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Fasc. lV @ /6/ 6469) = +, Avhorimna of Sandilys, (English) Fase, I a ४ भ Aphorisms of the ४८0571५. (883. ) Fase. VIT-—XUT @ /6/ cach a Ashtasdhaarikd Piajndpivaraild, Paso, I-VI @ /6/ each = ,, ee Afvavaidyakna, 246९. I—V @ /6/ cach sy iis Pe Avadina Kalpalaté by Rebomondra (Sans. & Tibetan) Vol. I Fasc. 1~<, ‘ i) @ Uf i * oe aa ४ ve ee ee Bhan:itf, (Sang. JPaso. I—VUT (> न ५४६ ae ४६ ; Brahma Sttra, (English) Fasc. I... a ५ Brihaddevaté, (६५१९.) 1१४१८, {~~ 71 @ /6/ each , , , 4 , Brlbaddharian Pordynm. Fase. 1--11 @ /6/ oach ५ = Byihat Arany.ka ए tgs (Sana.) Fase, VI, VIL & IX @ /6/oach ., Ditto .. ( wh) Vasc. {{--111 @ iol (४. ` ०, we Byjhat Samhité. (Sarts,) Faso, 11--111; V-- Vik 8 6/८ ९२५४ ,, «a Chaitenya-Chordrdaya Nataka, (Sans.) Faso, 1. @ /6/erch. a. Chaturvarga Chintamani, (Sans.) Vols. 1, Fuso. 1—1! ; 1 1, 1-26; III sh ert 1 Pose 1--18, Part 11, Fase, 1-6 @ /6/ each ह (0406 Upanishad, (English) 296८, I. ०१ : 0009, Pare. O aud 111 @ /6 १४ 11119. 1101 ५6.11 @ /G/each .. . Hindy Astronomy, (Ln १५५. Vasc. {-- {71 @ /6* 6४० ५ {६6198 Médhava, (8५8.) ‘ae i os प @ /6/ oe 8 Kétantra, (Bunk) ७६१९, VI @ /1:/ 4१८४ ae’ oo Katha Sarit Sigare. (English) 1986, 1—X1V @ /12/ each ., $ १198111 8), 11 2. 2, पा pe th : Birma Purdys (Sans.) Paso. {-- 19 @ /6/ ehob os ‘Lalitu-Visturs (Saua.) Faso, U-—-Vt. @/6/ , १ xe te , Lalita. Vistura. (Minglish) Faso. 1--TIT @ /12/euch ` ` र, £“ Madana एद) (Sang.) Mage. [--VIL @ /6/ oach छ -* ‘ Manntiké Ranyvrahs, (Saus.) Fasc, 1--ITL @ /6/ esch 9४ ६ Markandeya Purina, 2, Vaso. LV-—VIE @ /O/ each pos ` eo Mévkapdeya Purfifa (nev) Fnac, £—II @ /12/ each ee © M ina 6१ Darang, (Sans.) Fano, IX! @ /8/ each oe 1 । ae N a Pagclardtrco, (Sanu.) Fase LV «| १ ae C ‘Névida § aati {Bans, Fuse. {~} @ /6/ , ११ ९६ at in a ‘ ध ४३ ‘ae Nayavdrtikam, (Sans.) Faso. Dy. tege भ, ee ay अधमतम (8००४) Vol. 1, Bane, EVDYTs Vol. Th, (५५ VE; Vol, LT, Bas सद au VE Vol. EY,. 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( आचारक्राष्डद्य ) ॥ 0 8 9 i 34 ST i CIF UNA वा AAT १५५ ।४,९२॥ १५५ ६॥ शायव्वंणो शाथरव्वेणो श्रतिः seo | १६ ॥ श्मादणिश्चुतिः ५४८ | ९२ ॥ | छ | grea €% | ७ 1 MSR OE | VV jj ७१५।३॥ कोवस्योपनिषत्‌ ६९ ।९॥ कोणितकिमरा्चण २९११ । ९ ॥ ५४९ ।१९ ॥ शसक ६६ । १९ iI | च | ear ९६२ । ९॥ SAAW ६७८।.७ ॥ (Cw) हन्दोगशतिः ede | १९॥ wrt ५९।१६॥ 6 semen भ I भावलश्चतिः Gas te ॥ ५१५ । १६ ॥ ५४७। Ret a | तापनौयश्रति ४९१।४॥ तेत्तिमौध्क १२९१।९४॥ Prachi t ९९२९ ।५॥ २१९ 1 ५.॥ १११९. ।१॥ ~~ जा प) परमसो प्रनिषन्‌ १५५ 1 91 {प्रप्रलादभाखा wee i ai yeaa ५५४. । 49 ॥ ८ श्रज्चचोपलिपः। <“! ५४ ॥ [) ब्राह्मण ५२५ ।१४ I म्न | मग्वौपनिषत्‌ aq | १४ il ( शे } मेशावव्शुतिः ५8९ | 8 ॥ HAW €७ । ६।९१६१।८॥ ened य। UAT WRB I opm q | वानसनेयकं ४७२ । २४ ॥ ५०३ । ४ । ५२९ । Vall ५५७ । १५ ॥ ६२६ । १२॥ ६२७ । €. ॥ वाजसनेमब्राद्यण १६३ ।२॥ १९९ । ९ | १९७ । € ॥ ५५४ । २५.॥ वाजसनेयित्रह्मण १०० ।९. ॥ वाभसनेयिप्रखा tole ॥ १५४ । él aware ९० ।९ ॥ | श । Harqacaray १८।५॥९९६।१॥ श्ेताश्रतरोपनिषत्‌ SEI t, ¢ lt ( ५९ ) पशाश्रमाधवोक्िखितानामनिदिष्टप्रवचमामां श्रुतौनां प्र्नापनप्म्‌। ( श्रासारकाण्डष्य) “od > (AS -€4- म्र | मन्त वा AAA UT ९,१९२; 8७१ | EU ५०१ । १५ । ५१५।९॥ श्र | mt (।१॥ १५।५,१०॥ १५ ।४॥ द । ५॥ AVES HORT Ui ४३ । ४.९ ॥ sary ! ५५ । ९। ४७।१२॥४८।६॥ MRP, AOU ५९ । १३॥ ६१। द ॥ ६९।५.। GSTs Ul स्र} ६॥ SHIVA ९.२ । ८,१९.९ WER ९, te eu! ९, ०) १५ | ६९ । ७, १२।। ८७ | ९; १०५।६॥१०८।०। ६०६ । | UEP KT THE HY, TT | १३०: ४॥ VAT ॥ १४१ । २।। १५९ । १५॥ १५२ | 4॥ १,५५। ६५४, th UALS, VAM ९६५९४ । 9, ८।( १६८२ । CRN VERILY TEV । ११ ॥ Leal CA १९८ 9 | UH UCT । + ।' १६८ ¦ ४, ७, TOU २०१. दव। Teal ©, UF २७४ , १५ ॥ eid 7g) २८५४।८॥ १९११ । ५५ ॥ ११९२ ५। २९१ † २१९। १०.१८.१९ || BRET BU RRS I १२ ॥ २४२ । १६ ॥ १४३ । १८ || ९५५ । १ ॥ ६४८ । 9 ॥ QV! ae pagd | १५८॥ 8७२ ।२ {४०६ ।१०॥ SES ।१९॥५०.। १९, ५०९ । ९९ ॥ ५०२। ह: ५०्२। ८॥ weal ई, *॥ ५२८; १० ॥ ५६९१।५४ \ ५३५ 1५, RQU BBS! 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॥ ७०५।१८ ॥०१२।७॥ oro । ६ i qf | लिकूपुराण म! १०॥ =५। Ce ९६१५।८॥ aed Hae ENE TSE ( ६० ) q | करापएुराण २७४ । ७ ॥ ४९१ । १४ ॥ ६९७ । ६ t बद्धिएराय वा श्याभ्ेयपुराण वा STAT mul Sy २४८ । ९३ PRUE | BP ३२७ । २ ॥ १२८ । ९९ A वामनपुराण १०७ । १९ ॥ २६२ । EH २९५ । UGH ROL qi ५९७ ।८॥ वायु एराण २५८९ । २० ॥ BUR । € ॥ ७०३ । 9 ॥ ७६८ । १९ ॥ ७४० | ११॥ ७४३ ।१॥ ७४७ ISH ७१४ । २॥ ७५८।९७॥ विषाएराण OF ।२॥ १९१५ । ९९ ॥ १३२} ४ ॥ १४२ । LA ९१६ ।९॥ २०७ । £ ॥ २११ । ४ ॥ २९७ । ६ ॥ २४६। २॥ २६९४।१९॥ २७८ । १८ | ROE । ११ ॥ २६५ । द ॥ ३९१५ । १३ ॥ AV । ६४॥ ३२९ । १९४ ॥ द२द्‌। १८ ॥ ARLE | ९४२ । ९६ ॥ ३४७ । Rel ३५२ । ९९ ॥ ९५७ ।९०॥ ६६४ ! ४ । aes १९ ॥ १८० ।२॥ ३८५ PREY ATC । ८ ॥ ३८७ । ७ ॥ ३८८ । १५ | ४१८।२०॥ ४९९ । ९५ ॥ RAVI RD ४४४ ।९१९. ॥ ४६७ । € ॥ ६७४ ।८॥ ४९९ । १० ॥ MARI १५ ॥ ६५७ । २०॥ ६८९ । ९२ ॥ ७०८।९॥ ७१६ । १८ ॥ ७४३ । ९७ ॥ ७८५ । १३ । ७८८ ।७॥ श्र | रिविएराण वा WITT Red । 9 ॥ ४६३४ ।२॥ ^ a | BATT वा खन्द सद्‌ । ४ ॥ €७ । ६० ॥ १०६ । ९४ ॥ ५९० । ९ I १२९।९॥ ९९६ । € ॥ ९७२ । URW ६७५ । ६॥ १७८ । ७ ॥ १८१ । € ॥ ९८९ । ६ ॥ ९८५ । ९९. ॥ ८७ । ४॥ ९२६ । qi ३८९ । ७ ॥ BRI H ५8४ । UL ॥ WAIL, WOU ५8६ | १४ ॥ ०७० LE ॥ ७९१ IRA ( ६९ ) पराशरमाधवोकिखिताममिर्ि्टपुरालमानां पुराणसन्दभानां प्रत्तापनपवम्‌ । ( श्रासारकाण्डष्य) र भ" 0 {५८.१६.५४ YI उमामदेश्वरसंभादर ०२।१९८॥ ४८४ ।२१॥ —~ a eee TI fuzarat २२५ । १९ psoas i Ra ETN ATRIA ९२९ ।१२्‌ } ९०२ । ९ ॥ २८१५ ।९४ TRENT १५७ ॥ २८० ।२१ Wasi es ote । ९३ ॥ BMT EEE | ayy BERL RN २६९ 1 1२ ¦ ९०५.। ६ ARES TLR A BBR | १४ ॥ ४७८ । ६ ॥ ४०२ | १॥५.०द्‌।०२॥ ५४६ ।१८{ ६.५। ay ete २९॥ CAPITAN Fl Rod cy । 9, tue ६६.० । १८॥ ७०८ । १५ POW NAS HORE | esp ४०८. । RR, १७ ॥ ०३० ।५॥ 9२५ | २९१ ॥ ५१८ । २५ ५६१ ।२०॥ q | बायतौयसंदिता ५९।२.॥ क a | gate ~ ~ ~~ ~ + म्ताद्रौतेाऽपिः- इति are | Rete 9 ककि ee ० a ~ = a as (९) उत्तरः qeaarae इति नारददचनांशं चाचष्ट wqaGzarteat । (२) aw सत्ये ख्ितोधम्भं द्रत्ादिषचमानि वाख्ातुमुपकमते, ये रते दद्यादिना। VARTA | क क रणाय" चतुःसाधनलम्‌ ¦ चतुहितलवं विस्पष्टम्‌ । कर्षादिश्तुषटव- व्यापिवं मनुना स्पष्टौरतम्‌,- "पादेाऽधमेष्य कन्ति पादा गच्छति मारिषः | पादः सभाषदः मवान्‌ पादा राजागन्ष्छति'"-इति। जेतुन स्य पा ध्म्मथयगका जोकानुराग ।मम्पाद्‌ मा्वतुष्का रिषम्‌। नियो नितं सपम्‌ ¦ saat कितवम्ननारौमां dat a: करोति, तक्ि- नपि चौ्यारिग्रद्ध जायते। रोद ऽपडतद्रथादिद ग्मम्‌, afer ary तेखादमियोग भवति। अयिपर्र्थिने।ः थौ viravadt तौ यव- gre: gyal) तान्‌ द्विदरारलम्‌ । zag fea are नन्यथा वा राजादषणां wT वदा भ्रूते, तरा तम्धाभयश्य फपरि Mae, प्रवचने । नतो afar । WOTY पपुष्षी राजन्य तरेकमङ्गम्‌ ¦ SAT नाम्नि सवत्मद्धाप्रभर्जिः । णाद्‌ नादौमां शरष्टादर्रपदाना स्रूपमुपरिष्टात्‌ त ततर वरिपार चिष्यत; | एतेषां रषा गपलान। WH एकेनस्य पदस्य शरवान्तरक्रियाभदादननतभद- {मिन्नत प्रतिादलम्‌ | एताम शष्पा नत्राण्सगानन्तभद भिन्नान्‌ AMET परकागान्तरेष द्धा स्गह्ाति कात्यायनः, ~ “3 qa भाष्यभदान्‌ पदाहत qa | aprenfaanarigar weal ThA मम दुर ttn कादिति पतः प्रलिभाति। * दधक्रास्माध, दि Hi ' of धम्माथयश्रो्ाश्चा- + धरम्मायासयालोकातका-- षति ate | ५५ 4 नुराग+--ति पाठः प्रतिमा , j विवदिषति ale He! x¢ प्रराशरमाघबः | fares विश्रदयति टदस्तिः,- “fqar यवहारः स्थाद्ूनदहिखासमुद्धवः | बिसक्तकोऽर्मृलस दिंषामूलः चतुविधः"- दूति । तदेतदुभयविधं भएव. विदणोतिः- “ुषौद निध्यदेयाद्ं* सम्भृयोत्थानमेवच | wee) श्वादेाऽसखामिकिक्रयः ॥ करयदिक्रयानु्रयः समयातिक्रमस्तया | स्तो पुंयोगः Say SATA ATTA | एवभर्थममुत्थानं पदानि तु चतुदश । पनरे प्रभिन्नानि क्रियाभेदे रनेकधा ॥ Ua दवे VK परस्लोसग्र्स्तथा | fadigaiiad varate एस्पतिः"--इति । अगति मम्भावितानगेषान्‌ विवादानुकव्बष्टादग्रसु षएवे भ्रन्त- भावयति, ^“पदान्यष्टादगेतानि धम्मंणस्वोदितानि | मूलं सवैविवादानां ये विदुम्ते परौक्षकाः”-दति | sfa व्यवद्धारपरिष्छंदः। ॥ कसोदनिष्यायेयादं,--इति प्रा ० | | † गद्यदारमश्ुशुधाः--पएति का० | t रवमध॑समुत्धानपदानि,- रति पाठो मम प्रतिभाति) [० १ त UE TS Oe metres aaah (९) feanaxta चलुदं श दव्य (२) गतिः कम्ममू ख्य, तस्याभ्टतेर दानं VATA | --~ ~~ ~= i = [अ 1 ४ 1 वअवहारकाखम्‌ Qe अथ सभा निरूप्यते | तच ayaa: “दुगेम्ये रहं कुर्याव्जलटचा न्वितं एक्‌ | पाग्दिगि प्राद्मुदौन्तस्य weet कन्प्येत्‌ समाम्‌ | माच्यधूपासनोपेतां यौ जरन्नसमन्विताम्‌ | प्रतिमाऽलेस्यदेषेख aaa तचा”--षति । ग्रह रजग्टहम्‌ | तद्य भाग्दिगि धम्माधिकरणण्ता war) भाश वाम्तश्ास्तरलचणो पेता कव्या । न्याः सभायाः धर््ायिकरण कात्यायन दग्रेयति,- “ध्रप्रास्तविचारेण मतल्मार विषेचनम्‌ | यवाधिक्रियत स्याने warfeata इद तन्‌" -ति। मलस्टषेदिता्यस्य मारामारविविदमं' aa निष्कैः । तथ प्रतेश्कालं मण्वार,-- “प्रातम्त्धाय च नृपः हेला निन्य ममाशितिः। गुरु ज्योतिरा वैद्यान्‌ दवान्‌ Faure पुरोहितान्‌ ॥ यथाद्मेतान्‌ HAY सुपुष्पाभर way: । afte च natal लान्‌ ufanagure'— ete | ~~ ~न = = ~ ~.“ “~ -- + द्यमेव पाठः wad | ममनु, सार्दिविचम-- एति पनः प्रति- भाति। + तत्तमिन्कधः- ति aie | सम 4, तत्वरिष्यषः)- एति पठः प्रतिभाति। 5 १०। ts पराध्ररमार्चकः। प्रविश्य as विदद्धिमेम्निमिख्च सह का््याष्यनुसन्दध्यात्‌ | Age मसुःः- merce दि दृशु ब्राह्मणे: TE UATE | मन्तमग्निमिसेव fata: प्रविगे्षभाम्‌ ॥ तजासौनः शितो बाऽपि पाणिमुद्यम्य दङ्िणम्‌। विनौतबेषाभरणः wa कार्याणि काय्थिरम्‌ ॥ wee देणदुरेख wagey हेतुभिः | शअरष्टादश्ख aig व्यवदशाराम्‌* एयक्‌ yaa — इति | विष्वारकाणमाह ATTA: — 'दिवसस्याष्टमम्भागं Fat कालच्यश्चा चत्‌ | ष कालो ग्यवदहारार्णं शासदृष्टः परः रतः" दति । दिवखमष्टधा शला प्रथमम्भागमप्रि्ो माद्यथं मुक्ता अरनन्तरभाग- ee अवद्ारकालः । श्र बज्यासियोराह सन्ततः “चतदन warren daar} तधाऽ्टमौ | fafearg भ पण्ये यवदहारांस्ठ नित्धश्रः”--दति | Gagan सभा, wer: चातुविध्यमाइ हत्यतिः,-- नप्रतिदहिकाप्रतिषिता afzat भ्राखिता तया । चदुरविधा शभा प्रोक्ता wanda तथामिधाः ॥ cdoneaetny dita he pO aA ad CIEL Sp COL OY Oe OEE कनन ७५ न्‌ # निबन्धानि,--द्ति atte | । † भागवयन्तु--ईतयन्यन्र पाठः| { तिचिष्बेता्ठ भा प्ठेत्‌ः--इति are | pa as १९ प्रतिष्टिता yt wae wer भामाप्रतिहिता। Cigmsawayer cee प्रादित "दति TSR: वभाखानाकूख्धादन्यान्बसुस्यानि श्ञा- MAT गः, दश सामानि वादानां पञ्च चेवाब्रवौर्भ्रगः। निणयं येन गच्छन्ति विवादं प्राय बादिनः श्ारण्धास्त Ga: Ba: सारिकाः" afereren चेगिकाः सेनिरकेरेव यामेऽणभववािभिः ॥ उभयानुमतसेव गद्यते waatfuaat । कुलिकाः साथमुख्थाद्च पुरयामनिषामिमः ॥ यामपो रगणम्रे्धद्चाहविद॒श्च वर्मिणः | कुलानि efearda fran: नृपतिखया"”-दृति | BRITA: | यामेऽपोत्यादि शब्दात्‌ ये ary श्ररष्यादौ पर निवसन्ति, तेऽणुभयवासिभिः प्रामवासिभिररण्छवासिभिच भिषयं कुः, उभयश्यवरहाराभिन्ञवात्तषाम्‌ । कुशिकाः कुणम्रेहिभः | साथः यामयावादौ fafeat अनमः । मुख्याः यामण्ादथः। पुरं मुख्यं मगर, तस्मादवापोनो ग्रामः । (पुरपामनिवाषिनां भेदः, कुल्लिकाटोनि ve श्थानानि। तानि दारण्कारिजनविगरषाणामेव | यामाकारेणावस्वितजनवपिवादे ममोप्ामनिवाभिभिः fae: | ar -क ~~ = = ~~ ay ख्याने ‘arg’ — xfs Wis! भार TH वन्न | + श्यानमौद्ितम्‌,--प्रति wre | { ये तु--द्रदेतावनमात्र श्रा gay | § wea, तिति afag यम्‌ । ten: ५ 5 पराशर माधवः श्र्धिप्रद्यर्थिनोरननुग्रयानुमतं et कुणिकसाथेमुख्यपुरयामनिवा- सिनो wea) यामादीनि दग्र स्थानानि साधारणानि। यामो- यामाकारेणावस्थितो जनः । पौरः पुरवासिनां समूहः | गणः कुलानां समूहः । AG रजकाद्यष्टाद ग्ररौनजातयः | चातुवि्ः weal चिक्धा- दिविद्याचतुष्टयोपेतः(५ | वमिषणो गणम्र्टतयः। तथाच काल्यायनः,- “गणः पाषण्डपूगश्य^ ब्राह्मणएभ्रेणयस्तया । समृदस्थाञ्च ये चान्ये arena टस्पतिः“- द्रति | श्रायुधधराणां समूहो भतम्‌। । कलानि श्र्थिप्रद्य्थिनोः सगो- जाणि। कुलिकास्तच oer: ¦ मियक्ताः प्राङ्धिवाकंसर्दितास्वयः स्याः | मृपतिः ब्राह्मणादिसहितः। सन्यानाहइ याज्ञवरक्यः, - “श्रुताध्ययमसन्यन्नाः ध्मेन्नाः सत्यवादिनः | राज्ञा मभामदः कार्य्याः रिपौ fase ये ममाः"-इति। तेषां agrare seafa:,— "लो कध््माङ्गतच्चजाः८९) सप्र पञ्च चयोऽपि वा। + ep नमि = भजन mute न Oe ee 8 eee मन ~ = aa = + waaguag,—sfa ae ate | + इत्यमेव पाटः सनव्वेच | ree 1 ~~~ => ~~~ = =+ ~~ -~ ~~~ ~~ ~~ १ (२) “eitfaat चयी वार्ता दणडनोति शती "--ष्रयान्वोचति वधादि विद्याचवुद्य केयम्‌ | (२) क्तेकेक्ताक्राचारः देग्राचार इति यावत्‌ | ara ATTRA HEA ufeara: | wayifa, “fae कस्योव्याकरणं निक्तं ज्योतिषां fafa: छन्दसां विचितिश्ेव षड्कोवेद्‌ दृष्यत --दव्यक्तलद्दोणानि वेदाङ्ाजि। SIU TUR aA | Rr यचोपविष्टाः विपराग्थाः षा aye सभा"-षति । तच TEN षएवार,- ५टू ग्राचारानमिन्ना ये नास्तिकाः ग्राखवश्निताः। उनत्तकुशका war a wean: विनिषये"-एति । राज्ञः प्रतिनिधिमार याज्ञवल्क्यः, “UAT ATAU व्यवहारान्‌ मृपेण तु । सभ्यैः ay नियोक्रव्यो ब्राह्मणः मग्वेधक्नेवित्‌"-एति । मोऽपि राजवत्‌ arate विचारयेत्‌ । यदाद मनुः. “यद्‌ सख्यं म gaia नृपतिः area । सद्‌ा नियच्छादिद्मं ब्राह्मणं काय्यदग्रे ॥ सोऽस्य कार्य्याणि सम्पश्येत्‌ मन्येरेव निभिः | मभामेव प्रतिश्रेमामाभौनः स्थितएववा'-दति । सच विचारको ब्राह्मणः प्राद्धिवाक एति उच्यते । तदाद ठेदस्पतिः*- "राजना क्रार्याणि सम्प्येत्‌ mfgaratsta वा fem: न्यायाङ्गयन्ययतः Bat wana ferach वलेन चलुरङ्गन यतो THA WAT: | Awa: खवपुषा तन राज्ाऽभिधोयते ॥ विवादे प्रच्छति va प्रतिप्रपनं aaa | प्रियपूरै प्राग्वदति प्राद्धिवाकरोऽभिधौयत"-- दति । मारदोऽफि- (जन ~ ae ~+ ~ ee नज न = न + उन्मत्तब्र दलुमाख्च,ः-- द्रति Ae | ~ ~~ ~ + = ~ जन = ~ ~ त भम ~ त न ee te ५०५ RR WETTER "अष्टादश्पदाभिश्चः षडभेदाष्टसहल्लपित्‌ | आन्धो चिक्यादिकग्रलः श्रु तिरूतिपरायफः ॥ विवादसंज्चितं wa च्छति प्रतं मतम्‌। विबेखयति away प्राधिवाकस्च स सतः ॥ यथा wel भिषक्‌ कायादुद्धरे्न्वयङ्रितः । ` प्राङ्धिवाकंस्तया शद्यमुद्धरेद्रावहारतः“-इ्ति । प्राड्धिवाकस्य गणाः wat दशिताः- “श्क्रूरो मधुरः fava: क्रमायालो विश्वेणः | उन्छाइवानलभश्च वादे योञ्यो HIT तु-इति | प्राङ्धिवाकस्य श्रनुकव्यमाह कात्थायनःः- “भ्राद्धष्णौ यत्र न स्यात्तु fad तत्र चोजयेत्‌ | वश्यं वा धर्मशास््ननं शूद्रं यत्नेन वशयेत्‌ ॥ ‘aq विप्रौ न विदाम्‌ स्यात्‌ चच्ियं तत्र थोजयत्‌ । aq वा धर्मशास्वन्नं Ue यनेन व्नेयेत्‌*"-दति । तदवजेने बाधमाह मनुः, “जञातिमाजोपजोवौ वा कामं खाद्‌ त्राह्मणन्रुवः(“ । का स ज wanes ^ ० म न "नन = = ~ ~~ ए 7 1 श RD EE reetane Wen Brame fen ERT + माख्ययं स्लोकः Be शा ° TARA: | ५ ~ न~~ ar ek nme ens ~ ~+ "~= ~~ ~~” ~ ० र ज SAS eR ELE ST ज जी (९) ब्राह्म णमाल्मानं ब्रवीति न खयं प्रह्मणढत्तो यः, सोऽथ ब्राद्चणब्रुवः | स च,- Carer विहन ब्राद्ोलिं दे विं ater: | waa ब्राद्मणोऽस्तीति THAT ANA — KAM: | WITHA | Re WANT मपतेने तु द्रः ATTA ॥ धस्य UAT कुरते राशो धमविवेचनम्‌ | तख सोदति तद्रा पर गौरिव पश्यतः ॥ fama विहा सम्पश्येत्‌ कार्याणि एषलेः सह । तस्य ROW TE वलं ate नश््ति"-इति। गएक-लेखकावपि कार्य्या षिव्याह ewufa:,— “ष्टा भिधागतचन्नौ गणनाङुग्रलौ प्रचो | नानाक्षिपिक्नौ कर्ष्यौ रान्ना गणकलेखकौ "दति | व्यासोऽपि,- ` “चिस्कन्धेञ्यो तिषाभिश् eye प्र्ययकारणम्‌ | VALAIS गणकं योजयेन्नपः ॥ स्फुरलेसं trate weds लाचफिकं wher i ~~ ~ = ~~ -- ~= = =-= ~ न= = [क ce ee 1 8 7 eee 1 HCAS भियन्नोत शष्द्‌,- दति wre | (१) satfawre fy गणितखन्ध-जातकस्छन्ध-सिङ्ान्तख्वन्धरूपस्कन्ध- चयेपेतमिति गणिततक्वधिन्ताभखिप्रभतिषुक्षम्‌ | गणितस्कन्धे eqns {दविधं गणितं निर्णीतम्‌} mane तु nae गरुभाग्ुभविन्ता | सिडान्तस्त्‌, “शद्यादि प्रलयान्तकाजकषनामान- gaa: ऋमाद्वारश्च श्यसटां दधा“ गणितं ware सेन्तसाः। भूधिन्णरदसंस्ितेश्च कथम wate यायते सिान्तः स उद तोऽ गथितख्न्धपरगन्धे a ॥"-दति सिडान्तथिरेमण्णक्घ- waa: | हिधा गणितमिति प्रतिकलेमानुजे(मभेदादिति मशिततत्व- जिन्तामणै Bray | Rg प्रराश्नरमाधवः। warat जितक्रोधमलेभं सल्थवादिमम्‌“--इति | साध्यपालोऽपि aaa दूति तेनेवोक्रम्‌,- "“साध्यपालस कन्े्योराश्चा साध्यस्य साधकः | क्रमायातो दृढः शद्रः Mary मते स्थितः"-इति । छृहस्यतिर पि, - “श्राकारणे रक्षणे च साच्ययिप्रतिवादिनाम्‌ | सभ्याधौनः सत्यवादी कन्तवयश्च स पूर्षः"-इति | try कतिपयेवणिभ्पिरधिष्ठितं षदः कर्तव्यम्‌ । तदाच कात्यायनः, - “कुलग्रलवयो द्धे विन्तवद्धिरमत्षरेः । . afufiy: स्यात्कतिपयेः कुलश्धतेर धिष्ठितम्‌" इति | कुल्छतेरन्दभ्डने रित्यर्थः | तेषामुपयो गमा सएव,- “श्रोतारो वणिजस्तच ana म्यायद्‌ शंने”--दति | यथोक्रराजादियुक्तायाः सभायाः द्गराङ्गानि सप्रयोजनान्धार दस्य तिः,- “नृपोऽधिषृतसभ्याञ्च खतिगंएकलेखकौ | सद्ेमाम्यशबपुरुषाः* साधनाक्गानि वै दग्र ॥ एतद राङ्करणएं यस्यामध्यास्य पाथिवः | न्यायान्‌ Ga शतमतिः सा सभाऽध्वर सम्मिता ॥ दशानामपि Saat कम प्रोक्तं एक्‌ प्रथक्‌ । [8 7 1 श] ee re ` eee [81 त OT S Ne OT 1 * हेमाग्न्यम्ब्वन्रएरष।(ः+--दइति Re | WTC ATV | RY सभाध्यलो नेपः शासा सन्वाः का््पपरीशकाः ॥ सरति्विं मियं रते जथदागधमन्पथा | शपथा ferent अलं टषितल्न्धथोः ॥ गणको गणवेहष्ट* शिखेद्यायश्च लेखकः | ्रत्य्थिस्यानयनं साषिणाञ्च स TEM: ॥ वाग्दण्डसचेव धिग्दण्डो विपराधौगौ हु व्राबुभौ । श्रथेदण्डबधाबुक्तौ राजाथन्तावुभावपि ॥ um ये विदिताः सम्यक्‌ genta: | साहसन्यायवच्योनि gal: का्यांफि ते गृणाम्‌"-इति । यथाविधि fant we: फलमाह काव्याथनः- “सप्राद्धिवाकः। सामात्यः बप्राष्एपुरोहिनः । ame: प्रचको राजा खरे तिष्ठति धर्मतः"-द्ति। वैपरीत्ये दोषमार मनुः. “REN दण्डयन्‌ राजा दण्डां चेवायदष्डधन्‌ | wait महदाप्नोति नरकश्चैव गच्छति" इति | सभ्यानां फलमाह टरदस्पतिः,- “श्रश्ञानतिमिरोपेतान्‌ सन्देहपटलाश्विताम्‌ | निरामयान्‌ यः कुरते भ्रा्ताश्चमशन्ाकथा ॥ दह athe राजपूजां लभते खगेतिश्च षः । लोभद्रेषादिकं व्यक्ता थः ङुर््यत्का य्निणंयम्‌ ॥ owe wre ee eae रकी [षि =-= nn ~^ te aware ~~ ~~~ १११ [ (गणी ॐ गगयेदिद्,--दति शा०। † प्रादिवाकख,न द्रति ar | 4 ९१ परा्नरमाश्रवः |. शरास दितेन विधिना तस्य cya भवेत्‌-द्ति। विपे दोषमाह काल्थायनः “न्यायशास्वम तिक्रम्य PITT विनिसितम्‌ । तच WaT WIA. इतो हन्ति न संश्रयः ॥ च्रपन्यायप्रटे कन्तु नोपेश्छं तत्‌ सभासदः! । उपेचमाणाः SAN: ATH याग्यधोमुखाः श्रन्यायेनापि a ard a a यान्ति बभासदः। तेऽपि तंद्वागिनणस्माद्ोधनोयः स aera: ॥ न्यायमा्गाद्पेवन्त्‌ ज्ञात्वा चित्तं मरो पतेः | ama तमियं aa मन सभ्यः किखिषो. भवेत्‌ इति । कायामिन्पन्तावपि amram नास्ति प्रत्यवायःः-द्ति सणएवाडः- “सम्येनावश्यकन्तेवयं धर््ाथंसदितं वशः । ब्टणोति यदि at राजा स्याल सभ्यसलतोऽनघः“- इति | wat तु राजा wee धमं श्वा दोषकारिि wea न करोति, तदा निष्यापो भवति । तदाह मतुः "राजा भवल्यनेनास्ह FWA च सभासदः | vatl गच्छति कर्तार मिन्दादा aa भिन््यते-दति | | 1111 ee ee * wateifa,—xfa ate मोपेच्न्ते समासदः दति कार | t येऽबुगान्ति,- इति म्रश्चन्तरौयः पाठः alata | ९ “afart म वक्तव्ये तदचने किल्विषो भवेत्‌”-- एति प्राठन्सरं का०। | aat,—xfa ate | faat,—xfa wre | अवहार काखम्‌ | Re श्रन्यवावादिनः NIE दण्डमाह नारदः, ` रामादश्चानलो वाऽपि यो शोभादन्यवा उरत्‌ | सन्थोऽसभ्यः च विन्नेयसतं पापं विगवेरश्वग्रम्‌”- एति | कात्यायनोऽपि, “दाद्‌ जागतो वाऽपि मोहादश्ानतोऽपि ar तच सभ्योऽन्यथावादौ दण्ड्।ऽसण्वः Wat हि ष." टति। याश्नवस्क्योऽपि,- “रागाद्‌ sure भवादाऽपि खल्यपेतादिकारिणः | सभ्याः TAR एयक दण्ड्याः विवादात्‌ दिगण quay” seer । zee तिरपि,-- ““श्रन्यायवादिनः mar, तथेवोत्को चो विनः | विश्रसलवश्चकादयेव निर्वास्याः मदणएव ते"--एमि। कात्यायनः, - ““श्रनिणौते त्‌ यदर्य मम्भायत रहोऽथिना। प्ाङ्वाकोऽपि दण्डः म्यान्‌ mata’ शिगरदतः"- इति । राजादनः सभायामुपवेगश्नप्रकारमार्‌ टरस्पतिः,- “पूवीमुखस्द्रपविद्राजा सभ्याः उदश्मृताः | nwa: पञिमाग्यसतु लेखका दकिणामुषः'*- इति | समोपविष्टाः नृपादयो यस्यङ्गानिः तमरङ्गिम व्यवहारं पुष eau परिकन्पयति मणए्व,- (व 21 ee कक eet =-= + सभ्यादेव,--द्ति Ae Mee | ge ULIACATUT | “एषां agi नेपोऽ्गागां मुखश्वाचिहतः खतः | बाह सभ्याः Gate हे गणकलेकको ॥ ` हेमा्धम्ष्वशपुरुवाः पादौ चं पुरुषस्य च-दएति | था दृद्धरादित्थादिदेषरहिता, सा मुख्या SAT तदुक्त महाभारते “a ar सभा यवम uf ser: भते ger बे भ॑ वदग्मि धमम्‌ | नासौ धर्मौ यच न सत्यमसि न तस्यं बच्छरेनातुषिद्धम्‌"-इति | दति सभाभिरूपणम्‌ | श्र व्यवहारदश्नविधिनिरूष्यते | तच प्रजापतिः “राजाऽभिषेकसयुक्तो ब्राह्मणो वा ASA । WTI: TA व्यवहारानमुखणान्‌-दति । नारदः, “तस्माद्धर्मासिन प्राय राजा विगतमश्षरः | समः खात्‌ hay बिश्वदेवखतं जतम्‌”--दइति । Seer धमः, "पियदेग्यौ समौ stat arate नियच्छति | तथा wren निचम्तव्याः प्रनालद्धि चमत्रतम्‌--द्ति। ध = 1 1 णमी (x) बनेयथा प्राफकाकते परियदेव्यावभावपि नियच्छति, तथा cre eat: प्रजा नियम्तख्यादति सम्बन्धः | तरह षएव,- धमश्रास्लायग्राख्ाभ्यामवि रोषः त ह; समोलमाणो निपुणा वहारगतिं मक्के धमशाखाणि पितामहेन दर्शितानि, “वदाः apres चारा whaler शतथसया | एतानि धमेशाखारि पुराणं न्वायदश्रनम्‌* "इति । नन्‌ म धद्मास्वाकगतमरथग्राखं, किणवम्बरेव नौत्याककम्‌ | aa! भविष्यपुराण दगरितम्‌,- “षाडगष्छस्य प्रयोगस्य प्रयोगः कायगौरबात्‌ | सामादौनामुपायामां योगो यामममाष्रतः | श्रध्यचाणाश्च frau: कण्टकानां जिशूपणम्‌ it दृष्टां सतिः प्रोक्ता ष्टषिभिर्ग्‌डारज-एति। वादृम्‌ । श्रग्धिन्नययंग्राखे wameerfaqgt योऽरः म इपा- देयः, Tate परिग्याञ्यः | तदाह ATS, - “oq विप्रतिपत्तिः स्याद्धर्म्स्वा्वगाख्योः | SUT yy MAMTA करमाचरेत्‌"- एति । धरम्॑राखार्थशराख्योर्विरोपे" न्यायेन नित्यम्‌ । लदा ee छ ene स ~ एराणन्यायदशि नाम्‌+- दति का*। + इत्यमेव पाठः सर्वत्र । मम तु, ततुः--दति पादः प्रतिमाति। ape rene ० = ~~ ~ (x) धरम्॑ाल्लयोरयं शाह्नणोख विरोध Kae: | Re WERT साधवः | ध्न्यः, "ह्यो विरोधे म्यावैदठु दशेव व्वरारतः"- इलि) व्यवहारतो इद्धयकशरररिद्धो* न्यायोबलवान्‌ । न्यायानाशञ्रयणे बाधमाड eae “Saal शस्छमाभिद्य भ कर्तव्यो हि farce: | यक्षिरोने विचारे तु ध्मेहानिः प्रजायते ॥ चोरोऽचोरोऽसाधः साधुर्जाधते। व्थवदारतः। क्ति विका विचारेण माण्डव्यञ्चोरताङ्गतः ॥ "असत्याः AIIM: TTA BA: | दृश्न्ते भ्रान्तिजनकाः तस्मायुष्षा विचारयेत्‌^--दति। न्यायख निशेायकलसुपपादथति मनुः, “यथा HUTA: ANG aL पदम्‌ । मयेनयाऽनुमानेन WHS FIA: पदम्‌ I धाकधेर्विभावयेलिङ्गेभावमन्तगेतं नणाम्‌ | खरवणेङ्गिताकारशुषोचेष्टितेन वा”- इति | धाश्चवत्क्योऽपि,- ` “श्रसयदिके इते चिक युकरिभिघागमेन च | Keyl व्यवशारस्त कूट चिक्रक्ताद्धात्‌”--दति | ay wage, भतश्डलानुसारितात्‌ दिगतिरिति; तश्र इलं हेयम्‌ । ATH याशवस्कधः, भ ० कनन 9 ~“ Ee mene ae ० ^ इद्धद्यवहाराव्‌ प्रसिडो,- दति we ae | चौराऽचोरः साभ्नसाधर्जायते,-- दति are | ¡ बाद्ये,- इन्यत aster: पाठः । पिपर पणय वि 17 7१1 , Bares | Re “ea मिर्रीलिववत्ारामबेशुपः गतमणनुषन्क्े Wea MAT — CE ॥ निण्यं WATE साच्यादिकम्‌ by margin. “fanfront साक्षिनिमित्ता सत्यया" दति 1. मुद Fay देणद््टख wragey रतिः न. ष्टादग्रसु मारु मिवन्धानि एथक्त्‌ एयक" Surat: ar कटिव्यादिभिखाष्टाद प्रपदमनन्धोनि - ययाणि निण्येत्‌ | तम Sarasin: | तदाह कात्यायनः, ‘AI प्राम्तानुमारण राभा कार्य्याणि साधयेत्‌ | वाक्याभावे तू सवेषां द्दृष्टेन तन्नयत्‌ः'-ष्ति। देदृष्टस्य लदणमार wa “erg Sym यो धमः wen: मवंकाशिकः | मुतिम्मत्यरिरो धम engu: ष उच्यते" --इति। तत्तहग्रोयानां मिखोदिवादे 2 प्रयुषटन fang: | तदार aa, - “दे गपत्तनगोष्टष्‌ पुरयरामेषु वादिनाम्‌ | तेषां खममयदुमेगाम््लो {न्य A: ay" ॥ यच तन्तद्ौयानां दनरः सह विवादः, तष गातो निणथो- नतु देग्रदृष्टतः ¦ लेष्यादिभमाणाभाष राजा च्छा निषयत्‌। तदाह सणव,-- “Se यत्र न विद्यत न भुशिनं च माक्िणः। न च दिव्यादतारोऽमित प्रमाणं तज पावः -दति। ree ~ ० + Weg मत गयेत्‌,-- ईति कार | ( पराच्चरमाधदेः। बठिगादिषमयेव्‌ समयिभिरेव fatwa) तदार यावः, “वणिकशिखिप्रशतिपु- हषिरङ्गोषजो विषु । amet निणयोन्येसन्तेरेव तु* कारयेन्‌ ॥ गुडः -ल्ञामौ geay पिता ete: पितामहः । ~“ विवादानयं पठेयुः खाधौने विषये गृणाम्‌”-दरति । निशेयकारिणणं उक्माधमभावमाह नारदः+ “कुलानि Swede गण्णद्चाधितो नृपः | प्रतिष्ठा warrant सवेषासुन्तरोन्तरम्‌"-दति । पितामरोऽपि,- “यामे दृष्टः पुरं यायात्‌ पुरे दृष्टस्त्‌ राजनि । राज्ञा दृष्टः कुदृष्टो वा मास्ति तस्य पुनभवः-दति। राजो नियममाईइ पितामशः+- “म्‌ रागेण न लोभेन न कोपेन मयेश्ेपः । पररमार्चितानर्थान्‌ म चापि खमनोषया"-दति। अस्यापवादमाह षएव,- छलानि चापरार्धांख पदानि मृपतिरूया | खयमेव निग्होयात्‌ मृप्लौवेदकं विना" दति | तजर SATAY सएव,- “पचिभक्रो aed} प्राकारोपरिशष्कः | पा en ना जोन न जा चि 0-0०-०० 9७.०9 ०० * शभद्ेरेव तु-इति का | t पथिगङ्गकराकेपःः- दति wie we | ` शवहारक्राद्यम्‌ । जिपानख्य विनाभौ उ तवा qrere च ॥ परिखापूरकसेव राअष्छिद्रप्रकाप्रकः | अन्तःपुरं TEE भाण्डागारं मशागमम्‌ ॥ nfamerframt यो भोजगश्च निरौश्छते | वि्डुन्षेभ्रवातानां शेुकामो AUTH: ॥ पय्यंडासनवन्धो " चाणग्रखामनिरोधकः | रा्ोऽतिरिक्षेषचच विष्टतख। fasta खः ॥ यश्चापदारेण विेदषेलायां तथैवच | शय्यामने पादुके च शधनासनरोणे ॥ राअन्यासन्तग्रयने यस्तिष्ठति समोपतः | राजो विदिष्टसेवौ वा ऽयदन्तविहिताममः ॥ वस््ाभरणयो शैव सुवण्यरिधायकः | खयं UST aa UAT NATH च. ॥ अनियुकतप्रभाषौ च नृपाक्रोग्रकएवच | एकवाषास्तयाऽभ्यक्री grant sn faa: ॥ fafafaary: म्बौ च परिधानविधृगकः | इलान्येतानि TAIT] भवन्ति नृपमज्निधौ'-एति | श्रपराधानाह नारदः+ नशाज्नाणद्वनकन्तारः WTA वपमङरः | पर स्ौगमनश्ौयै mga पतिं विना ॥ oe काये कामयालुभन्द,--षति we we | + राच्चोऽतिसिहिवमेख दिविध, प्ति भाग ae | 5 te WEMRCAT ET । ATTAIN TST CATTE । MIE पातमश्चैकेत्यपराष्षः,. THAW’ — THA: I विबादमग्तरेणणपि. cea saree | श्रतएव oat — | “arta पथिभक्गश्च we wh: पतिः विना |: खयमनेषयेद्राजाः विना. चेव. विवारिना, ॥ कन्याप्रह्मरकं पापं faery: पतितं तया | परापवादमंयुक्रं खयं राजा विधारयेत्‌ ॥ षड्भागकालं एरकां मामे च्छेद कमेव | खराद्रचौय्येभोतिश्च परदाराभिमेनम्‌ ॥ TATU सस्वानाश्चेव चातकम्‌ः ।, दशेतानपराधांख खषं राजाः षिकारखेल्‌”--ररतिः। तदष्याह प्तिामहः,-- “Sarat, await चः श्रध्धिदशथ तवेषच | परदहाकीषणाण्वछाटौ(९) द्रयमसाभिकंश्चं यत्‌ ॥: TIMAM sea चत्‌ यचवेवाङ्गविनाश्नम्‌ । दाविंग्रतिध्पदान्याहः नपश्षेयानि पण्डिताः --१ति। pe 1 1 NG ATED I OME 1 णी ee * मवाच्या,--दइति काण t दकडन,--दइति ate | { उत्त्ति+-दइति wet $ इाश्रिष्रतिः-दइति ate | [य व EOS Ge ROE RET errr eR: (१) Weta यदाघरब्यते, तस्धाष्छदनगकन्ताः cere: | व्षराश्काराम्‌ | ३4 यच कलादौनि राभा ee द्ष्टमपक्ः, AY लोमकान्‌ शूक काञ्च alga) तथोः खर्पमाह का्यायनः,- “rau निन्दितं वर्थमुस्योराश्चा प्रोदितः | श्रावेदयति यः पूर्वै स्तोभक्रः ख उदातः ॥ मृपेणेव from: स्याम्‌ परदोषमरेशिषरुम्‌ | भपस्य समयं HAT BAA: म उदादइतः'-इति । शरास्त्मिन्दितं इला दिकम्‌ । रथमुख्यो धनलाभप्रधामः। राजना ास््ादिपर्थानलोचनपुरःभरमेव काय्यं BAMA तदाह हारोतः,- “शास्त्राणि षणधमेांस प्रश्तोनाश्च श्पतिः | व्वष्ारखखूपश्च WAT काय्यं समाचरेत्‌ "--ए्ति | yaaa: पितामहेन दप्रिता.- ""रजकशमेकार्य नटो वष्ट एवष | दौवन्तेकश्च frat मेन्डमि्ौ पथेव ॥ मेधिकम्विरववयालरम्तौ नचद्िधषटिक्ी। | कोसेरिकाः{ भारूपदामानगोण्डापगोपमाः ॥ एताः प्रतयः प्रोक्ता ere मनौषिमिः। वणानामाश्रमाणन्त्‌ सवेदेव विः fora: षति । वरन ce ~ = = च र ee ज ज निन TER नम क Wm +, ~> aa es a. = — pe Teel PO et eeenentl + ay FRAG, —Els क! । t बुरूड़,- ति are! t aegg afgat:, —tfe Ta | § कोसेदिक्षः.-- els का०। ३१ पराद्मर माधवः । age आत्थादि षमोचणौयमित्धाद,- “जातिजानपदान्‌ धर्मान्‌ अेणोधमाख् श्राश्वतान्‌ | समोच्य sawing खे वणं प्रतिपादयेत्‌" --इति | छनक्मागेवत्तिनः कुलादोन्‌ खमागीं स्यापयेदित्याइ चाश्वस्कधयःः- “कुलानि प्रहतौञैव अरोजेनपदानपि | खधर्म्ाच्चशिताम्‌ राजा विनोय खापथेत्ययि"-दति | काययेद शेनप्रकारमाह भारदः+- ^“धर्मगशास्तं acer प्राद्धिवाकमते धितः | समाहितमतिः पटेत्‌ व्यवहार मनुक्रमात्‌ ॥ WITH: प्रथमः ATA व्यवद्ारपद AAA: | विचारो fawaafa दशनं ereqfaua’—sfa | श्रागमोऽयिवचनश्रवणं, तदादौ AUS | AAT खणादामा- चन्यतममस्पिन्‌ Te wea | ततः प्रतिभ्चोन्तरप्रमाणनां विचारः, ततः प्रमारतोजयावधारणएम्‌ । दति यवदारदशभेमविधिः | ES कि थ जि य या जः ज-जात नक © कार्थ, दरति कार | CAYITWITF | ge शअरथासेधादिविभिः। तज नारदः, - “वक्तयेऽयं न तिष्म्पसुत्कामनश्च ace: | श्रासेधयेन्‌ विवादाथं यावदाङ्ामदेनम्‌"-दति | प्रथमन्तावदयों प्रत्ययिनं प्रति adam हेयमिल्धादिकं काय्यं FIT । त्र यदि AGN मनभ्यपगम्योत््ानतुमिच्छेत्‌, तदा सखकाय्येपय्यन्तं राजाश्नया तं भिरग्ध्यात्‌ । weary षणएव,- “स्थानासेधः TATA प्रवाषात्‌ कर्मणस्तथा | waa श्यादासेधस्तमासेधं म लहयेत्‌'"-दटति | seq स्थानान्‌ aa 4 चजितव्यमिति ware: | मरौ यद्र्प्रदाने feataateraiafata काशामेधः । sea ग्रामान्तरं न waafafa प्रवामामेधः। श्रृत्वा म waa कर्तव्यमिति waa) मन्ध्यावन्दनाद्विवदिख्िथमिसोधो a AAS । ACTH कात्यायनः. ""यस्तिसियनिरोधन याहरेन्‌ guenfefar: | श्रासेधद्यरनासधैः ष दण्डो न वतिक्रमात्‌'--षति। दूद्धियनिरोधवत्‌ विषमदे परोऽपि नासेधारः द्याह मारदः- aA TAT ATA SEM TRATES । mifagy परासेधमुक्रामन्नापरप्रयात्‌--इति | श्रासेष्यासेधकयोः तत्कालोक्षहने दण्डमाई सएव, — ज तदुत्तर-दति कान † दुगंमो पद्ववादिनुः--द्ति ate | ge a ee “अआतेधकाशणाशिद्ध are ATR । श विनेयोऽन्यथा ह्म्‌ शरदे Fem — Ah । अन्यथा gay weld Feathers तंभाकेधथन्‌। अनासे- WTATY कात्यायनः a | “यपर्वतमाङ्ढ़ा Wace: १ विषम्ठाश्च ते श्वं enter: काष्पसोधकेः ॥ वयाध्यानत्यसनस्याञ्च VATA TAY " MAMTA मासेष्याः FTAA ॥ ग कर्को बौणकारे सेभाकालेऽथ कनिका 4 ofan Ret हेतकाशख भौम्तरोा 1 COM: कषकः खो तोयष्छागभने चद्‌] । MUR YT थावत्‌ तत्करं न विषादयेत्‌^-इति 1 ठषदयतिरपि,- “qetereteat रोगो शोकार्तौ wrarern: | we डद्धोऽभियुक्खच शृपकाखीच्चतो अतौ ॥ आसन्ने सैनिकः सद्र क्कसाथरकहे | विषमश्ाख nee: -आओसमाथासथेवष"--ईति | नारदोऽपि. “fadgaret Corti fregelet सिवतः | किमेति 6०५, भविनः * सारम्मा, BEE — ala ae | [गीर पि पि प पि विपि) पि (९) ष्ये जाले लति Strat we, शप्राप्तव्यवदारसच विषमाश्च नास्या नँ कदा afe द्यं दापनौोयमित्याकाङ्गी हाच -- “वणिन्िकौतपश्छस्तु सखे जाते = | aatquras क्था रापनौधाः wef यद्यासिद्धो मागच्छेत्‌, तदा राजा तभानयत्‌ | तीक “areata कुरुते SAARI तथा | ARUAAZTN FUT FCAT वा-इति # नारदोऽपि- ‘Sa कालश्च विज्ञाय कार्य्याणाश्चः कलावलम्‌ । श्रकम्यादौनपि९ तथा शनेराक्ानभेनरुपः*"-दति । श्रकानानरहानाह हारोतः.- RATATAT ATT eT SSH । ~~ ० rere eee पक क ` वा te + अकख्पादोनपि नैर्यानिसाङ्कामयेवरृपः,-- शति का" | = 11 Ute are nh waar, oN ad ० क 99 क ad 11 ~ Ne anneal (x) अन्धेन greeter TATE माधवः । (x) कषयो कमन्य | ४० बदरश्ररमाधघवः। कार्या तिपा तिय निनृषका स्वीत्पवाङुशंन्‌\) abate) n seer tpn Wega जडाना्ग्छ्थानाङ्कानयेन्नपः"-षति । . काल्यायनोऽपि, “धमौद्युकानभ्युदथे रौगिणोऽय शडानपि । SAITAMA नाड्ानयेनयपः ॥ म रौभपचां युवतों कुले जातां प्रसूतिकाम्‌ | सजातिपरसुकाच्चैव तथा माह्ानयेनुपः”-टति । सजातिप्रभुका तु मरोचिना निदक्रा,- “सवेवशीन्तमा कन्या सजातिप्रञुका WAT | तदपौगदुट्‌म्बिन्यः खेरिण्णो गणिकाख्च याः ॥ निष्कुला ary पतिताः तासामाङानमिते "दति । दृप्षस्य दण्डमाह टदष्पतिःः- “राहतो यस्त॒ नागच्छेत्‌ दपांदन्सेवखान्ितः । श्रभियोगानुरूपेण तस्य दण्डं प्रकखयेत्‌""- दूति | [1 wen me श गी ee ee nT १ । Ney emcees ae ener meee (1 (x) व्यसनं विपद्‌; कामजक्रोधजदोषविदेषोवा | स चाश्ादशप्रक्षारः agate: | यया, +अरगया्तो दिवाखभ्नः प्ररिवादः स्ियोमदः | तोग्यलिकं खथाऽटाश्या कामजो दश्कोगणः ॥ पैभूल्यं सासं ग्रो इ दष्याऽयाऽधंदूबम्‌ | बाग्दग्डजच्च पादष्यं क्रोधजोऽपि गणोऽटकः”- इति | (x) म्तोमखादिना, उन्त्तोबातादिना, प्रमत्तोऽनवडितः। अवहार कार्म | का्धावनोऽपि,- “OETA शः TAT राजशासनम्‌ । qe quit दण्डं विधिदृष्टेम फमेणा ॥ होने कमणि पश्चाश्कध्यमे तु waa | ARRAY दण्डः Vr निल्यं Tawar" eh | श्रापन्ञस्यानागमनेऽपि दण्डो नेत्या याषः,- “परानौकहते am दुभिषे वयाधिपौडिते। gala पुनराहारं दण्डं न परिकम्पयेत्‌-इति | दव्यासेधादिविधिः। TY CLA: | श्रच मतुः, "धर्मासनमधिष्ठाय स्वोमाद्गः समाहितः | प्रणम्य SATA: काय्यदग्रनमारमेत्‌"-श्ति | SCY कत्तयमाइ कात्यायनः, "काले कार्य्यार्थिनं ved प्रणतं पुरतः ्वितम्‌। किंकाथ्का चते पौडामा भेपौद्रूजि मानव। aa किन्‌ कथं कस्मात्‌ TRI सभागतम्‌“ दति । इृषस्यतिरपिः- Cprrarat विवदताममशदादिनां 77: | वादाम्‌ पशयेननात्महतान्‌ न चाध्यवमिमेदिवान्‌ ॥ 6 gr पसश्रमाघवः। पौडितः खयमायातः WAU, यदा भवेत्‌ - प्राद्धिवाकस्त तं एच्छत्‌ पुरुषो वा शनेः शनेः”-दति । ष्ट काय्यं यथावदावेदयदित्यार याज्ञवष्क्यः,-- "सत्या चार व्यपेतेन मार्गेणधर्पितः परेः । श्रवेदयति चेद्राज्ञे यवदहारपदं हि तत्‌”-इति। यदि fafafafraa स मवेदयेत्‌, तदा स व्यवहारो न वसात्‌ कारयितव्य दरत्यभिपरत्य चेदिव्युक्म्‌ | श्रवेदनकाले सखादयो- व्नोया CITE उग्रना,- ““स॒मखोऽनुत्तयोयो वा PHAR: TATA: | वामरस्तेन वा wal वदन्‌ दण्डमवाभ्रुयात्‌”-दइति । शर्थिनः प्रतिनिधिमभ्यपगच्छति कात्यायनः “श्र्थिना सन्नियुक्तो वा प्रत्ययिप्रहितोऽपि वा। यो यस्यार्थं भिवदते तयोजयपराजयौ "दति । श्रन्तरेणापि नियोगं पिवादयो विवादं qafcare पितामष्ः- “पिता माता सुददाऽपि बन्धुः सम्बन्धिनोऽपि वा* | यदि geared वाद्‌ तच प्रवन्तयेत्‌। ॥ यः कञ्चित्‌ कारयेत्किञ्चित्‌ नियोगाद्‌ येन केनचित्‌ | aaaa इतं ज्ञेयमनिवत्यै fe तत्‌ waa’— म = gm * क्ता,--दति wre | 8 1 tne (x) आकार पिटः | दइ कितं खेदतेपधयरोमाश्वादि | (२) भ परकीयां बाच प्रतिवचगदानेन quafa, चत्त watadity- शेन |. निशुजति कुटिलीकरेोति। MATCH TAP | ४ धरि वादौ विवादप्रतिमुवं came, तदाऽपि तेनेत, “श्रथ शत्‌ प्रतिभनांमि setae च, वादिभः | स रचितो दिनन्यान्ते zene were वेतनम्‌ ॥ दिजाविः प्रतिशरोनो र्यः खात्‌ बाद्मरारिभिः | शएद्रादौन्‌ प्रतिहोनान्‌ बन्धयेश्चिगडेन तु ॥ श्रतिक्रमेऽपयाते चः दण्डयत्‌ तं दिनाष्टकम्‌ | नित्यकमौपरोधसु म कायः म्ववणिनाम्‌”-नि | प्रभियोक्ाटोनां उक्निकरमोऽपि तेनवोक्रः- सत्राभियोक्रा प्राग्‌ त्रूयादभियुक्गस्वनन्तरम्‌ । तयोरन्ते मदस्याम्‌ प्राद्धिाक्रभ्नतः परम्‌" -षति। प्राग्‌ त्रयात्‌ afant Pate: | तथाच नारदः, “marae पटक mead ar met परे fame at क्ये at ws कुर्य्यात्‌ yaaraza यः aw Ha पूरववारो विभिष: tia | विदादै पूर्वाभियोक्रुरेव प्रतिभावादिलमिग्यथः । अवरापवाद- माद साव न्यस्य qnafaar पौडा कायं दाऽभ्यधिकं भवेत्‌। तद्ार्चवादो । दात्यो न वः a कििदवन्‌"--दति | ~~ a 17 सि । [कि जा = किनका © दादयेग्यस्य,-- द्वति We | Te ATM, षति प्र्यान्तरे | + अतिक्रमे जमात चः- पति are | बद्धा्षिभावो,-इवि ययान्तसयः पाठः| 8¢ QUACATaT | कात्यायनः, “qe स्याद्धिका Ter काये वाऽभ्यधिकं भवेत्‌ | पूरेपचो भवेत्तस्य न यः पूतं भिवेदयेत्‌"-दति | यत्रोभयोरपि परस्परमधितवं प्रत्यथिलश्च साध्यभेदाद्युगपद्ध- वति, तक्राकछष्टजातेवेङपोडस्य वाऽथिनो वादः पू AVM तथाच टस्य तिः+- “च्रहपूविकयाऽऽयातावर्थिप्रत्ययिनौ यदा | वादो वर्णनुप्र्येण ग्राह्यः पौडामषेच्य च-इति | समानवणवे पौडापेचया ग्राह्यः । श्रनेकवादि युग्मानां युगपद्‌- TNR ट ग्रेमक्रममाह मतुः,- “श्र्थानधोबुभौ बुध्या धर्माध्ौः च केवलौ | वणेक्रमेण स्वाणि पेत्कार्याणि काथ्थिणम्‌*-द्रति | दति दशेनोपक्रमो निरूपितः | अथ चतुष्याद्यवहारः प्रस्तूयते ॥ ्रतिश्नोन्तर प्रमाणं निण॑य्ेति चलारः पादाः । तच प्रतिज्ञां सट्ाति याञ्जवषक्यः,- “परत्यिनोऽगतो लेख्यं यथाऽभेदितमयथिना | समामासतद द्धा रनामजाव्यादिचिङ्कितम्‌“-दति | एतच ठदस्यतिना खष्टोरतम्‌,- “fat anatay वादो पं भकष्ययेत्‌ | WITCH | ge fade सम्रतिन्ञ्च* प्रमाणागमसंयतम्‌ ॥ देशस्थानसमामासपकार्नामिजाति | । द्रयसद्योदयं पौडां चमालिद्गश्च लेखयेत्‌ ॥ प्रतिज्ञादोषनिमुक्रं माध्यं सत्कारणान्वितम्‌ | fafaa लोकमिद्धश्च va परविदो fax: ॥ श्रन्पाच्तरस्वसन्दिग्धो वहृयेश्चाणनाकुमः। । युक्तो विरोधकरणे विरो धिप्रतिधङ्रः""-इति। ततः प्र्य्थ्याङ्ानानम्तरम्‌। तस्िल्लप्थिते प्रत्यथिन्यागते aft भिरवद्यं पवदोषरहितम्‌। पक्दोषाद्च काल्यायनेन दभ्िताःः- ‘aramfanay carga: | माध्यप्रमाणदरोनश्च प्लोऽनारैय दयते'--एति | खलत्यन्रेऽपि,-- “प्रसिद्धं निरायारधं निरयं निषुप्रयोजनम्‌ । gare at fawg at gard विजयन्‌" ofa aufag, मदोयं गरविपाणं गनौला नप्रथच्छतौन्धाटि। सिराषाध, श्रसादगदप्ररोपप्रकागनायं स्वदे AMT ATTA TALES । निरचंक- fatten कचटतप Tass निष्यृद्ोजमे, यया, Ta दवदक्तो- {खाटखरमन्निधौ areata, द्या (द । भ्रमाय यथा, अश देवदकेन सभङ्ग प्रहमित इत्यादि । विदं यथा, श्रं मेन ग्रप्््यादि | पुरराष्रादि विद्ध भागश्च faa पनिहितम्‌ । निरवद्य, „~ ~~ we aa ee ककम कन्‌ * द्त्यमेव पाठः सन) ममतु facaqutawe,—efa षाठः प्रतिभाति। निर्यं परदायर दितमिति यस्यनद्प्रनाद्‌ | ss RETREAT मदौयं द्रथमनेन welt तग्रत्यपेशोयनिति प्रतिक, तया युक्तं सप्रतिश्चम्‌ | प्रमाणं fafengenfe | श्रागमो द्यप्राक्धिपरकषारः कात्यायनोऽपि VEYA, — “निर्दिश कालं arg मासं va fafearer । ` बला प्रवेशं विषयं खानं eared वयः ॥ साध्यं प्रमाणं द्यश्च सद्धा नाम तथाऽऽत्मनः | Targ क्रमशो नाम निवासं साध्यनाम च ॥ क्रमात्‌ पिदण्णं नामानि पोडामाइदरेदायकौ | शमालिङ्गानि वाक्यानि पकं सङ्ोल्यं कर्पयेत्‌ ॥ देशं कालं तथोग्मानं सज्धिवेशं तथेव । जातिः संन्चाऽधिवासश्च प्रमाणं रेचमाम द । पिद्रपेतामदश्चेव पूर्वराजानुको नम्‌ ॥ स्थावरेषु विवादेषु staf भिवेशयेत्‌"-दति । amaiat स्थावर विवादेषु पुनरभिधानं, wa यावद्‌ पयुश्यते त्र तावदेवोपादेयं न तु सवरं सवेवेति प्रद शनाथम्‌ | संगरहकारोऽपि- “श्रथेवद्धमेसंयक्तं परि पूणेमनाङ्गलम्‌ । साध्यवद्वाचकपदं प्रहृतार्थानुवस्षि च ॥ प्रिद्धमविरद्धश्च निथितं साघनल्मम्‌। fed निखिलायेश्चं देशकाशाविरोषि च ॥ वषतुमासपचाश्ोवेलारे प्रदे श्रवत्‌ | खानावसथसाध्यास्यं* ATA TAMIA ee ० ae eee Reem 9 ५७ ow a en ee * सम्मावसतिसाध्याख्या,--४ति Ae | STUER । 8९ माध्यप्रमाएसद्यावदाताप्र्यिमाम वत्‌ । OLA TAMAR TIAA PHT PRAT ॥ शमालिङ्गात्मपोडशयत्‌ afiareecrang | werazad रान्न तद्वाप्छभिधोौयते"--इति | परात्मपर्वजानेकराजनामनिः; परः afaarat, ear ara. तयोः पूर्वजाः पिजादवः, श्रनेके राजानो yfmareter:. तेषां नामभिः । माषारोषान्तु arte द रिताः. MATAR भमाणागममभजितम्‌ | नेष्यम्धाना(दिभिभष्टं wreiziar उदाइताः'--इति | aty खयमेतर या चष्टे. - “दृष्टे साधारणश्यकः यद्‌ यथेव नियुक्तः | नेष्यदयस्तु भाषायामन्पायद्च विदुषृधाः । गणिते तुनिते भय तयथा sw fes | यच म्या न निरि भा care faafaar ॥ विशया wINATald व कौतं क्रमागतम्‌ । a वेवं लिख्य यत सा भाषा स्याढनागमा ॥ ममा arma पलम्तििबा भ्यं बच | यठेतानि स fora नेग्यशोनान्नु तां विदुः | केखयल। a यो भाषां [नादष्टन तथो । हिरेन्‌ arfam: पूम्‌ अधिकान्नां fafafesa | यच स्याद्भयं वं मिदि धरना | अन्दिग्धमिव fears at भाषां त तां विद्ः"-दति | 1 we पराश्नरमाधनः। श्रयं साधारणे ब्टनां सम्बन्धिनि कार्थ। पुमरपि सएव Par सद्य विट्रणोति,- “भिननक्रमोययुत्कमायेः प्रकोर्णाधानिरथेकः | श्रतौतकालेदिष्टश्च WATS TAA I यथास्थाननिवेग्रेन नेव पचाथेकन्यना | mea न स पस्तु भिन्नक्रम दातः ॥ मूलमयं परि्यच्य ager ay लिख्यते | निरथैकः स 3 पच्ोग्धतस(धनवजिंतः ॥ गतकालमतिक्रान्तं द्रं यत्र हि frat श्रतौतकाणः पचाऽसौ प्रमाणे सत्यपि सतः ॥ यिन्‌ cd दिधा साधं भिन्नकालविमगरेएम्‌ | frame करियाभेद्‌ात्‌ ष परादिष्ट उच्थते”- हति | एकेन श्रथिना बह्साध्यनिरदेगो युगपन्न कन्तयः, कालभेदेन तु कर्वः | तद्भयं कात्यायन श्रा. “पुरराष्रविरुद्धश्च यथ रान्ना षिवजितः | HARARE: GaGa न मिध्यति ॥ बञ्जप्रतिन्न यत्काय व्यवहारेषु निशितम्‌ | ` कामन्नदपि etary राजा त्ववुभुत्छथाः-दति | पू्वैवादिने भियममाह srufa:,— “श्टषायक कियाशोममसारान्याथमाकुलम्‌ | पूवप लेखयते वाद हानिः प्रजायते ॥ उपदिश्याभियोगं यत्‌ समतोत्यापरं a7 | QATAR | करियाुक्ा<न्यया wary घ वादो हानिमाप्ुषात्‌ ॥ न्यूनाधिकं" पूवप तावदादौ विभरोधधेत्‌ | म दद्यादुन्तरं यावन्‌ परययौ सन्यबभिधौ “इति । का्यायनेाऽपि,- “श्रधिकाम्‌ केदयेदर्थाम्‌ होमांख प्रतिपूरयेत्‌ | शमौ निवेशयेन्तावद्‌ थावदर्थऽभिबणितः"--दति । नारराऽपि,- “भाषायामुक्लरं यावत्‌ प्रथं नाभिलेखयेत्‌ | यस्यान्तु लेखय्तावरर्‌ WAY विवशितिम्‌”--षति | sure वादिनं प्रति ठदस्यतिराद्‌,- ५शरभियाक्राऽप्गल्भलात्‌ वकं नासते चदा । तस्य कालः प्रदातव्यः ATAMMARIMT:” —CHA | काशेयत्तामाद्‌ कात्यायनः, “लेखनं वा लभते शह ATCA । मतिरत्य्चते याव वादे वक्ुमिष्छतः'"--इति । ूवेपचद्य चातुविधं प्रतिपादयति eerie: “शतुरविधः पूव॑पचः प्रतिपदसाथेव्च | चतुधा facta: itm: के चिदषटविधः हतः ॥ रदा ऽभियेगस्तथश्च लभ्य spare तथा | SA वादे पुमर्थः परा जेयखतुविधः ॥ भानि ग्रा सरिद तथं TET । nee । जि ०० matey a ५८२ eaten --रति T° ४६ 1 ५९ qeritcarraa: | ` @dtonnt ate: तथा FH aa: किया # एतत्‌ पाण्डुशेष्येनं लि्खिंथाऽऽवापोद्धारिण^ शोधितं पत निवेशये दित्थाह कालयानः, ^पूर्वपचस्य भावोक्तं प्राद्धिवाकाऽभिलेखयेत्‌ | पाष्डलेष्थेनं फलके ततः पचे च शोधितम्‌"""-दति । Me SAT ATTHG, नातः परम्‌ | WATT नारदः - “शरोधयेतयववादन्त यावन्नोत्तरद शनम्‌ | श्रवेष्ट्स्योन्रेण निषत्त शोधनं भवेत्‌'-दति | हेथोधादेयौ vars विविमकनि ठटरस्पतिःः- “org विवर्जितो यश्च ag पौर विरोध्त्‌ | Tee वा समसस्य प्रतौ तथेवच ॥ aa वा ये पुरग्राममहाजनविरोधकाः | शअरनादेयास्तु ते सवं व्यवहाराः प्रकौ्तिताः ॥ न्यायं वा मेश्छते कठं मान्याय वा करोति a | स लयति wea तस्य पशो न मिद्यति ॥ विरुद्धं arsfreg वा इवष्ययौं निवेशितौ | एकस्मिम्‌ यच gat तं we दूरतस्यञेत्‌ ॥ व ~~ -~ ee ee ee कक 9. == ~ ~~ -~ ----- ---+* ~~~ =+ ~~ ~-- * fantfuaa—rfa ate | ` † कु्बद्न्धायं at,— aft ate | [वीं ज त ज 09 मा जा क ० tenet (९) छावापः पूर्व्मलिखितस् नि ange | उदारः पु गिैपितस्या- uaa: | | BICTERNA | ` (८, उकात्तमत्ताभिष्ते भहापार्तकदषितीः । -भञतिदद्धेगाशाख विज्ञेयाः धभिरसराः ॥ पचः प्रोक्षसवनादेयो वादो शा्गु्रेष्तथा | यादृम्बारीः भ चः षणो पाद्मलंस्कथथाभ्धदम्‌ ॥ पौ तिश्रयमोंभित्य senate विवकितिम्‌ | खा॑सिद्धिपरे वादौ पूवेपचः स उच्यते"--इति ॥ दति प्रतिश्ायादी निरूपितः । “कण्डे अथ TATA निरूष्यते। we यान्नवस्कयः azeria, - “श्रुतायच्यात्तर लेख्यं पूवषिदकषभिधौ"- दूति | तदेतद्‌ ठरस्पतिविटृणोति,- “यद्‌ चैवंविधः प्तः ऊन्पितः पूवेवादिना | दद्यात्‌ तत्पचमम्बन्य प्रतिवादौ तदोत्तरम्‌ ॥ विनिदिते yaad ग्राद्मागादव््रिषिते । ` परतिज्ञां fae लेषयद्‌ त्तरं ततः" इति | eat खतः arent च नदापनोयमिष्धाह" स्एव,- “पूवप यथां हु न दथादुन्तरं ठ चः। Waray द्‌एपनोयः. स्थात्‌, स\मतदणिर्पक्स. \\ क 1 [वक क का ष eee ~ वाव ana ९९} रथाच प्रधी यदि शय मृ शातुं ग प्रवतत, तथा CIWS gue दापनौय cae | us पराश्रमाचवः। fragd श्रयेव्धाम* भेरद्धभधदभिनः | थथापक्रषणं दण्डः ताडनं बन्धनं तथा?-दति ॥ उकरशचणमाइ प्रजापतिः, “qee व्यापकं साध्यमसन्दिग्धमनाकुलम्‌ | श्रयास्यागम्यमिव्येतदुकशरमदिदो विदुः"इति ॥ हारोतोऽपि.- “Gage सम्बन्धमनेकायंममाज्ञुलम्‌ | श्रनण्पमव्यस्षपदं व्यापकं नातिश्रि च ॥ सारण्तमसन्दिग्धं खपरेकां सम्भवम्‌ | श्रधिंज्रवसमूढाथं देयञुत्तरमो दशम्‌" इति ॥ सखपरेका शग्रम्वं अनवगरषितखपचेवदे र, सम्यणखपमिति था- वत्‌ । षडसोक्रन्दातुमसक्र प्रति काल्धायम ्राह,- “शला लेख्थमसत्यां प्रत्ययो कारणाद्यदि । are विवादे थाचेत तस्य zat न धंश्यः"-दति ॥ HANS कारणथं WHYTE नारदः | “श्रालोनलार्‌ Hara प्रत्यौ सखतिविभ्रमात्‌ | are प्राथेयते यच तच तक्षभुमरेति ॥ एकारं ्यरपञ्चाह सप्ताहं पचमेववा | , मासं माखजयं वपे शभते ग्रह्मपेशया"-इति ॥ तज ्वस्यामादइ सएव, वावव्यककककयनाायकााका CAO tS PA SP PACS PASSA SSS SA SST SN EERE I ° भिबः सामः+--इति कार । भ च यकि विक oF अवहारकाखम्‌ | we “ae: wa agare:* मासेऽतौते दिनं चिपेत्‌ | षडष्डिके चिराचन्ते mary दादशाब्दिके ॥ वियद gure मासाद्धं वा लभेत सः । मासं चिंश्छमातौते जिपचं परतो भवेत्‌ ॥ NAMA AAAS age Aare | कालः संवद्सराद्वाक्‌ खयमेव यथेखितम्‌"- दति ॥ काव्यायमोऽपि,- “qaqt जरोन्यत्तेऽमनस्के। याधिपोडिते | दिगन्तरप्पञ्चेन matt च व्रस्तमि ॥ मूलं वा माक्धिणो वाऽय परदेशे feat यदा | तच कासो भवेत्‌ UR खदे शसमागमान्‌ ॥ दत्तेऽपि साले देयं स्यात्पुनः कायस्य गौरवात्‌"इति ॥ कालदानस्य विषयमा नारदः “गहनता दित्रादामा ममामर््यान्‌ सतेरपि | चछा दिषु रत्‌ कानन कामनत्व्वुभरक्छया--दति ॥ ama दप्रयति पितामहः - “षछेापनिधिनिद्पे; दान wane | शमये द्‌(यभागे च कालः काव्यः प्रथन्नतः"--एति ॥ इशस्पतिरपि,-- “म्ारसस्तेयपारव्यगोऽभि7ापे TATA | * तदा वाद्‌ः,-- ति का० | { अलसे,--दति शा ae । ] mata च निभिक्तेपेः- दति कार | ud UCTHRBISF: | sat निवारयेत्‌ तिभमक्रासेऽपि watt: che । कात्यायनोऽत्रि- “धेनावमड्शि शेम ety प्रजनने तयां | न्यासे यावित दन्ते तथेव क्रथविक्रये + कन्याया दूषणे Ga कखे सारसे विधौ | उपधौ कूटसच्छे च agua उिवादयेत्‌”-दति ॥ उपधि्भयादिवगान्‌ प्रापनं काव्यम्‌ | उत्तरस्य भेदाभादे मारदः +~ "मिथ्या सम्प्रतिपनिख प्रत्यवस्कन्दमं तया | MSG AT: प्क्राश्चलारः शासवेदिभिः-इति॥ मिश्यादरोनां खद्टयमाह ररस्पतिः,- “श्रभियक्तो ऽभियो गस्य यदि कुय्धा त्तु निषवम्‌ | firat aq विजानौयादु त्तरं BTCA: ॥ ्रत्वाऽभियो गं प्रत्ययौ यदि तत्‌ प्रतिपञ्चते | भा a सन्मसिपल्तिख् wreafafgeerear ॥ शर्थिनाऽभिदहितो थोऽ्ः प्रत्ययो यदि aera । प्रपद्य कारणं ब्रूयात्‌ प्रत्यवस्कन्दनं रि तत्‌ ॥ श्रा चारे णावसन्लोऽपि पुनलंखयते यदि | म॒ विनेयो जितः ga प्राङन्यायस्त॒ स डचते--दूति ॥ प्रजापतिरपि,- भयावदाषेदितं किचित्‌ मग्छमरन्धमिरायिना | तावत्सवंमसम्भृत^मिति मिश्योश्तर सतम्‌ ॥ ज = at meee भ eee ~~ ~ ~ - NE षि ND EN ay 1 + द्त्यमेव पाठः सम्बेन्र। मम तु, तावत्‌ सब्बमसद्खतः--ह्ति पाठ प्रतिभावति | वयहारकाङम्‌ | ge” “Safe वो aed मूरवाश्ाधिसंयुतः* ॥ वेदादौ ष होयेत नाभियोगकु सोऽरंति । mary! साचिणसेव क्रिया ver मनोविणएाम्‌ ॥ at feet देशि योमोहात्‌ किादेषौ स उच्यते । अह्कामादनुपर्थानात्सद्यएव प्रहोयते ॥ ्ररोलयुक्तोऽपि न HET म्यो बन्भनमरेति । दितीयेऽहमि दुवेद्धेविधाशस्य पराजयम्‌” दति ॥ टशस्पतिरपि,- ““श्राहृतोऽयपलापौ च मौनो शाकिपराजितः | स्ववाक्यप्रतिपन्नश्च Kraay चतुर्विधः,,--द्ति। रौभवकाणावधिमाह घण्व,- “mart तु परेण मौनरत्‌ मप्तभिर्दिंनेः । सादिभिः aqataa प्रतिपन्नश्च रोयते'"-एति | देविकादिविन्निन यथोक्रकाणातिक्रमेऽपि नापरा द्याह षएव,- "देवराजक्ृतो दोषः तत्काले तु यदा भवेत्‌ । अवधिल्यागमाजेण न भवेत्‌ स पराजितः" शति ॥ हौनवादिमो दण्डेन पुमर्वादाधिकारमा ह काल्थायनः,-- “श्रन्यवादौ पाम्‌ पश्च क्रियादषौ पणान्‌ ew | नोपथाता दग ata षोडुगेव मिरत्तरः । आहतः प्रपलायौ च पणान्‌ पादु विभ्रतिम्‌ ॥ जिराहतममायातमाहतययपह्ायिनम्‌ ¦ । [क क 1, 21 11 * ` # मूलवाक्याधिसंय॒त,--षति कार | { सभ्यानां,--द्ति ate | { इत्थमेव पाठः gare | प्रप्रलायिनम्‌,--दएति पाटल fag fet: | ge ‘ys! पराश्रमाधयः। पञ्चराजमतिक्राशतं farted मरोपभिः--दति | यकु तेनेव पुनर्वादनिषेधः कथितः, 'दाषानुषपं संराद्यः* पुनर्वादो म विद्यते-इति | तरैतखन्यङृत विवाद विषयम्‌ | दतर तु प्रहतहा मिर्गासोत्धाइ ATCS:, “सर्वेष्वथ विवादे वाढले नवसौदति | पश्एस्तश्म्यणादाने wretsaaty होयते”-एति ॥ नावसौदतोति प्रतिज्ञाता्थेखख न eta दृल्युपपादनम्‌ | श्रनापवादमार कात्यायनः, , “इभयो लिखिते वाक्ये प्रारभे काय्येनिणेये | अयुक्तं तच यो ब्रूयात्‌ तसमादर्थात्ष होयते"-दति । याज्जवरक्योऽपि,- “सन्दिग्धा weet t यः साधयेद्‌ यञ्च निष्यतेत्‌ | न चादतो वदेत्‌ किञ्चिद्धौनो दण्ड्यञ्च स रतः“--ईति॥ श्रज दण्डग्ररणेनव ₹ौभत्वसिद्धः पुनरोमग्रहणं waa हौयते दति Weary वादमुपक्रमतोर्निटृत्योदेयोर पि SATS बहस्पतिः, “gaan सन्निविष्टे faut सम्प्रवर्तिते | wma ये faet यान्ति दाणाले. दिगुणन्दमम्‌-दूति ॥ तदेतन्नेपवश्चनविषयमित्यादे कात्धायनः,- “आवेश्य प्रटष्टोताये प्रमं याजि ये faa: | णि ह 9 पी णी कि मि गी द कष्कककायक # इत्थमेव पाठः GAY | ममतु, स म्राह्य+-- ति पाठः प्रतिभाति | स होगवादौ दोषानुरू्पं दख arg इति तदथः | + खतम्न,-दति का | t बाद प्रक्रमतेारप्रड्सयो,--दति wre | VIVA SH | a ay दिगुण्दण्यास्डुदिमखमा gre a’ —cfa ॥ एवञ्चावश्चनया प्रगरुल्ालां न दण्डः । अतएष aya तिः,- “पूरबोशषरेऽभिशिखिते प्रक्रान्ते काय्येनिएंथे | इयोः wnat ससि: स्य. ट्यःखण्डयोरिव ॥ साकिषभ्वविकष्यस्तर भवेन्तचोभयोरपि | दोशायमागयोः afai पङु््यातां freee: * ॥ प्रमाणशघमता यभ भेदः शास््रचरिष्रथोः | तज राजाश्चया सस्षिहभयोरपि श्ष्यते"-दति ॥ अचिप्रत्यथिनोरभियोगे कञ्चिजिवममाह याशवबक्धः,- “श्रभियोगमनिस्लोय्यं भेनग्मह्यमियोजयेत्‌ | अभियुक्तं न चान्येन नोक्तं विप्रङृतिखयेत्‌ "इति ॥ mafafa afaa वादिना मन्पादितमभिधोगमपरिइ्य यतेन पत्यभियोगं न कुर्यत्‌ । wet! «wearin भ्रमिथुकर प्रह्यधिनि तदभिबोगपरिहारात्‌ पुरा खय नाभि्थुष्यात्‌ | उभाग्वा- मपि प्रतिज्नारूपमु त्तरषटपं वा वलोयत्‌ यथाऽभिदहितं, न्तयेवं षमा- faq निर्वाह्यम्‌ । प्र्यभियोगनिषधसख्य श्रपतवादमाद षणव “कुर्य्यात्‌ waft Fat माहसेषु ५ ""--दति। RAY वाग्दण्डपारव्यात्मके, सादषु दिषशण्छादिनिमिशप्राण- व्यापादनादिषु, ्रद्यभियोगबन्मवेनामियोगमनिन्तोर्खापि काभिः योक्रारं प्रत्यमिथोजयेत्‌ | मखच्रापि पूवपच्वानुपमईमरूपव चानुत्त- दोलावमागौ यौ सनिं gata तौ तिचच ५ मवेदुयत्रोभयोर्पि | कौ,-- रति Rae: Wid: BAMA: | + qfufa,—afa wie ae | get HENCE | TAIT yee fareatare nfararace अगपदरराराश्वः समा- नः । सतम्‌ । नाज यगपद्मवहाराव . - अ्यभियोगोपदेश्रः, अपि तु न्यनदष्डपराप्रये श्रधिकदष्डनिष्टलथे च । तथाहि । श्रने- are ताडितः unt वेत्यभियोकृः पूवेमहमनेन ताडितः wat षेति पर्भिचोगे दण्डार्पतम्‌ | यथाह काल्याचनः, “पूवेमाचारयेदषद्छ faut छात्‌ स रष्डभाक्‌। पश्चाद्‌ थः सोऽ्यसत्कारो पूं तु विनयो गुरः"-इति॥ पञ्चाद्यः WTA, सोऽ्यसत्कारौ दण्डभाक्‌ । तथो मेध्य पूर्वर दण्डाधिष्धम्‌। TAA: | चथ क्रियापाद्‌ः। त्र याश्चवशक्यः,-- ''बतोऽयौं लेखयेत्‌ सथः प्रतिन्ञातायेखाधमम्‌"-दति | awufag a विद्रणेति- “ydare विशिखितं यदकषरमग्ेषतः। aay दतौोयपादे तु क्रियया प्रतिपादयेत्‌"”- efi क्रियाया उपयोगमाड काल्धायनः+- “कारणात्‌ पूरवेपश्ोऽपि उन्तरलं प्रपद्यते 1 श्रत: क्रिया षदा star पूवेपचस्य साधनो"-दति॥ क्िथाभेदरानाह टरस्यतिः, “fuer frat मोक्ता मानुषै रैविको तया । एकेकाऽनेकधा भिन्ना विभिसस्वगेरिभिः। 1 [क द 1 1 imam aetna RN nae कपत्वेनानु्तरत्वा त्‌,- इति we | WAV a | ११५ सादिलेख्यामुमानगद्च * मानुषौ विविधा कवा । ` धारो दरादग्रभेदस्त शिखितं टधा सतम्‌ ॥ श्रलुमानं जिधाप्रोक ` मामुषो Sheet finer’ इति। देवमानुषकरिययोः मानुथाः weer काद्याचनः,- वेको मानुषो ब्रुयादन्यो were रै विकौम्‌ । मानुषो तच होया aa eat किथां गपः- दति मानुषयोः षाकिलेस्थयोः सभिपाते sere प्रा्यमाश षएव,- “क्रिया तु देविक प्राप्ताः विद्यमागेषु erfeq | लेख्ये च प्रतिवारेषु भ दिशं नस सारिः" ए्ति। लेण्यप्राबष्यष्य विषयमाह षएव,- “पूगञ्रेणिगणदौनां er शितिः परिकोल्िना । तस्यास्य माधमं लेख्यं न fee ae afew: —cha y afanqera विपवमार सणव,- “दन्तादन्तेष्‌ शत्यानां खामिनां निणये शति । विक्रियादानमम्नन्धं क्रौला घनमनिष्छति। ॥ ga माय चेव विवादे समुपस्थिते | arfau: साधम ata न fea म च शख्यकम्‌"-इति॥ क्चिदनुमानं प्रबलम्‌ । श्रनुमामं नाम afm: | याज्नवश्कयेना- नुमान्छामे शुक्तिग्दपरथोगात्‌, - “mara लिखितं मुक्तिः षाङिएसेति कौ सितम्‌ "दति a yfamaae विषयमाइ यासः, [विक "7 1 1 11 * aaa: Go श्चार एुक्षकयोः | + fara दैविकी siter,—xfa यग्यारौयः पाठस्‌ wate | t जियादानस् सम्बन्धे mer धनमवच्छति,--इति ae We | १२४ पररभिरमाथवः। Coewad प्रकाशश्च दिविधं arg | प्रकाशं afefriia देविकेन रहःहतम्‌"'-दइति ॥ ward साङिभिर्भाव्यमित्यस्यापवादमाहइ zrafa:,— “महापापाभिश्रापेषु fred इरणे “ तथा | fea: काय्य परौखेत राजा aaa ated ॥ दुटव्तुमानेषु fea: काय्यं वि्नोधयत्‌”-दति ॥ काट्यायनेाऽपि,- “ona afeut aa fara शोधयेत्‌ | प्राणम्तिकविवादेषु विद्यमानेषु सादषु ॥ दिग्यमालम्बते वादौ ने ye तत्र साकिएः | छन्तमेषु च सवेषु साहसेषु विचारयेत्‌ | wig feagen weg साचिषु वे शटगुः"-दति । व्यासोऽपि “न मयेतक्छतं पजं कूटमेतेन कारितम्‌ | श्रधरौरुत्य तत्पज qa दिव्येन निणेयः ॥ GHATS AWS AS लेष्यं कचित्‌ भवेत्‌ | श्रद्दोते धमे aw का्थौ देवेन निणंयः- दति | कात्यायनः, “oq खात्‌ सोपधं Bel सप्रननेश्चालितं यदि | दिव्येन wha राजा धर्ममासनखितः'“- दति ॥ दियसाङिविकच्यविषयमाहइ षएव,- “परक्वान्ते सासे वादे WEA दण्डवाचिके | बलोद्भतेषु arity -वाधिणो fewer ॥ १ क 2 NA ee a Otte me SS es 1) * fadayca,—ala कार | अवहारकासरम्‌ | ae खणे Fei सादो वा युक्तिलेर्था थोऽपि | देविकौ वा क्रिया पोका प्रजानां हितकाभ्यवा"-रति ॥ युक्तिलेगेव दिता. “arfeut fafa afm: प्रमाणं fafa far: | शिङ्रोटेस्ठ क्तिः erfcerare विषादयः" एति ॥ चोटनादोनान्‌ सुख्थामुकरपभावमाह ष एव,- “सोदना प्रतिकालन्तु युक्रिनेग्रसथेवच" | atte: wae: परोक्तः तत्दणं 1 साधयेत्‌ कमात्‌ "इति ॥ श्रष्याधेसेनेव विरतः. “mahal चोद्यमानोऽपि प्रतिहन्यान्न are: | जिधतुःपञ्चरटवो वा परतोऽथं warety ॥ चोटनाप्रतिषाते तु य॒क्रिणेशेष्तमन्विधात्‌ | देशकाणायसम्बन्धपरिणामक्रियादिमिः ॥ युकिष्वणसमर्थासु शपथेरेनमरयेत्‌ | श्रयकाले बलापेखमन्य्बमुटतादिभिः {एति ॥ प्रपथमयक्निप्रमाणव्यवम्बयाऽवण्ये परिपाणनोयम्‌ {। तदाह नारदः "प्रमाणानि प्रमाणक्ञेः पाणनोयानि ear: | सौदक्ि fe प्रमाणानि पुरुषस्यापराधतः""- दति ॥ प्रमाणज्ञः प्रमाणं प्रत्याकमनयितव्यमिल्यर्थः। यभ प्रमारेगिकषं कतं न ग्रक्धते, तदा रालेच्छया निणयः Ha ATTY पितामहः, ` » युतिर्रलयैव चरति We | 1 भरश,--दति ate | ¡ बलापे्लमन्वियः स्तादिति, -एतिः कार | quer tea sarge fefa:, -दचन्धत्र TS" | । § -श्रपरथमयद्िप्रमाणथवद्या, सा अबधयं ufcarestar,—ufa we | q* पराशरमाचवः | Jel चच न fran न afi द सारिः | a च दिग्यादतारोऽसि प्रमाणं तज पार्चिंवः॥ frag ये न wer: श्यवांदासयन्दिग्धकूपिषठः | तेषा नृपः प्रमाणं खात्‌ सवं तद प्रभावतः" इति ॥ दति करियाभेदा निरूपिताः | भथ साधिनिरूपणम्‌ | तज afamari निर्वक्रि मसुः,- “समलदशेनात्‌ सा्ौ अवणाशवैव^ सिष्यति"-दति | विष्णुरपि । “समशदगरमात्‌ साच्ो अवणादा”-दति। VERT ay मनोव्यापारो ae, घ सारो । “ara द्रष्टरि सज्ञायाम्‌ इति पाणिनिस्मरणात्‌ | साचिएः प्रयोजनं मनुराह, “खन्दि्धेषु तु araiq इयोरविवदमानयोः। दष्टञ्ुतानुग्धतलात्‌ afew यक्तद रनम्‌” दति ॥ साचिलश्णं सएवाहइ,-- “arm श्र्चिमिः काय्यं व्यवहारेषु afew: | ताद शास्‌ स्मवच्छामि यथा arerang तेः ॥ ग्दिणएः पुजिणो मौलाः चभविटृशद्रयोगयः ॥ way साश्यमदन्ति ग ये केचिदनापदि | sat: सवेषु वेषु कायाः कार्ंषु afew: ॥ सवैधरममविदोऽशा विपरौतास्ठ वजेयेत्‌”- इति | [11 विकथा 1००००2०1 वा 1 ` * सच्च लयेव,-इति ate | 1 wfafin,—zfa ate |: { avew,—xfa wre | 4 ¢ tak sible Re ४१ a j 00 tae pt! " ५. > 4 1 सदि + ०२.५५ ष, we FE Ad adie ४ ॥ he an $ us fh Ww ४ fe ५: ५६९५ ber ae ५ नधः प +~ ‡ Vs, yr? #6 vag Boe Gh तदिरोशरम्‌ an ण { 4 गित + cg oy an oy ५/९. ५1 ५ ५ 4? ¢ i Neopets ad gh ats fe त , >. ia van षुः .{ ८ * 44 Aah ; \ heed + ig deat ie ५८ प्रराश्षरमाधवः। ` पुरा. मेधा च प्रभितमङ्गकारोग्तरं सतम्‌" ॥ सङोतमिति Ward कान्तेन कतं मथा | पुरा weld व्यमिति चेत्‌ वच्श्चरि तन्‌ ॥ za मयेति वक्ष्ये मया शेयमितोष्श्म | सन्दिगधभु तरं शेयं यवहारे बुधेसदा ॥ बल्‌।वलेन चेतेन साहसं खापितं पुरा । RMA तदन्यायेभितोरितम्‌ | Ha दन्तं मया साद्धं सरखमिति viral ॥ रदित मटर! यत्तदि हाग्यापकं खतम्‌ ॥ qaare fart यावत्‌ ameda निषेश्रेत्‌ | समः werd पूवं a तद्मुस्तपदसुश्यते ॥ तक्किंनामरसं fafae श्रौतं न प्रदाखति। । निमृढाधन्तु ARTIFACT व्यवहारतः ॥ किमेनेव सदा देयं मया देयं भवेदिति: [काक 1 tm a may tana mn om ne mma oe semana कि षा ete TES yn 718, + जितः पसा स्या जन्तुर्येऽ्सिन्निति माषिरम्‌ | पुरा मया प्रघर्मिति प्रतं चोत्तरं सतम्‌, ति काण | उभवमप्यसक्तनिव प्रतिभाति । क्रमप्राप्तस्या्ल्पो स्रखेवातच् शा- ख्योतुमु्वितल्वात्‌ | { देय मसेति aaqet,—xfa का० | † भावितम्‌+--हति ate | ९ इत्यमेव पाठः सर्व॑ ¦ ममतु, तदद्ध,-- दति पररः प्रतिभाति | | faeces प्रदाख्यति;ः- दति कार | MTVU | ५4 एतद कुललमिच्युक्युसरं तिदो विषुः ॥ काकष्य कति वा दन्ता" सण्नौल्यादि areca । श्रसारमिति तन्न wae मोत्तरमिते“--द्रति | aa चिङ्केग्यारेरयसथः | रिवाट विषयस्य aitferenrfegare वणमिगेषादिकं fog, रीरधणटङ्गलादिगाफारः, swerfe war रमयः काल्विगशरषः एकेतविप्रेषो वा. AMAA ATT चक्क, जानता at सभ्यातामपरिचितया भाषया षद, वेदभयममसिद्धम्‌ | are एव मया म्ब दयं प्रतिदसलमित्यक्का, स पुनरपि frame भ्रा प्रति- afzatguenefaaarat a न रन्तमिति agora, afe- सद्धस्‌ ; oa merce fra दति comer मि fees परिकश्य तदुभयम्‌ । सहोतमिल्यनावेचयेत awe भति प्रथमतः ASAT तेनं कर्यं तत्वाय भया Bafacaarg प्रहनानुपसोगि कि्चिदुक्ता पक्चापुरौतभिति यद्भयात्‌. त दुन्तरमतिभरि। म्य मन्यु सति मन्देहमनमःरे द तप्यनिश्यो मवति. तनक मय) देयमिति यदि व्रथात्‌, ATTA! यरः Read श प्रद कचु प्रका SAT पन्दिग्धम्‌ | ule परःईशत्रष nfaaret म्प चेण zafata ब्रूयात्‌. TERUG, VATTUAAT( मया दानति दक्ष सति, श्दराकाफमामकानि युश्रत्मनियोमिशन्दवाच्यवन्‌ विभाधितामीन्धेव- मपरिद्धः पंटरमिरितमुत्तरसुकम्‌ ! seme निजाय प्रशिति- यु्तरमलुद्धः went fragt: एतेन दा्दिन मिग <^ न me = wnat «et कमण we cee त 0 merits ere foe SED eirmmet srmamanetine = + काकल्य दन्तानोखन्ति-४ति ae | + eanfegtaustefequat दा, क" । ETUC ` दौ्बष्येन वा कििन्धाषमं एतमिष्यारि । a परतश्च शअनुकलात्‌ शक्तरमन्धाथं भवति । एतं Safafa परतिक्लातद्य were एतदय- भिलयु्तरं दोषन्‌ | सद्धं ATS ae देयमिति प्रतिज्ञातस्य सददध परभिंतभिनि ana सति fed म वदति, भरन्तु लोके यः कः ऽपि किमश्टहौतनामरमे दाष्टतोल्धेवमप्रसिद्ध शष्ठेन व्यतिरेकमुखेन ` काकखरेकाभिरितसुत्तरं निगृढ़म्‌ | fata सदा ea मथा देखभित्यनोभयोर्ग्योरारेधभिति वा पदन्छुटसम्मनादथस्य अनि- श्यत्‌ किमिति काक्षा यञ्छमानस्यायनिखयादिदशुक्तमः गा क्मसम्‌ । afara सुवणेश्रतं सतोतसिल्यमिधोगे are tease जानालोति पक्थे रति व्यत्यस्ताखयेम card वसो ब्रूते zeta शतं वद्वमात्‌ सुवर्णनां पितूने जानामौति। तदिदमुन्तर aren: मन्यम्‌ ¦ काकदन्तादिष्षिथं निषुप्रयोजने श्रसारमिति । भकः: स्थमुभराभासमार कात्धायनः,- “THAT BNA च कारणम्‌ । मिथ्या Sane यत्‌ dat तद्तु्लरम्‌"--दइति॥ we aya विग्रदयति.- “a चेकश्िन्‌ fare तु करिया खाद्यादिमोद्रयोः) म व्ा्ंसिद्धिरभयोगे चेक सिंदादयम्‌ दानि ! भिथाकारणणेन्तरयोः at श्रधिप्रह्ययिगोदयोरीि fra wate * निथा Baeza, —afa कार | RATLSUGA | at “fener किया yaare कारणे प्रतिवादिभि"-र्ति खर wit) तद्भयमंकस्मिन्‌ व्यवहारे free । थया धुं Sa yaaa 'टोतमिष्छमिधोगे gare zee eon गदते अरतिदत्तमिति । कारणप्राङन्यायमङर प्रद्यर्थिनएव भिथा- CU ) “प्ारुन्यायकारणोक्तौ तु प्ययं मिमत सियाम्‌ --xfa arog । चथा सदतं स्तं wae BUR न्ववशरमार्गेण anita sf श्वन्‌ AEM जपचेक चा न्याये गरसिर्भा yaaa ररनकप तु भा तिलेष्धारभिः wrafaralyay- fore. (कमस्य सङकर पपि gua. यथाऽनेन qi coy. प्रत verte च गसनानौद्यभिशोग ; मद्ये सुपण area प्रति- pata यमान्‌ a गधन, सस्तदिधयं एव न्यायम्‌ पाज दन; एतं चुल. ; wot पन्तं यौगपद्य, ae नन्व पम he रय कदभमिद्धः । cateatbaceaa । फमष्धःयिमः श चरमः 2 योम) च्छेदय) भविः | य पमदभयोः सङ्गरः, पथ यम्य Hess aay नरः Rear नम ART: प्र प्र्तकिसिव्यः ¦ पादन्यासो सपादन ; २३ च मगति पम्‌ CAT FATA ey ale पाटः 2.4 । सम प्रा५न्यारे, ~ द्रत पादः पाति ; इन्यत a fat सत्‌ । मम्‌ A, WAPI ae fed OTe: TREE खयमेव Wis! Bae | स्मद्‌, VTMTAA, ef UES: afearaarfar | ९ प्नकमयोरस्कम,-- दति eae i पर्वादल्यविषाग्टगोपादानम,- इवि Ho ¦ etary । यथा हारोतेनोकरम्‌;- ` “faired कारणच्च खाताभेकण Bea । खल्यापि aurea तत्र ore fag” Tea, “eq प्रयतार्थविषयं aw धा श्यात्‌ क्रियाफलम्‌ | eat ay विक्चेयमश्षकौ एंमतोऽन्यथा-- दरति | कौप भवतीति गरेषः। रैच्छिवकरमं भदतीत्यथः। तच प्रथतां विषयं यथा, श्रनेन gai ean वस्त्नाणि च ॒ग्टहौतानौ प्ह्यमि्ोगे, सुवं शपकशतं varie प्ठदौतानि प्रतिदसानि Sati wa भिथ्योत्तरं प्रसविषयल्यादथिनः क्रियामादाय प्रथमं wwe. wea, पश्चादष्लविषये व्यवहारः | एवं भिथ्याप्राड- न्यायशद्करे कारणप्राडन्यायसङ्करे च योजनौयम्‌ । यथा तस्िन्ेवा- भियोगे, सत्यं सुवणं शूपकंश्रतं च weld दास्यामि, वख्ाणि तु भ रौताजि प्रतिदन्तानि वा दस्बविषये wi पराजित दति ` चोरे, स्मतिपकेभरि विषयेऽपि तज करियाऽभावात्‌ मिषथो्तर- कियानादाय व्यवहारः प्वन्तेदितयः। ५ अत्धमेन पाटः सव्व । ममतु, तधोत्तराकरोपादानेन,-- इति पाटः प्रतिभाति | +. कत्यमेषु पाटः aware | Hag धवो रूपकशतं दग zeta, वद्ाथिं zeta प्रतिदक्तामि वैति," ईति प्राठः प्रतिमाति। द द्रस्यमेव प्राठः aay) ममु, सि योत्तरस्छ,- इति पाठः प्रति नालि | अवार ज्ाक्षेम्‌ | १६ aa तु भिथयाकारणोन्नरयोः ह्लपशब्या पित : यया ya हिकया afgecfa, इवं Mater श्रमुकक्तिन्‌ कारे मष्टा श we दृष्टेति, wag faa प्रदभितकालात्‌ पूवमेव wae जता सेति वदति । ददं तावन्‌ पमिराकररणसमथलात्‌ नानु- रम्‌ । नापि भियेव, कारणोपन्यामात्‌ । नापि कारणम्‌, एकदे श्राश्युपगमाभावात्‌ । FHT सकारण मि्योकलरमिदम्‌ | ora च प्रतिवादिनः करिया कारणे प्रतिवादिनि" रति वदमान | मनु <भिष्याक्िया gaara” cia एववाहिनिः कस्मात्‌ शिम भवति ? ` तय परद्धमिश्या विषयतयात्‌ । करप प्रति दि नीव्येतदपि नसा च्छक रफविषयं। न भवत! सतत्‌ । म्रष््रापि कारणो ara लियामशवरेतष्टपलान्‌ ्द्धकारणेत्तरस्याभावान्‌ । भमि ङ्कारो तर aha UR गदे RA NTA क्सय farenteaay 1 aut aa RIANA BRA a धाग्यामिः एत्वादिति। aaatt- टाकते a nfamraraR meron atta ane | एनश्च wary MEqna,— “Feremrarcmetalsta यां arena” eA । ary सिष्याप्रदन्यादयोः wee PO : यथा रूपशतं ATTA हमि Ferra nal geet रभते ति. vara वादिभिः एव क्रिया | [ता oa श्यत्‌, न्ति मदितुमुिनम्‌ | | दृव्यमेव पाटः न्न , भवतु पाठः प्रतिभा | 1 न दद्ानिः--एनि +" AHS BHT afaei.—Fta १७. प्रयाहरभाहवः | 'प्राख्यायकारणोक्तौ ठु. प्य .निर्दिेत्‌ -जि्षम्‌-'दति ` ALATA | शद्धप्राडन्याचस्याभावादनुन्तरवम्रसङ्गात्‌। सम्मतिपन्ते- रपि साध्यवेनोपदिषटश्य wwe सिद्धलोपन्यासेन साध्यलवनिराक- TOGA ATH | यत्र तु कारणपरारन्यायसद्धरः ; धया senate गरौतमित्यभियुक्तः प्रतिवदति सतयं wei प्रतिदन्तं Fate वां प्राङ़न्यायेनायं पराजित दूति । aa प्रतिवादिनो वया- ददति न कचिद्रादिप्रतिवादिनोरोकस्िन्‌ व्यवहारे क्रिया्रसङ्ग दति निषेयः। निरुत्तर प्रत्ययिनं प्रति कात्यायन are, “उपायश्ोद्यमामस्ह न THAT यः | query सत्नराचे जितोऽघौ दातुमदति--दति । eared दशयति नारदः “पूर्वाद्‌ परिग्यव्य योऽन्यमालम्बते wa: ! ae rast स वै गरः ॥ समथाभिहितं" काय्येमभियुक्ं परं वरन्‌ । विग्रुवंञ्च भवेदेवं रौनन्तमपि नि्दिेत्‌ ॥ satel ज्रिवादेषौ नोपस्धायो गिर्क्तरः । ` श्राहतोऽणयपलापौ at रोगः पञ्चविधः सवः"--दति ॥ am वादिनो विटशोति सएव. + CTR TT TO {| rete क ग कन ज toe पि पि 7 LY AE TREE =) 4 1 +a wasfuted,—afa ate | † इत्थमेव पाठः eer | आहतः NTE च,--इति पाठक मवितु. सुितः। वक्त॑माणकाश्यायमवनने वधा Vy | वं प्रर । UAW BAA | Brat sfu, - “yarat: qfaut aban gala मत्यतरारिम्‌ शरौतस्प्रात्तङियायंकाः विगतदर पमन; atfaur न wander प्रूरयञ्चापवा fea: | aaa: साफ spar णादि त्िजामता'"- दति ॥ धाञ्जउन्व्यऽपि,--- qfaat दानप्रपेताः दुनतोना; waa : METAL समवः gave धनणन्नाः | amet. सिष्य seas, प्रचय Gua ॥ माणः: alae awe फटा य wrerfaleean | = १५५ » = wf [हि 4 ॐ ; निनि age सत्‌ भवपु वदतः ॥ 7 प्र{्षपुरूपा, wy ay ghar, सतप aaa [स्वयः eng च सचि - दति ॥ क्ष्छासाद TEU ` “age YY पद्ध ठा Bq aia aL | Sut उ भ {तटा pdr a ५41 ८ पत -- दति धत्पुनलेन ना ऋ “Saag, सवटिकराग्रादौ कान्यस्य | 9 भ्म, 11 030 प्रखः{ए wd "~~ -- = ~~ = +> = + ~~ ल ~ > न~ -~ = =-= +~ ~ -- ~ क * अश्टतोपि,--दति यन्धान्तरीयः पठः समीचीनः | t खटिकाग्राहोः-- द्रति ate | $ शषा पर्ठवत्सरान्‌+-- ति शा० शण | ववार ST | oe यश्य ATA arg: स्तिः रोषे च faery: | सुदौर्घ॑णापि कालेन म ara} माच्यमरति'"- एमि ॥ साचिरोषोद्धावन विदधाति वरशस्पतिः, - “सा किणोरथमसुदिष्टाम्‌ wa दोषण दूषयेत्‌ › । wee दूषयेदादोौ तत्रमं दण्कमरति ॥ साक्विणो दूषणं era ५१ माक्िपरो्णात | sey wifaq ततः Taq काये व्रिगोधयत्‌"^- नि ॥ काद्यायनोऽपि,- squraet प्रभिद्धं यक्ोकमिद्धं तदापि वा! | मा {दण दूषणं गाद्मममाभ्यं नान्यदि णने'"- vin । मरि प्रलिदादिना भाचिदृो रते arfam: Weal: THT: कममिदितो दोषः aaa तेति ने चर्या दुषणमग्यपगच्छन्ति. तदा a पाक्तिणः। भ्र नात्‌ fa. नदा gamarfem कृष क्रिया भाया) श्रय मन्भाव्रयित्‌ न para. नट THATS तदनु: सारेण दण्डः, यरि विभावयति. vat a a माणाः, W404 दुष्टाभवन्ति। नदाऽधिनः पराश्रयं fagaay निद्धितसान्‌ | भय सादिणां दोषैः पन्यानां माध्याव न्य्‌ * दूत्यमेव पाठः aa) 8) ेत.-- tte TATA ae We समः; ५।* + eee पाठः Vas aura Was 44 नोनि मथापि वा, डति ग्रन्थाम्तरोग्रः MSR समोर | { व्यमेव पाठः Ha! मम any ते मानिक ef पढ प्रति- भाति 10 सः, तदा वादे विषः माधना [1 सलि (ua fear Bay atau Zu: ey पररान्नरमाधवः। न्तरं प्रवन्तयितव्यः*। यदि साधनाग्नर 99 न fated, तदा वादस- माभिः | पूर्व॑मामेदितं म केदिति वचनात्‌ । म चेतत्‌ प्रश्धतव्यव- Wyant, aaa व्यवहारे प्रमाणमाधनदूषणव्यवहारा- दिति। तत्‌ मवं कात्यायन श्रार,- “arfeetar: प्रयोक्रव्याः safe प्रतिबादिना | श्रभावयन्‌ धमं दाणः प्रत्ययो सािणं स्फुटम्‌ ॥ भाविताः साकिणः सवं माचिधभमिराक्ताः ; ्र्यथिनोऽथिनो वाऽपि माचिदुणसाधने ॥ प्रुतायौपयोगेन व्यवषारान्तर न चे। जितः स विनयं प्राप्रः शास्त्रदृष्टेन Aa | यदि aay facia: मानौ मधे यवस्थितः'- दति ॥ दोषोद्धावरमकालमाह मएव,- “mating यं केचित्‌ मा्चिणां देव यै war: । वादकालेषु THAT: पञ्चादक्ताश्न दूषयेत्‌”-ईति ॥ उक्रान्‌ पश्चार्‌दूषयतो दण्डमाह वपव, "“उक्ेऽथं साकिणो aq दूषयन्‌ प्रागदूषिताम्‌ | म च तत्कारणं ब्रूयात्‌! प्रा्रुयात्‌ FART HAH ॥ (क शि । mene: A RI! mene me 7 1 EON He Kea पाठः Hay) Had, वेाद्‌विषगं साधनान्तरं पवर्चधि- तव्यम्‌, --इति पाडः प्रतिभाति, इत्यमेव पाठः GAA ममतु, न च तत्कारणं बयात्‌,--द्रति पाद प्रतिभाति । पु्बपाठे तु, geet दषयेव्‌, सरव तदानौ दूषय करणं Fata । यदि तत्कास्ण भ ब्रवीति, तदा qaarye प्राप्नयादिति कथयित तन्स्ेतिः कत्तश्चा । SAV खम्‌ | ०५ array प्रमाणं तु stata तु दूषयेत्‌ | मिश्याऽभियोगे दण्डः स्यात्‌ माधार्थाच्चापि Pras’ -१ति। धाचिपरोखामार्‌ काग्यायनः.- ` “राजा क्रियां wate यत्नात्‌ न्यायं Prva aerate लिखितं सद्याचारण माखणः" -एनि। ददेस्यतिरपि,-- । “sofa athe: &: सर वरणिङ्गितादिभिः-एति। sfemnate fanzafa नाररः.-- ""अस्गत्रारोषदृषटनादम्त्रन्य TI नच्यते) aT ग्थानान्तरं UM THQ ANITA ॥ कामत्थक्रस्मः त भगम) त्ता निश्वमत्यपि | पिश्निखन्यवनो vat वार ary धमत | भिद्यते gaat लष्तार स्विश्वते तथा | णोऽयमागच्छते तष्टं पव funty Tat a लर्‌माण SATAUUGET TR HIT | KeuTet भ faweed पाप विनयनम्‌" दति \ WUT AAT! मनुः, “Sear Sart: ify: natal aa tern faa aifgare: Satta Pafeyat sa BIRT EA ॥ यद्योरनयोवित्य #1 faa atpa मिधः। तद्रूत मपे सत्येन UAT भाज arf aay ॥ LAAT पाठ; Ga | UCTRTATUS! | तं सत्यं aq सातो लोकान्‌ प्राप्रोति पुष्कलान्‌ । दह सानुक्षमां कौर वागेषा ब्रह्मपूजिता ॥ ब्राह्मणो वा मतुखथाणामादित्यसेजसामिव । शिरो वा सवेगाजाणां धर्माणां aap ॥ waa पथ्यते सशो Ua: Var वधते | तस्मात्‌ सत्य डि amar सवेवर्णेषु साचिभिः॥ सत्यमेव पर दानं सत्यमेव पर तपः | भव्यमेव परो ध्री लोकोलरमिति सतिः ॥ मत्ये देवाः मञुदिष्टा ATA तम्‌ | vei तस्य देवलं ae सत्ये स्थिता मतिः ॥ नास्ति सत्यात्‌ परो WHT नानृतात्‌ पातकं परम्‌ । afaut, विग्रिषेण सत्यमेव वदेसतः"“--टति ॥ यथामोऽपि.-- “alfa धर्मस्ेन मलत्यमेव awa: | atfaurt नियुक्तानां देवता fanfa: fear: i पितरश्चावसलब्न्तेऽवितधास्यानतो न तु मत्यवाक्याद्‌ AHS AST यान्ति तयाऽनृतात्‌ ॥ तस्मात्‌ स्थं हि amel भवद्भिः सभ्यषक्निधौ-इति | नाररोऽपि,- ^ कुवेरादित्यवरणथक्रवैवखताद यः | पश्यन्ति लोकपालाश्च नित्यं दिन चच्षा”--दति ॥ मनुरपि, - BIT TH azz | a Carla era: erat गतिरात्मा तथाऽह्ममः AAA: War aut arfeugway ॥ मन्यन्त उ पापतो म कित्‌ प्यमोति a: । ate देवाः प्रपश्यन्ति यदेवाम्सरप्ररषः' ॥ शौभरुमिरापो हदय Vern द्रयमानिनाः | राचिः न्ध्या च धर्मश्च ननुगाः मवदङिमाम्‌" -एति॥ वसिष्ठोऽपि, ~~ ^ श्रय चेद्नुत HUTA Haat serena! | wat मरकमायाति faaa यात्धभम्रम्‌"-इति॥ aratsfa,-- Saga वारणः ori, माशिणोऽनुततादटिनः | qfsaaawarin तिष्रम नरके way ॥ तेषां वधरते पफ पाण एकः प्रभुश्यत । करालऽतौत मूकषपा श: निय्यमयानिषु जःयतः'--इति॥ वभिष्ठो पि, “गकरो anavife प्रातवर्पाकि गहभेः , शा जेव दषवर्थाणि erat arin fantag ॥ किमिकयेरपलङ्गप्‌ qafead Way i गस्तु THAT जायत मामवन्त ॥ + तसेगान्तरप सथः-- एति mie ¦ RH तु. Bat eit yxui—tfa ¢ पाठः प्रतिमाति। + सवैतः साधामशरम्‌,- ति कार YRTHLATST: | Cogfazewafanrat यथोक्तौ तु भवेदधः* । तज वक्तवयमनतं तदिभिव्या दिश्यते! ”-ईति ॥ स्यु कशचित्‌ विशेषमाह वसिष्ठः ""समवेत्े्त्‌ are वक्यं तु तथेव तत्‌ | विभिनरेनेव यत्काय वक्ष्ये तत्‌ TIA एक्‌ ॥ भिन्नकासे तु aera शाते वा ae खाचिभिः। एकैकं वादयेत्तच विधिरेष प्रकौत्तितः'--टति ॥ माच्छमुपादेयं हेवश्च विभ्भते मनुः “खमावेनेव AAT याह्य व्यावहारिकम्‌ | wat यदन्यत्‌ qa wai तदपा्थकम्‌"--ईति॥ zeafarta.— STATA ATTA ALATA: । wart चेन्निगदितं fag साध्यं fafafeda ॥ निरिषटेव्वथेजातेष areal चेत्‌ साच्ड श्रागतः। म नूयादक्षरसम न तभ्निगरदितभ्भवेत्‌ ॥ यस्य we: प्रतिन्ञाऽ्यः साकिभिः प्रतिवणितः | सोऽजयो स्यादन्यनोतं साध्यायं न समाश्रयात्‌} ॥ — + द्र्थमेव पाठः wa । यथत्ताक्तौ मवेद्रधः,--इति प्र्यान्तसोय- पाठक समोचौनः | + इत्यमेव पाठः was । तडि सथादिगशिव्यते,--दइति प्र्ान्तरोयस्त पाठः Baral: | t द्रव्यमेव पाठः wae | earned प्रविन्नातं सक्षिभिः प्रतिपादि- तम्‌ | स अयौ VAAN तु SNAG ग समाघ्रेयात्‌,--इति ग्रन्धा- म्तरौयः पाठक THAT | MUUCH | च्‌ कनमभ्यधिकश्चायं वित्रयर्यष्र arfgu: | तरर्यानुक्त* विश्ञेयसेष माकिविधिः खतः" इति | काल्याथमोऽपि,- “aurfey विवादेषु श्थिरप्रायषुं निदितम्‌ | ऊने साभ्यधिके राधं ws माध्यं न मिष्यति॥ देशं कालं घनं सख्यां माभ weedy वयः | विभंवदेर्‌ यथ wreg agin विद्बुधाः''--इति॥ क्ररमाक्एमाह नारदः.- “घ्रात्रयिला ननोऽन्येन्वः माङि यो विमिङ्कुते। म fatal wnat केटभासौ भवेः भः -दनि॥ याभ्वम्पयिः.- “a Zarate बः ana] जानन्नपि ata: | a कूटमाज्निणां पापेदच्धोदणडो न चेव fel” --दति॥ कूटसाकिणो दण्डमादच् WA: -— MAT MTT UTA, कामान्ोधारथेवच । arqrareraarie aed तरितथमुच्यते ॥ €MAT Us सव्य | acaay, ofa Aya Tae प्राठः Beata: t wu,—fa ato! ] दल्यमेब प्राठः ee | देम चेव हि. एति ग्रज्ातारोवः पाठक VAT: | 11 sz प्ररा्ररमाधदः। एषामन्यवमलेम यः साच्छमभृतं वदेत्‌ । तख दणष्डविगरेषम्तु प्रवश्छयाम्यमुपूवंश्रः ॥ लोभात्‌ aes दण्ड्यस्तु मोहात्‌ पूवं ठु AKA | wae मध्यमं दण्डयो मेश्यात्पूव चतुगुणम्‌ ॥ कामादृप्रगणं ya क्रोधान्त्‌ ददिगृणं परम्‌ | श्रज्ञामाद्‌ दे wa पं वालि्ाच्छतमेव त्‌ ॥ एताना़्ः करटमाच्ये प्रोक्तान्‌ दष्डान्‌ मनौ षिभिः । धश्मस्याव्यमिचारायंमधमेमियमाय च ॥ | कूटसाच्छन्त्‌ कुवांणान्‌ चम्‌ वणान्‌ धामिंको नृपः, परवामयेद्‌ दष्डयिला argu विवासयेत्‌ ॥ यस्य पण्ये सक्नादाद वाक्यस्य सा्चिएः | रोगारनतिज्ञातिमरण्ण' दाप्यं दमश्च सः“ इति॥ काल्यायनः,- “सातौ ary न Aza ममन्दण्ड वरेकृणाम्‌। | श्रतोऽन्येषु विवादेषु चिग्रतं दष्डमदेति-दति ॥ दस्ति ““श्राहतो यमह नागच्छेत्‌ सातौ सोगविवजितः | au gag ere: स्यात्‌ जिपक्चात्‌ परतस्तु मः ॥ शप्ष्टमत्यवष्वने पृष्टस्याकथने तया | साचिणश्च facigar गद्यं दण्डयाञ्च धमतः" दति ॥ ~ ~ ~ गभि ध ke ak > त क म * सगो ऽस्िरलाविमरम्डणं--दति शा ae | 1† garda पाठः way | मम तु, बहेटयम्‌+- द्रति पाठः प्रविभाति। VIVA } ८९ सा्चिणुमनेकविधवक्याह्यान्‌ विभजते इहस्यतिः,- ^साचिदेधे पताम ग्राहाः साम्ये गणन्विताः | गुणिरेधे क्रिधायुकताः ama 4 ahead’: faa मनुरपि,- “a fe तं प्रतिररसोयान्‌ म।चिरेभरे नराधिपः। हेष त गणोकछष्टान्‌ भरणिदध testa -इति ॥ सन्त्‌ कात्यायनेनोक्रभ्‌,- -arfant लिखितामान्च निरदिष्टानाश्च वादिनाम्‌ | तेषःसेकोऽन्यथातादो भरात्‌ म्र न साखिकः-एति॥ aa सवग्रब्देनान्ययावादिमङितामासव TRAN faagM, न्‌ पुमः केरनामामिति मन्तम्‌ ; wT. तध pea भिति व्ल विरोधात्‌ i afar विधाषःन्तरमाच नारदः. "दथोर्तितदतोरथ्च चयो. mg न पादिषु | पूपद्यो भवेद्‌ शस्य भानयन aw माक्िणः ॥ arya, पपचस्य यक्िक्नधप)द्षेत्‌ | विवादे arian प्रष्टव्याः yfaarfea:’--tfa ॥ श्रत्रोदाररणम्‌ | यतक. च NFAT प्राण भुक्ता AAT मकु म्नो देशान्तर प्रात्नः। VATA लय YT | atsfa anfagal- दिना arnt wget गतः ! पुनस्त द्रात्रपि चिरन्तनकाजा- and ख न्तिलोमेग waaay तचम्‌ । रन्धि प्रतिलानीने # रतादश्माश्चमव पर्त way [Rha | मम ARIAT शुच Sa: प्रतिजानीते नयदभ्ाखन AY उत मदीयरमवतत्‌ BAA, इति पाठः प्रविभाति, । 1. परराश्रमाचधवः। धकषंपाेन राज्ञा मद्यं दतं मदौयमेवेतत्‌ Ga! श्रय Tae प्रतिज्ञा, षत्यं aaa दन्तम्‌, TAR दसताद्भ्ेपाकेनेतत्‌ चेच क्रयेण ae महां दन्तम्‌,-दति सन्ति दइयोरपि वादिनोः साकिणः। गत्रेदमुक्रम्‌,--दयोर्विंवदतोरर्थ--दति । श्रयमयः। सस्थ विवदमानख yaudt भवेत्‌ ; प्रवेकालिकस् दानय खलद्ेतुत- योपन्यासेन यः पचो भवेत्‌, तस्य साचिएः ae प्रष्टव्या भवेयुः | श्रन्यतरस्य साचिरएश्च' | तेषामुन्तरकालदानकसाल्िणमश्षाचिप्राय- लात्‌ । यदा qafcatafasn, तद्‌ाऽथवशरेन एतस्य इस्तान्‌ Alay ag द्तभिल्यादि तु प्रवंदानोपन्यामपचस्याधयमकि्ित्करलं भवेत्‌, तदा पञ्चाक्मतिजानानस्य साकिणः। पूर्ववादिनः पूर्वंपचेऽधरौश्वते भवनधृत्तरवा दिनः. इति | साच्छमन्तरेणए ज्ानोपायानाड्‌ मारदः,-- “श्रा चिप्र्धयासख्छन्ये पड़ वादाः परिकौततिताः | उसका दस्तोऽग्रिरो जेयः शस्त्रपाणिश्च घातकः ॥ केशाकेशि खरोतश्च युगपत्पारदारिकः। कुहालपा रिविज्ञेयः सेतुभेन्ता ममोपगः ॥ तथा कटार पाणिषु वनष्छत्ता प्रकोल्तितः। ्रत्यग्रविद्धैविज्ञेयो दण्डपरार्श्यशन्नरः | श्रघाश्चिप्रत्यया ea wea तु परोषणम्‌'"--द नि | शङ्ुःलिखितावपि। “केश्राकेशिग्रहणात्‌ पारदारिकं उसका हष्णोऽभ्रिदग्धा शरपाणिर्वातकः लोप्तदसलशोरः'"--टति। साचि निरूपणो पसंदार पुरःसर शिखितनिक्पण करोति रश्स्पतिः, =. re eerie # es, म प्रख्या दति afaqataag | QTY RBA = “भाकिणामेव- fate: षक्चालदएनिश्चयः : शिखितस्याधना वस्मि विध्ानमनुपवश्रः ॥ कएणदिक्षेऽपि। भमय भः न्तः मन्नावते यतः | धाक्ाऽतराणि walla पच्रारूढरान्यतः प्ररा॥ देग्ाचारयतं उपमामपचादष्धिमन्‌ | छणिसाचिलेखकामां द्म्ताङ्क Teas | CHM ग्यानेन सवस्ति तेया | wag विविधं via framed दघ gah —sfa ॥ wana दितिधेन मन्ति वसिष्ठः, Be. “alfan रामय न्यं famfgenmay” — cia | तथोरवान्नरभदानाच्‌ दस्पनि -"मागद्‌सक्रयाधानम्‌१द।जखणा दिभिः । म्रा what लेष्यं विभि राजेफामम्‌म्‌ | भ्रातरः मंविभक्षा य स्वस्च्या तुः परस्परम्‌ | jaf भागप्चाण भा गभस AZO] A ॥ शरूमिं दला तु यत्पत्रं कुतस्‌ सन्ाककालिकम ) श्रनाच्छे्मना शाय -द्‌।ननम्धन्‌ afar: M + peda पाठः wart मम त्‌. नागवि Ms! १ + बाण्ासिकरेऽपि,- द्रति सत्यान्तरः Uist t fad तद्धा ga हति क" § खरूपान्तः-इति ate सर । || इ waa पाठः aes) ममतु, कुत्‌, ~ इति पाठः प्रविभाति | <4 URTWLATHS: | ग्रहशेजादिकं कौला wenrerecrfaaz | पचद्धारयते यच” HTM तद्श्यते ॥ age wat बद्धं यतर wey करोति a | गोप्या मोग्यक्रियायुक्रमाधिलेष्यन्त्‌ त्तम्‌ ॥ ग्रामादिसमयात्‌ Sai मतं Sel परस्परम्‌ | राजाविरोधिधर्म्माथं संवित्पचे वदन्ति तम्‌ । वस्नान्नरोनः कान्नारे लिखितं कुरते तु यत्‌ | कर्माणि ने करोमोति areas तदुच्यते ॥ धने Wl ररोला a खयं कुर्याच्च कारयेत्‌ | उद्धारपनं ani णणलेख्यं मनो धिभिः ॥ दला भ्रम्यादिकं राजा ताख्चपत्रे Gesu aT | शरासनं कारथेत्‌ धमं खानवश््ादिसंदतम्‌। ॥ TSA सवेभाविवजिंतम्‌ | चम्द्राकंसमकालोनं पुजरपौबाखयानुगम्‌ ॥ दातुः Weta? खगं इतुभर कमेव | षषटिवषंषहस्ताणि दानच्छद फलं लिखेत्‌ ॥ समुद्रं वषमासादिधनाध्यचाखरान्वितम्‌ | दानमेवेति शिखितं सन्धि वियदलेखकेः ॥ [1 = ee = 8 11 1 ता , ' ए 77 ए. ए ० ज क चि = भ म क शण wr . # ay—xfa TAROT: पाठः TATE † ata,—xfa ate | { श्रानपनश्वादिक यवम्‌ इति शा० ae | ९ पाशयतः--दति ate | TTYL H BH | ब एवं विधं राजतं शरामनं NATE । देभादिकं ae राजा fafa प्रयच्छति ॥ सेवा ्ौष्यादिना तुष्टः प्रमाट लिखितन्तु तत्‌ | पूवी ्तरक्रिधापाद नियानं यदा नृपः । weary afar लेख्यं wage तद्‌ च्धते"-एति, an waged. “fufad amar सतस्‌" -इति। तस्तु fanz ama", शोकिकष्य wafer राज्रपचस्य जिबिधतान्‌ | mada, saad दितोयं. we: गामन्पययोरेकमैकरणो। waited द्रष्टव्यम्‌ | afaeg aatieatay चातुरिष्यमाह--- “प्रासनं प्रचमं HA HIATT तया ऽपरम्‌ | श्राज्ञापतं प्रमादोत्य TART wa uae fa ॥ ग्रामनजयपये WageTyd । aw niet विंपमाद are Awa: "दला भमिं निरन्धं ar इला Heme aT aA | श्रागाभिभदरनृपतिपरिक्नानाय पार्थिवः - दति ॥ ava निवन्यो वागन्याधिकारि भिः प्रतितं प्रतिमामश्च किर्थि- gare भाद्यणावान्य aan दा wafaenfe प्रभुममय- + समन्वित दति क्रा wer ममतु, veqd—sia पाठः प्रतिभाति | | + द्त्यमेव पाठः सव्वध । भम तु, श्राकाप्रसःदपश्रयोरेकीकग्‌नेग,- इति पाठः प्रतिभाति। cc QUINCaTHT: | "राज्ञा तु खथमादिष्टः afafam ति araus पटे वाऽपि प्रसिखद्राजग i याकार कसमन्धं समाया fate क्रियाकारकयोः सम्बन्धो afer एः ae 1 arafwerstid; afar, क्रियया weyers aa fern faere: तत लेखनौयायेमाद AHH ६ "सिशिलेदात्मनो Taras WATER: | प्रतियहपरौमाणं दानमे) ana - इति ॥ व्यासोऽपि, ` af BCC IER ्मुगिनामोपलचितम्‌ | मिप क दिसगोचनद्मवारि कम्‌ ॥ स्यानं वंगा देशं याममुपागतम्‌ | arguing तथेवान्यन्म्ान्यानधिहृताम्‌ लिखेत्‌ ॥ कुटुम्बिनायका यस्य दृतवे्यमहत्तराः | ते च ्वण्डालपय्यन्ताः सर्वान्‌ सम्बोधयति ! मातापिचौरात्ममश्च प्रष्धायामु कद्नवे | a en = ~ ~ ~ Sg न न eames Teme ea Ee" LS pete mreeerR Seen ee te ey + तदुङेरेगेव तदुदिश्य प्रशृत्त--प्ति शार AA 4, azitea तश्रषटकतेः,--हति wis: प्रतिभाति | [| ९१ t वंप्याजुपुन्ब च+--्रति Te । व्यषङ्ार कायम्‌ | ce दन्तं मयाऽमुकौयाय दानं anyrerfew’—chA ॥ अपरमपि fay wuary,— “सन्निवेशं प्रमाणञ्च avey लिखेत्‌ खयम्‌ । मतं मेऽमुकपुचस्याप्यसुकखय ANT: ॥ सामान्योऽयं धमेसेतुनेपाणां काले काशं पालनोयो भवद्भिः" | सवनितान्‌ भाविनः पायिवेन्रान्‌ भूयोश्वयो याते रामर््रः"-दति। जयपत्रे विपेषमाश यामः-- -'्यवशारान्‌ खयं दृटा BAC आ प्रा्धिवाकतः। sara ततौ coq परिज्ञानाय पायिवः॥ SE MAL यन परोच्याणात्ममाक्छतम्‌ । नानाऽभिापसन्दिग्ध यः AA विजयौ भेत्‌ ५ तस्य राज्ञा प्रदातेग्ये ATT सनेखितम्‌ | पूर्णान्तरकियापादं! प्रभाषं नत्परोकणम्‌ ॥ निगदं खतिवाक्यश्च यथा सभ्यरिनिर्धितम्‌ | कक oneal ‘ * ~ षु [| * एतदगन्तर) तस्ते सश्च; प्रदातयं जवपच yafaay ¦ Tay fear Wala araafefu:,— ha ate: का Tle एुम्तक- MEA | + इर्यमेष aaa st मम वुः प्वीत्तसफ्रियपादेः--प्वि Ws प्रविभाति | 12 & 9 पराशरस्नाचवः। एतत्‌ सै समासेन Haase विलेखयेत्‌"'- इति ५ वसिष्ठोऽपि.- “oftarnfzeeng'gfza राजसुद्रया | fast वादिने दधाव्लयिने waren’ —cfa ॥ HATTA ATTA, — “जरनेन विधिना लेख्यं पात्य विदुबुंधाः । तिरस्कार करिया wa प्रमाणेनेव वादिना ii पञ्चात्कारो भवेत्तत्र न सर्वासु विधौयते | श्रन्यवाद्यादिदहोनेभ्य इतरेषां विधौयते ॥ टत्तानुभावासन्दिग्धां तच स्याद्राजपचकम्‌"- इति ॥ च्रान्नाप्रज्ञापनापत्रयोलेचणमाह वसिष्ठः, '"श्रज्ाप्रभापनापने दे वसिष्टेन ट्‌ गिते) सामन्तेव्यय way राष्पालादिकेषु च॥ काय्यैमादिश्छते येन तदाओ्ापचसु च्यते | न्तिक्पुरो हिताचाग्ैमामान्येनतर्हितेषु at ara भिगद्यते येन पं प्रशापनं यतः{'--ट्‌ति। जानपदमपि पच पुमर्व्यासेन निरूपितम्‌, "लेख्यं जआमपदं लोके प्रभिद्धस्थानलेखकम्‌ | भ न ee क म eee = ० ete eee ee rt * इत्यमेव पाठः सन्य । ममतु, WHY, —xfa प्राठः प्रतिभाति। † ठसानुव्रादससिद्धं, —xfa ate | द्व्थमेव पाठः wae) मम्‌ तु, मतम्‌,- दति पाठः प्रतिभाति । QIVICH WA | ९१ राभवंग्रकमयुतं वषेमासार्थेवासरेः, ॥ faaud मामातिन्नातिकफिंकयो लिखेत्‌ | । दरयभेदप्रमाएच्च ठद्धिधोभवसम्मताम्‌"-षति ॥ afaststy,-- “काणं निवेश्य राजानं art fare तथा । दायक area चेव ferret च संयुतम्‌ ॥ ofa गोश्च शाखाश्च zaafe मभद्चकम्‌ t इद्धया इकरस्तश्च विदिताथा च arfaut—efa ॥ UIVAKA AVANTE याष्नवर्क्यः.- "समापय खणो नाम aver frayed | मतं मेऽमुकपुचस्ये सत्यचोपरि लेखितः '--इति ॥ शछणिवत्‌ जा विभिरपि खषस्तनिमेनं क्ेयमिल्याह षएव,- Caray स्वहस्तेन पिटनाम्कपूव कम्‌ | श्रमाद्ममुकः मातो लिखेयुरिति ते ममाः॥ उभयाभ्यधितेने मया शछ्यमुकद्नुना | लिखितं छसुनेनेति werent fara’ '--दति॥ gi लौकिकशिस्ितन्तु? टेचस्तिना मप विधन cfu, airy प्रकारान्तरेष्णष्टविधचमा्-- ~ [ क = és ५ As we ee न क: < ~ =^ ~~ we » वर्षमासाडवासरैः,-- पति ate | t इत्यमेव पाठः सन्येव | ममतु, पिटभुमे' माम गतिं निक किं खेत्‌.-दति पाठः प्रतिभाति | { इत्यमेव प्राठः was | मम वुः faim, ९ इव्यमेव पाठः aay! मम तु, flare, दति पाठः प्रतिभाति। षति पाठः प्रतिमाति। éz प्रदाग्ररमाधवः। “सौोकरद्च* avn तथो पगतसंन्चितम्‌ | श्राधिपचं षतु तु पञ्चमं क्रयपधरकम्‌ ॥ weet frase सप्तमं सस्धिपचरकम्‌ | fanfgraa चेव श्रष्टधा लौ किकं सतम्‌ः--दति ॥ तेषां शरणमुच्धते | तज संग्रदकारः,-- “at नाम लिखितं पराकैः पौरलेखफेः। afinafafafes ययासम्भवसंस्तैः ॥ wala: प्रतिनामाधेरयिप्रत्ययिंसाकिणाम्‌ | प्रतिनामभिराकरान्त पच्च प्रोकं WHAT । UTA यथाररल्युक्रलवणम्‌"--दूति ॥ ara: | “arta queda! लिखितं यारकेनग्धिपगतं लेष्यसुपगतास्यं विज्ञेयम्‌” । नारदः» “आधिङला तु द्रं प्यकं तत्‌ सूतं वृषैः | ana क्रियते लेस्थमाधिपजं तदुच्यते"--दति ॥ च्रन्याधिलेख्ये विगरेषमार प्रजापतिः “धनौ waa तेनेव परमाधिं नयेद्‌ afe । war तदन्याधिलेख्यं wi वाऽस्य समपेयेत्‌”--इति ॥ पितामशः,--. aa क्रयप्रकाग्रायै द्रष्ये यत्‌ क्रियते कचित्‌ | न~ ~------------------------------------ - ----- -~~---~---- - --- -----~ ` - ------- +~ # (चकर, खाने, ace —afa प्यते का पुस्तके | रवं परच। + दइव्यमेव पाटः Gay) भमतु, पास्केन खहस्तेन्‌ वा-इति wes: प्रविभाति | व्यवहारकाकम्‌ | ९३ विक्रषनुमतं करेतुर्ञेयं तत्‌ फ्यपचकम्‌ ॥ पुरःखरभ्रेणिगणण यज पोरादिक्श्ितिः । तस्िद्ययेनत्‌ यषे्यं agiq खितिपवकरम्‌ | उत्तमेषु पमस्तेषु WMT समागते | टृत्तानुवादलेष्य qq asad सन्धिपचकम्‌ | श्रभिग्रापे we प्रात ते we | विग्ररद्धिपचकं भ॑यं तेग्धः" भाणिममन्वितम्‌' दूति) अन्यदपि Sway कात्यायनः,- - ‘atm विवादे निर्णोते रौमापतर विघोयते'-दति। याज्त्रस्वधोऽपि.- । eam पाटयेत्‌ TI TA शन्यत्तु कारयन्‌" - दति । Se प्रयोजनमार atthe. “स्थावरे fanaa विभागे एानपत्च | nfaa® च रोते = aren मिद्यति fara’ xia | क्ियनभिन्नम्लन्येन लेषयेदित्याच नारदः ““श्लिपिज्न ery चः श्यात्‌ AAT BATH a} erat वा arfamtsd वा सर्वेमारिममौपतः'" tie । पव्ना्रादौ went नेस्यमिन्याद याजवन्क्यः, - 11 त म # तेभ्यो ऽसाक्ि्मन्वितम्‌, - ति mie | at दत्यमेव प्राठः स्यच | सान्ती व्रा सःिणादन्येनः--दति यन्यान्तर।- य॒त पाठः TAMA | €8 UCIULATU®: | AMAT FAS ME A इते AIT! faa दग्पेऽयवा fee लेख्यमन्यत्त्‌ कारयेत्‌”-दृति | ay नारदेनोक्षम्‌, ^लेष्ये Tat न्यस्ते MT द शिखिते इते । सतस्लत्कालकरएमसतो दुष्ट भनम्‌ *""--दति । तद्धनदानोधयतष्छणिकविषयम्‌ ! लेख्यपरोचामाह रशदद- स्पतिः,- | “fafarerta Tere भ्रान्तिः सञ्जायते यदा । छ पिसाङिसेखकाना war संशाघयेन्ततः”--इति | काल्यायनः,- “cera समाह्वय धयान्यायं विचारयेत्‌ | लेख्यासारेण लिखितं साश्छाचारेण साचिषः ॥ वणेवाच्यक्रियायुक्रमधन्दिग्धस्णुटाचरम्‌ । अरोगक्रमचिकश्च tet तस्सिद्धिमाभ्रुयात्‌^-दति | ware marae सिद्धिमाह सएव ‘oa तु दिविध प्रोक्तं सद्स्तान्य्शतं तथा | sufanafare सिद्धिर्सख्ितेष्तयोः"- दति | दे्रश्थितिरंग्राचारः । खदहस्तहते विगेषमाद याश्रवस््यः,- "विनाऽपि ufafrael खहस्तशिखितं a यत्‌ | ana खतं सवे बलोपाधिषृतादते-दति | ent भन et यम SD काक ज ~ ane 1 POE TOD [वक क NS Oe ARNO NS teal + इष्दण्रगम्‌, - इति We! SAGA DARA RERUN, दति मन्यान्तरोयः Wiss समो चौमः। ATW GT | पर हस्तषटते विगशेषमा र सएव,- “वादिनामभ्यनुज्ञातं लेखकेन समाधिकम्‌ | लिखितं सवेकारयषु amare रतं बधः" - षति । ्रआधिपते नारद्‌ ATE, “दे श्राचाराविशद्धं यत्‌ वक्ता न्िविधिलचणम्‌ | THAT We लेस्यमविलुप्कमाचरम्‌"--षति | लेग्यदोषमाह कात्यायनः, “स्थानभ्रष्टा: सकान्तिख्या मन्दिगालकण्युताः | तो यमस्ापिता वर्णा कुटनस्थं तद्‌ भषेत्‌ ॥ दिश्रारारविरद्धं यत्‌ सन्दिग्धं कसवजितम्‌ | शेतमखामिना vq सध्यिरोनश्र दुष्यति" -षति। हारोतोऽपि,- “यत्तं RAIA THEY कृटरतामियात्‌ | विन्दूमाकाविरोन यत्‌ uted afeay aq’ —vfa | awata:,— “दूषितो गदिन. घाचो यत्रैकोऽपि faafsra: | TAT amigaeat वाऽपि afew n qaqurqarnd anal: | तत्‌ मो पाधिबल्षात्कारफ़तं aa न सिद्यति ॥ sara चिरतं मलिमश्ाग्पका लिकम्‌ | भद्रोतृष््टावरयतं ea कृटलमाभ्रुयात्‌” इति । नारदोऽपि । 3, € पसश्रवमाचवः | “मन्ता भियुक्रस्तरो बारबलात्कारशतं तु यत्‌ | तदप्रमाणं लिखितम्मयोपाचिषशतं तथा?-दति | काल्यायमोऽपि,- “afar wien पतरं वे लेखकस्य वा | धनिकस्यापि बे दोषात्‌ तथा वा णिकस्य च-इति | दोषोद्धावयिदन्‌ सएवाद,- “प्रमाणस्य हि ते टदोषाः। amare विवादिनः | गूढाः BART. सभ्यैः कायं शाख्तप्रदभेनात्‌"“--इति I उद्भावमप्रकाराख सएवाह,- “साधितेखनकन्तारः कूटतां यान्ति वादिनः | तथा दोषाः प्रयोक्रगथा दुष्टे eel प्रदुब्यति ॥ म लेखकेन लिखितं न दृष्टं साकविभिस्तथा | एवं प्रत्य्थिनोक्रेन कूटणेडं प्रकौर्भ्ितम्‌ ॥ तथ्येन fe प्रमाणं तु दूषणेन तु दूषणम्‌ | मिण्याऽभियोगे दण्डयः स्यात्‌ शाध्या्थाद पि ₹ौवते”-दति। शनन्तरभाविराजक्गत्यमाद टषस्यतिःः- “तथ्येन fe प्रमाणं तु दूषणेन तु दूषणम्‌ | एवं दृष्टं नृपखाने यस्मिन्‌ तद्धि विषाय्येते ॥ विष्डश् ब्राह्मणे: arg वक्दोषाख निसितम्‌"-इति | ज) क त जण = कद ein: ० जक च अक १ णोन = मा = ग णि ज ता जा A es vere meee * cede पाठः wala | मम तु, भवेद्दु-४ति पाठः प्रतिमाति | † दव्यमेव पाठः ears | ममतु, ये देषाद्रति प्राठः प्रतिभाति। BACH BA | thf avq,--- es ध a ~ a3 ~ १ 4 रादलस्ये ARTA नहणिको यदि भिक्त । waa Paha y eae मतन Beh é9 ae द ध; र a Bo rT CH (1 या वश्य {निद BAT दति क्रः ¦ Away PUR YT HR UTTAR “afeHMenyyiy स्यात्‌ waarrahaarfe fan | यङ्छिपरा(शिकिुा दनिप्सन्यागमरेतुमिः द्रति | HTS TY, पन्‌ Aifau na wy wdiamad aly । . ध 2. । ८ tz ~ 7 ` ५ Ve ETL AT SST ATR ATR eT Ela | PRL, fave. ea. aasye agi Read वद्धा । ego CATT ACNE ey sft कमेः सनः, “Cap पद्यालगोप्स्‌ WUE Ry Aa Us Pa i १९ नृत्‌ QR se (ARM ATO त मनयः ॥ नन्‌ BRAMALL, वनिन i ages यद्‌; जाय सना पष त far लगित eA पाप ee BE [पित] - -द्‌ fn विन्एनपिः-- Saamt धामो ३ fa Eat तर mera पता नियते aa Awe wat: waa इति । 14 ge UTITCATHA! | निराकरणे यवश्ितानि साधनान्याह काल्यायनः,- “लिखिते लिखितं नेव a* सासो साक्षिभिरेरेत्‌ | कूटो क्रो arfaut वाक्यात्‌ लेखकस्य च पजकम्‌ ॥ श्रादयस्यां निकरस्यस्य weary न याचितम्‌ | पद्धणेगरङ्या तत्त॒ लेखं दुवेलतामियात्‌ ॥ wel विं्रतसमाऽनौतमदृटाश्रावितश्च यत्‌ | म तल्िद्धिमवाप्नोति तिष्ठत्छपि fe साकिषु ॥ yaa शान्तलाभे तु लिखितं यो न दरयेत | न वाच्यते च खणिकं म तद्िद्धिमवाम्रचात्‌”--दति | मारदोऽपरि- “योऽमुता्थमदृषटाथै यवराराथमागतम्‌ | म लेखं सिद्धिमाप्नोति जोवत्छपि fe arfey ॥ wat स्युः साचिणो यत्र धनिकिंकलेखकाः | aqua लिखितं णलाचेश्वराअयात्‌? i श्रदृष्टाभ्रावितं लेख्य प्रमोतधनिकणिकम्‌ | नन ~ ~ =-= ~> "~ --- = -~---- me ---- ~~~ ~ ~~ ~^ न म Mm FA Sv es * इत्यमेव पाठः aay! ममतु, न,- दरति पाठः प्रतिभाति | † इत्यमेव पाठः waa | ममतु, अद्यास्य, दति पाठः प्रतिभाति | इल्यमेव पाठः सव्ये | मम तु, शुष्कं शङ्कया, दति पाठः प्रति- भाति। $ ata पाठः सन्य । छते तवाधेः ्थिसश्नयात्‌,+-एति म्न्धा- न्तरोयन्त॒ Vs समौचौनः। DIVA | ९९ अतयालप्मकस्चेव aE कालं न सिद्यति"-दति। लेख्यहानेरपवाद मार टरम्पतिः,- “उन््त्तजडम्‌ कानां राजभोतिप्रबामिनाम्‌ | MMT न लेष्यं हानिमाप्ुयात्‌ --दृति | लेख्यप्द्धिप्रकारमा नारदः, “द्भितं प्रतिकान्तं यत्‌ तथा तु श्रारितं च चत्‌ । न लेस्थमिद्धिः ay छरिष्वपि {इ सातिषु" ॥ काल्यायनोऽपि,-- “निदीषं प्रथितं यत्त wey तसिद्धि माप्रेयान्‌ | यथादृष्टं we दपं नोक्त शणिको यदि ॥ ततो विंप्रतिवर्पाणि कोने va भ्वितम्भवन्‌ | mam afar Te नस्येन भुज्यते ॥ वर्षाणि fanfa यादत्‌ तत्पर दौधवज्जितम्‌ | रय fanfaaatafua ata. सनिता ॥ न सेस्येन a afag सस्यदोषवितरजितम्‌ | मौमाविवारे faata सौमाप्रचं विधौयते ॥ तस्य दोषाः wana araanife fafa: | श्राघधानपरितं यच! Be ary निति एतम्‌ ॥ [का irae RAE eR eee OREN pam ah त, + इत्येव wa: eae | Beet सिभ्य^ सव्वेत्र म्दतेखपि च सातिषु) दति ग्र्न्तसयन्त॒ पाठः समौचोनः | † पथं,~-द्ति ao ae | १०० प्रसश्ररमाधवः। खतः सातौ TATU खर्पभोगेषु तद्विदुः | urd वाऽनेन खेत्‌ किञ्चिदायश्चाच निरूपितम्‌ ॥ विनाऽपि मुद्रया लेख्यं प्रमाणं गटतसाचिकम्‌ | vafe लबधं न चत्‌ किञ्चित्‌ unfaat छता भवेत्‌ | प्रमाणमेव fated शता यद्यपि साक्धिएः^”--दति | लेख्यामां मिथो त्रिरोधे बाध्यवाधकमाड व्यासः । “खहस्तका- grad समकालं पिमं वा aa राजतं प्रमभम्‌”--दति) साचाद्यसम्बे रारोतःः- “a मयेतत्छतं पच करूटमेतेन कारितम्‌ | अ्रधरोहत्य तत्परमं दिव्येन निणेयः--दरति । प्रजापतिः - “सखनामगोतरेसन्तन्यं रूपं लेख्यं कचिद्‌ भवेत्‌ | MANA तच ara fear निणेयः”--ईइति | शत्स्दानासमयं प्रति यान्नवरक्यः,-- “Gera ve विलिखेत्‌ दला तदृणिको धनम्‌ । धमिकोपगतं दधात्‌ खदस्तपरि चिद्ितम्‌*--दति । लेख्यदौषमनुद्धरतो दण्डमाह काल्यायनःः - ‘gaint साचिणां वाक्यं लेखकस्य च पचकम्‌ । म चेत्‌ एदं नयेत्‌ कूट ष दाप्यो दण्डमुत्तमम्‌”--दति | अ = ~ ~ ~ a EEE Cn ce ORR त म जा tA नत क त RE OS भा-क क * as MR सर wre THAI | ` QIVCM BT | १५१ साचिर्णां वाक्यं लेखकस्य च प्रति gate उक्रषिधां यो वादौ gay न नयेत्‌, म उन्तममाङमं दण्ड इत्यथैः । ब्यावरादौ तु विषमाद्‌ सएवः-- Sarge विक्रयाधाने wey as करोति a | चमम्यगरागितः कारौ जिङ्कापाण्डभ्रिवजितः" ॥ श्रन्यजेस्यावारके याते" लेष्यागमनकारणएसुद्धा वनो यर्मित्या व्यासः, “पञ्चाद्‌यस्य छतं MTOR प्रदृश्यते | aan तेन वक्रय पतस्यागमन ततः --दृति। नारदोऽपि-- लेख्यं यवान्यनामाद्गं वाद्यन्तरकरतं भवेन्‌ । विम्य amt! तत्स्परेवागमरतभिः"- इति | दृति लेश्यप्रकरणम्‌ | [कक Ami Ne Ae लिखितो पमेहारपुरःभरमम ्रिशुपक्रमते टदस्पतिः,-- "एतदिज्ञानमास्यातं। मनि जिशिनस्य च । # pana पाठः सन्न । ata: परतिभाति | + इद्यमेव पाठः सवयत्र ममतु. Fates ater, FFs प्राठः fa 4, {म तं सम wayne ava,——xfa प्रतिभाति। t weed प्राठः aaa | ममतुः प्रतिभावि। रतदिधानमाव्यातम्‌*- दति भादः १०९ पराश्ररमाधवः। खाग््रतं स्थावर प्रभेभुकेशच विधिरुच्यते" -दति | तच शावरप्रािमिमिन्तानि सएवाइ,-- “विद्यया क्रयवन्पेन* शौ य्येभार्याऽन्वयागतम्‌ | सपिष्डस्याप्रजस्यां wat सप्रधोच्यते- इति | नारदोऽपि “way दानक्रियाप्राप्तं शौय्यं वेवादिकं तथा । नान्धवार्‌ प्रजाव्नातं षडधिधिस्त्‌ घनागमः दति) श्रागमपूवेकमेव YR: प्रामा्य्मित्धाह UTA, — “a gaa विना शाखा श्रन्तरौक प्ररोदति। ` श्रागमस्ु॒ WIA शुक्तिः भाखा प्रको स्तिताः दति । नारदीऽपि- । ““श्रागसेन fauga भोगोयाति प्रमाणताम्‌ | श्रविष्द्धागमोभोगः प्रामाण्धं नेव गच्डति”-रति | श्रागमवदोधैकाललादिकमपि भुक्तः प्रामाण्छकारणभित्याद नारदः,- “श्रागमोदोधेकालश्च विच्छेटोपरनो धितः | प्रत्य्िसन्निधानख पश्चाङोभोग इस्यते"--द्ति | SMAPS Awe भोगस्य प्रामाण्यं नास्तोति are 0 eo were sae ee थी मी म * इटयमेव प्राठः सव्व | मम तु, क्रयसन्भनः--इति पाटः प्रतिमाति | + द्द्यमेष पाठः wert | निभ्डिश्रोऽन्यस्वो न्मितः,--द्रति ora रोयपाठस्त सभ्यक | | अवहार कारम्‌ | Loy “सम्भोगं कवल यस्तु कोन्तय्नागमं कित्‌ | भोगच्छलापदेगेन fara: घ तु रश्करः" -दइति । कात्यायमोऽपि,- 'प्रणषठागमलेस्येम भो गार्डन वादिना | कालः प्रमाणं दानश्चाकोन्तमोयाधिमषदि” इति। पञ्चाङ्कषु विप्रतिपत्तौ माधमौय मिन्धाङ संगरकारः,- "भुक्रिप्रसाधने मुख्याः प्रथमन्त्‌ उषौवलाः | ग्रामण्यः वेत्रमामन्तास्तसौमापतयः क्रमात्‌ ॥ fafad मासिणोभुक्रिः क्रियाः चेषग्रहादिषु | any क्यदानारौ प्रत्याख्याते चिरममे"-हति । क्रयद्‌ानादापागमे धतितारिना प्रन्यास्याते सति fafanat- Fayre: fae. एमाणम्‌ । सुकर माश्च कात्याग्रसः,- ‘orfarg दिदिधा परोक्ता माममाऽनाममा तथा | जिपुरपौ mara तु भप्रदन्पो तु शागमा'-इति। पुरुषचयानुगता भुक्रिरागमानुपन्यासऽपि प्रमाणम्‌ | स्वन्प्रा तु भुक्रिरागमसद्धिनैव प्रमाणम्‌ | एतदा" दत्तिः, “ुक्रिषतेपुरषौ यज चतुर सम्मरय तिता | agra, श्ितरां याति 4 धरज्छढागम केरित्‌ ॥ afafaga यजु पुरपेन्तिभिरेव A | तज नेवागमः कार्यी भुक्रिच्िपुरुषौ यतः" ॥ cara Barren: कायौ BAHIA मरौयमो"- दति वा पाठः| wazaly,—ela प्राठः प्रतिनानि | er = 9 acs # दल्यमेव पाठः BAA! ममतु, १०४ पराश्नरमाधवः। चिपुरुषभोगेनं षष्टिसंवल्छरादयः उपलच्यन्ते। WATT ATE, ‘gaifefinti भुक्ता साभिनाऽव्याइता सतौ | भुक्तिः सा ated} नेया द्विगुणा च दिपौरुपौ ॥ जिषुरषौ चिगुणिता तच are श्रागमः-दति | ठस्य तिनेवतिसंवस्छरानुपलचयति,- “पितामहो यस्य जोवेश्जोवेच प्रपितामहः | fina wat ara भुक्तिः सा भक्रिव्यांहता परः ॥ शुक्तिः सा deat ज्ञेया fener च दिपौरुषौ | चिपौरुषौ च favor परतः सा चिरन्तनो{”-दति | want पञ्चनिंग्रदर्पाणि पौरषोभोग दत्यक्तम्‌,-- “वर्षाणि पश्चजिग्ततु पौरुषोभोग उब्यते-दति । यदि विंशरतिवषैः पौरषोभोगः, यदि वा fared: पञ्चचिंगश- ur वा, सवैयाऽपि चिपुरुषभोगेन तत्करण्योग्यः कालउपलच्छते | अतएव कात्मायनःः- | “ara काले क्रिया मेः सागमा भुक्रिरिथते | श्रसमा्तऽनुगमाभावात्‌ क्रमात्‌ चिपुरूषागता"-ईति । श्ननुगमाभावादिति योग्धानुपलब््यभावेन श्रागमाभावनिश्या- सम्भवात्‌ एतदुक्रं भवति ATTA पश्चाश्रदधिकश्रतवषेपय्ेन्तातौ- तकालमप्ये प्रारभ सुकरिस्सेतत्छार प्रमाणावगममूलेव खले प्रमाणम्‌ | + इत्यमेव पाठः स्वै | वर्षा शि,--दति ग्रग्थान्तरौयपाटस्तु सम्यक्‌ । + विशरत्मायान्तु सक्तौ,-दति ate | { स्याजिरन्तनो,-हति ate | Sica: [कका 1, 1 ए sre ष्यवहास्कारम्‌ | १५६ लकूलघागमाभावाद्‌"योग्धानुपलब्या बाध्यमानलात्‌ । सरणधोग्ये पुनः पञ्चाशदधिक्रे्तवर्षातोतकालात्‌ प्राचौनकाले ITA ख- कालदाद्धावसितागमम्‌लिका विनाऽपि मानामरागत्चागममलतां खनि प्रमाणमिति । wars काले श्रनागमहतिपरन्पराथां शत्यः न भोगः प्रमालम । KAVA नारदः,-- “श्रनागमन्तु यो भु दक्र ae ्रतान्थपि । सोर दण्डेन तं पापं दण्डयेत्‌ एथिवोपतिः'"- एति | निश्धितानागमः खभोगम्तेनेव दभितः,- “अन्या हितं इतन्यम्तं बलावषटसया चितम्‌ | ्रप्र्यदं च age षडतेऽयागमं पिना" -द्ति। sated WAR दाहम नम्‌ । शतमा इतम्‌ | न्यत्त fa fade | वलावषट् राजप्रमादाट्िवनावष्टेन मकम्‌) याचितं पकषौय- मलङ्काराद्यधंमानोतम्‌ । समत्ताऽपि,- Cay राजक्राघलोभन SATU बा BAT | प्रदत्ता{न्यम्य ATA नमा भिद्धिमवान्रुयात्‌"'--द्ति | यत्त हारौ तेनोक्रम्‌, 'ख्न्यायेनापि यद YR पिचा yaad fata: | न तत अकं परार men विपुुषागतम्‌ "दति । एतच्च अन्यायेनापि मुक्माभलुमणकयभ्‌, भि एुननन्यायन सुक्षमित्येतत्परम्‌ | व्रासनविरोघ मुक्ररप्रामाण्यमाश एषम्पतिः,- "यस्य चिपुरुषो भुक्तिः पारब्पय्यकमागता | pen er ee thn ERNE RRA [क a aati * वन्मशमनागमाभवा,- FLA gre | 14 Log UTHER TA | न सा चालयितुं wen पूरविंकाश्छासनादुते,- दति | यत्त॒ पितामष्टेनोक्रम्‌,-- “खरस्तादागमपदं TRA नृपशासनम्‌ । HAART भोगः प्रमाणन्तरमिथते *”- इति | तप्मवाहपरन्यरया तप्मसिद्या निखितागमभोगविषयम्‌ | सत्य- विच्छेदे सागमा भुक्रिः प्रमाएमिल्याह ठस्य तिः,- "भु क्रिमेलवतौ शास्ते afafear चिरम्तनो | विष्छिन्नाऽपिरिमा न्तेयायातुपूवेप्रसाधिता--इति। चिरक्मायाः aoa कचिदपवादमाड यान्नवष्क्धः,- “योऽभियुक्रः परेतः स्यान्‌ तस्य क्यो तसुद्धरेत्‌ | त तश्र कारणं भुक्िरागमेन विना शता--दति। नारदोऽपि,-~ “श्रयारूढ विवादस्य प्रेतस्य व्यवहारिणः | एुलेण ater शोध्यः स्यान्न तद्धोगाज्निवन्तयेत्‌ {--दति। Rage लभियुक्र्येव दण्डो न तत्युच्चादैः । तदुक्तं MAA, “श्रागमस्तु हतौ यन स द्‌ण्डस्लमनुद्धरन्‌ | ~~ = ~ ~ ~~~ "~~~ -----~ = ~ न ye ee I ee ~ ee न ० => awe oe tee — a ~ ee ee eee * इत्यमेव पाठः aaa) मम तु, प्रमायतरभिव्यते,--दइति प्राठः प्रतिभाति | 1 इत्यमेव पाठः aan) मम तु, स्यपि विष्छेदेः-इति प्राठः प्रतिभाति) { वद्धोगमाषादेतौव्धेवहारं न निवर्तयेदि्यधंः। न तं भोगोमिष- येत्‌, दति प्रन्थान्तरौवः प्राठः। | QATAR | १०३ म्‌ तह्ुतखतसुतो वा भोग्यदानिसतयोर पि"--इति । एतरैवाभिप्रत्य कात्यायन ्रादइ,-- “arent युक्रुक्ताऽपि ' रेख्यदोषान्‌ विशोधयेत्‌ | तत्सुतो भुकरिदोरषाम्ह॒ नेस्यदीर्षासु नाङ्रुयात्‌"--इति । चिपुरषेषु wafga माधकं क्रमेण दरयति नारदः, Sarat तु कारणं afar भुकिम्तु मागमा | कारणं भुकरिरेषैका सन्तता या चिरकभो''--दति। sary स्रडकारेण टशितः,- "ऊतागमस्योक्रकाने YRY WTA: | त्धेवाय दतोयस्य wae किमु मागमा। ॥ भुक्रिया मा चतुश्र प्राणं सन्तता मन्‌ । परिद्यक्रागमा मुक्तिः Baa प्रभूमेता"- ति) fen qata प्रायन्यमितरभ्यामिल्यान कात्यायनः, ""दश्यानिमेमनदारे जलवा ठा दि भश्रय | afata तू way aq पमाएशिति मिखयः ` -ईति | नारदोऽपि "विद्यमानेऽपि fafaa जोवक्ूपि fe arfay | faiiga, स्यावरेपु धमन ya a ad म्धिरम्‌"--दति। सम्न्तीऽपि,-- wm ए ee # युक्षसक्तेऽपि,-- षति शा | + प्रच्युतिः सटागमा) हति AT? ` १०८ परराश्ररमाधवः| “व्यज्यमाने हचेचे fart तु राजनि | शु क्रियेख्य भवेन्तस्य म लेष्थं तच कारणएम्‌”--द्नि | we रेस्थवेयथ्यकयनायमुकर, न पुनभ: खामिलप्रतिपाद- मायम्‌ । तस्य भोगमाजेण खामिवाभिद्धेः । श्रपडहारेणपि मोगस- भवात्‌ | श्रतएव कात्यायनः,-- | “नोपभोगे वलं araarest तत्सुतेन वा । पश्रस्वोयुरषादौनाभिति धमा वयवस्थितः"--दति | यत्‌, याश्चवस्व्येनोक्रम्‌,- “पद्छतोऽबरुवतो श्छमेहांनिविंग्रतिवाषिकौ | UCU भुख्यध्रानाया धनस्य द ग्वाषिकौ"-दइति। यद्‌ पि प्रजापतिनोक्रम्‌,-- “दानकालारयद्‌ाऽऽरभ्य भुक्रियेस्य विधातिनौ । समा निंश्त्यवधिका तान्तं न तिचारयेत्‌""--दति | तदेतदासेधमक्वतां फलददानिविषयम्‌ । a तु werfa- विषयम्‌ | यस्मात्‌ तत्कालोपलितथुकरेरव तच प्रामाण्णान्‌ । waa ava तिः,-- “Fayed भुज्यते येन समच शरवारिता। ve भेवापरननव्या wafers Sey The । आध्या दिपचकस्य न फलदा मिरित्याश याज्ञबरुक्यः,-- eaten cutee मान OUR =. 9 ceo RD A re णि TPES AS A विक => + च्मालिक्रेन चेद्यदा,--इति का० । मम वु, मालिकः न बेदध,- दरति प्राठः प्रतिभांति। RAYTER UA | ११६ “श्राधिसोमोपनिरेपजडबालधमे विना | तथोपनिधिराअम्तौ श्रोजियाणां घेर पि'--दति | मनुरपि, “sft: सोमा atau निचेपोपमिधिश्लियः | Time श्रो तरियद्रयं मोपभोगेन arta’ sha | ओतिवग्रहणमन्यासक्रो पलकणा्थम्‌ | WAVA काव्यायमः, "द्वारो चरेत्‌ afaq प्रतं षर्‌जिश्रदाब्दिकम्‌ | प्र्थार्यौ चान्यपिषय सौचत्ालं चरेन्नरः' ॥ garam तरतो Real खभनान्वषण तन; । पश्चाएदान्दिको भोगः तद्धनम्यापडारकः ॥ प्रतिवेदं arena: कालो विधानां ea: frat fuera TEU: yaaa: ॥ , सुरद्धिवुभिेषा aad मुक्रमपन्धताम्‌ । मृपापराधिनां चेव भतन कालन गौयते"--ईनि॥ धनस्य दश्रदा्धिको इानिरिति यदुक्त, तष्य fagufaay wat- qary मरौचिः,- ""घनवाद्यालंकरणं याचित्‌ प्र नकश | चतःपश्चान्दिक ठेयमन्धया रामिमाप्रयात्‌"- षति) श्रचापवादमाद मनः - ‘cana भुज्यमानानि न ante भदासन। कछ । 1 [क क AA CER OOS SS ET ~~ eee * aQqe,—Efa Ale । ९१९० ) WEALATHS! | ` भेनुर्ठोवहदद्धो यख ae: परभुष्यते”-दटति । याचितेष्वप्यपवादमाह याषःः- | qrearaay यदुक्तं ओोजिये TAIRA | gqufyataaarta न agiia रौयते"-- इति | aveafacty,— “mara तु यदुक्त गटददकेचापणदिकम्‌ | सुहद्बन्धुषङ््येश्च न तद्भागेन रौयते"-दूति । हानौ कारणमाह सएव, “uaa: MPs स्यादभयं THR | ae सुददान्धवेषु भुक्रान्येतानि हौयते"-दति । वाचिदेकदे शभोगेऽनुपञुके प्रत्येकदेश्रान्तरेषु* प्रमाणम्‌ | तदाद avafa:,— ‘qqamraa uraarcrary सेखिताः। एकरेग्ोपभोगेऽपि wf भुक्रा भवन्ति ते"-इति। दति भुक्गिप्रकरणम्‌) मुक्पसंहार पुरःसर दिव्यसुपस्ापयति ठस्य तिः, - erate तदाख्यातं | लाभभोगप्रसाघनम्‌ | ~ल ~~ in च भ et ज क eet ~~ -- ~ RE EE 9 ~ + न~ oer * इत्यमेव पाठः स्मैव । मम तु, क्चिदेकदे्भोगोऽनुपसक्तपन्येक देष्याम्तरेषुः--्ति प्राठः प्रतिभाति । + द्रव्यमेव पाठः Hat) मम तु, श्यावस्खेवदास्थातं,-दति पाठः प्रतिभाति | TET RTT | १११ PT दोषो शैषिकौ किया"--इति। femgfanfa छदि; os घटोऽप्निरुदकं चेय iat Shy ER षष्ट तण्डलः प्रोक्तः सपमश्छौ अष्टमं फालमिल्यक्तं नवमं — 1 दवियान्येतानि adrian निरिष्रानि स्वयमक याद्वः भयुक्रानि दृष्करार्थं मात्मनः" --इक्ि 1, mg.) “aa fea ara दुलापभारणं विपागनंः कोरक वेगोलोहधारमिणाप्रत्तभदानमन्धास्‌ पपयान्‌ क्रारयन्‌ ofa wary awufaar दगितः,- “way aryantalfa मोगोजकनक्रानि च| देवब्राह्मणपादख qaziincife 4 | एते च ग्पयाः प्रोक्ता weary सुका; wet" -दृनि। गरखत्निखितार्वाप। "दृष्टापदाना अपयान ATT fal afearat {दिखानां म्ये नन मराभियाग प्रया marta) तथाच UMA Caen searitfad कोणो feasts faygga | महामियोगेष्येतानि शापकम्यःभियाक्र fcr -ईइति॥ एषाममनिग्रब्देन = तक्षायःपिषदतप्रमावतप्तत१ रना zw । “9 qa को श्मन्पेऽपि दापयत्‌'- दि म्बन्पाभियोम BINA t कां nt en # faurnta--sfa wre घर ' UR पणशग्माधवः। कोशस्य लूलादिषु पाटः यावषटमामियोग 2 “greet: | न महा- भियोगेषेवेति नियमाः । श्रन्यथा ATT श्रंकाभियोगएव प्रातिः सखान्‌, , नदरवष्टभाभियतीनिं ध्टादौनि विनिदिं भेत्‌ | तष्डुलत्दिव कोच शंकास्तेव न वंगरयः”- दति खरण्ात्‌। Maa विवादपराजयनिबन्धनो दण्डः | तज भरमि तिष्टतौति Maa: ग्यदा गौषेकस्योऽजियोक्ता न खात्तदा दिव्यानि देयानि । तथाच नारद्‌, ~ «aggre यदा न स्यात्‌ तदा {यं त्‌ दौयते^"--दति। दिव्यदाने नियममाह पितामहः “न्रभियोक्ता भिरःस्थाने दिगेषु परि कौत्येते। श्रभियुक्राय दात fea श्रूतिनिदश्ेनात्‌” -ईति | काप्यायनोऽपिः- “a कञचिदभियोक्रारं दिययेषु विनियोजयेत्‌ | श्रमियुक्ताय दातव्य fea feafamed:’—sfa | श्रभियुक्राय दातव्य नान्यस्टेति नियमस्य श्रपवादमाद चान्न TVs, | See वाऽन्यतरः कुख्धदितरो वत्तयेत्‌ शिरः"दति। [11 इत्यमेव पाठः Gay | AA तु, यदा प्रतषकस्थो ऽभियोक्षा न खात्‌, वदा दिव्यानि म्‌ देयानि | तथाच गार्द्‌ — HARA AT 7 A सदा fea म दौयते। ति पढ प्रतिमाति | ware 'शोषकस्ये- ऽभियोक्षरिः-- षति या्नवस्वधादिवचनविरोधापत्तेरिति ध्येयम्‌ | च्दद्ारकादम्‌। ११९९ नारदोऽपि, ` “परियोक्ा facet सरवजेकः* wafer: | दतरानितरः gatfeadt वर्तयेत्‌ far: t—efa । कचित्‌ विषयविगषेऽग्रिरो दियं देयमित्याह काग्यायनः,- “पाथिवैः शंकितानाश्च faféerary cafe ग्रकाग्ररद्धिपराणश्च दियं za fact विना॥ लोकापवाददष्टानां शंक्रितानान्त्‌ cafe: | तुलारौनि नियोध्याभि नो fees वे wat: ॥ न्‌ शंकासु fat: Ws कम्ाष न कदाचन) afmifa च दिव्यानि coma दापयेत्‌"--इति | तिषयविगेषषु दिथविेषान्‌ व्धवस्बापयति मयहकारः,- न्धटादौनि विषान्तानि मुरखवर्धषु दापयेत्‌"-हूति | पितामहः, - “mapanfaaatal धटादौनि त्िनिदिभत्‌ | AAG को शसु गरकाखेतौ नियोजयत्‌"'-दति ॥ क्रात्यायनः, - ब नप्रंकाविशापसन्धाने विभागे छक्िनां तथा ¡ । क्रियाभमूदकदेले कोसेतर प्रापयत्‌” --इति। पितासहोऽपि,- ne # सव्वचेव,--द्रति Se | ध 5 † ख मियोक्ञा facet saris प्रकोितिः। सथा. ASAT कुब्पादितसो वत्तयेङ्िर- प्रति ग्रन्यन्तरोयः Wis: SATA { aai—xfa ae Ae | 15 ees ee nA एकक E 2 1 9 i ee A [व ean १९४ प्रराशरमाधदः। “fea सर्वशंकासु शन्धिकायं तथेवच | एषु कोशः प्रदातव्यो face: एद्धिश्द्धये* ॥ भिर थोऽपि विहीनानि दिग्यादौमि विद्येत धटादौनि विषान्तानि कोश्एकोऽशिरःख्वितः7*-दति । धनतारतम्येन ¡ दिवव्यवस्धामार टदष्पतिः+- “fag qearand पाटोने च Wary: | चिभागोने च afer सवे देयो धटः सदा ॥ चटुःश्रतेऽभियोगे तु दातं तप्तमाषकम्‌ ।' विशते तण्डुलं देयं कोगरएकः भिरः रतः ॥ श्रते. शते निदत्त वा दातययं घनप्नोधमम्‌ | गो चोरस्य प्रदातव्यं WS फालं प्रयत्नतः ॥ एषा सख्या भिरृष्टानां मध्यानां दगुण रता । चत्गेणोन्तमानां तु कन्पमोया परौचकैः”--दइति ॥ काल्यायनोपि,-- “काला dat सुवर्णानां शतमाने विषं सूतम्‌ | श्रणोतेख् काभ वे garda इतागमम्‌ ॥ बष्छानारे विषं देय चलारिंग्रतिके धरम्‌ | जिग्रहूशविनाभे वं कौशपानं विधोयते ॥ warfare वा मागे तदधीधेष्य तण्डुलम्‌ । 1१2... श, [ 0 रि १ 711 an tathed + इत्यमेव पाठः was | भम तु, खुद्धिसिञ्ये,--दति पाठः प्रतिभाति। † कोशर्कः तिरः सतः--दति णार ue | { परणतारतम्येन)--दइति wre ae | ॥ ९१५ agate नागरे तु दें पुचादिमसकम्‌ ॥ तदधाधविनागरे त्‌ शौकिकाश्च finer: इताः--दति | विष्ण्रपि। “Cady चाथेजातेषु मृद्धं कलकं कण्पयेत्‌ । तच BURA ys दवाकर" भ्रापयेत्‌ । दिष्णलोने fren, भचिषटष्णलोने रजतकर, चतुःह्णशोने सुदणंकर, पद्चहटष्णशोने thor, सौरोद्ूतमरौकरम्‌। दगु चवा विदिताः समव करिया वेश्वस्य । जिग णेऽयं राजन्यद्ध । चतुग ब्रह्मण्य दूति । पारस्परादोनां विशेषाः art दभिताः,- “Ag तु मल्यवशनं दिनिष्के पादलम्भलम्‌ | ऊनं fak त्‌ Bo स्यात्‌ को ्रपानमतः परम्‌^--इति ॥ निष्कगस्देन काञ्चनकषेवतुचीग्रो यो सुद्रामुद्धितः प्रतिपाद्यते | तवापि wen निष्कयवहारात्‌ । भाला मस्यां सुवर्णाना- fafa aga, 7% सुवणपरिमाएमाश मनुः, - न ज्लोकसव्यवहाराथं या संशया प्रथिता yf t ताम्र्यसुवणा मान्ताः HARTA: ॥ जालान्तरगते भानौ यत्‌ द्र दृते TH: | प्रथमम्तत्‌ प्रमाणानां भ्रमरेण प्रचचते ॥ असरेएवोऽ्टौ fare fader परिमाणतः! ताराजसषैपस्तिखमते जयो sheets: ॥ OR पजयन नात ०० कान आम कमय ~ = * दूवीकर,-द्रति यन्यान्तसेयः पाठ सम चोमः। + parte पाठः सव्ये | मम वु, यधाभिष्हिव!+-द्रति प्राठः प्रतिभाति। — १९९ परराशरमाधनः। aia: षट्‌ थवोमध्यसियवन्बेकरृष्णलम्‌ | पश्च हष्णणको माषस्ते Gey Grew ॥ पलं सुवणाद्चतवारः पलानि धरणन्दश्र | ह शष्णणे सम्टते विश्नेयो रौणमाषकः ॥ ते षोड्ग्र स्याद्धरणएम्पराणचचैव राजतः | काषीपणस्त विश्चेयस्तासिकः कार्षिकः पणः ॥ धरणानि द्र शेयः शतमानस्तु राजतः | चतुःसोवणिंको निष्को fatiag प्रमाणतः"-दइति ॥ माषश्ष्दः Gate wien भागे वर्तते | TENE वर्ष- , दतौयभागवातौ । माषपञ्चमां शस्य कलात्‌ । Sagara नामनि कार्षवचनभसि+ । काषोपणएशरब्टौ equine augue नाम- सेये | ग्यागधारणश्ब्यौ पलदश्मां ग्रस्य SURES नामनौ । क्ष- खलारिग््समां शर्य Saxe माषसंश्षा | fea एकपले ङूणद्रे बतेते{ । श्रतएव दयसं्षाऽधिकारे याज्ञवर्कधश्राच,- “श्रतमामन्त दप्रमिर्धराचैः पलकेव तु । निष्कं सुवणंशचलारः---- "दति | इरस्यति: सुवंश्दश्य श्र्थाम्तरमाद,- “aranawat समुद्रा fasar कर्षका प्रण: | नीद व वाककषय e Buy नामगिष्कषंवश्चगमस्ि-- द्रति ae | † इत्यमेव we: eae) सम तु, एराणकाषपणशब्दौ,--दति पाठः प्रतिभाति। { शल्यमेव षाठः स्वे | मम तु, निष्केशसमाबश्ब्दौ TAU. कूप्य- रथे वर्तते,--द्ति प्राठः प्रतिभाति | SAUTER TET | १९७ सएव Wheat ste May धामकाः ॥ तद्दादश्र gate दौनारास्यः awa तु-इति | awe पले विकन्पमाद,- “पलं सुवर्णाः चतारः TE वाऽपि प्रकौन्तितम्‌'"-ए्ति | राजतेऽपि कार्षापणोऽम्तोत्यार नारदः “कार्षापणो द विश्यं दिशि रोय प्रवत्तते"-दति। aay मौव निष्कस्य प्रमाणमाह,- “पलान्यष्टौ सवे स्यसे सुवणाञ्तुदं श्र । एतत्‌ निष्प्रमाणन्त्‌ यामेन परिक ्तितम्‌"-इति । TA सनुक्रप्रमाणात्‌ प्रमाणान्तरमाषादि दियदष्डग्यतिरिक्- विषये दिग्रषयवहाराविरोधेम रायम्‌ । तया च वृहस्पतिः, “Har facial’ मनुमा ममुदटाइता । > वार्षापणान्ता मा दिखे नियोश्चा fara तथा ॥ AUNTS दण्ड उत्तमाम | agg मध्यमः परोक्तः तदद्धमधमः सतः" -इति ॥ आतिमेदेन दिवग्धवस्ामाश नारदः. "ब्राह्मणस्य धटो देयः चचचिय्य KATIA: | Swe मलिलं दयं शूद्रस्य fares तु ॥ हाधारणः समस्तानां कोः प्रको मनौविभिः'"-इति ॥ afar चेयं व्यवस्था | [क 1 ~ ~ ~ ~~न [1 © दत्यमेव पाटः Bay | AY तु, AS ufanifa | सिर जाभया,--दति पाठः १९८ परान्नरमाधवः | “सवेषु wifes वा विषवजं चिभो्तमः”--दइति TATA | were वयो विशेषादिना व्यव- स्यापनोयम्‌ | ATH नारदः,-- | “द्ञोवानुगत्तवधिरान्‌ पतितांखादिंताश्नराम्‌ | बाणवुद्धस्तिय एषां * परौेत धटे षदा ॥ न स्तोणान्तु विषं प्रोक्तं चापि सलिलं खतम्‌। धटकोग्रादिभिस्ताणामतस्तासां विधारयेत्‌ ॥ न arate: सोबाला धमेश्रास्लविष्वरणेः | रोगिणोये 4 agr स्यः पुमांसो ये च दुभगाः॥ अहवाऽपागतानेतान्नेव ate farsa । न चापि हारयेदभभिं न विशेषं! विशोधयेत्‌"-इति। काल्यायनः,- “न सीहभित्पिनामभ्निं सलिलं नाम्बुसेविनाम्‌ । मन्यो ग विर्‌ाच्ेव विषं ददाख न क्रचित्‌ ॥ तण्डुले न नियुश्ौत व्रतिनां सुखरो गिणाम्‌--ईति | पितामशोऽपि- “afeat वजेयेदभिं सलिलं श्वासकासिनाम्‌ | , पिन्तर्े्नवतां fired विषनतु परिवजेयेन्‌ ॥ यदाप्यं स्लौयश्चनिनां कितवानां तथेवच । * बाशङ्डस्सियो येषां, इति कार | + द्रव्यमेव पाठः सम्भे | मम तु, न विषेय,ः--हति पाठः प्रतिभाति, कोरः ATH दातव्यो ये च नासिकटकयः- दति ॥ काल्याथनोऽपि,- “मातापितादिजगरडष्लोबारधातिनाम्‌ | मरापातकयुक्रानां नास्तिकानां विशेषतः ॥ दिय प्रक्पयेन्ञेव राभा ध्मेपरायणः | लिङ्गिनां wana मन््रयोगक्रियाविदाम्‌ | वणेसङ्करजातोनां पापाग्यासप्रवरिनाम्‌ ॥ एतेग्वेवा भियोगेषु मिन्येष्वेव स यद्नतः | एतेरेव नियुक्रानां arent टिव्यमहंति ॥ न मन्ति माघो यच ततर शोध्या: want: एति) यदपि पितासदेनोक्षम्‌,- "-सत्रतानां शगराङ्ानां बालदरदतपस्िनाम्‌ | प्लोएाञ्च न wifes यदि घमेश्वच्धने"-दति ॥ तदम््म्ब विषयम्‌ | चन्त HTT AT MA. — “धनदारापदहाराण * सयान पापक रकाम्‌ । प्ातिलोग्यप्रसूतानां fayat मतु रजनि ॥ anfagria दिव्यानि मंग्येषु न निर्दित्‌ "षति ॥ तत्ते नियुक्रपुरषान्लाभ विषयम्‌ | शारौतः वणनिपय। विष मार्‌, “राजन्येऽग्निं He विरे पग्र तोयं नियोजयन्‌ । नीमि * छस्पप्यधनदारागां-- द्रति का | † इव्धमेव पाठः समख | मम तु, वरविषष-- Ef प्रनिभाति | १२० परसाश्र्माधबः। न विषं ब्राह्मणे दद्यात्‌ विषं वर्णानरे सतम्‌ | के एतण्डुलधमेस्हु धरममेखम्भवमेवच ॥ पुत्रदारा दिश्पथाम्‌ wae प्रयोजयेत्‌"--दति ॥ दिव्यानां कालविगेषमाइ पितामहः,-- “Sat anita षैभाखश्च तथेवच | एते साधारणा भासा दिवखानामविरोधिनः ॥ धटः सवेचिकः stat वाते वाति विवजंयेत्‌ | तथा शिभिरदेमन्ते वर्षाखपिष दापयेत्‌ | He सलिलभित्युकं हिमकाले त्‌ वजेयेत्‌"^-दति ॥ नारदोऽपि, “ety: भिशिरहेमन्ते वर्षासु परिको्तितः श्ररदगरोभ्रे तु सलिलं हेमन्ते शिरे रिषम्‌ ॥ ama कोश्रसिद्धिः स्यात्‌ नोष्णकालेऽभ्निशोधनम्‌ | न urate विषं दद्यात्‌ प्रवाते म तुलां नृप -इति॥ दिष्ण्रपि | “खौत्राह्मणविकलासमथरोगिणं तुला देवा । सा च नवाति वायौ न मासिकस्य) श्रषद्ध्मलोहकारिणणममरि्दवः। न शरद्योश्रयोश्च | न दुष्टिपेत्निकत्राह्मणनां विषं देयम्‌ | arate म । Qvarafeaat arent arentfrenagstfaat न चोद्‌- कम्‌ । शेमन्तभशिशिरयोखच न | arama: कोशो न देयः। कुष्ट- व्याधिमारकोपदृषटेश्च""--षएति । पितामहोऽपि "पूरवाह्णेऽभरिपरौच्ा स्यात्‌ पूर्वा च धटो भवेत्‌ । wae तु जलं देवं धमेतक्मभोष्ता ॥ वैव हइारकाखम्‌। १९९६ ` feqew तु gale को शश्द्धिविधोयते | cat तु पश्चिमे wa विषं देयं सुनौतणम्‌ "--दति॥ दिव्यदेशणानार,- “angel faga: ara: set 22 घटः सदा । दनद्रस्थाने सभायां षा रजदारे aaqway”--gfa ti | इद््म्धानं प्रस्यानटरेवतायतमोपलक्षणम्‌ । श्रतएव मारदः,- "भभाराजक्लद्रारे दैरायतनषवरे--एति। अधिकारिसिगरेषण anfana रस्याप्यति काद्यायनः.- “amma sfarnral मद्धाणतकिनां नेम्‌ | anna aay राजव प्रयोजयत्‌ ॥ प्रातिलोश्यप्रञ्चतानां fea दयं चतुष्पथे | ्तोऽयेषु हु aa सभामध्ये किदुबेधाः-द्ति। दिथटेप्राद्यनाटरे faa प्रामाप्यरानिरित्यारं नारदः, - "श्दधेप्राकान्तदन्तानि Henan च) व्भिचारं wersuy ante म्‌ म्प्रावः- दति ॥ वासोः जनभमिवासः। नस्प्रादरिनिजेनप्रटशदति aad । तया च पितामहः “faaig waaratfa wif gare: Rae । Agr y यथाऽ मोपा arava! ॥ तत sarareazara तिधिनाऽनेन धिन्‌ | mS: प्राशिता प्रावित्ाकम्नतोवरदंन्‌ ॥ wate भगवन्‌ wa अस्मिम्‌ fag ममातिग्र | 10 RR पराद्नरमाध्वः। सहितो शोकपालेख्च वसा दित्यमरड्णेः ॥ श्रावाद्च तु धटे wa प्ादङ्गामि विन्यसेत्‌” | धट ग्रहणं स्व दिष्यापलखणाथम्‌ | एषां धमाणां सवंदिव्यसा- धारणएवात्‌ । श्रङ्गविन्यासप्रकारसेनेव दथितः- “ge ga aq cera Raw cfea तथा। वर्णं ofa. भागे इुषेरश्चोन्तरे तथा ॥ श्रग्यादिलोकपालखं कोएमागेषु विन्यसेत्‌ । ox: पोतो यमः श्यामो वरणः स्फरिकप्रभः ॥ Hare सुवणणंभस्लप्निाय्यसुवणभाः | ava fad तिः श्यामो area: mre ॥ Suray Ware: एवं ध्यायेत्‌ क्रमादिमान्‌ | wee chee TF वद्धनावादयेदुधः ॥ धर्मौ, yaa व्योम श्रापसेवानिलोऽनलः | WATE प्रभास वखवोऽष्टौ प्रको्तिताः ॥ Saad श्रादित्यानां यधाक्रमम्‌ । धाताऽव्यैमा ख मिचख् वरुणे भगस्तथा ॥ cat विषान्‌ पूषा च परजेन्यो द्रमः तः | . ततस्बष्टा ततो विष्णुरजयो यो जघन्यजः ॥ waa दादशादित्या नामभिः परिकोतिताः | sa: पञचिमभागे ठू रद्राणामयनं विदुः ॥ Tomy wag गिरोग्रख्च महायशाः | णि # पषयो,-- KEATS | खवङारकाखम्‌। १२४ श्रजेकपाद हिवः पिनाक चापराजितः ॥ सुवनाधौश्वरथैव कपालो च विाग्यतिः। स्धाणमेवश्चः भगवान्‌ रद्रासलेकादग्र खता; ॥ प्ेतेशरचोमध्ये ¶ माटग्धानं प्रकन्पयेत्‌ | ब्राह्मो माहेश्वरो देव कौमार Feud} तथा ॥ TTR च ARATE चामुण्डा गणएष्युता । निष्छते त्तरे भागं गरेशायतनं विदुः ॥ वरुणम्योन्तरे भागे मरतां स्यानसु शते | गमः VTA वायरनिलो AKAGI ॥ प्राणः प्राणग्रजोवौ ख मर्तोऽष्टौ प्रकौर्भिताः । धरस्योत्तरभागे! ठु दुर्गामावारयेद्ुधः ॥ एतासां देवतानां च खनाखा पूजनं विदुः । भूषाऽवसान Warr wat चार्ययादिक) क्रमात्‌ ॥ श्र्धादि पञ्चारङ्घनां श्पान्तभुपकन्छयेन्‌ । गन्धादिकां निषेद्यान्तां परिचय्यां प्रक्पयेत्‌ ॥ चतुिंव्‌ तथा रोम: वर्तयो Heures । [क we i ee eee स क) * स्थाग॒भगच- एति का०। † तथेन््ागौ+- दति ate He { भम्मस्योत्तरभागे,- दति are | § इत्यमेव प्राठः स्त्र । मम तु, दत्वा चाष्यादिक्ग,--दति पाठः प्रविभाति | , श१४ भराग्ररमाधवः। राज्येन इत्रिषा चेव मिद्ध मसाधनेः ॥ सा विन्या प्रणवेनाथ खाहान्तेनेव होमयेत्‌”-दरति ॥ प्रण्वारिकां Wasaga Ga: खादाकारान्तं THATS समिदाज्यचरन्‌ भव्येकमष्टोत्तरश्तं जयात्‌ | “Sama यत्त स्यात्‌ Wasnt खतम्‌ः- दति | एतत्‌ खवेसुपवासा दिपू्ैकं कतेग्यम्‌ | तदाद नारदः, “SRA AA: लाला च्दरवासा स मानवः | पूर्वाह्न wafearat प्रद्‌ानमसुको तितम्‌" इति ॥ यान्ञवरक्योऽपि,- ‘yaaa सूद यउपोषितम्‌ | कारयेत्‌ स्व॑दिव्यानि देवद्रह्मणएमन्निधौ "दरति ॥ पितामदोऽपिः- "“चिराचोपषितायेव एकराचोधिताय च | नित्यं देयानि दिव्यानि wea साद्रेवाससे"--दति ॥ श्रयञ्चोपवाभचिकस्पो वलवद बलवदविषयतया zea: | दो मानन्तर्‌ं पितामहः,-- “यञ्चाथम्‌भियुक्रः+ म्यात्‌ लिखितं तन्तु waa | मन्तेणानेन सदतं ara शिरोगतम्‌"- इति ॥ Rag, — ~~ = ~~ ee ae ee an = OE OES AP Sree marr न क न Pm पि 2 81 9 क ote ५ द्रव्यमेव प्राठः सर्व॑ | यदधंमभियुक्त५--दति तु पाठः समीचीनः परतिभाति । QIWTLA Ww | १९५ श्रादित्यचन्द्रातनिलोऽनलश शौभूमिरापोहदयं way । रख रातय उभे रे wag धर्मश्च जानाति नरस्य दत्तम्‌" ॥ sag विधिः स्वेदिव्यशद्ारणः। “दमं मन्तमिधिं हस aifeay योजयेन्‌" -दति पितामहस्मरणात्‌ । प्रयोगावसाने रलिष्णं टात्‌ । तथा च भणएव,- “afaqquiaaraaia द चिणाभिभ तोषयत्‌- दति | दति द्ियमाठ्का | अथ uzfafy: | aa पितामहः, - “reat निश्चलः ara: पवौ दग घटः aT | SRA मभायां वा want चतुष्पथे" sf मारदोऽपि,- ““सभाराजग्रदार खरायतमचलरे "इति । पितामदः,-- <वि्ालायुद्दितां Wal घटग्रालयान्त्‌ कारयत्‌ । यत्रस्धो नो पशन्येत श्यभिथण्डामत्रायमेः ॥ कवाटवौजसंयुक्षां परिचारकरकिताम्‌ | पानोयादिसमायुक्रामभन्यां कारयवृपः'- एति ॥ Re पराशर साध्ववः। धटनिर्माणप्रकारमार पितामहः, “ata तुला . कायां पादौ कार्य्यौ तथा विधौ । शरन्तरन्तु Tae म चेदध्यद्धमेवच ॥ fem तु यार्जिकं cd Sarna | प्रणम्य लोकपालेग्यब्ला areal ममो षिभिः"--दति॥ नारदः “खादिरो कारयेत्‌ aa नित्रेणं शक्तवजिताम्‌ | भिंशपान्तदभावे तु सालं वा कोटरेविंना ॥ अष्लनस्तिलकोऽोकः wate रक्रचन्दनः । wafaurfa काष्टानि were परिकल्पयेत्‌ ॥ काश्व धटतुला कार्य्या खादिरौ तिन्दुकी तथा | चतुरसम्तिभिः खानेधटः ककटकादिभिःः--दति ॥ faarae:,— “Haars च देयानि निषु खानेषु aaa | weed निखेयन्तु पाटयोरुभयोर पि--दति ॥ वासः, “wage निखेयन्तु प्रोक्तं quate: | ` षडहस्तनतु तयोः प्रोक्तं प्रमाणं परिमाणतः" द्रति ॥ पितामहोऽपि, | “ate तु तथोः ara पाश्ंयोरभयोरपि | warqeat स्यातां faa द्‌ भिर ङ्गलैः ॥ NIM तु कन्तेयौ तोरणान्याभधोशुखौ | | अवहारकाकम्‌ | १९७. सि wreagt waaay fiat इति ॥ नारदः, - | “firmed ममाभाशच पा्भयोरसयोरषि। एकच ford पुरुषमन्यण ag Sepa 1 धारयेदुन्तरे ay पुरषं ahaa feng | पौटकं पुरतस्तस्ितरिष्टका" vielen eta ॥ पितामहः, “एकस्मिन्‌ रोपयन्मत्यमन्यस्तिन्‌ afaat इएभाम्‌ ॥ दृषटकामस्मपाषाणकपालास्थिकिव्रिभिते"--दति ॥ aa व्वत्तितष्टकादावपांशनां विकन्पः। ममतानिरोकणायं रान्ना तदिदो भियोक्तव्याः । तयाच पितामहः. “qagar नियोक्रवयास्तसामानविश्ारदाः | वणिजो Suara कास्यकःरा स्येव ॥ काय्यं परौ चके नित्यमवम्तवममोधटः | उदकञ्च प्रदम धडस्योपरि पण्डितः ॥ यस्िन्न waa ate म विजयः ममोधटः | तोलयिला at परै पश्चात्तमदतारयत्‌ ॥ wer कारयेत्‌ fare qaiarannt tara । तत श्रावादयेत्‌ Bara fanaa च wrafaq ॥ वायन gas भन्धमाम््ानुनपनेः"-इति । gy विशेषमाह नारदः, ~ ज ete ATR 0० nena, व ~ पक र eee धल ~ = * पिटकं पुस्येत्तस्मितिरटका,-- ति Ie | शय पलशरमाधवः। "पकमश aay दध्यपूपारतादिभिः। श्रचयेत्त्‌ ve पूवे ततः frets पूजयेत्‌'--दति ॥ दनद्रारौनिल्यथेः । ततः प्राञ्धिवाकस्तुलामामन्तयेत्‌ । तदा पितामहः, “"धटमा मन््येचैवं विधिनाऽनेन शास्त्रवित्‌ | ल्व घट, ब्रह्मणा GE: Was दुरात्मनाम्‌ ॥ धकारात्‌ wafers टकारात्‌ टिल नरम्‌ | wat भावयसे यस्मात्‌ धटस्तेनाभिधोयते+"--दति ॥ प्रास्लपित्‌ प्राद्धिवाकः | “aaa धट, ane न विदु्यानि मानवाः | व्यवद्ारेऽभिग्रस्तोऽयं मानुषस्तोखयते लय | तदेनं संश्रयं तसात्‌ धमंतण्डेत्तुममि'"- दति ॥ ततः aural तलामामन्भ्रयेत्‌ | तदाद याज्वस्व्यः,- ““हुलाधारणविद्वद्विरभियुक्रम्हलाश्रितः । प्रतिमामसमोग्तो रेखां रतवाऽवतारितः ॥ a aa, सत्यधामासि पुरा देवविनिर्मिता | ce cee AES जाया I PCLT STL LE मक cee eee CE TS LAY EOS TR STN ON ow 11) * इत्यमेव पाठः eat! ममतु, धटन्तेनाभिधौयसे,- द्रति पादः प्रतिभाति | | † सश्रोध्य,-इति wo) शोध्य,-दरति ate | ममतु, शोध्य, इति वा, स शोध्य द्रति वा पाठः प्रतिमाति। | सत्निधो aifa,—xf& शा० ae | व्यवदार काम्‌ | १५६ तत्‌ wa वद्‌ कष्याणि, सेशया्मां विमोचय ॥ यद्यसि ATAU ARNT त्मधो नय | शद्धिशद्रमयोञ् ~ मां तुलामित्यभिमन्तयत्‌ "पति ॥ ततः प्रा ङ्धिवाकम्हलाधारकं ग्पयर्नियम्य शोष्यं एुनरारोपयेत्‌ | तथाच नारद्‌ः,- “समयं परिण्द्माय पुमर!रो पयेत्‌ ATH । fafea afecfer भिरस्यारोपय पचकरम्‌-दति। समयाः शपथाः । ते च विष्णना दिताः,-- “्दप्रानां हता लोकाः" मे लोकाः कृटमाकिणाम्‌ । ANTS ते लोकाम्रलां धरयतो शषाः --दृति ॥ युनरारोपणएनन्तरं नारद "त्वं afte सरवेण्रतानां पापानि सुरुनानि च। तमेव देव, जानषे म विदर्यानि मानवाः ॥ व्यवद्ाराभिग्रस्लोऽयं नानृतं तोन्यते लया । तदेवं sued Es धर्मनस्तातुमदेमि ॥ देवासुर मनुव्याणां मत्ये त्मतिरि यते! । सत्यषन्धोऽसि भगवन्‌ प्भाग्ररुभविभावतः। ॥ [ क म सन ^ 4 जन oS » द्रत्यभेव पाठः स्वत | मम तुः त्रकताप्राय AURA, — Ela पाटः परतिभाति | t इत्येव wis: Gat । ममतु, anfafraa,—efa ara: प्रति भाति | [ इत्थमेव पादः aad | ममतु; विभावितः,--दति पाठः प्रविननावि। 17 १९१०. पश्रमाधवः) श्रादित्यचनद्रावगिलोऽमणलख ghifacitecad way | sey राचिश्च उभे च सन्ध्ये way जानाति नरस्य इत्तम्‌--दति। तद्नन्तर पितामहः, “ज्यो ति्िद्राद्यएरेष्ठः Haars | fag: पश्च fase: परौचा कालकोविदेः ॥ साच्चिए ब्राद्मणएष्ठाः यथादृष्टायेवादिनः | ज्ञानिनः गटचयोऽलबाः नियोक्तव्या you तु ॥ तेषां वचनतो गम्यः एद युक्रिविनिणयः*”-दइति ॥ श्रारोपितश्च विनाड़ौपश्चकं यावन्तावन्तथेवां खापयेत्‌ । en वचरोचारणएकालः प्राणः, wearer विनाडिका क्रञ्च, “द्शगवे्रः प्राणः षटुप्राणणः सयाद्धिनाडिका?-दति । प्रध्यषटद्भिनिणेयकारणएमाह मारदः,- “तुलितो afe ada विष्ररद्धः ara sue: | ममोवा रौयमानो aa fang? भवेन्नरः-दति॥ व्यासः, - “श्रधोगते न वे शदोच्डुदयोदुष्वगतसथा | क व 7 1 ON ES 1, ए OS EY OO 1 111 11 1 । * इत्थमेव पाठः aaa! मम तु, शधाश्डधिविनिगंयःः--श्ति प्राठः प्रतिभाति : rN 1 यावयेव एति कार | STE । , unt समोऽपि न fag: स्यादेषा sefgeereat ॥ भिरण्डेदेऽचभङ्गे च भ्य्ारोपयेश्नरम्‌ | एवं निःसंश्यन्नानान्ततो भवति निणयः'" ॥ Nee संश्रयो नारदेन प्रपश्ितःः- 'तुन्लाभिरोभ्यामुद्धान्त विषमं न्यस्तसचणम्‌ ॥ यदा aT BAUS वा चनेत्पूत॑मघोऽपिवा । निसुक्तः wear asa तदा मेकतरं वदेत्‌" षति ॥ maa: | यद्‌] तुषनापभागौ तिक्‌ चलितौ, यटा ता BAA AT ari न्य्तमुदकतादि चलिते, यदा च वायुमा प्रेरिता तुला क्मधष कम्पते, यडा VARIAN “ATA प्रमुच्यते, तदा जयं पराजयं वाम्‌ विनिशनु गर्यादिति। राज्ञः कन्तव्यमार्‌ पितामहः, - "द्धिः fiaat राला Ne es प्रपजयत्‌ | छलिक्पुगेदिताचायखान्‌ द छिणाभि्च तोषयन्‌ ॥ एवं कारयिता राजा भुक्वा भीमान्‌ मनोरमान्‌ | ममो यौ न्तिमाप्रोति ayaa कन्पते ॥ ईति भट्विधिः | ्धाश्मिविधिः। “शद्वेविपिं प्रवच्यामि यथावश्छास्तचोदिनम्‌ | कारयेन्मण्डलान्यष्टौ पुरम्ताम्नवमं तया ॥ aiid मण्डलं we feats वासं तथा । १९२ प्राशरमाध्ः। ama वायुदैवल्यं We यमदेवतम्‌ ॥ पञ्चमं विशदे व्यं षष्ठं कौ बेरभुच्यते" | ana सोमदेवत्यमष्टमं सवैदवतम्‌ ॥ पुरम्तान्नवमं यत्तु तश्मदैवतं विदुः । गोमयेन तानि स्यरद्धिः पय्युचितानि च ॥ दाजिंशद ङ्ुलान्यामेण्डलान्मण्डला न्तर म्‌) | श्रष्टभिमेष्डलेरे बमङ्गुलामां शतद्यम्‌ ॥ षटपश्चाशत्छेमधिकं way परिकल्पना । मण्डले मण्डले देयाः gut: शा्लप्रचोदिताः"- दति | तच, नवमं मण्डलं परिमिताङ्गुलप्रमाणएकः, afeera श्रष्टभि- मैण्डलेरष्टभिशचान्तराकनः प्रत्यकं षोडगराङ्कुलप्रमाणकैर ङ्ुलानां षट्‌- पश्चाग्द्धिकश्रतदयं aad । AMAT” खत्यन्तरेऽभि- हिनम्‌,- “ति्यग्धवोद्राण्यणे Bel वा तौहयस्तयः | प्रमाणमङ्गुलस्योक्क वितस्तां शा रुला द्रति । श्रच च, गम्यानि oda मण्डलानि) “स तमादाय समैव मण्ड- लानि एनेव्रैजेत्‌"- ति यान्नवखुक्यसमरणत्‌ | नारदोऽपि.- “हस्ताभ्यां तं were प्राद्धिवाकसभिरौतः | ° oe ०७ ० न= + ~ ~न 9 नन = ~न = ० ~~ ^ ny ee ~ = "~ न = = Ae Sy (९) सच, मणडलप्ररिमाय षोडश्ाङ्लं मण्डलयोरन्तरपरिमाणमपि ता- वदेव | तथाच प्रथममखलमवधौकत् दितीयमणडलपर॑नतं दानि प्रदङकृलपरिमाणं सम्पद्यते इति बोध्यम्‌ | VTTVICA BA | ६१९ खिवेकसिन्‌ यतोऽन्यानि' त्रजेतप्न लजिद्यगः ॥ श्रसभान्तः पनेगेच्छेदक्रड्‌ः सोऽषटमं प्रति । न पातयेन्तामप्रा्य या शुभिः परिकष्पिता॥ न मण्डलमतिक्रामेख्न चा्वरगपयेत्पदम्‌ | awed गला ततोऽग्निं विषजेन्नरः'"- ईति । गनि विसगेथ नवमे मण्डले काय्य: । तदाह पितामहः Sapa मण्डलं गला नवमे निदिपे्षतः।”-इति । रय पिण्डपरिमाण्माह पितामहः, “अमं तं aagar पश्चाग्रष्यलिकं समम्‌ | ' पिष्डन्तु तापयदप्माव्टाङ्गुस्तमयोमयम्‌ "- दति । प्रथममण्डलाद्किणतौ fa प्रतिष्टाणाप्रये पदमानायेति sen ्ोत्तरग्रतवारं प्राङ्धिाको swear) “at एतमषटोत्तरं ग्रतम्‌"- दति सरणात्‌ | तसिननप्रावयःपिष्डं लोकक्रारेण तापयेन्‌ ¦ तदा नारदः, Carag लोहकारो यः कुग्रसश्चागिकमि | ुषटप्रयोगशचान्यच्र तेनायोऽप्नौ तु दापयेन्‌ ॥ श्रद्निवणेमयःपिष्ड मस्फुलिश्गः सुरज्जितम्‌ । पञ्चा रत्य लिक यः कारयिला एवचिदिैः ॥ * ska पाठः aan) भम तु. ततो्यानिः-दति पाठः प्रति. भाति | 1 fafartge,—xl काण | १३४ | ULITNCATHA: | हतयतापे arent बरूवातत्थपुरक्ललम्‌"-दति । लो दष्द्यर्थमु षितजले* fafea पुमः सन्ताप्योदके निचिष्य qa: सन्तापनं उतोयस्तापः | तसन्‌ तापे वन्तेमाने धमावाहनादि मम्‌- मण्डपं garfafa विधाय पिष्डख्मभिभेभि्मन्तेरभिमन््येत्‌ । aay नारदेन दगिताः,- “aa, वेदाश्चत्वारः TY यज्ञेषु हयसे | लं मुखं सवेदेवानां त्वं सुखं agaifeara ॥ satan fe भरतानां यथा af mira | पापं पुनासि परै aay तस्मात्पावक घच्यमे ॥ पापेषु द्शेयात्मानमचिश्नान्‌ भव पावक | श्रयवा हद्धभावेषु Wat भव Barwa ॥ aaa, सव्वे्तानामन्तश्ुरमि ahaa | aaa देव, जानोषे न faquifa मानुषाः ॥ व्वदाराभिगश्रस्तोऽयं मानुषः प्रद्धिभिच्डति। तदेनं संश्यारक्माद्धमेतस्तरात्महेभि?-दति | तचादावेव त्नौ दिविमदंनेनं शोध्यस्य करौ लभेत्‌) तदश विष्णुः । “करौ विष्डदितौ त्रोरिभिस्तस्यादावेव लक्षयेत्‌" दति । लंचयेदित्यस्याथौ नारदेन वितः, ““लचयेत्तस्य चिक्कानि दस्यो रभयोर | manta गढानि सत्रणान्यत्रणानि 4 iI == = ^ न = ~ ~ ~~ ot nee ee oon ee [ शि 1 ~~~ Oe + इत्यमेव पाटः aaa) मभ तु, लोहमु योचितशलेः-- दति ae प्रतिभाति | व्यवहारकाण्डम्‌ | ११५ weedy सवेषु guigauerfa तु" | afanzaa: waaafemari aw whew करदयखितस्य श्रत्रणादिग्ानेषु meMafetaa रंसपदानि guatfeae: | ततः कर्तदमाडह BWNATK:,— “करौ faafeadiel wafaar ततो न्यसेन्‌ । भप्ताश्त्थश्य पएांणि तावत्‌ इूबेए बेष्टयत्‌'--इति | quifa च ममानि,- “"पतेरश्चलिमापृय wae: wife मभेःः- इति सरणात्‌ | वेष्टनदजाणि च सितानि ariel | “aaa मतौरेम्तौ सप्तभिः सूजतन्तभिः"- इति नारदट्कर्णत्‌ । तथा, aN ग्रमोपचाणि मतैव दृं वांपच्राणि ania श्दयत्यपचाणामुप्ररि faq) AEM we न्तरे, “eq पिष्पनपचाणि श्रचतान्‌ qaatzfu | हस्तयो मिचिपेत्तज garded तया”--इति | यत्त॒ Wants “mera पाणिभ्यामकंपतेम्हु मप्रभिः । safe हरन्‌ एदम्लदग्धः स्परमे पदे” -द्ति। तदश्वत्यपवालाभविषयम्‌ | ग्रतौऽ्त्थपताणं मुष्यलमाह पितामद्ः,-- * डः Sa) ममतु, weary प्रमादिष्या+ष्‌,- * इत्यमेव पाठः सव्ये दति ata: प्रतिमाति। १३१ पराश्ररमाधवः। “पिष्यलाष्लायते व्किः fret sate शतः | श्रतस्तव्य तु पत्राणि शस्तयोनिचिपेत्‌ बुधः”-इति | तदनश्तर कत्तयमाह सएव, “ततस्तं समुपादाय राजा धमेपरायणः | अन्दंगेन नियुक्रोऽथ हसतयोस्तत्र निकचिपेत्‌ ॥ चरमाणो न गच्छेत Wet Wea: शनेः | म मण्डलमतिक्रासेननान्तरा स्थापयेत्‌ पदम्‌ ॥ WEA मण्डलं गत्वा AIT स्थापयेत्‌ बुधः | ware: पातयेदयस्त avy न विभाव्यते ॥ पुनरारोपयघ्ोदं स्थितिरेषा इृढौरुता?--ई ति | यदा STALE: तदा श्राह नारदः+ यदा तु न विभायेते दग्धाविति करौ तदा। Aaa सप्तवारांस्तु मदयत्‌ | मर्दितो चदि नो दग्धः सन्धेरेव विनिश्धितः। गोप्यः NEY Ae दग्धोदण्डयो यथाक्रमम्‌ ॥ gazes fay ततोऽन्यचा पि wear । मण्डलं THIET यच स्यादाऽग्गिसम्भवम्‌ ॥ यो fang: स विज्ञेयः सत्यधमेव्यवखितः"-ए्ति। यत्तु WAY प्रथ्वालेन ₹रस्ताभ्यामन्यत्न Ta, तथाणपद्ो- न भवति | तदाह कात्यायनः CLAP CARED Cree CPI nn eC S TS TY AS Oa ae SER Car WY! AIT SRD * 7e,—xfa ate we | ममतुःयदि तुदति पाठः प्रतिभाति व्यद इ रेक्गाररम्‌ | ane “yeaqratar fare स्यामादन्यत्र द्यते । श्रदग्धन्तं freee: तस्य wat म योजयेत्‌"-दति । . श्षद्धिकालावधिमाह पितामहः, “ततस्तद्धम्तयोः प्राेदग्टहौ वाऽनयेयेवेयंवान्‌ । fafanaa तेषां a wenat मदने रते ॥ निर्विकारे दिनस्यान्ते प्रधि तम्य निमिरदिपेत्‌"-दति। इत्य्मिविधिः। अथ जसपिधिः। aa पितामहः, 'तोयम्यातः प्रक््धामि विधि घर्म सनातनम्‌ | मण्डनं dae tapal पृनयत्‌ तदिदक्षणः ॥ परान्‌ BY AT भक्ता वरणवेश्च WAR | ug पष्यधुपंश्च ततः कसं ममाचरत्‌"--ष्ति। धन्‌पः प्रमाणमाद् नारदः gg धनु; RATA मध्यमं TEMA स्तम्‌ | मन्दं पञ्चशतं Head AW uafafe: ॥ nada तु wid WaT ब्ररचयम्‌ | eararg श्रते ag च्छ रला त्रिचच्चणः ॥ न्यनाधिके तू दौषः स्थात्‌ 1 पत्‌ माटकरम्तया- दनि ॥ mary frre faafaal ) TTI भरनायसायाः RAAT. नपरैरनायघयेख Weta [ATs | 13 १९८ ` पराशरमाधवः। धनुषसताञ्रोसचैव सुदृढानि विमिचिपित्‌”ईति सरणात्‌ | चेत्ता चाज चजियः, तहृत्तित्राह्मणे वा । ATH ` पितामहः “षा श चचिथः काय्यैसतहृन्निब्रह्मणिऽपित्रा । अक्ररददयः शान्तः सोपवासः चिपेत्‌ शरान्‌ ॥ प्ररस्य पतमं are खपणन्तु विजयेत्‌ | सपन सर्पच्छरो AAMETETAT यतः ॥ eng प्रचिपेदिदान्‌ मारते वाति वा गणम्‌ | विषमे वा AAT च टचस्थाणसमाङुलं ॥ तरगल्मलतावक्षिपङ्कपाषा एमयु A” -दरति॥ तोरणं च मन्ननसमो पस्थाने सभे प्रोध्यकणप्रमाणाच्छ्रित कायम्‌ | तदाद नारदः "गला तु सजलं ara’ तटे तोरणमुद्छरितम्‌ | gata कणेमाचन्तु मिभागसमे wet’ — = * नुपडित,ः-- दति काण | ११. OUTLAW | धर्ममावाहनपूरवन्त्‌ प्रतिश्चापजकं fered | यदि wofaqatsy ware मे at ti श्रमियुकषस्ततेकं प्रोता विलम्बितम्‌” । धर्म VA WE Bess तु स Vas एवं समासतः Wim धम्माधमेपरौकरुएम्‌ "दति ॥ सौसकायसमिति सौसकमिश्रायसम्‌ । दूति watuafeufaty: | दति faarate: | [म चथ RAMA निणेयपादः कथ्यते | श्रत इदहसतिः+ः- “धर्मर व्यवहारेण चरितेण नृपाज्ञया | चतुःप्रकारोऽभिदितः सन्दिग्धायेविनिणंयः ॥ एकैको दिविधः प्रोक्तः क्रियाभेदाकनो षिभिः | श्रपराधानुरूपन्त्‌ दण्डन्तु परि कश्ययत्‌ ॥ प्रतिवादौ प्रपद्येत यत्र wae निणेयः | दियेवि्ोधितस्तन्यम्िनयस्यमुराचतः ॥ प्रमाणनिशितो यस्तु Va स उष्यते। वाक्‌कलानुन्तरलेन दितौयः परिक भ्तितः ॥ श्रनुमानेन faata चरिजमिति कथ्यते | देशख्ित्था दतो यस्ठ॒ तत्वविद्धिरदाशतः ॥ ad १. Ny i 2 A TTR Re Ne i oP न ene AR भी ret nei tee Ay tte tee (9 » प्रग्टकौताविलम्बितः- दति Ate | वयवहारकारढम्‌ | १४६ प्रमाणसमतायाम्नु राजाश्चा नियः सतः | भ्रास्लमभ्याविरोघेन WU: परिक न्तिः" दति ti मग्रहकारोऽपि,- उक्रप्रकाररूपेण सरमतस्थापिता क्रिया | राज्ञा परौच्या सभ्ये eet जयपराजयौ ॥ Weis चेव क्रियया सम्रमाघयेत्‌ | भाषाऽचरमम मध्यं स ज्यो परिकोरिनः॥ श्रसाधयन्‌ साधयन्‌ वा विपरोताथमात्मनः। दृष्टकारणदोषौ वा यः पुनः ख पराजितः" एति॥ व्याषोऽपि.- “तन्तु प्रदण्डयद्राजा जेतुः' पूजां प्रवत्तयत्‌ | श्रजिताख्चाप दण्डाः स्यद्‌ शास्तविरो धिनः" दति ॥ पूनाकरणानन्तर्‌ः कात्यायनः, - ^सिद्धेना्न मसेज्यो वादौ मत्कारपूदकम्‌ | लेख्यं खदस्तमयुक्रं aa cara पायिवः'"--इति ॥ नारदोऽपि- नमसे यत्‌ स्थापितं 28 चनं वा यदि वा स्थिरम्‌ | पञ्चात्‌ तक्ोदयं दाप्यं जयिने पचचमयुतम्‌*--दति ॥ पचर जयपचम्‌ | तदाद Tefal, - “पूतीन्तर क्रियायक्त निण्यान्तं यद्‌ नृपः | प्रदद्या्नयिने लेष्यं जयपत्ं तदुश्यते--इति ॥ ~ = छम = => ०49 = ~ = = ० = (ज कायक ~ क = one [म 3 ए, 1 == => = ~~ क * fad,—zxfa शा० सर | १५२ पसाश्ररमाधषः। धमदापनप्रकारे पिगेषमाह" काल्यायनः,- “cat ठु खामिने विप्रं सान्येनेव प्रदापयेत्‌ | mata way दुष्टान्‌ सम्पौद्य दापयेत्‌ ॥ रिक्थिनः सुदं वाऽपि कलेनेव प्रदापयेत्‌"--इति ॥ ने केवलं खामिने धनदापनमाच, खयमपि दण्डं ग्ोयादि- द्याह नारदः+ | “णिकः सधमोयस्त॒ दौराव्यान्न प्रयच्छति | रान्ना दापयितथः स्यात्‌ weet तन्तुविंशकम्‌"--दति॥ एतद्‌ पि सग्मपन्नछणिक विषयम्‌ | विप्रतिपन्नष्णिक विषये विष्ण- राद) “उन्तमणेशद्राजानमिवात्‌ तदिभावितोऽधमतीद शमभागममं दण्डं zai प्राप्राथखोत्तमणं विंश्रतितमम्‌"-दति । उन्तमणा- धनदानं तिले zeal । यदा त राज्ञः मरियोऽधमरीऽपलापवुध्या ws प्रवे निवेदयति, तज दण्डविगेषमार भनुः “यः शोधयन्‌ खच्छन्देम वेदयेद्धनिकं नृपे 1. ख राज्ञणेदतुर्भांग erage च तद्भमम्‌"- इति ॥ ay तेनेवोक्म्‌,- “यो याव्निकृमीतायं मिथ्या वा द्यमिवादयेन्‌ | तौ afte हधर्मन्नौ arent afer दमम्‌"-द्रति ॥ _— मी [2 0 ee भ tn काक 099 = भ a RA eS SN A Se eR कक यद eet mee oe +. * दतमेव पाठः Gat | मम तु, धमदापने प्रकारविग्नेषमाद, इति पाठः प्रतिभाति { इत्यमेव प्राठः सर्व्व । मम तु, BAM धनदानं भ्तितवेन न que, —ata प्राठः प्रतिभाति | शवे हारक्रारठम्‌ | १११ तद्घताधमणौन्तमणेविषयम्‌ । यत्तु याश्ञवल्कयेगोक्षम्‌,-- “farsa भावितो दधात्‌ धनं राज्ञे च ततसमम्‌'-ट्ति॥ तद्िगृणएदण्डपर्याप्रधनाभाव्विषयम्‌! मिध्याऽभियो faery श्रष्पा- पय्याप्रधनस्यापि न aga दण्डः 1 यदा सएव. “सिथ्याभियोगाद्विगुणमभियोगा दून वहेत्‌" --टूति ॥ धनाभावेऽपिःश्रानुष्छ कमणा गच्छेत्‌ "- TAT TVR | ।प्र- थमतोनिङ्कवं छवा पञ्ात्छयं सम्मरतिपद्यते, TAS दण्डमाह वयासः, “fas तु यदा वादो ea तम्र तिपद्यते। Bar मा प्रतिपत्तिस्तु तम्प्राद्धविनयः सरतः” दटति ॥ यत्पुनमेननौक्तम्‌ — Ge TR TAA कारणेन तरिभावितम्‌ | दापयद्भमिकस्यायः दण्डलेगं। च श्रितः "--एति । तत्सहृत्तब्ाद्धणाधमणेविषयम्‌। चिक्धव विपये त्रि्रषमाह याज्ञवस्क्यः+ "मनिङ्भते fafad नेकसेकाट गविभारितिः | टाः सवं aaa म याद्यस्दनित्र(दितिः-टति। Senay प्रतिन्नाषान शि ग्वितमिभियुक्तं wart याद वमेव मिधेतदिति. प्रतिजानते, तद्‌ा$थिना vaenatacvarts विषयं प्रमाणादिभिः प्रत्ययो भाक्तः ङ्गौकारितः, तदा स मर्व gate इत्ताधमग(ततमयं विधव, -- ala केर | भा कु तन्‌ HE UAT "सतम (विषयम्‌,-- द्रति पाठ प्रतिभाति | † खच, यस्तु द्रति भविनुमुषितम्‌ | { दखदेयः- दति a? | ९ ्ाक्रमणादिभिः+-- द्रति are | 20 १५४ UTC: | faaafat ature दाष्ः। सवं भाषाकाले श्र्थिनाऽमिवेदितश्चन्‌, पञ्चात्‌ भितरेद्यमानो न यराद्यो ardent aq: | नारदोऽपि, “्रनेकार्याभियुकरेन सर्वायस्यापलापिना | विभावितेकदै गरन देयं यद भियृच्यसे"-द्रति । मनु प्राचोनवचनामां प्रागक्रा्याभिधाने धमनिपयाथले ज स्थात्‌, कलानुसारेण तेषां वयवदारनिरंयाभिधायकवात्‌ । मन्ध, तथापि न ate प्रागक्तपिषये व्यवहारनिण्यस्च धमेनिणेयवाघ- कलात्‌। | waa ररसमतिःः- “केवलं प्रास््रमाभित्य क्रियते aa favre: | gave: a विजेयो धमस्तेनापि दोचते-दति। यन्न्‌ काल्पायनवचनम्‌+- “श्रनेकार्याभियोगे तु यातत्तत्ाधवद्धनम्‌ । साकिभिन्तावरिगासौ लभते साधितं घनम्‌ दति) तत्युत्रादिदयपिचा दिछएविषयम्‌ ¦ तच fe कटनर्यानभियुकः पुषादिनं जायते षति वदन्‌ निक्वत्रारौ न भवतोति एकदश विभावितन्यायस्य तन्नाप्रहत्तिः। fea जयपराजय(तिधार्‌णद्ष्ट-ः fag: काव्यायनेन दशितः, “Tate दापयेत्‌ We, न wet दण्डभाग्रवेत्‌ | fag तोये BAT च तण्डलं तप्तमाषके-इति। ए त eed = = [क 2 7 त 7 य RAI पाठः Sas | ममनु, पव्व,-- द्रति पाठः प्रतिमाति। | धम्भनिगवाधायकत्वात्‌,+--इति we | | तद ए्,-- दति aie) ममतु, दति उदन्‌ तरशरनिटववादी,--द्र्यारि पाठः प्रतिभाति | acu खभियोगविषया्धांशएश्य+-- त्यथः | पचध wi चतुम्ौन्‌ TRE a नै WAT कन्पयेत्‌ a Or eer सपण ura | पमन Serre: — Wag (ZZ! यद्रो नभ दापयेत्‌ i प्च eUna भमिन ase arcets fui, “fang चोरपणत; Kala च स प्रण WHA cial [awa च नि जपस्य दण्ड्य द्‌निष्यसादह ava “TCT AE Sz Fier 3 fafa: waa: | mitarsarfens ase: wat hea कािन्दिथायदण्डः Brag: AH | पारमे दग्रा At. द्वण्द्वं कधा! --दृति)। दश्रसेति न सद्यानियमापम्‌ } apie वन्धनाद्तरण- कमेकरणबन्धमागामपरय7नना ररर पस्य WIT (IATA | i द्शविधलं प्रादरदष्डस्य emufa सनः. ‘aq स्थानानि ee Ha: ्ायम्भुवोऽ्रवीत्‌ | # दरति aaata.—--3fa afaqy aad | [ इत्यमेव पाठः सव्वत्र | A नुः स१८६६।द,--- धि पाठः प्रपिमाति। t शातातपाऽपिः- दति vie | & swag प्राठः aay | BH त. Tae qm,—xfa पादः प्रतिभपत | || इत्यमेव पाठः Hee HA तु, GARE WS प्रतिभाति) १५१ प्रसप्ररमधेवः। = बण्ुर्ुंदरं जिक्का eat पादौ च पृञ्चमम्‌ ॥ चदनांसा च कणौ च नरद दस्तथैवच "`इति! fa fay इ्युपल्णायेभ्‌, गिग भोरुष्डन Tweet सिर्वामन पुरान्‌ । ललाटे चामिग्रस्ताद्कः प्रयाणं गदसन च्‌ - दुनि {वि्यन्तर्‌सतल्रात | BTA दण्डस्य चातु विष्माङ, - “वाण्दृण्डस्सम निगद्य घनदष्डो सचस्तया । Rt ae भमत दा अपर (धवग्ादितः' दति । वाग्टृष्डः worm aaaraa: | धिस्दष्टे धिगिति भसनम | waa योज HANTS मनुः.- “वाग्दण्ड war दुष्येत्‌ THINS तदनन्तरम्‌ | wary पनदण्डन्तं THETA परम्‌" दति) व्य्तानां योजने यवम्यामाद Tamla: — samicariy areredt व्िरद्षदः प्ूनेमाद्धमे | मध्यमे सनदष्डम्ु र यद्रे च बन्धनम्‌ | निर्वासनं बधो वाऽपि areauraheataet | वसता: समस्ता एकस्मान्‌ भरैः TTP म | पुरषतारतम्येन SATGTATS मषक = मिवार्दिधु sasha वाग्दण्ड धिक्‌ तपस्खिनाम्‌ | fagfzat भरांश्चापि न्ाया्दथम्‌ asa ॥ nea पुरोष्ितान्‌ प्रजाम्‌ वाग्दष्डनेव दण्डयेत्‌ | ४ aqmi—rfa aie | Had, Eth, दति पाठः प्रतिभाति; यव हार कागम्‌ { १५७ विवादिनों नरांचान्यान्‌ fumanat च दण्डयेत्‌'"-- of | यत्तु Mapa AR ` श्रदण्ड्‌) मातापितरौ सवतकपुरोहितौ परि- AAA ज्धकर्मुतफरोलगाच। ARMA दृति यदपि कात्यायनेन. - “arene faquiaaiagiat alae | GAMA ठ्‌ रेष्डोनेय तिधोयते".-दति। aq ग {पसच । "दद्मः प(महाप्रा tesa णटुयावरिः- कायथा्पदवगयुपारदायशच दति) तदनन्‌, “awa ae. श्रुतो दति) उद्वद्ग विद्र क्छ तिदामपुराणकुग्लस्तद पेसम्त- aFaatmaa @aaert: दलतः तषु कर्मस्तभिरतः मम- mareain falas "न प्रलिणिनमद्स्रन{पयम्‌ | य्त्‌ [र पकरदोनी SUSU HDR! THY AT, - ‘ (२) Ga WeWAinnp नन HELE UI, Daina (पूगं ८८११९ Bid 43 a भ Hemi ey ya Pp । Al tetera पपिमम- BUG | “aaa १777 गत्‌ स्मन Ha Tura, । 11110 Moth) Fda, सवान, सप्ता)" गा] सयाम, WET यानमनु, Sabo degen ay तायत, Wea STT 3M) Ranier oe wedi GY धर" THe, रन्ध ` ममेय करापूलगपरा स tous aecaregfa fay yey: सवासो aH हनियदमन्लाः, wlastat sacra sam: घोडपररे वालयमोजनरात माप्रा पलि AH सासवा इयत aaa nd ABATE | WACK द्गुशाः, Thy Aaya चान्त SHBU UPITRATT AoC Ra | यस्यतं त MT Ceca संस्कारा. RP AC ISL CM MCh CMR CRE a गच्छति --दरनि। {५१ AY CAPITA | समयाचादसाः FAVA AT (HATNW UAT AT EC | १५८ पराश्ररमाधषः। “faarscara: Qwarat भार्य्या we: पुरोहितः मादण्ड्यो ara wetsfe watfeafeat: खकात्‌ ॥ विक्पुरोहितामात्याः Tar: wafer: | धर््ादिष्दलिता दण्ड्या faarer राजभिः पुरात्‌”--दति। तदेतच्छारोराथेदण्डग्यतिरिक्रदण्डविषयम्‌, “are पुरो इतान्‌ पूज्यान्‌ वाग्दण्डेनेव दण्डयेत्‌"-दति SAAT VATE बधदण्डो नेव वाये, किन्तु स वरिसकाय- TAS कात्यायनः, “न जात्‌ AIBN न्यात्‌ सवेपापेव्ववस्यितम्‌ | राद्रा्वेनं तरिः कुर्य्यात्‌ समयधघनमचतम्‌'”--द ति | यस्तु afeart नाङ्गोकारोति, तस्य चल्तियादिवदेव दण्ड- TATE षएवः- “चतुर्णामपि वर्णनां प्रायशित्तमक्तुवंताम्‌ | WAL धनसंयुक्तं दण्डं धमे प्रकल्पयेत्‌” -इति | aq गौतमेन “a शारोरोत्राद्मणद्ण्डः"--दति। तदङ्गभङ्ग- रूपदष्डनिषेधायम्‌ | “न लङ्गमेदं विप्रस्य प्रवदन्ति मनो षिणः"--दति हारीतेनोक्रलात्‌ | यत्त WEA । “जयाणमपि वर्णनाम- पहारबधबन्धकिया, विवासनधिक्घरण ब्राद्यणएस्य"--वति। azfa- श्नन्राद्मणविषयम्‌ । तथाच गौतमः । “कमेवियोगविख्यापनविव(- सनाङकर णद्यटन्तौ "दति । श्रदत्तिनिधेनः । धनदःनाश्मथै WETS मनुः re ` चभविटगुद्रयोनिष्तु दण्डं दातुमधकुबन्‌ | MAG कमणा गच्छेत्‌ fot दचाच्डनेश्नेः.- दति । कमेकरणासाम्थं तु कात्यायन श्रार.- | -धनदानासदं बुध्वा VN कमं कारयेत्‌ । WIA बन्धनागारप्रेग्रो ब्राह्मणादृते" रति । मनुरपि,- “alaetanggrat दरिद्राणं च रोगिणाम्‌ | भियिलापिलरभ्नायेवि्यावृपतिमर्दनम्‌'--इति । aT area मोण्डं विदधाति मनुः. “Shug प्राणान्तिको दण्डो ब्राह्मणस्य विधौयते | दतरेषान्त्‌ वर्णानां दण्डः प्राणा निक भवेत्‌ ॥ न ब्राह्मणबरधात्‌ पापाद्‌ घमा विद्यते कचित्‌ | AHS बधं राजा मनसाऽपि न चिन्तयत्‌ ॥ BASH ब्राह्मणस्य नान्यो दष्डो विधौयते । महापातकयुक्रोऽपि म विप्रो बधमदति ॥ निर्वाषनाङ्करणे मण्डं कुरययान्नराधिपः'"--एति। aga च किगरेषो नारदेन दग्तिः,- “गुरतच्ये भगः कायैः सुरापाने सुगध्वजः। सेये च श्वपदं काय्यं ब्रहारप्शिराः पुमान्‌”--दति | wed न दतिया दिष्‌ कत्तेयम्‌ | + ~ ~ ~ ~ ~ ~ ज RL 9) कि 0 ONE ५०७ कि क कनि ~ were ee ee 9 = ~ ~ = [णी * विद्याश्च दपतिर्धनम्‌,- एति शा" सर | १९ पराशरमाधवः। “ब्राह्मणष्यापराधे तु waa विधोयते | NRT सुरापाने स्तेये ब्राद्मणदिसने ॥ दतरेषान्त व्णनामद्कनं नाज कारयेत्‌” दति | न केवलं अभ्यादौनामेव दण्डः, किन्तु जयिनोऽपोत्याह रदस्पतिःः- “Fafa asta: are WTA: शास्तपारगेः | दण्डयेष्जयिना साकं प्ूवेखभ्यांस्त दोषिणः ईति | याज्नवक्क्योऽपि,-- ^द्‌दृष्टासह GAZE यवदाराम्‌ ATW तू । मभ्याः सजयिनो दण्डा विवादाद्विगएं दमम्‌”-इति । जयलोभादिना व्यवहारस्य Bay करणे जयिसदहिताः सभ्याः mas विवादपराजयनिमिन्तादभेनात्‌" fend seg | यद्‌ पुनः ufamt दोषेए व्यवरारस्यान्ययालं, तदा साचिएएव दण्डा न waza ta) यः पुनरन्यायतो निर्णौतमपि यवहारं ata qua इति मन्यते, THATS नारदः ''तौरितं qafrey यो मन्येत विधभेवित्‌ | fond दण्डमास्याय तत्काय्थं युनरद्धरेत्‌”-ति | वसि्टोऽपि- “यो मन्येताजितोऽसखनौति न्यायेनापि पराजितेः। A A TI NE 1 शको On OE BO AE मम =-= 9-७-७9 [1 ती + इत्थमेव पाठः was | ममतु, विवाद्पराजयनिमिन्नादर्घाव्‌+-इति पाठः प्रतिभाति | स्थर डारकार्डम्‌ | १६१ यसं पापमजिला ष पातयेद्धिगुणं दमम्‌"-इति | तो रितानुशिष्टयोभंदः कात्यायनेन water: “श्रसत्सदिति a: aa: सण्येवा योऽवधार्यते | | itr सोऽनुग्रिष्टस्तु साकिवाक्यात्‌ प्रक सितः" द्ति। यत्युनमेनुनोक्तम्‌,- “afta चानुशिष्टं च यव चन यद्भबेत्‌ | छृतं तद्धमतो विद्याश्न तद्गूयोऽपि वत्तयेत्‌! "एति | तत्स रतला दि निटत्तिहेलभावतरिषयम्‌ | स्त्य दिविषये qaaa- हारः प्रवत्तनोयः | तटाद्‌ नारदः, Sata रात्रौ वदिर्ामादन्तेखरातिषु | व्यवहारः BALA पुनः कन्तयतामियात्‌”- रति | वलात्कारादिना कृतोऽपि व्यवहारो निवत्तेनोय care AAI: — “वलो पधिविनिदन्तान्‌ area निवन्तयेत्‌ | स्तौ नकमनम्तरागारवददिःशदृरतं तथा'-ईति । छ्पेग्येऽपि पुनयेवदारासिद्धिमाद सएव - "मन्तो नन्तासतवयसनिवासभोतादियोजितः। शरसंबद्ङतश्चैव यवहारो न सिध्यति" दति) sufemaa दद्धादिपरयुक्रयवदारो गद्यते | तथाच मनुः [री —— ome ee ene ora oes (= ० = ae oe mere” भजक a E — sare -~~ ~ > sear प्राठः Bas | AA तुः gafaet च a पाप--हति प्राठः प्रतिभाति। t तद्कयोनिवत्तयेत्‌;--ति aaa: पाठः BATA 21 UR पराश्ररमाधवः । ` “मक्नोकमनार्तयसनिनबाशेन मिरे वा | श्रसंबद्धशतदेव व्यवहारो न सिध्यति" दति। नारदोऽपि “^पुरराद्रविरडधशच यञ्च राश्चा विवजितः । शरसंवद्धो भवेदादो धमेविद्धिरदाइतः-द्ति | हारौतोऽपि- “org विजितो यस्त॒ खयं पौम्‌ विरोधष्टत्‌ | Ty वा समस्तस्य प्रतौ तथेवच ॥ mai वा ये पुरयाममदाजनविरोधकाः | श्रनारेयास्ह ते स्वं Bayer: प्रकौत्तिताः"-इति। सखवाक्यजितख तु म पुमरन्याय CATH नारदः ““खाचिसग्यावमन्नानां दूषणे देनं एनः । खवातेव जितानान्त्‌ मोक्तः पौम्भवो विधिः"-दति | श्रन्यानपि निवत्तेनोयव्यवहारानाह ममुः, 'योगाधमनविक्रोतं योगदागप्रतिग्रदम्‌ | यच वाऽप्येपधिं waned विनिवत्तयेत्‌”-इति । परकौयधनस्याक्रौयलद्ेलभाषे यावितकादिना afer: | श्राधमनमाधिः। योगे श्राधमनं योगाधमनम्‌। एवं क्रोतमित्यत्रापि योच्यम्‌ । यमोऽपि,- “बलाद बलाहक वलाश्चापि विलेखितम्‌ | सर्वान्‌ बणशटतानर्थान्‌ निवत्यानाह वै मनुः"-इति । कात्यायनोऽपि, ६९९ THREAT HH: ve १ Je. ae श्राषोडग्रादर्षान्‌ qhgefe ; । परतो यवदारश्चः aaa: पितराद्रते | जोवतोने are: स्याच्चरयाऽपि सपमनितः ॥ तयोरपि पिता अयान्‌ बोजप्राधान्यद्‌ गनात्‌ | aaa बोजिमो माता तदभावे ठ्‌ प्वंजः"-दति। केषुचित्‌ कायदिग्रपेषु स्त्रौणामखातन््यमित्यार हारीतः, “ara वाऽधमने का$पि unite वाऽविगेषतः। श्रादधाने वा दिसगेवान att खातग्यमरेति"-द्ति। ACS “sraneat, प्रजाः सर्वाः wane: एयिवौपतनिः | gaara wa. fre sree तु खलतन््ता-दति। sara निवन्तनं खतन्ानुमलव्यभावदिषयं बेदि- तव्यम्‌ | तथाच नारदः+ - “एतान्येव प्रमाणानि wat यथ्चनुमन्यते | मुजः पत्युरभावे वा राजा वा प्रतिपुब्रधोः॥ तज दाखहृतं कायं न्‌ हतं परिचचते। ee en Ee ee DREN Moire 81 cess ee 2 11, = ~~~ -~ = er - ----- ~ 01 © ads पाठः स्वै | मम तु, वाद न्तरेकः-- डति पाठः प्रतिभाति । १६५ पराशरमाधवः | ्रन्यच खामिसन्देशरात्‌ न दासः परजुराल्मनः 1 पुतेण वा इते कायै यक्छादच्छन्दतः पिदुः 1 तदष्यशतमेवादाषः guy तौ समौ" दति | ~ PA | “श्र“ेचन्टदा्ानां दानाधममविक्रयाः | शखतन्लहताः fatg राभयर्नालुवणििताः ॥ प्रमां सर्वेते पण्चानां क्रयविक्रये । यदि खं aaa gaat द्यलुमोदिता, ॥ केचादोनां तथैव स्र्भ्ाता Bega: चुतः | निष्ठाः शृत्यकरणे गुरुणा यदि गच्छं “दति | इरस्यतिरपि,- | qafaat निचुक्रस्त धममस्यापलापयेत्‌* | ware taartusy मिष्ष्टायेस्त॒ स खतः ॥ प्रमाणं त्तं सवै जाभालाभं HATTA | az वा विदेशे वा न खातग््यं विसंवदेत्‌"-दति। अनुमल्यभागेऽपि कटुम्बभरणाये TAA नान्यया HTT Tae मतुः+- “कुटुमर्थ्यधोनोऽपि यवकारं समाचरेत्‌ । = [क lat OO OT (ककत भ न CREE ad pore eae 9 [वं + puna प्राठः सव्ये | a: & सिमा नियक्तसत्‌ चनायव्ययपालने,- दति यन्धान्तरीयस्त्‌ पाठः SATA | † बुदुमबार्येऽगधीगोऽपि,-- इत्यादि mie । वुदुम्बायष्मधौमोऽपि यव- WE यमाचरेत्‌, दति AIAN: WIS समीचोगः | va WAN कौ RAR ee लकः विचालयेत्‌” - रति । मरतिखखतन््नं वरः Fray. gree freREa | तथाच नारदः+ “'क्ुख््येष्ठस्तथा ओष्टः मतिर wt. भेत्‌ । तक्छतं स्यात्‌ रतं कामे rear रतम्‌ ^ -टति । स्वतन्तप्रशतिम्यहृतंमपि कां हृदिक. सिष्यतीत्यार काव्या- यनः,- “सुतस्य सुतदाराणणं grate बहाने | विक्रये चैव दाने च sarah न ae "पितुः" षति । , एवं ग्राम्बोक्रमार्शेण fad gam crm: we grata द्दस्प तिः, “एवं matfzd राजा कुवजिकैष्मपाशनम्‌ | aay! यभो लोके महेश्धसदृशा भवेत्‌ ॥ erage), raat wre fae | ` वितव्येह ant राजा years विष्टपम्‌" दति । दति farang: re * भ aaa, —xta ate † afa—afa ae t विततं wj—aft ate । ,. ९ इत्यमेव पाठः eae) भम §, शाद्िनिशरषमानेनः- एति प्राठः प्रतिभाति |. add पराश्ररमाधबः | अष्टादश्परापयागिनौ वहारमादेका निरूपिता | अथेदानौमष्टादशपदान्यनुक्रमेख निरूप्यन्ते | तच टदहच्यतिः,- “पदानां सहितस्छेष यवहारः प्रकौ तितः! विवादकारणणन्यश्य पदानि श्रटए्ताधुना ॥ णादानप्रद नानि यूताङ्ानादिकानि a mm सम््रवच्याभि कियाभेदांख तत्वतः"--दएति | तच्च प्रथमो दिष्टवेम aurea पदस्य विधिरुच्यते । त्र णा टानं सप्रविघम्‌ | तदाद नारदः+ णं देयमदेयश्च येम यच यथा च यत्‌| दानग्रदणएधर्माख णादानमिति रूतम्‌"--इति | तनाधमणे पञ्च विधमौषुश्रणं देयमौदु श्मदेयममेनाधिका- रिण रैयमस्मिन्समये देयमनेन प्रकारेण देयमिति उत्तमणे दिविधं, दानविधिरादामविधिद्चेति ) aa दामविधिपूवेकवादि- तरेषां तजादौ दानविधिर्च्यते 1 तच इदष्पतिः.- “परिपणे गटहोवाऽलं ददधेवां ary waaay | Varese सािमदा खण दद्याद्धनो सदरा”-इति | ae: परिपूेल्वं सदटद्धिकमृखद्रव्यपरय्याप्तता। टद्धिपरभेदाश्च रदेस्सतिना निरूपिताः, “sfgaafaar भोक्ता wears: परकौ्तिता। + इत्यमेव पाठः HAA | मम वु, ऋणादानगप्रधानानि,-इति yrs: प्रतिमाति। अवहारकाद्धम्‌ | १९७ वदिधाऽस्िष्छमार्याता तत्वतस्ता निबोधत, ॥ कायिका काशिका चेव चक्रटृङ्धिरतः परा | कारिता च गिषाटृदविौगलाभसयेवख ॥ कायिका BMI मास्याष्या तु कालिका | षृद्धरद्धिशक्ररद्धिः कारिता लणिना शता ॥ way wad यातु fuarafgg सा मता। गदात्‌ स्तोमः मदः Sarg aie: प्रको भ्तितः"- इति। ट्रद्धस्त परिमाणं मनुमो क्रम्‌, - coitfaart wetarnfa वाधुषिकः गते"-दति। aad fant vax मपादनिष्कपरिमितां एड मासि मासि aetna | एतन्सबन्धकयिषयम्‌ । तया यानवष्कधः,-- “ग्रो तिभागोदद्धिः स्यामामि मामि मबन्धके। वक्रमाच्छतन्दितिचतुःपञ्चकमन्यथा ॥ मास्य sig nwa वर्णनामनुपूरवश्रः" -षति। सशद्मकप्रयोगे यामः, - Sgaay भाग श्रारोतः षष्ठो भागः सप्रे | निराधाने feana मामनामे उदाहतः" --एति। ग्ररोटभेरैरेद्धः परिमाण्णन्तरमाह ATH, - [1 १ - 111 1 - > qraaea faatua,—xfa ate reemawewengever ५०५५०. ५= [क १.) - (१) etaten ayarafafana माटश्म्‌ । सदः HH पना इति चरेशरेग Bead | १९८ पसाशरमाधवः। “कान्तारगास्तु दशक सामुद्रा विंशकं ए्रतम्‌""--द्ति। कान्ारगाः दुगेमवत्मगन्तारः, ते प्रतिमासन्दग्कं शतं TT! सासुद्रास्षभुद्रगन्तारः विंशकं शतं ददयुरित्ययः। कारितायां तुम नियम इत्याह सरव, “egal @aat afg श्वे सवा जातिषु"--रति । सवं ब्राह्मणादयोऽधमर्णाः | सबन्धके श्रबन्धके सर्वासु भातिषू- मणनुश्वतासु खाभ्यृपगतां इद्धि ददुः । क्चिदनङ्गोङताऽपि दृद्धिभेवति | तदाह विष्णुः - ‘at शदौला खण पूवे दस्यामोति च सामकम्‌ | न दद्याल्लोभतः यथात्‌ स तस्मात्‌ हद्धिमाप्रुयात्‌”-दति | सममेव सामकम्‌ । प्रतिदिनकालावधिमङ्गौशत्य गरोतम- दृद्धिक wa यदि न प्राग्दद्‌ाति, तदा श्रवेधेरनन्तरकालाद्‌ारभ्य वद्तएवेत्य्थः | कालावधिमनङ्गोरत्य Slade धनस्य षणलाया- gg afguadtany नारदः, “aq afg: मोतिदन्तानां या लनाकारिता कवित्‌ | श्रनाकारितमणुद्ं वव्छराद्धादिवधैते"-दति। याचितकं weler दे गान्तरगमने कात्यायनः, “यो याचितकमादाय aac दिशं aq | SE yaaa तद्धनं टद्भिमाघ्रयात्‌"-दति। एतञ्च प्रतियासितविषयम्‌ । प्रतियाचिते तु सप्वाह,- “शलोद्धारमदला यो याचितस्न दिशं aq । SE मासत्रयान्तख तदनं दद्धिमाभ्ुयात्‌"-दति | IT TICS TT | RES extart, धाचितकमाशापेश्यवेः । we writer wate. aa एव स्थितोऽपि थाचितकं न प्रयच्छति, ते प्रत्या चएव,- ` Cexaste स्थितो wa भ दद्मादयाचितः क्रचित्‌ । ` तं ततोऽकारितां दद्धिमनिच्छन्तश्च दापधेत्‌"-षति | ` ततः, प्रतिवा चभकाखादारण्येव्यथेः । श्थाच्यमानं न वंत erry प्रतिबाचितस्‌ | याच्यमानमदकष्चेत्‌ FEA TER We” — इति | निरेपादावपि सएव “fafar टद्धि शेषश्च कथविक्थएवच | याच्यमागमदन्ं चेत्‌ aga पञ्चकं प्रतम्‌”-ति । ग्ररोतप्मोद्धानपेणविषये तु षएव,- “ag दोला यो मौखखमदलेव दिशं wat त्‌बयस्योपरिषटासद्धमं ठदड्धिमाश्रुयात्‌"-इति । यतच्चाप्रतिथासितपिषयम्‌ । श्रमाकारितद्द्धेरपवाडौ नारदेन दशितः, | “पष्छमृन्धय तिन्यांसो दण्डो we प्रकख्ितः | यादानाक्षिकपणं aga नादिवकितम्‌""--इति। eran, vate: nigra । श्राचिकन्प Gey | faafad अरभाकारितम्‌। TATE ठद्यभावः, परवादमतिवाचना- भावे | न्याय तु दृद्यभावः, Tee परतिया्नाभामे च । ` अन्या कात्धाथनवचमविरोभापनेः | मग्नोऽपि, न्न दद्भिः प्लोधने era निकषे च अथाक्िते। 22 : १७० पररारमा्धवः | afar प्रातिभाव्ये च थदि भ wre शता-दति | यथांते faad व्यश्न्ययाकरणरडिते । दातु योग्यम- योग्येति शन्दिग्ये। प्रातिभाये खणिपरत्यपैणादौ | काल्यायनोऽपिः- “कशमेससा सवदे पण्छमूष्ये च सवेदा | away न stg: खात्‌ प्रातिभाव्यगतेषु. च-दति । सर्वदेति प्रतियादनादेः wera ठद्धिरगास्त) व्यः । TEE का्यायनवचमविरोधः waa परितः । यासोऽपिः- ‘nia yam” दिष्छतः | म्‌ aga प्रपन्नः स्यादय wa प्रतिथुतम्‌”-इति । मुक्तबन्धेगरहणं निकेपोपायने यथा ठृद्धिर्वा, तथा गौप्यभोगे ठृद्धिमै देयेत्येवमर्थम्‌। “afd वद्धते- दति गौवमसमरण्णत्‌। seta च दित्तःः- दति रतदृद्यपवादः, श्रतट्द्यपवादप्रसङ्गा- दुक्षः | शतटृद्यपवाद ख याश्नवस्क्येन दशितः, “Aaa न wetfa नियुक्तं यत्कं धनम्‌ | मध्यख्यस्थापितं mage म ततः परम्‌“ इति, TARA द्रव्यस्य दृद्धिणएमन्तरेए चिर कालावस्थितख परम्‌ | टृद्धिद्रथभेदानाहइ याज्ञवल्क्यः - “उन्ततिष्ठु पद्स्लौणां रघसाष्टगुणा परा । वस्धान्यदिरण्यानां चतुख्िदधिगुण पराति । प्सो सन्ततिरेव ठद्धिः। Tre तेरटतादेः खषटतया ट्या वद्धमामस्वाष्टमणण द्धिः परा । भातः पर Tea | वस्रघान्य- fecarat यथाक्रमं चतुरा जिगुणा दगुण च परा द्द्धिः। अवहारकाखम्‌। ६०६ धत्त॒ वशि्ठमोक्तम्‌ । “दिगुणं दिरष्यं fied धान्यं धान्येनैव रा व्याख्याताः | पुष्यमूलफलानि च तुलाशटतमष्टमुणम्‌ "इति | यश मतुमोक्म्‌,- धान्ये we wa ang मातिकमति प्चताम्‌"-एति। श्रदः Sane पुष्पमूनफलानि। wat मेषोर्णाचमरौकेभादिः | वाद्यो वलौ वधर गादिः | धान्यगटलववाद्मविषथा ag: पञ्चगुणं न(तिक्रामनोति । "उक्ताःयष्टगणा ग्रे Tet षड्गणा War । सवणे guzaagy टद्िरष्टगृणा मता ॥ ng मधुनि aatar rym विरकालिका"-द्रति। कुन्धपुमौषकम्‌ | तदेतच्छवेमधमणयोग्यतागुमारे दुभिशा- दिकालवगेन wanted । दप्मेदेनापि परां ठद्धिं द्रति मारदः,- नद्धिगणं जिग, पैव तथापिच चतुगृणम्‌ | तथाऽएग णमन्यश्सिन दय र फेऽव तिष्ठते" --इति Fran वद्धंमानं चिरकालावयिल कितिगुणं कचिखतुुत BUNT भवतात्यधः | afuatsfa, “agg fanaa रत्रम्य रजत ब | fanny दीयते aig: BARATIR रिएौ ॥ तामायःकांस्यरौतो नान्वपुणसुपरोमकस्य च) {जिगणा तिष्ठते दिः कामादरहतस्य तुदति) मुक्तिरिति सुक्राफलं werd, TANTEI | ष्याबोपि, १५७२ परशस्मार्धंवः। “श्राककाांखनौलेलौ ष्गण्ा परिक निता | ACSA काले मद्यखष्रसाघवाम्‌”- द्रति | कल्यायमोऽपि- “तेलानाद्चैवं wet मध्यामामय सपिषाम्‌। दृद्धिरष्टगुण Fa aye wawa wef aa दृद्धिविगरेषो न शूयते, aw दविगुफेव । तथाच विष्णः । “श्रुक्षानां दिगुण्ण"-दति । श्रयं च ठद्युपरमः सषटत्रयोगे सछ- दारणे च बेदितव्यः। तथाच मनुः ‘“giizefgane wate सषृदाहिता"--दति | उपचये vam xa Bald, तस्य ay: gitzefg: । tra arafa नातिक्रामति । यदि सकशदाहिता weer । पुरषान्तर- संक्रमणादिना प्रयोगान्तरकरणे, ahaa वा पुरुषे रेकभेकाग्द* प्रयोगान्तरकरणे दैगृष्छमतिक्रम्य पूववत्‌ aga । सष्टदा इतेति पाठे na: ma: प्रतिदिनं प्रतिमासं परतिमंवत्र वाऽधमर्णादादत्य sre waa fa व्याख्येयम्‌ । गौतमोऽपि । “चिरस्थाने Brg प्रयो गख्य"- दति । प्रधोगच्ेत्येकवनननिरदेग्ेन प्रयोगान्तरकरणे देगष्धातिक्रमो- ऽभिपरतः। विरखानेः-दति निदे गाच्छनेः we: इद्धिगरहे देगु- ` पणा तिक्रमोऽभिमतः | ome दृद्युपरमश्य कृचिद्रव्यविगेषेऽपवाद्माष रदग्यतिःः- ॥ Or tes Aare. RAED SHEL 2 ने PLY SOTTO CLES TEN HS भा ir Hy = त-न ० (पि * एकश पाभ्यां,- इति zee | TATRA | १७४ “हरक ष्का सूभकिण्चका ध्वम्‌ | ेतिपुष्यफलानाश्च sige न भिवर्तते"--एति । fara: सुराद्रव्यो पादान्तो मण विगेषः। qa वाणादिनिषा- रकफलकः। व तनुचम्‌। हेतिरायधम्‌ । पुष्यफलयोटंद्यनिटृ्तिर- | ATA ay: | waa जिगणटृदधप्रतिपादकब्याषवकन- विरोधः yaafesta: | वभिष्ठोऽपि,- “'दण्डवर््रा खिप्एक्रणां शणए्मयानां तयेवच । अर्या दद्धि एतेषां पुग्यमृलफशष्य च^- ति | स्य तिरपि,- “Crate कायिकाश्च भोगाभं vere धनौ तावत्छमादध्ात्‌ arent न गोधितम्‌"-इति । तदेवं, परिपू सखरोलाऽऽधिमि्थच wa: परि प्रणवनिशूप- पप्रसङ्गागता सविशेषा दद्धि निरूपिता | ee eee भिमक इदानी माधिनिरूष्ते | तच नारदः नश्रधिकिदतं दव्याधिः ष faret दिशलक्षणः। कृतका लोपनेयस याव्दूयोद्यतम्तथा ॥ स पुनदिंविधः प्रको गोणोभोग्यन्तयेवच""--दति । naire द्रव्यद्धोपरि वि्ामाथमधमशोकलमणं ्रधिक्ियते ९७४ | पराग्ररमाश्चवः । श्राधोयते दत्याधिः। कतकाले अरधानकारएवेतदिवसा्यवध्यय- arfudear मोच्छते, weer तवैव भविष्यतीत्येवं निरूपितकाले । उपरिष्टातरेवनौय इत्यथः" । यावद यदतः, गरोतघनप्रत्यपेणवभि- निरूपितकाल इत्यथः | गोयो रच्षणौयः, भोग्यः फलभोग्यादिः । zeufarfa,— Carfgan समाख्यातः स च प्रोक्रखतुविंधः। जङ्गमः स्थावरञ्ैव गोप्योभोग्यस्तयेवष ॥ यादुच्छिकः सावधिश्च लेख्यारूढोऽय साचिमान्‌-दूति | arfuata बन्धः । स दिविधः, गोपो भोग्यश्च पुनशचैकेकशो- दि विधः, aya: स्थावर शत्यं चतु विधः पुनरपि रत्येकं दिविधः, यादृच्छिकः सावधिशचेति। araguaa न ददामि तावद्‌्यमाधि- frad कालविग्रेषावधिशूल्यतया शतो यादुच्छिकः। इतकालोप- नेयः सावधिः | wary लेख्याः साचिमानिति दिविधः । भर- STH! प्रकारान्तरेणाधेख।तुविध्यमादः- Carfagafau: प्रोक्तो भोग्यो गोणस्तस्येवच | श्रथेप्रत्ययदेतुखच चतु येस्वाश्नया रतः ॥ श्रावणात्यवेिखितो भोग्याधिः Fe उच्यते | गोप्ापिष्ठ परेभ्यः खन्दवा यो गोप्यते wey श्रथेप्रत्ययहहेतुयै WI: स उच्यते | श्राज्चाधिर्नामयो राज्ञा संसदि लान्ञया शतः दति | =, „~ ~ ~~ ~~ ~~~ ~~ Ree 9 se श ५ म नि er etre, ETE Ete tees, # स विनेय xaw:,—sfa me | आवणं cafe wana) शआधिग्रडशानन्तरं arafentct- दथोधथा ग भवन्ति, तया पालमोय care हरोतः,- “बन्धं यथा खापितं eraea परिपाशयेत्‌ | श्रन्यया नश्यते लाभो He वा सद्रातिक्मात्‌”-षति | ददस्पतिरपि,- “ज्यासवत्परिपाण्योऽसौ टद्धिगेग्येत्तयाऽशते | भुक्ते arsercal प्रापे मूखरामिः प्रजायते। asa यज गष्टग्टफिकं न च तोषयेत्‌ ॥ दैवराजोपघाते घ यज्राधिर्नाग्रमाभ्रुयात्‌ | warty दापयेषृष्टान्‌ षोदयं ध्ममन्यथा "ति | तथाच व्यासः 'हेवराओपाते तु न दोषौ धनिनां करत्‌ | अन्यथा aaa लाभो मूलं वा नाग्रमाश्रुयात्‌ ॥ धणं ZUG THT बन्धनान्यकडपं तया" इति | श्रासेरमारवेऽ्येवमनुसन्धेयम्‌ | तथाच नारद. "रचमाणोऽपि Taha: कालेगेयाद सारताम्‌ | ज्राधिरन्यो$ऽथवा काया देवंवा धमिने धगम्‌"-एति। याश्चवष्वयोऽपिः- नाः सौकरणसिद्रौ रवमाणेऽ्यमारताम्‌ | यातद्धेदन्य श्राधेयो धनभाग्वा धनौ भवेत्‌- दति । saat: ) sata भोग्यस्य च स्लौकरणात्‌ ग्रणात्‌ ७प- १७९१ WEA | भोगाञ्चाधियहणसिद्धिः, भ॒ शाचिलेख्धमाभेण नाणे प्रमाण । तदाह नारदः “arfing डदिविधः प्रोक्रो जङ्गमः स्थावर स्तथा | चिद्धिरस्योभयस्यापि भोगो यद्यस्ति नान्यया" ईति एवं च सति, या खोकारान्ता करिया gal, सा qwaat; या ूर्वाऽपि खौकारादिरदहिता, सा म वलवतौत्युकं भवति । श्राधिः प्रयन्नेन रक्षमाणोऽपि कालादिवशेन चद्यसषारताङ्गतस्तदाऽन्य BIT: | श्रय वा धनिने धनं देयम्‌ । श्राधिशिद्धौ भोगएव प्रमाणएमित्यार विष्णः- : ‹“इयोनिचिक्तथोराधिर्विवदेतां यदा नरौ | यस्य भुक्रिजैयसस्य बलात्कारं विना हता?-दति । इयोरपि qware शदस्पतिः,- ‘Wiad ai समकालिकम्‌ । थेन भुक्तं भवेत्तस्य तत्‌ तल्िद्धिमवाभ्रुयात्‌”-दइति । वसिष्ठोऽपि “तुका fers रेख्यानामाधिकमेणि | . येन शुकतं wage तस्माधिवेखवन्तरा“- दति । भोगाधिभेषे ayare,— etenfaae तौ तु भोक्षुकामायुपागतौ | विभव्याधिः gavin भोक्कब्य इति नियः? इति। दयोरेकमाभिं Haat Taare कात्यायनः, व्यवहारकाखम्‌। reo Serfyaag इयोः war यद्येका प्रतिपद्धवेत्‌ । ` तथोः पूर्वकृतं यादं तत्कर्ता दण्डभाग्मबेत्‌""--दति । प्रतिपदिति प्रतिप्तिरित्यथः। श्रधिविशेषे दष्डविशेष॑माह faq: | “गोचममाचाधिकरं सुवमन्यसय WTR तस्मादनिमं- ere यः: प्रयच्छे बध्यः । ऊनां चेत्‌, षो इश्रसुवणं दण्डाः, इति | साचिक्लस्थरिद्योलंस्यमि द्धिवेखवतोत्यार काल्यायनः,- grata विक्रयो दानं लेख्यसाचिृतं यदा ॥ एकक्रियापिरुडधमत्‌ लेसे तजरापहारकम्‌”-- इति । लेष्यमिद्धलाकिगेषेऽपि सएव. cgtaféey निरिंटमेकत्र च विलेखितम्‌ | granada श्रनादिष्टं ¶ aga ॥ यद्यद्‌ यद्‌; fia तदादिष्टं विनिरदिगत्‌"-एति। त्रयमः । श्राधातुराधानकाने afaqara धनं गिकपित- aged च, तद्भनमाधिवना दष तनिर्दि्टमित्युच्यते | तदिपरोौतन्‌ धनमायधिलेन कस््थमानमनिरिं्टमिति निर्दिजेदिति। fafee- त्वा विषे Aye, agri प्रतिग्रहे ata vat तु बलवन्षरा “इति | एकमेव केचमेकस्थाधि रला क्रिमपि weal पुनरन्य्याधाय किमपि waria, तच Ae aavawata AAT एव प्रतिय क्ये च योजनौयम्‌ | खा दिषुत्तर क्रियायाः AAT ava,— “सर्वव्वयविवारेषु बलवत्धु तरा किया"-इति। येक रेनमेकष्याधिं ears विक्नौमौते, तथाह afaB:,— 23 ७८ परान्नर माघवः) नयः पूर्व्तरमाधाय विक्रिणौते तु तं gat किमेतथोबेलोयः श्यात्‌ प्रोकेन बणवत्तरम्‌"-इति | श्रा्यादौनां यौगपदयेऽ्याह सएव, “ea यजेकदिवसे दानमाधामविक्रयम्‌ | चयाणामपि सन्देहे कथं तच विदिन्तयेत्‌ ॥ चयोऽपि तद्धनं rel विभजेयु्यंयाऽ'शतः | उभौ क्रियानुसारेण जिभामोनं प्रतिग्रदो"-रति। एतदाधितोऽयधिकर्णिकविषयम्‌ । खणप््थाप्नाधिनागरे are नारदः+ “Rage मूलनाग्नः स्यात्‌ देवराजशतादृते"--दति | बडमूखाभिनागे धनिकं समपेयेदित्युकतम्‌ । तच विगरेषमादे मतुः,- ‘saa तोषयेदेनमा धिस्तेनो ऽन्यथा भवेत्‌ इति | गोप्याधिभोगे लाभहाजिमाह यान्नवसक्यः;- "गोप्याधिभोगे नो afg: सोपकारेऽथ हापिते । नष्टो देयो विनष्टश्च दैवराजकतादुते"--दति | शरयमर्थंः | watered: समयातिक्रमेण भोगे सति aearfa दृद्धिदौतव्या। सोपकारे षटद्धिके भोग्याधौ हापिते eaerc- aug प्रापिते षति न दृद्धिः। गोयाधिविकारं प्रापितः, पूर्वव- wat देयः) विनष्टसेदात्यन्तिकनाग्रं॒प्राएच्च्तबुदयारिदारेेव ¦ निषेद्यः। गोप्याधिभोगे नो इद्धि रित्येतदलात्कारभो ग विषयम्‌ | अ्रत- ` एवि AGS - | BTU CAs | Red “न भोक्तव्यो बलादाधिसं रागो इद्धिसुदसणेत्‌"- इति । awarfaar श्राधिभोगे भोगागुषारेण eae नाभमाइ सएव,- “यः खाभिनाऽननुज्ञातमापिं भु द्ऽविचकणः। तेनार्धदद्धिमीकया तस्य भोगस्य निष्कतिः"-दति | कचिदिषये मृलद्रयनाभन मह शाभनाग्रष्य विकश्पमाद काल्यायनः,- नश्रकामममनुज्ञातमापि यः कमे कारयेत्‌ | भोक्ता कर्मफलं iat afg वा wera न सः"-षति। दाख्या्याधौ कर्मफलं बेतनम्‌। श्राित arafzatga षए- वाण, “"यस्वा धिं कम Gata: वाम्धाद कोन कमेभिः* | Tea wads मररयात्पुवमाहमम्‌”- एति । श्राङदितम्य द्वयस्य सलवमिटेर्तिफालमाद ATA: confa: प्रणगरेदह्धिगुण धने यदि म मोचयते | कासे कालतो नश्येत्‌ फलभोग्यो म नण्छनि”-- दूति । TAR धने स्वहतया दद्या कालक्रमेण हेग प्रापे सति UW कालो गोयाधिने मीच्छते, तदा APACE, धने wag: A बति । शतकालो गोप्यो मोग्यश्चाधिः सम्प्रतिपने काले यदि 4 = == = _ दरति काण | मम तु ध्यानं ath —tfa पष्टः प्रविमावि। [11 on newness Ne teen aw * arent cage wale, geal Facet wit, १८० परर माच्वः,। AA, तदाऽधमणेष्य नण्येत्‌ । श्रहतकालः फलभोग्यः कदा चिदपि ग॒ नश्यति। दैगष्छनिष्टपितकालयोरुपरि चतुद शदिवसप्रतो चं कन्तव्यमित्याह व्यासः, “Ferg दिगुणौग्धते qa wart | बन्धकस्य धनखामो दिसप्तादं प्रतोकते ॥ तदन्तरा धनं दला खणो बन्धमवाक्रयात्‌"--दति | ware: waft: खलोत्पन्तेञ्च कारणं नास्ति, गरिषयोऽपि भासि। मेवम्‌ | न केवलं दृनादिरेव खलनिदटत्तिकार णम्‌, प्रति- ग्रहादिरेव स्लवापन्तिकारणम्‌ ; किन्तु देगष्निष्टपितकालप्ाप्नौ द्रव्यादोनामपि तस्य याञ्नवस्क्यवचनेनेव ऋणिधनिनोरात्यन्तिक- सलनिदरन्िखवोत्पत्तिकारणएत्ावगमात्‌ । न च मनुवचनविरोधः, त्योक्षकालभोग्धा धिविषयलेनःपुपपन्तेः । यत्तु ewufaa द प्राद- प्रतोचणसुक्रम्‌,- “पूर्णावधौ सान्तामे बन्धखामौ घनौ भवेत्‌ | श्रनि्गते दशाहे तु खणो मोचितुमहति- दति | तदवस्लादि विषयम्‌ | faxed दिगृणोग्डते,--इति व्थासेन विगरेषौ- पादानीत्‌ | यत्पुनसतनेवोक्षम्‌,- नगोष्याधिरदिगुणदृ्वं हतकोलसथाऽवपेः | grazagfage भोक्व्यस्तदनन्तरम्‌- दइ ति 1 तद्भोगमाचविधिपरम्‌, न ga: स्लाप्तिपरम्‌। यदा तु सान्तल्लामे wt बन्धस्य तथेवावसख्थितस्य मो चनात्‌ प्राणिकश् मरणादिभंषेव्‌, तदा किं काय्येमित्यपेकितिमार दस्ति, “fara दिगणोभते रते गषटेऽधमरिक | IMT संद विकिफोत ससाचिकम्‌ ॥ TAN HAW तु दशां जनसंसदि | शणातुक्पं परतो गहौलाल्यत्तृ वशयेत्‌ ` - दति । हिरण्ये दिगुणो्ठेते पश्षादाधिमोचणादर्वागधमिंके मरते गे gafaya चिरकालमविज्ञाने माति. श्रापिरनं द्रं भमाचिकं विक्रीय चरितानुरूपं दिगणोगेतद्रयपयापतिं ava, ततो ऽवग्िषठं asa UH ममपेयेरिव्य्धः। तसाच काल्यायनः.- “STUTAT यत्र नष्टः स्यात्‌ wat बन्धं मिषेदयत्‌ | राज्ञा ततः म रिस्यातो विक्रय दति धारणा॥ मरद्ध aver तु md राजन्ययापयत्‌"- एति) राजे BRING जत्याद्मभावव्रिषथम्‌ | AA_a awa wae णम्य न्यायखलात्‌ । WaT वजयित्थनेन घनदेगु्ेऽयक्तकराशा- धथधिकाधौ धनिकम्यास्तामिचमवगम्यतं | une खलप्रतिपादकं याक्ञवनक्यवदवनं ममानाधि विषयम्‌ । अतएव, wa श्रधिके च बन्धे आधिनाग्नोनानि. [कन्तु दिगृषेभतं AAA रान्ना दापय TITY TRE ies ^ रितिवन्धिककतं ATE दापयेद्धनम्‌ | स्यहारहनं xa दिगण दापयत्‌ ततः" -दइति । रिं ्नोभमाचरितं Sanaa | तैन यत्‌ बन्धक, चरित्र बन्धकम्‌ | तेना धिकेन यद्रयमासमात्‌ रतं पराधौनं वा कतं, तञ्च ee et 1) 0 ह स 7) क ता 1 क | * समांभाधिविषयम्‌,--दनि ate | १८२ पर शर माधवः। रि्वन्धकषतम्‌ | श्रयवा चरिवमभ्निहोषादिजनितमपूरवम्‌। तदेव बन्धकं चरिच्रबन्धकम्‌ । तेन यटग्यमाद्मषाश्छतं, तत्घदद्धिकमेव दापयेत्‌, म तु धनदवेगु्येऽ्याधिनाश्रः। सत्यस्य कारः AAT | तेम हतं सल्यृङारङृतम्‌ | तदपि द्विगुणमेव देयं, न तु लाभादि- नागरः" | अ्रयममिप्रायः | बन्धकापंएसमयएव मथा दिगुणमेव द्रवयं aaa नाधिनाश्रः इति नियमे कते, तदेव forward दातव्यनाधि- नारः इति । कयविक्रयादि यवसा निर्वाहाय यद ्ुलौयकादि पर- इमो समर्पितं, AMES | तवाङ्गुलौयकाटि welar वयवखा- मतिक्रामन्‌ तदेवाङ्गलौयकादि गुणं प्रतिपादयेत्‌ । दतरशेद- ह्ुलौयकादिकमेव त्यजेत्‌ । वस्ताधौ निथममाद प्रजापतिः, - भ्यो वै धनेन तेनेव परमाधिं मयेद्यदि | wet तदाऽऽधिखिखितं पवश्चापि समपेयेत्‌”--इईति । यदन्धकखराभिनि wi wae ayaa धनेन ut धनिका- म्तरमाधिं नयेत्‌, म लधिकेन | श्रयं वस्वाधिधेनष्ठ Bae सति। waar तु चेगण्णाद्वांगपि zea: | अथाधिमाचनम्‌। a4 इदसतिः,- “धनं gated दला चदाऽऽधि प्राथयेदणौ | तदैव तस्य मोक्रथस्लन्यया टदोषभाग्धनो-दति | क (1 शा bee neve ~ ~ = ~~~ ~~ ~ To la 8 1. ---~ = ® सामनाप्र+--द्रति कार चबहार कष्टम्‌ | १८ मृशोर्हेतमधमरएेन देयं धमम्‌; वम्तुभोग्याधौ qears, गो- पाधौ तु सटृद्धिकम्‌ । यदा ager खौ श्राधिं area’, तदा धनिना स Atma: । waar cheatin: | तराई Tee वस्व्यः “उपस्थितस्य मोक्रयः श्राधिष्षेनोऽन्यथा भवेत्‌ । प्रयोजके षति धनं ठुले<न्यस्याधिमाभरयात्‌"' दति | धमप्रयोक्रय्येसन्मिहिते मति तदाप्ररम्ते vafga धनं निधाथ खकौयमाधिं zeta) atria मूलमात्रं दना फलकाशाको मोक्रयद्त्याड वयामः,- ^फलभोग्यं पूेकाने दला द्रव्यन्त्‌ मामकम्‌" इति । सममेव मामकम्‌ । मणमाज दला णो बन्धमवाप्रुयारिति। आधिनागरनिबन्धमले वेग्छादिकानादर्वागेव भाधिमीक्ष्ः | तथाच मणए्व,- “श्रतोऽन्तरा धनं दला खणो बन्धमवा्रुयात्‌"- इति | यत्त॒ तेनेवोक्म्‌,- “गोप्याधि डिगणादूद्ं मोचयेदघमिकः"-दति। agra, vata िमपतारान्मो नय दिव्येवन्परम्‌ । अन्धा, श्राधिः परप्ेद्धिगुणे धने दति या्नवस्कयत्रचनगिरोधापत्तः। यदि परयोक्रय्यमज्निहिते तत्कुले धनग्रीतारो न मन्ति, यदि arssfi- विक्रयेण धनादित्पा सखादधमपंषय, ay यत्कं तदाद UT TR: Cqarnmmaan a aa facefge:”—efe | १८४ ` परारमाधदः। ऋणदानेच्छाकाले यत्‌ तसाधे्मूरध, तत्परिकर्् ava धनिनि तमाधिं afgcfed qraawa oat न वद्धेते इति । भोग्याधि- fava क्चिदिगेषमाह इशष्यतिः,- “"चछेचादिकं यटा भुक्रमत्यन्तमधिकं ततः | मृलोदयं प्रविष्टं चन्नदाऽऽधिं प्रा्रुयादृणणौ- दति । तेन प्रविष्टे सोदे द्रव्ये लयेतन्मोक्व्यभिल्येवं परिभाव्य यदा सेवादिकमादभ्यात्‌, तदा भोगेन चेजायव्ययश्चहितसटद्धिकचनपरवेशे सति श्राभिमादद्यादधमणे इत्ययः । यान्नवख्क्योऽपिः- “यदा तु दिगुण्णौश्वतद्णमाधौ तदाऽखिलम्‌ | मोच्यश्राधिखदुत्यकने प्रविष्टे दिगृणे धनेति | श्रयमेव .चयाधिरिल्युष्यते sta यच तु दद्यर्थएव भोग- दति परिभाषते, aa भोगेनाधिकधनमषेगे यावकूलदानं नाधि- मेक्रियः। न्परिभाख यदा कचे तथा तु धनिके खणो । ल्येतद्न्तलामेऽयं भोक्रयमिति निश्चयः ॥ प्रविष्टे सोदये xa प्रदातयन्वया मम'-इति | , खणय्रहणएकाले धनदरेग्णान्तरं भोगः। मूलमाचे दत्प्रःधमणे वन्धनं प्राप्नोति धनौ च णं मूलमात्रं न zeta) किन्त पूर्तं ववं समयदद्धिपर्य्यापे धने ufaé सति धनिमो मूलमाचं देयम्‌ । णिनो बन्धलाभ दति । परसरागुमतौ त टद्यपर््याप्त- भोगेऽपि मूशमा्दानेनैवा धिलाभः cae । परिभापषितकालेक- zea समयटदधिपर्या प्तवषेप्ेशे सवाद, -- ` + चतहारकारम्‌ | १९५ “यदि प्रकषितं तत्या्तदा a wana | णो न लभते बन्ध परस्परमतं विमा" इति) दत्याधििधिः। अथ प्रतिभूः। तज ररस्पतिः,- “ana प्रत्यये दाने खणे garg नया । चतुःप्रकारः प्रतिभः mead दृष्टो मनोचिभिः॥ meat दग्रयामौनि साधुरित्यपरोऽतरशौत्‌ | दाताऽमेतद्रविष्मपयामौति चापरः -दमि। श्रमे तदौयं धनमपेयामोति admin) दभभुप्रतिमुवः लत्यमाह सएव,- "द्‌ गेनपरनिभर्यम्तु BH काने च ena | निबन्धं वायत तव येत राजरहतादृत''-दति। निबन्धं wu वादयेत्‌ धनिनं प्रापयेन्‌ । ag म दग्रयति, तं प्रत्या ममुः, श्यो यम्य प्रतिभमिष्ेत्‌ दग्रनायह मानवः) श्रद्गेयन्म तं तत्र wae] स्धमादृणम्‌'"- दति | दशनाय कालं दथ्ादिव्यार रहम्पतिः,- aperaan कामं ददाप्मतिभुषे धनौ | टेप्ानुक्पतः vd मामं wigaatfaa” दति। कात्यायनोऽपि, 24 reg VETTE AT AS: | “नष्टसानेषणा्थनत देय Taw परम्‌ । यद्यसौ TAA मोक्षः प्रतिभभेवेत्‌ ॥ ` कालेऽयतोते प्रतिश्येदि तं नैव दयेत्‌ । म॒ तमयं प्रदाप्यः wad, चेवं विधोयते-टूति। दानप्रत्ययप्रतिभुत्रोः AAA नाररः,- "“'इणियप्रतिकुवेत्यु प्रत्यये वाऽय दापिते । प्रतिभस्त ण दद्यादनुपश्थापयस्तद्‌ा-दति | ea aaa wera प्रत्यये ज्ञापिततदि- श्रासेऽपगते | धनापेरप्रतिमुवः शत्यमाद सणएव,-- “विश्वासां कतस््ाधिने प्राप्तौ धनिना yer) प्रापणौयम्वदा तेन ca त्रा धनिनां घनम्‌”-इति । श्राधिप्रत्यपणप्रतिमुवं ware षएव,- “Carat वित्तदौनथ waat वित्तवान्‌ यदि | मृलं तस्य भवेदयं न रद्धं दातुमरति”-दइति | खादको THAT: aga: प्रतिश्वः। सत्‌ दद्धि ara नारंति। खादकादप्यच, aaa तोषयेदि ति वचनात्‌ तन्मा परेव * देयम्‌ | vafaatat प्रतिभुवामपि दे षद्रयविधयो gear) प्रतिशचर्ाद्य- दति प्रक्तमाद का्याखनोऽपि.- “दानोप्थानवारेषु विश्वासग्रपयाय | | ann कारयेदेवं यथायोगं विपर्ययैये"--दूति। ~ ज ज काक त जके + इत्यमेव पाटः RAT) मम तु, मूलेन तोधयेदिति वचनात्‌ मूलमाच- मेवः-दति aia: प्रतिभाति। व्यवहारकारणम्‌ | १८७ उपान दशनम्‌ । वयारोऽपि- “लेख्ये छते च दिये वा दानप्रल्ययदग्रने | aan efagaqa तया इति | प्रतिश्वर््रह्य इति भेषः । प्रतिश्रमरणे व्यवम्थामाद् aTy- AVR “onqufaray सरतः भाल्ययिकोऽपिवा । न तत्पुत्रा छण guzaztara यः faa” -द्रति । यद्‌ दभेनपनिशधः प्द्धयिकरो वा दतः, तदा तथोः gar ्ाति- arated विदकतश्टणं न दुः । यम्ब दानाय ग्यितः प्रतिष्ेत- way ऋणं ददुः । amgrayaety qaaa दयं, न efezer तथाच AA ant Farad Tha wifaaraid सुतः। ममं erat तु न दाणाद्वत fae ThA तत्घुतौ पौत्प्रपौलौ । wera. Cored a पित दण तकानात्रेदिलं धनम्‌ | art तू तिद त विना तदतौ तथा" दति । श्राय दमेनप्रत्ययपरतिमुतौ, (तय NAAT द्रपधि्यामि sat साधु रित्येवं विधयोर्वाक्यः मिश्य किंद्यापंपमतियुवौ विम्बाद्‌ eraifeat भने {पिकेन श्रप्रति- दत्ते दायो । TaN तुन दाप्यौ । प्रत्ययप्रतिभ्वद्ममाप त गान्ना grat) watt दान- * इत्यमेव पाठः aaa) HA 4, सुस ४ Ws. पस ४ १८८ qc) . ` प्रतिभ्रेव दाणो भ aq: विवादप्रतिश्चक्षसाधितं धनं दण्ड दाणः। तदभावे तत्पुजोऽपौल्याह बावः | “विप्रत्यये लेष्यदिथे देने arsed सति | एं zim: प्रतिभुवः gaat भ दापयेत्‌ ॥ दागवादप्रतिशुवौ दाप्यौ तत्पुषकौ तथाति | यज SMAI बन्धकं AMAT प्रातिभायमङ्गीकुरतः, तच विग्रेषमार कात्यायनः Codie बन्धकं यश्च दगेनष्य feat भवेत्‌ | विना fra धनं तस्नादाण्तस्य णं सुतः“ टति। श्रनेकप्रतिशदानप्रकारमाद AAMAS: — ‘qua wife aiteg: प्रतिभुवो धमम्‌ । एकष्ायाभितेखेषु धनिकस्य यथा रचः" एति | *एकसिन्‌ प्रयोगे at वहवो वा प्रतिभुवः, तदं विभज्य सेः दधुः । एकड्धायाजरितेषु यं पुरुषं धनिकः प्राथेयेत्‌, सएव Be ददात्‌ माँश्रतः। एकक्षायाधिषटितेषु यदि किदे शरान्रङ्गतः, तद तत्पुचोऽपि दशात्‌ । गते तु पितरि qa: पि्॑रमेव दद्यात्‌, ` BGA | तथाच कात्यायनः,- '(ठकङ्ायाप्रविष्टामां दाष्योयस्तज दुष्यते | mea age: स्वै faq ते तु सः"-एति। प्रातिभाययापलापे दष्डमाइ पितामहः भयो ae प्रतिडगरेला मिष्या चेव तु एच्छति। A er tene ntnees “tree eeres + ame * ay, यदिति भवितुदुत्विवम्‌ । १ i 0 1 7 | BATON | et धनिकस्य धनं ret tan दण्डेन तत्पमम्‌ ॥ gate प्रति्र्वादं कां चार्थःथिना सह । सोपसगेस्तदा ut विवादात्‌ feat दमम्‌"--दति । रच प्रतिक्रियाविधिः। तत्र याश्वरक्यः,- ^प्रतिश्वदा पितो aa wart धनिने धमम्‌ | दिगणं प्रतिरातयं खणिकेसतस्य तद्भवेत्‌”--दति | धनिकेन पौडितः सन्‌ प्रतिग्रस्ततसुतोवा भनसमच राशा यद्धनं दापितस्दुद्विगुण्छणिकः प्रतिभुवे दद्यात्‌ Aare मारद्ः- | न्यं qa प्रतिश्वदयादूनिकेनोपपो fea: | णिकः खप्रतिभुवे दविगुणं प्रतिदापयेत्‌”-इति । कदा fe fan दधादिव्यपेचिते श्राह कात्यायनःन "प्रतिभावं तु यो दद्ात्पौडितः प्रतिभावितः, जिपचात्परतः aise दविगुणं लभुमहति-इति । ,. Rae छिरष्विषयम्‌ | परादौ तु किगिषो areas — “सन्ति; स्तौ पदव्ेव धान्यं विगुणमेवच । वस्तं UT परोक्त रसयाष्टगुण्तया”-दति | प्रातिभाषे निषेधानाह काल्यायनः- न्न खामो ata प्रजः खामिनाऽपितसथा। निरद्धो दण्डित afar न कंचित्‌ ॥ Ba Feat न मिं दा न चेवाल्यन्तवाभिनः। राजकाय्येनियुकषश्च ये च प्रत्रजिता सराः ॥ eruat धनिने दातुं दण्डं WH च AMAA | १६० प्रराशरमाधवः।. aaa वाऽपि पिता यद्य तथेवेष्डापरवत्तंकः ॥ नाविन्नाततो यहोतयः ufos: खर्कियां प्रति-दति। मन्दिग्धोऽमिभस्तः । श्रत्यन्तवासिनो नेषिवाब्रह्मचारिणः । यान्न- वर्क्यीऽपि,- ‘aqauray दम्पत्योः पितुः qe चेव fe प्रातिभावयण्णं साच्यं श्रविभक्तं न्‌ तु सतम्‌” ति | arcatsfa,— “arfaa प्रातिभाव्यञ्च दामं यरदएमेवच | विभक्ता भ्रातरः श्यः नाविभक्ताः परस्परम्‌” दति । खतन्तेषु धनप्रयोगनिषेधमा ह ATTA — ५ न @hat दामवाक्तेभ्ः प्रयच्छेच क्चिद्धनम्‌ | दत्तन्न लभते TY तेभ्यो दत्तं ठु चद्धनम्‌"-दरति। अथणैग्रडणधम्पाः | तत यान्ञवस्कयः,- "प्रच्छन्ने साधयन्नथे म वाच्यो नृपतेभेत्‌ । साध्यमानो नृपं गच्छेत्‌ दण्ड्यो दाप्यश्च तद्धनम्‌”--दइति | sere: | श्रधमर्णंनाभ्युपगतं साच्छादिभिभावितं वा धर्मादि- मिष्पायैः साधयन्‌ रान्ना न निधारणेयः। यदि तु पापात्तदा इसखतिः- "ध्चीपयधिवलात्कारे गटदसम्नोधनेन' च-द्रति | 2 व; [क [काका प MARR et eae AREER ARR OP ne er RS Be eS Re eam ~~~ een 2 eens net ee en ect * व्यमेव प्राठः a ‘YY तु, संसोधनेनः--दति प्राठः प्रतिमाति। व्यवहार कारम्‌ | १९१ धर्म्ादौन्‌ खयमेवाहः- ““सुद्धत्यम्बन्धिसन्दिटः मामोकयाऽनुगमेनं च। प्रायेणाय ऋषौ दायो धमं एवमुदादतः ॥ ददाना यादितं चायमानो wefan घनौ । gated ममादव्य दायते यत्र atafu: i यदा QIAN ताद्नाचेरपक्रमेः | णिकौ दाणने aa वलात्कीरः WATER: ॥ दारपुच्रपश्न बध्वा BAT दारोपरोधनम्‌ । qa द।पदेऽचैन्त्‌ तदाचरितर््ुच्यते "दरति | मनुरपि धर्मादोनुपायान्‌ दयति. “gga दैदद्यरेए न्छलेनाचरितेन च। प्रयुतं माघयन्‌य vata wea द" TTA | घर्म्ादयश्चोपायाः qatar प्रयो क्राः । तदार कात्या - यन्‌:+- eran तु सतामिनं तपरं WAT प्रदापयेत्‌ | रिक्थिमं que यपि BAIT प्रदापयत्‌ ॥ वरिका: केपिकाः चव परिज्थिनथा नतः gat: । देग्राचारेण ear: BHA HAT aaa TA | दापने विग्रषमाह ase” "दहोतासुकनादापयो धरमिनामधमण्षिः | दला तु ब्राह्मणाय नपतम्दनन्तर म्‌ - इति | खमानजातौयेष्‌ धनिषु युगपत ग्टहोतानुजमान्‌ चम १९२ पराशररमाधवः | दाणः, भिनजातौयेष्‌ तु angurfemae । साधयितुमशक्तं धनिकं प्रत्याह AHI, — “राज्नाऽचमणिकोदाणः साधिताहगकं शतम्‌ | पश्चकन्तु श्रतं दाप्यः प्रक्नायौ यन्तमफिकः"- दति । प्रतिपन्नर्यार्थस्य राजा दश्रमांगश्मधमर्णिकादण्डरूपेण ग्टलो- यादुत्तमणोदि्रतितमं भागं इत्यथे रक्ञोयादिल्ययेः। श्रधनिक- णा दानप्रकारमारह यान्नवस्क्यः,- Maarfa ATU कमे कारयेत्‌ | arg परिरीणः waatet यथोदयम्‌”-इति | ्राद्मणग्रहणमुक्कषटजाल्युपलचणर्यम्‌ । “कर्मणाऽपि समं ate ufaa वाऽधमणिकः। समोऽपषष्टजातिख ददात्‌ अेवांस्वु तच्छनेः-दूति सरण्णत्‌। नारदोऽपि “श्रय ग्रक्रिविहौनयेदृणौ कालविपय्येयात्‌ | श्र्यपेच्टणं दाप्यः काले काले यथोदयम्‌" दति | दृष्टाधमणिकं प्रत्याह AA: — “सणिकः सधनोयस्तु दौराव्थान्न प्रयच्छति | राश्ना दापयितव्यः स्यात्‌ होला दिगृणो दमः" दति) ahead खणग्रहं ङु्वतोऽचंहानिदंष्डसेत्याद रहस्यतिः,- “श्रना तु राज्ञे यः सन्दिग्धा प्रवत्तेते | प्रसद्य स nam: wrgasaa न सिध्यति” इति । काल्यायनोऽपि,~ यवहारक्षाखम्‌ | १८१ aan धनौ यच णिक न्यायवादिनम्‌ | तस्मादर्थाच्छ ₹हौयेत तत्समं mya दमम्‌"-इति । यस्वधमणेस्त्तमणंसकाशात्‌ वयवदहाराथं धनं ग्रो तवान्‌, ख waa धनं दधात्‌, नान्येषाम्‌ । तदाह कात्यायनः, “यस्व xan garg साधितं यो विभावयेत्‌ । ageafuacta दातं aa नान्यथा”--दति | निर्घनाधमणविषये खणप्रतिदानप्रकारमार भारदाजः- efi धनाभावे देयोऽन्योऽ्ख TWAT | धान्यं हिरण्छं ate वा गोमहिव्यादिकं तथा ॥ वस्तं दांसवगेश्च षाहनादि यथाक्रमम्‌ | धनिकस्य तु विक्रय staan: ॥ Sarasa तथाऽऽरामस्तस्याभावे ₹रयक्रयः | दिजातोमां खटहाभावे कालदहारो विधोयते"--इति । मनुरपि, Ceut दातुमशक्तो यः aif: क्रियाम्‌ | a za निजितां दद्धि acm परिवन्तयेत्‌""-इति । [ने धनामन्यत्तिवगासटद्धिकमलदाना- धनिकभ्य WATATY- | aay: | प्रतिदानकं शरक्रोऽधम्णः wae चिरन्तमलं परिदरतो क्रियां लेस्यादिरूपां पुनः कर्मिच्छत्‌, म॒निष्यना ag दता dete क्रियां वत्तमानवत्छरादिचिश्ि्तां करणं परिवत्तयेत्‌ ; पुनस कु्यादिति। यः qifafaaetg दातुमसमथः, च ठु तां qara- भारोपयेत्‌ । तदाद षएव,- 25 १९४ पराश्राव) “शदूर्रयिला aaa fece परिवर्तयेत्‌ | यावतो aaaefg: तावतौ हातुमरेति?-दति। हिर्छमदग्रंयिला मिजितां afgaget aaa wei परि ea | यस्तु खणएप्रतिदानकाले सटृद्धिकं मूलं दाद्‌ न शक्रोति, तं प्रह्याद यान्नवसक्धः,- a ‘ere vashufway zat दलरिकौ धमम्‌“--इति। शेख्यासन्निधाने विष्णुः। “श्रषमयदाने लेश्यासज्निघाने we-: मेष्य लिखितं दद्यात्‌"-दति । नारदोऽपि, “eaten दध्यादृरिकात्‌ दद्धिमाभ्रुथात्‌ | यदिवा भो परिलिखेदुणिना चोदितोऽपि. सन्‌ ॥ धनिकस्यैव aga तयेव शणिकस्य ashe । qq खणापाकरणं न करोति, तस्य प्रत्यवायः पुराऽपि द्‌ भिंतःः~ | “तपसौ चाग्निहोचौ च णवान्‌ चियते" यदि । तपदचैवा परि ोचश्च सवं तद्धभिने waq’— 1 ५ Creare: + “y ‘ ५ remnant ot oda ५ eae sgest तरिश ग दु रयत" तिः; रु: काये Sarees, तत्वाय थरि wife, बः ‘a degrada दोवताभित्येवं कालं afthrena. eer, ne, काम्ये परिनियतकालमये वा प्रतिवाश्चमागो धाक्िष कैः ददाति ; wet न सोदयं Te: ) वादितकमाभमेवादौ इते कां परिभिंधतक्रासाद्यये वा दद्यात्‌ । यदि तदाऽपि भ ददाति, wet दवारितो बिना जाते मृद्धं देयमित्ययंः। आह सएव, “शय कोास्यविपन्तिरह aaa खाभिनो भवेत्‌ । ` ama देव कारे तु TREATY तत्‌“-दति । दति निखेपप्रकरणएम्‌ | gaara: | तद्य MEANY नारदः “fafead वा We HS लन्छाऽपदत्य वा | विक्रीयेतासमचं * यस श्ेयोऽसामिविक्रयः"-इति | इहसतिरपि,- जिकेया्ारितद्रार्तयाचितन्धकम्‌ | डपा येन विक्ोतमल्लानो शोऽभिपौयते"--दति। श्रक्ञानिना कतो वहारो जिवन्तते द्धाहइ TET, मश्ग्धामि विक्रयं दानमापिं च विनिवतयेत्‌-इति | BLE UCTMEATAT tb भारदौऽपि,- भ^श्रञ्ञामिना तो eg क्रयो विक्रयणएवच | अहतः स तु विज्ञेयो व्यवहारेषु नित्यरः"-इति | ततद्चाखामिविक्रये थाश्नवस्कयः,- “चतं WUE यदव्य परदसतादवाध्रुयात्‌ | अनिवेद्य नपे दण्डयः स ठु षरवतिं पणान्‌" इति । यदा पुमः WRATH धनखामो, तदा लाह सएव, - “मष्टापदतमाषाद्य WAT ग्राहयन्नरम्‌ | देशकालातिपत्तौ वा खरहौला" खयमपयेत्‌"-दति | गृ्टमपदतं वा wala श्रधिगन्तुरपरन्तुवां दसत इहा श्रधिगन्तारमपदश्तारं वा राजपुरुषा दि भिग्रदयेत्‌ पुरुषः; राजा- धानयनार्थदेरकालातिकरमसद्ववति, तदा सथमेव गरौला रान समरपयेरिश्यवः। यदा पुनर्विकयाथमेव खकौयं za कत्त पश्यति, तदाऽणाईइ सएवः- "खं समेतान्यविक्रोतं कतुदीषोऽपकाभिते | Var Wage बेलाहोने च तस्करः“ इति | सामो खसम्बसििद्र्यमन्यविक्रीतं चदि पश्यति, तदा लभेत awa | अ्र्लामिविक्रयस्य सवहेतुलाभावात्‌ | केतुः पुनरप्रका- faa गोपिते क्रये दोषो भवति हौनाद्रव्यागमोपायहोनात्‌ र एकान्ते Cass अन्यतरेण द्रेण धिकमूष् वेशारोने caret (णोर * प्रडोता,--ढवि यन्बन्तर्टवः पाठः | AW TT TTR + म तजन भिद्यते दोषः सेनः ख्याद्पविक्रये"-इति | घेन Rar Waa क्रयात्‌ प्रागेव राशे निवेदितं, भ ay दौषः | उपविक्रवग्रब्दश्यारथसनेव दशितः “श्रर्गंडे वरिर््रासान्नि्रायामख्तो अनात्‌ | Saag ald ्ेयोऽसावुपविक्रयः'"- दति | श्रसतोजनात चण्डाला रित्यथः। श्रमद्रदण खानम्यननुज्ञाता- धुपलणाधंम्‌ । FAVA नारदः ““श्र्ाम्यतुमतादासादमतश्च AATRE: | होनमूरखमवेलायां क्रौणएसदोषभागबेत्‌ रति | कात्यायनः "नाषटिकसत ABA तद्धनं Wah BATA । नाष्टिको नष्टवमः, तद्धनं नष्टधनं, न्तादभिः साच्यार्दिभिः, हुवो त साधयेदित्य्ैः । श्राह याश्नवष्कयः,-- 'श्रागमेनोपभोगेन नष्टं भायमतोऽन्यथा । प्चयन्धोद मसज रा जनसेनाविभा विति" दरति । aang सल्यन्तरेऽभिहिती इष्टयः मल arama शौचे वेवाहिकं तचा | बान्धिवादप्रजातस षद्धिधस्ध घनागमः -दति। qatar सकोचलानपगतिरपि दानाशचभावेन बाधनोचे- ९६४ परसाप्ररमाधवः | द्याह कात्यायनः,- , “भद तत्यक्षविक्रौतं शला @ लभते धनम्‌"--इति) ` stages ferns म भवतौति प्रमाणः wane खकौयं धनं नाह्िकः (Rare: Sarena इत्यथैः) पचविषये* विगेष- माह THA: - “deat तु त्रयं यद्‌ाऽऽगल्य विभावयेत्‌ | तच मूलं aime केतुः प्रएद्धिषतो भबेत्‌”-दरति | मूलं विक्रेता । विकरेतुदे नानन्तर व्यासः, “मूसे समा'इते क्रेता माभियोष्यः कथश्चत | मूलेन सर वादस नाष्टिकस्य तदा भवेत्‌”--इति | यदातु मूलभ्रतो दभिंतोकिक्रेता म fafagat ददाति, तदालार इस्तिः, "विक्रेता दर्भितो यच विनो यवहारतः। RATT परदशात्‌ स्ञामिमोधनम्‌"-इति । यदा तु मृलश्तोरिक्रेता देशान्तरङ्गतः, तदा कात्यायन आद “मूलानयनकालश्च देयो ata a | yar प्रक्रयं gat arfafirntfaien: खकेः॥ न तत्रान्या जिया प्रोक्ता दैविकौ भ च मागुषो। parfad क्रये राज्ञा awe: ख न किञ्चम-द्रति। अयम; । धस्तु केता काशविलमनेनापि मूलं दगरेधितु न्‌ [ण chee 1१ क 1 । 1 ग ए. । * यथ विषयेऽपि कार ममतु, खन्न विषयेति प्राठः प्रतिभाति । | शक्रोति, erate करोति, घ भराधमः। तस्माच arfeat uri wat इति AEM मनुना, “श्रय मूलमनारशाय्ये प्रकारक्रयप्रो धितम्‌ । श्रद्ण्डो qed राज्ञा गाटिको waa धनम्‌""-दति । RA षका शाद्धनप्हणमद्धंमूखयं दलेव | तथाच HITT, — “वरणिम्पौधोपरिगतं विन्नातं राजपूरषेः | श्रदिज्ञाताख्रथात्‌ ala विक्रेता यञ वा aa खामो casera Awl घमम्‌"--इति | श्रविक्ताताश्रयाद्‌ विक्नात्ामकादिव्यये, । कयप्रकाग्रनपशयोः१ सति स्वे मृलानयमपकएव UNG: | ATH कात्यायनेन - “यद्‌ मूखमुपन्यस्छ पुनर्वादो क्रयं वदेत्‌ | TRL मूलमेवामौ न क्रयेण प्रयोजनम्‌ । quaryraqag mana fam धयेत्‌^-इति । यदा मूलदने करयप्रकाशनं वा न करोति, तद्‌ दण्डय द्याह सएव,- | “श्लुपरधा पयकूलं करयं वाऽयविशोधधन्‌ | यथाऽभियोगं धनिने धनं दाप्ोदमश्च सः"-एति ॥ माण्टिकविप्रथोगमाहइ षणव Cafe खं नेव कुरते ातिमिर्ना्टिको धनम्‌ | पष्कविनिषत्ययै चोरवहष्डमरुति"-रति । ow ee cee aap ei eee To ae rare AD a ae # इत्थमेव पाठ; wat! मम तुः मूलानयमकयप्रक्ाप्रनपक्षयो५- दति पाठः प्रति्ाति। ११६ | QUIET 1 यन्त vatfnd wa केतः खल्प्रतिपादक्षं मरोचिवचमम्‌,- "वरिम्ौधौपरिगतं विज्ञातं राजपूरूषेः ।* ` ` दिवा ररौतं यत्‌ केचा स॒ Rt लभते धनम्‌^-इति | तदेवं नाष्टिकेन साधितद्रव्यविषयम्‌* । श्रन्यथा, श्रय मूलमना- हायेम्‌,-दति प्रागदाहतमलुवचमविरोधपरसङ्गात्‌ । यदा क्रेता शच्छादिभिः क्रयं न विभावयति, नाष्टिकोऽपि eater, तदा नि्णयमा₹ह खरस्यतिः,- "प्रमाएरोनवारे तु पुरूषापेच्या नपः | समन्यनाधिकवेन खयं कुर्या दिनिणेयम्‌"--दति । नमु मानुपप्रमाणाभावेऽपि दिव्य विद्यमानलाग्ममाणएहोन- agua न aaafa । उच्यते । श्रस्यस्लामिकिक्रयविवादे दिथा- भावात्‌ तथा । "प्रकारं च क्रयं श्यात्‌ साधुभिर््ातिभिः सके: | न तचान्या क्रिया प्रोक्ता देविकौ म च मानुघो॥ श्रभियोक्ता धनं कुर्य्यात्‌ प्रथमं writ: खकम्‌ | पशचादात्मविशएद्यथं कयं केता खबन्धुभिः ॥- षति TIAA सारौतरप्रमाणएभावोऽवगम्यते। ATATS काल्याचनः,- “श्रद्धे इयोरपद्तं AY VAAN: | KAMARA दोषस्तथा चाप्ररिपाणशनम्‌ ॥ जनको ey EE कि = * gua प्राठः war) मम तु, तदैवं गाष्िकेवासाथितद्रथविषयम्‌) —tfa पाटः प्रतिश्रावि। † सस्म्रसामिविक्रवे दिव्याभावान्र थाः--हति का | यवशारकाशम्‌ | aye एतददयं समाख्यातं Tee Te । अविज्चातस्थानशतक्रटनाष्टिकयोदयोः"”-एूति। श्रल्ञामिविक्रेतुरिष खाम्यदत्तमुपसुश्चानश्य दण्डमाह नारदः+ ^उदिष्टमेव भोक्तव्यं at पग्रयवेषधाऽपि av—tfit | +शअविश्नातात्‌ क्योऽपिन्नातक्रयः। श्रथवा परमाथतोऽयं खानो- त्यक्ञानातकयोऽविन्नातक्रयः" | मरोचिरपि- “श्रविक्लातनित्रेशवाद्यच aut भ विद्यते | हानिं समा करा केदनाण्टिकयोदयोः ॥ श्रनरपितन्तु यो भुङ्के मुक्भोगं प्रदापथेत्‌ | श्रनिर्दिंष्टनतु age पाएलेचग्टहादिकम्‌ ॥ खयलेनेव zara: चोरवदण्डमहति। श्रनद्ाहं तथा धनु नावं दासं तथेत ॥ afafes स YMA दथ्ात्पप्वतुष्टयम्‌ | दासौ नौका तथा yale भन्धकं नोपभुच्यते । उपभोक्ता तु age wana विशोधयेत्‌ ॥ दिवे दिपणं दामों भेनुमष्टपण तथा । अथोदग्रमनद्धारं मत्यं ममिश षोडग ॥ नौकामशशच dae are कामिक च । बलात्कारेण चो YR दाय्चा्टपणं दने ॥ fy wees ens me eR eee = = => ~ a Wa यद्य qeifalaaaferaruay qe nfagy faa | enter arenes ate प्ररमादेशपुरसकेष THAT AI cfara: | + gute wat सन्म | ममतु, qi,—afe wre: प्रतिमावि। 38 २९७ प्रराश्ररमार्धवः। GIA TSA FITS पणदयम्‌ | gia च auger देविध्यं सु मिरमवोत्‌*-इति | श्रसखामिविक्रयारद्यं पर समाप्रम्‌ | अथ सम्भूयसमुत्धानाख् पदभु्यते | तस्य BEAT नारदः, ^“वणिकप्रश्टतयो यच wa" AT कुवते | त्छम्भमयसमुत्थानं श्यवहारपदं सतम्‌”-एति | तच्ायिकारिणे दभेयति शशसतिः,- कुलोमदक्षानणतेः WH: ATTRA fala: | श्रायवयन्नेः एूएविभिः शरेः कुर्यात्स क्रियाम्‌” इति | क्रियां रषिवाणिष्यशिदिक्रतुस्गीतसतेन्याद्मिकाम्‌ । नाणका- fama वाणिष्यक्रियायामुपयुच्यते | श्रायव्ययसानमाचं हषिक्रिथा- याम्‌ | सषीतादिभिष्विकरियायां प्राश्चलसुपयुच्यते । क्रतुकियायां तु कुलोनलयप्राज्नवशटदित्ादि। सेन्यक्रियाथां शूरवमाचम्‌। दचत्वा- नणसवे तु सवत्र पयुज्येते | श्रतएवादचादि निषेधति सएव, Commarea RAAT ACTA: | arfueqra: सरैतेस्त॒ न कन्तवयायुधरेः करियाः-दति । ये तु aya वारिष्ादिक्रिधां gata, ते द्रव्यामुसारेणे खाभभानः | तचाष खंरस्पतिः, | “प्रथोगं gaa ये ठ डेमघान्यरशादिना | कज ०१८०५००५ कन wh Ol rene 9०0 जोक जोन वोन केक >^ [0 © असंः--एति क(* | eR, — दति TTR प्राठः समौश्नीमः | VIVIAN | समन्युनाधिकेरगे्तभलेषां तथाविधः" शति | armada श्यादिरपि watery सएव, “मन्यनाधिकोवाऽ श्रो येन चिक्रस्तथेव भः | व्ययं Tara ङुर्ययात्ततसोषां ` तथा विधः"--ति | दरव्यानुसारेण लाभ इत्यस्वापवाद माह BT, — समवायेन वणिजां wart कम gaara | लाभानाभौ यथाद्रथं यथा at संविदा शतौ-ति। संविदा anda पुर्ष्िरोषानुमारेण, छतो कश्ितौ शाभालाभौ जेयो, न ठ्‌ Kraay: | भशूयकारिणौ TVA ATE, “समचमसमय वाऽरश्चयन्तः परस्परम्‌ | मानापष्डानुमारात्ते TR: क्रयविक्रयौ ॥ श्रगोपयन्तो भाण्डानि भनक दथ तेऽध्वेनि। शरन्यथा दिगुणं दाथः एरएत्कम्धामान्‌ वहिः शिताः" ea नारदोऽपि, “भाण्डपिष्डययौ द्धारभारसाराशवेचणम्‌' ^ । कुरसतेऽयमिदारेण समय खे व्यवद्धिताः-इति | ee 2 oo. yee दत्यमेव पाठः waa aa gq, कुर्यात्‌ नभलेषा-- षति पाटः प्रति भाति | grata ata ग्टक्तेत way, — era यश्यान्तर्शतः UTS! | १0 17 me om pea oo) +0 wry (x) भाद mrenfamreraaze: | firme माचेयम्‌ । अयो वेतनम्‌ । उङ्ञार- रसतात्‌ देयदरद्यात्‌ प्रयो नविष्रषादाकरषणन्‌ | MLTAG | चार्‌ nee चन्दनादि | waa रचणयोगनादि | दति विदादर्छा- HTT आद्या | २९१ पयशरमाधवः 1. सन्भुयकारिणां परस्परं दिवादनिषेवग्रकरमाइ wee fa:,— “acatar: साचि तएवोक्ाः प्ररस्परम्‌ | संन्दिधेऽथे agarat ते म चेद्‌ देषसंयुताः+ ॥ a: कञिदश्चकस्तेवां विज्ञातः क्रयविक्रये | maw: स fame: खात्‌ सरवेवादेव्वयं विधिः दति | देवराजक्तद्रयद्दानिविषयेऽप्यार सएव, “चया निदा तच देवराजृता षेत्‌ | स्वेषामेव सा परोक्षा क्पनौया यथाऽ ग्रतः”- इति | चयायेव हानिः चयदहाभिः, म तु sarge aa प्रातिखिक- दोषेण FAA सणएवाद,- “श्रनिर्दिष्टो वामाणः प्रमादादर्यस्त नाशयेत्‌ | ` तेनैव agiza सेषं समवायिनाम्‌" दति | श्रनिर्दिष्टः समवाय्यः, नतु श्रसुक्नातः। चौरादिश्वः पालयितु- लभाषिक्यमसोत्याह काल्यायमःः- “चौरतः सलिलादगनरेवयं यस्तु समाहरेत्‌ | तसां गौ amt देयः सवद्रयेव्वयं विधिः{”-दति | समाहरेत्‌ Wet परि पालयेत्‌ । ag समवायिभिः san धनं aaafafa ae प्रतिपादना- दिभिः a साधयति, aa लाभदहानिः। तदाह Teun, * म पेदिदरपसंयता५- दति म्राभतरतः Ts! | † प्रषासाथ,"~दइति ate | '‡ तस्यां दशमं दला VHS ततोऽपरम्‌+--दइति पाटाश्वरम्‌। STUCK | ९९१. “समवेतेस्त यदं write’ तयेव aq म याचते च यः कथित्‌ wary परिरोयते"-इति | सर्वालुगतः wat कायमेकएव Faiz । तदार सएव,- "बह्कमां सम्मतो यस्तु रद्यादेकोधनं मरः | करणं कारयेदाऽपि सव रेव एतम्भवेत्‌"-इति | करणम्तरस्यादिकम्‌।। सम्भयकारिणाग्टविजां फनतव्यमाह मनुः, “विजः समवेता यथा सत्रे निमन्तिता; | कुयरचथाऽरतः कमे रहो युदं चिणाम्तथा"--दति | तयेति कर््ातुमारेण efaui खन्रोयुरिव्ययः । तथाच सएव “सुय सानि कर्माणि कुवंद्धिरिष मामः | श्रनेम कमयो गेन कर्तं खां रस्रकन्पयेत्‌ "~ इति । दयं चा शकन्पना “तस्य दाद्‌ पश्रतं द विणा" दयेव कतुसम्बनि- माजतया विरतायां दत्तिणायासेव, न खलि नि शषो्ेखेन faty- तायाम्‌ | श्रतषएवोकरं तेनेव, “रथं हरेत वाऽध्व्तरेद्याऽऽधाने च वाजिनम्‌ | war इरेत्तपरैवाथ्ं seat चानः wale । दकिणाश्रकल्यनामाद्‌ सएव, [न प "1 anand क जक -००५५०००००- ~~ ५ = * इत्यमेव पाठः Bead | AA 4, waite, —axta पाटः प्रतिमाति। †-करशं लेखयादिकम्‌,- ela रिविदगनक्रयाद्या | on ee = ५ ० ee ene te AAD ieee Heme etae oot oh ee a fem SA IE. SE (९) केषधांचिन्डाखिनामाधने भष्नव्यत २्थश्चाश्रायते, Aa बेमबा- मखः WIT चाश, BA सोमोदाङइकमनः शकटम्‌ | दति ` SBE UST | २९२ QUILT | "सर्वेवामर्पिनोमुर्यासदर्धनाधिमोऽपरे । दती यिनसनीयांपराखदरोयां प्स पादिभः“--एति। मरां पोड्रलिंजां मये सुण्याञ्चलारोरोजध्वय ब्रह्मो दतारः | ते गोग्रत्या धिनः, सर्वेषां भागपरिपूणापयत्तिवशादाथाताष्टाचला- रि्द्रपारदधणाद्ंभाजः) WIT मेजावरुणप्रतिप्र्याहग्राह्मणएच्छसि प्रस्तोतारस्तदद्धिनः घनसुव्याश्रस्यादून चतुविश्रतिष्टपेणद्धभाजः ये पुनस्ततौ यिनोऽच्छावाकनेश्नौ प्रतिरत्र हतौ चिनोसुख्या शस्य दोडशरमोरूपहतीयांग्रभाजः। ये पादिनो ग्रावरोटनेढपोटस॒ब्रह्म- प्यास मुख्यस्य भागस्य VATA दादशगोरूपेणं श्भाजः | मुख्यानां aut मिथो विभागः समलेभेव \ एवं तदनन्तरादौनामपि मिथोवि- भागः) तथाच कात्यायनदूवम्‌ | “दादग्र दाद गरायेभ्यः षट्षर्‌डितो- येभ्यः चतसश्चतखणतौयेभ्यसि खलिः दतरेभ्यः"--दट्ति। खको- यकम॑कलापस्याश्रश्याऽकरणे इतानुमारेएए भागोदेयदत्याह मनुः,-- Cafanate टतो यशे कमे THT | aw कर्कानुष्पेए देयोऽ श्रः een भिः--दति । सहकर्तृभिः" सभरूयकारिभिरिष्ययः | RATATAT faut ददयादिल्युक्षम्‌ | तख afecqareare घएव,- "द्चिणसु WATS खकमं परिहापयन्‌ | छत्घमेव रमेतां गमन्येनेव च कारयेत्‌”--इति । रयन खखगणवन्सिनां मधे TTR) कमेमध्ये छलिक्षरणे" नारद्‌ श्राह * इत्यभेव पाठः स्येव । मृम तु, ऋलिक्मरये--दति पाठः प्रतिभावि | शकशारकाणम्‌ | श “विजां व्यसनेऽणेवमन्यलत्छमं विरहरेत्‌ | लभते दकिणाभागं च तस्मादन्मरकर्पितम्‌ "एति । घशथकारिणं छतिकराणां angry रदस्य तिः, “gaa नगराभ्यासे तथा राजपथस्य च । ऊषरं मुषिकव्याप्रं रेवं aaa वजेयेत्‌"-इति | वाद विवन्नैनोयानाड मएव-- “हृष तिष्ट ag च रोगिणं प्रपलायिमम्‌ | काणं खं विनाऽऽदघात्‌ बाद प्राशः छषोवलः- एति प्रातिस्िकदोषात्‌ फलदहानो विगषमाह रव, नवादतौजात्ययार्यस्य चेतरडानिः प्रजायते | तेनैव सा प्रदानव्या सवषां हषिजो विनाम्‌”-इति । बाद्यवोजयदणं रंधिसाध्नानासुपलकणाधेम्‌ । सनभूयकारिणां fafaat विभागमाद सवे-- "हेमकारादयो oa fred मनुय शवेते | aid fads wate Gers WAL TTA निरविग्ौगटतिः । कात्यायनोऽपि, "रिचाकारि्रङ्ग्ला, श्राचाय्यदधेति forint: | एकदिजि्तुर्भागान्‌ vitae यथाऽ प्रतः” ThA । सेनाम्‌ HATE सएव "छखाम्यान्चया तु TRIS! परदेप्राष्ठमादइतम्‌ । राजे दला तु षड्भागं HAZE चचाऽ WM ॥ एकक क eee ee अं Ponte भज * .सियदसिजकशलाः--ति राक्र टतः पाठः । ere URTWEAT HT | चतुरोऽ शान्‌ VIS CRM | wag Vtg wore waif दति | परदेशात्‌ वैरिदैगादिल्यथेः । मवलवेरिदेद्रादाइतधनिषय- मेतत्‌ । दुबेलवेरिदेश्ादाइतविषये ary का्यायनः,- “OUTST वख चोरेखेदान्चयाऽऽइतम्‌ | राजे quinggy विभजेरन्‌ यथाविधि" दरति । शग्परयसमुत्थानास्यं पद्‌ समाप्तम्‌ | ~ कू ~~ अथ दत्ताप्रदानिकास्यं पदमुच्यते | तच नारदः, “ट्वा द्रव्यममम्यग्‌यः पुनरादातुमिच्छति | दत्ताप्रदानिकं नाम तदिवादपद्‌ इतम्‌ ॥ श्रदेयमथ देयं च दत्त चादन्तमेव च। व्यवहारेषु विन्नेयो दानमागेखतुविधः"-दति | श्रदेयखश्पभेदानादह टदस्पतिः,- "सामान्यं पुत्तदाराधिषवसखन्यासयावितम्‌ | प्रतिश्रूतमयान्यसछ न्‌ देयं वष्ट्या रूतम्‌"--दति । सामान्यमनेकखत्वका रण्यादि । नारदोऽपि, “्रन्वाहितं याचितकमाधिः; साधारणश्च थत्‌ | निकषं पुजदारश्च aad चान्वये सति i श्रापत्छपि हि कष्टा कन्ेमानेभ देहिनि | श्रदेयान्याहराचा्या चश्वान्यदौ परतिश्रुतम्‌^--द्रति | area: | श्रतएवे कस्य पुज शयवहारकषाखम्‌ । २२१ शरन्वाहितादिवत्‌ सलौ धनमप्रेयम्‌ | अतएव दक्ष, Cora याचितं न्यासश्राधिदराख तद्धनम्‌ | अन्वा द्दितिञ्च faad vad अन्वये सति ॥ श्रापत्छपि न देयानि भव व्छनि पण्डितैः | यो ददाति ष मृढ़ात्मा प्रयञचित्तोयते नरः"'-द्ति। श्रदेयदाने प्रतिग्रहे च दण्डो मनुनाऽभिहितः- gra ay गाति यश्चादेयं प्रयच्छति | ताबुभौ सोरवन्क्ास्ो दण्ड्यौ चोत्तमसाशषम्‌”- इति | श्रदेवग्रहइणमदनतस्याणुपलक्षणा्ेम्‌ | HALT ALA "दषात्यदत्तं यो शोभाद्यश्चादेयं प्रयच्छति | दष्डनोयावुभावेतौ धर्मज्ञेन मरौचिता"-दरति | किं तरिं देवमित्यपेलिते मएवाश, “कुटुम्बभरणं यत्किञ्चिदतिरिच्यते)। तदेयभुपर्द्ान्यत्‌ दर्द षमताशुवात्‌”"-दति । भर्तव्य GATT | कात्यायनोऽपि.- gig WEI कुटुम्वभरण्ण धिक्रम्‌ | aga ATA दयमद्‌यं स्यादनोऽन्यथा"--इति | याश़वख्क्योऽपि,- “ag हटुभ्नाविरोधन दयं दारखताड्ते"- दति | सृतश्यादेथलं एकं पु्रविषयम्‌ | तग्यापि दाने कृते मन्तानविष्डे- स्य दानं निषेधति वसिष्ठः । “भ लेगा युजं दधात्‌ मतिग्क्तौयादा 4 दि सन्तानाय Gaara” ete । | 2 ` ". २९६ UIATATSH ‘ore gaara afi aera | विक्रये चेव ङाने च विलं म gata’ —cf | एवभादौनि सृतख्ारेयलप्रतिपाद कानि वचनान्येकयुजविषथा-. फौल्यवगम्यते | अ्ननेकपुच्धेव्वपि माता पिदिवियोगशहम्मएव Te: | “विक्रयं चेव दानं च म नेयाः श्र निश्छवः। , दाराः Garg wear तु योजयेत्‌”-इति काल्यायक्मरणात्‌। म नेयाः खरनिश्छव इत्यनापदिषयम्‌ | `“श्रापत्कालेऽपि are दानं विक्रयएववा | अन्यथा म प्रवर्तत दति शाश्विभिखयः"-दति atari तेनेवोकषलात्‌ । gaa प्रतिग्ररमकारविगेषो- afaga दशभ्ितः। “पुश्ं॑प्रतियहो्न्‌ बन्धूनाङ्ृय राजनि च faty निबेशनस्छ मध्ये व्याइतिभिषेलाऽदूरवान्धवमससिषष्टमेष सक्ोयात्‌"- दति । अदरवान्धवं सन्निहृष्टमातुलादिबाग्धवम्‌ | sufuas सजिशटभाषपुष्ादिष्यतिरि कमेव । श्धावरविषये देयं Bary प्रजापतिः, “स्तागमात्‌ ग्ठेचाद्‌ यद्वत्‌ VT WU | ‘faay वाऽय we प्राप्त तहातव्य विवकितम्‌”--इति। ` सपरभ्यश्रागमेभ्बो यत्‌ mitt safes स्वाकतदतव्यलेन विवकितमिति। खयं प्रातं द्रष्ये अविभक्रधनेभ्नाद्भिरमतुक्ातमपि देयम्‌ । “खेच्छारेय सखयस्माप्तम्‌""-इति हदस्पतिवचनात्‌। चकु तेनेवोक्रम्‌,- | | “faapet वाऽविभषह्ा वा दायादाः Gat षमा; । ववहारकाखम्‌ | ` ene एकोऽखमो ग्रः सवेन दानाधमनविक्रके"-दति | तदविभक्रश्यावरविषय, सप्तानधिकष्वावरविषय वा । षा- भिकश्ेव देयवेना भिधानात्‌ । किंचिद्‌ भां भाय्ययाऽशुद्चातनेष देयम्‌ । किचिदासेम स्याजितमपि aru देयम्‌ । तथाच एव, | ‘“Harfea कमायातं गो पाप्तशच . यह्वमेत्‌ | सतौज्ातिखाम्यनुकनातं zi सिडधिमवाभरुयात्‌^-इति | खौ दायिकं विवाहलबधम्‌ । क्रमायातं पितामहादिक्रमायातम्‌ । aya सावगेषं देयम्‌ । ‘Barfea कमाथाते सवे दानं" a विद्यते-षति तेभेवोक्रलात्‌ | cat देयादेयखरूपंनिरूपितम्‌ । दन्नादन्तयेम्त्‌ SET freee तज दतं स्तविधमदन्तं षोडशात्मकम्‌ । तथाच नारदः, "दन्तं सप्तविधं HATH ष।डगराकम्‌ | geal शतिम्दष्या AUT] HATHA: ॥ सो एएस्वाणयहा्श्च दत्तं दानविदो विदुः । BSA भधक्ोधश्नोकबेगानुगर्गितम्‌ ॥ तथोत्‌कोचपरो CATT TTA: । arene Tem a TN TTA TOTAL ॥ ममायं कर्ति प्रतिशानेच्छथा च यत्‌ । sare orate काथं wrested + „ इत्यमेव पाठः HAT | मम तु, SRT, aL प्राठः प्रतिमावि। २९८ पराशरमाधवः। wed स्यादविज्चानाददन्तमिति तत्‌ रतम्‌“ दति | पस्य क्रौतद्रयग्य We । ulated wae दन्तम्‌ । am वन्दिचारणादिग्यो दन्तम्‌। खेहाहुहिष्रादिभ्यो दशम्‌ | MIATA: STATA प्रत्युपकारङ्ूपेणए द म्‌ । wire परि- एयनाथं दन्तम्‌ । ATTY श्रदृष्टाथं * दत्तम्‌। तदेतत्पण्यमूख्यादि सप्तविधं दत्तमेव न प्रत्याहरणौयम्‌ | तथाच UTA: — “a प्रतिगरृतश्चैव दला नापररेत्युनः"-इति | भयेन वन्दिग्रहादिभ्यो दत्तम्‌ । क्रोधेन पुज्नादिविषयकोपनि- ्यातमायान्यस्मे दन्तम्‌। पुच्तवियोगादि निमित्तश्नोक वेगेन दन्तस्‌ । उत्कोचेन काय्यप्रतिबन्धनिरासायमधिषतेगभ्यो दन्तम्‌ | परिहा- सेनोपहासेन दत्तम्‌ । RaW दत्तं एकस्य RAAT ददाति, दामबल्यासेन दन्तं WR दातव्यस्यान्यसी दानम्‌ । इलयोगतः शतदटानममिषन्धाय सहसमिति परिभावय दन्तम्‌ | बालेमाप्राप्रषोड्ग्रव्रए दन्तम्‌) मूढेन लोक्वेदानभिशेन दन्तम्‌ | Tara पुल्लदासादिना दत्तम्‌) wha रोगोपदहतेन दन्तम्‌ | waa मदनियमितेन, sata वातिकायुग््ाद यस्तेन श्रपवजितं दन्तम्‌ । wi मदौयमिदं करिषतौति अरतिलामेष्छया प्रति- लाभमकुर्वाणाय दत्तम्‌ श्रयोग्याय योग्योक्तिमाचेण दन्तम्‌ ) ay करिष्यामोति धनं wayr. garet विर्निथुन्ञालाय दन्तम्‌ । एवं ayaa दत्तं पुनः प्रत्याहरणोयलाददन्तमिद्युच्यते ।. तथाच काल्यायनःः- व व र व, [किक | ~ ~ = ~~ ~+ १ 9 न भी योक ew we + खदृराधः--इति का" Tey नालि । TATA | | wag: ^कामक्रोधारूतन्ाद्ा HATTA EA: | व्य्यासपरिशासान्च यदुं तत्पृनहरेत्‌ ॥ या तु aera शद्यथमुत्‌कोचा स्णतप्रतिच्ुता | तस्मिन्नपि प्रमिद्धेऽये" म देया स्यात्‌ कथञ्च ॥ श्रय प्रागेव दत्ता स्यान्‌ nfaara. म तां बलात्‌! दण्डञचेकाद प्गणमाङर्गागो यमानवाः "दति । उत्‌कोचखरूपमाह सएव, “लेष्टसा इसिकौटृत्तपारदारिकसम्वात्‌ | दशेनाट्ृत्तमष्टसय तथाऽभत्यपवन्तनात्‌ ॥ प्राप्तमेतेम्ठ॒ यत्कि्चिदुत्को चास्यं तदुच्यते | न दाता तत्र दण्डः खास्मथद्यदेव दोषभाक्‌" षति । मध्यस्य क्रानुवादकः(। चक।रात्‌ VA: समुश्चौयते। ताबुभौ दोषभाजौ दण्डमोयापित्य्थः। ्रात्तद्‌ ेत्यादिकं तु wierd व्यनिरिक्रविषयम्‌ | तथाच मएव, “aearia वा दत्तं रावितं धन्मकारणान्‌ | Za तु सते दाणत्तत्घुतो नाच ane.” Tha | मनुरपि सोपाध्िकदानादर्निवत्तनोयतामाह- "योगाधमनविक्रीतं योगटानप्रतियरहम्‌ | — «+ ५ ~~“ ~ ~~~ 7 7 Oy nae अज ००० अन क्७ iM = = == « इत्यमेव प्राठः सनव । तसित्रथंःप्रसिङ वुः--ध्ति म्रन्यान्तदौव Tse लमोचोनः † श्रंसनाव्‌,--दति यन्यान्तरढतः प्राठः | { उक्नापादक+-दइति ate | २६० UIRMEATT | थच वाऽ्ुपधिं पयत्‌ तत्‌ से विभिवत्तयेत्‌”-दति | योगखपधिः । श्रदेथदामतश्मतिप्रयोदंण्डो नारदेनोक्रम- "दर्षाव्यदन्तं योलोभाद्यञ् देयं प्रयच्छति | श्रदेयदायको* TTA ST AAALAC । इति दश्लाप्ररानिकम्‌। विविनक्ति श्रथ चेतनस्यानपाकम्मास्यं विवादपदमुच्यते, AQ PIAS नारदः “सत्यानां Javea दानादानविधिक्रमः। ्रतनस्यानपाकम्मे तदिवादपदं सतम्‌" दति | dad ee । तस्यानपाकम शटव्यायासमपेणं समर्भितस्य परावन वा । तन्न समर्पणे विगेषमाह नारदः areata वेतने ददात्‌ AHA यथाक्रमम्‌ | श्रादौ म्यऽवसाने च aout यदिनिथितम्‌” दति । एतावदेव तत्कैकरणदास्यामोति भाषाया शरभा विगशेष- माद सएव,- | ‘aarafafgararay HATTA AS: | लामगोवोययशरस्यानां वफिम्गो पक्षौ वलाः” दति | ADA पा्यमानगवादिग्रमवं पयःपरति । यदि aware सत्याय ae भागं न प्रयच्छति, तदाऽघौ राशा दाप्य इत्या »* दापको,-दति we | AYA | qrarey THe भागं ATP MTGE | afafaa ति ay कारये मरोदिता- इति । यत्तु इषस्यतिनोक्रम्‌ः- नजिभागं पञ्चभागं वा WAT TATE EL । .. तदायासषाध्याद्च्टकेजकविषयम्‌ । तजापि भिभागपद्लभागौ थवस्थया विकन्धिलौ बेदितयौ । तथाच सएव “भक्राच्छादश्तः सौराद्वागं wet पञ्चकम्‌ | sare जिभागन्त्‌ प्रटहोयात्तथाखतः-इति । श्रनाश्छादानाभ्धां शतः atlas: चेननातशात्पश्चमं भागं away) anand भागभित्यधेः । एतावदाख्ामोति परिभाषायां सत्यामपि किन्ततोन्यूनं खामिबुद्धिपरिकशपितं aaa Za, कवित्ततोऽपयधिकं देयम्‌ । AY याश्जवर्क्यः,- "देशं कालश्च योऽतोयाश्ाभं gay योऽन्यथा | तदा तु ख्ञामिनः इन्दोऽधिकं देयं ततोऽधिके"-दति । यः ्टाम्याज्ञामनम्तरेण वाकिण्यादिणाभखाधनदे ्रकालातिक्रमं करोति, ल्लाभं च बङतरव्ययकरष्णदमपं करोति, aA खनौ सेष्छातुसारेण किश्चिदथात्‌ । यस्त॒ सखातग््येए sword करोति, तसे परिभावितमू्याद धिकं दे यमित्यथैः। अनेकमत्यकदेककंकोणि वेतनापेणप्रकारमार सएव,- ‘at यावत्‌ क्रियते कं तावन्तश्य तु बेतनम्‌ । उमोरणसाधयं चेत्‌ era कुयात्‌ यथाश्रुतम्‌" एति 1, . दा gata कषये नियतवेतनबुभाग्वां वनिं नियमाद्‌ RRR पराश्नश्माधवेः। मुभयोरणथसाध्यं॑चेदुभाग्याभेवापरिसमापितं ; तदा थो चावत्क्र- करौति, TA तत्वर््ालुसारेण मध्यस्यकर्ितं वेतनं देयं, न पुनः समम्‌। साथे उभाभ्यां wate परिशमापिते तु थथा्रुतं यथावत्य- रिभाषितं तावदुभाभ्वां देयम्‌ । नं पुनः येकं BEAT देच, नापि कर्मानुरूपं परिकल्य देयम्‌ ) शल्यानां कटेवमाह भारदः,- “कंश्मीपकरणं तेषां क्रियां प्रति यदाहितम्‌ | श्राप्तभावेन A न Aga कदाचन्‌" इति | तेषां क्खाभिनां कश्षापकरणं साश्रलादि क्रियां उदिश्व ufaa ea निदितं, तेन सवेदा निःगायेन रच्चमित्यथेः | रद- सतिरपि- waag न aaa खामिना waaay | wfaefa समाप्नोति ततो वादः प्रवन्नते--इति। यस्तु तिं alae कम्मे a करोति, तं sare सएव, “ग्रदहोतवेतनः कके A क्ररोति चदा wa: | waged दाप्यो feat तच्च वेतनम्‌"-इति । श्रगटहोतवेतन्‌विषये याश्चवषफ्य श्रा, “प्रगते ममं दाप्यो way उपसरः”--इति । ad, यावता Fata अत्थतवमङ्गोहतं, तावदेव खाभिने दशात्‌, म तु राशे दण्डभिव्यथेः। यदा, श्रचाकुगोसबेतनं दला बला- त्कारयितव्यः | तदाह नारदः,- “कर्माङ्वेन्‌ प्रतिशरुश्य काचादला भतिं were | शतिं ग्टहोलाऽहुरवाणः दगुण अतिमाभुयाग्‌"-दति । QTC शरम्‌ | REE प्रतिभत्येति प्रारध्याणुपलदणयेम्‌ । ETE कात्धाचनः,-- ` “कारमं तु यः हला सथं नैव तु कारयेत्‌ | बलात्‌ कारयितयोऽसावङुग्यम्‌ दण्डमङति | स चेन्न Healy तत्के परागुयाद्विगणं eA” ThA \ ford कार्षापणद्धिग्रतमित्ययेः | ay ममुव्नम्‌,- “शत्योऽनान्तौ न gaig at दपात्फ्मं थयो चितम्‌ । ख दण्डयः रष्णणान्य्टौ 4 देयं ae वेतनम्‌"--इति | तद्धावरे षितविषयम्‌। किशिश्माचाषगेषे तु दण्डवजबेतना- . दाभम्‌ | तदाह एव. "'यथोक्रमान्तः ख्यो वा यस्त॒ कम्मे न कारयेत्‌ । म तस्य aad देयमन्पोनस्यापि क्मणः"-दइति | यसु काणविगेषादधिकं aa प्रतिश्चाय कालात्पेमेव कषम त्यजति, तं प्रया नारदः,- | mae त्यजन्‌ TH खतेर्गाप्रमवाभरयात्‌ | ख्ञाभिटोषादकरणे यावह्ुतिमव्ुयात्‌” षति । सखाभिदोषात्‌ पारखकरणादिख्लामिदोषात्‌ | नारदः "माण्ड श्यसनमागच्छेदयदि वाहकदोषतः | greens नष्टं स्यादेवराजरतादृते” दति । बाहकदोषतः तकदोषतः | SEAT का मीं (९) श्तद्याख्ागदग्रमात्‌ दिशतं दममिति पाटः प्रतीयते | wane parery लमैतजेव faga दममिति wtatyraa | 30 age TRACY | “sararatfad are: ea faxrenfaar । म तु cet wettdds जलेन वा-इति | grentid तोव्रपरहरार्दिना दरेण नाशितम्‌। बद़मनुः,- “अः करममकाले Ura न garfewaretq | अद्तयान्यसह कायः स्यात्‌ ख दाप्योदिगुणां ऽतिम्‌-दति। THI": .— “श्रराणदेवकाधातं भाण्डं STAG वाहकः | प्र्ानवित्रटचैव प्रदाप्यो हिगुणां तिम्‌ i maT सप्नमं भागं चतुथं पयि संत्यजन्‌ । कतिमद्धेपये स्वां प्रदाणद्याजकोऽपिष"-दति | श्राजदेवकोधातो चस्य भाण्डस्य, तद्यदि परज्ञादोनतया वाहकेन भागते, तदा वकूष्धानुसारेण ARG areata: । ey प्रखान- शप्रसमयएव Wc Ay त्यजन्‌ प्रसानविप्तं करानि, तदाऽसौ दिगण शतिं दाणः । ag श्द्याकरोपादानावसरसश्भे खाङ्गौरतं कमो जति, wet भत्यः सप्तमं भागं दाणयः। यः पुनः पचि mart गममे वनतमाने सति कमं त्यजति, स शतेखतुय भागं दाणः। शङ्धपये त्यजन्‌ खवांश्तोदापनौयः। ag, सानौ wa खयमेव कमं areata पूरी कदेगेषु, असावपि पूीकलप्तमभागा- दिकं areata: | एतखायाधितादि विषयम्‌ । व्याधितच्छपराधा- भावात्‌ | यदा पुम्यांभितो याध्यपगमे तदितरदिवसान्‌ परिगणर्ग्य पूरयति, तदा wanes eat तिम्‌ । तदाह मनुः, | “srt ख हरात्‌ we: सन्‌ धयाभावितिमारिकः । qzraerfa saree amas बेतनम्‌"--द्ति | rary खामिनदतुधेभागारिदापनमविक्रोतभाष्डविषचम्‌ ! fara तु भाण्डे विग्रषो रद्धमनुनाऽभिदहितः- “ofa विक्रोय agree वणिमुत्यश्चनेर्‌यरि | श्रगतस्यापि९ देथं स्यात्‌ ATS लभेत w"— ThA । aaa प्रतिबद्धभाष्डविषये राजा्चपहतभाष्डविषय" शाह कात्यायनः, “get च पदि तद्वाण्डमासिद्धत fret वा । यावानध्या गतस्तेन ATTA, तातो मतिम्‌"--इमि। भाटकश्चोकृतेन यामारिमा भाष्डनेतर METS ATS: नश्रानोय भारवयिला तु भाष्डवान्‌ GTA EA) । grat wa: चतुर्भागं सर्वामद्धंपथे च्धणम्‌ ॥ area वाशकोऽयेवं भति्ानिमवाशरुथात्‌ "इति । द्यः ्रकटादिकं भाटयिला तदेवोपकार शन्वमादाय दिभा- = ००० न~ et ^ एव td cccenmy mae [का reaanee ea AIRS POPPI 1 ~ ener a eiipench ren DOE न © EMIAT पाठः Bam | ममतु, सजाद्यपदतमाण्डविषमे,---ति Ws ufaatfa | + gata पाठः wale | ममतु, यदए-षनि प्राठः प्रनिभावि। ] इयमेव पाठः सम्ब | ममतु उपण्डर,-- दति पाठः प्रतिभाति । we परथ | वा षी णा mee stn eS (९) ष्थगदख्छाभि यावम्‌ यन्तदयमगवस्यापौति SSAA वाल्ला | (x) आकवान्‌ खामो | यानं प्रकटाटि | वाहनमनशवादि। eee WEAN | MUP EA भाटकः* | उपकारश्रब्देन तदाधारोशच्छते। परमौ ग्रहनिर््राणदिभारकदातारण्मद्याह नारदः+ “Oat गदं wer ata’) दला वरन्त a | स agevien निगेष्छेत्‌ दएकाष्टामि च्ष्टकाम्‌"-दति। तथा,- | “स्तोमाटिना वसिता तू परण्धमावभिखितः। जिगच्छंलएकाष्टादि न ग्टक्ञौयात्‌ कथश्चम ॥ यान्येव awarstfa लिष्टकाविमिवेभिताः । विभिगेच्छस्त॒ तत्सवं शमिखामिनि बेदयेत्‌”--ईति | afafga: दणएकाष्टादिषणापरिभाषायामिद्ध्थेः। परिभा- षिते तु थथा परिभाषा तथेति। वेदयेत्‌, भिवेदयेदिव्यथेः | भारक दषा द्रयाद्यपणथं गटहोतमणिकादिपाचमेदनादावष्याद सुएव,- “सोमवाहोनि भाण्डानि पू्कालान्यपामयेत्‌ । UATE AS aera संक्षवात्‌"-दईति। daa: परस्पर संघषैः। तेमार्पकेन areas वा भिन्नं gaa भाण्डंवा THe वा सामिमे देयम्‌ । VATE भरे तु भारकष- गरहोतुरेव तदित्यथैः। waa were वेतनादातार ग्र्या इृसतिः,- ` * इत्यमेव पाठः सर्ज । स भतिं न भा्रयात्‌,--६ति wefan भवितु युक्षम्‌ | 1 तेम Sareea ate | 1 17 Pk ए 1 7 ० we ect outa कठ श PIPING चदि een et, a (९) सोमं वासमूण्यम्‌ | व्यवहारकषाशम्‌ | “हृति कणि चः eral न दधारेतलं ते । राजा दापयितयः शात्‌ विनयं चारुष्ूपतः'“--इतिं । faan wa पयि त्यजतो TATE काल्थायनः,-~ "त्यजेत्पयि सशाथं यो अत्यं रोगामेवचे | प्रा्रुयान्‌ साहमं पू ग्रामे हमपालयन्‌"--इति | पष्छस्तरोलदु पभोक्रविषये ae मारदः,-- “qe welt UE नेच्छमतौ fag ase" । श्रनिष्छन्‌ श्ररस्कद्‌ाताऽपि एस्करानिमवाभ्ुयात्‌"-दति | एतदव्याधितादिषिषयम्‌ । व्याधितविषये तु MEAT "व्याधिता मंभमा यग्रा राजाधम्मपरायणा । mieten च नागच्छेत्‌ श्रवाश्था TAT GAT’ — UL । शर्यन्तावण्धके जातसम्भमा सन्भुमपदेन ST | तेव ग्याङ्ुला शयया | बडवा दामो । दानोगदणमत्र पण्धस्तोप्रद नायम्‌ । छप- भोक्रार प्रत्याह नारदः “प्रयश्डन्‌ तया wep पुमान्‌ faa | aanu च सक्गच्हातयेद्ा मखादिभिः॥ watt यः समाक्रामेदडभिवां विवाखयेत्‌५ | [ण श वि eee #+ तदा,+--दति He | † गडु,--द्ति का० शा. | ` पठे quate कामश्राखोक्तपरकारविसोधेन । चावयेद्ा नखादिमिरसिमि- आप्येवदलुष्ननौयम्‌ । अयोगो मुखादौ, समाकजरामेत्‌ awe gaatq । आत्मां माटयिता बङनिः Tee: ey fetta Tee: दिति व्षनाधः। oe ee meres ee 2 1 1 pment sens ge OUTTA: t wen aed arent fame तावदेव त्‌"“-दति | प्थस्तियास्वपराधे दण्डादिकं मश्छपुराणेऽभि्दितम्‌,- “sete वेतनं वेश्छा लोभादन्य्न गच्छति | तां दमं दापयेद्धन्यादिव्यस्यापि ध भाटकम्‌"--इति। aq fataare नारदः+ | “वेश्या प्रधाना ATT कारुकाः तद्ग्टहोषिताः। त्मुत्येषु aay निशेयं संश्रये विदुः"इति । इत्यं वेतमस्यानपाकश्ामिहितम्‌ । अयेदानौमभ्युपेत्या FAT विवादपद्‌- मभिधौयते। AM खरूप नारद श्राश्.- ‘mate तु wget wet न प्रतिप्थ्यते | ATAU NG ATALS वादपदमुच्यते-द्ति | ` शआरन्नाकरणं WATT । प्गूषकश्च पञ्चप्रकारः । तथाच सएव “aya: पञ्चविधः mrad दृष्टोममो षिभिः | तु विधः कथकरः शेषा दासास्तिपञ्चकाः ॥ गिष्यान्तेवासिश्वकाः wae frase | एते RURUTHA STATS गदनादयः ॥ सामान्यमसखतन्तलं तेषामाङमेनौषिषः । errata) विषो efaaeren ॥ waite fafad dead शभमेवच | WA TRA WHRTRT सतम्‌ ॥ - ग्टददरारारएचिस्थानरण्याऽवखर शो धमम्‌ । गुह्ाङ्गसयशनो च्छिष्ट fear eRe ॥ द्वहतः सखामिनयाङगरूपय्यानमथान्तः | aes fara एभमन्यदतः परम्‌'--द्ति। तज श्रियो वेदकविधार्यौ । amare} तिष्पगिशाथौ । gee चः ae करोति, स wan) श्रधिकममेशत्वशम्ुवतामविष्टाता | sufeart उख्छिष्टप्रचेपाधंङ्गन्ता दिकम्‌ । अवस्करः ग्दवमार्जित- पाशा दिजिषधत्यागस्यानम्‌ | तकख विविधः । तदु तेनैव, “San, RO च मथ्यमस् शपो वलः | | gut भारवारौ श्यादिव्येवं fafaut अतः - दति | दाशखलरूपमपि तेनेव दभ्रितम्‌,- “जातस्तथा HAT MATA IATA: | अराकाणग्तसददारितः खामिना च चः ४ मोकितो महत्र्णदयद्धे प्राप्तः पणे जितः । तवाहमिद्युपगतः प्र्र्याऽबमितः शतः ॥ भक्षदासख दिच्चेयसतयेव वड़्वाऽऽइतः। विक्रेता चात्मनः ग्रासे दासाः पञ्चदश दताः“ CA ष्ककककाकृ श rah SUR CRANE wane OY om err ८७०) ore ५०० 9-१-५५ ee Aten? NET wor मि पि ७४१० ty arte सवक (९) merece धः कमारः स जातकन्मकरः। गन्यान्तरे तु नातिशवर इति पाठः) अजाप तचेवाधः। । [ UCTNCATHTT | UMA: BEY दास्यां जातः | श्रौतो yea) war प्रति- ग्रहादिमा | दायागतो रिक्थयाडिलेन uta: | अ्रन्नाकाशस्तः दुर्भि दासखाय पोषितः । fea: खाभिमा धमग्रहणेनाघोनतां नौतः) णमोषित खणमोचनप्रदयुपकारतया दाशत्वमन्युपगतः | TENTH: wat विजित्य zeta) पएविजितः दासल्पक्े gaat fara: तवाहमिन्युपगतः तव eretswtia खयमेवागतः | प्रत्रव्याऽवसितः PRAT: | तः MARTH, एतावत्कालं लं AEE TATA दूति | भक्रदासः Gaara wart एव दासलमभ्युपगतः। agaaT गदाया MYA: THA तामुदाद्म दामलेन भविष्टः। a श्र्मानं विक्रोरौते ्रषावात्मविक्रेता । एवं पञचद्शप्रकाराः। यत्त मरुमोक्रम्‌,- । “ष्वजाइतो भक्रदासो we: क्रौतदतिमौ | Qeat दण्डदासश्च सपेते दासयोनयः" दति | तत्‌ तेषां दासत्वतिपादना्, न तु परिसश्चारथम्‌ | श्र शिथाणं ककत विपेषो नारदेगोक्ःः- “at विद्याग्रहणाख्छिव्यः TAA प्रयतो WE । तहृन्तिगीरुदारेषु wage तथैवच'“- दति | विद्या चाच जयो । तदुक्तं इदसपरतिना,- “विद्या बयो समाख्याता शछयजुःखामलकणा | तदथं meat ngage प्रचोदिताम्‌"-इति | शन्तेवासिनामपि adedt विगेषसेेवोक्ः,- “anagea firs डेमरूप्यारिसंद्ञतिः । ववहारक्षाणम्‌ | ms प । ६ भंत्यारिकश्च ततप" इत्वं रोररे"-इति। नारदोऽपि “खं शिम्यमिच्छनवाहनतु मान्धवानाममु जथा | अआचायष्य qa are wer पुनि्ितम्‌"-दषि। wrersienfa कन्तव्यमाड षएव,- “gray: शिचयेदेमं खण्डे द्लभोजमम्‌ | MSTA पुशवचेगमाचरेत्‌"-इति । अन्यकर्रकारकमाचाय्ये ITE का्धायमः,-- Cag न area fire कश्ा्छन्यानि कारयत्‌ । MIATA ES पृषे तस्मात्‌ fuer निवकतेतेःः-दति। परिभाषितकालाह्मागेव विथाप्ापतावपि तावत्कालं बेरित्याहइ नारदः+ "मृचि ितोऽपि छतं कालमनोवामौ SATE | ara कमं च चत्‌ हुरययादाचाययसेव meme” TTA । याश्कसकधोऽपि, “दृत शिसपोऽपि निवसेत्‌ छतकालं ATER । gaara गरपराप्तभोजनप्तत्फशप्रदः”- एति | दुष्ट प्रत्याद नारद | QUAY यस्छाचाय्य परि्यजत्‌ | बलादासथितन्यः ष्यात्‌ वधबन्धं च खोऽहेति"- दति । ८.७७.७८ Be कैन्यन ॥ 4 oot ice oe aot 1 ws) मी कक १९ [क धि $ वत्‌ fant — fa यन्धान्तरव पाठः। १8९१ पराक ats ताद़नादिः। परिभाषितकाशलपूतती क्ग्यमाद aT | “"द्ररोतथिखः समये weiss war | शक्रितखानुमाग्ेनं अनतेवासौ निषन्तेते"-इति । तकानामपि तिरतः कालक्त्च विग्रेषो इहस्यतिना इगिति “a ae परदासोन्तु ख wet ayer: | कम तत्छ्ामिनः इयात्‌ यथाऽनेन wat मरः ॥ बह्घाऽथेखतः प्रोक्स्तथा भागव्तोऽपरः | array wera चोदितम्‌ ॥ दिनमाषाद्धैषण्सासतिमाशाष्दग्टतसथा | कग क्र््ात्‌ प्रतिज्ञातं लभते परिभाषितम्‌"-द्ति । चर्थग्तस्य TRUS BANTAM, TVA । ते चा्पल- ` भरले श्ह्मनुसारतो द्रष्टव्ये | तचा नारदः+ ‘weary निविधो Ha उत्तमो मध्यमोऽधमः | शरक्रिभक्षामुसाराभ्षां तेषां कर्माश्रया तिः"-दति। | arene देविथमाइ इरसतिः,- | “दिप्रकासे भागतः कृपणो जौषितः खतः । MATAR PTAA तु न संश्यः-इति। श्रधिकशुतम्त्‌ GET नारदः ` “qtafuent a: सयात्‌ Jere, तथोपरि | सोऽधिककतो जेयः घ. ख atefin सरतः"-दति । थवहारकाखम्‌ | श्यै । wt निङ्ूपितेभ्वेः frarinies weefeedetat qremt भेदं qremqurafaaingaay कालयानः, ` ` “PTR TA STATE TSM CAT EA । sea: | थथा ay: alters खप्ररीरदानादारलं, तथा खतन्नष्यातमगो दानादासलम्‌,-दति शगुरा शाीमन्धते,-दति । तेन सात्यकपार श्थेमासाद्च WANA: Te: arerelarearere एमरूषकाः कोका cen भवति । creme बाह्एव्यतिरिकरेगेव ` faq वसवु fate) “are fare a कथित्‌”"-ति तेगेवोक्- ary | तेव्बपि दाद्यमानुलोग्यनेवेत्या इ बएव,- नवर्णामामानुलोग्येन दास्यं न प्रतिशोमतः। राजन्य श्मशचद्राणगधजतां हि खतन््रताम्‌"-इईति | प्रातिशोन्येन दामलप्रतिषेधः खधम्मपरित्या गिन्योऽन्ब् Kee: | तथाच नारदः . (दर्णानां प्रातिलोग्येन erat म विधौथते | खध्त्यागिनोऽन्यज दारवदासता मता'-इति | रारवद्‌।सता मतेति वचनात्‌ ब्राह्मणच उवे परति दाषल- भामाण्माह कात्यायनः, “शरवत तु fare qed नेव कारयेत्‌”-इति | यदि ब्राह्मणः सेच्छया ere भजते, arent age करं कुप्यादिव्याहइ सण, . भगुताश्ययनसन्बत तदनं we कानतः। senate ष्यं ` ` ° भषकात्थिकनतेवरेभ्यख--एति भवितु दम्‌ | R60 तथापि नाशं किचित्‌ vegeta दिभोलमः"- इति | cha रोनमपि we कामतो वेतनग्रहणएमनम्परेण Swear पर- हितार्थम्‌ । सजियवेश्विषये खाभिनः कन्तंयमाह मनुः “कशचिययश्चेव dag ब्राह्मणोऽढस्तिकर्षितम्‌ | विष्धयादानभंखेम खानि कर्णि कारथेत्‌”-इति । ag दिजाति Terre क्म कारयति, Te दण्डमाह सणएव,- “दाखन्त॒ कारयेश्मो शद्राद्यणः स्तान्‌ दिजान्‌ | अनिच्छतः प्रभावलाद्रान्ना दाथः शतानि षट्‌ दति) प्रभावस्य भावः प्रभावलं, तस्मादिति | WRAY यथा कथमपि दाशं कारयेदित्याह सणव,- “QE कारयेदासयं कोतमक्रौतमेवच | दास्यायैव fe ङ्ष्टोऽसौ खयमेव खयम्भुवा दति । पश्चदश्प्रकाराणणं दासानां मध्ये ग्ठंहजातक्रोतलभद्‌ायागतानां चतुणां aaa खाभिप्रसारादेव मुच्यते मान्ययेव्याह नारदः+ “तजर पूरव्तुवेगं दाषलात्‌ न विसुश्यते | प्रसादात्‌ खामिनोऽन्य् दास्यमेषां फमागतम्‌"-दति | श्राद्मविक्रतुरपि दाखल सखामिप्रसादादन्यतो भायेतौत्यार नारदः, CRT खतन्धः खन्‌ य श्रात्मानं नराधमः । ख जघन्यतमस्तेषां सोऽपि दास्यान्न भुच्यतेः-दति। प्ष्याऽवसितस्यापि geste नासोत्यार षएव,- crane हि दासः खान्‌ प्ज्याऽवयितो गरः । % द इडारकाथम्‌ | a i भ ae nfaatetsfe न विषडिः aren’ —efe । याभ्चवल्वधोऽपि,- “प्रनष्याऽवसितो राज्ञो दाख श्रामरणग्तिकम्‌'--श्ति। पर्रज्याऽवसितसख्य दाखल ब्राह्मएतर विषयम्‌ । ब्राह्मणस्तु frrirer- इत्याह कात्यायनः,- “omegrafaara तु जथोवर्णादिजातयः ॥ निर्वासं कारयद्धिप्रं crea शजिथं विश्रः"--दति। निर्वाखमप्रकारमादर नारद्‌ः,- "पारिव्राज्यं ग्होवा तु यः awa a तिष्टति। श्वपदेनाङयिला तं राज why प्वाशयेत्‌"-षति । प्रब्रच्यावसितात्मविक्रहव्यतिरिक्रामामनाकाणग्तादोनां दाच्या- पनयनप्रकारमाह सएव, “gaara तो दास्वाखमष्यते गोदयं ददत्‌ | तद्दितं दुभि यत्‌ न ठु शएदयेदकमेणा* ॥ श्राहितोऽपि धनं दवा erat यद्येनमुद्धरेत्‌ | स्पय्याप्तश्टएं दया aru विमुच्यते ॥ भक्षसयोतृकतपरनेव भक्रदाशो विशुश्थते | मिगहादडवायामस्त मुष्यते बडवाऽइतः'"-- इति । शञामिनः प्राएसरचणणदपि गदजातादवः सवं दाख्यग्ुष्यनो CATE नारदः+ णण mit ny Cr oe erento ouninetinier eaviniinterisin न भ भकजा of ^ * द्रव्यमेव षाठः waist) भद्धितद्चापि यत्तेन न तच्छ््यति gat, — इति gat वपाक SATA | itt Cees OO EEO pe ME ee 7 tg) 1111 ९१ पराशरा) “यश्चैषां खाभिनं कञ्चिकोषयेत्राणलंश्रयात्‌ | दासाश्च विसुष्येत quan लमेत च-इति | दाशाभाषानां मोषनमाईइ चान्नवख्वधयः,- “वलाद्‌ासोकतसौरे विंक्रौतश्रापि शुष्यते दति। चकारादाहितो दन्तश्च we । नारदोऽपि,- “चोरापश्तविक्रौता ये च दासोरताबलात्‌ | राज्ञा मोचयितव्याले दाखल तेषु नेश्छते"- ति । धसक ya दास्यमङ्गोषव्य परस्यापि दाखलमङ्गो करोति, श्रषावपरेण विसजेनौय द्याह सएव,- “तवाहमिति वाऽऽत्मानं योऽखतन्लः प्रयच्छति । म स maya Wea रमेत तम्‌”-इ्ति | दाश्विमोच्एतिकन्ेयतामार्‌ सएव, “खदासभिच्छद्यः कम्तैमदेसम्मोतमानसः | खनादादाय तष्यासौ FRA सराम्भषा ॥ साचताभिः सपुष्याभिनूडधन्य्िरवा किरेत्‌ | ware cia Star चिः areas wate" ॥ ततः mafa ame: खान्यसुहपालितः | viereitce afrnel भवत्यभिमतः सताम्‌" दति | cenqrenspyarel विवादपदं समाम्‌ | NE NL I hE IT NT NEES १ ee NNR ONES ARTS Rint spam ORE BOS ° * WIS तमथोवृश्जेत्‌,-- रति प्रन्याशरदतः Ts: | यदहारक्राकस्‌ | ae wa सम्बिद्व्यतिक्रमाख्यविषादपदस्य विधिरुच्यते | तख wet नारदेन यतिरेकमुखेन दभितम्‌,- “पाषण्डनेगमादौनां स्थितिः समय उश्यते | समयस्यानपाकर्म तदिवादपदं खतम्‌"--दति। समयस्यानपाकश्य श्रयतिक्रमः समयपरिपाखनम्‌ | त्रा माणं विवादपदं भवतौत्ययेः | तदुपयोगिनमथेमाद शदस्पतिः,- ` “बद्‌विद्याविदोविप्रान्‌ श्रोचि्याश्चापरिरोजिएः | आहत्य स्थापयेत्तत्र तेषां afa प्रकल्ययेत्‌-इति । ` याश्चवश्क्योऽपि.- | "राजा रत्वा पुरे स्थानं ब्राह्मणान्‌ न्यस्य AT तु | Weary इन्तिमहूयात्छधमयः पासयतामिति"”- इति । ब्राह्मणान्‌ Shera वेद जयमग्पजनाम्‌ इत्तिमद्धरिदिरण्वारि- ang शला खधरवर्णश्रमथूतिरूतिविहितो भवद्विरगुष्टौयता- मिति ताम्‌ ब्रूचात्‌ । इततिसम्पत्ति्च ररस्पततिना दभिता,- ` “श्रमाष्डे्यकरासभ्यः ALU गदन्मयः। मुक्रभाव्याञ्च^४ नृपतिलंखयिला सशासने""-दति। तेभ्वो दथादिल्य्धः। तेषां कल्त्यमाहइ इरहसतिःः- foes नेमिन्निकं काम्यं ्रान्तिकं पौष्टिकं तथा । nena 1 जानन काम कि न > श ण (१) खगाच्दे्कराः, ग area सादत्तयः करोरागगराह्ममागोयाशां व्याविधाः। उगूमय दति दितोयायें प्रथमा | शटगूमौरिवचेः। मुक्धमाग्यास्छक्षराजदेयाः। [2 „~ न = 0 SDN भ ०.० चो १४८ पराधस्माथषः । पौराणां कषे qed afer च निटवम्‌”-दति | ाञ्नवषश्योऽपि,- “Praia यस्त॒ सामयिको भवेत्‌ ।. खोऽपि aaa duet wars यः" एति | ओनौतस्मा्तधर्ातुपमररेन गोजा चारे चफ+देवग्टहपालनादिरूपो- थो ua: समयाश्निष्यन्नो भवेत्‌, सोऽपि aaa पालनौयः। तया, राज्ञा च निजघर््ाविरोधेनेव यावत्पयिकभोजनं देयं wari मण्डलं तुर ङ्गादयो म प्रखापनोया इत्येवं रूपः समयमिष्यन्नः, सोऽपि रषषणोयः! एवं राजनियक्रसमुदायविगेषस्य कन्त विशेषोऽभिहितः | ामादिस्वसमुदायानां तु साधारणकाय्येमाह टदव्यतिः,- 'द्मामथ्रेणोगणानाश्च wea: समयक्रिया | बाधाकाले तु सा कार्य्या धन्मकार्यं तयेव ॥ वारशोरभये बाधा सर्वसाधारणे WAT | तचोपश्नमनं काय्यै eaten केगवित्‌*-दति | चकारेण पाषण्डनेगमदौनां चोपसंयरहः । ततस ashe पाषष्डनेगमादौनासुपद्रवकाले धकारं चयां पारिभाषिकीं समयक्रिया विना उपद्रवो दुःपरिहरः ward” दुःखध्य, घा पारिभाषिक समक्रिया स्बभिंशितेः कार्या । वारषौरेभ्ो भये प्रपते तदा चोरोपशमनं wa: सम्य wate: । धका तु विगरेषरेनेवो कः, क A क पकक एक te SP trae oe sa nite ^~ न 0 A RNG ००७१ ७०७9 9 * भोप्रचारेच्ब,-दति are | ष्यवहारकाखम्‌ | ae “सभा प्रपा Base ayrarcradee: | तथाऽनायदरिद्राण्णं सारो चजनक्रिया ॥ कुलायमं निरोधश्च काय्यैमद्माभिरप्रतः। aud’ लिखितं प्नं धर्म्या सा समयक्रिया ॥ पालनौया waeig यः समौ विसंवदेत्‌ | wu टण्डस्लस्य निर्वासनं युरात्‌"-दति | यजनक्रिया सोमयागादिकरतभ्यो दामम्‌ । इुलाधनं दुर्भिषा- दिपौडितदटथागमनम्‌। । तस्मिन्नागते सति यत्छविधानं विधेयं, तदेव तच्छष्देनोच्यते | निरोधः दुभिंचाद्यपगमपग्येन्तं धारणम्‌ । wat: रदखेचपुरुषा दिप्रयुकरभग्टहोतधनेनाव्यकल्वेन वा सितेन काय्येमिति । एवं छता समयक्रिया न केवलं समुदायिभिः पाश. नोया, किन्त रा्नाऽपोत्यादइ नारदः+ ““पाषण्डनेगमश्रणिपूगव्रातमणादिषु | संरजेव्छमयं राजा et जनपदे तथा”--इति। पाषण्डा वेदवाश्मा बेदोक्तलिङ्गधारिणो वा ्रतिरिक्षावा सं लिङ्गिमः। तेषु म्ये श्रमिचरणयाः ममयाः सन्ति। नेगमाः साधिका वणिकृप्रशतयः । तेषु सकम्पकमन्दे रहर पुरुषतिरष्का- रिणो दण्ट्या द्थेवमादयो बहवः समथाः विदन्ते WaT, भैगमा- ee etn कक 1 # POC प्राठः Aare | ममतु, ae 4,—xfa पाठः प्रतिमाति। † इत्थमेव पाठः wert) मम तु, पीड्विजनागमनम्‌+--एति पाठ, प्रतिभाति |. 82 eye पाद्माः | . anoctiaaa बेदप्रामाश्चमिष्छभ्ति ये पाएपतादबः। त्रातगण- शब्दयोरथः कात्यायनेन दितः “नागायुधधराग्राताः घमवेताग्ठ कौतिताः | SAAT TCG. गणः ख ACHAT । पूगे त्राते चान्योन्यसुक्सुष्य समरे न area fare: afta WHAT: | AT तु पञ्चमेऽहनि पश्चमे वाऽब्दे BOTA: कर्तव्य दत्यादि- समयाः । दुर्गे धान्यादिकं Veet अन्यत्र यास्यता कभ तदिक्रेय- मिद्यासे समयः | जनपदे तु कचिदिक्रेतुरदस्ते कचित्‌ क्रटरस्त इखाग्रर्णमित्यादिकोऽश््यनेकविधः VA | तत्समयजात यथा म भेष्यति म च afar, तथा राला Gatien समुदाये तु पुदषषिषये विषमा ह इदस्पतिः,- "कोभ लेख्यक्रियया weet परस्परम्‌ | विश्वासं प्रथमं शवा qa: कार्य्याश्नन्तरम्‌"-दूति । rare: प्रतिभभिः। कार्य्याणि समूहकार्य्थाणि। काल्यायनोऽपि- "समूहानां तु यो ध्नः तेन धरण ते सदा! maya: सर्वकरणि खधर्षु ्थवसख्िताः"-इति । समूहकाग्येकारिषु रेयोपादेयाविभजति इहस्यतिःः- “fasfamt wafer श्रालोनाणसभोरवः | द्धा arg वालाख न काः काय्येचिन्तेकाः ॥ wet stewie: दकाः दान्ताः कुलोद्भवाः | सवैकाय्थपरमोणख HUY AEWA: — Tia । ते च कियन्तः ater इत्यपेकिति qwa4ry.— WAYCATT | eek: “2 wer ag at कार्व्याः घमूहहितवादिभः। यस्त विपरतः erg दाणः प्रथमं दमम्‌?-ईइति। काल्यायनोऽपि,- “युक्तियुकषश्च यो erga: कार््यागवका शरद्‌: | शरुक्रशैव at rere दाणः eae” EMM । eeufact,— Cog साधारणं fear किपेत्‌ afaqea बा । संविक्ियां faeare ष निर्वस्यएतः पुरात्‌-इति | चमू हिनामयधरश्चंण देषादिना काय्येकरणे दण्डमाह सएवः- “जाधाङ्कुखयुवेदे कस समभूतादरेवमयुताः | राज्ञा सवं ग्टरीतार्थाः ्राश्याखेवानुबन्धतः ॥ - म यथा खमयं TN: GAT ATT तान्‌" इति । यस्तु qe: समूद्रयादिकमपदहरति,ः AG CGAY याश्च वर्कः, naga इरेद्यस्त संविद्‌ WAH यः | सर्वद्लहरणं war तं राष्ादिप्रवासयेत्‌"*-दति । aaierenretat पुराजिर्वासनमेव दण्डमाह शपति “SEE: TITY मेदशाहसौ तथा | HATTIE fei निर्वास्यते तदा ॥ पुरभरणोगणध्यक्ाः पुरदुगे निवाधिमः | वाग्धिग्दमं परित्यागं wee: पापकारिणः ॥ तैः शतं यत्रय निग्रहारहं FTA । ५५९ परारमाधवः। तद्राज्नाऽयनुमन्तव्यं निष्टा हि ते खताः“--दति 1 निष्ट्याः, श्रतुज्नातकाय्यं ware: । पाषण्डा दिखवेसमूरेषु या राज्ञा व्तित्ं, ATE नारदः ca धकः कश्यं यच्ेषामुपस्थानविधिख्च चः | यदेषां प्राप्ुयादयमनुमन्येत तत्तथा ॥ ्रतिकरूलश्च यद्रा ननः ्रशत्यवमतं च यत्‌) दोषवत्‌ करणं यन्तु श्यादमालायकन्पितम्‌ ॥ ्रटृलमपि तद्राजा Beeara निवन्तयेत्‌--दति | धक्षौजटाव्वादि । कन्म प्राप्त^पम्यषितमिश्ाटनादि | उपखा- नविधिः समूरकार्ययाथं पटदादिष्यनिमाक्यै मण्डपादो मेलनम्‌ । arama) जौवनाथं तापसवेषपरिग्रहः | राजनः प्रतिकूलमाधि- कारिशएद्रकैकं चेवणिंकविवादे धमेविषेषनम्‌ । तस्य च प्रतिकरूल- लमुक्र खत्यम्रेण,- “qa राज्ञस्तु कुरुते शद्धो धमेविवेचनम्‌ | सख प्रणश्यते राद बलं कोवश्च मश्यति-इति। * इत्यमेव प्राठः aay | मम तु, प्रात--इति पाटः प्रतिभाति| (र) प्य, यदा ara fee थास्था | रतद्यास्यादशनेग, यदेवा प्राह्गयादथेमिय, यद्ेमां SHUM — ECT पाठः प्रतिमाति। विवादरनाकरे तयैव पाठोषटतोद्तेते। परमादशएरतकेषु दशगात्‌ यज्वा पाप्नयादध॑मित्मथमेव पाठो मृते रचितः | श्रा" का एख- कयोः प्रयपादान,--इति पाठो दक्षते । SAGA | mm प्रहत्यवमतं Baas uaa; पाषण्डयादिषु ae Hae, परस्यरोपतापः, राजयुरुषाखयफेनान्योन्यमर्थापहरणटि । दोषवल्करणं श्रुतिर्रति विरुद्धं विधवादौ बेग्ठालादिकं प्राषण्डया- दिभिः प्रकख्ितम्‌। संविष्वषटने दण्डमाह मनुः, “at यामरैग्रसंघानां wear स्येन संविदम्‌ | विषंवदे जरोणलोभान्तं राद्राद्धिप्रवासयेत्‌ ॥ faery दापयेदेमं समयव्यभिचारिणम्‌ | चतुःसुत्रणेकं निष्कं * श्रतमामश्च राजतम्‌ ॥ एवं दृण्डविधिङकर्य्यात्‌ धार्मिकः एथिवोपतिः। यामजातिखमूदेषु समयव्यभिष्वारिणाम्‌”-द्रति | सत्येन प्रपथेम । एतेषां नि्वांसमचतुःसुवणमिष्कश्तमानरूपार्ण लातिविधयागृणाद्यपेचया ATT कन्पनौोया | ATTA राज्चा समर्पितं zai समूहाय योन ददाति, तं प्रत्याह याश्चवरक्यः+- “समृहका््धं ्रायातान्‌ कतकार्य्यान्‌ विसजेयेत्‌ । खदा सम्मानसत्कारैः पूजयिला महोपतिः॥ [ह क ग य क ee meee — a ame * 02.18.815. 1 | * चतुः सुवर्णान्‌ षट्‌ निष्कान्‌,-- ति प्रन्थान्तर्टतः पाठः| [1 SET मातत जनयक कक नण 0 मिण = ०.१४. (९) अथ च, “ard श्रतं वर्णनां निव्वमाङमनौनियः?- दादि. निन्कराां aac चतुःएुवणकमिति गिव्केविगेषयनुपरात्तम्‌ | wasnt cred रन्तिकागां विं्चधिकं एतजयमिति अनरे शास्यातम्‌ | २१४ पराकरमाधक I, समूदकाय्यप्रहितो awa तदपेयेत्‌ | एकादशगुणं दाप्यो यद्यसौ, मापयेत्‌ खयम्‌""--दइति | विभज्य प्ररणएमणद्र विषयम्‌ | यतस्तत्पश्चविषये सएवाइ,-- “वाए्नाभिकं age वा ferme यथाऽ शतः | देवं बधिर दद्वान्धस्तौबालातुररोगिषु ॥ -साकानिकादिषु तथा धमंएष सनातनः” दति । राश्नः प्रसादलभवदृएमपि स्॑षां समभित्यार सएव, “aa: uit रखितं वा गणां वा शणं शतम्‌ | Tie प्रषादलमश्च सर्व्वेषां तत्मारितम्‌।”-इति। एतदभकित विषयम्‌ । भक्ठिते त कात्यायन श्राद,- “गणएसुदिश् यत्किधित्छमणे भसितं भवेत्‌ | आवा विनियुक्ं वा देवं तैरेव लद्धबेत्‌-इति । पेतु wager wary तदन्तगेता ये च समुदायचोभादिना ततो afar, ताम्‌ प्रत्याह सएव, “गरिनां भरिज्िवर्गाणां गताः we तु मध्यताम्‌ | Wedge! षमां णाः सवेएव ते ॥ |) त eer * देयवानिखः-इति ate | । † सर्वषां तत्स॒मूह्ितम्‌,--दइति ate । सर्ेवामेव तश्छमम्‌+-- दति मरन्धान्तर धतः ATS: | ‡ व्यमेव पाठः eis) mare धग््टः--इति न्थागार्टतस पाठः सर्मीचौनः। वदहारकाक्छम्‌ | , „8 तचेव भोजनेभाव्यं* द्‌ानध्ेक्गियासु च । VACA MATT स्यात्‌ प्रगतस्लं शमागभाक्‌ौ दति | संविद्धतिक्रमास्यं विषादपटम्‌ | AY क्रौतानुश्यः कथ्यते | AME नारदेमोक्रम्‌.- “Rear मूल्येन यः We RAT म बड मन्यते | करीतारुश्य इत्येतद्विवादपदमुश्यते"-इति। RAISE क्रेता क्रयात्‌ प्रागेव सम्यक्‌ परौशेत । तथाच सएव, “mat we परौदेत प्राक्‌ स्वयं गुणदोषतः । परीचाऽभिमतं क्रौं विक्रेतुं भवेत्युनः""- द्रति | परोचाऽभिमतं ata ` तदोषदगंनेऽपि ग्रहोतुरेव भवति, भं विकेतुः । तथाच इस्तिः, "पसेकितं asad खरौला म पुनस्यजेत्‌""--दति | तत्कालपरोक्ितस्य पुनरपैणाभावः सावधिविषयः। तत्य परौचणस्य विहितलात्‌ । तथाच याभः,- “समेकाषेष्टकासूचधान्यासवर मस्य च । wen स 2. 1 १7 त 1 117. त 177, । ot ~ <~ ~ ~~~ पिक त A EER oN ATE च = भम + भोण्यपैभाव्य,--द्ति are | + प्रगवश्ठंद्रमागिति,- एति are | प्रगतस्व्नाष्‌ ग तु-इति ग्रश्चाग्तरौयः Tse समौचीनः। ‡ इत्यमेव पाठः cere । मम तु, अन्येषां Sa, —a पाठः प्रतिमाति। ९५१ URINATE! | aeeafecerat ways परोखणम्‌"- दति | क्रीतानां warat द्रयविशरेषेण परौशषणकालावधिमाह सएव- “अहादोद्यं परोचेत पञ्चादादाद्मेव तु । मणिसुक्राप्रबालानां सप्ताहात्‌ खात्‌ परोकच्णम्‌ ॥ दिपदामर्धमासं स्यात्‌ पुंषान्तद्विगणं स्तियाः | द्‌ ्राहात्सवेगोजानामेकाहा स्रो दवाससाम्‌ ॥ श्रतोऽ्वाक्‌ पण्छठदोषस्ु यदि स्नायते wife | विक्रहु प्रतिदेयं तत्‌ क्रेता मृच्यमवाश्रुयात्‌”-दति । यथोक्रपरोखाकाल्ातिक्रमे तु म प्रतिदेयमित्याह काल्यायनः+- “श्रविज्ञातं तु यक्कोतं दुष्टं पञ्चादधिभावितम्‌ | wid तत्‌ खाभिने देयं oy कालेऽन्यया न तु-इति | श्रविन्ञातं ahaa तवतोऽपरि ज्ञानं यस्य gare; तत्‌ यावत्‌ ` परोचाकास उक्तः, तस्धिन्‌ काले प्रतिदेयम्‌ । अन्यया तत्कालाति- कमे दुष्टतया परिन्नातमपि क्रीतं तत्खामिने न देयमिल्यंः | पण्यानां दिपरकालवश्रादुपचयापचयौ प्रथमतो श्चातयावित्याह नारदः “ad afg च malar पष्छानामाममं तथादूति। श्रश्वादिपण्धानामखिन्‌ काले afar च रद्धिभवियतौति जानौयात्‌, तथा श्रागमं कुलीनता दिश्नामायेमुत्पाद कजग््धम्या- दिकश्च जामौया दिल्यथंः। एवं सम्यक्‌ Whe गुणदोषद ग्नादि- कारणमन्तरेण नानुशयः काय्यं इत्याह यान्चवरकयः,- ` wi ठद्धिश्च वणिजा पष्छठानामविजामता | WAT नानुशयः कायैः Yay षडभागदण्डभाक्‌"-दति। WAV TATV | rae qdfarrart क्रयकालोन्तरकाखम्‌* । कयकाशपरिज्नाने पुमः केतु विक्रेतु रलुश्यो न भवतोति अखतिरेकादुक़ भवति । we दोषतद्‌टद्धि्यकारणतरितथाभावेऽसुश्यकालाश्वन्तरे यश्चसुश्रथं करोति, तदा पण्छषड्भाग दण्डनोयः। श्रसुं्यक्षारणसद्वाषे- ऽयनुश्रयकालातिक्रमेए योऽनुश्यं करोति, ated दणष्डनौयः। एतश्चोपभोग विर्मश्वरवस्ठ विषयम्‌ | ऽपभोगेना विनश्वरवश्ठविषये भत्य- पणे वद्धिमाह नारदः | “Prat मन्येन यः We दुश्ोतं मन्यते कयोः । विक्रत्‌ः प्रतिर यन्तन्तस्मिकवा दिवकितम्‌€"इति | दवितौयादि दिषसप्र्यपणे तु विगरेषस्तेनेषोक्ः+- नद्वितौयेऽङ्कि ददत्करता Tar जि्राग्रमावहेत्‌ । दिगणन्त॒ हतोयेऽद्ि परतः केट्ररेवख--दइति । परतोऽनु्रयः न कर्तव्य इत्यर्थः TY पुनमेनुनो कम्‌,- gat विक्रीय वा किञ्चिद्यसयेहानुग्रयो भषेत्‌ | सोऽन्तद॑गरादात्तद्रयं दचाश्ैवाददौत ar” — Tha । ee tee * aa, दति te —efe भवितुमुचितम्‌ | † pate we: सर्ज । ममतु, Nghe विकेतुः-दति. पाटः प्रतिभाति | प इव्कोतां मन्दते क्रियम्‌,--दरति कार | § afetatis शराचतम्‌,- ति, तक्िप्ेवाकपवीचिवम्‌,-~्रति अ ग्रान्तरछतौ wt | .. 9 २५८ परा्रमाधवः। , तद्पभोगेमा विनशवरण्टहकेचक्रयागुश्रया दि विषयम्‌ । तचेव द- गराहारैरक्रलात्‌। तथाच कात्यायनः, “भरूमेदेशादडे विक्रेतुरायः ततक्रेतुरेव च+ । द्वादशाहः सपिष्डानामपि area: परम्‌”--दति) वाभो विषयेऽपि नारदः+ “परिभुक्रन्‌ यदास; freed मलो मसम्‌ । सदोषमपि तत्कौतं विकरेतुने भवेत्युनः”--इति ॥ दति क्रौतातुशयः। अथ विक्रौयासम्मदानम्‌। TA BU नारदेनोक्रम्‌,- “fale oy aaa क्रतुयेन्न प्रदौयते | किक्रौयासम्मदानन्तत्‌ faarcuzqaa’—: . प्रतिभाति। यव दारकारडम्‌ | श६१ . “gag वा पपं दद्मेतापद्ियेत वा । विक्रेतुरेव सोऽनथं विक्रोयासंप्रयच्छतः”--दति | | यथा याचितस्याप्रयच्छतो विक्रतुरहामिः, तथा दौवमानप्छ- मग्टहतः क्रतुरपौत्याह सएव “दौयमानं न zerfa क्रोतं पश्च यः क्रयो । सएवास्य भवेदोषो विक्रेतु ऽपयच्छतःः- दति । यान्ञवष्क्योऽपि, - | स्विक्रीतमपि faa पूवे केतयग्टक्षति, | हानिश्ेत्‌ करटदोषेण क्रेतुरेव हि सा भवेत्‌"-इति | ag fais प्यं enfaar सदोषं विक्रौणते, agree विक्रीय azarae तत्‌ प्रयच्छति, तयोः समानदण्ड इत्याश, ““निदैषं zifaat ठ सदोषं यः प्रयच्छति | मूल्य तद्द्विगुणं दाप्यो विनयं तावदेव च ॥ अन्यते च विक्रीय तथान्ये तत्‌ प्रयच्छति | सोऽपि तद्विगणं दाप्यो विनयं तावदेव चदि । एतदुद्धिपूवेकरिषयम्‌ | “grat सदोषं पण्यं यो विक्रौणोतेऽविदच्णः | तदेव दविगुणं grammed विनयं तथा”-दति रस्यतिनोक्षलात्‌ । श्रवदधपूवंके तु केतुः अरपरावक्तेनमेष । अतएव एवंविधनियमोदन्तमूल्ये कये दर्यः i wea पुम _ rats पाठः सवेष । पू्यकेतथेगटक्कति,--एति DAAC पाटन TAHA: | | Soca antenna Pe Lee ९६२ पराप्ररमाध्चवः। पे क्ेदविक्रनोः समयादृते प्रकतौ वा न कञचिहोषः तथाच नारदः, “दज्नमूष्यष्य wee विधिरेष प्रकौ त्तिः | श्रदत्तेऽन्यच समयान्न विक्रेतुरतिकरमः”-दूति | यत्र पुमवाक्पाचेण mata afefa freed करना यत्कि- fugai दन्तम्‌, तच केतुदौषवेन क्रवासिद्धौ श्राह वयावः, “सत्यंकार श्च." यो दवा यथाकालं न दृश्यते, qua निष्टनद्लोयमानमण्डतः- इतिं | श्रव WUHAN: सत्यंकारद्रवयस्योत्छगऽभिमतः। श्रस्िन्नेव विष्ये famactuana क्रयासिद्धौ श्राह याज्ञवस्कयः,- “सव्यंकारहृतं द्रव्यं दिगृणं प्रतिदापयेत्‌"-दति | ग्री वाऽसुश्रयामुत्पस्यथे कतिपयपण्यानां विक्रयानदलमाद मनुः "मान्यदन्येन dee रूपं विक्रयमदति | न सावद्य्च न न्यूनं म दूरे न तिरोदितम्‌५- दति | दति क्रयविक्रथानुश्याख्यं विवादपदम्‌ | का क > + ण 0 क भक चरथ स्वामिपालविवाद्‌पद्विभिः। aa तु तदभिधानप्रतिन्ना मनुना र्ता,- “ary स्ञामिनासचेव पालानाश्च व्यतिक्रमे | : Ae CORTE OE के PERRIS “Wem te teats ॥ , 8, । (१) यत्‌ agate करयपरिष्थितये fart समपित, तत्सन्यकारपदा्च- हवि चद्धन्ररीोया aren | MAULANA | Rea: , विवादं सम्मरवश्छयामि anager —efa | विवादं विवादापनोदमित्यथः। खामिपालयोः aware नारदः+ "“उपानयेद्ाः गोपालः पुनः प्रत्यपयेन्तया"- दूति | यावन्तः प्रातः समपितासावन्तः सायं प्र्यपंणोया दृ्यर्थः | गवादिपरिपाश्लकस्य खतिपरिमाएमाद नारदः “गवां ware वत्छतरौ धेनुः स्याद्विशतार्‌ शतिः | प्रतिसंवत्सरं गोपे मन्दोहो वाऽष्टमेऽहनि"--दइति । ग्रतिसंवत्छर वत्सतरौ दिदायनौ गौः खतिः तके कल्यमौथा, दिशते तु ara गौः, wen दिवसे दोदख भतिलेम कर्यनोय- TU | सन्दोहः सवंदोदहः | “oor tau: Bt लभेतेवाष्टमेऽखिलम्‌”-दति इ दस्पतिस्मरणत्‌ | wae ufaaum परिभाषितश्चतिवि- गषाभावविषये। परिभाषिते तु wiafane ava देयः। aay प्रकारान्तरेण शतिमाद “nat सौरग्तोयसत स दुह्याद्‌ ग्तोवराम्‌ | गोखाभ्यमुमतो अत्यः मा स्यात्पालेऽगते सतिः"-दति | दतो दशदग्धृणां मधे वरासुकष्टं Stee तत्रं बोर- तो wear | चौरशन्यानां तु कौरमूष्तो तिः कम्पमौया । यदसौ दव्यानरेण शतः, न asa शतिरिव्यधैः। aad परि- कच्तं वेतनं दरद्ौला पम्‌ पालयन्‌ त्यः खदोषेण पन्‌ मार- येत्‌ विनाग्रयति वा, तं Here STEHT ada पराग्ररमाधवः । ` ^प्रमादण्टतनटखच प्रदायः शतमेतन्‌ः”--द्ति | प्रमादयदणं पाशकदोषोपलचणा्थेम्‌ | प्रमादश्च मनुना खष्टौ.- हतः. | "नष्टं विनष्टं afaar दंशितं विषमे waz. Sa पुर्षकारेण प्रदात पालएव तू"--दति | प्रसद्य चोरेरपहतो न दाः | तथाच सएव, “fafa तु चतं SICA पालो द्‌ातुमरति | ' यदि aie काले च खामिनः खस्य शसति"-दति। ग्यामोऽपि,- “पालग्रहे ग्रामघाते तथा tire fags यद्रणष्टं इतं वा ान्न पालेष्वत्र किखिषम्‌'--दति। एनत्पुरुषकार करणे Aga । पुरुषकारा्करणे तु भवत्येव किल्विषौ | पुरुषकारस्य खं मारदेन दितम्‌, “हमिरोरव्याप्रभयात्‌ दरोश्वभ्ना्च पाणयेत्‌ | areata: aig खाभिमे तु निबेदयेत्‌"~-इति। यायच्छेत्‌, प्रयतेतेव्ययैः । यः AAT म॒ यतते, तं प्रत्याह सएव, “शअद्यायच्छनविक्रो रम्‌ खामिने शानिदेदयन्‌। दातुमरति गोपाम्‌ भिनवेव राजमि"-दूति । FATT UATE ATA — “पाखदोषविनाशरे तु we वष्डो षिधौथते | शरडनयोद ्रपणाः सखामिमे द्रग्यमेवच"-दइति | ववड़रङ्ाखम्‌ | ee अशेषयोदश्रपणाः षादधेदाद गरकाषापणाः। पालदोवमाह AT . “अजाविके तु संदधे TR: पाले लनायति | | et may कोन्यात्पासे तत्किलिषं भवेत्‌" एति 1. अनायति, उपद्रवनिराकरणाय भ्रनागच्छतोत्यथेः | या, अजा- विकजातौचयाम्‌ | एवद्छुगमखलणस्यविषयम्‌ | दुगमखणविषयेतु भ दोष इत्याद श्णव,- | Carat चेदवरद्धानां चरन्तोनां मिथोवने | यामुपेत्य टकोदन्यान्न WAC किखिषो- इति | शअरवरङ्कामां, पाकेन श्यापितानामित्यथैः | दैवग्तानां धुमः कर्णादिकं दशेनौयम्‌ | तथाच महुः | coal चमं च बालां वप्यखिक्ञायुरो दनम्‌ | पष्टखञामिषु दथान्तु तेवङ्गामिदरेनम्‌”- दृति । सपत्यन्तरमपिः- न्क चमं च वाणां श्ङ्गताख्यख्विरोदनम्‌ | पश्एखाभिषु दधातु तेषय्गानि दगरयेत्‌”-र्ति । गोप्रसरभमिमाहइ AMAT नपराेष्छया गोप्रचारो भूमौराजच्छयाऽपिच"- षति । पामेच्छथा पामाश्पलमरहत्वापेचया TET वा गवां warfe- अचलायै कियानपि भागः शतः परिकष्यनौयः । मरवा HATE दानावनसौकरवयाय प्रामरेजयोरन्तरमाइ एवः "धमः तुं TUTE ASAT MATA | दशते ais WH ATA चहुःपतम्‌--दति । 34 २६१ परराधरस्माधवः 1 ` ामकेभयोरन्तरं धनुः्रतपरिमिवम्‌ ) शवेदेवंविधिगा we कायम्‌ | CASS प्रषुरकष्टकसम्भानस्य यामस्य दं TA wat we, area च awnaaeitde चतुःग्रतपरिमिते sat we aratafa । aa पष्जिवारणाय टतिरपि कर्यनोयेत्याह काल्यायनः,- “श्रजातेष्वेव wey कुरययादावरणं षदा । दुःखेन विनिवायन्ते शम्खादुरा खगाः”-इति | मारदोऽपि- “पथि चेरे ठतिः areal यासुटो नावशोकयेत्‌ । म लदन्येत्‌ wala म भिन्द्यात्‌ यां ष सूकरः” दति) एवं च पष्एभिवारणे हतेऽपि तामतिक्रम्य शस्यादिषिनाशरे सति मनुराह, | "पथि चेतरे परिटते ग्रामान्तोयेऽथवा पुमः | स पालः were विपालान्‌ वारयेत्‌ परन्‌" इति | पथि aw परिरते सति तां एतिमतिक्रम्य शस्यघाते स पाणः UTR पणश्तदण्डादः। एवं, arava यामसमो पवन्तिमि as परिटते खति तां इन्तिमतिक्रम्य weet स पालः तपण दण्डाः | तदमेम, श्रपरिषटते पालस्य दण्डाभावः सूचितः | ary are दण्डं निषेधति,- “तत्रापरिटतं धान्यं afye: पश्वो चदि | भ तच प्रणयेदष्छं गपतिः TEC ieee । एतददोषेकालप्रार विषयम्‌ | heart तु दण्डमरंति। WA UCT | Rees! शरतश्वास्पकासप्रथारे दोषाभावमारइ fae: | “पथि प्राममान्ते © न दोषोऽच्यकालम्‌”-इति । दष्डपरिमाणन्तु पशएविेषेण दितं याज्चवसकयेन,- ॑। “माषानष्टौ तु महिषौ श्रखघातश् कारिणे । दष्डनौया ATHY गौखदद्धेमजाविकम्‌ ॥ भरूयिवोपविष्टानां चयोक्रदिगुणोदमः | सममेषां विवोतेऽपि ade मरिषौसमम्‌""--इति | परग्रखघातकारिमदिषौखामो प्रतिमहि्य्टौ माषान्‌ दष्ड- नोयः । चतुरोमाषान्‌ गोखामो । Beara दौ बौ माषौ । एषा- मेव पशनां गश््यभ्वणएदारण्य यावच्छयममनिवारितानां खामौ यथोक्षदण्डात्‌ दिगृणं दण्डनोयः | तया, "तयाऽनाविकवत्सामां पादोदष्डः प्रको न्तितः"- इति aan बेदितयम्‌ | साश्वा तातिकपणष विंशति- तमो भागः, <माषौ विग्रतिमो भागः पण परिकोत्तितः"- इति मारदश्मरण्त्‌ | भ्वयिलोपविष्टसवस्सविषयं यथोक्ताथतुगुणो- दण्डः। तदुक्तं रूत्यन्तरे, Cagqat दिगणएः परोक्त सवश्छानां ware: That | यत्पनर्नारदेनोक्षम्‌, care at दाप्येहण्डं St माषौ मदिषं तथा | तयाऽजाविकवल्यानां दण्डः स्ादद्धमापिकः"- इति । तकहममाचभवणविषयम्‌ । WATTERS: गङ्ककिचितौ ।. ९६८ पराश्ररमाधवः। “राजौ चरणी गौः पञ्च माषान्‌ राजिशुद्ृ्तं माषं दण्डं TACHA श्रातुरपद्पविषये तुन दण्ड इत्याह नारदः+ “array ग्टहोतो वा बञ्चाशनिहतोऽपिवा | श्रपि ate ay दष्टो एकादा पतितो। भषेत्‌ ॥ व्याप्रादिभिरदेतो वाऽपि वयाधिभिवाऽणुपद्रुतः। म तत्र दोषः पालस्य म च टदोषोऽसि गोभिनाम्‌"-इति। अरमाठुरेष्यपि केषुचित्‌ TTY दण्डाभावमाह ETT ` "गौः maar cure मशदोखो वाऽपि कुश्चराः) । निवार्याः @: प्रयन्नेन तेषां खामो न दण्डमाक्‌“-रति | मनुरपि, “"श्रनिदं ग्राहां गां gat ठषान्‌ Sama तथा | सपालान्‌ वा विपाशाम्‌ वा न दप्द्याकातुर्रवो त्‌”-दति । ठषामरोच्ाः। Waal, टृषोत्धगेविधानेगोत्‌रष्टाः। याज्ञ- व्क्योऽपि,- “महोचोतष्टपश्रवः सतिकाऽऽगन्तुकादयः | पालोयेषां च ते मोच्या देवराजपरिषुताः"-ईति । ` श्रादिग्रब्देन खतव्ादयो EPR । अतएवोग्रना,- ^श्रदण्डा म्टतवत्छा च संज्ञा रोगवतो श्रा । श्रदण्डयाऽऽगन्तुकौ गौश्च सूतिका चाभिषारिणो ॥ ` अदण्ड्या Shed गावः श्राङकाले law — ch ¦ विकी) 3 1 "मा रा ` त 1 व षषी * प्राइः--ति we | † eenzrafrat,— als ate | नमायी ग्धवदारकाद्म्‌ | , Red. " qorefert न केवलं anit cette: शपि द्‌ प्रडमपि दापनौथः | तथाच इदस्यतिः- (अ्रद्याज्निवारयेत्‌ गख चोरं टोषदधं भवेत्‌ | सखामौ waza दायः पालस्ताडनमरंति ॥ शरदश्च सदमं RT समूले काषभदिते"-इति। अतएव नारदः+ SATS तु तत्खामो TATRA | वधेन गोपोसु्येत दण्डं खामिनि पातयेत्‌"-इति | तत्छामौ wearat | wey षामन्तादिभिः परिकणितो Tea: | तथाच सएव, ""गोमिश्तु afad we यो गरः प्रतिथाचते। सामन्तानुमतं देयं धान्यवम्तच कश्पितम्‌"- ति | aaa शदयाचननिगेधोऽ्यात्‌ शतः,- न्गोभिर्विमाभितं धान्यं यो मरः प्रतियाचते। पितरसस्य नाश्नन्ति माश्नन्ति जिदिवौकः"--दूति । ख गरामादिसमौपस्थामाटतचेभ विषयः | इति खाभिपालाष्यं विवादपदम्‌ | कक ककु CONES अथ सौमाविषादनिशेयः। तच ताक्तोमा चहुविधा। जनपदसौोमा orate seater केभसौमा च,-दति । सा च यथाक्रमं TANGO | तदुक्तं नारदैन,- ‘safe after देव Swett मयव्जिता । २७० पराश्ररमाधवः | राजश्ासनमौता च सोमा पञ्चविधा सता"-दति | ध्वभिनो इचादिलकिता । मण्धिनौ जललिङ्गान्विता । नेधानौ निषाततुषाङ्घरादिमतौ | भयवर्जिता श्र्थिप्रल्थिपरश्यरविषया- पत्तिभिर्रिता । राजशासनमोता जादचिक्राच्चभावे राजेच्छया निर्मिता । तथाच वयाषःः- ““यामयोरुभयोः सोन zat यत्र समुन्नताः | समुच्छ्रिता ष्वजाकारा ध्वजिनो सा प्रकौ्तिता॥ Sa WH Aaa aa | प्र्धक्‌ भवार्दिनौ यर सा सोमा मख्िनौ war i तुषाङ्गारकपाेस्त HATTA | सोमाऽच fafa कार्य्या नैधान सा निगधते"-ति। Say AMAT: | तदाद मनुः, ‘agate gala न्यग्रोधा श्वत्यकिंसकान्‌ । 9्ास््लो प्रालट्कां शच सीरिण्येव पादपाम्‌^-इति । पर्यक्‌ प्रवादिनोत्यनेन वाण्यादोनि परकाश्रचिक्कान्युपलब्यनते। तानि च इरस्यतिना दश्तिानि,- | “वापौकूपतडागानि चेत्यारामसुरालयाः | सखलनिष्मनदौश्तोतःरगुष्मनगादयः ॥ प्रकाशविक्छान्येतानि Sarat कारयेत्‌ षदा" दति, तुषाङ्गारकपाशेरिति करौषादौनां गृत्रशिङ्गानामण्युपललफम्‌। तानि च तेनेव दर्भितानि,- "करोषाख्ितुषाङ्गारप्कराऽभाकपाजिक्षा | BIVITH WB | । ०, ee सिकतेष्टकगोवालकार्पासाखोनि भसन 4 tt परि कुमेषयेतामि सोमान्तेषु निधापयेत्‌”--इति | तामि श ata fag i afactaienrat efaararfa | तथाच हस्य तिः,- “ततः पौगण्डवालानां weet प्रद भेत्‌ | aga च शिशूनान्ते saree ॥ एवं परम्राज्ञाते सोमाभान्िनं जायते”-दति + एवं freftafas: सोमाविवाद नियं कुर्यादित्याह मनुः- cyafapaad सोमां राजा विवदमानयोः | यदि arava स्याशिङ्गानामपि दने ॥ साक्छिप्रत्धयएव खात्‌ सौमावाद विनिष्ये | area तु चतारो ग्रामाः सौमान्तवासिनः ॥ सौमाविनिणेयं कु प्रयता राजसज्निधौ-षति | प्रथमं तावदर्धिप्र्यचिलिद्गैः सौमाविवादनिरयः। sar ater विश्वाखस्तदा लिक्गविषयकात्‌ मोमादिषयकादा शाकिप्रत्ययात्‌ निष्यः) यदा साचिनामभावस्तदा सामनेविनिणंयः प्रतयः | "तेषामभावे सामन्ताः” रति कात्यावनेनोक्लात्‌ । के पुनः ATA” न्ता इत्यपेडिते सएवाह- SEAT सामन्तासष्छंसक्षासयो राः | samendant: Taare: प्रको ्तिताः"-दति । विप्रतिपल्लसोमकशय ara चतद्वु दिख सन्निहितग्रामादि- . भोक्षारः See: | एतएव सामन्त्ब्दाभिधेयाः | यदा पुनरदु्ट- २०8 पराशररमाधमेः | “areata समयामाख्चलारौऽष्टौ दथ्रापिवा। cea: सौमां ate: कितिधारिषः"-इति । कखम्निएो रक्राम्बरधरा waa refer sat प्रदे Wa बः खैः शपथेः प्रापिताः सन्तः सोमां नयेयुः ! तथाच मनुः, “cra weratay aut रक्रवाससः | qua: शापिताः सेः सख्ेनेयेयुस्ते समश्नसम्‌'-इति । नयेयुरिति बङवचनमपि श्रविवकितम्‌ । एकस्यापि सोमा- प्रदभेकस्य हस्तिना टर गितलात्‌,- “ates faa सधुरेकोऽप्युभयसंमतः | रक्रमाष्ट्याम्बरधरो weareTa मूद्धंनि॥ सत्यव्रतः सोपवासः सोमानं द गयेन्नरः“- दति । धन्त नारदेनोक्तम्‌, . aa: ससुक्रयेतसोमां मरः प्रत्ययवामपि | मद्वादस्य काय्यैस्य करियेषा बङ्षु श्थिता?-इति : तदुभथानुमतधमेविद्यतिरिक्रविषयम्‌ । खलादि चि्छाभावे- ऽपि साकिषामन्तारौनां सौमाश्चान उपायविग्रेषमाद्ं नारदः+ , “जिन्लमाऽपदतोन्सृष्टनष्ट चिज ग्ड मिषु । तप्रदेानुमानाश्च भ्रमाण्णद्भोगदशेनात्‌*--इईति | प्रत्धर्थिखमखमविप्रतिपन्नाया श्रस्मात्तकालोपलकितभुकररवां नि- ्िशुयुरिल्यर्थैः । एतेषां साचिखामन्तप्र्डतौनां सो माचह्कमण- 1 | विपी LOLS EO ee ome ate: * इत्थमेष wat aaa) मूजाराभितच्ितिखयडः--इति q मवितु युक्षम्‌ | + सान्छिसामश्तादिना सीमाच्चागोपाये विषवसाह,--दति wre | } निन्नगापङ्तोद्छिरचिङक विगत शरमिषुः-- इति wre | WTVITAW | ei a ae! < ४ दिनादारण्ब way निपकं यदि राजद विकब्यषनं नोत्पद्यते, तदा तक्रदजैनात्‌ सौमामिषफेयः । तथाच काव्यायनःः- | “क्तौमाशद्कमणे AH पादस्य तथेव | जिपकच्चपञ्चयभ्राशं देवराअकमिख्यते"--द्रति | ges निषेधः खत्यन्तरेऽभिहितःः- “वाक्पारु मरोवादे दिव्यानि परिवनेयेत्‌"“- दरति । स उक्रलचणपुर्षाभावविषय इत्यविरोधः | कथम्द्योच निर्येष- इत्धपेक्िते भारदः.- ‘qa तु न ष्य्लातारः सोमायाथ्चापि wewyz | तदा राजा दयोः सौमामुलयेदिषटतः स्यम्‌” द्रति । इष्टतः, इच्छातः | याश्चवरक्योऽपि,- "भाते qrafasrat राजा Ste: प्रवर्निता^-दति। ज्ञाण सामन्तादीनां चिक्छानां रलादौमामभावे रजेव Sher प्रवर्तयिता | प्रामद्यमथ्यव्सिनो विवादास्पदौग्ध्तां सुवं अमं भ्विभश्य खभयोर्यामयोः waa ara सौोमाशिक्रानि कारयेत्‌ । war तस्दा्धमेथंजेवोपकारातिग्यो gaa, तदा तष्टेव प्रामषडं धका wi SATA | TUTE मनुः “Hararawargat खयं राजेव धर्मवित्‌ t परदिगेद्मिमेकेषां उपकारादिति खितिः-इति । अविषद्चा्या, ज्ञाटश्चापकश्यन्यायामित्यवेः । णादि निषेयवत्‌ दोमानभिचयो नाभेदनानन्तरमेव कायैः किन्तु varity , चेलादिषरु । तदाह बएवः- = oe Red । QUINTET 2 "समां प्रति समुत्यन्ने विवार चामयोरदयोः | Ses मासे मयेत्छोमां सभकागषु सेतुषु" इति | TATE नगरादेरप्यपलच्फाथेम्‌ | चतएव कात्यायमः,- “"सौमान्तबा सि" saat: gai खेजादि नियम्‌ । प्रामसौमादिष तया तदश्नगरदेशयोः" दति | wat रागलोभादिवभ्रात्‌ समाषाक्िणोनिषेयं न wer, तदा दण्डनोया TATE सएव, “मह्वनान्तु wetarat न सौमानिंयं यदि । कूयेभेयाद्रा लोभादा दाप्याख्छग्मसाहसम्‌-इति | एतत्‌ श्नामनिषयम्‌ । श्रन्षानविषये त नारदः “श्रय Raat way: सामन्ताः Shafts । स्वे एयक्‌ श्रयग्दणएडाः WTA मध्यमसाहसम्‌ ॥ सामभ्तात्परतो ये Werder watfed | संसक्रघकसक्रास्तु विनेयाः GaaTwer ॥ मौणटद्धाद यस्छन्ये TS TAT थक्‌ एयक्‌ । fata: भरयमेनेव साहसेन व्यवख्थिताः?-टति । साकिणां मियोवेमत्यामिधाने दण्डमाडइ काल्धयाथमः- “mifaa यरि भेदः स्याद णड्याच्छन्तमसाइसम्‌“--द्ति। लोमाचङ्कःमणएकतणमपि दण्डमाह wz, agin wane set सत्यसाकिषः । = ˆ. विषरौतं weeny टाष्योष्डु दिशतं दमम्‌" --इ्ति। [ * सामनन्तमावे- दति We wre | श्यवहारकाक्छम्‌ | ue: अशचानादगलवयने साच्छादरौन्‌ दणष्डयिला पुगर्थि्ारः wet यितव्यः । वथाच ATI: — | Segre दण्डयित्वा पुनः सोमां विशारथेत्‌ । wat इ्टांस्त सामन्ताम्‌ तस्मामूमौलादिभिः ख । समौश्यां कारथेत्तौ मामेवं धमेविदो विदुः"इति । ष्टचछेन विषयं भिण्यमाह रखशस्यतिः, CITA GAIA TACHA यदा महौ | मदहामद्याऽयवा Te कथं aw विचारणा ॥ RAGS राजदन्ता यच्छ तस्येव खा महौ । अन्यथा न भवेल्लाभो मराणां राजदेवकः ॥ चथोदयौ जौवमञ्च दै वराजवश्राश्रुषाम्‌ | तस्मारशर्वेवु कार्येषु amd न विचाशयेत्‌ ॥ ग्ामयोरूमयोर्थव मर्य्यादा करिता गदौ । कर्ते दामहरणं WIT AAMT yA? ॥ एकज Rey श्टमेरन्यच SHA | maT wet तस्य at ग frereery’—chA । wreenrenitfaray । चपनशरस्धविषये तु एवाह, C@ene agugy! गडमिच्डिका यदा भवेत्‌ | * qurmtat,—rfa कार | + स Se,—efa are | } sargz,—acfa we | , ९ .तदभुप्त,-- दति wre । खव We | ॥ wegen, —— इति wre Ret पाद्रमःथषः। मदी ख्ोतःप्रवाडेफ, Geral wey ताम्‌-इति 1 तां खश्स्यां मिं परवंखरामो यावदुप्रशस्यफथप्रािस्तावक्षमेते- ` ap) फशप्राप्ेरूद्ध तु पूर्ववचनविषयसमानता । राजदन्तविषये ` कंविदपगादमाडइ aya,— “या राज्ञा कोधलोभेन कशन्यायेन वा इता । प्रदत्ताऽन्यस्छ तुष्टेन न खा सिद्धिमवाभ्रुयात्‌"-इति। एतश्च ॒सख्वष्वदेतुप्रमाणवम्‌ केन विषयम्‌ । प्रमाणाभावे तु स्प- वाद “प्रमाण्ठर हितां wie चुश्नतोयस्य या इता | गृणाधिकाय वा दन्ता तस्य तांन विषाशयेत्‌“-दति। ग्ट्ादि विषये भिषयस्तेनेव द शितः,- । ““निवेशकाशाद्‌ारम्य ग्टदवाय्थापणदिकम्‌। । येन aaa ym तस्य तन्न विचालयेत्‌ ॥ अर निद्यसुश्वज्य agate बेशयेत्‌**- इति । श्रवरकरादिभिख्तुष्ययादिकं न रोधयेदित्याह नारदः+ “श्रवस्करस्यशश्चस्नभ्नमस्वन्द निकादिमिः। वइतुष्ययसुरस्थानराजमागांश्न रो घयेत्‌"'-इति | SVT — ‘arerarta अना येन पश्रवख्ानिवारिताः। तदुच्यते संसरणं न रोद्धव्यन्तु केगचित्‌'*-दति | * gary च, इति काण शार | | † ग्टश्चम्बाप फादिकरम्‌,+--दति were | ag sare warfen करोति, ae Taare सशव,- “qew संसरे wz ठ दारोपणएमेववा | कामात्पुरौषङुय्ोचेन्तस्य दण्डस्त माषकः" The | राजमार्गे ठ पुरौोषकन्तुदंष्डमाडइ मनुः “खमु खजेद्राजमां यस्वमेभ्यमनापदि | ख दौ कार्षापणौ दथात्‌ waaay शोधयेत्‌ । आपद्गतस्तया sgt गभिंणणो aravay । परिभाषणमदेभ्ति तच्च शोध्यमिति स्थितिः दति। श्रमेष्यादिमा तङ़ागादिषु दोषं क्वेतां दण्डमाह कात्यायनः “तड़ागोद्यामतौर्यानि योऽमेध्येन विमाश्रयेत्‌ | say श्नोधयिता तु दण्डयेत्‌ पूर्वेशषसम्‌ ॥ दूषयन्‌ सिद्धतोर्यानि स्थापितानि aerate: } पुष्यानि पावनोयानि प्राप्नुयात्‌ पूवंसाहसम्‌"--एति) मर्य्यादामेदमादौ Geary याज्ञवस्क्यः,- “"मय्यादायाः प्रभेदे त॒ सौमाऽतिक्रमणे तथा । Sw हरणे दणष्डाश्रधमेन्तममध्यमम्‌”--दति। अनेकरेषव्यवच्छेदिका साधारणी ware aver: wale भेदने, सौमाममतिखद्ु कषैतो, Gwe तथा निन्दितप्रद शेनेम्‌^ WY, यथाक्रमेणाधमोन्तममध्यमसाशसा दण्डा वेदितव्याः | चे्ग्रणं MUTATE UAT | WATT केजादिशरणे Bary, — eps ENT cae ATT A TTA ne ea nT ne ee net # cats पाठः ade । मम तु, निन्दिषलप्रददमनेनः-द्रति माढः धतिनाति | ` | Qgte VETMTATTT | ‘ae तटाक्मारामं Bt ar भौषया हरम्‌ । शतानि पञ्च दण्ड्यः खयादश्चानार्‌दिश्तं द्मः"-द्ति। ये ठू बलाद्‌ पट्ियमाणडेना दि श्मयस्तेवां उष्समोदण्डः WATT | ‘TAGS पुराजिर्वाखगाङःकने | तद ङ्ष्छेददत्येको दण्ड उन्तमसारसः?- दति सरणात्‌ । यन्त wefafearat सौमाऽतिक्रमणे दण्डाधिक्य- भुक्रम्‌ । “सोमाव्यतिक्रमे वष्टसदखम्‌?-इति | तत्छमयसो माऽति- करमरविषयम्‌ | Warten विषये कात्यायनः '"सौमामप्ये तु जातानां garet केचयोदंयोः । फलं DY साभान्यं चेचसामिष्‌ निदिं पेत्‌ इति । अन्धेन जातद्टचादि विषये षएव,- | “sada तु आतानां शाखा यचान्यसंख्धिता । wifey विजानौयात्‌ यस्य Sa तु संस्थिता" इति | wea waa क्रियमाणसेतुकूपादि कं येचस्लामिना न निषेदव्यम्‌ । तदाद याश्चवख्कधः,- “a निषेध्यो ऽस्पनाधस्तु Bq: कष्धाणंकारकः | परण्डमौ दरम्‌ कूपः SIS बहद्‌ कः" इति | RSM मशोपकारकं खेजादिकष्च भवति, तत्‌ खें wn म निषेद्धथम्‌ । wore स्वर्पोपकारक च, afergar भवति । नारदोऽपि, - “परकेचस्य मध्ये तु सेते प्रतिवध्यते | मदहागृणोऽस्पदोषसेत्‌ इद्धिरिष्टा खये खति- द्रति । व्यवहारकाण्डम्‌ | QU wag दिविधः । तथाच avare— ` “तुस्त दिविधो wa: खेयो बध्यस्तथेवच | तोयप्रवन्तनात्‌ खेयो बध्यः स्यात्तन्निवन्तनात्‌”--इति । सेत्वादिसंखकार विषये नारदः, “पूवप्रटरन्तसु च्छिन्नं न पा स्नामिनन्त्‌ यः । Bai प्रवन्तैयेत्‌ कथि स तत्फलभाग्भवेत्‌ ॥ aa तु afafa पुनस्तदग्ये वाऽपि मामवे। राजानमामम्त्य ततः कुर्य्यात्‌ सेतुप्रव्॑तनम्‌”- दति ) खेचस्तामिनमनभ्युपगम्य तद्भावे राजानं वा सेला दि प्रवन्तंने याज्ञवख्क्यः,- Carfaa asfataa चेते सेतुं प्रवत्तयेत्‌ | उत्पन्ने खामिनो भोगः तदभावे मद्दोपतेः"- दति ॥ प्रायैमयाऽथेदानेन वा लब्धानुज्ञः सन्नेव परकेजे सेतु प्रवन्तये- दित्यस्य नतात्पय्येम्‌ । न तु aqua पालमादषिनिषेधे तात्पथ्येम्‌। तस्यापरसक्तलात्‌ । श्रय वा, दृ्टलाभफलभो कुल निषेधे aay । कात्यायनोऽपि ““अद्नाम्यसुमतेनेव संस्कारं कुरूते तु यः । ग्टशोद्ानतड़ागानां संस्कन्ता BAT A ठु ॥ न्यथं^ wifafa चायाति न निवेद्य मपे यदि | अथावेश्च TERS तद्गतं लभते व्ययम्‌'"-इति ॥ ~ न ज न ~ क ~ ~ ~ १ = = ~ = ere eS ni, १ मी ५ we * 8d,— fa यन्धान्तर तः पाठ | 36° | QTR पदाशर्मा्वः। avenfaua @afacay 'कर्षामोदमङ्गोरुत्य पञ्चाद्योन कर्षति, अन्येन वा म कषयति, सं प्रत्धाच याश्चवस्वधः,-- “qrareaafa Si यो म gala कारयेत्‌ | स प्रदाप्योऽश्टश्दं चेचमन्धेन कारयेत्‌”-ट्ति॥ यद्यपि werd शषफलेन विदारितं न सच्यवोजावापाद्, AUTRES फलं MACs सामम्तादि कल्पितं ताक- दसौ afar दापनौोयः) तच्च खजं पूर्वकषेकादौ विधाय तत्का- रयेत्‌ । खृदस्पतिरपि,- “aq wet यः afaq a gata च कारयेत्‌ | afaa and दाघो Ue दण्डश्च awag’—cfe ॥ arfaa कियान्‌ श्दोदेय इत्धपेकिते avare,— ““विरावसन्ने TNA छब्यमाफे तथाऽष्टमम्‌ | सुसस्तेषु षष्ठं स्यात्‌ परिकश्ष्य ययाकिधि"-इति ॥ चिरावशन्ने चिरकाशलमश््टे खे क्षामोति सनो रत्थोपेकिते, aay फलमनुपेचिते wad तस्य quae: | सुसंस्ते SF उपेखिते qe भागं दाप्य cays: । असक्रप्रेतनषटचेविषये नारदः+ । “असक्रमेतमष्टेवु देजिकेषु निवापितः । सेचदये दिरूषेत्‌ कञिदगरेति च+ तत्‌फलम्‌ tt weary चेचेषु रेचकः Fats | खिलोपचलार wed दत्वा खेवमवाप्रुयात्‌"-दति ॥ म =" ~~ ~~ ~ भक्‌ *afaxqgaits,—xafe ate) कथिदश्रबोत सः--डति aera. इतपाठन्त aaa: | AIWTTANSA | eR ¥ [१ । ५ खिलोपच्ारः श्विखभश््ननायी ययः | तस्देयन्ताऽवधारणाथै वि~. वारं त्या खणएव- | 'संवस्रेषार्धखिसं खिलं स्याडइत्छरेख्िभिः | पञ्चवषेवषस्नम्तु खें स्यादटवौोसमम्‌"'-इति ॥ aa पुनः खिन्लोपचारं सामो न ददाति, तदाऽप्याहइ कात्यायनः नग्रक्रितो न दध्याचेत्‌ खिलायं यः water: | तदष्टभागदौनन्तु कषेकः फलमाप्नुयात्‌ ॥ adaat स भोक्ता स्वात्‌ परतः खामिने तु तत्‌”-इति। दूति सौमाविवादनिणेयः ATR: | अथ दण्डपारुष्यम्‌ | तव्छष्टपं नारदेनोक्रम्‌,- "परगाजेवष्वभिद्रोो रस्तपादायुधादिभिः | भस्मादिभिश्ोपघातेा दण्डपारष्यसुच्यतेः-- इति ॥ परगाजेष स्धावरजङ्गमादेरनेकद्रव्यषु | शस्तपादायचादिभिरि त्यादियशथाद्ावादिमिः । दरोरोर्दिंषनम्‌ । तया wate: भस्म रजःपड्कपुरौषादयेः । उपघातः SATE मनोदुःखोत्पादनम्‌ । । arene TOTES | TE नेविध्यमाद TTA renfa दृष्टं बेविध्यं रौगमध्योन्तमक्रमात्‌ अवमूरथनिःपङ्ूपातमचतद्ेनेः ॥ neg पराश्ररमाधवः-। रोनमध्योलमानान्तु द्न्याण्ामगतिक्रमात्‌ । चोप्येव WINE कण्टकश्ोधनम्‌ः- इति ॥ निःशङ्गपातः निःशङ्कप्रडरण्म्‌ । Wea area साह awa sweated: । दण्डपारव्ये पञ्चप्रकाराविधय- सेनेवोक्राः “fafa: पञ्च विधस्छक्रः एतयोरुभयोरपि | पार्थे सति खरम्भादुत्पन्ने चुन्धयोदथोः ॥ स मान्यते यः खमते दण्डभाग्योऽतिवन्तेते | परवंमाच्ार येद्यस्छ नियतं स्यात्स दोषभाक्‌ ॥ पश्चाद्‌ यस्रीऽप्यसत्कारौ पूर्वेतु विनयो गुरूः । इयो रापन्नयोस्वच्यमनुवघ्नाति यो ऽभिकम्‌ ॥ ख तयोदंण्डमाभ्रोति yarar वदि वोत्तरः | पारुब्यदौषाटृतयोः युगपल्सप्रडत्तयोः ॥ विशेषेन्न लच्यत विनयः स्यात्‌ समस्तयोः 1 शवपाकषण्डपाषण्डव्यङ्गेषु बधिरेषु च+ ॥ रस्तिपत्रात्यदारेषु गुवाचार्य्यान्तिकेषु al । . मर्य्यादाऽतिक्रमे सद्यो चातएवातुश्राखमम्‌ ॥ यमेव व्यतिरेकेर रेते खन्तं अनं मृष । — ieee ee ee mee ees ~न = ere: अ * ्पाकपश्चु चरडालवेग्यावधश्रखसिष,- दति यन्यान्तरतः YTS: | 1 दासेषु,--दति यन्यान्तर टतः UTS! | { ग्व चार्य्यान्तकेष च.-- द्रति are) गुव्वचार्यातिगेष च-इति ग्रन्थान्तरे | छलिवत्तरमे,-- दति ग्म्थान्तरछतः षाठः | व्यवडारकाणम्‌ | षे ava विनयं gaia तदिनयभाक्‌ मृषः ॥ मादयेते Ararat घनमेषां मलात्मकम्‌ | अतस्तान्‌ घातयेद्राजा मायद्ण्डेन दण्डयेत्‌” इति ॥ ay पयात्‌ प्रन्स्यापराघाभवोटदस्यतिना दितः च्राहृष्टस्ठु समाक्रो शम्‌ ताडितः प्रतिताड्यम्‌ । चत्वाऽपरायिनं* चेव नापराधी भषेशरः"“ इति ॥ योऽपि पञ्चात्‌ प्रटत्तस्य दण्डः कात्यायनेन र्वः, "“श्राभौषणेन दण्डेन WELT यस्त॒ मामवः | ua वा पौडितो ana स दण्ड्यः परिकोतिंतः--इति ४. सोऽपि प्वैप्रटन्नदण्डादन्पदण्डायंः । दण्डपारू्यषंख्याकारण- मा याश्चवष्क्यः,- “श्रसाकिकशते चिङयुक्रिभिखागमेन च। द्रष्टव्यो व्यवहारस्त कूटचिक्शूतोभयात्‌--दति ॥ यदा कञथिद्रहस्यनेनाष्ं ताडित इति राशे गिवेदथति। तदा ` fea: तङ्गाजगतश्रमादिभिः, कारणमयोजनपर्म्याशो चनरूपाभियु- किमिः, area जनप्रवादेन, च शब्दा हिग्येन च, कूटचिक्करण- सश्मावनाभयात्‌ परीका ATA: | राजधासनंद्रव्यविशेषेण रष्ड- विशेषमाह सणएव,- “Qt पद्धरजःस्छशं TSENG: सरतः | ५ wen ऽऽवतायिनं,-- द्रति यन्धान्तर ठतः पाठः । † भख्मपङ्करणः स्येति are | acd पराश्ररमाधवेः 1 aaa” पाष्डिदेशादि। स्पेने दिगुखसततः ॥ समेष्येव wats दगुणः dag च । ˆ रोनेव्यद्धदमोमोश्मद्‌ादि भिरदण्डनम्‌”-इति ॥ अमेध्यशब्देन शेश्रनखकणा दिदूषिकाश्ुक्रो च्छिष्ट दिकं गह्यते । पुरौषादिखयशं कात्यायनः, “afequqgerare: पादादौ च चतुर्गुणः । षज्गृणः कायमध्ये तु aly See: खतः” दति ॥ आआदिग्रब्देन वसायक्रन्नानां wear ताडमायं weitena ताडने च दण्डमाह सएव, “FETT तु YEE HT दादश्कोदमः। सएव fare: dtm: ताडनेषु खजातिषु"-इति ॥ याश्नवल्क्योऽपि,- “उद्रूरण्े wane दश्र्विंश्तिकः क्रमात्‌ | परस्यरन्त॒ सव॑षा शस्ते मध्यमखःरखम्‌"”--इति ॥ ea पाटे वा agaragud सति anand दशर्विंश्रतिपण- mt दमौ । परस्परमवधाच्यै शस्ते उद्यते सति सर्वेषां वर्णानां मध्य- मसाहसोदण्ड इत्यथैः । काष्टादिभिस्ताडने षएव,-- ““प्नोणितिन विभा दुःखं कुवम्‌ काष्ठादिभिन्ञेरः । दाजिंशतं पणान्‌ दा्योदिगृणं दशेनेऽदजः"-दइति ॥ * समे च,- इति wre | + दिनिष्टुयतः--इति ate | † इदमेव प्राठः way | . ~ भ eee ere ee REN EE TT TTA TTS HONS ETSI AN जक कक MAVICHTS | ददः लगादिमेरे दष्छमार मनुः ange: श्रतं दण्ड्यो लोहितस्य च देकः | atewa शतं निष्कान्‌" प्रवास्यस्वस्थिभेद कः”-ई ति ॥ पादाद्याकर्षण्णदौ यान्चवणकयः, "“पादकेश्ादिषु कराकषंणे लू पणम्‌ ZW! पिष्डाकषैश्रदकावेष्टपादाध्यासे wa दमः ॥ करपाददन्तभङ्गे STA HATTA: | मष्योदण्डो ब्रणोद्धेदे स्टतकल्यते तथा ॥ चेष्टाभोजनवाक्रोधे मेवादिप्रतिभेदने | सौवादिव्रणभङ्गे च दण्डोमध्यमसारखः ॥ . एकं yat बहनाश्च यथोक्रदिगृणणोद मः”--टति। अवमत्य केशरं weer योड्टित्थाकषैति, असौ दशपणं दण्ड्यः श्यात्‌ । यः पुनरश्रुकेनावेश् MISA GEA पादेन अरथति, असौ ग्रतपण्णन्‌ दण्डयः । करपाददन्तानां eT कर्थमासिकथोख Sci ग्टतकल्यहते च मध्यमसाइसो Ew: | meine मेचप्रतिभेदने रीवा इस्तनरणमङ्गे मध्यम ayes: । मिलिवकस्याङ्गभङ्गं gaat बहनां THATS थो दष्डडक्तः, तज aay दिगुणणोदण्डः मल्धेकं वेदितब्ध wey: § ` TATA STA, करौष्ठन्राणपाद्‌ादि जिहानाषाकरस्य च | © मा{खजेरे wa निष्कान्‌+-द्रति wel मासमेन्ता तु वचिव्कन्‌*-- कति TART TA: पाठः | २८८८ Seq चौक्मोदण्डो भेदने मध्यमो wa: ॥ मनुव्याण्णं पश्नाश्चं दुःखाय wea aie | यया यथा भवेहुःखं दण्डं रय्या तथा तथा?-दइति म्रातिश्लोग्येन WUT दण्डा यान्ञवर्क्यः,- 'विप्रपोड़ाकर SYURFAATYCS त्‌ | sq प्रथमोदण्डः wan ठु तद्धेकः'--दति ॥ ब्राह्मणौ डाकरमन्राद्यणएश््च चजियादेरब्रः करचरण्णदिकं SUM | ब्राह्मणयषणसयु्तमवणापलचेषणयम्‌ | WATT मनुः, ‘aq केन चिदङ्गेन हिस्याच्च्रेयां समन्यजः । छेत्तव्यं तन्तटेवास्य त्मनो रलुशासमम्‌'*- इति ॥ aq qurgua warfen प्रथमसाहमोनवेदितव्यः | शद्रः तच्ापि Scaaa Wale: | ACTH मतुः "पाणिमुद्यम्य दण्डं वा पाणिच्छेदनमरदेति-दति | उद्गुरणाथे शरस्तादिसंसपं ्रयमषाहदषादधैदण्डा वेदितव्यः ` भस््मादिस्पगेमे पुनः चखजिथवेशष्छयोः प्रातिखणोम्यापवादेषु दिगु- शोदमः। '-वफानामासुलोग्येन तस्मादधेङ्कदानितः- दति वाक्पार्थो न्यायेन दण्डः कश्यनौयः । कात्ययनः, - '"'वाक्पार्ग्ये षयेवोक्रः मतिव्लोमाहणशो मतः तथैव CITES पात्थोदणष्डो ययाकमम्‌”--दति ॥ तथापि शुद्रविषये विश्वमा. मनुः, "अवनिटोवतोदपेत्‌ दावो्टौ STAGE: । व्यवहारकाच्छम्‌ | अवमूचयतोमेदु' Fence ZF ॥ केषु गतो wet ऊेदयेदविचारथम्‌ | पादयोदाडिकायाश्च यौवाथां sway च ॥ सद्ासनमभिमेपुरत्छष्टस्या पश्टजः | arent शताङ्ो निवास्य: स्फिचौ वाऽस्य निरशन्तयेत्‌?-इति। apezarat विगरेषमार काल्धायनः,- “दे डेद्ियविनाग्रे तु यदा दण्ड प्रक्पयेत्‌ । तदा afent देवं ससुत्थामश्च पण्डितेः-दति ॥ तुष्टिकरं ब्रणलुष्टिकरम्‌ 1 समुत्थानं व्रणरोपणम्‌ | तज्जिनि- तकख व्ययो ब्रणगरूल्वानुसारेण पण्डितिेसेषधाथं व्यथाथे च afe- तमानं ब्रणारोपणं देयम्‌ | "समुत्थानं व्ययं चासौ ददादात्रणरोपणम्‌-इति तिनेवोक्रल्वात्‌ | दस्परतिरपि,- “शङ्गा वपौडने चेव STA भेदने तथा | ` खसुत्थामब्धयं दाप्यः कलहापदतश्च यत्‌" स्ति ॥ याश्चवस्क्योऽपि.- “'कशषद्ापद्चतं देयं दण्ड्य दिग णस्या | दुःखसुत्पादयेद्यस्ठ ख ममुत्थामकं व्ययम्‌ ॥ दाण्योदणष्डञ्च यो यस्मिन्‌ के समुदादतः'?--दति। ग्राम्यपश्डपौडायां दण्डमाह विष्णुः | “द्याम्यपशएधाते काषोपर्षं Tey: | पष्श्लाभिने त a थान्‌“ इनि । मृष्छदानषषु तपश्च विषयम्‌ \ अरण्वाभावे तु SARA दात्‌ । तचाच 37. २९० पराश्चरमोा्वः | qua । “ad च पुरुषपोडाकराः aged दाप्या WaT पौडाकराञ्च“--इति । प्राणिघातभिमिन्तकोदण्डः कचिदशक्यप्रति- कारविषये नास्तोत्याह मनुः “faq नष्टे युगे wa तिक्‌ प्रतिसुखागते | Say च यानस्य चक्रभङ्गे तथेव ॥ मेदने चैव यन्त्राणां योक्चरश्छयोस्लथेवच । आक्रन्दे चाप्यपेरोति न दण्डं मनुरग्रवोत्‌"-इति ॥ श्रक्यप्रतिकारोपेचकस्य दण्डमाह षएव,- “यचा पवतैते युग्यं वेगृष्ात्‌ प्राजकस्य ठ्‌ । aa खामौ भवेदृण्डयो feerat दिशतं दमम्‌”-दइति ॥ mma: श्रकटादिनेता । aang नाम Fae बेतनलाघवाथं खाम्यनुमतम्‌ । aa ममर्थप्राजकदोषेण प्राणिडिसा, तज न खाभिनोदण्डः, किन्तु प्राजकस्येत्याह सएव,-- “प्राजकखद्वबेदाप्नः प्राजको दणष्डमेति- दति | QA: समये दत्यथेः | पश्वभिट्रो हे TATE यान्षवश्वधः+-- “eQ च ग्ोणितोत्पाते श्राखाऽङ्गेदने तया | दण्डः BIG तु दिपणप्रश्डतिः कमात्‌ ॥ लिङ्गस्य केदमे alt मध्यमो Gewese मरापश्यनामेतेषु aay दिगुणणोदमः?-दति | STATA fart दुःखोत्यादने शरोणितोत्पादने | ग्राखाशब्देन शरटङ्गा दिकं went) अङ्गानि करचरण्णदौोनि । तेषां St वा यथाक्रमं दिपरमरखतिदंष्डः । द्िपणएवतुष्यणवदट्पष्णा- TAC MB | Ree पण दष्यादिषूपः। तेषां शिक्गटेदने ग्हल्युकरण्णे वा मध्यमसादषो- दण्डः, मूखदानं च । महापशुनां गोगजवा जिम्ष्टतोमामेतेषु erag पूथौक्रादण्डार्‌ दिगृएदण्डो वेदितव्य इत्ययः । कार्षापण- श्तदण्ड दत्यनुढतौ विष्णुरपि । “पश्लां पुंस्ोपघातकारौ तथा गजाश्वोद्रगोधातेष्येऽकपएवायः। मांसविक्रथौो च ग्राम्यपश्दलातो श कार्षापणम्‌'”-इति । कालत्यायनोऽपि,- “faut इ!दश्पणो बधे तु सगप्चिणाम्‌ | सपेमार्जारनश्ुलश्वद्धकरवधे भृणणम्‌”-इति | ममुरपि- ""गोक्घुमारोरेवपश्नचाणं BNI तया | वायन साहसं पूरे प्राप्नुया दुत्तमं बधे ॥ मनुग्यमारणे fad चोर वत्किख्िषं भवेत्‌ । arg ARES गोगजोद्रदयादिषु ॥ axarat wig रिषतो दग्रतोदमः। THN HAT: wag म्टगपद्िषु ॥ गदभाजाविकानाश्च दण्डः स्यात्‌ पञ्चमाषकः। माषकस्च wage: श्वद्ूकर निपातने--दति | रान्न दण्डदानवत्छामिनः प्रतिष्पक मृद्धं वा दद्यारित्थाइ कात्याचनःः- । ' “प्रमापणे प्राणश्तां दद्याम्सक्रतिषशूपकम्‌ | | Merged gel a दधादित्यत्रवौकनुः”-दति । शआावरपाशिपोडाकारिणणां दण्डमाह मचः RER TETWMCATSA | Caqeaiat स्वंवासुपभोगो यथया यथा | तथा तथा दमः ara हिंसायामिति भारशईइति। फलमुव्यो पभोगतारतम्यालुरोधेनो त्त ममध्यमादयो दण्डाः कश्प- Wer: | तथाच दण्ड्य इत्यनुदन्तौ विष्णुः । “कणोपयोगद्रुम- च्छेदो उत्तमसाहसम्‌ । पुष्यो पयोगद्रु मच्छेदौ मध्यमसाहसम्‌ | वल्लौगल््रलताच्छेदौ कार्षापणश्रतम्‌ । दणच्छ्येकम्‌ | स्वं च तत्‌- खामिनां agate — me (९) पापञुपपाष्रास्‌ aaa विर्वा्तितम्‌ | पापवक्ता Igawa cay e- WY स्पूषपापयक्षा मध्यमसादइसं, TUTTI ड तमसादसमिखयेः। $8 Res WEIWCATUS: | अय स्तेयम्‌ AUSUATE मनुः, a “स्यात्छा हसं FATIH THAT | निरन्वयं भवेत्‌ स्तेयं शलाऽपन्ययते दि” इति । ` BAe: | दव्धरचकराजाध्यच्वादिसमचं बलावष्टम्भेन यत्‌ पर- द्नयापषाराटिकं क्रियते, तत्छाश्सं; स्तेयं पुनरसमखं वञ्चयता यत्पपर द्रव्यग्रहणं, तदिति । यत्त॒ राजाध्यचादिकमादत्य म मयेद म- पहतमिति भयानि्भुते, तदपि सेयं भवति । wavs नारदः “उपायेर्विं विधैरेषां कलयित्वाऽपकषेणम्‌ | सुक्रमन्तप्रमन्तेभ्यो द्रवयाणामपश्ारतः॥ खद्वाण्डाखनखद्राऽस्थितन्तु चमेदण्णदि यत्‌ । WA श्तान्नश्च BX द्रव्यसुदाइतम्‌ ॥ वासः कौ गरेयवजेन्तु गोवजं पशवस्तथा । दिरण्यवजं लो दश्च मद्यत्रौ हियवादिकम्‌ ॥ हिर ण्यर लकौ गेयस्तोपुंसगजव?जिनः । देवव्राद्यणराश्चां च विक्नेयं द्रव्यसुन्तमम्‌?--दइति। नसकरन्ञानो पायमाह यान्ञवख्क्यः,-- “Qrenaya चोरो शोम्रेणय पदेन वा). घ्ूवेकर्मापराधौ ख तथा चाद्रद्धवासकः ॥ अन्येऽपि auger wer जातिमामादि गिवे | धृतस्त्रोपानसक्राख शएष्कमिन्लञ्ु खराः ॥ NUM HART गृढ्चारिएः | MATCH UA | २९९ facrat wary विनष्टद्रव्यविक्रयाः'"” दति । WER राजपुरुषेलीनेणा पद्तभाजनादिना Wawa, नष्ट- | द्र्यदेशादारभ्य चोरपादानुसारेण वा चौरायदौतव्याः | पूर्वकम परासौ WT WENA: | अण्द्धवारुकः श्रप्रन्नातस्धानवासौ | जातिनिद्कवो are शद्ध इति। wafasat are fre इति। श्रादियदणा्‌ सदे ग्या मकुन्ता युपलच्छते | नष्टद्रयविक्रयाः freq भाजनजोणैवस््ाद्यनिरज्ातसखामिकविक्रयकारिणः । एवंदिष्रलिङ्घेः पुरुषान्‌ wear चोराभवन्ति न वा ईति aaa Trea, मतु तावता ससेनं निखिनुयात्‌ । तदाद नारदः+ ““चन्यद्स्तात्परिश्रष्टमकामादुःत्थितं भुवि । Rue परिचितं wa यन्नात्परौचयेत्‌ ॥ सत्याः सत्यसङ्क शाः सत्याश्चासत्यसल्िभाः | gun विविधाभावाः aaa परौ चणम्‌”-इति । तस्करोऽपि दिषिधधः। तदाद खदस्यतिः,- नप्रकाग्राञ्चाप्रकाश्ाख तथ्करादिविधाः शताः | प्रक्ञासामथमायामिः प्रभिनलाम्ते ower ॥ जेगमा व्रेश्चकितवाः सभ्योत्को चकवश्चकाः | देवोत्पातविद्योभद्राः भिन्नाः प्रतिशूपकाः ॥ अक्रियाकारिणयैव मध्यस्थाः कूटमा चिणः | प्रकाश्तस्छराद्येते तथा कुदकजो विमः”दति | प्रतिष्छपकाः प्रतिशूपकारा Cae: । तथाच भमारदः+- “श्रकाश्रवश्चकाः तज कूटमानतुलाऽऽभजिनलाः | Ree पररा्ररमाधवः। उत्को चकाः सो पथिकाः कितवाः पण्ययोषितः a भ्रतिरूपकराशचेव मङ्गलादे ्रटन्तयः | दृत्थेवमाद्‌ योश्चेयाः प्रकाशास्सस्करा भुवि” इति) श्रप्रका शतस्कराणणं Weary दस्य तिः.- ` “afatee: पाञ्चमुखो* दिचत्व्यदहारिणः। उत्‌ चेपकाः WB ज्ञेयाः प्रष्छन्तस्कराः- दति | व्यासोऽपि-- "“साघनाङ्गाश्विताराजौ विचरभ्यविभाविताः | अविन्ञातमिवामाश्च ज्ञेयाः प्रच्छन्नतस्कराः ॥ equa: खन्धिभेन्ता पान्यजद्भन्थिकाद यः | स्त्नोपुंसयोः waa चोरा नवविधाः सताः" दति | squat घनिनार्मनवधानमवधायै तद्धनमुत्कत्य area | सन्पिमेत्ता weet: wait fear तचत्यभित्तिभेन्ता । यः कान्ता- रादौ पथिकानौं प्रस्यापहारकः परीधानादिग्रयितं धनं at agit मोचयति, स उद्नन्धिकः। प्रकाश्तस्कराणां नैगमानां दण्डमाद इरस्यतिः- | “anifegetg fawtat राजपूरेः | प्रदाप्यापद्तं दण्ड्यादमेः wreanetfea: ॥ wey दोषं व्यामिश्चं पुमः dey विक्रयो | ay afgae दाप्यो वणिग्दण्डयख तत्छमम्‌ ॥ क म शाका SL: A nC TO ay NAS ३०७ — 9 अनम - * प्रन्तसुषो,+- द्रति म्रन्थान्तरे uta: | ष्यवषारकाग्डम्‌ | ROR अश्नातोषधिमम्लस्त यख arecanfaz | रो गिणोऽथं समादन्ते म द्‌ण्ड्यञ्ोरवद्विषक्‌ ॥ कूटाचदे विनः चुद्रा राजभार्याहराच ये। गणका agaraa दण्ड्यास्ते कितवः ear: ॥ श्रन्यायवाददिनः सभ्यास्तयेवोत्को चज विनः | faquagaraa निर्वास्याः aaua ते ॥ ञ्यो तिरज्ञानं तथोत्पातमविदिवा ठु यो णाम्‌ | भावयन्यर्यलोमेन विनेयास्ते प्रयन्नतः ॥ दण्डाजिना दिभिय॒क्तमात्मानं asia fea a | fear: छद्मना रुणं TaN राजपूरुषैः ॥ wae तु सक्त्य नयन्ति बह्मून्यताम्‌ । स्तोबालकान्‌ वञ्चयन्ति दण्ड्यास्तेऽर्थानुमारतः ॥ हेमरल्रप्रबालाद्यान्‌ aa कुवते तु ये। केतुम प्रदाष्यास्ते cist afgad दमम्‌ ॥ मध्यस्था वश्च यत्येकः स्तेदम्नोभादिना यदा | साचचिणद्चान्यथा न्युः eared दिगुणं दमम्‌”--इनि। श्रप्रकागश्तस्कराणणं सन्धिच्छिदारीनां दण्डमाह मएव,- “सन्धिष्छेदकनो जाला शसमायादयेन्‌ प्रभुः | तथा पान्थुषो क्ते गलम्बध्वोऽवलम्बयेत्‌ ॥ मनुग्यदारिणणे राका quar कटाचिना | गोदतूर्नासिकां छिन्यात्‌ बध्वा वाऽम्भसि मच्जयेत्‌ ॥ उलृखेपकस्त सन्दंगर्भ॑त्व्यो राजपूरुषैः | ०२ पराशर माधवः धान्यदर्ता Taw दाप्यः afew दमम्‌" इति | गरन्धिभेदकस्य दण्डमाह HA:,— ‘apa गन्थिभेदस्य केदयेत्‌ प्रथमे यदे । ANA शस्तचरणणौ ana बधमरेति”- रति | अङ्कुलो तजंन्यङ्ग्टौ । श्रतएव नारदः - “qua ग्रन्यिभेदानामङ्कुल्यङ्गुष्टयो नधः । - fama चेव wed तोये बधमरहेति” दति | वन्दिग्रदादौनां ware याश्चवसक्यः,-- | “वन्दियदान्‌ तथा arfagacrut च हारिणः, प्रसद्य Maar श्एत्लानाःरोपयेश्नरान्‌""--द ति । श्रयमङ्गलिेदनादिप्राणन्तिको दण्ड उत्तमसादसप्रा्तियोग्ध- दरव्यविषयः | “वधः; सष्वेसखदरणं पुराज्निर्वासनाङइने | ACHAT TM: दण्ड उन्तमसादसे"-दटति ATAU | चुद्रमध्यमो्तमद्रगयेषु ्रथममध्यमोत्तमसाशस- खूपदण्डनियमो नारदेन दितः “साहसेषु यएवास्ते जिघ्र दण्डोमनोषिभिः । एव दण्डः waste say जिष्वरुक्रमात्‌"-दति। जत्थादिभेदेन सारतम्यमाह मसुः+- “अष्टगुणं तु WE स्तेये भवति किल्विषम्‌ । asta तु fae दाचित्‌ उजियस्य च ॥ ब्राह्यणस्य चतुःषष्टिः परश्चापि शतं भवेत्‌ | व्यवडार काण्डम्‌ | farer वा चतुःषषटिसतदामगु णवेदि्मिः ॥ धान्यं दशभ्यः Barat ₹इरतोऽभ्यधिक वधः । गरेषेऽप्येकादश्गणं दाप्यस्तस्य व तद्धनम्‌ ॥ ` ऋ्मुवणरजतादरौनासुत्षमानाश्च वाससाम्‌ | carat चेव सर्वेषां शताद्प्यधिकं बधः ॥ पञ्चा शरतस््भ्यधिके ₹स्तश्चेद्‌ नमिग्यते | ओषेष्वेकादग्रगुणं GUase प्रकल्पयेत्‌ ॥ पुरुषाणं कुलौनानां नारौणाञ्च fave: | रन्नानाञ्चेव मुख्यानां दरे बघधमरति"-दति । afqqrert योदण्ड उक्तः, स शुद्रकटठेकेऽष्टगुफः, वेश्यकटके दोड्ग्रगणः, चजियकलठेके aifangm, ब्राद्यणएकतके चतु षठिगणटः शतमणो वा श्रष्टाविंश्रत्यत्तरग्रतगण्णे ati Way सखच्पमृद्छवु | मृष्यादे काद श्गणं दण्डं कल्पयत्‌ । चुद्रदरव्यार्ना AANA न्यनमृष्या्ना HAT AAA दण्डः | तथाच नारद. Cereareurarat श्डन्मयानां तथेवच । वेणवेणवभाण्डानां तथा सराय्वस्थिष्वमेण्णम्‌ ॥ श्राकानामाद्रेमृलानां हरणे फलमूखलयोः | गोरसेच विकाराणां तथा SAMA: ॥ qararat शतान्ञानां मष्यानामामिषस्य च । सर्देषामेव मूलानां मृच्यात्पञ्चगण्णे दमः-दति । यत्पुननेरुनोक्षम्‌,- Squaratafaarat गोमयस्य Wa च । ढे og QIIATATYT: | दध्रः sce तक्र पानोयस्य TS ख | वेणवेणएवभाण्डानां लवणामां तथैवच | ग्टन्मयानाश्च हरणे ग्टटोभस्मनएवस ॥ अजानां ufaurga awe च इतस्य च । मांसस्य aay यच्चान्यत्‌ aM ॥ अन्येषां चेवमादौनां मद्यानामोदनस्य च | पक्षान्नानाश्च सर्वेषां तन्ूल्याद्विगुणो दमः दइति | तदल्यप्रयोजनविषयम्‌ | खल्यप्रयोजनद्रयापदारादौमां न दण्ड- इत्याह मनुः. “दिजोऽध्वगः etwafa: दाविच दे च मूलके । श्राददानः परखेचान्न दियं दातुमरडि ॥ चणएकन्रो दिगोधूमयवामां सुद्गमाषयोः | अनिषिद्धेयैदोतव्या सुष्टिरेका पयि fea: ॥ तथेव सक्तमे भक्ते भक्तानि षडनश्नता | श्रश्यस्तन विधानेन wae होनक्मणणा?- दति | महापराघेऽपि बाद्मएस्य न बधदण्ड इत्याह यान्नवल्क्यः,-- “aaa ब्राह्मणं wer स्वराद्वाद्धिप्रवासयेत्‌ | महापराधिममपि ब्राह्मणं नेव घातयेत्‌ इति | रपि तु ward fee wet खरे ग्ाज्लिर्वामयेत्‌ । तथाच मनुः, “TRA भगः कायः सुरापाने सुराध्वजः | स्तेये च श्वपदं कायं ब्रहम्रस्याशिराः पुमाम्‌" दति । . Weenie प्रायञिन्तमङ्वेतां दण्डोग्तरकाखं, म तु प्राय- स्यार कागडम्‌। ary खिन्तं विकिषेताम्‌ । तथाच मनुः, “प्राथञ्धिन्तमष्ठर्बाणः स्वं aul ययोदितम्‌ ! अया UMN ललाटे तु दापाशथोत्तमक्षादशम्‌"-टइति। भक्रावकाश्रादिदानेन चोरोपकारिणं wary याश्चवस्क्यःः- “भक्रावकाश्ाम्नयुदकशस्तोपकरणव्ययान्‌ | Niza ददतो wd ज्ञानतोद मुत्तमम्‌" द्रति | कात्यायनोऽपि, “लो राणाम्भक्तदा ये स्यम्तयाप्युद कद्‌ायकाः | मन्ता तन्नेव भाण्डानां प्रतिग्रदएणएवष्व | समदण्डाः Wal Ga ये ख प्रच्छादयन्ति ताम्‌ दरति । चचोरोपेखिणं प्रत्याह नारदः+ “naTg ये उपेचन्ते तेऽपि तदहोषभागिमः 1 उत्को शरतां जनानान्तु द्भियमाणे धने तथा ॥ खुत्वा ये नाभिधावन्ति तेऽपि तरोषभागिनः'-दति। ACA द्रव्यपराघ्युपायमाद यान्नवस्क्धः, "धा तितेऽपदते दोषो यामभतरनिगेते | विकोतभर्तैस्ठ पयि चोरोद्धतरवोतके ॥ watfa दथाद्वामस्ठ पदं वा यच गच्छति | पश्चयामो बुडहिःकोशात्‌ द श्र्ाम्ययवा पुनः" इति । अयमथः | यदा ग्राममप्येऽपि बधो RATT वा जायते, तदा ग्रामपतेरेव चोरोपेशादोषस्तत्परिष्ाराथं प्रामपतिरेव चोर weet Ue समर्पयेत्‌ । तदशक्रौ धनिने “इतं दद्यात्‌ । यदि 39 १०९ ` पराशरमाधवः | खग्रामाश्चोरपदं निर्गतं न gat दशने ठु तत्पदं यज प्रविश्यति, तदिषयाचिपतिरेव चोर धनं चार्पयेत्‌ । तयाच नारदः, “गोचरे यस्य gaa तेन चोरः प्रयन्नतः | ग्राह्यो दाग्योऽयवा द्रव्यं पदं यदि म निगंतम्‌ ॥ fata मुनरेतव्ान्न चेदन्यत्र चाति तत्‌ । सामन्तास्मागपार्लांञ्च दिक्पाला चैव दापयेत्‌”-दति । विवौते त्वपहारे विकौतस्ामिनएव दोषः ger ल्वध्वन्येव तत्‌ इतं भवति श्रविवौतके वा विवौतादन्यच्र 89, तदा चोरो- इ्तेर्मागेपालस्य दिक्पालस्य चापराधः। यदा पुनर्यामादरिः- खो मान्तपय्यन्ते 8s दौषोजायते, तदा तद्वामवासिनएव दयुर्यदि Meat वददिश्ोरपदः न निर्गतम्‌ । निर्गते पुनर्यन तत्मविश्रति, सएव प्रामञ्चोरापष्णदिकं gui यदा व्वनेकयाममे कोशमाचा- afenen दोषादिकं जायते deg जनसंमर्दा्भप्म, act पश्चयामो दश्यामौ वा cea) विकन्पस्त॒ प्रत्यासश्याद्यपेचया व्यवसख्ितः। वदा दापयितुमश्क्रोराजा, तद्‌ खयं दद्यात्‌ | तथाच गौतमः । “चोरइतमवजित्य quent गमयेत्‌ सखकोशादा द्त्‌"दटति । eae निणेयोपायमाह ठद्धमनुःः- “afe तस्मिन्‌ दाप्यमाने atte तु संग्रयः। सुषितः wae दाप्यो बन्धमिर्वाऽपि साधयेत्‌*-द्रति | चोरबधमप्रकार विगेषमाड मारदः+ः- * दाप्रयेत्‌,--दइति Byres पाठः | व्यवहारकाण्डम्‌ | gee "वदयस्तज चोरान्‌ ग्टको यान्ताज्विताद्यामिवध्य च॑ 1 wane च सर्वच दन्यािजबधेन तु"--दति। दूति स्तेयप्रकरणम्‌ | अथ सादसम्‌ | qed नारदेनोक्रम्‌,- Corea क्रियते कम यत्किञ्िद्रलद पतेः | स्छादसमिति प्रोक्त षरोवलमिदोच्यते"- इति ॥ wa ered चौयैवाण्दण्डपारव्यस्तोसंग्ररफेभ्यो म व्यतिरिच्यते, ` तेषां तदवान्सर विशेषत्वात्‌ । तथाच ररहस्पतिः,- "मसुव्यमारणश्चौ ये परदाराभिमश्रनम्‌ । पारव्यसुभयद्चैव सारम तु चतुविधम्‌”- दति । तत्कथं प्रयगस्य व्यवदहारपद ता | सत्यम्‌! तयापि बशदर्पावष्ट- खपासितसतेभ्यो भिद्यते दति द्‌ण्डातिरेकाथं एयगभिधानम्‌ | मनुख्यमारणदूपस्य सारस्य तेभ्योऽतिरेकात्तदथं वा एयगभिधानम्‌ | ae च चेविष्यमार नारदः “तस्थुनस्लिविधं स्तेयं प्रथमं मध्यमं तया । sunaf शास्लेषु तस्योक्तं WaT एयक ॥ werent SATIS च । भङ्गाखेपावमदचेः प्रथमं सासं सतम्‌ ॥ गासोपश्चसपानानां ग्दद्दोपकरणशस्ध च । Rok Weracaryd: f एतेनैव प्रकारेण मध्यमं साहसं Bae ॥ व्यापारो farmed: परदाराभिमशेनम्‌ । प्राणपरोधि यद्धान्यदुक्रसुत्तमसादसम्‌?- दति ! चिविधऽपि wee दण्डमाह सएव, ‘rg ang: fearte: प्रयमस्य श्रतावरः | AIAG तु शास्तज्ञेदृ्टः TYWATAT: ॥ TAN साहसे दण्डः सरस्त्रावर Tard | वधः सरवेखश्रणं पुरािर्वासमाङ्ने ॥ तदङ्गेद TAM दण्ड उन्तमसाहसे"--दति | परद्रव्यापररणखपे ACY दण्डमाच याश्चवस्क्यःः- “तक्छल्याद्िगुणं दण्डं निक्रवे तु चहुगणम्‌ | यः सारसं कारयति स दाप्यो दिगण दमम्‌ ॥ यञेवमुक्ताऽरं दाता कारयेत्‌ ख षचतुगुणम्‌"-दति । साहस विषेषु दण्डाश्च याश्चवस्क्यः,-- “eat शा तिक्रमहत्‌ भ्राठभायांऽपहारकः | अन्दिष्टस्याप्रदाता घ ससुद्धग्रदभेदश्त्‌ ॥ सामन्तासिकादौनां- AUF हार कः* । यञ्चाग्त्पणएकोदण्ड एषामिति विनिश्चयः ॥ स्लष्ठन्दविधवागामौ निहृष्टेनाजिधायकः । अकारणे च विक्रोः चण्डालख्ोन्तमान्‌ स्पृशन्‌ ¢ > क न were मयय न पा मामक = = प्मृप्रकारस्य कर्कः; दति याच्चबष्वधसदितायां पाठः। व्यवहारकाण्डम्‌ | Ree uz: प्रत्रजितानाश्च देवे faa च dina: | अरयुक्रं TT कुवेन्नयोग्योयोग्यकर्मंशत्‌ ॥ ठषचुद्रपरनाश्च Gera प्रतिघातकृत्‌ | साधारणस्सापलापो टासौगभविनाश्रशत्‌ ॥ पिदपुक्लसखखभ्ाददम्पत्याचार्यच्छलिजाम्‌ | एषामपतितान्योन्यत्थागौ च श्रतदण्डभाक्‌ ॥ शस्त्रावपाते गभेस्य पातने चोत्तमो दमः। अन्तमो वाऽघमो वाऽपि पुरुषस्ोप्रमा पणे ॥ विप्रदुष्टां feuds पुरुषप्तौ मगभिंण्णम्‌ | तुभेद करौश्चाप्य frat war प्रवेशयेत्‌ ॥ विषाभ्भिदन्पतिग्‌रुनिजापत्यभमापण्णोम्‌ | विकणेकरमासोष्ठोः war गोभिः प्रमापयेत्‌ ॥ च्ेचवेश्यवनयामनिवेशन विदा दकाः" | राजपल्यभिगामोौ 4 दग्धव्यास्तु कटाभिना?श्ति। अविन्नातकटठेसारसिके सादसिक्रल्ानोपायमादई शस्पतिः- “sa: संदुश्ते यच waaay न दूश्यते । पूरववेरानुमानेन Wa म मरोभुजा ॥ प्रतिबेष्यानुबेग्यौ च तस्य भिच्ारिबान्धवाः | प्रष्टव्या tegen: सामादि भिर्पक्रमेः ॥ विश्चेयोऽसाधुखंबगांचिङदाढेन मानवः | Sak comes) his it a Se ea et [0 ee eee ee a e विवोवखणदादकाः+- दति या्वववक्धसं दिता्थां ata: | Ree । पराशर माधव) एषोदिता घातकानां तसकराणश्च भाव्नाः-दति | याश्चवर्क्योऽपि,- “श्रविन्ञात्तस्यापि कल सुतबान्धवाः | year योषितश्चास्य परपुसि रताः way ॥ स्स द्रव्यषटन्तिकामो वा केन वाऽयं गतः सद । सत्यु समासन्नं प्रच्छेद्‌ाऽपि जनं एनेः?--टति | छक्रन्ञानोपायासम्मवे तु कात्धयायनःः- “fat fama यत्काथं area: सम्प्रवर्तते | aya: ख fants: enaaarad विधिः””-इति | साहसिकवधे fatiware व्यासः,-- “Tat तु घातकं सम्यक्‌ PAWS सबान्धवम्‌ | हन्या िचवबधोपायेरदेजमकरेनेपः- दति । ङरस्पतिरपिः- | “TRINA ये तु तयाचोर्पांश्ड घातकाः | शाला aan इत्वा हन्तव्या विविधेवेधेः"- ईति | एतत्‌ब्रहयत्रनियादिविषयम्‌ | तदाह बौधायनः । “चचिया- दौनां ब्राद्यणएबधे बधः सवैर शश्च । तेषामेव तुल्यापर्ष्टबघे यथा TATE दण्डं पभ्रकण्ययेत्‌"- इति । बहमाभेकधाताथं प्रृत्तानां दोषाचुरूपदण्डाभिधानाचेमाह कात्यायनः, - “URGE WY: संरब्धाः TEE AT: | ममेधातो तु यस्तेषां स घातक इति रतः इति | Ut मर्मधातकः सएव बधानुरूपदणष्डभाग्मवतोत्यथैः | PICA | RLY तथा, “aay: Wadia च भक्रदाता विकर्मणाम्‌ | agiuanaga तदना शप्रवत्तंकः ॥ उपेकाकारकश्चेव देषवक्ताऽनुमोदकः | अनिषेद्धा चमो यः स्यात्‌ सवं तत्कायकारिणः॥ यथाशक्षमनुरूपन्त्‌ दण्ड तेषां प्रक्पयेत्‌” - इतिं । अनुरूपं दोषानुरूपम्‌) ममेदन्त्दौषभा गिलं दयो देशेयति सएव, - “श्रारम्मश्त्द्दायशथ दोषभाजौ तदङ्धेतः“-दति। एवं मार्गातुदेशकानां कालान्तरेऽपि दोषलाघवमृद्यम्‌ | साच- ससद शापराधेऽपि दण्डमाह याज्ञवरक्धः*- “वसानस्त्ोन्‌ पणान्‌ दण्ड्यो नेजकस्त॒ परांग्ुकम्‌ | विक्रयावक्रयाधानयावितेषु पणान्‌ द्‌श'दति । एतावत्कराल्लभ्ुपभो गाथं aa दास्यामि लं मद्यमेतावद्धमं SHIA समयं war war Anau नियमा तिक्रमे दण्डप्राघ्यथेम्‌ | नियममाह मनुः, “rea फलके wad निज्धादामां सि मेजकः | नच वासांसि वासोभि्निंररेकन्न च वासयेत्‌'"--दति । प्रमादान्नाशने भारदः,- "“खाध्याष्टभागोदौयेत सद्धौ तस्य वाखसः | दितौयां स्लितौयां गखत्थो ्रोऽङ्खएवच ॥ अद्धंखयाश्ुपरमः पादां प्राप्यः कमात्‌ | यावत्तु Seas तात््याज्नियतच्यः'"- दति i ३१२ पराशरमाधवः। श्रष्टपणक्रोतस्य तेन सद्धोतस्य वस्तस्य नाश्रमे एकपरेन न्यमं ye देवम्‌ । दिघौतस्य queda, चिधौतस्य feos, ead तस्य पणचतुष्टयम्‌ | ततः पर्‌ मरति निर्जनमवश्िष्ठं मृत्यं पादपा- दापचयेन. यावष्नौ णं देयम्‌ । The नाशने लिच्छातो मूल्यदान- aaa: | पितापुत्रविरोपे साच्छयादौनां दण्डमाह सएव,-- "ˆ पितषएुल्विरोधे तु afaat चिपण्णे द्मः । wate तयोचेः स्ान्तस्यायष्टगणो दमः" दूति frarqaat: कखे यः माच्छमङ्गोकरोति न पुनः Hee वार- चात, स पणचव दण्ड्यः | यञ्च तपो: aaa विवादे पणदटाने प्रति- waa कंद वा agafa,.a तु चिपणणदष्टगणं चतुविगश्रतिपणं sway cay: । अन्येष्वपि तत्सद्‌ शापराधेषु दण्डमाह मएव,-- ˆ तुलाश्नासनमानानां कूरशृश्ना णकस्य च | vig wawal यः सद्‌ा्योद्‌मसुत्तमम्‌ ॥ WHF कूटकं qa HF यथ्ाष्यकरुटकम्‌ | स नाणकपरौकतौ तु दाप्य उत्तमसाहसम्‌ ॥ भिषडमिश्या चरन्‌ दाप्यस्िय्येच प्रथमं दमम्‌ | मानुषे मध्यमं राजमातुषेषुत्तमं दमम्‌ ॥ श्वभ्य यञ्च वध्राति बध्यं यश्च प्रसुञ्चति। श्रप्राप्तव्यवहारश्च स दाप्योदममुन्तमम्‌ ॥ मानेन तुलया वाऽपि योऽ ्रमष्टमकं चरेत्‌ । , दण्डं ख दाप्योदिश्रतं द्धौ शानौ च कर्तम्‌ ॥ भेषजेहलवणगन्धधान्यगङ़ादिषु | BTW काण्डम्‌ | ३१६ wee प्रकिपन्‌ रोगं पणान्‌ दण्डयस्ठ षोड़श ॥ eR णिदकायःकाष्टवल्कल्वामसाम्‌ | श्रजातौ जातिकरणे विक्रयाष्टगुणो दमः ॥ ` समुद्र परिवन्तश्च सारभाण्डञ्च शजिमम्‌ | शआ्रधानं विक्रयश्चापि नयतो दण्डकल्पना ॥ चमे पणे तु पञ्चाशत्‌ पणे तु शतमुच्यते | दिप fawat दण्डो मूल्यदद्धौ तु द्धिमान्‌॥ wy a arad ward कार्शिख्पिनाम्‌ । अर्धस्य pra इद्धि वा जानतां दम उन्तमः॥ age वणिजां प्यममर्चंणोपरन्धताम्‌ | विक्रीणताश्च विहितो दण्ड उक्तमसाषषः ॥ राजनि सश्याप्यते* योऽ: nae तेन विक्रयः | कयो वा निख्वस्तस्मादर्‌ वणिजां are सतः ॥ स्वदेशपण्ये तु शतं वणिग्‌ awa पञ्चकम्‌ | दशकं परदेशे तु यः सद्यः क्रयविक्रयौ ॥ पण्यस्यो परि aera वयय पश्यसमुद्धवम्‌ | अघौऽनुग्रदरत्काय्यः केतु विक्रेतुरेवच-दति । तुला सोशनदण्डः। प्रस्थादि परिमाणम्‌ । नाणक सुद्धा चिकित xafrenrfe 1 एतेषां कूरशदे्मरसिद्धपरिमाष्णदन्यथा ; नयूनलमाधिक्यं वा, द्रमपादेरव्यावहारिकसुद्धितलं वा, तान्नादिगभलं वा, करोति; थश्च भपुसोसादिरूपेसेव्यैवहरति, ताबुभौ प्रत्येक १11 ATED * ऋाष्यते,-- दकि are | 40 ६९४ पराशरमाधवः | मु्तलसा हसं दष्डनोयौ | थः पुनर्नाणकयरौशकः सम्यगेव कूटमिति qt, श्रसम्यग्‌ वा सम्यगिति, सोऽपयत्तमखाहसं दण्डनौयः। यः gaa: श्रायुवंदानमिश्नएव जवना चिकित्छाभोऽदमिति तिय्यै- भ्मनुव्राजपुरुषेषु विकित्छां करोति, ख यथाक्रमं प्रयममध्यमो- समसारसं दण्डनोयः। योऽपि वणिग्‌ हिकार्पाषारेः पण्छस्याष्ट- ait क्रटमानेन कूटहुलया वाऽपहरति, wet पणानां दिशतं quate: । अप्ियमाणद्रग्यस्य पुनरद्धौ हानौ च दण्डस्यापि खद्धिदनौ कस्यनौये । मेषजमोषधटद्रव्य, सेदोषटतादि, गन्धद्रवय- gmufe | एतेष्बसारद्रव्य विक्रयाय मिश्रयतः षोड्श्पणं दण्डः) म विद्यते asqen जा तिचंस्मिम्‌ weaifes, तदजाति । तस्मिन्‌ जातिकरणे विक्रयाय गन्धवणंरसाम्तरसश्चारणेन बड्मूष्यजातोय- सादृ ष्यसन्पादने, विक्रयस्यापादितसादुग्यस्य want: पण्यस्याष्ट- ATT. । समुद्र कस्य, करण्डकादेः परिवर्तनं wars: । योऽन्य- देव सुक्रानां पणं करण्डकं दग्ैयिला अन्यदेव स्फरटिकानां पू शस्तलाघवात्‌ समपेयति, यश्च सारभाण्डं कर्लरिकादिकं शजिमं wer विक्रयमाधिं वा नयति, aaa cesar) रजिमकसरि- STRAT पणे न्मे, न्यूनपणमूषे इति यायत्‌ । तस्िम्‌ तिने विक्रोते पश्चाश्त्पफोदण्डः । qaqa तु wa, दिपणमूख्ये त दिशतो- दण्डः । एवं मृल्यटद्धौ दष्डडद्धिरन्नेया ) राजमिरूपितार्धस्य छ्रां ate वाऽपि जानन्तो वणिजः कारशिख्पिभां-कारणां रजकादोभां भिख्षिनां चिषकारादौनां पौडाकरः rated लाभलोभात्‌ gee: पसं दण्डनौोयाः । ये पुनद परान्तरादागतं Tel Thea UTICA BA | ६९४. प्राययमामा उपरन्धन्ति aya वा विक्रौणौते, Farqwaarqet दण्डः । राजनि सन्निहितेऽपि सति, यस्तेमा ची निरण्यते, anda क्रयो वा विक्रयो वा काय्येः। faaa: भिगेतखवः अवशेषः t तस्माद्राअनिशूपितादर्घत्‌ योनिखवः, ava वणिजां era, ग पुमः खच्छन्दपरि कलिता दर्घात्‌ । श्रघेकरणे विगेषमाह ` मनुः, ""पश्चराजे सक्तराजे Ta मासे, तया गते | gaia Sat मव्यक्मरधेसंम्धापनं नृपः दति | सखदेश्पश्ये WPS पञ्चकं लामा ग्ट्ञोयात्‌, We तू दशपणं लाभं गरक्षोयात्‌; यस्य पण्यग्रहणदिवखएव विक्रयः | यः पूनः कालान्तरे विक्रीणीते, तस्य RTA: RA: | दे शान्तरादागते पण्ये देशन्तरगमनप्रत्यागमनभाण्डग्हणग्रररकादि- स्थानेषु प्रयुक्कमथें परिगणय्य पण्छमूख्धेन षद Fete, यथा श्रतपणमृष्ये पण्ये दश्रपण्णोलाभः सम्पद्यते, तया क्रहविक्रेबोरलु- UMHS VITA: | दति शाहसप्रकरणम्‌ | अथ स्लौसङ्गहणम्‌। ae जेविष्यमाद weafe:— “quae awe जिप्रकार निबोधत । बशोपाधिङते & तु ठतौयमनुरागनम्‌ ॥ नम we * पञ्चराभे qwure Te US ,--एति सुडितमदुखंडितायां ast 1. — क 6० जि कमृ पति कानि क IS ज UN + aed QITATCATR™: | अभिच्छया awa मन्ोश्मन्लतहतं तथा | मलये यन्तु Tele Terence ठु तत्‌ | BUN ग्टदमानोय Tar वा मदकारणम्‌ | `. संयोगः क्रियते यन्तु तदुपाधिष्छतं विदुः ॥ अ्न्योन्यमसुरागेण दूतसस्रषणेन वा | शतं रूपायलोभेन शेयं तदनुरागजम्‌”-इति । पुमरपि faery सएव,-- लत्पुमस्तिषिध प्रकरं प्रथमं मध्यमोन्तमम्‌ | SUPRA हास्यं दुतसम्मेषणं तया ॥ wang भषणं स्तौ णां प्रथमं wee: खतः | प्रेषणं गन्धमाष्यानां धृपश्धषणवासखस्ाम्‌ ॥ सम्भाषणं रहसि च मध्यमं ape fae: | एकश्रय्याऽऽसनं ater चुम्बना लिङ्गनं तया ॥ एतच्छङ्गहण प्रोक्रमुन्तमं शास्त्रवेदिभिः" दति | यो षिन्सङ्गन्दणज्नानो पायमार arqaer:,— “धुमान्‌ PEI ग्राह्यः केशाकेशि पर स्तिया | सद्यो वा कामजेचिद्केः प्रतिपन्तिरदयोस्तयोः ॥ गो वोस्तनप्रावरफसक्िकेश्रा वमर्षफम्‌ | अदे ग्रकालसम्भाषा सभैकस्यानभेवच"--दति | सलोपुंखयोिधुनौभावः awe | तच प्रत्तः, परभार्या स ए ame gay ; सद्य अमिमवेः कामजः करर ग्रमादिदतत्रण- fag: (भोः स्मतिपत्या वा, ay: 1 योऽपि परदारपरिधाभ- BACT Ri We | BUS ग्रन्बिप्रदे ग्-ङुषप्रावरए-जधन-्िरोरहादिष्यंनं सामिशाष इव करोति; निजेगदे शे अना कौरणऽयन्धकाराङ्ुले, श्रकाले संलाप रोति, were easy मश्चकादौ तिष्ठति, खोऽपि aw: | मनतुरपि,- | “fed Qian यः wet वा मषेयेन्तथा | परस्परस्सामुमते सवै सद्न्दणं WaT ॥ द पादा यदि वा मोदात्‌ लाघवाद्वा खयं वदेत्‌ | पूवे wad yafa ae aged सतम्‌”-दति । तज दण्डमाह याश्वरषयः,- | “AMAT दण्डः श्रानुलोग्येषु मध्यमः | भ्रातिलोग्ये वधः पुंसो weir: कर्णादिकनननम्‌ः- दति | अतूर्णामपि वर्णानां बलात्कारेण सजातोयगप्रपरभार्य्यागमने साशोतिपणसदहसं दण्डः । यदा तलातुलोम्येन हौमवणंगृन्नपरमार्य्या- गमम, तदा मध्यमखाहसोदण्डः । यदा पुनः सवणांमगृप्तामानुलो- न्येन गुप्तां वा ब्रजति, तदा मनुना विगेष उक्रः,- “awe ब्राह्मणोदण्डयो ant fant बलाद्रजन्‌ । warfa पञ्च दण्डः स्यादिष्छन्या ae aya: ॥ खहस्त ब्राह्मणो दण्डं दाप्यो WH तु ते त्रजन्‌। शृद्धायां चचियविणोः away भवेदमः'-इति ॥ एतहुरुखखिभाय्यादिग्यतिरि क्र विषयम्‌ । ay दण्डानरविधा- नात्‌ । तदाह नारदः,- । “भाता मादग्नसा शभरूभतिलानो flare | are पसाश्ररमाधवः। पिदग्यसखिभिग्यसत्ो भगिनौ vest कृषा । दुदिताऽऽचाय्येभाय्यां च eater शरणागता ॥ cra प्रत्रजिता धातौ साध्यौ वर्णीस्षमा शच या। श्राषामन्यतमां गच्छन्‌ AEA उच्यते ॥ शिश्नष्योत्कन्तनं, aa नान्योदण्डो विधौयते"-ईति। प्रतिलोम्येन उत्छष्टस्तो गमने चजिथादेबेधः । एतहुप्ना विष- यम्‌ । BVA धमद्ण्डः | तथाच मनुः “उभावपि fe तावेव ब्राह्मणा गुप्तया ay । विज्जुतौ शुद्रवदण्ड्यो दग्धव्यौ ar कटाग्निमा ॥ ब्राह्मण Var सेवेतान्यः पुमान्‌ यदि ) वेश्यं पञ्च शतं gaiq afer सहस्लिणएम्‌“-इति | शदरस्यागृ ्ोत्कष्टस्त्ो गमने TAP Ray, गुघ्तगमने ठु TUTTI | तथाच सएव, “शद्रोगु्तमगुप्तं वा देजातं वणेमावसन्‌ | श्गत्रैकाङ्गसवखौ AA Van रौयते"-दइति। अतेव विषये weafacta,— “सहसा कामयेर्यस्त॒ धमं तस्याखिलं हरेत्‌ | say लिङ्गद्टषण्णौ भामयेद्धदंमेन तु" दति | Uae गौतमः । “आर्यस्ियाऽभिगमने लिङ्गोद्धारः सवंसतरर एम्‌--ट ति । ` नार्याः पुनर्ो मव्णगमने नासादिकर्तनम्‌ | 1.1 . * भिजस्योतकनगात्‌,--इति मज्यान्तस्तः gia: | व्यवहारकावहम्‌ | Bre अथं बधाथुपदेभो राज्ञः, तस्येव पालनाधिकारात्‌. न दिजातिमा- अस्य । “ब्राह्मणः परोलायेमयपि शस्तं नाददीत" इति wT निषेधात्‌ । यदा तु राश्रोनिवेदनेन कालातिपातश्नङ्का, तदा fanfrarwerfa बधाधिकरौऽस्लयेव, “na दविजा तिभिर््राद्यं घौ यजो परुध्यते | माततायिवबधे दोषो ₹इन्त॒भवति कंचन ॥ प्रकाशं वाऽप्रकाशं वा मन्युस्तं मन्युग्ट च्छति" ति शरस्तग्रषणाभ्यनुक्ञा मात्‌ | चजिधवेश्वयोरन्योन्यसत्यभिगममे यथा- क्रमं सरसखपन्च शरतपणात्मकौ दण्डौ 1 तदाद मतुः. “Qua चचियां wat वेश्यां वा afset ni । यो ब्राह्मण्यामगुप्नायां तावुभौ दण्डमरेतः-- दति | साधारणस्त्रौगममे दण्डमाह यान्ञव्क्यः,-- “maagra दासोषु yfrarg तयेवच | गम्याखपि पुमान्‌ are: पश्चाश्त्पणकं दमम्‌'-इ्ति। उक्रणक्तए्णा वपौस्तियो दास्यः । ताएव खामिना शएमूषाहानि- gare गटहएव स्थालयमित्येवं पुरषान्तरभोगतो निरुडा- श्रवर्द्धाः | नियतपुरषपरिग्रदाभुजिव्याः । यदा दास्योऽवर्द्धा- भुजिखा वा भनेयुः, लाघ ATE! चशब्दात्‌ वेश्ास्बेरिणौनामपि साधारणस्तीणां भुजिव्यानां ग्रहणम्‌ । तासु च सवेपुरुषसाधारणतया गम्याखपि गच्छन्‌ cerned दण्डनौयः । ae तासा परदारदुष्त्वान्‌ । एतेठेवामिपरेव्य नारदोऽपि,- “@fiwargeal Jar दासौ मिष्कासिनौ च ar | 8९० परान्नरमाधवः | गम्याः स्युरानुलोम्येन frat म प्रतिलोमतः ॥ maa तु भुजिय्धासु दोषः सख्धात्परदारवत्‌ | गम्याखपि fe नो पेथाद्यतस्ताः सपरि यरश्ाः"--दति | निष्कासिनौ खाम्यमवर्ङ्का दासो । अनवर्द्दास्याथ्चमिगमने यान्चवरक्यः,- "प्रसद्य दास्यभिगमे दण्डोदशपणः रतः । ` बहनां यद्यकामाऽसौ चतुविंग्रतिकः प्रयक्‌"- दति । पुरुषसम्भो गजौ विकाखु दासौषु खेरिष्थादिषु च शटस्कदान- मन्तरेण बलात्कारेशाभिगच्छतो द शपणोदण्डः । श्रनिष्छन्तो- मेकां गच्छतां बहनां प्रत्येकं चतुविंग्रतिपणत्मकोदण्डः | कन्या- रणे दण्डमाह याश्नवख्क्यः,- “श्रलङ्कुतां रन्‌ कन्यामुत्तमं लन्यथाऽधमम्‌ । दण्डं zorqauig प्रातिलोम्ये बधः खतः | सकामास्वनुलोमासु न दोषस्वन्यथा दमः" दति। श्रलङ्कतां विवाहाभिसुखों कन्यां श्रपहरम्‌ sw दण्ड- नोयः azafaqey सवण श्रपष्रम्‌ प्रथममादइसं दण्डनौोयः | उन्तमवणंजां केन्यामपदरतः चचियादेबंघधणएव | श्रालुखोम्येन war मापहारे तु दण्डो म भवति | श्रकामामपषरम्‌ परथमसादसं दण्ड- नौयः | कन्यादूषणे तु दण्डमाह सएव,- “दूषणे तु करच्छेद उनलमायां बधः खतः | श्रतं स््ोदूषणे curgaferarsfirsie? | पषम्‌ गच्छन्‌ शतं दाप्यो रोगस स्लो च मध्यमम्‌ "--दति। व्यव HIER Tas | | देवेष ae यटा कन्यां बलात्कारेण नखच्चतादिना दूषयति, तदा तस कर च्छेदः | यदा पुनस्तामेव श्र ङ्गलो प्ररेपेण alfred gay दूष- यति, तदा बिग्रेषमाद मनुः ““शअभिषद्य ६६ र: कन्यां कुर्य्यादर्पेण मानवः । AVI कल्यं wat दण्डश्चादेति षट्‌ ग्रतम्‌ ॥ सकामां दूषयंस्हल्यो ना क्कुलं) च्छद मरति | fand a दमं दाप्यः मसङ्गविनिरन्तये ॥ कन्येव कन्यां या कुर्य्यात्तस्याः स्वाद्िशतोदमः | wen च fare ददात्‌ शिफाश्चेवाग्रुयादग | यातु कन्यां vga स्तौ सा षयो मौण्ट्यमरंति ॥ श्र्गुल्योरेव च ee खरेणो ददनं तथा" इति | यद्‌ पुनरूक्छष्टजातोयां कन्यां सानुरागामकामां* गच्छति, तदा तस्य क्षचियादेगधः यदा वणां सकामां श्रभिगच्छति, तदा गोमिथुनं sen त्यि दद्यात्‌ | श्रनिख्छति पितरि दण्डरूपेण UH दशात्‌ | सवर्णामकामां तु गच्छतो बधणएव । तदाह मनुः Cgaat सेवमानस्त॒ जघन्यो बधमरेति | Wwe दद्यात्सेवमानः समा सिच्छत्यिता यदि ॥ योऽकामां दूषयेत्कन्यां स vet aaa | सकामां दूषयस्तद्यो न वधं प्रष्रुयान्नरः”-दति । चण्डाश्यादिगमने दण्डमाद aval,— = ene 4 ~ att A PLR. = त एण ममि * सामुरागामकामां वाति पटो भवितु sar | † सर्व््वादभ्ंप्ल्लक्ष्विव्यमेव प्राठः । way अन्त्याभिगमने, दत्या- fequned याश्चवस्त्धरसंहितायां प्यते | 41 RRR ` पररयरमाधवः 1. ““श्ण्याऽभिगमने ME श्ुबन्धेन प्रवासयेत्‌ | श्यद्रम्सयाऽ्चएव स्छादमधस्यार्य्यागमे बधः ॥ श्रयोनौ गच्छतो योषां पुरषं वाऽपि Rea:* | aqfanfaat दण्डः तथा प्रत्रजिताखु च-इति | sai चण्डालोम्‌ । तां गच्छन्तं Safua प्रायञ्िन्तानभिसुखं, “aya तचनयजस्नियम्‌"--दति मनुवचनानुसारेण awe दण्ड fan क्रुल्छितवम्धेन भगाकारेणाङ्कयिला पुरालिर्वासयेत्‌ । शद्धः पुनः चण्डालो गच्छन्नद्धुएव । ww इति पाठे चण्डालएव भवति चण्डालस्य द्त्छष्टजातिस्तिया भिगमने qua) योषां मुखादाव- भिगच्छतः पुरुषं वा सुखे Fea: प्रव्रजितां गच्छतः चतुविश्रति- पणोदण्डः | वञ्चनया WisyS द॑ण्डमाद हस्तिः, . विकादादि विधिः wiui aa gat च कौच्येते | सगे पुंमयो गस॑न्ञन्तदिवाद्‌ पद सुच्यते-इ ति | स््ोरचणमाड मसुः+- “mara faa: कार्य्याः पुरुषैः सेदिंवानिश्रम्‌ | विषये सष्नमानाञ्च sear दात्मनो aw ॥ * पुरुषं वाईिमेडतः+--डति पाठः समीचीनः प्रतिभाति। † oy कियान्‌ ayia: खादशपएरकेषु ufeas इत्यनुमीयते । यतः समन्तसो तव चनं waaay लच्तणपरमेव, नतु वखखनया संग्रदये दण्डविधायकम्‌। भवितव्यन्वच, वश्वमया Maa? दण्डविधायकेम प्रमाणेन | वन्तु म्‌ दश्यते । खतः कारणात्‌ कियान्‌ सनग्याशः प्रलोनद्त्वमम्यते | समगम्तरोडधतं fearerfefater: स्त्रोखामित्यादिबचनं नारदस्येति क्रत्वा मिताच्तसादावडतमस्ि | ~+ =-= ~^ ~~ ~ न~~ ~~~ ~~~ ~ ~~ ~~~ ~~ ~ ~ ~~~ ~~~" ~= ee cee १ == ma, TYLA | RRR qanatsfa प्रसङ्गेभ्यः स्तियोरच्छा fanaa: | aatrey कुशयोः शोकमावद्ेयुररकिताः ॥ इमं हि श्वेवर्णानां पष्टन्तो घमेसुत्तमम्‌ | यतन्ते रिद भाय्यां भर्तारो दूबेला afin ` wi vafrg वित्तश्च* कुलमात्मानमेव | way wi प्रयन्नेनां जायां र्भ्‌ हि रति ॥ न कश्िर्‌योषितः शक्तः प्रसद्य परिर चितम्‌ | एतेरुपाययोगेम्तु शक्यास्ताः परिर चितुम्‌ ॥ aie aye Sat व्यये त्तेन नियोजयेत्‌ । We wiswwrg पारिष्णय्यस्य र चणे"- दति | खे: gee: भकठैभिः सर्वदा weaver: कार्य्याः । विषये गौता- दावासक्तास्ततो व्यावन्तेमौयाः) अरचितास्तु दुञ्चरितेम भटेपिद- कुलयोः vital gas) तस्मात्‌ gases रच्छास्ताः । यद्यपि प्रसद्य रचितमशक्यास्तयाप्य्थमङ्क हारौ नियोजनेम पुरुषाम्तर- विन्तनावसरस्याप्रदानेन रखेदित्शयेः | खहस्पतिरपि,- “इुक्छेभ्योऽपि प्रसङ्गेभ्यो faarat स्तो स्वबन्धुभिः | शभरादिभिः गृर्स्ती भिः पालनोया दिवानिश्रम्‌”--दइति | दोषरहितस्तौपरित्यागिनं प्रत्याह नारदः ` “श्नुक्रूलामदृष्टां वा cat सध्यों प्रजावतीम्‌ | व्यजन भार्य्यामवस्ाप्यो रान्ना दण्डेन शयसा?-इति | नन ~~ ~ [ग 1 1 1 | णी ~~ ~ = न र भक => ~" ~ ~~ +~ # प्रख्ूतिं चरिचद्च,-द्रत्यन्यत्र पाठः| T aatqa,—axfa ate | ARB परसशर माधवः | दण्डेन श्वापयितुमश्ष्ये are याश्जवस्वयः,-- “श्राश्चासम्पादौनों zat ace प्रियवादिनम्‌ | त्यजम्‌ ae: दतो्यां श्रमद्रव्यो ace स्तियाः-द ति । बृष्वा fad व्यजेदिव्याद नारदः ‘gata त्यजतो WH स्यादन्योन्यविषण्द्धये | स््ोपुंसयोः न चोढ़ाया व्यभिष्वाराद्ते स्तियाः'-इति) | विवादसंस्काररदहितयोरव्यन्तजातौ eral gaat विंरोधेनान्योन्य- wat दोषोनास्ति। विवादसंस्कतायास्छ व्भिचारादेव त्यागो- न विरोधमानेए ) एतच्च सखस्थस्वच्छन्दव्यभिचारिणणे विषयम्‌, 'ख्च्छन्द्रमा तु या मारौ aurea विधौयते”--दति यमसमरणात्‌ | चिव्यगाद्या श्रपि सन्धाच्याः | तयाव वसिष्ठः Carag परित्याज्याः भिग्यगा गृरूगा तथा । पतिन्नौ त विशेषेण अङ्गितोपगता तथा"दति। हारौतोऽपि | “aR अ्रधमवणेशिय्यसुतगामिनों पानव्यसना- सक्तां धमधान्यविक्रयकरौं विवजेयेत्‌?-दइति । fast च व्यव- हारपरिव्यामः। तया वसिष्ठः+ | , “'व्यवायतौ्ेगमनधर्मभ्यख भिवन्तेते"- दति | व्यवायः सम्भोगः | तौ्थगमनशब्देन area शच्छते, धम्म शब्देन च श्रौतम्‌ । चशब्देन सम्ाषणादिकम्‌ । व्याधितादौनान्त सम्भोगमानस्य त्याग tary देवलः, “व्याधितां स्लीपरजां बन्ध्यामुगम्तां विगतान्तवाम्‌ | अदुष्टां लभते wR Arete लेव कष्येएः“- इति | व्थदद्कारकायटम्‌ | RV तौर्यात्छम्मोगात्‌,-इत्यर्थः । तथाच नारदः+ “बन्ध्यां स्लोजननो निन्द्यां प्र्तिकूलाञ्च सवेदा | कामतो नाभिमन्देत gaat न्‌, दोषभाक्‌ ॥ वादिनीं पर्वाश्नो च wat निर्वासयेत्‌ ग्टहात्‌ | स्तो weasel गभ॑ विष्वं सिनी तथा i wag धनमिच्छन्तों fad मिर्वासयेदग हात्‌”-्ति । बौधायनोऽपि,- ‘an: प्रतिनिषेधेन या भार्य्यां सकन्दयेदृ तुम्‌ | at याममध्ये विख्याप्य qual तु नयेत्‌ Zerg ॥ श्रटभरूषाकरों नारो बन्धकीं परिदिंसकाम्‌ | व्यजन्ति पुरूषाः प्राज्ञाः चिप्रमपियवादिमोम्‌-द्ति। त्याग अनिधनेन काय्यैः। तयाच यमः+ ` "“खच्छन्दव्यभिचारिष्ाः विवस्ांस्यागमव्रकोत्‌ | aay ay aay वधं wiut विवजेधेत्‌ ॥ न चेव wad garda न चेवाङ्गविकन्तेनम्‌”“--दति । सीणां ay कुवन्‌ तासां विवजेनं कुच्यद्ध्ता, म कणेनासादि- कन्तनमित्य्थः। weg स्तोपुधम्मे आचाराध्याये प्रपञ्चित दति नाच RA | दति aay: | १९१ पराशरमाचधवः। अथ दायभागासख्यं व्यवहारपदं कथ्यते | तच नारदः, : | न्विभागोऽधस्य पिव्यस्य पुनर्यत्र प्रक शपते | दायभाग दति प्रोक्तं व्यवदारपदं बुधे" दति । दायोनाम; यद्धनं स्वामिखम्बन्धादेषान्यस्य ayaa”, तदुच्यते | स दिविभधः श्रप्रतिबन्धः सम्रतिबन्धश्चेति। यपिदधमं पितामदघनं वा प्रतिबन्धो दायः। पुजादिधनं तु पिज्रादोनां सप्रतिबन्ो cre: | तस्य॒ विभागोदायविभाग इत्युच्यते । अतएव rama पिद दाराऽऽगतं माहद्वाराऽऽगतं च दइ्व्यमेवोच्यते दति | संयदकारख,- “पिदद्वाराऽऽगतं द्रव्यं माढदाराऽऽगतश्च यत्‌ । कथितं दायश्रब्देन तस्य भागोऽधुनो च्यते” दूति | विभागकालमाद मनुः+- “are पितुख मात समेत्य भातरः सद । भजेरन्‌ Wa we wie दि जौोवतोःः- दति । wed पितुरिति पिदधनविभागकालः | aaedfafa माद- PAD तन नन ee we — ee tee ee (९) etfaa: waerfan amar खामिसम्बन्धः | स च zat Unite एचत्वादिरूपरव ure aq wees: | तेम खा. मिनः सकाशात्‌ क्रतं धमं न दायः, (२) सवस्याभमेवावस्यायां feenfeat पादिलमते इति aa प्रति- बन्धाभावात्‌ तदप्रतिबन्ोरायद्वुच्यते । पवादिधनन्तु fae: सप्रतिनन्धोदाथः। vagal faa तङधगस्य प्िजादेर्लब्यम- waa सप्रतिनन््त्वात्‌ | व्यवद्ारकारडम्‌ | RRS धनविभागकालः | ततखैतदुक्ं wafer) पितुरूष्प मातरि जौोवन्धा- मपि पिटधमविभागः काय्येः । तया मातुरूष्य पितरि जौ वितेऽपि मादटघमविभागः arava) श्न्यतरधमविभाभे उभयोरः्वकाण- प्रतौीचणानुपयोगादिति । तदुक्तं संग्रदकारेण,-- ""पिटद्रव्यविभागस्य जोवन्धामपि मातरि : Maa sara यष्पमाग्मातुः पतिं विना ॥ माटद्धन्यविभागोऽपि तथा पितरि जवति) सत्सपत्येषु यस्मान्न स्त्रोधनस्य प्रतिः पतिःः-दति। श्रयमयेः । पतिमरणे पिदभार्य्यायाः पन्युपर माद स्ातन्त्येषा न स्वामिलं, यस्माच्चापत्येषु विद्यमानेषु भार्य्याधनस्य भार्ययामरणे- ऽपि पतिनै eral, तस्मान्योरन्यतर स्मिन्‌ जौवत्यष्यन्यतरघन- विभागोयक्रः-दूति । एतेन जोवतोस्तन्तत्‌द्रव्यविभागेषु qarat न सखातन््यमित्यर्थादुक्रं भवति । तया ag: । “म जवति पितरि ga रिक्थ भजेरन्‌ | यद्यपि स्यात्‌ पशथादयिगतं, ते saytua पुत्राः । weet: श्रखातन्व्यात्‌"- दति 1 ware} यद्यपि अन्प्ानन्तरमेव ga: पिदधननिमित्तं परतिपनल्लाः, तथापि पितरि जौवति तद्धनं a विभजेरन्‌ । यतौ धर्मार्थयोरसखातनग्त्यादिभीाग- करणेन: ¦ श्र्याखातग्व्यं नाम, तदादानप्रदागयोरखातभ््यम्‌- ti तथाच wets “जोवति पितरि garat श्र्थादाम- विसर्गाशेपेव्वस्ातनग्च्यम्‌"?- इति । श्र्थादाममधौ पमोगः 1 विषशी- व्ययः | waders: शिचा्मधिक्पादिः। wirararal, एय- गिष्ठादलोदावमदंन्िः । यन्त॒ देवलेनोक्म्‌,- ४९९ परारमास्ंवः | “पितदेपरते ay विभ॑जेरम्‌ पितूर्धनम्‌ | ware हि भवेत्तेषां भिदौषे पितरि सिसे दूति | तदष्यस््ात्त्य्रतिपादमपर | पिदधे पुत्राणां sear खाम्यस शोकसिद्धतवात्‌ | मतु शास्तेकसमयिगम्यस्य खल्व स्य कथ "लो क- सिद्धता। शास्तसिद्धलश्च, “erat खक्यक्यसं विभागपरियहाधि- गमेषु । नराद्यमणस्याधिकं लब्धं चचियस्य विजितं निर्विषं वर्य शद्रयोः"“ इति गौतमवचनाद्वगम्बते । श्रप्रतिबन्धोदायो न सप्रतिबन्धोदायः। संविभागः सप्रतिवन्भोदायः। अनन्यपूर्व जलदणएका्टादेः BATT: परिग्रहः । निध्यादिप्रान्निरधिगमः। एतेषु निमित्तेषु wg erat भवति । ब्राह्मणस्य म्रतिग्रदादिना aaa, तद धिकमखाधारणम्‌ । चनियस्य विजयदण्डादिलबधं यत्तद- साधारणम्‌ । वेश्वस्य कृषिगोरक्ादिलब्धं निर्वि, तदमाधा- रणम्‌ । शएद्रस्य feats शतिरूपेण यक्लग्ध, तदसाधा- रणम्‌ | एवमनुलो मप्रतिलोमजामःं स्तस्तरविहिताश्वसारणथ्यादिना waa तर धिकमित्यथेः । ata संयदकारेन्यायमादह,- “वन्तेते यस्य यद्धस्ते तस्य सामो सएव न“ दूति । ्रन्यस्लस्यान्यदस्ते स्थितस्य दशनेन तस्येव arf tars: | श्रत श्ास्तेकसमधिगम्यं खलम्‌ । किञ्च, यदि यस्यान्तिके यद्धनं दुष्ट तस सएव सामो, तद्यस्य खमनेनापदतमिति न त्रयात्‌ | यस्ये वान्तिके दृष्टं तस्येव afar | खलस्य सौ किकले, “योऽदत्तादायिगोहस्ताक्षिष्ठेत ब्राह्मणो धनम्‌ | याजनाध्यापनेनापि यथा स्तेनस्तथेव सः*--दूति VITA | Bre qeamnfen semaifean: वकाच्ाद्रव्यमनेयतो रण्डविधा- TACT स्तात्‌ । तस्माच्छाश्तेकसमधिगम्यं Gaz | नेवम्‌ । शौकिकमेव सलं लौकिकायक्रियासाधनलात्‌ | त्रोद्यादिवत्‌ । areata ेदिकादौनामपि लौकिकपाका- दिसाधनत्वमस्तोत्यनेकाग्तिकोडहेत्‌ः-ट्ति चेत्‌। म। भ fe तैषा- माहवनौयादिशूपेण पाकादिसाधनत्वं, किं तरिं शौ किकाग्धादि- खूपेणत्य स्ति वषम्यम्‌.“ fag, पामराणमपि खलत्वव्यवदारद श्रमात्‌ ane रौ किकलत्वमवगम्यते^२) यत्तु गौतमवचनम्‌ ¦ “antl waned विभागेवु""-दत्याद्च- नुपपन्नमित्यक्तम्‌ । तन्न । प्रतिपरदा्ुपावष्टाष्य शौ किकले स्थिते ग्रहमणदौर्मां मतिग्हाद्युपायनियमार्लात्‌ शास्रस््य(२) | यदप्युक्तं, अन्यस्य खमन्येनापशतम्‌- इति न ब्रथादिति। तदसत्‌ | खव््ेतु- णमी (९) संचार विद्येवसंस्क तेाद्यमिराङ वनो षडच्यते । अस्ति aay eq- इयमा इवनोयत्वम धित्व | तच्रालौ किकडमसाधगत्वमलो किकेगा- watz waa । लौ किकपाका दिसाधनमत्वन्त्‌ सो जिक्खंगाभितवेनेव witafa ara: | (१) wera श्ास्त्ैकसमधिगम्यते तु श्रास्त्रामभिन्लानां पामराणां खत्व- ष्यवदारर्व ग सम्भवति) न fe गास्त्रमदिश्षाय वदेकसमधथिगम्यो- su wera wrafafa ara: | (श) ufearetemag खत्वं लोकिकमेवेति fart तेषां ofrwren- यागामनियनेन saat way प्राप्तो सत्यां ब्राह्मस्याधिकं जन्धमि- atfetanqata जाद ण्येव ufaae: ates विनव दवादि- fant wqerdaat san नियम्यन्ते | तन्नि यमातिक्षमाव्‌ एववब meats ergy गायते रुवति नावः | 7 ` RRS WINTRY: | तक्रथादिषन्देहात्‌ खलसन्देदोपपक्तेः | चद पि चोक्त, “योाऽदन्ता- दाचिनः“-इति अदन्षादायिगः सकाशात्‌ याजनादिना zay- मजेचितुदंष्डविधानमगु पपन्नमिति | तदप्यसत्‌ । मरतिग्डादिनिय- तोपायकस्येव खलस्य लौ किकलात्‌ नियमा तिक्रमेण उ्रव्यमजेयतो- दण्डविधानसुपपद्यते | एवं, “तस्योत्सर्गेण दएष्यन्ति"- दति माय- शित्तविधानमपि । एवं च खलस्य लौ किकले श्रसत््रतियहादिलब्धं wi तत्पचादोनां araaa खमिति विभाज्यम्‌'९)। न तेषां दोष- सभ्बन्धख(र) | “ae विन्तागमा धर्म्या दायोलाभः क्रयोजयः | प्रयोगः कमेयो गख सत्मतिगरदएवचः"- दूति मनुस्मरणात्‌ | cane चिनम्तनौयम्‌। विभागात्‌ खं खस्य वा विभागः--दति। waa gave: 1 विभागात्‌ खं, saa सवि SUBAATAS TIA खं घाधारफमिति द्रग्यसास्थेव्वाधानादिषु पितुरधिकार- विधिने स्यात्‌ । fare, पीपी 1 me, "-----~~-~--------~--- ~ mie ners cope a ~~ ^~ ^~ AT CE eae ee cee, Q) खल्वस्य weineaferas छसत्‌प्रतियद्टादिना wae खत्वमेव ग स्यात्‌ तस्योत्छगंषिधागात्‌ । खत्वस्य लौकिके त्वसतृप्रतिग्रहादि- सन्धेव्वपि खत्वं भवत्येव । तस्मोत्सगेय शअध्यन्तोति प्रायश्वित्तन्तु werfagta न ततृ चादोगाम्‌ । रु खल्वव्लियिता autel प्राय- चित्तमकुव्वन्‌ warrant मवति, तस्य aerate भवति | सन्‌ एजादोगान्तु दावरूपमेव तञ्जनभिति न तेषां warare: | तेषां away धर्ग्यत्वा दिन्धाशयः | (2) साधारकधमस्येकेग विनियोमासम्भवादित्ति भावः| SIT | eat “भजा प्रोतेन यदत्तं fae afeenaste सत्‌ । शा यथाकाममश्रौयाद्द्यादया श्यावरादृतेः--दति ओतिदागवलममप्यनुपपन्न स्वात्‌ । चदपि,- "'मणिञ्ुक्ाप्रबालानां wea पिता प्रभुः । स्धावरष्य लु wae न पिता न पितामहः॥ पिद्प्रसादात्‌ गुण्यन्ते वस्त्रा्धाभरणानि च॑। स्थावरं तु म yaa प्रसादे सति पेदके"-दइति। तत्पितामहोपात्तस्थावर विषयम्‌" | तक्मात्‌, सामिनाण्ाडि- AANA स्त्वं न HHA | Trererg i sata ad लोके प्रसिद्धम्‌ । विभागशब्दश्च बस्तामिकधनविषये सोके प्रसिद्धो नान्यङौयधनमविषयो न प्रहोणए- विषथः^र) | किञ्च “samara खामिलाक्षमेतेत्याचाव्याः"--दति गौतमवचनाव्जकमनेव WATT | यदुक्रम्‌, मरिसुकाप्रवालानाम्‌,--दत्यादिवचनं पितामहोपाश्त- खावरदिषथमिति । तद यक्षम्‌ । म पिता न पितामह इति वचनात्‌ पितामदष्य fe arate धनं पुजपौ योः सतोरदेयमिति च THT स्वत्वङ्गमयतोति | यद्प्यकम्‌ । श्र्थसाप्येव्वाधानादिषु पितुरनधिकार दति) ACI | वच्नादेवाधिकारावगमात्‌ | यदपि चोक्षं, sents (जिका PRICED AON A Serra: A (९) wee we स्थावरस्य vacate पसक्तिरेव मास्तौति an प्रति- faa | तस्मादिभागादिना खत्वं न गन्भनेति भावः | (x) न aWiafawat न निन्िव इत्धथेः। (९५३ पलश्रमाच्चवः। सले भक्तां रतेन aenfaanfe विष्णवचनं गोपपदयते,- दति | तदप्ययुक्तम्‌ । साधारण्छेऽपि द्रव्यस्य वचनादेव Aer frac भिकारोपपन्तेः । स्ावरादौ तु खाजिंतेऽपि पुजादिपारतग्व्यजेव | “erat दिपदश्चैव यद्यपि सरथमजितम्‌ | अरसन्भय GAM सर्वान्न दानं न च विक्रयः॥ ये जाता येऽप्यजाताख्च ये च गरं वयवस्थिताः | ठनिश्च तेऽमिकाञ्घुन्ति न दानं न च विक्रयः इत्यादि वचनात्‌ | श्रापदारौ तु खातग्त्यमस्ेव | “एकोऽपि erat कर््यादानाधममविक्रयम्‌ | श्रापत्काले HoT धर्मर्यिधु विगरेषतः- दति ` सणरात्‌ । तस्मात्‌, BER जग््रनेव खलमिति । प्रशतमनुखरामः | अपरमपि faraway arqaeg:,— “विभा गश्चेत्पिता gaffer विभखेक्छुताम्‌। we वा भरेष्ठभागेन स्ववा स्यः समांशिनः"-इति | यदा पिता विभागं कतुमिष्छति, तदा पुचानात्मनः सकाशा- दिच्छया विभजेत्‌ इच्छया विभागप्रकारः, ae वा शरेष्ठमागेनेति | चरेष्ठभागः सोद्धार विभागः। द्धारप्रकारः BAT दर्तः, “eee fia उद्धारः सव॑द्रव्याच्च दरम्‌ | ate मध्यमस्य wad तु यकोयसः”-श्ति | Wear) सवे व्येष्टादयः gar: समां ्रभाजः(\)। weg विवमोभागः (९) श्दश्च सन्ये वा स्युः समांश्ििन इनस्य व्यास्थानम्‌ | (२) भयश्चेति सेाारविभागसरू्यद्वचेः। | "णि म TCT H TATA | wee enfanxefara: | क्रमागते तु स्वामपि wate: खात्‌। पितु- रिष्या विषमविभागस्यायुक्रलात्‌ | नारदोऽपि कालान्तरमाह, ‘gy we पितुः पचा विभजेयधनं समम्‌ | मातुभिंडन्ते रजसि प्र्तासु भगिनौषु च॥ निदटक्ते वाऽपि रमणे पितयुपरतस्यदे"-दति । शञ्खनेऽपि । “sata पितरि खक्यविभागो zg विपरोते चेतसि दौर्रोगिणि चःः-दति। श्रस्ायेः। श्रकामे विभागम- मिच्छति पितरि ्रतिरद्धे विपरोतेऽप्रशृतिखे दौधेरोगिणि sf किव्छरोगमग्रस्ते च पुचाणामिच्छयेव विभागो vrata: । दौषे- रोगग्रहणएमतिङ्पितारेरूपरखणम्‌ | अतएव नारदः "व्याधितः कुपितेव विषयासक्रमानखः | श्रययाश्रास्लकारः च म विभागे पिता प्रभुःः-इति। पिच्रा समविभागकरणे विग्रेषमाड याश्चवश्क्यः,-- | “afe छर्यात्समानंग्रान्‌ पल्य: कार्याः समांशिकाः | म . दन्तं स्त्ौधनं यासां wat वा ate वा-इति अदि सखेख्छया पिता पुरान्‌ समभागिनः करोति, तदा अद- water: पल्थोऽपि पुचसमां भाजः कार्याः । दन्ते तु Ie, "दन्ते ag प्रक्पयेत्‌-दति yaimeginenet भवन्ति। पितु- eu ध्म विद्ययं विभागः aie इत्याद प्रजापतिः “qi wy वसेध्वां wat धर्मकाम्यया | एयग्विवर्धते wawargel wafqar’— दति । weafach,— - are TEMERTYT! | “qaaray weal पिदरेवदिनाग्वेनम्‌ । - एकं भवेदिभक्रानां तदेव erg गदे we — char पिभोरूष्यं विभागे प्रकारनियममाईइ aner:,— “विभजेयुः um: पिजोरूष्येन्टक्यग्द्ं way’ इति | नतु पिभोरूष्ये विभागेऽपि विषमविभागो agar दशितः | erg ferry मातुञेत्युपकम्यः- ‘ae wa तु zeta foxy धनमशेषतः | ओेषास्तञ्ुपजोबेयुथेयेव पितरं तथा ॥ eee विग्र उद्धारः सवंद्रव्या्च यद्वरम्‌ | ततोऽधै मध्यमस्य स्यान्तरोयन्त॒ यवोयसः'” ॥ तथा, "उद्धारेऽनुद्ूते तेषामियं स्यादंश्कनचना | ` एकाधिकं दरेव्जेयष्टः gated ततोऽनुजः ॥ sda यवोयांस इति घ्ाग्यवस्ितः" इति | गौतमोऽपि | “विंग्रतिभागो ज्येष्टस्य मियनमुभयतोदयुको- रथो Waa: । काणः खोडः कूटः वष्डोमध्यमस्यानेकसेत्‌ । श्रवि- धान्यायसौ ग्टहमनोयुकं चतुष्पदां Yaa यवौयषः । समं चेतरतः स्वेम्‌ः- इति । sane | aaa पिदढधनाद्धिश्तितमोभागो- See मिथुनं गोमिथुनं प्रसिद्धम्‌ । उभयतो दग्सोऽश्वाश्चतरगदेभाः, तेषां यथासम्भवं अन्यतराभ्यां ante: ¦ etyteg: | कूटः wy- fare: । वष्डो विशो पितबाशधिः। अविशेषितलात्‌ गवाश्वादीनां ee TEI ATTN cE LA EPS cE A A DICT ETI SELLA LOLI LAOS ILI SCL, IC CTS CS TTD (६) नेग व चनेन खखासाधारणथनेन एयकएयक्‌ पिणाद्य्यगात्‌ विमागी whafafate द्वम्‌ । STG ITH Taz | ane यथाशमवं WAIT ZT: ANTE । wlwwy, ural Hrerfe, wat etext अनोयक्रं शकटयुक्रम्‌। चतुष्यदां गवाङषै- नामेङेकं VIR WTAE यवौोयस उद्धारः | Teefacty,— “अन्ध विद्यागृणओष्टो sj erargarqary”—tfa | काल्यायनोऽपि,- “ear यथया farted या गा्थतामियाव्‌ | तया तथा विधातं विद द्विर्भागगौ रवम्‌**५-इति | जौवदधिभागेऽपि विषम विभागो मारदेनोक्रः+- “fata वा स्वयं qaqa विभजेदयसि fea: | ae ओष्ठ विभागेम यथा वाऽस्य मतिभेवेत्‌ ॥ fata तु विभक्ता ये समन्यूनाधिकेषेमेः | aut सएव we: श्यात्‌ सर्वस्य हि, पिता my: avant प्रतिपद्येत विभजन्नात्मनः पिता--दति। दइहस्यतिर पि,- “समन्युनाधिका भागाः frat येषां प्रकश्पिताः | aaa ते wena विनेयासे ख्यरन्यथाः-दति । तस्माश्जौवद्धिभागेन चः विषमविभागोऽस्तौति कथं ger: =+ ewe ~ ~ PATO ret RON को नयः i * म aslg,—xfa कार | † इत्थमेव पाठः Saag Gea | परमयं पाटः न समोचौनः। जोवद्धिमारऽणौवदिभागे च,- इति wise समौ चोगः प्रतिभाति | A A का 99 ES = क शन "न = = (१९) नेन धनस्य यागायेत्वं यथा भवति, तया भागाधिक्धं HMA ahs qian विद्यादिगुणवतां मा गाधिक्यं चापितम्‌ | तदोपधनगस्योत्धगते- Qaida खम्भाव्यमानत्वारित्मिप्रायः | ! Rad पराद्ररमाद्वः। सममेव विभजेरन्निति नियम्यते । मैवम्‌ । सत्यं wremt fava विभागोऽस्ति, तयापि शोकविद्धिष्टलादसुबश्ध्या दिवत्‌ waste? | SWE PERT, “यया नियोगधमौऽयं नाजुबन्ध्यावधोऽपि वा । तयोद्धार विभागोऽपि नेव सम्मति वन्त॑तेः- दति श्रापस्तम्बोऽपि । “Hata पुचेभ्यो दायं विभजेत्‌ समम्‌“ दति खलमतसुपन्यष्य “शन्येष्ठोदा या द द्व्येके"-इत्येकौ यममेन छत्छ्रधनग्रणं च्ेष्ठस्यो पन्यस्य, दे ग्रधिगरेषे, “gad war गावः aw भौमं ave रथः पितुः परिभाण्डश्च, ग्टहोऽलङ्ारो भाग्याया श्ञातिधमं Gara” -श््येकौयमतेनेवोद्धार विभागं द ग्रेयिवा “तच्छाखपरतिषिद्धम्‌"- दति भिरारुतवान्‌। तञ्च wants खयमेव chiara, “ae: Gat दायं व्यभजदित्यविगेषेण श्रूयते”-दति । तस्मादिषम- विभागः शास्लसिद्धोऽपि शोकविरोधाच्छतिविरोधाञ नातषेयः,- tf सममेव विभजेरन्निति नियमा घटते । स्वयं द्रव्याष्ननसमयतया पिढद्रव्यमनिच्छतोऽपि यत्किञ्धिद्त्वा दायविभागः aaa तत्पुबादौनां दायग्रहणेच्छा गिदस्य भित्था याश्चवस्क्धः,- “शक्रस्यानोदमानस्य किशिद्ष्वा एयक्‌ करिया"~-दइति | Gat माटधनविभागो दुहिभभावे द्रष्टव्यः । तथाच सएव, “मातुर इतरः शेषन्डणान्नाभ्य चतेऽन्वयः"?- इति | माढहतर्णापाकर णाव शिष्टं माद्धनं दुहितरो विभजेरभ्‌। weg Wawa wi च माक्धनं ` दुचिदशां बद्धावेऽपि gare व्यवहार काकम्‌ | | विभजेरन्‌,-द्ग्यर्थादवगम्यते९) । श्र गौतमेन विगरेवोदशितः | “स्लोधनं दुडिदषण्णामप्र्ानामप्रतिषठितानां च-इति | OIE दुदिढबमवाये माठटधनमनृढ़ानामेव९) | agrafa सधननिधेन- दुहिखमवाये निर्धनानमेवेव्ययेः(२) । पेतामहे पौजाणां विभागे विशेवमाह याश्नवख्क्यः,- “श्रनेकपिहकाणान्तु पिहतो दायकल्यना”--इति | यदा fren: अविभक्ता भ्रातरः पु्रानुत्पाश स्टताः, तत्रैकस्य द्यौ gw, अन्यस्य जयः, अपरस्य चत्वारः । तज पौनाणं पैतामहे zz यद्यपि जगकनैव सत्वं qacfafae, तथापि पिश्यंं arta wet- SSR चलारोऽप्येकं लभन्ते cays: । एतदेवाभिप्रेत्य शरश्मतिः,- “तत्पुजा विषमषमाः पिहटभागङराः खूताः--दति | ततूपुजाः प्रमौतपिटकाणामेकंकस्य पुजाः, ane: न्युना- धिकषद्काः, खं @ faa भागमेव लभन्ते इत्ययः । यदा खद्त- योर विभक्षयोमेध्ये कथित्‌ भराता टतः agers पितामहादष्यप्राप्तां्ः पितामद्ाऽपि नासौत्‌, तदा लाह कात्यायनः ““चअविभक्रेऽसुजे प्रेते aga wert | gata जौवनं येन शमं नैव पितामहात्‌ ॥ शभे्ताशं @ पिशं तु fazarae वा gary! णी | FP जक व 1D ० कोक क मअ (९) तथाच विभनेरन्‌ सताः पिच रूडम्टक्यम्टणं सममिति माढधने प्रजा- फामधिज्ञारः wafeqaxta मावः। (२) इदमग्रत्तागामिनस्य ष्थास्यानम्‌। (श) तथाच व्वपर्तापदमनूढृापरम्‌,प्रतिशितापदच्च निधंगापरमिति शादय 48 gee WEELATUR | सवां शस्त वेषां भाहण्णां न्याश्नतो ` wag # कमेत तत्छुलो वाऽपि frei: परतो भवेत्‌--दज्नि | MAA तत्सुतो TAS GaAs: | तद्यपि विभाग्धभनष्छा- मिपौग्रह् सतोऽपि पितुरभावे agri लमेत, तत्र ऊषरं ततृरन्रतौ खद्धमपितामहधनविभागकरणनिदत्तिः,--इति laury देवक्लः,- “'शअतिभक्रविभक्रानां कुलानां वसतां सद | शये दाप्यविभागः स्यादा चतूर्थादिति fafa: | तावत्‌ Ger: सपिण्डाः |: पिष्डभेद स्ततः परम्‌"--दति। जोत्रत्पिद्धकश् ga: fra ae कथं पितामदइधयविभाग- दत्याङाङ्गाचामाइ इङडस्पतिःः- . “xa पित्रामशोप्राक्ते जङ्गमे स्थावरेऽपि ar | समरसं शिलमाश्यातं fra: qae चेव हि“ इवि। प्राश्चक्च्धोऽपि,- गम्मा पितासदहोप्रा्ना fart द्रव्यमेव वा। तच श्यात्‌ दृशं are पितुः पुचस्य चोभयोः" दति | az: शालशिच््ादिक्रा। fager; एकष्य wince cafe पर्णानि, AI RERUTS इयम्ति MEANT TENET: | दरव्यं qatcente ) aq fraraya प्रतिग्रविजयादिणशब्धम्‌, तज पितुः पुरस्य च खाम्य शोकप्रसिद्धमिति विभागोऽस्ति 1 च्छि यस्मात्‌ सदृशं समानं साम्यं, तसमात्‌ न पितुरिच्छयेव विभागो- नापि पितुर्भागदयम्‌ । any, पिव्रतो arama war- 4s वादनिकम्‌ । खतः, ` व्रकौम्‌ । are “ert afadtia विभेजभाक्तेनः पिता इत्येवमादिका यंगान्तरे विषंमविमोगप्रतिषेदिनपरतथा आीपि- तम्‌ । आषा जिंतद्रैव्यविषयं ari पेतामहघमविषये ठै नं कार्विं विषमविभागः.--ई-ति । तथा, श्रविभक्ेन पित्रा Garis xa री- यमाने विक्रीयमार्ते वा पौरस्य निषेधेऽप्यधिकारोऽस्तिं* m0 । चेतामक्षोपाष्तेऽपि। कचित्‌ पितुरिश्छयेव स्ला्जितवदिभागो- भवतीत्याह मतुः “Gea ठु पिताद्रव्यमनवा्तं यदाश्रुयोात्‌ । म॑ तत्पुतेरभेजेत्धाधमकामः खयमर्जितम्‌'- इतिं 1 यत्वितामरा्जिंतं केनाप्यपदतं यदि पिसोद्धरति, तदा arf तमिकं ga: लाद्धेमकामतः खयं न विभजेत्‌,-द्ति। एवं च॑ सति, पितामहोपाजिंते म स्ञेच्छया विभाग tam भवतिं । wewfcra.— “Varad wi frat quer यदु पाजितम्‌ | faeniterfen oi aa ara पितुः संवम्‌-इ्ति। कात्यायनोऽपि, “द्ग ्या ऽपदतं द्रव्य खयमाप्तश्च यद्भवेत्‌ | एतत्धवै पिता पुचचैविभागं नेव दाष्यते"-षति। watered marred स्तेनो इतं, यन्न कमायातं, यच्च विथा- शौर््यादिभा खयनेवाजितं, aed पिता विभागं gad दाष्यङ्वचैः। क्मिगोग्तरेकाशोत्थननस्य भागकन्धनाप्रकारमाशद याश्चषश्वधः,-- ee ee eee a भना # निभि प्यास धोऽस्तीति,-- दति wre | † tanta ara: सेभ्वैन | famnetaresfa,—nxfa atene tad ॥ Rt ECCS wt we ` १8० Bos ccm “विभक्रेषु geitena: सवर्णायां विभागभाक्‌-इति। wear: | विभक्तेषु gy सवर्णायां भार्य्यायां जातः पुचः पिजरोर्भागं भजते दति विभागभाक्‌-दइति । मादभःग्चाशत्थां दुहितरि, ane खतेऽन्वयः-इल्युक्तलात्‌ । श्रवर्णायां जातच खा धमेव पिश्यालभते, aaa तु wa) अतएव मनुः,-- "ऊध्वं विभागाष्नातस्त॒ पि्यमेव दरेडनम्‌”- दति | पिजोरिदं पिश्चम्‌, “mtn: पूर्वजाः fast: arent विभकजाः? दूति सरणात्‌ । मातापिजोर्भागे विभागाव्पूवेसुत्पश्नो न ent पित्रा ay पूवं विभेक्वात्‌ । fm भातुर्धने ग Waza: । विभागोत्षरकालं पिजा खयमजितमपि विभागोलर कालमुत्पन्न- स्येव । तथाच भनुः, Te: ay fea faa यत्‌ स्यमजिनम्‌ | विभक्रजस्य तस्सवंमनौ शाः पूर्वजाः सताः" -दूति । ये च विभक्ताः पुमः frat स स्टृष्टास्तेषां विभागोन्तरकाणल- सुत्पनेन we विभागोऽसोत्था मनुः, ख्ष्टास्तेम वाये खर्विंभजेत ah: सहः दूति अजोवद्दिभागोक्षरकालं जातस्य THE भागकच्यभामाइ याश्च व्कधः,-- Carat तदिभागः स्यादायग्ययविश्ोधितात्‌“दति | पितरि ऋते भादविभागसमयेऽसखष्टगर्भायां मातरि भाटवि- भागोष्रकाणशसुत्यलस्य विभागः, इग्सार्भादमिग्टशौतात्‌ चायब्थ . व्थवङारकाखम्‌| ER fautfar उपचयापचयानग्वां शोधिताद्धनात्‌ fafeqquer खां शसमोदातष्येः च्यादितव्यथंः। एतश्च ग्टतभ्वादभाय्यायामपि बिभागसमये श्रयष्टगभधां विभागादृष्वेसुत्पन्ञस्यापि वेदितव्यम्‌ । स्यष्टगर्भायां तु प्रसवं प्रतौ- waa विभागः ater) “श्रय भ्रादणां दायविभागो याञ्चान- पतथाः स्वियस्तासामा पुजलाभात्‌-दति वशिष्ठश्मरणणत्‌ । विभ- करेभ्यः पिदभ्यामयेद्‌ाने विभक्रजस्य cae गिषेधाधिकासेगास्ति, ad च तेन मः प्रत्यारतव्यमित्याद्‌ याश्चवशक्यः,- “flat यस्य age anda धनं -भवेत्‌”--दूति | अजोवदिभागे मातुर शकल्पनामाद UTWaeW:,— “पितुरूष्वै विभजतां aaa समं eta —cfa । एतश्च wae श्रप्रदामे बेदितव्यम्‌ । ce aaa, “at त्धाश्डारिणौ?- दति स्मरणात्‌ | अतएव सत्यमरम्‌,- "“जमन्यपधना पुजेर्विभागेऽ'्ं घमं इरेत्‌'--दति | अरपधना भ्रातिखिकस्लोघधमश्यून्या जननो पुचेविंभागे fread पुशां शसममंशं इरेदित्ययेः । जननो यहं सापन्यारेरुपलशचण्णार्थैम्‌ | तथाच व्याषः,- | “meat पितुः पल्यः समानांशाः प्रकौर्तिताः। ftaragy सर्वास्ता माटतुद्याः प्रको न्तिताः*--इति | मु. कंखिदुक, माताऽ समं ₹दरेदिति नौवनोपयकलेव धनं माता खोकरोतोति । तज्ञ । अंशसमश्रब्टयोरागयेवधप्रषङ्गात्‌ | eee: vm eee 1 or 1 erene. ~ "~ ~~ * क्तं Qan,—xfa are esx , ` पशशश्भाधवः | अथो चयेत, गोडधने जोकनो प्यकं werfe सास्पधने gwar: मिति। तदपि म। विध्िविषन्यप्रधङ्गमत्‌(र। firqarenret सवान weg विभागप्रकारमाडइ व्याषः,- | “खमानगजातिसद्या ये जातास्छेक्ेन सगवः | विंमिन्नमादकासेषां मादरभागः परशरखते^९ इति | रदश्यतिरपि,- “WRIT बरवः समानाजातिसञ्या | quae aaa माठभागेन धर्मतः इति | fare विभागं avare— “खवणंलिङ्गसश्या ये* विभागस्तेषु wet’ दति | जिंक्ननातोनां qerat विभागमाह aryaeq:,— “शतुसिद्मकभागाः wadat ब्राह्मणत्मजाः | कजा खिदश्रोकभागा विड्जास्तु द्योकमा गिनः" दूति | TUN TAT EUAN, जराह्मणदिवणस्तौषु(र aretaiarar- गराह्रूमूधांवसिक्षाम्बह निकादाः५) यथाक्रमम्‌ प्रत्येकं चतुखट्धक- गीय pT पि * euaPferqegy ये,-- इति wre | ee ree cores, (१) वाक्धमेदप्रसक्ादित्धर्थः | (२) रकस्थां ferat यावन्तः get जाताः खंपरस्यामपि तावन्तरव Pena तदा मातुरेवाप्यं वि माग इति wat saaqafaaraa: | (१) तथाच्च वङ्रइत्य् ames ब्राह्मयादिवयाः सिय उश्थन्ते | तस्मा्वाधिकरवकारके Seyret wae yaa: | , (*) oredr arqergent area, चचियायां autateret, Saravere:, जायां निनादः | अनयैव Stat उत्तरयन्भोयास्येयः | Le TS SE CEES TO ककि = ० ~ ~ ~ == ~ ~ ~^ सा cee me See ee ७ व्वङ्ारकाखन्‌ | Ree भागा Haq: | रुजियादिवकच्छौषु whrdetme: wienrfier atafagaaen, fe वेग्ायाडुत्वौ teencet द्वोकभा- गिमौ | मरुरचि,- । ‘aTgrargau wey यदि fae: | amet wae जाते विभागेऽयं विधिः खलः ॥ aa वा क्यजातन्तु द श्रधा प्रविभव्य तु | wel चिभागं gala विधिनाऽनेन afar ॥ earn ₹हरेदधिप्रः shina afweran: वेष्यापुजो etzg एकं शद्राखतो weyy’—cfe । एतत्‌ भवनिशधदप्रात्रश्म्यतिरि क विषयम्‌ । sava इष्य तिः,ख७र “a भरतिदषगरदया चजियादिखताय वे। awaut पिता carga विप्रासुतो शरेत्‌"-इतिं | मरनिदयश्विन्नेषणएसामर्ष्णात्‌ क्रयादिलमा ग; wfrarfagar- नासि waa) शूद्रापुजस्य विशेषप्रतिषेधाञ्च(र | “net दिना तिमि्जातो म गमेर्मागमदहंति, इति । WY REI — “gryuafwatant शुद्रापुजो म खक्द्मभाक्‌ | चयदेवाद्ध पिला दद्याश्लदेवास्छ Wi भवेत्‌ ज दूति | तंष्जिदरग्सधनशद्भाबविषयं दत्य विदम्‌ | भलरोग्येन नात- A eee ee शा 1 7 17 व] me we emer om (९) टि fw maferan भूमिः चचिगादिष्टत्राणामपि ग भवेद्‌, कदा भूग्नस्छः विद्धे्प्रतिविधो गोपप्यते | zw वि देषव्िद्धेक- सी wtearfegarat तजाधिका सोऽखोति मदः | ass परासरमाधवः। VARA खक्थग्टहणप्रकार माह देवलः, Caraga wag पितुः सर्वखभाग्मवेत्‌”- इति | एतच्च मिषादव्य ति रिक्रविषथम्‌ । अतएवोक्तं तेनेव, - “निषाद एकपुषस्तु विप्रस्य रतोयभाक्‌ | at सपिण्डः eget वा खधादाता तु संदरेत्‌”--इति। यन्तु मनुवचनम्‌, “यद्चपि era सत्यु्ो यद्यपुजोऽपि वा भवेत्‌ | नाधिकं दशमादयाच्छुद्रापुजाय wee: — The | तदश्रश्रूषुशद्रापुच विषयम्‌ ) छजियेण ay वा शुद्रायामुत्पन्लः एकः GH श्रद्धंमेव हरेत्‌, म fara दतैयमंशम्‌ । तथा इरदिष्णः | “दिजातौनां शूद्रस्छेकः पुजोऽद्हरेाऽपुजस्य wee था गतिः सा भागाधेष्यः-दति । प्रव्यासन्सपिष्डस्यान्यद्धं भव- Awe: । श्रजोवत्‌ विभागे केषुचित्‌ भराटव्वखंछ्रतेवु भगिगौषु वा ऽसख््कता ख तत्हस्कारः पू्वैसंच्कतेशाट मिः wee इत्याह ब्याषः,- “agar ये तज पेटकादेव ते धनात्‌ | संस्कार्या आभिः sath कन्यकाख यथाविधि" इति | भगिमोसंस्कारे a विशेषमाह याशवक्वयः,- magne संस्कार्या भाटमिः पू्वैसद्तेः | Fama Fane area AH THT” बति | THEA तमभस, SK, AN deen: | wfiergrdgen: निनादं प्राद्यव्नातौथा कन्यका तष्नातोयपुजभागात्‌ atte wl भागं दना wegen: । WITTER | ॥ >+ अनेन fared दुहितरोऽप्ंग्रभागिन्य दति मम्बते। अतएव मनुः, “तेग्योऽगरेभ्बस्तु कन्याभ्यः खं ayant: wry! सनात्‌ साद शाच्चतुभागं पतिताः स्युरदिश्वः?--इति | ब्राह्मणादयो तरः ब्राह्ण्छादिभ्यो भगिगोग्बो दिजाति- farsa” खात्‌ खादं्रादात्मोचाह्वागाश्चतूथभागं दधुः | एतदुक्रं भवति । यदि कखचिद्राद्मण्येव oat पुषद्चैकः कन्या चेका, तच fay ze ser विभज्य asa भागं चतुर्धां fase acai कन्याये दला शेषं Get क्ञोयात्‌ । we दौ get कन्या चेका, तदा पिदधनं Fur faq asa भागं चतुर्धां विभव्य Sati कन्यायै zat रेष द्रौ gat विभ्य ग्टक्नोतः। अण एकाः qu: दे कन्ये, तदा faa धनं निधा विभज्य ada भागं चतुर्धां fare द्धौ भागौ द्वाभ्यां कन्याभ्यां दलाऽवश्िष्टं aa gat ररक्षाति। एवं समानजातोयेषु समविषमेषु wareg भगिनोषु च समविषमासु योजनोयम्‌ | यदातु ब्राह्मणौपुज् एकः चजिया कन्या चैका, तज पिशं zai ana fara खजियपुचभामाम्‌ चोम्‌ चतुधा fiery तुरौ- धारं खबियकन्यायै दत्वा रषं बाह्मणोपुभो ग्ाति। wer a at ब्राहणोपुजौ चजिया कन्यका, तज पिन्व धनमेकाद्‌ शधा विम्य ` चोन भागान चतुधा fey wed wena’ शवा oy सर्वं गुण्य पदै तव, TRIER ~~~ ~~ -~ = ~~ ~ ~~ भ or ser areca क a araeenh nr some went = stat quret खनति ‘oe awistents तच्छन्देन TTT a! -असान्ण्धन्ते "ङ्द्धन्ते | afezqM, faartatafe rats wath aes | WITWCATSR 7 तुथो ग्दराः, श्रपि ठु orareerenata शंभन्ते cape: ।" यन्त विष्णमोक्रम्‌, “RITA कानौोनगदोत्पन्नसहोडजाः पौ मर्भवद् ते मैव पिण्डच्छक्यां ्रभागिगः* इति | तद्टौरसे सति चतुथों ग्र निषेधमपरसेव( । यश्च मनुनोक्रम्‌,- “एकएवौरखः ga: fase यद्नः प्रसुः । शेषाणामानशस्याथं प्रदद्यान्तत्मजोवनम्‌+*- इति ॥ तदौरसप्रशंसापरमेव म चतुरधौंश्भागनिषेधपरम्‌ । श्रन्यया चतुर्थां श्रभागम्रतिपाद कवशिष्टकात्थायनवचनयोरानयेक्यप्रङ्गात्‌ । यदपि तेनेवोक्रम्‌, षष्ठं तु खेचजस्यांशं प्रदथाव्चेढकाद्कमात्‌ | श्रौ रमो विभजनम्‌ दायं fast पश्चममेव्-दूति | ate व्यवस्था । wap चतुर्थो शभागिल्व, प्रतिक्रूलल- fread: षष्ठं ्रभागिलव, प्रतिकूलत्वमाजे निरएलमातचे च पश्च aberfiafafa® ) यदपि हारौतेनोक्रम्‌ 1 “विभजिव्यमाण एकविंशा कानोनाय दद्यात्‌, fast पौनभवाय, एकोनविंशं? षि कक [कयत , # weave प्रनोवनम्‌+-दइति ate | 1 wafiwa,—sfa wre | { fawa,—xfa are | $ warafawq,—exfa wre | owen (६) ग तु सासाण्छादमनिघेधपरमिति ara: | (२) तथाच घतिङ्गणत्वनिमूंखत्वे भिचिते बर्ांधप्रयोजिके, प्र्ेकन्तु पद्चमा प्रथो शिके इति ara: | श्यवङारकाखम्‌ | | १९४५. द्माच्ुायणाय, अष्टाद्‌ शंग्र च Saez, सप्तदशे Ware", इत रदौरखाय पुराय दथात्‌"-दति । एतद सवफेनिगै णपु जविषथम्‌ | ey मनुना, | “ote: केचश्चैव दत्तः रृचिमएवच | गृढ़ोत्पन्नोऽपविद्धेख दायदाबान्धेवाख षट्‌ ॥ कानौनख सदोट्ञ्च क्रीतः पौनर्भवस्तथा | सखयंदत्तथ शौद्रश्च षडदायादबान्धवाः" दति षड्कदयमभिधाय yaege दायाद्‌ बान्धवत्वं उन्तरषहूस्या- दायाद बान्धवल्वसुक्र, तत्‌ पुनः समानगोचवेन सपिष्डमिन वषा उदकप्रदानादिकायेकरत्यं षड्कदयस्यापि सममेवेति व्याख्येयम्‌ । पिद्धनग्रदणं तु परवेस्याभावे ware | “aq भरातरो न पितरः gar ऋक्यरराः पितुः" ष्ति रौर सव्यतिरिक्रानां पुचप्रतिनिधोनां! eat "्छक्यशारित्वख्य मतुनेव प्रतिपादितलात्‌'° | द्यामसुग्यायणम्॒ जनयितुरपि छक्यं भजते । तथाच याश्ञवस्क्यःः- | * इत्थमेव पाठः सव्वं | परन्वसभौचीगोऽयं पाठः| कस्या पश्र विप्रे षस्य wa faen उचितो न पुचमाच्स्य | t एचप्रतिनिधौनामपि+--दति पाठो भवितुमुचितः। िणीिरििभाममम ््म EE an ONE ee SERRE “AE UONREN UREA om: (९) aat war xfs बड्वचमो पादानात्‌ प्रतिनिधौ श्रुत श्रग्दप्र योगस सिडधान्भसिडधतया च पथप्रतिनिधिव्वपमि प्रषरणब्दप्रयोगतेपपन्ते सर्म्ेवामेव qari ऋक्यदरत्वं प्रतिपादितमिति ara | २५ | पराश्रमाधवः | ‘gaan परकेने नियोगोत्पादितः सुतः । उभयोरप्यसो क्यो पिण्डदाता च धश्मेतः?-इति | यदा गुर्वादिना fram देवरादिः खयमष्यपुजः षल्पुजस्य aa aug vant यं जनयति, ख दिपिलको srgenaut- इयोरपि wut पिण्डदख। यदा खयं पुचवाम्‌ परपुचार्थमेव ads युजमुत्पादयति, aque: चेजिणएव gut भवति न वौ जिनः । यथोक्तं मनुना, ` “क्रियाऽभ्यपगमादेव TAY Baas | aay भागिनौ दृष्टौ TSN चखेचिकण्वच ॥ फलं त्वनभिसन्धाय खेजिणं बौ जिनं तथा | प्रत्येकं चेजरिणाम्था बौोजाद्‌यो निर्बलौ यसो"--इति | Bare: | श्रवोत्यन्मपष्यसुभयोरपि भवतु, इति संविदं शला यत्‌ चनं स्वामिना बौजावापा्थं बौजिने दौयते, तस्मिन्‌ देते उत्पन्लस्यापत्यस्य बोजिचेचिणौ स्वामिनो । यदा तु तनोत्पश्नमप- त्यमावयोर स्लिति aaa पर खेचे बौ जिना यद पत्धमुत्पाद्यते, aqua चेचिणएव न बौ जिनः । यतो बौजार्यो निबेलो यसौ | गवाश्वादिषु दृष्टलादिषव्ययेः । गर्वादिनियो गोऽपि वाग्दन्ताविषय- एव । अन्यस्य नियोगस्य मनुना निषिद्धत्वात्‌ | “देवराद्या सपिण्डाद्वा स्या सद्धिः frame । बोजेरिताऽधिगग्नन्या ware परिचये ॥ fawarat frome रताक्रो वाग्‌यतो निभि । एकञुत्पाद येत्पुचं म faite कथञ्चन ॥ व्व हारकागहम्‌ | Rus ge नियोगादूत्न्ने ययावदिधवैव सा । मान्यस्मिज्विधवा नारौ fatwa दिजलातिभिः ॥ अन्यस्मिन्‌ fe नियुश्नाना wa we: सनातनम्‌ | मोदा रिकेमु weg नियोगः कौत्येते कचित्‌ ॥ न विवारविधौ यक्तं विधवावेदनं युनः। ` श्रयं दिजेदिं विदद्धिः wow विगरितः॥ मनुवयाणणमपि stat Fad राश्यं प्रशाखति | स मरोमख्िलां yn राजषिम्रवरः पुरा ॥ वर्णानां सङःरं चक्र कामोपहतचेतनः | तदा प्रति यो मोहातप्रमौतपतिकां fer ti fanaa तं विगदेन्ति साघधवः---दति। wea विकन्पोऽस्त्‌, विधिप्रतिषेधयोरभयोद॑श्ेनात्‌ । wit- विनियोगस्य वाग्दन्तादि विषयलमनुपपन्नमिति Si म। मनुमे नियोगस्य तददिषषयत्प्रतिपादनात्‌ | ‘Crea चियेत कन्याया वाचा सत्ये शते पतिः | लामनेन विधानेन निजो विन्देत देवरः ॥ ययाविध्यभिगम्येतां एएक्रवस्ां शुचित्रताम्‌ | मियो भजेता प्रसवात्सकशत्शटदृ ताटृतौ'"- इति | दन्तकादौनां न बौोजिच्छक्यभाक्तम्‌। तयाच मनुः, siya जमयिदुने भजेदन्तिमः सतः | गोजष्डक्यारुमः पिष्डोव्यपेति ददतः खधा"“-दति। Ruz UCICATRT: | हचिमयषणं atrreardg* । दन्तब्धतिरिक्रानां गौ णपुचाणां ऋक्यभाद्वमतिपादकानि वाक्यानि युगान्तरविषथाणि, कलौ युगे तेषां qaaa परियदणस्य wat निषिद्धत्वात्‌ | “द त्तौरसेतरेषान्तु gaaa परियः | देवरेण सुतोत्पत्तिः वानप्रस्याश्मयद्ः ॥ कलौ युगे लिमान्‌ धर्मान्‌ वरव्याना्र्मनो षिण" दूति | शद्रधनविभागे विग्रेषमाह यान्ञवस्क्यः,- जातोऽपि दास्यां शद्रे कामतोऽ गरो भवेत्‌ | za पितरि gard भरातर स्वधैभा गिनम्‌ ॥ श्रभ्राटको दरेत्सवे gfeeut सुतादृतेः- द्रति | कामतः पितुरिच्छया भागं लभते । we यितरि यदि परि- णोतापुज्राभातरः सन्ति, तदा ते दासोपुचं सखभागादर्धभा गिनं इषुः । श्रय परिणोतापुचा दुहितरो वा ततपुचा वा न न्ति तदा तद्धन द्‌ासोपुचो लभते | तख्द्नावे श्रद्धमेव । fanaa दास्यासुत्पन्नस्त पित्रि च्छया न लभते WU । जातोऽपि दास्यां ugufa विगरेषण्णत्‌ । PaaS लभते इत्यभिप्रायः । श्रपुचदाययरणक्रममार्‌ याश्नवख्क्धः, — “पन्नो दुहितरञ्चेव पितरो aracere । TSA गोचजो बन्धुः fra: सन्रह्मवारिएः ॥ ग विक oe = ~~~ द चय #* इत्थमेव पाठः aia) मम तु, र्जिमय्श्यं चो पलच्त णार्थम्‌, बः दति पाठः पतिभाति | तथाच दचिमादयः एवा ममयितुरगोचिक्रक्ये म भनेरन्‌,--इति परथेवसितोवचमगा्ं इति भावः | | एषामभावे पूर्व्य WATT ALT: | ware ware सर्ववर्णव्वयं विधिः“ इति | श्रौरसादयो eanfaugar यस्य न सनधघावसु्रः | Te शल धनं पल्यादौनां we पूरवस्याभावे उम्तरोसरोगशाति । we दायग्रहणक्रमः सवेषु मू द्वावसिक्रादिष्वलुलोमजेषु ada च ब्राद्य- णादिषु वेदितव्य इत्ययः । wat विवाषहादिसंछ्ता नारौ सा प्रथमं wae ग्टश्षाति । तदाह ewafa:,— लेषु विद्यमानेषु पिदभरादसनामिषु । श्रसुतस्य प्रमोतस्य wat तद्धनशारिणौ"-इति। अभ विशेषमाड रद्धममुः- * “Maat weet Ha: पालयन्तौ त्रते fear: पन्येव दद्यात्तत्‌ पिण्डं wad लमेत च-इति | वद्यं अरपुषदायग्रदणक्रमः। दाद शविधपुषशून्यस्य wT धनं wat क्षति! तदभावे दुहिता । तदभावे दौङहिजः। तदभावे माता | azarae पिता | तदभावे भ्राता । तदभावे anya: । तदभावे feast । तदभावे aga पितामरशोग्टशाति तत्पुजा- सतत्पुजाखच । पितामरवन्तानाभावे प्रपितामशः तत्पुाखन्पुभाञ्ेति सप्रमपय्यैनं गोजणा धमं wefan) सपिष्डानामभावे खमागोदका- धनं wef । समागोद्‌काञ्च सपिष्डानासुपरि ay पुरषाः, sy नामन्चानपर््येन्ता वा । ATH टरग्मल॒ना,- “ofr तु पुरुषे ana विभिवक्तंते | खमागोद कभावस्ठ निव्तेताचलतुदंश्रात्‌ | 46 ays | पलघ्चरमाकवै cures: 1.4 अण्ममामस्यतेरेके तत्परं गोषमुच्यते”--इ ति | मोषजानामभावे बान्धवा धनं wwf) बान्धवाश्च जिविधा- कौधायनेन दभिताः,- : “mafaeag: Gar आ्आक्ममादष्वखुः gat: | श्रात्ममातुलपुजाञ्च विज्ञेया श्रात्मबान्धवाः ॥ पितुः faery: gat: पितूर्मादष्वसुः सुताः | पितुर्मातुलपुत्राख्च विज्ञेयाः पिदबान्धवाः ॥ मातुः पिदष्वसुः wat: मातुर्मादव्वसुः सुताः | मातुर्मातुलपुजाश्च fasar माटबान्धवाः”--द्ति। बन्धुष्वपि यस्ाशन्नतरः सएव पूवे werfa) श्रतएव इदस्यतिःः- “बहवो ज्ञातयो यत्र WRT बान्धवास्तथा | यस्त्ासन्नतर स्तेषां सोऽनपत्यघनं हरेत्‌"- इति | TAPAS BATA: । श्राचार्य्याभावे fare | तदार मनुः “यो यो want: पिण्डात्‌* तस्य तस्य घनं भवेत्‌ | श्रत ऊध्वं age: स्यादाचाय्यैः fre एवचः- दति | श्रापस्सम्बोऽपि । “मपिष्डाभावे राधायैः श्राचार्व्याभावे श्रन्ते- वासो-इति। गिव्याभाते सब्रह्माचारो, तस्याभावे यः कथित्‌ ओजियो wzerfa । तदाह satan) ““खओओजिया ब्राह्मएस्यानपत्यस्य "क्य भजेरन्‌" -- दति | तदभावे ब्राह्मणः । ATE मनुः+- “सर्वेषामप्यभावे तु ब्राह्मण चक्यभागिनः | रिष यो 8 न~ = = ~+ "~~ = = "न ता नुकि [कि * यो छयासन्रतरः पिण्डः,--इति wre | ACTH | ` दधः Saar: ्रचथोदाग्भासया धी ग रोयते,- इति | न्राह्यणधनं भ कटादिदपि राजगामि। शजिधारिधनं लर स्रद्यवारिपय्नतानामभावे राजगामि | तदुक्तं मुना, “mETal ब्राह्मणद्रव्यं राशा नित्यमिति fea: । इतरेषां ठु वर्णानां सर्वाभावे ररेश्नपः-इति । नारदेनापि, “न्राह्मणायेसख्य THT दायादसेश्न कखन | ब्राह्मणायेव दानव्यमेगखो Weitere” - इति | संयकारेणणपि,- "पितय्येविद्चमानेऽपि धनं तत्‌ पिदसन्नतेः | तस्यामविश्चमाना्यां तत्पितामदसमततेः ॥ श्रसत्यामपि तस्यान्तु प्रपितामशसग्भतेः | एवमेवोपपन्तौमां* सपिण्डा खक्यमा गिनः ॥ तदभावे सपिष्डाः। wera: firey एववा | angel afar: पूवाभावे परः परः ॥ शद्रदयेकोद काभावे राजा धनमवाभुयात्‌ । आचारयश्यायभावे तु तथा afaed meet: इति गन्वनपत्यस्य धमं WHA Tal ग्टातौव्येतदं नुपपन्नम्‌ | TH सद्भावेऽपि भादणां wrewe satay वा भरणमाजच्य नारदे- गोक्रलात्‌,- 7 यवमेषोपपातोगा,-इति का mre | पाठदयमप्यसमोकनोनं धलिमाति | ` 1 अज, सङुक्धाः+-- ति पाठो मवितुसुचिवः। 4 भजत REY दो aud WEINER ER! । “भादणामप्रलाः रेयात्‌ कञ्चिच्षेत्‌ Mer वा* | विभनेरम्‌ धनं we Tera het विना ॥ भरणं Te कुर्वीरन्‌ स्लोणामाजौवनचचात्‌ ¦ Taf wat भन्तुखेदादिश्युरितरा तत्‌-दनि | न्न, नसं्ष्टानां तु योभागस्तेषास्ेव स cae दूति wae भ्राढएणमप्रजाः मेयादित्यादिव्वनस्य परितलेन सद्टष्टभ्राठभार्य्याणामनपत्यानां WUT संख्ष्टभ्नाद्णणं च धन- रणम्‌! | “TERIA यो मागस्तेषामेव सख Lea | अनपत्यां परभागो fe निर्बोजिखितराभिवात्‌”- rata पौनरुक्चग्रसङ्गात्‌ । अरय वा । ्रविभक्रविषयलमस्त, awe तु विभक्रस्छासंद्ुष्टिगो avi! पन्ये प्रथमं aera aa मित्यविरोधः | यन्तु मलुगोक्रम्‌,- ` "पिता ₹इरेदपुषस्य शक्यं मातर एववा" इति | यदपि कात्यायनेगोक्षम्‌,- “विभक्त संख्िते दग्धं पुषाभावे पिता इरेत्‌ । भ्राता वा जननौ वाऽय माता वा तत्पितुः कमात्‌??-दति। _ Gat तावत्‌ न कमपमतिपादनपरम्‌, एव वेति fern * पव्रजेत्रसःः--इति wo | ` ` † खज कियानपि यन्धः प्रलोम इति प्रतिभाति। ‡ इत्थमेव पाठः सन्ये | भकुधंमिति तु समौचोगः पाठः प्रतिभाति | $ अज, -तच्र,- इति भवितुसुचिवम्‌ | श वजारकाष्धम्‌ । .. देः अवशात्‌ ware तु पल्धां afrerftet freer धमय्माडित्वप्रतिपादनपरम्‌ | | “भन्तुधेनचरौ wat या स्यादव्यभिचारिषौ | अप्र क्रियायक्रा fren वाऽयनाशचिका | वमिलाररता या षसो धनंसाम चारेतिः'-इति तेनैवोक्षलात्‌ । धनं जौवनायोपक्षपं Swit नारंतोत्यषेः । ` धारेखरस्तु, waa पन्नौ ग्ट्टातोत्येवमादिववमवश्जातश्य प्रका ure विषयन्यवस्यामादड | नियोगायिनो पन्नो wwe fare aga ग्टक्षाति* । तयाच मनुः "धमं यो विष्छयान्चातुः are feats वा । सोऽपत्यं WANTS दद्यात्तश्यैव तद्धनम्‌ ॥ कमौयाम्‌ च्येष्ठभार्य्यायां पुबसुत्पादयेद्‌ यदि | waa विभागः स्यादिति धर्मा व्यवश्ितःः--दति। विमक्रधने श्नातरि wa श्रपत्यद्वारेणेव पल्धाधमसम्बन्धः, मान्यथा । अविक्रधनेऽपि तचेबेत्यभिप्रायः गौतमोऽपि । “पिष्ड- गोजर्विंखम्बन्धा we भजेरन्‌ स्तौ वा wae बोजं का ferg- त“--दति । संग्डकारोऽपि,- “भादषु प्रविभक्रेषु भटटेननप्यसन्छु वा । गवदेशनियोगख्छा wat धममवाघ्नुषात्‌**- इति | तदनुपपन्नं, wal दुहितर इत्यत्र नियोभाश्रवणात्‌ । अश्रुतोऽपि ~ ~~~ == ~~ I ति श me ORD RT OME भिक A क ROTOR! Gar we By ene me ~ * wag wis war । तदुगह्ावि इति तु मविनुदुत्कतिम्‌। sys पराशर aT ey! | नियोगो sitrarfgrerrerenena इति यक्तमिति चेत्‌ । न । गौतमादि वचनानामर्यानरपरत्वात्‌ । तथा हि। तज -यङ्ैतमवचमः, “खपिण्डसम्बन्धा खषिसम्बन्धा wer wary) स्तौ वा श्रनपत्थस्य Ti fada’—cfa) तस्य गायम्थैः, यदि Hei लिप्येत लदा wat श्रमपत्यधनं गक्ातोति। चपि तद्यनपत्यस्य घमं पिच्डगोचर्धि- सम्बन्धारटष्ोयुः | जाया न । AT SY बोजं वा शिष्येत संयता वा भवेदि ति । वाशब्दस्य पच्चान्तर वचनत्वेन यद्यं प्रयोगाभावात्‌ | यद्यपि ui a विश्यादित्यादि मनुवचनं, तदपि खेचभअस्येव धनसम्बन्धं afm न पन्या दति। ngawafa संयताया एव धनेसम्बन्धं at, न तु देवरादिनियुक्रायाः | अन्यया, “श्रपुचा weet भन्तुः पालयन्तौ तरते खिता । पल्येव दद्यान्तत्पिण्ड हत्छमंशं waa च-इति | तथा, “SOA ग्रयनं भक्तेः पालयक्ो तरते fear | भृ्नोतामरणात्‌ चान्ता दायादा उष्वंमाभ्ुयुः"- षति मनुकात्यायनवचमविरोधप्रसङ्गात्‌। aera विभक्र- स्यासङ्ष्टिनो are धनं पन्नो ग्टाति इत्येव mae Tae | यन्तु wet धनसम्नन्धाभावप्रतिपादकवचनम्‌,- “earl zag तजाभधिशूताश्च ये . TERRI’ स्वे यासाष्छदनभाजनाः ॥ अ ०-००० TS LC CTE tne a ee ee, I * keds पाठः सेच । मम नु, खककधभाजसते--इति पाठः भतिमाति। खवरारकाक्म्‌ | UR: , चश्चाथं विदितं fat aarufefireteraz । erty खेषु say न स्तोमूखं विधभिंषु"-इति | aquaria सन्पादितधनविषयम्‌ । यदपि कात्थाथनेनोक्रम्‌,-~ “अदायिकं राजगामि योषिर्टस्यौष्वेदेहिकम्‌ | sare ओओकियद्रव्यं ओओ जियेभ्यस्तदपेयेत्‌""-ष्ति | अपेणमश्रनाच्छादनोपयुक्तंः धनिनः आद्धादयुपयुकश्च gat शरदायिकधनं राजगामि भवति | ओजियद्रन्यं तु योषिद्ढष्थौष्यै- देडहिकमपास्य ओचियस्येव न we दव्ययेः यदपि भाररै- नो क्रम्‌,- “अन्यज्‌ ब्राह्मणात्किशिद्राजा धमपरायणः | तत्‌स््लौणां stat दधथादेष दायविधिः खतः" इति। तदुभयमप्यवरद्धस्त्रो विषयं, पन्नौग्रब्दश्रवणणत्‌/९%। यदपि हा- रोतेगोक्रम्‌,- “fawar यौ वनस्था चेत्‌ wat भवति कर्कशा । श्रायुषो रक्षणाय तु दातं जोवनं तदा”-दति। तदपि श्रद्धितव्यमिचारस्तो विषयम्‌ | यद्‌ पि प्रजापतिक्वनम्‌,- “OSH भन्तुदोनायाः दद्यादामरणान्तिकम्‌। दति । ज वो क यमज ee aon RE = Ne eee । et * अथययाम शनाच्छादनोपयक्तः--दति We | पाठदयमप्यसमोचोनं प्रलि- भाति। + दद्यादा रमणात्‌ स्रियाः द्रति कार | --~~ = ~~ ~~~ Le ~ eee vane Leman Aha भ TATED EO > POET et (x) धनौ दुश्डितरः इन्यादि घनाधिकारगेाधकवचनेभ्विति देषः | qo पराशर माच्वः। यदपि खरत्यन्सरे,- “अन्नाय तण्डुलप्रस्यमपराङे तु सेन्धनम्‌"”- दति | तदेतदयनदयं हारौ तवचनेन समानाम्‌ । याच af: | ‘oa स्तियोनिरिष्डिया श्रदाशधादाः”-दति। सा पान्नौवतयद्े५ amen अं्ोनास्तौत्येवन्परा | इण्डियश्रब्दस्य “feed वे खोम- पयः” इति सोमे प्रयोगदगेनात्‌ । . यन्त॒ पल्याः ्छावरग्रहण- निषेधकं द्स्पतिवश्नम्‌,-- ''यदिभक्रे धनं किञ्चिदाध्याटिविधिसस्तम्‌ | तष्नाया सथावर Fal सभेत गतभटेकाः-द्ति। तदितरदायादानुमतिमन्तरेण स्थावरविक्रयनिषेधपरम्‌ | अन्यया, “जङ्गम सावर हेम CY धान्यरसाम्बरम्‌ | रदाय दापयेत्‌ Bs मासखंवत्छरादिकम्‌ ॥ पिदव्यगुरुदौ हिचान्‌ भन्तुः खखौयमातुलाम्‌ | पूजयेत्‌ कव्यपूतग्ां टद्धानायातियौँ ख्या दरति may विरोधप्रषङ्गात्‌ | षंडष्टिविभागप्रकारमाइ मनुः, “विभक्ताः we ant विभजेरन्‌ घुमवेदि । समस्तजविभागः wee तज न विद्यते"-इति । खमविभागविधानादेव विषमविभागवजिराकरणसिद्धेः श्ये तच ने विद्यते इति पुमविंषमविमामभिराकरणं विषमधनेन 1 a ey ne ~= न> भामा ०> = (९) अत्ति पालोवतो्हः। तेन. पाच्विद्येमेण warts eta पयते | AM SA प्रलया GAT गास्तौत्धथंः। च्वश्ारकाखम्‌ । ३९१. संष्टा्ा ` अनासुधारेण विषमविभागप्राछ्यथम्‌ । संवगः केरित्य- चेखिते eeafa:,— "विभक्तो यः पुनः पिना भाजा चेकज sien: | पिहव्येणायवा slat ages: ख उच्थतेः?--इईति | थः पूर पिजादिना विभक्तः warfe: ge mer तेन ay waram:, स dee उच्यते । येम केनापि सहवाखमापश्न इतथरः | काचित्श्टष्टिनां विषमविभागमाड eeuta:,— “deurara यः कित्‌ वि्ाशौव्यादिनाऽधिकम्‌ | प्राप्रोति तज दानव्योद्ांश्रः शेषाः समां जिमः'-इति। विद्ादिना aa wie धने श्रंश्रदयं दातव्यं न श्वसिति । एतत्घ्ष्टद्रवथानुपरोधेनाभितेऽपि farang” । श्पुज्व संख्ष्टिमः शक्या दिं दशयति याशवरुक्यः,- “sefsag dest सोदरश्य तु मोदरः। दथाशापररेांशं जातस्य च aaa च''--दति। sua: defeat savin विभागका अ्रविन्नातगर्भायां vratat qergrawa पुजस्य TAU: Heel दात्‌, Ty aqqarayty ; न पल्यादि । walang feat च भरण- माम्‌ । ACTH नारदः, (१) साधारयधमोपचातेनाष्नवितुर्भागादयस्य सामान्धतरबं प्राफल्वात्‌ संदङतिषये विधेषवचनारम्भस्याचव्वाय arg पदालाण्निदधे$षि संखङ्धयने qeing wast UMass ददति wena दति are: | 46 ५ ae teers Bqz परा्र माधव, | "भरणं qa कुवोरन्‌ सोणामाजौवनकयात्‌ । ` रच्छन्ति शय्यां भकखेदाच्छिन्युरितरास तत्‌ ॥ यदा दुहितरस्तस्याः* पिश्योऽ' शो भरणे मतः | आ सस्काराद्धरेद्धाग" परतो विश्यात्‌ पतिः“-इति। सोदरस्य तु सशोद्र पषति, सोदर dafea: तस्याश सोदरः Veet पश्चादुत्यन्नस्य GIN Tq । तदभावे सखयमेवापशरेत्‌, न भिश्लोदरः। संण्ट्टौति प्रवौक्स्यायवाद्‌ः। । defeat भिख्ोदरस्य सोद्रख्याशद्टष्टिनिः agrt उभयोरपि far धनप्दणमित्थाह aya,— “neg eet AaRTaATIA चरेत्‌ | शरसरुष्यपि वाऽऽदद्याल्छोदरो नान्यमाटजः'--दति | सापल्यभ्नाता Test wateaut ety a लसं्ष्टौ । श्रसं- ख्ष्चपि सोदरः सोदरस्य घनमाददीत। न पुनरन्योदय्यैः ष ह्येव श्रतएव मतुः, ‘aut ste: कनिष्ठो वा होयेतांग्प्रदानतः | धिषेतान्यतरो बाऽपि तस्य भागो न wart ॥ सोद्ग्थां विभजेयुरं समेत्य afer: समम्‌ | भातरो ये च dwar भगिन्यश्च सनाभयः"-इति | ~ 0-०-49 न = न्म ~ = = “^ “~ = न~ ^ (भ त्‌ = था ० NR Oe सका म ज ~~~ eee + यदातु दुहिता तख्याः--दति काण | _ ` † भाष्ययमंशः का ° gar | # op ~ nna ee (१) wratse भरणरूपः । VIVA | aay “weaad: । येषां defeat fratecret भदश sg थः कौऽपि ee: कनिष्ठो मध्यमो वा विभागकाले दे्ाग्तरगमभारिभां watery waa, तस भागो न शष्यते-एवगृड्धरषौयः। न रु शिनएव ete: | किमु तसुद्धतं भागमसंङष्टिमः सोदराः defe- मख भिन्नोदराः सनाभयो भगिन्यश्च देशाग्तरगता wf wanna eye न्यूनाधिकभावमन्तरेण विभजेयुः | न्ये मन्यन्ते । “श्रस्श्यपि वा दद्यात्‌ सर्ष्टो भान्यमाएजः*- दत्धस्यायमथेः | यच daar भिश्नोदराः श्रसंङ्ष्टाद्च सोदराः, तजास्द्टृष्टा श्रपि सोदरा एव धनं awa: मतु भिश्नोदराः weer अपोति। यक्त, येषां व्येष्ठदत्यादि मजुवचनं संख्ष्टानां भिन्नोदराणामसष्टष्टामामेकोदराणां च सर्वेषां भनग्रहणप्रतिपाद- कम्‌ । तत्‌ शअङ्गम्धावराह्मिकोभयद्रव्यसद्भावे विषयम्‌ । WITT प्रजापतिः “omen eRe HET च तद्धवेत्‌ । मिं we लसंङृष्टाः प्रगद्णोयु येयाऽ ्रतः"--दति । saa: | deer भिशोदरभ्नादणामनीधेनं गृदृधनं xa वा MPA यथाऽ शतो भवेत्‌ । atetraadevrt we खेषादिकं सछावररूपं यथाऽ'रतो भवेत्‌,-दति५। CT MTS HTT yee जङ्गमश्यावरयोरन्यतर खट्वाव विषयमिति | AY यद्युक्रं तद्प्राद्यम्‌ | यटा तु शंङ्षटमिन्लोद राभावः, तदा पिता पिदटव्योवा थः day (९) तथाच भूनिग्टयोः एग पादानात्‌ द्रव्यपदं wane । तेन शख्याबरमसंखूश्छपि सोदरखव REN IVA संङ्टिगोनित्रो कटाः quefga: सोदरा frases WHT: | eee | QUAM ॥ बएव water) तथाच tae । न्वंशषिनि प्रेते संषषटो- खवथमाक्‌-इति । यदा पिता पिद््यो वा deat न विद्यते, तदा तरस्ष्टमिन्नोदरो भ्नाता weary । तदभावे लधंश्ष्टैपिता, तदभावै माता, तदभावे WHT तदाह शङ्ख । “खयातस wWa- awe wana xq तदभावे पितरौ wterat तदभावे ser at—cfa | set संयता, न तु पूर्वादा । संङ्ष्टभरादपुजाणं पन्याश्च षमवाये धनग्रदणप्रकारमाइ नारदः+ “aa पतौ तु arate खभ्नादरपिटमादकाः | श्वे सपिण्डाः खधनं विभजेयुयेयाऽ ग्रतः?”--दूति | पन्नौभारपिहमोदभावविशिष्टा ्रभाहपिहकाभाय्थाः सवं सपिष्डा भाष्पुजादटयः | तजन arequut afisna: wratat wine: sesuae विभाग इत्ययः । पन्नौनामभावे संख्ष्टापुर्वांश् तद्धगिनो warfa । तथाच इशस्पतिः,- “या तच्छ भगिनो at तु ततोऽ शभुमरेति | अनपत्यस्य धष्ीऽयमभार्ग्यापिदरकश्य च-इति | amet भारमादभावसञुच्चयायः । केचिषु, “ar तद्य ` बुहिता"-द्ति पटिला पनौनामभावे दुहिता गहौतेत्धाः | दुडहिदभगिन्योरभावे, “mT: सपिण्डार्यस्तष्य तश्च धनं भवेत्‌” गतयु्पत्याखजिक्रमेण सवं सपिणष्डादथो धनं गग्डौधुः । प्रति- we दोषा शामभावात्‌ । अतएव इदव्यतिः,- “गदतो ऽनपत्योऽभाय्येखेदभादपिदमाढकः | ry | कि ¢ ५ . ` शयं aftrerragra विभणेवुरचथाऽ way -इलि |. बागप्रसखथतिनेहिकनह्यधारिणां धनं को वा रशातौत्यपेखिति आड GTI, . “arareatangarftat शक्मा गिनः | MAUI AS RTT IRA IH! — TH । aw प्रातिलोम्यक्रमेण Aafeangqefrut wa wre zetia, म पिजादिः। sagaivaa धनं पिभादयणएव ayfer) यतेश्च धनमध्याद्मश्ास्लेश्रवणधारणतदनष्टागचमः सख्िष्यो ग्ट काति | Jaws भागानरेलात्‌ । वानप्रखधनं wipe erie) wien समानाचाय्यकः। RATT एकाश्रमो | ध्मथाता सासावेकतौर्थो च धर्मभराजेकतोथौं । अथवा । वानप्र्यतिनह्मलारिणां घनममावाग्यसच्ियधर्म- aranaifaa: mata गटषन्ति। प्वपूर्वाभावे उन्तरोन्रोग्डातो- we) यन्तु वसिषठनोक्रम्‌। श्रनंशास्लाश्रमाम्तरगताः"-दति | तदन्याश्रमिणामन्याअमिधनग्रहणनिषैधपरम्‌। म तु खमानाज्रभिणं परस्पर खवथग्रहण निषेधपरम्‌ | मन्येतेषां धमसम्नन्धएव मासि grater: | प्रतिग्रशरै- धनाजगोपायद्छ निषिद्धलात्‌। “त्रनये निचयो भिचुः"-दइति गौतम- CITE | तज, 'अङ्कोमाघस्य aut वा तया सवद्छरश्य च | atte निचयं gat ear त्यजेत्‌” ~ ^~ ~ ~~~ ˆ --~ me ~ कमअम * WATCHES, — दति wre | ad¢ प्रथमाय | इति aravera धनसंयोमोऽस्ति । “को पोनाच्छादनाथें तु वाखोऽपि विश्याङ्‌ थतिः। योगसम्मारमेदांख wet पादुके तथा”-- दति वचनाद्यतेरपि वस््पुखकादिकं fares) नेटिक्वापि श्रलोरयाचायं वस््परि यहोऽख्येबेति तदिभागो चटतणएव । दाया- मद्रानाह मनुः Coan ज्ञोबपतितौ जात्यन्धबधिरौ तथा | उन्धक्षजडम्‌ काञ्च ये च केचिभ्िरिदधियाःः-दति | जिरिण्ियाः arf विकलेदधिथाः। नारदोऽपि. “पिदद्धिर्‌ पतितः षण्डो ay खादौोपपातिकः। sizer श्रपि मेतेऽश्ं waive Quer: कुतः” -दति | वशिष्ठोऽपि । “श्रनश्रास्लाश्रमान्तर गताः” दति | याश्चवसर्कषयः,- “क्तो बोऽथ पनितसतष्णः प ङ्ुसन्मन्तको जडः | अन्भोऽचिकिद्धरोगाद्याः" भतेव्याः च्यनिरश्रकाः“-दति | aes: पतितोत्पन्नः । ्रादिशब्देन मूकादयो गद्यन्ते। एते निर्रकाः खक्यभाजो न भवन्ति । केवलमशनाच्छादनेन मन्तव्याः ` , पोष्याः । श्रभरणे तु प्रत्यवायमाह मतुः, “स्वेषामपि तदायं दाहं wer afer: | ग्रासाच्छादममत्यन्तं पतितो छददद्षेत्‌”-इति। me cent कज ~ = = ~ ~ क ० == =-= भ म नन om ee ययो अकक * शन्धाऽचिकिद्धसेमार्ता,- दति ate | † इत्ममेव पाठः चखाद श्रएरूकेष , apyre,—xfs तु पाठः aad प्रतिभाति च्यवहारकाखम्‌ | (1 कि अत्यन्तं थावस्जौवभमित्यथैः 1 Ufare भतेष्यलादि नास्तीत्याह दिवशः,- | | “तेषां पतितवञभ्यो भकं वस्तं प्रदोयतेः,- दति | पतितश्रष्देन तष्नातोऽणुपलच्छते । aac श्रपि ति मन्तव्याः | श्रतएव वगिष्टः। “शरनंशरास्लाश्रमाग्तरगताः । क्ौगो- खकलपतितख्मरणं alterna । ज्रंशानर्ाणां ger AMUN: | तरा देवलः, “तत्पुत्राः farzrain लभेरम्‌ दोषवजिताः”-इति | भिरं्रकानां gat श्रौरषाः Garg क्रगयादिदोषव्जिता- भागङहारिणो म SARITA: | अतएव यान्नवष्कयः परिशंचषटे- ““श्रौरसाः केदजाम्तेषां मिद्धौषा भागहारिणः"--इति | facwarat दुहितरो यावत्‌ विवाहं aver: deren, way घाधदत्तयो यावन्नोवं we । तथाच षएव- “सुताञचैषां च भर्तव्या art wearer: | waar योषितद्चेषां wie: साधृषक्षथः ॥ निर्वाष्याव्यभिरारिश्यः प्रतिकूला सयेवचः"-इति | अन्यानपि भागानद्ान्‌ दगेयति वाज्वर्क्यःः- “अक्रेढ़ासुतस्चेव सगोजाद्यश्च आयते । == ~ ----न~ ~ “~~~ ~~~ ~~ ~= = -- ~ = ^ भजन = म नन शा मियय (ernpeneemnrene eeemnsttnte ng Aaa क क 1 ene Ee REN ee mR (९) सौबोन्भत्तागामाश्रमान्तरगतामामपि कोनोनमत्तसर्णमेव | अर्थाव्‌ ` ओगोग्भत्तागां सन्धा यदुखते भरणादिकं, आन्नमान्तरगतानामपि तें तदेव मवतोति भावः। a¢s UCINECATAT | srerrcafaraa भ weeny erate —vfer | मतुरपि, afranrgraa पुजिष्डाऽऽख्च देवरात्‌ | उभौ तौ नार्तो भागं जारजातककामजौ? दति | स्लोधनविभागमारईइ arwaea:,— “पिन्तं भादमाददन्तमष्यम्धपागतम्‌ | आधिवेदनिकाद्यश्च ated परिकौन्तितम्‌ ॥ बन्धुदन्तं तया ए्एरकमन्वापेयकमेवच । शरप्रजायामतोतार्या बान्धवास्तदवा्रय्‌ः"- दति । augur विवाशकालेऽप्निसज्निधौ मातुखादिभिदेक्तम्‌ । तथाच काल्यायमः,- "विवाहकाले यत्‌ wat दौयते wreefeet | तदध्यग्निषतं षद्विः ated परिकीर्तितम्‌" इति | आधिवेदभिकमधिषेदननिमिश्तमधि विन्नख्ियै era | श्राय may श्रध्यावारहनिकष्छक्यक्रयाटिप्राप्तम्‌ | तथाच मनुः, “चअध्यन्यध्यावाहनिकं zee प्रौतिकनेणि | भ्राढमाटपिद्रप्राप्तं बद्धिधं स्ोधनं खतम्‌”-दूति । षद्धिधमितिं AACR ATTA | भाधिकसह्याग्यवच्छटाय | श्रथ्यावाइनिकप्रौतिदक्योः Sed कात्यायनेनोक्रम्‌,- यत्पुमशेभते मारौ नौयमाना पितु्ेहात्‌ | ९) शकद्धां खयां विद्चमागायां went किथसुदइति, rer rat nga अधिविद्नेबग्यते | व्यवद्धारश्राम्‌ | ate . अभ्यावादनिक माम aha तदुदाइतम्‌ ॥ Rant aay यत्किञिदन्येन श्रष्एरेण वा | ` श्राधिवेदनिकचचेव भोतिदभ्तं तदुच्यते" षति । बन्धुद सं कन्यामाद्रपिढबन्पुभिरं त्म्‌ | Wei, य्‌ ग्टहौला कन्धा दधते । अ्न्वाधेयकं परिणएयनादल्‌ पद्चादन्तम्‌। तदुक्तं कात्यायनेन, “ब्रहोपरकरवाद्यानां दोद्याभरणकर्मिंषणम्‌ | 7a warn यत्कि्ित्‌ ww तत्‌ परिकीर्तितम्‌ ॥ विवाहात्परतो यत्तु लं भक्तैः कुलात्‌ स्तिया । अर्वाधेयं तु Aa लयं पिदङ्लात्‌ तयाः-इति। पिभादिभिः @hat घनदाने fatiqare काल्यायनः,- “पिद्मादपतिभादल्ञातिभिः स्तौधनं fae | aurea fares दातं स्थावरादृते-इति | यथाशक्ति स्थावरव्यतिरिक्रं धनं दिषदखकार्षापणएपय्धन्तं दातव्य frat: । sary नियमः प्र्यब्ददाने वेदितन्यः। श्रनेकाग्दे ठ amas सषदेव दाने नायमवधिनियमः। नापि श्यावरपय- दाखः। तथाच इदस्यतिः,- “दद्याद्धनश्च पर्य्याप्तं data वा थदिष्छति“-इति | qua सौदायिके श्छावरेऽपि ययेष्टविनियोगारेवसुक्तमोनेव,- “eget कन्यया वाऽपि ae: पिषश्छदेऽपि वा । भातुः warm पिचोवां wai सौदायिकं स्रतम्‌ ॥ a a ज सज जा ४०७७ + ee eT ae (९) प्रष्ददानखव ख्यावरपुराखः न वूपजोवनाथ' दाने दति are | ` 7 ३७० पराशर माधवः ¦ - सौदायिकं धनं प्राय खौं खातश्व्यभिन्यते + यसमात्तदानुपंस्याथं तदेतदुपजोवनम्‌+ ॥ | विक्रये चैव दाने च BTS ष्यावरेष्वपि"--दति। परतिदन्तश्थावरेऽपि विगरेषमाह नारदः,-- “भरवां परीतेन यदत्तं fad तस्िश्मुतेऽपि च। सा धयाकाममन्नोयात्‌ दद्यात्‌ वा खावरादृते--ईति | पिश्रादिभिरुपाध्यादिना दन्तं सोधनं म भवतोत्याङ कात्या at “aq atte aed ay योगवशेन ar | faar waraiswat wat म तत्‌ स्तौधनमिव्यते""--द्ति। BHU धारणे दन्तमलङ्भारादिकं सोपाधिदन्तम्‌। Gata वचनादिनेव्यथंः। शिल्यादिप्राप्रमपि aie न waaay सएव, “sa frag यदत्त Hen चेव यदन्यः । we: खाग्यं तदा तच ओेषं तु wet रतम्‌*--इति | waa: खादित इति ara) 1 तदेतत्‌ ai दुदिटदौ- हिचपुच्ररहितायां स्ियामतौतायां बान्धवा भर्ादयो wwf: a क्रमः। मातरि उन्तायां प्रथमं दुहिता राति । श्रतएवोकग aia, | * तेदत्ततत्‌ परजोवनम्‌,-- डति यन्धाग्रश्टतः पाठः। 1 यदित्त,--दइति यरन्यान्तरछ्त, पाठः { मचेत,+--दति प्रम्यान्तरटतः पाठः, | re ne TAT +~ = ee A eee mR eo open ६ पोषण CD Tat eNGO a aR (१) श surfers y व्यवहार काग | Bay “मातुदुंडितरः गेषण्टणत्ताभ्वः खतिऽन्वथः--दति । गौतमोऽपि । “abet cfeeut श्रपरन्तानां अरपरतिटितानां च--दति। दुदिद्धणमभावे दौदि्यो wef । ददु िदढणणं vam चेदिति याश्चवरक्यसमरणणत्‌ । भिन्नमादकाणं दौ हिजाष्णं विषमाणां समवाये मादतो भागकर्पना । तथाच्च गौतमः । “पिढमाटश्व्वगं भागविगरेषः"-द्ति । दुदिरदौहिकरणा समवाये मनुः, | “स्तासां स्यदुदितरस्तासामपि aersea: | मातामद्याधनात्‌ किञ्चित्‌ प्रदेयं मोनिपूवेकम्‌"”-- दति । ` दौहिजौणणमप्भावे दौ दितराधनद्ारिणः । तथाच नारदः “aragfeatiana eferut तदन्वयः-्ति। efeecfequrana तदन्वयो दौहिचौ writer: । दौ दिबाणामभावे, “विभजेरन्‌ gar fred wat समम्‌ द्त्थादियाश्चवस्क्येवदनतः मादछणापाकरणतोऽवशिष्टं माढधमं war wef । यत्तु मनुनोक्रम्‌,- "जनन्यां संस्थितायान्त्‌ ममं सवं सहोदराः | भजेरन्‌ मादक wee भगिन्य सनाभयः" दूति | एतत्‌ पुर्णा दुददणां yay Hawa kart नं भवति; किन्तु तेषां wana प्राते, समविभागप्राघ्यथे, षमशरव्ट- अवात्‌ । यदपि शङ्खुःलिखिताभ्यासुक्तम्‌ । “ad स्वे षदोद्रा- माकं watt कुमाय्य॑ञ्चः-इति। तदपि मनुकसनेनं स्मा- RoR ULTIMA! | aig) श्रय वा, एतदवनद्यं wy कुणलम्धसत्ो धम विषयम्‌ | अख्थिन्रेवं विषये इदस्पतिः- “aut तद पत्यानां दुहिता च तदंशिनो | श्रप्रत्ता चेत्छमूढा तु लभते सा न माहटकम्‌“-इति। श्रपत्यानां पुमपत्यानाम्‌* | यत्तु पारसकरेणोक्रम्‌,- Sprang दुहितुः ated परिकी्तितम्‌ | gay नेव लभते saat तु समां शभाक्‌”-इति | तद्प्रतिष्ठितो षण्डदुदिटविषयम्‌। । श्रतएव मनुः,- “may यौतकं चन्‌ खात्‌ कुमारौभागरएव सः"--दति | daa equa । श्रनपत्यरो नजातिस्वौधनं उन्तमजाति- सपन्नोदु दिता ग्लाति, तदभावे तदपत्यम्‌ । तदुक्तं मनुना, “feurg agafan fear दत्तं कथञ्चन | न्ाद्मणे तद्ध रेत्कन्या तदपत्यस्य वा waq’— ७, क ७००००४७ ऋतयः -पिषनान्यवामगदट्रबाग्धगाच्,--- दति Wie सर | 1 एथक्पश्चमहायद्ेः अाजादिभिष्व zeae, — वि RTS | † पाक, दति गरन्धान्तसेवः पाठः See: |. ered recent मान्विमोगच्‌ अत्थि) eqn विज्ञेयं म weedy सादिणः।*--- दति. wrearfeerenfeyraty सएवाह, | Suara साहपषाधनम्‌ । ` ष्य भोगः ware विभागद्य enna — इति + | weave: पूवेपुरुपेरनुबन्धः ! ere: wether: दपङ्तद्रश्यदच्यते | दशनं anaarititat । wet एवम्‌- परदव्रादिर्विभागशिङ्गतवमविभकरेषु निषिद्धवेनावगनाग्यम्‌। तथा चं याद्वः Teron coat: पितुः gwe चैव fy | भातिमायब्धफं साच्छमविभक्ते न तु waa’ —cie | wiftitensfintifidearna, ‘gikaaeaety प्रपचेरेगम्चेत्‌"- दति ae Tee निषेधति ठडधयाशकश्वप SR बन्धसाच्छमिलेखितः विभागभावना कार्यां ग भवेहविकौ किया-इति | WE ae. निरेय दत्याकाङ्ययामाहइ मरु न+ ~ ~+ भा कानसौ - ^ ऋषिं न्धाः, दति प्रन्थान्तरोयः पाठः अथस पाठः स्वे । परग्वसमौचोनः | न श्यातां awe feat “fe aayradieqises aaidte: | ५६ (जं भ ््‌ . gee पद्गाः ` + ९ ef | | fat चच eee: दाषादानां धरल्यरम्‌ 1 ` पुनर्विभागः कर्थः यक्‌ श्यानस्धितिरपि""- दति । ` थत्र सन्देशो थक्तिभिरपि maf, तज पुनविभागः Rae ca: । ay तेनेवोक्म्‌,- “qasnt निपतति awenat प्रदौयते | aux ददातौति Teena eer wary — ow: कः व t NN T इत्यमेव Fay पाठः ‘ ee emeatetd क 1 | [वाका क ALE (x) रश्तेलंश्तिप्पवु श्चा समात्‌ TETAS म्द SM ईति मकम्‌ | 2 गकि चुभतितो भगे प्रशिद्ध शुतम्छलेः । जितं क्चमिके खाने द्‌ापयेदन्यया भ ofr | ` ऋन्धया WE समिकर दिते शअतौतराजभामे९) दूते tat we जेजे ने दापथेदित्यथंः। we शयपराजयविप्रतिपगै {निके कारणमा सएव, दष्टारो यवहारार्णा afwuy तएव डि | TSAI दरष्टारष्ठ ava हि” षति | कितव एव wm नियोक्रव्यः, न तु saree द्यु wees: । स दिणख तएव yaar एव । विष्णरपि,-- - शकितवेष्येव तिष्टेरम्‌ कितवाः संशयं प्रतिभ | अणव तच दरष्टारसएवेषाग्तु. सा किणः--दति | | शाकिणां परल्यर त्रिरोधे राजाः विचारयेदित्यार रस्यति, . “उभयोरपि afveadt कितवाः शुः परोधकाः । यदा विदधेविरुखे तु तदा राणा frei —efe । - -श्टधूतकरारिणो दण्डमाह orqaew:, | ` “cra afed faster: कूटाचोपाभिदेविनः-दति } ` रटेरडादिभिरुपाभ्रिभिमेणिमन्तादौनामिति वनेन वे दि- aia ताभ्‌ शअप्देनाङयिता खराग्राजिरवाखये दित्यः | नि्वाबनेः विगरेषमा् नारदः, * Carn wa तिष्ेरनू कितवागां wa प्रति,-- उति ute | † इर्थमेब प्राठः water । {t) अतोको arent wart, stefan; || द्द ` MAURER MR । - ““कूटाखदे विनः पाफाम्‌ राजा राद्रादिवासयेत्‌ | कण्डेऽलमालामांसज्धं ख दोषां विनथः सतः" इति | दण्डने विशेषमाह विष्णुः । “qa क्रटाच्दे विमां करच्छेदः. उपाधिदि विनां wine: “--दइतिः। , अनियुक्दूतका रिणो दण्डमाह नारदः+ “श्निरदिंट्त यो राना धूतं कुवत मानवः | स श्रतं प्राभरुयात्कामं विनयश्चेव सोऽदेति-इति | wa fafed कमंजातं समाङ्ये श्रतिदिश्रति यान्नवसकयः,- “एष एव विधिर्यः mfewt समाह्ये- इति । , भभिकट्तिकन्पनादि छचणो wa: समाङ्ृयेऽपि fae इत्यर्थः | मारते पराभिनां जयपराजघ्नौ तत्छामिनो रित्यार रष्यतिः,- ““इन्दयुद्धेन यः कश्चिदवसादमवाश्रुयात्‌ | तत्छामिना पणेदेयो यत्तन्न परिकल्पितः” इति | पणपरि कल्यनमपि qaqa aang नारदः, “परि दासं यश्च यश्वाष्यद्विदितं शपे तचापि anger काम्यसथत्रौऽलुमतं तथोः" इति । काम्यः कामः पणः | यन्तु Bat, “gi सभाहयञ्चेव यः कथातकारयेत वा । तन्‌ सर्वाम्‌ घातयेद्राजा unig दिजशिङ्गिमिः॥ SRO ERE ets ree oo ate Se ye LP ELATED AEE नह CRETE पोना, SPE TR च+ * द्यूति क्रुटाचषदेवोनां करष्छेदः प्रशस्यते । - डपाधिदेविनां दण्डः करच्छेद इति GT, — इति we | { कव्यं विदितं त्रया, द्रति. प्रन । ` "Hays He १५५६ १५ at a ^ 4१ ५५५) Ci, iho तका + ४ ay aid nie ५ a x we Mw ATE ४ (1 (शरी POSH vant ५2 „~ २ तद्यो भिलयं {५ क कतकम्‌ क्गोखवान्‌ कौशाभ्‌ creepy १ शौ ण्ठिकांशच fest नो थ me « ~~ Fk ८ ५५1 १ = ^ 6 क. aa a 402", wf कः ४१, ry aa . ay oe av as ay Pe - tee 4 ye, , "स्‌ भ प ioe ५ ५ न a 4 "८41 ५ ८ “+ ४ ८* १४ Sehr ye) म स = 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sare. ॥ खत्को चणो विभो eerste wer are” इति। ` तत्कष्मकरएे द ष्छभार VWI * विषभास्तायुपरमो दपो वा कुर्व्‌ ~ इवि were 4.4 † परमापद श्विष्राग | ` [प्‌ भ 1 : a ६ ‘ att, ote: का Gr ^ इतिः ५ rf ¢ मध्मभाशदःः # ^. ei “t १ 9 0.6 ८१५ \ राजक्रौडासु ये सक्ता craves विभः wfhwagre यो वेका गणं तेषां WHY” इति | TWH कोश्राप्रणादौ दण्डमाह aq CARTE: abraetg. प्रतिकलेषु च स्थिताम्‌ | wurde विविधेदं णडदरेतछवसखभे बच” दति | Serta यद्यस्य लोवनोपक्षरपं त्स्य भापररतग्य- सि्याहइ नारदः, ॥ ` “आयुधान्यायुधौयानां बौणानि छषिलोविनाम्‌ | , बेष्यासलोणामलङ्धारान्‌ वाद्यावाद्यानि तरिदाम्‌ ॥ wg यस्योपक्रशं थेन tater कारकाः | VISTAS राजा Woe” इति । META erent मोप्य्यमादइ मनुः, `, “जआह्मणद्य मधे dhe} पुराजिब्रायनादने , werd चामिप्रशाद्क ware गदंमेन तू" इति ! कीपात्परस्परमेदनादौ Taare areae “दिनेजमभेदिगो wa इदिष्टादेग्रहतशया | wy ents fatter, grad मादयचिष्गपोरणे BANE | WAY मतुः, Cog बाध्यमाचन्तु काभोहिवरवे्म्‌ न्याचिकेषधोपायेस्तसुदेणकरीनर्ध दति | शद्धाणं पवबव्यादौ दण्डमाह कायैः न्य्त्रष्यावासिमं शद्धः अपरोमपरं AUT । ata wadq पापं दण्ड्यो षा दिशं दमम्‌” cia | एवं शशो क्रमाम माड यभः,-- | ‘eq WANTS राध्रोदष्डधरस्य च 1 aisha प्रयति लोके खमे वाषस्तयाऽचथः" ch | मनुरपि, "एवं सर्वानिमाचाजा यवहाराम्‌ समापयन्‌ पि व्यपो किलिषं सवै प्रप्नोति परमाक्रतिम्‌” इति. ` tia श्रौमदाराजातसिरानपरजेश्वस्ते fee HATTA TWINS SYCATR मधवामात्धस्य wat परा श्रखूति- Bal व्वदार माधवः समार्षः ॥ HATA At वयवदारशाणडम्‌ ॥ समाप्ता चेयं Grace तिष्याखा गरभमष्ड । BTA # a {०५५ emi १ ae ath यि भ AAR ANI ema a tne ka NA 1 are - ॐ; ~रः > -------- ~ निप ध त : नि sors (९) परलोको" मखा cree wala ae