Gangesa Tattvacintamani-didhiti- 191 ~ Ch 4 | 2 @० ०268० ०200 ० ०० eM oo ०३९ @० ० Go OD @ ° ONS ONT? OX) CNN oH Ho ०९ (Ho ०६९ Ho eH No oY Ae ०३९) ० oO BIBLIOTHECA INDICA: A Cottection Or (किरा, Works PUBLISHED BY THE ध ASIATIC SOCIETY OF BENGAL. NEW SERIBS, No. 1314. . aafantafa-eifafa-faafa SIRWILLAAMJONES| 5 || HOT => \ Fe 4 BO ०00 ° DDO PNG PHO CHG 0 eM Ho eM Ho eM Cio oO Gre Mo Qo ०9 @० EDR ODEO ODHO ODN oOo oLOGo ०६2० ०६८० ०2९ [MDCCXLVI-MDCCXCM TATTVACINTAMANL DIDHITI-VIVRITI BY GADADHARA BHATTACHARYYA WITH TATTVACINTAMANI AND DIDHITI EvITED By MAHAMAHOPADHYAYA KAMAKHYANATHA TARKAVAGISA Late Professor, Sanska ८ College. (न ata NS ~ = ४01. I. Fascrcunus V. न PPS POPS ^ Galcutty, 9 ®. | gs PRINTED BY UPENDRA NATHA CHAKRAVARTI, AT THE SANSKRIT PRESS, ie 6, Nandakumar Chawdhury’s 2nd Lane. 2 AND PUBLISHED BY THE §2 ASIATIC SOCIETY OF BENGAL, 1, PARK STREET, 9 £ > 1911 ‘ bon Ro ०005० Opa angie “4 die Oo शिण स्सा क Noe ole yy ; - ४. Glo @itd Ho <, वनारस-१ LIST OF BOCKS FOR SALE _— Al THE LIBRARY OF THE ASIATIC SOCIETY OF BENGAL. uf No. 1, PARK STREET, CACUTTA, AND OBTAINABLE FROM THE SOCIETY’S AGENTS, Mr. BERNARD QUARITCH, ४ 11, Grarron Street. New Bony Streer, Lonpon, W., ann Mr. 0770 HARRASSOWITZ, BOOKSELLER, LEIPZIG, GERMANY PRD 9 ५ ~= ~ ~^ ~+ ~~ +~" ^+ ^ ~ ~ Complete copies of those works marked. with an asterisk * cannot be supplied.—some of the Faseiculi being out of stock. BIBLIOTHECA INDICA. Sanskrit Series ० Advaita Brahma Siddhi, Fasc. 2, 4 @ /10/ each ... ee Rs. 1 4 Advaitachinta Kaustubha, Fasc. 1-3 @ /10/ each ` 1 “Agni Purana, Fase. 6-14 @ /10/ each क -„ शति 10 Aitaréya Brahmana, Vol. I, Fasc. 1-5 ; Vol. JI, Fase. 1-5 ; Vol. IN, Fase. 1-5, Vol. IV, Fasc. 1-8 @ /10/ each ce Pe oo च 6 | ` Aitereya Lochana eee eee woe - 0 १ «Anu Bhiashya, Fase. 2-5 @ /10/ each a ose - 2 sal Aphorisms of Sandilya, (English) Fase 1@ 1/ : ,.5 चा 0 Astasahasrika Prajiaparamita, Fase. 1-6 @ /10/ each ,,,„ स »Atharvana Upanishad, Fase 4-5 @ /10/ each on an कषः `| 4 Atmatattaviveka, Fase. I. @ /10/ each + ° oe 0. Te Acvavaidyaka, Fase. 1-5 @ /10/ each $ 2 Avadana Kalpalata, { Sans. and Tibetan) Vol. 1, Fase. 1-7; Vol. H. Fase, Catalogue of Sanskrit Books and MSS., Fase. 1-4 @ 2/ each ... ध; Catapatha Brahmana, Vol I, Fase. 1-7 Vol Il, Fase. I-5, Vol. IT], Fase. 1-7 Vol. 5, Fase. 1-4 @ /10/ each os Ditto Vol. 6, Fase. 1-3 @ 1/4/ each an Rais Ditto Vol. VIT, Fase. 1-5 @ /10 ; Catasthasrik’ Prajnaparamita Part, I. Fase 1--14 @ /10/ each .. *Caturvarga Chintamani, Vol. I], Fesc. 1-25; Vol. 111. Part I Fase. 1-18. Part IT, Fase. 1-10. Vol. LV. Fase. 1-6 @ /10; each Ditto Vol. 4. Fase. 7-8. @ 1/4/ each ... side Ditto Vol. 1V, Fasc. 8-9 @ /10/ 1 ^ Clockavartika, (English) Fasc. 1 (@ 1/4/ each 1 न ie Granta Siitra of Apastamba, Fase. 1’-17 @ /10/ each bok छ. Ditto Qankhayana, Vol. I, Fase. 1-7; Vol. HI, Fase. 1-4, Vol. IIT, Fase. 1-4 ; Vol 4. Fase. 1 @ /10/ each ^ ध Cri Bhashyam, Fa:e 1-3 @ /10/ each ... . ne me Dana Kriy’ kaumudi,, Fasc 1--2 @ /10/ each a a Gadadhara Paddhati Kalasara Vol. 1, Fase. 1-7 @ /10/ each =... 2 11110 Achirasarah Vol. 71, Fase. 1-4 @ /10/ each... te Gobhiliya Grihya Sntra, Vol. 1. @ /10/ each , ike 4 Ditto Vol. Il. Fase. -2 @1/4/ each... oe क. Ditto (Appendix) Gobhila Parisista + ... cant + Ditto Grihya Sangraha vee ४१ Haralata 8 me ॥ Karmapradiph, Fase. I : en & nee Pp Kala Viveka, Fase. 1-7 @ /10/ each Katantra, Fasc. 1-6 @ /12/ each Katha Sarit Sagara, (English) Fasc. 1-14 @ 1/4] each * [< 7110१ Purana, Fase. +-9 @ /10/ each ... Lalita. Vistara, ( English ) Fase. 1-3 @ 1/- each Madana Parijata, Fase. 1-11 @ /10/ each Mahia-bhasya-pradipibdyodta, Vol. J, Fase. 1-9 ; Vol. If, Fase. 3-12 Vol. U1 Fase. 1-10 @ /10/ each =... j । Ditto ol. 1V, fase. 1 @ 1/4 ६ are a a Manutrka Sangraha, Fasc. 1-3 @ /10/ each + °" कः Markandéya Purana, (12011819) Fase. 1-9 @ 1/- each re lt 6 69 09 = ` 1-7 @ 1/ each Bie ooo ee 0 Balam Bhatti, Vol. I, Fase. 1+2, Vol 2, Fasc. 1 @ /10/ each... ,,, चिकि Baudbayana S‘vauta Stitra, Fase. 1-3 Vol. if, Fase 1-3 @ /10/ each ॐ 12 ^} 71181, Fasc. 4-8 @ /10/ each 3 9 Bhatta Dipika Vol. I, Fase. 1-6 ; Vol. 2, Fase. 1, @ /10 each 4 6 Baudbyostatrasangraha .. * j Pes ‘ 2 0 Brhaddévata Fasc. 3-4 @ /10/each =... . छ 2 8 Brhaddharma Purina Fase 1-6 @ /10/ each ag ८ 9 1 Bodhiearyavatara of Cantideva, Fase. 1-5 @ /10/ each ॐ = 2 Cri Cantinatha Charita, Fase. 1-3 9... = ft 14 Catadngani, Fasc. ) 2 @ /10/ each = = 1 4 8 0 6 2 2 2 के च्‌ . eo CS ¢ m= bd oD bd be a ome ty LD 4= OO He oka heed भि | | Q) 4 4 6 2 ध 8 0 0 4 4 6 8. 8 6 0 4 [| jedi € + +~ < @> € ५> ~ +> "> mst ~~ ~ ६ ४६७ WW +> "~ HO aifqate: | any योगितानवच्छेदकतत्कतल्ररूपतटनतिरिक्ष्ठ्तिलस्येव विवद्णौय- तथा तद्वटकाभावे (१) व्याप्यहत्तिवनिवेशे प्रयोजनविर हेष संयो- गादिसाध्यकसदतौ हेतुसमानाधिकरणाभावप्रतियो गितावच्छदक- संयोगत्वाटेनिरुक्तानतिरिक्लव्रत्तित्रस्य संयोगत्वादिसाघारणयविर- डणाव्यास्यनवकाशेन रेतुसमानाधिकरग्णभावे व्याप्यठत्ति- विशेषरएवेयथ्यात्‌ । न च खविशिष्टसम्बन्धिनिष्ठाभावे व्याप्यहत्ति- त्वविश्रेषणादानं संयोगेन द्र्यस्याव्याप्यहत्तितापत्ते संयोगेन साध्य- तायां हेतुसमानाधिकरणसाध्यतावच्छटकसम्बन्धावच्छिन्नाभाव- प्रतियो गितावच््छद कं यदिशिष्टसम्बन्िनिष्ठाभादोयसाध्यतावच्छट्‌- कसम्बन्धावच्छित्नप्रतियोगितानवच्छद कं तादटटश्धम्मो प्रसि: ate- शाभावप्रतियोगितावच्छदकौभूतसकलधम्मी वच्छिन्नानामेव संयो- गेनाभावानां केवलान्वयित्लादिति खविश्िषटटसम्बन्िनिष्ठा- भावे व्याप्यहत्तित् विशेषणस्यावश्यकतेति वाच्यम्‌ । संयोगाद्य- भावव्यावत्तकस्यावच्छित्रह्स्िकान्यतरूपव्याप्यठत्तित्वस्य निवेशे ania साध्यतायां ₹ेतुसमानाधिकरणसाध्यतावच्छदकसम्बन्धा- वच््छिन्राभावो गुणादौ नाभेव व्याप्यत्तिनितु द्व्यस्यति तादशा- भावप्रतियो जितावच्छछदकं यदिश्िटसम्बन्धिनिष्ठताहश्ाभावप्रति- यो गितानवच्छदकं तादृशघम््ाप्रसिडितादवश््वात्‌ प्रतियागितायाः साध्यतावच्छद कसम्बन्धाव च्छित्रत्वं परित्यज्य एकसम्बन्यावच्छ्िन्न- aw विशेषणता विशेषावच््छिन्रतस्य वा विरेषणत्वपन्दस्येवावल- म्बनौयतथा व्याप्यत्रस्तितविगरेषगवेयथ्येस्य दुरुदरत्वात्‌ तस्मात्‌ (१) तादटशपारिभाषिकावच्छेदकत्वघटकाभावे SAT | BE २८९ अनुमानगादाधय्या 'वच्यमाणं वेत्यादिग्रन्यस्य (१) अभावे व्याप्यहत्तित्वविशेषणं न देयमेव aceasta संयोगत्वादौ दरव्यलस्मानाधिकरणाभावप्रति- योगिल्लौयपारिभाषिकावच्छेटकल्विररेणाव्यास्यप्रसक्तरित्याश्यः | ननु पारिभाषिकावच्छेदकत्वशरोरनिविष्टखविशिटसम्बन्धिनिष्ठा- भावे व्याप्यहत्तित्रविशेषणमावश्यकम्‌ अन्यथा तुल्युक्तया सत्तादि- हेतुकेऽपि dana पारिभाषिकावच्छदकलानिव्वाहादिति हेतुमत्रिष्टाभावेऽपि तददिरेषग्णमावष्यकम्‌ अन्यथाव्याप्ेरिव्याश्द्ां सत्ताटिदेतुकस्थले गुणत्ायवच्छित्राभावप्रतियोगितायाः पारि- भाषिकावच्छेद कलं संयोगलत्वादौ प्रदश्य वारयति, भवति चेति, गुणत्वादयवच्छ्िन्नाभावानां व्याप्यत्रत्तिलाभिघानच संयोगल्विशिष्ट- सम्बन्धिनिष्ठाभावप्रतियोगितानवच्छद कत्व स्‌चनाय, जन्द्रव्येषु- त्प्तिकालावच्छटेन गुणत्वा दयवच्छित्राभावस्य नवोनेरुपगमा- तन्मते गुणत्वस्य संयो गत्वविशिषटटसम्बन्धिनिहाभावोयप्रतियो गिता- नृवच्छेटकलत्वं न सम्भवतोति गुणाहत्तितल्रानुसरणं, संयोगि गुणा- aa सति सच्वादित्यादौ qwafaa a विश्््टिहेतुसमानाधि- करणाभावप्रतियोगितावच्छूटकमतः सयोगसाध्यकव्यभिचारि- माते यादहशप्रतियोगितावच्छद कमुपादाय संयोगत्वस्य पारि भाषिकावच्छटकत्वं निन्वहति ताटश्धखमाह, दद्रव्यमात्रसम- qaafa | इति चक्रवत्तिलक्षण्व्याख्या | ew. sno ३) ग्रन्यस्येत्यनेन आशय इत्यस्य सम्वन्धः | { Som प्रगर्भलक्गदयम्‌ | awtaarafa-etfafa: | साध्यतावच्छेद कविशिष्ट(१)साध्यसामानाधिकरण्या- वक्तदकखसमानाधिकरणसाध्याभावत्वकत्वं, यत्समा- नाधिकरणसाध्याभावप्रमाया साध्यवत्ताज्ञानप्रतिबन्ध- कत्वं नास्ति ad वा व्यापिरिति qa युक्तं सर्व्व साध्याभावपदवैयर्थात्‌ । गादाघधरो faafa: | प्रगल्मलक्षणदयमेकदोषेण टूषयितुसुपन्यस्यति, (साध्यतावच्- zatafuvarte, विशिष्टाभावो विर्रेष्य-विशेषणसम्बन्धाभावरूपः, उभयाभावश्च परम्परासम्बन्धेन दित्वाभगवरूप इति मतनेदं लक्षण - aaa व्यधिकरणधम्मावच््छित्राभावं विनापि ताहशाभावमादाय लक्षणएसमन्वयसम्परवे ्रतियोग्यठत्तिखेति ग्रन्यानुलितेरिति ध्येयम्‌ । श्रवच्छेदकत्वुमिहानतिरिक्त्तित्वं न तु खरूपसम्बन्धविशेषः यथो क्रधम््रयो स्ताट शवच्छद्यावच्छेद कभावे मानाभावात्‌ | “Aad हेतुतावच्छदकावच्छछित्रहेतुपरं, तथाच साध्यतावच्छेदकविशिष्ट- साध्यसामानाधिकरणयानतिरिकत्ि यडदश्मविशिष्टसमानाधिक- रणसाध्याभावत्वं तदश्वच्वं व्याभिरिति तु aafeara:, weal साध्यासमानाधिकरणस्य साध्यतावच्छछद कावच्छित्रसाध्याभावस्य रेत्वसमानाधिकरण्ठनियमात्‌ ताहशसाध्याभावत्वं साध्यसामा- (१?) साध्यतावच्छेद्‌कावच्छिन्नेति aro | sac अनुमानगादाधयां oe ॥ नाधिकरणानतिरिक्तदत्तोति लत्तणसमन्वयः | व्यभिचारिणि ताटगशसाष्याभावस्यापि डतुसमानाधिकरण्तया तदतिरिक्त awa तदिति न लक्षणसमन्वयः । गुण-कम््रान्यत्वविश्टिसत्ता- वान्‌ जातेरिव्यादावतिव्यापेव्वारणाय "साध्यतावच्छेदकविशि्टेति, साध्याधिकरण्त्वं साध्यतावच्छटकसम्बन्धन aie तेन संयोगा- दिना धुमादेरभावस्य कालिकादिना धुमादिमति हत्तावपि (१) नातिव्यातिः। द्रव्यं विरशिषटटसत्वादित्यादावव्याप्तेव्वारणाय Fa- तावच्छेटकविशिष्टत्वनोपादानं, तदिशिष्टाधिकरण्त्वं हेतुताव- च्छटकसम्बन्धन drat तेन धूमादिसमवायिनिष्टवद्ितलाद्यवच्छि- न्रवह्भयादययमभावस्य वद्कयादिसामानाधिकरख्यविरडेऽपि न ata: माध्य-हेतुसामानाधिकरघटकहस्िदयमे कसस्वन्धन बोध्यं तेन द्रव्यं सत्वादिव्यादौ दंशिकविग्रेषणतया डेतुसमानाधिकरणस्य दरव्यत्वत्वाद्यवच्छिन्नद्रव्यत्वाद्यभावस्य कालिकादिसन्धघन साध्य- वन््हाकालादिहत्तित्वेऽपि न ऋतिः; यद्यपि डउतुख्माना- धिकरणमाध्याभाव्तघरकमभावलरूपं fang व्यतिरेकिसाध्यके साध्यासमानाधिकरणाभावसाधारण्मिति विश्््टिसाध्यसामाना- ` धिकर्यशून्याहठन्तिलरूपन्तदनतिरिक्ह्वत्तिलं ead, तथापि यावन्तः ससमानाधिकरणसाध्याभावा विशिष्टसाष्यसमानाधिक- र्णः इत्यस्य विवक्षणौोयतया न दोषः । अव्याप्यवत्तिसाध्यकव्यभि- चारिणखतिव्यािः साध्याभावस्य साध्यवत्यपि aaftfa q ata gala व्यभिचारनिरूपकाधिकरणं यत्‌ acafaatafeat- या (१) रुमवायाट्नि धूमादिति टत्तावपोति ute | ‘agifaate: | २८९. भावस्यापि साध्याभावतया तस्य च साध्ववव्यठत्तेः(१) | यत्समाना- धिकरणेति यद्रूपविशष्टिसमानाधिकररेत्येः, तेन द्रव्यं गुण- कश्रान्यत्वे सति सच्वादिव्यादौ सत्तासमानाधिकरमद्रव्यलल्वा- वच्छित्रद्रव्यत्राभावप्रमायां साध्यवक्वज्नानप्रतिवन्धकत्वेऽपि न afa: | यद्श्यावच्छिन्रसामानाधिकरखशरोरे च ईेतुतावच्छेट- कसस्बन्धन यडख्मावच्छिन्राधिकरणत्वं निवेशनोयं तप्रयोजनन्तु स्फ़टमेव (२)। अधिकरण त्तित्वञ्च निरवच्चछत्रं ग्राह्यं, तेन कापिसंयोगो एतदृहनच्तलादित्यारौ हेतुसमानाधिकरणकपिसंयो- गल्ावच्छिन्रकपिसंयोगाभावादिविषयकप्रमाया अव्याप्यत्तत्तित- ज्ञानविरहकालोनायाः साध्यवच्छन्नानप्रतिवन्धकत्वेऽपि न क्षतिः, प्रमायां प्रमासामान्ये, तेन व्यभिचारिणि नातिव्यास्षिः, समाना- धिकरणधन्मावच्छिन्नाभावत्वेन व्यधिकश्णघम्यावच्छित्रसाध्याभाव- वत्वज्नानस्य साध्यवत्वज्नानविरोधिलात्‌ सदेतावपि लक्षणगमना- सम्भव इत्यतो ज्ञानसामान्यसुपेच्य प्रमासामान्यनिवेशनं, प्रमापदच् भ्वमसामान्यभिन्नन्नानपरम्‌ (३) Ad उक्तभ्चमामकन्ञानस्याभाव- waht प्रमालेऽपि न त्तिः । साध्यवत्ताज्ञानपदमपि तत्सामान्य- परं अतो व्यधिकरणघनम्भावच्चछिन्रसाध्याभाववत्ताज्ञानस्य तदा वत्वेन साष्यवत्तावगाहिज्ञानविरोधित्वेऽपि न क्तिः, एवच्च साध्यपदं साध्यतावच्छटकविशिष्टपरं, ज्ञानञ्च सखसमानघधम्भितावच्छेदककत्वेन (१) अव्याषयट्त्तोत्यादिः अदटत्तरित्यन्तः पाटः केषुचिद्ाद्‌शपुस्तकेषु नास्ति| (२) वद्किमान्‌ धूमाद्त्यादावव्याप्चिवार खमेव प्रयोजनम्‌, (२) यवद्भ्मभिन्नपरमिति ato | २८० अनुमानगादाधयां स्वविषयोभरूताभावप्रतियोगितावच्छेदकसंसगेकलवेन च विरशेषणौयं तेन धूमल्वाद्यवच्छित्रसंयोगसम्बन्धावच्छित्नप्रतियोगिताकधूमादय- भाववत्ताज्ञानस्य साध्यवत्ताज्ञानसामान्यान्तगेतद्रव्यलादिना धृमा- दिप्रकारकं भित्रधश्चावच्छिन्रविशेष्यकधुमत्वाद्यवच्छित्नप्रकारकवां समवायादिसम्बन्धेन धुमल्रायवच्छिननप्रकारकञ्च ज्ञानं प्रत्यप्रति- बन्धकत्वात्‌ कामिनोजिन्नासादेरेव च तादृशन्नानसामान्यविरोधि- त्वात्‌ श्रतिव्यापतर्नावकाशः | 'साध्यामावपदवेय््वीदिति, अत्र च साध्यतावच्छदकविभिष्टसामानाधिकरण्यावच्छद कतव स्वव्यापक- ताहशसामानाधिकरण्यकत्वं तथाच साष्वतावच्छदकविशिष्ट- साध्यसामानाधिकरण्यत्वं यत्समानाधिकरणमाध्याभावत्वव्यापक- Maen awd व्यासिरित्ये तादृशे कले प्रथमलष्णे न साध्या- भावपदवैयथ्यं, यत्समानाधिकरणनिष्टाभावप्रतियोगितावच्छेदक- ATA RITA मानाधिकरण्यव्यापक तावच्छेद कत्वात्‌ यत्समा नाधिकरणसाध्याभावनिष्टाभावप्रतियोगितावच्ेदकत्वाभावरूपस्य यत्समानाधिकरणसाध्याभावत्वव्यापकतावच्छदक तस्यातिरिक्रतया तद्‌वटितलकशे यत्सामानाधिकरण्यव्यापकं तावच्छद कत्वस्य निवै- शात्‌ तद्‌घटि तलक्तषणसन्भवेऽपि प्रकतलक्तणे वेयण्यांनवकाशत्‌ | एवं यत्मानाधिकरणसाध्याभावप्रमातलव्यापकः साध्यवत्तान्नान- प्रतिवन्धकत्वाभावस्तत्चमित्येताहशाथ कत्वे दितौयलकच्तणेऽपि न तदे वध्यं, यत्मानाधिकरणप्रमालव्यापकताघट काभावात्‌ यत्समा- नाधिकरणसाध्याभावप्रमात्व्यापकतायामभावान्तरस्यैव निवेशा- दिव्यवधेवम्‌ । इति प्रगस्भमलत्तण्दयव्याख्या समाप्ता | AANTATA | २८ १ तच्चचिन्तामणि-दटौधितिः | यत्तु साध्याभाववति यद॒त्तौ प्रक्तानुमितिविरो- धित्वं नास्ति तत्वं व्याप्निरिति, aa, अनुमिलयविरोधित्व- ज्नानस्यानुमितिजनकत्वे साध्याभाववदहृत्तितन्नानस्यानु- मिल्यविरोधितया व्यभिचारिण्यतिप्रसङ्गात्‌ | _ गादाघरो विहतिः । 'साध्याभाववतोति यनच्रिष्ठसाध्याभाववहत्तितत्वविशिट्िनिरू- पितविषयितासामान्ये प्रकतानुमितिप्रतिबन्धकतावच्छछदकत्वा- भावस्तत्वमित्यथः, afsarq varfearet हत॒निष्टसाध्याभाव- वहत्तिलत्वविशि्टिनिरूपिता विषयता व्यधिकरण-धम्भ्रावच्छि- न्राभाववहत्तित्वत्विशि्टविषयितेव सा च न वद्धयनुमिति- प्रतिबन्धक तावच्छेदिका तच्छालिन्नानस्यानु्मित्यप्रतिबन्धकत्वात्‌, व्यभिचारिणि माध्यतावच्छेटकावच््छित्रमाध्याभाववहत्तित्वविष- यितापि तादृशो तदतो ज्ञानस्य च व्यभिचारन्नञानविघधयानु- मितिप्रतिबन्धकत्वात्‌ तादृशविषयिताया अनुमितिप्रतिवन्धक- तावच्छेद्‌कत्वात्रातिव्या्िः । यव्रिष्टत्वस्यानुपादाने धूमाय वङ्कित्वावच्छित्रवद्छाभाववहत्ितावगाह्िभ्चमनि्वद्कयभाववहत्ति- तत्वविशिष्टनिरूपितविषयिताया अनुभितिप्रतिबन्धकंता वच्छट्‌क- त्वात्‌ वद्धिमान्‌ धूमादिव्यादावव्यािः (१) च्रतस्तदुपादानं, तथाच क Co ---- = --- (१) केवलान्वयिनि साध्याभाववदटत्तितात्वविशि्टनिष्पितताटशभ्बमविषयः ताया प्रसिद्धत्वेन व्यधिकरखधम्द्ावच्छिन्नमाध्याभाववद्‌टत्तित्वत्वविशिष्टनिष्ध- ३८२ अनुमानगादाधय्यां भ्वमविषयवद्भयभाववदुत्तिलस्य हेतुनिष्ठलाभावानब्रदोषः | afag- पदाधेनिरूपितविषयितासामान्ये य्निष्टसाध्याभाववहत्तित्वविष- वितास्तामान्ये इति वा यद्युते तदा व्यधिकरणधद्मावच्छित्र- ` साव्याभाववदहुत्तित्वमेव यतर समानाधिकरणा वच्छित्रसाध्या- भाववदुत्तितालेन भातं ताटशन्नानोयहेतुनि्ठतथाविधसाध्या- भाववहत्तिलनिरूपितविषयिताया अ्रध्यनुमितिप्रतिवन्धकतावच्छ- दकत्वादसम्भवोऽव्यासिव्वेति ( १) साध्याभाववहृत्तिलत्वविरशिष्टि- निरूपितत्वं विषयितायाविगशेषणं तादृशश्च मविषयिता च न साध्या- भाववहइत्तित्रलविश्ष्टिनिरूपिता ताटयविषयि तानिरूपकस्य व्यधि- करणधघ्भावच्छित्रसाध्याभाववदहुत्तित्वस्य विशेषणौभूतं यस्समाना- धिकरणधम््रा वच्छित्रसाध्याभाववदुत्तितरत्वं तदिशिष्टवत्वाभावात्‌ । न च तदिशिष्टनिरूपितवत्वं यदि तदवच्िन्रनिरूपकताकत्वं तदा समानाधिकरणघस््रावच्छित्रसाध्याभादवदुत्तितात्वस्य तद्श्नम- विषयव्रत्तावसच्वेऽपि तत्रिठविषयितानिरूपकत्वे व्यधिकरणौ- भरूयावच्छदकत्वाद्धमविषयितायास्तदिशिष्टनिरूपितल्वमन्षतभेव | यदि च वस्तुगत्या aa तदशिष्चं तत्निरूपितत्वभमेव तदिशि्टनिरू- fare तदा व्यधिकरणधम्यावच्छित्रसाध्याभाववदहुत्तितत्वविशि्ट- निरूपितत्वभेवोक्रभ्चमविषयिताया अक्तमिति कथं तदइ्रावत्तन- fafa वाचम्‌। विशेषणोभूतघश्ान्तरविरष्टेन व्यावच्छमानस्य पितविषयितायाख प्रतिबन्धकतावच्छद्‌कत्वाभाववकत्वात्‌ लच्तणएगमनान्नासम्भवो- stufea: | (१) सवत्र ताटशभ्वमे मानाभावादादह, warfqaatfa | कै व्याञ्चिवादः | २९२ विशेष्यस्य भाने विङेषग्णंशे प्रकारौोभवन्यां (१) व्यक्तौ विशेष्यः सम्बन्धितावच्छेदकताया विशिष्टवेशिष्यनोधे भानात्‌ साध्याभाव- वदुत्ित्वत्वरूपविशेषणविशिष्टविषयेण निरूपकोभूय विषयिता- व्यावत्तने व्यावत्तकविघयस्याश्चयतया Baws यत्‌ साध्याभाव- वहत्तितालतवं तस्यापि निरूपकतावच्छेद कौभूय विषयिताव्यावत्ते- कत्व दुक्रश्चमविषयिताव्याहत्तेः (2) तद्धयावन्तकविषयव्यावत्तंकस्य तन्निष्ठसाध्याघाववदुत्तितात्स्य तादृएविषयितानिरूपकतानवच्छ- THA इति तादहृशविषयिताया लच्तणाघटकत्वाटेवच्च श्रमविघ- यिलाव्यावन्तेकतयेव साध्याभाववत्पदसाथेकयं, ताटहृगविघयिताया- SAMA हेतुनिष्ठसाध्याभाववदत्तितालविशिषटानिरूपि तत्वैऽपि हेतु निहाघेयतावविशिष्टनिरूपितत्वानपायात्‌ साव्याभावमनुपादा- याभावाधिकरणत्तित्रत्वविशि्टिविषयितानिषेशे adil समानाधि- करण ्ावच्छिन्नाधिकरणोयत्वभ्चमविवयितावारणेऽपि ठत्ति- fanaa तन्निरूपकेऽधिकरणे यत्र समानाधिकरणघसावच्छिन्ना- भावश्चमस्तददिषयितावारणासम्वेन साध्याभावांशनिवेश्स्यावश्य- कत्वात्‌ । न च .साध्याभावपयन्तनिषेशेऽपि (2) वङ्कित्वावच्छिन्न- वेद्भयभावत्वेन व्यधिकरणघम्भावच्छिन्नप्रतियोागिताकवद्छयसावमव- माद्य ताहयाभाववदत्तिलावमाहि aa तदोयतादृ्ाभाव- वहुस्िलरविषयितापि साध्याभाववदृत्तिलल्वविशिष्टनिरूपितेव (१) आचखयतयेत्ादिः। | (२) तथाच SHAT साध्याभाववद्टन्तित्वत्वविशिषटनिषह्पितविघयिता- पटेन तट्‌बच्छिन्नतदाश्रयनिषएटनिरूपकताकविषयितालाभात्‌ न ताटशविषयिताया- aquyzactafa भावः। (२) तावत्मय्यन्त निवेशेऽपोति पा” | © २८४ अनुमानमादाधय व्यधिकरणघम््राव च्छि्प्रतियोगिताको यः साध्याभावस्तदुत्तिल- aaa aa विङेषरणतया भानात्तदिशिदट्त्स्य च ताटटशन्नान- निष्टविषयितानिरूपक साध्याभाववद्ुलित्वे सत्वादिति तदोषता- eqeafafa aaa अ्रभावांशे साष्यतावच्छदकावच््छिन्नप्रति- योगिताकल्वसम्बन्धेन साध्वप्रकारकं व्यभिचारन्नानमेवानुमिति- विरोधि, यत्र च व्यधिकरणघन्मावच्छिनत्रप्रतियोमिताकाभावै साध्यतावच्छेदकावच्छित्रप्रतियोगिताकत्वसम्बन्धन साध्यं प्रकार स्ताटशक्ञानविषयघ्षरकस्य साध्यतावच्च्छेद्‌कावच्छिन्नप्रतियोगि- ताकत्वसम्बन्धन साध्यविशिष्टस्य व्यधिकरणधम्प्ावच्छिन्नाभाव- स्याप्रसिदस्ताटश्न्नानविषयिताया विशिष्टनिरूपितलासम्धवात्‌ | a चेवमपि समानाधिकरणघन्धावच्छिदरसाष्याभाव-व्यधिक- रणधरमप्रावच््छित्रस्ताध्याभावदयविरेषिताधिकरणव्स्तितावगाहिनः समानाधिकरणघम्मावच्छित्राभावांशे श्रमरूपन्नानस्य विषयि- ताया व्यधिकरणधन्मावच्छिन्राभाववदुत्तितात्वविशिष्टनिरूपित- तात्‌ समानाधिकरणएघम््रेवच्छिन्नसाध्याभावविषयितानिरूपिता- धिकरणविषयितानिरूपिताकैयलविषयितात्वेन च प्रतिवन्धक- तावच्छेदकत्वादव्या्िरिति वायम्‌ | डेतुसामानाधिकरणविश्टि- साध्याभावत्विशिषटटविषयितायां प्रतिबन्धकतावच्छ्दटकल्ाभावस्य विवक्षितत्वात्‌ उक्तश्वभे चव समानाधिकरणघन््रावच्छित्राभाव- विषयथितायास्तादशविरिटटनिरूपितत्वाभावेन तस्या एव च प्रति- वन्धकतावच्छद्‌ कत्वेनाव्याष्यन्‌वकाषत्‌। AA यत ज्ञाने हेतुसमा- नाधिकरणतया भासमाने धिकरणधम्म्ावच्छिन्नप्रतियोगिताक- व्या्षिवाद्‌ः | ३२९५ ख-साध्यतावच्छद्‌ कावच््छिन्नप्रतियोगिताकात्वोभयसम्बन्धन साध्य स्का प्रकारता तादटशन्नानौीयव्यधिकरसथन््ावच्छछित्राभावविष- चितायां साध्यतावच्छेदकावच्छिन्चप्रतियोशिताकत्वसम्बन्धेन सा- ध्य विशिष्टाभावनिरूपितत्वस्य विषयोभवद भावे साध्यतावच्छेदका- वच्छिन्नप्रतियोगिताकल्वासग्धषेऽपि व्यधिकर्णधन््ावच्छिन्नप्रति- योगिताकत्रसम्बन्धन साष्यविशिष्टाभावनिरूपितत्वस्य साध्यताव- च्छेद कावच्छिन्नप्रतियोगिताकल्सब्वन्धविषयितानिरूपकविषयि- तात्वेनानु मि तिप्रतिवन्धकतावच्छेदकल्रस्य चाच्ततत्वादव्यासिदुर्वा- रेव इति चेन्न, तादृशम्नमस्याप्रामाणिकत्वात्‌ प्रामाणिकत्वे च संसर्गोवविषयिताद्यानिरूपकत्वेनाभावविषयिताया विशेषणौय- तया सामज्ञस्यात्‌।, अथ साध्यरूपविशेषणदिशिष्टस्याभावस्य विषयितानिरूपकतया लन्तणघटकत्व साध्याभावयोः सम्बन्धस्य aqua लन्नषणवटकत्वमावश्यकं स च सम्बन्धः साष्यता- वच्छेद कावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वरूपः व्यधिकरणवटत्वावच्च्छिन्न- प्रतियोगिताकत्वरूपश्चाननुगत इति प्रथमस्य faan क्षेवला- afafa साध्यविशेषिताभावस्येवाप्रसिबिः व्यतिरेकिसाध्यकसदधेतौ च तादटशडेतुसमानाधिकरणणभावाप्रसिदिरित्यसम्धवखरमस्य fa- वेशे च सब्यैत व्यभिचारिखयतिव्यािः प्रतियोगितावच्छेद्‌क- ध्माणाञ्च उपल्षणोभूतेन केनचिद्रूपेष्णनुगमय्य तेन रूपण तषां निवेशो न सश्चवति प्रतियो गितावच्छद कोपलच्तणस्य सम्बन्धचट क- तया भानासख्वात्‌। न चावच्छटकावच्छिन्नत्वाविशषितप्रति- यो गताया एव सम्बन्धतया नि वेणान्राननुममनिवन्धनोक्त रोप इति २९६ ्रनुमानगादाधयं वाचम्‌ | अवच्छेदकावच्छित्रत्राविशेषितप्रतियोगिताविषयकाभाव- sae प्रतियोमिमच्वह्ानाविरोधितया तज्‌ज्ञाना विरोधिनः प्रति- यो गिविशेषिताभावक्ञानस्य चानुभवविर्डतया अवच्छट्‌कावच््छि- च्रत्वाविशेषितप्रतियोगितायाः अंस्गंतया अभानात्‌ | न च खाव- च्छिन्नप्रतियोगिताकत्वसब्डन्धेन साच्यतावचछट्‌कविश्षित एवाः भावो निवेश्यः, नतु साष्वविशेवितः, वद्धिलादिना घटाद्यभाव एव वद्कपादिमाध्यक-धुमादिरैतुकस्यले लक्तण्वटक इति वाच्यम्‌ | प्रभेयत्रायवच्छिन्नसाष्यकै तादटशाभावाप्रसिद्ः wi खावच्छिन्रि प्रतियौजिताकत्वश्चय्वन्परेन वद्किलादि विशेषिते बह्कित्वादिना घटा टेरभावे asad यच सस्यन्यधटकप्रतियोगितायां वाधितवद्छया- fefasau आनं लादहश्न्ञागौखाभावविषयिताया उक्तसय्वन्धेन साष्यतावच्ूदक विणिष्टाभादलिरूपिततया अनुभितिविरोधितया चानुपयनतञ्छारत्वात्‌ सखावच्च्छित्रसाध्यहत्तिलविशष्टप्रतियोनि- तानिवेसे wana सदेतावव्रसिद्धेः, एव॑ प्रतियोगिविरेष्यतापन्र- एवाभाषे प्रतिय निषारलन्तेदण warfare स्वाव- च्छिन्नप्रतियोगिताकत्वस्ष्बन्धेन प्रकारत्वं प्रामाणिकंन तु प्रति- योगि विश्ेव्यतानापन्रे वद्िनीस्ति afeaa घटो नास्तौत्येव ama: नतु वह्कित्बेन नास्तोति तथाच विशिष्य प्रतियौस्यविशचे- पितस्य उक्तमम्बन्धेन साध्यतावच्छदकविश्ेषितस्याभावस्य विष- यित्वनिरूपकतया faa न सम्भवत्येवेति । मेवे, प्रतियोग्यादि- विगेषिताभावोयल्ेन विशिष्टनिरूपितविषयिता aaa न faa- ग्यते, अपितु खनिरूपकहेतुममनाधिकरषणभावनिष्टो यः सम्ब oe atffaate: | REO न्धस्तग्मतियो गिसाध्यनिष्ठतत्सस्वन्धाव च्छित्रनिरूपक तावच्छटकता- वच्छेटकतात्वेन, यत्र डेतुसमानाधिकरणवटत्वादयवच्छित्रवद्भय- भावे वद्धित्वावच्छिन्नप्रतियोगिताकलसम्बन्धन ase: साध्यस्य प्रकारता ताटशन्नानविघयितानिरूपकाभावनिष्टो न framafae- पक लतावच्छद कसम्बन्ध इति तददिषयिताब्युदासः, aa afsara- च्छित्रघटाभाके तच्रिष्ठवद्किलावच्छिन्नप्रतियोगिताकल्मेव az: सग्बन्धतया भासते aa तमम्बन्धप्रतियोगो न वद्धिरपितु घट- एवेति साध्ये वास्तवतत्सञ्वन्ध प्रतियो मित्व निेशात्ताटशन्नानोया- भावविषयिताब्युदासः, साध्यनिदिश्णद्यद afsaa घट एव वद्कि- त्वावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वसम्बन्धन तत्सस्बन्धानुयोगिनि afs- त्वावच्छिब्रघटाभावे प्रकारस्तादटण्ज्ञानोयाभावविघयितायास्तत्स- म्बन्धप्रतियोग्यव च्छित्रनिरूपकता कत्वेऽप्यनुमितिविरोधित्वेऽपि च न दोषः, यत्र घटत्वावच्छिन्नवज्कयभावे घटत्वावच्छिन्नप्रतियोगिता- कत्वमेव वद्धित्वावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वत्वन as: संसगतया भास- ते ता्टशच्ञानस्य प्रामारिकत्वे साध्यप्रतियोगिको हेतुसमानाधिक- रणाभावानुयोगिको यद्श्धावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वलविशिष्टसम्ब- न्धस्तदम्यावच्छित्रप्रतियोगिताकत्वत्वविशिष्टसम्बन्धावच्छिन्रसाध्य-- निष्ठनिरूपक तावच्छेदकलत्वं विवक्षणौयमि ति(१)। साध्याभाववदुत्ति- त्ररूपविषयस्य प्रतिवन्धकतावच्छदट ककोच्यप्रवे णाद तिव्यािरतो- विषयितापयन्तनिवेणनम्‌। ₹हेतुनिष्ठसाध्याभाववदु्तितात्वविशिष्े प्रतिबन्धक तावच्छेदकविषयितापय्यीष्यभावविवक्षणे साध्यप्रति- ---~ ~~~ -~~---~-*~--------------- ~~~ mead (१) नचैवमिव्यादि विवच्रणौयमितीत्यन्तं क्रोड़पलेम्‌ | ३९८८ अ्रनुमानगादाधय्यां योगिकाभावमातनिवेगशे व्यभिचारिणतिव्या्िः प्रतियोगितायां साध्यताव च्छद कावच्छिन्रत्वावगाहिन एव ज्ञानस्य प्रतिबन्धकतया तदघटितविषये प्रतिबन्धकन्नानविषविताया अपय्यासेः, साध्यता- वच्छट कावच्छित्रसाध्याभावनिवेशञ्च न सम्भवतोति(१) तद्पे्तितं, व्यधिकरणधन्म् वच्छित्रसाध्याभाववदुत्तितवविषयितायां प्रतिबन्धक- तावच्छद कलत्वाभावात्‌ ्रतिव्यासिरतः सामान्य इत्युक्तम्‌ । प्रकतानु- सितिपदं प्रकतानुमितिसामान्यपरमन्यथा व्यधिकरणधम््ावच्च्छिन्न- साघ्याभाववदु्तित्वाभावविषयकसम्बूहालम्बनात्मकप्रङतानुमिति- प्रतिवन्धकतावच्छदकत्वस्य हेतुनिष्ठतादटशसाध्याभाववदुत्तित्रविष- यिताया afa सच्चात्‌ सद्धेतावपि लत्तणगमना सम्भवात्‌! एवं प्रकते त्यनुपादाने कामिनोजिंन्नासादौ प्रसिडाया अनुभितिसामान्यप्रति- वन्धकता तदवच्छेद कत्वाभावो धूमाभावबहत्तित्वादि विषयिताया- aaa एव तददिषयकन्ञानस्य अ्न्यसाध्यकान्यलिङ्गकान्यसंससगं- कानुमित्यप्रतिवन्धकत्वादतः ्रक्तति तत्साध्यकं तद्धेतुकलतत्संसगंक- परं, सडइतुनिष्टव्यधिकरणधस््रावच्छिन्रसाध्याभाववहुत्तितविषचि- ताया अनुमितिप्रतिवन्धकस्वरूपासिद्ाादि-(२) ज्ञान्रत्िलादस- अवः स्यादतो यत्रिष्ठसाध्याभाववदुत्तित्वविषयकज्ञानसामान्यस्य (३) (१) हेतुनिषटसाध्यतावच्छेद्कावच्छिच्नसाध्याभाववट्ढत्तित्वासम्भवेनासम्भवा- पत्तेरिति शेषः| (२) अनुमितिजनक्न्नानविरोधित्वं लत्तणघटकमित्याभिप्रायेण qe सिद्खाद्युतकोतच्ेनम्‌ | २) यच्निठसाध्याभाववटूटृसित्वत्वविशिष्टनिरूपितविषयिताशालिन्ञानसामा- न्यस्येत्यथः | व्याक्षिवादः | २९९ अनुमित्यप्रतिबन्धकत्वसुपैच्य निसक्तविषथितासामान्येऽनुमितिप्रति- वन्धकतावच्ेद कत्वाभावपयन्तानुघावनम्‌ | अ्रवच्छेटकत्वच्च We- पसम्बन्धविशेषः। न च धू माभाववदुत्तितात्रेन घटादिविषयकज्ञान- स्यानुमितिप्रतिवन्धकतया धूमाभाववदुत्तित्रत्वविशिष्टविषयिता- शालिज्नानत्वन प्रतिबन्धकताकल्नस्यासम्भवात्‌ ताहशविषयितायां प्रतिबन्धकतानिरूपितसखरूपसम्बन्धरूपरावच्ेद कत्वासत्वेनातिव्या- ्षिरिति वाच्यम्‌ । धूमाभाववहुत्तिलतवप्रकारितानिरूपितविषयि- ताशलिन्ञानत्वन ्मसाधारणप्रतिबन्धकताकल्यनसम्वात्‌ ताह- शविषयिताल्वेन वास्तवधूमाभाववदृत्तितत्वविशिष्टनिरूपितविष- यिताया afa प्रतिबन्धक तावच्छद कलत्वस्याक्ततत्वात्‌ | न चेवं WaT नाधिकरणधर्मावच्छित्रसाध्याभाव--व्यधिकरणधम्ावच्छित्रसाध्या- भावदयदिशेषिताधिकरणछत्तितावगाहिनः समानाधिकरणधम्भा- वच्छछिन्राभावांगे भ्मरूपनज्नञानस्य (१) विषयिताया व्यधिकरण- धञ्मावच्छित्रसाध्याभाववदत्तितालविशिष्टनिरूपितत्वात्‌ समाना- धिकरणघम्यावच्छिन्रसाध्याभावविषयितानिरूपिताधिकरण्विष- वितानिरूपितविषयितात्वेन च प्रतिबन्धकतावच्छदकत्वादव्याि- रिति वाचम्‌ | हेतुसामानाधिकरणखविशिष्टसाध्याभावल्विशिष्ट- निरूपितविषयितायां प्रतिबन्धक तावच्छेद कलत्वाभावस्य विवक्तणोय- तरात्‌ उक्तश्मे च समानाधिकरणवश्मावच्छछित्राभावनिरूपितविष- (QQ) समानाधिकररधम्दावच्छिन्राभावांशे प्रमारूपत्वे ताटश्त्तानविषयिताया- हेतु निटसाध्वाभाववट्‌ टत्तित्वत्वविशिष्टानिरूपि तत्वेन लन्तराघटकत्वाच्न दोष दति भ्मत्वोत्कोत्तनम्‌ | 8०० अनुमानगादाध्य्यां. यितायास्तादहशविशिष्टनिरूपितत्वाभावेन तस्या एव च प्रतिवन्ध- कलावच्छेदकत्वेनाव्याष्यनवकाशात्‌ | न चेवं डेतुसमानाधिकरण- व्यधिकरणएधमा वच्छित्रसाध्याभावस्येव यत्र डेतुसमानाधिकरणमा- ध्याभावत्व-समानाधिकरणघन्यावच्छिब्रसाध्थाभावत्वाभ्यां भानं ता- ट ग्रमनमविषयिताया हेतुसमानाधिकरणसाध्वाभावत्वविशिष्टनिरू- पितल्ात्‌ समानाधिकरणधघम्मावच्छिन्नामावत्वावच्छिन्रविषयता- aa प्रतिबन्धकता वच्छेद क त्वाचाव्यासिरिति वाच्यम्‌ । अनुयोगि- तादयावच्छिन्नानिरूपितलेन तादृशविषधिताया निषैशनौोयत्वात्‌ | अथ यवत ज्ञानं हेतुसमानाधिकरण्तया भासमाने व्यधिकरण- धन्भावच्छिन्नप्रतियोगिताकाभावे व्यधिकरणधश्यावच्छिन्नप्रतियो- गिताकत्व-साध्यतावच्छेदकावच््छिन्रप्रतियोगिताकल्ोभयसम्बन्धेन साष्यस्येका प्रकारता ताटशन्नानौोयव्यधिकरणधन्चावच्छिन्राभाव- विषयितायथां साध्यतावच्छेटकावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वचम्बन्धेन साघ्यविशिष्टाभावनिरूपितत्वस्य विषयौभवदभावे साध्यतावच्छ- दकावच््छित्रप्रतियोगिताकल्वासच्नासम्भवेऽपि व्यधिकरणघभ्भा- वच्छित्रप्रतियोगिताकत्वसम्बन्धेन साध्यविशिष्टाभावनिरूपितल्स्य साध्यतावच््ेदकावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वसब्दन्धविषयितानिरूप-- कविषयितालेनानुमितिप्रतिवन्धकतावच्छछेदकल्रस्य चाक्ततत्वादव्या- facanafa चेत्र, ताद्ृशतादृशश्रमस्याप्रामाणिकत्वात्‌ प्रामाणि- कत्वे च संसगंयविपयितादयानिरूपकत्वेनाभावविषयिताया विभ- षणौयतया सामञ्ञस्यात्‌ | अध साध्यरूपविशेषणविशिष्टस्याभावस्य विषयितानिरूपकलतया लक्तणघ्टकत्वे साध्वामावयोः सम्बन्ध saifeate: | ४०१ स्यापि सम्बन्धविधया लक्णघटकत्वमादष्यकं स च aaa: साध्यतावच्छेदकावच्छिन्नसाध्यनिष्ठप्रतियोभिताकत्वरूपः, व्यधिक- रणरघटत्वादवच्छिव्रप्रतियोगिताकत्वरूपश्चाननुगत इति प्रधमस्य निवेशे केवलान्वयिनि साष्यविशेषिताभावस्यैताप्रसिदिः afatfa- साष्यकसदतौो च तादटटणश्डेतुसमानाधिकरणाभावाप्रसिदिरित्य- सम्भवः चरमस्य निवेशे aaa व्यभिचारिखतिव्यासिः, प्रति- यो गितावच्छद क घ्या णाञ्चोपलक्षणोभ्नूतेन केनविदर्खेणानुगमय्य निवेशो न सम्भवति प्रतियोगितावच्छेद कोपलक्तषणस्य सम्बन्धघट- कतया अभानात्‌ | न चावच्छद कावच्छिन्रत्राविशेषितप्रतियोगि- ताया wa सम्बन्धविधया निवेशान्नाननुगमनिवन्धनो दोष- इति वाचम्‌ | च्रवच्छेट्‌कावच्छिद्रतलानिवेशेषितप्रतियोगिता- विषयकाभावज्ञानस्य प्रतियोगिमत्ताज्ञानाविरोधितया तज्‌न्ञाना- विरोधिनः प्रतियोगिविशेषिताभावन्नानस्य चानुभवविङ्दतया अवच्छेटकावच्छिन्नलत्लाविगेषितप्रतियोगितायाः संलगतया अभा- नात्‌। न च स्वावच्छन्नप्रतियोगिताकत्वसम्बन्धन साष्वतावच्छेदक- विशेषित एवाभावो fade न तु साध्यविगेषितः, वद्धिलादिना घटाद्यभाव एव वद्भयादिसाध्यकधूमादिहेतुकखले लक्तण्घटक- इति वाचम्‌ । प्रमेयलादयवच्छछिन्रसाध्यके तादृश्षभावाप्रसिद्धः (१) एवं खावच्छिन्रप्रतियोगिताकत्वसरब्बन्धेन | afsarfefantua वद्धित्वादिना घटादेरभावे भासमाने यत समस्बन्धघटकप्रतियोगि- तायां बाधितस्य वङ्कप्ानिषटत्वस्य भानं तादहटशन्ञानो याभावविषयि- (१) सामान्यदह्पेण विगरेषाभावानभ्युपगमात्‌ भ्युपगमे ate, एवसिति | ५९ ६०२ सनुमानगादाघ्थ्थां ताया उक्तसम्बन्धेन साध्यतावच्छदकविशिषटाभावनिरूपिततया अलुमितिविरोधितया चानुपपत्तदव्धारत्नात्‌ स्रावच्छित्िसाध्य- व्स्तित्वविशिष्टप्रतियोगितानिषैे च सव्व सदेतावगप्रसिडः, एव प्रियो गिविश्रेयतापन्र wats प्रतियोगिपारतन्वरण समाना- धिकरणधश्स्य खातन्वेयण व्यधिकरणशघमग्मस्य सवावच््छित्रप्रति- योगिताकल्सम्बन्धन प्रकारत्वं प्रामाणिकंन तु प्रतियोगिविरेष्य- amma वद्किनास्ति बह्कितेन घटो नास्तौल्येव प्रतौतनं तु afsaa नास्तोति, तघाच विशिष्य प्रतियोग्यविशेषितस्योक्त- सम्बन्धेन साध्यतावच्छेदकविशेषितस्याभावस्य विषयत्वनिरूप- तया निवेशो न सन्भवत्येउेति । aaa प्रतियोग्यादि विङेषिता- भावोयत्वन विशिष्टनिरूपितविषयिता wad a निदेश्यते अपि तु खनिरूपकदेतुसमानाधिकरणाभावनिष्टो यः सम्बन्धस्तव्मलति- यो गिसाष्यनिष्ठतत्सम्बन्धावच्िन्रनिरूपकतावच्छद कताकलत्वेन, यच हेतुसमानाधिकरणचटत्वावयवच्छिन्नवद्धयायाभाते वद्धित्वाद्यवच्छि- न्न प्रतियोगिताकत्वसम्बन्धेन FSIS: लाध्यस्य प्रकारता ताद्ग न्ञानविषयितानिरूपकाभावनिष्ठो a निरुक्ततत्निरूपकंतावकच््ट- दकसम्बन्ध इति तददिषयताब्युदासः, यच वद्कित्वावच्छित्रघटा- दभावे तचिष्ठवदङ्ित्ावच््छिन्नध्रतियोगिताकत्वभैव as: सम्बन्ध तया भासते aa तत्सस्बन्धप्रतियोगौ न वह्किरपि तु az एवेति साध्ये वास्तवतत्सम्बन्धप्रतियो गित्रनिवेशत्ताटण्ज्ञानोयाभावविष- यिताव्युदासः। साध्यनिवेशाद्‌्यत्र afeaa घट एव वद्कित्वावच्छि- ्प्रतियोगिताकत्वसम्बन्धेन तत्सम्बन्धानुयोगिनि वद्किलावच्छि- व्याक्षिवादः। ४०३ घटाभावे प्रकारस्ताटशज्ञानोयाभावविषयितायास्तत्सम्बन्धप्रति- यो ग्यवच्छछिन्ननिरूपकता कत्देऽप्यनुभितिविरोधिव्वेऽपि चन दोषः यत॒ घटल्ावच्छित्रवद्धयभावे घटल्रावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वमेव वद्ित्वावच्छिन्रप्रतियोगिताकत्वत्वेन aS: संसगेतया भासते तादशज्नानस्य प्रामाणिकत्वे साध्यप्रतियोगिको ₹ईेतुसमानाधि- करणाभावानुयोगिको यदश्धावच्छित्रप्रतियोगिताकत्वसम्बन्धः तदम्प्रावच्छिन्नव्रतिपोगिताकत्वत्वविशिष्टसलम्बन्धाव च््छित्रसाध्यनिष्ठ- निरूपक तावच्छेदकताकत्वं विवत्तणौयमिति दिक्‌ (१) न च व्यभिचारनज्ञानस्यानुभितिकारणव्यािन्नानं प्रत्येव प्रतिबन्धकत्वा- दनुमित्यव्रतिचन्कत्वसिति व्यभिचारिस्यतिव्यात्िरिति वाच्यम्‌ । तज्जनकरनज्ञानप्रतिवन्धकतावच्छेदटकत्वाभावस्यैव faafaaara | “चनु मित्यविरोदितन्नानस्यः अनुमितिप्रतिबन्धकतावनच्छटकत्वा- भावप्रकारकन्नानस्येव, ‘aafafatqa इति, एतन्यते निस्क्त- विषयितासामान्येऽनुमितिप्रतिबन्धकतावच्छेदकत्वाभावस्येव (२) ्रनुयितिकारणोभूतन्नानविषयत्वादिति ara: | “नुभिल्यविरो- धितयाः अनुमितिजनकज्ञानाप्रतिबन्धकतया, साध्याभाववद्‌- र स्िलज्नानस्यानुमितिजनकत्वाभावादिति भावः। (अतिप्रसद्धा- दिति, डतुनिष्ठसाष्यतावच्छेद कावच्छिन्नप्रतियोगिताकाभाववद्‌- तत्तित्रविषयितासामान्येऽनु सि तिजनकड्ानप्रतिबन्ध कतावच्छदक- (१) अथ यतर ata दत्याद्ः इति दि गित्यन्तः पाठः कस्मरिखिदाद्‌श्णुस्तके नास्ति| (र) निरुक्रविषयितानिषप्रसतानुमितिप्रतिब्न्वक्रतावच्छेद्‌कल्भावघटितस्यै- वेति पा” । ४०४ अनुसानगादाधय्य त्वाभावस्यादतत्वादिति भावः| न च हेतुनिष्टठसाध्याभाववहुत्तिल- विषयिता अनुमितिजनकन्ञानप्रतिवन्धकतावच्छदिका इत्या कार कन्ञानोयदेतुनिष्टसाध्याभाववद्त्तित्रविषयिताया aft ताह- शविष्वितासामान्यान्तगंततया तच च प्रकतव्यासिन्नानप्रतिवन्ध- कातावच्छेदकत्वस्य aaa नातिव्याभिरिति वाचम्‌ । $दशरोत्या सद्वती डेतुनिष्ठव्यधिकरणध्ावच्छिन्नरसाध्याभाववदुत्तिलविषयिः तायामनुभितिजनकन्ञानविरोधित्भ्चमरूपन्नानोयरहेतुनिष्टसाध्या- भाववदहुत्तितिविषयितामादायासम्भवः स्यादिति तद्वारणाय इतर- विशेषणतापन्नतादृशसाध्वाभाववदुत्तिलनिरूपितविषयिताया एव aaa निवेशनौोयतया विषयिताविशेपण्तापत्रसाध्याभाववद्‌- तत्तित्रविषयितामादायातिव्या्िकारणासम्भवग्दिति। साजालयघटितलच्षणम्‌ | तच्चचिन्ताम खि-टो धितिः | केचित्त यावन्तः साध्याभावाः waa तत्तत्य- जातीया ये तत्तद धिकरशत्तित्वाभावास्तहन्तवं तच्छं, साजाद्यञ्च समानासमानाधिकरणधम्यावच्छिन्नप्रति- पःगिताकत्वान्यतरशूपेख, साध्याभावश्च पव्वोक्तदितीय- रोलः waa व्याप्यद्रत्तिश्च प्रतियोगितावच्छेदका- च्छद्प्रतियोगिव्यधिकररणे वा तन तत्तत्प्ाष्यव्यक्तर aaa साध्यश्याभाववति दत्तावपि इ तोनाव्याप्रिः। व्यािवादः । Boy तददु्तित्वाभावश्च तत्तत्साध्याभाववदुत्तित्वत्वव्यापकव्या- सज्यहत्तिघम्भानउच्छिन्नप्रतियोगिताको बोध्यः, तेन सा- ध्याभाववदाक्तिषिशेषक्त्तित्वस्य पार्धिवत्वादिषिशेषितस्य दिवायवच्छन्नस्य वा साध्याभाववदुतिलस्याभावमा- दाय नातिप्रसङ्गः | अच च डहेतुतावच्छेदकसम्बन्धेन साध्याभाववदहृत्तित्वं बोध्यं तेन वश्नयभाववति सखावयवै धूमस्य हत्तावपि न दोषः, cag साध्यामावोऽपि Fq- तावच्छेदकसभ्बन्धेन कस्यचिद धि करगे वत्त मानोगाद्यः, तेन जातिमान्‌ सत््वादिव्याटौ इतुतावच्छेद्‌ कसम्बन्धेन साध्याभाववदुत्तित्वस्याप्रसिद्वावपि न ata: | गादाघरो विहतिः । भिश्ररोत्या साजात्यघटनेन साध्याभाववटदत्तित्वरूपव्यासिं परिष्कुत्योपन्यस्यति,(१) यावन्त इति, धूमवान्‌ वङ्करित्यादौ व्यधि करणधम्द्ावच्छिन्नाभावसजातोयस्य घटलत्वादिना तदधिकरण- ब्रत्तिलाभावस्य हेतौ सच्लाद तिव्यासिरतः "यावन्त इति, तथाच यावदन्तगंतसमानाधिकरणधर््रावच्छित्राभावसजातोयस्य तदधि- करणघन्तित्वाभावस्य हतावसत्वान्नातिञ्यासिः aaa समानाधि- करणधघश्यावच्छिन्रसाष्याभावाधिकरण्ठत्तित्स्य व्यधिकरण (१) साध्याभाववट्‌टरत्तित्राभावद््पां व्याप्िमेव परिष्करोतोति are | ४०६ अनुमानगादाधय्यां घम्ब्ावच्छिन्राभावमादायातिव्याप्तवीरषणाय प्रत्येकं तत्तत्सजातोया- दति, तथाच वच्यमाणरूपैण व्यधिकरणघम्मां बच्छित्रसाध्याभाव- वदत्ित्राभावस्य खमानाधिकरणएधन््रावच्छित्नसाध्याभावसजातौय- Waa दोषः | यावल्ाध्याभावत्वन साध्याभावानां निरूपका- तवा साजा्येऽन्वये व्यतिरेकिसाध्यके वह्किमान्‌ धूमादित्यादौ याव साध्याभावनिरूवितत्वद्य क्रचिदपि साजाव्येऽसच्वादुयावत्साध्वा- भावसाजात्वाप्रसिदयाऽव्यासिरतस्तत्तद्याक्ित्ेन तेषां साजात्ये ऽन्वयलाभाय ‘aafefa| ‹तत्तस्जातोया इत्यनेनोपस्यितानां व्यधिकरखधम्भावच्छिन्राभावसजातौयानां समानाधिकरण-व्यधि- करणधर्म्रावच्छिन्नराभावसजातोयानाम्‌ एकस्मित्रधिकरख्ठत्ति- anna एकत इयमितिरौव्याऽन्वये पुनव्येतिरेकि साध्यकऽव्यासिः एक तोभयस्राजात्याभावात्‌ अत एकौकाभावे FAR परधगेव कासाव- सजातोयामेदान्वय उपगन्तव्यः, एतदटथतात्मथग्राहकं प्रत्ये क- सिति, बहुवचनान्तं तत्तदधिकरणवस्तित्वाभावा इत्यस्य विशेषणं, यावत्साध्याभावत्वेन साध्याभावानामधिकरणेऽन्वये वद्िमान्‌ दूला- दिल्यादौ तत्तद्‌ दाठत्तितावच््छिन्नप्रतियोगिताकसाध्याभावघटित- समुटायाधिकरणतायाः क्विदप्यसत्वेनाव्याभिः स्यादतस्तत्तद्‌- afaaa साध्वाभावानामधिकरणेऽन्वयलाभाय चरमं "तत्तदिति, 'तत्चमिति अ्रव्यभिचरितत्रमित्यथे;। ननु तत्तत्जातोयत्तं तत्त- द्त्तिघन्यवच्वं तथाच समानाधिकरणधम्प्रावच्छितराभावद्ठच्यभाव- त्वादिधर्वक्वं व्यधिकरणधम्मीवच्छिन्नाभावेऽपि वत्तत इति तस्यापि तत्जातोयत्वा दप्रभिचारिखतिव्यािरत are, (साजाव्य- व्यात्िददरः | & ०७ ति, (समानासमानाधिकरणेति समानाधिकरणधरम््ावच्छित- प्रतियो मिताकत्व-व्यधिकरगणघम्ावच्छित्रप्रतिधोगिताकल्ान्यतर- रूपैगेव्यघेः, ठतौयाथश्चामेदः, तस्य च साजाव्येन्वयः, विवक्तणौीय- fafa रशेषः। agra (तत्तत्रजातोया इत्यस्य तत्तद्‌ भावत्रसि- तादशान्यतररूपवन्त इत्यचः (१) । यद्यपि afsarafeeatata- नि्समानाधिकरणघस्माव च्छत्रप्रतियोगिताकत्वं सखरसमानाधि- करर्वद्धितल्रादयवच्छित्रा या प्रतियोगिता तच्रिरूपकताकत्वरूपं तच्च तदधिकरणत्रत्तित्वाभावेऽसम्भावितमेव, तथापि araarat- धिकरशधम्भावच्छिन्ना याया प्रतियोगिता तदनिरूपकत्वं समाना- धिकरणधश्रावच्छिन्नप्रतियोगिताकलं, स्वसमनाधिकरणधन्धा- afseat या या प्रतियोगिता तदनिरूपकत्वमेव व्यधिकरण घम्रवच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वमिद विवलितं तच्च साध्याभाव- तदहुत्तित्वाभावोभयसाधारणम्ेव | समनियताभावेक्यमते च स्वाधिकरणादत्तिधम्भावच्छित्रा या प्रतियोगिता तन्निरूपकत्व- रूपो व्यधिकरणघश्मावच्छिन्रप्रतियोगिताकत्वेत्यस्य asa एवादरणोयः, तन्मते व्यधिकरणघावच्छिन्रसप्रध्याभाव-तथा- विघतद्दुत्तित्वाभावयोरेक्यात्ताटृशसाध्याभावस्य arena faa fa तानिरूपकत्वं ताहटश्प्रतियोगितानिरूपकलत्वस्य तथाविधतददु्ति- ल्वाभावेऽपि स्वात्‌ । एतेन समनियतामावेक्वमते व्यधिकरण घम्याव््छिन्नप्रतियोगिताकाभावस्य समवायादिसय्वन्धावच्छिन्र- गगनत्वाद्यवच््छित्रिगमनादयभावाभिन्रतया तस्य समानाधिकरण- (१) दूत्यन्नयवोध दूति are | got AAA ANSI घधन्यावच्छिन्नगगनादिनिष्ठप्रतियोगितानिरूपकलत्वाद्‌व्यधिकरणध- रावच्च्छित्राभावस्य निरुक्तरूपसच्छानुपपन्या समानाधिकरण घश्मावच्छित्र-समानाधिकरणसस्वन्धावच्छन्नप्रतिवोगित्वानिरूप- कत्वपय्न्तनिषेणनायासो नोपाटेयः,समनियताभावेक्यमते गमना- भावत्व-गगनाभावभिन्नरलान्यतररूपेणापि साजात्यविवच्तणं सम्भव- तोति ध्येयम्‌ | ननु यवावत्साध्याभावान्तगतानां तत्तत्साध्यव्यक्तय- भावादोनामधिकरणे हेतोवृत्या वद्किमान्‌ धूमादिव्यादावव्यासि- रत ate, साध्याभाववति, पू्व्वक्रदितोयरोल्येति aaaratfy- करणानामिल्यादिदितोयलक्तखरोत्येत्यथं ;, साध्यतावच्छेदकावच्च्छि- ्रभ्यापक तावच्छद करूपाव च्छिन्न प्रतियोगिताकाभाव एव साष्या- भावपदेन faafaa इति भावः। साध्यतावच्छद कावच्छिन्नव्याप- कतावच्छेदकप्रतियोगिताकाभावविवक्षणे तयाविधवद्ि-घटोभया- भावमादाय तदोषतादवस्ध्यमतः प्रयमरोत्येति नोक्तं, साध्यता- वच्छट कावच्छिन्नप्रतियोगिताकाभावविवक्तशे वाच्त्रत्वादिना- घटादयभावमादाय लक्तरएसमन्वयसम्भवेऽपि खरूपसम्बन्धन प्रमेय- मात्साध्यकसले तघाविघाभावाप्रसिदधया ्रव्या्िरतो व्यापकता- च्छद क पय्यन्तानु धावनं, तथाच ज्ञेयत्वलादिना वायल्राभार्वे एव- तथेति न दौषः । साध्वतावच्छद कसूमनियतप्रतियोगिताकाभाव- निवेशे च वद्कयादिसाध्यकस्यक्ते तार्णाताण्दहनोभयाभावमादाय दोषस्य व्यासज्यछठठत्तिधन््ानवच्छिन्नत्वं प्रतियो गितायान्निवेश्य वार णेऽपि सत्तादिसाध्यकखतले विश्िष्टसत्तादययभावमादाय दोषं इति dient न fadfua | व्यापकतावच्छंदकावच्छिन्नप्रति- व्यापादः | Boe योभिला च न्युनघ्त्तिधन्धावच्छित्ना त्रतिरिक्तषत्तिधन्मावच्छित्ा वाया या प्रतियोगिता तदन्यत्वेन विशेषणोया, तेन वद्भयादिसाध्य- aaa afsarfear मदहानपोयवदह्कि-घटान्यतराभावमादायन दौषः । न्घुनहत्तित्वमतिरिक्तहत्तितच्च विरुदव्याहन्तं निवाच्यं (१) नातो व्यधिकरणधर्म्रावच्छित्राभावासंग्रहः। व्यापकता च साष्य- तावच्छद्‌कसम्बन्धावच्च्छित्रा ग्राह्या तेन संयोगादिना वद्यादि- साध्यकस्थले समवायादिना वद्धयाद्यभावमादायासम्भववारणाय साध्यनावच्छछेदकसम्बन्धावच्छिन्नत्वन प्रतियोगिताया विशेषण्ौय- तया समवायादिना दरव्यत्वादिसाध्यकषे विषयतादिसम्बन्धन साध्य- व्यापकस्य ज्ञानादेः समवाचादिनाभावमादाय दटदोषानवकाशः। तादामासम्बन्धेन प्रमेयसाध्यकसयलते समवायितवादिरूपव्यधिकरण- घर्म्ावच्छिन्न प्रतियो गितावच्छेद कताकभेद एव लचणघटकः, सम- नियलाभावेक्यमत्े ताटृशभैदस्य व्यधिकर णएधम्प्रोवच्छितरप्रतियोगि- ताकाव्यन्ताभावाभिनब्रतया व्यधिकरणधन््रावच्छिन्नप्रतियोगिताक- त्न ततस्ाजाव्यस्य स्वात्‌ | aq संयोरीन प्रमेयत्ववान्रेति प्रतोतिसाक्िकः संयोगाव- च्छछिन्नप्रमेयतलनिष्ठप्रतियो गितावच्छछदकताकभेद एव॒ AAU: अल्यन्ताभावस्येव तेन सम्बन्धेन acafaal घञश्चस्तत्सस्वन्धेन तद वच्छित्रप्रतियोगितावच्छेदकताकभेदस्याप्यक्तप्रतौीतिनलात्‌ सि- (१) fagqaied न्यन्तित्वमतिरिक्तरटत्ति्वच्च सवसमानाधिकरणाभाव- प्रतियोगित्वे सति खसासानाधिकर णयं न्ट नट तित्वं, सखवाभाववद्रत्तित्रे सति खसामा- नाधिकरण्यम्‌ अतिरिक्ड त्त्वम्‌ | ५ ४१० अनुमानगदाघय्यां दिरिति, aa, वह्किमान्‌ धुमात्‌ गुणवान्‌ द्रव्यवादिव्यादौ विष- वितादिसम्बश्वेन वद्कित्र-गुणत्वाटदिमतः साष्यतावच्छेदकसग्ब- न्धावच्छछित्राभावव्यावत्तनाय व्छापकतावच्छेदकताघटकसम्बन्धा- वच्छित्रत्वन प्रतियोगितावकच्छेटकताया अवग्यनिदेश्रनोयतया तादृशाभावस्य प्रामाणिकत्वेऽपि लक्तणवटक त्वासम्भवात्‌ | ननु कपिसंयोगौ wagauarfearet कपिसंयौगत्वाव- च्छिन्रकपिसंयोगादाभावस्यापि लक्षणघटकतया तदधिकरणे च हेतोत्तरव्यासिः। न च साध्यतावच्छेदकावच्छित्रव्यापकता- शरोरे प्रतियोगिवेयधिकरणयनिवेशस्य निष्फलतया कपिसंयोग- lS: साध्यव्यापकतावच्छद्‌कत्वाभावान्न तादृशाभावानां लक्तण- घटकतेति वाच्यम्‌ | data वद्य्ादिसाध्यकस्छले afsaralai संयोगरूपसाध्यतावच्छद्‌ क सश्चन्धचघटितव्यापकतावच्छटकत्वसम्म-- त्यथ व्यापकताशरर प्रतियोगिवेयधिकरणयस्यावश्यकत्वात्‌ अन्यथा साध्यवत्य॒त्पत्तिकानलावच्छ्देन वद्ित्व-दरव्यत्वादयवच्छिन्नस्य संयोग- सम्बन्धे नाभावसच्वात्‌ साध्यतावच्छेदकसम्बन्धघरटितव्यापकतावच्छे- दकस्यवाप्रसिदिप्रसङ्गात्‌ तथाच तत्तदधिकरणपदटेन तत्तदभावो- यव्याप्यह्त्तितानिरूपकाधिकरणमरेव विवत्तषणौयं व्योप्यदत्तिता- निरूपकत्च्च निरवच््छिन्राधेयतानिरूपकत्वम्‌, एवच्च संयोगाभा- वस्य तथ्ाविघ्ाधिकंरणं गुणादिरेदतिन दोषः । इत्यञ्च क पिसंयो- गाभाववान्‌ कपिसंयोगाधिकरणत्वाभाववान्‌ वा मेयत्वादित्यादौ कपिभयोग-तद्धिकरण्तादिरूपाणां यावत्ाध्याभावान्तःपातिनां तघाविघाधिकरणाप्रसिडया अव्यातिरतः साध्याभावं व्याप्यहत्तिल्वेन व्याप्षिवादः | 8११ fafaafe, araafaata, तथाच ताटयाभावस्य तथाविघधयावद्‌- भावानन्तगततलया तथाविधायिकरणाप्रसिद्धावपि न चति; | व्याप्य- हतित्वञ्च निरवच्छिव्रहत्तिकत्वे न त्वच्छिन्रवत्तिकान्यत्वं, तथा- सति संयोगेन धुमादिसाध्यके व्यभिचारिणि संयोगेन धूमलाद्य- वच्छित्रधूमादयभावस्यावच्छित्रहत्तिकितया अयोगोलकान्यत्वाद्य- भावस्य च साध्यनावच्छेद्‌कसम्बन्धघटितव्यापकतावच्छद्‌करूपा- वच्छित्रप्रतियोगिताकत्वविरहेर व्यधिकरणघन्प्रावच्छिन्नप्रतियोगि- ताकाभावस्यैव लक्षणघटकतया अ्रतिव्याधिः, way वद्कयभाव- संयोगादययभःवस्यापि क्षचिन्निरवच््छित्रह्स्तिकत्वेन लच्तणघटकतया तदोयव्याप्यत्रत्तितानिरूप्रकाधिकरण्ठत्तित्ाभावमादाय दोष- वारणायाधिकरण्पदस्य व्याप्य्टल्ितानिरूपकाधिकरणपरत्- मावश्यकसिल्यवधेयम्‌ । कालिकसस्वन्धावच्छित्रप्रतियोमिताकै आकागाभावाभावे साध्ये अ्रातत्वादिडेनावव्यासिः व्याप्य वत्तः साष्दाभावस्याका शाभावस्य व्याप्यत्रत्तितानिरूपकाधिकरणे Maa इतो वृत्तेरतस्तत्तदभावौयप्रतियोभितावच्छेद्‌ कावच्छिव- वैयधिकरण्यनिरूपकाधिकर णमेव त्तद धिकरणपदेन विवन्नणौयं, प्रतियोगितावच्छेदकावच्छिन्रतल्निवेगनादेतद्रूपान्यत्वविशिषटगुण-- त्ववान्‌ गुग्तलादित्यादौ समवायरूपमाध्यतावच््छेदकसम्बन्ध- घरितविषिषटटसाष्यव्यापकतावच्छद्‌कविशिष्टगुण्तलावयवच्छिन्रा- भावस्य प्रतिवोगिवेयधिकरर्यनिरूपकताया डतुमत्यसच्चेऽपि नातिव्यास्षिः, तथाच कालिकसम्बन्धावच्छिन्रप्रतियोगिताकाक्ाण- त्वाभावाभावादिसाध्यकानमल्ादिदेतावव्या्चिः aq wzraafe- ४१२ अनुमानगादायां यावत्ाध्याभावान्तःपातिन आकाशत्वाभावादटः प्रतिथोगिता- वच्छेद्‌कावच्छित्रघ्रतियोगिवेयशिकरखयनिरूपकाधिकरणाप्रसिडः कालेऽप्याकाणश्ावच्छदेन ताटगसाध्यरूपतदभावोयगप्रतियोगिसच्छात्‌ सञ्भनेव तादृशाभावस्य प्रतियोगिसमानाधिकरण्लादतो व्याप्य घ्तित्वसुपेच्याभावै प्रतियो गितावच्छद कावच्च्छिन्नप्रतियोगवेयधि- करष्यभेव विशेषणमाह, प्रतियो गितावच्छद कावच्छछित्रे ति, अच च समनियताभावेक्यसते विश्वेषारेव व्यधिकरणधर्ावच््छिन्नाभाव- प्रतियोगितया तग्रतियो म्यनधिकरणाप्रसिदया तदसंग्रहः विशिष्ट साध्यव्यापकतावच्छदकावच्च्छिद्रयक्वििग्रतियोगिताग्रयवयधिक- रखनिदेगे च वाच्यत्दत्वादिनाः घटाभावस्य घटादिवेयधिकर्येन लच्तणष्तटक लानिव्धादेऽपि प्रतियोगिभेदटेन प्रलियोगितामैदमते जन्यज्नानविषयत्वादिसाध्यके किञिकालावकच्छटेन परम1रवादौ प्रसिदस्य साध्यतावच्छछेदकावच्छछित्रसाध्याभावस्य = afafeafa- यो ग्यनधिकर णछ्ठत्तेः प्रतियो गिवेयधिकरखनिरूपकाधिकर णा. प्रसिद्धया अव्यातिः तचापि यक्िखिम्रतियोगितान्तभोवेन atent- धिकरणप्रसिदिसम्पादने यक्किित्रतियो गिताखयप्रतियो गिवेय- धिकरण्यनिरूपकाधिकरणे तत sider अव्यासिताद व्यम्‌ | एवं वद्धि्नान्‌ धुमादिव्यादौ द्रव्यत्वाद्यवच्छिन्नस्य संयोगेन यौऽभावस्तस्य Cy sa AAT Aaa वत्तमानस्य गुणादौ प्रतियो व्यधिकरणस्य प्रतियोगिवेयधिकरणखनिरूपकाधिकंरण- गुणादौ डतुतावच्छदकसम्बन्धन छत्तेरप्रसिद्धया अव्यापतेवीरणाय डेतुतावच्छद्‌कसम्बन्धेन कस्यचिदधिकरणे प्रतियोिवेयधिकरखय- व्या्िवादः | ४१२ मभावे fated देयम्‌ एवच्च एतदरूपान्यत्वविशिष्टसन्तावान्‌ जातरि- त्यादौ समवायचरटितसाध्यव्यापकतावच्छदकविशिष्टसत्ताल्ायव- च्च्छित्राभावस्य हेलधिकरणे सत्तादिरूपप्रतियोगिसम्रानाधिकरण- तया व्यधिकरणघम्मावच्छित्राभावस्येव लत्तण्वटकता स्यादित्यति- व्यासिरतः प्रतियो गितावच्छेदकावच्छिन्रत्वोपदानम्‌। अथ केवला- न्वयिखले लक्ञषणघट कानां वाचत्वत्वादयवच्छिन्नरघटाद्यभावानां सर्व्व aaa प्रतियोगितावच्छद कवा चत्वत्वावच्छिन्नानधिकरणाप्रसिदिः। न च यक्कि्िग्रतियोगितावच्छदकावच्छिन्नानधिकरणत्रत्तित्व- मेव निषेशणनोयं तथाच समनियताभावानातैक्योपगमेन व्यति- रेकिलावच्छेदकधश्चस्याप्युक्ताभावप्रतियो गितावच्छेटकतया प्रति- योगितावच्छेदटकावच्छिन्नानधिकरगत्वस्य प्रसिद्धया तेषां लत्तण- घटकतेति वाचम्‌ । तथा सति संयोगाभावसाध्यकस्यले संयोगा- दयात्मकाभावस्य यत्किञ्चिग्रतियोगितावच्छटकसमवेतसामान्या- भावत्वावच्छित्नरानधिकरण्वत्तितवात्तदावत्तनासम्भवात्‌ विशिष्ट साव्यव्यापकतावच्छदकत्वन प्रतियोगितावच्छदकविरषणे उक्त. wa ताट्गप्रतियोगितावच्छेदकावच्छित्नानधिकरणाप्रसिदेरठन्मा- रत्वात्‌, प्रतियो गितावच्छेद कावच्छिन्नप्रतियोग्यनधिकरणठत्तित्र- निवेशे च व्यधिकरणध्यावच्छिन्राभावस्य प्रतियोगितावच्छेद्‌- कावच्छिन्रप्रतियोग्यप्रसिया प्रतियोगिवेयधिकरखयं दुर्घटम्‌ । अचर केचित्‌, प्रतियोगितावच्छदकावच्छिन्रखखप्रतियोगिसमानाधि- करणा येये तदन्यत्वं व्यधिकरणान्ताधः, न तु प्रतियोगिताव. च्छदकावच्छित्रप्रतियोग्यनधिकरणठतिलं, व्यधिकरणशधर्ाव च्छि ४१४ अनुमानगादाध्यां त्राभावस्य विशिष्टप्रतियोग्य प्रसिद्धा श्रसंग्रह्ात्‌ | न चेवं सति धम- वान्‌ वद्करित्यादौ संयोगसम्बन्धघटितव्यापकतावच्छेदकधूमलाद्य- वच्छित्रसंयो गसम्बन्धावच्छिन्रप्रतियोगिताकानां धृमाभावाना- सुत्प्तिकालावच्छेटेन धुमादिमति ठन्तेव्यधिकरणधन््रावच्छितरा- भावस्यैव प्रतियोगितावच्छदकावच्च्छिन्नप्रतियोगिव्यधिकरणतया अतिव्या्िरिति वाचम्‌ । साध्यतावच्छदकसम्बन्धेन व्यापकता- मनिवेश्य येन सम्बन्धेन व्यापकता तत्सम्बन्धावच्छिन्रव्यापकता- वच्छेदकावच्छिन्राभावं निवेष्य विषयतासम्बन्धेन साध्यव्यापकस्य ज्ञानभ्य समवायसम्बन्धावच्चछित्राभावमादायोक्तदोषस्य वारणोय- तया (१) अयोगोल्नकभेदादैेरभावमादायेवातिव्याक्षिवारणसम्भ्वात्‌ याट्‌ शप्रतियो गितावच्छटकः यो घश््रस्तदिशिष्टताटशप्रतियोगिताख- यसामानाधिकरणं विवक्तणोयं तेन समनियताभावेक्यमते वाच्य- त्वत्वादिना धवटायभावस्यापि घटत्वादिना वाचयत्वाद्यभावाभिन्न- तया वायत्वादिप्रतियोगिकत्वेन प्रतियोगितावच्छेदकवाच्यत्वत्ला- दिविगिषटवाचल्वादिरूपप्रतियोगिसामानाधिकरण्यऽपि न चति: | न चैवमपि वाच्यत्रादिसाध्यकस्ले सव्बषामेवाभावानां gear. दिहत्तित्वविशिष्टस्वाभावरूपप्रतियोगिसमानाधिकरणतया प्रति- योग्यसमानाधिकरणाभावाप्रसिदिरिति वाच्यम्‌ | स्वावच्छदटक- विशि्ट(र)खाखयाधिकरणव्रचभावोयप्रतियोगिताभिन्नरत्ेन व्याप- कतावच्छेटकावच्छिद्रप्रतियोगिता विशेषरौयेत्यठेव प्रतियोगिता- (१) द्रव्यत्वस्ाध्यकस्यठे टोषसख वारणोयतयेति ure | (2) उभयत्र स्वपदं प्रतियोगितापरम्‌। व्याञ्भिवादः | ४१५ वच्छेदकैत्याटेस्तात्पव्धात्‌। वाचयलत्त्वादयावच्छिन्रघटाटिनिष्टप्रति- योगितायाः स्वावच्छेटकविश्ि्टिखाश्याप्रसिदया निरुक्नप्रति- योगिताभिन्रत्वेन तनिरूपकाभावमादाय वाच्यलादिसाध्यकस्थले लत्तणक्षमन्वयसम्वात्‌ । न च तथापि एतदभावभिन्नं मेयवादि- त्यादौ साध्व्यापकतावच्छेदकसमानाघकरणधम्म्रीवच्छिन्रप्रति- योगिताकाभावस्य रतदभावमातरहत्तरभावमाताधिकरणकतया अधिकरणस्वरूपत्वाटेतदभावमेदादिरूपप्रतियो गिसमानाधिकरण- तया निर्क्प्रतियोगिताभिन्नव्यापकतावच्छेद्‌कावच््छिननप्रतियोगि- ताकोऽभावो व्यधिकरणघम््ावच्छिन्राभाव एवेव्यतिव्यािरिति वाचम्‌ । सरावच्छेदकाविशिष्टसख्राखयाधिकरणे सखनिरूपकाभाव- aa aad योऽभावस्त टीयध्रतिषोगिताभिन्रत्रेन च व्यापकता- वच्छद काव च्चछन्नप्रतियोगिताया विशेषणौोयतया एतदभावा- धिकरणे च एतदभावभिन्ने एतदभावरूपेतदभावभेदाभावस्य हत्ता- वपि तादृशधिकरण एतदटभावभेदटो नास्तोत्यप्रतीत्या एतदभाव- भेदल्वावच्छिद्नप्रतियोगिताकाभावत्वन तस्यात्त्िलादट्‌तदभावभेद- त्वावच्छिन्नप्रतियोगितायां निर्क्तप्रतियोगिताभैदस्यान्ततत्वाटि- aig: | तच्खिन्त्ं, व्यापक ताघटकसम्वन्धाव च्छित्राभावनि वेशे व्याप- Haat प्रतियोभिवेयधिकरखयस्याभावाविगेषणत्वऽपि संयोगा- दिना घुञ्मादिसध्यकव्यभिचारिखयोगोलकान्यत्वामावमादायाति- व्याक्चिवारणसश्चवात्‌ ad ठत्िवेशप्रयोजनाभावेन (१) ्रव्याप्य- ठत्तिसाध्वाभावमादायाव्या्यनवकाशात्‌ अभावे aaafaatfe- (१) aq व्याप्रकतायां प्रतियोगिकेयधिकरण्यनिवेशप्रयोजनाभावेन | ` ४१६ अनुमानगादाधय्यां विगओेषणव्या्च्यसङ्गतेः, असु वा साध्यव्यापकतावच्छदकस्यापि साध्यवन्निष्ठव्यधिकर णघम्प्रवच्छित्राभावप्रतियोगितानवच्छेद कतया तदभावव्यावत्तनायव्यापकताशरौरे प्रतियोगिवेयधिकरश्यप्रवेश- स्तथाप्येताषृशप्रतियोग्यसामानाधिकरण्य विवक्षणे तस्य (१) अव्या्ि- वारणप्रयोजनकत्वाभिधाना सङ्गतेः, अभावे तदनि३शे व्याप्यहत्ति- साध्यकेऽपि यावव्छाध्यवदिषयकजन्यज्नानव्यक्तिविशेषस्य प्रतियोगि- वेयधिकररयघटितमाध्यव्यापकताययत्वात्‌ कालविशेषावच्छेदेन हेतुमति तदभावदठत्तरसम्भवस्यैव प्रसङ्गात्‌ | अरत वदन्ति(२), प्रति- योगितावच्छेदकावच्छिन्नप्रतियोग्घनधिकरणे ठत्तित्रमेव तद थं;(३) aq (४) व्यधिकरणधश्मावच््छित्राभावस्य प्रतियोगितावच्छेदकवि- शिष्टप्रतियोग्यप्रसिदया केवलान्वयिमाध्यके प्रतियोगिव्यधिकरण- तादशामावाप्रसिङः (५) अव्यािरिति चेत्र (६) प्रतियोगिताव- च्छद्‌कावच्छिद्नप्रतियोग्यनधिकरणत्वं हि सखप्रतियं)गितावच्छेद्‌- कावच््छिन्रखप्रतियो गिह्ठन्तिप्रतियो गितावच्छद कताकभेदवच्चं (७) त्नेयत्वत्वादिना वाच्त्वाद्यभावस्य तादटृशभदस(मानाधिकरणय- (१) व्याप्यद््तित्वादिविशेषखणसय | (>) अत्र वदटृन्तोत्यत्र परे fafa पा०। (2) प्रतियोगितावच्छेद्ङत्ादेरयः दूति ute | (४) waar न चेति पा०। (५) प्रतियोगितावच्छेदृकविशिषटप्रतियोगगिव्यधिकरणसाध्याभावापसिङरिति (&) दति चेच्नेत्यत्र दूति वाच्यमिति ato | (9) सप्रितयागिटत्तिप्रतियोगितावच्छेट्क aaa cag त्त्त्वामिति QTo | व्याभिवादः | ४१७ रूपं (१) प्रतियो गितावच्छेदकावच्छिन्नप्रतियोगिवेयधिकरस्यं सुघ- रमेव, व्यधिकरणघ्रम्मीवच्छित्नप्रतियोगितावच्छेदकताकस्य (२) ज्नेयत्त्वेन वाखत्ववदहंदस्येव तथात्वात्‌, कपिसंयोगाभाववान्‌ मेयल्लादिल्यादो कपिसंयोगादिरूपसाध्याभावस्यापि ज्यत्वत्वा- दिना कपिसंयोमाभावादिमद्घदसामानाधिकरण्यसत्वात्‌ तस्य च स्वप्रतियोगितावच्छदकावच््छिव्रप्रतयोगिवेयधिकरणनिरू- पकाधिकरणाप्रसिद्या अव्याभिरतः खप्रतियोगितावच््ेदकाव- च्छिन्रत्वं मेदप्रतियोगितावच्छेदकतायां विशेषणं, aaa कपि- संयोग।त्काभावोयप्रतियोगितावच्छद कौभरूतसमवेतसामान्याभाव- त्रावच्छिन्रसमवेतसामान्याभाववद्धेदस्यापि निर्क्तप्रतियोगिता- वच्छछेदकतानिरूपकत्वात्‌ तत्सामानाधिकरण्यमादाय कपि- संयोगाद्यालकाभावानां प्रतियोगितावच्छछदकावच्छित्रप्रतियोगि- वेयधिकरखयवारणाय साध्यतावच्छद्‌ कावच्छिन्नव्यापकतावच्छ- दकत्वेन प्रतियोगितावकचछेदकं विशषणौयं, समवतसामा- न्याभावलत्वादे कपिसंयोगाभावादिव्यापकतानवच्छेदकतया न दोषः। न चात्र साष्यतावच्छट्‌कावच्छिन्नव्यापकतावच्छटक- त्वेन प्रतियोगितावच्छेटकषे विशेषिते तत्तत्साध्यव्यक्चभावादोना- मोटटशप्रतियोगितावच्छेद कावच्छिन्र प्रतियोगिवेयधिकरणं न घटते साध्यतावच्छेद कावच्छित्रव्यापकतावच्छेदकोभ्रूत-खप्रतियोगिताव- (१) तादशभेट्समानाधिकरणतयेति पा | (२) व्यरधिकरणधम्दमौवच्छिन्नप्रतियोगिदत्तिप्रतियोगितावच्छद्कताकमद्‌- स्येति uto | AR ge अरनुमानगादाधय्यां च्छेटकाप्रसिदधेः तथाच (साध्याभावश्चेल्यादिना साध्याभावपटेन साध्यतावच्छेट्‌ कावच्छिन्रव्यापकतावच््छदकरूपावच्छिन्नप्रतियोगि- साकाभावविवच्णा सङ्गतिरिति वाच्यम्‌। साध्याभावशरेव्यादिग्रन्यस्य व्याप्य त्ति निषेणकल्पे aura साध्यतावच्छद कावच्छिन्नत्यादिवि- शेषण्टानपरत्वात्‌, दितोवकल्ये च प्रतियोगितावच्छेदकावच्छितरे- aa प्रतियो गितादच्छेद कस्य ताड शव्यापकतावच्छद कत्वेन विगशेष- रात्ताटशरूपावच्छिन्प्रतियोगिताक एवाभावो लक्षणघट क TAA Aaa एतत्कल्प Bait तादटगप्रतियोगिताकत्विशेषणविरहे- ऽपि चतिविर्हात्‌ aaa कपिम॑योगाभावल्वादिना azifeage- सामानाधिकरखम्ादाय तद्ौषवारणाय सप्रतियोगित्रत्िलं भद- प्रतियोगितावच्छेदकलताःयां विशेषणं, संयोगसामान्याभावादटेरपि कपिसंयागाद्याल्काभावप्रतियोगितया कपिसंयोगादयत्मकाभावस्य प्रतियोगितावच्छटककपिसंयोगाभावत्वादिना संयोगसामान्या- भाववद्धेदसासानाधिकरखमादाय तदोषतादवश््यवारणाय AlE- श्र प्रतियोगितावच्छदटको यो घश्मस्तदवच्छित्रताटशप्रतियोगिता- य यहत्तित्वभेव भेटप्रतियोगितावच्छेद कलायां निवेश्नोयं, कथपि- संयो गाभावत्वञ्च कपिसंयोगाभावनिष्ठप्रतियोगितायामेवावच्छदकं संयोगसामान्याभावख न तादृशप्रतियोगिताखय इति न तादटभेद- मादाय टोषः। मेदप्रतियोगितावच्छदकतायां सखप्रतियौगिताव- च्छेट्‌कमम्बन्धावच्छिन्रतमपि निवेशनोयं तेन कपिसंयोगादययातमका- भ्रावस्य कपिस॑योगाभावल्ाद्यवच्छिन्निकपिसंयोगाभावादिनिष्टविष- चवितादिसस्वन्धावच्छिन्रप्रतियोगितावच्छेदकताकभदसामःनाधि- aifaate: | ६१९ करण्येऽपि न तदोषताद वस्थ्यम्‌ । एवं प्रतियौ गितावच्छेद काव च्छि न्नप्रतियोगिवेयधिकरणयनिरूपकत्वं खनिं यत्खप्रतियोगितावच्छेद्‌- कावच्छिन्रखप्रतियोगिनिष्प्रतियो गितादच्छदकताकमेदसामाना- धिकरर्यं तत्िरूपकल्वम्‌ sat व्यधिकरणधम्धावच्छिन्नाभावस्य प्रतियोगितावच्छट कवि गिष्टप्रतियोग्य प्रसिद्धावपि न तादशणाधि- कारणा प्रसिदिः(१)कपिसंयोगो tag uatfearel हेत्वधिकर रेऽपि द्रव्यत्वादिना कपिसंयोगादिमतः क्िसंयोगलत्रादिना च द्रव्यला- दिमतोभेदसच्वात्तस्यापि ताद शाधिकरणल्वापत्तिरतोऽवच्छिन्रान्त- निष्टान्तयोरुपादानं, पूव्वत्तणगदिवरतिलविशिष्टसखवाभावत्वादिरूप- प्रतियोगितावच्छदकरूपेण कपिसयोगादिमडइदमादाय तदोषताद- वख्यमतस्तग्रतियोगिता खयनिष्ट प्रतियोगितावच्छटक तायां तदव- च्छेटका वच्छिव्रत्वं विशेषणोयम्‌ । एवं विशिष्ट साध्यव्यापक तावच्छे- दकत्वेनापि प्रतियोगितावच्छेदकं विभ्षणेयं, तेन संयोभौ द्रव्यता दिव्यादौ संयोगाभावस्य दृव्यहस्िलात्तम्रतियोभितावच्छेट्‌क- दरव्यर्चातित्विशिष्टतावच्छिन्नाभावत्वावच्छिन्नदरव्यत्तत्तित्वविशिटला- वच््छिन्राभावनिष्टप्रतियो गितावच्छेदकताकभेदवचछस्य द्रव्ये स्वा aa न प्रतियोगिवेयधिकरणयनिरूपकल्वापत्तिः । एवं सम्बन्ध- विषनिेशएनमपि (२) पूव्वेवद्ोष्यमिति ! तथाच खाखयनिष्ठमेद- प्रतियोगितावच्छद क साध्यतावच्छेद कावच्छिब्रव्यापक तावच्छेदक- (१) प्रतियोगिवेयकरण्यनिरूपकाधिकरणाप्रसिङ्धिः। (२) सख्वप्रतियोगितावच्छट्‌कसम्बन्धावच्छिन्नत्वं भटप्रतियोगितावच्छद्‌कतायां निवेश्यं तेन कपिसंयोगो एतदृच्तवादिव्यादो नाव्यात्धिरिवि' ४२० अनुमानगादाधय्या रूपावच्छिन्ना यावत्यः प्रतिघोगितास्तत्तद वच्छेद काव च्छिन्रतत्तदा- खयनिष्टप्रतियोगितावच्छदृकताकभेदवद धिकरण ्तित्वतलव्यापक- तत्तत्लजातोयप्रतियो गितानिरूपकाभाववत्वभेवेति निष्कः (१) साजात्यच्च पूरन्वकरूपेणिति (२) dag) अभावे वथाञयुतसाध्यप्रति- Rinna परित्यज्य प्रतियोगितावच्छछदकं साध्यतावेच्छेदकावच्च्छि- न्नव्यापकतावच्छेटकत्वविश्ेषणस्य व्याप्यतत्तित्ादि विशेषणस्य च व्याद्त्ति माइ (२) "तेनेति, (तत्त त्साध्यव्यक्तोरभाववति ₹हतोवंत्तावपि नाव्यािरिति योजना, एतद्रूपवान्‌ एतद्रसादित्यादौ प्रतियोगिता वच्छट्‌ कावच्छित्रप्रतियो गिव्यधिकरणससाध्याभाववति डतोरव्रत्त- लच्षणगमनान्रासम्भवः (४) । ग्रथ साध्यवति एतद्रूप-तद्रपोभयलवा- वच्छिन्नाभावसच्चेन तापि लक्षणगमनास्म्भवः। न च नासौ प्रतियोगितावच्छट्‌ कावच्छित्रप्रतियोगिव्यधिकरणः प्रतियोगिता- वच्छ्टकोभूलोभयत्वेन रूपेण उभयवद्खदस्य उभयवतोःऽप्रसिद- त्वनाप्रसिद्रिति वाच्यम्‌ । उभयवलेनान्यतरवद्दस्य तादृशभाव- प्रतियोगितावच्छेद कावच्छित्रतव्रतियोगिहत्तिप्रतियोमितावच्छद-- (३) इति रिष्करषं इत्यनन्तरं "एतं सम्वन्धविशेषनिवेशनसपि पूव्वेवद्‌ बोध्यमिति ue: दति पाठः कस्िंयिदादशपुसूऊं वर्तते | (२) साजाव्यञ्ज समानाधिकरणधम्मावच्छिच्नत्व-व्यधिकरणधम्प्रांवच्छिच्नत्वा- न्यतररूपेेतोति पाः | (a) प्रयोजनमादहेति ato | (3) प्रतियोगितावच्छद्‌कावच्छिन्नप्रतियोगव्यधिकरणसाध्याभाववन्निःसाध्य- मेष तत्न हेतोरदत्तलेच्णगमनाच्नासम्भव दति पा.| व्या्चिवादः | ६२१ कताकस्य उभयलेनान्यतराभाववति सत्वात्‌ (१) तस्यापि (२) ताटटशमेदमादाय aura (2) इति चेत्र, व्यासज्यठत्तिघश््रा- नवच्छिन्नप्रतियोगिताकस्य खव्यापकसाध्यतावच्छेदककप्रतियोगि- ताकस्य वा अभावस्य निवेशे ताटहृणोभयाभावादिवारणं सम्भवति इत्यभिप्रायेणाव्यासिलिखनात्‌ । (अव्याप्यहन्तर्बेति । यद्यप्येतद्‌- qa स्यसुक्तस्याभापे व्याप्यह्त्तित्ादिविशेषणस्य प्रयोजन- दभैनपरत्र argue कपिसंयोगाभावादिपरभेव वाचयं नतु कपि संयोगादिपरं, कपिसंयोगादिसाध्यकस्यले कपिसंयोगाद्यभावस्य लक्षणघट कत्वेऽपि अ्रधिकरणपदस्य व्याप्यत्रत्तिलादिनिरूपकाधि- करणपरताया अभावे व्याप्यत्रत्तित्वादिनि वेगेऽपि आवश्यकत्वात्त- दौयव्याप्यठत्तितानिरूपकाधिकरणे गुणादौ हेतोरवत्तेरव्या्य- नवकाशात्‌, कपिसंयोगाभावादेर्गणादौ निरच्छित्रहत्तिकल्वादि- रूपव्याप्यहत्तिलादिसच्चन तादटगविशेषणेन व्यावत्तनासम्भवाच, तथाच कपिसंयोगाभावादिसाध्यकस्थन्े कपिसंयोगायामका- भावस्य लच्षणघट कत्वऽपि तदोयव्याप्यहत्तितानिरूपकाधिकरणा- प्रसिदिरेवाव्यास्िप्रयोजिका न तु तादशाभावोयाव्याप्यत्तत्तिता- निरूपकाधिकरणे उ तोर्ठत्तिरिति त्तावपि ईतोरिति न सद्ग च्छते. तथाप्यभावे व्याप्यहत्तितानिषेश्यानुपादाने यावदन्तगतकपि- संयोगाटौनां व्याप्यघ्वत्तितानिरूपकाधिकरणाप्रसिदिः स्यारिति (१) उभयत्वेनान्यतराभाववति साध्यवति सत्वादिति wo | (२) उभयत्वेनान्यतराभाञस्यापीति। (२) प्रतियोगिव्यधिकरणत्वात्‌ | ६२२ अनुमानगादाधयां तादृशाधिकरणपय्यन्तं a विवत्तणोयं तथा सति अव्याप्यघ्रत्ति- साध्यकखले हेतोः साध्यामाववदुत्तित्वनिबन्धनाव्यासिः सा च व्याप्यहत्तिलाद्युपादानान्न भवतोव्यभिप्रायः। अथवा कपिसंयोगा- दिसाध्यकद्यले हेतोः साध्याभावोयाव्याप्यत्तत्तितानिरूपाधिकरण- afad ततस्थलोयाव्याप्षिवारकव्याप्यह्रत्तितानिरूपकाधि कर ण- तस्तित्वनिवेशनौपयथिकम्‌ अतस्तदधोना या कपिसंयोमाभावादि- साध्यकस्थरे कपिसंयोगाद्यात्काभावोयताटशाधिकरणाप्रसिदि- निवन्धनाव्यात्िस्तत्सम्पादकमपोति न तादशग्रन्यासङ्गतिः | एतेन व्याप्यठत्तितानिरूपकाधिकरणानिवेशे व्याप्यत्रस्तिसाध्यकस्थलेऽपि त्तरएविरेषठत्तित्विशिष्टसाध्याभावस्य प्रतियोगिवेयधिकरण्य- घटि तसाष्यव्यापकतावच्छद कावच्छिन्नप्रतियोगिताकस्याव्याप्यहत्त- रधिकरणे Sagal लक्तपगमनासम्भवात्‌ AWA एव सन्भवतो- व्यव्याभिरिति लिखनं न युज्यते इत्यापि निरस्तम्‌ | ननु ata ध्याभावाधिकरणव्रस्तित्वस्य हेतुदत्तितानवच्छद कविगेषघ ्-व्यास- ज्यद्ठत्तिघस्मावच्छिन्नाभावमादाय व्यभिचारिखतिव्या्िस्तत्तता- ` ध्याभाववहत्तित्वत्रावच्छित्राभावं निवेश्य agra चेत्‌, तदा व्यधिकरणधरम्मावच्छिन्रसाध्याभावसजातोवस्य aera तद हत्ति- aaa घटाद्यमावस्य प्रसिदिगुरुधरस्य प्रतियोगितावच्छेदकतवा- ङकार एव सम्भवति, WAT ताष्टशाभाववहत्तिलत्वरूपलघुधम- समनियततया प्रतियोगितानवच्छंदकत्वन तदवच्छिन्राभावा- प्रसिद्धेः, अन्युनानतिरिक्रहत्तितलरूपाव च्छिन्रतनिवेशे gestae: क्ृदान्यनिधृमहत्तिलोभयाभावादेनिधूमहत्तिलल्वादिसमनियतप्र- व्या्िवादट्‌ः | ४२३ तिथोगिताकतया तदति धुमादिसाध्यकवह्कादिहेतावतिव्यासेः, तत्तत्साध्याभाववहत्तितत्ववि षिषटव्यापकतावच्छटकरूपावच्छिन्ना- भावादिनिषेशे च निधूमहत्तितलल्वादिना हदव न्ित्र-घटादयन्यतरा- भावमादाय (१) तद्ोषतावस्थ्यमित्यन्याहशमभावं तत्तदधिकरण- छत्तित्वाभावपदेन विवक्षति, (तददिति, व्यापकान्तमनवच्छित्रा- aa प्रतियोगिताविग्रेषणं,प्रथमविगेषणप्रयोजनमादह,.साष्याभाव- qeifafanefa aa व्यक्ती Zac a awa ताटटश्कदादि- व्यक्रोत्ययः, व्यभिचारनिरूपकरहेत्वधिकरणमाचह््तिर्योऽयोगोल- कादिव्यक्तिविशेषाहत्तिलादिरूपसाध्यतावच्छद्‌ कावच्छिन्नव्यापक- तावच्छेदटकरूपावच्छ्ित्राभावः (२) तद्द्मक्तिविशेषह्तित्वाभावस्य डेतावसम्वत्‌ किखिदिशि्टिस्य ताहशाभाववहत्तित्वस्याभावमा- दायातिप्रसद्गः दशयति, 'पार्थिंवत्वादिविशेषितस्येति, अगरिभेण “साध्याभाववहत्तित्वस्येत्यनेनाज्विते, बह्भयादौ पाथिवलादि विशे- पणामावात्तदिथिष्टनिधूमहत्तितवाभावस्यापि तच सच्वात्तमादा- jaa, दितीयविशेषणप्रयोजनं दशयति, हित्वा यवच्छिन्न- स्येति घट -निधूमहत्तितलोभयत्वा यवच्छि्स्येत्ययः, ना तिप्रसङ्- इति, क टा दिहत्तिलल्र-पाथिल्वादिवििष्टनिधूमहत्तिलत्वावच्छि- त्राभावप्रतियोगिताया व्क 7ादिहत्तिनिधूमहत्तितवादयहत्तितया तत्तत्‌साध्याभाववदु्तित्त्वादयव्यापकत्वात्‌, दहित्वादयवच्छिन्नाभाव- न~ (१) द्र ्तित्व-घटदत्तित्वान्यतराभावमाद्‌ायति ute | (२) योगोलादिव्यक्रिविशेष्रात्तित्वादिरूपस्य साध्यतावच्छद्‌ कावच्छिच्नव्याप- कत।वच्छेद्‌ृकष्ट्पे अभेदेनान्वयः| ४२४ अनुमानगादाधयां प्रतियोगितया दित्व(दिवद्व्यासन्यहत्तितवविरहेण निधूमठत्ति- त्वादिनिष्ठमेदप्रतियो गितानवच्छेदकल्वरूपनिधूमहत्तित्वतवादिव्या- पकत्वसच्वेऽपि व्यासज्यहठत्तिधम्मावच्छित्रत्वात्ताटृश्णभावानां aa- णाघटकत्वादिति भावः । amare तत्तत्साध्याभाववदु- स्ित्रनिष्ठभेदप्रतियो गितानवच्छट्‌ कत्वरूपव्यापकत्वविर हात्‌ तत्त- त्साध्याभाववदुत्तित्वत्वव्यापकधन््रावच्छिन्नाभावनिवेशे fearaa- च्छछत्राभावमादायातिप्रसङ्गस्य वारणसम्भवेऽपि प्रतियोगितायां व्यापकत्वविशेषणा प्रवेशे निधृमहत्तितत्वादिना दादि हत्तित- चटान्यतराभावमादाय (१) अतिप्रसङ्गो न शक्यते वारयितुमिति aq तददिगेषणप्रवेशस्यावश्यकल्े तत्तदभाववदुततित्रत्व्यापक- धम््रावच्छित्रायाः तत्तदभाववदहत्तित्वतव्यापकप्रतियो गितायाः समानाधिकरणध सा वच्छित्रतनियततवेन ofan त्रतदभावासंग्रहः, तत्तदभाववष्ुत्तितालव्यापकत्वेन fanfaarai प्रतियोगितायां तत्तदभाववद्ुत्ितालव्यापकतावच्छदकावच्छि- aa निवेश्य वाचत्वत्वादिना साध्याभाववदहुत्तिलाभावसंग्रह- सम्भवेऽपि गौरवसिति व्यासज्यत्रततिधम्यमावच््छित्राभाववारणाय तादटृश्धश्चानवच्छिन्रत्रमेव लाघवात्रिवेणवितुमुचितसिति (2) - तदेव निवेशितं, व्यासज्यत्त्तित्च्च स्समानाधिकरणभदप्रति- योगितावच्छेदकत्वम्‌ । (साध्याभाववदुत्तित्रमिति साध्याभाववत्‌- (१) दादिटत्तित्व-घटद्ितान्यतराभावमादटायेति ato | (२) तत्तत्साध्याभाववदु त्ित्वत्वव्यापकधम्प्रावच्छिन्रत्वापेत्तया लाघवान्निवेश- faqataafaaifa ato | व्या्चिवादः। ४२५ सम्बत्मित्यधः, तेन तादानपादिसरम्बन्धेन दत्तेरप्रसिद्ावपि न॒ तत्सम्बन्ावच््छिन्रहेतुकस्लेऽव्यास्षिः, सम्बन्धप्रतियोगितरूप- सम्बडतवेकदेरे Ba 'हतुतावच्छेदकसम्बन्धेनेति ठ तीयार्घारेदा- न्वयः, 'ठत्तावपौति सम्बद्त्वऽपोत्यथ॑ः, ‘a दोष इति, डतुतावच्े- टकसस्बन्धानिवेशे वङ्किमान्‌ धूमादिल्यत्र वद्कप्रभाववत्‌संयुक्त- लत्वावच्छित्राभावप्रतियोजिदाया वह्भयभाववत्छमवेतलावयहत्ति- तया सामान्यतो वद्कयभाववहत्तिल्वं॑प्रत्यव्यापकत्वेन तादृशण- भावस्य लल्णएघटकत्वानुपपत्तेः, व्कयभाववहत्तित्रलव्यापकप्रति- योगिताकस्य तदहत्तितसामान्याभावस्य वद्कयभाववत्समवेतत्व- वति धूमेऽसचखादव्यासिः प्रसज्यते, हतु तावच्छेद कसस्बन्धनिवेधे च निवंद्धिसंयुक्लल्लवावच्छिन्राभावस्यापि तादटशसग्बन्धावच्छिननसाध्या- भाववटसिवल्व्यापकप्रतियोमिताकत्ेन लचखरवटकतया तसमा- दाय watauga इति भावः । ‘say ईतुतावच्छद क सम्बन्धेन साध्याभाववद स्तित्रविवन्नणे च, सतोति wa, एतद्‌ विवत्तणे च वच्यमाणाप्रसिदिविरदह्ादुपष्ट्यासङ्गतिः, हेतुतावच्छेद कासम्बन्धेन कस्यचिदधिकरे वत्चमान इति अनुधोगितासम्बन्धेन Sqara- च्छेद कसम्बन्धवदुत्तिरित्यथेः, अथवा ₹ेतुतावच्छेद्‌ कसम्ब्धेन धड्च- वहत्तिरित्येवाथः, विश्रिष्य डतुतावच्छेदकपुरस्कारेण Fqaw- निषेशनसश्भवेऽपि कहपदाघघटितद्ेतुतावच्छेदकस्थसे waa निदेथापेच्या तेन रूपेण निवेशं गौरवमिति सामान्यतो निवेशलाभाय (कस्यविदित्यभिदहितम्‌ । अथ द्रव्यं गुण-कश्मान्यत्वे सति सक्छादित्वादौ समानाधिकरणधन्मावच्छिन्नप्रतियोगिता- ५४ ४२६ अनुमानगादाधयां कस्यापि साध्याभावस्य सत्तादिरूपदेतुसामानाधिकरणखसम्भवे- ऽपि ₹हेतुतावच्छदकविशिष्टहेतुसमानाधिकरणनिसक्तसाध्याभावानां व्यधिकरणधग्पवच्छित्रप्रतियोगिताकत्वनियमात्ताटश्डेतुसमाना- धिकरणत्वेनाभावविश्रषणे केवलव्यधिकरणधम्मावच्छितरप्रतियोभि- ताकत्वरूपरणेव साजात्यविवक्षणं समश्यवतोति तत्रिवैश्रनमेवो- चितसिति चेन्न, तथा सति ताहशयावत्साध्याभावसजालोयवच्छ- स्येव लक्षणत्वं सम्भवतोति व्यभिचारिणि समानाधिकरण्धस्या- वच्छिन्नभावस्यापि विशि्टहेतुसमानाधिकरणत्वन aawaca- तया तद्‌षटितयावदभावसजातोयाप्रसिद्धेपवातिव्यासिविरहात्‌, सद्धेतौ तादययावटभावसजातोयव्यधिकरण वम्रो वच््छिन्रप्रतियोभि- ताकयक्विञ्िदभावमादायेव लन्षणएसमन्वयसम्धवादिति साध्या भाववदु्तित्वाभाववच्वविगेषणवेयथ्थापत्ते; | “ईतुतावच्छेट कसस्व- न्धनेति समवायादिसम्बन्धनेत्यथः, साष्याभाववदहुत्तितवस्यः समानाधिकरणधग््ा वच्छित्रसाध्याभाववदुत्िलस्य, न कतिरिति, ताटगस्ताध्याभावस्य समवायादिसम्बन्धानुयोग्य्त्तितिया व्यधि- करणध्ावच्छिजाभावस्येव लक्णघटकत्वात्तहति च ताश सम्बन्धनापि वत्तः ufasfifa भावः। अरत च द्रव्यं WHAT wa सति सच्वादिव्यादावव्याक्षिविरेष्य-विशेषणशसम्बन्धस्य परम्प- स्या हतुतमभ्यपैव्य वारणौयेत्यभिप्रय हेतुता वच्छेद कसम्बन्धेन किचिदाक््यधिकरणतस्तिलिमभावे दिवक्तितम्‌। यदि च anita विशिषटसत्तालादिना व्याप्यं ईतुतावच्छदकविशिष्टनिरूपित- हेत्‌ तावच्च्छेद्‌कसम्बन्धावच्छिन्नाधिकररतासामान्ये तत्त त्छाष्याभाव- aifaate: | ४२७ सजातोयतत्तदधिकरणानुयोगिकत्वाभावं तत्तत्साध्याभाववदृहत्ति- तासामान्ये तत्तस्ाध्याभावसजातोयहेतुतावकच््छेद क सम्बन्धावच््छि- न्रत्वविशि्टडेतुतावच्छेदकावच्छेवयत्वाभावं वा निवेश्य faataa तदा जातिमान्‌ सच्चादित्यादावुपदगिताप्रसिदिनिबन्धनाव्यामे- शक्र विवक्षामन्तरेलेव (१) वारणं सन्धवतोत्यवक्रेयम्‌ | afa मिखस्य साजात्यघरितप्रथमल्तण्व्याख्या | तच्चचिन्तामखि-टौधितिः । मिश्रोक्साजाद्घटितदितौ यलक्षणम्‌ | यदा वावन्तस्ताटशाः साध्याभावाः waa तेषां सजातीयस्य व्यापकौभूतसख व्यप्यत्तेरभावस्यं ए्रतियो- गितावच्छेदकैन wan यट्रपावच्छिद्ं प्रति व्यायकत्वम- वच्छिद्यते तद्रूपवच्वं ad साधनस्य ताटशाभावप्रतियो- गित्वं तद्वच्छदकत्वं वा साधनतावकच्छेदकसयेति तुन वत्तव्यम्‌ द्रव्यं सच्वादिव्यादौ सच्छादेगुण-कम्मान्यत्ववि- शिष्टसत्तादादर्बच्छत्रप्रितयोगिताकतादशाभाव प्रति- योगिल्वादतिव्यापैः Ga प्रमेयाटिलादी प्रमेवत्वादेस्ता- हशप्रतियोगितानवच्छद्‌ कलत्वादव्याप्रेश्च vacates करणप्रतियोगित्वसयाप्रसिदः | डेततावच्छेट्‌कसम्बन्धेन कखवचिटधिकरणे वसमानसाध्याभावविवच्ता- मन्तरोणवेत्यय : | २२८ अनुमानमादाघय्ां गादाधरो विहतिः! faarg साध्याभाववदहुत्तिलाभावरूपव्याप्रेजीतिमान्‌ सत्वात्‌ दरव्यं विशिष्टसच्वादित्यादावव्यासिमालोचख सकलसाध्याभाववन्नि- छाभावप्रतियोगिलरूपामैव व्यिं साजात्यादिघटनया परिष्कुत- वन्तः तत्मरिस्छते च यथाखुते वच्य माणएदोषमुदन्तं सभावप्रतियो- गिलस्से खावच्छिन्रव्यापकतावच्छदकतव्रतियो गितावचूद्‌ क- कलत्वरूप पारि भाषिकतत्रतियोगितावच्छद कत्वाथ्यरेतुतावचूद्‌- aad निदेशयं स्ता णएलच्णमा ह, “यदेति, "तादृश्णः व्याप्यघ्न- तयः, साध्याभावः” साध्यतावच्छद कावच्छिद्नव्यापकतावच्छदक- रूपावच्छन्रप्रतियोगिताकामादाः, ्रतयेकन्तेषां सजातोयस्य व्या- पकीभ्रूतस्यः एकेकं तदभावसजातोयस्य तत्तदभावव्यापकौभूतस्य, “व्याप्यह्त्तेरभावस्यः,'प्रतियोगितावबच्छद केन waa यद्रूपावच्छिन्ं प्रति व्यापकल्मवच्छद्यते' प्रतियोगितावच्छेदकं यद्धतुतावच्छद- कावच्छिन्ननिरूपितव्यापकता वच्छेद वः, “aguaw’, “ard तेन रूपेण व्याप्यत, वङ्किमान्‌ धुमादिव्यादौ बवह्किलाद्यवच्च्छित्रव- छायभावसजातोयस्त द्यापकोभूतो धूमलाययवच्छिव्रधूमादयभावः, वद्ित्वाद्यवच्छिन्रघटादययभावसजातौयस्तद्यापकौभ्रूतो धूमलाद्य- वच््छिन्रघटादभावस्तद्रतियो गितावच्छद कं घूमत्वाद्यवच्छिन्नव्याप- कतावच्छदकमिति लक्तणसमन्वयः। व्यभिचारिणि धूमल्वाद्य वरच्छन्नव्यापक तावच्छ दकधूमल्वायवच्छिन्रघटाद्यभाव-ताटृशवद्कि- laa ee AAs II वयभावसजाती यतत्तटभावव्यापकर्बह्कित्ादयव- च्छित्रघटाव्भाव-वद्धित्रायवच्छिन्नवद्भयादयभावप्रतियोगितावच्छद- aaifaate: | BRE कवद्कितवादेवेद्किलायवच्छिन्नव्यापकतावच्छेदकत्वेऽपि atenata- त्लाध्याभावान्तगेतघूमत्वायवच्छित्रधूमायभावसजातीयतद्यापका- भावप्रतियो गितावच्छेद कस्य कस्यापि वद्धित्वादययवच््छित्रव्यापक- तावच्छद कल्वाभावान्रा तिव्यासिः । प्रथमाभावे व्याप्यत्रत्तितदविरेष- णात्‌ कपिसंयोगो एतदुक्लादिव्यादौ कपिसंयोगत्वायवच्छितर- कपिसंयोगाभावस्य केवलान्वयिनः सजातोयस्य व्यापकौभूत- व्याप्य ्रन्यभावस्याप्रसिद्वावपि न क्तिः armafaafafacae- भावं प्रत्येतदुक्तलाद्यभावस्य व्यापकत्वात्‌, साध्यतावच्छेदकसम्ब- aa साध्यव्यापकतावा विवक्षणोयतया संयोगेन द्रव्यस्या- व्याप्यह्ठत्तितामतं संयोगेन तत्‌साध्यके तादश्स्वन्यन व्यापकता- प्रसिद्धं व्यापकताघटकाभावे प्रतियोगित्ैयधिकरखयस्यावश्यं निवेशनौयतया साध्यवद्िहप्रतियोगिसमानाधिकरणाभावप्रति- योगितावच्छटकस्यापि dial: साध्यव्यापकतावच्छेदकत्व- मक्ततसमिति ध्येयम्‌ । नानाव्यक्तिसाध्यके तत्तत्ाध्यव्यक्तयभावस्य नानाधिकरणकोकव्यक्तिसाध्यके यक्िञ्िदधिकरणढत्तित्वविशिष्ट- साध्याभावस्य व्यापकोभूतोऽभावो न हैतुतावच्छेदकावच्छिन्र- व्यापकतावच्छेद कावच्च्छित्रप्रतियोगिताक इति ताटशसाध्या- भावव्यावत्तनाथ साध्यतावच्छेदकावच्च्छिन्नव्यापकतापकतावच्छे- दकरूपावच्छिन्नप्रतियोगिताकलत्वनिवेशनं, व्यापकता च are तावच्छद क सम्बन्धघटिता ग्राह्या तेन ससवायेन दरव्यत्वादिसाष्यक- गुणादिहेतौ विषयतया साध्यव्यापकस्य ज्ञानादेः साध्यता- वच्छद्‌कसम्बन्धावच्छित्राभायं प्रति हेतुना वच्छेटक सम्बन्धावच््छित्र- ४२० अनुमानगादाधथां दहेत्वभावस्याव्यापकत्वऽपि (१) न त्तिः । साध्याभावश्च साध्यताव- च्छट्‌कसग्वन्धावच्छित्नप्रतियोगिताको ग्राह्यः, तेन संयोगादिना वज्कयादिसाध्यक-धूमादिहेतौ समवायादिसम्बन्धावच्छित्रवज्कपाद्य- भावं प्रति संयोगादिना धूमादेरभावस्याञ्यापकत्वेऽपि न ata | व्यभिचारिणि समानाधिकरणधम्यावच्छिन्नामावव्यापकव्यधिक- रणडेतुतावच्छदकाद्यवच्छन्नप्रतियोगिताकाभावमादायातिप्रसङ्ग- वारणाय सजातोयत्वोपादानम्‌ । व्यतिरेकिसाष्यकस्यसे यावल्सा- ध्याभावसजातोयाप्रसिद्धया एक कतत्‌सजातोयत्वनिवेशएनं, साजा- त्यघटकसमानाधिकरणधम्म्रावच्छिन्नप्रतियोरिताकत्वादिकमनुगतं पूत्वनिरुक्रमेदकूटरूपमेव ग्राह्यं अन्यथा यच सिन्र-भिन्न- सम्बन्धेन साध्यहेतुभावस्तत्र साध्यतावच््छदक सम्बन्धा वच्छिद्रप्रति- योगिताकस्ाध्याभावस्य यादृशप्रतियोगितानिरूपकत्वं तस्येव तदत्तया सजातौयत्रेन तत्सजातोयाभावनिरूपितरेतुतावच्छेद- कसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगित्वा प्रसि: (२) सजातौवस्वापि साष्य- तावच्छेदकसम्बन्धावच्छिन्राभावस्य निवेशे हेतुव्यापकताया अपि तत्सम्बन्धघटिताया faaat उक्ताप्रसिदिनिवन्धनद्‌ोषासम्धदेऽपि सजातोयव्यापकोभ्रूताभावस्येव्यादि वेयव्थस्य दुव्यारत्वात्‌, (३) तत्परित्यागी च चरमनलक्षणए एव पयवसानात्‌। अथ सजातोया- (१) डहेत॒तावच्छेद्‌ कसम्बन्धावच्छिन्न हेतुव्यापकाभाञखाव्छापकत्वेऽपोति पा०। (२) सजातोयत्वेन तत्जातीोग्रडेतुतावच्छेटकसम्बन्धावच्छिन्नाभावाप्रसिदध- रिति ute | (२) व्यापकोभ्रतस्येला्ेर्वेवथ्येख दुर्व्वारत्वादिति ate | agifaatz: | ४२१ भावे हेतुतावच्छदकसम्बन्धावच््छिन्रप्रतियोगिताकत्वस्यानिवेशे- ऽपि खमावनिष्ठययाखतसाजात्यनिवेशपत्ते नातिप्रसङ्गः भ्रासत्ता- दिसाध्यक्षे विषयतासम्बन्धेन डतौ satel समवायादिसम्बन्धा- वच्छिन्नज्नानायभावस्य साध्याभावव्यापकत्वेऽपि यथासुतसाजा- व्याभावेनातिव्या्यप्रसक्तः, संयोगादिना वज्गयादौ साध्ये समवाया- दिना 2a रूपविशेषं प्रति छेतुतावच्छछदकसमलवायेन aE भावप्रतियोमिनोऽव्यापकलत्वऽपि च न दोषः साध्यतावच्छ्छेदक- सम्बन्धनेव हतुव्यापकताया विवक्नणौयत्ात्‌ इति चेत्तर्हि, सजातोयाभाक्ै साध्याभावव्यापकत्वविगेषणस्य वेयय्यमापद्येत खाव्यापकाभावस्य सखसाजात्यविरडेणेव व्यावत्तनात्‌, व्यभिचा- रिणि साध्यतावच्छेद्‌कएवच््छित्रसाध्याभावसजातोयदहेतुनावच्छ- दकायवच्छित्रहेत्वादयभावमादायातिप्रसङ्गस्य वारणाय व्यापकौ- भ्रृतस्येति, व्यभिचारिणोऽभावस्य च व्यसिचारनिरूपकाधिकरण- साघारण्साष्याभावाव्यापकलान्र दोषः! व्यापकलञ्च न तत्समाना- धिकारणाभावाप्रतियोगित्वं, सब्बस्येव तादटशदित्ादयवच्छछित्राभाव- प्रतियोभितया असम्भवात्‌ । न च तदधिकरण्ठत्तित्वं हेतुतावच्छे- दकसम्बन्धेनावप्यं वाचयं तथाच वद्धयादयभाववति धूमादययभावस्य घमादयनातसकदितवाद्यवच्छिन्नाभावस्य संयोगादिरूपद्धेतुतावच्छ- दकल मरञ्यन्धनाहरच्या A तमादाय टोषावस्र दति वाचम्‌ । एवमपि यच खरूपसम्बन्धेन हेतुता aa तादशाभावप्रतियोगि- लय हैतभावस्य व्यापकत्वानुपपत्तेरटन्धारत्वात्‌ । नापि atest भादप्रतियो सितानवच्छद्‌ करूपवच्छम्‌ तत्‌, ब्रभावत्ाद्यातमकता- ४३९ अनुमानगादाघयां टशरूपमादायाभावमा वरस्यैव व्यापकतया व्यापकलस्याव्यावत्तक- aa: एवं वज्नाायभाववति धूमावयवादौ समवायादिना वत्ते मानं धृमादिरूपमभावमादाय तदभावस्य व्यापकताभङ्गभिया डेतु- तावच्छेदकसम्बन्येन सामानाधिकरण्यस्य निवैशएनोयतया सत्तावान्‌ mafia सत्ताद्यभाववति मामान्यारौ डतुतावच्छछद कसम्बन्धन aaufasn अव्यासिश्चेति, तदच्रिष्ठान्योन्याभावप्रतियोगिता- नवच्छेद्‌कत्वमेव साध्वाभावव्यापकत्वं निधूमो afsquaite- त्यादो Sane वङ्भयाटेय प्रत्येकं धुमादिमव्रिष्ठभेदग्रतियोगि- ताच्छदकत्वऽपि च्रखण्डदय निव्वङ्किलप्रकारकप्रमाविषयलाव्यभा- वस्य तादशव्यापकतासम्भवात्‌ तग्मतियोगितावच्छद कावच्छिन्रस्य डेतुव्यापकतयेव लक्षणसमन्वयः। agfasd दे शिक विग्रेषणतया Wa, अतो वद्भयाद्यभाववति धूमायभाववद्वेदस्य कालिक- सम्बन्धन त्तावपि न afar) श्रभावाभावस्य प्रतियोभिरूपतवे- ऽपि अभाववद्भटोऽतिरिक्ञ एवातो धुमाद्यभाववत्ययोगोलकादौ दैशिकविशेषणतयावज्कयादयभाववद्धेदस्य वत्तिरव्यादहतेषेति a वद्कायभावस्य धूमाद्यभावव्यापकतापर्तिः । अथवा यदोयदेि- कविरशेषणतासम्बन्धसामान्ये तत्तत्साध्याभाववद्‌यत्कििदटुव्यक्यनु- यो गिकलत्वाभावस्तदन्यत्वमेव तत्तदभावव्यापकलत्म्‌ | “्रभावस्येति भावभिन्नस्येत्यधः, तेन धूमवान्‌ जलत्वाभावादिल्यादौ (१) जल- त्वादिनिरूपितदेशिकविशेषणताया saufaen तत्र निरुक्तभेद- कूटात्मकव्यापकतासच्वेऽपि नातिव्यासिः। अभावरूपसडतौ ₹- (१) @zatararfeaqrerfafa ao | व्या्धिवाद्‌ः | ४२३ तुमच्छप्रकारकप्रमाविषयत्वाद्यभावप्रतियोगितावच्छट्‌ काव च्छिन्न व्यापकतासादायैव लक्षणसमन्वयः | FAIA as रित्याटावयोगो- लकादावयप्यत्य्तित्का लावच्छेटेन वत्तंमानस्य व्या दयभावस्य निर्‌- कव्यापकतासचचादतिव्यात्तिरतः' “व्याप्यद्त्ते रिति । यद्यपि तादणण- भावा अपि टादौ व्याप्य्त्तयस्तथापि aiqefuatafave व्यापकत्वं विवक्षणौयं, अनव च्छिन्रदिशेषखतासब्वन्धेन व्यापकता- निवेगशलाभायेव वा तदुक्तम्‌ । अवच्छित्रत्तिकान्यत्ररूपं व्याप्यह- िलन्तु न शक्यते निवेशचितं संयोगेन सदंतौ हेतु तावच्छदकसम्ब- न्धावच्छिन्नहेत्वभावस्यातघालात्‌ प्रतियोगितावच्छछेदकेत्यत प्रति- योगिता हेतुतावच्छेदकसम्बन्धावच्छिन्रा ग्राह्या, अन्यधा व्यधिक- रणस॑स्वन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताकदहेत्वभावस्य साष्याभावव्यापकस्य समनियताभावेक्यमते व्यधिकरण घर्म्रावच्छछिन्नप्रतियोगिताका- भाव्ररूपतया समानाधिकरणघन््यावच्छित्रखाध्याभावासजातौयत्वेन तमादायातिव्याश्चिविरदेऽपि श्रात्मत्वादिसाध्यके विषयतया इतौ ज्नानादौ साध्याभावव्यापकसमवायसम्बन्धावच्छिन्नन्नानाव्यभाव- मादायातिव्यािः (१) अभावे हेतुतावच्छटकं सस्वन्धावच्छिनप्रति- योगिताकत्वविशेएणं wava च नातिप्रसङ्गवारणसमस्धरवः, सम- नियताभाञक्ये समवायसम्बन्धावच्छिन्नद्धानादयभावस्थापि स्वसम- वायिविषयकत्वमम्बन्धेन ज्ञानादिविश्िष्ट्ञानादटेविषयतासमस्बन्धा- वे च्छिद्धाभावसमनियतत्वन ताहगशसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताक- त्वात्‌, धुसायभावव्यापकमदानसौयवद्याभावप्रलतियोगिनो वद्कि- ~~ ~~~ -- ---- ~--~~~~~~ ~~~ (१) अतिप्रसङ्गादिति ute | ५५ B28 अनुमानगादाधयां तादिना बह्किलादयवच्छित्रव्यापकत्वादतिप्रसङ्ग इति ufaat- गिनो व्यापकतमुपैच्धय प्रतियोगितावच्छेदकस्य तदवच्छदकत्व- पथन्तानुधावनम्‌ । ea विश््टिसिच्चादिव्यादौ साध्याभावव्याप- काभावप्रतियो गितावच्छदकविशिष्टसत्तात्वाद्ेतुतावच्छेद कोपल- चितद्ेतुव्यापकतावच्छेदकत्वासम्भवात्‌ यं॒॑प्रतोव्यनुक्का यद्रूपाव- च्छन्नं प्रतीत्युक्त, व्यापकता च ईहेतुतावच्छेदकसम्बन्धेन ग्राह्या अलो महाकालभिन्नं कालत्वादित्यादौ साष्याभावव्याप्काभाव- प्रतियोगितावच्छदटकस्य साध्यतावच्छदकाटेः कालिकादिसम्बन्धेन खेतुव्यापकतायामवच्छेदकत्वेऽपि नातिव्याधिप्रसङ्गः। व्यापक- तावच्छछदकताघटरकसम्बन्धभेदनिवेशनादिकं स्वयमूह्यम्‌ (१)। न॒ च धूमवान्‌ वह्किमच्प्रकारकप्रमाविषयत्वादित्यादावति- व्यासिधूमाद्यभावव्याएकधुमाद्यभावस्य प्रतियोगितावच्छेटकजला- दिहत्तिल्विशिधूमाभावाभावत्वादेहतुतावच्छेद कख्रूपसम्बन्ध-- घटि लहेतुव्यापकतायामवच्दकलत्वादिति वाचम्‌ । भावत्रत्ति- प्रतियोगितावच्छदटकस्य व्यापकतावकच्छेदकताया विवक्तणो- यत्वात्‌ | यथायुतमियलक्तणसुपन्यस्य दूषयति, साघनस्येति, ‘arenfa ये ये साध्याभावः प्रसिदास्तत्तत्जातोय-तत्तदप्रापकेत्यथेंः | तत्‌- प्रतियोगिताद्ये समस्बन्धविदेषावच्छिन्रत्मनिवेश्य साध्यताव- च्चदकसम्बन्यघटितसाध्य-हेतुव्यापकत्वयोनिवेशस्तु न सम्यक्‌ तथा सति तादहगमाधष्याभावप्रतियोगितावच्छेदकं यद्रूपावच्छित्र- (१) व्यापकताघटक्रसम्बन्धभेद्‌निवेयनाटद्कं खयमूदयमिति पा०। व्या्षिवाद; t ४३५ BHAA इत्येतावतेव सामच्ञस्ये सजातोयव्यापका- भावांश्स्यानतिप्रयोजकत्वापत्तेः, उक्तरोत्यनुस्रणे च संयोगेन वज्नयादौ साध्ये रूपविश्ेषादेः समवायेन तुलायां संयोगेन साध्य- व्यापकस्य वह्ृ्हतुतावच्छटकसमवायेन हेलव्यापकत्वेनाव्याप्त- वारणाय दि तोयाभावनिवेशस्यावश्यकत्वात्‌ (१) । (तद वच्छद कतवः तादृशप्रतियो गितावच्छदकलत्वं, आये ‘gai सत्वादिव्यादाविति, दितोये ‘aa प्रभमेयादिल्यादाविति। ननु प्रमेयत्वादेः केवलान्वयि- तावच्छेदकत्वेऽपि वाचयत्वललादेरिव साध्याभावव्यापकव्यधिकरण- धम्मरीवच्छित्राभावप्रतियो गितावच्छेदकत्वमत्ततमेषेव्याशद्ं निर- स्यति, `प्रमेयललव्यधिकरणेति, प्रमेयत्रस्य केवलान्वयित्वादिति भावः । धूमाद्यभावं प्रति विषवितादिसम्बन्धेन वद्कित्वादयवच्छि- AQ योऽभावस्तस्य व्यापकत्वात्तमादटाय Baa साध्ये समवायेन द्रव्यत्वे हेतौ wad प्रति विषवितासम्बन्धेन द्व्यत्ववज्‌- ज्ञानस्य यः समवायस्रम्बन्धावच्छ्छिन्नप्रतियोगिताकोऽभावस्तस्य व्यापकत्वात्तमादाय चातिप्रसङ्कस्य वारणाय प्रतियोगितावच्छेदक- तायां हेतुतावच्छदकताघटकसम्बन्धावच्छिन्नत्स्यावणष्यद्धिषेशनो- यतया व्यधिकरणसमवायादिसम्बन्धेन प्रभमेयत्वस्याभावप्रतियोगि- तायामसमानाधिकरणतयावच्छद कत्वसम्धवेऽपि न निस्तार इत्यव- सेयम्‌ | अन्योन्यामाव एव व्यधिकरणघस््मावच्छिन्रावच्छेदट्‌कता- कोन त्वत्यन्ताभाव इव्यागयेनेदं, अन्यथा घटलत्वावच्छिन्नप्रमेयत्ला- (१) तल्मतियोगिताहय ूत्यादिः आवश्यकत्वादिव्यन्तः पाठः aBsy Blew पुस्तकेषु नास्ति ६२६ अनुमानगादाघ्यां वच्छित्नप्रतियोमिताकात्यन्ताभावसादाय लद्टएगमनसस्धवात्‌(१) qequaat गुरुधश्स्य प्रतियो्गितानवच्छेदकते कम्बभ्रोवादि- सचाव्यवच्छित्ररेतुकाव्यािरपि eye; एतेन व्यापकोभ्रूता- भावप्रतियोगितायां इतुतावच्छदकानवच्छिन्रत्व-व्यधिकरणधम्या- नव च्छिन्रत्बोभयाभावविवक्ण प्रभेयडहेतुकस्थसे वाच्यललादिना घटादययभावग्रतियोगितायां awards लक्णसम्र- न्वयेऽपि न निस्तारः। उक्तस्थले डेतुतावच्छेदकावच्च्छित्रलय- प्रसिद्धया श्रप्रतोकारात्‌ । दति साजाल्यघटितद्िनौयलन्ररव्याख्या | तच्छचिन्ताम्नणख्-दौधितिः। मिश्रोक्तलघुलक्चणम्‌ | यद्वा यावन्तस्ताहशाः ALARA waa तत्‌प्र- योगितावच्छेदक्षेन waa यद्रू पावच्छिन्नं प्रति व्यापक तसमवच्छिख ते तट्रूपवत्तवं वा तच्चमिखादहुः | | गादाघरो विहतिः । उक्तलच्ले सजातौयादिपदपरित्यागैन लघुलच्तणमाह, यदे - (१) लक्तग्यममनर्न्भताद्त्यनन्तरः `राध्याभावव्यापकतत्‌सजाोवाभावप्रति- यखोगिताया ages mys Caray CTI eA aa aA atfatefa विवच्तसतेनेव तहयोषोद्धारेऽपि गुर्घम्डमैख प्रतियोगितानवच्छट्‌कलत्वे कम्बु- गीवारद्नच्वादयउच्छिच्रहेतुकाव्या प्रिस्तद्यच्छिद्नता१सद्धेरुप्स्यले इत॒तादच्छद्‌का- व च्छिन्नत्वाप्रसिद्िरपि द्रष्टव्या इति कस्यचिद्‌ाद्शेुस्तकश् पाठः| व्यासिवादः | 820 ति, व्यभिचारिणि व्यधिकरणधम्प्रीवच्छिन्नाभावादिकमादायाति- व्यासेव्धारणाय "यावन्त इति, वह्निमान्‌ धूमादिव्यादौ ast नसौयवद्धित्वादययवच्छिन्नाभावप्रतियोगितावच्छट्‌कस्य धुमल्वा्य- व च्छछिन्नव्यापकतानवच्छदकतया अव्यात्िरिति (तादश इति साध्यतावच्च्छेद काव च्छन्रव्यापकतावच्छेदक रूपावच््छिन्नप्रतियोगि- ताका इत्यथः। अत्र व्याप्यतत्तितविशेषरं प्रयोजनाभावादनुपा- देयं (१) । साध्याभावसजातोयल्लादिविशेषणावच्छछिन्रस्याप्यभावान्त- रस्य प्रक्रान्तलरात्तादृशपदे तत्परत्वश्रमस्य भटितिनिरासाय (२) अभावा इत्येतन्मात्रमनभिधाय साध्याभावा Tai, यावत््ाध्या- भावनिरूपिता न काचिदपि प्रतियोगितेति ्रव्येकपदं, aq च व्यभिचारिण प्रत्यपि क्रचित्‌ (३) किञ्ित्सम्बन्पेन साध्यतावच्छद कावच्छित्रस्य व्यापकतया अतिप्रसङ्कवारणाय प्रतियो गितावच्ेदकसम्बन्धेनेव व्यापकता निदेशनौीया, coq समवायसम्बन्धावच्छित्रवद्धव्ादययभावप्रतियोगितावनच्छेदकसमवाया- दिसम्बन्धेन वङ्किलाद्यवच्चछिन्रस्य धुमादव्यापकत्वादसम्भव इति प्रतियोगितावच्छेद क सग्बन्धेनेव साध्यव्यापकता विवक्तषणौया तथाच केवलान्वयिसाध्यकस्छले व्यधिकरणसस्बन्धावच्छिन्रसाध्याभाव- (१) तथाच साध्यव्यापकत्वं प्रतियोगिवेययधिकरण्याघटि तमेव, त्निवेशे- प्रयोकनाभावारद्ितिभावः| (२) नलु तल्मरत्वभ्वमे का wfaftia चेत्‌, न, वाच्यं ज्नेयत्नाद्त्याटौ साष्यव्यापकतावच्छेद्‌करूपावच्छिन्नाभावरुजातौोययावद्भावान्तगेतघटत्वेन पटा. भावादोनां प्रतियोगितावच्छेद्‌कख हे तोव्यापक्र तानवच्छेद्‌कतया अव्याप्रैरिति। (३) जन्यमालाभिकररणकदेतुकस्यले | gat अनुमानगादाधयां मादाय निव्वद्ो न भवतोति व्यधिकरणधमयावच्छिन्नाभाव- स्योपयोगिता बोध्या धूमवान्‌ वङ्करित्यादौ धुमाद्यभावप्रतियोगि- तावच्छछेटकजलादिहत्तित्रविश्िष्टधूमाद्यभावाभावत्ेन वङ्कयादि- व्यापकत्व,पि afar: साध्यतावच्छेदकावच्छिन्रनिरूपितस्वा- वच्छदकसम्बन्धघरितव्यापकतावच्छटकावच्छित्रा यावत्यः प्रति- योगिता; प्रत्येकं तदवच्छ्द करूपेण तदवच्छेदकसन्धन्धेन यद्रूपा- afaed प्रति व्यापकत्वमिव्येतादटशणांस्यैव विवत्तणोयत्वात्‌ | साध्य- व्यापकतावच्छंदकं यद्यद्रूपं तेन व्यापकत्वविवक्षणे व्यधिकरण- घश्यावच्छिन्राभावोपयोगिता a चघटतं इति साध्यव्यापकताव- च्छेदकावच्छित्रप्रतियोगितावच्छ्दटकत्वन व्यापकतावच्छेदकनि- वेशः, यथासन्निषेगे (१) न aaa, प्रतियोगिताया; खरूपसम्बन्ध- रूपत्व वर्कित्वाद्यवच््छिन्रप्रतियोगिताया asnteafaica faa धुमल्राद्यच्छिन्रव्यापकतावच्छदकत्वं न सम्भवतीति व्यापकतावच्छेदकावच्चछिन्नप्रतियोगिताया व्यापकतावच्छटकत्वं न निवेशितम्‌ । दति मियोक्रसाजात्याघटितलघुलणव्याख्या | तच्वचिन्तामणि-दौधितिः। कूटा घटितलक्षणम्‌ | परे तु हत्तिमदृत्तयो यावन्तः साध्याभाववदुत्ति- (१) ag व्यधिकरणधर्म्मावच्छिचाभावसंयाहकविशेषणसख्य व्यथत्वात्‌ कथमेव- सित्यत आह, यथासन्निवेश इति। aifaate: | ४३९ त्वाभावास्तद्रूपवच्ं व्याधिः येन aaa हेतुता तेनेव हत्तिमच्चमपि बोध्यं तेन व्यधिकरणधस्म्ावच्छिन्रवह्ा- भाववति संयोगेन या हत्तिस्तदभावस्य जाल्यादौ वत्त- मानस्य wea ऽपि न च्तिः। साध्याभावश्च पुव्व॑बद्ोध्यः, तददत्तित्वाभावोपि खव्यापक- तत्तत्साध्या- भाववदु्तित्वत्वव्यापकप्रतियोगिताकः तत्तव्साध्याभाव- वदु्तित्वत्वातिरिक्ेन समानाधिकरणेन साध्याभाववदू- सित्वहत्तिना वा घम्मेणानवच्छिन्नप्रतियोगिताको बोध्यः तेनालोकायदत्तितवेन रूपेण योवह्िसामान्याभाववदु- ्तित्वस्छ यश्च खनत्वायवच्छिन्नवह्धयभावाधिकर गौभूत- महानसहत्तिव्वादेरभावम्तस्य धूमादौ खनिष्ठसाध्या- भाववदत्तित्वविरदस्य च हेत्वन्तरहत्तः खद्िन्नसत्वे- ऽपि न क्षतिरित्याद्ः। गादाधरो faafa: | कूटघटितनक्षणे व्यभिचारिणि साध्याभाववदुत्तित्वलव्या- पकप्रतियोगिताको न निधूमहत्तिललत्वादयवच्छित्राभावः, अपि तु जगहत्तिलसामान्याभाव एव, स च व्यधिकरणधम्भावच्छछित्र- प्रतियोगिताक wa वतिमदुत्तिरित्यतिव्यास्िवारणाय कूट पट्‌ मुपात्त तादश तिव्याक्चिश्च समानाधिकरणघम्मावच्छछित्राभाव- साधारणरूपेण साध्याभावस्य व्याप्यतावच्छदककोटौ प्रवेगन- ४४० अनुमानगादाधय्या एव प्रसज्यते न तु विशिष्टसाध्याभावनिवैशे, तथा सति निधूम- व्र त्िलत्वाव च्छिन्राभावस्यापि लक्षणएघट क तानिव्वरहादिति कूट- पदमनुपादाय विशिष्य साध्याभावं fatwa लक्षणसुचितं az- पादाने asa aati वच्छमाणत्वादिति कूटघटितनलन्षरणवादिनां मतसाक्तेघु कूटाघटितं awad दशयति, ‘at लिल्यादिना, साध्याभाववदुत्तित्वस्य व्यधिकरणधन््रावच्छित्राभावमादाय व्यभि- चारिमातेऽतिव्याश्चिरतो यावन्त इति, तथा सति समा- नाधिकरणधन्मावच्छित्रसाध्याभाववदहुत्तित्वस्य ससानाधिकरणए- धम्ममोवच्छिन्नराभावस्य यावत्ताहशाभावान्तगतस्य व्यभिचारिखय- सत्वात्रातिव्यािः। हत्तिमदुत्तिलानुपादानें समानाधिकरण धन्चावच्छित्रप्रतियोगिताकस्य व्यधिकरगधर््रवच्छित्रसाध्याभाव- वत्‌संयुक्तत्राद्यभावस्यासंयुक्तादौ प्रसिदस्य हेतावस्छात्‌ संयोगा- दिसम्बन्धन ₹ईतावव्यािः न त्वसम्भवः यादशथसम्बन्धस्य प्रति. योगित्वं वस्तुमात्र wa तादाव्मा-विषयतादिरूपताट सम्बन्धेन हेतावेव परं लक्षणसमन्वयो भवति. ताटगसस्बन्धन जगत्सम्ब- इत्वस्य समानाधिकरणधम्मावच्छछिन्नाभावाप्रसिडेरिति तदुपादा- नम्‌ । ननु हत्तिमहु्तिल्ोपादानेऽपि जगत्संयुक्तत्वत्वायव च्छत्रा भावस्य जात्यादिरूपद्त्तिमति वत्तमानस्य वारणासम्भवाहद्िमान्‌ धृमादिव्यादाव्यासिदुव्मैषरेव निधूमसंयुक्ततवादयभावस्य निधूम- ह ्तित्वाव्यापकप्रतियोगिताकतया वछलतिमन्मातस्वेव निधूम- कालादिरत्तित्रेन च निधूमहत्तित्वसामान्याभावस्य व्यधिकरण- धम्मावच्छिन्नप्रलियोगिताकस्यव afaasfaaa "RATA वङ्क- व्यातिवादः | ४४१ रित्यादावतिव्यापेरवारणाय डतुतावच्छेदकसम्बन्धेन साध्याभाव वहु्तिलवस्येव निकैयनोयतया (१) aa संयोगादिना Saat aa जगत्सु ्त्वत्वाद्य वच्छिन्राभावस्यापि हेतुतावच्छद क समस्बन्धावच्छिन्न- साध्याभाववदत्तितत्वव्यापकप्रतियोगिताकत्वेन लच्णएवट कल्वात्‌- हल्तिमत्पदस्य यथाशुताथंकल्े कालिकसम्बन्धेन गगनारटेरहत्तित्- मते तेन सम्बन्धेन यत्र हेतुता ततेव परमव्याक्षिवारकता तेन सम्ब- aa जगदुत्तिताभावस्याह्त्तिमाते प्रसिहत्वादित्यत आड, छतु. तावच्छेदकसम्बन्धेनेति, ‘a ऋतिरिति नाव्यासिरित्यथेः, नतुना- सम्भवः तादात्म्य-कालिकादिसम्बन्यन हेतौ लक्तणएसमन्वयसम्भ- वात्‌ (२) । ननु नानाव्यक्तिसाध्यके तत्तत्साध्यव्यह्यभाववद्ुततित्वा- भावस्य डेतावसच्वादव्यािः कूट घटि तलक्षण इवात्रापि साष्यताव- च्छेद कसमनियतप्रतियोगिताकाभावनिषेरेऽपि तार्णताखंददहनो- भयत्वावच््छिब्राभावमादाय वद्भयादिसाध्यके गुणारिहत्तिलवि- शिष्टसत्तायभावमादाय सत्तादिसाध्यकेऽव्याधिदव्वारेव एवम- व्याप्यत्रस्तिकपिसंयो गादिसलाध्यके हेत्रधिकरणस्येव जगत एव कपि- संयोगत्वादययवच्छिन्नाभाववत्तया तददुत्तिवत्वव्यापकप्रतियोमि- ताकस्य व्यधिकरणधञ्चावच्छित्राभावस्येव हत्तिम दु न्तितेनाव्यासि- विरहेऽपि तादटशकपिसंयोगाभावादिसाष्यकःद्रव्यलादिडेतौ कपि- संयोगादिरूपसाष्याभाववदहुत्तित्वाभावासच्चादव्या्चिरित्यत आह, (१) विवच्वणोयतयेति पा०। (२) ताट्‌ास्म्याद्सम्बन्धेन च हेतो लच्तणगसमनसम्भमेनासम्भवाप्रसक्त रिति ate | ५६& ४४२ ्रनुमानगादाधथां “साध्याभावधेति, ‘qaafefa मिखलन्नणे यथा साध्यतावच्छेद का- वच्छित्रव्यापकतावच्छेदकरूपावच््छिन्नप्रतियोगिताको व्याप्य afaanat निवेश्यते तथात्रापि fanaa इत्यथैः, तत्तदद्कि- कथितोभयत्वाद्यवच्छिन्नाभावानां प्रथमविशेषणेन कपिसंयोगादि- aura दितोयविशेषणेन व्याठत्तिः। ननु साध्याभाव- वदुत्तित्वप्रतियोगिताकाभावमात्निवेशे प्रकतद्ेतुसाधारणस्य व्यधिकरणधश्चा वच्छित्रसाध्याभाववदुत्ितविशेषस्य समानाधि- करणशधघग्ावच्छिन्नाभावोऽपि हत्तिमदुत्तिः सम्भवतोति यावत्ता- दशणमभावान्तमलतदच्वस्य हेतावभावादसम्भवः, एवं समानाधि- augue प्रकतहेतुहत्तितावच्छेदकौ- भूतकिचिदग्ावच्छित्रस्याभावोऽपि यावत्तादृशाभावान्तगतः इति तदत्वविरहादपि व्यतिरेकिसाध्यक-दहेतूनामव्यभिचारितानुप- पत्तिः तत्तत्साध्याभाववहृत्तित्वला वच्चछितर प्रतियोगिताकाभावञ्च विवक्तितुम शक्यः केवलान्वयिनि साध्याभाववदुत्तितरलेन घटादय- भावस्य ताटशगुरुधन्यस्य प्रतियो गितावच्छेदकत्वमते प्रसिद्धावपि तस्यातघातल्वमते व्यधिकरणधस्मावच्छित्रसाध्याभाववद्ुत्तित्वत्वस्य खघटककेवलठत्तित्वसमनियततया प्रतिथोगितानवच्छेदकत्वन तदवच्छिन्नप्रतियोभिताकाभावाप्रसिद्ेदुव्वारत्वात्‌, तत्तदभाव- वदत्तिललघ्रघट कधद्मावच्छिन्राभावनिवेशे च वद्किलाद्यवच्छित्न- वह्धपायभावव्यक्तस्तत्तदभावत्वावच्छित्राभावस्यापि तादृशतया तस्य च धूमादावस्वादव्याभिः साध्वाभाववदुत्तिलहत्तिताटम- घन्मावच्छित्राभावनिवेशनेऽपि घटव्त्तितलत्वाद्यवच्छित्रसाध्यके- व्या्चिवादः | 382 तादात्म्येन घटलव्यापकादिहेतौ तादटशसाध्याभाववर्‌ घटादिदत्ति- त्वनिष्ठताटटशसाष्याभाववच्चरूपतघाविधधन्या वच्छिन्नाभावस्य (2) घटादिमातहत्तेहेतो (२) अ्रसचादव्यारिर्द्वारेव (2) । साध्या- भावादिव्यात्रत्तचटकतानिवेशने च प्रयासगौरवभमिति तत्त त्साध्याभाववहु त्िल्त्वसमनियतप्रतियोगिताकाभावं विवक्ति, ‘agfeta, खं प्रतियोगिता, अत्र साध्याभावस्य साध्याभावल्वन सामान्यतो निषे व्यभिचारिखि निधूमहत्तिलल्वायवच्छिना- भावप्रतियोगिताया व्यधिकरणघश्चावच्छिन्रसाध्याभाववत्साध्या- धिकरणत्तितरसाधारणसाध्याभाववदु स्ित्रत्वाव्यापकत्वेन ताह श्ामावस्य लक्षणाघटकतया वछत्तिदिसामान्याभावस्य तथाविध- म्रतियोगिताकस्य च व्यधिकरणधन्राचच्छित्रप्रतियोगिताकस्येव वत्तिमहु्तितया अतिव्यपिरिति तत्तदक्तिखेनाभावस्य व्याप्यता- वच्छेदर्‌ककोटिनिवेशलाभाय "तत्तदिति । यद्यपि यक्िचित्साष्या- भाववदहत्तितल्समनियतप्रतियोगिताकक्ठत्तिमदु त्तियावद्‌ भाववच्चं व्यभिचारिसाधारणं, धावन्तः साध्याभावः प्रत्येकं तत्तदधिकरण- घत्तित्वतल्रसमनिवतेकप्रतियोजितायाश्च नानाविपक्लकसाष्थके- ऽप्रसिदिस्तत्तदिपकच्षाहत्तिलाव च्छन्ना भाववत्‌ तत्तदिपकहत्तितत्व-- (१) तत्तद्‌ भावव ट्‌डत्तित्वत्वघट कधम््त्य यः| (२) werfafta ताटश्साध्याभावावच्छिद्धवटसद्ादटेः सत््वादितिभावः। (२) अत्र 'दूव्यसमवेतं युखत्वादित्याटौ द्रव्यसमवेतत्वाभाववत्सुमवेतत्वषटकी- भ्रूतेन द्रव्यसमवेतत्वाभाववत्स॒मवेतत्वदटत्तिनिा दरव्यस॒मबेतत्वाभावेनावच्छिन्नप्रति- योगिताकाभावख ey ufaze Bare aye रेवेव्यधिकः पाठः कसिं खिट्ाद्‌श्पुस्तके awa | ४४४ अ्रनुमानगादाधयधां व्याप्यप्रतियोगितवाप्रसिद्धः, तथापि यावतामभादानां प्रव्येका- धिकरणछठच्ित्वतल्समनेयत्यस्य प्रल्कप्रतियो गितान्वयेन रएत- टभववदु्तिलत्समनियतव्रतियोगिताकौ यो योऽभावस्तदभाव- वदत्तितत्वसमनियतप्रतियोगिताकञ्च यो योऽभावस्तदच्छसित्येवं रोत्या निवेशान्रानुपप्िः। एतल्नकचणे साध्याभावससुदायो न ससु- दायल्ेन प्रविष्टः ata g प्रातिखिकरूपेणेति कूटघटि तादिशेषः। रथाच wad न तत्तदभावौयप्रतियोगितातरूपैण प्रतियोगि- तापरं साध्याभाववद्ु्तित्वातिरिक्घऽपि तत्तदभावौयप्रतियोगिला- न्तरसच्वा दिति(१) तत्तब्रतियो गिताव्यक्तिपरं agri, तथाच afte चित्रतियोगितानिरूपकाश्ेषाभावस्यालिव्यापकतया (२) यावत्य- स्तादटणप्रतियोगिताः (३) प्रत्येकं तत्रिरूपकाभाववन्छं निवेशनोयं, तथाच समानाधिकरणधश्यावच्छिन्रजगहन्तिलस्षामान्याभावप्रति- योगितानिरूपकहत्तिमदुच्यभावाप्रसिदधया अव्यास्िरिति ata मदुच्भावोयल्वेन यावव्रलियोगिता निवैशनौोया तथाच तद्विरूप- ana हत्तिमइत्तिलनिवेयनं व्यथं यावत्वविशेषणमपि तथेति चेत्रोपादौयन्त एव ततर तत्तदिशेषणं, हत्तिमहुच्यभावोययाव- द्मतियोगिताविशेष्योभूताभावे हत्तिमदुत्तित्व-यावत्वाभिधानात्‌ | अव्र च गुरुधश्यस्याभावप्रतियोगितानवच्छद कत्वे खव्यापकतत्तद- भाववदुत्तित्त्ववन्रिष्ठमेदप्रतियो गितावच्छेदकल्वस्याव्यावत्तकव्यापः- (१) किद्चिद्धिश्दिखाभावाटिनिष्ठप्रतियोगित्व।न्र सत्त्वा द्त्यथः। (२) अतिव्याग्िसस्माटकतया। (२) साध्याभाववट्न्तित्रत्वसमनियतप्रतियोगिता cae: | aqifaartz: | ४४५ कतान्तघटितत्वनाभावप्रतियो मितानवच्छ्द कतया तदवच्छिन्ना- न्योन्याभावरूपव्यापकत्वपुरस्कारेण न प्रतियोगितानिवेशः waia- तोति ताटशावच्छेदकमेदकूटासकव्यापकत्वपुरस्कारेणेव afa- वेशः । न च सखव्यापकतत्तदभाववहत्तिलत्वकल्रतत्तदभावव- दत्तित्निष्ठान्योन्याभावप्रतियोभितावच्छेदकत्वावच्छिबरेकमभेदौभय- रूपण प्रतियोगितानिवेशसम्भवादवच्छद्‌ कभेदकूटनिवेशनमप्तल- fafa वाचम्‌ । घटभेदादिसाध्यकसख्ले तदभावव्यक्तित्वेन घट- ल्वादिघटितस्य तदभाववदु त्तित्त्ववच्रिष्ठान्योन्याभावप्रतियोमि- तावच्छेदकत्वस्य स्वरूपतो azatfeafed घटहत्तितत्वनिष्टा- न्योन्याभावप्र तियो गितावच्छदकत्वमपेच्य गुरुशरौरतया प्रति- योगितानवच्छेदकत्वेन तदगब्रच्छित्नेकभेदनिवेशसम्भवात्‌। अत्र कल्य व्यधिकरणधम्धावच्छिन्नसाध्याभाववद्त्तितत्वसमनियत- प्रतियोभिताकस्य पव्वैत्ठत्तितर-पव्वेतान्यहत्तित्लोभय त्वादयवच्छि- त्राभावस्य पव्व॑ता यहत्तिहत्तिमदुत्ेधूमादावभावादेकमा त्रह्ति- हेतावपि तादृश्प्रतियोगिताकस्य एतत्‌क्षणावच्छिन्रतत्तित्वेतदटन्य- त्तषणावच्छित्नव्रत्तिलोभयत्वावच्छिन्नाभावस्य एतत्‌क्षणावच्छितरा- aut afanfa वत्तेमानस्याभावादसम्भवः ताटशभावनव्याव- तनाय व्यासज्यत्त्तिधम््प¶नवच्छिन्नप्रतियोगिताकल्वनिदवैये च गौरवं पव्वतव्रत्ित्रत्रादिना जगहत्तित्रसामान्याभावस्य ara सम्भवस्ेत्यतः कल्ान्तरमनुसरति, (तत्तत्साध्याभावेति, afa- रिक्रान्तानिविशे व्यधिकरणधस्मावच्छिन्नाभावमाठ्सय संग्रहा- द्रभिचारिमात्रेऽतिव्यासिरिति तत्निषेगनम्‌ । यद्यपि aargéa- ४४६ अनुमानगादाधय्यां नानेन मह्ानसदठत्तित्रत्लादिना व्यधिकरणधस्मावच्छिन्नाभाव- वट्‌त्त्तित्राभाववारणं न सम्रवति महानसादिनिरूपितत- विगिष्टव्रसित्रलस्य साध्याभाववत्निरूपितत्ववि शिष्ट ्ितत्वरूप- साध्याभाववहत्तित्रल्वान्यत्वविरहात्‌, तथापि साध्याभाववडुत्ति- त्वल्लानिरूपितसमानाधिकरणघम्निरूपितावच्छदयत्वशन्यत्वस्यान- वच्च्छिन्रान्तेन विवद्तणात्र दौषः महानसत्तित्रत्वादिनिरूपिताव- च्छ त्वस्य साध्याभाववदृत्तिल्वरूपविशिष्टपदाथानिरूपितल्ात्‌। न चेवमपि साध्याभाववनग्महानसदत्तिलत्वाद्यवच्छिन्राभाववारण- मश्क्यं ताटृशनिरूपितावच्छदद्यतायां तच्चट कसाध्याभाववदुत्ति- त्वत्लनिरूपितलस्याधिकन्तिव्यादिन्छायेनाव्याहतत्वाटदिति वाचम्‌ | गुरधस्चस्याभावप्रपियोगितानवच्छेदकतया मडहानसादिहत्तिल- तलसमनियतोपदशितगुरुधग्चस्याभावप्रतियोगितानवच्छद कत्वात्‌ | aq गुरुघग्मस्याभावप्रतियोगितानवच्छद कत्वे साध्याभावप- दस्य साध्यतावच्छटकावच्छित्रव्यापकतावच्छछद क रूपावच्छिन्नभाव- परतया धूमवान्‌ वङ्करित्यादावतिव्यासिः घूमत्वायवच्छित्ि- व्यापकता वच्छेद क रूपा वच्छिन्नाभाववदुत्तित्वत्वस्य सखसमनियत- धूमत्वायवच्छित्राभाववदुत्वत्वापेक्तया गुरत्वेनाभावप्रतियोगिता- वच्छट कत्वविरहेण तद वच्छित्राभावाप्रसिः धुमलराद्यवच्छिन्रा- भाववहत्तित्लायवच्छिन्नप्रतियोगिताया धूमत्वायवच्छित्रव्याप- कतावच्छेदकावच्छित्राभाववहत्तित्त्वरूपविशिटपदाथांनवच्छित्र- तया तच्निरूपकाभावस्य निरुक्राभावविशेषरणानाक्रान्तत्वन व्यधि- करणधस्मावच्छित्रप्रतियोगिताकस्य साध्याभाववहत्तिलाभावस्यैव व्यािवादः। ४४७ लत्तणएघट कत्वात्‌ | यदि च साध्यतावच्छटकावच्च्छित्रव्यापकताव- च्छटकरूपावच्छिन्नप्रतियोगिताकाभावस्य तेन रूपेण न निवेशः पि तु तत्तदभावल्वेनेव एतदेव सूचयितुं तत्तत्यदसुपात्तम्‌ एवञ्च qdafaada धूमाद्यभावघटिततत्तदभाववदुत्तित्वत्वावच्छितरा- भावस्य लक्षणघटकतया न धूमादिसाध्यकेऽतिव्यािरित्यु्यते तथापि waeifafud घटभिन्नं वा प्रमेयत्रादिव्यादादतिनव्याि- स्तत्तदप्रकतितरूपेण घटभेदाभावघटिततद्वक्तिमदुत्तितललापे्तया लघोस्तव्समनियतस्य किञचिदिशेषण्‌नव च्छिब्रघटत्वघटितस्य घट- हत्तित्वत्वस्येवाभावगप्रतियोगि तावच्छेदकतया तद्यक्तिमदत्तिल- त्वावच्छ्िन्नाभावाप्रसिडः घटहत्तितल्रावच्छिन्नप्रतियोगितायाञ्च साध्याभाववदहत्तित्वलररूप विशिष्टपदाथां नवच्छिन्रतया तच्रिरूप- काभावस्य लचणघटकत्वासम्भवाइधिकरणधश्मावच्छिन्रसाध्या- भाववदुत्तिलत्वावच्छछिन्राभावस्येव तथात्वात्‌ । यदि चाभावधर्म्म विगशेषणविधया न निवेश्यते अपि तु अभावप्रतिरेव, अभावे तु साध्वतावच्छद्‌ कावच्छित्रव्यापकतावच्छेदकरूपावच््छिन्नप्रतियो- गिताकत्वसुपलक्षणएविधया निवेश्यते एतल्लाभायैव तत्तत्पदो- पादानमपि न तु तत्तदाक्तितेनाभावविरेषलाभा्ें, उप- लक्तणोभ्नरूतप्रतियोगिता विशेषेणे वाभावान्तरव्याठत्तिसम्धवे तत्त दयक्तितलस्योपलक्षणएविधया निवेशे प्रयोजनविरहात्‌, एवच्च घट- घत्तित्वावच्छिन्नाभावोऽप्युक्तसखले लक्नणघटकः घटभेदाभावस्य घटलत्रस्य तत्प्रतियोगितावच्छेदकघटकत्वाग्रतियो गिता विशेषो प- लक्षिताभाववदत्तित्रत्पश्याप्तनिरूपक ता कान्यत्वपय न्तानिवेशात्‌ ४४८ अनुमानगादाधय्या धूमादिसाध्यकस्यले निधुमहत्तिलत्वाद्यवच्छन्नाभावस्य प्रति- यो गितावच्छ्रकशरोरे अभावविशेषणस्याधिकस्य निवेशनेऽपि न afa:| न चाभावप्रतियोगिकोटौ उपलक्षणतया भानस्या- नुभवविरुदत्वात्‌ विशिष्टनिरूपितलाभावरूपस्य निरूपितत्वसम्ब- न्धावच्छिन्रविश्िषटटाभावरूपस्य at विशिष्टानिरूपितत्वस्य प्रति- योगिकोटौ प्रतियोगिताविश्ेषस्य कथमुपलक्षणविधया निवेग- इति वाच्यम्‌ । अ्रभावप्रतियोगिप्रकारशरोरे प्रतियो गितावच्च्छेद क- कोच्यप्रविष्टस्य न भानमिल्येव हि अ्रभावप्रतियोगिनि तदवच्छेदके वा suaaufauar न भानमित्यस्याथेः, प्रकते निसक्तप्रतियोगि- ताकत्वस्य निरूप्यत्वप्रतियोगिविश््टघट कत्वादटेव faeaanta- यो गिन्युपलच्षण्त्वं (१) न तु निरूप्यत्वाभावप्रतियो गितातेच्छद- कघटकलतया Bane तदटभावप्रतियोगितावच्छेदकप्रविष्टाभाव- स्याभावान्तरव्याघ्रत्तये ताटृशप्रतियोगिताकत्वस्य प्रतिघोगिताव- च्छेटकघटकतयेव faim यथा quae द्रव्यत्लोपलक्तित- निरूपितविषयित्वाभावप्रतिथो गिनि नोपलक्षणत्वं किन्तु विष- यितानिरूपकांश एवेति (२) निधूमहत्तिलत्वस्य धूमव्यापक- तावच्छेदकरूपावच्छित्राभाववदत्तितात्वसमनियतत्वेऽपि व्यापक- तावच्छटकषम्प्रान्तरावच्छित्राभावघटितविरशिद्टनिरूप्यत्वं धूम- (१) waa निरुक्तप्रतियोगिताकत्वसखावच्छद्यत्निद्छ्पकतावच्छेट्‌कतया अप्र वेशादटेव उपलत्तणत्वमिति Uo | (२) तादशप्रतियोगिताकत्वस्य उपलच्वणतयेव प्रतयो गितावच्छेटकघटकतयग निवेशादिति ute | व्या्षिवादः | 8 ४९. लावच्छित्रघूमाभावधघटितविशिष्टनिरूपितत्वरूपताविरहात्‌ तत्त- दिश््टिनिरूपितल्योनं समनेयत्यम्‌ इति न व्यापकतादच्छेद्‌- करूपावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वचरितधन्छीवच्च्छिन्नप्रतियोभिताक- निरूव्यत्वाभावाप्रसिद्धिः ग्रतियोगितास॑सगकन्ञान एव ताटश- भानस्य ama जाव्यवच््छिन्नप्रतियोगिताकोऽभाव इत्ा- कारस्य खरूपतो घटलत्रादयवच््छिद्नप्रतियोगिताकाभादभानस्य सव्वसम््रतलात्‌ प्रकते च साध्यतावच्छेदकावच्छित्नव्यापकताव- च्छेदक रूपावच्छित्रप्रतियो गिताको योऽभावस्तददु्तित्वल्लनिरू- पितत्वप्रतियोगिताकाभाववतः समानाधिकरणधघम्म्रावच्छेदयत्वस्य योऽभावस्तदव्मतियोगिताका यावन्तोऽभावास्तचान्‌ हेतुरिल्या- कारकव्यास्धिग्रडे प्रतियोगिताया विशेषणत्वेनामुपपच्यभावात्‌ अतएव च व्याएकतावच्छदकादेरुपलचणविधया भानोपपत्तिः | न च तादृशनिरूपितलप्रतियोगिकस्य तत्वावच््छिन्नप्रतियोगिता- काभावस्य वा अभावस्य निवेशे निधूमहत्तिवलावच्छिन्ाभावे प्रतियोगिताजिष्ठावच्छदयतायामपि क्ि्खिदिशिष्टतादशनिरू- पितलत्वावच्छिन्नाभावसत्तात्ताटणाभावासंग्रह इति वाचम्‌ । तत्तदभाववदुसित्रत्निरूपितत्वत्वपय्यापन प्रतियो गितावच्छेद कता - aaa निवेगनोयलात्‌ wy तत्तद्यक्तित्वेनाभावनिवेय- Wala तत्तत्पदोपादानमपि साघु सङ्च्छते इत्यच्यते (१) तदापि घटत्व-भेदटादिसाध्यक्षे व्यभिचारिखतिव्यासिवारण्मशवक्यं निविशे- (१) प्रतियोगिताव्छेद्‌कघटक्तयेय निवेशादित्यनन्तरं fay मटत्तित्वल्खे- त्यःदिः साघु सङ्गच्छते TIT पाठः TSY Breas नास्ति। ५७ ४१५० अनुमानगादाधय्ां पणकवटलत्वादिहत्ित्तस्येव aa घटलत्वादिहत्तित्ाभावप्रतियोगि- तावच्छेदटकतया घटत्वत्वादिरूपसाध्याभावस्य प्रतियोगितावच्छेद- कशरोरे अ्रनिवेशेन व्यधिकरण धन्धरावच्छिताभावस्येव लक्तणघट क- Aq न च जातेः समवायेन खरूपतोऽवच्छ्छेद कत्वं न तु सम्बन्धान्त- ta अतएव गोत्वादिजातिनिष्टव्याप्नौ पटविशेषप्र्ति निमित्तगवे- वेतरासम३ेतत्वादट्‌रवच्छेद कत्वं खोकुव्धन्ति न तु तादासरसम्बन्धेन लघोरपि गोलादिजातेरिति निविशेषणकषयटल्रादिघटितस्याभाव- प्रतियोगितावच्छेदकत्वं न स्वतो ति वाचम्‌ | तादृशनियमे माना- भावात्‌ । यदि चाभावांशस्याप्युपलक्णएतवं alfmad तदा महा- नस त्तित्वत्वाव च्छित्राभ्यववारणमशक्वमेव । यदि च साध्याभावा- तिरिक्तविश्येषणाविभ्ेविताधिकरणवत्तित्वत्रादययवच्छद्यताभित्रसमा- नाधिकरणएधम््रवच्छेव्त्वाभावं निङेश्याविग्रषितघटत्ादिहत्तित्ा- भावः संब्टह्मते तदा तादशाभावमादाय जातिसाघारणसद्ेताव- व्यात्षिवेजजेपायते | एवं साध्याभाववहत्तिललशरोरेऽभावादेविंगे- षणविधयरा waa हत्िमदृत्तिपदमनथंकम्‌ aaa, व्यधिकरण- घम्मावच्छछित्रसाध्याभाववदत्तित्वत्वस्य यः समानाधिकरण घम्माव- वचछित्राभावस्तप्रतियोगिताया aaaa व्रत्तितत्वनेवावच्छिन्रतया तत्रि (वच्छछग्रताया अभावघटितविशिष्टपदाधानिरूपितत्वात्‌ | अतर वदन्ति, गुरुषग्स्याभावप्रतियो गितावच्छदकलमतनेदमभिहितं, व्यधिकरणधग्प्ावच्छित्रसाध्याभाववन््हानसत्रत्तितत्वायवच्छिन्रा- भाववारणणय च साध्याभाववहुत्तित्त्वपय्याप्ावच्छेदकताभिन्न- समानाधिकरणधश्निष्टावच्छेद्‌ कत्वानिरूपकत्वमेव प्रतियोगि- व्याप्चिवादः) ४५१ तायां विङेषणं देयम्‌ । न चेवं घटत्वादिना साध्याभाववद्‌हत्तित्वा- भावसंग्रहफलकं समानाधिकरण्पदटोपादानं निषेधदयनिवेशनञ्च विफलं ताद गाभावस्यासंग्रहेऽपि केवलान्वयिसाध्यके साध्याभाव- वद्‌ स्ित्रल्वेन घटादययभावमादाय लक्षणसमन्वयसम्भवादिति वाच्यम्‌ । विषयतादिसम्बन्धेन यतर डेतुता तत्र॒ ईतुतावच्छेदक- सम्बन्येन साध्याभाववति वत्तः साध्याभाववददिषयतादिरूपायाः विषयादिसखरूपत्वेन साध्याभावबदिषयतात्वादिरूपसाव्याभावव- दत्तित्रत्स्य केवनान्वविलया तद्वच्छिन्नाभावाप्रसिङेस्तादटणा- भावघटितलक्षणानुपपत्तः। न च साध्याभाववददिषयतात्वारिकं येन aqua तेन सम्बन्धेन तद वच्छित्राभावमादाय लक्तणसम- न्वयः स्भवतोति वायम्‌ । कालिकसम्बन्धेन साध्याभाववदुत्ति- लल्लावच्छिन्नस्य योऽभावस्तस्य प्वंसायधिकरणडेतलनव्यापकतया स्वरूपसम्बन्धावच््छिन्न प्रतियो गिता वच्छेद क ताकाभावस्यावश्यनिवे-- शनोयतया व्यधिकरणसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगितावच्छद्‌ताका- भावस्य लक्तणटकत्वासम्भवात्‌ विषयताया जात्यादिरूपत्वऽपि विषयतात्वङिश्िट्िस्य न समवायादिना वत्तिः तादृशस्य खस्मिन्नेव वत्तेजीत्यादौ च समवायाभावात्‌ किन्तु सखरूपसम्बन्धेनेव एवच्च समवायादिसम्बन्धावच्छत्रप्रतियोगिताक एव विषयतालादय- वच्छछित्राभावो लचण्वटकौ भविष्यतोत्यपि न, काल-न्ञानादिरूप- देतो कालिक-विषयितादिसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताकसाध्या- भाववदुत्तित्रलावच्छिन्नाभावस्यासच्वेन खरूपसम्बन्धावच्छित्रप्रति- घोगिताकाभावस्येव निवेशनोयत्वात्‌ | न चतं साध्याभावब- BUR ्रनुस्ानगादाध्च्यां o घु्तितवत्वातिरिकससानाधिकरणघस्ानदच्छिन्राभावस्यापि ast प्रसिदिघटत्वादेः साध्याभाववदहिवयतादिनिष्ठप्रतियोभितावैय- धिकरखासन्भवादिति वाचखन्‌ । घटत्वादिना पटाद्यभावस्थेव तथात्वात्‌ । अथैवमपि सासानाधिकरशख्छसुपेच्य साध्वाभाव- वहल्तितनिष्ठत्वेन धर्मविद्नेपणकल्ये घटल्राटेषंटाष्दिस्वरूपसाध्या- भाववदहिषयतानजिष्ठत्ेन गगनादेरपि सनिष्ठविषयताव्कत्वेन साष्यानाववदिषयतानिहतया साध्याभाववहत्तित्वत्वातिरिक्तताहट- गधस्ानवच्छित्राभावाप्रसिदया उक्तखलेऽव्यापिरदुवदैषरेव येन रूपेण यत्‌ साध्याभाववहत्तिलहति तदटुपविशि्टतद नवच्छिन्नप्रति- योगिताकाथवदिवक्षणन गगनत्वविशिगमनावयवच्च्छिन्नाभावस्य लच्तणघट कता निञ्वाडेऽपि ईतुनिष्ठव्यधिकरणधर्मावच्छिव्रसाध्या- भाववहसिव्वव्यक्रेः किद्िदविश्यषिततत्तद्यक्तित्वावच्िदव्रति- योगिताकभावस्य तथाविधस्य हेतावसत्वादसम्भवप्रसङ्ग इति चेत्र, येन सम्वन्धेन यदु add da waa तदनवच्छिद्रत्वस्य विवत्तषणौयतया संयोगादिमस्वन्धेन घटत्वाद्यवच्छद कता काभाव- मादाय SHUT लक्तणसमन्वयसम्भरवात्‌, उक्ताट्लाभायेव च साध्याभाववइस्िखहत्तितलोपादानं न तु तदपि लक्षणघटकं प्रयोजनाभादाल्छव्येच दशिताभावसादायैव लक्तणसमन्वयसम्भदेन सख्मवायादिसम्वसखन घटत्वादयवच्च्छिन्रसध्याभाववनद्संयुक्तल्ाय- भावस्य ल्तसाघटकत्वेऽपि दिविरद्ात्‌ । एतेन धृञ्नल्ललाद्यव- च्छित्रधूसत्वायमावस्य धुमत्वदप्रकारकप्रमाविषयत्वादययभावस्य च साध्याभाववदु्तितह्त्तिधन्मानवच्छिद्रप्रतियोगिताकस्य तारणाय व्याञ्चिवाद्‌ः | ४५३ साध्याभाववदत्तित्रनिष्टप्रतियोगिताकत्वविशेषणमप्यनाटेयम्‌ | अ- तएव च खसमानाधिकरणत्वस्य प्रतियोगितावच्छेरकविश्रेषणत्व- RAGA लाघवमेवेतत्कल्यानुसरण्वौजभ्रूतं निष्युल्यूहमिति । यदि च गुरूधर्गय्मोनाभावप्रतियोगितावनच्छेद्‌कस्तदा महानस वत्तित्वत्वा यवच्छित्राभाववारणाय साध्याभाववदह्‌्तित्दत्वातिरिक्त- त्यनेन साध्याभाववहत्तित्वत्वाघटकत्वभमेव faaauig तदधेश्च सखाविषयकप्रतोतिह्ठ्तिसाध्याभाववहत्तितात्रूपविशिष्टनिरूपित- विषयिताकलत्वम्‌, एवञ्च दहठत्तिवत्वा वच्छिन्नव्त्तरभावोऽपि लक्षणघटक इति हत्तिमहत्तिपदसाधक्यम्‌ । खाविषयकत्च्च इतरविशेषणतानापत्रविषयिताशून्यतवं, अतो विगेषणविधया साधष्याभाववहत्तित्वघटकसाध्याभावत्वादेगरपि तदटघटकत्वनिनव्वाह- इति पूर्व्वाक्तदोषानवकाशः। चरमापि विषयितादतरविशेषणता- नापन्ननिरूपितेव ग्राह्या, तेन हत्तित्वादिविशेषणकन्नाने साध्या- भाववहत्तित्वललादे विशेषणतया विषयत्वेऽपि हत्तित्वादेन साष्या- भाववदुत्तित्वत्वाघटकत्वम्‌ | न च साध्याभाववदुत्तित्वतघटकधम्ध- पर्य्याप्तप्रतियोगितावच्छदटकताकोऽभावो निवेश्यतां, घटकान्ता- aa खाविषयकप्रतोत्यत्र्तिसाध्याभाववहत्तित्वरूपवि शिष्ट निरू- पितविषयिताकलत्वं,न तु खाविषयकप्रलोत्यविषयतादृशवि शिष्ट कलव, तत्तदभाववहत्तितालविषयकप्रतौतौ केवलाघेयत्वताल्रस्य विषय- तया तदभाववन्निरूपितत्वविश्रिष्टाघेयतात्व तदविषयकप्रतोल्- विषयत्वस्य दुघेटतया तदभाववहत्तित्रलारेस्तदघटकत्वानिर्व्व- हात्‌ कैवलाघेवतात्वस्येव तद्घटकतथा हत्तिमहत्तिं तेन रूपेण ४५४ अनुमानगादाधय्यौं घटाद्यभावमादायातिव्याघ्यापत्तेरिति वाचम्‌ । तथासलयक्तरोल्या विषयतासम्बन्धेन यच Baal aa तादटयाभावाप्रसिद्धया घट- faa मेयतादिल्यादौ निविशेषणकचघटत्वादिठत्तितालस्य यथा समानाधिकरणघग्धा वच्छित्रसाध्याभाववदुत्तितात्घटकलतवं तथा वाचम्‌ न्ञेयत्वादित्यादावपि तादृशस्य खाविषयकप्रतौल्यविषय- व्यधिकरणधस्चावच्छिन्रसाध्याभावविशेषितघटत्वादिघटिततदभाव- वचुत्तित्वत्ररूपविशिष्टनिरूपितविषयताकतया तदभाववदु्तिल- त्घटकतया ठत्तिमदहत्तितदवच्छत्राभावस्य हेतावसच्छवेनाव्या- gd; तत्तदभाववदुत्िललाघट कधघञ्चावच्छिव्राभावनिेश्रेनेव वारणसम्भवात्‌ । ताहशध््ं निरुकासाध्याभाववदत्तितवत्वघट- कत्वसच्चेऽपि खाविषयकप्रतो तिठत्तिसाध्याभाववदश्चवन्तरतत्ति- लषिषयिताकत्वेन साध्याभाववदुत्तित्वावटकल्वस्यापि सत्वेन तदवच्छिन्नाभावस्य यथानिरुक्राभावानात्मकत्वात्‌। न च खावि- षयकप्रतीत्यत्स्तितदभाववदुत्तितत्वनिरूपितविषयितासामान्यक- त रूपतत्तटभाववहस्तिवत्वचटकतया निवे निविशेषणक- घटत्वादि त्ित्रत्वस्य साध्याभाववहत्तितित्वघट कलत्वाप्रसक्त्या तदघटकधञ्मावच्च्छिन्राभावनिवेशोऽपि सम्भवतोनि वाचम्‌ । तथा सति व्यापकताघटितसामान्यपटाथनिषेशेन तदघटकघञ्चानव- च््छित्राभावनिवेशापैत्तया अतिगौरवात्‌ । समानाधिकरणपद- साथक्यन्तु उक्तरोत्यैषेति ध्येयम्‌ (१) | कोचित्तव्यधिकरणध स्मावच्छित्रसाध्याभाववहुत्तिलत्वेन पव्वेल- (१) यदि चेत्यरटदिः ध्येयमित्यन्तः पाठः व््धघु AEUGRAT नास्ति | ——_—__—- व्यात्चिवादः । ४९१ तत्तिल-चटान्यतरायभाववारणय एतन्मतेऽपि खव्यापकतत्तत्सा- ध्याभाववदु त्तितरत्व कत्वं प्रतियोगिताविशेषणमावश्यकम्‌ । तथाच साध्याभाववहुत्तिलत्वेन घटाभावस्य लक्तणघटकता न सम्भवं तोति (१) निषेघदयनिवेणन-समानाधिकरण्पदो पादानयोः साथे- RATS: | aqayg साध्याभाववद्ुत्वत्वातिरिक्तलवं साध्याभाववहत्तिलला- azaaa aq खं aenfafue ताहृशविशि्टाविषयकप्रतोति- विष्यसाध्याभाववदु्तित्वत्व कत्वम्‌ एवच्च महानसहत्तित्वस्य ALT नसत्वविगशेषितमदहानसद ्तित्िलाविषयकग्रतो तिविषयसाध्याभाव- वद्त्तितवत्वकलत्वात्‌ साध्याभाववद्‌ हत्तित्त्वाघटकल्वेन न तदन्ा- वच्छित्राभावमादाय दोषप्रसक्तिः, way गुरुधन्धस्याभावप्रति- योगितानवच्छेटकत्वेऽपि घटभिन्रं मेयत्वादिव्यादौ घटलत्वविगेषि- auzafaaay a सखाविषयकप्रतोतिविषयसाध्याभाववद्‌ठत्ति- aaad साध्याभावत्वेन घटलत्वविषयकक्ाध्याभाववदुन्तित्वप्रतीती घटत्वविगशेषितघटव्रत्ित्रल्वाविषयकत्वासम्भवात्‌ | एवं घटलत्वभिनें प्रमेयत्ादित्यादौ घटत्वत्वविश्रेषितघट ल्ह त्िखव्वस्य a खाविष- यकप्रतोतिविषयसाध्याभाववदत्तितत्व कत्वं साध्याभावत्वेन घटत्व- तविषयकसाध्याभाववदु्तिवत्वविषयकप्रतीतौ घटत्वत्वविशेषित- घटत्वव्रस्तित्रत्वविषयकत्वासम्भवादिति न तदुभयत्रातिव्यासिः। नवा हत्तिमहत्तिपदबेयष्ये त्तिललस्य व्यधिकरणधन्धावच्च्छित्र- साध्याभाववदत्रस्तित्वत्राघरकत्वकिरदहेण तदग्प्रावच्छछित्राभाववार- (१) साध्याभाववटटत्तिचत्वश्च घटनिष्टप्रतियोगिताव्यापकत्वविरहादिति शेषः) ४५६ अनुमानगादाघयां TIF तदुपादानात्‌ साध्याववट्‌हत्तिलत्वावच्छ्देन च खाविवयक- प्रतौ तिविषयलत्वं विवच्छणोयम्‌ | तथाच खाविषयकप्रतोतिनिरू- पितसाध्याभाववदुहत्तिलल्वावच्छिन्रविषयताकत्वं पय्थवसितम्‌ | अन्यधा साध्याभाववद्धिरेषितद्वत्तित्वत्वस्य विशेष्यो भरतकेवलघ्र्ति- त्त्वानतिरेकितया विशेष्यौभतघ्र स्तित्वस्य साध्याभाववद्‌त्ति- तत्वाविषयककेवलाधेयतात्वविषथकप्रतोतिविषयत्वे साध्याभाववद्‌- वित्वस्य तथालावश्यकतया तदघटकत्व प्रसङ्गन केवलत्ति- त्वत्वाव च्छिन्नाभावमादाव व्यभिचारिणखतिप्रसङ्गापातात्‌। नच महानसत्तित्वत्वावच्छित्राभाववारणाधं साध्याभ।ववद्‌हत्तित्वत्र- घटकधन््ावच््छिन्नाभाव एव निवेश्यतां तदुघटकल्च्च॒ स्ाविषय- कप्रतौत्यविषयसाष्याभाववद्‌वत्तित्त्रकलं किं निषेधदय-समाना- धिकरणपदयोरुपादटानेनेति वाचम्‌ । एवं सति fafuerqaifa काभावानभ्युपगमे साध्याभाववद्‌त्तितत्वेऽपि साध्याभाववद्‌- हत्तिलत्वरूपविश्िष्टाविषयककेवलाघेयतात्विषयकप्रतोतिदिष्रय- त्राभावासच्चन तस्य घटकत्वानिव्याहेण केवलहत्तितत्वस्मैव तद्‌- घटकतया तदवच्छित्रसमानाधिकरणधग्धावच्छिन्नाभावस्य च त्ति मदघत्तितया व्यभिचारिखतिप्रसङ्गापातात्‌। नच सखा विषयकप्रतोत्य ्रत्तिसाध्याभाववद्‌त्तित्वत्वरूपविशि्टनिरूपितवि- पयताकत्वरूपचघट कत्वमेव निवेश्यतां तथा सति नोक्तदोष इति वाखम्‌। तथा सति विषयतासम्बन््न यच हेतुता तत्र तादहशाभा- वाप्रसिडगपत्तेः | एवं घट्ल्वभिननै मेयत्वादिव्यादौ निविगयेषणघट- त्वादिछत्तित्रत्वस्य यथा समानाधिकरणघम्धाव च्छनसाध्याभाव- व्यात्तिवाद्‌ः | ४५७ वद्‌ ्त्तित्वत्वघटकतवं तथा वाचं ज्ेयत्वादिल्यादावपि तादृशस्य स्वाविषयकप्रतौत्यठत्तिव्यधिकरणधग््रावच््छित्रसाध्याभावविशेषि-- तघटल्वादिघटिततदभाववद्‌व्वत्तिल्रत्विषयताकत्येन तदभाववद्‌- व सित्तत्रघट कतया वत्तिमदुद्ठत्तितदवच्छित्राभावस्य हेतावसत््वे- नाव्याप्नस्तदभाववदुद्ठत्तितलाघरटकघम्धानवच्छिन्नाभावनिवेशे च न दोषः तादश्धर्धं निरुक्तसाध्याभाववद्‌तस्तित्वघट क त सच्वेऽपि स्वाविषयकप्रतीति-निरूपितसाध्याभाववदग्मयन्तर तति त्वत्वविषय- ताकत्वेन साध्याभाववदुत्तित्रत्वाघटकत्वस्यापि waa तदव- च्ित्राभावस्य यथानिर्क्तभावानात्कत्वात्‌ | नच सखाविषय- कप्रतोत्यठत्तिसाध्याभाववदत्तित्वत्वनिरूपितविषयितासामान्यक- त्ररूपतन्तदभाववद्‌त्तित्वत्वघटक तानिवेशे निविशेषणकघटत्वा- दिव्रत्िलत्वस्य साध्याभाववदृहठत्ित्रलघटकत्वाप्रसक्वा तद- घटकधघम्यावच्छिन्राभावनिवेशोऽपि सम्भवतोति वाचम्‌ । तथा सति व्यापकताघटितसामान्यपदाथेनिवेष्रेन घटकधघम्मानवच्च्छि- न्राभावनिवेणापैत्तयालिगोरबात्‌ | wa fad मुख्य विश्रेष्यलं, तेन घटदव्र्तित्वत्वावच्छिन्रसाष्यके तदात्मन षघटत्वव्यापकादि- हेतौ azafaaay साध्याभाववद्‌्त्तित्तत्ाघटकत्वविररेणए तद- वच्छित्राभावमादाय aaa: | न च तथापि साल्नाभाववान्‌ दव्यत्ताटित्यादावतिव्याप्निः तत्र सास्रावदूहस्तिव्ठत्वस्य गुरुतया गोत्ववदु्तित्रलस्य च तदघटकत्वेन व्यधिकरणधन्भावच्छित्रा- भावस्यैव मंग्रहादिति वाचम्‌ । गोत्ादयभावादेरपि सास्रादययमाव- रूपसाध्यव्यापकलतया गोत्वादिरूपतदभावस्यापि लक्तणचट कत्वात्‌ Ya ४५द अ्रनुमानगादाधथयां तददूत्र्िलत्वश्य च तददद ्ित्वत्वाघटकत्वविरहेण टोषाभावात्‌ | एवं जातिभिन्नं घटत्व्लादित्यादौ जातित्वादिविगशेषितपरल्वा- दिर्व्रतत्रत्वस्य तदिशेपितघटलत्वादि हत्तित्वत्वाविषयक प्रतो ति विष- यत्वेन प्रत्येकं जातित्वविशेषितसकलजातिष्त्तित्वत्रस्य जातिभेदा- दयभावव्रदूत्रत्तिललाघ्टकत्वऽपि घटल्वादिच्रत्िलत्स्य घटत्वत्वा- वच्छिन्रघटत्वभदरूप-साष्यव्यापकाभाववद्‌ ह त्तित्वाचटकलत्वविरदहेण तदवच्छित्राभावमादायेवातिव्याञ्चिवारणसम्भवात्‌ । नच साध्या- भाववदुहठत्ित्रत्वघट कघस्यानवच्छित्राभाव wa निवेश्यतां fa समानाधिकरणपदोपादानेन केवलान्वयिसाध्यकस्थले तत्तित्वेन घटाभावमादायंव लक्षणसमन्वयसम्भवादिति वाचम्‌ | shana पञ्चत तित्ल-घटान्यतराभावमादावाव्याक्षिवारणाय एतन्तेऽपि साध्याभाववद्‌ ठ त्तितिव्याप्यलस्य प्रतियोगितायां निवेशस्यावश्य- कतया घटत्वेन साध्याभाववदृव्रत्तिलाभ्रावसंग्रहाय समानाधि- धिकरण्पदोपादानस्यावश्यकत्वादिति दिक्‌ (१) । प्रतियोगितायां साध्याभाववहु्तित्वत्वव्याप्यत्वनिवेशप्रयोजनमादह, ्रालोकाद्य- afaaata वद्किसामान्याभाववदुत्तित्वस्य योऽभावस्तस्य धूमादाव- सच्वेपौत्यन्वयः। वद्िसामान्याभावो वद्धित्वावच्छिन्नो वह्भयभावः। साध्याभाववद्‌्तित्वतलव्यापकतानिवेशनप्रयोजनमाह, "यश्चेति, 'दन्धनत्वायवच्छित्रेति, साध्यतावच्छेदकावच््छिन्नव्यापकतावच्छेद- (१) वस्तुतस्ति्यादिः दूति ट्गिल्यन्तः पाठः aey खाट्शेपुस्तकेषु नास्ति| व्याधिवादः | ४५९ कर्ूपावच्छित्नप्रतियोगिताकाभावस्येव लक्षणघटकतया घटत्राद्य- वच्छछित्राभावोपेक्णं, (महानसहत्तिलादृरभाव saa महानस- वस्ित्रल्वाटदिनेति बोध्यं, तादृशणभावाधिकरण्महानसह त्ित्- तादयवच्छित्रस्येति वा षष्ठयन्ताथः। न च गुरुधस्याभावप्रतियोगि- तावच्छटकल्वेऽपि ताहटयाभावाविेषितमहानसह्त्तित्रल्रावच््छिता- भावमाद्‌ायेव टोषप्रसक्तस्तद्दिशेषितमहानसहत्तित्वावच्छितरा- भावपयन्तानुसरणे सन्दभविरोध इति वाच्यम्‌ । अधिकरण त्वान्तस्योपलक्षणएतया शेषांणस्य विशेषणतया विवक्तणेनानु पपच्य- भावात्‌ । अधिकरण्विशेषानुपरक्रहन्तरभावमादायापि दोषं दशयति, “खनिष्ठेति धुमादिनिष्ठसाध्याभाववदुत्तित्वव्यकञस्त ्गक्ति- त्ावच्छिन्नाभावस्येल्थः, Santad? ्रालोकादिहत्तेः, एतेन हत्तिमदुत्तिल्मस्तोति सूचितं, सखम्मिन्‌' धूमादौ, अरत च लक्षणे सत्ताभाववान्‌ द्रव्यलादित्यादौ सत्तावत्समवेतत्राभावस्य व्यधि- करणधन्धावच्छित्रप्रतियोगिताङस्येव समकेतहत्तिलेऽपि द्रव्या हत्तित्वायवच््छिन्नाभावस्यापि साध्यतावच्छदकावच्छन्नव्यापक- तावच्छेदटक रूपावच्छित्नप्रतियोगिताकलया समानाधिकरणधम्भा- वच््छिनब्रप्रतियोगिताकस्यापि तदस्मवेतत्वाभावस्य समदेतगुण- alfeafaaat दव्यतलाटेस्तदच्चाभावान्रातिव्या्धिः। wanafa- साध्यकस्यल्तेऽपि साध्यतावच्छेदकावच्छिन्रव्यापकताप्रसिद्धयानाति- व्याप्तिः । कूटघटितलक्णे च तत्र तता तिव्या्षिवारणाय साध्य समानाधिकरणतवं सतोति विशेषणं देयं, एतल्नत्तणे चा त्तिडेतु- कातिव्या्िवारणाय त्तिमच्चमात्रमुपादेयं, कूटघरि तलक्तणवद्‌- 8६० अनुमानगादाधयां -_ Q alfa महाकालाग्योघटादिव्ादावतिव्यािदरष्टव्या, किन्तु तदन्य- दोषानाभेवातानवकाश इत्यवधेयम्‌ । दूति कूटाघटि तलत्तणव्याख्या | तत्वचिन्तामणि-दौधितिः। कूट घटितलक्ञ णम्‌ | अन्धे तु हत्तिमदृत्तयो यावन्तः साध्याभावससुटा- याधिकरणदत्ित्वाभावास्तद चवं, ताटशहत्तित्वाभावञ्च खव्यापकतादशहत्तित्वत्वव्यापकप्रतियो गिताको बोध्यः, प्रयोजनञ्चोकप्रायम्‌ । साध्याभावाधिकरणततित्वत्व- व्यापएकप्रतियोगिताकस्य व्यधिकरगधमग्धावच्छिन्नस्ये- वाभावस्य हत्तिमद्‌हत्तिवाद्मभिचारिण्तिव्याद्चिरतः समुदायेति | साध्याभावश्च साध्यतावक्छेद्‌ कसभ्दन्धेन वोध्यः तेन समवायेन वङ्कः साध्यत्वे VA संयोगेन च तथात्तै बड्भपवयवत्वे VA त-वद्धावयवसंयोगे च पव्वं तख वद्कवयवस्य च सम्बखदयावच्छित्नवद्धयभावहयानधि- करणत्वेऽपि aaa: | aretatt विहतिः | ‘sq fafa, घटलादिना निधृंमहत्तिल्ाद्यभावमादाय aqifaare: | ४६१ व्यभिचारि ण्यतिव्यात्चिवारणाय ‘arama, एवञ्च (१) केवला- न्वयिनः साध्यस्य व्यधिकरणधन्रावच्च्छिन्नप्रतियोगिताकस्येवा- भावस्य प्रसिडया तत्ससुदायाधिकरणएज गइ ्तित्वस्याघ्रत्तौ प्रसिद्वः समानाधिकरणधश््रावच्छिन्राभावोपि यावदन्तगेत इति तदत्व- विरहात्ताटशसाधष्यके विषयितादयतिरिक्ंसम्बन्धन (२) हेताव- व्या्षिः | साघनसमानाधिकरण्त्न साध्याभावविग्रेषणपक्ले च व्यतिरेकि साध्यस्य व्यधिकरणधर्ावच्छित्रप्रतियोगिताकस्येवा- भावस्य सद्धेतौ लक्षणघटकतया जगत एव॒ तत्कटाधिकरणत्वा- aifatfaaraasfa विषयितातिरिकरसम्बन्धन हेतावव्याप्षिरिति हत्तिमदत्ित्मभावविभेषणं, “ताग त्तिलेति साध्याभावसमुदा- याधिकरणदत्तिलेव्यधेः, प्रयोजनच्ेति पूर्त्मदलप्रयोजनं, आली- atgafaaa निवङ्किव्रत्तित्वाभावमादाय afsatq धमादित्ता- व्यापिवारणं पूव्वेलक्तणे उक्तमेव, चरमदलप्रयोजनन्तु साधनसमा- नाधिकरणत्वस्य साध्याभावाविश्नोषणत्वे केवलान्वयिसाध्यक ज्ञेय- त्वादिरहेतो घटादिहत्तित्ाभावमादायाव्यािवारणमेव, नतु वद्धि- > ©. मान्‌ घूमादिव्यादौ महानसहत्तित्वाद्यभावव्यावत्तनं तत्र महा- नसादटेवह्कित्वादययवच्छित्रवद्धयभावानधिकरणत्वेन साध्याभावकूटा- (१) इत्तित्वाभावे यावत्त्वोपादटाने चेत्यथः, अन्यथा घटत्वाद्ना जगद्‌ त्तित्वा- भावमाटायेव लल्तणसमन्वयाद्‌ छत्तिमट्‌ट ्ित्वविशेषखस्य प्रथमतोऽव्यावत्तकत्वा- ufafcfa भावः| (२) विषयितासम्बन्धेन हेतौ जगदूटत्तित्वख्य समानाधिकरणधम्दौषच्छिच्ना- भावोऽप्रसिड ua अरत्तेरपि विष्रयितासम्बन्धेन न्नानादौ सम्बद्धत्वात्‌ इत्यत उक्त faufgatafakafa, आआदिपट्‌।त्‌ तादात्मव्रपरम्रहः। ४९२ अनुमानगादाधय्या नधिकरणत्वात्‌, एतस्य च (१) प्रागनुक्तत्वात्‌ “उक्तप्रायसिव्युक्लम्‌ समुदावपद प्रयोजनमाह, (साध्याभावाधिकरणेति, व्यधिकरण- धगावच्छित्राभावस्येवेति, निधूमडइत्तिवलायवच्छित्निघूमहत्ि- तलादाभावस्य प्रतियोगिताया व्यधिकरणधम्मावच्छित्रसाध्याभावा- धिकरणमहानसादिष्वत्तिताह््तितिया साध्याभावाधिकरणहत्ति- त्वत्वाव्यापकतया जगदुत्तित्वसामान्याभावस्यव तद्प्रापकप्रति- योगिताकतया तस्य च समानाधिकरणघम्मावच्छिन्नप्रतियोगि- ताक स्याघरत्तावेव प्रसिदत्वादिति भावः । व्यभिचारिणयतिव्यासि- रिति, तादयस्य जगदुत्तित्वाभावस्य सव्वतेव wurfefa भावः | अतर च सखबव्यापकसाध्याभावसमुटायाधिकरणदत्तिवतल्कत सति साध्याभावसमुदायाधिकरणसितत्वव्यापकत्वं प्रतियोगिताविभ- परं, तत्र waza ससुदायानिवेथे निधूमच्नत्तिलल्वा यवच्छितरा- भावस्य लच्तणाघटकत्वऽपि नातिव्याक्चिः समभवति व्यति- रेकिसाध्यके ताटृशप्रलियागिताया एवाप्रसिदेजगष्टितरसामा- न्याभावप्रतियोगिताया;ः साध्याभावाधिकरणवरत्िलत्व्यापकत्व- ऽपि खव्यापकसाध्याभावसमुदायाधिकरणदठत्तितत्रक त्वरूपपून्व- दन्विरहात्‌ । धूमादययभावसमुदायाधिकरणहत्तित्दलशृन्ये महा- aatfeafaasfa दादशप्रतियोगितायाः स्तादिति पूव्व- पक्नयित्वा गशेषदले ससुदायाप्रवेे पूव्वदलमेव नोपादेयं तदनुपा- दानेऽपि व्किमानधूमादित्यादौ आलोकाद्यषहत्तिलायवच्छित्रा- भावग्रतियो गित्रस्यालोकादिनिष्रपव्दैतादिठत्तित्वस्ाधारणसाध्या- == ---- ~~ (१) केवलान्वयिस॒ाध्यकाव्याप्रिवारणय) aifaatz: | ४६३ भावाधिकरणत्तिलल्राव्यापकतया तादशाभावमादाय दोषा- प्रसक्तः, तदुपादाने व्यतिरेकिसाध्यकमात्र एवोक्तरोत्या तादटटश- प्रतियोगित्वाप्रसिद्धया ्रव्यासिप्रसद्गाच्, तथाच धूमवान्‌ वद्करि- त्यादौ घटत्वेन जगदृत्तित्वाभावमादायातिव्यासिरित्याशयेन दौ. fafamdzatufed, अ्रतिन्या्चिवारणाय Tees समुटायप्रवेशनें च निवंह्किउत्तित्रत्रव्यापकप्रनियोगिताकस्यालो काठत्तितला वच्छ त्राभावस्य वद्किमान्‌ धूमादित्यतर गेषदलाक्नान्ततया पृन्वेदलो- पादानमावश्यकं, तत्र च ससुदटायाप्रवेगे व्यधिकरणघम्मावच्छिन्र- साध्याभावाधिकरण्छठत्तिल्त्व्याप्यप्रतियो मिताकस्यालो काह त्ति- च्यभावस्य धृमेऽसच्चादव्यािरिति तत्रापि तव्मवेशनमिति केचित्‌ समादघति। परे तु प्रतियोगिलव्यापकत्वविशष्यतापन्रमेव साध्याभाव- ससुदायाधिकरणछत्तितवत्वं व्यापकत्वविशेषणविर्धया निवेश्यते न तु तदलस्योक्तरोत्या fear निवेशः, एवच्च पूरव्पपच्त एवायं नावतरति। न च गुरुधम्मस्याभावप्रतियो्गितानवच्छेदकलत्वे प्रतियोगित्वव्यापकत्वविशषितसाध्याभावससुटायाधिकरणदत्तित- लधिकरणनिष्टान्योन्याभावप्रतियो गितावच्छेदकत्वत्वं नाभाव- प्रतियोगितावच्छेदकमिति ताट्टथावच्छ्ेटकत्वत्वावच्छित्राभाव- रूपव्यापकतानिवेशसम्भवात्‌ तद्‌्दललस्य faut निवेशनमावश्यक- मिति वायम्‌ । व्यापकान्तस्योपलक्षणविधया साध्याभावससु- दायाधिकरण्{ त तत्वरूपव्याप्यांओे निवेशसम्भवात्‌ व्यापकता- वच्छदकावच्छिव्राभाववानित्यादिज्ञाने व्यापकतावच्छदकलांश- ४६४ ्रनुमानगादाधयां स्येव उक्तावच्छेदकत्वत्वावच्छित्रप्रतियोगिताकत्वेनाभावबुदौ व्याप- कताया उपनलक्तणलया भानेऽविरोाधात्‌ । वम्तुतसु गुरुधम्भस्या- भावप्रतियोगितानवच्छेदकत्वे साध्याभावसमुदायाधिकरणत्तित ` लाधिकरण्निष्टान्यान्याभावप्रतियोगितावच्छेदकत्वत्वसपि नाभा- वप्रतियोगितावच्छछेदकं वङ्कितवावच्छित्रवद्कयभाववद्‌त्तित्रनिष्ठान्यो- न्याभावप्रतिधो गितावच्छटकत्वत्वादिरूपस्षमनियतघस्मापेच्या व्य- धिकरणधम््ावच्छिन्रसाध्याभावेनाधिकेन घटितस्य तस्य (१) Te त्रादिति तादृशधम्यावच्छिन्नाभावो faanfad न शक्यः, किन्तु तादृशथान्योन्याभाव प्रतियोगिता वच्छेदकं यद्यत्तद्खदकूटमेव निवेश- नयम्‌, एवच्च प्रतियोगिताव्यापकत्वघटितोक्तघश्रस्य प्रतियोगि- तानवच्छद कत्वमकिचित्करसेवेत्यादः | (तनेति, समवायेन वङ्गः साध्यत्वे पव्वैतस्य सम्बन्ध इयावच्छछि- चवज्नयभावदयानधिकरणत्वेऽपि धूमे नातिव्या्िः, data वङ्के- स्तयथात्वे वह्ृ्मवयवस्य ताटशाभावदइयानधिकरणत्वेऽपि agiaa- वत्वे नातिव्यािः, समवायेन वङ्कः साध्यत्वे संयोगेन तस्य तथात्व च पव्वेतस्य वङ्कयावयवस्य च तादटशाभावदयानधिकरण्त्वेऽपि पव्वत-वङ्कयवयव संयोगे नातिव्यािरिति योजना, सम्बन्धदयाव- च्छित्रवह्धयभावदयं' संयोगसम्बन्धावच्छिन्रवद्भयभाव-समवायसम्ब- न्धावच्छित्रवद्धयभावदयं, साध्यतावच्छेदकसम्बन्धावच्छित्रप्रतियो- गिताकलत्वानिषेशने तादृशणाभावदयानधिकरणस्य पव्वतादेः साध्या- ~ ~ —. (१) साध्यामावससुटायापिकरण्टत्तित्वत्वाधिकरर्पनिान्यान्याभावप्रतियो- जितावच्छट्‌कत्वत्वस्य | pd amnfaate: | ४६५ भावङ्ूटानधिकरणतया तत्‌कूटाधिकरणठत्तित्वाभावा यावन्तः तदत्व' धृमादावव्याहतमेषेत्यतिव्यास्धिः स्यादिति भावः। नच साध्यतावच््छेरकसम्बन्धावच्छित्राभावनिवेष्नेऽपि समवायेन वह्नौ साध्ये संयोगेन देनो धूमे नातिव्याि्बीरयितुं शक्यते समवाय- सम्बन्धा वच्छिन्रवह्छयभावकूटाधिकरणसंयुक्तत्वस्य व्यधिकरणधन््मा- वच्छछिन्नभावस्येव संयुक्त त्त्वात्‌ संयुक्तमात्रस्यैव ताटशाभावक्ूटा- धिकरणगगनादिसंयुक्तत्वादिति कथमत्र व्याहत्तिप्रदशनं सम- वायेन धूमहेतुकख्थलपरता च न युज्यते समवायेन घुमवतः साध्याभावकूटाधिकरण्त्वानिराकरणादिति ara: संयुक्त मात्स्य गगनादिसंयुक्रत्वऽपि ताहृश्संयोगस्य तच्यनियामकतया संयोगेन वह्भयवयवान्यहत्तित्वाभावस्य संयोगेन ठत्तिमदुत्तेः सुलभतया (१) वत्तिपदस्य यथाञ्रुतपरतामते तादशव्याहत्तिदान- सङ्गतेः, हत्यनियामकतादात्मयादिसम्बन्पेन व्यासिखीकारे afa- पदस्य सम्बल्यथकत्वमावश्यकमित्यभिप्रायेण ata हितौय- स्थलानुसरणं, साधनसमानाधिकरणत्वस्य साध्याभावविशेषणत्वपक्ते समवायसम्बन्धावच्छत्रवह्धयमभावस्य वद्कवयवल्वादिरूपसाघनस- मानाधिकरणत्वाभावेन न तत्रातिव्याञ्षिसम्वः, एवं सत्ताभाववान्‌ दव्यत्ादित्यादावतिव्याञ्चिवारणाय साध्यसामानाधिकर्णे सतोति विशेषणप्रवेशस्यावश्यकतया संयोगादिना बद्किमत्यवत्तमान- (१) संयुक्तमाल्रस्य गगनारटद्िसंयुक्रस्येऽपि तादशसंयोगस्य टन्त्यनियामक्ख सथा यख्य द्रव्यस्य वद्धयवय एवाधिकरणत्वप्रत्ययः प्रामाखणिको न त्वन्यन्‌ संयोगेन TET नयवान्यर त्ित्वाभावख संग्रोगेन ट त्तिमत्तादश्द्रव्यटृत्तेः सुलभतयेति Ute | ५९ ४६६ अनुमानगादाधयां वङ्कपवयवत्वाटौ तेनाप्यतिव्याि्व्वीरयितं शक्यत इत्यतः “पव्वैत- व्छवयवसंयो गहेतुकानुसरणं, संयोगेन द्रव्यस्याव्याप्यहत्तितापक्ते Vata सस्वन्ध दयाव च्छिन्नवह्कयभावदयाधिकरणत्वेऽपि न तस्य व्याप्य त्तित्रविशिष्टसाध्याभावकूटाधि करणत्वं विवक्षणोयञ्चावण्यं तादटशसाध्याभा वकरूटवच्वम्‌, अन्यथा अव्याप्यहत्तिसंयोगादिसाध्यके व्यभिचारिणि जगत एव साध्याभावक्ूटाधिकरणत्वेनातिव्यासि- रिति efsatat: पव्धतत्रत्तिलेऽपि तादृशभावकूटाधिकरणठ- त्ित्राभावोऽत्तत एवेत्य तिव्यापिप्रसक्तिः | तच्चविन्तामण-दोधितिः। तथा खव्यापकौभूतसाध्यतावच्छेद कव्यापकप्रति- योगिताकोऽपि वोध्यः केन यव पृथिवोत्वाभागादौ साध्ये तत्तदिप्लाहत्तित्वाखवच्छिन्नप्रतियोगिताका- भावकूटाधिकरणमप्रसिद्वं तव सद्धेतौ परथिवीत्वादी साध्ये जातित्वादयावच्छिन्रामाववति सामान्यादाववत्तं- माने ट्रव्यत्वप्रकारकप्रभाविघयत्वादौ च नाव्या्चिरति- व्यापिर्वा, नाप्यभावल्वादिना अभावादौ साध्ये तत्त- व्साध्याभावकटाधिकरणाप्रसिद्वा अव्याप्तिरिव्याहः | गादाधरो विहतिः | पूव्यैवदत्र साध्याभावपदेन साध्यतावच्छद कविशि्टव्यापकता- वच्छेदटकरूपावच्छित्राभावविवक्तणे नानाविपत्तक्े तथाविधतत्त- व्या्षिवादः | yee हिपक्षा्त्तित्ावच्छिन्राभावकूटाधिकरणप्रसिदया sweanfa: सा- ध्यतावच्छेद क्वि? शष्टसमव्यापकतावच्छट्‌ कारव च्छननाभावनिेयमे च गौरवमिति साध्यतावच्छटकसमव्याप्तप्रतियोगिताकाभाव एव faafaqafaa: तार्णताणेदहनदत्ति दिला यवच्छत्रप्रतियोभिता- कानां तथाविघसाध्याभावानामधिकरणे धुमादेवृत्तावपि वह्कि- त्वादयवच्छित्रवद्छयभावघटितताटहशाभावकृूट वत्य्त्तेरव्याष्यनवका- शात्‌ इत्याशयेन तथाविधमेवाभावं निवेशयति, (तथेति, खं" प्रतियोगिता, समनियताभावेक्वमते साध्वाभावप्रतियोभितायाः साध्याभावसमनियताभावप्रतियोभिपदाथान्तरदत्तित्वेऽपि (१) सा- ध्यतावच्छ्दकेन व्यधिकरणेन वा धन््रंनावच्छिन्नायाः साध्यमात- व्रत्तिप्रतियोगितायाः साध्यतावच्छटकसमनयत्यमक्तमेव | अथ घटत्वायवच्छित्राया वाच्यत्वनिष्ठप्रतियोगिता at घटादिभिब्र- यावदस्तुहत्तिरेव सखौक्रियते न तु वाच्ल्वारिमाव्रहत्तिस्तथा सति घटत्वेन प्रभेयत्वं नास्तोल्यादिप्रतौतिषिषयप्रतियो गितान्तरकल्यनं गौरवादिति ताद्ृशप्रतियो गितायां न वाचत्वत्वादिरूपसाध्यताव- च्छेदकसमनेयत्यमिति चेत्‌, का कतिः, वाच्त्वभिनत्रत्वेन वाच्यत्वं नास्तोत्यादिप्रतौतिविषयमभावमादायैव तल्लकणसमन्वयसम्भवात्‌ सखव्यधिकरणवाचयत्भिन्नरत्वावच्छिन्नायाः प्रतियागिताया वाचयत्व- भिब्रह त्तिलस्यासम्भावितत्वात्‌ । वसुतस्तु घटलत्वाद्यव च्छिन्रवाच्य- त्रादयभावप्रतियोगितायां व्यधिकरण्घटलाट्‌रिव समानाधिकर- (१) साष्यसमनियतपयद्‌ाथांन्तरटत्ित्वेऽपोति ate | ४६८ VAAN aI णवाच्यत्त्व। टेरप्यवच्छेदकत्वमावश्यकं waa वाच्त्वं नास्तौ- त्यादिप्रतोत्या बाखत्त्वाटेः प्रतियोगितावच्छेदकल्वानवगाहनात्‌ ताहशप्रतोतेवाचत्रत्वादिविशिषटवशिष्यानवगादित्वेन तत्र वाच्त्व- लवादिप्रकारकन्ञानानपेक्तापत्तः, एवच्च घटत्वेन प्रमेयं नाम्तौत्यादि- प्रतोतिविषयप्रतियोगितानामतिरिक्तत्मावश्यकम्‌ अवच्छेदकभे- दादिति घटत्वेन वाच्यत्वं नास्तोत्यादिप्रत)तिविषयप्रतियागिता वाच्त्वादाषेव aaa न ल्न्यत्रापि मानाभावादिति घटत्वादिना वाचयत्वाद्यभावोऽपि लक्नषण्घटकः । wad साध्यतावच्छेदका- वच्छिन्नव्यापकतावच्छेटकरूपावच्छित्राभावधघटितलन्चण वद्किता- द्यवच्छिव्रसाध्यकस्यले वह्कित्वादिना चटाद्यभावोलक्षणघटको न स्यात्‌ व्यापकतावच्छदकव्किलादिप्याप्तप्रतियोगितावच्छटक- ताकल्वविरदान्महानसोयवद्कित्वाद्यवच्छिन्राभाववारणायावच्छद- कतापय्यीश्चिविवक्षणस्या वश्यकत्वादिति चेन्न, व्यापकतावच्छेटक- पय्याप्तत्वं fe व्यापकतानवच्छेद काठत्तित्वं तच्वन्धनत्वादयवच्छित्र- वद्कय्रभावप्रतियोगितावच्छदकतायामक्ततमिति तादशभावमादा- यैव तत्तल्न्तणसमन्वयसम्भव इति । एवञ्च साव्वभौमानामेतन्ल- त्षणाभिप्रायकतया 'समवायितया वाचयत्वाभावो az एवे प्रसिड- इति मूनलग्रन्योपवणनमपि सङ्गच्छते । अथ पय्यास्िसम्बन्धेन यतो- भयत्वादिकं साध्यतावच्छद्‌ कं aa प्रतियोगिताया अ्रव्यासज्यहठत्ति- त्वन्‌ तत्पय्यष्यधिकरणे प्रत्ये कव्यक्तौ परव्या्िसम्बन्धेनोभयत्वादिव्य- त्रत्यन्ताभावस्य तदवच्छिन्रभेदस्य च मच्वात्तस्य प्रतियोगिता- aaa न सम्भवति । न चाव्याप्यहत्तिसंयोगादेयत साध्यताव. व्या्िवादः। ४६९ च्छछेदकता तत्र तस्य प्रतियोगिताव्यापकत्वनिव्वीहाय प्रतियोग्ध- सामानाधिकरण्यं व्यापकताघटकाभावे निवेशनौयं तावता उभ- यत्वस्यापि व्यापकत्वं निव्वैदहति पर्य्या्िसम्बन्धनोभयत्पर्ययाष्य- धिकरणस्य प्रत्येकानतिरिक्ततया प्रत्येकचवत्तरुभयत्वाभावस्यापि प्रतियोगिसमानाधिकरण्तादिति वाचम्‌ । पृधिवोत्व-घटत्वो- भयत्वादिना यच साध्यता तच जातित्वादयवच्छिव्राभावप्रतियो- गित्वसमानाधिकरणस्य ताटशसाध्यतावच्छंटकाभावस्य प्रतियो- ग्यधिकरणादस्तित्वविरदेण ताह शसाध्यतावच्छट्‌ कस्य atennfa- यो गिताव्यापकत्ापच्या AAMAS] द्रव्यत्वप्रकारकप्रमा- विषयत्वादिहेतावतिव्याष्यापत्तः प्रतियोग्यनधिकरणव्रत्तितस्यैवा- भाषे निवेशनोयतया उभयत्वाभावव्यावत्तनासम्भवात्‌ तदभाव- वतः waa तदनधिकरण्त्वात्‌ awa तदट्धिकरणताया अ्रपि व्यासज्यदठत्तित्वादिति चेत्र, सामानाधिकरण्यस्याव्याप्यदत्तितापनन प्रतियोगिसामा्ना घकरणाभावर्वि शण्टाभाववत्तार्घा ट तव्यापक- ताया एव निकैणसम्भवात्‌ पधिवोत्वादौ उक्तोभयत्वबति पधिवौल- ल्ावच्छटेन तदभावस्य प्रतियो गिसमानाधिकरणत्वऽपि जलत्वा- टेस्तत्सामानाधिकरणाभावप्रिशिष्टतदभाववत्वनातिप्रसङ्गाभावात्‌ उभयत्वाद्यभावस्य तदभाववत्येकंकस्मित्रपि तत्सामानाधिकरखया- भावानभ्युपगमात्‌। तत्सामानाधिकरण्यावच्छेटकस्य प्रत्येका- नतिरि क्तत्वात्‌ । अर्वा यत्रिरूपितसाध्यतावकच्छछेटकताघटक- सम्बन्धसामान्ये प्रतियोगिललाधिकरण्यत्कििदयक्यनुयोगिकलत्वा- भावस्तदन्यत्रमेव प्रतियो गिताव्यापकल्रम्‌ उभयत्वनिरूपितप- ७० अनुमानगादाघर्या aia च न प्रत्येकानुयोगिकत्वाभावः उभयस्य प्रत्येकानतिरिक्त- atfefa | यत्त प्राचोनमते रूपसामान्याभावस्य रूप-तदुंस-तव्रागभाव- चितयप्रतियोगिकतया रूपध्वं सादिसाध्यके रूपादिदहेतावतिव्यासिः रूपसामान्याभावोयरूपध्वं सत्वायावच्छत्नप्रतियीगितायाः साध्य- तावच्छदकसमनियततया तद्‌घटिताभावकूटाधिकरणे wart aa: | न च रूपस्यापि रूपष्वंसाभावरूपतया तद्‌घटितस्य रूप- सामान्याभावाद्यघटितकूरस्यापि याबतामभावानामेकाधिकरणय- मिति विवक्षया लक्षणघटकत्वात्‌ तदति दहेतोवच्या नोक्ताति- व्या्िरिति वाचम्‌ । रूपादौनां प्रत्येकं सखस्वध्ंसाभावरूपत्वऽपि सखान्यरूपाटिष्वंसादयभावानावमकतया साध्यतावच्छटकसमनिवयत- प्रतियोशिताकल्विरहेण ल्तषएाघटकलत्वादिति, aa, जलपरमा- वादौ रूप्व सत्वादयय व च्छिन्नाभाववुदिनिव्वाहहाय जन्यरूपत्वादययव- च्छिन्राभावे रूपध्वंसत्रावच्छिन्नप्रतियोगिताकत्वकल्यनस्यावश्यक- तया तत एव रूपादिसामान्याभाववत्यपि तब्रतोतिनिन्वाहात्‌ रूपादिसामान्याभावस्य रूपध्वंसादिप्रतियोगिताकत्वानभ्युपग- मात्‌, साधनसमानाधिकरणलस्य साध्याभावविशेषणतापन्त तेना- प्यक्गस्यले रूपादि सामान्याभावन्यावत्त नात्‌, खनिरूपकाभाववच्छ- सम्बन्धेन साध्यतावच्छटकसमनियतप्रतियोगिताक्ूटाधिकरणत्व- भेव निवेष्य लक्षणस्य परिव्करणोयतया रूपादि सामान्याभावान- धिकरणस्यापि जलपरमाणादेरुक्तस्थले तत्कु टाधिकरणत्वेनाति- व्याघ्यनव काशा । प्रतियोगितायाः प्रतियोगिखरूपत्वमते ना- व्यात्निवादः। BO? नाव्यकिसाष्यकस्थले साध्यतावच्छेटकसमनेयत्यस्य प्रत्येकप्रति- योगितायामसच्वेऽपि खावच्छट्‌कावच्छिन्रतदभावोयप्रतियोगि- aaa (१) समनेयत्यविवक्तणात्र दोषः तत्तदङ्कि-तत्तद्मादि- सखरूपप्रतियोगितानामपि खावच्छेदकवद्किल-धूमलरायवच्छिन्ि- तदभावप्रतियोगितात्वेन वङ्किल-धूमत्वादिसमनेयत्यात्‌ वङ्कित्व- धूमलवाद्यवच्छित्रवद्कयादिखरूपप्रतियोगितानां दरव्यला दयवच्छित्रा- भावीयवन्गयादिखरूपप्रतिप्रोगितात्मकतया तदवच्छेट कद्रव्यत्वादय- वच्छछित्नप्रतियोगितायाश्च घटादावपि स्वात्‌ न तक्रतियोगि- तावच््छेद कावच्छिन्नप्रतियोगितातेन वद्किलादिसमनेयत्यमिति तदभावोयत्वं विशेषणं, तथा सति वद्कित्वायवच्छित्राभावोय- प्रतियोगिताया घटादावसच्लात्‌ नानुपपत्तिः । यद्यप्येवमपि वा्लत्वादिसमनियतप्रतियोगिल्वाप्रसिदिर्््वीरेव व्यधिकरणध- ग्मावच्छित्राभावानामभिन्रतया वाचयत्वादिनिष्ठं तत्‌ खरूपवाचल- भिन्नत्वाद्यवच्छिन्नवायत्वाभावोयप्रतियोगिताया घटलत्वायवच्छिन्न- वाचयत्वादि निष्टठतत्खरूपप्रतियो मित्वाद्धिन्रत्ेन तदवच्छेदकघटल्वा- दयवच्छछिन्नप्रतियोगितानां घटादावपि स्वात्‌ (2) afafeea- धन्य्रावच्छिन्रतदभावौयप्रतियोगिताव्वेन समनेयत्यघट कव्याप्यत्व- eer का (१) तद्भावीयप्रतियोगितात्वेन समनेयत्यविवकच्तणे साध्यतावच्छेटकसमनि- यततदट्भावोयप्रतियोगिताकामावद्याप्रतिद्धया वड्किनान्‌ धूमादिव्यादवव्याप्चिरतः स्वा वच्छट्‌कावच्छिन्नेति। (२) व्यधिकरणघम्म्रीवच्छिन्नाभावानामभिन्नतया वाच्यत्वादिखदूपवाच्यल- भिनच्रताद्यवच्छिनच्नाभावोयप्रतियोगितावच्छेद्‌कधटत्वाद्यवच्छिन्नप्रतियोगितानां घ टादटावपि सत्वादिति पार | ४७२ अ्रनुमानगादाधय) विवत्तणे च परथिवोल्ादयभावादिसाष्वकस्यल्े घटाठत्तिवाद्य- व च्छित्राभाववारणमगक्छं तदभावोयण्थिव)त्वाभावादिरूपप्रति- योगितानां प्रथिवौत्वाभावत्वादयवच्छित्राभावोयप्रतियोगितात्मक- तया प्रथिवौत्वाभावत्वादिरूपतदवच्छेदकावच्छिन्रप्रतियोगिता- त्वेन परयिवौत्वाभावत्वादिसमनैयत्यसच्चात्‌, तथापि agarafae- न्रप्रतियोगिताल्न यदभावनिरूपितत्वं तादशघग््ावच्छिन्रतद- भावौयप्रतियोगिताल्वेनव व्याप्यत्निकेशत्र दाषः एयिवौलाभा- वत्वावच्छित्रप्रतियागितात्वेन प्रथिवोत्वादिरूपाभावमात्निरूपि- तत्वं न तु घटाह्रत्तिलावच्छित्राभावनिरूपितत्वमिति। यद्यपि पूव्वेदलाप्रवेशे वद्कयादिसाध्यक्ते घुमादिद्धेतौ साध्वतावच्छेदकसम्ब- न्धावच्छिवरसाष्यतावच्छेदकव्यापकप्रतियागिताकतत्तइटात्तिता- वच्छित्राभ्रावकूटाधिकरण्तल्स्य गुणादौ प्रसिदत्वेऽपि तच हेतुता- वच्छटकसम्बन्धेन हत्तरप्रसिडया अव्यासिमम्भवः तथापि साध्या भावकूटवबति तादहशह्रत्तरप्रसिद्धया अव्या्िस्तद निेशेऽपि war वान्‌ जातरिल्यादौ aaa इति स्यलान्तरे कूटाधिकरणाप्रसिद्धया भ्रव्या्िवारणरूपतप्रयाजनमाह, ‘aa एधिवोत्वाभावादाविति, "तत्त ददिपक्षेति घट-पटादिरूपेत्य्थंः, ‘aq सद ताविति aa साध्ये यः सडेतुजनलत्वादिस्तत्रेत्ययः, "नाव्यासिरित्यनेनान्वयः, यावता- मेकाधिकरण्यं सम्भवति तावदभावसमुद्‌ायाधिकरणविवक्ताया- म्तदाषासम्भवेन स्थनान्तरे अव्यािमादह, पथिवोत्वादाविति, द्रव्य- ae: समवायेन हेतुत्वे जातितलायवच्छित्राभावघरितक्ूटाधि- करणे समवायेन छत्तरप्रमिदया त्रतिव्याघ्यनवकाशत्‌ सखरूपसम्ब- aifaate: | ४७३ न्धेन ₹ेतुलवानुसरणम्‌। साधनसमानाधिकरणत्वस्य साध्याभावविशे- anata जातित्वादयवच्छिन्नाभावस्य साधनासमानाधिकरण्तया वारणसम्भवेऽपि प्रत्येकं साधनसमानाधिकरणजलाहत्तित-तेजो ऽत्रत्तित्वादयवच्छित्रसमवायसग्बन्धावच्छित्राभावकूटाधिकरणतायाः सामान्यादावेव सत््वादतिव्यास्िदव्वारेवेति ध्येयम्‌ । दितोयदल- प्रवेप्रयोजनमाद, (नापोति, घटल्राभावल्ादिना साध्यतायां घटादावेव साध्याभावक्ूटाधिकरणत्वप्रसिद्िरत उक्ताम्‌ “्रभावला- feafa, शआ्रादिपदागेथत्वादिपरिग्रहः, (तत्तत्साध्येति घटत्व भाव-पटलत्वाभावादिरूपसाध्यस्य यः साध्यतावच्छद्‌ कव्याप्यप्रति- योगिताको घरल्व-पटत्वादिरूपोऽभावस्तत्समुदायाधिकरणाप्रसिच- रिव्यथः, यावतामेकाधिकरशण्यं सम्प्रवतोति विवक्षायामपि तादश भावससुदाववति घटादौ हेतोवृत्तेरव्यािरेव | न च यावताम- भावानामेकाधिकरणयसमभवस्ताटृशभावकूटाधिकरणं यदयत्‌ ताव- दन्यतम्वत्तित्वल्सम नियतप्रतियो गिताकोऽभावो विवक्षणौयः घटघस्तिल्त्वाद्यवच््छिन्राभावश्चोपदरि तख्लते न तथा जगत wa ताबदन्यतमान्त गतत्वात्‌, अपितु घटत्वादिना जगहत्तित्सामा- न्याभाव एव हत्तिमहत्तिस्तयाविधोऽभावः, तावदटधिकरणान्यतम- ay तत्तदधिकरणाह्त्तिशृन्यतं न तु तत्तदधिकरणान्यान्यत्वमतो नाप्रसिदिरिति वाचम्‌ । एवमपि जातिप्रतियोगिकाभाववान्‌ मेयत्वादिल्यादौ जातिमताभमेव घटल-पटत्वघरटिततादशकूटाधि- करणतया जातिमहत्तिवल्लावच्च्छित्राभावस्यापि ateqaat भ्रव्या- पेटुब्बारत्वादिति । ब्रत साध्याभाववत्तायां सम्बन्धतिशेषानिवेभे qa BOR अनुमानगादाधयथां कालपरिमाणवान्‌ भमेयत्वादिल्यादावतिव्या्िः कालस्यापि कालि- कसब्वन्ेन चादपएरिमाखश्रावाधिकरणतया जगत एव साध्या- भावकूट वत्वात्‌ देशिकविशेषणतासम्बन्धनिवेशे च घटलाभाववान्‌ पटल्वादित्यादावनव्यासिषेटल्वाटेस्तेन समस्बन्धेनाठत्तेस्तन सम्बन्धेन तदुघटितकूटाधिकरणा प्रसिद्धेः, तेन सम्बन्धेन हत्तिमच्वस्याभाववि- TIVE तु घटल्वाभावादि साध्यके व्यभिचारिणि व्यधिकरणधग्मा- वच्छित्राभावमादायातिव्या्षिः कालिकसम्बन्धावच्छित्र प्रतियोगि ताके घटत्वाभावाभावे साध्ये आत्त्वादिहेतावव्यात्धिश्च घटाति- रिक्ञवस्तुमाचस्यैव दशिकविगेषणतया साध्याभावकूटवत्वात्‌ साध्य- निरूपितप्रतियो गितावच्छद्‌ क सम्बन्ध निवे शेऽप्ययमेव दोषः, किञि- दिशि्टिताटशसाध्यस्य योऽभावस्तस्य टदेशिकविरेषणतासम्बन्धा- वच्छित्राभावस्तद्रूप इति दंशिकविगरेषणताया श्रपि निरुक्तसाध्य- निरूपितप्रतियोगितावच्छेटक सम्बन्धात्‌ | खनिष्ठताटग(१)प्रति- यौोगितावच्ेटक सम्बन्धेन सखाधिकरणत्निवेगे च व्यधिकरणघम्धा- वच्छिन्राभावस्य साध्याप्रतियोगिकतया तदसंग्रहप्रसङ् इति साध्य तादच्छटकसम्बन्धेन खप्रतियोगितावच्छेदकविशिष्टसाध्यवत्तान्ञानं प्रति यत्सम्बन्धावगादि यदभावन्नानं प्रतिबन्धकं तेन सम्बन्धन तद्भावाधिकरणत्वं विवकच्तणोयं व्यधिकरणघम्धावच्छित्राभाववत्ता- वुदिरपि व्यधिकरणधग्मावच्छन्रप्रतियोगिप्रकारकवुदिं प्रतिवध्ा- तौति वाद्श्रभावस्य लद्णघटकतानिनव्दाहः । यदि चाभाववत्ता- ज्ञानं प्रति रैभिकविशेषणतासंसगेकमपि तदभावाभावलावच्छिव- ~ (१) साष्यनिद्ूपरतेत्वयः | QTAATS: । ४७१५ प्रकारकन्नानं प्रतिवख्कम्‌ अभावाभावस्यातिरक्ततामते atey- ज्ञानप्रतिबन्धकताया ्रावश्यकत्ात्‌, तस्य प्रतियोगिखरूपत्वमते- ऽपि फलसाम्यानुरोघेन तदावश्यकत्वात्‌ अभावाभावस्यातिरिक्रत्- ग्रहद शायां तप्मतिबन्धकताया दुरपङ्वत्वाच, way कालिकसम्ब- न्धावच्छत्नप्रतियोगिताके घटल्ायभाव-जातिलादेरभावे साध्ये आमत्व-जातित्वादावव्यासि्टुव्वारेव देशिकविगेषणएतासम्बन्धस्यापि निस्क्तरूपाक्रान्तत्ात्‌ | न चेवं ताटृणएसाध्यवत्यपि पक्ते ताटश- साध्याभावत्वावच्छित्रप्रकारकप्रमारूपप्रतिबन्धकन्ञानसम्भवात्तदि-- षयस्य हेत्वाभासतापत्तिरिति वाचम्‌ | तत्र पत्ते साध्यं नास्तोति- ज्ञानस्य aad निव्विवादमिति तदुपपादनाय तादृणसाध्यप्रति- योगिनस्ताटटशसाध्याभावत्वेन दं शिक विशेषणतया हच्यनभ्युपगररा- दिव्यच्यते, तदा निरुक्तसम्बन्धन तादृश्साष्याभावत्वावच्छिन्राधि- करणताकरूटवच्चं विवकणोयं हेतुमति च ताद्शाधिकरएताविर- हासोक्ताव्यास्िः | परे तु घटल्वादेरपि देशिकविरेषरतास्वौकार आवश्यकः अन्यथा घटेन घटल्लाभाव इत्यादिनजन्यिप्रतोति-व्यवद्ारयो- रनुपपत्तिः काले a दरव्यत्सिव्यादिप्रयोगविरहेण सप्तम्य- धैदैभिकविशेषणतासंसर्गवच््छित्राषेयत्वान्वितखायं बोधजनकत्व-- स्यैव (१) aque व्युत्यत्रत्ात्‌ । न च भावरूपप्रतियोगिवा- चकपदसमभिव्याह्ृतनञा टै शिकविशेषणतासम्बन्धावच्छिन्राघेय- तया अ्रभावरूपप्रतियोगिवाचकपदरसमभिव्याह्तनजा च प्रति- (१) रेशिकविशेषखतासंसगावगाह्िनोघजनकत्वसखेवेति पा० | ४७& अनुमानगादाघय्थौ यो गितावच्छद क सम्बन्धा वच्छिन्राघेयतया अभावः प्रत्याय्यते (१) इति व्युत्पत्तिरिति वाच्यम्‌ । प्रतियोगितावच्छटकसम्बन्धत्वेन सम्बन्धवबोधोपगमे सर्व्वेषां मेयाभावानां देशिकविगेषणतासम्बन्धा- वच््छिन्नप्रतियोगिताकः किञिदिशिष्टखखवाभावस्य योऽभावस्तद्रूप- तया तादटशसम्बन्धश्च प्रतियोगितावच्छेदक इत्यतिप्रसङ्गगत्‌ (२) विशिष्य समवाय-कालिकादिमानस्यवोगन्तव्यतया प्रतियो गिन्यभावै सम्बन्धविशेषावच्छिन्रप्रतियोगिताकत्वावोघधकादयमभावो नास्तौ- व्यादितः सम्बन्धविग्रेषावच्छितराधेयताप्रतोतो (2) नियमका- भावात्‌ समभिव्याद्वारविरेषनिरपैन्तस्य तात्पथस्य नियामकतव कालिकादिसम्बन्धावच््छिन्नप्रतियोगिताकात्बत्वादयभावादटेरात्मत्वरू- पो योऽभावस्तस्य समवायादिसंसगतात्पय्यणात्मन्ययमभावो नास्तोति प्रयोगप्रसङ्गात्‌! वास्तवतत्म्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगि- ताकाभावरूपप्रतियोगिवाचकपदटसमभिव्याहारस्य तत्‌सम्बन्धा- वच्छिन्नाप्रेयताभाननियामकत्वे (४) वस्तुतः कालिकादिसम्बन्धा- वच्छिन्रप्रतियोगिताकेऽस्मित्रभावे कालिकसम्बन्धावच्छिन्नप्रति- योगिताकत्वसंशयदशायाम्‌ अयमभावो नास्तोति वाक्याद- धिकरणे एरतदभावाभाववच्छप्रतोतावपि भ्रधिकरणे कालिक- (१) टेशिकविगेषणताभावद्पप्रतियोगिवाचकपट्समतिव्याहृतनञा च प्रति- योगिभ्रताभावप्रतियोगितावच्छेटकसम्बन्धः प्रत्याय्यत इति ure | (२) आत्मनि कालिकसम्बन्वावच्छिच्नप्रतियोगिताको घटत्वाभावाभावो नेत्यादिप्रतीत्याप्तिष्धपोऽतिप्रसङ्गः | (र) सम्बन्धविशेषप्रतोताविति ute | (४) तल्बुम्बन्धभाननिय।मकलत्व इति ate | व्याभिवादः | BOS सम्बन्भेनाभाववत्वादिसं ण्यस्य (१) सव्वानुभवसिदस्योच्छटापन्तः | aaa कालादावपि कालिकसम्बन्धावच्छित्रघरत्वाभावो नास्तोति प्रतौत्यनुरोश्रन घटल्वादेर्देशिकविश्रेषणतासखीकारस्यावग्यकतया aa समवायसम्बन्धावच्छित्रघटत्वाभावो नास्तोति व्यवद्ारापत्ति- रिति aa, प्रतियोगिमति तदभावत्वेन ठत्तेरनभ्यपगमात्‌ इलच्च टे शिक विशेषणतासम्बन्धेन साध्याभावत्वा व च्छछिन्रवच्छं लक्षणे faa- श्रनोयं कालिकसंम्बन्धावच्छित्रप्रतियोगिताकघटल्वाभावाभाववान्‌ श्रामत्वारित्यादौ घटलत्वाभावस्य ताटृशसाध्याभावत्वेनातमन्यठत्तनाी- aa: | एतेन याहणसाध्यकसथलते साध्याधिकरणे साध्याभावस्य तदधिकरणे च साध्यस्य न aa: प्रसिदः aa प्रतिवध्य-प्रतिवन्धक- भावकल्पनासम्भवेन प्रतिबन्धकताघटितलक्तणस्याव्यािरिति निर- स्तमिति वदन्ति| तच्चचिन्तामणि-दौधितिः। तन्न द्रव्यत्व-पृथिवीत्वोभयवान्‌ द्रव्यत्वादिल्यादौ तदुभयान्यतरत्वावच्छिन्नाभाववति द्रव्यत्वादेरहत्तेरति- ae: | अपि चैदंपुधिव्यन्यद्रव्यत्ववत्‌ द्रव्यत्वा- दिलयादौ द्रव्यत्वत्वावच्छिन्नाभावकूटाधिकरणगुगणादय- afuay द्रव्यते स्वादतिव्यापैः ट्रव्यत्वत्वाद्यवच्छिन्न- प्रतियोगितायाः पृथिव्यन्यत्वविशिष्टद्रव्यत्त्वसमव्याप्त- (१) अयमभावो नारूोति वाक्याट्धिकरणटत्तित्वख एतद्भावाभावे प्रतोतावपि ऋअधिकरणनिष््पितकालिकसम्बन्धावच्छिच्राघेयत्वाभाववत्वादिसंशयस्येति पा०।, yor श्रनु्यानगाटराधयां त्वात्‌ | किञ्च॒ रूपाभावसाध्यकै सद्धेतौ साध्याभाव- समुदटायनिविष्टसकलरूपव्यक्छधि करणा प्रसिद्ध: | याव- तामभावानामेकाधिकरण्यं तावतां समुदाये faafa- तेऽपोद्‌पृथिवौहत्तिगुणण॒न्यं सत्तान्यपुथिवोसमवेतशुन्यं वा वावुत्वाट्ूपवदन्यत्वाहेत्यादाव्तिव्याप्तिः aa ताहश- साध्याभावस्तोमस्य नियमतो रूपादि घटितवत्वेन तदति तदधेतोरहत्तेः, वस्तुतो निखिलानामेव रूपाणां az ्ाभावसहसख्रसमानाधिकरगलाव्मानाधिकरगयाउद्‌- भावाधिकरणाप्रसिदिदव्वारेव | 2 - गदाधरो faafa: | | 'तदुभयेति, द्रव्यल्‌-ए़थिवोतान्यतरत्वावच्छिन्नप्रतियोगिताया- अपि तदुभयत्वसमनियततया तादृशाभाववतो गुणादेरेव निस्क्त- साध्याभावकूटाधिकरण्त्वादिति भावः । प्रतियो गिवेयधिकर्या- घटितव्यापकत्वस्य साध्यतावच्छेटकविशेषणत्वमुपगम्य उभयत्- वति प्रत्येकमुभयल्वाभावसच्वेन तस्य प्रतियोगिताव्यापकत्ववारणे तु तद्रूपावच्छित्रसाध्यकसदेतावव्यासिद्रे्टव्या, व्यासनज्यघ्तत्तितवा- व्या सज्यहत्तितान्यतररूपेणए साप्यतावच्छदकसजातौयो यो wa- दवच्छित्रत्वस्य प्रतियोगिताविश्षणत्नोपगमे(१) नतादशति- व्याघ्यवकाश इत्यतः सानान्तरेऽतिञ्याप्षिमाद, “afa चेति, रव्य (१ तथाचान्यतरत्वावरच्छिन्चप्रतियोगत्वख्य साध्यतावच्छरट्‌कसजातीयषम्भा चच्छिन्नत्वाभावादरेव तादटशप्रतियोगितावारखात्‌ | arifaata: | ४७९. त्त्वा दवच्छितरेति शुइद्रव्यत्वत्वा द वच््छित्रेत्यथेः, 'एयिव्यन्य तवि शि- ्टदरव्यत्वलंसमव्याप्ततवादिति, विश्चेषणावच्छित्रस्य डवि ष्यानति- रिक्रत्वादिति ata: | fafuvenfafiaa विरश्टिदरव्यत्वादिसाध्य- Hut शदद्रव्यत्वादययभावस्य वारणसम्भवात्‌ दूषणान्तरमाह, “किञ्चेति, “रूपाभावेति रूपत्वादय वच्छित्राभावैत्यथः, (सदेता- वित्यव्या्िस्‌चनाय, सकलरूपव्यक्यधिकरणाप्रसिद्वरिति, तथाच तद्‌षटितसाध्याभावकूटाधिकर ए प्रसिद्धया अव्याक्चिरिति भावः। 'यावताभिति, तथाच wad सकलरूपघटितससुदायस्य न ल्तण- चटकता सकलरूपाणामेकाध्िकरण्यविरहात्‌ किन्तु एकौकरूप- व्यधिकरणधग्मावच्छित्राभावषघटितकूटानामेव प्रत्येकं तदधि- करणता च रूपवत्‌खेव प्रसिति नाव्यास्यवकाश इति भावः । ‘sefafa, वाधौ एथिवोषएत्तिदित्व-संयोगादिसखादायुल्रादेरुक्त- साध्यव्यभिचारिता, गुणएसामान्याभावस्य साध्यत्वे वायवोयस्मशणदि- रपि साध्याभावः तद्‌घटितनिरुक्राभावकूटवहत्तित्राभावस्य याव- दन्तगेतस्य वायुत्वादावभावात्रातिव्या्चिसम्भवः इति ‘afaat- वरत्तोति, घट-तद्ायुदित्व-पट-तद्वायुदित्वादिरूपणटयिवोहत्तिगुण- भावाभावानां यावतां वायावेकाधिकरण्यसम्भवेन acafea- कूटस्यापि लक्षणघटकतया तदति वायौ डेतोवंच्या नातिव्याति- avai न च दित्वादिरूपक्षाध्याभावस्य उत्प्तिकालेऽसत्तेन कालिकाव्याप्यह्त्तितया व्याप्यव्रत्तित्वविगेषणन तदुव्याह्ठ्तिः पायिवपरमाण्वेकत्वादिरेव लक्षणघटका इत्यतिव्यासिदुव्धारैषेति वाचम्‌ | प्राचौनमते हिललादिमति तप्मागभावादिकालावच्छदेन gto अनुमानगादाधयां तदत्यन्ताभावासत्वात्‌ दिताटेरपि araafaarfefa एथिवो- पदम्‌, इदम्पद-प्थिवोपदयोः कञ्मधार्यो वाभिमतः। न च खतस- मानाधिकरणाभावाप्रतियोगित्वम्‌ अनवच्छित्रहत्तिकतवं वा व्याप्य- afaa न तु स्वसमानाधिकरणाव्यन्ताभावाप्रतियोगिल. तच्च न दित्वादिसाधारणमिति परधिवौपदस्य एथिवौसामान्यपरत्वेऽपि न क्षतिरिति वाचम्‌ । एतदतिव्याक्चिवारणानुरोषेनाव्यन्ताभाव- घटितव्याप्यहत्तित्वस्यैव निवेश यितुसुचितत्वात्‌ एतदट्रूपात्यन्ताभाव- वान्‌ मेयल्वादित्यादाबेतद्रूपाकाभावस्य लक्तणाघटकत्वेऽति- व्याश्यापत्तेः प्राचीनमतेऽत्यन्ताभावघरितव्याप्यहत्तित्निवेशस्याव- ष्यकत्वाचच | अतएव Wiad (रूपादिघटि तत्वनेव्यपि साधु सङ्गच्छते, पाथिवर्ूपमावस्यैवानित्यतया ब्रत्यन्ताभावघटितव्याप्यहत्तिला- निवेशे तस्य व्याप्यत्र्तित्ाभावेन तदसङ्त्यापत्तः, विसु सम- वायेन बोध्या, तेन वायवोयस्पश्णदेः कालिकसम्बन्धेन एथिवो त्ति- asfa a fa: एथिवोसमबेतत्वावच्छिन्नाभावो गुरुधश्यस्य प्रति- योगितानवच्छेद कत्वेऽप्रसिदः परथिवोसमवेतत्वावच्छिन्रत्रनाभिम- तायां प्रतियोगितायां केवलसमवेतत्वस्येवावच्छदकत्वसम्भवेन प्रथिवीसमवेतत्वस्याभावप्रतियोगितानवच्छद कत्वात्‌ | न च एचिवो- समवेतत्वावच्छिन्राया जलत्वादिव्याहत्तप्रतियोमिताया ्रतिप्रसक्त- समवेतत्वस्य नावच्छदकत्वसम्भव इति वाचम्‌ । समवेतत्वावच्छि- न्नप्रतियोगितातः अतिरिक्ताया जलल्वादिव्याहठत्तप्रतियोगिताया- एवासिदर्गुरधर्खमस्याभावप्रतियो गितावच्छेदट कत्वेऽपि ्थिवोसम- वेतत्लावच्छिन्राभावस्राध्वके नातिव्यािसखम्भवः तादृयाभावस्य सम + = 9 ‘*Yoga Aphorisms of Patanjali, Fasc. 3-5 @ /10/ each *Markandeya Purana, Fasc. 5-7 @ /10/ each ae JS Rs. Mimaihsa Dargana, Fase. 10-19 @ /10/ each ००५ ee 2 *Nyayavartika, Fasc. 1--6 @ /10/each_ ... oe ०५ ba *Nirukta, Vol. LV. fase. 1-8 @ /10/ each Pees ५०९ ए *Nitisara, Fasc. 3-5 @ /10/ each aia ००७ + Nityacdrapaddhatib, Fasc. 1--7 @ /10/ each a we, Nityacdrapradipah Vol. 1. Fasc. 1--8 ; Vol. I, Fasc. 1-8. @ /10/ each. Nyayabindutika, Fase. 1 @ /10/ each ise _*Nyaya Kusumatijali Prakarana Vol. I, Fase. 2--6 ; Vol. II, Fase. 1--5 @ /10/ each ; cm Nyayasarah ४ any ००१ क नदन Padumawati, Fasc. 1--5 @ 2/ 3 ~ (* नि. *Parigiyta Parvan, Fase. 3--5 @ /10/ each a j 2 ग Prakrita;Paingalam Fasc. 1--7 @ /10/ each i ee “ns Prithiviraj Rasa. Part If, Fasc. 1--5 @ /10/ each ... a ए. Ditto (English) Part IT, Fase. 1 @ 1/ = ग Prakrta Laksanam Fase: 1 @ 1/8/ each हि, Parigara Smrti, Vol. 1, Fasc. 1--8; Vol. Il, Fasc, 1--6 Vol 111 Fasc. 1--6 @ /10/ each Paragara, Institutes of (English) @ 1/- each Pariksamukha Sutram Prabandhacintamani (English) Fasc. 1--3 @ 1/4/ each nae = Rasarnavam, Fasc. 1-3 My: Bee Saddarsana-Samuccaya, Fasc, 1-2 @ /10/ each गः त Samaraieca Kaha Fasc. 1-3, @ /10/ शः ae en o Sankhya Siitra Vrtti, Fase. 1-4 @ /10/ each ip. : Ditto (English) Fase. 1-3 @ 1/- each Me ss eSankara Vijaya, Fasc. 2-3 @ /10/ each भ; ध, Six Buddhist Nyaya Tracts र es Bae त ४ Sraddha Kriya Kaumudi, Fase. 1-6 @ /10/ each Sa # ~ Sragdhara Stotra ( Sanskrit and Tibetan ) neg Sueruta Samhita, । Eng.) Fase. 1 @ 1/- each = * me Suddhikaumudi, asc. i-4 @ /10/ each ... ieee ni Rot Sundaranandam Kavyam a , ध a, a a Suryya Siddhanta fase. 1... + Le क Syainika Sastra ... a a च aa Taittreya Brahmana, Fasc. 11-25 @ /10/ each = re. - Pratisakhya, Fasc. 1-3 @ /10/ each os Bias ae “Taitteriya Samhita, Fasc. 27-45 @ /10/ each ot re a Tandya Wrahmana, Fasc. 10-19 @ /10/ each क Mien oz Yantra Varteka (English) Fase. 1-8 @ 1/4/ each षः ¥Yattva Cintamani, ४01. I, Fasc. 1-9, Vol 11, Fasc. 1-10, Vol. III, Fase. 1-2 Vol. LV. Fase. 1, Vol. V, Fase. 1--5, Part IV. Vol. IT, Fase. 1-12 10/ each Tattva Cintamani Didhiti Vivriti, Fase @ /10/ each ४ ४ rs Ditto Prakas, fase. 1-2, @ /10/ each Tattvarthadhigama Sutram, ase. 1-3 @ /10/ each Tirthacintamoni, fasc, 1, @ /10/ each Trikanda-Mandanam, Fasc. 1-3 @ /10/ each Tulsi Satsai, Fase. 1--5 @ /10/ each «Upamita-bhava-prapaiica-katha, Fase. 1-2, 5-138 @ /10/ each Uvasagadasao, (Text and Knglish) Fase. 1--6 @,1/- each allala Carita, Fasc 1 @ /10/ a Varga Kriya Kaumudi, Fase 1--6 @ /10/ each A “Vay. Purana, Vol. I, Fasc. 3--6 ; Vol. 11, Fasc. 1--7,@ /10/ each Vidhana Parijata, Fase. 1-8 Vol- 11. Fase I @ /10/ each Ditto Vol. 11, Fase. 2-4 @ 1147 Vivadaratnakara, Fase. 1--7 @ /10/ each नि Vehat Svayambht. Purana, Fase. 1--6 @ /10/ each ... # 9 9 eve eee Yogasastra of Hemchandra Vol. I. Fase. 1-3 Tibetan Series Baudhyastotrasangraha, Vol. 1 ( Tib. & Sans. ) A Lower Ladakhi version of Kesarsaga, Fase 1/- each Nyayabindu of Dharmakirti, Fase. 1... Pag-Sam S‘hi Tifi, asc. 1--4 @ 1/- cach वि Rtogs brjod dpag Akhri 810 ( Tib. & Sans. Avadafia Kalpala “Vol. I Fasc, 1--8 ; Vol. IL. Fase. 1--7 @ 1/- each eee eee ees > eee = ~^ "~ "~ “० ~ S @> Hh — Or @> = end @> ।-~ Oe +~. ee DDD DO "~ € ND et et 9 +~ ~ ४८ ae us So => "+ +> (9 € "~ € "> 4० <ए @-4 ॐ >> => © ^~ ॐ "~ mon 1 Sher-Phyin, Vol. I, Fase. 1-5; Vol. H, ४२5९. 1-3 ; Vol. 111, Fase 1-6, @ 1/ each 14 Arabic and Persian Series *Alamgirnamah, with Index, (Text) Fasc. 1--13 @ [10/ each Al-Muqaddasi (English) Vol. I, Fase. 1--4 @ 1/- cach Akbarnamah, with Index, Fase. 1--37 @ 1/8/ each 8 4 49 ष | 00 = ¢ @» ॥^» OOS "व व श | [ति रं bt ee SR REDO +» ~> 0 ॐ @ १ OL ॐ 00 ++ #> †& <, > => 0 (=) (=, 2 0 § “The other Fasciculi of these works are out of stock and complete copies canno be supplied om! Ain-i-Akbari, F: 2 (2 1/8/ each ... ' = ; 001. 1 Fase. १ Vol fi श igh) Wel. I, 713; Vol. I], Flee. ep mole ua bliography, by Dr. A. Sprenger, @ /10/ र ३111811, with Index, Fasc. 1--19 @ /10/ each Catalogue of Arabic Books and Mannseripts, 1-2 @ 1/- each Catalogne of the Persian Books and Manuscripts in the Library of th Asiatic Society of Bengal. Fase. 1--3 @ 1/ each Dictionary of Arabic Technical Terms, and Appendix, Fasc. 1-21 @ 1/8/ each Fa rnang-i-Rashidi, Fase. 1-14 @ 1/8/ each : Fih 115 ५-1-{ १७१. or, Lisy’s list of Shy’ah Books, Fase. 1--4 @ 1८ each Futib-ush-Sham of Waqidi. Fase. 1--9 @ /10/ each क 11१४6 of Azadi, Fase. 1-4 @ /10/ each ee History of Gujarat Hatt Aswan, History of the Persian Masnawi. Fasc. 1 @ /12/ each Hisatory of the Caliphs, (English) Fase. 1--6 @ 1/4/ each ध Iqalnamab-i-Jahangiri, Fasc. 1--3 @ /10 / each , Isabah. with Supplement, 51 Fase. @ 1/- each Ma'sair-i- Alamgiri, Fase. 1--6 @ /10 each a Maa'‘dsir-ul-Umara, Vol. I, Fase. 1--9, Vol. II, Fase. 1--9; Vol III, 1-10; Index to Vol. I, Faze. 10-11; Index to Vo!. [J, Fase. 10-12; Index to Vol. III, Fase. 11-12 @ 1/ each a 0 Maghazi of Waqidi, Fasc. 1--5 @ /10/ each ५२ ne Marhainn ’L [19] ’L-Mu'Dila oe ध Muntakhabu-t-lawarkb, Fasc. 1 --15 @ /10/ each न 9 Ditto ( English } Vol. I, Fase. 1--7; Vol. 11, Faac. 1--5 and 3 Indexes ; Vol. 1[1. Fase. 1 @ 1/ each... =: 6 Muntakhabn-l-Lubab, Fase. 1- 19 @ /10/ eac} ae ee 11 Ditto Part 3, Fase. 1 ee vee 1 Nukhbato-L-Fikr. Fase. 1 @ /10/ 7. 0 I Nizami's Khiradnainah-i-Iskandari, Fase. 1--2 @ /12/ each Qawaniuu ‘s-Sayyad of Khuda Yar Khan ‘Abbasi, edited in the original Persian with English notea by Lieut. Col. D. C. Phillott 5 Riyazu-a-Salatin, Fase. 1-5 @ 10/ each... ha १ 3 Ditto (English) Fase. 1--5 @ 1/ . ns 5 Tadhkira-i-khushnavisan ६ ॥ = 1 Tabaqnat-i-N4siri, ( English }, Fase. 1-14 @ 1/- each ot 14 Ditto Index 1 1911111१ Shahi of Ziyan-d-din Parni Fase. 1--7 @ /10 ' each 4 Tarilh -i-Firtizshahi, of Shams-1-Sirai Aif. Fase. 1--6 @ /:0/ each Bs Ten Aucient Arabic Poems, Fasc. 1--2 @ 1,8/ each | ॥ 3 Tuznk-i-Jahangiri, (Rng) Fase. 1 @ 1/ ... वि कि 1. Wis-o-Ramin, Fase. 1 /19)/ each 3 0 Zaiarnamah, Vol. I, Fasc. 1--9, Vol. II, Fase 1--8 @ /10/ each ASIATIC SOCIETY'S PUBLICATIONS, 1. Asiatic Reseancars. Vols. XIX and XX @10/ each 2. ProckEpDInes of the Asiatic Society from 1570 ४८०1904 @ /8/ per No. 3. JovernxaL of the Assiatic Society for 1570 18), 1471 (7). 1872 (8), 1873 (8), 1974 (8), 1815 (7), 1876 (7), 1877 (ऽ). 1578 (५), 187917), 1880 (8), 1881 (7), 1882 (6), 1853 (5), 1884 (6), 1885 (6), 1886 (8), 1887 (7); 1888 (1, 1889 (19 . 190 (11) 1891 (7), 1892 (Si 154: (11), Pape (8), 1895 (7), 1896 (8), 18973), 1898 (8), 1899 (5), 1900 (7). 1901 (7). 1902 (9), 1903 (8), 1904 (16), © 1/8 per No, to Members and @ ५ ver No. to Non-Menvibers N. B.—The figures enclosed in brakets aire the number of Nos. in each Velume, व. Journaland Proceedings, N. S., 1905. to date, (Nos. 1-4 of $905 are out of stock ), @ 1-8 per No. to Members and 1६8. 2 per No. to Non-Members. 5. Meinoirs, 1905, to date. Price varies from number to niinber. Diseount of 25°; to Members Centenary Review of the Researches of the Society from 1784-1883 __,... Catilogne of the Library of the Asiatic Society, Bengal, 1910, ष. Moore and Hevyitson’s Deseriptions of New Indian Lepidoptera, Part3 1 -- 111. with 8 colonred Plates, 4to. @ 6/ each क = 9. Kaecmiracavdamryta, Parts I & 11 @ 1/8/ 0. Persian ‘Tran-lation of Haji Bava of Ispahan, by Haji Shaikh Alunad-i-RKirmasi, and edited with notes by Major D. C. Phillutt. ... aa CH wy mo क | श Notices of Sanskrit Manuscripts.. 03८, 1-34 @1/each ... — Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. R. L. Mitra N.B.—All Cheques, Money Orders, & €. mast be waade payable to Asiatic Society,” vnly ; a | Booka ars supplied ` १. Gangesa 132 Tattvacintamani-didhiti- N8G3 vivrti AES BUG: Vel 002 PLEASE DO NOT REMOVE CARDS OR SLIPS FROM THIS POCKET UNIVERSITY OF TORONTO LIBRARY