| cf 4> or] = orf T गत प र => A © 09 > wo) > ५४] EH ९ ठ 0 ध ॐ vivrti 9 VS8296Z0 19८ £ ॥|॥॥| ||| || akg BNO ODO 0D Bo oH Mo oO Ho ० Mo oYHooM Mo oHHo 0H Heo oH Ho oN Ho ०२९) & ॐ 3 BIBLIOTHECA INDIC ५ † : as ड + ४ $2 ६ Contection Or Orientan Works ¢ Se PUBLISHED BY THE ५ 8 ASIATIC SOCIETY OF BENGAL. é ; NEW SERIES, No. 1338 2 र तत्ववचिन्तामणि-दौधिति-विद्तिः & © 4 4 © & y ff e / 2) ce a ^ = [ ५). ~ 5 इ NOGS 3 =-= ne) = | “~ अ च € === \V/ % = (1 1s = Ly | py & g ॐ भ == ——— ६ ५ a Ms ९ = & TATTVACINTAMANI DIDHITI-VIVRITI & & र १ se GADADHARA BHATTACHARYYA se 2 WITH TATTVACINTAMANI D DIDHITI ॐ Se EDITED BY र ¥ MAHAMAHOPADHYAYA KAMAKHYANATHA TARKAVAG!SA, 2% 4 Late Professor, Sanskrit College. ¢ & ELODIE OO es र Votume I. 7^30८ए1.ए8 VIL % § ~ ` ` ~ ae ae >) as as Yah Calcutta, Se 2 PLINTED BY UPENDRA NATHA CHAKRAVARTI, AT THE SANSKRIT PRESS ag Se 5, Nandakumar Chawdhury’s 2nd Lane. ध x AND PUBLISHED BY THE I 52 ASIATIC SOCIETY OF BENGAL, 1, PARK STREET, 7, ६ 1912 3 {नयी i SR Ses ree 3 ९ (“ए 2; na TT ee च {य्‌ ale दकम नं° <, बनारस -१ LIST OF BOOKS FOR aE = ‘ AT Yiik LIBRARY OF THE ASIATIC SOCIETY OF ० No. 1, PARK STREET, CACUTTA, AND OBTAINABLE FROM YHE SOCIETY'S AGENTS, Mr. BERNARD QUARITC 11, Grarron Street, New Bony Street, Lonpoy, W., anp Mr. Orte । HARRASSOWITZ, BOOKSELLER, LEIPZIG, GERMANY. । ९१०११ ,{८८८ copres of those works marked with an asterisk * cannot be supplicd.—som ` - "` न 17 = / na the Fascieuli being out of stock. BIBLIOTHECA INDICA, Sanskrit Series Advaitachint& Kaustubha, Fasc. 1-3 @ /10/ each Re. 1 2 Aitaréya Brahmana, Vol. I, Fase. 1-5; Vol. 17, Fase. 1-5; Vol. 111 Fase. 1-5, Vol. IV, Fase. 1-8 @ /10/ each ४ ,„ as 6 Aitereya Lochana ९ . 2 0 ति Amarkosha, Fase. 1 < ००० ् 2 0 4 eAnu Bhashya, Fase. 2-5 @ /10/ each : 2 8 Anwmnana Didhiti Prasarini, Fase. 1 @ /10/ be, 1 4 : <^ § {55119811}; क Prajiaparamita, Fasc. }-6 @ /10/ each ॥ 3 aAtmatattaviveka, Fase. J ane ti . ve Agvavaidyaka, Fasc. 1-5 @ /10/ each 8 3 ५ Avadana Kapalata, | Sans. and Tibetan) Vol. J, Fase. 1-10 ; + ५). If. | Fasc, 1-10 @ 1/ each । es «, ॐ 0 ति Balam Bhatti, Vo). I, Fase. 2-2, Vol II, 7250. 1 @ /10/ each ... -» 1 ghd । Baudhayana S‘rauta Stitra, Fase. 1-3 Vol II, Fase 1-5 @ /10/ each ० 5 0 Bhasavritty 4 - 0१ Bhatta Dipika Vol. I, Fase. 3-6; Vot. 2, Fase. 1, @ /10 each + oe 6 Bauddhastotrasangraha —... a» ae Te 0 : Brhaddévata Fasc. 1-4 @ /10/ each... र क 90 7 4 ~Brhaddharma Purana Fase 1-6 @ /10,/ each ae 3 12 । Bodhiearyavatara of Qantideva, Fasc. 1-6 @ /l10/each ` ... . 28 प Cri Cantinatha Charita, Fase. 1-3 ध ०. ॐ षि ६३४६१ 8210), Fasc. 1-2 @ /10/ each 1 4 Cutalogue of Sanskrit Books and MSS., Fase. 1-4 @ 2/ eaeh i» 8 0 । yatapatha Brahmana, Vol I, Fase. 3-7, Vol II, Fasc. I-5, Vol. वा, 4 Fasc. 1-7 Vol. ४, Fasc. 1-4 @ /10/ each ; ene 6 । 8 Ditto Vol. WI, Fase. 1-3 @ 1/4/ each 82 Ap 1 Ditto Vo}. VII, Fase. 1-5 @ /10/ =... ध ne च 2 । Ditto Vol. 1X. Fase. 1 कव ॐ । 4 GatasShasrika Prajhaparamita Pert, I. Fase. J--17 @ /10/ each oo [ TU *Caturvarga Chintamani, Vol. II, Fase. 1-25; Vol. 111. Part J, Fasc. 1-18. Part I], Fasc. 1-10. Vol. 1V. Fase. 1-6 @ /10, each ... 386 14 Ditto Vol. IV, Fase. 7-8, @ 1/4/ each ध ---# 8 Ditto Volt. IV, Fase. 9-10 @ /10/ a ; 1- # ति Clockavartika, (English) Fase. 1-7 @ 1/4/ each ae .. 6, क "71४8 Siitra of Gankhayana, Vol. J, Fase. 1-7; Vol. II, Fase. 1-4; Vol. III, Fase. 1-4 ; Vol 4, Fosc. 1 @ /10/ each + . 19 Gri Bhashyam, Fa:c. 1-8 @ /10/ each ... < ए. . च Dana Kriya Kaumudi, Fasc. 1--2 @ /10/ each , oes क ` 4 Gadadhara Paddhati Kalasara Vol. 1, Fasc. 1-7 @ /10/ each =... `. 6 Ditto Acharasarah Vol. II, Fase. 1-4 @ /10/ each + € 9 । Gobhiliya Grihya Sntra, Vol. I. @ /10/ each ४० ध र त 2 Ditto ol. If. Fase. 1-2 @ 1/4/ eaeh sit „=, अ : Ditto (Appendix) Gobhila Parisista =... ce 2 0 Ditto Grihya Sangraha क oe न 0 10 Haralata oe | as ae "1 ole Karmapradiph, Fasc. I श Bes 7 ae a 1 4 : Kala Viveka, Fase. 1-7 @ /10/ each _... ren ee शषः ॐ 6 Katantra, Fase. 1-6 @ /12/ each ह. ae ८. * 8 *Kirma Purana, Fasc. 3-9 @ /10/ each ei a i ॥ Kiranavali, Fase, 1-2 @ /10/ each Re. 1 4 Madana Parijata, Fasc. 1-11 @ /10/ each = = 6 2 ठ Mahi-bhasya-pradipddydta, Vol. 1, Fase. 1-9 ; Vol. 11, Fase. I-12 Vol. HI, P ) Fasc. 1-10 @/10/ each si... oe 7 1 : Ditto Vol. IV, fase. 1 @ 1/4 wie a8 , ... श Manutika Sangraha, Fasc. 1-3 @ /10/ each “sie क 14 Markandéya Puraya, (English) Fasc. 1-9 @ 1/- each ie -.. च 0 *Mimainsa Darcana, Fasc. 10-19 @ /10/ each न छ + 6 4 eMagdhabodha Vyakarana, Fasc. 1-4 @-/10/ each .. श्न < 8 zqtfaaiz: | ५७9 कैवलसंसगाभावत्वलाभावैवात्यन्तपदमिति दशयति, “संसर्गगभावेति, aq qaqa, अन्योन्याभावप्रतियोगिन्यव्यासिं परिहत्तंमाह, Pn खपद स्येति, ‘ausafa aefad अ्रभावान्वितं यज्ञानं तवम 4 तिबन्धकनज्ञानविषयाथेकत्वात्‌ इत्यथः, waaay उपलन्तण- ज्नानप्रतोनामेव विरहपदाथेघटकलवं बोध्यम्‌, तेन नाभावपद- वैयर्थ्यम्‌ | एवच्च तदभावग्रहप्रतिबन्धकग्रहविषयत्वमेव तदभाव- प्रतियो गित्वमिति कलितं एतच्ान्योन्यामावप्रतियो गित्वस्ाधारण- मेवेत्याह, "प्रतिबध्नाति होति, प्रतियोगितावच्छेदक सम्बन्धेन प्रति- योगिप्रकारकनिश्वयस्याभावधोप्रतिबन्धकत्वादिति भावः। प्रति- बन्धकत्वं यदि कारणोभरूताभावप्रतियोभित्वं तदा प्रतियोगिल्ान्तर- प्रवेशादनवखा ईइत्यतस्तदन्यथा निव्यक्ति, प्रतिबन्धकलच्ेति, ‘sq प्रतियो गितालच्णे, अभाव प्रतियोगिमत्ताज्नानयोरपि भिन्र- काल{वच्छ्टेन एकचात्मनि एकत्तणावच्छ्टेन च fafuarafa- । वत्तमानल्लात्‌ "एककालावच्छेदेन एकतरेति, कालपदं aay, तेन स्थूलकालावच्छटेन तयोरेकाधिकरण्त्रत्तित्वेऽपि न चतिः। अत्र॒ एकतेत्यनतिप्रयोजनकं, अभावन्नानाधिकरणचणावच्छछटेन तच्छन्यात्मनिहप्रतियो गिन्नञानस्यासंग्रह्धऽपि तज्‌न्नानाधिकर णत्तपण- त्तियकि चित््रतियो गिन्नानव्यक्तिमादाय लकणगमनसम्भवात्‌ । न च कालमाचस्येव परमेष्ठरोयाभावन्नानाधिकरणतया अभावन्नाना- धिकरणत्तणाहत्तिज्ञानाप्रसिद्दिरिति वाचम्‌ | अ्रभावज्ञानावच्छदक- त्तणावच्छिन्रह्तिकान्यतलरूपस्य एक काला वच्छदेनावत्तमानत्वस्य निवेशे नित्यस्य भगवज्‌न्ञानस्य कालविशेषानवच्छन्नतया aaa = you ्रतुमानगाटाधय्यां प्रतियो गिन्नाने तादश त्तिकत्वानियमात्‌ | घटादयभावन्नानादयय- वच्छेदकन्तणानवच्छिन्रपटादिन्ञानव्यक्तिमादायातिप्रसद्गस्तु एक- तणावच्छटेन घटादययभावक्नानाधिकरण्रस्तिपटादिज्ञानस्थापि सच्वे- नातिप्रसङ्गवदभावपदस्य सखराभावपरतयेव वारणोय इत्यवधेयम्‌ | न चैवं सति एकक्तणावच्छित्रत्वं परित्यज्य एकाधिकर णादत्तित्व- निवेशेनापि निव्वहसम्भवः एकपुरुषोयघटादयभावन्नानव्यधि- करणपुरुषान्तरोयघटादिज्ञानमादायेव घटादौ तदभावप्रतियोगि- त्वो पपत्तेरिति वायम्‌ । अभावनज्ञानस्य हि घटाव्यभावज्ञानत्वनेव निवेशात्न तत्तदयक्तित्वादिना तथाच घटाद्यभावनज्ञानव्यधिकरण- चटादिज्नानमभेव दुलभं सर्व्वषाभेवात्मनां क टाचिद्‌घटादयभावज्ञानव-- त्वात्‌ इत्ये कच्तणावच्छिन्रतनिवेशस्यावश्यकत्वात्‌। न च तदधिकर- गाठत्तित्वशरोरे प्रतियोगितायां तद धिकर णव्र्तित्त्वावच्छिश्नत्व- निवेगश्नमफलं तदधिकरण्छठत्तित्वप्रतियो गिताकाभावनिवेशेना- प्युपपत्तः घटाभावन्नानवदहत्तिपटादिज्ञाने तद दत्तित्वप्रतियोगि- कतदिगेषाभावादिसच्वेऽपि सख।भावस्य निवेशनोयतया afa- प्रसङ्गानवकाशणात्‌ नथाच घटादिज्ञाने घटाभावादिन्नानाधि- करणछ्त्तित्रसच्ेऽपि तव््रतियोगिकाभावसौलभ्यात्‌ घटादेः स्वाभावप्रतियोगित्वसुपपव्यत एठेति aan तदधिकरणछत्ति- त्वनिष्टप्रतियोगितायाः प्रकारतया faan प्रतियोगिलज्ञानस्य प्रतियोगिल्वान्तरन्नानापेत्तया दुक्गयतापच्या अभावे ताथः प्रतियोगितायाः सम्दन्धतया निवेश्यतया प्रतियोगिताया aa प्रतियोभिसंसगेतया प्रवेशस्तत्र प्रतियो गिप्रकारोभूतधस्मावच््छित्र- र व्या्िवादः; ।. ` ५७९ ल्भानस्यावश्यकतया तदधिकरणतत्तित्त्वावच्छिन्राभावस्यैव प्रतिवन्धकतारूपतया एकदणावच्छिन्रत्वानिवेशणे उक्रानुपप- त्तेरनुदारादित्यवधेयम्‌ (१)। अन्योन्याभावप्रतियोगितावनच््छेद- कातिप्रसक्तिं निराकन्तंमाह, श्रभावपदस्य चेति, सखतराभावपरत्वा- दिति, तथाच खोयोयोऽभावः स्वनिष्ठं तददिरत्वभ्रैव सस्य तदभावप्रतियोगिलं, घटान्योन्याभावष् न घटल्वाभाव इति घट- त्वादिनिष्टं तददिरत्वं न aufaaifaefafa भावः। घट एव तदभावव्रतियोमोत्यादौ अरभावपदं लक्षणया घटादि रूपसमभिव्या- ह तपदाथेवि्ेषिताभावपरं, प्रतियोगिपदं ज्ञानप्रतिबन्धकन्ञान- विषयत्ावच्छिन्राधथकं, तदेकदेशन्नाने वाभावविषयकत्वान्वयः, सत्वाननुगमेऽपि न प्रतियो गिपदश्क्चानन्यप्रमङ्ः, न वा अभाव- पदार्थान्वयानुपपत्तिः इति ध्येयम्‌ । सम्बन्ध विग षावच्छित्रत्वस्य व्यापकताघटकप्रलियोगिलायां श्रवश्यनिवेशनौयतया भेदप्रति- योभितामादायोकदोषामम्भवेन संसर्माभावनिवेशवेयष्येमित्यत्यन्त - पदं सम्बन्धविशेषावच्छिन्रतल्रलाभायंकतया एव व्याख्येयं तथाच प्रक्ञतोपयोभिप्रतियोगितामातस्य लक्तण्त्वेऽपि न afafr त्याह, 'वसतुतस्त्वित्यादिना, 'एकसम्बन्धावच्छिन्नाया इति, तथाच साष्यवन्रिष्टाभावप्रतियोगितासामान्यानवच्छद्‌कत्वनिवेखे प्रति- योगितावच्छद कमात्रस्यव waafasatafyguaaanaf mar भावप्रतियोगितावच्छेदकतया ताटश्प्रतिगोगितासामान्यानवच््छ- दकसाध्यवन्निष्टाभावप्रतियोगितावच्छदकाप्रसिद्धिः) न चायोगो 8 ee ` ~~ ----- -- ` ----------- (१). न wafaarie: इत्यथे थ सित्यन्तः पाठः कसिंखिदादशपुस्तक नास्ति। yoo ्रनुमानगादाधय्य। लकभेदत्वादिकमेद तधा धूमादिमति संयोगादिव्यधिकर णसम्बन्धा- वच्छित्रायोगोलकमेदादयभावसकच्चेऽपि तप्रतियोगितायां लाघ- वेन शएडभेदत्वादेरवच्छदकत्वोपगमात्‌ इति वाचम्‌ | faafaar- aaa कालिकसम्बन्धन वा अरयोगोलकमदाभावस्य प्रतियोगि- तायामेवायोगोलकभेदत्वारेरवच्छद कतया तस्य साप्यवतनिष्टाभाव- प्रतियो गितानवच््छेद कत्वासम्भवात्‌ अयोगोलकभेदाविषयकभेदा- न्तरविषयकन्नाने विषयितासम्बन्धेन भेदत्वरूपसामान्यघन्नावच्छि- त्राभावासम्भवेन तत्साधारणताटशसम्बन्धावच्छिन्नायोगोलकभेदा- यभावस्य भदसामान्यानधिकरणटेगाप्रसिदया कालिकसम्बन्धाव- च्छिन्नमदत्वावच््छिन्नाभावासम्भवेन अयागोलकावच्छ्टेन काल aa: कालिकसम्बन्धावच््छित्रायोगोलकभदावययभावस्य च शुदभमेद- त्वादेरवच्छेदकत्वायोगात्‌ । यदि च यक्िच्धित्सम्बन्धावच्छिन्न- प्रतियो मितानवच्छद्‌ कत्वं निवेश्य अ्रयोगोलकभदत्वादेस्तथात्वसुप- प्रयते, तदा व्गिमान्‌ घूमादिव्यादौ वह्छयादिमनिष्टसंयोगसम- वाघ-देशिकसम्बन्धावच्छिन्नाभावप्रतियो गिता( १ )नवच्छेद कधुमा- दिमच्रिष्ठसमरवाय-संयोग--देशिकविगशेषणतासम्बन्धावच्छिन्नाभाव- प्रतियोगिता २ )वच्छेदक-वद्कितद्रव्यतलल्‌-कदमेदल्ादयवच्छिन्र- स्योपाधिताप्र्तिरिति भावः । "यत्सम्बन्धावच्छित्राया इति, तथाच संयोगादिसम्बन्धावच्छिन्रठद्कवादिमन्रिष्ाभावप्रतियोगितानवच्छ- द कर्वद्कत्वादेः साघधनवद्विष्टतत्ससम्बन्धावच्च्छिन्नाभावप्रतियोगिता- (३) संयोग-समवायादि-कालिकसम्बन्धावच्छिन्नाभावप्रतियोगितेति ato | (>) मयोग-ममवाय-कालिकाटिसम्बन्धावच्छिन्नाभ।वप्रतियोगितेति ate | व्याक्चिवादः। yee नवच्छेदकलत्वसम्भवात्‌ धुमादिमन्निष्टविश्चषणताविशेषादिसम्बन्धा- वच्छित्राभावप्रतियो गितानवच्छेदकायोगोालकमदलारेवद्कयादिम- ब्रिष्ठताटटशसम्बन्धावच्छिन्राभावप्रतियोगितावच्छद्‌कताच् न afa- दोष इति ura: | 'संसर्गभावत्वमनुपादटेयभमेषेति ्रयोगोलमेदला- देधूमादिमविष्ठमेदप्रतियो गितावच्छेदक्वेऽपि विशेषणलाविशे- षादिसम्बन्धघटितनिसक्तोपाधितावच्छेदकत्वस्य तच्रा्नतत्वात्‌ इति भावः ‘aw? wate, व्यधिकरणसम्बन्धेनेति, तथाच ताटश- व्यधिकरण सम्बन्धेन संयोगादिना यस्य रूपविशेषादेः क्रचिदपि कस्यचद्‌भ्रमो न जातस्तस्य ताटशसम्बन्धावच्छित्राभावप्रति- योगिलानुपपत्तिः । प्रतियो गितावच्छदकसम्बन्धेनेव प्रतियोगि- प्रकारकन्नानस्याभावधोविरोध्ित्वात्‌ तादटृशाभावधौप्रतिबन्धक- ज्नानस्येवाप्रसिदेः। यद्यपि समानधरश्िकयोरेवाभावःप्रतियोगि- aaa, प्रतिवध्य-प्रतिवन्धकभाव इति समानाधिकरण सम्बन्धावच्छिन्राभावस्थलेऽपि विरोधिनोरभाव-प्रतियो गिन्नानयो- रेकतरस्य श्रमत्वनियम इति यादृशाभावस्य तव्मतियोगिनो वा भ्रमो न कदाचिदपि प्रसिदः तदभावप्रतियोगिताव्यासिः सम्भ- वति तथापि समानविरेष्यताप्रत्यासच्या प्रतिवध्य-प्रतिबन्धकभा- aaa भिन्रधर्िकन्ञानस्यापि प्रतिवन्धकतावच्छेदकाक्रान्ततयणा तादहशभ्मातसकन्नानमादाय लक्षणसमन्वयः सम्भवति इति व्यधिक- रण सम्बन्धावच्छिन्राभावानुधावनम्‌। ननु प्रतिबन्धकत्वं न कारणो- भ्रूताभावप्रतियोगिल्वमपित्वेककालावच्छदेनैकचावत्तंमानत्वभिति miata एवञ्च यादशव्यधिकरणसम्बन्धेन यस्य प्रतियोगिनो- ytR अनुमानगादाधर्था भ्वमोऽप्रसिदः ताटृशसम्बन्धावच्छित्रतदभावन्नानासमानकालोनत- द्रतियोगिविषयकसम्बन्धान्तरावगाद्दिप्रमामादायैव लक्षणसङ्गतिः सम्भवतोत्यतो दूषगान्तरमाह, खाभावेति, सम्बन्धित्वस्य नियम- घटिततया गौरवादाह, “स्वाभावज्ञानेति, "लघोरित्यस्य स्वाभाव. ग्रहप्रतिजन्धकन्नानविषयत्वापेत्तयेत्यादिः. ‘asa सम्भवित्वादिति aaa प्रतियीगिताखरूपत्वसम्भवादिव्य्थः, तद भावज्नानविषयोदा- सोनेऽतिप्रसङ्गस्य स्वांशेनेवायोगात्‌ (१) इति भावः । ननु aaa fama श्राह, शस्वाभावेत्यतवेति, सखराभावेत्याद्यविति पाटे यथा- खुतविरदत्वनिवेशपक्ते ्रभावविरहस्येत्यस्य परिग्रहः, 'षष्ठयर्थप्रति- योगिताया इति, सखस्याभावः स्वाभावः साभाव इति षष्ा्थ॑स्य =, प्रतियो गिल्वातिरिक्ानतिप्रसक्तसम्बन्धस्य दुव्यचत्वात्‌ इति भावः ‘aa स्रूपसम्बन्धस्येवेति, अन्यथा आत्माश्रयादिति भावः यद्यपि सखाभावेव्यव्र प्रतियोगितायाः सम्बन्ध विधया निवेशे aa न्धज्ञानस्य विशि्टवेशिच्छवुदिरतुतलया “खाभावेत्यत्र खाभावा- भावत्वरूपप्रतियो गिता निवेशेऽपि तज्ज्ञानात्‌ ga न तञ्ज्नाना- tafa न दुक्ञयता | तथापि वि शि्टसम्बन्धे सम्बन्धस्यापि घटकतया सम्बन्धविधया भासमानस्य तस्य शरोरेऽपि तस्य सम्बन्धविधया भानं तादृशरोत्वा भानान्तगेतमपि सम्बन्धविधया तद्भानमिति विषयता नवस्था दुव्वारेव | (तथातलौ चित्यात्‌? प्रतयो गितौ चित्यात्‌ । न चाभावे खस्य सम्बन्धानुयोगिता न तु प्रतियोगितासा च स्वरूपसम्बन्धरूपेवास्तां प्रतियोगिता तु निरुक्तरूपेत्याशङ्य, अनु- (१) स्वांगनिवेशेनेवायोगाद्िति ate | व्यातिवादः। पर्श योगितायाः खरूपसम्बन्धात्मकत्वे निस्क्रापेन्नया लघोस्तत्रिरू- पकलत्वस्येव प्रतियोगितालौ चिव्यात्‌ | प्रकारान्तरेण प्रतियोगि- ताप्रवेणमादह, “अभावत्वेति, अभावत्वं, द्रव्यादिप्रतियोगिकभेदवच्छं, “प्रतिबन्धकत्वम्‌” एकत वत्तमानत्वप्रतियो गिकाभाव इति . भावः । नन्वभावादिव्यवद्दारगोचरत्वमेवाभावत्वं नतु प्रतिद्ोगिताघरित- निरुक्तरूपमित्यत-आाह, (तथाविधैति, “विना प्रतियोगितासिति प्रतियोगितान्तर्भावमन्तरेणेत्ययः, तथाविघव्यवदहारगो चरत्वम्‌ अ- भावपदप्रतिपादययत्वं तत्पदशक्तिविषयत्वरूपं at उभयथापि जन्य- ताघटिनं प्रतिपाद्यस्य जन्यप्रतिपत्तिविषयत्वरूपत्ात्‌, तत्‌पद्‌- शक्तश्च पदजन्यवबोधविषयत्रप्रकारकभगवदिच्छारूपत्वात्‌, जन्यता च व्या्चिघटिता, तस्याञ्च प्रतियोगिताघरितत्वादिति ara: | एवञ्च प्रतियोगिता खरूपसम्बन्धविगेष इति पूव्वेमत एव मणि- कारस्य निभर इति सूचितम्‌ | gezaaad घटो नास्तोत्या- दिबुद्धावभावांशे प्रतियोगिनः प्रकारतया भानन्मणखभावादेः कारणत्वे प्रतियो गिनोऽवच्छेद ताचाभावनिष्ठप्रतियो गित्वनिरूपि- लानुयोगिलाख्यसखरूपसम्बन्धोऽवश्यमङ्गो कायः प्रतियो गिन्यभाव- विशि्टबुदयाककोऽभावोयो घटद्त्यादिप्रत्ययसतु नानुभवसिदः दत्यभावोयप्रतियोगिल्ला ख्यसरूपसम्नन्धे मानाभावः प्रतियोगि- व्यवहारस्तु अनुयोगितानिरूपकल्वमेवावलम्बते ध्वंसस्य च प्रति- यो गिनिष्ठप्रत्यासचया प्रतियोगिजन्यत्वानुर)घेन तस्य प्रति- योगिनिष्ट सम्बन्धोपगम आवश्यक इति वेदसु, तथाप्यभावा- म्तरस्य ताटहशसम्बन्धो निष्प्रमाणक wai न च जन्र्त्वस्यं ycy श्रनुमानगादाघय्या यत्र काथ्थतावच्छेदकता aa प्रागभावनिष्टानुयागितानिरू- पकत्वापेत्तया प्रतियोगितासम्बन्धेन प्रागभावे तस्य तस्य तथात्वे लाघवात्‌ प्रागभावस्यापि qenaaa: सिद इति वाच्यम्‌ । तत्र निरूपक तासम्बन्धेनानुयोगिता विशे षरूपप्रागभावत्वस्ये वावच्छेदक- त्वोपगमात्‌ | श्रन्यया प्रागभावनिष्ठाव्यन्ताभावादिभेदस्याधिकरण- सखरूपतामते जन्यत्वस्यात्यन्ताभावादि साधारण्यापत्तः गौरवाच्चेति | "षणि भयकृत --== ---- = war = — aw चिन्तामणिः | यावतव्साघधनाव्यापकमव्यापकं यत्साध्यस्य यावत्या ध्यव्यापकं व्यापकं वा यस्य तच्छ तदिति चेन, सोपाधै- रपि तधालात्‌, तथाहि साधनस्य ARIAT याव- दाद्रेखनन्तत्‌ प्रल्येकमव्यापकं साध्यधूमस्य दहितौये साध्यधूमस्य व्यापकमाद्र्नं Aaa महानसौय- as: । नापि साध्यं यावद्ाभिचारि तदव्यभिचारित्व- मनीपाधिकत्वं, साध्याव्यभिचारित्वस्यैव गमकत्वसम्भ- वात्‌, तच्च दूषितम्‌ । नापि कात्लान सम्बन्ोव्यापिः uaa तद भावात्‌ नानाव्यक्तिकेऽपि सकलधूम- सम्बन्धस्य प्रत्येकबङ्नावभावात्‌ | अतएव न कात्लान साध्येन सम्बन्धोव्यािः विषमनव्याप्रे तदभावाच्च । न च यावत्याघनाश्याग्रितसाध्यसम्बन्धः, साधनाश्रये sqifaate: । ५८५ महानसादौ सक्ते uaa वङ्कराथितत्वाभावात्‌। नापि साघनसमानाधिकरणयावद्वम्य्रसमानाधिकरण- साध्यसामानाधिकरण्यं, याबदम्धसामानाधिकरण्यं हि यावत्तदर्म्माधिकरणाधिकर णत्वं तच्चाप्रसिडं साघन- समानाधिकरणसकलमहानसत्वायधिकरणाप्रतोतेः । नापि खाभाविकः सस्बखोव्यािः, खभावजन्यत्वे तदा- भरितल्वादौ at अनव्याप्नातिव्यापिः। नाप्यविनाभावः, केवलान्वयिन्यभावात्‌ । अथ सम्बन्धमात्रं atte: व्यभि चारिसम्बन्धस्यापि कैनचित्‌ सह व्यापित्वात्‌ धृमादिव्या्िस्तु विशिष्यैव निव्वक्तव्येति aa, लिङ्ग- परामभं विषयव्या्िखरूपनिरूपणप्रस्ताते लक्षणाभि- धानस्यार्धान्तरत्वात्‌ | न च सम्बन्मावं तथा, तद्‌- बोधादनुमिलयनुत्पत्तेः | दोधितिः। AAW यत्समानाधिकरणसाध्यस्य | (तथारी- af, यव्समानाधिकरणाव्यन्ताभावप्रतियोभितावच्छे- दकं यावत्‌ साध्यससानाधिकरणात्यन्ताभावप्रतियोगि- तावच्छेदकम्‌ साध्यसमानाधिकरणालयन्ताभावप्रतियो- गितानवच्छेटकं यावत्‌ यत्समानाधिकरणाल्यन्ताभाव- S3 ५८६ अनुमानगादाघय्या प्रतियोगितानवच्छद कं त्वमिव तु नोक्तदोषड़ति ध्येयम्‌ | प्रतियोगितयोश्चे कसम्बन्धावच्छिन्नतवं वा वक्त- व्यम्‌ तेन प्रतियोगितावच्छेद्‌कमावस्येव यत्किञ्धित्स- म्बन्धारबच्छत्नसाध्यसमानाधिकरणालयन्ताभावप्रतियोगि- तावच्छेद कत्वेऽपि एकसम्बन्धावच्छिन्नसाष्यसमाना- धिकरणाल्यन्ताभावप्रतियोगितानवच्छेद कस्य सम्बन्धा- न्तरावच्छिन्नसाघनसमानाधिकरणाभावप्रतियोगिताव- च्छेद कत्वेऽपि च न न्षतिः। व्यभिचारिणि तु यवा- धिकरणे व्यभिचारो विशेषणताविशेषावच्छिन्नतद्ि- छाभावप्रतियोगितावच्छेदकं साध्यवच्चप्रकारकप्रमा- विषयत्वत्वम्‌ विशेषणताविशेषावच्छिन्नसाध्यसमाना- धिकरणाभावप्रतियोगितानवक्छेद कमिति नातिप्रसङ्ः। वस्तुतो डेतुसमानाधिकर णान्योन्याभावप्रतियोगिता- THER यावद्‌ यदग्भावच्छिन्नसमानाधिकरणान्यो- न्याभावप्रतियोगितावच्छेदकं तदम्भ्रावच्छिन्नसामाना- धिकरण्यम्‌ साध्यसमानाधिकरयान्योन्याभावप्रतियो- गितानवच्छेद्‌क' यावत्खसमानाधिकरगान्योन्याभाव- प्रतियोगितानवच्छेदकं' तत्वं वा व्याप्िरिति ध्येयम्‌ | “साध्यमिति यावतां तेषामिल्यथेः | दूषितं" केवलान्व- व्यातिवादर! । yao यिन्यव्याप्रया, सा च यथोक्तलक्षणिऽमि गौरवं परमति- रिच्यित इति | Aa साघनसख, साध्यस्य, साध्या्यखय, साध्यसमानाधिकरणशस्य, साधनाश्रयस्य, साधनसमाना- धिकरणस्य वा, आयो कत्लसाघधनसामानाधिकरण्वं साध्ये, छल्लेषु साधनेषु साध्यसामानाधिकरण्वं वाः, प्रथमे “एकेति, "नानेति च, व्याप्रेश्वाहेतु दत्तिलम्‌ पृथिवौ पथिवोलव्यापकजातेरिवयादावतिव्या्धिञ्च। अतएव &- तरः | अर्थाभिधानपुव्वकं दितौयं निरस्यति, अतएषेति, {avy एकव्यक्तिसाध्यकानव्याप्रेरेव, विषमव्याप्रे सम- व्यापेऽपि च संव्यापरिमाणादावैकव साधने सकल- साध्यसम्बन्धस्याभावात्‌ भावाच्च शब्दवान्‌ द्रव्यत्वादि- ल्यादौ | aa च साध्याश्रययावदत्तित्वं, चतुर्थे साध्य- समानाधिकरणशथाबत्सामानाधिकरश्वमथः, तव च यथासम्भवमेकमावहत्तिसाध्यके वज्गयादौ साध्ये धमा- दावव्याभ्विरतिव्या्िश्च स्वादौ । अथपरिष्कारपूर्व्व व पञ्चमं निरस्यति, “नचेति | एकमावहत्तिसाधने चा- atfaa, तथेव ud निरस्यति, नापीति, तादृशानां wat महानसत्वादौनं व्रलेकनिरूपितान्यपि सामा- नाधिकरण्यानि न कुचापि asl | अय यदग्धावच्छिन्न- you अनुमानगादाधयधां सामानाधिकरण्यत्वेन साधनसामानाधिकरण्यव्याप- कत्वं तदग्भ्ावलोट्सामानाधिकरण्यं faafaafafa चत्‌, द तोऽपि WIAA साधनव्यापक तावच्छद करूपाब- च्छित्रसामानाधिकररयमेव व्यारिरिति सिडान्तयिष्यते। 'अविनेति, साध्यं विना साध्याभाववति योभावोहत्ति- स्तद्िरहः साध्यं विना अभावः साध्याभावव्यापकौभूता भावप्रतियो गित्वमिति वा । ्रधेति, सम्बन्धः" सामा- नाधिकरण्यं व्यभिचारिसम्बन्धस्य केनचित्किञ्धिदटूपाव- fara धूमादेरपि द्रव्यत्वादिना बङ्किव्यापकत्वात्‌ । तदयो- धादिति। नच व्यभिचाराग्रहसहक्ततस्तद्दोधस्तथा, व्यभि- चार-तदातिरेकयोः अनुपस्यितावपि समानाधिकरण- धम््॑वत्ताज्ञानमाचादनुमित्यनुत्पादस्य सर्व्वानुभवसि- त्वात्‌ Saat तचेव च रूपान्तरेण व्यभिचार- ग्रह डतु तावच्छेद कागररैऽप्यनुमिलुत्पादाचच, विवदन्ते च सामानाधिकरण्यन्नानस्येव इतुतायां, व्यमिचारज्ञाना- भावकार णत्वमपेच्य कारणौभूतसामाधिकरण्यन्नाने लाघवेनाव्यभिचारस्य विषयतयावच्छे द्‌ कत्वसुचितम्‌ | नच व्यभिचारसंशयेऽनुमिव्यनुत्पादाटव्यभिचारनिश्वय- त्वेन कारणत्वोक्ती गौरवम्‌, व्यभिचारज्ञानस्य हि भरम- व्यात्धिवादः | ५८९ त्वनिश्चयद्‌ शायामेवाविरोधितया भ्रमत्वेनानिश्चौयमा- नस्य विरोधिलं वाच्यम्‌ अव्यभिचारनिश्यस्य च भम- त्वशङ्ायामप्यनुमिलयजनकतया भ्रमत्वनाख्द्यमाण- स्यैव हेतुत्वमिति तवैव गौरवात्‌ नानाविधव्यभिचार- ज्ञानाभावानां नियतपृत्वंवर्तितवेन क्तप्तानामपि इतु- त्वमपेच्य वच्यमागेकविधाव्यभिचारन्ञानस्यैव tad युक्तमिल्यप्यादः | गादाधरो विहतिः | 'यत्साध्यस्येत्यच कम्यधारयसमासे व्याप्तरहंतुनिष्टत्वानुपपत्तिः इति षष्टो तत्पुरुषमवलम्बा व्याचष्ट, “यत्स मानाधिकरणेति, (तथा- हीत्यादिना दशितसुभयविधानौपाधिकत्वस्य सोपाधौ अतिप्रसङ्ग सुरति, “यत्समानाधिकरणात्यन्ताभावेत्यादिना, अत्यन्तपदानि तत्पदमस्तोल्युपात्तानि न तु विवक्तिताथकानि, सम्बन्धविशेषाव- feaaa प्रतियोगिताया अग्रे विरेषण्णैयल्रेन व्याहच्यभावात्‌ | नोक्तदोष इति, आद्रेन्धनायोगोलकान्यत्वादोनां धूमादिरूपसाध्य- वन्निष्ठतत्तद्यक्तिललोभयल्वावच््छित्नप्रतियो गितावच्वेऽपि 8 awe साध्यवच्निष्टाभावप्रतियोगितानवच्छद कत्वात्‌ तादृणघन्धस्य महा- नसोयवह्कपादिरूपयत्किखित्ाघनवननिषठाभावप्रतियो गितानवच्छेद- कत्वेऽपि साधनवन्रिष्टाभावप्रतिथो गितावच्छेद कत्वसामान्याभाव- वच्वाभावादिति भावः । “एकसम्बन्धावच्छित्रलमिति साध ५९० अनुमानग{दाधथयां नसमानाधिकरणाभावोययद्‌ यत्सम्बन्धावच्छिन्नप्रतियो गितावच्छद- कत्वं यस्य तस्य साध्यवत्रिष्ठाभावोयतत्तत्सम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोभि- तावच्छदकत्वं साष्यवन्निष्टाभावोययदयत्सम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिता- नवच्छेदकत्वं यस्य तस्य साघधनवन्रिष्ठाभावोयतत्तत्सम्बन्धावच्छिन्र- प्रतियो गितानवच्छेदकत्वमिल्येवं विवक्तणौयमित्यथेः | विरशेषणता- विशेषसम्बन्धमातनिवेरेनेव wage सम्बन्धान्तरनिवेशनमफल- भित्याशयेनाह, 'विशेषणतेति । प्रथमलक्षणे सम्बन्धविवक्षायाः फलमाह, प्रतियो गितावच्छेदकमातस्येवेति, मात्रपदं waa, ama सुतरां साधनसमानाधिकरणाभावप्रतियोगितावच्छेट- कसामान्यस्य साध्यसमानाधिकरणाभावप्रतियो गितावच्छदकत्व- fafa सम्बन्धाविवच्श श्रतिव्या्िः स्यादिति भावः। aqua- समनियतगुरुधम्भ्रस्य साध्यवन्निष्टाभावप्रतियोगितावच्छेदकत्वा- सम्भवात्‌ धम्ममात्रसुपेच्य प्रतियो गितावच्छेदकधश्मानुधावनम्‌ 1 यद्यपि कम्बुग्रोवादिमन्तादेरपि विषयितासम्बन्धावच्छित्रतददि- श्ि्टाभावप्रतियोगितावच्छेट कत्वं सम्भवति azarfefafae- विषयकेऽपि कञ्बुग्रोवादिमत्ताद्यप्रकारकन्नानाटौ तदिशिष्टस्य विषयितासम्बन्धावच्छित्राभावसच्चेन लघुघटत्वाटेस्तत््रतियोगि- तावच्छेदकत्वसम्भवात्‌ तथापि विषयिताया हत्यनियामकत्वेना- भावप्रतियोगितावच्छद amare नास्तोत्यभिप्रायेणेदम्‌ । feata- लक्षणे सम्बन्धविवन्षाफलं दशयति, "एकसम्बन्धेति, तथाच यदि य त्विित्सम्बन्धावच्छ्छित्रसाध्यसमानाधिकरणाभावप्रतियोगितान-- वच्छद्कं यत्‌ aa साधनसमानाधिकरणाभावप्रतियोभिता- aaifsate: | ५९१ सामान्यावच्छेदकत्वाभावो दिवच्यते तदा असम्भवः स्यादिति भावः। यदि साघनसमानाधिकरणाभावोययक्ििन्सम्बन्धाव- च्छिन्नप्रतियोगितावच्छेदकत्वाभावो निवेश्यते aq उभयदल- एव प्रतियो गितासामान्यं वा तटा पुनरतिव्यात्चिरेवेति हदयम्‌ । उभयलकत्तणए wa सम्बन्धविवन्षणं व्यभिचारियतिव्याश्चिवारण- प्रकारं दशयति, व्यभिचारिणि fafa, तबरिष्टाभावप्रतियो गिताव- च्छेदकमिति, तथाच साघधनवत्रिष्टाभावप्रतियौगितावच््छदकेषु साध्यवत्रिष्ठाभावप्रतियो गितानवच्च्छेद केषु यावत्स साध्यवच्ल- प्रकारकप्रमाविषयल्लवान्तभावात्‌ तत॒ साध्यवत्रिष्टाभावप्रति- योगितावच्छेदकलत्व-साधनवच्रिष्ठाभा प्रतियो गितानवच्छेद कत्वयोर- waaay नातिव्या्चिरिति भावः। अत्यन्ताभावघटितयावत्‌- साधनाव्यापकाव्यापककसाध्यसमानाधिकरण्-यावत्साध्यव्यापक- व्यापकत्वयो रभावप्रतियो गितावच्छदसम्बन्धविशेषघरितत्न गुर तया तद्घटितमन्योन्याभावगभलक्तण्दयमाह, ‘aga इति, यद्यप्यन्योन्यभावगभेलक्षणेऽपि प्रतियोगितावच्छेदकयोरेकखम्ब - न्धाव च्छिन्रत्वस्य विशेषणताविशेषावच्छिन्नत्वस्य वा faana- मावश्यकमन्यथा अयोगोलोकान्यत्वादेरपि धुमाद्याककसाध्यवन्नि- छस्य विषयितादिसम्बन्धेन खावच्छिन्नमेदस्य प्रतियो गितावच्छेद क- तथा अतिप्रसङ्गात्‌ अ्यन्ताभावघटितलचणे च ताहशसम्बन्धेन चायोगोलकमेदत्वावच्छिन्नज्ञानादेर्याऽव्यन्ताभावस्तप्रतियोगिताव- च्छटकतामादायातिप्रसङ्गो न सम्भवति विशेषणताविशेषसम्बन्धा- वच्छित्रप्रतियोगिताकस्य तादशभावस्य प्रतियोगितायां एद- ५९२ अनुमानगादाधयां मेदत्वादेरवच्छटकत्वसम्भवेन गुरोरयोगोलकमेदत्वाटेरनवच्छंटक- त्वादिति तत्र॒ प्रतियोगितावनचछदकतावच्छछदकसम्बन्धनिवेणो नास्ति तथाचान्योन्याभावगभेव्यासौ लाघवानवकाशः, तथापि गुरुघश््स्य प्रतियो गितावच्छेद्‌कत्वमते भ्रत्यन्ताभावगभलक्तणेऽपि प्रतियो गितावच्छद क तावक्च्छेद क सम्बन्धनिवेशनमावश्यकम्‌ एवच्च मेदत्वाटेविषयितासम्बन्धेन प्रतियो गितावच्छद कत्वे श्रयोगोलक- azare: प्रतियोगितावच्छदटकत्वनिव्वाहः विशे्यपया्षस्यापि विशिष्टानुयो गिकाभावानभ्युपगमादिति arene साध्यव्या- पकतावच्छेद कत्वनिञ्वाहाहितलोये अत्यन्ताभावघटितलकणे afa- वेशस्यावश्यकता सव्वथेवेत्यभिप्रायेखेदम्‌ | "वसतुतस््वित्यादिर््ा- न्तकल्पितः पाट इत्यपि वदन्ति। 'यावदव्यभिचारितदव्यभि- चारित्वं इत्यत्ोभयच्न बडत्रोदिभ्वमनिरासाय व्याचष्टे, “यावतां तेषामिति, ूषितमित्यत केन दोषेरत्याकाङ्कायां पूरयति, केवलान्वयिन्यव्यास्येति | साध्याव्यभिचारित्वमातर wer केवलान्व- यिन्यग्यासिः प्रसज्यते इत्यत एव शेषं ae भविष्यतौत्या काङ्गग- यामा, "सा चेति केवलान्वय्यव्यासिशेत्यथेः, "यथो क्तलक्तणे' यावतां साध्वमव्यभिचारि तेषामव्यभिचारित्रूपे, केवलान्वयि साध्यं व्यति- रेकिणो व्यभिचाय्येव केवलान्वयिनश्च व्यभिचार एवासि इतिं तदव्यभिचारत्रमपि तथेति साध्यं यस्याव्यभिचारि तादृशवस्तनो- ऽप्रसिदरिति ara: का्खान सम्बन्ध Sasa साघन-साध्व-माधना- खय-साधनसमानाधिकरणधर््षु कास्रपविरेषणतापन्नाः FARA दूषिताः न तु साध्याश्रय-तत्समानाधिकरण्योम्तदिशेषण्त्वपक्लौ, sqifaate: | ५८९३ an न्यूनताभङ्गाय खमतौ gufad तावदन्तरभौव्य वितकयति, 'कात्सामित्यादिना,.साधनसमानाधिकरणस्य वा”, विवक्तितसिति शेषः। सकलधुमसम्बन्धरस्य प्रत्येकं व्धावभावात्‌ इत्यभिधानेन साध्यानुयोगिकंल्रःस्रसाघनसम्बन्धस्य व्यासितापक्तस्य दूषणे सूलस्य aaa प्रतोयते तथाच कत्सरसाघनानुयोगिकसाध्यसम्बन्स्यादूष- णेन न्युनतां परिहनु aad दूषयिष्यन्‌ साधनस्य कात्सैपमन्तभाव्य वितकयति, आद्य इति, प्रथमपक्ते सूलोक्तदूषणदयं सङ्गमय्याधिक- दूषणमाह, व्याक खेति, auafa, एथिवोहत्तिघटलत्-पटत्वा- दिसकलधघन्ाधिकरणाप्रसिद्वया सकलतत्ामानाधिकरर्याप्रसिदि- रतः एधिवोहत्तिलसुपैच्य aa व्यापकतानुधावनं, एधिवोतव्याप- कववं एधिवोनिष्ठान्योन्याभावप्रतियोगितानवच्छेदकलमठत्तिसाधा- रणमिति तेन रूपेण ईतुते ्रवत्तेरपि सकलसाधनान्तगंततया तदधिकरणाप्रसिदधया नातिव्यातिप्रसक्तिरतो जातिपदं समवेता- qa, “तएव एकाव्यक्तिसाधनाव्यासिसहितदशि तातिव्यासेरेव, (इतरः are: साधमे साध्यस्र्बन्धो व्यासिरितिपक्लः | ‘feat’ साध्ये काल्प विशेषणपत्तं, “एकव्य्निके तदभावादिल्यत् एक- व्यक्िपदं तादृश्यसाधनपरं, तस्य साधने कात्स्यविशेषणपक्तदूषण- परत्वात्‌ । तथाचातएवबेत्यस्य तादृश्टूषणपरत्वासम्भवात्‌ एक- व्यक्िसाध्यकाव्यासिपरतया व्याचष्टे, “्रतणएवेति, न्युनताभङ्गाय घूरथति, 'समव्याक्ेऽपि चति, “संख्यापरिमाणदौः संख्यादि- साध्यकपरिमाणादो,“शब्दवानिति, रूपादेः साध्यले सकलतदधि- HUTA नातिव्यािरतः %ब्द्साष्यकानुसरणं, तत मगन- ७५ ५८ ४ अतुमानगाराघ्थां स्येव सकलशब्दाधिकरणत्वात्‌ | ठतोय-चतुथयोरथरैभि धानपूव्वैकं दूषणमाह, "तोये चेत्यादिना, एकमाचहत्तिसाध्यके यावनत्साध्या- अयाप्रसिदपा टोषस्तनोय एव न चतुर्थे वङ्किमान्‌ सत्वादित्यादौ अतिव्या्षिरपि aaa, चतुर्घे यावत्साध्यसमानाधिकरणयपव्वंतत- समहानसत्वादयधिकरणाप्रसिद्धया तदनवकाशणात्‌ अतः वधा- सश्भवमिति, धूमादावव्यािरिति, सकलवल्किमति प्रत्येकधूमस्या- ad: वद्धिसमानाधिकरणयावदन््ाधिकरणाप्रसिदेखेति भावः। 'सखादावित्यत वह्भयादिसाध्य इत्यनुषज्यते । पञ्चमे aura यावत्ाघनाश्रयसम्बन्धः साध्ये लभ्यते तावता व्याः साधननिष्ठ- त्वानिव्वादह इति तन्रिव्वाहाय ताटश्साध्यसामानाधिकरण्यस्या- fara निवेशनमेव “ग्रथेपरिस्कारः', खयमधिकदूषणमह, ‘Ta. मातहत्तिसाघन इति, यावत्साधनाश्रयाप्रसिदेरिति भावः। ‘aay अ्रथपरिष्कारपूठ्मकमेव, aati age छत्खरसाधन- सामानाधिकरण्यं साध्ये लभ्यते व्यापेर्तुनिषठतासम्मादनाय तत्‌- सामानाधिकरण्यस्याधिकस्य निवेशेनेव परिष्कार इति बोध्यम्‌ । ननु साधनसमानाधिकरणानां समिधो विर्दानां एकाधिकरणा- प्रसिद्धावपि तेषां प्रत्येकसामानाधिकरणयमेव साध्ये निवेश्यमिति न मून्तोक्तदोषावसर इत्यत श्राह, ताहशानामिति साघनसमाना- धिकरणानामित्यथंः, नन कुत्रापि वद्वाविति, साध्यतावच्छेदके तदश्मसमानाधिकरणढत्ित्वं निवेश्य तदोपोद्ारेऽपि नानाधश्चाव- च्छित्रसाध्यके दण्डिमान्‌ दरख्डिसंयोगादिव्यादौ कुत्रापि दशर्डा- दिव्यक्तौ साध्यसमानाधिकरणानां सर्वेषां प्रत्येकसमानाधिक- व्यािवादः | yey रणत्त्तित्वासस्भवेनेवाव्याभिर्न्वोध्या । साधनसमानाधिकरणाः सव्वं याहसाष्यसमानाधिकरणस्ताटटणसाध्यसमानाधिकरणय मित्यर्थे न कोऽपि दोषः दरत्याशद्कते, (अयेति, तत्तद्वरक्तित्वादिना साध्यं चेदु व्यापकतावच्छटककोटौ निवेश्यते तदा नानाव्यक्तिसाध्य- कोऽव्यास्भिरतो यदश्पदं प्रकतसाध्यतावच्छेदकपरं, विशिषटटसत्ता- वान्‌ जातेरित्यादावतिन्यास्िकारणाय विशिष्टाधिकरणतागभ- सामानाधिकरण्यं प्रवेश्यमित्येतल्लाभाय चाखयपदसुपेच्य अव- च्छिन्रपदं, धूमादिसामानाधिकरखस्यापि प्रमेयलादिना वद्कया- दिसामानाधिकरणखव्यापकतया अतिप्रसङ्ग दति तादटशसामाना- धिकरण्यते व्यापक तावच्छेदकत्वपय्यन्तालुखरणं, साधनसामाना- धिकरणयव्यापकत्वं साघनतावच्छेदकविशिष्टसामानाधिकरण- त्वावच्छिन्नं प्रति व्यापकत्वं, तेन धुमादिसामानाधिकरणत्वेन तदह्नमादिसामानाधिकरण्यत्वावच्च्छिन्नं प्रति व्यापकदल्ेऽपि गुण- लादिक्षाधारणं विश्ि्टिसत्तालाश्रयसमानाधिकरण्यतलावच्छिन्नं प्रति द्रव्यत्वादिसामानाधिकरण्यत्वेनाव्यापकत्वेऽपि न त्ततिः। परिष्कारस्यावश्यापेक्षणोयत्वे एतदपेक्तया लघोः कत्खसाधना- खयाअितसाध्यसम्बन्धस्य व्यापकत्वरूपक्लत्स्रपदाथमन्तभीव्य afc mit एवोचितः, स च सिद्ान्तयन्य एव करिष्यते इत्याह, (इतोऽपोतिः, aura इदानीं यथाञ्रुताधदूषणपर एव मूलग्रन्य- इति नासङ्तिरिति भावः । मूलोक्तसिदान्तलचणन्त्वन्योन्याभाव- स्याव्याप्यव्रत्तितामते द्रव्यनिष्ठसंयोगाभावोऽपि प्रतियोग्यनधि- करणौभूतरेत्धिकरण्ठत्तिरिति संयोगिद्रव्यलादिव्यादावव्याश्षा ५९ € अनुमानमादाघय्धा दूषयित्वा साघनसमानाधिकरणधघन्े कात्साविग्रेषणपन्त एव दौ- धितिकोरेणाग्रे अ्रवलम्बनोयः अभाववदथेकं विनापदमत्र सप्तम्य- न्तमित्याशयेन व्याचष्टे, साध्याभाववतोति, साध्याभाववदतत्ति- त्वमिति प्रथमलक्षणे साध्याभाववदु्निमेदौ faafaa: अत्र at त्यन्ताभाव इति we इति भावः। सत्तावान्‌ जातेरिल्यादौ साध्याभाववति हेतुतावच्छदटक सम्बन्धेन ठत्तेरप्रसिदया अ्रव्यातधिरि- त्यतोऽविनाभावमन्यघा व्याचष्टे, (साध्यं विना अभाव इति, तथाच नजः व्यत्यासः काय दति भावः | विनाशब्दार्घोऽभावणवनतु तद्ान्‌ तस्य च निपाताथेतया प्रयुक्तत्रसम्बन्धेनाभावे साता वान्वयः, प्रयुक्ञत्रच्च व्यापकल्रमित्याशयेनादह, “साध्याभावव्याप- केति, साध्यस्य संयोगादिसम्बन्धो न तदौयनव्यात्षिरतो व्याचष्टे, 'सामानाधिकरणमिति, मूले "व्यभिचारिसम्बन्धस्येति तद्यमभि- चारिनिष्टठतदौयसम्बन्धस्येत्यथंः, केनचित्‌ सहव्याित्वादित्यता- न्घदोयव्यासिलवं प्रतोयते तच्च न सम्भवतीति व्याचष्टे, ‘fafe- रूपेति, तथाच रूपान्तरावच्छिन्रतद्यािल्वादित्यथः, तदेव दश- यति, “धुमादेरपीति, 'व्यापकलात्‌' व्यासिनिरूपकल्वात्‌, तथाच वङ्कयारौ धूमादिव्यास्िरिषटेवेति भावः। aa “तद्बोधादिति केवलसाध्यसामानाधिकरख्यप्रकारकरहेतुमत्ताज्नानादित्यधेः, अनु- faaqenfefa अ्रनुभिव्युदयोपगमासम्भवात्‌, तथा सति द्रव्यत्ादिहेतुना हृदादावप्यान्तानां वद्कयादयनुमानोपपत्तेः उदाहरणे वोश्वितथत्पद प्रयोगवेय्यापत्तेः व्यभिचारस्य Far भामतानुपपत्तेः सव्यैत भमेयत्वादिना सप्रतिपक्तापत्तेथेति व्या्िवादः | Yeo भावः। ननु व्यभिचारन्नानाभावः साक्तादेवानुमितिडतुव्वीच्यः तथाच साध्याभावव्यभिचारिमेयत्वाटेन स्रतिप्तीन्नायकत्व- प्रसङ्गः (१) न व्यभिचारस्य हेताभासतानुपपत्तिः व्यभिचारणशड्ग- निवत्तनेनेव उदाहरणे वौसापदप्रयोग इत्याशङ्कते, “न चेति, 'तद्दोधःः साध्यसामानाधिकरश्यप्रकारकहेतुमत्ताबोधः, सव्वा- नुभवसिदल्लादिति, तथाच तचानुमित्यापत्तिरिति ara: | एव- gana कोटिदयसद चरितधन्दयदभेनात्‌ उभयत्र व्यभिचारा- ग्रहे संशयानुमितिप्रसङ्गोऽपि eae: विपरोतकोटिसमाना- धिकरणधम्मवत्ताज्नञानस्य विशिष्टवुद्धाविरोधिवात्‌ अन्यथा साधारणघश्चदश माधी नप्रत्यत्तसंशयस्याप्युच्छेद प्रसङ्गात्‌ | व्यभि- चारन्नानाभावदेतुलं सम्भवदुक्रिकमपि नेत्याह, 'ेलवन्तर इति द्रव्यत्वादौ वद्छयादिव्यभिरग्रहदटशायां धुमादिलिङ्गकवज्कयायनु- मितेरत्पादादिव्यथेः, तथाच तत्साध्यकानुमितेस्तत्साध्यनिरूपित- व्यभिचाराग्रदव्यभिचारित्वान्न तच दछेतुतासम्भव इति ura: ननु तल्लिङ्गक-तत्साध्यकानुभितित्वस्य तल्िङ़धश्थिकव्यभिचार- ज्ञानाभावजन्यतावच्छेदकत्वोपगमे नायं व्यभिचार इत्यत ATs, (तत्रैवेति, हेताविति शेषः, “रूपान्तरेशेति द्रव्यलादिःप्रकारेण व्यभिचारग्रहे धूमत्रायवच्छत्रतलिङ्गकानुभिन्युतपत्तेरित्यधः | ननु तदवच्छिन्रलिङ्काऽनुमितिल्वमेव तदग्मावच्छिन्रधरश्िकव्यभि- चार ज्ञान प्रतिवध्यतावच्छेटकं वाचं तथा सति नोक्तदोषावसर- इत्यत आह, डतुतावच्छेद काग्रह इति धृमल्वादिप्रकारेण पकच्चघ्भ- (१) सत्मतिपक्तोपधघायकत्वप्रसङ् इति ate | wer ्रनुमानगादाघयां तान्नानं विनापिञ्रयमालोकौ धूमो वा इत्यादिसन्देहद्ायां af व्याप्यवान्‌ श्रयमिति व्यािप्रकारेण पक्चध्धतान्नानादनुमिल्यत्‌- पत्तेरित्यधः, तथाच aemafaal व्यभिचारग्रहप्रतिवध्यता- वच्छेदकनिरुक्तधन्धानाक्रान्तायाम्‌ श्रव्यभिचारग्रहस्य डतुताया- भ्रावश्यकत्वेन व्यभिचाराग्रहरेतुतवं न कुत्रापि कल्ययितुसुचितम्‌ । न चाव्यभिचारस्य केवलान्वयिस्थलेऽप्रसिद्या व्यतिरेकिख्थले- ऽपि कैवलान्वयित्वश्मदशायां दुग्रंहतया त्र व्यभिचारन्ना- नाभावसदक्रतसामानाधिकरण्यन्ना नादे वानुमि तिरूपगन्तव्या इति वाच्यम्‌ | खसमानाधिकरणाभावप्रतियोगितानवच्छेद क तारूपस्य सिघान्तग्रन्यनिव्वांचस्याव्यभिचारस्य सब्धतैव सुग्रहत्वात्‌ साध्यस्य केवलान्वयितवग्रहदभायाम्‌ ्नुमितिमनङ्गोङ्गव्धाणेः साधष्थाभाव- वदठत्तिलरूपाव्यभिचारन्नानस्यानुमितिसामान्यहेतुताखोकारेऽषि बाधकाभावादिति भावः। ननु डेतुतावच्छेदकाग्रहस्यले साध्य सामानाधिकरणयप्रकारकव्यभिचारग्रहाभावसदक्रतसाध्यसामाना- धिकरण्यप्रकारकपत्तधग्यतान्नानाटेवानुभितिः सम्भवति इति तत्राप्यव्यभिचारन्नानहेतुत्वम्‌ afew एवं (खसमानाधिकरणे- त्यादिसिदान्तगन्यनिन्धाच्यव्यासिन्नानस्य ` हे तुत्तायां रासभादि- व्यावत्तं क तत्तदेतु तावच्छेदकस्य साध्यसामानाधिकरखधर्िता- वच्छछेदकविधया विषयताया अवश्यं निवेशनौोयतया 2q- तावच्छेदकधन्प्रकारकन्नानं विना अनुमितिनं भवव्येवेत्यत- आदह, “विवदन्ते चेति, केवलान्वग्यनुमानानभ्युपगन्तारोनव्या- इति शेषः, तथाच सामानाधिकरण्यज्नानस्यापि ईतुता नाव्य व्याश्चिवादः। ५९९ भिचारन्नानहेतुतावादिभिरुपगम्यते तन्मतापेक्तया अरव्यभिचार- waar व्यभिचाराग्रहहेतुलं कल्ययतः सामानाधिकरण्य मात्रस्य व्यासित्वं मन्यमानस्य मते गोरवाभावेऽपि साध्याभा- ववद दत्तित्वरूपाव्यभिचारन्नानडेतुतावादिनवोनमतापैच्या कार- -णतादयकल्यनेन गौरवं दुव्वारमेवेति भावः । डेतुव्यापकसाध्यसा- मानाधिकरखय रूपव्यासिज्ञानहेतुतावादिनां सिद्धान्तिनां मतेऽपि- तन्मतापैत्तया लाघवमाह, व्यभिचारन्नानेति, सिदान्तिमतेऽप्य- व्यभिचारसामानाधिकरण्यज्ञानयीनं कारणतादयम्‌ aft तु सखसमानाधिकरणाभावप्रतियोगितानवच्छटकत्वरूपाव्यभिचारवि- षयतानिरूपितत्वं साध्यसामानाधिकरणयन्नानडतुतावच्छदटक- कोटिप्रविषटटसाध्यतावच्छेदकविषयितायां निवेश्यते agra कारण- ताया णिक्याल्लाचवमन्तुसमेवेति मावः। इदन्तवधेयं wales साध्यसमानाधिकरणडेतुमत्ताज्नानहेतुतानामानन्यात्तताव्यभिचार- विषयतानिवेशेऽनन्तस्थ लेऽवच्छछेद कमौरवं निर्क्तसाध्यतावच्छेदक- विषयतायां निस्क्ताव्यभिचारविषयतानिरूपिततवं निर्क्ताव्यभि- चारविषयतायां वा साध्यतावच्छदटकविषयतानिरूपितत्वं faa- श्यते saa विनिगमनाविरहेणानन्तपक्तमेदेनामन्त कारणता धिक्य- चेति पकत्तविशेषमनन्तभाव्य सामान्यतस्त ल्िङ्गक तत्साध्यकानुमितो तल्लिङ्गघर्िकतत्साध्यव्यभिचारन्नानाभावत्वेन एकंककारणताक- पनमेव सम्यक्‌ | अच कीचित्‌ व्यभिचारग्रहस्य शरोरनिष्ठप्रत्यासच्या आत्मनिष्ठ- yaaa at प्रतिबन्धकत्वं न सम्भवति परपुरप्रवेशस्यले तच्छं ९०० ग्रनुमानगादाघयां रोरे अ्रभिभाव्ययभिचारन्नानसच्वेऽप्यमिभावकभ्वूतादेरप्यनुमिल्युट्‌- यात्‌ कायब्युख्ले एकशरोरे wafa व्यभिव्यारज्नानसच्ेऽपि शरोरान्तरावच्छछिन्रे तत्रानुमिल्युदयादिति शरोरविशेषावच्छिन्नतवं निवेश्यात्मनिष्ठप्रत्यासच्या व्यभिचारग्रहस्य प्रतिबन्धकता वाचा तथाच चैत-मैत्रादिशरौरमेटेन तदभावस्यानन्तहेतुतापेक्तया सामानाधिकरण्य-समानावच्छद कत्वोभयप्रत्यासच्या अवश्यकल्पा- सामानाधिकरण्यन्नानदेतुतायामव्यभिचारविषयकलत्वनिवेश एव लघोयान्‌। न च समवायसम्बन्धावच््छित्रप्रतियोगिताकस्य व्यभिचारग्रहविरहस्य सामानाधिकरण्य-समानावच्ेद कलप्रत्या- सत्तिभ्यां कारणताकल्यनेनेव सामन्ञस्यात्‌ तद्धतुतामतेऽपि शरोर- मेदनिवैणनं नास्तोति वायम्‌ । तथा सति तच्छरौरावच्छेदेन तदात्मनि व्यभिचारघोस््वेऽपि तदात्मनि तदभावस्यान्यावच्छ- देनान्यात्मनि तदभावस्य च तच्छरौरावच्छ्टेन वत्तः तदात्मनि भ्रनुभित्यापत्तदव्वारत्वात्‌ उभयप्रत्या सच्यवच्छिन्नेकदेतुतास्यले एका कारणप्रत्यासत्तः उभयाधिकरणप्रत्यासन्नर कार्य्यो त्पत्िप्रयोजक- तया अ्रव्यभिचारविधयकसामानाधिकरख्यन्नानं aq कायव्युह्- वल्येव तदात्मनि शरोरान्तरावच्छ्देन एतच्छरो रावच्छछेदेन परपुरप्रवेणकत्तथात्ान्तरे ततरेतच्छरो रावच्छेटेन एतदात्न्य- नुमित्यापच्यनवकाशः swage ज्नानव्यक्तिभेदरादिति ज्ञानः हेतुतायां शरोरमरेटनिवैशमन्तरेरीवो पपत्तेः अधिकरणभरटेऽप्यभाव- व्यक्तिमेदाभावेन व्यभिचारन्नानाभावहतुतामते शरोरभेदनिषेशनं विना अरतिप्रसङ्गवारणोपपत्तरयोगात्‌। न च यदेणावच्छेदेन यदा aifaate: | ६०१ यदधिकरणे क्यं तदवच्छ्देन तदव्यवदहितपूव्वक्षणे तदधिकरणे कारणमित्ये ताह शावच्छेद कौभूतदेगघटितव्यापकताघटितकार णत्वं व्यभिचाराग्रहे खलोक्रियते तादृशकारणताखयस्य च तदेश्चावच्छ्टेन तदधिकरणसत्त्वं तदे यावच््छिन्रतदधिकरणनिषठकाय्योत्पाटरे तन्- मिति तच्छरोरावच्छेदेन तदात्मनि व्यभिचारग्रहदशायां तदवच्छेदेन तदात्मनि तद्‌ ग्रहस्य दुल्लंभतया नोक्तातिप्रसङ्ग इति वाच्यम्‌ । एवमपि qa महाशरोरनाशे खण्डशरोरस्योत्पादद- शायां व्यभिचारग्रदस्तत खण्डशरोरोत्माददितोयक्णं तदव- च्छदेनानुमिव्यापत्तेः व्यभिचाराग्रहहेतुतावादिनां दुव्वरत्वात्‌ तच्छरोरस्य व्यभिचारग्रहपूव्वेकातेऽसच्छेन व्यभिचारग्रहानव- च्छेदकतया तदवच्छेदेन तदग्रहस्याकनि स्वात्‌ । न च तदा- व्यभिचारग्रह एव न सम्भवति शरोररूपकारणविरदहादिति शङ्क, शरोरावयवसाघारण वेष्टावत्छ मात्रस्यैव ज्ञानजननौपयिक- तया शरौरासच्तरेऽपि तदवयवावच्छेदेनेव तजज्ञानोत्पत्तेः Walaa इत्याहुः | | व्यभिचाराग्रहस्यानुमितिहेतुतामते अनुभितिसामग्रया अ्रधिक- कारणएताघटिततया भिन्नरविषयकप्रत्यक्षाटौ तग्मतिबन्धकतायां गौरवमित्यन्ये। अव्यभिचारग्रहडेतुतामते aa स्शयान्यत्प्र- गप्रयुक्तगौरवमाशङ्कते, (अव्यभिचारनिश्चयलेनेति व्यभिचारा- प्रकारकाव्यभिचारप्रकारकन्ञानत्वनेत्यथेः, नौरवमिति, व्यभि- चाराग्रहृेतुतामते व्यभिचारसंशयस्यापि प्रतिबन्धकत्रन सत्सा- धारणव्यभिचारग्रहत्वावच्छित्राभावस्येव हेतुतया व्यभिचारग्ररे a ६०२ अनुमानगादाधथां संशयभेदानिवेगेन लाघवादिति ara: | व्यभिचारग्रहप्रतिबन्धकता- मते व्यभिचारग्रहे निश्चयत्वानिषेणेऽपि तदुत्तेजकौभूतभ्चमतन्नाने निश्चयत्वस्य निवेशनोयतया गौरवमिति समाधत्ते, 'व्यभिचार- न्नानस्यति, श्रमत्वनिश्यदशायामेवः इत्येवकारेण तत्संश्यदशा- यामनुमिल्यविरोधिलव्यवकच्छदः, अ्रप्रामाणयशङ्या नि्ितस्यापि विषयस्य संगयोत्पत्तः तच्छड्ाकवलितस्य निश्यकाय्यकारितवं नास्तोति तथाविधस्य व्यभिचारग्रहस्य तत्संशयान्तरवदनुमितिप्रति- वन्धकताप्रौव्यादिति भावः। श्रमखनानिथ्ौोयमानस्यः waa- निश्यत्वावच्छिन्राभावविशिषटटस्य, विरोधितं, वाचं भवता वाचं, ्रमत्वशङ्गायामपोति, तच्छङ्ास्कन्दि तन्नानस्य विरोध्यप्रकारक- स्यापि निश्चयकारय्यासमयत्वादिति भावः। अपिकारात्तत्रिश्चयद- शासमुचयः, भ्वमत्वेनाग्टह्यमाणस्येति अ्रमत्वन्नानलावच््छित्रा- भावविशिष्टस्येत्यथः, एवकारेण तत्रिश्चयत्वावच्छिन्नाभाववैशिष्यस्य कार णतावच्छेद्‌ कत्वव्यवच्छटः। Saaafa व्यभिचाराग्रहहेतुता- वादिन एवेत्यथः, गौरवादिति, व्यभिचारिविशेष्यकत्वावच्छितरा- व्यभिचारप्रकारकत्वन्नानाभावविशिषटव्यभिचाराप्रकारकाव्यभिचा- रज्ञानत्वापेक्तया अव्यभिचारिविरेष्यकल्वावच्छित्रव्यभिचारप्रका- रकत्वाभावाप्रकारकाव्यभिचारिविशेष्यकत्वावच्छित्रव्यभिचारप्रका- रकत्वप्रकारकनज्ञानत्वावच्च्छिभावविशिषटटव्यभिचारन्नानत्वावच््छित्रा- भावत्वरूपकारणतावच्छेद कस्य गुरुणरोरत्वादिति भावः। नच श्रेमत्वन्नानास्कन्दितिख विषयकभ्वमल्क्ञानद शयामव्यभिचारग्रह- स्यानुभितिजनकतया तद वच्छट काभावप्रतियोगिनि भ्रमलज्नानें व्याप्धिवादः | ६०३ भरमत्वान्तरग्रहाभावविगिष्त्वं निवेश्य तादश्भ्मत्वग्रहस्य च निश्चयत्वेनेवाभावो निवेश्यः भ्रमल्शङ्गसकन्दितस्यापि परामर्गय- ्रमत्वग्रहस्य अ्रमत्वसंणयान्तरवदनुमित्यनुत्ादप्रयोजकत्वादित्य- व्यभिचारग्रहदेतुतामते गौरवं व्यभिचारग्रहोत्तेजकश्चमलनिख्ये भ्रमत्वान्तरग्रहस्य संशयसाधारणतजज्ञानत्वेन वाभावनिवेशात्‌ इति वाचम्‌ । अप्रामाखग्रहे अप्रामाखान्तरग्रहाभावनिवेश्े तत्राप्य- प्रामाणान्तरग्रहाभावस्य निषेशनोयतया aa भवतां निश्चयत्व- निवैशेन लाघवविरहात्‌ (१) । न चावच्छेदककोरिप्रविष्टाप्रामा- र ग्रहधारायाभेकं कं परित्यज्य नि्चयत्वनिवेशनसुभयमते समानम्‌ अरव्यभिचारग्रदृदतुतामते पुनरव्यभिचारग्रहे निञ्चयत्वनिवेगशन- मधिकमिति वाचम्‌ । अव्यभिचारविशि्टवेशिच्यद्वानल्वेनेव डतु. ताया वक्तव्यतया तत्संशये च तदि शिष्टे शिष्यावगाहित्वानुपगमेने- वाव्यभिचारसंशयादनुमितिवारणसम्भवे तदंशे निश्यत्वस्यानिवे- शादव्यभिचारविषयकाप्रामाख्यग्रहे अरप्रामाखग्रहसच्ेऽप्यनुमिल्‌ः त्पादानुपगमेनाप्रामाखग्र डे श्रप्रामाख्यान्तर ग्रहाभावस्य न विशेषण- aq अन्यथा विशेषणनवस्थाप्रसङ्गादित्यपि वदन्ति । गौरवान्तरेण व्यभिचारग्रहप्रतिबन्धकतामतं टूषयतामन्येषां मतमाह, नानावि- ‘afa हेतुनिष्ठसाध्याभाववद्तित्व-साध्यतावच्छेदकनिष्टडेतुसमा- नाधिकरणाभावप्रतियोगितावच््छेद कलल्--ताटशप्रतियोगितानिष्ट-- साध्यतावच्छछेद कावच्छिन्रलवादिखरूपवहविधेत्यधेः, यक्किचिदेक- (१) भ््रमत्वनि्यनिवेशेन लाघवविरहारिति ute | ६०४ अरनुमानगादाघ्यां विघव्यभिचारग्रहद शायामेवानुमित्यनुत्पादस्यानुभविकतया a विधव्यभिचारज्ञानस्येव waa पथक्‌ प्रतिन्धकताया श्रावश्यक- त्वादिति भावः । “नियतपूव्ववत्तित्वेन क्तृसानामपीति, अव्यभि- चारन्नानहेतुतामतेऽपि तडतुभ्रूतयावद्यमभिचारन्नानाभावानाम- नुमितौ नियतपून्मैवत्तित्लादिति भावः। एतेन बहष्वनन्यथा- सिदिकल्यनमपेच्य एकधश्मावच्छिन्ने नियतपून्वै वत्तितासहिततत्क- लपने लाघवमिति ध्वनितम्‌ । 'वच्यम!णेक विधेति केवलान्वयिख र्ड- नावसरे साध्याभाववदहठत्तिलरूपलघुशरो राव्यभिचारेत्यर्थः, ताद शाव्यभिचारन्नानस्यापि सव्वविघव्यभिचारग्रहप्रतिवध्यतया तदतु- तयैव सकलव्यभिचारन्नानदशणायामनुमितिवारणसम्भवात्‌ अव्यभि- चारान्तरापैत्तया तच्छशोरलाघवस्येव विनिगमकलतया विनिगम- नाविरहेण नानाविघाव्यभिचारधियामेव कारण्त्वमित्यस्यापि वक्तमशक्यत्वादिति भावः। श्राइरिव्यस्छरसोद्वावनं, तदोजन्तु असमानप्रकारतया व्यभिचारान्तरग्रहस्य साक्तादुक्ताव्यभिचार- ग्रहाविरोधितया व्यभिचारान्तरधोदशायां उक्ताव्यभिचारज्नानसच् अनुभितिसखोकारे गुरुशरोरव्यभिचारान्तरग्रहस्यानुभितिविरोधि- तया तावतेवोपेक्ितिलात्‌, अस्माकमपि लघुशरोरसाध्याभाववद्‌- वरत्तित्ररूपव्यभिचारगृह्ाभाव एव हेतुरिति वक्त शक्यतया उक्त- लाघवानवकाशः व्यभिचारान्तरगृहदश्णयाम्‌ उक्ताव्यभिचारगृह- सच्छेऽनुमित्यनुत्पादोऽनुभवसिड इति Gufs अव्यभिचारगहासच्छे तदनुत्पादोऽनुभवसिद् इल्युक्तास्मदौययुक्तिरेव जागत्ति किमे- तावतेति stfaate: | goy तच्च चिन्तामणिः । नापि व्याप्िपदप्रहत्तिनिमित्तमिदं, सम्बन्धन्नाने- ऽपि व्याप्तिपदाप्रयोगात्‌ | केवलान्वयिनि केवलान्वयि- wade व्यतिरेकेणि साध्यवदन्याहत्तित्वं ari: एतयोरनुमितिविशेषजनकत्वम्‌ अनुमितिमाचे पच्च aaa प्रयोजिका | न चातिप्रसङ्गः, विशेषसामग्री सहिताया एव सामान्यसामम्युः काय्यजनकत्वनिय- मादिति केचित्‌, तदपि न, साध्यवदन्याहत्तिवस्य घूमे- saute वह्किमत्पव्वेतान्यस्मिन्‌ yA! न च सकलसाध्यवट्‌न्यादत्तितं, वङिमतां प्रलेकं तथात्वात्‌ aad लक्षे साध्यत्व-साधनत्व-तदभिमतत्वानां व्या्भिनिरूप्यत्वेनात्माश्रयः, साध्यत्वं हि a fate ame, सिषाधयिषाविषयत्वं वा, मदहानसौयव्की तदभावात्‌ | न च सामान्यतो व्याप्रावगमोऽस्त्येव परस्य कथमन्यथा टूषगेनासाधकतां साधयेदिति वाच्यं, खार्थानुमानोपयो गिव्याप्िखरूपनिरूपणं विना कथायामप्रबेशादिति। शै} मद्‌ गङ्गेशोपाध्यायविरचिते तत्त्वचिन्तामणौ Gare: सम्पू गः | Gog अनुमानगादाधय्य। तत्वचिन्तामरखि-दोधितिः | सामानाधिकरणण्यविशिष्टपत्षघम्भतवं तु पत्ते साध्य- ग्रहं विना द्ग्रंहमिति कैवलान्वयित्वस्याग्रहे सामा नाधिकररयमावग्रहादनुमित्यनुत्पत्तेस्तद्होऽपि वाच्यः तच्च हत्तिमदत्यन्ताभावाप्रतियोगित्वादिकमन्योन्याभाव- प्रतियोगितानवच्छेद कत्वं वा तथाच सव्वं साधारण्याय लाघवात्याघनवतस्तदत्तित्वस्य वा PA AAT वा विशेषणत्व सुचितमिति सिद्ान्तरहस्यं, शेषं केवला- न्वयिखण्डने वच्यामः। sfa ओोमन्प्हामहो पाध्याय-रघुनाधथशिरोमणि-भट्रा- चाय्धविरचितायां तच्चचिन्तामणिदोधितौ पत्वेपक्चदौ धितिः सम्पूर्णा । गादाधरो विहतिः । aq केवलसामानाधिकरण्यस्य व्या्िते दरव्यलादिना दादौ वह्कयादयनुमानापल्तिरेव बाधिका तदारणाय वरं स्षाध्यसामाना- धिकरणविशिष्टहेतुमत्ताज्नानस्येवानुमितिरेतुत्वसुपियतां किम- व्यभिचारन्नानरेतुतथा दादौ वह्किशून्ये व्किसासानाधिकरणख्य- विशिष्टवैशिष्टासचवात्‌ व्यभिचारिणोऽपि साध्यसामानाधिकरणय- विशिष्टस्य साध्यवल्येव स्वात्‌ पक्त विशिष्टवशिच्चगहे हेतौ व्यभि- व्या्निवाद्‌ः | ६०७ चारगृ डेऽप्यनुमितिरिष्टेव .सामानाधिकरण्यवि शिष्टवेशिच्चस्या- व्यभिचारविशिष्टवेशिश्चतुल्त्वात्‌ इत्याश्ङ्ां परिदरति, 'सामा- नाधिकरण वि शिषटपक्तघश्रत्न्तिति पन्ने साध्यसामानाधिकरण- विशि्टवेशि्यन्त्ित्थेः, ‘oa anand विना साध्यनिश्वयं विना, ‘caw दुनिश्वयं, ua साध्यसन्देहदशायां साध्यसामा- नाधिकरण्यविशिष्टस्यापि सन्देह श्रौत्सगिकः स साध्यनिखये- नैव व्यावत्तकधश्यदशंनविधया व्यावत्तनौय इति भावः| तथ्राचान्योन्याखयात्‌ तत्सामानाधिकरण्यविशिष्टवेशिथ्चनिश्चयस्य हेतुता न सम्भवतीत्याशयः। अथ usd वदह्किसन्देहदशायां निश्चितसाध्यकमहानसादिहत्तितया अ्रगटह्यमाणायां पन्वैतोयधुम- व्यक्तौ वद्किसामानाधिकरण्यसन्देह त्रोत्सगिक इति न तत्सामा- नाधिकरण्योपलक्तितधूम वत्तानिञ्चयोऽपि सुघट इति कधमव्यभिः चरितसामानाधिकरण्यप्रकारकज्ञानरहेतुतापक् एव॒ प्रतोकार- दति चेत्‌, महानसौयधूमादौ प्रत्यक्षतो वह्किसामानाधिकरण्े निश्चौयमाने लाघवज्ञानाधौनादूमलावच्छेदेन वदह्किजन्यत्रनिञ्चय- रूपविशेषद शनत; (१) तदवच्छदेनेव तत्रिणंयात्‌ धूमत्वदशेनविषय- पक्लोयधूमेऽपि साध्यसामानाधिकरण्यसंश्यायोगात्‌ धूमव्यापक- साध्यस्मानाधिकरणव्ठत्तित्वोपलत्तितव्या्चिलपन्त तत्रकारकदतु- मखस्य पक्त साध्यस्य सन्दे हदशायामपि निश्चयस्य निप्प्रलयहतया अरनुपपल्यनवकाशाच्च साध्यस्य केवलान्वयिलन्नानकालोनाया- मनुमितौ केवलान्वयिसाध्यसामानाधिकरणयज्ञानम्‌ अरतादृश्याञ्च (१). वद्धिसामानाभिकरण्यनिख्चयद्ूपविशेषदटृशनत इति ute | got अनुमानगादाघयौं साध्यवदन्याहत्तित्वन्नानं हेतुरिति मते साष्यवद्यक्किच्िदयक्तिभित्र- वत्तौ नानाधिकरणएकसाध्यके हेतावव्याभिमूलोक्ता साध्यवदन्यत्वस्य साध्यतावच्छछेदकावच्छिन्नवद्धदरूपत्वे तस्या श्रनवकग्णात्‌ खयं सिडान्तमतापेत्तया गौरवेण तवत्रिराकरोति, 'केवलान्वयित्वति साध्य- इत्यादिः, अनुनित्यनुत्पत्तेरिति, साध्यसामानाधिकरणयमाचगृहस्य व्यभिचारगृहाविरोधिलादिति ara: "तद्रहोऽपि' साध्ये केवलान्व- यित्वगृहोऽपि, हेतव्वच्ः। ययपि खमते ब्रवत्तिगगनादेः स्राभावा- भावत्वविरहादत्यन्ताभावे हत्तिमच्चमनिबेश्यैव तदभावसाधारण- केवलान्वयित्वं सुवचं तथापि साम्प्रदायिकानुमततहटितसामानाधि- करण्यशरोरे वत्तौ साधनवन्मात्स्य विगरेषणत्वो पगभेनेव व्यापक- तापय्यवसानं भवति स्वमते च युनरत्यन्ताभावांगे साधनवदन्ति- त्रविगेषणप्रकतेपेणेव इति साम्प्रदायिकानुमतमेव केवलान्वयित्वं दशयति, ‘adfa, हत्तिमदत्यन्ताभावाप्रतियोगिलादिकमिति श्रादिपदान्रिष्कृष्टताटृशणभावप्रतियोगितानवच्छेदकत्वपरिग्रहः | अयान्योन्याभावघटितव्यापकतापब्धवसानाय तहटितमपि केवला- न्वयित्वमाह, 'अन्योन्याभावेति, गगनादेरत्यन्ताभावप्रतियोभित्वानु- रोधेन तदभावत्वख्लो कारेऽपि तददन्योन्याभावत्वमप्रामारणिकमित्य- न्योन्याभावे ठत्तिमच्वमव्यावत्तकतया नोपात्तं, “सव्यैसाधार- णायः साध्यव्यतिरेकित्वग्रहकालोनानुमितिकारणोभूतन्ञानविष- यत्वनिव्वाहाय, (लाघवात्‌ साध्यवदन्याहत्तिवज्नानरेतुल्वान्तरा- कल्यनालाघवात्‌, साधनेति साघनवतोऽत्यन्ताभावविशेषणौभूता- यान्तः, साधनवहत्तिताया अन्योन्याभावस्य वा विशेषण्त्वसुचितं, व्याभिवादः | ६०९ तथाचोच्यते इत्या दि वच्य माणसिद्वान्त एव पय्यंव प्रानं अन्यथा कायय- कारणभावदयकल्मनागौरवप्रसङ्गात्‌ इत्यथः । डषमिति, साध्ये केवलान्वयितग्रहदशायां तस्य पक्त अननुमितावपि न afa: तदानीं केवलान्वयित्वेन हेतुना साध्य-पच्चट्रत्तित्वानुमित्येव पत्ते ` साध्यवत्तानिश्चयकाग्यसम्धवात्‌ । तथाच साध्यवटन्यात्तित्वमे- वानुमिव्योपयिकं लघुशरोरत्वादित्यादिकमयेः | दति सोमन्महामहोपाध्यायगदाघरभटाचाथविरचिता पूव्वैपचचस्य टिप्पनो समाप्ता ॥ # ॥ ॐ ॐ ६१० अनुमानगादाघय्या तत्वचिन्सामणो व्यात्धिवादे सिद्वान्तलक्षणम्‌ | अचोच्यते | प्रतियोग्यसमानाधिकरण-यव्यमाना- धिकर णात्यन्ताभावप्रतियोगितावच्छंदकावच्छिन्नं यत्न भवति तेन समं तस्य सामानाधिकरण्यं व्यापि: | सिद्ान्तलक्षणस्य दो धितिः | प्रतियोम्यसमानाधिकरणेति, प्रतियोग्यसमानाधि- करण-यद्रूपविशिष्टसमानाधिकरणाव्यन्ताभावप्रतियोगि- तानवच्छेदको यो घम््सदम्धावच्छित्रेन येन केनापि समं सामानाधिकरण्यं तद्रूपविशिष्टस्य तदर्ममावच्छिन्न- यावनच्चिरूपिता व्याप्िरिव्यथः | क~ ~~~ ----------------~------~~~~---~--~----~~ ~ या ाा णः सिडान्तलक्तणस्य mead faafa: | 'प्रतियोगितावच्छेदकावच््छिन्नं यत्र भवलौतियथायुतमूलात्‌ यत्पदार्थे साध्ये प्रतियोगितावच्छेदकावच्छिन्नान्यतवं प्रतोयते तथाच वद्िमान्‌ धूमादिवलयादौ हेतुसमानाधिकरणमदहानसोयवदङ्किलाय- वच्छिन्राभावमादाय दोषो दुव्वारः, सव्वेषामेव वह्भयादोनां ताह- प्राभावप्रतियोभितावच्छ्दक विशिष्टतया (१) तदन्यत्वासम्भवात्‌ | यत्पदस्य यद्रूपावरच्छिन्नपरतया यद्रूपावच्छित्रस्य (२) प्रतियोगि- (१) तादशाभावप्रतियोगितावच्छद्‌ कावच्छिन्नतयेति ato | (२) यदरूपावच्छिच्नेत्यस्य afore तद्‌ वच्छत्रान्य तमित्यनेन मम्बन्धः। व्याक्चिवाद्‌; | ६११ तावच्छ्दकाये ये धरया: प्रत्येकं तदवच््छिन्नान्यत्सिल्ययं साध्य- तावच्छेदकस्य तत्तद्रतियोगितावच्छदकधन्ावच्छिन्रभेदकूटेन प्रत्येकं सामानाधिकरण्यपथ्वसिते वद्कयादिसाध्यकदेतौ afs- त्ादेविभिन्रवद्धया दि व्यक्तचन्तभावेन महानसीयवङ्कित्वादयवच्छित्र- मैटैः प्रयेकं सामानाधिकरस्यसच्वेऽप्येकव्यक्तिसत्तादि साध््कै सत्ता- त्वादौ हेतुमन्रिष्टाभावप्रतियोजितावच्छेरकविशिष्टसत्ताल्रादयव- च्छित्रमेदतामानाधिकरन्यासच्चादव्याशिः | यद्ूपावच्छिन्नं प्रति- योगितावच्छेदकावच्छिन्नराविषयकप्रतोतिविषय saw उक्तदटोषो- aisha यद्रूपं प्रतियोगितावच्छेदकभिन्नं प्रतियो गितावच्छेदका- विषयकप्रतोतिविषयो वा (१) इत्यत एव alae प्रतियोभिताव- (१) यद्रपं हेत॒समानापिकरणाभावप्रतियोगितावच्छेद्‌कावच्छिन्नाविषयकप्रती- तिविषयतावच्छेट्कमित्यपेच्तया aga हेतुससानानिकरखणाभावप्रतियोगितावच्छद्‌- काविषयकप्रतीतिविषय sae लाघवमिति | wa गुख्-कम्दमान्यत्वविशिष्ट- सन्तावानु टूष्यत्वादित्याटौ डेतुसमानाधिकरखामावप्रतियोगितावच्छेद्‌ कगुणत्वत्वा- वच्छिच्नाविषयकप्रतौतिविषयतावच्छेदृकत्वं न युखत्ववतकम्ध्रत्ववट्न्यत्वविशि्ट- swag इत्यव्यात्निसम्भषे गौरवप्रदशेनमसुचितं, न च गुणत्वत्वेन गुणत्वं न Ye प्रतियोगितावच्छरेटकं गौरवात्‌ अतो गुणत्वश्डधेदाप्रसिड्व। साध्याप्रसिद्धिः we- पलो गुणत्वनिष्टावच्छेट्‌कताकभेट्सख साध्यघटक्त्वे गुणत्वत्वावच्छिच्नाविषयक- ग्रतीतिविषयतावच्छेदटकत्वं ताटश्साध्यतावच्छेटकख इति नाव्याश्रिरिति वाच्यम्‌ | तथापि हतेसमानाधिकरणाभावप्रतियोगिताबच्छेट्‌कं यत्‌ तदवच्छि- च्नाविषयकप्रतीतिविषयतावच्छदकत्वं न साध्यतावच्छेदकख दृत्यव्याप्नितादट्‌ः वस्थ्यातृ घटकाली नवद्किसाध्यङकेऽव्याप्रेख तत्र तादशघटत्वावच्छिन्नाविषयकप्रतोति- विषयता वच्छेटकत्वख घटकालौनवदङ्कित्वेऽसत््वादिति dq. डेठसमानाधि- करर्ठाभावप्रतियो गिताषच्छेद्कावच्छिन्रसुख्यविगेष्यतासन्यप्रतो तिवि शेष्य तावच्छेट्‌ - wae विवल्ितत्वात्‌ हेत॒मच्विष्ठाभावप्रतियोगितावच्छेद्‌कावच्छित्नापय्याप्र- ६१२ AAA AMSAT बिषयतावच्छद्‌कतापय्यांप्रमधिकरणत्वमिति afaq | ateqwajrafmagfata- त।भिन्न विशेष्यता वच्छेद्‌ कत्वमित्यपि कञ्चित्‌! aq प्रज्ञतानुमितितिषेयतावच्छ्रेदकतापय्यांप्रायवच्छेट्‌कधम्दपावच्छेटेन हेत्‌- समानाधिकरखणाभावप्रतियोगिताष्च्छट्‌कत्वावच्छिन्नमेद्‌विवच्षणेन मद्ानषीय- TSTMS ATAU अवच्छेट्‌कभटेनावच्छेद्‌कवाभेदेऽपि तन्तत्मतियोगि- तानिद््पितावच्छटकतात्वेन व्यासज्यटटत्ित्वेन तद्‌ वच्छिन्रभेटो बद्ित्वारावनच्तत एव। अथ हेतुरुमानाधिकरणाभावोयतत्तत्मतियोगितावच्छेट्‌कत्वावच्छिन्नमेटक्रूटनिवेशे दुन्नेवत्वस्‌ । न च हेतुसमानाधिकरखाभावीयप्रतियोगितावच्छेदकत।त्वेनापि प्याप्रमन्तरं वर्तत एष द्रत्यतुगतद््ेरौव निवेशः कार्य्य xfa वाच्यम्‌, तथा सति धूमवान्‌ बद्धरित्यादौ अतिव्याप्रयापत्तेः यावन्तो वद्धिसमानाधिकरणाभाव- प्रतियोगितावच्छेटकषम्भोौस्तावत्‌सस॒टायत्वस्यैव तद्वच्छेदृकतापय्यांप्रनवच्छेटक- तया भूमत्वत्वावच्छेदेन वबद्किमन्निष्ठाभावप्रतियोगितावच्छेद्‌कत्ववद्धेटसत्वादिति qq, अवच्छेट्कम्‌ BIRT दतिप्रतीत्यो्ैलच्तरयेन खर्प सम्बन्ध पपर्यया- प्रिसम्बन्धावगादडनस्येव नियामकत्वं तथाच wad वद्किच्चिष्ठाभावप्रतियोगिता- वच्छेटकमिति प्रतोतिबलादेव धमत्वाट्‌ावपि बह्किमच्निष्ठाभावप्रतियोगितावच्छेटक- त्वपग्यात्रिख्वौकारेरणातव्याप्रिविरद्धात्‌ afea धमसमानाधिकरणाभावप्रतियोगि- तावच्छेट्‌कमिति प्रतात्यभाेन च वबन्ञित्वत्वावच्छेटेन पूमसमानाधिकरणाभाव- प्रतियोगि तावच्छेद्‌कत्वपय्याप्र्रभावाच्नाव्याप्निः, अतएव साध्यतावच्छेट्‌कताषटक- सम्बन्ावच्छिन्नदतुसमानाध्िकरणाभावप्रतियोगित।वच्छेद्‌ कत्वत्वा AAT CH ताक्भदटो बह्ित्वे न aaa एवेत्यव्या्निरिति परास्तम्‌ | वद्धित्वं समवायेन घूभ- समनाधिकरराभावप्रतियोगितावच्छेद्कं नेति प्रतौत्यभावाटेव तादशमेद्सत्ेना- व्याश्चिविरद्ात्‌ एतेन साघ्यतावच्छेदृकताघटकसम्बन्धावच्छिद्धावच्छेदकतानिरूपक- प्रतियोगितानिष्ह्पकतावच्छेटकत्वत्वेन निवेगोऽव्याश्रिवारणाय नोपारेयः हेतुसमा- नाविकरण्णमाव्रप्रतियोयतावच्छेटकं यावत्‌ खविरशिषटसम्बन्धिनिह्ाभावप्रतियोगि- TIAA एतादृशं स्तं साध्यत।वच्छेद्‌क-मत्यनवच्छेद्‌कान्तपारिभाषिकबलात्‌ efasarfamiel eared खं किमपि टरूडखर्पं ठेतसमानाधिकरखणाभावपति- यो भि तावच्छेट्‌ कया वट डस प्रत्यकं कदापि दण्डस्य सखविशिष्टसम्बन्धिनिष्टाभाव- प्रतियोगिता वच्छेद्‌कत्वविरद्धादिति परस्परासम्बन्वालुधावनसिति भटराचार्येख वस्तु तस्िव्यारद्निा लिखितं न सम्यक यत्र ged साध्यतावच्छेदकं तत्न तादश व्यािवादः । ६१२ च्छेटकविशिष्टाविषयकप्रतौतिविषयत्वस्य साध्यतावच्छदकविशि्टे निवेशनमनुचितं, एवं खरूपसम्बन्धरूपावच्छिन्नत्वविवत्तया agat- व च्छन्नं प्रतियोगिलं उक्ताभावप्रतियोगितावच्छछदकानवच्छछित्र- मित्यथः, शदवङ्धित्लादिरूपसाध्यतावच्छद कावच्छिन्नप्रतियोगितवे महानसौयलादिविशि्टवद्किलादयनवच्छेदयत्वं सुलभमेव यदूपा- वच्छन्नं प्रतियोगित्वं तादश प्रतियोगिताभिन्रमिल्युक्तौ समवाया- दिना घटादौ ara संयोगादिना घटादिहेतावतिव्या्तिः संयोगा- दि सम्बन्धावच्छिन्रचघटत्वादयवच्छित्रप्रतियोगितायां ईतुमन्नि्टा- भावप्रतियोगिताभेदसत्वात्‌ इदं वाचं ज्ञयत्वादित्यादावव्याि वारणाय डेतुमन्निहठाभावप्रतियोगितायां साध्यतावच्छद्‌ कसम्बन्धा- व च्छित्रत्स्य निवेशनोयतया व्यभिचारिमात्र एव सम्बन्धान्तराव- च्छ्िन्रसाध्यतावच्छट्‌ काव च्छिन्नप्रतियोगितायां साध्यतावच्छेटक- सम्बन्धावच्छछत्रप्रतियोभगितामेदसच्वेनातिव्या्षिः स्यात्‌ यद्रूपाव- च्छितननप्रतियोगितात्वावच्छेदेन ईतुमत्रिष्ठसाध्यतावच्छद कसम्बन्धा. वच््छिन्नप्रतियोगितामेदटनिष्शे च व्यापकत्वघटनया महामौरव- सिति प्रतियोगिताभेदसुपेच्य प्रतियोगितावच्छेदकावच्छिन्रभैदो- पादानं, साष्यतावच्छछेदकसम्बन्धावच्छित्रलं भेदानुयोगिसाध्यता- वच्छेद कावच्छिन्नप्रतियोगितायां निबेश्यातिव्याक्षिवारणेऽपि केव- मेव quea धत्तव्यस्‌ अन्यधा मद्धानसोयत्वविशरव{्भत्वस्य साध्यता वच्छेद्‌ क- तास्यले व्यभिचारिगण्यतिव्याप्रेः तथात्रापि दृख्डत्वरूपेण cage उपाद्‌ानसम्भवेन सव्वैखयेव दण्डस्य दण्डत्व वच्छिच्रसम्बन्धिनिष्टाभावप्रतियोगितावच्छेद्‌कत्वसम्भवेना- व्याप्रेरयोग saat वस्तुतस्त्वित्यादिपाठः प्रामादिक इरति वदन्ति इति ad पल्लवितेन | | ६१४ AAA TANTEI लान्वयिसाध्यक्े atenafaaifaarafasn अव्यािरितिरोत्या मिखव्याख्यापरिष्कारेऽपि खावलम्बनोयपन्नापक्षया गौरवमिलयु- पाष्यायोपदिष्टनजव्यच्यासपक्तमवलम्बा व्याचष्टे, प्रतियोग्यस- मानाधिकरणेति। न च नजव्यच्यासेन साध्यतावच्छेदके प्रति- यो गितावच्छेदकमभेद निषेशेऽपि शडवद्कित्वादौ महानसोयत्वादि- विगिष्टवद्धित्रादिमेदासच्वात्‌ साध्यतावच्छदके प्रतियोगितावच्छे- दटकाविषयकप्रतौतिविषयत्वमेव विवन्नणोयं तदपैक्तया साध्यताव- च्छेद कावच्च्छत्रप्रतियोगित्व प्रतियोगितावच्छेटकानवच्छेयत्व- faanaad न गौरवमिति वायम्‌ | waa घटादौ az पटो- भयत्वादयवच्छित्रमेदवत्‌ शडवङ्किलादौ महानसौयत्वादन्तभावेन पय्याप्रविशिष्टवद्कायभावोयप्रतियोगितावच्छेद कत्वा वच्छिन्रभेटस्य सुघटत्वात्‌। अवच्छेदकाविषयकप्रतोतिविषयत्वविवक्षामन्तर- रोव प्रतीकारात्‌ । अवच्छेदकत्वस्य वद्धि महानसौयलादि- निष्ठस्य सम्बन्धादिभेटेन भिन्नत्वेऽपि अनुगतेन तत्तद्रतियीगि- तावच्छ्ेदकतात्वरूपेण व्यासज्यहत्तितायाश्चक्रवत्तिलक्तणे वद्कि- त्वादेरवच्छेद कत्वपय्धास्यनधिकरणत्सुपपादि तवतो दोधितिकार- स्यानुमतत्वात्‌, weawag विगेषधस्मावच्छित्रप्रतियोगिता- कूटानतिरिक्रसामान्यघस्मावच्छित्र प्रतियोगितासम्बन्धस्य विशेष- रूपण(व्यासज्यघ्त्तेरपि सामान्यधद््ावच्छछिन्नप्रतियोगितासम्बन्धत्वे- नानुगतेन व्यासज्यघ्वचित्वमितिकर्टरवेरवोक्म्‌। एवं सति महा- नमोयवङ्किभिब्रवङ्किमान्‌ धुमादिल्यादौ साध्यतावच्छेदकमडहा- नसौ यवङ्किभिन्नत्व-वद्कितराद्योः प्रत्येकं धूमादिसमानाधिकरणा- aarfeate: | ६१५ भावप्रतियो गितावच्छेदकत्वप्यीस्यनधिकरणत्वेऽपि प्रलतानुमिति- विधेयतावच्छेदकता यादटशरूपावच्छित्रे पर्थ्या ताटटशरूपावच््छि- न्रानुयोगिताकताटग(वच्छेद्‌कत्वावच्छिन्रभेदस्येव्र व्या्िघटकत्वो- पगमेन न तिप्रसङ्गः (१) उक्तस्यलोयानु मिति विघेयतावच्छेद कता- नतु महानसोयवद्धिभिचवद्धिमान्‌ धूमादित्यादौ अतिव्या्चिवारणाय अलुमितिविघेयतावच्छेटकता याटशष््पावच्छिच्रे पय्याप्रा तद्रुपावच्छिन्नाद्योगि- ताकतादशाभावप्रतियोगितावच्छेद्‌कत्वावच्छिन्नभेद्‌ विवनच्तणेऽपि रूपवान्‌ एयिवो- त्वा दित्याद्ाकव्या प्िंतमच्धिख विषयितया द्ह्पत्वादिविशिदटाभावसख यत्‌- प्रतियोगि तावच्छेद्‌ कत्वं तद्वच्छिच्नभेद्खख द्पत्वादावसत्वात्‌ | न च साध्यता- वच्छेट्कताघटकसम्बन्धेन तादटृशप्रतियोगितावच्छेदृकत्वख विवच्तणानच्नेषटोष- दूति बाच्यम्‌। तथा सति प्रय्याश्चिनिवेशेऽपि साध्यतावच्छेट्‌कताघटकसम- वायाद्यवच्छिन्नाया ेतमच्निमदानसोयवद्धयमभावप्रति्योगतावच्छेट्‌कताया- व्यासज्ष्टत्तित्वविरडहेख वद्धित्वाटो तद्वच्छित्नभेदासन््वाहद्किमान्‌ धूमादित्यादा- वव्याश्चिवारण्ासम्भवाद्िति चेन्न, साध्यतावच्छद्‌कताघटकसम्बन्वावच्छिन्ना या ेतुमन्निाभावीयप्रतियोगितावच्छेदकता तन्निरूपकोभरूता या प्रतियोगिता az- वन्द्‌ कत्वाव च्छिन्नभेटस्य निवेशनोयत्वात्‌ तथाच द्पवानु एथिवोत्वादि- त्यादौ विघयित्वावच्छिच्नद्पत्वनि्ावच्छेदकताया लच्तणाष्टकत्वाच्राव्या्निः न वा वह्किमान्‌ धूमादित्यादौ ताडशसम्बन्धावच्छिन्नताटणावच्छेद्कतानिरूपक- प्रतियोगितावच्छेदकत्वस्य व्यासज्यटत्तित्वसन्त्वेन azifeqize वद्कित्वादौ सच्वद्व्याश्चिरपौति ध्येयम्‌ | न चेवमदुमितिबिषेयतावच्छेट्‌कतापय्था्यवच्छेद्‌ को- ` भ्रूतद्ण्डत्वाद्य॒वच्छेदेन दख्डादेहेतुमर्नि्ठाभावोयतादशप्रतियोगितावच्छेदकतानि- स्टपकप्रतियो गि तावच्छेद्‌कतावद्धेद सत्त्वाद्‌ ण्ड दि साध्यकेऽव्याश्चिदानागसङ्गतिरिति वाच्यम्‌ | हेतुमन्नि्ाभावीयतादशप्रतियो गितावच्छेट्‌कताया व्याष्यटत्तितया दण्ड- त्वावच्छेटेन तदट्वच्छिन्रभेदसत्त्वाभावात्‌ | नचयो यद्नवच्छेद्‌कः स तट्‌भावावच्छे- ea इति नियमबलादेव ट्‌ख्डत्वावच्छेटेन ताडशावच्छेट्‌कत्ववद्भेदसतत्वाच्राव्याप्नि- रिति वाच्यम्‌| तादशनियमखाप्रामाखि कत्वात्‌ द्रव्यत्वावच्छेटेन दण्डे घटजनकत्वा- भावसत्वप्रसङ्गादिति। द्रटृमल्रावघेयं तत्तद्‌ण्डाभावप्रतियो गि तावच्छद्‌ क तात्वद््पे ख ६१९ अ्रनुमानगादाघ्थां पाघ्यवच्छटकदशितघग्मदयनिष्ठदित्वायवच्छित्रडेतुमनिष्ठाभाव- प्रतियो गितावच्छछेदकत्वपय्यासिमति विरोधेन तदवच्छित्रमेदा- aad, साध्यतावच्छेद कव्रत्तिमहानसो यवदह्किभिन्नत्व-व ह्भित्वो- भयत्वादययनुपस्ितिकाले तदवच्छिन्नेऽनवच्छछेदकत्वस्य दुग्रंहतथा अ्रनुमिव्यनुत्पादो व्यापकताज्ञानकारणतावादिनामिष्ट एव, तेन तेन रूपेणानवच्छेद कत्व ग्रहात्तदरूपावच्छिन्नरविधैयतावच्छेदकताका- नुमित्यनुपपत्िश्च केवलान्वयिग्रन्ये yaad वच्यते, owas हेतोनिवेशे ₹हेतुव्यक्तिभेदेन व्यसिभिंव्येत, सा च नानुमित्यष- योगिनो पक्तौयधृमादिव्यक्तिव्यापकतायाः पूर्वँ वह्कयादावग्टहीत- लादिति धयद्रूपविशिष्टव्युक्ं, तथाच धूमल्ादिरूपरेतुतावच्छदक- धर्मानि विशिष्य निवेश्य तत्तद्रूपावच्छित्रहेतुकालुमित्यौपयिक- व्याधिनिवाच्ा महानसादौ धुम-वज्कयादिव्यभिचाराग्रहादङ्किला- दिना तत्तदूमत्वाद्यवच्छिन्ननिरूपिताया भाव पक्तोयधुमादिसाधा- रणधुमत्वादयवच्छित्रनिरूपिताया अपि व्यापकताया ग्रहसम्भवा- त्तदघटितव्यासेः TAHA ग्रहादनुमितिनिव्वाद इति ata: | न च सामानाधिकरण्यस्य व्याञ्चित्पक्ते हेतुव्यक्तिभेदरेन व्यािभेद- आवश्यक एवेत्यनुगतरूपैण हतुनिवेशो व्यथे इति वाचम्‌ । हेतुव्यक्तिमेदेन व्यासिभेदेऽपि अनुगतरूपेण हेतुनिवेगे धुमव्यापक- तादशावच्छेदृकताया व्यासग्यरत्तितासुपगम्य अवच्छरेटृकतापव्धाश्चिनिवेशेऽपि 4 तादशावच्छेट्‌कत्वाउच्छिद्धानुगताभावनिवेशननिव्वादहः खतुसमानाधिकरणा- भावप्रतियोगितावच्छेट्‌कतात्वख्ठर्पेण तथात्वसुपगम्य अतुगताभावनिवेशसम्भवेऽपि yaad वङ्केरिव्यादौ धूमत्वत्वाद्यवच्छेदेन ताटशावच्छेद्‌कत्वावच्छिन्नमेदसत्ाटति- प्रसङ्गादिति व्यासिवादः । ६१७ वह्किप्रतियोगिकधूमनिष्टसामानाधिकरण्यव्यतौनामनुगमात्‌ सामा- aaa udlagqfasaac प्रथमं अ्रनुगतसामाना- धिकरण्यत्वरूपव्यासित्वेन ग्रहसम्भवेनानुभिल्युपपत्तः तत्तद्क्ति- त्वेन डतुनिवेशेऽननुगमात्‌ सामान्यप्रत्यासच्यापि पन्लोयरेतुनिष्ठ- व्यापेव्यीसित्वेन दुग्रहतया श्रनुभित्यनुपपत्तेः, डेततावच्छेद- काखयाधिकरणत्समुपेच्य तदिश््टिनिरूपिताधिकरण्लप्रवेशप्रयो- जनमग्रे aaa प्रतियोगितानवच्छेदकत्वमाचेण साध्यताव- weafaan afsaafen वद्कित्वादिकमनवगाहमानात्‌ प्रति- योगि तानवच्छेदकवस्समानाधिकरणधुमवानिव्यादिन्नानादद्धिमा- नित्या द्यनुमित्याप्तिः स्यात्‌ । न चं्टापत्तिक्षम्भवः, कदाविदड्धि- त्न कदाविद्रव्यतल्ादिना बह्भयमनुमितिरिति नियमानुपपत्तः। न॒ चानवच्छदकत्वन तत्तदग््वगाददित्वमेव व्याभिग्रइस्यानु- मितौ विध्ेयतावच्छेद्‌ कलतया तत्तइश्भाननियामकमिति वाच्यम्‌| अनवच्छेदकत्वन afsatena द्रव्यलादिभानस्यापि प्रायशः सम्भवात्‌ एवं तत्तत्राध्यतावच्छेद कावच्छिन्नव्यभिचारितया हेतु- भानस्य डेतुसमानाधिकरसणभावप्रतियोमितानवच्छेदकलत्वमात्रेण तत्तव्ाध्यतावच्छद कावगाहिन्यािनज्ञानाविरोधितया विशिष्य साध्य- तावच्छ्दटकानवगादहिव्यासिक्ञानस्य ₹तुत्वे व्यभिचारस्य Far भासतानुपपल्तिश्चेति विशिष्य साध्यतावच्छटकस्य व्या्षि- घटकतालाभाय प्रतियोजितानवच्छेद्‌ कादच्छितरनेत्यनुक्ता प्रति- योगितानवच्छेदकौ यो घन्मस्तदवच्छित्रेनेव्युक्लम्‌। यत्र बह्कितत्वा- दिविशेषग्णवच्छिन्नस्य साध्यतावच्छेदकता ततर तेन र्पैणेव तद- OB eer पनुमानगादाधयथां माणां व्याप्तिधटकता यत्र च agua एव वङ्कित्वायखर्ड- WUT साध्यतावच्छेदकत्वं तत्रापि fanuaafseqaaea घटिततत्तदगस्मवदि तराहत्तितवरूपवङ्कित्वत्वादिना तच्रिवेशो नतु Bead एव, ्रनवच्छेदकत्वरूपविशेषणपुरस्कारेण भाने निर्बिश्र- षणकभानातमकस्य सखरूपलो भानस्यासम्भवात्‌ वङ्कपादरीतरात्ति- त्वस्य वह्कयादिमाच्रहत्तिधनम्मीन्तरसाधारणयेऽपि तन्माव्रपुरस्कारेण व्यापकतावच्छछेद कत्वग्रहस्यापि वड्कित्वा यवच्छित्रविषेयकानुमिति- हेतुत्वमुपेयते सकलवद्कय(दिहठत्तितविषयता निवेशे गौरवात्‌ सकलवङ्कगादिवत्तित्वस्य बद्भयादोतरव्रत्तिसाधारणतया तन्माच- प॒रस्कारेण व्यापक तावच्छेदकलत्वग्रहस्य न हेतुतासम्भवः तथा सति इन्धनादिदेतुनापि वद्धित्वादयवच्छित्रानुमितिप्रसङ्गात्‌ सकल- वज्कपादिठत्तिद्रव्यत्वादाविन्धनादिव्यापक तावच्छेदकत्वसत्वादुवङ्कि- त्वादिनिष्ठतद्दाक्तिल-धृमजनकतावच्छेद कजातित्वादेवङ्किलादि-- मव्रहत्तिल्वेऽपि तेन रूपेण व्यापक तावच्छटकत्वग्रहादद्किमानित्य- नुर्भितिरनुभवविरुडा येन रूपेणोपख्िते वह्कयारौतरसाधारणय- संशयो न जायते तत्पुरस्कारेण व्यापकतावच्छछदकत्वग्रहादेवोक्ता- नुमिव्युत्वादानुभवात्‌ ww ज्ञानत्वत्वानुभवलत्व्यापकगुणल- व्याप्यजातित्वयोरविशेषेण (१) ज्नञानत्दत्वरूपेण व्यापक तावच्छेद क- त्वगृहाज्‌न्नानवानयमित्यनुमितिन भवितुमरहंतीति दोधितिकार- वच्यमाणदूषणं प्रत्युक्तम्‌, अधिकमग्रे वच्यामः। तत्तदयक्तिसामाना- धिकरण्यं न तत्तद्याक्तिगमकताप्रयोजकं पन्वेतोयधुमे महानसौय- (१) अत्राविग्रेषत्वं aanaefaaat | satfaate: । ६१९ वङ्किसामानाधिकरण्यागृेऽपि ततः wad लाघवक्नानादिवशा- न्महानसौयवह्नमनुमितिरिति दशयति, ध्येन केनापौति ‘arafae- पितेल्याभ्यां, "तद्रृपविशिष्टस्य तदग्प्वच्छिन्रयावत्रिरूपिता व्याि- रिति तद्रूपावच्छित्रनिष्टा तद्रुपावच्छित्रयावदयक्िगमकताप्रयो- जिका व्यात्भिरित्यधेः, sarge एकसाध्यव्यक्तिसामानाधिकरणय- स्यपरव्यक्तिप्रतियोगिकत्वासम्भवेनासङ्तेः | अरनुमानदोधितिः। दण्डादौ साध्ये परम्परासम्बहं दण्डत्वादि कमेव साध्यतावच्छटकमतो नाव्याप्तिः | गादाधरो faafa: | यत्क कसाध्यतावच्छेदकव्यक्तिने सकलहेतुमदन्तितावच्छ- दिका ततरानुगतरूपावच्छिन्नेनापि तेन रूपेण न atenza- व्यापकतासम्भवः सकलसाध्यतावच्छेदकव्यक्तोनामेव चालनो- न्यायेन ₹हेतुसमानाधिकरणतत्तदाक्यवच््छित्राभावप्रतियोगिता- वच्छेदटकत्वादित्याश्ड्मामिष्टापचया परिहरति, ‘ewrerfafa, परम्मरासम्बदमभिति सखसमवायिसंयोगादिसम्बन्धन साध्यसम्बद्ध- मित्यथेः. एतच्च साध्याहठत्तितया द रडत्वादेनं व्यापकता वच्छेद कत्व- सम्भव दत्याशङ्मनिरयाकरणाय, साध्यतावच्छेदकं' दण्डिसंयोगत्वा- दिरूपनानाधिकरणत्तस्ि ता वच्छछेद कावच्छिब्रहेतुव्यापकतावच्ेट- कभित्यथंः (१) । एवकारेण दण्डादिरूपसखण्डधन््रव्यवच्छेद्‌ः, (१) दर््डिसंयोगादिरू्पनानाधिकरणटत्तितावन्छेदकावच्छिन्रहेतुव्यापकता- ६२० अनुमानगादाघयां तथाच aq प्रतियोगितानवच्छेदकलत्स्य दुरुपपादत्वेऽपि न क्षतिः | दण्डत्वाद्निव प्रकारेण तद्ेतुकदण्डगादयनुमितेरुपगन्तव्यत्वात्‌ | व्यापकता वच्छद कत्वश्चमादेव दर्डादिप्रकारकदण्डयनुमितेरुपग- मात्‌ | स्वा्यघटितपरम्परासम्बन्धेन यदग्र व्यापक तावच्छदकत्व- ग्रदस्तदिशिष्टघभ्िप्रकारेण सामानाधिकरखप्रतियो गितया साध्या- anfzatfausaa वा तदविगिष्टदण्डादिरूपधम्पिंणोऽनु- मितिविश्ैवतावच्छेदकताप्रयोजकल्नोपगमेन दण्डिमानित्याकार- कानुसितेभ्वेमणून्यतादशायां निव्धाद्यलादिति भावः | 4a महा- नसोयत्वादि सहितव्किलवादेधूमादिमजिष्ठाभावगप्रतियोगि तावच्छेद- कत्वेऽपि शद्धवद्किवादिरूपसाध्यतावच्छदटकस्य तादटश्प्रतियोगि- तानवच्छेदकत्ववत्‌, तत्ताविशिष्टदर्डस्य तादृशप्रतियोगिताव- च्छेद्‌कत्वेऽपि द्र्डत्ादयवच्च्छिन्नस्य ताद्टशप्रतियोगितानवच्छेदक- AA सुघटतया तस्य व्यापकतावच्छटकत्वानुपगमो न सङ्गच्छते | न च तद्‌र्ीनास्तोति बुद्धौ तत्तोपलच्ित एव दण्डे प्रतियोगि- तावच्छद कत्वपय्धयािभासते न तु तत्तामन्तभाीव्य तत्तोपलच्ित- व्यक्तरेवानतिप्रसक्ततया तत्तांशस्यावच्कदकान्तर्भावे मौरवादतो- विशेष्यस्यावच्छछेद कत्वपर्याष्यधिकरणलया दर्डत् विशिष्टस्यापि तस्यानवच्छेटकलवं दुघटं(१) महानसौयवङ्कपरादयभावप्रतियो गितायां ——_——$——— `` ‡ ``] बब ब {-ब-्‌-्‌ब्‌ब्‌ब्‌ब्‌ब {ब~ ~~~ द तुव्यापक तावच्छेदक मित्यत्र हे तावन्वयः। (१) विजेष्ष्टत्तेविशिष्टातुयोशगिकाभावानभ्यपगमादिति भावः। वह्कित्वाट्‌रति प्रसक्ता तन्मा $ वच्छदटकताप्रयाह्यसम्भवेन महा. [1 aifaate: । ६२१ नसौयत्वादेरवच्छेटकान्तभाव waa इति शुद्धवङ्कित्वादेस्ताटश- प्रतियो गितानवच्छदकत्वं सुघटमिति वाचम्‌ । स्ररूपतो भास- मानस्मैव स्वरूपतोऽवच्छेटकतायाः सिद्वान्तसिद्वतथा सखरण्ड- US दण्डादेः सखरूपतोऽभानात्तस्य सखरूपतोऽवच्छेदकत्वा- ayaa दर्डत्वादि विशिष्टस्य चातिप्रसक्तत्रन तत्तादिरूपविशेषण- मनन्तभौव्य तच्रावच्ेदकत्वपय्धाेरयोगात्‌ । अ्रभावप्रतियोगि- तावच्छेदकलया भासमाने उपलक्षणोभूतघम्म्न्तरभानोपगमे उपलक्षणतया दण्डत्वमाचं तत्तद्‌ ण्डावच्छिन्नाभावप्रतियोगिताव- च्छेदकतया भासमानतत्तदण्डांगे विषयीक्लत्य दण्डिमति दण्डो- नास्तोति प्रत्ययस्य दुव्वारत्वाच | श्रच कौचित्‌ उक्तानुश्येनेव ‘ewn- दावित्यादिपददयोपादानं तेन च (१) परथिवोत्वव्याप्यजातिलरा- दिना अनुगतोक्लत्य घटत्व-परटत्-रुत्तिकात्व-पाषाणत्रादिमतः सम- वायादिना एथिव्यादिहेतुकसाध्यस्य ताटटशजातित्वादटृख परिग्रहः | समवायादिना हेतुभूतण़थिव्यादिमति तन्तु-कपालादौ विशेषणा नवच््छिन्र-घटत्व-पटल्रादयवच्छिन्नाभावस्य सत्वात्‌ सव्यैस्ेवे साध्यतावच्छछेदकतादटशजातिषु तथाविघाभावप्रतियो गितावच्छेद- RAIA A व्यापकतावच्छेदकत्वासम्भवेन तदनुगमकोक्त- धर्मस्येव परम्परासम्बन्धेन तथा त्वो पगमस्यावश्यकत्वादित्या हः la: Tey तु तद्ण्डवात्रास्तोत्यादौ प्रतियोगिविशेषणतया भासमान- दण्डादिष्वेव प्रतियोगितावच्छेदकत्वपयथासिर्भास्तते तदिशेषण- तत्तादौ. तत्तद्‌ वच्छेद कतावच्छेद कत्वमेव प्रतियोगिताव्यधिकरणस्य (१) बादिपद्ाभ्याश्चेतिषाण। a ६२२ ्रनुमानगादाधययां तद्वच्छेदकलत्वासम्भवेन तदन्तभावेन तदवच्छछदकतापर्य्याष्यसम्भ- वात्‌ । न चानवच्छिव्रावच्छटकत्वरूपं रूपतो ऽवच्छछद कत्वं निवे- शनोयमिति aaa | तत्तत्‌सखर्डसाध्यतावच्छेद क कव्यभिचारिण्य- तिव्याप्ेः (१) | Wat तदण्डाटेरनवच्छेद कत्वं दुघटं.२) महानसोय- वद्किनास्तोत्यादौ च महानसौयत्वादेः प्रतियोगिन्येव विशेषणतया भानात्‌ तदन्तभवेनैव प्रतियोगितावच्छेदकत्वपय्धासिभासल- दूति fang: । श्रध वङ्कित्वादयंश एव सामानाधिकरख्य सम्बन्धेन विगरेषणतया महानसौोयत्वादिकमवगादमाना महानसौयतव- विशिष्टवद्कित्ववात्रास्तौत्याकारिका प्रतोतिः तस्या उक्तयुक्या (३) वद्कित्वाटेरेव प्रतियोगितावच्छेदकलत्वपय्यासिविषयकतया वद्धि त्वादेरप्यनवच्छेदकत्वं guzaa स्यात्‌, यदि च सामानाधि- करण्यसम्बन्येन मदहानसौयत्वादेस्तदवच्छेदकतायामवच्छेदकत्वे मौरवान्मदानसौोयत्वादिस हितस्य afeare: प्रतियोगितावच्छे- दकत्वं उक्तप्रतीतिसु कम्बगोवादिमात्रास्तोति प्रतो तिवद वच्छ दकतावच्छेदकलत्वांओे श्रमरूपेवेत्य्यते (४) } तदा यत्र सामाना- सिकरणयसम्बन्येन महानसौोयत्वादिविखश््िस्य वह्कित्वाद्‌ः साध्य- (१) तथाच दृर्डादिसाध्यकव्यभिचारिर्यतिप्रसरक्रिभयेनानवच्छिन्नावनच्छेट्‌- कत्वनिवेशायोग दरति भावः| (२) अनव च्छिच्नावच्छेटकत्वमेव च Weve तत्खर्डे नास्त्येव खतो दण्डाद्‌ रनवच्छेट्‌कत्वं cuzfafa UTo | (३) प्रतियो गिताव्यधिकरणस्य प्रतियोगि तावच्छेट्‌कत्वारुम्भवयुक्तया | (४) कम्ब॒पीवादिमान्नालोतिप्रतीतियया प्रतियोगिता वन्देदकलत्वांशे भ्रम- GUl तयेत्यय: | व्यात्चिवाद्‌ः | ६२२ arena तत्खखलोये व्यभिचारिणि धूमादिहेतावति- व्या्िरिति सखविशिष्टसम्बन्धिनिष्ठत्यादिना faataa पारि भाषिकमेवावच्छेटकत्वं निवेशनोयं aq aqui यादृशस्य खपदाथंस्य प्रवेशस्ताटृशतवं, एवञ्च मद्ानसौयत्वादिविशि्टस्य afealtwa सखपदेनोपादानसग्भवात्‌ विशिष्टवङ्किलत्वादिक- मैव पारिभाषिकमवच्छटकत्वं तदवच्च्छित्रमेदश्च शदवदह्ित्ादावपि दुघेटः, तथाचावच्छेदकं यादृशं खं ताहृशविरिष्टाविषयकप्रतीति- विषयत्वमेवानवच्छटकत्नपटेन विवत्तणोयं तथाच सति सखण्डस्य दण्डादेः सखरूपतोऽभानात्तत्तादि विशेषण वि शिष्टस्ये वाव च्छेद क- लक्षणस्यस्वपटेनोपादेयतया तददिशिष्टाविषयकप्रतोतिविषयल्वस्य दण्डत्वादि विष्टे सुघटत्वात्‌ व्यापक तावच्छछेदकत्वमनव्याह तमेवेति aa, पारिभाषिकस्यावच्छेदकत्वस्य सखत्वघटितत्वेनाननुगतस्या- भावक्ूटज्नानासम्भवेन प्रतियोगितायाः खरूपसम्बन्धरूपावच्छेद- कत्वस्यागत्या गुरुधस्मसाधारणयसमुरोक्लत्य anifaaat तदेव हि निवेथनोयम्‌, एवच्च (१) सामानाधिकरणखसम्बन्धेन महानसौय- त्वादि विशेषणावच्छित्रस्य वज्कित्वादेहेतमव्रिष्ठाभावप्रतियोगिता- वच्छद कत्वेऽपि (२) महानसोयलादिविशिष्टनिरूपितसम वाथादेरेव- प्रतियो गितावच्छेदकताघटकसम्बन्धत्वं तत्रोपैयं शदसमवायादिना (१) गुरुघम्परैखखयाभावप्रतियो गिता वच्छेटकत्वे चेत्य; | (२) सामानाधिकररयसम्वन्धेन मदानसौोयत्वादिविशि्टवङ्धित्वार्बच्छिन्न- वद्कय्राटिषाध्यकव्यभिचारिण्यतिव्याप्िवारणाय safafaeq प्रतियोगिताव- चेदकत्वमवग्यमङ्गोकत्तव्यमिति भावः। ९६२४ नुमानगादाधय्यौ बह्कित्वादेरतिप्रसक्तत्वात्‌, शदसम वायाटेस्तत्रावच्छेदरकतावच्छेद्‌- कत्वे महानसोयत्वादिसामानाधिकरखो पलल्तितवङ्धित्वा यव च्छि- त्रभावात्‌ तददिशिष्टवङ्कित्वा दावच््छित्राभावस्य वेल्षण्यानु पपत्तेश | तथाच साष्यतावच्छछेटकताघटकश्इसमवायादिना अ्रखर्डवह्भित्रा- देरनवच्छेदकलत्वं न eae (१) | न च महानसोयत्वादिसामाना- धिकरण्यस्य यतो पलक्षणता aa तस्यावच्छटककोटौ न प्रवेशः aa विशेषणत्वं तत्र प्रवेशः, इत्यत एव बेलक्तण्यमिति वाचम्‌ । उपलक्तणौभवत्त त्तदपावच्छित्रप्रतियोगितावच्छदकताकाभावनबुदा- वपि तत्तदूपस्य प्रतियो शितावच्छेदकांशे प्रकारतया भानात्‌ तच्राव- च्छेद कतावच्छेदकत्वभानस्यावश्यकतया श्रवच्छेटकशरौराप्रवेश- रूपोपलक्तणताया उपलत्तणविधया अवच्छेदक तत्रासम्भवात्‌ | यदुपलक्ितनिरूपितसमवायादेरवच्छेदकताघटकसम्बन्धत्वं तस्यो पलक्षणतयावच्छेदकत्वं यदिशि्टनिरूपितसमवायादटेरवच्छदकता- वच्छेट्‌कत्वं तस्य॒ विशेषणविधया ्रवच्छेदकतावच्छेदकत्वभित्य- स्यैव विशषत्वात्‌। एकत्वप्रागभावविश््िवटादेः (२) संयो गादि- सम्बन्धेनाभावस्य प्रतियोगितायां अरप्रसिदतया (३) विशिष्टनिर्- पितसंयो गादेरवच्छेदकत्वःसम्भवेनागत्या विगेषणशविधया प्रति- (१) साभ्यतावच्छेद्‌कताघटकसंसगांवच्छिच्नावच्छट्‌कत्वाभावस्य लल्तणघटकत्वा- fefa भावः| (२) नन्वेवं बिशिषटसन्तावान्‌ जातरित्यादौ प्रतियोगितावच्छेद्‌कावञिच्न- onefaerfufaant विर्ष्येत aq प्रितयोगितावन्छेट्‌कोभूतविशिष्टनिर््परित- समवायेन प्रतियोगिनो युणादावनधिकर णत्वादित्यत are, एकत्वेत्यादि | (३) प्रतियोगितायां व्यावत्तेकतर्येवि पा | ` "स > व्याञ्चिवादः! | ६२१ यो गितावच्छेदकत्वमिव्यन्ययेव वैलक्षण्यस्य (१) उपपादनोयतया ष्ब्समवायादेरेव विशिष्टसन्तादयभावप्रतियो गितावच्छेद क सम्बन्ध- तया तादशणभावस्य तादटशसम्बन्धेन प्रतियोगिसमानाधिकरण- तया दोधितिक्षतां प्रतियोगितावच्छेटकविश्््टिसामानाधि- करणयपय्यन्तव्याहत्तिसङ्गतिः । मा qe विशिषटटनिरूपितसम- वायात्लादिना प्रतियोगितावच्छेदकतावच्छेदकसम्बन्धता तथापि महानसौयलादिसामानाधिकरणयोपलस्ितवद्किलादेस्तदि शिष्टव- ह्िलादेश्च प्रतियो गितावच्छेदकतयो्वेलक्षणयं, श्राया तदश वच्छित्रविगेष्यप्याप्ा, अनन्या च विशेष्य-विशेषणभावापन्नरयो- aa-ufatied: पथ्यासेव्येवं Dada, तावतापि अखण्डस्य शदवह्कित्वादेर्हेतुमन्निष्ठाभावप्रतियो गितानवच्छेदक- त्वसुपपद्यते धन्चान्तरोपलच्ितवङ्कित्रायवच्छछिन्राभावस्य धृमादि- मव्यहत्तेः विशिष्टवद्ित्ादयवच्छिन्नाभावप्रतियोगितावकच्छेदकता- याश्च॒ विशेष्य-विशेषणान्तभाीवेनेव wank: ) तत्तोपलक्तित- दर्डावच्चछिन्रप्रतियोगिताकडेतुमब्रिष्ठाभावप्रतियोगितावच्छेदकता च तत्तावच्छिन्रश्डविशेष्य एव पय्याप्ता साध्यतावच्छेदकता- घटकश्द्संयोगसम्बन्धावच्छित्रा चेति तादश्सम्बन्धेन cwe- स्तादटशाभावप्रतियोगितानवच्छेदकतवं दुरुपपादमिति WARS fafa वदन्ति| वस्तुतो गुरुधन्धस्य प्रतियोगितानवच्छेद कत्वे पारिभाषिका- (१) आगत्या विशिष्टाभावप्रतियोगिता विशेषखान्तभाषेन पर्याीप्रा उपलल्तिता- भावप्रतियोगिता suafaa विशेष्य एव इयेवं बेलन | oT ~ ६२६ अतुमानगादाधयां बच्छट कत्वं निवेशनोयं तच्छरोरे यादशं खं निविष्टं arena भदनिवेथे वद्धित्वादौ विशि्टवद्ित्वादिभेदासच्चेन तादश- ताह शघम्मी विषयकप्रलो तिविषयत्वं निवेशनोयमिति मौरव- मतः प्रतियोगितावच्छेदकं arenatened खविशि्टसम्बन्धि- निष्ठाभावप्रतियोगि तानवच्छेद क तत्त्वरूपं तत्तदतिरिक्रत्तिल- मेवानवच्छद कान्तन विवत्तणौयं तथाच सरव्वासाभमेव दरण्डादिव्य- कोनां हेतसमानाधिकरणाभावप्रतियोगितावच्छद कतया कस्या- facfa दर्डादिव्यक्तेन यावत््रतियो गिता वच्छेद काति रिक्तठत्तित्वं स्वस्य स्रातिरिकाठठत्तित्वविरहात्‌ इत्यखण्डधम्भस्य व्यापक- तावच्छेदकत्वानुसरणम्‌ (१) | एतच्चेकोक्यभिप्रायेण यथाखुतमूल- लक्तणसुपपादयित्‌ साव्वभौमप्रतिमतमनुदत्य | एकोक्तवनादरे तु अनुगतरूपेण नानाव्यक्तिविघ्ैयतावच्छेदककानुमित्योपयिक- व्यासियदूपावच्छित्नमनवच्छेदकं यद्रूपं वा प्रतियोगितावच्छेद- कतानवच्छदकं तद्रूपविश्िष्टावच्छित्रसामानाधिकरण्यं तद्रूप विगिष्टावच्छित्रनिरूपिता व्यािरिल्येवं रीत्या निव्यैचनोया, तथा सति दण्डिसंयोगादिहेतुकापि -दरख्डिमानयमित्याकारि- कानुमितिर्विंशेषदर्जिनामपि faaefa, एवभमेकोक्या प्रति- यो गिताधर्िकोभयाभावघटिताया ग्रन्यकारेण - सखयसुपदशं- नोयाया व्यापतेरपि दशर्डत्वादिविशिष्टदण्डाद्यवच्छित्रनिरूपितत- faate:, डेतुसमानाधिकरणविगेषाभावप्रतियोगितायां दर्डत्व- एधिवोत्व्याप्यजातित्वादि वि शिष्टावच्छेदयत्वाभावस्याव्याहतलात्‌ (१) प्रतियोगितानवच्छेदकत्वाच्चसरणभिति ate | व्या्धिवादः । ९२७ दश्डयादिसामान्याभावप्रतियोगितायामेव agafafacfaefaa- विलक्षणा वच्छदययतासत्वादिति ष्येयम्‌ | अनुमानटोधितिः। इत्यञ्च Fea गुण-कम्भ्ान्यत्वे सति सच्वादि- at सचचायधिकरणगुणादिनिष्ठालन्ताभावप्रति- योगित्वेऽपि द्रव्यव्वादेः wane: साधनस्य विशिष्ट सच्वादेगंणादावहत्तेः, सामानाधिकरण्यव्यक्तौनां I $पि निरूपकतावच्छेद कस्याधिकरणतावच्छेट्‌ कस्य चै- क्यादापेरेकयं, वस्तुतस्तु धूमत्वादिविशिष्टव्यापकवद्कि- सामानाधिकरण्यस्य रासभादिसाधारणववाद्ुमलादि- मति तादशसामानाधिकरण्यं तदति धृमत्वादिकं वा व्याधिः, आद्या भिन्ना दितौया afaaafa ध्येयम्‌ | अयं कपिसंयोगो एतद्त्वादिल्यादिसंग्रहायासमा- नाधिकरणान्तम्‌ | गादाधरो faafa: | इलयति डतु तावच्ेटकोपनचितडेतुसामानाधिकरण्य- साघारणरूपसुपेच्य विशिष्टसामानाधिकरणयत्न सामानाधि- करण विशिषनिषेशनेन wes, ‘arutfafefa न विशिष्ट सत्तातलरूपहेतनावच्छेदक विशिष्टवेथिष्यावगादिन्नानजन्यानुभि- ६२८ अनुमानगादाघधथां त्यौ पयिकव्यास्यनिव्वाह इत्यधेः, तेन विशिष्टसत्तातवाशयुपलक्तित- हतमत्तान्नानजन्यातुमिव्यौपयिकव्यापौ तु तदुपलक्ितहेत्‌- सामानाधिकरणयरेव feat, अतो द्रव्यल्ादययभावे ate डतुसामानाधिकरणयस्वात्‌ ताटटशेतौ न द्रव्यतवादेर्व्याधिरित्य- श्वान्तस्यापि गुणादौ विशि्टसत्तात्वाद्यपलत्तितरेतुमत्ताज्ञान- सम्भवेऽपि न तत्र॒ द्रव्यतलादयनुमित्यापत्तिरिति नासङ्गतिः। यत्र घट-पटहत्तिस॑यो गत्वादिना Sqar, घट-पटादयन्यतरत्वं साध्यं तत्रोभयठत्तित्वविशिष्टाधिकरणाप्रसिद्धया ईतुतावच्छेदकोपलचित- हेतुसामानाधिकरखयगभं व्याश्यन्तरं Gawd अन्यथा तड- तुकतल्लाध्यकानुमिल्युच्छेदप्रसङ्गात्‌ | ताटृशव्याष्यन्तरानभ्युपगमे सादृश्यहेतुकानुमितिरप्युच्छिद्येत तद्धेदसामानाधिकरण्यसहित- तह ्िधस्चत्वरूपसादृश्यवविशिष्टाधिकरणाप्रसिद्धया विशि्टाधि- करणतागभव्याष्यसम्भवात्‌ | एवं व्यतिरेकव्याभिरपि हतुताव- च्चेदकविशिष्टवेयधिकरण्यघटिता तदुपलक्तितवैयधिकरख्यघटिता चावश्यसुपेया अन्यथा एकव्यक्िसमवेतेत्यादयनुमितिलक्षणस्यानु- मितिसामान्ये इतरमेदानुमापकल्वानि््बाह्ात्‌। न च तत्र विशिष्टवेयधिकरखग्भव्याधिरम्यस्तौति fat व्या्छन्तरेशेति वाचं | ताहशव्याक्चिविषयकस्य विशिष्टहेल्धिकरणतागभ पच्घ्मतानज्ञान- स्येव डेतुताया विशिष्टसत्ताडेतुकगुणादिपक्तकगुणाद्यनुमित्या- पत्तिभयेन खोकर णौोयतवा तत्स्वी कार स्यावश्यकलत्वात्‌ । अन्यथा एतद्क्तिंसमवेतत्वघटितदतुतावच्छ्दकविशिष्टस्य भागासिद्या अनुमितिसामान्ये तदिशिष्टवैशिष्चावगाद्िप्रमात्मकपरामर्शस्या- व्याप्चिवादः | ६२९ सम्भरवादटसमच््रसम्‌ (१)। wad विशिष्ट वेशिच्चावगादिन्ञाने विशि्ट- निरूपितसमवायस्य सम्बन्धतया तेन सम्बन्धेन व्यािर्हेतुतावच्छे- दकसम्बन्धेन डेतुम खस्याग्े विवक्षयैव निव्वेहतौति कथमत्र विशि्ट- पदोपादानम्‌ । न च विशिष्टवेशिच्यवोध विशिष्टनिरूपितसमवाय- त्वादिना न fatuwaaaa अपित्‌ ge एव समवायादिविशे- षणसम्बन्धः सव विश्ि्टिनिरूपितसमवायादिस्ु विग्रेषणतावच्छेदटक- सम्बन्धः इति मताभिप्रायेषेदं तथाचोक्तस्यले हतु ता वच्छेदक- सम्बन्धः शडसमवाय एवेति डतुतावच््छेद कसम्बन्धमात विवक्षया न प्रतोकार इति वाच्यम्‌ । हेतुतावच्छेदकविभिष्ट वैगिच्चावगाहि- ज्ञाने हेतुतावच्छेदकस्य पक्ते परम्परासम्बन्भाननियमे व्यापकता- शरोरघटकाभावाधिकरणेऽपि तदौयतादशसम्बन्धस्य निवेशित- ल्लात्‌ तत एव faa: पत्ते साध्यानुभितिनिर्व्वहे विशिष्टत्ेन सच्वादेदेव्यत्वादिव्यातिखखौकारस्य निरथ॑कताप्रसङ्गात्‌। न च efaadat विशिष्टव्यापकताग्रहस्य विशेषणव्यापकतावगादहि- त्वेऽपि विशिष्टे पक्तधर्मताग्रहस्य विशेषणे तदवगादहिल्वेऽपि च विशिष्टेतुकपराम शस्य विशेषणे साध्यसामानाधिकरण्यावगादहिला- नियमात्‌ न विशेषण्डेतुकानुमितिसामग्रा विशेत कानुमिति- पूव्वमावणश्यकता इति वाचम्‌ । साध्ये विशिष्टेतो्व्यीपकताग्रहे ऽपि fafucea साध्यविरोघग्रहसच्चऽनुमित्यनुत्मच्या विशिष्ट हेत्‌कस्थले विशिि्टाधिकरणएत्वघटितदहेत्‌-साध्यसामानाधिकरण्य- ` (१) रवं व्यतिरेकव्याप्निर पत्या टिः “असमञ्जसमित्यन्तः पाठः बद्धुं अदश waaay नास्ति । ६३० अनुमानगादाधयां विषयकस्येव परामशंस्यानुमि तिदहेतता वाच्या, weet विरोधस्य जनकन्नानाविरोधितया हेत्वाभासतवस्य दुघेटत्वप्रसङ्गात्‌, साध्यवति विशिष्टडैत्धिकरणत्वभाने च विशेषणपरम्मरासम्बन्धस्यापि aa भाननियभेन विशिष्टहेतुकपरामभेस्य नियमतो विशेषणेऽपि साध्यसामानाधिकरण्यावगाडित्वात्‌ | मेवं, विशिटनिरूपितव्याप- कताशरौरे विशेषणस्य धरिपारतन्त्मणेव विशिष्टाधिकरणे विशे- षणतया प्रवेशः न तु खातन्त्ेण तथाच तदृ ग्रहे न विशेष णव्याप- कतावगादित्वनियमो faasfa विश्रेषणनिरूपितव्यापकताया- स्त त्रिष्ठाभावप्रतियो गितावच्छछेद कत्वत्वपयथाप्प्रतियो frase कताकाभावघटितत्वात्‌, विशिष्टवत्निष्ठाभावप्रतियो गितावच्छेद- कत्वरूपगप्रतियोग्युपरागीणाभावभाने च विश्िष्टवत्तान्तगतविशे- प्यवत्वपरित्यारीन विशेषणवनत्निष्ठाभावप्र तियो गितावच्छेद क त्वत्वे पयातिभानासम्रवात्‌ अ्भावप्रतियोगिप्रकारघटकस्योपलक्तण- विधया भानानुपगमात्‌। न च परम्परासम्बन्धेन विशेषणनिष्ठ- व्याश्यवगाद्दिपरामरनिष्टकारणताया उभयवादिसिदत्वात्‌ विशिष्ट- डेतुकपरामशोन्तरकारणत्वाकल्यनप्रयुक्तलाघवानुरोधेन विशिष्टस्य व्यात्िग्रहस्यलेऽधिकरणे सखातन्ोपण विशेषणवत्वभानसुपगम्य विशेषणेऽपि व्यात्तिभानं कल्यनोयमिति वाचम्‌ । शब्दाधौन- विथिष्टवत्वगभव्यासिग्रहस्यले स्वातन्तेमणए विशेषणवत्व गभ- व्यािभानानियमात्‌, ताहशव्यासिवोधकशब्ट्स्य सखरातन्ताण विशेषणवच्छाभास कत्वात्‌ | श्रथ तत्र तदुत्तरं विशेषणे मानस- व्यापिग्रह एवानुभित्यधं wart तत्कारणतायाः क्र्षललादिति satfaate: | १३१ चेत्र, एवं सति टर्डादुपलसितधरिहेतुकालुमितेविंलयप्रसङ्गगत्‌, तद्धेतुकव्यासिग्रदस्यले परम्परासम्बन्पनोपस्ितदण्डादौ व्याभि- गृहस्य कल्मनसमभवात्‌ । सखातन्तोपण सकलपरम्मरासम्बन्धघटित सकलविशेषणवच्छग्रहस्याप्रामाणिकतया विशेषणेतुकपरामभेस्य कारणतायाः ज्ञु ्त्वानियमाच । ननु वङ्किसंयोगिसंयोगायामक- साध्यसामानाधिकरण्यस्य व्याधिते (एकव fe a व्यािरिति मूलग्रन्यविरोधः, महानस-पन्वेतादिनिष्टधूमादि गतवद्धिसंयोगि- संयोगादेरक्यासम्भवादित्यत sie, (सामानाधिकरण्यव्यक्तोना- fafa, भेदेऽपोति, अधिकरणमेदेन धूमादिमेदेन चेव्यादिः, निरूपकतावच्छेदकं वह्ित्वादिरूपसाष्यतावच्खेदकं धूमलवादिरूप- डतु तावच्च्छेद कं, Tare’ साध्य-हेतुमेदेऽप्यभेदात्‌, तदमेदतात्सर्य्येण एकल्वव्यवह्ार CAT | ननु लक्षणया तद्धयवहारसमथनमसङ्गतं सामान्यप्रत्यासल्यभावपक्ते विशिष्टपरामशनिव्धाहाधं व्याध्येक्यकथ- नात्‌, afaaree (१) सामानाधिकरण्यस्य व्यासिते धूमलवादे- रेक्येऽपि पत्तोयधुमादिनिष्टखामानाधिकरण्यस्य सामान्यप्रत्यासत्तिं विना Ga ग्रहासम्भवैन तत्स्मरणासम्भवात्‌ पत्नौ यधुमे तदुपनया- सन्भवेनायोगादतिप्रसङ्गन (२) धूमादिव्यपकवच्कयादिसामानाधि- करण्यमावरस्य व्याित्वासम्भवात्‌ धूमलरादि रूपहेतु तावच्छेदकस्य fan व्यासिशरौरप्रबेशस्यावश्यकलत्वं दयन्‌ व्यासेमंदममेदच् दथे- यति, "वसतुतस््ित्यादिना, प्रथमपक्तप्रद शनं तत्पक्ते धुमत्वत्वा् प्रवै- (१) अयो गादि्युत्तरवत्तिना अखान्वयः। (२) wat विना राषभादिलिक्गरुबह्भयमनुमित्यापन््या चेतव्यः | १२२ अनुमानगादाधय्यां शाल्लाघवेन (१) सामान्यप्रत्यासत्िपक्ते तज्‌न्नानस्येवानुमि तिहेतुत- fafa सूचनाय । रासभादिसाधारण्यादिति, तत्साधारण्ये च aa विनापि रासभादिलिङ्कवह्छप्ादयनुमानापत्तिरिति ara: 1 अय व्यापक ताप्रविष्टहेतुतावच्छेद्‌ कधग्पितावच्छेदककसामानाधिकरण्य- प्रकारकनज्ञानस्येवालुमितिदहेतुत्लोपगमान्रायमतिप्रसङ्गः धूमत्वादि- प्रकारेण भासमाने रासभादौ साध्यसामानाधिकरणयग्रहस्यं धुमत्वाद्यंशे श्रमत्रनियमात्‌ वच्यमाण्धूमत्वादिमन्रिष्ठवज्कयादि- सामानाधिकरण्यस्य व्याित्वेऽपि तदग्िंतावच्छछेदकतापन्रहेतु- तावच्छद कविशिष्टवत्ताज्ञानस्य हेतुताया अ्रवश्योपेयत्वात्‌ नन्यथा विश््टिसत्तादिव्यापकद्रव्यत्रादिनिरूपितविशिष्टसत्तादिनिष्टसामा- नाधिकरण्यो पलक्तितवत्तान्नानादुगुणदिरूपपत्तेऽश्रान्तस्य दव्यतला- दयनुमानापत्तेः। साध्यसामानाधिकरण्यविशिषटवच्चस्य पत्ते साध्य- निश्चयं विना दुनिश्चयतया तदुपलच्तितवत्तानि्चयस्यापि अ्रनुभिति- हेतुताया उपगन्तव्यत्वात्‌, केवलसामानाधिकरश्यप्रकारेण qa- धन्मतान्नञानस्यानुमितिहेतुले धुमाभाववान्‌ wa इत्यसिदिग्रह- दशायामपि साध्ये घुमव्यापकताज्ञानादथ्यनुमित्यापत्तञ्च अ्रसमान- प्रकारकतया धूमाभाववान्‌ पत्त इत्यादिवुदेधूमहत्तिसामानाधि- aware पक्त इत्यादिज्नाना विरोधित्वादिति चेत्‌, सत्यं, “घूम alfeafa सामानाधिकरण्यमित्यस्य धुमल्वादिविशि्टविगेषणता- पत्रं सामानाधिकरण्यमित्ययः, न तु धूमादिहठत्तित्वविशेषितं eee (१) कारखतावच्छेटककोटावित्यादिः, धृमव्यापकवद्किसमानाधिकरणधूमवानु Vad दत्याकारकपरामश्खयेवात्र पत्ते कारणत्वादिति भावः। व्या्िवादः । 222 aaraifiacafafa तथाच रएकधस्िविशेषणतापन्नं धृम- लादिरूपहेत॒तावच्छदक साध्यसामानाधिकरखोभयं व्याभिरिति पय्यवसितं, कारण्यं घूमव्यापकवह्किसमानाधिकरणधूमवान्‌ पन्वैत इत्यादिरेव परामशः तावतेव च उक्तोभयस्य ईतुविगेषण- तया अनुभितिजनकन्ञानविषयत्वरूपव्याभित्निव्वाहः 1 दितोय- पत्त च धूमव्यापकवद्धिसमानाधिकरण्ढत्तिधूमत्ववबुमवान्‌ ua: दति ज्ञानं हेतुन तु खरूपतो धूमल्राप्रकारकं तादशधूमल्ववच्ान्‌ UA इत्याकारकं तादटशज्नानस्य धूमाभाववान्‌ पक्त इत्याकारक- घूमल्त्वाद्यप्रकारकासिदिन्नानाप्रतिबध्यत्वात्‌ । एतन्मते च हेत्‌ तावच्छेदकषच्यसाघारणघन्धावच्छिन्रे साध्यसमानाधिकरणा- हत्तित्रमेव विरोधः न तु हेत तावच्छछद कावच्छित्रे साध्यासामा- नाधिकरस्यं, उपदशितज्ञानस्य हेतुतावच्छेदकं घम्ितावच्छेदकौ- कत्य साध्वसामानाधिकरखानवगाहितया तघाविधन्ञानाप्रतिबध्य- त्वात्‌ । यदिच विरोघस्यानुमिति प्रति साक्षादिरोधितया हेला- भासत्वसुपपादयित्‌ं शक्यते तदा समानाधिकरणठत्तिलवांे निधि. तावच्छेदकं समानाधिकरणठत्तिमदुमवान्‌ पव्वैत इत्येतादृणमपि ज्ञानं हेतुरुपेयते अन्यथा धुमल्ल्लादिविषयतायाः कारणताव- च्छेदककुलिप्रवेशे गौरवात्‌, सामानाधिकरण्यप्रकारकत्वापेत्षया समानाधिकरणव्र ्तिप्रकारकत्वस्य गुरुत्ेऽपि सामान्यस्याप्रल्या- afaa विशिष्टपरामणशनिव्वैद्ानुरोधैन तेन रूपण हेतुताया- अगल्योपगमात्‌ । “रायाः इतुतावच्छेदकध््यसहितसाध्वसामा- नाधिकरणखरूपा, भिनति, प्रतिधूमादिकमिल्यादिः 1 दितौयाः Go 228 अनुमानगादाघयां साध्यसमानाषिकरणठत्तिहेतुतावच्छेद करूपा, अभिन्ना' सन्वेधुम- साधारणो, अनुगतर्ूपावच्छछित्रनानाव्यक्तिदर्डादिविश्ि्टहेतुक- स्थलेऽपि परम्मराखम्बडदर्डत्वा य खर्डधग्य एव डेतुतावच्छद क- उपगन्तव्य इति भावः । यद्यपि साध्यसामानाधिकरण्यावच्छदक- रूपवच्यमाणव्यास्यभिप्रायेणापि "एकव etter: सङ्गच्छते, तथापि खयं aq खरूपसम्बन्धरूपावच्छेद कत्वप्रषेशस्य खर्डनोय- तया सखविग्रिष्टाधिकरणात्रत्तियावत्साष्यासमानाधिकरणकत्व- रूपपारिभाषिकावच्छेदकत्वस्येव च विवक्षणौोयतया wactuat wet व्वािगरुशरौरेति कथच्िदौटरव्याेरेक्योपपत्तिसम्भवेन तज॒न्नानमनुमितिङतुरित्ये ताहटथव्यासेरक्यसुपपादि तम्‌ | सिखादिमतमालम्बा प्रतियोग्यसमानाधिकरणपदप्रयोजन- माह, रयं कपिसंयोगोति। अरथेतदक्तत्वादेरव्याप्यहत्तिकपि- संयोग।दिव्याप्यतोपगमे क पिसंयोगादयनवच्छदटक मूलाः पकत्तता- वच्छदकत्वे तदवच्छदेनापि एतदहुक्नादौ कपिसंयोगादिसिदि- wags: न चष्टापत्तिः, सचिङ्गकपरामभेस्य भ्रमानुमित्य- जनकत्वनियमात्‌ | न च तदवच्छेदेन हेतुमत्ताज्नानस्य तद्‌- वच्छेदेन साध्यातुमितिहेतुलात्‌ एतदुक्षत्वादिरूपव्याप्यहत्तिहेतोचच किचिद्‌ वच्छेटेनात्तेरनातिप्रसङ्ग इति वाचम्‌ । यदि खरूपसम्ब- न्धरूपावच्छद्‌ कत्ववगाहिन्यामनुभितावपि तादटशगदहतुमत्ताज्ञान- त्वन हेतुलमुपैधते तदापि तुल्ययुक्तवा एतदुचत्वादेरिव स्ूलाद्यव- च्छव्िसंयोगविगेषस्यापि कपिसंयोगादिव्याप्यतया तेन डदेतुना सुला वच्छेदेन कपिसंयोगादयनुमितेनिष्यु्यद्त्वादिति चेदतो- aqifaate: | ६३५ पाध्यायाः, साध्यस्य पत्ततावच्छेदकसामानाधिकरणयं विना व्याप्यस्य पच्तधत्वमनुपपन्नमिति पक्तध्मताबलात्‌ पक्ततावच्छ- दकसामानाधिकरस्यभेव साध्ये सिध्यति न तु तदवच्ेद्यत्वमपि प्रमाणाभावादिति तादृशानुभितेगप्रामाणिकतया तत्र परामश्र- | खतुताकल्मनमेव नासि इति न तदाप्तिरिति समादधिरे | भिश्रादयसु बाघधानवतारे मूलायवच््छेटेन कपिसंयोमादि- सिदिरिषटैव इति वदन्ति। एतत्त्वं ग्रन्यक्रता Fans वच्यते | | aqaracitufa: । यत्त॒ इदं संयोगि द्रव्यत्वादिल्यवाव्याश्चिवारणय तत्‌ संयोगस्य weiss इत्तेवक्षत्वावच्छेदेन तत्छामान्याभावहत्तावविरोधात्‌ तच चातौन्द्रियस्य संयोगस्य सल्वात्परितः प्रतियोग्युपलब्ेद्‌षाद्ा at न संयोग इत्यादि नाध्यक्षमिति तन्न, द्रव्ये संयोगसामा- न्याभाषे मानाभावात्‌ | नच यो यदौययावदिशेषा- भाववान्‌ स तत्यामान्याभाववानिति व्यापर्यावन्संः योगाभावा एव मानम्‌ | गादाधरोविह्ठतिः । नि „री प्राचोनसिइव्याहत्तिखलं दूषयितुसुपन्यस्यति, यत्विति, "तत्‌ः अरसमानाधिकरणान्तम्‌ ) ननु द्रव्ये संयोगलायवच्छित्रा- ६२६& अरनुमानगादाध्यां waa एवानवच्छेद्‌ कगर्भोक्तलक्तणाव्यासिः प्रसज्यते तदेवं न, यतः प्रतियोग्यनवच्छेट्‌कावच्छेटेनेवाभावो aut न तु तद वच्छद्‌कावच्छेदेन विरोधात्‌ न्ताटौ च संयोगानवच्छेदकी- भ्रूतस्तत्ामान्याभावावच्छेदक एव THN इत्यत त्राह, “संयोग- स्येति, "वत्तत्वादवच्छेदटेमेति, aaa: प्रत्येकं सकलसंयोगाति- प्रसक्ततया तस्य संयोगावच्छेदकत्वासम्चवात्‌। भआकाशादि- संयोगस्यापि यावदन्तहत्तरेकस्याभावात्‌ gaa तत्संयोगानति- प्रसक्तत्वासम्भवादिति भावः। ननु हकत्तत्वाद्यवच्छ्देन दत्तादौ संयोगसामान्याभावसत्चे दत्ते संयोगोनास्तोत्यादिप्रल्यक्तापत्ति- रित्यत आह. "तत्रेति, "अतीद्दियस्येति, ` सत्वात्‌, अनु- यो गितासम्बन्धेन सत्वात्‌. तथाच अतीट्दरियप्रतियोगिकष- तया संयोगसामान्याभावस्यातोद्ियत्वमिति भावः । aq संयोग- सामान्याभावस्य दत्ते सच्च मददुद्धतरूपवन्मातसमवेतसंयोग- सामान्याभावोऽप्यावश्वकः तद7ापकधम्मावच्छिन्राभावस्य तदन्भा- वच्छिन्राभावनियतत्वात्‌ इति योग्यमातरप्रतियोगिकोऽवयमभावः कथं न aa साक्ताक्कियते इत्यत श्राह, परित इति, प्रतियोग्युप- लव्य विभिन्रावच्छेदेनाभावग्रहं प्रति विरोधिज्ञानमुद्रया प्रतिबन्ध कत्वं न सभ्भवलौति तस्या टोषत्कधन दोषविधया प्रतिबन्धक- aaa | अथ aa संयीगाविषयकमेव उपनोतभानाद्यात्मकं वन्नादिरूपाधिकरणन्नानं acfaaaw gael तादशसंयोग- सामान्याभावगृदप्रसङ्गः CENT प्रागसच्वात्‌, wt हन्ने न संयोग इति लोकिकप्रत्य्स्यालो कतया तत्र ताहश्दौषस्य प्रति- व्याञ्िवादः। ` ६२७ बन्धकत्वकल्यनमेवाशक्यमिति चेत्र, TAIT संयोगसामान्याभाव- लौकिकप्रत्यक्तस्याप्रसिदत्वेऽपि quel anfasn अधिकरणोय- विषयतासम्बन्धेन संयोगाभावलौकिकमप्रत्यत्तत्वावच्छिन्नं प्रति सखविषयसंयोगवत्वसम्बन्धेन sada प्रतिबन्धकत्वकल्यनात्‌, Waa दरव्येऽन्तत ईश्वरोयप्रत्यक्तस्येव Wael ताटशसम्बन्धन wa- नातिप्रसङ्गविरहात्‌ । इदमापाततः द्रव्यरूपाधिकरणविषयकः- संयो गाभावविषयकप्रत्यत्तस्य कदाचिटप्यनुदयेन ताटशप्रलयक्त- सामग्रा एवाकल्पनेनापादकाभावादटेबातिप्रसङ्गवारणसम्भरषेन तादटशप्रतिबन्धक ताकल्यनस्याप्ययुक्तलात्‌। कथचिदापत्तिसम्भवेऽपि तादात्मासम्बन्धेन द्रव्यत्वेनेव ताटृशसम्बन्धेन (१) संयो गाभावलौ- faa प्रति प्रतिबन्धकत्वौ चित्यात्‌ । मानाभावादिति लौकिकप्रत्य- त्तस्य योग्यानुपल्िविरद णासम्भवात्‌. उपनौोतभानस्य च संयोगा- भावो हक्ताहत्तिरित्याकारकस्य विपरोतविषयकस्याप्युपनयवश्नैन सम्भवात्‌, विनिगमनाविरहेण एकतमस्य प्रामाखयासिदिः, शब्दस्य चाप्ोक्तत्वासिदया तदव्यवस्थापकत्वात्‌ अनुमानस्य च लिङ्गा भावेनासम्यवादिति भावः। ननु aael यावत्संयोगविरेषा- भावानासुभयवादिसिदतया तत एव हेतोस्तताप्रत्यक्तस्यापि तस्लामान्याभावस्य सिद्धिनिष्टवयूहेषेति mei निरस्यति, “न Far दिना, यः संयोगौययावदिशेषाभाववान्‌ स संयोगसामान्याभाववान्‌ इति awa व्यथ विशेषणत्वा प्रयोजकत्वादिदोषेण निराकरणौय- तया प्रयमतः MAAR व्यािसनुमानोपष्टम्भकतया दशयति, (१) अधिकरणोयविषयतासम्बन्नेनेत्यर्थः | ६२६ अरनुमानगादाघयां waa एवानवच्छद कगर्भोक्तलन्तणाव्यासिः प्रसज्यते तदैवं न, यतः प्रतियोग्यनवच्छेदकावच्छेटेनेवाभावो वर्तते न तु तदवच्छदकावच्छ्टेन विरोधात्‌ वरक्तारौ च संयोगानवच्छेदकीी- भरूतम्तत्ामान्याभावावच्छेदक एव THN इत्यत आह, “संयोग स्येति, "तत्तत्वाद्यवच्छेटेमेति, aaa: प्रत्येकं सकलसंयोगाति- प्रसक्ततया तस्य संयोगावच्छेदकत्वासम्भवात्‌। ्राकाशदि- संयोगस्यापि यावदत्चहत्तेरेकस्याभावात्‌ gaa तत्संयोगानति- प्रसक्तत्वापस्वादिति भावः। ननु ठक्तत्राद्यवच्छेटेन aaret संयोगसामान्याभावसच्व वक्ते मंयोगोनास्तोत्यादिप्रत्यक्तषापत्ति- रित्यत owe. "तत्रेति, "च्रतीन्दरियस्येति, (सत्वात्‌ शअ्रनु- योगितासम्बन्धेन aa. तथाच अतौद्रियप्रतियोगिक- तया संयोगसामान्याभावस्यातोद्धियत्रसिति भावः। ननु संयोग- सामान्याभावस्य क्ते सत्व महदुद्गतरूपवन्मात्रसमवेलसंयो ग- सामान्याभावोऽप्याव्वकः तदाापकधस्मावच्छिन्नाभावस्य तदना वच्छछित्राभावनियतत्वात्‌ इति योग्यमातरप्रतियोगिकोऽयमभावः कथं न aa साक्षाक्कयते इत्यत श्राह, परित इति, प्रतियोग्बुप- लब्येविभिन्रावच्छेदेनाभावगदहं प्रति विररोधिन्ञानसुद्रया प्रतिबन्ध कत्वं न सभ्चवतोति तस्या टोषत्वकधनं दोषविधया प्रतिबन्धक- aaa) अध aa संयोगाविषयकमेव उपनोतभानादात्मकं वक्ादिरूपाधिकरणन्नानं तदथिमत्तणे दठक्तादटौ तादश्संयोग- सामान्याभावगृद्धप्रसद्गः ताटश्दोषस्य प्रागसच्वात्‌, Ud aw न संयोग इति लौकिकप्रत्यन्नस्यालोकतया तत्र तादृश्टोषस्य प्रति- व्यास्िवादः। ` ६२ॐ बन्धकत्वकल्यनमेवाशक्यमिति चेत्र, TAS संयोगसामान्याभाव- लौकिकप्रत्यक्तस्याप्रसिदत्वेऽपि गुणादौ तव्मरसिद्धया अधिकरणोय- विषयतासम्बन्धेन संयोगाभावलौीकिकप्रत्यत्तत्वावच्छित्रं प्रति सखविषयसंयो गवच्चसम्बन्धेन ज्ञानत्वेनैव प्रतिबन्धकत्वकल्पनात्‌, WAG द्रव्येऽन्तत ईश्वरो यप्रत्यक्तस्येव सव्वदा तादटटशसम्बन्धन सच्चे नातिप्रसङ्गविरहात्‌ । इदमापाततः द्रव्यरूपाधिकरणविषयक- संयोगाभावविषयकप्रत्यत्तस्य कदाचिदटप्यनुदयेन तादश प्रत्यत्त- सामग्या एवाकल्पनेनापादकाभावादटेवातिप्रसङ्गवारणसम्भषेन तादृशप्रतिबन्धकताकल्यनस्याप्ययुक्तलात्‌। कथचिदापत्तिसम्भवेऽपि तादात्ममसम्बन्धेन द्रव्यत्वेनैव ताटशसम्बन्धेन (१) संयो गाभावलौ- faa प्रति प्रतिबन्धकलत्वौ चित्यात्‌ । मानाभावादिति लोकिकप्रत्य- त्स्य योग्यानुपलिविरह णासम्भरवात्‌. उपनौोतभानस्य च संयोगा- भावो aaafafteranaa विपरोतविषयकस्याप्युपनयवशेन सम्भवात्‌, विनिगमनाविरहेण एकतमस्य प्रामाण्यासिद्धिः, शब्दस्य चापोक्तत्वासिदया तदव्यदस्थापकत्वात्‌ अनुमानस्य च fast- भावेनासम्थवादिति भावः ननु aarel यावत्संयोगविशेषा- भावानासुभयवादिसिदडतया तत एव हेतोस्तताप्रत्यत्तस्यापि तत्सामान्याभावस्य सिदिनिष्टल्यूहेवेति net निरस्यति, न चल्या- दिना, a: संयोगौययावददिशेषाभाववान्‌ स संयोगसामान्याभाववान्‌ इति व्यासेरगरे व्यथ विशेषणत्वाप्रयोजकल्वादिदोषेण निराकरणौय- तया प्रघमतः सामान्यसुखों व्या्िसनुमानोपष्टम्भकतया दशेयति, (१) अधिकरणोयविषयतासम्बन्धेनेत्यथेः | ६३२८ श्रनुमानगादाघस्या श्यो यदौयेति यदश्राखयस्य यावहिशेषाभाववान्‌ यः स aga: च्छित्राभाववानित्यधेः, संयोगत्वाश्यस्य विशेषधस्चावच्छित्रा- wage ठक्तादौ awa इति तवोक्तव्यासेः संयो गत्वावच््छित्राभाव- सिद्धिः, प्रतियोगिनो यत्-त्चरूपेणए निवेगे संयो गत्तिकपिसंयोग- त्वादिरूपसामान्यघम्मावच्छिन्नाभावमादाय सिद्साधनं स्यादिति धममस्य यत्व-तत्वेनोपादानं, संयोगा दिसम्बन्धावच्छिन्रसंयोगल्ादय- वच्छित्राभावमादाय सिडसाघनवारणय समवायसम्बन्धावच््छिन्ना- भाव एव साधनोयः, अन्यसम्बन्धावच्छिन्रविशेषाभावक्ूटस्य तत्‌- सम्बन्धावच्छित्राभावव्यभिचारित्र समवायसस्वन्धावच्छिन्नरविशेषा- भावज्टस्यापि तत्सम्बन्धावच््छित्रसामान्याभावव्यभितचारितवं तुल्य- न्यायेन सम्भाव्येतेति प्रतियोगि तावच्छछद कसस्बन्धानामपि यत्- awa व्याप्तावन्तभवः। अत एव समवायसम्बन्धावच्छिन्रयाव- दिशेषाभावहतुना तत्सम्बन्धावच्छिन्नरसंयोगसामान्याभावसिदिः, तदम्ाखयविशेषाभावश्च उभयाहत्ितदससमानाधिकरगघन््राव- च्छित्राभावः(१), aa: संयोगलादययपैन्नया क्तव्रत्तिमंयो गत्वादेविंशे- घषधश्मत्वेऽपि संयोगसामान्याभावं न्ञाटएवनभ्युपगच्छताम्‌ अवयव- विशेषरूपावच्छेद कदुभिक्ञेण दक्तत्तिसंयोगत्वायवच्छित्राभावस्य बक्तादावनभ्युपगमेऽपि च न सन्दिग्धार्सिदधिः, दचचत्तिसंयोगाला- elaiquaafaaa तद वच्छिन्नाभावच्याद्त्तिः | न च Farquat- (१) उभयाटरत्तितदमसामानाधिकरण्यञ्च उपलत्तणविधया निविष्टं न त विशेषणविधया अत्तुगततत्तदरपेश् तद्धर्ममावच्छिन्नाभ)वस्येक्येनावयवविरेषद््पाव- ACBATSY टन्तःदावनभ्वपगसादिति भावः। aifaate: | ६२८ त्तित्वविशओेषणस्यासिदिवारकत्वेऽपि व्यभिचारावारकतया aaa यावच्च विगेषणस्य धो विशेष विषयत्वरूपस्य परिचायकमेव ताटश- धश्यावच्छितर प्रतियो गिताकत्वे नतु देतुप्रविष्टं इति न सत्‌ तधा सति यत्तत्पदाथेग्य हेतु-साध्यशरोराप्रवेगेन सामान्यमुखव्यािला- नुपपत्तिरिति वाचम्‌ । यावत्पदस्य व्यापकताथेकतया तत्तद समानाधिकरणोभयावत्तिघम्भावच्छिन्नाभावत्वनिरूपिताया आधे यत्सम्बन्धावच्छिन्रव्यापकताया एव हेतुतया विगशेषघम्मव्यापक- तल्ाघटकाभावान्तरस्यैव सामान्यध्मव्यापकताघटकतया वेवय- ष्यीनवकाशात्‌। न च ताहशमावत्वव्यापकत्वं ताटशाभाव- निष्ठभेदप्रतियोगितावामाघ्ेयतासम्बन्धेना नवच्छदकत्वम्‌ एवच्च संयोगविशेषाभावानां स््जषाभेव सव्वाधिकरणतरस्ितया afa- छभेदप्रतियोगितावामाभ्रैयतासम्बन्धेनावच्छेदकमधिकरणमप्रसिदं इति तदनवच्छेदकलत्वरूपदेत्वप्रसिदिरिति वाचम्‌ । अआआधेयल्र- सम्बन्धावच्छिन्रावच्छदकतासम्बन्धेन प्रतियोगिताया अभावस्येव प्रतियोगितानवच्छेद कत्वस्यले निदैशनोयत्वात्‌, उकस्थले च व्यधिकरणताहशसम्बन्धावच्छन्राभावप्रसिदिसौलभ्यात्‌ | aE समानाधिकररेत्यतर प्रतियो गितावच्छेदकत्वेन vat विशेषणोयः, तेन कम्बुग्रोवादिमच्वादिव्याप्यधम्यावच्छित्नप्रतियीगिताकयावद- भाववतस्तदग्यावच्छिन्राभावाप्रसिदवा ताटशाभाववच्वासम्भवेऽपि न क्षतिः। a च भेद्‌प्रतियोगितावच्छेदकचाच्यत्व-घटान्यतर- त्वादिव्याप्यधम्मोवच्छ्िन्रसंयोगादिसमस्बन्धावच्च्छिव्रप्रतियोगिताक-- यावद्टभाववतस्तदट्रूपावच्छित्रसंयोगादिसम्बन्धावच्छित्रप्रतियोगिता- १४० अनुमानगादाधयां काभाववत्वासम्भवादयभिचारः aaa: संयोगादिना ्रह्रत्ति- aida सम्बन्धेन घटादेरेव ताहशाभावविरोधितया घटत्वादेरेव त्रियो गितावच्छछद्‌ कत्वसम्भवेन गुरोरन्यतरत्वस्य तव्रतियोगिता- नवच्छद कत्वादिति वाचम्‌ । वाचलादिसाधारणस्यान्यतरनिष्ठ- प्रतियोगिलस्य न्यूनहत्तिघटत्वादिना अवच्छदासम्भवादगत्था गुरुणाप्यन्यतरत्वादिनेव तदवच्छेदात्‌ । वस्तुतो यत्सम्बन्धावच्छित्र- प्रतियो गिकाभावस्य साध्य-हतुघटकता तत्सम्बन्धावच्छिन्नप्रति- यो गितावच्छेदकल्वेनेव सामान्यघम्यस्य विगेषणोयलात्‌ उक्त- सामान्यघमस्यस्य भेदप्रतियोगितावच्छदकत्वेऽपि संयो गादिसम्बन्धा- व च्छत्र प्रतियोगितानवच्टकतया संयोगसम्बन्धावच्छिन्रतद्व- च्छछित्राभावाप्रसिद्ावपि a व्यभिचारः| अतएव मैदप्रतियोगि- तावच्छद्‌कजातित्वादिघटकनित्यल्ादटेः समवायस्तम्बन्धावच्छिन्र- ग्रतियो गितावच्छेदक गभं निवेशस्य गोरवेणासम्भवेऽपि न जाति- त्वादिसामान्यघग्मघरितदहतोर्व्यभिचारितया सामान्यव्यास्िभङ्गः । वस्तुतस्तु asa प्रतियोगितावच्छेदकत्वविशषणमनुपादेयमेव कम्ब्‌- ग्रोवादिमच्छतमानाविकरणोभयावत्तिघम्यावच्छिन्नाभावनिष्ठभेद- प्रतियागिताल्स्य घटत्वादिघटिततादशधश्चापेक्या गुरुतया तदव- च्छत्राभावरूपव्यापकत्वाप्रसिडयदम्पत्यनेन कम्बुग्रोवादिमच्छा- दिरूपधर्मोपादटानस्य गुरुधम्म्स्याभावप्रतियोगितानवच्छेद कत्व- पक्तेऽसम्भवेन व्यभिचारानवकाशात्‌ | अभावे यावच्वादिविशेषण- प्रवेगात्‌ यक्िञ्धिज्नात्यादिव्यक्तचभाववति. जात्यादिसामान्या- भावासच्वऽपि न सामान्यव्यातिभङ्ग;।. यद्यपि यत्तदथेघटित- व्या्िवादः। a8 साध्य-हेतूनामननुगमेन नेका व्याप्तिरिति संयोगसामान्याभाव- तदौयविगओेषाभावकूटयोव्यास्ौ यावच्चादि विशेषणवैवष्येमेव तथा- Baga सयमग्रे वाचयतया यथाकधघचिच्छङ्ासङ्गतिः। अध ठच्तादौ यावत्संयोगाभाववच्वसुभयवादयसिद्धं aa विभुसंयो- गाभावावच्छेदकस्यावयवविशेषस्य दिग्विशेषस्य वा दुवंचत्वात्‌ ध्वंस प्रागभावयोरत्यन्ताभावविरोधित्र कालविशेषावच्छेदेनापि aa तदभावासम्भवात्‌ तयोस्तदविरोधितामते द्रव्ये संयोगादि- सामान्याभावस्याप्युत्प्तिक्षालावच्छेदेन वत्तावविरोधात्‌। नच म्रूलाग्रायवच्छित्रविभुसंयोगव्यक्तौनां मेदादग्र-मूलादयवच्छदेना- भावः सुलभ इति वाचम्‌ । तासां मेदस्याप्रामाणिकलत्ात्‌। न च नानावययवावच्छित्रसंयो गव्यक्तौनाममेदे तत्संयोगव्यक्तौ तत्त- दवच्छेद कव्यक्तोनां तादात्मयसम्बन्धेन कारणतायां व्यभिचार इत्यव- च्छेदकभमेदटेन संयोगमेद आवश्यकः आवश्यकश्चावच्छेद कव्यक्तोनां विशिष्य खावच्छित्रसंयोगव्यक्तिषु हेतुताभ्युपगमः, अन्यया म्ूला- दिमाच्रावच्छित्रमृत्तीन्तरसंयोगानां अरग्रादयवच्छेदेन agarfe- छत्तिविभमुसंयोगानाच्च दच्ान्तरावयवावच्छटे नानुत्प्तिप्रयोजकस्य दुलंभतापत्तेरिति वाच्यम्‌ (2) व्याप्यहत्तेरवच्छेदकानमभ्युपगमेन (१) इति वाच्यस्‌ xfa सन्द्भानन्तरं “न च मूलाद्यवच्छिन्नेति सन्दर्भात्‌ पूव्व॑व्याप्यदत्तेरवन्छेटकानभ्युपगभेन fava व्याप्यदृत्तितया सूलाद्यव- च्छिन्नत्वविरुहेण तत्न मूलादौनां हेतुताविरद्ात्‌ व्याष्यटृत्तेरवच्छेद्कोपगमे ade वच्छेट्‌ खर्प तत्तन्नि्ावच्छेद्‌ क ताव्यक्गो नासेव तत्तट्‌वच्छेट्‌कजन्यतावच्छेट्‌कसष्दन्- तया मूलाय्ाद्यवच्छिन्नविषसंयोगादोनासमेटेऽपि व्यभिचारानवकाशात्‌ अन्यथा मूलाद्यवच्छिन्नसंयोगस्य दिग्वियेषेरप्यवच्छिन्नतया ततराष्यवच्छेद्‌कतासम्बन्धेन ८१ ६४२ अनुमानगादाधयां वत्ताटौ विभुसंयोगस्य व्याप्यत्रत्तितया तदवच्छदकलतानियाम- कावच्छदककारणताकल्पनानवकाशणात्‌, सूलादयवच्चछित्रसंयोगस्य दिग्विशेषेरप्यवच्छिन्नतया तच्राप्यवच्छछदकतासम्बन्धेन तत्तत्संयोग- qaqa मरूलादेस्ततर व्यभिचारस्य वारणाय तत्तद- वच्छद कस्वरूपतत्तर वच्छद क ताव्यक्तोनामेव तत्तद वच्छछद कजन्य- तावच्छद क सम्बन्धताया उपगन्तव्यतया तत एव नानावच्छट्‌ काव- च््छित्रेकसंयोगसखो कारेप्यव्यभिचारनिव्वादाच्च | न च मूलाद्यव- च्छिन्रसंयोगानामग्रायवच्छिन्रसंयोगादेरिव प्रायायवच्छिन्रसंयो- गादेरपि भेदः Baw waa, Za प्राच्यां शरोर हक्षसंयोग- दूत्यादिप्रतोत्या एकसंयो गव्यक्तावेव म्ूल-प्रायाद्यवच्छित्रत्राव- गानात्‌ । न चाग्र-मूलयोः शरोरसंयोग इत्यस्या इव तादृश्या- अपि uate: संयोगदयावगाहित्रमस्रदनुमतमिति वाचम्‌ | qa म्रूल-प्रतोचोमादावच्छ्न्ि एकशरोरसंयोगः श्रग्रप्राचौ- माचावच्छित्रश्च शरौरान्तरसंयोगस्तत्र मूले प्रायां शरोर- संयोग इति प्रत्ययापत्तः, शरोर-तससंयो गव्यक्तो नामेक कासाभेव शरौरावयवेन न्तावयवेन चावच्छिन्रतया व्यभिचारस्यापि efaa- सञ्बन्धसङ्ो चमन्तरेण दुव्वारत्वाच् | तत्तदवच्छटकावच्छछन्रनाना- संयोगसाघारणं तत्तदवच्छद कावच्छिन्नत्मेव तत्तद्‌ वनच्छेदकजन्य- तावच्छटकंन तु संयोगनिष्ठतत्तदयक्तितवं अनन्तकायकारणभाव- प्रसङ्गत्‌ | तथाच एकावच्छेदकावच्छित्रसंयोगस्यापरावच्छेटका- तत्छेयो गव्यक्तौ नासुत्पतत्या सूलादेस्तत् व्यभिचारख gaitata, इति पाठः कुत्र चिद्ादश्पुस्तके Tua । oqifaate: | E82 afseaasfa तदवच्छित्रत्लविशिष्टस्य नान्यलोत्पत्तिरिति न व्यभिचारशङ्धा इति बदन्ति | | यत्त॒ संयोगम्रात्रस्याव्याप्यहत्तितासिदान्तानुरोचघेन सूलाग्रा- वच्छिन्रतस्-विभुसंयोगादौनां भेदस्मोकार आवश्यक इति, तदपि न सम्यक्‌, ताृशसंयो गव्यक्तोनां गगनादौ दिग्देशविशेषरूपाव- च्छेद कनियमेनेव तादशसिदान्तसङ्गतेः | Sa वदन्ति दरव्यमात् एव संयोगसामान्याभावस्याप्राम- णिकतायाः (तन्नव्यादिनोक्तेः न चेत्यादिना गगनादाबेव संयोग- सामान्याभावसाधकमनुमानमाशङ्कितं, विभुदयसंयोगानम्यपगमेन aa यावस्संयोगव्यक्तीनाभमेव प्रतिनियतदिम्देशवच्छिन्रतया तत्त aifaaa aa तदटभावसचेऽविवाद एव इति नासिद्धव- काशः, fayars संयोगसामान्याभावसिदावपि संयोगि द्रव्य लादित्वचर व्याषठत्तिसङ्गतेवेक्तादावेतद्पािबलात्‌ संयोगसासा- न्याभावासिदावपि न त्ततिः। प्रतियोग्घनवच्छंदटकस्य तदव- च्छेद कत्वनियमसत्वे च छत्तत्वादयवच्छ्टेन वच्तादावपि संयोग- सामान्याभावसिदिस्षम्भवेन ततापि तदभावं साधयतां तादश नियमवादिनामाश्ड्ां न च प्रतियोग्यनवच्छेद्‌काव्रच्तत्वादेर- भावावच्छेद्‌कत्वभिल्यादिना निराकरिष्यते पव्वमपि हद्त्वायव- mea संयोगसामान्याभावहत्तरविरोधमात्रेण प्रतियोग्यनवच्छेद- कस्याभावावच्छेदकत्वनियमेन वा रेदुमहतीत्याश्येनेव sari संयोग-तत्सामान्याभावयो वृत्ताववच्ेद कभेद उपपादितः ad न dain इति प्रत्यत्तच्च वारितंनतु यो यटौयेत्यादिनियमस्य aar- ६४२ अनुमानगादाधयां वत्तादौ विभुसंयोगस्य व्याप्यत्रत्तितया तदवच्छदकतानियाम- कावच्छटककारणताकल्पनानवकाणात्‌, म्बूलाद्यवच्छिन्रसंयोगस्य दिग्विशेषेरप्यवच्छिन्नतया तच्राप्यवच्छदकतासम्बन्धेन तत्तत्संयोग- व्यक्तोनासुत्पच्या म्रूलादेस्तत्र व्यभिचारस्य वारणाय तत्तद- वच्छट्‌ कस्वरूपतत्तद वच्छेदकताव्यक्तोनाभमेव तत्तद वच्छदकजन्य- तावच्कछदकसम्बन्धताया उपगन्तव्यतथा तत एव नानावच्छद काव- च्छिन्नेकसंयोगसरो कारेप्यव्यभिचारनिव्वादाच्च। नच सरूलाद्यव- च्छित्रसंयोगानामग्रायवच्छिन्रसंयोगादरेरिव प्रायाद्यवच्छिन्रसंयो- गादेरपि भेदः aad शक्यते, मूले प्रायां शरोर-हक्षसंयोग- दत्यादिप्रतौत्या एकसंयो गव्यक्तावेव म्ूल-प्रायाद्यवच्छित्रत्वाव- गहनात्‌ । न चाग्र-मूलयोः शरोरसंयोग इत्यस्या इव ATER अपि प्रतोतेः संयोगहदयावगाहित्वमस्मरदनुमतमिति वाच्यम्‌ | यत्र॒ मूल-प्रतोचोमादावच्छित्र wanted: अ्रग्र-प्राचौ- माच्रावच््छिन्रश्च शरोरान्तरसंयोगस्तव मूले प्रायां शरौर- संयोग इति प्रत्ययापत्तः, शरोर-तससंयो गव्यक्लौ नामेक कासाभमेव शरौरावयवेन हक्तावयवेन चावच्छित्रतया व्यभिचारस्यापि efaa- सम्बन्धसङ्ो चमन्तरेण दुव्वांरत्नाच | तत्तदवच्छ द कावच्छित्रनाना- संयोगसाधारणं तत्तदवच्छट्‌ काव च्छित्रत्वमेव तत्तदवच्छेटकजन्य- तावच्छटरकंन तु संयोगनिटतत्तद्रक्तित्वं अनन्तकायकारणभाव- प्रसङ्गात्‌ | तथाच एकावच्छेदकावच्छित्नसंथोगस्यापरावच्च्छेदका- qaqa मूलाटेस्तत्न व्यभिचारस्य guicata, दूति पाठः कुत्र चिदट्ाद्शपुस्तके Tua | oifrare: | E82 afeeaasfa acafeeaafaface नान्यतोत्प्तिरिति न व्यभिचारशङ्ा इति वदन्ति | । यत्त॒ संधोगमातस्याव्याप्यत्तितासिदान्तानुरोघेन मूलाग्रा- वच्छित्रतस्-विसुसंयोगादौनां भेदस्लोकार आवश्यक इति, तदपि न सम्यक्‌, तादृशसंयो ग्यक्तोनां गगनादौ दिग्देशविशेषरूपाव- च्छदकनियमेनेव ताटशसिदान्तसङ्तेः | अत वदन्ति द्रव्यमात्र एव संयोगसामान्याभावस्याप्रामा- णिकतायाः (तन्नेत्यादिनोकतेः न चेत्यादिना गगनादावेव संयोग- सामान्याभावसाधकमनुमानमाशङ्कितं, विभुद्यसंयोगानञ्यपममेन aa यावत्संयोगव्यक्तौ नामेव प्रतिनियतदिग्देशवच्छिन्रतया तत्त- इक्तित्वेन aa तदभावसच्वेऽविवाद एव इति arfagra- काशः, विसुमात्रे संयोगसामान्याभावसिदावपि संयोगि द्रव्य लादित्य्र व्यारत्तिसङ्गतेवृक्तादावेतद्वयाभिबलात्‌ संयोगसामा- न्याभावासिद्धावपि न त्ततिः। प्रतियोग्यनवच्छंदकस्य तदव- च्छट कत्वनियमसत््वे च छक्षत्वादयवच्छ्टेन वन्ादावपि संयोग- सामान्याभावसिदिसम्भवेन तत्रापि तदभावं साघयतां तादश नियमवादिनामाश्ड्यं न च प्रतियोगम्यनवच््छेदकघ्रच्त्वादेरः भावावच्छेटकत्वमित्यादिना निराकरिष्यते पुव्वमपि क्तलायव- च्छेदन संयोगसामान्याभावत्तरविरोधमावेण प्रतियो ग्यनदच्छेद- कस्याभावावच्छेदकत्रनियमेन वा सेद्ुमहेतौत्याशयेनेव चन्तादौ संयोग-तत्सामान्याभावयोवत्ताववच्छेदकमेद उपपादितः aa न dain इति yaag वारितंनतु यो यदौयेवल्यादिनियमस्य aar- ६४४ श्रनुमानगादाधय्थां धकत्वागयेनेति a सन्दभविरोधः। यत्कििदवयवनाश्ान्महा- हत्तनाशनन्तरं खर्डत्त्तोत्म्तिक्तणे पूर्व्वो त्पत्रक्रियातो यत्रावखि- तयावत्तदवयवेगेगनादि संयोगानां (१) विनाशः दितौयकच्षे च खण्ड चस्यापरावयवनाशस्त॒तौयत्षणे च तत्राग्स्तत्र aga fay- संयोगानुत्पच्या यावद्िशेषाभावसौलभ्यम्‌। न चेवं ताद शठन्ते मूत्त न्तरेणापि संयोगस्तदवयवसंयोगेस्तत्कश्मणा वान सम्भवति तद- वथव-गगनादिसंयोगनाशककश्चणा मूत्तान्तर-तदवयवसंयोगाना- मपि तदुत्म्तिकाले विनाशात्‌, अवयवावयविनोः संयोगानम्धप- गमेन अवयवेषु भरारम्कसंयोगसत्वेन तन्निष्ठ संयोगजननासम्भवात्‌, उत्पल्तिकाले च द्रव्ये गुणवत्कश्चसत्वानुपपत्तरिति संयो गसाध्यक- दव्यत्वस्य सद्धेतुतेव a निन्धहतौति वाच्म्‌। ताटृशखर्डदरव्ये तदवयवसंयोगजन्यस्य तत्कर जन्यस्य च संयोगस्यासम्भवेऽपि सनव्वै- aq सदागतिशौोलपवनादिपरमाणुनां कश्भिस्तत्संयोगानामुत्पत्तौ बाघधकविरहेण द्रव्यस्य संयुक्तत्वनियमादित्यपि केचित्‌ । “यावत्‌- संयोगाभावा एव मानमिति ज्नायमानलिङ्गस्यानुभितिकरणत्व- मताभिप्रायेण, ‘queria साध्य-हेतुघट कयत्तच्छन्दार्थयोः संयोगत्व-घटत्वादयोरित्यथः, 'अननुगमादिति एकरूपेण निवेश- सब्मवादित्यथः, एकव्यामेनिन्धाहयितुमश्रक्यत्वादिति शेषः, तथाच घटत्वाद्यवच्छित्राभाव घटादिविशेषाभावकूटयोन्यीपेः संयोगसामा- न्याभावसिदध्रनुएयोगिल्रात्‌ यावल्संयोगविशेषाभावे संयोगसामा- ——___ (१) तटेवयवावच्छिन्नगगनाद्ख॑योगानासित्ययैः, यावत्तद्वयवे गगनारदि- संयोगानां दूतिपा°। aifaatz: | ६४५ न्याभावोयविभेषव्यासेश्चाग्रे निराकत्तव्यत्ात्रोक्तानुमानसम्भव इति भावः। ननु प्रकतदहेतौ प्रक्लतसाध्यव्याप्तरग्रडेऽपि यथा यो aa Wadd स॒ Aaa तज्नानातीव्याकारात्स्तनपानादिप्रठत्ति- तददिषयककाथतान्नानयोव्यीतिग्र हाद्वानयनादिप्रहत्तिरूपलिङ्गेन गवानयनादिकायतान्नानसिदिः तथा प्रकते संयोमोययावददिरेषा- भावे तत्ामान्याभावस्य व्यथविशेषरणत्वादिना व्या्यग्रहेऽपि घटादिविेषाभावक्टे तत्सामान्याभावव्यासिग्रहादेव संयोगोय- यावददिशेषाभावे पक्तधस्तान्नानाद्गगनादौ (१) संयोगसामान्या- urafufecatia व्यतिरेकिडेतुकानुमिताविव सामान्यव्याष्यपौन- विशेषसिद्ौ व्या्िविशिष्टपनच्चधश्चतान्नानस्य हतुत्वानुपगमात्‌ (२)। न च विशेषभावान्तरे सामान्याभावान्तरव्यािग्रहात्‌ संयोग- विशेषाभावेन तत्सामान्याभावसिदधपरपगमे यावच्वादयविशेषितकपि- संयोगादिप्रतियोगिकाभावे() कपिसंयोगादिसामान्याभावव्यासि- ग्रहादटेव संयोगप्रतियोगिकाभावेन तत्सामान्याभावसिदिसम्भ- वात्‌ यावच्लादिविश्रेषणमनथेकं प्रकतडेतुतुल्यनिखिलहेत्वन्तरेषु लग्रविष्टतत्तत्पदा्थंघ टितप्रह्नतसाध्यत्‌ल्यसाध्यव्यासिगृडापे्तायाः स्रोकर्तमशक्यत्वात्‌ तादटशसकलदेतु-साध्यानां युगसहस्रेणापि (१) उच्वाटाविति ato | (२) तथाच यथा व्यतिरेकिस्यले Bat व्याप्चियहकालोनस् wa Vara ज्ञानस्य ज्नानविशिष्टन्नानत्वेन Rad तथा प्रतप्ते प्रकतदेतुमन्तान्नानकालोनयख विश्चेषाभावान्तरे सामान्याभावान्तरव्याश्रिखहसख न्षानविशिष्टन्नानत्वेनेव Bad बोध्यमिति ata: | (3) कपिसंयोगप्रतियोगिकत्वं अभावे न fatana व्य्यविगेषण्त्वात्‌ | ६४६ ्मनुमानगाटाघयां असव्धन्नेन्नातुमशक्यत्वात्‌ इति वाच्यम्‌ । उपस्ितयावत्ताटश- Say ताहशतत्तत्साध्यव्यास्भिग्रहापेत्या सामन्ञस्यात्‌ तावन्मावा- पेत्ताया्च तत्तत्साघधनधम्मिकतत्तत्साध्यव्यासिग्रहाभावविशिष्टतत्त- त्साध्यसाधनोपस्ितेरनुमितिप्रतिबन्धकतया सूपपादत्वात्‌। एवं सति (१) यावत्वविशेषणानुपादाने जात्यादिविशेषघटत्वादयभावे जात्यादिसामान्याभावग्यभिचारोपखखितिदशायां संयोगादिसामा- न्याभावसाधनासम्भवेन तादृशविरेषणएसाथेक्यात्‌ (२), गगनाय- वत्ति-सखसमानाधिकरणनिरुकघम्मावच्छिन्न( २ )प्रतियोगिताकय- कत्किञ्चिदभावकं यद्यत्‌ तदन्यो गगनादिच्यभावप्रतियोगितावच्छे- दकोभयाद्तिधश्मसस्ानाधिकरणान्योवायो wa; स तन्निष्ठा भावप्रतियो गितावक्छेदक दत्येतादृश्या उक्तसामान्यव्यास्घिसख्यला- भिषिक्तव्याघ्येव वा संयोगल्लादी गगनादिनिष्ठाभावप्रतियो गिताव- च्छट कत्वं साधनोयं da च नाननुगमदोष CAMB उक्तानुमाने- उपाधिमाद, "एकावच्छेटेनेति अनवच्छित्रतदोययावददिशेषा- भावाधिकरणत्वस्योपाधित्वादिव्यथेः, यथाुते गुणादिनिष्टायाः यावत्यो गाभावाधिकरणताया व्याप्यहत्तितया भ्वच्छटकत्वविर- Sq उपाधेः साध्यव्यावकत्वानिर्वाहात्‌। न च गुणादिनिष्ठाया- यावल्संयोगाभावाधिकरणताया व्याप्यठत्तितेऽपि शुणत्वायवच्छि- = ------ - ~ (१) साध्यव्याश्चिहस्यापेल्ि तत्वे सतीत्यथः | (२) तथाच यक्किद्धिज्जात्यभाववति जातिसामान्याभावासन्वादुव्यभिचार- वारणाय यावत्पदम्‌ | (३२) उभयाटत्तिषम्दमौवच्छिद्ेत्यथः | व्यात्तिवादः | ६४७. त्रत्मावश्यकम्‌ अनन्यथा अधिकंरणतावच्ेदकप्रकारकन्नानासम्भ- वेन (१) गुणदौ तदभावग्रहासम्भवादिति वाचम्‌ । द्रव्यनिष्टयाव- त्संयोगाभावाधिकरणताया रपि द्रव्यतादिरूपेकषावच्छेदकाव- च्छत्रितया sara: साधनाव्यापकतानि्वाहाय सप्तमौ निर्देश्यं यद- व्याप्यह्रत्तितानिर्वाहकं विलक्तणमवच्छेदयत्वं तस्येव विवचणौय- तया शुणानिष्ठसंयोगाभावादययधिकरणतायां तादृशावच्छयल्र- विरहेण साध्यव्यापकताया यथाञुते दुरूपपादलात्‌ । अथैवं कपि- संयोगादिसामान्यस्य मरूलायवच्छेदेनाभाववति कपिसयोगादि- azar अनवच्छित्रतदोययावदिशेषाभाववत्वविरहेण साध्यो- पाध्योनं सामान्यव्या्तिनिर्वदः (२) । wa कचित्‌ अवच्छित्रले- कावच्छदकानवच्छछित्रत्लोभयाभाववद्यावददिशेषाभाववच्छम्‌ इहो- पाधिल्लेनाभिमतं गुणे यावददिशेषाभाववकत्छम्‌ भ्रवच्छित्रताभावे- नोक्तोभयाभाववत्‌, कपिसंयोगवति हन्ते कपिसंयोमौययावदिशे- षाभाववच्वं मूलाय कावच्ेद कार्वच्छत्रमिति तदनवच्छिन्नता- भावादुभयाभाववदिति(र) नोपाधि-साध्वयोः सामान्यन्याक्षिभङ्गः। (१) अभावलौकिकप्रत्य्ते अधिकरणताचन्छेदकप्रकारकञ्नानख हेतुत्वादिति WTA: | (२) तथाच प्रखतसाध्यतुल्यसाध्ये प्रसतोपाधितुल्यव्याप्चिरत्रव्योपाधित्व- निव्वडहिका यो यद्धम्प्ांवच्छिन्नप्रतियोगिताकाभाववान्‌ स॒ निरवच्छिचरतङ्म्म- समानाधिकरखणोभयाटसति धम्मन उच्छिच्चप्रतियोगिताकयावद्भार्वा धकरणतावान्‌ दूत्याक।रासेव साध्योपाध्योः सामान्यव्या्िरिति भावः| (३) कपिसंयोगवति ea संयोगोययावद्िशेषाभाववत््वं मूलाच्ेकावच्छेद्‌का- नबच्छिन्नत्वाभावादुभयाभाववदितीति ato | ६४ श्रनुमानगाटाघयथां अथ ठत्तादिनिष्ठानां यावत्कपिसंयोगविशेषाभावाधिकरणतानां ने कावच्छेद कावच्चछित्रत्वं सम्भवति दक्तादयहत्तिकपिसंयोगादि- व्यक्तोनां येऽभावास्तेषां agar व्याप्यत्तत्तितया afasacfa- करणतानामनवच्छिन्नत्वात्‌ न च व्याप्यह्रत्यधिकरणतानामनव- च्च्त्रतया भ्न्यासाञ्ेकावच्छद कावच्छित्रतया सर्वीस्वधिकरण- तास्भयाभावोऽत्षत एवेति वाचम्‌ । ud सति पक्निष्ठसंयोग- gata fetufannaafearat यावन्तोऽभावाः पक्तनिष्ट- तावन्निरूपिताधिकरणतानां सवासाभेकावच्छेदकविरदेऽपि feat- टौनामवच््छद कं क्यसम्भवेन सर्वाखेव तासु तादृश-तादट शावच्छेदक- मादाय एकावच्छेद का वच्छित्रत्मस्तोत्युभयाभावसच्लात्‌ तद- ठत्तिसंयो गव्यक्तौ नाञ्च येऽभावास्तेषां तत्रि्ाधिकरणताकूटानाम- नवच्छिब्रतया उभयाभावसच्वात्‌ उक्तोपाधरेर्याीवत्संयो गाभावरूप- साघनव्यापकत्वापत्तेः, स्रसमानाधिकरणयावत्तदभावाधिकरणता- वच्छद कावच्छिन्रत्वस्य एकावच्छेट कावच्छित्रत्रूपतवे च (१)ठत्ता- दिनिष्ठमूलाद्यवच्छिन्रकपिसंयोगायभावाधिकरणतास्पिन तथात्व- सम्भवः तत्समानाधिकरणव्याप्यघ्ठस्तिकपिसंयोगादयभावाधिकर- शतानामपि तादृ ्र-यावदधिकरणएतान्तगी तत्वात्‌ तद वच्छट्‌कस्य चाप्रसिदत्वात्‌ इति Sa, एकावच्छेद कावच्च्छित्रत्वस्य ख(२)- समानाधिकरणकिचिदटवच्छित्रयावत्तदभावाधिकरणतावच्छद का- व च्छिन्नत्वरूपस्य विवकच्ितत्वेन अनवच्छित्राधिकरणताभिः (१) उभयाभावघटकोभूतेकाबच्छेटकावच्छिन्नत्वे चेति ate | (२) wag प्रतियोगिपरं नतु तद्भावाभिकरणतापरम्‌ | aifqare: । ६४८ सहावच्छिन्राधिकरणतानामेकावच्छेदटकावच्छ्छित्रलासम्भवेऽपि a- तिविरहात्‌। श्रथवा यावद्दिशेषाभाववत्वमित्यनेन यावत्तदोय- विशेषाभ।वल्लावच्छित्रनिरूपितमेकाधिकरणत्वं विवत्तितं न तु तत्ससुदायः (१) एकावच्छेद कावच्छिन्रतलच् एकमातदठत्तिधन्माव- च्च्छित्रावच्छेदकावच्छिन्रलं a त्भिन्नावच्छेदककत्वं, aarafa- कपिसंयोगानां aafast अभावा वदयपि व्याप्यहत्तयः तथाप्य aware -तेषामव्याप्यहत्तिलात्‌ aa- साधारणयाव्वावच्छ्न्निनिरूपिताधिकरणता एकमातदठत्ति- तत्तन्मूलल्वाद्यवच्छित्रतत्तन्सूलादि रूपावय वावच्छिन्रेति तच्रोभया- भावोऽत्तत इति न साध्योपाध्योः सामान्यव्यास्चिमङ्गः, पत्तनिष्ठ- संयोगसामान्योययावदिश्रेषाभावाधिकरणता च न प्रत्येका- वच्छट्‌कावच्छिन्ना sat दिशि wa 2a वा गगनेन संयोग- इत्यादिप्रतोतिविरहात्‌ श्रपि तु यक्किञ्िदनुगतघभ्चावच्छ्ि- त्रावच्छेदकावच्छित्रा यावल्संयोगाभाववद्‌गगनमित्यादिप्रत्ययात्‌, एकरूपावच्छिन्नस्य प्रतियोम्यभावाधिकरणतावच्छेद कत्वे विरोधात्‌ एकस्यापि विगेषरूप-सामान्यरूपाभ्यामुभयावच्छद कल्नो पगमात्‌ तथाच पक्तनिष्ठसंयोगविशषाभावानां यावत्वावच्छित्रनिरूपिता- धिकरणता न निर्क्तीकावच्छदकावच्छिन्रत्रवतोति तस्या उक्तो- भयवच्वादुपाधेः साधनाव्यापकत्वमिति वदन्ति | वसतुतसु अनवच्छिन्रयावद्िशेषाभाववच्वमेवोपाधिः तादशणे- पाधिना amma सामान्यव्या्िविरहेऽपि संयोगसामान्या- (१) यावदहिशेषाभावाभिकरणतासस॒दायः। GR ६५० अनुमानगादाध्यां भावरूपपय्यवसितसाष्यव्यापकतया तादृशणोपाषैः «anfaqea- लयापकत्वमव्याहतं Aaa साध्यवतोऽप्युपाधिव्याप्यतया ate- शोपाष्यभावेन संयोगसामान्याभावरूपसाध्यवद्मेटोऽन्यतराप्रसि- दोऽपि (१) साघयितु शक्यत एव अभावसाध्यकव्यतिरेकिणि प्रतियोगिमाप्रसिदेरपेत्ितत्रात्‌ उपाध्यभावेन साध्याभावसाध- qq न सम्यकमंयोगरूपस्य तस्य साधने सिद्रसाघनात्‌ सम्मति. पच्चानिवांहात्‌ सिदसाघधनादितः साध्याभावादिसाधनासम्भरवेऽपि प्रतियोगिेयधिकरणखघटितसाष्यव्यापकतावच्छेदकतया गद्य माणो पाधितावच््ेद कावच्छित्राभाववत्तान्नानात्‌ पत्ते साध्यानु- मितिप्रतिरोधः (२) एषेति सारम्‌ । saat प्रतियोग्बधिकरण- लरूपपक्तधन्मावच्छिन्रसामान्याभावरूपसाध्यव्यापकतया एकाव- च्छदेनेत्यादेयधागरुतस्यैवोपाधितानिर्वाहः, यत्र प्रतियोगिमतिं यस्य सामान्याभावस्ततेकावकच्छेटेन तस्य यावदिशेषाभाववत्च- fafa aaa: कपिसंयीगादिमतः कपिसंयोगादिसाभमा- न्याभावाधिकरण्वत्तादेरेकावच्छ्टेन कपिसंयोगादिविशेषाभाव- कूटवत्च नियमेन सुग्रहत्वात्‌, गुणादादेकावच्छटेन यावददिशेषा- भावासच्वेऽपि aa तब्मरतियोग्यसत्वेनावच्छिन्रसाध्यव्यापकत्वा- त्तेः द्रव्ये च प्रतियोगिमत्चविशिषटियावत्संयोगविरेषाभावाधि- करणं एकावच्छेदेन तदोययावदिशेषाभावासच्वात्‌ साघनाव्याप- (१) wet अप्रसिडोऽीत्यर्थः। | (२) agurTafg प्रति तदनतर तद्ापकतावच्छेट्‌कत्सहसहिततद्म्भौवच्छिच्रा- भाववत्तानिश्चयत्वेन प्रतिबन्धकत्वाद्ति सावः। cattaate: | ६५९१ कत्वं तस्य, ठक्तारदि्ठत्िकपिसंयोगादिविरेषाभावाधिकरणता- कूटान्तगेतकतिपयाभावाचिकरणतानामनवच्छित्रत्ेऽपि तत्कुटस्य ए कावच्छेदकावच्छितिलं पूव्धवदुपपादनौयम्‌ | अ्रयेताहमोपाधैव्यै- भिचारोत्रायकल्वं सव्रतिपत्तोयापकत्वं वा न सम्भवि प्रकतसाध्य- व्यापकस्य एकावच्छ टकावच्छिन्रसंयोगोययावदिग्रेषाभाववत्लस्या- fas: द्रव्ये तदौययावददिशेषाभाववक्वस्यावच्छिन्रत्वेऽपि एकाव- च्छेद कावच्छिन्नत्वाभावात्‌ गुणं च तस्यावच्छिन्रताया एवाभावात्‌ प्रतियो गिम विशिष्टकपिसंयोमौयसामान्याभावनव्यापकस्य aa कावच्छेदकावच्छित्रयावदिशेषभाववच्चस्य प्रसिदत्वेऽपि तदभावेन प्रक्तसाध्यवद्धेदसाधनं न स्वति तस्य प्रकलतसाध्याव्यापकत्रात्‌ प्रतियोगिमच्छविश्िषटकपिसंयोगादिसामान्याभाववङह्ेदश्च कपि- संयोगादिरूपप्रतियोभिशून्ये डेतुमति साध्यमानो न कपिसंयोगा- दिषामन्याभाववडेदपय्यवसायो प्रतिथोगिमहेदस्यावाधात्‌ प्रति- योगिमति चैकावच्छेदकावच्छिब्रतदोययावदिशेषाभावसच्वेन तदू- वत्ताभावादिरूपहेतोरसिदिरिति (१) न व्यभिचारोत्रयनसम्भव- इति (a) मेवं, काचिद्रव्ये जलादिसंयोगवति तत्ामान्याभावस्य aa एकावच्छेद कावच्छित्रतदौययावदिशे षाभावसचात्‌ तदौय- प्रतियोगिमच्चविशिष्टतत्सामान्याभावव्यापकवं एकावच्छेदकाव- च्छ्ित्रतदरौययावदिशेषाभाववत्तं यावटृदरव्ये सनव्धावयवावच्छेटेन विभिन्ना जलादिसंयोगव्यक्तयः ade यावद्‌ विगेषाभावरूप- (9) ateuturatfeaqusaitfafafcfa aro | (२) wafaacrqaafaate इतीति ute | ६५२ AAA AM STU हेतुमति एकावच्छद कावच्छित्रयावदिगेषाभावरूपोपाष्यभाषेन प्रतियोगिमत्वविशि्टसामान्याभाववद्गदस्य सिद्धौ बाधकाभावात्‌, प्रतियोगिमति aa विशेष्यवद्धेदपव्यवसानेन व्यभिचारसिद्धया सामान्यव्यासिभङ्गात्‌ | संयोगत्वे गगनादिनिष्टाभावप्रतियोगिताव- च्दकत्वसाधकानुमानौपयिकदगितव्याप्तावपि एकावच्छेटकाः- वच्छदा-ख( १)समानाधिकरणोभयातत्तिधग्मावच्छिन्नप्रतियोगिता- कथावदभावाधिकरणताशून्यगगनादिकं यद्यत्‌ तदन्यल्स्योपा- धित्वं बोध्यम्‌ । अनुमानदौषितिः।. यत्तदर्धयोरननुगमात्‌ एकावच्छेदेन यावदिशेषाभाव- वत््वस्यो पाधिलाच्च | एतेन अयं संयोगसामान्याभाववान्‌ संयोगयावदिशेषाभाववच्वादिति परास्तं व्यथंविश्नेषग- त्वाद्‌ प्रयोजकत्वात्रिगुणत्वादेसुपाधित्वाचच | न च प्रति- योग्यनवच्छेदकतयेव ्र्ञत्वादेरभावावच्छेद कत्वे, गुणा- दानवच्छेदकप्रमेयत्वारैस्दभावावच्छेदकत्वप्रसङ्गात्‌ । यथाच घटपृव्वेवत्तिवस्य प्रतिदण्डं वङ्किसामाना- धिकरण्यस्य वा प्रतिधूमं भिन्नत्वेऽपि दण्डत्व धूमलवं वा तत्सामान्यस्यावच्छेद कं तैव संयोगसामान्य स्थावच्छेदकं द्रव्यत्वादि कमिल्स्यापि सुवचत्वाचेति सम्प्रदायविदः | a = ere, (१) wud संयोगत्वादिपरम्‌।, 4 व्यािवादः | ६५२ गादाघरो विहतिः | एतेनेति अनवच्छछित्रयावत्संयो गविशेषाभएववच्वस्योपाधि- लेनेत्यधेः, शतिः विग्ेषव्याघ्युपष्टभ्यमनुमानं, “परास्तं, दूषणा- न्तरमादह, व्यर्थेति तन्मते संयोगसामान्याभावस्य केवलान्वयि- तया अभावलस्यैव तद्वयाप्यतावच्छेदकलत्वेन इतरं शस्य व्ययैत्वा- दिव्य्धः । नन्वभावादित्येव हेतुरस्तु इत्यत आह, श्रप्रयोजक- त्वादिति व्यासिग्राहकतकशून्यत्वादित्यथेः, विगेषव्याप्तावपाध्वन्तर- मपि सुलभमिव्यादह, निगुण्त्वादेरिति, आदिना निष्यरिमाण- त्वादेरपि परिग्रहः। यत्‌ यदश्माखयानवच्छेटकं तत्तदग्धाव- च्छिन्नाभावावच्छेदकमिति व्याघ्युपष्टभ्यं दत्तल्वादेः संयोगसामा- न्याभावावच्छेद कत्वसाघधकमनुमानमा ड्य निराकुरुते, "न चेति, 'गुणाद्यनवच्छेदकेति गुणत्वस्या खया नवच्छेदकैत्यथः, (तदभावेति गुणत्वावच्छछिन्नाभावेत्यधः, तथाच गुणत्ावच्छित्राभावस्यापि श्रव्याप्यत्रत्तिताप्रसङ्ग इति भावः | घटादौ द्रव्यता दययवच्छटेन घट- त्वाभावप्रसङ्गः घटलत्वादेव्याीप्यत्तितया तदवच्छैटकाप्रसिद्धया तद- नवच्छेटकत्वरूपापादकाप्रसिदधेने सम्भवतीति नाभिहितम्‌। गुण लाद्याखयस्य संयो गादटेरवच्छेदकत्वप्रसिद्या न गुणत्वाय वच्छित्रा- भावावच्छदटकत्वापाद काप्रसिदिरिति भावः | ननु यद्ाययानव- =zafaaa यत्पदेन व्याप्यदच्यत्तिघम् एव विवत्षणोयः गुण- त्वादेश्च व्याप्यहत्तिरूपादटि्तितया तदाख्यानवच्छट्‌कत्वस्य न तदवच्छिन्राभावावच्छेदकतापादकता इत्याशय वरच्तत्वादौ संयोग- aaa aa कत्वरूपकयोगलावच्छछिन्नाभावावच्छेद कल्वसाधक- ६५४ अमुमानगादाधयां हेतोरसिदिमाह, "यथा चेति, शघटपूञवत्तित्वस्येति दर्डनिष्ठ- घटकारणताघटकतदव्यवदहितपूव्वकालसम्बन्धस्येत्यथः, ्रतिदश्ं भित्रत्ेऽपि' ‘ewe तत्सामान्यावच्छेदक मित्यगिमेनान्वयः, ‘afa- द र्डं भिन्नत्वेऽपि" इत्यनेन च ewe तम्मत्येकाति प्रसक्तमिति सूचितं, एवमग्रेऽपि, (तत्सामान्येति घट पूव्मैवत्ति ताल्वा वच्छित्नेत्यथेः, war कालिप्रसक्रत्वेऽपि अवच्छद्यतावच्छेदकानुगतरूपावच्छित्रानति- प्रसक्तया तस्यावच्छेदकलत्वं, WIA घटकारणतावच्छेदकत्वमेव तस्य भज्येतेति भावः | ननु दर्डत्वस्य घटनियतपूव्ववत्ति तावच्छे- ena न घटनियतपून्वेवत्तितायाः खरूपसम्बन्धरूपमवच्छेद कत्वं भपितु तदव्यवदहितपूव्वैकालनिष्ठाभावप्रतियोगितानवच्छेदकलत्वरूपं पारिभाषिकमेव तच्च(१) ्रतिप्रसक्तेऽनतिप्रसक्त च निरावाधभेव(२) स्वरूपसम्बन्धरूपावच्छद कताया एवावच्छेद्यानतिप्रसक्तत्नियतत्वा- दिति (३) प्रत्येकातिप्रसक्तस्य सामान्यानतिप्रसक्तत्वन सामान्य- रूपावच्छित्रावच्छेद कत्वे ृ्टान्तान्तरमाह, "वद्किसामानाधिकर- यस्येति, शप्रतिधूमं भिन्रलेऽपि' धूमत्वं तत्लामान्यावच्छेदकमि- त्यन्वयः, “तत्पदेनाते वङ्किसामानाधिकरण्यपरामभेः, wae तदनवच्छेद कत्वे तस्य वह्धिव्याप्यतावच्छेद कत्तं नोपपद्यते । न च (१) तथाचातिप्रसक्गस्य ताटशावच्छेद्‌कत्वं wifmad न तु खष्पसम्बन्वर्षा- वच्ेटकत्वं अतिप्रसक्ता्येति भावः। (२) अतिप्रसक्तेऽपि वत्तत दति ate | | (३२) तथाच घटयपरूव्वेवस्तिताया अतिप्रसक्तत्वेन दण्डत्वस्य कार ख ता वच्छेट्‌ कत्वं wifmaa नतु दण्डत्व कारणतानतिप्रसक्तमिति अतिप्रसक्तस्यावच्छ्ेद्‌कत्व-खी कार दष्टान्तासम्भवद्ति भावः| व्यात्चिवादः। ६५५ व्याप्यतावच्छेद कत्वमपि स्विशिष्टव्यापकसाध्यकत्वरूपं aft भाषिकभेव तच्वातिप्रसक्तसाधारणमिति न दृष्टान्तसङ्गतिरिति वाच्यम्‌ । साध्यसामानाधिकरखयावच्छेदकरूपवच्वं व्यास्षिस्ततरा- वच्छेटकत्वं खरूपसम्बन्धवियेषः, अतएव यत व्यथैविशेषरुचटित- नोलधुमत्वादिना हेतुता aa व्याप्यत्लासिद्धिरिति प्राचौनमता- नुसारेणेतदभिधानात्‌, अन्यथा पुनः सवरूपसम्बन्धरूपकारण- त्प्रतियो गल्लादिनिरूपितमनुगतध््यनिष्टं खरूपसग्बन्धरूपम- वच्छेद्‌कल्वं दृष्टान्ततया बोध्यं, संयोगसामान्यस्य संयोगत्वरूपा- वच्छेदयतावच्छेदकरूपावच्छित्रस्य सुवचत्वाचेति प्रत्येकं संयोगा- दिव्यक्यतिप्रसक्तस्यापि द्रव्यत्वादेस्तद्रूपावच्छित्रानतिप्रसक्तत्वादिति भावः। यद्यध्येवमपि प्रमेयत्वादेः संयोगसामान्यातिप्रसक्तल्वेन तत्सामान्य।वच्छेद कत्वा सिडा उक्तव्यािग्लात्‌ तदवच्छेदेन संयोग- सामान्याभावसिडिन शक्यते निराकत्ते, तथापि प्रतियोगि | मत्म्बडइदेण-कालयोरेवः प्रतियोग्यनवच्छेदकयोरभावावच््ेद क- नियमः तयोरेव (१) तदनुभवात्‌ न तु प्रतियोम्यनवच्छद- RAIA मानाभावादित्यत्र ayy) द्रव्ये संयोगसामान्या- भावस्य कालभेदावच्छ्टेन खयमनुपद्‌ं व्यवखापनौोयतया सम्प्र दायविदः इत्यनेनाखरसोदभितः (२) | (‰ प्रतियोग्यनवच्छेद्‌कयोदंशकालयोरेव तद्भावावच्छद्‌कत्वनियमः, नतु देशकाल ट्िभिनच्नस्य प्रतियोग्यनवच्छेदृकषम्दखापि तदट्भावावच्छेद्‌कत्वनियम- KIT: | | (२) सश्प्रदायविदः' द्रयनेनाखरसोद्धावनं छतसिति ate |, ६५६ अमुमानगादाघधयां श्रनुमानदोषितिः | नवौ नास्तुत्पत्तिकालावच्छदेन घटादौ गुणस्य प्रलयावच्छेदेन गगनादौ संयोगस्य सामान्याभावोवत्तंते तधा धूमवत्यपि विरहो दहनस्य इह wad नितम्ब हताशनो न शिखरे इति uate: संयोगेन द्रव्यस्याप्य- व्याप्यहत्तित्वात्‌ हत्तेरब्याप्यहत्तित्वे afaaat व्याप्य- हत्तित्वस्याल्यन्तमसम्भावितताच्च । एवं प्रतियोगिमतो- रपि काल-देशयोदे श-कालमेदावकच्छेदेन तदभावः । तथाच तत्तत्साध्यकाव्या्चिवारणाय तत्‌, नोपादेयञ्च सव्वंयेव व्याप्यहत्तिसाध्यके साध्यादिभेदेन (१) व्याभि- भेदादिति acter | गादाघरो faafa: | ‘quay सामान्याभावोवत्तत इत्यन्वयः, ध्वं स-प्रागभावयोर- त्यन्ताभावविरोधितष्या निराक्षतल्वादिति भावः। एतेन तदव- च्छेटेन संयोगसामान्याभावोऽपि सुतरां वत्तते व्यापकधर्ावच्छि- त्राभाववति व्याप्यघश्यावच्छिन्नाभावव्वनियमादिति . सूचितम्‌ | न चोत्परत्तिकालावच्छटेन घटादौ गुणस्य प्रागभाव waa तु तत्सामान्यात्यन्ताभावोऽपि मानाभावात्‌ इति वाचम्‌ । तदा (१) साध्य-साधनभदेर्नेति पाठः कुल्रेचित्‌ पुस्तके aud परन्तु स पाठो नं AWACEA | व्याप्षिवादः | ६५७ ततर जन्येकलत्हेतुग्रूतस्य (१) एकत्वत्वावच्छित्राभावस्यावश्यक- तया तस्येव खसमनियतगुणत्वा यवच्छिन्नाभावरूपतया विवादा- योगात्‌ | संयोगादिसाष्यक नित्यद्रव्यमातहत्िहेतु कसले व्याहत्ति- दानायाह, प्रलयेति, महाप्रलयस्य जन्यभावानधिकरणतया तदानीं संयोगाद्यसच्वादिति wa: | तदानौञ्च गगनादौ नित्येकलत्व- परिमाणादिसचवेन गुणसामान्याभावासच्वात्‌ संयो गस्यवेत्ये वसुकत, अत्र च प्रमाणं महाप्रलये गगनेन संयोग दइत्यादिप्रामाणिकव्यव- हार एव, तादहटश्व्यवहारस्य ष्वंससावगा हित्तेऽतिप्रसङ्गात्‌, (२) व्यव- हारानादरेऽतोद्द्रियगगनादौ गोल्वाद्यभावस्याप्रामाणिकत्वापत्तः प्रल्यत्तासम्भवात्‌ अनुमानस्याप्रयोजकत्वात्‌। वद्किमान्‌ धुमादित्यादौ व्याह त्तिदानायाह, "तथेति, "दहनस्य दहनत्वावच्छिन्रस्य, प्रतोते- रित्यन्तं द्रव्यस्याव्याप्यब्त्तितादित्यत्र रेतुः, प्रत्यत्तप्रमाखर्‌क्ता- युक्तिमप्याह, त्तरिति संयो गरूपसस्बन्धस्यत्यथेः, ` त्तस तो व्याप्य- afaae’ संयुक्तस्य तेन सम्बन्धेन व्याप्यहत्तितायाः, अससावित- त्वादिति। अयमाशयः सम्वन्धिसत्तायाः समस्बन्धाघौनत्वादुयदव- च्छटेन यदौययत्सब्बन्धो नास्ति तदवच्छटेन तत्सम्बन्धावच्छिन्नतद- भावसत्तमावश्यकं संयोगादेः सम्बन्धस्य समवायस्य व्याप्यहस्तित्वेऽपि न संयोगादेव्यप्यतत्तिता quel समवायसच्छऽपि संयोगाद्य- स्ववत्‌ संयोगादययनवच्ेदकावच्छिन्र संयोगादिमति तव्छमवाय- सत्वेऽपि तदभावसत्चो पपत्तरिति | (१) एकत्वोत्पत्यनन्तरभमेकत्वोत्म्तिवारखाय एकत्वाभावख द्ृेतुत्वसिति भावः। (२) इटांनीं गगने न संयोग दृत्यादिव्यवह्ारप्रसुङ्गाटित्यघः। GR ६५८ अनुमानगादाधयां केचित्त ठत्तरव्याप्यत्तित्वे ठत्तिमतोऽव्याप्यहत्तित्वत्‌ हत्ते- व्याप्यत्रत्तित्वे हत्तिम तोव्याप्यत्तितं युक्तितील्यादिति संयोगादि- प्रतियोगिकत्वविशिष्टसमवायत्वेन समवायोपि न व्याप्यहत्ति- रिव्याः | वह्निमान्‌ धूमादित्यादौ कालविश्रेषावच्छेदेन हेतुमति वत्तमानं साध्याभावमादाय घटत्ववान्‌ कालत्वादित्यादौ पटा- qqawea काले वत्तमानं कालिकसम्बन्धावच्च्तराभावमादाया- व्या्िदानायाह, (एवमिति प्रतियोगिमतो देशस्य प्रतियोग्य- नाधारकालावच्छटेन प्रतियोगिमतः कालस्य च प्रतियोग्यनाधार- टेणावच्छेदेनाभाववच्वमित्यथंः, ei कालस्येवेति, इदानीमत्र घटो नास्तोत्यादिप्रत्यये देशनिष्टायाः कालावच्छिन्राधारतायाः काल- निष्ठाया टेशविरेषावच्छिन्राघधारताया वा विषयत्वमित्यत fafa- गमनाविरहादुभयस्येव विषयलत्वादिति भावः। ^तत्तत्साध्यकेति गुणत्रादयवच्छित्रसाध्यक-द्रव्यलला यव्यासिवारणायेत्यधेः। "तत्‌" अ्रस- मानाधिकरणान्तम्‌। अव्याप्यत्रत्तिसाध्यके प्रतियोगिवेयधिकरण्या- घटितव्याप्ररप्रसिद्धया तदुघटितेव anfa: व्याप्यद्वत्तिसाध्यकै तु प्रतियोगिवेयधिकरण्यानुपस्ितिदशायामपि हतुसामानाचि- करणाभावप्रतियोगितावच्छेदकत्वसामान्याभावग्रहादनुमिल्युत्प्या प्रतियोगिवेयधिकरणयाघरितापि व्याप्िरस्ति प्रतियोगितैयधि- करणघटितव्याप्िर्भयतेव प्रसिदानुमितिप्रयोजिका चेल्याशयेन म्भूलक्तस्तदनुपादानमिल्याह, नोपादेयमिति, व्याप्यह्तिसाध्यके साव्वैिकमुपादानं ufafad न लनुपादानस्य सान्प्रत्िकलत्- व्या्िवादः | ६५९ qa, armada साध्यस्याऽव्याप्यहत्तिलश्चमदशायां प्रति- योगिवेयधिकरण्यघटितव्यासिन्नानादेवानुमिल्युपगमात्‌, व्याप्य aaa साध्यस्याव्याप्यहत्तिलभ्चमदशायां प्रतियोगिवेयधिकरख- घटितव्या्िक्नानादेवानुभिव्यपगमेऽपि व्याप्यहत्तिसाध्यके aaa तादृश्विशेषणोपादानानियमः तदघटिताया अपि ara: सव्वचा- नुमिव्यौपयिकल्वात्‌ अव्याप्यहत्तिसाध्यके तु aaa तदुपादान- नियम एव तदघटितव्यापेरप्रसिदधरिति ara: । व्याप्यह्तिसाध्य- कलत्रञ्च स्रसमानाधिकरणाभावाप्रतियोगिसाध्यकलं, सत्तावान्‌ द्रव्यत्वात्‌ कालिकसम्बन्धावच्छिन्नाकाशाभावाभाववान्‌ आतला- दित्यादिकच्च न तथा,(१) साध्यवति(२) कालातादौ कालिक-देशि- कविशेषणताभ्यां साध्याभावस्छात्‌, अतस्तत्र प्रतियोगिवेयधि- करख्याविशेषितदतुमन्निष्ठाभावाप्रतियो गि त्वस्य साध्येऽसच्वेन aia: प्रतियोगिवेयधिकरयघटि तत्नियमेऽपि न दोष (2) 1 केचित्त व्याप्यहत्तिसाष्यकलत्वं यथाश्ुतमेव हेतुमत्यभावस्य देशिकूविरेषणतया afafsaamat wat न ईतुमति कालादौ कालिकविगेषणतादिना साध्याभावसच्छेऽप्यव्यािः भावस्याप्यभाव- aa देशिकविशेषणतया वत्तिः प्रामाणिकी अतो नाभावसाध्य- कव्यभिचारिखतिव्यास्िः (8) यादृशप्रतियोगितानिरूपकाभावल्- (१) न व्याप्यटटत्तिसाध्यकमित्ययैः | (2) कुत इत्याकङ्कायामादह, साध्यदतोति। (३) प्रतियोगिवेयधिकरण्यघटितेव व्याश्चिरित्येवमसपि न दोष दूति ute | (४) देशिकव्रिेषणतया सत्ताद्धपसाध्याभावाभावख catcfa ata: | ६६० अनुमानगादाघय्ां fafaca देशिकव्शेषणतया हेतुमति ठत्तिस्ताटृशप्रतियोगि- तानवच्छद्‌ कत्वविवक्तया कालिकक्तम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताका- काशाभावाभाववान्‌ इत्या दावव्यासेनिरासः तत्र ्राकाशाभावस्या- काशाभावत्वेनेव देभिकविगेवसतया भ्रानि afar तूक्तसाध्यताव- च्छेद कावच्चछिन्नप्रतियोगिताकत्वेन, आत्मनि तादशाभावाभावो नास्तोत्यप्रतोतेः, अव्याप्यवल्तिसाध्यक्षेऽपि स योगाभाववान्नित्य- गुणत्वादित्वादौ(१) अनुमित्यौपयिक दि विधव्याेः सम्भवेन सव्ये aaa तावता अ्रव्याप्यहत्ति साध्यकेऽपि कचित्तदघटितव्यासिसम्भव- दति सूचितमिव्याहः | aq व्याप्यहत्ति साध्यके* अव्याप्यहत्तितग्रहा विषयसाध्यके, सम्वयेवासमानाधिकरणन्तस्यानुपाटेयतया aa aaa प्रति- योग्यसामानाधिकरणाघरटि तव्याप्तरेवानुमानाङ्गताखो कारादिति- व्याख्यान, तदसत्‌, तल्ला पि शब्दादिना प्रतियोम्बसामानाधिकरखणय- घटितव्यासेयदा ग्रहस्तदा अनुमितेरुत्मादाय ताद शव्यासेरनुमाना- ङ्त्वस्योपगन्तव्यत्वात्‌, अन्यधा यादृशव्यतिरेकिसाध्ये न केवलान्व- वित्वभ्चम स्ताटशसाध्यके लाघेन साध्याभाववदघ्रत्तिलस्येव व्यासि- त्वोपगसप्रसङ्गात्‌ | केवलान्वयिनो यस्य साध्यस्य न व्यतिरेकिल- श्रमविषयता तव्छाष्यके हेतुसामानाधिकरणयविरेषणपरिष्याग- स्यापि प्रसङ्गा (२)। 4) संयोगााभववान्‌ gearfeenet प्रतियोगिवेयधिकरण्वाघटितव्याघ्नर- सिद्धा तत्र तहटितव्याप्रिरपि हेतुरिति ara: | (२) न्यया यादशव्यर्तिरेकिसाध्ये न केवलान्वयित्वभ्मस्ततर स्‌ाध्याभावबट्‌- aifaarte: | ६६१ aa प्रतियोग्बसमानाधिकरणेत्यतर प्रतियोगिपदं खप्रति- योगिपरमवण्यं वाच्यम्‌, अन्यथा प्रतियोगित्वस्य सामान्यरूपेण केव- लान्वयितया प्रतियोग्बसमानाधिकरणाभावस्येव दुलभतापत्तेः | तथाच सखपदस्य तत्तदभावपरतया तत्तदभावप्रतियोगम्यसामानाधि- करण्यविशिष्टत्न हेतुमहत्तौनां तत्तद भावव्यक्तौनां प्रतियोगिता- वच्छेदकत्वाभावकूटज्ञानमनुमितिकारणं वाच्यम्‌ तारश्च ज्नानम- सव्वेन्नस्य दुर्घटं wa: प्रतियोगिपदस्य प्रकतसाध्याथेकतया साध्या- भावनिष्ठसाध्यसामानाधिकरखाभावविशिष्टः सन्‌ खेतुमद्‌त्रत्िर- भाव एवानुगतरूपेण निवेष्य, weal सर्व्वेषामेव ईइतुसमानाधि- करणाभावानां aaa देत्वधिकरणे साध्यसमानाधिकरणतया साध्यसामानाधिकरणखाभावविशि्टस्य देतुमदुत्तित्वं न प्रसिष्व- तोति साध्याभावनिष्टं साध्यसामानाधिकरण्यविग्रेषणं (१) तथा सति सइतौ साध्याभावातिरिक्राभावे तत्प्रसिदिसम्भवात्‌। व्यभि- चारिणि च (२) व्यभिचारनिरूपकाधिकरण एव साध्या- भावे साध्यसामानाधिकरण्याभावविशिष्टतया हेतुमदत्तितमिति साध्याभावस्यापि लन्नणघटकतया नातिव्याधिः, संयोगेन प्रमेय- सामान्यसाध्यकसडतो साध्याभावातिरिक्ताभावाप्रसिद्धया देतुमति साध्याभावनिष्टसाध्यसामानाधिकररखाभावविश्िषटटाभावाप्रसिबि--- छ्तित्वस्ये वानुमानाङ्गता न तु व्यापकसामानाधिकरण्यख गुरुगशरीरस्मेत्यपि खात्‌, रकसुाध्यके याटगव्याप्रिप्धाटचुमितिरन्यत्रायि तजन्नानाद्नुमितेरानुभविकतया नापद्धबमहतीति चेत, तुल्यं प्रसतेऽपीति ato (१) साध्याभावनिषटसाध्यसामानाधिकरणयस्याभावो निवेष्य ofa ate | (२) संयोगी सत्त्वादित्यादौ Faqs: |. ६९२ अनुमानगादाघय्या रिति साध्यतावच्छछेदकावच्छित्राभावनिष्ठसाध्यसामानाधिकरण्य- स्याभावो fat: 1 एवच्च व्याप्यत साध्यके साध्यतावच्छेद- कावच्छित्रसाध्याभावनिष्ठसाष्यसामागाधिकरण्याप्रसिदया तादश- व्यापिन प्रसिदयतौति तत्साध्ये प्रतियोग्यसामानाधिकरण्याघटि- तैव व्या्भिरिव्युक्तं “नोपादेयच्चेत्यादिना, तदपि न, साध्यताव- च्छट कावच्छित्रसामानाधिकरण्यविरोषणोभरतसाध्याभावे साध्यता- वच्छेदकसम्बन्धा वच्छछिन्नप्रतियोगिताकत्वनिवेशनप्रयोजनाभावात. व्याप्यतत्तिसाध्यकेऽपि सम्बन्धान्तरावच्छित्रसाध्याभावे साष्यसा- मानाधिकर्यप्रसिदया तत्राप्युक्तव्यासिप्रसिदेः (१) | व्याप्यठत्तिसाध्यकस्थते व्यािददिंविधा न त्वव्याप्यहत्तिसाध्यक दति साध्यादिमेदेन व्यािमेदाभावे न सम्वतोत्यत arg, 'साध्यादिमेदेनति साध्यतावच्छेटकादेवि शिष्य व्यािघटकतया तद्धटेन तङ्धेदस्यावश्यकत्वादित्यथेः | अनुमानदोधितिः। प्रतियोग्यसामानाधिकरण्यञच्च प्रतियोगितावच्छ- द्‌ कावच्छिन्रासामानाधिकरण्यं तेन अयं गुण-कम्मान्य- त्वविशिष्टसत्तावान्‌ जातेः भूतत्व-मूर्चत्वोभयवान्‌ मृत्त- त्वादिल्यादौ नातिप्रसङ्ः। न चोमयत्वमेकविशिष्टा- परत्वं विशिष्ट केवलादन्यदिति तदभावो मनसि (१) ततरा्क्रव्याध्यप्रसिद्रिति ate | व्या्िवादः | ६६२ सहजत एव प्रतियीगिव्यधिकरण इति वाच्यम्‌, उभ- यत्वं fe न विशिष्टत्वादनतिरिक्तं न वा तदवच्छिन्ना A ~ भावस्तदवच्छिन्नाभावात्‌ वेशि्टयविरदेऽपि घटत्व परटत्वयोरुभयलस्योभयत्वेन तदभावस्य च प्रत्त सिद- त्वात्‌ । न च तच व्या्धिरेबोभयत्वाधिकरणस्य मूत्त- त्वस्य मनसि सत्वादिति बाच्यम्‌ । तथाल्वेऽप्युभयत्वेन रूपेण तचरासत्त्वात्‌ नाच्रोभयमिति प्रतीतेदुर्व्वारत्वात्‌ | गादाधरो विहतिः | यद्यपि जात्यादौ गुण-कम्मान्यत्वसामानाधिकरण्योपलक्तितस्य सत्तारेव्यीधिरस््येव गुणादौ तदुपलक्ितसत्तायनुमितैः प्रमालात्‌, तथापि गुणादौ विशिष्टसत्तादिप्रतियो गिकवेशिच्चावगाद्यनुमितेभे- aaa?) aa तादृशनुमिल्यौपयिकव्यािखौ कारे सललिङ्गकपरा- मर्थादपिश्मः स्यादिति तादृशानुमित्यौपयिकव्यासिर्गुणादिहत्ति- हेतौ न ala कवते Ta: साध्यतावच्ेदकविशिष्ट शिष्य विषय- कानुमिव्यौपयिकव्या्तिशरोरे प्रतियो गितावच्छदकविशिद्वेयधि. करण्यपययन्तं निवेश्य aa anata वारयति, प्रतियोग्यसामा- नाधिकरण्यमिति। न च तत्रापि व्या्िखौ कारे afaface: गुणो (१) भभ्वमत्वात्‌' इत्यनन्तरं "न च तत्रापि व्याश्रिखीकार इति acuta पूर्वे “तादशात्तमित्यौपयिकव्याश्चिगु षदिति at न dae शक्यते दरति gaifefas- विशिटसत्ताद्यभावख अभावान्तेनोपाटाननिव्वादह्धाय प्रतियोगिपद्‌ प्रतियोगिताव- न्द्ेटकविश्िरटपरतया Brae, “प्रतियोगोतोतिपषाढः कत्रचिदाद्शेपुस्तके वत्तंते। ६९४ श्रनुमानगादाघयथां गणान्यत्वविशिष्टसत्तावान्‌ जातेरित्यादौ wana हेतो्द्टत्वोपपत्तः। द्रव्यपक्तक-ताटृशसाध्यक-जात्यादिहेतोश्च समोचौोनताया एवोपग- मात्‌ बाघानतारदशायां गुणदौ जात्यादिलिङ्गकविशिष्टसत्तावै- शिच्चानुमितिभ्रमरूपा प्रमात्कपरामर्णादपि (१) खौक्रियत एव गन्धप्रागभावावच्छछत्रो घटो गन्धवान्‌ परथिवौत्वादित्यादौ बाघा- नतारदशायां प्रमातकपरामणात्‌ विशिष्टानुयोगिकवैशिष्यावगा- feat श्चमानुमितेमरिकारातुमतल्ेमिति वाच्यम्‌ । श्रमानुभि- तिजनकपरामशस्य भ्चमत्वसम्भवे तदुपादानमावश्यकमित्याशयात्‌ गन्धप्रागभावावच्छ्छित्रो घटो गन्धवान्‌ षथिवौल्ादित्यादौ परा- ave aafgefa श्चमत्वासम्भवेनागत्या प्रमापरामर्णाद्श्चमानु- मितिखोकारात्‌ गुणो विगिष्टसत्तावान्‌ जातिमच्वादित्यादिवि- श्टप्रतियो गिकवेशिख्यविषयकानुमि तिस्लमुपेच्य गन्धप्रागभाव- वान्‌ घटो गन्धवान्‌ एथिवोत्वादित्यादिविशिष्टानुयो गिक वै शिच्च- विषयकानुमितिस्लमसिदि-व्यभिचारासङ्घोणबाधोदादहरणत्वना- भिहितवतो मरणिकषतोप्युक्तस्यले व्याधिनेस्तौत्याशय salad | अथ विशिष्टनिरूपित wa समवायादिविशेष्याविरोधिनो विशिष्टा भावस्य प्रतियोगितावच्छदकसम्बन्धः - शसम वायादेस्तथात्व दरण्डायुपलक्तितपुरुषादिमत्वविरोधितादृशपुरुषायभावात्‌ तद- विरोधिविश्िष्टपुरुषा दयभाववेलक्षखयानिव्वाहात्‌ । न च तदुप- लक्तितपुरुषाद्यभावस्य स धर्मी न प्रतियोगितावच्छ्दकः अ्रपितु प्रतियोगितासमानाधिकरण एव प्रतियो गितावच्छेद कस्यैव प्रति- (१) सल्िङद्गकपरामशंट्पोति ute | qifaate: । ६६५ यो गिनि विग्ेषण्तात्‌ अ्रतादृशस्येव चोपलक्षणएत्वात्‌ इति ताद्टश- भावयोर्बिशेष इति वाच्यम्‌ । उपलक्षणेन दण्डादिना व्यात्त- प्रतियोगिनिष्ठ प्रतियोगितायां युरुषत्वादेरतिप्रसक्ततया तन्मा तदवच्छटकतायाः पर्य्यीष्यसम्भवेन दण्डादेरपि तदवच्छेदक- कोटाववश्यमन्तमीवात्‌ । अतएव पुरूषादिमाचेण न दर्डादुप- लक्ितयुरुषाद्यभावस्य विरोध; तदवच्छिन्राभावस्येव तदिशि्टा- भावत्वे सत्तान्यषएटचिवोसमवेतशृन्यं वायुलाटिव्यादौ wana कूट- घटितलक्षणातिव्याक्िटानमपि विरुध्येत प्रथिवोसमकेतत्वविशिष्टा- भावस्य वाखादौ TA वायुललादेस्ततर साध्ये सदेतुत्वादिति चेत्र, विशिष्टनिरूपितसम्बन्धस्य विशि्टाभावप्रतियोगितावच्छेद कलं waa न सम्भवतोति प्रागुक्तत्वात्‌, अगत्या विशिष्टाभावप्रतियोगिता विशेषणन्तभाषेन vata उपलल्लिताभावप्रतियोगिता तु दर्डादि- रूपावच्छेदकोपलक्तितविशेष्य एव vata इल्यपगम्य तयो विशेषस्य उपपादनोथत्वात्‌ | विशिष्टस्यातिरिकतामते वििष्टसत्ताभावः सहजत एव प्रतियोग्यस्मानाधिकरण दइत्युभयसाध्यकानुसरणं, नातिप्रसङ्ग दति हेतुमति विशिष्टाभावादेः दप्रतियोगिसामा- नाधिकरण्यसच्वेऽपि विशिष्टप्रतियो गिसामानाधिकरणख विरहात्‌ न भ्चमानुमितिजनकपरामश्स्य प्रमालप्रसद्ग sae) व्याप्य- वत्तिसाध्यकेऽपि प्रतियोगिवेवधिकरखावगादहिपरामगस्यानुमिति- डेतुतया उक्तसाध्यस्य व्याप्यद्रसिलेऽपि नातिप्रसङ्गाप्रसकतिः। ननु मूत्तत्ादिदेतौ भूतल्ादिविशष्टदपूततललवादिरूपतदुभयत्वाव- च्ित्रस्यैव न ania, न तु तदुभयहत्तिबुद्धिविभेषविषयल्रूप- ८४ gee अनुमानगादाघयां तदुभयत्वावच्छत्रस्य तथाच विशि्टसत्तादिसाध्यकजाल्यादिदेता- विव उक्तोभयसाध्यकम्बूत्तेत्वादिहेतावपि यथायुतप्रतियोग्यसामा- नाधिकरण्यनिङशपक्तेऽपि नातिप्रसक्तिरित्यभिमानं ‘a चेत्यादिना निराकरोति, ‘aena एवः प्रतियोगिपदस्य तच्छा वच्छद क वि शि्ट- परतां विनेव, उभयत्वं' उभयव्यवदार विषय तावच्छेद कं, ‘a fafa vad’ एक विशिष्टापरत्वात्‌, ‘aafatia’ अभिन्नं, अतिरिक्रमित्य- qa नानलिरिक्रमित्यभिधानं उभवपदाथंतावच्छदकावच्छटे- नातिरिक्षत्वलाभाय, नञजपदस्यानुयो गितावच्छद्‌ कावच्छेदेन श्रभाव- बोधकत्वव्युत्परत्तेः, तावता एकविशिष्टापरत्वसुभयनिष्ठव्यासज्य- त्तिघम्मश्च उभयपदाथे तावच्छेदकमसतु (१) प्रकते चोभयत्वभेक- विशिष्टापरत्वभेवेतिशद्गाव्युदासः। अत्र हेतु; 'वशिच्यविरहेऽपि घटत्व पटत्वयोर्‌भयत्वस्य प्रत्यक्सिद्त्वादिति घटत्व-पटलत्वयोः सामानाधिकरणयविरहऽपि aa उभयव्यवद्ारविषयतावच्छेदकस्य प्र्यक्सिद्वत्रादित्ययेः, अन्यथा तत्लोभयव्यवद्धारानुपपत्तरिति भावः| यद्यपि uza-ucdiuafafanaial कालिकसम्बन्ध- घटितसामानाधिकरण्यरूपवेरशिच्चस्य विषयतासम्भवः तथापि वाच्त्व-घरत्वोभयं समवेतमित्या दिप्रतौो तिव्यवद्ारविरहणए उभयं समवेतमिति प्रतोति-व्यवहारयोः समवायिसमदेतत्वरूपवेशि- ख्यविषयताया अभ्युपगन्तव्यतया घटत्वःपटत्वौभयं समवेत. मित्यादौ तादटशवेशिष्याप्रसिद्या व्यासज्यद्रस्तिघग् एव विषय (१) अस्तित्यनन्तरं नन तु ama वच्छमाणानुपपत्तेः' इत्यतिरिक्नापाठः कस्िंञखिट्‌ादशपुस्ते aaa | BAAS: | ६६७ efa भावः । तथाच तदनुरोधेन व्यासज्यत्तत्तिघगरविरेषस्य उभय- व्यवद्ारविषयताया आवष्यकत्वे एकविशिषटटापरत्वस्य तद्व्रवद्ार- विषयत्वमप्रामाणिकमिति न भूतल मूत्तत्लोभयवान्‌ मूर्तत्वादि- त्यादा्रकविशिष्टापरत्वस्य साध्यतावच्छदकत्वप्रसक्तिः तथा सलि श्रतुमितेरभयवानित्याकारकलानुपपत्तेरिति निन्युदृम्‌। ननु AT ल्वाधिकरणे मनसि भ्रूतत्व-मरत्तत्वोभयं नास्तौति बुदरेक- विशिष्टापराभावावलम्बनेनेव मनसि प्रतियोगिसक्वेन suaafa- धन्मावच्छित्राभावासत्लादिति क्चिदेकविश्टापरत्वस्याप्युभय- व्यवहारविषयतावच्छेद कत्वमावश्यकमित्यत आह, (न वेति, 'तद- वच्छिन्नाभावः' उभयव्यवदारविषयतावक््छेदकावच्छिन्राभावः, (१) "तद वच्छित्राभावात्‌ः एकशिष्टापरल्वावच्छिन्राभावात्‌, नानतिरिक्त- दूति विपरिणतेनान्वयः,(२) प्रतियो गितावच्छेदकविशिष्टेनेव प्रति- योगिना अभावस्य विरोधाटैकस्याधिकरशेऽपि व्यासनज्यत्रतति- धन्चावच्छछित्राभावसच्छे बाधकाभावादिति भावः। एतेन quae व्यासन्यतच॒भयत्वावच्छिन्नव्यभिचारितापि व्यवस्यापिता, आव- प्यकश्च एकाधिकरणे व्यासज्यदछठत्तिघन्धावच्छिन्रतदभावः अन्यथा घटादौ समवायेन घटत्व-पटलोभयं नास्तोति प्रतोतेरनुपपत्त- स्तत्र समवाथिसमवेतत्वरूपवे शिच्यावच्छित्राभावस्येव विषयताया सखौकरणोयत्वाटन्यथा एककालोनत्वादिरूपघटलत्वादिवेशिष्चाव- (१) प्रयेकाधिकरणदृत्तिरपि उभयव्यवद्धारपिवयतावच्छेट्‌कावच्छिन्नाभाव- दति ute | (२) faufewaa qeraz:, विपरोतेन सम्बन्व इति oie | & ९ ्रनुमानगादाघयां च्च्छिन्नस्य पटलत्वादेः समवायेन पटादौ awa ताटशप्रतीत्य- निव्वाह्ात्‌ इत्याह, ` वे शिष्य विररेऽपि घटत्व-पटलत्वोभयत्वेनाभावस्य प्रत्यत्तसिहत्वादिति। aq तथापि व्यासज्यत्रत्तिनिरक्तोभयत्वेन साध्यत्वे quae व्यभिचारिता सम्भवति एकप्रतियोगिमत्यपि उभयाभावस्य प्रतियोगिसमानाधिकरणतया मूत्त्ाधिकरणे नसि उभवयएभावस्य प्रतियोगिव्यधिकरण्त्वाभावात्‌ हेतुमति प्रतिः योगिव्यधिकरणस्येव च साध्याभावस्य व्यभिचारत्वात्‌ व्यभिचार- aaasfa प्रतियोगितावच्छद्‌ कावच्छिन्रदेयधिकरणयपयन्तानिवे- भादित्याशङ्कां निरस्यति, ‘a च ततेत्यादिना, ‘arfata’ व्याि- रिषटैव, (तथाल्ऽपौति म्बू तत्वस्य मनसि सचखेऽपौत्यधेः,.उभयत्वेनेति उभयत्वविशरिषटटवत्ताया मनस्यसच्वादित्यथः, तथाच तत्र उभयत्व- विशिदवैशिष्यानुमितेभ्चमतया तम्मयोजकदेतोन सङेतत्वस्ौ का- रसम्भवः। अतएव व्यभिचारलक्षणेऽपि प्रतियोगितावच्छेटकाव- च्छिच्रवेयधिकररखपय्यन्तमेव निवेश्यसिति भावः | एकाधिकरणे उभयत्वविश्रि्टाभावसत्वे मानमाह, (नातोभयमिति, अतोभय- सितिप्रतोत्यभावो न हेतुतयोक्तः तदुभयत्वेनेकस्य सत््वोपगमेऽपि उभयचाधिकररव्रत्तितायाम्ताटृशप्रतोतिविषयतया एकस्मिन्रधि- करणठत्तित्वाभावे तादृशप्रतीतेभमत्वस्यावश्यकलवात्‌ तादृशग्रमा- विरद्टापपत्तेः | अनुमानदौधितिः। ` त्यन्तपद्च्चालयन्ताभावत्वनिरूपकप्रतियोग्बसामा- व्याक्षिवादः। ६६९ नाधिकरण्यस्य अल्यन्ताभावत्वनिरूपकप्रतियोगितायाश्च लाभाय TIT सरव्व॑स्यैवाभावस्य खममानाधिकर- शाभावान्तरभिन्नत्वात्तद्ेदस्य खरूपानतिरिक्त्वात्‌ प्रतियोग्यसामानाधिकरण्ठस्यैव टुज्ञंभत्वापत्तेः सव्वंषा- मेवाभावानां हेतुममानाधिकरणालयन्ताभावत्वनिर- पकप्रतियोग्यसमानाधिकरणाभाःवान्तरात्मकस्य ख- भेदस्य प्रतियोगित्वाद्भावसाध्यकाव्यापरेश्चेति सम्प्र दायविदः। गादाघधरो faafa: | | ननु प्रतियोग्यस्षमानाधिकरण्यस्याभावविरेषणत्वे waq- sania धुमादयधिकरणनिष्ठवज्कयादिभेदस्य प्रतियोगि- समानाधिकरत्वनेव साधष्यतावकच्छछेदकस्य तग्मतियो गितावच्छेद- कताया अ्रकिच्ितकरत्वादिव्याशङ्या साम्प्रदायिकोपदशितमलत्य- न्तपदप्रयोजनमाह, “्रत्यन्तपदञ्चेति, श्रत्यन्ताभावत्वनिरूपक-' प्रतियोम्यसामानाधिकरण्यस्येति, (लाभायेत्ययिमेण सम्बन्धः, खं यस्य प्रतियोगिनोऽव्यन्ताभावस्तादशप्रतियोग्यसामानाधिकर- रखपय्धन्तस्याभावविशेषणत्वलाभायेव्यथः. ्त्यन्ताभावत्वनिरूप- कप्रतियोगिताया इति प्रतिधोगितानवच्छेदकैल्यतर या प्रति- योगिता निविष्टा तचाव्यन्ताभावत्वरूपानुयोगितानिरूपकल्रवि- शेषणस्य च॒ लाभायेत्यथ; । क्रमेण व्याहत्तिमाद, ्रन्यधेति, ६७० नुमानगादाधयं ^सव्वैस्येभावस्येति ₹हेतुसमानाधिकरणाभावत्रेनोपाटेयस्य wre गोत्वायभावस्येत्यधेः, .ससमानाधिकरणाभावान्तरभित्रत्रात्‌' खं यस्य समानाधिकरणं ताटृश्घटत्वादययभावभेटवच्छादित्यथेः, ‘ae. पानतिरिक्तत्वात्‌' गोत्वाद्यभावरूपाधिकरणखरूपतवात्‌, अ्रभावाधि- करणकाभावप्रतियोगिकाभावस्याधिकरणभूताभावरूपतेति सिदा- न्तादितिभावः। ्रतियोग्यसमानाधिकरणाभावस्य दुलभत्वा- पत्तेरिति गोत्वाद्यभावानामत्यन्ताभावत्वनिरूपकगोल्लादिरूपप्रति- योग्यस्मानाधिकरणत्वेऽपि खनिष्टठमेदत्निरूपक घटलादयभावरूप- प्रतियोगिसमानाधिकरणत्वनियमादिति भावः। न च भावखरूप- स्येवाभावस्य तादृशत्वं सुलभमितिवाचम्‌ । तस्यापि खसमानाधि-. करणमेदटभित्रत्ेन तदहोषलादवख्यात्‌, मेदमेदस्यानवस्थाभयेनाधि- करणसरूपताङ्गोकारात्‌ (९) । प्रतियोग्यसामानाधिकरण्ये सम्बन्धविशेषानिवेे सव्यैतरैव ताटशाभावाप्रसिदः प्रतियो गिता- वच्छेद कसम्बन्धस्य साध्यतावच्छेदकसम्बन्धस्य वा तत्र॒ निदेशे विशेषणताविशेषसम्बन्धेन यत्र साध्यता तत्र aenfafsevar (२) (१) “न चेत्यादिरङ्गोकाराद्त्यन्त पाटोवद्षु SAGAR नास्ति| (२) प्रतियोगितावच्छेट्‌ कसम्बन्बेन प्रतियोग्यसामानाधिकरण्यनिवेशे सचत न तादशाभावाप्रसिङ्धिः किन्तु विश्ेषणताविशेषेण साध्यकस्यले, तन्यते अभावे साध्यतावच्छेटकसम्बन्धावच्छिन्नत्वस्य निवेशनीयत्वात्‌ साध्यतावच्छेटकसम्बन्धदय aq निवेशे विशेषणता विशेधसम्बन्धेन यत्र साध्यता aq aeufefeeeafa uto | तद्प्रसिद्धिद्रेट्या इत्यनन्तरम्‌ अत्यन्ताभावत्वनिद्ध्पकप्रतियोग्यषामानाधिकरण्य- निवेशेऽपि इति सन्द्भात्‌ ga “प्रतियोगि तानवच्छेदकेव्यत्र प्रतियोगितायास्‌ ऋअत्यन्ताभावत्वनिद््पकत्वपिवन्ताप्रयोजनमा ह, हेतुसमानाधिकरखणेति, तथाच व्यात्निवादः। E92 अत्यन्ताभावत्वनिरूपकप्रतियोग्यसामानाधिकरण्यनि३रेऽपि सर्व्वे षामेवाभावानाम्‌ किञ्चिदिशिष्ट(१)सराभावादिरूपप्रतियोगिसामा- नाधिकरणनियमात्तदसमानाधिकरणाप्रसिडिः aeunfaaifa- तेत्यादिना वच्यमाणरोतेरनुसरणे तु प्रतियोगिन्यत्यन्ताभावल्ल- निवेशवेयध्यमतास्लरसवोजमेव । “हतुसमानाधिकररति हेतुस्मा- नाधिकरणो योऽत्यन्ताभावत्वनिरूपकप्रतियोग्यसामानाधिक- waa गोत्वाभावादिर्घटलवाभावादिरूपसाध्यस्य afasazat- भावमेदामकस्य तस्य प्रतियोगित्वादित्यथः, शच्रभावसाध्यकेति घट- लाभावादिसाध्यकपटत्वादिसाधनेत्यथः। अत्यन्ताभावत्वनिरू- पकप्रतियो गितानिवेशेऽपि सम्बन्धान्तरावच््छित्रसाध्याव्यन्ताभाव- प्रतियोगितावारणाय साध्यतावच्छेट्‌कसम्बन्धावच्छित्रत्वविगेषण- Ha एतदिशेषणमनथेकं साध्यतावच्छेटक सम्बन्धेन प्रतियोग्य- सामानाधिकरणं निवेश्य सम्बन्धान्तरावच्छिन्नाभाववारणेऽपि सव्वेष्वेवाभावेषु उक्तरोत्या श्रत्यन्ताभावत्वनिरूपकप्रतियो गिसामा- नाधिकरण्यस्यापि waa साध्यतावच्छेदकसम्बन्धन प्रकत- प्रतियोगितावदसामानाधिकरण्यस्येवाभावे निवेशनोयतया साध्य- निष्ठप्रतियोगिताख्रयासामानाधिकरण्स्य सदेत्वधिक रण त्तत्व- विशिष्टाभावेऽसत्तनाव्याघ्यप्रक्तिरित्यश्वरसवोजम्‌ | ae घटभिनच्रं पटत्वादिव्याटौ अव्यन्तामावत्वनिर्पकप्रतियोग्यसमानाधिकरण्जलत्वा द्यभावादो षटभमेदमेद्ख सत्वात्‌ तस्याधिकरणसद््पत्वात्‌ त्म तियो गि तावच्छेद कत्व ताटशभेदववेऽस्तोत्यव्याप्चिः इत्यधिकः पाठः कुलरचिटाशृशपुस्तके ada ne 8730118. Kriy3 Kaumudi, Fase. 1-6 @ /10/ each a ee 3 Sucruta 881111४8, (Eng.) Fase. 1 @ 1/- each ५७७ we _ 1 Suddhikaumudi, Fasc. i-4 @ /10/ each त By. . 2 Sundaranandam Kavyam ve a nee „= J Suryya Siddhanta Fasc. 1-2 @ 1-4 each oa wee 2 Syainika Sastra ... 8, ee ove 9 Taittreya Brahmana, Fasc. 11-25 @ /10/ each ? > Taitteriya Samhita, Fasc. 27-45 @ /10/ each se ५४ 11 Tandya Brahmana, Fasc. 10-19 @ /10/ each oe 6 Yantra Varteka (English) Fase. 1-10 @ 1/4/ each 12 *s'attva Cintamani,Vol. I, Fasc. 1-9, Vol 11, Fase. 2-10, Vol. III, Fase. 1-2 Vol. IV, Fasc. 1, Vol. V, Fase. 1--5, Part IV, Vol. J1, Fasc. 1-12 @ /10/ each 23 Tattva Cintamani Didhiti Vivriti, Vol. I, Fasc, 1-6; Vol. L', Fe, 1, @ /10/ each 4 Tattva Cintamani Didhiti Prakas, Fasc. 1-5, @ /10/ each त ote Yattvarthadhigama Sutram, Fasc. 1-3 @ /10/ each wee “० Tirthacintamoni, Fasc, 1-3, @ /10/ each — , १०१ bee Trikanda-Mandanam, Fasc. 1-3 @ /10/ each oe ००५ eee Tul’si Satsai, Fasc. 1--5 @ /10/ each = ,,. oe ०५० *Upamita-bhava-prapafica-katha, Fasc. 1-2, 5-18 @ /10/each =... ५१५ Uvasagadasao, (Text and English) Fasc. 1--6 @ 1/- each ae 3 1 1 1 3 6- =. © Vallala Carita, Fase 1 @ /10/ = fis oo Varsa Kriya Kaumudi, Fase 1--6 @ /10/each _... vee „० ॐ “Vayu Purana, Vol. I, Fasc. 3--6 ; Vol. II, Fasc. 1--7,@ /10/ each ०१५ Vidhira Parijata, Fasc. 1-8 Vol- 11. Fasc. I @ /10/ each we 9 4 Ditto Vol. 11, Fase. 2-5 @ 1/4/ ध. त का ` ivadaratnakara, Fasc. 1--7 @ /10/ each ps "> Vyhat 8 ४९४३0] त Purana, Fasc. 1--6 @ /10/ each ... - oo Yogasaéstra Fase. 1-3 ५५ ००९ + ००० Tibetan Series. A markosha Ms: = ee det 2 Baudhastotrasangraha, Vol. I ००५ 2 A Lower Ladakhi version of Kesarsaga, Fasc. 1--4 @ 1/- each 2 Nyayabindu of Dharmakirti, Fasc. |... ; ron र Pag-Sam S‘hi Tif, Fase, 1--4 @ 1/- cach Rtogs brjod dpag hkhri S‘ifi ( Tib. & Sans. Avadafa Kalpalata ` ४०1. I Fase. 1--10 ; Vol. II. Fasc. 1--10 @ 1/- each i. १ ~ Sher-Phyin, Vol. I, Fase. 1-5; Vol. II, ४९६९५. 1-3 ; Vol. II], Fase 1-6,@ 1/ each 14 Arabic and Persian Serves Amal-i-Salih, or Shan Jahan Namah _ .... a a ooo ( (14181141) Vol. I, Fasc. 1--4 @ 1/- cach oon ««- । Ain-i-Akbari, Fasc. 1-22 @1/8/ each... we ॐ Ditto (English ) Vol. If, Fase. 1-5 Vol. III, Fasc. 1-5 Index to Vol. 17, @ 2/- each ... धक ae Akbarnamah, with Index, Fasc. 1--87 @ 1/8/ each we 5S -Akbarnamah, English Vol. I, Fase. 1--8; Vol. 11, Fase. 1--7, Vol. Lf Fasc. 1-2 @ 1/4/ each किः ६.9.20 Arabic Bibliography, by Dr. A. Sprenger, @ /10/ 2 ५ Conquest of Syria, Fasc. 1-9 @ /10/ each त १० Catalogue of Arabic Books and Manuscripts, 1-2 @ 1/- each 2 “The other Fasciculi of these works are out of stock and complete be supplied. ॥ fons ` । ॐ <> @& +> +> COQ WM र tae pened fod jot m > £> ¢< ॐ @ ।~ w । हि. । © bw © & 00 m4 [क (८० @> ४ © ^> ॐ =. ॐ ७ > © NGOS RN OOPD mm < = @ > ॐ € ॐ त < ॐ > क Catalogue of the Persian Books and Manuscripts in the Library of the Axiatic Suciety of Bengal. Fasc 1--3 @ 1/ each Ra. 3 0 Dictionary of Arabic ‘Vechuical Terms, and Appendix, Fase. 1-21 @ 1/8/ each 31 8 Faras Nama, of Hashini hy ° ज om ers @ | Ditto of Zabardast Khan a +, भ 1 0 Farnang-i-Rashidi, Fasc. 1-14 @ 1/8/ each te = a a 0 । Fibvist-i-Titsi. or, Tisy’s list of Shy‘ah Books, Fase. 1--4 @ 1/- each i, ` च 0 Gulriz ००५ vee o 2 0 HadiyatwL, Hagqiqat, (Text & Eng.) _ ie: ol ye 8 History of Gujarat र das 1 0 Haft Asman, History of the Persian Masnawi, Fasc. 1 @ /12/ each ००, 0 छ | Hisatory of the Caliphs, (171६118) ) Fasc. 1--6 @ 1/4/ each obs ~ 8 Tgalnamah-i-Jahangiri, Fase. 1--3 @ /10/ each ba" ^ = 1 Isabah, with Supplement, 51 Fase 1/- each षः ००. ooo शि 0 Ma asir-i-Rahimi, Part 1, Fasc. 1--8 @ 2/ each 2 हः 6 0 Maa‘asir-ul-Umara, Vol. I, Fase. 1--9, Vol. If, Fase. 1--9; Vol. IIT, 1-10 ७ Index to Vol. 1, Fase. 10-11; Index to Vol. IJ, Fase. 10-12 व Index to Vol. III, Fase. 11-12 @ /1/ each ह ध eo. | ` Ditto (192 ) Vol. I, Fase. 1--2, @ 1/4/ each aes a “व Memoirs of Tahbmasp Be 4.1 ॥ Marhamu `, [1 ’L-Mu’Dila Fasc. 1 Muntakhabu-t-Tawarikb, Fase. 1--15 @ /10/each ... । १ Ditto ( English } Vot. J, Fase. 1--7; Vol. IT, Fase. 1--5 and 3 Indexes ; Vol. [II, Fasc. 1 @ 1/ each or) Muntakhabu-]-Lubab, Fase. 1-19 @ /10/each «= .. a er, 1 । Ditto Part 3, Fasc @ 1/- each ००९ १. व ६110१६१} - वित, Fase. 1 @ /10/ os oo 1 Nigami's Khiradnamah-+Iskandari, Fasc. 1--2 @ /12/ each aoe Persian and Turki Divans of Bayran Khan, Khan Khanan Qawaninu ‘s-Sayyad of Khuda Yar Khan ‘Abbasi, edited in the original Persian with English notes by Lieut. Col. D. C. Phillott Riyazu-s-Salatin, Fase. 1--5 @ /10/ each 9 क Ditto (English) Fase. 1--5 @ 1/ 7 . Shah Alam Nama oe ee Tadhkira-i-khushnavisin # Tubaquat-i-Nagiri, ( English ), Fasc. 1-14 @ 1/- each Ditto Index Tar\kb-i-Firtiz Shahi of Ziyau-d-din Barni Fase. 1--7 @ /10/ each Tarikh-i-Firizshahi, of Shams-i-Sirai Aif, Fase. 1--6 @ /i0/ each Yen Ancient Arabic Poems, Fasc. 1--2 @ 1/8/ each The Mabani ग, Lughat ‘Grammar of the Turki Language in Persian Tuzuk-i-Jahangirl, (lng) Fase. 1 @ 1/ 2. Wis-o-Ramin, Fasc. 1--5 @ /10/ each Zafarpamah, Vol. I, Fase 9, Vol. II, Fase 1--8 @ /10/ each | 1 eee eee eee joe DCO "= ^~ © ©= +> ।~, He pe ++ € ON et ot ~) [न =+ OD Otome |= = ४ © 0 ॐ & @> > ॐ < ॥+> > ४० >. > ०० > © ^~ > ॐ = = ॐ ॐ ee [१ । ASIATIC SOCIETY'S PUBLICATIONS 1. Astatie Reskaucnrs. Vols, XX @ 10/ each 20 OFZ 2. PRocKEDINGs of the Asiatic Society from 1875 to 18699 (1906 to 1904 । are out of stock) @ /8/ per No 3. Jounnat of the Assia.ic Society for 1875 (8), 1871 (7), 1872 (8), 1873 (8), 1874 (8), 1875 (7), 1876 (7), 1877 (8), 1878 (8), 1879 (7), 1880 (8), । 1881 (7), 1882 (6), 1883 (5), 1884 (6), 1885 (6), 1886 (8), 1887 (7) 1888 (1), 1889 (10 , 1890 (11), 1891 (7). 1892 (8), 1898 (11), 1६94 (8), 1895 (7), 1896 (8), 1897 (8), 1898 (8), 1899 (8), 1900 (2), 1901 (7), 1902 (9), 1903 (8), 1904 (16), @ 1/8 per No. to Members and ; @ 2/ ver No. ४० Non-Members N. B.—The jigures enclosed in brakets give the under of Nos. in each Volume. । 4. Jonrnal and Proceedings, N. S., 1905, to date, (Nos. 1-4 of 1905 are out of stock ), @ 1-8 per No. to Members and Rs, 2 per No. to Non-Members ¶ 5. Memoirs, 1905, to date. Price varies from number to number Discount of 25% to Members 6. Centenary Review of the Researches of the Society from 1784-1883 ... 3 0 7. Catalogue of the Library of the Asiatic Society, Bengal, 1910 go.” £ 8, Moore and Hewitson’s Descriptions of Néw Indian Lepidoptera, । ‘iv Parts 1--III, with 8 coloured Plates, 4to. @ 6/ each ane vee al 6 9. Kacmiracabdamrta, Parts I & II @ 1/8/ 6 19. Persian ‘Translation of Haji Baba of Ispahan, by Haji Shaikh Ahmad-i-Kirmasi, and edited with notes by Major D. C. Phillott. ... 10 ¢ - Notices of Sanskrit Manuscripts, Fase. 1-34@1/each ... oe OF ( 8; Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. R. L. Mitra 5 G N.B.—All Cheques, Money Orders, &c. must be made payable to the ‘Treasurer । Asiatic Society,” only ॥ 4 Books are supplied by V. P. P 16-6-12, pe Gangesa Tattvacintamani-didhiti- vivrti PLEASE DO NOT REMOVE CARDS OR SLIPS FROM THIS POCKET UNIVERSITY OF TORONTO LIBRARY 7 010 80 (0 ध्ट 9। > WAL! 504 1115 AVG उ३०।५४४ ||| ||| | | M3IASNMOG LY 110 6€ 0