श्रसु- रख वा azar. पुरः “्रयिष्टम्‌' इतवन्नौ स्थः ary ला Raa गताः ‘ae? 'वविनः' दौभिमतः श्रन्नगतो वा aed < aay’ अव- स्थितान्‌ सहभावेन एकनिखयान्‌ "दयः" ₹तवन्तौ स्थः। "अप्रति, aa तोकारान्‌ ‘AUT ‘wet’ wate quata यो यवा मेत- दतिरुष्कर मकाषम्‌, Waa मपि श्चन दयः | दत्य तरासम

“SRay दमे सता? दति { वायुना संस्तवः मधच्छन्दस a ee ° SOR HYT ALAA CE aT ar wa अपि कर्यं weer | नि षोमदुभ्यो

धमथो निः ष्थखकघोना इदे वरथखमांसि॥**- इति we do १, १०.४। + “oafey हदिताः ware मयपर नवतिं ज्यिम्‌। wa ahaa; शरभं 8 GH Tay अप्रत्यसुरस्य TW एति we do a, ¢ ९४, ४५ {1 CRIS CH Yar छप्‌ प्रय।निरागतम। Cea} वा मध्रकिडि॥*- दूति We सं० १, १, २, ४।

$ eT देया० RA] दवतं काण्डम्‌ | R19

श्राषंम्‌। Maat) Sorafaasimant fe मध्यमस्य एकस्यापि वाचिद््धभावेन विकरणधमित्वात्‌ fad बिभ्रतः भेसक्रपक्तेऽपि दिक्चमसस्तुनिरविरद्धा ; यथा एकस्यादकस्य दिपाजम्यस्य fea- चनेक्रिः। रेद्रवायवष्य ग्रस्य पुराऽतुवाक्येयम्‌ हे “इईद्रवाय्‌ !' युवा gaa ‘ea’ “सुताः अभिषुताः इन्दवः" रामाः इत्ययः gama, सेमा wag “उशन्ति कामयन्ते युवा मात्मपानाय, तस्मात्‌ उपागच्छतम पातु मेतान्‌ कथं पुनरूपागच्छलम्‌ 2 श्रयोभिः' अन्नैः WHGICICITA: | इत्ये तदा शास्महे

“saifa भित्रा aqua संयते ‘aww: प्रकतात्‌' इन्द्राद्‌ विगेषतेा भिज्रादोन्‌ प्रकराति। “श्रपिः-इति सम्ावने। प्रहताभ्य्िष्धग्या देवताभ्यः परा्छपरेणाभिधानेन संसवयुक्रानोति। भेदपत्ते श्रवियाधं wa; नेर पत्ते यदिरद्धाभास मिव किञ्चिदच,' तदिनद्रवायुमंस्तवे प्रतिममाहितम्‌* “मित्रा वरुणेन'-दव्येव मादिषु या प्रथमया निर्दिश्छते, खा मुख्या afa:; या दतौयया निदिष्टा, ar श्रमुख्या 1

“a ना मिता o—e gaa” ¡। विद्चामिचष्याषम्‌। maa} मैत्रा वरुष्याः पयस्यायाः पुरेाऽनुवाक्या (“मित्रावर्णा) हे मित्रा- वरुणो ! ‘qua’ शोभनकमाणौ | युवा Gadi ‘vale’ गो युतिम्‌,

# रतत्पढादयपद्कित रव (उपतिद्विकम(प्मनेऽपिहदि--द्न्यादिना।

उशरजापि gr ste ये।मः"--पत्यादो सवं चेवं बोध्यम्‌

{ “ar att मिजाबदशा वतेम ति WAH | मध्वा caltfa पुरन v—xfar weds ३, ४, १६,९।

ays निख्क्तम्‌। [उत्तरवट्‌कम्‌ ,

यवसादकेत्यन्तये ‘wife’ गोयतेसन्यन्यानि स्थानानि ate दिधान्योत्यत्तिकतेचाणि, तानि Mergen ‘aa autw सस्यसम्यत्करणेम (“चृतेः') घृतेन उदकेन "नः, श्रस्नाकम्‌ "उवतम्‌' सिञ्चतम्‌ इत्ये तदा शस्मद् ti

“पूष्णा au सामः? साम पूष्णा ०--° नाभिम्‌" : पूष्णा समस्य daar weagaa feos सामापौष्णस्य चरोः पुरोऽनुवाक्या सोमापूष्णौ चनद्रखयी, aaa | (“सेमा- पूषणा) हे सामापूषणो ! gat (‘saa’) जननौ जनयितातै HY धनानाम्‌, (‘saa’) जनमयितारौ "्रयिव्याः (जातौ staat एव युवां ‘frae’ ade ‘yare’ wasqa]e "गोपौ गोप्तारौ way: | ‘Zan’ «WHE: यवा मेव “शरग्तस्य' उदकस्य ‘mh? न्नं बन्धनम्‌, श्राधारं wedi “श्रकृ्ठन्‌ः सदा eam युवा मिदं नाम nara कुरुत fafa निरा- का ङ्कम्‌

“सामारद्रा श्रुत्‌" atu संस्तवः | भरदाजस्य मारषेम्‌ चिद्टुप्‌। रामारौद्रस्य चराः पुरोऽहुवाक्या (‘Brarezr) शे सामारुद्रो ! युगा सुच्येथे। एतानि वेणि “मेषजानि' ‘wa sara (तनुषु शरोरषु "धत्तम्‌" शख; श्रवस्यतम्‌" नित्य

| | ~ t ५, Sra TTT लनमा रयेगैशां जनमा दिवि जनना एथियाः। जातो faw- = 1 a yaaa मोपौरदेवा अलप खतस् aifia uw —xfa ae ge ९५ ८, ९, ९। ~ ~ <~ 1 e t न्वामादद्रा यक मेनान्यस faa तनूष भेष लानि भजनम्‌ खव शतं मचत = ~ Me ay! अखि तनूष, {< GA मना Wa ॥'7-- दति wo Yoy,t, ६८, ३।

© Yo प्यार शेन] देवतं कागडम्‌ | Bye

‘aqafad रितु मिच्छतम्‌ fae; ‘aq’ ("मः ) श्रम्माकम्‌ मनेवाक्षायैः ‘aay’ ‘ur किञ्चित्‌ श्रस्ति, ‘aay’ तत्‌ “मुञ्चतम्‌” “RAT: Ut

“grat पूषा?" मध्यमग्यानेन * yeaa 1 daa दति; पार्थिवेन प्रतिषेधात्‌ we नेदादरति; wm सुदादरणं येन सुस्तवः |

“वातेन पर्जन्यः" “धतरा दिव e—e मे हव॑म्‌" 3 सुकणेस्ाषेम्‌। freq) ‘wee दिवः ऋभवः "सुखा" ओोभन- eat (षवातापजंन्या,) वातापज॑न्यौ च, “ara: च, (‘stay’) ्रोषधयश्च, भगः, च, ‘cfs’ दाता, वाजिनः, | च, (‘wate’) धारयितारः, (‘faa’) द्योतनवन्तः ये oar उदकस्य "मिष्य" महतः ‘aaa’ eqreafaa: (‘ea’) दवन arena “नः, श्रस्माकम्‌ श्रायन्तुः श्रागच्छन्त्‌ आगत्य प्रतिरन्तु' प्रतौणाः giant wag faw द्धंयन्तिव्यथः वातापजन्याविति a संस्तवः (९०)

= १९५० ४०६१० ६यअ० ewe (९९) I TWAT १०, २, te!

+ दरेवोपरिटादु वच्यति,--“खभ्रिरप्यदि तिदग्यते,?- रत्यादि ९१, & ९।

पर '“खयाणाप्रापोन्डं विने तु संजवः'? - रति ४४१० eve |

§ eh a ह्व भवः सरा वातापजन्या मददिषस्प लन्यकेाः | खाप wit- wt रपिर मो निरो War रातिं जिन यमो म्‌ इवम्‌ ॥*?-- र्ति We geo ठः, ९, ९९, ४।

| ` अपरिमेय aie बे बाणिनमः"--रति तेतिरौयत्राद्मवम्‌।

१९० Foren |उत्तरषट्कम्‌ ,

अथेतान्धादित्यमक्तौन्यसौ लाकस्तृतीयसवनं वी जगती सप्तद्शस्तामोा वेरूपं साम ये देवगणाः समाम्नाता उत्तमे स्थाने याश्च स्ियाऽथास्य कम रसा- दानं रश्छिभिश्च रसधार णं * यच्च किञ्चित्‌ wafer मादित्यकर्मेव TART वायुना संवत्सरशेति संस्तवः usin

“शरथेतान्यादिल्यभक्तौ नि" इति पूर्ववद्‌ “st लोकः इत्येवमादि “इया शु्धानः'"--इति 2 पूवं मधिरुत्य “ae एतानि श्रदिव्यभक्रोनि"-इति टृ्ात्रवोत्‌ खपक्लोद्योतनामुद्धतये

“भ्ये देवगणाः समान्नाताः SAA Wa” श्रादिल्यादयः | “arg स्ियः”--उषाः *, खया 11, दषाकपायो i, सरटः 22, देवपल्यः || इति

© “दसाथारणं" ङ, a!

tT “aq” a, ख, म।

{ ary wauata: ङू-च-पखकयोः |

Fo ९९० Fo weve |

| ewe सोक coe य॒केक wae बोध्य र्ति भावः |

T १भा० ४९०९० ५० (we (२४)- (२०) | बशयष्डपठिता Bat UT aT | भम ware ४९०५० Uwe {८० (र) पसाचेष्ेव UL, ४, ९९।

TH र्भा ४८०१० ५४७० (wo (a) | परसाचेरेव tp, १, 0 1

tt waite ४९०४० wwe Cus (४) | परसाचेरेव १९, १, FI

§§ \भा० ४९०९० ५० (we (\ परणजेरेव १९, ९, ९। ||| १भा० ४९० Te ume Cwe (२९) परष्ठादेरेव १९, ४,१० |

अच» gute ewe] देवतं KATA | ३९१

“sare कमे"--““रसादानम्‌'"--शत्येवमादि ; “oe fafaa प्रवख्हितम्‌ atfeaqanad एव तत्‌” ° |

“चनद्रमखा, वायुना, संवत्सरेण दृति सं खवः" WAT सग्ष्देरेव व्रवीति, माधिकारवचनं कराति श्रथास्सेति†॥

“पूवापर ---° जायते पुन \" {। चन्रमसा dea: | छयाया- खाषम्‌, जगतो राजयक्छोश्चां वै देवस्य चराः पुरोाभवाक्येषा “पूवापरं चरतः सखयाचन्रमसो yes पूर्वः ath अपर खन्रमाः, BATTS पुनरपरः यैः Waa एवम्‌ "एतौ" दरण मग art चरन्तौ waar शरतः। तौ पुनः "मायया" योभैशर्यरुतया कयापि प्र्चयेति wee वेद; gett एवं wnt चरित fafa: श्रपि चैतदपि fawa,—azaftfeqart sniaera- वात्‌ ‘fay? दव क्रोलन्तौः। शश्रष्वरः ay मभिनिष्पादयन्तौ aq मिदं “परि यातः परि गच्छतः तत्कथमिति, “चिश्वान्यन्यो भुवनाभिचष्टे” "विश्वानि" (‘yaar’) भुवनानि गतानि श्रभिचषटे' अभिपण्ति ‘sa’ ्रादिश्यः; अ्रथेतान्यभिद्रष्टयामि उपकारकत्वेन

` * खअजोक्कानां caret खकङ्पनिेयो विरेषतः प्रवर्हदितिपद्स्यायैः PRTC THT रव; पर महा मृक रवा दुमे चायः। few, अयं शाक रत्या बौना afyufns कुतः ? अमारिशलेक एत्यादोना भिन्द्रभङ्धिलच कुतः? Rar वा असोले।क एूत्यादौना मादित्यभक्गिलम्‌ ; त्यपि नेन्न we aq |

+ यथाच Tas aay “ay संसमनिकादरेवाःः- दति (१४ ze ove, २५९ ४० ९१०) ara तयेति ara |

t “oq पर Gay area at May क्रन्तो परि याते अध्वरम्‌ | विश्वान्य्‌ भ्यो भूवं नाभिचद् ऋतु रन्यो विद्धव्लायते पुनः ॥**- दूति We Tek, ३; १६, २।

40

३१२ निगक्तम्‌ | [उन्तरषटकम्‌ ,

तथेव . सत्तानि पश्यति ‘waa’ "अन्यः" चन्द्रमाः "विदधत्‌ श्रभि- निष्यादयत्‌ खगत्या (‘aa’) पुनःपुनः प्रतिमासं ("जायते") जायमानः जरेति we मेति * श्रसंस्तवेनेन्तरे द्ंचैः यावेत- देव naga कि मपि चरणां चरतः, तावेतौ we ages मानं gaa मिल्याशििषा निराकाङ्कुः

|. वानुना daa: “सप्त ada: परतिरहिताः (ae ate do १४, ४४.) '`--द्व्यच् तच जागतो श्रखं॑प्रजौ"-दत्येत सिन्‌ पादे ^बा- व्वादित्यौ"- दति वच्यति t

।. .संवल्छरेण daa: “पञ्चपादं पितरम्‌ (० ९२,३१९६, ९.८ एति समाख्यातः ४॥

एतेेव BAe भक्ति मनुकल्पयीत शरद नुष्टबेकविंशस्तोमो वैराजं सामेति छथिव्यायतनानि हेमन्तः पङ्क्ति स्िशवस्तोमः श- कर सामेत्यन्तरिक्षायतनानि शिशिराऽतिच्न्दासरय खिंशस्तामो Tact सामेति gratia (११)

एतेषु एव ध्यानयृहेषु ॐतच्छन्दस्तोमष्ष्टसय सेकरिगेष मर- कल्पयो त” | wary ढन्दांसि स्तोमाख्च एष्टानि खतुच्छन्दः-

कै 6

-- यश्य॒भयोरपि पमजाभिरस्तितथापि gag स्वेदा vee: उदयो afm WH G शासटसिसद्धावात्‌ vaca: जायत दृत्यङ्किर्यक्ा | चन्द्रमा T ज।यवे पनः" इत्यादिषतेः- इति gro भार |

खउपरिषटदिङव (वव्वादित्या ‘sree लजसश्च'- दूति चाथिदेवत wre चोभयविधं great द्रटबम्‌ (१९, 8, १)

JT भार ४९० Te १०्प० ; ४९८४९२० ud |

Og RTO YB] देवतं AA RR

QAwA, तस्य खछतुष्न्दःस्तोमप्ष्टस्य | waufiay’, छन्दो-

ufaaqat, स्तोमभक्रिणेषम्‌।, एष्ट भकरिण्षञ्चए ! तद्यथा .— “wa, अनुष्टुप, एकर्विशरस्तोमः, as साम--

vu ^

ति एयिश्यायतनामि"” श्रनग्निलिङ्केऽपि sare एतेषा मन्यतम्‌ स्यात्‌, wie इति प्रतिपत्तव्यम्‌ एव मेवेत्तरयोरपि श्थान- qe: Byer नाम विस्तारः “aan, पडकः, Sareta:, wat साम-इति' (““ग्रन्तरि्ायतनानि?) श्रन्तरिचल्तोकायत-. नानि “ि्चिर्‌ः, श्रतिच्छन्दाः, चयल्ति्रस्तोमः, tad साम-- दति” 'श्युभक्तोनि” at भजन्त इति दयुभक्तोनि; श्रपिवा आदिनं भजन्त इति दयुभक्रोनि विभक्रिग्रदण प्रनाडिकापदभेनाथम्‌ ; vast of: सा स्ततिखङकुमणन्यायेन स्थानाधिपतेः gaa Bia रिति। सवज्रैवम्‌ ५८९९) . ` : 7

Scena शेमकणिभिरयोः समासेन, तावान संवत्सर इति te त्रा ९, ९, 1 “UG a तवः, WaT रव तत्‌ संवत्सर मान्नवन्ति- दति te wre ४,१, “at बासन्िकाभ्यां wien warga* © * at Tranat at aifaenat at शारदाभ्यां at श्मन्तिकाभ्यां माखाभ्या weg * * 8 at wfcnat arena, warga at facet arena मान्नवच्रान्नोति fa | Xo Wo ul elk

wife at खन्योन्यस्या्यतन मभ्यष्यायन्‌ | area जिषएभख Baa चायतनं मभ्यध्यायत्‌, falar] aaa च, जगतो aaa facwe’—xfw, “ar aaa मभ AVA VIA Tena, fay मभ aun gi vEfH Hee, Naat मभ aun सातिष्छन्यस wenn’ —<tfa y te ATe ४,४,५);९.।

+ feecice: षट Ma: साभवेदौयाः खभ्ि। तस्प्रप्रथनप्रकाराद्यख सामः BAF AIG] UAT तोया द्यध्यायमये चयने aes |

§ “EN a Ke मग्ने रथमारः rat * * * az Faq मखञत* **तदु तैं राज agna* * * तच्डक्तार agaa * * * तद्वत nena * * ° षटष्ठ।- न्यासन्‌-द्तिरेग्त्रा० ४,४,९। “ae: wats wala” —caifeawg arala |

१९8 निक्तम्‌ | [उलरषटकम्‌।

तिषयष्णं देवार्णां भक्तयो भक्रिरोषाञ्च

तच *“--रतबिशयक्नाः सवरव भङ्धिधेषाः sane

अप्रः शोकाः ०,,। (चको मरिचम्‌ at: (९) सवनानि ,,, भ्रातः भध्यम्दिनिम्‌ कतौयम्‌ (६) | वसुनः ara: wet NAAN { ्रत्‌* सेमनतः० भिभिरः* 4) { ATTA) चिद्टप्‌(१) मतो (८) बन्दांसि(१०) { अनषटुप्‌*(४) पद्भिः * (9) अतिच्छन्दाः * (€) जिषटत्‌(४) पषूदषः (१) WHEE) खोमाः(६१) | wafer (४) जिखबः*(९) wofein:*(¢) रथनारम्‌(४) बृरत्‌(९) वेरूपम्‌(८) सामानि .., चेराजम्‌* (४) WITT" (0) Renae (e) Raza: (0 निष ०४ | १-~--२॥। | Bul Vl fer ,,, WS ततेव तमेव इविवेडनम्‌ COT TRA रसादाणम्‌ waif...) रेवावाइनम्‌ labia दाटिविषयिकम्‌ बलति, प्रबद्छितम्‌

तिष्ुणां देवानां संस्तविका: Zari

शद्रः, सामः, वरकः, Wis, ऋतवः। “vs WITT TAT, OTT इविः; तु Sea (९९)

अभ्रिः, सेमः, vee, पूषा, waft, ब्रद्मदस्यतिः, UK ०, | पवतः, Hg, विन्धुः, वायः, मिचो wee, खेम Goat, सेमे ARG, पूवा Via, पन्यो वातेन |

शा दित्यस्य eee QR, षयुः Bat: (

ege Rate ६ख ०] देवतं काण्डम्‌ | Ry

(१) “ख तपकम ले, कामखजत प्यिकौ aafce feaqi * * *1 whe ष्योतींष्यजायन्ताप्रिरेव शयिग्या अजायत वायुरनरिकषादादित्यो दिवः (Re त्रा ४,६, 9)” - इति शते ए्यथियादिलेकाना मग्रयादिमष्टिलम्‌ |

(९) “aya वसुभ्यः प्रातः सवने। * * * |) इन्द्राय chat मध्यन्दिने | * * * | faa देवेभ्य खादित्येभ्यस्ततौोयसवने (रे° wre ३, ९, ९) रृत्यादिगुतेः प्रातरादिसवमाना मद्राादिभद्धिलम्‌।

(द) ऋतूनां faunas aerated “देवा रा००--एत्युपक्रम्य “त दमा- faq: सतौदपसदे दिददिरेकेका wd षट्‌ सम्पद्छन, घञ्‌ वा ऋतवः*--दत्या- दिना (१, 8, ©! “गव सोमं तुन" त्यादयय षट कचे FIT | Beate Te ९९, ९९ ९८। Temata मप्ादिभक्धिमिदाननु wratefaer विद्नि |

(४) “प्रि देवता प्रथम awtefe feararar रथकारः साम गायनो- mere: दूति, “अभिल(्र Arm (सान सं We Wie ए, ९०५४, ६।खग्जा. ९, ९, १६) * * + दूति cad एं भवति दइतिचरे त्रा 8, u, |

(४) “वाम्‌ बे देवता चतुथेमदवं इत्येकविं रामे वैराजं सामानदुप्‌ न्दः दूति, ^“पिवा शाम faq arg ar (ate We we Tou, १, ९, FI te ate १०, ९, २६) # * + दति Parad भवति र्ति To wre ४, ९, ४।

(९) “oar बे देवता द्विलौय सये रति पचदगेमे बृरत्पाम fret चन्दः” --द्ति, “ar भिदि वामहे (ate Yeo we Ge २,९.६४, खन्गा १, ९, yo) * * + दूति guqed भवतिः दति a te are ४,६,९२।

(७) “rat देवता wen awieta चिणवःशामः क्षरः साम Wie दति Lo teu, ९, ६। “मडानाखोष्यज Gas णार साम्ना? सत्यादि | te WON, ९, ९। महानाग खनामप्रसिडे सामवेदौयादिकप्रन्यविधेषे, agra सामवेदौ्यं मडानाननोखामेति प्रसिडम्‌ मानग्रन्यचतुएयेभ्यः एथगेव |

(=) “fea वे देवा देवताखुतौय मवं दनि सप्रदभसामेा वैरूपं सामं जगतौ- wma: दति, “अय्‌ याव Ta a गतम्‌ (सा Yo We Ge gk, 8, 1 खर WY, १,९- र) + दूति वेरूपं we wate’ एति To wre, 281

(€) “Qe रेवता ष्ठ मरे इति wafeie खमे Cad सामातिच्छम्दाग्डन्द्‌ः), —tfin, “teats: सथमारे (सान Yo we wie २, ९, ९, Ge ale k, ९,

~;

Rd निख्क्तम्‌ [उत्तरषट्कम्‌ ,

१९--१८) > * + दूति रैवतं ug भवति--इति te wre ५।,९, ०। (९०) wna 9 षा wxife cat | तथा डि पेङखक् तोषे ऽष्यारे--“°डन्दः (x), arawt (९), तान्बुज्छिममुदुवबृतो पड्भिजिषटुब्‌ लमत्यः (६४) इति खवा- fe; tate ब्रादेऽपि “agrees, सविवेण्विडा, सेमेऽन्‌दुभा, बुस्पति- Gwar, भिणावदयो पङ्का, रन्रलिदुमा, विश्वेदेवा अमत्या-- दति ८, ९, ९। यास्दोऽप्यय मपरिष्ाद्‌ (iQ, ९, ०) वष्छति “Creare: सा कन्दांखि"-दति। दद त॒ वैषां wera मेव देवतानिकयो ध्वनित इति विचायेम्‌ | बृदत्याजिरेवभन्नि- लादि saa सष्मवतोत्यपि घण्मायवेऽखाभिः। तथाद्ेतरयकम्‌,-- “जथ वा wa tafe ४, ४, अतिखमत्यादोना मतिष्कन्दसान्त्‌ vara मेवादित्ब- vf म॒पदिष्वे। तल्चदच सदारं youd रेतरेयके तथाहि, “चिक- डकेषु मदगे यवाभििरम्‌ (खार खं we we ४,९, २, ९, She), Tere पुरा- रथम्‌ (Ute Yo Ge Ge ९, ९, ९४, ९, अतिजमतौ)- इत्यतिन्छन्दसः safe t छन्दसां पथे रसात्यशरत्‌ सेऽतिष्डम्दस amare तद तिच्छन्दयेाऽतिच्न्द्‌- wre” —tfa ४, ९, छत्यादोनां विच्छन्दसान्‌ erat निके लोकाय ति चिग्नोय मेव fer |

(११) देवा वा अहरोविजिम्धाना at we लोक ariahsfuft frag उद्यत सखः BATT Brag दार मददेदप्नितै wie लाकस्याधिपतिख्ठं वसवः प्रथमा qaqa, © ** तंते चिता स्लोमेनाखलुवम्‌। 8 * * a UR खाजनच्छम्‌ ** भक्ते qecity खामेनाखुवम्‌। * * * a मादित्या Grae * ° * a वे सष्नदण्येन खोमेनाखुवम्‌। * ** तं विश्चेदेवा आगच्छन्‌ + * ot a रकविंधेन ergy (Le wre ९, 9, ४). इत्यादो, “fata देवा खान्‌ ुमेनच्छन्दसे- waite सोमेन Terai सान्ता रोहन (Le Are ८, ७, द), इत्यन चेकविंम्‌- Wire Tatas Waa, विश्वेदेवा दुख्धामभामिम इनि कय मेकविंगद्यापमिभङि- nua मित्यपि चिग्भनोयम्‌।

(९९) “खाप्रावेग्णवं प्रोडाभं निवे पन्ति - रत्या्ाग्राबेग्कबदविषे विधायकं WMT) २० ९, ९, ९। “परिख frat तप ond मड इत्या प्रामेग्यवस्य निवा याण्धागुवाकये मवतः? एति Lo Wie १, १, ाप्रापोग्यहविष उदारक मखे र्व RTA |

Sue देषा due] देवतं AMA | दव

सवे मेतन्मन्ताञ्रय fae, एव तावत्‌ मन्त्राः कस्मात्‌ ? दूति वक्रय मत श्रः

मन्त्रा मननाच्छन्दांसि द्रादनाद्जुयजतेः* साम सम्मित सचा स्यतेवेची समम्मेन इति नैदाना गायती गायतेः स्तुतिकम्मेणस्तिगमना वा विपरीता गायते मुखाद्‌ दपतदिति ब्राह्मणम्‌ ty

“मन्ता; मननात्‌" ; तेभ्यो दयधात्माधिदेवाचियन्नादि मन्तार मन्यन्ते, तदेषां मन्त्रम्‌

ते पुनग्डन्दोमयाः, नष्छन्दसि वागृचरतोति ll ay “ढन्द्‌सि कस्मात्‌ ? “arama”? “यदेभिरात्माग माच्छादयत्‌ देवा ग्टयो बिभ्वत, तच्छन्दसां हन्दस्वम्‌”--दति विज्ञायते

अरय “यजः” कस्मात्‌ ? “यजतेः” घाताः; तेन॒ fe विशेषत द्ञ्यते, सवज याज्यान्ते वषटकारविधामात्‌

* ““इन्दांसि काद्गात्‌ रामः सवमात्‌ wang.” ङ, |

नाच खसमः क-च-पुणकयेः।

t जागेऽबादिपद्‌ात्‌ पमः we प्रण BATE Saree: ?

§ “मने tara wast डि किषन प्व मसि, मन रष तत्‌ सन्नावयति सनः संस्करते?- दति Ce We ₹२,४,८।

|| ° कन्दांसि कन्दयतोति वाः-प्तिषसांद्‌°त्रा° ९, te I

T wuss arama fay प्रणतिप्डणं कलव्यम्‌, ani arag awa! ancy हम्दोविरेषमेव, खामापि exiaaag मेवेति सङ्ोणे- waa fae arqcalaa ; at ganey रचये उक्ते सबाप्यवतरलो wna ZISIGAT |

३९७८ निखक्ताम्‌ | [उन्तरषटकम्‌,

au “ata” कस्मात्‌ ? तद्धि “afaaq wer” यावतौ wa

तावदेव परिमाएतः। “wat: वा” aqurae (fze qe); ufaa मिव fe aq छवि भवति। विज्नायते “तस्मादूच्यध्यढं साम गोयते1†। श्रय वा “aa: वा" इति “er अन्तकमेणि (feo qo)”; श्रये तत्‌ कम भवति, संहिता-पदम्‌-षाम इति। “ea समं मेने-दति नेदानाः” “खवा एतत्‌ “समम्‌, waa प्रजापतिः ‘AY waa) श्रय वा, ्रात्मान मेव “wer समं AV’ भ्नातवत्‌, तत्‌ साखः सामत्म्‌ wed “मदाना: मन्यन्ते | निदान fafa गन्थः, तदिद दानाः

““दन्द्‌सि दादनात्‌"-इ्युक्रम्‌ तानि पुनरमूनि गायनौ प्रसुखानि। श्रता गायचौं निरा “गायनो, गायते; स्तुति- may?” तया fe गोयन्ते waa देवताः ll

उश्णिगुखाता भवति fawaat स्यात्कान्तिकम्यैण उष्णीषिणी वेत्यो पमिक मुष्णीषं aaa: ककुप्‌ ककु- भिनी भवति ककुप्‌ कुजश्च कुजतेरवजतेवानुषटुवनु-

© womd तु अष्वरक्रिययेव यश्देइमिमे वात्‌ यलने यजुष रव प्राषान्यम्‌।

+ शाम्दोग्धत्राद्यणष्य कतोयप्रप्राठके पश्चमादिषष्डजये wey qaqa |

{ रम्चातिपाख्डित्यमरुकं area; cease fe निदानप्रन्वद्म तु प्रान- भाव रव; VAG AANA WAVE) Te रवेत्यस्माकम। Wee: “Cora afara— Tae Bla सवे मेव wes सामभेभ्यः

§ Ue Ko We र. ६. AHA मेव | तथाच तत रवोाडतभिद्‌ भिति, गम्यवे।

“अष्ट्रा बे गायतो (Ze त्रा ०२, ६, १९, एति, "“अदटाचरा बायव्यभवत्‌ ** * साष्टाचरा बायचो प्रातः सवन UTI (Ce Are २, २,४,- एति च, ““खतुवि पत्य्चरा मानो (Ko Ale ३, ४, र) --रत्यपि इएबम्‌।

Og > RqTe OB] देवतं काग्डम्‌ | ९६८९

Baraat मेव विपदां सतीं चतुर्थेन पादेनानु- शामतीति ब्राह्मणम्‌ WO *

aa: पर मुष्णिगादोनि इन्दांसि चतर्त्तराणि तानि; an- सङ्गनव निराद।- aa तावत्‌, “उष्णिक्‌” “sen” गायक्रीतञ्चतुभिरवरै- रधिकेरदेष्टिता हव "भवति" उण्िगगायश्यो जागत्ेति | “feaa: वा स्यात्‌ कान्तिकमेणः” fer मिष्टं देवतानां कान्त मेतच्छन्दः “उष्णोषिणो इव वा,-इति श्रपमिकम्‌'* wr- warmer उष्णोष faa weg, तेनेाष्णिक्‌ अरयोष्णिषं कस्मात्‌ ? ““उष्णोषम्‌”, “ज्ञायते True; we fe तद्‌ भवति wea tu “aga”, “aga? ca “wala”. सेबाश्छिक्‌ aaa पादेनेपहितेन मध्यतः agfaqead; तस्याः ककुबिव मध्यतो भवति, तेग ककुभिनोव कक्ुप्‌ 2। श्रय “ककुप्‌” कस्मात्‌? “gaa: “a ata, “saa” “वा?” न्यग्भावार्च॑स् ; aa fe तद्‌ भवति “garg” कुलोऽप्यनयारेवान्यतरस्मात्‌ | Sf जाजापि कषठसमाकिःर्-चनपुरकयोाः। + ““चतुरखलुरः प्राजापत्यायाः?- दति fro wee, wr I { Sawataey wie Te Hie BB! § “ककुप्‌ ककृद्पिदौत्योपभमिकम्‌"- एति सार द्र ate र,

|| खव खतद्व मव Te Te त्रा ४, ९। 47

Ree निसक्तम्‌ | [उत्तरधट्‌क्रम्‌ ,

“ateq”, “शनुष्टोभनात्‌” fafaa मनष्टोभनं भिति ? “गायनौ मेव facet स्तो equa पादेन श्नुष्टोभति,- इति न्राद्मणम्‌,' | खमतं 'च'-श्ब्देन समुचिनाति गायत्रो, बिभिर- erat: पादैः समाप्यते, तस्या पुनरपरः चतुर्थः पारा भवति, थेन ता मेव श्रतुषुप्‌ श्रतुष्टोभति, तस्रादनुषटुप्‌ * ®

eum पंरिवहंणात्‌ fig: waar feed स्नोभत्यु- नतरपदां का तु चिता स्यात्तोणंतमन्डंन्दस्िरदव्वस्तस्य स्ोभतीति वा यन्निरस्तोभत्तन्िष्टभस्विष्टघच मिति विन्नायते (१२)॥

“gen”, «“परिबदणात्‌,' परिष्द्भासौ भवति, श्रतुदुभख- ठंभिरखरः ; उकं fe-“eeN जागतस्तथद्च गायनाः, fata

“cfg”, “पञ्चपदा” पञ्चभिः पादैः ofightarea ty

* Ceugaqamuaiy! waafeta fe angea’—xcft q ae <e we ह, ०-- रू «“व्थातन्डन्दांस्मेव afaranfa” cafe चतरोयकं इष्टम्‌ ४,९, 8!

4 “बदलो हंदतेटेडिकर्मेणः'?- दति सार टेर wre २, aul “aefincec wae * 8 *। ते वे द्णजिरोवा्षररिमं शोक ayaa द्ब्रभिरकारिषं xnfafad चतुभिखतखो दिशे इभ्या मेवासिन्‌ काके safer’ रत्यादि to व्रा० ४, ४, ९।

t “पङ्क्तिः wheat पषठपदा””- इति ure Ze wre ६, ९९। पर्यय विविधाः सनि। तजखणानि तु रन्दःग्ास्तोयषड ध्याये ब्रहटय।नि। “पञ्चपदा पड क्िः, TSR यज्ञः, TITRE WT THIER AT पष्ना मबद इतिर्‌ Rev, Bel

© Go एषा. €) देवतं काचटम्‌ | Ret

अथ “fagq” wear? तते fagint पर निराद.- “ahaa? स्तोभ तिधा तुरत्तर॒ षदं war, सेयं खभ aA | “का तु जिता स्यात्‌ ?” श्रथ पुमः Teas ae चिता fad श्रुयते “चिः- दति, एतत्‌ किमथे fafa? “ator” waaa भिरं “दन्दः”, गावच्यारिीियो awarq, सेयं तौफतमा स्तोभति fear “faze वजः, ae क्रोभेति इति ar’ वज मायुधम्‌, तच्च पुनः प्रायः चिषनि- रा ag: wy we भिति विज्ञायते, ae स्तोभति ofa: wag शेर मेतच्छन्दः, ay चेन्रभक्ति तस्प्रादुपपश्चते “यत्‌ जिः श्रस्तोभत्‌, तत्‌ fea: शरषटुपतवम्‌-- इति famaa’? (१२

जगती गततमं छन्दा जलचरगतिवा जलगल्यमा- नाऽसजदिति चब्राह्मणं विराङ़्िराजनादा विराधना- हा विप्रापणादा विराजनात्सम्पुशाश्षरा व्रिराधना- cara विप्रापरणदथिकाश्चरा परिपीलिकमध्येत्यी- पिकं पिपीलिका पेलतेगतिकर्म शः yet y

“जगतोः, ““गततमं इन्द्‌ः" sq मित्यर्थ; | श्रतःपर मति- च्छन्दसि “जल चरगतिर्वा” जलोामिप्रकारा डि तस्याः प्रसतारः।

^ सार Ko Are ९, १४-९५-१९. FEMA! “रकाद्ष्ा्रा जिदुप”*--दत्यादि Towle २, २, | "ररा fara, सकाद्शदरा भूल angfedt vaq मद्‌ यष्कत्‌?- इतिथ रु° wre २, २, ४। ""िटबिन््रष्य वज्जः- इत्याहि te We Bt, ₹२।

+ “aquafaar’ क, ख,

मेर खष्डसम्निः क-च-परकयोः |

१०२ निबह्नम्‌। [उत्तरषटकम्‌,

“जलगख्यमानेाऽङ्जत्‌- दति ब्राह्मणम्‌” ले दषं तये (are पर)" Steed टव किलतां प्रजापतिः सजे, ददर्भैव्यथः; fe छन्दासि क्रियन्ते नित्यत्वादेव areata *

विराजः पुरस्तात्‌ fre fram, बाङष्यादधियन्ञे प्रयोग- श्वयस्लात्‌। श्रथ पुनवि राजं निरार,-“विराट्‌”, विराजनाद्‌ वा, विराधनाद्‌ वा, विप्रापणाद्‌ वा” “विराजनात्‌, सम्पूणा चरा” साकद्याद्‌ विराजत दव “विराधनात्‌, sere’; वैकल्याद्‌ विराध्यन्तौव fe ati ^“विप्रापणाद्‌, श्रभिकारा”; fanaa fe खा wera ty

““पिपौलिकमध्या इति Mafra” मध्याल्याच्रपादाया, घा पिपोलिकमध्येव भवति, पिपोलिकखरूपा। “पिपौलिका” कस्मात्‌? “Gea? (“"गतिकर्मएः'”) गत्यर्थस्य {

इतीमा देवता अनुक्रान्ताः west whale कग्भाजस भूयिष्ठाः काशिन्निपातभाजोऽयोताभिधानैः संयुज्य हविश्चाद्‌ यतीन्द्राय a (इन्द्राय इवतुर रै)

° ale Ke Mie ₹, LO. प्राय रव मेव पाठोऽपि। “'दवादग्ाचरा वै जननौ? TRIE Co wre ९, ९, रका्रा जमतोषा TIENT! ye तोयखवन मद्यच्छत्‌-दूतिचरर Are ९, ₹, ४।

We द° Are २, १९. away मेव “aura विरा” इत्यादि शट wie ९, ५४, ter जिं्दचरा वं विराट्‌" त्यादि चरे०त्रा° १, ४। “पञ्चपदा wets: ** * तामि ter पच्चान्यानि qwerty ZH YUM GT aft विरार्‌ः- इत्यादि qe me ule ४।

{ Ute < Hl ₹, ९; te. तचाण्यव aT |

$ MAA क-ख-म Tats ठोकाविरुडसख |

अख. देपा° १० ०] देवतं काण्डम्‌ | ROR

wzaieiay इति तान्यप्येके समामनन्ति भूयांसि तु समानान्‌ संविन्नानभूतं स्यात्‌ प्राधान्यस्तुति तत्समामनेऽथोत क्मभिकषिर्देवता स्तौति seer पुरन्दर इति तान्यप्येके समामनन्ति भूयांसि तु समा- म्नानाद्‌ व्यश्जनमाचं तु तत्तस्याभिधानस्य भवति यथा ब्राह्मणाय बुशुक्ितायोदनं देहि स्ातायानुलेपनं पिपासे पानीय मिति ve (१३) I

इति सप्तमाध्यायस्य Ailsa: पादः 9. 8.

«<इति इमाः देवताः अनुक्रान्ताः? | इतिकरणः प्रकरणसमा- wai श्रय वा दतिकरणेनाभिमयेन दच्यन्निव ब्रवौति। एव मनेन प्रकारेण यथापरिभाषितेन “यत्काम षिः दत्येवमादि- भा °। एमा देवता श्रनुकान्ताः- Sf, जातवेदाः, तैश्रानरः- दत्येवमाद्याः समासतो निरता cards) ताः पुनः ““छक्रभाजा fain” काञ्चित्‌ इविभजन्ते a an, काचित्‌ ak भजन्ते हविः, atfaq उभयं भजन्ते वच्यति fe— “'इतोमानि सप्त- विंश्रतिदेवतानामधेयान्यनुक्रान्तानि खक्रभान्ि शविभान्नि, तेषा मेतान्यहविभाञ्जि'"- दति “eanimy विष्ठाः” प्रायेण- त्यथः तद्यया,--श्राप्रौखक्र एकंका BY भजन्ते रत्तणभेदा-

* सप्रमाध्यायारकेष्ेति यवत्‌ | Te १८५ ४० Raw |

मिषषर्‌,-देवताकाष्ठपडिता care | ware ४।९- ४९० ve REA { ररेोपरिष्टात्‌ co, 8, eae! wife eae खादौनि।

R28 fran | [उत्तरषटकम्‌ ,

दिभिः* श्र्धे्ेभाजाऽपि कचिदुपेदितथ्ाः। तथ्या, “चः सयाच गौय उडेतौत्यद्धंप्चमाः† “व चकः" त्यस्या पूर दधेः wd: stave उत्तरा भैत्रावङणः पादभाजाऽपि afeq- fara) तद्यथा.-“नवौ नवा भवति जायमानः (we go x, ३, २३, ४) -दत्यस्छाः श्रादित्यरैवते हिनतौयः पारो भवति ९। ufasaqure द्‌शेयति weararat अ्रपि सन्ति, ता श्रणुपेि- aan इति; ताश्च ययालक्तणं fag स्थानेषु कल्प्याः तद्यथा,- परमेषि-ग्रद-नच्तच-सषप-लाङ्ल- कुसुमकप्रतौनि

“arfa निप्रातभाजः,?- इति निपाता fe दिविधः। देव- AAT: सह साधारण्ेनोपस्ततो FTAA तच साधारणं माम तद्यथा, “विधाता धारा arena: | ade निपाता भवति qugaarat gfe) सोन ae” इति gat सामप्रष्टतिभिः ay विधानात्‌ शरूयते साधारण्छेन नेघण्टुकलेन पुनः तद्यया,- “sfaal व्याख्याता तस्या एष निपाते waar टचि | “afgsam परमा एयिव्याम्‌"-- इति ताभ्या मिद्धाप्निभयां

= qe Yo Lome ewe ULES! CHIEN HINGE! खसय GG रकाद्‌- शाना मेवच्ें टेवता fafwar xf ara: |

+ इति खनक्रमणौवचनम्‌। sims (ome ewe) wee महमं र्नम्‌, TE Ways: War Tey sitar, wherandtsee fasrrew- nea इति तदथैः।

] उदेतौत्यखिन्नेव aw यजाचक्रुरितोय wa पचमो (न सं ०,४,८,६)।

§ “जादित्यरेवते fate: प्रार्‌ येके"? दति चोपरिद्टादु वच्यति 00,001

|| खपदिष्टात्‌ चच्छति ces, wean अहक भविश्यति १९, ९, ९१।

T र्तथोपरिष्टादु eames, ates तेव RTs भविष्यति ९९, १, १९।

श्र gute oqo] देवतं काणम्‌ | १७५

ae साधारण्येन yan aad, किन्ति ? want रेवोपादरौोयते | एवं तावदय faufyart काञिन्िपातभाज इति fanart: भिपात om:

अयाय मपर निपातप्रकार उपेच्यः ; तद्यया,-श्रत्यन्त- नेघष्टुकम्‌, देवताभिधान मनत्यन्ततैघणष्डुकख | तच TRISH नाम श्रत्यन्त सदृ्टखप्रधानस्ततिः तथ्या श्रादित्यस्य खः-एञ्चिः- ` प्रष्डतिभिः * श्रय पुनः दृष्टखप्रधानस्ततिमदहेवतापदं ata पजनितपारतन्त्य मातिप्तखाभिपेयसामच्यै सुपमानग्रष्देन मथ मन्यसमिन्‌ देवतापदे प्रधाने वाक्या्थसाम्छापजनितप्राधान्यषामथ थत्‌ निगमयति, श्रमत्यन्तनेघण्डुकं तद्‌ भवति तद्यथा, alata मन्यो? इति 1 श्रञ्निशब्द श्वेत्यनेनापमामशब्देन वाक्यार्यौप- जनितमामर्थेनातिप्तखाभिषेयमामथौ विशेष arate, सम्नोध- भान्तं HM वाक्यगतिः पद हप्नौोयमानसामथ्यै म्थिभिवेषणपसे मथं awe निगमयन्‌ निपततोति नैघण्टुकं तदिति एव मनेकप्रकारा निपात ge:

“श्रय उत श्रभिधानेः संयुज्य दविः चोदयति” श््रथं'- एति विशेषा धिकारे। “उत'-इत्यष््ये श्रपर मपर मभिधान -मपेच्या- Gey) तथ्या, अभिधाने: संयाज्य विगेषणणन्दैः तचरैतदभिधाभ

* १भा० RY, ROO— ROE To, रभा २९०१० रष्व Bylo शेखर We सुं ८, ए, te, ९। मन्युः" धमार निघ २, ६९; ६४, wee MIT Urq (Ro, ४, e) विशेषो बहव्यः।

{ “वाक्षाचीपलमभितसामय्य॑न पारतन्ता मारिप्नखाभिधेयसामथोविध्येव * * * afafataqity* ° * Haga सम्पश्यवे"--दूति ज, |

३७६ निरक्तम्‌ | [उश्तरषटकम्‌,

मिद्धादिमविन्नानाद्‌ दृढ मिन््रादो देवतार्थं warafaut प्रयोगे दविश्चोदयति i

तद्यया,-““दनदराय wan एकादशकपालं निवपेत्‌” इति, तथा “ददन्रायांशामुचे <dfar—“exrattiqd एकादशकपालं निवपेत्‌" दति*

ततः किम्‌ ? ““तान्येके समामनन्ति "" “Ua? नेरक्राः "तान्यपि" शणपदानि ट्ब हेमुकप्ञ्तोनि, श्रन्यादौ देवतापदषमाख्राये एयक्‌ wan "समामनन्ति" हं तु समामने। कस्मात्‌? “ऋर्यासि समालानात्‌" यानि तेषु qua ठचि मुक- wai समामनन्ति, तताऽन्णन्यपि रयां" बहतराणि सन्ति एव, माहाभाग्यात्‌ देवतायाः गणाना मियन्ना नास्ति; तेषां त॒ सर्वेषां warart समानक्नायस्यापरिनिष्ेव स्यात्‌, तथा सति aat . शास्ते श्रसमाश्निः; तन्ममापि मा fear “यत्‌ हु संशिन्नन- श्वतं श्यात्‌ प्राधान्यम्हतिः, तत्‌ waar” इति यदेतत्‌ संविन्नान- भतं रूढ मगौणं aaa मपि निर्विंभेषणं लभप्रधानस्ततिरेवतापद्‌ मन्यादि, तत्‌ षमामने; गौणं त्रतश्छत्‌-्रतपल्यारि 1

# “पुरवा रताम्‌ देवा अक्रत यत्पृ रोाडाद्ाखप्पुरोडालानां प्राणनं तदा- Surana wire निवपेत्‌ quiere प्रातःसवन रकादकपाखं माध्यन्दिने सवने TMB कतोयसवने'"- इत्यादि Lo wre ee, ul

कसंडितायान्‌ nea ब्रतन्डत्‌पदं, मापि ब्रतपतिरिति; अन्यज aie “ays वतन्डतेऽाकपाणटं Wren निवपेत्‌ दति, “खो ऽप्रये ब्रतपलयेऽाक- पारं Frere निवपेत्‌“ दति fo wre ०, ९, ८। “पने ्रतपते रतं चरि- ष्यामि इत्यादि चषा He Wie ६, ९, ९-९९।

Owe हपा० Lowe] Saad AWA | १७७

अथवा तान्यणेके षमामनन्तोत्यत sate “यांसि तु समान्ना- नात्‌''-दत्यस्यापरेाऽयः शर्यांसि एव तेषां समाख्रानात्‌ (णानि °) समाक्नातानि स्यः, किञ्चिदतिरिकरं प्रयोजनम्‌ ; वचनात्‌ केवलं NE We सम्पद्यते, तन्मा WA त्यर्थः

“श्रथ उत ata: ऋषिः देवता स्ताति- इषा, पुरन्दरः?” —tfa ठचहा, शतक्रतुः, पुरन्दरः, गोचमिद्‌, aware: इति “तानि श्रपि एके षमामनन्ति'” तानि afi एके कम॑नामघयानि समामनम्ति | का विशेषः पूर्वेभ्यः ara? विधिदश्ेनात्‌ पूर्वेण हविद्यारयति(दति)वचनात्‌ स्ल॒तिद्‌ शेनादिकमंमिच्षिरदेवताः dr- तोति वचनात्‌ “र्याति समाल्ञानात्‌” इति एव देषः॥

“gga तत्‌, तस्याभिधानस्य भवति” | carer पुरन्दर दति यदेवमादि एपदम्‌, ‘aq तदयैवेग््रा रेः खविन्नातपदस्य व्यश्नन- ar? विशरेषणमात्रं भवति ; एयक्‌ प्रधानम्‌, केवलस्य सम्बन्धात्‌ wat) यथयालेके- “ब्राह्मणाय बुभुक्तित'य stat देहि, क्ञाताय श्रनुलेपनम्‌, ford पानोयम्‌-दति। यो ayfan, ag दति यथाहु बुभुचतितश्ब्दो विशेषणम्‌, केवलस्य बभुचितब्दस्य aga. क्चिदनवस्थानात्‌ एवं ख्वदा पुरन्दर शत्येवभारोनां विशेष्य मप्राप्यानवस्यामाद्‌ व्यश्ननमाचता ; खप्रधानता | तस्मा- Bays समामने ॥९० (९९)

दति निस्कभाव्यार्यापनिबद्धौ इादश्स्य (wre)

ठतोयः पादः समाप्तः ०.३.

© HG {sme ज-प-एसकथेरन्यज पर AW तच।प्यसप्ट( षर रव | Hane मस्ति क-पखकरे। 48

qs निसक्तम्‌ | [उत्तरषटकाम्‌ +

चतुथः पादः

अथातेऽनुक्र्िष्यामेऽभभिः थिवीष्यानस्तं प्रथमं व्याख्यास्यामेऽभ्रिः कस्मादम्रणीभवत्यग्रं न्नेषु प्रणीय- तिऽङ्लन्रयति सन्रममानेजक्रापनेा भवतीति खौलाष्ठी- विनं क्रोपयति a@wafa विभ्य श्चाख्यातेभ्यो जायत इति शाकपुणिरितादक्तादगधादा नीतात्स खल्वेते- रकार ATS गकार HARA SEAT नी" परसत- स्येषा भवति (१४)॥

“श्रथाताऽलक्मिव्यामः” सामान्यतः परिष्याताऽम्यादिर्दैव- पल्यन्तो देरवेतापदसषमान्नायः° विशेषत ददनों प्रतिपद मतु व्याख्यास्यते, तदथ मधिकारवसषनम्‌,- “श्रय इति

' श्रतः"- दति श्रानन्तय सामान्यात्‌ पारिभाषिक्राद्‌ व्यास्या- भादनन्तरात्‌ (aq) श्रातुपूच॑ण यथासमान्नातं (करमिग्यामः कथ-

थिव्यामो वणैयिथामो area वाक्यगेषः। सा पुनव्ाख्या

(x) ९) (१) (४) (६) (९ श्रभिधानाभिषेयाभिधानव्यत्पत्तिप्राघान्यस्त॒व्यदाहरणतन्निवंचनविचा-

(७) (८) शेापपत्यवघधारणक्रमलक्तणा तद्यथा, Oa.” इत्यभिधानम्‌,

Qwey पाथिवः इव्यभिधेयम्‌, (र““श्र्रणौर्भव ति~ दत्यभिधान-

© we ९८५४० “थातो दततम”-- रति ९८१ ०..९” Stam इषया

€अ० छपा० खर] रैवतं ATA | ७६

त्पत्तिः, (*)““श्रभ्नि मौले इति प्राधान्यस्त्युदा दरणम्‌, (भश्रत्नि Wa=“afi याचामि इति तन्निर्वचनम्‌, (९५घ भन्येताय मेव श्रभिः- एति विचारः, (°) “यस्त॒ at भजते a@ शषि- निरूप्यते”--इ्युपपत्तिः, (=^ श्रय मेव चाऽग्निः- इत्धवधारणम्‌ * खम्पकारया व्याख्यया प्रतिपद मनुक्रमिययामः॥

ततरेतर्‌ भवति केऽय मदनः? इति त्मा--दव्यात्मविदः; “एक शद विप्रा बहधा व॑दम्ति (० सण ९,३, RR, ६) “एति मन्त्रदर्भनात्‌† श्रविवक्ितस्थानविगेषो निश्चीतेतदमिधानो रेवता- पिेषो लाकवेदप्रसिद्‌ः aug मिति याचिकाः faafea- स्थानविशिष्टकममा मध्यमोत्तमाभ्यां ज्योतिन्या मन्यः पार्थिंवोऽय मभ्रिरिति fanaa? जिलाभ्युपगमात्तत्सन्पिपाद चिषयेद मा- र्यते |

“शभिः एयिवौग्थानः तं प्रथमं व्याश्याखामः?-- दति एयथि- aaa विशेषतः स्थानम्‌ ; श्रन्तरित्षम्‌, द्यौः इति ष्थिवौ- स्थानः; तत्र कमाधिकारात्‌ तस्य तिष्ठत्यसिन्‌ इति खानम्‌ यसमात्‌ प्रथिवो we wag, तस्मात्‌ सल्निक्षेल्लोकारुक्रमाख हसति कारणे प्रयमातिक्रमो न्याय्य षति तमेव प्रथमं वाण्या स्यामः

* सवेचेलदमु षड्‌ मेव ay मारभते Teresa aT |

परस्तात्‌ RLV Te “रक Gra? रत्यादिकं मह्याष्ानच इहयम्‌।

{ परस्तात्‌ eee ४० “wie वा rude a रत्यादिकं तद्याच ब्रटयम्‌। $ पुरस्त्‌ ११९० ve “तिर रव देवताः ae aggre इवम्‌ |

९८० निक्तम्‌ | [उन्वरवट्‌ कम्‌ ,

श्रग्निः कस्मात्‌” देवताभिधाने देवता gra wide परोचीकृतं तल मपितम्‌, परोक्षप्रिया इव हि देवाः प्रत्यलविषय इति fe विषायते तन्निवेचनादागमप्रामाणिकं रेवताताद्धाय मनु- भवतोति wae तननिविवच्तया“श्रभ्निः कस्मात्‌?” दतयुपोड्ध्य “wat: भवति--्त्येवमादिना श्रग्रिश्ष्दं निराह aaed game खपोहातोपन्यासौ द्रष्टव्यौ ब्रात्मवित्यक्ते तु षव भभिधान ara सेवति wre मात्मानं सवाभिधानयुत्पत्तितो निरुष्य याया- त्यतः oft waa श्रात्मनः सवावस्यं विध तिताद्धाश्च मतु- भवतोति सवपदय्युत्यन्नि प्रयोजनम्‌ qa हि,“ ब्न्दजरहमणि निष्णातः परब्रह्माधिगच्छतिःः- दति °

“saat: भवति" दति श्रग्निशब्दं विग्य arate रत- वाक्यपदवर्णनिष्कषेणसमु दायोपजनितस् श्रपनिशब्दस्य श्रगभन्दात्‌ गकार AI wowed कमोाभिधायिनं waa ae नय- तिं पर Gate कन्तव्यायात्मने। saenq afin निराह श्रय केऽथैः? दति स्वष्व्येव्वसावात्मान ad नयति, aay तथोपकरेाति यया wd सम्पद्यत इत्यथः Mowe: प्रधान wey, सएव वा श्रं नयति। सेनां वा श्रये नयति सैनापत्ये

# श्यं अतिमानद्चाइ प्रख्यायां पतञ्मलिः ia शपि wey ay ते Uy सिन्धवः | च्चनमच्रनि काकुदः ण्यं" हषिरा भिव (we सर १, ४, ०, ₹) | Gea fs THC) सत्यदेवाऽपि, यद्य ते सफसिर्वः सप्विभाहयः, waren wigs aE | काकुणिडा सा foyer इति काङ्दम्‌। eA सुषिरा भिव aqur भोभना afa इषिरा मप्निरनः प्रविश ददति, रवं सप्रसिन्धवः auf. we ताख्वनु रन्ति, तेनासि सत्यदेवः सत्यदेवाः स्प्ामेत्य्येयं अकरम्‌" echt |

“anaaiy qa,

owe Bate wwe] देवतं ANA | Ree,

safea waa; विक्नायते fe—‘afza देवानां सेनानीः" tia? i

श्रय वा “sj aig प्रणयते” प्रथमं यज्ञेषु aula; तावत्‌ किञ्चिद्यन्यत्‌ क्रियते यावदयं प्रणोयत एति, ततोाऽखिन्‌ त्रत सुपेत्यान्यानि कर्माणि क्रियन्त दति 1॥

श्रथ वा “ae नयति ganar” यत्रय सन्नमयति साधन त्वेन वैदिके वा लोकिके वासँ, तजर सन्नममान एवात्मानं प्रधानौ- Bq सवे मन्यदात्मनेऽङ्गतां नयति गणौकरोतोत्ययः | we वा ‘Cot मयति aqua” aw वा are वा aa सन्नमति श्राश्रयति, तत्‌ श्रात्मनेऽङ्गतां मयति, श्रात्मषात्‌ करोातोत्यथः

““क्तोपनेा भवति इति ख्योलाष्टोविः” स्यूलाषौवतः पुत्र etna: श्राचायैः a मन्यते, श्रय मक्रोपना ware भवतोति तस्मादभ्चिरिति fa faz मक्तापनः इति ? sa श्रा, —“aq करापयति"”। एव मपि गद्यते करेपयतेरप्रसिद्धा्थलात्‌ | रतः पुननैवौति प्रसिद्धनार्थन,-“न qeafa विर्चौकरेातीत्य्थैः ; हि तस्य खभावः॥

“fra: saa: जायते इति शाकपूणिः" नयाणा मा- श्याताना afadar क्रिया wy waa, ता उपादाय हेतु- विनाग्निशष्द श्रात्मान wT! तद्यथा,--“दता त्‌, शण गतौ

* खत ण्व इकसंडितायाम,--“सेनानोौनेः सङरे कत रथि", एति ८, २, १९,१९। + “वे ऽपरं sfganfg aaa’ टूतिरे० are १, ९, \ | “aaa प्ररोयमाना जामृब्रहि"- रत्यादि ब्रेटयम्‌ 1 to त्रा १, ६, ९।

(श्रदा० प)-दत्यसम्ा दिल्यथः “अकरात्‌, दग्धार्‌ वा” अक्तौ दहतेवा विकल्य एतया; aati “ala” इति, ‘ale प्राप्य Gate प०)*-दत्येतस्मात्‌। धातवः केवलं मिर्िष्टाः। किं कुत -आदन्ते ? दृत्यत ae“ a: we” शाकपूणिः “एतेः” घाताः “maT आदत्ते” | नन्वेतेरकार एव मास्ति, wa: कि area ? सत्यं नास्ति; व्प॑सामान्येन तदिकार मादाय दणोऽथदर्नात्‌ wat शब्दार्थ सानन्धनित्यलार्‌, Wa गण्ड तवाच्छ्दस्य, ततः तं व्यापादय- व्धकारवेन श्रय वा षूपानेकल्वादिणो यथावस्यितस्याकारो भवति, तथा शूप मवस्था ततोऽकार मादते; दर्शितं देतत्‌-““एतेः कारितं यकारादि षान्तकरणम्‌"”- द्व्यच *; भवति qa छन्त ष्पम्‌ श्राययति" ति 1, aw शकारः, ततः श्रादन्ने “मकारम्‌, ‘WAR. वा Tea वाः एतक्ुत् भश्वयेा वि कन्येन “नोः परः" एषः gai एति. व्यनक्रि a रूपाणि, aya एति दडतिच मयति ealfa देवेभ्यः इति श्रप्मिः साघोयस्तरः एता एतद्धातु- वाच्याः क्रियाः एष करोति दति “श्रद्नि;ः॥

“qu” एतक्षचितलच्छयप्रधानम्तुतिसम्बन्ध मभिघान मुपलच्छय देवतापदसमालाये समानत afafefal, aw “श्रप्नि मोर दत्येतक्ममुखा श्रप्रिकमंलिक्गलिङ्गिताः खवा maa we: उदा- हरणम्‌; पुनरसति कारणे मुख्या तिक्रमे न्या एति खम्बेदप्रयमा मिमा wa समुदाजहार “तस्य एषा भवति-दति,- ॥९ (९४)

gute Gere (qo vate WSs; तद्याष्यानख्च ९९४० RCRA! ` “खो ममिरबाधने”- इति पा एड तु बषमायरव। { Yate ४६९ To ume शख (र)।

Oqe gute Rwe ] देवतं Raz | awe

प्रि dia* atfed awe देव मत्विजम्‌। Walt रत्नधातमम्‌ | अभि are ऽभि याचामीलिर- ध्यषणाकमा पृूजाकमा वा पुरोहिता व्याख्याता यज्ञश्च! देवा दानादा दीपनादा द्योतनादा श्याना भवतीति वाथा देवः सा देवता हतार ज्ञातारं जहे तेरनेत्यौर्णवाभो रनधातमं रमणीयानां घना- नान्दादृतमन्तस्येषापरा भवति (VY)

“पनि मोदे (eH LA) दति मधुच्छन्दस श्राधम्‌ गायत्री afar त्रिनियोागः। यः श्रभ्निः देवपुरे।दितः पाकयज्ञ, अस्माकं as यश्च॒ wha, हाता awe, र्नधातमञश्च दादतमेा रत्रानाम्‌, मदं रन्नानि याचे दति GACT: I |

SLE Eta aa I—“xfe.” धातुः “maaan” याच्ना- कमं ; अन्यच “aaa वा” श्रपि{ “पुरोहितः arena”, “az एमं aufar—efar | “यज्ञः a” व्याख्यातः, “प्रख्यातं यजति- ma’ दति |। “देवः, ““दानाद्‌ वा” ददाति wat शश्वयौणि।

* “afy मौलेःः-द्तिक, ख, 7

+ “auq’’ क, ख, .

{ “पजाकमा वा^?--दूति गा-पद्जवणात्‌ wale Te Tre यास्छसमात रवेत्यस्माकम्‌, सायष्भापये्येव मव |

§ Rare ९०९१० रख दपा Ewe |

|| र्भा° ६९२० ४० RWS ४पा० ९८०।

१८७ निक्तम्‌ | [ड सरषट्‌कम्‌,

“aang वा"दौपयति wet तेजामथवात्‌ “द्योतनाद्‌ वा धात्वन्यल मयकलम्‌ “द्युस्थाना भवति--इति वा” ga aan निवचनस् श्रय वा श्रगनौ वपि wart; सामान्यं हि gh स्थानं देवतानाम्‌ * तयोस्त कमैधिकारख्ाने विथ एयिष्यन्तरिचे “Slat न्हातारम्‌” देवानाम्‌ 1 Arava” तु “जुहेतेः” S दानादानयोः (ज०१०)'- इत्यस्य मन्यते “हेता इति” “रन- धातमम्‌=रमणोयानां घनानां दादढतमम्‌””

ततः “ae” एव aa “एषा श्रपरा” खक्‌ “भवति” | समानमंहितलाद्परेति वा दितौयेव्य्थः। सा पुनः किमर्थम्‌ ? दृति सुना प्रकारेण षवे एतद्या मुदाहरण मेतत्कमं यक्षा खच SNe दत्युपप्रदशेनाथैम्‌ (९५)

aft पवभिकषिभिरीद्यो नुत॑नेत दुरो we वष्ति च्रभ्रियः पृवेकषिभिरीलितव्यो (वन्दित- व्यो ‡) ऽस्माभिश्च नवतरेः देवानिहावदत्विति मन्धेताय मेवाप्िरित्यप्येते उत्तरे ज्योतिषी af उच्येते तते नु मध्यमः॥ (१६) |

© “देवा वा खद्धरोरिणिम्धाना Gan खमे" शाक मायन्‌” इत्यादि ( रे०्र(* ३, ४, ४), “परा वा खसाञ्चाकाव्‌ खना लेकः त्यादि (Te we ९,४,४) इध्यम्‌।

“प्रिव देवानां डता, तस्मतदोढषदनं यदुततरवेदौ नाभिः दूति ve त्रा ९, ४, ९। “STE Wat रोमाणिकरणन्येन बएगम्‌"- दति gre we |

{ Hang द्वे क-ख-म-पुस्तङेष |

Nitiséra, or The Elements of Polity, By Kémandaki, (Sans.) Fasc. II—V Rs

@ /6/ each eo Parigishtaparvan (Sans.). Fase. I—I]I @ /6/ each oe Pingala Chhandah Sutra, (Sans.) Fasc. I—11I @ /6/ each .. ०५ Prithiréj Rasau, (Sans.) Fasc. I—V @ /6/each =` ०० ०५

Ditto (Feng lish) Fasc. I ee | शिः 2६11 Grammar, (English) Fasc. I and II @ /6/ each ०९ ^^ Prakrita Lakehanam, (Sans.) Fasc. I ०७. ५.4 Pardésara Smriti (Sans.) Fasc. I—V @ /6/ each or Srauta Sutra of Xpastambf, (Sans.) Fasc. I—XII @ vA ( each aid

Ditto Aévaléyana, (Sans.) Fasc. I—XI @ ke each _ ०५

Ditto | Latydyana (Sans.) Fasc. I—IX @ /6/ each 3

Ditto Sénkhéyana (Sans.) Fasc. I—II @ be each | Sama Veda Sawhité, (8878. ) Vols. I, Fasc. 1—10; II, 1—6; III, 1~7; IV, 1—6; V, 1—8, @ /6/ wach Faso $ - 84111४98 Darpana, (English) Fasc. I—IV @ /6/ each

Sankhya Aphorisms of Kapila, (English) Faso. I and II @ /6/ each ; |

Sarva DarSana Sangraha, (Sans.) Fasc. {1 ee ०७ Sankara Vijaya, (Sans.) Faso. II and III @ /6/ each vs bhai Sankhya Pravachana Bhashya, (English) Fasc. IIT ७४ oe Sankhya Sara, (Sans.) Fasc. I a oe Suéruta Sawhité, (Eng.) Fasc. I and II @ /12/ each ८९ ee Taittiriya Aranya Fasc. I—XI @ /6/ cach ee ee ०७

Ditto Braéhmana (Sans.) Fasc I—XXIV @ /6/ each .. ०७

Ditto Sawhita, (Sans.) Fasc I—XXXIII @ /6/ each .. ०७

Ditto Pratisakhya, (Sans.) Fasc. I—III @ /6/ each _.. Ditto and Aitarcya Upanishads, (Sans.) Faac. II and III @ /6/ each Ditto Aitareyr SvetéSvatara Kena 16 Upanishads, (English) Fasc

I and II @ /6/ each ०५ ee Yandy& Brahimana, (Sans.) Fasc. I—XIX @ /6/each == ` ,, se Tatta Chintémani, Fasc. I—IJLI (Sans.) @//6/each _—_ a, aa

Uttara Naishadha, (Sans.) Fasc. ILI—XI1 @ /6/ each és Vayu Purdya, (Sans.) Vol. I, Fasc. 1—6; Vol. II, Fasc. 1—6, @ /6/

each Fasc... ०७ ee Vishnu Smriti, (Sans.) Fasc. I—II @ /6/ each Sue Vivadaratnakar, Fasc. I and IL @ /6/ ५१७ (क ' ००: Vripannaradiya Purina, 0८86, 1 = , oe Yoga 8६४४ of Patanjali, (Sans. & English) Fasc. I—V @ /14/ cach .. The same, bound in cloth (४ ie v0 ee Arabic and Persian Series *Alamgirnamah, with Index, (Text) Faso. I—XIII @ /6/ each = mS Ain-i-Akbari, (Text) Fasc. I—XXII @ 1/ eac ; ee ee Ditto (English) Vol. I (Fasc. I—VII) .. ०. tee Akburnamah, with Index, (Text) Fasc. I—XXX @ 1/ each ०७ 70808608 with Index, (Text) Fasc. [--3> @ /6/ each ०७

Licale’s Oriental Biographical Dictionary, pp. 291, 4to., thick paper, @ 4/12; thin paper

Dictionary of Arabic Technical Terms and Appendix, Fasc. 1—XXI @

1/ each 9 (Text), Fasc. I—X1IV @ 1/ each Fihrist-i-Tasi, or, Tusy’s list of Shy’ah Books, (Text) Fasc. I—IV @

12/each .. ५५ oe vote al-Shém Wa a (Text) Fasc. I~IX @ /6/each .. ne Ditto Azadi, (Text) Fasc. I—I1V @ /6/ each ee. a. 4 Haft Asman, History of the Persian Mansawi. (Text) Fasc. [` ae History of the Caliphs, (English) Fasc. I—VI@ /12/each . =, ` ०, Iqbéinamahb-i-Jahangiri, (‘Text) Fasc. [-- का @ /6/ each ee Igabah, with Supplement, (Text) 37 Fasc. @ /12/ each ` ,, ee Maghas{ of Wagidi, (‘Text) Fasc. I--V @ /6/ each | eo Muntakhab-ul-Tawarikh, (ट) Fasc. I—XV @ each ve Muntakhab-ul-Tawérikh (English) Vol. II, Fasc. I & II @/12/ each ..

Muntakhab-ul-Lubéb, (Text) Fasc. I—X VIII @ /6/ each... ee (Turn over.) $

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Mu 'Asir-i-’Alamgiri (Text), Fasc. I—VI @ /6/ each ०७ Rs. .

Nukhbat-ul-Fikr, (Text) Fasc.I .. Nighmf’s Khiradn&mab-i-Iskandarf, (Text) Fasc. I and Il @ /12/ each Suydty’s Itqén, on the Exegetic Sciences of the Koran, with Supplement,

(Text) Faso. II—1V, VII—X @ 1/ each ०* ०७ aa Tabagét-i-Ndgirf, (Text) Fasc. I—V @ /6/ each 9 es Ditto (English) Fasc. I—XIV @ /1 yi each = ०, Térfkh-i-Firds Shahi, (‘Text) Fasc. I—VII @ /6/ each és a Tér{kh-i-Baihagq{, (Text) Fasc. I—IX @ /6/ each ‘ve a Wise o Rémin, (‘Text). Fasc. I—V @ /6/each .. धि a

ASIATIO SOOIETY’S PUBLICATIONS Asratio Respancuxgs. Vols. VII, 1X to XI; Vols. XIII and XVII, and Vols. XIX and XX @ /10/ each Rs Ditto Index to Vole. I—XVIII_.. ‘Procaspinas of the Asiatic Society from 1865 to.1869 (incl.) @ /4/ per No. ; and from 1870 to date @ /6/ per No Jounnat of the Asiatic Society for 1843 (12), 1844 (12), 1846 (12), 1846 (6), 1847 (12), . 1848 (12), 1850 (7), @ 1/ per No. to Subseri- bers and @ 1/8 per No. to Non-Subscribers; and for 1851 (7), 1857 (6), 1868 (6), 1861 (4), 1864 (6), 1865 (8), 1866 (7), 1867 (6), 1868 (6), 1869 (8), 1870 (8), 1871(7), 1872 (8), 1873 (8), 1874(8), 1876

. (7), 1876 (7), 1877 (8), 1878 (8), 1879 (7), 1880 (8), 1881 (7), 1882 (6),

1889 (6), 1884. (6), @ 1/ per No. to Subscribers and @ 1/8 per No. to Non-Subscribers N. 7, The figures enclosed in brackets give the number of Nos. tn each Volume ie of the ee of the Society from 1784—1883 .. neral Cunningham’s Archwological Survey Report for 1863-64 (Ix No 6 B., 1864} .. ae sa aie Theobald’s Catalogue of Reptiles in the Museum of the Asiati Secu ber 4. 3 ee 1 Catalogue of Mammals and Birds of Burmah, by E. Blyth (Ex ०.6 53 1875), a? : ketch of the Turki Language as spoken in Eastern Turkes Part II Vocabulary, by R. B. Shaw,(Extra No., J. A. 8. ए, 1878) ०७ A Grammar and Vocabulary of the Northern Balochi Language, by M L. Dames ae 8. B., 1880) ee Introduction to the Maithili Language of North Bihfr, by G. A. Part I, Grammar (Extra No., J. A. 8. B., 1880 + 0 Part II, Chrestomathy and Vocabulary (Extra No., J. 4.8. 2, 1882)..

A nis-ul-Musharrihi ee : oe ee ee Catalogue of Fossil Vertebrata ve ०१ oe Catalogue df the Library of the Asiatic Society, Bengal = + amination and Analysis of the Mackensie Manuscripts by the Rov. W. Taylor... eo 0 Koong Tsew, or the Sorrows of Han, by J. Francis Davis Istiléhdt-us-Safiyah, edited by Dr. A. Sprenger, 8९० ०१ ०४ Indéyah, a Commentary on the Hidayah, Vols, II and IV, @ 16/ each , , Jawdmi-ul-’ilm ir-riyAzi, 168 pages with 17 plates, 4to. Part १५. Khizénat-ul- ilm ee ee oe Mahébhérata, Vols. 11 and IV, @ 20/each_., we ‘Moore and Hewitson’s Descriptions of New Indian Lepidoptera, Parts I—II, with 6 coloured Plates, 4to. @ 6/ each ०१ ee Purana Sangraha, I (Markandeya Purana), Sanskrit ०७ ee Sharaya-ool-Islam ee oe ee Tibetan Dictionary by Osoma de Kdris ०७. sa ee Ditto Gramm oe ee ०५ Vuttodaya, edited by Lt.-Col. 6, BE. Fryer. a ae Notices of Sanskrit Manuecripts, Fasc. I—XX @ 1/ each ., es Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. Re L. Mitra ०, oo

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- . PUBLISHED BY THE ASIATIC SOCIETY OF BENGAL. New 37281728, No. 580. |

सभाष्यदति-निरक्तम्‌ THE NIRUKTA, WITH COMMENTARIES. EDITED BY . PANDIT SATYAVRATA SAMASRAMI

VOL. III FASCICULUS V.

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CALCUTTA wd , PRINTED BY J. W. THOMAS, AT THE BAPTIST MISSION PRESS. (8 4814716 SOCIETY, 57, PARK STREBT. (ey

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| Sanskrit Series.

Atharvana Upanishad, (Sanskrit) F I—V @ /6/ each ..

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Chaturvarga Chintamani, (Sans.) Vols. I, Fasc. 1—11; II, 1—26; III

1—14, '6/ each Fasc ee ee Chhaéndogya Upanishad, (English) Fasc. II... ee Gopatha Bréhmana, (Sans. & Eng.) Fasc. I and II @ /6/ each Gobhbiliya Gyihya SGtra, (Sans.) Faso. I—XII @ /6/ each .. Hindu Astronomy, (English) Fasc. I—III @ /6) 6४० ०७

K4lam4dhaba, Fasc I and II @ 4) ee ee ee Kétantra, (Sans ) Fasc. I—- VI @ /12/ each ०५ Katha Sarit Sagara, (English) Fasc. I—XIII @ /19/ each .. Karma Purana, Faso. I ., ०१ Lalita-Vistara, (English) Fasc. I—III @ /12/ each oe Manutik& Sangraha, F ०७

110609६ Darsana, (Sans.) Fasc. II—X VIII @ /6/ each = ९, érkandeya Purana, (Sans.)- Fasc. IV—VII @ /6/each .. ` Nrisimha Tapani, (Sans.) Fasc. I—III @ /6/ each

Nirukta, (Sans-) Vol. I, Fasc. 1—6 ; Vol. II o. 1—6,Vol. III, Fasc. 1—65

@ /6/ each F ee ०७ गष ६६०१४ Smriti, Faso. I and II @ /6/ ७५ ee Nydéya DarSana, (Sans.) Fasc. 711 = ०,

Nitiséra, or The Elements of Polity, By Kémandaki, (Sans.) Faso. II—V

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ae Og शपा. देखन] देवतं काण्डम्‌ | १८५

“रभिः ga fir: (ख ०रुं ०९,९,९,२)''- दति | Gada षमानाष- विनियोगच्छन्दस्का | ASH GUIRY BSH मध्याज्ार भायकारो यत्तदो नित्यसम्बन्ध इति Haq “श्रभ्निः a” ‘Gala’ “qa” चिरन्तमैः “षिभिः “fea” tet पूजनम मरति, ` “श्रस्माभिश्च” “aaat.” ईडितवय इति ana. कि करोति? इत्याकाङ्किते मिराकाङ्खं क्रियते, “सः Zara” “दइ” एतस्मिन कमणि श्रस्माकम्‌ “श्रा वतु" दति लाटा fare भाष्यकारः आशिष माकाञ्िता मप्च्छय। श्छञ्वेकपदनिरक्षम्‌ |

सद्खोणत्वा इस्यभिधानस्य saat विचारः ;-“स मन्येन" इत्येवमादिना आरतिप्य विचारः aa नित्ये खायाभिघयसम्बन्प अरभिधानाना मयान्तरटत्तितेव नास्ति, कुतः सङ्करः ? दति श्रथा- स्छथेन्तरटत्तिता | HRA मधीन्तर्‌ मु पङ्कामन्ननित्यतां षन्ब- न्धस्य द्योतयति | नैव जदत्छाये मभिधान मभिधेयान्तरे awa | किन्तदि ? द्यभिधानस्य शक्रो; गौरो मुख्या aan गृणएसाम्यात्‌ ; यस्मात्‌ Heather गुणात्‌ सवे वर्तते, तस्याखयाविष एव सम्बन्धः, सवाय नित्यः समथैप्रकरणापपदपरतन्तः | qe विनियोगेन लोकवेदप्रसिद्या एवायं aaa तदेव मसद्करेऽपि wert सुख्यगो णाथवर्तिनां eet इवामेधसां प्रतिभाति ° 1 कस्य शब्दस्य गोणो शकिः? कख मुख्या? इति anfi-

* efafdar, sera, खअजरत्खाया अवयवार्थंनिरपेचल्रे सति सम- दायायने।धिकालं जरत्खाथालम्‌ | खअवयवायेसंवलशितसमद्‌याथवोचिकाल मज- इत्‌ खसाथात्वम्‌ | Cunt सम, wast मेवा-दइति पवेस्ोद्‌ाशरषम्‌ | राजपदष- इत्यादि परस्येति faaca wereld Ree: |

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६८६ निश्क्घम्‌। [उन्तरषट्‌ कम्‌ ,

वेका faz भुपाडून्ति चोदकरूपेण “a मन्येत दति शसः" fae:, “न aaa’ नानोयात्‌ सम्यगेतदभिदितम्‌ “wa मेवा- fa एयिवोष्थानः “ति” कसमात्‌ पुननं मन्येत ? दतः, यस्मात्‌ ““श्रपि एते उत्तरे ज्योतिषो” मध्यमश्च उन्तमच्च “sgt उच्यते” * | कथम्‌? इत्यत श्राह एतत्‌ तावत्‌ पार्थिवं च्योतिः, श्रावाहनक्रियायोगात्‌ “afy मोड दत्येतस्थां यथा भवतोकं तथेवोच्यते, “ततः मु," वय मपि यथा “मध्यमः” अरग्निश््देनेच्यते तत्कमयोगाख una: war स्स मुदादरिव्यामः,-॥ २८९६)।

aft daar समनेव याषाः कव्याणयश१ः सय॑मा- नासे iA घृतस्य धाराः स॒मिधा नसन्त ता जुषा- शा दयति जातवेदाः॥ afta समनस इव Brat: समनं समननादा सम्माननादा कल्याण्यः सयमानासा uf मित्योपमिकं एतस्य धारा उदकस्य धाराः

* wafer qay manna बायरिन्दरो बा awe इति raed! wer दि, “marae वायुरि्दरो वा ** * वेद्ुतेऽप्मिदिं मध्यमरुकाणा- च्लायतेः?- इति we सं* ९, eu, ९. ate ute | Quem fay वेष्पतेाश्रिरोव awa र्ति ern) तथा “ent ब्धोतिषोः samy: gay खतरव निषण्डो सध्यमस्नानटेवतानामतु (४, ४, ९९) “alg: —xia, उत्तमचख्यामदरेवतामु(६४,९,९) “aa एति ema. प्सधययेखाभेद्‌ः। तयाड्ि.=खप्मिग्खानरः प्राखा- बत्‌, TE यद्रेतसः प्रथम मरौष्यत, तद्खावादित्योऽभवत्‌*- रति रे° Hie ९, १, १० “asfaftfrany vere सः aig लोकय हार मण्टखात्‌, अभ्रिं ‘wie लाकस्यापिपतिः?- इति चरर त्रा ३, ४, खप्रोदरख्यावां fre मेव देवतानां eifreera चयते -.“efgelifn”’, "दन्डो wife”, ‘gar च्छोतिःः- दति te त्रा*९, ४, “खप्रिमयौः परः, जिपर पयस्या" दति Caixa: परा शटोप्यमाना wera अतिंहत्‌ (Ve त्रा २,६, ६) ~ रति gaara Fs |

श्र sate ome] देवतं MTA | ३८७

समिधा नसन्त नसतिराप्रोतिकम्मा वा Aafia वा। ता जुषाणो इयति जातवेदाः | Welfare परष्याकमी विषयेतीति *। समूद्रादुमिर्मधुमां उद्‌ारदित्यादित्य मुक्तं मन्यन्ते waa] उदेतीति ब्राह्मण मथापि ब्राह्मणं भवत्यभ्िः सवै देवता इति तस्योश्रा- wae निवचनाय (१७) |

““onfay परवन्त” दति aragaarda सप्तमेऽहमि दशरा- चस्य sisqwe विनियोगः श्रभिप्रवन्त' (“af nam”) श्राभिमुख्येन नमन्ति प्रभवन्ति "घृतस्य" “उदकस्य” "धाराः, | मनि seh? मध्यमम्‌ श्रमम्‌" कथम्‌? दति,- “समना इव योषाः (“समनसः”) खमानममसः। एकस्िम watt थाणां मर्नांसि वर्तन्ते, ताः समनसः ता चथा ‘were शूपयोवनादिगुणसन्यननाः, ‘arama’ सयमानाः tage: दषमु पजनयन्यो ade प्रति परिव्वजनाय श्रभिनमेयुः, तया मध्यमस्ान afi घुतस्मोद्क्स धाराः समिषः शन्निन्धयन्यः ‘ser’ Mga: ताञ्च ताञ्च पुनः शः “जातवेशः' मध्य मस्यानो वेययुताऽभिः, ‘saw’ परीयमाणः "इयति" पुनःपुमः मेति, श्रभिकामयते |

va मेतस्तिन्‌ मन्त्र युगपद दिधानात्‌, faa चताञ्जतिव्रन-

* “्ेघाकमे भियेति" क, छ, ज। ऋर परर, ८,६९.२ ahr भम्यतमे। देवता५- इति |

gcs निक्तम्‌ | [wucecaa,

स्योपमानेपमेयवेधम्या्च यु गपतसम्भवाखच GG धारणं वैथुतः; तच्रोपमानो पमेयसामन्नस्या सामथ्योत्‌ प्रसिद्धि मुपरुन्ध्य घतधारा- शब्द उदकधारावचनः सम्पद्यन्ते ; पठितं चेतदेव सामथ्यै मपच्योदक- नामसु “चुतम्‌'”, “मधु--दति* एवश्च योऽय मभ्निश्ब्दाऽच साम- श्यात्‌ मध्यमं fate, तसात्‌ “gE मन्येत, श्रय मेवाभ्निः एथिवोख्यानः"- दूति (aceye ९४०)

“समनं सममनादा, सम्माननादा"- दति पूर्वम्‌ श्रनितेः पर) प्राणनायेस्य, GAT AAA: (त° Ho) 1 खञ्चन्य- निवेचनम्‌

श्रय खलु anna मपि च्योतिर्भवत्यप्निख्तथो दाइरिव्यामः। -“शमद्रादुभिः-एति।, श्रादिल्यम्‌ उक्ष मन्यन्ते yaaa समानार्षविनियोगा नानादेवताभिवादस्लस्यां देवतातुक्रम्ा श्नौनकेनोक्षः, दृद पुनः सोरीति रलोदाइता areata, (खक सकलञ्च £) | शमुद्रात्‌' उदकखद्ृगतात्‌ अभिः area: सवेश

*# भा° ९९० LR खर (६०), (RR) I “खुमब दुमिमेष माद्‌ रदु मा समंत wae) EWE भाम्‌ ay यदसि जिका देवानां aay नाभिः॥- दति we Po eG yok

{ तथा चानुकरमणौ,--“समङ्गादुमिरोकाद्ाप्रेयं sami सौय ard wag बा तस्लतिवंति- दति | § अ-ग-पखकयोनेासयेव पाठः, Taegu दति मम्यते; यते डि wae हिताया खक््ेतत्‌ CATER NT (Ame ue १२८०) तज “Gute (१८९६०) TCA, WH मभ्यमदेवन मर रोद्धत मेवेति

श्र 9पा० BBP] देवतं काण्डम्‌ | RCE

प्रकाशेन, AYA उदकान्‌, ‘Garey’ उदतौतरत्‌, उत्तरयति वा; उदेति श्रन्यहनि प्रथम वास जन्माभिप्रेत्य पुमजातः सन्‌ ‘maa श्रम्डतभावम्‌ “ATA चनद्रमसा 'उप-सम्‌-श्रानर्‌ उपमव्याग्रेति | “सोऽघ्यान्नं तेन faad afafa afaae: पिबन्ति--दत्यक्रम्‌ ° कथ AA तेन उपषमानय्‌? दति “घुतस्य' उदकस्य दविषो वा ‘ur’ ‘ara’ नमनं ‘QW’ रस्य मविभ्चानं केन चिदपि aa ‘afer विद्यते exafe, तच ‘Sarai’ रशनां ‘fasr तदग्डतं नित्य माखादयनिति ; देवास्तेन fear तेषाम्‌ ‘sae’ श्रमरणलष्य "नाभिः" नहनं हेतुरित्य्ः॥ श्रय कुतः dasa मिति विण्षतेाऽवभियते; Safaata मन्तेऽ्भिशन्दाऽस्ति 1, यः सत्यप्यादित्यदेववेऽख्य मन्रस्ाम्मिव मादि- me प्रख्यापयेत्‌; घृतस्तो्य एता दति विभ्रायते ; तख्मादखमथे मिद मुदाहरणम्‌ ? श्रषमथम्‌ Tama? washer मेकर्षां (८... + ‘cc पि ~ t

श्ाखिना afe;-“ca qaa’-eaqa “sat प्रपोन मप्र-दति,। fafaafaa खक धोयते °; सा aufafayri श्रादिव्यञ्चाय मनेन

© पुरणात्‌ Wore Ue पा (ae |

मास्ूबखिन्‌ मन्ते, an afagrreat खचि wate 'अप्रिम्‌ः- एति पदम्‌, सतस्य खक्ख Viasat gaa मेवेत्वसाकम्‌ Gare ऋचि dam’ इति चन्द्रमसा संखविकलद्‌शगाद्‌ादित्यदे वल we fafa च।

$ यन वा de news जयोद्ध् (८०-- ९९) ऋचः इतस्ततो विभियश्नते | we “Ua wave! खन्तन्धयापां प्रपौन मग्र एति प्रथमा, “auarg faryat (we सं° ४, ute, ९)'०- एति wat cry यजुषि इमे खन भिन्युचि अप्रित्रवदात्‌, तत्ृक्तौ यतो थाया अप्येतस्या खप्रिदेवल्व gan भिति भावः

* a विखा fafafgaacaq यदु frat निविद्धिन्येवेदयंखत्तिविद्‌ां fafa. WH’ इत्या येम रेयकं RUTH | Te Are १, १, ९--६१।

Ree निक्तम्‌ | [उन्रवटकम्‌ ,

rected दरति स्फुट ada wae “atqua”’,—“aqzta- ais] उदेति" “दति च” *; पायवः समुद्रात्‌ उदेति, विराधात्‌ तश्च उदकेन ; तक्मादादि्योऽचाधिरभिप्रेत-इति भाष- ay सुदाषरणम | “श्रय aft age भवति, श्र्चिः खवा देव- ताः- इति श्रथ खलु श्रय मपरः VETS ATA ब्राह्मणं भव- fa,—“afg: खवा देवताः दति

“rg? ब्राहमणस्य “उनरा wa “यसे” बह्तराय “faaqaa’,— (९७)

, 3X fad sea ममि areca दिव्यः सुपण गरुत्मान्‌ रकं सद्धिप्रा बद्धा व॑दन््य॒भ्नं यम॑ मातुरि- श्वान मादः दम Aah महान्त ATTA! मेक मात्मानं बहधा मेधाविनो sens मिषं वरुण afi दिव्यं गरुत्मन्तं दिव्यो दिविजा गरुत्मान्‌ गरणवान्‌ गवात्मा महात्मेति वा यस्तु क्तं भजते यस्मे इवि रप्यतेऽय मेव सेाःप्रिन्निपात Raa oat श्चोतिषो शतेन नाम्रधेयेन भजेते (१८) I

इति सप्तमाध्यायस्य चतुथः पादः॥ ७.४.

# “शदो वा प्रातददेत्यपः सायं प्रविद्रतिः- दति Co ste vu, CI

+ “af: ott @aan, dra: खवा देवताः; यद्ग्रिषामौयं पश्य arewd INT रव देवताभ्यो यत्रमान खादनं निष्को ङोवे- दति Co wire ९९, ३। { “मानौ qa” wa

अचर एपा० yuo] देवतं काणम्‌ I ३९१

“am मित्रम्‌" - इति *। श्रखवामौगरैषा ti ‘oan, faa, वरुणम्‌ -दग्थेतेरभिधानेः “sia sie तत््वविदः “ae श्रपि योऽयं ‘faa (“दि विजः") fafa जनायते, “सुपर्णः सुप- तनः, ‘Tear’ “गरणवान्‌”, स्ततिभिः agi, carat वा गरिता श्रादित्यः; श्रयमपि ‘a’ varfaftares: f) किं awa “ca Safa’ “एकः “महान्तम्‌” “sraraa? श्ननन्यवेन पश्चन्तः विप्राः" “मेधाविनः” श्रत्मविदः ‘ase वदन्तिः-श्रप्मिम्‌, यमम्‌, मातरिश्वामम्‌ दति 3

एवमाेश्चाभिधाननैरेतस्यैव सा विष्टिः; एष जऊद्योव da देवाः टति विज्ञायते तस्माद्‌ aa यच मन्येताय मेवाभ्निरिति॥

श्रव प्रतिसमाधानम्‌ ।- सत्य मेतत्‌ सवं washer स्यन्ते; त॒ प्रधानतः; किन्ति ? गणतः Waa | यते त्रवौति,- “ay am भजते, wa विः निरूप्यते, श्रयम्‌ एव सः afm” | तु- शब्द्‌ पूर्वपचव्यावर्तकः, परमतद्धदासाथः चः EN भजते, प्रधानतः

Go, २,१९.९; ९, ९२, ८, ४९१ खग We Re, FI

“Se वमस्य इत्यादिकं forecast am मस्यवामोय मित्युच्यते | “am जद्ाख्यवानोयं Pad मन्येत किखिषात्‌”--एतिं ऋग्वि ९, ९९

यण are de १९, ४. “STU Ths गूदा? इत्य महोधरणरूतं are. मच्च ब्रहव्यम्‌।

§ “शम मादित्य मैशय्यषिधिह मिन्द्र माङः ०५५ अम्‌मेवादित्यमेकमेव वसतः uni विप्रा मेधाविने देवतातस्वगिदा wear वदनि ५१५ | खये ब्रद्यदोऽनन्य- Wa aig an भवति। ख्ये कचित्‌ afr सवा देवताः (रर Are ९९ a)? रग्यादिषतितेशय मेवाप्रिदक्तरो अपिष्ठोतिषो इति मलाग्ेरव wareaafa- एाद्कोऽ्यं war दति वद्कि, wae प्रथमो प्रि््द्‌ Via, म्नि मुरिभन््राखया- तकतकयनम्‌।?-- दूति खार are |

Freeney | [उन्तरषटकम्‌,

quate: ; wa efafieua, चोदनासामर्थ्ात्‌-“श्रा्ेय मष्टाकपालं निवपेत्‌” इति श्रय मेव साऽप्निःः पार्थिवः; vfs ष्टस्य विग्रेषताऽच लोके वेदे प्रसिद्धेः;ः-श्रप्नि मानय awe’ दति, एत मेव हि लोकः परतिपद्यते ; मध्यमं नाणन्तमम्‌ | म॒खप्रसिद्धिबाधो न्याय्यः, शास्तरचोदिता श्रपि खदिर-पलाश्रादयो 'लोकप्रसिद्धित एव प्रतौयन्ते# तस्माद भ्चि्ष्देन पार्थिवस्य व्यातिषो GS: सम्बन्धः ; गोण दतरयोर्मध्यमेात्तयोः। यथा श्रग्नि्नब्देन मध्य- Arana, तथा मध्यमेत्तमार््या faqganenat लोकपरसिद्या मु ख्यः सम्बन्धः | WAT Yena,—“ag aw भजते यसौ इवि- जिहते, श्रय मेव साऽप्निः” इति एतदेव चाच विचारे प्रयोजनम्‌, -श्राप्रेयेषु खक्ष विःसम्प्रदानेषु quay dimes दैत मेवो- पासोतेति

श्रथ पुनयाऽचं मध्यमोत्तमयो तिषोरप्चिपरवादः, कथम्‌? दति, “निपातम्‌ एव 'एते उत्तरे afd, एतेन नामघयेन भजेते” निपाते नाम श्रम्राधान्यम्‌, afer (९८)

दति faqmetir दादशाध्णायष्य (सप्तमाध्यायस्य) चतुय पादः The. ४,

* तथा द्येतरोयकम्‌ ;- "खादिरः यपं water खगेकामः? इत्यादि, “ep av क्वौ ताच्वादयकामः”--दति,““पुटिकामो बै समां समां चै fret wit इत्यादि, “qremt यपं कुर्वति तेजस्कामो ब्रह्मवचेसकामसेजो पै ब्रद्मवष॑सं बस्तों TRING प्रह्यवचंसौ मवति” इत्यादि ९, ९, १।

रथटभामाशिकपुर्तकेष ty een; लगाते षडपादाश्मक रव खामाध्यायः। WEE पादाज्वितखवेमृरपुरुकेषु सवेदक्तिपणकेव सप्तपारामक

@

श्वाय मध्याय दूति dar |

Og ate we] देवतं का र्हम्‌ | RER

पञ्चमः UTS: जातवेदाः कसमाज्लतानि वेद्‌ जातानि वेनं विद्न्जाते जाते विद्यत इति वा जातविन्ता वा जातधन जातवि- द्या वा जातप्रन्नानेा यत्तज्नातः पश्रनविन्दतेति तव्नात- वेदसे * जातवेदसर्व मिति ब्राह्मणं तस्मात्‌ Baa पशवेाऽभ्नि मभिसपन्तीति तस्यैषा भवति १८१९) |

“ज्ञातवेदा.ः--एति। वक्रव्यम्‌। पुनरेष माहाभाग्यात्‌ कर्मए्य- areata? श्रथ वा एयगमिधानस्तत्यन्तरसम्बन्धार्‌ देवतान्त- wi “जातवेदाः कस्मात्‌” ? fe “जातानि 3a”; हि तद्‌- स्ति भात मसिंह्लोके यदसो वेद wan इत्यथः “जातानि वा एनं विदुः” एव धातः, कार कान्यवं केवलम्‌ “जाते जाते विद्यत दति वा” विदेः सन्तायेस्याधिकरणे कारके ; तदस्ति जातं यजा- at नास्ति “जातविन्ना वा saya” जातशब्दः पूरवेपदम्‌, विन्नश्ब्द उत्तरपदम; आत मरह fan मिति जातवेदाः “नात- विद्यो वा sane” Same एव पूवेपदम्‌, विदेश्चीनाथदोत्तर- पदत्वम्‌; निषगेत vate जातं प्रज्ञान faa: (ब्राह्मणम्‌ श्रपि भवति, जनेविदेख जातवेदा इति,- “यत्तजातः पशून- विन्दत- दति” ‘aa श्रसो ‘aq’ तदा "जातः" जातमाज् एव निसर्गतः ‘ayer “श्रविन्दत' sana, “तञ्जातबेदसो जातवेदसम्‌ —tfa” विज्ञायते यतसेतदेवम्‌, “तस्मात्‌” श्रध्तवेऽपि area

© ^"पद्नविम्दत तञ्जातवेदसो- दूति क,ख.ग | Rue अर ९७० (९); ४९०२० (र)। 90

Reg निरक्तम्‌ | [sucecea |

aaa fafa मन्यमानाः “qua,” “सवान्‌ aaa’ प्रति, श्रपि Ta, “afta श्रमिसर्षन्ति” °

66 99 = (1; 9

तस्य ˆ जातवेद्षः साल्युदादरणम्‌ “qn” wa भवति- (९९)

(जातवेदसे सुनवाम साममरातीयते नि दहाति ql सनः पर्षदति द्मीणि विश्वा नावेव सिन्धु दुरितात्यभ्रिः॥ जातवेदस इति जातवेदस्यां वेवश्चात- वेदसमेऽच्ाय सुनवाम साम भिति प्रसवायाभिषवाय सोमं राजान मत मरातीयतो aaa मनिस्मो निद- चाति निखयेन दहति भस्मीकरोति सोमे दद दिव्यः, नः पदति ante विश्वानि दुगंमानि स्थानानि नावेव सिन्धु नावा सिन्धुं सिन्धुः नावा नदीं जलदा महाकुलां तारयति द्‌ रितात्यभ्रिरिति द्‌ रितानि तार- यति तस्यषा परा भवति॥२॥ 1) |

प्र नृनं जात्वे दस ag हिनत वाजिन इदं बहिंरासदे प्रहित जातवेदसं afer समजरु-

* ““लातवेदस्यं weft * * >| सेात्रवोख्छाता के प्रजा खनेमाविद्‌ मिति यदत्रवोव्छाता के प्रजा खनेनाविद्‌ भिति, amie मभवत्‌, तज्लासवेदषा जातवेद स्त्वम्‌?“- दति Lo WTO द, ३, Re I

शत्तिरुता we VaR नेद Brent तम्‌, नाप्यसौ दश्छते इड ङ-च परकयोः ; जयोदभे लध्याये quae (४ खर ) विद्यत रव gauged लनवास्य बष््यानश्च ब्रव भविष्यति परर तजायल्ि पाठभदः।

© Bo ५पा० ३.०] देवतं काणम्‌ Rey

वान मपि aaa स्यादश्च faa जातवेदस भितीदं ने बर्हिरा तीदत्विति तदेतदेक मेव \+जातवेदसं गायचं ad दशतयीषु विद्यते ay किश्चिदाप्रेयं तज्नातवेद्‌- सानां स्थाने युज्यते मन्येताय मेवाभ्रिरित्यप्येते उत्तरे fast जातवेदसीं+ उच्येत ततं तु मध्यमः, अभि प्रवन्त समनेव याषा इति तत्पुरस्ताद्याख्यात मथासावादित्य उद्‌ त्यज्ञातव्रेदस मिति aqufcer- द्यास्यास्याभा AE BA भजते यस्म हविन्निरु्यतेऽय मेव सेऽप्रिजातवेदा निपात मेवेते उत्तरे ज्यातिषी रतेन नामषेयेन भजेते (२०) | ° इति सप्तमाध्यायस्य पथ्चमः YTS ७.५. ^प्रननं ओतवेदसम्‌-इति | ग्येनस्याग्निपुतरस्याषम्‌ | गायत्री स्तोतारो युय Bees | (प हिनेात) “a fea” प्रयत स्ततिभिरेतं “जातवेदसम्‌, ‘aay “aati” शवे मेतत्‌ जगत्‌ “om वानम्‌" व्यापयन्तम्‌, "वाजिनम्‌ वेजनवन्तं चञ्चल मचिभिः, श्रथ वा “शरश्च faa” दति लप्तोपमम्‌, रूटेबलोयखात्‌ £, "वाजिनं

* “तदेलदेक faa” a, a; CMe मेव च, रूत्युभावेव हक्तिविदडो |

+ “"जाववेदसाःः क,ख, म।

fT we मं ८,८,४९.१ “जातवेदगद्केऽ्प्रिदवता-द्ति ay ere मा.

§ “नस्मादञ्ः समभवत्‌'”-रमत्‌प्रष्टति द्रहरयम्‌ Co Mle २,९.६९ Say हतोयेमा का खग कोक मायन्‌“ द्त्याहि “तस्मादेतद्‌ अवदाञ्यं भवति" दुत्यनां चाप्ययनं AVA | To Wo vi vz vi

Reg faama | (sucacaa,

वेभनवम्तं erreur waa किं मिति प्रहिएत ? दति इतः- mena इति हत्यायै Maat *--“दं नौ त्र्हिराषदें” “इदम्‌” श्रखात्‌कर्म, रंषोपलच्धिते afe कथं नामाखदमिमताैसिष्यर्थ alfagen सीदे दित्येव ad प्रदिणुतेति

carat gen दशयति प्रयोजनायम्‌,-“तरेतरेक मेव HAAS गायत्रं aay” 1-एत्यादि तदिति दशतयोबवस्यानुखतये पराव निशः, एतदिति प्र्यकेण yar भिल्येतया efavlecitafeufa, गायन मिति ढन्दो निद विवक्ितप्रयोजनाथैः, 2 मिति urge शङ्कया मिहः }, दशतयोषु ख्वांखपोति निद्धारणे सप्तमो, विद्यते रसति ततः किं यद्ेतदेवेकं mates गायनं ey दश्रतयोषु विद्यते ? ग्रणु,- बभिरेतगायनच्डन्दो य्रजं तषेद्यमन्तैरधिय्े प्रयोजन मस्ति, रेते बह्वः सन्ति सर्वाखपि द्रतवौव्वेतरेतरेकं ad मुका तच किं कन्तयम्‌ ? एति-“यत्तु किञ्चिदाप्रेयम्‌”' मन्वजातम्‌ गाने एव ale श्रजातबेदेलिङ्ग मपि, “aq” “जातवेदसानाम्‌"” मन्त्राणं “ara” fafa-“asqa” श्ास्तेण तेन किं स्धितं भवतिः

+ "हत्यां तवे-केन्‌-ङेन्य-ननः "दति पा० ३, ४, १४ |

+ “वि नेरशरपदादिलेपन्डनम्दसि°- दूति ae ९, ९, av. काण are |

प्रनूम भिति Gay ६०० र९अ० वचं anf) तज “saa जातपेदसम्‌*०- दति प्रथम, “ea प्रकातवेद्सो”- दूति हितौया, “er दवा जातवेदसो?“ इति तोया |

§ मायभं कचं खङ्गं नेक मेव जातवेद भिति निदे रबम्‌, “जातये रसे सुन- ara (we de १,०,० ९) तित ew RT; रुव मन्यणापि बोध्यम्‌

a ——— ` कं

र्य पार देख] देवतं Wwe | BES

afata लातवेदा xfi*, कमष्टयक्रात्‌ माशाभाग्यादा दृति, इतरथा हि प्रयोगवैक्यं स्यात्‌, Wasa मन्यस स्थाने प्रयज्यते I यथा चाय मनर्थान्तर मनचचिर्ानवेदा एतष्मार्‌ विधिलिङ्गात्‌, तथा ्श्वानरग्रशटतयोऽपौत्युपेच्म्‌।

मन्येत -दति grag विषार्‌ः; केवलम्‌ “च्भि प्रवन्त", -इत्यचाग्निपदविचारे waar fade wal, जातवेदः श्ब्दोऽस्य गृणपद मिति; दृद तु जातवेदः-शन्दविचारे पुमः “रभि प्रवन्त" --दत्यसिननेवोषात्ते मन्त्र गणपद मभिशब्टो जतवेदः-अ्द्‌- सत्येतावदुपेच्छम्‌॥

यया तु प्वेसिन्‌ “समुद्राद्‌ मिः?-दति श्रादिव्य्छाग्निवो- पपत्तावदारणम्‌, तथेद-“श्रय श्रमो श्रादित्य+- उदु aj जात- वेदसम्‌ (we ९, ४, ६, ९)- दति” जआतवेदस््ोपपत्तौ। तदेतत्‌ प्रतिपद्‌ मुदाहरणम्‌ “उपरिष्टार्‌ याख्याम्यामः”-“जात- वेदसं खयं सुदहन्तोति तु विणेषणविशेयषामानापिकरषैकवाक्य- प्रसिद्धा खनिगमसिद मस्मिन्‌ मन्त्रे जातवेदाः ख्य.” दूति तस्मात्‌ BEA यत्‌ “ख मन्येत श्रयम्‌ एव श्रद्निः जातवेदाः दूति¶

* Cay जातं जातजेद्सौति जात दतरा जातवेदा इतरः” एति Vege १,९,४। “खप्रिवा रष Tere’ zh te are ८,५,९।

Yar ८५ ४. १४० ; REE ge ade |

§ प्रात्‌ ३८१ go€¢ Wo

|| र्देवोपरिष्टादु १९२ we Care १४ we |

प्रण्डात्‌ १९५ ४० पण द्रवम्‌ |

REX franz | [उन्तरषट्‌कम्‌)

“यः तु दकं भजते, aw हविः निरुणते, श्रयम्‌ एव सः aff: जातवेदाः" ¶ति। “ag aa भजते, यमी इविरनिंरुष्यतेऽय मेव सऽग्निर्जातवेदाः"- दति पूववत्‌ प्रसिद्धिरेव fants: यद्यपि मन्तदशेन afafad याणा मपि च्योतिषां mate, तथापि पा्थिवोऽग्रिरितरयोः प्रसिद्या fated; जातषेदस्ं fe यथा प्रसिद्ध afaaat, तथा aga, नापि खयं इति “निपात मेते Gat ज्योतिषो", (“एतेन”) जातवेदा दत्यनेत “नाम. धेयेन भजेते" इति याख्यातम्‌ ° ₹े (ee) tt

दति खज्वथायां निरुक्रटन्तौ दादश्राध्यायद्य (बप्रमाष्यायस्य)

पञ्चमः पादः ७. ५.

षष्ठः पादः वेश्वानरः कस्मादिश्वान्नरान्रयति विश्च र्नं नरा नयन्तीति वापि वा विश्वानर रव स्यात्प्त्य॒तः! सवखि भूतानि तस्य वैँश्चानर स्तस्येषा भवंति (२९) ru —iia वक्षयम्‌}, qd मुपोदन्ति-श्व्ेश्वानरः aa?” “विश्वान्‌ aa” दतो लोकात्‌ श्रमं लोकं “aula”, हेठकन्ततेन सर्वासु प्रटत्तिषु श्रय मेव नरान्‌ नयति। चथा पश्चाभचि- विद्याया qaa—“afa वा सति afargal: sane फलवत्यो * पुरलात्‌ २९९ Te १५ ४० HEMT |

+ “Qeareyes”’ च्छ, a | { भा ४४९ २०५ ख० We (द); ate ze (RII

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2 9 eRe ९पा० Rae] दवतं काण्डम्‌ | REE

नराणां भवन्तोति हेतकनत लेन सर्वाश परडत्तिष्वय मेव नरान्‌ नयति प्रवनेयतौति वैश्वानरः * श्रय वा “fag एनं नराः गयन्ति cfa वा, कमैकारकम्‌ ; नोयमानः तासुतासु कियाखङ्गभावं नरैः कमं aga | “श्रपि वा” “विश्वानरः एव” कथित्‌ “स्यात्‌ | पुनः कस्मात्‌ ? “प्रत्यृतः सर्वाणि तानि” विश्वानि ह्यसौ तानि ‘ofa खतः प्रविष्ट tae: | “ae” विश्वानरस्य soa) “Ba” aa” amar “एषा” murgiaua “भवति”

nyecreedu

वैश्वानरस्य GAA स्थाम राजा fe कं सुवनाना। मभिशओ्रीः। इता जाते विश्च मिदं वि VO वेश्वानरेा dad छर्येण॥ इता जातः सवं मिद ममिविपश्यति वैश्वानरः संयतते BAU राजा यः सर्वेषां भूताना मभिश्रयणीयस्तस्य वयं वेश्वानरस्य कल्याण्यां मतो स्यामेति तत्को PATA: मध्यम इत्याचाया वर्षकर्मणा Gai स्तोति (22) I

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“amare सुमतो दति ft Vague | षषटयाभिञ्ज- वयोश्चुत॒थेपश्चमयोरङ्ोराग्रिमारुतस्य प्रतिपत्‌। ‘ea’ एथितो- लोकात्‌ श्रोषधिवनस्यतिभ्यः यः "जातः", "विश्वम्‌ cz fa चष्टे

# “arate प्रविशत्यतिचित्रे कणे zea —raife कठोपनिषदि ९४ ® | “NINA? QUE मेवेतत्‌ | J we Uo १,०, ९०६। भार ate ge (द)

४०० निशक्तम्‌ | [उ्रषटकम्‌,

“aa मिद मभिपश्यति"। agifazea उपकारकलेन, दश्चयति वा प्रका्रकव्वेन यञ्च (यतते) “खं aaa” ‘quay area aa भाषा। राजाः “यः (aaatal’) “gaat तानाम्‌ (sft? “श्रभिश्रवयणोयः) श्राश्रयणोयः। “ame वयम्‌” wagwame “Fare” नित्ये (gaat) “areret मतो" खपकारप्रदनत्ताया मात्मनो यथामिमतायसाधिकायाम्‌ ‘aa’ ।- CAAT श्राश्राखहे लेकेऽपि fe waa एव पूवम्‌, पञ्चात्‌ प्रार्थयत TANT: Way HAAS मेव ara raya पदानां कमं बिभेद ; wenet मतौ स्यामेत्याभिषा समापयाधके

अनेकतिडिः चेतसिन्‌ मन्ते प्रतितिङः वाक्यभरे wa यत्तदो- Tate “राजा यः स्वर्षां warn मभिश्रयणणीयः, ae वयं वैश्वानरस्य कल्याणां मतौ स्यामः--पृत्येकवाक्यतथा सामथ्यं मुद्धा- वयाश्चकार एकाऽचारथपतिरवैश्ानरः, यतः कष्याणौ waret मतिः, मेभिः शन्दैरभिष्टौ ति, सन्तिष्ठते स्हतिरिति। श्रय मेक- वाक्यतान्यायः प्राया मन्तेषु, कचित्‌ पुनः प्रत्याख्यात AY ATA एकक्मिन्नपि मन्ते वाक्यभेदो ` भवत्येव तद्यया,+-““्छर्वां & पोषम्‌ (We ae ०८,९,२४.६,) cea * प्रतिपादं वाक्च- wafa | श्रन्येषा मपि मन्लाणा माकाङ्कतार्थिनां परस्पर मेक- वाक्यता भवति, तदपि चोपप्रदर्भयिब्यति -“येनौ पावक aaa (Ho ° ९,४.८.९)--इत्यच Ty

* शभा" ९९ To Go Ro ए. इवम्‌ I

तथादि,-- “मन्ते वयं aa इति artiste Hace wae: वेन Sie” fa १९ We पार yee |

Oye धपा शेव] देवतं AAS | Bok

‘aq के वश्वानरः"--षति। sa प्रश्टति faa. तदिति वाक्योपादाने। केाऽयं Fat? इति कुतः संशयः? श्रागम- विप्रतिपत्तेः; विश्वानरविधार्यां तावत्‌ “श्रात्माः-दव्यात्मविदः; शराः दित्यवाख्वाकागचोादकण्यियादयश्च एथक्‌ एथगेव aq विन्ना- यन्ते। श्रपि "मध्यमः" वैश्वानरः इति tent: केचित्‌ “प्राचार्यः” मन्यन्ते कस्मात्‌ ? “वषेकर्मणा हनं सौति” मन्दूक हि शब्दो हेलयः, वषंक्मरीनं वैश्वानरं यस्मा्मन्दूक्‌ Blane (९९)

प्रू महित्वं cone वोचं य॑ पूरव डच इण सचन्ते। वैश्वानरो दस्युं म॒भिजेषन्वार अधूनोत्काष्ठा अव शम्ब॑रं भेत्‌॥ प्रत्रवीमि तन्महिच्॑* माहाभाग्यं sare वर्षितु रपां यं पुरवः पुरयितव्या मनुष्या दचदणं मेघः इनं सचन्ते सेवन्ते वषेकामा दस्यरदस्यतेः छयाथा- दु पदस्यन््यसमिन्वसा उपदासयति कमाणि मभि- वश्वानर घ्न्रवाधूनादपः काष्ठा Airey मेष मथासावादित्य इति ya यात्निकाः ti

कथम्‌ ? इति श्रत श्रा ;- “प्र मू महिवम्‌"' दति ts नेधस श्राषेम्‌ चिष्टुप्‌। वेश्वानरेाऽभ्िदेवता (प्र वाचम्‌")

* “aged”? ख, ग, च; परः ठत्तिविश्डः। माज खष्डसमातिः क-च-पखकयोः | | { सं ६, ४, ९४, ६। “wie चिमनोयमः*--रृत्यादिकं wage भाष्य AY RAAT | | 51

४०२ निख्क्म्‌। [उन्लरषटकम्‌

"प्र्रतौमि श्रम्‌ 'मदित्म्‌' “माहाभाग्यम्‌”, स्तुत्या we? ‘sue’ “वर्वितुरपाम्‌”। ‘aq’ श्रन्येऽपि पूरवः" “पूरथितव्ाः agen” कामैः, ‘esque’ “Bae”, “सचन्ते “सेवन्ते” "वर्षकामाः” स्तुतिभिः तन्म्ाहाभाग्णं प्रभवोमि;ः- यदसौ विता fray “af, ‘ze दाषयितार मुपश्चयितारं रसानाम्‌ ; wafer हि acaxa शस्यानि, कमणां वोपदाख्यितार मना- ठृषटिद्रारेण, तं द्यम्‌, wary’ “Haq” vena Yea, "जघन्वान्‌, इतवान्‌- (“श्रव मेत) “mar ferry” व्यदारयत्‌, विदायं “शरधूनोत्‌" वषभावेनाकम्पयत्‌ WHA "काष्टा, श्रपः। यः, WANE THM ward arena; वषंलस्माक मित्यभि- प्रायः

एव fafa मन्ते Gerace व्क्ेकिकवाक्यताखम्बन्धात्‌ mat मध्यमाद्‌ वेशवानर इत्थाचायां ae स्थितं तावदेवम्‌*॥

“gat शआदिव्यः,- इति पूवं थाञ्निकाः। श्रसाविति कर्मा man मपदिशन्‌ व्रवीति, मागर्‌ गौणः कथित्‌ प्रत्यय दति, विसिमन्त्राचंवादेभ्यो agai सुश्नौयैनं as प्रयोगतः प्रथमं ये चकः, ते भूवं याश्चिकाः साचात्कुतधर्माए दव्यथः एन मेव माङः “श्रौ wife: दतिः। कथा पुनर्पपल्या एव माडः? इति। विष्यसुकरणप्रसिद्या

+ wae रवाप्नि्वैश्वानरः। अयं प्रथमपचः मध्यमाप्रिख विष्ुदिति गे दद्काचा- Seam) weet तु मध्यमशब्देनेड वायेारिण्द्ख्य Wwe! we de ६, 8, ९६, ९. भा० Fe | + fanfaeed त॒ सोमांखापरिभाषादिषु Geq |

शयन दपा Bue] देवतं काणम्‌ | 9०३

रषांलोकानां * tea सवनानां राह waar रादहात्परत्यवरादहशिकी षितस्ता aaa शेाताग्रिमारते Wa वैश्चानरीयेण क्तेन प्रतिपद्यते साऽपि स्तोचिथं माद्वियेताग्रेया fe भवति तत ्रागष्डति मध्यश्याना देवता wa मरुतश्च ततेाऽमि भिहष्यान ada स्तोचियं शंसति 1॥

कथम्‌ ? इति। यतः ana माह ;- “एषां लोकानां Teg सवनानां रोह श्रान्नातः”। यण fe लोकाना माराहणानुक्रमः, एथतौ--श्रन्तरिक्तम्‌-द्यौः दति, सएव खवनाना मपि क्रमः, प्रातः- सवनम्‌-माष्यन्दिनिम्‌-दतोयसवनम्‌ इति ततः किम्‌ ? कसिं- faq safe रादप्रातिलेोम्येन “रेादात्‌ प्रत्यवराः” "चिद वितः” कन्तु मोष्ठितः, तदुपव्याच्हे एव हेता प्रातःसवनं एयिवो- लेाकभक्रि शंसति, daar ; तते माध्यन्दिनि मन्तरिचलाकभन्नि शसति daa; तततोयसवनं द्युलोकभक्ति शंसति, ंडत- req प्रतिभक्रिसंङ्तवख शसन्‌-स एथिवौलाकात्‌ अरन्तरिक्षलाक west भवति, भ्न्तरिलोकाद्‌ Yara; धुलाक मारेा- इन्‌ Geshe ठतोयखवनं wala, तदपि धंसम्‌ yarn मारूढो भवति सः श्रधिशटोमसान्नि यज्ञायज्चिय ¡ aq शस्तम्‌ श्राग्नि-

° “eat कोकानां" ख,च। नाचापि खखसमात्तिः ङू-य-परकयोः।

T “यक्तायन्वा बो wad (सार We Go wre १०४, ६)०१- इत्यस्या weg भेयगाने पठितं चतुथं साम (११० ewe २५सा०) awafye fared) चार्के WIRY तजनिथामकम्‌। खप्रिठटोमषंखारणे BWI, तदेव अद्निष्टोमषामेकि व्यपदिश्यते

8०8 निकम्‌ | [उन्तरबटकम्‌ ,

मारतं * तस्षवनलेकप्रत्यवरेषानुकृतिं विकौरघ॑च्छस्तं ““वेश्वान- Qau खक्तेन “प्रतिपद्यते” प्रारभते तद्यथा- “asa एुपाजने (छण सण २,९२.०) इति प्रतिपत्‌ “णोऽपि स्तोजियम्‌ ्राद्रियेत ; श्राग्रेयो हि भवति mate ana सख पुनराप्रेयोऽयं afer, श्रभ्रिश्च एथिवोश्छानः; त्चदि माद्भियेत, प्र्यवरोाहानुरतिप्रारम्भः छतः स्छाट्‌ wag शतेषु युक्तं UTE माररुक्षमाणः स्तो चियेण प्रतिपद्यते, दइ पुनरव- RETA द्युखानाधिदेवताः समानः क्रमेण धरश्चानरौयेण gia * प्रतिपद्यत दृति, तेन aaa ्रादित्थो dat दति

रपि सुतरां प्रत्यवरोाहातुकरण मेतदिति गम्यते, येन “aa श्रागच्डति मध्यमस्ाना देवताः- रद्र श्च मरुतश्च | (ततः वेश्वा- नेयात्‌ ant प्रत्यवरेादहानुकरणाभिप्रायेण wat प्रत्यवरा मध्यस्थाना देवता areata मध्यस्थानेऽभिश्र॑सितुम्‌ कतमाः? रुद्रश्च away ii aqu—“a ते पितर्मरुतां aa मंत (we wo २,४,९९. ao)” इति ४। तताऽपि मध्यश्यानात्‌ "थतो

* ्याप्रिमादतं माम ग्रिमदर्‌वताकम्‌, गखन्वप्रगौतखूचषं Faq!

+ WE BNE जमतोच्छन्दः, वेखागरोाऽप्निदवता, wire श्ाप्रिमादते ve विनिधेागः। खार ०१. २०. REBT | { wre a मरतां पिष्टत्वम्‌ “oe पिच मुखताम्‌ (weds ९,८,९, ६) LIT ASANTE खाष्ायिकामखेनावदत्‌ yaya: |

§ “ara पितमदतां * * * इति faa”’—xft ate ge ४. ८। नाद डानकः ।--""चतुरग्ते मपोष्येकां wee as) च्ातेष्क्तेन खोदे प्रत्य , वाग्यतः Whe पव माज्छाङ्तिङूल्'योपस्यायच हरम्‌ खवि्देवेख ata- कानार मतण्द्रितः। TINTS Hag Tay परिमनच्यते।**- इति ऋग्वि० Qe!

अखन cyto ५२०] देवतं काण्डम्‌ | acy

eri प्रत्यवरुद्ध waa तं wed शंसति,-“यन्नाय्॑चा वा ame (ae de ६, ४,५. we)” दति° तदेव मेतस्माद्‌ विध्यतुकरणात्‌ पश्याम श्रादित्यो वैश्वानर इति

अथापि वेश्वानरीया दादशकपाशा भवन्येतस्य fe दादश्विधं कमाथापि ब्राह्मणं भवत्यसौ वा श्रादित्योऽभिर्वेश्चानर इत्यथापि निवित्सौर्यवैश्वानरी भवत्या या ut भात्या एथिवो fade fe द्यावा- पृथिव्धावा भासयत्यथापि दान्दोमिकं wai सोयवेश्रा- at भवति दिवि षष्टो! अराच्तेत्येष fe दिवि षष्टो अराचतेत्यथापि विष्यान्तोयं wa सौर्यवेश्रानरं भवति uy 24

“maria वेश्वानरौयो इादश्चकपालेा भवति” देवतागण- सामान्येन हि श्रधियन्नेषु गुणविधयः sere, वैश्वानरोयश्च ay दादशकपालः "एतस्य fe” “arenfad” दादग्मासप्रविभाग- ल्त “कर्मः” | तेनेतस्मादपि देवतागृणकपालविध्यनुकरणात्‌ पश्याम sufzat वैश्वानर इति॥

* च्छाद्रिमाते यज्नायन्ना इत्ययं ख्ोजियप्रगाथः। ate ०५. ९०. उष्टव्यम्‌। t, t Cggy?? a i § माजापि खष्ठसमािः छ-च-पखकयोः।

ged निक्तम्‌ | [उत्तरषटकाम्‌ ,

“थापि fafaq staat भवति fafafeerafa- fafast ae, शस्तरमध्यपातो# 1 तथा भवति यथा wat ्रश्वानर इति faa मध्यम इति कथम्‌ ? इति भवति fe तच्ेतत्‌ पदम्‌,-्रायो ut भवव्याष्णिोम्‌" एति) नच पुमरादित्यादन्योऽवभाषयते श्यावराषएथिव्यौ ; यत उष्यते,-““एष fe द्यावाएयिद्यावाभासयति"”

* “निवित्‌? इति निषष्डो arenrag \्भा० ०४ ve (ee) ^ जितरं वेदयति न्रापयति मभिषेयम्‌ः”- इति देवराजः ute ८९ ४० (eR) “तान्‌ प्षया निविदा wae (we do ९,९,१९५,२)*- सत्यभ “ताम्‌” विच्ेरेवाम्‌, Gta’ पुवंकारौनय। नित्यया, निविदा बेदाकिकष्या वाचा निविदिति बाङ्माम। षडा "निविदा “fatten सोमस मत्धम्‌"*-इत्यादिकया Teta बं ‘way खाङ्यामः*-- इति, “a TTT निविदा (we Yo i, ०, ९, २)" -- त्यज ^ "खः अध्निः, “पवया प्रथमया “अधरिदंवेद-दृत्यादिकया “निविदा दति च, % "निविद्‌ ' प्रिडां खतिम्‌ (wede २,४.९८ ९; २०, ९.०- दति च, ‘fa बिद; Tan (we Gog, 0, ९४, ९) रत्यच ^“ ‘gain’ विरक्त मोः "निविदः, ere: सेतत्‌, णशशवाचः'?-- दति च, “गि भिरा भनन (axe Uy, ९९.१९) रत्यज ACMA TUATHA ACCS दद्र इत्यादो नौन्धखतिप्रतिपादकामि कानि चित्‌ पदानि निषिच्छम्दे श्यन्ते" xix च, “ङे चिश्चिषिदा मनूगा (see सं ° ४,६,१०.५.)*०-- इत्यन ^ केचित्‌, बदाः समानाः" अन्न्यादौन्‌ स्वको °निविद्‌ः धंसक्िः--इति सायषग्यश्छानानि। “ag वा आहावः अवं निवित्‌ * * * इादश्पदावा wot निविदु ( te wre २, ४, १६ )- इत्यादि, ‘aq विच्छा निविदधिन्यवेदय॑खूधिविष्ां गिविष्छम्‌ (to wre १, ९, ९) दति, "मभा वा रत उकथानां यच्चिविद्‌ः (Re arog, ९,१०)'- इत्यादि, “sar a eat देवता ufafire: तरा २,९, tt)” -एन्यादिकच पष्टयम्‌। ररव पनः ernie दितोखण्डे यक रिष्यत्यय मेव Sheree |

eq gate uae] देवतं WEA | 8०७

“suifa कान्दोभिकं am staat भवति? कतमत्‌ ? “fafa प्रष्टौ श्ररोचत-एति चख पुनरादिव्यादन्यो fafa vat trad ; यत उच्यते,-एष हि “र्वि vat wtrea” | “दिवि ver gare we: wafaa rar, शश्ररोचतः रोचते Das केऽसौ ? एति श्रभिर्वशचानरः', ‘eer महान्‌ TATU. | a राचमानः far atria? ‘afar’ खेन ‘area’ तमः' ara- यत Tae

“uta ₹रविष्यान्तोयं खक्रां deat भवति” कथम्‌? fal भवति हि तजर मन्तः- सख्य वेश्वानर इति wae) तद्यथा,- "विश्वस्मा afi भुव॑नाय zal वैश्वानरं कृतु मक aay (च्छ ° Wo ८, ४,९२, ९)- दति वैश्वानरं केतुं कर्तार ABT anefafa मेव तावदादित्यादन्यस्याङ्कां कन्तु मुपपद्यते पाथिवे मध्यमे वा ; श्रादित्य एव दयुदयास्तमयाभ्या महानि करोति तेन वय Ravafa: waa: war aa इति। ५॥

* “fafa ger खरोाचतागप्निवेखानरो Iw! खया eure योना चमाहितो entrar बाधेत तमः ॥"?- दति यग ate go एए, ९९। Weds ६,०,९, ९०. ९,०, २. चो HES |

ऋअगवेदद्ममण्डले सप्तमे visa भित्येकोगवि शत्यं we ana रत शठस्य दष्राजस्य पञ्चमेऽइनि wines शे निविडानं भवति। are we छ, FTAA |

t खया वंख्चानरमणकोपध्रिश्च समदितो देवता | तथाचागक्रान्तम्‌, * * * saree fafa’ दति सार

₹पिष्याकौये तख्िन्‌ ae tree कचः पूर्वाऽख रषः।

|| wifes रव Sarre दूति पवयाच्चिकसममतः। अयं दितोयपचः “तदे. WMATA सप्यनपपत्रमः"- इत्या सायः | we Fo ९, ४, २४, ९. भार Fe |

९०८ निखक्तम्‌ | [उत्तरषटकम्‌,

अय मेवाभिर्वेश्वानर इति शकपुणिविश्वानरा वेते* sar ज्योतिषो aarti यत्ताभ्यां जायते कथन्त्वय मेताभ्यां जायत इति यच saa: शरण मभमिशन्ति यावदनुपात्ता भवति मध्यमधर्मेव तावद्भव- त्युदकेन्धनः शरीरापशमन उपादीयमान VATS सम्य- UA उदकेापशमनः WTSI & ?॥

“श्रयम्‌ एव wig: वैश्वानरः, दति शाकपूणिः" | मध्यमोन दर्यः; किं तदि? wa मेव पार्थिवः ्रभ्निः|। केन Sagar? तद्धि तोत्पन्तिसामथ्यात्‌ कथम्‌ ? इति “विश्वानरावेते उत्तरे ञ्योतिषौ”” तदुकम्‌,- ““श्रपि वा विश्वानर एव कथित्‌ श्यात्‌, तस्यापत्यं aqme” इति तदिद मुपपद्यते,--“वश्वानरः श्रयम्‌ यत्‌ ताभ्यां नायते” | तस्मात्‌ तद्धितेन व्यपदेगेन पार्थिवोऽभरि- वश्वानर ofa i

` # Cfegrrafaaaa”? कूच |

+ “quay”? क, ख,

} “वावद्नृपाप्नो" कषम

§ गाजापि खष्डषमाभिः रू-च-परकयोः |

|| “नरे सम श्नायाम्‌? इति (पार Ge ९, ९, tee) fou विच्वानरः। मध्यमः (विद्युत्‌) इति आाचाय्येसम्मतः, खयेदति याश्विकसष्धतः | TET पाथिवोऽ्निः वेञानर इति ्ाकपृणिवेदति इतौयपचोऽयम्‌।

T पाथिवस््ाप्रेरेव Tara Te षड हेतवो AWE | तनाय HTT: |

A. eye Cais oye!) दवतं RITA | ४०९

“mara Ranat जायते" यत उच्यते-- “यतर daa. wy:, "शरणम्‌ श्रमिरन्ति”। श्राश्रयं मात्ममो दारू, उदकम्‌, श्रन्यडा श्रभिद्न्ति' निदन्ति, श्रभिगच्छति प्रान्नोतौत्य्थेः fa तत्र तत्‌ aad, पुनः “यावदनुपात्तो भवतिः” महुखेरस्यष्टो भवत्य- परिग्टदोता वा किं तावत्‌? “मध्यमधर्मैव तावत्‌ भवति” | कः पुनमध्यमस्य ध्मः ? यदसौ “उदकेन्धनः witty” उदके- aad sat रषस्वभागकेन शरीरेण काषनान्येन वाप्रतिदत- मृलिंखभावकेन पारथिधातुबहलेनोपश्राम्यति, मध्यमस्य धर्मः तदेतत्‌ खानजात्यादिकतं ania vega ब्योतिषो न॒ भवति प्रथमस्य धमः पुनः “उपादोयमानः एव “श्रयम्‌” पाथिवोऽग्निः “सम्पद्यते कथम्‌ ? उपान्नो हि मनुः खजातिधमं feat पाथिवधमे प्रतिपद्यते कथम्‌ ? दति “उदकोपश्मनः शरोरदो भिः" विपयसधर्मां मध्यमेन सम्द्यते। एवन्तावन्मध्यमा- दय विश्वानरात्‌ जायते, तेनायं तदपत्य fafa भवति हि तद्धि- तायापपत््या वैश्वानरः*

चअरथादिव्यादृदौचिप्रथमसमादत्त श्रादित्ये कंसं वा मणिं वा परिष्टज्य feat यच शुष्कगेामय Ades यन्‌! ध।रयति तत्प्दीष्यते साऽय मेव सम्यद्यते तथा- प्याह! वश्वानर waa दर्ये रेति पृनरात्म-

ij “वेद्यतोऽप्मिरि मध्यमस्कागाव्लायते खद्निपतमामन्र मय मेव पानि. वोऽप्रिः सन्पदयते-ट्ति सायथः। we yo १, ४,०५.९. भा० He | “adaw” ख, { “aura” 5, ; एतिपृसखकयेाख। 52

a निषक्तम्‌ | [डन्तरबटकम्‌,

नात्मा # संयततेऽन्धेनेवान्धः संयतत इत इम मादधा- AAA रश्मयः प्रादुभ॑वन्तीतेऽस्या्चिंषस्तये- भासेः Tay SEA मवक्षत्‌ ty ७1

श्रथ पुनरादित्यात्‌ कथं जायते ? श्राह ;-“श्रथादिव्याद्रौषि- प्रथमसमारत्त श्रादित्धे-दृत्येवमादि “श्रयः wee: भ्रानन्त ; प्ररतादर्थादर्यान्तर मधिकरेाति 1 उदौचीं दिं प्रति प्रथम- waren: श्रादित्यः, तिन्‌ “उदौचिप्रथमसमाटन्ते' उदगयनादौ wae: कथम्‌ ? दति “ad वा मणिं वा ofa” मादित्य मणि मित्याचच्ते “शरतिखरे”” परह्युपतापे “यच ग्टुष्कगोमयम्‌ श्रसंस्पश्यन्‌ धारयति, तत्‌ nua”, “सोऽय सेव सम्पद्यते” य; बररष्कगोमयेऽप्िजायते। एव मादित्यादपि sera aval जायते, श्रसावपि वैश्वानर wad, तपत्या पेक्चयाणख्छ Pera सुप- पद्यते | श्रयाप्या, तद्धितविद्यष्यपदे्ात्‌ ताव रेव मुपपद्यते-श्रन्य आदित्यात्‌ तावदशख्वानरः॥

“maria” श्रय art व्यपद्‌ एकवाक्ये विभक्तयन्तरङ्तः द्ुवै- Pures गमयति ll तथ्चथा-“्शवान॒रो daa बुरे”

* “caren” ©, |

‘Atmq” क, ©,

{ arate खच्छसमािरं ने ऊू-च-पुशकयोः | | § ““शादित्यसकाश्ाद्पि चघमकाले खयकानकादिमदिष्यपरेश्त्पनिः प्रिद - इति we ge ९, 8 eu, ९. सार भार Ke |

|| पाथिवश््राप्र रेव Farrar षड्‌ हेतवो awa, awe दितौषः।

© | धपा °] zad कार्डम्‌। ४९९

efa® मन्लदूगाद प्रयमान्तस्य वैश्वानरभ्ब्दस्य ठतो यान्तेन खयं wea विभक्रिभेदार्‌ विशेषणविण्व्यभावेन सामानाधिकरण्यं मास्ति | एतदेवासामानापिकरण्य ate wad वेश्वागर-सयेश्न्दयो- रैवो ति+-“न पुनरात्मनात्या खयतते | किं afe ? ““न्येनै- वान्यः" “संयतते” सङ्गच्छते ; यथा देवदत्तो यञ्चरसेन। तत्‌ कथ मयं संयतते छर्येण ? इति यत wie.—“ea दम मादधाति" | दतो - लाकादोषपोभ्यः शरादिभ्यो वनस्य तिभ्यो वा मयिवा प्रद्य- उत एव ta मादधाति शअ्रभ्यादधातौन्धनैः | “श्रसुतः' मणष्डलात कर्मात् नः “aga” श्रादिव्यमण्डलाधिष्टातुः aan “रश्मय.” “प्रादुभेवन्ति” “हतः” तेजःपिष्डाद्‌ “aa”? तदधिषटातुः Cafe.” प्रादुभवन्तोति वर्तते| “तयोः भासाः dey pea मवक्तत्‌” मन्दूक “वैश्वानरा यतते यत-दति।

अथ यान्येतान्योत्तमिकानि ! aaa भागानि वा atfaatfa वा (सोय्याणि ar 2) पोष्णानि वा वैष्णवानि वा (वैश्वदेवानि वा॥ तेषु वैश्वानरीयाः

# mo dey, wu ae चेश्ानरोयनिविडानम्‌, तज या प्रथमा, तस्या्तुचै- पादोऽयम। “निविडामं निविदा देव सोच afd भवति दत्यादिरेन्त्रार ६, ९, ९१

+ “वेख्धानराऽध्रिः# * * प्रातदष्यता खय anti संयतते सङ्गच्छते। wom वा qifea भभ्रिरन समाराखतौति तत्तिरोयकम। यद्वा पाथिवद्ययाप्रः asntaxzefa, सथेकिरकाखाषीमण्तं sexi, तथोः erat इड! वख्चानगरा यतते wefan ते ।-- इति waa Gre भार |

t “यान्येतान्यौज्मकानिः क, ख,

९, || “न र्मे क-क-ग-एसख्लकेष, नापि वचिपु्कयोः।

४९२ निक्तम्‌ | [उन्तरघटकम्‌)

प्रवादा अभविष्यन्नादित्यकमणा चेन मसतोष्यननितयु- देषोत्यस्त मेषति विपयेषोत्याम्नेयेघेव fe war वेश्रानरीयाः प्रवादा भवन्त्यग्रिकमंणा चेनं स्तौतीति दहसीति वहसीति पचसीति * यथे रुतदषकमंणा श्नं स्तौतीत्य॒स्मिन्नप्येतद्‌ पपद्यते ty

“sqr—efa श्रधिकारान्तरे। यदि gar agar ऽभविष्यत्‌, तते ननु “वान्येतानि"' “श्रौ त्तमिकानि aatfa” उन्तम- स्थामदेवताविशेषस्ठत्यर्थानि | तद्यथा - “भागानि वा सावि्राशि वा पौष्णानि| वा वैष्णवानि¶ ar?) गुणपदत्व मभ्पेत्य वैश्वानर-

wee ब्रवोति “aa” दक्षु “agra: प्रवादाः” भगा- atat fatquaa “शरभ विष्यन्‌” ; हे भग वश्वानर! हे सवितः

= * 66 99 शवा नर ! इत्येवमादयः** ^आ्आदित्यकर्मणा एन मस्लोव्यन्‌”"11

# ^“बदसौति पचरगैति दरसौति” रवं पाठक्रमो ऊ-च-परुकयोः, शनै arty ख्ष्डसमा्निः रू-च-पस्तकयोः। { we do १, २४.४०, WF, ९; ८, Ul, २-९. UW WT भमदेवताकाः। § we Poe, एए; ४, ४९; ५४; ८१; ९, ०९; 0, ४४ ; te, Cee. एति GH GMs, ९, ९२९,५- ८; ९, २४,९२- ४९, २४, ९-९९;२,१,९०- १९; ०, RE, ९- ; १०, ६२९, १- ए. इतिखहादग्र श्चवखचस्वितुः। || we do ९, ४९२ ; ९९८; ९,५० ; ४८. दूति aa Swift, ९, ee, ९९ -४१४; BER, OME ९, ४८, ९९६९-९; ५९२- ४९; ९०, १०, २-९; ८, ४, १५ ९८} ९, ४०,९२- ९. इति षड विं त्यच्च पण्यः | JT we dot, ९५४४ ।९४९;०, too, xfa wife क्तानि, ९, er, १०-९९; १५५, ४-९; ©, €€,U— V5 ८; UV, UPR, UG. इति UAE ATE Ta ayy: | ** पाथिवस्प्ामेर्बेश्चामरलेऽयं कतौयरेतुः | tt जादिन्यकमे परख्वादुक्कम्‌ ०, ९, ४. २९० ४०

श्च्य° ९पा० स्ख] देवतं काण्डम्‌ | ९९३

एवं वेश्वानरौयेषु खक्रषु वैश्वानर मस्तोच्यन्‌ wage! कथम्‌ ? इति। "“उदेषोत्यस्त सेषौति favadifa”’ दतिकरण एवं- wey; एव gala लं ्रेश्ानर !—ua मस्त मेषि- एवं विप- येषि इति*। पुनरेतदुभय मप्स्ि;-न हि वैश्वानरीयाः प्रवादा श्रौत्तमिक्रेषु करेषु सन्ति, नाप्यादिल्यकर्मणा त्रश्वानरं स्तुवन्ति मन्त्रदृशः | तसरान्नेष gar वैश्वानर्‌ दति |

faara मपरो विगेषहेतुरम्निवश्वानर दति-““श्राप्नेयेष्येव fe gag वैश्वानरीयाः प्रवादाः भवन्ति" अरप्निविशेषणएलेन ।-“वैश्वा- नर aa श्रा जात म्भम्‌ (we Ge ४, ५, ९, १)'"-दत्येव- मादयः1

“श्रप्चिकमणा च" “qa? वैश्वानरं प्रायेण “स्तौतीति” सोति पचमोति, दरमोति”” एवं वैश्वानर ! वसि शवींषि, पचसि पक्रव्यानि, दहसि दग्धव्यानि१

तस्मादभ्रिरेव वश्वानर इति सितम्‌

तदेते षर्‌ हेतवः ;- तद्धितेन विग्रहव्यपदे शात्‌(\), एकवाक्य विभक्यन्तरव्यपदेशात्‌ (९), श्रौत्तभिकेषु करेषु श्रप्वादात्‌ (र) आरादिल्यकमणा श्रसंसतवात्‌ (५), stag amg प्रवादात्‌ ५), afy- कमणा मंस्तवात्‌ (९ इतिश

* पाथिवस्याप्र वैञख्ानरवेःयं रेतुखतुथः।

पाथिवस्यागनेैश्चानरवेऽयचख Sy पञ्चमः |

{ खप्रिकमे चोक्तं परसात्‌ ४४४० ०, २, खर |

$ पाथिवश्याप्रष्वेश्चानरवेऽ्यं Sq: षष्ठः |

|| शव कतोयपस्ोऽय मेव सिडानाः।

T(t) wotge १९ प०। (९) ४९० ए० rode! (२) ure ee uy deo} (४) ४९९ इ० Bey (४) ४१९ Te १० (९) ४१९ Te VE de,

४९४ निरक्तम्‌ | [उत्तरषटकम्‌ ,

तत्युनरेतद्ररद्ानरलं fea aufan मिव परपचरेत- निरारृतेषु ; wa: तन्निराकरणाय प्रस्तौति “यथो एतत्‌” दति! यत्‌ पुनरेतदुक्तं वष॑कमेणा war स्तौति, तस्मान्रष्यम इति* “श्रस्िन्नपि पायिवेऽप्नौ “waaay? aged ८॥

समान मेतदुदक Waa चाहभिः। भूमिः पजंन्धा जिन्वन्ति दिवश्जि्बन्त्यग्रयः॥ इति सा निगद्‌ व्याख्याता ॥€ (२३)। इति सप्तमाध्यायस्य षष्ठः पादः ७.६.

कथम्‌ ? इत्यत च्राह-“खमान मेतत्‌" इति "समानम्‌" एक मेवेदम्‌ उदकम्‌" उदकेन विशिष्टम्‌, “shee wel” | उत्‌ एति च, Sg चेति, श्रहाभिनिमिन्तभपः पुनख्ाहा भिरेव waste; दिणेत्तरायणयोयाटत्तिभिः प्रतिसंवद्षर महान्यभिप्रेतानि तद- तदेकमेगादकं पर्यायेणोत्तरायणदक्विणायनयोः लगद्ाजासिद्ये तदु- दति चावेति वषकर्मभावेन | कथम्‌ ? इत्यत आरद अवाङ्‌ ताव- देति; शढमिं' "पजन्याः' प्राजंयितारा रसानां माध्यमिका देवगणा वषा मसुते Gat Wie ‘raf’ तपयन्ति श्रो षध्यत्पन्तये एवं तावदवाङ्केति। श्रथ WIRE कथ मेति? इत्यत श्रा ;--““दि4 जिन्न्द्रय॑ः""। यथेवामुतो वघ॑रेमा पर्जन्या जिन्वन्ति, ad- बाड़ तिप्रभवेन वेण दिवं जिन्वन्यप्रयः; श्राङतयो eat प्रचिक्नाः

* ge पा खर ७९९ Te ६४ deo, ४०१४० ede | we संर २,२, RRM! रषा णु पुरखादप्येकबोद्‌ष्ता wt a तद्या तष AMET BAT! Te ९,४, = ९२९ ०९ प॑र

०अ^ egte Wwe] देवतं काखम्‌ | ७२१

तेन aren afer, शत्लोदकभाव मापाद्य परमं aa देषा- पभो गयोग्यं यां प्रति वषंभावषेनेन्नोयन्ते तल्लोकनिवासिनां ena, ततस्तद grad प्रकश्पयन्ति age --“श्रमुष्य लेाकस् का गतिरिति, श्रयं लाक इति हवाच'*-दूति।

एवश्च सुतरा मय मपि वर्षवान्‌; श्राडतिमष्नवात्‌ we वषस्य समयते q—“sar प्रास्ताङतिः सम्यगादित्य मुपतिष्ठत" tfa* away वर्षकमभावन्ध्यम दृति, तदेतदवेणेषिकं मध्यमस्य FATA WIV

श्रपि चाय मपरे मन्त्रः, यज्िन्न्निरादित्यो वषषकमणण wae | ARI सुतरा मनेकान्ता वषेकमे भिष्टवेा मध्यमस्येत्यत श्राइ - “sal नियानम्‌” इति (ea)

दति निरश्क्रटत्तौ इाद शाध्यायस्य ( सप्तमाध्यायस्य ) षष्ठः पादः ७.६.

सत्तमः पादः aay नियानं इरयः Guat अपा वसाना दिव मुत्पतन्ति। श्रा वटचनेसद्‌ नाह तस्यादिद्‌ एतेन थिवी व्युद्यते ae निरयणं रािरादित्यस्य इरयः

{ Bre wre द्र Gwe | * we de pge of Bie | afanwe रव मन्ते दएयिष्यत्याचायः।

etd fauna | [उन्तरषट कम्‌,

सुपण VTA ्रादित्यरश्मयस्ते यदामुतेऽवाश्वः पया- aia सदस्थानाद्‌दकस्यादित्यादथ तेनाद्‌केन थिवी aaa एत भिन्य॒द्कनाम जिघर्तेः सिष्वति- कम्मैणोऽथापि area भवत्यभ्िव इते दष्टं समीरयति धामच्छ्िवि भूत्वा adfa* मरतः खष्टां ale नयन्ति यद्‌ासावादित्योऽ्रिं रश्मिभिः! पयावर्तते ऽथ वर्षतीति यथो रतद्रोशात्मत्यवयाहशिकी षिन इत्याख्नायवचना- देतद्ववति यथो रतत्‌-॥ tt

. “aay नियानम्‌”, - इरि ६। दीर्धतमस TGA | Fey टृ्िकामस्य कारो्यां मग्रये धामच्छदे ्रष्टाकपालम्‌, AW पुरा- ऽलुवाक्या ; aut मेज्रायणोयके अरभ्निरय मा दित्यौहत्य स्तयते इति प्रकरणणादध्यवसोयते। ‘ama’ किं पुनस्तत्‌ ष्णम्‌ ? (“नियानंः) “निरयणं” निगेतिः ; निगेच्छग्येतदिति "नियानं" aay, पन्थाः ae पुनरेतद्‌ “रात्रिः श्रादित्य्य'” ; दे wart xa चोत्तरम्‌, aa दक्िणम्‌ ; a हि दैवो राचिरभिपरेता ततो ब्रवोति राचिरादित्यस्य ज्योतिषः एष भगवानादित्यो यदा भगदनुयदाय गभे Yea मान्मन्याभिधुरत्तरायणं प्रतिपद्यते, ava

* '“"धामच्दिव we वे भृत्या वषेति” छ,

¢ “यदा श्ल वा खसावादिन्यो ae रफिभिः” ङ, च।

{ नान waaay: रु-च-पखकयोः।

$ we doe, ६, २, ९५। ववकमेष्टां fee पिण्डा Tan) तच हव्यं foam fafa इतोयद्यामुवाक्षा ate Ze ९, eI

= ~~ ll ————— ——— eee a eee Oe

eqs पा० खर] देवतं काण्डम्‌ | ere

हरयः रसष-“हरणाः”, “सुपर्णा qe “cme” सर्व॑स्मादस्मा- लोकात्‌ “wat वसानाः, श्रात्मन्याच्छादयन्तः श्राददानाः “दिवं द्योतनवन्तम्‌ एत मादित्यं प्रति “उत्पतन्ति, agenq निधित्घ- मानाः तस्िन्‌ aaa a एष ate उत्तरायणं माषैः षड्भिः ्रआहितादकगभेः सम्पद्यते एकः ° परिपिक्रोद कग्भ। दक्षिणं ary प्रतिपद्यमान नभस्छात्‌ मासात्‌ प्रति yaad तदिद सुष्यते i— तश्रा व॑टत्रगसदंना दुतस्य” afar ते vata: “यदा” “aga” अरमुभ्राद्‌ श्रादिल्यात्‌ ‘wae उदकस्य ‘aan’ सदखानात्‌ श्रा aaa यदा ““पर्यावत्तंन्ते", (“श्रात्‌”) “श्रथ तदा afa- समनन्तर मेव "घृतेन" “उदकेन” थिवी" ‘qaqa’ विविध qua t “घृतम्‌ दति उदकनाम।” !इयिवौ gaa इति सामथयीत्‌ | तत्‌ पुनः “जिघत्तंः fagfaaaqt एव मेत्िन मन्ते मन्ररूपादादित्यः, vacua, उभय- थाण्यन्यो मध्यमात्‌ वषकम॑णः RAT श्रयापि argeq”’ vafaa प्रकरणे यस्मिन्नयं मन्दा fafa- युज्यते ; “श्रभ्निवा car इष्टं सषमौरयति- दत्येवमादि॥ श्रमः cat लोकाद्‌ दृष्टि समन्तत रैरयति wart श्राप श्रोषधि-

* “g र्वः" च-पाठः| fT र्भा १यअ० wpw@o ९९ १०१ Yo (to) | “a चरणदौष्योः" धा० ate १४। $ CHU अग्र वषडेतुत्वादु वषकमत्व मणगयारतम्‌, ane ववेकमेशापि Bat वख्ानरोऽप्रिरेवेति उद्‌ाहुतमन््रल्ि ज्ञभ्यत एव | || षाण are one “स rare किं Asi भविष्यतौति- रत्यादि १--१९° खर 0 ^~

४२९८ निरक्तम्‌। [डत्तरषटकम्‌ः

वनस्पतिभ्यो विनिवत्यमानाः ्राङतिग्ताखासुं लेक माविश्रन्ति। ररव yar आयते, Wer, wag ृष्टिरिति विन्चायते ताः पुनरञ्भिख्ानाभिरन्पन्तिपरनाडिकया घामच्छदारित्यो शला wat afar रभ्िभिर्भघरूपमेष्यमश्थान मापादयति एवं तेन wet ठष्टि मध्यस्यानाग्छरतेा वायवे मेघोदराणि facre Fat विकिपन्ता दृष्टि fad लाकं नयन्ति प्रापयन्तोत्य्थैः*

wary मपि ब्राह्मण भवति-“यद्‌ासावादिव्योऽथिं wafer” दव्येवमादि।† | तदेव मेतद्‌ वर्ध॑कमं समानं सवषाम्‌! शत्यदेतु- wane Paar भवति

Saat एतत्‌” थत्‌ पुनरेतदूक्रं याज्निकपकङे-““रोहात्‌ प्रत्यव- रषददिकोषिंतः दतिः| ) श्रकारण मेतत्‌ ate Barna | कसमात्‌ ? “staat एतत्‌” एवं “भवतिः, रेहात्‌ प्रत्य बरोह दत्यर्थवादमाच मेव

“यथो yaa” यदपि चोक्रम्‌--॥

वेश्वानरीया दादशकपाला मवतीत्यनिर्वचनं कपालानि भवन््यस्ति हि सोयं रककपालः प्बकपा-

= शत्य We ्धगरेवेषकमलेत्रादक मपि मानं प्रदभितस्‌।

wae fe mre खादित्यस्यापि wate स्फटम्‌ |

{ सथा खये ष* अश्रिवाष्वादित्यानां ated ‘garg? रकङ्प मेवेति |

§ रवश्च FWA TWAT वभकमेा एत इति खक्ष Ty (१९९६० gue), खुष्ठित TANTS चायमतम्‌ |

| षर (पार ewe ००२०० ११. |

SGo OMe RB] देवस WUT | are

लश्च यथा रतद्‌ ब्राह्मणं भवतीति बहुभक्तिवादीनि हि ब्राह्मणानि भवन्ति प्रथिवी वैश्वानरः संवत्सरा वेश्वानरे ब्राह्मणे वश्वानर इति यथो रतन्निवित्सोर्य- वेश्चानरो भवतीत्यस्यव सा भवति ये विडभो मानु- षीभ्यो दीदैदित्येष fe fast मानुषीभ्यो दीष्यते^ यथा रतच्छान्दामिकं BR सोयवेश्रानरं भवतोत्य- स्यैव तद्भवति जमदग्रिभिराहत। इति जमदग्नयः प्रजमिताम्रथा वा प्रज्वलितामप्रया वा तैरभिदते भवति यथा ण्तडविष्यान्तीयं wa सायवेश्वानर भवतीत्यस्यैव तद्‌ भवति २८२४)

“agar snare wafa’s—efay एतरण्कारणं wae वेश्वानरले कस्मान्‌ ? व्यभिचारात्‌ ; sfireaafeaa ae ;- “रसि fe ata एककपालः पञ्चुकपालश्च'”। यदि fe देवतागृणाभिप्राय मभविव्यत्‌ दादशविध भस कमे, तस्माद्‌ दादशकपाल दति नन्वेवं सति सौयाऽपि दादश्कपाल एवाभविय्धत्‌; sfauraard भिद्यते कर्मेति, भवति सौरयौ इादश्रकपाल दूति तभ्मारष्ेतुः कपालानि

a “wcufa”’ का, yw,

“जमद्मिभिराङतयः" क।

{ "कैराते" क,ख, ग।

§ Yo ¶पा० Uwe ४०५९० ude |

४२१ निरुक्तम्‌ | (उन्तरषटक म्‌;

` “यथो एतत्‌" agama—“arge ( सौ यै्शवानरप्रवादः) भवतौति" एतदप्यकारणम्‌ | कस्मात्‌ ? “awafmaratfa fe agufa भवन्ति” eae बह्भक्तिवादोनि ब्राह्मणानि भवन्ति भक्तिर्नाम गृणकन्यना ; येन केन चिद्‌ गणेन ब्राह्मणं ai सर्वथा त्रमीति, त्च तत्व ade मेव भवति तद्यथा “feat, वैश्वानरः” इत्येवमादि fa मपि ब्राह्मरेन aw षेश्वा- नरणश््देनाच्यते भक्तया।

` “यथो एतत्‌" “निवित्‌ सौर्केश्वानरौ भवतति “श्रव” ai: “सा भवति कथम्‌ ? एति ARTE पदं भवति 2 “at विड्भ्यो मानुषोभ्यो दोददिति ततः किम्‌ ? “एष fe विड्भ्यो मातुषौभ्यो रोप्यते” ““श्र्रवश्ानरः dee aaa विश्वेषां देवानां समित्‌ and दैव्यं ज्योतिः। यो विड्भ्यो मानु- art दौदत्‌ PZ पूर्वासु दिद्युतानः। wat उवा aaa | st at at भात्या एयिवौम्‌। ata मन्तरिक्तम्‌ | ज्योतिषा यज्ञाय शरम यंसत्‌ श्ररवश्वानर दृह अवदि समस्य waa मरमां रवा देवह्ति मवतु Zan धिया प्रेदं बह्म मेदं qaal प्रेमं सुन्वन्तं

, # पुग Cate awe ४०४४० ude रत तज हतो चयाष््ात मेवाखि। + “स रुष वेश्वानरा fewer प्राणोऽप्रिददयवे"”- इत्यादि प्रभनेपनिषदि Ke | { पर Care uwe ४०५० ९१० | § “wat पदं भवति" ख| || “ater वा रता देवता यत्रिविदखदु यत्‌ परलादुकथानां प्रातः सवने पौय- नो मध्ये मध्यन्दिनेऽनतसख्यृतौयसखवने * * * तसात्‌ पच्छो निविदः अस्यन्ते * * * aura भि विदः पद मतोयान्न निविद्‌; पदे विपरिरेदु *°* © निविदः पडे समध्येदु * * >* भरद्‌ wa प्रेदं चज मित्येत शव समस्मेत्‌ * +" >+ | दूतिरेण्त्रा ९, १, १६

p> @ Swe ऽपा० २०] दवत काग्डम्‌। ४२९

यजमान मवतु विचश्चिच्राभिरूतिभिः श्रवद्‌ ब्रह्मण्वसा- aaa? —eara निवित्‌ श्राश्चिमारते शस्ते “निवित्‌ पुरारूचः प्रेषा fanfare vam: ।--एूति खवा विश्वामिचस्याषंम्‌) “शभ्नि- वैश्वानरः सोमस मत्सत्‌” द्यतु aay “प्रमां देवो देवहति मवत्‌ श्र प्रकषण ‘gale’ fq: वैश्वानरे "देवः" "देवहृतिं" देवाभा ARIA ABA Hag’ Tag यः शविशरेषां देवार्नाः ‘afaq’ समिन्धनः, हदं करोातु। यश्च “Ne नित्यं च्छोतिः'। यश्च ‘aga’ मानुषोभ्यः “दोर्‌” देदोप्यते यश्च शुष पूवासुः gdaeq ‘fagary’ Daa एवासौत्‌ यश्चासौ aT’ जरा वियुक्तः “saat ana श्रग्निहातरादिषु द्योतते यः" श्रा (भातिः) भाख्यति ‘at? सयत्मना, “त्रा भासयति एथितौम्‌' श्रन्धात्ममा, “ar भासयति ‘sq “श्रन्तरिकेः मध्यमात्मना | एवं विभिञ्यातिभिः यश्च ज्योतिषाः ‘ame शशमेः सुखं (‘daz’) यच्छति, ददाति। सः श्रग्निःः वैश्वानरः शः श्ववत्‌" श्ररणोतु Sas Bats ‘ee’ कमणि “Baw ‘aga aug | किञ्च; ‘arafaat देवो देवहतिः ‘gar faa’ Zaratar awn धोः प्रज्ञा, तया ‘wag’ Tag "रदं ब्रह्म, Fe र्चम्‌" ब्रह्म प्रावविदम्‌ Sa सुन्वन्तम्‌” श्रभिषुठन्तं “यजमानं प्रावतु' | “विचः चायनोयः पूज्यो वेश्वानर्‌ः, 'विचाभिः ऊतिभिः शोभनाभिः गतिभिः प्रौतिभिवा (श्रवत्‌) sata इमानि श्रद्माणि' अस्माकं नित्यं श्रस्मान्‌ प्रति श्रागमतः प्रत्यागच्छतु “श्रवसा पालना- भिप्रायेण मनसा कर्मसु | WHAM

BRR निक्तम्‌ | [उन्तरषटेकम्‌,

“यथाएतत्‌'” यत्‌ पुनरेनदुक्रम्‌-“कान्दोमिकम्‌ इन्दोम- ang दाशराचिकु * यत्‌ “aR”, तत्‌ “सो्यवे श्रामरम्‌- एति तदपि “meta” ae: “भवति” कथम्‌? दूति aw fe “एतद्‌” fafad पाणिवाग्नेवाचकं fag “भवति “जमदगप्निभिराङतः- दरति" ; जमद्‌ प्रयो श्येनम्‌ श्राङतिभिजहृति ; नारित्यम्‌, श्रभिधा- नात्‌ श्रसम्भवाख | तसादजापि यदश्रानरलिङ्गं तदप्येतख्य पार्चि- वस्या मव्य कं भवति “दषा पावक Siete’ ‘eer वर्षिता, डे वेशवानर ! “पावक y ‘gay दौत्निमत्‌, यस्तं नमदग्निभिराङतः, “्रभिहतः, त्व awa कर्मसु faa ‘Affe दौप्यख। एत्येतदाशसाहे “जमदग्नयः” fal “प्रजमिताग्रयः” प्रद्धता्नवः। “प्रख्वलिताद्मयोा वा” {॥

“यथो एतत्‌” वदणुक्म्‌- “हविष्यान्तौयं करं सौरयवश्वानरं भवति इति १५, ^“तद्‌"श्रपि “maa? “भवति कथम्‌ ? दति ara BMG या प्रयमा खक, सा यथा BRA भवति; mata, तथा निरा६।- (इद aid ems ahs मित्युप- प्रदश्नाथम्‌) (eg) it

* मायजादिभिन्डन्दोभिमी यको दति च्छन्दोमाख्बदादरयः eter, Tf aa यज्नाग्डन्दोमयन्नाः सामवेदोयताण्डात्राद्धणविदिता बबामयनादिकाः,वे डि wage. साध्या अपि चतुराभिश्विकेः बढश्टोखाराभि्भिंष्यद्यक दति दादराचिका अदाच्यनो, वैभ्वित्यथेः |

पुर {पार wwe ४०५४० aie |

र्भा १४य्द५० wae ६८० (६) “जभ्‌ |

§ ve १पा० Uwe ४०६१० pee |

[| इत vucfayy wa

७० अपा० Awe ] देवतं काणम्‌ | ere

इविष्यान्त ant afife feframiya अष्टं AAT | तस्य भर्मणे सुवनाय Sar waa A सखधया- पप्रथन्त इविर्येत्यानीय ant aufafe fefa- स्यृष्यभिहतं* Fe AH तस्य भरणाय भावनाय धारणाय Ver स्वेभ्यः amy इम 1 af” मने नापप्रथन्तेत्यथाण्याहइ 1 § (२५)

““हविष्याम्तम्‌”- शति २। छक्र मेतत्‌ मूडग्वत श्राङ्किरसस्याषेम्‌, वामदेवस्य वा BSA aT पञ्चमेऽहन्याग्निमारतख्च प्रति- पत्‌ “विः कतमत्‌? “यत्‌!” एतत्‌ “पान्तम्‌” GATE पानयोग्धं dart पुराडाशादिभिदेग्धस्यरभाव afi क्रियते श्रज- रम्‌" जरा विपरिणामः, यतः परं विपरिणमे नासि कञ्चित्‌, amfaaa मापादित afaar यदेतत्‌ ‘alate’ सखः आदित्यः, ad वेत्ति यथासो वेदितव्य इति ; तदथै वा वेत्ति विः, सख खर्वि- दय मिः; र्यः भाव्यकाराःपि वयपदेभेन निरार-““खयेविदि”” दति “दिविशपश्चि' a मसौ स्ुशत्यदन्यहमि हविरूपनयन्नादित्यम्‌ | श्राङतम्‌' “श्रभिडत'' fazer ‘gen’ fred देवानाम्‌ ‘ae’ efaat ‘wag’ “भरणाय” सम्भरणाय बडलोकरणाय; च्रपि नाम श्रय मभ्निरित्येतद्‌ as guifeda मयम्‌ “भावनाय च” far-

# “fefaqmist” क, ख, } “mut देवा इम” ङ,

{ “मनच्रेनापप्रथन | अयापयुडः' ऊ, $ we de ८, ४, ६९, t-— h9, 9 8, ९।

9२8 fauna | [उन्तरषट्श्म्‌,

वियुन्लुपजाये तेत्येव ad मपि एतत्‌ कथं नाम देवताद्निषमथ कुर्यादिति ‘une “धारणाय” अ्रविच्छेदनाय कथं नामैतत्‌ देवताभ्यो नित्थं प्रापयेदिति। “एतेभ्यः” “कर्मभ्यः” श्रथाय “दमम्‌ एव “afi” एयिगोख्ानं साधयते “खधया' “waa” इविषा, श्राज्येन सुरोडाेन यदुक्तं निगमे gi चापां पुरुषं चौषधौना fafa तदेतत्‌ “श्रपप्रयन्त' देवाः श्रवडुंय नेत्य,

एव मेतस्िन्‌ खक प्रथमे मन्ते यदेतदभ्भिलिङ्ग age ३श्वानर- wea, तदश्र॑सय मभ्रिवाचि | तत्पुनरेतल्ृकरं ^इविष्यान्तोयम्‌' प्रागे- aaa करोति, प्राथम्यात्‌ ; प्रथमं लेके यो हि श्रुयते, खेनाभि- नेनाव्यभिषारिणोपक्रम्यते say, तता्येभाक्ैः wae, त्वं राजा a fax इत्येवमादिभिः। तथैवं war afaa ga at वश्वानरशन्दः Gut ata: एथिवीस्थानस्य व्यद्जनमानं भवति। तथा चाय मेव प्यिरौम्थानाऽि्वैश्वानरः; we

ada मपरं aa खपक्तादिभावयिषया शअ्रन्यक्मात्‌ gata भिन्नव्योतिलंच्षण arta मध्यमोल्तमयोञ्य तिषोरन्यलव्यपदे श्वत ्श्वानरस्य नि णिनिषन्‌ प्रकरोति “श्रयापयाः-इति (२५)

अपा aa महिषा श्रषटभणत fal राजान मुप तस्युकग्मियम्‌ चचा दूते Ain मभरद्िवस्वता वशरा- नर मातरिश्वा परावतः अपा मुपष्य उपस्थाने

* रवश्च “ear सादित्यः"-दत्य।दि (४०१४० र्पं०-४००६०) बिन यान्नि कमत ANTS |

शय्य onto Bye] देवतं काखम्‌ 8२

मश्त्यन्तरिष्लाक श्रासीना महान्त दति aaa माध्यमिका* देवगणा विश इव राजानं सुपतश्युक्- faa wan मिति वाचेनीय मिति वा-(पुजनीय fafa वा 1 )-हरदयं दूते देवानां विवखत आरादित्या- दिवखान्विवासनवान्‌ प्रेरितवतः परागतादास्या्रवे- AAT मातरिश्रान ATEUIT माह मातरिश्रा वायमातयन्तरि छे श्वसिति मातयीश्चनितीति वाथेन मेताभ्यां सवाणि खानान्यभ्यापादं स्ताति॥ (२६)

“gat gre -इतिः। भरदाजस्याषम्‌ प्रातरलु्राकश्रिगयोः शस्यते ‘aa’ “उपग्धेः “sq” aston तिष्टन्धापः साऽपा que, श्रन्तरिषलाकः2, तक्िन्नपासुपश्ये “महति” faaia earn महिषाः “माध्यमिका देवगणाः?। quar ‘afear’ तएव “महान्तः” किं agar? Hae “शरदम्‌” | ग्टहोत्वा (‘fan’) “fan द्व aget va राजानम्‌” परिवाय ‘eure: “wim ग्धिः सतिभिः तदन्तम्‌, “ithe” MEATS वा कतमम्‌? इति “यम्‌” “श्रा अ्रभरत्‌' “श्राहरत्‌" ‘ga’ देवानां “मातरिश्वा “वायुः, ‘af? वैश्वानरम्‌, कुतः?

* Anuar? w, ख, ग। |

विद्यत ery क-क-म॑-पणखकेष्‌ |

J we de ४,६, १०, ४। |

§ अतंरवाङ मनुः-- “मध्ये are forwerst wae लाखतम्‌'?- ति (१, ९९) Fawr “समब्र मपां खानम्‌''- र्ति Serr मासका

नारमम्‌; “सरितः सामरान्‌"०-- दूति (९४०) सम TTT MNT दतरादिति 84

ध्रद्‌ निक्तम्‌ | (swcwena,

“परावतः, (“प्रेरितवतः”) wate ईरितवतः, प्ररिततरात्‌ ; “परा- गादा” दूरतराद्‌ “विवखतः' श्रादित्यात्‌, विवाषनक्रियया तमर्षा तदतस्तं veel अन्तरिते लोके होला चोपतस्युः faw xa राजान मातरिश्वा वायुः fe “मातरि wafte” श्रपति- बध्यमामञ्क्तिः “सिति” गच्छति. श्रय वा “मातरि” “arg- fafa” गच्छति

एव मेतस्मिम्‌ मन्ते यत श्राद्धियते, येन साद्यते, यथ्ाह्ियते, सवं ते van व्यपदिष्टाः wa faaea श्राह्धियते मातरिश्नना Dare vfs) तस्मादेसयोविवखन्मातरिश्ननोः afaqurTage षति erage वैश्वानरअम्दन पार्थिव om दति aafasa पार्थिवो वैश्वानर इति

. श्रय पुमयदङ्गरत्य खर्यादिषम्बस्ि fasiafay हविष्यान्तौ- we diag सुक्षम्‌-“ विश्वस्मा शर्नं भुवनाय देवा वश्वानर कतु मा मङ्ृणखन*--टति, मान्यः यादं WA, तसात्‌ याऽ वश्वानर दति°। wa ब्रमः-पायिव एवाभ्निः खन प्रथमाया सवि प्ररुत्योत्तराखुघु एतसिन्‌ छक प्रहटतिश्क्ा qa, मत staat माहाभाग्यात्‌। श्रपि तहिं षत्वान्यश्वपरशतौनि प्ररति- मभि; wea ',—fa ay पुनदंवताः; ताखा मपि विण्वतोऽप्निः;

= प्रदतं परल्ताचेतत्‌ उविष्यान्तोर्यं am भिति वाच्चिकपचचसमवेगाव ye पार wwe ४०४१० cove

+ तथा हि ow परण्ठात्‌ ;-““खपि रेवता रेवतावत्‌ सयने'*-- इत्येवमादि १००० ude | wf नवमारके-“ खथ यानि sfaqranaifa खानि

सतिं कमक," इत्यादि `

eq जपा wae] देवतं काखम्‌ | ४२७ ` `

यस्य सवदेवतात्माभिवादः साक्तार्‌ ““श्रभ्निः सर्वा देवताः ए* `ता ° RVR)", eng faa वरुण म्चिम्‌ (Go-Go ९,६४,२२,९.) --दति* तदेतदेतसिन्रेव GR Beat मुपदिश्ते। war पाथिव एवाय afy: तेन तेन रेवता वि्रेषेण देवतात्मना ततस्थान मापन्न सयत इति तदथ मिद are

“saa Ranatt सवि स्थामान्वभ्यापादं सौति" vanat यं एते व्यमा, varie स्थानानि एथियन्तरिकतयुलसणानि श्रभ्या- पाद्य MAI हत्यभ्यापादं स्तौति मन््रदुक-॥ (RQ) |

मङ्गा wat भवति नक्त मभ्चिस्ततः aay जायते प्रातङ्यन्‌। माया मू तु य॒त्नियाना मेता मपो यन्नु शिश्वरति प्रजानन्‌ मृङ्खा qn मिन्धीयते मृदा यः सवषां भूतानां भवति नक्रं afama: स्या जायते UA रव प्रन्नां त्वेतां मन्यन्ते यन्नि- यानान्देवानां यन्नसम्यादिना मपा ana चरति प्रजानन्त्सवाणि स्थानान्यनुसश्चरते त्वरमाणस्तस्यो- न्तरा भयसे निवेचनाय (२9)

“agi भवे भवति--इति १। “gg”, मूत्त मसिन्‌” घव + |

© Gee, 8, ४-४ WEAN | Y=qo Vee ge |

इत खन्नरयेः खष्डयेः aegqarena निति याबत्‌ |

T “खानाम्बन्‌सच्चरति"” क, ङ, |

§ we do a ut, ६। दयन तस्ित्रेष रषिष्या नोवे (४०६९०१००) बहो |

8८ franz! [उन्तरवटकषम्‌ }

arya सुपनिवङ्कं “alae”; यथा fe भिरा fata azar- sag भावि मरणम्‌, एव afafaatisoan वियन्ते शतानि द्यतः* प्रधानम्‌ “श्रध्निः, “Agr ‘ya’ लोकस भवति। विधे TIS “नक्रम्‌ राजौ तक्छतलादालाकख, तानां चान्नपकखत्‌- शतलात्‌। तत्‌ किं मय मन्योऽपभ्निरन्यः खयं दति ? इत्यच्यते ;- “Am Gul जायते प्रातर्द्यन्‌” राषावद्नितेन लाकस्योपकारं ला ततः" अनन्तर सेव प्रभातायां wat माद्िकेरुपकारैह्पकरियन्‌ लोकस्य “खयः भला "जायते" ‘qaqa’ “a va” wa मगप्निः। तथ्य द्यं ‘ara’ एनां जानाति? arat “aat” 'वज्ञिवानाँ “देवानाम्‌, यज्नसम्पादिनाम्‌” तत्चविदो मन्यन्ते। तत्‌ किम्‌ ? दति “way यत्‌” “aa” खाधिकारग्रयु्षम्‌, ्रात्माधिकारप्यु- कम्‌, आदित्यात्मा अन्ात्मना कन्यम्‌ श्रजानन्‌' प्रकठंण जानन्‌ “सवाणि श्छानानि sae”, ‘afer “लरमाणः"” कर्मकाल मप्रडिहापव्रन्निल्ममिप्रायः॥

“mean wee निवचमाय' यया चेतरेवं ada ane WH WAR मेत मेवा वक्कि। किं पुर्वया Avi यदनया waar faq? tf ara ममिषम्पलः पूवेया इहतः,-मूद्धा Yat मव्धश्चिनेक्ं ततः छवोत्मना प्ातरसावुदेति ; श्रथ पुगरत्तरया खान्य मभिस्न्ञः स्फुटतरं खयते,-दृयेतद्‌ wee ॥५८९७)॥

eq सध्रिषियेनेऽ्वण्डश्भागो विनाम इत्यतः" we

ख्भरयेत्यस्य Cla swt प्रद श्च मानयेत्यथेः ; ae fad “मदा utr”

इत्यवे बाखडितपरा, चपि तु यनरिवेति जेषम्‌; बरनस्पकरिताप्रा मष्यष्यचरन- STU LTT |

रय. Ome ईलम] देवतं काणम्‌ | ere

स्तोमेन fe दिवि देवास afa मजींजनच्छक्तिभी रोादसिप्रां। तम्‌ WaT चधा भवे कंस UAT पचति विश्वरूपाः सतोमेन fe य* दिवि देवा अरभ्नि मजनयञ्छक्तिभिः कमभमिद्यावाएधिष्योःः पुरणं मकुवस््रधाभावाय पृथिव्या मन्तरिक्षे दिवीति शाकपुणियदस्य दिवि ठृतीयं तदसावादित्य इति fe ब्राह्मणं तदभ्रीहत्य स्तौत्यथेन मेतयादित्यीकछत्य सोति (२८)

“स्तोमम्‌ fe दइति¶ ater स्ततिभिः, अक्तिमिः “matin” श्रग्निहावादिभिः।. ‘fafa gare) एतम्‌ “afte? आदित्यात्मना। ‘treat? “शावाण्थियोः"” (भरा) “पुरणं” ( "देवासः, ) “देवाः” “श्रजोजनत्‌" श्रजनयत्‌ यजमानाः; ते हि efaat दातारः शत्‌ agai “एष नेरियार्‌ यद्येता मग्ना वाङतिं a जडयादिति sisfafatad ननयन्तिः--दति। ‘aq see’ त॒ मेवा््निं waa: | “aur भुवे कम्‌” भित्थनयेको निपातः। “चधा- भावाय", ““एयियाम्‌, भ्रन्तरिकते, दिवि” ‘a’ एव मवखितो

* Cana fe” ङ, a! “डिवि ard”? ङ्‌, च। { “मजनयन्‌ कमेभिद्धावार्यथिष्ोःः' क, ख, ग। एचि रपर" ङ, || “इति niga” क,ख, 7! J We de ८,४,११,६ इयं ख्ल तसिन्नेव दविष्याकोये GA EMT |

oe re ~न 7 ` कम ——

४९१० ` निख्क्म्‌। [उत्तरुवदकम्‌

जगद्याजासिद्धये सववसः ‘staat: पचतिः (‘fae’) सर्वरूपा एति

प्रहस्यैव WATT: पुनयण rarer?) eet ह्यखिन्‌ खक श्रात्म विश्वेङक्यान्निकाना fafa |

ब्राह्मण मपि चेत Aare ब्रवोश्यय मेवाभनिरादित्यो भवतोति, “age दिवि दरतौयं तदसावादित्य दति ब्राह्मणम्‌” 1 श्रस्ध'--इति व्यवरेश्ात्‌ wii: प्राधान्यं ata) उभाभ्यां पाभ्यां व्याटरव्य MIVA मुक्ता देवतासतत्व मालम्बप निर्च्यते। एक मेवेदं श्योतिः, ज्यो तिष्ट विेषात्‌ तत्पुनरेतव्नगद्याचासिद्धये निधा विभक्षंएयिया मन्तरिक्ते दिवि विभक्राभिधानं सभ्यद्यते; शअग्निविद्युदादित्य xfer

avd सति च्योतिषो दिवि aaa मादित्याख्य afar an garag “हविष्यान्तम्‌"--हृ्येवमाथासु «wailed . ATA स्तौति ; “war मेतया पुनरादित्यौश्त्य स्तो ति”-॥ (ec) 0

यदेदंन मद धुयन्नियासेा दिवि at श्यं मादि तेयम्‌। यदा चरिष्णु मिथुना वभूता मादित््राप-

न=

` "सयु मेवाप्मिवेश्लानर इति wrecfe: (Cate १८०) इत्यतः we: | वरातोऽब “"चेधाभावायः--इत्यस्यव ग्याष्छानांशे णाकपलकिमवेपादान मभोष्टंन सुवं जति माकपुददञ्ञखः | ‹“खप्परिवेश्ानरः प्राश्धावथत्‌ * * * अथ यत्‌ ante सदोरेदिव खादित्या व्यभवम्‌”*-- रति te त्रा ९, २, Vo! { “दामन्‌ fe TANG दख दति Qa |

2 ---च्च = `

oye OTe Sue] देवतं काकछम्‌ I Bar

ष्यन्भवनानि fraty यदन* मदधुर्य॑त्तियाः सर्वे दिवि देवाः aa (मादितेय †) मदितेः ot यदा चरिष्णु मिथुनो प्रादुरमूतां सवदा सहचारिणावुषा- श्ादित्यश्च भिथुनो कस्माम्मिनेातिः waft! चु इति नामकर णश्यकारो वा नयतिः परा? वनिवा समाञखितावन्योन्यं नयते वनुत वा मनुष्यमिथुना- वप्येतस्मादेव मेथन्तावन्योन्धं वनुत इति वाथेन मेत- AMAT स्तौति (Ve)

“agin maya fae” —efall ““यदेनम्‌” ‘quay “श्रादितेयम्‌' “afed: aan” ‘fafa ney’ दुलेके खापितवन्तः, Zar’ "यज्जियासः, यज्चसम्पारिनः; यजमानाः यान्ञेन कमेणा सर्वस्यास्यापूर्वरतलाष्णगदिरचनाप्रपञ्चस्य | WHAT वा देवाः सौय यदैन मुन्नौतवन्तः। "यदा" चेतौ "चरिष्णु" “सवेदा सहचरणभोखौ'” “fom” “प्रादुः” श्र्ताम्‌' “उषाचचादित्यश्च” | “्रात्‌” श्रय तदा श्रापश्ठत्‌' प्रकर्वैणापश्चत्‌ भुवनाभि" शतानि, विश्वा" विश्वानि सवाखि॥

“मिथुनौ कसमात्‌?” “मिनोतिः” mags “श्रयतिकमा

© “gaa”? क, क-नामहत्तो | egy क. क-नामह्नोच। {† दशत CAT क-ख-ग-पुखकेष्‌ | { “*मिनेति चयतिकमेा क, ख, |

$ “नयतिपरा” क, ख| || we de, ४, ६९, ६। रषा Wires तखित्रेव GN रकादगो।

eRe faweny | (sacwewa,

fayawe पूर्वपदं “भि'- इति “y—efa मामकरणः" प्रतययः; "यकारो वा” नामकरणे विकल्पेन “यतिः परः” छन्तरपदे ; “वनिवौ"” विकल्पेन चदा तावत्‌ शयु" इति नामकरण नयतिख परः, तदा धातः पूर्वलात्‌ प्रत्यय परत्वात्‌ मि-न-यु"- दति प्रप्ते Reema मध्यान्तविपर्ययेण faye अरय युम्चदा WHIT नामकरणः, तदा वनिरत्तरः, तदा THT सम्प्रसारणम्‌, सम्प्रसारणपरपूवत्वं मध्यान्तविपर्ययः। यकारे चयः खरः, TG लोपः, धकार उकार सुपखद्धुमेत | एवं मिचुनाविति विष्यति श्रथ arse ? “aaa”? “sates” प्रति श्रात्मानं "नयतः", are वा समाजितौ भवतः परष्यरं sant “मनुष्य fart अपि waa एव”। श्रथ वा मेयतेमेरुग्यमिथनौ स्याताम्‌; तौ fe wary “Hat” ईव परस्परेण कालं नयतः॥

“श्रथः पुनः “एतम्‌” श्रादित्यम्‌ “एतया” उत्तरया एतस्िल्ेव at Beas “सोति”; Bast श्रेः wat gaa | तस्पमादिद मगरिवेश्वानरौयं amy (ee)

यचा वदेते WAT! पर यन्नन्येः कतरा at fa वैद भ्रा शंकरित्संधमाद' सखायो नष्ठन्त ae इदं वि बौषत्‌ यचच विवदेते ean हातारावयश्वाभि- रसो मध्यमः कतरो ने AT Bar बेदेत्याशक्लवन्ति

* विष्य।कौयसप्रदश्ा; Ce बननरपटठितयेति। TEN Tay ““गडइनश्च इविषाम्‌” इत्यादि ९४४९० (ye |

eee = - न्न Sie Sel

A. eRe ogle स्वर] वतं MIWA | BRR

तत्सहमदनं समानख्याना कत्विजस्तेषां यज्नं TAA वानानां का इद्‌ विवश्यतोति तस्योत्तरा भूयसे निर्वचनाय (३०)

"यत्रा वदेते दति) ‘aw afar कर्मणि “वि वदेते aqua यत्र॒ क्रियापदेन सामथ्यं तचानयनम्‌ कौ पुनस्तौ विवदेते ? “श्रः परञ्च' “at हेतारौ-“श्रयं afa:? पाथिवः “gut मध्यमः वायुः। कथं विवदेते ? ‘gaat? य्ननेव्योः। उभावप्यावां age नेतारौ, तत्‌ कतरः (‘aP) aah “ag? “भयः” ay ‘Az इति। at एते ‘aera, “समानस्याना विजः" as विनियुक्राः ‘ren’ सख asad ‘aH’, एवं सधमादम्‌" सहमादम्‌ ““शहमदमम्‌”” हषम्‌ उपशल्य श्रनयोः “ay! “श्राश्रुवन्ति” श्यात्‌ amy fas gar? "क xg विवोचत्‌, “कान शद विवच्यतौतिः" कतर्‌ एतयोयन्ने वेद ? इति ; उभावष्येतौ यज्चै यो विदाविव्यभि- प्रायः॥

ययाग्निप्रधानं मेतत्‌ wal हेठकमेणोऽभमिसम्बड्लात्‌ विरेष- लिङ्गेन छएयप्रधाम्‌, तथा दय मपरा wal ^“ यसे निर्व ana’ asaua निरुच्य वनाय पूर्वष्याः के विगेषः? श्यां

# च्छ सं० ८, ४,१द, ९। रविष्पाोये लिगं giant | + खविष्य।नोगयम्‌ (ऋण do १०, ९, ४) | { इत उत्तर श्व वच्यम!ष्ठाः इविष्याकोये तूमविंगो (अन्या) |

99

9३8 fawn | [उन्तरषटकम्‌,

fe विभ्य वायोः केवलाऽप्रिरेव wat; पूवस्या सुभावपि श्यो विदा वित्युक्रम्‌ < (३०)

यावन्माच मुषसो प्रतीकं सुपरण्यी ३. वस्ते मात- रिश्ः। तावदधात्युपं यन्न मायन्‌ ब्राह्मणो हातृरव॑रा निषीदन्‌ यावन्माच मुषसः nara भवति प्रतिदशेन fafa वाल््युपमानस्य wera प्रयोग इदेव * निधे- होति चथा FW: सुपतना रता Waa वसते मा- तरिश्वष््ोतिर्वेणेस्य तावदुपदधाति यन्न मागच्छन्‌ ब्राह्मणे ₹रातास्याग्रेदातुरवरो निषोदन्होाद्‌ पसव मभिर्वैश्चानरीयो भवति देव सवितरोतन्वा इशतेऽभनिं हाचाय ag पिचरा वेश्वानरेशेतीम मेवाग्निं सवितार माद सवस्य प्रसवितारं मध्यमं Arad वा पितरं यस्तु UM भजते यस्मे इविन्निरुष्यतेऽय भेव arsfz- वेश्वानरा निपात aaa उत्तरे ज्यातिषी रतेन नाम- धेयेन भजेतेभजेते (३१)

इति सप्तमाध्यायस्य सप्तमः पादः ७. ©. 1 ^यावन्राच मुषा ्रतै।कम्‌- fat श्र "नकारः

% egy’ क, ख, + अन desu १२, २। स्विष्णनोये waa (१९) |

© Wo ogre Ewe] देवतं काकम्‌। Oke

सम्परत्यथं एव, उपमामासम्वात्‌ ° लोकेऽपि “afa: उपमाभसख्छ सम्प्रत्यय प्रयोगः”-““दहेव निधरौति यया” ce सम्प्रति निधौ त्यथः मातरिश्वना कञ्चित्‌ ge: gare tra: wa: यद्‌ विज्ञामं तत्‌ कि मयं ब्राह्मो भनु्यद्ाना यन्न मुपायन्‌ विभक्ति? इति। तं प्रत्याद- हे .मातरिश्चम्‌ !› श्यावन्प्रा्रम्‌' ‘aaa’ (‘nate’) “cana” wefed प्रतिगतं प्रकाशस्य, “एताः” ‘gare,’ “सुपतना” “रायः” श्रात्मनि श्रतुप्रविषटं (‘aad’) छादयन्त, श्रभिभरूय तमा वत्तन्ते खय मेव awa वसतिर्द्नार्थः। 1 यावन्परात्र सुषसा रात्रिषु paw, ‘aaa’ wa मपि aw मेव एतावन्मात्र मयं खत्यविन्नान उपायन्‌ ‘ayy ब्राह्मणः” हेदत्वे छतो हाटषदने .निषोदनः “दधाति' घारयति। शेव्यस्यागर परस्य श्योविदः, श्रवरः अन्याऽश्पविदिति श्रतुकरोव्यश्य भिति; मानुषो fe श्रग्यतुग्रदादेव श्रय मल्पविज्ञानेाऽपि हाता हौं करेति इति पार्थिवोऽग्निविश्ेषतोाऽभिष्टूयते 7 तदेतदेवं छला क्त Afsana Farce येऽन वैश्वानरशब्दाः, ते पार्थिवां भजम्ते विशेषणत्वेन | ““हेाटजपस्वनग्िरवश्ानरीया भवति” एव मपि सतिं ्रयम्‌ श्रमग्निः वैश्वानरः हाटभपः2 “Va सवित रेतं ला रणते- sd हराय पित्रा वैश्चानरेण-दरति'"। एव aa जपं

* guile ४४१० LWe पार Le दणएयम्‌।

+ “aa खाच्छ(दने”--द्ति अन qo yal

1 र्द मानं ख्ग्यम्‌। |

§ “Tiaand sofa’—xia te mre eu,

8३९ निखशक्तम्‌ | [उन्तरषटकम्‌;

वेयन्ति* “दमम्‌ एव afi सवितारम्‌ se” पार्थिवम्‌, “ade भष्वितारम्‌”” न्नदारेण “मध्यमं वा उन्तमं वा” ““पितरम्‌” we वैश्वानर माह तेन वैश्वानरेण fears एवं at पितापुजाविति mama पार्थिवादन्यो Parc. पुनर्म्॑यमो बेत्तमो बेत्येव मेव मय मनरधरवश्वानरत्वेऽपि शति tea:

श्रजापि “यस्त उकं भजते, Ta इविनिंङूणतेऽय मेव सोऽभि- ware” किं कारणम्‌ ? wafers eft रोटजप्याय मेव afi दत्यवभियते याभ्निकपश्े। rer श्रय मेवेका मन्तो यपदे ्रेतुरयरवं UTAH watfa सम्प्रति मन्तरेणाप्र्यपद वता श्रप्रवश्वानरत्ववाचिना “श्रा दूतो wiy मभरट्‌ विवखतो Barat मातरि परावत॑1- इत्यनेन wragfaqay aarafaetitat aataafa तद्धितयपदेशादयस्त॒ पाथिवख वैश्वानरलसाधका विश्रेषदेतवः षडव्यभिचारिणाऽतिरि्ष्यिन्तं

एतस्माद्‌ विशेवरेतुबाजञष्ात्‌ श्रय मेव पार्थिवोऽभिरवश्ानरः ame इविभोक्‌

“निपात Baa उत्तरे ज्योतिषो" वैश्वानर इति “एतेन नाम- धेयेन भजेतेभजेते" दति दिरग्यासाऽध्यायपरिसमाघ्यथैः

तदेव मेत्िन्‌ वेश्वानर'-पद विचारप्रषङ्गे दविष्यान्तौयं स्ह

# “afgt देवानां हाता, मस्यतदेदषदनं यदुभरवेदोौ नाभिः" दृत्यादि We mre ६, ४, RI “qa are afer daiwa विष्रो राजान्‌ at qeefda) qe Serle —— TCA: 1 दति we Yo uu, te ४। { TOOT wre ४०४९५ we ge bad ~ § “नाबदेब Fafa” we |

eye जपा० qe] देवतं काणम्‌ | 8६७

qufaa ख्या fare, श्रद्निरैश्वानरः इति एक मेवेदं ज्योतिः faut वर्त॑ते tf aaa भावेपप्रदभनाये सुपवण्तिम्‌*

ईदणेषु शन्दायेन्यायमदङ्रेषु मन्तरायैघटनेषु दुरवनेधेषु मतिमतां मतयो प्रतिषन्यन्ते ; वयन्तेतावद्‌ बावबध्यामह इति॥ < (ay)

इति निरकरन्तौ azarae (सप्तमाध्यायस्य ) सप्तमः पादः॥ ७, ol

sfa ञ्वधार्यां निर्क्रटन्तो म्बुमागोश्रमवासिनः श्राचायभगवहुगे ह्य कतौ

stam! (सप्रमः) Waa: TATA NO ll

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% C@fyay रष THAT” To Ho Su, el “Atacama, —faqed efce जातवेदसं परायणं व्यतिरेकं तपन्तम्‌ सदलरश्ि, शतधा ANAT: ITH प्रजाना मद यत्मेष wen? दति प्रन्नोपनिषदि ९, ८। “aa मग्न वञ्चानरा याऽ समाः पर्वे) दत्यादि To Glo Gov, ९। स्त्यादयच्च Za विचारदोयाः

pare ९४९४० “1 थ्यम्‌ :

8६९ निखक्तम्‌ | [उन्तरषट्कम ,

रादिव R ४. = ^ (शअरधातदन््रादिवःपरेाकषकतास्तद्यनतिखर्वदेवता- 4. 2 ५4 ६० १९ याकारचिन्तनमपुरुषविधास्िश्लण्वपुषात्वेतेऽथेतान्य- Fe ५९ ९९ ५४ १५ १८९ -„ १९ यंतानिमन््ाजगत्यथातोऽभरिमीडेऽभ्निःपुवे भिरभिप्रव- pe afi मघंजातवेदा ९० eX १५ ९९ XR न्ते 'प्रनूनवेश्वानरोवेश्वानरस्यप्रनूम- ९४ हित्व्निया नविष्कान ९५ ९० ee मपामुपस्ेमूहभुवस्तोमे-

Re Re नयदेटेनंयचावदेतेयावन्माच मेकिंशत्‌ ॥*)}

इति निरुक्तं (उत्तरषरके) सप्तमोऽध्यायः ७॥

# ६अ(* १४९ ge >+ इष्श्चप्र।

अथ ASAT: Il तच, प्रयनमः Ge

ed 5X

द्रविणोदाः waned द्रविण मुच्यते यदेन मभि- द्रवन्ति* बलं वा द्रविणं यदेनेनाभिद्रर्वन्ति तस्य दाता द्रविणोदास्तस्यैषा भवति १।

द्रविणोदाः" दति† एतदेवतापदं मिवैश्यम्‌, तदथ र्यो- ह्वातः- “द्रविणोदाः कस्मात्‌ 2” दति ay पूवपद मेव तावत्‌ प्रथमं fag निरार--“धनं द्रविण मुच्यते” एति {। तत्‌ कस्मात्‌ ? ‘ata मभिद्रवन्ति”। कमेकारकम्‌ यस्ादेतत्‌ श्राभिमुख्येन तदर्थिनेाऽव्यं ¢ द्रवन्ति। “बलं वा" द्रविएम्‌॥। करणकारके। ““यदेनेनाभिद्रवन्तिः" यस्मादनेन संयुक्ताः सन्तः परानभिद्रवन्ति। "तश्च", धनस्य बलस्य वा “दाता” यो भति, शद्रविणोदाः”॥

“re” प्राधान्यस्हुतियक्रा “एषा” wa “भवति” (at दृटा देवतापदममाश्नाये एष षमान्नातः)-॥९॥

* ^"थदटेनदभिद्रवन्तिः” इ,

र्भा० ४९१९ ve ।४अ० २ख० (१) |

$ र्भा. wwe Lome (RU) ९९९, ९९८ Te § “agtagratisani”? we |

|| रभार यण me (२९) EW RRL १४०।

8४० निरक्तम्‌ | [उन्तरषट कम्‌,

द्रविणोदा द्रविणसो ग्राव॑हस्तासो अध्वरे यत्तेषु देव Alaa | द्रविणोदा यच्त्व* द्रविणस इति zfawar- दिन इति वा द्रविणसानिन इति वा द्रविणसस्तस्ा- त्पिबत्विति वा ang देव मींलते। याचन्ति स्तुवन्ति वर्धयन्ति पूजयन्तीति वा तत्को द्रविणोदा इन्द्र इति करौष्टकिः बलधनयोादाठतमस्तस्य स्वौ बलङति- रजसा जात qa मन्य रन मिति चादाथाप्यग्निं दराविणादस माष पनरेतस्माज्ायते। यो WAATT- न्तर भ्रि्जजानेत्यपि निगमे भवेत्यथाप्य॒तुयाजेषु द्रावि- शादसाः प्रवादा भवन्ति तेषां पुनः पाचस्येन्द्रपान भिति भवत्यथाप्येनं सोमपानेन स्तोत्यथाप्याह द्रवि- शादाः पिबतु xifaurea इति।॥ ₹२1॥

“द्रविणोदा द्र विणसः fe ty मेधा fatwa ‘xfa- Gig —aAa WARE adda श्रुतस्य क्रियापदेन बज्वचनान्तेन ‘Tad —waqaa वचनभेदादसामथ्य ate wea सासभवं द्र विणोदसा देवतालात्‌ waa waa gala xfaut- दसो aan मध्याइत्य द्रविणोदसि श्रथेपतावभिषमन्धात्‌ स्ठतेरेक-

* “gg? @, च्छ, ग) ¢ नाच femMaqeaaarfe: ङ-च-पस्तकयोः। { we yo 4,2, 8, RI

स्र pote रेख] Sat काखम्‌ | ear

वाक्यतायां सामथ्यं gfaitea aa द्रविणोदसि द्रविणोदः-ष्दं कर्मत्वेन नमयाश्चुकार- “द्र विणोदा यः” दवः, “A द्रविणोदसम्‌” cian

war ‘xfawe,—eaqe 'यरावहस्ताषः"--द्त्यनेन wafiaq- वयेणासन्दिर्धेन प्रथमाबङ्वचेन {तिकन्ते वेन विशेषणएविश्व्यभावेन सामानाधिकरण्ये wad gala तयार्चाप्तिषामथारेकवाक्य- तयाभिसम्बघ्राति। |

य॑ द्विणोदसं "देवम्‌" mat? यत्ते, श्रपरिष्टोमादो ‘ang’ यतिषु ₹हविःसम्प्रदानेषु सवनेषु वा थागस्थानेषु द्र विणषः' त्विजः; ते fe दइ्विणं लश्यामह इति सोदन्ति कमणि, wa at “द्र विणसामिनः' yaa गवादेदव्रिषो वा देवताण्स्य सम्भक्रारः, '्राव्रहक्ताषः'-दद्यमिषवनामिप्रायम्‌। मेते द्रविणसे area विजः श्रष्यरेषु any द्र विणोदसं देवम्‌ ‘ea’ “याचन्ति स्ट्वन्ति agufa पूजयन्तौति वा”, द्रविणोदा देवाऽखग्यं * द्रविणानि ददालिति। एतराश्ास्महे। श्रारिष aera समते, alsa श्ति, यत्तदोः परस्यरा पेकषित्वात्‌ sada मन्यथा भिगा- ayaa परिशमाणयते--“द्र विण्सः तस्माद्‌ faafafa” द्रविणोदा दत्यतः प्रथमेकवचनाद विपरिणतादेव द्रविण woe पश्चुभ्येक- वचनत्ेन सामाभिपानत्वे सामथ्यं gata पिवविद्याख्यात मध्या- इत्याजेव समापयाञ्चकार भाथकारः | एव मणसि सामथ्यं मिद्य

® “Qala” ख| 56

88 निरक्तम्‌। [उनत्तरषट्‌कम्‌,

पप्रदशेनाथेम्‌ तत्‌ कथम्‌? दति यं देवं द्रषरिणोदष मध्वरेषु aig ग्रावद्दस्ता wasn tet, खघ देवः द्रविणोदाः, zfawar- Sar समात्‌ द्विएषं भक्रादाय मश पिबविनच्येतदाज्रा- खे |

“तत्को द्रविणोदाः ?--इत्येवमादि विचारः तच तावत्‌ “इद दूति क्रटुकिः” एव माचायौ मन्यते केन हेतुना ? “सः बल- धनयोर्दाटतमः* अतिशयेन दाता दति “तस्य eal भलकृतिः"” श्रभिधानविग्र्े fe बलं द्रविण मिष्टुक्रम्‌, aanfraxe सवां °, तस्मादिन््रः। “रोसो जात मुत मन्य एनम्‌-इति चाह” मन्त्रदक्‌। श्रधिपतित्वत vara बलेनाभिशन्बन्धः | awe यत्तस्य दाता स्यात्‌ कथम? दति यता मन्त एव faawa i—

नशरश्चादियाय-दति।, ‘ag वदन्ति' यदा वदन्ति (श्रश्वात्‌”) श्र्ननवता मेघात्‌ श्रयम्‌ ‘ex’ (‘sata’) श्रागच्छति (दूतिः तच सन्निधान मस्य प्रतोपय तन्तावदद्ं तथा ‘aa’. कथयन्ति? “श्रोजसः जातम्‌' aus: कुतश्चिदतिमहतो जातम्‌ श्रम्‌ “एनम्‌' मन्ये यथाय मतिबलवाम्‌ wedi श्रपि वा मन्या" क्रोधात्‌ दौवा श्रयम्‌ याय", तता “wey? उदकादरणाभिकारयुक्षु मेधवधकर्मसु ‘awl तिष्ठति wa वा fa जानौमः, कुता- sya मैश्र्याष्लातः? इत्यतो ब्रुमः ‘aa: श्रयम्‌ "इन्द्रः" प्रजनने

*ध्याचका बरुरतिरिम्ुकरमेव Ay” TOM पु १४९ ge ८प०। = ~ 1: | “अखादिरायेति यद्द्न्योजया जात मृत मन्व रनम्‌ | मन्योरिःयाव रष 1 wet यतः IAW Lz GE Tw’ एति we We ८, rn

THe पाण रख] देवतं काण्डम्‌ | | 8४९ द्ति। ‘oR? एव ‘Qe’ खस्य wat ae ‘Az’, AIST ज्ञास्यतोत्यभिप्रायः |

रथाय मपर taxa zfamed—“afd द्राविणो- दस मार” waa मन्त्रो am) कं fay “gfauter पिबतु द्वाविणो za.” waa aaa यस्यापठं द्राविणोदसो- ऽभ्भिः, एव दरविणोदा cfu

कप्य च॑ पुमरय afar? इत्यत श्राह “एष पुनः” श्रभिः, “एतस्मात्‌ जायते” wR) कुत एतत्‌? श्रे हि निगमे श्रुयते- “यो श्रषमनारन्तरग्नि जजान हति |

“a इत्वाहि ° षति तौयेऽदनि दशराच्रस्य निष्केवल विनियोगः गख्छमदो ब्रवौति रेदं खूप माग्थितेऽसृरैदन्यमानः किमा इय, नार मिद्ध ईति कसति we? भ्यः" ‘ear श्रिम्‌" मेघम्‌ श्ररिणात्‌' ‘an fay’ खन्दना श्राकाश्नदौः एला दला च?-दन्येवमाद्याः$, ‘a’ ‘at’ wa: 'उदा- ` ° wut त॒ नदर द्राविषाद्सपद्‌दितिमन्तोभ्यः; अपि Rewer द्रति चेत्‌ रन्द्राव्छातेाः्रिरिति यज शरूयते रव मेव निममो दभेनौयः ; chee UAT तथेव “न्यो अपाने chy जजान इति भाष्यकारः खय मेव

ऋ० सं ९, ८, १, ४। पर तज्तुव्रवि्ठोदस cit ge: ^सद्रविषशोदसेा

waiscxfaqg sary whan डितः दति तब सायषव।ष्ा। याख्ोऽप्यभेवाम्‌ द्विः करिष्यति | t “यो waite मरिषात्‌ स्प्नस्न्धिम्‌योना SIRT Tee यो नारमरप्रिं जजान. सक aay जनास इन्द्र ॥**- दूति we de ९,९, 0,81 $ “चाख्या बङ्छा च--र्त्येवमाद्याः' खर “सन्न मङयमुनाख्ा मदा मदोः” —tfa ate wie) are “KN A AF (we Ges, २,९,५)- रति मन्ते Salar

४४४ गिरक्तम्‌। [उन्रषदटकम्‌;

जत्‌ः उरगमयत्‌ ‘sau श्रपधानेन उहाटनेन "बलस्य Faw भिराणां faxreta, ‘a’ “aut, अ्रन्रनवत्योः* दवाषयिष्योः “न्तः, मध्ये afl? जजान" जनयति, ‘a’ ‘amy’ ब्गामेषु अचां ‘dea’ सञ्छन्ना (“जनाशः) ETT | “घः” ER’ ; नामिन दति

“श्रथापि'” श्रय मपर vafere द्रविशोदस्लं कतमः? इति “aqua द्राविणोदसाः प्रवादाः भवन्ति" तवो येमेनधेरिव्यन्ते, ते भवन्युतेयाजाः, तेषु waaay श्राविणोराः' xfaute:-weqant: प्रवादा भवन्ति ततः किम्‌? तेषा ग्तुया- जानां यत्‌ पानं यन ते यन्ते aaa मिति मन्ते समाख्या भवन्ति तथथा-“श्रपङ्कोजाद्‌ तदति 1 तथा-“^हता यच्ह्वं द्र विणोदस मपाद्धोचादपात्पोजादपानद्राकुरोयं पाच मबा aan मिन्रपानं देवो द्रविणोदा द्रविशसः खय मायूयात्‌ खय मभिगूचात्‌ खय मभिगृन्तया Meade: trae पिबलच्छावाक यजः"--दति। हाता aug देवं द्रविणोरा मि्यच्छावाकस्य समषो मैजावरूणो बरवोति श्रष्वर्यणा wafer परयेऽतिप्रषितः “होताः "यच्त्‌" यजतु कम्‌ ? ti “देवः द्रविोदषम्‌ः। सच

* “यस्च ‘ama’ अश्नुवे यामोत्यकारि् frag मेषः, खत्यगाखदुरूपयोरतं अयोः, ‘qm? wa वदयत aty ‘ore’ उत्पादयामास" षति gre wre |

ae “अपाडोजाद्त गाद्‌ मत्त नगेद्धादणषत प्रथा शितम्‌। ade’ पाक मकहन Haw बविषोदाः fray इविषोदसः॥* दति we Yo ९,८.१९, यख गाष््ानं vor दणयिष्यति (४४९ ve Ye) |

प्च vote २०] देवतं काणम्‌ ४४१

पुनद्रं विणोदा देवः पूवम्‌ “श्रपात्‌ पौतवान्‌ सोमं ‘era’ सम्प्दा- ATA शश्रपात्‌' “पातात्‌ सम्प्रदानात्‌। “WI “AW सम्मदा- नात्‌। श्रथ पुनरिदं ‘Ge we सम्प्रदानम्‌, “WMA ATTA श्रपणं मित्यर्थः | ‘saw’ थत्‌ Nara सियते ; श्रयवा श्रमनुवय- योग्यम्‌, way श्रमुपम्डदित मन्यया देवतया श्रपरिभुक्रम्‌, ‘Cx- पानम्‌! शरस्य पातुं योग्यम्‌ | तदेतत्‌ द्रविणो" (‘Za’) ददरः waft, प्रत्त माद्रेण “खय aay खय मामिश्रोचात्‌, “खय मभिगूयात्‌' खय मभ्यु्च्छेत्‌ ततः ‘aa’ "पिबतु" (‘waft’) टना कालेन “समख “Hepa च्रभिमतया दाचया' Gat प्रदौयमानं Q मशम्‌ ₹े ्रच्छावाक! aaa ज्ञात्वा यजः

एव मेतस्मिन्‌ xxw द्रविणोदः-प्रवादवति ie पातस्य शद पानम्‌ः--ष्ति मास्या, तना दिग्धेन पिषतोति गम्यते एव- श्यत्‌ प्राप्न मिद्धो xfautar इति॥ |

““च्रयाप्ययम्‌'” श्रपरे taftxa दरविणोदस्वे, waza “सामपानेन स्तौति" खतुयाजेव्येव “stam मम॑ द्रविणोदः पिब्॑छतुभिः"-एति! हन्य इन्द्रात्‌ सोमपानेन Gad, agua सामरुख्कारस्य ; भवति fe Barge तक्छंकार- प्रधाने मनवः तद्यया-“श्रएुरं श्ट देव सोमापायता मिना

* ““अमङ्गम्‌ Seq देवेभ्यः wang पृषं fee” च।

“MRIS CRT पातः? eh are are (We संर १,१४.९; ९, ४४, ९९; ०, ४०, १; ९, ९९, Bs UR; १०, Re, ९)।

t “ae दोजा०--णपिवं तुमः we दूति we de ९, ®, ९९, १।

Bed frame | [उन्तरषटकम,

यैकधनविद -दति* तस्माद्‌ यच aw सामपानम्हतिः, तच aax इति wet न्यायः प्रखिद्धतरं ह्येतत्‌ acu मेव शविः संखियते, तस्मा एव प्रदोयते

““श्रयाप्याह-- द्रविणोदाः पिबतु द्वविणेदसःः- इति” यस्य द्रविणोदः श्रप्िः श्रपत्यम्‌, सघ द्रविणोदाः" इन्द्रः "पिबतु" (४४२१०) इति “श्रपाद्धोवात्‌” - इति1। तदधैवाच्छावाक-परैषरषा याच्या “wa? इष्टवान्‌ ‘oa’ ्रपि श्रजुषतः श्रपरोयत श्रयः waa, wala fed पथ्यम्‌ शेषस्तभव? व्याख्यातः

समाप्ताः पुवपचहेतवः क्रोुक्यभिमताः २॥

अय मेवा्निदरविशोादा इति शाकपुणिराग्नेयेधेव fe aang द्राविणोदसाः प्रवादा भवन्ति। दवा aft धारयन्‌ द्रविसोदा मित्यपि निगमो भव॑ति यथो waa बलधनयेोदाठृतम इति सवासु Sanaa विद्यते wal रतद्‌जसोा जात मुत मन्य शन मिति चादेत्यय मप्यभ्िराजसा Aa मथ्यमाने जायते तस्मादेन AY सदसस्युं सदसः BY सहसो यहु

* go are सं०६,०९। Taga खवयवांऽश्यरष्यते Ber सवखङ्हाथा। tra) ear Pardue wages ‘wre’ इष्द्रभोत्यथम “qa ual’? बडताम। इति Wace |

+ We ४४४१० “+” ठोप्पन्यां मन्त्ररूपो इष्टयः

{ अमततत्यादि sre ख-परके “Ag सम्पद्ानात्‌*-- इत्यतः परं ew परस्तादेव (४४४१० ave) |

डोताय्चदितिमन्त्रया ष्ाने ने वेत्यथेः (४४४ ४० ११०) |

स्णर्श्या० Awe] दवत्‌ काण्डम्‌ | 889

यथे रतदभ्निं द्राविणेोदस मादेग्युत्विजाऽच द्रविशेा- दस उच्यन्ते हविषो दातारस्ते चैनं जनयन्ति | कषीं-. णां पचो श्रधिराज् एष इत्यपि निगमो भव॑ति यथो एतत्‌ तेषां पुनः पाचस्येन्द्रपान fafa भवतीति भक्ि- ara agafa यथा वायव्यानीरतिं सर्वेषां सामपाबा- शां यथो एतत्‌ सोमपानेनेनं स्तौतीन्यस्मित्येतद्‌ पप- यते सोमं पिब मन्दसान गणञ्चिभिरित्यपि निगमो भवति यथा wag" द्रविशेादाः पिबतु द्राविशादस इत्यस्येवं तद्वति (२)

कि ag एरहेतुभिरिद्रौ द्रविणोदा इति? नेत्यु्यते- “श्रय Rarfng विणोदाः” इति “शराकपणिः” मन्यते “श्रव मेव" aa एयिवौम्याने समान्नानम्‌। अपि यदि मध्यमोाऽभतियत्‌, ततो यान्येतानि माध्यमिकानि शे्रालि वा ase at बाद wef वा, तेषु द्राविणोदसाः प्रवादा श्रभविष्यन्‌;, मध्यमस्य कमणा सेनं रमाुप्रदानादिना श्रस्तोग्यन्‌ ; चतदुभय मस्ति किं afE ? saa हि ang द्राविणोदसाः प्रवादाः भवन्ति"? ‘fewer रेवथः ; यस्माद प्र येष्वेव wag दा विणोदषाः प्रवादाः विगेषष्यले- alata भवन्ति, श्र्मिकमंणा चेनं aay स्तोति नेष्रकर्मणा तस्मादय मेवाभ्निद्र विणोदाः tt

* ‘ogfafufcfa यथो रदु ए्तिक,ख,ज। ध्भा° ४६९ १० Uwe ६, (६)।

४४७ निशक्तम्‌ [उन्तरषट्कम्‌,

कथ मित्यत उपपरदभयति-““रोवा aft धारयन्‌ द्रविणोदाम्‌” ~ ““दृत्यपि निगमे भवतिः श्रय aad बहव vaya श्ष्दः। “स प्र्नया”-दति* | कुत्सस्येय माषम्‌ पिदयश्चे सिष्टरत्पर- ऽसुवाक्या यः afte wot ‘faa’? तदुत्पत्तियोगात्‌। धिषणः सिषणाः, ary वाचः ‘aren’ साधयिता तदधिरेवता योगात्‌ | यश्च ‘za ‘af "धारयन्‌ तवन्तः पूवं, विषोरा' xfa- शानां हविषां देवेभ्यो दातारं नेाढारम्‌ ‘ay alg: ‘rere’ | श्या -दृ्युपमाने। पुराण दव बसा" बलेन जायमानः, सच्च” saa: सम्‌ काव्यानि पिदेवतानि श्वौषि ‘avy’ ‘az’ —cfa सत्यनामा यथा श्रवितयेन न्यायन धारयितव्यानि, दापयितव्यानि¶ वा पिदभ्यः तथेव सद्या जातेऽपि धारयति वा ददाति वा विश्वाः विश्वानि सवाि। एव मेतसिन्नधिकारे यं तवन्तो देवाः, aoa मिदं नाम करोालिति आग्िवेकवा- व्यता एव मय aafa: द्रविणोदा इति खितः पलः

पुनरयं परपकेठष्यनिराकतेषु अनवखित एव; श्रतस्तति- राकरणाय “यया We” Keay aA यत्‌ पुमरेतदुक्रम्‌-

* “gq Tae स्सा जायमानः Ug कायानि बल. धत feat Site fay farver aww देवा afd धारयम्‌ ब्विषोदाम्‌ \**- रति we सं १, 9, इ, ६।

+ “प्रहमपवं विखेमात्थाख दन्द्सि'- रति are ४, २, ६६१ ge Maegan” - दूति नि २, १२, (१९) र्मा RRO ४० न्या Thr चःः--र्त्वादि चपर ष्ठात्‌ RUTe २९९ ए० eve |

{ Lave २९१ ४० अर UL Te (९) I

6 “द्‌ातबानि”

प्च श्धार BBe] देवतं MINE | 88९

“स॒ बलधंनयोदाटतमः' इति * | warty मेतत्‌ श्य द्र विणोदस्ते कसमात्‌ ? यस्मात्‌ “arg देवताखैश्वये विद्यते” ; wa रेश्वयात्‌ र्वा एव बलधनयोद श्यो भवन्ति तस््रादवंग्ेषिक भेतदिष्रस्य कारणं द्र विषादस्ते

“qar एतत्‌” agama, बलकति मधिशत्य,-“शओरोजसे लात सुत मन्य एनम्‌--इति 1। तदण्यगरेषिक मिश्रस्य कश्चत्‌? wae “श्रय मणश्चिरोगसा बलेन मथ्यमाने जायते, तस्मादेनम्‌ (श्रभ्निम्‌) are” waza! कि माह? “ससस्पुम्‌”, “eye: खलम्‌", “सदसा यज्कम्‌” ga मर्विरातिरित्येवमादयः शेषाः

“ea: सर्पिरासुतिः” -दति ग््छमदस्याषंम्‌ गायकौ aaa wat विभियोगः समिदाधाने दु-ग्रन्नः ‘Ra’ KATA, "सर्पिरासुतिः" afaqear यस्य, सपिरवोदक area श्राति- Siwy श्रः पुराणः, “Bran ‘ate’ वरणोयः ‘eee,’ बलस्य यः “पचः, यः श्रहुतः' महाम्‌ विचित्रो वा। a xz नाम UR करोावित्याशोगत AVA ABA समाप्यते

"लं यद्विय" इति विद्हपस्याषंम्‌ श्रप्नयौ

* परख्छात्‌ ४४०१० (Go | परखात्‌ ४४०१० eye | { “ड, सपिरासतिः gat हात) बरख wea चद्धतः॥'-- रति we षं २, ५, ९२८, CI § “a यद्‌ यविष्ाः oes Gras ऋतवे य॒त्रियो भवः ॥१- रति we He १५१, tH ६। 57

8० निक्तम्‌ | [उश्तर षटकम्‌ 5

गायचौ सामिषनौष्वग्रेयेऽन्नाद्यकामकमणि याच्या हे "यविष्ठः थुवतम ! ‘wea’ बलस्य ‘aa’ ga! ‘ad’ यस्मात्‌ श्राङतः afasa, ‘aaa’ सत्यवान्‌, उदकवान्‌ वा, ‘afsa’. यन्नष- न्पादौ ‘yay’ भवसि तसात्‌ लां वय मपि sa: 8 AGT aad भवेव्येतदाशासमष्टे

“ag वाज॑स्य गो (तः दूति * उग्णिक stared | staal दृष्टकापधाने wat विनियोगः हे भगवन्‌ ! “way “बष्टसा यदा" aaa qa! (भातवेदः ! यदेतद्‌ वाजः अन्नम्‌, गोमत्‌ गोभिः तद्वत्‌, वं ae Sara’ Fae श्रते ब्रूमः श्रः sag ‘df’ स्थापय श्रनयापि कुरब्येतत्‌ ‘afer’ मददेतन्‌ war गवादि श्व्येतदाशास्महे

“यथो एतत्‌" agatagna,—“afa द्राविणोदस माइ" ्ति†। नेद मनेनाभिप्रायेण cata द्रविणोदसा जायते, किन्तदि ? “ऋविजः “aa” एतस्िन्‌ “gfutze.” oi “gama?! ते पुनः कसमात्‌? “हविषः दातारः”; देवानां fe इविद्रंविणम्‌, तदेते ददत हति द्रविणोदस एते। ततः किम्‌? "ते एनं जनयन्ति” “fanarsfa” fe “भवतिः ऋविजा मय aft: पुच इति त्यया -“षां gat अधिराज एषः"

me = { “~ ay na A ‘Cag nag जामतः tare wear यदा Ga Ufe जातवेदो afe- अब; ५०५ दूति We We १, ६, ९०, ४। + परात्‌ ४४०४० evo

THe शपा देवन] देवतं काणम्‌ | eur

-ए्ति। “agrafiracfa nfae.°—efa* 1 श्रनेन निर्मथ्यो ऽभ्रिरभिहयते। यः "एषः शश्रधिराजः' श्रधिकदौभिः, oooh areata “fq: निमेयः “प्रविष्टः “चरतिः ज्वलन्‌, eau’ विजा ‘aa’ तेमेथितः, ‘ad विधेम" तं परिषरामहे वयम्‌, maa श्राज्येन "हविषा" किम्‌? दृति-मा देवानां यूयुयाम भागधेयम्‌ इति प्राप्त Aaah ere ‘aaa खवेणाभि- जुेतोति भास््रतोऽख्य wore देवस्य ‘ar यूयुयामः मा लालपाभेत्यतो विधेभ श्रय awa waa इविदंदमः। विधति दानकमापि भवति |

“यथो एतत्‌ यत्‌ पुनरोतदुक्रम्‌,-- “छतु याजेषु दाविणो- दसा; प्रवादा भवन्ति, तेषां पनः पाचस्येनद्रपान भिति (समास्या) भवति-ति 1 एतदणकरारणम्‌। ae? यस्माद्‌ “afm भवति तत्‌” qua: संवादः; दुबेला fe समाख्या, यतः श्रषा- मणात्‌ कुतश्चिद्‌ शणदुवादःः--“चथा वायव्यानौति “सर्वषां सामपातच्राणाम्‌” नानादेवताना मपि सताम्‌ :

“get एतत्‌, “सेमपानेन” एनं “alata” ti दद मणय- कारणम्‌। कस्मात्‌? यस्मान्‌ “श्रसिन्नणेतदु पपद्यते” से(मपानम्‌।

= प््प्रावृद्रिषरति प्रविषकरोषा अधिराज्‌ ce: tat Pater इविषा ~ zB waa मा देवानां gaara भागधेयम्‌ ।-दएति त° खर aia चेष aay वालसमेयक्ेऽपि पाठभेरेन। Ao ayo qoy, vl †. परस्तात्‌ ४४०१० ede | प्रात्‌ ४४०४० yao

४५२ निशक्लम्‌ | (sucacaa,

कथम्‌? दति- “सामं पिब मन्दसाना गणञ्निभि;” दति “ai aafe प्एभयद्धिःः-एि* हे भगवन्‌ ! ‘ae! व्यार | a Afar. (मर्धि. मितरोविभिः श्रचिभिः, शभयद्धिः" भवन्तम्‌ ‘wafa रसदन मिः, गणसिभिः' sot भवन्त माश्रयद्धिः, ‘qaafa wafaefer, ‘fara इन्वभिः षवे मिद्‌ मागच्छटद्धिः, यद्‌ दग्धुम्‌ “wat write, दिवा" चिरन्तनः केतुना" प्रजया कर्मणा वा ‘ay’ dam, "मन्दसानः" मेादमानः ‘Bra’ faq’ इव्येतदा्ाखहे अरिषोऽन मरुतः, छलिजा वा मरतः); चन्यथा न्‌ दारण Ala मन्त्रोऽ: Want स्यात्‌, इतरमेदद्धः सम्बन्धात्‌

“nit एतत्‌" द्रविणोदाः पिबतु द्राविषोदसः"- इति, waa तद्‌ भवति" यत्‌ पुनरोतदुक्रम्‌, खतयाजेषु द्रविणोदाः fag द्राविणोदसः-द्ति, ‘we ए' wa: “तर्‌ भवति; शर्र- दपि सामभागिलात्‌ waaay | भवति fe तेषु “वनस्पते ° द्रविणोदः fad wa fa —aft 2। वनस्यति-श्रब्दसामानाषिकर्‌- षात्‌ सामपामां सम्बोधने द्र विणोदखा विशेषण विशरव्यभावसषाम-

* “qq मदह्िः wuafgeagha ara पिब मन्दसान aaah: | पावके भिविंख faaficrafud acre afer कतुना a w7—xfit we de a, y २४५

{ “दतः” दति त्रि ङनामनु षठ पद्म्‌ WTS Rue, ९४१ ४० |

{ WCET] ४४०९० ६९११

§ we ve १, यज aw ‘afayren पिबतु इविषोद्सः- दति त्वेयं तत्यवैपठिता।

@ 9 स्च. श्या ewe] द्वत काणम्‌। ous

च्यात्‌ नान्यो वनस्यतेद्रविफोदाः वनस्पतिख पुनरस्य afm; ‘ag Zan दिधिषो wifa’—cfa® रविवैहनकर्मसंयोगात्‌, खिष्टकद्विकारशरुतेश्च वनस्पतेः aerefagfartar, Ax यत्पुनर्‌तदुक्रम्‌- TRE सामः संखकियते, vanfex wars केवलः पाता; नान्य दति, मेतदेवम्‌ ; सा wee Zana मोयते, wae afar, अन्याभ्यश्च ह्यते, इयते तद्यथा “श्नमि a दवम्‌" दति! साविश्या aaa, “श्र एर” -दति 2 राय संसियते, पनरपि मौयते॥ “इनद्रायाभिमातिन्ने"--श्येव- मारिभिः। नानारेवताभ्यो ग्टद्यते मिजावरूणाद्याभ्यः। तथा हृयते | तदेवं विधिवशाद्‌ विचिचजा सामतग््गतिः तज्ैवं सत्यश्च am यत्र यन्न सामः, तत्र AT: पाता इति TAM Unie सह प्रत्यक्ष मनर ग्रहे “cari चम॑तम्‌?--दत्यतर¶ भवति array मपि एथक्‌ ग्रहणं जषा साम्य “aga ला रायस्पोषाय av—efa तश्मादश्निरपि Maw पाता खार्‌ (९) tt

wig ते AEN येभिरोयसेऽरि षण्यन्बोरयखा वनस्यते। श्रायूया धृष्णो अभिगूयी त्वं नेष्रात्सोमं

* खपरिष्टादिम पथ weeny प्रद्‌ शथिष्यत्यय मेवाचायः (श्पा० wwe) |

परख्छात्‌ प्रदणितं “a we इन्द्रात्‌ दत्यादि, “तस्मा रव प्रदौयते?” इत्यन AUT TATA (४४५१० UlTe)

t wo are Po 8, tu | कार Ge 0, ©, €. RIVA

§ ge ate Pou, 0 1 BTe ख. ८, ९, २९. TAA!

|| “पनरपि चायायते'”ख।

T wo Gy, १, Ut, ६; ae Te Teo, Al “CORY Wyiia’— र्ति चकास ८, UR, २० रन्द्राप्र alan: |

९५8 निक्तम्‌ | [उन्तरषटक्मम्‌,)

द्रविणोदः पिबं ऋतुभिः॥ मेद्यन्तु ते बहये वोढारो * ये्यस्यरिष्यन्‌ दढीभवायुय! war aha त्वं नेद्रोयादिष्ण्याद्विष्णयो free पिषणाभवो धिषणा (वाग्‌ †)पिषेदधात्यर्थे धीसादिनीति वा धीसानिनीति वा वनस्पत इत्येन माष हि वनानां पाता वा पाल- यिता वा वनं वनेतेः पिवक्तेभिः? कालैः (३) इत्यष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः ८, १.

यथा इद छठयागेषु-“मेथन्त ते व्यः” दूति za- मरस्यार्षम्‌ जगतो तव्या “जि मिद्‌ खदने (दि०प ०९२७)", तष्य wife मेद्यन्त इति भवति हे गवम्‌ | "वनसे !' श्रवि- णोदः” (aay) छखिद्यन्त्‌ एते ‘A तव ‘agar “वोढारः” woe श्येभिः tay afta गच्छसि “श्ररिषश्छन' अरदिष्यमानः केन चिदपि aa मेभिरश्रैरागत्य sag वोलयख' दृढ मात्मानं कुरुष्व, चेम AGT WAR! कथं चनं पिव ? MEE’ श्राभिशरा भिश्रोरत्याङ्गल्या ; fe पानपादृ णां खभावे यदङ्ृल्या मन्थनम्‌ | दे ‘wut श्चा धषेयितः ! “afr may तते (नेद्रौयात्‌ पिष्णात्‌?) "सामं Aer aazac ‘faa’ “खतुभिः' are: सहेत्ये- तद्‌ FAP |

* “बोल्हाराक, ख, ग।

““इल्टोभवायय'* क, ख,

नाख्येतत्‌ पदम रू-च-परूकयेोः।

$ `“पिपर्छ तुभिः” क, ख,

|| we २,८, १, एय मपि WATTS |

स्च्यर शपा gue] देवतं AAA | 8५४

“धिष्णयः पिषण्यः” ; “धिषणा ara”, तदथं मसौ साधते; तश पञ्चादुपविष्टो हाता शंसति धिषणा ae? “faa” wan “दधात्यथ, वर्तमानस्य; सा हि वाग, wa धारयति; marian सम्बन्धनित्यलात्‌ अय वा “सौसादिनोति वा, सोसानिनोति वा” धौः प्रज्ञा, कमं arty सा एतस्यां Wea, सनेाति वा, aaa द्यं वा; aan सौदति सनोति ar, सन्निमित्तलात्‌। एवं धौशन्दात्‌ पूवेपदम्‌, सदेः सनोतेवौ उन्तर- पदम्‌, fuqui-mee विकल्पेन

“वनस्पते दति एनम्‌ we” द्रविणादसम्‌, तस्रादभ्िरिव्यभि- प्रायः॥

अय कथ मद्िवैनस्पतिः ? “एष fe वनानां पाता वा पालयिता av’ | ‘fe-megt Rau: यस्मात्‌ “एषः ‘aaa’: carta अन्तगतेऽपि, समयाऽपि दग्धम्‌, तानि दहति, तस्मात्‌ श्रयं aat पाताः रक्तता, “पालयिता afal केवलं waa, एवाथः 2

श्रय “वनं कस्मात्‌? “वनोतेः” सम्भजनार्थस्य |; afg दावैदि-प्रयाजनाथं Baa) “पिब छतुभिः' ““काले;", ae दूति वाक्यशेषः

* qure og get Ge wvwe (yy) | + “fee शब्दायेखम्बम्धे”- इति पस्यमभशायां पतञ्जण्डिः। 1 प्भा० २२४४० एय. ewe (८) - १९२९० wae (zt) |

“पा रसश” दृति Gate oud, “Tie रचशे- रति Te प° ०९। | “बन, we समाक्तो- दरति षार म्वा" पर ४१९२, ue |

४४९ निक्तम्‌ | [उश्वरषटकम्‌ ,

एव मय मग्मिद्रंविणोदाः खक्रभाग्धविभाक च। निपात Aaa, -मध्यर्म ज्योतिः, उत्तमं ज्योतिः, एतेन नामधेयेन भजेते इति *॥

एष देवतापदविचारन्यायः सवच देवतापदविषारा्था यथा- aaa सुपादयः प्रभ्नाविषद्धये जिब्यस्येति॥ (a)

दति wsqarat निरुकषटत्तौ चयोद श्ाध्यायद्य (शरष्टमाध्यायस्य) प्रथमः WT ८,९.

दितौय पादः॥

sara शआराप्रिय आ्राप्रियः कस्मादाप्रोतेः प्रीणाते- वीप्रोभिराप्रणातीति ब्राह्मणं तासा far: प्रथमा- गामी भवतीष्रः समिन्धनात्‌ तस्यषा भवति १८४)

न्श्रथात आप्रियः श्रापियःः omafaty witty निरव््यानि तानि पुनरमूनि प्रिषिक्ते ater पाठक्रमनियमाद्‌ विवक्तितक्रमाणौति देवतापदसमाश्नायेऽपि गद्यमाणलात्‌ पाटक्रम- प्रयोजनस्य faafaamarea तत्रेतद्‌ भवति दमान्यद्चिजातवेदो- Garona किं faafeanarfa उत युगपदभिधानाखन्भवात्‌

अर्थत एषां क्रमः ? दति * ब्रविवोद्‌-णन्देन पाथिवेोऽभ्निरेव प्रानते tra: ety, Fam सोरख प्रक

रशादिवखत्‌ बोध्यः इति frog re: VT? OCR Te UTS {क (RY) (18) F

स्य रपा LB] ` रेवत काखम्‌ sys.

तज विवितक्रमाफौति के चिन्‌। कथम्‌ ? इति ce ताकत watts श्भुवःखरिति पाठासुपूर्यैव * नियतानोति तत्खयाभिना मघयन्यादोनां एव क्रमा गह्यते, wet नं न्याग्य wey fafa aff शति क्रमप्रयोजने श्रभचिः एयिवोखानेा vara, saat प्रथमं व्याख्याश्याम fat हेतुदचन मुपपद्यते; उरण ख, “ara wa प्रथमागामौ भवति--इति}; “dar we प्रथमागामौ भवति--इति 2, “तेषां cr प्रयमागामो भति —cfayi तज तत्र प्रयमागाभौ भपतोति कचनं. यथाप्रधानं मभिधानं पूवे eatena नित्यस्य न्यायखोपग्रशनाये मिति weet, इतरथा ह्यवि छितक्रमेषु प्रथमा गामिव चन aaa ufafaq पड सुपादध्यात्‌ तदेतत्‌ एथिषोग्धाने उवं क्रमप्रयोजन gua ।- ufaaa श्योतिषो यथा श्रभनिः-गरष्देन प्रसिङ्धतमः सम्बन्धः, तथा “जातबेदः'-ब्रम्देन ; यथा .जातबेदः'-्र्देन, तथा श्ेश्वा- भर, -श्र्देन, यथा वेश्वामर,-बष्देन, तथा द्रविणोदः wea तान्बेतानि रुविप्रकवीात्‌, प्रसिद्धिगिप्रकषाच श्रपि्न्दम्‌ farsa; दप््रादोनां तु यवधानेनान्यभिधपनलत्वं भित्यवितरां विप्रकषः; श्रधप्रतयस्त॒ waar मग्रेभजन्त दति दथप्रश्ति-

* “qraTava a”? खर | परश्ठात्‌ ३०८५० ede | { खचष ea उपरिष्टात्‌ (४६८ ९० १९ परंर)| उपरिष्टात्‌ ewe qure pee || उपरिष्टात्‌ श्र पाण ae | खातवेदाः, चंश्चानरः, द्रविणोदाः इति, 98

निगम्‌ | [उत्तरषटकम्‌,

eft ऽपि aurea) तेषा भपि उदितप्रमाणकरसयो° ईगन्रकुनि- भण्छका tft प्रथमम्‌ ; श्रतुदितप्रमाशर््तयस्तु अरचादयः ते Gereretey: | इत्येवं श्वच क्रमप्रयोजन मुपेच्धम्‌।

atayfeg एयिकोनामभ्य एवोपक्रम्य खय मेव सर्वच कमप्रयो- भन iV at वािककारेण-“कमप्रजोजनं नावां wa- पष्णपशकितम्‌। प्रकश्पयेदन्यरपि प्रश्ना मवसादयेत्‌ 1 एति

wea मिदागो quaet ।-इपादौनां गरामिधागवामान्ं fafecfe, यतशेभाधिकारवचनम्‌ “श्रयात चापियः"-ए्ति। ‘ae’—cft विषाभिकारे। “अतः दत्यानम्तयं “afia’ इयन्त दति arama: |

` दह कारशादभिभेये श्रमिधानमियमे Rony, तदर्थं मुपो- ze “शआआप्रिधः" कस्मात्‌? “ata: Merta’—cfa निराह ‘wrfre we, तत्सम्बन्धात्‌ रेवता aft. तथाहि <a “amauta”, “catat wean’ —vefa°* wee ‘wre श्रवन Refer वा देवता venir; wa grea -श्राध्यने श्राप्रोयन्ते वा ceria: ti

* “gfausreena” |

ture ४९४ १०५ Ge RE we (६), (र), (R) | 1 “qufarsreenag”

ute ४९४ ४०६४ Go QW (४)- (रए)

| que ४९६ इ० EG Qe We , २९)-9९)। q दत आारभ्याष्यायसमाहनिं याबत्‌

* *# खदेवाध्यामे खप्ात्‌ (३ पा०९१७०)।.

Sate Rute रलम] देबतं wea | ७१९

“ater दध्मः प्रथमागामो भवति" saa मागत मख श्राप्रोदेवतापदसमाक्राये Me निति प्रथमाग।मौ। कस्मात्‌) एतत्पृवकल्वारिभ्यायाः, अ्रनित्यलाच्च तमूगपान्नराथंख्यो एन्वतरस्

“aa” wae, समित्कलापस्य, “एवा” प्राधान्यक्तुतिः “भतव्रति-॥ (४)

समिद Wu मनुषो दुरोणे दवो देवान्यजसि जातवेदः। राष्ठ वह सिबमदह्चिकित्वां त्वं दुतः कवि- रसि प्रचेताः समिद्धे रद्य मनुष्यस्यमतुष्यस्य शह देवो देवान्यजसि जातवेद आख वह मिषमड्ि- कित्वांशेतनावस्वं ga: कविरसि (प्रचेताः †) प्र डचेता यक्ष्म इति कात्यक्धोऽभ्रिरिति शकपूणिस्तनुमः were भवति नपादित्यननन्तरयाथाःः प्रनाथा नामधेयं निणततमा भवति गोर तनृरुच्यते तता- स्यां भोगासतस्याः पयो जायते पयस BST जायते ऋभ्रिरिति शकपुणिरापोऽच तन्ब उच्य त्ते तता अ्रन्त- fia ताभ्य शरोषधिवनस्यतयेा जायन्त श्रोषधिवन- स्पतिभ्य रुष जायते त्ठैषा भवति २८५)

“are gifrad @y रूम ay: सत्नित लिषाम।- दति ane are we | + WIN VX क-ख-म-परकेष | { “गाकष्दि्न्‌गपाद्नपादित्यननकरायाः"०--दतरेद क, ज, ब्र

9६१ ` मिबक्तम्‌ [उ्तरबट॒कम,

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* me सं*८,९,८, ९, अप्रिचयनाठभूते प्राजापत्ये पौ सर्वेषां भित्य बिद्‌ ANEW खा> -, ९. FETA!

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THe रपा० २०] देवतं कारम्‌ | ०६९

करान्तप्रकाशः सवेच, “HAA? प्रहृष्टपज्ञानः। यस्मात्‌ खम्‌ खलिग्य- जमानानां way हेतुः aw तव OM ARIA माद्य देवान्‌ ष्ट मिल्यनो ब्रुमहे-श्राहय चास्माकं देवाम्‌ यज @ i

“aga इति कात्थक्यः” | कत्थकस्य पुतः कात्यक्य Bern, मन्यते,- योऽय मिश्र श्राधोयते प्रतिप्रणवं es एवाय मिति, भन्वेतसिम्‌ मन्ते तख fay मलि ? सत्यम्‌ ! मासि aren; प्रेष त॒ “afag: प्रे्या--दति श्यते, युकं यदथ मेव म्यते एवेश्यते 1। तस्मात्‌ समिधा Rava मुपगतामा afgat went समुदायापेच्च मिदम्‌, व्यवहित मभिधान -मापरोगतं समिधो waft समिध एव चेमा corm एति az ae होत समिधो यजेति प्रेषितो रोता “समिधः समिधो aq च्रज्य्छ aar—tia वषट्‌करोति ty तस्माद्‌ युक्त थत्‌ कात्यक्यो मन्यते यञ्नेषा tf? i

शय पुनरन्यः कथ मन्यतेऽत आहः “श्रद्निरिति शाकपूणिः" | पुगः कया saan श्रं मन्यते ? श्रारादुपकारिलात्‌, Fae शन्निपत्यो पका रिलाचच | यजतावाग्रियां यदापरोषखूपं तर्‌

* Carga तुः" ख|

+ “यज्वो ये देवेभ्य उदक्रामत्‌, तं पै प्रेष Hey, यत्‌ FT: Sy नेच्छन्‌ तत रेषां प्रे"ववम०- दति Te wre २,१,९।

“य देषतायै दविर रतं समाता wig बषटकरिष्यगद्धाचारेव तरेवतां प्रोशाति, प्रत्यखारेवतां यजतिः ट्तिरेर् wre, ९, =! § “नमिद्‌सि००-रति grant “Tere! लं "समिदसि, अप्रः सिन्ध Show मधि" प्ति awe ive wre सं ९,६।

|| "ताम्बहाजि दिविधानि सक्रिपत्योपकारकालि, जारादुपकारकारोति q” - त्वादि ate |

9९२ निखक्तम्‌ | [डनलरवट्कम्‌

बलवत्‌ ° किच पुनराप्रियो रूपम्‌ ? च्रन्यथेता कथम्‌? इति wat “समिद 9 ° दवान्‌ यजसि aaa) श्रा ay faq मदशचिकिल्ान्‌ Ta: कविरमि wean: w’—efa सरवष्छेतानि श्रभि- धानानि कमपि श्रगौणान्यभ्निपके,गौषानोष्मपके; “गोणमुख्ययोख मुखे कायेसम्पर्ययः"-दति न्यायः; तख्मादप्रच्यतखरूपाया श्राप्रियो यजताबुपकारनबाडल्यादाग्नेयतलाच प्रयाजाना मग्निरेवाय मनया श्रापरिया इञ्यत इति श्ाकपूशिमन्यते {

याखस्छापि चेतदेवाभिमतम्‌ $ “amar इति चितिः” दति श्रधिकरणान्ते हि वच्छति?। एव afe श्रधिरिव्येतरोद समान्नातव्य मासोत, दथः? एति मैवम्‌ कस्मात्‌? afagt अरोतोतदस्या माप्रिया anfeg मसि, लग्निश्रब्दः; श्रतोऽखा- waar, पौनदत्यदोवाख। afeamests समागमम्‌? दति चेत्‌, तदपि श्याप्रियां मास्तोति न, परषिकते समाच्लानात्‌, क्रियावि शेषलवाच। BIBT VET देवान्‌ यञ चेति wats: समित्कलाप मि मात्मलेनाभिसम्पलस्तदाष्यता मुपगतः तनेभ्राभिधानेनेऽ्यत दति

. cst fi प्रेषानाभोत्यात्रोधिराप्रौयेशनसय भ्रयानभिरनुयाणान्‌ बषडकारेभि- राडतोःः"- दूति य° बा° we ९९, te!

“चोत्‌ | (पार ९, ९, १४)- Byars, परिभावेन्दगेखरे (xs) चेतद्शाखा> wifes eae | { were प्रथाजाना माग्रं यलं तदष्छतौ रे वाष्यायाभ्तित् SS | ` खपरिडादिरेबाध्यायेऽभिमे wa अधिकरणं ङ्विचारः। तदाहा- विकरवम्नाछायां माधवः“ “रकेकद्याधिकरद frre ety, seit, Tw, विडागादधेति पञ्चावयवाः ।?- इति

< चर RUT RUE] देवतं काण्डम्‌ १६९

came: समाक्नातो afm दति aaa शाकपूणेरेव amt प्वन्ययाम्यभिधानामि *॥ |

शाकपूरिपक्े मन्त्रयोजना- डे भगवन ! wt! "खनिः" यः धै arate, ‘ae’ श्रसिन्नहनि, "मनुषः, Agee ‘etre’ चन्त ‘a’ दाता, Slow, lant वा, देवान्‌" ददन्‌, दौप्ताम्‌ वा "यजसि" (जातवेदः !* इविषा यजमानानां sam! त्व aaa मपि हे भिच्रमहः' मिचाणा मुपकारप्रत। “चिकिलान्‌' लानानः मधिकारम्‌, wea देवान्‌ यज चति किम्‌ ? ब्रूमहे - यस्मात्‌ मेव दूतः" सतेयजमानानां भवति ‘fafa? क्रान्त awa, ‘neat’ segue इति

“agra —efa 1 1 भिवेकयम्‌ तत्पुनरेतत्‌ “asa” दति कात्थक्यः, “श्र्िरिति भाकपूणि;*। यथा तवदन्यं तथा निरच्यते--“मपात्‌- ति श्रननन्तरायाः प्रजाया नामधेयम्‌” या पिठुरनन्तरा, पुत्र्या सा भवति ; श्रनभन्तरा, पोजस्मे्य्थः किं कारणम्‌ ? ar हि “निणंततमा भवति” कथम्‌ ? पुरावत्‌ पितु- नतो भवति, ततोऽपि नौचेनततमः ata: तज्ैतस्िन्‌ पन्त यः तमु"-ष्टः पूवपद तनृनपाच्छ्द स्य, तेन “गौः” “उच्यते” सा कस्मात्‌ ? “नताः wat भोगाः क्तौरदध्यादयः। ततः किम्‌ ?

+ Ved “war Sey ghar’ —e2arenrarcy “grew 2a उण्कि- Wi विषमपदा खाप्रय्याःप्रिनादटा। wip प्रजापतितवग get तेन प्राजापत्या खपि। “ता खाप्रप्यः प्राजापत्या यदध्रिरपश्यत वेन।प्रय्या यत्‌ प्रजापति atte

, वैन प्राजापत्याः" इति 9a" दति महोषरः। ध्मा. ४१९ To ye ye Ge ८(१)।

8९8 निखक्तम्‌ | [उत्तरवद्कम्‌;

“rer पयो जायते" तस्या पुः पयः; “"पयषः श्राञ्च जायते" तस्मात्‌ तस्याः TNA: | एवे गोः तनाख्यायाः नपात्‌ श्राञ्यम्‌। तसात्‌ तमृगपात्‌ °

शअरभ्निपके “रापः “aa” afer wa: तम्‌ नपात्वेन “तवः” Sey” | ताः कस्मात्‌ ? “तताः श्रन्तरि के” ततः किम्‌ ? “ana ओषधिवनस्पतयो जायन्ते”, ““श्रोषधिवनस्यतिनभ्यः" “oa.” aftr “जायते” तस्मादय मपां पोचः1॥

“तस्य” तनूनपातः-श्राज्यस्य War प्राधान्यस्तुतिः “एवा “aafar—n २८५)

' तननपात्‌ पथ ऋतस्य यानाग्मध्वा TAMAS सु- forg | मग्नानि ihren यन्न मृन्धन्‌ देवजा aE Baca: | तन्‌नपात्‌ पथ ऋतस्य यानान्‌ यत्नस्य यानाग्मधु ना समश्जन्तखदय कल्याणएजिच्च मननानि जा धौभि्यन्नं समदय देवान्‌ Al यत्नं गमय नरा- शंसा यन्न इति कात्यक्यो नरा असिन्नास.नाः शंस-

* “लमनपातं यजति, We बे ware; Ferre पाति, se ae Pafa. sre यजमाने दधाति ~ र्ति te ate ¥, t, 8 | ` खत cafe “तनन पाददुर"--र्त्यद्य TENA माड मोषरा-^तम्‌ WRASSE, नपात्‌-पौजः'--दत्यादि। रवश्च मध्यमख्ानसमान्गवेव “खषा WU (१भा० ४०४९० UMe ४ख० UY) हत्यनेनद्म fe सपि पाथेक बत ware दद्म वष्छति-“खअपाद्चपात्तनूनत्रा वाप्याः" ifr | Te ye खर

gue awe |

SHo RagTe ३०] देवतं काण्डम्‌ | ety,

न्यभ्रिरिति शाकपणिनेरोः प्रशस्यो भवति तस्यैषा भवति (६)।

“तन॑नपात्‌ पथ च्छनम्य'-- दति ° हे “तनूनपात्‌ श्राज्य! त्व GUI एतान्‌ "पथः" मागीन्‌ सवान्‌ “waw’ यज्ञस “यानान्‌ दवौ पि, यज्ञे यान्युसपन्ति, तानि ‘mar मधुरेण खादेन “समश्जम्‌' aquay ‘aga’ खादना मापादय। हे सुजिङ््‌ ! ; fuga हि ते एतदेवं gaa “मन्मानि “मननामि' यानि वयं मन्यामहे- sata yao नः afta, तामि afin why खैः eatin, अभिघारणालङ्करणोपसतरणादिभिः 1 'खन्धन्‌' संसाधयन्‌ सगु रोरपकुषन्‌ ‘ange’ सन्या रय श्रपि चैवं grad यजं ‘TAs’ सम्पादय। या का विदापदुत्पशयते ane तं प्रायञ्धित्तेनाङ्गभाव भुपगच्छन्‌ “गमय” “देवजाः “tary” प्रति, fas aay aaa कुरव्वेत्यर्थः ।-एतदाश्रासरदे वत्तः |

“श्रप्निरिति शाकपूणिः" हे भगवन्‌ ! “ay! (तनूनपात्‌ लम्‌ एतान्‌ "पथः ‘wae’ यज्ञ “यानान्‌ दवौषि, "मध्वा" मधुरेण पाकृतेन रसेन ‘saga’ समभिव्यश्चयन्‌ ‘aca’ गटष्टोङ्र्‌ हे ‘gfe? सखिः! wa वा डे सुवाक्‌! एतान्येञ कुवश्नखदभि-

* ^" राच्यस्योपल्लोये वपा मवद्‌ाथ दिख्परिणादभिधारयति"”- इति रे त्रा० २, ९, ४। CANES FEA | twe Po SES यर we de खाश्मेधिके दाददमप्रोव fetta (२९. १९) 1 59

9९६ निरक्तम्‌। [उन्तरषटकम्‌,

मतान्यथैवस्छ नि नः संसाधयन्‌ "यज्ञम्‌" ‘way’ समद्धंयन खषाम- याच ‘aw’ देकप्रविष्टं कुर्‌ ।- इत्येतदाशासरहे वयं ल्त इति॥

“नरा शंखः *, यज्ञः xfa area? | कस्मात्‌ ? “नराः afar श्रासौनाः शंसन्ति” ` नरश्ब्दः पूवंपदम्‌, श्रासेर्निं्ठान्तश्य मध्यम्‌, शंसतेङन्तरपदम्‌। श्रथ कोऽथः? “AT. Aaa: ‘afar’ “Mapa? उपविष्टाः “शंसन्ति दति atria “श्रप्िरिति शाकपूणिः" कस्मात्‌ ? “ats? “ame.” qa “भवतिः

“ae” मरा शंसस्य “एषां भवति” प्राधान्यप्ततिः- ३८९)॥

नराशंसस्य महिमान मेषा qd स्तोषाम यजतस्य aaa सक्तवः शुच॑यो धियन्धाः खदन्ति दवा उभ- यानि warty नराशंसस्य महिमान मेषा Agar afar ata सुकमाणः quar धियं धारयितारः सखदयन्त्‌ देवा उभयानि हवीषि सोमं चेतराणि चति वा तान््नाणि चावापिकानि चेति वेल इटः सतुतिकमंण इन्थतेवा तस्यैषा भवति॥ (ऽ)

| = “arpive महिमान मेषाम्‌"- दति { वत्तमान एव कर्मपि

+ भा ४९९ १० Gee Go (ag. |

+ “नराशंसं यजति। प्रजा वे नरा वाक स, प्रजा Se तदु वचं @ Taf, sat वाच्य यजमाने दधाति ।“--दूतिरेर wre ९,९,४। fag नराद्रस- भाराग्ंस्येभद्‌ः मारागंस-पद्य'ष्टमानन्त्‌ नवमे (€) वच्छति। wre ४९४, ४९९ we (१) व्रहयञ्च। `

{ we de ५,९,६,९। Go ure सं" खाश्मेधिके इाद्माप्रोष्‌ बतोया (re, ke)

cH एपा० BBs] देवतं काण्डम्‌ | sto

ब्रवोति योऽय मेषा मभिमतफलदाता नराणां नराश्सो यज्ञः,. द्रवयदवतात्यागात्मकः प्रयोगः, aw श्रषिष्टाता ; तद्यप्नो दवता- विशेषे जगदुत्यत्यसुयहवोजम्‌ (नराशंसस्य वयम्‌ (“उपस्तोषाम) “saga.” उपगम्य चेतसा (महिमानं माहाभाग्यम्‌ fara ‘aa’ श्रभिकोत्तयामः। "यजतस्य “afsae” यअनसम्पा- दयितुः, प्रयोक्करभिमतफलसम्पादयितुः यज्ञै कम॑भिः युक्ताः उप aa: तदेव मेतस्िन्नुपम्थितमरिन्नि नराशंस यश्च कि मयस्तु | --एत्याशास्महे | ‘a’ सुक्रतवः" ““सुकमाणः' जगदनुग्रप्ररत्ताः ‘gee: निशिक्रतरपापाः "धियं धाः खाधिकारयुकरानां कर्मणाम्‌ श्रतु-वि-““धारयितारः””, प्रन्नार्नां att एवमादिदिण्यक्ाः देवाः ते 'खदन्तिः “खद यन्तु” एतानि (ear) “हवींषि” "उभयानिः | यदि सोमिकः पशः, ततः “सोमं चः” “टतराणि” पग्पुरोडाश धानाप्रश्ठतोमि ; श्रथ एयक ata, ततः “arearfa”? प्रयाजानज्य- भागखिष्टकृत्मश्तोनि, “श्रावापिकानि च? प्रधानद्वोंषि ° i—ea- ALTIMA

“sfafifa शाकपूणिः" योऽय मेषा मभिमतोपकारकारो, नराणां प्रशस्यः, नराश्रसोऽन्चिः, तस्य वयम्‌ “उपस्तोषामः' ` “उप- aa.” “महिमामंः यजतस्य यश्चसम्पादयितुः ‘as’ कर्मभिः

# “ar चै ag गराणंसपरङूक्तिं वेद, नराशंसपङूहिना यत्नेन रा्ोति। fem रासं प्रातःसवनं fenced माध्यन्दिनं सवनं सषटत्चाराशंसं इतौयसवन मेव वै यक्ते मराधंसपङ्क्तिनेराणंसपडक्तिनायज्ञेन राक्ीति ce Fz 1%— chy to Wie ee, अभेवपुराडागणामादोमां whee विलतम्‌

8१८ निगक्घम्‌ | [उत्तर ४८ ४,

qth vam, तस्िषुपस्ठतमहिन्ि गरा्श॑सेऽप्नौ तानि ‘a °सुक्रतवः, देवाः, शएचयः, धियं धाः”, ते एतानि “उभयानि स्वींषि आखादयन्त्‌ ।--दत्ेतदा शास्महे

“हसः” af? पनरयम्‌ “te: स्हतिकमेणः"” ; wat ह्यसौ “दन्धतेवी? रौपना्ख ; ततृक्रियायुक्रो हासौ “ae” “gq” प्राधान्यस्ततिः “भवतिः (©) 7

` श्चाजुच्नान इदो वन्द्या यद्ग्ने वसुभिः सजेो- a | त्वं देवाना मसि aw हाता रनान्यक्षीषितेा यजींयान्‌ aTgaata ईलितव्यो वन्दितव्यञ्चाया- ग्रे वसुभिः सहजाषणक्त्वं देवाना मसि aw हाता यच इति मता नामधेयं यातश्च Rae भवति dara यक्षीषिता यजीयान्‌ इषितः प्रेषित इति anite इति वा यजीयान्यष्टतरा aft: परिवंणात्‌ तस्यैषा भवति (८)

| (> “श्राजङ्णान इद्यो वन्दख्च-द्रति{ हे भगवन्‌] यः त्वम ‘sq वन्द्यः ware! “दद्यः दोपनारः शविभिराञ्या- दिभिः ‘Fy स्हत्यः। लम्‌ श्राजुङ्कानः' “STRATA.” एत- : # cate ४९१९६ १० We ewe (४); ४९९ ze (a)!

Che खतो" - GET! खा० "मि aT दोरो- दर Te ६९। { we सं ८.९.८२ यन्वा Ge GIMME इदगापरोषु अतुरो (९९,९८)।

त्य रपा ५०] देवतं काणम्‌ | ९६९

सिन्‌ कमणि अस्माभिः, "वसुभिः, (‘ata’) “सदजोषणः'” समान- Wiser श्रायादि' कस्मात्‌ पुनरेवं प्रमहे ? द्तः,-- यस्मात्‌ हे ‘ag’ “मदत्‌ |”? ‘aa’ “श्रसि” “हताः “देवानाम्‌ argrar | “a.” मस्माभिः ‘cfaa’ “प्रेषितः”, “श्रघोष्टो वा” wafaat Waa गिला waa, “एनान्‌” देवान्‌ ‘ale’ यज इत्येव HAP कि fara any ? ear यजोयाम्‌' safe “gan” मनुख- हातुरिति

दृह द्यः" रति एकवचन मगररव्यवधानेन तथेतस्िन्‌ मन्ते एकस्य श्रुतलात्‌, एष्टिके पुगरत्र ‘car wy ्राव्यस् वन्तु दूति बडवचनयुक्रादाख्याताद्‌ व्यन्त्ित्येतस्मात्‌ शइलः"-ए्येतस्यापि qs- वचनल मेव “डो व्यन्तु-ट्ति। तच पुनरन्नाभिधानम्‌ °, wa पुनरोषधय एव, arg weather: waft भजन्ते, तदा- mara मश्निरिच्यत दति aw बहवचनं प्रतिसमाधान मोषध्या- त्मनारव्येवधारणात्‌ | उक्ञ्च--“योऽय wale एथिवया मद्निरन्तसै- वधिवनस्यतिव्वप्ु gfe: sing सरवनामानम्‌"-शति। | तस्माद्‌ पपद्यत इति

“afer—sfat निवेक्यम्‌। तत्‌ सुनरेतत्‌ प्रसिद्ध जेव कुशमथं यज्ञाङ्गम्‌ तत्‌ कसमात्‌ बहिः? इति। उच्यते,- 1 ee

* “col यजति खङ्ग ar Xolsy मेव तत्‌ प्रोखानि, Gy यजमाने द्षा-

ति दति to wre et, ४। प्रण्ठात्‌ ९८० Te ९६ पर (qe x खर | { ६भाग ४९९१०६५ ख० ख. (९); ४६१४० ()।

8७ निक्तम्‌ | (उत्तरषट्‌कम्‌,

""परिबेणात्‌”' परिच्छेदनात्‌ ; लनं fe az भति, afteg

a

वा*। “aa एषाः बर्हिषः प्राधान्यम्तुतिः “भवति” ५८८)

` प्राचीनं afe: प्रदिश एथिव्या वस्तेारस्या इज्यते “TARA व्यु प्रथते वित्र वरीयो देवेभ्यो अ्रदिंतये स्योनम्‌॥ प्राचीनं afe: प्रदिशा प्रथिव्या वस्नायास्याः प्ररज्यते अग्रे अहां! बहिः ware तदिप्रथते (वितर) विकीणंतर fafa a विस्तीणंतर fafa at वरीय वरतर सुरुतर वा देवेभ्यश्चादितये स्योनं स्योन मिति सुखनाम स्यतेरवस्यन्त्येतत्सेवितव्यं भवतीति वा दारा जवतेवा Fada वारयतेवा तासा मेषा भवति &ई (€) i

“प्राचोनः afé.°—zfa 91 प्राच्यां fafa चदश्चितं गतं जतं प्रागयं वा यत्‌ wad, तद्‌ भवति भ्राचोनम्‌' किम्यनस्तत्‌ ? ‘af’ “प्रज्यते" प्रच्छिदयते शूयते, श्रथ वा “needa” प्रलो-

* ("बरङंयैजति पभवो वे बहिः, ware तत्‌ Phos, पश्म्‌ यजमाने दधाति-द्तिरे° ate ₹,९१,४।

+ “Gemasusst” क,

{ नाख्यतत्‌ पदम्‌ क-ख-ग-पुरकेष |

§ we सं* ८, Cal ae are de Granted Teme पञ्चमो (१९,९९)।

स्र रपा que] ` देवत॑;कारडम्‌। BOR

यते। किम्यनरेव मेव सं-मनोषिकया ? नेत्युच्यते, “प्रदिशा” विधि- वाक्येम प्रागुदग्वा बर्दिंज्डिनन्तोति सामर्थ्यात्‌, aa ar “nfem” getaway “देव्य ar’ - इत्यनेन * स्तरणपक्तेऽपि “grad बर) quifa” - दूति विधिवाक्यम्‌, “ऊर्णच॒द्रा falqea—efa t मन्तः। कि av पुनस्तत्‌ प्रडञ्यते ? एथिवयाः वस्तोः wan’ एथिवौ वेदो, तस्याः वस्तोः" “वसनाय श्राच्छादनाय। कदा पुनस्तत्‌ rest ? श्रये wera’ “gare”; तदा fe aaa दभेस्लरणं लवनं atl ama वा यथाकालं विविधं ‘nua’, विस्तौयते वेद्यां काद्यमानायाम्‌ | प्रवन्यमाणं वा प्रस्तोर्यमाफं वा विप्रथते। “वितरम्‌? तिस्तो्णादपि ““वित्तोशेतरम्‌", ‘atta’ “वरतरम्‌” Beat BMP: Beata, तदाधारवाद्धविषाम्‌ ; “sear a’ बहतर वा। fa aa पुनस्तत्‌ प्रटज्यते, विप्रथते वा? "द्‌ वेभ्यः “a”; श्रदितयेः “च ay नाम ‘at “qd” स्यादिति; afear हि सगणौकृत्कमेणो देवानां दविदतुणां यज- मानानाम्‌ श्रभो एितेन फलेन योगो भवति, तत्सुखम्‌ “श्रदितये' vfaa ; afar fe सणोरतात्‌ कर्मणश्चा ङतिद्ारेण टृष्टिभवति, तत श्रोषधिप्ररोहः। ततुखम्‌

` नातं ्रतौत्यद्निरिति। तेन यज्ञाङ्ग सेवाभिमत मेतदिद्‌ मघ्यस्या- चार्यस्य तद्रारेणेव वयवधानेना्चिः waa, एयिवयायतनल्वात्‌

* qo वाग सं ९, ९० ; २९२४ ९, २० ; REL ११, ९, REI १८, RO, ९०, ९। ९०, ९। २८, UV . twee aS ९९४ अजोषा aay चाप्रौखक्न cd चतुर्थौ।

BOR निरक्तम्‌। [उन्तरषटकम्‌ः

ae (aut पुनरग्िवदपि योजयन्ति area: | aad afe रित्यन्धभिधानम्‌* प्रागच्यते प्रणीयत दति शरासनं afer sag मादनोचास्यं व्योति; | “प्ररञ्यत*” प्रणोयते तत्पुनः रदिश" वचनेन प्राश्च सुद्धरन्तोति। “ए यिव्याः' वस्तोः “वसनाय” ; श्रप्निनेव fe बेदिरनग्रिका भवति “श्रये were “Gate” ag विविधं प्रथतेः सामिधेनो मरचेपात्‌ श्राज्यभागाधारादिषु विस्तीणेतरं विचिप्रतरं प्रथते ‘atta’ “वरतरम्‌” चअन्येभ्यो otf; “उरूतर'” ae at “वाः ‘gaa’ यजमानेभ्य इतरेभ्यो वा, शश्रदितयेः “च waa कथं नाम ‘eta’ स्यादिति

“द्योनम्‌- दति सुखनाम 1 “aa” धातोः श्रवपूर्वात्‌, aza रि “श्रवश्वन्ति” व्यवस्यन्ति, निवसन्ति प्राणिनः “सेवितं भवतोति वा” afg सर्व॑स्य Bane भवति

“are - इति { निवेक्षव्यम्‌ “ag aware इति कात्यः” | ताः पुनरेताः “जवतेर्वा जवन्ति fe ताभिः “gadal?y धालन्यव aunty “वारयतेवी"” वारणोया हि दारारेव निवा- यमो | “तासाम्‌” “एवा” प्राधान्यस्ह॒तिः “भवति-- ६(९)॥

व्यचस्वतीरविया वि श्रयन्तां पतिभ्यो stata: शुम्भ॑- मानाः | दैवींदारे इहतीर्विंश्र fara star भवत

* य्व ° सं” १८, १६९. ^"द्‌वम्नृिः"- इत्यादि मन्नयाद्छानं इयम्‌ ` भै षष्डकसारथाये मिदम्‌ Lae ९१४, २१०४० Ewe Ce (६५)। T १भा० ४९९, BCR Tou Gee de (0,1

to, a

cw RgTe ome] देवतं काणम्‌ | OR

सुप्रायणाः॥ व्यश्चनवत्य veda विश्रयन्तां पतिभ्य द्व जाया ऊरू Aga धमे शुशोभिषमाणाः* वरतम! मङ्ग TE देव्यो दारो Teal महत्यो विश्च frat विश माभिरेति at ददार इति कात्धक्मोऽभ्रिरिति शक- पुणरषा सानक्ताषाश्च नक्ता चोषा व्याख्याता नक्तंति राचिनामानक्ति सभुतान्यवश्यायेनापि वा नक्ताव्यक्त- वशा AATTAT भवंति (१०)

“व्यच॑खतोः"- दति ty "याः" एताः विविधेनाश्चनेम गमेम ब्यन्ते ‘avant’, ताः किं gar ? “उविया' उर्लेम महत्वेन "विश्रयन्ताम्‌" विभरियन्ताम्‌ कथम्‌ ? “पतिभ्यः जनयः, “afta द्व जायाः” यथा पतिभ्यो जाया “ऊङ्‌ मैथुने धमं” विट खन्ति (“्दुश्नोभिषमाणः”) शोभयितु मिच्छमानाः प्रषोात्‌, एवं विश्र- यन्ताम्‌ | ददानो FASE AYIA: याः ae व्यञ्चनवत्यः एवं fanaa, ततो त्रवोति,- हे “sey” दानक्रियादेतुख्धताः! श्वारः !' “Caen” “महत्यः” "विश्वम्‌ इन्वा “विश्वम्‌” सवम्‌ “श्राभिःः' “ofa” यन्ञापकरण मिति विश्च fran, य॒य सुश्यष्ये। Shay’ एतेभ्यो efagiaw: wang: यजमानेभ्य इतरेभ्यो वा | “सुप्रायणाः” GANA: "भवत" I— THAT |

* ‘gaifawaran’?’ a | ¢ “aware al

{ we do ८, 0,5, wime are Go खाञमेभिङ़दादगप्रौ Seat (९९.९.)। 60

ges निशक्तम्‌। [उत्तरषटकम्‌ ,

“fq: इति शाकपूणिः" | तत्परे योजना ~ agqafeat टारः। mama द्रवणादा। इविवा, ताभिजंवति द्रवति वा, वारयति वा Tana alfa इारः। "यचखतोः' याः एताः विविधेनाखनेन तदतः श्रद्मपशिषः | ताः उर्वेन विश्रयन्ताम्‌” | कथम्‌ ? ““पतिभ्चं दव जायाः” SE AYA wa णोभयितु मिश्छमानाः। चा युयं विविध- argaa ace, aad fang, ततो aatfaes हे “देव्यः” “awe.” “विश्व fan? सवे दवियैभिजेवति, ता ga we दविषः “सुप्रायणाः सुगमनाः ‘yaa’ इति 1

““उषासागक्षा"- दति { एकपदम्‌ ae विहः - “उषाश्च नषा चः, ae “उषा व्याख्याता-““उच्छतोति सत्या” दूति? “anita राजिनामः | तत्‌ कस्मात्‌ ? “अनङि, करयति “aria”? “श्रव यायेन ति अवश्य मेतदायन्तोत्यवश्ायाः रष्वा श्रगक्र- रकारलेपे भक्षा “शपि वा मक्ता श्रवयक्वणा नकार प्रतिषे ; GAT, व्यक्ता, WAT | यथा रहः सवं मभिग्क्षूपं भवति, 4 तथा राजिः। “ae: “एषा” प्राधान्यष्ठतिः “भवति” - ॥७८९०)

चा सुघ्यन्ती यजते पाके उषासानक्ता सद at नि येने feat योषणे ददती सुरुक्मे अधि fra

* Stay ay त्रवौमिः" ख।

“दुरा यलति। षि दुरे इटि मेव तत्‌ Tafa, ufe ward यलनाने दथाति?- इति रे° २, ९, ४।

T \ भार ४९९; ४९९ ४०४ Weg ख. (८)

gute ९२९२ ४० Ewe CT ख०।

|| cere निषष्ौ राजिनामदु पठितम्‌ भा० ४९६० We We (१०)

cq RgTe cae] Raa wT | dey

शक्रपिशन्दधाने सेष्मीयमाणे इति वा सुषापन्या- fafa वासीदतामितिवा न्यासीदता fafa ar यज्निये उपक्रान्ते feat योषे weal महत्यो सुरुक्मे सुरा- चने अधिदधाने शुक्रपेशसं श्रियं qh शोचतेञ्यल- fanaa: पेश इति रूपनाम पिंशतेवि पिशितं+* भवति। देव्या हेतारा देव्यो हातार।वयं चाग्निरसौ मध्यम सयारेषा भवति (१९)

“शा सुष्वयन्तो"- ति ।“श्रासुष्बयग्तौ' “सेन्नोयमासे” परस्परं WIAA, श्रय वा “सुष्वापयन्यो"” सृष्ट जनान्‌ खापयन्धौ "यजतेः हेहकन्ततवेन यजते “afya” यज्नसम्यादयिश्यौ 'उपाके' “उपकानते" उपगम्य इतरेतरं क्रान्ते। “दिये fefas द्योतने। "योषणे" afas परसरतः। बृहतो" “बृहत्यो महत्यो” ‘gem’ “gtrea” Bala | ये एते एवमादिणयुक्रे उषासानक्ते “श्रभिभ्रियम्‌' fray ““श्रधिदधाने” उपरि सापयग्धो, (“गरक्रपिश्रम्‌?) “"ब्रदक्रपेब्घम्‌” शएक्तरूपां ज्रियम्‌, (areca) रासो दताम्‌" एतस्मिन्‌ खे “योनो” श्राकार उन्क्यते Grae हि कियापदन सामथयम्‌,- “न्यासौदताम्‌ इति मियमेनासौदता मिति ; निरूत्तरपदग्धोऽप्यपहव्य तेनैव क्रियापदेन ! नि-जब्दखोन्तरपदो वा पादपूरणः

* “"पि्तेविपिंचितं"?क, ख, a1 We सं०८,९,८,९ यन्या go जाजमेधिके दादबाप्रोषु सामो (१८.९१), 1 wafa परेऽपि qwafware”’—. रति पा ae ९, ४,८६-८१।

Sod faa [उषरषघटकम्‌ ,

aanafatia, aa दिलानुपपन्तिरितिकेचित्‌। श्रपरे पुमवंणंयन्ति-उषा श्रेरो िः,. नक्रा ssfacifa:; faareafa तमः, ्राङतिरनक्तयाच्येन | ते एते रोघ्याडतो षु यमाने टव ‘ana’ ‘afsa यन्ञसभ्यादयिच्यौ ‘eur’ “उपक्रान्ते” पर्‌- waa: | ‘fea’ ्ोतने परस्पराश्रयणात्‌ “योषणे मित्रौशते (हरतो) “seat, मर्यो" ‘quan’ “gtraa” “श्रधि- दधनेः शएक्रपिण्म्‌ः “इएक्रपेश्सम्‌” एतस्मिन्‌ यजमाने ‘faq’ (“श्रा सदताम्‌”) “maa” एतसिन्नग्नौ “aden” नियमेनाधिकं वा।~ caer °

“du इति रूपनाम 1, “पिंशतेः” धातोः ; तङ “fafafad भवति” विकसितं भवति, यावदाश्रयभावित्वात्‌ विनिहित मिति के विदन्याभचितलात्‌

“हेया होतारा दति वक्रम्‌ “Fait dant —sfr श्रब्दसमाधिः। “श्रयश्चाञ्चिरसौ मध्यमः”-रत्यभिषेयवचनम्‌ | “aa”? “yar? प्राधान्यस्॒तिः “भवति” ८८१९)

दटेव्या हतार प्रथमा सुवाचा मिमाना यन्न मनषो यजध्ये | प्रचोदयन्ता विदथेषु कारू प्राचीन ज्योति

© SOUSA SHOUT वा SUSTAINS रव ATT ATIC ye यजमानं दधाति? दूति Lo त्रा &, ९, ४। |

खरणाथे मेतत्‌ wats रूपमामपु निषष्टौ | भा० १९८४० एय. = we (६०)

T & भा ४९११, ४९२ ९.०४ Ge ९० (e) |

et शा अय्य ऋष

प्य. रपा Lae] देवतं कागढम्‌ | geo

प्रदिशा द्श्न्त॥ देवयो Brae प्रथमो सुवाचा निभ्पिमाने यत्नं मनुष्यस्य (मनुष्यस्य*) यजनाय प्रचा- दयमानो THY क्षारो पुवस्यान्दिशि यष्टव्य मिति प्रदिश्न्तै तिलो देवोसिखो देव्यस्तासा मेषा भवति (१२) |

“हेया होत रा-दति।। यावेतौ “Sat होतारौ देवेषु भवौ देव्यौ, देवाबेव वा zat; खां एव तद्धितः। मनुदहोतासौ होढ-मैजावरूणणो weal) दैव्यौ होतारौ इति विशेषणम्‌ at पुनस्तौ ? (“होतारा”) “etal” श्रन्हातारौ देवानाम्‌, arafqa- लचणौ 21 (प्रथमाः) “प्रथमो मुख्यौ, मनुदोतारावपेच्छय (सुवाचा?) “सुवाचो” प्र्स्तवा चौ, सुस्हतौ “मिमाना ane यन्चनिमातारौ, नित्यं ‘wae’ “मनु्यस्य'” "यजध्यै “यजनाय” |

* नाश्यंतत्‌ पट्‌ क-खख-न-पस्तकेष |

We सं० ८, ९, ९, ९। ae are द° खाञमेधिके दाद व्राप्रोग्यहमौ (१९,२९)।

t Wr नाम aaa safes, awaews aq प्रधानसारखाण्यकासै afas ung धिष्णाषे मेजावदखस्प्रापि fra afe “Win यजति * @ * awaeg यजतिः? रत्यादि wawafeacet इट्स्‌ te Te ¢ 8, tI “afoqr wfhaeig: * * * aferd सविधि मषावङ्कस्य- इत्यादि पश्यभा- मो द्हयः। Ce त्रा, ९, Ul "मनोव यज्ञस्य मंजायरणशो वान Gea VT, मनसा बा cea वाग वदति; at छन्यमना AUG FT खा वामरेवनष्टा षति होढ-मबावदखयोः सम्बन्ध om: पयपरिविषो | to nto ९,१,४।

§ ‘fat यार्चिकानां प्रखिदडो creat (९, ९, wa, ९) इति, “wae awa- IMUM (९, ९, १९, २)-- एति, “अद्रो पाथिवामारिष्यो (९, ४, ९२, २)" —vfa, “ant (२, ८, ९२, ९)- इति, ““खअग्रादिःत्यौ (=, ९, ९, २)- इति Swe Yo gre ure) ^ रेयादातारा यजतिप्रायापानो वे <I VMN WT पानाकेव तत्‌ Maa srewwat यमाने cyifa’—cfy te to z, 0, ४।

sex निबक्तम्‌। [उत्तरषटकम्‌)

श्रचोदयम्ता' प्रचोदयमानौ "विद येषु" “age” ‘are “and” च्छविजो ; मानग्रिको यश्नोऽसतोत्यधिनिंमिंमोते, चासावनुपश्मातो वायमा वलतोति वायुनिर्भिंमौते। विश्चायते हि - “तस्मारेष नातुपश्नातो उ्वलति-ए्ति। एष भेचा्ररुणो वायुरपरहढ- वरधियन्ने amare नित्यं चोदयिता, amare away: | तावेव देवाना मान्हातारौ उच्येते। यावेतावेवं ‘qetzeait’ “विदथेषु wag, ‘ae’ wrt मनुव्यष्ोतुः अनुरदस्य, मित्य खाधिकारकमानुग्रहसज्निधानात्‌ यदेतत्‌ (‘areata’) प्राच्यां fate ‘atfa’ शआ्रहवनोयाख्यं प्रणोयते afem मन्त्रेण mel मनु प्रदिशं प्रेदोति waa विधिवाक्यप्रदेशेन, श्नेन वा “arg मुद्र fer—efa एतत्‌ aia नित्यं यष्टव्य fia थें श्रदिब्न्तौः आआज्नापयन्ताविव यौ नित्य मवियोगेन खभावतो क्नोपकारे वन्त॑मानौ aad वर्तता fafa | एव area मध्याइत्य षमा प्यते निराख्यातत्राक्मन्लस्य

“faa देवीेः*-इति' पदम्‌ ताः पुनरेताः “faat gen”, प्रथमया ता निरा ; fae इति रेवोगब्दश्य विशेषणम्‌ “aay एषा भवति” प्राधान्यस्तुतिः-॥ (९२)

आना ad भारती qa afeax 1 मनघदिह चेत- यन्ती faar दृवीबंहिरेदं स्योनं avert स्वपसः

# १शा० ४१९२, ४९२ To wwe एखन (to) I

t a fargt” क,ख, ब।

स्च एपा० १००] देवतं काण्डम्‌ ged.

सदन्तु॥ रेतु नो यज्नं भारती feat भरत ्रादित्यस्तस्य भा इला मसुष्यवदिह चेतयमाना तिष्लोदेष्यो afefce सुखं सरस्वती सुकम्माण Bde त्वशा qu aya इति नेरुक्तास्विषेवी स्यादीप्तिकर्मणस्वक्ष- तेवा» स्यात्करातिकर्मणस्तस्यैषा भवति १० (१३)

“a at ay भारती षति श्राभिमुख्येन. रस्माकं ay मागच्डतु का पुनरसौ? एति। भारतौ" “भरत श्रारित्यः" खवेन्डतान्युदकेन विभक्ति, “ae” qa “भाः” Sift कथ मेतु ? ‘aa “feng? ईला “a” एयिवोखखाना “दृहैबेखया। वरुमलत्या"- इत्यतुयाजञेषु उश्नौतसामय्यात्‌ पायिवलयात्‌ (मतु- ay) “मनुष्यवत्‌” दृह" aafe शतेतयन्तो" “चेतयमाना” चथा मनु्येन AVY श्रातो vim मविलम्बमान श्रागच्छेत्‌, प्र मेव भागच्छतु; सा ममेह कमणि इविभीक्व्य मित्येव ae लाभानां ‘avaay “च” arena मेव ‘yaaa weg ता want ‘faa’ श्रपि “देव्यः खपसः' “gaara.” असिम्‌ कमेणि दं बरहि" “स्योनं “सुखं” प्राप्य एतस्िन्‌ (श्रादन्तु) “maiz” i— दृत्येतदाग्रास्महे ° °

* Cogwady” क,ख, a

We सं०८,१,९,१ 1 ae are Go खाञ्चतेधिकेदादलप्रोष गवमो (१९.९२)। t ‘qu Wiwa—tfa, | रडा- र्ति, || ""दशवेडया- दति, रव मेताः- र्ति ख्-पाडाः।

* # “faay रेकौयेगति प्राशो बा अपाना व्यामसतिखो ewer ea ay Terie ला gaat quifa—cis te wre ९, ९, ४।

ete निबक्तम्‌। [उन्तरषटेकम्‌,

शव्टा"--दति" वक्षयम्‌ wa aon चिप्रवाचिनः पूर्व परम्‌, श्रस्नोतेरत्तरपदम्‌ | चिप्र व्याप्नोति, यदनेन araaj भवति .। “fada”’ धातोः que, eg एव नित्य मसौ देवतालात “qgadat ara” क्रियासामान्यमाचवाचिनः, उल्यष्टतमुकरणखा- Qa 1 “तस्य “एषा” प्राघान्यस्ततिः “भवति--॥ ९० (९३)

दमे. यावाषटथिवी जनिबो रूपे पिंशदवनानि विश्वा। तमद्य हतरिषिता यजीयान्‌ देवं त्वार मिह यकि faery इमे द्यावाप्रथिव्यौ जनयित्यो रूपेरकराद्‌ भूतानि सवाणि मद्य हातरिषपिता यजीयान्‌ दे वन्वष्टार fae यज विदान्‌ माध्यमिक- सवशेत्याष् मध्यमे स्थाने समानाताऽभ्रिरिति शक- पूणिस्तस्येषापरा भवति ११ (१४)

“a a दयावाषटयिवौ- दति "यः “amar” मेः ““द्यावा- प्थिव्यौ” सवषां शतानां “जमयिव्यौ” ‘ead’ नानाविभः अ्रनेक- प्रकारैः “mata” “तानि सवशि” we at ङ्पीरिति कर्तेवानया तोयया खच्यते ;- AMET ATEN "यः" लष्टा ETAT

एभा० ४९९; ४९९ Te ६य्० एचर (१९) तक्‌. WE TASTE एति wre ग्वार (uy, ९६४१ { "नाष्यमकस्वष्टेग्याङमध्यमेः क,ख, | We Ue ८,९, ९, 81 ae ae do खाञ्जमेधिके इादमप्रौष cua (२९, Qu)! |

Parifishtaparvan (Sans.) Fasc. I—III @ /6/ each ws Ra.

Pingala Chhandah Sdtra, (Sans.) Fasc. I—11I @ /6/ each .. oe Prithirij Rasau, (Sans.) Fasc. I—VI @ /6/ each ०१ oe Ditto lish) Faso. I .. , ०७ ०७ Pali Grammar, (English) Fasc. I and II @ /6/ each ०१ oe Prékyita Lakshanam, (Sans.) Fasc. I ०७ ve ०9 Pardésnra इद्त (Sans.) Fasc. I—V @ /6/ each oe Srauta Sutra of Apastamba, (Sans.) Fasc. I—XII @ /6/ each Ditto ASvalayana, (Sans.) Fasc. I—XI @ /6/ each ve Ditto L&étydéyana (Sans.) Fasc. I—IX @ /6/ 680 oe

Ditto Sénkh4yana (Sans.) Fasc. I—II @ /6/ each Séma Veda Sawhit4, (Sans.) Vols. I, Faso. 1—10; II, 1—6; III, 1—7; IV, 1—6; V, 1—8, @ /6/ each Faso ; ०* Séhitya Darpana, (English) Fasc. I—IV @ /6/ each ०७ Sankhya Aphorisms of Kapila, (English) Fasc. I and II @ /6/each = ,,

Sarva Darfuna Sangraha, (Sans.) Faso. [1 ०९ oe Sankara Vijaya, (Sans.) Faso. II and 11 @ /6/ euch ie `~ ee 88770159 Pravachana Bhashya, (English) Fasc. ITT os oe Sankhya Sara, (Sans.) Fasc. I oe ०९

Susruta Samhita, (६ .) Fasc. I and II @ /12/ each Taittiriya Aranya Fasc. I—XI @ /6/ each ‘is Ditto Dr&hmana (Sans.) Faso I—XXI1V @ /6/ each . Ditto Samhita, (Sans.) Fasc I—XXXIII @ /6/ ench . Ditto Pr&tisdkhya, (Sans.) Fasc. I—11II @ /6/ each. Ditto and Aitareya Upanishads, (Sans.) Fasc. II and III @ /6/ each

Tandyé Bréhmana, (Sans.) Fasc. I—XIX @ /6/ eac ०५ ee Tattva Chintémani, Fasc. I—IV (Sans.) @ /6/each . ०७ ०७ Uttara Naishadha, (8808. ) Fasc. III—XII @ /6/ each 9 3 ee Uvdsagadashio Fasc. I and II @ /12/ oe eo Vayu Puréya, (Sans.) Vol. I, ‘Faso. 1—6; Vol. II, Fasc. 1—6, @ /6/

each Fasc ee ee , ** ` ०७ Vishnu Smriti, (Sans.) Fasc. I—II @ /6/ each ve ee Vivadaratnékar, Faso. I and IL @ /6/ ०* ve ०* Vribannfradiya Purdna, 580. = ०९ Yoga Siitra of Patanjali, (Sans. & English) Fasc. I—V @ /14/ each .. The same, bound in cloth ०७ ee oe oe

Arabic and Persian Series.

*Klamgirnamah, with Index, (‘Text) Fasc. I—XIITI @ /6/ each we Ain-i- Akbari (‘T'ext) Fasc I—XXII @ 1/ each ०५ oe

Ditto (English) Vol. I (Fasc. I—VII) .. ; ०७ Akbarnamah, with Index, (Text) Fasc. I—XXXVI @ 1/ each oe Badshahnamah with Index, (Text) Fasc. I—XIX @ /6/each = ` oe

Beale’s Oriental Biographical Dictionary, pp. 291, 4to., thick paper, /12 ; thin paper. Dictionary of Arabic Technical Terms and Appendix, Fasc. I—XXI @ 1/ each e ee ee Farhang-i-Rashidi (Text), Fasc. I—XIV @ 1/ each Fihrist-i-Tusi, or, Tusy’s list of Shy’ab Books, (Text) Fasc. I—IV @

/\2/esch .. $ ~< ०७ Futih-ul-Sham Waaidi, (Toxt) Fasc. I~IX @ /6/each ०, - os Ditto di, (Text) Fasc. I—IV @ /6/ each ae oe Haft Aeman, History of the Persian Mansawi (Text) Fasc. I ०७ History of the Caliphs, (English) Fasc. I—VI @ /12/ each / oe Iqbainamuh-i-Jahaéngiri, (‘Text) Fasc. [—III @ /6/ each ०९ Isabah, with Supplement, (Text) 40 Fasc. @ /12/ each .. ee Maghazi of Wagidi, (‘Text) Fasc. I--V @ /6/ each ०५ Muntakhab-ul-Tawarikh, (‘Text) Fasc. I—XV @ /6/ cach oe Muntakhab-ul-T'awdrikh (English) Vol. 11, Fasc. I—IV @/12/ each .. Muntakhab-ul-Lubab, (Text) Fasc. I—XVIIL @ /6/ each.,

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Mu’égsir-i.’ Alamgitf (Text), Fasc. I—VI @ /6/ each Re Nukhbat-ul-Fikr, (Text) 086. == ०.

Nizghm{’s ह1178तााक्षा)1 1-19४87 8 (Text) Fasc. I and Il @ /12/ each Suydty’s Itqan, on the Exegetic’ Sciences of the Koran, with Supplement,

(Text) Fasc. {{- ४, VII—X @ 1/ each ws Tabagét-i-Ndsirf, (Text) Fasc. I—V @ /6/ each ne we Dit (English) Fasc. I—XIV @ /1 each. ०* Térikh-i-Firdz Shahi, (Text) Fasc. I—VII @ /6/ each oe ee Térikh-i-Baihagi, (‘Text) Fasc. I—IX @ /6/ each ०७ ०* Wis 0 Ramin, (Text) Fasc. I—V @ /6/ eac xe oo ०० Zafarndmah Fasc I—V @ /6/ each ee 9९ ee

` ASIATIO SOOIETY’S PUBLICATIONS. Asiatic 88840४28. Vols. VII, IX to XI; Vols. XIII and XVII, and Vols. XIX and XX @ /10/ each Rs. Ditto Index to Vols. I—X VIII

Procsepinos of the Asiatic an from 1865 to 1869 (incl.) @ /4/ per

No.; and from 1870 to date @ /6/ per No Journal of the Asiatic Society for 1843 (12), 1844 (12), 1845 (12), 1846 (6), 1847 (12), 1848 (12), 1860 (7), @ 1/ per No. to Subscri- bers and @ 1/8 per No. to Non-Subscribers; and for 1851 (7), 1857 (6), 1858 (6), 1861 (4), 1864 (6), 1866 (8), 1866 (7), 1867 (6),

1868 (6), 1869 (8), 1870 (8), 1871(7), 1872 (8), 1873 (8), 1874 (8), 1876

(भ), 1876 (7), 1877 (8), 1878 (8), 1879 (7), 1880 (8), 1881 (7), 1882 (6), 1888 (6), 1884 (6), @ 1/ per No. to Subscribers and @ 1/8 per No. to Non-Subscribers

N.B.. The figures enclosed in brackets give the number of Nos. in each Volume

N.B. All Cheques, Money Orders &c, must be made payable to the Treasurer

Centenary Review of the Researches of the Society from 1784—1883

General Cunningham’s Archwological Survey Report for 1863-64 (Extra No., J. A. 8. B., 1864) ..

Theobald’s Catalogue of Roptiles in the Museum of the Asiatic Society (Extra No., J..A 8. B., 1868) 5

Catalogue of Mammals and Birds of Burmah, by E. Blyth (Extra No., J. A. 8. B., 1875) oe

Sketch of the ‘Turki Language as spoken in Eastern Turkestan, Part II Vocabulary, by R. B. Shaw (Extra No., J. A. 8. B., 1878) os

A Grammar and Vocabulary of the Northern Baloch{ Language, by M -L. Dames (Extra No., J. A. 8. B., 1880)

Introduction to the Maithili Language of North Bihér, by G. A. Grierson,

Part I, Grammar (Extra No., J. A. 8. B., 1880)

Part II, Chrestomathy and Vocabulary (Extra No., J. A. 8. ए, 1883) Anis-ul-Musharrahin.. ee oa a षि) Catalogue of Fossil Vertebrata ve ee ०७

Catalogue of the Library of the Asiatic Society, Bengal

Examination and Analysis of the Mackenzie Manuscripts by the Rov.

W. Taylor .. ee Han Koong Tsew, or the Sorrows of Han, by J. Francis Davis ०७ Ietild4hdt-us-Safiyah, edited by Dr. A. Sprenger, 8९० ०५ ०४ Indéyah, a a ear on the Hidayah, Vols. II and IV, @ 160/ each .. Jawimi-ul-’ilm ir-riyAzi, 168 pages with 17 plates, 4to. Part I ०७ Khizénat-ul-’iJm eo oe ee

Mahébhérata, Vols. IIT and IV, @ 20/each = ,, + oe Moore and Hewitson’s Descriptions of New Indian Lepidoptera,

Parts I—II, with 6 coloured Plates, 4to. @ 6/ each oe ee Purana Sangraha, I (Markandeya Purana), Sanskrit ar oe Sharaya-ool-Islam ०५ ०* ee ०५ Tibetan Dictionary by Csoma de 6108 oe ०० ee

Ditto Grammar ०७ ee as Vuttodaya, edited by Lt.-Col. ©, E. Fryer os es Notices of Sanskrit Manuscripts, Fasc. I—XKX @ l/each .. ee Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. R. L. Mitra .. os

Asiatic Society” only.

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PUBLISHED BY THE ASIATIC SOCIETY OF BENGAL. New 3828, No. 588.

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सभाष्यदत्ति-निरक्तम्‌ | THE NIRUKT A.

WITH COMMENTARIES EDITED BY PANDIT SATYAVRATA SAMASRAMI. VOL. IIL. FASCICULUS VI.

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BIBLIOTHECA INDICA.

Sanskrit Series

Atharvana Upanishad, (Sanskrit) Fasc. I—V @ /6/ each .. Ra. Agni Purana, (Sans.) Fasc. I—XIV @ /6/ each es Aitareya Aranyaka of the Rig Veda, (Sans.) Fasc. I—V @ /6/ each...

Aphorisms of Sandilya, (English) Fasc Aphorisms of the Vedanta, (8६108. ) Fasc. III—XI1I @ /6/ cach 4 The Asvavaidyaka, Fasc. I—II ०७ ee Asvalayana Grihya Sutra, Fasc. II—IV @ /6/ .. oe ee Brahma Sitra, (English) Fasc.I.. ee ०७

0086789, (8६08. ) Fasc. I—VIII @ isl each Byihad Aranyaka Upanishad, (Sans.) Fasc. VI, VII & IX @ /6/ each... Ditto (English) Fasc. II—III @ /6/ oach Brihat Samhité, (Sans.) Fast. I—III, V—VII @ /6/ each .. Chaitanya-Chandrodaya Nataka, (Sans.) Fasc. TI—III @ /6/ each Chaturvarga Chintéamani, (Sans.) Vols. I, Fasc. 1—11; 11, 1—265; III 1—14, @ /6/ each Fasc ee os Ohhandogya Upanishad, (English) Fasc. 7 =, ee Dasarupa, Fasc. II and III @ /6/ * Gopatha Brahmana, (Sans. & Eng.) Faso, I and IT @ /6/ each Gobhiliya Grihya Sitra, (Sans.) Fasc. I—XII @ /6/ euch .. Hindu Astronomy, (English) Fasc. I—III @ /6) each ०५

Kélamédhaba, Fasc. I and Il @ if Ss ०५ ०* Kétantra, (Sans ) Fasc. I~ VI @ /12/ each >> or Kathé Sarit Sagara, (English) Fasc. I—XIII @ /12/ each .. ave Kanushitaki Brahmanapanishadgs, Fasc. IT ०७ ०७ ee Karma Purana, Fasc. I .. oe oe eid Lalité-Vistara (Sans.) Faso. II-VI. @ / ०१ ee Lalita-Vistara, (English) 1०8५. I—I1I @ /12/ each a as Manutiké Sangraha, Fasc. I oe ee

171888६ Dargana, (Sans.) Fasc. II—XVIII @ /6/ each .. Markandeya Purana, (Sans.) Fasc. I[V—VII @ /6/each ०, Nrisipha ‘lépani, (Sans.) Fasc. I—ITI @ /6/ each Nirukta, (Sans. ) Vol. I, Fasc. 1—6 ; Vol. II, Fasc. 1—6,Vol. ITI, Fasc. 1—6 @ /6/ each Fasc ee ०१ Narada Smriti F asc I and II @ /8/ : eo ee Nyaya Dargana, (Sans.) Fasc. IIL... Nitisdra, or The Elements of Polity, By Kamandaki, (Sans.) Fasc. II—V @ /6/ each @ ® se ee ee

(Continued on third page of cover.)

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THe रपा० Wwe] देवतं काणम्‌। |

प्रथिव्यावकरेत्‌ नानि सवशि * fae लुः? तं देवम्‌ aay ‘ty श्ररोतसिस्नहनि कर्मणि वा हे हेतः ! च्यक्चि ` यज “विदान्‌ जानानः मयेद aa awa भिति

भाध्यमिकस्लष्टेति विषार्‌ः। तच तावत्‌ “माध्यमिकः लष्टा- दति" “श्राह श्रावायोाः, के fester एवं मन्वन्ते "माध्यमिकः" —tfa asqmfafe: का हेतः ? “Awa चं स्याने समानाः ति किंञ्च एतस्िन्नव at ater कथम्‌? इमे दावाएथिगयौ शतानि advent तं देवं लष्टारं थथेति | ABT यष्टा एव पुमः सम्बोध्यते हे हेतरिति मजुखदेाना ; चान्यः uftaritinfal, तस्माद्‌ at asta wifes, waa मध्यमस्लषटेति सवेशिन्िमता मायायै देववद्ं किर ्ा- agar दाद प्राना मादित्याना मन्यतम द्त्यैतिहासिकाः 21 काऽ निश्चयः? श्रय मेष ““श्रद्चिरिति शाकपूणिः” |

कथं यत्तावनाध्यमे Bra ware दति? श्रकारण- सेतत्‌-श्रय मघ्यब्िमेष्यमे स्थाने aaa इति * * धत्पुगरेतट्‌

# “wart यञति। वान्‌ बे wet, TANS VT mete वाच मेव तत्‌ P- चाति वाचं यजमनमेद्धाति- दति te wre ९, ९, ४।

रभा. You To wwe wwe (९९) |

{ “अभ्रिं देवानां होता तस्यव खो लेके यदुशरवेदौ नाभिः" दत्यादिरे० wre ६, A, 1

§ “लजेतिडास माचखवे"--द्त्यादि वच्छत्याचा्यः १९ अण पार २० wey

|| अतरव “KE लारम्‌ (we de १, ९, २५, ४) श्त्या बाख्ायां “RUT BEATA मप्रिम्‌*-दत्याइ खायः |

दरव शे ९पर ; ४००९० Reyes मेऽपि

१भा० sou Te Uqe ewe (RQ) |

61

gcR franz | [उन्तरषट्कम्‌ ,

व्यपदेशात्‌ इति ?* तदपि समान मिद्रेणापि लष्ट्यपदेश् इति- aa दधदिद््राय wa मिति; श्रपि magmas मित्थश्क्य मध्यवसातुम्‌ ; श्रनन्यत्वेऽपि fe audit भवति तद्यया- ““श्रग्नि aq श्रावद"--दति। Fag! भगवन्‌! श्रग्निम्‌ way दति व्यपदेशे aaa; हि पाथिवादन्यः amy इविभाग्‌ वा श्रश्चिरस्ि, योऽनेन प्रसिड़्‌हादलाभिधानेनाहयेत, cia q—“@ मिमान arae’—xfa खिष्टरति विश्षलिङ्गगत्‌ खय मेवात्ममात्मानं विधिवशात्‌ श्राङ्ञानेन dea FU Fy Atay at यजति, श्रन्यदाभिनिवत्तयति। तददिषापि कमात्मनः परा योऽस्य तक्तणक्रियालक्षणगणम्‌, योग्यात्मा यदधिष्ठितः; कमेत्मा सवंङूपाणि पाकेन विकरोति केन विकरोति? a afar उच्यते-““व्ष्टा रूपाणि विकरोति इति { तदव qea— aqagra यज त्व मिति। एवं तावर्‌ व्यपदेशः शक्यप्रतिषमा- धानः। यत्पुनरक्रं॑ देवशिल्योति ? £ तन्तद्‌गृणामान्यारेवासावपि कौशलातिश्य मपेच्योच्यत दत्यदोषः |

,* पुरखादिरेव ४८१४० ode

“Wer दण्डा निन्य दति य° वार सु ९०, ४४

¡ “wer ङूपाणि fe sw (we सं eu, ९, ४), रूत्यजाइ Tre “लदा यश्नसाधमपाचाभिमानौ देवः, रूपाचि यनो earls रेतांषि ूपाचि कते प्रभरिं। fe र्दः सत्यकरप्रसिदिद्यातनाथेः। ‘tam सिक्ख war ef] विकरोति? डति अवेः इति |

§ परण्छादिव ४८१४० wtye |

तथा “aU वद्धं सुय maw (we सं ९, ९, २९, ९)०८- रत्य qrqrag “we विश्चकमा, वकं तत तनृरतवान्‌?"-रत्या्ाइ GIG |

CwWe एपा० १२ख ०] देवतं काखम्‌ | ace

यथा wafata नान्यः, तथा fafagatlea rt “sq” खग "भवति" ९९ (९४)

च्राविच्य वदते चारुरासु जिद्याना मूर्खः खय॑शा उपसं | उमे त्वषुर्बिभ्यत्‌ज्नायमानात्‌ प्रतीची सिंहं प्रति जोषयेते आविरावेदनात्तत्या वदधते चारुरासु चारु चरतेजिंह्यं जिदहीतेरूद्ं उच्छिता भवति * SAT WHIT उपस्थ उपस्थाने | उमे we विभ्यत्‌- ज्नायमानात्‌ (प्रती ची सिंहं प्रति जाषयेते 1) यावा- परथिव्याविति बाहाराचे इति वारणी इति वा nara सिंहं सहनं प्रत्या सेवेते १२ (Vy) I

इति च्र्टमाध्यायस्य दितीयः ore: ८.२.

“श्राविष्या वद्धंत इति श्राविः' प्रकात्ः। कस्मात्‌? ““"च्रावेदनात्‌”” सवस्य प्रकाश्रनात्‌ तस्मात्‌ “awe” ae तनिता “आविश्चः' किक्ञततणः? “aE: चरणश्नोलेः, श्रनवखितः किं करेति ? "वदधते क? “arg क्रियासु, arg वा प्रसवाय | aa? ‘fag क्ुरिलचेतसा मपि मनुव्याणाम्‌ अवैषम्येण

# ""जिरौवेखुद्धं मडतं मवतिः- दति क, ख,न।

AAT क-ख-ग-एरकेष |

twe de ९, ०, १, ६, ९, ९४, ९। “ख्य खङसमोवसनदविहषोऽपरि wersfaar देवता-ट्ति षार Ure |

e<g निरशक्तम्‌। [उन्तरबटकम्‌;

ag मेव श्वखलति ; कुरिलाना भपोन्धनाना agize as मेवेति के चित्‌ एव Ra ‘aga’ ‘aan’ ““श्रा्मयश्चाः" पर मनाजजित्य ural | ‘sae’ “उपम्धाने'' यत्राखावृपनतस्िष्ठति शश्राविष्चः। थोऽय मेवमादिगुणयुक्रः त्वष्टा, तस्य ‘ag VM: “जायमानाद्‌” एव उमे दे श्रपि ‘faa’ के पुनस ? “ararefaat इति” धथाय मतिमचान्‌ वदते, saw मय मावा घच्छतोति “च्रहा- राजे दति a”) सषदुपश्चखिते मरव्यद्मावतुपश्नाम्यति श्रडा- राजयोरथेवत्वाभावः। तसमात्‌ ते श्रपि fag: afa नामाय मेव मतिप्रर्डधः श्रावा मन्यतर मनुच्छिद्यादिति *। “श्ररणो एति वा” | aaa मय mat जाता यता यदा तदा धच्छतोति अतः श्ररणौ श्रपि षिन्यतुः। एवं बिभ्यत्यौ किं कुरतः? नान्या गतिरस्तीति श्रतोषोः माम a प्रत्यञ्चिते श्रभिमुखे ‘few “ae- aq” शअभिभमवमम्‌ “प्रति जोषयेते “प्रत्यासेवेते” उपकारकबेन ; कशं माम मार्वां way कुयादिति॥ एव मय मेवाग्रिरिड wef ९९८९५)

fa ण्वधायां निरुकरन्तौ चयोदशस्य (श्र्टमसख) श्रष्यायय्य दितौयः पादः ae.

* Cafeqrenite fi”

५५

सण RATS २,२वद०] दवतं काणम्‌ | avy

ठटतोयः पादः॥ वनस्पतिब्याख्यातस्तस्येषा भवति ne (१६)।

'"वनस्पतिः'” ° अवसरप्राप्तः। पूनरय मभिघयतोऽभिधानत “area”. “aa fe वनानां पाता वा पालयिता वा- इति “तस्य “ca प्राधान्वस्हतिः “भवति (९६)

sud खज mar! समच्न्‌ देवानां पाथं तथा walter वनस्पतिः शमिता देवो aha: खदन्त eal मधुना धृतेनं उपावरजातमनात्ानं समञ्जन्‌ देवाना मन्न AMAT हवींषि कालेकाले वनस्पति श्ामिता देवो ्रभरिरिण्यिते चयः खदयन्त wal मधना धुतेन तत्का वनस्पतियुप इति कात्थक्योऽभ्रिरिति श्ाकपरणिस्तस्यषापरा भवति (१७)

stage’ —efa ll) ‘oq श्रा्धिष्य “श्रवनः एतत्‌ पश्चा पायः श्रनारितविश्षः;-- कि मय मद्भवा, युपो वा द्युते ? उत (वा ¶) अरन्य एव कचित्‌? दति उत्तरे वनस्पतिशष्दः प्रथमा-

* qure ४९१, ४५४१२०६ qe सख. (१९) |

परादि वाध्याये vse wwe ४६५४६९० ude |

{ “yore waa तन्या?-द्तिक, ख, a

“^ख्पावङ्जातनादन्यासमद्चन्‌- इतिक, ख, ज।

|| We घं ८, ९, ९, ६० य° are सं जाश्मेधिके Tremere (RE, ३६)

miming पदं ख-परक़े |

Bug निसक्तम्‌ | [उन्तरषट्कम्‌,

सम्बन्धात्‌ परोक्तः ; पुनरूपावद्जेति मध्यमपुरुषयो गात्‌ प्रत्य: कोऽष्यभिधौयत दति सुतरा मनाश्रितविभेषः इति विचारास्यद fafai aa परं विचारयिव्यति- “तत को वनस्पतिः?” दति (त्मन्या waaay “saat wana’ Wa प्रो; .समश्चन्‌ः समभिव्यश्चयन्‌ विशिष्टेन संस्कारेण खाधिकारसम्बन्धिना °। Satara’ एतत्‌ "पाथः" “swan” एतदसुनेव प्रकारेण “छतुथा' “aaradt” “area” षणएमासादौ “हगींषि" चेतान्यन्यान्यपि seq ‘quae देवेभ्यो Zila faa; "वनस्पतिः", “अमिता देवः, "रप्निः"- “इत्येते चयः” चियदणाद्‌ दे वश्व्दोऽग्निविश्चेषण् मिति दर्शंयति वनस्पतिश्च sfaat चाप्रत्यचदेवते ए, wafer देवोऽभ्निसितयेते चयः (agar) “agen” खाता मापादयन्त्‌ | ‘ay चोदकेन प्रोकणाद्यभिप्रायं ‘gaa चेतदस्माभिः dei पाथः | -दत्येतदाभासदे

“aq को वनस्पतिः ?--इत्यादि विचारः ti aw तावद्‌ “यूपः दति कात्यक्यः"” कस्मात्‌ यद्यपेतख्या माप्रिया मनाविष्कृता- $ेविशेषः, तथापौवम्‌ “non”? यूपाञ्चनोया खक्‌; या सन्निपत्य युपाश्चने युप मभिधानेन संस्कराति। तद्यया --॥२८९७)॥

| Sain त्वा मध्वरे देवयन्तो वनस्पते मधुना दैव्य

* “gaya afragay विग्िटेन सम्बन्विनाः?--एृत्येव |

+ “वनस्प्रतिं यजति प्राशो वे वनस्पतिः, प्राण मेव तत्‌ Shofe oe यजमाने दधाति" दति te are ९, ९, ४। “वनस्पतिं यञति। set वे अनस्परतिजीवं wea wad देवानप्येति येवं विद्धान्‌ वनस्पतिं यजति इति 9 Vo me ९,१९,१०।

Tye इपा. Awe] देवतं काणम्‌ ४८७

यदुद्धस्तष्ठा द्रविणेह ware क्षये मातुरस्या उपस्थे | safer त्वा मध्वरे देवान्‌ कामयमाना वन- स्पते मधुना दैव्येन धृतेन यदृद्धं स्थास्यसि द्रविशा- fa war द्‌ास्यसि* यदा ते कतः WaT मातुरस्या (saat) उपस्थाने श्रभ्रिरिति शाकपरिक्तस्यषा- परा भवति (१८)

“sgfa ला-दति। विश्वामिचरयाषेम्‌। gtr “देषेभ्या वनसते--दति all हे यूप! श्रञ्चन्ति वाम्‌" बक्तयन्ति लाम्‌ खलिग्यजमानाः। क्र? एतस्िम्‌ at agi किं भिच्छन्तः ? (देवयन्तः) देवान्‌ ad कामयमानाः केन श्रद्नन्ति ? हे “वनस्पते !* युप | "मधुना aie’ deat “GAA” इत्यथैः, देवार way; विज्ञायते fe—“aarat ay यद्‌ धृतम्‌” tft fa मित्यन्ञन्ति? ‘az ag: fast’ arate we: त्वम्‌ “ag: स्थास्यसि” श्रश्जनादनन्तर gefaata aa) यस्माख ते “qa:’ "मातुः श्रष्याः' एथिवयाः ‘sqq’ उपरि शयो निवामः, wate

* “arate”? क, ख, a!

“metay क-ख-पखकयेः |

{ “vvertsfifcfa’—tia ws, ख, 41 § सं* ९, tet

|| इङवानपदं द्शयिष्यत्यथ मेवाचायः।

“LSA AY HANIA VIYGCSCHy Wl Het Vag रत्यन्वाडाध्वरे Gt टेवयक्तोऽन्मन्ति वमस्पते मधमा द्‌व्यनेत्येवद ay yay wzafaar दविक

BMS यदा खयो मातुरस्या sve एति यदि ति्ठाखि यदि याऽ इविष मेवाख्माद्रु घक्तदि्येव aie’ —cia to are ९,६९।

gcc faaaa! [उत्तरषट्‌कम्‌;

मवटः। तस्मादवश्यं as: स्थास्यसि तथा fear sure समथः, प्रधानक्रियापूरवाद्गं ° भावयित्वा agate तत्फलानि “द्रविणानि च” श्रव्यम्‌ sad ^ दास्यसि, इत्यतः समश्न्ति

एव मस्िन्‌ समश्जने युपे वनस्सतिष्न्दः Wem: तस्माद्‌ यपो वनस्पतिरिति 1॥

“safe: इति शाकपूणिः” | कस्मादिहाणुपावदजेति श्र्याना- विष्कुतवनस्यतिश्दाथलाद्‌ भवतु qtret यूपः, परम्परा We दविवहनलिन्न लिङ्गिता gies जतो खन्ञिप्धागरवनस्यतिशब्देन अभिधायिका खग भवति AqET— ie (ac) 1

दषेभ्या वनस्यते वोंषि हिर ण्यपसं प्रदिवस्ते अर्थम, प्रदुक्षिणिद्र शनया नियय कतस्य वसि पथिभीरजिष्ठेः। देवेभ्यो वनस्पते हवींषि दिरण्यपणं कतपणापि वोप- ard स्याहिरण्यवणशंपर्णेति प्रदिवस्ते अर्थं पुराणस्त सोऽ यं ते परनूमो यश्चस्य वद पथिभीरजिष्ठेकजतमे-

# (अभ्रिदेजशोमेन खमे कुयोदिति प्रकरशकस्पित्रेन मरावाक्येन wire सद्काप्रिडोचप्रयामो विषौयत दृत्येताहथ्यः प्रयोगविषिः। * ° * | warfingrewa: भ्रभानम्‌; भ्रशयन।दिकं खव मङृम्‌"- दति, ““विरितनिषिदकमे थं तत्तदा. खनत्‌ृफणरसधमन्यऽवमते खाश्पतरविनाशिनां कमणां कालामारभाविषलसााथन स्मोपपरश्यथ AAT पणष्पापर्प woe कर्यतेःः- दूति Me ye) विदख्छरतख दइाद्गरचण्छां इटवयम।

+ “an साऽ्टाकिः करेय? इति, “crent यपं gala, वेजम्डामेा बरह्म बचयेसकामस्ेजा वे AWITE वनस्प्रतौनां पाब्रठेजसो त्रक्षवचेसौ भवति", इत्येवमादि q te त्रा० & ९, ९।

स्थन ggte एम] देवतं कार्छम्‌। sce

रजसवलतमैः * ufuedafcfat a तस्यैषापरा भवति॥ 8 (१९)

“Phar वमस्यते--दति। afawarag हे "वनस्पते !' “wR! "इिर्छपण' हिरष्मोपमपणे ! (ज्वलित !{) देवेभ्यः" “हवं षि" ‘afe “ae” कथम्‌? इति ‘nafefar’ प्रदिण देवानां यो इविवंदन- धमेः, तेम; पिदधमविपरौतेन कथं वदनम्‌? ^रशनया' ‘frga’ fray, सुनिपुणं यया किञ्चिदपि aa शविरनवेकठित (yeaa?) mye, तथा श्रपि ‘wae’ “awe” “पथिभिः रजिष्ठैः" एव प्रसिद्धाः पन्धानो यज्ञस्य शविवंहनाय देवान्‌ प्रति शभुभ्योऽपि “खजतमेः? यैः कालो नातिरोयेत ; “रजखलतमेवा” wee मुद्‌- कवद्धिः; ते हि पथिकानां सुखाः; “शप्रपिष्टतमेः' एति सुरूपतमेः। प्रहततमसखर्ैः WATE: स्याद्‌, गच्छतस्तेः; पुनरविदिते कमेणि at विनियुखहे। यतो त्रुमः-“प्रदिवः ते श्रयम्‌" fact मेव तेः ‘ayy इविरवंहनाधिकारलक्षणं विद्मः “श्रयं यो होता --दत्येवमादि-

* Comaraas रजखरतमे०”? छ,

+ “रजखरुतनेखपिष्ठतमेरिति?, ©, भ्रपि्ठतनैरिति” क, aI

1, पमे परे wut खः।

|| बखत्यपिमे खष्डे --पितमयेत्यक्ाथेः चुरूपतमयेति (४९० ve पर), “पि. इम्‌, पेषः" दति STATA (ure २१९८८०० We ९, ६०), पर मृरुपुख- war: ea waaay प्रपिष्ठतमेरिति ठकारमध्यपाठ रव EMT; पुरणाच षटेऽध्याबे अमकानिति Gee wrermraut “afas: तप्ततमेः कपनः after” इते ( १८४ ४० १०) तदच ast षोमद्धिर मसन्येयम्‌ |

62

gee faawa | [sucucaa,

wena “देवा afar waarda’—afi® | अतो gar वहेति एव मेतसिन्‌ मन्ते इपिवदनसंयोगार्‌ वमस्यतिश्ष्दस्याप्नि- रभिधेयः श्रय “एषा” वनस्पतेः we “SOT” wa “भवति” (सा पुनः fanaa? इति। प्रायोटत्यपदभेना्यै बडषु मन्तेषवभ्निवेन- स्तिरिति)-॥ ४८९९) वनस्पते रशनया नियुय॑ पिष्टतमया वयुनानि . विदान वदा देववा दिधिषो हवींषि प्र दातारं मग्तेषु ATT | वनस्पते रश्नया नियुय सुरूपतमया वयुनानि विद्वान्‌ प्रन्नानानि प्रजानन्बद्‌ देवान्‌ (यन्ते) दातुं वींषि vafe दातार मग्रतेषु देवेष खादा- छतयः aeaad आहेति वा खा वागाहति वा खं प्राहेति वा area इविजहातीति घा तासा मषा भवति ५(२०)॥

1 नस्ते “व॑स्ते unre’ - दति वनस्पतेरेव याज्या डे नसते! ‘oma नियूय पिष्टतमया" “सुङूपतमया” श्रत्यथं दृ ढया एवमादि- शण्युक्षया wat नियूय andere निवध्य "वनानि" खाधि-

* gy यो ware न्वा देधिरे खव्यवादम्‌॥**- ट्ति we ge र, १, १९, खनाडसायषशः- “रव मग्निराद्मानं खय मेवेक्कवाम्‌”” दति। इत खन्न Ter wate “द्वा द्धिरो इथूवारम्‌"“- ति द्वे, रव मन्यकान्यजाषि |

{ “awe,

{ नाख्येतव्‌ पद्‌ क-ख-ग-पस्ठकेषु |

Swe Rute ५०] देवतं काणम्‌ | Ber

कारयक्रानि “प्रज्ञानानि” अ्रस्मदुपकारायं 'विद्धाम्‌ “sare” “ae एतानि sentir “हवो fa’ we 'दिधिषोः' “दातुः चजमा- नस्य श्रभिमतफलप्राप्तये ‘caw’ देवान प्रति प्रदातारम्‌ “way ara’ कथय एनं “दातारम्‌” “wady’ “दवेषु” ; TART यजमाने एतानि हवींषि प्रत्तानि : एव afadretin धत्पुनरेतदुकं यृधाश्जनो यायाम्‌-““यूपे वनस्य तिशरब्दः"” इति ° श्च प्रूमः-श्रपनिरेवामौ युपान्तगते युपात्मना वत्तंमानेा gag: नोया्यां वनस्मतिगर्देनेच्यते। तदुक्रम्‌-““एष fe वनानां पाता पालयिता वा-इति †। यस्मादन्तगता वनानां वनानि a दशति, तस्मादेष वनस्पतिः उक्ञ्च-“योऽय wate yfaan मभरिरन्तरोषधिवनस्यतिषु wy सुच्निन्यथुः सव॑गणं सवमामानम्‌” दति {। साऽय मप्निरेवानेन वनस्यतिग्रब्देन यपाभिधानेन वन- स्पतिरभिधेय दत्यराषः mat पुनः “wafa ला--दईति?, श्रधियन्ात्‌ एयक्केना- धिरैवत मुत्पाद्य श्ाकषपूणिमतेनाग्नि मेव व्णयन्ति। यदएयधियश्न 9a यन्नाङ्गाभिवादः, तदापि नाधिदेवत मभ्नि मभिधातु ae: ahead eau ware इति तत्‌ कथम्‌ ? “aaa ला Heat देवधन्तः"" 12 भगवन शप्र! श्रच्लन्ति लाम्‌" श्राघ्ाराधाभिं

* दूरेव पुरात्‌ wee ve प॑र

पुरखादि्दिवाध्याये रपा" wae ४५४ ve ave | 1 पुरस्तात्‌ ९८०२० tude (qe awe |

$ प्रणादिरेव पादे ewe ४८९ ze १८ प.।

BER जिखक्तम्‌। [उनरबटकम्‌ ,

रातिभिः ‘neat’ ag “देवयन्तः देवान्‌ कामयमानाः यस्मात्‌ aq ‘as’ स्ःश्चपि श्वखिव्सि, qe ते ‘ea’ ‘arg’ ter ‘eqe’ “उपस्थाने” उपरि उश्नरवेद्याः ‘aa’ निवासः रुतः, तजोपष्वलितेा “द्रविणानि धनानि anfesr यन्नफलान्यस्माक aan “दास्यसि दति, seer माङतिभिरश्चन्ि ii कात्यश्चपकतेऽपि “PAR वनस्पते"-“वनस्यतेरञ्ननया fage” --दव्यगयोरथयोजना ।-- हे “वनस्सते वानस्पत्य ! oT! FU “दिर पण" खतपणे) वह एतानि “दवोषिः श्रमुत्थिते वयि a एतानि saa इति मेवेषां वेढा इति प्रतोमहे। कथञ्च पुनवैह ? “प्रदक्षिणित्‌' यथैतानि वेाडव्यानि श्रविपर्॑स्यनलेतेन विधिना ‘ware एतया चिता “नियूय परिवौय मात्मानम्‌ “eae! age ये पन्थानः रजिष्ठाः प्रदिवः चिरम्‌, तत एवाय मथेस्ववा waif वेढव्यानीति। विज्नायते “यूपेन वा श्राङतयः खगै a यन्ति-दति i—a “वन॑स्पते carer free”) हे “वनस्पतेः वानस्यत्य ! युप ! ° ‘oer’ पिष्टतमया सुरूपतमया जिता “नियुय' परिवोय त्व मात्मानं ae एतानि “इ्वोषि" खाधिकारप्रयक्रानि mati प्रजानन्‌ प्रति दिषिषोः इविदोातुः श्रथसिद्धये “गरमूहि च” एनं दातारम्‌ “श्रटतेष्" देवेषु इति "“खाहाङृतयः' निर्वक्रयाः। काः पुनस्ताः खादाङतयः? याः ONT AT SHA प्रयाजे खादहाकारेण संशय ते, ताः खादा-

© SCRA Ch ok ष्वाद्छातवम्‌- “वनसे ! बमस्पतिविकार। अप ।**-रूत्याद्न।

स्य age yee] रेबतं काण्डम्‌ | ser

waa: | नतु “सद्यो जातः-दत्याप्रयो मन्तः (४९ ४०) ? स्यं माग्रेयो we: strane, तथापि area: aararar: * किं कारणम्‌ ? “स्यो जातः"--दत्यतुद्ुत्य Bh स्ठुतिमन्े Carerert ₹विर्‌दन्त॒ द्वाः” टूति सम्प्रदानम्‌ | तच रेवता सम्प्रदान भिति खाहाश्तयः समाघ्राताः; माभ्रिरिति 1

अरय AAA: कस्मात्‌ ? खाहाखाहेत्यतकोन्तनेनासा सुत्त- मख्य प्रयाजस्य प्रेषसंस्कारः क्रियत इति खातयः

श्रथ “खाहा-दति एतत्‌” कस्मात्‌ ? “सु” सृष्ट “त्राह- “दूति वा यदेव wagiazaata किञ्चिदाव्यखेत्यनेन मन्तवा तुभ्य भिद fafa, तदेव “सु-श्राद"” शाभन माद एव ae सुः" पूवैपदम्‌, श्रार"-दृत्यन्नरपदम्‌ { श्रय वा इद्‌ मन्यत्‌ ब्राह्मणानु- गतं निर्व॑चनम्‌+--“खा वागादेति वाः ईति विज्ञायते fe “a खा amass aq खाहाकारस्य wa” —efa श्रज ख-श्ब्टः पूवंपदम्‌, उत्तरपदं तयेव श्रय “|@ प्राह एति ar’ | ar विशेषः yaaa? ease कारकान्यवम्‌ ;- खा वागाद्ेति कन्तरि, खं प्राहेति कर्मणि; प्रपूै चोन्लरपदं प्रकर्षद्योतमाय

* श्भा ४९१९, ४९४१० ४अ० रख. (XR) |

+ “areata प्रतिष्ठा चे arerene, प्रतिष्ठाया मेव तद्यन्न सनातः प्रतिष्ठापयति? दतिरे° wre ९, ९१,४। “का Saar: खाडाृतय इति ? fre2- wr eft ब्रूथात्‌ तस्मात्‌ लाराहतं इविरदन्तु देवा दति? एति चरेर we र, ९,९२॥

{ “खाडाग्यब्दो रविपप्रदागवाचो सम्‌ रतत्रामक मप्रिविधेषं weal’ —xfx ऋण Pot, ९; २६, ९. गयाष्डमने BITE |

9€.8 frame | [उन्रवटक्म्‌,

“ard इविः tifa दति वा” यदनेनेव इवि तौति, तदेव सुष्ट्रापाश्च यथाभिधाम vat ज्ातौति दविःपरधानेाऽच fries? “तासाम्‌” खादाङ्तोनाम्‌ “gar? “aafa’— ny (ee)

aa जाते व्य॑मिमीत ae मभिदवाना मभवन्पु-

रोगाः। भरस्य हतुः प्रदिश्यृतस्य वाचि खवाइारतं ~ ~

हविरदन्तु दवाः॥ सदा जायमाने facfafaa यत्र मप्मिहवाना मभवत्परागाम्यस्य हेतुः प्रदिश्य॒तख्य बराच्यास्ये स्वाहाङूतं हविरदन्तु देवा इतीमा ्राप्री- देवता अनुक्रान्ता श्रथ कि देवताः प्रपाजानुयाजा WHAT इत्यं के & (२९)

“सद्यो जातः"-दति, योऽय afm ‘aq? जातः" “जाव मानः” samt मेव श्यमिमोत ane’ भिवत्तयति यज्ञम्‌ धथ लातमाच्र एव शश्रप्निः देवानाम्‌ श्रभवत्‌' पुरोगाः, ““पुरागामौ शरयता गमो प्राधान्येन ae श्रश्च' “होतुः देवाना माहतुः ‘nfafa’ srat दिशि ‘wae’ गतस्य प्रणोतस्य उन्तरषेद्यादिकलेन, ‘af “ara” वा चौल्धाख्य मेवापेच्छय 'खाहातं' खादाकार-

° Sang रव लानि देवताभ्यो खवोषि गटरोतानि भवनि, ताभ्यः are Fara सवेति लङयात्‌”? दति To त्रा ०, ९, ९। + “Sar र्ति यजन्ति। cata” ©, we सं० ८, Cea य° वार सं* ाञमेधिके इादनाप्रोष्यत्या (९९.२९), § ““बाच्वौत्बाख wre Tea इति पाठान्तर मेव पे दति |

स्थन Rate दख.) Rad शाकम्‌ | sey

वलत्‌ मन्ते प्ररिक्त “दविः, एतदाच्यम्‌ शरदन्ते" foray "दवाः" खादहाङतयः॥

^ूति” टृतिकरणोऽधिकारस्माध््यैः, प्रदेना्था वा (“¢- माः) एता एव एकाद “asa.” “aM.” KATE: ° मरु Slama: मनुकौत्तनम्‌? सत्यम्‌! श्रगुक्रान्तागां तुं Valen वनस्पत्यन्ताः, यासा fay faut; तु arerafay विचारेाऽल्ि। तदेगताशंस्कारपरत्वात्‌ उत्तमस्य प्रयाजस्य थजतौ एकाद ्रयदणात्‌ एकादरप्रयाजविषय एवोत्तर विचार दत्याचाया- भिप्रायो गम्यते 1। ततः किम्‌ ? यद्चनुक्रान्तास्तान्‌ प्रति विचारा वन्तिव्यते ननु विचारित मेव “यज्ञे इति कात्थक्यः, अ्रभ्निरिति magfu,”—aaarfe ? सत्यम्‌, विचारित मेतत्‌ तु प्रत्येक माप्रौदेवतापदेषु विचारः, wa सामान्यः प्रकरणगतश्चाखा मेव विशारोऽनिशितानां निखयावधारणाथः; निशितेन fe व्यवख्ितेन विधिना भवितव्यम्‌ ; श्रधियज्ञे यजतौ देवताध्यानाङ्गभावश्रवणात्‌ तदेतद्‌ विषय मनिञ्चितम्‌

“ou —zla विचाराधिकारवाचिना श्रयश्ब्दन विचार मधि-

द्मः (खमिन्‌), LANAI, WRT, दनः (ईयः), बहिः हारः, © उषासानक्ता, र८्द्व्याडेतारा, frat Zab ye war, १९ बनक्धतिः,. Ue area | “अथात खा्रियः (४४९२० श्प) दत्याद्यनकान्ताः। खच त्राद्यदम्‌-“खाप्रोभिराप्रोदाति। वेणा वे ब्रष्यव्ेख माप्रियखेजसवेनं तदुः WHITH समदेयतिः- दति te Are ९, ९, ४। | “CHIR प्रयाजाः, रकाद्दानुयालाः, CHENG, astra. पश्यमानाः द्तिरे° त्रा ९, ९, FI ^ 18 परखठादिरिवाध्याये पार RUS ४४९ ए० wade,

७९९ निबक्तम्‌ | [उनत्तरषद्कम्‌;

हत्योपोद्न्ति- “श्रय किन्देवताः प्रयाजाः” दति ° का mesg देवताः? fi प्रयाज दति श्रान्रुतादियजमानो- पस्यानान्तक्रियाकखाप उच्यते प्रयाजेषु इयमानेखिति प्रसिद्धवात्‌। कृतः संश्रयः ? नानाद्वता एव प्रयाजप्रवादाः श्राप्रौणां वषड्वारेण सम्बन्धात्‌ सवस्य चान्यस्य wre विशेषभावः | एवं सति विपरतिप्तिराचाययोः कात्यक्च-शाकपृ्योः। तस्माद्‌ sae दति i

` कथं नानादेवताः प्रयाजप्रवादाः? इति aw तावत्‌ “श्रग्रयाः ईति एके कुतः ? “amar वै प्रयाजा maar चतुयाजाः- दति ब्राह्मणम्‌ †। तज ये एतसिन्नथं सोचौोक्ञेनाग्निना विश्च देवैः परस्यरसंवादे दृष्टे ऋचौ a fe किल सौचोकेाऽप्निविदः सह संवदते मृच्तुः-एडहि ने दवौषि aw दति are वाच--"य्षे भागोऽस्तु" दति ते तं प्रव्यचुः-'टृणौष्व' इति { साऽनयाश्वा? a—i (२१)

* “प्रयालवबदमुयाजं कशव्यम्‌”-दृत्यादि रे° are १, १, (प्रयालजानेवाषं यन्ति"? रत्यादि © to wre १,९,९।

“तथादाङराप्रयाः प्रयाजा चाप्रेया अनयाला Qe ary Ate परा- wie” —xfa ate त्रा |

{ बब्नभतेन बषटकारोख देवानां इविवेनेन wae wee कमिठः Wh को नामाप्निवषरकारहविवइनाभ्यां Mar eat निमेत्यापः भ्राविष्त्‌। सज WA: TEMA TIE मामे दं वेः TY ““स॒डशदु सवम्‌ (We Pe १०, ४,९-१०-९९) त्यादि खङ्कचयेख संवादं रतवाम्‌ पिणेषते TAs अदयम. He घर ९, ९,

§ दत owe मेब प्रदश्नमामयाराश्येति थात्‌ ।`

सअ. RgTe OMe] दवत कारम्‌ | 9९9

प्रयाजान्मे ्रनुयाजांश्च केवलानजस्वन्तं दविषो SA ` भागम्‌। ृतष्डापां पुरुषष्वोष॑धीना aes दुं ATY- रस्तु देवाः तव प्रयाजा AAAI केवले ऊजस्वन्तो विषः सन्तु भागाः | MATH ARTS मस्तु VIHA ममन्तां प्रदिशश्चतखः च्ाप्नेया वे प्रयाजा ्राप्नेया अन्‌याजा इति ब्राह्मण छन्दाद्‌ वता इत्यपर छन्दा- सि वे प्रयाजाग्न्दास्यनयाजा इति ब्राह्मण खतु- देवता इत्यपर BAA वे प्रयाजाः पशवोऽन॒याजा इतिश ब्राह्मणं प्राणदेवता इत्यपर प्राणा प्रयाजा अ- पाना Baars इति। ब्राह्मण भात्मदेवता इत्यपर मात्मा वै प्रयाजाः प्रजा अनुयाजा इतिः ब्राह्मण माप्नेया इति तु खितिर्भक्तिमाच मितरक्किमर्थं पुनरिद्‌ मुच्यते यस्ये देवताये efadetd स्यात्तां मनसा ध्याये- दषट करिष्यन्निति विज्नायते तान्येतान्येकादशाप्री- क्तानि तेषां वासिष्ठ arte वाध्यश्चं गत्संमद्‌ भिति माराशंशवन्ति मेधातिथं देर्धतमसं प्रेषिक fara. न्यताऽन्यानि तनुनपात्वन्तितनुनपात्वन्ति (२२)

इत्यष्टमाध्यायस्य Ala: पादः ८. ३.

* ade वे प्रथाजा छतवऽनुयाजा इति AIT TAA इत्यपर पथ्यो

प्रथाजाः पश्ेाऽनयाजा दूतिः, + “QE ST IAAT प्राणा बा खमयाजा दति”, aI { “svar वे sre war वा खनयाजा cian —xfa ©, “--प्रजा-

मुयाजा'-द्तिष। 0:

ees fanny | [sucuena $

`. “प्रयाजान्‌ मे श्रतुखार्जांख""-ए्ति°। रे विश्देवाः! ‘yen army) (a) मम "केवलान्‌" श्रनन्यरेवतासम्यक्ान्‌, श्रथ वा निरवशेषान्‌ ‘aren? wari waa ^हविषः' अवधाय “दन्त- भागः “न्ने ‘gre? “wal? सारण्डतम्‌, ana उत्पन्नम्‌ fade मर प्रथम माच्यभागे | पुरुषं श्रोषधौनाम्‌" श्रोषधिमयानाञ्च विषा मम पुरुष-पुरेडण्म्‌ एवं भिन्यं मम भागः BIT मम भरः हे “देवाः” Be मायुः we; यथा aad yar इविवंइम्नः वषटकारप्रटकणाः, नादं तथा सखपौषटेत्यमिप्रावः चयः पूर्वःग्रवः म्राग्धव्यं वदन्ते देवेभ्यः, तान्‌ वषट्कारः भारतेति एव gare भ्रनयोत्तरष्चानुजच्चिरे तस्य तं भागम्‌ ।- तव भ्रयाणा अहुयाजाख्च केवल ऊजञ्व॑खन्तो दविषः wy भागाः थथा wate चपि किं asa, "तवाग्ने ! ant मस्तु सर्वः acids एवायं am सवारस्त, किञ्च ‘od ant प्रदिभरख्चतसः' परदिभोऽन्त्डता fees दिङमिवसोनि शतानि भोग्यलेन aera मि्यथेः॥ एवं तावदाप्नेयाः॥

अथ नानादेवताः प्रवादा दति यदुक्म्‌}, तदलनुप्रदश्वते- “न्दोटेवता हति एवमादि तत्‌ कोऽ free: ? “sizer

षणि

% qe fo ८, ९, ९९, ९-४। सोचोक-देवसंवादखतेव प्रथम रव aH ऽन मवम्यानिमे wet तच प्रथमा सोचोकद्य, उतरा fatet ara मिति।

+ “श्रयालान्‌ प्रधानस्य प्रसुखे यट नेतद्वामकान्‌ इविमेनाम्‌, तवानयानान्‌ मु प्रधानादु TUE यटयनेतन्रामकाम्‌, Are असाधारणम्‌" chy GUY सार Wie | आर Ze ३, ९. HUNT

{ पवेखष्छयाष््ानागो ४९९ ve 8 te |

स्थ" दपा* जख] देवतं काखम्‌ ०९८

दति तु fafa” तु ऋष्दोऽन्यप्रवादनिर्त्यर्थः। केन ॒विण्वहेहुना आप्रेयल्र मवभियते? ब्राहमणं wg Ameya ; ब्राह्मणान्येव केवलान्यन्यदे वतावे, एतश्मार्‌ विशरेषहेतोरवधारयसः--श्राप्रेयाः इति॥

अय. किं मन्यदन्यतमम्‌ ? शति “afmara faa” इन्दारेता-दृव्येवमादि। तदुक्रम्‌-“बङ्गभक्रिवरोनि डि ब्राह्म णानि भवन्ति”--टति * “fe मथ पुनरिद qua’ विं विचारणे, प्रयोजनम्‌ ? इति। “aa देवतायै शविष्छंडोतं स्यात्‌+ तां मनसाः ध्यायेद्‌ वषट्‌ करिष्यन्‌" {--““हति विश्वायते”। मनसेति मामभिः शंहितं ufagana देवता सुपेयादेवमथेशच सवज विषादः तथा हिः दर्भितम्‌ —“ag am भजते यसमै दविभिंरुपयते”--दति fr ममसेति किमथैम्‌ 7 केन वान्येन ध्यायेत्‌ ? इति। शएणु-्द्धिय- विषयप्र्याइतेन मनसा यथाश्रतरटहोतभाविता्ना देवानां नानाले- कत्वचिलेष्वा्मना रये विन्नानमयो arfeer प्रतिकृतिं खच्यो- शत्यानन्यमनासत्काल Ae चान्यां वषर्‌ करि स्तदनुचिग्तन- सस्कारसन्तानेकरसेन मनसा ₹विव्यभिषन्धायः रेवता ध्यायेत्‌ were विर्ेषस्य चयोतनायार्थप्रापत णापि मनसे ग्रहणं aver ध्यायेदिति १।

* सप्तमेऽध्याये वञ्चानरौयविचारे ब्रषटणवम्‌ ४९९ १० vo |

“area ataat Deals, wae देवतां यजतिः दति च. तच्छेषः. | To We द, ९, FI

{ परलात्‌ १९५१० ८१०।

§ “amar at टूविता वाम्‌ वदति, या ऋन्यमना वाचं बद्त्यत्तुयाबेसानान- Vasa OK MAMTA वचा देवेभ्य) wa सृन्याद्यति'-- एति te are r,t,

५०० निशक्तम्‌। [उन्तस्षटकम्‌ ,

BIg चेतदथं Rae माचार्यंण ; aw हि विशेषतः पुरुषार्थौ ववन्ध दति; श्रताऽन्यथा दि देवताचिन्तनशुज्यं कमे एतिन प्रधान- काले विकल मिल्यफल मेव स्यात्‌। एष एव च॑ ध्यानकाला यजमानस्य, Waals AISA मणष्वयु॑प्रभृतौना भाङतिप्ररेपयाष्तानाम्‌ ; wad दि ₹होतेति॥

`. -“तन्येतानि waren alana? श्रतुक्रान्तानि। दश्रधा दशतयौषु 1, तेषा Rares प्रषिक भिति १। इतोमानीत्युपप्रद- Ware भितिक्ररणः, एष एव तेष्वपि निवैचनविचारावधारणकन्पः॥ :. . यस्तु. तद्कतः कञ्चिद्‌ विशेषः, उच्यते-^“तेषां वाखिष्टम्‌ अआजेयम्‌”--दव्येवमादि afasa दृष्टं “वासिष्ठम्‌”, श्रजिणा दृष्टम्‌ “श्रायम्‌”, वध्यश्ेन “Array”, BEATA दृष्टं “गात्व- मदम्‌” ॥। कः पुनरसौ विशेषः? “इति' एतानि “arr- सवन्ति . | श्रय पुनः “मेधातियं, रैघनमसम्‌, प्रैषिकम्‌””

° “agrarian? रति ख।

3 KHRGUA BUNT TNA Gus, तज cuegnaifs qrsit- wytfa faa care) तथादि-मेधातिथम्‌ ९,४, ९। (९) रेैतमसम्‌ १, १९, et (९) खागसत्य मा्गिरसं वा १, ९४, et (४) मल्छेमद्म्‌ ₹, ९, UI (५) चैञानिजम्‌ द, ९, ४। (९) वासुज्रुत aay वा ४, १, ४. (७) वासिष्ठम्‌ ©, ९, ₹। (८) काश्छपेयम्‌ ९, १, ४.। (९) वध्यम्‌ ९०, ९, ९। (१०) जामदग्राम्‌ ९०, ९७ ९६ | |

{ “xx wares” <i ख।

§ Wee Gov Sie C THe ९८० (१२१५० १९ Te) ६९ Ae

|| “wd सामः दति पा० 8, ९,०। Te सामेत्यविवचितम्‌। अतरव afe- छन ed an मपि वासिष्ठ मित्येव भाप द्रष्यम्‌।

जन्‌ =-=

च्च्य रेपा० OWo ] देवतं काण्डम्‌ | ४०९

षति मेधातियथिना दृष्टं “तेधातिथम्‌"”, “दीर्घतमसा दृष्टं “र - तमसम्‌" प्रेष इति ग्रन्थः, तेषु यत्‌ तत्‌ “प्रेषिकम्‌ —“efa” तदिददो- पवर्ितम्‌। एतानि “उभयवन्ति"। “श्रत: अन्यानि धानि चत्वारि श्रवभिव्यन्ते ° तानि “तनूनपालन्ति” |

श्रव नाराश्ंसयाजिनेा afaaree:, तेभ्योऽन्ये तनूनपाथा- जिनः। तान्येतानि श्रसुना विभागेनावग्खितानि एकादश एकनिवे- चनात्धारणानि॥

श्रतोऽन्यानि दाश्तयादागोखक्षवनीत्‌ सौम्यां Afe 1, श्न्नश्वमेधयोरेकेकम्‌ {। तज यानि staat तानि शअ्रनाप्रेया- नोति परिस्यातानि, प्रैषिकेन तु क्रमणात्‌ तेषाम्‌ श्राभ्रिका- afer तु कमीन्तरेऽपि विनियु्येते ; केवल arity; दष्टको- पधाने-श्राप्रिक सुत्तमार्यां चितौ “area तवो agay (य° वा० स° ९७, १.)--दति, इादशाप्रोरप्ये षिति। स्तगण माश्वमेधिकं यजमानस्य-““समिङो 2a wat मतोनाम्‌ (य° ate ३२९, ९) -दत्याप्रोभिरेस्तं ग्टातौति। श्रत श्राप्रौकार्थे

* gage Faifad काश्यपेयं जामदग्र। चेति चत्मारि।

+ auife—ae are do ९०, ९१{- ४९. रकादग्दः प्रथमस्य पणोः चात्रिः; ९०, ५५- ९९. दादश feta पणेाराप्रियः; १९, १९-९९. CHINE बायोधसश्य SHA वा पशणोराप्रियः।

t warfe—ue are de yo, ११- ९९. TANS अप्रियः BAT श्टकाचि- at रेके ष्तिवा। ae are Mo ९८, ९-१९ यवः चाञ्मेधिकाप्रिय «fa विषै. काः | परसेक माप्रौद्क्न TIT (य° वा Wo ee, ९५ -- २९), तच द्त- प्या मपि at (१०, ९, १९); परिमदित्च saga] निति, खतो नाज तद्य प्म्‌- SAU: Wa रति ध्येयम्‌।

WER मिखक्तम्‌ [उन्तरषटकम्‌

प्रयोगव्यभिचारादापरौ खक्षवर्गमध्यपटिते अपि परिष्ड्याते च्राचा- यंण। सौचामर्प्ां g प्रथमस्य ote दितीया wail, तखा . मेकस्ा मेव च॒ नराशंस-तनूनपातौ - “नरासः प्रति शूरोऽभि- म॑नुष्तनुनपात्‌ प्रति यज्ञस्य धाम (य° वा घ०९. ९७) efi तच नराशसयाजिनां वख्िष्टप्रभूतौनां यागे निपातवत्‌ तमुनपात्पद मनथैकम्‌, पादपरणमा ्रेणोपकारं मन्ते करोति; तथा तनुनपाद्याजिनां नरा शंषपदम्‌। एष एव शअ्न्यनायवंदिषे Zane ` प्रथोगादन्यथाभाविनि रेवतापदार्नां निपातकन्पः ` तद्यया-श्रश्रहविषि अग्वप्रतिग्द्प्रायसित्ते “यदद्य ax’—xfa सौव्मिभावरुणानां aaa, तयोः मिजायैम्णां यानि लिङ्गानि तानि निपातवद्धवन्ति*। तथा श्र चिच मक्के awa तुराय"“-दति, wa anteater मणप्रिपदं नैपातिकम्‌ †, wae मारते हविषि वातमेास्येषु वैश्वदेवप्रयोगे पुनः तदेवाथवत्‌ “्राद्निमार्तौं ञ्जि मालमेत दश्टिकामः” —rare प्रयोगे | एष एव देवतापदविचारः ¡

afar पत्ते सवं आग्नेयाः प्रयाजाः- “प्रयाजान्‌ मे अ्रतुयार्जांख॒ गेवलान्‌ (च्छ ° ०८,९,९९.द-४)०- दूति wai, ate

* “यदद्य gt उदिति नामा निजो Saar छुवाति सविता wa: WP «fa qe are ge ag, ९० दृद मिजर्ति ve मयेमाद्ति पदच्याप्रधान fafa भावः। “a fea aw zya wig माब्ताय aad भरध्वम्‌ | मे avifa समा सनो रेजते wy एथियौ मखेभ्यः ॥१२-- इति we ६० ५, १९, ८,४। tw eq’ —tfa पद मप्रधान fafa wre: | { “रणां दुरववेधा द्‌वतापद्विचारः”-दइ्तिषश।

qe देपा० ऽर] देवतं काण्डम्‌ | ५०३

पके “तिरो देवोः--श्यच्र * भारतो yarn’, (मध्यख्याना सरखतो', एयिवौखाना दला?- ईति तदेवताजयं दुःप्रतिषमा- धानम्‌। खथानाकरापन्निस्तत्या चाश्चिरेव एता देवता इति प्रति- eau) सौचामश्छां द्वत्तमे पशो “alagt afq: समिधा सुषमिद्धो वर्‌ छः," Taya WHA: (यण्वागस०९९,९ ९-२२)। तासु सनूनपादेतरकः-“तनूनपाच्डु सत्तः” - रति (९२), Ra aug: | ay नराशषयाजिनां सोचामणौ प्रयोगे कथं प्रयोगः ?-; किं तनूनपाच्छुचित्रत दत्येतदेव प्रयव्यताम्‌+- उतान्यतः कुतशिदा- प्रो क्राराहियतां मराशंस दति? न्यायविदो मेधाविनः षमनु- गस्यन्ते विशेष fafat ५८२२)

दति ञ्वयायां निङ्करटत्तौ चयोद शरस्य (श्रष्टमस्य) श्रध्यायस्य ठतोयः पादः॥ ८।३॥

दति ्छञ्पथायां निरुकटना जम्नूमागौश्रमवासिनः शा चाणभगवहुगैश्य तौ जयोदच्रः (श्मः) श्रष्यायः समाप्तः ८॥

© प्रता दिरेवाध्याये पाटे ४०७० Te Be; yor ye Lago | owe fe भ्रन्नाऽशक्यप्रतिसमाषान इति मन्वान खार Ufa नन्यायविद्‌ः*- Tals |

४५०३ निडक्तम्‌। [उनत्तरषटकम्‌,

( द्रविशेदाःकस्माद्‌ द्रविशेदाद्रविणादमेमेद्यन्तुतेऽ- यातश्चाप्रियःसमिदो श्चद्यतनुनपान्रराश्सस्याजब्दानः- प्राचीनंबहिव्यचसखतीरासुषयन्तीदैव्याहेातारानेायन्नं- यदमेआविश्वोवनस्यतिसपावसजाव्च ae RATA नस्यतेरणनयासदचाजान प्रयाजान्मे दाविंश्तिः ॥*)

इति निरुक्त (उत्तरपटरके) अष्टमेाऽध्यायः॥

* pure १४६९० S#*” gaara

अथ पञच्चमादि-चतुरध्यायानां Eat |

प्रकरवम

श्रय पञ्चुमाध्यायः प्रथमः पादः

दितोयः पादः तोयः पादः ...

चतुथः पादः श्रय षष्ठाध्यायः प्रथमः पादः

तोयः पादः चतुथः पादः पञ्चमः पादः वष्टः पादः श्रय सक्तमाध्यायः प्रयमः पादः

चतुथेः पादः पञ्चमः पादः षष्टः पादः सप्तमः पादः श्रय श्रष्टमाध्यायः प्रथमः UTZ

SV=—=—

( विषयः ) ,., (मैगमव्याख्था) ,, (नेग ४, २, ९--२२)

ve (नेग० ४, २, BB—BE) ,..

(नेग ४, २, ४७--६४) .. (He ४, २, ६५--८४)

,.. (AMAT) | ००७ (नेग ° ४, र्‌, Y—RR) faata: पादः ...

(Sate ४, २, २२-४९) ^ (नेग० ४, र, BX—Se ) , (नैग० ४, ३, ७१-९००)

vee (नेग० ४, २, ९०९-१९६) a, (नेग ४, र, ९९- ९२२९ ) ove

.. (SAAT )

,,, (देवतपरिचयः) fama: पादः ,* तोयः पादः ,..

(दैवतसड्यादिनिणेयः)

,. (Fo ५,९, Bf)

.. (द° ५, ९, जातवेदाः)

* (Fo ४,९, 8 वेश्वानरः )

( go 99 )

, (श्रत्ैवाप्रोयाख्या च)

... (दे ५, २,९ द्रविषदाः) दितोयः पादः ... ata: पादः ,..

( दे ४, ९, २-९९) (दे ५, x; ९९२-९द्‌ )

( देवतभक्यादिनिणयः)

( )

अथ खणडसद्खानिर्णयः।

पञ्चमाध्यायस्य,- afxregy * RATATAT +

प्रथमे पादे ६८( ९--६ )==५८( wa) दितोये पादे ( ७--९४) = ® ( ६-९९) ठतोये पारे ° (९५--२९) = (९२-९<) चते पादे Yo (RR—BL) = < (२०--र८) सद्लनया ३९ एकचिश्त्‌ = २८ श्रष्टाविंश्रतिः।

षष्ठाध्यायस्य,

( ९-- )=-४ ( ९-४ ) पाद ८( ६९१) = ( we ) Bata पाद्‌ ® (९९-९८) == © (९०-९६) चतुथं पारे (९९-- RA) = (९७--२२) पञ्चमे पाद (२०--२९) = ६।(२२-२८्) वटे पदे (द९-2९) =O (र८्।--श६) TATA 2< ऊनचवारिं शत्‌ २६ षराजिंब्त्‌। सत्तमाध्यायस्य,- प्रथमे पादे ५८ ९--५ ) == ( ९-४) fava पादे ( ६-८ ) २८ ५-9) = पादे yo ( ९--९८) = ( ८-९३) चतुर्थे पादे = (९४- ९० पञ्चमे पारे (९४--९९) ¡ (९४ ९०) षष्टे पादे < (RO— RY) = ? (२१-२९) सप्तमे पादे < (१६४४) =F (२४-३९) agers ४४ चठु्चलारिं शत्‌ = २९ एकजिंभत्‌। ` | क-प्र्टतिपखकसथ्ता ७-पथ्यतिपकसदाता खच्यरब वाका नज WoT TNT च। t @-पतिप्केष अनयोः पाद्योरकने तदन्‌गतच्ाख्याष्यायद्य षडपादबम्‌ |

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पदम्‌

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पटम्‌

मेधातिथम्‌

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पदम्‌ दायासः

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रोदसिप्राम्‌ रोदसौ

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शाख्वत्‌ ,,, शाः

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पदम्‌

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( २७ )

मूल-पाठशु्धिः

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, ° ,.. श्द्यदम्‌ डम्‌ . & ,., पराक्रान्त ,,, पराक्रान्ते ... कोरयाणः ,. कौरयाणः . wafag: ,., शोषयित , „., पुनराभ्रित पुनराश्रित WO ,,, सड्नाम सङ्गम , ww. A we बोरिर J} ... Maha” ,.. मोषधोभ्यस्लं ,., शाचते° we शो चते ° ak मध्य ,,, मध्यं , .., इन्तेनि° ,,, न्तेनि° -. ९६ ... alfa wet fa ,९५ ,.. Suber ऽप्रतिन्कृतो , ,.. ग्न्नासिका ,.. ग्क्नासिका .. „.. क्र HT Rove वन्युचोषमः aT SATA: Re TT TRTR , ,.. FEW TU

कवलादो

( २८ )

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Narada Puncharatna, Fasc, प्र ५1 Rs.

Parifishtuparvan (Sans.) Fasc. I—III @ /6/ each bs ee Pingala Chhandal Siatra, (Sans.) Fasc. I—III @ /6/ each .. ०७ Prithiraj Rasau, (Sans.) Fasc. I—VI @ /6/ each oe ee

Ditto (English) Fasc. I .. ०१ ee Péli Grammar, (English) Fasc. I and II @ /6/ each oe ae Prakyita Lakshanam, (Sans.) Fasc. I * ve ee Parasara Smryiti (Sans.) Fasc. I—V @ /6/ each oe Srauta Sutra of Apastamba, (Sans.) Fasc. I—XII @ /6/ each ‘ie

Ditto AéSvalayana, (Sans.) Fasc. I—XI @ & ench ५१

Litto Latyayana (Sans.) Fasc. I—-IX @ /6/ each = ee Ditto Sénkhéyana (Sans.) Fasc. I—II @ /6/ each Saina Veda Sawhita, (Sans.) Vols. I, Fasc. 1—10; II, 1—6; ITI, 1—7; IV, 1—6; V, 1—8, @ /6/ vach Fasc “ts ०१ Séhitya Darpana, (English) Fasc. I—LV @ /6/ each ०* Sankhya Aphorisms of Kupila, (English) Fasc. I and II @ /6/each_ .. Sarva Darsana Sangraha, (Sans.) Fasc. II + oe

Sankara Vijaya, (Sans.) Fasc. II and ILI @ /6/ coach i “a Sankhyn Pravachana Bhashya, (English) Fasc. JIT ve Sankhya Sara, (Sans.) Fasc. I oe ०० Sugruta Samhita, (Eng.) Fasc. I and II @ /12/ each ee Yaittiriya Aranya Fasc. I—XI @/6/each . .. oe ०५

Ditto Brahmana (Sans.) Fasc I—AXIV @ /6/each .. ०७

Ditto Samhita, (Sans.) Fasc [—XXXIII @ /6/ cach .. . a Ditto Pratisakhya, (Sans.) Fasc. I—II1 @ /6/each = Ditto and Aitaroya Upanishads, (Sans.) Fasc. II and 711 @ /0/ each

Tandyé Bréhmanna, (Sans.) Fasc. I—X1LX @ /6/ each 4 ee Tattva Chintamani, Fasc. I—1V (Saus.) @ /6/ each “oo `" ०५ Uttara Naishadha, (Sans.) Fasc. III—XII @ /6/ each oe ०७ 1 १8१६880, Fasc. I and IL @ /12/ a we Vayu Purana, (Sans.) Vol. I, Fasc. 1—6; Vol. II, Fasc. 1—6, @ /6/

each Fasc ee ee ee ee Vishnu Singiti, (Sans.) Fasc. I—II @ /6/ each ०* oe Vivadiratnikar, Fasc. I and IL @ /6/ ee ०* es Vrihannaradiyn Purana, Fasc. I... ०७ Yogn Sttra of Patanjali, (Sans. & English) Fasc. I—V @ /14/ cach .. The same, bound in cloth oe Ws ०७

Arabic and Persian Series.

*Alamgirnamah, with Index, (‘Text) Faso. I—XIII @ /6/ each ` ०, Ain-i-Akbari, (‘Text) Fasc. I—X XII @ 1/ each ee

Ditto (English) Vol. I (Fasc. I—VII) .. oe Akbarnamah, with Index, (Text) Fasc. I—XXXVI @ 1/ each ०७ Badshéhnamah with Index, (Text) Fasc. I—X1X @ /6/ euch ०*

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Beale’s Oriental Biographical Dictionary, pp. 2091, 4to., thick paper, |

@ 4/12; thin paper... Dictionary of Arabic Technical ‘'orms and Appendix, Fasc. 1—XXI @ 1/ each oe ee Farhang-i-Rashidi (Text), Fasc. I—XIV @ 1/ each Fihrist-i-Tusi, or, Tusy’s list of Shy’ah Books, (‘Text) Fasc. I—IV @

/\2/each .. ०* . Futah-ul-Sham Wadqidi, (‘Text) Fasc. I~-IX @ /6/ each .. ०१ Ditto Azadi, (‘Text) asc. I—1V @ /6/ each ०९ oe Haft Asman, History of the Persian Mansawi. (Text) Fasc. I oe History of the Caliphs, (English) Fasc. I—VI @ /12/ each ०७ Iqbainamah-i-Jahangiri, (‘Text) Fasc. {—III @ /6/ each ०७ Isabah, with Supplement, (‘Text) 40 Fasc. @ /12/ each .. ee 918816६1 of Wagidi, (Text) Fasc. I--V @ /6/ each ०७ ०७ Muntakhab-ul-Tawfrikh, (Text) F I—XV @ /6/ each oe Muntakhab-ul-l'awérikh (English) Vol. I1, Fasc. I—IV @/12/ each .. Muntakhab-ul-Lubab, (Text) Fasc. I—X VIII @ /6/ each... ५१

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N.B. All Cheques, Monoy Ordors &, must be made pa ‘Asiatic Socicty” only.

Mu’ ésir-i.’ Alamg{rf (Text), Fasc. I—VI @ /6/ cach - Rs. Nukhbat-ul-Fikr, (Text) Fasc. I... ;

-Nigdmf’s Khiradndémah-i-Iskandari, (Text) Fasc. I and Il @ /12/cach..

Suydty’s Itqan, on the Exegetic Sciences of the Koran, with Supplement,

(Text) Fasc. II—IV, VII—X @ 1/ each ‘a ee Yabaqg&t-i-Ndgirf, (Text) Fasc. I—V @ /6/ each’ oe , ४० (English) Fasc. [- दा @ /1 each =, ०७ Tarfkh-i-Firdz Shahi, (Text) Fasc. I—VII @ /6/ each ee ee Vérikh-i-Baihaq/, (Text) Faso. I—IX @ /6/ each eT ‘i Wis o Ramin, (Text) Fasc. I—V @ (९/ each. तं

Zafarndmah, Fasc. I—VI @ /6/ 68८

ASIATIO SOCIETY'S PUBLICATIONS.

Asiatic 88940888. Vols. VII, IX to XI; Vols. XIII and XVII. and Vols. XIX and XX @ /10/ ench .. Rs. Ditto Index to Vols. I—XVITI $ ae

71008 हए 08 of the Asiatic an from 1866 to 1869 (incl.) @ /4/ per No. ; and from 1870 to date @ /6/ per No.

Journat of the Asiatic Society for 1848 (12), 1844 (12), 1845 (12), 1846 (6), 1847 (12), 1848 (12), 1850 (7), @ 1/ per No. to Subseri- bers and @ 1/8 per No. to Non-Subscribers; and for 1851 (7), 1867 (6), 1868 (5), 1861 ($), 1864 (5), 1866 (8), 1866 (7), 1867 (6), 1868 (6), 1869 (8), 1870 (8), 1871 (7), 1872 (8), 1873 (8), 1874 (8), 1875 (7), 1876 (7), 1877 (8), 1878 (8), 1879 (ध), 1880 (8), 1881 (7), £882 (6), 1883 (5), 1884 (6), @ 1/ per No. to Subscribers and @ 1/8 per No. to Non-Subscribers. | ^

N. ४, The figures enclosed in brackets give the number of Nos. in each Tolume.

Centenary Review of the Researches of the Society from 1784—1883 .. General Cunningham's Archsological Survey Report for 1863-64 (Icxtra

No., J. A. 8. B, 1 864) ee ‘ee oe ` ee ee ‘Theobald’s Catalogue of Reptiles in the Museum of the Asiatic Society

(Extra No., J. A 8. B., 1868) ee ee ०५ oe Catalogue of Mammals and Birds of Burmah, by E. Blyth (Extra No.,

J. A. 8. ए. 1876) _ °, os ०७ ee os Sketch of the Turki Language as spoken in Eastern Turkestan, Part II,

Vocabulary, by R. B. Shaw (Extra No., J. A. 8. B., 1878) ०७ A Grammar and Vocabulary of the Northern Balochi Language, by M.

L. Dames (Extra No., J. A. 8. B., 1880) ea id ue Introduction to the Maithili Language of North Bihér, by ७, A. Grierson,

Part I, Grammar (Extra No., J. A. 8. B., 1880 ee oe

Part 1], Chrestomathy and Vocabulary (Extra No., J. A.S. B., 1883).. Anis-ul-Musharrahin .. oe ०७ es ०१ Catalogue of Fossil Vertebrata ०* oe ०५ ee Catalogue of the Library of the Asiatic Society, Bengal _.. ०० Examination and Analysis of tho Mackenzie Manuscripts by the Rov.

W. Taylor oo ee ee oe 9४ ee Han Koong Tesew, or the Sorrows of Han, by J. Francis Davis ee Tstiléhét-ug-Safiyah, edited by Dr. A. Sprenger, 8vo. ae Indyah, & 1 on the Hidayah, Vols. II and IV, @ 16/ euch .. Jawémi-ul-’ilm ir-riyézi, 168 pages with 17 plates, 4to. Part I oe K hizaénat-ul-’ilm + ® @ ee ee ee ee Mahébhérata, Vols. 11 and IV, @ 20/each == ,, ee ०७ Moore and Hewitson’s Descriptions of New Indian Lepidoptera,

Parts I—II, with 5 coloured Plates, 4to.@6/each =. = ,, ee Purana Sangraha, I (Markandeya Purana), Sanskrit ०७ ee Sharaya-ool-Islam ee ee ee ee oo Tibetan Dictionary by Csoma de 6758 ४4 ०७ oe

Ditto Grammar 28 ee eo @. Vuttodaya, edited by Lt.-Col. 8. E. Fryer ४8 ५1 Notices of Sanskrit Manuscripts, Fasc. I—XX @1/each ., ०५ Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. R. L. Mitra .. és

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