ल AT SA a ८ & TULSTL DAS € = Ce € ( ty Vo hecu Leal chau Gag L983 - 97 Colette The ९९५; ८ x <> © ८९ } s si QT [2] | 2 | ( 7) लि तर य) के शान मे चव्गोय (ज) feet गया हे भेसे ued Vo सष्लोगाऽऽदि । Tet ओकार लघ TET गया है वां प लिखा गया नैसे we एष्ट मे' (राम सो) । wet केवल ख हे avis पषा गय! है बधो कि.वडतेरे विदामो का मत हे कि तुलसौ-दास नौ उकार "को विशेष ang Ft लाते धे शीर ae मौटामौ सन year SFT RQ FUT तुलसौ-दास के खान में दासु ह । wet एकार इख TET जाता ह ati उसका श्चा कार उलट दिया गयाष्ेजेतेश०्बे' TSA | इसप्रकार कटर एक fas हे जिनका apa ot दिखलाया इहे | wear कौलेज बांकौपुर्‌ ताः ९ नवम्बर १८९६ / fara लाल चौवे. सुजा सिः Tat के बदलने का कारण |i माषा करौ कविता में प्रायः दीधे अच्तर Bre माचा ख UF णाते Syed उने लिखने का शनैर दापने का कोर उपाय नियतन धा। श्रीमान्‌ stax प्यिथरसन्‌ ओर ste हालौ महाशयो कौ चना परर dim रसियाटिक सोसाररटौ कौ भाषा एस्तकौ मे नोचे लिखे ( टाप्‌) ati चादि फे ख लिखने F लिये इस Gea मं लिये गवे इ । axa | EAS खान a | ये ल्यिगयेद्ं। cei उदाशरण। व a १.९2 = RR areas at 9७9 १७१ 1 १९ । रामसो et eos eee + Yr = ० | "4 (उलटा) D ष, (~ ) an १७ क शः (कटा) पर... () -. ~ SL no O19 ~ 2° ( 8 ) श्यन्नन भौ Ta साधास्य Tt ® मुखसे उच्चारित ws हे पैसे लिखे गये है । RAF खान में। Wo. समस्त पद ये लिखि ग्ये। षष्ट । a. ie १ च X ने... २ न १० च्छ १९ खश XR ग्य... ९५ fa... २९ रि cg fa ,„ ९ fa ९९० दि ARR उदस्य | खोरामं जन -मनन> निर्वान सच्नोगादि Tay Wat तुलसौ-सतसदं का AAT | = प्रयम सगं | दो को TAT । विषय | शह सहमा | Ua रतक, (मङ्गलाचरण) रामबन्दना ,. ae ie ३ राम को जाननेवाला मोतच्तरूप दहै ,., र राम कामना्ौन हे... र ५ विराटसूप रामह... इ ह रामपिताओरमसौतामाद.., ... ,“ इ ७ से ८ तक) राम-भक्तं को दुःख Tey होता न वे घर कोड कष्टौ जाते 8 € सौता-राम BAT भक्तं कौ TAT कर्तेद ,,, ४ “ १९० "सीता gfe Seu विवेक... ... ४ १९ Mai देवमय राम के दया सै ग्रस्य बनता है ५ १२ राम ओर wa आदि का रूपकं... .„ ५ १३ राम समश्नैर re ch ... ,. ५ =) सव पापों के हारो राम इस नाम का BT ६ २० राम-भजन विनासुक्ति असम्भव... si र स २९ सतस (ग्रस्य) बनाने का सम्बत्‌ Se दिन आदि... < २२९ सतस में afaa विषय ; €. २ गुरसे UGA UT xa aT पूरा ज्ञान Stat ह २४ Mina HA ,. ~ ^ ` १०, nel ye लघ apa आदि का विचार “= ee १० शवं तक धप २७ उदाहर Se राम आदि के गणं का विचार ,.. १९ । | ( 2 ) दो wt eg विषय | RS राम ATA का सष्टखनाम तुल्य wha Be ATR प्रकार के नायका कौ Waa... २९ ote ote ar ea Sec रसे कौ aaa ६० मुखर कमल का रूपकं ३९ काय Se AM आदि का रूपक ६२ रामय चैर स्नौमुख आदि का रूपक... ३२ Cae Se कविकौ उक्ति का रूपक... 28 रामभजन निन दोनों लक्ष ag १४५ तुलसौ राममजन न छोडंगे हेद्‌ जिना मजन सव साधन व्यर्थ... ३७ राम-भक्तिं विना मुक्ति खसम्भव RS राम नाम ओर विद्यां का रूपक ६€ राम नाम विना सव मनोर भृटा ४० रामचरित ओर वाग का रूपक ४९ राम-भजनसे दोनों लोक fas ४२९ साधुखभाव Ta ,,. ४३ राममदिमा Tey ,.. वि ४४ राम Se काम दौनें विरद... ४४५ रामक ग Cet से माया परवल e¢ राम-भजन में समय facta ... ४७ रामभक्ति सब से' अधिकं चतुरता ४८ trata’ fart चतुरता ag ०४९ प्रेम Ste श्ररौर का रूपक ५० ota Se aa ane ar रूपक रामसुखचन्ब्र शर भक्तनेजचचकोर प्रथम समे || ( 8 ) दोद्कौ ogy | विषय | ५२ ग्रत Qe रामयद का रूपक ... ५३ भक्क दास होना alot Sus ५8७ , राममक्ति जार नौति कौ भलाई ५५ अपराधं कौ समा श्र सन्तोष ५६ सेवा को उत्तमता ... aa ५७ सब बाधक ५८ रामङ्पासं कामना नाश ,, ४& राम से प्रेम उचित .“ ^, दै प्रेम विना सब उपायद्यधं ... ,,, ६९ राम बिना छखव्यथं... ,,, ,. ६२ राम विनासबखार्थौष् १९ राम भक्तका खादर करते... ,.. ६9 राम विना मद्लोसौ दशा ,,., ९४ रामके भरो से पाप अनुचित... १९ geet को रामौ को ATT. ९७ सब प्रकाट राम से प्रेम उचित... q= राम भिना बड़ा हित कोट नीं ६€ ` ait aes से उपमा ७० से OQ तक्र ४, १०७ तक साम कौ दया होने से कोर कुड THY कर सकता... राम छपा से सब भले eta ®... ad ad wet से चातक Bre भक्त कौ Sq मेघ तथा ca a) Rs उपमा दे कर इसके ayes पेम का वग॑न हे । एक सौ (, सातके AFA राम को खातौजल Se अपने को चातक बनाया डे ‘a कः ve ९६ तक (4) [दितौय समे | दोषै को सह्या | विषय। षड सद्धा | १०८ मनद मे घनश्याम राम हँ चातक के समान दूसरौ ` ठौर खोजनानपडेगा ,.. „ ,. इई ९० भक्ति जल Se मन मोन कार्पक ,.. ... इ ११० कषिकौ पौप्नोक्तिसे रामराग ओीरग्टगमन का रूपक इ9 Noll इति पथम सगे poll ~` ~` - ~~~ ~~~ ~~-----~---~-- "~~ ---~ श्रय faata सगं | care नाम ASAT यौर रामपेम वर्णन ,., 1 ४ = १९ से ¬+ ar सै व सन्तोष आदि के विषय में सामधिक उपदेश ,.. ae 232 ay का उदाहरण दिखा ac ua at } 88 सै Roan व्यापकता वन ध , ९४७ तक ३९ राम परब्रद्य रूप इं ० = ,,.* 8७ ६२ परमेश्वर पालक हे दुःख अपने WHA मिलता ४८ इद्‌ साधुश्चैर कमलकारूपक... ,., ,.. ८ Re सें तौनें गुणे को दिखाकर राम इस नामकम द्‌ गुण ओर ४९ तक देवता का होना ओर इस के अत्तरोां का अर्थं ee € ४ से N ५ १ तक रामनाममेंरामकेभाध्यांकासरूप... „, ५९ ४९ पूवे कम्भ के अनुसार जने का धनादिपाना ,.. \य् ४७ से मयूर, कोकिल विलार्‌ का उदाहरण ४२ तक) दिखाकर खभाव का दृएकरना wae sie ५४ ५३, „ शोनष्ठार का खमवष्टोसेष्टोना ., ५९ ५७ MTT खर्प... ,. ,. ... ५७ yy से ५ खाभाविक बार्ता eee ४68 ® 9 See ४५ ५६. तक तीय समं |] ( ¢ ) देषां कौ सद्वा | विषय | १७ राम का सब UAT STAT. ..+ „५, ४८ से t मकौ यापकता... a os oe go तक राम at वयाप ६९ ˆ राम, सन्त चैर परमात्मा णक = ६२२ ठ का HAM Hx काम ... ९५ तक जोव a df तीन UAT कादेष्ट do राम MCAT Mey ... ,.“ ,.* < साधुजनस्य .. "= ८ ६९ से oe साधु प्िचान ० SY ७९ रामहछपासेरामजानेजातेद ok, ७२ राम AUTEM अभेद „ल *““ „^ (| नें ) सांसारिक जीवों में खगे के TSIM १०५ $ : Reg cc ने मनुष्य सांसारिक गुण, दोष से पै हे ae सदा दुःखौ घखौ वनादौ TWATS ,,, ,,, २९७ =€ काल कौ प्रबलता भ्र उसके अनुसार भले बुरे काम AT TAT ,,, ० ० ,,„ ६७ eo सांसारिक कष्ट से wat a ३ oa ह fas, विवेक वो सत्‌ उपदेश Se mete ,, २९७ € रामचन्द्र कौ सेवा से भववन्धन GEM... ५, ९८ eR पव दोहेकाविषय . " „^ ९९९ ९३ सद्गुरं को खत्यन्त खावश्यकता ० ,, RRL €४ सफाम Ae निष्काम के भेदसे कमंका दो प्रकार ar Sta eT ee ee ee 1 ९५ UA ATA AT ATETT eR ९९ पव दोहेका'विषय ee ROR ९9 राम नाम के eT कै विना समे सब वयर्थं है ३०९१ ९८ सब्र पदार्थे मे शुभाम का मेद दिखलाना चार्‌ उस कै ऋनुसार TAT AT YT AT ,,, ,,, ३०२ €< BET HATS aa at ves TTT... ३०४ ९५०० सब पदार्थं मे eae. „ „+ Ree १०९ सब भदो के समभने के लिये rena कौ अवषटकता। २०५. ॥०॥ इति षष सगं yoy FAA सगे ५] ( 24 ) XR परोपकार का सब से उत्तम STL, षा श्रथ सत्तम सगे | at षो wi विषय | VE Uy | १५ शाशा त्याग wer Hh सब लिखने WEA aT TAR दद R श्वाशा रहनेसे योगौभौ नालसे मुक्त नौं हो सकता ३०७ ३ दात ऊ दृद्टान्त्‌ से अपने प्रयोजन के अनुसार MA a सांसारिक वस्तुखों कौ रुदता Be BRAT का मानना ११४ eee ०* Res ¢ मौतौ Se FRR दृष्टान्त से साधौ ॐ खमाव कौ feat feet ,,, ,, ,,, ३०९ ५ संसार मे' आम-खलारथौ wea दरस पर gary... ३९० ६ निजैल स्थान के करूप के दृष्टान्त से मनुष्यो के कपट- प्रौलता का वणेन, ,,, , ,,, ३११ © दुष्कर्भियें at ate कर Se सभो का अयने few के निकट cet से ख पाना ०, ,,, ३१२ ८ saa दृष्टान्त से मिव के कोधित ett ae at । Gare St सहना as roe RRR € Fe teas gern से दुजनौ कौ सङ्तिका स्व प्रकार सेल्याग ATT ,, ,. RRB. १० द्यं के दृष्टान्त से राजा के Ta का गरुण दोष वणेन ३९५ १९ मालौ के दृष्टान्त से कलियुग मे' नोति चतुर राजा के Sita कौ कटिगता का वशेन 7 ard ९ * विपत्ति मे' पडे बड़े मनुष्य को कभी eet समभन | न चाहिए ` ९, ,„ BRO cate के दृष्टान्त से रामचन्द्र कौ आराधना शीर SHA सगं |] ( 25 1 4 | Ort a egg Pree | ww सद्य । १४. परोपकार कौ बड़ाई ओर स्थिरता दिखलाना are १५ GAT R दृष्टान्त से सत्‌सङ्ति कौ बडा ६५८ ad मोती Bre गंजाके दृषटन्तसे बड़ कौ सङ्तिका ` उपदेश Bre १७ बड़ेलोग समयक हेरफेर से कुछ Wa Ht हेय तौभौषोटों Sas Wi बने रहते F xa बात at we ओर ताराके दृष्टान्त से ठ्टराना RE १८ abst खादि दः वस्तु सदा न देखने से भिगड़ जाते इ२० १९ जल के दृष्टान्त से अपनौ भलाई करनेवालो के साथ दुजनौ को दुष्टता BRL २० श्याठ पदार्था का खामौके बियोगसे ae Etat शार संयोग से अच्छा वना CHAT... । BRR २९ नौचौ को aay मिले तौ भौ निचा vet aise दस प्रर चन्दन BC सांप का FIAT ६२९ ९२ दपण के दृष्टान्त से दजन के कपटौ सभाव का बणेन ३२४ २९ वृणः के दृष्टान्त से ष्टे मिच्च का TAT RRB 2800 चऋपने खाय के अनुसार व्यय करना सव गुणां कामूल २२५ २५ 0s far AM आदि के HEA को मनोयोग TA सुमने Qe ग्रहया करने का बगोन २९६ ९६ et nfs धार साथियों के साथ बहत संभालके TAIL कर्ने का VASW sii ३२७ २ सनौ, एच, खानपान, मन्न, चाकर, मिच भार्‌ घर इन सातां के साथ व्यव्हार ALA का SAAT | ३७ श SHH, खलन्त-दुःखौ, कट्भाषौ नोर कामौ , : दग चास के तुरन्त व्याग करने का उपदेश ३२९ २९ तौन एरष मयने ag को मोल लेते हं ... ३९९ दां को षा | विषय । ३० अश्लानियेां के उपदेश से चलने वाले श्नानियेों का । भोदुः्खपराना ,* ४ जिना अपने समम विचार के मनुष्यों का सदा दुःख पाना ३९ Sa लोगों के थं यत्न का बेन । BR दुता करनेके कारय Taal लोगं के ar होने का निखय ,.. ,,, । 2४ बहत नाल को फलाने वालों के सब कामे मे fats होना असम्भव ॥ ३५ Stat Sire षणा के दृष्टान्त से सब के पसन्न रखने के असम्भव होने का प्रमाण 8१ arate विरक्त साध्‌ के लिये प्रतिष्टा चैर नामवरौ का दुःखदा STAT 2७ Waa वा मेड्याधसान के विषय A बन्धा Gre खन्धे कौ निष्यालता ... ! ६८ Wate दोहे के विषय का उदार । ३९ धारा बर्ण के पनेर क्म के करनेसे उनका परम BE लाम ,, ४० किसान का उदाहरण दिखला कर मुक्तिं पाने-वालों कै उत्तम मध्यम Hx frase यतौ का बन ... ४९ दुख प्राने से अपने धमं को न छोडना उत्तम जनों का सुभाव षै ४२ ` सपनो मलाई बुखार के सदृश Tact कौ werk बुरा : समभना SHAT का JaTTE हे ४१ ( 26 ) [ स्तम समं । पारे के दृष्टान्त से wert का दुभेनोँः के संगसे भागे का उपदेश षा ॥ TS सुया | २२० २९९. २१ RRR RRR २९४ १६९५४ ३९६ RRS Ry? RRS RRE ९४० ९०५ SRA समे |] ( 27 ) QV को YT! विषय | शह सषा । 8 HRT RTS S gat Mt Aart बातो परमौ विश्वास कर्मे मे TST धोखा , BAR ४१५ दागश्चैर दया ae कामो में लगे डर सन्त भन ` चे मुख्य बौर वि ,,, RAR ७९ श्वान नम्रता अदि पदां विपत्ति के मुख्य साधौ ह Rsk ४७ पराक्रम सन्तोषं MT राम भरोस Ale बुरे समय कै सष्टायक fas ह , ३४३ ७८ रश्वर-मक्ति ओर विदा दि गुणौ मं लगे रहने वालों के लिये wat विपत्ति कान पड़ना R88 8€ बामन-रूप परमेन Se विष्णु के दृदान्त से कपट व्यवष्ार करने-वाे को AAA RIF ETAT ... SS ५० पर्ब VIS H बन दारा कपट से Gay दुयग्र होना ३९५ ५९ बलि तुलसौ Six fa के gern से' कल करने में सबको केण दिखला कस्दइससे दुर रने का यत्र ३९५ ५२ Agar बनिया आदिक दृरन्तसे दुटौके सङके सब प्रकार त्याग कर्ने AT SUS» “== १४६ us षा Se दुर्योधन के Gard से मूख के wa | का Hal न बदलना ध ९, १६७ ५४ देब के fata होने से सब aqat के खभाव का वदलना भ ,,, ३४८ ५५ क्तैव ओर बन्दर के दृष्टान्त से बिना विचारे इट-पवक काम करने से अत्यन्त TF पाना ... Bee ५६ aS rT पर feats कमौन करना AEA 1 ३५० yo 0. Sarafeafen मनुष्य का कु विश्वास ret, ३५१ ४८ जान बूभ कर अन्धाय करने-वालों को STS देना अर्थि... + च म २४९. ( 98 ) [सत्तम at | Vat षदा । विषव। ण्ड सुपा | ४& विषय मेँ लोन जनों कौ उपमा ee परतित्रता al & be ve ३५२ १० | Gast दुःख देने-वाले बिषयो मे -त्परजनौ A उपमा चन्द्रकिरण को जल जान कर चाटने-वाजे HAT RUB dy प्रविच्र erat Bath लोगों के अधिक प्राये जाने का कारण a २५8 ९२ कलिदयुग का बान ,.* ०, „ ३५१५ १९ wate रोहे का विषय अर्थात्‌ कलियग का वणेन (९१९ दोषे से ६३ दोहे तक) Rug ६४ कलियग Se लडारै का रूपक ६५७ ६५ दय-रूपौ कमल गुण दोषों का ae? st अविवेक दिके पाने से पसत्न Sx विवेक ents at प्राने से अप्रसन्न होताष्े ,., as ae ९५७ qq षिवेक होन मनुष्यो कौ wyatt से उपमा ३५८ ९७ हरि-भक्तों को atm देने-वाले विवेक हीन मनुष्यीं कौ कुत्तो से उपमा „ ३५८ ९८ UT AT रुक प्रकार का दोष प्रजामें ala पकार से प्रगट eta दरस Se Awa घाव करने वालो तलवार से उपमा ... ३५९ ६९ राजा के TST के अनुसार समय का भला बुरा होना १६० ७० राजा के VAG से समय का भला बुरा St जाना... ६९१ ७६. राना के भले हने से समय श्र प्रना का बदलना ३९१ ७२ berg महाराज सामादिक उपायां को विचार कर FAA का भौ VK aay ,,, ade ७ SAH फल TTR दृष्टान्त से उक्तम cea: F कर लेमे का उपदेश सपनन सगं |] ( 29 ) दोहं कौ ey | fare | श सद्मा । ७ एषी Are गौ का रूपक 2९४ ७५ कुनौति रत राजा खजर कौ शाखा के सदृ्र गण जाते ह ३९५ ७६ aye का पाव जीर एनौति Ste रावण कौ सभा Se wat का रूपक १९५ eo राम-परेम धर्म-तत्यर ओर अच्छे राजनौति जानने वाते राजा को राज्य Tal TET छोडतौ ३६१ ७८ विजयौ, उदार, सत्यमाषौ राजा का Saat कभौ wey घटता eh we RKO ७ गोली, वाण, खर ओर उत्तम मध्यम नौच राजा्यों का रूपक , ३६८ ८० सयाने राजा पने शच को जल के सदृश शिर पर रखते है परन्तु समय प्राने परर उसे नाव के सदृश mee. ade. ८९ निस राजाके धमे et बाड़ हं ओर सद्य wD उस के निकट अपदा कमो TET खातौ ,,, RN ८२ राजा, मन्त्रौ ओर कारोबारौके गुणका बेन ... ३७० ८३ सच्छे राजा का AAT अ , RRR < उत्तम खामौ का गुणानुसार ale बड़े दासो का BSE करना .., ८ soe ३७२ ८५ ae aR मूल ओर राजा Bees के पल पल चैर WHT AT कूपकं ,,, ८ >» ,,, ,,„ ३०३ ष्टं राजां के बलौ होने का बोन re ०, , दद्‌ ८७ चक्रवती महाराजाओों के YT र । axe ८ राम-राज्य ai H श्चाज कल न पराये जाने को | दिखला कर ACW के समय के एणं का- ३७५ ate a पाया जाना vas ०५ ( 30 ) [सप्तम सगं | ret कौ सद्या । विषय। चट & 0 €९ ER ER €.8 ed eq €७ és <€. © ® १०१ समयानुसार उत्तम FE F At व्याग का Bue... सरोवर मे खम्भे के सादृ्य से रौर मेँ खाता कौ तुलना si wet के angi के ate B tet Fa wma eT उपदेश , अवस्था के अनुसार आश्रम A रहने-हारे मनुष्यों के धमं का BVT सब कामें के पटले विचार करने का उपरेण बिषय ओर axe Su at रूपक दिखला कर नीरस वैराग्य-रूपौ TAT कगे सेवा करने का उपदेश ... बड के नामको न विगाडना ates ca विषयमे यमराज का TSU खले को बुरा करने से भले को काम नषे व्याग करना चाष्टिरः इस विषय पर देव-मन्दिर Se कौवे का दृष्टान्त : गंवारोकौबातेोंसेदुःखन मानना afew जिस का संसारो धर्मादि वष्र केवल अपनौ Terk दिलाने के लिये षे उस कौ GUAR A वी गतिष्ोतौदहे ,.. ,, र. परलोक में देवताच से दण्ड पाने के भय कमै SIE दस लोक के बोधौ राजायों के भय का afr Stat... Sis $ | नौति से चलने-वालें को सवं छख ओर कुनौति से पलने-वालें को दुख काष्टोना ,,, anita कुनोति से चलने के विषय मे राम, guts रावण Se बालि काउदाष्रण ध ण्ड सद्मा | 8 ce ६८० ६८१ ६.२ १८द्‌ २८४ RB Re २८९६ | २०७ gcc R<é चतुरं सगं |] ( 81 ) QT wt SAT | freq | we Sgr । RoR दजन दान अदि काम करने मे awa ete et at भौ अपे को महादानी कर Bc दधिच र समान जानते हं वन दूसरे कौ Mila को AS कर्‌ के खनो कोस्ति apis को निन्दा ae até WAR के दृष्टान्त से दुजनों के खभाव का TAA wan Su ग्टगादि के gerd से दुबल जनोंका संसार मे' दुःख पूवक निर्वाह eter... बडेर पापियिां Al Bw A UT कर प्ररमेश्वर को निन्दा करना sua यादव MC कामदेव कौ साच्तौ दे कर अपने वर्ग को त्याग करने-वालेां कौ शार QT लगने के दृष्टान्त से RATT का अत्यन्त बुरा eta दिखलाना श्रान्त प्रधान लोगों के लिये छार जाना ओर्‌ खपना खोना उत्तम है । संसारम प्रकार से श्च ओर fast को पष्ट चानने का fare... al कौ Gam दिखला कर सव्ननों Al cai at बात का स्ना ... si कणेर Bx पाण्डवां के दृष्टान्त से च्तमा At Tew प्ररणुराम ओर रामचन्द्र F दृष्टान्त से यह प्रमाणित कियाहेकिने Mat बातेां से मरे उस के लिये RS उपायन कश्ना a, a क्रोधके AW UT कर कदु बचम बोलने का मेक दोष TAHT FHT वस्तु के गुण अवगुण को घटा देते ड ( 89 ) (सप्तम सगे | दोरा कौ शा | विषय | १६ सडकमा । ११९ ऋण आदि पांच वस्तु अयन्त कटके TE ... ४०२ १९७ श्ित्ता देने-वाला गुरु चाहे शोधित हो कर चाहे , प्रसन्न ष्टो कर सब प्रकार अपने उपदेश दारा अपने शिष्यो कौ मलार करता ,, , BOR ११८ aT मे पड़े डर yay ओर दुष्ट राजा कौ उपमा से प्रायं का दुःख प्रगट करना ,,. . 9०8 ११९ बोलमे कौ बुरा भला Tan fae पर्वक बोलना उचित 2 ee || EE , ४०४ १२० कलियग मे कपट Taye F कारण लोग परस्पर ठग्ारौ ALS Bi, ,,, = ,., ४० १२९ कलियुग मे सव क्म का विपरौत होना ,, 9०६ १२२- { १२० दोहे S FT कर १२३ दोहे + ४०५ सेल कर RRR कलियग का वशेन ४०८ तक १२४ रामचन्द्र ओर छणचन्द्र दोनों कौ तुल्यता fewer कर भक्तिं करने का उपदेश... ,,, oes goe १२५ कमाच He कमरौ के दृष्टान्त से aaak फे भाषा में लिखि जाने काष्ेतु ,,, । aye १२९ सतसदै के अत्तर ओर मोतौ कौ मालाकारूपक ४९११९ १२७ सतस के मति-पुबक पएने-वालें का खग प्राप्त होना ४११ १२८ साना Se विद्धान्‌ के बौच तुलना दिखा कर विदान्‌ कौ खषताक्षाबगन ,.* ,,, ORR १२९ BTL का मादय Me उस के UGA का फल gre (दरति सप्तम सगं चो समाप्त 1) Star at समाति का संवत्‌ ओर तिथि ents at बयम्‌ Se अन्त मे शिवाट्क-रूप मक्कल ,,, = ,., ४१०७९१५ ( इति श्रम्‌ ) ॥०॥ ओ्रौपरमेश्वराय गमः ॥०॥ तुलसौ-सतसदं । विहारिङत-संधिप्तरीका-समेत | प्रथम सगे | क्क नमे ART ली-राम WY परमा-ऽऽतम पर धाम। -जहि सुमिरे सिथ हात हे तुलसी जन-मन-काम et SY | परमातम पर धाम प्रभु सोराम नमः नमः। जेहि सुभिरे deat जन मनकाम सिध होत हे ।॥९॥ श्रथे। दख जगत के (gran) श्र षब से श्रधिक Anat खामौ सोता-रामजो को वारंवार नमस्कार होवे, जिस को सरण करने से तुलसी (से) भक्त wat कौ मनोकामना पूरौ होति डे ॥९॥ राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी भार । ध्यान सकल कल्यान कर तुलसी सुर-तद तार ॥ QW aa | राम वाम fafa जानकौ, दादिनो श्रोर लखन | हसो तेर FLAG सकल HEAT कर ध्यान ॥ 1 : वुशसी-लतलर | qq) ओरामदण्र कौ बा ste Fan (FA) शै" भर दाहिनी site लकमण जौ (विराजते) हे"; ठलसौदास (qua ममसे वा feat भक्त से) कते हे" कि यद ध्यान Heed है, ait तेरे सब मंगलो को Taare ह ॥ २॥ परम JRO पर धाम चर जा पर HUT A श्रान। तुलसी से समुद्धत Yaa राम साद्‌ निरबान ॥ ३। श्रन्वय | तुलसो परम पुरुख पर धाम चर, जा पर श्रपर श्राग न, सो राम agua सुमत ate निवन | श्रथे । TaN करते हे" कि जा सव से बडे पुरुष (परमेश्वर) वड़े खाने Huq agus मे" रहनेदारे, fae के ऊपर Are को दूसरा भरी हे, उस राम को समभता भार सुगता है, वही मोक खरूप Fit ३॥ सकल सुखद गुन जासु ST राम कामना हीन, सकल-काम-प्रद्‌ सरब-हित तुलसी कहहिं प्रयीन ॥४॥ अन्वय | प्रबोन तुलसो कहहिं जासु गुन सकल सुखद कामना Slat सा राम VHA काम प्रद Baler | wai करि Gaal कहते हे, कि जिस रामच का गुणालुवाद्‌ खव anit को सुख देनेहारा हे, सा रामचन्द्र श्राप कामना रहित हेः श्रथात्‌ कियो बात को Cea महीं करते, परन्तु स लोगे का नोरथ पूरा करते WAT सष के हितकारी Fg QUA Bt | R नाके tra राम प्रती अमित अमित ब्रहमणड। सो देखत तुलसी प्रगट अमल सु-अचल प्रचण्ड ॥५॥ waa श्रमित श्रमित aay जाके रोम रोम प्रति हल्लसो से श्रम सुश्रचल्ल प्रचण्ड प्रगट देखत | aul जिस के एक २ राम में vagy ब्रह्माण्ड (वा लोक) हे" geaie उस fae श्रवल श्रौर परम प्रतापौ रामक दस कमत AWS देखते हे ॥ ५। जगत जननि सी-जानकौ जनक राम FA ST | नासु क्रिपा अति च्रध-हरनि करनि fate अनुप el श्रन्वय । सोजानकौ जगत जननि सुभरूप राम जनक, जासु क्रिपा अरति श्रचदरनि wary faa करनि । शरं | जरोताजो (गस) जगत को AT, WT कल्याणक्प भराम पिता है" जिन की छपा महा पापों को नाश करनेदहारौ wT खत SRC श्रसत के श्रलुपम WTA के दनेहारौ हे ॥ ६ ॥ तात मातु पर जामुके तासु न लेस कलेस | ते तुलसी तजि जात किमि निज धर तर परदेस ॥७॥ TIT | पर जासुके मातु तात तासु कलेस लेख न gaa ते निज घर तजि परदेस तरन किमि जात i श्रथ । पर ब्रह्मरूप सोता राम जिख के मा-बाप है" उसके योडा' मौ दुख नीं होता, तशय कहते हे कि वे श्रपने ay Ar sty (श्रोत्‌ SUR veda राम कौ चेवा होड) get देथ मे तरवे 8 तुलसी-सतसईं | के fad are को onda, श्रथात्‌ मुक्ति पाने के लिये दूसरे रेव कौ श्राराधना क्यो करगे ॥७॥ पिता बिबेकं-निधान बर मातु द्या-जुत नेह । 3 तामु qua fag पादह अननत Nea तजि गेह ich wry | faa निधान वर पिता नेह दयाजुत मातु, तासु सुश्रन गेह तजि किमु श्रनत श्रटन पाद है"। avi afi wa कौ खान ae जिस के पिता (राम है"), श्रौर शति शपाशोल माता (सोता) हे, उनके पुर (am Tet) घर aly (श्रपने इष्ट कौ सेवा aly) क्यों दूसरी टेर (दूष कौ खेवा मं) भटकने पावगे ॥८॥ बुहि-बिनय-गति-हीन fag सुपथ कुपय गत-ग्यान । ननि जनक तेहि किमि तजे तुलसी सरि श्रजान। ॥ € ll aaa । ते जननि जनक बुद्धि fare गति होन Gay कुपथ ग्धानगत Gea सरिस श्रजान सिसुहि किमि ae en ay) वे (सवव्यापकं सौतारामरूप) माता पिता wa नस्ता श्रौर चलन से elt Wt भले बुरे के ara से रहित gaat से RAM बचे कोः क्यों कर HS, श्रथात्‌ सवधा श्रयोग्य सुभा से भक्त -पर भो दया भवश्च करगे ॥९॥ मात तात सिय-राम-हप afe fate प्रमान । इरत अखिल अप तरुनतर तव तुलसी BE जान ॥१०॥ प्रथम समं | ४ mre | तरमतर्‌ बुद्धिरूप मात सिय, बिनेक (रूप) तात राम प्रमान श्रविल श्र ETA, तब ठतलसो TE जान UL Il श्रे । wart जवान वा ata बुद्धि कै खान मे माता ओरौ सौता A को, ओर विवेक वा खत्‌ श्रसत्‌ के बिचार स्थान म रामजौ को प्रमाणित किया, ते ae TAS पाप नष्ट श्रा; तब Gael ने रु जाना Ne I जिन ते उद्भव बर विभव ब्रह्मादिक सन्सार | सुगति तासु तिन कौ किपा तुलसी safe बिचा२।॥११। sara जिन तें व्रहमादिक सन्सार उदभव वर बिभव तासु सुगति gaat तिन कौ frat बिचारि safe ॥ ९९॥ श्र्ध। जिन सोता रामसेन्रह्मासे ले कर (दण तक) संसार को उत्यनि weet Dae, श्रथात्‌ पालन, चार उस कौ सुगति होता है, खम कौ छपा से विचार कर के Guat (ग्न्य) करते है । श्रथवा, खन्धो राम कौ छपा खे (तासु सुगति) उस संसार कौ वा संसार कं gat कौ सुगति सुक्ति रोती दे॥९९॥ ससि रबि सोता राम नभ तुलसी उरसि प्रमान | उदित सदा अरधवत न AT कुतसित तम कर हान॥१२॥ श्रन्वय । gael उरसि नभ प्रमान ससि रवि सोता राम सो सदा उदित श्रथवत न faa तम हानि कर ARN oa | तुलसोदास का इदय श्राकाश सम हे (जहाँ ) सौता-राम- पौ Ga चन्द्र सवेदा ऊगे र्ते रे", वेदौ (श्रथवत न) श्रस्त ayy हेत, चर खराब भ्रन्धकार-रूपो VT का गाश्र.करते हे । जरं १ तुलन्ती-सतलईं | gafea पाठ et वां मालाकार से मन at Aiea किये Fer VY करना ॥ ९९॥ तुलसी ava विचारि गुर राम सरिस नहि भान । जासु क्रिपा सुचिहत रुचि विसद्‌ विवेकं अमान॥१३। शर्य । तुलसो विचारि कहत राम सरिस श्रान गरं नहि जासु क्रिपा सुचि रुचि श्रमान बिद्‌ fada eta ॥ श्रथे। ठ॒लसौदास मलौ भति free कर कहते है" कि cA समान चार कोद गुर नहीं है" जिस A दथा से पतत्र श्चि (श्रधात्‌ रामचन्द्र के चरित श्रादि सत्कर्म TA) भर UE WAST AT TU ब्रह्मज्ञान रोता है, श्रथवा श्रद्ध Are शरहकार्रहित ज्ञान में पविच परीति रोती ह ॥९३॥ राम सरूप HAT AT हरत सकल मल-मूल। तुलसी मम fea जा लगहि उपजत सुख अनुक्रल॥१४॥ WAT! तुलसो राम wey नूप श्रल, सकल मलमृल इरत, जा मम fea लगि wage सुख उपजत | ्रथे। तुलसो करते है" कि राम का रूप श्रतुपम दूषण हे, श्रथवा राम दस नाम के दो aT उपमान वणं है" सव पापो के HF को arm करते है, जिनके मेरे मन Twat ar gid स HOUTA सुख उत्यन्न होता Fi war रा रख रूप जहां पाठ हो, वहां राजल का रप श्रतुपम डे श्र श्रल श्रधात्‌ यापक इ, Re मकार मर एी-रूप है, दन दोनों के संयोग होने से राम यद नाम वेना, fra के भजने से श्रलुपम सुख (gin) मिलतो ई Rar श्रये करना चाहिये ॥९४॥ प्रथमं समं | रेफा रमित परमा-ऽऽतमो संह भ्र-कार सिय रूप । dice भिलि बिधि जीव इव तुलसी च्रमल ATT रेफ परमभेश्वरं का रूप रै, उस मे श्रकार Tas का रूप है, Se टौ at ब्रह्मादिक जोव है, इम MAT के मेल से रा ae उपमां ररित निर्मल WAT बना ॥ ९५॥ अनुस्वार कारनं जगत Al कर करन म-कार | मिलित अ-कार म-कार भौ तुलसी हर-दातार ॥१६॥ श्रनुसवार इख जगत के उत्यत्ति का कारण दहे, HAT TY का दनेदारा है, इन दोनों केयोगसिबनामजा तुलसौदाब कते ह" कि दर श्रयात्‌ HAUT का देनेहारा हे ॥ ९६ ॥ ग्रान विराग ऽर भक्ति सह मूरति तुलसी पेखि। बरनत गति मति अनुरत महिमा बिसद्‌ बिसेखि ॥ ` ॥१७॥ तुलसो- ज्ञान amy रार भक्ति तोन का Ger रामरूप afd लान कर aaa मति afe ओआर गति शक्र के श्रमुसार श्रह्यन्त निर्मल इन के ATI का वणेन करते हे" ॥ ९७॥ नाम मनेादइर जानि जिय तुलसी करि .परिमान | बरन भिपरजय भेद ते कां सकल सुम VTA ॥१८॥ ` तुलसो-राम दस नाम के श्रपने जौ मे श्रति मनेष्टर समभ, (ओर परिमान करि) ca ce का टक कुर, वरण श्रशरोंक । - तुनसी-वतसरं ०५ tre ewe que खे सुन्दर श्वान का वेन करते हे, श्रधात्‌ राम में रह्मा विष्णु भर भिव तनो WET एक हो कर खित शे र + विषमं किया फिर श्रोकार कर के श्राम्‌ । श्रोम्‌-कार चेर सब AVE केबौज vat ara ® निकलने Sa eT aT श्रादि सव बोज Tart Wit श्रतुखार केयोगसे ga S ray Ta में सुव AM Hs 8) far ca aa a Me मकश्रागे | का श्रागत कर ररर का श्राकार कर सेाऽम्‌ TAG बना॥९८॥ तुशसी सुभ-कारन TAT गहत राम रस नाम। WHAT सुषि-मुभ-करन भगति-ग्यान-गुन-धाम Neel VAN — OA TAR कारण ममम कर, राम दस TSA मधुर ,. नामका धारण करते हे" यष MATT के ATM BT MITA मंगल का करग्नेहारा ओर भक्निज्नानज्रोर गुणका घर हे ॥९९॥ तुलसी राम समान बर सपन ह रपर न TA | तासु भजन रति-हीन श्रति षाहरसि गति परमान। ॥ ₹२०॥ तलसो-- कहते रे कि राम के सदृश He Ure कोर दूसरा सपने मभौ avy रे,-उन के भजनकौप्रोतिसे ग्हितदा कर पर शष्ठ arr श्रादर शरोर गति gin को, श्रवा शास्त मे जिस का प्रमाण हे उप गति sary (aay) qin का चादता रे › यड waa ३॥ २०॥ प्रथम समं | é wie-caar अम चेलु रस गम-पति-दिज गुड-बार । माधव सित सिय-जनम-तिषि सतसेया अबतार॥२१॥ शअ्हि-रसना (२) घेतु-यन (४) रष (६) गग-पति-दविज (0) गद्-बार माधम सित-सिय-जनम तिथि खतसेया श्रबतार (भो) UAT ९६४२ वेषाख मास Gare कौ नवमो जा इस anak भाम गन्ध का जका WA Bal सतस बनाई गर ॥ १९॥ भरन इरन अति रमित विधि त्व-अरथ कवि-रोति। सङ्केतिक सिद्ञान्त-मत तुशसी sen बिनीति ॥ २२ ॥ sol कवि रौति न इरन, भ्रति श्रमित बिधि त्वाये भरन | fata तुलसो सङहेतिक सिद्धा मत वदत । ` श्रनेक प्रकार के त्वो के श्रयेके पुष्ट करनेहारोहोकरमभो कवियों कौ Aa, श्रथात्‌ रस श्रणलङ्ार श्रादि का, इरन करनेदहातै मरं डे जो मतसर, उस मं मसरा कर तुलवोदाष सङहेतके दारा सब सिद्धान्तो के मत का कते है ॥ २२॥ विमल बाध कारन सुमति सतसेया मुख-धाम । गुरू-मुख पदि गति पादं विमल भक्ति अभिराम॥२९॥ (बिमल ara सुमति कारन) निर्मल sr चर sit wfe करनेहारौ भार सुख कौ खान ve erat का ar aye मुख चे पढ़ कर सुन्दर गति मुक्ति जर भक्ति TA श्रथवा गुड्‌ के Ged 9A, तो एस मे गति श्रथात्‌ श्रथवेाध््नि, होगौ ॥ ee ध : te quet-aaat | म-न-भ-य-न-र-स-त-लाग-जुत प्रगट इन्द जत VT | भो घटना सुख-दा सदा कशत सु-कवि सब कोय ॥२४। (म) मगण sss, (म) नगण ।॥, भ) भगण si, (य) यगण Iss, (अ) जगण ।5।,(र) रगण 415, (स) TAT is, ATT (त) तगण Si, ये तोन तनं माचा के श्राठ गण है" (लाग-जुत) लघु भ्र AER योग से जि मं जितने इन्द प्रगट होते है, उ रचना को सम श्रच्छे कवि लोग Beak कते ह" । गरु भार लघ मिल कर तोन २ माजार ® THR गण RTT) लघु का few HH () Bre गुर्‌ का (ः) Zar पाई रक्छो ay हे ॥ २४॥ जत समान ततवान लघु HUT बेद गुर मान | सश्ोगा-ऽ१दि विकल्प पुनि पद्‌ ्रनन्त करि जान।२५॥ . (जत समान ततान लघु) जितने समान रे" श्रथात्‌ श्र,द, उ, ख, @, ये पांच लघु दै" रपर मेद गुर्‌ मान) MT aT Ua Tt at कोगृरुवादोधमाना हे । फिर संयुक्रकेश्रादि ओर प,दके श्र mat को विकल्प से गुर्‌ कर कं श्रनेक प्रकार के पद जाने जाति हे श्रथात्‌ vat का wat मीं हे ॥ २५। दौर wy करि लह पढ़ृब SY मुख लह विक्लाम। प्राक्रित प्रगट प्रभाव यह जनित बुधा-वुध बाम॥२६। (ae मुख बिखाम ल ay दोरघ लघु करि पठ़ब ) जरां विश्राम हो, Tet Ste WET को भो लघु करकं पठ़ना चाहिये (fey यद बृधा-ऽबध बामन भजित प्रभाव प्रगट) पण्डित मुख भेर स्तौ षब के que et | ६९. fare भावा भें अर प्रभाव प्रगट है) दिन्दौ कविता भे चपने सविषे के अहुर, ey रोधे का पड़ना प्रसिद्ध ₹, करी गर को ee यगु aT eg att गुह करके पट़ते Fn ee SX गुर सीता सार-गन राम सो गुरु लधु हार्‌ । लधु गुर रमा प्रत्यच्ल्‌-गन जुग स इर गम ATE ।२७॥ श्रव गुरु लघ के उदाषग्ण का दिखाते हे"; सौता (यर) Tat गुर, राम पटला गुरु भरर दूषग लधु; रमा पला लघ भर दुरा me, थर हर mE दोन लघ FTN few दे कर यों जानना SES 11 सौता राम रमा इर “सोता चाग Aral at cae (मार गण) Ae ‘yaw’; Br “राम, रमा" तोन नोन माजा रेने से साक्तात्‌ ‘saw जये; ओर हर दो लघ Ara के कारण “TAT HAT ॥२७॥ सहस नाम मुनि-भनित मुनि तुलसी बक्लभ नाम | सकुषति हिय हसि facie सिय धरम भुरन्धर राम। ॥ Rey (तसो far नमाम सहस नाम सम सुनि) ठलसोदास के पारे राम नाम को सश्र नाम कं तुण्ड मुभि्यों कं मुखस सुन-कर जानकौ लौ धमे के भार का धारण REIT wa St शरोर रेख कर मन मं मुखका कर लजा लातौ है"॥ मुने का यह भाव ड कि Sarat खाचतो रहे कि मेरा नाम दोने VGC, खाएक नाम OS ह, भार राम का एक TTT एक गुद ट कर भो सहन १ तुलस्ी-सतसई | नाम के तय SU, य श्राञचयै हे। फिर यद सोच कर कि राम हेरे पति हे. दग का ara Tat tet vt चाहिये, य्ह समभा कर लजा नातो ह॥ RAAT । राम के नामे म तलसौ Te दस नाम क्का सुन कर सोता Staal हे" कि राम चन्र जा श्रतुकुल नायक हे" सदा शानक THT काते, सा तुलसी TH क्यो Sa; ते एन का my दलिण मायक HEAT चाद्ये; Tat सेच कर लजातौ हे, पिर रामको BIT देख कर Ural कि ये षदा AAR वातं करते भरर हुलस awa काते टस खे ठ नायक हे"; फिर श्रपने मन मं यद खाच कर कि MAA eT HEA का मुनिर्यो से नदीं कते ओर इमारे णारे काः कर भो तलसो Te कराते दष से लजते भो गर्ही दस कारण चष्ट नायक हे" ये ४ नायक राम कविगूढोकरि े शये ॥ ९८॥ दृम्यति रस रसना दसन परिजन बदन TE । geet रहित बरन fag दम्पति सअ सनेह Re! मुखरूपो धर मे (रख रखना) जल Ae जोभ स्तौपुरुषरूप है" ata गोकर्‌-चाकर रहे भार महादेव जो के कखाणए का करनेषारे (राम) ये दोनेँ वणे लके है" जिन मे स्तौ पुरुष की परीति खाभा- विक इ, जो का राम के सारणम खभाव होसे प्रीति wah ˆ चाहिये श्रथवा। इष दोरे म स्तौपुरुष का नाम प्रथम क के फिर रख UE का; TH से aq Tat a प्रधान ष्रटङ्ार-रसका मामले कर WIR काद्य.मभवरसें का वणेन इरित किया 1 २९ ॥ प्रथम सर्गं | य, हिय निरगुन नयनन सगुन रसना राम सुनाम | HAY पुरट सम्पुट TAA तुलसी ललित TATA ed faa we मन से सममे कि राम निगेण है" शर नेच से waraaw Ta का रखे, चर Ma सेरामदस सुन्दर नाम को अपे, ते शषौ शोभा होतो है माने (पुरट) सुवणं कं सम्पुटित मुख कमण मे (ललित Wea) सुन्दर होरा जड़ा श्रा Via सोभ रहाहै। मनं पद से यां SHAT WATT E ॥ २० ॥ प्रभु-गुन-गन भूखन बसन बचन fata सुदेस | राम-सुकीरति कामिनौ तुलसी कर तब केस se | ATA को AMM Ua सुन्दर स्तौ है, Bre राम के गु का समह उस्‌ स्तौ कं गने कपट हे GAA दास का करतब (काय्य) au रहे, जा कामिनो के बचनरूपौ सन्दर (दस) NET मं att हे । श्रथात्‌ बचन म यदि TAGE गुणगण कावगहो,ता वह सफल हे, ANY ता यथ हे ॥ २९॥ रघुबर-कौरति तिय-बदन इब कह तुलसी-दासु। सरद प्रकास श्रकास aa चार चिबुक तिल TTI रामचन्द्र को कोलति, WZ तु मे श्राकाश् क बो शोभित होने वालास्तौ का मुख हे, भिस कं सुन्दर ant a तिल eo og a जादाग हे, वहो मानो vraag AST स्तौ के मुख चन्द का frw ₹हे। श्रथवा geet are तिल हे ae, fre प्रकार are १४ तुललौ-सतखर | र तिश दोनों स्तो कं WATS शोभते वैसे हो मेरौ कविता रम ama सोभतो ॥ ३२॥ तुलसी AMAT नखत-गन सरद सुधा-ऽऽकर साध | मुक्ता भालर MAR अनु राम सु-जस सिमु हाथ Vs हृशशसोदास net = कि शरदकाल के चन्द्रमा कं साथ सब गश साभित है" से कैसा रेख पडता रै मानो TATA कं AMET} Oya कं हाथ मं मतिया को भालर भालक TH हे । यहां वणं माला कं जोर सब श्रो को तारा, जरर राम दन दा Tact AT चन्र AAA Sl) WIA गाम यश को चन्द्र, WT श्रपनौ aay का तारा सम बनाया ॥ रूपक RATT WT हे ॥ 22 | भ्रातम ary fata faq राम भजत श्रलसात। लाक सहित पर-लाक की wae बिनासी ara use श्रात्मा के ज्ञान ओर विवेक के न रन से रामचन्द्र के भजनमें लग Waa कर्ते है, Tay BV cg Sra कं सहित परलक की बात के wa कर नष्ट कर देते हे; यदि राम भजे, ता Ait कं दोनों लोक बन | २४॥ बरु मराल Alaa तजे चन्द्र सीत रबि घाम | मेर मदादिकक्तै तजे तुलसी तजे न राम ॥ ३५। TE राजर्स मान सरोवर का Aly दे, चन्रमा Mae aT कारे, भर GA घाख के त्याग करं, भार मयुर श्रपने वौ चतु मं प्रथम समं | १६ ALAM Ul BW STs Tz, UV तलसोराख राम भकिन दोरगे । अरां महासिल पाठ हे, वहां एक प्रकार का पत्थर, fae खे मार निकलता ₹ै, Tar श्रये करना ॥ ३५॥ आसन द्वि ्राहार fzg सु-मति गान द्विदृ होय | तुलसी बिना उपासना faq दले की जाय । ३६ ।॥ यागश्णस्त मं क BA यागियों कं समान चारं MET खव दृढ af बार भाजन, बुद्धि चर श्नान सब gz et gz we, तामौ रामचन्द्र कौ उपाषना कं बिना ये मब माना गड स्तौ Ea राम-चरन-श्रबलम्ब बिनु परमा-ऽरथ की ATS | चाहत वारिद बुन्द गहि तुलसी चदन Waa 189 | ओगामचन्द्र क चरण कं Here कं fat yim ora al rm Vat ह, जसे किं मेघ क वृन्द का पकड कर HIE श्राकाश्र पर बढ़ना चाहे ॥ RO II राम-नाम तर-मुल रस HE पच फल एक | जुगल सन्त जुग चारि जग बरनत निगम AH Veh राम aa SW) टच मृल हे, भार उसक (ra GE) इश्राठ Sag fam पन्ते रै" चरर श्ानर्ूप एक फल हे, श्रनकं निगम बेद ओर ay लोग उसे (युगल) श्रथात्‌ श्नान चार भक्ति मयः चार संखार HT यग मे चार Ww श्रय, we, काम ओर Are क के वेन करते हे ॥ ३८ ९९ तुशसी-वतसई | राम-काम-तरं परिहरत सेवत कलि-तर दढ । BATISTA परमा-ऽरथ THA सकल मनेारथ सुट EI HAMA TAG HUTS के कोड कर वटे श्रथात्‌ TATA Ga कलिकाल HTS बरे कौ मेवा करते FANT Ta ara Ae परलाक TiAl AT चारते है" (दख हेतु) उनके Va मनेारथ भाट a ऊपर के देनो शहरों मे रूपक श्रलङ्कार दे"! fete पक मे कम-तर पाट मौ मिलता Si वहां राम यश्र HG Te A नाग हे एमा श्रथे करना ॥ २८ ॥ तुलसी केवल कामना राम चरित ATTA | निसि-चर कलि-करनि wa तर माहि कहत बिधि बाम ॥४०॥ .. तुलम दाम जो करते हे" कि केवल (Saw) gh की कामना ह, ओर राम का चरित हो श्राराम WaT बारीचा दे, Are कलिकाल- सूपो Was St erat FB sa Al नाश करतार, aT Are A पड़ at लाग करत ह" कि भाग्य उलटा हे ॥ श्रथवा कलि-करनो HU कलिकाल का कामौ WIT S HT Wy aq Al नष्ट कर देता हे॥ ४०॥ खा-ऽरथ परमा-ऽरथ सकल सु-लभ रक दी BT | दार दूसरे दीनता उचित न तुलसी ATI Be ki (खा-ऽरय) शस लाक का सुख (परमा-ऽरथ) माच एक हौ TAT को सेव! से (मु-लभ) aes मे मिल सकता हे । तुखसोदाख (Gat प्रथम Bar | xe मग वा FAL भा से) कहते Efe Fat को Sar तेरे faa oie महीं रे ॥ ४९ ॥ हित सन fea रति राम सन रिपु सन बेर विहाम। उदासीन सन्सार सन तुलसी सहज FATT ॥ ४२॥ जा waa मिज रे" उम से मिजता, ओर रामशन्द्र मं भक्िकरना चाहिये । weet के साथ प्रम कर संसार से उदासोन रहना उदित Vi यरो (area को) खाभाविक प्रकृति हे quar gaa} श्रपन मग से क्ते © कि रसे खभाव का तुम ग्रहण करा ॥ ४२॥ faa पर राखे सकल अग बिदित बिलाकत साग। तुलसी महिमा रामको का जग जानन ATTN BRN (fra पर ane जग 71a) sia a ue faa रिया जिषकं दारा लोग सब संखार को देखते हे, एषे रामचन्ध कं HIE का कौन जान खकता है, Lat a ate के तिलका Var दोटा बगाया, लोभौ उसमंरेसोश्क्रिदौकि षब ge देख पड़ता Ei ve जहां राम तह काम नहि जँ काम नहिं राम | तुलसी कब ह हात नहि रवि रजनी एक ain ४४॥ eet रामचन्र हे, वहां कामना वा कामदेव नहीं रते, श्रधात्‌ यश्च-श्रादि कर के श्रपनो काममा सिद्ध करे, तो खुगोादि का खख मिखता ₹े, परमत परमेश्वर मही मिलते, शार जब कामना बा मग, मिला, ता राम नरी मिल सकते । यदि निष्काम श्राराधनमा करे, at ईशर मिलता ₹े। श्रवा faa पर wa A) दहा हा, उषि IS IES १८ | तुलसी-सतसद | काम वाधा नौः करता, क्योकि रात रार दिन Tat एक हो समय एक स्थान मे कमो नदी हा सकते | दृष्टान्त WATT GE हे ॥ ४४॥ सम दरि माया प्रबल घटत जानि मन मह । aga afc रबि दूरि लि सिर पर पग तर शइ ॥४५॥ (राम gf saa माया भरि बढ़त) जब रामच दूर हे तो बलवती माया (कम कौ फास) बहत Teal हे, पर यदि रामरूपौ ga मन ATS, तो उन्ह देख कर माया घट जातौ रै, जैसे जब qa दुर र्ते हे ते परदहो बढ़त &, Are जव दोपदर्‌ के छ्य शिर QT RI MAS, al Waal घट कर पांव तले श्रा जातौ Susy सम्पति सकल जगच को खासा सम नहि हाद | सा खासा तजु राम-पद तुलसी HAT न ATT ॥४६॥ . हुलसो कहते हे" किं सब संसार का tae एक vie के समान avy शोता श्रयेत्‌ मरते समय संसार काराजभोदेदा,ताभो एक aa atl मिलता, उम खास का रामचन्द्र का चरण ay कर श्रौर किमो स्थान मंन श्रो । राम भजन मं समय विताश्रो ॥ ४६ ॥ तुलसी से अ्रतिचतुरता राम-चरन लबलीन | पर-मन पर्‌-धन इरन का गनिका परम प्रबोन॥४७॥ Bea कते हे" कि वौ चतुरता ast रै जा राम के चरण Ha ररे, al at दूसरे कामन भार wa UTA F faa Ar भेष्ा al WaT tea C1 उन A चतुराई शे जगत कौ ait प्रथम संगे | १९ होरातौरे, प्रेखेष्ो संसार को माया Awa कर धन-श्रादि कमाने को चतुरतासे मनुव्यका बन्धनौ EAE ti ४७॥ चतुरारं Fe परे जम गहि ग्यानष्िं खाय । तुलसी पेम न राम-पद सब जर मल नसाय ॥ ४८ ॥ वैसो चतुरा gee मं जल जाय रोर प्रेषा ज्ञान जमराज का ्राहार हा जिन से रामचन्द्र के चरण म पोति म उत्पन्न हा, कधोकि एसे शान से सव कुक अङमूल से नष्ट रोता हे, ओव ओर श्रधिक बन्धन मे पडतादे॥४८॥ प्रेम सरीर WI रुज उपजी बडी उपाधि । तुलसी भलि सा see बेगि बन्धाद्‌ व्याधि ॥ ve (सरौर प्रपश्च रुज) WT रो प्रपञ्चूप tHe भार waa मीति उत्पन्न Bt हे, qaat wea हेः कि इस शशेर के कामक्राधादि ae उपाधि भार व्यापि का बंधनेहारौ Fat श्र्यात्‌ ज्ञान भला रे जिषकरानसदसमंमेव्याभि घट जातौरे॥ ४८॥ राम fara ae विखद बर महिमा अगम WUT! जा AE जह लगि VES है ता कह तंह लगि डार ॥५९॥ रामचन्द्ररूपौ HY TI TEA FITS AIT उन क AVIA TAM ओर awa हे, परन्तु fae क met तक उस महिमा at mre उस का वो BIL VRS के ITA ET aaa eS! राम के चरित wart 8 xa HB Gran a जयते aim मिलन wat Bi vel Re तुलसी-सतसष | हुलसी केोसल-राज भजु जनि चितवे aE भार । पूरन राम ATE सुख कर गिज ATA चकार ॥ ५९१॥ तुलो दास कते ह" कि श्रयोध्या के राजा राम क भजा चर किमो a att न Tar aya fea at भौ उपासना न Fe रामचन्द्र Ween सुख के लिये श्रपने Far का चकार पको बना डाला । WATT जसे चकार चन्द्रमा के किरणा को पोता क्से हो तेरे नेच राम मुख देख॥ ५९॥ ऊंचे नीचे ay मिले रि-पद परम पियूख । तुलसी काम-मधूख ते लागे कवनि हं रुख ॥५२॥ रामचन्द्र के चरण मे प्रमरूपो waa, चाहे जरां Gat वा AT ara वा नौच के पास मिले, विना लिये a arst, CUA दृष्टान्त रते हे" कि कामरूपो मधु F aa से चाहे fara Te BT मधुशूपौ waa श्रव ष्च मिलेगा set “aaa” पाठ हा वहीं चारे (क्वनि छ GGA शारी) fal दृक्षसे लगे पर चकार का चन्द्रकिरण (Waa) से सुख हाता VIS हो भक्तकाभो राना चाहिये, रेखा va करभा ॥५२॥ ॐ +, erat हना सहज हे दुरलभ हाना दास | गाडर लाये ऊन A लाग्यो चरन कपास॥ ५३॥ खामो रागा बत सहज रै, परन्तु सेवक राना बहत aise हे। Tern देते है कि जसे (गाडर) मेरौ लाया fa उस से अन मिलेगा, हो बह उस केखेत कौ शूप HAW) का दरु रो चरने लो । मशु प्रथम सगं | Rt ze ca faa पाया fa पुन्य कर gfe पावेगे; Br vat ATTA Qe HM पाप रेने ST ॥ ५१॥ लव नीति-मग राम-पद्‌-प्रेम निबाइन नीक | तुखसी पिरियसेा बसन जान पलारत पीक YBN नोति को रा से चलना WT रामचन्दरके चरण म प्रोति रखभा बत श्रच्छा हे दस मं तुलसो दृष्टान्त दते हे" कि एसा वस्त पनमा चाहिये जे धुलानेखे फौकान et जाय। इस सार का सृखभोग गवर होमे कं कारण फौका हे, परन्तु शखर परीति नश्वर aT हे ॥ ५४॥ तुखसी राम किपालु ते कडि सुनाड गुन दास । हाड दूबरी दीनता परम पीन सन्तास ॥५५॥ हुलसोदास करते हे" कि परम दयालु रामचन्द्र से श्रपमा गुन शरवगुन HE GATT श्रथात्‌ चमा कं लिये प्राथमा करो ते Greet Sarat डोरी हा जायगौ चर सन्तोष बटगा ॥ ५५॥ सुमिरन सेवन राम-पद्‌ राम-अरन पचानि | रेसे ह लाभ न ललक मन तै तुलसी हित हानि॥५६॥ राम ऊ चरण का GRAAF GS Bl Bat WT GT HU, Br Re उक्तम लाभ Aa तुन्हारा मन म ललक, ते Que RUT को वरो हानि होगो॥ ५६॥ सब सङ्गी गधक भये साधक भये न काय | जुखसी राम क्रिपालु ते भली शाय सा हेय ॥५७॥ जितने firs भिले सब बाधा हो BHATT BA, केर aera RR तुलसी-सतसष | ae करता, परन्तु श्रव ओ्रोराम दयानिधामसे जा भलाई हो वौ टक । aaa ae किं fant sig कान नाक श्रादि chat वा ` लड़के वाले है" सव dare म पुरुष को श्रपने विषय मे लगा कर बाधते हे, परमाथ के उपयोगो को नी इस कारण खर कौ श्राराधना परम उपकारौ हे ॥१७॥ तुलसी मिटद न कलपना AA कलप तर AE | जा aft zaz a करि far जनक-सुताका ate ॥ ५४८ ॥ तलसोदास करते रे" कि aga कौ काया a जाने सेभौ भोग पाने कौ कन्यना नदीं शकतो, परन्तु यदि रामचन्द्र दया AT चर firma दे कर चित्त का स्थिर कर, ते भाग कौ cea wa सकतो हे, कयां कि मनुखति मे लिखा हे कि (न जातु कामः कामाना- मु पभोगेन शाम्यति) उपभाग करने से कामशमन नहीं हाता ॥ ५८॥ विमल विलग सुख निकट दुख जोब न समई सुरीत। रित राखिये राम को तजे ते उचित Bata ॥५९॥ (sta बिमल) प्राण निर्मल श्रणद्धखरूप परमात्मा का श्राह (सुख बिलग) परन्तु नाना उपाधिया के ada रा कर सुख्ूप परमात्मा से wa श्रा रे, (दुख निकट) Ay संघार दुख मे few श्राह, (राम कौ रहित रखिये उचित न) से रामरूप परमात्मा से दख We st gar रखना उसित ay हे, uta) बरन ge श्खगा बड़ श्रनोतिका काम रै! (समू राखिये) दष fare शेषा प्रथम समं | RE करा कि यह राम से समय Te मेल Ta! संसार के सथ पदाथ नश्वर हे राम श्रमश्वर र" ससे उन से प्रेम रखना AW चाहिये ॥ ५८ ॥ जाय awa करत्‌ति बिनु जायजाग बिनु aa | तुलसी जाय उपाय सब विना राम-पद्‌-प्रेम।॥ do | विना करनौ के कमा वयथ हे, विना Hare कं याग Be Wx रामचन्द्र के चरण म भक्ति के विना संसारो सब उपाय यथ Edo तुलसी crate परिष र निपट हानि सुनु माद | जिमि सुरसरि गत सलिल बर सुरा सरिस गङ्गाद्‌।६१९॥ तुलसोदास करते हे" किं ह मन (सुनु) सुनो (रामह परिहर " माद निपट दानि) रामचन्द्र कं विना सुखभोबडोहानि के समान 2,58 गङ्गाजल जब EIN म हेता उत्तम दे, परन्तु वहो मदिग a मिलने से श्रपवित्र ae St जाता हे॥६९॥ इरे चरं तापर बरे फरे TENTHS हाय । तुलसी खा-ऽरथ मीत जग पर मा-ऽरथ रधुनाथ ge जब ABSIT AGS ETT F तब तक लोग उसे धरते 8“ उ का धन HU तक बने खाते पोते हे, अब छता रेते तापते geal Bas) लाते We मनुख्य पठ मं सुख पाते हैः चार जब फरता ह ते हाय पार कं उस का फल तेते RAE प मे उस के घा सुख भागते हे" इष प्रकार संमारौ लोग खारथ RU] WIA Rs ` Ave-wareg | कामके a हे" परन्तु Wa सुख दनेहारे केवल cast x “॥ ६२॥ Gaal येटे दास at रघुपति राखत मान | | श्या ATS उपराहितदहिं देत दान जजमान ॥ ६३ ॥ खराब सेवके का भौ रामचन्द्र श्रादर करते हे" असे उपराहित aa St ता भो भजमान उसे दान दता हे ॥ aa Sl जग बेरी Ala AT TY सहित परिवार | at तुलसी रधुनाथ बिन श्रापन दसा बिचार ॥६४। जैसे सब संसार श्रपने परिवार afea मलो के शच हे, श्रथात्‌ बे AS SZ का खाते हे; उसो प्रकार रामचन्द्र िनाश्रपनो दश्रा समभन चाहिये ॥ ६४ ॥ तुलसी राम भरोस सिर faa पाप धरि मेर। श्या व्यभिचारिनि नारि के बड़ी खसम को ओआ।६५॥ Gea कहते हे" कौ राम भरोस पर भिर पर wa Mea धर लिया जेम खराब स्तौ कं लिये श्रपने पति का श्राड बड़ा रता है। श्रभिप्राय ay हे कि गाम भरसे पाप करना श्रनुचित हे ॥ Qu स्वामी सीतानाथ-जी तुम लगि मेरी शार । तुलसी काग जहा HE सश्चत WT न Ty ६६ ॥ ड प्रशु राम! WI a मुभ WM हे, भे" जहाज ale पे समान समुद्र HAA दं, किसो WT महीं Ge ॥ ६६॥ प्रधम सगं | श तुलसी सब इल शाडि के कीजे राम सनेह । अन्तर पति ai हे कहा जिन देखी सब देह ॥१७॥ तुलसो (भक्त सेवा श्रपन मनसे) करते रहैःकि षब प्रका. कादढल are कर wage a Wh att faa पतिनेसब रश rn ~ रेखा उस से किष TY का WAT Til ६७ I सबष्ीका Ua लखे बहुत कहे का हेद्‌ | तुलसी देर राम तजि हित sr are न काद vee बहत क्या बणेन करं षब का दखा भार ater लिया wat fea Tia FI STS Ta समार मजर HIE नहो हे ॥ ६८॥ तुलसी हम ai राम का war मिले हे ठत । QF TACT THe अधां घर माहं कपुत ॥ ६९ ॥ हुलसो aed SF fa राम का सुभासा TST कुपुच aM aT sent Sw aa fare; Fa faat wea Fury में age वा श्ररुभा BA रहता है, Al न ae उमे रख aH न STE सकं ide काटि जिघ्र सङ्कट विकट काटि wy जे साच । तुशसी बल नहिं करि सकं जा Efe रधुनाथ ॥७०॥ चारे कशोर fag We ast att aez Br करोर wy at @, TW HM Ta way TE AT 3 ge नदीं कर्‌ षकते ग छन का बल खगे ॥ Oo | 4 १ तुलमी-सतसद | लगन ARTA जाग बल तुलसी गनत न कादि | राम भये जेडि दाहिने सने दाहिने ताहि ॥ ७१॥ तुनमो,- लग्न Bsa WT योग के बल का कुद AY गनते। क्धोकिं राम जब faa पर wana रोते दै“ उस कं लिये सब सुखदाई हा जाते F ori प्रभु UAAT AT AT दईं बोल सहित गहि are । तुलसी ते जागत farfe राम छव की ae ॥ ७२॥ श्रौ रामने ate पकड़कर Wt बात कड कर जिन्ंसामथ्य दिया बे रामको रच्छामे रह कर सावधानता से विचरते फिरते Soa साधन सासत सब सहत सुभ न सुखद फल-लाह्‌ | तुलसी चातक जलद्‌ की TH IA TY ATE ॥ ७३॥ `. art के पण्डित चातक भार मेघ की रोम श्र्थात्‌ AA समभते S| व सब दुख सहता SMT सुखद न सुभ न फल लाभ Wid) उष कान सुख रोता न कल्याण भरन faa फल AT A STA AIT न जल पानेका कोई माघन वा उपाय SI अहो सुमन सुखद पाठा avi—agart जन फूल के समान सुख देनहारे संसारौ कमफल का पानकं लिये श्रथवा फलङूप ज्ञान HUG मब प्रकार के साधन उपायां का करते SAT दुख ख्हते है ओर चातक तथा Fa को प्नोति को कम Am समभे रे-रेसा श्रे करना चाहिये 1102 I प्रम सग | Ro चातक जीबन जलद AE जानत समय सुरीति। लखत लखत लखि परत हे तुलसी प्रेम प्रतीति ॥७४॥ चातक श्रपने प्राणरूप मेघ कावा जल जरर मेघ stat wr सुखमय जर gaa जानता, रों को ve wm Fa Arq विश्वास देखते देखते कठिनता से लख पडता Fi aaa Fa चातक के वसे देखते ९ मेध जल कौ Ta जान Sa aa VY प्रमो प्रोति चर विग्रास का समदय लेते F108 1 गिव चराचर जंह लगे है सवके प्रिय मेद । तुलसी चातक मन TAT घन सों सहज सनेह ॥७५॥ चर मनुग्यादि war टक्तादि जितने जोव समार म ह" सब का जल प्यारा S परन्तु चातक के मनमे मेघच को सल्ल प्रोति र्ती ₹े॥७५॥ डालत बिपुल faye बन पियत पोखरिन बारि। सुजस धवल चातक नवल तार भुवन द्‌स-चारि wor बन म agat get विचगा करत हे“ जार पोषरियों का जल aa ई“ पचन्तु & चातक deel लोकम तेगा निर्मल ओर नया aw दारहा कि कंवल खातौकं मेघ का जन Gar रै चार a 94H मुख मोटे aaa मलिन कोकिल मार चकार | सुजस ललित चातक बलित र देउ भुवन भरि ATTIOON कोकिल aie Bre चकारकौ बोलौ मौटौ टे Bit मन कपट भरा ई, क्याकि वे मब ate मको aT Are आगश्रादि क खाय Rc qsat-aaae | हारे हे"! परन्तु हे चातक Ara मेतेरा सुन्दर नाम विराज Ta Py दन क एक दारं मे Beni श्रलङ्धार मान कर कोकिल श्रादिसे दूमरे२ कपटी जनों Ae चातक से geal श्रादि Hat भक्र Mai का श्रं भो ध्वनित Stat ह ॥७७॥ मागत हालत हे नहीं तजि घर अनत न जात। तुलसी चातक भक्तं कौ उपमा देत लजात ॥ ७८ | चातक खाती का जल मागता S पर भक्त alsa नही! शार धर काइ कीं नदी जाता। दम से तुलमोदाम चातक की उपमा YR दने नं लजाते हे" ॥ Ba Ziel मं चातक केमिससे भक्त के भमा दिखा कर दसम प्रतोप श्रलङ्कार द्वारा चातकसे भमौ श्रधिक भक्त कौ ast दिख । यदि Garry करं किं भक्र मांगते EMT चातक नष्टं मोगता, तो चमत्कारी नदी श्राती भार बड़ कवियों मे लिला ह (चातकाऽपि ठषिताम्बु याचते--चट कपरः) fa Oral a कर चातक जलमोंगतादे दरस से विरे(ध Sort ony तुलसी तीनों Bay aT wae SF माथ। सुनियत जासु न दीनता किये दूसरा नाथ ॥ ७९ ॥ AAT लेक मे चातक हो के शिर (सुयश का मुकुट) 2, श्रथवा उभौ के शिर का सच्चा शिर ae सकते हे, जिषको Aaa न सुमने amt श्रथात्‌ जिस ने खातो saz का ats ओर faa a IAT खामो न RAAT || Oe. ॥ प्रम सर्ग | Re प्रीति citer पयदं की प्रगट at ufearfa | जाचक जगत Huta इन किये कनोडा दानि।॥ Son पपोरे Wee प्रममेएक ay बात देखोजातो डे कि भगत HTT जाचक श्राप TTA Se, परन्तु ANE ने WA दानो का लश्ित किया ॥ ८०॥ ऊंची जाति पपीहरा पियत न नीचा नीर | कै ATT TA ATA AT SF दख ae सरीर ।॥८१। Uae ऊंचौ जात aT et कर ANS Ar Hay ALT Gar, art Ar काले मेघा से मागता, नदो" AT ATA का दुःख महता Fi ऊँचो जात के भक्त भो घनके मम TAIT रामरो को सेवा करते BUS कै यरखे धून समय सिर कैभरि जन्म निरास। तुलसी जाचक चातक तऊ तिहारी ara ॥ ८२॥ याते समय पर म्वातौ लगन पर मेय शिर पर बरमता ह (ति We), नदौ ता जन्म भग श्राशादौन होते, ता भौ चातकरूपौ जाचक AH के केवल घनश्याम कौ WAT इ ॥८२॥ चदृत न चातक चित कब ष्ट प्रिय पयोद के देख। a ata पयोधि बर तुलसी जाग न गख | ८३॥ चातक भक्रके मनम खामी मेचकादोषकभो ae gla cay से उष का प्रमभक्रिश्टपौ समुद्र aly के योग्य नरौ" रै ।॥८३॥ Re तुलसी-सतसङं | तुलसी चातक मांगने रकं रक धन दानि। .देत सो भू-भाजन भरत सेत Tz भरि पानि॥८४। चातक मोंगनेदाग = ओग एक एक मेघ देनेदारे VID कि भ्रमिदपो पात्र भर जाता S परन्तु वद श्रपने लिये केवल चाट भर्‌ जल लेता Si श्रथवा चातक का मांगना we मेघ का देना Ziat एकर प्रकार मेश्रद्ुत ई" क्योकि वद्‌ माँगता याड रार मेघ दता asa हे जिममलेगों का उपकार हाता S ८४॥ Vz अधीन जावै नहीं सीस नाई नहिं लेड | रेसे मानी मांँगनदिकेा बारिद्‌ बिनु देइ ।॥८५॥ sata et कर ael मोंगते न भिर नौचाकरके लेवें Ba मानौ waded का घनण्याम कोड ओर कौन देना = TUN पवि पाहन दामिनि गरज च्रति कर खर खीद्च। ` दसन प्रीतम रास लखि तुलसी cafe रीञ्च॥८६॥ वज्ञ पाषाण विजुलो गरजना aga भटाम Ane श्रधिक कराध श्रादि श्रपने प्रभु काराष दख करभो उनका दोष नरौ गनता परन्तु भकरिरूप BATT मे डना रता हे ॥ (चातक वा WAHT) ॥ ८६ ॥ कान fama जगत ae जीवन दायक पानि। भया कनोडा चातकदहिं wae परेम पडिचानि॥८७। जोव वाप्राणके दनेदारे Haag ca daa faa ar नरो जिलाया sar सभो के जिलाया प्ररन्तु चातक के प्रेमका देख कर उसे Aa होना FST ॥८७॥ प्रथम सगे। ३१ मान राखिषे मागि पिय at सहज aay | तुलसी लीने तब फबे जब चातक मत लेषु ॥ ट्ट ॥ मान रखना मगना ओर amt से खाभाविक Fa ये तोन तभौ सजते S जब चातक से उपदेश निया जाय ॥८८॥ तुलसी चातकषीं wa मान राखने परेम । बक Te Ute aria at निदरि निबाहेनेम॥८९॥ तुलसौ कते = कि मान ज्र प्रम रखना चातक होक aif eter है क्याकिखातोकार्बेदटढ़ादल ते वह Ga AT निरादर कर श्रपना नियम निवाता हे श्रयात्‌ ate et az aT लेता See. उपल बरखि गरजत तरजि डारत कुलिस कटेर। चितब fa चातक जलद तजि कब ह BTA At BIT ॥ € ० Il पत्थल बरम कर गरजता तडपता रे रार बड़ कठिन ay AM गिराता रै (Atay) क्या चातक Ha AM ary TAT कोश्रारकभौ देखता ड ॥ काकु डे श्रथात्‌ नदौ Tae ओर कितनाभो दुख पावे ता भौ भक्ति म fear reat ॥<०॥ बरखि परुख पान जलद पच्छ कर ZH दुक । तुलसौ तदपि न चाहिये चतुर wate चक ॥९१॥ Ha HAT Hate पत्थला के बरस कर ag A ताड कर, BR तुलसी-सतसदं | टुकड़े THT कर देता ई । Awa HEA शेता भौ चतुर चातक का (सेवा स) चृकना न चाहिय ॥ ९९ ॥ रटत रटत रसना लटी विखा खि गए अङ्ग | तुलसी चातक के fea नित नृतनदहि तरङ्ग ॥९२॥ (पानौ के लिये) ररते ted जोभ लट गद ठषा से श्रङ्ग खख na (at a) चातक के हदय म नय (aed तरङ्ग प्रति दिनि उठा करते BR il गङ्गा जमुना सुरसती सात सिन्धु भरि पूरि। तुलसौ चातकं के मते बिन खाती सम धूरि est गगा यमुना मरस्वतो (श्रादि नदिया) ओर मार्तो समुद्र म जल भरर, ता भो तुलमौ aed हे“ कि चातक स्वातौ के जल विना दन स्वो का धूलि के ममान ममभता हे ॥<२॥ | तुलसी चातक के मते खाति उ पियत न पानि। परम-चिखा seat भली घटे घरेगी कानि ॥९४॥ तुनमौदाम कते 2 कि (तुलम के मते चातक खाति उ पानि न पियत) मेरे मत से चातक lal FH Ha AT Wy Tear UT नदीं पोता, क्योकि प्रेम कौ प्यास का age भला है (घटे कानि ara) भार यदि जलपौलेगे ते दृच्छापूति के कारण प्रेम चरेगा AT AAT जातो रगो ॥ <४॥ सर सरिता चातक तजउ स्वाति उ सुधि नहिं Az. qual सेवक बस कदा जा साहिब नदिं Srey प्रथम सग | RR चातक ने तलाव नरौ ag त्याग किया र खातने भौ खबरम Mi तुलसीदास कते हेः fa i erat a zat ca मे सेवक HT RT AW VAT 4 रास TUE पयद की सुनुहा तुलसी दास | जञा श्र चवे जल स्वाति के परिहरि बारह मास ees UNS का मेघ कौ श्राणा करना सुन कर (areal होता) जा बारहो मरोने प्यास मरे ता मरे पर aria SY काजल पोता Sea चातक धन तजि दूसरे जिच्रत न are नारि। मरत न मागि अरध-जल सुरसरि इ का बारि॥€७। चातक ने जीते जौ Ha Mr ate शार किमो के जल के लिये नरश्वा गला न रपा शर्‌ श्राघ जनम, Ae धगम, मरते मरते Fag st OR जलकाभोन Ata cot व्याधा TUT पपीहरा परोड गङ्ग-जल जाइ । चाच मूंदि पीवे नही धिग पीनां पन जाद ॥९८॥ Qa Hae AT BVT AT वह AFT A जनमेजा गिरा, (परन्त्‌) चच He लिया Are जल न पौया, क्योकि प्रेमके मष्ट होमे के भय Bata ar पिक्तार समभा॥८८॥ अधिक बधे पर पुन्य जल उपर उटाद Fis तुलसी चातक प्रेम-पट मरत न लाया साँच ee | व्याधे ने पपौर के मारा जरर वह जा कर पवित्र जन मं गिरा, | AT WY अ्रपना चाच ऊपर ar ferar | तुलमोौदाम कते 2 कि J ३8 . तुलसौ-सतस्ई | (रखना चाहिये) पपौर ने मरते समय भौ श्रपने रमरूपो वस्र मं खाच avy लगने दिवा ॥ <९ ॥ चातक gate सिखाव नित ara नीर जनि लेह । यह हमर कुल AT धरम TH खाति सा AG ॥१००॥ चातक श्रपने TE के श्रयवा भक्त श्रपने मन वा शिष्यो को प्रतिदिन faara है कि दूसरा जल मत लेना क्योकि मेरे कुल का यदौ धम्मं डे किएक खातो को ate Are किमौ से प्रम AY करते ॥९००॥ दरस परस afe sa जल बिनु art सुनु तात। सुनत चेचुश्रा चित yas समु नीति बर बात॥१०१। हे ्यारे विनाखातोके दूमरे जलका स्ये वा दर्भन न (करना) ae नोति को श्रच्छो बात सुनते हो बचे वा भक्तके मन में चुभ गद रट Weal तुलसी qa at कहत यदह चातक ब वार्‌ | तात न तरपन कीजिये बिना वारि-पर बार॥१०२॥ चातक वारवार्‌ श्रपने पुत्र से कता ₹ै किरे प्यारे विना खातौ के मेघ के जल तपण मत करना ॥ ९०२॥ बाज चङ्कगत चातकदि we प्रेम की पीर। Gaal पर-बस हाड मम परिहे पुषहूमी-नीर॥१०३॥ बाज WPS म पड़ चातकके प्रमका दुख SB, उस ने विचार कि मेरा wy waw हो कर मि के जलेः परेगा। Waar शातक को यर डर श्रा fe Ter a et fH AE ere ar कोर दूसरे जल मे गिरा दे ॥ ९०२॥ प्रम सग | १५ अण्ड पारि किय Seat तुख पर नीर निहारि | गहि WE चातक चतुर STITT बाहर वारि ।॥१०४॥ AUST फोर कर बचा भिकाला पर उसके HRS AT जलमं पड़ा देख कर चतुर चातक ने शङ्गुल से उसे पकड कर जल कते षार निकाल दिया॥९०४॥ हात न चातक पातकी जीवन-दानि न मढ़, तुलसी गति प्रह्नाद कौ समुर प्रम-पद गढ़ ॥१०५॥ चातक भो पापो नीं Brat Bre उष का जल देनेहारा भी aa नीः होता । wife वह प्रेम के गृढतल भार were की गति को समभता डे । श्रभिप्राय ae कि श्रति ara Bt करभौ ओर न्तं तथा WHT श्रादिके जल Bt a Gy कर श्रात्मपोडाका पाप चातक को नहीं लगता चार खातौमेन वरसामेहारा a at हठो नही HEAT । चातक सममत हे कि were ओने श्रपने far wt TN न ATA AT Bl प्रम कं कार्ण GY WAN ASA wou तुलसी के मत चातकदि केवल प्रेम-पियास | fora aria जल जान जग जाचत बारह मास।॥१०६॥ Aaa के मतसे चातक को केवन्न प्रमकी ष्याम FX Wrz भंमार शागताङेकि वारर मासमे चातक मांगा करता हे परन्तु खाती हो का जल पोता Bi जरां तावत ars et वां re are vet करता डे Var श्रयं शगना चाहिये ॥९०६॥ ३९ तुलसी-सतसर | UH भरसे रक बल TH आस विखास | छाति-सलिल रघुनाथ बर चातक तुलसीदास ॥१०७॥ ट्स As AW कर ऊपर का सब श्राश्य खोल दिया। ऊपर खातिनलद्प श्रोरामचन्द्र को श्रयवा राम इस नामके stat वणँ को खातो का जल समना चाहिये, AT एक उसो को श्राशा भरोसा सार बल विश्वास रखनेद्ारे चातकरूप तुलसोदास जो वा तु-तुरङ्- वाहन (राम) ल (लक्षण) We सौ (सोता) दन के दास जा WS aS an 2) उन को समभना Usa! जा भक्त Watt भक्तिं मै चातक के ममान दुदर ररते दे उन का THAT श्रवश्य मिलते V1 पले श्रनेक ददो में चातक कौ भक्ति कौ उत्कटता दिखला कर्‌ wat को चेताया हे Are मेघ के समान irra को नोवन- दाता दिखलाया हे ॥ ९०७ ॥ श्रालवाल मुक्ताहलनि हिय सनेह-तरु मूल | हेरि हेर चित चातकदहिं खाति-सलिल HEM oz इदयरूपो fa पर रामचन्द्र के गृणगणदपो मेती कौ माला कौ याला हे उस में से Gea (पञ्चाङ्ग) ठक का मूल निकलता हे | हे मन जब a चातक को aha at (दरि) Gare कर (देर) उसे ati तव art नलद्पो ग्रोरामचनद्र श्रनुकूल WIA श्रथात्‌ मिललंगे । श्रभिप्राय ae fa खातिसलिलरूपौ राम को खोजने के लिये इधर उधर धूमना न चाद्ये, वे खन के इदय मे वत्तमान ह~ „ भक्रिपूष्येक श्रपने मन हो A STH AT Qos प्रथम सगं | RS राम प्रेम faq दूबर राम प्रेम सह पोन। बिसद सलिल सरबर बरन जन तुलसी मन-मीन I, १०९॥ (बरन भिसद सरबर) राम दस नामके दो Dart निमेल सरोवर दे“ (प्रेम fanz मलिल) उम मे प्रमर्ूप निर्मल जल 2 faa a (तुलसौ जन मनमोन) राम AAT जानक जो के भक्तों कं मनरूपौ मलो रतो 21 प्रिमभक्रि के विना राम vane नदीं होते Me उसो TAR रने से श्रनुकृल वा प्रसन्न होते Vu श्रयवा (राम प्रम बिनु दूबर) श्रथात्‌ ae भक्त चित्तरूपो म्नौ रामचन्द्र लो के प्रेमरूपौ जल के विना द्बलो दा मरतो हे भार उमो प्रम- wea जल कोपा कर (पौन) Gera Taree श्राप बधिक बर बेस धरि करउ कुर ङ्गम TIT | तुलसी जौ खग-मन सुरे परे HA पट दाग ॥ ११०॥ दति भरौगोखामितुनमोदासपिरचितमक्ततिकायां भक्रिनिदणो नाम प्रथमः सगः ॥ व्याध ने श्राप उत्तम भेष WITT कर के (कुरङ्म राग) उस राग के बजाया जिसको सुन an मेहित St sa SBA गगकासुन करभो जो BNEW मन मुर जाय तो प्रमरूपौ वस्त a amt पड जायगो श्र्थान्‌ पक्का प्रम नरौ दोगा॥११.०॥ ॥ दति विदारिकरितमंकिप्तरो कायां प्रयमः सगः ॥ ee ~~ ¦ तुलसौ-सतसद | aq दितीय at | —— 207i 00-— वेलत बालक व्याल सग पावकं मेलत ETT! तुलसी fag पितु-मातु इव राखत सिय-रधुनाथ ॥१॥ पले सगे मे uf at gem दिवा कर gat में उपासना दिखलात्रगे | लडके सप के साथ खेलते ज्र श्राग मं दाथ डालते परन्तु माबाप के ममान Narra जो (AAT वा भक्तों कौ) Tat करते 2 । पूणापमालङ्धार ईहे तर भक्र का बालक कौ तथा सोताराम को मातापिता कौ goat at गर डे॥९॥ तुलसी केवल राम-पद्‌ लागे सरल सनेह | लौ घर घट बन बाट महं ATE रहे किन देह ॥२॥ तुलमौदाम कते हे" यदि राम के चरण में खाभाविक प्रम रहे तो मनुव्य का TE घर घाट वन राद Ue Het रे Wears Star हे । श्रभिप्राय ae कि भ्गिदौन चारे वन में तप करे चारे TET के तौर बैठा रदे पर विशेष फल नदी, परन्तु भकरिसदहित zee का श्रा्रममेरषनेरेभो मुक्ति मिल सकत ङे ।॥२॥ x A कं ममता कर राम-पद्‌ कं ममता परिेलु | तुलसी दा महं एक अरव खेल ais ल चेलु si तुलसोदास कते डे कियातो दव रामचन्द्र के चरण मे ममता दितीय aa Re कर, AY at ममताको ets T | वैरागले (aa ahs Wa st ae एक खेल खेल ) कपट कोड कर Ta Sat | a UH Sa को श्रवश्य खला ॥ २॥ के तोहि safe ca प्रियक तु राम प्रिय हाह। दुद्‌ महं उचित सुगम समु तुलसी करतब ATE ॥४॥ याताराम तुभ प्रिय लग ay at waa wife ar aa ey UWA Bl TTT WH ST जा। तुलसौ कषत हेःकिदनदोनोंबातेमं जा तुभ aes Bre उचित जान पड़ बहौ तेरा कव्य Bg 4 राबना-ऽरि के दास संग कायर चलद कुचाल | खर दूखन ATU सम मूढ़ भये बस्त काल ॥ ५॥ काद्र SA जन (वा मेगा मन) (राबनारि दास) रावण कं wy राम उसके दाम am लेार्गो (वा gaat) के ay कुचाल सनते ङे (भजन मे विघ्न डाले हे )। यमु खर दूषण बरार मारौ नाम Teal के ममान कालके वश इय र" ॥५॥ तुलसी-पति दरबार मा कमी बस्तु कदु नाहि । करम-दीन कलपत फिरत चक चाकरी मादिं ॥ ६। (तुलसो-पति) राम के दग्वारमकिषौ ag at कमनी मरही कै परन्तु जो कर्महोन उद्योगरहित भजमादि नरो करते बा महीं किये ` रै" थर (चाकर) cata मे दे के" बे हो रते फिरते Ng ge qe aragy | राम गरोव-नेवाज ह राज देत जन जानि। तुलसी मन परिहरत afe धरबिनि्यां की बानि॥७॥ TAM Wai के बडे मङ्लदाता हे We भक्तं का WMA कर राजभो देते है जसे विभौषण उग्रसेन श्रादि के दिया), परन्तु भरी का मन (धुरबिनिर्या) घूर पर जा कर एक एक दाना बिनना (इधर उधर दूसरों कौ सेवा मे भकना जैसे gal करती 2") TUT उधर भरकने का WAITS नदीं कोडता ॥७॥ घर कीन्हे घर हत हषर BIS घर जाय। तुलसी धर्‌ बन वीची रदा प्रम-पुर दाय We il Qt Fala BUT sl at दोना पड़ता J Mz घरको ate देने Bat ay et जाता, दम लिये at Me वन दोना के बौष प्रम-पुर) रामक भक्गिरूपौ नगरौ मे रना चाहिये श्रथात्‌ गरदम्थाश्रम AT वन मजा तप करना दोनों कोड कर केवल भक्ति करना श्रति उत्तमे द्स से घर वन stat वनते 2) ॥ र ॥ राम राम ररि भले तुलसी GAT a खाय। लरिकाई के ofa धोखे उ बड़ न जाय ॥€॥ राम राम जपना बहत श्रच्छा हे क्योकि इसमें भक्त धोखा मष्टींखाता। दम Hurd देते हे कि weak मे जिन्हे Aen Nat TF wha Vw atl HH VS at HY नदीं saa | या Sat समुद्र मं द्बना लेना चाहिये ॥९॥ दितौीय समं | ar तुलसी बिलम न कीजिये भजि लीजे रघुबीर । तन तरकस से जात ई सवास VTA तीर ॥ १०॥ तुलसोदाष aea दे" कि राम भजने मं कुद भो विलम्ब म कौै- faa क्योकि waved) तरकस से TTA समान सवास भिकलौ जाती हे । HAT WTS AHA Ww षोत रा Vi रूपक TART we हे ॥९०॥ राम नाम सुमिरत सुजस भाजन Has कुजाति | कुतर FAR पुर राज बन ल्त भुवन विख्याति॥११॥ कुजाति (सेवर, गोध, श्रजामिल श्रादि) रामनामके स्मरण से HS यश के भागो BA, Bal प्रकार (दण्डक बन के) वराब sa (qu श्रादि) कुसरू (खराब सरावर) बन (रण्डक श्रादि) पुर मगर राज aif wat + संसार म प्रमिद्धि पाई ॥९१॥ नाम-महातम साखि सुनु नर के केतिक बात | सरबर पर गिरिर तरे ज्यां तरूबर के पात॥१२॥ राम नाम के मादाय के सात्तियो का सुनिये (सरबर पर गिरि बर तरे) समुद्र A बडे बडे पाड भार पत्थल उत्तराये (ज्यों तस- बरके पात) जैसे सुट के वा पौपल के बड बड़ पन्त प्ररे Are मनुय माम माद्ाक्य से बर WS Sl sa, ca at A wa aa GT a HVAT चाहिय ॥ WR ग्यान गरीबी गुरू-धरम नरम वचन निरमेस। तुलसी कव | न द्वाडियि सील सत्य सन्तो स ॥१३॥ 0 gz तुलसी -सतसष | (ग्यान) वि्ा, ( गरोबौ) श्रहङ्धार रहित, (गुरु-धरम) गुर्‌ का दिया उपदेश्र, कमल वचन, (निरमेख) मायाशोनता, We सवाद Bre सन्तोष का कभी न कोटना चारिये ॥९२॥ रसन बसन सुत नारि सुख पापि्टके धर हाय। सन्त-समागम राम-धन तुलसी FTAA राय neg भोजन वस्त स्तौ लड़के दन का BG A पापौके ar a शता हे, परन्तु geal दो का बड़ा दुलभ समभते रै' श्रयात्‌ स्ने कौ सङ्गति त्रर रामको श्रपित वा मत्कम A लगता धन श्रवा राम भक । जाँ ये दोनों पाए me वदी सव सुख जानना ॥ १४ ॥ तुलसी तीर हि के बते श्रवसि पाद्ये थाह | बेगि जायन पाद्ये सर सरिता श्रनगाह।१५॥ तलो कते ह कि तौर पर रने से श्रवग्य थाह मिलता है, परन्तु (धाराके) वेग मंजानेसे Tar Are मदौ का are any मिलता। तौर aet संसार समुद्र का सममना afea | श्रभिप्राय ae कि Gat A A डव कर मन श्रलग किये रोगे ते पार जा सकेगे ॥९५॥ पग ्रन्तर मग अगम जल जल-निधि जल सश्चार। तुलसी करिया करम-वस FEA तरत न बार ।॥ १६। एक पांव के श्रनन्तरजा माग हे उस में (श्रगम) FEIT TUTE जल रै श्रधात्‌ संसारकूप (जल निधि) समुद्र के जल का (Ag) बड़ा तरङ्ग Zi तुलमोदास कते ईः कि (aaa करिया) sat कमं के ama Ut HT Ta a sat शार तरते ge देर नरी anh | दुष्कमे से gaat रार सुकम से तरता Fi श्रवा (करिया कर्म-बस अदत) पाप कमरे इबताजररामकौ दवासे तरता ई। ९६॥ दितीय सग | 6९ तुलसी इरि-श्रपमानते रात WaT RATS | राज करत रज मिलि गये सदल सकुल कुर-राअ॥१९७॥ तुलसोदास कते = fa विष्ण भगवानके श्रपमान सेबडौहानि होतो हे! दसम qua aa हैः कि (कुरुराज) द्धन श्रपनौ सेना रोर परिवार सहित राज करते ९ (ew) के श्रपमान शे धूर भं मिल गया। (महाभारत के उद्याग पथ्ये के एक सौ Vea ९९५ WNT म) RAM का REA न मान उन का श्रपमान कियाट्ससे सकल नष्ट SIT | 29 | तुलसी मीठे वचन त सुख उपजत WE ओर । बसौकरन यह मन्त्र है परिहर बचन कटार ॥ १८ | तुलसोदाम कते ह कि मोठा बचन Tay Haq Fr MAR होता Si ae (मोटा बनना) amare मन्त ङ (दम कारण) कटौ arent at ats दना उचित Ste tra faut ¢ Bia सुख राम faut faq जात। जानत रघुबर भजन ते तुलसी सट TATA ॥ १९॥ ata a Za Bq ela Ss उमौके न ग्दनेमे सुख चला MAT S| AE Aa HAT At UAT राम के भजन करने मश्रलसाते S We सनमुख W रघुनाथ के देह सकल जग पोटि। AR RYT उरग AY हात fern श्रतिदीरि।२०॥ alia % सनव et (उनकोखेवामे सगो, Bw dary at ४४ तुलसी-सतसश | ोडो। टस मे दृष्टान्त यद हे कि जब ia ase कोडताहे ता oa कौ दृष्टि चोर श्रधिक et जातौ Fi at प्रकार कंचुरौरूपौ WUT का मेद aly कर श्रात्माके ध्यान में लवलौन रोते परमकल्याण (ATs) मिलेगा ॥ २० ॥ मरयादा दूरहि रहे तुलसी fad विचारि | निकट निरादर हात हे जिमि सुरसरि बर बारि॥२१॥ aval विचार कर कते हे" कि संमार से ac wea a मव्यादा (उचित कमे) है, संसार मँ लिप्र रहने से श्रनादर (दुःख) होता Si श्रयवा तुलमो ने बिचार fear S fae sx St रनेसे प्रतिष्ठा होती हे रार समोप Tea से श्रनादर रोता डे FB गङ्गा ~ Wwe AS के रदनेहारे गङ्गगाजल का श्रनादर करते हे" ॥ २९॥ राम क्रिपा-निधि खामि मम सब बिधि पूरन काम। परमा-ऽरथ पर धाम पर सन्त-सुखद्‌ बर-धाम ॥२२॥ दयानिधान Wa At प्रभु डे“ Are सब प्रकार (मेरा) Area पूरा करते इ । जे श्राप मेक्तरूप as तेजधिश्रों से भो श्रधिक- तेजश्चो WT श्रपने उत्तम स्यान मे सन्तो को सुख TACT egy cafe जानहि राम रदु भज्‌ Cate ay काम । तुलसी राम-अजान नर किमि पावहि पर-धाम।२३। रामचन्द्र को जाने, रटो, भजा ओर शंसारौ मनोरथ छोडो, क्थोकि राम को नही जाननेहारे ade किस प्रकार (पर-धाम) “Aga at afm at पा षकते S 7 २२॥ डितीय सगे | ४५ तुलसी-पति रति we सम सकल साधना हन | अङ्क रदित कट हाय नहिं श्रङ्क-सहित दस-गून॥२४॥ तुलसोदास क्ते 2” कि aml का प्रेम श्रङूके समाम रैर सब साधना (श्रयात्‌ तोये त्रत श्रादि) UR षमान Ss iH करके eit शून्य रने से कुदं दाय नहीं लगता परन्तु WE के साथ शून्य दशगुण श्रधिक हो जाता V1 उसो प्रकार रामभक्रिशन्य सब निष्फल हे भार रामभक्तिसहित मब दश्रगना फल देनेवाला i टस दोहे मं रूपक wae डे ॥ २४॥ तुलसी Waa राम Ae भजन AcE fae श्रादि saa facarfeat जैसे नब के ATH Vey | सब WE ङोड कर श्रपनेराम का भजन करेा। जिम प्रकार नव काश्रङ्श्रारि र wea दोनों का निबाद Arar aaa तेग faare रागां चार श्रादिश्रन्त Stat बनग॥ जरह “भजन करो दक ay पाठ Ut वदां श्रद्ध हो कर भक्तिं महित राम का भजन करे, TA RAY होगा, Ha नव प्रकार कगे भक्रिसेश्रादि waa दोनेँ बनते हे" एमा श्रय करना चाडिये॥ ey | दुगुने तिगुने चैगुने पश्च सष्ठ Bt सात । WIS ¥ a पुनि नब-गुने नब के नव रहि जात॥ ee | दुगुना तिगुना चौगुना पांचगुना गुना मातगुना श्राठगृना शार AAMT करने से श्रन्त मे नव का नव बना THAT हे । चाह जितना हिसाब et पर सव मनव तक WE याप्त हे, जिम हिमाब मे रेषो एक से नव तकके रो VE दख पड़ते है ॥ ९६॥ ४९ तुलसी-सतसई | नर के नव रहि जात है तुलसी किये बिचार | vag राम इमि जगत मेँ नष “देत विस्तार ॥ २७। तुनशोदाम कते है“ कि जिस प्रकार (सब गणित मं बिचार कगनेसे) एक से नव an AIR वाश्च हे" उसो प्रकार राम इस dart मे (WHS) व्याप्त दे“ रोर रामको ats Ae दूसरा पदां wey ह| इम ae मे वेदान्त Ho Wea मत का दृष्टान्त दिखाया हे, यदह dat HA Bast म रूपा जान पड़ वैषा रहौ श्रानन्द खर्प श्रात्मा सँ श्रारोपित किया गया हे रर्‌ सत्य नहीं हे । Fa तोक ज्ञान हेने से सुतुरौज्ररसोपमेंसे aes a wa जाता रता 2, उपो प्रकार यथाथरूप से ra का जान लेने से सब aa का aaa ZT RT HAT हहे, दसौ के श्रद्ैतवाद्‌ HET हे“ ॥ ९०॥ तुलसी राम AAT करु AY सकल उपचार | जैसे घटत न अङ्कं नव नव के लिखत पहार ॥ २८॥ तुलमोदाम करते हे" कि मब उपचार Aly त्रतादिक sty कर रामचन्द्र कौ भक्नि करो । जैसे नव के ges मे नव का we नदी घटता, azar SY जाताहे < €!€ aa Res HZ को जोड़ने व < से € बचता हे। ष ae : aq a THF OWS J गुणन ०५ a tye करने ओर काके Uys Hr ओोडने ५४ ५+४९ से भो < aa नेसे < १८२१० ९२ €1†३।९ ओर १ उब्रीसको<। ९०८३-२ छः ०१२. Seg उन्तीसकी९। ९५५४ १९ ८॥१९.६ द , €° € +०।€ शोर १ उन्तालिस की€।< + ५४५ नरैर 9 See at < दद्यादि acy दिषीय ar | 89 WE अगुन खर सगुम समुभत उभय प्रकार | चाये रावे श्रापुं भल तुलसी चारु विचार ॥ २९ ॥ भव का WE (९) श्रगन (ब्रह्मवत्‌) श्रोङ्कार के समान हे, खार Way (नव) सगुन राम के समान डे। ये देने मेद देखने के हे । ag: देनो ay एकरौ हे | भली ata विचार कर देखो, ता जिम प्रकार दूध मंसे पानो निकाल लेने से केवल दूध बच रहताहे प्रैषे हौ विषय जल को ढो दने से श्रात्मरूप रह जाता हे, वरौ भला EI श्रगन ATA मागे शरोर मगुन उपामना पथ हे । सुन्दर बिचारसे विषय को कोड श्राप को रख लेना Vel भला डे ॥२९॥ ofe बिधि ते सब राम-मय सुभ सुमति निधान। या ते सकल विराध ay भजु सब समुभ म श्रान ॥ ३० ॥ दस प्रकार सब राममय ममम कर, हे afguial म 48 ! सब विराध काटो ओम्‌ राम भजा, Be सबका राम से दूमरा मत जाना | Bo I राम कामना-ष्टीन पुनि सकल काम करतार | याही तं परमातमा अव्यय HAT उदार ॥३१॥ रामचन्द्र सकन मनोरथ रदित रे परन्तु मब कामें के कत्ता ई, हसो हेतु Be (पर मात्मा) परब्रह्म Are निदीष सब fant a रहित तथा उदार कते | जिम प्रकार लेहा खयं शरक्रिरौन S परन्तु चुम्बकके लगने सि उसमे श्राकषंण wie हेतो ₹ै, 4B S माया केयोमसे कामनाहोन रामक षटि श्रादि arate rea क्रि हतो Sn ae 8९ तुलसी-सतसद | ज कटु चाहत से करत इरत भरत गत भेद । का सुखद्‌ AE द्‌ खद्‌ जानत ह बुध बेद्‌ ॥ ९२॥ जा कुद Met ३“ सा करते ३५ र यद्यपि भेदन | श्रथात्‌ एक हौ रूप ई ते मौ (frees हकर) भरत श्रथात्‌ MATT का पालन करते हे" Mt (सद्रूप हे कर) इरत मंदार करते SI (लोगो की समम मे) feat ar za Iq feat Ar ga देते ह" परन्तु पण्डित ओर ae जानते ड कि जोव कमेवश दुखसुख पाते ` परन्तु परमात्मा किसो के दुःख सुख Fe नदीं देता ॥ 82 Ui सन्त-कमल मधु-मास कर तुलसी बरन विचार | अग-सरवर तर भरन-कर STAG जल-दातार।॥ BQN (जग-सरबर ) संसारखूपौ सरोवर मं (सन्त-कमल) साधुजन कमलपुष्य के सदृश रै", जब ये (मधु-मास कर) चैतेके खय किरणें से सुखने लगते है" ता (बरन) रा-म ये दोनों Vat दस्त नच्तचरूप शो HAIG कर SE पोषते S । कमल के (भरन-कर तर) श्रत्यन्त Draw करनेदारे (राम दोनों वणक) (जल-दातार) मेघरूप जानना चाहिये ॥ श्रथवा, जगतशूपौ तालाव म के (कमन भरण कर AT) कमलो के पोषण करनेशारे किरणवाले दछयरूप राम (रा-म) टन aut का जानना | श्रथात्‌ BARI हे साधुरूप कमलो के खिलाते द ॥ ३२॥ wa fafe मा जाहि विधि प्रगट तीन कर भेद । ` साच्िक-राजस-तामसहिं जानत हे बुध बेद्‌ ॥ ३४॥। दितीय aa | 8९ faa प्रकार दस एक dat में (सालिक, राजष, चार ताम) तोन का भद waz S (साधारण लोग दन्द भलो aia गद्दी षमभते परन्तु) ज्ञानो पण्डित भार वेद जानते र, उसो प्रकार राम नाममं WF Sr wa दोहे में करते Tn agi ता विधि रघुबर नाम Ae बरतमान गुन तीन। चन्द्र भानु अपि अनल विधि हरिर कहि gata ॥ ३५ ॥ aa हो रामचन्द्र के (राम) नाम में (सत्व रज चार तम) तौनेों गन वत्तंमान रै, चरर छ्य, चन्र Ae aA, तथा ब्रह्मा, विष्ण रार महे Nat देवता वर्तमान ह ,एेमा बुद्धिमान जन करते Tay WAG रकार अ-काररवि जानु म-कार ATF | इरी अ-कार र-कार बिधि मः मरेस fare ॥३६। sft का वोज र, ख्य WT चन्र का ARI तयाश्र विष्णु- GU, र ब्रह्मरूप, जाग म ASIST Vi दम प्रकारयेक्श्रां राम नाम मं वत्तमान S| गमायणम (रतु ama भानु दिमकर के) का S ॥ ३६ ॥ वन अग्यान HE दहन कर WAS प्रचण्ड र-कार | हरि अकार हर मेह-तम तुलसी aefe बिचार ॥ ३७॥ aaat विचार कर कते ह कि waa प्रतापो श्रभ्चिश्बद्प TAIT वनशूपौो BHA का जला दता F, भर हरि श्रथात्‌ wae अ-कार मेाद-मयाश्ूपो श्रन्धकाग के ay कव VAT इरि च्रब्दके 7 ge तुलसी-सत सदै 1 श्रथ ( यमानिलेनद्रव््राकंविष्णसिंहांशवाजिषु, श्एकादिकपिमेकेषु हइरिनाकपिक्ते fay) यमराज, वायु, TR, चन्र, य, विष्णु, सिं, किरण, घोडा, प्रएक, सपे, वानर, मेईक रार कपिलवणे ये (१४) gaara म लिखे डे" ॥ २७॥ बि-बिधि तापर ससि सतर जान मरम म-कार। बिधि हरि इर गुन तीनि के तुलसौ नाम अधार।र२८\ श्राधिभोतिक afta ओर श्राष्यात्मिक AAT प्रकार के दुःखो केः exh मकार MH हरण करता दं यदो मकार का (ad) areal जानना । रजागुण ब्रह्मा, स्वगुण विष्ण श्रौर तभेगुण महादेव इन MAT गुरो का एक WU राम नाम डे ॥ २८॥ भानु क्िसानु मयङ्क को कारन रधुबर ATA | विधि इरि aay सिरामनि प्रनत सद्‌ा सुख-~धाम।॥३९॥ राम यद्‌ नाम दये चन्र WT BY दन ANAT का (कारण) वोज कै श्रोर ब्द्या विष्ण wen तीनों देवों का भिरोमणि हे an sad शरणागता वा AMT AT मदा सुख दनेहारा F ॥ २९ ॥ गुन श्रमुपम सगुन निधि Geet जानत राम । करता सकल जगच का भरता सव मन-काम॥४०॥ तुलसोदास राम दष नाम के श्रतुपम We तना गुणं से परे att am दिव्यगुणयुक्र मानते जानते 21 सगण रो कर सव मारकाः बनानेहारा We सब के मनेरथ के पूणे करनेहारा ३॥४०॥ दिती सगं | ar a age सब बिधि अचल तुलसी जुगल Were । सकल बरन सिर पर रहत महिमा अमल HAT CN हलन्त रफ क्व डे श्रौर म का श्रनुखार मुकुट रै ये दोनों aq प्रकारसे wer 2° टन कं निर्मल att श्रनन्त महिमा सब watt के शिर के ऊपर 31 जां “विद्धि we’ पाठ रो, वशं श्रतरो का जानना Var श्रय कना चाहिये ॥ ४९ ॥ रामा-ऽनुज सहन बिमल स्याम राम-श्रनुहार | भरता भरत AT जगत के तुलसी लसत श्र-कार।४२॥ Ta ATA a का श्रकार राम श्रनुहार fan के ममान निमेण गुणयुक्त जग के स्वाम रामवद्रके कोट भार श्छामवणे भरत का खूप सेभता रे ॥ ४२॥ राजत राजस A-BAT वरद धरनि-धर Wir | विधि बिहरतु अजति आसु-कर तुलसी जन-गन पीर।॥४३ ( ता-श्रनुज ) श्रयात्‌ भग्तके कोर ws (धरणि-धर) रेष के श्रवतार लत्मणजौ वग्दाता ale (विधि राजमा) ग्जेगुण ब्रह्मा करूप सभित =, aie (श्रतिश्रासु-कर) aga The (जन-गन पौर) भक्त जनां के मम का दुःख (बिदग्तु) विशेष कर हरण करते Suse i हरन करन सङ्कट सतर SAT UT बल-धाम । मः ava अरि-दमन बर लखन-अनुज चररि काम।॥४४॥ (सतर संकट era करन) TN दुख को दरण करनेवाले बलके Tz att TU HOW मकार ALIS HANH FR siz are WR तुलसी-सतस | (काम aft) काम के शच मदादेव के श्रवतार (अरि-दमन) wan दे ॥४४॥ राम सदा सम-सोल-धर सुख-सागर पर-धाम | अज-कारन Hea नित समतर पद्‌ अभिराम Wey सदा सुन्दर शोलके धारण करनेवाले श्रानन्दमय ब्रह्मखरूप (श्रज-कारन) ब्रह्मा के भो कारण War Gary करने वाले (VFA) केवल सदा BAT (WHAT पद्‌) मम दो WaT के पदवले वा शवु faa दोनो कं लिये समभाव रलनेदारे श्रयवा Wass चरणधारौ रामह ॥४१५॥ हेानदार ay जान सब बिभव बीच नहि हात, गगन face करिव at तुलसी vga HATA ४६॥ भवित सब माथ रौ माय उत्पन्न Vat हे Baw ae a नदीं होता हे । तुलसोदास कते ₹हे कि कवृतर at warn मं fare करना कोन मिखाता हे | ्रभिप्राय यद कि जिस प्रकार कृतर श्राकाश में खभाव री से fare करते हे", Bat Da प्रवे भाग्य के अरुसार Daas के भागौ जन होते ₹े“॥ ४६॥ तुलसी via सिखे नही तन गुन-द खन-धाम | भखन fafefa कौने aes प्रगट विलाकह काम।॥४७॥ तलभोदास aed हे“ कि aaa से शरोर मे गुन why श्रवगुन avy etal | दस कामको प्रगट देखते et किं मयू का सपभकषण करना केर नीं सिखाता हे । श्रथवा (काम-भखन ) काम श्र्थात्‌ gia कोखा लेना watt को कोन सिखाता हे। लोग करते है fedta सग। ५९ किं mrad मदमत्त मयुर के मुख से काम गिरता रे, {9a wt aT कर मयुरौ को गभं TE जाता हे ॥ ४७॥ गिरत AWS-AYZ BWA जलज पच्छ WAIT | TAT FHA उपदेस केहि जात सु Tale अकास।४८॥ RAT एक प्रकार का पत्तो दाताङडै Ba ar ses गिरते हो qa a कर seat S| (गिरतश्रादि) श्रण्डके Bia गिरते (HEU HAH पच्छ) श्रण्डेके भोतर के AT जल से उत्पन्न TW QUA लाल कमलके सदृश सुन्दर wg बके HEH HA श्राता डे । aa WATTS का वा VAT कर श्राकाश म उड्‌ जाता डे, at cB (उडने कं लिये) कौन उपदेश दता F ॥ ४८॥ fafay faa जल-पाच बिच ्रधिक नुन सम aT | कव कवने तुलसी cas केहि विधि पच्छ मयुर ॥४९॥ जलपात्र (तनाव श्र।दि) म (स्र बिविध faa) खय के प्रतिबिम्ब कौ श्रनेक प्रकार चित्रकागे as ast कोई atzt के ममान किसने बनाय । श्रौर मयूर का Tat मन्दर पत्त श्रौर उष कौ रेषाश्रों का faa a किम aaa किम गौत बनाया॥ ४९॥ काक-मुता fae ना कर यद अचरज बड़ TNT | तुलसी afe suze सुनि जननि पिता धर जाय॥५०। कदल घर नही बनातो यद TT WITH क) बात डे) परन्तु उमका अशा Bea कौ मामथ हाते हो श्रपने मा बापके चर चला जाता दै, उसे (भाने के लिये) कौन उपदेश देता Fi wag रे कि Frew ५४ तुलसी-सतसई | ~ श्रपना AT कौवे के खोते मं रख Bal ₹ै, वरौ पालता हे, पर बडे हाने पर वद कोशल में मिल जाता डे We कौवे का are Zar डे | ॥ ५० ॥ सुपथ कुपथ we जनित स्व-सुभाव अनुसार। तुलसी सिखवत नाहि fag मूखक हनन मजा२।५१॥ (जनित) संषार मं जन्मे जोव श्रपने २ सुभाव के BART Far ait qa a wea ga । तुलमो aca हे कि विलार श्रपने बचेका मुसा मारना नदीं सिखाता ॥ ५९ ॥ तुलसी जानतु है सकल चेतन मिलत अचेतु | कीट जात उड तिय निकट faafe पढ़ रति Sayer aaa कते ई" कि सब लेग जानते हे" चेतन तरं श्रचेतन दोनेँ श्रपनेर arti से मिलते हे", कड़ा उड़ कर श्रपनो स्तौ के पाम जाता डे श्रोर वद्‌ विना (कामशास्च) पट उस से भोग करानौ हे॥ ५२ ॥ Vay सव आपत त्रिधा सेच करि जोन | aca fax तुलसी fara का उमेठत कौन ॥५३॥ जा रेनेवालादहेसा खभावदौसेराताङहे। दमम साच करना व्यथे हे। (दम म दृष्टान्त दते = कि) (कञ्च) मस्तक मे उत्यन्न Bai की dia Bt करा कौन एेठता S श्रात्‌ Ak नरी खभावहोसे STA हेतो Vu श्रयवा (कञ्च) को के फूल at ua at ` विकसित शोमा कोन सिखाता हे ॥ ५३२॥ | सुख चाहत सुख a बसत हे सुख-रूप विसाल। सन्तत जा बिधि मान-सर HAE न तजत मराल ॥५४। दितीय सग | ५४ ९। जिस प्रकार (मराल) राजस सद्‌ा मानसरोावर मे रता डे, Siz उसे कभौ नरी छोढता, उसो प्रकार जा जोव सुख area, बे सुख (aU सुखदाई श्श्रध्यान परोपकार श्रादि श्रवम्याश्रों) मे TEA Ged है । सुख का रूप sae उम का पाना (विशाल) बडा भारौ हे, श्र्थात्‌ सब जानते = fa किम काम से सुख हाता डे | २ दितौयाथं। श्राप सदा परमानन्दस्वषूप ष्टो कर भौ सुख पाने कौ CVE ATA SBT (सुख) HAA WAT मे (वमत) रहता ङे | जसे Ca मान-सरेावर के Hat नदीं STAT । श्रथात्‌ जोव परमात्मा का WEY I AT al ददाभिमाने दा दद कं सुव सेश्रपना सुख समभता हे, (मान-मर) यदि (मान) ददहाभिमान (खर करै) त्याग कर दे ते परमानन्द पावे ॥ ५४ ॥ नौति प्रीति जस ase गति सब कं सुभ पहिचानि। वस्ती हस्ती हस्तिनी देति न पति रति दानि। ५५। भोति wa att an san को गति इन का श्रच्छा पहिचान सब Hl Vat Vi (दम म दृष्टान्त) दस्तिनो श्रपने पति eat Ar बसो के बोच भोग नरो" ara दतौ॥ ५५॥ तुलसी श्रपने cee ते को AE रहत श्रजान। कीस कुन्त-श्रङ्कर बनहि उपजत करत निदान nye aaa करते ईं कि श्रपने दुख Taare के कौन नरी जामता। षन म बन्द्र AMA वा भाले के समान चोल ATI Tat के WET = ९, न bd e ar उपजते St vars Tava हे (क्योकि उनसे बन्दर्का दख ud तुलसी-सतसद | पाने का भय रहता S) । कुन्त शब्द, यदो कुन्ति का WIAA जान पडता हे, जिस का श्रथ we रे ॥ ५६ ॥ जधा धरनि सब बीज-मय नखत Bara निवास | तथा राम सब धरम-मय जानत तुलसीदास ॥५७॥ Sa प्रथो मे सब वोज ह" AIT सव ATA श्राकाश् मं हे“ Tat प्रकार राम सब धमी में रे*वा सब धों के रूप इ | Tar तुलसौ- दास जानते इ ॥ ५७॥ पुहटमी पानी पावकं पोनह माइ समाई । ता कंदं जानत राम ata बिनु गुर्‌ किमि लखि जाद्‌ ॥ ५८ ॥ जा रपौ जल श्रि wt वायु मे भौ (ममाय) aay उसको राम जानना चाहिये । परन्तु वद्‌ विना गुरू के (उपदेश) नदो जान पडता है । यदि ax सद्र मिले ait aat दृष्टि से लखावेतेा जाना जावे ॥ ५८॥ गुन AVA तुलसी सेद सगुन बिलाकत सेद्‌ | दुख सुख नाना भोति के तेहि विरोध तं हद्‌ Wye शरगुन ब्रह्म वदो राम हे श्रोर सगुण भो वदो हे, उसो के विराध से नाना प्रकार के BUGS हेति हे ॥ ve ॥ हर जथा रन जीति के पलटि ara चलि गेह । ‘fafa गति जानह राम की तुलसी सन्त सने ॥ ६०॥ दितीष सगं | ue Sa Arar श्ण जोत के वहां से चण कर ut far wa शै Vat प्रकार SAAT (GAS) मायारूपौ GAT भोत क राम को राह का जामते हेः श्रयवा प्रैसो हो साधु wat के लेह से राम कौ मति हे श्रथात्‌ श्रनेक श्रवतार से कर anal s Fa Mr दूर कर फिर श्रपने परम घाम का चले जाते Eli ६० ॥ परमा-ऽऽतम-पद्‌ राम पुनि तौजे सन्त सुजान। भे जग मह faerie धरे देह विगत अभिमान ।॥६१॥ ९ परमात्मा WRG, ? रामसय, श्रौर ₹ शानो शन्त लग, खे Mat एक हे“ जा aa Aer रंराभिमान हाड कर (HAA रेह माजधारण कर के) संसार मं विचरते फिरते Wen चौथो सद्या जीव कौ सदा रहत रत काम, बरहम न सन्तन राम रत निसि बास्र बसि वाम।६२। पले तोन सञ्ज्ना ब्रह्म कौ वणन किया, श्रव Ma का ree कहते डे" जा (गत काम) मव॑दा श्रपने मनोरथ WHT कामना मे लगे THA र वे जोव सञ्न्नरक हे । वे न ब्रह्मान ay Th न रामम परीति करते परन्तु रात दिन इद्धि ga wit att के वश मे ररते डेः get “aia से तन राम पद" पाटो, वां MAS aT WAT aT कर रामपड कोड एमा श्रय करना चाहिये ॥ ६९॥ सुख पाये इरखत waa Sina aes बिखाद | प्रगटत ava निरय परत केव रत विख-स्वाद॥६३। सुख पाने से प्रसन्न होति WT Cad तथा दुख पनेर aah रा बिलद्धाते है" (area) ननमते F (दुरत) मरते हे“ श्रौर केवल 8 ye AMa-ATaE | (बिख-खाद) विषय खाद मं तत्पर हा कर (मिरय पंरतं) नरक a गिरते हे“ वेदौ जोव दे) । स्ान्नारकस्त नरके निरयः, इत्यमरः॥६द॥ नाना विधकेा कल्यना नाना बिधकेसोग। छद्म श्रा अरसथूल तन कव हं तजत नहिं राग॥६४॥ श्रमेक प्रकार कौ कन्यना WE द्‌ःखगाक मे परे र्ते दै" (स्यल- तन) स्थल शरोर श्रथात्‌ जब जोते रहते हे" श्रौर (समद) भव मरने पर GH शरीर मे ररते है“ ताभी कभौ उन को (संसार. ङ्ूपो) राग नरौ डोडता, वेरो जोव हे ॥ eg ti जसे कुष्टी की दसा गलित रहत Sty ee faz wat गति Fast अन्तर ह गति रुह ॥ ६५॥ जसे कुष्ट राग युक्त AAS कौ देह खदा गनती रदतौ हे वरो दभा fare श्र्यात्‌ उसके वोय्य विन्द्‌ से उत्पन्न मके पुच श्रादि सन्ताने कौ श्रयवा कामो मसारो wae al eal eS कि va Rt ga दोनांँ देद गलत wea Sate श्रन्तर श्रयात्‌ gE शरोर के ZTUR Ss gat जन्मकेशरौरकोभो वरो गति रातौ हे। श्रागकं ste a तोनां प्रकार का शरोर गिनायादहे॥ ew जिधा टह गति रक fay कब हं ना गतिश्रान। बिबिध कष्ट पावहि सदा निरणखदहिं सन्त सुजान i ede खक स्थूल We कारण टन MAT मे खे देश कौ एक गति हानौ ₹े श्र्यात्‌ दुख बना हो रताद wt A gett गति नरौ Stay देशो fae श्रनेक प्रकार at Ha भोगते Beste दनक "कारण को ञान सन लोग देखते Fe] जनते BP aE facta ani | ५९ Tate जाने सन्त बर सन्तहिं राम प्रमान । सन्ति केवल राम प्रभु crate सन्त न BTA ON Be साधुजन राम को जानते ₹*श्रोर राम भौ श्रपने भक्त को जानते S AYR को केवल एकं स्वामौ राम FMT रामके भो (मुख्यदास) सन्त Hts We को नहो हे ॥ ६७ ॥ ताते सन्त दयाल बर देत राम धन Tifa | तुलसी यह जिय जानिकै करिय बिहि रति प्रीति। ६८ | दमो रेतु परम दयान्‌ माधु जन रामचद््र के (राम धम गेति) प्रमरूपौ भजन प्रकार wife का वर दते eae श्रपने ममम faga av Hes करके (TA a GAT A) पूरा प्रेम करना चाहिये ॥ ६८॥ तुलसी सन्त सु-श्रम्ब-तर फलि athe पर-हेतु। ये इतने पाहन wa वे उत तें फल देतु ॥ ६< ॥ तुलसो करते इ“ कि ary जन श्रामके सुन्दर ट्त डे“ जा gat के लिये फुलते फलते हे श्रवा पटल फुल कर साधु पत्त मे श्रागन्द ana St करश्रौरजे लोग नोच से पत्थन मारते हे बे उन्दं फल देते हे" । रूपक WHET Ei ee ॥ दुख सुख देना एक सम सन्तन के मन माहि । मेरु उदधि गत मुकुर जिमि भार भीजिषा नाहि॥७०॥ anpal के लिये ca सुख दोन एक ममान है“ जसे दपण में BAK, र सुमेर Ge दोना देख पडते हे" परग्तु वह न नले ` $ ` तुलसौ-खतसद्र | DS चार न भार से दब लाय। श्रथवा दपण म at प्रतिमिम्बित डे“ परन्तु दोनों दर्पण श्रलम हे वसे eg) oH दुःख सुख भय SAT मरह HT Wy TA SMe Foon तुलसी राम सुजान का राम जनावै सेद्‌ । रामं जाने राम-जन MA कव दु नहि ह इ।७१॥ हुलसो दास करते 2° कि जा ष्िदानन्द राम का जानता हे चार दूसरों के जनाता र वचो रामभक्र हे तरर दूसरा नहो । श्रथवा राम जो श्रपने का जिसका जनाते डे" वदो SE जान सकता चोर दूषरा नरो“ जान सकत ॥ ७९॥ से शुरु राम सुजान सम नही बिखमता-लेस | ताकी क्रिपा कटान रहे न कठिन कलेस ॥७२॥ (राम का HAART) वद गर्‌ श्रोश्रानन्दरूप राम के समान दस मे किसो प्रकार कौ योड भो विषमता wey’ S oa दयादृष्टिसे बड़ा भारो दुख वा जन्म मरण श्रादि GM भो नरौ TE खकला HOR गुर MAT VAM सुने निज करतब कर भाग | HVAT गुरु ACAI AC मिटे सकल भव-सेाग | ७३॥ (गुर BEAT) AE का कना वा उपदेश सुने We Pe भार अपनो STAT का भोग डाले (गरु कतव करतब करै) गर के HEA के श्रमुसार काम कर ते संसार SI Ga ce भिर जाय ॥७२॥ सरमा-ऽऽगत तेहि राम के fae fea धी सिय-रूप। आ पदनि धरं उदय भये नासे भ्रम-तम-कूप॥ OB ॥ दितीय समं | qt TE WEY उस राम GE को UTE a जाना जिन्दो ने सोतारूपौ बुद्धिदो ईहे जिषके चरणां कं yaad घर में qa के wnt से ANTS कूप के श्रन्धकार का नाश हेता ङे । जां “जा Tat छर उदय भय” पाठो वहां जिस राम कौ स्तोरूपो ale कं wren धर मं उरित शमे से सब भ्रम इट शाता हे एेषा श्रथ करमा ॥७४॥ ॐ जा पद्‌ पाये पाश्ये अानन्द-पद-उपदेस | सन्सय रग नसाय सव पावे पुनि न कलेस ॥७५। जिस चरणु का पाने खे सखिदानन्दशूपौ वस्त॒ aie का उपदेश मिलता ई, षन्देशरूपो सब रोग नष्ट रा sat चार फिर क्ते नहो“ राता NOV मेधा सोता सम समुद्धि गुरु fata सम राम, तुलसी सिय सम से सदा भयेड बिगत मग वाम vod (मेधा) बुद्धिरूपो सोता जौ को समभ जर विनेक के ममान रामक श्रपना गरू मान कर मन्तलाग मोतारूपौ बुद्धि से बम मग) संसार के विषय कुमागे से Ez जात दे" nea wife मध्य NARA गत तुलसी रक समान | at सन्त wey मुभ जे अनित्य गति wa ॥७७। anfe बोच ओर wa Mat (श्राद्धिक) श्रवम्वाश्रांम जा एक प्रकार खमभाव से रहते है“ (न a a al a सुखम सुखौ Bre गर्न दोनोंवेबोच मं उदास) वेरो मङ्गलदारङूप साधु डे" चरं १२ तुलसौ-सतसद्र | जा (afar गति) सवेदा बदलने हारे नश्वर संसार मे लोन ES दूसरे (सन्त से) भिन्न हे" । श्रोत्‌ “बालस्तावत्‌ क्री इासक्रः तरूणस्तावन्तरणोरक्रः | टद्धस्तावत्‌ चिन्तामग्नः परम ब्रह्मणि काऽपि न ल्मः" ॥ श्रवम्था के विकारो से रदित षदा एक रस साधुजन रहते डे“ । अराँ श्रनौतगत पाठ रो वदाँ श्रसन््रागे से रहित Tal WY करना ॥ ७७॥ we TE उपासना परा भक्ति की रीति | तुलसी यदि मग पगु धरे रहे राम-पद प्रीति॥ ऽद्।॥ यरो UE सेवा F Ae उत्तम भक्रिकीरोतिङडेजओर दस मागे से चलने से ग्रोरामचन्द्र के चरण मे Ma रहती ई ॥७८॥ जतजा aay gy है जाई जट है are quat बिनु गुर देव के किमि जाने कहू कई ॥ ५९ ॥ जा wet से श्राता ₹े वद वो“ जायगा परन्तु विना ae देव (के जनाये) का ME किस प्रकार जान सकता डे 1 agua के मत से केवल वस्त्रां को श्रवस्या भर बदलतो 2 के पदाय नष्ट नर" होता, वहो बात दष दरे मं करौ डे कि श्रनेक श्रवस्था में बदलते ९ फिर यष्ट जहो से श्राया हे agi asa जाता डे joey अरप-गति खे Atk अवनि से पुनि प्रगट पताल | का जनम कड मरन श्रपि cafe सुमति रसाल ॥ ॥ ८० ॥ (Hq) जल (खं गत) श्राकाश्नमे प्राप्न S Bre वरो afar Are दितीय सगं | qu पाताल में प्रगट हे, सा ca ar कां sen Mr कां aca ze श्रथात्‌ wey ह भेर ce बातके बुद्धिमनेों मंज ae Sa amend डे" जल कं दृष्टान्त मे श्रात्मा कौ नित्यता दिखलादं डे He जल श्रपनेश्राधार के कारण नौला काला श्रादि दिखन्ताता हे परन्त॒ हे एक रो, प्रमे हो श्रात्मा तमेगृण श्रादि के सङ्गमे विहृत हता ता भौ निविकार डे॥ ८०॥ सङ्ग देख ते मेद्‌ श्रस मधु मदिरा मकरन्द | गुरू-गम ने देखि प्रगट पूरन परमानन्द ॥८१॥ (वरो श्राकाश शमि पाताल मे TRAE) जल सङ्के दषस कों wea करो मदिरा चार करौ" पुष्यरम शाता हे परन्तु नल वहो हे पेसोरो गति श्रात्माकौ रे (FRA) ARTA शान वा उपदेश मे जाना जाता श्रथात्‌ जिन्दं गुर्‌ जानत ईं बे पृण परमानन्दरूप Wa AI देखत इ“! दसो प्रकार जोव भौ Hay यानि मे पडता Saar et जाता ATT उम नाम प॒कारा णाता हे) टम के aaa के लिये जल का दृष्टान्त दिया हे ॥८१॥ डाबर-सागर-करप-गत भेद TATE देत | है रके दूजा ae aa श्रान के हेत ee जल (वैसाहो जोव) THY Tart भोरे परन्त गदा ममु धार gat जसे era A रहा प्रेषाद्ो दिखाई fear Br यजे देत) दो शना है खि ्रान के हेत) दूमरे (श्रपने श्राधार) फे कारएरेहे। Tar St a St भौ समभना चाद्ये ce | १९ तुलसी-सतसङं | ग॒न-गत नाना भाति नेहि प्रगटत कालिं पा । जानि जाड गुरू ग्यान तं बिन जाने भरमा ॥ ८३॥ (गुन-गत ) श्रनेक गुणों से श्रात्मा पक्त मे सत्व रज तम atat से UM वद HAST WAT समय पा कर प्रगट Etat ह Be गुरुदत्त ज्ञान खे जाना जाता है ओर बिन जाने लोग भटकते फिरते Van तुलसी ae फलत फरत sife विधि arate पाव | तैसे हीं गृन-दख-गत प्रगटत समय खभाव ॥ ८४ ॥ जसे समय पा कर ठक्त फलता फलता इ IVS) गुनदोष मेँ लन सभाव समय पा कर प्रगट हाता हे, श्रयवा गुण से दाष रर दोष से गुण भौ समय के सभाव श्रमसार निकलता ङ ॥ ८४॥ दाषखहगुन की रीति यह जानु ्रनल गति She | तुलसी जानत सो सद्‌ा जेहि विवेक सुबिसेखि ॥ ८५॥ जसे श्रि कौ गति दिखातो ३ (श्रयेत्‌ चौँरीसे ले कर gat जितने बड़ कोटे जोव दे सव मं परिमाण के श्रनुसार fy रह कर WA TAA WT प्राण बचातौ हे OTA लग आने से नगर का नगर राख बना डालतो हे) aa St aw Ary ate A A AaB fe श्रवस्थानुमार दन मे Wak Fs हातो Bi यर fre का विव fata रै वरो सवेदा जानता इ ॥ ८५॥ गुरु ते आवत ग्यान उर नासत सकल विकार | जथा निलय गत दीपते faze सकल अधियार॥ oe | दितीय सगं | १५ गुर के उपरेश्च से मन मेश्नान Brat चार सब प्रकार का विकार मरा जाता हे जसे घर में कंरोपक से वं का षब अन्धकार दूर ट जाता हे ॥ ८६॥ जद्यपि safa श्रनेक सुख ताय ताम-रस ताल । सन्तत FIA मानसर तदपि न तजत मराल To यद्यपि ताल (भोज श्रादि) मेजल चार कमल का श्रनेक सुख रहता हेता भौ इम मानसरावर का कभी नो Riza Ad रो षक जन सत्सङ्ग AT रामपद का HAY AY’ ANIA करते ॥ ८७॥ तुलसी Area तोर-तर्‌ मानस wea बिद्ार | fara नलिन श्रति मलिन जल सुरसरि इं बढ़ियार ॥ ॥ ट्ट | ag ma से (सुरमरि हं जल) गान भो तौर कं cat ar ATE, कमल का नष्ट कर्ता जरर रति als रहा कर मानस ₹म का van देता हे wat प्रकार श्रनेक उपद्रव भौ भजन Me साङ्ग महां तोभो न asa चाहिये | Taal, गङ्गाजलमम पवि सब शस्तो का मत aa वितकं युक्र Gan कर (मानस इस विडार) मागसरावर काम afm म रमण करने हारे eat ar बिडाग्ता Cte 8 8 Az का मागांम श्रवनम्बन कर उसो में रमन Icey ना जल जीबन जगत का परसत पावन Na | Gea सा नीचे ठरत ताहि निबारत कोन ॥ ८९॥ जा जल संसार का farted S We aw ara म पवि्है बह HLS A re (गिरता वा) stat हे उसे कौन Ti) एन क 9४ ११ तुलसी-सतसई | एक Tet मं aim श्रलङ्धार Fl जलशूप परमात्मा जानना ar विकारौ जौवात्मा डा कर प्रकति Are गुणो के सङ्ग श्रादि दोषों से दस संसार में बन्ध गया हे उस के Sern किन हे ॥ ८९॥ at करता है करम के से मागत नहिं आन! बयनहार Olas सेद देनो लड निदान ॥९०॥ जा भिस काम का करनेदारा F वौ उस के फल का भोगता है दूसरा नदो" जिसने जा नाया हे ae सेई aa Aaa अपना दिया पवेगा॥<०॥ राबन राबन AT WAT देख राम AT नादिं, fas हित श्ननहित देषु किन तुलसी आपुहि माहि a ॥ ९१॥ रावण कं कम्‌नेरावणका ATI TH a TA का FS भो देष भरो“ रे श्रपना fea safer श्रपनेहोमंश्रपनेरोसेरोताद विचार HT ला Wea Olay राम भजु राम-पद्‌ देख राम सुनु राम, तुलसी समुद्य राम कं अष्ट-निसि यह तब काम।९२॥ राम चन्द्र का स्मरण करा उन्हे भजा उन का देन करा भार गुणानृवाद्‌ सुने दिन रात राम के विषयमे चिन्ता करना यदौ तेरा BA TNE I रज अप BAe Hite नभ Ay जानत सव ATE | यह चेतन्ध सद्‌ा समुम्‌ कारज रत दुख हाद ।९३॥ feata सगं | ¢s (रज) भमि, नल, aff, वायु, are दम पर्चा का ATT अङ जागते हे" भनार यह Ma चैतन्य रे एेमा रौ समभाना शारिये केवल काय मं फसने के कारण TE भो Hy El कर दुख हाता Buea निज faa बिलसत सा सदा बिनु पाये उपदेस | TE-U UTE सुमग UT FRA VTE RAT ॥९४॥ विना उपदेश पाये ay श्रपने किये का भोगता हे परन्तु भव TR मुर्‌ मिलता हे ते (उस के उपदेश से) ae उत्तम मागे पर चणलता रतो aa am Ga aT gS जाता हे ॥८४॥ सलिल सुकर सानित aE मल अरु Ais aaa) बाल कुमार TAT जरा है सु समु कर चेत Wey जल से श्रन्न उत्पन्न हाता S जिसके भाजनमे नरम प्रक्र गार नारौ सं ओित राते तब दन दोनों केयोागमे गभ arg Etat FZ, फिर Ste मन ओर हाइमय रो कर वह (जल) बालक HET A संसार मे अन्म लेता हे फिर कुमार तब युवा fara बद्ध श जाता शे, ध्यान दे कर ममभनल्लो रार चेत करा ॥॥८५॥ रेसहि गति श्रबसान की तुलसी जानत Bq I at aay गति जानि जिय श्रबिरल हरि चित aque di दसो प्रकार श्रन्त को गतिका कारण जान कर्‌ श्रयात्‌ ATU के श्रनन्तर श्रपने TY के श्रनुसार फिर mH oT कर दुःखादि कं भाग ® afl aN a Bat कर षदा VIA मन मं श्र ar GTA करा ५८६॥ qs तुलसी-सतसद्रं | जानै राम-षठरूप जब तब पावै पद सन्त । जनम-मरन-पद त रदित सुखमा AAT AAA ICON लब यदह जोव रामके खरूप का जानता हे तव HH मरण से रहित निर्मल re श्रनन्त परमशेभा WT साधु कौ पदवोका USAT हे ॥<७॥ दुख-दायक जाने भले सुख-दायक भजु राम | अब ह्मका सन्तार के सव बिधि पुरन ATA NECN दुःख देनेदारे विषयाभिलाष (शरोर) के भलौ भांत जान चुका हे रमन! (तो श्रव TA कोड) सुख देनेहारे Piura Fr भज। TAGE हमारी BT संसार भर कौ कामना के पूणे करनेषहारे Qi उन कौ दया से श्रता MT संसार्‌ के जाल से Era ery आपुदहिमद्‌ का पान करि श्रापुहि हात BA | तुलसी fafay प्रकारके दुख उतपति एदि हेत ॥९९॥ श्रपनो मदिरापौ कर BIG el Waa State Tat A दष जोवका WAR प्रकार का दुःख सहना पड़ता हे। मद संसार्‌ का भ्रमजाल 2 जिस म Sa a से फसते Wn श्रथवा जिस प्रकार केर ama मद पौ करं श्राप बावला बनता हे वरौ दभा दख Ha At > कि eed मदिरा पो कर संसारो विषय के सुख aM? fra कारण श्रनेक दुःख कौ उत्पत्ति होतो हे ॥९९॥ ST at करसि विराध इरि कह तुलसी का ATA | "से तं सब नहि श्न तब नारक हति मलान ॥६००। दितीय सगं | dé faw 8 a es & साथ वैर करता ङे वर दूसरा कौन हे बता? (सच ga at) सा खव तब) वे स्व तेरे रौ FF भ्राम गरहौ) वमौ दूसरा नहो" हेता BY Tay हाता Vi va Tre a PH} WEA मत का वणेन V1 सब स्थानम श्र रहे Hz जगत केवल भ्रम GIS टस प्रकार जबदा पदाथेरौ नदो Var WIA MT पराया कौन हागा?॥ मच पृदधियि ता किसो से भौ विरोध करना उचित महो ₹े ॥ oon खाहसि मुख जहि मारिकंसातेा मारिन जाय, कौन लाम faa a बदलि त तुलसी बिख खाय॥१०१॥ जिषका मारने B Aq Sat दे वह gan a नरौ मारा जाता at किस लाभ के लिय एक विष से बदन कर दूमरा विष खाता हहै। विषयसुख at reer भार क्रोधलेभश्रादि का ava ® ga हातारेसातामनुग्यसे रोका et नरो जाता परन्तु विष समान विषयसख के भागसे ट्ष चाहत हे जा Ha डे ॥१०९॥ केष द्रोह श्रध-मृल & naa Ar aE नाहि द्या धरम-कारन BAN के सुख पावत नाहि ॥१०२॥ क्रोध, टेष पाप के मन्न हे यह कोन मरौ “जानता चरर दवा धमे का मल कारण र एमा ममक कर कौन नरो सुख पाता WHT क्राधादिक से aq BA दुःख WIT दयादिक से मुख पते ड, जहां “at दुःख पावत ताहि” पाठ हा वहो (नाहि) उष चे दूमरे य्‌ Ge TAA AATE | पर दया करने से कौन दुःख पाता हे? श्रयात्‌ कोई नो पाता एसा WY करना ॥ ९०२ ॥ मने बनायो हे सदा समुद्च रहित हा aa शरन वरन केहि कामके बिना वासके फुल।॥१०३। दूति श्रौगाखामितलसो दासविरवितायां उपासनापराभक्ि- निरो ara fate: सगेः॥ यर बना FATA FEA WaT हे परन्तु TAT She रेने के कारण दुःखदार हता Fl लाल रङ्ग किस कामका जा उष फुल मे कुद गन्ध हो न रहा । यद मनुव्यतन सुन्दर हा करभौ दया धमे रहित दा तो सुगन्ध रौन लाल फूल के समान प्रयोजम रदित Zea ॥ दति विहारिक्तमंचिक्तरोकायां दितोयः a7: ॥ [ 5 | अथ वतीय सगं। Oe जनक-सुता दस-जान-सुत GTA-LA अ-म-जोर | तुखलसि-दास दस पद्‌ परसि भव-सागर गौ पौर ॥१॥ जानक (दस-जान-सुत) दशरथ पुज राम (उरग) wate सामो गेषावतार aU (श्र-म-शोर) *श्रकार्‌ भरत चर मकार श्त at at ary कर (पांच ये श्रथात्‌) राम लद्छयण भरत WA ओर Sat Ht TA पारांकंदा ९ पैर मिल कर्‌ द्र पद Bal इन zat पदां के स्ये करने से संसार रूपो स्मुद्रकेदुःखसेदटते रहै, भक्त लेग wa dare रूपौ समुद्र को At जाते हे“ gear श्म दश मं fret एक पदकपनेखेभो दुःख eee हे । मकार का श्रं fara से wan शिव कं श्रवतार Bi जरां “दस पद परखि" पाठ शो वहं टन दर्णोकंपरषोंको देख कर श्रथात्‌ ध्यान से मनम स्मरण कर एेसा श्रथ करना ॥ \॥ तुलसी तेरो राग-धर तात मातु गुर देव । ता तजि atte न उचित oa रुचित श्रान पद्‌-से॥२। aA श्रपने मनसि ar Bre भक्त जनां से कते ङे कि रे few: तेरे माता पिता, गु भोर दवता (राग-धर श्रनेक राग ई" उन ae eee ~= ~~~ ~ ~ ---~ ~ ow oe: — © अकार ar we wea feata सगेके ४्२वरदेरम्‌ममोरम्कारक। खय Wap uy व दाहम Twa रो कड aay । ७२ तुलसी-सतसष | मे सारङ्ग एक ह) सारङ्ग धतुष धारौ राम ओ 2 उन का कोड कर (ताहि श्रान पदेव रुचित न) तुभे र के पद कौ सेवा में रचि करना उचित नरौ हे ॥ २॥ तरक-विसेख-निखेध-पति-उर-मानस सुपुनीत | बसत मराल ल-रडित करि तेहि भज्‌ पलटि भिनीत॥३। (तरक विमेख) उ-यद wat dea म विशेष तकं करने मँ श्राता कै चेर (निखेध) मा-यद निषेध करने मँ श्राता डे Hat मिल कर उमा श्रा (उन के) पति शिव जौ कं arent पवि मानसरोावर में (मराल) ea बमत! 21 (तरि ल-रहित करि) खस को लकार रहित कर (श्रथात्‌ केवल मगा वना) (भिनोत पलि भजु) उसे GHA से राम BM उन का द्धं मस दहा कर भज ॥ द॥ सुकला-ऽऽदिहि कल देह एक अ्रन्त-सदहित सुख-धाम^। दे कमला कल मध्य कौ अन्त सकल सुख-धाम॥४। (शकर श्रन्त सरित श्रादिदिं एक कल रे) WH शब्दवाचक सित- शब्द कं श्रादि भरर श्रन्तमे एकरमावादोतेा सोता सुख धाम eto फिर कमला लद्मो श्रयात्‌ रमा शब्द श्रा उम के (मधय मे कल 2) aa मा कनौ माचा मध्यमं दिया ता राम em इस प्रकार सोता राम ख्व Bai wt घर बना | yea Star Hy Ar खब सुखो का मल HE कर सोतारूपो fw करने का उपदेश दिया फिर राम शब सुख क धामका ग्रहण Ara HT यद Whe Ea ~ ~~ ---- ee ~” ~~~ ee * qimat— “afta” cfa—Ed. ॥ zara सगं | | श कि पले मोताशूपो auf करेगे ता सब सुख को खानि राम श्रवश्य fara ॥ ४॥ वीज धनञ्जय रबि सहित तुलसी तथा* मयङ्क | प्रगट तषा नहि तम तमी सम चित र्त श्रसङ्क ॥ ५॥ (धनश्जय) श्रप्नि का वौज (कारण) र । (रषि) य्य का वोज श्र उसो प्रकार (HAR) चन्रमा कावोजम। दन तौनोंक याग म गाम यह माम बना । जिमकं मनम गाम नाम प्रकट हा वों (तम तमो) श्रन्नानदपो WAHT वा AA Ay तमो WTA Ae मेारकूपौ गात ayy दातो । वद मदा शान्त चित्त तरार निडर ग्दता रै उम का fat प्रकार का भय नहो ear श्रभिप्राय ae कि aff, qa te चन्द्रमा य तोनां प्रत्य दवे Aw इनक प्रतापको सबको जनते € a टन कं वौज रामम OE ee कारण एमे प्रतापौ गम के भजनेषारे कं पाम Atay द्‌ःख श्रा मक्ता FP ॥\५॥ THA कानन केक-नद्‌ बन्स बिमल श्रबतन्स। गज्जन पुरहित-श्ररि age जग-हित मानस-इहन्स॥ £। (काकनद्‌ कानन THA वन्म GAA) कमल बन कं श्रानन्द रने are निमेल gaan कं षण, (मदन पुरहित-श्ररि ग्न) सेना के मरित 8% Hwa रावण का मारनवालें श्र ममार क हित कारक * विसो ९ veal म सहित weg पाठ रे उम का भो चयण्यदो डे । 10 ७8 तुलसी-सतस | ary जन वा शिव जो के (मानस) ATEN मानसरावर के इष (gery वाम कगनेदारे) [ATTA को भजन। चाहिय) ॥६॥ जग ATE SMG W राम-चरन इव तीन | तुलसी eq विचारि fea इ ae मते प्रवीन NON (जग) मंसार से HUTT रे कर रो श्रथात्‌ HI २६ STG के ae ae ओर ale gat A Ts UH We S aa हौ तुम जग A ate ds दे कर farm vet We Ta चरण a (क तौन) ६२ तिरमठ के ममान श्रथात्‌ चरण सेवामेलौन Tet | तुलसो दाष aea डैः कि यदि मनम विचार कर दखो ता यद मत श्रत्यन्त उत्तम हे वा (wale) साधुं का यद मत SUS a-fen ga नव इनि गुनी अनुज तेहि कौन | जेहि हरि कर मनि मान इनि तुलसी afe पद्‌ लीन ॥ ८ ॥ (क) मस्तक (दिग) दिशा ९० दशर मस्तक वा दश्रानन भरर दून श्रधात्‌ दशका दुगुना बौम। न्तत श््द से यहां (दस्त न्त श्रथात्‌) हाथ लेना (कोम दाय गावण को मार्‌ कर) उस के FAH HF भाई विभोषण का गणो राजा (कोन) बनाया | अर जिन्होंने इरि कर वानरो के दाथ खे (मणि मान इनि) मणिका श्राद्र कम किया, लङा काण्ड म “मनि qa मेलि oft कपि ददी” ay चोपाई प्रमाण हे तुलसो दास श्रपने मनसे कते हे" कि एसे UATE के पद म (लोन) लगा दह ॥८॥ wate सम । 9) सिला साप मोचन खरन इरन सकल TTS । भरन करन सुख fafe-ac तुलसी परम किपाल॥९। गौतम षि कौ स्तौ श्रा पति श्रापसे yar ek at at खख बडे शापके डने हारे सब प्रकार्‌ कं जाल के दूर करने वाले । (fafgat भरन) saat Daa कं az हारे सुखदायौ चार श्रत्यन्त दयालु राम के भजो ॥ ९॥ मरन विपति-हर धुर धरम-धरा-धरन बल-धाम, सरन तासु तुलसी चहत बरन SHA” अभिराम।॥१०॥ (मर न) जा नहीं मरते HUTA देवता उन कौ विपन्ति wa Taw को मारने हारे श्रयवा वार्‌ ATA BT HUTT HITT केदुख को (सुक्रि दे कर) दूर ATA वाले धमक भार तथाष्टौ के भार को धारण करने हारे By ae की वान तया जिम कं सब (वण) wat (श्रभिगम) सन्दर STB गमनामकौशगण तुनमो- दास area डे“ मकल वरण श्रथात्‌ मचगाचर जात सबके THO BTA हारे भो काई २ श्रथ करते डे*।॥१०॥ fren ate गयत afaa पति पति तुलसी बेर । arg बिसुख सुख श्रति विखम सप्नेह्‌ हासि नभर ॥ ११॥ (faen ser ofa area ws) शकुनि तिम a ate का श्रस्तेर- ५ किसौ र weal 8 wfew gis ewe cat sree, eg तुलसी-सतसदै | ag Ure (रयत श्रथात्‌) परजा शब्द के ठतौय श्रचर-जा-को लेकर कुजा बनाना । कुजा श्रोत्‌ Beal से उत्पन्न जानक कं पति राम तेरे पति हे“ जिम से विमुख श्रभक्र होने से सुख का मिलना ast (विषम) कठिन Si दष लिये षपने मे भो इख से भोर (्रथात्‌ गाफिल) श्रसावधान न रोना चादिये॥९९॥ faa काल राजिब प्रथम area निश्चय माहि | श्रादि रक कल दे भजहू वेद बिदित गुन जाहि ॥१२। केल श्रथात्‌ ANTS शब्द के TAC VATU, We राजिव कमल वाचक शब्द ACTA का प्रथम श्रर-म, दोनो कं मिलने से राम BUA वाहन वाचक-जान-शब्द का श्रये जानना BM श्रयात्‌ गाम को निश्चय कर कं जानो! (area माहि एक कल दै) जान शब्द के प्रथम मे एक मात्रा-ऊ-द कर, रामजू-वना, Tet के भनो faa at गण वेद मे प्रसिद्ध Su श्रवा कल न्द्‌ क क मद-लगा- कर के बना जो जान-क WaT म जोड़ने म जानकौ BAT | जानक ओर राम Al Hat Var At श्रथ कोईर लोग करते Puri बसत जहां राघव जल-ज तेहि मिति गा जेहि सङ्ग। भज तुलसी तेहि अरि-सु-पद्‌ करि उरू पेम TITHE I राघब (जल-ज) मनो जरां बसता हे श्रयात्‌ समुद्र कौ मिति मय्धादा-जिस के सद्ग से नष्ट BE उख रावणके श्रि शतु WAH सुपद्‌ सुन्दर चरण के! (करि उर प्रेम श्रभङ्ग) श्रपने मम म wafesy प्रेम- तोय समे | ७ क्र के भजे (Ger तुलम श्रपने मन से श्रथवा लोगों से कते ह) खेतु बंधने से समुद्र को HVT का जामा स दोहे मे स्ट ङे-करि GIy wea कुसल तुलमो मम wee afear घटो सुमुद्रको शावन बसे GTS ॥९९२॥ way तरनि-्ररि-श्रादि कह तुलसी VTA | पश्चा-ऽऽनन लहि पद्म मथि गहे बिमल मन सन्त॥१४॥ (तरनि-शररि-श्रादि) यके wa राके श्रादि वण-रा, wh (श्रात्मज) काम के श्रन्त श्रत्तर-म-को ले कर, गाम Bar faa at (पदुम मयि) कमल रूपौ aq को मथन कग के (पञ्चानन) शिव जौ ने (लदहि) पाया। sat गम नाम रूपौ मत को (मन्त) साधुजने ने श्रवा निमन बुद्धि साधुश्रो ने यण किया रे ॥१४॥ अनिता सेल-सुता-ऽस को तास्‌ जनम AT Ta | तेहि भज तुल्लमी दाम हित प्रनत मकल-सुख-धाम॥१५। aa सुत हिमालय ga मेनाक (ताम्‌ श्राम) उम [का म्धान समुद्र (तास्‌ कौ बनिता) उम कौ म्तौ गक्राजौ के HH aT (ठाम) wma वामन रूप विष्ण कापद्‌) aa aT F तुम्नमौ दामके मनवा site भक्त जनभजो, क्योकि नख भक्तां कं मुका व्‌ पद घर Vi भज्‌ पतङ्ग-सुत-अआआदि कद सत्युश्जय-ञगि-अन्त । तुलसी पुस्कर-जग्य-कर चरन-पान्सु मिच्छन्त ॥ १६ ॥ (पङ्क सुत) खय के पुज केण राघय उष के श्रादि का WET et तुलसो-सतसई । रा-श्रौर श््युश्रय भिवे श्रतु कामके श्रन्त का श्रसर-म-मिख कर राम श्रा) राम के जिस पद के धूलि को इच्छा TAT चे नं यश्च करने हारे ब्रह्मा जो करते SV उष को भजा ॥ ९६ ॥ उलटे तासी तासु पति सौ हजार मन सत्य | रुक-सन्य-रथ-तनय कड भजसि न मन TATA OM तासो weg को VAST करने से मोता श्रा उम के पति गम। सौ ent, ल्त, उम मं मन शब्द के जोडनेसे शेष के श्रवतार qa । WT एकं पर शन्य दने से दश श्रा उम मं रथ लगाने से दश्ररथ बना। तिस के पुर भरत Wan! टन चारों सवशक्रिमान पुर्जो को हे मन ! क्या नीं भजता ८ ॥९७॥ दुतिय चितिय हर का wate तेहि भनु तुलसी दास । का कासन श्रासन किये सास न लहे उपास ॥ १८॥ प्रथमाथे। (दर तरितिय दुतिय) मादेव कं शितिकण्ठ श्रौर गजारि मारो से aan श्रौर दूसरा wat लेना दोनो मिला कर कचरा श्रा श्रथात्‌ जल-सम्‌द्र से उत्पन्न aa} रूप जानक जो, (हर का aafe) महादेव जो का श्रामन चमं काम श्रौर (HAI) Gat वाचक इन्दिरा शब्द का तोसरा श्रत्तर-रा-मिलाने से मरा जिसे vasa से राम BA! तुलसो दाख aed हँ कि सोता राम को भजो। (का कासन श्रासम करि सासन लह) AM AR WT का Alea कर्‌ के (बिना राम नाम लिये ) संस aa खो वरन (उपाष) कर ॥ हृतीय स्म i ef दितोवाथे। (हर का सन दितिय fe) महारव काम्वान वाराणसो ष्टके दूरे श्र्त-ग-सार हरामन चरम शब्द के (afta) तोखरे श्ररर-म-को मिलाने से राम बमा। हे मन,जो रामकोभजोतो (का सासन saa किये, उपाम सासन AE का) दशके WEA पर Gz aT जपपूजा करने We उपवासषूप ब्रतादि कर Te का सामन करने से क्या लाभ 2 gala दन का कुङ्‌ प्रयोजन मीं *॥ ९८॥ आदि दुतिय ्रवलार क भजु तुलसी न्विप-अन्त । कमल प्रथम WE मध्य सह वेद्‌ बिदित मत सन्त॥ १९॥ दुतिय कुम श्रवनार का श्रादि-कु श्रौर (चिप) राजा शब्दके श्रनत wat जाको ले कर-कुजा-जानका Bt । why (कमल नाम) राजोव Wee का प्रथम रा OWT BATA बोच का WET म इन दोना के योगसं राम BAM! ae सोता गमपदवेदम ufag = uty माधुश्रोका (मत) दृष्टदव GI FI टस को vam भजना चारय । श्रयवा जो जन ata Ta at भभतेरैषेष्ो मेरे मतस्े वेद के प्रमिद्ध्‌ माधु जन ₹॥१९॥ जेहि न गनेड aa मानस हू सुर-पति-अरि-भव-चास।। जेहि पद्‌ सुचिता-श्रवधि-भव तेहि भज्‌ तुलम दास ॥ २०॥ ° शतोयाथे । इद (-इरि-विष्य) a area. wat. होरा | ei a Feata -शा। इर (-महारेव) का Srey यर्म (@tiq चमे), चरम a कतौय-म। दरा+म-राम ॥ (5. ALG. † छरा "धौयास, पाठ डो Tet र्का अथे करना चाहिये ce तुलसौ-सतस | (सुरपति aft भव त्रस जेहि मानस | न गनेख। TR TT रावण से उत्पन्न भय का जिस रामचन्द्र ने श्रपने मन मेमोन साचा श्रथात्‌ कुल रावण का नाश कर डाला (शएचिता श्रवधि जेहि पद्‌ भव) पविता कौ सौमा गंगा जौ जिस (विष्णु) के चरण से eae ; उत्पन्न डद“ F aaa दास wa मन वा um जने से aed ₹ कि उम राम का AIT | Re I नेन करन-गुन-धरन बर ता बर धरन बिचार । चरन सतर तुलसी चहसि उवरन सरन अधार।॥२९।॥ नेत्रकेदाराजाकानके गुणका धारण करता हे ्रथात्‌ ASAT मप उन म (वर) We MT TaN कें श्रवतार लत्प्ण उनसे भो वग ओष्ठ (विचार धरन) विचार का धारण करनहारे ओ्रौगामकेचरणकेशरण का MINT AAA Wie et Her (उवरन Eta) यदि (दस Harz से) बचना वा Af पाना वादो ॥ २९॥ भजु हरि anfefe बारिका भरि ता राजिव-अन्त | कर ता पद्‌ fara भव-सरिता तरसि तुरन्त ॥ ₹२२॥ (बारिका श्रादिहि इरि) वारिका शब्द के वाचकं श्राराम शब्दके श्रादि wat al STU ATH राम रदा उन्हे भजा, फिर (राजिब) नाम समो उसके श्रन्तम (ताभरि) ता श्र्तर को भर दिया तब मसौता बना। (ता पद विश्रास कर) उन कचरण मं विश्वाम्‌ करे (भवष-षरिता तुरन्त तरसि) at dare रूपौ नदो शत्र तरोगे श्रथान्‌ भव सागर से ्ुटोगे ॥.२९॥ तीय सग | च जठ-मेाहन-बरना-ऽदि कर सह were चित चेत | भजु तुलसी सन्सार-श्रहि नहि गहि करत WAM जट an का मेहित ATA Te (राग) के TZ aT कार eye चित श्रथात्‌ मन के भोश्रादि वेको मिलश्रोता राम Bw | श्रयवा श्वल हे few fae ar स्तौ वामा HK WAT VET मकालोाताभौ Ua ee रामको a aT भजा (मिं संसार्‌ afe गहि श्रचेत करत) नीता संमार रूपो मप BE पकड कर TAA करेगा |) ९२॥ शरमर-अ्रधिप-बारन-बरन FAT अन्त अगार | तुलसी इखु-सह-राग-धर तारन ATA श्रधार ॥ ₹२४॥ श्रमर श्रधिप देवपति इन्द्र (बारन TET वरन) कें हाथो रावत का दूमरा WIT TT (MNT HA वर) WE वासक धाम शब्द कादूषग WIT Hl तुनमो कहते हेः कि (दृएवु) वाण कं (मह) खित (राग धर) ava घनुषवाण (धर) धागै गम तरे तारणतरण सुकरिदाताकमभ afm दाता ओर (श्रधार) WaT Hy ९४। जो उर-बिज चाहसि श्यटितितो करि घटित उपाय | सुमनस-अरि-श्ररि-बर-चरन-सेवन सरल सुभाय।२५। यदि (उबिज श्रमिक पुच) aye का चाहो (at करिति उपाय चरित क) तो We et उपाय करा । Bawa carat के श्रि रावण तिम के aft राम के (वर) We चरण के (बज खभाव से) निष्कपट हो कर सेवन करा ॥ २५॥ 11 दूस संसारमें रामको Ry भार कोई ते हे नही (सियाराममय सव जगजानौ)। बिना राम का पचाने कोट याग्य वा राम तुद्य aa ay et BHAT S| भगण जगण पदों से श्रादि ओर मध्य गुर किस दो शब्द के ले सकते हे" जसे सप्रति रोर उदास श्रादि youl तुलसी त-गन-बिहीन नर सदा न-गन के बीच । तिनि य-गन कैसे ayy परे स-गन के कीच।॥ ७६्‌। 7 a . Is st तगण श्रन्त मं जिष कं एक लघु वणश्र्थात्‌ सन्तोष | Bete ह, bette नगण fra मे NAT लघु वणदोंश्र्यात्‌ नरक aT करम। 1 1 $ $ any fra a wife मे लघ हो श्र्थात्‌ सुमेधा | अ its any faa A भ्रन्तमएक गुरू दो श्र्यात्‌ जडता | Geet दास कते हेः कि तगण सन्तोष रहित नर मनुव्य सदा भगण मरक के बोच गिरते षे, उन को यन (सुधा) gay १०९ तुशसो-सतस | किस प्रकार fra सकी ह वे ते सदा सगण मृता रूपो ate मं फे हे ॥ ७६ ॥ इन्द्र-रंवनि सुर देव-शखि रकुमिनि-पति सुभ जान। भोजन दुहिता काकं अलि HAT AYA समान WON दस एह मे उदादरण के सदित गणो" का निणेय इहे । जिस मे At गरु हो उसे aay करते हं FS (उन्ररमणौ) दन्दो | जिस म AAT लघु वद नगण ETAT छे जसे (सुर) च भर । जिसके श्रादि मं गह वह भगण जसे (Zale) नाग \ » " लघु वह यगण ” (रकुमिनो पति) विद्र । हून चार गण को कवित्त कौ श्रादि मं प्ररभदायक जानना Aes | इ | si जिसके मध्यम UA गुर दो वद जगण असे (भोजन) Br $ i 3$ » ” एक लघु ” रगणजेखे (काक-दु दिता) कोकिला। ॥ । 3 ” श्रन्त में गरु ” सगण Te (Cafe) भवरा। ५9 एका $$ ” श्रन्त मे लघृद्ा ” तगण Fe (सुख) ्रानन्द्‌ | हून चार गणे का कविन्तकौ श्रादि म aH समभना चाहिये | मगण नगण भगण यगण शभ | जगण TAT सगण ATT ANA 16७] का हित.सन्त, अहित, कुटिल; नासकं का ऽदहित, खभ, UGH ATSA; TVS, WT ATSH, FAA, दा भ५७८॥ तीय सगं | १०५ दितकारौ कौन हे ? साधु जन । हानिकारक कौन डे? कपरी! नाश भर श्रदितकारौ कौन Sp लेभ। ys करनेदारा कौन है} सन्ताष | दुखददर कौन? wz शरीर का सुखानेहारा कौन > (कोभ) उर वा चिन्ता ॥ ऽ८॥ सदा न-गन-पद-प्रीति जेहि जानु न-गन-सम atte | ज-गन ताहि जय जुत रहत तुलसी सन्सय नाहि॥७€॥ tit ; नगन श्रथात्‌ भरत के चरण a fra A Mf सव॑दा TEN 2 उसे भरत के समान जानना AMSA! जा जगन श्रत्‌ विचार वा विज्ञान युक्त दे उस का सदा जयाता दस मेक भो सन्देह नदीं रे । श्रवा कवित्त कौ श्रादि में a दायक ओर जय दायक नगण चार यगण का जानना चाद्ये Tar भौ श्रं कर सकते हे*॥ ७८ ॥ भ-गन-भकि कर्‌ भरम तजि त-गन स-गन बिधि दाय, स-गन-सुभाव HHT तजे भजे न TSA ATA Soy Stl Wa Gee SIT कर भगन (माधव) श्रथात्‌ रामजौ कौ ahs करो । (त-गन बिधि दाय) सन्तोष करने वी श्राज्ञा ङे श्रथात्‌ सन्ताष करना चाहिये, परन्तु (म-गन स-गन सुभाव समुमि तजा) सगण ममता का सगण ASAT का खभाव जान कर STS TT | इनका तज कर राम भजने म्‌ AT रोष न होगा श्रथवा भम SIS कर भक्ति बद नेदृष्रे भगण के aaa at श्रादि में लौजिये परन्तु any ar 14 tog तुलसौ-सतसंद | सगण षो के समाने WA खभाव जाम कर त्याग कौजिये era | श्रादिकेा BAF Vtg TET tt Se लिङ्गज-असन स जुक्त ज्‌ विहरत तीर सु-धीर । जग्य-पाप-मथ-चान-पद्‌ राजत लौ रधु-बौर॥ ८१॥ सींग से जा उत्यन्न हो उसे wea करते 2 seq was साड श्रसन Hat का स्थान जिस का उसे प्रङ्गज-श्रसन करते डे" TTT शर BA! उसशर का (जु जुक) अश्रक्तर से युक्त Ber at सरथ श्रा । यज्ञ शब्द से मख लिया र पाप शब्द से मल लिया दभ दोनेँ at (मय) युक्तं किया तब मखमल श्रा | मखमल डे पद- चान जूता faa का उसे यञ्ञपापमयपदचाण कते ₹ | (सु-घोर) बड़ WT (सख रघु-वौर) शेभावान रघुवंशि्ों मं ओष्ठ बौर रामचन्द्र (सिङ्गज-श्रसन स ym य्‌ तोर) सरय्‌ कं तौर (जग्य पाप भये पेद चन) मखमल कां जता Tet (विहरत) Tee FF ~ Rv (TSA) शोभ TE दे ॥८९॥ बान-जुक्त जु तट निकटं बिडरत राम सुजान। तुलसी कर-कमलन ललित लसत सरासन बान । GR ॥ (बान) थर मं (ज़ GM) ज मिलने से acy aT! ate तौर पर श्रतिन्ञानवान NATH Wet HATE erat में सुन्दर धनुष- बाण लिये लते Ba शोभ रहे डे" ॥ ८२॥ इती सग | Loo fag मेचक सिर-रुह रुचिर सीस तिलक ay TE: धतु सर गहि जनु afga-ga तुलसी लसत ATE, ८३ ॥ (खिद्‌ ) कोमल (मेचक) श्याम बाल शिर पर विराज ररे हे“ र wana तिलक दिये ररौ श्कुरौ किये shea मानँ धत शर लिये विजुलौ युक्त चन्द्रमा के मान शोभ ररे ह । भू, धु, तिलक aH, Ta क्रो चमक बिजुलो, wrt मेध भर मुख चद्भ ङे सयाच जनना TST ८२ ॥ wea कमल बिच बरन-जुग तुलसी अति प्रिय जाहि। तीन साक मह जा भजे लहे तामु फल तादि॥ ८४। (G8) मराल का मध्य Vat रा चार्‌ कमल का मध्य म मिलाने खे राम Bar) रामके Nat लाक a जा प्यार करता sit भजता हे वष उस भजन का फल (संसार रे) सुक्रि पाता डे । श्रथवा तीरों aa A ot फ़ल यन्न श्रादि से मिल aaa > सा aa भजमेवाल्ञ का.मिलता डे ॥ ८४ ॥ श्रादिमद्ेअन्तहमदहैमध्यर 2 तेहि जान, अनजाने TE जीब सब ARN सन्त सु-जान ॥ ८५ | श्ादिमे मजर श्रन्तमेंभौम 2 र मध्यमे रहै श्रात्‌ सरम को जानो । जब तक लोग राम नामका मरम र az जाने तव तक @ोव जड़ हे । चर लव सब भेद, समभ तब सुन्दर प्त देए जति डे" ॥८५॥ १०८ तुलसी-सतसर | श्रादि दहे wat Saat = हसा बात। राम विमुख के हात हे राम भजन तें जात॥ CS af मंद मध्यनेंर र श्रन्तमें NTT WT दरद सा यद्‌ दरद पौर wa Tas जा लेग विसुख रे vat at रोतो ई ओर भजन से Ret नष्ट हो जातौ डे ॥ ८६ ॥ ललित चरन कटि कर ललित लसत ललित वन-माल्। ललित faaa fan अधर सह लाचन ललित निसाल॥ ८७ ॥ श्रो राम के चरण श्रति सुन्दर कमर WT हाथ दारौ दतज्रर होढ श्रत्यन्त मनोहर AIT नेच बडे शोभ रदे हे | (Gaal, कुन्द, मन्दार, पारिजाता, र कमल से बनो) बनमाला गले मे विरानतौ दे ॥ ८७॥ भरन हरन अव्यय अमल सहित faa विचार | क तुलसी मति अनुहरत देहा ACT HUTT IST Hat HAT श्रनखर ओर fears है केर लोग TS awd MT ~ AU ark eta ई" श्र्यात्‌ feat var at मिलाते Ane दरते feat श्रत्तर का निकाल लेते A दस सगं के Fei में fear vars Ae को विकल्प कर के श्रथात्‌ दो aa a से एक श्रय श्रपनो र्‌ बुद्धि के श्रलुखार करते ह" परन्तु दों का श्रथे श्रपार S BT प्रकार का ` हो सकता Si श्रयवा (भरन) GAR, रस, भार काव्य के गृणादि gaa समे | Cog ~ Ay से पुष्ट करना, (हरन) दुःश्रवल श्र्लोलव श्रादि दोर्षो का निकालना, (wea) पुनि वा एव श्रादि का प्रयोग (विकस्य) गुर का aE AT लघु को गर मानना इत्यादिको का (श्रमल) We विचार श्रपनौर बुद्धि के श्ररुसार लोग करते हे परन्तु दाँ का श्रये श्रपार Bier बिसिश्टा-ऽद्य-ऽलङ्ञार मह सङ्धेता-ऽदि सु-रीति। कहे बहुरि अगे कव समुद्वव सु-मति बिनीति।॥८€॥ Rage के aya (विशिष्ट) fang विलक्षण (सङ्केताऽऽदि) कूटरचना श्रादि कौ सुन्दर रौति S उसको wer Ss Are aa करेगे उन को सुभिक्ठित नच We af gma लोग सममेगे ॥ ८६ ॥ कोस अलद्धित सन्थि-गति मेची बरन बिचार। इरन भरन सु-विभिक्ति बल afafe अरय निरधार॥ €०॥ (केश) शब्द के ae Ae लिङ्ग का बतानेवाले ग्न्यकाज्ञान, (श्रलद्धार) शब्दो Mt Wat का श्षण, wat? ओर weet का परस्यर मिलना, (बरन a) कौन २ wat श्रापस म सवणे 2 विभक्ति के feet RH लोप ओर प्रगट रहने waa feat शब्दम से किसो wet at निकाल लेने Are किसोके वोच दूखरा वषं Sar देने श्रादि के बल Are श्रबल का ज्ञान निस कवि के दाता 2 वौ ददा के श्रये का निश्चय कर सकत Zeon we तुलसी-सतसद | देस काल करता करम बुधि बिद्या-गति हीन। ते सुर-तरू-तर दारदी सुर-सरि-तीर मलीन । ९१। देश WIT खान काल समय कन्ता Ta बुद्धि विद्या श्रादि विषयों के बाधसे रहित aaa इस TEN कल्यटृक्त के तते श्राकर भो (दारदौ) Tat हः Bre aE A FH ANT aT A स्के मलोन हे" दूस ग्न्य को न समभाने के कारण उन के कुढ लाभ नदीं हे ॥ ern देस काल गति हीन जे करता करम न WaT तेऽपि ्ररथ-मग पग धरदिं तुलसी खान-समान।॥९२॥ जिन को खान समय का बोध र कर्ता wa AT ata नदीं वे यदि काव्य के ay कने में लगे तो तुलो wea है किवे निश्चय कुत्ते के समान हे“ विना Bre विचार waa B"H ce ॥ अधिकारी सब Bratt भले जानिवे मन्द्‌ | मुधा-सदन बसु MCE चौथे अथवा चन्द ॥ cs | we THQ श्रधिकारो भो सव श्रपनोर्‌ श्रोसरौ wey श्रवसर वा पारौ पर भले Are (मन्द) GTI St जाति डे" । दस संषार नं भले श्रवसर्‌ पर faa भो भले हेते चार बुरे पर ge a जाते ह| इस मे दृष्टान्त देते हे कि चन्रमा यद्यपि (सुधा बदन) श्रटत का ACS Atay वसु wea (८) स्थान पर area” शार TS खान ABI राजि पर मन्द्‌ ( खराब) फलष्देता हे । ढतौय सगं | १९१ चेर (मन्दे) शनेखर बुरा ae St aT भी पांचवें श्रादि खानः पश एभदायौ रोता हे । ८९ के दाह मे श्रथं न जानने वाला के निन्दां N Aw कर यदा दिखलाया कि वे श्रधिकारौ हा सकते Bea नर बर नभ-प्तर बर सलिल बन-ज far बिन्नान। सु-मति सुक्तिका सारदा खाती कहि सुजान॥९४। (नर) मनुर्यो मे (बर) Fe जा age Be (नभ) gary मे (सर बर) सुन्दर Draw हे उस के (सलिल) जल मे (बन-ज) कमल रूपौ विनय नस्ता चर विशेष ज्ञान हे तरार श्रच्छौ बृद्धि हो सोपडे। स यद कविता बृद्धि सरखतो रूपौ सातौ नच्च धा कर उत्पन्न हेतो दहे एषा ज्ञानो लेग करते 2") मेतोरूपौ कविता नररूपो ar से vag दतो डे) इषमे रूपक श्रलङ्गर we हे ॥८४॥ सम दम समता दीनता द्‌ान दया-ऽऽदिक रीत। STS SUA हर BUS दर उर बर बिमल विनीत ey (wa) tia मन REMIT ale AI त्याग, (दम) ara विषय ey रस aa fe से नेच sh नाक श्रादि दियो at श्रपने aw मं रखना, ( समता) सष Mai मं द्र are हे जानके सम बुद्धि रखना, (दौनता) श्रपने को गोचा समम गुरु श्रादि से Ae दहना, देना, दया करना, WS व्यवहारो से जिन, (ata दुरत) Wat a kar विसुख रहना श्रादि wage दूर होते." चरि (दरद) दुःख ARR तुखसी-सतसद | तथा (दर) STAT (हर) हरण ary et कर्‌ के (उर) श्रन्तःकरणश निमेल चर (विनीत) नघ होते, वे साधु है" शार उन पर्‌ hae रूप राम कौ TH दया दतो हे । जदं “दख afta” पाटा वहाँ दोष भार पापको हर Ast Bt (द्र) दर डालता qe कर नाश करता, Vat Hy करना चादिये॥ ९५॥ ) धरम-धुरोन सु-धीर-धर धारन बर UT AT | धरा धरा-धर सम अचल वचन न बिचल सु-धीर।९६॥ श्रय । धरम-धुरौन, सु-धौर-घर, WAT धारन वर, धरा, धरा-धर सम श्रचल, सु-थोर बचन न बिचल | धमे के भारक धारण करने में Se बड़े धर्मो, बड़े Gaara, दूसरे के दुख को Var लेनेवालों में बड़, (घरा) wh पर (धरा-धर) पबेत के समान श्रचल, जिस कौ स्थिर बात कमो विचल मिथ्या नीं होती VST जन भक्ति के योग्य HA By ९६ ॥ चेतिस के प्रस्तार मे aca मेद्‌ परमान। ACE सु-जन तुलसी कहत या बिधि तं पडिचान॥€ oy 2४ Stim wet (केले कर क्त तक) के भोतर सब श्री का भेद बणन किया हे। gaa दास कते ई" कि wer विदधान साधु जन! श्राप दस रौति TER द्वारा ca मेद के जानिये, यहां aaa बण लिया हे रोर इन्द में प्रस्तार होता डे उसके az tam दनते 2 ॥ ९७ ॥ तीष सम | १९४ aq विखम Fava सु-तर सतर राम कौ रीति। तुलसौ भरत न भरि हरत भूलि हरह जनि प्रीति et Il (क बरण बेद) क-वगं का चौथा wat घ Are (बिखम) age तोन उस का श्रन्तिमि नले कर दोनों को मिलने से घन Sai घन मेघ संसारम जल को भरता ह रर फिर va जलको wel STU करता वैसे रौ मेघवत्‌ शाम बणे ua कौ मेघं से भो (सुतर) सुन्दर Bit (स-तर) Whe Ha 2 कि भक्तों को सब देते हः भार फेर नदीं लेते ca हेतु wa करभो रामके चरण से श्रपनो Nia को न (दरड़ ) घराश्रो । जहां “सु-तरू" पाठ St वदाँ उत्तम क्त श्रर्थात्‌ कल्प Ta के समान उदार ay करना चाहिये ॥ ९८ ॥ बन ते गुन afe जानिथितातेंदिग दिग ata तुलसी ae जिय समुकि करि जग जित सन्त gata ॥ € € ॥ बन शब्द्‌ केन Ae (तोन गुन) सव, रज, तम Mat गुणे मेँ रज का र्रर तमका म लेकर Nat को उलटा प्रिये तो मरन Bat प्रथम दिग नाम aw Be दूसरे दिग नाम दिश छद । ९० दिशा म मरन जान कर रार ca मरन at मम मं vam होनेवाला समभा कर वृद्धिमान साधु जन संसार्‌ को जोतते इ“ श्रथात्‌ विषय भोगादि संसारो कामो Wear होन 15 ate तुलसौ-सतलङ | et कर tar % wor मे लगते दैः जिसके aca dart सेतर जाते हे" vet “ब्रातं गुन aly जानिये aa दिग fe जा कोर खाधुश्रां के उपदे ओर खङ्ति से उत्तम बिचार पष्क कम करता का fafa वाणो जे श्रतुसार चलता ड ANGE पाता हे । जरां ९२६ तुलसो-सतसद | “दुख सुख दे करतार" पाठ हो वदाँ श्रपने बिभवमें भ्रूल कर लोग जैसा कम करते हहे" वादो (करतार) ईर (दुख सुख-द) उन्द दुख AL सुख देता डे एसा श्रथ करना श्रन्का STAT ॥ ९५॥ रसना ही के सुत उपर करत निरन्तर प्रीति। तेहि पादे सब जग लगड समुद्य न रोति अरौोति।॥१६। स्वेदा लोग (रसना St के सुत उपर) वेद शास्र श्रादि बाणौ मं परम करते = (तदि पाद सब जग लग) ओर्‌ बिचार करते ९ Tet के पदे सव संसार लगा डे परन्तु (रोति श्ररोति) किष कमे करमे कौ विधि जार किंस का निषेध डे इसको नही सममा । श्रभिप्राय यद किं शास्त्र के विचार से जब टीकर HA A WIA St AT सुख हा सकता डे परन्तु Jae ज्ञान हाना कठिन हे। जहां “करत करन तर परति" पाठ दो agi कान से श्रत्यन्त प्रेम करते हे" Tar श्रये करना चाहिये 1 ९६ ॥ माया मन asa भनि ब्रह्मा far Aa I सुर देवी श्चा ब्रह्म लौ रसना-सुत उपदेस ॥१७। (arate नह्य ते ब्रह्मा faq मदेस at देवो सुर्‌ मन लौः रसना सुत BITS भनि) | मायाके खामो WHAT a लेकर ब्रह्म विष्णु faa Fa} za ओर जोव तक वाणो के पुत्र अर्थात्‌ भन्द्‌ के उपदश को करते इं रथात्‌ चन्द्‌ के दारा षब लोग Goan देते हहं । श्रभिपराय यई चतु सगं | १९७ कि वेद धर्मास्त पुराण श्रादि सव शब्दमय हे Wr देव वि श्रादि के उपदेश से भरे = | दितोय श्रं, माया मन रैर श्रादि सब (रसना-सुत उपदेश भनि) बाणौ के द्वारा वणेन faa जाते हे जदं “माया मन जिव व भनि" पाठ हो वदां जोव दण TA ब्रह्म का श्रंण हे परन्तु मन माया उस का मन माया के श्रघौन श्रा दसो दोष से जोव शूला Tar ब्रह्मा विष्ण मेश देव दवो सन वेदादि मं (भनि) वणेन करते दः Tar श्रथ करना । यद WY AT पाठ ves से उत्तम हे ॥ ९७ ॥ बरन धार बारिध AAA AT गम करद अपार | जन तुलसी सत-सङ्ग-बल पाये fare विचार ॥ १८। ्रत्तररूपो समुद्र (अगमः) BAT AUT BATE चेर (्रपार) अरन्त हे (का गम करद्‌) दस का पार्‌ कोन पा सकता ह? (GAT लन) सोता राम THA कं भक्त लोग (सत-सङ्ग बल) सञ्जनं को स्ति के बल से (विषद fray पाय) निमेल विवेक पा कर (गम RIT) पार पाते SV ॥ ९८॥ गहि सु-बेल विरल समुद्धि बहि गे अपर हजार । काटिन वृढ खबर नहिं तुलसी कहिं विचार ॥ १९॥ (बिरलद समुमि सु-नेल गदि) TEA याड लेग दस बाणोरषी समुद्र को समभ कर दष का पार पाये हं saat (Teles सु-बेल गहि) Lee तुलसी-सतस्द | MAY सुन्दर समुद्र के az पर ves ड । (श्रपर दजार बहि गे) परन्तु र दूसरे दक्ञारोँ लोग जिन्होंने शब्द समुद्र को नरी समभा | वे बह गये (Quel बिचार fae खबर नहिं कोटिन Fy) geal दास मे विचार किधारे कि asrtt aaa विचार arte दस शब्दरूपो समुद्र म ब कग मर गये पता म लगा श्रभिप्राथ चह कि srautfa, क्रियाकलाप, जपतप कर्ते२ THAT मर fare, पर भ तरे | परन्तु भक्तिरूपो दृटढ-नाव क श्राश्रा जिद्लो"नेकौ,वे alae) बन्धन से कुट गये दस से रामभक्नि करना-हो ATT का सदन उपाय डे ॥९९ ॥ सबन सुनत tea नयन qua न विविध विराध | कह केहि ate मामिये afe विधि करिय ware ॥ २० ॥ (सबन सुनत) कान HAAS al कान कं दारा लोग सुनते डे" (नयन देखत) ia देखत Zar sig a द्वारा लोग देखते F gig के दवारा सुन नदीं सकते WT कानके द्वारा देख नदी सकते (तुलत न fafay विराध) टन देर्नोँ इद्धि्योम जे श्रनेक प्रकारका बिरोध डे रा मिरता wet कदा किंस कार मानें कनको aT Rig ar ait (afe बिभि ware afta) किस प्रकार धौरज ut वा ज्ञान oa) श्रमिप्राय ae कि सुमते = कि सव्वव्यापौ परमात्मा एकर चार देखते ङ कि सन का श्रात्मा श्रपनौ २ WAT मं श्रलग श्रपने are tat दन दोनों मसे किसे मानें ॥ चतुथं सगे | १९९ Arena | श्रवण शब्द से भति TT वेद्‌ लेना AT मं VE सुनने न ara कि यद श्रात्मा ब्रह्मरूप डे । नेच से श्रनेक बिरोध देख पडता डे श्रथात्‌ Bie जल का विराधो 2, fae erat at Gah Far मे कौ विराधिनौ भर सपं vga cane wat मर सव za wie दवयोनिया a भौ विरोध दख पडता डे। करिये किसको मानं ? चर क्या कर बोध Ut Re खवना-ऽऽत्मकध्वन्धा-ऽत्मक बरना-ऽऽत्मक बिधि ata | चि-बिध सबद अनुभव अगम तुलसो HELE HAAR L (quay aia तोन बिधि सबद कदि) तुलसो दास श्रथवा सोता- राम wee के भक्त कवि लग तौन प्रकार के शब्द कते डे, HY एक जे स्पष्ट साथेक सुन पड, FAT ध्वन्यात्मकं TAT जा gue खदङ्गादि के शब्द के समान ददो र तौसरा श्रकारादि शरसा से बना वणात्मक | इन तीनों प्रकार के शब्दो का (श्रतुभव श्रगम) ज्ञान होना व॑हत कटिन हे ॥ २९ ॥ कत gaa ्रादिहि बरन देखत बरन-विद्ीन | द्िस्यमान चर-अचर-गण VHS एकं न लीन ॥ २२॥ mag । कदत सुमत alate बरन, देखत वरन बिोन, TSA चर श्रचर गन Vale, एक लोन म । कष्टने सुनने मं सब के प्रथम कारण श्रधात्‌ ब्रह्मा श्रपनो देवजाति वा ब्रह्मा a ST HM प्रन्तु(रेखत) देखने Far उनके Wy चरिते को area 17 {Re तुलसौी-सतसदै | मे (बरन-विहोन) गुणरौन देख पडते ह । firey Bre शिव कौ whe से श्रल्यशक्रि टो कर करै वार भ्रम शार ate मं पड ह । श्रवा (आरादिदहिं कत सुनत बरन, देखत बरन fasta) श्रादि ag कने . वा वणेन करने मे र सुनने श्रधात्‌ गणातुवाद के सुनने मँ (Aza) श्प वा रङ्ग युक्र S श्रथात्‌ सगुन हे परन्तु देखने से वा faa से ङ्प र्ग रहित श्रथात्‌ निरगेण ड । dare म जा दर Tat दो प्रकार के जोव देख पडते हे" सा सब भौ (एकर एक न लोन) श्रापस A विधौ nara ₹े ॥ २९२॥ पांच भेद चर-गन बिपुल तुलसी कदि विचार | नर पसु स्वेदज खग fae Fy जन मत निरधार।॥२३॥ (quar बिचार बिपुल चर गन, नर, पसु, खेदज, खग, कमो पाच मेद कद बध जन मत निरधार) | ठलसोरास विचार कर सम्पण (चर) चलनेवाले Hat मे मनुख, ug fae श्रादि, सखेदज श्रथात्‌ Stet aie पसौने से उत्पन्न होनेवाले, TN, WE AS मकोड़ पाँच भेद कते 2 जिन को पर्डित लोग Waa मत से जानगे ॥ ९२॥ अति विराध तिन महं प्रबल प्रगट परत पहिचान श्स्यावर गति HAT नही तुलसी कदि प्रमान॥२४॥ (तिन we भ्रति प्रबल विरोध प्रगट पिरान परत) उन सव चर्‌ लोर में बडा बलवान विरोध प्रगड रख पड़ता हे gg मनु अतु सम | १११ ame wnat at भारते annie पश aqat को मारते wit गिद्धादि पलो ats मकोडं श्रादि को खाते दिखाई पडते BI (स्थावर गति श्रपर ANT) aT श्रयात्‌ टच्तादि कौ भौ दूषरौ गति wel देख Usa श्रथात्‌ AS Tat का कोटे Tal को दबाना श्रादि बिरोध ca Hat afaa होता डे तुलसोदास दस का प्रमाण कर के श्रयात्‌ सच सच करते S ॥ २४ ॥ रम राम ब्रह्माण्ड प्रभु देखत तुलसी-दास। बिनु देखे कैसे are सुनि मानै faqara ley tt (तलसो-दास प्रभु राम राम ब्रह्माण्ड देखत) कबि तुलसो-दास श्रथवा भक्त लोग Gat (राम) के बिरार Seas Tae F ब्रह्माण्ड देखते & (कोउ faq देखे सुनि कैसे बिसुश्रास मामे) को बिना देखे सुन कर कैसे विश्वास कर्‌ सकता Fh २५॥ वेद कषत जह लगि जगत तेहि तें ्रलग न श्रान । तेहि अधार बेबहरत लखु तुलसी परम प्रमान NRE I (परम प्रमान) Fz कत नं लगि जगत तंहि श्रधार) दस भिषय H बड़ा भारौ प्रमाण वेद्‌ कता है कि जरां तक लाक 2 wa विराट रूप राम के श्राश्रयमे हे"श्रथात्‌ सव का श्राधार वो डे (तुलसौ wg तडि ते wear न तहि श्रधार बेबहरत) तुलो दास देखते ar चार wat से कते 2 कि aa aa देखो कि शमे जगत विराट रूप राम से श्रलग नीं हे" उतनी मे श्रा्रय से जगत का. वहार चलता रे ॥ RE ॥ ६९२ तुलसी-सतसङ | सरखप GNA जाहि कहं ताहि सुभेर TEST | HVS न सा AANA ATT तुलसी fara विवुञ्च ॥ २७॥ जिसका सरसा देख पडतौ डे श्रवा सरसारप श्रन्तरात्मा ` सममः पड़ता रै उष के लिये Gag yaa के समान महान विशट WEY राम Ta ईहे" श्रथात्‌ ae देख पड़ते (तुलखो से श्रबुध HES न समुभत) Tal दास कते डे“ वद VATA कदने श्रथात्‌ समभाने पर भो Ae Banat वड बिलक्तण मूख हे श्रथात्‌ जिससे उत्यन्न श्रा डे पाला जाता है उष के ae! पडचानता ॥ २७ ॥ कत MC समुद्यत MIT गहत तजत कु ANT । करे सुने समुद्यत नही तुलसी fa मति बौर ।॥ २८॥ कता कुदं Mt S चरर समभता ge र है श्रधात्‌ वाणी खे कता हे किं संसार श्रसत्य डे परन्तु छस में नाने योग्य परमेश्वर का न समभ कुद ओर हो व्यवहार को Gar समभ लेता डे, र रो ge aes करता रचरो कुक त्याग करता F mei संसारौ माया थार संसारके बिभवकाजेा व्यान करने योग्य इई“ ग्रदण करता S ओर परमेश्वर Ae उस के नाम शान्ति वैराग्य श्रादिका जा यण करने के AT त्याग करता aaa दास कहते हे" कि बुद्धि का एसा कोटा हे किं कितना को सुनो पर मरी सकभता श्रयवा सुनो दै (Bla) वेद को कता डे OTR उस के.ठोक्‌ सारांस को महीं षमभता ॥ ९८॥ चतुथं सग | aR देखेउ ate अदेख इव WA देखेड विसु्रास | कटिन प्रबलता ATS की जल कड परम पियास।॥२९॥ जा बात ae जोव देख रदा डे उसे श्रन देखो सौ करदेता डे श्रथात्‌ देखता हे कि यद संघार भर हमारा WAT श्रनित्य र नश्वर डे" परन्तु दन पर इतना कम ध्यान देता हे किं माने श्रन रेखा कर देता ई ओर fra बात को नी देखा उस मं निश्वास करता हे (श्रथवा रामरूप परमेश्वर को दख टि म श्रपने प्रभाव से फैला श्रः रेवता F at भौश्रनदेखासादहो जाता) चोर ुटम्बादि से भावौ सख जिस के दसने नदीं देखा हे उस मे विश्वास करता डे, Met! मायाका कैसा प्रवल प्रताप हे किं (जल) विषय सुख कौ (जाग ठष्णा के समान नश्वर हे) asl लालस। wen हे । श्रभिप्राय ae कि यद्यपि जोव इस संसार के विभव का देखता ई कि चार दिन कौ sett फिर श्रधेरा पाख हे तोम जसेश्डगे धूप मे जल के भ्रमसे श्रपनो प्यास को श्रान्त करने के लिये दौड़ते फिरते 2°93 रो यदह विषय ga कौ लालसा के NS बावला दो रहा Si २८॥ साई सेमर AE TA सेवत पाड बसन्त | तुलसी महिमा माइ कौ बिदित बेखानत सन्त ॥३०॥ जसे सेमर के फल के सुन्दर देख कर मारे मोह के Gan उस कौ सेवा करता हे परन्तु फल WHA पर्‌ उस मे Sin मारता है Ake तुलसी-सतसदै | at war निकलता डे तब श्रपने wa पर cea Vi फिर बसन्त शतु श्राने पर Tel सुगा Wet बात WH कर उसो सेमर के फल कौ खेवा करता S Tat रहौ दशणाद्सजोवकदहेकि ` संसारौ सुख दुःखमय होने के कारण सेमर के फल के समान हे faa के ae सेवता हे भर्‌ श्रन्त के दुःख पाताद्ेतौमौ विषयका Tat मदी दोडता geal दास करते डे" कि मेद का सामं बिदित 2 Par साधु लोग भौ बणेन करते Fy ze FAA AIA देखत नयन सन्सय समन समान | तुलसी समता असम भो कहत आन कड अन Sek कामसे gaat Me ata a देखतादहेतौमो दस का सन्देद जम राज के समान बड़ा दृद डे श्रयवा (संसय समन) सन्देद का शान्त हाना (समान) जैसा का तैसा दो रह जाता हे श्रथोत्‌ दूर नदही' रोता दुलसो दास करते ई" कि (श्रम समता भौ) श्रसमान श्रथात्‌ संसार ae विषय सुख wife जाणा रेस दस का घमानश्रथात्‌ सोधा जान पडता S श्रयवा (श्रसम) एक संख्या विशिष्ट wea माम सम श्रथात्‌ Sa के समान जान पडता ₹हे दसो कारण (श्रान कर RT कत) नाश ₹ेनेवाले संसार के सत्य समभता डे ॥ श्रमिप्राय ae कि जैसे Goat सेमर के फल के सचा फल समभता 2 प्रेषारो यद जोव भो संसार भार विषय सुख के सत्य जानता Zz जां gag सवन देखब नयन ” पाट हा वां कान से सुना कि व वरो सुन्दर ई ते श्रंख से उसके देखने को cay Bt (षंसव- AAW सगे | ११५ सुमन) तब wes निर्विकार मम में wae यम (समान) समाया कि na faa भोति उषसे मिल | इख प्रकार विषय सुख भोगो जोव के लिये (aaa) विरुद्ध कम्मं (समता भो) wet Som Tat AY करना AA ॥ ३९ ॥ बस हा भो अरि fea श्रित साऽपि न aqua Bal तुलसी दीन मलीन मति मानतं परम प्रबोन ॥ ३२॥ ९ (दा श्रगिवस afea भव हित सममत तलसो सा मतिरौन aaa Aa श्रपि परम wala मानत) (हा दति कष्टे) षड कष्ट कति बात डे कामक्रोधादि waa FH बश हा कर ween विषय सुख का सुख कारौ मित्र मभता हे तुलसौ दास कते रै" किं ae जोव tar बुद्धिहोन, दूषित, दुखो भो रो कर पने AT बङ्गा बुद्धिमान मानता डे ॥ ९ दितोयाये- (शा बस afta aft परम fea सममत सापि marr मतिरौन मलोन न मामत) कष्ट के बश रो कर TEA एसो के जाल मं फसाने हारे रोने के कारण gaya कारी संसारी घनदारादि tra का भ्रति aye दायक मिजन समभता है बह दारा श्रादि चतुर कुटुम्ब भो जब यद द्धा श्रवसा वा रोगादि के कारण बुद्धिहोन दोन रोर दोषौ होजाताहेते दृते ayy मानता रथात्‌ इष का श्रादर भाव न्दी करता । Het “बस हौ” पाठ रहा वां उस जन कौ (दो) इदय काम कराध लोभ wise श्रि के बशर श्रा Var श्रथे करना चाहिये ॥ १२॥ Vad तुलसौ-सतसद | भटकत पद्‌ HATA अटकत ग्धान TATA | सटकत बितरन ते विहरि फटकत तुख अभिमान SSI (aaa पद भटकत) श्रद्रैत श्रधात्‌ aad सचिदानन्द्‌ परब्रह्म खूप डे शस सिद्धान्त मे भटकता श्रथात्‌ सन्देह के कारण विश्वास मही" करता (ग्थान गुमान श्रटकत) AT यद संसार सा हे दूस ज्ञान के श्रभिमानमें (फा san चुर हे (विटि बितरन तें सटकत) ठ कर के दन से भागता डे yaa वि fata eas aca ot सुक्तिवाभक्रि उस से दूर रता ₹हे (तुख श्रभिमान फटकत) wal रपौ श्रभिमान At erat F श्रथात्‌ श्रात्माभिमान मे भढ रो GIA के मग्र रखता हे ॥ २२॥ जा चाहत तेहि बिनु दखित सुखित रहित तेहि हाय। तुलसी सा अतिसय अगम सुगम राम ते हाय I ३४॥ faa का य areal F श्रथात्‌ संसारी Ba, विषयसुख, श्रवा जप तप Wie कामना पूरो करनेदारे काम, वा वह सुन्दरी भिसके रूप के प्रशंसा cat सुनो दे । उन के विना यद दुखित डे | (तेहि रहित सुखित हाय) परन्तु बस्तुतः उन के न रने से यह जोव सुख पाता हे यदि ae किसौ aay की कामनान करे ते सुखो TS! तलसो दास Het हे कि से seq इस जोव का कामना रहित देना श्रव्यन्त दुसपाध्य हे केवल रामचद्ध कौ दया से Garg हेता डे | २४॥ चतुथं सगे | URS मातु पिता निज बालक करहि ze उपरेस | सुनि माने विधि आपु जेहि निज-सिर सहे कलेस॥३५॥ कषे कल्पित (वाम-पन्धो ) देवता क पूजा करने हारे माता पिता श्रपने बालक का उसो waa मिथ्या ष्ट देव को पूजा का जिस प्रकार्‌ का उपदेश करते हे“ उसो प्रकार उन के ALR बाले उसे सुन कर मान लेते दहै ओर ara भर उस कल्ित देवता कौ पूजा का AM श्रपने शिर पर ata रते है प्रेषो रौ दश Ta a A TI श्रभिप्राय ae कि संसार को परम्परागत सत्य WAR A इष के BAN में पच मरते = I दितो याथ। माता पिता श्रपने बालक को Ta जगत के एसे eS afraid काम का उपदेश देति ई जिन से बहत काम निकले । (जेहि उपदे सुनि arg विधि निज-सिर कलेख सरे ) जिस प्रकार (जल a मेन करनेहारे लक्मी-नारायण का यद उपदेश सुन कर किं श्राप कमल पर तरैठिये) आप ब्रह्मज ने श्रपने शिर पर मधुकैटभ के उपद्रव कादुख उठाया वा Ve कौ रचना का UTE भार्‌ WA far लिया जिम से श्राज तक नहीं कुटो ते संसारो ATS को कर RZ सकता दे ॥ २५॥ सब Al WA मनाइवा भला हान को आस | करत गगन का ATAT से AS तुलसी-दास ॥ ३६ ॥ तुलसो-दास कते S (सो as भलो होन कौ wea सब सें wat HATTA गगन को ASAT करत) वह मूख पुत्र जिम कों पिता ने भ 18 १९९८ तुलसौ-सतसदै | वाम पन्थ कौ देवता कौ पूजा का उपदेश दिया था श्रपने HATA होने कौ aa खे सब agat कौ भलाष मनाताद्े भार श्राकाश् को TSA कर रदा ₹े श्रथोत्‌ जा YET Fa नही डे उस को गेडुवो 8 बनाता = | श्रभिप्राय ae कि उसकी देवता at इष्ट पदाथ हौ AST ठहरा तो उससे भलाई At sar wat et सकतौ हे दूस लिये मख पुच श्रसम्भव काम कर के व्यथ श्रपने को TAY करता है ॥ २६॥ | बलि fag देखत देवता करनी समता देव | मुर मारि अबिचार रत खारथ साधकं एब BON (श्र विचार रत साधक देवता बलि fag मुए मारि खारथ देखत) श्रविबेक में पड़ के दिंसा-शेल वद म साघक श्रपने दृष्ट देवता का बलिदान वा पूजा दने के बदाने से Baw तुल्य पश को मार कर qua प्रयोजन को देखता S WU देवता के नाम पर पर्रम मार HT WG Bl जाता Si (समता एव देब RTA) सच GSA तो सब जोष को श्रपने समान जानना श्रथवा सब पदाथा को राम-मय देखना हो देवता का काम हे श्रथात्‌ जो सव को श्रपने समान जानता हे वद श्राप देवता के तुद्य हे fal Na कौ fear करने से रामचन्द्र प्रसन्न नदीं दोते (afer परमो धमेः) किसी को मनसा वाचा कर्मणा AST न देना यदौ बड़ा धमं हे ॥ २७॥ बिना बीज AR रक भव साखा दल फल फूल | का बरनेश्र॑तिसय अमित सब बिधि अकल अजतूल॥३८॥ चतु सगं | १३९ (बिना बौज एक तर्‌ भव ) बिना बौये के wera किंस के बिना उत्पन्न किये Ta रूप एक परमेश्वर (राम) श्राप से श्राप इये ब्रह्मा विष्ण महेश श्रादि उन कौ शाखा श्रपर देवता पच ओर लोकादि फल फल हये खघ का बेन कौन कर सकता ₹ै श्रत्यन्त श्रनन्त दै श्रौर सव प्रकार से श्रगणएनोय WT श्रनपम TU feavara | (बिना st) जसे कलम विना बौज Stat डे रसे हौ माया कौ महिमा से बिना बोज एक भव तर्‌ यद संसाररूपो टच SM श्रथात्‌ वेदान्तियौँ के मत से केवल भान्तिमिय ओर शून्य होने के कारण इस संसार को बिना वोज का za का है श्रतिसय श्रमित श्रकल साखा दल फल फूल को बरने) जिस मं किमौ कौ कारीगरी काम नही कर सको श्रौर जिस वे दतने shia RAST शाखा पन्ता फल ओर फूल Sa कि वणेन करना श्रसम्भव हे सब प्रकार से BVT चर श्रतुपम हे ॥ ₹२८॥ सुक पिकं मुनि गन बुध विबुध फल श्राखित afa दीन तुलसी ते सव बिधि रहित सा तर तासु अधीन ise SAUL पकती रहते है इस दत्त के ( विवुध qu मुनि सुक पिक गन) देवता पण्डित षि सुगगा Are कोकिल के भण्ड इ" जो संसाररूपो Ts के कमेरूपो फल के Wala हो कर बड रौन 2 BUT जब को$ संसार म श्रा कर उन्तम कमंश्रादि करता तब देवता श्रादि कौ पदौ पाता डे Gaal दास कते 2 किं वे एक fam wiz खव बिधाेंसे होन हे श्रधात्‌ "डन का दस aq पर १४० तुलसो-सतसद | qe श्रभिकार नहीं S शरोर वद संषाररूपौ टच उस रामरूप परमेश्वर के rater हे । नां “qual ते सब बिरद fea” पाठ रो वहाँ (ते सब) वे सव दरक पिक श्रादि मुनिगन (तासु fea बिरद) उ ब्रह्मप रामे श्राज्ञाकारो वा प्रिथ जस वखाननेदारे = निष के ayia वह Za ₹े॥ २६ ॥ का नहि सेवत sz भव का न सेद्‌ fears | तुलसी बादहि पचत हे आापुहि arg नसाय ॥४०। (ae को भव निं सेवत) जन्म पा कर कोन इस संसार को नहीं सेवता We सेवा कर के नदीं पकताता। तलसो दास कहते हे कि व्यथं दौ (श्रापुद्िश्रापु पचत नसाय हे) श्रापसेश्रापमारेदुःखके गल कर नष दो जाता हे । श्रभिप्राय यद कि दूस मूठ संसार मेनो फसा सो श्रपने कमे को जाल मं पड़ कर श्रनेक जन््र मरनके दुःख मे पचता रहता हे ॥ ४०॥ कहत विविध फल बिमल तेहि लहत न एकं प्रमान। भरम प्रतिष्ठा मानि मन तुलसी कथत भुलान ॥४१॥ उस को श्रनेक प्रकार का निमंल फल बताते ह" परन्तु प्रमाणरूप एक फल भौ कमो aay पाते ह" (तुलसो मन भरम प्रतिष्ठा मानि) qual दास करते हे कि श्रपने मनम भ्रम मे फ़ल पानेका श्रादर मान कर (HANA कथत ) श्ल से कहते फिरते T । जरह “बरत न एक प्रमान” पाट हो वहां (एक प्रमान" बहत न) चतुथ सगं | १४१ किपो R प्रमाण पर नही चलते BAT कने को तो कते S किं रास सँ ake प्रकार जप तप के फल लिखे ड" परन्तु श्राप उस के gaat नदी करते। मन मं श्रपनौ प्रतिष्ठा चोर भयके faa मूठ हौ कते दे" ॥ ४९ ॥ न्रिग-जल घट भरि बिविध-बिध सीचत THAT AS तुलसी मन इरखित रहत बिन हि लहे फल FRNA ( विबिध निधि घट सग-जल भरि. नभ-तरू-मूल सौचत ) संसार नै विश्वास करनेवाला श्रनेक प्रकार के घडो मं ग्ग ठष्णारूपो जल भरे श्राकाशच्छपौ Ta कौ जड को सींचता हे AT तुलसो-दास कते 2° बिना फल फल पाये मन म प्रसन्न LEAT हे । श्रयवा aa aie कौ पूजारूपौ जल को श्रपने हदय म भर के नभ-तर्‌ HS विश्वासरूपो WaT दत्त को सौचते ह Are sit at gmat हो बने हे तथापि मन मेंप्रसन्न Tet इ ॥ ४९॥ साऽपि कहिं हम HE VET नभ तर के फल पुल । ते तुलसी तिन तें बिमल सुनि मानद मुद मूल ॥४३। ( सोऽपि करदं दम THAR को फल पुल कं Tes) निश्चय डे fa wa पूजारी संसारी wa ATs HREM TOA FT ्राकाश sa के फल फल को पाया ATT a ST उसको बात को सुन कर उच श्रानन्द कौ जड़ समभे ङ्ग उख से भौ निमल दहे श्रथात्‌ AT श्रसिक भ्रम में पड डे" ॥ ४२॥ Vee तुलसी-सतसदै | तेऽपि faafe siete बिनय करि करि बार EMT तुलसी गाडरि के ठरन जाने जगत बिचार ॥४४॥ रोर दूसरे इजारोँ बार उन मिश्या-विश्वासकें से sear कर के मांगते हे" कि दम को मौ aaa कि जिससे पूजा कर के फल पावें aa दास कते रै" कि भेड कौ चाल के समान संसार का बिचार St श्रभिप्राय यदह कि जैसे श्रागे चलनेवालौ एक as यदि av awa at va te सब भंडोकृणंमंजागिरतोहे'तव्ैसेदौ भेडिया-धसान संसार के fagraat का डे ॥ ४४॥ ससि कर खग रचना faa afa साभा aca | खरग FAA अवबतन्स खल चाहत अचरज बात।॥४५॥ agar at किरणे कौ माला बना कर पदिन्ने सेश्रत्यन्त शोभा होतो ड परन्तु एसो माला का बनना द aaa है रेसा हो संसार मे विश्वास करनेदारा मुख श्राकाश के फल का भषण बनाना दरस श्रह्यन्त श्राञ्चये बात को Beat ई जरां “कदं सोभा aca” पाट शो वहाँ क्या सोभा दो सकतो श्रथात्‌ नदौ et सकतो Bar we करना चारिये॥ ४५॥ तुलसी बोल न बृभड देखत देख न जोई । तिन सट का उपदेस.का करब BATA लाई vey awa दाच कहते ड fast (बोल न GAL) वाणो को नदीं समभता चतुथं सगं | ९४९ AT देखता BA भो नदीं देखता डे (ख्याने लोट्‌ तिनसटको का उपदेख करब ) बुद्धिमान लोग उन मदामो को क्या उपदेश कर सक्रे डे | श्रमिप्राय we किजो AE दस संसार्‌ को WT कन्ित देवताश्रौँ कौ पूजा को श्रसत्य जान कर भौ नहीं को डना चाहता उस से कौन कडा सकता हे ॥ ४६॥ जा न सुने तेहि का afer का सुनादय ताहि | तुलसी तेहि उपदेस दी तासु सरिस मति जाहि॥४७) Sr नहीं सुनता उस से क्या कना AT क्या सुनाना श्रथात्‌ कहना-सुनना दोनों ay 2 qual दास कते हे कि जिन के बुद्धि Set के सदृश SF ate उनको उपदेश देते Vso) कदत सकल घट राम-मय तौ खोाजत केहि काज | तुलसी कड यद कुमति सुनि उर आवत अति लाज Nee (सकल घर राम-मय Hea तौ कंडि काज खोजत) कते हे“ कि रामचन्द्र GSR यापन S ait फिर Fath six उन्दे खोजने क्या जाते ड“ (यद कुमति सुनि तुलसो ae उर्‌ श्रति लाज श्रावत) ae gatg सुन कर तुलसो दास को श्रपने मन म वड़ो लज्ना wT R च्रमिप्राय ae कि जब BIA El az a ta = ai वरां दींखो- जना चाहिये Ae दूरौ ठोर भटकना केवल मृखेता हे ॥ ४८॥ १४४ तुलघी-सतसई । sag कहिं देखन wefe रेता परम प्रबीन I तुलसौ जग उपदेस हो बनि बुध अबुध मलीन ॥४९॥ (शमो परम प्रबोन श्रलख कदं देखन vee) एसे बुद्धिमान (ag मखे) हे कि जिस राम को श्रलख श्र्थात्‌ देखने के श्रयोग्य कते हे उस के देखना चाहते हे (Hala श्रवुध बुघ बनि जग Ba SY) TS Qual We saat Ara wal बनके संमारका उपदेश देते Sy ४९ ॥ हरत Via रहित बिद रहत धरे अभमिमान। ते तुलसी गुरु्रा बनहि कहि इतिहास पुरान॥५०। (faz रदित ददरत दारत (तथापि ) श्रभिमान धरे रदत ) विधा- ~ Aw € होन होने के कारण Lewd थक जाते दे“ श्रथात्‌ जिस ara At खोजते हे" बह नदीं भिलतौ तब थकित हो कर भी श्रभिमान धरे हो रते दै" तुलसो दास कहते है कि (कलि में) 2a aa wm कर पुरानौ कथा HE कर जगत के गृरू बनते दे" श्रभिप्राय यद fa—afaa त प्रतादिकें कौ gat करनेहारे ae fafg aor at ay at कर Sat के पास यद पुरानौ कथा ` निकालते है कि मेरे पिता या गुरु श्रमुक देवता कौ प्रूजावा बलिदान से ag fag येये, यदितुमलेगकरो तो प्रैस सिद्धि श्रवश्य पाश्रोगे। | art ark cate पुराण श्रादि शब्द का महाभारत श्रादि WAU स्म | cen afaera चार भागवत श्रादि पुराण श्रथ करते रे" St Way जान पडता डे क्योकि त॒लसो-दास वैष्णव थे, वे क्यों इतिहास पुराण को निन्दा करंगे। या पुराने इतिहास से Valea दो भे का परन्परा- गत दृष्टेव का मिश्या-उपदेशरूपो इतिहास समभना TARA ५०॥ निज aaa देखत नही गी BT वां ह । कहत ATH बस तंहि अधम परम हमारे ATH lyr श्रापनौ wai से तो देख नदी पडता दूसरे wal कौ aie पकडा (श्रधम मो बस कत CATT नांह परम ) TNT WA A पड़ कर Heal S कि CATT उपदेशक rat वा दवता बड ह । ` श्रभिप्राय यह कि श्रज्ञानौ गरूनेश्राश्रे मं पड़ कर संसारम विश्वास किया) दसौ से चौरासो योनि का श्रधिकारौ श्रा ॥ ५९॥ गगन वाटिका सीचहीं भरि भरि सिन्धु तरङ्ग । तुलसी मानद माद्‌ मन TS अधम अभङ्ग ॥५२॥ (सिन्धु तरङ्ग afte गगन बाटिका सी) संसारङ्ूपौ 43 समुद्र के श्रमिलाषरूपौ तरङ्गं से जल भर कर श्राकाश्ररूपो मिथ्या बारिका को aa रहे 21 त॒लसौ दास aed दे कियेर्से नोच iit निडरद्ैकिमिथासेभौो मनम श्रानन्द मानते रहे ॥५२॥ द्रिखद करत रचना विरि रङ्ग-रूप सम Te विहग aza विष्ठा करत ता तं भयेा.न Te ॥ ५३ ॥ 19 ११९१ तुलसी-सतसदं | ` ये मिथ्या विश्वासो (frag बि्टरि रचना करत) Were पर बडे सिंह का चिच बनाते 2 जिस का रङ्ग रूप dae सिंद के तुस होता हे, परन्त॒ पत्तो उसके सुखम बोर कर देता, इससे सिं के पराक्रम at तुलना उस मन BEI श्रभिप्राय ae कि यद्यपि वे लोग sua मिथ्या देवता को शश्वरवत्‌ समीके बलिश्रादि देते हे परन्त वद्‌ निव होने के कारण उस पक्षौ को भो नहँ मार सकता श्रौर श्रपने भको के मनोरथ का पूरा करना AT दूर्‌ रा | दूसरा श्रथ--परमेश्वर रसे श्रपने भक्तों के श्रधोन है" कि भक्त-जन पत्थल कार कर उस पर दवता का रङ्ग BY सब उसो के तुद बनाते ड MT मुखमेंपक्ती ae at oar F at मो va aw B रूठते नदो एसे दयालु हे । पले Wa मे (वि) fame दरि सिंह ae किया गया । दूसरा श्रथ पले से श्रच्छा जान पडता ह ॥ ५२॥ चाह तिहारी श्रापतमाननश्रानन STAT तुलसी कर पहिचान पति जातें अधिक न मान॥५४। ( तिरो are ata a त्रान) ठ्‌. च्रपनो TRI AT a FETA श्रापने हो ara (art) erat पूरौ करो (aT न मान) शरोर दूसरे को न मानो, GAA दास कते है" (पति) gaa erat राम का TERS कर (जा ते श्रधिक श्रान मान न) जिस से श्रधिक श्रीर्‌ को न मानना श्रिये ॥ ~ चतुथं सगं | ११७ श्रभिप्राय यह कि यदि तुम श्रपने राम को waa घट नें रूढ के उन से श्रपनौ इच्छा पूरो कराश्रोगे तो शप्र फल पाश्रोगे नदी तो THT उधर भटकते TE जाश्रोग ॥ ५४ ॥ श्रातम बाध विचार यह तुलसो कर उपकार | RS AT राम प्रसाद ते पावत पर-मति पार॥५५। (Gael उपकार) (a) यद waa विचार कर । काडर राम प्रसाद्‌ तं पर मति पार पावत)। तलसो दास ने जगत के उपकार के लिये यद श्रात्माके ज्ञान कां बिचार किया। कोद २ श्रोराम चन्र (रूपो गृरू) कौ BIT WT पर- मति श्रथात्‌ wee बुद्धि वा भक्तिसे टस विचार के पार जार्थगे। श्रभिप्राय यद कि दरस ay a mas Tt ने श्रत्मज्ञान का बन किवा हे परन्तु उस का यथां बोध श्रीरामचन WT गृ कौ दया के बिना नदी हो सकता ॥ ५५॥ जां ATS तद राम ह राम तख निं मेद्‌ | तुलसी देखि गहत vet सदत विविध बिधि Be ॥५६॥ जहां सन्तोष डे वाँ ओरोरामचन्र रहते ई क्योंकि सन्तोष श्रौर राम मे कुढ मेद नदी हे परन्तु संसार के मनु लोग इस बात at देख कर भो संतोष को नदीं ग्रहण करतेद्मोसेवेश्रनेक प्रकारका दुःख सरतेः wag भोगते हे" ॥ ५६ ॥ tec तुलसो-सवसङ्ं | भेा-धम गज-धन बाजि-धन ओर रतन-धन STA | अव VAT सन्तोख धन सब धन धुरि समान ॥५७॥ dat a गौ, हाथो, घोडा श्रादि पश wT श्रनेक प्रकार के Tat कौ खान शै" परन्तु इन सब धने से सन्तोषरूपो धन बडा हे Rife जव सन्तोष मन मे श्राता तो WT घन मदौ के षमान हो जाते ZH सवो के ted यदि सन्तोष न श्रा तो सब व्यथ ह | fas पास qe नही हे ae सौ रुपया चाहता सौवाला हजार दजारवाला लाख चाहता हे WT बहत धन MT जन होने पर भो इच्छा पूरौ नदीं Stal, जब सन्तोष दोता है तभो इच्छा पूति WT सुख रोता हे।॥१७॥ कुथि ररि श्रटत बिमुढ्‌ लट धट उद्‌ घटत न ग्यान। तुलसी रटत टत नहो अतिस्य गत अरभिमान॥५८॥ श्र"--(बिमृढ़ लट ofa रटि श्रटत ग्यान चट न उद्‌ घटत (तौ भौ) त॒लसो श्रतिषय श्रभिमान गत इटत नदी ररत रदत 11) (सन्तोष कर के WAST गुरु को प्रसन्न करना छोड़ संसारो) मसं खल कूथता WT रटता SAM TIT उधर भटकता हे परन्तु रती ज्ञान Dar दुलंभ हे कि उसके इदय म नदं श्राता तुलसौ दाख कहते हे कितौ भौ मूखे जन श्रभिमानकते वश हो कर हारता नही बरन रटता TEM डे ॥ set (कथि रति) पाठ हे avi स्तो पुजादि में पोतिका वर्षम ey aw करता WE (fa BZ) मूखां मे बतेमान हो के TERE से भरन चतु सगं | १४६ arene में फिरता रहता ई श्रौर पुराणादि के (शरत भरी रटतं रहत) पाठ से टता मरही wat श्रथात्‌ घोखता रता है (घट ग्यान न उद धरत) at भौ रामरूप परमेश्वर कौ भक्रिसे Oa होने के कारण उस के wea में ज्ञान नदौ श्राता। रेषा श्रये करना चाहिये ॥ YE ॥ भू भुजङ्ग गत दाम भव का मन बिद्धि बिधान। Al तन बरतमान जत तत तुलसी परमान | YE श्र °-(दाम गत भुजङ्ग भव मन का बिधान बिद्धि, तुलमौ जत at तन बरतमान तत परमान) | भरमि पर पड माला श्रथात्‌ रसौ मं FV alo ar wa Star है वैसा हो तमको cas संसार में सत्यता का भम ete ह, दूष को द्वु श्रपने मन कौ (विधान) कल्पना माच (बिद्धि) जानो। तुलसो दास कते 2 कि जब से तेरा शरोर श्रा ई तभौ से तुभ को WA BA ST WT रहेगा ॥ श्रभिप्राय यद कि माला श्रन्धेरे मं जिस vat सच मुच सांपजान पडती है उसो प्रकार ae जगत भौ श्रक्नानरूप Tat मँ सत्य भाषमान Sal S बस्तुतः सत्य नदी डे avi “दाम भव कामन fafay बधान” पाटो वहां यष्ट माला है सपे नदीं हे उसो प्रकार ae a Ss संसार नद्टींरे Az श्रनेक प्रकार कौ कामना भौ (न) भौ हे, Fa S नदीः Ter श्रध करना चाहिये ॥ ५९ ॥ १५० तुलसी सतस | भेडर सुक्ति विभव पडिकं मनि गति प्रगट लखात । मनि aret अपि gfe a बिलग विजानत तात ee श्र °-तात, भोडरः fama पडिक मनि बिभव प्रगट लखात (परन्तु) भोडर्‌ श्रपि ofa मनि ते निलग विजानत ॥ श्रव दूसरा दृष्टान्त देते है" कि दे प्यारे ! जसे श्रभरक MT NT मै (भ्रमसे) wa रत्नादि tea प्रगट देख पडता हे परन्तु भ्रम दूर दोने पर) श्रभरक We सोप मणि रत्नादि Daa से श्रलग हं Var ज्ञान होता डे तैसे हो दस संसार मं सत्यता का भाष होता हे परन्तु श्रात्मन्ञान होने पर श्रभरक MT सोपीरूपो संसार कौ HATS तथा TASER श्रात्मा कौ सचा प्रगट दो जातौ हे । परन्तु Ha जिस पुरुष के मन मं सपे चंदो We रन्न का गये उसकोदूरकिबारर्‌ देखने पर भो Ta DA श्रभरक मे करम से पूरक तोनों पदाय (न Te कर) भो सच मुच देख पडते है वेसे दो जिसके मनम संसार कौ सत्यता कराई हे उस को (यह भटा हो कर) भ सद्वा दौ जान पड़ता Zl sei “भव डर ofa बिभव पडिक मन aa” पाठ दो, वदँ तेरे मन में संसार जो सत्य जान पडतादहैसासोपमेंचादोके BAG A भ्रम के समान हे रेषा श्रथं करना चारय ॥ ६० ॥ राम-चरन-पषिचान fag मिटीनमनकीदौर। जनम WALA वादी रटत परार पौर । ६१।॥ रामचन्द्र के चरण. का सा afeqa नहोनेके कारण aa Ht चतुरं सगं | १५९१ (दौर श्रभिलावा न भिर दूसरे wary BSR राजा TT देवता ञनार तोयां में Tare (बाद) यथं अन्दर को वितादिया॥ श्रमिप्राय ae कि जब तक तुभो परमेश्वर कौ भक्ति वा AEN न होगा तब तक gate कितना मो eee देवतात्रं को पूजा जरर तों त्रत कर पर तुमे परम गति न मिलेगो ॥ भ्रोधरखामो भागवत कौ zat a लिखते हे * कि are तप करं परबतसे गिरं Pai a fat aT वेद पुराण पटा AT यन्न किया करं ओर are बिबाद किया करं परन्तु बिना विष्ण (खूप राम) के संसार से नहीं क्र सकते ॥ ६९॥ aa बरन मानै बरन बरन बिलग नहि ग्यान | तुलसी सु-गुर-प्रसाद-बल पर बरन पहिचान ॥ ६२। ( बरन ) श्रक्षर सुन पड़ता S वदो माना जाता S वरौ ज्ञान GET हे तुलसो दास कहते है कि उत्तम THEI TE क कृपा के बल से बरण श्रत्तररूप ब्रह्म पडिचाना जाता हे ॥ श्रभिप्राय यर कि श्र्तरमय wee glare जिस को सुन कर ' लोग मानते हे" वेद के मन्तभो VAT a AT a gat दरौ उचारण किया जाता EI "कतं [म ~~ ~~~ ~--- - ~ ---------~--~ ~~ * तपन्तु तापेः प्रपतन्तु पन्येतादटन्त तीधोानि पठन्तु चागमान्‌ | न्त्‌ AN A रि गि यजन्तु यागे विवदन्त्‌ TEE विना नेव र्वि तरन्तु । ६५९ तुशसौ-खतस्ं | दितीया्थे। श्रयवा वरन भन्द्‌ मं BT. मान कर शास्र बिधि निषेधमय वाणी wy किया तब कान से सुनता हे मन से उस वाणो को मानता हे श्रोर ज्ञान whe wT A वाणोमं मेद नीडे. Saiz श्रयं हो सकता Si ६२॥ विटप बेलि गन बाग के माला-कार न STA तुलसो ता विधि बिद्‌ बिना करता राम RTA ॥ ६ ॥ श्र°-बाग के बिरप बेलि गन, माला-कार न जान Geet faz बिना (जन) ता बिधि करता राम YT ॥ जिस प्रकार से बेचे मेके दोर २ Ta Me बेल-बुटे श्रादि श्रपने सोचनेदहारे मालौ को नरी जानते geal दास कते हे vat प्रकार से जन ज्ञान के बिना श्रपने कते श्रात्मारूप ओरोरामचन्दर को शल गया हे TaN मालौ सब Ta WT फलो को लगाता पर ag नदी जानता, कि किंस gaa कंसा फल-फल लीगा वेसा हो ज्ञान के बिना जो वात्मा परमेश्वर को ल गया इहे ॥ ६२ ॥ करतब हो से करम हे कह तुलसी परमान | करनहार करता सोर At करम निदान॥ FB I पाप पुण्य श्रादि जो aaa के करनौ S उन दो को Gaal दास कम्‌ कते इ“ WT उन का करनेारा कता TETAT डे यड प्रमाण > कि बहौ श्रपने Way कमे को भोगेगा ॥ चतुथं सगं | १५९ श्रभिप्राय ae कि यदि ल्व पाप guile कमन करेगा तो कता न HEA तेरा श्रात्मा यद्यपि निविकार है तौ भौ देहा-ऽभिमानी होकर HA करता S TAY से बारर जन्म ले कर्‌ उनके फल को भोगता हे जवं गृहं को छपा से तुमे श्रात्म-ज्ञान होगा तब संसार के बन्धन से करेगा ॥ ६४॥ तुलसी लट पद तें भटक अटक aie तु नहिग्यान। ता तें गुरू-उपदेस बिनु भरमत fara Yara usu श्र ०-(श्रपि तु तुलसो नहिं ग्थान लट पद ते ASH भटक) तलसो कते = fa a निविकार हे श्रपित्‌) किन्तु ज्ञान नदीं ्ोनेके ` कारण (लट पद) वतमान सान श्रयात्‌ संमार वा श्रपने ATT a श्रटक कर भटक रा ₹ दसौ कारण विना TH गुक्‌ के उपदेश के wa से भम a पड़ा ew फिरता ₹े॥ श्रयवा (लट पद ते" भटक श्रटक) बाल कौ लट के समान उभा- श्रा WARS कमं मे पड़ा BA ग्ला हे एभा-गएभ कम को जाल म बे-दाल दहो Vaz गरु के उपदेश के बिना भरम मे पड़ा Tew sat बरदा बनिजार के fata Tat Ba aig भरे मुस खात है fag गुर के उपदेस। est से dig पर ule लादे बनजारे का बेल Bam SMR फिरताडे शरोर भसा खाता वैसे रो WH गरु के उपदेश के विना मनु खांडरूपो sat को wat a लिये दुःखर्ूपौ वा विषय सुखरूप 20 १५७ तुलसी-सतसष | खसा बुका रदा हे Me दस मंसाररूपौ वा चौरा योनिरूपो देश मे घूम Tet Tee I TAT बारत अनय UE | sha A पदारथ लीन। तुलसी ते रासभ सरिस निज मन vate vata ॥&७॥ श्रनौति पथ में पड़ कर (बुध्या area) बृद्धि कात्यागदेताङै तौ भौ श्रपने को पण्डित समभता ईहे (खऽपि न पदारथ लोन) श्रपना पदाथ जो पर-मात्माडे उस मं लोन नहीं डे । श्रवा (ख श्रपि पदाग्थ न लौन) श्राप भो WAT ब्रह्मरूप पदाथ में तत्पर नदीं दे । तुलसो-दास क्ते S किं TA लोग (रासभ सरिश्च) गदड के समान ह परन्त्‌ अपने मन A BI को बड़ा बुद्धिमान मानते हे ॥ ६७ ॥ ava fafay देखे बिना गहत WAR न एकं । ते तुलसी स्वन et सरिस बानी ache अनेक ॥६८॥ श्र °-बिना देखे बिबिध कषत श्रनेक गहत, एक न, GAA a खन सरिस श्रनेक बानो बददहि। जिन बातें को aa adel Zar vat को श्रनेक बार aed = तरार श्रनेक बातिँ को लेते हे परन्तु एक मुख्य बात को नदी लेते तुलमो-दास कते ₹ै fe eras ae कौ बात 24 Ae के समान aed wad = ॥ यदि खनदा को एक पद मानो तो उस का श्रये कुन्ता मारनेदारा चाण्डाल हो THAT Ti जां “सोना” ars हो वहां सोना मारने- चलुधं सग 1 १५५. वाले सुमार्‌ के ममान ह जसे सुनार मोना चुराने के लिये श्राप wy श्रनेक बोलो वलते हे Fs हो श्रपने बृभने के लिये ये श्रनेक वेद शास्त सुनाते हे" पर faa का Da मेद नही पाने ई । fag पाये परतीत अजति करत जथारथय हेत । तुलसी अबुध Vara दव भरि भरि मूटी सेत ॥ ee विषय भोग से सच्चा सुख कभौ पाया नरौ परन्तु बड़ा विश्वास उसके पानेम करता =F त॒लसौ-दास कते हे कि aan के समान AAT को भर मूढो पकड़ना चाहता है जो बात श्रसश्भव | श्रयवा बिना फल wa at कुदवताग्रं मं faa arate रार सो प्नोति करता है वह AR (MAM) शून्य दो को Hay म भरता ड दस कारण SH दाथ का Fal हौ बना रता F ॥ ६८ ॥ बसन afc aiua बिहरि तुलसी कौन बिचार । हानि लाम बिधि बाध बिनु Bra नही निरधार॥७०॥ तुलसो-दास कते है“ कि ea कर के कपडे मे जल बाँधता हे टम बिचार कौ क्या प्रसंग दो सकतो है? बुराई भलाई कौ रौति के ज्ञान के बिना निश्चय नदं रोता कि किससे waa किससेहानि Stat श्रयवा किस कमे, किस देव के पूजा वा किस मन्त्र से लभ होता डे किससे alfa इत्यादि के विधि प्रकार को बिना जाने जा मन्त साधने मे लगते हे उन कौ सिद्धि का qa निश्चव नहीं होला ava ओर उलटा.परिश्रम व्यथं जाता डे ॥७०॥ tad तुलसो-सतसश | काम क्रोध मद्‌ लाभ at जब लगि मन मंखान। का पण्डित का मूरणौ STH TH समान । ७१॥ जब तक ATA के मनमंकाम क्रोध ब्रदद्ार रर लोभश्रादि ` भरे हः तव तक Te पण्डित वा मूखे हो ae दोन समान Ty । अभिप्राय ae कि वेद पुराण के पटने का मुख्य फल कामादि maar को जोत कर्‌ श्रात्मा का परिचानना देसोन war at मख ait पण्डित मेँ क्या भेद ZI | mua काम कौ खान सुन्दर स्तौ, क्रोध को खान र्षा देष, श्रहद्धार कौ खान विद्या सुन्दरता श्रादि रर लोभ कौ खान लाभ धन श्रादि मेँ जब तक मन लगा रदे तब तक पण्डित WT मे Hai ear डे" । पण्डित होनेका फल तो यशोदे fa cara AA AT OV उत कुल की करनी तजी इत न भजे भगवान | Gast अ्रधबर के भये sat वधूर के पान ॥ ७२ ॥ ॐ ww नि श्रब तुलसो-दास दम दोहे मे कचे AYRE A बेन करते VB Sr fant ठीक sta ज्ञान ये Weel ats कर मृड मुडालेते हे ॥ उधर श्रपने कुल कौ मर्यादा श्र्यात्‌ वणाऽऽअ्रम धमे को कोड AT साधु जये श्रौर TUT साधू के कमं श्रथात्‌ रामरूप परमेश्वर के भजन मेभोमननलगातो TA लोग श्रधबर श्र्थात्‌ बोचकेष्टो लाते है जसे बध्र का पन्ता श्र्थात्‌ बवण्डर के वोचम उड़ता WaT पक्ता शमिक्तामश्राकाश्र aT fey ate wT NEY | ग उन way सग | १५७ से गणस्य का धमे Sa a apa ar प्रटृत्ति र निट्त्नि दोनो पर्थोँसे भरष्ट Sa 11 ७२॥ कौर-सरिस बानी पदृत चाखन चाहत Bis | मन राखत बैराग AE YT मह राखत Tis ॥७३॥ te we AN श्रव तुलसो-दास इस ate मं एसे पण्डित वा ary a aus करते हे" जो qua मन श्रौर इद्धियों को बश मेन लाकर पाषण्ड से वेदादि का पाठ करता श्रौर श्रपने को माधु दिखलाता है । सुगो के समान बिना समम वेदादि का पाठ कर्ते ह“ we खांडरूपो मुक्ति को पाना aed हे" मन बैरागके काम मे लगाते Vo ait घर मं राड रखते F एसे पण्डित श्रौर साध बहौ निन्दा के पाच ड" ॥ ९--श्रथवा सुगो के सदृश बोलौ बोलना wed परन्तु uly खाते श्रौर मन Sua se ve कर घर मे रांड रखते F 1 श्रभिप्राय ae कि जसे मधुर बाणो का बिगेधौ aig 3 a3 S fog at बिरोध awa ed a2 Fa ata Bale a वैराग्य के इये zeal we साधुपन दोनों से गये॥ राम-चरन परे नीं बिनु साधुन-पद्‌ नेह । AS ASE Wee भाड़ भये तजि गेह । ७४ ॥ सर्न्तो के aaa Wa a रोने के कारण जिनके रामचन््र के चरण RN THM एसे साधुश्रो के मूढ मडानेरेदुक्मौ १५८ तुखसी-सवसद | लाभ गहीदे क्योकि वे बना बनाया घर aly कर ष्ट भ्रयवा हंसौ के योग्य भाड़ दो गये VB” guia जिस प्रकार भाड़ लेग को fons के लिये श्रनेक नकल करते र भेष बदलते है" वैसे यं ary at जोग का भेष बना कर पुलाते इ" परन्तु जोगौ का कमं | टन मे नरी रे Het “faa साधन” पाट et agi agi arte ale के उपायों से रहति श्रये करना ॥ ७४ ॥ काह भर बन बन fat ज्ञा बनि आड arfe | बनते बनते बनि गण्ड तुलसी धर ही माहि ॥ ७५। dealer कते दैः कि बन बन फिरनेसे a et सकता 2 यदि उससे परलोक न बने UT ATE कर भो VST कम करने से मनुव्य के दोनो लोक सुधर सकते FI श्रभिप्राय ay कि यदि aaa a मन wit कामक्रोधादि प्रचरा कोन जोता तो उसके बन मजा कर तप करने से कुद भो लाभ नदीं हे wea मं रह करभो यदि सुकमकरेतो खस का परलोक बन सकता SOV जा गति जानै बरन को तन-गति St अनुमान। बरन-विन्द्‌-कारन यथा तथा जानु नहि ्रान।॥७६। जलो दशा aT कौ ह श्रथात्‌ wat विन्द्र के योगसे बनता SRA शरोर कौ भो जानना ales जसे बणे का कारण बिन्दङे पैसे रो शरोरशूपो wet के विन्दूरूप मन श्रोर cea को भौ कारण कते FI चतुथे सगे | १५९ श्रभिप्राय ay कि जेषे फारसो में विन्द्‌ (लोखा ) देने से gar तरन्त दूसरा हो जाता हे वसे हो ण्रौर में SN बासना इष. वसो हौ उस कौ गति sk श्र्थात्‌ विषय से विषयौ श्रोर भक्ति से WMH होते डे" ॥ ७६॥ बरन-जागभौ नाम जग जानु भरम के मूल । तुलसी करता हे तुही जानि मानु जनि भूल॥७७॥ (जग नाम बरन-जोग भौ wa at He जानतुहौ करतार जानि मानु जनि श्चूल) AG हो के मिलने से जगत का नाम Ha Bala ज+गके भिलने से जग बना TA भ्रम का कारण समभो दस नाम का बनानेदागद्वूरौ है एेषा जान कर मान S HT न ze | श्रभिप्राय ae fa जगन faa 2 केवल ATA भ्रमसे खच जान पड़ताहेश्रौर दस कानाममो तुमो ने रक्डा = ॥ दितोयाय-- बणे (ब्र्षरम्‌ ) श्र्यात्‌ परब्रह्म श्रौर प्रकृति A TH VHT का नाम Bs सो केवल ईश्वर कौ क्रीडा माच होने के कारण भरम का मूल हे भार इस का बननेहारा परमात्मा aI WT तेरे शरीरे मे वर्तमान staan St रै tar a faga रख YA मत ॥ 99 | नाम जगत सम समु जग वस्तु न कर चित बैन | बिन्दु गये जिमि गन ते" रहत रेन के रेन ॥ ऽ८॥ (जग नाम जगत सम VAT) जग संघार मं नाम पाना नामौ १९० तुलसौ-सतसद | होना--जगत हौ के समान भूढा जानना चाहिये TUE जसे जगत wae सत्य wey 238 O इस मं नामो होना भौ यथे हे Bila श्रन्त को कुद भो न Tea | श्रथवा जगत शब्द मकात निकाल लोतो वद जग हो जायगा दोनों समान श्रसत्य Bit) यद (aq न चित चेन कर्‌) को सत्य पदाथ नदीं 2 एेसा श्रपने मन में विश्वाख करो जैसे Tay के दो श्रचरो* € में कुक भेद नदीं हे यदि पीन के ऊपर से बिन्दु उठा लोतो केवल Ta रद जायगा, | शरभिप्राय ae कि wal मे एेन भला Tat हे उख पर विन्द्‌ रखने Baga dt जाता वसे हो fazer विषयाभिलाष न रहने से शरौर सुखदाई होता FI श्रथवा दूस नश्वर WOT में चेतन्यरूप एन परमात्मा का WETS उष के ऊपर fare लगाने से वह WATE (भटा aa) दो जाता हे ॥ ७८ ॥ आपु fe a बिचार विधि fafe बिमल मतिमान। आन बास्तना faz सम तुलसी परम प्रमान ॥ oe श्र-मतिमान निमलसिद्धि श्राप fe ta बिधि निचा gaa परम प्रमान, WIT बासना बिन्दू सम॥ ज्ञानखदूप श्रौर नमल सिद्धियेों को धारण करनेवाले परमात्मा के खर्प VIA श्रात्मा को रेन के समान निचारो तलसो-दास श्रत्यन्त प्रमान से कते हे" कि We सब बासना देदाभिमान विषयाभिलाष ante बिन्दु के समान जानना ाहिये। | चतुथे सगे | १६१ श्रभिप्राय यद किं- दष शरीर का चेतन्यरूप श्रात्मा यद्यपि मल- रहित हे तौ भो पञ्च-भौतिक शरीर का श्रमिमान हो कर्‌ संसा बासना ओर विषय के श्रपोन हो कर्‌ सुखदुःख at atl होता डे ॥७८॥ Wa धन AVT न हात काउ, समु देख, धनमान । हत धनिकं Gaal कहत दु खित न रहत जान ॥८०॥ ठलसो-दास कते ह कि केवल wa २ वकने से कोर कमो धनिक नदी'हो सकता, दूस बात को श्रपने मन म समु कर aT | र यदि कदने दो से atk धनिक दोता तो nea में कोई. दुखित दरिद्र न रदता, सब धनिक दो जाते। श्रभिप्राय ae fa केवल बिना समभ वृभो पुराणादिक का पाट करने से बिशेष लाभ नदी यदि उनम करौ Bk साधना न करे। दसौ का दृष्टान्त ऊपर के ate म दिया गया F ॥ ८०॥ हिम कौ मूरति के fea लगौ नौर कौ प्यास । लगत AIS गुर तरनि करसे मै TH न आस ।८१। fea कौ मूतिं के मन मं जल कौ प्यास लगौ (गृ तरनि सबद कर लगत सामे श्राख न रदो) परन्तु ACS खय के उपरेश्- रूपौ किरणो के लगने से वद श्राप गल कर पानो हो गई तब उस Hoa Al AW I AMT a Tel ar AS St AK श्रभिप्राद्य ae कि feaaia यह मनुष्य TAT इस को जल-रूपौ 21 ११२ तुलसी-सतसङं | संखरौ सुखो कौ TTI SK परन्तु वोचम खये के समान गुरुके उपदेशरूपौ किरणों के लगने से वद श्राण जातो रदौ ॥ श्रयवा-(मृरति के fea दिमि-नौर कौ प्यास लगो) मनुय को. ana जल कौ प्यास (विषय दरष्णा) लगो । फिर Geant गुरू के उपदेश के लगते Sl उस aay मं विषयरूपो fea को णास द्रच्छा न रदो ॥८९॥ जा के उर बर बासना भई भास RF आन | gaat ताहि बिडम्बना कंडि विधि कथहि प्रमान।॥८२॥ तलसो-दास कते हे कि (बर बासना जाके उर कक श्रान भास at तारि fase प्रमान afe बिधि wate |) जिस के हदय मं SUH TSB FS WT दो प्रकार से भासमान St उसके wai के प्रमाणें को किस प्रकार कद सकते हे श्रथात्‌ उस केभ्रम को प्रमाणित करके मिटा देना aga कठिन 2 श्रभिप्राय ae कि श्रात्मा के पाने कौ उत्तम इच्छा के रने पर भौ जब मतुव्य के मन म भूटे संसारो Gai कौ श्रभिलाषा stat 2 ते वद केवल विडम्बना डे ॥ श्रथवा-(जा के बर उर बासना भई) जिस के निमल मन में विषय सुख को Teal Bx | (ताहि wa विडम्बना भास प्रमान ate बिधि कथि |) उस के भार श्राड्म्बरों कौ भटर का प्रमाण कौन ae सकता SPU SRI चतुथ सगं | १५९ हज तन-भव परिचय बिना tes कर किमि ars | जानि UTE AEA ATE AEH नास रुज हाद ॥८३॥ (तन भव रूज परिचय विना कोई किमि मेखज करै) WET ससार राग जन्म are दुःख श्रादि वा WAT मं उत्पन्न रोगको भिना जाने कोद किस प्रकार उस कौ श्रौषधौ कर कता ₹है जब राग पदिचान परे तो तुरन्त गरू-वचन-रूप श्रोषध करने से सदज षो मे UT SS जा सकता ₹॥८र्‌॥ मानस व्याध कुचाह तव सत गुर्‌ aS समान | जासु बचन अल बल अवस हात सकल रज हान ॥ ८४॥ (नव qare मानस व्याधि) gem daa सुख ओर aug बाना दो मानसिक राग इ भेर उत्तम गुर रोग को दूर करने- हारे वेद्य के समान हे" (जासु श्रल बचन बल सकल रुज दान श्रवस होत) जिसके aay उपदेश के बल से सव रोाग yay कट जाते हे । तिरासोके ate मरागका परिचय श्रादि qua at acy मं उसके भल भांति समभा कर्‌ उसके क्रटने कौ Mea) भौ बतलाया हे श्रव ८५ मे Mey करने पर्‌ कभो राग weer Ea कि नहीं Ta का USAT करगे ॥ ८४ ॥ रचि बाढ़ सत-सङ्ग मह नौति-ढधा श्रधिकाई | Wa waa बल पौन अल त्रिजिन विपति fate जाद्‌ -॥ ८५ ॥ १९४ तुलसौ-सतसदं | सत्‌-सङ्ग मे परोति श्रधिक दो न्याय पथ पर चलने कौ TART FS ज्ञान को शक्ति दृढ़ भार (रल) समथ दो Ant द्‌ःख चार विपत्ति fae जाय) श्रभिप्राय ae कि राग ट जाने पर FS चधा श्रादि के बढ़ने से बल सामयं aife dat डे वैसे रौ उपदेश के फल दस ste म क हे" ॥ ८५॥ सुकल पच्छ ससि as जिमि किशन पच्छ दुति-हौन। aga धटत बिधि भाति बिद तुलसौ aefe nate ॥ ८&€ ॥ जसे MAT म छष्ण पक्त मं चन्द्रमा कौ कान्ति एक २ कला कर्‌ के azat जातो डे र प्रकत पक्त म श्राकाश के बोच उन कौ शोभा बढती डे र वे खच्छ होते जाते हे, (बिद) ज्ञान wala कबि तुलसौ-दास मनुय को वदो दशा Hed हे“्रथात्‌ ज्ञान श्रादिके रोने Vase कौ कान्ति बढ़ती SAT श्रज्ञानश्रादि से slo होती Fuse सत-सङ्गति सित पच्छ सम असित असन्त प्रसङ्ग | जानु WY RE चन्द्र सम तुलसौ बदत अभङ्ग ॥८७॥ सत्‌-सङ्गति शक्त पत्त के समान भार दुजनेँ कौ सङ्गति कृष्णए पत्त के समान दे Ae श्रपने को चन्द्रमा के समान समभना चारिये तलसो-दास TA उपमा को Faw षताते डे | श्रभिप्राय यड्‌ कि मनुं कौ प्नोति cat कौ सङ्गति से ष्ण पच्च के चन्द्रमा दे समान घटे ओर सच्जनें के सङ्ग HoH पल के चन्रमा चतुद्ये aT | ११५. के समान ag तो समभाना कि गुर उपदे शरूपो श्रौषध से उस का उपकार SA ॥ ८७॥ तोर थ-पति सत-सङ्ग सम भक्ति देव-सरि जान | fafa उलटौ गति राम कौ तरनि-सुता अनुमान ॥ टट ॥ सत्‌-सङ्ग जो डे साई ता तो्थ-पति प्रयाग ईर राम की भक्रि WETS जरर (बिधि) करने योग्य काम (उलट गति) उस कं fang श्रयोग्य काम BUTT Wawa दोनों प्रकारके कमींका परित्याग (तरनि-सुता श्रतुमान ) श्रथात्‌ यमुना जौ जानना alsa श्रभिप्राय यद कि गङ्गा यसुना युक्तं सत-सङ्क-रूप प्रयाग बास के प्रभाव से रामचन्द्र के चरण म भक्ति का दोना मुख्य फल डे ॥८८॥ बर मेधा Brag गिरा घौर धरम ATT I मिलन चिबेनौ मल इरनि तुलसौ तजह बिरोध wee धारण करनेदारौ बुद्धि मानो (गिरा) सरखतो हह ओर धौरज धमे श्रत्तय-बर, तुलसो-दास कते डे कि सव प्रकार के बिरोधों का कोडना सब पापों के दरनेदारो चिबेणो का मिलना रहै । श्रथात्‌ भक्ति sat ae कम्म तौनोँकारूपच्बिणोकेभेलसे भला होता S कमम को परमेश्वर को श्रपण करे ज्ञान से श्रपने खद््प का जाने Ae भाक्त से राम मेंप्रेम Asa तो परम पद ace | red तुलसौ-सतसङ्रं । wae सम aaa विसद्‌ मल अनौति गद षाड । अवसि मिलन सन्से नदीं सहज राम-पद्‌ हेई॥९०॥ (समु भब बिसद मज्जन सम) सन्त के समाज म जा कर उनके भाव | को समभना मानो प्रयाग मं fae चिवेणो ara के समान 2 fa से aye पाप Wada निमृल हो जाता डे ट्स प्रकार wen OA रामचन्ध का चरण sa मिल जाता ईह ca a ge संशय नदीं Feel छमा बिमल Tae सुर-ञ्जपगा सम भक्ति | aia बिसेसर अति-बिसद लसत दया सह सक्ति॥९१॥ सन्त समाज शार प्रयाग का रूपक वणन कर के परमेश्वर शिव art Ue दुगो दया श्रादि का रूपक FET हे । माजा हे Bk निमेल कारो J Are ahs Sr हे सेर गङ्गा नो ड श्रत्यन्त निमंल ज्ञान faqara S ot दयारूपौ (सकि) पावेतौ के सित विराजते ड ॥९९॥ बसत इमा यिद जासु मन बारानसौ न दृरि। बिलसत सुर-सरि भक्ति नह तुलसौ नय-कित भूरि॥९२॥ GAN HE जासु मन WE wat बसत, श्रि aa-Ha सुर-सषरि भक्ति विलसत वारानसो न दूरि । तुलस-टास करते 2 कि कोई we किसो स्थान मं रदे यदि चतुथे सगे | १६७ उसके मनरूपौ घर मे gar et श्रौरश्रति ध श्रौर नोति युक्त गङ्गा जो रूपौ भक्ते विराजमान दो तो (BB पुरूष के लिये) कारो दूर नही हे ॥ अभिप्राय we कि काम क्रोधके बश त्तमा दया Aa पुरुष के लिये aad फल-दायिनौ नदौ दोतो श्रौर्‌ उन गुणो से युक्र जन के लिये सब स्थान काज हौ हे ॥९२॥ सित कासो मगहर असित लाभ Are मद्‌ काम। दानि लाभ तुलसौ समुद्धि वास ATE बसु जाम Es | (सित) Wa पत्त BUT ज्ञान भक्रि चमा दया सत्सङ्ग श्रादि कानो डे श्रौर (श्रसित) छष्ए पक्त लोभ मेह काम sty west श्रादि मगध हे ( तुलो हानि लाभ समुमिः बसु जाम बास ATS) तुलसो- दास aed हे" कि श्रपनो दानि लाभ wag कर श्राटो पर निवास करना चादिये। श्रभिप्राय यदह हे किं wa गतिदाई स्थान काभ att श्ररभदा स्थान मगध GRE शरोर St मं बतला दिया श्रव प्रभ गति wet तो सवेदा कमा दया रादि रक्तो AT BUH चादो तो कामक्रोध के वश Tet दोनों बात Gere दो Wala डे" ean गये पलरि अवे नष्टौ हे सा करु पहिचान, अजु सोईंसादकारिहि हे तुलसौ भरम न मान he gh जो समय ata गया हे स फिर नदीं aa st वर्तमान ह उसे त्र भल भति पदिचानले द्‌ जो श्राज PMs कलभो रहेगा ९९८ तुलसी-सतसद्रं | श्रथात्‌ तेरा श्रात्मा चिकाल मे gray हे दस बात मे तुलसौ-दास कते डे" कि तुभे सन्देह नरी करना चाहिये | दितोयाये--यदि ae मनुय्य जन्म वोत जागा तो पिर दूस का मिलना बहत afer 2 इस लिये जिस aaa देह मे बतमान ड उसे भली भांति Ve कर इभ कमे करो जिस के लिये aie सादत देखना न चाद्ये जो श्राज हे सेद कल डे दस में qe सन्देह wel रे ॥ ९४॥ बत॑मान आधीन दा भावो भूत बिचार । तुलसौ सन्सय मन न FT STS AT निरूवार॥€५॥ भावो श्रोत्‌ जो दोगा (मरण ) WT शत श्रथात्‌ जो St गया ड (ran) दन दोनों का बिचार तु्दारे बतेमान TAT वा कमेके WA डे त॒लसो-दास कते S कि तुम श्रपने मन A किसो प्रकार का सन्देह मत करो परन्तु जा बतेमान ई उस का उद्धार at sual Iw? श्र्थात्‌ चैतन्य परमात्मा का रूप उसे द्र. निखय कर्‌ | श्रभिप्राय यद्‌ डे fa sit कुक Sat चर जो qe होगा उसकी चिन्ता को aS श्रात्म-तलर का बिचार कर cata तेरा कलयाण Rafe दस BMT भानो जन्म मरण का Ga तुभे न भोगना USAT ॥ ९५॥ मान-सरा-बर मन मधुर राम सुजस सुचि नौर | रद्‌ त्रिजिन बुधि बिखद अति बुध नय च्रगम 1 Nee wae सनं | ११९ मन भो S सोर मान-सरोवर तडाग ई उष मेँ रामच का सुन्दर शय पवित wit मोटा भल Say जिन श्र्थात्‌ दुःख को हरता है शरोर बुद्धि को श्रतयन्त निर्मल कर के पण्डित कौ नोति को सुखिर कर्‌ देता Fi get “eee fafa बुधि बिमल भद्‌ बुध नहं waa SA’ पाठ हो वर बुद्धि के निमेल हो जनेखे दुःख दूर हो जाता तब वह सर पण्डितो के लिये afar wit सुलभ्य हो जाता रै, Tar श्रये करना । दष दोहे में रूपक BIRT स्पष्ट ₹ ॥ ८६ ॥ TIS कवि-रोति-युत wea zea प्रौति। बारि-जात बरनन विविध तुलसौ बिमल बिनौति॥९७॥ श्रव कथिता मे जोर विषय पाये जाते डे उन का बणेन करते है । (werent कवियों कौ रौति बर भूखन प्नोति दूखन बिधि श्रौर बिमल श्रविनोति बरनन बारि-जात) fara प्रकार स्तौ कौ गहनेसेशोभा होतो रै उसो Aa alan a शब्द We Wy A aT aa प्रकारके RATT Ea ड" ॥ कबि रौति (कवि संप्रदाय) यथानदौमं कमल वणेन, al के लात मारनेसे श्रशोक का fame, खराब के कुषे से मवसरौ का पलना श्रादि* | (खन gar रोति) गुणदोष यथा श्रो, प्रवाद्‌ * alot स्पशोत्ियक्कुविंकसति वकलः भौधुगणवसेकात्‌ परादाघातादग्रोकल्तिलककुरवकौ वोच्तणालिङ्गनाभ्याम्‌ । मन्दारो नमेवाक्धात्‌ पटग्टदुहसनाचम्प्रको THAAT- gat ata मेरविंकसति च एरो नत्तनात्‌ कणिकारः। १। mage र गुणदोषा के लाने के लिये “fad तुलसौपूषड- बोधः नाम मेरौ एरक देखना भला होगा ॥ 2४ १७० तुजसी-सतसद | arya गण चेर श्रतिकटु sale me wife दोष। इन सभो से यक्त (बिनौति बिमल) Te हलसो-दाख कौ नता से निमेल नो (बिविध बरनन) श्रनेक प्रकार कौ बणेना वौ इस ककबितारूपौ ` सरोवर मं (बारि-जात) कमलप हे" ॥ ९७॥ fanaa बिचार सुहिद्यता साड पराग रस गन्ध। कामाऽऽदिक तिहि सर लसत तुलसौ धाट प्रबन्ध॥€८॥ दस काव्यङ्पौ तालाव के कमशो मं नता Tas, कमल At धूलौ रे, विचार रस इ sit मिचता गन्ध Wal कमल का सुगन्ध है, sit काम तथा श्रादि पद से धमं quate चारो aT as aT रथमा सोभित दँ | AAT का उदाहरण sa “Qual राम क्रिपल तं कहि सुमाव गुन ata होत दूवरौ दौनता परम पौन arta” ॥ रख भक्तिरस जैसे “at” जग बैरौ मोन के श्रपु सहित परिवार। त्यो gaat रघनाथ बितु श्रपनौ दसा बिचार” गन्ध सब से मेल sa Cqeal मोटे वचन तं सुख उपजत WS ठौर। बसोकरण यदह मन्त्र ड तजि दे बचन कठोर” ॥ ९८ ॥ प्रम उमगि कबिता-ऽवशलौ चरे सरित सुचि सार। राम बरा पुरि मिलन हित तुलसौ ETS अपार Wee जिस प्रकारः उख मान-सरेावर से सरयू निकल उसौ Ta दस मान-खरोवर-कपौ सन से RAST तरङ्ग पूणे कित area चतुचं सम | १७१ पवित्र sitet (सार) Se वा उत्तम नदौ ( सरय्‌ ) Ware श्रागन्द ञे afer (राम बरा पुरि मिलन fea) रामच को GUA Gea मिलने के faa aati | श्रभिप्राय यदह कि मान-षरोवर्‌-खूपो मन से कथितारूपौ गदी निकले तो रामचन्द्र के सुयश MT उम को पुरौ wie at वर्णन करे जिस से श्रये धमे काम ate fae ee i ATS तरङ्ग YRS बर हरत देत तर मुल । वेदिक लौकिक विधि बिमल लसत fans बर क्ल ॥ १००॥ दस कबितारूपौ नदौ में श्रनेक प्रकारके इन्द्‌ जो हे" at चञ्चल ATTY Ht वेद कौ विधि श्रौर लोकिक निधि श्रथात्‌ वेदिक लो किक दोनों मतरूपो fae उत्तम किनारे में के Fa श्रधात्‌ जोव we kat दोनों fry रे" रत्यादि मत wear शोकिक दिक Tat रौतरूपौ इच्च कौ जङ्‌ को उलाड डालते हेः yee i सन्त-सभा बिमला नगरि सकलं सुमङ्गस-खानि। तुलसी-डर FCAT waa मुल अमुमानि ॥ १०१॥ शकल सुमङ्गल-खामि सन्भ-सभा बिमला मगरि तलसो उर gue WIA सुर्‌-सर-सुता लसत ॥ | श्रयोध्या को पविच्र जान कर उस मे षरय वहतो हे परमत यषा Ree तुलसौ-सतसदं | aq Sta sna nara को खानि (सश्णन) साधो कौ सभा fara मगरो (श्रयोध्या-पुरौ) मे तुलसो-दास के yeast उत्तम खान को श्रतुमान कर खरय्‌-नदौ्ूपो (कमिता) शोभित होतो हे ॥ ९०९॥ मुक्त gags बर बिखयि सोता चिविधि प्रकार । TTA नगर पुर जुग FAS तुलसी कहि विचार ॥१०२। तलसो-दास बिचार कर के कते डे किं FB सरयू नदौ के aiat किनारे पर ग्रामादि बस्ते है वसे टौ ated कबिता के सुननेहारे तोन प्रकार के हे" शर्थात्‌ सुक्र gay श्रौर बिषयो mat प्रकार के श्रोता ग्राम नगर पुर दे'। gm श्रोता बे werd SF ओ एक रस कथा मं मन FT ar सुगते, Gay वे जो मुक्ति पाने कौ rear से कथा सुनते है श्रौर उन कौ कथा सुनने कौ इच्छा भौ हे परन्तु मन एक रस नरी है att विषयौ वे जो विषय सुख a मन रखते ह परन्‌ योङ श्रद्धा HET FH AT Ti Lor बारानसी बिराग afe सैल-मुता-मन हाय। तिमि अवधि ace न तज कषत सु-कबि सब काय | ॥ १०३ ॥ सेल-सुता-मन बारानसौ बिराग afe होय तिमि सरय श्रवधरहिं ` ग तज सब कोय सुकबि कदत ॥ way सगं | १७४ fora प्रकार (Ga) हिमालय तिस कौ पुत्रो पावती श्रयवा Vat हाड से निकलनेष्ारौी गङ्ग जो का मन काशौ जो से श्रलग नदीं ` होता श्रर्थात्‌ वह काशौ को नी कोड्तीं उसौ प्रकार सरयू श्रयोध्या को महीं algal एसा aq wee re कवि लोग कते BI शरमिप्राय यह हे कि सरयरूपौ कमिता श्रयोध्याूपौ सन्त-सभा को नदीं छोडतो ॥ Yee It कब सुनव समुद्चब सो पुनि सुनि समुञ्याद्ब UTA | खम-हर घाट प्रबन्ध बर Gaal परम प्रमान ॥१०४॥ दति ओ्रौगोखामो-तलसोदास-छत सप्तशतिकार्यां ्रत्मबोधनिदेो नाम चतुथ, सगः ॥ qual परम बर प्रबन्ध कब सुनवं समुब पुनि सुनिश्रान समुभाद्ब सो सम-हर MS प्रमान ॥ तलसो-दाख के इस wea उन्तम गन्ध वा कबितारूपो सरयू का HEAT सुनना THC We सुन कर Zari को समुद्याना जा 2 वहो परिश्रम को दूर करनेषारा चाट ड । सर्‌ मदो मे परिश्रम से थके छयेजालोगश्राकर खान करते "उन का श्रम fae जाता Sq वे बड़े श्रानन्द को पाते हे परन्तु शस dere Hat ar HA दुखदायौ परिश्रम उन का बार २ जना लेना श्रौर मरना हे सो ब्रह्मज्ञान नोने के कारणस होता, ₹े श्रौ, agin | १.७9 तुलसौ-सतसङं | देगेहारो त्रलसो-दास कौ कविता को पटने सुमने से श्राद्मतत्् ofa etat ₹ेश्रौर Hat ar संसारम वार९ जग्म मरम काङ्ग दूर हो जाता SI | पर के HE एक दोहं मं रूपक श्रलङ्कार ₹े। ९ श्रये ९ धं काम ४ मोका साभ Ca wATe ela BS fH Bar से श्रयं पाना, श्रद्धा से श्रथेको भले काम में aay धमो we ay ध से कामश्राप हौ fag होता हे फिर राम-भजन गुणगान श्रादिसे git aes से मिल सकत 2, ca प्रकार सब फल ATH St THAT हे॥ ९०४॥ दूति विष्ारि-छत-संलिप्तरौ कायां चतुथे; सः ॥०॥ अथ A सगं। == जतन HATA जानु बर सकल-कला^-गन-धाम | अबिनासो श्रयय AAS भौ यह तनु धरि TAN प्रथमाय (सकल-कला-गुण-घधाम VA WY श्रमलश्रनुपम राम) सब tae NT गुण से पूणे, नाश रहित, श्रादि श्रन्त होन, —_— * कला (नर) ९९ चौसठ हे" यथा-२९ गौत । २ वाद्य...बजाना | ३ टय. .नाचना।8 ALA... SH कौ खेल। ५ Ara... fay बनाना | ६ विरेषच्छेद्य..-दौरा anf वेधना । ° पुष्यास्तस्य...णुल का विद्धौना wife ननाना। ८ द्सनवसनाङ्कराग,..रक्ना। € मणिभूमिका Aa... मणि कौ Catt ats | १० एवन रचना,"सेज बनाना | १९ उदक- वाद्य...नलतरङक TAT! LR उदकधघात,,.जलताडन | १द्‌ चिषयोग .."तशवौर का सजना। १४ माल्यग्रव्यन.. मालागुंयना | ९५ शेखरा- पीडयोजन...सुकुट चादि विधान | ११ गेपथयोग,,.१द्कार करना ANE Am बनाना। १७ कणंप्भकक,०कुण्डलादि | ९८ छंगन्धयुक्ति"' "अतर छादि बनाना। १९ भ्रूषणयोजना...गहना चादि At स्चना। Re इन्र जाल । २९ कौस्तमारयोग,..वङ्रूपियापन 1 २९ इस्तलाघव,..पट- पाजो | २९ भोज्यविकार., "नेक Bat बनाना | २९ पानकरसरागा- SANA... HASTA WMT | २५ दइतचौवाणकमे...वायाचलाना। Ve दजकोड्ः... चकद्र लदश eT । २० aefeat...gasy कणी | १७६ तुलसौ-सतसदं | सनातन निर्मल fire के षमान whe कोद नही हे एते राम विष्णु भगवान ने (भव) संसार मं (यद तनु धरि) ca मनुय के शरीर को धारण किया उन al श्राराधना को (बर जतन नानु) SHA यत्न वा काम staat चाहिये ॥ | २८ प्रतिमाला,..पञ्गोली | २९ दुर्व चकप्रयोग , . कलवा । 2 ° TAR ata) ३९ नाटकास्यायिकादिदशेन | ३२ काव्य समस्यापूति | ३३ पट्टिका वाडवेन्नविकल्य--वेत का प्रलङ्क चादि fara! ३४ aa २५ तक्ण..-ब़ं का काम। ददं वल्तविद्या...धवरं । RO खगेरल परौत्ता | ३८धातुवादर | ३९ मणिराजन्लान..-दौरा,गवाहिरी। se आकर WIT | ९९ SIVA | ४२ मेषङकुटलावकयुद्धपिधि-मेडा ante wert कौ रौत। ४९ खकशारिका प्रलाप्रक-चिहियाँं कौ बोलौ। 98 उत्सादग--उश्चाटन | ९५ Auraria कौल । ४९ खअच्तरमुष्टिकषा कृथन...मूकपग्र । so श्लेच्ितकुतकंविकल्य | ४८ देषभाषाक्लाम । se एष्मसकटिकानिमितक्नान,."पुल से गाड़ो बनाना | ५० पवमालिका- कटपुतलौ | ५९ सम्बाच्य...मन का प्रश्न | ५२ मानसोकाव्य । ५द खभि- धागकोश । ५४ छन्दोज्ञान । ५५ क्रियापिकस्प...काय्येसिदि। ५९ लितकयोग--क्लजानना | ५७ THAT... HT TSH कौ Tae! ४८ ब्यतविग्रेष...पासा खेलना । ५९ चाकधक्रोडा...खेल को अपनी etc खौचना। ६० वाशक्रोड्नकानि । ६९ वैनायिकौनां सभाचातुखी | qe वजयिकौनां--जयदेनेवाली विद्या। ६९३ वैयासिकौनां way पराणाद चने कौ चातुरौ | 4४ -षड्विध राजनोति-(सन्धि, fare, यान, खासन Satara Ste स्नव) | इति शि वतन्ल्ोक्त-चतुःषद्ि-कला ॥ पचम सगं | १७७ दितोयाये-(यद ततु सकल कला-गन-धाम बर जानु) संसार मे इस waa देह के सव विद्या चर गणो का खान it Fe ` समो wife ्रतुपम श्रविनासो श्रव्यय श्रमल राम ge तन धर्‌ भौ ) उपमा, नाश श्रादि श्रन्त श्रौर दोष होन राम दस शरोर के ban धारण करनेदारे ये । RK एक Gaal मं “A तन श्रलुपम" श्रादि पाट हे वहाँ दितीयाथं करना उत्तम होगा, ओर दस श्रथ मेँ मनु WT को बड प्रसंश ड ॥९॥ सदा प्रकासक रूप बर HA न AT न WMA | प्रमेय HSA AA Al TTT न ग्यान RI श्रन्वय | सदा प्रकासक वर GI TA न श्रपरनश्रप्रमेय WH श्रान TSA AT A MA न दुरत। सदा सबेदा श्रपने प्रकाश से सव को प्रकाशित करनेवाले उन्तम- रूपवाले, कभ जिस का नाश नरी होता, Fat नदौ परमेश्वरद्टप, भन वचन कमं से fae के परिमान को कोर नदीं जान सकता, (उसे श्रप्रमेय कते हे“) श्राप से श्राप उत्यन्न ABET GE नीं केवल परमात्मा के ङ्प दसो कारन उन से ज्ञान कभौ दूर नदीं होता wuld ज्ञानरूप राम 2 ॥ दितौयाये मे “eq बिग्ेषण श्रज श्रदधेत ब्रह्मका लगा कर श्रं करना चाहिये fa Te aq aT SI St WTA at (यातं) दस मतु दद से दूर नदीं होता” कना चाहिये ॥ २॥ 23 you तुलसी-सतसद्ं | जानहि इन्स रसाल AE तुलसी सन्त न श्रान । जा की त्रिपा-कटाद्‌ तें पाये पद्‌ निरबान ॥ ३ I श्रन्धय ( तुलसो सन्त न्ध रसाल कदं जानि न Ta oT AT ` क्रिपा-कटा्‌ ते' निर्बान पद पाये) । तलसो-दास कते हे कि साधु जन Vag विष्ए-रूप राम को al Ga को जारं ऊखके रस वा (रस wee से get ga लेना चाहिये) पानो को जानते S श्र्थात्‌ वे यद्‌ समभते ह कि faa प्रकार Ga कौ किरणं से जल वर्षां तु wala पर बरसता डे अर फिर dia मं val किरणं के दारा ख जाता 2 ओर कुदं नदो पोखरा श्रादि a रद जाता हे उसो प्रकार परमेश्वर का eu जोव ईर कौ माया प्रकृति से संसार मेँ श्राता चार फिर TR कौ दयासे मुक्रिपाता FMT ca MH साध जन जानते ई Far नदीं जानते | oat at दया दृष्टिसे मुक्ति पद मिलता = ॥ नां “जान EY सुर-सम कड Gaal सन्त न Wa” पाठ St वदां (Gaal कड SY सुर-सम सन्त जान न श्रान) तुलसो-दास ने कहा हे कि aa देवता के समान तेजश्रौ ay लोग दस मनुग्य शरोर के माव्य को जानते ई दूसरा कोड नदीं जानता (जा को क्रिपा-कटाङ्क ते निरबान पद पाये) fra at दयादृष्टिसे मुक्ति पद मिलता हे एसा श्रं करना चाद्ये । श्रभिप्राय यद्‌ कि देवतादिकं का रौर Fae भोग के योग्य 2 परन्तु मनुष्य शरोर से सब प्रकार का पुन्य ईः भजन We भोग Wot aa FH 8 पञ्चम सग | Ry, aaa सलिल श्रपि पुनि गहत घटत aga नहि रौति। तुलसौ यदह गति उर निरखि करिय राम पद प्रौति॥४। wa नारायण श्रपनो किरणों से मि के नल को वीच लेतेरैः फिर बरसाते 2° उन कौ ae रौति ₹हे ओर खींच लेने चेर बरसाने मे"जल घटता Agat नहीं वा उन कौ रौत न्यम Are afin नही होतो । तुलसो-दास कते 2 कि श्रपने दय से San at Ht aat रो गति समभ कर रामचन्द्र के चरण मं प्रेम करना चाहिये । श्रभिप्राय यद कि श्रात्मा चरता बढता नदीं केवल WUT घटता बढ़ता हे दस कारण apt को चाहिये किं शरोराभिमान कोड कर परमात्म-खरूप रामचन्द्र को भक्ति करे ॥४॥ चुम्बक अस्मन रौति जिमि सन्तन हरि सुख-धाम। जानति रिच्छ-रसम सफरि तुलसौ जानत राम।॥५। जसे चुग्नक को देख कर (Ta) ter खीच उठता F (सन्तन सुख-धाम हरि रौति तिमि) उसो प्रकार साधु जनके सुख दनेहारे परमेश्वर कौ चटा श्रपने भको को WT दोनो चाहिये! (रिच्छ रसम waft saa) aca कौ रौति को wal जानतो हे श्र्थात्‌ श्रथ्िनौ से कटवीं नचच Bal को जान कर Ra WET दतो ड उसो प्रकार से uae कौ रौति को तलसो वा ओर भक्त लोग जानते ड यदि जान । fate, रसम पदच्छद करो, तो जल कौ तौखौधार चँ तैरने के Da मदलौ जानतो ड वसे S सल्ल, -रमि- ९८० तुलसी-सखतसङ् | रोति जानते SF tar wa करना चादिये। करै एक पुस्त मं met पाट है कदाचित ae wea शब्द से विगड़ कर बना है श्र्थात्‌ जो पौटा गया हो । wae पाठ रखने से ठीक टक श्रये होता TY भरत इरत दरसत सबहि पुनि अ्रदरस सब काह । तुलसौ सु-गुरप्रसाद-बल हात परम पद्‌ लाह ॥ ६। ( भरत सबहिं दरखत ) जसे जब यं नारायण वषा श्तु म भल बरसा कर संसार को भरते समय श्व को देख पडते डे परन्तु TN Ua मं Gard समय उन कौ रौति नदीं देख पडती aa शो संसार कौ गति हे श्र्थात्‌ प्रत्यक अर wars रीति से इस कौ उत्पत्ति पालन ओर नाश दोता हे त॒लसो-दास कते हे कि उन्तम TE कौ दया से टन ब वस्त्रों का ज्ञान होता द तव gin मिलतो ₹ ॥ ६ ॥ यथा VAS SET बह जानत है सब काय | तथा हि लय-गति के लखब असमश्ञस अति साय॥9। MATT | (यथा सब कोय बड़ खरूप प्रत्यच्छ आनत है) सब लोग (कर WA BOE २ GAR प्रकार के रूप के प्रत्यक देखते इं (तथा हि को लय-गति लखब) व्रेसेदो नाशकौ गति को कोन जान सकता हे (सोय अति serge) वद तो श्रति afer ई श्र्थात्‌ मरने = के श्रनन्तर मनुग्य कौ क्या गति Stat 2 दस का जानना बहत कहिन = | प्म सगं । Use दितीयाथे । श्रन्वय (सब कोय यथा प्रत्यच्छ TE WEY जानत दे) सबं को जिस प्रकार vara बह्तेरे खरप श्र्थात्‌ पञ्च त ` (Fat, जल, तेन, वायु रार श्राकाश) से जगत कगे sua at जानते हे* (तथा fe लय गति को लखब ) उसो प्रकार निश्चय इन के लय रोने के प्रकार का (श्र्थात्‌ val जल म जल Ana इत्यादि) भौ जानना चादिये । परन्तु (साय श्रति श्रसम्नस ) उस परब्रह्म Airey राम का जानना श्रति कठिन डे ॥ ७ ॥ यथा सकल AT जात अपि रवि मण्डल के मांँहि। मिलन तथा जिव राम पद हात तहां लय ATEN (यथा सकल श्रप रबि मण्डल के माहि जात तथा जोव राम पद मिलन जात तद्द लय नाहि ta) जिस प्रकार से सव जल निश्चय कर्यं RAGA A HT AT MA दो जाता हे उसो प्रकार जव नोव राम पद्मजा कर लोन Slat S तो वदां Te AT ATT नहीं रोता । श्रभिप्राय यद कि जसे जल uf Bam के war म बदल कर श्राकाश A TT कर Ba में मिलता रार्‌ दरस का नाश नदीं होता वसे ही जब तक जोव संसार मंडे तन तक यह श्रपना शरोर बदला करता Vi उस को vA मरन कते F परन्तु जब रामचन्द्र के चरण मे मिला तो सव प्रकार Frey से कुट कर AM Et STAT | | wait से श्राया जल किरणा के.दार gent "फिर {eR Teest-aaeae | Ba मण्डल मे जता चार बादल हो करश्राकाश् मर्ता डे फिर मर्षा मं बरसता ड स्ये मं मिल नदो जाता उसो प्रकार जोव श्रपने शरौर का बदला करता हे परन्तु लय नदी होता ॥ ८ ॥ करम केस सङ्ग लै गथा तुलसी aaa बानि। जां जाई बिलसै तां परे करां पडिचानि ॥ € ॥ ( तुलसो श्रपनौ बानि करम कोस ay ले गयो ) तुलसो-दास करते दँ कि Na sua aura सेश्रपने क्मकाभण्डारले गया ओर ले जाता है (जदं जाद ताँ बिले परिचानि कडा पर) नरां जोव जाता दहे वदां श्रपने कमक भोगता = तो उस कमै कौ माया Hus जोव से श्रपना रूप परमात्मा किस प्रकार परिचाना जा सक्ता ZI श्रभिप्राय यद कि quan कमे जोव के साथ श्रक्श्य जाता है ae जिस योनिम रहे परन्तु दसे कमे का भोग श्रवश्य करना पड़ता ईहे बिना ज्ञान के श्रपना परमात्मरूप पदटिचाना नदीं जाता॥ € ॥ ज्यों धरनी मद हेतु सव रहत यथा धरि देह । al तुलसौ लय राम Ae मिलन Hay नदि णड ॥१०॥ HI veal मं सब वोज श्रपने sare (श्रर्थात्‌ att aaa Mt पद पत्तो करई ge श्रादि चर श्रचर रूप ) से रहते हे परन्तु saa मे मिल नदीं जाते उसो प्रकार परमात्मा Taw म | Aaa लोन हो कर भो कभी श्रापस म मिल नदीं जातु डे ॥९०॥ Wea सगं | १८६ सोखक VISA समु सुचि राम-प्रकास-सरूप | यथा तथा विभु देखिर जिमि ्राद्रस अनुप॥ ११।॥ ( सुचि vata सरूप यथा Bran पाखक समुभा) पवि प्रकाश- रूपो ay जिस प्रकार ले MT पालन के करनेदारे समभा पडते 2 (तथा fay राम जिमि श्रनप श्राद्रस सरूप रेखिए) उसो प्रकार से व्यापक राम परमात्मारूप श्रतुपम दरपन मे सब जें का देखिये। च्रभिप्राय यद्‌ fa उत्तम cat में देखने से जिस प्रकार श्रग्नि जल मुखादिके रूप भलो भांति Da Aa देख पडते F परन्तु उन के गुणां का लेप उसम नहीं लगता न वदश्राग से जल न पानोसे भौग सके। यथपि सब उसमे at at ae निर्दोष हे ॥ ९९१ ॥ करम मिटार faz नहि तुलसौ किर बिचार | करतवडीकाफेर FS ar बिधि सार AAT eI ( तुलसौ बिचार किए करम मिटाए afe faza) तलसो-दास ने विचार किया डे fa श्रपना किया प्रभ ane कम मिटानेवा नष्ट करने से frat प्रकार नष्ट नीं होता (या बिधि करतब हो के फोर सार श्रसार डे) ce प्रकार श्रपने करतब रोके GTA परमात्मा जिदीष निमेल डे चार जोव श्रसार श्र्थात्‌ मलोन HAT हे भार ये परस्पर विरुद्ध दोने के कारण नदीः मिज्ञते ॥ ९९. ' १८४ तुलसी सतस | रक किर च Fat sete तीसरा अङ्ग । quant aa ह ना मिटे श्रतिसय करम तरङ्ग ॥ १३। किये जाते, va जन्म के किये ane होनेवाले तोन प्रकार के. कमे डे । एक श्रथात्‌--किये जाते कर्मके करने से उसके साथ दूसरा होनेवाला भो होता हे फिर तीसरा wa sa aa श्रपने (श्रङ्ग) WAT हौ के साथ उत्पन्न Eat Si इस प्रकार कमे का तरङ्ग (श्रचात्‌ दद्धि) तलसो-दास aed F कि श्रत्यन्त ई चार किसौ प्रकार नदीं नष्ट होता ॥ श्रभिप्राय यद fa जो aga दस संसार में पूवं जन्म a उत्तम कमे किये ह वा श्रव करते है उन को उस का फल सुख भोगना पड़ता हे चैर भो पाप कमे करते हे उन्हे दुःख भोगना पड़ता डे । wat कृभौ पाप के करते पुन्य रार पुन्य के करते aa at संयोगसे रो oat Fi दष प्रकार दोनो क्म करनेहारे संखारौ कम कौ जाल में फस कर SN शल्य के भागो होते ₹ै ॥ ९२॥ इन Qe ते रहित भै काउ न राम तजि भ्रान। तुलसी यह गनि जानि are कोड सन्त सुजान ॥ १४॥ (दन atat ते रित सुनाम राम तजि श्रान न भौ ged यद गति are काउ सन्त जानि) इन दोनो प्रकारके gargs कले ये रोग जान TATA MTT को Sty कर भार प्म art | १८४ के महीं श्रा श्र्थात्‌ जरो कमे से cigs et कर्नौ रै वह ब्रह्म Wey हो जाता Si तुलसो-दास कते ई कि दष कमे , जाल के भेद को कोड कोड विरले साधु लोग आमेगे ॥ ९४ ॥ सन्तन के लै अ्रमि-सदन समुदि सुगति vata करम बिपरजञै कबहु नहि सदा राम रस लौन ॥१५।॥ पले के करई एक दोहो म विरोधाभास wage दारा कमं कौ प्रबलता दिखा कर श्रव साधु नें के कमं जाल मंन Wet का कारण कते SI श्रन्धय (प्रमौन सन्तन श्रमि-सदन & को सुगति समुभदिं) ज्ञानो साधु जन wad के घर मं लोन रहना श्र्यात्‌ मुक्ति खूप राम भक्रि मं लगे रने को उत्तम गति जानते =, क्योकि ईस मं कभोभो कमेका ST फरनदीरोता। क्योकिवेभो HERA करते ₹ उख के फल को परमेश्वर को श्रपण किये जाते हे यद्यपि वे कता S तौ भो ममता न रने के कारण कमे बन्धन उन्हे नदं atuar चर वे सवदा राम कौ भक्रि योगम लोन र्ते FI श्रभिप्राय यष कि श्रष्टतरूप भक्ति योग मं लगे जन श्रपने Wag कम को ज्ञानाभ्नि से नष्ट कर परमानन्द के भागो होते डे ॥ ९५॥ सदा शक रस सन्त सिय faawa निसि-कर जन | राम दिवा-कर दुख-हरन तुलो सौल निधान ugg प्रथम Bl सवदा एक भक्ति रष मं खगे SA साधर. खये 24 Ure तुलसी-सतसद्गं | सोताजो waar We भ्रति gate Ae दुःखों को दूर करनेहारे राम खये के समान द श्र्यात्‌ दिन को qa ज्र रात को चन्द्र reat के दुख को हरते र उस प्रकार सोता राम मो ड ॥ | सवेदा एक रस भक्ति BET साधु जनो को (निसि-कर चन्रमा चदि श्राह्वादने धातु से निकला इस कारण ) श्रानन्ददायक afm een सोता जौ को जानना चाद्ये चार दुःख को दरण करनेहारे दिवाकर श्रथात्‌ Gey (सोल-निधान) ee राम को जानना चाहिय ॥ ९६ ॥ सन्तन कौ गति उरबिजा sag ससि परमान। रमित रहत रस-मय सदा तुलसौ रति नदि are 91 (सन्तन को गति उरबिजा ससि परमान StS) चन्द्रमा के सदृश विजा afa से उत्यन्न जानकौ जौ को साधुश्रो कौ गति श्र्थात्‌ भक्ति श्रवस्या जानिये जहाँ रख प्रण ओओरामचन्द्र जो (रमित रहत) बिदार करते इह" (श्रान रति नादी) भार दूसरे मे प्रीत नदी करते | श्रभिप्राय ae कि जैसे जानकी जौ मं ज्रौरामचद्रकी मोत रतौ रे वैरे रौ सोता सदृश साधु कौ afew मं मो रामचन्र परेम करते रे ॥ दितोयाथे श्रन्वय । (सन्तन at श्रान रति नारिं) साधुत्रों कौ सोता ats चर faa मं प्रीति नही है (ससि afters उरबिजा गति mas) चन्रमा के समान Taw सोता दौ उन कौ गति 2 (रशनन रति सदा रमित रत) दस रतु उन कौ श्रानन्द्रस पूणं Tea सगं | १७८७ भक्रि मेषे लगे ररते रै श्र्थात्‌ सोता जौ के भजनम मं मगन ररते Bou ` जात-रूप जिमि अनल fafa ललित हात तन ATA सन्त सीत-कर सौय fafa wate राम-पद पाय॥१८। (जात-रूप) सोना जिस प्रकार श्रग्नि म रखमे से श्रपने (तन) शरोर को (ताय) ad कर के लालभश्का हो जाता दे, vat प्रकार से साधुश्रां को बद्धि (सोत-कर) चन्रमारूपो सोता ओर श्रोरामचनद्र के चरणएको पाकर सोभित रोतो हे श्र्यात्‌ सोता-राम कौ भक्रि में साधुश्रों के मन लगे रहते हे दृष कारण सदावे सुखौ रहते हे" ॥ ९८॥ argfe बधत arg हटि ata डाड़ावत ताहि । सुख-दायक देखत सुनत तदपि सु मानत नाहि।॥१९॥ दूस संसारके मगुव्य लोग (श्राप रि BIE बाधत) श्रापदौ es कर के श्रपने को संसार कौ VGH कमेरूपौ जाल मे बधते & तोद्नको कौन कोड़ा सकता हे देखते ओर सुनते है कि ज्ञानमय रामचन्द्र WT सन्त सुख देनेवसे SF at A sa at नरी मानते परन्तु wa मरण श्रादि के ata दुख के देमेदारे विषय के ae दौडतेडैतो उनको कौन सुक्र कर्‌ सकता श्र्यात्‌ कोर HET कुर सकना ॥ LE ॥ । १८७८ तुलसौ-सतसङ्ं | लैन तार तें रधम गति उरध Ata गति जाव । तुलसौ ARC तन्तु इव कब हं न करम नसात॥२०॥ ठलो-दास करते ह कि कम का फन्द मकरो A जाल घा. Vi मकरौ fre खत से नपे उतरतौ 2 उसो को पकड कर ऊपर eat & Are sat तरां से उस का ऊपर AS जाना श्रागा लगा रहता हे उसो प्रकार मकरो कौ जाल के समान कम॑ कभो नष्ट नही होता श्रर्थात्‌ जिस प्रकार मकरी एक दो तार से ऊपर नौचे दौड़ा करतो इहे तार नदीं टुटा ae SY कमे कामौ तार महो Zea दस क कारण लोग खगे नकं भोगा दहो करते ड ।९०॥ WE रहत AE सह सदा तुलसौ AO बानि | सुधर बिधि-बस Bre जव सत-सङ्गति पडिचानि॥२९॥ wet त्र र्ता हे वां तेरे साय सदा तेरा aa जर waa भौ रता ₹हे (तुलसौ जब बिधि-बस सत-सङ्गति पदिचान होय तेरो बानि सुधर) तुलसो-दास करते ड" कि जब man से तेरे मन म खच्जनेों कौ सक्ति का परिवान दो तो ae तेरी बानि सुधर AMAT ॥ २९१॥ रवि रजनोस धरा तथा यड अस्थिर अरस थूल । BAA गुन का जौव कर तुलसौ से। तन-मृल ॥ २२॥ (खया. रवि vate धरा) जिस प्रकार ga आर चन्रमा TEA समगं | १८९ श्रपने श्रपने किरण ओर प्रकारके दारा vat (धरा शब्दं से यं लक्षणा दारा उसपरक्े Hat को जानना चाहिये) का पालन करते ड" । (तथा यद श्रखिर श्रस थूल ) वैसे हो श्र्थात्‌ उसो श्रखिर शमि के समान Na का यह खल-शरोर हे | (Gaal सो खम तन गुन को जब कर मृल ) त॒लसो-दास उस BA शरोर के गुणो को Nat का कारण कते हे श्र्थात्‌ जो जो बाना खदा देच H रहती हे वे द Ya संसारो म होतो डे “क्योंकि शास्त के नियमों से कारण के गण क्ये मेपायेजाते हे । (कारण- गुणाः काययगुणानारभन्ते ) | वेदान्त के अनुसार पांच पांच ज्ञानेन्द्रिय कमन्दरिय ITE मन बुद्धि चर पञ्च महाग्डूत Ga TAT ह" दरस प्रकार दोनो प्रकार के WOU में वेशो गुण शरोर खभाव पाये जाते हें ॥ २२॥ आवत श्रपरवितेंयथाजात तथा रवि arte जह तें प्रकट तदं TTA FTA जामत ताहि॥२३। ( यथा श्रप रवि तें श्रावत रबि aif जात तथा (जोव ) जरं ते प्रकट तद्धी दुरत geal तारि जानत) | जिम प्रकार जल Gas श्राता हे At far ga हौ मं चला लाता रे श्र्थात्‌ ee नारायण श्राठ मौने तक ग्रमिपरकेजलकेा किरणाः से ate कर वर्षां कालके श्राने पर उसे फिर वरसाते डे" (श्रष्टौ मसाननिपोतं यद्ुम्याञ्चोदमयं वसु । खगोभिेक्रुमारेभे' Ga: काल्‌ श्रागते | भागवत ९० Se) उसो, प्रकार जरं "स qe Reo anal सतसङ् | Ha प्रगट शोता हे वँ हीः श्रन्त में जा कर ( दुरत ) मिल जाता हे तुलसौ-दास श्रयवा राम Aa सोता केर भक्त Va aa at श्रथवा उस fay का जानते हे“ ॥ ea ti प्रकट भये देखत सकल TTA लखत कोड्‌ ATT | तुलसौ we अतिसय अगम बिन गुर्‌ सुगम न हाय॥ २४॥ (SAI) सकल प्रकट भये देखत कादर कोय दुरत लखत Geet ae श्रतिखषय श्रगम बिन गुर सुगम न दोच | सब लोग जिस प्रकार ated समय जल को देखति हे" उसो प्रकार जब HAHA लेता है तब सब लोग जानते S AT देखते है" परन्तु जब श्रदृश्य बाफकेश्राकार A जल उड़ जाता ₹े विरले हो aay देखते दे", वदो दशा प्राण के मरने के समय vist 2 त॒लसो-दास कते & कि ae बात ast कठिनता से जानो जातौ ड ओर विना wee गृर के जानने के योग्य नहीं होतो । दस कारण उत्तम AE को खोजना AT परमेश्वर का भजन करना बहत श्रावणश्यक = | जहां “वड श्रतिसय waa” पाठ हा वदां यद संसारो नोव बडत नोच रोर बुद्धि-हौन रे टस लिये बिना गृरुके परलोक संसारो नोव के लिये सुगम AG हो सकता Tar श्रये करना चाहिये ॥ २४॥ याजगजे नय-षौन नर बर बस दुख-मग जाहि । MATT दूरत महा-दुखौ WE लग कियत ताहि Ny UGA aT | VER (Way) (या भगजे नर नय-होन (ते) षर बस प्रकटत Std महा-दुखो दुखमग जादि ताहि ae लग कियत) | दस संसारम जो age नौतिसे रदितर वे विषय में wren होनेके कारण es सेश्रनेक योनि मं जनमते ओर मरते F बडे gat Ut कर दुख को राह मंते S उनका कहां तक वणेन करे" वे wag Ss ॥ २५॥ सुख-दुख-मग AVA गहे मग RE लगत न धाय। तुलसौ राम-प्रसाद विन सा किमि जाना जाय॥२६। (श्रन्वय ) (TIA सुख दुख मग गरे मग घाय AS न लगत तुलसो सो रामप्रसाद बिन किमि जानो जाय) | जोव श्रपनो ही इच्छासे सुख श्र्थात्‌ शान्ति दया नियम श्रादि सुख देनेवाले काम चरर दुख श्र्थात्‌ कामक्रोध लोभ TERT कररता कपर श्रादि Zak कामों मे पडतं हे' परन्तु Gank Arq quark रा aly कर किसो को नीं लगती श्र्थात्‌ जो सुखदाई कमे करता हे वह सुख Tat We जो दुखदादर करता वह दुख पाता ₹े कमे का बन्न बिना कमं किये किसौ कोनो ary सकता | त॒लसो-दाख aed हे कि ग्रौरामवन्र कौ छपा के बिना ay किस प्रकार सेजाना जा सकता ₹े। जिस पर रामचन्द्र MN aA दया होतो हे वह श्रपने ganas से भले ara F लगता Fu २६ ॥ VER तुलसौ-सतसद | ate a cf cf तेंश्रवनि सपने हं सुख कहं नाहि | तुलसौ तब लगि दुखित ्रति ससि-मग लत न ताहि ॥ २७ ॥ . (waa) महिते रबि रथि ते श्रवनि सपने Sas सुख नादिं ठलसो तब लगि श्रति दुखित (जब लगि) ताहि ससि-मग न लत | जिस प्रकार जल fa पर से दृश्य श्रदृ्र वाफ केश्राकारर्मं एक बार ga मे जा मिलता ई फिर aa में शमि पर mar? उसो प्रकार जोव कोभो गतिर, दस काखभ्र मभौ कीं सुख wet हे जदा मरण के चक्र मे घूमा करता ₹ै। तलसो-दास करते दे कि तब तक ae जोव बहत दुखौ बना रहता ₹ै जब तक सा चन््रमारूप बुद्धि a Stat st कौ शरण नदीं प्राप्त दोतौ। जव चन्द्रमारूपो Bat sm कौ दया इष पर जतो इस के faa सशिदानन्द ब्रह्मरूप राम का मिलना कठिन नदीं हे ॥ २७ ॥ सन्तन कौ गति सौत-कर लेस कलेस न राय | सा सिय पद सुख-दा सदा जानु परम पद्‌ साय ॥९८॥ (श्रन्वय ) सोत-कर सन्तन के गति कलेष लेस a ete st षदा सुख-दा fag पद सोय परम पद्‌ जातु | चन्रमा श्र्थात्‌ बुद्धिरूप शओ्रौजानको जो सधुत्रों को श्रा भरो दसो कारणउन का थोड़ाभो दुःख नष्ट होता वद्‌ चन्द्रमा षदा सुख GUT Matar Ht का चरण F sat के परम श्र्थात्‌ पर पञ्चम सग | १९४ ्रह्यरूप राम श्रथवा परम पद्‌ aie जानना चाहिये। किषौ faar पुस्तकं मं “जानु राम पद सोय” पाठ मिलता & वहां सोता जो बुद्धिरूप हे“ उन को रामचन्द्र जौ का पद लानना रेषा श्रथ करना चाहिये ॥ जिस प्रकार माता, पिताके दूर tet पर भौ, Ga का पालन करतौ चार उसे पिताके पास पञ्चा देती ह उसो Aa याँ मातारूप सोता जौ an ga को Tart कर रामचद्ध से मिला ZS ॥ ९८॥ asa अभिय ससि जान जग तुलसौ देखत रूप | गइत नह सव कद विदित ्रतिसय अमल श्रन्‌ प।२९॥ (waa) जग जान ससि श्रमिय तजत qual श्रतिसय श्रमल WTI रूप देखत सब कदं बिदित गत नीं । संसार जानता हे कि चन्रमा से श्रत निकलता 2 Az चन्र के श्रत्यन्त निमेल चार उपमा-हौन रूप को Zam हई ओर सब लोगो पर यद बात Ala AS i तो भो तुलसो-दाम कते = कि चन्द्रमा को RT TEU नदी करता उसो प्रकार से चन्रमा श्र्यात्‌ बद्धिकूप Star st को dare जानता हे कि (wa तजत) सक्ति की Tae S तरेर उन का श्रत्यन्त निर्मल AN उपमा-होन रूप पुराणों के दारा सब पर विदित रैश्ररध्यानकेदारारदेखाभौ जाता Si गोसाईं नो कते S कि तो भो उन कौ शरण को ग्रहण नही करता दूसो से दुखौ बना रता हे ॥ ९८॥ 25 ६९8 तुलसी सतसद्ं। ससि-कर सुख्-द सकल जगत के तेहि जानत नाहि। काक HAG WE दुख-द्‌ करयदपि दुख-द नहि तादि ॥ ३० ॥ श्रन्वय--ससि-कर सकल जगत सुख-दं तेहि का नाहि जनत, यद्चपि कर कोक कमल कं दुख-द नदिं (तथापि) ताहि दुख-द्‌ । चन्द्रमा कौ किरणों aq संसार के fea सुखदाई ह दस बात को कौन गरही जानता ? श्र्यात्‌ स्वो जानते 2° कि चन्रमा कौ. श्रस्धत-मय चान्दनो को देख कर सव को श्रागन्द होता हे; चार जोभो.वे किरणे चकवा भार कमल के लिये वस्तुत; खतः वा श्राप दुख देनेवाल नँ ह" तो भौ we दुखदाई जान पड़त हे" श्र्यात्‌ चकवा went wat के वियोग मं भार कमल श्रपने fas य्य के वियोम बे श्राप gat रइते हे" । दख कारण यद्यपि wx किरणे श्रपनो श्रोर से SE ae Ta SH at भौ श्रपने दुख के कारण ये (चकवा ओर कमल) Se (किरणें को) दुखदाईै मानते Ft दसो प्रकार ओ्रौसौता जौ वा साधु जन संसार मं सव के लिये सुखदाई हेः तो मौ नोच विषयौ जोग we दुखरार मानते ह" श्र्थात्‌ ca कनै भक्ति मे उन्दं सुख ay मिलता ॥ २० ॥ विन देखे aqR सुने साड भव मिथ्या-बाद्‌ | तुलसी गुर गम कै लखे सहज मिटे विखाद । ३१ अन्वय । भव बिन देखे सने सोड मिथ्या-बाद गर्‌ गम कै लखे तुणरो.सदजहि बिखाद भिरे । UGA aa | १९५ असे dare a विना wal भात other किये केवल सुमने हौ शे जान लोग as श्रपवाद करते देः किं oe चकवा ओरं कमल के लिये cack ₹े वैसे दो दुष्ट विषयौ जम षमभते हे fa Saved भक्रि चार serfs सुखदाई मरही शैः ta समभाना केवल मिश्याबाद हे । थदि बे गर श्र्थात्‌ से शानो से ज्ञान पाकर इस को विचारे तो तशसौ-दास कते हे कि सहज होसे उन का दुख Et et जाय ओर्‌ भक्ति केप्रभावखे afm nama मिले | दितोयाथं waa faa साउ समुभे मिथ्याबाद भव देखे सुने गृरगम के लखे सदजरि विखाद भिरे | बिना उस परब्रह्म परमेश्वर के जाने + श्रारोपित संसार को लोग देखते सुनते हे ओर wer जानते ह यदि उत्तम गुर्‌ के दिये ब्रह्मज्ञान से देखं तो संसार मिथ्या देख VSI ATA शो भाने के कारण सजि मुक्ति लभ et ओर्‌ ख्व दुःखो से जोव gm हो HT ॥ २९॥ बरखि faa इरखित करत इरत ताप ्रष-प्यास। तुलसौ दाख न HAS कर जा HE जरत जवास WB श्रन्वय । dual (जलद) aa बिखर इरखित ata तीप श्रध- प्यास इरत (तथापि) जो जड़ जवास जरत (तो) जलद कर टोख न। aya दोषे म भक्ति चार wa कौ wim कर दष BE म gern के दारा विषय मं लौन नोच जनां कौ भिन्दा करते है । तुलसो-दाष aya है" fe मेध जल aca at संधार की १९ ई तुलसी-सतसट् | safer करता हे र at के दुःखखूपौ ae We ae at दूर करता हेतो भौ जो मृखंरूप जवासा घास जर जातौ हे तो दूस मे मेघ का कुद भो दोष नदी FI श्रभिप्राय यह कि afm Mt शान परम सुखदाई Fat a मखे विषयौ लोगों को wa नीं लगते तो दष में विषयौ हौ की जडता प्रगट होतो Sart भक्ति कितौ प्रकार दोषौ नहीं ठहर सकती ॥ २२ ॥ aq 2a श्नमि सेत fag Pay मनहि विचार । gaat तिमि सिय सन्त बर महिमा विखद अपार॥३३॥ wa ax faa लेत श्रमि देत मनहिं बिचारि as तुलसौ ¦ तिमि सिय सन्त बर बिखद्‌ महिमा श्रपार्‌ | चन्द्रमा श्रपनो किरणौ से संसार के विषरूप सन्ताप को et लेते ड ओर waa बरसाते डे“ इस बात को मन में विचार कर भलौ मोत fat) तवलसो-दास कते S कि उसोप्रकारसौताजो वा सोताूपौ भक्ति चार साधु जन ह जिन कौ निमेल महिमा ask का wT कोई नदीं पा सकता ₹हे। भक्रि शरोर सज्जनो की wee बणेन से बाहर हे चारे विषयौ मूख लोग GE माने वा ART | RRA रसमि बिदित रबि-रूप लख सीत सौत-कर जान । लसत ATT जस-कार भव तुलसी YY समा न॥३४॥ श्रन्वय | रबि-रूप लख रमि निदित (तया ) सौत-कर aa AF योग भस-कार TIA भव THAT समान समुम्‌ | पञ्चम सगं | १९७ ख्य्येकेषूपकोदखो तो कैषा तोत्र चार Av देख पडता शै उन कौ किरणों को लोग जानते रै किं बङी ast है" aw नीं जातौ चेर चन्द्रमा को लोग Maa समभते रै जिस क्ये श्रोर देखने से परम श्रानन्द्‌ श्रतुभव किया जातादे। टन SAT Rata वा मिलने से alfa को बढ़नेदारा चन्द्रमा सोभित (भव) होता हे सो तलसो-दास कते है कि दोनों को समान समभाना चाहिये श्र्थात्‌ यदि दिनि at aa खव agai कोतपाकर उनमेंका विष निकाल कर oe उष्ण न करे" तो चन्द्रमा कौ श्र्टतमय किरणे Be सुखदायिनो ओर Mas न जान पड दस कारण stat विरुद्ध गणो का समान रना श्रावश्छक हे क्योकि एक के विना दूसरे का ज्ञान होना कठिन BAe Sal FR योगसे बहत vee Star षे उसो प्रकार Bee ब्रह्मज्ञानमय भ्रौराम को GA के खान मे समभना चाहिये भार चन्रमा बद्धिरूप Aleta जौ को भक्ति समभाना चादिये stat को मानने Bagram eat > Are दोनों हो को समान जानना उचित हे | दितौयाथे का श्रन्वय। रबि रसमि बिदित रूप लख, सोत-कर्‌ सोत जानु, योग भव लसत, तुलसो जस समान-कार समम्‌ । ae को किरणेँको श्नानरूप जाने तरेर (सोत-कर) चन्द्रमा को MAT करनेददारा जल जानो Wald aa श्रपनौ किरणें से श्वमि क्रे जल को खौच लेता हे फिर बर्षा मे उसो जल को बरसा कर संसार को टण्डा करता हे । उसौ भल के योग श्र्थात्‌ मिखने से भव संसार afta होत हे यदि ae जल नष्टो तो dee ae et भाय tes तुलसी-सतसङ्ं | "ठ" ठरङ्गवाहन राम, 'ल' लच्छण Bz ‘AY सोता जो के (जस) य्न ` कति को समान करनेहारौ श्र्यात्‌ waa wat को qe Siz जल ` के समान पोषण ATA जानो। BA वा ज्ञानरूप राम Hee भक्ति को बरसा कर sant कौतिके फलानेहारे wat को qin दे कर श्रपने समान बना लेते Tl दूसरे श्रये मे नोत शब्द का WT भल किया गया S उस का प्रमाण | उदकन्तु जल नोर Wd शोतलम्‌ (मेदिनो) ॥ २४ ॥ aa अवनि रवि arg कह देत अमिय अप-सार। तुलसी BAA के सदा रवि Teta WNT sy श्रन्वय | रभि श्रन्सु waft श्रप ae लेत खकम श्रपसार श्र्टत रजनोस (कदं) देत Gaal (रबि रजनोस ) सदा (waft) को TUT | ख्ये नारायण श्रपनौ facet के दारा gan परके जल at (Qu wg मे) सोख लेते हे फिर जल के स्म सार भाग WA को चन्द्रमा को दते द फिर (रजन, रजनोस श्रप-मार्‌ WaT कं श्रवनो को देत) चन्द्रमा रात को जलका सार भाग Baa शमि चोर ग्मि पर कौ Sl gat को देते ई । तलौ करते हे कि दस प्रकार GA ओर चन्द्रमा संदा ga ओर इख पर के Ma अन्तु के प्रणाधार हे । इस Aa we चोर शाम के समान रामचन्द्र ह" भार भक्ति बद्धि ओर्‌ ex के षमान Sar HN Fi पञ्चम aa | wee राम के भजन Vo ma होता ₹ेतब चन्द्र TANT सोता जो भक्त को भक्रि दे कर भौतल कर श्रक्टतरूप af देती डे" । sei “afa देति" a2 et वहां नोचे के श्रन्यके श्रनुसार श्रथ करना चाहिये | श्रवनि रबि श्रन्सु ae लेति (रजनोस) श्रप-षार श्रमिय देत तुलसो रबि.रजनोसं सदा कम को WT | veal दिन को qa कौ किरण को Jat 2 श्र्थात्‌ उन से तप्त शो जातो हे तब रात को चन्द्रमा जलके सार ga at दे कर उसे Maa करते 2 तुलसो aed द किं इस प्रकार aa र चन्द्रमा सवेदा खक Mat केश्राधारङंदन्दोके द्वारा प्रथो ` सव Tat को पालतो हे ॥ २५॥ भूमि भानु SAGA WT सकल चरा-ऽचर-रूप | तुलसी fag गुरु ना ले यह मत च्रमल TAT eee श्रय | श्रसधूल श्टमि सकल चर्‌ा-ऽचर-रूप ( श्रसथल ) श्रप भाजुरूप VE श्रमल WAU मन वितु गुर (अन) ना ल | श्रसथुल श्र्यात्‌ श्रनित्य शरोरङ्प val सब चर WET Hai aT eq श्र्थात्‌ शरोर हे भार च्छ जल BA का रूप डे श्र्थात्‌ जल को BAH वाष्यके want a ea se कर wa मण्डल में qwaa डे । फिर वर्षां तु मं कोडते F यद भ्रमि ओर जलके विषय का निमेल चेर aga सिद्धान्त बिना गुह के उपदेश से मनु नदीं जान सकते हे" । २०० तुलसी-सतसद्रं | दितोयाये wae । श्रसथुल शमि श्रप सकल चरा-ऽचर-रूप भातु TAA गुरु बितु यद WE श्रनुप मत ना ले । सब Hat कौ श्राधाररूप wee WAT पथ्यो मं जल wT हे शार सब चलनेहारे शार wel चलनेवाले दोनो प्रकार के नोवे के प ga नारायण ईह Rife यदि gaa तो कौन जल बरसा कर्‌ सब के जिलवे। दसो प्रकार ert पर के सब जें के aif कारण सरूप श्रीराम डे“ जिन में प्रलय के श्रन्त में सब जोव लय et कर विश्राम पाते हे । विना किसौ राम-भक्त गुरु वा उपदेशक के यड (श्र्थात्‌ रामचन्ध को य्य के समान सब Nai का श्राश्रय जानना) निमेल चार aga सिद्धान्त att नहीं पा सकता श्र्यात्‌ जान सकता = | दख दोदे के पूर्वाद्धे म same का मत वणित नान पड़ता हे क्योकि न्यायमंष्थ्वौ aT Ma shea ओर विषय तोन ara fae डे जिनमें दम oat at WOT को एष्वौरूप माना हे ॥ ६ ॥ तुलसौ जे नय लोन नर ते निसि-कर-तन ata | पर सकल रवि गत भये महा-कष्ट अति दौन॥३७। तुलसो जे नर नयलौन ते निसि-कर-तन wa श्रपर सकल रबि गत मा-कष्ट afta दोन भयं | त॒लसो-दास ` कते है कि जो age नोति am Hama द्बे चन्द्रमा के किरणो शरोर श्र्थात्‌ बुद्धिरूप भक्ति मागमे लगे पञ्चम सगे | Roe Be wae पाते ॐ“ श्र्यात्‌ afe ® दारा gia के भागो होते है" परन्तु We gat षन लाग जा खये श्र्थात्‌ ्ञान-मागे के WIN हं वे बड़े दुख मं श्र्थात्‌ योगाभ्यास के ध्यान धारणा समाधि श्रादि के बडे कष्टसाध्य उपायम परिश्रमसे बड़े cat wea डे", ऊपर के at एक दोहो में भक्तिर we Ai उपायों का बणंन करके दस VE a Hat को as Hu a fag होनेवाला दिखा कर भक्रि कौ सुगमता श्रौर प्रसंशा दिखाई FI दस मेँ यष usr दो सकती 2 कि ऊपर श्नान श्रोर भक्ति दों कगे प्रसंशा कर तथा GA श्रौर ज्ञान को रामद्प कड के श्रव उसको निन्दा क्यों करेगे दूस लिये get प्रकार श्रन्वय श्रौर दूसरा श्रथे करते हे" ये श्रतिकष्ट तन लौन नर ते सकल दोन, geal श्रपर (ये) रब्वि-गत, (वा ) fafa कर नय लोन ( ते ) महा भये । जो जोव श्रत्यन् दु खरप WAT मे लोन हे श्रथात्‌ WAT We za Fata wet पालनमं लगे Va शरोर हौ के सुख को परमाथ सममाते 2 बे श्रन्तको MAT होने के कारण बड़े दुख हे" परन्तु Taal कते हे" कि दूसरे लोग ज खब्यरूप शान मं लगे हे" बा चन्द्रमारूप भक्ति मागे मं तत्पर हे" वे वस्ततः बड़ ह" श्रथात्‌ सदो wim के पात्र SI श्रमिप्राय ae fa शरौर att dare विषय भोग को कष्टा SIT तुच्छ जान कर LSAT श्रौर श्चान तया भक्रि को सदा रइनेवालते WIA Hl नल समभा उस के करने म तत्पर दना चाहिये || Bo 1 26 २०द्‌ तुलसो सतस | तुलसौ कवन ह जाग A सत-सङ्गति जव हाय | राम-मिललन wear नदौ" कहि सु-मति सब काय ॥ ३८ ॥ aerate कते 2° कि किमो gata weg तीये श्रादि खाने मे भाग्य के श्रच्छे होने पर लब साधुचर का सद्ग होता हे, तो उन कौ Ga WT उपदेश को GET करने से राम मिल सकते डे दस मँ कद सन्दे नहीं, Dar सब बुद्धिमान लोग करते इ । सत्सङ्गति राम कौ भक्ति WT राम के मिलने का उत्तम उपाय हे॥ Vs सेवक-पद्‌ सुख-कर सदा FOS सेव्य-पद्‌ जान | यथा बिभीखन रावनद्िं तुलसौ समुदय प्रमान WEN श्रव दूसरे प्रकार का दृष्टान्त दे कर भक्रिमागे कौ पुष्टता दिखाते दे । ( खेवक-पद) रामचन्द्र का दास ST कर रना सवेदा सुखदाई डे । दृह लोक पर लोक दोना के लिये उपकारौ FM जौ wear मेँ रद कर राम कौ भक्ति करने से भक्रि-रख का WANT Wy श्रन्त को मरने पर राम के लोक Ages कौ प्राभि होतो 1 (सेव्य-पद दुख-द्‌ लान ) परन्तु खामौ होना दुख का कारण रोता ड ifs उस से Sin BERIT ममता श्रादि दोर्षौके वश et परमेश्वर को wer कर विषयासक St लाते S । इख मे प्रमाण देते डे" कि जिस प्रकार Tet कि विभोषण BIA को राम का भक्त समभे ये दष देतु GET पञ्चम सग 1 Roy के राआ Sa श्रौर रावण श्रपने को ज्ञानो समभा HT TERTT We ममता के कारण विषय मे ga गया श्नोर पापकारी BAT | पले खगे के ५३ब दो मं भो सेवक-पद पाने को कटिनता श्रौर rat VA कौ सरलता को दिखलाया हे ॥ ३९ ॥ सौत-उष्म-कर-रूप जुग निसि-दिन-कर करतार | तुलसौ तिन कं रक नहि निरखह करि निरधार ॥ ४० ॥ श्रन्य। सोत उष्ण एक नदीं जग कर करतार निसि-दिन-कर ey तिन ae तुलसो निरधार करि fares | संसार में ठंडा र THAME नदी हे (जम-कर करतार) दोना के उत्पन्न AAT चन््रमा-ख्येरूप हे" तुलसो-दास Tea हे कि उन को निश्चय कर ज्ञानदृष्टि से देखो । बिराटश्ूप भगवान के शरोर के एक भाग BAR लोक कौ TAT ME काम को चलाने के लियं nN Rv परब्रह्म परमेश्वर कौ इच्छा से दिन रात को उदित दोते हे ॥४०॥ afe नयनन ATE ASS धरत नाम सब काय । ता तें साच हे aay बूट कबहु ATE होय ॥ ४१॥ श्रय | काह TARA ( शोत उष्ण गृण ) afe qu, सब कोय नाम धरत ता तें साचो BAH BAS भूढ नहि होय । fea} ने श्रं से ( Maar ate seared गणे को ) नीं Zar ३, श्रथात्‌ Maa शरोर SUA का श्वान लगिद्धियसेष्ोता हे ata & it adi Star ca कारण Bae इनको किंसोनेन देखा २०४ तुलसी-सतसङं | ary लक्‌ सेश्चातष्ोनेके कारण aa लोग Wa श्रौर उष्ण का नाम रखते 9 किं ae पदाथ ma Sit वद उष्णे, दस कारण दन को सत्य जानना चादियेश्रौरकभौोये भढ नदीं aT । जल fora का गृण खदा भौत दहेसोभोश्रमिके संयोग से उष्ण et लाता हे, wea भोतल रे उसके चिसनेसेभीश्राग निकली 2, सय ae उष्ण हे तो भो afin शोतयुक्र दों Haar उष्ण नदीं रता दख से संयोग WT समय के श्रतुखार श्रलुभव क्ती के श्रनुभव के श्रनुसार्‌ शोत उष्ण का व्यवहार होता ड जिसे सत्य waa चाडहिये॥ Br U1 वेद कहत सब का बिदित quat अभिय-खभाव। करत पान HE रुज इरत BATS अमल-प्रभाव।॥४२॥ Gaal बेद श्रभिरल श्रमल-प्रभाव श्रभिय-खभाव कत We सब कोड कत पान करत रुज इरत | = ॐ तलसौ कते हे कि वेद खदा cage सामथ्ये युक्त श्रष्टत के सखभाव का वणम करता इ श्रौर सब लोग जानते $“ कि पौने से रोग दुखको दूर कर देता डे। aE ma AH Sac A दच्छाके श्रधोन हे क्यो कि ( fanned afagaead वा बिषमोशवरेच्छया ) UTR Ga AT Ata से faq aq ate maa fay ot जाता F जसे लङ्ामेंड्श्राया “gu fae wt दोउ दल मादी। faa भालृकपि निश्चर बुं ”॥ ४२॥ पञ्चम सगं | २०४ गन्ध सत afa उष्णता सबदि विदित जग जान, महि बन sae at अनिल गत बिन देखे परमान 1 ४३ ॥ गन्ध सोत उष्णता महि बन श्रनल गत जग बिन देखे परमान जान सबहिं बिदित सोपि श्रनिल गत | गन्ध Mawar ate उष्णता Tat गुण क्रम से vat जल श्रौर afq a हे" tar संसारके लोग बिना देखे भी प्रमाण जानते इ ae वात सब पर विदित हे व भौ गुणत्रय तनं गुण वाय मेदे श्रथात्‌ वायु सुगन्ध पुष्यादि के योग से सुगन्ध, शीतके योग से Hae, we wy Fata ® उष्ण श्रा करतो 21 न्यायश्रास्त मं ( गन्धवतो val, Maat: उष्णस्यशेवत्तेजः ) गन्धयुक्र को val Magia को जल wt जिस का स्यं उष्ण हो उसे तेज ( जिसका एक भेद aft है) करते SF ae इन तीनों गुणौ का प्रतयच्च नाक श्रौर वगिन्धियसे via 3 aie से नदीं होता at at विना sia से Taw sie चर cleat से जानने के कारण लोग Te मानते F परन्त॒ ये Mat पदां जड़ हे" इन में चेतनता केवल रामरूप परमेश्वर A सन्ता से श्रातो S यर श्रागे के दोरे में करेगे । ४२॥ इन मह चेतन अमल Ae बिलखत तुलसौ-दास। Ql पट्‌ गुर-उपदेस सुनि सहज हेत्‌ परक्रास ॥ ४४। Rog तुलसी-सतसङं | तलसौ-दास श्न मंदं श्रमल श्रल चेतन बिलखत गृस्-उथदेख सुनि सो पद सर परकास होत | तुलसो-दास इन में निष्पाप वा निष्कलङ्कः सब को भषित करनेष्टारे वा खब-षमथे चेतन्यरूप परमेश्वर को fave कर देखते है वह WHET वस्त स्द्भुर्‌ के उपदेश से षद हौ मे प्रकाथित होतो 2) जिस प्रकार ga श्रोर चन्द्र मे उष्णता We Maa थौ vat रौत दन wet मे भौ Gin गुण है" परन्तु उन nat का कारण केवल परमेश्वर हे" ॥ दूसरे प्रकार से श्रन्बय श्रौर wy दन मदं चेत न fraud तुलसौ-दाख (ca ae) श्रमल परकास श्रल (होत) गृरू-उपदेख सुनि सो पद सज होत | get जल तेज बाय wie तर्च मे mat नदीं Batt a परस्पर (विलखाते दहं) zat होते F श्र्थात्‌ विरोध ara F sul जल श्राग को बुभाता हे श्राग जल को जलातौ ₹े जल मे ant पड़ने खे मलिनताश्राजातौहेश्रभ्नि val को भस्म कर डालता डे त्यादि तो भौ ठलसो-दास करते ड किदन a मल रहित ज्योतिरूप समथे (परमेश्वर है) aq के उपदेश ea वह परमेश्वर GI वस्तु सदज हो जातो हे ॥ ४४ ॥ एदि बिधितेंबर बाध पह गुरुप्रसाद FIT पाव। हे ते अल तिहु.काल महं तुलसौ सहज प्रभव ॥ BYE पञ्चम सग। Ree श्रन्वय । ars गुरुप्रसाद ofe बिधि तें एह बर बोध पाव, ठलसौ ते fas काल aE सहज प्रभाव TAS ॥ कोई कोई जन AIT VT को Tar Ba प्रकार यह FRT Hla पाते है त॒लसौ-दास कते हे" कि Fart wa वत॑मान ait भविष्यत्‌ Dat काल में खाभाविक प्रतापवाल्ते wera lt aay बने रते V | ४५॥ काक-सुता-सुत वा सुता भिलत जननि-पितु धाय | ्रादि-मध्य-ञ्नवसान गत चेतन सहज FATS |i Ve i श्रन्वय | काक-सुता-सुत वा सुता धाय जननि-पितु भलत चेतन श्रादि-मध्य-श्रवसान गत AEA FAT ॥ ACA का बच्चा चाहे नर्‌ श्रवा नारौ हो (ast eta पर ats कर श्रपने माता-पिता मे मिल जाता डे यदौ दशा (Gaz) man stat कौ हे। वद (श्रादि) ora (मध्य) Aq के समय चार (aaa) श्रन्त Mat कालां मे श्रपने ana FH से (चेतन गत ) सत्यज्ञानयुक् परमेश्वर भे मिला sa हे उस कौ सन्ना से श्रलग दस Al सन्ता नीं है II श्रभिप्राय यद्‌ कि जसे कोवा aise के श्रण्डे को सेना ₹ परन्तु AW फोर कर बचा रोने MNT पर जनमने पर कोदल का TET OT कर कोलं मे मिल जाता हे पसे हो सचिदानन्दमय. परमेश्वर का श्र जोव AK शस को MASI पर महीं Etat तब तक भाया Ret तुलसौ-सतसदर | ग बन्न मेः पड़ कर्‌ संसार मे" फसा cea डे । TT A a aye परमेश्वर मे जा मिलता दे ॥ ४६॥ समता सखवा-ऽरथ-षेन तें हात सु-बिसद्‌ विवेक | तुलसौ एह नित हौ" फवे faafe अनेक न रक igen qa | खा-ऽरय-रोन a समता सु-बिसद faa होत । तुलमो ae नित दीं we जिनदिं श्रनेक न एक | जो जन श्रपने सुख श्र्थात्‌ धन स्तौ श्रादि सांसारिक पदाथा की rat 8 Ga हे" उन मे समता श्र्थात्‌ एचुमिचश्रादि aa ` समान भाव श्राता & तब निमल विचार वा सार WATT पदार्थों का ज्ञान होता 31 तुलसो-दाष aed डे“ किं यद बात wal at aan = जिन को श्रनेक कौश्राशा भरोसा नदीं हे परन्तु एक परब्रह्म का WAM रहता ड श्रथवा रामरूप सगण ag et कौ ATM रतो ₹े। qed मतुव्य को सांसारो waar We सांसारिक पदाथ कौ रीति व्याग करना चादिये जब तक विषय कौ लालसा मन मं बनो रतो 2 तब तक निर्मल om नदी रो सकता। सांसारिक सुखामिलष हौ नौवें को संसार म बांध रखता ₹ जब मनुष्य सब at श्रा्ा कोड एक परमेश्वर के चरण म लगता ह तब उष a समता चर्‌ बिनेक श्राते रहे ॥ ४७॥ सब SISTA खा-ऽरथ रटत तुलसौ घटत न रक | ग्यान-रहित ग्यान-रत करिन कु-मन कर टेक ॥४८॥ TEA समे | Ree aq लोग खारथ हौ खारथ र Te जिस को रखिये ae धनदारादि कौ शोच में बिक है (परन्तु) तुणसो कते चै fa wa at पूरा नदीं होता क्योकि शांखारिक सुख are के समान SA नश्वर होनेकेकारण श्रन्त को दखदाई हौ होता र। यद्यपि पूरो ta सांसारिक सुख नीं मिलता तो भो ( ज्ञान-रडित AMAA कु-मन कर्‌ टेक afer) बिगेकरोन afar Wa मलन मन का दढ ब्त afer Bl भन Tar age Fe fH विषय सुख को दुखदारई जान कर भौ val के पो sear रहता डे ॥ ४८॥ स्वा-ऽरथ से जानह सदा ना At बिपति नसाय | तुलसौ गुरु-उपदेस fag सा किमु जानेउ जाय ॥४९॥ खदा सा खा-ऽरय HATS जा खाँ विपति नसाय तुलसौ सा गु्‌- उपदेस बिनु fag जान जाय | सदा उसो वस्त॒ को खाथे सम्भाना चाहिये जिस से विपत्ति दुख नाश at जाय। यदि को कि संघार के पुज स्तो श्रादि सब खाये के साधक F at टन के रते भौ मनु श्रनेक प्रकारका दुख भोगता ई शरोर ये va Fea दुःखों कौ fala नीं कर सकते तो किस प्रकार ये खाथे के साधक SI? | सचा खार्थदाता ्रोरामचन्द्र को मानना चाहिये उन के विषय म. तुलसौ-दास कते ह कि विना age के उपदेश के किष प्रकार जाना भा बकला 27 २१. तुलसी-सतसङ | हे । जब weg गुर मिले" तब उन के उपदे से राम पद में भोति ane जिस से श्रात्यन्तिक दुख at निटत्ति et ॥४९॥ कारन खा-ऽरथ-हित कटे कारन करं न हाय | मनवा we fate ते तुलसौ समभ सेय ॥ ५०॥ सा-;रथ fea कारज करै कारन न करै, मनवा ऊख बिसेख तेः (कारम) होय तुलमो साय समङ्क | संसार के मनुय wat भला तरार सुख के लिये कायं कौ सेवा करते ₹े । WS wee मोठ AF veri मिराई रादि के खाने TA शरोर WE WS वस्त श्रादि के vent Wet का उपाय सब लोग करते ₹े परन्तु मिटा चर्‌ वत्र के कारण ऊख Breet at गी देखते । तलसो-दास कते ह कि वत्त भार fart के विरेष कारण मनवा ( कपासके पेड) चैर ऊख ई" उन को समभ | श्रभिप्राय यह कि जसे मिराई चरर वस्त्र विना ऊख शरोर ak 3 नही हो सकता वेसे हो Cova Are सत्कम के विना सुख नदीं हो ana at er AAT विसुख रह कर भौ लोग सुख चाहते = मो किस प्रकार हो सकता रै । दृष्टान्त श्रलद्धार पष्ट हे ॥ ५० ॥ कारन कारज जान ता सव काह परमान, Geet कारन कारजा Bt तै*अपरन आन rte कारन ATA परमान at सब काह जान, Gaal सो कारन ते' श्रपर न, कारओो श्रान न | @ पञ्चम सम | RLY कारण से area Stat S cq wT प्रमाण at सव लोग जानते ह 1 धिना कारण at भौ कायै गही शटोता यह वेद्‌ से प्रमाणित 2 चार लोकम भो सब लोग जानते कि ऊख मिठाई का रार मनवा वस्त का कारण ₹रै। तलसो-दास कते हें किं वद कारणरूपद्व रोदे र gat नीरे जार काये भो दूसरा नहीं gel ti यद्यपि ऊख चर मनवा fant चोर वस्त्र के कारण है“ परन्तु ये दोमें पदाथ बिना feat के उपजाये नदीं हो सकते ca कारण दोनों के मुख्य कारण fare et हे । दसो प्रकार सुख Tau कार्य के कारण भो भले बुरे काम हे जिन क करनेहारे श्राप रौ है तो बिचार कर देखने से निश्चय रोता हे कि wa के कारण करनेहारे HIG OS वे अब भला करते तो सुख चरर जब बुरा करते तो दुख पाते डे, किसो किमो पुस्तक म “कारज-कार sit at a wat a ATA” पाट मिलता 1 तुलसौ-दास aed हे" कि काये का करनेशारा ot ST Mt TNS Are कोई दूसरा नरो Fit ५९॥ बिन करता कारज नदौ जानत शै सब कड्‌ | गुरूमुख खवन सुनत नह प्राप्ति कवन बिधि Sreiy ey सब कोटर जानत ह बिन करता कारज नदीं eat गुरमुख gaa नही, कवन बिधि प्राति etc सब लोग जामते = कि विमा करनेवाले के atk काम ay RR तुलसी-सतसद् | हो सकता रथात्‌ जो दुख ATS को होता डे उस का करनेवाला बह श्राप रो डे परन्तु यद (गुरमुख ) गुर का WR (उपदेश) श्रपने कान चे नरी सुनता तो इष के दुख कौ निटि Ut ga at graf किस प्रकार हो सकती हे । TE नान TH कर dare H जाल मे फषता Tl भुव, नारद, ABR श्रादि के समान हरागधन नीं करता तो Ta सुख शरोर aim कहां से मिल मे| सुख meg का श्रये यां Mee जिख से गृ का भन्द र्यात्‌ उपरे श्रय BAT ॥ VR ॥ करता कारन कारज ह तुलसौ गुर परमान | Arad करता माश-बस VAT अबुध मलान ॥ ५३ ॥ करनेहारा, कारन चर कये भो किया जाता है तोन गर क उपदे से प्रमाणित होते है" श्र्थात्‌ गुर सर्वां को लखा सकता 2 परन्तु (age शसा मलान जेह-बस करता ल्पत) HT एसा aa भार विषयासन > fa aa ATs aT Tal BV का लोप कर देता शे श्र्थात्‌ कतां को नी मानता परन्तु (श्रहडारविमूद्रात्मा क्तमिति मन्यते) श्राप WERT A aw हो कर्‌ wos eT at कता मान लेता है दसौ से जन्म मरण के महादुख को भोगा करता हे चग मुक्तिका भानौ नहीं रोता ॥ ५२॥ अनिल सलिल बिधि जाग ते जथा बौवि बहु हाय। करत करावत.नडिं कटुक करता कारन साय WB पथम सगं | १९ जथा afta सलिल जोग बिधि ते बड़ Af शोय साय करता कारन क्क नहि करत करावत । जिस प्रकार जल मं बायुके योग SA से बङ्तेरे तरकर उत्प होते हे यद्यपि जल भार बायु तरङ्गके करता ae भारम इन को तरङ्ग VTA करने को BE इच्छा हे उसो प्रकार (aaa: क्रियमाणानि ai कर्माणि नित्यशः) खभाव हौ से षदा कायं SUA होते F परन्तु AA श्राप Was A ways कामका कर्तां मानता डे ce कारण उस के भोग a फसा रहता ई Ge पापका at stat दे यदि ae wae at कर्तान Ma Me श्रपने मन इृद्धिय को उस से श्रलग Wag at न He | कोई कोई टोकाकार इस प्रकार श्रथे करते कि SB वायुर शल के योगसे पानौ मं तरङ्ग उठता BIW हो सत्सङ्ग के प्रभाव से बरे मनुय भो wea ag काम करने लगते हे" यथपि साधु जन att से भला काम करने म faauta Bt at WH बुद्धिमान पर श्राप इलक जायगा कि कौन श्रथ Azar हे । यष श्रथं मल शे ठीक Sten नीः मिलता ॥ ५४ ॥ देम-धरन करतार कर तुलसो-पति पर-धाम | सा बरतर ता सम न कोड सव-विधि पुरन-काम॥५५॥ करतार कर एेम-धरन पर-धाम तुलसौ-पति, ता सम कोड न at बरतर ख्ब-बिधि पूरम-काम । | ९ कामकरनेहारे जोव के wey को धरन करनेशहारे बड़े ९१४ तुकसो BARE | तेजसौ तलसौ के खामो Wal] ATTACK जौ डे, उन के समान atk नदीं हैवेमश्रेष्टठसे भो WEE क्योकि बे सब प्रकार से मनोरथ के पी करनेहारे ₹े | a दितीयाथे-भकरि पच्च | श्रन्वय | तुलसो-पति पर-धाम कर (प्राप्ति) रे म-धरन ( शेष पववत्‌) ्रोरामचद्र के परम धाम कौ प्राप्ति हौ जोव के KET को बहानेवासलो ॐ क्योंकि ae सर्वश्रेष्ट ओर सब प्रकार से भक्त जोब द्धो कामनः को परा करनेवाला ह जिस केपनेसे भेर कसो वस्तु के पाने की Tat नदो रतौ A करता कारन सार-पद्‌ अव्यय AAA BAZ | करम घटत Ala aga हे तुलसो जानत बवेद्‌ ॥ ५६॥ करता कारन श्रयय श्रमल WAS पद तुलसो Az जानत करम घरक WE ATA हे । काम का करनेवाला करता चरर जिस से काम srg Etat वह कारण TA दोनेँ मुख्य हे (टन से उत्पन्न कम्म वा काय्य मुख्य नदो हे) र ये दोनों श्रनश्वर मल-दोन चेर्‌ मेद्‌-रहित 21 तुलसो-दास कते हे" कि वेद जानता SANT प्रगट करता 2 कि कमे घटता बहता रहता हे, कमे करनेवाला जोव WAT ह तरार श्य के मतसे प्रेरक माया प्रकृति aa A कारणक जननो भौ AYA WAT Vl कायं घटता बता रता रे | भक्रिपक्च मे लगाने से एसा श्रथ होगा । पञ्चम az | Rty करता We कारण येदोमुख्य aa S| कर्तांकीश्च्छासे aegis कायं घटते बढ़ते हे श्र्थात्‌ जब साधनों को श्रधिक सङ्गति st तो भक्ति विषेकश्रादि कार्यं ag जिनके प्रभाव से Re श्रमल श्रमेद ज्ञान श्रा चार सुक्रि मिलौ भार जो दिषयो श्रादि qtt al ay श्रातो पापके बढ़ने से पुन्य कमे घट गया faa Van ace sie कादुख (श्रपि) निञ्चयकर्‌ उत्पन्न श्रा ट्ख को वेद जानता Fl ५६॥ खेद-ज जैन प्रकार तें राप करे ATS नाहि, भयेड प्रकट तेहि RAAT, कैन बिशाकत तादि।॥५७॥ सुनौ जोन प्रकार 2 सेद-ज श्राप प्रकट भये afe के कड करे माहि ताहि कोन बिलोकत। सुना जिस प्रकार wala से उत्यन्न दोनेवाले जोव (ढोल लोख सोलर ws) श्राप हौ से उत्पन्न होते इ उन को MT उत्पन्न नहीं करता केवल शरोर का पसोना उन के उत्यन्न होने का कारण 81 उन को कौन देखता डे? श्र्थात्‌ कोर नदीं देखता 21 ae किसो पर विदित adi etn कि ये कब जनमे भार श्राप खभाव 8 3X उत्यन्न शो जाते हे उसो प्रकार FH a उत्पन्न रोते हे" (प्रतेः छपमाणःनि खयं कम्मांणि नित्यः श्ररङ्गार- विमृढल्मा कर्ताहमिति मन्यते) waa हदो से प्रतिदिन किये जाते Hy वो ae sta श्रपना किया समम HT श्रदङ्गार करता Rid तुलसो-सतसङं | शेर्‌ श्रपने को कतां aman डे दसो से Masa aA जाल से नहीं कूटा ॥ ५७ ॥ wat बिखमता कमं मह समता faa न हाय | तुलसौ समता समु कर सकल मान मद्‌ धाय ॥५८॥ श्रन्वय । कमे महं विखमता भयो किये समता न होय सकल मान मद धोय समु समता AT | जोर्वो के ay मे (व्यभिचार लोम क्रोध श्रादि के कारण) विरोध पड़ गया हे श्र्थात्‌ कुक Wat से बन पडा रहे फिर va को इद्ध बनाना चाहते V सो Whe Te सुधरता हे तुलसो-दाष करते है कि विषमता के बौोज weg We मत्तता कामादि खे मोहित होने at ety करार शान को बदा कर ag Hat म समता करो। सब Mal को श्रपने समान समभ कर feat पर क्रोध किसोके wt aT Ay A At at भला रोगा ॥ ५८॥ सम-हित सहित समस्त जग सुहिद्‌ जानु सब काष्ट, Geet यह मत धारं उर दिन प्रति अति सुख ME ॥ Ye I WAS । मस्त जग सब काड़ सम-हित सहित Utes जातु यड मत उर धार्‌ तुखसो प्रतिदिन श्रति सुख लाड | संसार मके सव लोगों को समान भलाई के साय GEM मिज मणो चार किसो से wat न करो यह सिद्धान्त श्रपने इदय पष्चुम सग { ९० म धारण करो तो तुलसौ-दास कते रई कि सब दिन sera श्रानन्द का लाभ होता S | संखार मे श्रपने wy से र्ब लोग दुख पाते TF Ha AT ME हौ न Ter at तुभो wine दुःख हो सकता हे। “fer राममय सब जग जानौ सव संसार के Arai को Marea समान जान कर सबसे प्रेम करो जिससे सदा सुखो रो ॥ ५९ ॥ ae मन मह निश्चय ure है कोड WUT आ्रान। कासन करत विराध इटि तुलसी aa प्रमान gen श्रन्य । मन ay ae निशखय धर श्रान काउ श्रपर न ई Gua प्रमान समुभ इटि का सन बिरोघ करत | श्रपने मन मं यद निश्चय रक्ो भोर कोरर लोग दूसरे नीं हे (जव सब संमार्‌ राममय ₹े तो दूसरा कोई कं से maa) ठ॒लसो-दास के कने को प्रमाण मानो) चट करके किसकेसाथ बिरोध करता 2 aq at faa AT wa तेरे मिचङ' vg कारण किसोके साथ बिरोध उचित ad’ 21 af a किसौसे बेर न करेगा तो कोई तेरा शच नबनेगा। IS ay z wy होते Vi समता Are मिता तेरा मुख्य कतव्य डे ॥ ६० ॥ महि जल Kae aT अनिल नम तषां प्रगट तबरूप। जानि जाय aq ary & भ्रति सुभ ्रमल अनृप॥६१। 28 Are तुलसी-सतस | श्रन्वय। तव a रूप (अहां) महि जल श्रनलं श्रनिल नभं तँ प्रगट, श्रमल श्रनुप श्रति सुभ (सो) बर बोध ते भानि जाय । तेरा बह रूप जरा vat जल बाय श्रनि शरोर श्राकाश् है aut gaa हो हे। श्न पाचों त्वौ से य संघार बनादड्ेज्रार तेरा शरोर भो wel Bs aa ZF at Sai vara ua GH हैः oH पश्च aa से रचित शरौरे म जिन से समस्त ब्रह्माण्ड बना द तेरा जीवात्मा बास करता हे । VE जोवात्मा परमात्मा at yw होने के कारण निष्पाप वा faa निरूपम शर धरम करधाणरूप 2 भार सुन्दर we से जाना जाता डे। ब्रह्मज्ञान होने पर सव मायात मेद मष्ट St जाता छै तब समदृष्टिहोतौ इ ओर सब प्रकार का विरोध दूर दो जाता ₹े। fafa जल पावक गगन समोशा । पञ्च रदित यद श्रधम सरौरा ॥ शेश्वर श्रन्स जोवं श्रविनासो । सत चेतन घन श्रानन्दरासो ॥ सो मायावस भयो गोसाई । at कौर मकर कौ माई ॥ इत्यादि चोपादयों से रामायण मं ae fare बणित ₹ै ॥ ६९ ॥ ना पे आकसमात तें उपज बुद्धि विसाल | नातै अति लीन च गुरुसेवन कचु काल ॥ ६२॥ waa पे भो निसाल बुद्धि arena ते उपज ना तौ कड काल श्रति कल होन ङे गुरुसेवन (ते' उपज) | श्रव जो पले ae म कड GAS कि “बर बोध ते जान पङ छो ata होने ae sare करते हे । परन्तु यदि वंद वरौ बुद्धि Ue सगं | २९९ भगवत्‌ wat से श्रापचे श्राप et जाय तो बहत उत्तम हे मोतो कु समय तक शब प्रकार के कपटे Sa Et AT गुर को सेवा करने से श्रवश्य ज्ञान हो षकता TI श्रकस्मात्‌ ज्ञान होना परमेश्वर कौ दयावा पबे TH के संस्कार से सम्भव हो waa डे ॥ ६२॥ कारज जुग जानह इये नित्य अनित्य समान | गुरू-गम ते देखत सु-जन क तुलसी परमान Nese ava fea समान नित्य श्रनित्य जग कारज aE, तलसौ परमान AE सु-जन ETA ते देखत । श्रव जिनके बोध से कल्याण होता डे उन का बणेन करते TI sua मन मं नित्य श्रनित्य cat arat at एक खा जानौ श्र्थात्‌ जब तक सत्‌ श्रषत्‌ का पदिन नहो तब तक THT के लिये aiat समान 21 कमौ wat भरमम पड कर लोग सत्य को श्रसत्य चर श्रसत्य को सत्य जान उसो कौ सेवा करते Fi संघार म स्तौ wa धम धाम विषयसुव पुरूष को बांध रखनेवाले 2 उन्हो को लोग fea समभते दहे रार सब को खमान समभना परोपकार सत्सङ्ग साधुसेवा Saale जो परम उपकारौ वस्त हे Set A लोगों का कम श्रतुराग होता Sl तुलसौ-दास प्रमान के साय कते S किं सच्णन लोग गुर्‌ को दौ Sa wef से रेखते डे van २९० तुलसो- सतस | महि wae अह-नाथ का अदि ata भव Re | ता बिधि तेर जौब ae हात समु fag खेद ॥ ६४॥ श्रन्य । श्रद-नाय मयद्क मदि श्रादि ज्ञान भेद भव । तेई Ty ae ag fag a बिधि खेद Sta | BA उदय के पले Teal पर के सव पदाथं श्रन्धकारमेएक से जान पडते 2 परम्तु खय MT चन्रमा के उदय होने पर gen श्रादि पदार्थौ के ज्ञान का भेद होता डे श्र्यात्‌ ae भ्रमि 3 यद नल MT यद पवेत ₹हे Tare भिन्न भिन्न प्रकारका ज्ञान रोता J उसो प्रकार श्रविनाशो ब्रह्म के श्रंश दस जीवको श्ञानके विना दुःख होता हे। जन तक BATTEN श्रन्धकारसे दूषका मन ठका रता हे इसे सत्य Fa नदीं जान पडते परन्तु जब areal नेर खल नाता हे तो सुखदायक चैर दुखदायक पदाथ दख पड़ते Fl जब तक इसे Da ठीक Ha avy star ट्स वे दुख कौ श्रात्यन्तिक fafa (मोक) नदीं होती (et ज्ञानान्न सुक्रः) ॥ ६४ ॥ परा फोर निज करम मह भ्रम भव केह हेत। तुलसी कदत सु-जन सुनह चेतन समु अचेत ॥६५॥ शर्य | निज करम मदं फर परो भव भ्रम को एह रेत । awa कदत (₹ ) सु-जन सुन चेतन श्रसेत समभा | wat दो किये "कमे मे भेद पड़ गया ड यदो जधा पाने AT पश्चम art ` २२१ क, भ्रम होने का कारण SM Gada कते F कि € सत्पुरुषो | सुनिये (श्रपने कर्मके STAT दो जाने के कारण) चेतन बुद्धिमान जन मौ श्रचेतन aaa समभे जाते हे । एम ay दोन प्रकार के कमे पुरूष को संसार म बांधनेवाले होते हे" । कमो कमो ga कमे करने नें श्रम भार ATH करते समय भौ शभ कमे दो जाते ह जसे राजा नग ने एक गौ दो ब्राह्मण को संकल्य दौ । श्रजामिल ने श्रपने पुच मे ममता ate के कारण उसे नारायण क पुकार Bla पायौ। इस कारण दोनों कमी को होड इरिभक्रि सत्सङ्गति श्रादि करना उचित हे ॥ ६५॥ नाम-कार दूखन Tet तुलसौ faa विचार | करमम कौ घटना समुकि शेसे बरन TUT ll FE I BAY | नाम-कार दूखन (परन्तु) Gaal TA बिचार करमन कौ घटना समुमिः बरण उचार (किये दूषन ) नदी । केवल नाम के लिये श्रृङ्गार के arg sit शो कमे किये जाते ह“ वे दोषकारौ होते हे“। परन्तु तुलयो-दास Var fracas 2 कि कमे कौ भवितव्यता समभ कर जो (काम करते) जार वाक्य sary करतं ई उन का कम वा चार वाक्य दूषणकारौ नदीं Stat | HI राजा दशरथ ने कमे कौ घटना को विना सोचे विचारे कैकेयौ को बर-दान दिया Na से पद्तावा किया ओर दुःख पाया । यदि wea से सोच विचार के वाक्य vara किये होते तो a भो दुःख भोगना न पड़ता | RRR ` ` तुलसौ सतस | दूरे प्रकार श्रन्वय भार TY | करमन कौ घटना समुभि रेखे बरन माम Gare किये (कि) gaat बिचार दूखनकार मष्ट | सब के QUA श्रपने कमे का होना सममः कर इख प्रकार उन के (नाम के) aut का उल्लारण किया गया डे कि तुलयो-दासके बिचार मे नाम रखनेवाले का कुक दोष मही हो सकता । जे aa & नाम “दिवाकर भार ^तिग्रश्ि" दस कारण wae कि खन के gna से fea tia ङे ओर्‌ उन कौ faa RH} डे । चन्द्रमा के नाम “निशाकर हिमकर” दस कारण wae गये किं उन के उदय से रात कौ ate etal जर उन कौ किरणे" aut ड दृत्यादि। fra प्रकार का इनका कम देखा गया Va} प्रकार का नाम रक्वा गया तो इष मे कोर बात दूषण कौ aey हे । afta ae कि यद्यपि qa र चन्रमा दोनों Ave ई“ परन्तु गुणों के श्रतुसार उन के नाम भिन्न र BAT ॥ ६६ ॥ मु-जन कु-जन महि-गत जथा तथा भानु ससि माहि। तुलसमै जानत हौ सुखौ हात समु बिन नाहि gon श्रन्वय | (भथा) भालु ससि माहि तथा मरि-गत सु-जभ कु-जन | तुलसौ जानत हो (सु-जन) सुखौ eta (परन्तु) घुमा बिन नाहि ( सुखो?) होत | जसे जब खये चन्रमा a मिलते ₹हे' तो चन्द्रमाः कौ कला पश्चम सं | RRR Ste et mat डे Fel se पर भब ary जन भर दुष्ट एकच होते है तो साधु जन कौ साधुता को विनाश कर उन्द zal करते 2 । त॒लसो-दास कहते डे कि at हो ary जन दुष्ट को पश्चान लेते दभर उन का ay aty Za TF G3 सुसौ होमे खगते डे" परन्तु शव तक oe नरी पलानते तव तका उन केसङ्गसे दुःखो बने र्ते हे । यहां ग्यक सङ्ग से wa ae ee हो भर का दृष्टान्त fer 2 Az sat Hawa aga = टस से afa A aa a निन्दा कौ यह श्रमिप्राय नीं निकलता & । श्रमावास्या को चन्द्रमा BA एकच eta = दितोयासे at wt ०, ॐ श्रलग श्रलग SA S त्यों त्यो उन कौ कला बढ़त दे ॥ ६७॥ मातु^तात भव-रौति जिमि तिमि तुलसौ गति atic मातु न तात न जानु तब हे तेहि समुभः बहोरि ॥६८॥ श्रन्वय । fafa मातु-तात भव-रौति तिमि तोरि गति geet मातु न बहोरि तात न तब सममू SI fora प्रकार माता पिता के जनमने कौ रौत F श्र्थात्‌ जसे तरै माता पिता श्रपने saat माता पिता के रजबोज से उत्पन्न wa ये से हो a श्रपने उत्पन्न होने कोरौत को भौ जने, श्र्यात्‌ * म माता far a म tara tear a tera यज्ञा न तौ वन्ति | ayn निरसातिद्त्याककलवाश्रदेकोऽवणि्ः fer: कैवलोऽम्‌ ? श्रोभगवच्छङकराचाये्टतनिडणद्‌ कम्‌ | २२४ तुलसौ-सतशद | माता के Sat a fam Fae जाने खे शक्रश्रोणित के मेल से Ba बन्तान होता ३ घो जैसे श्रपने मा-बाप से भिन्ननददीदेक्यो कि “्रात्मैव जायते” श्राप St पुरुष gs हो कर उत्पन्न होता ड उषो प्रकार (रे जोव!) a भौ उत्यत्ति ब्रह्म भार माचाके योग से aa है) a ईश्वर at Ba रे ara Faw et कर gut at खतन्तर समभता हे दसो से dary मे बँधाहे। तुलसौ-दास कते ह कि तेरौ मा atk नदो पुनः तेरा पिता मौ नरं केवल तेरा ज्ञान दहदौ जो कुद Fat FI जब तभे MANTA दोगा तो माता पिता सन र TUT द्व सच्चिदानन्दरूप हो जायगा ॥ ६८॥ सरब सकल तै हे सद्‌ा बिसलेखित सब ठार | तुलसौ sate सुहिद श्तेञ्जति मति सिर मैर।€<॥ श्रय । ते सरब (डे) सटा सव टौर (दे) सकल भिसलेखित 2 तलौ ए सुद्धिद जानिते श्रति मति सिर atc त aden 2 aaa सब स्थानें a ara रहता डे ओर सब से श्रलग भो 1 तुलमो-दाख कते ई" कि facta दस बात को जानते द वे ्रति बुद्धिमान Fat Fes लो सब att ङै ag सब से श्रलग क्यों कर रहो ana Sea विरोधाभास श्रलङ्ार श्रा ॥ ६८ ॥ AIRC घटना कनक रूप नाम गुन तौन | तुलसौ राम-प्रद ते wets परम प्रवम्‌ ॥ ७०॥ पञ्चम सगं | २९५ ऊपर के दोः मं परमात्मा के aw Nara mw aq erat a व्याप्त TE कर भौ सब से श्रलग दोना कशा था उसो श्रं को श्रव दृष्टान्त दे कर प्रमाणित करते डे*॥ श्रय | कनक TART घटना तोन नाम रूप गन । eet परम प्रबोन राम प्रसाद ते परख ॥ सोने से श्रलङ्ारां कौ रचना होतो डे उन के तोन नाम | Az गुण होते है" परन्तु सोना एक el हे Are सब Wage मे व्याप्त डे । क्न कुण्डल चार्‌ विजायट तौन गने एक री ने से बनायिये तो तीन के नाम wa Ae गुण (wale AEA हाय को शोभित कुण्डल कान को भर विजाय ate को afer करता डे) भिन्न ₹ BU परन्तु सोना सब म एक हौ Si उसो प्रकार सत रज तम तीनों गुण ओर मि जल तेज वायु भर श्राकाश् टन पच तें से य संसार AIT संसारौ सब पदां बने ड, षब मं MAA एकशो ड परन्तु पदाय भिन्न २ नाम से पुकारे जाते हे तसो-दास कते > कि यद बात as ज्ञानो लोग राम चन्द्र कौ दया से जानते ३. ॥ ७ ॥ रक पदारथ विविध गुन सद्या अगम अपार। qual सु-गु प्रसाद तें पाये पद निरधार ॥ ७१ ॥ श्रन्वय | एक पदारथ गृन fay श्रगम श्रपार aI Gaal सु-गृ प्रसाद ते निरधार पद पाये ॥ सोना एक Mags परन्तु Ga गुण श्रनेक हे र नाम इतने श्रधिक ह" fa fare at at कोट जान सके भ गन GR | 29 # शव तुलसौ-सतलङ | श्रभिप्राय aq कि एक et सोना रै जिस कौ श्रनेक प्रकार कौ शोषधियां बनतो हे जिस के vagy गृण होते ईडः । षण श्रादि से शोभा दानादि से पु भक्षणादिसे ufe होती हे! सोनेकीसुद्राश्रों चर wae? के नाम इतने श्रधिकदैः जिन को गिन कर att पार नहीं पा खकता डे । उसो प्रकार एक हो श्रात्मा हे भिसकेश्रंश से चौरापो लाख Nat कौ ष्टि wt ३ । तलसौ-दास कते हे कि उन्तम गुर कौ दया से निश्चयात्मक बस्तु Bai परमात्मा को पाते दहं । गुर्‌ छपा कर न्नान Va at परमात्मा का पहचान ETS ॥ ७२॥ गन्धन मुल उपाधि ay भूखन तन गन जान | साभा गुन तुलसौ कहहिं agquie सुमति-निधान॥७२॥ WRG । मूल गन्धन, तन WET गन TR उपाधि जान gaat गुन शोभा कहिं सुमति-निधानम agente ॥ एक मल कारण केवल ( गन्धन ) सोना F WAT ङे श्रनेक प्रकार के श्वषण क्षे समृह भो सेने से बनते हे oe उपाभि जानना चाहिये । तुलसो-दाम कते हे कि इनका गृण नोभा काबद्राना है भर्‌ बस्त सबमे एकरौ डे । दस बात को बुद्धिमान लोग समभाते FS । fora प्रकार सबं ्रषर्णो कौ जड केवल एक सोना डे उसो प्रकार wa पदाथ का मूले केवल एक परमात्मा हे । जिस प्रकार सोने चे are जितने प्रकार के ग्टषन बनाश्रो परन्तु सोमा सब मं एक हो डे सव का श्राकार्‌ भिन्न हो गया हे, उसी प्रकार सोनारूप श्रा्मा सव मँ एक Bi मंखारौ पदाथे चाहे जितने प्रकार के डां एक श्रात्मतन् सब AT TEA सग | २८७ जो बात अपर कह धके ड उसो को दृद करने के लिये दख ate a फिर कडा ॥ ७९॥ Rar wet उपाधि वद घटित पदारथ रूप | तैसा वहां प्रभास मन गुन गन सुमति WIT NOR श्रन्वय | set जसो उपाधि तदं तसो पदारथ SI प्रभास (AUT) गुन गन घटित श्रनूप सुमति मन (गुन) ॥ pret पदाथ मे जिस प्रकार कौ उपाधि लगाई जातौ ₹े वहाँ tar EY उस पदाथ का रूप शोभा WT गुण बन जाता SI शिन सज्जने के उपमा रहित सुबुद्धि हे उन के मन द को जानते डं ॥ fra प्रकार उपायिके श्रतुसार सोनेके रूप गन श्रादि बदल जाते डे" पसे दो oa कौ at उपासि sk वहाँ वैषा दो देव मनु पष्ट ate ST ATT तदनुखारो गन दो जाते हे WT उनकी sitar मौ श्रपनौो उपाधि के समान Stat ₹े। सोने Raga? म जसे मेख लगने से उस कौ शोभा बिगड़ जातौ 2 उसो Ga पापद्प मैल शरातमाके सद्गुण को नष्ट कर देतो 21 aff dain aug A मेल जल जातो 2 Fae ज्ञानाग्नि वा मक्तिके दारा way a ae ag हो जाता 31 शख बात को aR AT UH AT दया से बुद्धिमान लोग wal भात समते Foca दोषे म भो पूवं कथित ge at a किया ₹हे ॥ ०३ ॥ जानु बस्तु अस्थिर सदा faza मिराये नाहि | SI AA HATA दुरत VAM विशाकह तादि ॥७४॥ शश तुलसी-सतसट | श्रन्वय । ay षदा श्रखिर जानु मिटये नारि मिरत रूप नाम दुरत प्रगटत ताहि agin विलोक ॥ Stal सदश Wane बस्तु सवेदा! स्थिर एकरूप एकरस रतो डे रेषा जानिये। उस का ata करनेसे भौ वह नष्ट नदीं होतो, केवल जब ९ उसका खूप बदलता डतो दूसरा नाम पड़ जाताङे xq 8 खूप ओर भाम TR नष्टहोतेश्र फिर Waza wa at WRN ula sa कर देखो । वस्तुश्रों का श्राकार माच बदल जाता 2 परन्तु भ्रात्मतत् सब में एक हे। यड बात सोने के उदाहरण से fag कर दिखलाया डे ॥ ७४॥ पेखि रूप सद्या कव गुन सु-बिनेक बिचार | snare उपदेस बर तुलसौ faa बिचार ॥७५॥ श्रन्वय । खूप पेखि (au) सु-बिनेक गुन विचारि सद्या कडब। बर बिचार gaat इतने उपदेश किये। wen को देख कर We श्रच्छे बिचार से गुन को सोच कर नाम vat चाहिये । उत्तम भिनेक त॒लघो-दाख वा सुन्दर बिनेक युक cat हौ उपदेश को तलसो-दास-जो ने किया S ॥ श्रभिप्राय ae किं भिना सोचे विचारे श्रपना cata कर लेना श्रच्छा महीं होता। गृण श्रादि सब सोच विचार के श्रपना दृष्टदेव बमा के तब देवतां कौ शेवा करनौ चादिये। योगो लोग fear ध्यान करते ङे" उस मनोहर -रूप-वाले प्रभु को राम, मेघ के समाम श्याम-वणे भक सुखदाई WY को ANA, फरसा धारण करनेवाले पञ्चम सग RRE को GMa, ET धारण करनेवाले को हलधर दत्यादि रूपके HIRT संज्ञा के उदादरण डे | ASS के श्राकारवाले श्रवतार का माम मव्य, HHT के समान का कच्छप, प्रकर के तख का बरा, wae ओर सिंदकषे सदृश रूप नृसिंह. भार श्रति डोरे खूप के कारण बावन इत्यादि खूप को देख कर परमेश्वर के लोलावतारों के नाम पड़ दे" ॥ पूजा करने योग्य मूतियोँ के पाँच मेद ह श्र्थात्‌ ९ श्रापसे श्राप प्रगटे जैसे MH पद्मनाभ wat श्रादि, २ देवताश्रोँ के स्थापित यथा नगन्नाय HEPAT बधेश्वर भवेश्वर Arle, श सिद्धो के स्थापित पन्हरौ- नाथ गोरख-नाय श्रादि, ४ Aaa ® स्थापित anz tz aaa ब्तेरे पाये जाते 2, Are vat खयं प्रतिष्ठित जैसे शालिग्रामादि जानना चाहिये | रूपें के भेद को श्रागे के दोहे मे कगे ॥ ७५॥ सदा स-गुन सौता-रमन सुख-सागर बल-धाम | जन तुलसी परखे परम पाये पद्‌ frara yo ॥ श्रय | तुलसो-(जो) जन सदा सुख-सागर सगन बल-धाम सौता- रमन परखे परम पद बिललाम पाये॥ ठुलसो-दास कते डे कि जिस मनुव्य ने सदा सखिदानन्द मृतिं सगुण AAI बल के OA सोता के पति श्रोरामचन्र को Geer उस ने सब से उत्तम Ty मोच को पाया क्कि सौन्दये, माधुय, VHA, THM, KFA, SRT, प्रसन्नता, सुखमा, arg, मधुरता, TANS, भक्रवत्छलता श्रादि गुण सब, Awa मं ये | श६४ qr aay | neal afente जो ने श्रपनो रामायण मे cere जौ का श्रपूव वपन * किया हे ॥ ७६ ॥ स-गुन पद्‌ रथ एक नित निरगुन अमित उपाधि | gaat aefe fate तें समु सु-गति सुरि साधि ॥ ७७ ॥ श्रन्य । स-गुण पदारथ नित एक उपाधि “निरगुन श्रमित उपाधि (am) तुलसौ fata aefe सुटि सु-गति चाधि ayn ॥ सुन्दरता, चमा, दया, सुभओौलता wise गृणे से यक्त wa धमं काम मोक सन के देनेदारे सगन (पदाथ) परमेश्वर Mua रै" (उन के पाने के लिये) सदा एक ( उपाधि) wa कौ चिन्ता करनी होतो हे श्र्थात्‌ शरणागत et करं सेवा करना परन्तु खूप गण श्रादि से रदित पर-ब्रह्म see उपाधि बाधार््रों से यकर डे" उम के पाने के लिये छखे श्वान को प्राप्त करने म श्रत्यन्त परिश्रम ओर — # दच्वाकुवंश्रप्रभवो रामो माम जनेः wat | नियतात्मा ayaa दितिमान्‌ टतिमान्‌ वणौ ot बुदिमा्नौतिमान्‌ avait ओौमाष्डव्निवद्ंणः | विएलांसो aware: कम्बग्रौवे महाष्नुः ॥ २। ACS महेष्वासो गृएजन्तुररिन्दमः। साजानुवाङः सुशिराः game: सुविक्रमः॥१॥ समः समविभक्ताङ्गः खिग्धव णेः प्रतापवान्‌ | wager विग्राकान्लो egy yar ॥ ४॥ ( द्रव्यादि arfenat® रामायये |). पश्चम सगे | REL wie fan होते हे । टस लिये तलसो-दास aaa ब्रह्म TATE को frig से ( fata) सुखदाई कते दे इष कारण ( समु भि) बिचार कर्‌ के (सुरि सुगति साधि) सुन्दर सुगति को शाधो said उन्तम गति पने के लिये रामचन्द्र कौ श्राराधना करो । दस at सगन ब्रह्म MIRAGE कौ भक्ति को ज्ञान से श्रभिक सुलभता दिखाई F oo यथा रक मह Az गुन ता मह के aE नाहि | तुलसौ बरतत सकल हे समुद्यत AIT कोउ तादि॥७८। श्रन्वय | यथा एक महं मेद गन AB aT AE को नारिं तुलसी वरतत सकल हे ( परन्तु ) ताहि काउ HIG सुमत | fae प्रज्ार एक WHET परमेश्वर मे चार गृण है । ग्न्धकार मर करते हः कि को उन चारो गरणे नें कौन नँ ह? श्र्थात्‌ सभो चर श्रचर लोव उन चारो के भोतर श्राजाते द" चार सव दर्ग मं वतमान भौ ह श्र्थात्‌ षटि पालन दन्दो के दवारा होता ङे परन्त॒ इस के समभनेवाले विरले ९ लोग हे aya कम लोग खमभते रै" । Gea WaT मे इन गुणो का awa प्रकार से quer किया डे | भगवत्‌-गुण-दपण' नाम ग्न्य मे पदले, ज्ञान, UE, बल, रे, तोय, a en ee eee ee ee ee SE) * श्रेयः शितं भक्तिमुदस्य ते विभो | fasta ये केवलवो घलब्धये | तेषामसौ anda शिष्यते नान्यद्यया Bergan घातिनम्‌ | ( श्रोमद्धागवतम्‌ ) RRR तुलसौ-सतसरं | चर तेजये ङ गुण संघार के पालन श्रादि के उपयोगो ह । दूसरे, सत्यता, ज्ञानिता, श्रनन्तता, एकता, व्यापकता, निर्मलता, खतन्तता, श्रानन्दिता wife भजन के उपयोगो गृण F । तौसरे, दया, छपा, RIAN, श्रन्‌ शंसता, वात्सल्य, wits, dena, कार, चमा, TA, Wes, Ga, सेव्ये, wae, तिल, wa, Wea, खजता, सुदता श्रादि गुण भगवान के सेवकं के लिये उपकारौ ड" । चौथे, सुन्दरता, मधुरता, सुगन्धता, Bearcat, उच्वलता, waa, TRE श्रादि We के गण ह । दस प्रकार रामद्ूप भगवान के (बेद) चार्‌ प्रकार के गृण भ्रस्तो a afta F संसार को उत्यन्ति, पालन, नाश श्रादि सव wet गणो" से होते शै" oe Ro इससे सबद्न्दोमंडे'श्रोर wel को वरतते F 1 oc ॥ gaat जानत साधु जन उद्य-श्रस्त-गत मेद्‌ | बिन जाने कैसे भिरे विविध जनन मन-खेद्‌ ॥ ७९ ॥ श्रन्यय | साधु जन उद्य-श्रस्त-गत भेद जानत, aaa बिन जाने भिबिध जनन मन-खेद FB मिरे ॥ ₹रिभक्र साधु लोग उद्यसे ले कर TE पच्यन्त सारौ Taal का भेद जानते ह । तलसौ-दास कते 2 कि बिना जाने waa agar के मने at ga किस प्रकार दूर et सकता डे॥ श्रभिप्राय ae किं जगत्‌ atk सत्य पदाथ नदं केवल माया A श्नि से सल्यसा vata होता S दस बात को ज्ञानो साधु जन जानते Yi विषयौ संसारो, नोव जब तक उसे ब्रह्मज्ञान न हो, मोः जान पञ्चम सगं | RRR सकता दसौ कारण वद सुख दुख का भागौ होता हे । पूरा As होने पर उसे भो दस जगत कौ चार दिन को चान्दनौन्नातषश्ो जायगो तब वद TSCA St जायगा ॥ ७९ ॥ सन्सय सेकं VHT रज देत रमित दुख ताहि | afe अनुगत सपने विविध जाई पराय न जादि Neon श्रन्वय । सन्धय समल सोक रुज ताहि श्रमित दुख देत । भादि सपने बिबिध afe aaa पराय न STE Il ऊपर के AV a कौ बात को श्रव दृष्टान्त दे कर Ga करते ॐ“ । भ्रमरूप कारण से दृढ़ हो कर TET रोग उसे श्रनन्त au दे ver है जैसे feat के पोट aaa a As aig aa हं ait उस से भागा न जाय, श्र्थात्‌ उन के चरे में पर कर ae बिचारा श्रत्यन्त दुखो दो । श्रभिप्राय ae कि सपने के aig Ae उनसेदुख पाना सबमिथ्या हो ड परन्तु सपना देखनेवाले को उनसे सचा Hy ears उसो प्रकार दस संसार के विषय सब मूठ हे AIT उन के दवारा विषयौ लोगों को जो सुखष्ोताहैसोभौ sat डे क्योकि श्रन्त को उन से दुख दौ भिलता हे ॥ ८० ॥ तुलसौ साचा साँप है जब लगि खुलै न नैन | ar तब लगि जब लगि नहः सुनै सु-गुर-बर-बैन ॥८१॥ २६१४ तुलसी-सतसद्ं | aa । जब लगि नेन न ae ( तब लगि ) atet aig 2 at तष लगि जब लगि सु-गुस्‌-बर-बेन न्ट सुने ॥ Qa मं जब तक RI न खलै तब तक साप सच्चे से जान पडते रैं owt HAST Bel का खुलना तब तक नरी St सकता जब AK TRAE के सुन्दर वाक्यों को न सुने । भव तक We न We खत्न का दुख किसौ प्रकार दूर नदीं होता att Gy Tater ATE में पड़ा हौ रहता डे जब कोई उसे अगा Zar Sz Are उसकी Bia खुल जातो ड उसका RW सब मूढा MT व्यथे जान पडता डे उसौ प्रकार जगानेहारा गुर्‌ लब ज्ञानरूपो नेच खोल देता ₹ै तो यद जगत सपने कौ सम्यत सा लान पडता दे ॥ ८९॥ पूरन परमा-ऽरथ दरस परस न ज्ञ लगि भ्रास। & लगि खन न,उधात नर ज लगि जलन प्रगास॥८२॥ श्रन्वय । लौ लगि ore परसत (तौ लगि) पूरन परमा-ऽरथ दरसन जो लगि जल न प्रगास (at लगि) नर खन न श्रघात। जब तक जोव को विषय सुख कौ राशा स्पशे करतो ह श्र्थात्‌ nat के मनसे विषय का श्रभिलाष भलो्भात नष्ट नदी" et जाता तब तक पूरौ af का दथेन नहीं होता | जब तक विषय कौ श्राश् तब तक संसार को फास Ta मं दृष्टान्त देते ह" किं जब तक जल भ प्रगे तब तक AT एक चण भो eq नदीं शोता संसार के खेतो- QUA सग॑। REY धरनेषारे देखा करते है कि कष जलं बरषता डे जब तक नल ae Stat Ba aa को श्रानन्द्‌ aey मिलता परन्तु जल Isa ST षे श्रानन्द्‌ से भर जाते SF asl दशा संसारी Ma कौ हे कि विषय सुख कौ wim मिरते हौ उनके मन मं ज्ञान उपजता दे ॥ किमो feat पुस्तकं a “at लगि खन sara नर" faa मं “ayy उघान नर्‌” पाठ डे । उपान शब्द का श्रये जो सुखना करे तो व TARA सा जान पड़ता हे alfa TUT धातु dea भाषा मेँ वदतौ वा परिपूणेता का श्रथे देता हे इस कारण “gare” को WAT का RIMM मान कर श्रघाना wa किया wats यदि “तौ लगि खन नर न उद्यान” श्रन्वय कौ जिये तो पदले पाट का श्रथ “तब तक एक BU भौ AAW नदी Feat वा हप्र ETAT” होगा। दस प्रकार दोनो पाटटौक Et सकते हे" ॥ तब लगि ea A aT ast ST लगि है कषु चाह। चाद-रहित कष के अधिक पाय परम-पद थाइ।॥८६॥ श्रन्वय । जव लगि कदु चाद हे तब लगि ea a सब बड़, च द-रदहित ae को श्रधिक ( तिन ) परम-पद थाह पाये जब तक मनुग्य के मन मं किस aay कौ wea बनो ₹है तव तक ही (उसे समभना चाहिये) कि हम से सब लोग बे ई" क्योकि amet के निकट कौन बडा ई? श्र्थात्‌ कोर a बडा नदीं है । जिसनेश्राशा ats} उसने परम पद aft का थाइ (पता) ६६ तुशसो सतस | पया । श्राशा रो दुखदाई* वन्धन हे जिस ने सब प्रकार कौश्राशा त्यागो वद सुखो SAT ॥ एर्‌ ॥ कारन करता हे अचल अपि श्रनादि अ्रज-रूप | ताते ITH विपुल-तर तुलसौ अमल अनूप ॥ ८४ ॥ Tad | कारन करता श्रपि श्रचल श्रनादि श्रज-द््प हे तलसो श्रमल TAY ताते बिपुल-तर कारज। faa से कायै उत्पन्न Sat डे वड कारण जरर कायं करनेवाला नोव भौ sai सिर safe चार जन्म-दौन ड" तुलसो-दास aes 2 कि मल-रोन उपमा रहित श्र्थात्‌ निर्मल चार निरूपम उस कारण से ( बिपुल-तर ) asa से ara HA है ॥ दितौयाये। कारण श्र्थात्‌ सब SNR को उत्पन्न करनेहारा परमात्मा BUT कारण का भो कर्ता Maly कारणं का भौ कारण परमेश्यर Miz कर्ता Wal उसो परमात्मा का श्रं जोव जो षब काथं को करता शे दोनों रो (श्रपि) निश्चय कर cae श्रनादि चार ब्रह्मके रपद इम निमंल निरुपम पद्‌ से ata प्रकार कायं होते Fy ८४ ॥ करता जानि न परत ह बिन गुरु-बर-परसाद्‌ | तुलसौ fas सुख बिधि-रहित केहि बिधि-मिटे faere श 2. ९. * aint fe परमं दुःखं नेराष्टं परमं छखम्‌ | BMI ये दास्ते दासा जगतामपि | GU Gaba येन तख दासायते जगत्‌ | पञ्चम सगं | ९६७. mara । बिन गुर-बर परसाद्‌ करता ( निज-रूप) न जन परत शे तुलंपो निज सुख बिधि-रहितं विखाद केहि बिधि मिटे) बिना किसो उक्तम TE को Bat केजोव को श्रपना रूप नशी जान पडता दष कारण VE जोव श्रपने सुख के उपायो के gray से रौन हेता उसका दुख किस प्रकार मिट सकता इ श्र्थात्‌ किसी भति नदीं faz सकता । जब तक जोव श्रपने परमात्माके रूप को भलो ia न पचाने चार षदिष मद मत्सर श्रादि को कोड Aleta चन्द्र की शरण मंन जाय We किसो हरि-भक्त का उपदेश देन मिले aa तक किस प्रकार दस का a a दूर हो सकता BP ॥ ८५॥ न्रिन-मय घट जानत जगत विन कुलाल नहिं हाय | तिमि तुलसौ करता रहित करम at कह काय।८६॥ जगत जानत मिन-मय घट कुलाल बिन afe दोय तिमि तुलसो HE करता रदित कोय करम He | संसार भर जानतादेकि मदौ का घडा बिना कोहर के ay सकता wal सुन्दर चिकना घड़ा बिना बननेवाले के gat नदीं बन सकता उसो प्रकार तुलसौ-दास gad डे कि कहो विना कतां Raitt काम (करता) होता F श्र्थात्‌ कोई भो काम बिना करने- वाले के कभौ भौ नदीं हो aaa हे। जो जो काम देख पडता ई खव के कोड न कोद करनेवाले Way ददो रषे हः । वदो em ca गत को भौ 21 एेसा बड़ा ब्रह्माण्ड बिना किमो कर्ता के कमो नहीं age वुलसी-सतसद | et सकता श्रौर दस जगत काएक i हम लोगे का शरोर भौ बिना किसो कर्ताके करभौ नदीं et सकता दूस Bg दन का कता श्रव मानना पड़ा ae कर्ता ्रौपरमेश्वर कै श्रवतार TATE को ats श्रौर कौन हो सकला रै। wa श्रपने कर्तां परमेश्वर को पचानना We Ga कौ श्राराघधना करना स्व Mat ar gy कतव्य हे ॥ ८६ ॥ aT A करता-ग्यान HE जाते करम प्रधान। तुलस्यै ना लखि पाइदा faa ्रमित अनुमान ॥ con ताते करता-ग्यान करजाते करम प्रधान Gael श्रमित श्रमु- मान faa at लवि पादह, दूस कारण gal Sl का ज्ञान करो श्र्थात्‌ Wea कर्ताको wat भत परचानो क्याकिं उसो से मुख्य कमे उत्पन्न होता ₹ईै तो कर्तान होतो कमे कौन करे MT जब HH SY a Ll तो उसका बन्धन भौ करां से श्रावेगा इस कारण कर्ता का जानना बहत Maw FI कतां के पचानने के लिये ऊपर्‌ कई एक Asi मं waa उपाय बता सुक हे" जिन मे गुरु सेवा सन्ङ्गति श्रादि मुख्य F । तलौ -दासं कते डे" कि नहीं तो wag] श्रनुमान भौ करते रहोगे तो भो नदीं जान सकोगे । कमे के उत्यन्न करने का मुख्य कारण कतां हो रै तो ट्स को निना जाने नो कम्म के जानने के लिये gaa उपायमो चाहे करे परु wa होना करिन et sna > दस कारण कर्ता हो ने जानने मे यन्न करो भिस से ्रामन्नान श्रवश् होगा CO | पञ्चम सगं | २९९ अनूमान TTA रहित हात नदौ परमान | कड GAA परतच्छ जा सा कह AIT का ्रान॥ SEY श्रन्वय । सारौ रदित श्रनूमान परमान नदो होत Taal TE नो परतच्छ सो AB AIT श्रान न। सन्तासौ के दोहे मे कहके कि बिना कतांके ज्ञान श्रनेक श्रलुमान से काय fats a ett उसो at Ae दृढ़ करते FI aral के बिना gaara प्रमाणित नदी होता इस कारण तुखसो- दास उपदेश देते ह“ कि नो Naa S उसो को को भार करो Qe दूसरे को मत करो | श्रभिप्राय ae fa श्रपने मनसे श्रनुमान करके श्रनेक प्रकार का कमेजो त्वं करता डे बिना areal के वह सब कुद TA a Vt ra कारण श्रपने काये का Bal रखना तेरे लिये asa श्रावश्यक ड वह Mal तेरा गुरु वा साधु जन हो सकते F Ta Fg WEF उपदेश चार सज्ननें कौ सम्मति से काम किया कर तो Baw तेरा मनोरथ सिद्ध दोगा ॥ Se | *fae कारन करता सहित कारज किये अनेक | जी करता जाने ASL तै कह कवन विवेक ॥ ce ॥ करता fag कारन afea श्रनेक कारज किये जौ करता नदीं जाजे तौ as कवन विबेक किये । न 9 ee * किसौ कसो gen मे" “तिमि कारन” दि पाठ हे वँ oh प्रकार कारन सादि खथ होगा। कर्ता (बननेहारा ) कार खत्तिकारूप कारन ले कर Wg काये (घटश्रादि) बना चका हेतो केवल घट के कारन ग्डत्निका को जान कर सन्तुष्ट दो रदा रार यद न बिचाराकिमद्ौसेबिना किसी कर्ता के Bar सुन्दर घट किस प्रकार श्रा तलसो-दास कते हे“ कि जो aa wal at न पचाना तो कड तेरा भिनेक किस कामका SA केवल श्रधूरा रह गया | श्रभिप्राय ae कि दूस wt चोर जगत के बनने के श्रनेक कारणों को जान AT Ut HM QA TIR मुख्य कर्ता ओरामको भलो भांत न पदचाना तो तेरा सब ज्ञान धर मं मिल गया। सब कारणे के भौ कारण भ्रोराम का जानना बहत श्रावश्यक ड ॥ ८९ ॥ स्वरन-कार करता कनक कारन प्रगट लखाय | अलङ्कार RUT सुख-द्‌ गुन साभा सरसाय ॥ ९० ॥ ऊपर के AI मं घट का उदादरण दिखा कर श्रव QU HT ~ Rw उदाहरण दिखाते Zz 1 BAT) खरन-कार्‌ करता कनक कारन सुख-द HAFIT कारज लखाय शोभा गुन सरसाय ॥ सोनार कर्ता सोना कारण Ne सुखदाय श्राभरूषण वा neat कायं देख पड़ता ड भार श्रलङ्ार पदनने से जो शोभा होतो ड ae गण Wl सोनेका खामौ वा बनानेवाला इन समो का सुस्थ खामो ड | पञ्चम सगे | २४९ ae Farad रेह वा संसार पर ws ana Vi Ve We daz को पलनेहारा जोव stare S वहो नौव कतां हे। हरिभक्ति, wi सत्सङ्ग श्रादि सोना ( | Mic उपो के aa Fea ware Fat रषे ह । तलसो wea F (कि जिस को समभाश्रो वह Gas श्रपना मन मोरा कर लेता हे. 2५" वियन्‌ संसार मे ta लिप्त श्रा रे कि जो उसे उपदे दे oe HE: नि we यसमा ₹े। | भै बुलसो-सतसद । ` दितोया्ं । श्रपने UF वा कमे श्रादि way मेँ सब zee जिस को समभादये कि जगत्‌ के व्यवहार पुच स्वौ धनादि व्यच हैः वदो सुभा से (यष्ट समभा कि सुभे मेरे परिवार से श्रलग करते 2’) GUAT मन मोटा कर लेता F ॥ ९९ ॥ मानत सा साचा हिर सुनत सुनावत arf | ` Feet ते समत नौ जा पद्‌ अमल अनादि ॥२०॥ . मन से उसो मायारूपौ पुत्र वा संसारके धन धाम को सथा खमभते We GAT कर के उसि सुमते सुनाते ई" shy (ते) वे संसार मं we मनुव्य fae aie श्रनादि ( पद ) परमेश्वर को नद्ध" मभते डे" ॥ २० ॥ आहि कहत है सकल at जेहि कहत से 2a वुलसौ ताडि agin दिये अज ह करह चित चैन॥२९॥ जिस को त सब कुक कता = सो (कतव) बाणौ ॐ gala शब्दरूप भगवान T श्रौर al (एेन) घर हैडसको मनम. सममः कर श्रव भो प्रसन्न ST | दितोयाथे । सकल जादि कदत 2° सो करतवब (सकल) ta सो सुभि gaat wis af fea acs जदि दित चेन (शोय )। जिस *परनब्रह्मरूप राम को सनकादि सब मुनिगण करते ई“ ae} * सः श्रौरामः सवितासो सवेषामौश्चरः यमेवे शः छेगते सपुमाभचर्त यमवैदस्म aye खः चिगुण्मयो बव ede नरहरिः athe: गन्धमादनः Mare wag: स्तौतीयं मह्ाविष्णः Wars महाश्रम स्लौसौयं Fi मण्डलं तयति यत्यरषं efque मण्डलो वैमणग्डजे च्यः awratata । (सामवेदे तेतरौग्रण्लायाम्‌ |) qe at ६९६. भरनेश्वर सब का (रेन) aT FSS समभा कर तुणसो-दाख करते द कि श्राज भो oe श्रपने मन मं धारण करो fare चे grant मन में न्ति शरोर श्रानन्द होवे । दितोयाे उत्तम इ ॥९९॥ | तुलसौ at S at नरौ ACA Wa सब ATE | एहि बिधि परम fasraat HEY न का के STEUREN "erat कते ई किं जो जिस प्रकार के श्रोरामचन्द्र हे ठोक Fe सो न करते परन्त्‌ श्रौर का तौर हौ करते हे श्र्थात्‌ mated WIA राम को नदौ समभते हे" परन्त कोई उन्हे मनुय सममत atk केवल एक राजा समभ लेते ह । दस प्रकार को बिडग्बना को किख को नहो Stat Tal सव के हेतो डे ॥ २९॥ ‘ae करिबे सिद्धान्त यद हाड यथारथ बेध। श्नुचित उचित wars उर तुलसो मिट इ बिरा ॥२९॥ जव AG गुरु करे ता उसके उपदेश से दस सिद्धान्त काकि संसार श्रषार ओर राम सचे बेधा चार उचित श्रनुचित आगा जाय चर हदय से बिरोध दूर हो जाय ar तलसो-दाख कामत रै बिना गुरु के चे मागे के दिखलानेवाले नो मिल खकते KS कारण गुर करना मूल सिद्धान्त SAT ॥ RR ॥ सत-सङ्गति के फल यदी सन्सय Tes न सेस | @ अस्थिर सुचि सरल चित पावे पुनि न केस ॥२४॥ aagfa "का यदहो फल हे कि सन्देह का प्नोड़ाभो श्रं नहो aye | तुलसौ-सलसङै | । शृता ओर सब सन्दे के दूरा भने से मन शान्त पविज Ae Sturt Sr जाता ₹ै जिस से फिर मनु दुख नहो पाता । भमके र हने का प्रथम उपाय गर उपदेश चर GAT पाय TEP Qi संतक्गः मे cea से सव प्रकार ar aA |T I जा सकता हे चार मन प्रान्त Br कर परमेश्वर के पदवान सकता डे ॥ ९४॥ ` ` जा afar पद्‌ सभनि का जह लगि साधु असाधु. कवन हेतु उपदेस गुर सत-सङ्गति भव बाधु ॥२५॥ नासिक कते 2° कि मरना श्रवश्य दो हे तो रब at at ला. गुर्‌ चर्‌ साधुश्रोंकेसङ्गसेक्यालमभहोगा। दन मर्ते aT बणे करके खण्डन करगे । जा मरना साधु भले चार श्रसाधु at सष के fad sam डे ता किस लिये Ser गुर्‌ से उपदेश लेते F भर संसार के सुख विलास का रोकनेवाले aay ar भो faa लिये करते 2° श्र्थात्‌ यदि इन से कु उपकार नदो हे ते क्यो द्‌ःख टाना ॥९५॥ ज्ञो भावौ ae ड नहौ भटो गुरु सत-सङ्ग । =. . ेसि कुमति तें छट गुर सन्तन के पर-सङ्ग ॥ २६। जाः किमो बात कौ भावौ नहीं हेते ae Are aya at श्गति चे क्या लाभ 3 रसो हो कुबद्धि (ओर Raa Aas a at gat) सेल चे age र साधुर को सङ्गति az जातौ 2 व्घोौकि उन Al केवल भाग्य का भरोसा रहता F परन्तु वे यद नदं लमभते कि भाग्य.क्या बस्तु हे। यदि बिचार करो त्ता ae बात WS aa | २९५ प्रमाणित होतो हे fa stag प्ले किये गये ड" उन्हो के फल को भाग्य कते ड इस प्रकार कथो रो प्रधाग टद्रा तब तो गर शेर साधसङ्ग रूप कमे श्रवश्छ करने ग्य है । अब लोगों को पूर्वक बद्धि श्रातो हे तब बे भला काम करते हेः भोर जब नदं श्रातो तो Sta कमं कोड केवल cia सुख के श्रभोन हो जाते डे" ॥ २६॥ नै शा लखि arel पड़त gaat पर-पद भ्राप। तै शगि मेह-बिवस सकल कहत पु कह वाप Noy जब तक ATS को (पर-पद) अष्ट परब्रह्म MT श्राप टन दोनों का भेद ( देतमत). श्रयवा पर-पद पर ब्रह्मरूप श्राप (श्रदैतमत) नही ञान पडता, तभो तक मोह माया के aly et कर सब लोग (पुज ae) qua किये wa कमे at az at (बाप) पिताखष्ूप श्यात्‌ सब सुख का कारण समते डे *। श्रभिप्राय ae किं जव जोव श्रौर ब्रह्म का भेद, श्रयवा ब्रहम TT जोव का श्रभेद भलो भांत नदो जान पड़ता तभो तक जोव संसार मे वद्ध रहते डे", दितोयाथं। नब तक silat को परब्रह्म परमेश्वर नदी समभ पड़ता तभौ तक ae मायाके Bala हो कर श्रपने ATT वाले कोसाचा मागता डे, ज्ञानो शार भक्तं के लिये Gare संसारम फषानेवाले होने के कारण wag जान पड़ते हे" ॥ २७॥ + (इस दादे के चतु्ंसगेके o¢ Se ७9 के देहो से भिता ax विच्ारमा चाद्ये |) ३4“ add तुलसो-मतसई | se uf ag *वरन-भ जासु BE A हाई । वै तुलसौ से है स-बल ma कहां कह MTech wei तक सन्ना (अर्यात्‌ नाम हे) सम (उरन-भप) श्रत्तर से उत्पन्न होनी डे सो aaah dar at ca) के मनुय रौ के कने श्र्थात्‌ ` उच्चारण करने से lal Fi qual कते हे" कि वदी ae पुरूष (स-बल) Tana हे Me दूसरा कां से हो सकता ॐ ब्र्थात्‌ दूसरा नदीं 2 श्रभिप्राय ae कि सब कुक्‌ दसो पुरूष के कहने करनेसेष्ोता डे यष्ट श्रपने दाय सेजाल बिनताडेज्रर ma उसमें फस जाता रे (श्रवश्यमेव भोक्तव्यम्‌ छतं कमे WMI) जो कु भला बरा काम किया जाता उसि Rave भोगना पड़ता डे ॥ २८॥ gua नैननि देखि जे wafe सु-मति बरलाग। faafe a बिपति fare रुज तुलसौ सु-मति-सु-जाग | ॥ ₹२९ ti तलसो-दाख कते दै कि (जे सु-मति बर सोग) जो र्‌ सुबुद्धि अष्ट लोग श्रपनो aig से देख कर श्रथात्‌ श्रात्मज्ञान जरर बुद्धि से बिचार कर चलते वा वहार करते हे. उन at a बिपतम दुख रारन AST Stat > क्योकि उन को ( सु-मति-षु-जोग ) saat उत्तम बुद्धि का बड़ा सदारा रहता हे ॥ २९८ ॥ fant गगन-चर ग्यान fag करत नहो पडिचान। पर बस a2 हटि तजत सुख quart faca मुलान : ॥ ३० ॥ बद सगं | २६७ गगा प्र ओर श्राकाश में उडनेवाले Tet ज्ञान रौन हो कर न जान सकते हः ओर न ae बिचार करते कि श्राकाश् म जल कां से St सकता ॐ परन्तु GH चार्‌ लोभके ब्रम हो कर Ga ay कर HE इटपूषैक THT से उधर भटकते फिरते डं ॥ मो eq मे जैसे दष्णा के मारे दुपररिये को धूप aM aT जल-सो जान पडतो डे AT ae उसके DS दोडता Val रो Fe दशा sagt ala al 2) भरमरूप संसार को सत्य aa a फष कर दुख उटाता ₹े ॥ २० ॥ कदा कष afe ताहि का जेहि उपदेसह तात | तुलसी कहत सु-दख सहत समु रदित fea बात ॥ २१॥ (ata तडि कदा कौ ) हे प्यारे va at क्या हम कदे (जेहि तोडि को उपदेसड ) जिसमे तुम को (संघार म फसने का) BIST दिया | ( fea बात समुद्य रहित) हित श्र्थात्‌ हितकारो साधुर को बात की सममः से रहितो के बड़े दुख को सते हो श्रथवा (हित agen रहित) कल्याण कौ बुद्धि से दोन श्र्थात्‌ maT म परे eat Al बात को तुम से क कर जिस ने ae सिखलाया उस को मे क्या कदं! जिस गृद्ध के उपदेश से विषय aut मं डवा ₹े उस उपदेश देने अर तेरे खे उपदेश रेनेहारे दोनों को भे क्था HE । तुम दोनो धन्य शो ॥ ३९ ॥ faq काटे तर-बर जथा मिटे कैन बिधि द्वाहि। at तुलसौ उपदेस fag निह सन्सय कोउ नाहि ॥६२। Rs तुशसी-सतसद | faa प्रकार बिना oa % काटे Ga कोष्ाया कसो प्रकार गीं faz सकनौ उसो रौत age के उपदेश के बिना कोर निःसंशय र्यात्‌ ace रदित नही et षकता। संशयरूपो राक्तसो खब को wan किये ₹ै बिना भले गर के उपदेश के ae क्यो कर eT सकतो डे दस कारण भले के उपदेश कौ श्रावश्यकता सब को डे Veil पना करत श्चापु लखि सुनि गुनि arg बिचार। तै तदहिकेादुख-दा कषा सुखदा सु-मति AUT २३ ॥ श्रपने faa at ल्ल श्राप विचारे र उसि सुन बिशार कर सो तो तुमे दुख कदां et सकता हे श्रच्छो बुद्धि दो सुख कौ खान FI जो कोद सुबुद्धि से सोच बिचार कर काम करता है उसको ME दुख नदीं हो सकता यहां वहां दोनों ठौर सुख हौ सुख मिलता ₹े । केवल सुकमे करके Gaus कर देना चाहिये fat at TA sit HG St AT सहायता करगे ॥ Vz Ul ब्राह्मन at बिश्या-विनय-सुरुति-बिषेक-निधान | पथ-रति श्रनय-अरतीत मति afer eat सति-मान ॥ ३४ ॥ aed Awa कम कौ महिमा दिखा कर श्रव WAH aw का कमे कष्टते रे ॥ ब्राह्मण (बर) बीं मे ae हे उस को विदधान भस्रभरनेदके ga 3 पणं होना चाहिये सत्यथमप्रोति रके चर श्रनोतिसखे श्रपनो बद्धिको दूर किये 1% शार दया em et कर नेद्‌ को ATA WS qa | age श्रयवा st ब्राह्मण विद्या, न्ता, fare चर सत्थ नें प्रौति रक्छे श्रमोति खे बुद्धि को दूर रके शार मेद प्रमाण सहित दया का TH वाल्ला Et वह्‌ ओष्ठ हे ॥ ३४ ti विनय aa सिर जासु के प्रति पद्‌ पर-उपकार। तुलसी सा चौ सदौ रहित सकल-व्यभिचार WSU चचरी का कमम कते V1 गस हो चार रच श्र्थात्‌ प्रजाश्रों को दख से बचाने्ारा राज वर जिस के भिर पर विराजे चर षदा दूसरों कौ भलाई करे चार सब प्रकार के व्यभिचार, बराह्मण को A भमि Paar, परस्सीगमन श्रादि दोष से रहित Et, वहो Sta eat डे ॥ २५॥ ta बिनय Ay Uy धरे इरे कटुक बर बैन । स-दय सद्‌ा सुचि रुचि सरल ताहि अचल सुख रेन । SE I Fay ag We WGA मग at कौ सेवा व्यापार श्रादि FS We HAH कोड मधुर भाषण करे । सदा दयावान्‌ पवित्रता a प्रौति wa चार सोधा Bee करनेश्ारा हो उसे श्रचल सुख को Gry जानमा चाहिये जरां “सुदि सरलता fea सदा सुख ta” पाठ हो वहां उख के हदय में खव प्रकार कौ पविता सोधापन हो भार षदा श्रानन्द में रे Tar श्रथे करमा चारिये ॥ २६ ॥ wx द्र पथ परिरे हिदय बिप्र-पद्‌ माने | तुलसौ मम समता सु-मति सकल जोव सम जान॥₹७। २७० तुषलसौ-सतसंद | WE नोचे मागे चोरो चमार बुरा काम वा ats घन से मत- वाला होना श्रादि पाप युक्र मागे को ats देवे दय से ब्राह्मण के चरण म श्रत्यन्त प्रेम करे । श्रपने मनसे षब जोश्रों को समान समम कर aa मे षम बद्ध cag चेर श्राप भौ बुद्धिमाम दो ॥ २९॥ हेतु बरण बर सुचि रहनि रस निरास सुख-सार | चाहनकाम-सुरा नरम Gaal सुद्धि fear isc (बर) श्रेष्ठ बरण के जोर कारण कदे रै" उन मं ओर पत्रता म बसे श्र्यात्‌ तदतुखार व्यव्हार करे Ay रम gala ९ काम ९ क्रोध द्‌ लोभ ४ मद ५ मत्र ६ मोह ca |e शत्रं को निरास करे श्र्थात्‌ त्याग देवे ओर काम कामनाष्छपौ मदिगामे रमण न कर वादको AT र श्रपने बिचार at ez cas तो ` (सुख-सार) सुखो होने को Ge aq (सार) कोपा चका, Tat कष्ट सकते हे ॥ २८॥ जथा-लाम सन्तोख-रत यह मग बन सम रोति। ते तुलसौ सुख-मय सद्‌ा जिन तन बिभव विनौति॥३९॥ लो ae मिले उसो मं सन्तोष vag तरार घरमे रह करमो बन ara} साधु sara रोत-नोति से चले श्रथवा we AEE के नियम शार बन मं बानप्रस्य श्राश्रम कौ Va से Base करे, वेरो सदा सुखमय सुखरूप डे- ज्र daa चार san उन्दो A we a भिराजतो हे ॥ २९ ॥ ष्ट षग | २७१ रशे जाः विचरे avi कमी ag कचु नाहि । तुलसौ तंह आनन्द संग जात जथा संग BIE ge ऊपर के AB A के Gay का Raw जहां रषे वहाँ डो सुख से बिहार करे किमो स्थान मं उस के लिये किंसौ बात कौ कमतो नदी | तुलसो करते हे यद्यपि va सुख at श्रधिक इच्छा नर्तो भो उस के संगर श्रानन्द्‌ परद्ाहो के समान घूमा करताद्े। ब्दा श्रानन्दसखरूप होने के कारण सब स्थान म ay सुखो रहता F ॥४०॥ करत तरक जेहि कौ सदासा मन दुख दातार | तुलसी ज agen awl तै तेहि तज बिचार ॥४१॥ केवल तकं वा श्रसुमान से दुख मान लिया sal से मनम दुख होता रे मन जिस र विषय पर धावता हे यदि उसे sal पर जाने दोजिये तो दुख को सोमा न a ear za asm et जायगा । यदि दुख को विचार aaa दुख न समभो तो दुख श्रवश्य zu aly देवे॥ दूसरा श्रय । (जेहि at) fra बस्तु at (तरक ) कामना षदा करता हे वहो मन को दुखदेतोहेतोजो दसके मनम fat बात कौ कामनाहो नरौ at Ki aT दुख हो सकता TI जो मन मे समभा कर बिचार ae at कामना को त्याग कर दे फिर ge दुख नहो ॥ ५९॥ कहत सुनत समुद्यत लखत तेहि ते बिपति न sz तुलसौ सब ते fran? जा लगि नदि ठहरा ।४२॥ RAR qmant-aazeg | लब तक विषथ सुख कौ बात HEM सुनता ann श्रौर देखता Sale जव तक उस सेश्रलग हो कर नो ठषहराता हे तब तक दष कादूख FT महो हो सकता॥ Fe श्रथे । जब तक TA Va संखारो जालो से saa et कर परम तत्व को नहो JETTA डे ( तब तक ) REA पुराणादि वाचने gua gana श्रौर देखनेसे दस कादुख नदौ दूर Ut खकता। श्रभिप्राय ae fa ear dare St को चिन्ता श्रादि म लौन र्नं श्रादि कारणों खे जोवात्मा इन्दो म फमा Tear Ft ve tl qaa arte काटिन कत कड षश्टाय नर्क । देखत सकल पुरान ofa ता पर रहित fata nes SPT UY सुनता WT कता हे परन्तु एक कौडो भर ज्ञान ery न लगता | सब gue wt वेद को Saat fata = at मौ बिनेक aa ज्ञान-रोन St बना F जिना हरिभक्ति वा aaa के सब सुनना कना लाभदायक द्धी होता जसे बिना व्यापारादि किये wea सुनने से धनवान नहो et सकता वदो दशा जोवको Fn ४२॥ aqua & सन्तो धन याते अधिकनच्ान। गहत AG ता ते कषत तुलसौ Way मलान।॥ ४४॥ सममभाता ॐ कि सन्तोष सर्वोत्तम घन हे श्ससे श्रधिकश्रौर कोर धम dare मे सुखदाई नरी परन्तु Se ( सन्तोष को ) ग्रहन aS aT | २७३ नहीं करता दसो से तुलसो करते ह कि मनुय श्रन्नानो wt दुखो वना रहता Sl कंसा भो धनो क्यों न हो जब तक उसे सन्तोष न होवे वह afta धन लभके लिये दुख दो वना.रहता हे, वहो दशा जोवात्मा को Si ४४॥ कहा हात देखे सुने सुनि aqy सच Tila | तुलसौ जे लगि हेत नदिं सुख-द्‌ राम-पद्‌-प्री ति॥४५। सब Dai को देखने सुनने att सुन कर समभने सेक्यादोता हे । जब तक Bae के सुखदाई पद मप्रेमन हो, सव पुराण श्रास्त श्रादि का देखना समभना विना भक्ति के व्यथं Sy ४५॥ कारिन साधन के किये अन्तर मल नहि जाई । qual जै लगि सकल गुन सहित न करम नसाई।४६॥ HSU उपाय करने B wt भोतर का मल नरी जाता 2 जब तक सब (तोन) गुणं के सरित aa ae aT et) कमेकौ फंसने पड़ कर्‌ AIA जनमता BATS AT दुख सुख का भागो होता 2, इसके नष्ट हो जाने सेजङ् zz जातो Vi ज्ञान श्रौर भक्तिरूपो श्रनि से जब जोव सव कमं के फलों को जला देता ई at वद सुक्र होता हे, नहो तो cd भले बुरे कौ का फल भोगने के लिये जनमना दो पडता रे ॥ ४६॥ चाह Tat Str लगि सकल तब लगि साधन सार, ता मह अमित कलेस कर Gaal रेखु विचार ॥४७॥ Jn २७8४ तुलसौ-सतसद | जब तक दष जोव को चार wal पचादि कौ कामना बनो S तब तक सकल साधन पुराण wate ay sate क्योकि जो जरां ₹है सो वदी qua साय उत्यन्न खभाव से (रख) प्रसन्न Pi कम कौ aig a ta aq हे कि faa श्रवखामं डे gat a यद जोब श्रपने को सुखो मानता डे | श्रभिप्राय ae कि Ka कामना wit वासना सहित हो कर सब काम मै दरषित रहता S यदि arent Sta दो कर काम करे तो बन्धन मंन usta के विरुद्ध जिम योनिमे ast Gat Hag ze पड़ता हे cat लोकके दुख मे gat हे परलेक को उसे कुक भो सुध नदीं डे ॥ ६६ ॥ तुलसौ बिनु गुरु का लवे sata बिपरौत | कड कडि कारनतें भण्ड At उसिन ससि amor बिना सुद्र के घतेमान समय को परस्यर विरुद्ध बातों को कौन समभा सकता ₹ै। कदो किस कारण से aa उष्ण MT चन्द्र Ha इये । जो २ बातें प्रतिदिन देख पडतो डे उनके भो aw को समभाना बिना गुर्‌ छपा के नदीं दो सकता att ast बातें के wana को कौन कदे जदं “बतेमान विधि Ta” पाट दो तदं बतेमान दस समय A wT Ta रहे ae भो बिना उपदेश नदीं जानौ जातो Lae ने fra at St गण दे कर TS खभाव का कारय करने को कडा AE aa Sl करता S BA उष्ण We चन्द्र ala उसोके करने से इये हे यथा रामायण मे “safe afew ae aft प्रभुताई । योग सिद्धि निगमागम mo करि बिचार जिव Zaz नौके । राम-रजाय tw सभ दो के" ॥ ६७॥ घः ङ” ८७ करता ACA करम तें पर परमा-ऽऽतम ATA | हात न बिनु Basa गुर जे पद AS पुरान ॥ ६८॥ क्ता करनेदार' जब । कारण माबाप MT कमे इन AAT खे (पर) परे (परमा-ऽऽतम ज्ञान ) परब्रह्म परमेश्वर का ज्ञान 2a बिना TER उपदेश के नीं Et सकता ae कोद किंतनाभो वेदिँ शरोर पुरानो का Us | प्ले AS म प्रत्यत बस्तो के ay का होना गुर्‌ उपदेश विना श्रसभव दिवा कर दष दोद्ेसे ब्रह्मज्ञान के होने का श्रत्यन्त श्रसभिव दिखलाया ॥ ६८॥ प्रथम ग्यान aan fea बिधि निखेध बन्रोहार । उचिता-ऽनुचितदिं हेरि fea करतब करद सम्हार॥६९ (प्रथम बिधि fray वेश्रादार समभे ) पले किंस काम करने को stat शस्त a St श्रौर किसके करने का निषेध इडे शस व्यवहार at सममे (fea उविता-ऽनुचित हेरि) फिर श्रपने मन से उचित श्रौर gafaa को देखे वा विचारे (fea wart सण्दारि करतब करद्‌) तब ज्ञान को दय में धारण कर के श्रवा TANT सावधान et कर कमे करे ॥ ६९ ॥ जव मन मड JEU बिधि सौ-गुरु-बर-परसाद्‌ | ofe बिधि परमा-ऽऽतम लखे qual faze विखाद्‌॥७०॥ (खो-गर बर श्रादि) गुरुदेव को दथा से जब (मन महं दि बिधि उहराय) मन में यह विधि शाप्तोक्त प्रकार स्थिर हो जाय तब He गुर्‌ कौ छपा से परमात्मा का ज्ञान होता हे faa से aq ८८ तुलसी. सतस { (विषाद) दुःख का are et जाता है। इन TAT SA मे के प्रकार से राजा अनक के समान ज्ञान दृष्टिसे कम करेतो wy A बन्धन मेन WS || So Il बरबस करति विराध इटि हान Vea अक-दौन। गदि गति बक-टढक-खान इव तुलसौ परम VATA VM ( तुलसो श्रपने मन से वा संसारो aay से कते डे“ कि ऊपर at Ta at ats कर) (परम प्रबोन) ठ्‌ रेषा बुद्धिमान (यङ्ग auiq श्रबुद्धिमान ) डे कि बकुला SSN श्रौर कुन्ते के समान चाल Te कर के (Maly कपट, क्ररता Bre लोभ के वथोश्त et कर भो) व्यथे ठ कर के भागड्ता डे श्रौर “aaa” (न्व सुखे यस्य) दुःख से रहित श्र्यात्‌ सब दुःख से हौन हो gi ईश्रम मिलना चाहता हे यह श्रसम्भव S । जहां (श्रंक-दोन श्रथात्‌ दे रहित) पाठ Br वदां BAT ela दा कर GAB Al GI lat पाहता हे रेषा wey करना चाडिये ॥ OV I पक करम aes fafea लखत नदौ afa-eia | तुलसौ सट अक-बस विरि दिन दिन दौन मलौ न॥७२ (करम) श्रपने किये कमे के श्रतुसार जोव (श्राक) दुःखो हे (मेख बिदित)द्सका श्रौषध जाना sat ₹े (मति-रोन) परन्तु बुद्धिहोन होने के कारण (लखत नदीं) पचान नदीं सकता | Geet दाख कते द" किं यह (सट) मूख es कर के (श्रक) दुःख के श्रधोन, वा यदि “श्रंक-बस इटि” ate St at भाग्ये श्रधोन, हो कर जग पाताडै vat @ (fete) प्रति दिन कमे के act के कारण (दोन) दुःखो att मलोन होता जाता Fo aS सगं। २९८८ रामभजन wart श्रादि उपाय प्रायः सभो जन जानते ह' परन्तु दस प्रकार माया को जाल में HAS fH Ga कोन AT MT WT काम करते S श्रौर Gel (क्रियमाण ) किये जाते कमे के भ्रनुसार FAA HH मरण के दुख मे पड़ रहते हे ॥ OF करता Sl तें करम-जुग से गुन-देाख सरूप | करत भाग ACAI जथा VIS TH किन भूप ost (जग कमे ) विहित शास्त्र मे का ate निषिद्ध शास्त्र मे बजित दोनो कमे (कर्ता a) करनेवाले दो से किये जाते 2 श्र्थात्‌ दोनौं को कर्ता et करता है परन्तु वद कमं (गन-दोख सरूप) एक गुन कारक We दूसरा दोषकारौ हे । (तया) सो faa प्रकार के करतव को जो करता S उसो प्रकार का भोग उसे करना पडता ई चदे BAST दरिद्रदोवाराजाददो। उसको BTA wa बुरे कमे के फल को बिना भोगे दुटकारा नीं । श्रवश्यमेव भोक्तव्यम्‌ छतं कमे IEMA | भले वरे कमं का फल ईस नोव को श्रवश्च St भोगना पड़ता हे ॥ ७२॥ वेद्‌ पुरान सासन जत ह तत बुधि-बल अनुमान । निज करि करि afc? बहरि ae तुलसौ परिमान ॥ ५४ ॥ az पुराण श्रौर शास्र जितने है सव बुद्धि के बल सेश्रनुमान करते डेः कि (निज करि करि aeft afte) जोव श्रपनो दौ करमो कर करे फिर करेगा श्रर्थात्‌ जो कमं इसने Har Sve ar 37 २९० तुलसौ-सतसई। फल भाग्य कदलाता हे श्रौर उसो भाग्य के श्रतुसार्‌ ae दूसरे aA मे फिर करता हे दस प्रकार उसो कौ करनो उस से काम करातो हे श्र्थात्‌ aa el प्रधान हे इसो को प्रमाण समभना चाहिये क्यो कि “कमे प्रधान विश्वकरि राखा-जो जस करै सो तस फल चाखा |” sei “निज निज aft aft?” a2 at वदां श्रपना९ करके (afc?) संसारद्दौका काम करते 2 श्र्थात्‌ संसारो घन aaa ala wea 2 पुराण wife के कथन श्रतुसार नदीं चलते यद श्रं करना चारिये ॥ ७४ ॥ बिबिध प्रकार कथन at जाहि जथा मै भान। तुलसी सु-गुर प्रसाद-बल काट ATT ACT प्रमान OY! (जारि जया भान भो निबिध प्रकार कथन करै) faa को Far समभ पड़ा उस ने उस प्रकार HET यहो नानाप्रकारकेमतका कारण हे। परन्तु (SAR) सचे AE वा THE गरू HT GT जो को २ कदते डे" वदो कना प्रामाणिक हे ॥ ७ ॥ उर डर अति-लधु हान कौ भे लघु-सुरति भुलानि | सरन लाह लखि परत नहि लखत लेह कौ हानि॥७६। यद संसारो जोब (उर श्रति ae eta को डर) मनम ater होने से ब्त डरता हे परन्तु (लघु सुरति भो सुलान ) डोरे रूप बाले संसार कौ मावा a wal डे इस पर एक दृष्टान्त देते हे"कि जैसे किसो मनुष्य को थोडे दिन के लिये पारस मिला उष समय GME बड़ा ASA था सो ae MS वे HEM होने के कारण श्रपने aS सग। २९१ afin दाम के लोभमरेषा ga गया कि उस को ( सखण-लाद नदिं लखि परत) सोने के लभ का ge भो ज्ञान वा विचार नदीं होता ह परन्तु (लखत लोह को हानि) बार २ यदो बिचारता हे कि लोहा बडा dem ह किस प्रकार GUT! Tar बिचारते ९ जिस का पारस था उसनेले लिया Val St दशादसजोबको डे कि QE पारस SY Wall पाये S परन्तु संसार मायारूपो wes के मोद में पड़ा ई संसार को श्रव कोडते SF Bar बिचार करते श्नन्तसमय श्रा जाता हे फिर Tal मप्रडा रद जाता ₹ परमेश्वर के भजन मं नदीं लगता ॥ ७& ॥ नयन-दाख निज कहत नहि बिबिध बनावत बात। सहत जानि quat विपति तदपि न नेक लजात HOON aut ज्ञानरूपो नेत्र का दोष तो ae sla कता नदी MT maa प्रकार का तकं जितकं कर के बात बनाता ड । जान सुभा कर्‌ बिपत BIT दुख म पड़ा SA भोग Ter = at at योड़ा नदीं लाता ॥ जैसे faa) मनुष्य at aia & रोग wat et श्रौर वह मारे लाज के उख दोषकोबेद्यसेन कदे परन्तु जानता डो WT उसके कारण RAR दुख भोगता रषे वेषे हो यद देहाभिमानौ sta सब दुख VE कर संसारो जाल मं फसा F ॥ 99 करत चातुरौ मेदइ-बस लखत न निज-हित-हान। सुक मरकट इव WEA इट तुलसौ परम्न-सुजान or) २९ तुलसो-सतसङ | माया क श्र्ोन दो कर्‌ gaat चतुराई प्रगट करता हे परन्तु श्रपनो भलाई कौ हानि को नहीं बिचारता | फषानेवालं के कन्या ae पिज्ञड़ा mie मं बन्ध जनेदहारे गे श्रौर वानरके समान es पकड़ Ba हे शरोर श्रपने को बड़ा ज्ञानो समभता ड यर जोव ag et सेश्रपने को संसारौ मायामे was डेश्रौर रैव का दोष देता S संसार के Ova को कमाने मं AGA चतराई कर के ast Bate urat S ate श्रौर जाल में Gear डे ॥ ७८ ॥ दुखिया सकल प्रकार सट समुभि पड़त तेहि नाहि | लखत न कण्टक मौन जिमि असन wea भरम मार्ह WE ae जोब संसार म HET के कारण सव प्रकार से Tal हे परन्तु we ga कलादि को मायाम रेषालिघ्तङैकिद्सकोदसका दुख qe भो नदीं समन पड़ता हे sla पैसे दौ जसे weet जब वसो के चारे को निमलतो हे तो उस को va चारे मं सुखदाई भोजन का भ्रम दो जाता FMT वद उसकेभोतरके काटे को नहीं Saal परन्तु उसो से वह Baal मारनेवाले के बन्धन मे पड़ भातो दे । दमो प्रकार संसारो माया मद्य को दुखदाई नदी समभा पडतो परन्तु इसो माया मं पड़कर यद जन्ममरण के मदादुख मं पडता हे ॥ ७८ ॥ qual निज मन-कामना Tea खन्य कर az | ave गाय सबक्ते मिबिध कहू पयस केहि Sz ॥८०॥ aS सगं | २९९ wa at सेवा कर्‌ के यद AAT मनोरथ पूरा करना चाहता ई सो दस का दोना प्रसभ Baila बातद्पौ गौ सब के श्रनेक ई परन्तु उन से किसोके दूध नदीं मिला ॥ तात्ययं यद कि नश्वर संसार एन्य के सम ' ह ca a fag te कर कोद परमारथकौ इच्छा करे तो ae केवल बात को गायका दूध चाइता ई जो श्रसम्भव डे ॥ ८०॥ बातदिं बात fe बनि पडे atafe बात नसाय। arate ्ादिहि दीप भौ arate अन्त बताय ॥८१॥ जोव को जडता दिखा कर श्रव ८९ के ABV बात कौ सामरथ का बणेन प्रारभ करते हे ॥ aa et से बात बनतो हे जो wel aia वान करते बनेतो बात ata रोतो ate ata St से बात ae et जातौ डे । gear एक Ta सधु सेवा Fae भजन रहै जिस से मनुब्यका परलोक वनता दे दूषणे बात संसार मे fag दोना ate पाप करना ई जिस से नरक म जाते डे" Lat भजन से बह्तेरे तर गए ® श्रौर संसार मं लगने Vasa Bal sus । (Ae wie fe aa fe wt) er प्रथम वायु से दो garg war fae श्रन्त at बाय॒ रोके दारा ae et गया। निर्वायु खान मे दोप नदीं बल सकता उसो प्रकार श्रधिक बायुयक्त खान मे बृभा जाता ई श्रवा एक बात शब्द का श्रये (बातो समभ के) वत्तो कियातो बन्तो के Tea a दौपक बलता श्रोर वायु से बुभ जाता F ॥ Tet ०९8 तुलसौगसत सई | aafe a बनि आवी बातदहि a बन जात | बाति a बर बर मिलत बातहितें बैरात॥ ce tt बातददोषे (घरदहौमं) (बनि श्रावदो) aaa का परलोक बनता S Bld घर रद कर भो श्रच्छा काम करे तो उसको वन जातो हे श्रौर बात दही" से ada aq Agta Sl aA sy a (बर ) रेष्ठ ( बर ) वरदान मिलता 3 श्रौर बात tS Git aT जाते डे. श्र्थात्‌ बात दो भले बुरे का कारण ZI fears | wal बात कने से लोग aga धन पाते श्रौर सुखौ aa F ae ga Ss बनो बनाई बात भो विगड़ नाती Sl वा बहत मोलने से (बर-बर) बकवादो कता हे । ATG a AY HAT A तेसा TET | FR बात बिना afaaa विकल बातहि तें हरखात | बनत बात बर बातत करत वात बर धात ।८३। लोग बात (वचन वा बाय) के बिना as दुख मं रहते है शरीर बात हौ (वचन वा बाय) से बडे सुखौ होते Fi (at बात ते बात बनत) WR बचन से ( बात) काम बनता हे aT (बात मर घात करत) बातहौसे (बर) श्रपनो दच्छा मनोरथ नष्ट हो जाता हे श्रथात्‌ काम बिगड़ जाता ई । जेसे ब्रह्मण बालक को रक्ता रूप बात श्रजेन से न बनो इस कारण ART ये श्वरौ जटायु श्रादिसे बात बनो दस से राम प्रसन्न ये cane aaa BATT हे ॥ ८२ ॥ ay सग। २६५ qual जाने बात वितु बिगरत इर एक बात । अनजाने दुख बात के जानि US कुसलात ॥८४॥ बिना ( बात ) ठक २ aa के जाने सब काम विगड्ता =F aT अब तक AE ATEN बाती HEY जानौ AK तभो तक ZEIT परन्तु जन वद जान पठ वा जानौ ALAA BAH प्रकार के श्रानन्द्‌ होते = feted | तलसो-दास कते ड" कि बात को बिना सममं बृभं करने से सब बात बिगड़ जातौ ई जैसे राजा दशरथ ने बिना विचारे षिकुमार को मारा उसके माताप्ता से श्राप पराया बिभोषण ने Bag बश्च कर राम की शरण लौ दस कारण उस कौ कुशल BT ॥ दन at एक Tet म बात २ बनिर्श्रादि पटो के श्रनेक बार श्राने A AAA श्रलङ्ार ES NT Il प्रेम वैर, अरु पुन्य अघ, जस अपजस, जय हान | बात ats इन सभन के Guat कहदहि सुजान ey ( gaat सुजान कदि ) कबि Gael दास वा तु° राम-लद्मए ax ao सोता के Maar भक्तलोग कते Tl कि (मरेमादि- इन सभन को बात बोज) प्रोति वा मिता बेर शता पुन्य धर्म श्रघ पाप यश्-सुकौति We कुकौतिं जोत AT हार दन gay का कारण केवल बात हे। TAY बातके कारण लोग भले बुरे सब gia डे“ दष से मधुर सत्य श्रादि बचन बोलना चादिये प्रीति का उदादरंण जेस, निभोषण सुगरोबादिः AT क्रा रावण कुम्भकर्‌ण- २९६ तुलसो-सत सद | शादि पुन्य जसे जटाय ने तिरियागृहार्‌ क्रिय! रावण ने परस्तौ दरण किया। यश श्रपयश रामचनद्धने पिट श्राज्ञा पालनरूप महा यश पाया दशरयने स्तौ कौ बात पर Ve बन भेज कर दुर्य Raa gat योग्य wna ait बालि से करते न बना दारगये | tas को दयसे महाराज युधिष्टिर ने दुयौघन श्रादि दुजेय want at at जोत लिया इत्यादि ॥ ८५॥ वञ्चक-बिधि-रत नय-रहित बिधि feear अजति लीन। तुलसौ जग महं विहित बर नरक निसेनौ तौन।॥८€। (agai बिधि) gat को ठगने कौ रोत्‌ ( नय-रहित) परस्तौ गमन परनिन्दा श्रादि श्रनौत करनेवाले ( feat fafa श्रतिलोन) fear के काम म बहत लव्रलोन रदनेदारे (ये Pa जग मरं बर नरक निसेनो बिदित) Salat संसार मं बडे नरक का चिन्ह प्रसिद्ध डे श्रथात्‌ जिन लोगो मं ये Nat बातें पाई sa va को जानना चाहिये कि नरक मंसे qa दै ste मरने पर वदं दो जायगे॥ ८६ ॥ सदा भजन गुरु साधु fea जोउ-दया सम जान। सुख-द सुनय-रत सत्य-ब्रत खरग सत्त सोपान Woh गृ साघु शरोर ब्राह्मण कौ भक्ति atx स्व Pet at gad समान जान कर उन पर SAT करना WT सुख SAI सुन्दर नोति मे श्रोर सत्यतो श्रोर्‌ aa मे परीति रखना ये सातो ख कौ सोढ ई“ ्र्थात्‌ जिनमेये ae हे वे मरने पर श्रव खगं में जोयेंगे ॥ ८७॥ US सगं | RES जे नर जग'गुन-दाख-ज॒त तुलसौ बदत विचार | HAE सुखौ HIG दु खौ उदय अस्त FATHTT ॥ ८८॥ (उदय Re THEN) जब तक GA उद्य शरोर Ta Ba S squat जब चे Gat का उदय AA BA SMT जब तकं श्र रथात ना होगा तब तक यदो BIE हे कि जो AIA संसार के nu वा दोष में लगे रते S श्र्यात्‌ बिधि निषधे का काम किया करते त॒लकषो-दास निचार के कते हे“ वे कभो खौ कमो दुख ear करते ड" शरोर जन्म मरन के फन्दे मे पड़ रहते ह । TAG | जग जे नर गन-दोख-जुत तुलसो ASA ते TAS सुखो mad दुख यथा उदय WA AE । TES खग शरोर नरक का fase बता कर श्रव at का fas करते है" किं संसारम जो लोग गण श्रौर दोष दोनें से afer है बे कभोर सुखौ कभो दुखो रते 2° जसे ब्य के उदय के समय बहतर सुसौ wt Wel म दुखौ होते वा दिन को भला श्रौर रात को FT काम करते डे" oan कारज जग के जगल तम काल अचल बलवान | fafay विबल तें ते vate qual कहि प्रमान ॥ EN ( कारन जग) दो काम हे" श्रथात्‌ एक बिधि ate दूसरा निषेध वा निहित श्रबिहित (ara के तम) सो दोनें तमखूपो डे" पयोकि HS बुरे Sat प्रकार के काम ATA at भोगने पडते डे" ( काल 38 २९ ख तुलसो-सतसई | HIT बलवान ) समय बड़ा Tal WT IA S क्योकि काल पा कर atai कन्म के फल का sza star Bt (निबिध fare) तोन विशेष बल हे" श्र्थात्‌ सत्वगुण, रजोगुण, ste तमोगुण जिन खे (eafe) अभिमानो दो कर नोव Bat को भोगता हे यद प्रमाण डे, श्रथवा काल यग बलवान हे सत्ययुग में मव लोग भेला हो काम करते ये श्रौर कलि में बुरा काम करते ड दस प्रकार देने यगो कौ मरणा से भला बुरा कार्यं SAT करता डे ॥८९॥ श्रनुभव BAT अनुप गुरु RAH सास्त्र-गति हाद । TIE काल RA VIG तें कदि F-sy रुव काद ॥९ ०॥ जिस को (wae श्रसुभव ) निम॑ल fara रो ate (श्रनुपम गुरु) श्रतुख गुर उपदे Saar मरं श्रोर qa २ शस्त का भो बोध हो ag काल समय WT (क्रम) कर्मके दोष से बच सकता Fa (gay सब को कदि) सब weg ९ विदान लोग कंते Z| श्रभिप्राय यद fa fave विद्धान्‌ लोगजो बुरा काम सव the त्याग TA WT भला काम कामना-रौन et कर करते 2° 3 S संखार के बन्धने ged हे नही तो कूटना बड़ा कठिन Bu con सव विधि पूरन धाम बर राम चपर नहिं भान । जा कौ किपा-कटाच्छते दात fea fee ग्यान॥€९१॥ aq BRITA Ga र्यात्‌ सकल रिश्वय्य Vary (वर धाम) WUT aan (श्रपर) जिखखे बड़ा ait कोषे ayy एेरेरामनजो दे" ae सग | २९९ (ग्रान नदिं) रौर को$ नही हे" श्रथवा (ae art नहिं) wie दूसरा कोरै नरौ उन्दौ को हपा-दृष्टि से (दिये) an a ee SUA WIA Sta S श्रत्‌ गुरु-भाव खे उन को सेवा भक्ति करने से aha श्वान पाता है तव कमे ate कालके बन्धनसे Gea ह site किसो को सेवा से मुक्त होना कठिन Si पले संसारो जाल से gn ea at afsam दिखा करं श्रव श्रपने te देव ओरामश्ूप भगवान कौ सेवा का GSM किया दे ॥ av AI Sat Al तर सखा AT बरसुख-दातार। तात मात ATIS-STA AT अस्मय-अधार ॥९२॥ वरौ राम खामो, बड़े faa, उन्तम सुख के देनेदारे, माता-पिता, बिपत के नाक WT BRAT मं रक्षा करने हारे डे" ॥ ८२॥ मुख-द दुख-द्‌ कारन कठिन जानत के तेहि नारिं । जाने ह पर बिनु गुरु-क्रिपा करतब बनत न aie sy Baza का देनेवाला कारन भो कठिन कमं इ उसे कौन नद्धौ जानता श्र्ात्‌ सभो जानते हे“ परन्तु जाम कर भो बिना गरुदेव को छपा खे (कादि करतब न aaa) किसो से कम नदौ बनता ्र्थात्‌ विन सुर्‌ के मिले सत्कम को जो लोग जानते भौ Bi at भो करते नदौ बनता। इस हेतु सद्गु करना AEA श्रावश्यक डे । यज्ञ, तप, जप, तथे AA, ब्रताचरण, साधुसेवा, सत्सङ्ग, पाच- दान, परोपकार Wie WAR प्रभ WT परपोड़ा, शल. श्रनोति, Reo TAAL-AART | fear, डाइ श्रादि दुखदार ara हे इन को प्रायः सभं। लोग जागते FU कम लोग इभ AAA लगतेह श्रशभको MT बते को इच्छा दौडतो ड कभोर Wa काम करते ALA श्रौर WL करते प्रभो HATS इस कारण AE का लखाना श्रावश्यक इ गुरू के लखाने से मुख पचान सकते J ॥ ९३॥ तुलसौ सकल प्रधान है बेद्‌-बिदित सुख-धाम | ता मह VARI कठिन ति जुगल भेद्‌ गुन ATAU VU (qual सुख-धाम सकल प्रधान 2) gaat जो ava ह" कि पूर्वोक्त शभ कमो सुख का मूल ह सब बस्तर मे प्रधान इ AVE a Wa कम्मे को बरौ प्रशंसा को S परन्तु उन का खमभाना दस कारण asa कठिन हे किउनके नाम wie गनमेंदोभेद हे" श्र्यात्‌ एक सकाम We दूषरा निष्काम wa कम्मं भौ यदि कामना सहित किया जाय तो करने हारे पुरूष को भोग मं बँधता डे" ak निष्काम कर के Lat को श्रपण करने से बन्धन नदीं दोता दस प्रकार क्के नामके Tet Hat azz श्रयवा पदाथेके भाम गनकेदो भेद eta डे जेसे मिश्रौ बहत SUA डे तो भो कफवातौ के लिये दुखदाए stat Fes नाम कहत सुख हात हे नाम कहत दुख जात । नाम कत दुख जात FC नाम कइत सुख-खात॥९५॥ नाम के कने से सुख श्रानन्द होता F We दुख, चला लाता सष लग. ३०१ श्रथात्‌ नष्ट हो लाता डे फिर मामके करने से तोनो प्रकारके दुख दूर शोकर ( घुख-खात) सुख के gz म श्रत्‌ ुज्गिरूप श्रानन्द्‌ ` शरोवर को ACE पाते इई । ae (सुख जात दुरि दुख-खात) पाठ हो वदां संसारिक विषय सुख दूर डो जाता श्रौर दुख भाग कर (खात) Tale कन्द्रेमजा Seat हे Var श्रथे करना चादिये॥ ९५॥ नाम कहत वैकुण्ठ सुख नाम कहत अध-खान | तुलसौ ता ते उर aaa ace नाम पडिचान॥€&॥ ala St के जपने से लोग agus का सुख पाते श्रौर (श्रध-खान) पापकेटेर को नसाते S दस कारण Gaal करते ह" कि हे भक्तो ! श्रपने मन मं भलो भति सममः के नाम को पदवानो | श्रवा afafy-qan नामलेने से arg Stat द| बिधानके साय नाम जपने के विषय मे पदपुराण मे लिखा हे कि (दगशापराधयुक्तानां न भवेत्सौस्यसुन्तमम्‌ ) दश श्रपराधां (श्र्थात्‌ ९ साधुनिन्दा, २ शिव- रामभेद, २ शस्तनिन्दा, ४ गुर्‌ श्रनादर, ५ नाम कौ महिमा में तकं वितकं करना, ६ नाम को TAT काँ के करने का उपाय जनाना, © श्रभक्र को नाम का उपदेश, ठ नाममाहात्य सुन कर प्रसन्न न होना, € नाम जप के कामसिद्धि, ९० नामके बल सें पापाचरण) सेजो सहित ₹है" उन को नाम जप से उत्तम सुख नहँ मिलता ॥९६॥ चारा Bee ्रष्ट-दस रस AAR भरि परि, नाम भेद. aa बिना सकल समुञ्च महं धूरि॥ €७। ३०२ तुलसौ-सतस | (रारो) शग, यजः, चाम शरोर Fea चारो वेद्‌ । (चौद) we ज्ञान, रसायम, राग, वेद, ज्योतिष, व्याकरण, धरुषविध्ा, जलविद्या, पिङ्गल श्रादि इन्द, कोकसार, सालिदोच नृत्य, सासुद्धिक, we काय्य श्रादि बमाने मे चतुरता ये staat विद्या मोन, भविम्यत्‌, बायु, ATE, वामम, ब्रह्म, ब्रह्माण्ड, गरुड, माकंण्डेय, पद्य, विष्ण, नारदोय, लिङ्क, agaad, श्रमि, करूष, सन्द WT भागवत ये श्राटारहो पुराण Wie मोमांसा, वैयेषिक, न्याय, सश्च, योग रोर Rata ये दवो शास्त्रं को VA भात सममा अर्यात्‌ वेदां के यन्न कमकाण्ड श्रादि aa विषय atest वद्या कौ चातुरौ we sai दन कौ कल्यनाशक्ति ate तकं वितकं करने को शक्ति श्रादि सब गुण से भषित sar at at नामके मेद को बिना समभा उसका सब समभाना व्यथे ३ क्योकि सब बेद ate विद्यानां का सारांश राम नाम डे जिसके ग्रहण श्रादिसे मुक्ति मिल सकतौ 21 चोये ane aaa “alee चारि श्रटारदो" श्रादि पले ate a dice बिदा वेद श्रौर पुराण को गिना चके हे यदा चौदद विद्या से दोदर कोटी विदा लो ग “श्रङ्गानि^ श्रादि श्लोक मे को चौद विद्या wey बोधित द । दष ay को चतुथे सगे के प्रथम WT पञ्चम सगे के भौ प्रथम AWA मिला कर पढ़ना ales जिसमे शस रोड श्रौर उन A का परस्यर भेद सममः पड़ ॥ ८७ ॥ बार दिबस fafa मास सित afea बरख परमान | उत्तर दच्छिन आस रचि भेद सकल महं जान ॥९८॥ ae UI | Reg रमि, सोम, मङ्गल, बुध, स्यति, शक्र, शनि ये सातो बार दिन श्रीर्‌ रावि, चेच, पैसा, ae, Was, श्रावण, भादव, FANT वा श्राचिन, कतिक, श्रगहन, पौष, माघ, फलन ये ATE मासं टन मासोः के शक्त श्रोर शष्ण पच्च बषं ( बारह मरोनो का समय जिख में हं मास उत्तरायण Ht छ दबिणायन ) मं खये जिस fem a रहते ङेः ae श्रयन कातो दस प्रकार सब aga मे मेद ३; द्न Hat MT २ किसो २ कामके लिये श्एभ Mt किसो के लिये श्रम होते | यथा श्रादित्य सोम बुध दस्यति ate som शभ काम के जिये शभ श्रम के लिये age होते हे मङ्गल sit near aw ara के लिये शभ श्रौर एभ के लिये way दोते ङेः दिन को भले काम ate रात को धुरे काम करमे काः समय डे । भ्रगग फालान Be WC भाद्र शम भोर He wT शक्त पक्च शुभ के faa श्रौर ष्ण aga के लिये दभ eta डे" । उनरायन ga काम के लिये we दचिणायन BUN काम को एएभ दत्यादि भेद aq पदाथ मं डे ॥९८॥ करम सुभा-ऽसुभ faa अरि tea waa बखान। दार मेद्‌ अति अमित है कं लगि कष्य प्रमान॥९९॥ कम रभ WH के भेदसेदो प्रकारके शोते ड“ शभ कर्म॑ fas डे aly saga wa होता Po Wy करते हारे Ge Tt कर्‌ २०४ तुणसौ-सतसदै | ead Sait ayy कमेके कर्तादुखपा कर रोते है"। कर्मी के शरोर भो weal भेद 2 इनके प्रमाणें को मे कष्टां तक बेन TS | कोई २ टोकाकार श्रयं करते S कि कमे एभ श्रौर श्रशभ उन मे एभ कमे दो प्रकार के हे" एक सकाम दूसरा निःकाम | निःकाम कमे श्रति उन्तम हे कर्ता कमे करके परमेश्वर को श्रपण कर देर उससे किसो फल al षासनान Taq तो कम करने से कर्तां az नदीं Stat) सकाम कमं भौ यदि ओरामचन्द्र की प्रसन्नता के लिये किया ara at Baar al फल saa st ie डै। faa ओर शच मे Ht भेद हे सण्जनें कौ fae ast सुखदाद र दुष्टो कौ Saat दोतौ V1 रोने चर eat | भो मेद हे) के राना श्रानन्द से रोता डे जेसे पुच fas Me स्तो श्रादि के मिलन मं श्रभ्रुपात चर रोमाञ्च होते हे" भोर दन्दो के वियोग में gaat saat को धारा चलतो हे दष प्रकार सभो कामौ मं भेद्‌ होता हे ॥ ९९ ॥ जष्टं लगि जन देखब Fas समभुद्यव कंहव सु-रीत | भेद भिना कचु है नदौ तुलसौ sete बिनीत॥१००॥ WIG | जन Taq, सुनब, समुभाव, Hea ae se लगि डे az बिना महि बिनोत तुलसो aie । HLA का देखना, सुनना, समभना, कहना जो ge जरां तक रै विनामेदकेक्ढमो नरो हे aa Gael दास कते F fa खव भेद qn हे सब मे कु न FE भेद ₹े । षष्ट सग | Bou देखने म भद यथा देवतां का दभन पुन्यदाई भर श्रपवि्र बस्तुश्रों का देखना वा areal को पापदृष्टि से देखना पापकारो दोताडे। वेद्‌श्रादिका भक्तिसे सुनना भला We sz ओर देष करने के लिये सुनना खमभना बुरा ह । wal बात को बरौ चर बरौ को भलो समभा लेना दुख सुख का कारण दोता ₹ । भलौ बात को भले मनोरथ से कना भार उसो को बुरौ Tear से कना वा शास्तादिक को WWE कना Tak WE सुखदाई ear TI दस प्रकार सब बस्तर a ania जेर gf = fa म एक सुखदाई र cat caak दोतौ ₹हे मनुव्य को चादिये कि सुखदाई रोत का ग्रदए करे निष मे सुखो बना रडे । यदो way जो का उपदेश Sl Yeo I भेद याहि बिधि माम मह faq गुरु जान न केय। तुलसी कहिं बिनौत बर जा बिरञ्चि सिव Stage en दति गोखामितुलसोदासक्त सप्तसतिकायां ज्ञानसिद्धान्त- निरूपणन्नाम षष्ठ; सगः ॥ श्रन्वय । fata बर तुलसो यादि बिधि नाम ae भेद कदि ait विरञ्चि सिव दोय (तो भो) बिन गुर्‌ कोय न जान । दूस प्रकार aat मे ष्ट तुलसो-दास नाम श्र्थात्‌ परमेश्वर के राम दस नाम मं मेद कते हे fre यदि कोद ब्रह्मा चेर शिव के समान दोय तो भौ बिना गुर्‌ के ward नहो जान सकता श्र्थात्‌ गुर्‌ का उपदेश भरदा को wana के लिये श्रवश्य चाद्ये ॥ ९०९ ॥ nen इति विदारित संरिप्रटौकायां षष्टः सगे, ॥०॥ 39 चथ सत्तम सगं | —S=——— faa fe पटे faa सुने faa fe सुमति-परगास। जिन आसा wa act गहि aaa facta ॥१॥ श्रन्वय । निराख श्रवलम्ब गहि जिन श्रासा पटे करो faa fe ud तिन fe सुने तिन fe सुमति-परगास (भयो) ॥ faa मनुय्यने निराश St केवल Wat (श्रवलम्ब) श्राशा रखके (fava सुख al) सब प्रकार को श्राणा को aly fear Vat 3 Get Bat ने शास्त को सुना ओर उसो (के हदय मं) भले बुरे at विचारने को सुबुद्धि ई ॥ जिसने ae लोगों से पटर सब wamea पुराण श्रादि के उपदिशा को सुन कर भो विषय सुख कौ श्राशा को न होडा वद व्यये परिश्रम करनेवाला हे, उख को उख के पठने सुनने का aS भो फल न श्रा । दितोयाय ओर श्रन्वय । जिन निरास-्रबलम्न गरि war पाष करो तिन fe ae तिन दो सुने तिन fe सुमति-परगास (sar) | जिस मनुव्य ने (निरास) fara को किसो कौ श्राणा नरौ बरन St ATG Vt Va Al VIN का सान S उस परब्रह्म परभमेश्वरकौ श्राशा (aid) भक्तिको Feat से पकड लिया ओर सबके श्राश्ा- भरोसे को त्याग कर दिया उसो ने सब शास्त्र पटा सब बड़ ऋषियों सप्नम सगे | १०७ के उपदेश को शुना चेर val को (सुमति-परगाष) उत्तम न्नाम भो श्रा, क्योकि रामायण मे काहे कि। “ora निगम पुरान श्रनेका। US सुने कर फल प्रभु एका ॥ तब पदपङ्कज प्रोत निरन्तर । सब साधन AT यद्‌ फल Gar” ॥ सब पटने लिखमे का फल यदो है कि परमेश्वर मे भकरि होवे । जव जिस के लिये लोगं ued लिखते हे वहो न sa तो पटना लिखना किंस aA AT? NU तब लगि जागौ जगत-गुरं जब लगि रहे निरास | जब Al मन A जगौ जग-गुर जागौ दास ॥२॥ aa जब लगि निरास रहे तब लगि stat लगत गर्‌ (परन्तु) जब मन मे श्रासा नगो (तब) जगत गुर्‌ जोगो दास । योगो जव तक विषय सुख at ur wig at श्रश्रासे दूर § quid उस के मन मे विसो बात को चाद नदं ह तब तक सिद्ध लगत्‌ का गुर्‌ (fea का उपदेश करनेवाला) वा (जगते गुर्‌) संसार से बडा S परन्तु जब विषय सुख वा धनलाम mie faa विषय at श्राग्रायोगौकेमनमेउटो तो संघार श्र्थात्‌ संसार aga हो गरु “वावा श्राप को लोभ न करना चाद्िये cary कंद के" उपदेश देनेवाला वा योगोके दित को षात कदने के Rew बुलसो-सतसर | समय Hat NA ® area atat Vat Ae sw We योगौ उसका दास EAT | श्रभिप्राय ae कि सब प्रकारके सुख को aly कर एक परमेश्वर बो चिन्तामें लगे येजनर्सेयोगोसेजो Feat धारण करने पर भो विषय के पौषे घोड़ा करता डे asa wR होते डे" सव विषय त्याग et योगो होने काफल Suh हित पुनीत ace सबदि afea अमुचि बिनु चाड्‌। निज मुख मानिक सम दसन भूमि परतभे हाड Us I श्रन्वय । खा-ऽरथ श्रसुचि श्रित सब fe gala fea fag चाड sofa श्रित, दसन निज सुख मानिक खम शमि परत हाड भौ । पले के दो दोषां मे संखारो विषयों मेः योगोको न लपटना चाहिये कद कर श्रब संसारके लोगों कौ खाथे-परता श्रादि दिखा बर तोसरे Ae मे निराश रचने का कारण दिखाते ह । संसार कौ यद रोते कि जब तक श्रपना प्रयोजन रहा तव तक ATE चेर श्रनुपकारो भो बस्तु पविचर Bre दितकारौ नान पडतो & परन्तु ( fag चाड़ ) प्रयोजन न THA पर (श्रसुचि श्रदित सुचि faa) श्रपविच श्रहुपकारो चरर पवित्र उपकारो नान पडतौ ह । टस विषयमे दृष्टान्तदेतेद्ै कि cia जब तक मुव भे रहता है लोग SS मणि के समान जानते हे परन्तु ज्यों टूट कर भमि पर गिरा लोग उसे हाड सममने लगे | सारथौ agai को दृष्टि ava प्रयोजन पर afin रदत डे सप्रम सगं | Rod भर्तु के खाभौविक गृण दोष at वे श्रस्य ध्यान देते ई" दनं कारणों से संसार मे लिप्त होना चर संषारो सुखो की श्राणा करना थोगो के लियं उचित नौ डे ॥ ३॥ निज गुन घटत न नाग-नग इरखि परि हरत काल । FAT प्रभु भुखन At aT FT AZT न मेल ॥४॥ कोल नाग-नग इरखि परिदरत (ता तं) निज गन घटत न प्रभु गञ्जा WGA करे (ता ते) मोल न बद्‌ ॥ - अव यद wer etal हे कि यदि साधु संसार्‌ से कुङ्‌ भो सम्बन्ध न रक्वेगा तो कोद भो उस काश्रादर न करेगा, दस पर कते ॐ कि कोल भिल्ल गजसुक्रा वा सपंमणि को त्याग कर देते हे" श्र्थात्‌ भो पवेत पर कोल के सनदख गजमुक्ता पड़ा रहता 3 परन्तु बह उका गृण न जानने के कारण उसे नदो ara प्रसन्नता से वहां चोड देता, तोद्स कारण मोतो का मोल कुद घट नरौ जाता | उसो रोत प्रभु ओष्ण भगवान ने eee) को गहना के खान में धारण faa array कुक उष का मोल नदः बद गया। जो स्तु खाभाविक sal हे वह Fat रो ररतो F ॥ शरभिप्राय ae कि साधु जन कौ उन्तमता Fat कौ तसो बनो TSN VMS संसार के जन उन काश्रादर कर वानरी ॥ जहां “रखि न पिरत” पाठ हा व श्रानन्द से नहो“ पडिनते Tar श्रथ करना चाहिये ॥ ४॥ देइ कुमुम करि ara तिल परि्रि खरि रस Ba | सखवा-ऽरथ-इित भू-तल भरे मन मेचक तन सेत HY | are तुलसौ-सतसदै | waa (जन ) कुसुम करि तिल बास देद खर ute रख लेत -तल खा-ऽरथ-दित भरे ( परन्तु ) मन मेचक तन सेत ॥ यदि afea किं संसार म साधु के गुण को चाहे कोद समभ चाहे न समभो संसार म लोन TRA से साधु कौ GE ETH ETT तिस पर कते हे" कि dare केवल खारथो ड ॥ संसारो Na ( तेल बनानेदारे ) wes Gat के दारा तिल को बास देते 2 जब उस मं सुगन्ध faa गया तो कोरुह् पर VST कर उसे पेर डालते F ओर उसमे a खरो निकाल कर तेल को Baa T संसार में VA श्रपखाथो stn ats fH fra ar मन वड़ा मेला हे परन्तु खूप सुन्दर देखने मे' खच्छ F VI लोगों से दूर St रहने मे Qua डे जद सुमन पाट हा get wt यदो श्रथे SAT YU aqua पथिकं निरास a az AE सजल सरूप | qual faa wa नही दन मरुथल RAT | gaqq\ निरास पथिक श्रसुश्रनते az YT सनल way इन aque के कूप (qual) किन नदो बश्च ॥ भल पाने को श्रभिलाषासे समोप Ha AT जलन पानेके कारण निरास ये पथिकं के agai से जिन के किनारे को शमि जलके wy देख पडती हे रेसे टन fase स्थान (वा माड्वार BH) के कूपो ने qual दाख aed ह किन को wel ठगा श्र्थात्‌ समौ को ठम लिया | सप्तम UT | ६९१ माउवार Wie fase रे शँ मे बड़ २ कूप देख पडते हं परन्तु उन के भोतर पाच डालने से पानो wel मिलता वदाँजा कर्‌ निराश पथिक रोने लगते ह रार उन के नेच जल से Rat के किनारे योडा जल देख पडता डै परन्तु भोतर खालौ Fi इन्दो qui के सदृश संसार Haga दे fa ऊपर से देखने में बड़ WH देख पडते डे" परन्तु भोतर मन मं कपट भरे दे TA लोगं को पदचानना asa किन S टस कारण इन से दूर हौ रहना भला TI faatara | WAT) तट भद सजल सरूप मरुथल के टन कूप किन बश्च नहो a पथिक sana facia (भ) ॥ (az wz) ऊपर को सोभा सुन्दर जल के रूपवाले दन विषय Baan मरुस्थल के HU ने fae नदो ठगा श्र्थात्‌ सभौ को धोखा दिया क्योकि वे पथिक जिन्दँंने दस विषय सुख को भला सममा कर सेवन किया aaa दुख पाकर निराश sa चरर श्र बदाया | संसारो रूप va श्रादि विषय कूप के खमान हे" क्योकि fae प्रकार मरुस्यल के कूप के निकट saat पर निजेल देख के पथिक दुखो होते हे वेषे हो श्रन्त मे दुखदा ये fava सुख भौ ईै“। यदि संसार et को कूप माने तो पुन्य शमि होने के कारण सवथा संसार को मरस्थल के कूप के समान नदो कड सकते क्योकि बड़ २ षि- Sia At Galt A Al कर पुन्य श्रजेन करना चादते Sue ॥ तुलसौ fay महा सुख-द्‌ सब fe मि कौ.चाड़ । निकट Uy बिलसत सकल रक छपा-कर ATS NON BR तुलसौ-सतसदैः | कटे दोहे तक सत्सङ्गति चर fave कर संसारके fags Ax विषयो पुरुषं at सङ्गति का बेन कर के श्रव faaat at बणेन प्रारम्भ करते ₹हे ॥ श्रये । तुलसो दास जौ aed ह किं faa ast सुख Baer Stat डे भार सब को fas बनाने कौ इच्छा Teal डे ओर केवल (पा, राचि कर) चन्द्रमा को कोड कर We सब लोग मित्रके निकर Tea से प्रसन्न होते डँ" । जब चन्द्रमा भार खये एक रारि पर श्राते डे" तो चन्द्रमा कौ कला stu हो जातो है दस कारण उस कौ श्रप्रसन्नता प्रगर Tal ३ मिच शब्द मं BG डे श्रर्थात्‌ उस के ay सखा ओर खय दो ड ॥ दितौ याथ तुलसौ दास कते ड कि (कपा रात मड कर किरण वा हाथ जिस काश्र्थात्‌) रातको काम करने हारों को ais जितने लोग रै aa faa के निकट wea से ga करते रार सुखो aa डे" ओर सब को faa at श्रावश्यकता भो होतो हे परन्तु at कमम करनेददारे चोर Are व्यभिचारो श्रपने कम्मे को aga भले faa के सन्ख वा यके प्रकाश मे नदीं कर सकते दष से रात दौ उन को श्रच्छी लगतो हे किश्रन्धकार में श्रपना काये सिद्ध at | जदा सुख-प पाठ दो वदाँ सुख पानेवाला श्रये करना चादिये।७॥ मिच-काप बर-तर सुख-द्‌ Wa-fea BET कराल | दरम-दल सिसिर सुखात सब सह निदाघ अति-लाल।॥८। मिच्र-कोप सुख-द्‌ बर-तर श्रन-दित wea कराल सिसिर म-दलसुखात निदाघ सब श्रति-लाल | सप्तम सगे | RR faa at tru feat होने के कारण सुखदाई चार श्रभिक चारा रोता ह परन्तु शच काक्रोध कोमलवा Stet a et at at बड़ा भयकारौ ई क्योकि उस से बड बुराई हो aaa हे परन्तु मिचरके क्रोध Baus काडर नहो रता दख विषय मं दृष्टान्त देते ड" कि दिम ऋतु मं टौ के पत्ते Gat ह परन्तु योग्न मे उष्णता सद कर भो सुन्दर लाल लाल निकल श्रते हे । यद्यपि माघ a ata Wal S at भो टतौ के लिये दित-कारो न होनेके कारण पाले से सब Faqs जलने लगते ड" sit चेच मे वसन्त तु पाकर aura जेठ मं नये९ vats ्ोभित हो कर बड़ प्रसन्न चे देख पडते Ssh खल नर गुन मानै नद AChE दाता-अाप। fafa जल तुलसी देत रवि जलद्‌ करत तेहि लाप॥९॥ दुष्ट Hae उपकार के गुन को नी मानते बरन दानो के प्रताप को रीण करते है" दस विषय म कबि तुलसो-दास जो दृष्टान्त दिखाते ह“ कि जैसे Ga श्रपने किरणें से मेघ के जल को बट़ते ड" श्रोर मेघ val श्रपने सदायक का लोप करता ई श्रथात्‌ जब श्राकाश् म मेघ श्रपनो घटा को फलाता डे तो द्वं नारायण को छिपा देता डे) wa प्रकाश at Var ढाप लेता 2 कि श्रन्ध कार Et श्राता SI शरभिप्राय यदह कि दुष्टौ के साथ wat करने से भो saat 40 ३९४ तुखसौ-सत सद | बरद होती है दस कारण gaa को सर्वथा त्वीग हो करना चादिये ॥ ९॥ बरखत हरखत लाग AI करखत लखत न Az | तुलसौ शपति भानु-सम प्रजा-भाग-बस हाय ॥१०। aq दस दोषे से राज-नोति का वणेन करते हह ॥ श्रय Ga बरखत सव लोग दरखत (परन्तु) करखत कोय न लखत प्रजा-भाग-वस भाचु-सम शपति दोय | त॒लसो-दास aed ड कि जब ga मेघो के दारा श्राकाश से पानौ बरमाने लगते S तो Fant ay को देख कर सव लोग वड प्रसन्न Ga हे“ परन्तु जब रोर छतु मे श्रपने प्रचण्ड घाम से sey वाप्य के द्वारा सब जल को सोखलेते हतो कोई नीं देखता हे त॒लसो aed ह“ कि प्रजा के भाग्य से द्रसो प्रकार राजा gaa समान दोता हे कि उसके fea प्रजा के उपकारौ कामँ को देख कर सव लोग प्रसन्न Bi ate जिस के ऊपर कोप करे उस के धन We सुख को एसो ta दरण करे कि कोई ae a ae सके कि राजानेश्रन्याय से यद्‌ काम किया वरन किसौ को ज्ञान पड श्रौर feat को जानमभो न OS ey at एष को श्रधिक दण्डदायो समम के लोग भक्तिन करगे ॥९०॥ मालो-भानु-कसातु-सम नौति-निपुन महि-पाल | प्रजा-भाग-बस हादिगे कवदहिं कबदहिं क लि-काल।॥११॥ सप्तम सगं | ३१५ मालो at at af के समान राज-नौति में निपुन राजा कलियुग मे प्रजा के भाग्य से किसो किसो समय मे Bit सब दिन दरस प्रकार के राजाश्रोंका दोना श्रति करिन डे। श्रभिप्राय ae fa जैसे मालो समय पर श्रपने उद्यान Aga सगाता S We समय पर सोचता रै श्रौर जव काटने siza ar काम पडता S तब कारता azar S श्रपनो बाग को Tar ata रखता हे कि श्रपने ९ समय पर्‌ खव ठक्च फलते HAT ह“ नेप्रयोजन कदी घास पात काटि डमर नदीं लगने पातो दसो प्रकार राजा भो प्रजा का पालन पोषण रक्ता श्रौर दण्ड जिस समय जिख वस्त को श्रावश्यकता देखता हे उस समय वसा करता ड । रके गण को दशवे DI मं कद चुके FI afa के समान तेजखो किं स्पशे करने से जला डाले, सव लोग डरा करे, कोर मारे भयके पापनकर्‌ सके ओर्‌ शत्र समोपन श्रा- सकं । साम दान दण्ड भेद चारे उपायो सेश्रपने शतको वशे" Tal सूयं के समान सब को निज निज काम मे amy canfe श्रनेक गृण राजा मं रोने चादियं ॥९९॥ समय परे सु-पुरुख atte लधु करि गनिय न काय । नायक पौपर-बौज-सम बचे ता तरूवर हाय ULV श्रय । कोय समय परे सुपुरुख ave लघु करि न गनिय पोपर वोज सम नायकं बचे तो तरूवर दोय । | किमो मनुखयकोरएेषान चादिये कि निपतन्ति पड़ने परभ २१६ वुनसौ-सतसदू | उत्तम वंभोय age को ater समम काकि वह Gey पोपर कौ aa के समान ater भो श्रापन्ति से बचने पर बडे ट के समान St सकता हे, श्रभिप्राय ve कि भले लोग बिपत के कारण Sa श्रवसा ममो Tat भोखनकोकोटान समभना चाद्ये क्योकि श्रापद से get पर फिर भो वे नडे हो जाते ह" शस पर दृष्टान्त दिया 2 कि जेषे पौर कौ ater बचते २ बो श्रौर उसमे चे AST निकला at उस से बड़ा भारो ca उत्यन्न at 2 | set “quay नरन” ate “नाजुक” पाठ दो व्हा श्रच्छे लोगों क श्रौर बहत कोटा श्रं करना ATS ॥ ९२ ॥ बड़े राम-रत जगत मेँ कै पर-दित चित जाहि। प्रम-पयज निवदौ जिन्हे बहा सा सब St चाहि।॥१३॥ जगत म राम-रत बड़ के जाहि fea परहित (बडे) प्रेम-पयज fae’ निबहो वड़ो सो सब रो Wife संसार मं राम के भक्त बड़े ड श्रथवा जिस केमनर्मेदूखरेकौ भलाई रतो हे वे बड़ हे" परन्तु जिन कौ प्रम कौ टेक fast नातो इ श्र्यात्‌ सदा राम के af a लौलोन tea 2 siz उन कौ प्रतिश्चा पूरो शोतो शै उन को घब से बड़ा मानना चादिए। श्रभिप्राय ae कि re जगत में सव से उन्तम काम रामचन्द्र को SRA सगं | ars श्राराधना इ fiz sat के कुक ₹ समान परोपकार भो हे परन्त mere के समान दृढ़ प्रतिज्ञा कर के परमेश्वर कौ भक्ति करना श्रौर संसार के सब कामो से दष काम को उत्तम सम्मा सब बाता से gua गिना नाता ई प्रह्वाद के समान दृढ़ भक्र ईश्वर को श्रत्यन्त प्यारे Vn ९३ ॥ तुलसी सन्तन तें सुने सन्तत यहे विचार | TAMA VITA अचल जग जुग जग पर-उपकार।॥१४॥ तुलो सन्तन तें यहे भिचार सन्तत सुने जग जग जंग तन-धन SYS पर-उपकार TAT | तलसो-दास wea डे fa FA ays सदा यदो बिचार सुना डे कि प्रत्येक युग में wee ate Cae afer इ परन्त दूषरें कौ भलाई करना स्थिर रता इहे । च्रभिप्राय यद कि स्तो पुच, भाद dy, भिच संगो, घर दार, Stat घोड़ा, गना कपड़ा, राज पाट जितने पदाथे हे सब ats faa a कूट नाते S Ae भो इस जोव के साय नदीं भाता नव तक दून ब्रां के शाय इस जोव का सम्बन्ध डे तभो तक ये सब oa के कराते हे" परन्तु दूसरे कौ HAE करने का aM जोव के न रने पर भमो बहत दिन तक जगत मं रह जाता S| fafa दोचि इरिचन्द कषानो एक एकं सन aefe बखानो | ११८ तुलसी-सतसई | राजा शिवि दरिशद्ध att दधौचि श्रादि asa fea पदल्ते सं संसार से उठ गये रन्त॒ उन के सुयश कौ कथा श्राज तक लोग HEA सुनते S ॥ ९४ ॥ wate ्रापद्‌ विभव at नौचदहि दत्त न हाई । हानि fats दिज-राज कह afe तारा-गन केद्‌॥१५॥ ऊँ चरि ae atafe दन्त बिभव वर न ets दिज-राज कदं दानि-तिद्धि कोड्‌ तारा-गन afe | बडे लोगं कौ विपत्ति छोटे लोगो के दिये BU रेश्रयेसे दूर नही" Stal चन्द्रमा के छृष्ण पक्त मं घटने WT शक्त पक्त भं बढ़ने को RS तारा FST AST सकता। दितोच श्रथे। बड़ं लोगे कौ विपत्ति श्रौर सम्पत्ति कोटो को नदीं मिलतो श्रयात्‌ यदि ate डकोटा ash साथ we ate बड़ेके ऊपर कोटरे दुख श्रा पड़े at ale को नदीं लग सकता दस मं दृष्टान्त देते ह" जसे चन्द्रमा का एएक्त-पक्त मं agar WT रष्ण-पक्त में घटना तारा-गणणे के विषय.मं Guar श्रौर cease नदीं Sar श्रथात्‌ चन्द्रमा के तेज को घरतो बद़तो से तारोँके तेन को चरतो agat नदीं होतो । श्रभिप्राय ae कि ast को संगत सदा करना UST यद न डरना afea fa oa के दुख सुख का धक्का मुभो लगेगा | बड़का दुख सुख sai से सण्दाला नदी जा सकता हे बरन छोटो के दुख सुख सप्रम सगं | are को षडे लोग Ser में घटा agi सकते ई इस कारण सदा बड़ो al सङ्गति करनो चादिए ॥ ९५॥ बड़े cafe लघु के गुनहिं तुलसौ wife न हेतु । TA ते मुक्ता ALA FAT हेत न खेत ॥ UE I deal लघ के vale बड़े रतिं लघुं हेत न सुकरा ARTA aaa (eta) ( परन्त्‌ ) गुज्ाखेत न होत ॥ तलमो-दास कते डे" किं कारां के गणो से बड़े रङ्गे MAT वा ( रतदिं ) तत्पर होते हे" परन्तु wi मे" ge बड़ के गृण के कारण HEA बदल नदींदोता दस बात पर दृष्टान्त Vas कि मोतो करजनो के साय रख alfa तो war A रङ्गसेलालहो नाता S परन्त्‌ करजनो मोतो के रङ्ग से उजला नदी होता । get मोतो का दृष्टान्त दिखला कर बहो का कोटो के गुणं से faa दो जाना प्रमाणित किया ata करजनो के दृष्टान्त से को का agt % गृणे" से न बदलना देखा कर varied किया fa ब्डोकेसाथसे stat at Fa भो दानि नदीं stat az बड़ा al ae utfa et at eta aire alat at act ayt का सङ्गः करना चाहिये ॥ ९६ Nl हेदि बडे लघु समय सद ता लघु सकि न कादि । चन्द्र ZIT FIT AH AGA a वादि ॥१७॥ ( समय Fe नडे we दोदि at लध काद्विन सकद) | BRE तुलसौ-सतसदै | कषमय श्रा जाने से बडे लोग कोटे हो जाते हेतौ at छोटा बड़े को बिपत्ति को दूर नदीं कर खकता हे । ( gat Fadl चन्द्र तऊ नखत ते बाद ) दितोया का चन्द्रमा बहत पतला WT Set ela at at waa से श्रसिक SI श्रभिप्राय यद कि छष्ण-प्त-रूपो समय के श्रघोन Et कर चन्रमा ब्त छश श्रौर वक्र रो जाता हे परन्तु उस को महिमा कु कम नदीं होतो श्रौर नचा से करी ae कर उस को प्रतिष्ठा समभ नातो ॐ ae के उसो WaT को भगवान चन्द्रशेखर ने श्रपने शिर का भूषन बनाया | | ages ae से ले कर सचदवे' तक बडे श्रौर छोटो के पर- UT सङ्ग का दृष्टान्त के सहित वणेन Vi दन दों में sath HART मान कर aE उपदेश निकालना चादिये कि कोटे whit के लिये asi के साय रना सदा लाभदायक WT उपकारौ होता डे, “सेवितव्यो aeres: फलक्छायासमन्वितः। यदि देवात्‌ फलं न खात्‌ काया कंन निवाग्येते ॥ ९७ ॥ उरग तुरग नारौ पति नर ata हथियार t तुलसी परखत cea नित इन्दि न पलटत बार ॥१८॥ तलसो-दास कते डे“ कि सप, घोड़ा, wal, राजा, ate जन श्रौर हथियार इन सब बसता को सदा देखना चादिये क्योकि दन के उलट जाने मे देरो नदो लगतो | सत्तम सगं | RRL श्रभिप्राय we fa ata उलट कर तुरन्त काट खाता डे घोडा सवार को frat ड स्तौ मोचा Part ई राजा दण्ड ew? कोरे age विश्वासघात श्रादि करते ड" श्रौर दथियार श्रपने शरोर @ को काट डालता डे दस कारण ada को चाद्ये कि पूर्वोक्त वस्त्रां से सदा सेत रहे ifs दन के विगते देर नो लगतो । दितोयाथे। उरग श्रथोत्‌ दय मे We पसरनेवाला मोह, तुरग ae चलनेवाला मन, नारो स्तौलिङ्क बुद्धि fra Haze et जाने से मनुव्य का तुरन्त नाश et सकला ड, नपति राजा सबं रेश्चय-युक् परमात्मा जिस के faeg CAA प्रलय हो सकता इहे, Meat नर कोटा मनोरथ fa के होने से मनुव्य नाना दुःख A aga F ate इथियार सत्य भरोल सन्तोष दया श्रादि जिनके द्वारा मनुश्च पाप को मार कर मुक्ति को पा सकताद्े दन सव वस्त्रं को सदा देख के करना चाहिये wife इन के बदल ot AH GE Ht Se मो लगतो | यद AY TIT दारा निकल सकता हे ॥ ९८॥ दुरजन MY समान करि AT Tres दित-लागि। तपत ताय सह जाहि पुनि Vals बुतावत अआआि॥१९॥ को श्राप समान करि fea लागि दुरजन राख, पुनि ata जाहि ae तपत (ताहि) श्रागि पलरि बुतावत ॥ कौन श्रपने समान कर के भला कौ दृच्छासे Ge को श्रपने पास रख कता Sp wale को नरी रख सकता TRL 41 ६२९ तुलसो-सतसदई | जल faa के योगसे गमे होता डे फिर उलट a vat wr at wat देता डे ॥ दस दोहे मे दृष्टान्त के दारा ae देखलाया कि दुष्टो के ag से mat feat at भलाई नदो हो सकतो। चाहे att केसे भो प्यार से दुष्टों को tae WIT श्रपने साय श्रपने समान पालन पोषण करे परन्तु वद श्रपने दितकारको के साय श्रवश्य हो बुराई करता हे उक्त दृष्टान्त में जिस श्राग के साथ से जल gw होता ह उसो को बुभा कर राख बना देता हे। मनुय को चाहिये कि दुष्टो कासा कभौोन करै नहीं तो श्रवश्छ दुःख भोगना USAT ॥ ९९ ॥ मन्त्र aa vat fat पुरुख अस धन पाट | प्रति गुन जाग वियोग ते तुरत जादि ये आद।॥२०॥ मन्त्र, aa, wal, faa, Gea, We, धन, पाठ ये Wes जोग प्रति गन नियोग ते तुरत जादि ॥ (नमः शिवाय) श्रारि aa, faa विशेष aaa att सुहत मेः विशेष विशेष वस्नो को ला कर शास्त मं लिखे उपाय से उनके द्वारा श्रपने कामको सिद्ध करना तन्त, तन्त्रो बोणावा सितार श्रादि, स्तौ, पुरूष, दथिश्रार, धन श्र्यात्‌ सोना चाँदो, पाठ sald व्याकरण wife का पटना Bas पदाथेसदासाय रखने से ्रधिक aan Wat द att होड देने षे तुरन्त नष हो जाते हे ॥ सप्तम aT | BRB श्रभिप्राय ae ई कि aa सर्वदा जपने से, तन्त श्राराघना करने से, मीणा बजाया करने से, स्तौ श्रपने साथ रखने से, पुरुष सेवा करने से, दथिश्रार सवेदा श्रपने पास रखने से, धन भो पास रखने चे, पाठ सद्‌ा पटा करने से सरण Teal V MT सब भौ ऊपर RS BU प्रकार से बढ़ते डे, परन्तु यदि मन्त का जपना छोड दौजिये तो उस a कुक सिद्धि नदीं teal, तन्त्र भो दोडने से निष्ल डौ जाता ड, स्वौ विगड जातो रे, Tet का बजाना we जाता 3, पुरूष के परीति कम हो जातो रे, दथिश्रार qua हो लाता है वा दूसरा कोई ले लेता हे, धन चोरौ st जाता ह ait पाठ we जाता डद, कदावत प्रसिद्ध हैक “पर ea विद्या पर दय धन, न वह विद्या न वद घन ॥ २०॥ नौ च निचाई नहिं तज जड पावदि सत-संङ्ग। तुलसौ चन्दन विटप बसि विनुबिखभद नभुञ्ङ्ग॥२१॥ मोच जो सत-सद्ग पावे ( तऊ ) frat नदि तजे तुलसौ चन्दन fazy बसि quay बिन विख न भे (भये) ॥ Ady at सत-षद् fas तो भो fast नदो को डते, तुलसो- दास कते द" कि चन्दन Ha पर रह करभो संप विष-दोन नहो SU ॥ दरस दो में alae ale सुगन्ध श्रादि उत्तम गृण-युक्र चन्दन के साथ बहत दिनि रद करभौ सपेके विषहोन 2 ath के दृष्टान्त को देखला कर्‌. दुजेनों का सन्तो के साथ रहकर भो Fs का तैषा 829 तुलसौनसतसई | जना रना प्रमाणित किंया। दूस से यद बात fay sk fe eet के Gua का बदलना aga कठिन Ji दस As a सङ्के गुण कोन ग्रहण करने के कारण श्रतद्‌गृण* PAFTT SAN २९॥ दुरजन दरपन सम सद्‌ा करि देखा हिय दैर। सन्मुख at गति Mit हे बिमुख भये कदु ATARI fea दौर करि देखो दुरभन षदा दरपन सम, UAE कौ AT गति विसुख भये ae att गति चे ॥ मन में बिचार at के देखो तो दुष्ट aaa at गति दपेण के समान डे जो सामने देखने से qe silt हौ प्रकार काश्रौर TS देखने से दूषरे प्रकार का देख पड़ता हे ॥ दपैण के सनम श्रपना Gas जाने से ठोकर्‌ sat सुख at श्रारति दो वेसो हो देख पड़तौ हे परन्तु उसके षामनेसेश्रलग होने पर Hq भो ANT देख पड़ता, यहो दण दुष्टो को ₹े, जब तक AIA सामने S तब तक मोटो २ Wa बना कर मन मोहित कर लेते हे“ परन्तु WT मं गये तो |e भो Ge a रहा, बरन श्रौरभो निन्दा करते V1 wa as मे दपेणके दृष्टान्ते दुष्टों कौ दुष्टता दिखलाद at faa से यद बात fag छद कि सामने दुष्ट लोग TE जितना प्रेम दिखलावे परन्तु विश्वास के योग्य नदीं S ॥२२॥ faa कं waqa faa St पर oe area नादहिं। करप are जिमि श्रापनौ राखत आपु मादि ॥२३॥ * “awit तुलसोभूबय बोधः, eat दोह्ादेखो। सप्तम UT | ३९५ शो भिषक श्रवगुन पर पं नाहि भाखत जिमि करूष श्रापनो हाद श्रापुहि माहि राखत ॥ ९९ वें दोषे तक Tort कौ ay पचान रिखला कर 2a FB fara के geet को रौत देखलाते ड ॥ लो पुरुष श्रपने faa के श्रवगणए को carl से नरी कता Tet सच्चा मिच ₹े जसे gar श्रपनौ काया को waa शी भोतर रखता डे, यहां gat श्रोरद्लायाके दृष्टान्त से arn प श्रपने, मिचके दोषो को श्रपने Uz et a रख ate faat Ba के, श्रपने faa को Gari पर चलावे, उस के गणो को सव at में पलाये, उस के सुख को बावे श्रौर सदा Fave we तो भिच नानिये॥ ९६९॥ Guat सा समरथ सु-मति सु-क्रितौ साधु सु-जान । भे विचारि बेञ्याहरत जग खर च लाभ अनुमान॥२४॥ शर्य | Geet जग सो समरथ सु-मतो सु-क्रितो ay Wx सु-जान जो लाभ श्रतुमान विचारि are बेश्रादरत ॥ दलसो-दाख कते 2° कि संसार a वो मनुय शक्रिमाम बुद्धि मान पुन्यवान wer श्रौर विद्वान्‌ बना रहता ₹ै जो waa श्राय (श्रामदमो) को समभ कर बिचार yaa Ge का बरताव करता ₹े ॥ शरभिप्राय यद कि मनुब्य को सद श्रपनो श्रामदन्नो बिचार कर We करना चाहिये जिस मं वद दुःख न पावे, जो लोग भिना सममे ard तुलसौ-सतसदै | नुमे श्रामदनौ चे ्रधिक खच कर वेठते ह वे AS Fant ae बिपत भोगते 2 aife विशेष कर oe छण ले कर वा किसौ शरीर att उपाय से धन प्राप्त करना पड़ता ह जिख के कारण Ge यां aet tai स्थानें म दुःख भोगना पड़ता Sh लिखा ₹हे--किं “इदमेव fe पाण्डित्यं दयेव विदग्धता | श्रयमेव परो घर्मो यदायान्नाधिको aa" “यददो परण्डिताई ह यदो चतुराद we ael परम was fe श्राय से व्यय श्रधिक्न रोने पावे” ॥ २४॥ सिख सखा सेवक सचिव सु-तिय सिखावन ara सुनि करिये पुनि परि दरिय पर-मन-रण्ञनन पांच।॥२५॥ श्रन्वय । सिष्य सखा सेवक सचिव सु-तिय पर-मन-रस्नन पाँच सिखावन aia सुनि करिये पुनि ( मूढ ) परिदरिय ॥ चेला भिज चाकर वा दाष wet मन््ो पतित्रतास्तौ ये पचो sam चित्त at wey करने ate Boca कौ दौ Bt frat a सुनना चादियश्रौर जो aay et at करनाभो alsa air मूढ होतो are देना चादिये। दस म पर-मन-रञ्नन शब्द को यदि ग्खिावन का विशेषण मानिये तो दन को fret पर दुसरे श्र्थात्‌ fire कौ firer गुर, faa कौ faa, मन्त कौ राजा, सेवक कौ oat Dra at पति के लिये श्रत्यन्त मनोर होतो हे टस लिये उन शिक्षा को sama सुनमा TES, रा श्रथ करना उत्तम SUIT NR सप्तम सगे। ` ३२७ तुष्टिं fas रुचि काज करि रहि काज बिगारि । तिया तनय सेवक सखा मन कें कण्टक चारि ॥₹२६। तिया तनथ सेवक सखा निज रुचि काज aft तुष्टि (्रन्यथा) रुष्ट काज fate ( श्रतएव ) ये चारि मन के कण्टक ( हे“) ॥ स्तौ पुच सेवक मन्तो वा भित्र श्रपनो इच्छा के श्रनुमार काम करने से सन्तुष्ट da है“ ate इच्छा के विरुद्ध काज करनेसे क्रोधित हो कर काम विगाडदेते डे“ ca A a Aaa Fa | काटे के समान गड़नेवाले डे“॥ दरस कारण दन कौ इच्छा के विरुद्ध काम करनेसे ये श्रपने mg Rast को बिगाड़ देते हेतव प्रभु के मन म दुःख उत्पन्न कराते ई" इस कारण ay को उन के रुचि के विरुद्ध च्रच्छा मौ काम करने A सङ्कोच होता Vl सामो को चाहिये fa दन चारोको दस प्रकार श्रपनो बश मे wae किं श्रपनेप्रभु से क्रोद्धितन et कर प्रेम के साय काम किया करं॥ २६॥ नारि नगर माजन सचिव सेवक सखा अगार | सरस ufcet रङ्ग रस निरस विखाद विकार ॥२७॥ श्ननय । नारि नगर भोजन सचिव सेवक सखा श्रगार रङ्ग रस प्ररिदरे ara ( श्रन्यया ) निरस विखाद बिकार्‌ ॥ स्तौ, पुर, खानपान, मन्तो, चाकर, मित्त श्रौर चर्‌ दून सातो के साय प्नोति att श्रानन्द को aaa कोडुदेनेसेये aq श्रधिकं arc तुलसौो-सतसद | रस देने वाले होते Say तो श्रधिक wee Y रस-हीन at कर्‌ ME दुःख श्रौर भाग के बढ़ाते ₹“॥ श्रभिप्राय ae डे fe eat स्तोके साथ रदनेसेप्रोति घरतौ डे केसा भौ सुन्दर नगर हो खदा उस मं वास करने से उसकी शोभा फोको 9S sat Slo WR Sl प्रकार का भोजन सदा करने से चाषे ay कंसा भौ उन्तम हो परन्तु निःखाद दो जाता, मन्तो नौकर ait faa सदा पास रखने से टौटे श्रौर ara भङ्ग करनेवाले हो जाते V WT wy मं ca at Faw az नाता हे इस कारण राजनोति इन FR ear साथको मना करतौ े। केसा मो न्तम at al a et जो लोग उस मं सदा रहते SoH को Efe मे उस कौ णोभा वैस मनोहर नहीं बुणातौ जसौ उन की दृष्ट मं जान पड़तीडैजो लोग थोड़े काल के लिये va चर वा OAH Aa Vi Tat कारण महाराजो“ के यहाँ gaa घर श्रनेक wal श्रनेक विवाहिता स्तौ waa नगर श्रनेक प्रकार के भोजन श्रनेक प्रकार के नोकर श्रादि wa है“ जिस में सव लोगो को प्रति seat TS दसो सगे के बो सवे दोहे मं क चुके हे कि स्तौ श्रादि बियोग से नष्ट हो नातो ह“ श्रौर यहां कते दे“ करि सदा ae aw घटतौ हतो इष मं विरोध जान पड़ता हे परन्तु ट्स के ोक ठीक श्रभिप्राय को सोचने से qa भो विरोध नदीं 31 उस as ar श्रभिप्राय ae ह कि aga feat तक त्याग करदेने Bw az नष्ट हो जातौ दे" परन्तु दस का यद श्रमिप्रायद्े fH ats दिन ९ सप्तम aT | BRE के faa त्यागश्करना afea ate दन के साथ श्रत्यन्त संयोगन रखना BET ॥ २₹७॥ दोरघ-रागौ दारदौ कट॒-बच ATT जाग | तुलसौ प्रान समान जे तुरित त्यागिबे जाग ॥ रट ॥ दलम Area दारदो कट्‌-बच stay लोग जो प्रान समान (at at) तुरत arias जोग ॥ apa दिन का रोगो att श्रत्यन्त दुःखौ (करम जरू ) कटभाषो (कड़ा बोलनेवाला ) श्रत्यन्त कामो यं लोग यदि प्राण के समान OL Bi at Bt तुरन्त त्याग BTA FH Alyy ZF | श्रभिप्राय यद कि सङ्गमे Tea से श्रपने दुःख at दुगैणए से qua सङ्गो at al दुःखो करते हे इसलिये इनका त्याग तुरन्त et उचित ₹े॥२८॥ घाव लगे लाहा ललकि afar लेदब नोच । समरथ पापौ सँ वयर तोनि वेसाद ATA | २९॥ घाव लगे wale लोहा ofa eq षमरथ नोच पापौ Bi ax तोन मोच बेसादो ॥ जिसके सरोरमं धाव लगो दो श्र्थात्‌ घायल, लडाई के लिये Fae दो कर ACTS के धनुष वा तरवार खीचने के लिये तैयार, बलवान्‌ पाप-करनेवाला, वा TST शर्रिवाले दया-दौन से बैर करने- वाले दन तोन प्रकार के adel ने श्रपनौ शल्य मोल लो । श्रमिप्राय चद किये तोन मनुय श्रपनो ag को हाय मं लिये 42 BRO तुलसौ-सतसङ़ | ररते ॐ“ घायल मतु योडौ घाव लगने से तुरन्त AT जाता 2, ag के लिये तैयार पुरुष WIA शत से एक प्रहार पाने पर तुरन्त मर जाता S ओर दया-दोन नौच पापो बलवान्‌ तुरन्त पाप कर्‌ के श्रपने को AT कर सकता = I quar (तोनि तैर मोच नेसादो) टन तोनेँ से श्चता करने- वाले लोग waa ओर उसके AAR aq at मोल लेते > quid ल इनेवाले र शक्तिमान्‌ से जो लोग agar करते हे Se ये तुरन्त जम-घाम को पठा सकते S घायल तो श्रधमरे के समान Tea डे" उन को प्राण लेते दते विलम्ब नदो लगता ॥ २९ ॥ तुलसौ खा-ऽरथ MAAS परमा-ऽरथ तन पौठ । अन्ध कहे दुख पाव कहि fafa fea-ets sel खा-ऽरथ BAe परमा-ऽरय पोटि दिव-दौटि we के कदे fe दिटिश्रारे दुख पाव ॥ gua संसारो बिषय सुख की MT देखते BA र ज्ञान sty Sacufs श्रादि परमा-ऽथे को विसरा देनेवाले, WIA Hea A ज्ञान TEAST, BAA कदने से ज्ञानो भो (वश्य) दुःख पाते हे । श्रयात्‌ रेसे संसारो विषय A श्रासक्र चतुर ज्ञान के श्रभिमानौ पुरुष के उप- देशसे दुःख दोना सुलभदे। Mt ate ary St संसार-षागरमें डने हवे qatt का किस प्रकार उद्धार कर सकते डे. ॥ “get श्रन्थ कहे दुख पावक fe” पाठ et वदं (fe) निश्चय कर (दुख पावक) TSE श्राग Fal के कदने से चलने वालों के faa प्रगट दोतौ हे at wey करना चादिये ॥ २० ॥ सप्तम सग | RR अन-समुञ्चे नय साच बर अवसि समुद्धिये आप। तुलसौ saa समुञ्च faq पल पल पर परिताप।॥२१॥ श्रन्वय | नय श्रन-समुभो बर सोच श्राप श्रवसि समुभिये, ठलसो श्रापन समुभ fad पल पल पर परिताप । कते डे कि नोति को बिना समुभो काम करनेवाले aay को agt ag Stat Sra कारण श्राप नौति को BAT समभ कर काम करना APSA, तुलसौ-दास कते है कि at सममः के बिना प्रत्येक चण मे दुःख SA करता हे । प्रभिप्राय ae कि संसार के सव कामों को भलो भोति समभ के At उनके करने के faa st Tifa कौ बाते शस्व म को ह उन के श्रभिप्राय को at भलो aia faut के काम करना उचित द जो atk एसा नदीं करता उसके दुःख का श्रन्त नदीं STAT WAU करप खनहिं मन्दिर जरत arate धारि कवर । Ma लन-चद समे बिनु कुमति-सिरेमनि कुर is en कु मति-मिरो-मनि कूर मन्द्र जरत कुप खनि wat धारि लावदिं समय बिन ata लन-चद ॥ (३९) एकतिस के देहे तक सुनोति के उपदेशो को क कर श्रव वत्तिस के AB a कुनोति का वणेन करते = ॥ gama मे बडे र निर्दयो लोग जिस समयं घर्‌ a aa anal हे va समय उसे aura के लिये रशं खोदते हे" ओर २३२ तुलसौ-सतसदं | बनूर को पतो को रोपते इ भार खमय नहो श्राया Ste हो मे मोये ये BATH को काटना चादते ड । श्रभिप्राय यद्‌ कि करुबुद्धि भरर दुरनोतिवाले aaa जव विपत्ति श्रान पडतो हे तब उसको दूर करने का उपाय करते दे श्रयवा जब mgt विपत्ति उन्दे गास करतो हे तन va eee के लिये तडफडाने लगते हे करवाल वृर वा शचुश्रं के समृ को asta जाते ड प्रारम्भ किये sa काम को सिद्धि कायकेश्रन्तकेदोनेके परिले BQ wea हे. भ्रयवा ( बिन समय बोये लन qe) Hana मे नाये ये aay को Waal वा कुसमय लिये Su कायेके फल को पाना Bea इ ये बातं ्रसम्भव = Ul २२॥ निडर अनय करि अन-कुसल बौस-बाह सम हाय । गये गये कं सुमति जन भये कुमति He के य॥३३। निडर aaa करि बोस-बाह् सम दोय, सुमति जन गयो गयो कड कोय कुमति भयो कड ॥ TAT वा UAT BT ST कर परद्रव्य पर-स्वो दरनश्रादि श्रनोत के कामों को करनेवाले निबुद्धि ade रावन के समान ag et जाति रै बुद्धिमान लोग नष्ट SM नष्ट Sart रेखा कते ह" परन्तु mz कोई उसो के समान श्रबुद्धिमान काय सिद्ध sat Tar कते ड ॥ श्रभिप्राय ae fia जो atk fat ar ae a मानकर को बुरा काम. करेगा बह HE Wea रावण के समान बोस-बाह् सप्तम सगं | ARR बालाभो et at मो बच नदीं सकता चर दूसरे कौ कौन चलाता हे सव बुद्धिमान लोग उसके नाश करे विषयमे निश्चय रति हे पर Bal के समान केवल दो एक निबद्ध उस को भलाई का विश्वास करते हे" ॥ २२॥ बह सुत बह रुचि aE वचन बह अचार FATT | Taq AT भला मनादवा यह अग्यान अपार i ३४॥ (नाके) as सुत बह रुषि aS बचन AE BAT AMEN, दन को भलो मनादबो श्रपार Hala (डे) | = क, By जिन के बह्धतेरे बेटे F श्रनेक प्रकार के कमोंम प्नोति ह gia प्रकार at बात बोलते S बहत से avai को करते हं ओर WAR भकार का व्यवद्ार चलाते S एसे लोगों का भला मनाना WAIT सव कों मं भलाई कौ इच्छा करना as aT ama कौ बात = श्रभिप्राय ae कि बह्तसेपुर्वोँकेपिताके घरमे कभौ न कभो wast श्रवश्य दहोगो । जिन को श्रनेक प्रकारके कामेँको करने को rear SUS खाने DA कौ दो, चाहे eat Bea को दो सब बात कौ CATA AT OTT दोना ABA कठिन हे। जो लोग बहत प्रकार कौ ala बोलते हे“ सभो का सच दोना बहत कठिन हे, जो बहत प्रकारके श्राचार से चलते डे“ उनके किसो न fal श्राचारमे Fe न कुद बिकार Stat Bae हो है,जो लोग ase भांति के व्यवहार मः लगे wed ह सव a सिद्धि दोना श्रसुभव हे इस कारण २२४ तुलसौ-सतसदै | ठलभो-दास जो कते हे“ कि रसे लोग का श्रपने घव HIATT सफल CAT BAA रे, जो कोश सब कौ सफलता का मनोरथ करै ay केवल Amat हे एक प्रकारके कामको सिद्धि भो बड पुन्य से eat है जरर सब को कौन HV दष कारण Ba HAG परिमित श्राचरण करना उत्तम डे ॥२४॥ अजस जाग कौ जानकौ मनिचारौ कौ AT | qua साग frarzar करसि arfaat are sy staat कि श्रजस जोग कान्द fa मनि चोरो जोग gaat लोग रिभादबो ave कातिबो करसि॥ सोता Vat पतिव्रता क्या कलङ्क के योग्य दो aaat हे"? gala कभो नडो। एसे प्रतापो श्रोरृष्णए भगवान्‌ क्या मणि को चोरौ के योग्य et सकते डे" ? श्र्थात्‌ कभो नदौ हो सकते । तुलमो-दाएस HEA S fH संसार के Mat को प्रसन्न करना FHA पतला खत कातना ड श्र्यात्‌ सब को प्रसन्न रखना बहत कठिन हे नदो हो सकता। सोताजौ asa दिनि तक रावण के घरमे faa रदो ओर मनसा वाचा कमणा सवेदा रामचन्धजोके चरणसे उनका प्रम करभो घटा नदं तौभौ श्रयोध्या मे wa पर उनको भिथा श्रपवाद लगाया गया । Haw भगवान्‌ ने मणि नहो चोराया था) प्रसेन नाम राजकुमार को मार कर एक fee मणि ले कर्‌ चला गया, तब उस fae से लड़ फर जामवन्त ने उसे मारा ओर मणिला कर श्रपनो gal को fear परन्तु लोगानेदृससत्यबाप्तकोन लान सप्तम सग | २३५ कर HE मूढ श्रतुमान किया किं Ja रोतसे प्रसेन को मार कर शष हो ने मणि ले लिया दोगा चार दुष्ट शोगा ने एषा nat श्रपवाद्‌ Rar दिया । यद्यपि महारानौ सोताज ओर महाराज HU भगवान ने पौषे से goat सत्यता के इरा faa कलङ्को दूर far at भो कु समय तक we श्रपवाद्‌ के भागो इए । दन दो दृष्टान्तं को दिखला कर तुलसो-दाख जो करते हे कि संघार मै मब को प्रसन्न करना aya कठिन डे । मोन कातते रै दूष aga के द्वारा उक्त बात को कठिनता को fee करते ड दूस कारण दस दोडे के SA काक्र रर उत्तराद्धे satis MART S ॥ २५॥ मागि मधुकर खातजे सावत पाय पसारि। पाप प्रतिष्ठा afe-act तुलसौ बाढ़ रारि edi ञे मधुकरौ aif खात पाव पसारि सोश्रत, तुलमो (तिन at 2) प्रतिष्ठा पाप afe परो रारि बदरो I जो साधुलोग रोटौ को भिक्ता मांग कर भोजन करते Fre पाव फैला कर निःशोचददोसोते FP va ar a जव प्रतिष्ठारूपो पाप बट जाता ई श्र्थात्‌ सब लोग ae बात जान लेते ईक aga साधु बरे fag रै“ तो भगडा फेल जाता इ श्र्थात्‌ सन लोग जार कर साधु को दुःख देने लगते हे । श्रभिप्राय ae कि सचे साधु जो किसो को aging? मे नरो रहते डे“ Awe खदा WA इष्ट-देवता कौ सेवा मे लगे रहते डे“ ३६६ तुलसौ-सतसङई | वे dare मे" araad ओर प्रतिष्ठा बहना भौ एक पाप समभते ड ea मे कदा & fH (प्रतिष्ठा श्रूकरौ विष्ठा गौरवं चाति रौरवं) प्रतिष्ठा wae के मल के समान ई र बडाई रौरव नरक के समान डे श्र्थात्‌ ये दोना gare ज्ञानो चेर उदासोन के लिये विन्न कारक ॐ ca} बात का तुलसो-दासने दस दोषे मेः वणेन किया हे इस पर कई एक रॐौकाकार aed ई किं तुलसो-दास ने ae बात gat ऊपर करो 2, दो सकता हे कि जव गोषैः जो का नाम awa ag गया, feat तक asa ओर feat के बादशाह ने उन्हे" बुला कर दुःख दिया उसो पर उन्ही ने यद दोहा बनाया दो, श्रवा शिवभकरों कौ MAST पर यद TUT HET St परन्तु दस ata Tt ज्ञानो लोग पिले दो से att सममभते श्राते Fn २६॥ Get ओआंखि कव ATT ब्म पूत कब पाय। कब केदढौ काया लौ जग बहराइच जाय ॥ BON श्राघसो कब श्रंख wel ain कब प्रत पाय, कोटरो कब काया लङो ( तयापि) जग बहराद्च जाय ॥ संसार कौ जडता ओर भेडियाधमसान पर तुलसो-दास Fea हे“ fa किंस समय wal a aig पाद? किंस समय बभ ने लडका जना? कष्टौ ने कव निमेल we पाई } श्र्थात्‌ यद कभौ wey सुनने मे श्राया fa बहरादच जाने से उक्र लोगों ने उक्त बसतश्रों at पाया तौ भो संसारके लोग रसे श्रन्धपरन्परा से काम करने वाले ई किं बदरादच जां यद सालार का tim ईैश्रपने मनोरथ को पूरा करने के लिये नाया करते By २७॥ सप्तम BT | ३९० या जग कौभ्विपरोत गति काहि कां समुश्चाय। जल जलिगा ख afte गो जन तुलसी मुसुकाय set या जग कौ गति बिपेत नल जलि गौ भख aify गौ तुलसौ का fe समुभाय कदो जन सुखुकाय ॥ दस संघार कौ उलो रौति ड, पानौ wa गया मङलो पकड गई तुलसो-दाख कते हे" कि किसको समुभा कर aE मनुख्य CAAT = | श्रमिप्राय ae कि जब बरसात a जल को धारा बद Waa डे तो aafaat ee asa 2 alt लोग ae at पदराले ले कर REM URSA दौड़ते ई“ va waa सव पानो बद्‌ कर्‌ सुख जाता Patt मदलियां पकड़ M जातो ह, तौ भो vat GRAS दूर से सुन कर मलौ पकड़ने asa Fae as मलो मिले we न faa “afea धसान ” मचा देते हे कितना saat नदीं सुनते; Tal दो amt va संसारो नोव कौभौ 2 सुखरूप जल तो परमाये वा रामभक्तिमे डे उसे त्याग कर्‌ संसारौ बिषय सुख पर दौड़ते हे" WT मलो के समान्‌ बन्ध जाते है" कितना भो समुभाद्ये कि विषय सुख श्रन्त मे दुःखदाईै होता 2 नरो" सुनते । तिस पर तुलसो-दाष aed ड“ कि भक्तजन उन का Vala देख कर सते “कि ये कंसे मखे दे ॥२८॥ कै जद्िवो & वृद्धि दान कि काय-कंञेस। चारि चारु परलाक-पथ जथा-जाग FATA ॥ ३९ ॥ 43 REE तुलसौ-सतसई | को काय-कलेष के शभिवो के बुमिनो के दान शथा-ओोग चारि पर्लोक-पथ चार्‌ उपदेश ॥ Bat Stat ay जडता देखा कर wa उन के मुक्रि के उपाय का उपदेश देते F ॥ ( लथा-जोग ) श्रपनो २ योग्यता के श्रतुसार चारो sar के लिये तुलसो-दास जौ aed 2° कि ब्राह्मण के लिये ज्ञान वा जप तप, चवौ के लिये wae रण मं लड़ मरना, Fey के लिये (वृमिबो ) auld समभा बभ के सच २ बाणिज्य WT यवहार करना का श्रद्धा समेत दान देना, श्रौर शूद्रके लिये दान देना वा (काय-करलेस) श्रपने wT को दुःख दे कर दविजा कौ सेवा करना ये चार्‌ उपदे परलोक म aie पाने के लिये चारो बीं के हितकारो ह| २९॥ ay किसान सर बेद बम Aa देत सब सौ च। तुलसौ fafe-afa जनिना उत्तम मध्यम नौ च।४०॥ बुध किसान नेद सर बन मते सब्र खेत सोच, gael उन्तम मध्यम नोच क्रिखि-गति जानिबो प परलोक an में बुद्धिमान लोग किसान द श्रौर बेदरूपौ तालाब 2 जिस के श्रनेक सिद्धान्त जल्पो ₹ै“ उन्दी जलँ से श्रपने HAG खेत को सौ चना चाहिये। तुलसो-दास कते डे ˆ कि ्रपनेर परिश्रम के saat उन्तम मध्यम BT नोच Gal का फल जानना चाहिये ॥ : अभिप्राय ue ofa fe प्रकार रोति ® श्रनसार st श्राप सप्तम सम॑। Ree खेतौ मे परिश्रम करता हे ae उत्तम किसान समभा भाता हे, जो थोड़े परिश्रम से मुरं के दारा sat का काम चलता € वह मध्यम AT जो सम्यणे रूप से मनुर दहो के ऊपर खेतौ का ` सव काम aly देता डे ae faa किसान करलाता 2, vat प्रकार भो AEG ज्ञान वैराग्य भक्ति श्रादि कामों म श्राप रात दिनि at रहते 2) प्रारञ् कौ ate नदीं करते वे उन्तम रै श्रौर जो संखारो यवहार मे रह कर प्रारथ Al MWA करके थोड़ा asa ज्ञान वैराग्य भक्रिकाभो काम किया करते 2°3 मध्यम श्रोर जो सम्यणे रूप से प्रर दो को श्राणा रखते, Ma वैराग्य भक्ति के कामों को करनेमे gt उद्योगो नीं 2 aea है“ किं लिखा etar at ett a faa हे, दस प्रकार परलोक के कामों at at Sat वे काम के समान जान कर परिश्रम करने का उपदेश तुलसो-दास जो देते 24 sual किसान के समान बुद्धिमान लोग वेदरूपो सरोवर से मत- रूपौ जल स्ते कर VIA इदयरूपो खेत को HA परिश्रम से Hea 2 वेसे el खेत के उन्तम awa नोच सुभाव के sae उत्तम मध्यम नोच फल होता हे यदो दशा परलोक कौ भो Sy se ti सहि कु-बेाल सास्ति असम पाय War VATA | तुलसी धरम न परिहरहि ते बर सन्त सु-जान।४१॥ तुलसो कु-बोल wala afe श्रसम gaz aaa पायजे घरम न परिहरि तृ सु-जान सन्त बर ॥ Rue तुलसो-सतसङै | तुलसौ-दास aed S कि गालो aw श्रोर श्रत्यन्त see श्रौर HAT UAT Al Mt लोग श्रपने किसान के धमं को नदीं कोडते वेरो लोग बड़ ज्ञानो ait सज्नन किसान कडलाते डे" । परमाथ पत्त का RAI ठलखो-दास कते Sst साधु दुखो को कटौ बातो को श्रनेक भान्तिके क्रथं को श्रौर बड़े विषम सद्भट को श्रौर श्रनादर को सद लेते ` परन्तु ua नही कोडते वे दो ज्ञानो ares मे र्ठ ई५।४९॥ श्रनदित ज्यौ परहित faa ्रापन हिततम जान | तुलसौ चार बिचार मति afta काज सम मान।॥४२॥ ~ Ny तलसो श्रापन fea दिततम, पर-डित किये Si श्रनदित जान सम काज करिय चारू बिचार मति मान॥ तलसो-दास कदते हे“ कि संसारो aaa wae हित को बड़ा fea जानते हे, परन्तु Fat के fea जो करे" सो श्रपने श्रनहित (व्यो) के समान जानते Vl ae विषमता 2, परन्तु साध जन को समता से काम करना चाहिये (श्रयात्‌ wa श्रत्यन्त दितकारौ काम क समान दूसरा को HANK का काम करना Tea ate जपो gaa बुराई sat हो gat को quk) यदौ उत्तम विवेक श्रौर बद्धि मानना चादिय॥ दितौोयाथ | तलौ ज्यौ पर श्रनदित किये श्रापन fea दिततम जान, खम काज मति nite धार्‌ बिचार मान | aya aT | Ror तुलसो-दा aga है“ कि जसे ce लोग (पर) दूषरो को (श्रनहित) बडाई करते ` भेर श्रपनो भलादै को (हिततम) सब से बड़ा fea जानके (श्रापन हित) श्रपनो wark करते हे, (सम) ध्रेसा काम (तुम) मत करो श्रौर यद उन्तम बिचार मानो ॥ मति शब्द मे" सेष हे जन उसे संसत माना तो बुद्ध श्रथे किया, श्रौर जव facet माना तो निषेध वाचक श्रव्यय जाना ॥ श्रभिप्राय ae कि पण्डित लोग श्रपनो भला राद के समान gat को भलाई बुर को जानते मानते दं The मुखे लोग दसौ का उलटा मानते ह“ । यौ सज्जन We दष्टो कौ पचान हे ॥४२॥ मिथ्या माहर सु-जन कह Gufs गरल सम सां च । quat परसि परात जिमि पारद पावक आंच ॥४३। सु-जन ae faa ast aufe सां च गरल सम, qual परसि fafa परात fafa पारद पावक aie परमि परात ॥ साध लोगो के लिये ark विष के waa = Are दुष्टो के लिये oak विष के समान है । तुलसो-दास aed हे" कि साधर जन मिथ्या से श्रयवा cet केसङ्गसे वैषा दो भागते 2 जसे पारा श्रागके QU से भागता श्र्यात्‌ उड्‌ जाता Ft ४२॥ तुलसौ खल ait विमल सुनि aqua हिय हेरि। राम राज बाधक भई मन्द मन्थरा चेरि॥४४॥ तलसो खल बिमल बानो सुनि दिय हेरि aang, "मन्द्‌ मन्थरा aft राम राज ATH AE ॥ RvR तुलसौ-सतसष्् | तलसो-दाख aed 2 कि cat कौ निमेल qe चिकनो ara at सुन कर दय में श्रच्छो रोति सोच fet कर रहब सुम TH के करना चाडिये। निबद्ध मन्थरा नाम दायो भो केकेयो से एसो मोढो पेचेलो बात बना कर बालौ fa रामचन्द्र के tin Bat a बाधक SK श्रथवा दष्टा मन्थरा सुनने मं प्यारौ बाते बना कर राम के राज कौ रोकनेवालो दै) इस कारण दुष्टों को भलो बात काभौ भरोसा करना न चाये MT ब्त सममः वृभाके उनके कदने पर fra लने से भो भय रहता Bi ४४॥ दान दयादिक जद के बौर धौर नहि आन। qual कडि facia इति ते नर वर परमान BY gual (दति fata) wefe दान दयादिक धोर जद्धके बोर . श्रान AE ते नर बर परमान ॥ तुलसो-दास जो यद एक विशेष भोति कदतेदैकिजो लोग दान देने aan के ऊपर दया करना श्रादि श्रच्छेकामोमं da रखनेहारे F वे हो रण केतके बौर डे cat नही वे हो aaa मे" 38 गिने जाते हे“ दस बात को प्रमाण जानना ॥ शरभिप्राय ae किं भो गति दानो दयालु att att पुरुष को मिलती डे वो गति रण तेव म wag लड़ कर मर TATA aal को मिलतो ई, ata fla सत्य शौच दया दान मं लगा रइने- वाला ata ata बौर ई ॥ ४५॥ सप्रम सग | 298 तुलसौ साभौ बिपति के विद्या विनय बिवेक | साहस सु-कित सत्य-त्रत राम-भरासे TH ॥४६। तुलसो बिद्या fara बिनेक सादस सु-क्रित सत्य-त्रत एक राम- acer बिपति के सायो ॥ तुलसो-दाख कते = किं ज्ञान, aan, विचार, area, पुन्य सत्यरूपौ त्रत श्रौर सब के ऊपर एक रामचन्द्र का भरोसा विपत्ति के सायो 3" च्रभिप्राय यद कि केसो दौ भारी विपत्ति wit a रो यदि wae facta दो तो श्रपनौ जोविका कर के विपत्तिकाट Sar I उसो प्रकार नघ विवेको areal Gaal ओर सत्य-त्रतवाले पुरुष के निकट से विपत्ति श्राप भाग जातो ३, दस faa मतुर्यो को चाद्ये कि ऊपर लिखे हये aut को विपत्ति पड्ने पर भो न कोड ॥ ४६ ॥ qual श्रसमय कै सखा साहस धरम बिचार | सु-कित सौल खभाब FTA राम-सरन-अ्राधार ॥४७॥ तुलसो साख धरम बिचार सु-क्रित सोल रिज खभाव राम- सरन-श्राघार श्रसमय के FAT II त॒लमो-दास कते हे" कि पराक्रम धमे विवेक पुन्य श्रच्छा शोल कोमल SAI WT भ्रोराम-जो कौ शरण का श्रवलम्ब बुरे दिनके सष्ायक मित है" दन को feel समय मौ ल्यागना उचित नीं ह क्योकि दन के रहने खे सव प्रकार कौ दुःख-बलाय-बिलाय जातो हे । ३७४ तुलसौ-सतसई | राम-जो का भरोसा रसा हे fa उसके श्राश्रयौन्को ait aa TE! St सकता ॥ ४७॥ बिद्या बिनय विवेक रति रौति जासु उर हाड | राम-परायन सा सदा आपद्‌ ताहि न Brz ॥ ४८ ॥ waa | जासु उर विद्या बिनय निनेक रति राम-परायन रोति सदा होय तादि कोद श्रापद न॥ जिस के श्रन्तःकरण मे ज्ञान aaa विचार मिचता caw को STAT सवेदा Teal S उस के निकट कोई विपत्ति नही श्रातो | प्रथम तो बिद्या दिगुण हौ ta डे" कि विपत्ति a ma 2a फिर सब से उत्तम रामको भक्ति ह जिसके कारण परम श्रानन्द Stat डे॥ ४८॥ बिनु प्रपञ्च बर Wie भलि नहिं फल किये कलेस | वावन बलि at wis छलि fers सबहिं उपदे स ie) aa । faq प्रपञ्च aq भोख भलि कलेस किये फल नीं बावन बलि सँ ae लोन सबहिं उपदेस दिन्ह | ठलसो-दास कते = कि बिना कल कपर के RNA सौ fra wal हे परन्तु away परिश्रम करने पर फल मिले तो भला wel, tal मन म far रखिये क्योकि भगवान विष्णु ने बावन रूप धर के राजा वेलिसे लके द्वारा तोन Wa ala ली, उस का फल यह sat कि उन्दं राजा बलि का इारपाल रोना पड़ा श्रौर कपटो सप्तम सगं | Rey भो wera, शी उन्होंने मानो ae उपदेश दिथाकि ane द्वारा काम fag करने मं यहो गति होतो 2 ce faa ae नम करना चाहिये wife इलो को सुख नदीं होता । stat ta से चलना et उन्तम डे चाहे va से फल fag S aa eth vet बिबध-काज बावन afafe दला wer जिय जानि । प्रभुता तजि बस भे तदपि मन तें गद्‌ न गलानि॥५०॥ श्रन्वय । बावन भलो जिय जानि बिबुध-काज बलिर इलो, प्रभुता तजि बस भे तदपि मनते गलानि न गद ॥ बावनद्प भगवान ने परोपकारं जान Vaart के काम के लिये राजा बलि को इला, दस का फल यदह श्रा कि wat खतन्त्ता कोड के बलि राजा के श्रधोन BU, तो भो उन के मनसे कलो कलने का दुःख न दूर BA Bale रतने बडे VHA ब्रह्मा श्रादि को arent देनेवाले विष्णु को भो सेवकाई करनो get यदो कपट को AAT ₹े॥ ५०॥ बडे बडे तँ चल करहि जनम BATS हदि । तुलसी सौ-पति-सिर लते बलि बावन गति ATF YR ्रन्वय । बडे बडे ते छल ate जनम कनोड़ होहि तलौ सो हि बलि बावन गति खो-पति-सिर लस ॥ जो लोग श्राप बडे शो कर बड़े बडे लोगों से कल करते है" बे जन्द् भर क लिये विक जाते हे , तुल्सो-दाख कहते डे कि gaat भगवान 44 Red तुलसौ-सतसर्ई। विष्णु wat के खामोके भिर पर eet रहती है" वही बात बलि के साथ बावन भगवान कौ SI श्रभिप्राय ae कि एक समय जलन्धर नाम दत्य महादेव जो से श्रपनो पतिव्रता wt के तेज के कारण ag a हारता नीया ay विष्णा भगवान ने जलन्धर का रूप धर के उसकोस्तौ बिन्दाके पतित्रता-पन को नष्ट किया । तब बिन्दा को प्रसन्न करने के लिये सदा तुलसो GIS उसे श्रपने शिर पर धारण किया। यद कथा श्वपुराण मे प्रसिद्ध 21 vat प्रकार बलि से कल करने के लिये भगवान को सदा बलि के निकट रना पडता हे जब विष्णु भगवान के से प्रतापौ को कल करने के कारण इतना दुःख सदना पड़ता हे तब श्रौरों कौ क्या कथा हे। कभौ किसो से कल करना न चाहिये UWI खल उपकार विकार फल तुलसौ जान HASTA | aga मकंट निक बक कथा सत्य उपखान NY? I श्रन्वय । खलं उपकार विकार फल जदहान जान, सत्य AeA Haz वणिक बक कथा उपखान ॥ दु के साय उपकार करने का फल विकार होता ड श्रथात्‌ उषसे goat बुराई रोतो हे दष बात को समार जानता डे raat sak के fara मे मेदक, बानर, बनिया wt बगखे कौ कथा दृष्टान्त रूप से प्रसिद्ध F fal समय एक मेदक श्रपने कुटुम्बो से भगड़ा कर्‌ के परियदशेन नाम एक Big at wal Sq के उपकार करने को ree Ba vat सप्तम BT | Que aa मे ला करबसाया जिख मे उस के भाद बन्धु श्रौर AGA वाले रहते G1 सो प्रियदभेन ने भलाई के बदले We wet Heats खाने के श्रनन्तर उसके परिवारको खा कर गङ्गदत्त को खाने पर मक लगायो दख का समाचार जव APSA ने पाया तब Baa खे भाग कर श्रपना प्राण बचाया | एक बानर मे किसो भूखे मगर को टच से गिरा२ AEA सा फल खिला कर जिलाया WA को AAT ने बानर St को खाने पर दति लगाया तब बहाने से भाग कर बानर ने श्रपना जो बचाया | ait तु मं मोनते ये बानर को देख कर उपकार करने कौ rest से पियो ने उपदे दिया किं घर बना कर रिय । उ उपकार के बदलते मँ aati ने परियं के खोतिँ को नोच नाच alt मे मिला दिया | भलाई के बदले FTE पायो | feat बनिये ने किमो राजकुभार्‌ का उपकार करने के लिये श्रपनो स्तौ उसके निकट मेज दो जिस मे उस राजकुमार के मन्त को सिद्ध St उष के बिर्‌द्ध उस राजकुमार ने उस at tat at ae कर दिया। faat ama ने एक US मरते नेउले को ब्‌ जाया किं वद एक ay कौ खाते उस ने केवल सपे हौ को नहीं खाया बरन बगुले के ऊपर भौ दात चलाया ॥ ५९॥ ज्ञा मरख उपदेस के VTA जाग ALTA | दुर्जीधन कद बाधि किन ATA स्याम सुजान VY sera ओ ATG उपदेख के योग होते (तो) स्याम सुजान दुयोधन के बोधि किन श्राय ॥ Res तुजसो-सवसर्ई | ae को aerate बड़ा कठिन हे शास्त मं लिखान्हे कि “मुखस्य नास्ौषधम्‌” मृखे को घमभाने कौ कोद श्रौषधि नदीं हे दरस पर तुलसो-दाख जौ कते हे कि dara नो मूख उपदेश देनेके योध होते तो बडे ज्ञानो Maw भगवन दुयोधन को Bi न ससुभा श्राते | ब कौरव श्रौर पाण्डव के बोच महाभारत के बड़ा भारो यद्ध eta का सम्भव देख पड़ातो उस को मिटाने के लिये aaa भगवान खयं दुयोधन के पाख गये WT समभाने लगे किं पाण्डवे कौ जोविका के लिये atest शमि दे दो जिसमे ag को CHAZ रो जाय। परन्तु दुर्योधनने एक भो न सुनो WT श्रन्त को लड़ कर na धन परिवार सहित मड़ौ मं मिल गया परन्तु उख समय Bla का कना न माना बरन उस का Gat क्ावत दहो war = fa “qa न दातव्यं बिना aga केशव” ॥ ५२॥ fea पर aga बिरोध जब अन-हित पर अनुराग | राम बिुख बिधिबाम गति सगुन अघाय अभाग।॥५४॥ aa fea पर विरोध aza श्रन-दित पर श्रलुराग aga (तब) बिधि गति बाम राम fage eta श्रभाग सगुन FETS ॥ जिस ana sual भलाई के विषय म विरोध बट़रने लगता डे शरोर aut के विषयमे श्रतुराग श्रथात्‌ परोति श्रधिक A लगती डे तो समभना चाद्यं fa भाग्य को उलटो गति हे, रामचन्द्र faga रे ait भलाई करनेसे भो बुराई होतो २ att awa सप्तम सग | Red ag श्रौर fas Stat बरार हो करने लगते इ तथा शएभङषक foe भो श्रभाग्य फलदायक होता St ५४ ॥ साहस ही सिख केाप-बस faa कटिन परिपाकं | As सङ्कट-भाजन wT हरि कु-जाति कपि काक ॥५५॥ कोप-बस सिख (न सुनि) area faa कठिन परिपाक, az ङु- लाति कपि-काक इटि सद्धट भाजन भये॥ क्रोध के बश दो कर aaa हितकारक at frat a सुननेश्रौर जलदौ से काम कर बैठने से परिणाम awa दुःखदा होता हे, दस बिषय मे मूचे शरोर कुजाति बन्दर ANT कौश्रा बडी YS करके दुःख के पाच इये श्रथात्‌ बड़ दुःख मे पड़॥ श्रभिप्राय ae fa at काम करना हो उसे धोरता-पूवेक घोच बिचार करना चाहिये श्रविचार के सायक्रोधो wit eat et कर जो लोग काम करते SF TAG दुःख पाते दे दस बिषयके दृष्टान्त Da लिखे wa जोव T । कपि बालि को उसको स्तौ तारा = ङ्त समभ्ताया श्रोर कदा कि श्राप सुग्रोव से बिरोध मत कोजिये नहीं तो दुःख पादयेगा क्योकि उन के सहायक राम-चन्र भो हे | परन्तु उस का कना न माना WT सास-पूवेक काम कर्‌ के मारा गया | बन के निवासो एक बन्दर ने चञ्चलता के साथ श्राधो चोरो इई एक लकर के Ta गड Ge को हिला डोला कम उखाडने के लिये gitar तब कटके दोना पटरोःके बोच लटकता श्रा Ve aT aye तुलसौ-खतसद | श्रण्डकोश दमक ATR हो गयाश्रौर Ie ठौ बन्दर्‌ ATH YT A मिल गया | जयन्त नाम काक लोभके a et कर परमेश्रर से fatty a करना चाय ` शास्तके दम उपदेश को श्ल AT Sar Ht के चरण मं चोच ar arn faa at परिणाम Bar sat fa उस at रक्ता कोन कम सका श्रन्त al UA Rig ats ar ave fear परन्त्‌ Ta a Ga aT IT & लिया। agi “क्यनि" पाठ et वहां qatat au करना चाद्य, faa Taw को समभना चाहिय क्योकि ae al मारौचका करनान मान लोभ wit eo at slat ata ar रूप बना पञ्चवरोमश्रा कपरसे atat at कोउटाले arm ate दस श्रविचागैौ श्रन्याय पि काम के न्नियश्रपनवगश्रके सहित मटर म मिल गया॥ wai मारि aie aft Qa नले करि मत सब बिन ata | मुर नोच बिन मौचतेये दन के faa nye | ये मारि खोज जे aig करि बिनु चास मत करि ते मब नोच दन के faa a बिन ate qu st लोग aga किमो को aa द ate फिर उन को खोजवा कर उनसे शपथन्ते कर मेल करते S Ast द} कर उन से सम्मत करते हेः मे खन निबेद्धि दन want पर fase कनके कारण जिना ae के मरते इ, ्रथात्‌ WIA दाय हो से श्रपना faz कारते रे । सप्तम UT | १४९ श्रभिप्राय ay fa जिषसे एक बार गादौ WAT BK ओ लोग फिर उससे मेल मिलाप कर्‌ के उस पर विश्वास करना प्रारभ करते हे" वे gut हाथ से som ae aca हैः क्योकि राजनोत के श्रनुसार सच का विश्वास न करना ASS ॥ ५६॥ रौ ्रापनौ वभ पर खोक विचार विहौन। ते उपदे न मानद माह-महेादधि-मौन ॥ ५७॥ (ये) श्रापनो बम पर रोभ विचार facta alten मोर-मदो- दधि-मोनते waza न aay ॥ gua दीमनसे बिना कारण प्रसन्न होते है" बिना बिचार fart किसो दोष के क्रोधित ia = TA लोग मोदरूपो aqz at want डं श्रोर श्रपने afy केभेमके कारण किमो का उपदेश नदीं मानते। श्रभिप्राय यद किजोलोग बिना कारण किमो के ऊपर प्रसन्न वाक्रोधित होते दहं जार बिना विचार faaral at avs Bae Are दोषो लोग दण्ड नदीं पाते VA लोग केवल मोह के श्रधोन डे इन कौ प्रसन्नता का कुक ठिकाना नद" Fy BT Ka BM qar रुष्टा तुष्टा sa क्षण । श्र यवम्थिन वित्तानां प्रम।द्‌ापि भयंकरः, श्र्थात्‌ तण में nag चण मं श्रप्रमन्न कमो रुष्ट कभौ तु afer fanaa मनु्यो" का प्रमन रोना भौ दुःव-दाई होता हे ॥ vO | समुद्धि सु-नौति कुनोति-रत sia Bt रह ATE उपदेसिब जगाद तुलसौ उचित aA ॥ ५८।॥ QuR तुकसो-सतसर्दू j मृ-नोत ayn कु-नौत रत जागत हौ सोय रदश्तुलसो तिन को उपदे्िबो जगाइबो उचित न eta | जो aia wat ata रोति को जान aa कर at रोत नोत ओग कामो मे लगे रदतेङ वे लोग जागते भो मोयेके GATT TY By लोगं को उपदेश देना मानो जागते को जगाना हे दस लिये हनमो-दाम करते ई कि से को satu देना उचित नदीं श्रयत्रा (जो नागतो ata रद ताहि जगाद्बो उचितन रोय) | जो जागता डे परन्तु मोये का बहाना करके aig मदे पडाहे Va का जगाना उचित AEP | श्रभिप्राय ae fa जो Ada रावण के aaa aq faa art जाननेवाला भले बुरे कामें का समभनेाला मापण्ड़ति दो कर at सोता के समान परम्तो-दग्ण करता निर-पराधियों का जोव हरता बरे काम Ba डरता We दौना कौ खताता हे वद्‌ केवल इटघर्मो करदाता हे ओर श्रमिमानसे भगा sw Ta a कारण वद्‌ किसो का उपदेश न सुनेगा इष कारण va Ht उपटेशदेना मानो राखमदोम करना े। जागते को कोन जगावे दम कडातके दोहं मश्रनेके कारण यां लोकों WARM स्पष्ट हे ॥ ५८॥ परमा-ऽरथ-पथ-मत समुद्धि लसत बिखय लपटान | safc चिता तें अध-जरो मानह सतौ परान।॥५९॥ पर मा-ऽरय-पय-मत Valen बिखय waz लसत AAS श्रध ह्रो तो विता तं तरि पराम । सप्तम aT | VE भो A इरलोक AAG देनेवाले wai को quar परलोकं के मागे ज्ञान ula उपासना श्रादि विषया को समभा कर रूप रस गन्य स्पशे श्रादि षय Aqua मं लोन teat > षो मानो चिता से उतर करभगोश्राघो जरौ पतिव्रता स्त्रो के ममान डे। श्रभिप्राय यद fa mt मनुष्य पटू लिषके ज्ञान उपासना क्म काण्ड विवेक वैराग्य wif are को जान, श्रवण भजन पूजनश्रादि भक्तिको Tat को ममम कर, विद्वान दो कर, समार मन्दरो नागो, wifes gata भोजन, बजित गन्धा का daar, परस्व श्रादि का waa करना, fafea ata ait az निन्दा श्रादि को मुनना श्रादि लोकिक विषयं मनलपरा रना रहं पह णमो मनौ के ममान 2 (जो यदि श्रपने पति ङे माय चिति पर जन at Stat तो परम गति पातौ) vet at प्राणके लोभ से fea पगमे yar भागनेके RTT a दृधरको BF न उधर at, आधौ जन जानेस शरगोगभो खराव दो wat wT नोक fazer Uy Bll दम ze a मानो शब्द वे श्राने के कारण वाच्या SRA Hage हे ॥५९॥ asa अमिय suze गुरु भजत बिखय-विख-पान। चन्द-किरण Ne पयस wea जिमि सद स्वान idol गर्‌ श्रमिय उपेम ana विखय-विख-पान भजत fafa az खान चन्द्-किरण ot पयम चारन ॥६०॥ जो लोग गुरुके ्धतके समान Bat ate म मृष देनेवाले उपदे at ale देते हे शरोर ममार विषय मुख को भो विष के 45 Rud तुलसो-सतसदू | करनेवाले waar टोका माला zizt WT जटा IT कर पाखण्ड करनेवाले सुपन्थ पम चल्लनेवाले साधु काते इहे श्रवा चोर चतुर्‌ श्रथात्‌ चोरो कगनेवाले बड चतुग Herat sign योद्धा कद्ावगे श्रघोरपन्धो सिद्ध Relay श्रौर पाखण्डो सुपन्यो कदा्ेग ॥ ६२॥ गौड गवार न्ि-पाल कलि जमन महा-महि-पाल | सामनदान न Ve कलि केवल SW कराल ॥ €8 1 कलि गौड़ गवार नि-पाल जमन मा-मदि-पाल न सामन दान न भद्‌ केवनन कलि कशल दण्ड | कलि-युग मे नोच जात atv विद्यादोन गवार राजा Sta wiz awe श्रादि चक्रवत्तो महाराजाधिराज Bit दम कारण रज्यकी चार मुख्य बाते श्रथात्‌ माम दान दण्ड भद दन qt a | Hat दण्ड माच ग्द जायगा सो भो aga करल दयान होगा ॥ श्रभिप्राय ae fa विदान afgar गाजनोति के जाननेवाले धमिष्ठ राजा लोग कलि युगस्नेःनदेागे Raa aga नोच जात जङ्गलो निद राजा उत्पन्न Bin जो (माम) मिनाप (दान) कु देलेकेमेल करना (भेद) श्रयात्‌ भचर के Ga वाले मन्त्रौ श्रादि को फोडफाडके किमो से ug sity feat @ Fa ana ca alat उपायो at न कर के केवल किमसौ Va 8 दण्ड दे कर wa eta करमा TIA A रद जायगा जिमसे ust at बडो ater etat ॥ ६३ ॥ e सप्तम al | ६५७ काल ATI तुपक महि दारू अनय कराल | पाप पलौता कटिन गुर गाला पुहमो-पाल ॥ &६४॥ HIT | काल RI मरौ तुपक AIA श्रनय दार पुहमो-पाल गरू गोला पाप कठिन पलोता | कलिय॒गषूप ममय गोलन्दाज हे gat qua wie हे बरौ बटो श्रनोति gaz हे श्रन्याई राजा लोग as बड गोला ङेः ate gaa प्रकार का पाप ats afer पलोता रे जिनके लगने से गोले करते द git प्रजालोग बड़ा दुःख भोगते हे" इस दामे युद्ध का पक हे ॥ Es | राग-रेख-गुन-दैखके arent हिदय सराज। quart विकसत faa लखि सकुचत दे खि मनाज॥६५॥ दिदय-मरोज राग-गेख-ग्न-दोख को मासौ faa नसि बिक्मत मनो ज द्‌ खि सकुचत। हदयष्टपौ कमन प्रम क्रोधके गुण श्रौर मथ दोषो कामान्तोद at जिस प्रकार (faa) सयको za कर क्मन fanaa =e zat प्रकार श्रतिवेकरट्प श्रपने मिचको ca कर कमननस्ह्पो हृदय विकसित Stat 2 श्रोग मनने उत्पन्न वगरय विक ait ज्ञानादि को देख कर चन्द्र को देख कमन के ममान मंकुचितडोनाद्‌॥ श्रभिप्रा् ae कि इन््रोरुपो घोड़ा कं द्रुगा are ary Tay मोद मद मत्सर श्रादि विषयोः पर मन aga ₹ श्रोर विषय सुख ३५८ amar: Baar | at ur कर प्रमन्न होता ई परन्तु ध्यान भक्रि विवेक श्रौर wae श्रथिकप्रगाग्यके दोन से मन बटुर जाता इे॥ ६५॥ बैर uae सयान पहि तुलसौ जा नहि जान | ते किप्रेम मगुपग धरत पसु बिनु पुच्छ fear nee जो वेर मनेद जान मयान परं afe जानते किप्रेम-मगृ पग धगत त॒नलमो (ते) विन पुच्छ बिखान पसु। जो लोग किस से शत्रुता चरर किम) से भिच्रता रखते हं रोर विवेक via SF क्या हरिभिक्रिके पय पर पावर रख सकते 2 > quid नदीं 7a सकते, तुननमो-दाम कते इ" वे बिना पुच्छ सीग के पण्ड ॥ श्रभिप्राय यद कि खाना सोना sua मिर्च से मिच्रता रखना शरोर wast से शत्रुता रष्वना wife वाते oe AT Ae मे समान = विबेक विचार ज्ञान श्रादि waar Faw Sst ona a नदीः पाये जाते = जिन aaa a विवेक adi FF ug el BS Rae OSs AT मीग नदीं ₹े॥ ge राम-दास UE HTS BAT नर auf] सयान। qual च्रपनो wig महं खाक मिलावदहि खान igor St मयान नर रामदास परं जाय कं कथद्दिं qual F खान श्रपनो वाड ue खाक मिनावदि। जो मन्य WA को बट्‌ चतुर मान HT TIA Was AHA पास € सप्तम सग | ave जा कर श्रनेकण्वातं बनाते हे" तुलमो-दाम कते हे" fa वे कुन्तं के समान श्रपनो खाडमे मटर मिलातेडहे। श्रभिप्राय यह कि जो dart लोग श्रपने को बड़ा बुद्धिमान a पण्डित समम के सच्चे तरर Ay दरि-भक्त से तकं-वितकं AIT बाद्‌-विवाद करते = वे श्रज्ञानौ ग्रान के समान श्रपने fea को faarga = aaifa दस चाल से ईश्वर उन पर कोपकग्ते Seo | fa-fafy रक-विधि प्रभु-अगुन प्रजहि सवारहिं राउ। करतेंदहातक्रिपाणकेा कठिन BT घन BIT ude एक-बिधि प्रभु-ग्रगन प्रजहि fafa, रा wale मवार क्रिपाण को ay कर्ते कठिन घोर घन eta | राजा का एक प्रकार का दोष प्रजा A ata प्रकार से प्रगट Star डे क्यांकि राजा wat at सोधा वा मन्दर बनानेवाला = टस मे दृष्टान्त देते S कि दाथसे तरवार का घाव कड़ा भयङ्कर ओर घना होता दे | श्रभिप्राय यद किजेषाराजादोताहेवमोदोप्रनाभो होतो ई यदि ust wat et तो प्रजा धम्ष्टि,पापौदोतो पापिष्टओआर सखधारण et तो aura etat = कलियुग at राज हे जिममें चार भागोंमेः एक दो भाग aa a ग्द गया हे दमो कारण प्रजा मे धम को श्रपेक्ठा पाप बहत श्रधिक Ber Bt से तर्वार्‌ सलार जातो हं परन्त तरवाग का घाव दाथसे की aE करोता ade तुलसौ-सतमदै | ह टमो प्रकार राज्ासे दष प्रजामेश्राता डे त्रर गिगना बढ़ कर HUA फल उत्पन्न करता Sete Vara a जितना चोर लग anat डे उम से करी बद्र कर लरवाग्से लगतौदडे। वसेरो राजा के वरे काम का प्रभाव प्रजा को तिगृना दुःख देता TU ६८॥ काल विज्लीकत ईस रुख भानु काल अनुदार | रविहिं राह राजद प्रजा वध व्यवद्दरत विचार ।॥ ६<९॥ कालन ईम रुष विलोकत भानु कान श्रनुदार, गद्ध रवि टि प्रजा - राज दं ay विचारि यवदग्त ॥ ममय राजाको BIT दस्ता V Maiq राजा के व्यवहार के HAUT GA उत्पन्न कर्ता आर GBA समयकेश्ररनुमार aA ag वा मध्यम tid ह US ae खय के लिय चाग प्रजा TTA लिये दुःख sq करता दरम कारण विद्वान लोग परिचारके व्यवहार करते इ" | श्रभिप्राय ae fa शजो डे" राजा उस के व्यवहार के श्रलुमार समय कभो कभो वुगा होता हे असे मदाराजवेणके समयमे Ba था श्रयवा शश श्र्थात्‌ waar al दच्छाके Naat ममय भला बुगा दोता हे जार A ममृयमे खये श्रति प्रचण्ड शोत काल मे मन्द ओर प्रभात wa at मन्द मध्याह्धमे अरति प्रचण्ड श्रा करते 2 aaa पाकर राह्खय॑कोदुःखदेताहेओरराजाका प्रजा के दुष्करम MIT मापसे उत्पन्न AW मरना पठता इ दस कारण विदान लोग aga विचार के साय चलते हे ॥ ६९ ॥ सप्तम Si | ad जथा HA पावन पवन पाय सु-सङ्ग F-Az | गहत सु-वास कु-बास तिमि are महोस-प्रसङ्ग॥७०॥ जथा श्रमन VAT पवन सु-मङ्ग FA पाय, YA Jaa MLA fafa काल मरोम-प्रमङ्ग॥ faa प्रकार faa जा पिच ara wat Ary at! ary का माघ पाकर्‌ way वाबुर हो arate gut प्रकार Fag TAT HAF से भला ATT षो MTA Sai, जवर राजाभन। STAT 2 तव ममय भना होता रज्ओार जव राजना ATT eta हे व BAT बुरा होता हे । यद्‌ वात प्र्यनड (sw दः मतर ae MMT Hate a gal Fat waa A Qa त दान द चत जव TIAL aA पदाध्वा Bar A BRT व्रता <; AT TIAA हानी | जदं ‘“afea” aa et agl WAT वादय OAT WY RAT उचत Zoo 1 was waa पथ साच भय जिप-सियाग aa an q faa q-aea भूखिपत नाह नेवारित हेम ॥७१॥ faq मोच भय नय नेम नयोग (दह) HAT पय चन्त ( यया) Qa कु-तिय मनियत दम आयत बह ॥ राजाकेमोचडर्नाोनिकानन वाः TT प्रजा सं Raa पर चनो रे जेस उत्तम उन्म NEATH REZ कः भाोमोःभत कर्तः र aa Ba Se BT HEAT TT AT जाना द। by ९९२ तुन्तमौ-सतसदै | श्रमिप्राय ag किममय set et at at यदि राजा Wala et at उम केभय से प्रजा को नियम धर्मके साय श्रवश्च रौ चलना पडता ₹ै नब कोर गजा BIA गजमे रेषो AA का प्रचार करवा देता fa ot को$ भाट बोलेगा विश्चास-घात करेगा Are चोरौ करेगा उसे yaa कठिन दण्ड मिलेगातो ये सब काम aya कमो जाते ई" से पुराने ust के समयमे sat डे Fat Bey wal Fi a et Wa सुन्दर २ गहना Bre बस्तर पना saa तो उ इ चलेगो | MANY को तरवार बन्दूक श्रादि दयियारोँ के कबं yt Ha ay कलर करने BF कंसे जगमगा उठते है "दसो प्रकार बुरे घमयकौ बुरौ प्रजा भो राजाके घन्मसे श्रपने पापको cig रखती FB nor QU FAH TAH फल आम असन सम जान। सुप्रभु usi-fea afe कर सामा-ऽदिक अनुमान LOR Il सु-प्रभु प्रजा-हित कु-नाज मु-नाज WIA फल सुधा waa सम लानि सामा-दिक श्रनुमान कर als | NH राजा-लोग wat कौ भनार के लिये खराब अनाज मोटा चावल चना wife सुना मन्द्र उत्तम वासमतो चावल ग अररष्टर श्रादि श्रामश्रादि SAAR फल Hert HAA समान जान कर ओर दससे शान्ति दोने का श्रतुमान कर्‌ के उपद्ार लेते ₹*। भिप्राय we fa ste घमिष्ठ राजा-लोग ड सो जब श्रपनो सप्तम सग | ३९३ राज-घनौ से भ्वाहर जते हे" तो धनौ निधन कोटो ast प्रजा श्रपनो शक्तिके श्रनुसार बग भना BATH iy फल जो कुक उनके पास रताद राजा े मन्व ना कर UM A माय TET AAS शरोर प्रजा का प्रेम AZT के faa राजा उसे प्रसन्नतासे Bare कर लेता डे faa a किमो प्रकार का दोष नदीं ममम्ता जाता 1108 11 पाके पक्थे विटप दल उत्तम मध्यम AT फल नर लदहिं ata fafa करि बिचार मन बौच ॥ ७३ ॥ नर्‌ fazy फन दन ah waa नहिं तिमि ate उत्तम मध्यम नोच (फन ल्ह) मन ate विचार करि॥ HALA AA लोग Ga फल पत्तको पक करश्रापसे श्राप गिरने पर, ट्त में Ga ea wa at ated, आर He Bl फन को दत्त से ats करे पकाने पर, इन्दौ तौन उत्तम मध्यम नोच उपायां से फन was. उमा प्रकार राजा तोन उपायां केदारा प्रजर्श्रंसे उपार पाते रे ईम वात को श्रपने मन मे विचार atfaa afi यद हे कि मनुख-नोग परले saat ama ङेः far Ba at पश्र-पच्ो से वचा ar gat a मीच कर पानतेपोमते हे" Aa होने पर जव फन नगते हेः त्रर पक्के भ्रमि Ue fea हतो फललेजाकर वाते ई" दमा प्रकारजो राजा ध्म-पू्वक प्रजा कापानन करके उनको र्ता करना SMT श्रपनो प्रमन्नना-पूतक fant ain जो कुवे देते देः sal at a ar मन्तृ्टहोताङै ae उत्तम, at किमो प्रकार कौ छचनावरा श्रपने काम-दारेंकौ ३९४ तुनसौ-मतसई | mur से प्रजा कौ योड़ौ प्रसन्नता से sae लेता हे वर्‌ मध्यम WIT FN काम-दारोंकेद्ागा चना करवा कर वा Ga Bray दे कर प्रजा को श्रप्रषन्नता से उपद्र लेता S वद नोच कदलाता डे र ट्त के फलां के तो डवा कर खानेवाले भेर कचं Hal को तोडवा कर पालके द्वारा पकवा कर Gaara किसान के षमान डे 1 03 1 धरनि धेनु चरि धरम तिनु प्रजा सु-बत्स पन्हाय। हाथ कड्‌ नहिलागि दहै किये tre RM माय ।॥७४॥ धरनि धनु धरम तिनु चरि प्रजा वत्स gee, ate aw गाय किय कक दाय न लागे | एष्वो-खूपो at weed) घास को खा कर्‌ प्रजा-र्‌पो श्रच्छे aaa के (नाज-रूपो दूघ से) श्रपने थन को भरतो 31 दम ष्थ्वो-ष्पी गौ को गोशालामे बसौ et wt बनाने से कुढलाभन Star श्रनिप्राय यद डे कि जिस प्रकार gel gert at दण श्रादि चर के ब्त प्रसन्न Teal इ उसो प्रकार धर्मिष्ठ राजा होने से जव घम-रूपो एण vat पर बढ़ जाता डे तब val श्रत्यन्त प्रसन्न रहन BAe aa igs श्रधिकार के साय उत्पन्न करके श्रपने खामौ Tar We बद्धवा-रूपो पुचको श्रानन्द्‌ देनो रनर केवल गो-थाना मे बन्धौ गौकेममानयोडोषोधामदे कर दूध-रूपो कर दने से कुक भो लाभ नदींदोता। जो राजा प्रजा को पुच के समान पाल- पोष के उस कृ प्रसन्नतासे कर लेता रह ae cs Vat लोकम BE पाता ₹े। रूपक wage we डे ॥ ७४ ॥ सप्रम सगं | ३५५ कण्ट HE S पड़त गिरि साखा सहस खजर | गरदहिकु-न्ििपकरि करि कु-नयसे कु-चाल भुबिभूरि ॥ ७५॥ GT सदम मादा HUE कण्ट कसोगिरिपटडतमुविकु-जरिपभररि Rate कु-नय करि करि aziz खज्रके Gant EAT शाखा जिन al maa ais पर करिहौ कटि ददोतेहेसोटुकटा नकारो ar ela ar गिर पडतो डे gett पर Se TIA नोग वहत WITS HA BIT BAIA करके गल जाते S श्रयवा (मो कु-खानि भरि ब) उन्दी qt गजान at श्रनोति से रथ्यो पर बहत सो कु-चान art रौत फन ग ₹े॥ श्रभिप्राय ae fa जितनो mat से भगा न्रा खजर ट्त श्रनेक कोँराश्रांके कारण टुकड़े दो कर गिग जाना वो दशा कण्टक-ूप श्रनोति से भरे wal Mast al Vat wy aa aa GT at श्रपनो कुचाल से श्रपनो wat at Bat कर arya Fy Ou भूमि रुचिर रावन-सभा अङ्गद्‌-पद्‌ मददि-पाल | धमे राम-नय सौम बल अचल हात तिहु काल ॥५६॥ भरमि afar रावन-सभा afar मटि-पाल श्रङद-पद गम-नय सौम wa बल fas काल श्रचन् होत । ऊपर के कर एक दोोंमेकलियुग कुराज He श्रमोतिका बेन कर के श्रव SEAT के दोहेसि Gala का ब्रणन कैरते हे" । श्रनेक Tat भगे डद यद प्रो रो गावण को भ्रत्यन्त सुन्दर सभा add तुरसो-सतमद | = जिम पर धर्मिष्ठ राजा लोग AES जो के पाव ₹हे+सुन्दर रमणोय नोति-ूपो मोमा के धम के बल से Gag महाराज राम-चन्द्र को सु- नोति-रूपो ua aT सोमा कौ शक्रिसे तोन समयमे WIT ररते FI श्रभिप्राय ae कि दम संसार मेः जो राजा सुन्दर नोति चेर धमे से चलेगा वह श्रनेक विन्न दुःख ओर waa से बच कर्‌ रावण को षभा मे“श्रङृद जौ के पाव के समान मदा ee tem जिस प्रकार रावण को सभा A बडे२ बलवान trae wie azz के पाव को हिनलातेथयेतो भो वदन डगा उसो प्रकार श्रनेक UTNE के उठाने पर भो घमेनोति aa राजा श्रचल Te BAZ पक्त FT तिषकाल wee का श्रये wife मध्य BT श्रन्त aaa AIT राजा पक्त में प्रातः मथ्याङ्क चर सायं श्रथवा बत॑मान भूत चरर Ufa काल करना HT दोगा) sina ae कि जो राजा प्राचोन समय में घमनोति पूवक राज करते ये उन्द" att न हिला सकाजो श्रव नोति पूर्वकं करते ई" ae att मीं दुःख दे सकता ईहे रोर जो gua Bt सुनोति के साथ राज करगे कोट उन को न हिला सकेगा ॥ ७६ ॥ प्रति राम-पद्‌ नौति-रत धरम-प्रतीत सुभाय। प्रसुहि न प्रभुता परि हरे कबहु बचन मन काय ॥७७॥ बचन मन काय राम-पद प्रोति-सुभाव नोति-रत सुभाव धरम- परतोत प्रभुता -ममु हि Has न परिदरे | जिन const को प्रीति मनसा ara कर्म॑णा राम-चद् के चरण सप्रम aT | ade में रतो डे Are जो राजा श्रपने खभाव से राज-नोति B aT रता डे भार खभाव रहो से घर्मे प्रोति रखता J रेसे cM at प्रभाव Bere Wt मन्त्र से उत्पन्न प्रभुता sat महो डोडतौ श्यात्‌ sit राजा रै श्वर-भक्र धमे-तत्यर हो कर राज-नोति से चलता है उस का राज सद्‌ा श्रचल बना रहता ₹े रर उस को सामये कभो नहो घटतो F ॥ ७७ ॥ करके कर मनके मनहिं बचन बचन जिय जान। भू-पति भलि न परिहर ष्टि विजय विभूति सयान ॥ ॥ ॐ ॥ बिजय fara कर के कर मन के मनि बचन बचन जिय जिय लान सयान भल भ्-पतिरिं विजय व्ग्डिति न afrerte ui og मे जय Ae मन प्रकार कार्ययं fae at ota ere a weal डे चरर मन कौ उदारता wife aw aa et म तथा बचन के सत्यता wife गण वचनहोमे षने रहते = By चतुरज्रार सयाने राजा को रण म जय We सब प्रकार का Baa कभो नीं atzat Z| sina ae कि जिन श्रङ्ोकेजोर्ग्रथय देवे उन्दोम rea Ft दितोयाय। (जिय लान) मन मं निखय कर्‌ जानिये कि जिम राजाके हाय से करने योग्यो as Teg a र्ते FT श्र्थात्‌ जब तक fag नदी होते तब तक न दूसरेके हाय जाने, पावे ग दूसगा जान Ba AK fa स काम को करने के लिय मन a बिचारता ₹ै ३९८ तुश -सतसदु | वह जव तक fag नदीं दोता तब तक मनो डरता डे मन कौ बात को दुमरा कोड नरो जान सकताज्रोर बातकेद्वाराभो होनेवालारहेसोभोवातरोमंगृप्र रहता दस प्रकार राज-नोनि के कर्मो को गुप्त रौत से करनेवाले राजा का पराजय Hay नहो Cat MTS बुद्धिमान Ae उत्तम महाराज काते Fee गालौ बान gaa सुर समुदि उलटि गति देख्‌। उत्तम मध्यम नोच प्रभु-वचन विचार विसे खि ioe i उत्तम मध्यम नोच प्रभु-बचन विसेखि गोलो बान सु-मत्त सुर विचार safe गत agin Sein उन्तम मवसे भले उससे वम भल मध्यमञओआर at @ दष्ट मोच दन तोन प्रकारके wae al aa at Gaga at गोलो याण जोर मात्रा स्वर को विषागो श्र्ात्‌ HA गोनौ gga के मुख से निकल कर जव तक निमाने पर नदौ anal तब तक पोषे aey फरतो gal प्रकार उन्तम गजा का वचन जो सुख से निकला at सिद्ध श्रा Ay मध्यम राजा का बचन बाण के समान 2 श्र्यात्‌ जिस प्रकार बाण fanaa way देख पड़ता हे चननेवाले को ae श्राग्रादोतौ कि wey AT Haze Aya परन्तु उसको गति दूर के लच्य तकं नोः asa शकलो यदि gat श्नि at ल्मे लगा नहो तो ate el a far nar we नोच cravat के बचन माचा (Ar) के BAIA डे श्र्यात्‌ Baa a Bal a BT व्य्नग के gar से मिला Bw a पटना हे परन्तु WATIA से व्यश्न सप्तम an! ३९९ MST जान पड्त्रा ₹ै श्र्थात्‌ बिना खर को सहायता उस का उचारण हो नरो होता उसो प्रकार कते जाम पडता ₹हे कि aE गचन mag हो सत्य डे परन्तु जब उस को STE का समय श्राता हेतो पूरा AS) पड़ता ॥ ७८ ॥ ay ama सलिल इव राख ate रिपु-नाव। gga लखि डगमगत अति चपरि we दिसिधाव ॥ So] aaa aa सलिल दृव रिपु-नावि Hla राखत इगमगत Fz छख श्रति चपरि we fafa uta | afgara वैरौ जल के ममान ₹े, वे श्रप ने श्रतु को नावके सदृश fat पर रखते ईह परन्त्‌ जव श्च नावके समान डगमगा कर wat लगता ॐ तो उसे देख कर चारो श्रोर से श्रत्यन्त बलके साथ लपट कर tea ड । श्रभिप्राय यष्ट कि जसे नल नाव को मद्‌ BIA पोट पर रखता ङे परन्तु किमो प्रकार यदि नाव डगमगानो तो चारो श्रोर से an के साथ saa भर कर wy उसे gat देता 21 उसो रोत बुद्धिमान राजा aya wa at wey भावस भिर पर qeTa wea द" परन्तु भब देखते हे" किं उम के re कोदू विपत्ति we डैतोचारोश्रोर शे लपट कपट कर उसे बिपत्तिख्पो सागर म दौडके रसा gar देते हेः कि ae जरा मूल Bae et भाता Bunce 47° gee तुलमौ-सतसश। रयत राज-समाज धर तन धन धरम-सु-बाह। सत्यसु-सथिवद्दं मपि सुख बिलसंहि निज नर-नाह ॥ ८१ ॥ गर-नाह्क धर्म-सुबाह्न सत्यमु-सचिवद्दिं निज रेयत राज-खमाज चर तन धन सोपि सुख बिलसहि । राजा लोग धमे-रूपो सुन्दर बाड़ को धारन करनेवाले षत्य-रूपौ मन्तो को श्रपनो प्रजा राजसेना घरके लोग श्रपना सरोर धन सोप करके श्रानन्द भोग करते = | WHA धमे-रूपो सुन्दर बाड-वल रखनेवाले राजा सत्य-खूपौ मन्तो को श्रपना श्रम्न घन सब सोप के नि्िन्त श्रानन्द्‌ करते 2 ॥ afar यर्‌ fa भिस राजाके wa age श्रौर सव्य मन्त्रौ रैः उस के निकट बिपत्ति नदीं श्रातो श्रौर धमे तथा सत्य को धारन करनेवाला राजा सदा श्रकण्टक राज भोगता Turi रसना AM दसन Ha ताख पाख सब काज। प्रभु केसे न्निप दान-दिक बालक राज BATT TRA रमा मन्त्रो, दसन जन, सब काज तोख पोख, विप प्रभु बालक शे दामादिक कं ate ata | राजाके मन्त्रो को ओभ के समान होना चारिये कि भला ब्रा खव यथाथ बता देवे fra प्रकार fing: खडा मोटा सबका स्वाद्‌ बता कर पेट कोदे देतो ह, दत के समान राजा के सप्तम BT | Ret, कारोबारिश्रो at होना चाहिये जो भोजन at कार कूटके YS at 22a ड, राजाको मुख के षमान होमा चाहिय fa राना- दिकिदे करके प्रजा का बालक के समान पोषण पालन aT | श्रमिप्राय ae कि faa प्रकार रांत सष बस्ुश्रांको कार द्ाटके पने के योग्य बनाके मुखको समपित करता हे श्रोर नोभ षब खाद को यथायं चोखतो Fae इन दोनों को सहायता खे उन्तम भोजन मुख को मिलता है श्रौर मुख भो उसे खा कर WAT के कोटे बडे aa ag को पोढा करता हे उसो प्रकार TTF मन्त siz सेवके को होना चाहिये कि सब BOAT कमार राजा at ate राजा जोभकेममानले कर श्रङ्ग-खूपो GF AT पोषण करे TAIT HRT AY FI मुखिया सुख सो चाद्य खान पानको एक । aia wa सकल श्रङ्ग तुलो सरित बिनेक॥८२॥ लकौ SAT ACSA सरस काज भ्रनुहारि | ang ज नाहिन परिहरहि सेवक सखा बिचारि॥८९॥ काज श्रनुहारि wast डौवा BEA सरस ज Vag aT gain नाहम परिहरहि (सो) मु-प्रनु। जिस प्रकार काम के AAT as, चिमला, कलत्र बहो सुखदाई होतो हे उसो रोत श्रपने कारमं को विवार करभो रजा az बडे नौकर wat ओर मन्तियों के Fara को ae? a करता रे वह WEL राजा कहता डे । ROR तुलसौ-सतसई | श्रभिप्राय ae कि श्रपने ९ समय पर सव वर्करकाम देतो रै रसो“ के लिये Hea Bt ar ररौ उतारने Vat के लियं विभषा श्रादि वा दाल तरकार श्रादि चलाने परोसने के लिये RST नदतो बड कठिनता भोगनो पडे Gal रोत Az कें को करने के लिये az नौकर we बडेर प्रयोजने के लियं aye बुद्धिमान मन्त्रौ नरं तो राज-काजमें विघ्नो सकता दस कारण श्रच्छे राजा लोग बड़ कोटे सब प्रकारके लोगों को रखते ह" ste उन को त्याग नदींकरते wife |e VA Va जाकर शरसे मिनलकेराजाको बुराई भो कर सकते Bsa प्रमु समीप BIS बडे अचल Vie बलवान, qual विदित विल्लाकहौ कर अङ्गुलि अनुमान ॥८४॥ श्रन्वय । प्रभु समोप कोटे बड़े श्रचल बलवान Sel gaat कर श्रश्ुलि श्रतुमान (प्रमु) बिलोकदो (दूति) बिदित॥ maa खामो के निकट कोटे बड़ aaa निभयश्रौर बलो बने रहते ई" । तुलसो-दास aed हैः fa दाय कौ sy faat के समान SS सामो ss बडे सब को WRAL काम के लिये श्राषश्धक देखते 2 ae वात लोक मे प्रमिद्‌ F 1 sua fra प्रकार दाथ कौ पांचो aye समान गनो जातो mitt मनु viet को काम-काजोश्रौर ar मानते 2” किमो Bat areas ana Vs eat 2, सब को पूरो sie बलवान रखने के लिये यन्न करते S उसो प्रकार VS GTA) करते De"! Wa सम | 2७ धरि ^“हायको पांसो शर्गलो बरावर ” दस कहावत को दोहे मे श्रमगेत समभिये तो Satis श्रलङ्गार होगा ॥ ८४॥ तुलसौ भल बरनत aga निज मृलहि अनुकल । सकल भाँति सब ae सुख-द दलन सहित Wee ॥ ८५ ॥ geal बरनत निज मूलि wane दलन-सहित फल-पफूल भल बढ़त सकल भति सष HE सुख-द ( होत) | तुलसो-दास क्ते हे कि ( टक श्रादि ) श्रपने म॒न जे श्रनुसार श्रथात्‌ जड मे पानो wie देने से श्रपने पत्ता फल फूल श्रादि aq सहित भलो भांत azar ait सब प्रकार सब के लिये सुखदा होता डे उसो प्रकार राज BIA मल राजा के श्रतुमार सब के लिये सुख-दाष् होता हे azar ड tar कवि qua करते 2" श्रभिप्राय ae fa राज म रजा मष का मूल डे दम कारण राजा at भलाई ang Bag at was ang eq 2% ca B सब के faa उचित @ fa tem को भलाई BT ॥८५॥ BUA स-गुन स-धरम स-गन स-जन सु-स-बल महो-प। quat जे श्भिमान बिन ते बि-भुवनके दोप।॥८६। Guy सगुन स-धरम Gay मरो-प सु-स-बल, जे श्रमिमान fan ते जि-भुबन के दोष, aq प्रकार के धम पूरे कोष के सहित, सोयं were are गणो खे युक, दान मान तप मा दया श्रादि धरे wifi Res तुलसतौ-सतसदै | sit श्रच्छेर्‌ नौकर wat श्रौर सेना Baa Yor बड़ा aay होता डे। qwal-ae aed हे“ fa ca a जो राजा श्रभिमान रहित att 2° वे खगे, मत्ये पाताल Dai लें म BB हे" रेषे महाराजान्रों का मिलना दुलभ ₹हे ॥ ८६॥ साधन समय Gag ale उभय मूल TAFT | तुलसौ तौनै समय सम ते महि-मण्डल मृल ॥८७॥ (जे) awa समय सुमिद्धि afe (जारि) उभय साधन मूल ्रकरूल तुलो ते Dat सभय सम महि-मण्डल मल । श्रपना कायं fag करने के समयदहोमंजो लोग सिद्धि घाते है" श्रौर जिस को इस लोक मं सुख देनेवाले भोजन षस्त श्रादि WIT परलोक में सुख देनेवाले wa कमे sit राज्यके सब weg श्रनुकूल Vo उन के लिये तुलसो-दास कते ई“ कि लोक sic परलोक कौ सिद्धि श्रौर कायं कौ सफलता ca तोनेों के समय पम fag et जाने से वह राजा awe के सब UNG मण्डलो a a) मुखिया गिनाजा सकता = | श्रभिप्राय ay किं सष प्रकार का सुखं मिलना बडे पुन्यका काम रै) Uy Fara ae, राजा मन्तो faa कोष राज्य किला श्रोर सेना राज ये स्व दृट्‌ शरोर श्रपने an a रदे लौकिक सुख के gard सुगन्ध, स्तो, बस्त खान पान भोजन गहने TT ATEN (wal) af Geax Wt Tua मिले" WT भो मनोरथ करे we को fafg म किशो vate at fay a et tar राजा saw सप्नम समे। Roy हो श्रपने राज समह का भषण का आ सकता Vl get मङ्गल मूल पाठ शो वटं षव Hae का कारण शषा श्रयं करना: शाहिये ॥ ८७।॥ रामायन श्रनुहरत सिख जग भो भारत Ta | हुलसौ सट कौ के ga कलि कु-चालि परतीति।८८॥ (at) रामायन सिख अनुहरतं जग भारत ta ati gaat कोको मुने कलि ae a-arfe परतोति। कौन रामायण को शिका श्र्यात्‌ पिता कौ ang मानना wren खभाव Et कर काम करना परस्त्ो रण न करना श्रादि wa का श्रनुमरण करता S श्रथवा रामायणके ममय का श्र्यात्‌ जेता am जिस मे तोन भाग पुन्य ae एक भाग पाप धा कौम श्रलुकरण करता है शर्यात्‌ कोर नहीं करता ₹े। ममार भारत के समान हो गया sul लड़ाई भगदा श्रपनेर्‌ श्र के जिय यद्ध डाह कपट safe के करने के कारण संमार भारत के समान कि यग 4 8 ter? aan कलिय॒गकेश्राने के समय के कुद पूवे भारत श्रा दस कारण उस समय धमे HI UH Cl पाव रह गया तो श्रव ख्व लोग at समय के श्रनुखार पाप करने लगे । श्रव तुलसौ-दास ने उपदेश at कौन सुनता डे कलि यगकेदुष्टो को att Dat पर विश्वास ait wat डे। श्रभिप्राय ay कि कलिमें रामायण के ate कौ Aa पर च गनेवाले aga कमह" राम के राज में Far wa a Far ROG तुलसौ-सतसदै | होना कलि मे aga afar 2 at रामायण में त॒लषो-दासजोने st उपदिश दिया हे उस के श्रतुषार भौ लोग ae चलते श्रव तो महाभारत के समान भा के उचितश्रंश को न देनेमे परम wal दुयोधन से बड़ों कोश्रा्नाके विरुद्ध चलने वाले नुप Bit श्रौर OR कर सकुल AM को UAT | “राम राज" का सुख जो कदावत हो गया हे aN AT ator मे तुलसो-दास ata करते 2° चोपाई | राम राज बटे जयलोका | दरखित भण्ड ADT सबसोका॥ बैरन कर काहलं सन कोर | राम प्रताप विवमता खोई$॥ ater | वरनाश्रम निज निज uta fara az ay ata | safe षदा पावहि safe नहि भय सोक न ta 1 चौपाई | हिक रेविक भौतिक तापा। राम राज निं कादि यापा ॥ सब मर्‌ करहि परस्पर May) चलि सुधरम निरत श्रुति AAT ॥ चारि चरन धमे जग मादी । पूरि रहा सपनेद्ध श्रव नादी राम afm Ta मर RE नारो । सकल परम गति के श्रधिकारौ॥ way fa नहि कवनिख पोरा । सब सुन्दर श्व निरज WAT ॥ गहि दरिद्र arg eel a दोना। नहिं काउ श्रन-धम लक्ठण होना ॥ aq निदंम्भ धमे रत UTA | मर श्र नारि चतुर प्रभ करमो ॥ छव Tg सब पण्डित ग्यानो । सब क्रतग्य न [हं कपर सयानो ॥ संतं समे | yes ater i राम रां Faure Gy सरार जग मारि । wre धरम समाव्रगण् क्रित दुख काडर ate tart | भमि सप्त शागर मेखला । एक a रघं-पंति steer ॥ yar श्रनेक रोम प्रति जाद । यड प्रभुता कुं AHA म ता ॥ सो महिमा समुभात प्रभ केरी । यह बरणत होनता GAT | सो महिमा खगे-स निज बानो । fate यह चरित fans रति मानो ॥ सो जने कर फन ae लोला । किं महा मुनि सु-मति सु-सोला॥ राम राज कर सुख-सम्पदा | बर्णि न सकि Hole सारदा ॥ सब उदार oe पर-उपकारो । दविज-सेवक खब नर VE नारो ॥ एक नारि-त्रत रत गर भारो | तै मन बच निज-पति हितकारौ ॥ दोहा | दण्ड यतिम कर भेद जह ATA चित्य-समाज | जोति aafe सुनिय we राम-चद््रके राज॥ रोपाई | Baty wale खदा तक कानन । THLE एक मङ्ग गज पञ्चानन ॥ खग fan पैर aes बिसरा । स्वनि परस्पर प्रोति बढ़ाई ॥ gate खग सिग शाना ज्रिन्दा। श्रभय चरि बन करर श्रमन्दा॥ Slaw सुरभि पवन बह मन्दा । Tea श्रलि AIG मकरन्दा ॥ शता न मगि फल दवो । मन भावते धेनु पय सवद, ॥ 4 १०९ तुलसी-सतसई.। ससि-सन्यख खदा TE धरणो । जेता भट सत-जग कौण्करणौ ॥ प्रकटे गिरि नाना मणि-खानौ । भगद्‌ाऽऽतमा रूप पहिचानो ॥ सरिता सकल as भर वारौ | सोतल श्रमल खाद सुख-कारौ ॥ aint निज मर्यादा weet । डारहिं रन्न तरमि नर लहो" ॥ atfa-3 सुल सकल तड़ागा । श्रति प्रसन्न दस-दिसा विभागा ॥ ater | fay महि yx पियूख-रवि तप तेज न काज | मागे वारिद Ue भल रामचन्द्र के राज | चोपारै।. कोटिन बाज-पेच प्रभु कोन्दे। श्रमित दान विप्रन कदं DR ॥ श्ुनि-पथ पालक धरम-धुर-न्धर । गृणा-तोत AE भोग पुरन्दर ॥ पति TAS खदा रह सोता । सोभा-खानि सु-सोल बिगोता ॥ भामति क्रिपा-सिन्छु प्रञु-ताद्‌ । सेवति चरण-कमल मन लाई ॥ यद्यपि fay सेवक वसेकिनो । सभ प्रकार सेवा-विधिलि ॥ निज कर fae परिचय्या करही। रामवद्‌ श्रायसु WARE ॥ भेदि विधि क्रिपा-सिन्भु सुख मानदं । सोदर पिय सेवा विधि उर्‌ श्रानडि॥ कोसलयाऽऽदि arg fag मादो । Bale ad मान-मद्‌ नारौ"॥ उमा-रमा-ब्रह्माणएि-षन्दिता | जगदम्बा सन्तत मनिन्दिता॥ दोहा | नाके क्रिपा-करटाद््‌ सुर चाहत चितवनि ate | राम पदारमिन्द रत Tela खभावडि ate ॥ सप्तम शं | Ree - tart | Vafe asaya सम भाई । राम चरण रति प्रोति Get ॥ ्रशु-पद कमण विलोकत Teel । कबि रिपाल cafe कष करो ॥ राम करहि भ्रातन पर-प्रोतो । भागा भोति सिखावहिं Mat ॥ इरखित cele भगर के लोगा । करहि षकल सुर दुभ भोगा ॥ oe fafa विधिं ममावत रहो । श्रो-रघु-गौर चरन-रति चहो ॥ रामचन्द्र के राज मे धर्म का वणन यो किया 2 सोचिय विप्र जो वेद विना । तजि faa घरम विखय लवलोना ॥ सोचिय विपति जो नौति भ जाना। जेहि न प्रजा प्रिय प्राण समाना॥ सोदिय वस्य त्रिपण धमवाना। जान afafa सिवि-भक्ि सु-जाना॥ खोविय ax विप्र-श्रपमानोौ । मुखर मान-प्रिय ग्याग-गुमामो ॥ सोचिय पुनि पति-बश्चक नारो । कुरिल कलदह-प्रिय दच्छा-चारो ॥ सोचिय az निज ब्रत परिहरप। जो महि गुर श्राय श्रलुसरई ॥ दोहा | सोचिय यिषो भो मोह-वस करे घरम-पथ त्याग I सोविय यति प्रपश्चु-रत विगत बिबेक बिराग॥ चोपाई | Sara सोद सोधम ओोग्‌ । तप विहाय जेहि भावत भोग्‌ ॥ सोचिथ faga श्रकारण क्रोधो । जूननि-जनक-गृरु-बन्ध-बिरोधौ ॥ खव fafa शोचिय पर श्रपकारो | मिज जन पोखक faze भारो |) areata शबरो" fafa atk) जान arts इल शरि-जनम is ॥ “ory राज” AE WA कल कहावत हो म्या है दसस डका बवन दिलाया ॥ ८८॥ | ॐ, । qe वदै | भु-हित सुख-द्‌ गुण-जुत सदा काल-भाग दुख हाय। धर धन जारत WAS जिमि त्यागे सुख नहि काय NTE खदा सु-हित सुख-इ गण-जुत ते काल भोग दुख ETT तिमि GAT घर धम HT त्यागे कोय Ga aft ॥ भो बस्तु सर्वदा इत करनेवालो FH कमल के लिये Ga तथा सदा सुख देनेवाले जसे षस्य के faa जल शरोर ख्व दिग ड्म गुणयुत दूध भो षमय के श्रलुमार दुःखदे होता डे जसे भ्रोत-काल गं afa सुखदा होतो डे परन्तु षमयपाके वरो रभि aw a खग जातो ड तब उन्द्‌ जलाके राख बना देतो F परन्तु सब few के लिये उख केत्यागदेनेसं सुख नरोहोतादे।॥ अभिप्राय यद कि यद्यपि Ga का नाम कमल-बन्धु रे तो मो जल भ र्दने पर उखे सुखा BGA Vl नख Sat मारौ के faa awn ae Sat मो श्रधिक जल धोने सस्य सड जाता डे) चो दूध शादि भोजन निदोषहेतोभोष्वरश्रादि ak एकरोगो मंदुख- ait Gare fier aff संसार का काम गरहौ चल खकता परन्तु श्रधिक श्रप्रि होने से sag et oat 3 ca कारण दम सब बस्त को खव faa के लिये त्याग करना उचित नहो 2 केवल भला बुरा अमय देख के कामं करना साहिये॥ ce ॥ Taal सर-वर wat fafa तिमि Yaa धट मारं ङ्न तपम हतम से समुर सु-बुध-जन ताहि ॥९०। wwe शम | शद awa) निमि सरवर wa तिमि रतम धर भारिं तपन ङ्न SS AE सु-वध-जग सुभ ॥ तलसो-दाख करते डे" fe नेये उष्म area भें wan गडा रहता ३ उसो प्रकार येतन्य-खकूप जोवात्मा चरर में ददता डे Wt qa के घाम से ay war गरो Gadi दस aa Ht VS facta खोग समभते डे" । खम्भा जल मं Tear डे परन्तु away wet’ हो भाता है sat प्रकार WaT शरोर में रहता हे परन्तु बरोरमय मरो" दो जाता । परमात्मा सवं रोष-होन निरुप डे ॥ ( दितोय प्रासङ्गिकाये ) | HW सरोवर मे wan wear} we जल के टष्टेपनसे cater बमा रता Bowe Ge Fora Vat wel gam F Fa (az) शरीर मं त्मा है जिसे पण्डित लोग aad ह° atx जिका Ser श्रपराध हो खसे Far रो दण्ड देते कै" परन्तु त्याग महौ करते nee tt तुलसौ wrest बदन के बो परह अनि धाय। ae Be पान दो बौच रूट अरि जाय॥ ९१॥ Gaal asa के भागडा बोच धाय भमि पर Sty पीन रो ले द्द बोश्जरिजाय॥ ` हलसो-दास wea ई कि apt को at के कोच दौड़ कर मत पडो ke से दृषा देते हे कि eter पत्य अव्‌ ्रापसमे रमे बते डे" वो He को खर नख जमो Fs १८२ तुलसो-सवसईू | afte ae कि जव चकमक oe में से ae निकालने ओ लिये खोदे से staat हेतो am निकलकेवोचषौ SEK को भख कर डाशतो Vo wy we wat as ga afs गदो" होतो शे उयो रौत tage नें मे जब युद्ध शने छगता डतो Mat का उनके Me पड़ना भला नरौ होता क्कि विष्वबई मारा जाता Buen अरय sife wa परिहर quat सहित विचार । ` अन्त गहन सव RE सुने सन्तन मत सुख-सार ॥९२॥ श्रय श्रादि सरित बिचार इन परिडर ङ, Gaal सन्तन मत GIA ग्ग सब RE FART सुने ॥ श्रथे, धम, WH, पुछ काम, भोग चार ate ये चार gary है" fan Mage मे बिचार के साथ (इन) हिंसा कोड्‌ देना चाहिये sul wr wit धमे Facial मं ममसा बाचा कर्मणा किसौको पौडाम देना चाद्ये we बिचार के ae qua at दण्ड देना उचित ई तुलसो-दाख कते हे कि ary अगो के मतके gaat श्रन्त समयमे ( गहन) बम मे" जा बसना aq के लिये Bae होता डे ॥ नोति a लिखा डे fa— “gut माजिता विद्या दितोये माभितं धनम्‌ । तीये arisen कोर्तिख्चतुयं किं करिति 1” ९ पलो श्र्यात्‌ वाख्यावसा म विद्या oem, दितोय य॒वावसा सप्तम सम | शष्ट मे धन फिर धमे चे org ae att oma Me पन में वगम जा कर्‌ श्वर का भजन करना उचित हे। इष श्रवस्या म बक्रि-होन GR के कारण aay शे श्रयं aie का उपाजन नरो शो SHATNER गह उकार fafeate पद मा फल हानि fazer WW जान तुलसौ जतन बिम जाने इव छल ॥ ९३ | उकार पिविथार पद ae ठुलमो रशो (तथा) मा फल हानि बिमृल (aq) विन-जान जतन छल दव ॥ उकार तकंके सहित fade विचार am ot बात हे उष गृहण करो श्र्थात्‌ fang तकंना att पिवेक के माथ कामम लगो क्योकि “बिना विषारे जो करे सो पाटे प्ताय" विना ah We विचारकेजो काम कियाभाताे उमम पोष्ेखेदुःखहोताङे विचार Uta पर तणमो-दाष कते दे कि (श्रहो) श्राञ्चयं कारकं भो काम है" oe at a जानेगा श्रौर (मा) निषेध om भो काम है" जिन कामों का करमा शस्तम मनारै उनके फल कोहानि निमूल कर डाले श्र्थात्‌ वैसे कामें को कभोभ करो। जब तम को fata शोगा तब श्राप हौ तुम शास्त-मिषिद्ध कामन करोमे fant wat aT जो काम करनेभ यन्न किवाजातारैसो (खल ) पोड़ा देनेवाञे के समान होता हे भले काम से भो बुरा फल होता हे जसे राजा मृग मे बिना बिषारणएक गौदोब्रादु्ेकोरोचौ उषसे दुख पाया। विचार we तकं के साय सब काम उकम होते हे“ षं से विचार श्रौर तके श्रव क्तख VW ९३ ॥ Rvs वुलशौ-खतस | नीच facrate मिरस तर तुलसी arate we | पाखन पयद्‌ समान जल विखय Gea SS ९४॥ aaa । तुलसो नोच निरस तर्‌ भिरावरहिं waz समान अशे fave जख के शख पोखत Safe संघार & aa लोग शानियों के लिये gaat वैराग्य रोग रने के कारण विषय-रख रदित नोरस वैराग्य-रूपो टच फो उखाड के फक देते दे We मेघ के समान नल से विषय-द्पो सरस ag & Ze को वढ़ाते चार सोचते 2) श्रभिप्राय ae कि संसार कौ उलटो ta oz ak 2 ot जोग ज्ञान वैराग्य दरि-भक्रि श्रादिको att मन लगाते ङे" बे are wera जाते हे“ काकि ये दस लोक के व्यवहार से डा कर परलोक मे मम ama VA जो लोग विषय वासनामे लोग TW करु संसारो Fae जो लगाते डे" वे सरस sag जाते ई“ परन्तु एस के विरद काम करने से aaa at श्रधिक Ga WaT F Wifes सुख नश्वर होने के कारण भरन्त मे“दुखदाई होता Fev ककबेद दका द्गौ नाम भूल क पाच । धरम-राज जम-राज जम कहत RATS ANTS He ys खपर के दोहे A क चके रे"कि लोक को vas] Da ड श्रव wet बात क! उराररण रिते चे खान शमं | | +, ॥ re | Mt नामं को भख लोक वेद शं खौ दो धर्मरान (को) यम-राज यम कत कोच सोक म | लोक मे रेखे मख हे किं var नाम कशनेमे बे दुः पाते शो यह भात केवल लोकशो मं गीं बरम बेद तस nfag ₹। ate Sia माम पुकारनेमं भो श्ल करते ई" धमे-राज रषा उन्तम नाम उक्तम at कहते F उन से जो मध्यमे बे यम-राज कते FB चर (पोच) ale लोग बिना षहोच भर विशार यम क्ते हे बडा के माम को बिगाड़ने ने gata eat डे षो az लोग ae बात न्धी बिचारते बिना aga ast भाम को बिगाडते ₹े* भार पुराण, wana, उपनिषत्‌ We Fz मे भो य बात भिलतो र रेषा तुलसो-दास कते ₹े ew तुलसौ देवल रामके लागे लाख FUT काक Barat इगि भरं महिमा ays न aces at Gai A” दको दुष्टता का वेग करके श्रव ca Tea ay बात प्रमाणित करते ईहे“ कि इससे बडोका ge विगाड. मदं होता ₹। qa) gaat राम के देवल लाख करोर लागे (परन्तु) gata काक इगि भरं महिमा योर्‌ न भण्ड | तुलसो-दाष कते क रामक मान्दक्षमें शादे करोर 49 , १८१ ` तुलसौ-लत सर | qs लगते डे" परन्तु Vara कौवे उ IT AT Et VA V at ca शे रामजोके रैवालय का माहाक्य कम नीं होता। Sat प्रकार यदि aera चरर भक्तिकौ निन्दा दुष्ट लोग करते Qt at at उन का माहाव्य कम नदीं होता। “तुलसो-दासके दूसरे स्थान के वणेन के श्रनुसार दुरो के उपष्टाख से aust at मादाव्य बढ़ता डे उरो ने रामायण मे कहा ह। खल उपहास GT भल मोरा। काक कहिं पिक कण्ट कटोरा ॥ दख कारण खाधु चरर Gat को भक्तिर परोपकार करने इटमा न चारिये चाहे दुष्ट जन कितना भो उपद्रव aT ॥ ९९॥ war कहि जने विना के श्रथवा अपवाद | तुलसौ गां वर जानि जिय करवन ete बिखाद्‌ ॥९७। श्रन्वय । जाने भिना wet कहि श्रयवा को soa (देहि) gaat गोवर जामि जिय eve विखाद न करब | बिना जाने TVS कोड भला RY ar कोई दोष ama at उसे (गवर ) wart समभ कर बुद्धिमान को श्रपने मनमे उसके कने पर इषे वा विषाद न करना चाहिये। seat भर Hartt को बातपरध्यान VFB ow at aty सुख wet होता टस लिये गोसाद" तुलसो-दास aed रै किए्नको बात पर afgarat को ध्यान हौ म देना चाहिये neon सप्रभ सगं | ace. तन-धन Afar धमं जहि जा कह सह UAT । geet जियत विडम्बना परिनाम ह गति जान।९८। qa Safe धमे-षह afar तम-घन महिमा (ता ae) जियत भिडम्बना परिनाम ड (जिडम्बना) गति जानि। तलषो-दाष कते ₹ कि निष मनुव्य का UT श्राचरणे करना श्रदड्ारके सहित ङे, ओर aaa wae भार धन कौ बडाई देख- खाने के लिये डे, उन के लिये नोते जो टस संसार म मकखहे, र्यात्‌ लोग संसारम नकल कटके उसको हंसो करते ह“ भेर a F भोरेसो रो नकल कौ गति जाननो चाहिये। श्रभिप्राय ay किलो धम्मं का श्रादरणश्रपने WAT al बडाई धा धन को agit देखलाने के लिये किया जाता ₹े, चार za Are श्रभिमाभसे भरा रहता ई, उषसे ce लोक मे दुर्नाम भर fart Hat भार परलोकमे भो विशेष फल aey होता, ca कारण निर ङगर भार मिरश्च हो कर धक करभा चाहिय ॥८८॥ बा faay cont ते मूमि भूप-द्रबार। जापक पुजक देखियत सहत निराद्र-भार ॥९९॥ अन्वय | ala ढप-दरबार बिबुध-द्रबार ते बड़ो भाक पूजक भिरादर भार षत देवियत | gfaat पर राजाश्रों का दरबार देवताश्रांकोषभासेभौभड़ा जान पडता है क्योकि भापक श्र्यात्‌ राजाके मतिके faeg जप ओर पूज कद्गेवाले धरे श्रपभान की Get wa रखे जाते ह । ace quel-waag | श्रभिप्राय uefa ce SRA मगुख के fag acea का ag a किसो Zam aD यातना aa) कठिन ओर भारौ ae? भान पडतो क्योकि उस का दण्ड भविय्यत्‌ मे“ दोनेवाला हे, परन्तु भूमिके क्रोघो Tat का डर श्रभिक काय्यैकारो हता रे, क्योकि हरन्त दण्ड पानेके ere लोग चोरौ श्रादि बुरे ara FFT wea ह" भैर जो कोर यर्ांके राजार््रां को विरुद्ध बाते Fat carat से कता ई, या रेरे css at पूजा (fs) ats कर दू कौ भक्ति करता 8, उख को श्रनेक प्रकार का दण्ड मिलता हे, aa mere ने श्रपने पिता दैत्यराज दिरण्य-कण्यप के मत के fang विष्णु को भक्रि दिषलारैः ca लिये waa प्रकार का TG खन्द BUA पड़ा | श्राज He AT St RE राजा के ag काम करता ®, श्रनेक दण्ड पाता हे ॥९९॥ खग्ग मौत पुनत किय बन | राम मय-पार। Haz बालि रावन धरहि सुखद्‌ बन्धु किय काल॥१००॥ sq । पुनोत नयपाल राम wa खग-ग्ग ala किये हव-नयपाल बालि रावन घरं सुखद्‌ ay काल किय। पविश्र सुनोति के पालन करनेाले Tae a बन मे भो नोतिमाम get (SB नटाय श्रादि) ओर पष (HB sree) रिषो के crs Wie Bala बानरों के राजाके अपना मिच कनाया. चर दुर्मति को पालन करनेवाखे वालि ओर Tae ने Wat जर्‌ सत्तम शमे | ३८९ हो मे gaat निन भार gaa ओर विभोषण कौ gon काल weal शद्ध देनेवाले wa किया । श्रभिप्राय य्ह कि aeat नौति के षाथ चणमेवाले aaa Ql वन खरे परदेश ख्व Ba मे सुखपाते F चार TATA Ue श्रपलारथीः लोग TF घर Ty वभ अहा रहे दुःख पाते है, Ce कारण मनुख को सुनोति के खाय waar चाहिये॥९००॥ राम-सखन विजयौ भये बन ह गरौवनेवाञ। मुखर बालि-रावन गये धर हौ सहित समा ।॥१०१॥ waa । गरोब-नेवाज राम-लखनम aay विजयो भये मुखर बालि-रावन acy सहित समाज गये | दुखियो पर दया करनेवाले राम-ल्ाणए ने वन मे भो cag श्रादि बड़े ay वध्रांको विभाग कर जय लभ क्या. परक कटु-भाषो बालि att रावण श्पने ay et A श्रपनो सेना श्रौर परिवार के afea fare को प्राप्त Ba | पले (ce) APA ow बात ay चुके कै" yom रेखललाने के fay sit उको श्रथे को श्रधिक पुट करने के लिये CET भौ ae) विषय वेन faa शख से यह सवित श्रा कि aaa | Tea सर्वथा त्यागने योग्य TF ifs इनके हीं arr खे we बालि ste रावणके 88 प्रतापो war राजा sega Te ये तो भ्राज कल्हुके साधारण राजाश्रो के विषयमे श्या कना हे । ३९० तुशसौ-लतसदै | wasfa दोषाः प्रभवन्ति रागिणो ग्ेऽपि पञ्चद्धियनियदस्तपः। श्रकुत्िते कमणि थः vata निटन्तरागस्य Ze तपोवनम्‌ ॥ ९०९ ॥ दारे टाट न दै wate तुलस्मै जे नर नीच । निदरदिं बलि शरिचन्द कह aE का करन दधीच ॥१०२॥ Gea जे मर ate, दारे रारन दै सकि बलि दरिचन्द ay निदरहि करन दधोष का TG | ऊपर सुनोति से चलनेवाले WHA का वनेण करके९०२ ददे खे दु के खभाव का वणेन करते Ty ॥ हुलसो-दास कते है" कि जो लोग खभाव के कुटिल श्रौर नोच "वे qua इर पर Wa ये याचके को टाट तक मरी दे सकते। परन्त्‌ राजा बलि श्रौर हरिद्र कौ निन्दा करते डेः श्रौर कते V fH AV aaa ara ste SMa ष्या Br yee तुलसौ निज कौरति were पर कौरति का चोय । तिनके मुह मसि लागिहे मिरिहिन मरि tray | १०९ ॥ . wera! seat (ज) पर कौरति कं ate निज कौरति चहं तिन के मुंह मसि लागि रे धोय मरि (परन्तु) मिरिहि a शथे । तलसो-दास कहते हे“ किं भो सोग zat को नामवरौ सप्तम लम | REX at मिटा aq श्रपना UH acm चाहते हे खनके ga FX कारिख खगेगा श्रोर Ae मे मर Maa at भो गदी भिरेमा। ara यह fe ot AE Cal Ae देष केकारण दूसरे Fas at नाच्च करना चाहता डे श्रौर उसके दारा WR aM Ht बढ़ाना erent रे ay श्रपनो भलारै न कर बरार करता डे क्योकि उब का श्रते ge vat नीं वरन gan फलता ₹े लोग उषे ge whe पर कौरति को दरानेवाला कके इस लोक मे Ge को निन्दा करते QV she परणलोकमे यंक दुर्नामके कारण वह नरक-गामो होता डे ॥ ९०द॥ ary चङ्ग-सम जानिषे सुनि लखि तुलसौ-दास | दौलि देत मर्दं गिरि परत Gea wz Waa | १०४॥ चर्वय | त॒लसो-दास नोच सुनि लखि uy समजागिबो ढोणि देत ale गिरि परत सेचत श्रकास A | हलसो-दाख कते रै" कि नोषो" कौ रोति सुन करश्रौरदेख कर ae पतङ्ग के समान जानना चाहिये क्थाकि दिलाई eae शमि पर गिर पडते डेः we खीचनेसेश्राकाश् पर es AH आनय यह र कि निष प्रकार पतङ्ग इलकारे वेषे हो दुष्ट जन मौ इदय के eat होते है" F3 पतङ्ग को डरो ae stat कोजिये श्र्थात्‌ बाध्ये त्यो २ वह नोचे को गिरता भाता हे GH प्रकार HV AT Get के सथ GTN रोका बढ़ाये RER तुणसो-खतसई | Ae तसे बे नोचेष्ो कर sat frat रिखलते F परन्तु at सोद-कूपो डोरो को die wins श्र्थात्‌ निर्मोह शोके उन को दण्ड रोजिये तो षे ata रोति से चलते हे" जसे way Hi TD at खीःकिये तो वह mam मं ata रोति से उडने शगता हे गिरता पडला गरो “शायेवन्न कुरिलेषु हि नोति” दुष्टो के सङ्ग सोधापन वा agaue नोतिवर्धक नरो eta S sa A Ty कडा करने tat ae प्रकार से wea डे । fate टोकाकारोंमे sre खी वने ” का श्रथ Ge ज्यादा करना लिखाष्ेषखोभ्रमसा भाम पडता ₹ै क्योकि Se-eal डोरो के Sle लेता fae प्रकार पतक्ग को बढ़ने से रोकना हे sal रोति प्रोतिको KA खीवलेना quid कम कर्‌ देना भाषां श्रधिक बोलते हे ॥९०४॥ AVA काचे HATS पुर-जन पाक प्रबौन। काल-देप ate बिधि करहि तुलसौ खग-सग-मौन। १०५ ॥ श्रन्वय | सद-बासो काचो wale पुर-जन पाक-प्रवोन, Gael खग-स्टग-मोन कंडि बिधि काल-टेप करहि ॥ सायके रदमेवाले Her el खा लाते दं चार गगर के निवातो भार करसे भाते WT सुन्दर मांस My कर भोजनं ara FT Bat WAG मं तुलसो-दास कते हे" कि डोरे २ पणो, amie wg We nafent क्ति प्रकार WOR जोवम-काख को सुख gan बिता weal ड" अर्यात्‌ महीं बिता सकतीं । SHA समं | ९९१९ कने का भिप्राय यदष्े कि दुबल चर Shy खभाववाले Hat का इस संसार मे सुख से रना बङत कठिन डे HV ata ९ चिदियों को age बाज श्रादिक मारकर ae at ee चार्‌ हरिण शथकादि agai को बाघ चचार सोता wie seat शे मार कर खा जाते र चार ate मढलियोंको उनको wat ast ast aafaat कचा हो निगल जातो 2 भार मतुख Ott दन को पकड के घर लाते तब मसाला लगाते We पकाकर खाते हे दख प्रकार दुर्बल gat at एक we से श्ररोसो-परोषौ दुःख Sa Wit gat wes राजाश्रादिभो दण्डदे कर क्र-दा{ शोते दे इस कारण बहत सोघपनेसे चलने में संसार मे सुख- yaa faate नरो हो सकता हे तो जां जषा Saat वहा Far wala करना उचित ₹े ॥ ९०५ ॥ बे पाप ate किये Se करत लजात | gaat ता पर qe wea बिधि पर aga रिसात॥ १०६। दुष्ट जनों का यह खभाव ङे कि बे ae Ula ATA Fa} गो BA ॥ वे बडर Tita TH wR बढ़ कर पापरे उनको करते 2" चर शोटे९ पाप करने में श्रवा पुष्यके दवारा oa met at दोटा बनाने मे लजाते है fre पर भौ सुख चारुते कै भेर सुख न पामे पर क्रोध कर कते ह कि देव परम GET a ; १९8 तुलसौ-सतसई | बड़े पापौ कोटे मोटे जोवों को मारने मं मन्तु 7 Et कर्‌ ब्रह्म -दत्या करते डे" । मद्यप साधारण मदिराके पान से सन्तुष्टन शो करे सुरा श्राख्वश्रादि मदा२ मद्यको Das चोर लोग दोर २ चोरो सेश्रसन्तुष्टद्ो कर ब्राह्मण श्रादिक का सोना चोराते क । परस्तो-गामो लोग साधारण स्तिया से न सन्तुष्ट हो कर श्रपने गुरू को स्तौ चाचो मासो श्रादिके ay का मदा-पाप बरोरते ड र इन पापाके दूर करने का उपाय यज्ञ जाप इरि-भजन तोथे-भरमण सल्षक्गग-ऽऽदि को TST करते तो उन का पाप HS कटे ॥९०६॥ सुमति निवारि परिहरदहिं दल सुमन-ह सद्धाम | स-कुल गये तनु बिन भये साखौ यादव BA eo श्रन्वय । सुमति निवारि (aera) afcecfe दल सुमम-ङ dara, (जय) परिदरहि सकल गये यादव as षिन भये काम rat ॥ शो लोग सुबुद्धिवा मेल को त्याग करते हे“ जर Was aera साथियों को रोड देते हे" वे पत्ते Be फल से भो युद्ध करने मे" ˆ HI-AARl को त्याग करते S कुल के सहित नाश्र को प्राप्त wa दुवो लोग Ure शरोर को at करनेवाला कामदेव एष विषय मे सत्तो रे । arma यश रै कि कुमति भेर श्रापष का बिगाड़ शषा awe fa इन मेः पडे sa लोग awa तच्छ seat के युद्धमे Wawa पाते Vt HAAG! करने के समय मधुमन्त होने से aaa शजियों के बोयश्रापसमे देइ ary र जिसके कारण एक प्रकार कौ घास SHA सग | 8९४ ले कर wee लङने खगे र लङते लते निर्मल हो गये भर कामदेव ने बिना बिषारे Beare के मारे महादेव जो के ऊपर श्रपभा RTE वाण सन्धान सार गिवनोकेकोपसेश्रपनेश्ररौोरको भस्म किया। दन दो दृष्टान्तो से यद बात प्रगट होतो रे कि रेक्यता र विचार जयलाभ करने के लिये परम Ta हे भार पुटमत तथा gafg नाके कारणहे। दस कारण टन को परिल्याग STAT HAW WSF ॥९०७॥ कलह न जानव ale करि कठिन परम परिनाम। लगत Raa अरति नोच-घर जरत धनिक-धन-धाम॥ १०८ ॥ श्रन्वय । RAE कोर करि न जानब परिणाम परम कटिम्‌, श्रति Neat wae लगत धनिक-घन-घाम-जरत ॥ मनुष्य को चादिये कि ane at दोरा कर कभौ न नाने क्योकि उस का फल श्रन्त को बड़ा दानि-कारकशोताडेद्षमेदृष्टान्त देते ई“ कि निर्धन नोचके घरमे श्राग anal ₹ जिससे श्राखपासके ररनेवाले ase धनो-लोगों के घर We धन जल कर TG et जाते ई । कलदखूपो श्रग्नि करो भो et at at aca बते इ्ननो ag सकत रै कि सर्वम ara कर सको Ti इष कारण कलह से सदा दर रहना चाहिये ॥६०८॥ असे ते भल वृकि War जौति ते हारि । जरां जाय जंडायिने भले जु करिय विचार ॥१०९। Red तुलसौ-सतसङ | wg । जम तें final भल, जोति तें दारि भृशो, जु विचार करिय sei जाय (तहँ ) जदंडायिषो wet | बिमा बिचारे लडाई 33 देने को ater बिचार कर्‌ सदना श्रति sua ई । श्रविचार पूवक जोत पाने खे erent उन्तम डे । afe बिचार कर शान्तिको धारण कोजिये तो जर्दां नाना वहां श्रपने को Sa देना भला डे। “wa zara विवदेत्‌” सौ देना ate भागटा न करना इत्यादि amare से भरर युद्धमे जय पराजयके श्रनिश्चयसे शान्ति शार war करनेवाला का यदह मतै कि Qasr करना स्वया त्याज्य S 1 asa Bal A Var Var nats किंश्रति श्रन्यायसे न्यायवाले लोग ay भारौ waa ® राजाको sla Aa हे" We बडे २ fanat a wa at NA जाकर दुःख सागर मे at FI He दमो uy मे रामचन्द्र We रावण का उदादरण दिखला चुके हैर wa कोरव Wr पाण्डवां का उदादरण दिखलावेंगे। यद्यपि UTA HTT २९ वार एयिवो को निःचत्रिय किया परन्तु श्रन्त- ममय रामचन्द्र से हार मान BSAA |! ९०८ ॥ लुलसौ alfa प्रकार ते हित श्रनदहित पडिचान। परबस परे परोस-बस परे मामला जान ॥११०॥ wag gael fea श्रनहित तौनि प्रकार तें fear । परब परे परोष-बस मामला परे जान Il dart मे सले fara rq श्च तोन प्रकार से पडिवने जते डे SHA समे। Ree अर्थात्‌ णव करई किंसो age में पड़के दुसरे का बन्धश्रा ST, श्रयवा atta से जब श्रागलगोवाकिसोकेचरमेचोरपेठनतो शात को परोसिर्यो से सहायता मोँगने के समय परोख के हित श्रग- fea at परोक्षा शोतो हे भार जब राजा के यषां कोर (श्रभियोग) वा मामला श्रपने ऊपर पड़ा तब भो श्रपने भिज भर शु परिवाने नाते द । sina ae किसंसारकेलोगोांके भिन्न २९ सखभावके कारण किसोके मन का सदजमं जानना कठिन 31 क्योकि जो लोग खाभाविक faa >? Fas) बात ओरं दोष कद कर श्रपने मिच को क्रोधित ava Si जो लोग ऊपरके मिव चोर wart a wg ईह" वे एसी मोटो मोटो बातं बना के बोलते ई" कि सुननेवाला उस at श्रपना परम रित समभ प्यार करने लगतारे। सो श्रवस्या मं शत्रु faa का पद्िचानना afar et जाता रे इख कारण नौति मदन के पडटिचाननेके लिये सु-श्रवसर दिखललाये गये हे" र्यात्‌ जव को$ AG बन्धन मं पडता डे तो उम के खाभाबिक faa उसि छोड़ने के लिये रार खाभाविक a4 उसे GAA a aT आते Be उदासोन लोग चुप चाप बैट रहते है । दसो प्रकार चर a afg चर चोर wa eta Baw राजकोय दोष श्रपने ऊपर छगने खे wa fara परिदाने जाते ड" Afamea मं लिखा 2 | “gaa व्यसने चेव दुर्भि राद्रविभवे | राजद्वारे wart च यस्तिष्ठति स बुन्धवः*॥ पुत्र WATE THI बाढ मरणादि अखन युद्ध राजद्रोह quly Bes qwat-arak | eat वा cine feta के गड़बड़ KA पर राके दवारे पर र्यात्‌ मामला पड़ने पर शआश्रान A श्र्थात्‌ किंसो के मर जाने पर जो खडा हो कर्‌ ख्ायता करता हे वद सथा बन्धु कषटलाता हे ॥९९०॥ ZUMA बदन कमान सम बचन विसुष्वत तौर | AMA उर बेधत नदौ AAT सनाह HUT ॥ १११॥ दुरजन बदन कमान सम बचन तोर विमुञ्चत । चमा sary शरोर TIA उर नदीं बेघत। दुष्ट लोगं के qa-el धनुष के समान है“ जो बचन-रूपौ तोर at SST करते ह" परन्तु चषमा-रूपो कवच धरोर मं रने के कारण सश्ननेों के मन को नदीं बेधते॥ eet का ae सुभावहोताह्ेकिवे खदा कटु-बचन बोला करते ड" । परन्तु सश्न लोग उनके कटु बेचन पर्‌ FE wT नहीं करते। SA-SU FIT THA के कारण GAT के दय म दुच्जनों के भ्न का कुद भो घाव HET लगता । चमा श्रत्यन्त SAA गृण हे | ce त्याग न करना चाहिये। किमो २ पुस्तकें मे “ दुरजन aaa” Tis FM aga को श्ल जान पट्तौ हे क्योकि उसो के श्रनन्तर फिर बचन Sl दो वार षचन नदीं Et सकता ॥९९९॥ कौरव पाण्डव जानिबो कोध AAT AT सौम। ufafe मारिन सौ सके सवै निपते भौम।॥११२। अन्वय । Sty ओर sar at सोम कौरव पाण्डव जामिबो, सौ utefe न मारि सके मोम aa मिपाते | सप्तम सगं | १९९ कोप बरार sar को सोमा दुर्योधनादि कौर भोर दधिष्ठिर श्रादि पाण्डवं को जानना चाद्ये | क्योकि दुर्योधन श्रादि सौ भाई fara के युधिष्टिर श्रादि viet areal को नीं मार सके परन्तु श्रकेले भोम ने सब Tal को क्रम क्रम से मार गिराया। पाण्डवो मं युधिष्टिर एेसे चमोल ये किं दुर्योधन ने लाक्ता-भवन मं अराना द्रौपदो कौ चोर खींदवाना, जवा खेलवा कर सवख ले कर बार वषं TATE AIT एक वषं AMA बास करने के लिये सभो को राज्य से मिकाल देना wife भ्रनेक उपाय चेर्‌ उपद्रव किये। परन्‌ पाण्डव लोग सब Bea चले गये । दस चमा का फल Wa at Var श्रा कि पाचो पाण्डवं ने atest a Bar Al सषशायतासे कौर कौ महा सेना को मार गिगया | उसो पर त॒लसो-दास-जो ने लिखा है कि क्रोधान्ध दुर्योधन श्रनेक सहाय Me at भाद्यों के ary Te करभो Tres Rt az मार सका । र योउ मायके को sag aT पाण्ड्वांमेंभमोमने सब भाष्या को मार डाला ॥९२१२॥ जा मधु दौन्दे ते मरे ATET देउ न ताउ । अग जिति हारे परसु-धर हारि जिते रधु-राउ ॥११३॥ भो मधु abe ते मरे ताउ भाङ्कर न देउ परसु-धर शग जिति ` इरे THUG हारि जिते । भो कोः मधु arf att wg 2 8 मरे उरे.संखियाश्रादि विष मत दो । परराम जो को ret ने संसार भर के श्रियां को gee वुलसौन्यतसदै | नोत fear en Taye वण TATE Ht A EY कर प्रार्थेना श्रादिके arc जोत fear | सद्‌ा को ae tifa & fa st कामक्माश्रादिके दारा aE a et सकता डे, उसके लिये क्रोधादि कर के बड़ा परिश्रम करभा नोति से विरूढ 21 दस विषयमे दृष्टान्त देते ₹' कि घतुर्यन्ञ के QAI श्रत्यन्त क्रोधो VLA जो जनकपुर मंज कर रामचन्र जो के ऊपर क्रोध कर कटु-षचम-रूपो ary क्रोड ने खगे शर्‌ रामचन्द्र G सखता के साथ कोमलर वाणो से उनकेक्रोध को घटाने खगे। अन्तको GAT TOR द्वारा रामचन्द्रजो ने परश्रामको रेषा हराया कि उन से घनुषले कर WNT TH Ga MAT at रामने गशाया। क्रोध कर जे कवचन कना aga हानि-कारक 21 चार war करभा बड़ा सुखदाई होता Vl दष कारण कोपित wt कर कुवम बोलना म चाहिये ॥ ९९६ ॥ क्रोध न रसना खालिये बरु खालब तरवारि | सुनत मधुर पटिनाम हित बालब बचन विचारि॥ ११४ ॥ रखना क्रोध ग खोलिये वर तरवारि खोखब सुगत मधुर हित परिणाम बचन stay | frst ® दारा कटु-वचम ate कर Wot इदयकेकोपको WAZ भ करभा UGS | Wife ty ahi मरु शेषा २ वलन सप्तम सगं | ४०९ ate शकता %, fae का करना asa afar हे । कट्-वचन-रूपौ are चे बिे-ये wa से सभि होने पर भौ भय रहता ह । दष लिये राज नौति कटु-वचन के दारा क्रोध दिखलाना मना बरतो है । वरन wa को मारनाद्ोतो तरबार खोल कर ST मार डालना चाहिये सुनने म मोटा चर श्रन्त मे हित कारक वचन सदा षोलना चाहिये । क्रोध के वथ कटु-उचन बोलना सदा नौति के विरद द, वयोकि दस से संसारम बतसे we et जाते 2 भर Tala भो होतो Fn ९१४॥ तुलसौ मौटे समय तें ant मिले जा मौच। सुधा सुधा-कर समय बिन कालक्र तं नोच ॥ ११५। श्रय | qual समयते जा मगो मिले तो मोच मोटो समय बिन सुधाकर सुधा काल-कूट ते नोच | तलसो-दाख ava रे कि उचित समय मं यदि मागो aay मिले तो वह भो मोढो जान पडतो र, परन्तु कुषमय मं eA Vz waa at हलाहल far Bat दुःख-दारं होते ₹ । श्रय aye कि श्रावक समय पर यया पतिव्रतास््ौक पति मर जनिकेसमयम nam दुःखो रोगो के fas यदि मगौ st au fad तो ae उड़ सुख क। कारण होतो ₹ै। Sat प्रकार पति जे वियोग-ङूपो fy रे जलतो wt facfert के लिये श्रष्डत के द्िणवाणुा चन्रमा दुःखदा चेर श्रनेक Tt से ayn 5] gon तुलसौ-सवसद्ै | दों रोगौ के लिये श्रग्टत के समान खाद्‌ भोजन कविका काम देता डै। दष कारण सु-खमय क्ु-समय वस्तु के गण Taw को घटा बा देतेद्ं ॥९१५५॥ पाशै चेतौ लगन बड frat कु-व्याज मग-खेतु | बैर आपु तं बडननें किये पांच ee Bq iu eee sag | पादो खेतो, बरौ लगन, gars रिन, मग खेतुश्राषुत aga ते az, पाच दुख हेतु कियो । श्रपने घर से दूर पर खेत बोना, बड़ AA, बहत व्याज बढाने- वाला खण, रार पर का खेत, भेर Waal श्रपेक्ता बड़ लोगों कौ अजता पाथो दुःख के लिये कयि भाति दं श्रथात्‌ एन क्ते करने चे aaa को दुःख Tat हे । ama यशद कि दूर कौ Gat पले तो वहां सब श्रन्नादि वस्तु लेजा कर बोना फिर sa at रक्ता करना बहत कठिन होता 2 इष लिये सुख चारै तो दे त्याग करे। ast TA aT WH A वियोग होने से बहत दुःखदा eat ई । दस कारण श्रत्यन्त प्रम शश्वर को होड कर भार feel a ae को सुखदाई महीं होता, qual ast लगन का श्रय wag लोगं से वाश्रापसे बडे खे प्रोति भो Taak होतो हे) wife wea म समान से mf करना लिखा रे श्रयवा एक मम को कहां wel Ga | ver खण जिख का व्याज बहत रहो बड़ा Teak होता हे। क्योकि उ से SAAT पाना बड़ा कटिन 21 राह के. समोप स्तम eal - 8०३. छती az से गौ श्रादिक नो ag srt F A चार कवर खा छेते Fi द प्रकार सहन म सेतो उजाद शो भातो FI चार श्रपने से बलवान कौ चता wea लिये नाशर-दुःखकारो होतो Fi इष कारण दन viet Teak वस्त्रं से बचना चाये ॥ ९९६ ॥ afa fa qe देत सिख सखद सुसाहिब साध । तारि खाय फल हाय भल तर्‌ काटे अपराध W VLSI श्रन्वय । गुर्‌ सिदद, सखा सवदि साधु सुसाहिव (जगि) रोमि सोभ सिख देत तोरि फल खाये भल होय, तर्‌ कारे श्रपराध होय । गर्‌ श्रपने चेलं को, fra श्रपने मिच को, चेर्‌ साधु जन श्रथवा धर्मभनोल राजा प्रसन्न हो कर वा क्रोधित हो कर जगत के लोगों को, सिचा देते ह । टच से फल aty कर खाने मं ent होतो 2 परन्तु ठच् को काटने में श्रपराध होता हे । श्राश्य ae दे कि संसारम पटानेवाला श्रपने षव frat at TF क्रोध कर वा प्रसन्नता-पूवेक सत्य उपदेश देता Vi उसो प्रकार faa fara at सच्जन लोग भर राजा sare के भले बुरे लोगों को serie भ काटने को vet fat देते ह । परन्तु दु्ट-जन यद्‌ मरही सोचते कि च tem तो पुनः फल देगा भार टृरादि को कार डालते ई । ae बात न करना चादिय। भर श्र्छं Trt को भो श्रपनो WOT aT बचा कर उनसे दण्ड श्रादि Gar चाहिय। भरथवा गर भार खा श्रपने साधु fra शार fast को प्रसन्नताचे oe तुलसौ-सतसई | भार Are att को क्रोध से उपदेश देते & कि.तोड at फल खाना खादिये ॥ ९९० ॥ we वधुरहि चङ्ग जिमि ara a साक-समाज। करम धरम सुख सम्पदा fafa जानि कुराज i ११८ ॥ waa जिमि aurfe eet चंग, जिमि ज्ञान ते सोक समाज fafa कुराज करम धरम सुख-सन्यदा जानिबो। faa प्रकार बवंडर में पड़ा श्रा पतङ्ग, ओर जसे तच्चज्ञान से दुःख खमु नष्ट हो जाता हे उसो प्रकार खराबवा दुष्ट राजाके राज मं GRR WH, सुख श्रारोग्यता श्रादि सम्पद्‌ aq धन श्रादि कौ दशा staat चाहिये ॥ श्राय ay कि जसे बवंडर मं पड़ कर A टक TH फट आतो डै। श्ञानसे राग देष मद area fam जाते ड" पैसे षो खराब राजा Ta Vas का यज्ञ पूजा तपं दान सत्य wig दया श्रारि aq ua MT पुत्र पौत्र धन धान्यादि का सुख घट जाता ₹।॥२९८॥ पेट न qed बिन कहे कहे न लागत ढेर । थालब बचन बिचार य॒त समुकि सुफेर HAT ug Ve श्रन्धय। बिन aE Ue 7 फूटत के ठेर न लागत (यात) Yar gar agin बिचार युत बचन बोलब | किसो को “निन्दा कु-उचन बिमा के पेट नीं फटता ओर कने चे धन काटेर भो नरी लग आतो तो waa वचन की gut aye RF | Bey भला ame at विचार gaa वचन ater उचित ₹ह । श्पोकि किणो को at बात कने खे उस कौ बुरा होतो है भेर्‌ श्रपने को कोर खभ ae lat दस कारण aga विषार के aga बोलना चाहिये जो कोर बिना विचार बोलता ₹ सो DS vara ३।९९९॥ प्रीति सगाई सकल बिधि बनिज उपाय अ्रनेक। कल-बल-ढल कलि-मल-म लिन cea wate TH १२० ॥ श्रन्वय । सकल fafa परत ant sta af उपाय कल- वल-कल कलि-मल-मलिन एकि एकं डहकत | सब प्रकार काप्रेम का सम्बन्ध श्रथात्‌ सेवक खामो, खामो सेवक कौ भक्ति, far faa at Fa, राजा TT RT पालन, पुर माता पिता ससुर श्रादि का श्राज्ञाकारो, स्तो पुरुष श्रादि का प्रेम, जितने संसारो aa =, चोर व्यापार बनिजश्रादि ava a जो श्रनेक उपाय हैः । सब कल-बल श्रथात्‌ कपट व्यदार जर इल श्रधीत्‌ ठगष्ारो श्रादि कलियग के att से मलिन हो रहारै। एष कारण ALY लोग एक Far को ठग लेते F । घोर कलिकाल मं जितनो श्रापष को प्रोतिश्रादि 8 षो श्रपना, हित साधन के लिये वा घन-लाभके लिये लोग कदेते PZ | उसो प्रकार बनिज व्यापार म श्रनेक प्रकार कु-व्यषशार शीर are फेल रदो V1 faa गर्‌ कोटे बड़े प्रजा राजा waa महाजन को ठगने कौ चेष्टा कररहे ह शार कश्ियग के पाप मं ay रहे रं ॥ ९२० ॥ ४०६ तुलस्पै-सतसद | eal सहित कलि धरम सब छल समेत BART | ava सहित aay सब रचि श्नुहरत अचार। १२९१॥ श्रन्वय । कलि सव धरम दम्भ सरित, सब व्यवहार इल समेत मभ सेह सारय सहित, सब VAT रूचि श्रतुदरत | कलि युग मः दानादि जितने धम्म र" सव पाखष्ड am Pate देन-लेन श्रादि व्यापार कपट यक्रष्टे भाद बन्धु श्रादि को प्नोति ` श्रपनो भला के afea S श्रौर सबका चाल-दलन श्रपने मनके श्रसुखार ३े। श्रभिप्राय ay किं सत्य, शौच, तप, दान, तोय, व्रत, साधुखेवा पिदरभक्रि श्रादि जितने वणे at श्राश्रम के was सब कपर से भरे su डे“ बनिज व्यापार लेन-देन श्रादि लौकिक व्यवहार aq em fara प्रण है, सब लोग ary a लियेप्रोति करते ₹ै" सचा प्रम बहत कम पाया wars sar az म लिखाडैश्रोर UR शास्त जषा FAA S VR HY कर मन मानना श्राचार aU करते S दस प्रकार सब कम्म कलि मं बिपरोत We ay से भरे ये ₹े ॥ ९२९॥ धातु बन्धौ निरुपाधि बर सद-गुरु-लाभ स-भोत । दमभ दरस कलि-काल Ae पेाथिन सुनिय gaia | १२२॥ waa दिरूपाधि धाठबधो, सदगर लाभ वर, BABS UE निरूपाध्ि सभोति दभ दरस, पोथिन सुनोति सुनिय | सप्तम BT | ४०७ कलि मे निर्दोषता केवल धातु et म बंध ak ₹े श्रथात्‌ सोना afat श्रादि wast 4 ot He ate सुरथा wis लग mt BR werd रादि खे दूर किये जा खकते हे , उन्तम गुर का fem हो बड़ा भारो Bry Vi WT दे (श्र्यात्‌ दशन के लिये देवतादिक का मन्दिर) पाखण्ड यक्त WT भय सहित हे, wit weet AA कौ वातं केवल gaat मं देखने af wal S| लोक यवहार a उसका प्रचार बहत कम देख पड़तारे॥ दस कराल कलिकाल में शमि परके पदाथ says भरे ङ, मतुव्यादि मे कफ वात पित्त को श्रधिकारई सुधा, पिपाषा, रोग, दुःख, देखने मे wa हे लाभ भो सब भयसे भरे ए हं, केवल यदि कोर sua गुर्‌ मिल शाय तो उम के उपदेशसे परम लम हो सकता हे, श्रथवा सद्‌्गर का मिलमा हीं परम लाभ रहे, wT व लाभ मिचता श्रादिक waaay, wife faa से मिचता alia ae कपट के हारा waar शो श्रयं Sat हे, ae मिका मिलना aga करटिन रे, केवल लाभ के लिये लोग मित्रता करते दै" aut के योग्य देवतादि के मन्दिर लोगों ने बगवाये हे उन मे nae at देवता तो देख पडतो aey परन्तु दम vray बहत डे, wit alfa at sau मनुय मे होना शाहिये att कलियग मे सुनोति से चलनेवाले बहत कम देख पडते कै" परन्त्‌ पुरक नोति के वेने भरौ हे, एस देहे म परिखह्या शलद्धार FURR I gee तुलसौ-सतसद | फेरि Are सिल सदन लागे TTR VET । कायर HTC HUA कलि घर TT ATT उदार ॥ १२३॥ WAT । ATT GUL Tea लागे wan सिल फोर कलि घर घर कायर FC कपत SUIT सरिस | कलि युग में मृख लोग पाद्‌ पर चोट लगने पर घरे श्रा कर सिल श्रयात्‌ मसाला पौष्नेके कोटे २ पत्थल को फोरते हे“ दष लिये ठलसो-दास net ₹े“ fa कलि युग a प्रत्येक घर a भौर ate निदयो कुसन्तान ser श्रथात्‌ He कमं को पाने के ढपने के समान देख पडते B's श्रभिप्राय यह fata कलिकालमं एेसे २ aq हे“ ot बिना ary & दुसरोंकोहामि करने मं श्रानन्द TAB भारौ पष्टाड़में जहां उन का श्र नहो चल सकता श्रपना पराक्रम HEY दिखलाते, श्रीर घर मंश्राकर, BSR पत्यलां को फोडते @ araise Hat को दुःखदेते Bate नो कुक भला कामभो किलो घरमे रेभो GBF aR काम करके परदे के समान दृापलेतेङहेः। भाषा मे यद कहावत “fae wes Tere फोरे घर को सौख” । परसिद्ध ङे, श्रौर वो कावत ca ate A nk ङे, ce कारण यहां Stim wage wager wed: ate ९ टोका कार feed VY कि “घर को सिल घर के लगे पत्यल फोरते हे" ्रक पाड पहाड़ खे पत्यल नशो लाते” यह टोकान्नमसे कौ जान TSN डे Gifs दय रथम को$ चमत्कारो नहीं श्रातो ॥ ९९१॥ सतम संम ere. Sr जगदौभं at अरति भला जे aera ती भाग। जनम जनम तुखसौ चत राम-चरन अनुराग ॥१२४। ° श्रन्वय । जो जगदोस तो अरति भलो जो मरोख तौ भाग, awa TH HH राम-चरन श्रनुराग वदत ॥ ९२४॥ ऊपर KE एक दोषो मे कलि-काल का वणेन कर के श्रव राम- चन्द्र a श्रपने श्रति श्रलुराग श्रौर सतस की over e साय du at समाश्चि वणेन करते डे ॥ ot लोग दस जगत्‌ के खामो ओ्रो-रष्ण-चदध श्रानन्दकन्द्‌ को भजते 2 वे बत wear काम करते 2 श्रौर जो (मोष) ca संसार के राजा सब गणे के धाम श्रो-राम-चददर का भजन करते हे“ Sa Hr Mt बडा भाग्य हे. Wa श्रपने२ दष्ट Vat के संखे उपाषक सब प्रशंसा योग्ये, परन्तु त॒लसो-रास जो ज्म लभर ओो-राम-बश् लो के चरणा-ऽरविन्द म aaa भक्रि चाहते BI दस Ve के विषय मं नीचे लिखो wk कथा afag 2 | एक समय जब तुलसो-दाख जो ANH गय तो वां के रशने-वाले श्रो-ष्णा के उपासका ने चाहा कि तुलसो-दासरामको होड aey को afin करं श्रौर तुलसो-दास से का कि भगवान्‌ विष्ण के are . qT AAU भगवान्‌ को होड कुर श्रयोध्या के राजा दश्ग्थके पुज शाम्बवन्द को श्राप क्यों भजते दष बात का THT तकं वित, केद्धारान दे कर ओ-तलवघो-दाष नोने Sat रौति she कोम क्न से यड कड कर दिया कि Fagan के खामो HTT Awe भगवरम्‌ को उपाषना भलो हे, परन्तु मेरे चिषे चोर, राजर््ा भ 52 ste qvet-aaeg | मधान, कोश्लं-किोर, Acree लो हे" । उन्‌ कौ Bat को; ` ait उन के च्रण-कमल के मकरन्द को मेरा मन्‌-मघुप सवेदा पान करने F श्रत्यन्त सुख पाताडे। दस कारण मे' जग्म जनम Say के चरण-कमल को भक्रि चरता = । लसो-दाख जो के जोवन afta भो ae बात मिलतो, कि गभानोसे भट करने के gaat ब तुलसो-दाषजो ने ओ-ङष्णा भगवाम्‌ का देन किया तो वां at वैष्णवे ने ape वन कडा faa के उन्तर म तुलसो-दास जो ने यह दोहा पदा | कावरणों दवि श्राज को भले बने हो नाय। ठणलसो मस्तक तन नवे घतुष-बान खो शाय ॥ ९२४॥ काभाखाका संसक्त विभव चाहिये ara कामजा ATA HAT aS करिय कमा ॥१२५॥ श्रन्वय । साच बिभव चाहिये काभाषा का सस्त जा कामरौ काम श्राव (तौ) कमाचले का BTA ean चारे GHA ET चाहे भाषा हो उसमे सचे Tae कावर्णन होना afea ca बातमें दृष्टान्त देते हैः कि कमरौ से यदि श्रभिक काम भिकले, तौ (ware) रेशमो जमेांकालेकर क्या कोजियि) ` श्रभिप्राय यह कि यदि att wer करे कि den विद्या के रते eat हलसो-दास जोने राम-चरितको भाषा मं क्यों ace किया ते ta का SAT Ul रे कि राम-च्ध के चरित-ङूपो उक्तम fara Sr चाहे। जिर भाषा. मे वणन कौजिये oA होगा । चैर कलि यग मं संत जागने-वाले लोग बहत aT हः । ce आरण सत्तम समं । wre भावामे वणेन करने से श्रधिक wat के बोध-गन्य Cer: sie संत मे वाल्मीकि ओ ने राम-चरित वंन किया-हो 2 +भाषा मं राम-वरित मर्ह था Ke कारण तुखलो-दास नो ने भावा-हौ F रामायण anti इसके विषय मे कमरौ का दृष्टान्त दे करके, ay afar करते द, कि वह रेणमो wa को ater श्रधिक काम देती Vi भष जल ele at, तो कमरौ श्रोढ जल से बसे। विश्राम कर्मा श्रा, तो उसे विद्धा कर az गये। Ma लगा, तो भाड़ कर site लिया। दस प्रकार watt श्रधिक काम देने-वालो Sn eau बरन बिसद मुक्ता सदस WY छष-सम तूल । aaa जग वर विसद गुन-सोाभा-सुख- मृण ॥१२६। waa | बिसद्‌ बरन सुकता सदस श्रं छत्र, सम aA जग-वर सोभासुख-मुल ander गन विष्‌ | aq मोतो को माला WT सतयेया का रूपक वणेन करते ह । सतस के at fae मोतो के समान ईड“ श्रोर उसके श्रं मोतो war को रूपै के तके समान है । इस प्रकार सुन्दर शोभा श्रौर श्रानन्द कौ जड़ इस संसार में सतषर्-रूपो माला fare डे ॥ श्रमिप्राय ae कि दष सषारमे सुन्दर २ श्ब्द-रूपो मोतिधांसे गयो Bt खतसटर-रूपो माला को जो Hk कण्ठमे चारण करेगा ` ay, परमानन्द पावगा, क्योकि सतखया म wt, गुण, sat पाये जते SN ९२६ ॥ बर माला बाला सुमति उर धार युत नेह । BS सभा सरसाय निति लहे राम पति-गेद ॥१२७॥ ४९२ तुलसौ-सतसद् । शर्य । सुमति बाला Ae युत बर माला उर्‌ धार, (तौ ) निति सुख wheat खराय राम-पति को HE A, |) ९९७ un” सुन्दर afg-eat स्तौ श्रथवा ( बाला ) का ( वाला ) पाठ करने ` शे ( सुमति-युत ) पुरुष श्रपने कण्ट वा इदय मे धारण करे, तो सवेदा श्रानन्द-रूपौ शोभा ave होतो जाय, श्रौर श्रन्त का खामो राम-चन्दर जो के धाम श्र्थात्‌ खगे को पावे। श्रभिप्राय ae कि सतस के भक्रिके यत पदृने-वाले भन राम- aie ate fay Sra Ar पाते है ॥९२७॥ भूप कहिं लघु गुनिन ae गुनौ कहिं लधु aT महि गिरि परगत लखत जिमि तुलसौ खरब SET १२८ ॥ wa | प गृनिन aE लघु कडि गुन श्प कदं लघु किं तलसो जिमि afe-na गिरि-गत ata खर्प लखत ( तथा) गिरि पर गत महि पर गत ATT सरूप लखत ॥ ९९८ ॥ राजा-लोग गुणो-लोगें के श्रपने से ढोटा करते ई“ ate गुणो-लोग राजा-लोगे के श्रपने से छटा कते "| इस पर ठुलसो-दास जो दृष्टान्त देते रे" कि जिस प्रकार मरो परके Has परबत पर के HAW Ar छोटा देखते FF श्रोर परबत पर के मनुय fa पर के मनुष्यो के get देखते ह“ परन्तु बस्तुतः श्रपने श्रपने स्थान पर Vat बराबर हे | ˆ श्रभिप्राय ae किधनकेलभकोदच्छासेगृलो-लागश्रापजा एर राजान्रों के aet tet हे, तब राजा लोग Ve ्रपना गोकर जान के छोटा समभते हेः । परन्तु जब गणो निलौभ रहता है, तो राजा win प्राथेना कर गणो को WER दरबार मे खयं बोखाते ₹ै* श्सो सप्तम सं | ७९४ श्रवसा मे गणो खोग राजा के ater समभते V1 cat पर दृष्टान्त feet गया है, कि श्रपनो श्रवसा मँ एक दुसरे को डेटा समभता ह, परन्तु गुणो श्रधिक श्रादर-योग्य होता रे । Gifs बिना उसके राजर््रो at सभाक शोभा मीः हो anal जिस के विषय मँ हितोपदे्र का ay wa निण्य करता हे | ( विदत्वञ्च query नेव त्यं कदाचन । wea पूज्यते राजा विदाम्‌ aay पूज्यते ) ॥ कि विदान्‌ Bre राजा किसो प्रकार समान नरी हो सकते, काकि राजा भ्रपने-दो Sm H पूजाजाताङ, we विद्वान्‌ सव ate पूजे जाते | दाहा चार विचार we परिहरि बाद्‌-बिबाद | सुक्रित सौम स्वा-ऽरथ वधि परमा-ऽरय मर्याद्‌॥१२९॥ इति ओ्रो-गोखाभि-तुलसो-दास-रशत-मप्तश्रतिकायां राजनोति-निष्पणं नाम सप्तमः खगः ॥ समाप्ता चेयं सप्तशतो ॥ श्रम्बय । सु-कत सोम acy safe परमारथ मर्याद चार्‌ दाहा विशार बाद-बिवाद परिहरि चल ॥ ९२८ ti कत (पुण्य कौ) Star, ate श्रपने श्रयेके fag are को श्र्थात्‌ खोक मुख कौ मर्यादा हे, श्रोर पर-लोक सुख कौ श्रवधि र| सुन्दर देषां के विचार कर wT वाद भर्थात्‌ es पूवक QAI att क्रोध के सहित तकं वितकंक कोड कर इस सतसेया के देहे > श्रनुमार्‌, चलिये । are aren-areg | शरभिप्राय ae कि anak केजा दारे हे वे रामनामके Te a afar होने के कारण परम पुण्य के देने-वाले ड, श्रौर लोक सुख के बटाने-वाले 31 क्योकि इनर्म घमं श्रौर नोति at at वणेन रै, ओर राम-भक्रिके द्वारा gin Al मो मर्यादा को देने-बाले सतया के देष हे“ जे केर तकं Aaa ae मत-षम्बन्यो दयगड़ाँ का कोड कर Taw श्रथको wel भांति विचार कर चलेगा वद सुख Waa | सतस मं वणन कौ at नोति को बातें को विचार कर, उन के श्रतुसार चलने से age राग Fo 8 छट कर, वाद्‌-विवाद्‌- होन शो सकता Fi कठ aa के वणेन को पट कर ga aA सकता 1 एतीयादि सगे के gz Bei at जानने से कूट-ख परमेश्वर का ज्ञानदाता ₹े, जिससे लाक माया से ठर कर मनुय मन मं tay को भक्ति उत्पन्न etal हे, भिषसे परमेश्वर को vega eat We जोव का परम-सुख मिलेगा | दस प्रकार सब AQU KI वेन कर श्रतम परमायकौप्रात्चि कानिदश किया॥ इति शभम्‌ ॥ दोषा | कारो GaN निकर मथरा-ुर एक ग्राम । जिला यमनपुर मध्य जो बसत परम श्रभिराम।॥२९॥ तहा रषे दिज-कल-कमल-बन्ध्‌ बन्पु-सुख-घाम। “TOUS NF” परम-रभ्य शद्ध-गन-गराम ॥ २॥ श्रो पण्डित Tega के पुज विहारौ विप्र। काव्याग्टत रस-खाद जो लाभ ale श्रतिद्धिप्र॥२॥ वषं wa शर श्रद्धः भ श्राधिन खित तिथि ara | सतसेया संति we टोका कोन्ह BATT ॥ ४ te मकल | अन्तं मं शिवाष्टकरूप मङ्गल ॥ लोजिये प्रणाम नाम-मन्त मोहि रोजिये। विश्वनाथ पाप खे बिसुक्र मोहिं कौजिय ॥ क्यो बिलम्ब रोत नाथ Ne दुःख डोजिये। श्रापनो पुरो निवास मोहिं way दोजिये ॥ ९॥ डे भुजङ्गं se धारि we को श्रहारिये। ag % तरङ्ग ate वोच ata घारिय॥ मोर मोह कामक्रोध ee श्रारट कोजिये। श्रापनो पुरौ निवास atfe way दोजिये॥ ९॥ मे न कोन पुण्य पाप जाल मोर नासिये। दोन होन भे" मलोग ब॒द्ध मो प्रकाशये ॥ शुक्रि मुक्रि afm दान नाथ श्राप कौजिये। श्रापनो पुरो निवास शम्भु मोहि दोजिये ॥ ₹॥ कोरि कोरि खय्यके प्रकाशते प्रकागिये। हे aga मोर क्रथ wie क्यों न नाग्िये॥ दासमें a aw MIT पाष रक्योन लौजिये। श्रापनो पुरो निवाम मोहि wy दोजिये ॥ ४ ॥ मोर चित्त fan मन्तं ताहि siz श्रासिये। धम्मे कम्म दान ZO Wi न प्रेम फासिये॥ HIG Fat TET दयाल WT हो पसोजिये। ` श्रापनो gat Grave मोहि way दोजिये ॥ ५॥ are ard तुलसौ-सतसद | नित्य विल्व va भार मोर श्राप खोजिखे। , मोरि मोद-होन चार भक्ति-लोन कौजिये ॥ IMAG क्या न feu नघ Vie रोशिये। श्रापनो att निवास मोदिं शम्भु दौजिये ॥ ६ ॥ चार दान भो दयाल मोहि मादिं चारिये। भक्रिदान श्रो हपाल नेम at निवाहिये॥ भे ड दोन दुःख ala भक्रि-पोन कौजिये। श्रापनोौ पुरो निवास way मोदिं दोजिये॥ ऽ ॥ मष्यजड्ृजट गङ्गधारिकोति TT | देवराजबाष सो पुरो सुवास पाद्ये ॥ aafta के ofaa गान प्रेम मोभिये। श्रारएतोष को पुरौ निवा wise लोजिये॥ ८॥ काशिका निवास siz पद्य नित्य mse | शभु के खमोप जो निवास Bt मनद ॥ ata होन हो “विदारि” afm चित्त लादड-। काचि बास tu भक्ति सो श्रव पादह ॥<॥ afa विदारिता सक्तशतिका-मंचिक्त-टीका ears ॥ (श्रो तत्छत्‌ ) ॥ (159 § 5 SOCIETY OF BENG Te = 7 Author ^ la 87 - छ , Tithe “Tu fa. ¢ ~ Call No. Deets Of Issue Issued to Date of Rep ROYAL 4s LATIC AL LIBRAR Y Ja, ८८५८ ˆ «\ t2 cle = 40 ० 4) rs ‘Se i ~~ ३ Xo