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HARVARD COLLEGE LIBRARY

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A (oLLEecTION OF PRIENTAL Works

PUBLISHED BY THE eee ae ABIATIO SOCIETY OF BENGAL. = ` New Ssnrigs, No, 844,

तश्वचिन्तामखिः। (१.४५ A-OLINTAMANI.

EDITED BY ` PANDIT KAMAKHYA-NATH TARKA-VAQGISA

VOLUME IV. FASCICULUS I. 1

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AND PUBLISHED BY THB a ASIATIC SOCIETY, 67, PARK STRERT. , , `

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“LIST OF BOOKS FOR SALE

AT THE LIBRARY OF THE SIATIC | POCIETY OF PENGAL,

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TH SOOIRTY’S AGENTS, MESSRS. KEGAN PAUL, TRENCH 7 ee ~ TRUBNOER & 66, LD

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ParsRnoster House, Osarina Cross Roap, Lonpon, W. O., ano Ma. 0170" Hargassowitz, Booxsetter, Lerezic, Germany

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__ » Brihaddevata (Text) Fasc. 1-4 @ /6/ each ५६

~ ` Brihadtiarma Puréya, (Text) Faso. 1-4 @ /6/ each

` , ‘Bribataranyaka Upanishad (English) Faso. 2-8 @ /6/ each

>. Ohaitandya-Chandrodaya Nétaka, (‘Toxt) Faso. 2-3 @ /6/ each *Ohaturvarga Chintamani (Text) Vols. II, 1-26; III. Part I, Fasc

` : .. 4-18.'Part II, Faso. 1-9 @ /6/ each ee ae 1 . - «'@Chhéndogya Upanishad, (English) 5280. 9 = ,. oa

_ ¥:®Hindu Astronomy, (English) Fasc. 2-8 @ /6/ each ste ` - " ६19 Médhaba, (Text) Fasc. 1-4 /6/ eac bea a ~ ` . ':Kétantea, (Text) Faso. 1-6 @ /12/ each

` - < Kathé Rarit Ségara, (English) Fasc. 1-14 @ /12/ each

.... KGrma Purana, (Toxt) Faso. 1-9 @ /6/ cac “a

: ` ` *LalitasVistara, (Text) Fasc, 8-6 @ /0/ cach

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Nyayabindatike, (Text) ya Kusuminjali Prokarana (Text) Vol. I, Fasc. 1-6; Vol. 11, Fasc

1-2

८" arvan, (Text) Faso. 1-5 @ /6/ each -

7 4 Arayyaka of the Rig V (Text) Faso. 1-5 @ /6/ cach ~` ५१०३ | ` , Aphortems of 8461१115 9, ( English) Faso. 1 ‘Ashtaafhasriké Prajyapéramité, (Text) Faso. 1-6 @ /6/ each ~ “Aévavaidyaka, (Text) Fuso. 1-5 @ /6/ each Avadaéna Kalpalatdé, (Sans. and Tibetan) Vol. I, Fasc. 1-4; Vol. II. Faso

ie Ditto ` (English) Fasc. 1-3 @ /12/ each - .Madana Périjata, (Text) Fasc. 1-11 @ /6/ each Manutiké Sangraha, (‘Text) Fasc. 1-3 @ /6/ each | + #Mérkagdeya Puréna, (‘'cxt) Faso. 4-7 @ /6/ each SS SNe हका fe Purana, (English) Faso. 1-3 @ /12 each . ,. OMimap | ~ , Nérade Soriti, (Text) 1०986, 1-3 @ "` Nyayavértika, (Text) Fuso. 1-2 ,.. { ®Nirakta, (Text) Vol. I, Faso. 4-6; Vol. II, Fasc. 1-6; Vol. III , ' -. Faso. 1-6; Vol IV, Faso. 1-8 @ /6/ ९५०} =... ° *Nitiséra, or The Elements of Polity, By Kimandaki, (Sans.) Fugc. 2-6

of the Fasciculs being out of stock

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[1 “Ww ^, ` Sanskrit Series

4 वका Brahma Siddhi, (Text) Faso. 1-+ @ /6/each .. ए, 8 ^` : ®Agni Parfga, (Text) Faso. 2-14 @ /6/ each 14

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Darsana, (Text) Fasc. 8-19 @ /6/ each

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BIBLIOTHECA INDICA: = A COLLECTION OF ORJENTAL WORKS

THE ASIATIC SOCIETY OF BENGAL.

New Ssries.— Nos. 858, 866, 875, 888, 891. THE TATTVA-CHINTAMANI

BY

GANGESA UPADHYAYA,

PART IV, VOLUME I.

SAVDA KHANDA

FROM SAVDAPRAMANYAVADA TO UCHCHHANNA- PRACHOHHANNAVADA

FROM THE COMMENTARIES OF

MATHURA NATHA TARKAVAGISA

EDITED BY PANDIT KAMAKHYA NATHA TARKA.-VAGISA.

Professor, Sanskrit College, Calcutta.

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CALCUTTA : PRINTED AT THE BAPTIST MISSION PRESS. 1897.

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तत्त्वचिन्तामणौ शब्द्ख शङ |

शमदा परामाष्वादादि उच्छन्-प्रच्छन्नवादान्त |

ओरौमद्‌गङ्ग्टोपाध्यायविरचितं |

ञरौमथ्रामाय-तकंवानौ पर विर चित-र हष्टनामकटौकाशडितं |

च्रासियाटौक-सोसादटो -समानानुमल्या संत विद्यालयाध्यापक- ओरोकामाख्यानाथ-तकंवागौओेन

परिशोधित |

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कलिका ताराजधान्यां

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तन्वचिन्तामणो

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भब्दास्यतुरोय खण्डम्‌ |

अथ शब्दो निरूप्यते प्रयोगहेतुभूता्थैत्वन्नान- जन्यः शब्दः प्रमाणम्‌ |

शब्दा ख्यतुरौोयखण्डरहस्यम्‌ | न्याथाम्बृधिशृतसेतु हेतु ओ्रौराममखिलसन्पन्तेः तातं चिभुवमगोतं तरक्षालङ्ारमादराक्लला ॥१॥ Maat मयुरानाय(९ तकवागौश्रधोमता विषदौशत्य दश्येन्ते तुरो यमफिफक्षिकाः ॥२॥ ्रान्बौडिकोपण्डितमणष्डलोषु सन्ताष्डवेरध्ययमं विनापि | मदुक्रमेतत्‌ परिचिन्य धोरा- भिःश्ङ्मध्यापनमातनुष्वम्‌ 118 I vaatfanraruad निरूपितमिदानों चरमप्रमाणं शरब्दः(र९)

(९ श्रौल्रीमथु रामायेति we | (९) द्रदानों शब्द्‌ इति Ge | 1

R | तत्त्वचिन्तामणौ

निरूपणौयोऽतः शिव्यावधानाय प्रतिजानौते« “श्रयेत्यादिना, ‘ay उपमाननिरूपणानन्तरच्एनिष्ठं, “शब्दः शाब्दप्रमाकरणं, SUA WA प्रमाणग्रन्दस्य शल्तएकरणे श्र्यान्तरतापन्तेः “निर्‌- प्त tay निरूपणं लच्ण-खरूप-प्रामाश्या दि भिन्नांपनं, wau- खष्टप-प्रामण्यादिप्रकार कश्ञानानुकूलो व्यापार दति यावत्‌, ख्यातस्य विषयत्वमर्थः, तथाचोपमानविश्रेव्यक-खचण-सखरूप- प्रामाण्यादिप्रकारकन्नानानुकुशव्यापारानन्तरचणएनिष्टाभिन्नो यो- लखण-खरूप-प्रामण्यादि प्रकार कन्नानातुकुलव्यापार स्तदिषयः प्रमाणं शब्दः इत्यन्वयः | “wage लुप्तददितोयाविभक्तिकस्म frequ- क्रिया विगश्रेषणएतया स्तोकं पचतोत्यादाविवाभेदस्य संसगंभर्य्यादाबल- wera, are: क्रिया विग्रेषणएवस्थले अ्रभेदान्वयबोधस्येव wang त्वात्‌, BIT शब्दप्रयोग एव तददिषयता व्यापारातुबन्धिनौ(९) तेन शब्दस्य नि विंषयकल्वेऽपि aft: |

(९ खव्यवदितोत्तरकालकन्तव्यत्वप्रकारक-शिव्यसमवेतबोधालुकूलब्यापारः

प्रतिन्चापदार्थः, श्वथेत्धादि निरूप्यत carat aed, निरूप्यत- दर्थ वत्तेमानसामोप्या्थंकलटप्र्ययस्य वत्तमानकालाव्यवहितोत्तर-

कालार्थकत्वेन येत्यादि वाक्यस्य निरक्षप्रतिन्लात्व, खथेत्यादिना इत्यत्र भेदे gata तथाच अथेत्यादिवाक्याभिन्रप्रतिन्नानुकूलष्टतिमान्‌ मणिकार इति शाब्दबोधः |

(९) द्यापारानुबन्धिने ्यापारप्रयोन्धा, तथाच शब्दप्रयोगस्य नि्विंषयक- त्वेऽपि याचितमण्डनन्यायात्‌ तच्जन्यश्चानरूपव्यापारविषयत्वेन तदि- षयत्वनिर्वाह इति भावः |

WRITS शब्दाप्रामारछवादः। |

केचित्तु श्रयश्ब्दस्य ध्वंसाधिकरणएचणएट त्तिवरूपानन्तरचणए- ahaa” ufafy शक्रिरपि तु अनन्तरचण्त्तिवे धर्ष एव शक्रिः श्रमगर चण न्तितलरूपेणामन्तरचणटन्तित्स्य शक्थता- वच्छेद्‌ कत्वमपेच्छयाभमम्तर चवण MAAS केवलस्य ग्रक्यता वच्छद्‌ कत्व लाघवात्‌ तथाचाश्रयाश्रयिभावमन्बन्धेनेवाग्वयबोधः श्रमेदसम्नन्धे- नान्वयबोध श्रयपदस्य ufafy शकणापत्तेः, श्रतए्व चाव्यया- तिरिक्रनाखः करिया विग्रेषण्लस्यल एव श्रभेदसंसगेकान्वयबोध- नियमोऽग्ययातिरिक्खल एव धालये-नामायेयोभंदाग्वयबुद्याभाव- नियमश्च, waren श्रयादिपदस्य fate शलच्षणापन्तेः aay 'श्रथा दि पदस्यानन्तर्षणदत्तित्वेऽपि शक्रिः श्रपि ल्नन्तरत्य एव श्रक्रिः, श्रमन्तरत्वश्च ध्वंस एव, तथाच श्रयपदोत्तरं सप्नमौोलोपात्‌ शुप्तसक्तम्य्ये समामकालौनले “श्रयपद्‌्स्योपमाननिरूपणध्वंस- स्याग्वयः(९ तु ured, wat anes दति my: | तदसत्‌, श्रथादिपदस्य शाचघवात्‌ अमन्तरख्णन्तित्वे श्रनम्तरत्वे वा शक्तावपि प्रते उपमाममिरूपणोपस्यापकपदाभावेमोपमाननि- खूपणामन्तर चणटन्तिलस्य उपमा ननिरूपणानन्तरत्वश्य धा विशेषतो साभा लक्षणाया श्रावश्वकलेनाभेदाग्वयबोधपकच्चस्यापि सम्यक्‌ त्वादिति | | |

(९) arpa ध्वं साधिक रणढत्तित्वाश्रय इति |

(९) शपि त्वगन्तरच्छश wa शक्तिः अनन्तर्त्वष्च धिकरणतया ध्वंस- विधिश्त्वं तथाचाथपदोत्तरसप्तमौलो पात्‌ लुप्तसप्तम्र्थनिषतायामेवा- यपदार्थस्यो पमाननिरूपयध्वं विशि षशटच्च णस्यान्वय द्रति wo |

8 त्वचिन्तामणो

अष उपजोवकलमेव सञ्गतिरथं गवयपदवाच्य इत्युपमित्था- तकग्रक्रिपद विषयकश्चानस्य श्राब्दधोकरणएतया गशब्दस्यातिदेश- वाक्याथेन्नानात्मकोपमानो पजोवकलादिति भावः। नलु उपमित्या- तकशब्दप्रमाएस्य शतिर शवाक्या्थन्नामात्मकोपमानोपजौवकलत्व- दतिदेशवाक्यायेन्ञानात्मकोपमानस्यापि श्रतिदेश्वाक्यन्नानात्मक- शब्दोपजोवकलेगोपजोव्योपजौवकभावा विशरेषादु पमानमेवादौ कतो निरूपित weg पञाज्िरूप्यते विनिगमकाभावात्‌ श्रयोपमाने श्रब्टोपजौोवकलत्वमेव मास्ति यच कौदृग्गवय दति प्रश्नानन्तरं चिजलेखादिना तादृश्रपिष्डप्रदशेनं तचातिरैश्वाक्धं विनापि सादुष्यज्चानात्मकोपमानोत्पत्तिः। चिब्रलेखादिना गोषदृशो- पल्थितावपि तच गवयपदवाच्यलानुपस्धितेः तद्‌ पश्धिव्ययैमभिप्राय- विषयः शब्दस्तजापि कण्यनोय इति वाच्यम्‌ चिब्रलेखादयुपश्थिते Me प्रश्नवाक्यस्गवथपदोपस्थापितस्य गवथपदवाश्यवस्य मन- चेव बोधो पपत्तेः ्रामिप्रायिकग्रब्दकख्यनाया श्रनावश्वकल्वात्‌ Nyaa तच्न्यश्राब्दबोधे वा दच्छासत्नात्‌ तदिषयसम्पादनाय शरब्दोऽवश्ये कन्पनोय इति वाच्यं। यदा AQAA दृच्छा तदा श्रब्दकल्यनाभावादिति चेत्‌, तरि, शब्दस्यापि नोपमामो पजौवकलं श्यात्‌ व्यवद्ारादिनापि शक्रिदात्मकश्ब्दोदयात्‌ क्ाचित्‌कोप- लोवकत्ञ्च तुद्यमिति, मेवं, मानतावच्छेदकधष्मव्यापकोपजोग्यता- निरूपिता या खबरूपोपजोवकता(९ तस्या एव प्रमाण्णन्तराभिधाने

(९ qeqa उपनोवकतेति wo |

श्म्दाख्यतुरौयखण्डे णब्दाप्रामाण्यवादः | 2

प्रयोजकलात्‌ मानतावच्छेदकधम्मश्च इद्दियल-व्यातिन्नामल-वणे- च्ानल-सादुश्यक्नामत्वान्यतमधश्मैः, सा a शब्द एव वन्तेते मन द्वपमाने सादृ खन्नानमाचस्येव उपमित्यात्मकशक्रिपद विषयकामस्य श्राब्टधोकरणतया WW उपजोव्यलात्‌ शब्दमात्रस्य उपमामं WANA, उपजौवयता खरूपयोग्यता बोध्या तेन निखिलसादृश्षश्ञानस्य गशक्रिपद विषयकोपमित्यतुपधायकलवेऽपि चतिः उपमितिलेन शा दृश्यन्नानत्वेन काय्ये-कारणभावात्‌ BET maar शक्रिपद विषयकोपमितिखरूपयोग्त्रात्‌ उपजौव. कता प्रमाणएविभाजकोपाधिनियतधर्मावच्छिन्ना बोध्या तेना- तिरे श्वाक्यार्थन्नानात्मकोपमानस्य वणं्ञानतावद्छिन्नोपजोव्यता- निरूपित शाब्दलावच्डिश्नकाय्येताश्रयवेऽपि af: शब्दलस्य उप- भितिकरणएत्वानियतलात्‌ साकचात्कारल्-चाचुषला दि कश्च श्रसु- मितिकरणतल्मियतं asada तशिङ्गकासुमितिलेम श्ानलेन अरतुमितिवेन वार कायये-कारणएभावात्‌ तेन प्रत्यच्तो पजोवकल-

(९ सा उपजोवकता Bara: |

(९) साच्तात्कारलतवं चाच्ुषत्वश्वेति we |

® waa खनुमितित्वेन arama तल्लिकककानुमितित्वेन वा इति wo wo चिद्हितपुस्तकपाठः igus तु वाकार स्यानाश्प्राखचकत्वेन yaaa णव निभरः› परामश विश्रेषस्य खनुमितिषि्धेषं प्रति arc यलव्यवस्धापनेनेवातिप्रसङ्कमङ्गात्‌ Ue इारतारत्ता्थमेव mat ऋअनुमितित्वेन काये-कारणमावो तु श्थाप्तिक्चागत्वेनासु- भितित्वेन a वा तजन्ञानत्वेन तद्िक्ककानुमितितेनेत्यवेयम्‌ |

| तत्वचिन्तामग्यौ

सङ्गत्या प्रत्यच्ानन्तरमतुमाननिरूपनातुपपत्तिः५ यच का श्रोषधौ wat हन्तीति प्रन्ने दशग्धलसद्ग्नौषधौ व्वरः इकौ- IHC उपमित्या उ्वरहरणकाय्ये-कारफएभावयहः तजोपमितेः शक्किपदाविषयकल्वेन शाब्दधोकरणलाभावादुपमितिल्मपि प्रमाण- विभाजकग्राब्दधोकरणलानियतमिति वाच्यम्‌ उपमितेः शक्ि- माजविषयकलमियमेन(र) तजालुमानादिनेव काय्यै-कारणभाव- ग्रहादिति। एतेमोपमामफलस्यो पमितेर तिरे श्रवाक्यन्नानात्मकशन्द्‌- फलस्या तिदे श्वाक्यायेन्नानस्य उपनोवकतया फलतः श्नब्दोपजौो व- कत्स्योपमाने सत्वात्‌ शब्द निरूपण्णानन्तरमुपमाननिरूपणापतन्ति- रित्यपि प्रयुक्तः निरक्रखरूपोपजोवकताया एव प्रमाणएन्तराभि- धाने प्रयोजकतया फलत उपजोवकलवस्य तदप्रयोजकलात्‌, यद- wat यन्निरूपणं तननिष्टतदुपजोवकताया एव wea aq प्रयोजकतया फलनिष्टफलनिशूपितोपजोवकतायाः कारणएानन्तरं कारण्ाभिधाने प्रयोजकलासम्भवाच्च, फलनिष्टफलोपजोवकतायाः कारणनिष्ठत्व-कारणनिरूपिततल्ाभावात्‌ तद्या safe परम्परासम्ब- मेम कारणएनिष्टल-कार णएनिरूपितलाभ्यपगकेऽतिप्रसङ्गात्‌ गौ रवा | श्रतएवाहुमानदौधितौ फलत इति विहाय खरूपतखेत्युक्रमिति

सम्मदायः | नव्यास्तु उपजोव्योपजौोवकभावयोस्तुच्यतवेऽपि चति: श्रान-

(९) wrt खनुमितित्वेन काय्यैकारणमभावात्‌ प्रत्यच्तत्वव्यापकोपनोद्यता- निरूपितोपजोवकत्वं अनुमानस्याच्चतमिति aay | (९) श्रक्तिविषयकत्व नियमेनेति |

ण्ब्दाख्यतुरोयखण्डे शब्दाप्रामाण्यवादः |

नत््येनियमे सङ्गतेरप्रयोजकलात्‌ fa aay aaa) waa क्रमनियामिका, सक्गतिञ्चामन्तराभिधानव्यापकतायासुप- युष्यते waar सादृष्पलिङ्गक-पद लिङ्गकागुमितेरपि fas River ्रानसामान्यस्यानुमितिकरणतया वा श्रुमामलेन तदुपजौ- व्यवस्य सादृश्श्चानल-पद जा मलवावच्छेदेन सत्वात्‌ उपमाम-ग्रब्दयोः प्ेमनुमाननिरूपनेऽपि किं विनिगमकमिति प्राङरिति daa: |

लखणए-सखरूप-प्रामाण्निशूपणस्य प्रतिन्ञातत्ात्‌ प्रथमतो wea निरूपयति, श्रयोगेति ‘neater प्थिगकारणणेश्त, "यदं AMEN, यत्‌ श्रथ विषयकतन्वन्नानं, तच्छन्यः श्रमाणं शब्दः" शृतं ae? ‘cae weg? एति शच्यनि शः, अन्यया ‘mize लक्षणान्तगेतले प्रमाणएसामान्यस्य TATA भर्यान्तराग्याघ्यो- Tea) .भरथमतो -येन केनापि प्रमाणेने वक्तर्वाच्याधंन्नानं ततो ATTA ततः ` परस्य are ` भवलिति वाक्यार्थः WIA ततो वाक्यायश्चानरूपेष्टसाघधमतान्नानात्‌ वाक्ये इचछा(१) ततो वाक्यरूपेष्टसाधनतान्नानात्‌ रतिसाध्यताश्चानयहटतात्‌ कष्टाभिघातादौ चिकर्षां ततः कष्डाभिधातादिषाधिका कण्डा-

(९ wate पय्यनुयो गानदत्वमिति न्धायेगेदयर्धः |

(९ खथांन्तरं अनाकाङ्कितिभिधानं, पमाणसामान्यस्य लच्यत्वे यनाका- हितस्य शब्दातिरिक्तप्रमाणस्याभिधानापत्निरिति भावः। gaa सामान्यस्य TAS प्रमायसामान्यान्तगेतप्रन्तादौ प्रयोगहेतुभूतारच- तत्वज्ञागजन्यशम्दत्वामावादब्यातिरिति तत्परम्‌

(र) छातिसाध्यवाक्ये इच्छा इति wo | |

ष्ट तत््वचिन्तामणतै

दयुपादानकप्रटत्निः ततः कण्डटादिचेष्टाविभागादिक्रमेण कण्टाभि- घाताययुत्पन्तिः ततो वाक्योत्यन्तिरिति waren प्राचां मये पर- न्परया वक्ुवाक्याथेवुबो धयिषापू्वेकवाक्यलावच्छिनन प्रति वक्वाक्या- UMA हेतुतथा way लच्णं सक्गमनोयम्‌ वड्िना सिश्चति दृत्यप्रमाणएशब्देऽतिव्याक्षिवारण्ाय ‘adfa यथार्थल्यथेः aq श्रयोगद्ेत्ग्तेति wrafanaw व्यथे, fe प्रयोगाेतु भरतेनापि चूलानेन शब्दो जन्यते यदिदं व्यावन्तयेत्‌, शब्दा रेतुग्डतं ave शब्दं जनयतौ ति वदतो व्याघातात्‌ चायेतत्वन्नानादिजन्यषंसकारा- दिवारणाथ तदिति वाच्यम्‌ तथापि प्रयोगद्ेत्‌ग्धतायेत्चन्नान- जन्यघंख्कारादावतिव्या्चितादवसख्थयात्‌ तद्वारणाय श्ब्दपद रूच्य- श्चणथोरभयचापि प्रवेश्रनोयमिति चेत्‌, तं तदि तान्ते fag श्रंपदमपि व्यथे wae श्नानविषयलखशूपस्य केवला- ग्वेयितया क्ञानमाचरस्येवा थै विषयकलवेनाव्यावन्तंकलवात्‌ TRON वक्पदाथेतच्वन्नानणन्ये साचादौश्वरौयपदा्थे- Tamara वङ्किना सिश्चतोत्यादिबाधितवाक्येऽतिव्या्निवार- णाया्थेपदं वाक्याथंपरमिति वाच्यम्‌ तथापि कण्ठताख्वाद्यभि- घातादौ तदराक्यरूपेष्टवाधनता दि ज्ञानात्मकवाक्यायंतच्चन्नानजन्य- तया तादृशबाधितवाक्येऽतियाशतितादवस्छयात्‌ इृष्टणाधनल्ादेरपि यत्किच्चिदाक्यायेलात्‌ श्रयारयेपदं erat खपदं प्रटतवाक्यपर- fafa चेत्‌, तथापि वदह्किकरणएकसेकातुकूलतिमानित्यादि प्रत-

(९) qetquaa area weatrya दतोति क० ्ब्दाहेतुभूतं अथच शन्दोजन्यत दतौति |

्ब्दाख्यतुरौयखण्डे शब्दापामाण्छवादः।

वाक्चा्च॑ञ्नानस्यापि waa: प्रमात्वात्‌ तष्ञन्यतया श्रतिष्यात्तिता- zai aria खणन्यप्रतिपत्तिविषयलं तच्च पदार्यऽणस्तौति वक्रौ शरस्य वा पदाथेतचचन्नानमादायाणतिव्याेदुरग्वारलाश्च अतएव तत्वपदमपि व्यथे तदु पादानेऽपणतिष्याेदरग्वारल्वादिति। उच्यते ददं हिन प्रमाणशब्दसामान्यलकचणं शब्दमाजरश्ेव प्रमाणत्वेन साका- gree mae वा तक्ष्चणत्वात्‌ वद्िना सिश्चतोत्यश्यापि कचिदयँ प्रमाणतेना थेतचलेत्यादे यधेतवापत्तेखच किन्त कस्मिश्लयं किं वाक्यं प्रमाणं तस्येव HIT, तथाच श्रथेतचेत्यारेस्तदिशेव्यक-तस्घं- सगं क-तत्मकारकथयार्थ्॑ञानजन्यो यः स॒ तदिगरेद्यक-तत्घंसगेक- तत््मरकारकप्रमाएशरष्द इत्यथैः, एतल्लाभायेवार्थपदं, afer सिश्च- Marware सेके" वद्किकरणएक्त्वागरे प्रमाणल्ववारणाय धथार्यति, तादृ श्रज्ामजन्यसंसकारेच्छाद्‌ावतिष्या्चिवारणय प्रथोग- डेतुश्चतेति जन्यविग्रेवणं, प्रयोगरेतुग्डतलश्च वणेसामरौणन्यलं, प्रयोगस्य" awe, "थो हेतुः" या सामो, "ततो wa: तत owas दति Bat: तथाच वेसा मय्ोजन्यले खति निरक्रतत्वन्ञान- अन्यत्वं निरक्रप्रमाणशम्दलमिति wae फलितं संखारेच्छादिख वशेसाममोजन्यः इतरसामग्या इतरचाजनकलादिति arfa- aifs:, ष्वमिवारणाय शब्दत्मपहाय awaited, adeg कला दिव्यापक-ग्रष्दलव्याय-ष्वनिव्याटृन्तजातिविशेषः। ae- प्रागभावजन्यवे wala सम्यक्‌ किं कारणकलापात्मकसामनौ- ्वेशेनेति वाच्यम्‌ यच वणेप्रागभावप्रत्यक्े वाक्यार्थाऽणेपनौतो

भासते तच वणेप्रागभावप्रत्यकेऽतिप्रसङ्गात्‌ तख वाक्धायेविगेषण- 2

१० तभ्वचिन्तामणौ |

कतया निङ्क्रश्नागजन्यलस्यापि तज सम्भवात्‌ तथापि ada षतौत्येव सम्यक्‌ तावतेव संस्कारादे रपनौतवाक्या्ं विषयक - बणंप्रागभाषप्रत्यलस्य वारणसम्भवादिति वाच्यम्‌ थथासन्नि- aR तरेय्याभावात्‌ | एतश्च Maan प्रमाणल्पके, शब्द WAS प्रमाणएत्वप्े तु तादृ श्जन्यविषयकश्चामत्वं लचणमवसेयम्‌ |

aq मौ निश्चोकेऽव्या्िः यदा कदाचित्‌ येन केनचित्‌ क्रम- श्यत्क्रमोखरितामामेव तन्तत्पदानां मौनिना अर्क्रमेणतुखन्पौय- मानानां मौनिद्लोकलं तच थस्िनर्यं यद्योगे प्रमाणशब्द तद्येविग्रेव्यक-तदथेप्रकारकयथार्थ॑न्नानजन्यलं नास्ति तादृश्रन्नान- वता मौनिना श्रगु्चरितलात्‌ setae तादृद्रन्नानाभा- वादिति, एवं यच am यदथेवुबोधयिषया वाक्यसुच्चरितं श्रोचा तात्प्यैभ्रमेख weurfear वा तदितरयोग्यायाऽवगतः तच शओ्रोतु- TAMAS तदाक्यष्याप्रामाश्छापन्तिस्तदिगेव्यक-तत्रकारकन्नानजन्य- त्वाभावात्‌, एवं इशएकाचयुच्चरिते waar सिद्चतोत्यादिवाक्येऽया्तिः Ware: प्रशतवाक्यार्यानमिन्नतया इदं वाक्यं सुखसाधनमिति सुखखसाधनताश्ञामादेव तेन तद्राक्धप्रयोगादिति चेत्‌, न, तेषा- मपौश्वरोयतादृशश्चानभन्यतया शकएसमन्वयात्‌ Yaaq वद्किना सिद्चतौत्याद्ययोग्यवाक्यश्यापि करणएले aye प्रमाणला- पत्तिः, रएवमौश्वरौयतादृ गरज्चानजन्यतया घटमानयेत्याथुदासौन- वाक्यष्यापि करणले ay प्रमाणलापन्तिरिति वाच्यम्‌ वद्धि- नेति भागस्य agi प्रमाणएतस्येष्टलात्‌ सिद्चतौ तिभागस्य

(९) afeafa भागे इति qe |

णब्दाख्यतु रोयखण्दे श्ब्दाप्रामाण्यवादः | UW

चटमानयेत्युदासौनवाक्यस्यापि च॒ शक्षणया करणएत्विगश्े्यक- वङ्किप्रमाजननसम्यतेन लच्छलस्येष्टतात्‌ तादृ शप्रमा खरूपयोग्यस्येव weary श्रतणएव क्चिदासन्तिभ्रमेख श्रनासन्ञाद पि श्रन्वयबोध- दति खदरूपयोग्यतया श्रनासन्ञोऽपि ल्य wai निरा- काङ्कुस्य घटः कष्ैवमामयमं शतिरित्यारेरपि कश्मेव विशेव्यक- घटरप्रकारकयथाथंन्चानजन्यतया कंम्मेले Bett प्रमाणत्वं स्यादिति वाच्यम्‌ चरपद-कम्मत्वादिपदस्य wewa घटः कश्मेलमिति समु दितवाक्ये चटवत्कम्मेवरूपविशिष्टे शक्रिभ्रमाञ्च घटवत्कम्रोव- विषयकश्राब्दधौजननसमर्यतेन घटः कश्मलमित्या दिभिराकाङ्ख- स्यापि तादृश्प्रमाखद्पयोग्यतेन waa) चेवमेतललक्षणस्य व्यावर्स्यांभाव इति वाच्यम्‌) afear fagalare: सेके वद्धि- करणकर््वा ATTA” व्यवच्छेथलात्‌ | एतेन pave Una वाक्यडेतुः वाक्यायेज्ञानं विनापि शक-बालकादिभिः(८९) वाक्यप्रयोगात्‌ वाक्याथंन्चानलेम Yaarq तच्रापौश्वरोय- वाक्ायेन्ञानमस्तौति वाच्यम्‌ तथापि विषंवादिशूकादिवाक्ये व्यभिचारात्‌ वक्तुवाक्याथेवुबोधयिषापू्वैकवाक्यलावच्छिननं परति वक्ृवाक्याथश्चानं हेतुरिति व्यभिचार इति वाच्यम्‌, मानाभावात्‌ | वाक्यं प्रति वाक्याथेज्ञानस्य शाचाददेतुलरेऽपि उक्रप्रणाख्या वक्रवाक्याथेबुबोधयिषापूव्वेकवाक्यलावच्छिश्नं प्रति सखविषयकेच्छादिद्ारा वाक्यार्थज्ञानं डेतुरावश्छक इति वाच्यम्‌ |

(९) प्रमात्वस्येति we | (९) श्ुकादिभिरि्ति we |

LR तच्वचिन्तामणौ |

SHUTS वाक्यायेन्चानस्छ WaT तादृश्वाक्योपयो गिलेऽपि वाक्यायेश्चामख Wa मानाभावात्‌, वाक्यार्थज्ञानं विनापि afs- गरे्क-तत्मकारकज्चानलरूपेण श्राप्तवाक्यालुमानादिना वाक्या्े- WANT वाक्यायेन्नाने इच्छासम्भवात्‌ जौकिकम्रत्य्चं प्रत्येव विषयस्छ हेतुलात्‌ यज वाक्धार्थश्नानस्य शौ किकसाचात्कारादेव तजेच्छा तापि वाक्यायन्नानस्य ASAA मानाभावः कण्डामि- चातादिना saarfegaiq, अतएव वाक्याथश्चानन्नानमपि हेतुः कण्ठाभिघातादिना श्रन्यथाबिद्धलात्‌ अन्यथा जलादइरणा- MATT कपाशसंयोगादिसा्यकप्रटन्तिदारा बटादिदेत्‌- ल्ापत्तेरिति मव्यमते शच्णमिद मखम्भवि पया सिश्चतौति aa गिङक्राथंतत्वन्नागजन्यलविर हा दित्यपि निरस्तम्‌ mada te रोयताद् शरश्चानजन्यतामादाथेव स्वे श्णएसमन्वथात्‌ शवं तत्वपदवेच्यै अयोग्ये ATT celery वाहृवाकयाथश्चानस्य चाजनकलादिति वाच्यम्‌ वक्वाक्यान्नानख् वाक्याथेश्चानलेनाजनकलेऽपि WAT RM जनकलात्‌ | अस्त वा जन्यलमच समानकालोनत्मानं लाघवात्‌ तेन काययैला- वच्छिन्लं प्रति mada काललेन का्थ-कारणभावाखच्वेऽपि उतिः(४ |

(९ तथाच afeiteat काय्य-कारणभावः तत्सामान्ययोरपीीति नियमे मानामावेन काय्येविशेषं प्रति कालविशेषस्य शरान विशेषस्य कार- सत्वेऽपि काय्यैतवावच्छित्रं प्रति कालसामान्यस्य श्चानसामान्यस्य हेतुत्वे मानाभाव इति भावः |

ए्ब्दाख्यतुरोयखष्डे णब्दाप्रामाणयवादः | LR

केचित्तु Tia ॒वाक्धाहेतुतेऽपि वक्कुरानुपूर्यौ ञानं हेतुरेव तथाच तच््रपदातुपादाने बाधितवाक्यानुपू्व्बौ-बाधित- वाक्या्थीभयविषयकसमू डा लम्बनजन्ये बाधितवाक्ये५ श्रतिव्धा्िः श्रानुपूर्व्वोज्नानविधया तत्र TTR हेतुलात्‌ इर्थे्चान- aa sana faafed येन नोकदोषः arfzars: | तदसत्‌, वाक्याथन्ञानवदानुपूरवो NAV वाक्येतूले मानाभावात्‌(९ वाख्वाद्यमिघा तन्ये कर शापाटवजन्ये वाक्ये व्यभिचारात्‌ | देवं घटमानयेत्याघानुपूर्व्यौ मविदुषोऽपि gate: तादु शानुपूर्म्यौक- वाक्यप्रयोगापन्तिरिति वाच्यम्‌ श्रानुपूनवौँश्चानं विमा कष्ठाभि- चातादौ ताङ्शवाक्यरूपेष्टसाधमताश्नानस्येवा सम्भवात्‌ खोरेष्क- छतिषाध्यवाक्यलावच्छिस्नं प्रत्यामुपूर्व्वो नामस्य परन्परयोपयो गिल्वे- ऽपि कारणव मानाभावात्‌ कष्डाजिचातादिमा श्रन्ययासिद्धलाच् अन्यया खगा दिश्चामस्यापि यागादिसाध्यकप्रष्तिद्ारा यागादि- जन्यखगे हेतुत्ापन्ेरिति |

केचिन्‌, प्रयोगो डहेतुग्तो यस्येति शुत्यत्या प्रयोगाद्धेतोः तमुत्पन्नमिति व्युत्पत्या वा प्रयोगेतु्धतपदं शाष्दलङूपजाति- विगरेषविशिष्टपर, तादृशं यद थेत्वन्ञानं तदेव जन्यं यख्छेति Tar श्राब्दप्रमाकर णत्वं WAY पय्येवसितं, अ्र्थपद श्च खरूपकथयनं। सेवं शच्यतावच्छेदक-लख्णयोरभेद इति वाच्यम्‌ लच्प्रविष्टस्य faa-

(९) विसंवादिवाण्छे इति we . (९) वाक्धा्ं ्चानवदानुपर्व्व्ागमपि aaa: मानाभावादिति we |

qe | arafarntaat

ननु शब्दो प्रमाणं तथाहि करणविश्रेषः प्रमाणं,

खणप्रमाकरण्लस्य\ शणेऽनिवेश्रात्‌ तयोरभेदेऽपि चतिविर- ere’) way पूष्वेवत्‌ तन्तत्छंसगं क-तन्तत्पदार्थघरितं बोध्य- fafa प्राहरिति aaa: i

खच्णसुक्मिदानों प्रामाण्यं ्यवश्थापयितु प्रथमतो बौद्धमत- -माश्द्यु निराकरोति, नव्िल्यादिना, “न प्रमाणं" प्रमितिकरणं, ` करणएलश्च फणायो गव्यवच्छिल्ञकार णव फलोपधायकलमिति यावत्‌, मतु Saas सति कारणत, प्रमायोगव्यवच्छेदाभावस्छ वच्छ माण्डेतोरप्रथोजकलापन्तेः। नच खपत्यच-(*सखलिङ्गकाहमित्युपधा- कत्वात्‌ बाध इति वाच्यम्‌ शब्दाविषयकातुमितिभिन्ञप्रमिल्युप- धायकान्यलस्य") साध्यत्वात्‌ | पे weeds शब्द श्ञानपर, अ्रन्यथा न्यायमयेऽपि शब्दन्नानख्येव प्रमाणलात्‌ सिद्धसाधनापत्तेः ज्ायमान- शब्दस्य ACTA तु ययाञ्रुतमेव Ty तथापि अननित- WMTW mew argued वा twa: सिद्धसाधनं एवं शब्दो गुण इति wee तञ्च्राने वा ine: सिद्धसाधनमिति वाश्यम्‌।

(१) लच्छप्रविङविलच्तणप्रमात्वस्येति ae, ग० |

(९) तथाच वस्तुगत्या लच्यतावष्ेदक-लच्छणयो रमेदेऽपि उपदि तानुप- हितमेदात्‌ लच्यता वच्छेदक-लच्चणभावसङ्कतिरिति भावः |

९) varus लौ किकप्र्यच्परम्‌ |

(४) शरब्दाविषयकेति प्रमितिविश्रेषं तथाच शब्दविषयतागरून्या अनुमितिभिन्ना या प्रमितिः तदुपधायकान्धत्वस्येत्य्थः |

प्ब्दाख्यतुरोयखष्डे श्रब्दाप्रामाणयवादः

पकतावच्छेद कावच्छेदेन साध्यसिद्धेररेश्पलात्‌(\)। चेतद्नुमान- खण्ड एव ‘aay प्रमाणं दति वागृभञ्यागशदिःतं तत्‌ किमथे पुनरा श्ङ्ते, इति षाश्यम्‌ aw fe sama यदि प्रमाथं तदा तेन ufsuy एव शब्दः प्रमाणं भविव्यतोति शष्दोऽपि प्रमाणएमित्याग्रयः इड तु ्रस्वसुमामप्रामाच्य तयापि फणव्यभि- चारेण करणएत्वाभावात्‌ सख प्रमारमिद्याश्यः। wey प्रमोपधायकलानभ्यपगमे गन्दश्रवणानन्तरं विशिष्टानुभवः कथं स्यादिति वाच्यम्‌ wand शब्द ्रवणानन्तरं विशिष्टानुभवश्येवा- fag: fan पडा्थौपस्थितिखद संसर्गायहमाचम्‌ | var) शब्देन Waa तन्तत्पदाथौपखितौ Area way साचात्काराकमको fafn- Brana: दृत्यसिप्राय इति a काष्यमुपपन्तिः। wa शब्दः asara वा शन्दाविषयकानु्मितिमिन्नप्रमित्युपधायकं वेति विप्रतिपत्तिः, पक्तावच्छंदकसामानाधिकरणष्छेम विधेः पताव दकावच्छेदेन भिषेधस्य सिद्धेरदेस्यवात्‌ नाजनितशाब्द बोधक meg श्न्दोगण दति शब्दे विधिकोटावंश्रतो बाधोनिषेध- कोटावगश्रतः सिद्धसाधनमिति

केचित्तु, शब्दत्वं aA वा तादूग्प्रमिल्युपधायकटन्ति वेति विप्रतिपत्तिरनातोऽश्तो बाधावकाशः, weary शन्दपद-

(९) तथाचावच्छेद्‌ावच्छेदेगानु मितौ सामानाधिकरणयमाचेण सिडेरप्रति- ` बन्धकत्वात्‌ सिद्धसाधनमिति भावः |

(९) मनु विशिष्टमतेरानुमविकत्वात्‌ व्यनुभवापलाप दइव्खरसादाह यदेति |

१९ तत्त्वचिन्तामणौ |

कर शश्च तत्‌ यस्मिन्‌ सति क्रिया भवत्येव |

शब्दे सति प्रमा भवत्धेषेति नायं शब्दः Tara” weet प्रमाणमिति वाक्यस्य प्रामाखाप्रमाणयेव्याघातः, आअस्याप्रामा्येऽपि रत-

प्रत्तिनिमिन्तमुभयवा दि सिद्धमेव केवलं जा तिरूपले श्रतद्याटत्ति- पते विवाद rare |

क्तो प्रमाणं तज हेतुमाह, ‘aurelfa, ‘acafana’ waren: करणं, “क्रिया vada’ काय्येमुत्यद्चत waar: तयाच कार्चौपधायकलतवं करणत्वमिति भावः, भ्रमा भवेत्येव' wad प्रमा भवति, margifemafacecurat पदाथंख्मरणादिव्यापार- विरददश्ायाश्च शब्दात्‌ प्रमानुत्पत्तेरिति भावः। तथाच प्रमोप- धाचकलरात्यन्ताभावो हेतुः, प्रमा शब्दाविषयकलेन श्रतुमिति- fasaa विशेषणोया तेन afayarafafa खप्रत्यक्ञ्चादाय खशूपासिद्धिः। साध्याविग्रेषवः, तादृ गप्रमोपधायकान्यत्वस्य साध्यतया श्रन्योन्याभावात्यन्ताभावभेदेन भेदादिति इदयम्‌। “वाक्यस्य' भवद्‌ कवाक्यसछ, श्रामाण्पाप्रामाप्योः' प्रमो पधायकले

(९) नायं प्रमाणभिति ae |

(९) wee प्रमाणमितौति we |

(९) शब्दत्वस्य भातिरूपत्वे गगतजात्यनकौ कर्प्ररमते विवादः शब्दत्वस्य च्पतद्दाठत्िरूपत्वे अण्डोपाधिरूपत्वे शब्दत्वस्य mfaagtae- aud विवाद दति समु दिततात्प्ेम्‌ |

WTF श्ब्दाप्रामाखयवादः १७

द्त्धाप्यमानाविसंवादादिति चेत्‌, न,आकाहगदिमतः

अप्रमोपधायकले स, “व्याघातः शब्दस्य प्रमोपधायकान्यवव्याचातः, प्रमोपधाथकये श्रायातं शब्दस्य VAI प्रमो पधायकले, अप्रमोप- धायकत्वे डि श्रप्रमोपधायकलवं भअमोपधायकलं, प्रमित्यशुपधायकषलं वा, WY श्रायातं waves प्रमो पधायकल्व, विवयबाेनेव प्रशतवाक्यनन्यन्नानस्व WAT. | श्रग्ये शब्दस्य प्रमो पधायकान्यले मानाभावः भवदुक्रवाक्यस्येव तन्न मानलादिति ara’) ्रप्रामा- esta’ प्रमित्यनुपधायकल्वेऽपि, “एतद्‌ त्या्यमानेति एतष्न्बपदा- यपस्चिति-तद संसर्गाग्रडषदषशतमनमख इत्ययः, “श्रविषंवारात्‌' अवि- संवादिश्ञानननकलात्‌ शब्दस्य प्रमोपधायकान्यलविषयकप्रमाजनक- atfefa यावत्‌, तथाच मभ एव शब्दस्य प्रमोपधायकान्यले मामं, wafting शअरप्रामाप्छश्ङष्युदासायेति भावः ` कचि “एतदु- त्वाणणासुमाना विसंवादादिति पाठः तत्रेतच्छन्यसाध्य-साधनादिरूप- पदाथीपसख्विति-तदसंसर्गाग्रडजन्यासुमा नस्य शाब्द प्रमो पधाथकान्यल- TAIRA, तथाचासुमाममेव शब्दस्य प्रमोपधायकान्यले मानमिति भावः। चाव्बकिणानुमानस्यापि प्रामाश्ागन्युप-

(९) खुतदुत्याप्यानुमानाविसंवादादितोति ae

(९) ^ प्रह्णतवाक्छजन्धश्चानस्य wet प्रमाणमिति array, ^ स्रमल्वात्‌› बाधितपिषयकत्वादित्यथंः।

` .९ तथाच यदि ‘qe प्रमां इति wager प्रमिद्युपधायकां

तदा शब्दमाथस्य प्रमित्यमुपधायकषतव निष्य॒माण्कमिति ara | 3 ,

द, = तत्त्वचिन्तामणौ |

परदाथैसरणादिव्यापारवतः प्रमाणत्वेन AMAA प्रमोत्पक्तेरावश्यकत्वात्‌ अतथाभूतत्वे फलाजनक-

गमादिदमषक्तमिति षाश्यम्‌ एतत्पाठपचे सौ गतमाब्य षवे पकिल्वादिति इदयम्‌ खमते भागासिद्धिमाड, शश्राकाङ्खादौति आकाङ्घाज्ञाना दिविशिष्टस्येत्ययेः, “आदिना योग्यताज्ञानासत्तिज्ञान- इन्तिन्नान-विरोधिजिश्नासादि प्रतिबन्धकाभावपरिग्रडः(), “पदाथ सरणादौति पटदाथस्मरणादिरूपव्यापारविशिष्टरटत्यथेः, ‘afear अवान्तरवाक्यायेबोधपरिग्रदः, AAAI IMAI: अतुमानादिमा asarasfa श्ाम्दोदयादिति तस्य weary: ्रमाणल्वेनः प्रमाषामयौविशिष्टलेन, 'श्रावश्यकल्वादिति, तथाच aay शब्दे नोभयवादि सिद्धो हेतुरिति ara) |

मन्वाकाङ्खग दिन्नानविशिष्टश्रब्देऽप्याकाङ्कय दिज्ञागरूपसामयो विर- इद शायां प्रमो पधा्कलाभावस्तवाभ्युपगत इति भागाषिद्धिरित्य- RAT, “MAIR इति इतर षामथ्यषमवधान इत्यथः, “वकारः "साम्या दित्यनन्तर योख्यः, "फलाजनकतस्य' प्रमाफलोपधायकला- ` भाव, “कर णान्तरेति करणणन्तरे चुरादावपि खल्ाचेत्यथेः, तथाच चच्धरादौ व्यभिचार इति भावः। शअन्योन्याभावस्च व्याण-

(९) enfen योग्घतान्नानासत्तिश्लान-विसोधिजिन्नासादिप्रतिबन्धका- भावपर्गिद इति we |

(९. तथाच पच्चतावश्ड्ेदकसामानाधिकरण्येन हेत्वभावात्‌ मागासिद्धि- fafa ata i

णब्दाख्यतु रौयखण्े WTAE | १६

डत्तिलभियमेम तज साध्यास्नात्‌ प्रमाफलोपधायकलात्यग्ताभावख्व साध्यत्वे सिद्धसाधनादिति ara: |

wa केचित्‌ शब्दस्य खप्रत्यकानुमितिभिन्ञप्रमाजनकले arn भावः। चैवं वाक्यश्चवणानन्तरं aerate: कथं खादिति वाश्यम्‌ | वाक्यघटकौग्धततन्तत्परेभ्यस्तन्तत्पराचापस्वितौ मने. वोपनोतभानात्मकवाक्यायंबोधसन्भवात्‌। तथापि वाक्यश्रवणा-+ मन्तरं शागब्दत्वजा ति विशेववि शिष्टवाक्या्थबोधः कथं WATE WeNTT वच्छिन्नबो धस्यापि पदा्थौपथितिखहहतमगोमाच्रहेतुकते मानसत्व- विशिष्टसाक्ात्कारमाज्येव श्ाग्दलापत्तिरिति वाच्यम्‌ | ITE पातिरिक्रजातौ मानाभावात्‌ शाष्दवस्याति रिक्जातेरण्वुपगमे तदः बच्छिमोत्पन्तिनियामकतया(९) इत्या पदजन्यपदाथौपस्थित्यादेरंतु- ताया अवश्कल्पमौ यत्वेन गौरवप्रसङ्गाशेत्याञ्ः | तदसत्‌, WyAw भ्रान्दथामि saat: शाष्दिति शत्याद्यनुभवसिद्धायाः शाब्दत्वजाते- रपो तुमश्रक्यत्ात्‌ अतएव तदवख्डिनलं प्रति art west: यापस्धित्यादेः कारत्वकल्पनागौ रवमपि प्रामाणिकलान्न दोषाय | TAS TYR wolf श्रुतभेवेदं पुराणादिभ् इत्याकारानु- भवसिद्धेव श्राब्दवजातिः। surat: आवणप्रल्यच्च एव शक्तः श्राब्दत्वजातिः कथं तादु श्राजुभवविषय इति वाच्यम्‌ अ्वोना- aaa “श्रात्मा वाऽरे ओतव्यो मन्तव्य इत्यादिश्रुतौ? मया श्रयमर्थेः श्त इृत्यादिशौ किकवाक्ये शाब्दबोधेऽपि प्रायोगात्‌।

(४ तदवच्छ्रोत्पत्तिनियामिकाया दति Go, wef ५) Cannan वाऽरे मेच्रेयि श्रोतव्यः? इ्यादिश्चताविति we, Ws

qe वक्वचिन्तामणौ |

भख.तच श्राष्टे wwe aay) वः Te लणेत्यश्वा पि(\) Srey) wT we जातिरष्ठ वा तदवच्छिन्नं प्रति पदश्चागजन्यपदार्थापसख्ित्यादे तुलं, तथापि शा जातिर्मानसल्व- area तथाच चचुरारिवच्छ्दोऽपि. मत्यचममाणाकगंत एव मतु TATA तद्य AAAS यागाः ग्राब्दबोधाननम्तरं Uri आाचात्करोमौत्यतव्यवमायापन्तिः तज te नासुमितं भवा arene किन्तु शुतमेवेदं Goa दत्यतुग्यवसाधाभावापन्तिखधेति(९) वाच्यम्‌ . . लौ किकविप्रयताखरूप(रसा चात्कारलावच्छिश्विषयत- सदमावधोखदिवयलात्‌)। अन्यथा रमि चन्दनं दतयपनोतभागा- भनार चौरं साषात्करोमोत्ययवसायापनत घौरभं षाचात्करो- -नोत्यतुग्यवसायाभावापन्तेख(४)। तस्य ATA cay wiaferwerinara® यागादिग्राष्दबोधे उपनोतभानापन्निः तथाच धागादिकं श्टणोमोत्यचुग्यवसायवत्‌ घटादिकं शरणोमौत्यनु- व्यवसायः स्यादिति वाच्यम्‌ शब्दलावद्छिलविषयतायाखवाभादेन

(४ शाब्दे शक्तिः sarang श्तयेत्यस्यापौति we, ग° |

¢“ इत्यनुव्यवसायानुपपत्तिख्ेलौति we, ae |

(र लौकिकबिषयतात्मकङ्ेति we, ae

©) तथाचेतश्मते We मानसोपनौतभानात्मकतया लौकिकविषयत्वा भावात्‌ यागादेः श्राग्दबोधानन्तरं यागं साच्तात्‌ Chagas सायापत्तिनं वा ददं साच्तातृद्धतमिन्नुब्वसायानुपपत्तिरिति

भावः| |

(४ gagqaaaragquaidfa wo, ग० |

© पदानन्धोपख्धितघटादौनामपौव्र्चः।

शब्दाख्यतुरोयखणे णब्दाप्रामाण्यवादः | २९

तादृ शरासुव्यवस्षायाभावात्‌ asd ser पदजन्यपदा्चीपस्वित्यादि- जन्यत्वं aaa तादृश्विषयतायाः खश्वादिति चेत्‌, म, शाब्दलजाते- मानषत्वन्याणतवे मानाभावात्‌ azafesdt aft खशया पदजन्य- पटार्चीपख्ित्थाकाञ्खगश्ञानादेदंतुवस्यावश्तकलेन लाघव -गौरवानव- HIM | शाब्दसामयोद श्रायां मानरुसषामग्यावश्यकलात्‌ मामस- सामय्येव मानमिति वाच्यम्‌ मानमसन्ञानं प्रति शाष्दसामथ्याः प्रति- अन्धकल्वाभावस्यासिद्धतथा aden मानसषसामथ्या श्रपि षन्दिग्ध- लात्‌ MAS मामसत्विरद्धते मानसलावच्छिन्नं भ्रति श्राग्दसामयौ प्रतिबन्धकलस्य कल्यमो यतया agra तयेति WARE मानसत्व्याणत्व-तदभावान्यतर साष्यकप्रमेयत्- हेतुकामुमानमेव प्रमाणमिति वाच्यम्‌ fe ममापि मामसला- वच््छिन्नं प्रति शब्दसामयोलेन प्रतिबन्धकल, aft तु श्रनुमित्यादि- बामयोखाधारणेन मानसेतर ज्नागसामयोलेन, तच्चानुमित्यायुत्यन्ति- दध्रायां - मानसोत्पन्निवारणाय भवतामप्यावश्षकमिति gat ered परन्तु विपरौतभेव गौरवं anf mae मानसल-

विङ्द्धले मानसेतरन्ञामसामग्या मामसत्वमेव प्रतिबध्यतावच्छेदकं | तद्याणले तु weaaaaa प्रतिबध्यतावच्छेदकं चन्यथा रतिसखामपोसत्ते भिनविषकलौ किकमर्यवसामयोसत्ते चाच्षा- दयुपनौतभानादिसामयौ सत्वे मामसाग्तरवत्‌ शान्दात्मकमागस- स्याणनुत्यत्यापन्तेः, किञ्च शाब्दलस्य मामसत्वब्याप्यतले Ty पदजन्य- यागाच्युपख्ितिरच्छङ्खलघटादयुपस्चितिश्च मू हा शम्ननोपस्ितिरूपा

(९) शाघवश्लानसदहलशवमिति we

RR तत्वचिन्तामणौ |

त्वस्य ATU ATA” | तथापि शब्दो प्रमा-

तत ्राकाङ्खम-योग्यतादि समूदहाखम्बनं ततो यागादैः शाब्दबोधः तच शाष्दबोधसमये उच्छङ्लो पखितघरादेरपि मामसापन्तिः। चेष्टा- afm, शाब्दबोधानन्तरं घरं जानामौत्यतुव्यवसाथापन्ते, श्रपि चोग्यतासंश्रयद्‌ यामपि wey वाक्धा्थमिखयोऽनुभव- fag: कथं स्यात्‌ योग्यतासंश्रये षति मानससंश्रयसाममौसत्ला- दथेसंश्रयोत्पश्यापन्तेः एकपदार्ऽपरपदाथवल्रस्च योग्यतालादिति हतं पल्दितेन |

ददानो वैगरेषिकमतमाग्रङ्ते, तथापोति sangre विशिष्टस्य शब्दस शब्दाविषयकम्रमोपधायकवेऽपौत्ययेः, "न प्रमा- waa, नतु प्रमाणाग्तरत्वं यदि सखभिन्प्रमाणएत्ं तदा तद्‌- भावे साध्ये . fagerea®) | अरय म्र्यलालुमानभिन्ञप्माणतं तदा vat श्रप्रसिद्धिः तेनोपमानानश्वुपगमात्‌, ` श्रतुमानभिन्लदयेत्‌ तदा तद्भावे साध्ये सिद्धसाधनं नेयायिकेरपि शब्दशिङ्गकानुमितो Te करणत्स्ौकारादिति चेत्‌, न, ` प्रमाणानरलं हि अनु- भितिभिन्ञश्रब्दा विषयकप्रमितिकरणतं, तदभावः साध्यः खविषयक- प्रत्य्करणतया बाधवारणाय शब्टाविंषयकेति प्रत्य- करणलमेव नास्ति व्यापाराभावादिति वाच्यम्‌ खविगिष्टबुदधौ

(९) कारणान्तरसाम्यादिति ge |. (१) तथाच खस्मिन्‌ खभिनब्रप्रमाणत्वामावस्य सन्व॑वादिसम्मतत्वमिति aa: |

प्ब्दाख्यतु रो यखण्डे शब्दाप्रामाण्यवादः। RR

णान्तरः पदाथ संसगेप्यानुमानादेव fag: तथाहि

करणत्वसम्भवात्‌ निर्विंकण्पकस्येव ग्यापारल्वात्‌ चेवं शब्द्‌ विषयक- ब्दकरणे शब्दोगण इति शब्दे नैयायिकानां sua: सिङ्ूसाधनं दति वाच्यम्‌ | पच्तावच्डेद कावच्डेदेन साध्यसिद्धेरदेष्पलानदडि- भविन वा gear) | चदा “म प्रमाणान्तरं जलु्तप्रमाणानतगंतं, प्रद्यशखानुमित्यन्यतरल्वब्याप्यता वश्छेद कामुभवटल्िखजन्यतालकमिति यावत्‌, इदमिश्ियादामेव प्रसिद्धः ष्वंसादेरपौण्ियादिजन्यतथा श्रप्रसिद्धिवारणय अ्रसुभवटन्तो ति, खतेर्यनुमामजन्यतया w- मानस ज्लप्प्रमाणान्तगेतलसन्पादमाय wre विहायातुभवलेमो- OSH) | एतश्च न्नायमानश्रष्द करणतापरे, शब्द श्षागकरणएतापशे तु We पडोबोध्यः, तच हेतुमाह, “पदार्थसंसगंस्येति, “wa- मामत एव fag’ safafaeradia एव ग्रहात्‌, श्रसुमिति-

(९ नुमात रव सिद्धेरिति °, खयमेव पाठः टौकाक्षारसम्मत इति | (९) वादृश्रब्दभिन्नश्ब्दस्य पच्छत्वादिव्यंः | (९ “अनुमवत्वेगोपादागमित्यनन्तर ‘wee न्द्रियसाधारणखत्वाभावात्‌ तदन- AAA वादृश्जन्धतात्वकत्वमाचविवच्तणे साध्यापसिजिः कालादि- जिषजमकतातिरूपितजन्धताया aft aquaria age faery. ताल्वस्य घटादिभन्धतायामपि सत्वात्‌ तादृश्जन्धतात्वस्य श्याप्यताव- च्छेदकत्वामावात्‌ सामानाधिकरण्सम्बन्धेगामुभवडत्तितविधिजन्य- तातस्य तादृश याप्यतावष्डेदकत्वे त्वनुमागवेपल्यं तादृद्यजन्धतावच्छेदेग तादृश्ान्यतरलव्याप्यत्वसिञ्वे वेदस्यापि सिद्धेरिति पुतव्वंकर्य णव सम्यगिति ध्येयं इद्धिकः पाठः क-चिद्ितपएरतके वर्ते |

२४ ज्वचिन्तामणौ |

wantin श्रगरहादिति यावत्‌, एवश्च अ्रसुमितिषामयौ- भिन्लषामयोजन्यश्रब्दाविषयकञ्चानाकरणलादिति हेतुरिति ara: | मन्वयं हेतुः खरूपासिद्धः घटमानयेत्या दि श्रष्दनन्यन्नानस्यातमिति- सामयोभिन्ञसामयोजन्यलादित्यतश्राह, ‘Aether यदा अतुमिति- सामयोभिन्नसषामगोजन्यश्चष्दाविषयकन्नानाकरणल्वादिति are, wad हेतुः स्वरूपासिद्धः तादृग्रसामपौजन्यशरब्दा विषयकन्ञानं पदारथेषंसगेश्चामेव AT करणलात्‌ WAAAY, “पदार्संषगे- Of, “सिद्धः ग्रहात्‌, तथाच तादृग्रषामसोणन्यलमेव पदारथसंसन- ज्ञाने मासौति भावः। अनुमानेन पिद्धिभकारमेवाडइ, तथाति, यद्यपि कृममाणान्तगेतले साध्ये नायं हेतुः म्भवति श्रतौन्रिये परमाण्वादौ व्यभिचारात्‌ तचापि afay ara agar’ ्रनु- मानविधया, ‘fag’ साधकल्वादित्यथेः, तथाच पदाथसंषर्गातुमाप- कत्वादिति हेतुरिति भावः। पदार्थसंषगंकातुमापकलमेव कथं तदाद, 'तथाङौति

केचित्तु शब्दो नं प्रमाणान्तर' र्यस्य शब्दत्वं तज्त्रानलं वा शअरतुभवतल्साडाद्राप्यजात्यवच्छिलकाय्येताप्रतियो गिककारण्ताव- qa Aah, ad साधकाभावादिति हेत्र्द्यः। मसु wea WATT तदा चरमानयेत्थादिवाष्यप्रथोगानन्रः९) पटाथंसंषग- बोधः कथं स्यादित्यत ary, "पदाति, अनुमानतः बिद्धि्रकार- मेव विटणोति, ‘raretattars: |

(९) घटमागयेत्धादिबाक्छश्वखाबन्तरमिति we, ग० |

WRIT IU शब्दाप्रामाणछवादः Ry

गामभ्याज दण्डेनेति“ पदानि वैदिकपदानि वा तात्पग्विषयस्मारितपदाथैसंसगेत्नानपुव्वेकाखि

पदश्रवरानन्तर पदाथापश्थितिस्तदममर पदानि wea पदार्थाम्‌ Talay वा Gada: ओ्ओषामुमौयते तु पदाथं- संसर्गस् meaty: एति वेगेविकमतं aval पदपशकानुमानपरकारं दशयति, "दण्डेनेति, पदाथेपश्चकनवये aaa, गुरुनये लौकिकः श्ब्दोऽसुवादकः वैदिक एव प्रमाणं amafacrera वैदिकपदानि watery वेदिकसखखलेऽयनुमानात्‌ पदाथंसंषगं सिद्धिपरकारं cafe, वैदिकेति, we वेदिकग्रब्दवेन gear किन्तु खगेकामोऽभिष्टो- मेन यजेतित्या दिक्रमेण ser पदार्थादे ्विंग्िष्टश्नानासम्मवादिति बोध्यं "तात्पर्यविषयेति तात्पय्येविषयौग्डतोयः स्मारितपदार्थेसंषगैः APTANA? | तात्पथ्येविषयौग्तोयः संसगेस्तज्त्राग- पूल्वैका फौत्येव सम्यक्‌ किं स्मा रितपरार्थ त्यनेनेति वाच्यम्‌ दण्डेन गामभ्याजेति प्रथोगामन्तरं गोपदा्थाम्‌ पदार्थादि विषयकनश्चाममतु- भवसिद्धं श्रतुमानेनापि agar करणौयं श्रन्यथा तदिषथक- WT शब्दस्य प्रमाणान्तरलापत्निरतस्तदुपादानात्‌ तयापि awa गोसंसगावगादहिक्ञानं कम्मेलं गोमन्न वेति संश्य- निवन्तेकं ay एतदमुमामाश्न ad तेन weetsad प्रमाणान्तर- मङ्ग कामिति वाच्यम्‌ तात्पस्यैविषयः स्मारितपदा्संखशीा यज तज्च्नामपूर्वैकाणौ aaa तात्पय्येविषयस्मा रितपदाथेखंसगे-

(९) cay गामभ्याजेतौति we, रवत्पाठस्येव टौकाकारसम्मतत्वमिति | 4

aq 7 लक्वत्चिन्तामणगो

वा्परायन्ञानपूव्यैकाणोति" साध्यायेःर। नम स्मारितेति यथै, तदुपादाने यथा पदाथेलरूपेण गो संगे वत्‌ कश्मतन्नानपूर्वेकालं बिद्यति तथा पदायलशूपेण घटादि संषगं वत्‌ कम्मतश्ना नपूव्वैकल- wife सिद्यापन्तेः। agate तात्पर्ययाविषयतथा कथं Taegan सेक्यतो ति वाच्यम्‌ यदा पदाथ- संखगौऽपि तात्पय्यैविषयः wa गवादिपदेन स्मारितख्तदा तत्खिद्यापत्तेः। wet तज्चामपूम्ैकलस्य भाधादेव धिद्धिरिति वाच्यम्‌ यदा asaraafa am: पूष्वेमस्ि तदा बाधाभावात्‌, स्मारिततबोपादाने तु तस्य तदानौमस्नारिततया तांसर्गवज्तानपूष्यैकलसिदह्धिः। तस्िद्धावपि चतिः उदेश्बष्य aaa गोसंसर्गांवगा हिज्नानस्छ टत्तलादधिकन्तु प्रविष्टमिति न्याया- दिति बाश्यम्‌। तथा खति दष्डेनेत्यादिप्रयोगानन्तरं घटाद्च- विषयकन्नानमतुभवसिद्धं॒श्रतुमानेन चव aq aufafa तदथं शब्दस्च प्रमाणान्रतापन्तेः एवं स्वेन ate) घटादिरपि (९) तथापि ततृसम्बन्धेन गोमश्वनिखयस्येव विसोधित्वात्‌ लस्थानि- aferq वदोषतादवसख्यमिति वाच्यं | ततृखम्बन्धेन तज्श्चानस्येव तच तत्‌प्रयोजकतत्‌सम्बन्धवस्वच्चानस्यापि विशोधित्वादिति भावः। (९?) साध्यत्वादिति we | (९) ° णवं स्व॑ बोध्यं" दइयनन्तरं तधाप्यनुमितौ चनपुव्व॑कल- स्थाधिकस्य भानाव्‌ श्राग्दान्यूनानतिरिक्तविषयत्वमनुमितेरसिद्धमिति वाच्यं ्ानपूव्वेकत्वाद्यति रिक्तश्रान्दविषयविश्चेष्यप्रकारकसंसर्गाति- स्किविगेष्यपरकार संसर्गाविषयत्वमन्युनानतिरिक्तविषयकत्वं तच्च ता-

quash ताकृद्रानुमितावक्तुखमिद्यभिप्रायादिति ध्येयं ' हए्यधिकः प्राठः क-वचिद्धितपुसतके ata इति |

णब्दाख्यतुरौयखण्डे णब्दाप्रामाख्वादः। Rs

चटादिपदेन स्मारित एवेति वाच्यम्‌ anftareae fe प्रृतपदस्मा रितेत्य्थेः प्रशतपद स्मा रितलं दितौ यपदार्थऽपि faii- वं देयं ्रन्यथा GAT करणल-ककोलोभयनिषटगोसंसम एव तात्प वन्त॑ते श्रय चाम्‌परेन करणत्वं स्मारितं तदा तात्पय्येविषयप्रशत- गो पदेख्मारिता्थसंसगवत्पराथैलदूपेण करणएवन्नानपूष्वेकलष्यापि बिद्यापत्तेः afagt तदानीं करणला विषयकन्नानद्यालुमवयिद्ध+ स्यानुमानादमिर्ग्वाहात्‌९ तदथं शब्दस्य प्रमाण्णन्तरतापकेः, इत्यश्च तात्पय्धैविषयो एतद्गोपदस्मा रिताथसंसगेस्तदवान्‌ यः एतदम्‌पद- स्मारिता्य॑सज्त्रानपूष्यैकाणि एवं तात्मय्येविषयोौष्डतो एतदण्ड- पदटसरारिता्ंखंसगेस्तदयान्‌ एतद्कापद सरारितायेसज्त्रानपूष्वेकाणौ- त्यादिकमेण WaT साध्यं खमूदारम्ननासुमितिः। यदा TS नेत्यादि परयक्तेम गोपदेन सम्बन्धिविधया ्आकाश्रमपि भारिर्षं क्वलनिष्ठतत्संगीऽपि तात्पय्यैविषयः तदा एतङ्गोपदस्मा रितलरूपेण- काश्रादिसंसर्गवत्कमलन्नानपूष्यैकलस्यापि बिद्धिपरसङ्गादिति वाच्यम्‌ हृत्या एतद्गोपद स्मारितलस्छ विवकितिलात्‌ waza att तवमपि gen विवच्षणणौयं, sar यदाम्‌परेन अयथाकचश्ित्‌

(९) प्रज्ृतपदस्मारितित्धर्थादिति ° |

(९) करणतवाविषयकच्चानस्यानुमनादनिरवादादिति खर» we |

(र) ax ated शक्ति-लच्तणान्यतरसम्बन्धत्वं, तथाच सम्बन्धत्वेन तादृ- श्रान्धतर सम्बन्धच्चागभन्धपद स्मारितत्वं त्र freely, शतः SHAT श्थाकाशस्य जमकत्वत्वेन ननकत्वरूपसम्नन्धन्नागजन्धपद्‌- स्मारितत्वेऽपि zen पदस्मासितित्वमिति |

(ac तत्वचिन्तामणौ

qaaa करणतलमपि स्मारितं तनिष्ठगोषंषगौऽपि तात्पय्थेविषयः तदा तस्यापि सिद्यापन्तेः, तात्पय्यविषयलं संसगे विगेषणएश्च^५ यदाम्‌- पदाचंककलनिष्ठगो पदार्थस्य समवायष्टपसंषगंतात्पर्यैण दण्डेनेत्यादि- वाकं प्रयक्तं तदा एतद्गोपदस्मारि ता यसंसगेलदूपेण एककालोगला- दिषंसगेवत्‌ ककतवभ्नानपूव्वेकल्वस्यापि सिद्धिवारण्णय | तात्प्यैविंषय- AY -एतत्‌पुरुषौया एतत्कालौना या एतद्राक्यजन्यप्रतौतोच्छा तदिषयल्य, oat एककाज्ञौगलादौ सयवाये aay द्ठेने- त्यादिवाक्धं TIM तदा तात्य्य विषयौग्तेतद्भोपदस्मारिता्ेषंषगंव- खपे एककालोनत्वादिसंषगेवत्कम्मलन्ना नपू््यैकल्स्यापि fate: ष्टादित्याकाङ्खगमिरूपकलमपि संसग विशेषणं ea, श्राकाङ्मनि- खूपकत्वञ्च एतद्गोपद मिरूपितेतदम्‌पद निष्टा काङ्घुग निरूपकल्वं, अन्यथा . wane ऋजवचिदाकाङ्यनिरूपकलेन तरोषतादव- SAMA वैशेषिकैः णाब्दलजातेरनभ्यपगमात्‌ AHA आकाङ्का- निरूपकलव९ दुग्वेवमिति वाच्यम्‌ तैरपि श्ाब्दलजातिरगश्यपेयत- एव wey खा जातिरुक्रातुमितिटत्निरलमितिलन्याप्ये्येवाग्वुप- गमात्‌, WS वा . AHP भिन्लसंसग वमेवा काङ्ग मिरूपकलं,(* एवं धदा गवि wae तात्पर्य दण्डेनेत्यादिकं वाक्यं प्रयुक्तं अरय

(९) संसगेविरेषगस्धेधस्य खयिमेख सिदिवारणायेत्धनेन aera: |

(९ शखाकाङ्कानिरूपकत्वस्यापि संसं विश्रेवत्वमिति we, we |

छ्ाब्दबोधानुकूलानु पूर्वौ मतत्वरूपाकाद्ानिरू्पकत्वस्य श्राब्दत्वचटित- | त्वेन तादृश्रजाव्यनभ्युषगमे तस्य दुव्वं चत्व मिति तात्पर्यम्‌ |

(४) आाकाडगनिरूपक सम्बन्धत्वमिति ° |

ग्रब्याख्यतुरौयलकछे एब्दाप्रामाण्यवादः | २७ च्राकाहइगदिमत्पदकद्‌म्बत्वात्‌ घटमानयेतिवत्‌ |

गोपदेन sew घटादिरपि स्मारितः श्रमूपदेन शचणया करणत्वमपि स्मारितं तथोः संसगाऽपि तात्पथ्यैविषयः एतदुभयम्तु ॒तात्पय्यैविषयः तदा एतद्भोपद सारितायंरंषगंवदे तद मपदायेल- Say चटादिसंसगंवत्करणएत्वन्ञामपूकलस्यापि - सिद्धिः स्यादिति गोपदस्मारिता्थं ऽम्‌पदस्मारिता्ं तात्पब्यैविषयत्वं विग्ेषणं देथं ननु गो पदार्थाम्‌पदायंघटितसाप्ये wan तात्पय्यैविषयत्व विग्रेषणं ब्य्थे तात्पर्य विषयीगतैककालौनलादि संषगख प्रहतख्ले श्राकाद्धगया- श्रनिरूपकलतवादेवास्िद्धेः इति चेत्‌, सत्यं, तद्भयचरितसाष्ये देयमेव तत्‌, किन्तु यजाभ्याजपदमपि पक्लोरतं तच चारुकूलतव- विषयलवाख्यसम्बन्धदयमेवाकाङ्खग निरूपकं तदभिप्रायेण मूले तदु- पादानभिति wa रमणोयं। श्राकाङ्कादिमत्पदकदम्बलादिति गोपदाकाङ्कादिमद मपदलात्‌ दष्डपदाकाङ्घा दिमहापदता दित्यः, खमूहाखम्नमख परामशः, शश्राकाङ्खरौत्यादिना योग्यतापरियः, यत्पदाकाद्कगयोग्यतावद्यत्पदं भवति तत्‌ तन्तात्पथ्येविषयौग्धतो घः ट्या तत्यदस्मारिततात्प्येविषयोग्तस्याय्याकाङ्घाभिरूपक- dah: तदाम्‌ यो art. तत्पदोपस्यापिततात्पय्येविषयौग्धतायचैः तज्च्रामपूर्ैकमिति सामान्यसुखौ व्या्िः(र विग्रेषयाप्तौ “वटमान-

(९) यद्‌ यत्पदाक्षाङ्कायोग्यतावद्‌ यद्‌ यत्पदं मवतौति we | (९) वेदं fer यत्तद्धां सामान्यत उदाहइरगवाक्धाधौनसामान्यग्यानि- arma: ततो विग्येषहेतुपरामणः, खथ वा तावृ्ोदाषरणानगन्तरं

Ro तक्चचिन्तामणोे

येति दृष्टान्ताङ्गतेः। एवश्च बद्धिना faqateret टापदाकाङ्- दिमल्छिच्पदे व्यभिचारः सिचृपदा्स्य एतह्वापदोपश्ापिताथे- संसगेवत्वाभावादतो यत्यदयोग्यतावर्त्व हेतावुपान्त, तद्थंख चत्यदार्थाबाधिताथेकलव, तथाखति यत्पद इयेन पदा मोपस्ापितः परस्परमबाधितायेकन्तु भवति ata व्यभिचारापत्तेः तदुभयपद- समारितखेवार्थस्याप्रसिद्धेरपि तु इत्या यत्पदस्मारितार्थाबाधितार्चंखय ae Gad तत्‌, भ्रबाथंदय एव तात्पय्यैविषथत्वं विभेषणं देयं, अन्यथा तात्प विभेव यत्यददयं TaN अथ त्या सारिताचेकं परस्यरमबाधिताथैकश्च भवति ata व्यभिचारापत्तेः aad favthinea actemfug:, अरवाधितलन्तु तात्पग्विषयसंरगण बोध्यं अन्यया verde तात्पर््यण यत्यददयं vgn तद्ंसभं तात्पथ्थै नासि किन्तु sericea warfare वेते ava ्भिचारापनतस्तात्पय्यैविषथतत्पदा्ंसंसमंखेवापरसिद्धेः।

सामान्यहेतौ enfin ततोऽस्ादेव श्चाप्िविणििखपिेषेवोः wearer विग्धेषरूपेणेव साध्यसिद्धिरिति यत्तड्घटितसा- मान्यब्याप्तिन्नापकसामान्धोदा् LTS काय्यै-कारणमावः तथाच यत्पदाकाङ्का-योग्यतावद्यत्पदं भवति तत्‌ तत्तात्प््यविषयौ भतो यः द्धा तत्दस्नारिवितात्पयैविश्यौभतस्या्ंस्य weargifre- पकसं सगे, तान्‌ यो Seat तत्पदोपद्यापरिततात्पग्यैविषयौभूताचंः THATS TRS KETO सामान्यहेतौ श्यापधिपरषात्‌ अम्‌पदं गोमल्वन्भताच्नागपुव्वंकं गोपदाकाङ्कावदम्‌पदत्वादिति कमेय हेतुषु व्यात्ति-पत्तधम्भताच्चानात्‌ समृष्ालम्बनात्मकात्‌ वत्त- इटितसमूदालम्बनात्मकानुमि ति विष्यतोति |

प्ब्दाख्यतुरौयखण्डे शब्दाप्रामाण्छवादः | Rr

योग्यतासत्तिमन्वे सति संखृष्टाथेपरत्वात्‌ तत्पर-

तदारणणाय संसगतात्यय्यैकले aaa विगरेषणमुपादोयत्तामिति वाच्यम्‌ तथापि यदा चट-क्मैलयोर भेद षंसगं aay चरमिति रुक्तं ठत्तिलसंसशं तात्पय्यै नास्ति तदा तदम्‌पदे यभिषारापत्ेः श्रम्‌ पटोपस्छापितार्थ॑स्य तात्पंविषयोग्धलसंसगेवत्वाभावात्‌ यतस्ता- त्पय्ैविषसौश्धतो घरतादाव्यसंसगौमाम्‌पटायेनिष्ठः श्रमूपदायेनिष्ठ- azefaadaig तात्पय्येविषय इति, यदा लाधाराधेयभाव- waa तात्पर्येण चटः asafaf प्रयुक्तं तदा तत्क्मेलपदे(९ व्यभिचारः HUAI चटपदाथस्या काङ्ग निरूपकाभेदसंसगेवस्वा- भावात्‌ Bat थत्पद्‌ काञ्खुग वत्त्व विगरेषणं | तथापि दोष- weary: awe ताद्‌ त्यसम्बन्धेनान्वयनोधजमने चटपद्‌ा- काङ्काव्वादिति वाश्थं। श्राकाङ्धानिरूपकसंसगेाबाधितलस्य योग्यताघटकलवलाभाय तदुपादानात्‌ तद्यं निगेशितहेलथेः इत्या यत्पदोपष्यापिततात्पग्यैविषयौभ्तार्थतात्पय्येविषयाकाज्ग निरूपक- अननन्धेमाबाधितस्छ तात्पय्येदिषयोग्ताथेखय श्या समारकं aad भवतौति 84 सुखम्‌ |

yeaa लो लावतोकारोक्रेतुद्रयं दूषयति, योग्यतेति, ननु संङ्ष्टाथैपरलं एकपदाये संषगवाम्‌ योऽपरपदायसतत्रतोतोच्छ- योश्चरितत्व, तथाच योग्यतोपादामं ay विसंवा दिवाक्यखलेऽपर- पदार्थखेकप रा संसगेवच्वाभावा दरेवभावेनेव व्यभिचारस्य बाधित-

(९) तद्ुट -तत्कम्मत्वपदे दति We |

RR avafrnnat

सन्निधिम्वादेति हेतुः, सखो योपयैखत्परत् तत्परसन्िधिमच्वं वा असिद्वं date प्रागप्रतीतेः |

त्वादिति चेत्‌, म, deere हि एकपदार्चऽपरपदायेसंघगंपरती- तौ्छयो चरितल्वं एवश्च विसंवादिवाक्ये यमिचारवारणाय योग्य- तोपारानं, योग्धसतात्पय्येकेण वाक्येन थत्र पदार्थस्मरणं जनितं ay व्यभिचारवारणायासन्तिमल्वे षतौति स्ारकलत्वाथकं, 'तत्परेति संङ्ष्टाथेपरेत्ययैः, . तथाचेकपदार्यऽपरपदा्यसंषगेपरतीतौष्छयोच्चरि- तल षति आसन्तिमच्वा दिव्ययेः, wife योग्यताहुषश्लनौया। हेल्वोरभेद इति वाच्यं विगरेव्य-विशरेषणभावभेदेन(\ भेदात्‌ केचित्तु we योग्यता मवेश्नोया। चाज ोग्यताया- श्रप्रवेशेऽथोग्यवाक्ये व्यभिचार इति are}. एतदोषस्यानाप्तोक्र- इत्यादिना खयमेवाये वच्यमाणलवात्‌ इति प्राहः | aya दूष्माद, शसखष्टो . होति एकपदा्ंखवगेवान्‌ थोऽपरपदायेस्तत्‌परल्मित्यथः, “तत्परेति तत्परत्वे खति afafy- मत्वचेत्ययेः, "वाकार्यं, . “श्रसिद्धं" प्रूतातुमानात्‌ पूर्वमन्ञात, विगिष्टश्चाने विगेषणषानं हेतुमाइ, ‘aia एकपदा्थसंसर्ग- aac प्रागप्रतोतेरिक्यधैः। चेवं भवतामपि साध्या ufafgfifa वाच्यम्‌ यन्तद्वा सामान्यतोव्यातिखलेऽप सिद्धख्येव साध्यस्य पच्चधद्मताबलात्‌ सिद्धहतुप्रसिद्धिश्चावण्यमपेकितेति भावः। इदमुपलच्णं waaay योग्यता विशेषणमपि व्यर्थभित्यपि बोध्य।

(९) विग्ेषण-वि गरेष्यभावमेदेनेति go, |

WTAE णब्दाप्रामाख्यवादः | Re

संसष्टत्वप्रकारकप्रतौलिपरत्वं ततव्मकारकप्रतोतिपरस- जिधिमश्वं वा श्रनाप्तोक्ते निराकाङ्क व्यसिषारि।

नन्वेकपदार्येऽपरपदाय संसगेपरतौ तौ RNS LAG STATS ATE mafia सति afafuad तत्परसन्निधिमत्वमित्यत श्राह, 'संङ्ष्टलप्रकारकेति एकपदार्थऽपरपदायंसंङ्ष्टलप्रकारकेत्ययेः, अज sara विषयकलमाचं wr खशूपासिद्धं स्यात्‌, “write इति श्रयोग्य cath चेतद्‌युक्तं योग्यताया डहेतुघटकलादितिः वाच्यम्‌ | “अनाप्तोक्रपदस्य स्िरजलाभिप्रायेण पयसा बिश्चतौत्धा- धनाप्नोक्रविगेषपरलात्‌ तत्रापि व्यभिचारः vere योग्यत्वादिति वाच्यम्‌ सौखलावतोकारमते fe श्रन्यप्रयोजक- Sua योग्यता सा तच वन्त एव जणत्वस्य सेककरणएलान्वथ-~ परयोजकरूपतेम तस्य करकायां सत्वात्‌, केषाञ्चित्मते “write इति दितीयदेतौ दूषणं तच योग्यताया श्रमिषेश्रत्‌, "मिराकाङ्ख चेति Yaa दूषणमिति ध्येयं “भिराकाङ्खे चेति घटः awa मामयनं तिरित्यादावित्ययः, aera कश्मलपदायेख्याकाञ्जय- ` freqadaninfagr साध्यासत्वादिति भावः | | |

ननु यद्‌ाग्वाजघालर्याष्याता्थयो विंषथतश्ूपसंसगं = arate दष्ठेनेत्यादिवाक्यंप्रयुक्ं ्रतुकरुललसंसगें area मासि तदा तदा- क्यजन्यज्ञाने न्यायमयेऽसुकूलल षग भाषते ATMA तदानोम- श्वाजपदाथैसंसगं लवशूपेण तद पि सिद्येदित्यत we, "खंसगेस्देति अर्वा जधालर्थाखाताथयोः date, 'बज्प्रकारकलेऽपौति aH

$

49 avafarnraat

संसर्गस्य बहप्रकारकत्वेऽपि नानमिमतसंसगे सिदिस्तस्य त्यर्ययाविषयत्वात्‌ | अन्यथा शब्दादप्यभिमतान्वय- बोधौ स्यात्‌ | wave विशेषशण-विशेष्यभाववदथै- कनि तद्बोधपूव्वेकाणि वेति wre | aw स्मारिता्थैसंसगेवन्तीति are, मत्वर्थैश्च इूपववेऽपौत्यथैः, ‘safaaafa दण्डेनेत्था दि वाश्यजन्यन्नानविषयतया जेयायिकानभिमतेव्यथेः, ‘aw अ्रनभिमतसंसष्य, तथा चेतदर्थभेव मया तात्पय्यैविषयत्वं संघगे विगरेषणमुपान्तमिति भावः “अन्यया तख तात्पय्येविषयते, mary’ दण्डेनेत्या दिवाक्यात्‌, न्यायनये इति शेषः, “अभिमतान्वयबोधः' चअभिमतोयोऽग्वयषोधः एकसंषगेमाच- विषयकश्ाष्टबोधं इति यावत्‌ स्यादित्य, “श्रतएवः अन- भिमतसंसगं सिद्धिप्रसङ्गादेव, “विशेषण-विशेग्ये्यादि, साथेकानौत्ये- तावक्माजोक्तौ aie सिद्धिरित्यतो 'विग्रेषण-विग्रेषभाववदिति ` विरेषणता-विभेव्यतान्यतरवदित्यः, विगेषणल्मपर पदार्थं निष्ठवे- थिष्प्रतियोगितया भाषमानलं, विगरेव्यत््चापरपदाथप्रतिथो गिक- ्गि्यामुयोगितया भाखमानलमिति ara: | दोधति तादृशा TRAY! | wala साध्यमाशद्खय दूषयति, ‘afaanrfer, waft तात्पय्येविषयोग्डतो at ger एतत्परदस्मारिततात्पय्यैविषयार्थ॑ख्य 0 efanadetfated स्यादिति कन =.

(९ वद्नौधपव्वकाणेति वेति are | (र खं सगं माचविषयकश्ाब्द्रोध इतीति we |

श्ब्दाख्यतुरौयखण्डे WMATA | २५.

. िङ्गतया wad चान्योन्याखयः, WATE

इंसर्सतदच्मिति साध्याथैः, एवं wad तत्तत्पद्‌ मादाय नानैव साध्यं परत्येकमम्‌पदादि कमेव पकः tae ww एव eM watt त्वलुमिति-परामर्थाविति बोध्यम्‌ नन्व मलयः कः aaa) संयोग-समवायादेः पके बाधितलादित्यत श्रा, ‘Aa afa, “लिङ्गतयेति, “लिङ्गपदं veut, अन्यथा पदानां fay ल्ाभावेम बाधापत्तेः, WE एव तादाद्थसम्बन्धेन लिङ्गमित्था येग घा, 'न्ापकलं' कारणौशलश्ानावच्छेद कल) ननु ^लिङ्गतयेत्रि किमथ ज्ञापकलमाजस्धेव waa दोषाभावात्‌ शैवं नेया- fa®: सिद्धषाधनमुद्धावमौयं तैरपि शब्दस्य श्नापकलस््ोका- रादिति वाच्यम्‌) चि नैयायिकेः विवादे इदमनुमाए किन्त वाक्धश्रोत शिषिकनये यया रोत्या अरतुमानविधया शष्टात्‌ gaat खा रोतिरुपदश्येते तज नेयायिकेः सिद्धसाधमोद्भा- वमपसङ्गगभावात्‌ अन्यथा 'सिङ्गतयव्युक्षावपि सिद्धषाधनोद्धा- वभसम्भवात्‌ नैयायिकः शब्दस्य शिङ्गतयापि भापकलस्नोकारात्‌ PATA GAA तदापत्तख नेयायिकेरपि तदङ्गी- कारादिति चेत्‌, न, ब्ैशेषिकभये पदानां लिङ्गविधयेव श्चापकलेनं तस्य खरूपकयममाजपरतवात्‌ FAG श्चापकलमा वेवेति दिक्‌ fq चेति, Wa श्ापकलसंषगेंय एतादू शरसंसगे सिद्धौ तहृष्टान्तेनं

(९) काः सम्बन्धो मत्वं इति Ge, ° | (र) क्लामनिष्डायाः कारणतया विषयदिधयावण्डेदकत्वमिन्धथेः |

aq तत्वचिन्तामणै

सुमितिहेतुत्वेन ^ अनादित्वात्‌ wt) wea. - माचेणार्थासिद्धेः। प्रमापकत्वे तेनैव व्यभिचारात्‌ |

दृष्टान्ते न्नापकत्वसम्बन्धेन ताद्‌ शसंसगे सिद्धिः दृष्टान्ते wren एता ्रसंसगं सिद्धावेव पक्वे न्नापकलत्वसम्बन्यन तादृ शसंसर्गविद्धि- रित्थन्योन्या्रयः, श्रन्योन्या ्रयाभावे हेतुमाह, ृव्ेपूर्ववेति पूरवै- yaret वाक्यानां उन्तरोत्तरवाक्ये तादृ ्रसंषगानुभितौ दृष्टान्त- विधया प्रयोजकलेनेत्यथेः, “्रमादिलादिति परोयसाध्यसिद्धषृ्टा- भतो यघाध्ययिद्धेरादावनपेकितत्ादित्य्यैः |

केचिभु हेतुवेनेत्यनन्तंर छेदः, तथाच हेतुलेनेत्यन्तमन्योन्या- अयाभावे हेतः, why ylay गन्वेवमनवस्ये्यतश्रार, “श्रना दि- त्वादिति वौजाङ्कुरवदनादिलादित्धयैः, तथाच प्रामाणिकौ श्रन- वस्वा दोषायेति भाव द्याः | तदषत्‌ पञ्चम्यन्तनेव सुख्य- | हेतुप्रयोगनियमात्‌ दतौयाया अ्रसक्गततवा पन्नेरिति ध्येयम्‌ | |

“्ापकत्वमाचेणः न्नापकलत्वसम्बन्धेन, स्मारितपदाथदंषर्मद्य षा- we इति we: श्रयं ति एकपदार्थ श्रपर पदाथसंसर्गा सिद्धरित्यथैः, WARE तथा श्चानमिति भावः मतु स्ारितपदा्थ॑संस् वन्तो ति साध्ये करणोयं किन्वेकपदाथंसंसगेवत्यपरपदार्थं यदेकपदा्ं- da तष्जगकानोति साधनौयं तथाच मोक्रदोष wa श्राह, श्रमापकल इति एकपदाथेसंसगेवत्यपरपदा्ं थदेकपदाथसंसर्गश्चानं तष्जमकल्व इत्यथः, साध्य दूति ग्रेषः, "तेनेव अनाप्तो केनैव, कर-

(१) प्व पव्वेतत्तदनुमितिदेतुलनेति we |

WIAA शब्दा प्रामाण्यवादः | CX)

- काभिप्रायप्रयुक्रपयसा सिश्वतौत्यादिवाक्येनेषेति यावत्‌, एतदनु- AAAI AAA चान्वयप्रयोजकशूपवत्वस्य योग्यतालात्‌ RUA क्रद्ेतो स्तरा पि स्वादे कपदाथेसंखगेव्वस्यापरपटा- ्यऽभावेन साध्यस्य साखत्वादिति भावः बाधाभावरूपयोग्यताया- हेतुविशेषणत्वे तु श्रमापकलं प्रमोपधायकलं, प्रमाखरूपयोग्यत्वं वा, श्रायेऽजभितश्ाब्दबोधके wee व्यभिचारः, we निराकाङ्ग- रेरपि खरूपयोग्यलेना काङ्खग दि मल्वविगेषणं हेतौ व्यथै योग्यताव- त्वस्यैव wR यदि साकाञ्चुग््ब्दतवेन खरूपयोग्यता तदा काङ्घुगवत्वमेव सम्यक्‌ योग्यता दि विग्ेषणं व्यथं दत्यादोनि दूष- णान्यवसेथानि | केचित्त “श्रापकत्वमाेणः श्चा पकत्वसम्बन्धेम, साध्यत इति शेषः, “श्रथति, “श्रथः, ete: संसर्गामुमितिरिति यावत्‌, श्रदासिद्धरि- ah, अ्रभावप्रतियो गितावच्छेद केम हि सम्बन्धेन साध्यं साधयत्य- नुमानं ज्नापकलश्च माभावप्रतियो गितावच्छेदकं इल्यमियामकला- दिति ara नमु ठत्तिभियमाकसम्नन्ध एव साध्यतावच्छेदकसम्बन्ध- द्यत श्राह, ्रमापकत्व इति watts, प्रमा विशिष्टज्ञानं तव्जनके सम्बन्धे न्तिनियामकसम्नन्धे इति यावत्‌, साध्यतावच्छेदके दूति गरेषः, "तेनेव" पदेनेव, 'व्यभिवारादिति परे टत्निनियाम- कसम्बन्धेन पदाथंसंसर्गा सत्वात्‌ इत्याहः | | भिश्रानुयायिनस्त, ननु “समारितायसंसगंवमौत्यज स्मारितप- TATRA साध्यं एकपदा्ऽपरपटासंसगेवति चदपरपदा्थन्ञानं तत्लनकल्वं वा श्राय आर, “arama

३७ avafamaat

त्रानावच्छेदकतया संसर्गसिद्िः न्नानन्नानस्य afe- -. चयविषयकत्वनियमात्‌ |

Sy णि पम aes sacs sith

VHAMAMIR AAAI, श्रयेति एकपदा्थेऽपरपदाथे- खसर्गा भिद्धेरित्यचः, प्रवत्तकञ्च तजन्नानमिति ara: 1 we ary, “पमाप्रकल् इति एकपदार्थेऽपरपदार्थ॑ष सगंवति यन्तजन्नानं तष्नन- कल इत्यथः, साध्य इति शेषः, ‘Aa’ श्रनाप्तोक्तनेबेत्याह्ः( | तदसत्‌, अनन GMA साध्यत्वात्‌ Wasa ` मल्र्थतया साभ्यतात्रष्डेद सम्नन्धलात्‌ |

ननु भवदुक्रातुमानाद्यापकलेन weld संसगंन्नानं faq संप्रगस्ह क्रयं fague व्यापकलेनाग्टहोतलादित्यत are, न्ना भास्रच्छेदकतयेति wan sat षस्य पिगरेप्रणतावच्डेदक- तद्या वङ्िन्नानालुमितौ वद्धिवदच(९ तद्गानमित्यधेः अनुमितेः संसर्गा व्रगादने प्रमाण्णान्तरमाद, ` “न्ञानन्नानस्येति, ‘afavafa ` जामविषययावदिषवकल्वादित्ययेः, चावदित्यकरणे यत्किधिदिषय- बिषयकत्व सिद्धावपि संसगेविषयकलाबिद्धेः। नतु नायं नियमः | ऋनमितिपदजन्ये श्राब्दश्नाने WMT Waa इत्यतुमित्यादौ व्यभिचारात्‌ भं विषयविभिष्टतच्ा तजन्नानावगाडि- wre तजन्नागयावद्िषयविषयकलमिति नियम इति वाच्यम्‌ az: wa इति wae घरज्नाममित्यादिशब्दतो न्नाने

(९ खन्वयप्रयोगकरूपव््वं योग्यतेति भावः। (९) वड्कित्ववदकरेति ०, °

णशब्दाख्यतुरोयखष्डे ्ब्दाप्रामाश्यवादः | Re.

dav सम्बन्धिन wa farqaaa |

यभिचारात्‌ eo asrafarahararafarafafireaer दजैनीनावगाहिज्नानस्छ तजूज्नाभयावदिषयविषयकलमिति भियम- हति वाच्यम्‌ उक्तसंसगं ज्ामानुमितेः संसर्गज्नानविषयोग्धरतयविदि- श्यविथिष्टतया dwigriranfyaaamfag: ata विवार तज्न्नानयावद्धिषयो पितेरग्यव हितोन्तरवत्तिं यत्तजन्नान- विषयकं श्चानं तत्षजुज्ञानयावदिषयविषथकमिति नियमः, श्रसुव्यव- घायादौ तथा aia उक्ासुभित्यादौ ज्ञानविषयस्य नोपख्ि- तलं श्रमुवसायादौ व्यवसायादित एव तदिषयस्योपख्ितलं प्रते पदार्थसंसर्गश्ामानुमितिजमकौेग्डतपरामर् aa पदायसंसगश्नान- यावदिषयाणासुपख्वितलमिति वाच्यम्‌ तथाप्य चट इत्यादि- श्ञानाग्यवदितोत्तरन्नानवामित्यरुमित्यादौ 0५ व्यभिचारादिति, मैवं, बाधकाभावे सति तज्‌न्नानविषयकं agra तत्तजृश्ानयावदिषय- विषधकमिति नियमात्‌ owed कारणणभावादैरेव बाधकस्य aera व्यभिचारः मन्वेवमपि wafer: wre भानं कथं ` दित्यत आआर,. ‘duit चेति व्यापकविगरेषणविगरेषण्ौग््तसंसगभे चेद्यः, “सम्बस्थिनः' aria, “विग्रेषकत्वादिति farwasaata grr परामश विगेषणलादिल्ययेः मनु तयापि गोलाभ्याज- लादिरूपेष्ण गवाभ्याजना दिसंषगं सिद्धिः कथं ख्यात्‌ स्मारितपदायै- | लवादिरूपेशेव व्यापकताग्रहात्‌ WARE AMT श्रत श्रा,

(९) ऋ्चानाग्यवहितोत्तरेत्यस्य खनुभिल्यादावित्वनेग ae सम्बन्धः | (र) तथा ज्ञाबमिति खम, a |

ge ava चन्ताममौ

पकछ्षधम्मताबलात्‌ व्यापकत्वनाण्षौतस्यापि AAA Ces- षस्य fafa: | wad ान्तिन्नानमपि भमः स्यात्‌

चेष्टापत्तिः, इं श्वर स्यापि चान्तत्वापत्तेः। इदं रजतमिति.

मादिव शुक्तौ . रजतन्नानवानयमिति मस्य चरा नात्‌ खान्तिन्नप्रहत्यापत्ते |

'पच्ध्मेतेति, ्यापकलेनेति तद्रधेणेष्यादिः “संसं विगरषेति गोवाभ्याजमलवा दि विगिष्टोपख्ितसंषगेस्वेत्ययेः अख दिषयकं शानं

भम दृत्यमिपरायेष्णाग्रङते, “अयेवमिति, "एवं" न्ामन्नानस्येव्यादि- -

नियमे, श्वान्तोति wae न्नानमित्यथेः, भमः दयादिति oe

व्यात्निवशाह्ुमविषययावदिषयकलेन तस्यापि भ्रमविषयौ ताबदे - जिष्चविषयकलादिति भावः waa तलश्चानस्यापि अमले

कञ्िदोष इत्धाश्रयवतः awe निराकरोति, ‘a चेति, शश्र ` aff, we सरवन्नवेन सवंधमदिषयकन्चागवत्वादिति भावः भनु ` बाधकाभावे सतौति विगरेषणादेव नेश्वरन्नानस्य waa ae स्मान `

विषयकलेभेव धर्भिंाहकप्रमाणेन fagftaracarere, “दद रजत- भिति, ‘oarfafa, भ्रटत्यापन्ते रित्यनेनान्वितं, ‘ari ware- व्यवायात्‌, “भान्तिशनेति भान्तिन्नपुदषस्येत्यधंः। भमविषथयाः दिषयकवेनोभयोरष्यविगरेषादिति ma: | एतदप्यापाततः, रः ज्ञानवानयमितिन्नानेन रजतलविशिष्टेद विषधकश्ञानवानथमिः ज्ञानं faafad, इद विगरेष्यकरजतलप्रकारकञ्ञामवामिति wi: आरे प्रहत्ताविष्टापत्निरेव तस्यापि WAT रजतलप्रकारकलेन भवः

के

शब्दाख्यतुरौयखय्ये शब्दाप्रामाण्वादः | ४९

ततः प्रठन्तिस्तो कारात्‌, We तस्य भमविषयथावदिवयकलेऽपि इट- लाव च्डेदक-परडनिविषययो वे चिष्ागवगादिविन तस्मात्‌ परटश्यापादन- मसङ्गतं चेष्टतावन्डेदक-प्रटृन्ति विषययोरसदैशिष्टस्छापि थावद- म्तगंतत्वेन तदवगादिवमच्छेवेति वाच्यम्‌ तथापि प्रटस्षिविषये इएटतावच्छेदकाप्रकारकलात्‌(९ तस्मात्‌ प्रश्यापादनासन्भवात्‌ तादू- श्रज्ञानच्येव WTNH | श्रय Lema weaver fare शि- qrafeaa प्रवन्तेकलमित्यभिमानेम प्रहत्यापादने, किञ्च owe HINT भमानुव्यवखायेऽसदेगिष्यमवम्सं विषयः तश्च संसगेमय्या- दयैव भविष्यति श्रन्यरूपेणासतो भानानङ्गोकारात्‌ तथाच प्रटत्ि- विषये इृष्टतावच्छेदकप्रकारकल्मस्खेवेति चेत्‌ म। तादूश्वयाप्यन- द्रे कढठमतेऽपि ताद श्भरषानुब्यवसायात्‌ weaver वे गिष्ध- विषयकलप्रयोजकव्यवसायरूपपरत्यासत्तेः सम्भवात्‌ तन््तेऽप्यवश्वम- नुवसायय्छ वे शिष्विषयकलात्‌ प्रट़त्तिविषये दटश्तावच्छेदकवि- शिष्टबदधव्येवसायादिरूपसा मयो सत्वेन प्रटत्तिविषये इृष्टतावच्छेदक- परकारकलाखच शक्तौ रजतलाभाववतो तिबाधबुद्युन्तरं भरमा- सु्यवघायात्‌ प्रत्तिरापाद्यते «= wand तच प्रतिबन्धकसन्मेनासु- व्यवसाये wat रजतलं प्रकारः तन्मते न्ञानभ्नानस्येति नियम- बणेमावण्पं रजतत्वे गि्यं waa’) aq संसगेमर्य्यादया नान्यप्रका- रेण सम्भवतीति aw प्रटृभ्तिविषये रजतलप्रकारल्वादिति वाच्यम्‌ | तन्बरतेऽपि बाधकाभावे स्तौति विज्रेपणएसद्वावात्त् रजतलवेशि-

(९) ङ्तावच्छेद प्रकार कत्वाभावादिति we, | रजतत्ववेधिष्यविषयकत्वमिति we, Te | 0

तत्वचिन्तामणौ |

ay सखमविषयविषयकत्वेन समत्वं ममविष- याणा सिद्धासिहिपराहतत्वात्‌ इति, तब aera: |

श्या विषयकलात्‌ बाधबुद्धिरूपवाधकसद्भावात्‌, श्रतएव शक्रिविशे- ग्यक-रजतलप्रकारकश्चानवानयमिति श्ाब्दादिज्नानात्‌ प्रटन्तिरा- पाद्यते तजाखनमते wat THe गिष्चोपस्यापकपदाभावात्‌ wat भ. रजतलत्रथिष्छ विषयः तकते व्यापिबलेगावष्दं तद्ध विषयत्वा दित्धपि परां, तज्रापि कारणाभावरूपवाधकसद्धावा- दिति aya: |

अथेवमिति vias असद्िषयकलमेव भमलमिति ateint वेगरेषिकेकदेग्रिनः शिद्धान्तसुपन्येश्च दूषयति,(र) "यत्ित्यादिना, अन्यथा “श्रथेवमिति पूर्वपक्षिणं प्रति यच्तित्यादिनाकपे ‘aw वच्याम- दर्यस्छानलुगुणतापन्तेः “श्रथेवमिति पूरवेपकिणाऽगे सिद्धान्तानमि- धानात्‌ तदुपरि दोषाभिधाने तस्येव ॒शिद्धामकरण्णौ चित्यादित्य- aaa” | (भम विषथविषयकलेन' भमविषययाव दिषयकतेन, waa’, श्रापादयितु शक्यमिति गेषः, “सिद्यसिद्धोति भ्रमविष- थाणां यावतां सत्वास्वाभ्वामित्ययेः, “पराइतत्वादिति श्रापादनस्य व्यारतलादित्यथेः, zafararet यावतां wa तददिषषयकल्वेन कथं

(९ भ्नमविषयविषयकत्वेनाभ्नमत्वमिति ° |

९) भ्मविषयस्येति we

(९) सिडधान्येव दूषयतौति we |

(४) खन्ययेव्यादिर्वसे यभित्यन्तः पाठः ०-ग °चिद्धितपुल्लकदये मासि |

शम्दाख्यतु रौयख्े शब्दाप्रामाख्यवादः | ४४ मैवं, अअसदिषयकत्वेन a wad” भमविषयाणां

भरमल्मापादनौयम्‌ सम्म्ाज विषयकत-भरमल्यो विरोधात्‌, wWae- चेत्तथापि wea श्रापादकतावच्छेदकको रिप्रविष्टलेन श्रापादक- तावच्डेदकप्रकारकापादकश्चामाभावादापादनाम्भवात्‌ WA: घस- गंमर्य्यादयेव भानाङ्गोकारादिति भावः। यदा श्रसत्वसेत्तदा तदिषयकतमप्यषदेव तथाच तेन कथमापादनौोय श्रषति व्याप्य भाषेनापादकलस्यानुमापकलस्य वा श्रशम्मवादिति भावः ‘aw व्याघातरूपायां समाधानयुक्ताः(९) ‘agra इति दुषणमित्यादिः, 'मेवमित्यादिना. अ्रसदिषयकलतस्छ भ्रमरूपतानिराकरणावसरेऽनु- पदमेवेत्यथेः, एतत्छमाधानं तदा सम्भवति यद्यसदिषयकलतं wa भवति श्रन्यया सग्प्रा्विषयकल-ग्यधिकरणएप्रकारकवरूपप्रमाल- waa विराधाभावेनेतत्छमाधानासम्भवात्‌ तस्येव दूषणौ- यत्वादिति भावः ्रषदिषयकलेनेति, धान्येन धनवानित्यादरा- विवाभेरे तोया, waa’ अआमपदप्रठन्तिभिमिन्त, तथाच भम- पद प्ट सिभिमित्तं मासदिषयकलत्वरूपमिति समुदितार्थः +

केचितु wae? aaa, एतोयार्योऽवच्छिन्लं, तथाच भमपद शक्यत्वं मासदिषयकलावच्छिल्मिति समुदिता इत्याहः 1

'आरमविषयाणमिति, एक्रि-रजतत्व-तदेशिष्यानां सर्वेषां पार-

(९) सदिषयकत्वेनाश्रमत्वमिति we | |

(९) ‘ay श्याघातरूपायां समाधानयक्षावित्ययं प्राठः. ख०-ग ° चिडिर्व. परक दये wife |

(र) सन्भाग्रविषयकत्व-भ्रमत्वयोरिति ख०, Te |

88 ` तत्वचिन्तामणौ |

स्वात्‌ किन्तु व्यधिकरशपकारकत्वेन भमस्य wv व्ययिकरणं प्रकारः, रजतत्वप्रकारकत्वस्य owas सश्वात्‌ अन्यथा ase”) प्रमाणाभा-

माधिकलादित्ययंः नन्वेवं सदिषयकत्वेऽपि रजतत्वभमख् यथा मलं तथा रजतत्थमविषयकञ्चानस्यापि भमलमस्ित्यत we, "किन्ति, ‘afuacefa विगेव्यताव्यधिकरणेव्ययेः, अनपि कतौया yaaq मतु व्यधिकरणप्रकारकल्वे waa एव भम ज्ञानं कथं भम इति azerneraray, “न चेति, ‘afar ` ware efi प्रतिधथोगिवाशकपदस्य(९ अनुथो गिवाषकपद- समानलिङ्गकलनियमात्‌ व्यभिकरण्मिव्यज् गपुंखकलिक्रकत्व- मलुपपनञं प्रकार इत्यस्य पुंशिक्गकत्वादिति वाश्यम्‌। waft व्यधिकरणमिव्येवालुयोगि व्यधिकरणएमुदिश्य प्रकारभेदवषिधाना- इतः सामान्यतो नपुंसक शिङ्गलमेवोचितं प्रकारग्रष्दश्य अरज- इलषिङ्गकलाख नपुंसक शिङ्गतमिति भावः “रजतल्वप्रकारकवस्येति मस्व WMA प्रक्नारोग्रतस्य रजतत्वपरकारकलसेत्यथः, शङ्गिविगेग्धक- we Safa बोध्ये, ae रजततवप्रकारकलवस्य Basen, Sarnia रजतत्वाभाववदिगेव्यकलवावच्छिलरनततप्रकारकलाश्रय- WSs इत्यर्यः, प्रमाणाभावादिति, श्रमाणं ' प्रमा, wat रज-

(९) wate इति we |

(९) प्रतियोगित्वमनुयोगित्वश्चाग्वयबोधस्य aq प्रकार्स्येति भावः |

प्रब्दास्यतुरौयखण्डे शब्दाप्रामारछवादः। ९५

वात्‌। ननु प्रतारकवाक्ये ` व्यभिचारः विशेषद्भमेन तक संसगेन्नानाभावात्‌। संसर्गमप्रतौत्यं वाश्व

तल्ाभाववदिशेव्यकलाच्छिश्नरजतलप्रकारकल्वाभावादित्य्थ॑ः, भम- प्रमातिरिक्र विशिष्टञ्चाममप्रसिद्धमिति ara) |

केचित्तु न्यया" भमविषयकन्चानमाते एष्मादौ रणतला- देगयभिकरणस्य Hata, “भान्ती ति रजतल्वाभाववदिगेष्यकरज- तलवप्रकारकज्ञागोच्छेद्‌ इत्यर्थः, श्रमाणेति, तथा सति wa- ग्रारकस्य wea wae gaat रजतलादिवै शिष्चावगादिलेन wert तदभाववत्वावगादनासम्भवेन रजतलाभाववति weet रजतत्वप्रकार कल्वरूपभ्नान्तित्वावगाहनासम्भवा दिति भाव इत्थाशचः |

अन्ये ठु ‘NIU श्रस शिष्छविषयकलस्य भमत्वरूपवे, “भा - TSI भरमंमाचस्टवो च्छेद्‌ः, प्रमाणेति, ्रानश्चागरेत्यादिष्यातनि- बलात्‌ भान्तिग्राहकस्य सर्वस्वा सदेभिष्यविषथकतथा way विष- WAAR भाव TTB: | सदसत्‌, amt THAT fH श्वविषथकलेऽपि watt aad प्रमालानपायादिति सङ्केपः

ननु प्रतारकेति agra चटवति was परग्रतारणष्छया युक्ते घटाभाववद्ूतललमिति विसम्नादिवाक्ये cet, तेनं wre पकार कवाक्ये व्यभिचार इत्यथिमग्न्धेन पौगर्श्वमिति ae, विशेषेति untae वकुधेटवद्ग्छतशमिति qe निखथसच्ेने- ` रथैः, सखेति घटाभाव-तलयोः संसनश्ञानाभावारित्ययैः | ©) विश्िे्नेन निरविक्क्चाग्यारत्त, तथाच मन पत्य

निविकस्यकन्चानस्य प्रसिदधतवेऽपि नं तिः |

ae ` वश्वचिन्तामवौ |

र्ना सम्भवतीत्याहार््यं तस्य संसगेत्तानं सम्भव- ` तौति" बाच्यं। तावत्यदन्नानादेव शुकस्येव वाक्षरच-

बाधाभावरूपयोग्यता विग्रेषितद्ेतोख्तजाभावात्‌ कथं व्यमि- चार इति वाच्यम्‌ '्योग्यताविरशाचेत्यनेनाख् zee सखय- जेव वच्छमाणएलवात्‌ | | , .. केचित्तु अन्वयप्रयोजकरूपवत्व' योग्यता हेतौ प्विषटेति , मेष्णा ग्रडूते, “नन्विति, तथाच “्रतारकवाक्ये इत्यस्य करका- कर्कोन सेक इति जामानेम We करकाकरणकतेनम सेक- , बोधो भवलिति प्रतारणेच्छछया waa पयसा fret वाक्ये इत्यथैः, चये च॒ बाधाभावरूपयोग्यता हेतौ प्रविष्टेत्यमिप्रायेण "योग्यता विरहाश्चेति समाधाष्यत TITS: | "संसग" एकपदार्थऽपरपदार्थसंषमे, "वाक्यरचना" वाक्योटेभ्यक- wafer, “await, तस्ाप्रतिबध्यवादिति भावः। यद्यपि आहाय्यैन्नानषन्वेऽपि प्रमापूष्वकत्वपय्येवसा यिषाध्यविरहाद्मभिषार- श्तदवसख एव, तयापि स्फुटात्‌ तदुपेद्छ दृषणाग्तरमाद, (तावत्पदेति खखादिरूपेष्टषाधनतया शआतुपूर्वोज्ञानादेवेत्यथैः, aris विनापौति गेषः। मनु werefafowe -वाक्या- नुङ्लङृतौ वाक्धायेश्चानरूपेष्टषाधनतान्चानमेव हेतुरिति खवि- . घयकञ्चानेच्छादारा `प्रतारण्णखलेऽपि . वाक्धाथेन्नानमवश्समपेकि-

(९) तस्य सं सर्गस्य न्नानमस्तोतीति |

प्ब्दाख्यतुरौयखष्डे शब्दाप्रामाण्छवादः | 88

नोपपत्तेः। अन्यश्रापि awa तन्त्त्वादिति चेत्‌, न, तद्वा क्यमेतस्य पदाथेसंसर्ग बोधयिष्यतौत्याशयेन वाक्यप्रयोगात्‌ तस्यापि संसगेन्नानात्‌ योग्यताविर- ee) अतरव विसम्बादिवाक्ये शुकवदु्चरिते

तमित्यत श्रा, श्रन्यचरापोति परलि-पश्भिन्नस्य मूखं-वाखकादे- वाक्धानुकूलकृतावपौत्थधैः, ‘ada सुखादिरूपेष्टषाधगलेनानुपूरवौ- mre ` श्राश्येनेति waged: श्रन्ययाज्ञाताचंदान्यथा- बुबेाधयिषाथाः८ प्रतारणलादिति भावः। ततश्यापि' प्रतारक- स्यापि, ‘diwimearfefa पदार्थानां? परस्यरसंसगे न्नाना दित्यर्थः, संसगंबोधनेच्छां प्रति संसग न्नानन्ञानदारा संषगेन्नानस्पापेकितलात्‌ संसगेश्चामं विना प्रतारणाया श्रसभ्भवादिति भावः। विशेषद शेनसत््वात्‌ ` कथं संसरगंन्ञाममिति ` वाच्यं श्रादाय्येसंसम- ज्ञानस्य यथाकथञ्चित्‌ संसगेश्ानस्छ(? चख तत्सत्त्वेऽपि सम्भवात्‌ तथापि संसगेन्नानजन्यलं areata व्यभिवार इति are wigan साध्यला दित्यमिप्रायात्‌ aq तथापि प्रमापय्यैवखायिखाष्यविरदाद्यमिचार एषेत्यखरसादाह, "योग्यतेति, बाधविरह एव योग्यता हेतौ afsefa भावः। तएव" Bat माधाभावरूपयोग्यता विगरेषणादेव, श्ररकवदुञ्चरित इति एकपदार्थ (९) रकप्रकारेण QAI प्रकारान्तरेण WTAE इत्यर्थः|

(९) प्रतपदाथगामिति कर | (९) लोकिकाप्रामाण्याश्रयस्येत्यर्चः |

ae तच्चचिग्तामणौ |

MITT | शब्दात्‌ संसगेप्रत्ययस्तु योग्यताभरमात्‌ | wa संसगेन्नानं विना शुकस्यान्यस्य वा सम्बादि-

ऽपरपदा्संषे ्ानवदन्येगो रित इत्ययः यद्यपि तादग्रयोग्य- इत्ययः चद्यपि तादृ श्रयोग्य- ला विश्ेषण्ठारुपादाने प्रमापय्यैवसायिषाध्यविरदिणि तन्तातृपरयैक- विखम्बादिवाक्यमाच एव व्यभिचारो भवतौति श्ररुकवद्श्चरित- तवपय्न्तारुधावने धथ, तयापि तादृ श्रवाक्ये एकपदा्थंऽपर- पटाचंञ्चानमाचपूरवंकत्वसाध्येऽपि व्यभिचारः सम्भवतोति तावत्प- येकाशुधावनं तयापि इएकोष्रिते शत्यश्येव अम्यक्लाच्छ- कवरिति व्यथेमेवेति वाच्यम्‌। शकोचरिते तात्प्यंग्भरेलभाषेन व्यभिचारासम्भवात्‌ पुवचसि तु एकपदार्थःपरपदार्थसंसगेश्चामा- भावेऽपि इदं वाक्यं सेक-वद्धिकरणत्व-संसगाणां aa जनयविति घामान्यतस्तात्पय्येसम्भवादिति भावः। ननु यदि तच योग्यता afe कदाचित्‌ कथं तज deine: रेवभावा दित्यत श्राह, ‘gearfefa, प्रयोजके पञ्चमो, श्योग्यताभ्रमादिति, %a- भ्रमादसुमितिरिति भावः। ‘daira विनेति अपरपदा्यं एकपटार्थसंषगेक्ञानं९ fated, उश्चरिते इति te: इएकवाक्ये तात्पथ्यैषरितदेलभावाद्ममिचारो सम्भवतोत्यत We, “न्यच afa, तापि saad -एकपटा्षश्गश्चानाभावेऽपि ददं ara अतख-चट-संघर्गाणां a जनयविति सामान्यतस्ता- ma सब्भवतौति बोध्यम्‌ arf वद्ठगत्या चटाभाववति भूतले घटवर्ग्डतशमिति aria प्रतारणेच्छया WER घटा-

(९ एकपदायेंऽपरपदार्थ॑संसर्गश्नाननमिति Ge |

WALA शब्दाप्ामारयवादः | ४९

वाक्ये अान्तप्रतारकवाक्ये व्यभिचारः कथं वा तच संसगेप्रमा वक्तन्नानानुमानासम्भवादिति" चेत्‌ न। यदि ` तच संसगेप्रमा तदा Aquat

भाववद्ग्तलमिति वाक्ये इत्यरथः, योग्यतावत्वलाभाय भान्तेति, "व्यभिचार दति प्रषतैकपद्‌ाथंषंसगेवतप्रशतापरपदायन्नागपूरवेकला- भावादिति भावः। मरान्तप्रतारकवाक्ये कथं व्यभिचारः saat water बुबोधयिषात्मिकायाः(९ FATT RTE: संसर्ग न्ञानजन्यलनियमेनं प्रतारणान्ययानुपपश्या एकपदार्थसंसगंवद्‌- पर पदा थेश्चामस्याहाय्यैस्यापि विषयाबाधात्‌ प्रमारूपस्यांवश्छकलतात्‌ सामान्यतस्तादृ ्रपरार्थन्नानपूरवकलस्सेव साध्यलादिति वाच्यम्‌ ma स्तारसिकन्नामस्य प्रमालेन विवक्तितिलात्‌ काकताज्लौय- VACA STATS प्रमाणान्तरफललात्‌। Bar “arena रकवाक्ये इत्यसय भनाम्तप्रतारकस्येव वाक्यं इति Bary करणा- पाटवजन्यवाक्य इत्यर्थादिति मन्तयं ‘ay’ तेषु way, ‘deanna’ VAY, प्रमालपय्यन्तानुधावनस्य यर्थ्ात्‌, ‘arent fat, बाधादिति भावः। ‘acqedfa. बेरे - यथा श्रोयसंसगेप्रमा- पूवेकत्माद्‌ाय errand तथा प्रृतेऽपौत्यर्थः,. यदि संघर्गप्रमां तदा एतदाक्यशन्यप्रतौत्यप्रसिद्या तात्पय्ै्रितहेलभावादेव मै

(१) BRAG चानानुमानासम्भवादितोति eo | (९) खन्याथेबुबोधयिषाल्मिकाया इति Ge |

® साध्य इत्यादिः wag पाठः w-a-fabeaqernea atte) ` 7

५९. ` बच्वचिन्तामणौ

आकाहृा-योग्यतासन्तिश्च न्नातोपयुज्यते, Wear श्राब्दथधरमानुपपत्तेरिति। उच्यते। Weare प्रवत्तकं

व्यभिवार इति भावः। उक्तमिति प्रत्यचखण्डे उत्पन्तिवादे Tare: | ननु श्राकाङ्कुग दिन्नं विनापि शब्दश्चवण्णानन्तरमतु- भवषिद्धः पद्‌ाथंसषगेबोधः पैगरेषिकमते कथं श्यात्‌ हेतुविगेष - फौगताकाङ्काद्यज्ञानेनानुमानासम्भवात्‌ शतः शब्दोऽवग्ये मानान्त- TARA इत्यत श्राद, “श्राकाङ्केति, भवन्मतेऽपि श्ान्दबोपे दूति रषः “श्रन्ययेति धदि ताः खरूपषत्यः श्ाब्दघोकारण- ater: शग्रा्देति शाबष्दबोधस्याकाङ्खादरिभरमेशतुपपन्तेरित्येः, सखदूपषदाकाङ्घगदेरभावादिति भावः Grad सङ्गच्छते QUAM: खद्ूपषद्‌ पयो गित्वे शाष्दभ्रमानुपपन्तावपि ्राकाङ्खम- ant: खरूपसदु पयो गिवे तददिरहात्‌ afea शिद्वतोत्यादौ श्राष्दभ्मस्वलेऽपि खरूपसत्योस्तयोः सत्वादिति ध्येयम्‌ agqe- जेनेव प्रकारेण स्वे शब्दात्‌ संसगंबोधो भविश्यति fa nee प्रमाणान्तरलेनेति वैशेषिकाणां पूर्वपचः तच गृढाभिखनिवः समाधानमाह, शश्रयेन्नाममिति ददन्तावच्छिन्ने areas | रजतप्रकारकं न्नानमित्यथेः, ‘nana’ इदं रजतं बेत्यादि- संगशयाभावप्रयोजक, तादृश्रसंश्रयप्रतिबन्धेकमिति यावत्‌, यथाश्रु तन्त सङ्गच्छते रजतादि निष्टष्टसाधनतादिन्नानखय उपादान- yaaftua ददं रजतमित्यादिप्रत्यचस्य प्रटन्तरंतुतेनेदं

© श्रान्दधोकारणानोति शेष इति

श्ब्दाश्यतुरोयखण्डे शब्दाप्रामाण्वादः | ur

ag agen गोरवात्‌ व्यभिचाराच्च, श्रतो रजतन्नानवानयमिति aa प्रवतेव किन्त्व रजतमिति aa, इदमपि ma रजतविषयकमितिं

रजतमित्यादि वाक्यजन्यश्राब्दवोधस्य कापि प्ररत्यनुपधायकलात्‌। यदा ‘nada’ तादाव्यसम्बन्धेन रजतादिप्रकारकप्रटन्तिखरूपयो- faa, तथाच mead तदिग्ेव्यक-तक्छंसगेक-तत्रकारक- प्रटत्तित्वावैच्िनं प्रति ayaa शाब्दबोधादिषाधारणेन खामान्यतः कारययै-कार णभावान्तराभ्बुपगमाच्छाष्दबोधेाऽपि तादृश प्रृत्तिखरूपयोग्य इति मासङ्गतिः, एवमयेऽपि "न तजुन्नान- भानमिति तु तादृश्श्लानन्नानमित्ययेः, “ववभिचाराचेति ताद्‌ शश्ञानन्ञानसच्वेऽपुक्रसंश्रयोत्पादचेत्ययेः, GAH इदं रजत- भित्या्भेदप्रत्यकाव्ाथमानायां sew व्यभिचाराचेष्ययैः। घामा- न्यत oma” प्रहृते योजयति, "रजतन्नानेति रजतपदाथसंषग- वदिद्श्पदा्थेन्ञानवा मित्या्तुमानिकं भ्रानमित्यथेः, श्नानवानयमि- त्यभिधानन्तु आकाङ्घादिमदाक्यमथोक्रललिङ्गकपुरषपंशकानुमाना- भिप्रायेण, uma तु तादुग्रन्नामपूवेकभमिदमिति बोध्यम्‌, ` ददं रजतमिति cz रजतमित्याकारकं श्चानमित्य्ैः, what प्रवतत कमित्यजार्न्ञानपदेन रनतविषयकं न्नानसुक्रमिति भमेएाशङते, "इद मपौति, संसग विशरेषणतया रजतपदाथेतशूपेए waft

ऋक णपि ~ =

(९) सामान्यत उक्तेति we, Te |

४२ तत्षचिन्तामथै

चेत्‌, -सत्यं, तु रजतत्वप्रकारकं Waa तथा, ; चन्यथा ` यरान्तस्येव खान्तिन्नस्यापि प्ररत्तिप्रसङ्कः

भानादिति भावः भरमजिराकरोति, “खत्यमिति, तु रजतवब- प्रकारकमिति तु रजतलात्मकतादा्यषम्बन्भेन ` इदन्तवावच्च्छिशन रणतप्रकारकमित्य्ः, यथागरुते “किचचेत्यादिना वच्छमाफेन va RTT: ; | | ih इद रजतमित्या दिवाक्यभवष्णनन्तर मिदं रजतं वेति संसयाभावस्ालुभव सिद्धतया ततृप्रतिबन्धकौश्तन्ना- नमावश्यकं astra निवेहतोति तजिवाहाय शब्दस्य मानाम्तरतल यदा इदं. रजत मित्या दिवाक्यश्रवणानन्तर तादा- RIGA रजतप्रकारकप्रटन्तिखरूपयोग्य WT सवषिद्ध॒तच्ो- क्रानुमानान्न निवेहतौति तदथै शब्दस्य मानान्तरत्वमिति भावः | . केचित्त तु रभतलप्रकारकमिति लिदन्त्वावच्छिनन समवायसम्बन्धेन CHANTRY इत्याहः, तदषत्‌, तथा सति न्यायनयेऽपि ददं रजतमिति वाक्यात्‌ तादृश्रग्राब्दबोधा- सम्भवादसामश्चस्या पत्ते रि ति ध्येयं |

. मतु Wt यत्र यज द्यत्मकारकं श्ञामन्नानमपि तच तत्मकारकमिति(र९) नियमादुक्रानुमानमपौ दग्वावच्छिन्ने तादाम्य- सम्बन्धेन रजतप्रकारकमिद्यत श्राह, त्रन्ययेति तादृश्रनियम- इत्यथे, "भान्तस्छेव' इदं रजतमिति waa, 'भान्तिन्नख्य' तादू- शभ्नमदिषयकश्चानमानस्य, श्रठन्तिप्रसङ्गःः निर्क्रसश्यप्रतिबन्ध- (९ शसङ्कतत्वापत्तेरितोति खम, we | | (९ तश्र तक्नत्संसग क-तत्तव्रकारकमितोति कण |

ण्ब्दाख्यतुरौोयखष्दे शब्दाप्रामाखवादः | wR

तदुभयसङ्करा पत्तिश्च" शतेन. लक्षणायनुराधा- WIAA वाक्याथेधौरेतुः तात्पय्येष्व पदाधेसंसगे- विशेष प्रती्युदेश्यकत्वं, तथाच तद्‌ ग्रादकानुमानादेव तात्पयन्नानावषच्छेदकतया संसगेसिहिरित्यपास्तं« 1

प्रसङ्गः मिङ्क्रमश्रयप्रतिबन्धरूपफलो पडितलप्रसद्ग इति यावत्‌, यदा au श्रट्तिप्रसङ्गः' निरक्प्रठन्तिखङूपयोग्यल प्रसङ्गः, ‘agate भरमविषयकेश्वर न्नान-भ्रमयोरभेदापत्तिरित्यथः, उभयोरेव व्थभिक- रणप्रकारकश्चानवादिनि भावः “एतेनः इदन्वावच्छिले तादाक्ब- सम्बन्धेन रजतप्रकार कज्चानस्येव CS रजतं वेति संश्रयप्रतिबन्धकलेन्‌ AGMA’ ताद्‌म्यसम्बन्धेन रजतप्रकारकप्रटत्तिखरूपयोग्यलेन्‌ वा, ‘tf परास मित्ययरेतनेनान्वयः, “लच्णादौति शचणादिख्वले weeny विनिगमकानुरोषेनेत्यर्थः, wafer anaes, तात्पय्यद्दस्या हेतुले ‘aah: प्रवेशयेत्यादौ लाक्षफिकखले यष्टिधरख्छ शाचणिकार्चस्येवाग्वयबोधः तु शक्याथेख्येत्य् विनमिगमकाभावापन्तेः एवं भोजनसमये सेन्धवमानयेत्यादिप्रयुक्रे णवणस्येवाग्वयनोधो तु अशवसयेत्यत्रा पि विनिगमकाभावापन्ेञचेति भावः। ंसगेप्तोत्युरेभ्- कल्वमिति(९ एकपदार्थंऽपर पदार्थसंसगेप्रतोतोष्छयोचरितत्मित्ययैः, "तात्पय्यन्नानावच्छेदकतया' तात्पस्येवर कश्चानावच्छेद्‌ कतया, “संषगे- (९) सदहूयसङ्करापत्िखेति ०, Go | | (९) इति पराामित्यपि पाठान्तरं दैकृश्पाठ Ta टौकाकारसम्मत इति |

, ‹पदार्थसं सर्ग विष्रोषप्तौग्यदेश्यकत्वं ' इत्यत्र “संसग प्रतौ्यद श्यकल्वं ' दति

कस्यचिग्मृलपुतकस्य पाठमयुखत्य दैदृश्षः पाठो एतो मथुरानाथेनेति सम्भाव्यते |

४9 तक्वचिन्तामणोौ

किच्च व्यापकतावच्छेदकप्रकारिकानुमितिरतः" सा- रितपदाधेसंसगेत्चानपृव्वकाशौत्यनुमितिः स्यात्‌ नतु

सिद्धिरिति, wa: कि wee प्रमाणान्तरतलेनेति ओेषः, अन्यथा शंख- गे सिद्धेरनपास्तत्ेमालग्रकतापातात्‌, "परास्तमिति, ददं रजतं वेति खंग्रयप्रतिबन्धकश्चामस्य AeA रजतप्रकारकप्रन्निख- ङूपयोग्यन्नानस्य वा श्रतोऽसम्भवादिति भावः। भनु तथापि निर्क्रषंश्रयप्रतिबन्धकलतवं निरक्रप्रटत्तिखशरूपयोग्यलं वा तावदि- दग्वाषच््िल विगेव्यक-ता दाम्यसंषगेकरणनतप्रकारकश्चानत्ेन श्रपि इदग्वाश्चय-रजतयथोरभेदसं षरगावगाडिन्नानवेन We सामान्य WRAY WANTS एव इदं-रजतयोरभेदः अचर रजताभेद इत्या- fenrrenfa तादृश्रसश्रयप्रतिबन्धकलं तादशप्रतन्तिखशरूपयोग्यत्व- घेति मन्यते तन्ते शब्दस्च प्रमाण्णन्तरत्वमनकमेव उक्षारुमाना- पि तादु श्र्नानमिवेाहादित्यरूकेराइ, “किति, “्यापकतावच्छे- ठ्केति व्यापकतावच्छेदकलन ग्टहोतधमेप्रकारिकेवेत्यर्थः, 'स्ारित- पायं ति एतद्रजतपदस्मारिता्थं घर्गंवदेतदिदन्पदस्मारिता्थश्चान- gears: नन तु रजतश्नानेति तु रजताभेदवदिदंशाने- ae, तथाच येनेदन्त्वाश्रय-रजतयोरभेदसंसगेो वगा हिन्चामलयेनेदं रजतं मः येति संग्प्रतिबन्धकल्वं तादाव्यसम्बन्धेन रजतप्रकारक- म्डन्तिखरूपयोग्यलयं वा श्रभ्युपगम्यते तेनापि रजति निरवच्छि- करजतत्वपरकारितानिरूपिता श्रभेदसंसगेभ्रि चाभेदलातिरिष्-

() ततः इति. we |

एब्दाख्यतुरीयखण्डे एब्दाप्रामाण्वादंः। ५५

रजतन्नानपूव्येकाणौति तस्मात्‌ TAWA Wei शब्दा देव | अतरव प्रहतत्यथ॑मनुवाद्‌कता शब्द स्येत्यपास्तं(५। प्रकारिलाजिरूपिता था इदं रजताभेदवदिति धौ विषयिता चेवा- वच्छेदकको रौ प्रवे्नौधा, अन्यथा प्रमेयवत्‌ पदाथेवत्ममेसंसरभवत्‌ पदाथेखंसगेवत्‌ रजतोयप्रमेयवत्‌ रजतो यजा तिमदित्यादिज्नानस्ाणुकि संशये प्रतिबन्धकल्वापत्तेः प्रूतामुमानाश्च तन्न si रजतलवश्पेण रजतस्यामेदवेन श्रमेदस्याभागात्‌ पटाथतवेनेव रजतस्य संसरगलेनेव चाभेदस् भानादिति भावः ‘sada mafafa ct रजतमिति वाक्यश्रवणानन्तरमलुभवसिद्धस्येदं रजतं वेत्यादिसंश्रयाभोवश्छ प्रयोजकं श्नाममित्ययैः, यदा तादुश्रवाक्यन्रवणणमन्तर मनुभवसिद्ध तादग्यसम्नन्धेन रजतप्रकार कप्रन्तिखरूपयोग्यं rasa, “श- ब्दादेवेति, उक्रानुमानव्यवच्छेदमाजे ATU नोक्रानुमाभादिष्ययैः, अतः शब्दा मामान्तरमिति TE! भरन्रौमांसकमतं निराकरोति, ‘aa एवेति यत एवोक्तातुमाने स्रारितपदायेलमेव प्रकारः तु रजतत्वादिकं श्रत एवेत्यथेः, “दति परास्तमित्यनेनाग्वयः, ‘news’ ददं रजतमित्यादिवाक्यश्रवणानन्तरमिदं रजतं बेत्यादिषंशया- भावसन्पत्यथे तदान तादृश्संश्रयप्रतिषन्धायथेमिति यावत्‌, यद्या तादश्रवाक्यश्रवणमन्तर तादादयसम्बन्धेन रजतप्रकार कम्ररे्तिखसूप- योग्यन्नानाये मित्यर्थः, उक्ररूपानुमानात्तदषम्भवादि ति भावः। “श्रसु- ACHAT शब्दस्येति उक्रूपानुमानानन्तरं शाष्दानुभवशजनकता शब्द- ` स्येत्यर्थः, सवो क्रानुमितिमामयौसन्मवेनो क्रष्पानु मितेः परागृत्पादा-

(९ agen ‘qouanfafa पाठान्तर |

wd , . ` तत्वचिन्तामशो

शाब्दानुमित्योभिनप्रकारकत्वात्‌ रकविषयत्वाभावेन

दिति भावः। तथाच wet न्‌ प्रमाणमिति शेषः प्रमाकरणं हि प्रमाणं प्रमा श्राररोतमानयाद्यनुभवः ग्टहोतमाचयारोतरातुभव- इति यावत्‌, पटो द्रयमित्थादिन्नानोन्तरं भायमानसख घटो za- मित्यादिश्नानस्य प्रमाल्षम्यादरनाय माचपदं(५, खसमानाधिकरण- खाव्यवहितपूवेवन्ति निश्चया विषया विषयकेतरालुभव इति फलितार्थः, श्राष्टबोधख तथा तस्योक्तानुमितिरूपतादु शनिखया विषया विष- यकलात्‌, संशयोन्तर प्रत्यचातुमित्योः प्रमालसम्पादनाय निखयवेनो- पाटानं, खत्वघरितलादनत्ुगतत्ववारणणय(९ चरममिषेधदयोपादा- नमिति भावः। wad शब्दमा स्येव ग्टरोतमाचय्राद्यलुभवमाच- लनंकलेनाप्रमाणत्वं वच्छमाणएलर नौ मांषकमते तु लौकिक ग्रब्दस्येव तथाल्वादप्रमाण्लं afeag प्रमाएमिति तेन ae ureter) ‘gavage विदृणोति, श्राब्देति, ‘fafa शाब्दबोधे रजत- ara: प्रकारल्वादनुमितौ स्मारितपदाथैलस्य प्रकारतया दित्यथैः; “एकविषयलाभावेनेति शाब्दबोघस्योक्रानुमितिविषयमाजविषथक- ® aura agama एएष्टौतेतरघटय्ाहित्वेन एएष्डौतमाषयाहदित्व- ` fafa ata | (र?) मनु खसमानाधिकरण-खाव्यवद्हितपव्ं वत्तिनिख याविषयविषयकानुभवः प्रमा इत्यनेन सामन्नस्ये निषेघद्योपादानं यमिग्यत are, च्ननु- गतत्ववारणाय -चरमनिषेधद्योपरादानमितौति, निषेधदयोपादानेनं प्रतियोगिखत्वं खचितं त्वनुयोगिखत्वं, तथाच शखसमागाधिकरण- खाव्यवहितपव्वंवत्तिनिखयाविषयाविषयको यो यः खसामानाधिकरण्ण- खाव्यवहदितपव्वं वत्तित्वोभयसम्बन्धेन खपिशिद्धनिच्याविषयाविषयको

योय द्रति यावत्‌, तत्चदनुभवभेदकूटविशिद्ानुभवः प्रमा इति फलि- वार्थः खपदद्यं मेदप्रतियोग्यनुभवपरमिति |

शम्दाख्यतुरोयखष्डे श्ब्दाप्रामाण्यवादः | ५७

अमनुवादकत्वात्‌ तस्येव प्रमाणत्वात्‌ | AAA प्दार्षा-

त्वाभावेनेत्यथेः, “श्रमनुवादकलादिति ग्रहोतमाजग्रारौतरवादिव्य- थः, ‘aaa तथ्यापि श्ब्दस्यापौति यावत्‌, श्रमाणल्ादि ति गटरोत- मात्रयाहौतरानुभवकरणता दित्ययैः, इद श्च सुगमसमाधामलादुक्ं | वस्तुतश्च सवच शाब्दबोधपूरवसुक्षरूपानुमितिषाममौसचे. मानाभा- वेन यज प्रथमं नेतादृश्चानुमितिषामसो ata गरोतमाथ्रारौ- तरानुभवकरणतल्सम्भवः | किञ्च खसमानाभिकरण-साव्यवदितपूवं- वर्तिं निश्चया विषया विषयकेतरामुभवतवं naa तया सति धटः सत्तावानित्याद्यसुमितेः परामश विषयमा विषयकलेमाप्रमा- ATTA: UE श्रग्टहोतयाहि-तदिगेव्यक-तस्मकारकानुभवल्वं तज amard, अरग्टरोतयाहित्श्च ग्टहोतयारौतरत्वं सषमानाधिकर- - स्वाव्यवहितपूवैवभ्तिखसमामाकार भिखयविषय विषयकेतरत्वमिति यावत्‌, तथाच खसमानाधिकर ए-खाव्यवहितपू्व॑वलि-खसमा- माकारमिखयविषयविषयकेतरतदिगशेव्यक-तत्मकारकानुभवत्वं ay ana, तादृश्रामुभवकरणतवश्च ay anauafats फलितं,

(९ पलम्विषयमाचविषयकतवेन घटः सत्ताश्याप्यवाभिति wernt faa माच्रविषयकत्वेनेत्यथेः | पवतो वद्िव्याप्यवाभिति परामर्शं जायमानायाः पर्व॑तो वह्िमानित्यनुमितेः परामश्रंविषयमा्रविषयक- त्वेन प्रमात्वापत्तिसम्भवे प्रसिडखयलपरित्थागोनिर्वौज इति वाच्यं परवै- aaa प्रागनमुमवात्‌ तादृशप रामं स्य वहित्वेन महागमौयवज्ञा- दिविषयकवेनम उक्ामुभितेस्तादृ पराम षयपरवंतौैयवद्िविषयक-

तवेाप्रमात्वासम्भवात्‌ | 8

४८ तत्वचिन्तामणौ

स्तात्पय्ै विषयमिथःसंसगेवन्तः अकाह्कादिमत्यदसा-

सरसमामाकारलच्च waa aren तदिगेयकलावख्डिन्नततका- रिता तादृ ग्रतद्िशरेष्यकल्वावच्छिन्लतत्रकारिताग्रालिलं, इत्यघ्चोक्रा- मुमानस्य शाब्दबोधसमानाकारलमेव नास्ति शाब्दबोधे araz- कपदार्चःपरपदा्ः प्रकार उक्रानुमाने ततृसंसंद्ति भेदादिति क्तः शाब्दबोघस्याप्रमालं एतेन aren यदि शाब्दधौदे- AAT WAI ग्टद्ौतमाजयाह्मतुभवमाजजनमकल्वा प्रमाणएलं ATA तद्धिगे्यक-तप्रकारकम्रतौ तौ च्छयो्चरितलरूपतथा तञ्‌- चान एव श्ाब्दबोधविषयोग्डतस्य सरवस्येव प्रथमं भानादित्यपि निरस्तं यथो क्रतात्पय्येन्नानख्य शाब्दधौखमानाकारलाभावादिति ध्येयम्‌ | नतु मा शदुक्तातुमाना दिदम्षावच्छन्ने रनतलादिप्रकारेण रणतादिससगेश्चानं तथापि विभि पदाथेप्कादौदृग्रातुमानाद्‌- भविग्यतोत्या ग्रयेनाशङते, ‘afafa, “एते पदार्था इति ददन्वा- श्रयरजतादय दत्ययेः, ‘aaa तात्पय्यैविषयौशतो यः परश्य- THVT दत्य, WI दइदन््वाञ्रयरजताद्‌ यस्तात्पय्यैविषय- संसगेवन्त इति साध्ये ददं रलतं बेत्यादिषं्रयनिवन्तकन्चानस्य जिवोहः दरदं रजतसंसगवदित्याकारकमिञ्चयस्येव तादृशरसंश्यनिवन्त- कल्वादतो BA यस्य संषगंबोधो वस्ततः शब्दाष्नायते तं wefy- ल्वा तात्पय्यविषयोगततत्‌संसगेः aude: इति लाभाय "मिथः- ` पदं, तथाच दरदं रजतभित्यादौ इदं रजतसंसगेवदित्यादिक्रमेण साध्यं, रजतमानयेव्यादौ कमलं रजतसंसर्गवदानयनं रजतकमे-

एब्दाख्यतुरौयखण्डे शब्दाप्रामाण्यवादः। ५९

AANA तिस्तात्पग्यं विषयोौग्रतामयनसं समंवतौत्या दि करमेण नानेव साध्य पचछोऽपि नाना aque त्वमुमितिः, sada यदा- मयम-छगथोर मुकूललवसंसगं तात्प तदा रतिं पर्ौरृत्यामयन- संसग साधने रतौ श्रानयनस्य विषयत्वखंषगंस्वापि fafxat गदि- ति 'तात्पय्यैविषयेति dwifated तस्िद्धौ रतिविर रः उदेश्वस्यागुकरूलत्वसं सगं ज्ञानस्य टन्तलाद धिकन्त्‌ प्रविष्टमिति न्याया- दिति ave) तरिं तदानौं तद्िषयकबुद्धेरतुभवसिद्धाया च्रसु- मानादटन्तला तदनुरोधेनैव शब्दस्य प्रमाणाम्तर तवापत्तेः एवं सर्वच बोध्यं, तात्पय्येविषयलश्च रएतत्पुरुषोयेतत्‌कालोना चा एतदुभय- पदजन्यसंखगंप्रतो तौ च्छा तददिषयत्वं, तेन संसगमा जस्येव पुरुषा- न्तरोय-कालान्तरोय वाक्याम्तरजन्यप्रतोतोष्छा विषयलादयोन्तर- तादवख्णय श्राकाञ्चगनिरूपकत्वमपि संखगेविगेषणं देयं, इतरया यदा शृत्थानयनयोरनुकूलले समानकालौमते see तात्प तदा शतावानयनस्य शमानकालोमलषंषगेस्यापि fare: ख्यात्‌ आकाद्खामिशूपकलश्च एतत्यददयाकाङ्खामिरूपकलं वाच्यम्‌, saat तख्छापि कुजचिदाकाङ्खगनिषरूपकत्वात्‌ वेभ्रेषिकेः शाष्दलजातेरमभ्युपगमादाकाङ्खग निरूपकलं दु वेचमिति वाच्यम्‌ तैरपि श्राब्दतल्वजातिरग्युपेयत एव परन्तु सा जातिरसक्रातुमिति-' डन्तिरलुमितिलग्यायेत्येवाभ्युपगमात्‌ we वा तत्‌ संखगेभिन्न- संषगेलमेवा काङ्काभिरूपकसम्बन्धेत्वमिति काणनुपपत्निः। द्द्‌ रजतमित्यादौ इदपचक-रजतखंसगेषाध्यकातुमाने तु तात्पय्यै- (९) बोध्यमिति ge, |

व्वचन्तामौ

fara ` धंखगे विग्रेवमरुपादेयं इदं-रजतयोरभेदसंषरगे षमान्‌- कालोनलसंखगें तात्पय्येदध्रायां समानकाल्लोनलसंघरग धिद्धिवा- रणठायावण्ठं शआआकाङ्गनिरूपकलयेन dat विशेषपोयः, तथाच तत॒ एवामेदवंखगेमाजे तात्पय्ैदभ्रायामपि तात्प््याविषयसंसर्गांन- दसिद्धिवांरण्ात्‌ ससर्गान्तरख्य rarer gr निरूपकलविर शात्‌, एवं रजतमानयेत्यादावपि क्मलपकक-रजतसंसगं साध्यकानुमाने तात्य- विषयत्वं संखगेविगरेषणमनुपादेयम्‌ रलत-क्मलथोराधाराघयभावे warren संगं तात्पय्यैदश्रायां कमले cae संख गंबिद्धिवारणायावण्यमाकाङ्खगनिषूपकवेन संसा , विग्ेषणणैयः, तथाच्च रणत-कमेवयोराधाराधेयभावसन्बन्धमाजे तात्पर्थदश्रा- थामपि aa एव तात्पर्याविषयसमानकालोनत्वा दिसंसनंबिद्धेवा- रशादिति बोध्यम्‌ त्राकाङ्कदौति रनतपदाकाङ्खु दिमत्पद- खारितलादित्यचः, आदिना योग्यतापरियदः, oy सारितत्रमाचं धट-पटयोरपोति रणतपदयोग्यतावत्पदस्म रितेलसुक्त, रजतपद- धोग्यताक्तवं रजतपदार्थाबाधितार्थकलं रजतपदयोग्यता- RUTH रजतमानयेत्यजाम्‌परोपख्वापिते कर्मवि ANA AA . Cantar यदि दम्पद-रजतपदै तदुभयनिषाकाञ्घु निरूपकतदु- ` भयतात्पर्थविषयोग्रतरणतसंषग wants यभिचार दति वाच्यम्‌। एतद्रजतपदार्थाबा धिता्थकेतदि दण्पद स्मा रितलस्य हेतुतलात्‌ यद्द्र लेतपदार्थाबाधितायेकयत्यदस्मारितं भवति तन्तत्पददइयतात्पयं -

विषवौग्ततत्पद दयनिष्टाकाङ्खा निङूपकरजतसंस्गवह्ववति रणतेने- 7 anfgarmeerra rica रितरजत निष्टकरणला दिवदिति सामान्य-

प्रब्दाख्यतुरौयख्डे श्ब्दाप्रामारयवादः | ft

मुखो afe 1 तथापि. रजतपदा्यैलं रनतपदभन्यख्ति- विग्रेव्यत्वे aq weufeat चटादावपोति घरारिलाशण्िकरजत- पद चटितरजतमामयेत्यादिवाक्यश्चाम्‌पदोपस्छा पिते चट जिषटकशले व्यभि्ार इति वाद्यम्‌ रेजतास्तिमश्वेन रणतपद्‌ विषेषण्णत्‌, रजतासन्तिञ्च रजतान्यविगशिथकस्त्यमुपधायकलवं तथापि रजतमा नयेत्यज्राम्‌ परेन कम॑त॑त्वक्पेण स्मारिते चटनिष्टठक्मवे ्यमि- वार्‌ इति area) रजतपदार्थाबाधिताथेकल्रपदेन रजतपदाथै- बाधिताधौपखापकभिन्नलसूछ विवक्िततवात्‌ चटनिष्ठकमेवस् रजत- पदार्थं बाधितत्वात्‌ एवश्च थद्रगतान्यविगेव्यकसख्मत्यनुपधायकयद्र- लतपदजन्यसति विश्वा धितार्थपस्ापकमिन्नयत्थद स्मारितं भवति तन्तत्पददयतात्पथे विषयो श्ततत्पददयनिष्टा काङ्ग मिरूपकरभतसंघ - गेवद्भवतोति सामान्यतो व्यक्तिः फलिता तयापि seat: | दौरितेऽपरत्यायक्े रजतमाभयेत्धजाम्‌परोपस्था पिते रअतनिष्टकमले व्यभिचारः तज तात्प्यंगभंसाध्याप्रसिद्धः तात्पयवत्वेन देहु विगरेषणेऽपि रजत-कममतवयोसादाव्यसंसगंतात्पय्यके रजतमानयेत्यभाम्षटरोखा- ` पिते रजतनिष्टकमेले व्यभिचारः तात्पय्येविषयोग्डरतरेजतसंसगेश्य रजततादाव्यस्छ रजतकम्मलेऽभावादिति वाच्यम्‌ इद रजतमान- येत्यादौ शदङ्भ्यलादिपकलक-रजतसंसगं साध्यकानुमाने तात्पविष- थावस्य संसं विग्रेषणएत्वाभावेन व्वभिषारविरदात्‌, ay तु ata रितं साध्यमुधारौयते ay योग्यताचटकावा धिततस्य तेन्तत्पद. दथतात्पय्ैविषयौग्तसंसगंए विवश्षणोयतान्‌ | श्राकाङ्ख विगरेषण्टो- way रजतं कमोलमित्यज रजतपदार्थाबाधिताधौपश्थापककण्य-

qR तक्यचिन्तामयौ

ब्पदोपश्चापिते रजतनिष्ठकमवे रजतपद-कर्मत्पदोभयनिष्टाका- छग निरूपकरजतसंसगेवत्वाभावेन व्यभिचारवारणाय, aaa रजतपदाकाङ्कगवत्वविर हात्‌ यद्यपि क्मलपदेऽपि तादाव्यसम्बन्ये रजतपदाकाङ्खवत्वमचख्येव तथापि तन्तत्पददयनिष्टाकाञ्खगनिरूपक- खम्नन्धेनाबाधितलं योग्यताघटकं वाच्यमेतक्वाभायेव चाकाङ्घमपद- fafa भावः। हेवन्तरद माह, योग्यतेति एतद्रनतपदयोग्यतास- न्तिम्वे सति रजतसंसगेपरेतदम्‌पदस्मारितलादिव्ययैः, बद्वद्र- लतपदयोग्यता सतन्तिमल्वे सति रजतससगेपर यत्पदश्मा रितं भवति तन्तत्पददयतात्पय्विषयौग्डतसंषगेवद्भवति रजतेनेत्या दिवाश्यखटा- पदादिख्मारितरणतमिष्टकरणएलादिवदिति सामान्यसुखौ afi: अतोनान्बयदुष्टान्तासिद्धिः, अचर रजतमानयेव्यचाम्‌परेम qaaa- enw स्मारिते घधटनिष्टकमेवे व्यभिचारवारणाय रजतपदयोग्य- तावत्वं विरेषणं, रजतपद योग्यता रजतपदजन्यद्धति विरेव्याना- चितलं, तथापि वक्ता यच रजतसंसगंप्रतौ तोष्छया रजतमानयेत्या- दिवाक्य प्रयुक्तं मोजा रणया रजतपदेन Be: स्नारितः भ्रम्‌- पदेन चटनिष्टकमेलं स्मारितं ay acfasada व्यभिचार- इति रजतपदासन्तिमक्ं fated, acy रजतपदजन्यरनतमा- अविगेव्यकस्तिसमानकाललोनस्रतिगोषरलत्व, माजपदोपादानाद्यज रजतमामयेव्यादिवाक्यस्थरजतपदेम रजत-घटोभयविशेग्यकथमूहा- खम्बनसरतिजेनिता तज घटनिष्टकमेले व्यभिचारः, सतिदयाज- गकत्रेन रजतपदं विगरेषणौयं नातः क्रमिकरजत-घटविग्े्यक- खतिदयमादाय ance निस्तात्पय्येकेण घटादिसंसर्गता-

गरब्दाख्यतुरौयखष्े शब्दाप्र।माख्वादः | dg

रितत्वात्‌ येग्यतासत्तिमश्वे सति संसगंपरपदस्मारि- तत्वाद्‌वा, Barta योग्यताविरहात्‌ व्यभि- चारः, तच बाधकंसत्वात्‌, तज्नन्यन्नानस्य समत्वात्‌

त्पय्यैकेण वा रजतपदोत्तरामादिपदेन स्मारिते रजतकर्मल-कर- शलादौ व्यभिचारवारणाय रजतसंसगेपरतप्रषे शः(९। यथ्प्येवमपि रभत-कमेत्वयोः तादाव्यसंखगे एव तात्पस्यैद श्राया माघधाराभेयभातेम रजताबाधिते waa व्यभिचारस्तयापि तात्पर्य विषय- संसर्गेएाबाधिताथेकल विवचणान्न व्यभिचार Tawra तदुपाद्‌ान- मिति? ध्येयं aq करकाभिप्रायेण प्रयुक्ते पयसो सिश्चतौति वाक्ये व्यभिचार इत्यत श्राह, “्रनाप्तोक्र इति, योग्यताविरह एव कुतस्तदा, "तत्रेति, "बाधकसन्भवात्‌(८९ बाधकस्लात्‌ wea प्रयोजकष्टपवत्रमेव योग्यता खा तज्राख्येवेत्यत Wy, ^तव्लन्येति, तथाचान्वयप्रयोजक्टपवत््वस्य WAI तव्लन्यन्नानस्य wad स्यात्‌ योग्यताभ्रमस्य तत्रयोजकस्याभावादतो बाधविरह एव योग्यतेति भावः asa द्रवोग्धतजलाभिप्रायेण प्रयुक्तं पयसा मिश्चतौति वाक्यमपि प्रमाणं स्ादयोग्यलात्‌ छ्येकाकारवा-

(९) रजतसंसगेपरेतौति Be, We |

(१) तात्पपय्यैविषयसंसगे णावाधितत्वलामाय तदुपादागमितौति we, mo |

(९ टौकाता शैतृ्पाठधारगेन ‘uma’ इयत कुचरचिग्मृलयुसतके | ‘arama’ इति पाठो aia इन्यनुमोयते |

१8 . तस्वचिन्तामणौ

रकाकारवाक्छस्यापि बाधकसस्मासक्वाभ्यां येाग्या- योग्यत्वात्‌ श्रथ प्रतिपर्षजिं्नासां प्रति योग्यता सा श्रोतरि तदुत्पाद्यसंसगौवगमप्रागभावरूपा- RIB बाधकप्रमाविरदा येग्यता warafendat- प्रतियागिन्नानमासन्निः ताश्च खरूप सत्यो Waar तु Tar गौरवात्‌ तदोधं विनाऽन्वथानुभवे विलम्बा भावात्‌ संसगे निरूप्यत्वेन प्रथमं दुरवधारणत्वाच्चेति तानि लिङ्गविग्रेषशानौति चेत्‌, न, येाग्यतादि-

we योग्यल्लमयो ग्यत्श्च सम्भवतोत्यत WY, “एकाकारवाश्य- स्येति, "बाधकेति विषयवबाधसक्वासत्वाभ्या मित्य्थः “wifs, यद्यपि योग्यतादिश्नानस्य कारणत्वे श्यवश्चापितमेव तथापि संसगंघरितवतरेन दुरोदलान्न तासां क्ञातानां शाब्दबोधो पयो गिलमिति दूषणोद्धा- दाय garage श्रतिपनतुः' ओतुः, ‘frarat प्रति योग्यतेति, अजिक्नासोरपि वाक्याथंबोधाद्योग्यतालुधावन | योग्यतामेव fag- णोति, "तदुत्पायेति प्रहतवाक्योत्पादेत्ययेः, बाधकेति एकपदार्यं - ऽपरपदायेषसर्गाभावनि याभाव इत्यथः, “श्रव्यव डितेति एकसंषगं- प्रतियो गिज्ञानाव्यवहितापरसंषगं प्रतियोग्यपस्धिति रित्ययेः, हेतवः" असमश्ये श्राब्दधौरेतवः, "न तानि शिङ्गविगरेषणानौति, तासां

नता लिङ्कवि्नेषणानौतौति we, naa प्राठः सध्विदितमू लपुखके awa |

WAT ख्यतुरौयखखे शब्दाप्रामाण्यवादः | ९१५

Wea sf तदैभिभमिन संतगप्रत्ययादन्यथा शब्दा भासेष्छेदप्रसङ्गः। राजा ytarareia पुरषं वेति संशये विपये चै वैक्धार्थपोप्रतिबन्धाञ्च, येग्यता- `

सिङ्गविगेषणतरे तासामन्नानद्‌ ्ाथामपि वाक्धायेबोधो नायते ्यारिति तदशुरोधेन शब्दश्यातिरिक्प्रमाणलापकतेरिति भावः | मन्विदमेवा सिद्धमित्यत ary, “श्रन्ययेति, तद मिमानेन संशर्गाप्र्यव- cat: '्राम्दाभाखेति निराकाङ्खगनासन्नायोग्यवाक्यात्‌ ब्राब्दा- भाषो स्यादित्यथैः, तथाच sweat नाकाङ्खुादयः किन्तु तात्पय्यैविशरेष BTATET, पदाव्यवधानमासन्तिः, तदभाकवमरमा- विरहः यज्र ae येन सम्बन्येनाग्वयः तज तेन deve age ar योग्यता, डेतुमिविष्टमपौदमेव श्राकाङ्कगदिक, तजन्नानश्च न्याय- | मतेऽपि शाब्दपौेतुरिति भावः। wag eae . ` चक्षन्तर मार, "राजा Batata राजा एुचविशेव्यकतात्पस्थप्रकारः पुरुषविशरेव्यकतात्पय्धप्रकारो वेत्ययः, "विप्धेय इति. राजा पुरषं नाकाहतोति व्यतिरेकनिश्चय इत्यधेः, array अयमेति gat रान्न: पुरूषोऽपसाग्यैतामिति वाक्यात्‌ पुरुषे रानान्वयधौ- प्रतिबन्धारेत्ययैः तथाच चद्ंशय-वतिरेकनिखयौ चयदुत्पक्नि- प्रतिबन्धकौ तनिश्चयसद्धेतुरिति नियमवसेन sangria:

(९) पदाच्यवधानमाच्रमासत्तिरिति | |

Q) तदभावप्रमाविरः wy यस्य येनं सम्बन्धेनान्वयधौः aT तस्य तत्ससं-

jaw तेन Pars wera चेति Ke | 9

९६६. त्वचिन्तामणौ

याश्च संशयसाधारणं Waals हेतुः, ख-परबाधक- प्रमाविरहः क्रचित्‌ निश्षौयतेऽपि aay घटा arait- ` त्य खयेग्यानुपलब्धा चघटाभावनिश्चयेनान्यस्यापि घटप्रमाविरडा निश्चौयते कबिद्बाधकप्रमामाध- कारणमिति भावः | अरव्यवधानसंग्रये शान्दबोधाभावात्‌ तजिषेयो- ऽपि हेतुरिति बोध्यम्‌) aq परप्रमायां ्रथोग्यलेन fay विगेषणौग्धतख- पराधारणतदभावपरमा विर दूपयोग्यतायाः सवज निखेतुमश्क्यतया कथमनुमितिरिव्यत आद, श्योग्यतायाखेति, “हेतुः अनुमितिहेतुः, भवनरते चथा meaty दति भावः! मनु संश्यसाधारणमित्ययुक्रं तज्िखयस्य कस्यचिदप्यसम्भवेम्‌(९) aay ततूसंगरयस्येव हेतुला दित्यत we, “ख-परेति, "बाधकप्रमा- | विरहः तदभावप्रमाविरदः, “अन्यद्यापौ ति, चंटाभावव्ेन हेत्‌- नेति Te नलु तथापि तदभावप्रमाविरहरूपाया चोग्यतायाः संशयसाधारणं न्नानमल्मितिदेतुरित्ययुक्तं तदभावप्रमा विरहसं्र- ` दभ्या ` ' तलधंषर्गालुमितेरषम्भवाक्तदभावप्रमाविरहसंशयषामपौ- द्रायां | तन्तदभावोभयकोग्पख्िति-विग्षादगरेना दिसते तद~ . भावं ्रथसामग्या आव्यकलान्तदभावपरमा faced तदभाव- सं्रयातमकलात्तदभावश्चानस्य प्रतिबन्धकस्य सत्वादिव्यत श्राह,

(९). (खव्थवधानेत्यादिः बोध्यमित्यन्तः पाठः क-खचिदितपएस्तकदये नास्ति (९) क्चिदप्यसम्भवेमेति ° |

छब्दाख्यतुरोयखण्े शब्दाप्रामाण्यवादः | ९७

विरसं ण्येऽप्यम्बयनाभः बाधसंशयस्यादूष खत्वात्‌^ |

कचिदिति, भ्रमेति तदभावप्रमेत्ययेः, ‘wade’ तल्घंसर्गा- मुमितिः, "बाधेति तदभावसं्यस्ेत्यर्थः, तदभाव मिश्चयलेनेव प्रतिबन्धकलादिति भावः। यद्यपि शिङ्गतावच्छेदकप्रकारकपश- धर्मतानिखयष्ानुतिद्ेतुतया योग्यतायाः संगयसाभारणं ज्ञानमनु- मितिषेतुरि्यङ्गतं, तयाययेतहोषस्य 'वयग्छित्यादिना qenaa वच्यमाणएलान्लासङ्गतिः |

केचित्तु लिद्गतावच्छेदकपकारेण पचधमेता निचयोमानुमिति- हेतुः पवं तटत्निरयमालोकोध्रूमो वा उभयथापि afeera इत्य वद्किष्याप्यवानयभिति ware व्यभिचारात्‌ किन्तु ग्या्निप्रकारकपच्चधमेता भिश्चयः प्रते सिङ्गतावच्छेदकयोग्य- तायाः सन्दे हेऽप्यश्येव | चावच्छेद्‌ कन्दे हाद्य feet भवतौति वाश्यं। उक्रसल एव व्यभिचारादि ति(९ भावः। cars: | तदत्‌ श्रचेतदभिप्रायकले * वयन्ित्यादिना वच्छमाणसमाधानासङ्गते, श्रनया युका शिङ्गविग्रेषणोग्तयोग्यताया अनिखचयेऽपि अनु- fafaaararz | 7

(९ बाधकसंग्रयस्याषुषकत्वादिति me `

(९?) श्थातिखखाच् साध्यामाषवदषटसित्वरूपा, द्ापकसामानाधिकरण्यस्य व्या्ितवे ` लिषतावच्छेदकमानस्यावष्कत्वात्‌ खन्यथा धमश्यापकवद्धि- समानाधिकर्णरासमवाम्‌ waa इति च्ानादप्यनुमिग्यापत्तिः।

र) व्यभिचार इतौति |

(s avafamtaant

किण्व तवापि यग्यतादिङ्कं प्रामाण्ये प्रयाजकं आत्तो त्वस्य तथात्वे गोरवात्‌ अनापतोक्तेऽपि संवादेन . maT w?weg STAT MIT WA न्यायनये श्राब्दबोधदेतुः a तरु योग्यताया ज्ञानं श्ाष्दबोभे कारणं awa, परम्माया- अथोग्यवेन ख-परसाधारणवाधकप्रमा विर दरूपाया्ब्ठाः सर्वैव भिसेतुम्रक्थला दित्यत wry, ‘atures, ‘Way न्यायनये शब्दबोधे रेतः, 'ख-परेति पूर्ववत्‌ नसु तथापि संश्यषाधारण- fark सं्रयषाधारणं हि mei तदा शराग्दधौरेत्‌ः सम्मवति यदि wfengue: कारणं भवति, चेवं, एकपदा्ःपरदार्था- भावपरमाविरहङूपवाधकप्रमा पिर दषं ग्रयष्ठ छक्रूपेण प्राद्माभाव- meat -विश्रिष्टबद्धिमाचविरो धिलादित्यत ary, करितामेति, “अन्वयमोधः' न्यायनये शाब्दबोधः, "बाधेति पा्माभावेत्य्ैः, इति खक्गमयन्ति | |

warrncaa योग्यतादिन्नानस्य Yad area, fagerfert "तासां ari हेतुरित्यन्तेम, ` ‘anfy नेथायिक- स्यापि, ‘sree प्रयोजकः श्ाष्दप्रमायाः प्रयोजकं, “ardtee- स्धेति म-प्रमाद्‌-विप्रलिष्ठा-करणपाटवात्मकदोषचतुष्टयाभाव- वदुक्रलस्तेत्ययेः, “AUT? गश्राष्दप्रमाप्रथोजकले, “अनाननोकतेऽपौति भाग्तपरतारकवाक्षे करणापाटवजन्ये चेत्यं, (संवादेन विषया-

(९ योग्यतायाख WIT कथं तन्नये एाब्दबोधदेतुरिति we, Te: | (९) गकपदार्थेऽपरपदार्थामावप्रमाविरश्संश्रयस्येति we | (र) नेयायिकस्य गयेऽपौति we, Te |

WTA TAS शब्दाप्रामाख्छवादः। १९

UAW | Va ज्ायमानकरणे प्रामाश्यप्रचाः- लकतया न्रानमावश्यकमिति तासां wa हेतुः, तञ्च

बाधेन मच तज ईश्वर एवात्र इति वाच्यं। तयायाप्तोक्रला- भावात्‌, Waar शश्वरकष्ट-ताश्वाद्भिधातजन्यलाभावादिति भावः। इदमु पशषणं विषमा दिशकवाष्येऽतिप्रषहेल्यपि बोध्य) एवश्च" शान्दप्रमाप्रयोजकले च, (श्ञायमानकरणे" इति सप्तम्यथी नि-

अन्वययास्य श्रयोजकेत्यनेन, श्रामाश्यप्रयोगकतया"९ शाब्द प्रमाप्रयोजकतया, ्ायमामकरणशष्द निष्ठले सति शाब्द प्रमाप्रथोजकतयेत्ययेः, “Nanas शाबष्दबोधकारण्णभ्वतं . शानं योग्यतादौ विषयता सम्बन्धेनावण्ठकमित्यचः, ज्ञाननिष््राब्द- ज्ञानकर एतायां विषयतासम्बन्धेन वच्छेद कलमावश्छकमिति तु फणि- तोऽचैः। यत्‌ ज्ञायमामकरणमिष्ठतले सति यत्लातीयप्रमाप्रयोजकं | तत्‌ ज्नानवनिष्ठतव्नातौ यश्चानकारणताथां विषयतासम्बन्धेना वच्छेद्‌कं यथा. प्रमानुमितिप्रयोजकं व्या्धिविशिष्टपचधमेलमिति सामान्य सुखो व्याक्चिरिति भावः |

afer “श्ानमावष्यकमिति विषयताशम्बन्धेन शाब्दधौकारण-

` श्वागवत्वमावश्टकमित्यथः, यत्‌ न्ायमानकरणनिष्ठले सति यष्लाती- `

यप्रमाप्रयोजकं तत्‌ विषयतासम्बन्धेन तव्नातीयन्ञामकारणन्नानवत्‌ ` चथा प्रमासुमितिप्रथोजकं व्या्षिविगिष्टपदधमेवमिति सामान्यतो- श्यातनिरिति भावः CTH: | तदसत्‌ भगवज्चानमादाच श्राष्द- (१) प्रामाख्प्रयोजकरूपवत्तया इति शस्यचिग्भूपुरकस्य पाठः |

© , सच्वचिन्तामणौ

समभिष्याहारविशेषादिनेति। मेवं यव विमलं जसं `

बृद्धिखरूपयोग्यं कालान्तरोयपदायेख्मरणं दैवाद्योग्यतादिविष- यकमादाय सिद्धसाधमापन्तेः।

अरज श्योऽवथवेन्धियसन्निकं चथुरादिनिष्टे foaming प्रत्यक्षप्रभाप्रयोजकत्वमादाय व्यभिचारवारणाय स्यन्ते, गडयोऽवय- वेदियसन्िक्षादिख श्ञायमानकरण निष्ठः, चचुरारे शायमान- करणत्विरडात्‌ | न्नायमानकरणलश्च श्ानावच्छिलतव्नातोयप्रमा- करणताव्व, अन्यथा चक्रादेरपि चकुरादिशिष्गकासुमितिं प्रति भ्ायमामकरणतया तदोषतादवस्ण्यात्‌ प्ायमागकरणधूमादिनिष्ठ- खूपादौ प्रमालुमितिमादाय व्यभिचारवारणाय तव्णातोयप्रमाप्रयो- ` जकमिति, तव्नातौचप्रमाप्रयोजकलश्च तष्लातोयप्रमालावच्छिन्नप्रयो- wae, तेनात्मशिङ्गकालुमितिमादायात्म-मनःसंयोगबाधाभावादौ व्यभिचारः व्थािविशिष्टपशचधममेतावशिङ्गतेन प्रमानुमितिलाव- fed प्रति हेतुतेति मतेनेदमलुमागमिति दृष्टान्नासङ्गतिः। चेवमाकाङ्कुगसत्योः खरूपासिद्धिः wanda अन्यथा- सिद्धतया ग्राब्दपरमालावच्छिनं प्राधप्रयोजकेलादिति वाच्यं च्राका- ङुगसन्तिविग्रिष्टयोग्यतालेन श्ाब्दपरमालावच्छ्िलं प्रति प्रथोजकल- मिति arn fra तदभिधानात्‌(९) प्रयोजकलश्च कारणए-का- रणतावच्डेदकयाधारणं, तच्च कारणतावच्छेदकव्ाङन्तान्ययािद्धि-

(९) प्रयोगकत्वमितिमतेनेतदभिधानादिति we, |

शब्दाख्यतुरोयखष्डे शब्दाप्रामारयवादः | ७१

इत्यश्ुत्वेव नद्याः कच्छे मदिषश्चरतीति अणति तबा-

चतुष्टयरारित्ये खति नियतपूर्ववत्तिलं,(९ श्रन्यथा प्रथोजकलतवं यदि कारणतावच्छेदकल्वं तदा पूवेपकिण्ये योग्यताद्‌ावसिद्धिः तेन योग्यतारेः शाब्दप्रमायां खरूपसष्ननलययेवाभ्युपगमात्‌ यदि भनकल्वं AIHA खरूपापिद्धिवेगर षिकेर्योग्यतादेः खरूपसष्नमक- APIA | अच खलिङ्गकपर माश्रं व्यभिचारः तख प्माजुमिति- ला वच्छ प्रति हेतुत्वात्‌ विषयतासम्बन्धेन श्ायमानजिङ्गनिष्ठलाञ्च | विषयता तिरिक्रषभ्नन्धेनेव न्नायमानकर एटत्तिलं विवङितमिति ara तयापि श्रात्मलिङ्गकप्रमानुमितिकारणोग्डतसकिङ्गकपरामरं व्यभिसारादिति Wi al व्या्तिविशिष्टपच्धमेतावलिङ्गत्वेन प्रमानुमितिलावच्छिशनं प्रति हेतुतावादिनये सश्िङ्गकपरामशेलेम प्रमारुमितिलावच्छिन्नं प्रति Wa मानाभावात्‌ ज्चानान्यवे रति ` चेत्यपि वा विग्ेषषयीयं प्रमानुमितिलादेः कायेतावच्छेद्‌- कलाभावादसिद्धिरिति वाच्यं we प्राचोनमतारुयायिल्ादिति। hea श्रामाख्छप्रयोजकङूपवत्तयेति पाटः, तच ज्ञायमानकरणे

(९) म॒ चा कारगतावष्छेदकग्याडत्तान्धयासिदिसामान्धाभावनिवेेनेव सामन्नस्ये Wasa व्थंमिति वाचं | न्धथासिदधिलस्यामुगतस्या- भावात्‌ तन्तदन्धथासिद्यभावकूट गिवेशस्यावश्यकतया कृूटलाघवांमेव तदुपादानात्‌ र्ते वादृान्यथासिदधिराडिधमा्कथनेनेव सामश्नस्ये नियतयपव्येवत्ितवरूपविेष्यदलं gatas पुन्वेपच्चोऽपि freer, च्च नियतपुन्भवत्तिगतान्यधासिद्धमावघटितक्रूटनिवेशये कूट-

we Tanti महागौरवापत्तिरिति विभावनोयं |

en | त्वचिन्नामणौ

काह्कादिकमस्ति। नदौ-कशच्छयाः संसं इति, व्यभि- WIT | अत खव AAAS प्रयोजक AAT अथ

WY श्रामाश्यप्रयोजकरूपवन्तया ATA शाब्दप्रमाप्रयोजकयोग्यता- दिमल्परकारेण चलाने, “aaa अवश्य कारणमिति तार्थां wri रतु रित्यर्थः, तत्मकारकन्चानख्य We ase सुतरां इंतला- दिति भावः। तत्मकारकज्चागच्येवावण्पं हेतुवमस्त चज्च्रानावच्डिन्न- य्नातौ यप्रमाकरण्णतावत्‌ AMAA CTPA तव्ला- तौयप्रमाप्रयोजकरूपवत्वप्रकारकश्चानस्य विषयः यथा fey न्नाना-

` बख्छिन्नातुमितिप्रमाकरणतावद्ूवति अनुमितिकारणौश्तं यदनु- भितिप्रयोजकब्या्तिविभिष्टपक्चधमेतावत्तप्रकारकं ज्ञानं तदिषयोऽपि भवतौति ब्यात्निरिति भावः। भनु छपायाभावान्नाां ज्ञानं कथं ष्या दित्यत श्रा, तच्चेति, खममिव्याहार विशरेषः, श्रा काुगगाइकः, आदिगष्ादाखन्ति-योग्यताग्राहकशरोजा्नोपदे श्परि गह “येति, WAAR अशचलेबेत्यक्त, तच्छ्रवणे "जखमित्यनेन जनिताग्व- यबोधलादाकाङ्खम स्यादिति भावः। aang तच्छ्रवणेऽपि यक कारणाकारविरशहाश तेग सममन्वयवोधोजातस्तबापि व्थमिचारो- बोध्यः, आ्राकाङ्कादिमत्पदस्मारितलोपपन्तयेर ‘setae, नदौ- कच्छयोः del इति तात्पयविषय दति ite, अन्यया agra नदौ-कच्छयोः संखगंसत्वादलग्रकतापत्तेः, व्यभिचारादिति कच्छे `

(९) तन्मां प्रमोजकमिति खर | (९) स्मारितित्वोपपत्तय इति खम, we

शब्दाख्यतुरोयखष्ये WRITS! | eR

यावत्समभिव्याहृतेत्यपि लिक्रविशेषशं कतिपयपद्‌- ` स्मारिणस्तु संसगंप्रत्ययोलिङ्गाभिमानादिति चेत्‌। न। तत्सन्दे हेऽपि वाक्षार्थावगमात्‌। तच cataract

तात्पय्यविषयगदौरंषगभावादव्यभिचार इत्यथैः तथोः Sait वक्तलात्परव्याभवेऽपि शैरोयतात्पर्यसलात्‌ कथं व्यभिचार दति we अनेन वाक्येन प्रतौतेरजननादौश्वरतात्प्बेसाप्यभावात्‌ | यचचप्येवं तात्पय्यैविषयंसर्गेण योग्यतावस्वश्च हेतौ प्रवे्ाद्मभिचारो- ऽपि शमवति। तथापि तात्पर्य्याघरितदेतुपचे इद दूषणं zee! वश्चुतस्ठ॒ एतदख्रसेनेव "वयन्निति वच्यतौति बोध्यं गन्वेवमा- ` MHA तव मते प्रामाश्छप्रयोलकता स्यात्‌ masa aimee प्रमासुत्पारादिव्यतश्राह, शत॒ एवेति आ्राकाङ्कादि- ` म्वेऽपि प्रमातुत्पादादेवेत्यथेः, . तस्माच" योग्यतादि माषे, किन्तु तात्पस्यैमपौति भावः। व्यमिचारोदाराय wet, “stants, यावदिति च्रूयमाणथावत्मभिव्याइतपदवेत्यथेः, भूयमानानि याव- त्धमभिव्या तपदानि यच्छेति वजजत्रोडिः, “शिङ्गेति श्रूयमाणथा- वत्छमभियदइतपदकलभ्वमा दित्यथेः, “ARIAS श्ूयमाणथाव- ममिव्याइतपद कलसन्दे हेऽपौत्यथेः, तथाच तस्य लिङ्गविगरेषणलं सिङ्गविग्रेवणश्छ निितच्येवाशुमापकलादिति भावः। इदं षमाधि- ` सौ कर्ययादुक्तं वस्ठतो aw समभिव्याइतथावत्पदश्रवणेऽपि कार- शाकार विरहान नदौ-जशयोरण्वयबोधः AY कच्छे एवमपि यभि-

चारस्द्वद्य एवेव्यवधेयं गृढाभिसन्विराह, ‘atta, आ्रग्रयम- `. 10 | |

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` चेत्‌। न्‌ अन्धकारणाभावेन" पदमेव भान्तिजिनकं wares स्तदेवाधान्तिं जनयत्‌ केन वारणौयं | असं सर्ग ग्रहस्तजेति चेत्‌ न। सं सगे बाधकाभावात्‌ अथाप्तोक्तत्वं लिङ्गनविथेषशं तदेव वा far ia मदौ-कच्छयोः संसर्गे WAM, MATA ATA

facrne, “न्येति, fasquere शिङ्गाभावादिति भावः। ` “पदमेवेति, सखातण्व्येखेति, शेषः, “दुष्टमिति दोषाभाववषदश्त- faarh, "तदेव" पदमेव, तथाच मं प्रति लाघवेन गशब्दन्चामले- नैव came कारणलकल्यनाटिति भावः श्रा्रयमुद्‌बाटथति, "आसं सर्गेति, ‘daa इति संसर्ग इत्यथेः। कारणएबाध एव बाधक इति ards तष्य कारणएले मानाभावादिति ara: | व्यभिचारोद्काराय पुनराशङूते, “येति, “state” श्राप्तोक्ृपद- Sf, WHINY प्रकतवाक्या्थंगोचरथया्थेश्चामवदतुषन्धोय- मानव, TY AMIS प्रशतवा क्यजन्यप्रतोत्यप्रसिद्या प्रङूतवाक्धार्था- nfag:, amfegt भगवन्ात्पम्यैमाद्‌ाय तात्पययेगभंषाध्यस्यापि त्वादिति भावः। एवं तरिं योग्यतादि बिभरेषणं quad आह, "तदेव वेति श्राप्नोक्षपदस्मारितव्मेषेत्यवेः, नदौ-कष्छयोः sei” ` गदौ-कच्छयोः संसगेरूपग्रहतवाक्यारथो, “waited? यमाण थावस्षममिव्याइतपदकले सति यथाथेन्नामवदु कलं, कच्छपदे इति TE | मन्वा प्नोक्रलस्य STAT एव शाष्दप्रमाजनकलान्दन्नानदश्ा- . - अन्धकारखामावे इति खर - . -

जब्दाख्यतुरौयखष्े WMATA: | Oy

wafafa wena न्ायमानस्य हेतुत्वेन तब न्नान- मावश्यकं VAM न्नातस्येव सङ्गस्य, तदवगमशच सोके भमाद्मुलकतया महाजनपरिग्रहेण बेदे सृतौ चेति चेत्‌ ae कुबचिद्‌ाप्तत्वमनाप्तस्यापि सर्वव-

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यामपि मम वाक्यादलुभवसिद्धो बोधः भवन्मते कथं erfey- . विेषणस्यामिखितल्रादित्यत are, “श्राप्तोक्रवश्चेति, श्रमाण्छे' were शाब्दप्रमाजनकलतवे, ‘fa’ अतो हेतोः, “तदन्तयेति श्राप्तोक्रलव- सथा WARM पदस्य शाब्दबोधदेतुत्ेन तवाणाप्नौक्षलन्नानं भाष्दबोधात्पूवंमावष्छकमित्यथेः , . श्यार्चिमन्तयेति यया व्धात्निम- war श्चायमानश्च लिङ्गसछानुभितिदेतुवेन व्यास्िन्नानमनुभितेः पूवैमावष्यकमित्ययेः, STAT प्रामाच्यप्रयोजकलं पूर भिराशतमिति are) भमा दिशन्यलचरिताप्तोक्षलखेव गौरवादिना प्रामाश्छप्रयोजकतानिराकरण्णदिति भावः। सम्बादि शूका दिवाक्येऽपि तादृश्रययार्थन्नावता परमेश्वरा LAST AAT TAT TT TH सत्वान्न afer) भन्वाप्तोक्रवन्नानं कथ श्टादित्यत ary, 'तदवगमखेति, "लोके रौ किकवाक्ये, श्वमादौति, शश्रादिना प्रमाद्‌-विप्रशिष्छा-करणापाटवपरि ग्रहः, “महाजनेति विश्िष्टब्यव- हियमाणार्थवोधकलेनेत्यर्थः ama fae श्राप्तोक्षलस्च लिङ्ग विगेषणतयं दूषयति, "अज छुभवचिदिति, “ame यवा्थश्नान- वत्व, “अनाप्नस्या पि' प्रङतवाक्यार्थेगोचर ययाथन्नानथन्यस्यापि, तथा-

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-जाप्तत्वमप्रमिते, ura: पुरुषधम्बेत्वात्‌ प्र्तवाक्याथे-

यथा्न्नानवष्वन्वाप्तत्वं प्रथमं Tay, भमा्यमूलक- . त्वस्य प्रलिसं वाद्‌ादेख तद्‌ म्राहकस्यान्नानात्‌ Nats

reaver शआप्तोक्ततवे जिङ्गविगेषण्येऽणक्व्यभिचारस्तदवस्य- इति भावः | “सवजेति, शकलवाक्धांगो चरययायेश्चानवत्वसित्थरथेः, प्रमितः wafeg, श्परथिद्धौ हेतुमाह, “भान्तेरिति, wre ` `वाक्या्थगोचरज्ञामख् arta eatery भागतः एरुषधमेला- सुपपन्तेरिति भावः भ्रयमं' arated, दुं" xfige, निश्चेदमश्रकयस्य लिङ्ग्रेवणल्वं शिङ्गविगेषणनिख्याभावेनातु- | मित्यषन्भवापन्तेरिति भावः। बुभिंखयलमेव उपपादयति, ‘neta घत्बादेति सम्भा दिपरठस्षिप्रयोजकलेत्ययेः, “श्रादिपदास्षन्नादोष्छा- प्रयोजकल्वपरि यदः, ^तद्याहकख्येति आपततानुमापकलिङ्ग विशेषण Sark, ws प्रहतवाक्यार्थेगोचरथयार्थ्नागवाम्‌ भमाद्यमूखकेतद्‌- ATRIA PATE] खत्नादिप्रम्तिपरयोजकेतदाक्यप्रथोक्ृलात्‌ दत्यादि- क्लेष यकद सामान्यतोग्याघ्या आप्तलस्यानुमेयलादिति भावः "अज्ञानादिति प्रतवाक्ये अश्चानादित्थथेः, प्रटन्तिसम्नादख वा- कायेनोधाघोगप्शयत्यनतेरत्तरकालमेव UTM वाक्यार्थश्चामातपूवे तदन्नानात्‌ तदज्ञाने तेनेव हेतुना भमादयमूलनस्डालुमेयतया भरमा्मूलकलस्धापि श्वानासष्चवादिति भावः गन्वेवन्तवापि कथं शाब्दबोधः श्नायमोनेत्यादिब्ात्तिबलादाप्तोक्षलनिश्चयद्व तवापि शराष्दपौडेतुलादित्यत wy, श्रेत्तिखेति were wafer:

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सन्देहादपि fare प्रलतसंसगे अथमथान्तो यथाथै- त्रानवान्वेति संसगेमप्रतौत्य न्रातुमशक्यं वाक्धाधैस्या- ` पूव्वत्वात्‌ | वयन्तु ब्रूमः बाधकप्रमाणाभावो योग्बता

refag we ्राब्दबो धजनकलवमिति यावत्‌, “खन्देदादपि' आप्तोकवसन्दे हाद पि, जागावच्छिनेत्या दिष्याप्तौ frre गौ रवेण साध्यकोटावपवेशाकद्या ्निबलेनाप्तो MANTIS] शाब्दधौडेतु- लवात्‌ तव॒ शिङ्गविगरेषणतया तजिशयय्यावष्ठकलादिति भावः afen जु यदि प्रकेरुत्तरकालमेव प्रटन्तिसम्बादग्रहः तदा सम्नादिप्रटन्िजनकल्वद्ेतुमा प्रामाश्यमिखयेऽन्योन्याश्रयः प्रामाण्छ- निखयानन्तरमेव प्रन्तेश्त्यादसम्भवादित्यत wey, श्रदटन्तिखेति,. 'सन्देहादपि' प्रामाश्यसन्देहादपि, निष्कन्पप्रहकायेव प्रामाष्यनिख- यख्य प्रयोजकलादिति भावः इति याच रेतुज्चानाभावेन दुर्निंखयलसुक्वा साध्याप्रसिद्या figura, ‘frat, भ्रशतेति प्रहतकमव-रनतयोः संसग इत्यथः, वचाचंति ` रजतसंसगेवति aaa रजतसंषगंविषयक ल्ञानवानयमित्ययंः, खघग- मपतौत्येति कमैल-रनतथोः संसगमप्रतोत्य Wafers, ‘arene ` कमले रणतसंसगेवचवस्याप्तवघटकश्छ, शश्रपूैलात्‌" कर्मव-रजतयोः संसगेपरतौतेख पूवेमन्ञातलात्‌ चेवमा्तोक्षवसन्देह एव तव कचं ` स्वात्‌ को टितावच्छेदकरूपेण को्युपख्ितिविरहादिति we मम

(९) xarsfcfa wo, Te |

as. | तस्वचिम्तामनौ

साख शिङ्गविशेषणं वाधकप्रमाणमाजविर्स्य Rae निखेतुम शक्यत्वात्‌, तत्संश्येऽपि शन्दादम्धय योधाश्च

लाघवात्‌ योग्यताया एव शाब्दप्रमाप्रयोजकेव्वनाप्तो TSAI AT TW श्ाब्दधौ हेतुत्वाभावेन सन्दे हाभावेऽपि चतिविरहादिति भावः। गह नरी-कच्छयो स्तात्पय्यैगभद्ेतविरदादेव व्यभिचार caararare, ‘aafrafa, “बाधकेति एकपदार्थेऽपर पटार्थाभाव- निखयसामान्याभाव इत्ययः, “शअरश्क्यलादिति परप्रमाया अयोग्य त्वादिति wed) तज्िखयाभावे लशिङ्गतावच्छेदकप्रकारक- -fayfrgarnacafafaa स्यादिति भावः। तल्धंश्रयेऽपौति योग्यतायाः संग्रयेऽपौत्यथः, तस्या लिङ्गवि शेषणवेतु तत्कथं स्वात्‌ जिङ्गलावच्डेदकमकारकलिङ्गनिखधय्ानुमितिदेतुलादिति भावः घाध्यवन्देहातिरिकंभ्यान्यजिङ्गतावच्छेदकम्रकारकलिङ्गना- mangas तञ्च योग्यतायाः सं ्रयदशायामपि सम्भवत्येव छक्नरूपेण योग्यतासन्दे दस्य खाध्यषन्दे इपय्येवसश्नत्वादिति वाच्यं | | गौरवात्‌ शाध्ययाप्यसाध्यवन्तासं्रयादलुमित्यापन्तेख 4-9 साष्य- देतुमेदेनारमितिकाय्यै -कारणभावभेदादच योग्यतांभे संग्रयसा- धारणं Waa हेतुरथीग्यताभावाप्रकारकलविगेषणे गौ रवाैयर््था- चेति are) शष्दश्चवणामन्तरवदन्यबापि एतत्घाध्यव्याणेतद्धेतुम- -कलासंग्रथादसुमित्यापन्तेः। इदसुपशकचणं यथोक्तौ व्यभिचार न्ना-

(९) ाब्दान्वयबोधाष्वेति ° | (९) दति ध्येयमिति we, |

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शब्दप्रामाण्ये तु योग्यतायाः संशय-निश्चयसाधारखं waa” प्रयोजकमिति शब्दः प्रमाणमिति |

गद्‌ श्ायामपि वाक्धाद्रुभवचिद्को बोधः कथमनुमानाव्छादतः wegt मानाश्तरमित्यपि ate) भसु भवन्मतेऽपि योग्यतासग्रवदश्ायां क्रं array: तन्िखयथ्य शओाब्ददेतुलारिष्यत are, श्रष्द- परामाख्छे लिति शब्दे प्रमाजनकले वित्यथेः(९) ` |

अन्रातिनव्येगेषिकाः(२ शिङ्गतावच्डेद कंप्रकारकशिङ्गनिश्चयो- गानुमितिरेतुः परव॑तटन्तिरयमाशोकोधुमो वा उभयथापि वद्धि- ara wey वह्धिव्याप्यवागयमित्यादिपरामशेखखे व्थमिचारात्‌ | fry श्या्यलप्रकारकलिङ्गनिश्चय एवानुमितिरेतुः प्रते- सिङ्गतावच्छेदकयोग्यतायाः संग्रेयेऽपि सम्भवत्येव किञ्च योग्यतायाः संश्यद शायासुक्ररेतौ व्यभिवारश्चानद शायाश्च व्यमिचारिणोऽव्यभि- चारिणो वा पषटन्तेरपशट तेवां देवन्तरख् न्नानादेवामुमितिः खात्‌ किं श्रब्दश्च प्रमाणाशरलेम। नतु पद-पटार्चपवकानुमानात्‌ संसमै- बिद्धावपि घटमागयेत्धारिगब्दश्रवणानन्तरं चटकरम॑कानयनातुकूल- शेतिमा जित्या टि विग्रेषण-विगरेव्यभावेन प्रतोतेरसुभवसिद्धाया श्रस- मावः अनुमाने -पदायंसंसमेख्छेव विगरेषणतया wearer: शब्डोऽवश्यं मानमङ्गोकाय्यै। लागुमानानन्तरं मनसा तादृशप्रतोतिसम्भव-

(४ संशयसाधारणं चागमिति (९) शराब्दप्रमाजमकत्वे ferred इति ° | , ^ खच्रभिगववेश्ेषिका इति खम, ae |

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दति are) तथा wet गौरवात्‌ मानाभावात्‌ श्ष्दश्रवणानन्तरं प्रथमत एव॒ तदाकारज्चानस्यासभवसिडूलाच्ेति चेत्‌, कमंतवादिकं quite वस्तुगत्या कर्मलादौ चटादेर्याषशः संसगः प्रतीयते तत्धं- संख चटादिकं साध्य, एवमानथनादिकं water कमलादिका साध्यं समूहाखम्बनपराम््ादिगशेष्ये विग्रेषणमिल्यादिन्यायेनार्थषमा- जग्रा तादृष्लुमितिरिति कोऽपि ate) चेवं we: कने- लमानयनद्धृति रित्यादि निरा काञ्घललेऽपि चटकमंकागयनारुकूल- छतिमानि्यादिबोधापन्तिः शअरतुमितौ wane: कारणलाभा- बादिति-वाश्थं। areca तजातुमित्थात्मकताद्श्रमोधस्य नेयायिकेनापि दुवारतात्‌ अच पचतौग्यादौ कचमभावे शत्या- रेरग्वयबोधः तादाव्येनाधाराभेयभावेन सम्बन्धेन बाधान्तेन सम्म न्धेमातुमातुमग्रक्धलात्‌ प्रतियोग्यतुचो गिभावसम्बन्धेनारुमा- तथ्यं नैयायिकमतेऽपि तेनैव सम्बम्धेनाण्वथमोधादिति awed we व्या्निरूपकलात्‌ तादाम्यातिरिकदत्यनियामकसन्नन्धष्ठेव व्या्य- निरूपकलात्‌ एवं चटमानयेत्यादौ छत्यादावानयनादेः कथमन्वष- बोधः अनुकूशलादेरत्यनियामकलादिति चेत्‌ इत्यनियाम- कसम्बन्धसख्यापि व्थाक्तिनिरूपकतात्‌ तथापि ग्याघ्या्यन्नान- दभ्रायामपि वाक्थादसुमवषिद्धो मोघः कचं स्यात्‌ कारणाभा- वेनातुमित्यघम्मवादिति वाच्यं तादृश्रासुभवच्येवाशिद्धेः याघ्यादि- " च्लानानम्तरमेव वाक्या्थबोधस्तौ कारात्‌ सानन्तव्या्यारिन्ञान- कष्यने गौरवलाचवेन weqea प्रमाणान्मरत्ं कश्यते इति वाच्यं वाक्ार्थातुभवपूवै wiarfefagra: vartrafeata नियमतो

श्ब्दाख्थतुरौयखद्छे छब्दाप्रामाणयवादः |

व्या्या दि विषयकलस्लौकाराद तिरिक्रकण्पनाभावेन गौरवाभावात्‌ } वस्ततस्त॒ ae-wunza asfaur-afataarteygiat परष्परव्यभिलारेण विशेषत एव काय्ये-कारणभावो तु सामान्यतः एवश्च श्ाग्दबोधखलाभिषिक्तायामरुमितौ श्राकाङ्खा रिज्ात्तसेव हेतुः तु यार्िपषधम्येतादिन्नानमतो व्या्यादिश्चानविरहेपि a उतिरिति प्राः, तदसत्‌ शब्दश्रवणाननतरं जायमाने वाक्ा्चेवोषे श्राम्दतल्जातिविगेषस्याश्ुमथें इटो मि भ्ुतमेवेदं पुराण दिभ्ब श््था- धनुभवसिद्धलेनापकोतुम्रक्यलात्‌ | चेवमर्थापयामोत्यरुव्यवसा- यबलाद यापक्तेरप्याधिक्यापत्तिरिति ae तादृ ासु्यवसायस्य इष्टापत्तेः . वस्त॒तस्ता दृ प्रा नुव्यवखायस्येवाभावात्‌ तादृशा मुग्यवसायसिद्धः शाष्दत्वजा ति विगरेषः(४ श्रशुमितितव्या् variate are | वाक्यश्वणानन्तरं जायमानस्य वाक्याथमोधस्यागुमितिले मानाभावात्‌ प्त्यखमिन्नानुभवलस्याप्रयोगकलात्‌ चानुमिति- सामग्येव मानं, तस्या एव तदानौमसिद्धेः रनु मितित्श्क्वेऽनुमिगो- मौत्यसुव्यवसायापत्तेख | श्रथामुमितिमिन्नले एव fa मानं शानुमितिले प्रमाणाभाव एव मानमिति वाच्यं श्रतुमितिभिनञलं प्रमाणाभाव एवाजुभितिले मानमित्यस्यापि खुवचत्वादिति चेत्‌, araad, तथापि भवतो नामिमतबिद्धिः मानुभितं arena शुतमेवेदमिति प्रतीतेः सवे हभवसिद्धाया एव मानलाञ्च

` केचिन्त॒ श्रब्दश्रवणामन्तर जायमान वाक्धायेबोधस्यासमिति- ङ्पवे साध्यनिश्चयद्‌ शायां सिषाधयिषामन्तरोण ख्यात्‌ पशच-

(९) तादृश्रानुमवसिद्धश्ाब्दत्वनामजातिविश्रेष दति we, * | 11

= avafarntaat

ताविरशादितव्यतिरि्यते wee: सिषाधयिषाविरहवष्डा- sera विरदोऽपि पचतायां sara इति वाच्यं तथा ति सिषाधयिषा-ग्ाम्दसामसौ विरहविशि्टसिद्यभावलेन पच- ताया wafafaeaa गौरवापन्तेः ffwerd कार | warreca प्रविष्टं afi तु श्रभावविगरेषपरिषायकं कारणलन्तु तदभावग्यक्िलेनेति गौरवमिति are) saree तद्ध क्रिविन कारणले बहतरकास्यै-कारणभावविशोपप्रसङ्ग दति awe प्रति- पादितलादित्याङ्ः। तदसत्‌ शअतुभितावपि genre हेतुत मानाभावादिति wa पञ्चवितेन। |

(९ तथाच weedeat साध्यगिखयसत्वे weal fice- विश्िकसाध्यनिश्यामावसत्वान्न पच्तताष्ानिः। Q) तथाच बाधनिश्चयामावस्य सत्मरतिपषच्तनिखयामावस्य श्यवष्डेदकधम्भ- दणरंमामावस्य तादृ श्तादृश्रामावत्वेन CUR एधक्‌ कारणत्वं सर््वानु- wafad, यदि वन्तदाक्ठित्वेनामावकारखत्वं सौकरियति तदा बाधनिखय- सत्रतिपच्चनिखयावष्डेदकधम्भद शने तितयान्यतमत्वावच्ित्राभावस्य तद्यक्छित्वेन कार खत्वसम्भवात्‌ तादृष्कार यावं falta, विलोयेत समानविषये श्राब्दलावच्छित परति प्र्यक्चसामय्यमावस्य अनुमिति- सामग्यभावस्य VU कार्यत्वं, तापि तादृश्रसामम्रौदयान्यतर- त्वाव्छित्रामावस्य तद्यक्छित्वेन कारणत्वसम्भवात्‌ तचद्य क्तितवेगा- भावकारगत्वं यदि Stray वदा तादृश्ान्यवमल्रावच्छिन्नामावस्य तादृश्यान्धयवमल्वावच्छिन्नामावतयेगेव कारणत्वमवण्यमङ्ोकाख तथाच तादृश्रान्यवमत्वस्य ग्रख्थ्रौरतया तदपेच्तया प्रत्येकरूपावच्छन्नाभावस्य

प्रक रूपावच्छिन्नामावत्वेग RTS लाघवात्‌ तादृश्रकारयत्व- विलयप्रसङ्क दति भावः |

शब्दाख्यतुरोयखण्डे शब्दा प्रामाण्यवादः | <R

अरक्रौमांसकास्तु लोके वक्ृ्तानानुमानात्तदुप-

ननु घटमानयेत्यादौ ay लौ किकवाक्ये शराम्दबोधात्‌ Gare ant श्रधेथतादिंसगेककमला दिविषयकधटा दिविभिष्टज्चानवाम्‌ आेयतादिषंखर्भख कर्मलादिसाकाङ्कं यद्घटादि तखा यज्ञानं त- eq भमा्यलन्यश्च VA THUGS योयष्छषगक-यल्ाकाङ्ख- SMAI AAT प्रयोक्ता ततंसगेक-तदिषयक- afefirewrrary घटेन तिवाक्यप्रयोक्ता श्राधेयतासंसगेक-करणल- विषयकघटविशिष्टज्ञामवान्‌ शअरहमिवेत्यसुमानस्य कमेलादिकमाभे- ` चयतादिसंस्ेख -घटादिमत्‌ तेन date सखविषयकषटादिविभि- श्नागवदक्रपदस्मा रितलात्‌ चटादिकरणला दिवदित्यसुमानख्च वा खामोसम्भयेन तादु्ासुमित्यमम्तरमेव श्राष्दबोघ इति लौकिक- ्रम्दोऽसुवादक एव तु प्रमाणं ्रगरौताह्मलुभवकरणलस्देव प्रामाख्चपदाधंलारेरे तु वक्करभाषेनेव तादृश्ासुमानाबम्भवात्‌ प्रमा- दलमिति प्राचौनमोमांसकमतज्िराकनेसुपन्यख्छति, “अरदिति, एत्ति why लौकिकवाक्ये ब्दमोधात्रागनुमितिसामसौ सम्भवा- दनुमित्यनन्तरमेव श्ाष्दमोध इति णौ किकशब्दोऽसुवादकः, वच्छ माप्राभाकरमते ठु लौ किकस्यरे शाब्दबोधनि्गाहकमेव ag ज्ञानामुमागमिति लौकिकः शब्दोऽनुवादक इति ततो भेदः। "लोके, लौकिकवाक्ये, “वकषश्ानेति अयं वकतेलयुक्परकारेेत्ययेः भनु वहश्च ामुमानात्कमैल-चटासेखलसंसगेख सिद्धावपि कमे लादौ चटादिमन्नं सिद्धमित्यत are, 'तदुपनोवोति ape ,.

८७ लत्चचिन्तामणौ

लौविसंसर्गातुमानादा aerated शब्दस्यानुवाद्‌- wea वेदे तु तदभावात्‌ खातन्त्येण प्रामाण्यमिति

लानुमानगोपजो वोत्ययेः, “खंषर्गालुमानादिति कमेलारिकमाधेयता- fealty चटादिमत्‌ तेम संसर्गेण सख विषयकचघटा दिविगि्टश्नान- वदुक्कपदस्मारितला दिव्यतुमानादित्ययेः। अमात्मकघटवि- faewrrarara व्यभिचार इति are | परेभ॑मागभ्युपगमादिति : WE! एतस्य वक्ुत्रानानुसानो ay कमैवदिषयकधटवि- firewire देतुषटकलेन तस्षिद्धिदारा बोध्यं वाक्धायंसिद्धौः aie ग्राम्दमोधातागुक्वाक्यायेषिद्धौ, one’ सौ किकगरष्दमा- अस्य, MATHS ग्टहोतग्राद्यतुभवमाचजनकल्वं खसमानाधिकरण- खाव्यवहितपूवेवन्ति-खसमानाकारनिखयविषय विषयक - तदिगेष्धक- | तत्मकारकानुभवमाचजनकत्वमिति यावत्‌, खपदमनुभवपरं, तु. प्रमाणलमिति शेषः, श्रग्टहोग्ाद्मनुभवकर एतस्यैव प्रामाश्छपदार्थ॑लात्‌। चग्द्धो तग्राद्मसुभवकरणलघ् ग्टहौतयाहोतरानुभवमाजकरणल, AY खशमानाधिकरण-सञाव्यवदितपूवंवत्तिं - खषमानाकार निखचथविषथ- विषयकेतर-तदिगेव्यक-तत्मकारकातुभवकरणलं, खषमानाकारत्च खखिन्‌ age तदिशे्यकलावच्छिल- तत्मकारिता तादृग्रतद्धिभरे व्यकल्वावच्छिशततप्रकारिताश्राकित्वमिति भावः तदभावादिति PCNA वकृन्चानाद्तुमानाभावादित्ययंः, “खातग्ब्येखः aya wuygara विनापि श्ाब्दबोधनगकतेम, az इति acua

Eee

() प्रमायत्वमित्येति we |

णब्दाख्यतुरौ यखण्े शब्दाप्रामाण्यवादः | ख्प

वंदन्ति। तन्न वेदे छ्ंप्तसाममग्रौता लोकेऽपि dat: परत्ययादग्धथानुवाद्‌कतापि स्यात्‌ fara पूवैते- ऽपि व्याप्तिस्मृतिविलम्बेन तदिलम्बात्‌। arate

व्यभिचारात्‌ बेदतुल्यापि aan निशायिकेति

हृप््राम्दसा मयोत Cae, संखगेप्रत्ययादिति वकृन्ामा्नुमानात्राः गेव ` संघ ्राब्टबोधा दित्यर्थः, ‘nafs Ifans i i मण्या शौकिकस्थले face cart, “श्रनुवादकतापोति zea यादिग्राग्दधोजमकलमपोत्यथः, way श्रभावादिति भावः। wa वकृननामाद्तुमानात्रागेव संसगेप्र्थयोभवतोलयुक्तमयुकतं सवेज शाब्द्‌- सामग्नोदभार्यां Yuasa: सत्वादनुमितेरेव प्रथममुत्पादात्‌ meq श्रनुभितिसामग्या बलवल्वादि- त्यत we, “जिङ्गस्येति, 'पूष्वेवेऽपि "९ हेतुतावच्डेद करूपेण wa- तेऽपि, तदिशम्बात्‌” अरलुभितिविम्नात्‌, शौ किकवाशये कचिदलु- वादकलन्तु इ्टमेवेति भावः। रमापत विति, “wt शौ कि- कवाक्ये THE: व्यभिचारात्‌" Bracing भरमणमकलदर्- नादिति यावत्‌, बेदतुख्येति शौ किकवाक्यस्थसे बेदतुद्यसांम- मोमा निख्ायकं किन्तु श्राप्नोक्रवनिखयोऽपोत्यथैः। कचिन्लौ- किकवाक्थे भमणनकलद्‌ शनात्‌ लौ किकवाक्यलरूपसाधारणधमदशै- नेग सवज लौकिकवाक्ये भमजनकलसंग्यपन्भवान्तदधेव प्रतिबन्धक-

(९) पय॑त्वेऽपौति ae | (र) पृणतवेऽपौति Re |`

रू तक्वचिन्तामणौ

, -चेत्‌। चक्ष रादेस्तथात्वेन तच्छङ्कायामपि प्रमाप- कत्यात्‌ न्नायमानं करणं सन्देहे निखायकं लिङ्ग- वदिति चेत्‌। संशयो हि वाक्ये तस्य निश्च- यात्‌, तज्जनन्यत्नानप्रामा्ये तस्य तदुत्तरकालौ-

त्वादाप्तोकत्वनिखये त॒ तत्‌सश्यः आपो क्रलश्च तत्पदाथेवन्तत्प- दा्श्नागवद्क्षलव, तथाच तभिखथादेव वाक्यायेसिद्या wezel- शुवादकलमिति भावः। 'तचालेन' कचिद्भमजनकलेन, नेच्छ ` ईइायामपि' . चचुदरूपसाधारणधमेदगेनेन भमननगकलरङ्ायामपि, तथाच भरमजनकलसंश्रयो प्रमाश्मति प्रतिबन्धकः व्यभिचारादिति भावः। प्रमाणविशेषफलं प्रति संश्रयः प्रतिबन्धक verre, '्ञायमानमिति शक्रादिखच भायमानकरणमित्ययेः, लिङ्ग वदिति तद्यथा व्यात्नि-पञ्चध्मतासंग्यदग्ायान्नालुमितिजनकमि- त्यथः, तथाच शौ किकवाक्येन संश्रयस्व कथं गिखयोजननोयः | एतद्भाभ्निबखेन sree प्रतिबन्धकलादिति भावः। नरु व्यात्षिबलेन wet we संग्रयः प्रतिबथक उच्यते, किमासुपूष्यो बन्देः, तद्‌-

ACACIA, आपतोक्षलसन्देहोवेति क्रमेण दूषयति, 'ंग्योहौति, वाये Tage, ‘ae’ शरातुपूरवौँ विष्य, ‘ae तत्छन्यन्नानप्रामाष्छषन्देइश्छ, ‘Ageia तष्जन्यन्नानोत्तर-

कालौगला दित्यः, तथाच awe कथं प्रतिबन्धकतेति ara: |

(९) सन्देहोशोति we | (९) तस्य निश्य सत्वादिति we | (२ तथाच तस्य कथं संश्रय, प्रतिबन्धक इति भाव इति खर, |

ए्ब्दाख्यतुरोयखद्ये शब्दाप्रामाण्वादः | ८७

नत्वात्‌, ATH तन्निश्चयस्यामङ्गत्वात्‌^५)। Ay शोके आपतोक्तत्वसन्देडहे वाक्षाथधौनेति तन्निश्चयोहेतुः तथा- वाक्षाथेगोचरयथाथेच्रानजन्यत्वग्राहकात्‌ TTT लोविनोऽसुमानात्‌ वाक्याथभौरिति चेत्‌ न। वेदे

'तज्िखयस्ागङ्गलादिति, प्रमाणाभावादिति भावः। तथाच श्राप्नो- क्रवमिश्चयो यदि हेतुः स्यात्तदेव तजिखयविषरमदारा aan: प्रतिबन्धकः are aafafa® तच्छंश्योऽपि प्रतिबन्धकः। शमजमकत्वसेशरय एव प्रतिबन्धकोवक्र्य इति वाच्यं we विरोध्यविषयकतया शिङ्गेऽप्यप्रनिबन्धकलेन श्यभिचारादिति भावः | "शोके" . शौ किकवाक्धसले, nine तत्पदाथवन्तत्पदा्थन्ना- गजन्यतवस्य, सन्देहे व्यतिरेकनि्चये च, तज्निखचय इति, यसं ्रयो यद्व्यतिरेकमिख्यख wa प्रतिबन्धकः तजिञख्चयलावच्छिश्नसद्धेतु-- रिति नियमादिति भावः। वाक्यायेगोचरेति तत्पदार्थवन्तत्पदा्थै- WAIT क्वस्य wea: Aaa इति ब~ नौदहिः agate तत्पदार्थं तत्पदार्थासुमानादित्ययैः, ay क्यायेधोरिति ety ग्ष्टमोधात्पवे वाक्धायषौरित्यथंः, तचाचातु-

(९) तत्रिखयस्यालिङ्त्वादिति कर | 7 (९ वाकारं गोचर्यां ATT ATTA He | | (ए) चेवमितौति we, Te |

(*) तत्‌ उपजीभि we दति बङत्रीडहि रिचः

चप ` | तश्वचिन्तामणौ

तंद्रहितस्यापि सामर्यावधारणात्‌ तदनिखयेऽपिबेडा- Ta पद्यमानमन्वादिवाश्चेऽपोरुषेयत्वाभिमानि- नोगोडमौमांसकस्याथैनिशचयात्‌। चासौ चान्तिः, बाधकाभावात्‌ प्रोरुषेयत्वनिश्चयदशायामपि तस्य तथात्वात्‌ `

बादकः We दति भावः. .। शआ्राप्तोक्रलभिखयः fa श्राष्दप्रमामान* aunt), किं वा सलौ किकवाक्धादौ, लौकिकेन wrt area

(९ नाच्च इत्याद, चेद्‌ दति, "तद्रहितस्यापि' विषयतया श्राप्नो- कतन्नानरडितस्यापि, “शाम्यति श्रान्दबोधननकलातुभवादिल्यथंः, तज्नयेऽपौत्यारिः, दितीय इत्याह, "तद निखयेऽपौति श्राप्तोक्त- लवानिञ्येऽपौत्य्यः, “्रपौरुषेयलेति पुरुषाप्रणौतवेत्यर्थः, .गौडेति दाकिषात्यादौनां बेदाभिन्नतया तत्र वेदलभ्वमासम्भवादपौरुषेय- ल्भ्रमोन सम्नवतोति team चासौ भान्तिरिति, तचाष शौ किकवाक्येम प्रमायाच्ननयितव्यायां wtiimafage: षहकारौति भावरः waa हेतुमाह, "बाधकाभावादिति विषयाबाधा- ` दिति भावः। भमलाभावे हेवन्तरमादइ, "पौरषेयलेति, we म- ज्वादिवाष्धाजन्य्राम्दनेधष्ट, "तालात्‌" श्रपौरवेवलाभिमानदगरो- MMA SATA AY AAA HCA विषयकल्वात्‌, तथा सति प्रतौत्यरविजवष्यमनुग येतेति भावः। चदा MATT तयाल्नाप्र्े

अन ee ee ee 9

(५ शब्दमाच्र इति ख* Te | (९) लौकिकवाक्छ इति ae |

प्ब्दाख्यतुरौयखर्रे शब्दाप्रामाखवादः | ce

चास सगाग्रहमाचं तत्‌, WIS तथाभावेऽपि we- सर्गग्रहत्वे सं सर्गेब्छेदापन्तेः। चाप्तोक्तत्वनिखय- रूपकारणबाधात्‌ संसगेच्नानबाधः, व्यमिषारेण हेतु- तायामेव बाधात्‌ लोकिकन्वेन wa” तदङ्गमिति

भमलापन्तेरिति यावत्‌, विषयकृततरैललष्छाभावादिति भावः | सासंसर्गेति, चेवं ततः संवादिनौ प्रतिमे श्यान्तस्याः fafag- ज्ञानखाध्यवादिति ary! गुरुनये श्रसंसर्गा स्येव संवादि प्रहत्तावपि हेतुत्वात्‌ ‘wie’ विषयस्य, (तथाभावेऽपिः श्रवाधिततवेऽपि, यदा ‘ae वाक्याथेसंसगेग्रदस्य, तथालवेऽपि श्रनुभवसिद्ूलेऽपि, संसगी- च्छेद इति(र, मानाभावादिति भावः 'हेतुतायामेवेति, संसगे- ज्ञानस्यासुभवसिद्धलादिति भावः। दतोयमा ग्रत, (लौ किकलेनेति लौ किकलेन wa शौ किक इत्यथः, wan लौ किकवेन wae बेदश्यानुवादकतापन्तेः। ‘ay’ षहकारि, मन्वा दिवाक्यन्तु श्रपौरुषे- यलाभिमामदशायां शोकिकलेन श्ञातमिति मोक्रयभिचारद्ति भावः 'मानाभावादिति। यल्छंशयेत्यादिव्यात्तिरेव(* मान- fafa are तस्या व्याभेरव्यभिशारसंग्रयप्रतिबध्ये व्याश्चिन्नाने व्यभि-

(९) तक्लौकिकत्वेन sit इति we |

©) ‹संसगच्छेदापततेरि्य्र संस च्छेदः” इति कस्यचिग्भृलपरतकस्य पाठः ईवृणटोकाकारखरसेनानुमौयत इति |

© aqua यद्यतिरेकनिखये यदनुत्प्िसतभिखयक्तत्र कारणमिति

द्याप्तिबक्ेने््थ! | 12

९* तक्वचिन्तामयौ

चेत्‌ मानाभावात्‌ वाक्यार्थस्यापृ्वत्वेन लिङ्गा- भावेन तद्रहासम्भवात्‌ | ननु अनाप्तोक्तत्वशद्धाग्यु- दासोऽङ्ग वेदेऽपौरुषेयत्वनिश्चयात्‌ लोके चा-

चारात्‌ | गराद्याभावा नवगाडित्वेन अतिरेकनि्यविगरषणे यत्घं्य- दत्यश्य Bat: योग्यतावयतिरेकनिखयस्यापि याद्याभावावगा- fern श्राब्दबद्धिमादराय योग्यतायां यभिचाराभावाद्प्रयोजक- वाचेति भावः। शवाक्या्थस्येति, ‘arende’, “श्रपूर्वलेन' wea- बोधाप्मागन्नातलेन्‌(\), तद्घरिताप्तोक्रवरूपसाध्याप्रधिद्या लिङ्गस्य साध्यव्याप्यलेम wea कस्यविदभावषेनेत्यथेः, यदा वाक्यार्थस्य पूर्वलेनेव्यनेन घाध्याप्रसिद्धिसुक्रा aaa, “शिङ्गाभावेनेति अमादमूल्लकलप्रटृत्तिसंवा दादे लिङ्गस्य अन्वयबोधात्माक्‌श्चानाभावेन Wan, चकार पूरणात्‌^९) परकोयभ्रमारिेरयोग्यलाप्मटत्तिरवादस्य प्र्श्यन्तरकालोनयाद्यलादिति भावः

केचित्त ‘fayriraafa, ‘fay कारण, aq साध्यप्रसिद्धिः(श) तदभावादिव्यथः, waa हेतुः रपूवंबेनेत्या ङः |

आ्प्तोक्रलनिखयस्याजनकलयेऽपि प्रयोजकलान्तदपेषेत्याद,*)

‘afafa, “श्रपौ रुषेयलेति पुरुषाप्रपठीतवेत्यथैः, ‘aw श्राप्नोक्रवा- (९) खन्धयनोधात्‌ . प्राग क्लानाभावेनेति we, we | (र) खन्वयबोधात्‌ प्राक्‌ चकारपुरणात्‌ च्चागाभावेन चेत्य इति Te © ae प्रसिदडिरिति we | (*) eratentanta: नन्वितन्धन्तः पाठः ०, °-विद्धिवपुस्तकदये नास्ति |

श्ब्दाख्यतुरोयखण्डे शब्दाप्रामाश्तादः। €१

पोक्कत्वावधारणादिति चेत्‌ Al तध्याश्क्यत्वात्‌ | यदि चापोरुषेयत्वनिश्चये सन्येव वेद्‌ादर्थप्रत्ययः तदा दोषवत्‌ पुरुषाप्रणौतत्वे सत्याकाष्कयदिमत्यदसा- रितत्वेन बेदे पदार्थसंसगेसिदविरर्विति वेदोऽप्युतुवा- दकः स्यात्‌। तदुक्त, “Mage: स्ारितत्वात्‌

वधारणस्य, श्रश्क्यलादिति श्रन्यबोधात्‌ प्रागिद्यादिः, वाक्या येष्यापूवेलेनाप्तो क्रवरूपसाध्याप्रसिद्धः तथाचामा्नोक्रलश्ङाग्युदासो- नाद्गमिति भावः इद्‌ मुपलकषणं तच्छङायुदासस्याङ्गतलेऽपि यत्र कारणान्तर विर हा HRT विरदस्तत्राननुवाद कलसम्मवाचेत्यपि z- Ba दूषणान्तरमाह, "यदि चेति, "तदेति, एते यदाचीास्तात्पव्यै- विषथमिथःसंसगेवन्त एति arate, “दोषवदिति, श्रथोग्यवाक्य व्यभिचारवारणाय सत्यन्तं पद विशरेषणं। तत्र योग्यताविरहान्न व्यभिचार दूति वाच्यं श्रादिपदेन योग्यताया परिग्रहात्‌ चेवं विखम्बादिष्डकवाक्ये व्यभिचार दति are: श्रादिपदेन तात्प्ेपरिग्रहात्‌ | aga yada बोध्या पदार्थ संसग सिद्धिरिति, णनब्दबोधात्मागित्यादिः ^तदुक्रमिति श्राचार्य्‌- चरणेरपोति te) ‘adfa, व्यस्ताः विगता, ‘azarae वक्दूषणाग्रहा येषां पदामां एतादृशैः षदे स्मारितलात्‌, “aay

(६) वेदादयंनिखय इति we | (९) उदयनाचार्येरित्यर्थः।

९२ तत्वचिन्तामणौ

परैरमौ | अन्विता इति निर्णीते वेदस्यापि wa” चैवं शब्दस्य प्रमात्वमपि, श्रनुमाना- देव वाक्याथैप्रमोत्पत्तेरिति।

प्राभाकरास्तु व्यभिचारिशनब्दव्याटत्तमव्यभिचाये

~~~ 3. ` es

पदार्थाः, “्रन्विता' परस्परसंसगेवन्तः, “दति निर्णोते" इत्यनुमानेन वेदखलेऽपि शाब्दबोधात्‌ प्रागयं नि ते, वेदस्यापि, ‘ary’ श्रनु- वादकलं, कुत दत्यन्वयः दूषणान्तरमाह, "न चेति वेत्यथैः, ‘ya? सवच शान्दबोधाप्ाक्पदा्यसंसर्गातुमानस्यावश्यकले, श्रमाए- safe वाक्याथंबोघधजनकलमपि, सिद्यतो ति शेषः(९। “श्रलुमाना- देवेति, आान्दमाचस्यल एवानुमानादेवाभिमतवाक्याथंप्रमोत्पत्तेः शब्दस्य संसगेप्रमाजनकलत्वकन््नार्यां प्रयोजनाभावादिति भावः(र)। कपिश्चलानालमेतेत्यादौ पिश्रलपदाथं विगरेव्यकजित्वप्रकार- कप्रतोतिपरमिति सामान्यतसतात्पयेग्रदोऽपेकित इति कपिञ्चल- पदार्थत्वेन वद्धिष्डान्नामात्‌ बेदोनानुवादकः लोकसछले fafne aaa aaa ग्टहौतयादिश्राब्दानुभवकरणतया लौ कि- कश्ब्टोऽतुवादक दति मतमवतारयति, भ्राभाकरास्लित्यादिना,५) "व्यभिशारिश्ब्देति प्रमितिखरूपायोग्यव्याटन्तमित्ययेः, यदवा विष-

—-

9 0S eeEeEeEeEeEeEeE=———————— = =

(९) यदोति ae |

(९) अस्तोति प्रेष इति ° |

(९) प्रयोजनाभावादि्यथे इति खम, To |

(४) afqqaante: प्राभाकरास्लित्यादिनेत्न्तः प्राठः ख०-ग ° चिद्धित- प्ुस्तकदये नास्ति |

WTA शम्दाप्रामारछवादः। €R

नुगतप्रमाप्रयोजकमुपेयं यदभावादनाप्तोक्तवाक्याद- प्रमा अनन्यथा काययेषैचिच स्यात्‌, तच्च न्नात-

म्बादिग्रटसति्ेतुन्ञामजनकवयाटृन्तमित्ययेः, लप्रमाजनकव्याटन्त- faat:, तेरप्रमामभ्युपगमात्‌, श्रव्यभिचारौति निखिलममाजन- कवाक्यटत्तौत्यवः, किञ्चिदिति शेषः, war’ प्रमाविरहः, "का्यवै- feafafa कचित्ममा कचिन्तदभाव इत्येवं रूपमित्यथः, चेवं शराष्दप्रमालावच्छिक्नं प्रति किञ्चित्कारणभ्युपगमे तन्मते प्रमाया- गुणएजन्यतापन्तिः(९) प्रमालघरितधर्मावच्छिश्ञकायताप्रतियोगिकका- रएताश्रयस्यैव शुणएलात्‌ तथाच तस्यापसिद्धान्त इति वश्यं शाब्द्‌- ज्ञातमेव हि तस्य कायैतावच्छेदकं तु शान्द्प्रमात्वं गौरवात्‌ व्याटृत्यभावाञ्चेति₹ तस quafata भावः। परिगेषधौ कस्या तत्‌ खरूपमभिधाय तजन्नानकारणलं साधयति,“ तच्चेति तच्छब्द

(९) शब्दात्‌ काय्यैवेचिध्मिति ae |

(९) तथाच येरप्रमा खौक्रियते तेषां मते का्तेचिद्यस्य कारणैचिव्य- प्रयोज्यत्वात्‌ प्रमाम्नमयोर्वेचिव्याधे परमात्वावच्छित्ं प्रति शुगतेन श्प्रमात्वावष्छित्नं प्रति दो षत्वेन कारणत्वमवष्यमुपेयं, किन्तु येरपमा खोक्रियते तेषां मते प्रमा-भरमयोतच्यासम्भवात्‌ प्रमात्वावच्छनन प्रति गुणत्वेन कारणत्वं निष्यृयोजनकमिति शुणजन्यत्वापादनं सम्भव- दुक्धिकमिति ara: |

(९) प्रमात्वं प्रमाब्ावत्तेकं यग्मते अप्रमा मास्ति तन्मते प्रमात्वमव्यावरह- कमिति तात्पथ्य। :

(*) yfenuatie: साधयतोत्यन्तः पाठः °-ग ° चिड्ितएस्तक दये are |

9 त्वचि श्नामगौ

टृत्निप्रमाप्रयोजकमित्ययेः, “amare इति श्ाष्दबोधं प्रतौ- व्यादिः, -श्नानटन्तिश्रान्दबोधकारणतायां विषयतयाऽवच्छेदकमि- त्यः, प्रमेयमा चेव खलिङ्गकानुमितौ श्ातोपयो गिवेन fagat- धनवारणाय श्ाष्दन्नानेति | शाब्दश्ञानश्च खा विषयकत्ेन विगेष- aaa पद्‌ दिजन्यपदा्ौ पस्थिति निष्ठायाः विषयकग्राष्दन्ना- vacua विषयताम्बन्धेनावच्छेदकलमादाय सिद्धसाधनं | शशाष्दबोधलमकौग्तन्नानविषयन्त॒ माधः भगवजश्नानमादाय नेया- यिकगये सिद्धसाधनात्‌ तकतेऽपि तच्छाब्दबुद्धि मरति खरूपयोग्यस्य काणान्तरौयपदश्नानस्छ Say afin सिद्धषाधमाच्चेति मन्तव्ये | (ज्ञायमानकरण दति, 9a ena: fase, wage Ieee, तथाच श्नायमानकरण मिष्ठत्वे सति writceatfrafi- सारिवेलच्वण्यता दिव्यः, “न्नामोपयो गोत्यच mage) शाब्दबो- wat, अन्यया व्याप्तौ व्यभिचारात्‌। साध्ये विभि शाब्दबोध way यज्च्रायमानकरणनिष्ठले सति धजृन्नानोपयो गिव्यभिषा- रिवेलचष्छं भवति तजन्नानटन्तिखाविषयकतज्‌न्नानकारएतायाः(९) विषयतया wan भवतोति सामान्यतो व्यात्निलाभाय सामा- न्यतो maa, चुरादि निष्ठे पिक्नाद्यभावे ग्छयोऽवयवेद्ियष- faat प्रत्यचमादाय व्यभिचारवारणाय सण्यम्तं। श्नायमान- करणएत्वश्च न्नानावख्डिनलतत्ममाकरणतावक्त, अन्यया चच्रादेरपि श्रायमानलेन करणतेन च॒ तद्टृन्तिश्धयोऽवयबेद्दियसन्निकषांदौ (९) डितौयच्चानपदमिति क° |

(९) तजश्चानरत्तितनच्नानकारणताया इति खर, |

श्ब्दाख्यतुरौ यख शब्दाप्ामाण्यवादः | ey

मुपय॒ज्यते न्नायमानकरणे न्तानोपयोगिव्यभिचारिवे-

व्यभिचारतादवख्ात्‌ चकचरादेरणयनुमितिं प्रति क्ञानावच्छिन- तत्करणतावरत्वेम तरहोषतादवस्थयमिति तत्ममेति, श्ञायमानकरण- धमादिमिष्रूपादौ व्यभिचारवारणच aT, उप- यो गित्व कार णए-कारणतावच्छेदकषाधारणं, Wait दृष्टान्तासद्गतिः। साध्याभावमिखथाभाव-तद्माणवत्‌ पचनिखयाभावा दिषु“ व्यभिचारः त्यपि ज्नायमानकरणएलिङ्गनिष्टलात्‌ तद नुमितिजनकलाच्च, एव- मात्मलिङ्गकानुमितौ कारणोग्तपरामर््रात्ममनःसयोगानुमितिप्रा- गभावादौ व्यभिचार दति तद्वारणाय "्यमिचा रितरेलचतष्यते ति व्यभिचा रिग्याटत्तवेत्यथेः, aig प्रमेतरन्नामजमकाटन्तितवं, प्रमा- तमनुभवत्वमानं, तथाच सखतिजनकाटत्तिलं पयव सितोऽथेः, यथा- aa तन्ते भरमाप्रसिद्या श्रप्रसिद्या पत्तेः(र) एवश्च साध्याभावनिश्च- याभावादौ आ्त्मलिङ्गकपरामर््ादौ तादृ्नासुमितिप्रागभावादौ पच्तादौ क्रापि व्यभिचारः तेषां खतिजमकात्मटत्तिलात्‌। Wal त्‌ न्नायमामकरणनिष्ठ cf aw व्यभिचारः। a तच सुूयेक्रियायां कालवेनाधिकर रत्वेन वा सूयं लिङ्गकानुमिति- . Vaart व्यभिचारः, तदितरोपयो गिताथा एव हद्रकरणात्‌।

Afra “व्यभिचारिवेलसष्एलं' भमाजमकलं, भमव प्रभेतर- Was प्रमाल्मप्यतुभवत्वमा चरमेव, तथाच स्मत्यलनमकतं पयेवसि-

[रिम

(९) साध्यामावनिखवामाव-साध्याभावच्याप्यवत्‌पच् निखखयाभावादिशविति (९) प्रमेतरच्चानाप्रसिद्यापक्तेरि्थेः। खर He |

éd वतक््वचिन्तामयौ

तोऽयेः, wing पदायेख्धतिजनिका किन्त तस्या ज्ञानमेषेति ॒दृष्टान्तासक्गतिः। WIAA जनकता वच्डेदकशटन्यलं नात: स्व्यत्यतुपधायिकायामात्मलिङ्गकालुमितिजनकौग्रतपरामभात्मम- नःसयोगा frit व्यमिषारः, अनकता चख श्ायमानल्िङ्गवाव- च्डिन्नजनकतावयादन्ता उद्ोधकौ यजनकताव्याटृन्ता याद्या तेन वस्हुमाचसैव श्चायमानलिङ्गविधया प्रमे यसामान्यात्मककूटशिङ्गका- जुमितिष्थानाभिषिक्रसाध्यस्म तिजनकलेऽपि amfafg:1 वा व्या्नि-यथाथेतात्पयेकल्वयोर पि कुचविदुद्ोधकविधया खतिजनक- त्वेऽपि दृष्टान्तासिद्धि-खषूपासिद्धो | waar च॒ परनये नानु- मितिजनिकेति(९ तच व्यभिचारः चात्मलिक्गकप्रमानुमिति- प्रागभावे व्यभिचार इति वाच्यम्‌ प्रागभावस्य Aca UTA] तजन्नामानधिकरणतेन वा क्षायमानकरणस विगरेवप्टौयलादि- als: |

अन्ये तु "ज्ञायमानकरण TIA सप्तम्या जन्यल, अरन्थश्ाख Wa, तथाच ज्नायमानकरणएजन्यन्नानो पयो गिव्यभिचारिवे लचण्य- लादित्यरथेः, यज॒न्ञायमानकरणएजन्यथज्ञानोपयो गिव्यमि षारिवेल- aq भवति तज॒न्नानटत्तिखा विषयकतज्‌ज्ञानकरणएतायां विषयतया अवच्छेदकं भवतोति सामान्यसुखो wf, खयोऽवयवेष्डियसन्निकषं चचुरादिनिष्टपिन्ताच्चभावे प्रत्य्मादाय व्यभिचारवारणय न्नायमामकरणएलन्येति यजन्नानविश्रेषएं, aig ज्ञायमानल्घटि-

(९) परैरनुमितिधाराखौकारात्‌ तेषां मते wana हेतुत्वमिति थू तात्पण्ये |

| ब्दास्यतुरोधखष्े शन्दाप्रामाण्छवादः | ze . लध्ण्यत्वात्‌ प्रमाहेतुत्वादा व्यात्तिवच्छब्द शक्तिव चेति,

तद्धमांवच्छिलकारणताकेति, waar च्रादेरपि श्रायमानलात्‌ aware afrerce agra,” उपयो गिल्रश्च कारण- कारकतावच्डेदकषाधारणं, तेन दृष्टाकाबिद्धिः। अरसुमिति- माराथात्ममनःसंयोगादौ बाधाभाषादौ व्यभिचारवारणाय "वमिचारौति, afiafaewaryg भमजनकतावच्डेदका- वच्छिलान्बले, अमलं प्मेतर चानलं, नातसतश्येऽम सिद्धिः, `प्रमाल- संपि श्रनुभवलमाचमेव, तथाच खतिजनकतावच्छेद काव ear पर्ववसितोऽचैः, खत्यशुपधायिकानामात्ममनःसंथो गारिव्यङ्नौ व्यमि- चारवारणाथावच्छेदकालुषरण, अन्यत्व पूववत्‌ प्रागभावस्तु wat area तेनाखुमिव्यारिप्रगभावे ग्यमिशार cary: | तदु भयमणषत्‌ यद्र्मावच्छिशविगेव्यक-यडूर्मावच्डिलप्रकारकरतिः कटापि कथ्यापि जाता तद्धरम्मावख्डिलविशेव्यक-तद्धमावख्डिना- भावगिश्चयाभावादौ व्यमिचारपरषङ्गादिति aga:

“प्रमेति, प्रमापदं शाब्दश्चानपर, तेन व्य्यादौ व्यभिचारः 1 यद्यन्‌न्नागदेतुमवति तजन्चानटन्तिखाविषयकतजेन्नानकारणतायां विषयता ्रवच्छेदकं भवतौति षामान्यसुखौ aft, हेतुलमुप- ` योगिलमाभं कारण-कारणएतावष्डेदकसाधारण, Gait इृटाग्ा- सङ्गतिः। चासुमितिमादायात्ममनःषंयोगे बाधाभावादौ यमि- चार इति वाच्यम्‌ चद्य्‌श्ानटेत्यदुभवमाबटत्तिधमावच्छिक-

(र) तशोषतादवश्यपादिति we, ग° |. . 13

- $F तत््वविन्ताममौ

HRT WIM VENA: | AAA तथा, ,. संवादात्‌ प्रमाे शुकोदौरिते यान्तप्रतारकसंवादि-

कार्थतानिरूपितो पयो गितावद्धवतोति विवच्षणोयतात्‌। तचापि गयो ऽवयवेष्ियसल्निकरषं व्यभिचार दति वाच्यम्‌ we. मानलन्ररितधमांवच्छिलकर णएताकयजन्नानटन्तौ ति विवचण्तौय- aq श्र तयापि परामश श्यभिचार इति area) waa सतौत्थनेन डेतोर्विंगेषणौयलयात्‌ पक्ता-प्रागभावादिख्च नेतगातेऽलु- भितिदेतुरिति तच व्यभिचारः श्रनालुकूलतकमाद, “waits यदि weweta तात्प हेतुः तु तजिश्चय दत्यर्धः, (प्रह्दा- त्रा्ोश्ेदेति तात्पयेषन्देददश्रायां सतात्पवैकश्नब्दात्‌ शाब्दा त््युक्ेदपर्ग इत्ययः, agra amie ay aa ACUTE HA ATLA:

Bt nm Rael भवकात दति Re) शष्दाभाषेति घरो- Satis वाक्ये बदराजावतापयेधसमे चटाभाववोप्र,१ ar feerd:, अद्रा 1. ;... ~ 1. Sr धः bendy Ue. परिप्र्रचितं परयोजकानर facefa, नन चेत्यादिना,

्रहतत्राक्यायंगोज्रद्रया्चन्नानतदुक्रल, “AUT? प्रमाप्रयो- ` ay, Saray संता दिप्रदन्विवगकानात्‌, अ्राथिततिषयकनादा,८९) ©) इथं इनन ^ यदा अन्धपरादन्यपरतवम्मे यज तात्प तदर्ध

MWAH TRAE” chee: पादः fafa र्त इति

(९). चट्राभावभ्नम इति we, ae | ८९ अवाधितविषयकबोध्रननकत्वादिति xo |

WIAA शब्दाप्रामाख्यवादः te

alae. वेदे तदभावादापतोक्तत्वानुमाने ष्यभिषारि- व्यादत्लिज्गयभवाश्च | भवे वा AA शव assy प्रत्याथक्त्वात्‌. |

Sanath, भाग्तप्रतारकखय भंमरूपविगेषाद शमेन वाश्या्धगोचर-: ययार्थन्नागवत्वर्ूपाप्तलस्यासम्भवादिति भावः। ‘Az दति मूर्व॑पद्- मानवेद्‌ इत्यथैः नशु भवश्जये वणानां Prasat शक।दिवाक्येऽपि शिखकमादायाप्तोक्रलमस्ति। तथापि Zaman श्रपूरवा- मुपूरव्वौकश्कादिमाजोक्षवाक्येऽव्यात्भिरिति वाच्यम्‌ भवन्नयेऽपि तस्छाप्रमाणल्वात्‌ व्यवहार स्वसंसर्गायहात्‌ श्रन्यया वच्छमाण्ययाथै- तात्यय्ैहेतुतापच्ेऽपि तजाप्रतौकाराच्‌ एवं ान्तपरतारकवाक्छेऽपि. प्रहतवाक्धार्थांभिन्चोक्तादृ वाक्या मिन्नवादाप्तो क्रवमस्ति भान्त- परतारकमाभोक्ापूरवानुपूल्वो कवाक्यन्तु नान्वयमोधं जमयति^९ व्यवहा -. Ty श्रंसर्गाग्रहात्‌ मूखंपयमानवेदोऽपि कदाचित्‌ पष्डितपदययमानः वणानां भित्येकलाभ्युपगमात्‌, अन्यया वच्छमाणतात्पयेहेतुतापरेऽपिः AMAT THETA,” श्राप्तोक्षलानुमान इति। नलु ` दोषाजन्यानुपूर्वौ कले षति श्र्थ॑न्नागजन्यतमेव“ लिङ्ग खा दिव्यत- ` आड, भावे वेति, "तदत wa सिङ्गवत एव, भ्रत्यायकलादिति

q

(४ प्रमापकत्वादिति we |

(९ भान्वयधौजगक मिति wo, ae |

(९) द्रव्धशचेदाहेति wo, me | | (४) दो षाप्रमव्रतवे सत्ययं धौजन्यत्वमेवरेति we, Te |

९०० तस्वचिन्तामयौ

शतेनाप्रसा हेतुत्वं चम-प्रमाद-विप्रलिष्या-करणा- पाटवानां. wet व्यभिचारात्‌ मिखितस्याव्यापक-

अत्थाककलप्रयङ्ा ea: | न्‌ रेष्टापन्तिः, षम्बादि शका दिवाक्ये मौगिद्चोके तदभावात्‌ वर्णानां नित्यतया श्रष्दमाचे तदभावाचेति भावः ददसयुपलशखणं वस्यतस्य॒श्राप्तोक्रलस्य vara चथोयेन्ञानवदुक्रलरूपख्य ग्राब्दधौोजवकले नानावाक्याथंगो चर यथा्येश्नानानन्तरोस्तेकमौषतात्प्थकमानार्थंकख्छ तात्पर्या विषयेऽपि भराग्दबोधनगकलापन्तेः तादृश्रयया श्चागजन्यारुपूरवो कलस्वाप्त करल - पने बेद-मौ निश्लोकथोरग्यात्नेच बेदादुपूष्थां भित्था दित्येव दूषणं are!) |

केचितु भमजनकदोषाभावः प्रमायां हेतुः warranty म्नमप्रमादादिः Wet व्भिचारात्‌ किनवा्तोक्रलाभाव इति तदभाव Whites meat Baa युक्रिमा- Swng दूषयति, “एतेनेति, “मेति, aaa’ उच्ारणशौ- यवाक्धा्थेगोचरो वक्तुम इत्यथः, “KAS, श्रमाद्‌” श्रनवधानता, खा वाक्ा्थश्नानखरूपगोग्यष्य वहर्चारणौोयवाक्या्निखय- व्यतिरेकः, वषयन्तेन शकादिवाक्या्चंनिखयग्धतिरेको वारितः, ‘fanfwofa, ‘fanfergr प्रतारणा, a एकङूपेलावगतान्व- ete बुवोधयिषा, “करणापाटवेति, दच्छाविवयौग्रतवणासु- कूखकरणसयो गानुत्पादकाशौग-तदनरुकूलकरणषंयोगः करणापा-

(४ सम्यगिति ° |

. ब्दास्यतुरौय खगे WATTS =. १०९६

त्वात्‌ किमबाप्तोक्षत्वाभावस्याप्रमाडहेतुत्वं तदभाव- aimed प्रमाहेतुरित्यपास्तं | WTR प्रथमं सिङ्गाभाषेन च्रातुमशक्धत्वात्‌ | waza व्यमिचारशद्धाविरशो" Yq: सा शोके भ्रमादिमृखेत्याप्तोक्तत्वानुमानादु ख्यते, बेदे चापौरुपेयत्वनिश्चयेनेति निरस्तं अभिमतवाका्ै-

टवं, ‘acy कण्ठादि, “व्यापकता दि ति प्रतयेकखन्बेऽपि श्ष्दाभा- घद्चनादित्य्यः, “रप्रमाडहेतुवमिति, इतौति sa: | |

बाधिताचंकलशद्धा विरहः शाब्दबोधे रेतः, षा शौकि- कवाक्ये श्रात्तोक्षलनिखयादु च्छिद्यते वेदे चापौ खपेयलनिद्चथाद्रतो बासिताचंकल शद्धा विरोधिलेनाप्तोक्लनिशयो हेतः चेवं वेदे व्यभिचारः, तजर बाधितार्चंकलङ्धा विरो धिनोऽपौरषेथत्निखयस्येव सस्वादिल्यपि मतं निराकरोति, “्रतएवेति श्राप्नोकलस् प्रथम मग्ररोतलादेवेत्यथेः श्यभिषारः' बाधितायेकलं, wafer वंमा दि रद्धामूलेत्ययैः, ‘equa’ नोत्पद्यते, निदयेगेति, तथाच बाधिताथेकलश्रद्धा विरोधिलेनाप्नोक्षलनिख्यो हेतुरिति भावः

केचितु बाधिताथंकलश्ङ्धा विरहः शाष्दप्रमाहेतुरिति केचिद्‌-

(९) शमिचारशङ्गनिरासोऽपोति कर | (९) fafegaa इति खर |

न्द्‌. तक्वचिन्तामगौ 24 स्वापृष्व॑त्वेन साध्याप्रसि्ेः वेदे सदोषपुरुषाप्रणौत-

प्दस्मारितत्वेन संसगेसिद्धेरतुवादकलताप्तेश्च नापि दोषाभावः मरान्तप्रतारकवाक्धजन्यन्नाने प्रत्यसेणा-

. शषौतसंवादे तदभावात्‌। दोषाभावस्य हेतुत्वात्‌ तच

वाक्यं मूकभेव व्यवहारल्तु प्रत्यक्तादिति चेत्‌

वदन्ति तातं निराकरो ति,८९ “अतएवेति, दति ययाभ्ुत्न्धं सङ्ग- मयन्ति तदसत्‌, बाधिताथेकलगश्रङ्ाबिरदश्य शब्दाभाशषाधारण- तथा व्भिचारिगष्याटत्तलाभावेन agree प्रतालुपयो गिलात्‌ अभिमतेति wade: “ayaa च्रन्वयमोधात्पवेमप्रतौतवेन, 'वाध्यद्यः आपो कृलवरूपसाध्यस्य नन्वेवं वच्यमाणतात्पर्यमपि परथमं दुगंहनष्यापि प्रहनतवाक्ार्थयायाथ्यैषरितलात्‌ रग्य्चेराद, ‘aq इति, ‘actafa एते पंटा्थां fara: संषगेवन्तः सदोषपुड- वाप्रषौतपदस्मारितलादित्यादिक्मेरेत्यथः, व्यभिचार गरङोच्छेदायै अपौरुषेयल निञख्चयष्यावण्यकवेन सदोष पुरुषाप्रष्योतलग्रहे विश्म्बा- भावादिति भावः। रज पदं अतात्प्यंकनेन विगेषणौयं तेन विषत्नादिष्डकोरौरितपदार्धेषु व्यभिचार दति ध्येयं “दोषा- ` भाव इति, श्राब्दप्रमाप्रथोभक इतिपेषः। "दोषाः, भम-प्रमाद- विप्रजिष्णा-करणापाटवरूपाः। तदभाकादिति प्रतारणरूपदोष- सत्वात्‌ टोषाभावाष्वा दित्ययेः wet, 'दोषाभावस्येति, *हेतु- ary शाब्दप्रमायां qa, ममूकमेव, प्रमित्थजनकमेव, ‘rex

(९) दूषयतौति खर) Te |

श्ब्दाख्यतुरोयखण्छे श्ब्दापामाण्ावादः। Lou

छनुभवापलापापातात्‌ तद्धेतुत्वे विवादात्‌ बेदैऽप्य- नुवादकतापन्तेश्च | किण्व Sense प्रमाहेतुत्वे- ` (प्रमायां दोषः कारणं तस्य प्रत्येकं हेतुत्वे? व्यमि- वारः मिलितस्य तश्र रकस्माद्‌ प्रमा स्यात्‌ भमा-

रत्यादिः, श्रत्य्लादिति, शअरसंसगीग्रहादेति te, तेन as प्रत्य्तासत्िऽपि व्यवहारानुपपन्तिः। “श्रतुभवेति, तदाक्यश्रवणाम- मारं इदं. श्राब्दयामोत्यनु्यवसायादिति भावः। मसु कप्तकारण- बाधादनुव्यवसायस्य तजाप्रमालं कखश्पयते इत्यत AY, ‘Agaa- दति दोषाभावस्छ शाब्दप्रमादेतुल ta! मनु श्रविद्यमाना्ै- प्रतिपिपादयिषारूपप्रतारणा दोषः भाग्तप्रतारकवक्ये षा भा- स्येवेत्यत श्रा, ‘Aaa, रोषाभावन्नाने सति सदोषपुरुषा- प्रणौतपदस्मारितलेन fara प्रथमं रुषं सिद्धेः सम्भवादिति भावः | मनु डहेतुज्ञानसत्वेऽपि स्वं प्रथमं व्या्यादिश्चानश्यावश्यकले माना- भावात्‌ वेदस्य नानुवादकतेत्यख्र सादा, “किष्ेति, “wearn- मिति, कारणं वक्तव्यमिति शेषः, अन्यया श्रप्माप्रयोजकाभावात्‌ प्रभेति सिद्धान्तस्य व्याकोपापन्ेरिति भावः श्रप्रमा तन्ये असंसर्गा्रह विशिष्टमग्हो तमेदं mace, ‘ae चेति भमारेदीष- aan, ‘aw agaa aa टोषलेन कारणतास्वित्यत श्रा, (९) शखनुमवापलापादिति we |

, (% तस्य हेतुत्व vate ofan इति खर | (९) मिलितस्य हेतुत्व इति ° |

` १९०७ तश्चचिन्तामब्धै

fat wate दोषत्वेननुगमः मिलित तु wea शकस्मादप्रमानुदयप्रसङ्गः | तस्मात्‌ लाघवात्‌ यथाधथै- तात्पय्यैकत्वं शब्दप्रमाप्रयोजकं तच्च यथाथैवाकाथै-

भवमादौनामिति भमलादोनामितय्ैः, ‘sea दोषरूपे, “अन- सुगम इति पूरवंवद्यभिचार xe: ‘fafere भिखनय्द, चतृदरूपापेशानुद्धिविगेषविषयलस्ेति ara, तत्व इति तत्पदेन दोषलपरामशरः तथाच दोषलल इत्यर्थः, यदि अ्वमाभावला- दिना भमादभावङ्कटभेव प्रमाकारणं प्रमाकरणतावच्छेदकावच्डि- कपरतिोगिताकाभावविन शअतुगतोषतानाश्च धमादौनां अपमा कारणत्वं ` भान्तप्रतारकवाक्ये. Stare ` व्यभिचारः तथापि वच्छमाण्तात्प्यापेखया भमाद्भावचह्टवष्य कारणनि , गौरवं विशम्नादिष्टकवाक्येऽतिप्रसङ्गदेत्यमिपरायेशोपं इरति, ^तसा- क्षाचवादिति, 'खाघवादित्युपखशणं विखम्नादि शएकवाक्धव्याटनलला- चेत्यपि बोधयं। “यथा येवाक्धा्थंति यद्धिभेयक-थतमकारिका weg प्रमा HOLA तदिभेव्यक-तत्मकारकययायंप्रतोतिप्रयोजनकनबमि-. aa) तक्ति चचाथेलविगरेषणं थं अ्यावत्तेकलादिति are! चिद्कान्ते “गौरवारित्यगमतरं शरद्धा पि दोषतो इनौयलात्‌ | me ताद्ृश्प्रतौतिप्रयोजनकल्वं तादृग्प्रतोतोच्छाजन्यतवे AAT waa तेषां नित्यतया wears तदसम्भवात्‌ अन तादू-

(४) तथात्व इति &e |

WAITS न्दाधामाण्यवादः | १०५

प्रतीतिप्रयोजनकत्वं लोक-वेदसाभारणं तदभावाद्‌ प्रमा खव दोषः, हि जात्येव afar, afe-

शप्रतौतौच्छाजन्या नुपू कलं WI तन्ये श्रब्दसमवेत- पद्‌।योन्तरं खा वर्णानां नित्यलेऽयनि्येवेति नासम्भव इति चेत्‌ लो किकवाक्यसद्ुन्हेऽपि area वेदानुपूर्र्याखन्नये नित्य- त्वात्‌ मापि तादृशप्रतोतिजमकल, तष्ननकलं हि खरूपयोग्तव(९) फलोपधायकलं वा, नाद्यः लक्णादिना सर्वदेव wy खङूप- योग्यतया VIHA, एकतात्पर्चकलौ किकवाक्यस््ापि श्रन्य- विषयकप्रतोतिखरूपयोग्यतया “श्रतएवान्यघटामिप्रायेणेत्या्पिम- गन्थासङ्गतेश्च दितौयः प्रयमन्दुगहतात्‌ एकस्येव शब्दस पुरुषभेदेन काशभेदेन माभमाथेप्रत्यायकलादव्यवस्ितेः, ्त- एवान्यघटाभिप्रायेरेत्या्पिमयन्धासङ्गतेशख्च तेन यन्वेन वक्ुरिच्छा- विर यदेव ग्टहव्तिंघटानन्वयमोधप्रतिपादमादिति मैवं arg MMAR Aan, उञ्चरितवच्च werd तु अन्यं, तेन वर्णानां नित्थलेऽपि चतिः वा शेश्वरागभ्वपगमे- ऽपि मौ निष्रोकेऽ्याप्तिः, इदञ्च aware बेदेऽयस्ति aria च्छया श्रध्यापकेनेव श्नापितलात्‌ मूखपद्यमामषेदस्छ पण्डितिपद्यमा- मवेदाद भिन्न एव वेदस्य नित्यलात्‌ भित्याजुमेयवेदे तदथन्ञाप- कलेन MART TSA वच्त इति तजेव तश व्यभिचारो दोषाय। तथापि तात्पय्यैधमेए तात्य विषयेऽपि विषथां-

\) तत्‌खरूपयोग्यत्वमिति ख» He | 14 |

og avafamntaall घातकत्वा्च मादीनां दोषत्वं अतएव सान्तप्रता-

बाधात्‌ शाब्दप्रमाजनकेऽव्यात्तिरिति वाच्यं परनये तात्पर्यभ्रमेण श्राष्दबद्यनश्युपगमात्‌ खरूपषतो Taare लाघवात्‌ तदि- गिष्टश्नानस्छ शाब्दधोडेत्लात्‌ waa तन्ये विशगरिष्टश्चान- त्वाभावादिवि भावः “श्टकादिवाक्यश्च प्रमाणमित्या्यिमयन्धन्तु तचेवोपपादचिव्यामः मतु तदेव प्रमाप्रयोजकं यदभावाप्ममिव्य- भावदति कुतोऽस्य शाब्दप्रयोजकलमित्यत wry, (तदभावादिति,

‘anar प्रमित्यभावः,(* ware तेरनङ्गोकारात्‌(९) ननु दोषा- | देवाप्रमेति नियमात्कथं ततः सा श्यादित्यत श्राह, एव टरोष- दति, “ख एवः यथाथेतात्य्य्॑ञानाभाव एव, दोषः, शाब्दप्रषा्यां दोषः मतु तदभावस्य कथं दोषलं दोषलस्य नातिरूपलादिग्यत- ary, होति, "दोषः, टोषब्यवहारविषयः, तथाच दोषपदशक्य- तावच्डेदकं जातिरिग्यथैः, श्चानलादिना सादर्व्यादिति ara | waa तदभाव दोषल कथं भमादिषु दोषव्यवहार Ka ITY, 'तदिषातकला्ेति श्ाब्दप्रमाकारणोग्तस्य यथा्थतात्पर्यद् विषा- marae, ^तदिषातकलं, तदिरोधिलं, - भमादौना" भम- प्रमाद-विप्रशिष्छा-करण्टणापाटवानां, ‘stra’ दोषव्यव्ार विषयत्वं

‘(9 प्रमाया भाव इति Ge, Te | , र) तन्नयेऽनष्मैकारादिति ae | © श्राबल्वश्रन्ये पिन्तादिदोषे दोषत्वं ait दोषत्वभून्ये cern

Te बर्तते दो षा्मकश्चाने रागत्वं ete ata इति aT |

प्दाख्धतुरोयखद्े श्ब्दाप्रामाखवादः १०७

रकवाक्धं शुकादिवाक्वष्च प्रमाणं संवादात्‌ | Wa- VATA PIMA” गेहे षटोऽस्तौत्युक्ते यच घटा- न्तर घ्रा तमानयति तचान्यपरत्वाष्छब्दो प्रमाणं व्यवहार ज्तु प्रत्यक्षादेव यष्टीः प्रवेशयेति मुख्यार्थबोषे

यद्यपि खप्रतौतविपसेतप्रति पिपादयिषायाः प्रतारणया यथार्थ ` तात्पयेविरो धितं भाग्तप्रतारकश्सखे तत्सत््ेऽपि ययार्थतात्पर्थसत्वात्‌, तथापि श्रविद्यमानाप्रतिपिपादयिषारूपप्रतारणेव दोष दत्यभि- MAMA! “MAU यथा्तात्पयस्य शाब्दप्रमाप्रथोजकलारेव, एवमयेऽपि, वाग्तप्रतारकेति, तत्रापि प्रतारणातुरोधेन प्रतवा- कधा्चगोचरययाथंप्रतौतौष्डायाः सत्वादिति भावः। ‘warfear- कञ्चेति, यदपि ana शश्रानभ्वपगामात्‌ एकादिवाक्ये थथो- क्तात्पय्यैसम्भवः(९) तथापि इएकादिवाक्यपदं शिषकोक्रवाक्यषमा- नाकारश्टकादिवाक्धपरं, ay aaa वर्णानां नित्येकतया firen- पुरुषमादाय ययोक्ृतात्पयेसम्भवात्‌ | देवव ग्रसन्पन्नापूर्वाचकषकादि- माजोक्रवाक्यन्तु प्रमाण व्यवहारस्वसंसर्गाग्रहादिति भावः। “अन्यघटाभिप्रायेण' Tear, ‘Tera’ Taw, “्रन्य- Wary श्रन्यमा्रतात्पयेकलात्‌ नौखघटतात्पयेकलादिति यावत्‌, "न प्रमाणं पोतघटे प्रमाणं, पौतचटविषयकप्रमितिजनक-

(९) खन्धद्रहवत्तिंघटाभिप्रायेखेति ° | (९) यथोक्कवाक्छा्स्य सम्भव इति ° | (९) परीतघटातात्पग्बकत्वादिति यावदिति खर, गर |

१०८ तक्वचिन्तामयौ

प्रमाणं यत्परः शब्दः शब्दाथं इति न्यायात्‌ तश्च तात्पर्य्य न्नातमुपय॒ज्यते न्नायमानकरणे च्रानोप-

fafa यावत्‌, श्यवहारस्तिति पौतघटविषयकव्यवहारस्ित्ययेः | यद्यपि यथा शएका दिवाक्येऽपि शिचकवाक्यमादाय यथाथेतात्पयै- म्भवः वर्णानाक्षित्येकरूपलाभ्युपगमात्‌ तथा नौलघरमाचाभि- भापयते TY घटोऽस्लोतिवाक्येऽपि पौतघटामिप्रायकपुरुवान्तते- यगेडेषटरोऽस्तौ तिवाक्यमादाय पोतघटतात्ययेकलसम्भवात्‌ कुतो Tez प्रमाणं, तथापि घटान्रपदं पौतघटपरं श्रपितु धद्यद्बटप्रतौतोख्छया गदे घटोऽसौतिवाक्धं कदापि केनापि मोच रितन्तादु श्रधरव्यज्धिविशरेषपरमित्यदोषदति ध्येयं “ast: प्रषे- श्रयेति चेति, अ्रतएवेव्यलषन्यते, “मुख्याथेबोधेः कमेलविशेव्यकयष्ि- प्रकारकबोधे, “म प्रमाणे प्रमितिजनकं, "यत्परः यदर्थ॑तात्प- यैकः,(९) श्व weary: शब्द्जन्यप्रमिति विषयः, तात्पयेभमेण श्ाब्द्प्रमेति भावः। ya खामान्यतः शाब्दप्रमाप्रयोजकलेन्‌ प्- विल्वा श्ातोपयोगिलं साधितमिरानौं विशिष्य तात्पयेलेन पच चिल्ला श्नातोपयोगितं षाधयति, "तच्चेति, श्रतो daa, ‘sragrrea इति श्नानजिष्टस्लाविषयकग्राब्दबोधकारणएतायाः विषयतासम्नन्धेमावच्छेद कमित्थयेः, ward उक्तक्रमेपणासङ्गतेः, श्ा- यमानकरण दति, seas सप्तम्यथेः, श्रन्षयखास्य ‘aaa, ‘s- नोपयोगौत्यच श्ानपदं Westar, तथाच ज्ञायमानकरणट्ज्तिले

(९) यच्च यदर्थतात्पर्यक दति we }

श्म्दाखयतुरौयखण्डे श्ब्दापरामाणवादः | १०९

योगिव्यभिचारिवेलघ्ण्याद्यापिवण्डक्तिवच,* अन्यथा अन्यपरादन्याग्बयबोधोन स्यात्‌ इति शब्दाभासोच्छेद-

खति शाब्दबोधोपयो गिष्यमिचा रिवेखचण्धा दित्यः, यजन्नायमान- कर णट़त्निवे खति यज्त्रामोपयोगियभिचारिवेलचण्ं भवति तज्‌- भानटत्तिखाविषयकतज्त्रानकारएताया विषयतया श्रवच्छेदकं भव- तौति सामान्यतोग्या्भिः, ५९ तेन ‘anfrafefa इष्टान्तासङ्गतिः,(९ प्रत्यवयवव्याटत्तिस्त Yaa”) | तजानुकूलतकंमा₹, श्रन्ययेति यदि खशूपसदेव यथार्थेतात्पयं हेतुः तु तज्जिश्चय इत्यथैः, “श्रन्य- परात्‌" अन्यपरत्वमाज्रेणनिद्धितात्‌ एकपरलेम सन्दिग्धात्‌ श्रन्यपर- aa fafaarfefa यावत्‌, उभयतात्पयंकशब्दा दिति शेषः, “श्रन्या- यबोधो श्यात्‌" श्रन्यमाजरस्येवान्वयबोधोन स्यात्‌, यच तात्पयै- सन्देहः waaay: स्यादिति यावत्‌, खरूपषतो यथार्थेतात्पयै- स्या विशिष्टत्लादिति भावः | Meret saree! तात्पयैसन्देद- दशायां शाब्दबोधाजनकशब्दोच्छेदपरसङ्गः। मनु ययार्थतात्पयं- निश्चयस्य शाब्दधौहेतुले तात्पर्यभ्रमात्‌ श्ाब्दबोधोन स्यात्‌ wae तन्मते विशिष्टश्चामल्ाभावेन निख्च यलाभावादित्यत are, तद्‌-

(९) श्न्दशक्तिवचेति we |

(९) सामान्यमुखो anfufcfa wo, we |

®) तेन antratefa gernagfatcfa Go, qo | (*) पूव्वेवदवसेयेति we, ° | | () wana इति Go, |

ere | तक्वचिन्ताममौ

प्रसङ्गः, ACAATS शाब्दखमः। अतरव यष्टौः प्रवे श- येत्यब लक्षणा नानार्थे विनिगमना तयोस्तात्पय-

मरहमूलकत्वात्‌ यदि यच वास्तवं तात्प तं शब्दोबोधयति तदा लक्षणायां मुख्यार्थान्वयानुपपन््यु-

warafa तात्प्वभ्रमाचेत्ययः, aay उपख्िततात्पर्थासंसर्गा- ग्रहः," श्राब्दभ्रमः' शब्दोपख्ितपदार्थानां श्रसंसर्गाग्रडो a भ्ाब्दादमव्तथर्थः, तथाच दृष्टापन्निरिति भावः “श्रतएवेति तात्पथनिखयस्य डहेतुलादेबेत्यर्ः, ast: परवेशयेत्यवेति श्रष्य-लच्छो- भयतात्प्यके Yl: प्रवेश्रयेत्यभेत्यथंः, ‘Tew’ कदा चिष्लच्छार्ं ये TARY, अन्यया सखरूपसतोययार्थतात्पयेस्या विशिष्टलात्‌ तज सवरेवोभयोरग्बयबोधः(९ खादिति भावः पै खरूपसतोययार्च- are Ve उपोदलकसुष्ं cara तज्छ्रानसेति dee, ‘are?’ मामा्थेतात्पयके, “विनिगममा' कदा चिक्किधिदयंमादा- येवान्वयबोधः, ^तयोः' शच्षणा-नानार्थेविनिगमनयोः, ^तात्पर्वयेति ACHAT तात्पयेप्रहेत्यथेः। तात्प्न्नानश्य VAs षाधकान्तरमाह, ‘afe Ufa, ‘arwafafa तु तात्पयैनिखयो ऽपेचित rare, ‘wana? शाच्चणिकार्यान्यबोषे, मुख्यार्यान्वयानुपपन्तौति सुख्या- यान्वथानुपपल्तिन्नानस्येत्यथेः, मु ख्यार्थान्वयानुपपत्तिन्नानेन मुख्यार्थे (१) शाब्द उपरश्िततात्पय्धासंसर्गायष् इति खर, ° |

(९) सन्बैरिवाम्बयबोध इति ae | (र) तु तात्पग्धेनिखय इत्य इति क० `

श्म्दाख्यतुरौयखखे शब्दाप्रामाण्यवादः | CLL

पयोगो स्यात्‌ WATT पचतौत्युक्तेऽन्योक्तन खयं सृतेन वा कलायपरेनोपल्थिते कलायं पष्वतौत्यन्बय- बोधो भवति तात्पय्यानिश्चयात्‌। तात्पयै- ग्राहकस्य प्रकरणादेः. प्राधम्यादावश्यकत्वाच शब्दसह- कारितान तु तात्पययग्रहस्येति are | तेषामननु-

तात्पर्थाभावयदडे शतात्पयकलानुमामेनेक विगेववाधसदषतेन eee तात्पर्यग्रह इति क्रमेण शच्छायेतात्पय्यैगरशदारा तस्य तजोपयोगि- atfafa wa) ‘save’ तात्पयंभिखयस्य हेतुलादेव, ‘eufea- इति aera sufeatiarn:, "तात्पर्यानिशयादिति, aera तात्पयैमिञख्चथस्िष्ठति तदा तु भवत्येवेति aa) चेवमावश्छक- लात्‌ यथा्थ॑तात्पयेमिखयश्ेव Bars किं खरूपसतोयथायै- ATG VA तम्मतेऽन्ययाख्याव्यभावेन ATA तात्पयै- निखयासम्भवादेवातिप्रशङ्गविरहादिति arai विशिष्टस्य यथाये- तात्पयंविषयकनमिखयस्य हेत्‌तायाहकप्रमाणेभाखति बाधके विशेषणौ- wre यथाधैतात्पयष्यापि Barca उभयोरेव Saar श्रलु- मितौ पराग्दव्यमाणणिङ्गवदिति तेषामाश्रयात्‌ | श्रकरणदैरिति, भ्ागख्येति sr, श्रादिपदाद्क्खेष्टा विशेषा दिपरि गरहः, प्रकरणं भोजम-गमनादि, भ्रायम्यात्‌* arcade प्रायमिकलात्‌, श्रावश्छकलात्‌' Tet प्रति श्रवश्छक्ु्षनियतपूंवन्तिताकलात्‌, प्रकरणादिन्चानं विमा तात्पयेग्रहासम्मवादिति भावः। “श्रननुगतले-

(९). श्यां xerife: क्रमेजेत्यम्तः पाठः Bors गासि |

११२ तच्चचिन्तामणौ

गतत्वेन परस्यरव्यमिषारादरेतुत्वात्‌ AAA ERAT त्वननुगतानामपि व्याप्यत्वात्‌ धूमादोनामिव त्च arg AS न्यायगम्ये, यब्र न्यायात्‌ तात्पयैमव- धायते रव वेदार्थः, Ba केवलं न्यायानु-

ननन

जति, तज्ञानखेति गवः मन्ेवन्तात्प्यादकतेव प्रकरणादौनां कथं स्वात्‌ अननुगतलादिश्यत श्राह, "तात्पर्येति, श्या्लादिति, ग्याय-

ल्वानरुगमेऽपि दोषः तन्तजिङ्गकालुमितिं प्रति तत्तजजिङ्गकपरा- मर्धरागाहारणतायाः शवंसकरतलात्‌, तदेवा, “धूमादौति धूमा- सोकानाममतुगतानां arama यथा व्किग्रारकलमित्ययेः | एतावता प्रबन्धेन शलौ किकोऽलुवादकोवे दिकः प्रमाणमिति व्वच्धा- पयितुमाद,९ ‘aq ॒तात्पय्यैमिति, वेदेः वेदभन्यश्राब्दबोषे, न्यायगम्बमिति, न्यायगम्यं सत्कारणमित्यधेः, न्यायगम्बलं साचात्‌- परग्परया न्यायप्रयोष्यन्नानविषयतव, तेन वेदे श्राप्तवाक्यादिना तात्पयैयद्धेऽपि a af) न्यायः श्रनादिमौमांषकपरन्परासिद्धा क्तिः, सा लाघव-गौरव-तकं-खष्व्थपरपदषममिव्याहार इत्येव- मादिरूपेति wa! अज हेतुमाह, “यजेति, सा्ातूपरम्परया बेति ओषः, “ख ua’, Aad’ बेदअन्यश्राब्दबोधविषयः, यत इति गरवः, तथाच वेदजन्यशराब्दबोधस्मरति न्यायप्रयोव्यतात्पयेपहो हेतुः ay न्यायाभावस्त पदा्यापख्ितिरसंसर्गा्रहमाचमिति ara: | श्र aque बेदखमामाचैकस्प्त्यादेरणयुपल्कमिति ध्येय लोके चेति,

a ce () ear@anfe Geant: पाठः खण्ग ° चिद्धितपएस्तकदये नालि

्ब्दाख्यतुसेयखण्डे णब्दाप्रामाख्यवादः | Rte

सारि तात्पर्य्यं इति न्यायगम्यं किन्तु पुमभिप्राय- नियन्तितं, न्यायाविषयेऽपि पुरुषेच्छायिषये प्रतौनि- जनकत्वात्‌ पव चसां वक्ता परकौयवाक्धा्थन्नानेा- त्पादनेच्छया वाक्यमुज्चारयति सा चेच्छा यदि वन्न

. शो किकवाक्यस्धले Faye, श्वायासुषारि" न्यायविषयप्रतिपाद्क, न्यायगम्यमिति साचात्परण्परया न्याधप्रयोञ्यन्नानगोचरं सदेव श्ाब्दधोौप्रयोजकमित्ययेः, 'पुमभिप्राथनियन्तितमिति म्याध-तद्‌- तिरिक्रगम्यसाधारणवकृतात्पयंमाजाधोनमित्ययेः, तज WELT मिति te) we हेतुमाह, नन्याथाविषयेऽपौति, श्रपिश्यष्दात्‌ न्याय विषयसमुचयः, fagica सप्तमो, पुरषेष्छा विषय इति वक्धि- च्छा विषयस्येव प्रतौतिजनकला दित्यर्थः, ‘gavel लौ किकवचसां गमु वक्गस्तत्‌पदाये विशिष्टश्नानं कुतोऽशुमेयं तात्पर्य्य सुरोधेनं ay सत्यदाय विे्यक-तत्पदाथप्रकार कश्चामसल्वेऽपि तत्पदाथेषिगिष्ट- जानाभावेन बाधितलादित्यतो यथा्ेतात्पथानुरोधेनेव amend दायैविशिष्टज्नानख्याबाधितलसुपपादयति, 'वक्तेव्यादिमा “निवंहतौ- त्यन्तेन, 'वाक्या्चैन्नानेति तत्पदा विशेव्यक-तत्पदाथेप्रकारकयथा्थै- प्रतीतौ च्छयेत्ययेः, परकोयतादृ ग्र्ञामर्ूपं यदिष्टं तत्साधनतान्चाना- धोनलात्‌ वाक्धानुकूलकण्डाद्यमिघातजनकशटतेरिति भावः। सा

(१) ard स्चयतौति ge |

15

११९४ तत्वचिन्तामणौ

येथाथेवाक्या्थत्रानपूव्विका भवति तैव पर तद्च्ा- रणस्य पुममिपरेतयथार्थवाक्याथेत्रानपरत्वंयथा्थै- mater निव्वेहतौति वक्लुयेधाथेवाक्यार्थत्तान-

परकौयतादृ गशरज्ञानगो चरा च, 'यथाथेवाक्यारथेज्ञानपूविकेति पूर्वै कालटत्ति-तत्यदां विगेग्यक-तत्पदा्थपरकारकज्चानजन्या भवतीत्यघंः, त्याः पूर्वकाले यदि वक्कखाद्शश्चाननिष्टतेति समुदायाः, तदुचा- | Tye are, “पु ममिमेतयया्थंवाक्धार्चन्नानपरवव' तत्पदाथैविभे- व्थक-तत्पदायेप्रकारकयथाथेप्रतीतोष्छयोचरिततरूपं ययाथ॑तात्पयै, यधा्थे्चानेच्छाव्यायमिति परकौयतत्यदायंविगेव्यक-तत्पदा्प्रका- रकययाथेमरतो तिविषयकेच्छछाव्या्यमित्यथेः, व्याप्ता तद्घरित- लात्‌ गिरवंतौति वक्षसतादृगेच्छा पूवकाले an: तादृशश्चानविर हे व्यापकौग्तायास्ताद्गरेच्छाया TEN adhe यथार्थ- ANUS सतरामसम्भवात्‌ व्यापकाभावे व्यायाभावद्टावश्छकलवात्‌ | STRAT ay: परकौोयतादृशमरतौतौच्छैव सा कथं लादृगरजचानं विनालुपपन्नेति वाच्यम्‌ | वुः परकोयतादृगमरतो- तच्छा fe. चटमिति वाक्यं घरवत्कमेलविभरेयकलावच्छिनलधट- रकारताग्राशिन्चानश्ननयविव्याकारा Ba तदन्ताघरितलात्‌ तादृगिच्छायां तादृग्रननानं कारणं तच विगेषणौग्तघटवत्कर्मला- fea विषय इति कमेलादिविशरे्क-घटादिप्रकारकन्नानं विना आानुपपनेत्धभिभायः- -“इतोति, श्रवाधितामिति te, अबाधितं बहृथया्वाक्यायेन्ञानवन्तामित्यन्वयः नतु यथायेवाक्यायेतात्पयै-

-- es ~ भागानि "= नाका

WTF खण्डे शब्द प्रामावादः | ६९१५.

वत्तामयिन्नाय यथाधप्रतौ तिपरत्वं are weet: शति प्रधममात्तवाक्याद्‌वक्तन्नानानुमानपुव्वकमथैतयात्वम- नुसन्धाय यथा्थैतात्पय्येनिश्चयः | अ्रनुमानश्बेदं वाकं

कलवं तत्पदा विशेयक-तत्यदायेप्रकारकययाचप्रतौ तौश्छयोच्चैरितलं ` तस्षत्यदाथंवत्‌तत्यदा्थ-विग्रेथकलावच्छन्नतत्पदाथै-प्कारताशासि- प्रतौतौच्छयोशचरितलमिति ` यावत्‌, तख श्राम्दवो धात्पवे faaa- ane arya तत्पदार्थं तत्पदायेवत्तान्नानाभावात्‌ तत्पदार्थ॑वन्तत्प- दार्थश्या् विशेवणतावच्छेद कलात्‌ विगरेषएतावच्छेदकप्रकारकश्चागख विशिष्टैगिष्डश्चाने डहेतुलात्‌ तत्यदारथैः तत्पदाथेवान्‌ तत्पदाथेविशिष्टश्नामविषयत्वा दितिक्रमेण | वक्ुखत्यदाथेविशिष्टश्चाम- विषयं Wawa तत्पदा यैवत्वमनुमेयं ततो यया्येवाक्याथेतात्पर्च- fata दूति वाच्यं am: तत्पदं विशिष्टन्नानस्येव प्रागन्नानात्‌ सामान्यतो anf पचधमेतानललभ्यसाध्यप्रसिद्धेरमङ्गत्ेऽपि विशेषतो देतुज्ञाभस्यावण्छकलत्वात्‌ इत्यत sry, ‘anftfa, यथा्ये- आनवन्तामिति तत्पदा्थविशिष्टन्नानमिन्य्यः, "यथायप्रतो तिपरल्व यथाथेप्रतौ तिपरताघटकं ATT UIA aa, “Ne शक्यते तदषटितदेतुना wa ग्क्यते, ‘Had? ग्राम्दबोधात्पूवे, अरन्य Qe यथायेतात्पयं निरय इत्यनेन, शश्राप्तवाक्यादि ति श्राप्तवाक्यता- दिभेत्यथेः, श्रादिपदात्‌ वच्छमाणएदितोयद्ेतुपरि गरहः, वक्ुन्नानेति वकखत्पदा्थं विशिष्टज्ानेत्यधेः “श्रथेतयालव' ATTA Agua, “अ्रतुखन्धाय' अनुमाय वहुसत्पदायंविगिष्टश्ानागुमानपरकार-

१११ तश्चचिन्तामयौ

भमादि-विशिष्टन्नानयेारन्यतरजन्यं वाक्यत्वादिति

माई, शरतुमानश्चेति वक्ृखत्पदाथ विग्िष्टज्ञानातुमानसेत्यवैः, "ददं वाक्यमिति घटमित्यर्थः, “भमादीति घटादिभमादि-विगिष्ट- ज्ञागयोरन्यतरणन्यमित्यथेः,. "वाक्यलात्‌” आ्नवाष्धलात्‌ घटादि- भ्नानजन्यवाक्यत्वादिति यावत्‌, चटमित्यादिवाक्ये शकोकषट- मित्धादिवाक्ये व्यभिचावारणाय sari, यद्यज्ागणन्यं वाक्यं भवति तन्तद्श्मादि-तदिशिष्टज्ञागयोरन्यतरजन्यं भवतौति wag सामान्यतोग्यात्निः। अतएव चटादिविशिष्टज्नानस्याप्रिद्या साध्य- परधिद्धिविरहात्कवथमनुमितिः तख प्रशिद्धिसत्वे यचंमिदमनुमानं aaa चटवत्वसाधकविगिष्टज्नानविषयलरूपवच्यमाणरेतु सिद्यर्थं मे- वास्यापेच्षणौयतादि ति face यत्तद्भ्यां खामान्यतोव्याभिख्यले पच- भमेताबखलग्यसाध्यतावच्डेदकविशिष्टसाध्यप्र सिद्धिरमक्रमिति प्राणां सिद्धान्तात्‌ विशिष्टपचोयहेतुप्रसिद्धिख्चापेदिता तेम तच angi सामान्यतोव्याध्यग्टपगमेऽपि नेतदलुमानवेय््यैमिति भावः we ‘afeanfem RITE] यन्धकार एव सखरयमतुपदं वच्यति अरज रूपमानयेत्यादौ रूपपदोन्तराग्पदे सामान्यव्याप्तौ व्यभिचारवारणय साध्ये भ्रमादिपरोपादानं, मञ्च तदभाववश्षाकाङ्कः तज्ञानं श्राकाञ्खुण awe पदार्यान्तरं मातस्तज्लये भमाप्रसिद्धिः | आदिपदात्‌ भरम-विगिष्टश्ञानमिन्नतजन्नानपरिग्रहः, तेन॒केवल- चटादिश्नानजन्ये चटादिपदे व्यभिचारः| विगरिष्टश्चानञ्च तन्नये ACTA AM तेर्विंगिष्टबुदधो वे भिष्यभानानभ्युपगमात्‌ |

WATTS शब्दाधरामारवादः are

तते ्रमादिनिरासे सति परिथेषादाक्पा्थैन्रानानु- मानं, अयं वक्ता खप्रयुक्तवाक्यायेयथायेत्नानवान्‌ a मायजन्यवाक्षप्रयाक्चत्वात्‌ अहमिव, त्वाप्तत्वात्‌ सा-

चेवं घामान्वतो घटज्ञासजन्यमित्येव साध्यमस्ह किमन्यतरलेम साष्य- तयेति are) चटविशिष्टज्चानलेन चटविशिष्टज्नानसिद्धरपेकित॑- लात्‌ तादरूष्येण वच्छमाणानुमाने हेतुत्वात्‌ सामान्यतो चरज्चाम- जन्यवख awa सिद्ध साधनप्रसङ्गाच रेत्‌ सिद्यथं तन्िखयस्यावश्यक- लात्‌ चेवं घटश्नामजन्यवा दित्येव Wace किं वाक्यलोपादानेनेति वाच्यं धूमप्रागभाववद्भिन्नध्िकलेनावेयथ्यादि ति भावः। न्व तदनुमानात्‌ चटारिविशिष्टज्चामस्य सिड्ल्वेऽपि घटादिविशिष्ट- ज्ञामविषयतं क्मलादौ fag तस्येव वच्यमाणालुमाने रेतुला- दित्थरुचेराह, ‘aa शति, वाकारः पूरणीयः, तदनन्तरं बेत्य्थः, भमादिगिरासे खति' am: भ्नमाद्यभावनिखये उति, श्रत्राणादिष- दात्‌ भमविशिष्टशज्ञानेतरतज्न्चामपरि यददः, "वाक्यायेन्ञानानुमाममि- ति कमेतल्वादि विषयकघटादि विशिष्टज्ञानासुमाममित्ययैः,? परिशरे षात्‌ तदमुमागप्रकारमेव दभ्रंयति, “्रयमिति, “खप्रयक्रेति कर्म ,तल्विषकघट विशिष्टञ्चानवा मित्यथंः, क्मतविषयकघट विशिष्टश्नामश्च HAAR ERA fades, “भरमाद्यजन्येति चरशभ्नमाच-

(९) तथाच यथा धूमप्रागमावत्वस् खासमानाधिकरुणधुमल्वघटितत्वेऽपि थं विगरैषशघटितत्वं तथा अच्रापि श्यर्थ वि्ेषणधघरितत्वमिति भावः | (९) कम्भत्वादिविशिङकज्ञानानुमाग मित्थं इति wo |

१९८ तत्वचिन्तामयौ

ध्याविग्रेषात्‌५। तत रते पदार्था यथाचितसं स्वन्तः

| water विषयकचटविशिष्टज्ञानाजन्यघटभमा दि विगिष्टच्चागान्य- तरजन्यवाक्यप्रयो कला दित्यथेः, Tea दिजन्यवाक्यप्योक्ररि व्यभि- चारवारणाय प्रयममजन्याम्ते, मञ्च fro. एव, आआदिपदा्ीऽपि पूर्ववत्‌, घटेनेतिवाक्छप्रयोक्षरि व्यभिचारवारणाय fatter ara, परटमित्यादिवाक्यप्रयोक्ररि wart africa जन्यान्तं, अतएव yatqarrerstaeta:( योयद्भमाद्यलन्य- पद्‌ विषयकयदि शिष्टञ्चानाजन्ययद्भ्नमा दि-धदिशिष्टज्ञानान्यतरजन्य- वाक्छप्रयोक्का तदडिषयकतदिशिष्टज्ागवानिति* angi सामा- न्यतोग्याञ्िस्तेन साध्याप्रसिद्धावपि शतिरिति भावः ‘arenfa गरेषादिति, WA प्रहतवाक्यायेयथायन्नागवल्वरूपतात्‌ तख ख॒ कर्म॑लविषयकधटविषिष्टञ्चागवचरूपलादिति भावः | अनेन aia चटविगिष्टज्ञानविषयलरूपद्ेतुखिद्धौ तेन Qe ania घटवल्ला- कुमानमाद, (तत दति, कमेलादिकं आधाराधेयभावसम्बन्धेन चटादिमत्‌ तेन aaa घटादि विशिष्टज्ञागविषयता दित्यर्थः, तेन सम्बन्धेन चटा दिविथिष्टन्नानच्च तेन wan खसाकाङ्ं षटादि- ज्ञानं, was श्ानदयलात्‌ तदिषयलमिति भावः az.

(९) साध्यामेददोषप्रसद्ादिति we |

(९) अभोपयोगादिति खर, ae |

® यो भनमाद्यनन्धयदविषयकयदिणिरटच्ागान्यवरजन्धवाकयप्रयोक्षा तदिषयकविश्रिरद्चानवानितौति we |

श्रम्दाख्तुरीयखक्डे णब्दाप्रामाणवादः | १९९

यथाथेन्नानविषयत्वात्‌ आप्तोक्षपदस्मारितत्वादा मदु- कपदा्थैवदिति। ननु वक्घन्नानविशेषोऽनुमेयः sa चार्थ रव विशेषः त्वथाधौनेऽन्धः अर्थे मैव विशेषः इत्योप्ारिकौ qatar तथाच वाक्याथन्नानविथेषा-

ूर्वासुमानात्‌ क्मैत्वादि विषयकघरटादि विचिष्टज्चानसिद्धावपि कर्म- ` लादौ षटादिविशिष्ट्चागविषयल सिद्धमरुभितौ समागसंवित्‌- संवेद्यत्ाभावादिव्यसख्लरसाटारइ, “wala खविषयकधटादिविभि- शचांगवदु कपदस्मा रितला दिव्यः, सखविषयकषटादिविशिष्टत्चान् auaig सखविषयकघटादि विशिष्टञ्चानं, (मदुक्रेति चटादिकरण- लवदित्ययैः। भनु चटादिविभगिष्टज्ञानस्येव प्रथममप्रसिद्या षाध्य- परबिद्धिविरहात्कथं व्याभिग्रहः तमसिद्यण्यपगमे ei तदनुमान- मित्थाग्रडते, भवन्विति, श्रानविगरेषोऽनुमेय इति इदं वाक्यं श्रमादि- ` विशिष्टञ्चागयोरन्वतरजन्यमित्यनेनग वक्ुविशिष्टञ्षागविगरेषोऽसुमेय- इव्यर्थः, “श्र्थएव' विषय एव, श्र्याभौगः' wie, “aa: श्राकाराख्योवेथाकरणाभ्युपगतपदारथेविशचेषः। मजु यद्ययं एव विशेषः तदा “mata विगरेषो fe निराकारतया भिथामित्यभ्(^) कथं zara Haas टतौ यार्थलात्‌ तस लाभेदेऽखम्भवादित्यत wr, hata, श्रौपयारिक्तौति धान्येन धनवानित्यादाविवाभेदौप- लारिकौत्य्ंः, Ww पच्यते इत्यादौ लाघवात्‌ waka ठतोयायाः

(९) दइश्वद यनाचाग्येकारिकायामिल्चः।

१९१ . वक्चचिन्तामबौ

open जन्यलायेकलेऽपि शाचफिकलस्दाविगरेषादि्ति भावः, ` ध्द्यपि adage भावयुत्पश्नतया दतरभेद ज्नामार्थकलान्‌ TAA मेव ` ढतौयायेः स्रम्भवतौति तथापि करणसाधमं विग्रेषपदमभिपे्य mae दतौयाया अरौ पवारिकलत्वामिधानं(९) ,

अच प्राञ्चः ठतोयाया श्रपि wae शक्तिरेव मतु ख्षणा एवं शन्यलादावपि बत्ययातुग्राखितातिरि काचं व्‌विभक्रौ लच्त- खेति नियमेन प्रामाणिकगौ रवस्य किञ्चित्करलतवात्‌ चेवं चतु- वि्रतिंणा card बहवचनादेरपेचावुद्धिविगेषविषयलरूपबडल- ` श्णाव्याकोपः रथन गम्यते BS ानातोत्यादौ व्यापार विषच्रता- धार्तौया-दितौययोलंचणाव्याको पचेति वाच्यम्‌ तचराप्नायत्या तेषां श्रक्रिखौकारात्‌, एवं wat एरौ वा यकर तादृशां स॒व्‌- fae: प्रसिद्धप्योगो aia aa aasa तस्याः शक्रिः चेता- दृशमियम एवासिद्ध cere fa रोः शक्यतातावच्छेदकल्वसलो- SRA वाच्यम्‌ तथा सति गत्धवेधातुयोगे कम्मणि चतूर्थी- विधायकाद्तुश्रासमशूपस्य षषर्थे सप्तमौ विधायकाथनु श्रा सनरूपस्छ VAT वषटौ विधायकाद्नुश्राखनरूपस्य व्यत्ययानुग्रासनख्य वेय- व्ापत्तेः रतुगरासनं विनापि गङ्गायां घोष इत्यादाविव eee चतुर्यादिना करमेलादिमत्ययोपपत्या व्यत्ययालुगरासितातिरिका्चं gaa watts नियमपरतिपादनदधेव व्यव्ययातुगराखनफल- लात्‌) क्मेलादावपि चलतुष्यादेः श्रक्िमितिपादनमेव व्यत्य- थानुग्राखनफलमन्यया WT: कमंकरणेत्यादिना कर्म॑लादौ दिती-

(९ अमे दौपचारिकत्वाभिधानमिति we, We |

श्ब्दाखयतुरौय खणे श्ब्दाप्रामाखवादः। UR

यादनु ्ाखनख सिंहादौ इव्यादिपदीनुशरासग्यापि Rauian ` तवापि लकएयैव Rares: सिंहादे प्रत्ययोपपन्तेरितिं वाच्यम्‌। अभेदारेगं रलेऽपि व्यत्ययानुधाषनतरे यथ्यंमिया श्रनायत्या तच ठतो यादेः शकिलौकारः व्यत्ययामुग्रापिता्थं कमलादौ चतु- ated शकिः प्रशता्यपिक्षया गुरलात्‌ खारसिकप्रयोगाभावाच्च किन्तु शचरेषेत्यभ्युपगमात्‌ तथाच तादृश्ननियमानभ्युपगमे किम- ` AMARA: | तदसत्‌ व्यत्यथानुश्ासगवेय्थ्यमिया wigi- दिषु दतौयादेः शक्तिकल्यनामपेच्यैतद्धिया ग्यत्ययानुश्रासितार्थं क्मौलादतौ चतुर्यादेः शक्तिकर्पनाया एव॒ सम्यक्लवात्‌ बङषु यररषर्माणां शक्यतावच्छेदकत्वकण्यनामपेच्छ कियत्सु ATE शक्यतावच्डेदकत्कश्पमाया न्याय्यत्वात्‌ तथाच शक्रिप्रतिपादनमेव

व्यत्ययानुग्रासनफलं | यद्वा व्यत्ययानुशरासमवलात्‌ व्यत्ययासुशासितातिरिक्रविभक्षयं सुप्‌ विभक्रेन शक्तएत्थेव कश्यते तथाकचामेदादौ दतीयादेल॑च्णायां बाधकाभावः ।. अन्यथा गुरुधर्मस्य शक्यतावच्छेदकलतवप्रसङ्गात्‌ | एवश्च वयत्ययानुशासिता्ं कर्मलाद्‌ावपि equalised | gag श्यत्ययानुशरासितातिरिक्रे विभश्षयं सुप्विभक्रलंखणास्ि किन्तु ` यदिभा्ये यदिमक्रगयत्ययामु शासनं afar तद्‌विभ्तिरिक- सुप्विभकतेलंचणा नासत्येव व्यत्ययालुशासमवलात्‌ कर्ते | -अत- एव॒ गमना्थकधातुयोगे शतूरेव wawar weal भान्येत्येव सार | | (९) वैकल्यापसेरिति we |

10

१९९ तत्वचिन्तामणौ

` {नुमेयः तस्य चाप्रसिद्या व्याप्तिग्रहः। शअचतरवास्मिन्‌ Tae अयमसान्त GM वेति च्रातुमशक्यमिति ` शब्द्‌ रव तमर्थं बोधयेदिति चेत्‌, न, तात्पयावधार-

केचित्तु णिनि श्क्तादिपदानुश्राषनवभिरूढणलवणाप्रति- पादनमेव त्ययानुश्रासमफलं yeaa प्रयोगे वादिनो निग्रहः Ga निरूढलचणा रे च्छिकल्णया प्रयोगे वादिनोऽक्- anfara:” ere तचाचेति, ववाक्धा्यन्नानविगेवः, eerfefafirena, ‘ae चाप्रसिद्येति, साध्यप्रसिद्धिविरशादिति गेषः, तत्‌ खिद्य्ुपगमे ae तदतुमानमिति भावः। ‘wu’ साध्यप्रसिद्धिविर दादेव, “अस्मिन्‌ वाक्यां इति, “a घटादिभ्रमाभाववानिद्यर्थः, “aa कममल दि विषयकवटा दि विशिष्टश्चानवाम्‌, शश्वातुमगशक्यमिति श्रनु- मातुमश्रक्धमित्यथेः घटा दिभमस् कमल विषयकघटविथिष्ट- mare सिद्धतया साध्यप्रसिद्धिविरदात्‌ तत्मसिद्धभ्यपगमे च) तदहुमागवैफड्यमिति९ भावः। वस्तुतो हदेलसिद्धिमाद, “wa- एवेतौति बोध्यं यद्यपि हेतावाप्रवमपि भरमा दिश्यून्यत्वमेव तथापि पभेदेन wage”) (तमथेमिति कमेलादौ चटादि- म्नमित्यंः, "बोधयेदिति, तु एते पदाथा थयोरितसंसर्गवन्त- (५ वादिनोश्कते nwa डन अन SS प्रतिपन्तेरिति we, गण | | , लिद्यपगमे चेति we, | (₹) वदनुमानवेकल्यादितौति कर, | | (४) वस्तुत इत्यादिः eugene: पाठः ०-ग ° चिडितएस्तकदये ata! `.

WRIA शब्दा पामाश्यवाद्‌+ | VRE

शार्थं त्वयाष्यशाब्दया wa संसर्गविगरेषप्रतौीतेरवश्या- भ्युपेयत्वात्‌” अन्यथा क्र तात्पय्यैनिरूपणं | wav

इत्यमुमागमुक्षप्रमा णाख्या हेतुचिद्यसन्भवादिति भावः गढामि- सनिः समाधक्ते, (तात्पर्यं ति, संगं विशेषप्रतोतेरिति श्राधाराषेय- भावादिरूपसंषगंककमेतवा दि विशेष्यकघटा दिप्रकारकवक्रप्रतीतेरिच्य- : चेः, श्रप्रिद्धाया श्रपौति we, “श्रवश्याभ्युपेयलादिति प्रथममिदं वक्यं चटादिभरमादि-विशिष्टश्चामयोरन्यतरजन्य घटश्चाननन्यवा- क्धत्वा दिति यत्तद्वां सामान्यतोयथाघ्यानुमानं ततोऽयं ant कमेव विशेव्यकघरगप्रकारकञ्चामवाम्‌ घटभ्नमाद्यंजन्यंकम्मलाविषयकचटवि- शिष्टज्नानाजन्य-लरभ्रमा दि-विशिष्टज्ञानयोरन्यतरजन्य-वाक्यप्रयोक्र- लादिति wagt सामान्यतोव्याघ्याऽनुमाममिति क्रमेणासुमेयतया श्रवश्चाभ्युपेयत्वा दित्यः, : शश्रन्यथा' तादृग्प्रतौतेरसुमानानभ्युपगमे, “क तात्पय्ैनिरूपणमिति, acre तादु प्रतौ तिषरितलात्‌- aera विना तजृभ्नानासस्भवादिति भावः। तथाच शरप्रशिद्या तादुशरपरतौतेरलुमानानुरोघेम agit सामान्यतो ग्यात्िश्थले ang साध्यान्तर-डहेलन्तरयोरव्या तिश्चामात्‌ डेत्तावच्छेदकरूपेश प्रहतपकौ यहेतोः. पकधर्म॑तान्नानादप्रसिद्धमपि - प्ररुतपको यसां प्धमेताबलात्‌ चिद्यतौतल्भ्यपेयं त्च ममापि ठु्ममिति गृढाभि- सन्धिः ‘save’ angi सामान्यतोबयाघ्या श्रप्रसिड स्यामुमेय-

न्यक

(९) च्छभ्युपेयत्वादिति कस्यचिग्भलएुरकस्य पाठः, परन्तु ट!काकार्खरसेन पाटो समौचोनः।

१२७ तक््वचिन्तामशौ

तोक्तावभ मा्यजन्धत्वनिरूपणमपि सुकरः | शाब्दन्तु qaqa प्रथमं मवति MATA भवत्येव | नवैवं शब्दो प्रमाणं तद्रथेस्य प्रागेव सिद्धेरिति

area, शश्राप्तोक्रलेति कमलादि विषयकषटादि विशिष्टज्नानवदुक्ष- लेत्ययेः, श्वमाद्यजन्यलेति घटादिभ्रमाध्यजन्यवत्यथैः, wagt सा- मान्यतोव्याघ्या श्रपरबिद्धषटादिभमजन्यलस्ासिद्धवेऽपि तदभाव- ` वच्य कमलविषयकघटविशिष्टश्चानश्या सिद्धेऽपि तदत््रष्यालुमान- warfare भावः। नहु तथापि तात्पय्यग्रहात्‌ पूर॑मेकपदार्थे ऽपरपदायेषंख्गं प्रतौति; कथं श्यादित्यत श्रा, श्राष्दग्िति, ‘aia? एकपदा्थऽपरपदायेसंषगंन्ञानं, (चमं ` . तात्पययहान्‌ पूर्वे, “ज्नाग्तर ज्विति श्रातुमानिकन्न aPaas:, तात्प मिखथस् श्राम्दालुभवं प्रत्येव हेतुलादिति भावः। नन चेवमिति, “एवं arated नियमतस्तत्यदाचं तत्पदार्थ॑संखगंन्नामाभ्युपगमे, ‘a प्रमाणं विभिष्टाहभवजनकं, ‘ate’ तव्छन्यविशिष्टालुभव- विषयद्यैकपदार्थःपरपदा्ंसंसगष्ट, “विद्धः, अतुमामात्‌ सिद्धेः, तथाच प्रयोजनाभावात्‌ wee 4 विशिष्टालभवजमकलवमिति भावः। गृढामभिखन्धिराइ, (तवापौति, तात्पर्यघट कतया तदलुमानादेव तन्तत्पदार्यानान्तन्तत्छसर्गाणाश्च धिद्धेरिति भावः। यदि तन्त- त्पदार्थानान्तन्त्ंसर्गानाच्चारमानास्िद्धावपि घटवन्तथा ` कर्मत meena घटवन्तया कमलं इटणोमोत्या्तुव्यवसायानुपपत्या

LE भि |

(र) घटादिभमस्यासिडविऽपौति का ° |

WRAY शब्दाप्रामाणवाद्‌ः | १२५

वाच्यम्‌ तवापि तुल्यत्वात्‌ ननु तथापि कथमथे- fanufafe: farta व्यात्यग्रहादिति Ai al यथा यो WI प्रवत्तते तजन्नानातौति सामान्यतो- व्यात्तिन्नाने पाकादौ प्ररत्तिदशंनात्‌ पाकविषयक- कायेतान्नानानुमानं, यथा बेष्टाविशेषदशेनात्‌ द्शसंखयाभिप्रायमान्नाने. घटे तश्ेष्टाद शंनात्‌^ घट

शब्दस विशिष्टासुभवजनकलस््ोकार इत्युच्यते, तदा ममापि तुद्यमिति गुढ़ाभिषन्षिः तत्पदा तत्पदायेवच्रासुमामे wea, "नन्विति, “अरं विगेषेति प्रतससर्गेण यत्यदार्यातिरिक धत्पदार्थव- स्वयो भासि प्रहृतसंसरगेण तत्पदार्थं तत्पदार्थं वत्तसि द्धि रिव्यः, (९) ‘ARIA, दृष्टान्ताभावेन विगरेषेण व्या्यग्रहा दित्यचेः “ययेति, पाकविषयकप्रठत्तिमच्वस्यान्यत्राग्रद शायामिति शेषः,(₹ “पाकादा- विति पाकादि विषयकप्रटत्तिमल्लख्य पुरुषे दशरंनादिल्य्ः, "पाक- विषयकेति श्रयं पाकविषयककायेतान्ञामवान्‌ पाकविषयकपटति- मल्वादिति क्रमेण पाकविषयककार्यंतान्नानासुमाममित्यः, चेष्टा विेषद्‌ भेनादिति अङ्गुलोगां चेष्टाविगरेषदग्ेनादित्थथेः, "दशसंख्या मिप्रायमात्रेति सामान्यतो दश्रसह्याभिप्रायमाचन्नानसम्मवेऽपौ- . त्ययः, “माचपदात्‌ घरटविषयकर गसद्धयामिप्रायज्चामव्यवष्छेद्‌ः, थो चट तिषयकचेष्टा विशेषवाम्‌ सख घटविषयकद्‌ ्रसद्चामिप्रायवामिति विगरेषतो व्या्िग्रहाभावादिति भावः। वटे तचवेष्टाद्ैनादिति

(\) तदेद्ाविग्ेषदणं नादिति कर | (₹) इति भावः इति we | (९) सग्रदण्ायामित्यथं इति we |

चद्‌ तत्वचिन्तामणौ

दशत्वन्नानं तथा सामान्धतोव्याष्याबापि विश्रेषसिदहिः। यहा इद वाक्यं साकाह्यतदधैविषयकैकन्नानहे-

घटविषयकचेष्टा विगरेषस् पुरूष दभेनादित्यर्थः, यो यदिषयकचेष्टा- विशेषवान्‌ तद्धिषयकदग्रसञ्चाभिप्रायवानिति angt षामान्यतो- वयाघ्येति we, चेष्टायां घटविषयकता तु व्यापारालुवस्धिनौत्यव- धेयं ‘a दश्रलश्नानमिति घटविषयकदशसड्याभिप्रायन्नानमि- त्यथः, “खामान्यतो व्याति यो यत्छंस्गेश यद्धिथिष्टश्चान विषयः तदंसर्शेव तदानिति बामान्यतो व्या्येव्यथेः, “श्रजापि' अ्ननयो- रपि यत्पदार्यातिरिक्े प्रहतसंसरशंण यत्पदार्थवत्वन्नानन्नास्ि तत्प- | दाषंदथोरपौति धावत्‌, विगेषधिड्धिः' विगरेषतः प्रशनदंसगे चिद्धि, दृदमु पलकषणं विशेषतो व्यतिरेकष्याघ्यापि तयोः संस चिद्धिदरटवया |

AMV प्रकारान्तरेण वाक्यप्ककमेलादि विभिष्टज्चानाशु- array”) “देति, इदं वाक्यं" घरटमित्यादिवाक्धं, ‘arengta श्राधाराधेयभावादिखन्बन्धेन या घट-क्मलोभयपरस्रनिरूपिता- RYT AUIS Tareas तद्धे तुकमित्यः, एता- कुग्रज्ञागमेव परमये ` विशरिष्टश्ानं wart तन्ते श्नाननिष्ठः पदा्विशेवः तद्ध मतियोगिविधया निरूपकं विगरेषर्लेन नेया- ` यिकामिमत चटादि अनुधो गिविधया निरूपकं विशेव्यतया नेया यिकाभिमतं कमेलादौति भावः वेभिष्चविषयकञ्चानजन्यलन्तु साध्य FNS TATA eran ATE प्रैगिष्यागोचर

~

(४ प्रकारान्तरेण कम्भत्वादि विधिच्चानानुमाहेति we, ग° |

श्रब्दाख्यतुरोयखण्डे शब्दाप्रामार्रवादः | १२०

तुकं Name सति शत दधप्रतिपाद कत्वात्‌ मदाक्य-

रमि

लात्‌ afrera प्रथमं दुरनिंरूप्यतवाश्चोपेखित,(९) “श्रातो क्ले सतौ ति भमाजन्यसे सतोत्यथेः, “एतदथे्रतिपादङेति घट-कमलाद्युभयप्रति- पादकशष्टला दित्यचंः, यो भमाभन्यले सति यदुभयप्रतिपादकः शब्दः - ॒श्राधाराधेयभावखम्बन्धावच्छिन्नतदुभयनिरूपिताकञ्चगवन्तदुभय- , विषयकञ्चानद्ेतकं इति सामान्यतोव्यासिः, a1 तदुभयप्रतिपादक- aa वह्किकरणएत्व-सेकोभयप्रतिपादके afear fegateret व्यमिचारि वह्किकरणत्-सेको भयविषयकन्नामे वदङ्किकरणएकाव-सेको- भंयतिरूपिताकाङ्कायास्तेरगङ्गौ कारादन्यया ATMA तग्मते विशिष्टकन्नागलेनान्यथा ख्यात्यापत्तेरिति भ्रमाजन्यलं विशेषणं, भरम- ay त्तदभाववन्तद्‌भयमिरूपिताकाङ्घावत्वे, वह्धिना बिद्तौत्या- दौ भरमस्थानामिषिक्रन्नानदयय्येव तादृशाकाङ्घुावत्वेन तव्जन्यलान्न व्यभिचारः, तदुभयाप्रतिपादके ward वाक्यान्तरे व्यभिचार- वारणाय विशेव्यदलशं तद येख श्राधाराधेयभावा दिषम्बन्धावद्छिन्न- तदुभयपरस्परमिरूपिताकाङ्ावप्रतोतोच्छयोच् awa तोजन्यलं वा तेन वहेरालोकमानयेत्यादौ वङ्धि-कर्मलोभयप्रति- पादके afer व्यभिचारः, वा एएकाथुच्चरितघटमा- मयेत्यादौ व्यभिचार दति भावः। ‘aa दति अ्रनेनासुमानेन

५१) वै शिच्छ्यादि' उपेल्ितमिन्यन्तः पाठः ख°- °चिहधिव पुखतकदये मासि |

१९८ तत्वचिन्तामणौ

बत्‌, तत रते पदार्थाः परस्यरसंसगेवन्तः^ Ba सत्येकत्चानविषयत्वात्‌ सत्यरजतन्नानविषयवत्‌,९

हेत्‌सिद्धेरनन्तरमित्यर्थः, “एते पदार्था इति कर्मलादय care: ‘ACT? भधाराधेयभावसम्बन्भेन area, 'साका- - wa खतोति श्रतुयोगितया आधाराधेयभावादिम्बन्धावच्छिश्न- SATAY निरूपकले UAT, “एकन्नानेति चटादि विषयकेक- श्रानविषयलादित्ययेः, योऽनुयोगितया यत्छनन्धावच्छिनयदाका- शण निरूपकत्वे खति तदिषयकश्चागविषयः तत्सम्नन्धेन तदा मिति सामान्यतोयापिः, एक्कि-रजतने त्या दिषमूहालमबन विषये wert व्यभिचारवारणाय सत्यन्तं यद्येवमपि तच यभिषारतादवस्थं ददं रजतमित्या दिभ्रमखानामिषिक्ररजतलादिग्रव्येकमाजविषयक- ara यनिष्टश्क्रि-रजतत्ोभयनिरूपिताकाङ्कानिरूपकलात्‌ शकरः, | तथापि खनिर्पितघटाद्याकाङ्खगवद्‌षटा दिविषयकन्चानं तद्‌- विषयत्व सञ्ुदायेन faafad, सामान्यसुखो व्या्निः अमखाना- ` भिविक्रशटक्कि-रजतलपत्येकमाजविषयकञ्ञागदयस्य इकरि-रजतलो भयनिरूपिताकाङ्कावत्वेऽपि शक्नि-रनतनोभय विषयकषम्‌ रालम्नगख तादृ प्राकाङ्गवत्वविरशान्न व्यभिचारः, शद्भि-रजतलोभयविषयक- सम हालम्बमश्य एकरि-रनतलोभयनिरूपिताकाङ्घवल्वाभ्यपगमे ता- TNMs aad विथिष्टन्नागवेनान्यथाख्यात्यापन्तरिति भावः ` सत्थरजतश्चानेति रजतत्वविशिष्टश्चानविषयरजतलाञ्नयवदिव्य्ः, ` “एवमिति वक्रपकचक-वाक्धपककालुमानान्यतरेण वकः कर्मवादि-

(४ farm संसगेवन्त द्रति क०। (९) स्धरनतच्नान विषयवदितौति |

WRITS LAIMA | , १९९

वक्तुयथा्थवाक्यार्थन्नानेऽनुमिते प्रकरणादिना वक्रभि- प्रतयथाथैप्रतौतिपरत्वन्नानं ततो बेदतुल्यतया शब्दा SANTA द्त्यनुवाद कः शब्दः वक्तन्तानावच्छंदकतया संसगेत्तानानुमानात्‌ तदुपजौविसंसर्गानुमानाद्या ` वाक्यार्थस्य प्रागेव fads यत्त॒ संसर्गाग्रहो भमः” `

विषयकचटादि विशिष्टश्चानेऽनुमिते इत्यथः, acafaaa हेतुना | कर्मलादौ घटादिमच्े wafaa एति ओषः, श्रकरणादिनेति, श्रादिपदादर्शेष्टा विशरेषादि परिग्रहः, प्रकरणश्च भोजन-गमनादि, "वक्कमिप्रेतययायेप्रतीतिपरलन्नानंः प्रतवाक्यायेप्रतो तिपरलश्नानं areal दि विशरेव्यक-चटा दिप्रकारकयथाथेप्रतोतोख्छयोशचरितलश्चाम- fafa यावत्‌, शेदतुद्तयेति वेदख्यले क्गु्तश्ाम्दामुभवसामय्ो- विशिष्टतयेत्यथेः, “शम्दात्‌' लौ किकश्रब्दात्‌, “श्रनुवादकः शब्द दति maga लौकिकः शब्द दरत्यथेः, श्रसुवादकलच्च खखमामाधि- करणए-सखाव्यवहितपू्ववि-खसमानाकार मिश्चयविषय विषयक -तदि- गेगव्यक-त्मकारकासुभवमाचजनकतव, खपदमगुभवपर, श्रनुवादक- ल्रमेवोपपादयति, ‘agente वक्न्नानविशेषणतयेत्ययेः, “संसगं- ,. QUANTA’ कमैला दि विषयक-घटादि विशिष्टज्नानालुमानात्‌ | ममु कमलादि विषयकधटादि विषिष्टज्नानाङुमानात्‌ कमैल-घटाद्यो- सस्सगंस्य सिद्धावपि कर्मलादौ घटादिमल्लं सिद्धमित्यत आई, तदु पजोवौति, “ंसर्गातुमानाडेति कर्मलादौ चटादिमक्ला- लुमानादेत्यथेः, सवेभेवेति गेषः, ‘ATE’ wee, विशिेति

(९) यत्वसंसर्गायहो aa दति we | 17

श्द० त्वचिन्तामसौ

Wa: इदमुपलक्षणं यथाथेतात्परय्यानुमानादपि यथार्॑त्धटकतया सवच विगिष्टखा्थं सिद्धिद्रंटव्या एवश्च लौकिकग्रष्दो प्रमाणं अग्टदोतग्राद्यतुभवकर एतस्य प्रमाणलरूपत्वादग्यरोतग्राद्यतुभवकर- WAY ग्टहोतग्रा CAT THATS TY खसमानाधिकर ण-सखाव्यव- ` दितपूवैव्निखषमाना कार निखया विषयविषयकेतरतदिगेव्क-तम्र- कारकाुभवकरणत्व, खसमानाकारतश्च afar यादृगौ तद्िशे- ग्थकलावच्छिन्नतत्मकारिता तादूश्तदिगरेगयेकलावच्छिल्तत्मकारि- ताधा्िलवं rad क्रमेण GER वेदस्वाणप्रामाण्यं खात्‌ यवा ATA शोक-वेदसाधारणश्राब्दा भवमा प्रत्येव हेतुला- दिति चेत्‌, न, वेदे प्रामाश्छान्ययानुपपश्या सामान्यत एतत्कपि- णपदाथेलादिना कपिश्चणपटार्था दि विगरेष्यक-जिला दिप्रकारक- यथा्थप्रतीतिपरवश्नानखेव शाब्दमोधरेतुतया बेदजन्यग्राब्दबोध- AAS WATTS AIHA वा एतत्कपि- quia: fafa शामान्यतसत्पदा्थसंसर्गानु- ame”) वेदजन्यशाब्दबोधसमानाकारलाभावात्‌। चेवं लोकेऽपि प्रामाश्ान्यथानुपपत्या सामान्यत एतदमपदाय॑लादिना एतदम्‌- ` पदां विशेव्यकषघटा दिप्रकारकययार्थप्रतौ तिपरलन्नानं Save एवश्च SARAIVA काय्ये-कारणएभावदयाभावाज्ञाघवमपौति वाच्यम्‌ | शोके सामान्यत एतदमपदाथं विशेव्यक-घटप्रकारकयथार्प्रतीति- परमिदभिति चयया्थंतात्पयेमिखयेऽपि कर्मंलप्रतीतिपरन्न वेति

- (४ सामान्यतः पदाधंसंसर्गागुमानस्येति we, ग° |

ग्रब्दाख्यतुरौयखष्े श्ब्दाप्रामाण्वादः | १६१

विशिष्य सन्देे\ क्म॑लप्रतो तिपरक्नेति विशिग्य afatafirga a श्ाष्दारुदयादिभिष्य यथा्थतात्पयैनिशवयटैव हेतुलात्‌ तस्य विशिथ्या्ौपख्ितिसाध्यवात्‌( -चेतद्वेदेऽपि सुवचमिति वाच्यम्‌ तत्र॒ एतत्कपिञ्जलपद्‌ायं विगेव्यक-जचिलप्रकारकथथा्थं- प्रतौतिपरमिदमिति सामान्यतो यथयार्थतात्पयैनिश्चये विशिष्य रक्रच्छागप्रतोतिपरन्न बेत्थादिषन्देहाद्यनवकाशात्‌ जालपि एतत्‌- कपिश्चणलपदेम रक्रच्छागातिरिक्रा्या प्रतिपादनात्‌ रक्रच्छागातिरिक्रे एतत्कपिश्जखपदार्थत्वाद्‌ भ्र॑नादेतत्कपिश्चलपदार्थत्प्रकारकभिख्यस्येव विशिष्य रक्रच्छागलप्रकारकतादृग्रसन्देदादौ विरोधिलात्‌ शोके शचणादिना एतदम्‌पदाथंलखयान्यजापि दृष्टलादेतदम्‌पदा्ै- लप्रकारकनिख्येऽपि कर्मललप्रकारकता दू श्रसन्दे हा दिषम्भवा दिति प्राभाकाराभिमानः ,

केचित्त वेदे प्रामाण्यान्ययानुपपश्या तदिरेष्यक-तत्मकारक- - watfaaa रूपेण तदि शेव्यक-तप््रकारकयथायप्रतौ faa MV: wad नापेचितं तत्‌काय्येतावच्छेदकश्च लोक-वेदसाधारणं श्ाब्दबुद्धिवमेव वेदजन्यलप्वेे गौरवात्‌ लोके तदिगेव्यक-तत्मकारकययाथंप्रतौ तिलेन रूपेण ans विशेषसामयो तदिेव्यक-तत्मकारकप्रतौ तिलेन तात्पय्येनिख्चयेऽपि तात्पय्यैवटकप्रतीतौ यथया्थेलसंश्रये तद्तिरेकनिशये श्रान्दानु-

(१) विश्िष्टसन्देह इति ° | (९) विशिद्ययतिरेकनिश्चये चेति ° | (९) विशिद्धार्थापस्थितिसाध्यत्वादिति wo |

ARR तज्वचिन्तामणौ

तदभावश्च संसगेग्रह रेति समाभावेऽनुमौयमाने संसगेन्नानमेवातुमितं इत्याप्तत्वानुमानान्तगतमेव वक्त न्नानातुमानं तु वक्तु्नोनानुमाने afew” इति

ष्ट

दयात्‌ «AT तु ATAU न्यायगम्यलेन वेदलेनाबाधितार्थकलत्- निखयेन तदिगेव्यक-तत्मरकारकप्रतौतिलरूपेण fadacnrat यथा्थैत्वखन्देहाद्यनवकाश्रादिति लौ किकशब्द एवानुवादकः यथार्थ- ` HUNT तत्पदार्थे तत्पदावत्वयरस्यावश्कलत्वात्‌ यचार्थलघटकतया तत्पदार्थं तत्परा्थवल्वस्छ तात्पयैयदेण fardtedarafa प्राभा- कराभिमान इति प्राह्ः।

खर्गायशो भरम इति पाठः विशिष्टज्ञानाभावो भरम इत्यः, (तदभावः माभाव, “संवगेयद ua विशिष्ट्ानमेव | यद्यपि समवायस्यातोद्ियतया 4 विशष्टज्नानस्छ संसगंगोवरल्वं तथापि aa संयोगादिः संसगेस्तदमिप्रायेणेदं(९। भमाभावेः चटादि- wanna, “वंसगंश्ञानमेवेति घटादि विगिष्टन्नानमेनेत्यैः, “धाप्त- त्वातुमानेति चधटादिभमाभावातमानरूपमेवेत्यथः, cama fi aplerichifienmraaatiat:, ववक््ौनानुमानेः वकः कषोलादिदिषयक-घटादि विष्िष्टज्ञानागुमाने, "तत्‌" aneerfe- ` पमाभावातुमान्‌, ‘fey प्रयोजकम्‌, तथयाख अयश्च वक्ता स्प्रयक्र-

(९) तु तल्िङ्कमिति we | (९) यद्यपौत्यादिः तदभिप्रायेणेदमिव्यन्तः पाठः ख, ग° पएुखरकदये नास्ति |

शब्दाख्यतुरौय खण्डे WMATA | 7 ११ | तन्न, मोहि न्नानदयं अण्होतमेदं तदभावश्च एहोत-

त्यादिदतौयारुमानं इदं वाक्यमित्यादि प्रयमानुमामश्च( नाङ्गौ- करणएौय, वक्ुघेटादिभमाभावानुमानादेव चटादि विभिष्टजानषिद्धौ तदिषयतेन हेतुना क्मेलादौ चटादिमल्वषिद्धः सम्भवादिति भावः। करश्च “श्रसंसर्गाररोभ्रमः' इति पाठः, तज श्रसंसरगा- पहः संसगंयदाभावाभावः, “MTA इत्यकारप्रश्ेषादभ्नमाभाव- इत्ययः, (तदभावश्च संसगंग्रहाभावाभावसख, (संसगेग्रड एवेति, श्रभावाभावस्य प्रतियोगिरूपलादिति भावः weed पूर्ववत्‌ चटादिभ्रमाभावालुमानात्‌ घटादिविगिष्टश्ञानसिद्धावपि कमेलादौ तद्विषयत्वं fag ada वच्छमाणानुमाने डेतुलादिति ठतोया- TAMARA तदावश्वकले तद्धेतुसिद्यथे प्रथमानुमानमाव- श्रकमिति समाधाने सत्यपि स्णुटतरं समाधानान्तरमाह, भमो रोति, “श्रगरहौतभेदमिति खरूपतो विषयतश्च भेदग्हाभावविभि- एमित्थर्थः,- वे चिश्चश्च एककालावच्छदेनेकात्मट निलं,(? “्टहोत- भेदश्चानभिति गटहोतो विषयोशतोभेदो येनेति sae खरूपतो विषयतश्च. भेदज्ञानमित्यथेः“) ज्ञामदयाभावस्ेति ओषः, विशिष्टा भावस्य विगरेषणाभाव-विगेव्याभावोभयर्ूपलादि ति(५) भावः तथा- ` (४ तौवाञुमानं प्रथमानु मानश्वेति Geo, Te | 7

(९ वैणच्छष रककालावच्छिवेकाकदततितवमिति Go |

(९) विशरेषतसखेति ०, ग० |

(४) सेदग्रहविशिणटमि यं दति we | (४) विरेषणामाव-विरेष्याभावान्यतररूपत्ादिति क०।

, ६.१४ , . वत्वचिन्तामयौ

wena, हि त्रानाभावे सुषुप्तौ ममव्यवदारः, ततो धमाभावनिशचयानन्तर वक्न्नानानुमानं किष्ब

चेतादृ ्थमाभावाहमितावपि विशिष्टन्नागसिद्धिरिति ara: | संसर्गाग्रद्य^ wad खण्डयति, होति, (ज्ञानाभावे' fafue- warner, सुषुप्तौ", असंसर्गायरददश्ायाघधेति Te: उपसंहरति, तत दति तस्मादित्ययेः, भमाभावेति चटादिभमाभावेत्यथैः, 'वक्ृश्चानेति aq: कमेलादिविषयक-घटादि विशिष्टज्नानात्तमान- भित्यथेः, श्रावश्यकमिति शेषः शशराप्तोक्रलातुमानमेषेति afies- रणकलादिभमाभाववदुक्षलानुमानमेवेत्ययेः, ‘Amal ama fis- करणकलादिविशिष्टश्नानातुमानमिव्यथेः, तर्दति, तरिं afi करणकलादिभ्रमाभाववदु क्रलश्य. श्रतुमापकं ufey तदेव afe- करणकल्वा दि ग्ाब्दपरमाकरणमस्त॒ किं ययांतात्पय्यैेतुलेन waa ब्किकरणकल्वादिभ्रमाभावख् वद्धिकरणएकलादि विशिष्टज्ञानरूप- तया तददुक्षलानुमापक fear व्यभिचारि गब्दव्याटृन्तलात्‌ मम त्‌ .वङ्धिकरणकलादिथमाभावस्य वश्िकर णलादिविगिष्टज्ञानकूप- तया तदवुक्ठलातुमापकशिङ्गष्च Wareham रिश्चतोव्या- दिवाक्येऽपि ame व्यभिचारिगश्ष्दव्याटन्तत्मतो श्ाष्दप्रमा- ornate: | भवन्मतेऽपि कषठोलादिविषधक-षटादि- विशनिष्टञ्चानानुमापकलिङ्गको टिप्रविष्टघटादिभरमाद्यजन्यनिरहवा-

waa श्राग्दप्रमाजनकमस्तु॒ तस्य व्यभिचारि ग्ष्दश्याटन्तलादिति

(९) संसगं यरहाभावस्येति qe |

एब्दाख्यतुरोयखष्डे शष्दाप्ामाणवादः। १९५

यथाप्तोक्तत्वानुमानमेव वक्तन्नानानुमानं, तदं यादशं fax ताहशमेव गमकमल््िति | | अचोच्यते | यथा्थवाक्याथं पौपरत्वं Aa प्रमो-

तुखयोऽयमहुयोग इति वाच्यम्‌ गौरवेण तखाहेतुलादिति भावः।

केचित्तु तुव्यवित्यारिन्यायेन इृष्टापक्तिमार, "किति, श्राप्तौ- ATTA आअ्तलासुमानं घटादिभ्रमाभावानुमाममिति यावत्‌, वक्श्चानेति वक्ृषेटादिविगिष्टन्नानानुमानमित्यर्थः, "तर्दौ ति, ate wy चटादिभमाभावातुमानं aE: कर्मलादिदिषयक-घटादि- विचिष्टज्चानारुमाने ‘fag’ प्रयोजक, "तादृ शमेव' तरेव, "गमक- wy कमेलादौ घटादिम्ानुमाने प्रथोजकमस्तु, ठतौयासुमानं प्रथमागुमानश्च MAPA ea इत्ययः, इति प्राहः

अन्ये तु श्राप्तोक्षलानुभानेत्यादि केचिन्तुमतवत्‌, "धां सिङ्ग भित्थादेष्ठ यादृशं घटादिभमाभाव्राजुमाने fay तादृ परमेव am: कमलादि विषचक-घटादि विशिष्टन्नानानुमापकमस्तित्यथैः, तथाच यदि भेमाभावमनुमाय वक्तुः तादृशज्ञानमनुमोयते तरेव भमा- भावानुमानेनैव चटादिवििष्टन्नानसिद्धवंक्षः तादृ शन्नानामुमान- वेयथ्यैमाग्रङ्नोयं भ्रमाभावानुमापकेन THAT EWHTATAATA fren: श्रद्धायाः अवकाश्च दति भावः। इति प्राः

दति प्रभाकरपूष्वेपचः |

'यथायेवाक्यायंति यथार्थतात्पय्यैनिश्चयो श्ाम्दानुभवजमक-

१९६ avrafarntaat | area गौरवात्‌ वाक्या्थनिरूप्यत्वेन प्रथमं च्रातु-

इत्यर्थः, “गौरवादिति चथया्ंतात्पय्यैख्छ तददिगेग्यक-ततकारक- थया्यप्रतोतौच्छयोचरितवरूपतया. यथार्थलप्रवेशेन गौरवादिव्यरथः, भवन्मते यथायंलस्याव्यावन्तंकतया senate zea, किन्तु wearing तदिगेथक-तत्मकारकप्रतोतोच्छयो- चरितत्वरूपतात्पय्ये निखथ एव श्ान्दधोजनकः भवस्ते अन्यया- खयात्यभावेन वङ्धिना रिघ्चतौत्यादौ तद्धिगेयक-तत्मकारकप्रतौते- रप्रसिद्धलारेवातिप्रसक्कविरशत्‌ | Stage तात्पय्यैवरटक- अतौतौ चधार्थलसंग्रये श्राब्दबोधातुदयात्‌ यथाथेलां्रमिवेश्रनमाव- इ््कमिति वाच्यम्‌ तच्येवासिद्धेः। तात्पय्यैयाया च्येसं ग्रस्य योग्यता- संग्रथपय्यैवसिततया श्रनलुराणलाच्च(९। तथापि तव नये श्रान्द- प्रमालावच्छिन्नं प्रति यथायेतात्पय्येनिश्चयो हेतुरावश्यकः अन्यथा ` तात्य््ैमिद्चयमाजस्छ तदवच्छिलं प्रति हेतुले afer सिध्चतौ- त्यादावपि ग्ाब्दप्रमोत्पत्यापत्तेः भरमरूपतदिशरे्यक-तत्मकारक- प्रतीतेः तजापि प्रसिद्धलादिति are मम वद्धिना सिश्चतीत्यादौ शाब्दासुभवातुरोधेन wera प्रति निरुक्रतात्पय्यैनिख- यच्छ हेतुलावश्वकले श्राष्दप्रमालावच्छिशं प्रति जाधवात्‌ शंग्रयनि- खयसाधारण्तत्पदार् तत्पदा्थेव्वस्ूपयोग्यताप्रमाया एव हेतुलाद्‌- धथायेतात्यय्यैनिखयस्व तदपेच्या शरुत्वादिति भावः नतु निरक्र-

(९) aad: अननुरणत्वाचेलखन्तः पाठः खकदये नास्ति | 4

एष्दाख्यतुरोयखण्डे WITTE: | Ute

ANAS तस्यापृब्वेत्वात्‌ | यच्च लोके भमादि- निरासानन्तर' THN नावच्छेदकतया तदग्रे खातन्त्येख वा पुमभिपरेतवाक्यार्थन्नाने तत्प्रतौतिपरत्वं प्रकरशा- दिना त्रायत LOM, तन्न, वाक्याथमन्नात्वा अायम- सन्त दति My पुरुषत्वादक्षभेम-प्रमादसम्भवेन प्रथमं

AUTUMN A SNA aa यया्थतात्पय्यैमपि तु तत्पदा्च॑- वन्तत्पराथेप्रतोतौच्छयो्रितलं AMM, तथाच वदिशेव्यक- तम्मकारकमतौ तौ च्छयोचरितला पेया Maas वा वैयथ्यैमि- BT, ‘Ata ae तत्पदार्थवत्निश्चयापौमनिथा- यकलेनेत्य्थः, ‘MH’ शाब्दानुभवात्‌ Wa, “ww frae, ‘wer- gdatfafa amare तत्पदायेवत्वस्य weiter पूवंममिचितला- fame) मसु पूरौक्क्रमेण गश्ाब्दगोधात्‌ पूवं AZT वत्यदाथे- वत्वं fafa तज्िश्चयः^\ स्यादित्यत are, "यच्चेति, "पुमभिप्रेतेति तत्पदा तत्पदाथेवत्वनिखये इत्यथः, ‘anata’ eared प्रतौ तिषरल्, ‘ara घटादिकं, “ww घटादौ, ज्ञातुमिति “श्र्रष्यला दित्ययेतनेनाग्वयः। नतु शाब्दधौ पूरे घटादे ानमस्येव कथमन्यथा तवापि तात्प्बेधौ रिव्यत are, “पुरुषत्ादिति, भम- प्रमादसन्भवेनेति, पुंवाक्यलस्य व्यभिचारिवादिति aa”) aq भा गत्‌ पुवाक्तलेन अ्रमाद्यजन्यतवग्रस्तथापि सवादिप्रहन्तिप्रयो-

निखय इति खर me) (९) श्यभिचारित्वादिति शेष इति we |

-18

१९५ ` वक्नचिन्तामयौ

फमा्यजन्यत्वस्य बहौतुमशक्यत्वात्‌ प्ररत्तिसंवादादे.- miracary भरमादिजन्यविलघ्षणत्वेन MAMA WA वा याह भो लिङ्गत्वं तस्यैव प्रत्या werd अव्यभिचारात्‌ वेदेऽपि वाक्याथमविन्नाय सद्‌ यथाथेप्रतोति परत्वं न्यायेनापि श्रातुमशक्धं वि- षयनिरूष्यत्वात्‌ प्रतीतेः लोके तात्पयनिरूपणार्ध-

जकवाक्धलेन fara age: स्यादित्यत ary, ग्रटन्तिसंवादादे- रिति संवादिपरदत्यादेरित्य्ः, “त्रानोन्तरेति ग्राष्दज्ञानोन्तरेत्ययैः, तथाच शाब्दधो पूवे तक्रयोजकलग्रो नासीति भावः। नतु TIMI eM किध्िरैलद्ष्यमस्ि तेनेव भ- माद्यजन्यवमतुमे यभित्यत we, भमादौति, ‘aga’ equa, ^तस्दवेत्येवकाराच्ययायेतात्पय्यवयवच्छेदः, ‘HOTTA शरान्दधोजन- aa, तथाच wee नातुवाद कत्वमिति भावः। इदमापाततः ताद्श्वेखचष्यस्य weiss artes तात्पर्यां विषयेऽपि योग्यां प्रामाण्यापत्तेः | AAG तादृ ग्वेलक्ये मानाभावः, दत्येव ad (९) विशेषतो यथायेतात्पय्ैनिश्चयस्च बेदश्थले वयभिचारम- पाद, 'वेदेऽपौति, "वाक्याथ तत्पदार्थं तत्पदार्थवच्ं, “अविश्चाय' विग्ेषतोऽनिचित्य, ‘agent प्रतवाक्या्थयया्चत्यथैः, (ज्ञातुः विग्रेषतो frad, "विषयनिरूष्यवादि ति तत्पदा तत्पदारथ॑वत्व- निख्चयाधौनलादित्यधेः, श्रतोतेरिति तत्पदार्थव्वरूपेण तत्पदा

(५) इदमेव तत््वमित्यगन्तर वेदे ्गृप्कारणत्वाक्लोकेऽपरि कारथतवमि्यतरे- wafer: पाठः कण पुस्तके aaa |

WIAA शब्दाप्ामाण्यवाद्‌ः | URE

मश्णब्दवाक्धाथैप्रतौते,. प्रथमं त्वयापि सखौकारात्‌। अन्यथा वक्तुन्नाननुमानं५ स्यात्‌ नं लोकव- भ्मानान्तरा्तदवगमः, ARTA Aaya Aa प्रथमं मूकत्वात्‌, Maas वेदाय मानान्तरा- तात्ययग्रहः, वेदस्यानुवादकतापत्तेः शब्दस्याप्रमाण-

प्रकारिकायाः alate: | नण्िदमेवासिद्ध मित्यत श्राह, 'लोक- दति, (^तात्पर्थंति यथा्थेतात्पर्थत्यथेः, 'वाक्धायंप्रतौतेः' तत्पदा तत्पदायेव्वप्रतोतेः, लयापि -खोकारारिति, तथाच agz- प्रतौ तिप्रतीतेविंषयनिरूणयलाभावे भवतां तदभ्वुपगमो व्यथः स्या- दिति भावः। तादृशमतौतिप्रतीतेर्विंषयनिरूणते युश्वन्तरमार, "अन्येति तादृश्प्रती तिप्रतौतेर्विंषयनमिरूप्यलाभावे शत्धथेः, वक्त भ्नामानुमाममिति, अपिः शेषः, नन स्यादिति aia afa- ae, तत्पदा तत्पद्‌ायेव्परतौल्युपपादनायैव तदभ्युपगमादिति भावः ‘array’ अनुमामादितः, (तदवगम शति fafira AMI तत्पदा्थवल्वावगमं इत्यथः, “तद विषयल्वादिति वेद- TTT प्रमाणान्तरा विषयलादित्य्ः, 'मूकलादिति शा- ब्दबोधाजमकला दित्यः, ययार्थतात्पय्येन्नानेङूपकारणभावादिति wal भमु वेदांश्च वेदभेन्यग्राम्दधौपूव्यै प्रमाशकरा विषयत्वमै- वासिद्कमित्यङ्चेरा र, "म चेति वत्ययः, ‘aaa’ खो कोक्ष- करमेख tara निरक्रययायेतात्पैयैयदः, शरप्रमाणला-

(९) खमुमानापेच्तेति ०, we |

१8० तश्वचिन्तामयौ

त्वापरर्व्वा | अन्नाते वाक्यार्थे तकं-संशययोरष्यभावात्‌। अयं . पदा्थोऽपरपदाथैसंरूृष्टो वेति सं श्ये तके वा रककोटौ dat उपस्थित इति चेत्‌, न, अनिथिते

पत्तेरिति खार्थालुभवाजमकलापन्तेरित्ययेः। जोक-वेदयोरभयतैव अमाणान्तरा दाक्धामोधावण्यकलि शब्दस खार्थाहुभवजगकलाग्धुप- गमे प्रयोणनाभावात्‌ Werte एवोपपत्तेरिति भावः। नह्‌ तक-संश्रयान्यतरोपख्िते वेदार्थे तात्पय्यैनिरूपणएमस्ठ तथाच Aza MUNCH तकं-घंग्येतरन्ञानग्टरोतयादिन्ञानमाबलनकलदेवा- सवादकतापदा्थंलाभ्वुपगमात्‌ तथापि ceria arrangers दुर्वारमिति ` वाच्यम्‌ तात्पर्यरदष्टापि uftafaes तकं-सं्रयाकारलाभ्वुपगमादित्यत WE, “्रन्नात इति अनिचिते वेदां इत्यथः, श्रयं पुरुषो यथेतत्पदार्थवदेतत्पदां- RMT Vetere यादिति ade wattage वदे तत्पदा्थं्चानवाश वेति dee बेदार्थ मिखथाधौनलादिति ma) गतु तथापि aw संश्यादौ वाक्यार्थीप्ितिः कारणं तद्संग्रयाध्युपखितोऽष्ठ वेदाय इत्यभिप्रायवाना गरद्धते, “श्रयमिति; "तके बेति श्रयं पदा्ौ चदेतत्पदा्संङ्ष्टो स्वादेतत्पदखमभि- व्याइतवैदिकपदा्चौ दयादिति तकं cad, श्रापादकस्तापि तकं उपनोतभाने बाधकाभावादिति भावः। “अनिसिते इति aera तत्पदार्थऽमिचिति cere, तात्पर्यां निश्चयात्‌” तात्प- यंनिखयासम्भवात्‌, विशिष्टवेशिष्छन्नाने विगरेषएतावच्छेदकम्रकारक-

श्ब्दास्यतुरो यख WITT: | १४१

तात्पर्ग्यानिखयात्‌ तयोरद्ौतासंसगेविषयत्वेनासद्‌- येविषयकत्वेन वा वाश्यार्था विषयत्वा sare लोकेऽपि ताभ्यामेवोपश्ितिरिति fa वक्रत्नानासु- . ..

मिञ्यष्य हेतुलादिति भावः यद्यपि तका frqafata एव,(१) तथापि तत्पदा तत्पदाथेवत्वनिखयो इति इदयं। भनु विशरेश्ये विश्रवणमितिन्यायेन तात्प्वंपरदः श्यादित्यत are, 'तयो- रिति तकं-शंशययो रित्यथैः, “श्ग्टहोतासंसगेविषयलेनेति weet खंखगेविषयकश्चागदयरूपलेनेत्यथेः, ty ताते, “Tai विषयक्ेति श्रषदधभिष्डविषयकलेन वेत्यथः, दद चछासदेगिश्यविषयकश्चानं aa दति टौकाकारमते, वाक्यार्थेति sedate तत्पदा तत्पदार्था- विषयकलादित्थयंः। यत्‌को रिधर्मिंणि aia तदंग संश्रयस्य विशिष्टज्चानलं प्रहटतखंसगं विषयकलश्चं॑वन्तत॒ एवेति वाच्यम्‌ ` wage मते धर्मिंणएसत्कोटेख तदानौ- ` मसजनिषृष्टतया तत्कोरोरपि विशिष्टज्ञानलाभावादिति भावः। ` मौमांसकमते कोरिदयोपथितिर्धनिंत्तानमसंसर्गाग्रहकालौ गमिल्येव संश्रयः ama Waa तजिखयः तथाच विद्यमान कोटिप्रकारकं भ्रानमपि जायते संश्यजनकदोषेण प्रतिबन्धा- दित्यभिमानः(। 'उपखितिः' प्रटतसंसर्शेण तत्पदा तत्पदाच- वत्वष्योपस्धितिः, किमिति, तथाच वेदवक्षोकस्यापि नानुवाद्‌-

(९) मानसप्र्च्छविद्ेष Tah, airy मानसलवद्याप्यभातिलवाव्‌ | (९) mata: दचभिमान xe पाठः ख०, परकदये athe |

९४२ तत्वचिन्तामणौ

मानेन | वल्तुतसतु यदि यथा्थतात्पगेकत्व art शा- ब्द्प्रमोत्पादकं तदा लोक-बेदयोस्ताहश्पदस्मारितत्वेन , , पदा्थसंसर्गानुमितिसम्भवात्‌ शब्दः प्रमाणं स्यात्‌।

कतेति भावः। नलु विगेषतो ययार्थ॑तात्यय्यैनिश्चयस्य शौ किक- वाक्यनन्यश्ाब्दबुद्धिं प्रत्येव हेतुलादेदस्ले तद्मभिचारो दोषाय az जिलवत्कपिश्नलपदाथ॑परभिद मित्यादि क्रमेण सामान्यतः कपि- आअणपदा्थैतादिप्रकारेण afaqada tqerq तस्य fafra तत्पदार्थं तत्पदार्थवक्वनिखयं विनापि erage ames व्वनिखयादैव सम्भवात्‌। नग सामान्यतस्तत्पदार्थं तत्पदाथवत्वनिखय- एवै प्रथमं कंय स्यादिति वाच्यम्‌ अरनुमानादितोऽपि aqua अतलुमानादिना प्रथमं सामान्यतसज्िख्चयाग्यपगमेऽप्तुवादकला- . अषक्ेरित्धसखरषादा र, "वस्त्विति, “लोक-वेदयोरिति, शब्दात्‌ पदार्थ।पस्थिव्यनन्तरमिति ओषः, ‘argues, कलादिकं चटादि- भत्‌ खविगेव्यक-घटादिप्रकारकयया्ेप्रतौतौच्छयोशचरितपद स्ना- रितलात्‌ चटादिपदाथैवत्‌, खप्रतौतौश्छयोञ्चरितपदस्मारितलादा ` चटनिष्ठकरणलवदिति क्रमेणेति गेषः, "पदार्थसंसर्गेति श्ाब्दबोधा- ्यूनानतिरिक्दिषयकपदाथेसंसरगालुमितिसम्भवा दिव्ये भवश्नये चिद्धेरशुमितिप्रतिबम्भकल्ाभावान्तात्प्यघटकतया प्व पदाथसंसनं- बिद्धाबपि नातुमिद्यनुपपन्तिरिति भाव्रः। शब्दः पमाणं ष्यादिति श्रलुमित्यतिरिक्राभवकरणं afc, तथाच जितं वैरेषिकैरिति भावः। मनु व्या्निसत्यादेरनावश्षकतया

श्न्दाख्यतुरौयखण्े शब्दाप्रामाणवादः | १४३

पिच पुंवाक्धस्य दोष-विशिष्ट्ानान्धतरजेन्यत्वेऽनु- मिते परिथेषाद्दोषाजन्यत्वनिश्चयद शयां बेदतुल्या सामत्रौ पुंवाक्येऽपि दत्तेति तत रवा्थैनिश्चयात्‌ वेद्‌- वत्तस्यापि mae, अतुमितातुमानस्य व्यात्तिखु-

AMANITA प्रमाणभ्तरत्वमित्यश्लरषात्‌ यन्मते यथायंतात्प््य निश्चयस्य हेतुलमपि तु प्राथमिकलादावष्छकलाच् दोषाअन्यले खति दोष-विशिष्टन्चामान्यतरजन्यल निश्चय एव हेतुस्त- ` गतेन समाधत्ते, “श्रपि चेति, ‘qarwe’ लौ किकवाक्यस्य, "दोषः" भमादिः, “परिशेषात्‌” न्रमाभाववदुक्रलवे संति प्रमादाद्यभाववदुक्र- लादिना, 'वेदतुखा सखामयौति तात्पथ्येग्रहापेचया प्रायमिकलात्‌ तात्पय्येग्रहा थेमावश्यकलाच वेदसाधारणश्ाब्दातुभवष।मान्यं प्रति ` हेतुलेन करक्तदोषाजन्यले खति दोष-विशिष्टत्वामान्यतरजन्यवनि्चय- पा सामगत्यथेः, विश्वा दि दरएकवाक्यवारणाय ieee, ‘ara ` शो किकवाक्य, "तत एव' तादृ श्रान्यतरजन्यलनिञ्चयादेव, यथा्ैता- त्प्येपरपूवैमिति te, “रथैनिञ्चथात्‌ लो किकवाक्याथं निखयात्‌ ममु ताद्‌ शान्यतरभन्यल निश्चयस्य प्राथमिकलव श्ावश्यकवेऽपि गौर- वान्न TW IMS किन्तु यथायेतात्पय्यैनिश्चय एव हेतुरिति यथार्चतात्पयमिखयपूवै तस्माच्छाष्दबोधसम्भव CIT GL, “Ta- भितादुमानस्येति परम्परया टोषानन्यवानुमामाधोनस्य यथा्थेतात्य~ यैनिश्चयातुमानस्ये्यचेः, “या िखत्यारी ति aren Sara,

(५ वैधायंतात्पयेनिखयात्‌ पूव्वेमिति शेष दति |

१९४४ arate

त्यादिविलेम्बितत्वात्‌ रतेनाबाधिताधेपरत्वं लोके

———E

लवात्‌ wa शाब्दमो धपूरवंमसन्भविला दिव्यैः, तचा यथा्तात्पर्यै निखयस्च waestt व्यभिचारान्न हेतुमिति भावः। cena: व्भिचारास्पू्तिदधायां खाघवात्‌ ययायेतात्पये निय हेतुलयिद्धौ aay afer दभयवादिषिद्धो ब्या- िद्धत्या्भावस्तज श्ाग्दबोधाभावस्येवाभ्बपगमात्‌ wore वि- वादस्षललादिवि | वस्ठतब्ठ तत्पदा्थवन्तत्पदा्थंप्रतोतौष्डयोखरि- तलरूपययाथैतात्पयंनिखयस्य शाघवाच्छाष्दब द्धिेतुवे watz

श्वाप्यतुवादकलवापत्निः तापि तात्प्यंघटकतयथा -तत्‌पदाथं तत्पदा- Ua शाब्द बोधात्‌ प्रागेव धिद्धेः। we वेदप्रामाण्ान्यथासुपपत्या azea जिलवत्‌कपिश्चलपदायेपरमिद मित्थादिक्रनेण सामान्यत- सभन्निखयोद्ेतुः तथाच तात्पग्येवटकतया तत्प दाथ॑वन्तत्पदाथंश्ञानस्त बेदजन्धन्नानयमानाकारकलाभावादेदस् नासुवादकलं लोके घट- वत्क्मेवपर मिद मित्यादि क्रमेण विग्रेषतस्तन्निख्चय एव हेतुः अन्यथा चटवदम्पदाथेपरमिति सामान्यतोनिश्चयसत्वेऽपि चटवत्कर्मलप्रतौ- तिपरज वेति fades: संश्रया दिषम्भवा्नादृश्रसामान्यतो निखचयषक्य तादृ शविभेषसंग्रथादिसन्ेऽपि श्ाग्दगोधप्रसङ्ग दत्यनायत्या लौ किकः शष्टोऽसुवादकदति चेत्‌ काय्यै-कारणभावदयापन्तेः fg बेदस्यसेऽपि जिल्वत्‌कपिश्चल्पदाथेपर मिद मित्धादिक्रमेण सामा- न्यतो चथा्थतात्पयेनिखयसन्बे विगरेषतो रक्रच्छा गत्वा दिरूपेण रक्र- च्छागपरन वा रक्च्छागपरन्नेति शंग्रय-ग्यतिरेकनिख्चवयोः wash

प्यब्दाख्यतुरौयखय्डे श्दाप्रामाण्यवादः | १४५

वेदे प्रमापकं लोके वाक्यार्थो बाधितोऽपि ee इति श्रोतुः प्रमाणावतारं विना बाधाभावनिश्चयः स-

श्राम्दबोधप्रसङ्गादिगेषतो निरुक्रययायेतात्पय्येनिश्चय एव शाष्दधो - देतूर्वाच्यः भिन्ञप्रकारकतया सामान्यतो यथाथैतात्पय्धैनिश्चयस्य विगेषतस्लादूग्रसंग्रयादि विरोधित्वे मानाभावादन्यया शोकष्थलेऽपि सामान्यतो यथयायेतात्यय्यैमिखययस्देव हेतुत्रस्य yawareat वेद- परामाष्ठान्ययारुपपत्या शोक-वेदसाधारणएकाय्यै-कारणभावेक्धलाघं- वात्‌ तत्मकारक-त दिगरेदयकमतौतौ चछयोच्चरितलरूपतन्तात्यग्यैख ररौरशरूवेऽपि तश्भिख्चथ एव हेतुरिति शौकिकगब्दोऽपि भानु- वाद कद्त्येव भेयायिकसिद्धान्तमिग्वः “एतेनेति “निर स्तमित्यये- तनेमाग्वयः, “श्रवाधितार्येति तत्पदाथंवत्‌तत्पदार्थप्रतोतिजनकल्- fae: नन्वेवं भवन्नयेऽपि लोक-वेदयोः णम्दबोधसामग्यमेद- इत्यत श्राह, लोक इति घटमानयेव्यादिलौकिकवाक्व ca, "वाक्यार्थः, प्रहृतवाक्यषटकौग्धतामादिपदाधेः, "वाधितोऽपि' वक्त भिप्रायविषथलाभाववानपि कश्मलाद्यतिरि क्रोऽपौति यावत्‌, एतदम्‌- ` पदेन शचणादिना कदाचित्‌ करणलादिङूपाथैखयापि बोधना- देतदण्यदजन्यधाब्दधौ विषथत्रूपय्येतदम्‌पदा थंलस्य कारणत्वादावपि सत्वादिति भावः। भ्रमाणवतारं विनाः विशिष्याबाचितायंकवे प्रमाणवतारं विना चरवत्कम्मेत्प्रतो तिजमंकमिद मिति विग्रेषतो- ऽबाधिता्थेकत निश्चयं विनेति यावत्‌, धटवदेतदम्यदांथप्रतौति-

(९) लोक-वेदसाधारगकारणभावैक्ये लाघवाचेति we |. 19

ved , बक््वचिन्तामणौ

क्षचिच्छोतुरिद्दरियेण कषिदक्तुराप्तत्वातुमानेन a2

भनकनिति सामान्यतो निखयादिति रषः, "न बाधाभावमिखयः' ॒गन्दाद्बाधाभावनिश्चयः ॒क्मलादौ चटादिमच्शराब्दबोध- दूति यावत्‌, लोके विगरेषतोऽबाधिता्ंकलनिश्चय एव शशाब्दध्मी- Wai तु शामान्यतसन्िद्चय दति षमुदाया्थैः, धटवदेतदम्‌- पदाथेप्तौ तिजनकमिदमिति सामान्यतो fra तज aa सामान्यतस्ताद्‌ नियते क्लं aay वेति विगरेषतः संशयेऽपि TeV: कश्मेलातिरिक्याणेतदग्पदाथ॑तया सामान्यतस्ल- जिख्चयस्छ विगेषतस्तादृश्रसंग्रयं परत्य विरे धिलात्‌ fiat निखयसख तुले तत्त्वे तादृ ग्रसं ग्रयद्येवासम्वान्लातिप्रषङ्ग इति भावः | ` भलु शाब्दबोधात्‌ पूरवे विगरेषतो घटवत्कश्रैल मित्या दिनिखयः कथं स्ादिक्यत श्राह, चेति fatten: कग्म॑वादौ घटादिमलनि्चय- aan, शद श्ियेणेति, वाक्यश्चाने सति वाक्यपचकानुमानेनेति पेषः, ्र्तलातुमानेनेति पू््ोक्तकरमेण कलो दि विषयक-चटादि- विशिष्टज्चामालुमामेनेत्यथेः, “वेदे लिति, श्रतुवादकलापत्येति te, . 'तज्ञिखथ इति जिलवदेतत्‌कपिश्चलपदाथेप्रतौ तिजनकमित्यादि- करमेण सामान्यतोऽबाधिता्ंकलनिखय ae, wear Te गतु तचापि जित्ववदेतत्‌कपिश्चलपदाथंप्रतौ तिजनकमिद्‌- मिति खामान्यतो frqaa हेतुत्वे तत्‌सत्वे रक्नच्छागस्िलवान्न

(५ इख्ियेणेतौव्यादिः te दन्तः पाठः we, पु्तकदये नास्ति |

प्ब्दाख्यतुरोयखण्डे श्ब्दाप्रामाणवादः | १४७

तु न्यायान्षन्निश्चयः तदथेस्य प्रमाणान्तराविषयत्वात्‌ तच nef सामग्रौभेद इति face प्रथमं श्रमाद्यभावस्याप्तत्वस्य वा नि्ेतुमश्क्यत्वात्‌ बेदस्या-

वेति संग्येऽपि शाब्दयेाधापत्निरित्यत श्राह, ‘aziafa बेदख- कपिश्नजलादिपदायेस्येत्यथेः, प्रमाणान्तरा विषयलात्‌' रकच्छागाद्य- तिरिक्े प्रमाणाविषयलात्‌ रक्रच्छागाद्यतिरिक्रऽदृष्टलादिति यावत्‌, लालपि बेदस्थकपिश्चलादिपदेम रक्च्छागाद्यतिरिक्रार्थाप्रतिपाद- नादूबेदस्य प्रतिमियतविषयवा दित्यभिमानः। ‘a तत्र श्डेति तच सामान्यतस्तादृश्मिश्चयसन्वेऽपि विशेषतस्तादृश्रश्रद्धेत्ययेः, 'खामयोभेदः' लाक-वेदसाधारणश्ान्दनाधसामगरोभेदः५९ | ‘qe’ WRC GS, WAM HATTA WA भमाद्चजन्यतलस्येति यावत्‌, शश्राप्तलस्येति कम्मला दि विषयकधयटादि- विशिष्टश्नामस्येत्ययंः, ‘fay’ wana, पुवाक्यवस्य व्भिसारि- तथा संवादिग्रटृत्यादेख श्ाष्दन्नानोत्तरकालोनतया भमाद्यजन्य- ITAA लिङ्गक्नानाभावात्‌ भरमाद्यजन्यलानुमानाभावे ATE W- विग्गिष्टन्नानवच्चरूपस्या प्रत्वस्यानुमानासम्भवात्‌ भरमद्जन्यतघरित- हेतुमेव पूरवयोक्षकमेण वक्षस्तादृ वि षिष्टश्चानस्यानुमेयला दिति भावः। ‘azafa, शमामप्रकारकश्चामस्येव प्रतिबन्धकतया चिलवदेतत्‌- पिश्जखपदाये प्रती तिजनक मिदमिति सामान्यमिश्चयसच्वेऽपि रक्ष- च्छागसख्ितवान्ञ बेति विग्रेषतः संश्यसम्भवाश्लोकवत्‌ तच्राणनायत्या

(९) लोक-वेदयोः शाब्दबोधसामम्रौमेद इति we |

१४. | तत्वचिन्तामणौ

मुवादकतापत्तेश्च | तस्मात्‌ BATIK anita अवाधिताथेकत्वं यथाधेतात्पग्थकत्वं निरस्तव्यभिषार- शङ्कत्वं अन्यदा व्यभिचारिव्याहत्तं यत््रमोत्पादकं तत्‌ स्वरूपसत्‌ asl अन्यथा arene वाश्यार्था- विगरेषतोऽबाधितार्थकल निखय्येव हेतुत्वेन वक्रव्यलादिति wa: | उपसंहरति, तस्मादिति, 'भमाद्यजन्यलमिति। यद्यप्यपि रेत्यादिना भमा्यजन्यलन्नानस्य हेतलमभ्युपगतं तचापेकदेशरिमतेन तदभि- धानान्न दोषः श्राप्नोकवमिति तत्पदायं विगेग्यक-तत्पदायपरका- रकयया्ेप्रतौतिमदुक्रलरूपं तत्पदाथेवन्त्पदा्मतोतिमदुकरलङूपं वा शआराप्नोह्ृतलमित्यथेः, “श्रबाधितेति तत्पदायैवन्तत्पदार्थप्रतीति- जनकलमित्य्ेः, ‘ants तद्िगेव्यक-तत्मकारकयया्थप्रतौतौ- ष्डथोञ्च रितलरूपं तत्पदायवत्‌तत्यदा्थ॑प्रती ती च्छयोच्चरितलषूपं वा यथाथेतात्पय्येकत्वमित्यथेः, “मिरस्तेति निरस्ता efirercmrer भमित्यजमकलश्रङ्ा यतस्तत्वमिति व्युत्पत्या भमाजगकलमित्य्ेः, तददिशेव्यक-तत्मकारक्यथाथंप्रतौ तिजनकलमिति यावत्‌, "न्यदा" दोषाभावादिकं वा, "यत्रमोत्पादकभिति चत्ममोत्पादकतया पराभिमतमित्धयः, खरूपसदिति गगनादिवदव्यवहितपूर्व॑वर्नि- माजमित्धयेः, शाब्द प्रमोत्पादकमिति ओषः श“श्न्येयेति arte त्वादि ज्चानस्य श्राब्दप्रमोत्पाद्‌ कले इत्ययः, "तादृ ग्रस्येति श्राप्तोक्रा- दिषदस्येत्ययेः, सा रिततलखमनन्धेनेति शेषः, 'वाक्यायंति तत्पदा

श्ब्दाख्यतुरौयलण्े शब्दाप्रामाण्यवादः | १४९

व्यभिचारितया ताहशपदस्मारितत्वात्‌ लिज्गादेवं संसर्गसिद्धिः स्यादिति जितं Anes: | अथं व्यव- ` हारानुमितव्यवडत्तकार्ययान्वितन्नाने ^ wafer पदानां रेतुत्वग्रहादम्वितामिधायकात्वं wat मतु लिङ्गन्नानस्य तदानी शब्दस्य लिज्जपवेनानुपस्ितेरिति

तत्रदाथव्लव्याप्यतयेत्ययेः, 'तादृश्रपरेति श्राप्तोक्रादिपरेव्ययेः, कमै- लादिकं घटादिमत्‌ खविगेव्यक-घटादिप्रकारकययायेन्नागवदुक्- uefa घटादि मत्‌ खश्चामवदु पद्‌ स्मारितलादा घटनिष्ठ- acum दि वदिल्धादिक्रमेणेति भावः संसगेसिद्धिरिति शाब्द बोधान्यूमागतिरि क्विषयकपद्‌धेंदय् सग ्चानसम्भवः स्यादिष्ययेः, wena सिद्धेरलुमितिप्रतिबन्धकल्वाभावादाप्तोक्रलादिषटकतया तत्पदार्थवक्वस्छ ya fagasta नानुमित्यनुपपन्तिरिति ara: | “जितमिति, गब्दस्यासुमानान्तगेतत्वनिर्वादादिति भावः वैे- षिकजयमखहमान श्राग्रङ्ते, “श्रयेति, ्यवदारेति घटमागये- व्या दिवाक्चाधौनप्योज्यवद्धप्रटश्यतु मितेत्यथः,.श्यव इतिति प्रयोग्य SEU घटागयनविषयकं काय्येमित्याकारककाय्येविग्रेयकश्चानेत्ययैः, "पदाना, प्रयोजकचद्धोक्रषटमामयेत्यादिपदानां, हेतुतेति बाशकख्य रेतुवग्हा दित्यः, “्रजनितेति शब्दस्य qu पदाथेदयसंषगे- massage, “जिङ्गन्नानस्यः सिक्तया शब्द ज्ञानस्य, faze

(९ ब्थवद्ारानुमितव्धवदाय्यकार्य्याज्वितक्षान दति we | ५९) खन्विताभिधायित्वमिति we |

१५० . araferatarat

चेत्‌। लिङ्राभावेनैव^^ शब्दादन्वितज्ानापपत्ते- नाकाङ्कादिमष्कब्दत्वेन कारणता गौरवात्‌ | शब्दस्य लिङ्गत्वं सम्भवद्पि बालेन न्नातमिति चेत्‌, aise बालस्य दोषा वस्तुन इत्यादि aera’ farsa” शोकवद देऽपि अरनुवादकता" स्यात्‌ | रतेन वाक्यारथ- तात्पथग्राहकानुमानात्‌ तात्पर्य्यावच्छेदकतथा तदुप-

arfafifrerenia 1 ‘arpa, बालकेन कारणतामाचख्य यरान्नापजोव्यविरोध इति aa” “लिङ्गमिति, शारितलखम्ब- न्धेनेति शेवः “सोऽयमिति भाखकेन तस्व लिङ्गवमग्टदोतमेता- तेव तस लिङ्गतया जनकताहानिरित्यथैः। “किद्यैवमिति, ‘a’? श्राप्तोक्षला दि ज्ञानस्य शाब्दघौरेतुले, बेदेऽपौति, arte- व्वादिधटकतया त्रापि तत्पदार्थं तत्पदाथंवत्वख्च प्रथमं सिद्धेरिति भावः पूरवौक्षखेवायमुपसंहार इति पौनरवं, ्राप्नोक्रलाध्मि- परायेषेदमिति पौनरहममित्यपि कचित्‌, एवश्च वैगेषिकदूषणं भ्राभाकरमत एव स्ा्ञास्ाकमित्या्येन इद्धूतमपि दूषणं पुन- शद्धरल्ञाइ “एतेनेति, 'वाक्या्थ॑तात्प्ंति प्ररटतवाक्या थेयथाये- तात्परयव्यथेः, “श्रवच्छेदकतयेति घटकतयेत्यैः, “तदु पौ विन इति

(९ लिङ्कामावादेवेति क० (९) नतु वस्तुन इति aera इति me | (₹) किख्धेवमपीति wo | (५) श्थनुवादकतिवेति we |

५) कारणमाचस्य ्रहादिति माव इति ख. To | (९) रखवश्चेधादिः खतेनेतैबन्तः पाठः we, पुस्तकद्वये नान्त |

शब्दाख्यतुरौयखण्े WTA! | १५९

जौविनोऽनुमानात्‌ Baa वाक्याथैसिद्धेन we! प्रमाणमिति" वेओेषिकमतमपास्तं यथाथतात्पय-

ययाथेतात्पर्य्यानुमानो पभो विन इत्यथः, “श्रनुमानादिति ae चटवत्‌ विे्यक-घटप्रकारकययायप्रतोतौख्छयोश्चरितपदस्नारि तलात्‌. घटवत्‌, खम्रतौतौच्छयोचरितपदे स्मा रितलादा घटद- न्तिकरशल्ादिवदित्यादिक्रमेणामुमामादिव्यथेः, शाब्दसामग्यपेच्या श्रनुमितिषामयग्या wary सिद्धेखागुमितिप्रतिबन्धकलवे माना- भावादिति भावः खातन्त्मेण' तात्पर्य्याघटकतया, ववाक्यायं- सिद्धेरिति aay शाब्दबोधात्‌ yt waa तन्तत्पदाथेव्- सिद्धेरित्यथंः, ‘mz इति णोक-बेदसाधारणं शब्द माचमिव्यथेः, "न प्रमाणमिति अ्रनसुवादक दद्यः, श्रैगोषिकमतमिति वैगरेषिकेक- देग्रिमतमित्थः, भौमां सकमये शौ किकं शष्दस्येवा नुवादकल्मेतश्नये श्रब्दमाजस्य तथालमिति मतभेदः |

केचितु meq: प्रमाणमिति लौ किकः शष्दाऽनसुवादक- इत्यथः, मोमांखकमये वक्न्नामावच्छेदकतथा तदु पजो विसंसर्गानु- मानाडा वैज Hee वाक्यार्यंसिद्धेलौ किकश्रब्दश्यानुवादकलं, एत- wa यथायंतात्पर्यया वच्छेद कतया तदु पजौ विपदाथेपक्चकसंसर्गातु-

) शब्दः एक्‌ प्रमाणान्तरमिति |

(९) खविशेष्यक-घटप्रकारकय धायप्रतौतौच्छयोचरितत्वादिति पाड उश्च -रितल्वपदस्य उच्चरितपदस्माशितित्वमचः, खन्यथा कम्मभलरूपार्य उच्च- रितत्वामावेन weqifafauay इति |

१४२ वक््वचिन्तामणौौ

ग्रहस्य वाक्याथेबोधा हेतुत्वात्‌ यत्त॒ न्नायमानकरणे इति," aa, यथाथेतात्पय्यैकषत्वादेः प्रथमं कन्नातुम- शक्धत्वेनानुमानस्य बाधितत्वात्‌ व्याश्यसिदधेख fe व्यापत्तिः शब्द्शक्ि्च" कारणं, किन्तु ag” अतौतेऽनुमितिदशनात्‌। अपमरंशादौ शक्तिसमाद्‌-

मानादया VAY प्रथमं वाक्यार्थसिद्धेलौकिकश्नब्दस्यानुवादकलमिति मतभेद TTS ` .

` बवाक्या्थेबोधेति ` तत्पदा तंत्पदार्थंवत्वन्ञानाभावेन प्रथमं सवंजाषम्भवितया ` शाष्दबोधादहेतुला दित्यर्थः "बाधितल्रादिति, ्ायमानलघरितधर्मावच्छिलशाष्दबोधकरणताश्यवरूपस्य च्नातो- पयो गिलख्छ तज्राभावादिति भावः। हेलन्तरमाह, व्याष्यसिद्धेरिति यन्द्यासुक्षषामान्यव्यातेरसिद्धेषेत्ययैः, दृष्टान्ताभावादिति भावः | मनु anfa-umita ante: सिद्धेत्यत श्राह, मरति, "कारणः अ्रलुमिति-शाब्दबोधकारणं, तथाच साध्यक्ञानोपयोगत्यच् उप- योगि - कारणतारूपतया साधनञ्च aa भास्तोति भावः। वयाकरतुमितिेतुलाभावे युक्तिमाह, “sata इति श्रतौतेन लिङ्ग नेत्य्थेः, wilt fay तज्निष्ठंयोगादिरूपव्याक्तेरतीतलो दिति भावः श्ान्दबोधा हेतुलवे युक्िमाह, “श्रपभ्वंश्ादाविति, xq

इत्वादौति ae (९) शक्षिखेति ° (९) किन्तु aah कारणमिति we |

छब्दाख्यतुरोयखद्े WMATA: | Cus

ATS सैषापयुज्यत इति साध्यं, प्रथमं तदसम्भवात्‌। तस्मात्‌ यत्‌ अर्थाव्यभिषारित्वेन चानं करणं सच व्यभिचारि वेल छण्यत्नानमुपयुज्यते अन्यथा

खमते, तन्मते शह्यसंसर्गायरदात्‌ शाब्दासंसर्गाग्रदथेव तत्र सौकारा- दिति ध्येयं “सेवेति, “एवकारः “द तिशरष्दादनन्तर mney, “साः प्रहतवाक्याचैययाथंप्रतौ तिपरता, “उपयुग्यते' ज्ञामनिष्ठशाष्दबोध- कारणएताया विषयतया श्रवच्छदिका, दत्येव साध्यं" दत्येवामुभेय- fae, हेतावपि wwe कारणतावच्डेदकशाधारणं वाच्यम्‌, तथाच साध्य-साघनविकलोदृष्टान्त इति भावः तद्‌- सभ्भवादि ति ययायंतात्पय्यैन्ञानासम्भवा दित्यः, तथाच तयाभिघामे- ऽपि बाघ एषेति भावः। श्रतुमाने . उपाधिम्याह, (तस्मादिति, "यदिति ag firerfta लचण्ध मित्यथेः, wa प्रमिताविति शेषः, 'अर्याव्यमिषारिवेम' श्र्यायमिसारिलन्नामसहकारेणए, afr, सदकारेरेति यावत्‌, ‘aw प्रमितौ, व्यभिचारिवैलक्छश्चागमिति तद्चभिचारिपैलचण्यसचैव ज्ञानमित्यथैः, वय भिचारिैलचष्छवेमाभि- धानं Beas तयैव श्ञानसुपयुज्यते इत्येव ved, तथाच भ्ानविषयतया व्याञ्चिन्नामजन्यतत्रमितिभनकतावैच्छेदकल्सुपाधिः यत्र ज्ञाननिष्टयज्‌ज्ञानकरणएतायाः( विषयतया श्रवच्छेदकलवं तज ` तजूभ्नानविषयतथा व्यािन्नानजन्यतत्रमितिजनकतावच्छेदकलं यथा

(९) Ty च्चायमानकरयताकयजन्नानकरणताया दति Ho | 20

Cas तत्वचिन्तामणौ

शब्दस्यार्थाव्यभिचारितया sae न्नापकत्वे लिङ्गताः- परेव्वज्खेपायमानत्वात्‌५। स्यादेतदनाप्तोक्ते बाधके- नार्थाभावद शनात्‌ अकाङ्कादिमदाक्छत्वेन सदर्थैकं

व्याभिरिति यत्तद्भां सामान्यतः साध्यव्यापकतायदहः परे साधना- व्यापकतायहः। शक्रिपदयोग्यताकाद्रमदौ उपमितिजनक- ज्ञामविषयेऽतिदेशवाक्याचं साध्याव्यापकलमिति area afi तात्पर््यान्यतरवरूपपचधर्मावच्छिन्नसाध्यव्यापकलादिति भावः मतु शब्दस्यापि waaay श्ायमानस्छेव शाब्टधौजनकतया पचेऽपि ज्ञानविषयतया व्यािन्नानजन्यश्ान्दघौ कारणएतावष्छेदकलसत्लात्‌ न. ae साधनाव्यापकलमित्यत we, “श्न्ययेति, wea विवरणं “श्रब्दस्येति, शश्र्थाव्यभिचारितयाः बयाप्यतया, ‘aaa’ श्रतुभव- sana, “लिक्गतापन्तेः अनुमानान्तगंतलापन्तेः अनुमितिभिन्न- स्ाविषयकातुभवकरत्वाभावापत्तेरिति यावत्‌ श्रनाप्तोक्ष इति लकरणकपाकाद्यभिप्रायमाचप्रयुक्तं ललेन सिद्चतौत्यादौ वाक्ये Tah, ‘aria सेकविगरेव्क-जलकरणकलप्रकारक शान्दबद्धि- HARMAN ATTY, खा सामयो तात्पथयैयदषूपा प्रकरण- विगरेषद्टपा वा(२. दत्यन्यदेतत्‌ “्र्याभावदशनादि ति नलकरण-

(४) वच्यते पायितत्वादिति we |

Q) तात्पग्धेग्राहकरूपा प्रकरयरूपा वेति °-पुस्तकपाठः परन्त्वयं समो चौनः- प्रकरणस्य AMARA तात्पय्यादक-प्रकर्णयो- भंदासम्भवात्‌ विकल्पानुपपत्तेः .

WTA शब्धाप्रामाण्यवादः | , ९५५

बाधिताथैकं वेति संशयान्ने तावन्माबादथेनिश्चेयः, a fe संशायकमेव fama,” इत्यधिकमपेक्षणौय-

कलचल्सेका दिप्रतौतिननकलाभावर्‌्र॑ना SA, “श्राकाङ्कग रीति, “शाकादि मदाक्यतेमः को टिदयषहचरितलेम गरोतोयोधरम- wana: “श्राकाङ्खगरौत्या दिषदरात्‌ योम्यतायाः₹ श्रासन्ते्च परिग्रहः “खदथ॑कमिति नजलकरणएकलवत्ेकप्रत तिननकं argu attest वेत्या दिस्य शाब्दबो धात्पूवे way सम्भवादित्यथेः, "तावन््ाजादिति श्राकाङ्खादिमल्वन्नानमाचादित्यथेः, “श्रयेनिखयः शाब्दबोधः, “सं्रायकमेवेति“ याद्यसंग्रयवि शिष्टज्नानमेवेत्ययेः, ददं वाक्यं जलकरणकल्ववत्छेकप्रतिपदकं वेत्यादिसं्रयस्छेव्‌ धर्मिणि सेकादिप्रतिपादकलनिश्चयसत्रेन सेकादौ जलकरणएकला दिसंश्य- पय्यैवसन्नतया प्ाद्यषंश्यलादिति भावः। इत्यधिकमपेचणोय- मितौति तादृगरसंग्यप्रतिबन्धोत्छारणाय जलकरणएकला दि मल्छेकादि- प्रतौ तिननकत्वरूपाबाधितायेकलनिखयरूपमतिरिक्रं .कारणन्तर- मव्ठमपेचणोयमित्यथः, तयाचागमुवादकः शब्द्‌ दति भावः। श्रयेवं सति aa dnat टत्स्तचानुवादकलं स्यादिति दूषणे सत्येव

(५ संश्चायक खव निचखायक इति we |

(९) काटि डयसहचरितत्वेन एत घम्भवत्वेभेत्य्ं दति Go, Teo | (१) amatarqazaeurar याग्यताया इति Re |

७) simran TIAA ` `

cad तत्चचिन्तामणौ.

मिति Wi अधेसंशयस्य तद्‌ बाधसंशयस्य वा प्रमाखाप्रतिबन्धकत्वात्‌५। वहि-तदाधयोः संशयेऽपि प्रत्यक्षानुमानादिना अथेनिश्चयात्‌ अन्यथा प्रमाण-

Tas Tay ° विनाप्य्थं माचोच्छेदः, तत्‌पूव्वमथे-तद्‌बाधसं यात्‌ | विनाण्यथं

संश्रयस्येव प्रतिबन्धकत्वमष्मान श्राह, “MUNI सेको जल- करण्कत्ववान्न वेत्था दिगराद्संग्रयस्येत्यथः, 'तद्वाधषं श्रय्येव्यादि Bat जलकरणकत्वाभाववानन बेव्यादियाद्याभावंग्रयस्ेत्यथेः, प्रकारभेदाच संग्रययोर्भदः, भ्रमाणेति तजिखयाप्रतिबन्धकल्ा दित्यः, भरत्या नुमाना दिभेति आदिपदाच्छ्दो द्षंस्कारपरिग्ः, ‘au निखथा- दिति व्छिनिश्चयादिव्ययैः, “श्रन्यया' ग्राह्य-तदभावयोः संश्यस्यापि निश्वयप्रतिबन्धकले, वद्कि-तदाधयोः संश्यदश्रायामिति शेषः, ्रमाणमाजेति प्रमाएमाजेणेव वदङ्धिनिखयानुत्पत्तिप्रसङ्ग इत्यर्थः, "अथं-तदासेति वद्धि-तद्ाधयोः dwere प्रतिबन्धकस्य सत्वादि- त्यर्थः नतु वपिपरौतन्नान-विशिष्टबद्योः केन रूपेण प्रतिबध्य- प्रतिबन्धकभाव इति Yea साम्मदायिकाः श्रटदौताप्रामाण्क- तद्धषेधमितावच्छेदककतदभावनिख्चयतेन प्रतिबन्धकता age दोष- विग्रेषाजन्यश्ाब्दान्यतक्ञौ किकप्रत्यनिश्यान्याहाय्यप्रत्यचेतरतद्धर्मष- मितावच्छेदककतद्‌ विगिष्टबद्धिवेन प्रतिबध्यता, सन्दिग्धाप्रामाष्छ- we निदिताप्रामाण्छकख्छ वा तदभावभिखथब्य सत्वेऽपि तदिगिष्ट-

(९) प्रमाणापरर्पिख्ित्वादिति we |

प््दाख्यतुरौ यखद्े श्ब्दापामाख्छवादः। १५०.

बद्युदयादग्हौताप्रामाश्केति, संश्योक्तरलौ किकप्र्य्ष्य सं्- योत्तरोपमिति-संग्यकालौनपरामशोव्यवहितोक्तरकालौनामुमित्योः धारावारिकमंशयद्छ सम्पादनाय WHAT श्चानलमपद्ाय गुरोरपि ` faquaw प्रवेशः चेवं dnarad विनापि विगरेवदभनं प्रात्य- किकनिखयापत्निरिति are विगेषदभेनं विना संश्यात्मकविशे- षणश्चान्‌ा दिरूपक्षारिइयविशिष्टधौसाममौसत्तेन केारिदयविशिष्ट- बद्धेरेवेत्पादान्न निखयसन्मवः(९ faiait चेककाटिविशिष्ट- बृद्धिप्रतिबन्धादथेवशसिद्धामिश्चय दूति। चेवं विगरेषदभेनो- त्त्तिखमय एव प्रात्यचिकनिश्चयापत्तिः परतिगन्धकाभावख काय्यै सदवज्तितया हेतुलेन तदानोमणुभयके रिवििष्टबुद्यसन्भवादिति९ वाच्यम्‌ | तद्‌ानोमेव प्रात्यकिकनिखयस्याग्यपगमात्‌ शणविशम्नस्य श्रपथमिरंयलात्‌ तथापि पवता वज्यभाववानिल्यादिभमा- कर वञ्िवयायपूमवाभित्या दिविगरषदर्ने सति) कथं पवता बह्ि- मानित्याद्यलौ किकप्रत्यक्षमिति वाच्यं विशरेषद शेना त्यन्निद शायां)

(९) केटिदयषिशिदबुद्धेरेवेत्पादात्‌ गिचखयासम्भवादिति ° |

(९) aquafeat निखय दइतोति we, ग° |

(९) तथाच विशेषद णं नोत्पत्तिप्राकच्तणे वि रषद णं गरूपप्रतिबन्धकामावस्य arse तदुत्पत्तिच्तणे anagem काय्यैकालव्तिगो विग्ेष- दशंबाभावरूपकारणंस्य are. येम केटिदइयविशिरबुदिः सम्भवतौति मावः |

(४) बद्यवष्छेदक्े भूतधर्ममा दिद शने सतोति खर, me |

(४) च्धवच्छदकभूतधम्भद गोत्पत्तिदश्चायामिति Ge, ° |

१६५८ तस्वचिन्तामणौ

वश्यभावभमेऽपरामाण्न्नागादयात्‌ तदानोमप्रामाणश्चानाभावे तु विग्रेषदग्रेनेन(९ वज्यभावभ्रममाश va) quest afisnae- ` भ्युपगमात्‌ चणविलन्नस्या किरित्करलात्‌ mgt Aa इति fre सत्यपि पित्तात्मकदोषवश्रात्‌ शङ्खः Ta इत्यलौकिक- wae वंभोनारग इति निश्चयेऽपि acetic” इयन्दिक्‌ भा्तोति भिखयेऽपि दइयन्दिक्‌ पराचोत्यलौ fanaa” लातुभवसिद्धलात्‌ प्रतिबध्यतावच्छेदककोरौी टोाषविग्रेषाजन्येति, भ्रमसामान्यजनकदेषवारणाय विरेषपदं, aq भममाचख्येवा- प्रतिबध्यलापन्तेः। सुखं ox दत्यादिषाधिताथंकरूपकादौ बाधनि- खयेऽप्याहाय्येयोग्यताधमाद्‌ भेदानवयनोधादेरतुभवचिद्धाच्छाब्दा- ` नयेति, वद्धिना सिश्चतौत्यादौ बाधनिश्चयदग्रायां शब्दबुद्याभावसख | तत्पदार्थं तत्पदाथंवत्वरूपयोग्यताज्ञान विरहात्‌, श्राहाय्येयेग्यता- WR बाधनिख्चयेऽपि रूपकादिवन्तचापि गाम्दगोधेष्टात्‌ | बाघनिद्येऽपाशाय्यैलौ किंकप्रत्यचोदयादा हाय्यप्रत्यकेतरेति, श्राहा- qagq खसमानाधिकरणए-त दि ग्िष्टप्रत्यरत्व-तदिशििष्टालुभवत्प्रका- रकेच्छाव्यवहितोत्तरवल्तितं तदिश्िष्टानुभवोजायतान्तदि शिष्ज्नानं लायतामिल्यादौच्छासत्वेऽपि बाधबद्भिसत्ने श्रतुमिति-खूपत्या्चयतु-

(९) ्धप्रामाण्रन्चानामावे fart अवच्छेदकेभूतधम्म॑दशं नेनेत्ययं पाठः , खर, He एखकदये भवितु युक्तः |

(९) वद्धमावभ्नमनाग्रेत्तरमिति qe |

(®) मण्छकवसान्ननवग्रादिव्यादिः

(४) दिगभमरूपदाषवशादि्यादिः।

श्ब्दाख्यतुरौयखणे शब्दाप्रामाण्वाद्‌ः | १५९.

दयात्मत्यच्चपदं, frgquae गरतया बाधनिख्योन्तर संश्रयापादक- तया तदपहाय सामान्यतोबुद्धिलप्रवेश्ः, श्रन्धकारे चटाभाव- निश्चयोत्तरमालोकसमवधाने विमायप्रामाश्चन्नानं चटलौ किक- प्रत्यस्य HER गन्धाभावनिश्चयोत्तरं विनाप्यप्रामाश्छन्नानं तैल- संयोगे गन्धलौ किकप्रत्यचस्य waaay खौ किकप्रत्य्निशयं परति खमानेग्धियलन्यविपरौतलौ किकभिश्चयस्येव प्रतिबन्धकलाभ्युप- mary रो किकप्रत्यलमिखयान्येति, श्रासुमानिकादितदभावनिश्च- दृ न्दियान्तरन्यतद भावनिखयस्य तज्ञोकिकसं्रयविराधि- लात्‌ प्रतियोगिकोटौ निश्चयलप्रबेश्रः। वस्तुतस्त॒ तच तल्लौ किक- प्रत्यचचनिणेयच्छेव aaa तलौ किकसंश्यविरा धितया प्रति- यो गिकोरौ fadet प्रवेशनोयः, किन्तु awl किकप्रत्यान्यलजेव वक्यं | तज्लौ किकमरत्यचनिएंथान्यवसय aU कि कमरत्यलान्यलस् वा want चचुरादिना तदभावभिश्चयेऽपि equfen श्रनुगय- मामतदारापासुपपत्तिरिति ae) श्रहोताप्रामाष्छकतदिद्धिय- जन्यतद्भावस्लौ किक निश्चथवेम प्रतिबन्धकता टदोषविगरेषाजन्यामा- शाययति नियजन्यतदि शिष्टपरत्यचलेन प्रतिबध्यतेति प्रतिबध्य-प्रति- बन्धकभावान्तराभ्यगमात्‌ चचृषा मण्डुकवसाश्ननदोषवश्राद्‌र- गलाभावाभावलौ किकप्रत्यचात्मकथमेऽपि त्चोर गल्वाभावप्रत्यशष्य, agar दपैणादौ सुखाद्यभावाभावलौ किकप्रत्यचात्मकभ्रमेऽपि त्वचा दर्पणादौ सुखा्यभावगपरत्यक्सय, श्रन्धकारे तचा चटाभावादिशौ किक- प्रत्यकनिश्चयेऽपि - श्रालोकसमवधाने विमाणप्रामाण्छन्नानं चट- सौ किकम्रत्यचस्य चानुभवाक्दि द्धियजन्येति प्रतिवध्य-प्रतित्रन्धकता-

१९० तत्वचिन्तामयै

वच्छेदकयोर्विशेषफं, तज तन्तदिङ्ियादिणन्यतावच्छेदकवाषषता- दिपरिचायकं। देवं ae घटाभावलौ किकनिखयेऽपि शचुषा चटादिविगशिष्टलौ किकप्रत्यच्वापत्तिरिति वाच्यम्‌ cea, एव- मासुमाजिकादितदभावनिखयेऽपि तदिशभिष्टलौ किकप्रत्यचसेष्टलात्‌ समानेद्धियजन्यो पनोतभानात्मकतदभावनिखयेऽपि तदिगिष्टलौकि- areca प्रतिबन्धकतावच्छेदके सलौ किकेति, प्रतिबध्यतावच्छ- दके तत्‌ निवेश्रनोयं प्रयोजनाभावात्‌, डपनोतभानं प्रत्यपि अधिकन्विति न्यायात्‌ खमनेदखियलन्यतदभावलौ किकनिखयब्यापि अतिबन्धकलयात्‌, weet श्रङ्कोम पोतः अयं मोरग इति लौकिक- परत्यच्चनिखयेऽपि तत्मानकालोत्पन्नात्‌ तदुत्तरोत्पन्नादया पित्त | mg: पौतः wage इति चाचुष

are स्फटिकोन दति चाचुषलौ किकमिशचयेऽपि तत्षमान- काणोत्पन्नात्‌ ALAA जवाङुखमखान्िध्यात्मकदोषाद्रक्तः स्फटिक इति were चोदथादोषविग्ेषाणन्येति, wee पूर्ववत्‌ एवमेव तदभावव्याप्यवत्वादिभिख्चय-तद्धिशिष्टबुद्योरपि प्रति- अध्य-प्रतिबन्धकमभावोगोध्य TNS! तदसत्‌ श्राहाय्यप्रल्यकेतर- तदिश्िष्टबुद्धिलस्य प्रतिबध्यतावच्छेदकत्े तदि शिष्टप्रत्य जायता- मित्यादीच्छा विरद श्रायां बाधनिञ्चयसत्वे श्रा हाय्प्रत्यचेतरतदि- जिष्ट्‌ डरषम्भवेऽथा हाय्यप्रत्यखाताकतदिगिष्टबुद्धिभखकेदुरवारलनात्‌ |

चाहायैप्रत्यख प्रति तन्तदिच्छानां विगरेषतो हेतुलान्तदभावादेव तदानों नाहय्ये्रत्यक्षोदय इति वाच्यं अमन्तकाय्य-कारणएभाव- कल्यनापन्तेः \ एवं तदि िष्टपरत्यं जायतामित्यारोख्डासल्े बाध-

प्म्दास्यतुरौ यख्े श्म्दाप्ामाख्रवादः | १९९

BRI शाहाय्यप्र्येतरतदि गिष्ठमुद्धिवारणाधामाहायंपरयकं प्रति तदिच्छछाभावानां विगरेषतोदेतुतापसेखेति०। चारा्थप्रत्यसे- तरतव प्रतिवध्यतादश्छेदके निवेश्रभोयमपि तु anfkPrena नायां तत्षदिशिष्टातुभवोनायताभिनोच्छाविरदस्योकतेनकलवसुपेष- मिति षाश्यं तदिशिष्टप्रल्यच्नायतामितौच्छासम्वे बाधनिश्थयस प्ेऽप्यशुमिति-खत्याधापन्तेः |

केदिष् श्रग्टहोताप्रामाण्यकतदभावनिश्चयतयेन प्रतिषन्धकतां भरत्यश-शाष्दान्यतदि शिष्टुद्धिषेन प्रतिबध्यतेति सपरत्यनुमितिषाभा- wall एकः प्रतिबश्य-प्रतिबन्धकमभावः, rere प्रति तु तदिषिष्ठ- WTS LSAT CMT ATU La fT EAH TATRA SATA यत्वेन प्रतिबन्धकता तर्‌ रोषविगरेषानन्य-तल्लो किकप्रत्यशनिखु- धान्य-तदिगिष्टप्रत्य्चवेम प्रतिबध्यतेति शौ किकालौ गिक्र्रयोप- नोतभागसाधारणएः(र एकः, अपर तदि ्रिष्टमत्यचलादिप्रकारके- च्छा विरदकूटविथिष्टाग्टरोताप्रम घकतदि दियजन्यलौ किकतदभा- ` afaqaaa®) प्रतिबन्धकता agi दोषविभेषाजन्यतदिदियजन्यत- दिभिष्टलो किकप्रत्य लेन प्रतिबध्यतेति खौ किकमत्यवमाजशाधारण-

(९) तदिष्छछाभावार्नां हेतुत्वापन्तेखेति we, ° | (९) स्मत्नुमिन्युपमितिमाच्रसाधारुण इति ° | ®) लौकिकालौकिकसं्रयोपगौतमागोमयसाधारय इति we, लौकिक लौकिकसंश्योपनौतमानप्रयक्षमाचसाधार इति “) खगशएहोताप्रामाण्यकतदिशिशटप्रवच्चतवादिप्रकारकेच्छाषिरुइक्ट वि~ ` शिर्तदिन्ियजन्यलौ किकतदमावनिखयत्वेनेति Bo, गम ।. 21 |

पदर ` 7 तक्चचिन्तामणै

दति प्रतिबध्य-प्रतिबन्धकभावजयं, एवमेव तदभावयाणवल्वादि- निखय-तदिशिष्टबुद्योरपोति प्राः |

AWAY सम््मदायमतमेव रमणीयं तदि शिष्टप्रत्यच्चलादिप्रकारके- च्छाविरहकूटानां परस्पर विगरेषए-विगरव्यभावे विनिगमनाभावादड- तरकायै-कारणएभावावश्वकतया^९) तदपेच्छाष्यवडितोन्तरवन्तिवसम्न- ज्येन तादुशतादृरेच्छावत्रत्यचलावच्छिन्ं प्रति तादु श्रतादुशेच्छानां warren प्रति तादृ शताद्गेच्छाभावानाश्च quae लघौ - यच्छत्‌? तादृशरेच्छाविरइकूटानां विग्रेषण-विशव्यभाव- भेदेन प्रतिय गितावच्डेद कमेदेऽपि शमगियततया अभावस्येकला- स्ागगतकायै-कारणभाव cf are) marae धर्मिण एकले- ऽपि प्रतियोगितावच्छेदकभेदेनग तन्तक्रतियोगितावच्छेदकघरित- धमीण्णां विनिगमनाविरडेण कारणतावच्छेदकौग्डतानां नानालान्ञा-

(९) तत्तदिष्छाविरकरूटत्वेन तस्षदिष्डाविरुहकूटस्य कारयातावच्छे- दकातवसम्भवे विशरषण-विरम्यभावे विनिगमनाविरहात्‌ कथं कार्य कारयभावानन्त्यसिति वाच्यं रककारणपरिगेषापत्तिभिया ar- सल्यङ्त्तिकारणतावच्छेदकत्वागद्गीकारेख Fear तत्तदिष्डछाविर्- कूटस्य कारणताबच्छेदकत्वासम्भवात्‌ |

(९) agquagimaqurgquatwed प्रति agua हेतु- त्वस्यैव लघौयस्वमिति we |

® तथाच तदिच्छाविर्ड विणिापरेच्छाविरुहविणिद्तदमभावनिश्चयत्वा- वश्छिन्नाभावस्य परेच्छछाविरुह विशिशटतदिष्छाविरु् विथिर्तदभाव-

` निखयत्वावच्छत्रामावसमनियतत्वेन खमिन्रतया कारणबङत्वमिति मावः .

प्ब्दाख्यतुरौय खणे शब्दाप्रामाण्छवादः | ada

ARTA ATT UAT दुर्वारलात्‌७। agin agura- व्यकर्देतुलं तु प्रतियो मितावच्छेदकाां कारणतावच्डेद केऽमार्भाव- इति avez) श्रभावस्य agfhaa -हेतुलेऽपसिद्धान्सात्‌ प्रतियो- गितावच्छेदकप्रतियोगिघटितध््नणेवाभावख्य हेतुतमियमादन्यथा MAMMA GHIA Sieg डेतुवमपेच्छ wT मिश्धिताप्रामाश्यकव्यभिचारज्ञानाकाङ्खुण दिव्यतिरेकश्चानाभावस्य?) ` हेतुतायां गौ रवाभिधानश्यासङ्गतलापन्तेरिति |

उच्छुङ्कनलाग्ठ तलौ किकप्रत्यलान्यतं॑प्रतिबध्यतावच्छेदके भिवेग्रमौयमपि तु लौ किकालौ किकप्त्यक्चसाधारणए विशिष्टबुद्धिल- Vana” प्रतिबध्यतावच्छेदकं area) चेवसुपनोतभानानुमि- त्याद्यात्मकतदभावनिश्चयसत््ने ग्दियान्तरजन्यलो किकतदभावनिख- यसच्ेऽपि तद्विशिष्टलौ किकप्रत्यचं स्यादिति are) श्रसत्य- प्रामाण्यन्नाने तदानौं तदनुत्पादस्ेष्टलात्‌ तथाच साग्मदाथिक-

(९) तथाच कार्गौभूतस्यामावस्य रकत्वेऽपि- कारणतावच्छेदकौ भूतानां तत्तदिष्छाविरहाणं मध्ये णकस्य कारगतावच्छेदकतवं अपरस्य कार- णतावच्छेद कतावच्छेदकतवं cat विनिगमनाभावेन कारणबद्ुत्वमिषि मावः |

` (९) ऋनिख्िताप्रामाण्यकव्यभिचारक्ञानामावस्य अनिख्िताप्रामाख्यकाका- ङदिवथतिरेकच्चानाभावस्य Farr, सन्दिग्धाप्रामाणकब्थभिचार- निखयस्य व्थभिचारसंग्रयपग्येवसन्नतया तादृग्रनिखयदण्रायां ्वनु- मितिवास्णाय ्पणटङौताप्रामाखक्षत्वमपदाय खभिखिताप्रामाणक- त्वविेषणसुक्कषमिति |

लौकिकालोकिकसाधारयद्छानत्वमेवेति Be, Te |

६९१ `, ~ वप्वचिन्तामणौ

| anreafaa एकएव प्रतिबष्य-प्रतिबन्धकभावः, THR ets RT प्रतिबध्य -रतिबन्धकभावदयं खौ किकप्रव्यचं प्रति एवक्‌- प्रतिवच्छ-प्रतिबन्धकभावकस्यनात्‌, एवं ग्राब्दान्यतमपि प्रतिबध्य तावच्डेदके नं भिवेशनोयमपि तु लाधवाच्छान्टधोषाधारणमेव प्रतिब्ष्यतावल्केदकसुपेय सुखं wx इत्धादिबाधितार्यंकशूपकादौ तु मुखादिषु च्कराद्यभेदाग्वयबोधः किन्तु wee wxey- mat Wawa तदभेदादेरेव सखादौ बोध इत्यभ्युपगमात्‌ | चेवं cham wea मानाभावः afar बिद्वतो- व्यादौ बाधनिखयस्छ प्रतिबन्धकलादेव श्राष्दबो धाभावोपपन्तेरिति वाश्यं। तद्धेतुलाभावस्ेष्टलात्‌, बाधमिञ्चयस्य प्रतिबध्यतावष्डेदके प्राष्डान्यलं प्रवेश्य ` शाब्दबोधं प्रति योग्यताश्चानरूपकारणान्नर- MITT Waray प्रचालना दकौ तिन्याथात्‌(* इत्याहः | शपाथथास्तु परवेतोवश्यभाववानित्यादिथमोश्र वद्धियाणधूम- armada इत्या दि विशरेषदभेने सति विनापि वज्यभावथमेऽप्रामाष्- ज्ञानं उतोयच्ण एव पवैतोवद्किमा जितिप्रत्यचष्यासुभवसिद्धलात्‌ waa बेतिसंश्योन्तरं विग्रेषदभेमा्यिमच्षण एवायं श्चातुरिति ` ्राल्यकिकनिखयो त्‌ विशेषद परनाुत्पन्तिखमये इत्यस्लाणतुभव- fagara सशय-निखयधाधारणं विगरेषदभैनायमावविभिष्टानिि- ताप्रामाच्छकतदभावन्नानलमेव प्रतिबन्धकनावष्डेदकं तु केवल मग्टहोताप्रामाष्णकतदभावनिखचयत्वं चतस्य प्रतिवध्यतावच्छेदवं afe तदपे दोषविगरेषाजन्य-शाब्दान्य-तज्ञौ किकप्रत्यचनिखयान्या-.

(४ परक्ठालनाडि पछ दृ रादस्यशरनं वरमिति न्धायारिबर्धः।

.

WIAA WGA | १६५

हाय्येमत्यचेतरतदिशिष्टबुद्धिलं तदा संग्योत्तरमपि श्रयो ara संश्रयोक्रमुपमितिः खतिख स्यात्‌ बाधगिखयोश्नरमष्यनुमितिः er” परामूर्ात्मकविग्रेषद शंनषत्वादिति वाच्यं ade दोष- विगरेवाजन्य-तक्लौकिकप्रतधचान्यारहाय्परसेतरतदि गिष्टत्य्निखथ - त्वस्य ॒प्रतिबध्यतावच्डेदकलात्‌ रेवमपि बाधनिखथोष्तरमपि संग्रथापजिर्वाधनिखयो करं ररत्यसुमित्थापक्तिखेति९ वाच्यं श्रन्ठहौताप्रामाण्यकतदभावनिखयत्ेम प्रतिबन्धकता age दोष विगेवाणन्य-्राग्रान्य-तपमत्यचनिखचयान्याना हाखत दि शिषटव दिनेन 7 परतिबध्यतेति लौ किकाशौ किकसंय-सत्यतुमित्युपमितिषाधारण- प्रतिबध्य-प्रतिबन्धकभावान्तराभ्यपगमात्‌, अच विगेषद शेनादेभौ- vias, दोषविगरेषन्यसंग्रयव्युदासाय दोषविगेषाजन्येति, श्राहा- Maya aa, लौकिकप्रत्यकं प्रति विगेषदर्भना- अभावविभिष्टामिशिताप्रामाण्छक-तदि नरियजन्य-तदभावशौकिकवि- शिष्टज्चानलवेन प्रतिबन्धकता दोषविगेषाजन्यामाहाय्यैतदिशिय- जन्यतदि गिष्टलौ किकप्रत्य्निख्चयतेम प्रतिबध्यतेति प्रतिबध्य-प्रति- बन्धकभावषयमित्याङः। तदसत्‌। चघशेकविशम्बस्यादोषतया भरम- सं्रयोसरप्रत्यचखले चशेकापलापादेव शवौपपत्तौ प्रतिवध्य-परति- बन्धकभावच्रयकल्पमस्यान्याय्यलात्‌ विगरेषदगेमाद्यभाववि शिष्टवस प्रतिबन्धकतावच्छेदककोरिम्रवेे गौरवाच्च

(९) बाधनिखयोत्तरमप्यमुमित्यापत्तिच्वेति we, ° | (९ उु्यपमिन्ाप्षिरिति खर» खु्र्नुभिन्युपमित्यापत्तिखेति Te |

९९९. वत्वधिन्तामणौ

मिश्रास्त श्राहाय्यादिप्रत्यच्चवत्‌ प्रत्यचनिखयमाज प्रत्येव तदभाव- निखयस्तदभावसंश्यख्च विरोधो अतएव पवंतोवज्यभाववानि- त्यादिष्मोन्तरं विशेषदर्शने सति विनाणप्रामाण्यन्नानं दतोयच्षणे एव पवतो बवद्धिमानिव्यादिप्रत्यचनिखयोनारुपपनलः, एवश्च श्रगरडोता- प्रामाश्छकतदभावनिखयतमेन प्रतिबन्धकता तदं ग्रे दोषविग्रेषालन्यः श्ाब्दान्य त््रत्यचनिखयान्याहाप्रत्यकचेतरतदि शिष्टबुद्धित्ेन प्रति बध्यतेत्येक एव विपरोतन्नान-विशिष्टवुद्योः प्रतिबध्य-प्रतिबन्धकभावः। म्‌ चेवं तदभावनिश्योन्तरं विनापि विगशेषद शनं तदवि शिष्टप्रत्यलनिख- arty: तदभावसंश्योत्तर विग्रेषदशेनोत्यल्िषमय एव तदिगिष्ट- प्रत्य्निख्यापन्तिद्ेति वाच्यं aw किकपरत्यवनिखयान्याग्टरौतापरा- माखक-तदिपरोतश्नानाव्यवदहितोन्तरतत्प्रत्यचमिखयतवावच्डिननं प्रति तद्िपरौतश्चानविरोधिल्वेन विशरेषद भेनादे तलात्‌ श्रातुमाभिकादि- तदभावमिख्चयोन्तरं तदिष्धियान्तरजन्यतदभावलो किकप्रत्यरोन्तरच विमापि विगरेषदभेनादिकं तक्लौ किंकनिखुयोदयात्‌ त्तौ frase - निश्चयान्येति anaefaqafared चैवं समाने दियजन्य- तदभावष्ौकिंकम्रत्यचोत्तरमपि विना विगरेषद शनं तक्तिकिकम्रत्यच- निश्चयापन्तिरिति वाच्यं तदिग्वियलन्यतद्विपरोतलौ किकप्रत्यवा- व्यवदहितोत्तरतदिद्ियजन्यतक्ञौ किकपरत्यच्निखयतावण्डिक्नं प्रत्यपि तदिपरौतन्ञा नविरोधिलेम विशेषदभेनादेरेतलकल्यमात्‌, श्रव्यवडि- arg” अभयनेवोत्पन्ति्चणसाधारणं तेन॒ विपरौतनिखय-

नि (र) ख्ोत्पत्तिच्तयसाधारणं खाब्वद्ितोत्तरत्वश्च खध्वंसाधिकश्यसमय- ध्वं सागधिक्करणत्वे सति खप्रागभावामधिक्षरगत्वभिति।

श्ब्दाख्यतुरीयखखे शब्दाप्रामाण्वादः | ° १९६७

तदि शिष्टपरत्यचनिख्चययोनं युगपदुक्प्निरित्थाङः | तदत्यन्तमसत्‌ विशरेषदशेनं विमा भ्रमसंश्योत्तर विपरोतश्नानो्तरतन्मत्यकनिख्च- यानुत्पादेऽपि तत्मत्यचनिखयखामान्योत्यत्यापत्तेः 0 तदिपरौरशचानं विना केवशविगरेषादशेमादिदश्ायामपि तदिपरौ तन्नानोत्षरतप्त्यच जिश्चयापक्तेष्च श्रय तदिपरोतन्नामानुत्तरतत्प्रत्यचनिख्चयलावच्छिन्नं प्रति तदभावन्नानलेन प्रतिबन्धकत्वं वाश्यमतोनाधोदोषः, तदिप- रोतज्नागोन्तरतम््रव्य्चनिखयल्वावच्छिन्नं प्रति तदिपरोतन्नानलेनापि हेतुलाभ्यपगमान्न दितौयोऽपौति चेत्‌, काग्े-कारणएभाववाङद्या- दुपाध्यायमतापेचयापि AVR श्रय तदिपरौतज्नानारुत्तर- तत्मत्यचनिश्चयतावख्छिन्नं प्रति तदभावन्नामलेन प्रतिबन्धकत्वादेव नाद्यो दोषः, वा दितौयो दोषः विशेषदभेनस्य हि तददिपरोत- Watauga a काय्येतावच्छेदकमपि तु तदिपरैत- `. श्ानविरोधिमप्मत्यचतवं मलथंखायवहितोत्तरलं तश्च केवलविगरेष- दशंनदग्रायां जायत एवेति। तदिपरौतन्नानानुन्रम्रत्यच- frquarafeas . प्रति तदभावश्ञानलेन प्रतिबन्धके सति तद- भावनिश्चये विगेषदशेमादिकं विनापि विपरोतन्नानोन्तरप्रत्यव्ा- पक्तिरिति वाच्यं) विपरौतज्ञानविरोधिमत्मत्यचा तिरिक्षखय विप- रोतन्नामोत्तरमरत्यदष्यालो कतया विगेषद शेनात्मकविपरौतश्नान- विरोधिमोऽभावादेव ay तदनुत्पादादिति चेत्‌, एवममिधाने काय्ये-कारणभाववाड्याभावेऽपि श्रव्यवदितो तरला दिप्रवगरेन उपा-

(९ सामान्यसामग्मोसक्वादिति शेषः |

१६८ वस्चचिन्तामयौ

वाक्परषमा सम्भवत्धत रतस्यायमरथो A वा, रतत्सदथैकं

ध्यायापेषया काय्यैतावच्छेदकगौरवस्छ Facey’) | किच्च ग्धा QUANTA दिदशैनसाधारणख्च तदिपरोतश्चागविरोधिता- वच्छेद कल्वेकष्याभावात्तदिपरौतन्नानविरोधिलमण्यनसु | अपि कुकुमादौ गन्धाद्चभावलौकिकथमो ्षरं॑तेखादिसंयोगे विनापि वयाप्यद्ेनादिरूपतद्विपरौतश्चानयिरोधिनं गन्धादिखशौ fran निखयोदवाद्मभिवारः तथ तिलादिसंयोग एव विपरीत- श्ानविरोध्यख्लोति arti we तदिराधिते मानाभावात्‌ तजाप्रामाश्छश्नामानभ्युपगमे चणेकापलापारेवोपपल्तिरिति चेत्‌, किमेतावल्कुरष्या वश्यभावभ्रमादिखखलेऽपि. तथा ay ग्रष्वला- दिति aga: |

मसु वयमुक्कयंगयय्व परतिबन्धकलं ब्रूमः किनतक्षसामयो नाथ frarfaat संग्रयसामयोलादितव्य्र परिहारान्तरमाह, “विनापौति, TING भवतु यराद्मसंग्यः मतिबन्धकस्तथापि कतिरित्यभ्यपगम- area समाधानान्तरमाह, “विमापौति, “wei? जलकरणकलव्से- कादिक, “वाक्यरचना खम्मवति' आ्रकाङ्घादिमदाच्यप्रयोगो भवति, ` शखकरणकलवत्सेकाश्प्रतिपादकमप्याकाङ्कादिमदाक्यमस्तौति चावत्‌,

एतेनाकाञ्जगदि मदाक्यत्वं ताद्‌ श्वाक्यजन्यज्ञानलद्च साधारणधमे- इति दर्जितं, जलेन सिञ्चतीत्थादिवाक्धप्रयो गविषयोऽपि चेकादि- कमस्तोति शेषः, तेन प्रतिपाश्चलकारिकसंश्रये सेकलादिरूपसाधा- Tae, “श्रत इति, भ्राकाङ्खुगदिमदाक्यलरूपसमानधमेदध-

(९ agate दुर्वा रएत्वादिब्न्तः पाठः ° पुस्तके मालि |

WRIST SS ्॒ब्दाप्रामाख्वादः। १९१९

वा, Varma Viera तेति संशयस्या्था-

मादिति शेषः, श्रवमिति, ‘ure’ areqe, ‘wd: प्रतिपाद्यः; "श्रयं a नलकरणकत्ववल्छेकादिमे Fae, तादावयसम्बन्धेन जलकरणकलववत्सेकादिको रिरिति भावः। |

केचिक्ु “श्रयः नलकरणकलव्पेका दिः, ‘Ue वाक, ‘aa? ufamet a Rah, cas: | तदसत्‌ एतस्य सेके MARCUS सन्देदरूपलेऽपषिद्धान्तात्‌ धरमितावच्छेदकागे सं याकारसंशयानश्युपगमात्‌ तदंगे निशया कारले ग्राह्यसंश्थला- रुपपन्ेरिति ध्येयं |

"एतदिति wile जलकरएकतवत्सेका दिप्रतौ तिजनैकवं वेत्य, दिषयकमिति जलकर एकवव्सेकारि विषयकं वेत्यर्थः, | ‘quaata, राद्यं ग्यपय्येवसन्नस्येति ` शेषः, wufafe सेकल- सेकिषयकलयोर्मिखयसत्रेन = प्रतिपा्यधभ्िकसंग्रय-ज्ञागधविक- संश्रययोरपि सेके भणकरणएकलसन्दे इपय्यैवसन्नलारिति भावः | “शर्थावगमेति शाग्दबुद्धेदक्तरकाल एव॒ सम्भवाचेत्य्थः, तथाच meres fa’) पक्तितायेः, संप्रयस्योपनोतभाना- MHA तदपेशया Wega बशवस्वा दन्यया स्वैभोपमोत- waa TARAS द्‌ रंभलापत्तेरिति भावः।

fang श्र्थावगमेति शाम्दबोधपूवं सेकादौ जलकरणकला-

(९) श्राम्दबो धात्‌ tear संश्रयसांमग्यसम्भवादितौति we 22

१७० वत्वचिन्तामयौ

वगमेत्तरकालौनत्वाश्च तस्मादात्तोक्तत्वं भमाथ- जन्धत्वं अबाधिताधथकत्वं यथाथवाक्या्थप्रतौतिपरत्वं वा wd अनुगतमपि हेतुः प्रथमं ब्रहौतुम शक्-

दिनिखयाभावेम श्ाब्दनुद्धेर्तरकाल एव सम्भवाचेत्यथः, विेषण- तावच्छेदकप्रकारकनिणेयं विना विभिष भिष्यसंग्रयासम्भवादिति भावः, TTS | तदसत्‌ छउक्रसश्थानां सेके भल्करणकल्वा शंग्रयाकारतया विशिष्ठ गिष्डज्नामानात्मकतया शाब्दबोधं विनापि खष्डशरखत्यदार्थञ्ञानारेव fara विगेषणमितिन्यायेन सम्भवात्‌ विभिष्टवेभिष्यश्चागरूपतेऽपि प्रमाणागतरणन्य-तज्नि्यसम्भवाञ्चेति दिक्‌ i

यथार्थ॑तात्पर्य्या दिज्ञागस्व श्ाष्दवोधाहेतले किं शाब्दशोे कारणमिति) प्रतिपादयितु पुनरूपसंइरति, (तस्मादिति, “राप्तो- लमिति तत्पदा्विगेग्धक-तत्पदा्थप्रकारकथयाश्ञागवदु कलसं तत्पदायेवन्तत्पदरायेन्ञागवदुक्रवरूपं वा श्ाप्तोक्रवमित्ययेः, 'अबाधि- ताचैकलमिति तत्पदाचेवन्तत्पदाथप्रतौ तिजनकलमित्यरथः, “यथा- वाक्यां ति तत्पदा विगेद्यक-तत्पदार्प्रकारकययार्धमतौतोच्छ- योचरितलङूपं तत्पदार्थेवन्त्पदार्थप्रतोतोष्छयोचखरितलरूपं वा यथाथेतात्पय्येमित्यथैः, ‘ere’ WATTLES, “WTA RTT

अर्थावगमोत्तरकालौनतवादिति ae | (९) किंकिं शाब्दकारणमितौति we |

श्ब्दाख्यतुरोवखय्े श्ब्दापामाण्यवादः | Lor

त्वात्‌, किन्तु तात्पथेग्राहकत्वेनामिमतानां न्धाय- जन्यन्नान-प्रकरणादोनामन्यतरत्‌ तात्पयेव्याप्यत्वेना-

दिति शाग्दमोधात्पषये विभिष्य तत्या तत्यद्‌ार्थसंखगंन्नाना- भावात्‌ शआराप्तोक्रवादेयंरोतुमशक्यलादित्य्थैः, "तात्पययेपाहकले- नेति, एतश्च एकदे शिमतेभ, खमते तु तत्पदार्थं विगेयक-तत्परा्च- प्रकारकप्रतोतौच्छयो श्च रितलरूपतात्पय्यैन्नाभस्येव VAAN वच्छमाण- atfefa we | “न्यायजन्यज्ञानेति वेदाभिप्रायेण, ्रकरणारोनांः प्रकरणा दि ्षाना्ना, ‘Aaah area eel विषव- तया चरेति Bow तात्पय्यव्याप्यविषयकवेनेत्ययेः, घयाश्ुते न्यायजन्यन्नानस्य तात्पय्यैव्यायलाभावादनन्वयापत्तेः, Wy तात्प तदिशेव्यक-त्रकारकप्रतोतोच्छयोचच रितलं तु तत्पदाथंवन्नत्प- दाथंप्रतोतौच्छयोचचरिततवं, afea सिश्चतौत्यादावभावात्‌ | इद्‌- पाततः arrange कारणत्वे तात्पर्य्योब्याणे भोजनादिरूपप्रकरणत्वभ्रमेण विषयाबाधात्‌ शाब्दप्रमानुपपन्तेः प्रमेयलादिरूपेण तज्चानाच्छाब्दबोधापत्तेख तात्पर्य व्यायतपरकारकज्चानलेन हेतुलमिति वाच्यं ।. way तेन ङूपेख ज्ञामाभावेन अ्रव्यापकलात्‌ | नापि तात्पय्येव्या्यतावच्छेद कप्रकारक- च्नानेलेन Raa प्रमेयवदित्यादिश्चानावाड्ते संषगभेरेन ATTA व्यायत्व-तद्‌ वच्छेद कल्योरप्यनतुगतलाश्च | वस्त॒तस्त॒ तत्तत्मकरणला-

(९ organizers चरातुमग्रक्यत्वादिति कस्यचिन्भूलपुस्तकस्य प्राठमनुखत् ईदृ शपाठधारणमिव्यनुमौयते |

AOR avafantaal

aan, amangiafafaan, तदिपयग्यये संश्थे WMATA | योग्यताया was हेतुः तत्संशये विपय्धेये carers वाक्धार्थ॑न्नानात्‌, तथा विभक्यादिसमभिव्याहारः सम्भूयोशचारणब्ब शाब्द

fen तन्तप्रकरण्ण दिन्नानं anes विश्रि हेतुरित्येव ae | आराकांङ्काखतन्तिमिखययोरंतुले मानमाह, ‘aferda इति तयो- ` श्येतिरेकनिखये इत्यथैः, Wit च' तथोः awe च, तथाच यतसश्रयेत्यादिव्या शिवलात्‌() तथोरिंखयय्य ata भावः Aq संशये योग्यतायाः awa, "विपर्यये तस्या निखयात्मकथमे, ‘nara? तद्या मिखयात्मकप्रमायां, "विभकवादौति कर्मादिवाचक- विभक्वादिपद्रागमित्यर्थः, तेन पदयोः षमभियाहारूपाकाङ्का- wate, श्रादिपदान्नाम-धालात्मकपदपरिग्रहः, शक्येति

(४ वस्तुतस्तु Kat TCA ` तात्पग्थै' दिनान्तरे वात्पग्यैमासौत्‌ , ददं वाकयं नेतत्तात्य्यकं वाकयमेतत्तात्यग्यैकमित्यादितः श्रान्दबोधा- जदयाव्‌ तन्तत्कालीन - तत्तत्‌ एदषौय - तत्तदाकलादिपकारकवात्पयै- ` RUA कारयत्वस्यामुगतल्वामावात्‌ काम्धैतावच्छेदकस्याप्यगमुसमेब तषद्यक्धित्वेग काय्ये-कारयमावपग्थैवसानात्‌ तद्धेतोरिति aay वक्षत्रकरयत्वादिना तन्नत्कर यादि श्चानमेव TUSCAN. विशिष्य हेतुरित्येव तत्त्वं इत्यधिकः पाठः °-एुखक्े वर्त॑ते

(१ स्य dua यस्य व्यतिरेकनिश्चय यस्यानुत्पादः तच्निखयः तथ कारद्मिति श्याकिबलादिषरथेः |

श्ब्दाख्यतुसोबखद्छे WRT ATTA LOR

STAT कारणानि लाना fae wetarafenn- वपि प्रकरणादिवशादेकमयेमादाथान्वयवोधः स~

परस्पर महकार कान्वयबुद्धिजमकलवन्नानभित्ययेः, इद च्च ATS प्रकरणादेर्वा BAHASA षणुथेकाथंमतिपारकानि Marra ft mrararasta श्ाब्दमोध इत्यसुभवमनुष्टत्याभिदडितं vgatse Waa मानाभाव इत्यवधेयं |

केचित्तु सथूयेकायेप्रतिपादमतात्पय्यैकलं Wer: तच्च श्नात- grasa इति तद्भमादष्यग्वयबोधद्‌ शना दित्याङः(५ |

मनु यथा्ेतात्पय्येग्रहस्याेतुते कुतो भानार्यादावनेकायप- , खितावपि प्रायशः एकार्चंमादायेवान्वयबोध इत्यत श्राह, "नानार्थं- दति avila प्रकरएसम्भवखतेकष तात्प विरहे उभयाथंमा- रायाग्वयबोधे इष्टापन्िरेव शरणमिति wal) ‘fae चेति शेत- एविभिष्टोधावति श्वा इतो धावतौत्यंदयक्रे शवेतो धावतौत्यादि- वाके इत्यथे, भ्रकरणादिवश्रादिति एकाथंग्रादकप्रकरणदिमाज्- सत्वा दिव्यथेः, "एकमथ" एकमेवाथे मनु तथापि वयार्थ॑तात्पसै- गरदष्याहेतुते asl: प्रवेश्रयेत्यादिशाच्णिकसयले ठन्तिजन्योपश्ि- त्यादेरविशिष्टलेऽपि प्रायप्रोणच्छार्थस्य यष्टिधर खेवाग्वयधौने तु wearer चष्टेरिति gat नियम इत्यत wy, ‘wou चेति

(९) Sfaftaenfe: डर ग्यन्तः पाठः Ge, Ne Rey गासि | (९) astanfe: ्येयमि म्तः पाठः खर, Tenge भासि |

१७४ तत्वचिन्तामणौ

age तात्परय्यानुपपत्या किम्बन्बयानुपपन्तयेव प्रकरणाद्भोजनप्रयोजनकत्वेनावगतप्रवेशनस्य यश्च- AIGA: | अजहत्‌खार्थायां प्रकर यादेव afe-

wears, ग्क्यार्थानन्वयबोधस्ेति यावत्‌, नन तात्पर्ंति सुख्ाथेतात्परयग्रहाभावेनेत्ययैः, “श्न्वयेति च्रन्वयिनि अन्वयितावच्छेद कसम्नन्धेन सु्या्याभावनिखयनेबेत्ययेः। नतु wet: | ्रबेशयेत्यच प्रवेशनस्येव यष्टिथदार्याग्यितया तच शक्यार्थस्य यरे रभावनिश्चथः थष्टेरपि प्रबेशनषम्भवा दित्यत are, श्रकरशादिति, ‘waaay, “भोजनप्रयोजनकल्वेनेति भोजनादकुूल्नेने- त्यर्थः, विशेषणे eater, तथाच प्रकर एविशेषात्‌ प्रवेभेनलदूपेमोप- fare भोजनातुकूलप्रवेशनस्येत्ययः, waft इति ste, ‘aey- ` न्वयानुपपन्तेरिति प्रबेशमलत्वरूपेण प्रवेशने कर्मतासम्बन्धेन यष्टेरभाव- निखयादित्यरथेः | इदमुपलचणं प्रवेशने यष्टेरन्वयनोधे विलच्ण- प्रकरणं हेदुस्तद भावात्‌ प्रवेशने थष्टेरन्बयबोध इत्यपि सुवचम्‌ | यद्यपि ust: प्रवेशयेत्यादौ प्रवेशने कर्म॑तासन्बन्धेन यष्टेरग्वथो सम्भवत्येव कमलस्य पदायेव्ेन प्रकारल्लनियमात्‌ धावर्थ-नामार्चं- धोरभदाग्वयबुद्धभावाच्च किन्तु यष्टिक्मलस्य ferries प्रवेशने प्रकारतया WHE: स्वान्तज कमेतासम्नन्धेन यच्चभावनिखयो विरोभौत्यसङ्गतमेव तत्‌, तथापि धालर्थं-नामार्थयोरपि च(र)

(९) श्णापोति ae | (९) धात्व्ध॑योरपौति ae, घात्वयंयोरपि नामा्थ॑योरपि चेति we |

WTA AT SS शम्दाप्रामाण्वाद।। १७५

तदितरस्य यान्तौत्यनेन गमनकनुत्वमवगनं तदम्ब-

भेदान्वयबृद्धिरख्येव परन्तु तादृ भाग्वयबोधे विभक्रिजन्यसंसगीप- fafata: तेन Be पश्यते age: पचति धटमानयेव्यादौ कठत्व-कमेला LITA चेन-तष्डुल-घटादेगे पाकामयनादावन्वयः, वा Saud चरौरूपं घटः कर्मलमित्यादौ स्वाधेयलादि- सम्बन्धेन चेज-घटादे्धन-रूप-कमेत्वादावन्वयः, Ve पश्यते Ae पचति azar Yaa धनं घटश्य रूपं घटस्य कमेलमित्यादौ कटैल-क्मैल- सत्वाधेयला SERA चेच-तण्डश-घटादेः पाका- नयन-धम-रूप-कमेला दिव्वन्यबोध्ठ सति तात्पचयैयहे प्रकरण विग्रेषे वा waa एव चेवं पदोपद्यापितश्यार्थस्य प्रकारल- नियमो व्याहत इति वाच्यम्‌ कटेल-कमेल्ादेः प्रकारतया संसगे- तथा दिधेव भानाग्युपगमादुभयोरेव सामपौख्ात्‌ तात्पर्य विगरेषारेनिंयामकलाश्च सवज तथाल, अतएव मामार्च-धालर्ध- यो॑दान्यबोधे प्रकारौग्तविभक्यौपयितिः तन्धमिति प्राचौन- शिखनमपि सङ्गच्छते८९ अन्यथा ताद्‌ ्राचयबो धेवाप्रसिद्धलात्‌ तच विभक्षयापस्थिते स्न्तवाभिधानस्यासद्गतलापन्तेरिति साश्रदायिक- मतातुसारेणेदमभिदितमित्यदोषः, एवं way बोध्यम्‌ wad efaut antes शक्या जितेन रूपेण शक्तो नान्वयधौः तजा- न्वयानुपपन्निविरहादित्यत आह, श्रजरदिति, ‘MATERA दचिविषयकापेलागुद्धिविगेषविषयलर्पेकसाथवादिलरूपेशान्वयनो-

®) प्राचोनलिखनं ge सङ्गच्छत दति we |

१७६ | avert

यामुपपलिग्डनिमाये, wea कलायमित्यम्योक्तेन समं नाथैप्रत्यायकत्वं समभिव्याहाराभावात्‌, तवापि तस्य तात्पय्यग्राहकत्वात्‌ सष्टो्चरितामां सम्भूयाथ धकगमनप्रकरणदित्यथेः, कजि-तदितरख्टेति सावधारणं, कव्येक- सायंवादित्वङूपेणेति शेषः, ्रवगतमिति भावसाधनं गमनकटे- लावगम Ta अवधारणौया्थमेव स्णुटयति, ^तदन्वयातुप- पन्तिरिति गमनकटेलाग्वयबोधाभावखेत्यथः, 'उजिमाजे' कजित- SUG इजिमाओे, तथाचेतेषु योग्यतातुपपन्निरेव शलण्णावोजं घम्म- वतौति भावः। “वममौति परस्मरष्कारेकेकाग्वयमुद्धिजनकल- ` ज्ञामाभावादित्यर्थः; तु ययायेतात्पय्यैरहाभावादिति भावः। मनु तज परस्मरसहकारेशेकान्वथु द्धिजनकल्वन्ञामसत्वेऽपि गाग्वयवोध- इत्यत श्राह, AAT, we’ परस्यरषकारेणेकान्वयबुद्धिजन- FNMA, तथाच तत्सत्वे तात्पथ्यैयदस्यापि सत्वाद्ववतामपि तच ाब्दगोधोदुर्वार इति भावः। argue श्रान्दबदधि- हेतुले मानमाह, 'ख्ेति समभूयेकान्वयबु fern भ्नातामामेव पदानामित्ययेः, “सम्भूयेति परस्परणकारेणेकान्वयबु द्धिजनकताया- ्यत्प्तिसिद्धलादि त्ययः, gata: aera दृत्यादियात्तिः, तात्व- de प्रकरणादेव waste सश्रूयेकान्वयबुद्धिजनकानि नैतत्पदानोति ज्ञाने एवमेतत्पदानि सम्येकान्वयमोधजनगकानि afa dua शाब्दमोधाभावात्‌ agra दत्यादिनियमबखेन afagquea हेतुलादिति भावः |

(९) अवधारणाथंभेवेति we, Te |

एब्दाख्यतु रौ यखद्े श्ब्दाप्रामाणयवादः | १९७

प्रत्यायकत्वस्य श्युत्पत्तिसिदत्वात्‌। `

अन्धे तु नानार्थे लघ्णायाश्ड नियतोपखित्यथैः पदार्थे तात्पथ्धेग्रहापेक्षा तेन विना तदभावात्‌ वाक्यार्थे, तदन्नानेऽपि प्रकरणादिना सैन्धवपदं

"नानां लच्णायाघ्ेति खहोतमानायंदत्तिकपद इति शमुदा- यायः, तेन MAAN ग्टरोतनामार्थलक्षणकष् wel विभिनलायंश्रक्रि-शकणकस्य aye: एकमाजग्टरोतलखणकस्य चाष- हः तसकमा चग्ठहोत्रक्रिकतुद्लादिति धेयं "नियतेति afi भ्ञानष्या विशिष्टलेऽपि कष्यवचिदेवार्थस्य सअरणा्यमित्ययैः, "पदाथ दति ट्या ग्टहौतनामायंटन्तिकपदअन्यतत्‌ सतिं प्रति तत्रतौतौष्छ- योश्चरितलपदस्य हेतुलमित्यथैः, ‘Aa विनेति तादृ श्रपदणन्यपदा्- wfa प्रति पदाथेतात्पथ्येयदस्छ Fae विमा aw नियतोपखितेर- सम्भवा दित्ययैः(९) चेवं तात्पय्येयदात्‌ yi तदर्यानुपशितौ कथं तात्पय्यैनिरूपणं तस्यार्थ॑घरितलादिति वाच्यम्‌ ट्या तादृश्पद- जन्यतदुपस्वितेरसम्भवेऽपि शक्षिवक्मकाराश्नरेण तदु पश्ितिखम्भवा- दिति भावः। “न वाक्याये इति केदः, तु वाक्यार्बोधे वाक्यायै- ATTAIN, न॒ तु तत्पदायंविशेव्यक-तत्पदा्ैप्रकारक- MMA तत्पदा्थेवन्तत्पदार्थप्रतौतौ च्छयोचरितलग्रा हेतुरिति थावत्‌। (तद ज्चामेऽपि' वाक्या्थ॑तात्पर्य्याज्चानेऽपि,९) तत्पदायेवन्तया

(र) प्रक्षर्यादित दवि we | (९) नियमश्ितेरसम्भवादृरतिन्लानस्यावि्ि्टवादि्् इति we | (९) वाक्छार्थाच्लानेऽपौति | -

28

१७८ | तच्वचिन्तामणौ `

तुरगपरः काकपदं उपघातक परमिति fe प्रतियन्ति ्न्यबान्वयप्रतियोग्युपल्ितिः तात्पययैम्रदं विन्नैवेति तत्पदार्थान्ानेऽपोति MTA, तुरगपरः तुरगप्रतोतौच्छयो रितं, एवमयेऽपि, ‘<alfa इतिशब्दः पञ्चम्यन्तः, इति प्रत्येकं पदा्थंदय- तात्पय्यन्नाना दिव्यैः, ‘feregt यस्मादित्य्े, श्रतियन्ति' वाक्यां प्रतियन्ति, तत्पदा विशरेव्यक-तत्पदा्थप्रकारक ्ान्दबोधवन्तो भव- म्तौ ति धावत्‌ | “maw ग्टहौतनाना येटन्तिकपद भिन्नपदे, “्रम्वयेति arr पदा्थस्मतिरित्ययैः, carey विनैवेति, “एवका रोऽप्यधं | eat “नियतो पस्थित्यथे" गियतश्राब्दातुभवा्थं, eer पदजन्योपखि- acfafweasta कस्यचिदेवाथख्य श्राष्टातुभवा्थ॑मिति यावत्‌, ` पदाय ` इति गदोतनामायेटन्तिकपदजन्यतन्तच्छाब्दानुभवं प्रति तत्तमतौतौच्छयोचचरितलयद्य तुल मित्थयेः, "तेन विनेति तच तद्भेदेन विना, "तदभावात्‌" owed नियतशाब्दालुभवासम्भवा- fark, ` इत्या पदणन्योपल्धितेरवििष्टलादिति भावः। वेत्यादि पूर्ववत्‌, “तात्पर्यं विनेबेति, ` शाष्यधौजमिकेति it, “एवकारोऽथर्थं afqagn veriafi प्रति तात्पय्यैयह हेतवे मानाभावात्‌ ग्टौतनानाटन्तिकश्यले भियतोपस्धितेरेवासि- gar ग्टहोतदन्तिकानां स्वेवामेवार्थानां तज खरणष्यातुभवसि- लात्‌ सवषां श्ाब्दबोधाभावस्ठ श्ाब्दातुभवं प्रति तात्पय्यैगरष्य तात्पय्यैपा इकप्रकरण्ण दि विग्रेषयष्य वा हेतुतया तदभावात्‌ अन्यथा गरोतनानायेट न्तिकपद जन्यां ग्रमपहाय लाघवाहृत्या पदलन्यप-

शब्दाश्यतुरोथखण्डे श्ष्ाप्रामाण्यवादः | Loe:

तदपेक्षा AA LATE इतरपदा्थैसंस- गेन्नानपरत्वं तात्पय्थे तच्च वेदे न्यायादवधाते शोके

दा्रूतिमातं मरत्येव पदाथतात्पय्येप्रदस्छ हेतुत्वं gat भाभ्युपेयते पदा्ेतात्पय्ये्रहं विभाणन्य्र द्या पदायेसरणशष्यासुभवषिद- लात्तत्परित्ागे awash quar एवं थद्वाकण्पोऽपि युकः wen प्रत्येकपदार्थतात्प्यष्छ हेतुत पचतीत्यादौ wes विषयिलवासुकूलतवा दिषकणखसर्गेणाग्वयबो धापत्तेः नम तत्छंसरग- कान्वयमोधे against हेतुरिति गायं दोष ca वाश्यम्‌ पचम्‌ गच्छतोत्यादौ पच्नित्यज विषयितासमन्पे तात्प- यये गच्छतोत्यनापि तमादायाग्वयबो धापत्तेः तदिगेव्यक-तप्रका- रकप्रतो तिपरलसंश्ये तद्भतिरेकनिखये वा शाब्दबोधापन्तेख एतेन प्रकरणादौोनां शाब्दबोध्ेतुलं यतपवसुक् तदप्ययुक्तं तथा खति ताङृश्रप्रतौ तिपरत्वसंश्रये तद्ातिरेकनिख्ये वा शाब्दबोधापत्ते प्रकरणादौनाममनुगततयाऽमम्तकाय्ये-कारणएभावापन्तेखेत्यसखरषा-

दार, ‘agafafa, “इतरपदस्छेति एकपदस्सेत्यथः, “इतरपदार्थति ्रहृत्॑सनें रेतरपद्‌ाधैविगेथ्थिका खा प्रकारिका था प्रतौ तिखदिच्छ- योष्वरितवमित्ययः, 'तात्पय्येमिति, शाब्दो प्रयोजकमिति शेषः, तत्संसर्गे तदिगरेव्यक-तत्मरकार कश्ाब्दबोधं प्रति again-afen- व्यक-तत्मकारकशाब्देच्छयोच् रितल्वं प्रयोजकमिति तु फरशितायेः |

(९ श्ाब्दानुभवहहेतुत्व दति Ge, ° |

१७० avaferntrat

भ्धायात्‌ प्रकर णादेर्व्या अत शव शाब्द्वोषे नानि- यतरेतुकत्वं तच्चेतरपदार्थ॑संसगेन्नानं वाक्धा्थन्नानमे- चेति सामान्याकारेण तत्परत्वग्रहः५ Vga तु विशिष्य, . तच्च खपरपदार्थयोः संसर्गातुभवजननं विना अनुष- `

"श्रत एव, एतादृश्रतात्प्यैस्य श्ाब्दधौ प्रयोजकलादेव, ‘a farad- डदेतुकलमिति अननुगतद्ेतुकत्मित्यथेः, प्रकरणादेः प्रयोजकल्वे चानसुगतद्ेतुकल्वापत्तिरिति भावः गतु प्रशतग्ाम्दपरलरूपतात्- स्व शाष्दधो हेतुत्वात्‌ कयमेताङ्गश्प्रतौतिपरवधोः श्ब्दधो- हेतुरित्यत आह, ‘Aafia, शदतरपदांति प्रशतसंषेणेतरपटारथै- विगेव्यक-सखांप्रकार कज्चाममित्यथैः, "वाक्याथैन्नागमेव' प्रहत्ाब्द- ज्ञागमेव, “खामान्याकारेखेति घटपदमन्पदमाधेवलसंघगेक-कमेल- विभेव्यकघरप्रकारकप्रतौ तिपर मित्या दिरूपेणेत्यधः,) OO ie ATE MMA तिपरलयरः, ‘aa fafareifer तु चटवत्कमैवप्रतौ- ` तिपरमित्थादिर्ूपे्ण तादृश्प्रतो तिपरत्वन्नाने डेतुरित्यथेः, अच हेतुमार, तच्चेति तद्षटवत्कमेलपरतौ तिलादिना तादृग्मतौति- परलज्नानसेत्यरथः, सख्लाव्यवदहितपूर्व॑मिति गरेषः, ‘artis कमलादौ घटा दिमल्वातुभवोत्पत्ति विनेत्यथेः मतु श्रुतपदेभ्य एव तात्पर्ये

` (९) तात्म्॑मह इति we | चरपदमाभेयत्वसं सर्गेख स्वार्थ॑घटप्रकारक-कम्म॑त्वविगेष्यकप्रतौ तिप- दरमिन्यादिरूपेणेत्य्ं इति ae

RTA TS RS शब्दाप्रामाखयवादः | १८६

wafafa पदानि सम्भुय भनयन्ि, अत रव नानार्थे विनिगमना, तदनुपपल्निरेव लघ्णावौजं तदमावा- देव प्चतिपदे स्मतकलायाम्बययोध इति सिहं शब्दस्य प्रमाथान्तरत्वं | तस्य निराकाहृगदौ संस-

गरहात्यषै कर्मलादौ चटा दिमल्वामुभवः घ्या दित्यत wry, ‘qari ति, ‘aq’ तात्पय्येयहेण समं fafeas, तथाचान्योन्याश्रथ इति भावः इदमुपशचणं fafa तत्परत्वणदस्च Baa शब्दमाशरष्या मुवादकताप्तेखेल्यपि बोध्यं “अतएवेति एता शतात्प्ग्रस्त शाब्दधौरेतुलादेवेत्यथैः, तु प्रकरशादिन्नागच्य रेतुलादिति भावः “विगिगमनेति शक्रिजन्योपस्थित्थादेरितरसकणशकारणष्या- fafreasfa कदाचिदेकमयेमादायेवान्वयबोध शत्यः, तदरुपपन्ति- रेवेति, “अत ॒एवेत्यनुषव्धते, "एवकाराऽप्ययं, तात्प्यासुपपनिरपौ- त्यर्थः, -लचणारौजमिति यौः प्रवेश्येश्यादौ wet वाष्यार्चथद्म- coe श्वधार्यंयोग्यतादिश्चानस्य safe शच्याचद्येवाग्वयबोध- cers नियामक इत्यथः, तदान WT श्रन्वयबोधाभावे नियामक- ` दति तु फलिताथः, तथाचन ताद्शसिद्धागन्तव्याघात देति भावः। तदमावादिति, श्रत एवेत्यलुषख्यते, “पचतिपदश्ति प्रयुक्त इति शेषः, “सतेति श्रन्याक्षकलायपदात्‌ खतेत्य्थंः, ‘nee’ शोक- वेदसाधारणएशब्दस्य, प्रमाणान्तरमिति अमुमानादिभिन्नषे स्य ग्टहोतग्राडिखार्यानुभवजमकल्मित्यथंः, |

(९) तत wafa we, we | (९) पचतो तिपदे इति ae | (९) Wawra |

«ASR तश्वचिन्तामणौ |

न्नानाजनकत्वात्‌ आकाङ्कादिकं सहकारीति |

. ` अनाभिनववै भि षिकैकदेभिनः लाघवान्तत्पदा्थेवत्तत्पदा्थपतौ- | बौष्डयोञ्चरितलशूपतात्पय्यैस्य धटत्व-कमेलादिना विगेषतोधौरोव जञोक-वेदसाधारणग्राब्दधौखामान्य्ेतुः, वद्धिना frat वद्िकरणएकलवत्सेकप्रतोतेरम्रसिद्धावपि aon प्रविद्धा बद्धिक- CHAAR तिपरमिति भरमरूपतज्‌न्नानससवात्‌ तु तदि ग्यक-तत्मकारकप्रतौतौच्छयोचरितलधोः, तन्तत्सन्बन्धावच्छिनप्रका- रिताप्षेर५ गौरवात्‌, वा वेदख्यले जिलवत्कपिश्चलपदायेपर- मित्या दिक्रमेण सामान्यतस्तननिख्यो हेतः शलोकं चटवत्कमेलपर- मित्या दिक्रमेण विगरेषतस्तन्निशयोरेतुरिति मौमांखकाभिमतकाय्ये- कारणभावभेदः काय्-कारएभावदयकष्यने गौरवात्‌ लोकल विगरेषतस्तादृ निखयहेतुलसाधकपूवा कयुकररक्तक्रमेण वेद स्थलेऽप्यवि- Ferg , तथाच लोक-बेदसाधारणं ््टमाचमेवारुवादकं जैवं बेदद्यादुवादकलादप्रामाण्ापत्तिरिति वाच्यं ्रग्टहोतगरादतु- मवजनकलवद्पपरामा्छाभावे उति विरात्‌ तावतापि aaratewa- लमकलरूपप्रामाश्छस्यानपायात्‌ | श्राब्दधौ पूर्वै तत्पदाचं तत्पदाथैवललन्नानाभावात्तादृश्रतात्‌पय्ये दुयेहमिति वाच्यम्‌ लाघ- वान्तादग्रतात्प्यधियोदेतले aaa व्यभिचारिण श्रयनि- चारिणा वा पचधर्भ॑णाप्धमण वा येन केनापि शिक्रेन जसा

स= ~~~ ~~ ~~ (९) विद्ेष्यतादितत्तत्‌ सम्बन्धावच्छन्िप्रकास्तिदिप्रवेश्र इति क*

PTR शरब्दाप्रामाण्यवाद्‌ः। १८

मारोयोद्वुद्धसंस्कारेण मनसा वा येन केनापि प्रकारीकरेणं तत्पदार्थं aaa कण्यनोयलान्तदिरददशार्या श्ाब्दबो धालुभवस्य चासिद्धलात्‌ wearer तवापि सवज nual तदि- ओेग्यक-तत््मरकारकप्रतौतेरन्ञानात्कथन्तद्घरिततात्पय्येनिंय इत्यद् दुःखमाधेयलादिति प्राहः तदसत्‌ तक्न्सन्बन्धावख्छिन्नप्रकारि- तायक्तौनां खरूपतः संगं विधया wate गौरवाभावात्‌ ety तात्पर्य्ये हेतुले कर्मल विेयक-घटप्रकारकप्रतौतौ च्छयोच्चरितं न. वेत्यादिशं्रये तादृशपरतो तौच्छयोचचरितं नेत्यादिष्यतिरेकमि- खये वा घटवत्कर्मवमित्यादिश्राब्दबोधप्रसङ्गाश्च तात्पय्येन्नामडेत्‌- ताया ward निराकन्तव्यलाश्च शएकादितोतात्पय्यव्यतिरेकमिच्चये- ऽपि शब्दभाधोदयात्‌ न॒ चेश्वरं तच तात्पय्ये फलेकानुभेय- तथा प्रथमं दुरवधारणात्‌ | wa एवेश्वर विरहभिखयेऽपि वेदे ऽन्वयबोधः पूर्वाध्यापकतात्पय्ये, तच मौमांसानधि- `. हितेनोदौरिते शाब्दबोधापत्तेः | कुतस्तं Maida इति चेत्‌, बेदार्यान्वयबोधे . raza श्रन्वय-व्यतिरेकाभ्याग्तयेव कण्प- mq) sme मणििता न्यायजन्यश्नानप्रकारणादौनामन्यतममिति wara:() |

नन्वेतादृश्रतात्पय्येनिचयसछ ween wae किमा काङ्खग-योग्य- तास्िश्चानस्य ेतुलेनेत्यत are, ‘Aafia निरक्रतात्पस्य॑मिखथ- सयत्य्थेः, ‘fara? आकाङ्खगथ्यभाववन्तया fafya, संष्मै-

¢) इएकादित gate: समास Ke पाठः Boome Dena मालि |

१८७ . लत्वचिन्तामबौ

` इति शरौमदगङ्गेशो पाध्यायविरचिते तश्वचिन्तामलौ शब्दाश्यतुरीयखण्डे शब्दा प्रामाण्यवादः

MITA श्ान्दबोधाणमकलात्‌, शच्राकाङ्खादिकं' अका- जग दिच्रानं, “आदिपदाद्योग्यतासत्तिपरि पहः |

इति भमणुरानायतक्षेवागो विर चित्ते तत्नचिन्तामणिर दस्मे अग्दाखत्‌ रोयखष्डरदस्ते शब्दाप्रामाष्यवादरदस्यं

( ५८५ )

अथाकाट्कग |

चरथ RAAT, A तावदविनाभावः, नीलं

VAR PITTA |

प्रसङ्गगदाकाङ्कुगं निरूपयितु waafa, श्रय केति श्राकाङ्क- दिकं सकारौति यदुक्तं त्न श्राकाङ्म Fert, ्रविनाभाव- दति तत्पदा्येन विना यो भावः स्वं तदभाव इत्यथः, तत्पदा तत्पदार्थाभाववदटृत्तिलाभावस्तत्पदाचं तत्परा्थाकाङ्खेति भावः रसि श्रयं घट रत्यादौ इृदन्पदाचं चरटपदार्थाभाववड्‌- ठ्नित्वाभावः, ठत्तिवन्ताराक्यसम्बन्धेन बोध्यं, अन्यया चेः पतिः रथोगश्छतौत्यादौ चेजादिपदा्चैस्याख्यातपदा्थसाकाङ्कता(९ श्यात्‌ Saat तिष्यदार्थांभाववद्‌टेित्राभावाभावात्‌(? तत्पदार्थाभावस्॒ aga येन eau तत्पदार्यान्वयोभवि्थति तत्सम्बन्धावच्डिन-

[0 1

(९) तिप्पदा्थंसाकाङ्कतेति we, |

८९) चेचादेः छ्ादिरूपतिष्यदार्थामाववति भूतलादौ वत्त॑मानत्वादिति मावः। ननु तथापि संयोगादिसम्बन्धेन विधिटरूपादिना वा छब्याद्य- भावंवति खस्मिन्‌ उक्त सम्बन्धेन चेषादेडेतेस्तदोषतादवख्धपमित्यमावो-

ऽपि खम्वयितावच्छेद कसभ्बन्धेन तादृ रूपेण वाख द्याह, तत्पदा-

यामावस्तिति | 24

yee लश्चचिन्तामणौ

सरोजभित्यादावभावात्‌ | विमलं जलं नयाः कच्छे महिष इत्यब" जलान्वितनद्या श्विनाभावात्‌” ` कच्छे साकाद्कतापन्ेः। नापि समभिव्याहृतपदस्मा-

तदरूपावच्छिञप्रतियो गिताकोवाश्यः, एवश्च तत्पदार्थं तन्म्बन्धेन तद्धमविशिष्टतत्पदा्ेस्याग्वये तत्पदाचं तत्घम्बन्धावश्छिलल-तङ्क्माव- च्िन्ञप्रतियो गिताकतत्पदार्थाभाववदन्यवमाकाङ्केति फलितार्थः, ाकाङ्खगया अयेधर्मलामिप्रायेणेदन्तेन शब्दानिषठल्वेऽपि चति- रिति ame गतु तत्पदार्य॑तावष्डेदकावष्डेदेन तत्पदार्थं तत्प- दार्थाभाववदन्यलं faafed यक्किश्चिन्तत्पदार्थं तत्पदार्थाभाववद- न्यतवं वा, We श्राह, “नौलमिति, सराजलाव छेदेन नौखान्यल- वदन्यत्ाभावादिति भावः नौलं खराजमित्यादौ आआदिपदात्‌(९ Heras: पोतो घट vans: age, दितौये are, ‘fae

` मिति, wer इति षश्यर्थनदौ सम्बन्धस्सेत्ययः, cepeaaia azi- ललयोरेव erase इति सम्मदायमते चयाश्चुतमेव साध्‌ अवि- array कच्छ विश्रेषेऽविनाभावात्‌, (साकाङ्तेति नदौोपदोन्तर- वीपदाचेषाकाङ्कतेत्यथैः, सम्प्रदायमते षष्टयथंष्बन्धेन werd साकाङ्घृतेत्यथेः, wares धटः कर्मलभित्थादावतिप्रषङ्खः (५).

(९) afeaacataata wo | ` (९? अविनाभ्रूतत्वादिति Go, qe | ® afta we, ग° | (५) कर्म्मुत्वादौ खाधेयतासम्बन्धेन घटादिमत्वादिति भावः

शब्दाख्धतुतोषखद्डे शब्दाकाङ्कावादः | ` १८७

प्रमेयममिषेयभित्थादावप्रयङ्गख अष्वयितावष्डेटकताराक्यषम्बन्धे

गा सिधेयलावच्डिशाभावस्छाप्रसिद्धेः, एवं विखम्बादिनि बोधकवाक्षे-ः safe: योग्यतायाः एयक्‌ मयोजकल्ानुपपल्िखेत्यपि बोध्यं 'सममिव्याइतेति सममिव्याइतपदस्मारितपदा्ं जिन्नाषा खममि- व्याइतपद सारितपदराथेजिन्नाषा इति सत्तमोतत्पुरषः, ‘afi arytae vata, ‘adaa प्रशुतपदस्मारिेत्यषः, que प्रशेतपदसमभिव्याइतपदस्मारिते प्रकतपद सारितख्य fer ara, ्रतपद समभिग्याइतयत्यदखारिते यच येन सम्बन्धेन WNIT थच्यान्बयनोधः तत्पदस्मारिते तत्र तेग॒खम्बन्धेन तत्पदश्मारितस् तस्य शाब्द बोधेश्छा तत्परे तत्पदाकाङ्केति^र तु फलिताः, उद्‌ासौमपदस्मारितपंदायेजिन्ञासायामतिग्याततिवार- जाय *सममिव्याइतेति, तख सन्भूयेकारथप्रतिपाद्‌कतात्परयेकलवे

(९) aft सिखतौग्ययौग्यवाकछे इत्यर्थ व्याप्तिरिति curate वद्या- दिकरणकत्वामाववति Sarat तादाक्येन सेकादेक्तेरिति भावः। TARE eda गाग्रियते अन्वयानुमावकलन्तु तस्य साकाङ्कतवम्न- भादेवेति चेत्‌ तस्य निराकाङताब्यवङ्ारः स्यात्‌, स्यादेवेति aq क्षन्वयबोधयोग्यतायाः प्रयोजकत्वविलोपप्रसङः satay निसाकाङ्सयेवाग्बयाननुमावकलत्वस्य सम्भवे यो ग्यत्वामावस्य तत्मयोज-

` कत्वकस्पमागौतित्यादित्याश्येभाह, योग्यताथा इति `

(९) तथाच wees परतपदसारितस्य जिश्चासाकीङ्ोषर्ध, aq- सम्बन्धेन तत्यदस्मार्ति तथै सत्पदस्मारिवस्यं तस्याग्धथगोपे sagt. न्येब॒षत्यदस्मारितस्य तस्य शान्दोधेच्छा तत्पदे तत्पदाकाङकेति तु परिताथ दति Gs, गर

{rs , ` वक्वचिन्तामणौ

रितपदाधैजिच्नासा, अजिन्नासोरपि वाक्याथबोधात्‌ विश्वजिता ` यजेत दार इत्यवापदा्ैयोरप्यधिकारि- ` Meurer पिधानस्य चाकाङ्कितत्वा्च, तच शब्द्‌-

लेका सुसन्धानविषयत्वं विमलश्नलमित्यादावतिप्रसङ्गात्‌(५। तत्पदस्मारितेतिव्यय तज तस्यान्वये AT तस्य शाब्दबोधेच्छा श्राका- gaueq सम्यक्लादिति वाच्यं प्रकारान्तरेणोपस्धिते घटादौ परकारान्तरोपस्ितस्य Aes श्रब्देच्छायामपि मोलोघट इत्या दिवाक्यात्‌ घटादौ नौखाद्यन्चयवोधापन्तेराकाञ्घसत्वात्‌ तजाकाङ्घ सत्वेऽपि पदलन्यपटा्यीपस्धितेः कारणम्नरस्य facer- सलान्वयनोध दति वाच्यं एतादृ ्राकाङ्घमवादिना(९ पदजन्यपदा- Safed: एयक्तार णलानभ्यपगमात्‌ स्रारितवश्च इत्या afc तत्व बोध्य तेन काय्येल-कारणल्वा दि सम्बन्धेन घटादिपदस्मारिताका- , श्दिजिन्नाषा“ नाकाङ्केति भावः 'अरजिन्ाषोरपौति श्ाब्देष्छा- QUAN, मोमांसकमतेन दूषणमा द्‌, “विश्वजितेति, “श्रप- दा्थंयोरपोति पदास्मारितयोरपौत्य्ः, शधिकारिण दति खन कामश कन्तुरित्यथः, श्रध्या इतस्येव्यादिः, ्रका ङ्धितिलाश्च" frend

(९) उदासौनेत्यादिः प्रसक्ादिव्यन्तः पाठः ° पुसतकदये नास्ति |

९) उभयचर प्रकारान्तरेेत्यस्य चाक्ुषादितः संस्कार वद्रनेव्यर्थः।

® warguranrgiaters इति Go, Te |

©) रकसम्बन्धिच्चानस्यापरसम्बन्धिस्ारकतया खाकाशादिभन्धघटादिप- दप्रयोन्यद््रतिविषयत्वमाकाश्रादेरिति aa |

ए्रब्दाख्यतुरौयखणे शब्दाकाङ्कावादः। Ce,

कष्यनपक्षेपि घटः कम्मेत्वमानयनं छतिरित्यव fa- न्नासिनस्यानयनादेराकाह्धितत्वापत्तः। अथ जिन्ा-

सायोग्यता" सा, जिन्नासा विगेषान्नाने भवति 2

दितोयायसाकाङ्बुलाच्च, ` उक्रजिन्नासाया श्राकाङ्मले तु तन्न स्यात्‌ श्रष्याइतखगंकामादेः पद स्रारितवाभावेन तन्निन्नासाया- ्रकाङ्खालाभावादिति भावः खमतेन away, ‘AIH कामादि श्ब्दाध्याहारपक्तऽपोत्य्थः, “जिश्चासितेति श्राधाराधे-. यभावसंसगेक(र)कर्मत्वादिपद समा रितकर्म॑ल दिप्रकारकगश्राब्देश्छाविष- we ॒श्रानयना द्पदस्नारितस्यानयनादे रित्ययेः, “Marfa पत्तेः" ्राधाराधेयभावसम्बन्धेम(र) कमेतपद स्मा रितकमेलसाकाङ्घला- पत्तः भ्र यत्पदोपख्वापिते यत्परोपखितिप्रयुक्षा यत्पदोपख्वा- ` पितान्वयजिश्नासा तयोराकाङ्का दति wee नायन्दोषः यद्यपि घट इत्युक्ते कमेलन्न वेति जिन्नासानुदयस्तयापि जिन्नाषासामान्य- मभिपरत्येदं, विग्रेषजिन्नासामादाय श्रय भाष्य-तदितरेत्या दिलं वच्छति दति ध्येयं“ श्राचार्ययोयं waware, ‘fray श्राब्द- ` बोधेच्छा योग्यतेत्ययेः, साः श्राकाङ्का। नमु योग्यतैव किमित्यत- are, “जिश्चासा चेति, “वः Bat, यस्ादित्यथैः, “fader? विभेषाश्चम एव, श्ाम्दबोधेऽनुत्पन्न एवेति यावत्‌, श्रन्यथा सिद्धे दच्छाविरहादिति भावः। भवतोति, sachs यषः, qe यद्य

$a () जिच्नासां प्रति योग्यतेति we (१ निरूपकत्वादिसंसर्गङ्कति Be, (९) निरूपकतासम्बन्धेमेति we, ग° |

(*) अरथेद्ादिध्यं यमिग्यन्तः पाठः we ° पुरतकद्ये नास्ति |

we avaferataat

योग्यता अच श्रोतरि तद्शारणजन्यसंसर्गावगम-

आव्यते तदैव तद्योग्यतालवं शाब्दबोधे उत्पशे कदापि श्राष्दष्छेति, तदभाव एव योग्यतेति भावः शओतरोति, घटः क्मैलमित्धादावतिग्याेर्वारणाय “अन्येति, “Acar तदराक्यज्ञान, sata मौनिन्चाकाव्या्निः। तथा ओढरमिष्टतदाक्यन्नानजन्यता- दृशरशाष्दमोधप्रागभावस्तदराकान्ञानेन तादृगरगराब्दबोधे जननोये wT STG, एकस्य FETE तादृ ्रराब्दबोधपरागभावष्य सत्वेऽपि अन्यपुरुषस्य तादश्रशान्दबोधातुत्यादात्‌ सामानाधिकरणष्छपरत्थासत्या श्काङ्कषया हेतुललाभाय ओओटढनिषेति प्रागभावविगरेवणं, तु werent, घटः कर्मलभित्यादौ चटवत्कमेलमित्यादिभेदाग्वय- बद्धाभावसम्पन्तये तदाक्यश्चानलन्येति इत्यञ्च" तच तदाक्यन्नान- न्यतादृशश्राब्दबोधाप्रसिद्या तत्रागभावाभावानल् तादृद्रान्वयबोध- इत्यभिमानः तदिति वाक्छन्ानविगेषणं तु वाक्यविगेषणं प्रयोजनश्चालपदं स्फुरौभविग्यति, घटः कमैलमित्यादौ area , संस्॑कघटकर्मलाद्न्वयबोधप्रागभावमादाय घटवत्कष्मेतमित्यादि-

(९ मनु घटः कम्मैतवमित्यादौ प्रागमावप्रतियोगिनि wt वद्ाक्धश्चानन- ग्यत्वविप्रषणदानेऽपि कथं मेदेनान्वयबोधः तदाकधन्चागस्य पदार्थौ. प्रश्ध्ि्यादिरूपसामयौसदितत्वात्‌ तादृश्प्रागभावाभावस्य मेदे वादृश्रान्वयनोधानुत्पादमाषनिर्वाद्यत्वादित्याश्ङ्खं ARTSY ता- वृश्रान्वयनो धजनकत्वाभावसुक्का निरस्यति, xagenfen, तथाच तदाक्छन्चानं मेदाम्बयबोधं नयतीति भावः |

शब्दाख्यतुरोयखष्छे शब्दाकाङ्कावादः | , १९९९

प्रागभावः, विमलं लं नद्याः कच्छे महिष rae’ तात्पयैवशात्‌ कदाचित्‌ न्याः कण्डे संस्गावगमात्‌

मेदाग्बयबोघे साकाञ्जुत्ववारणाय argyufa,) खण्डवाक्या्थेवो- धागन्तरं खण्डवाक्या्थघरितमहावाक्यायेषाधोत्पादात्‌ नौशोघट- इत्यादौ am: क्रमिकश्राष्दगोधदयेच्छायां धारावाहिकश्ाष्दबोध- TRY सामान्याभावल्मपहाय प्रागभावत्वेनोपादनं। न्ञानस्याव्याणयट्न्तितया तादृ श्रशाबष्दनुद्धिष्वेऽपि' तादृश््ाब्दबुद्धि- ARAMA VWI AT महदावाक्या्बोधा- द्यमुपपन्तिरिति are: तथासति तादृशेच्छां विनापि धारावा- हिकश्ाष्दबोधापत्तेरिति भावः नन्वेवमपि नदौ-जलाग्वयबुद्धि- . AIAG श्रहाविमशं जलं नधा: कच्छे मरिषयरतौत्यज गदो-अलयेरग्यवेधानन्तरः नद-कच्छयोाः RIP TIA तदा- mea way मदौ-कच्छयोरन्वयबोसे acura गदौ- RSNA AAT AEM ANAS श्रान्वयवुद्धिप्रागभाव - Ba AS तात्पय्यज्ञानाभावानन तदानौ' aTeuraty इति वाच्यं aatlaranrgrenararraate cf सकणप्राचौनप्रवा- विरोधापत्तेरित्यत आह, विमलमति, 'लात्पस्यैवात्‌' तात्पयै-. (९) मह्दिषखरतौ चति we | (९ तचाच तादृश्रपागमभावस्य चाकाहूगत्ववादिनये उक्तवाक्छात्‌ मेदाग्व- यबोध रव भास्नौ मिमानः, खन्या तादृशपदस्योपादानेऽपि उक्त-

खले साकाड्ुतवापतति, तदाक यतजच्चागभन्धमेदाग्धयवोधपागमावस- श्वादिति भावः |

eR, ` तक्वचिन्तामयौ

तेत्मागभावसस्केऽपि Mahe तदुञ्चारणेन तात्पथैवशात्‌ अलाम्वितनद्याः कच्छे संसर्गावगमोनेति तत्राग- भावः, घटः कम्पौत्वमानयनमित्यवापि तथेति चेत्‌ निराकाद्क तदु्चारणजन्धसंसर्गावगमप्रागभावस्य सिद्धसिहिपराइतत्वात्‌ | far य्ेकोविमलं जलमि-

ज्ञानवग्रात्‌, ‘anata तदाक्यन्नामजन्यनदौो-क च्छान्वयबोध- प्रागभावश्वेऽपौत्य्थः, AGIA तद्वाक्यविषयकयजन्नामव्य्ना नटो-जल्लयोरन्वयबोधाजनितस्तज्‌ज्ञानव्यक्षेत्ययः, WY “संसगा- वगमोनेत्यनेनान्वयः, तात्पय्यवश्रादि ति तात्पय्यवश्रात्‌ जलान्विताया- ` गधा इत्यधेः, “संसर्गावगमोनेति श्रन्वयबोधोन जन्यत इत्यधैः, "न amma इति तद्धाक्यविषयकतज्‌न्ञानव्यक्रिजन्यनदौ-कच्छा- ` श्वयनुद्धिप्रागभाव tart, तथाच तदिति वाक्यन्नानविगेषणं तु arafanaufafa भावः इदमुपलच्णं दित्यस्प वाक्यविगरेषण्एतव नोलोघर caret am: क्रमिकशाब्दबोधदयेच्छां विनापि नोलो- az: Wetec दत्या दिधारावाडिकश्राब्दबो धापन्तेः area सरणेनान्यदा नौलोघट इति शाब्दनुद्धेजननो यलान्नोरोघट्‌ इति | श्ाब्दबुद्धिद शायामपि तादृ ग्रश्ब्दबोधप्रागभावसत्लारित्यपि ate | तयेति तदु्वारणएजन्यचटवत्कमेलमिति भेदान्यबद्धप्रागभावे- नेव्यथैः “मिराकाङ्ख इति घटः कमेलमित्यादावित्ययः, 'तदुच्चारण- जन्येति तजुन्नानजन्येत्यथेः, संसर्गावगमेति घटवत्कमेलभित्यादि- भेदागयबुद्धिप्रागभावस्ेत्यथेः, “सिद्यासिद्धिपराहतवादिति तादृश

WAT ATVS WANTS | . १९४

त्यश्रत्वेव तात्पयसमेख वा नद्याः कच्छान्वयपरत्वम- वैति, अपरः समस्तमेव श्रुत्वा नद्या जलाग्बययरत्व- - मवधारयति, तभ्ोभयोरपि तदुश्वारणभन्धसंसगाव- गमात्‌ नया दत्युभयसाकाह"" स्यात्‌ | |

प्रागभावस्य fagfafgat az: कमलमित्यादि a घटवत्कम- afaanfeacrrane निराकाङ्कमिति व्यवहारवि्ोपप्रसङ्गादि- त्यर्थः, GATT MAGYAR ATS भ- wa तादृश्रयवहारविषयलात्‌, खपदं घटः कमल भित्याचासुपूर्नौ- विशेष विगिष्टवाक्यपरमिति भावः। गमु तादृश्रप्रागभावकाशीनं थद्‌ यत्तद्धि्ललमेव तादृ व्यवहारविषय इति भायन्दोष दत्थर्षे- राह, “किष्चेति, "यजेति, नदौ-जलान्वयगोधतात्पर्थ्थेण विमलं ad मदाः कच्छे मदिषश्चरतोति प्रयुक्ते इति He: “एकः, पुरुषः, अणमितौ ति विमलं गलं इत्येके ्रमञ्ुलेवेत्धरथः, 'तात्पय्येभरमे वेति तात्पथयेखख भरमोयस्मादिति युत्पश्या तात्पय्यव्याष्यस्य प्रकर- णदेभमेण वत्ययः, ययाते मद्याः कश्छान्वयपरलावगमस्ेव तात्पस्येभरमतया AWE हेतुलासङ्गतेः, ‘ae दति नदी-कष्डा- न्वयबोधे तात्पय्येमवेतौत्यर्थः, “WIT पुरुषः, ‘war दति मदी - AMAA तात्पय्येमवधारयतीत्यथेः, उभयोरपौ ति, जले कच्छ चेत्यथः, ‘dantanarfefa, नथा श्रन्वयबोधा दित्यथेः, 'उभयसाका- हमिति, युगपश्नदोजलागयनोध-नदौकच्छान्वयमुद्युभयसाकाङ्ुता-

(९) उभयाकाङ्कमिति कर, wo | 25 |

१९8 , : araferntarat `

-. अपि प्रारभावाभावस्य कारखान्तराभावव्यातप्त

व्यवहारविषय ¦ स्यादित्थ्थैः, नदा इति वाक्यमिदानों मदोकच्डा- aaa fgarerg नदौजलान्वयवुद्धिसाकाङ्श्चेति sere: खादिति समुदिताः, युगपत्‌ खन्यनदौ कच्छान्वयवो घप्रागभावविभिष्टश्चान- खजन्यनदोजलान्वयनुद्धिप्रागभावविगिष्टश्नानयोरभयोरेव विषयता- सम्नन्धेन सत्वात्‌ विषयता सम्बन्धेन तथागूतन्नानसेव भवज्नये तादृ्र- व्यवद्ार विषयलात्‌ खपद इयं ज्ञानपर, पै गिष्यदेककालटन्तिलं चं युगपत्‌ तथा व्यवहारे दष्टापन्तिरिति aes यसिन्लन्वयबोषे mara’ नास्ति तज farang सम्प॑सिद्धलात्‌(५ इति भावः। गतु व्यवहारोपयोग्याकाङ्कगलखणे वक्कस्तात्पय्यैविषयलेना- ग्वयनोधो विग्ेषएटीयः चेवं यत्र यच तात्पर्णथमाष्डाष्टबोध- waa `निराकाञ्चलब्यवहाराप्निरिति वाच्यं तच भिराकाङ्कल- व्यवहारस्य सकणप्रा चोनसब्मतलवा दित्यस्चेराह, “शपि चेति केचिन्नु उभयसाकाञ्खः सा दित्यस्य नदौकच्छान्वयनुद्धिषाकाङ् गदोजलान्वयवुद्धिसाकाङ्कञ्च स्यादिति eared एवा्ैः। चष्टा- प्लिर्भयनाकाङ्कग विरे उभयाग्वयमोधसेवातुपपन्तेरिति are | ` यस्िश्नन्वयबो घे तात्प नास्ति तचाकाड्ुगभ्मजन्यताया एव सर॑ षिद्धलादिति भावः मनु तदुच्वारणजन्यवकर स्तात्पय्येविषयतादृश्रा- ग्वयनुद्धिप्रागभावस्तदु चारफलन्यतादृश्रान्वयवोधे wags flare Ge, तथाच ara wares AWARE दण्थरचेराह,

(९) सम्वसम्मतत्वादिति ae | `

-- --- Se SE पनि See a चन

WRITS शब्दाकाङ्वादः | १९४

त्वात्‌ तत रव कार्य्याभाव इति किमाज्नाङ्कया | रवण्ड

“अपि चेति, ware: तदसत्‌ एतादृ णाकाड्मयाः शआाग्दधौडेतुले ABA नदौकच्छान्वयवुद्धेरतुपपक्तेः तच तात्पय्येविरहात्‌। चेयं खरूपसतौ हेतुः किन्तु न्नातेति तात्पथ्यां्रे भरमात्मकतज्चा- गान्नटोकच्छान्वयधोरिति वाच्यं war खरूपसद्धेतुल एव ‘aft रेत्यादिदूषणसङ्गतेरिति दिक्‌ श्रागभावाभावद्धेति^? विमलं जलमित्यादौ मदौजाश्वयबोधोत्तरं रीकच्छान्यबो- ातुत्पत्तिश्ले तद्‌ शार ए्रजन्यमदौ कच्छान्वयबुद्धि प्रागभावाभावस्वे- त्यथेः, 'कारणन्तराभावेति .. site जिष्ठनरौकच्छान्वयबोधतात्प्यै- ज्ञानात्मककारणान्तराभावव्याप्यतयेत्यथः मध्ये तात्पयभ्रमे जाते मदौोजलान्वयमोधामन्तरमपि गदोकश्छान्वयबोधस्य सब्ेषश्मतला- दिति भावः। काय्याभाव इति मदौकच्छान्वयबोयागाद ware, “किमाकाङ्कुयेति किं तदुञ्चारणएजन्यतादृ शाग्वयवुद्धि प्रागभावसखङ- पाया AA ङ्खाया्ाद्रू येण हेतुतयेत्यथेः प्रमाणणन्तरासच प्रा चोनप्रवादान्ययानुपपन्निमाचस्य कारएलासाधकलादिति ara:

(९) नदौकष्छान्वयनोधः स्यादिति : ., . oe eee

(९) ननु गदोजलाग्वयबुद्युत्तरं नदोकच्छान्वयबोधापत्तिवारुणायाकाङ्कगमा- हेतुत्वं ama तदेव द्याश्येनाद, प्रागमावेत्यादि

(९) तथाच तदु्ारणजन्यतादृशश्ब्दधो प्रागमाबविरुहो न्‌ तादृश्का- ग्पामुत्पादप्रयोनक दति aw कारणत्वमिति मावः |

(४) कारणतवासाधकत्वादिचयचं इति Be, Te) `.

१९१ | ` व्वचिन्तामणौ

योग्यतासक्नौ अपि हेतू अयोग्ये अनास तदु्‌- चारणजन्यसंसगेन्नानाभावेन तद््ागभावाभावात्‌^ | चैवं बाधाभावस्यासुमित्यादावपि हेतुत्व, प्रागभावा-

यथा्तन्तु ) सङ्गच्छते उत्पन्लपुनरुत्याद स्थले प्रागभावेतरसकल- कारणसत्वेऽपि प्रागभावविरडेण व्यभिचारात्‌ अन्यथा प्रागभाव ेतूतैव सिद्धोदिति धेयं ननु मदौजलान्वयबोधतात्प्यैके wh fant जशभित्यादौ गदौ-जखयोरन्वयबोधानन्तरं नदौ-कष्का- न्वथबोधवारणाय नोक्काकाङ्काहेतुरपि तु घट कम्मेवमित्यादौ घटवत्‌ कम्मैलमित्यादिमेदाग्वयबोधस्य घटमानयेत्यादौ am: we बोधद्यच्छां विनापि धारवारिकश्ाब्दबोधष्य acre a Wea कारणान्तराभावस्य वक्रमग्क्यलादतो दोषाकारमाद, एवञ्चेति,“ “न हेतु", स्यातामिति Te, श्रयोग्ये अनासन्ने चति धटः कश्मलमित्धादाविवेति शेषः, तत्‌प्रागभावाभावात्‌' तदुश्चा- रणजन्यसंसर्गावगमप्रागभावस्येवाभावात्‌, भ्राष्दबोधाभावेापपन्तेरिति शेषः गतु श्रतुमित्यादिष्वले लाघवतो विगिष्टबुद्धिषामान्यं प्रत्येव तदभावनिद्याभावश्च दहेतुलकणर्पगा च्छाब्दबोधेऽपि बाधा-

ऋषोकषिषििगिकिषिाायायय ण््म

(९ तश्नागमावाभावसत्वादिति are |

(९ ध्रागमांवत्वेन प्रागभावकारणताखब्डनन््विघरथंः (१) कारणसत्वे कार्ययानुत्पादादित्धर्ध॑ः |

(५) उक्वाकाङगया हेतुत्वे Bary: +

ए्ब्दाख्यतुरौय खसे शब्दाकाङ्कावादः। १९७

भावेनैव कार्याभावात्‌ प्रागभावस्य कामाच

[कक गिरिर

भावदूपयोग्यताया डेतुतमित्यत we, चेवमिति, एवं" प्रागभावस्य प्रागभावल-तन्तत्‌प्रागभावलातिरिकररूपेणपि Wa, 'हेतुलमिति, सम्भवतीति te: श्रागभावाभावेनैवेति तन्ततृपरा- मर्भंजन्यासुमितिप्रागभावाभावेनेवेत्यर्यः, "कार्य्याभावात्‌" कार्य्या- भावश्चन्नवात्‌, तदुञ्चारणजन्यता दु शरशाब्दबुद्धौ तदुञ्चारणजन्यतादूश्र- शराग्दधीप्रागभावस्छ हेतुतवन्तत्तत्परामगरेजन्यानुभितौ तन्तत्परा- मरेजन्यामुमितिप्रागभावो हेतुरिति सुवचलात्‌ भवन्मते ्रनम्न- काथे-कारणभावस्य sea उक्राकाङ्खाया श्रपि शब्दधौडेतुला- fagfcfa भावः। नतु उक्ाकाङ्खगया हेतुत्वेऽपि बाधाभावरूप- योग्यतायाः श्रान्दधो डेतुलमावश्यकं अन्यथा यन प्रयममयोग्यता- निञ्चयात्मकवाक्यन्नानं ततः तात्पय्धादिज्चाभात्मकपदा्चखतिः त- तोऽयोग्यतामिख्यनाशः ततोऽग्वयमोधस्तजायोग्यता मिखयनाश्रखणे- इन्वयबोधापत्तेः तदुक्ारणएचतुयंषणे पदार्योपखितिदारा शाब्दधो- जननात्तद्‌श्चारणजन्यश्ाष्दधो प्रागभावस्य सत्वात्‌, एवं पद अन्यपदा- योपस्थितिषूपासतन्तिरपि हेतुरावश्को इतरया तादृग्राषच्यव्यव- हितपूर्वात्पश्नतात्पय्या दि विषयको चचार एव्यक्रितस्ताद mend fared श्राग्दबोधापन्तेस्तत एवं उच्चारणात्‌ ठतो यच्णे शाब्दबोधोत्पादेन तदुश्वारणजन्यश्राम्दधोप्रागभावस्य सत्वात्‌, एवमरुमित्धादावपि बाधाभावैम्प्र हेतुलमाव्कम्‌ अन्यया बाधाग्यवदितोन्रोत्पक्ल- परामर्शादिश्यक्ितो इदितोयचण्ेऽमुमित्यापक्तेः arent तत एव

१९७ तज्चचिन्तामयौ

हेतुत्वात्‌ | शब्दे नासाधारण्यं उत्थितोत्याप्याकाह्यो- परामर्भद्रतौयचये(र) अनु भिन्युत्पत्तेसतत्परागेजन्यातुमितिप्रागभाव- सत्वा दित्धर्चेराइ, “्रागभावस्येति, तदुषारणजन्यश्राब्दधो प्रागभाव सेत्यर्थः, प्रागभावतेनेति Te) यज तादाम्यसम्बन्धेन sal ay म्तियो गितासम्बन्धेन प्रागभाव दति तादाव्य-प्रतियोगिलघटित- सामानाधिकरश्छप्त्यासत््या प्रागभावलेन काय्यैलेन काय्यै कारण- भावादिति भावः। “शब्दे नासाधारष्यमिति श्राकाङ्काया wWeg- शन्यज्ञाननमिरूपितकारणता माचवत्वमित्ययेः, प्रागभाववरूपेणन्य- arf हेतुवादिति भावः। चेष्टापत्तिः, श्राकाङ्खा शाब्द बुद्धावसाधारणएकारणएमिति सकलप्रामा फिकप्रवादविरोधापन्तेरिति इदयं ननु शान्दनुद्धिनिरूपितकारणतामाचवत्वे प्रामाणिक- प्रवादाः किन्तु शाब्दनुद्धिमाचमिरूपितकारणएतावलवं तच्च प्रागभा- वलेनान्यज हेतुवेऽपि निरुक्षपरागभावलेन कारणएतामादाय सव - तोत्यत श्राह, “उत्थितेति सखम्नन्धिकपदनिरूपिताकाङ्ा उलिव- ATTA, तादृ ग्पदानिरूपिताकाञ्घग उत्याप्याकाङ्खा, “उत्कषंति उत्वितोत्याण्वहार नियामकौ उत्कषापक्वो a स्यातामिल्यै, थथाणद्येन बोध्ये, तदभावादिति उत्कषादिरसम्भवा दित्यः, उत्क घादिजंतिल्वादिति भावः। इदमप्ययुक्तं खसम्बन्थिकपदाथेतात्पय्यैक- पद्श्रानघरितल्वाघटितलाभ्यामेवोत्थितोत्याणब्यवदारोपपन्तेरतिरि- हत्वा दिजातौ मामाभावादन्यया बिद्धान्तलच्षएेऽप्यगतेः

(९) - तत्पशमर््रात्‌ entra इति गर

ए्ब्दाख्यतुरौयसखे WATATETATS! | १९९

रत्कर्षापकर्षो स्यातां प्रागभावे तदभावात्‌ `

मब्यास्त॒तदुचचारएजन्यतादृश्रग्राब्दधौप्रागभावस्याकाङ्घाले घटः, कममेलमित्या दौ घटवत्कैवभित्यादिभेदागयबोधापत्तिदु वारा तदु- चारणजन्यतादृ गरशाष्दधोप्रागभावस्दाप्रसिद्या तदभावे तजन ता- दृश गराब्दवुद्यभावद्य वक्तुमश्रक्यलात्‌ चरमानयेत्यादुच्वारणान्तरजन्य- तादूश्रग्राब्दधोप्रागभावस्य तज्ापि aaa) कार्य्याभावख्छ कारणाभावाभौनलात्‌ | श्रय घटवत्कमरलमित्यादिभेदाग्वयबोधं प्रति चटमित्याानुपूव्वौं विगरेषस्य हेतुवात्‌ तदभावादेव तज तादु शाष्दबोधाभावः। Vaal विशेष एवाकाङ्गस्ठ fa frew- प्रागभावरूपाकाङ्काया त्नेन इहेतुतयेति वाच्यं घटमामयेत्यादौ विनापि am: शाब्दबोधदयेच्छामेकेनेवोच्चारणेन धारावादिक- दि्रादिश्राब्दबोधवारणाय तेन रूपेण हेतुलाभ्युपगमादिति चत्‌, म, तद्वारणाय प्रायमिकश्ाब्दबोधव्यक्तं प्रति तप्प्रागभावग्यक्स्तत्‌- प्रागभाववेन हेतुलस्येवो चितल्ात्‌ तदुश्चारण्जन्यग्राब्दबु यन्तर स्या - प्रसिद्धतया प्रायमिकतद्यक्रिप्रागभावाभावेनेव दितौयादिणे az-. शार णएजन्यता दृश श्म्दबुद्यापत्तिवारणएसम्भवात्‌ एकेनो चारणेन शाब्द बुद्धि दयाजनमात्‌ काय्य ATMA SAG ABA कारणता- वच्छेद क-काय्येतावच्छेदकयोरगरवस्य पुनस्तवाधिकलात्‌ ay श्राब्दबुद्धिसामान्यापादनश्च तवापि दुर्वार तदुच्ारणाक्ररजन्यता-

ककि 9 99.99.09 COS 6 06 9 +404 99 ORCC 9 0.6 9 09 6 9.9 ROS कि 9 Oe 00069 9 9.00 9.9 000 @ = @ 5 6 9 9 ७० £000 कको CURETTDETICTERSS CTD OS EPSRSSS SS 069 TEES 10550 कि 9 कक 99 9 9.6 COE CEES 0+ oe Hon ee Tees eeeeees:

१) तथाच तादृशद्माग्दधौप्रागभावामावोऽपि भाव काय्ौमावप्योनक- दति भावः|

Roe avafanraut `

quads सत्वेन विगरेषषामयो विरद्छ AMAURY तन्तदुच्चारण्णाभावेन विशरेषसामगनो विरदस्य ममापि. सुवचत्वात्‌ अथय AT श्रान्ददयेच्छावश्रात्‌ एकोचारणादेव क्रमेण ग्ान्दनुद्धि- इयं तच चतूर्यादिचणे तदुश्चारणएजन्यतादूश शाब्दनु द्यन्तरस्य वार- शाय तदुच्चारणएजन्यताड ब्रशाब्दबुद्धिप्रागभावसख् तदुच्ारणजन्यता- gM Vaasa | तजाणुत्यक्षग्यक्किदयप्रागभावयो- विरदेरेव तदुच्चारणजन्यतादृगरशराग्दनृद्यसम्भवः( तदुखारणजन्यता- दृ शशाम्दनुद्यन्तरस्याप्रसिद्भलादिति ary उत्पन्ञव्यक्तिदयप्रागभा- ` वयोखन्तहयङ्किलावच्छिन्नकारणएतया(९ तेन तद्यान्यथासिद्यषम्भवात्‌ तन्तद्भक्रिलावच्छिन्नविशेषकारणेन सामान्यकारणख्यान्ययासिद्धि- करणे जन्यद्रव्यसामान्यं प्रति विखशचणसंयोगादेरपि शामान्यकार- शल विल्लोपापत्तिरिति चेत्‌, 4, तावता तच तद्‌ च्ारणजन्यतादृश्र- श्रान्दधौप्रागभावख्छ डेतुलसिद्धावपि अन्यच तदु्चारण्जन्यतादृश- ग्राब्दधौप्रागभा वस्य तादरषयेष हेतुत्वे मानाभावात्‌ | वस्मुतस् तदपि तदु श्वारणभेदेमानन्तकाय्येकारणभावप्रसङ्गात्‌ तदुच्चारणजन्यतादू- WATS प्रागभाव विरहेण चतुर्थादिचणे तदु चारणजन्यताद्‌ wats बदधेरत्पश्यसम्भवेऽपि तादृश शाब्दधौ सामान्योत्पक्निप्रसङ्गाच्च, परन्तु तादृश्राब्दघौसामान्ये तादृ ग्रश्राम्दवुद्धिषामान्ये प्रतिबन्धकं तथाच तत एव चतुर्थादि णे तद्‌ चार णएजन्यतादृ MATERA:

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(९) तथाच तादृशश्राग्दबुडिदयप्रागभावविर णव तच कार्य्यानुत्ाद- प्रयोजक दति. भावः | (९) तन्तदाक्ित्वावष्डित्रविशेषकारणतयेति we |

WATTS शब्दाकाङ्खवादः | ९०१

तन्तद्ङ्धिलावसख्डिन्नोत्यन्तिनियामिकायासीकद्यक्ररभवादैव छन्न सले ` चतुर्थादिषषएे ` सामान्यसामयोतस्तादृ प्शाष्दमुद्यापत्थवमवः विगरेषसामसौखदिताधा एव सशामान्यसामग्याः फलोपधायकलात्‌ दति वाश्यं। त्तद्यकतिवावच्छिननकारषवमादाथातिपरषङ्गवारणे बतरसामान्यकार एविशोपापन्तेसखषयेव efile तभ तदुारण- अन्यताद्‌ गराम्दघौ प्रागभावस्य हेतुलासिद्धेख। तादग्रगराब्दबुङ्धौ argues: प्रतिबन्धकले खष्डवाकधायंवोधानन्तर खष्डवाक्यारयै- . चरितमडहावाक्यायेनोधो erfefa are | aerarardatue खण्डवाक्या्यंबोधपूरस्कलानश्ुपागसात्‌ अनंजितान्वयस्येव यन्धकार- VAAN | WB वा मडावाश्या्थबोधषामयौ उन्तेजिका एवं क्रमिकशाम्दबोधदयतात्पय्ेग्रहो ऽणुत्तेजकः तेन वक्षः करमिकशाब्द- भोधदयेच्छायां कमिकशाम्दबोधदयं aq) चेवं ay wait अट ` इति वाक्यप्रयोगाभेन्तरं पदार्थोपस्ितिः wa: awe इति वाक्योपखितिखेव्येकः कालः ary शएक्तामिशौ चट इति शाब्द बुद्धिः ततः Ga: कलख दति वाक्यभन्यपुनःपदार्योपख्ितिः तच पुनः इक्ताभिन्नो we दति शाब्दबोधो स्यात्‌ समानाकार- श्ाब्दमोधस्य प्रतिबन्धकस्य त्वादिति ays तच प्राथमिकशाण्द- MIATA चतुयेखण एव तादृग्धान्दबोधानतरान्यपगमात्‌ WE वा तद्धाक्यजन्योपश्धितिग्यक्तोनां sit एवं यद्यद्‌ पश्ितिशवि समानाकार शाब्द बो धसत्वेऽप्य्वयबोधसासामेवो Thera nrefcfa dea: |

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अत्र न्रा्छ-तदितरास्बयप्रकारकजिन्नासानुङ्खशप- दार्थोपश्थितिजनकत्वे सत्यजनिततात्पय्धेविषयान्बय-

खोन्दङोयं wavary, “अथ न्नाप्येति, (ज्ञाय-तदितरयोः' तत्पदार्योपस्वाप्य-तत्पदार्यो पष्वाप्येतरयोः, योऽन्वयः संसग खस्रका- रिका था former तदतुकूलेत्यथेः, तदुभयपदार्थंयोः तन्छंसगे- प्रकारकेत्यादिकं त॑वुभयपदायेयोसतपंसर्शेणान्वयमोधे weg इति पर्यवसितार्थः ज्नाप्येतरल् निवेशे a प्रयोजनाभावात्‌ नौखो घट- इत्यादावभिन्नयोरप्याकाड्गसत्वाश्च जिश्नाषानुकूलतवं तत्‌सरूपयो- ग्यते तेनाजिन्ञासोरपि अन्वयबोधविकलो aq’) we षत्य- न्तेन az: कष्मलमित्यादिखरूपायोग्यनिराषः, राज-पुजथोरग्वय- लोधमाबतात्पय्यैकेऽयमित्यादौ राज-पुषयोरणग्वथबोधानन्तरं राज-

erat creat war Tare fatace तज तात्पय्येन्नाना- भावादेव AMAL राज-पुरुषयोरग्बयबोधः तात्पम्येधमे जाते राज पुषयोरन्वथबोधानन्तरं राज -पुरषयोरन्वयबोधः wafag एषेति वाग्थं ग्न्धहृतेवातुपदभेव ACTS वच्छमाणलात्‌ राज-पुषयो- रन्वयवोधमाबतात्पर्णके अयमेतौत्यादौ तात्पथ्यैभ्रमेण राज-पुरषयो- CHARA AAT तात्पय्यैप्रमया राज-पुरुषयोरभ्वयबोधसन्पादमाय तात्पय्यैविषथेत्यन्वथबोधविग्रेषणं चेवं खणष्डवाव्धार्यबोधाननारं खष्डवाख्यार्यघरितमहावाक्धा्यबोधो श्यात्‌ एवं राज-पुषाग्वय-

(९) वत्पदगन्यश्चानविषय-तत्यदनन्धच्चान विषयभिच्रत्वनिवेगरे Vag ` (९) खम्धयबोधो विफल दति ०, |

WIRY TAT ae.

WTA GTS 7 २५ बोधत्वेमाकाङ्का, घटं मांनथतौत्थे धट मित्युक्ते किमा wate पश्यति वा, अनयतीत्युकते किं परं अन्धदेतिः farstrar भवति धटः कम्मेत्वमानयनं कतिस्त्यिषागे

बोध-राज-पुरषान्वयबोधोभयतात्पयकेऽयमेतौत्यादौ तत्प्र ` पौर्वा पय्ैक्रमेए राज-पुभरयो रण्वयवोधामनरं राज-पुरवथोरग्वध- बोधश्च श्यादिति वाच्यं) तत्कालोन-तत्पुरवौयत्विगिष्ठ-खन- ` नितलाभाववन्तात्पभ्थेविषयान्वथबोधकतलस्य विगेव्यद लेग विर्वचित- , त्वात्‌ चेवं तादृश्राग्वयबोधदयतत्पय्यैके ्रयमेतौत्यादौ राज पुजरयोरन्वयमो धामन्तरं राज-पुरुषयोरन्व यबोध्मये राल-पुजयो- - रपि पुमरग्बयबोधः स्यादिति वाच्यं। खष्डवाक्धार्थबोधाननार . खण्डवाक्यायेघटितमदहावाक्धार्थबोधवदिष्टलादिति aa: | -चटमान-; ` थतोत्यज्न सत्यन्तद खसत्व प्रतिपादयति, “बटमानयतोति, “वरमि- - am इति केवलं चटमिल्युक्त इत्यथैः, “किमामयतोति किमाननं. चटक््मता निरूपकं देनं वेत्यथेः, ‘aman केव्षमानयतौ ¬. | qm इत्यथः, fa घटमिति “किं घटनिष्टकम्मैलं शआआनयननिष्ठनि- पकता कमन्यनिष्टकम्मेलं ्रानयननिरूपकताकं वेत्यथ, “जिज्ञासा भवति wait भवति, wat घटकश्मवानथनयो निरूपकतात्मकषम्बन्ध- परकारकजिन्नासाखरूपयोग्यपदार्योपख्ितिजगकलमिति ta) ` fawrat विना प्रश्रासुपपक्या केवलं चटमित्याटिशख्ले घरमित्या-

(९) ft घटनिष्टकम्भतवमानयननिष्निरू्पताकमन्धदे त्ययं इति we | (९) cad दति we | :

०४ तश्चचिन्ताममैौ

भेदेन नाम्बयोऽयोग्यत्वात्‌, घटस्यानयनमिति तु मा- न्वयबोधः घट इतिपदात्‌ सम्बन्धित्वेन षटस्यामुपल्ि- तेः रान्न इति ge जनिताम्बयबोधत्वात्‌ पुर षमाकाङ्कतौति चेत, afe नाम-विभक्ति-धात्वाख्या-

MICHA तादृ्रपदार्योप्थितिजनकल्सिद्धिरिति भावः। waa चटः कष्मैवमानयमं शतिरित्यभर घटपदस्य कोलेऽभेदंशगेण चटा- न्वयबोधे साकाश्वादभेदेन कथं नाग्वयधौ रित्यत we, 'बटद्ति, aaa तु भवत्येवान्वयबोध दति भावः। . गरु भवतु चट-कष्मेवयोरभेदान्बयबोधः श्राधेयता सम्बन्धेन कथं भवतौत्यत- wy, “वटस्यानयनमितोति, घटदत्तिकषमेतवदानयनमेतादृग्र- इत्यर्थः, ‘avad, ‘aafaany श्राधेयत्वश्ूपसम्बन्ध विगेषशत्वेम, चटाधेयतालवेन घटाधेयलस्यातुपखितिरिति तु समुदिताः, तथाच आपेयलरूपसम्बन्धविगेषण्त्वेन चटाच्युपभ्वितिरेव धट-कश्लयोराधे- यतषूपसम्बन्धप्रकारकजिन्नासाजनिका Teas तव्नगकल्वाभावेन ATSMTATHTLAT STS ताद्प्रान्यनोध इति भावः। इलतोऽजनि- तेत्यादर्ग्याटन्तिं दग्रेयति, राज्ञ इतीति रान-पुजयोरग्वयनोध- माचतात्पय्यैके श्रयमेतोत्यादौ we इति पदमित्ध्यः, “पुजेरेति, un इति शेवः, ‘a पुरुषमिति राज-पुषयोरग्यबोधोन्तरं राज-पुरवयोर 'वयबोधं भमयतोत्ययेः, तथाच ay राज-पुचयो- रन्वयबोधोश्र राज-पुरुषयोरन्वयबोधवारणायाजनितान्वयबोधक- MIG चेवं तज राज-पुभयोरन्वयमोधोन्तरं राज-पु रुवयो रन्वय-

शब्दाख्यतुयोयखण्डे शब्दाकाङ्वादः | Roe

तार्थानां घर-कम्बैत्वानयन-छतौनां खंरूपेणोपस्थि- तिनाम्बयप्रकारकजिन्नासानुङ्कणेति तच aang स्यात्‌ घटः कम्बैत्वमानयनं रतिरित्यच घटमानय- तौत्यनेवान्वयबोधः स्यात्‌, हि तच पदाधैखरूपाणं ¦

बोधे तात्पय्येभमेऽपि राज-पुरुषथोरन्वयबोधो सात्‌ अनित- तात्पथ्यैविषयान्वयबोधकलादिति are तजर जनिततात्पय्येविषया- न्वथनो धकवेऽपि तात्पय्ेभ्रमेण स्जनितत्ाभाववन्तात्पय्यैविषयान्वय- बोधकलस्यापि भ्रमात्‌ शाष्दबोधोदयात्‌ खरूपसत्था श्राकाङ्ाया- अहेतुलादिति भावः। इतिचेत्‌ तर्दति श्रासयला दिसम्बन्धविगे- away घटाशुप्धितेरेव घट-कम्यैवा्ोराभेयलादि समन्धप्रकारक- जिन्नाखाजनकवे इत्यथः, “खरूपेणोपय्थितिः' आधेवलारिसम्बन्धा- विशेषएलेनो पथ्थि तिः, ` “श्रग्वयप्रकारकेति चट-कम्नलाथोराधेयत्ा- | दिसम्बन्धप्रकारकेत्ययेः, av चटमानयतोत्यज, नाकाङ्कुण यादिति आधेयला दि सम्बन्धेन घट-कमलादयोरण्वयबोषे may ति दित्य, घटादिपदात्‌ केवलघटादौनामेवोपखितेरिति भावः। ‘az इति, यदि खषूपेणोपथ्ितिरेव तद मुक्ला तदेत्यादिः। भमु विलक्ण्वटाशयुप्धितिरेव तादृश्रजिन्नासाजनिका चटः कण्मवमान- | यनं शतिरिव्य् घटादि पदजन्यधटाद्युपख्ितिख तचा विल्णे- त्यत आह, "न रौति, ‘aw घटमामयतौत्य्, “एतदेलशच्छेनेतिः

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(९) तश्राकाङ्केति we, खर |

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अटः कबमलमित्यादिवाक्धस्घटादिपदणन्यघटाधुपञ्धितितेखधब्ेने- ae; ` तथाच्च ॒पैलचष्यमेवाप्रसिद्धमिति भावः “अलनितेत्यादै- दक्परथोजनं ` दूषथति, “चधाणशामिति राज-पुज-पुरुषाशामिः्यथं erry? एकदा, ` प्रथमः अणनिताग्वयबोधदधा्यां, यतः” ता- व्य्ेपौ विरइतः, (तत एव तात्पर्य विर दादेव, ‘waste’ eft ताग्ववबोधद श्रायामपि, “पुरुषेणटन्वेतत्यशुषब्यते, ‘ae मिति नोत प्रयोजनकभित्यर्ेः यथाभुतन्तुः ग॒ सङ्गच्छते, चटमागवेध्यादौ धारावाहिकशराष्दमोधवारणायाजनिताग्वयबोधकलदल्डावश्यकतया वेयर््याभावात्‌। ` |

केचित्‌ ‘enifafe यथाश्रुतमेव ary घटमानयेत्यादौ धारावाहिकश्ाष्दबुदधरवारणाय wera कतो वेयब्यमिति are i wafadt ` खसमानाकारषिद्धेरिव श्ाष्दबोधेऽपि खषमा- लाकारश्राष्दनोधस्छ प्रतिबन्धकतयेव धारावाडहिकश्राब्दबोधाभाव- सम्भवात्‌ अन्यथा तदुपादानेऽपि TAT श्ाण्दधोरेतुतथा अविनभ्दवस्तजश्नानमादाय धारावादिकश्ाष्दबोधदथापत्तेदु्वा रल्ाटिल्यनिप्राय CATH: | |

wag धारावादहिकप्रत्यचद्धेव धारावादिकश्राष्दस्याषयग्धुपग-

WATTS WHEAT: | Roe

fa ओ्रौमद्‌ गङ्केशो पाध्यायविरचिते तश्वचिन्ता- मणो WHARF CRIMI हा वादुपूष्वेपश्चः मार यर्थ मित्धमिप्रायः, अतएव fegrraes अगितोनयवोधेऽति- स्या तिवारृणायु विगेप्रणं कर्तो acer नोक्षमिति पराहः^)॥ ०॥ दति ओ्रौमयरानाय-तकंवागौ श्र विरचिते तत्वचिन्तामणिर दस्मे . ` ` शब्दाकाड्ुगवा दूर्व्व॑पशरदख्यं ` `

` atta iA \ 3 1 .. ` `

Rec ` . तच्चचिन्तामणौ

` . अथ श्ब्दाकराङ्मवादसिद्धान्तः।

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उच्ते। अभिधानापय्थैवसानमाकाङ्क यस्य येन विना खा्थन्वयानुभावकत्वं तस्य तदपय्यैवसानं,

अव WERTH ETT ETAT स्यम्‌

टौकाकारोकं श्णमेव परिष्क्य सिद्धान्तयति, “्रभिधानेति, . अभिधानपदं करणब्युत्पत्या श्दोश्वारणममिधन्ते तस्यापय्यैवघामें फलानुत्पादः, तथाच तदुश्चार फजन्यताइ ग्ाग्दबुद्धौ तद्‌ चारणलन्य- तादृश्रशराब्दधोप्रागभाव warp फलितं, तच्च ॒पूीक्ररूयेख ` दुष्टं चाभिधानपदं भावययत्यत्या शन्दमोधपरं तच्यापययैवसामें अभावः तचा तादंशग्राब्दबोधे तादृग्रश्राष्दबोधाभाव STR ETA फलितां इति ae धटः कम्मेतमित्यादावतिश्याभिरित्यतः पारिभाषिकमभिधानापय्येवधानपदाचंमाह, ‘wath, यत्पद निष्टय- mam विनेत्थयेः, स््ार्थान्वयामुभावकलमिति तादृ्ा्यबोध- इत्ययः, ‘ae तदिति तत्पदश्य तत्पदवक्वमित्थधैः, 'अपरयवघा' तादृ गरा्थबोधे श्रभिधानाप्थयवसाणं, तथाच चापद निष्टयत्पद- व्यतिरेकप्रयुष्ठो auratus तत्पदवत्वं तादृ्रा- न्वयबोधे अभिधानापग्येवसानं दति फलिताः पद्लमज wea,

WRITS शब्दाकाड्कवादः | Rog

प्रयक्तलश्च कारणाभावात्‌ कार्याभाव इति प्रतौ तिसाकिकः ख्ूप- सम्बन्ध विशेषः, त्मतिथो गिजन्यप्रतियो गिकलं वा anges, भवति चाव्यवरितपूरमवर्भितारूपसमभिव्याहारसम्बन्पेम धरपद निषटस्यासु- खारधदस्यं॒॑व्थतिरेकप्रयुक्तो घटवत्कम्रेवमिति मेदाग्युद्यभाव- दति तादृशान्वयबोधे घटपदस्यानुखारपदवत्वमा काद्य एवं विनि- गमना विरशादग्यवहितोन्तरवर्तिंतारूपसमभिव्या हार सम्बन्पेनामुखार- पद निष्ठस्य were व्यतिरेकपरयुक्रोऽपि घटवत्क्मैलमिति er ` maga wagers चटपद्‌वत्वमपि तादृशान्वयबोधे Sry, घटः कंशमलमित्यादौ श्रन्यवहितपू्वैव्तिताङूपसषममि- व्याहार सम्बन्धेन धटपद स्य कश्मेतवपदवत्वमव्यवडितोत्तरवरितारूप- समभिव्याहार सम्बन्धेन कम्मलपदस्य घटपद वत्श्च चटवत्‌ करमैल- fafa भेदान्वयबोषे श्राकाङ्खय, अ्रव्यवदितपू्वैव्तितारूपसममि- व्याहारसम्नम्भेन धरपद्‌ निष्ठस्य कश्ैवपदस्यावदितोत्तरव्तिताख्प- समभिव्याहारसम्बन्धेन कश्मेत्पद्‌ निष्ठस्य quay व्यतिरेक- थोचैटवत्‌कम्मेल्मिति भेदाग्वयबोधाभावाप्रयोजकलात्‌ कारणाभा- qaqa कार्य्याभावप्रयोजकतात्‌, श्रव्यवडहितपूर्वैव्तिं तासम्बन्धेव चट- पद निष्ठस्य क्मेत्वपदस्याव्यव हितोन्तरव तिता सम्नन्धेन AAAI मिष्टस्य चट पद्‌ ववस्य वा तादृग्रभेदाग्वयबुद्धावदेतुलात्‌ | घटपदेऽनु- खारपदटवत्व्यामुख्ारपदे घटपद वल््वस्य घटवत्‌ कश्यैलमिति भेदा- QRH जलं चरदृत्यादावपि तादु श्राग्वयबुद्यापन्तिः अव्यवडितोनत्तर्वन्तितासम्बन्धेन घट पदेऽसुखारपदवत्वश्याव्यवहित-

पूयवर्तिंतामम्बन्धेनानुखार पदे अटपद वत्स्य ay सत्वादिति 27

Ria | तक्वचिन्तामयै

TY) यादृग्र्ममिव्याहार सम्बन्धेन यत्पद निष्टस्ध यत्पदस्य व्यतिरेक- HQ चाद शान्वयुद्धभावस्ता दृ शसमभिव्या हार खम्नन्धेन तत्पदस्य तत्पदवक््वं तादृशान्वयबोधे wag विवकितलादित्थञ्च waa- हितपृष्यैव्तिताशूपसमभिव्या शार सम्बन्धेन aut अनुखारपदवत्व- मव्यवडितोन्तरवत्तिंतारूपसमभिव्यादार सम्नन्पेनानुखारपदे चटपद- aaa वा तादृ श्रभेद्‌ाखषयबोधे BAHT! यादृश्रसमभि- व्याहारसम्बन्धेन यत्पद निष्ठश्च यत्पदस्य अन्यो यादृश्राग्बयबोध दति भावगभेमेव waung लाघवादिति वाच्यं हन्वयबोधाभावा- we नानं कारणं येन गौरवं दूषणावदं खात्‌, wh तु ATA RAM तत्पर तत्तत्पदकववमेवा काङ्ग, तज्चचानभेव श्ाब्दधौ- ` हेतुखत्य रिषायकञ्चान्वयबोधाभावान्तं तच गौरवं दोषमा- वहति, परिचायकशब्दलाघव-गौ रवयोर किचचित्करत्वादिति भावः। इदञ्च न्नायमानग्रब्दकरणतामते, श्नब्दश्ञानकरणतापके तु याष्श्र- समभिव्याहारसमनन्धेन यत्पद विगेयक-यत्पदःप्रकारकोपख्ितिव्यति- Target यादृ शान्वयवुद्यभाव दति waza विवश्णोयं, उन्तरद शन्तु तुष्धमेवान्यया श्रसम्भवापन्तेः, पद न्नानस्येव कारणतया घटवत्कग्चै- afafa मेदान्वयवुद्यभावादौ घटपद्‌ निष्टस्यानुखारपदादे य॑ तिरे- कस्याप्रयोजकलवात्‌ ACUI का्यभिवप्रयोजकलात्‌ | चेवं घटः कणलमित्यादावव्यवदहितपू्वेवत्तिता सम्बन्धेन घटपदे कममोल- पद वत्वस्याव्यवदितो त्रवल्तिंता सम्बन्धेन कथ्मैतलपदे धटपदवत्वस्य चटवत्‌कम्मतलमिति मेदाग्वयगोषे आकाङ्खालापत्निः तादृशमेदा- ग्वयबुद्यभावस्याव्यवहितपूव्वैवन्निताबम्नन्धेन घधटपद्‌ विगरेथक-कमैल-

शष्दाख्यतुरो यखणडे शब्दाकाङ्खगवादः | २९१.

पदप्रकारकोपस्थितेः श्रव्यवहितोश्वर वन्ति ता सम्बन्धेन aaa विशे- व्यक-घटपदप्रकारकोपस्ितेख व्यतिरेकेणापि प्रयुकलान्‌ श्रव्यवहित-

पूषेव न्तिता सम्नन्धेनामुखारत्वरूपेण कश्मेलपदप्रकारकघटपद्‌ विगेव्यक- `

भ्रमस्याव्यवदडितो त्र व्तिता सम्बन्धेनाुखारलत्वशूपेण ageauzfan- व्यक-घटपदप्रकारकभ्मस्य तादृान्वयबोधजनकलादिति ala | यतसंसगंक- यत्पदल्वधभ्भितावश्छेद कक- यत्यदल्वि गरेवएतावच्छेदकक- faqaafatangat याद्‌ गाण्वयनुद्यभावस्तनछम्नन्पेन तत्पद्लविगिष्टे तत्पदल्ववि शिष्टवत््ं तादृशान्वयबोधे श्राकाङ्खेति कविकितलात्‌ तथापि श्रवयवदहितपूम्बैवरन्तितासम्बन्ेम घटपद्‌ लावच्छिन्लनिष्ठ- कषरोलपदत्वावच्छिल्लवल्यारावतिव्यात्चिः az: ai घटमिति समू-

हाणम्बनस्य घटवत्‌ कश्मलमिति भेदान्बयबोधजमकतया घटपदल्व-

ध््रितावच्छेद कक्यग्यवहितपूव्वेवतिता संसग क-कमेलपद लावच्छिश्नप्र- कारकनिखया दिव्यतिरेकेणापि प्रयुक्रलात्‌ तादृ शान्वयबुद्याभावख्येति वाच्यं तथाविधनिश्चयलावच्छिञव्य तिरेकप्रयुक्रलस्य विवितलात्‌ घरटपदवधग्धितावच्छेक काव्यवहितपू्वेवन्तिता संसग ककम्मेल् पदत्व विगेष- एतावच्छेदककनिखयलाद्यवच्छिन्नाभावप्रयुक्र्च घटवत्‌ कषोलमिति मेदाश्वयबोधाभावः कारणतावच्छेदकावच्छिन्लाभावेनेव प्रयुक्रलात्‌ कार्याभावस्य, तक्मतियो गिजन्यप्रतियो गकलवे तक्मयुक्तवमिति पञ लन्यतल्मेव तादशं विवच्णौयमिति क्िदोषः। एवं यादृश्र- ग्राष्दाभावोऽपि यादृश्रशानब्दलघरितघर्म्मावख्डिश्नाभावो विवचितस्तेन

तादृ ग्रसमूहालन्ननेन wifey aid घटदटत्तिकलमिति aq

हाणम्बन शान्दधौजननात्ता दु ग्रसमूदालम्ननात्मकघटदत्तिकम्मवमिति-

RRR वत्वचिन्तामयोौ

भेदान्वयबोधाभावस्य घटपदल धष्धितावष्छेदककाग्यवदहितपूर्व्तिता- घंषगेक-कष्मेलपदत विशेषणता वच्डेद्ककनिञख्चयलावच्छिलाभावप्रयुक्र- . लेऽपि तिः काय्येतावच्छेद कावच्डिन्नाभावद्येव कारणतावच्छेद- ` कावच्छछिभावप्रयुक्रतेन चटटन्तिकग्मेवमिति भेदाग्वथनुद्धिवघरित- धर्मावच्छिन्नाभावस्य निरकनिख्यलावच्छिश्नाभावाप्रयक्रलात्‌ तादः श्रभेदान्वयबुद्धिलघटितधम्मेष्य तत्काय्थेतानवच्छेदकलादिति नाति- श्यािग्रद्धापि, इत्यञ्च कमोत्व-कद्वेत-कर एत्या दि विग्रेव्यकाधेयताषंष- गेक-च्रट-पटादिभरकारकश्राब्दबोधेऽग्यवहितपूष्बेवर्तिता सम्बन्धेन चट प्रटादिपरेऽरुखारा दि मत्वमब्यवडितोन्तरवन्तिता सम्बन्धेनातुखारादि- परदे चटपदादिमच्व्चाकाङ्शग तेम घरं परं घटेन पटेन इत्यादावेव ` तादृश्राग्वयबोधो तु घटः कश्मलं पटः Be चटः कदल पटः waa घटः करणत्वं पटः करणएलमिल्यादौ तान्वय बोधः, एवं हति-व्यापाराश्रयला दि विगरेग्यकातुङ्गलत्व- विषयिल- निरूपितला दिसं कागयन-गमन-द ग्ना दि प्रकार क्ाब्दबो धं प्रति अव्यवदितपू्ैवरत्तितासम्नन्भेन श्रानय-गच्छ-पण्यपदादौ ल्यादिपद- वत्वमब्यव हितोत्तर वत्तितासन्बन्धेन त्यादिपदे आ्नय-गच्छ-पश्य- | पदादिमल्वश्चाकाञ्खग तेनानयति गच्छति पण्यतौत्यादावेव arg- आयनोधो तु श्रानयनं कृतिः गमनं व्यापारः CAAA caret तथान्वयवोध इति frac. चैतेषां wre हेते मामाभावः कमोत्वादि विगेग्यकाधेयताषंषगंकघटादिप्रकारकश्रान्द- बोधे विभक्रिजन्यकम्मेलादयुपस्धितेहं तुतलाग्युपगमादेव घटः कषमेल- मित्यादौ तादृ शाचयबोधाभावसम्भवादेवं इत्या दि विग्रेयकानुक्रल-

प्ब्दाख्यतुरोय खये शब्दाक्षाङ्कगवादः। RUR

त्वा दि संसर्ग कामयमादिप्रकारकश्चाब्दबोधे तयादिम्र्यणन्यश्थायुप ख्थितेद्ंतुलाभ्युपगमेजेवानयनं हृतिः गमनं व्यापार इत्धादौ तथा- न्वयबोधाभावखम्भवादिति AY! WAS घटाम्‌ टा-षट धट-टा इत्यादौ घरौऽस्ति Vw wet चटोऽस्ि पटश्चामयेश्यादौ तयान्यबोधापत्तेः श्रमादि विभक्रिजन्यकश्मेलाच्युपश्ितिखल्वात्‌, एवं तिरानथमं waa तिरित्यादौ श्रागयनमस्ति पचति चेत्यादौ चं ` तयाश्वेयबोधापत्तेश्च॒ त्यादि प्रत्थयजन्यकत्याचुपखितिसत्वात्‌ . Page Wa पिपरौतयुत्यनञसख चेः aid घटः कममैलमित्यादौ Verna wef कश्रौलमित्याद्यन्वयबोधः कथं स्यादिति are) विपरोतव्य॒त्पन्नस् कम्मेला दिपदेऽनुखार- त्वादिभ्रमादेव तच तादृश्शाब्दबोधोदयात्‌। fe वद्ठगत्या घटपदादौ श्रतुखारादिमल्वस्य श्रनुखारादौ घरटपदादिसत््रस्छ वा ज्ञानमेव तादृशश्राष्दबोधे हेतुः, aft तु घटपदलादिधभ्भिताव- च्छेद्क कानुखारल्वा दि विगेषणतावच्छेद ककं श्रनुखारपदत्वधश्विताव- eran घटपदत्वा दि विशेषणएतावच्छदककं वा भरम-प्रमाखाधारणं ज्ञानमेव तादृग्रशान्दवुद्धौ हेतुः, aw पुंसः कण्मैत्वपदादौ मातु- | खारवभ्रमः तस्य तु घट-कश्मेतादि पदात्‌ घर-कम्मेलाद्योरुपस्ित्या मानसोऽन्वयबो धः शब्दप्रयोच्यत्व गिवन्धेनख शान्दत्वानुभवः। चेवं घटद्टस्िकष्रोल मित्या द्यन्वयबोषे चटमित्याद्यानुपू्ववौ विशेष way श्रानयमामुकूलह तिरिव्याद्यन्वयबोधे ्रानयतौत्या्यानुपूव्बौविशेष- आकाङ्केति फलितं तथाच घटमानयतौत्यादौ धारावाहिकशाब्द- बोधापत्तिः amare सखप्रयोष्यतन्तत्यदा्थीप-

Rte 3 तक्वचिन्तामणौ

श्वितिदारेव हेतुतया way जातेऽपि तादृश्पदा्थापखिति- दारा तत्त्वादिति ary अरति विषयान्तरसघ्चारादतौ धारा- arvana धारावाहिकशाब्दबोधोऽपौग्यत एव wy वा श्रतुमितौ समानाकारसिद्धिरिष शाब्दबोधेऽपि उक्रक्रभमेण समा- भाकारश्राब्दधोविंरोधिनोति मणितो fared: | मनु तथापि कषमताविभेव्यकाधेयतासंसगंकघटग्रकारकाग्वय- गो भेऽव्यवदहितपूरव्यैव्तिंताखम्बन्धेन घर पदेऽनुखारवत्वन्नानस्य waa- हितो्तरवन्तितासन्बन्धेनातखारे घट पदवन्नान्नानस्य चोभयो तुले परस्परं व्यभिचारः प्त्येकन्ञानमाजादपि तादृग्ग्राब्दबोधोदथात्‌ दष्ठ-चक्रवससुचयन कारणलद्दासम्भवात्‌। fry घटं घटौ sary कशं कलसौ कलसान्‌ gal gal कुम्भा नित्यादौ चटस्छामयनं कशघस्यानयनं कुमाष्यानयनमित्यादौ तादृश्रान्वयनोे व्यभिचारः) तज घटमित्यालुपूर्न्ो सरणादेव तादृशाग्वयबोघ इति are विनिगमनाविरहात्‌ चटादिपदे श्रौ कारादिमक्तं कलसादिपदे- ऽसुखारा दिमत्वमेव वा तादृशान्वयबोधे आकङ्क घटमित्यच तत्‌खरणादेवान्वयनोध इत्धंस्य सुवचलात्‌ wag ति विभेग्यकानुकूल- त्वा दिसंषगेकानयनप्रकारकश्ान्दगोधेऽव्यवदितपू्वैवर्तितासव्बन्धेनान- यपदे तिपदवक््वक्ञानस्य अव्यवडितोष्तरव्तिंतासम्बन्धेम = fanz श्रामयपदव्वन्नानस्य चोभयोरंतुतवे परस्परं॑व्यभिचारः, आनयति अआनयतः श्रानयन्ति प्रापयति प्राप्तः प्रापयन्ति इत्यादावपि 7 लाद्ग्ा्थबोधात्‌ afar) अयाव्यवडितपूव्ववन्निं तासम्बन्ेन चटोपश्वापकभामपदे कभलोपस्था पक विभक्रिमलनस् श्रव्यवहितो-

शब्दाख्यतुरौयखण्डे म्द! काङ्कावादः | २९१५

त्रवल्तितासम्बन्धेन कलोपस्छापकविभक्तौ घटोपस्छापकनामपद- “ame दइयोराका्गाल, इत्यश्च घटं घटौ घटान्‌ कलसं कणलसौ कलसान्‌ Fa कुम्भौ कम्भानित्यादौ घटस्यागयनभित्यादौ wife व्यभिचारः घटोपस्यापकमामपदल्वेन कश्मलो पस्थापकविभक्नि- लेन -सर्वषामनुगमात्‌ नापि ay घटमित्यादौ घटादिपदस्य पटे शचण्या पटडत्ति कशनौलमिति बोधसवापि व्यभिनारः | तयाणुक्रयोदेयोरेव परस्णरं व्यभिचार इति वाच्यं विभि- गममाविर देए उभयो ज्नामदेव हेतुलसिद्धौ wisteritginza तादूशश्राब्दधोने तु ्व्येकमाचन्ञामादित्यनायत्याभ्युपगमात्‌, एव- डति विभेव्यकानुङ्गलला दिसंसगेकानयना दि प्रकारक ग्राष्दबो सेऽब्यव डि- तपूल्वेवत्तितासंसगे आनयनोपस्यापकधातौ रत्युपखापकाख्यातव- लस्य श्र्यवहितोत्तरवन्तिता संसं रतयुप्यापकास्याते श्रागयनो- पग्यापकधातुमत्तस्य द्रयोराकाङ्खावं एवश्चानयति श्रानयतः श्रानयन्ति प्रापयति प्रापयतः प्रापयन्ति इत्यादौ कापि व्यमि- चारः आ्आनयमोपस्यापकधातुतेम छतयुपस्थापकास्यातलेन स्व॑षा- मरुगमात्‌, नापि यत्र पचतौत्यादौ पचादिधातोरानयने equa आमयमानुकूला तिरि त्यन्वयवोधस्तचापि व्यभिचारः भ॒ ag घटभिल्यादवमादि विभक्रिविरहात्‌ कथमन्यबोष दति are) तजराशुखारलादिमा श्रमादिखपत्या waaay. दति सन्बैसिद्धलात्‌ अन्यया श्रनुलारादेः ae शक्रिविरदात्‌ ततः कमला दिश्ाब्द- बोधानुपपत्तिः इत्या पदजन्यपदा्चापलितेः we wen ey चेत्‌, म, घटाम्‌ घटश्स्‌ इत्यादावपि षटटत्तिकश्रंवमित्याच्ग्बय-

` २९९ वक्वचिन्तामयौ `

gravee: चटरोपस्थापकनामपदे श्रम्‌-श्सादि विभक्रिमत्वश्य सात्‌, भामव-विभक्रिलयोर्षातुलास्यातवथोच सर्व्पैसाधारण्योरतुगतयो- रभावात्‌ ALAC TTA TATA अपिच चटाद्यपखापकमामा- «feat कम्मेलादयुपखापकविभ्ादि मल्वस्य येन केनापि रूपे भानं हेतुः तादुशनामत्व-विभङ्किलादिना वा घटपद्ल्वाभ्पदलादिना वा, are: प्रमेयलादि रूपेण ज्ञानादपि श्ाब्दश्चानापन्तेः, दितौयः चट मित्यादौ चटादिपदस् नामलादिकममादिषपदस्व विभक्िला- दिकमविदुषोऽपिः श्ाब्दबोधोदयात्‌, मागधः अ्रननुगमताद्वखात्‌ दति sas: ्रव्यवहितपूम्यैवन्तितासंसगेक-घटपदतधक्वितावष्डेद क- काशुखारत्वा दि विगेषणएतावच्छेदककनिश्चयतेन कारणता तादृश- . भिख्चयविभिष्टकष्धोविगेग्यता काधेयतासंसगंक-चटगप्रकारकग्माब्दनुद्धि- लेन area, एवमव्यवदितोन्तरवन्तितासंसगेकानुखारत्वधभ्विताव- च्छेदकक-घटपदत्वविरेषएतावच्छेदककमिखयतेन कारणता तादृश निदयविभिष्टकषमोलविगरे्काधेयलसंसर्गक-घटगकारकशराग्दव्‌ द्धितेन कार्ता, वैभिष्यश्च साधिकरणावच्छेदेम सखाध्यवदहितोन्तर्षण- ` afta, we संसग विधया प्रविष्टमिति तदमनुगमो दोषाय SSAA सम्बन्धानतु गमयस्यादोषतायाः alway अन्यत- मलादिना यथाकथश्चिदलुगमखम्भवाचच एवं we घटौ घटान्‌ कलसं कलयौ कलसान्‌ Bl Hat कुम्मानित्यादौ यथ्दानुपूर्नबौतः कमल विगरेव्यकाधेयतासंसगेक - घटमकारकान्वयनोधोऽलुभवयिद्धः तत्त- दानुपूर्यौ निखचथविशिष्टलमेव स््ाधिकरण्णवच्छिजस्ताव्यवहितोन्तर- विता सम्बन्धेन काय्यैताव्र्छेदके प्रवेश्य तन्तदानुपूष्बौं विशेषा

श्म्दास्यतुतोयखब्े MTG RTA | ९९७

काङ्घुमनिख्चय-कम्मवविगेष्यकाषेयतासंसगेक-घटपरकारकश्राब्टबोधयोः काय्यै-कारणभावः कण्पनौ यः परत्यारुपूर्व्वौषटकपदयोर्विभेय- विग्रेषप्यभावभेदात्‌ उक्क्रमेण काय्यै-कारणभावदवमिति परस्परं व्यभिचारः, wata कटेव-कर यला दिविगरेग्यक-घटप्रकारकान्वय- बोधेऽपि चटेन चटाण्वां qe: कशसेन कशषाभ्यां कलतेरिव्याथानु- पूर्वो विगरेषात्मकाह्वग मिख्यानां कम्मलादिविशरेयक-पटादिप्रकार- कान्वयबोषे पटं पटौ पटाम्‌ ae TA वस्तानोत्यायागुपूर्गनौ- विग्रेषात्मकाकाह्गनिखयानां कास्ये-कारएभावः। भन तथापि पदार्योपस्थित्यादिना तत्तरानुपूष्वौं विशरेषात्मकाकाङ्खामिखयनागे- ` ऽपि जाब्दबोधोदयाद्चमिचार इति वाच्यं खप्रयोज्यतस्तत्यदा्थौप- स्थितिशम्नन्धेनेव तस्य हेतुतया तज्नाशरेऽपि तेन मम्नन्धेम age | एतेन तप्ममेयमित्यादौ तदादि पदेनापि घटा दिनिष्ठकमरलाघुप- खितिदारा क्म्या दिविशेव्यकाधेयतासंषगेक-घटा दि प्रकारकान्वय- गोधजननात्‌ तज चटमिल्याधानुपूर्ववो विेषात्मका कामं नामस व्यभिचारः, एवं घटः प्रमेय इत्यादौ केवलघटादिपरेनापि घट- निहकम्मेलादौ शचणादिना कश्मला दि विश्रेव्यकाधेयतासंसगक-घटा- दिपरकारकाग्वयबुद्धिगनमात्‌ तच घटमित्याच्यामुपू््वौ विशरेषात्म- marae cate facta खाधिकरणावच्छिन्स्राव्थवहि- तो्तरव्तितासम्नन्धेन ana मिञख्चयविशिष्टतादृश्राब्दबोधं प्रत्येव ANTI निख्चयामां हेतुलात्‌ तदादिपदजन्यतादृश्रश्राष्द- बुदधेशखातचालात्‌ |

` ५५ वत्षदानुपूर्व्वौव्यादिः कर्पनोय त्यन्तः प्राठः ग° we पुरक मास्ति 28

Re , त्चचिन्तामगयै

i MAYO क्रममलोरेश्रक-चटविधेयकग्राब्दगुद्धिलखच धटमि- WTAE ANNA काङ्खामिखयकाग्यैतावच्डेदकतथा तदादि- पदरनन्मकमेल विगरेश्रक-घटयप्रकारकश्राब्दमोधे alee fate UR तादृश्रोरेश्य-विधेयभावापन्नवाभावात्‌^ घटमिद्यादौ कम्मैवत्वावच्छदेन धटसंग्रयविरोधिविप्रयिताब्याप्रतादृश्विषयिवाया- अत्भववलेनाभ्यपेयलात्‌ anew’ | aga तथापि चरं घटौ टाम्‌ AUG HAT कलसान्‌ KATA विग्रषाणां ITT द्मभिष्रारबार एायोक्तकमस्यावश्यमुसर णौ यत्वात्‌ |

चेवंरूपेण डेत्‌-डेतुमद्धाबे we: कमलभित्यादाबपि कर्म॑व- विभेत्रकाभेयलषंसरगक-घटग्रकारकश्ान्दवो धापन्तिः) चटं कलय- मिव्याघातुपूर्बौ विशेषात्मकाङ्खगश्चानानां तादृग्रन्षानाव्यवदितोक्नरब- fragrant प्रत्येव डेतुला दिति वाच्यं घटं कलषमिल्या- TAA विग्रेषश्ना नाव्यत्रडितो सरवत्यतिरिकतादृषरनराष्दबोधष्याप्र- बिद्धतवा Taare विगेषन्नानात्मकविग्रेषापनौ विर्‌ दादेव तच ताङग्ग्राङ्दबोधारदयात्‌ विशेषषामयौसडहिलाया एव सामरान्यषा- AA HAIR) घटं कलसं CATA ्ाना- वद्धितोकर वनेति रिष्रसादृ्रगराब्दबोभः तत्पदादिलन्यतादृशः जराश्होप्र एव afegwea घटः; कमौलमित्या दौ उत्पन्तिप्रसङ्गः

(९ केचित्त्विति we, ग° |

८९ र्कपदो पस्माप्यपदार्थानां उदेग्-विधेयमावाखीकारादिति ara | (९) इत्वाडरिति we, ग°।

, © मोग्वाच्चानबलादेवेत्यादिः।

शब्दाख्यतुरोयखस्छे WRK TYTATS: | २१९

नाम-विभक्ति-पात्वाखयात-क्रिया-कारकपदानां पर.

दूति aver) तत्पदादिअन्यता शश्राष्दबोधे खजन्यघरनिष्ठकषला- द्ात्मकविशिष्टोपसथितिद्धारा aqefenrre हेतुतया तदभावा- देव तस्यासम्मवात्‌। तादृघ्ोपसल्ितिदारा तत्पदादिज्नागस् कायैः तावच्छेदकश्च तत्पदादिश्नागविशिष्टताश्प्राब्दनुद्धिलं षेभिष्शच खाधिकरण्णवच्छदेन खजअन्यघट निष्ठकमेव विषयकत सद्‌ पस्धित्यव्यव - featucafta, इत्यञ्च शत्या दि विेव्यकामुकूललवा दिसंसरगंकागयमा- दिप्रकारकश्राब्दबोधेऽपि श्रव्यवहितपूष्वेवन्तितासंषगं कानयनपदल- धर्मितावच्छेदकक-तिपदत्व विगरेषशतावच्छद कक नि श्चयलेन कारणता तादृ निश्चय विशिष्टशत्यादि विगरेव्यकानुक्शलादि संसगेकागयमादि- प्रकारक शाग्दबुद्धिलेन्‌ RAAT, एवमव्यवदितोत्तरवर्तितासंसगं क- तिपदलधर्मितावच्छेदककानयपदलन विशेषणएतावच्छेद कक निश्चथतेन

कारणता ताङ्‌ शजिञ्चयविगि्टशत्यादि विग्रेव्यकामुकूलला दिसंसगंका- मयनादिप्रकारकशान्दबु दधित्वेन काय्येता दृत्थादिक्रमेण श्रागयति आभयतः श्रामयन्ति प्रापयति प्रापयतः प्रापयन्तोत्यारियद्दानु- gata: wet waver वा छत्थादिविग्रेयकानुकूलल्वा दिसंसगे- कानयनमादिप्रकारकान्वयनोधोऽलुभवषिद्धः तत्तदा नुपूर्व्वौ fray काथेतावच्छेदके प्रवेश्य प्रत्येकाुपू््वौ घटकपदयो faite fae भावमेदात्‌ कारे-कारणभावदयं बोध्ये, wai रतिरित्यादैः तु विगेषसामभौ विरहादेव तादृग्रथाब्दबोधोदय दति समाः | wey wed सङ्गमयति, नाम-विभक्नौति घटादिपदातुखारा-

RRe arafernrarat

wat विना परस्यरस्य खार्थान्बयानुभवजनकत्व |

दिपदेत्ययेः, ^धालास्यातेति आनयादिपद-व्यादिपदेत्यथैः, ‘firn- कारकपदेति त्थाद्व्यवदहितपृष्वेवरश्यानयादिपद-षटादिपदाव्यवहि- तोक्तरवश्वेसुखारा दिपदेत्थयेः, "परस्परं विना wera पर va परस्यरं विनेति योजना, श्रव्यवहितपूवंवर्तिलादिषंसरगेख परस्पर विशरेष्यक- परस्यरप्रकारकोपख्धितिं fateh, “ग eras ` यातुभवलनकलमिति तादाक्यातिरिक्रषम्बन्धेन कष्मैतादि विशे ग्यक-चटादिप्रकारक-हत्यादि विशरेव्यकानयनादिप्रकारकानयनादि- विभेग्यक-चरकषोला दिप्रकारकग्राम्दबोधजनकव faa, अतः कश्च त्वादि विभेष्धक-घटा दिप्रकारकमेदाग्वथनोधेऽग्यवद्दितपूल्ैवन्तिता अम्ब aa जटादिपरेऽनलुख्ञारादिमत्ं अब्यवदडितोन्तरवन्तिताषम्बन्पेनानु- खारादिपदे घटादिपदवत्वं वा wang, शृत्यादिविग्रेयकान्‌- | थनादिप्रकारकभेदान्वयनो धेऽवयवडितपूल्ववन्तितासम्बन्पेनानया दिपदे | त्यादिपद त्व श्रव्यवहितोत्तरव भिितासन्बन्धेम त्यादिपरे भ्ानया- दिपदव्वं वा श्राकाङ्घुग, ्रागयना दि विशरेव्यक-चटकष्येलादिप्रकार- waaay घटादिपद्‌ाव्यवहितोक्नरवश्येतुखारादिपदे त्यादि- पदाचब्धवहितपू्वेवर्स्यानया दि पदवत्वं त्या्न्यवदितपूल्वेवर्ष्यानयादि- पटे चटादिपदाचव्यवहितोन्तरवत्तुखारादिपद वत्व वा श्राका-

Sia Fe wate आनयनादिविगरे्यक-षटक्लादिप्रकारकभे- दान्बयवोधे अव्यवदितपरनववन्तिता सम्बन्धेन घटादिपदाग्यवदहितोन्तर- ` बश्येलुखारादिपदे त्याद्यव्यव डित पूष्वेवक््यानया दिपदवत्वस्य weafe-

गब्दाख्यतुखोयखके शब्दाकाङ्कावादः | RRL

atavafiareaay त्था्यग्यवदहितपूष्वेवर्यागयादिपरे . घटादि- पदाव्यवहितोश्सरवच्येलुखारादिमच्वख्च वा AAA घटं पटं कुखश्च(नयतोत्यादौ व्यवधानेऽपि आनयना दि विशरेव्यक-बटकण्यवा- दिप्रकारकमभेदाण्वयबोधात्‌ चाव्यवधार्मांश्नो सम्बन्धकोयौ faawate: किन्तु पू्व्वैवज्निंलोष्तरवन्तितवमाचं सम्बन्ध इति वाच्यम्‌ एवमपि आनयति घटमित्यादौ श्युतृक्रमेऽपि ताद्‌ एभेदा्वयबुद्या ay तदुभयो राकाङ्घुगलासम्भवात्‌, तथापि argursyty) पूर्वैव ज्िलोक्तरवभ्तिलान्यतर सम्बन्धेनानुखाराथव्यवहितपूभ्ववन्िघटादिषदे त्या्यव्यवहितप्म्ववर्स्यामया दि पदवत्वस्छ पूर्येव्तिलोत्तरव्तित्ान्यत- Tama त्याद्ब्यव दित पूर्वेव्यागया दिपदेऽगुखाराचग्यव हितपूष्वै- वे्निंषटादिपद वत्स्य वा magia, तेनानयति घरं घटमान्‌- यतौत्यादे रुभयय्छेव VY, परन्तु WIT सम्बन्धतावच्छेदक- SARITA) काय्यै-कारणभावद्यं, इतरया तु काय्ये-कारणभाव- चतुष्टयं, कारकपदेत्यस्च चाशुखाराद्यव्यवहिवपृष्वेवन्तिघटा दिषपदे- त्यधैः, घट-परटङ्खान्धानयतौत्यादौ चटपदाव्यवङहितोन्तरवस्तिपटा- दि पदाग्यवहितोत्तरवन्निङ्द्या दिपदोन्तरत्वसम्बन्धेन त्या चन्ानयादि- पदे घटादिपदवत्वमेवाकाञ्खग इत्यादिक्रमेण बोध्य? दत्यभिप्रायः।

मनु. नौोलोचटसेगोधनं चटोरूपमित्यादौ संयोग-खलाधेय- लादिसम्बन्धेन चट-धन-रूपादिविगरेग्यकः नौण-चेच-घटप्रकारकः |

(९) यान यनादि विरेष्यक-घटकम्भत्वादिप्रकार कमेदा।न्वयगोधे इत्यः | (र) gaara सम्बन्धत्वाभ्युपगम इति ° | (९) वाच्यमिति ae |

RRR तत्वचिन्तामणौ

gat शाब्दबोधः, एवं वेषः पश्यते age पचतोत्यादौ कटेल- कोला दिसम्बन्धेन पाका दिविग्रेव्यकः चेज-तण्डुलादिप्रकारकः कुतो शाब्दबोधः, एवं प्रति गच्छति चेत्यादौ sucaftiarfe- खम्बन्धेन गमनादि विरेकः पाकादिप्रकारकः छतो श्राब्दबोधः। भ॒ नामा्थंयोर्मामा्थं-धालवेयो्धालर्धयोख भेदेम परस्परम- ग्यमोध्छ(\ WAG तच तथा ्राब्दबोध इति वाश्यम्‌ निराकाङ्खलमनम्तरेणाग्युत्यततर्निवंकमगक्यलात्‌ WRTYTAY एता- दृ श्राब्दबुद्धावनिर््वयनात्‌ श्रय तकामेयमित्थादावेव तादृग्रभा- ब्दबोधः fag: तदादिपदेन ताद्श्विग्िष्टोपख्ितिदधारा arg: श्रद्माष्दबोधजननात्‌ तथाच तादृश ्राब्दबोधे प्रति लजन्वताद्श्- विशिष्टोपख्वितिसम्बन्धेभ तदा दिपदश्नानस्य हेतुतया तदभावादेव MAA agua तथापि षंयोगादिसम्बन्धेन चटाचुदेश्ठको नोलादि विधयकः कुतो शाब्दबोध ¦ तादृ्ोटेन्स- विधेयभावापन्ञश्नानं प्रति तदादिपदश्चानस्याद्ेतुलात्‌ विशिष्ट पटायेवे तु ताष्श्रविषयिताविरशदिति वाच्यम्‌ ay fy a- कंय क्रादिषट-तदौयधन-तहन्िरूप-तत्कदंक तत्ककेकपाकाचात्मक- सम्बन्ध एव चटल-धमत्वादिषूपेण wer खखणया वा seqrfefa- amar यथा नौखस्त ze Wwe वाटी पटस्य em agee शतिः Sweted इत्यादौ ata तादृश्ोरेश्व-विधेयभावापन्ना meaty: प्रसिद्धा, सण्प्रदायमते तु Mee घटः Wwe धनं चरटच्छ रूपं तण्डुलं पचति Sq पच्यते इत्यादावपि agum-

(९) प्रर स्परमेदान्वयबो धस्येति Go, No, |

WET CNA WAHT ATA: | RRR

sqafg: ufagt meat तज षष्धाच्यये खयो ग-खलादेः खंखने- तचा प्रकारतया | भानाभ्युपगमात्‌, एवश्च Vela कसलमित्या- न्वयबोधे घटादिपदे दितोयादिविभक्रिम्वादिकमिव arenfe- पदे षष््ादिविभक्िमि्वमेव तादृशान्वयबोधे श्राकाङ्का, खप्रयोष्य- इतिन्नागजन्यनोश-वटादुभयोपख्ितिषन्नन्धेन तभिश्चयख ता- दृश्रान्वयबोधे हेतुत्वं तेन तादृश्विभक्िम्वन्चानेऽपि ततो ate- चटाचमुपख्ितौ गन तथान्वयबोधः, सम्मदायमते पूर्यवर्नि- त्ो्सरवर्भिलान्यतर समभिग्या हारसम्बन्धेन ष्या्न्तनोखारिपदे घटा दिपदवत्रमपि MENTING Way, खप्रयोष्यटन्तिन्नान- लन्यविेव्य-विग्रेषणसंसगेपस्थितिसम्बन्धेन तन्निद्चयस्य ae, तेन mwa az: Wwe धनं दृव्यादो षषट्यादिना संयोग-खलारेरुप- खितिदश्रायां समागकालोनलादिसम्नन्धेम नोज-चेनादेष॑ट-धनादौ HI: समानकाञ्ोनला दिसंसगेष्य षध्याधरुपश्या पितलात्‌, TAG यथा घटः ककलभित्यादौ चटमित्याचासुपूर्ौ विगरेषाकाङ्ानिखय- रूपविशेष्रसामयो विरहाहटटन्ति कम्मलमित्याच्न्वयबोधामावस्लया Meee इत्यादावपि ware विरेषात्मकाकाङ्खमिखयरूप- विभरेवखामयो विरहादेव नोदेण्छ- विधेयभावापन्नतादृग्रान्यबोध इति चेत्‌, तरिं Net घटोऽस्ति Nel घटमागयेत्यादौ area, नो शादेषेटादावन्वयो aq घटायुदेश्छक-मो शा दि विधेयक- meaty गौशादिपदे वष्वादि विभक्रिमष्वस्छ खप्रयोच्यनोल- | घटा्युभयो पल्थितिशम्बन्धेन हेतुतया तद्भावात्‌ प्रहृते षटादेर्नौ-

(९ चटादावन्वयः कथं स्यादिति wo |

: २9 arte ataat |

परमते नौलोषटोऽस्ि AMS घटमानयेत्यादौ ATAT- थानां ATTRA A परस्यरमम्बयबोधः विशेषला-

खादिपदोन्तरविभक्नुपश्चापितलात्‌ | सम्प्रदायमते तु खक्कान्यतर- aman ` षष्टवा्न्नोलादिपदे घटादि पदवत्वस् सखप्रयुकनोल- चटतादाग्योपख्धि तिसम्बन्धेमासष्वाश्च तादाग्यषबगख् नोलादिपदो- सर विभक्वसुपश्चापितल्रात्‌ इत्यत ary, "परमत दति, नामार्या्ना प्रथमा विभक्रिखम भिग्याइतनामार्थानां, यचा नौोलोषटोऽस्तौत्यादौ, नक।(रकार्षा" कारक विभश्न्तनामार्थानां, यथा नौलं घटमानये- त्यादौ, THA कुतो नाम्बयस्तदाद, "विगरेवणान्वितेति विग्रेष- वाचकनोलादिपदोन्तरप्रथमा-दिती यादि विभल्वयेख्धय संख्या कषमेला- That, ^शअरनन्वयादिति प्रश्र्थेतावच्छेदकमोजलला्वच्छिसेन सममनन्वयप्रसङ्गा दित्यर्थः, सुवथेसंख्थायाः खषमानपदोपान्तेतरसम्ब- aa खखमानपदो पात्तेतर विशेषणं यन्तदनज्वितल नियमेन प्रथमा- य्थंखंख्यायाः awry घटादि विगेवण्णतयान्बितस्व नौलादे- विेषणतया श्रन्वयासम्भवात्‌; संस्या-कालाद्यतिरिक्रविभक्थेखय सेतरसम्बन्धेन सेतर विशेषणं यन्नदमन्वितत नियमेन दितौथा- ` दचथंक्मलादेस्तादाम्यखम्बन्धेन चटा दि विग्रेषणतथान्वितख्च नौलारे- fanqenat श्रश्वयाषम्भवादिति भावः। षम्मदायमते घटमानं येत्थादौ wees: संसगतया प्रकारतया उभयथा भानाग्वुपग- मात्‌ यन्बहृतापि “यदेत्यादिना विभक््थेस्छ प्रकारतथा deiner उभयथा AAA वच्छमाणलात्‌ खसमानपदोपक्तेतर षम्बन्ध-खेत-

WATTS शब्दाकाङ्गावादः। २२५

म्वितविभक्तयर्थानम्बयादिति विशिष्टवैशिष्येनान्बयः fara: समाजः। अस्माकन्तु नौल-षटयोरभेदानु- भवबलादभेद्‌ एव Gat: विशरेषणविभक्तिः ayaa |

रसम्नन्धयोर्मियमे wey नशु -नौश-घटयोः qc क्लादौ नौलविशिष्टधट विगिष््रत्ययः कथं स्यादित्यत श्राह, तोति, ‘a विशिष्टवैशिष्येनेति, श्रतएव एतन्मते ffweafine- भाय एव इत्ययः, ‘fara: समाज इति किन्वर्थयोर्मल- कश्मत्योधेट-कश्मेवयोः समाजः एकस्यामेवागयनारिक्रियायामन्वय- इत्ययः, wetted इत्यर्थे तद्धितप्रत्ययात्‌, एवश्च He घटमामये- त्यादौ नौलकम्क-घटकमकानयनासुक्ूलति मा नित्याकारकोऽग्व- यबोधः, Tet घटोऽसि caret एकनौलोऽसि एकषटोऽसि इत्यन्वयवोध दति भावः। तत्‌ किमिव निर्भरो मादृश्ामित्यत- श्राह, श्रस्माकन्तिति, “श्रभेदानुभवबलात्‌' श्रभेद संसर्गकान्वयबो - धस्यामुभवसिद्धलात्‌, “wig एव sat इति श्रमेदो नौल-घरयोः संघगेमर्य्यादया भासत एवेत्यथैः, भ्रमेद्‌ातिरिक्सम्बन्धेन घटाचुदे फक- गोला दि विधेयकशान्दयुद्धि प्रत्येव ATMA yea विशेषात्मकाकाङ्का- faqaat भिरक्रो पश्थितिसम्नन्धेन tae saa Aeaqz- मागय नौ शोत्पलमित्यादिषमासख्ले नौोलादेरन्वयाबोधप्रशङ्गा- दिति भावः) wad प्रयमा-दितौयादि विभ्य dea MS प्रहत्धयतावच्छेद कनोललावच््छिन्ेन सममन्यबोधः कथं हा दित्यत श्राह, “विगेषेरेति, 'साधुलाथमिति सावधारणं अ्रभेद्‌(- 29

Re तस्वचिन्तामणौ

MARY आाकाङ्खासन्पत्यथेमेवेत्धथेः, तु तदयेख नौखलाद्यवच्छि- aa सममन्वयबोघ इति भावः। यद्यपि विग्रेषणविभक्रभेदाग्वय- a कथमाकाङ्घगसम्पादकलं नलेन घटमानयेत्यादौ च्रभेदान्वयबोधे श्राकाङ्खयभावाद्दिशरेषणए-विगरेव्वाचकपदयोः खमान- विभक्िषमभिन्या हारस्वाभेदेनान्वयनोधे श्राकाङ्खालान्तख्य Way अन्पादकलमिति वाच्यम्‌ ae: नोशोत्पलमित्यादिषमा- बचे सुन्दर दपि दधद मित्यादावख्मास्यले चभेदान्वयबोधा- qari i तच लुप विभक्तिसमरण्णादेवान्वयवोध इति वाश्यम्‌। तदस्मरेऽपि अभेद थबोधात्‌ राजपुरुष द्रव्या दिषषटौतत्पुवादौ शप्तविभक्तिसारणेमापि समानविभक्रिकलातुपपन्तेख तज षष्ट्या एव WHAT HA प्रथमायाः, एवं नौलोत्पलस्टेव्थादिकश्येधारयादावपि छ्विभक्तिखरणेम समानविभक्रिकल्वासम्भवः तच AW प्रथमाया एव GUM नतु VM मरयमादेलु्लेऽपि ततृषरण्णदेव तजागन्वयबोध इति वाच्यम्‌ श्फुटतरानुभवविरोधात्‌ way विरद विभक्रिरादित्यमभेदाग्वयबोषे तम््रमित्यपि निरस्तं विर्दू- विभक्तिरादित्यं fe विशरेषणएवाशकपदे विशेव्यवाचकपदोन्तरवि- भक्तिमिन्न विभक्िरा रित्यं, विगरेब्यवाचकपदे विशेषणटवाचकपदो- कर विभक्िमिश्नविभक्रिरादित्यं वा, नाधः सुन्दरं दधोत्यादाव- असिद्धेः प्रतियोगिकोटौ विभ्वे प्रसिद्धिसम्भवेऽपि तद्राहि- ` याभावात्‌ स्तोकं पकतोत्यादावभावाचच दितोयः, cate लोलोत्पलमित्यादौ wag: मरतियोगिकोटौ विभकपरवेशे प्र

(९) ्मेदान्धयबोधामावापन्तेरिति we |

ग्रब्याख्यतुरौयखग्डे शब्दाकाङ्कावादः। २९७ यदा समानविभक्तिकयोरभेदानुभवबलात्‌ .विथेष-

सिद्धिषम्भबेऽपि axa स्तोकं पचतीत्यादावभावाश्च | | अत एव विगरेषणवा खकपदे विशेव्यवाचकपदोन्तरानुसन्धौयमानवि- भक्रिमिन्नविभक्रिरा हल्यं, विशरव्यवाचकपदे विग्ेषरवाचकपदोत्त- रागुषन्धौयमानविभक्िभिन्नविभक्तिरादित्य वा तदित्यपि न, ata पचतीत्थादावभावात्‌ सुन्दरं दधि दधीदं नोलोत्पलमित्यादौ लप विभकङ्गिमसमरतेाऽपयभेदान्वयबोधाख, fetta राजपुरुष द्ग्धादि- बष्टौतत्‌पुरुषादौ नौलात्यलखेत्यादि कधारथे सप्तविभकतिसर- सेला्यनुपपन्नेशेति तयापि यादृश्-यादुश् विगश्रेषण-विगचेव्यवासक- MAIS दिपदसमभिव्याहारात्‌ नोल-चटाद्योरभेदानयबोधोऽनु- भवलिदड्धम्तादृश-तादूश्मौ -चरादिसममिव्याहार एव भौोल-घटा- शोरमेदान्वयमोषे mag, समभिव्याहार कचिदव्यवडितपृष्वेव- सिल, कचिदग्यव हिता श्तरवन्ितलं, कचित्‌ पूव्वेवन्तितन्लत्यद पूष्मैव्ि- वादिकः, कचिदुन्तरवर्तिल्तत्पदोत्तरवन्तितवा दिकं दति कमेण बोध्यं, mafaqua खविश्िष्टनो रघटाद्यभेदाग्षयनृद्धिलावच्छिशं प्रति डेतुलमिति परस्यरं व्यभिशारः, तादृश्सममिव्याहारमध्ये

घमानविभक्रिकयोः समभिव्याहारोऽपि प्रविष्ट इति विगेवर विभ कराकाङ्जुम सम्पादकत्वं युक्रमिति we | | a

प्रहत्यथेतावच्डेद काव च्छिन्ना न्वितलायेबोधकत्वे सम्भवति तत्प- रिष्यागखागौ चिन्यादाह, "यदेति, “श्रमेदानुभवबलादिति, मेदस संखगेतया प्रकारतया .चोभययातुभवसखो कारात्‌ त्ययः, ‘faiwer-

ARC araGarqtaat

शाग्वितिविभक्त रभेदा्थंकत्वं अतो fadtqu-fasenr- वाजुभावकत्व तत्पदयोः, परस्यर विना। दार- मित्यबाथ्याहारं विना प्रतियोग्यलाभात्‌ arat

fatfa, विगेग्य-विगेषणएवाचकपदोश्तरप्रयमा-दितीयादेरिव्यचेः, “विगरेषण-विग्रेव्यभावेति परस्पर विगेष्य-विगेषभावेन स्ारथैताव- च्छेद कावच्छिश्नानुभवजनकत्वभित्यथेः, ^तत्यदयोरित्यनन्तरं केदः विग्रेषटवाचकपद-तदु न्तर विभक्रष्थो रित्ययंः, “भ परस्परं विनेति न. खार्थतावण्डेदकावच्छिश्नयोः परस्परं विगेग्य-विगषणभावं वि- नानुभवजनकलमित्यथेः, इत्यश्च मौलघट दत्याटावेकत्ववन्नो लवान्‌ तादृग्रनौखाभेदवां शच) ` एका घट दृत्यम्वयबोध दृति ara: | ननु शृत्यादि विशेषकारुकूलत्वा दि संसगंकानयमादि प्रकारकग्राब्द- बोधं प्रत्यानयनादिपदे त्यादिपदवलशधैवा काङ्कालि केवल TWIT मिल्युक्षावपि श्रानयमहृत्या दिरूपार्याध्याहारात्‌ दारक्कानयना- apenas इत्थन्वयबोधः कथं wigae: कण्डेलमित्यादाविव ावदिशेवण्षामयौ विर हा दित्यत wre, “दारमित्थकेति, शश्रध्या- हारं विनेति ्रागयतौत्यादिपदाध्याहारं विना, खाति ATTRACT ARAB दत्यन्वयनोधजगकतवमित्थयेः, अन डेतुमार, श्रतियोग्यलाभादिति, कारण्तौतानयपरतिथोग्युपखिते- रभावादित्यथः, ser पदजन्यपदार्योपखितेः श्ाग्दमुद्धौ रेतुला- दिति भावः। नतु खर्गकामो यजेतेत्यादौ खगं कामस कार्योयाग-

(९) खकत्ववन्नौलाभेद वां खेति wo |

. शन्दाख्यतुखेयखष्दे शब्दाकाङ्कावादः | २२५

न्व यानुभावकंत्वं, विश्वजिता यजेतेत्यच ममेदं काय- सिति प्रवन्नकतात्पय्थैविषयन्नानं नाधिकारिणं विनेति ASTHIBT |

यदा कर्तुरिवाधिकारिणेाऽपि wanes लाभ-

दति प्रतोतेः Gate यजेतेत्यादौ तदप्रतौतेख विध्यपस्धाय- RIAA सह खगकामान्वये सगेकामादि पदे स्ारिपदवक््वमेव MART वाच्या तथाच विश्वजिता यजेतेत्यादौ खर्गकामरूपा- थाध्याहारात्‌ कथं तादृगशरान्वयनोधः आकाङ्काविरहादित्यत श्राह, “विश्वजितेति, “ममेदमिति सगकामखेदं रतिखाध्यमित्याकारक- मित्यथेः, ‘sadafa, प्रवत्तेकतात्पय्यैविषयौग्तं श्ानमित्यचैः, 'नाधिकारिणं विनेति, प्रथमान्तखगंकामपद्‌ाध्याहारं fata, "तद्‌काङ्खति, तज्राकाङ्ान्नाममिल्यथेः, श्रखयेवेति गरेषः। aA रिबेति यजत्र पचतोतिपदमाचं प्रयुक्तं भतु चेर रादि तज यथा पाक-कत्यारन्वयबो धानन्तरमनुमानाचे जा रि कटं विगेव्यकाग्बथ- rgd, श्रधिकारिणोऽपि' विश्वजितित्यादौ खगेकामखापि, “आेपादेवः श्रतुमामादेव, श्रतुमानं afd, तेन ‘Pena afin दति wee dba, "लाभः, विध्यथेका्यैवेऽनयबोधः, "तदन्वयः" विष्य क।य्येवे तदन्वयः, “श्रानुमानिकः' श्रनुमितिरूपः, यदा (लाभः, उपथितिः | ननु खगेकामस्यानुमानत उपस्ितावपि काय्येत्ेन सह तदग्वयः गरष्दप्रतिपाद्य एवेति दोषस्तदवस्थ

RRe सश्वचिन्तामबो

दति तदन्वयो शब्दः किन्वानुमानिकः, गौख- लाक्षणिकयोरननुभावकत्वपश्चे तदुूप्यापितस्याध्या-

इत्यत wy, दति तदन्वय दति सखगंकामख्यादेपाल्लाभेऽपि पद्‌- अन्यपदार्योपथ्यितिरभावान्न तदम्बयः शाब्द इत्ययः, तथाच तचा- काङ्ा विरद्ेऽपि चतिः इति भावः नलु चन्द्रे तिलकं गङ्गायां जोष दत्यादौ सप्तम्यर्याधेयलविगरेव्यक-निरूपितलसंसगंक-सुख- लौरादिगौण-लाचणिकाथेप्रकारकान्वधबोधं प्रति चश्-गङ्कादिपदे .. खपनम्यादि विभक्तिमत्वमा काङ्ख तचोक्रणवणमव्यापतं गोक-खाशणिक- पद विषयकज्चानयोगे णक चपिकपदो पा पितार्विषयकशाम्दासु भवं प्रत्यजनकलेन सप्नम्यादि विभक्िप्रकारक-चष्द्र- गङ्गा दिपद विशन ग्यकज्ञानाभावस्छ तादृ गान्वयबुद्धभावाप्रथोजकल्ात्‌ कारण्णभावस्तेव का््याभावप्रयोजकलवा दित्यत श्रा, "गौ ए-लाषणिकयोरिति, गौष- खाचणिकपदश्ञानयोरित्यधेः, साड्श्ात्मकशक्थसम्बन्धो गौरो न्तिः तदितरषम्बन्धो waar, “श्रनसुभा वकल्पे * श्रतुभावक- = ल्वाभावपरेऽपि, "तदुपस्ापितख् नारुभावकलं" ATTEN PASTE भवविषथत्वाभावः, तदुपस्ापितविषयकाुभवाभाव दति चावत्‌, ‘encad विनेति चश्र-गङ्ा दि गौप्य-शाचणिकपद विपरष्यक-सक्षम्या- दिषूपेतरपदप्रकारकोपल्थितिव्यतिरेकपरयुक् दत्यथेः, गौणए-लशाक- शिकथोरनतुभावकलवादिन।पि सुख-तोरादिगौणए-लाचणिका्थे- | प्रकारक-निशूपितत् 1दिसंसगंकाधेयलविभेग्यकशाष्दालुभवं प्रति wx- गङ्खादिषदे सम्या दि षिभक्तिमलरूपा नुपू विगरेषध्रागख हेतुना-

WATTS WRUNG | RAY

wawane fan arqurad घटः कम्मेत्वं ee ee ana wafed गङ्गानिष्टलं इत्यादौ ताद्रा्यवोधाभा- वात्‌ चेवं गौण-लाचफिकयोर्मासुभावकनमित्यखच कोऽयं इति वाच्यं | श्ाष्दानुभवं प्रति WHATS काय्येकारणभावो तावद्‌- ह्तिम्बन्धेन तत्मकारकपदन्चानलेन च्छाग्दयु द्धिवेन, wa: wie सथणान्यतररूपतयथा तेन रूपेण saa गौरवादपि तु wwu- aay गक्रेलचुतया whined narra fren गिमकारकपद- ज्ञानत्वेन कारणता तच्डाब्दनुद्धिवेन काय्येता गङ्गायां घोष इत्या- दावपि शक्रिसम्नन्धेन तोरान्वयप्रतियोगिप्रकारकपदशन्चानमख्येव. aaa तो रान्वयप्रतियोगितया शक्रिसम्नन्धेनाधेयचप्रकारक- सप्नमौ विभक्तिन्नानस्यैव तयालादतो गौणौ लचणाटन्तिने परज्ञा मनिष्टगराम्दबोधकारणतायाः शांसगिंकविषयतासम्बन्धेनावच्छेदिके - त्येव तदचैत्वात्‌, तु गौण-शाकणिकपद्‌ विषयकञ्चानस्य केनापि wae श्ाब्दामुभवहेतुलमिति ace, abofeufiada भमा- त्मक-गद्गादि पद न्ानस्य तेनापि हेतुला्युपगमादिति ara: wat) समुचितं दृष्टान्तमाह, श्रध्याइतस्ेवेति, श्रह्पस्वापितस्य प्रवादा- Vaart, यथा शपथा पितप्रवा हा दि विषयकातुभवाभावो गङ्गा दिपद्‌ विभेव्यकसप्तम्या दिरूपेतरपदप्रकारकञ्नान्यतिरेकप्रथुक्रस्तथा ` लखणोपस्था पिततौरादि विषयकानुभवाभावोऽपौत्यर्वः ममु क्म

(१) तदुपस्यातितस्याचं स्याध्याषृतस्येवेसरपद विनेति we |) तदुपस्था- पितस्याध्याहतपदस्येवेतरपदं विनेति ae | (९) अवरापोति we |

RRR त्वविन्तामणोौ

madd कृतिरित्यादौ अभेदेन नान्वयबोधोऽयोग्य- त्वात्‌ तत्नत्पदेभ्यस्तात्पय्थविषयतन्तत्पदाथंसखरूपन्नानभ्ब पदान्तर fata) घटमानयतौत्यबेव ata तथा- म्बयतात्पर्ययेऽपि क्रिया-कारकभावेन नान्वयः, नाम-

लला दि विशेव्यकासेयलादिमेद संषगंक-घटा दि प्रकार कान्वेयबुद्धिं प्रत्येव चरटमिव्याधानुपूष्वौं विगरेषस्याकाञ्खगत्वात्‌ घटः कष्मेलमित्यादौ ताद्‌- श्रशाब्दबुद्धि्माऽष्ठ अभेदयंसरगे कुतो नान्वयबोध इत्यत आद, "घटः कष्मेतमिति, “श्रयो ग्यलात्‌' योग्यतान्ञान विरहात्‌, योग्यता - अरमदश्रायान्तु भवल्येबेति भावः मतु यदि ay योग्यता तदा तत्पदार्योपस्थितिरेव कुत इत्यत sty, "तत्तदिति, “पदान्तरं fanafa, का तु कथा योग्यताया cae” नलु श्राघेयतलादि- संखगेक - कमला दि विगरेष्यक-चटादिप्रकारकशाब्दबोधे Fe fear qual विगेषरेवाकाङ्खाले घटः कश्मेवभित्यादावपि कदाचित्ता- ema तात्पय्येद्‌ रायां तादृग्रायनबोधो gaat कथं स्यादित्यत आड, ‘aefafa, भ्रमेणेति श्रययार्यं नेत्यथेः, wie salar, तथाचायया्यतयाग्बयतात्पर्थंऽपौल्ययेः, ALTA तया- न्वयबोधानुत्यस्या तदिच्छाया श्रययायेलमिति भावः क्रियेति चटक्ौकानयनानुकूलकतिमा नित्यन्यबोधञ्च कदापि नेत्यथेः, अच aay, “नामेति, चत इत्थादिः, “श्रन्वयबोधे' अरभेदातिरिक्र-

(९) चटादिपदे खनुखारादिपदं fatterd:, योग्यतायाः का कचा योग्य- areata पदार्यापश्ितिः स्तरा मविष्यतोति भावः |

WAC ASW शब्दाकाद्वादः | Rag

विभक्ति-धात्वास्यात-क्रिया-कारकपदानां अन्वयबोधे तान्येव पदानि समथानि नतु तदथेकानि पदान्त- राणि। aft: करणत्वं area कम्मता पाकः रतिः इष्टसाधनता शइत्यादिपदेभ्यः afaaied पचचेतेत्यजेव अन्वयावोधात्‌, अप्निकरणकोदनकम्पेकपाकविषयक- छतिरिषटसाधन इति तु वाक्य पद्‌, तरव BIT

aman खार्यान्वयबोधे, "तान्येव पदानि, भामादि पद षम fare farmnfzeuraa पदानि, 'समर्थानि' खरूपयोग्यामि। way किं प्रमाणं इत्यत आर, शभ्निरिति, !शतिरिष्टसाधनतेति, श्तोष्ट- साधनत्वं fae: इत्येकदेशिमताभिप्रायेरेदं ननु नाम-विभक्वा- ` दर्यामामभेदा तिरि कसम्बन्धेमान्वयनोधे भामादिपदसमभिन्याइत- farmizta सखरूपयोग्यत्ेऽभ्रिकरणकौ दनककेत्यादावभ्चिनौ दमं परचेत्यचेवाग्वयबोधः कथं स्यादित्यत श्रा, अ्रभ्चिकरण्केति, इति तु वाक्यमिति इति वाक्यमित्यथंः, ‘a पद” तादृश्रायेप्रत्या- at, अप्निमौदनं पचेदित्यच fe श्रग्निरिंष्ठतासम्बन्भेन विशेषणतया ढतौयायेकरएवेऽन्वेति, कर णत्वश्च निरूपकतासम्बन्धेन विशेषतया पाके, काय्येलस्य\) उतो याये ्रद्धिनिंरूपिततलसम्बन्धेन विरेषणतया दतौयायेकाय्येले,(९ तच्चाग्रयता सम्बन्धेन विगरेषएतया पाके, एवमोदनं निष्टतासम्बन्धेन विगरषणएतया fattened कमते, avery निरू-

(१) जन्धत्वस्येति we | (९) द्रतौयां्थ जन्यत्व इति we | 20 |

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faa पिधेडिपदाध्यादहारः, क्रियापदाथेस्यान्यत उप-

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पकता घम्बन्धेन विशेषणतया पाके, wag विषयितासम्बन्येन विशे QUA विष्यो, ताकृ्पाकविषयककृतौ विधेरर्थाम्तरमि- हसाधनत्मा यता सम्बन्धेन विगेषण्तयाऽन्वेति, अग्निकरस्वत्यादौ अ्भ्निपदस्याग्निनिष्ठे waar, करणपदस्य करणता निरूपक wear,

तरैकरैशे करणतायाश्चा्चिनिष्टस्याभेदेनान्वयः, तादृश्रकरणता- निरूपकस्य तु wave पाकपद्‌ा चख पाकनिरूपितस्येकदे गरे पाके इभेदेनाग्वयः, एवमोदनपदं श्रोदननिष्टपर, कम्मपदं कम्मंता मिरूपके शाचणिकं, तदेकदेशे कम्मतायाश्च ओरोदनमनिष्टस्यामेरेनान्बयः, तादू- शरकश्मता निरूपकस्य लखणया Wwe पाकनिरूपितस्य एकदे पाकेऽभेदेनाग्यः, तादृश्निषूपितस्छ^५ तु लणया विषयपदायेख विषयिताश्रयस्येकदे विषयितायामभेदेनान्वथः, विषयिताञअजयय्य तु क्ञतावभेदेनानवयः, इ्टपद श्च इ्टनिरूपितपरः तस्य साधनपदार्थेक- SH शाधनतायामभेदेनाग्वयः, साधमस्य शृत्यादावभेदेनान्यः, ्रभे- qaqa एकदे शाग्वयासदहिष्णुतायाश्च विषयपदद्येवा भ्िनिष्टकर- शतानिरूपकौदन निष्टकब्मेतानिशूपकपाकविषयिणि weer, श्रन्यत्‌ स्वं तात्पय्येया दकं, तादृश्रविषयिणि शतेरभेदेनान्बयः, इष्टपदमपि तात्पयैपाइवं, साघनपदश्चेष्टषाधनपर, तस्य कतावभेदेनाग्वयः इति भावः। श्रतएवेति यतो नाम -घालाख्यातादि भिर्यादृश्रान्वय- ` मोधो ` जन्यते तादृशान्वयबोधे तान्येव पदानि समर्थानिनतु पदान्तराणौत्य्यः, “क्रियापदा्स्येति धाल्थश्या पिधानद्त्यधः,

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(\) qrnqewey पाकनिरूपरितस्येति wo |

शब्दाख्यतुरौयखणे WAIHI: | २६५

सितौ अपि कारकानन्बयात्‌ असामथ्यैष्च खभावात्‌। नासन्नमपि अासन्रतादशयां Waaaqyaq वा अन्वयबोधसमर्थैमेव विना सिष्बतौत्यव क्रि- या-कारकपदयोरभ्बयबोषे VAM अयोग्यतान्नानं

aaa? धातुं विना, “कारकेति कष्मेवान्वयासम्भवारित्ययेः नतु. पदल्वा विशेषेऽपि किञ्चिदेव खदूपयोग्यं किथिनेत्यत्र fa निया- मकमित्यत आह, "असामथै्चेति, सखश्ूपा योग्यवघेत्यचः, 'खभा- वात्‌" | aay विशेष्पाकाङ्खात्मकखशूपयो योग्यतावच्छेदक- ध्मोविरहात्‌ नन्वेवममासन्नस्यापि खरूपायोग्यवादेव शाब्द बो- - धाजमकलोपपत्तेः किमा सत्तः एरयक्‌हेतुवेनेत्यत, We, “्रनासक्ञ- मपौति व्यत्रहितोच्चरितमपौत्यथेः, “श्रासन्नतादश्रायां" श्रव्यवधाने- नाग्वयप्रतियोग्युपखितिदश्राया, दृदश्चाव्यप्रतियोग्युपखित्यव्यव- धानस्य BSAA, तज॒न्ञामस्य Wags ary, शत्रास- ललभ्रमेण वेति, “श्र्यबोधसमर्थमेवेति श्रन्वयबोधोपधायकमेवे- त्यथः, तथाच तख खरूपायोग्यले ततः कदापि फलोपधानं दयादिति भावः। नतु नाम-विभक्गिधालाख्यात-क्रिया-कारकप- दार्थामामभेदा तिरिक्रषम्नन्धेनान्वयबोधे मामः दिखमभियाइतविभ- हवादौनां खरूपयोग्यले afea सिचतौत्यतच्र कुतो agar बोध. इत्यत we, वङ्किनेति, शवामर्यऽपि' ` खरूपयोग्यवेऽपि, ‘gitar’ श्रयोग्यतानिञ्चयः, “श्रतएव' अयोग्येऽपि खषूपथो- ग्यलल्वादेव | नमु योग्यताभ्रमदग्रायां खद्ूपयोग्यताभरमादेवाग्य-

RRA | तत््वचिन्तामणौ

प्रतिबन्धकं दाहे समर्स्याप्यम्मम्मंणिरिव अतएव योग्यतासमात्‌ प्रतिबन्धकाभावे ततोऽप्यन्वयबोधः। नहि खभावतोऽसमथं आरोपितसामर्थ्यं वा. दहति uufa वेति, प्रते तु पदाथैसखरूपन्रानं त्वन्वय- waist | पुरुषपदं विनापि रान्न इत्यस्य पुचेण समं खार्थान्व्यानुभावकत्वं इति तदाकाङ्का | |

बोध इत्यत wy, रोति, “@araitsand” दस्तगत्धा अरज- aa, श्रारोपितषा मध्यै" श्रारोपितजनकताकं गतु घटः कमल fare: खरूपयोग्यले तज श्ाब्दप्रमानुत्पादेऽपि कचिच्छाष्दभमो जायत एव कथं स्यादित्यत श्राह, ‘nua लिति, az: क्ै- लभित्यादावित्यथैः | नन्वेवमजनितान्वयबोधजनकलस्छ AAA विरदादयमेतौत्यादौ राज-पुजथोरणन्वयबो धानन्तरः दितीयकच्चणे राज-पुरुषयोरन्वयबोधापत्तिराकाङ्खय सत्वात्‌ पुरुष विगेक-राज- ्रकारकान्वयमो धस्याजनितत्वाद लुमितौ fegita षमानाकारक- शाब्दबोधस्य प्रतिबन्धकताया रपि तच वक्षमग्रक्यलादित्यत राह, “पुरुषपदं विनापोति पुरुषविगरेव्यकराजपरकारकान्वयबृद्यजनकल- tan, aura’ जनितखार्यानुभावकलव, "न तदा- IQA तच्राकाङ्कुत्यथेः, राण -पुरुषयोरग्वयबोधजनिकेति se: तत्पदथन्यग्राम्दबोधे तत्पदअन्यश्राष्दबोधसामान्यस्येव प्रतिबन्धक- वादिति भावः।

उम्दाख्यतुरौयखग्डे शब्दाकाङ्कावादः | २९२७

यदा चयाणां सरणेऽजनिताम्वयबोधदशायां पुर- षान्वये तात्पर्याभावात्‌ नान्वयबोध इत्यग्रेऽपि तथा | चख .पुचस्योल्िताकाडूत्वात्‌ तेनैवान्वयबोध इति वाच्यं तात्पयैवशात्‌ पुरुषेणेव प्रथममन्वयबोधात्‌। ` श्रतरवान्वयबोधसमथैत्वे संति अजनिततात्पग्थैविष-

नन्वेवं राज-पुज्रयोरण्वयबोधोष्नरः तात्पय्येभ्रमेऽपि राज- qe षयोरग्वयबोधो स्यात्‌ प्रतिबन्धकसत्तादित्यरुचेरार, "वरेति; "त्रयाणां" राज-पुत-पुरूषेतत्‌ याणं, शश्रजमितेति पुतेण सम- मजनितान्वयबोधद शायामित्य्थः, 'तात्पय्योभावात्‌' arate भावादेव, ‘safe पुतेण सममन्वयबोधे जनितेऽपि, तथा” we wad तात्पय्येमिश्चयाभावादेव नान्वयबनोधः, amare. भवत्येवेति भावः। नतु पुत्रेण सममजनितान्वयबोधदश्रायां quai पुरुषेण सममन्वयधोभे भवति किन्तु gata aw पुजस्ोत्थिताका- aaa asi तु तात्पय्यन्नान-तदिरदौ fiat इत्थाश्दङ्ते, “न चेति, उत्थिताकाञ्बुग्ात्‌, ससम्बस्िकलात्‌, ससमनन्धिकलश्च सम्बन्ध्युपस्ितिमियतोपस्थितिकत्व, भवति डि खजन्यपुंस्लादरिरूपं पुजलादिकं राजादिघटितमिति भावः(९। ‘arden ता- TAMA, ‘Qala क्षति दित्यादिः, afenta पाटः, तथाचोत्थिताकाङ्खा व्यभिचारिणोति भावः। “श्रत एवेति चतु- च्न्तात्तसिः, श्रयमेतोत्यादौ राज-पुचयोरग्वयनोधानन्तरः राज-

(९) क्षित्‌ पुरषेकेवेति awe | (९) राजादिघटितमिन्यैः |

RRC | तच््वचिन्तामणेै

यान्वयबोधत्वमाकाङ्कति केचित्‌ प्ररति-प्रत्ययाभ्या-

पुरुषथोरन्वयबोधवारणायेवेत्यथंः, अवयवो धमते सतौति तदि- शेगव्यक-तत्मकारक -तक्छंसगं काग्वयवुद्धिजनकले VAT, “WATT तदिगरेव्यक-तत््रकारक-तत्घंषगेका्यबोधे WAHT, अच सत्यन्तेन ae: कम्मेलमित्या दि निराखः, अनकतावच्डेदकन्तु तन्तदातुपूर्नवौ- विगेषविशिष्टवमेव, ^अजनितेश्यादिना राजपुचान्वयनुद्धिमाचता- AAAS राज-पुजयोरग्वयनोधानन्तरं राज-पुरुषयो- रण्वयवोधनिराखः, राणपुवान्वयमो धमाचतात्पय्यके अयमेतोत्यादौ तात्पय्यैधमेण राज-पुरुषयोरम्बयनोधे जातेऽपि राज-पुजयोरन्वय- बोधे श्राकाङ्खासम्पादनाय तात्पस्यैविषयेत्यन्वयबोधविगरेषणं 4 देवमस्माद्राज-पुजयोरग्वयनुद्धिः राज-पुरुषयोरण्वयबुद्धिश्च भव- वितौच्छयोच्चरि तेऽयमेतौत्यादौ तात्पय्यैयदपौरव्वापय्यैक्रमेण राज- युभयोरग्वयबोधामन्तरं राज-पुरूषयोरन्षयबोधेऽपि wager ष्यात्‌, एवं घटमानयेत्यादौ am: क्रमिशग्राब्दबोधदयेश्छायामपि श्राम्दबोधदये श्राकाङ्खम स्यादिति ari अजनितेत्यादिना तत्काल्ीग-तत्पुरुषोय-खननितापर््ा यत्कि चचिन्तात्पय्येविषयताव- च्छेद कलस्य विवचितलात्‌ तत्कालोनल-तत्पुरुषौ यलयोः खजनित- खविगश्रेषणत्वात्कालान्तरे पुरुषान्तरे वा तादृश्रश्राब्दबोधजननेऽपि म्‌ चतिः, तत्कालपदं फलोग्डतशाष्द बो धाव्यवदडितपूर्वदणपरं चेवं तादृश्रसम्‌ हालम्ननतात्पय्थकेऽयमेतोत्यादौ रान-पु्योरग्वय- TWAT राज-पुरुषयोरन्वयबोधसमये रा-पुच्रयोरपि पुनरणग्वय-

ग्रब्दाख्यतुरोयखदे ्रब्दाकाङ्भावादः। Ree

बोधापन्निरिति वाच्यं खण्डत्राक्धायेबोधोत्तरं खण्डवाक्याथे- चटितमदहावाक्यायगोधवदिष्टवात्‌, तात्प विषयलशच वक्रूतदितर- साधारणप्रहृतपद्‌ जन्यलप्रकार केष्छा विषयत्व तेन एएकादि वाक्धस्यले भगवन्तात्पय्ैमाद्‌ायाकाङ्घासौरभ्यं भम चेवं राजपुत्रान्वयबुद्धि- माबतात्पर्थकेऽयमेतील्यादौ राज-पुचयोरन्वयवो धानन्तरमपि राज- पुरषयो रग्वयबोधे श्राकाङ्घापत्तिः भगवत्तात्पथ्द्य राज-युरुषान्वेय- Mista स्वादिति वाच्यं तदाक्येन राज-पुरूषयोरण्वयबो- धाजननान्तदवाक्यजन्यलप्रकारकभगवदिच्छया रापुरुषाग्वेथबोधे विरात्‌ भगवदिच्छाया श्रययार्थलाभावनियमात्‌ तेनैव वाक्येन TNA कालान्तरे ABA वा पुरुषस्य राजपुरषा- न्वयमो घलननात्‌ तद्वाक्यजन्यलप्रकारकभगवदिश्छाया श्रपि राज- पुरुषान्वयबोधे सम्भव इति वाच्यं यत्र तस्मादेव वाक्यात्‌ पुरूषा- न्तरस्य कालान्तरे तस्येव वा -पुरषस्य राज-पुरुषयोर्यबोधसतज राज-पु्रयोरन्वयबोधोत्तरमपि राज-पुरुषाश्वयबोधे श्राकाङ्म- BHU CEA, राज-पुरुषयोरन्वयबोधाभावञ्च सतोऽपि राज- पुरुषान्वयबोधे भगवत्तात्यय्येस्य तदामो Wana तात्पय्यैवरि- ताकाङ्गुन्नानविरष्ादय वा तसमादाक्यादिदानोमेतस्य पुरुषस्य तदिगेव्यक-एतत्मकारकान्बयबुद्धिभंवलित्याकारकं तत्कालोमल- तत्पुरषौ यलप्रकार TAT घटकमिति नोक्दोषः। तथापि यत्न am: राजपषुचाश्वयबृद्धिमात्रे aaa’ ओ्रोतुङदासौन- पुरुषान्तरस्य वा, राजपुरुषान्वयनोधेऽपि Aral तजर राजयुबा- न्वयवो धानन्तरमपि राजपुरुषान्यनोपे श्राकाङ्घापन्तिरिति ave t

९8० तत्वचिन्तामणै `

मन्बयवोधे.जनितेऽपि वाक्येकवाक्यतावतक्रिया-कारकः पदयोरजनितान्वयनोधत्वमा काडर |

श्टलात्‌ तदानों ओओतुरुदासौमपुरुषष्य वा. राजपुरुषान्वये तात्यस्यैमादाय निर्क्राकाङ्खयन्नानसन्वे शाब्दबोधस्याफभ्युपगमात्‌ TAG. वक्रतात्पय्थेमेवान घटकं इएकादिवाक्यखले तात्प चघरटिताकाङ्घाभ्रमाच्छान्दबोधः. विगेषदभ्चिनान्तु ततः श्राब्दबोधे मानाभावात्‌ अन्यथा ATTA कुतः शाब्द पौेतुैक्रतात्प- SITE wea एका दिवाक्यश्यले व्यभिचारात्‌ am-afe- तरसाधारणतात्पय्थन्नानख् Rad ओोतुरदारौ गपुरषख्य वा तात्पग्बन्ानमादायातिप्रसङ्गयत्‌ चेवं घटः कममैलमित्यादा- वपि सत्यन्तदरभ्रमार्‌ घटदत्निः कम्मेलमित्याद्यम्वयबोधापन्निरिति वाच्यं घटः Maire wefan द्धिजनकताश्चानात्मकविपरो तव्युत्यन्तिमतस्ततोऽपि तादृग्रशाब्दबो- ween इति भावः। मनु घटमानयेत्यादिवाक्यं कदा चिद्घट- वत्कबोलमित्यवान्तरवाक्या्थनज्ञानं जनयिलापि घटकष्मकानयनानु- कूलष्टतिमानित्यन्वयबोधं जनयति तत्केचिन्तमते कथं स्यात्‌ श्रज- निताग्वधबोधकलरूपाकाङ्खग विरहादित्यत रार, प्रतौ ति, “wae बोधे श्रवान्तरवाक्यार्थबोधे, 'वाक्येकेति एकवाक्यतापन्लवाक्यदय- वदित्यथैः, क्रिया-कारकपदयोरिति ‘way इत्यनेनान्वयः, “अ्रजनितेति तात्पर्यविषयेति गओेषः, खणनितापय्याप्तघरकर्कान- धनारुङ्कलहृतिमा नित्याकारकनोघधलरूपयत्कि चिन्तात्पय्यैविषयता-

शब्दाख्यतुरोयखण्डे शग्दाकाह्कगवादः | २७१

weg” पद्विगश्रेषजन्यपदार्थोपल्ितिः घटः

वच्छेदककलतवरूपाकाङ्खगस्तेवेत्यथैः, wa केचिदित्यषरसोद्धावनं, त- ` fey खजनितापर््याप्तयत्कि्चिसात्पथ्यैविषयतावच्छेद कलां ्रश्ा- Ta Wea मानाभावः राजपुज्ाग्वयब्‌द्धिमाचतात्पय्येबे- eats राज-पुजयोरन्यबो धामन्तरं राज-पुरुषयोरग्वय- बोधाभावस्य तात्प्यन्नामाभावारैव सम्भवात्‌ अन्यया तदंशन्ञामस्य Wars राज-पुचायवुद्युत्पन्निखमये राजयुरुषाग्वयबोधस् gaia विनश्वदवस्यतादृ शज्नानमादाव राज-पु्रयोरन्वव- बोधामन्तरमपि राज-पुरुषयो रग्वथबोधश्य दुर्व्वारलाच्च 4 तदं शज्नानस्पाडेतुवेऽपि घटमानयेत्यादौ समानाकारधारावारिक- शाब्द बोधापन्तिरिति वाच्यं घारावाहिकप्रत्यच्वद्धारावाहिक- शाब्द बोधस्ापौष्टलात्‌ | WY वा श्रसुमितौ समानाकारसिद्धेरिव शाब्दबोधेऽपि क्रमिकश्ान्दनोधदयेष्छाविररविशिष्टश्राष्द धियोवि- रो धिलं शाघवात्‌ wa तद शज्नामस्य हेतुलपक्ेऽपि विनश्य दवस्छतदं श्ज्नाममादाय क्रमिकश्याब्दबोधदयस्य gate) किञ्च अनितान्वयवोधकलन्नानसत्ेऽपि श्लोकादौ पुनरतुसन्धानेमाभ्वाषघ- कामस्याग्वयबो धद गेमान्तन्तद नुसन्धानजन्यश्राब्द बोधे तन्तदमुसन्धाम- निष्टाजनितान्वथबो धकलन्नानं कारणं are” इति मदद्गौरव-

षण भक

(र) नवोनास्लिति we | (१) तनत्तदमुसन्धाननिष्ाननितान्वयगो धकत्वन्चानमेव कारणमिति we |

31

२९२ तस्वविन्तामणै

कमौत्वं आनयनं कतिरित्येवम्बिधपदाजन्यपदार्थोप- fafaal आसल्िरन्वयबोधाङ्गमित्यासत्यभावारेव- म्बिधशब्दान्नान्वयबोधः त्वयाप्येवम्बिधपदा्थी पस्थिते-

faafa ata) “पद विशेषेति घट मानयेत्थादानुपूरव्वौँ विशेषघट- HAM ALAS TTT fe जन्यधट-कमेवाद्युपस्वितिरित्यरथैः | गन्वे- वमप्यमतुगमवाडख्धं कारणतावच्छेद कगौ रवं पुमरधिकं लशाघवाद्‌- चटमानयेत्याथानुपूरनवौं विभेषश्नामस्येव Vaal चित्यात्‌ तत्पद- जन्यपदा्चौ परस्थितेः एयक्‌कार णलस्धावश्यकलाद्गौ रवमिति ae | az कलसभित्या दि प्रतयेकानुपूर्व्वौ चटकतन्तत्पदब्यक्रिभेदेन कायै-का- रणभाववाञष्यं कारणएतावच्छेद कगौ रवश्चापेच्छय घटादिशाब्द बोधमाचं प्रति ड्या श्रब्दजन्यघटाद्ुपख्ितिलेन काकार णभावेक्यकश्यमाया- एव लधघुलादित्यषर सादाद, “घटः कमेवमित्यादि, "पदाचौपश्ितिः' चट-कर्मलाश्युपथितिः, इत्यञ्च AACA कारणतावच्छेदलाद्‌घटं कलसमित्यादिसकलातुपूर्व्बौखाधारण् एक एव काये-कारणभाव- दति भावः। अज sw शब्दजन्यतेन पदाथौपस्थितिरविशरेषणौया तेन यथाकयञित्पदा्थापस्यितिमादाय नातिप्रसङ्गः श्र्यध्या- इारवादिगये तु यथाश्रुतमेव wy श्रन्वयबोधाङ्गमिति कर्मला- दि विगेक-षटादिप्रकारकान्वयनोधाङ्गमित्यथैः। चेवं दितौया- पद्-कमतलपदोभयगो चर षमू हा लम्ननेन यच कमेलो पस्थितिस्तनाप्य- ष्वयबोधो नस्यादिति ari) ताद्श्विभक्रिञ्चामाजन्या या कमे-

(९) इत्यादि ध्येयमिति ae |

प्ब्दाख्यतुरौय खगे शब्दाकाङ्का वादः | षद्‌

` राकाहग रेतुन्वेनावश्यमभ्युपेयत्वात्‌, जनितान्वयबो- धात्‌ नान्वयान्तरबोधः तात्परय्याभावादित्याकाह्गयाः कारणत्वमेव नास्ति, किन्तु सखजनकोपश्ितेः परि चायकत्वमाचरमिति।

त्वादिपदभन्योपख्वितिः तरन्योपस्धितिलवेम हेतुखस्य विवक्तितत्वात्‌, "एवम्बिधशब्दादिति घटः कमलमित्यादि खश्ूपायो ग्यशब्दा दित्यः, “आकाङ्ाहेतुत्वेनेति श्रा काङ्ग निख्चयसहकारिलेनेत्यथंः, अन्यथा- ऽग्रहोतामादिपदश्क्रिकस्य ` चटभित्यादि निश्चयवतो az: कमेव- मित्यादेषैट-कर्मलादुप्धितौ तथान्यबोधस्छ दुव्वरल्रापन्तेरिति भावः जनिताग्वयबोधादि ति श्रयमेतोत्यादौ पुत्रे जमिताग्वय- बोधाद्राजपदादित्ययः, (नाग्वयान्तरबोध इति पुरूषेणग्वयबोध- इत्यर्थः, wana एवे तिगेषः, "तात्पर्थ्याभावादिति तात्पर्य॑न्नाना- भावादित्ययेः, एवं धारावादिकसमानाकारग्राब्दमु grata भषद्‌केव गतिरिति भावः। शश्राकाङ्कमयाः' श्राकाद्भुगज्नानस्य, 'खजमकोप- feat शाम्दमोधजनको पश्थितेः'। aa “नव्या इव्यसखरसोद्भावनं, aging भेदकूटानां विग्ेव्य-विगरेषणएभावे विमिगमकाभावात्‌ ग॒रूतरानन्तकाय्ये-कारणभावप्रसङ्गः, अनन्यथा चटा दिपदवद नुखार- पदा दिगिश्चयतवरहितं यद्यत्‌ Agana साघवात्‌ डेतुलौ- चित्यात्‌ arr घट-कश्मलाचुपखितेव्यापारलाच्च नातिप्रसङ्गग्रडा- पोति दिक्‌ |

Res तक्वचिन्तामणमै

इति ओरौमद्गङ्गेशो पाध्यायविरचिते तच्वचिन्तामसौ ` शब्दा ख्यतु रौ यखण्डे शब्दाकाह्गवादसिडान्तः समात्तोऽयमाकाङ्कावाद्‌ः

इति भओ्रौमथुरानायतकंवागौ श्रविरचिते तत्वचिन्तामश्िरदश्य श्रब्दाख्यतुरौयव्वष्डरदय्ते शब्दा काङ्कावादरइख्छम्‌ घमाप्तमाकाड्गवादरस्छम्‌

अथ योग्यतावादः

वि यः

AT का योग्यता, तावत्‌ सजातौयेऽन्वयद्शेन॑,

चथ योग्यतावादरदस्यं |

आकाङ्क निरूण योग्यतां मिरूपयितुं एच्छति, भसु केति,.९ आकाञ्चयदिकं VERT यत्‌ Wage तचादिपदग्राद्या योग्यतां केत्यथेः, अरज शाब्टवोधलचणेककार्य्यासुकूललमेव सङ्गतिरिति भावः 'सजातौयेति, तत्‌षजातौये तल्छजातौयस्यान्वयदशेनं संस faqaaa तच्छाब्दबुद्धौ योग्यतेत्यथेः, ्रसि पयसा सिश्चतौ- त्यादौ प्ररुतसेकसजा तौये पयोऽम्तरकर णएकसेके परहतपयःकरणएकल- सलातौयस्य पयोऽकारकरणएकलतवस्य संगं निखयः, afer सिश्चती- त्यादौ तु wanna कापि सेके व्िकरणकल्सजातौयस्य कष्यापि वदङ्किकरणकलश्य संसगेनिखयो नास्ति बाधितलात्‌। तभ तत्दंखगे निश्चयसच तच्छाब्दबोधे योग्यता Tae सम्यक्‌ विं सजातौयत्पय्यैन्तनिवेशेनेति वाच्यं गेरटृतन्तिघटो she इत्यादौ Teefaazent तन्नौशब्यकेः शाब्दबोधानुपपत्तेः शाब्दबोधे तदरग्यक्रौ ARISTA: संसगेनिद्याभावात्‌, सजातोयलोपादाने तु तद्‌चरटषनातौये व्यन्तरे wean नोशब्यह्षमारस्य

(९) ay केयं योग्यतेति खर | (%) ag केयमिति कण, |

aed | arafearataait

यथाकथञ्चित्‌ साजात्यस्याव्यावत्तंकत्वात्‌। पदा्थता-

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संसगेनिखयो ada एवेति a काष्यनुपपत्तिरिति wa) wa येन केनापि wae साजात्यं विवच्चएौ यं८९) wafamaecarqu वा, sr तज्िष्टघम्मावच्छिनने afaeuntafeqa संसगेनि- खयस्तज तच्छाब्दबोधे योग्यतेति फलिताः, दितोये अ्रन्वयिता- वच्छेदत्वं यादु ग्रधम्मेविशिष्टस्य तस्य फलोग्धतग्राष्दबोधविषयलं तादुश्रधश्मेलं, तया तद्कब विभिष्टतदिगेव्यक-तद्धभं विगिष्टतदि- गेष्कश्चाब्दबोधे तद्धमेरूपेण यन कुचचित्‌ तद्धमेरूपेण यख कस्यचित्‌ संषगं नियो योग्यतेति पय्येवसितायः। तच प्रयम- cary, "ययेति, “्रद्यावन्तंकल्वादिति afar सिद्तीत्यादौ सेको a afeacun इति बाधनिख्चयद्श्रायां शानब्दबुद्धेरव्या- वन्तंकल्वादिव्ययेः, तादृ श्वाघनिखयषवेऽपि क्रिया वद्धिकरणिका प्रमेयं वह्किकरणएकं सेको द्श्यकरणकः सेकः प्रमेयकरणकः सेकः प्रभेयवान्‌ इत्याकारकस्य सेकनिष्ठधर््मावच्छिश्ने ब्िकरणल- ` निष्टर्मावच्िलसंसगे निखयस्छ सम्मवात्‌। तदानीं Arey निख्चयसन्भवेऽपि बाधनिख्यस्य प्रतिबन्भकलादेव नान्वयबोध इति वाच्यं | तथा सत्या वश्वकलान्तदभाव एव Fate किमेतस्या हेतु-

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9 (९) faafaafata we, ae | (९) खद्यनातत्वस्य वाक्धाथत्वात्‌ पदाथंतावष्छेदकत्वामावेन पदा्थ॑ताव- च्छेदकधर््मयेत्यपेच्यान्वयितावच्डेदक धम्भप येग्तानु धावनं |

WAAL यखद्े योग्यतावादः | २७७.

वच्छेदकेन साजात्यस्याद्यजातः पयः पिवतौत्यादावभा- वात्‌ वाक्या्थेस्यापू्वेत्वाच्च! नापि समभिव्याहत-

~ =

तेनेति भावः) भाग्य इत्याह, “पदायेतावच्छ केनेति, wafa- तावच्छेदकधमेरूपेण तत्‌ सजातोयेऽन्वयितावच्छेद कधमेरूपेण तत्‌ष- जातोयससगं मिखयय्ेत्यथेः, “श्रभावादिति, तजर श्ान्दबोधात्‌ पू- ष्वमद्यजातवलरूपेण RUIN पयःपानकटेलत्वरूपेए पयःपाम- कठैतवसंसगं निश्चयाभावादिति भावः "पद्‌ायथेतावच्छेदकेनेति यथा- | FAG सङ्गच्छते पद्‌ायेतावच्छेद्‌ कलस्य प्रतपद्‌ायतावच्छेदक- त्वस्य केवलाग्वयितया तेन eau साजात्यविवच्णेऽपि afar fagmaret क्रिया वङ्िकरणिका saa वङ्किकरणएकं सेको द्रग्यकरणक दत्यादिभिश्चयमादाय सेकः सकरणक दइव्यादिभि- quae सातिप्रसङ्गतादवस्छयात्‌ सन्दभं विरोधापनेः श्र्जाते- त्यादि प्र्तदूषणासङ्गत्या पन्तेख प्रमेयत-मनुव्ययाद्याञ्रयनिष्टस्य भि~ छा प्र्यथा्च॑तावच्छेद काश्रयत्वादेःर) पद्‌ाथेतावच्छेदकलात्‌(९ तेन खूपेशाद्यजातमजातौये पयःपामकटेलषंसगे निखयस्य तजापि स्वा दिति ध्येयं दूषणन्तरमाद, ‘ama, पयषा सिश्चतौ-

(९ तथाच श्ाब्दबुदधौ बाधबुदेनं प्रतिबन्धकत्वं किन्तु ततस्ते बाधाभाव- रूप्यो ग्यताविर्हान्न एणब्दबोध इति भावः |

(९) प्रमेयत्व-मनुष्यत्वादे निं ष्टाप्र्ययायंतावच्छेदकाश्रयत्वादेखेति Wo | प्रमेयत्व-मनुष्यत्व-जिष्ाप्र्ययाथं तावच्छेद काश्च यत्वादेरिति we |

(२, प्रमेयत्व-मनुष्यत्वाश्रयत्वादेः जनमधावृ सर क्तप्र्ययायंतावच्छेद कत्वादिन्य्चः।

age arafanitaat

व्यादावपोत्यादिः, पयसा सिश्चतौव्यादावपि वाक्या सेकला- चवच्छिश्ने पथयःकरणकला च्यव च्छिशसंसगं गिखयय्या पूव्वैवाखच सरै श्राब्दबोधात्‌ पू्यमभावाचेत्यर्थः, तथाच पयसा सिश्चतौत्यादावपि यदा तादृश्रमिञख्चयो नास्ति तदापि शाष्दबोधस्यातुभवसिद्धला- इयगिचार इति भावः। gauge दश्ेनपदस् निखयपरत- मभिप्रेत्य, संश्य-निखयसाधारणश्नाममा परते तु नेतहोषदयाव- काशः, अद्यजातेत्यादावप्यद्यजातलावच्डिने Wea संश aaa, एवं war धिश्चतौत्यादावपि सेकः पथःकरणकलसंसगेवानिति frqafacezurat सेकः पयःकरणक- लसंसगंवान्न मेति सं्रयात्मकधंषनेन्नानसम्भवात्‌ यदा तादृश्सग्रयोऽपि arf तदापि तादुश्रशराब्दबोधाद्वभिशार इति वाच्यं तदानौं ्राब्दबो धा शिद्धः, अन्यया agutafee तद्ध वच्छिश्लवत्वरूपनिष्कुषटयोग्यतापचेऽपि व्यभिचारस्य दुव्वांरलात्‌ | agar करकाभिप्रायप्रयुक्े५ पया सिच्चतौत्यादौ सेका जलत्वाश्रयेतद्भाक्रिकरणक दति सेके करकाकरणकत्बाधनिखय- दश्रायामपि सेकलत्वावच्छिन्ने जलकरणकलल्वप्रकारेण करकाकर- एकलाग्वयबोधापत्तिः, तादुश्वाधनिख्चयद शरायामपि सेकल्वरूपेण सेके जलकरण कत्वलच्ूपेण जणकरण कलस्य संगे निखयाभावात्‌ | चेष्टापत्तिः, साग्मदायिकेस्तदानौं तादृ शायबोधद्यामभ्युपगमा- दित्येव दूषणं, नव्यमते तु वच्चमा एनिष्कृष्टयोग्यलापेचया गौ रव- मेवा दूषएमित्यवधेय |

queues ee ee ee ee eee ee

ष्की

(९) भलत्वरूपेय करकाबो घेच्छ योषित Kare: |

श्ब्दाखयतुरौयखण्डे योग्धतावादः | २९९६

केचित्तु we atta afar. fawatetet सेको वह्धिकरणक इति बाधनिखयदशायां सेकल्वावच्छिन्ने वद्किकर- एकवलरूपाग्वयितावच्छेद कावच्छिननसंमगे ज्ञाभा सम्भवात्‌ ara fas वद्किकरणएकचलरूपविभिष्टधर््ानयितावच्छदककशाब्दगो- धासमबेऽपि fatal विशेषणमिति न्यायेन सेको वद्धिकरणएक इति शाब्दबोधो दुर्वारः, तजर वद्धिल-करणएल चादेः प्रत्येक धश्मस्ेवाग्व- यितावच्छेदकतया ययोक्षबाधमिश्चयसतेऽपि चेकलावच्छिनने करणए- तत्वावख्छिश्नस्य करणएततावच्छिश्ने afgaafequ संषगं- जिश्चयसम्भवारित्याङः तद सत्‌, श्रन्वयिता वच्छेदकल्वरूपेश wae प्रवेश्रः परन्तु सेकल्वावच्छिश्ने करणल्तलूपेण करणत्वं प्रकारः करणत्वत्वावच्छिन्ने afeaa वद्धिः प्रकारः दत्याकारकश्चाग्दमुद्धिं प्रति सेकनावच्छिन्ने वङ्किकरणकलत्वरूपविशिष्टधर््रावच्छिन्तमंसगं- wa योग्यतेत्यादिक्रमेण शणं विवचितं, wat विशे विगेषण- मिति न्याधेम विशिष्टस्यैव वैशचिष्चमिति maa Bat afe- करणक दूति शाष्दबेधस्य यथो कवाधनिखयसत्तेऽसम्भवात्‌ उभय- साधार ण-वह्किकरणकलतलावख्छिश्प्रकारताया एवेाक्रक्रमेण शच्छ- तावच्छेदके प्रवेशात्‌ चोभयसाधारणएविगिष्टप्कारतायां मामाभाव दृति वाच्यं तथा सति रक्रदष्डवाम्‌ पुरुष इत्यादि-

freqgt पुरुषो रक्रदष्डवानित्यादिबाधवुद्धेः परतिबध्यपरति- बन्धकभावदयापनेः वच्छमाणनिष्वु्टयोग्यतापरेऽपयुकरदोषख्च दुगा रलापन्तेेति दिक्‌ | |

समभिव्याइतेति प्रतेत्य्थः, तदौयतत्‌ संसर्ग याप्यधण्मवत्नं aa

32

२५ ° तक्वचिन्तामणौ

पदाथेसंसगेव्याप्यधम्पवश्चं, वाक्धायैस्यानुमेयत्वापन्तेः | वस्तुगत्या संसगेव्याप्यो यो WaT त्च च्रातमुपयुज्यते इति नानुमेयः det इति वाच्यम्‌ योग्यताधमाश्डाब्दभमानुपपनेः। अतरवानन्वयनि-

घं तदोग्यतेति फलिताः, ‘areata unawaface- स्वलोयग्राब्दनाधमाजस्मेव पू्वमेकपदार्थऽपरपदा्ंषंसगंस्यातुमाना- पन्ते रित्यर्थः, एतत ग्रयविर दश्वले यज ay wey ततेव ` itn ga एतज्िद्चयस वयाभ्वपगमात्‌ व्याणवन्ता नि्य- अत्वेनातुमितिसामयौख्वादिति भावः। ‘dwarfs, तदौय- तत्घंसरगग्या त्ययः, ‘acafafa, adie तदथोग्यतेति wa: "योग्यताभरमादिति, we शाग्दभ्रमानुपपन्तौ wa” afi सिश्चतोव्यादौ यता निरुक्षयोग्यताया wat मन तु खशूपसतौ सा अतः श्ाष्दभमानुपपन्तेरित्यथंः | चेयं शाब्दप्रमायां हेतुरिति वाच्थं बाधनिख्चयदद्रायां wegen: fees विगष्टरूप- वन्तादाश्यप्रतिपादकसचेषद्त्यादिवाक्यजप्रमायामग्यातेखेति भावः |

~ (९ योग्यताभ्नमादित्न्न पञ्चम्यर्थः प्रयोज्यत्व, rere शाग्दभ्नमानु- पपत्तौ तथाच योग्यताभमप्रयक्ता या श्राब्दभ्नमानुपपर्तिस्तत दरथः, wary तदि षययोग्यत्वाभावप्रयोव्यत्वं, मवति arate निरक्त- योग्यतायाः खरूपसत्धाः कारणत्ववादिनस्रव मते stanford we शाब्दभ्नमाभावः, सिडधान्तिमते तु तदुब्नमादेव श्ाब्दभ्नमः इति ara |

प्यब्दाख्यतुरखोय खक योग्यतावादः | २५९

अयविर खव योग्यता खरूपसतोौ हेतुः तच ATAT-

केचित्त निसुक्रयोग्यताया wage: maa: ata

fie care: तदसत्‌, faqmataanzarfeas fe we- .

म्यथो HAIAYRT al, AY wee निरुष्षयोग्बताशम-, जन्यलदधेवासिद्धेः योग्यताभमजन्यलस्य प्रठताुपयो गतश्च Ag भिधानस्य व्थलापत्तेः | अत एव दितीयोऽपि. तद्ुमिधानसख ardent fin Wei") ro ‘aa एवेति afm सिश्वतौत्यादौ शाब्दभरमारुपपन्तेरेवे-, त्यथः, aw’) saat भगवत एवान्वयनिख यस्य. सष्वेदा सतत्वा- दिति भावः। ददमुपलच्णं पयसा सिश्चतौत्यादाबेकस्य पुरुषस्या- नन्वयभरमशत्ते पुरुषान्तरस्यापि शाब्द प्रमातुत्पत्यापन्तेखेत्यपि बोध्यं श्रमन्वयमिखयेति, तद्र्ोऽन्वयितावच्छेद्‌ कसम्नन्धावच्छिन- agala fear fiat गिता काभावप्रकारकनिश्चयसा मानयस्व विशे-

——

(९) amuamtger wana योग्यताविस्हादेव weagurd(c- स्येव वक्तुमुचितत्वात्‌ तत्‌ खलोयशाब्दबुदधर्यग्यताभ्नमस्य नन्यताया- उत्तर्वारितायाचख प्रदश्ंनागयष्धादिति मावः। वस्तुतस्तु शाब्दभ्वमो जायत खव ततेत्याशङदममपनेतुं योग्यताभ्मनन्यतया तस्य ofatz-

दंशिंतेन्येवाच्र ध्यागवोनं aaa -

(९) यथ सेको व्डिकर्णक इति निखयस्तच मास्तु afen fee ` तौति प्राग्दभ्नमः यथ तु मास्ति तत्रैव तादृ्णाब्दभ्नमस्य निष्यरि- पग्थिकत्वेन कर शाब्दभ्नमामुपपत्तिः न्धयामावनिगेयामावसयेव योग्य- तात्वस्य aman यदुक्त खनम्वयेत्ादि तदपि न, ईंचसौय- लावृश्र मिग यस्य सर्वदेव सश्यादित्याह state |

२५२ तच्वचिन्तामयौ

भावनिश्चये तत््रकारकशानब्दन्नानानुदयात्‌ इति परा- aa” नापि सममिष्याहतपदार्धसंसर्गाभाव-

पव

ग्यतावच्छेदकतासम्नन्धेनाभावः,.९ ताद्श्रनिद्चथसामान्यस्य विशे व्यतावच्डेदंकल्वाभावो वा तद्ुर्मावच्छिन्ने तद्धर्मवच्छिन्लस् योग्य तेत्यथैः, afer सिञ्चतोत्यादौ सकलेऽपि घटादि निष्ठश्च afieax- एत्ाभावप्रकारक निखययस्ताभावसत्वाद तिबयािवारण्टाय सामान्यपदं, 'खशूपखतौ हेतुरिति, यज विगेव्यतावच्छेद कता सम्बन्धेन aguia- ` द्डिन्ञप्रकारकशानब्दबोधः, ay विशेषणता विशेषसम्बन्धेन भिरुको- sara इति शामानापिकरण्यप्र्यासत्या खरूपसतो हेत्रिग्य्ंः, खरूपषद्धेत्‌वे व्यतिरेकसहलार प्रमाणयति, "तेति, तद्धग्भावख्डिल- tau. ‘agalaafagqa दति खस्य agalafeararanar- रकनिखय wae, 'तप्मकारकेति ae agalafeq agat- वच्छिन्लप्रकारकशाब्दयोधामुदयादित्ययेः, "परास्लमिति। मच agatafea तद्धरमावच्छिनल्ाभावप्रकारकतत्पुरुषौोयनमिञ्चयसामा- न्याभावसङ्धरावच्छिश्ने तत्‌ पुरुषौयतद््ावच्छिनपरकार कान्वयबोधे योग्यतेति विवच्प्यौयं sat मोक्रदोव दति वाच्यं सौोयानन्बय- निख्चयविरहद ्ायामयोग्य ऽतिब्या्यापन्तेः केवथान्वयिन्यव्याघ्यापन्ते- ,. ` दुर्ग्ारलाञ्चेति भावः। सममिव्याहइतेति प्रहटतेत्यथेः, तदौयतत्‌- () इत्थपास्तमिति ae, we |

®) aatahen argubrare स्च wa तद्र्मेऽपि यवनण्डेदकता-

सम्बन्धेन afaaqrarafefa भावः |.

ए्ब्दाख्यतुतोयखरे योग्यतावादः | Rue

व्या्यधम्पेश्रन्यत्वम्‌, प्रमेयमभिषेथमित्यादौ संसर्गाभा- वस्याप्रसिद्या तदनिरूपणात्‌ गेहनिषठषटाभावे प्र-

denture तेन संसर्गेण तर्योग्यतेति फषिता्ेः | Ty भ्नातमुपयुज्यते इति शाब्दभ्रमातुपपत्निः MAA वस्तुगत्येतस्यासच््ेऽपयेतद्र मादेव शाब्दभ्रमोपपत्तेरिति भावरः “wW- शिच्चेति, प्रमेया दिता दाद्यस्य केवलान्वयिलादिति भावः। तदनि- , रूपणात्‌" उक्रयोग्यताज्नामा सम्भवात्‌ नन्वे कपद्‌ार्यान्वयितावच्छेदक - संसर्गेऽपरपदां मिष्ठवाभावव्यायधन्नशून्यलं सेति नोक्रदोषः( इत्य Rie, "गे हिष्ठेति गेहे घटाभावनिश्चय दत्यथेः, 'तज्ञिश्चयेऽपि' उक्योग्यतानिख्येऽपि, ^घरोऽस्तोति वाक्यात्‌” we घटोऽसोति वाक्यात्‌, “रन्वयज्नानातुद्यादिति योजना, aus योग्यताले गेडे घटोऽस्तौत्यादौ बाधनिश्चयमच्तेऽपि wafaqaes शाब्दबोधा- Ufa बाधमिश्चयस्य विशिष्टबुद्धि माच प्रतिबन्धकलात्‌ तत्ष- त्वादेव तदानीं शाब्दबोध tfa वाच्यं। तरिं ्रात्रश्यकलात्तद्‌- भाव एव हेतरम्ह॒ किमेतज्‌न्नानस्य yaaa तदभावस्वे एतज्‌- (९) प्रमेयमभिपेयमिव्यादौ देवं कोऽपि खभिधेयादिङस्ित्वाभावो यः प्रमेयतादाल्यत्वं व्याप्नोति, श्याप्नोति waar, away वन्तेत ~

खव प्रमेयतादान्यस्य इति नोक्तदोष दः, जगदृषित्वात्‌ प्रमेय- तादाल्यस्य गगणादस्तु तथात्वादिति भावः afer सिष्चतोव्यादौ ल्तगासन्वच्च॒वङ्िक रणत्वौ यखरूपसन्बन्धत्वस्य | संकनिषत्वामाव- व्याप्यत्वात्‌ वह्िकरगत्वौ यखरूपसम्बन्धस्य से कार ्तित्वादिति भावः |

२५४ तश्चचिन्तामणै

मिते षटो,स्तोतिवाक्या्न्निश्चये.ष्यन्बयन्नानानुद याच्च नापि बाधकप्रमाणाभावः, अन्य यद्बाभकं Az भावस्यायोग्येपि aa नापि प्ररतसंसमंबाध- कस्याभावः, प्रतियोगिसिद्यसिदिव्याधातात्‌। -न

maa व्यतिरेके एतदभावन्नाने वा शओ्राब्दबोधाभावश्य अतुभव- सिद्धलाभावादिति wa | बाधकप्रमाणेति तज तत्‌संसरगभाव- प्रमाविगरेष्यत्वाभावंस्तज तद्‌ योग्यतेत्यधेः, एतस्या शानं श्राब्दघो- हेतुरिति श्ान्दथमालुपपत्तिः, बाधनिषयदग्रायाश्च नेतञ्‌- ` grea इति बाधनिश्चयदग्रायां शाब्दबोधातिप्रषङ्र दत्य - भिमामः। केवलाग्वयिन्यप्रसिद्धितादवसख्थयश्च खथमेव वद्छयत- इति सन्द्भविरोधः ` विशरेषाभावाभिप्रायेण दोषमाइ, “अन्यजेति, ‘gay यद्‌बाधकं अन्यनिष्ठं यद्ङ्किकरणला दि षंसर्गाभावप्रमा- विभेष्यलं तदभावस्य सेकाद्‌ावपि सत्वा दित्यथेः, तथाचातिप्रषक्र- <fa भावः। नापि awafa तन्निष्ठं यत्तत्‌संसर्गाभावप्रमा विशेव्धत्वं तद्य awa तद्योग्यतेत्यथेः, एवश्च afea विद्चतौग्यादौ सेकादिजिष्ठं यद्रद्िकर णएलवा दिसंसर्गाभावप्रमा विगरेव्यलं तदभावस्य ेकादावसत्नान्ञातिप्रसङ्ग इति भावः ्याघातादिति^) पयषा OW तद्याच गाग्वय-व्यतिरेक , (९ gare नान्वय-अतिर्कद्रतिमावः। सि (९) परयःकरगकत्वसंसर्गामावप्रकारकप्रमाविष्रेष्यत्वं यदि सेकादि- निष्टं तदा तदभावः, यदि तच area तादृश्रविरेष्यत्वं तदा

सेकादिनिषूतादृश्विशयेष्यत्वस्यालोकतया तदभावस्याप्यसिडिरतो व्ाघातादित्येः। ` ..

ग्ब्दाख्यतुरौ यदे योग्यतावादः | २५५

प्रतसंसगेः अन्ध सिद्धस्य बाधकप्रमाणस्याभावः, प्ररतसंसगेस्य प्रथममप्रतौतेः wash तत्‌स-

सिश्चतौत्यादौ योग्यव्यवदारव्याघातादित्यथैः सामान्याभावस्तु(९) 'नापौतरेत्यादिना श्रमे निराकाय दति नासङ्गतिः। “प्रहतसंसमे दति तदौयप्रतसं सरगेऽन्य्र प्रसिद्धायास्तद्‌ठ्तिलाभावप्रमाया शअभाव- We तथोग्यतेत्यथैः, श्रहतसंषगेख्येति, तद यप्रङतसंसगंस्य तदौय- प्रशतसंसगलरूपेणं शाब्दबोधात्रागप्रतोतेरित्यथः, तदौयप्रशतसंसगं लं fe तज्निष्टतदौयषंसर्गलं श्ाष्दबोधात्‌पूरव्वश्च एकपदायनिष्तया ना- परपदा थेसषगंस् श्नानमिति भावः ननु प्रङतत्वमन्वयितावच्छेद्‌- कल्मतो मायं दोष इत्यत श्राह, “्रयोग्येऽपौ ति श्रन्यनिष्ठतादुग्र- प्रमाव्यक्षेरभावमादायायोग्येऽपि तत्‌ ष्लाचेत्ययः, एतश्च विगेषाभा- वाभिप्रायेण, सामान्याभावस्छ श्रपि चेत्यादिना aa जिराकरणौयः।

(९ ननु प्रमाविशेष्यत्वौयविेषामावात्मकयोग्यतामिप्रायनिराकरणप्र- शवे प्रखतुतस्यापि सामान्यामावश्य निराकरणानभिधानं, अभिधा- | AG प्रकारान्तरामावनिराकरणस्य सङ्तिरि्येव यतशस्यापि वक्त त्वादि याह, 'सामान्धाभावस्विति | चास्य वक्तव्यत्वात्‌ तचा- faumas तुन कुत इति वाच्य। as age: सन्दमविश्येषाया- तत्वात्‌ खतन्तेच्छाधोगत्वाच | aqatss तादृ विेष्यतायाः सामा- न्धाभावो विवक्षखोयस्तचायोग्ये योग्ये कोऽपि दोषः aaa न्धयचाभिधाय तत्र श्याघातदोषकचयनमित्यसङकतिरिति चेत्‌, न, सामा- न्यामावस्यापि निराकर्गोयत्वादिग्याह सामान्याभावल्लिति |

२१५ब्‌ , वश्वचिन्तामणो

ATW | तच बाधकमयप्यस्तौति चेत्‌, तहिं wea वाधकस्याभावः तच्चाप्रसिद्गम्‌ | अतरव तच वाभक- स्याप्यनिरूपणम्‌ नापौतर पदाथ संसर्गाभावप्रमा-

इते, ‘aafa श्रयोग्य इत्यर्थः, “बाघधकमप्पस्तौ ति वद्धिकरणला- द्यन्वयितावच्छेदकसन्बन्धे खेकादिटन्तिलाभावमभेवास्तौत्य्थः, तथाच तरोयाम्बयितावच्छेद कसम्नन्धे तदोयाग्वयितावच्छेदकसम्बन्धनिष्ठ- यातर्‌ ठस्ित्वाभावप्रमाया अभावस्तन. तद्योग्यतेति भावः। भावाथ - aqa दूषयति, तिं mafia तदौयान्यितावच्छेदकषमबन्धे त- दौयानयितावच्डेदकसम्बन्धनिष्टायासद्टन्तिवाभावप्रमनाया अरभाव- Tae, तज तद्योग्यत्भिति sia: ‘ae’ तदुप aay, “श्रप्रसिद्धं" योग्यखले प्रतियोग्यपरसिद्या श्रप्रसिद्धं नतु पयसा सिश्वतौत्यादौ पयःकरणकत्वसंषगं यदि पयःकरणएवसंषगं निष्ठसेकटल्िलाभावप्रमा- या श्रभावोऽप्रसिद्धस्तदा तादृश्रप्रमावन्ताश्चामं Hat भवतोत्यत-

आह, “श्रत एवेति श्रप्रसिद्धलादेषेत्ययेः, aw योग्यग्यले, "बाधक- ष्टाप्यनिरूपणमिति पच :करणत्वाद्यन्व यितावच्छेद कसम्बन्धे पयःकर- एवाद्यन्वयितावच्डेद कसम्बन्धनिष्ठसेकाटि एत्तिलाभावप्रमावन्नस्याणय- mafaae, प्रथमे सामान्याभावमाश्रदते, मापौतरेति av

(४) प्रथमे बाधकप्रमाणाभाव दरति लक्षणस्य तच तत्‌संसर्गाभावघका - दरकप्रमाविरेष्यत्वाभावरूपोऽ्थंः। aT सप्तम्यर्थो घटकत्वं सामान्धा- भादमित्धक्रान्ेति तथाच वादृ्विग्रेष्यत्वाभावधघटको योऽभावः सामान्यभाव wa विवसित इत्याशङ्का |:

WIAA योग्यतावादः | Rye

विषयत्वाभावोऽपरपदा्थं, केवलाग्बयिन्धप्रसिद्ेः। ए- ` तेन यचासम्बन्धग्राहकं प्रमाणं नास्ति तद्योग्यमिति निरस्तम्‌ नापि गोभनौयसंसर्गाभावप्रमाविरहइः, प्रतियोग्यप्रसिद्धः, बोधनोयसंसगेस्य प्रागप्रतौतेः यो- ग्यता खरूपसत्युपयुज्यते इत्युक्तम्‌, अयोग्ये तत्‌-

तदौवसंखरगाभावप्रमा विगेव्यतलसामान्याभावस्तषव ayaa: a वलाभ्वयिनौति, प्रप्रमेयादितादाभ्यसंसगंस्य केवलाग्वयिलादिति भावः “एतेनः केवलाग्वयिन्यप्रसिद्धतेन, “शरसम्बन्धया दकेति, यज यदौयाग्वयितावश्छेद कसम्बन्धाभावप्रमाकरणं नास्तीत्यर्थः, 'तथोग्य- मिति ay तथोग्यमित्य्ंः,(९ gay तकत संसर्गाभावप्रमाविग्र- ग्यलाभावः, WY स्जन्यतन्तत्‌संसर्गाभावप्रमा विगरेवयत्वसम्बन्धेम्‌(९) तत्‌करणाभाव दति भेदः बोधनौयसंषगेति षोधनोययोरदयोर्यो- ऽन्वयितावच्डेदकषम्बन्धसो भिष्ठतद्‌ श्वयितावच्छेद कसम्बन्ध इति यावत्‌, तदभावप्रमायासज्राभावस्तच तद्ोग्यतेत्यथेः, भरतियोग्यप्रसिद्धेरिति प्रमेयममिधेयमित्यादौ केवलान्वयिभि प्रतियोग्यप्रसिद्धेरिण्र्थः, प्रमेयनिष्टाभिषयतादादयमंसगेस्याभावाप्रधिद्धेरिति भावः दूषण- मार माह, "बोधनोयेति, बोधनोयेकपदार्थं गिष्ठतया बोधनोयापर- पदाचसंसर्गस्य शाब्दबोधात्‌ प्रागप्रतौते रित्य्थंः। afd खरूपषतौ हेतुरिति गायं दोष इत्यत are, “योग्यता चेति, उक्योग्यता 7 (९) तन्तद्योग्यभित्यचै इति कर, we |

(९) श्व खपदं तवृ्प्रमाकरणपरं | 83

२५८ तच्वचिन्तामणौ

सन्वस्यानिरूपणाञच्च अपि स्वौयबाभकप्रमावि-

चेत्यथैः, त्युक्तमिति cas युक्तिः(" पूर्यमेवो तयः, तथा खति afear सिश्वतोत्यादौ ्राम्दभमाहपपन्तिरिति भावः वूषणण- न्तरमाड, “श्रयोग्य दूति, तत्‌ सच्वस्येति सेका दि निष्ठस्य वद्धिकर- णत्वा दिषंसगस्याप्रखद्या सेकादौ सेकादिनिष्टस्य वद्किकरणला- दिषंस्ेस्य याऽभावप्रमा तत्‌ षच्वश्च न्नानासम्भवाशचेव्यथः..९ तथाच तजायोग्यतवग्यवहारानुपपत्तिरिति भावः,(९। ददमुपल्चच्णं तज्िष्ठ- aaa AMMA घम्यक्लेन षां गरस्यामतिप्रथोज- नकलाश्ेत्यपि बोधय मतु तदौयाग्यितावण्डेद कखम्ब्भ तद्‌- ` टृक्िल्लाभावप्रमासामान्याभावस्तज्र ATTY योग्यतेति faa- चणोयमतो विग्रेषाभावमादाय पूर्व्वाक्रातिप्रसङ्ग इत्यरुचेराह,

‘afa चेति, तादृ शप्रमासामान्याभावपदेन तत्ततृपुरुषौय-ताद्ग्र-

(९) afer सि्चतोग्यादौ योग्यताभ्नमाच्छान्दभ्नमानुपपन्तिरूपयक्तिरि्यर्धः। ‹९ तथाच प्रतियोग्यपसिद्या खभावाप्रसिदिस्तदप्रसिद्या तनच्चानस्याप्य- लौकलमिति ara: | | (९) श्थवहत्तव्यस्य तावृश्प्रमारूपायोग्यतवस्य क्ञानासम्भवादिति भावः। योग्येऽपि' weather val’ योग्यत्ब्यवदारानुपपत्तिरप्यत ` दोष सेकादौ सेकादिनिरपयमकरणकल्षादिसंसर्गामावभ्रमामाव- Serra व्यवहारौपयिकताकृ्राभावरूपयोग्यतातमकव्य वसत्य तावच्छेदकच्चानस्य तत्‌पूदं मपेच्तयोयत्वात्‌ इति वाच्यं श्राब्दधौप्राक तादृ्व्यवद्ारस्य निष्ययोजगकतया तस्य शब्दात्‌ परत wa सी- कारात्‌ |

WIAA योग्यतावादः | २५९६

रष्स्यायोग्येऽपि स्वात्‌ बाधकप्रमामाचविरहस्य यो- ग्येऽपि HAA परप्रमाया अयोग्यत्वात्‌ |

प्रमालावच्छिनाभावो विवकितः तादृशप्रमालावच्छिन्नाभावो वा, a तश्यान्वयितावश्छेदकशम्बन्धे तत्तत्‌ पुरूषोय-तद्‌ इत्तिलाभाव- परमालावच्छिन्ञाभावस्तज तन्ततूपुरुषौ यतदन्यबोधे योग्यतेति ल- wu फलितं तश्चायोग्येऽतिवया afseat सिद्चतीत्यादावपि va पुरुषस्य weg: afeacuarfedan तत्‌पुरुषौयसेकादिटत्ति- त्वाभावप्रमासामान्याभावस्य warfare, ‘qafa यस्य पुरुष- a) शाब्दभ्रमस्तत्‌ पुरुषौ यसेकादि टत्तिलाभावप्रमालावच्छिन्ाभा- aaa, “श्रयोग्येऽपिः वङ्किकरणतवा दिसंसर्गेऽपि। तत्ततृपुर- षौय-तद्न्वयनोधे योग्यतापि तच्रास्तौति वाथ्यं। षकलपुरष-सकल- कालमाधारणयोग्यताया एव तत्राभ्येपगमादिति भावः। AAs त्राह, "बाघकप्रमामातेति तद्‌ृत्तिवाभावप्रमालावच्छिन्ाभावस्ये- त्ययेः, (ज्ञातु प्रत्यक्ततो ज्ञातु, शश्रयोग्यत्रादिति तादृ्रपमालावच्छि- न्नाभावस्ाप्ययोग्यला दित्यर्थः, श्रयोग्यप्रतियो गिकलादिति भावः

न~ न~ ~~~ ~ ~~ ~~~ ---~ ~~ ~ ~~ ------न = = ~ ~ eae RN —_

(९) afem सिञ्चतीत्यादौ यस्य वद्धिकर णत्वौ यनि रूपकत्वसम्बन्धे कदापि से कादिरृतित्वामावप्रमा नाता तस्येव तादृशप्रमाभावमादायात्र दोषः | न्यथा यस्य वह्िकरणकत्वसम्बन्धे कदा चत्‌ सेकादिटत्ति- त्वामावप्रमा जायते कदाचित्‌ TMT शाव्दश्रमोऽपि जायते तस्य तादृ सम्बन्धे तादृ श्रप्रमासामान्याभावविरद्ात्‌ तादृशस्थले दोषा-

भाव डति ध्येयम्‌

ads तत्वचिन्तामणौ

सरूपसनेवायं हेतुः, स्वौयबाधकप्रमाविरहदशायां योग्यतासमेण शाब्दभमानुपपक्तेः, अम्बयप्रयोजक- रूपवस्वेन बाधकप्रमामाषविरदोऽनुभेय इति देत्‌। न। सेकामन्विततोये द्रवद्रव्यत्वे सत्यपि बाधकतस्वेन व्य- भिशारात्‌ voted तस्येव योग्यतात्वापन्तेश्च | a चैवमेवेति वाग्यम्‌। भ्आकाङ्कासनत्यन्वयप्रयोजक-

खोयवाधकममेति वह्किकरणकलवा दिषंस्ं खौ यसेकादिषन्िवा- ` भावप्रमाविरहदशायामित्य्ैः, "योग्यताभ्रभमेेति उकयोग्यताभम- सयैव waar, एवकारादय्सद्‌ कयोग्यताग्थवच्डेदः, “अन्वयपरयो- लकेति, अन्वयखरूपयोग्यतावच्डेदकध्वत्‌ सम्बन्धलेनेत्यचः, जल- संसगः सेककरणएलदन्तिवाभावपरमामा जिर इवान्‌ द्रवद्रवयवम्बन्ध- लादित्यतुमामप्रकार दति भावः। 'सेकानबन्वितेति, सेकाकरण्णौ- गततोये दर्यः, quae aga सेककरणलटल्तिवा- भावप्रमासत्वेन, इद सुपलणं सेककर णौग्ततोयस्ापि सेककरण- लाटत्तिखन्नन्धे९ व्यभिचारो बोध्यः "उपज व्यलेनः भवदुक्षयो- ATM MAT IMA Aga, AS अरन्वयप्रथो जकङूपवत््ेव |

(४ सेककरखत्वा ङत्तितोयसम्बन्ध इति यावत्‌ ‘Kana’ KaKg- खम्बन्धतये ्धिकः पाठः °पुस्तके वर्ध॑ते |

८९ सेककरबोभूततोयस्य सखलोयरूपादिर्ल्तिखमवाबादौ सेककरत्व- इत्नित्वामावप्रमासश्चादिति भावः |

शब्दाख्यत्‌ दौयखर्दे योग्यतावादः | ade

BIER सत्यप्यनाप्तवाक्ये वाधकप्रमायामम्बयाबो- धात्‌, बाधकप्रमाविरदो हेतुरिति चेत्तद्यावश्यकत्वात्‌ तैव योग्यता | | इति -श्रौमद्‌ गङ्गेशोपाध्यायविरबिते त्वचिन्तामशो शब्दास्यतुरौ यखण्डे योग्यतावादपव्वेपश्ठः

“अन्वयप्रयोगकर्ूपव्तेऽपि' तअ्‌श्चासत्वेऽपि, “शरनापतवाक्ये' षटूख- अलाभिप्रायप्रयुक्ते waa सिच्चतोत्यादिवाक्ये, "बाधकप्रमायाभिति सेको म॒ जलकरणक Casa इत्ययः, -बाधकप्रमाविरह इति बाधनिश्चयाभावोऽपि खरूपसद्धेत्‌ रित्ययंः, सेव बाधनिखयग्युन्यतेव, ` "योग्यता श्ाम्दधोजनिका, waft शेषः किमेतज॒न्नामसख हेतुलेनेति भावः दृद मापाततः ताद्शप्रमालवंसा मान्यलखणप्रत्था- सन्तिजन्यतादृग्प्रमासा मान्यश्चानाभावल्सामान्यलचणमप्रत्यासन्तिजन्य- तदभावश्नाम-तदसंसर्गाग्रडसदषृतेन तश्जन्यवि गि्टानुभवजन्यद्धति- away वा मनसेवोपनोतभानात्मकस्य तजननिखयस्य कचित्‌ संश- यस्य सम्भवात्‌ श्राप्रवाक्यादिना व्यभिचारादेरयददश्रायां afa- चारिणा शिङ्गेम तजुन्ञानस्छ सम्भवाच्च agqayg ahaa ` धिकस्य प्रवेशादच्छमाणापेष्चथा गौरवमेवाज् दूषणमवसेयभिति दिक्‌

इति श्रौमथरानाय-तकवागोौ प्रविरचिते त्तविन्नामणिरिदस्ये

श्ष्टाख्यतुरोयखण्डरदस्ये योग्यतावादपूष्वैप्र es (९) ्यनापोक्ते वाक्च दति |

डे

९६२ तत््वधिन्तामणौ

अथ योग्यतावादसिद्खान्तः।

उच्यते बाधकप्रमाविरद्ो योग्यता, सा चेतर- पदाथैसं सगेऽपरपदाथैनिषठात्यन्ताभावप्रतियोगित्वप्-

ORR कज वाको 505000 कनः 58540 कोको हो £900 O08 9 9-900-99 5 8 6.0 9 कक कको CSET कनक 9.999.999 ® 9 9

अरय योग्यतावाद सिद्धान्तरदश्यं |

नतु तद्धश्यावर्ि लेऽग्बयितावश्डेद कसम्बन्धावच्छिनप्रतियोगि- ताक-तद्धग्ौवच्छिल्ाभावप्रमाविगरेयत्वसामान्याभावो बोाधकप्रमा- विरः सष प्रमेयं वाच्यमिव्यादावप्रसिद्धः तादाग्यसम्नन्धेन वा- वयवावच्छिन्नाभावाप्रसिद्धे, एवं प्रमेयस्य चट ward यच प्रमे- यलादिलचणाभेदसम्बन्ध एव षष्यर्थस्य च॒ विगेषणता विगेष- quay धटादावन्वयस्तच, यच वा ङूपवानित्यादौ तदादिषदं विग्रेषणएता विगेषसम्बन्धेन प्रमेयलादि रूपेण प्रमेयघटादिपरं तज चाव्यािः ` विशेषणता विगरेगव्यसम्नन्भेन प्रमेयतया द्यभावाप्रसिद्धेः, एवं भगवता ज्ञायते चट दत्यारावपौत्यत श्राह, ‘ar चेति बाधक- प्रमा विरदरूपा योग्यता चेत्यर्थः, इतर पदार्थेति, wa इतरत्वम- परलश्चा विवचितं तदगृदधेर देतुलात्‌ श्रयं धट इत्यादौ) विगेषण-

(९) खच cata कट त्वं तच्चारे यत्व रूपं भाक्तं, धात्वर्थे ज्ञानं, विषयत्व-

माख्थाता्थैः, तदन्वयख्च खरूपर सम्बन्धेन घटे, तथाच भगवृदा्ेयच्चान- विषयतावान्‌घट saa बोधस्तच तु सम्भवति तच खरूपसम्बन्धेन तादृश्रविषयत्वामावाप्रसिद्या निरक्तयोग्यताविरुहादिति ata: |

(९) ay cenqrafenaa uaa घटस्येव ददन्त्वावच्छिब्रतय। ` इत- इत्वादेर्प्रसिदधिरिति arta: |

ब्दाख्यतुरौयखर्े योग्यतावादः। र्दद

माविर्चष्यत्वाभावः। प्रमेयं वाच्यमित्यव प्रमेयनि-

विशेव्ययोर भेदस्लते योग्यलाजुपपन्तेश्च परन्तु तदौयाग्बयिताव- च्छेद कसम्बन्से तनिष्ठात्यम्ताभावप्रतियो गिलप्रकार कप्रमा विशे यल सामान्याभावस्तज तद्योग्यतेत्येव faafed, afear सि्चतौल्यादौ वद्किनिष्टकरणताया निरूपकतरूपान्वयिता वच्छेद्‌ कसम्बन्धं सेक- निष्ठात्यन्ताभावप्रतियोगिलप्रकारकप्रमा विगेग्यलस्येव सल्याश्नाति- aifa: | बद्िमिष्ठकरणताया भिरूपकत्वरूपसंसरशंऽपि सेकमिष्ठा- त्यन्ताभावप्रतियोगिलप्रमा विग्रेश्यलस्य घटादि जिष्टस्याभावसल्वादति- व्याश्चिवारणाय सामान्यपदोपादामं। श्रोतुयेदा afefas- करणताया निशूपकत्वरूपसंसगं सेक निष्ठात्यन्ताभावप्रतियो गिल- प्रमा नास्ति तदाऽतिव्यार्निरिति वाच्यं ख-परसाधारणप्रमामाचन- विशेग्यत्वाभावस्य प्रषेग्रादनादौ संषारे तदानौोमय्यवश्छं vata पुरुषस्य aa तादृशप्रतियो गित्वप्रमा सत्वाद्‌न्ततो भगवक्रमासत्नाच्च पयसा सिश्चतौत्यादौ पयोभिष्टकरणताया निरूपकतारूपाग्वयि- तावष्छेदकषम्बन्धेऽपि सेकनिष्टाव्यन्ताभावप्रतियो गिलभ्रमविशरेव्यत्- ` सत्वादसम्भववारणाय प्रमेति स्वेदा तादृग्रभमविरशद्‌- धदाकदाचित्‌ तादु शज्नानविगेव्यलाभावमादा्ैव तजः लखणसब्ग- तिरिति वाच्यं ्रनादौ संसारे सव्वदेवावश्यं कस्यचित्‌ पयो- निष्ठकरणएता जिष्पकलत्व-प्रभे यलादिमा येन केनापि Stu वा तज तादृशप्रतियो गिलभमसत्तात्‌, wary भममिन्ञत्व तेन पयो निष्ठ- करणएतासंसगाकाश्नौ सेकमिष्टात्यन्ताभावप्रतियो गिनाविल्यांभिकस- मू हा लम्बमप्रमा विगेव्यतल्मादाय waa: | तथापि पयोनि-

५५8, तक्चचिन्ताममौ

छात्यन्ताभावप्रतियोगित्वप्रमाविगेष्यत्वं गोत्वे प्रसि

करणता संस: सेकमिष्टात्यन्ताभावप्रतियो गिधब्येवानित्यादिप्रमा- विशेग्यतया असम्भव इति वाच्यं ।. तादृग्रपरतियो गिलप्रकारलाव- fea: प्रमाविशे्यताया अभावस्य विवकितलात्‌, प्रकारलत्वश्च विश्रेष्ता विगरेषषम्बन्धा वच्छिन्नं ure तेम एककालौगला दि सम्बन्धेन तादुरप्रतियोगिलप्रकारकप्रमामादाय नासम्भवः श्रथेवं विषयता- anger विथेग्यतालेन कथसुपादानं पथःकरणलसंखगंवं सेकमिष्टात्यन्ताभावप्रतिथोगौ ति प्रमाविषथत्वं पयःकरणत्वसंसगेलल- चटकतया पयःकरणएत्वसंसरगेऽप्स्तोत्यषम्भववारण्ाचय(९ तेन रूपे- पोपादानमिति aad) तादृशप्रतियोगिवप्रकारकलावद्छिन्लवि- चयताविवचयैव तजन्िराससम्भवादिति चेत्‌, न, दिषयतालविषरे- waraat ममश्रोरतया शाचव-गौरवाभावेनाश्नोकवनिकान्या-

(९) तादृश्संसर्ग॑ततेऽप्येतावृश्रसंसगँस्यापि निपातात्‌ तादृश्चसं सेतवः निद्तादृश्यप्रतौ ति विरेष्यतायास््ावृ्रसं सगे ऽवश्डेदकल्वास्यपिषयत्वम- Aa | | |

९) विषयतायां तादृश्रप्रतियोगिल्प्रकारकल्वावच्छिन्रतव तादृ श्रप्रतियो- गिल्वागतिरिक्तटत्तित्वं न्यथा तादृश्रपकषारकत्वस्य प्ागटत्तितवग च्ाबङत्तिन्लागविषयकन्नानौोयविषयताया खव तादृशावष्डित्रतवसम्भ- वादसक्कतेः धति tal तथा सति आगतिरिक्कत्वपरेश्े गौरवात्‌ प्रमापदतैवर्थ्या भावा भ्नमविषयतायाः पयःकरणकत्वादिनिरूपकतवे avasta तस्थाः सेकादि ङक्धमावप्रतियोित्वानतिरिक्कङत्तित्वमिति तामादायासम्भवानवकाध्रात्‌ किन्तु प्रतियोगितनिरप्रकारतानिर पितष्वमिति |

शब्दाख्यतुरीयखण्डे योग्यतावादः | २९५

थात्‌, प्रतियो गितरञ्चाग्वयितावच्डेदकसम्बन्धतामियामकषम्बन्धाव- feagan विशेषणं, तेन थधिकरणसम्नन्धावच्छिन्न-ताद्श- प्रतियोगिलमादाय area: ताद्ग्रप्रतियोगिल्लसा- मान्याभाव एव सम्यक्‌ किं प्रमा विगेश्यलप्रवेभेनेति वाच्यं अरखण्डाभावतया षेयर्याभावात्‌ भनु ay तजिषटात्यन्ताभावप्र- तियो गिलप्रकारकमप्रमा विग्रेयलसामान्याभावस्तच तद्योग्यतेत्येवास् किमन्वयितावच्छेदकसम्नन्धस्य अरसुयो गिङ्ुकिमिशेपेए, प्रतियोगि- त्श्चान्वयितावच्छेदकसम्बन्धावच्छिखललत्ेन विगरेषणोयं मातो यधिक- रणसम्बन्धावद्डिनल्लाभावप्रतियो गिलमादायासम्भवः तवापि सम्बन्धं विशेषावच्िन्लप्रवे श्स्छावश्यकलादिति 8, न, श्रयं घट इत्धादा- वभेद्‌ान्वयबोधस्थ लेऽन्बयितावच्छेद कताटदाग्यसम्बन्धावच्छिन्नात्यन्ता- भावप्रतिथो गिलाप्रसिद्याऽग्याघ्यापत्तेः | चात्यन्ताभावव्वेन भोपादेयं किन्वभावलेनेति नायं दोष दति aren तयापि पचति, घटो नासलौ- त्या दावन्वयितावच्छेद कानुकूलत्व-प्रतियो गिला दिटस्यनियाभकषम्ब- न्धावच्छिन्ञपरतियो गिताया श्रप्रसिद्धवेनाव्याघ्यापन्तेः। sea प्रतियो गिव्यधिकरणएत्ेन विशेषणोयः, न्यथा नोलो घट इत्या- ZAMIR: सजराव्याप्यटत्तिनो नौलरूपस्ेव नोलरूपविशिष्ट- ताद्‌ त्यतवेनाग्वयिता वच्छेद कसम्बन्धत्वात्‌(९) तस्य घं उत्पन्तिकालाव- (९) स्व॑ ज्ैवाग्बयितावष्छेदकसम्बन्धौ यसम्बन्धामां सम्बन्धत्वं खअन्वयिताव- ष्देदक सम्बन्धविणिरतत्तत्‌ सम्बन्धत्वेन Baur खयोग्यमाकेऽतिच्यातः सेकादिङश्यमावप्रतियोगित्वप्रमाविगेष्यत्वाभावस्य वड्हिकरयकत्वौय- निरूपकत्वरूप सम्बन्धेऽसत्त्वेऽपि भिरूपकलत्वत्वेन निरूपकत्वे सत्वम्य नि-

ATA सेके पयःकरणकल्वीयनिरूपकलवसलैव सत्वादिति मावः | 84

२६९६ लज्वचिन्त्रामणौ

SHIA रक्कतादश्ायाश्च घटेऽत्धम्ताभावसल्वात्‌, एवं काष्ठं पचतौ- त्यादौ चच तिडोऽनुक्कलनयापारे ast शफा संयोगेन aT: कन्नैरि काशटादौ ay संयोगब्येवान्वयितावच्छेदकसम्बन्धतथा aq च॒ किञचिदवच्छदेन काष्ठादावत्धन्ताभावादब्याध्यापन्तेः। uaa वेगिष्छ-व्याखच्यटन्तिधर्म्रावच्छिक्नप्रतियो गिलमादायापि नासम्भव. तस्व प्रतियो गिव्यधिकर णल्ाभावात्‌ | तथापि चज्रान्वयिता- च्छेद कम्बन्धो नाना तच चाखनौन्यायेनाभावमादायाव्यात्भिरिति वाच्यं | तद्युक्रिनिरूपिताम्बयितावच्छदकषम्नन्भे तद्यकिनिष्टात्यन्ा- भावप्रतियो गिलप्रमा विगेब्यलाभावसद्राक्तो agai may ्रङ्गया हिकतया ATMA श्णघटकतया चाशनोन्यायेनाभाव- मादायागार्चिविर हात्‌ WAIT पदायेतावच्छेदकङूपेण पदार्थयोः सम्नन्धतावच्छेद करूपेण श्रन्वयितावच्छेद कषम्नन्धस्य लखणघर- कत्वे Tet घट इत्यादावध्याघ्यापन्तेः मोलतादाम्यस्य रक्रचरादि- निष्टाभावप्रतियो गिलेन घरनिष्ठात्यन्ताभावप्रतियो गिलप्रमाविगरेख- ल्वाभावविरदात्‌ चेवं यद्वद्यक्रिदयोः परस्यरमन्वयंसन्तद्यकरि- इयोरेव प्रातिखिकश्ूपेण परस्प रयोग्यतवश्ञामं हेतुरिति फलितं ag) युगसडखेपाप्यगक्यमिति वाच्यं योग्यतायाः संश्यसाधारण- भ्नागस्येव Fanaa प्रातिखिकसकलशव्यक्तौनां परस्परथोग्यता निखव- विरद्ेऽपि चतिविरष्ात्‌^। प्रातिख्िकनिखिशब्यक्रौनां परस्यरयोग्यतासंग्रयोऽपि wea दुःसम्भव दति ares यद्यद्यक्ि-

(९) योग्यत्वश्नागच्चु | ` ` (९ ay योग्यतासंगश्यादेव शाब्दजाध इति aa |

श्ब्दाख्यतुतौयख्े योग्यतावादः | २१७

इयोः परस्पर योग्यताज्ञानं तयोरेव परस्परमन्वयोऽस्ठ॒ थथो- Sg संशयात्मकं मिखयात्मकं वा ayer तयोः श्ाब्दबोध- विषयलेऽपि मानाभाव इत्यभिप्रायात्‌ | चेवं तक्ट्यक्रिवरूपेण- योग्यताज्ञानस्य PAA सामान्यतः पदाथतावश्डेदकरूपेणायोग्यता- भिखयेऽपि ग्राब्दबोधापन्तिरिति are) श्रन्वयितावच्छेदकाश्रयत्व- विशिष्टतन्ञद्रक्रिलरूपेण योग्यताज्ञानस्य हेतुलाभ्युपगमात्‌ | तथापि a: wiarfaaret यच तदादिपदं समवायसम्बन्धेन ङूप- प्रकारेण रूपवदाथपरं तवापि योग्यलापत्निः वायौ रूपव्यक्ति- भिङ्पिततविशरि्टसमवायाभावसत्ेपि तदभावस्य समवायात्मकपरति- यो गिषमानाधिकरण्लादिति वाच्यं तद्युककिनिरूपिताग्वयिताब- च्छेद कसम्बन्धपदेमाग्वयितावच्छेद कसम्बन्धावच्छिल्तट्धकिमिरूपितध- ।- धस्विभावस्य विवकितलात्‌, wa-ufaanagq टतन्तिनियामकानि- UAV तत्त्माचमाधारणएः खरूपसम्बन्ध विग्रेषः, वत्राधा- राधेयभावमाज, तेन इत्यनियामकानुकूणलादि सम्बन्धसखलेऽपि माप्र- सिद्धिः। अतएव ध््मे-धिभावविषयके कज्चानतवं विशिष्टश्नानलमितिं मोमांखकाः इत्यश्च प्रतियो गिवप्रमेत्यज्न प्रतियोगित्वं विश्ेवषण- ता विग्रेषसम्नन्धावच्छिश्नलेनेव wy विग्रेषणौयं 1 तथापि प्रमेय wart यन्न तद्‌! दि पदं समवायसम्बन्धेन गणाच्न्यलवि- शिष्टसत्तावद््यणएपर तचा पि योग्यलापत्तिः विश्चिष्टसन्तायाः षभना- मतिरिक्रतया सत्ताव्यक्रिनिरूपितसमवायसम्बन्धावच्छिश्नध्मिलस्् गएजिष्ठाभावप्रतियो गिलविरहादिति are: तज योग्यत्स्येष्ट- त्वात्‌, यदा तु विशिष्टनिरूपिताधारत्शम्बन्धेन विशिष्टसत्ववद्‌- `

ads | तस्चचिन्तामणौ

णपरं तदेवायोग्यलस्याभ्युपगमात्‌ AAG टइश्यनियामकषग्ब- न्धस्या्यभावप्रतियो गितावच्छेदकलात्‌ तद्मक्तौ तद्रणिनिष्ठाव्यका- भावप्रतियो गिलप्रकारकप्रमा विगरेग्यलाभावसद्यक्नौ तद्ाक्र्थी ग्यतेत्येव weer: | संसगपदञ्च॒प्रतियो गिलस्याग्वयितावच्छेदकसम्बन्धा- वख्डिन्नतवलाभाय saa वयधिकरणएसम्बन्धावच्छिन्लाभावप्रतियोगि- ` व्वमादायासभ्भवापत्तेः, श्रत्यन्ताभावलश्च प्रतियो गितावच्छेदकसम्ब- aa प्रतियो गिव्यधिकरणाभावलं,५९ 4 तु खदातनषंसर्गाभावल, नातस्तादाग्यसंखगं काग्वयबोधस्वलेऽन्वयितावच्छेदकतादाम्यसम्नन्धाव- शख्डिनाद्यन्ताभावप्रतियो गित्वाप्रसिद्या व्यानः, ae ग्टहमि- त्यादौ ay घंयोगादिरेव wea खमवायेन उएेऽवयस्तब, Uy वा चेजोगच्छतोत्यादौ तिडेऽतुक्खव्यापारे संयोगादौ wau तस्य समवायेन Visas संयोगादेरग्याष्यदन्तितथा सह चैचादि निष्ठाभावप्रतियो गिला दव्याश्भिवारणाय प्रतिथोगिव्यधिकर- शलमभावविगेवणं स्यशेवानित्थादौ चच तदादिपदं खमवा- सम्बन्धेन शूपप्रकारेण रूपवद्वाथ॒परं तजापि वायौ खमवायसम्ब- न्धावच्छिलरूपव्यत्यभावस् समवायेन शूपात्मकप्रतियो गिव्यधिकर- तया नातिव्यात्तिरित्येव रमणोयं(९)। केवलान्वयिनि पूरवीक्षा-

(९ तथाच प्रतियोग्यगधिकस्यतद्यक्तिनिद्छामावप्रतियोगिलप्रमाविरेष्य- त्वामावल्तद्यक्तौ ARR ATTA मावः |

(९) वचाच रूपरसमवायस्य समवायानतिरिक्षतया पव्वंकल्पेऽतिब्धाततिरिति भावः |

्ब्दाख्यतुयौयखय्छे योग्यतावादः | २९८ वाच्यत्वसंसगे तदभावः

मव्यातिमुद्धरति, प्रमेयमिति, श्रमेयनिष्ठात्यन्ताभावेति प्रमेयला- अया दिनिषठप्रतियोगिग्यभिकरणाभावेत्ययेः, ‘wa गोलाधिक- रणते, अन्यया विभेषणता विगरेषसम्बन्धावच्छिश्लाभावदेव wearer टकतया तदवख्िलगोल्ाभावस्य प्रतियो गितावच्छेदकसम्बन्धेन प्रतियो गिग्यधिकरण्लाभावात्‌ गोले प्रसिद्यासम्भवात्‌ विेषण्ताविशे- चसम्बन्धेन गोत्वस्य प्रतियोगिनोऽधिकरण्णप्रसिद्धः sraefiea प्रतिथोगिथभिकरणएवस्यामुपादेयलमते वस्ठतस्हकश्पे यथयाश्रत- मेव साधु ‘areal’ वाच्यलरूपताद्‌ाग्यसंसर्गावच्छिन्नधम्े धर््विभावे,. agaqae "वाच्यलसंसगं' वाच्यलसंख्षटेऽशादौ |

केचितु तन्द्र किलेनेव लणधटकलेऽपूवेग्यक्तिविगशेवशाभः शाब्द TI aha नस्यात्‌ एवं प्रमेय इत्यादौ यत्र तदादिपरं षमवाय- ... सम्बन्धेन राणाद्यन्यतल विशिष्टसन्नालप्रकारेण ताद्‌ स्ववद्‌ णपरं तज्रा्ययोग्यतवं सवेसिद्धमतस्तद्ध ष्योवच्छिशिनिरूपितल विचिष्टान्वयि- aaa तड्न्मावच्छिन्ननिष्टात्यन्ताभावप्रतियो गिवप्रकार- कप्रमा विगरेष्यलाभावसद्धग्भावच्छिश्ने तद्धम्मावख्छिन्लस्यान्वयबोभे यो- maa शदणायेः(९) चेवं शिंशपा ae: नोलोचट इत्यादाव-

(९ धम्भतानिरूपितधम्मित्व इत्यः | (९) तथाच विगिरटसन्ताजनिरूपितव्विभ्िटसमवायाधिकस्णता yar- दाविति ata: |

Ree वज्वचिन्तामणौ

aife: शंश्पा-मौलादिताराव्यस्य एरचटलाद्यवच्छिलनिष्टत्य- म्ताभावप्रतियो fara fafa are, agarafmeufrerqann- पदेन तद्धग्भावच््डिन्नवव्यापकात्यन्ताभावस् fafa a चेवं प्रमेयं बाश्यमित्यज् ma गोत्वाधिकरणत्वे वा प्रसिद्यभिधानम- सङ्गतं गोव-तदधिकरणएएत्रयोः प्रमेयत्व्यापकात्यन्ताभावप्रतियोगिल- विरहादिति वाच्यं face विगरेषावच्छिल्लगोत्ाभावस् केवखा- न्वयिवेन प्रमेयलव्यापकतया गोले प्रसिद्धिसम्वात्‌ प्रमेयं वाच्य- मित्य विगेषष्णता विगरेषच्येव श्णएघटकत्वात्‌(९। विगरेषणता- विभेषसम्बन्धावच्छिनल्रगोल्ाभषा प्रतियोगितावस्छेदकसम्बन्धेन प्रतियोगिष्यधिकरण इति वाच्य व्याप्यट्न्नति्यले तय्यातुपादेय- लात्‌ श्रगयाणट्न्तावव्याश्निवारणाय व्या्यहृत्तिलस्छेवाभाव विगेषण- ary व्या्त्तित्वं निरवच्छिश्लटन्तित्े। चेवं वे शिष्छ-व्यासव्य- ` दत्तिधष्पावच्डिश्नाभावमादायासम्भव इति are agatafe- ज्नमिरूपितलवििष्टान्वयितावच्छेदकसम्नन्धतावच्छेदके तद्श्नाव- च्िन्नवव्यापकात्थन्ताभावप्रतियो गितावच्छेदकल्वप्रमा विश्रेव्यत्वाभाव- ष्य विवकितल्वात्‌(९) चेवं वद्िना सिशच्चतीत्यादौ अतिप्रसङ्गः वद्िलावच्डिनलाधेयत्वले करणततव्यापकात्यन्ताभावप्रतियो गिता-

(९) श्यन्धपितावच्छेदकसम्बन्धतानियामकसम्बन्धेगाभावस्य wage Frat यतया वाच्यतादाद्रधस्य वाच्यत्वरूपतया तच्नियामकसम्बन्धो विश्रेषण- तावि्रेष रखवेति ata |

(९) प्रमानिरूपितावच्छेदकत्वनिषप्रकारता च॒ पर्यापिसम्बन्धावष्डित्रा याद्या खतः TAA दोष दति भावः

शब्दाख्यतुरोयखण्े योग्यतावादः | ROE वस्तुतल्वितरपदा्थ॑संसगेऽपरपदार्थनिष्ठात्यन्ताभाव-

वच्छेदकत्वाभावस्य एवं करणत्वलावच्छिलमिरूपकवते सेकलव्याप- कात्यन्ताभावप्रतियोगितावच्छेदकल्वाभावस् सादिति are वङ्किलवावख्डिश्न-करणलत्वावदख्छिननयोः सेकलावश्िनल-करणंलताव- च्डिलयोख naar तज्रापि योग्यता wea वड्धिकरणत्वलस््‌ - पवि गिष्टधन्मावच्छिन्न- सेकलावच्छिन्नयोरग्बये परं योग्यता नास्तौ- व्युपगमादिति कोपि दोषः। एवमयिमलच्णमपि बोष्यमि- त्याङः, तदसत्‌, भिष्ठपदस्य BRIA उदकर लापन्तेः करका- भिगप्रायप्रयुक्रपयसा सिश्चतौत्थादावपि गलकरणकलतप्रकारेण कर- काकरणएल्वोधने योग्यतापन्तेखच जलकर एत्त्वष्पवि शिष्टधण्मावद्छि- कननिरूपितत्वि शिष्टान्वयितावच्छेदकसम्बन्तावच्छदके सेकत्वव्याप- काभावप्रतियो गितावच्छेट्‌ कलाभावस्वात्‌, चेष्टा पत्तिः, जलकर- शवलद्ूपेण करकाकरणतल्यो धनेऽपि सारदा यिके सच योग्यलाम-

भ्युपगमादिति दिक्‌ | a4 प्रमाविशेव्यत्चरितत्रेन गौरवं ताद्शप्रतियो गिलप्रमालेन तादृश्रप्रतियो गिलप्रमासुपश्ितिदश्रायां gary न॒हि wy शाब्दबोधात्‌ We तादृ शप्रतियो गिलप्रमालावच्छिश्नोपल्धितिनियम- दत्यतस्तद्‌ परित्यागेन agua, ‘agafafa, श्रजापौतरतम- परत््चा विवकित,(*) तथाच तत्तटयक्रौ यान्यितावच्छेदकसम्नन्पे तन्त-

(९ अयं घट द्रव्यादौ विद्ेषण-विग्ेष्ययोरभेद स्थले योग्यल्वानुपपत्तेरिति

Ha | |

ROR तच्वचिन्तामणौ

प्रतियो गितावष्डेदकधम्मेश्रन्यत्वं योग्यता शाधवात्‌ शवधत्ना नत्वा |

grat वा तन्तद्भक्तिनिष्टात्यन्ताभावप्रतियो framerate wag waa, पदाचंतावच्छेदकरूपेख पदार्थयोः yan भिंश्पा इकः मोलोघटर इत्यादाबुक्रकमेणव्याक्तिरिति तत्त- gfmaa प्रवेशः | अत्यन्ताभावलश्च व्याप्यदस्यभावलं, पूीक्राव्याय- ठन्िख्णेऽव्यािवारण्णय व्याप्यटन्तो ति, ग्याणयदटस्ितवं निरवद्डिल- afad, चिष्ड-व्यासव्यटन्तिधश्मौवच््छिन्यभावस्ापि ग्थाणटन्तिला- क्तूप्रतियो गितामादायाखम्भववारणायावच्डेदकालुसरणं। तथाप्यसम्भव; तादृ शप्रतियो गितावच्छेदकख्य ange व्यासन्धट- त्तिध्षख «aay सत्वादिति वाच्यं “दतरपदाथंसंसगं tae तद्यक्नो चल विशिष्टान्वयितावष्डेद कसम्बन्धतावच्डेदक इत्यथैः, इतर- पदार्थं इतरपदाथैता वच्डेदकाञ्रये संसगायस्ेति yee पदार्च॑ता- वच्छेदकाञ्नथनिष्ठतद्क्ितवे इति वायः, भ्रतियो गितावच्छेद कध qauafaara प्रतियो गितावच्छदकस्य wae: प्रतियो गिताव- wena तच्छरन्यवमित्यथः, तथाच तन्तद्युक्रौयलविशिष्टाग्बयि- तावच्छेद्‌ कसम्नन्धतावच्छेदके तद्भाक्तितवे वा तद्ाक्रिनिष्ट्याणदृत्यभा- वप्रतियो गितावच्छेदकलश्न्यलं ast तद्धकौग्यतेत्थर्थस् फलि- ततया ¶ैजिष्यादिरूपावच्छेद कमादायासम्भवविरडात्‌ गेषं दर्चितदि- शावसेयं “लाघवादिति प्रमाविगेष्यलाप्रबेग्ेन लाघवादित्यर्थः, ` शरकयश्चानलाच्चेति तादृ ग्रपतियोगिलप्रमालेनालुपशितिद ग्रायामपि WNT:

श्रब्दाख्यतुसैयखण्डे योग्यतावादः | ROR

अज नव्याः श्रवयितावच्छेदकसम्बन्धेन agpat तद्चक्रिमस्वमेव तद्यक्रौ तद्यक्रयग्यताऽतिलाचवात्‌, चटलाश्रयेतद् किन जलाअये- agfmanafenay संश्य-निख्चयसाधारणं ag हेतुः तेन सामान्यतः पदा्थतावण्डेदकरूपेणायोग्यता निखयेऽपि चान्द गोधः नवा शाब्दबोधात्‌पूवंः ade तादृश्मिखयविरद्ेऽपि कापि af: | agrg श्रन्वयितावच्डेदकसषगंण agate ag- wiafeeqanaa agaafea aguafearaany योग्यता | तेन orfafanete सवज श्राब्दवोधात्पूवै fafeerng fing त्त- दा किमत्व्रहाभावेऽपि खतिः। चेवं afar सिश्चतौत्थादा- वतिप्रसङ्गः करण्त्वत्यावच्छिनने afesarfeaqe सेकलावद्डिन्े करण्टत्वलावच्छिन्ञस्य सत्वादिति ara | वद्धिलावख्डिल-करण- त्ल्ावदख्छिश्नयोः सेकवावच्डिन्न-करणतवतावच्डिन्नयोख प्रत्येकान्वये तचापि योग्यताख्छेव वदङ्धिकरएतलावच्डिन्न-सेकलावच्छिन्वयो वि- freraa पर योग्यता मास्ति सेकलावच्छिश्ने वङ्धिकरणललरूप- विशिष्टधष्मोवर्डिश्नवत्चविर डा दित्यश्युपगमात्‌। wad सेकोन वहि करणटक दत्थयोग्यताजिख्चयद शायां विशिष्टस्य वे गिष्छमितिन्यायेन सेकल्रावच्छिन्ने वड्धिकरएतलरूपविभिष्टधग्मावच्छिश्नखान्वयो arg ताषूश्राग्वये सेकलावख्डिने व्िकरणत्लरूपवि शिष्टधष्मावच्छिनन- ववस्य योग्यतालात्‌ उक्षायोग्यता मिञ्चयच्वे तजश्चानासम्भवात्‌, fag विगरेषणमिति न्यायेन सेकोवद्धिकरणएक इत्यन्वयस्च स्यात्‌ करणएललावच्छिने वड्किवावच््छिललवत्वस्य सेकलावच्छिशे करणएव-

त्वावच्छिलवत्तस्य उक्रायोग्यताभिख्चयसत्ेऽपि ग्रडसर्मरवादिति 35

२९४ तस्वचिन्तामणौ

नरशिरःशोचानुमानबाधात्‌ तदभौोषबोधक- शब्दात्‌" waaay इति वाच्यम्‌ | उपजौव्यजातौ-

चेत्‌ सेकलावच्छिशे करणएत्लवशूपेख कर खत्वं प्रकारः करण- लत्वावच्छिकने वद्धिलरूपेण वद्धिः प्रकार इत्याकारकशाष्दवुद्ि प्रत्येव सेकल्वावच्छिन्ञे वदह्धिकरणवलरूपविशिष्टधग्योव च्छल वत्वसय थोग्यतालादिगिष्टस्य afinafafa न्यायेन fata farcefata न्यायेन उभययेव श्ाष्दबोधष्व तादृश्रायोग्यतानिखयदग्राया- मखम्भवात्‌ छक्क्रमेणोभयसाधारणविशिष्टप्रकारताया एव तज्न्ा- Me काम्येतावच्डेद कलात्‌ चेवं करकामिपायपयुक्रपयषाबिध- तौत्यादावपि योग्यवापत्निः सेकलावच्छिले पयःकरणकल्वतवर्ूप- विशिष्टधष्या वच्छिग्ववत्मपत्वादिति ary तजापि सेकलावच्छिन्े जशलप्रकारेण कर काकरणत्वबोधने योग्यवष्येष्टलात्‌ करकात्वरूपेख करका कर एकत्वबोधने पुनरयोग्यलाभ्युपगमात्‌ साश्मदायिकप्रवादख्व नियुक्रिकलेमाशरद्धयलादि ति(९) प्राहः |

“न चेति नरभिरःकपालं शचि meyer शक्खवदित्यतुमि- त्याक्कबाधनुद्धिसत्वादित्यथेः, ‘wey वेदात्‌, “श्रन्वयाबोधः' अन्वयबोधासम्भवः, प्रतिबन्धकसत्वेन उक्रयोग्यतान्नामामोवादिति भावः | “उपजोव्येति भवदु कशो चा शुमाभस्य उपजोग्योयो दृष्टाः

(९) मरभिरप्रोचानुमागबाधितत्वादश्रौचमो धकश्रब्दादिति we | (९ नि्क्किकत्वेनानादेयत्वदितोति खम, ग° -

शब्दाख्यतुरौयखण्े योग्यतावादः | Roy

यत्वेन शब्दस्य WAT तेनैव तद्नुमानवाधात्‌ | नन्वाकाद्गसत्तिमश्वेन शब्दस्य प्रमाखता तु यो- ग्यतापि तन्तिवेशिनौ बाधाभावस्य प्रमामाचहेतुत्वा- दिति चेत्‌। न। are हि प्रमाणदोपोऽवग्यं वक्तव्यः,

ng रएवितारूपषाध्यनिख्चाथकोवेद णश निचितेप्रामाखकतथा तष्नातोयनेनेत्यथेः, ‘mee’ wilwinnaze, अलंवस्वात्‌' निचितप्रामाश्वकलात्‌, "तेनेव, तदेद ज्ञानेनैव, तदलुमागबाधादिति शौ चाशुमान्याप्रामाख्छन्नापमादरिव्ययेः वेदाच्छाष्दबोधा- मन्तरमेवामुमानेऽ्रमाल्न्नानं एव प्रथमं कुतं दति वाच्यं] फलबलेन तेद ज्ञानस्यैव बदहोधकविधया श्रप्रामाण्ोप्वापकलव- कर्पनात्‌ तच्छन्याप्रामाष्योपख्ितिसदशतममसेव विनापि शाब्द गोधमप्रमालन्ञानसम्मवात्‌ फणानुरोधितलात्‌ कश्यनाया दति भावः “राकाङ्घुमसन्तिमत्वेन' आकाङ्ुगसन्तिन्चानसदकारेरोव "प्रमाणताः शाब्दबोधननकता, श्योग्यतापि' योग्यता्ौरपि। नं सतन्ान्वय-व्यतिरेकागुविधामाद्‌योग्यताश्नानस्यापि हेतुमिति are | तद्धेवासिद्वेरिति भावः नन्वेवं afar सिञ्चतीत्यादौ बाधनिश्चये षति कुतो नाम्वयबोध इत्यत are, "वाघेति बाध- बुद्याभावस्सेत्ययेः, प्रमामाजेति विशिष्टवुद्धिमाचेत्ययेः, तथाच ar मान्यसामथ्यभावादेव तदामो शाब्दबोधे दूति भावः। बाघे रोति वशिना शिच्चतोत्यादिषु araqgifaer:, श्रमारेति शाष्दबुडधिकारणोग्तज्नानखय प्रतिबन्धो wana वाश्यमित्यधैः,

nod ` तक्वचिन्तामणौ

सन्धया प्रमाणविषये बाधासम्भवात्‌ यथागुमाने बाधादुपाधिकल्यनदारा व्यात्तिविषातः, निरूपाधौ बाधानवकाशात्‌ |

“शरन्ययेति, श्रमाणविषये' बाधबुद्धावपि ग्राष्बबुद्धिकारण्टौगतया- वजश्चानसत्वे, बाधसम्भवादिति बाधबुद्धेः शाब्दबुद्धिप्रतिबन्धकला- सम्मवादिव्यव॑ः, कारणटौ खतज्नाभं fazer एव wre परोखानु- भवप्रतितन्धकलादिति भावः। तज दृष्टान्तमाड, "ययेति, “अनुमाने wofufrea, "बाधादिति बाध्बुद्या इत्यथः, उपाधिकस्पनेति उपधिन्नानेत्यथेः, व्यात्निविघातः" अतुमितिकारणौग्तग्याति्रान- प्रतिबन्धः, wag aw बाधितसाधनवान्‌परस्तज बोध्ये, अन्यच तु -पचपर्तान्ञामप्रतिबन्पेा बोध्यः ननु araqgt कथसुपाधिन्नान- मित्यत are, ^निरूपाधाविति पचधोेतौ निर्पाधौ सतौत्य्ंः, 'बाधानवकाश्ात्‌' बाधासत्वात्‌, तथाच व्याप्येन व्यापकातुमानमिति भावः। antsy साध्यवद्धिश्लपच्कलवं तेन गन्धप्रागभावकाला- बच्िल्लो घटो गन्धवान्‌ एथिवौलादित्धादौ बाधिते sarees चतिरिति ate इदमापाततः कारणौग्रतन्नानं वि्टयत- wwe परोखालुभवप्रतिबन्धकत्मिति . ग्यापेरभथोजकलात्‌ उपमितिश्लसे व्यभिशलारात्‌ arama सखादृश्यादिज्ञानप्रतिबन्ध- कले मानाभावात्‌ गन्धप्रागभावकालावच्छिश्ो चटो गन्धवान्‌

xfer भाव दति ae

WTA Tae योग्यतावादः ROO -

षयिकलादित्या्मुमितिप्रतिबन्धके गन्धप्रागभावकाशविशेव्यक- गन्धाभावनिखये व्यभिचाराच्च | ayy शान्दभोसाधारणएविशिष्ट- बुद्धिखामान्यं प्रत्येव बाधनिश्यद्य प्रतिबन्धकत्वे शुखं चच इत्या दि भुख-चनरा्यभेदाग्वयबोधकरूपकादौ प्रहसनादौ भाध- निखयसच्तेऽपि श्रलुभवसिद्धस्छ शाब्दमोधश्यापलापापन्तिः nearer मिश्यामिग्रापवचनाच्छाब्दबोधासुपपत्तिख्च ay शाब्दबोधं विना क्रोधाद्चसुपपन्तेः, अत Ua ““शत्यन्ासत्धपि We ज्ञानं शब्दः करोति fe बाघधान्तु प्रमा तज रतः प्रामाण्छनिखयः"9 इति atfunaa नि्तेऽपय्थे weat ज्ञानं जनयति किन्तु तदागौं aspera प्रामा्याभवन्नानमानं जायते wa: warafagqat निष्कन्पप्र- टन्तिप्रयोजकः, अन्यया तजापि प्रटत्यापत्तेरिति azar, तथाच श्राब्दान्यविशिष्टबुद्धिं प्रत्येव बाधनिखयस्छ प्रतिबन्धकतया. वद्किना विश्चतोव्यादौ बाधनिश्चयसच्ये शाब्दबोधवारणाय बोग्यताधौः शा- ब्दपोरेतुरावश्यकौ थोग्यताश्चागस्य Bae एव बाधिताथेक- ूपकादौ कथं wnat: बाधमिखयसन्ेन तद्धश्भावच्छिने ag- धाव च््छिन्नवष्वरूपयोग्यताश्ानस्येवाखम्भवात्‌ अन्यथा वङ्धिना सिद्च- Marah बाधनिश्चथसत्े श्ाम्दबोधस्य दुवारलादिति are बाधमिखयसत्वेऽप्याहाय्येयोग्यतान्चानादेव ay शाब्दबोधसम्मवात्‌, afen faumanaafa भाधनिख्यसन्ेऽप्या हाथ्येयोग्यताज्चामात्‌ कदा चित्‌(९ शबष्दबोधस्येष्टलात्‌। चेवं शङ्खो पौत इत्थादिनाध-

(९) कस्यचिदिति Wo

Rec avafarrarait

निखथसखन्बऽपि wy पोत इति दोषविगरेषणन्ययोग्यताभमेण vy: Gia इति शब्टभोधप्रसक्गः बाधनिञ्धथविरदद रायां wg: पौत- इति दोषविगेवणन्ययोग्यताभमाच्छघ्ः Ra इति श्राष्टमोधोदयात्‌ दोषविेषन्ययोग्यतान्नानस्यापि हेतुलेनाभ्वपेधतवादिति ave असत्यप्रामाख्छनिखये CA शराहारययोग्यताश्चानतुखलात्‌ एवं यदेकेग्ियजन्यवा निखयसत्तेऽपयन्येन्ियन्ययोग्यतान्ञानमानुमामि- कादिबाधनिखचथसत््ऽपि शौ किकमत्यकात्मकयोग्यताश्ञानश्च तदा तजापि शाब्दबोधे इष्टापत्तिः आडहाय्येयोग्यताश्चानतुखयत्ात्‌ अबा- धिताचेकरूपकादौ ्ाब्दमोध एवाहाययतमकोऽभ्युपेयतांः तथाचा- शाम्यलेतरत्ववदाहाय्यैाब्देतरलस्यापि बाधनिखयपरतिवधष्यताव- ea प्रवे शारेव वाधितायैकरूपकादौ बाधनिश्चयसच्ते श्राष्दभोधस्य afemn सिश्चतौत्यादौ बाधनिश्चयसच्वे शाब्दबोधाभावष्य समावे-

ऽपि किं एयगयोग्यताधोडेतुलेन, तवापि श्राब्देतरल्य प्रतिबध्यता-

वच्छेदके प्रवेशस्सावश्यकलतवात्‌ मग मम श्ाब्देतरलं शाष्दलाव- . च्छिलप्रतिथोगिताकोऽखण्ड़ो भेदस्तव चाहाय्येश्राब्देतरलवं wid- AAG AA AASV द्धिभेदकूटरूपमतः प्रतिबध्यतावच्छ- दकगौरवमिति वाच्यं अतिरिक्रकायै-कारणभावकल्यमा मपेच्छ का्येतावच्छेदक-कारणएतावच्छेदकयोः शरौर गौरवस्य न्याग्यलात्‌ तन्तदग्रामाष्छन्नानाभावकूटविशिष्टयोग्यताशन्नानय्येव शाब्द घौडेतु- तया. तवापि कारणतावच्छेदकशरीरगौरवसत्वाख कायै-कारण- भावान्तरकल्पनं पुनरधिकमिति चेत्‌ शाब्दबोधस्याहा- सयैलाभ्युपगमेऽपसिदधान्तात्‌ was श्ामस्या हाय्यैलानन्धपगमात्‌

शब्दाखयतुरौयखग्डे योग्यतावादः | Roe

किञ्चाहाय्येग्रान्देतरलस्स प्रतिबध्यतावच्डेद कप्रवेे शाब्देच्छाविरह- दश्रायां बाधनिद्यषत्वे ्रारहाय्येश्राब्देतर श्राब्दानुत्‌पारेऽप्याहाय्यै- WRAY कुतो नोत्पाद इत्याहाग्यद्राब्द बोधं प्रति तम्च्छाब्दे- च्छानां विगेषतो हेतुलस्याव्षकलात्‌ एवं शाब्दे ee अना हाय्ध- श्ाम्द्‌ बोधवारणाय श्रनादाय्णेशराष्दबोषं प्रति तक्तरिष्छामावाना- मपि हेतुलस्छाव्यकला द्नन्तकास्यै-कारणभावकश्पमप्साङ्गाद्धेद कूट - naa प्रतिबध्यतावच्छेदकगौरवाच AISA एयग्‌योग्यताज्ञाग- Wada लघौ यतौ | we तवाप्रामाख्यन्ञामाभावविगिष्टयोग्यतान्ञामं TRAMs सामामाधिकरण्छमेव वे शिष्चं अन्यथा विषयता- सम्बन्धावच्छिन्नतन्तत्पुरषो याप्रामा न्नानाभावानां विगेषता विशेष- सम्बन्धेन योग्यताज्ञान विशेषणत्वे तन्तत्पुरुषौयवष्य काता-कारण- तावच्छेदके प्रवेगरप्रसङ्गा गौरवापत्तेः तथाच तन्तदप्रामाण्यन्नानाभा- वानां सामानाधिकरण्छसम्बन्धेम परस्परं विेषण-विशेष्यभावे विनिग- मनाभावाद्‌गरतरधम्मावच्छिशानककाय्यै-कारणभावो दुवारः च्रप्रा- माष्ठश्चानाभावानां विशेषण-विगेवयभावभेदेन विशिष्टबद्धि-बाधनि- खययोरनन्तप्रतिबध्य-प्रतिबन्धकभावचानुमिन्यादि खलामुरोसेन इ- योरेव AW) तत्रा हाय्येशराग्देतरलस्य तभच्छाष्दबृडिभेदक्रट- ere विगरषण-विभेग्यभावभेदेन प्रतिबध्यतावच्छेटकभेदाद्र॒रतर- धमो वच्छिश्ामन्तप्रतिवध्य-प तिवन्धकभावोऽधिकः, मम तु शराब्देत- रतमखण्डो भेद इति नागन्तप्रतिबध्य-प्रतिबन्धकभाव इति are | मम परस्राखष्टानां तत्तच्छाग्दबुद्धिभेदलूटानां विभिष्टबुद्धिलस् चैकत्र दथमिति न्यायेन. वयासज्यटक्तिप्रतिगध्यतावच्छेदकताभ्युपग-

९८० तत्वचिन्तामबौ

मारैकवान्यस्या विशेषणतया विगरेषर-विगेव्यभावे विनिगमकाभाव- विरहात्‌ परस्परं विशेषण -विभेष्यभावे सामानाधिकरण्धरूपवे भिष्च- gaan मौरवपरसङ्ग्धेव विनिगमकलात्‌ तव चाप्रामा्छन्नानानप- विजिष्टयोग्यताश्चानस्वणे घामानाभिकरण्छसूपवे गिष्छपरवेशस्यावण्तक- लवात्‌ ` विगेषण-विगेव्यभावे विनिगमकाभावात्‌। TART विगरेषणता विगेषसम्बन्पेन विभिष्टबद्धिलस्

समवायसम्बसेन ज्ञामनि्ठतया खम्बन्धभेदेन TSA THA श्येकष्टासम्मव इति वाच्यं | तत्तच्छाब्दबुद्धिभेदक्रुटाना^ विधिरट- ` बुद्धिलापिकरणलष्य विगरेषणता विगेषस्बन्धेन Geese व्देद कलाभ्युपगमादिति चेत्‌। निखिताप्रामाष्यकादपि चो- ग्यताज्नानाच्छाष्दबोधो HTT एव परन्तु तच्डाष्दबोधेऽपि अ- garage जायत इत्यभ्युपगमात्‌ अप्रामाश्यज्ञानाभावविशिष्ट- ल्य मम कारणतावच्छेदककोटावग्रबेश्रात्‌ अन्यधा पका दिले जादा यैयोग्यताज्चानाच्छाब्दबोधानुपपन्तः अहाय्यैयोग्यतान्नाने वि- रवतो ऽप्रमाण्यनिश्चयस्यावष्कलात्‌^९) | किच्च afe निञिताप्रामा- ष्यकयोग्यताश्ानाक STATA तत्तद प्रामाष्छन्नानाभावक्रूट- योग्यताज्नानयोः TATA खातग्व्येण दण्ड-चक्रवद्धेतुता तु पर at विग्रेष्ण-विशेव्यभाव इति विग्रेषण-विगरेव्यभावभेदाश्नानन्त- काय्यै-कारण्भावः। तव लाहायैग्राष्दनोधं प्रति तन्तच्डाब्देच्छा-

की

(४ त्राबदुमेदकूटानामिति ग° | ® लिशरषदरंनादपरमालनिख्यस्ावष्ठकलवादिति °

WAC TIA योग्यतावादः | २९८९

भामनन्तकाय्ये कार रभावण्यावश्यकवात्‌ | ` तवाणयमन्तयोग्यता- भ्ानव्यक्िकल्यनमिति वाच्यं तस्य फणमु खलात्‌ पदार्योपख्िते- सात्पय्येन्नानंस्य वा भियतयोग्यता विषवयकलाग्यपगमेनातिरिक्रकण्प- माभावा अरवाहाय्यग्राब्देतरतवं प्रतिबध्यतावव्छेदके प्रवेशनोयं अपि तु तत्तश्छाब्देष्छाविरहविशिष्टवाधमिश्चयतेन प्रतिबन्धक वाच्यं तथाचाहाय्येशाब्दबोधं प्रति तन्तच्छाब्देच्छानां ज्रनाहाय्यै- mq प्रति तन्तश्डान्देच्छाभावामाश्च a विगेषतो डहेतुलमिति ` मम भानन्तकाये-कारणभावः एवमााय्प्रत्यकेतरत्वमपि 4 प्रतिबध्यतावच्छेद्‌कं श्राहाय्येप्रत्यक्तं प्रति तत्तत्मत्यकेच्छानामनन्त- कार एत्वकल्पना पत्तेरपि तु तत्तप्रत्यरेष्छाविर Gann दति चेत्‌। तयापि तत्तच्छाब्देष्छाविरदहाणं विगरेषणए-विगरेव्यभाव- भेदे नामन्तप्रतिबध्य-प्रतिबन्धकभावस्ड दुर्वारलात्‌ मम केवशयो- WANA दण्ड-चक्रन्यायेन तन्तर्‌ प्रामाण्यशन्चानाभावकूटयोग्यता- श्ानयोदंयोर्वा हेतुलात्‌। किञ्च तत्तच्छान्देच्छाविरदहाणां तत्त- तत्यरेच्छा विरहाणञ्च उत्तेजकलेऽनुभित्युपमिति-खतिषाधारणो नेकः प्रतिबध्य-प्रतिबन्धकभावः तथा सति शाब्दबोधा नाय- afar ean बाधनिखयसत्ेऽणनुमिल्युपमिति-खत्यापन्तः meat जायतामितोच्छा सत्वेऽपि प्रत्यचापत्तेः vars नायतामि- तौश्डासत््वे बाधमिश्चयसेऽपि शाब्दबोधापत्ते श्रपि तु प्रत्यच- शान्देतर विशिष्टवुद्धिलेन प्रतिबध्यता अ्रग्टडोताप्रामण्छकनाधमिख्- यत्वेन प्रतिबन्धकता इत्येकः सत्यतुमि्युपमितिखाधारणः प्रति- बध्य -प्रतिबन्धकभावः, प्रत्यकं प्रति तु विगिष्टप्रत्यचतवेम प्रतिबध्यता

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Rey तस्वचिन्तामणौ

Tamas विर दवि गिष्टागडोताप्रामाश्यकबाधनिखयतेन प्रति- बन्धकता एवं शाब्दबोधं प्रति AMIE तन्तच्छाब्देश्छा विर इ- विगिष्टागरहौताप्रामाप्यकबाघमिख्चयत्वेन प्रतिबन्धकतेति प्रत्यच- माचसाधारणः प्रतिबध्य-प्रतिबन्धकभावः४। तथाच शाब्दबोधं प्रति तन्तच्छाब्द च्छाविरदविशिष्टागटहोताप्रामाण्छकबाधनिखयाभाववेन कारणत्मपेच्य साघवान्तद्भन्भावच््छिले तद्धश्मो वच्छिन्नवत्वरूपयोग्य- ताज्ञामलेनेव हेतुतेाचिता। तथापि निधिताप्रामाण्छकयोग्य- तान्ञामलेनेव हेतुतया तदपेचया यथो क्रवबाधमिखयाभावलमेव wy शअप्रामाण्छमिखयलस्य शरतरानेकपदायंघटितल्वादि ति वाच्यं fa- सिताप्रामाष्छकादपि योग्यताज्नानाच्छान्दनोधाभ्बपगमात्‌ waft सिताप्रामाण्टकलं कारणएतावन्डेदककोटौ प्रबेश्नौयमिन्युक्लात्‌, अनिथिताप्रामाष्छकलस्च ang क्िलावच्छिन्नप्रतियोगिताकतन्तद- प्रामाण्यमिश्चयव्यह्यभावकूट वि शिष्टलरूपतेनानिखिताप्रामाष्छकलख्य . कार एतावच्छेदकको रिप्रबेशेऽप्यप्रामाण्छनिखयलस्याप्रवेग्राच्च चेवं तन्तद्मह्मभावकूटप्रवेभे गौरवमिति वाच्यं तवापि तक्च्छाब्देश्छा- व्यक््भावकूटस्य प्रवेशात्‌ श्रभावदयप्रवेशस निखयलप्रवेश्रद्य वाधि- कलात्‌ बाधनिखयविगरेषणोश्तस्ाग्टहौताप्रामाष्छकलष्य AUTH -भाष्यन्नानाभावकूटरूपतया तेषां परस्परं विशेषण विगेव्यभावभेदेन तैवानन्तकाय्ये-कारणभावप्रषन्गा्च मम तु केबलयोग्यतान्ञानस् इप्ड-सकन्यायेन तन्त प्रामाणडमिखचयव्यक्यभावकूट-योग्यतान्नानयो-

(९) प्रतिबन्धकतेति शश्म्दबोधसाधारणो नेकः प्रतिबध्य-प्रतिबन्धकभाव- इति wo |

श्न्दाख्यतुरौ खण्डे योग्यतावादः | २८४

दयोर्वा हेतुलेभानम्तकाय्ये-कारणभाव विरहात्‌ -। म॒ चेवमनुमित्या- दावपि योग्यताश्चामस्य हेतुवापत्तिः मत्य -शाब्द्‌ तरविशिष्टवु- द्धिलावच्छिन्ं प्रति बाधनिखयाभावलेन कारणलमपेच्छ संश्य- निखयसाधारणएवि गव्ये विगरेषणवत्वरूपयोग्यतान्नानस्य Baa लाघ वान्‌ बाधनमिख्चयदरशायां योग्यताश्चानव्यतिरेकादेवानुमित्यारिग्य- तिरेकषम्भवादिति वाच्यं) ata विनापि सतेरनुभवि- gaat wat व्यभिचारान्‌ परे शाध्यसन्देह-तन्िशख्चययोर सत्त्वेऽपि श्रनुमितिरिदन्वावच्छिन्ने गवयपदवाश्यलादिसन्देह-निखययोरष- त्वेऽपि उपमितेश्चानुभवसिद्धलाच्च किशचेवमा हा य्येसाध्यसम्दे हात्म- कबाधनिश्चयसत्वेऽप्यनुमित्यापत्तिः बाधनिख्यानन्तरमाहाय्यैसाध्य- सन्देहात्मकपरामर्ादगमुमित्यापन्तिश्चेति(\ सिद्धान्तातुयायिनः |

घण्छुदुमलाम्द मुखं wx रत्यादि बाधितार्यकरूपकादौ बाध- निश्चयदश्ायां सुखादौ चनद्रादेर्नाभेदान्वयबोधः किन्तु warfzaze चन््रसदृशादौ WIVAT तस्येव मुखादावभेदान्वयः प्ररसनादौ कल- हादिष्लौयमि्याभिशरापव्रचनादौ शाम्दबोधोऽपि त्‌ तन्तत्पदे- ग्स्तसत्पदार्यापस्धितौ दोषजन्योमानसो विशिष्टसाचात्कारः तथाच श्राब्दबुद्धिमाधारणविशिष्टबुद्धिमात मरति बाधनिश्यस्य प्रतिबन्ध कल्वादेव वद्िना धिश्वतोत्यादौ बाधनिख्चयद्‌श्ायां नान्वयबोध- दति योग्यताज्ञानस्य शाब्दघोदेतुले मानाभावः aufaganfa- बध्यतावच्छेदककोटौ wea we बाधनिश्चयस्यले शाब्दबो- धवारणायातिरि क्योग्यतान्नामकारणएल्कन्यनायाः प्र्षालनाद्धौति न्यायेमामुचितला दित्याः | |

२८8 तज्चचिन्तामगयतौ

सेयं स्वरूपसतौ प्रयोजिका शब्दाभासोष्डेद्‌-

OO षि पि

केचित्त समुखं wx त्या दिबाधितार्थंकरूपकादौ बाधनिचय- दधायामपि मुखादौ चद्रादेरभेदाव्यबोधस्या्यतुभवसिद्धला- eran बाघनिखयोन प्रतिबन्धक इति सत्यमेव परन्तु योग्य- ताज्नानमपि इेतुर्मानाभावात्‌ चेवं वद्धिना सिश्वतोत्यादा- वपि बाधनिश्चयदश्रायां शाब्दबोधापत्तिरिति वाच्यं तदानौ श्राब्दबोधोजायत एव किन्तु तस्िन्‌ शाब्दबोधे उत्तर कालम- प्रमालन्नानमान् जायत इत्यभ्यपगमात्‌ त्वयाणाहार््या दियोग्यता- जनानसत्ते तदानों तजर श्रान्दबोधसेष्टलात्‌, fe बाघनिखथसत्व आहाय्येयोग्यताश्चानं कविना meaty दत्यनुभवोलोकानां तथा सति श्रन्वय-व्यतिरेकबलारेव योग्यताञ्नानद्ेतुलसिद्धेः way- वारौलान्तरातुखरणप्रयासवेफच्यापत्तेः(* चेवमतुमित्यादा- वपि बाधनिश्चयस्याप्रतिबन्धकलयापत्तिः बाघधनिश्चयद शायामप्यनु- मित्यादिर्जायत एव किन्तु तस्यामनुमित्या दिव्यक्रावये ्रप्रमाल- Waa जायत दत्यस्य सुवचत्वादिति वाच्यं “श्रत्यन्तासत्यपि इये इत्यादिना शाब्दबोध एव aaa सकलप्राचोने- नि्णौतलादिति प्राहुरिति समासः |

aga, सेयमिति, भ्रयोजिकेति शाब्दवुद्धिशामान्य इत्यादिः श्राब्दाभाख दति वदङ्किना सिश्चतोत्यादावतिस्फटं सखरूपयोग्यता- यास्तज्ासत्वादिति भावः भवतिः wer श्ाब्दबोधात्‌पूव्वं

(९) वहधन्तरानुसरणप्रयास्वेकल्यापत्तिरिति we |

| २९४ B)D)PI NLL AP १) 0 thee 3१५७२) (1)

-B b>? b> PnP) bib lel hm ५०३] 181 ॥६।९8; ‘la Ljk Pel bape Be ‘bitkh bm 113.1890 83213 {8 Mbinbieiitie>e | BIS (1) 101५०11५] bb. -५ २९02 ०1५७२] (| 0 (५ ९।।।९।९।० 2119] | 0. (५२30५७19 ०11९०11६ ।९ 121 ४५) ५५५६५ Abbie} ०५१११०1६ ६०9 २०४६1२२५ 19.149 bale bD ।८। ८६९] 9५109 8.1413 6 | : 109 ५1 1 911२।2०।२1 20००२] 00 (212११०५ ved) - ध] 0 {21 2० ॥० (५१८।०१७।०।० >] 119 [२००६1] 91 >| ०९0 Ue -ध।।३४।०)० {21120 ‘biel {RR} ४0०७५७४ 2) Ri) Pls, नु -14] DJA 19५4100 3९ | 1911012 11४9 211५५

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- Ro _ तत्वचिन्तामणौ

छअथासज्िवाद्‌ः |

आसत्िाव्यवधानेनान्वयप्रतियोग्युपथितिः, सा

शअयाखन्तिवादरदस्यम्‌ |

एककाय्येकारित्षङ्गत्या योग्यता जिष्हप¶णानन्तर श्रासत्तिं fa- पयति, “श्रासन्तिखेति श्रन्वयप्रतियो गिनोः पदायेयोरव्यवधाने- नो पस्थितिरासत्तिरित्यरथंः, सखाव्यवहिततलसम्न्धन तन्तत्पदार्थापश्ि- तिमतौ तन्तत्यदार्योपश्ितिसतत्पदार्थं तत्पदा्थष्या सत्निरिति तु फलितार्थः चेवमासन्नानासन्ञविभाग एव BA: खमूदालम्न- गरूपपदार्योपस्थितेरेव waa शाम्दबोधोपयो गितया गिरि्ेक्रम- प्रिमान्‌ देवदत्तनेव्यादावपि शाब्दानुभवाव्यवहितपूर्वव्तिंखमृहा- लम्बमरूपोपस्थितिमा र्‌ायाव्यवधानेनोपस्धि तिषच्वात्‌ उपस्थितेरेक- त्वेन व्यवधानासम्भवात्‌.« इति वाच्य भेदगर्भाव्यवधानख्य पूर्व्वो तरचणसाधारण्स्याच प्रवेशात्‌, तच्च खष्वंसाधिकरणएभिन्ञते सति यः खप्रागभावाधिकर एषमयप्रागभावानधिकरणएच्णएस्तदवच्छदेन ख-

(९) तावतृपदजन्यसमूदालम्बनेको पखितेव्ैवधानाभावादिति मावः |

शब्द।स्यतुरोयखष्छे चासत्तिवादः | ace

समवा चिदे शोत्यन्तिकल्वे सति खभिन्नलं, इत्यञ्च wad या प्रत्येक- पदेभ्यः प्रत्येकपदार्थानां afanafa: wae, लन्वय- बोधाव्यवडितपूर््ववत्तिषमू राखम्बमरूपो पस्ितिः(५। अत एवासन्ति- Wa हेतुः प्रत्येकपदजन्यप्रत्येकपदार्योपयि तौनामाषएविनागिभौमां युगपच्छाम्दमो धपूव्वेमसम्भवेन खरूपसङ्धेतुलाषम्भवात्‌। नचेवं दण्डी कुण्डल वाससौ देवदत्त इत्यादावेकविगरेव्यकं-नानाविगेषणका- भवयमोधस्यले श्रासत्यभावप्रसङ्गः तन्रेकविगेषणोपस्थितेरधिगरेषणान्त- रो पथ्थित्याः व्यवधानादिति वाच्यं प्ररेतान्वयबोधाननुय्चण्णे यः खष्वंसाधिकरणएचणस्त द्विन्नलस्य चाव्यवधानघरकौग्धतसत्यन्तद शार्थ- लात्‌, विग्रेषणन्तरोपस्थितिच्णश्च प्रतान्वयनुद्यनु यणः, अ्रननु- गुणतश्च फलबलकस्यं, यादृ श्याद्‌ श्चएव्यवधानेऽपि . waugtyt- ऽनुभव सिदध तत्तत्‌ चणएमिन्नचणएवस्येवा नसुशुएतवश्पतवात्‌ अरत एव गिरि्बुक्रमित्यादौ भुक्ता दि पदार्थोपस्ितिचणो ay वेकपदोश्चार- | want चिरतरं विलम्ब्यापरपदमुच्चरितं तच व्यवधायकश्णोऽपि चाननुगणएः तचान्वयवो धानुत्यत्तेरिति तदुभय नाघन्तिः। चेवं धच पदोपल्िति्येवधानेन्‌ . पदार्योपख्ितिशचाव्यवधानेन तताणा- सत्यापक्निरिति वाच्यं तत्पदोपस्ित्यव्यवहिततत्पदो पश्ितिन- भ्यायास्तत्पदार्यो पश्ितेरब्यवधानेम तत्पदार्योपस्धितिः तत्पददय- भन्ये aunts ्राखन्तिरिति fale एवश्च aa पदोपख्ि तिरब्यवधानेभं पदार्थोपस्ितिख् व्यवधानेन, ay वा पदारयोपस्यितिरष्यवधानेग पदोपस्यितिख व्यवधानेन तनोभ-

(९) समू्ालम्बगोपस्ितेरेकतया खमित्रात्वामावादिति ara |

gee तष्वचिन्तामयौ

यज्ापि arf, किमवेकपदोपश्थितिजन्यपदार्थो पखितिरपरप- दोपखितिञ्च समूदालम्ननरूपा ततोऽपरपदार्यापस्ितिः पदान्तरो- ufafiy समूहाणम्बमशपेत्या दि क्रमेण पदार्थोपल्यितिस्तजेवाखत्ति, पदौोपस्थितेरव्यव्धानमपि पूर्वो त्तर एसाधारणप्रहताग्वयबोधाम- नुगारचणचरितं बोध्यं चासन्तिथिमाच्छान्दबोध इति सर्वे मयते gaia वाच्यं aw व्यवदितपदोपस्थितावष्यवहितलधो- dafearat पदार्योपस्धितावव्यवहितलधौर्वा asa तत्‌ सम्भवात्‌ | श्रधेवं श्रासन्निश्नानस्य शाब्द बोधद्ेतुले खरूपषत्याः पदजन्यपदा- aiqfea: एयककारणवे faa) विगेषणन्नागघाध्य विचचिष्टश्चानमिति विग्रेषणएन्नानवेन तत्कारणमिति वाच्य we fanaa . पदाथ विषयकलेन विगेषणक्षामलादिति चेत्‌, न, तदिलम्बेमापि श्राब्दधौ विलम्नात्‌ तस्यापि एयक्डेतुलात्‌ तद्भातिरेकस्थले आसत्ति विशम्बादेव शाब्दबोधविलम्न इति वाच्य | grata: eect हेतुः, किन्तु तज्‌नज्ञा नमेव, ve ayia रेकस्थलेऽपि सम्भवा दिति निणंयद्टतः। तदषत्‌, एकलडुपखाण- हृति-वन्तमानलयोरग्वयनबोध्चलेऽग्यानेः( यज लिप्यादिना एकदेव परदजातमनुमितं खतं वा ततः खमृदालत्बनं पदाथंवगेखमरणं जातं away ay प्रत्येकपदार्योपस्थितेरभावात्‌ a anf क्रमिकप्रत्येकपदार्योपस्थितिः कल्यनोयेति वाच्यं अ्रलुभव विरोधात्‌ ्रत्येकषदार्योपखितिमन्तरेणापि ay शान्दबोधस्सातुभविकलात्‌ किञ्च एतस्याः Bega खयमेव निरहतं कमिकमत्येकपदा-

Se ane cae ais ea (९) मदग द्वधानविशिपरदभन्यपदार्योपस्थितिरुभागादिति भावः |

ए्ब्दाख्यतुरौ खये ासत्तिवादः RE

योपल्धितेः श्ाम्दबोधात्‌ gel चिरविनष्टैलात्‌ नाणेतजन्नानं कारणं मानाभावात्‌ इुपश्ितिन्ञामविणम्बाच्छाब्द्वोध विलम्न- आनुभविकः देवाददृष्टादिना पदा्थ॑सूतौ पदअन्यलभ्वेमेण शब्द्बोधोदयात्‌ aqmaaifa हेतुत्वमिति वाच्य। दृश्या पद्‌- जन्यपदार्यापस्ितेः ASIN VAI] AAR णब्टबोधाभावात्‌ श्रव्यवधाांगरवेयर्थथाश्च चेतद्भ्रमानन्तरं श्ान्दामुभवद्‌ नादेव तज्ज्ञानं हेतुरिति वाच्यं हि यतृसत्वे यदुत्पन्तिखदेव तत्का- रणं, चटाव्यवडितपूष्ववत्तियावत्यदाथानारमेव घटद्ेतुतवापन्ते, पद्जन्यपदार्योपस्ितौ श्रव्यवहितलाव्यवहितपदजन्यवयोः a व्यवहितत्व-व्यवहितपद्‌ जन्यलनिश्चये श्राब्दबोधानुत्पन्तस्तन्निथयो हेतुः तयोः प्रतिबन्धकलत्वकश्यने गौरवादिति ave तात्पर्य दिश्नामसत्वे व्थवदहितपदजन्यत्ग्रदेऽपि शब्दो भेनाद मुत्पन्तेरेवा- सिद्धेः। चेवं व्यवहितपद्‌ कदम्बात्मकन्नोकादौ योजनया कवि- तायामेवान्वयबोधो a व्न्ययेत्य् fa alafafa वाच्य योजमायास्तात्पय्येयाहकलात्‌, श्रत एव यस्य योजनां विभेव तात्पय्यै- गरदसश्य ante waa”) श्रनषयप्रतियो गिपदं तदुपख्ा- WHIT तथाच तदु पस्थापकपदो पच्ित्यव्यवधानेन तदुपस्यापक- पदोपस्थितिम्तयोराषत्तिः, तु पदार्योपखितौमामव्यवधानमपे- faafafa केषाच्चिश्मतमपास्तं वच्यमाणान्योन्याञ्रयग्रङानुल्यितेच

(९) eats पदशन्यपदार्थोपस्थितेरासत्तिविभया शाब्दबोधे ऽहेतु- waa | |

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age | avafa मणे `

समू हालम्बनपदोपस्थितिमादाय ere: weareqrreg- विभागव्याघातापन्तेख च. मेदगभंमव्यवधानं विवचणौयं, mq- MATA A?) एतजन्ञाष्य SHETTY कार णले मानाभावाच।

केचिष्मु अव्यवधानेनेति विगरेषणे eater, अरन्वयप्रतियोगि- पदश्च अन्वयप्रतियोगिन उपख्ितिर्खादिति eq अन्वयपरति- ोग्युपस्ापकग्रब्दपरं, तथाच तत्पदार्थाज्िततत्पदा्थ्रान्दबुद्धौ तत्यदे तत्पदाव्यवधानमासननिः, तु उपश्वितौमामव्यवधानं faafari, मौ निन्नोकादौ लिप्यादिरूपदोषविगरेषादव्यवधानभ- मेणान्वयबोधः चेवं श्लोकादौ योजनयाणयन्वयबोधो ष्यात्‌ वक्रा we व्वधामेमोचशरितमिति विग्रेषदशेनेन अआमासम्भवादिति वाच्य योजनयोपस्धितवाक्याम्तरादेव तचान्वयवोधात्‌ नतु wafer, अरव्यवधानश्चामनुगुणच्चणन मेदाभेदसाधारणं ख- परसाधारणश्च fats तेनेकशडायुपस्या पितयोः शति-वन्तमान- त्वाद्योरन्वयबोधेऽपि काष्यलुपपन्निरित्याः तदप्यसत्‌, वच्छ माणान्योन्याश्रयग्रद्धानुत्थितेः तात्पर्य्या दिश्चानसत्वेऽग्यवधानन्नानाभा- वेऽपि श्राष्दनुद्धेरानुभविकलाश्च |

(९) च्यासत्तेः | | (९) रखकलढपस्धाप्यक्लति-वत्त मानत्वयो रन्वय बोध BS ऽब्याप्तेरि ्यादिदोष- सन्वादित्यथः। (९) शाब्द बोधाननुगुखः खध्वं साधिक रणान्यत्वे सति खप्रागभावाधिकरण- ` समयप्रागभावानधिकरणो यः चणस्तदवच्छदेनोत्पज्तिकत्वं तु मेद- गनमिति | |

श्ब्दाख्यतु रौयखणे खस्तिवादः | REL

समृतिर्नानुभवोऽतोनान्योन्याश्रयः। अथ नानावि-

mary sre परजन्यपदार्योपश्ितिरासत्तिः, tay खरूप- सत्येव हेतुः अतएव fragt “arefrg यथपि खङूपसत्येव प्रयोजिनेत्यादि प्राभाकरोपाध्यायेगोक्तं चेत्या अपि कारश्लें मानाभाव इति वाच्यं तथा aff श्रानयेतिवाक्यमाकर्पयतः प्रत्यकेण घटं पश्यतो चटस्य शाब्दबाधापन्तेः चटमानयेति वाक्यमाकणेयतः कारणतया चटपदादाकाश्रस्मरणवत शआ्ाकांश्रस्य श्राष्द बेाधापत्तेख Wry “अरव्यवधानेन' ठ्तिसंसगंकपदप्रकारक- ` शानाव्यवधानेन, तादु ग्रपदप्रकारकश्चामजन्येतिं यावत्‌, श्रन्वय- प्रतियोग्युपस्ितिः" ` पदा्थोपश्थितिरिति श्रतणएव वच्छति श्र वदन्ति सन्निधिम पदजन्येवान्यनेषधे हेतुरिति, waar aze- feat: 1 चेवं. गिरिभुकमभ्निमान्‌ देवदन्तेनेत्यादितो गिरिर- fara ya देवदत्तेनेत्याद्यन्वयनेधापन्तिरिति नाच्य तथा तात्प- ग्या दिग्रहस्वे इष्टापत्तेः कदाचित्तज तथान्वयभेधष्य सररेबेष्ट- त्वात्‌ चेवं कचित्‌ योजनायाः कथमपेकेति वाश्यः | तात्प- aad तदुपयोग रयुक्रत्वादिति* प्राहः

नम्वव्यवधामेनान्यप्रतियोग्युपश्धितिरास्तिरक्रा सा weg- बुद्धिरूपैव, तथाच श्ाष्दबुङ्धौ जातायां amar amt शराब्दनुद्धिः ्रासत्तिन्नामस्य. शाष्दधो हेतुतया दित्यन्योन्याश्रथ इत्यत- अर, ‘at चेति, "नानुभवः' शाब्दानुभवः।

(९) तदपेच्तेतीति ae |

RER तत्चचिन्तामणौ

= श्रे्णक-कम-कत्त-करणाधिकरण-करियादिकमिकप- दन्नानजन्यकमिकपदाथेस्मृतौनां यौगपद्यं सम्भवति स्ाशुतरविनाशिनां क्रमिकाणां मेलकानुपपत्तेरिति कथं तावत्यदार्थान्बयबोधः विग्चेषणन्नानसाध्यत्वादि-

नव्यस नतु sw पद्‌जन्यपदार्योपस्ितिरासत्तिर्क्रा साच UTAH ANY तस्यामप्यामत्तिः कारणं सापि शाब्दभाधरूपैव तस्याश्च यदि श्रपराखन्िः कारणमुच्यते तदा WTR फलोगता चेत्तदान्योन्याख्रय इत्यत AY, "सा Vatarw: |

प्रसङ्गात्‌ अन्वयने धनिर्वादकपदजन्यपदार्थोप्ितिपरिपारौं प्रदशैयितुमा श्रङ्ूते, “श्रयेति

मव्यास्त॒. se पदधौजन्यपदार्योप्धितिखेदासत्तिस्तदा माना- विशेषणकस्थले'९ कथमन्वयवेाधः पदार्योपखितौनाभेकदाभावादि- व्याग्रहूते, “च्रयेतोद्याह्ः |

‘fay feats anaqzatetaacaraasta प्र्येकपदानुभवजनितप्रत्येकपदार्थस्मरण्णहितसंस्कारेभ्य एव सक- शपदायेगो चरमेकस्मरणं सम्भवति तथाच सकलपद गो चरेकसमरण- पय्यन्तालुधावनं विफलमिति वाच्य प्रकाराम्तरेख पदार्योपख्ितेः श्राब्द बाधहेतुलात्‌ पद ज्ञानजन्यलो पपन्तये तचातुधावनात्‌ | ¶विशरे- वणक्नामखाध्यलादिति वविगेषणः पदार्थे, तदुपख्वितिखाष्यलादि-

cat कुण्डलो वासखलौ चेच इत्ादिखकञ |

श्ब्दाख्यतुरौयखब्छे ्ासस्िवाद्‌ः | RL

शिष्टत्नानस्येति चेत्‌, ओष्र्येकपदासुभवअन्यसंस्क- रमेलकादेकदेव तावत्पदस्मतिः तत रकदैव तावत्य- SIAN सत्यां AMAT | चान्धविषयक-

au, त्या पदधोजन्येत्यादिः, ‘fafiewae’ शाब्दानुभवश्य, "जे खकात्‌” समूहात्‌, ‘wer तावत्यदरुएतिरिति सकलपद गो च- रसपतिरिव्यथैः। ननु ste प्रत्येकपदामुभवोऽपि सम्भवति तया fe चोत्पन्नः, ततो दितौ यणे चघलनिविंकश्पकमकारोत्प- fay, श्रथ हतौ यचणेऽकार-तत्निव्विकल्यकं घत्व विभिष्टधौः रोत्प- त्िधैकारनाश्रख, equed श्रत विशिष्टधोः 2-zafafaawana- कारनाग्र्चरमाकारोत्पन्तिख तदानौञ्च घकारभानं सम्भवति प्रत्यकं प्रति विषयस्यापि हेतुलात्‌, ततः wat टव विगिष्टज्ा- नमकार-तच्चनिभिकन्यकं टकारनाशः तदानीं प्राथमिकाकारभानं सम्भवति nad प्रति विषयस्यापि हेतुल्ात्‌। ततः gee श्रलविगिष्ठुद्धिः अकारनाग्रौ, | तदानीं टकारभामं सम्मवति तदभावात्‌ तथाच कथं वणेसमू दात्मकपद गो चरश्रोजानुभवः | चं पूव्यपव्वेव्तीपनयसडितान्यवणेसन्िकर्षात्पद गोचरश्रो चानुभव इति वाच्यं | वेहिरिद्धियजप्रत्यचे उपनतं विगरेषणतयेव भासत इति fa- यमेन प्रत्येकवणंसमू डमुख्य विशे यकपदप्रत्यखस्यो पमयमय्यीदया श्राव- फलासम्भवात्‌ पदः परत्यक्ते प्रत्येकं waa ade मुख्य विगरेव्यत्ात्‌ | पूब्धवरतौऽण्यद विगेषतया ay भासत इति वाच्यं पव

वणं ऽग्यवणेविगरेषणएतवनियामकस्य तल्छन्बन्धस्याभावादिति। मैवं | |

२९8 वच्चचिन्तामग्यै

संस्कारेण नान्य सरणमिति वाच्यं वाक्यार्था नुपपत्या फलबशेन संस्काराणां परस्यरसहकारेश

चादिषमुदायमाचं घटादिपदं ट-चादेरपि घटपदलत्वापन्तेः रपि तु अव्यवडितो्तरत्वसम्बन्धेन प्यपू्वेवणेवदु ्षरोन्तरवणं एव पटं Aq अवणान्न TAY aA पमयसदकारेणाव्यवहितोन्तरल- घानन्धेनोत्तरोत्तर वं विगरेषएतथा पूष्यप्वैवथंगहसम्मवात्‌ |

ay घसमानकालोनप्रागभावप्रतियोगिटलं खमानकाल्ौनलस- WAT चध्वंसवत्‌रत्व वा चरपदलमिति तन्न ) चपट दत्धस्चापि घरपदल्वापन्तरिव्यलं वि्षरेए।

“शअन्यविषयकसंस्कारेणः श्रन्यमाजविषयकसंख्कारेणख, ‘aay सरणं" मान्यविषयकस्मरण, तद विषयकश्स्कारो ततृष्मरणजनक- दति यावत्‌, यथाश्ुतन्तु सङ्गच्छते घटलविषयकसंसकारेण घट- त्रान्यघट विषयकस्मर एजननात्‌ दण्डो पुरुष इति विशिष्टसंस्कारेण

` तादुशविशिष्टसर णजननाख व्यभिचारापन्तेः(\) घट-पटविषयक-

रत्येकसंस्काराभ्याञ्च घट-पटयोः समृहालम्ननस्मरणमित्यभिमानः! तथाच - स्वजन कथं समूहालम्बनरूपतावत्‌पदा्ख्तिः नाना- पदार्थगो चरसमूहाशम्बनसंस्कारस्थले तत्‌ सम्भवेऽपि'९) प्रव्येकपदार्थं- माजविषयकमानाषंस्छार स्ते तदसम्भवात्‌ इति ara) ‘auqa-

` ® तादृ्रसंस्कारस्य पुरषान्धदग्डविषयकलत्वादिति भावः | Q) तग्माघविषयकसंस्कारेखेव तदन्धविषयक स्द्यजननात्समूहालम्बन- संसारात्‌ समूष्धालम्बगरत्पत्तौ बाधकामावादिति मावः

ग्रब्दाख्यतुरौयखणे धासन्तिवादः | Rey

तचेकस्मरशकल्यनात्‌ प्रत्येकव्णसस्काराणामिवा-

नेति स्वेन सकरपद्‌ाचगो चरेकस्मरणरूपस्य awe प्रमाएसिद्ध- aaa, तदन्यथासुपपश्येवेति शओषः। कचिश्च ‘aaa दूति पाठः AW स्र सकलपदार्थगोषरैकस्मरणे प्रमाणएसिद्धे इत्यथैः, FAT प्रत्येकपदायंमा चगो चरसंसकाराणमपि, "तच" सकल- . UG, “एकस्मरणकण्पनात्‌” एकसमरएलमकताकश्यनात्‌, इदच्च परहदयानुरञ्चनमाचं। TGA घट-परेडियसन्निकषाभ्यां श्रां समाजग्रस्तघट-पटषमृहालम्नमप्रत्यचवत्‌ स्वेषामेव संस्काराणमेकदे- .. ` वोद्ोधकलाभादा्॑समाजयरस्ता एकदेव तावत्पदा्ंखूतिरित्थभ्ापि किमपि बाधकं श्रलयेकवंति, 'वणेपदं पदपर, “पद समरणे” तावत्पदख्मरणे, SUTRA परत्येकवणेसंस्कारेभ्य श्रासुपूर्वौ विगरेषविभि- BATU पदस्य समरणाशुपपन्तेः। ममु चटपदस्मरणमन्तर घट- पदायोम्‌पद योः समूहाखम्ननो पय्ितिस्ततः कम्मेतल-श्रानौपदयोः षमू- हाशम्बमो पर्ितिप्ततोऽलुभवसामग्या बरवत्वादचट-कममलयोरण्वथ- बोधः तत श्रानौपदो पल्थितिनन्यानयनोपसितिराख्यातोपितिश्च AAU, ततोऽनुभवसामग्या बशवच्वाद्‌घटविशिष्टकष्मेल- द्या मयमेऽन्बयनोधः इत्या पदजन्यपदार्यापस्थितिमाच्य सखत्यसुभ- वखाधारणच्य शाष्दघो हेतुत्वेन घट-कष्ेलयोः WWE नाशेऽपि . श्राब्दबगोधात्मकविनण्यदवखतादृशोपश्ितिसत्वेमानयने तदग्वयबोधे बाधकाभावात्‌ तत ्राख्यातायेृत्युपश्थितिखतो .चटवत्कम्मेलविश्चि- SAAN शतावन्वयनोध दत्याच्याकारेण श्र॑वान्तरवाक्याचान्व-

२९६ ~ वक्वचिन्तामयौ

मन्धगतिकतया पदस्मरणे | अथ “यद्‌यदाकाहिनतं योग्यं सन्निधानं waa तेन तोनान्वितः wre: देर _ = ,99 ` $ पदेरेवावगम्यते”। चवमन्वयान्तराभिभानं स्यात्‌ विरम्य व्यापाराभावादिति वाच्यं। रवमपि प्रथम- मनन्बये हेत्वनुपन्धासात्‌ उत्तरस्य we साममग्रौ-

यवो धपूरग्वैकमेव महावाक्यार्यान्वयबोधसम्भवात्‌ किं पद पदाथषम्‌- खम्बमखार पेनेत्या श्ङ्ते, “श्रयेति, खायो काङ्धितं सखायेयोग्यं यद्यत्‌

7 7 सन्निधानं प्रपद्यते खाय पस्थित्यव्यवधामेनोपस्ितिविषयो भवति,

तेन Balham: ar; "पदेरेवाभिधौयतेः पदेः प्रयममतुभा- wa) अनन्तरः महावाक्यार्थबोध इत्यन्वयः, तथाच कि पदपदा dat: समू हाखम्ननस्मरणेनेति भावः। चेवमिति, “एवं घटा- दिपदेनैकवारमवान्तरवाक्या र्थान्वयबुद्धिजनने, “श्न्वयान्तरेति पुन- ससाश्महवाक्यार्यन्नानं स्ादित्य्थेः, ‘faces, श्रष्द-बुद्धि- कर्णा) ‘face’ एकवारं फलं जनयिता, व्यापाराभावात्‌" पुनः फलान्तरजनकलाभावा दित्यथेः, wea जनितान्वयबोधत्वेन निरा- काङ्ुप्वादिति भावः “एवमपोति | ware अवान्तरवाक्याथे- बोधानुत्पादे, fe प्रयोजमबतिभिया erat काथ नाजेय- तौति ata | ace होति, ‘sate’ महावाक्यायंबोधष्छ,

(९) न्पदेर वावगम्यते, इच “पदेरेवाभिधौयते' द्रति रंहस्यरृत्सन्भत ` पाठः | (९) शरब्द-छाग-क्रियेतत्‌चयाणामित्थे' |

श्ब्दाख्यतुरौयख्छे आसत्तिवादः | REO

वैकल्यं पूरवैस्येति चेत्‌, अस्तु तावदेवं तथापि चरमं ताबत्पदाथेषटितवाक्यार्थानुभवे saa गतिरनन्ध-

‘2. निराकाङ्गुतवरूपं, “न पूर्व॑ष्य' मावान्तरवाक्याथेबोधस्सेत्यथेः, तथाच भवग्मतेऽपि सामयौक्वेनावाम्तरवाक्यायेबोधख TATA . तात्पस्ये विषयान्वथबो धस्यालमनान्न मिराकाङ्कलमित्यवश्चं SAT . एौयमिति भावः। श्रस्तु तावदिति, कचिदिति गेषः। “एवमिति विनापि समू हालम्नमस्मरणं खण्डवाक्यायेबोधदारा महावाक्यार्थबोध इत्ययः, “चरममिति aan घातथेमादाय करठै-करणधिकरण- दौनां पदाथेनामन्वयबोध इत्ययः, aa faut विगरेषफ-विेश्यभा- वामापन्नानां कढ-करणणधिकरण्णदौनां चरमो पस्ितायामेकसख्यामेय क्रियायामेकचर दयमिति न्यायेना्यनोधसततेति wfeark, ‘ona गतिरिति षमूहाशम्ननपदार्थसतिरेव गतिरित्यथंः, हि तच कर्जादौनां परस्पर मवान्तरान्षयबोधः सम्भवति, परस्यरमयोग्यता- दिति भावः। यदा “चरमं' खण्डवाक्यायबोधोत्त रक्रमिकचलरमपदो- पस्थिति-चरमपदा्थापख्ित्यारमम्नर, "तावत्यदा्थंधरितवाक्धाथोासु- भवेः महावाक्या्चबोधे, यत्र घट-कश्म॑लयोरम्वयनोधानन्तर नौ- पदा्स्येवोप्धितिने तु तिपदोपश्थितिर्द्ोधकविरडात्‌, ततो az- विशिष्टकम्मेलस्य मौधाल्चऽन्वयबोधः तदुक्षरमेव तिपदोपख्ितिः(" ततः faverarfefa: agent aang तु

[ग

(९) तिष्यदोपश्ितिरिति Be | 38

Res ` avatar teat

फलिताः, ‘ona गतिरिति, ay aeanitiauaa चरम- पदाधौपश्थितिषमये नाशादिति ara: ।.

weg ‘ag तावदेवमिति भवतु शमयौवशाप्मथम ae- वाक्यायेवोधस्तयापोत्ययेः, “चरमं तावत्पदार्थघरितवाक्धा्यातुभव- दति महावाक्याथेबोध इत्यथः, ‘oka गतिरिति षमूहाखम्ननपद- पदाथख्तिरेव गतिरि त्यर्थः, पदजन्यपदार्थखतेरेव शगष्दधौडेत्‌- तया खण्डवाक्यायोनुभवरूपपदार्चापख्ितौ महावाक्यार्थबोधासम- वात्‌, अतएव aay fara विग्रेषणमिति न्यायेनैब्रान्वयबोधो तु fafweafwafauar, पदजन्यविगरेषणतावष्छेदकम्रकारकविभे- AURA, WAIT “Agr युवानः भिग्रवः कपोताः खज यामो युगपत्यतन्ति तथा fe सर्ववे युगपत्पदार्थाः परस्परेण्ान्व- विनो भ॑वन्ति) इति प्राभाकरा वदन्ति we पदायौपश्िते- ट्या पदजन्यपदा्ेख्तिलेेन कारणता किन्तु ति-श्राब्दातुभव- साधारण्पदन्ञानविशिष्टपदार्यापथ्थितिलेनेव, ae व्यापकधष्मैेऽपि मििताव्यमिचारकलवात्‌ वे गिष्छश्च ठन्तिलकणसम्बन्पेन पदार्चप्र- -कारकयपदन्नानौय-पदार्थेखति-ग्रान्दानुभवटत्नितन्तष्जन्यतात्मकज- न्यता विशेषम्बन्धेन तेन॒ पदन्नानजन्यालुमितिरूपपदार्योपख्धितेः, समवायेन सम्बन्षितया घटादिपदजन्याकाशख्तेशख्च नम श्ाष्दबोध- हेतुत्व, तज्न्जन्यतामामननुगमेऽपि सम्बन्ध विधयेव प्रवेशाददोषः।

Sar युवानः शिग्र वः कपोताः पतन्ति wet युगपद्यथा | खले तथाम afear पदार्थाः परस्पररेणान्धयिनो भवन्तीति Te |

शब्दाख्यतुरौयखष्डे यासन्तिवादः | | REE

इत्यञ्च खण्डवाक्यार्थवोधात्मकपदार्थोपस्वितितोऽपि महावाक्धार्च॑- बोधे बाधकाभावः, तस्या श्रपि तादृश्जन्यताशम्नन्धेन weqrafafh- त्वादिति चेत्‌, न, शाब्दामुभवभिं्टजन्यतायाः कारणता वच्छेद्क- azaa गोरवात्‌, सखतिनिष्ठन्यतामाचसम्बन्धेन पदन्नानविशिष्ट- पदाथेश्तिवेन तादृ ग्रनन्यतामाचसम्बन्धेन पदन्नानविशिष्टपदार्थो- पख्ितित्वेन वा लाघवादरेतुलाज्नि्िताव्यभिचार करूपस्यागुरताया- मेव सन्दिग्धव्यभिचारशूपेण कारणत्कश्यनाभावात्‌ ayy परज्नानविशिष्टपदा्थेखरतिलादिकमपि नमे प्रवेश्यते परन्तु विशल- चणएतन्तद यं विषयकलेनैव तन्तदथंविषयकश्राब्दलावच्छिन्नं प्रति हे- तुता, वैलचश्यश्च पदजन्यपदाथंस्तिनिष्टशराग्दबुद्धिसामान्यजनक- ` तावच्छेदकतया पदजन्य-तत्तत्पदाये सपर तिनिष्ट-तन्तत्पदायेशाष्दन्‌- द्धिजनकतावष्छेदकतया वा लाघवात्‌ fag: afaaarat जाति- fata: | सति-शाब्दानुभवसाधार णएपदार्योपस्ितिमाचस्य हेतुत्वे aga Fanaa: सतित्-ग्ाब्दलाग्यां साद्धर्य्यापन्ते तवापि faa Ba यच पदजन्यपदा्थखतावद्धोध- कान्तरवश्रादुच्छुञ्खनलपदायोन्तरसख्यापि भानं ay तत्पदाचेद्यापि manage: नातेरांश्िकत्वाभावादिति वाच्यं शाब्दबोधोप- धायकपद्जन्यपदायेरूताबुच्छृङ्कलपदार्यान्तरभाने मानाभावादिति WIS: तदषत्‌, WY लाघवात्‌ wea पदायेखतेरेव शाब्द Head तथापि fara विग्रेषणमिति न्यायेनेव शाब्दबोधो तु तिशिष्टवेभिष्यविधयेत्युक्रमयुक्रसेव, यच fe खण्डवाक्याये- बोधोत्तरं ममूहालम्बनपदार्थस्मतिः Aaa विशिष्ट |

| Ree | तक्वचिन्तामयौ

गतिकत्वात्‌ अच वदन्ति, सन्निधिनं पदजन्येवान्वय- ata: हारमित्यादौ अध्याहृतेनापि पिधानादिना अन्वयवबोधदशेनात्‌। पिधेहीति शब्द रवा-

वैगिष्यविधचा महावाक्यार्थगान्दमोधस्च gale खष्डवाक्या- चबोधात्मकस्येव विगरेषतावच्छद कप्रकारक जिखयस्य त्नात्‌ fe सामान्यतो विगिशवेगिश्नुद्धिलावच्छिश्नं प्रति विग्रेषशताव- च्छेदकप्रकारकनमिद्यस्य डहेततायामपि . wha तन््मिति रतं विस्तरे “aa वदन्तोति, प्राभाकरा दति te) ‘afafa’ पटार्योपथितिः, तच्छाम्दबुद्धौ पदजन्येव तदुपश्वितिनं हेतुरिति फलिताथेः, किन्तु तदुपखितिमाज तदन्वयप्रतियोग्युपख्ापकयत्‌- ` किचचित्‌पदशन्ञानेति भावः ean पद्‌ माचाशवणेऽणुष्डंकुन्ल- पदार्योपस्ितिमादायान्वथनो धापन्तेः,. “Marwan पदश्नानं विना waar: “शअम्वयबोधद श्रना दि ति, तथाच किं षकल- पद गोचरस्मरणनेति भावः agag तथाच ay grr पद्‌- जन्यपदार्थोपख्ि तिरासन्तिरि ति भावः श्र ग्ब्दश्चामजन्यघरो- पस्ितिलं चटश्राष्दबु द्धिजमकतावच्छेट कल्ल वेत्यादि विप्रतिपत्तिः | ` यद्वा चटमुख्य विशरेग्यक शाब्द बोधतं चटदन्ततया शब्द्‌ ज्चागजन्यल-

(0 श्चन्धयया' खन्वयप्रतियोग्य॒पख्यापकयत्विष्धित्पदच्चानागपेच्छतदुपख्ि- तिमाषस्य Fae KAT | , aw afararcrfeanta: |

श्रब्दास्यतु रौ यख्डे खासत्तिवादः | RR

ध्याहियते, अत्तपयोगात्‌ अथस्येवाग्बयप्रतियो- गित्वेनोपयोगित्वात्‌ आवश्यकत्वाच्च भअर्थापत्तेरप- पाद्‌कविषयत्वात्‌ | शब्द्माचसुपपादक, अपि

व्याप्यं वेत्यादिविप्रतिपत्तिः, तेन न्यायनयेनापि जातिविशेष सैव जमकतावच्छेदकतया पद्‌ श्ामजन्यलादेजनकतावच्छेदककोटा- वपरवेशेऽपि तिः wart -विधिकोरिर्भेयायिकामां मिषेध- कोरिरर्याध्याशारवादिनां प्राभाकराणां, न्यायमयेऽपि चटटटन्त- पदक्ञानं विनापि ae संसर्गं विधया भानाद्ाधवारणाय fate ` तालेमोपादानं, afin विनापि द्रब्यपदादिना wee था घटप्रकारेण घटवतो बोधनाग्रस्येति, यदि इव्यलाटिरूपेण पटादौ शक्तिग्रहादेव लाघवश्ञानसदकारेण दइव्यादिपदाद्रव्यलादि- पेण घटादे न्ाममभ्यपगम्यते तदा तु लाचवज्नानाजन्यवेनापि ` श्राष्बोधो fare इति दिक्‌ चेति, तेति शेषः, "अध्या- ` दियते" wad, “श्रनुपयो गात्‌" श्रप्रयोजनकल्वात्‌,(* तया शब्द रतौ मानाभाव cf भावः “रन्वयप्रतियो गितन श्रनवयबोध- विषयतेन, तदु पख्ितेरेवेति शेषः, भर्थोपख्ितिद्धारा तस्छाणुपं- यो गिल्रमस्येवेत्यु श्रयादाइ,(९) श्रावश्छकेति पिषेरिश्न्दोपखितिं कश्पयिला पि पिधानरूपपदार्योपस्ि तिकश्पमस्याकत्वाचेत्ययैः डहेत्व- मारमा, श्र्यापत्ेरिति ‘salar: शरतुपपन्निकर एकार्यापत्ते, (उपपाद कविषयकलात्‌' साचादु पपाद कमा्रविषयकलात्‌, तथाचाख्य

षणि, रि

(९) निष्पयोजनकत्वादिति we, me | र?) इत्खरसादादेति qe

RoR ` सक्वचिन्तामयौै

तु तदथः, भअरवश्यकरूप्याथेसा चर्येण देववशसम्यन्न- शब्दसमतेरन्धथासिदेः, अन्यथा पदबोधितस्येवाथेस्वा-

पुरुषस्य पिधानोपश्यापकपदटोपख्ितिं विना इारमिति वाक्यात्‌ पिधानश्राग्दब्‌ दविर लपपननेत्यतुपपत्तिकरण्कायापत्येव पिषेदिग्न्दो- fafa: कल्यनोया, तच सम्भवति श्र्थापत्तेः खाचादुपपादकमा- जविषयकलनियमादिति भावः इद मापाततः, एवं सति दिवा- ऽभो जिनो दैवदन्तस्य पौमलान्यथानुपपत्या राजिभो जित्वमपि feqa भोजनस्य खाकचात्पौनलानुपपादकलादिति ध्येयं ‘neg माज" पिधानोपद्थापकग्रष्दोपखितिः, उपपादकः शाादुपपादकं, "तदर्थः" तद्ोपस्थितिः.। aq ay देववभेन शब्दश्मरणं तेन चार्थस्ति; ay यदि पिधामशाष्दबुद्धिलावच्छिकन प्रति श्ब्- श्नानविशिष्टपिधानो पखितिलेन कारणत्वे क्तं तदान्यचापि तद्‌- प्थापकश्ब्दो पस्थितिरवभ्यं कण्यनोयेत्यत we, “अवश्छकलर्पेति पिधानश्राब्दबुद्धिलावच्छिलं प्रति कारणतावच्छेद कलेनावग्चे कर्य मयेत्यर्थः. ‘siya श्रयो पस्थि तिस्य जन्यता सम्बन्धेन सदचरितलेनेत्यथैः, “अरन्या सिद्धेरिति जन्यतासम्बन्धेनान्ययासिद्धि- निरूपकला दित्यर्थः, तथाच तचापि श्ब्द॒न्नान॒विशिष्टपिधानोपखि- faaa® कारणलमिति भावः “श्रन्ययेति श्रद्यान्ययासिद्य- निरूपकत्रे इत्यथैः, “पदबोधितस्छेवेति पद जन्यपिधानाच्ुपख्िति-

` (९ शब्दच्नागविश्िदटपिधानोपस्ितित्वेन कारणतावष्ेद कत्वेनावष्य- maar इति ° | (९) शब्दक्नानविश्िरपदार्योपस्थितित्वेनेति ae |

्म्दाख्यतुरोयखण्डे arafaae | RoR

न्वयबोधकत्वमिति नियमशक्िकल्यनापकेः। खार्था म्ब यपरत्वाश्छब्दा नां दारसिति पिधानाम्बयबोधक-

ame = cee किक + चणक 1, 1 eemmereereceusecc ence

लेमेवाग्वयबो धलननकल्मित्ययः, ‘faa गर्धम्मणए नियमशक्र कारणतायाः कश्यनापन्तेरित्यथेः, ARTA कारणावच्छेदकल्क- ल्पनापत्तेरिति तु फलिताः

केचित्तु मनु यत्र saan गब्दार्थयोरभयोरेवोपस्ितिस्तज यदि पिधानश्राब्दनबुद्धिलावच्छिनं प्रति पिधानोपस्ापकपदोपख्ितेः कारणलं HH तदान्यत्रापि तदुप्थापकशब्दोपखितिरवश्व ae Naga we, “श्रवश्धकरूप्येति पिधानशाब्दलावच््छिनलं प्रति हेतु- anager, “श्रथः पिधानोपस्ितिः। तथाच तच्रापि पिधानोपस्थापकपदो पस्थितेने कारणत्वमिति भावः “श्न्ययेत्यस्य विवरणं “पदबो धितस्येवेति, “श्रन्वयवो धकत्व अन्वयो धविषयलं, ‘<alfa इति खोकार इत्यथैः, ‘faaafa, ‘fara’ fatiqua, venarzlafeafaafata यावत्‌, तेन we: कारणतायाः कल्यनापन्तेरित्य्ः | चेष्टापत्तिः, गौरवादिति भाव caw: | तदसत्‌, “श्रवश्यकस्पयेत्यादे ने ज्वित्यादिना बच्छमाणेन पौनरुन्षापन्तेः। प्रते, ‘UA, ‘area श््छपस्या पितायैमाजानयबो- धजनकलात्‌(९) खानुपस्था पितायं शक्रपदन्ञानं विना खानुपश्थापि- ता्थवुद्यजनकलादिति यावत्‌, तच्छक्रपदश्नामस् च्छाब्दबुद्खौ हेतुत्वादिति भावः ‘a पिधानेति पिधानश्रक्रपदश्चानं विमा

-----न ~ =-= + ne ~ ~

(९) श्रप्रपापस्थापितमुख्याथमाच्रान्वयगो धजगकलत्वादिति we |

Reg ` तक्वचिन्तामणौ

fafa तदन्वयबोधाथंमवश्यं शब्दकष्यनमिति चेत्‌ | लष्णायां व्यभिचारात्‌ तवाप्याक्ित्तेन aet- न्वयबोधाच्च | अथ हारपदसदभावमाचं पिधेडिशब्द्‌- . स्य कल्प्यते लाधवात्‌। पिधानाभिधायकानेक- पिधानान्वयबोधकमित्ययंः, ‘wena पिधेदिश्ब्दोपख्ितिक- wi, “लचणायामिति खच्णास्थसे व्यभिचारादित्यथेः, घोषादि- पद्य acumen विनापि तौरा न्यबुद्धिजनकला दिति ara: | नतु तद्टन्तपद प्नानलेन डहेतुतल्मतो व्यभिचलार(\) इत्यरुचेराह, “तवेति, ‘ar नेधायिकस्य मतेऽपि, vata “श्रा चिपनः अनु- मितेन, "कर्जा" चेनादिना,. wastage, woe प्राचोननै- यायिकमताततसारेण नव्यमते तजापि प्रथमाग्तचेचादिपदाध्या- हारादेवाग्वयबोधादिति बोध्यं (ारपदषहभावमाके' दारपदो- स्दितिखामानाधिकरष्छमाने, “पिधेडि्ष्दस्य' पिषेदिश्ब्दोपखि- तेः, इारपदोपश्िव्यधिकरण्े पिधेडिग्रब्दोपख्ितिमानं कर्ष्यते तु उच्छ्कलपिधागो पखितिरित्यथेः, "लाघवादिति, अर्ाध्याहार- पचे यच पिधेदिश्रन्दमाजे प्रयुक्तं तचापि ` पिधेदहिग्रम्दश्नानसेव पिधानाग्बयनुद्धिजमकलं कन्पनौयं दारभिव्येतावन्माबोक्तौ दारप- दज्ञानस्येव wea कण्पनौयमिति कारणता इयकल्यनायां गौर- वमिद्यभिमानः। ननु पिधानोपस्धापकानेक शब्दो aaa fafa

(९) तथाच खानुपश्यापिततोर लच्छग्कादिपदश्चानं तास्ति भावः |

WGI Grafaare | १०५

शब्दोपस्थितो विनिगमकविर हः, संस्कारतारतम्यात्‌ पद्‌ विशेषस्मृतेरिति चेत्‌ भआका्कादिमत्‌प्रति- योग्यम्वितख्ार्थं परत्वस्य कृत्त्वात्‌ लाघवेनार्थाध्याहा- रात्‌ श्रुतपदानि खब्धप्रयोजनामौति कथम-

ममाविरडेण कस्योपखितिभवि्तोत्याग्र्च fares, Sate ` दिना, “संखछारेति यददिषयकरंस्कार खदु खभ त्येव atc त्यथः, कषचिदनेक्पतावप्यचतेरित्यपि द्रष्टव्यं तदिद्‌ mati त्या, “श्राकाञ्खगदिमदिति आआकाङ्खुण दिमत्‌ पिधाना दिरूपप्रतियो- afatan, “श्राकाङ्खादिमदिति तु खरूपकथयमं, “खार्थपरलस्छः स्ार्या्यमोधजनकलर, ‘AMAT भवतापि दारमित्यादौ इार्‌- WHA दारकभ्रकपिधामानुकूलङ्नतिमानिच्येताड्‌ श्राग्वयनोधज- नकलाङ्गौकारादित्यथेः(९)

केचित्त दारमानयेत्यादौ पिधानलाकणिकसधसे पिधानाणन्वि- तस्ार्थान्वयबोघजमकलत्वस्य द्वारपदे क्प्तवादित्ययेः, शाचणिकपद्‌- स्याननुभावकलादिति भाव Tarts: |

लाच्वेनार्याध्याहारादिति लाचवेनार्थाध्याहारकर्पना दित्ययं पिधेहिश्रष्टोपखितिं कच्ययिलापि तदर्योपस्यितिरवश्ं कच्यनोये- त्युभयकन्यमा्यां गौरवादिति भावः। चेति, “लमप्रयोजनानि' afar, “श्रध्या इतेः श्रये, ‘Ara’ sage,

[वकि कि कि oe

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() galaiquiaquaanmnaylanicitala भाव इति कण, we | 39

Rod तश्वचिन्सामभौ

प्यध्याष्ते तेषां तात्पपय्येमिति वाच्यं qarat- न्वयानुपपन्या अध्याहृते तात्पर्य्यात्‌ | कथं Awa Gea सममिव्धाहतमाचाभ्वयः कलायादैरपि स्मृतत्वात्‌ इति चेत्‌ तात्पग्यनियमादित्यवेहि यत्परः शब्दः हि were, अन्यथा तवापि दैव- वशस्मृतकलायपदोपस्थापितेनान्वयबोभः स्यात्‌ अयं देवद ओरादनमित्यादिवाश्ये क्रियापदाध्याहाराभा- बेन करशुरनभिधानात्‌ ater स्यात्‌ इति बेत्‌

जनितान्यवो धलेन निराकाङ्ग॑वात्‌, श्रख्मकाति तु Ha अाकाह्- दिविरद्ेऽपि ef: श्रध्याइतपदे एवाकाङ्घुाखत्वादिति भावः | श्ुतार्थाग्वयाुपपत्येति तात्पय्येविषयोभतावयबोधानुपपण्येतयवैः, arena’ शराकाङ्घासत्तात्‌ “कथं तरो ति चचुच्छङकुलपदार्चो- afer Safed, “वमभिव्या इतेति उण्छ्चःखकलायायु- परितिदद्रायामपि शमभिष्याइतमाजाय इत्यर्यः, (तात्पय्यैनिध- मात्‌" arene नियामकलात्‌, "त्‌ परः” चन्तात्पकः, “प्रष्टारः शब्टजन्यन्ञानविषयः, “अन्यथा acres ` कले, तवापौति, sted पचतौत्यभेति ओषः, देववश्सन्पजनेति ` देववशतेत्यथेः, कचित्‌ तथैव पाठः, "उपथ्थापितेगः कायेन, ` अनभिधानादिति ्रास्यातादिगा श्रवोधमादित्यवैः, तौति,

(४ देवव्रसम्पन्रकलायपदोख्ापितेनाग्बयगोध इति we |

प्म्दाख्यतुरी यखण्डे VATA | Ree

अध्याहतपवतिपदेनापि acafrrat, wa संख्याभिडहितेति चेत्‌ देवदत्तस्य पाक्ष ray तृतौयापत्ेः, तात्पय्थेतस्तच व्यवस्थेति चेत्‌, तुख्यं | नम

छदाष्याताभ्यामनमिहिते५ कर्मर टदतीयाभिधानादिति भावः . ` श्रष्याइतेति arena तावेव watch भावः "कन सद्येति, तचाचानभिदिते कर्नरौत्यधिकारद्चस्य श्दाख्याताभ्वां कत्तं तद्गतशङ्यान्यतरानमिधाने Hele दतौयेति निष्वुषटोऽये इति भावः। अरन्यतरेनोपादानादेव देवदत्तः पाचक. इत्यादौ वुणप्रत्ययादिना कतुं गतद्याभिधानेऽपि eater कनतुरेवाभिधानादिति ध्ये | | "देवदन्तश्येति, we चना करखद्तबद्छायाञ्चानमिधानादिति ` भावः।. ममु अ्रनभिदिताधिकारौयदतोथा विधायिका खतिरेतद- तिरिक्रष्यशपरा चघ्नादिशृोगे षष्याश्तोयापवादकलात्‌। तथापि taqnw पाक इत्थं बोधनोये यज देवदनस्तेतिमाच- afte तभ दरतौयापवाद कषट्ो गाभावादास्थात-श्दयां कनं -तद्कत- सद्कानभिधानाख टतो यापन्तिरिति वाच्य . तजापि चलमपाका- दिपदख्ठ . वहुरभिप्रायविवयतया तद तिरिकखल्लसेव टतौयावि- धाथकद्ू्रविषयला दित्यत आह, ‘aaa इति दरतौया विधायक-

सूजतात्पय्येत इत्ययः, “तूखमिति देवरन्तख्च पाक दृत्या्यतिरि-

, (च छदास्थाताद्यन्धतमेनामभिहित इति we | (९) इति भाव इति He |

Aes तत्वचिन्तामयौ

दारं पिधेहौत्यादौ पिधानशब्दानुभवे पिधानोप- स्यापकपदत्वेन जनकत्वमिति चेत्‌ अन्वय प्रतियो- ग्युपस्थापकपद्त्वेन जनकत्वात्‌ तु तदुपस्थापक- यावत्‌पदलत्वेन गौरवात्‌ रवं पिधानान्वयबोधेऽपि |

MUS यज कन्त -तद्गतसद्चान्यतराभिधायकरदास्यातान्तक्रियापदं , वा्करभिपेतं तज eater ay तु तदमिधायकरदाख्याताग्त- ` क्रियापदं व्ुरभिमेतं aw दतोयेति वैथाकरणसरतेख्ात्प््ादेव देवदत्त ओदनमिल्यादौ ढतौया तज पचतिपदस् वद्ुरभिप्रेत- लोत्‌ ` चेवं अम्दाध्याहारः सिद्योत एवेति वाच्यं पदख्व वाहु , रमिपेतविऽपि शोचा तदनध्याहारादिति ara: | “अन्वयप्रतियोगौति पिधानाग्वयप्रतियोगोत्ययंः, acenret निराकरोति, विति, “तदुप्यापकेति पिधानान्ययप्रतिथोग्युपस्धापकेत्य्ः, 'गौरवादि- त्युपशचणं, यावत्पदस् कुजाणयसम्भवाचेत्यपि reat) “एवं aren- ud, पिधानान्वचप्रतियोग्युपस्ापकपदमिति ara, “पिधाना- न्वयबोधेऽपौति श्र्याइतपिधानान्वयबोधखलेऽपौत्य्थः, तजापि पिधानान्ययप्रतियोग्युपस्वापकपदख्च दार मित्यदेव खललादिति भावः। मनु लाघवात्‌ तदुपस्थापकपदलेन तच्छाष्दबुद्धिलेन हेतु-डहेतुमद्भावो ` तु तद्नयपरतियोगयुपद्छापकपदवेन गौरवादित्यत श्राह, न्य येति तद्‌्यबोधं प्रति तदु प्चापकपदल्वेनेव कारणव इत्यथैः, , .गौखेति गौण-लाचणिकस्ले - अ्रन्वयबोधाभावापत्तेरित्यर्थः, "तयोः | गौण-लाचणिकपदयोः, “अनतुभावकलात्‌' पदार्यातुपख्ापकलात्‌,

्ब्दाख्यतुरौयखकर्हे graf ia: | Ree

RUA गोश-लाकछ्षशिकयोरन्बयगोपो स्यात्‌, तयो- रननुभावकत्वादिति

प्रवाहादिरूपशक्योपख्ितिरेव शच्छस्मारिका तु लाचणिकपदो- पथ्थितिरिति प्राचोमसिद्धाम्तादिति भावः। तदयमर्याध्याहार- पव्वैपचनिष्कषेः, तच्छाष्दयुद्धौ पदजन्येव acufafatattia नियमः तच्छाब्दबुद्धौ पदश्चागविभिष्टतदुपख्ितिलेन विजातौय- ` तदिषथकवेम वा डहेतुलकण्यनामपेच्छ este तद्‌ पस्थितिलेन

हेतुतवौ चित्यात्‌ पदश्चानविशिष्टलाप्रवेशाद fa fon fren विर- हाश्च afar अ्ध्याइतेमापि यपिधानादिमा अन्वयबोधद्श्ै- नेन तथा काय्ै-कारणभावे व्यभिचाराच्च तचापि पिधेदि- meq एवाध्यादिथत इति are) गौरवाश्मानाभावाश्च। नच पिधानश्राग्दनुद्धिं प्रति शक्रि-लकणान्यतरसम्नन्धेन पिधान- प्रकारकटनतावष्छेद कधश्मोवच्छिनलशरष्द विगे्यकन्नानत्वेन हेतुतया पिधेहिश्रष्दस्तिरावश्यकोति aed तादृशका्थे-कारणभावे मा- माभावात्‌ चेवमोदमं Te’ कारणतया स्मारित आ. are प्रव्यादिमोपख्ितद्छ कलायादेखान्वयबोधापन्तिरिति

वाच्यं सति areata’ इृष्टापन्तः, अन्यया तवापि sted पचतौ- ` |

यु देववग्रखूतकलायपदोपश्ितेन कलायेनान्यमोधस्य gate त्वादिति दिक्‌ |

(९) ङत्तिलद्धयगसम्बन्धेनेति we, ° |

ate तत्वचिन्तामयौ

इति श्रौम्ङगेशोपाध्यायविरचिते तच्वचिन्तामलौ शब्दास्यतुरौयखण्डे अासत्तिवादपृव्वप्षः ॥०॥ `

DT meas

दति जौमधरानाय-तकवागो रविरिति तत्वचिन्नामणिर इस्त ` आखन्निवादपू््वपलर इयम्‌ °

( ३१६ )

अथासत्तिवादसिद्ान्तः।

उच्यते, कियापदोपस्थापिता क्रिया, कारकपदोप- स्थापितन्च कारकं परस्यरमाकाह्ृति त्रूपस्थिति- art अन्यथा wit कर्म्मता पिधेहि, दारः पिधानं कतिरित्यचापि किया-कम्मध्याहार वान्वयनोधप्रसङ्गः

अयासन्तिवाद बिद्धान्तरदस्यम्‌ `

^करियापदेति धातुपरेत्ययेः, ‘fear पिधानारि, कारकपदेति अरमा दिपदेत्यथेः, (कारकं' कश्मलारि, श्राकाङ्खतौति परस्पर w- ष्देच्छा विषयो ware, waif चयाकथयञ्िदुपस्थितक्रियादि- मा्द्येव परस्पर श्ाग्दे चछा विषयते carn, “क्रिया-कर्माध्याहार- इवेति किया-कषोलरूपा्थष्याडहार wae: इदञ्च. पदश्मा- रितपदां जिन्वा श्राकाङ्खेत्याचाय्येमतेम,. मव्यमये तु कण्मैला- दि विगेश्यकाधेयतासंसगेकदारप्रकारकथ्ाष्दबोधे इारभित्यागुपू््ौ- | Aga | हति विशेग्यका नुकूलत्वसंसगेक पिधानप्रकारकश्राभ्यबोधे पिषेहौत्यानुपूर्ौ विगरेषद्य शआकाङ्खगलमावश्यकम्‌, अन्यया दारं awa पिधेहि act पिधानं हतिरिद्यच्ापि तादृशाश्वयबोधापन्ते-

(९) किया-कम्भर्पाध्याषहार इषेत्ययं इति we |

RRR avatar

क्रियायाः कम्भैणथो परस्थितेल्लुख्धत्वात्‌ रवं विधपदो- पश्थापिते परस्यरमाकाङ्का नास्तौति चेत्‌, तश्ीका- erat पदविशरेषोपस्यापितत्वं तन्लं तूपस्थितिमां, अथविगेषेऽसाधुत्वान्नाचाग्बयबोध इति चेत्‌, म, पिषे- Wifa पदः विना इारमित्यस्याप्यसाभुत्वात्‌ तदथै योगे साधुत्वस्य तुख्यत्वात्‌ साधुत्वन्नानस्यान्बयवोधे-

रिति केवलं पिधेरौतयु्तौ दारमित्यष्ट कवलं echt पि- सेदिपदस्याध्याशहार श्रावश्यक इति ध्येयं एवं विधेति दारं तैश्यादिषदेत्यथैः, “श्राकाङ्खा' शाब्दबोधेश्छा, “्राकाङ्कार्या' परस्परं शराष्दबोधेच्छायां | गतु दारं कषमैलमित्यादौ मेदाग्वयबोधे असाधु ayaa प्रतिबन्धकमित्धागरहते, श्रथ विशेषे अरघाधुलादिति दारं कषलमित्यादौ Arata अ्रसाधुला दिव्यथेः, तचासाधुलघ्च तद- लगकतया पाणिन्या्यमिप्रेतले, “रसाधुलादिति किया-कषेभावेमा- नवयनुद्यनमकतया पाणिन्याश्चमिपरेतलादित्यथेः ननु ayaa) फलो भेयतया यजान्वयमोधो दृ ष्ठते तरेवासाधुलं Heya, हि दारमित्ध् पिधेहिपदं विना नान्वयबोध शृत्युभयसिद्ध मित्थरचे- राइ,८९) “साधुलश्चानस्येति भिरक्रासाधुवाभावन्नानस्येव्यथेः, तथाच saat ज्ञानं विघटयत एव wre प्रतिबन्धकतया माखाधुव-

शसाधुत्वस्येति ° | (९) द्रत्धमुभवसिद्धमित्धरचेरादहेति ° |

प्ब्दास्धतुरौयखखे आसत्तिवादः | RR

ऽप्रयोजकत्वाश्च गोरवादपभर॑णादप्यन्वयवोधाच्च | नं चावासंसगेग्रहः, बाधकाभावात्‌ ।. तस्मत्‌ क्रिया-

श्वानं प्रतिबन्धकमिति ara) 1 गौरषेणान्ययासिद्धिमुक्ता व्यभि लारमणाह, ्रपभरंश्ादपौति सापुलेमाज्नायमानादपौत्ययेः, “AW WITS, "बाधकाभावादिति संखगेग्रडे बाधकाभावादिव्ययेः, ayaa’) हेतुत्वासिद्धिरिति भावः। aq -दारं awe पिधेहि at पिधानं रतिरित्यादावेकदे शनिराकाङ्बु्यले क्रियाः कम्मभावेनान्वयवबोधे TI: सत्येकरे ्रसाकाङ्घुले अ्रन्वयप्रति- योग्यन्तरस्य ययाकथञ्चिदुपसितेरेव शाब्दधो हेतुलाभ्युपगमेन परत्यक्लानुमानादिना तदुपस्ितिवन्निराकाङ्ुःपदजन्योप्चितेरपि शाब्दबोधे बाधकाभावात्‌ | चानुभवविरोध इति वाच्यं तथा सति पदशन्यपदार्योपस्धितिं विमा नान्वयबोध दृत्यनुभवादेव शब्दाष्याहारसिद्या faazqala: | 4 चेवं शल्यादि विश्चैष्यक- ` पिधानादिप्रकारकान्वयबोधे fait विगरेषा्मकाका- डुग ज्नानस्य हेतुतभुपेयते वा, we श्र्याध्याहारखले waen- भिराकाङ्ुख्ले व्यभिचारः, अन्त्ये दारं कमेतं पिधानं afa- रित्यादि शनबनिराकाङ्ख्यलेऽपि दारकण्मेकपिधामायुकूलकतिमानि-

(९) तथाच शाब्दबोधं असाधुतवन्नान सात्तात्‌ प्रतिबन्धकं अपितु WAR BAN Magenaata भावः |

(९) ag श्यभिच्ारादिन्यादिः 40

३९४ वक्वचिन्तामणौ

WEN कारकपदेन कारकपदस्य क्रियापदेन सहा- ग्वध्रबोधकत्वं त्वेकं बिनाऽपरस्य wh चर स-

त्या्न्वथबोधापन्तिः श्र्थोपख्ितेस्यद्यवादिति वाच्यं तन्तदा- भुपूर््वौ धिगरेषात्मकाकाङ्काभिखय् खाव्यवदहितोश्तरवन्ति-तादृश्र- तादृ श्राग्वयबुद्धिं प्रत्येव हेतुतया व्यभिचाराभावात्‌ श्र्थाच्याशारा- रिग्ल्लो षाग्वयबौो धस्य तदव्यवहितोक्षरव्तिलाभावात्‌(९५। चेवं स्वंगिराकाङज््वविऽपि अर्थाध्याहारादिखसखवत्‌ दारकष्मकपिधाना- शुकूक्तिमा नित्यन्वयवोधापन्तिदंवरेवेति वाच्यं दारक्यकपिधा- नागुकुलषटति मा मित्यन्वयबोधो fe ददिविधः, दारमित्याचया गुपू निखथाग्धव हितोकरवन्िदारमकारक-कष्योत्वविगरेग्यकाग्वयबोधलाअ- थः fatten निखयाग्यवदितो क्र वन्ति-पिधानप्रकारक- कतिविरव्यकान्वथवोधत्वाञअ्यख तदतिरिक्रखालोकः। तथाच चअन्य- तरविशरेषसामयो धिरहादेव सम्यनिराकाङ्कृष्छले तादश्राग्वयबोधः। एतेन(₹ ययाकथश्धित्पदार्योपसख्धितिमास्छ Ba प्रतियोग्यपसा- पकपदमा भाञजवशेऽपि यत्किचिदण न्नानां उण्डुञ्गगछपदार्योप- खितिमाबाच्छाब्दबोधप्रसङ्गः तथाच भटूमताविग्रेषः तद- न्वयप्रतियोग्युपष्वापकपदत्वेन हेतुतया तजान्वयबोध इति वाच्यं साकात्परण्पराखाधारणश्य तदन्वयप्रतियो गिलस्यानुगतानतिप्रषक्षख्य

(९) तदमव्थवदिवोत्तरवसित्वादिति we, ° (९) उक्कविप्रेषसाममौ सहकार विवश्च शेनेत्यथंः |

प्ब्दाख्यतुरौयखणे च्यासत्तिवादः | Re |

कममकक्रियापदयोगं विना हदितौयानुपेपत्तिः, fe क्रियापदाथैयोगे दितीया, we अनियमं रतिरिधबा- पि दितौयापत्तेः, तथाच पुष्येभ्यं इत्ये ewan:

qaeaty तैदृत्तपदश्चामलापेकया दैरलीचेत्धपि निरं at पि विगेषधामपौ विरहादेव चाष्दबौधाभावोपप्तेरित्यसर धारा, “aft चेति)

केचित नगु पदस्ारितपदायंजिश्चासां माकेद्ध afar. रपि शाब्दबोधात्‌, गाधारुपू््यौ विगेषैः भैशयानतैगततेथां | weft काये -वीरणभावापन्तेः, किन्तु ae: कर््मलमित्थादि पदं fant अन्यपदार्योपिंतिरेवाकाङ्य सा चार्थाध्याहारस्वलेऽप्यसि नासि सव्वंिराकाङ्ुस्यले एकदे शगिराकाङ्घ्यले चेति तचान्वय- बोधः किं पदाध्याशारेणेत्यरचेराइ, “अपि Waters: तदसत्‌, | मेदभूटान विगेवण-विगेव्यभावे विनिगमना विरदेानेमकाथ् कारणभांवापत्तेः श्रन्वयप्रतियोग्युपस्ा पकपदभाचश्रवेऽपि परा- ्योपखितिमाभाच्छाभ्दभोध्य दुर्वारलाच्च तदेशर्थपरतियोरेधुपचा- पकपदतेनं Wye उक्तक्रमेण वहुभग्रक्यला दिति ध्येयम्‌ | 'खक- शकक्रिधापेद्‌योगं विनेति घकशक करिधापदे कवाक्यता भिप्राथविष॑यंलं विनेत्ययैः, “दितौयानुपपंन्निरितिं दितौधायाः वाधुलायुपप्नि- ,. ftat:,© पाणिमि-चाश्राथनुशासमेकठं मिस्तयेव मिण तलादि-

(९ प॑दवि्ेषाजन्येतधवान्तंगे तमेदकूटानाभिवरथं! | (९) कवा कत्वं सकम्मेककरियापदसदकारेख खार्थं बोधकात्वं |

३१६ . वक्वचिन्तामौ `

पदाध्याार' विना wqurquafa: | यदि स्पुहयति- पदाथैयोगे wat तदा पुष्यमिष्छतौत्यवापि स्यात्‌ स्यदयतौच्छतिपदयोरेकार्थैत्वात्‌ | अथ ayaa दारं पुष्पेभ्य इत्य पिधेहि-स्पुष्यतिपदाध्याहारो ऽनुमन्यते त्वन्वयबोधाथ तस्यान्वयप्रतियोगिविन्ना- नादेवो पपत्तेरिति चेत्‌, तहि feared विना , कारकविभक्तिः, कारकपदयोगं विना तदम्बययोग्यं क्रियापदमिति केवलकारकपदे क्ियापदाध्याहारः, केवलक्रियायाष्ब कारकपदाध्याारः साधुत्वा्माव- wa दति तज्नन्योपस्ितिरन्बयवोधौपयिकतौ तस्मात्‌

वि भावः। साधुश्च धश्मविशेषजनम्‌कलत्वं अधम्माजनकलवं वा, क्रियापदायेयोग इति वस्तुगत्या खकश्मेकक्रियापदस्य योऽवस्तद- न्वितख्ायेबोधकलाभिप्रायविषयल एवेत्यर्थः, 'दितौयेति, साध्यति शेषः, “दितो यापत्तेः' दितोयायाः साधुलापन्तः, "चतुश्येलुपपन्तिरिति WMATA: खाधुत्वा तुपपन्निरित्ययेः, Va? कम्मेतपरवतुयौं खाध्वौति. शेषः। “साधुलायंमिति द्वितौयादेः साधुलाधं मित्यथैः,

कारकविभक्रिरिति eats गेषः, "त्नन्योपखितिरिति इार-

(९ सकम्भककरियापदसह कारेयेव खार्थबोधकपदादृदितौयाया उक्त- त्वादिव्येः |

WRAL aay Bafa | | ६१९७

क्रिया-कारकपदो पश्यापितयोरेव क्रिया-कारकयोः प- रस्परमन्बय इति शब्द्‌ाध्याहार खव RITAY तु व्यामः

भित्यादावध्याहारस्लेऽपि पदश्चामजन्यपदार्योपखितिरण्यबोधौ- पयिकौत्ययैः, सयाच भोक्रव्यभिचार इति भावः "तस्मादिति व्यभिचा राभावेनेति Be: नन्वेवं qenaizt alae अनु- मितेन safe कथमन्वयबोधः तव मये पदजन्यपदार्योपस्ि- तेरेव शाष्दमोधाक्रलादित्यत आह, कर्जाेप दूति, तचापि प्रथमा म्तचेचादिपदाध्याहारादेवाग्वयबोधः त्वनुमितचेजादिना, कन्तुराकेपलभ्यलप्रवादस्याप्ययमेवा्यः,( न॒ ATTRA Perley भावः। इदमापाततः Wy इत्यादिपदं विनापि aa घटोऽस्तौ- त्याद्यमिदहितं तज्‌ ay इत्यादिपदं विनापि साधुतया पदाध्याहा- राभाषेम व्यभिचारस्य दुर्वारलात्‌ सकम्मेकक्रियादियोगस्य दितौ- यादेः साधुताभियामकलेऽभिप्रायशून्यमूखाध्याप काचयुक्रविष्णुपूजये- दित्यादि विधिवाक्यस्या्यसाधृलापत्तेः श्रभिप्रायघरितख्य सकर्मक क्रियायोगस्य तच्रायभावात्‌(९ fay aaa वक्करेकवाक्य- तामिप्रायविषयलरूपस्य खकम्भेकक्रियापद्‌ादियोगस्छावश्छकतेऽपि तुस्तादूश्पराध्याहारस्य कथयमावश्यकत हेतुविधया

णग

(९) शध्याहृतप्रथमान्तपदो पस्थाप्यत्वमेवा्ं इति | (९) श्भिप्रायघटितक्रियापदयोग्धस्याभावादिति we |

RLS avafantarat

दति शी मङ्गङ्ग्ो पभ्यायमिर चिते तच्वचिन्तामखौ शब्दा खयतुरौ यखण्डे आसत्तिवादः yoy

सक्कक्रियापदादियोगच्च साधलश्चापकतया Vea तज्‌- श्ानमौवभ्वकं aga agree इति वाच्ये शांधंलभ्नागसख आब्दबोधाडेतुतथा तदेन्चानेऽपि खतिविरश्यत्‌, wy वा श्ब्दा- ध्याशर अ्विश्छकस्तयापि तेष्णन्यपदार्योपस्ितिलेन कुतो Wa शाघवात्‌ पदार्योपस्थिंतिलेभेव Weather wea पचतौत्यादौ घति araday थथाकथथिदुपसिताकाग-कशाथा- Seay एवेत्यध्याहइारपख एव सम्धगित्यवधेय(९)

दति ओौमरानाय-तकंवागौग्रविर चिते तलचिन्तामवषिर दत श्रब्दाख्यत्‌ रोयव्ष्डरदस्ये राखन्तिवादरदस्यम्‌

(९) सम्यगिति ध्येयमिति ae |

( ९६९ )

अथ तात्पय्बादः।

[~ IEE ID

तात्प्याधीनं शब्दप्रामाण्यं तच तत्‌परत्वं॑ a तत्साध्यकत्वं पदार्थ-तत्सं सगेयोः शब्दा साध्यत्वात्‌ अथ

AY ATAU |

आन्ति निरूपय mead निरूपयितुमाह, ‘memati ATTA ATTA, “MEATS? शब्दस्तारुमवज- aad, तात्पर्यस्य ज्ञानमपि weve सहकारीति फणिता | एते- नासत्या सडह गशाब्दबोधसशचरेककार्यारुकूललं सङ्गतिरिति सूचितं, चघ्मपौतरणटेतरपदेत्थादिनाः तात्पण प्रागेव निरूपितं, तथापि परमतनिराकरण्णय पुगरयमारम्भ इति Ata) तत्‌ पर qa तत्परसस् भावस्तात्पभ्ये, TOMY AAT, तथाच तत्का- यंकलमेव तात्पे, भवति चटादिपदः घटादिप्रतौतिका्ैकम्‌ अतो घटादिम्रतौ तिपरमिति arama निराकरो- ति, “तजेति, विषयत्वं ana, weagqra 'तत्परलमिद्यनेन, तथाख तदिषयौग्धतं तत्परत्रमित्ययेः, 'तत्षा्यकलं" तत्कास्यैकल्वं | यडा ‘aw तात्प, fred aware: "तत्परत्नमिति भावप्रधाने fags:, एवं 'तस्षाध्यकलमिद्यपि, aure.afee तत्परत्वत्वं तत्छाध्यकलत्वमित्यथेः, “श्ष्दासाध्यलादिति शब्दाजन्यलादित्धरथः,

४२० तश्चचिन्तामखौ

तङ्गाचरप्ररत्तिनिटत्तिसाध्यकत्वं तत्परत्वं, तश्च भाव्या- धस्य ATA AMIS तु प्रशंसा-निन्दावाक्धस्य प्रशस्त- निन्दितार्थप्रतिपादनदारा लाक्षणिकस्य लघछणौयवि- षयप्ररत्ति-निटसिजनकत्वं तत्परत्वमिति चेत्‌, न, त- त्परत्वे AMA जनयित्वा तच प्रव्तेकत्वं तत्‌प्रव्तक-

तथाच चटादिपदं घट-तश्ंसर्गादिपरमिति व्यवहारो स्यादिति भावः। . 'तद्गोषरप्रन्तिनिटृत्तोति तद्गो चरपयजेव्यधः, arya एकष्य वाक्यस्योभयासाध्यकलादसम्भवापन्तेः प्रव्येकसाष्यकलस्य प्रैक- श्पिकलच्णतवे तु परस्य रा्याघ्यापन्तेरिति ध्येय ‘aq प्रयत Raney, ware’ विधिवाक्य, “खाचात्‌' दृ्टसाधनला- दिज्ञानडारा, ्डता्थेस्य विति प्रशरसा-निन्दावाक्यस्च विशेषक, विधिभिश्य प्रशसा-मिन्दावाक्यस्येत्य्यः, तश्च परि्तिद्धरसं आष- फलं परिणति विरसं पनसफलमित्यादिवाक्चमिति भावः भ्रग्रस्त- मिन्दितेति उत्छष्टलापरष्टवेत्य्यः, सुशब्द-विश्ब्दयो दक्छष्टा पष्ट- afwarfefa भावः नन्वेवं शाचफएिकसख्य जकणोयगो चरप्रयन्ना- जनकलवाक्षणोया्यंपरत्वं स्यादित्यत श्राह, "लाखणिकिस्येति, छच्णटीयालुभवडारे ति ओषः, तत्परत्वं ललषणो यपरत्व, wa इत्यादिः, "तत्परतः तत्परलन्नाने, ‘ANN तच्छाब्दबोधं, (तच प्रवन्तेकलेः तङ्गो चरप्रयल्रफलो पधायक्रलं, स्लरूपयोग्यतायाः yeafy awa श्राष्दबोधानपेकतितलाद्ययाश्रतासङ्गतेः, ^तत्मवन्तकलच्च' तद्रोचरप्र-

MATA यखष्डे तात्पग्येवादः | BRE

ag तन्परत्वमिति परस्यराश्रयात्‌ | लाक्षणिकष्यान- नुभावकत्वेऽपि ARAMA. RBIS. खरूपा-

यन्नोपधायकलश्च, शइ ति परस्पराश्रथादिति तङ्खोचर प्रयन्नफणोपधाने सति तदुपधायकलन्नानानच्छाम्दबोधसच्छान्दवोधे जात एव त- ` दो चरप्रयन्नोपधाममिद्यन्योन्याञ्रय इति भावः। च. ARTE: प्रयन्नखरूपयोग्यतावच्छेद कपरल्ं तत्परत्वमिति ara) तदवच्छद्‌- कषू्पापरिचयादिति भावः ममु तद्गोचरप्रयन्नोपधायकलख्छ लो किकप्रत्यचं Wada तदुपधानं विना तदु पधायकलन्नानं ष्यात्‌ किन्तु तङ्गोचरज्ञानमानं तथाचायेतमतदुपधायकलश्यापि यथाकथश्धिदुपमयादिवशाजन्चानं AINA, "लाचणिक- स्येति, “्रमनुभावकवेऽपौ ति, श्रञुभवजमकलवं faa) प्रयन्नाजनक- त्वादि ति? भावः शक्रिलच्णान्यतरसम्बन्धेन तदत्‌(र्पदश्नाम- aque खा चवाच्छ क्रिसम्बन्धेन तदन्वयप्रतियो गिमत्‌ पद ्चानल्ेमेव हेतुता oufMatey ल्णायाः waa शरूलात्‌, awa Rey carat घोषादिपदमेव तोराद्यतुभावक नतु गङ्गादिपदं तस्य तोराद्यग्वयप्रतियो गिश्चक्रलाभावात्‌, wranfa- यो गित्वश्च साच्ात्‌ परम्परया श्रन्वयभिरूपकलं, तश्चामेदेऽपि, तेन घटादिपदस्य घटाद्यमुभावकलानुपपन्तिः सव्वेलाचणिकस्यले

(९) खनुमभावकत्वं विनेति we | (र) प्रयल्नभमगकत्वासम्मवादितौति Ge |

(९) च्न्धय प्रतियोगिमदित्वथः 41

| तत्वचिन्तामव्यै

खानमाबपरत्वेनापि षय्थवसानाखच ननु तद्बदिजन- कत्वं तत्परत्वं प्रशंसा-निन्दावाक्मपि प्रशस्त-निन्दि- तसखाथधौहेतुत्वेन तत्परमेव, तच्च wa प्रशस्ते सवः

प्रवसते निन्दितश्च faatia दति खविषये प्रटत्ति-

mega एव नोत्पद्यते किन्तु पदा्थीपख्ितिमाबमिति wre- णिकख्चाननुभावकल्ववादिनां प्राचां fre: 1 ननु गङ्गादिलाक फिकपदस्छापि तौराद्यसुभवलनकपदायौपख्ितिदारा तद्गोचरप्रयन्न- TAA, पदार्यापस्थितिगंक्गा दिपदादेव, शाब्दासुभवजनकतव पुनन we किन्तु तत्समभिव्याइतग्रकरपदस्येत्येव प्राचौगसिद्धान्ता- ~ दितव्यस्लरसादाइ, “काव्यादेरिति, 'खरूपाख्यानमाचपरत्वेनापौ fa तद्गोचर श्नानमाषरनमकलेनापौत्ध्यैः, AW प्रयनन्यवच्छेद्‌ः, “परययवसानाखः तत्परलाचेत्यैः, दृदसुपलष्ठणं विध्यादेरपि दष्टषा- धनत्वादिपरत्व स्यात्‌ तद्गोचरप्रयन्नाजनकल्ादित्यपि zea | नन्वेवं परिणतिसुरषमावफल मित्यादि प्रशंषा-निन्दावाक्यं प्रटन्ति- निटृन्तिपरमिति व्यवहारो स्यात्‌ we प्रटन्ति-निदत्तिगोचर- न्ञानाजमकलत्वादित्यत sry, (तच्चेति, ‘ar’ प्रशरस्त-निन्दितख्ारथ- ws, ‘ANG’ प्रशस्तत्वेन स्नाते, ‘fafa भिनग्दितिलेन sa, wage इति प्रसा-निन्दावाक्यं प्रटन्तिनिरन्तिपरमुच्यत-

° (९) frond इति we | fad दति we | (९ खरूपाख्यानम चेतीति we `

प्म्दास्यतुरौय खरे ASAI! | RVR

faemt जनयतौति तत्परसुष्यम इति Aqiat गोण-लाक्षणिकयोरननुभावकत्वात्‌ तद्बुदिजनने त- त्परत्वमित्यन्योम्याश्रयाच् | तव्जनमयोग्यत्वमिति चेत्‌, तर्येकचोश्चारणे नानार्थे नानाथंपरत्वं सक्षणायाश्व सुख्यार्थपरत्वं स्यात्‌ योग्यतायाः Were! नापि तत्‌- प्रतिपाद्यकत्वं, तात्‌पय्य विना तयेत्यन्योन्याश्रयात्‌।

इत्यर्थः, तथाच तत्परलन्यवहारोभाक इति भावः -गौण-लाच- . णिकयोरिति गौर-तदितरशाच्षणिकयो रित्यथेः, गो-टेषावामये- त्यादाविव सादुश्यसम्नन्धेन wear गोणोदत्तिः यथा चण्रपद्स्स मुखे, “श्रनसुभावकत्वादिति यद्यपि तस्वाममुभावकत्वेऽपि पदा- यौपस्धितिमादाय sausage, तथापि wea बुद्धिपदमगुभव- परमित्थमिप्रायात्‌(५। यद्वा “श्रनतुभावकलात्‌” शंसगंन्चानाजनक- लात्‌, तथाच तयोः संसषगंपरत्वं स्यादिति भावः एवमयेऽपि, 'तद्बुद्धिजनगने" agate’, ‘aut’ तत्पर लश्ञानं, wed ` बुद्धिवेन waa अरन्योन्योश्रयोऽपि शंषगंमादाय बोध्यः अन्यथा पदा- धीपश्ितिं प्रति तात्पय्यज्ञामस्वाहेतुतया तामारायेवान्योन्या्रय- परो हारा दित्यवेय, एवमयेऽपि was बोध्यं .एकजोच्चारण दति एकमाभप्रतौतोच्छयो चारण द्यः, ‘eure andedie- माऋ्प्रतोतोच्छायाघचेत्यर्येः, ^तत्मतिपाद्यकत्वमिति ख्जन्यप्रतिपन्ति-

(९) इति भाव दति Ge |

RRs तत्त्वचिन्तामणौ

प्रशंसा-निन्दावाक्यस्य प्रश्यायप्रतिपाद्कत्वात्‌ ला- छसणिकस्याप्रतिपादकत्वाञच्च | अथ गङ्गापदं खा्था- विनाभावि att प्रतिपादयन्तत्परमिति aq a

विषयताकलमित्यथेः, विग्रेषण-विगेग्यभावभेदाच yadt भेदः श्रन्यत्‌ wa पूर्वत्‌ श्रदत्यादौ ति, तथाच तत्यरलब्यवहारो GT दिति भावः। श्रप्रतिपादकलात्‌" अननलुभावकलात्‌, “खाथावि- नाभावोति खार्थाविनाभावसम्बन्धेन तोर प्रतिपादयदिव्ययैः, tq ` तादात्सम्बन्धावच्छिन्नस्ताथा विनाभावरूपश्चक्य सम्बन्ध एव weUt तु खन्नन्धसामान्यमिति प्राचोममतालुसारेण, तथाच anfa- WMATA तत्परत्व, सम्बन्धः शक्रिलेचणा च, पद-पदायं- सम्बन्धग्रह एव पदारथरतिदारा संखगंप्रतिपत्यतुकूल इति संसग मादायापि नाव्यास्भिरिति ara: | “तेन विनेति स्ार्थाविनाभावेन विनेत्यर्थः ननु मधसव्बन्पौ पुरुषस्तादात्येन TENT एव एवं पुरुषान्तरमपि तादाव्रयेन येन केनसित्‌ सम्बन्धेन मञ्चव्याप्यमेव सार्था विमाभावस्य wane व्याप्यदि शचि तादाव्यसम्नन्धनियमेऽपि ग्यापकदि भि सम्बन्धानियमा दित्थर्चेराह, .गङ्खादिपदमिति गङ्गा- feud wenfert तौरपरश्च qa स्यादिति योलना, ‘ge’ मुख्यमाजाभिप्राये सुख्यायप्रतोतौच्छयोश्वारणे इति यावत्‌, ‘aq Sean feat तौरेतरपरिगरहः, Fra wana, “श्रविना- भावस्य स्वायाविनाभाव्य, ददमुपल्वणं wey सम्यैदा wears

(९) प्रशं सादि बाश्छस्येति we |

ण्रब्दाख्यतुरीयखग्डे ABATE: | ३२१५.

war aaa तेन विनापि पुरुषे तात्पय्यात्‌ गङ्गगादिपदः मल्स्यादिपर qe तौरपरण्बः स्यात्‌ पअविनाभावस्य तादवस्थ्यात्‌ | मुख्ये. बाधके सतौति चेत्‌, afe सुख्या्थपरतेव न. स्यात्‌. स्याच्च गच्छ. TMA गमनाभावपंरत्वं। उच्यते | तत्‌प्रयोजन- कत्वं तत्परत्वं तदर्थश्च प्रतीतिः प्रत्ति-निइत्तौ च,

AAI अरन्यावत्तंकला दित्यपि बोध्यं ` प्रतातिव्याश्निवारक- विगेवफमागशद्धते, ‘FA बाधके सतौति सुष्याभिपराये बाधके सतो an, मुख्यायेप्रतो तौच्छयानुञ्चरितवे खतो ति यावत्‌, ‘aeifa,. दद मुपशक्षएं तौर प्रतोतो च्छयोशारणे मष्य-ग्टहादिपरं aq येनः केनचित्‌ सम्नन्धेना विनाभावस्य awit समवादित्यपि बोध्यं "गच्छ mega aaa | गच्छ गच्छसि चेत्‌ कान्त पन्थानः सन्तु ते. शिवाः ममापि en ata wages गतो भवान्‌ इतिः विरे श्रगमनोद्यतं भर्तारं प्रति उत्कण्डितायाः म्रियाया वाक्च; इत्यर्थः, .गमनाभावपरल्मिति wera गमनाभावपरवमित्यर्ः, मुख्याथाभिप्रायाभाववल्लविरहादिति भावः। ज्लोकाण्सु डे कान्तः त्वं गच्छसि चेत्‌ गच्छ ते तव पन्धानः frat: कल्याणष्ूपाः न्तुः किन्तु ममापि जन्म तन्नैव wages भवाम्‌ गत इति गमिय्य- Nat श्रत्यम्तसुत्कष्डितलात्‌ करणापाटवेनम तथाभिधानं aq द्वदरेप्रा्नरगममामन्तरमेव मम मरणं भविव्यतीति त्या गन्तव्यमिति ag: | "तद येखति नतस्मयोजनकलमित्यच तच्छ-

RIE तस्बचिन्तामयौ

प्रयेजनत्वश्व साध्यत्वं अन्योन्याश्रयात्‌ arty प्रतिपाद्यच्छाविषयत्व, यस्य यदिश्छाविषयः तं प्रति तत्परत्वापत्तेः। तदर्थसाध्यत्वेम इच्छानियम इति चेत्‌। इह भुम दत्य TOMA साध्यस्य वह

Tiga: ‘era उपधायकलं, “अन्योन्याञ्रयात्‌' उक्ान्योन्या- | अयतादवसयात्‌, शपरतिपादयेति तङ्गोषरप्रतिपाचयेच्छा विषयत्वे तत्पर- afaare, तिपाद्चः, भता, भवति शराच्छम्दादेतत्रतोति- संवनितिप्रतीतिगोचरेच्छायाः गरष्दोऽपि विषय इति भावः ‘aah, ओतुः पुरषस्येति शेषः, "यदिच्छा विषयः" यद्यदस्ठग्रब्दगो चरखमू- इालम्ननेच्छा विषयः, ‘a प्रति" aged प्रति, "तत्परलापन्ेरिति AAC GATT TA रित्थथेः। 'तद्ेषाध्यलेनेति तन्तच्छम्दायेविगेव्क- समसाध्यलप्रकारकविभेत्यवैः, खपदं WI, तथाच खषाध्यलपरकारक- तङ्गोचरेच्छा areal तत्परले, तच्छब्दार्थः “प्रतोतिः प्हत्ति-निरन्तो Raa, भवति चासच्छम्दादसुकगोचरम्रतो तिभंवत्‌ अञचकगोचर्‌- हृत्या दिवां भववितौच्छा प्रतौ ति-पृत्यादौ शब्द साध्यतवप्रकारिका ाध्यवश्छ पश्चम्यथेत्वादिति भावः “इड धूम इतोति दइ धूम- meat धूम-तमदश्तिपर दतिवाक्कदे्ोतकौ न, तथाच इष धूमशब्दो धूम-तन्मटृन्िपर दत्यमेव्यर्यः, ‘are’ ewe, नवाक्यमेरेति Uae परगरब्दश्य विभिन्ञप्रकार कश्चानजनकलवप्रषङ्गा- FAH, YHA इत्यतुरोधात्‌ शराष्यलपरकारकेच्छाया शअरभिधेयतवात्‌

श्ब्दाख्यतुरौयखण्डे तात्प्ेवादः। ३२०

विधतया वाक्यभेदप्रसक्गात्‌ पुमिच्डाया नियन्तुमश- क्धत्वात्‌, किन्तु प्रतिपादकेश्छाविषयत्वं तत्परन्वं, यः शब्दः वक्रा यदिच्छया प्रयुक्तः तत्परः, सा Tay

YAS धुमपद्जन्यलाभावेम खभन्यलभ्रकार केच्छायास्तच बाधितवात्‌ YRS दत्यमुरोधाश्च सजन्यतप्रकारकेच्छाया श्रभिधेयवात्‌ धूमगो चरप्रनतेंमपद ज्ञाप्यलाभावेन ज्ाप्यवघरितस्य तज बाधित- लादिति भावः। चदा "वाक्यभेदपरसङ्गात्‌" परशब्दन्नानभेदमसङ्गात्‌, परशरष्दस्याटृत्तिप्रबज्गादिति aay, शद्यदु्च रितेत्थादिग्युत्पन्तेरिति भावः मन्वित्यं वाक्यभेदे इ्टापत्तिरेव weer सिद्धान्तेऽखगति- रित्यस्चेदौषान्तरमार, “पुमिच्छाया इति ओओतुरिच्छाया इत्यर्थः, ` तथाच यत्र वक्करेकगोचरप्रतौताविष्छा श्रोतुश्च तदि सधप्रतौतौ तज विश््धप्रतौ तिपरव्वप्रसंङ्ग इति भावः श्रतिपादकेति, श्रतिपादकः' ` AMT, TRAIT’ जमकतासम्नन्धेन AHR TARTANA जन्य- तासम्नन्धेन तदि ओेग्यकेच्छाप्रकारत् वा, एतदेव विदणेति, ‘a: wez- . इति, "यदिष्छयाः जनकतासम्बन्धेन यत्रकारकेख्छया जन्यतासम्बन्धेन यदिगेग्यकेष्छया वा, श्रयुकः" श्रुसंडितः, तथाच जमकतासम्बन्धेन AMAT RT Aa जन्यतासम्बन्धेन तदि Rena feet . रत्वं ara विनिगमकाभावात्‌, भवति चायं weetsyanay- तिमान भववितौश्छाया जमकतासम्नन्धेन प्रतो तिप्रकारिकायाः(९

(९) खयं शब्दः अमुकप्रतौतिमान्‌ भवत्विति ननकतासम्बन्धेन प्रतौति- प्रकारकेष्छाया इति we 7

Age arafararerat

प्रतिपाद्यधौ-प्ररत्ति-निटततिविषयेति तत्परत्वं ना- नार्थात्‌ चिष्टादनेकपदार्थानवितैकक्रियापदात्‌ मुष्य- AAMT क्रमेखानेकपदार्थन्नानं त्वे

fasta: शब्दः श्रमुकगोचरप्रतौ तिरेतच्छब्दाद्भववितौ च्छाया जन्यता- सम्बन्धेन . प्रतौ तिविगरेथिकायाख्च प्रकारः शब्द्‌ इति प्रतोतिपरलं We, एतेन रत्या दिपरलमपि व्याख्यातं, किन्तु परतो तिपरलभेव ग्राब्दबोधोपयोगि तु प्रत्या दिपरलं श्रथपरलब्यवहारश्त तद्रो- चरप्रटत्तिपरलनिवन्धनो भाक्त इति भावः। ead AMAT श्रोतुः ` शाब्दबोधमरटृत्यादिपरलं खात्‌ वक्षरिष्छायाः ओट शाम्दबोधा्वि वयकलादित्यत रार, शवा चेति वक्रुनिष्ठा चेत्य्ंः, प्रतिपाद्यः, श्रोता, “विषया विषयापि। न्वं नानार्थादौ एकदा वक्ृरनेकम्रतो तोच्छया शने कायेपरतो तिप्रसङ्ग इत्यत श्राह, मानार्थादिति, "नानाथात्‌" इया | दिषदात्‌, ‘fasta’ Bat धावतौव्यादौ श्ेतादिपद्‌ात्‌, ‘waafa az पटञ्चागयेत्या दि वाक्या दित्यथेः, सुखमेति सुख्यं-खाकणिकबोधकाद्वङ्गा- | at घोष-मल्णे स्त इत्यादौ गङ्गादिपदादिव्यर्थः, श्राटश्येति तत्‌- स्थानद्ितस्य पदस्य पुनरनुसन्धानमाट़न्तिः, नेदौयःखलान्तर ग्थितख पदस्य पुनरलुखन्धानमनुषङ्गः, दवोयःखखलशाग्तर स्थितस्य पुनर तुसन्धा- ममनुटत्निः, सां िंददहावलोकनम-मण्डकञुति-गङ्गाभ्नोतावदिति चिधा, श्रनरुतश्रब्दातुसन्धाममध्याहार इति ate” |. .बशद्श्चरित-

(९) इति ध्येयमिति we |

WAAR तात्पयैवादः | BRE

ata, सरृदु्रितस्य सकृद परत्वनियमेनैकनोचा- रशे अनेकाथपरत्वाभावादिति सकलतान्धिकैकवा- क्यतया” वदन्ति |

वयन्तु ब्रूमः अनेकपदाथंप्रतौतीच्छया रक- Aare” भवत्येव पुमिच्छायानियन्तुमशक्यतवात्‌ |

सतेति एकपद विषयकेकश्चानस्येव्यथेः..सद्छद चैपरलनियमेनः qaguan- जानुभवजमकलनमियमनिखयेन, अ्नेकाथाननुभावकलनियमनिश्खे- मेति यावत्‌, “दु चरितः शब्दः awe गमयतीति षिद्धाकादिति भावः। “एकजोश्चारणे' vafay वाक्ये, “अरनेकायेपरल्ाभावादिति एकदा श्रनेकायग्रतो तिपरल्वाभावादरिव्यचैः, उक्षनियमनिखयरूप- विगरेषदशरेगेन वक्करेकद्‌। अनेका्प्रतौतोच्छामुत्यत्तेरिति भावः। चैकदा सु्यै-चष्द्रोभयादिःप्रतिपादकपुष्यवन्तादिपदश्ञाने रति-वन्तै- मागलेकलादिप्रतिपादके apices शतिसाध्यवेष्टसाधमलादि- प्रतिपादके विष्यादिपदश्चाने कष्मलेकल्ादिप्रतिपादके दितीयादि- पदज्ञाने दिश्थादिपदश्चाने चायं नियमोव्यभिचारोति वाच्यं द्य त्पदे एकेकपदमाजविषयकन्चानस्सा पि भानाथविषयकातुभवजनकलः- मसुभवसिद्ध तदतिरिक्रपदष्वल एव एतसन्ियमाग्डपगमात्‌, aq चटपद-परपदादिकमेव(५) | तथापि घटौ घटा इत्यादौ -एक-

1 शिक न्न :

() सकणताग्लिकाणामेकवाक्छतयेति ae | (९) अच ब्रूम इति खर | (९) श्यनेकाचंप्रतौतीष्छया रकोश्चारणमिति क० | (४) घटपद-पटपदाद्चपदादिकमेवेति we | 42 `

RRO तत्वचिन्तामबौ

यदि तदुश्चारणं नानेकार्थैपरं तदाहत्तिरपि स्यात्‌ तात्पययैनिर्वा हाथैमाषटततिकल्यनात्‌ अन्ध- थेकपरेऽपि wae | अतरव तदृशार शस्य उभय-

चटपदमाजविषयकंज्ानेनेव मानाचटमत्यायनाद्ममिचार इति वाच्यं | अतएव तज सरूपेकगरेवाभ्युपगमात्‌ तथाच शुप्तघटपदप्रतिखन्धाना- देव aerate: सशष्ूपेकशेवं विना चटादिपदाद्‌दिवचनादितो गानाघटविववकवोधख्छपरसिङ्‌ एवेति aster frre: |

fren? . विग्रेषदरेनेन frerifed, तस्ेच्छाप्रतिवन्धकवे मा- जाभावादिति भावः cqqaeed विगरेषद भनष्यासागयेधिकलाचे- त्यपि बोध्ये ‘narePact शादिति तदाहन्तिकश्यनापि ष्ादित्यर्धः, ‘arqafa, ‘aradfratere तात्पर्यं विषयानवय- tufted, “चाद न्तिकल्यनादिति त्वया wefaawn- feat, “अन्यथा तात्पग्येविषयान्वथालुपपत्तिं विनाणाट्तिकख्पने, "एकपरेऽपिः घटोऽस्तौत्यादावपि, ‘aera: तदाडृन्तिकख्पयना- पेः,(९). इदमुपणचणं waar anqalas wana कथ- मन्वधबोधः wer बोधनोये अधं वक्ृलात्प््याभावात्‌, किच बक्कसादृशाभिपरायाभाबेऽपि यत्र विगरेषादभेनात्‌ ओओ तुदभयपरल- SRE युगपदुभयातुभवो gare इत्यपि द्रव्यं गतु अने- का्तात्पय्यैसत्नेऽपि युगपदनेकार्याुभवः पकैकमाशरविषयक- ` श्राष्दबुद्धिलस्य गब्दजन्यतावच्छेदकलवादित्यत are, शब्रतएवेति यत-

(९) तवारङल्तिकल्यनापत्तेरिति we |

WTI तात्पय्यैवादः। RRL

परतायां arefanerd तस्मानुख्यवदनेकार्थो पि- तौ तात्पथादिन्नाने यगपदनेकान्बयबोधो भवति सामग्यास्तुल्यत्वात्‌ प्रथमभेकस्यान्वयबोधो A तद्‌- न्यस्यति नियन्तुमश्क्यत्वाच्च | अथ विवादाध्या- सितमक्षपदोच्चारणं रकपदै कशक्तिविषयमेकमेवानु-

एव तादृश्रकाय्ये-कारफभावोऽत `एवेत्ययेः, AGEL एदे, कश्चैव ड़ दिपद्‌-पुष्यवन्ता दिपदस्येत्यषैः, "उभयपरतायामिति रति-वन्तमामत-सूग्ये-चश्रोभयादिपरताय्डे इत्यथः, 'ुख्धवदिति थगपदित्थथेः, . सामथ्यास्ठद्यलवादि ति. एकदा सवेषामेवामुभावक सामगो सत्वा दित्यथेः मनु शड़ा टि पद-पुष्यवन्तादिपदातिरिक्रसखे तादृश्रकाय्यै-कारणभाव इत्यत ATE, श्रयमभमिति। “श्रयेति एकमा; जानुभवजनकतयोभयवादिसिद्धे Wier cua: fegarya- वारणाय “विवादाध्याश्तिमिति faargrenfaaertariared air काङ्ग दिश्चानखमवदितल्,(९ पद ज्ञानसेवालुभावकतया बाधवारणाय (उश्चारणमिति, "उचारण" ज्ञाने, परतावच्छेदकसामानाधिकरण्ठेन साध्यसिद्धेदरे्सलाचचाकेणकं पश्छतौत्यादौ समूहा लम्बनाचपद दइयानु- सन्धाने नांश्तो वाधः, एकपरेति, ea पदन्ञानस्याग्वयप्रति- यो गिपदार्थाश्तर विषयकामुभवजमकल्वादप्रसिद्धिवारणाय. “एकश्च क्िदिषयमिति यद्येक शक्रिविषयलस्य केवलान्वयितया aqte-

(९) प्रथममेकस्याग्वयबोधोऽगन्रं तदन्धस्येतीति ° | . (९) विवादपदमिति विवादपदृत्वश्चानेकाथंतात्पर्ग्था काङ्कादिश्नानसमर्वहित- त्वमिति खर, गर |

RAZ arafarararat

area, तथा्येकग्रङ्धिविषयतव खविषयाचपद्‌ निष्ठ छिविषयत्, wig पदौ श्तश्चानपर, विषयलश्च fasted, अन्यथा जाति-तत्‌- खंसगे योरप्यखभवजननादप्रसिद्यापन्तेः, सिद्धसाधनवारणाय “एकमे- | बेत्यवधारणं, अन्वयप्रतियो गिपदार्थाग्भरः नात्यारिकञ्चादायाप्रसि- famerenry “एकमिति, नानाथ विषयकद्तिजननाद्‌बाध स्यादिव्यतोऽखुभवव्वेनोपाटान जनकलश्च BW, Wer aya साध्ये बाधापकतः, तेन विषयाखपदगिरूपितश्रण्िविग्रे- गेकमाजारुभवोपधांयकल्वं साध्यं पर्यवसितं यद्यपि तादृशेकमा- जातुभवो पधापयकल्वं ` न॒ तादूगेकमिन्नानतुभावकले सति तादृग कानुभावकलं, अन्वयप्रतियो गिपदार्यान्तरं जाव्यारदिकद्चादायाप्रि- द्धितादवसथात्‌, तथापि तादृश्रग्रङ्िविश्रेब्यदइथाननुभावकले सति ताद्शश्रक्किविशरेव्यानुभाषकलं बोध्यं, तश्च खविषयाख्पद निष्ठद्मक्ि- fara यत्छजन्यश्राष्दबोपविषयस्जिष्टान्योन्याभावाप्रतियो गिखज- न्यश्राब्दबोधविषयदखविषयाचपद निष्ठश्रक्रिविशरेगष्यकलवं, तु तादृश्र- जक्तिविगरेवयदयविषयकालुभवाननगकते सति तादुश्रश्रक्षिविनेग्यातु- भवननकलं, क्भिकनाना विषयकानुभवननकलमादायार्यान्तरापन्तेः, अन्योन्याभाव प्रतियोग्यदन्ति्ीष्यः, तेगोभयान्योन्याभावादिक मादाय ata) 1 थदि चाकाश्रादिपदात्काअ्रयल खाअयला- दिनाः नानाश्रक्तिगहानन्तरं नेकदोभयप्रकारेणान्वयबोधस्तदा वि-

गेव्यपदस्ाने प्रकारपदं गिवेष्यापि साध्यान्तरं बोध्यं, अचेव सत्यन्त-

(४ साध्याप्रसिदिरूपो दोषः `

WRIA तात्पग्धेवादः RRR

भावयति रकपदोश्चार णत्वात्‌ धटपदोश्ारखवत्‌ |

न्क

पदे a तश्यापि भिषेश्ः काम्ये दति “एकपदोच्चारणलादिति एकाचपद विषयकश्चानला दित्यः, श्रन्यया साध्ये विभरि्याख्पदोपा- दानाद्यभिचारापक्तेः, साध्ये हेतौ शाचपदश्यसे anand fate सामान्यतोव्यात्िरवसेधा, तेन चटपदोचारणएद्य दृष्टा्तलविरोधः HATS प्छतेत्यादौ समू हाशम्बमाक्षपद दइयानुखन्धाने व्यमिचार~ वारण्टणय एकेत्थश्पद विशेषणं, पचतावच्छेद्‌ कसामानाधिकरणेन साध्यसिद्धेशदेश्यलाश्च भागासिद्धिनं दोषाय यद्यपयेकाचचपद विष- यकलवं नाखपद इया विषयकले सत्य पद विषयकवं,(९ wey विभौ- लकं waar विभौतकपदाचपद गोचरसमूहाश्म्बने व्यभिचारात्‌, गाणयचपद समागग्रक्यतावच्छेदककपददया विषयकले सत्य्षपद विष aaa) ay क्रमिकाखपद्‌-विभौतकपद न्ानार््या करमिकविभिना- चपटश्चानान्यां वा समूहा शम्बनना नाथे विषयकग्राब्दबोधसचारपद्‌- ज्ञाने व्यभिचारापत्तेः तथापि सखविषयाच्पद निष्ठान्योन्याभाव- परतियोगियदचपदसमानश्रक्धतावच्छेदककं पदं तदधिषयकश्चानावि- शिष्टले सत्यकपद्‌ श्रक्तिविशेव्यनिष्ठसमभिव्याइतपदान्तरशचणणश्चाना- विशिष्टज्ञानत्वं विवक्तं, चरमविग्िष्टाम्तोपादानादशचेण घरं पण्ये , त्यादौ बटपदश्याखे खचणाद शाय घरपदाश्चपदगो चरसमू दा शम्बने

(९) eta वा स्न्तपदेनेति ` (₹% शदछ्पद विषयकन्छानत्वमिति ° | (९) अकच्षपरद विषयकच्चागत्वमिति we |

RR तज्वचिन्तामशौ

व्यभिचारः, श्रन्योन्याभावख प्रतियोग्यदन्निर्गाष्ः,(९ वेगिष्चद्च खाग्यवदितकाशावच्डेदे मेकात्मठन्तितव, खाग्यवदितलच सखचणपूवा- कलरच्चणजथसाधारणं( तेन यचानुभवसामय्यादिप्रतिबन्धकवगेन विनष्यदवस्थाच्पदस्मरणशादिमौतकादिपद सखत्थात्मिकाश्पदान्तर-

खव्याल्मिका वा श्रलपटार्थस्मतिस्ततोविभौतकादिपदाथंद्धतिखषतो मिखिला शाब्देबोधोपधानं तजाखपदश्चाने व्यभिचारः, afa- लाचपदश्चानाविगिष्टलेनापि विशेषौ, तेनेकश्येवाखपदश्च क्रमे- aera यज मानाय विषयकः श्ाष्दबोधसज ग्यभिचयारः। भख तथापि. "अघे warded व्यभिचार एवनेवाणपद श्वाने नानाचबोधादिति वाच्यं तज खरूपेकगरषाभ्ठपगमेन शुप्ताचपद- सरणादेव नानाचवोधात्‌ सखरूपेकगेषं विना नानाखबोधख्छसिद्धः। गं GSN दृष्टन्तलादरोधेन euRt सामान्यतोया- तरिरेवादरणोया तथाच चश सयाथुभयोपखापकपुष्यवन्ता दिपद- wa करणवेकलादिबोधकढतौयादिविभक्िक्चाने व्धमिशार- दूति वाच्यं तन्लतत्पदाविषयकतवे सतोत्यमेनापि श्चानविशेषणात्‌ यदि घटपदोखारणं व्यतिरेकेण gern: अन्वयदृष्टान्तख एक- माजबोधकतयोभयवारिसिद्धमच्पदश्नानं तदा तदिशेषणातुपादा- नेऽपि a खतिः। तथापि कारणान्तर विलम्बेन ay फशविख-

यानान

(र) gay हेत्वप्रसिडिरिवि ara: | (९) auras खव्यवहितत्वं quadafacaqardaafuac- aa सति खप्रागमावाधिकरयसमयप्ागमावानधिकर यातव |

WITT TSU तात्पय्यैवादः | १९५

यदा TRNAS नानाशक्तया नानार्थाननुभावकं

aay व्यभिचार इति वाच्यं श्रच्पदवाच्यभिष्ठतात्पय्याकाङ्कादि- ज्ञानसमवदडितलेनापि विग्रेषणादिति भावः। वरटपदौशारणवदिति एकपरघटपद नानव दिव्यथेः, मामापरघटपद ज्ञानष्य पक्समलात्‌, "धदधेति,' अ्रचाशपदमेव Te, साथे "मानार्थं ति खरूपकथने, नाभा- ्याननुभावकल्वमानं flafed, सतानरुभावकलमाच् ara शअरनुभावकेऽग्रतोभा ध-वयमिचारावतः ‘amet Baar त्यथः, saat wea पदस्थान्वयप्रतियो गिपदार्थान्तर विधयकाु- wana तेदोषतादवस््यात्‌, शक्रिपदं शक्यतावच्छेदकपरं, तेनेश्वरेच्छारूपायाः शक्रेरेकतवेऽपि a चतिः, प्रकारत्वं ठतौया्थैः, तथाच सौयनाना्रक्यताव्च्छेदकप्रकारकानुभवजमकल्वाभावः शाध्यः, तथाच यावन्ति श्रच्षपद शक्यतावच्डेदकामि प्रातिखिकरूपेणोपाद्‌ाय भत्येकं खश्रक्यतावष्केदकग्ततस्मकारकालुभवजेनकत्वे सति तदित- रख शक्यतावच्छेद्‌ कप्रकार कानुभवजमकलाभावकूटः साध्यः खमूहाल- म्वनरूपेवानुमितिः, तादु श्रविशिष्टाभावकरूटलमेव वा साध्यतावच्छेद्‌- कमिति तु निष्कैः तादृ श्रानुभवजनकलश्चाेणाचं पश्येत्यादौ अचपद इय विषथकसमूहांग्नमे प्रसिद्धं, एकखेवा्पदस्थाटश्यादि- क्रमेणानेकाथेमोधकलात्‌ शन्नामकारणएतावादिमये पद ख्यामनुभावक- arg बाध-यभिशार-सिद्ध साधन पन्निरित्यत उक "एकनोश्चारण- दति खमारविषयकन्ञानसामान्ये इत्ययः, तादृश्रविशिष्टाभाव-

ooo’

५९) खेमाच्रविषयकनश्वागमादायेत्ययं इति we, me |

` ४१६ तज्चचिन्तामणौ

नानार्थत्वात्‌ . रकपरनाना्थेपदवदिति सेत्‌ न} अनेकार्थातुभवसामग्रौसश्वेन बाधितत्वात्‌ सामग्रौ- विर्स्योपाधित्वा्च | अतरवामानयेत्यक्ते firs वत्‌ख्लमाचविषयकन्नानसामान्यकमिति तु फलितायेः, षामान्यपदोः पादानाख ताद्श्यत्किथिरेकश्चानमादाय atu: सिद्धसाधममर्था- न्तरं वा, WAUTS पश्तौत्यादौ समूदाखम्बनात्मकपददयानुषन्धा- ममादाय व्यमिचारवारणाय खमाज विषयकेति, खमाचविषयकलन्तु . aufafara निष्ठान्योन्याभावप्रतियोगिपददटन्तिन्नाना विचिष्टलं, तेमाचेण विभौतकं प्येत्यादौ विभौतकपदाशपदगो चरषमूदाल- म्बममादाय व्यभिचारः वा WAU घटं प्ेत्धारौ HITE खलच्णादशायां चटपदाच्पद गो चरसमूदाखम्बनमादाय व्यभिचारः, weed yaa) “मानाथेलादिति यावग्ति अपद शक्यतावच्छेद्‌- कानि प्रातिखिकूपेणोपाटाय प्रत्येकं तदवच्छिशश्रक्रिकले षति तदितरधम्भावच्छिलग्रक्रिकल्व हेतुः, समृ दालम्बनः परामश :, यत्तद्भ्धां waranty, पुष्यवम्नादिपदान्यलेन farqure तच व्यभिचारः एवं श्य पदस्य विवक्ितं श्ानमप्रसिद्धं तदन्यलेनापि विशेषणे यमिति भावः। “सामो विरदस्यः नानार्थातुभवषामग्यसमवदडित- awe) “अतएवेति एकदा एकस्मात्पदादनेकाथेबोधसामयौषत्वा-

(९) arate dente: समवहिवलसयेन्तः पाठः ०, एरक- इये गास्ि |

शब्दाख्थतुरीयखे तात्पथेवादः | RRO

प्रकरणादिना fire तात्पयप्रमायां भ्रमे वा प्रति- पाद्ययोरेकरैवाहत्तिं विनानेकाथप्रतौतिनं तु तचेको विलम्बते, wi घटं पटं वा श्रानयेत्यव्ानयनस्योभय- परत्वे WHATMAN cael वाक्छभेदस्चर्थ- भेदात्‌ ATARI | गङ्गायां जलं घोषश्च प्रति- AMMA गङ्गापदस्य युगपतप्रवाह-तौरयो्तात्पग्धै- ग्रहे तयोईयोरप्येकदोपश्ितौ जल-घोषयोरेकटैवा- म्वयबोधः। यगपद्टत्तिदियापत्तिः, Ee,

देवेत्ययः, प्रतिपाद्यः" अचोः, तथाच यथा नानापुरूषस्य एकदा नानार्याुभवस्तया एकस्यापि श्रन्यया लाघवात्‌ एकदा मानार्थान- मुभावकल्युत्स्या मानापुरुषस्यापि स्मादिति भावः। ्रान-

eae’ श्रानयनप्रतिपाद्‌ कपद स्छ,९ “उभयपरवे' उभयव्यक्रिपरत्व- | uy) नन्वेवं भिन्नवाक्ताव्यवशारो स्यादित्यत आर, "वाक्येति वाक्यभेदव्यवहार स्लित्यथेः, “श्र्ेमेदादिति, तु ज्ञामभेदादिति भावः। ‘aff ठत्तिद यन्नामख्य शाब्दबो धजनकतापल्तिः, दृष्टत्वादिति मुख्यार्थातुभवषामयो-लच्चार्यानुभवषामग्योः -खत- तिपच्वत्‌ परस्यरविरो धिते मानाभावादिति भावः | wad यष्टीः प्रवेशयेत्यादौ सुख्यार्याग्वयानुपपत्तिविर हस्ले जच्यायग्राब्दमुद्धि-

` (९ तिषतौग्यथेति ae |

(९) ष्यागयनस्ये्यत्र ानयनपदस्येति पाठः चसखष्लव्धमूलषुस्तक भये वसत ते | 43

दे ` तश्वचिन्तामयौ

तात्पर्य्याडि afer, तु उत्यनुरोधात्‌ तात्प, गौण- लाक्षणिकयो शुच्छेदापत्तेः तात्प्यैनिर्वा दार्थ इत्तित्वेन

[ग

नि OS

दश्रायां नियमतोजुश्यायेग्राम्दबोधापत्तिः SAUTE: गरक्यसानन्धा- MAT लच्णा-णच्या्योरुपस्थितिकाले शक्रि-शक्याथयोरवश्च- qufaafcaa are, ‘arqargifa तात्पय्न्नानषहइकाराद्धौ- व्यर्थैः, “उन्तिरिति, शाष्दवोधोपधायिकेति शेषः, तथाच qe तात्पथ्श्नानाभावद्‌भरायामेव शच्छायमाजध्राब्दबोध इति भावः, wa sfameariaa तत्पर्यश्नानख्यापे चितलादन्यतः सिद्धे इत्ति- भाने तात्प्यन्ञानसत्तमफिचित्‌करमिव्यत are, ‘a लिति, 'टत्यतुरोधात्‌" त्तिन्नानातुरोधात्‌, ‘are’ तात्पर्न्नामं, अपे- , चितभिति शेषः किन्तु शाब्दबोघड्ेतुतयेति भावः श्राष्दबोध-

हेतुत युक्तिमाह, "गौ ण-लाचणिकियोरिति चबं पश्च यष्टौः wa .

श्रयेत्यादौ सुख्याथान्वयानुपपन्तिविरइस्ले गौणए-लाकणिकार्थं- शाब्दबोधयो रित्यथेः, सु ख्याथानुभवसामयौ- लच्यार्थातुभवषामय्योः सतप्रतिपच्वत्‌ परस्पर विरो धि्ववादिमस्तवेति शेषः, “उच्छेदापन्ते- रिति तात्पय्येन्नानस्य श्ब्दबोधाडेतुतया gerd arqatea- ऽयुभयारुभवसामयोसखत्वादिति भावः। मतु भवत्येव तज लाच कार्थगश्राब्दबोधः किन्तु गङ्गायां चोषष्त्यादौ aw सुख्यार्थान्वया- quam ava लाचणिकार्थबोधद्त्यत wre, "तात्पयंनिग्वीः wifafa qardawed तात्पय्येविषयलच्यार्थान्वयवोधार्थमि- व्यधेः, ‘afaay शान्दबोधकारणोतन्नानविषयसम्नन्धतेन, "तयोः,

WTR तात्पम्येवादः BRE

तयोः RTA | मुखय-लाक्षणिकयोरेकैकमाजपरत्व तु युगपदुत्तिदयविरोधः | अनेकाग्वयबोधपरण्वे ठति इय विरोधस्य दोषत्वे परिभाषापक्तेः, यच सुस्यार्थे शोध्र- त्वेन प्रथममम्बयबोधः अनन्तरं लाक्षणिकाभ्वयबोधः तचादत्तिरेव तस्मात्‌ युगपत्तात्ययग्रहे सति नाटत्निः किम्यनेकाथपरत्वे सत्येव यच तात्पय ग्रहक्रमादन्बय- बोधक्रमः aqeta प्रधमोज्चारणस्य पय्येवसितत्वादि- ति। रवश्च लोके qr वेदेऽपौदं तात्पय्येमिति

तस्य पौरुषेयत्वं

गौ णौ-तदितरलणयोः | ^एकेकमाजपरले तु" एकमा बपरलग्रहे तु, “इन्तिदयविरोधः' टस्तिदयन्ञानस्य शाब्दबोघधजमकलाभावः, | “परेः ` परग्रहे, “इन्तिदय विरोध्य विरो धिडत्तिदयश्चानख, ` “दोषल परस्परफलप्रतिबन्धकत्वाभिधाने, "परिभाषापत्तेरिति az- भिधान खश्रास्तमारपरिभाषापत्तरित्यवंः, "पौ चलेन" मथमोपखि- त्वेन, ^तज्राटषिरेवेति, प्राथमिकपदन्नागसख्छ गषलादिति भावः | “तात्यय्येपरदक्रमा दिति शब्दसामथ्यन्तरस्याण्यपलकणं, श्रयमोचार- we’ प्रायमिकपद ज्ञानस्य, “पय्यंवसितत्वादिति मष्टलादिव्ययैः, “इदं तात्पय्येमिति व्ृरिच्छागभेतात्पय्येमित्यथेः, ग्ाम्दप्रयोजकमिति षः, ‘aw वेदस्य, “पौरुषेयतलमिति पुरुषप्रणौतलमित्ययैः, तश्च पुरुषकष्ठा दिभन्यत्वं पुरुषप्रयल्नजन्यलं वेति भावः |

meg तात्पर्य्यानुरोधाद्षेदस्य पुरषप्रणोतलं तयापि निल्यन्ना-

३8» तक््वचिन्तामणौ

: - अच मौमांसकाः wena wa वेदे wat तथा तात्यग्येमपि तात्पय्यपु्वकमेवेति

भादिमव्रणोतलन्तु\ कुतः पू्वपूव्वाध्या पकपरन्परापर्टौ तलेनेव तद्‌- पपन्तेरित्यमिप्रायेण शङ्कते, “श्रजेति, “मौ मांसकाः' Gace बेदकटंला- मभ्युपगन्तमौ मां षकाः, 'उश्चारणपूल्यैकलादिति बजातोयोखारणषा- Dears, सानात्यञ्च VTA Ae, उश्चारणं नानं, तत्छा- , -पेखलश्च reper साचात्परण्परथा वा rater, ‘eer रणं बेद इति करणापारवाद्यजन्यं बेद ख्टोच्चारणमाबमित्यथंः, उच्चा- wwe तदतुक्ूलकष्ठा्चमिघातः तदलुकूलप्थन्नो वा, "परतन्त्मिति अजांतोयोश्चारणानपेचं यन्तदन्यमित्धथैः, wae घाध्या दिगरेषापत्ते, ‘wag arate खमते दृष्टान्तः, नैयायिकमते ईैश्रोय- वेदोच्चारणदेव सजातौयो्ारणसापेचनाभावादाक्याधंननानं ततो- वाक्याथेमरतौतीच्छा ततोवाक्यार्थ्रतौतिषरूपेष्टसाधगतान्नानाद्ाक्ये- च्छा ततो वाक्यरूपेष्टसाधनतान्नानात्‌- कण्टा्यमिघातादौ प्रय- नस्ततः कष्टाद्यमिधात tf क्रमेणेश्वरौयकष्डाद्चमिघातादेः an यत्नस्य वा तज्नन्यवाक्या्न्नागप्रयोग्यलाभावात्‌ परनयेऽपि वाक्यायेस्मरणधोनवेदोचारण्श्छ शटुकौयवेटोच्चारणस्य यथो- करमेण अजातो योद्वारणजन्यवाक्यार्य्नानप्रथोच्यलमिति वाच्यं | खूतिखलेऽपि खरणस्येवावश्ं साकात्परम्परया सजातौयोच्ारण- |

(९) ईशर प्रणौतत्वन्त्विति wo |

श्ब्दाख्यतुरौयखद्े तात्यग्यवादः | १४९ |

परतन्त्रं तु कस्यापि प्रधमं तात्पर्य अनादित्वात्‌ पुवपूवेवाक्यायन्नानेच्छयोचार णमु पजौव्याभिमाग्रिमस्य तदिच्छयो्ारणात्‌ तदिच्छया तदुश्चारणमेव हि तत्‌-

परत्वं लोक-बेदसाधारणं, AT चेच्छा Aaa परतन्त्रा

` जन्यवाक्यार्थाजुभवापौनवेन परम्परया प्रयोख्यलसम्भवात्‌ शएकख्या- QA MATA गोचरे च्छा दिक्रमेण वेदोच्चारणं wT ATA- वत्‌ शिकस्यानुपूवौप्योगाधोनं, तस्यानुपू्वीं प्रयोगा वश्व साक्ात्य- रग्परया सजातौयो चार णजन्यवाक्याधेन्चामापौन दति तचापि परण्परया प्रयोज्यत्वसम्भवादिति भावः। नतात्य्थेमपौति वेद गौषर- तात्पय्येमपौत्ययेः, ^तात्पय्यपूव्वेकमिति सजातो यगो चरवकतात्पय- भ्ञानसापेचमित्ययैः, सापेचत्वश्च पूर्व्ववत्‌ तष्नन्यवाक्यार्थन्ञामस्य साक्ा- ` त्परम्परया प्रयाज्यतल, “परतन्तरमिति सुजातोयगोचरवकतात्पय्यै- ज्ञामानपेकंयत्तदन्यदित्यथेः, “कस्यापि azag:, श्रयममिति सभातोयगो चरवक्गुतात्पय्येन्नाननिरपेचमित्ययेः, ननु सर्गाद्यकाशौ- नवेदवक्तुतात्पय्ये्य खजातौयगोचरवक्षतात्पय्ेन्ञानसापरचलमनुपपन्न- मित्यत श्राह, श्रनादिलादिति सगेविच्छेद्‌रदितत्वादित्यथेः,९ “पूव्वपूर्ववंति Parana, ‘sna वाक्यार्थ॑न्नानदारा

उपजोष्येत्ययेः | नमु खतन्त दि च्छयोश्चारणमेव तत्परं कथम- | ध्या पकतात्पर्थण भिर्वाद्यमित्यत are, 'तदिश्छयेति, "लोक-वेद-

(९) सगं विष्टेद विरहादिति wo |

४२ " ततत्वचिन्तामणै

वेति कथिदिभओेषः, तदवधारणष्वानादिममीमांसा- परि थाधितन्यायादेद इत्युभयवादिसिद्ख, अतस्तात्य- यानुरोधेन बेदस्य पौरुषेयत्वं | नन्वथेन्नानं विनो- छरितवेदात्‌ कथमथैधौः वाक्धाथन्नानं विना तदिच्छ- योश्ारणाभावात्‌, प्रतिपुरुषमुच्चारणमेदादिति चेत्‌, तिं पयमानभारतादपि तथामूतादथैपीनं स्यात्‌ व्यासेन यतप्रतीतौच्छया GATY छतं तज्नातौयत्वात्‌ wana विनापि पदमानभारतादथैधौरिति चेत्‌, afe वेदेऽपि qe, तत्तात्पथैकजातौयत्वस्य निया-

शाधारणमिति, शाब्दप्रमाप्रयोजकमिति ste, लाघवादिति भावः, “वतन्त्रेति सजातौ यगोचरवक्रतात्पय्ये्ाननिरपेचेत्यथेः, “परतन्त्ेति त्छापेचेत्यथैः, “्रनादिमो्मांसा' लाघवादिन्नानात्कतकंः, "परि- द्नोधितेति wea: ‘wa’ wea, "पौरुषेयत्वमिति नित्य- ज्ञाना दिमत्रणोतलमित्यथेः। यद्यपि तकतेऽप्रषिद्धिस्तयापि बेद- वक्ुस्तात्पय्यसय नित्यलमित्ययेः “aim विनेति waryaty e तादित्यथेः, “श्रथंषौरिति विगरेषद्‌ भिगोऽधोरित्ययेः, 'तदिश्छया' वाद्चार्धज्ञानेच्छया। नतु पुरुषान्तरस्य तद्चाक्यार्थप्रतो तच्छा ATA एव तदिश्छयेवोश्चरितोऽयं वेद इत्यत श्राह; श्रतिपुरूषमिति, 'उद्चारणमेदात्‌" वाक्यभेदात्‌, ‘Any way विनोश्चरि- ` तात्‌, "तव्लातौ यला दिति, खाजात्यमा नुपू्यां faafad, वदे" तथा-

प्म्दाख्यतुरोयखयेे तात्यय्यैवादः ` Ra

मकत्वात्‌ अन्यथा पच्यमानवेद्‌ात्तवाप्येथधौन स्यात्‌ शराप्रणौतत्वात्‌ श्रथ वेदः पौरुषेयः वाक्यत्वात्‌ भारतादिवत्‌ इति चेत्‌, को वेदः, अतुगतधरम्माभावेन तस्य WAY नानाथेत्वात्‌, तथाहि मुख्यबेदपद- प्रयोगविषयोषेदः मुख्याथाकथनात्‌। नापि शखा- समुदायः, तस्य बेदनिरूष्यत्वात्‌ समुदायस्याप्रति- पादकत्वेन वावयत्वासिङधेख। नापि खगंकामादिवाक्ष

1

waae, "पययमानवेदादिति शएक- मूखादिपयमानवेदादित्यथैः, ‘aa’ Fearne नतु मम शवरोयवाक्यायेप्रतोतोच्छामादाय तजच्ोप- प्निरित्यत are, शरेति, प्रतिपुरुषं वाक्यभेदादिति भावः A ema aaa fag श्रयं सिद्धमेव तात्प्यैख्यापि खातश्व्यं खतन्ोञ्चारणएव्यक्रिमूलग्धतवाक्यायप्रतोतौच्छाव्यक्रेरेव खतन्तवादि- aimee ena साधयितुं wet, श“श्रयेति, ‘aac: किं Az, ‘qufa, प्रयोगः" af, तथाच ger या | बेदपदटृन्तिस्तदाश्रय wae, वेदपद शक्यत्वमिति तु afware:, जक्यतावच्छेद कन्नानं विना शक्यशक्रिन्ञानं सम्भवतोत्यभिप्रायेणर्‌, “सुख्यार्यंति शअ्नुगतश्रक्यतावच्छेदकश्ञानाभावादित्य्थः, | 'नापौति, aay “वेद्‌ दत्थनुषच्चते, "तस्येति, बेदेकदे शस्य शाखालादिति ara: | चरन्वयागुभवोपधायकलं ` वाक्यलमित्यमिप्रायेणाड, (समुदायस्येति, “अप्रतिपादकवेनः श्रन्वयानुभवातुपधायकवेन, “श्रिद्धेखेति श्रसुप- धायक्यक्ौ भागासिद्धेखेत्यैः, यद्वा यासन्यट्त्यधिकरणएताकाभाव-

888 ` ंच्वचिन्तामणौ

सृति-भारतादेरपि तथात्वात्‌ नापि सन्दिग्धकवेक- वाक्धं, वादिनोरनिंश्चयात्‌। वाद्यनुमानयो सुख्यत्वेन मध्य- wa dna दति चेत्‌, तद्यीनुमानाभ्यां तस्य संश्यो- मध्यखसंशयप्रभ्रानन्तरष्बानु मानभित्यन्योन्याश्रयः नापि विवादाध्यासितं nal, अरतुगतधम्प विना वि- वादस्याप्यभावात्‌ भारतादावपि aqaarare | नापि

~ क, =

manag, तथाच खरूपासिद्धेखेवयेवाधेः। “खगेकामादौति wez- तदुपलौविप्रमाणातिरिक्षप्रमाणए्जन्यप्रमिल्य विषयाथंकवाक्य मित्य 'खन्दिग्सेति अन्दिग्धपौ रुषेयलक्ेत्यथेः, निश्चयान्‌" अन्यतरकोटि- गिखयात्‌, "वाद्यनुमानयो रिति पौरुषेयलापौरषेयलखाधकवाद्तु- ` मानयो रित्यर्थः, 'तुख्यनेनेति, श्रप्रामाष्छसंग्रयादिति गेषः, "मध्यस्स् ara इति तश्जन्यको रिदयस्त्या WIIG मानसः संश्रय इत्यर्थः, “श्रतुमानाभ्यामिति, कोरिदयस्व्येति गरेषः, संधयपरश्नानन्तरमिति- mitment: पक्तावच्छेदकज्ञानं विना श्रतुमाना- सम्भवादिति wa इदमुपलक्षणं भारताद्‌वपि कदादित्‌ तादृशसंग्रयसम्भवेनां ग्रतः सिद्धषाधनापन्तिरित्यपि बोध्यं 1 "विवा- देति मौमांसकानामपौ सषेयलप्रतिपत्तिविगरेवयतमित्थषेः, “अनुगत- ud विनेति wana विग्रेव्यतावच्ेद कं विनेत्यथेः, “विवाद स्येति शपौरुषेयतलप्रतिपत्तिविगेग्यलस्सापोत्यथेः, “श्रभावात्‌” श्रनुगतला-

. ee ककमा दक ककम ककम @ sesocese = ° = = Oo पी

(९) तावतापौति ae |

प्ब्दास्यतुरौयखश्ये तात्पर्यवादः | Rew

महाजनानां वेदाकारानुगतष्यवहारात्‌ Feed जातिः, देवदसोयत्वाद्यसुमापकशब्दहत्तिजातिभिः सङ्धरप्रस- करात्‌ | few पौरुषेयत्वं तद्थेधौजन्धत्वं तदु्चारण- धौप्रभवत्वं वा, अध्यापक-तद्भयधौजन्धत्वेभ सिद्ध- साधनात्‌ नाष्यश्वारणस्य सादित्वं, प्रतयु्चारणस्य सादित्वात्‌। नापि खतन््पुरुषप्रौतत्व, पद भानवेद्‌-

भावात्‌, angyfare विग्रेयतावच्डेद कलेऽपि विशे धतावष्डेद्‌क- ध्षोभेदेन विगेव्यतामेदादिति भावः। भमु तादृश्प्रतिपत्तिविगेष्य- तालेनाजुगम इत्यत श्राह, भारतेति, ‘aantaarafa, इदमा- पाततः तादृ ग्रजातौनां काय्येताव्रष्छेद कतया भनाव्वेऽपि चतिविर- हात्‌ वस्तुतस्तु वेदत्वे जातिः प्रत्येकवणेपरिषमाप्रा, व्यासच्यटत्ति- वा, Me प्रत्येकवणंग्रडेऽपि तप्प्रत्यशापत्तेः। पू्वेपूथ्वर्णाजु- भवजसंस्कारवदते श्ियवे्या चरमवणेटस्िरिति are) चरमवर्ण- तिरि्षकखवणेगरेऽपि तदग्रदात्‌कलादिगा साङखय दुवो रत्वा नत कल-दखलादिग्याणं मानेति are) श्रसुगतलासुपपन्नेः। दितषैयः, जातेरतथालादित्येव adi साध्यं विकण्पयति, “किञ्चेति, तदर्थेति बेरार्यत्य्थेः, तदुश्ारणेति Feral विगरषेत्ययैः, 'सादिलमिति तथाच साचयुश्चारणजन्यवं खाध्यमित्यथेः, ‘afer’ प्रागभावप्रतियोगिलव, छच्चारणं कण्ठाद्यभिघातः, श्रत्यु्चार णष्येति छचार णमाबरष्ेवेत्ययेः, तथाच सिद्धसाधनमिति भावः 'खतन्तेति

घजातौयोच्चारणानपेचवक्प्रयन्नजन्यलमित्ययेः, श्रतः "नापौत्यादिना 44

, १४६ , तक्वचिन्तामणौ

,भारतयो स्तदभावात्‌ | तज्नातौयः खतन्त्पुरुषप्रणैत- ‘gf चेत्‌, ` तहिं पदमानभारतं व्यासस्य ममेति कथं स्यात्‌, Saas यद्य्चार णशव्यक्लै तदा ममा- -ष्यच्ारणसामान्ये व्यासस्यापि fas सखतन्ल्पु-

| | अगरेतनेन पौनरक्वं, "पद्यमानेति, तचार्थाश्रतोबाध-यभिवारा- fafa भावः। 'तव्नातौय इति, तथाच खतन््पुरूषप्रणो तजातौयलं arafafa भावः तरंति प्मानभारतसख् खतन्छपुरुषप्रणोत- -जातोयलं वदता तत्‌ खतन्तरपुरुषप्रणोतं भवतोल्युक्कं भवति, तथाच पद्यमानभारतं Beals व्यवहारो aq तदौयलव्यव- wet प्रति सजातोयोच्चारण्नपेचतदो यप्रयनजन्यत्वस्य नियामकलात्‌ gu’) साखात्यरम्परया तदोयप्रयनप्रयोज्यलमेव तदोयलव्यवदार- नियामकं तदा ममेति वहारः कथं स्यादित्ययः। साजा तन्तद्यक्िलेन विवक्तं mega वेति विकल्प्य दूषणान्तरमाह, “सखातग्व्यञ्चेति खातम्व्यघरकसाजात्यनिरूपकतचेत्यर्थः, "उच्चारश- ्यक्षाविति तद्यक्तिले इत्यथः, “ममापोति ममापि बेदारुकूलयननः खजातोयोच्चारणनपेच इत्यथः, तचाचासदादिप्रयन्नमादाय fag- | साधनमिति भावः। डञ्चारणषामान्य इति शब्दले इत्यथः,

व्यासद्ापोति ब्याद्यापि भारतानुकूलप्रयनः खजातोयोच्चारण- ave: वेदोश्वारणसापेचल्वादित्यथेः, तथाच व्यभिचार इति भावः। ag साजात्यमातुपू्यां विवक्ितमित्यरुचेराइ, “किंचेति, “wat

, - ५५ अयेव्यस्य attra .

प्रम्दास्यतुरौ यखग्डे तात्पर्यवादः | ३8

रषप्रणौतजातौयत्वं यदि साध्यते तदाद्यभारते Tar वाक्यत्वमनेकान्तिकं, हि तज्ज तौयं स्वतन्त्र पुइष- प्रखोतमस्तिं | श्रथ खतन््रकतसजातोयं . खतन्त पुरुषः प्रणौतमिति साध्यमनिधारितविरेषं नौवौ क्षिः दस्तौति वदिति चेत्‌ न। पद्यमानभारते व्यभि SUIT! WATT प्रतौत्य तद्र्थपरतया प्रतिसन्धौय- मान पदत्वं पौरुषेयत्वं तस्य प्रथममावश्यकत्वात्‌, अत-

सेति श्राद्यस््रतौ सेत्यर्थः, ‘a fe तल्नातौयमिति, तत्पर्वमिति ओषः, तथाच aay भेदघरितलात्‌क्रप्रत्ययस्य चातौतायंकलाद्म- भिचार इति भावः। नतु बेदजातौयं पत्तः सखतन्तपुरुषप्रणौ तल साध्यं पर्तावच्छेदकसामानाधिकरण्येन साध्यसिद्धिरुदेस्या श्रत: पद्यमामवेदे anata cared, “श्रयेति, 'खतन्तरतसजातौ- यमिति वेद्सजातौयमित्य्ैः, “इति साध्यमिति दतिः पच्ताव- च्छेदकसामानाभिकरष्येनानुमेयमित्य्ः | ननु `सर्गाधकालोनोवेद्‌ः ae इदानौन्ततमोवा, sre आश्रयासिद्धः चरमे बाध इत्यत om ‘afagifcafanafata अरविषयौलतपच्मिष्टविगरेषमित्य्ैः, वेदलेनेव पशत्वादिति भावः। श्च साधनक्रिया विग्रेषएलात्‌ दितीया, "पययमानेति, श्र॑श्तोबाधाभावेऽपि व्यभिचार इति aa: | ‘safa, शश्रथे प्रतीत्येति खशूपकयनं, तदयंपरतयेति खा्ेपरती- तोच्छयेत्ययेः, (तस्येति खार्थप्रतौतौच्छारूपस्य तत्परवस्येत्ययः,

== ~~ ~ a TEE oe

(९) gafaatfcafattea साध्यमिति कम, खम, To |

` १8८ वस्वचिन्ताममौ

शवानुश्चारितोऽपि मोनिक्लोकः पौरुषेय इति चेत्‌ 1 अथैन्नानवताध्यापकेन तसिडसाधनात्‌, अन्यथा पदयमानवेद-भारताभ्यां व्यभिचारात्‌ अतर वेदत्वं सखतन््पुरुषप्रणौतटत्ति वाकाटत्तिधम्येत्वात्‌ भारतत्ववदिति निरस्तं खतन््प्रणौतत्वं fe वा- क्धाथैगोषरयथा्थन्नानविश्यापयिषयोश्चारणं तथाच तथाविधाध्यापकेन सिद्धसाधनं | एतेन वक्रुत्वानुवक्तु-

“शत एवेति उश्च रितत्नसुपेच्छ प्रतिषन्भोयमानत्ोपादनारदैवेत्यथंः | गतु षलातोयो वारणागपेचवरूपेण Garay प्रतौतो च्छा विगरेष- पौयेत्यत we, “श्रन्ययेति खातग््य विशेषणप्रकेपे इत्यथः, "पय- मानवेदेति, tq पमेऽपि व्यभिचारस्य सन्दिग्धानेकाम्तिकतया दोषलनये, ‘savy’ सिद्धषाधन-व्यभिचषाराग्यामेव, "वाक्येति योग्यता विगिष्टवाक्येत्यथेः(९), तेन साध्यस्य यथाथेत्रघरिवलेऽप्यथोग्ध- वाक्यट्न्तिधम्मं व्यभिचारः चिख्यापयिषया' जननेच्छया,(९) ` 'तथाविधेति अर्थ्नागवतेत्यथेः, SHENG खातश्त्यणेच्छाविगेषणे त्‌ पद्यमागवेदादिटृन्तितदेदव्यक्गिवादौ व्यभिचार इति भावः। “एते- नेति पञ्चमानवेद-भारतयोव्येमिषारेफेत्यथेः, ‘amare रिति, खनातोयष्वंसाव्यापयाच्चारणकदलं वकुं, तद्याप्योखारणकटेलमनु-

(९) योग्यतादि्टितवाक्धे्थं इति we | (र) वाक्यां ज्लानभननेग्येति we |

श्ब्दाश्यतुरौ यणे AAA! | Ree

त्वयो मदस्य लोकसिद्धत्वात्‌ wad साध्यमिति निरस्तं नापि सजातौयोश्वारणानपे्ोश्चारणं पोर- षेयत्वं पदमानवेदे बाधात्‌ भारते व्यभिबाराञ्च। उच्यते, शब्द्-तद्‌ पजौ विप्रमाणातिरिक्तप्रमाणजन्य-

amafafa भावः | Vz wiafegerfefa, तथाच नाध्यापा- केन सिद्धसाधनं we वक्ूवाभावादिति भावः। सणातीयेति षजा- तौयस्य थदुश्वारणं भानं तदनपे तदप्रयोच्यं यदु चारणं कष्टाच भिघातसष्बन्यलमित्य्थः, wa aoa शाध्यमिह ताद्शकष्टा्भिघातजन्यवमिति भेदान्न TAT, साजात्यमानुपूव्य विवितं, प्रयोन्यतश्च खजन्यवाक्यायन्नान-तदिच्छा दि दारा पूर्वी कमेण बोध्य, "पद्यमामवेद इति, पचताच्छदकषामानाधिकरण्छेन ` साध्यसिद्धशरेश्यवे यभासदाटीगां वेदसमानानुपूर्वीकं are करणटापाटवादिना देववश्सन्पन्नं तर्जां शतः सिङ्कसाधनमिति भावः, fa वेदलमिति पचतावच्छेद कप्र्न समाधन्ते, “शब्देति wearfafin श्रष्दोपजौ विप्रमाणातिरिक्षञ्च यत्ममाणं तव्छन्यप्रमितिविषयार्थेको- ugg aff शब्दजन्यवाक्धार्थ॑न्चामेमाजन्योयः. प्रमाणश्रष्दस्तत्व- fare, तथाचेदमेव पदतावच्छेद कमिति भावः च्च व्याशादि- चाघुषा दि प्रत्य्जन्ये दृष्टायथंकभारतादौ दृष्टाथकायुकवंदादौ चाति- व्यातिवारणय सत्यन्त, इत्यश्च तदुभया तिरिक्र प्रमाणं चचुरादिरेव तद्लन्यप्रमिति विषयायेकतया तयोर्मातिब्यान्निः) भम दृष्टायंक-

Rue > वतत्वचिन्ामणौ

ze छच्छतथा कथं तजातिव्यात्तिरिति वाच्यं परैस बेदला- PAT तस्छालच्छलनादन्यथा तज सत्यन्तप्रतो HAT AAT TIT: aq बेदत्वाभावेऽपि पुराण-वेदव्याख्यानादे रिवाध्ययननिषेधोवाच- निकः शद्रादोनां।

यत्त गेडे घरोस्तौत्यादि.प्रत्यचजन्ये गे हे घटौऽसौत्या दिलौ किक- वाक्येऽतिव्याश्चिवारण्णय सत्यन्तमिति, तलः वच्यमणयु्वा श्रदृष्ट- लनकाष्ययन विष्ये सतोत्यनेनापि विगेषणोयतया aafaarti- विरहात्‌ | 7

प्रमित्यविषयायैकल्माजोक्रावषम्भव इति जन्यान्तं प्रमितिविणे- घण, .शब्दोपजोव्य तिरिक्तमा तस प्रमाण विग्रषणलेऽप्यसम्भवः . श्न्दो- पजोव्यतिरि क्तम प्रमाणेन बेदा्ात्मकग्रष्देन Azria प्रमापण्णदतः शरन्दातिरिक्रलमपि प्रमाणविगरेषणं, ्म्दपद्‌ चच शब्द न्रानपर, ्रन्यया अन्द-तदुपजौग्यतिरिक्रममारेन बेदा्यात्मकगरम्दन्नानेन वेदा च॑ प्रमापणादसम्भवतादवख्ण्यात्‌ शब्दस्य चाप्रमाणलान्न तमादाया- सम्भवः, श्ब्दक्ञानातिरिक्लमाजोक्तावप्यसम्भवः श्ब्दन्नानातिरिक्रः प्रमाणेनालुमानेन वेदार्थस्य प्रमापणदतस्तद्‌भयातिरि क्ृत्मुपान्त; दत्यञ्चासुमानेन साध्यादिप्रसिद्यथे' बेदस्ापेचणान्ञासम्भवः नन्व शब्दो पज विल्वं शष्दजन्यलं व्या्निश्चानादेरप्यतयालवेनासम्भवापत्ते। मापि तनमूलकलं, तयापि चचुरादेदौ पदानादिप्रटत्यादिमूलका- zeae विधिवाक्यमूलकतया तच्लन्योपनोतभानमादायासम्भवाभा- बेऽपि अवणेन्दियजन्योपनौतभान विषयाथेकलादग्या्यापत्तेः श्रवणस्य मित्यतथा श्रवृष्टदारापि श्रब्दामूलकलात्‌ श्रात्म-मनःप्रतिनि्य-

प्रष्दाख्यतुरौयखग्डे AAA! | -३५१

प्रमाएजन्यानु मित्यादि विषयायकतया श्रसम्भवापन्नेख श्रय दितोय- प्रमाणएपद मसाधारणप्रामाणएपरं तेनात्म-मनःप्रतिप्रमाणएमादाय ना- ` सम्भवः, प्रमित्यविषयायक्ेत्यच्र प्रमिति उभयषा दि षिद्धलेन खज- ज्यश्चामसामानाकारलेन -च॒विग्रेषणौया, खपदमन्यलप्रतियोगि- वाक्यपरं तेन अवणजन्योपनोतभाममादाय aah, मवा श्रात्या द्‌ च्छावानात्मलादित्याद्यमुमिति विषययत्‌ किञचिद्के खमकामोय- जेतित्यादिषेदेऽव्याभिः, वा श्रभिषेयं प्रमेयवत्‌ श्रमिषेयत्रादि- त्या दि सामान्यप्रत्या सत्तिजञ्नानमूलकानुमितिविषयाथंकलात्‌(९) श्रस- मावः तयासत्यदष्टस्य जन्यमाबद्ेतुतया चसचुरादेजेन्यप्रमाण- माजखयेवादृष्टद्ारा विधिवाक्यमूलकलतवेम अवणएस्येव शब्दमूलक- -प्रमाणणतिरिक्रासाघारणप्रमाणएलात्‌ अवणायोग्यायकदृष्टायेकभार- तादावतिबयाच्यापत्तिरिति वाच्यं) श्रदष्टादारकशब्दमूलकलस्य faafanaa चचुरादेरपि तादृश्रप्रमाणतिरिक्रासाघारणप्रमाणएतया तष्जन्यप्रमितिविषयायंकत्रेम तचा तिव्याश्निविरहात्‌, श्रदृष्टादारक- श्रब्दमूलकप्रमाणश्च विशेषणएश्चाना दि विधया श्न्दअन्यपदा्चौपयिति- वाश्ार्थाुभवप्रयोज्यानुमानव्यक्रिरेव प्रसिद्धा चेवं मेर्यादिकं श्रष्दजभकमित्यादिदृष्टाथेके भारतादौ aguae afanfe: शब्द न्षाना तिरिक्रतादृ ग्श्ब्दमूलकप्रमाणतिरिक्रासाधारण्प्रमाणएन-

(९) सामान्यलच्तणाजन्धानुमानजन्यानु भमितिविषया्यंकलत्वादिग्यर्थ॑ः, शब्द- मूलकतवव्यावत्तनाय सामान्यलच्तणाजन्येति खभिधे यत्वप्रमेयत्वादि- ` सामान्यलच्तणाजन्धेत्ययेः

४२ | avafarn teat

न्यखजन्यज्ञामममानाकारतदचं विषयकोभयवादिषिद्धप्रमितेरपशिदः शब्दस्य चचुराद्योग्यत्ाद्भेर्यादेख अवणायोग्यलात्‌ मनःप्रश्- aq साधारणलात्‌ अलुमानादे विगरेषणश्नागविधया शब्दशन्ञानजन्य- लेनादृष्टादारकश्रब्दमूलकलादिति वाच्य | शष्दमूखकलपदेन शब्द ठत्तिज्नानप्रयोज्यता विगरेषस्य विवकितलात्‌ तचाचानुमानजन्य्रमि- तिविषया्यंकलादेव तचातिन्यात्भिरिति खेत्‌। तादृद्रप्रमा- णातिरिक्रासाधारणप्रमाणेन बेदनिष्टाकाङ्घादिन्नानेन वेदार्थं श्राब्दबोधनननाद्सभवापन्तेः, आकाञङ्जुगदि न्नानष्याकाङ्ारिखिङ्ग- कालुमितिकर एतेन विनश्यदवश्तथा धारावादिकदितौयग्राष्द- बोधकारणवेन चाघाधारणमरमाणलवात्‌, MUTA प्रमिति- विगरेषणे शब्दशन्नाना तिरिक्तस्य वेयथ्यप्रसङ्गात्‌ अथ यष्न्यख- लन्यन्ञानषमानाकारश्नानसामान्यं षाकात्यरन्परयातिपरन्परया Wy- ्टादारकश्रष्दशन्ञानजन्यश्चागप्रयोच्धं AM श्ब्टोपजो विप्रमाणत्व, खप- दमन्यलप्रतियो गिवाक्यपर, सखजन्यन्नानसमानाकारलश्च BIT यर uw येन येन रूपेण दय्‌ विषयौकरोति तज ay तेन तेन पेण तन्तदवगाहिलं, इत्यश्च मनसोऽपि वेदखले तदतिरिक- प्रमाणत्वं मनसा वेदा्थेगोचरानुभवजननेऽवश्तं षाखात्परम्परया अतिपरन्परथा वा वेदज्ञानजन्यवेदा्यन्नानापेचष्णत्‌, एवं बेदनिष्ा- काङ्कदिश्चानमपि तदतिरिक्प्रमाणं तेनापि बेदा्ेगोचर भाब्ट- बोधजननेऽवण्ठं शरब्द न्नानजन्यपदाएयौपल्थितेरपेषण्णत्‌ एवं कमेणात्म- मनोचोगग्ररीरादैरपि वेदसे तदतिरिक्रममाणल्े, लौ किक- वाक्य-दृष्टा्थकभारतादि श्वे लौ किकवाक्य-भारतादिन्नाने तश्लन्य-

णरब्दाख्यतुरौयखरछे AYA | ६५९ `

पदा्थपस्धितिवाक्यार्थानुभवमूलकामुमामग्यक्रिख तादृशं wary’) प्रसिद्ध, चचुरादिमा कदाचित्‌ इृष्टाथेकभारता दिअन्यन्नानखमाना- acest विगरेषवएश्चाम विधया श्ामलखशप्रत्यासन्तिविधया वा ATEMANTA दि न्वानजन्यन्नानापेचफात्‌ तादृग्रभारतादावतिगात्ति- रतः सामान्यपटोपादाग,५) चचुरादिजन्यन्नानसामान्यद्य शब्दन्नाम- प्रयोच्यत्वाभावात्‌ चचुरादेरपि तदतिरिक्रप्रमाएतंया चचुरादि- लन्योपनोतभानसामान्यप्रत्यासन्तिजश्नानविषयलतस्य AAW रादेरपि तथालेभ तष्छन्याजुभित्या दि विषयत्वस्य aera सल्वाद- awa इति खजन्यन्नामसमानाकारतं न्नानरविग्रेषण, इत्यश्च चचु - रादिभा श्रत्मादिमा at वेदसमामाकारश्चानजमनेऽवश्ं साजात्य Tata AMAIA तेषामपि तद~ तिरिक्रलाभावाललासम्मवः। तयापि सवश्यान्यथातुपपक्या यो गजधमोख्यापि निर्विंकल्पकजमकतया योगजधश्मेअन्यबेदाथेगोदर- ्ञानात्मकोपगयसरका रेण चुरा दिअन्यवेद जन्नानसमानाकार ज्ञानस्य सामान्याश्तगेतसख्य गशब्दन्चानजन्यन्ामो पयो anna”) बेदस्धलेऽपि

(१) ब्द-तदुपजौ विप्रमाशमिग्ययैः

(९ चर्दरादिभन्धकादाचितू्‌कच्चानद्य विग्रेषशविधया शब्दश्चागजन्दच्नान- प्रयोञ्यत्येऽपि विश्ेषणच्चागस्य एन्दडत्तिक्नानभन्यच्चानत्वेन पयोजक- त्वविश्हाव्‌ त्रानलच्यप्रत्यासिविघया णब्दश्चामजन्यच्चागपरयोन्य- त्वेऽपि उमयवाद्यसिद्धक्षानाप्रयोज्यत्वविर हात्‌ शब्दच्चानजन्धवाक्धा- ानुमवसरूपन्नानलच्तश प्रयोज्यत्वेऽपि श्चागलच्तणप्र्यासत्िलच्च णा- लौकिकसत्रिकर्ष॑स्य परेरगभ्युपगमात्‌ सामान्धपदं ella ध्येयं |

(९) शरब्दशन्चानजन्यन्नानप्रयोज्यत्वाभावेनेति Bo, Te | 45

१५९ तस्वचिन्तामयौ

wares निरक्षशब्टोपजो विप्रमाएलमिति वाच्यं उभयवाद्बिद्ध- ज्ानाप्रयोच्यवेन तादृशश्नानसामान्यस्य विग्रेषणणोयतात्‌ शब्दा सुभवजनितस्तिपरन्पराधौनानुमिति विषयतया वेदा्थेस्तासम्भव- इत्यतः परम्परयातिपरन्परया बेति, अदृष्टस्य . काय्येमाषडेतुतेम चच्तरादिना गेहे घटोसतौत्यादौ लौ किकवाक्याथे विषयकञ्ञानजनने- ऽपि भियमतोऽदष्टदारा विधिजन्यन्नञानापेचण्त्‌ तादृश्रप्रमाणाति- रिक्रप्रमाणएजेन्यप्रमितिविषयायेकस्याप्रसिद्या श्रसम्भव इत्यतो ऽदृष्टा- इारेति, शब्दश्नानप्रयोष्यवमानोक्तौ भेरय्यादिकं शब्दजनकमित्या- दिग्रष्दषरितदृष्टा्थकभारतादौ arena? चातिव्या्षिः प्रमाणएमा- चेशेव तद ्ंगोचरज्ञानजमनेऽवश्ं शब्द ज्ञानापेवणादतः शन्दन्नान- जन्यन्नानेति। चैवमपि तदतिग्यात्षिस्तदवस्या प्रमाणएमाचेशेव तदर्थंगोचरश्नानजनने शब्दशन्ञानजन्यस्य गशब्द्-ग्रष्दतलविगिष्टश्षानस्य भियमतोऽपेषण्णदिति वाच्यं खल्या शब्दशन्नानजन्यक्नानस्य विव- लितत्वात्‌। चेवं शब्दा तिरि कविगरेषएत्वत्ेयथ्य बेदाद्यात्मकशरब्देन | वेदा्ंगोचरन्नामलनमने५ awa शन्दन्नामकन्यपदार्थोपखितेरपेच- णात्‌ शब्दोपजो विप्रमाणणातिरिलविग्रेषणेनेव तस्यापि वारणात्‌ शब्द श्ञानणन्यवाक्यार्यातुभवप्रयोज्य मि्युक्तौ बेदगतपदजन्यपदा्ध- सतिषन्यानुमानेन Feria प्रमापणदसम्भवापन्तेरिति वाच्यं | aque शब्द न्नानाजन्यन्नानद्वारा यष्नन्यतस्छ विवकितलात्‌ बेदाथगोचर ्राब्दबोधख्च शब्दन्चानाजन्यन्नानदारा वेदाद्यात्मक-

(५) वेदां गोचरानु भवनन इति |

शन्दाख्यतुरौ TGS तात्प््येवादः | १५५. .

weeny दति तददिर्भावः। अरखष्डभेदप्रतियो गिघरकतया अन्य विग्रेषस्य संसर्गलपरिचायकतथा वा अरतिष्याघ्याद्यवारकल्वेऽपिं श्ब्दन्ञाभाजन्यन्नानदारेत्यस्छ वे यणे, मोपादेयमेव वा शब्दाति- fina विशेषणं, qa श्ब्द-ग्ष्दोपजोवोत्यन .दितोयशष्द- पदस्य श्नामपरतया श्न्दश्नामोपजोगोति सबुदायाथैः। चाद्या शम्दभन्यश्नानवा मित्या दिशष्दे शाबष्दबोधघरितदृष्टा्चकभारतादौ तादृरवेदे चातिष्यात्षिः प्रमाणमाचेरेव तद्र्चंगो चर भ्नानलननेऽवश्स WRATH साचात्‌ परन्परया वा श्रयेत्‌ भ्ानन्ञाने(९ साकात्‌परम्परया वा विषयतया न्नानस्य प्रयोजक लादिति वाच्यं यतः प्रमाणन्तरजन्यन्नाने शब्दजन्यतभ्रमान्तथेव सामान्यशच्णप्रत्यासत्या श्रब्दजन्यन्नानस्य BT ततस्तज्‌श्चानसद- कारेणेवानुमानाद्‌त्मनिष्टगन्दजन्यज्नानवस्वयदस्तत्ैव तदनुमाम- ` शन्यतद थेविषयकन्ञानस्य श्ब्द न्नानजन्यन्नानप्रयोज्यत्ाभावान्तव्लन्य- प्रभितिविषया्थेकलरेना तिव्यार्चिविरषात्‌ | हितोचप्रमाणएपदश्च ख- रूपकथयनं, प्रमितिविषयायेकेत्य्न प्रमितिपदं ` खनन्यन्नानसमा- माकारानुभवमाचपरं तादृ शश्चाममाचपरं वा, प्रमालपय्येन्तप्रवेशे RAMA, सखजन्यज्ञानसमानाकारे तिविगेषणत्‌ प्रमेयला- भिषेयत्वादि सामान्यलचणप्रत्या सत्तिजन्नामासोनेन प्रमेयममिधेयव- दित्यसुमित्यात्मकन्ञानेन स्वस्येव Aerie विषयो करणेऽपि ना- समाव इति मेवं san शब्दवानित्यादि शब्द लविशिष्टघरित-

ययन

नकि री कि कि

Bee

() arianaa इति we |

. ett: तश्वचिन्तामणौ

दृष्टाथैकभारतादौ. तादृग्रवेदे warfare: प्रमाणएमाजेशेव तदयै- विषकञ्ञागजननेऽवश्ं॑श्ाष्टवजातेन्ानमपेच्छते eA च\) साक्ातपरम्यरया वा शाब्द aT श्वानं प्रयोजकं जातियदख्य व्यद्धिगदप्रयोष्यल्मियमात्‌, शाब्द बोधविषयकन्चाने साचात्‌- परन्परथा at विषयविधया mesa प्रयोजकमिति aera निरक्रशरब्दो पज विप्रमाणातिरिक्रप्रमाण्लन्यप्रमि तिविषयाथकान्य-

लादिति। उच्यते megan qua ware वा गराब्दश्चानपरयोज्य्च ` vam तदतिरिक्श्चागविषयायेकान्यने सतौति सत्यन्तायैः, प्रमाणए-तष्लन्यलादिप्रवेे प्रयोजमविरदात्‌, परभ्परयथा अतिपरम्परया वा श्राब्दश्षानप्रयोञ्यातिरिक्रेन बेदात्मक- श्रष्दलन्यश्राष्दबोधेन वेदाथेश्य विषयौ कर्णाद सम्भववारण्णाय शाब्द- ज्ञानातिरिक्रेति ज्ञामविेषणं, . शाष्दन्नानातिरिक्न्चानेनातुमि- त्यादिभा acre विषयोकरण्णादसम्भव इति arn श्रति- परम्परया वा शब्दश्चानप्रयोख्यातिरिक्रति न्नानविश्रेषण, cere fara: साध्यप्रसिद्यादिद्धारा परण्परया वेद न्नानप्रयोज्यवाना- सम्भवः शब्दज्ञानप्रयोज्येत्यच खजन्यन्नानसमानाकारकञ्चानजन- कलेन शब्दो विग्रेषणौयः सखपदममन्यतललप्रतिचो गिवाक्यपरं, तेना- कृष्टष्य काय्यैमाजे Bae श्ञानमाजरसेवादृष्टदारा WATE गङ्गाखानादिबोधकविधिवाकयश्नानप्रयोज्यतेऽपि तादुग्रन्नानान्य ज्ञानाप्रधिद्धिः, गङ्गाख्धानादिबोधकविधिवाक्यस् गेहे घटोऽसौति

(१) तभश्चाने चेति Ge |

श्ब्दास्यतुरौयखद्दे तात्पर्यवादः १५७

लौ किकवाक्यषमानार्थकलाभावात्‌, वा श्रात्मा शान्दवाभिल्या- zrafaanfa: ्रात्मा श्ाब्दवानित्यादिमानषलौकिकप्रत्यचामुमि- व्यादेरपि खषमानाथंकश्रब्दन्ञानप्रथोच्यातिरि कतया शाष्दश्चाना- तिरिक्रतया तददिषया्थंकलात्‌ ma - शाब्दवादित्थादिमान- सप्रत्यलादेः विषयशान्द बोधननकग्त ब्द न्नामप्रयोज्यत्वेऽपि तस्य श्रष्दस्यात्मा शाब्दवानिति वाक्यासमामा्थेकलात्‌ भापि वेदगत- प्रत्येकपदजन्यप्रत्येकपदार्योपखितिप्रयोख्यामुमितिविषयधाथेकतया a. सम्भवः प्रर्येकपदस्यापि बेदजन्यन्नानसमाभमाकारकन्ञानजनकतया पदार्थोपश्धितिमूणलकानु मितेरपि तादु शशब्दन्नानप्रयोग्यतात्‌। श्रत- एव शब्टचटितदृष्टाच॑कभारतादौ.५ तादुशदृष्टाथेकवेदे नाति- aft: तदये विषयकञ्नाममाजस्य श्ब्दश्ञानप्रयोच्यत्वेऽपि(९ खजन्य- HUAI AAT ANT STATA SAT | तयापि श्रात्मा शब्द प्र्थलसमवायोत्यादिरूपशब्दघरितदृष्टायकभारतादौ ATW qewaae afar: श्रत्मा शन्दप्रत्यकसषमवायोतिश्रब्दस्यापि तदर्थान्तगेतलेभ(२ तदथं विषयकन्ञानमाचरस्येव खजन्यन्नानषमानाका-

(\) मेर््यादिकं शब्दजमकमिव्यादिदृष्छाथंकमारताराविद्य्थः

(९) विगरेषणच्चानादिविधया साच्तात्‌कारणोधूतप्म्दच्चागप्रयोज्यत्वस्य तच्र खौकारे Baar कारणो भूत श्ब्दन्नागप्रथोन्यत्वस्य निखिल- वेदाथ॑दिषयकशान्दगोधे न्धाग्यत्वात्‌ चरमव्याख्ाने शन्दातिरिक्तपदं quaata ध्येयं यदि तत्र खीक्रियते तदा चापि अशौकासादत- रवे्यादिकमसङ्गतमित्यमि ध्येयं |

(र) आत्मेत्यादि वाश्चार्थान्तगेतत्वेनेत्ययेः | +

१५८ तत्वचिन्तामकौ

रज्ञागजनकग्रष्दन्नानप्रयोच्यलादिति वाश्यं। शरष्टश्नानप्रथोष्यपेन श्रब्द ठत्तिक्नानप्रयोज्यता विशेषस्य faafeaary तचा्यात्मा श्राब्दवानित्यादावतिग्यास्िस्तदवस्था stan शाब्दवाजितिवाश्य- जन्यश्ान्दबोधस्य श्रात्माः श्राब्दवानितिवाक्यायंतया तदथंविषयक- न्ञानमाचस्येव शओ्ान्दबोधद्वारा५ sar शाब्दवानितिवाक्यटत्ति- ज्ञानप्रयोच्यल्ादिति वाश्यं। awe घट इत्यादियत्किश्ि्छाब्दे | शओ्राष्दलं zeta तयेव सामान्यलच्णप्रत्यासत््या निखिलग्राब्दमोधस्य चलाने ततस्तनेव Maman शाब्दवानिति भिखिखग्राब्दबमोधप्रका- रिकारुमितिस्तचेव तदलुभितिग्यक्रेस्तदयेविषयिकाया श्रात्मा ग्राष्दवानितिवाक्धटत्तिन्नानाप्रथोग्यलात्‌ सामान्यललण्ाजन्यन्नाने विषयस्या हेत्‌तवात्‌ सामान्यलखणाजन्यन्नानस्योभयवा दि षिद्धल्वाभावे- ऽपि तदलनुभितिग्यक्रेरुभयवा दि सिद्धलात्‌ परमये शाब्दलप्रकारक- यक्किञ्िच्छाब्दन्नानादेव भिखिलशाब्दबोधप्रकारकतदलुमितिव्यक्र सत्पतेः तयापि शब्दट्तिन्नानाप्रयोग्यया सुखलव दुःखा- सभ्भिन्नटत्ति सुखमा चटत्ति धश्मेलादित्यनुमित्या विषयौशतायेक- वेदेऽव्या्िः किं बह्मा प्रमेयत्वा भिधेयलादिषामान्यलच्णमप्रत्याः सत्तिजज्नानापभोनेन प्रभेयममिधेयवदित्यतुमित्धात्मकञ्चानेन स्वे- स्येव acre विषयो करणाद सम्भव एवेति are | तदन्यज्ञानख्व(९) खजन्यज्ञानसमानाकारवेन विगरेषणौयलात्‌, सखभन्यन्नानसमानाका-

(९) विधयविधया शाब्दबो धद्ारेत्यर्थः | (२) जशन्दरत्तिन्नानप्रयोञ्यातिरि क्न्नानस्येति we |

शब्द्‌! स्यतुरौयखण्डे तात्पथ्येवादः | ३५९

Tag खजन्यन्ञामविषयिता विक्षच्चणएविषयिताश्चन्यल, ara यत्र aq येम येन रूपेण यद्‌यद्दिषयोकरोति तज तजर तेन तेन क्पेण तत्तद्वगाहितं वा, azarae fiat गिवाक्यपर, अतएव वेदस्यापि यत्किञ्चिदथेस्य यागादेरिच्छागुमित्यादिविषयलेऽपि नाव्याः, श्रतएव वेदेकदेशो वेदः यदिशिष्टभागस्य तादृश्र- च्ञानाविषया्चकलं ata तश्वात्‌ तयापि सार्ववन्यान्यथा- awa योगजधश्मेस्यापि भिधिकष्यकजनकतया योगनधम्मेजन्य- खजन्यन्नानसमानाकार प्रश्यक्षविषयायेकलाद्वेद्‌ स्याषम्भवः मोच्ेतु- खअवणाप्रयोज्यत्वेम तदन्यन्नानस्य विगरेषणेऽपि सुखत्वसामान्यलच्ण- पर्यासत्तिजखगों यसुखन्नामजन्येम सुखं दुःखासम्मिनलं सुखलादि- त्यादिकूट शिङ्गकानुमानेम “ay दुःखेनेत्यादिवेरायेस् विषयो- RUAN: तादृरेश्वर ज्ानविषया्थकलादमभ्भवसेति वाच्यं | उभयवादिषिद्धलेनापि तदन्यज्ञानस्य विग्रेषणौयलात्‌ योगजधश्मे- प्रत्य्च-कूट लिङ्गकानु मिल्योभेगवजृश्ञामस्य प्राभाकरासिद्धलात्‌ | तथापि वेदार्थस्य योगनधम्ममूलक्रानुमानविषयलादसम्भव- दति वाच्यं arcana azafafaam: प्राभाकराषिद्भलात्‌, मोखडेतुश्रवणाप्रयोख्यत्वेन वा तदन्यन्नामं विगरेषणोयं श्रय तयापि प्रमेयत्वा दिषामान्यलक्तणप्रत्यासत्या बेदगतपदाये-बेद गतपदार्थता- वच्छेदकानां ज्ञानं ततः प्रमेयलादिरूपेण वबेदगतपदार्थंषु प्रमेय- त्वादिरूपेण वेदगतपटाथंतावच्छेदकानां प्रमेयलादि हेतुना श्रनु- भितिस्ततः प्रमेयतया दिमोषेण केवलपदार्ये तावच्डेदकप्रकारेण केवल- UZ सरणं ततस्तत्‌खमर ण्स रका रे णामु माम। दे दजन्यन्नानसमा-

R¢e तत्वचिन्तामणौ

नाकारक्ञानमिति क्रमेण aera तादृशन्ञाम विषयलतादखम्भवः | तादृ्रानुमानजन्यवेदजन्यश्चानसमानाकारन्नानं कारणवाधेम प्राभाकरसिद्धं तेन सामान्यक्षषणानन्युपगमादिति वाच्ये तेन सामान्यलणानग्युपगमेऽपि पचता वच्छेद्‌ क-साध्यतावच्छेदकादि्र- कारेण यत्कि द्ाक्िज्चानादेव पच्चतावच्केदकाञ्रये यावति शाध्य- तावच्छेदकाञ्याणां SAAT AAP TTA कारणवाधाभावा- दिति चेत्‌, न, मोषख्छ बहधा fraftaary प्राचामसष्मतलाच्च | तथापि सुखलादिसामान्यलच्णया खण्डशः सुखादेरुपस्वित्या ae दुःखाघम्मिश्मित्य दिपरत्यच्च-तखूलकातु मित्या दिषमवेन तदि- षथा्थकल्वा दसम्भव इति वाच्यं तजृज्ञानातिरिष्कतवेना पि श्रान्त विगरेषणौयलादिति सत्यम्दशनिष्कषेः | |

afer सिद्चतौत्याश्ययोग्यवाक्यजन्यन्नानसमानाकारश्ञामख् भमलनियमेन उभयवाद्चसिद्धतया तचा तिव्याक्निः, एवं safe- व्यादिष्लोकेऽपतिबाश्निः तस्य निरथकलत्वेन सत्यम्तदखख्छ तजापि सत्वात्‌ मन्त -ब्राह्णयोववंदत्वमित्धमियुक्स्य ALATA AAAS: प्रमाणश्रब्दलमिति, स्तोजस्य निरयेकतया प्रमाणशब्दत्वं ae बेदलाभावेऽणष्ययनमिषेधो वाचनिक एव शरद्रादोनामिति भावः | प्माणशरब्टलश्च प्रमितिजनकतथा भेयायिकबिद्धग्रन्दलं तेन परनये fad, सक्ंकलबो धकवेदे(रमाव्या्भिः। चेवं तन्नयेऽप्रमाणौग्त- कितिःखकटेकेतिवादिवाक्येऽतिव्यात्तिः.» aa श्म्दाप्रयोच्यकितिः-

TS

(९) यतो वा इमानि भूतानि गायन्त दत्धाद्याकास्वेदे इत्यरथः , मारतादिवाक्येऽतिष्याततिरिति खर |

ए्ब्दाख्यतुरौ खण्डे तात्पय्येवादः | ६६१

सकटेकेत्याद्यनुमितिविषयाथेकवेऽपि तादृश्राुमितेरोश्वर षिदेषि- भरांभाकरासिद्धतात्‌ तेना सत्‌श्यातेरनङ्गो कारादि ति वाच्यं खज- न्यान्तद लेनेव(९) aw निरसनौयत्वात्‌ तश्चाजुपदमेव स्णटोभवि- व्यति खरग साधनलनाद्यनुमापकाश्रमेधादौ आत्म-मनःप्रतिनित्य- waaay चातियथाशिवारणाय meatier, मन्वादिखति- भारतादावतिव्या्तिव्रारणाय जन्यान्तं, तस्य वेदजन्यवाक्याचेन्ान - जन्यत्वात्‌ बेदादथ प्रतोत्य त्यादि प्रणयनात्‌, श्ब्दपदं वाश्याये- Way Waray, जन्यश्नानाजन्येत्येव faafad . तथो भिंषेशे प्रयोजमविरष्ात्‌, न्यायमये बेदस्यापौश्चरोयश्षानजन्यतादसम्भववार- णाय अन्यपदं, जन्यन्नामजन्यता फलोपधानरूपा याद्या तेनं वेद ज्ञान प्रत्यपि अन्यक्ञानस्य खरूपयोग्यत्मेऽपि मासम्भवः।

Uy गन्दजन्यवाक्यायंन्नानेत्यसख श्राष्दन्नानेत्यथेः, इति as, भारतायेस्मरणएजन्यभारतेऽति याः तस्य समर णएजन्यतेन श्राब्दश्चाना- जन्यत्वात्‌, शाब्द क्ञामाजन्यत्पदेन शाब्द न्नामाप्रयोच्यत्वविवचण्ेऽपि भारतगतप्रत्येकपद जन्यप्रत्येकपदाथस्धतिषशकारेण मनसा श्रनुमा- नादिना. वा विशिष्टभारताथं प्रतीत्य प्रयुक्रे भारतेऽतिवयान्नः जन्यश्नामाजन्येत्युक्तौ सत्यन्तविशेषणं प्रमाएश्ष्दवमित्य प्रमार- विगरेषणचच aifafa ares दृष्टायेकवेदे . श्रतिव्या्चिवारणय सत्यन्तस्य कंफङडत्यादिस्तोतरे श्रतिव्यात्तिवारणाय प्रमाणएल्विशेष- णस्योपादामात्‌ | च्मन्ययाख्याते रमङ्गोकारादितौति Ge |

` (९) शष्टजन्यवाक्धार्थश्चानाजन्यदेनेत्य्थः | 46

ada avafarntaat

अय परनये ईश्वरानभ्युपगमात्‌ न्यन्नानाजन्यलं कापि बेद्‌- इत्यसमावः तन्ते ace नित्यलात्‌ नासम्भव इति ars | तथा सति वर्णानां नित्यत्वं विना तद्घरितवेदागुपूर््या fire घममबेन शब्दमाजस्यैव नित्यतथा wacte नित्यलार्भारतादा- वतिब्यात्तितादवस्थादिति रेत्‌, म, जन्यश्चानाजन्यवपदेन जन्वं- sma यन्नेया यिकथिद्धं तदन्यत्वख्छ विवकितत्ात्‌ अतएव तकातेऽपि अन्यपदानुपादानेऽसम्भव इति जन्यपदं खाक, अखष्डा- भावचटकलवाख्च समति न्ेयाकिकसिद्धेत्यस्च aad, Warare- बाधारणलचण्पदे त्‌ तश्न देयमेव, इकायुक्वेदखमानाथेकसपत्यादे- रपि तावत्पद्‌ विषयकभन्यन्नानजन्यलाल्लातिव्यात्निः एवं यन््रादि- wa वर्णोत्पत्तिखोकदरेनये यम्घ्रोत्यितश्छल्यादावपि नातिव्यार्षिः तयापि वादकजन्यज्नानजन्यलात्‌, वाय्वाचचमिषातनद्धत्यादौ मामाभावः वायवाद्यभिघातख्छ sahara मानाभावात्‌, तत्‌- FRI कस्यचित्‌ way तस्यैव फलो पधानात्मकजन्व- तायास्तज सत्वाच्च WAT aay Hay काम्दे-कारण- भावात्‌ तथापि भगवदुश्चरितमहुरूत्यादावतिद्या्िरिति वाच्य तस्य भगवदुञ्चरितते मानाभावात्‌, भगवद्गोता बेद- एव तत्रैव भगवद्गौताद्ूपमिषत्‌ खिति अवण्णादिति a तजाति- arfa:, wg वा तदन्यवमपि fated बेदातिरिके श्ब्दापजोविं प्रमाणमाबगम्याथेके भगवदुक्रवाक्यान्तरे मानाभावात्‌

अथ मास्वतिग्यात्निखयाप्याधूनिकोक्रवेदे सखति-भारतादैरथें प्रतत्य HAR देववशरसम्पन्ने वेदे चाव्यार्गिः तस्य न्यायनये बन्द

शब्दा ख्थतुरौषखण्डे ATAU: | ५३.

प्रमित्यविषयाथेकत्वे सति शब्दजन्यवाक्याधेत्तानाजन्य- प्रमाणशब्दत्वं वेदत्वम्‌, ईं श्चरौयप्रमायाः^\ शअरजन्धत्वात्‌,

न्ामजन्यत्वादिति चेत्‌, म, प्रमाणएश्रब्दवपरेन एतादृ श्रप्रमा णशब्द- लातौयत्वस्य विवशितत्वात्‌ साजात्यघ्चातुपूर््या तेन नातिप्रसङ्गः, तया साजात्यलाभायेव mee इत्यश्चादिबेदमादाथेव wis wquugfa: नित्यानुमेयवेदखोभयवाद्यसिद्धतया खच्छः . तेन aM विरदेणो क्षजातौ यलाभावेऽपि तिः भगव- ` दुक्रवेदब्याश्याने adnan चातिन्याप्निरिति वाच्यं श्रदृष्टलन- काध्ययम विषयतावच्छेद कावच्छिलत्वे सतौत्यमेनापि विगरेषण्णैयलात्‌ वेदश्याख्यारेरष्ययनं डि नादृष्टजनमकमिति |

Sumy वेदत्मखण्ड़ोपाधिः तश्च यावदणंगरे वेदग्यवहारः प्रमारषिद्ध स्तावत्‌सु ्याखञ्यटन्ति तेन प्रत्येकवणेदडे ana, द्धा शक्रिविशेषसम्बन्धेन ozad an यथा धातुलाख्यातलादरि, विग्ेषपदोपादानान्न वेदसन्नकश्ररोरादावतिव्या्तिः सभ्बन्धागतु- गमस्यारोषतया श्क्यतावच्छेदकभेदेन शक्तिरूपस्य सम्बन्धस्य नाना- त्वेऽपि 4 खतिः। यन्धस्तु- प्रृतो पयिकपलतावच्छेद कमा चमिवंचम- पर इति प्राहरिति aac: | |

afad gat aca वेदानामोश्वरोयवाक्या्येन्ञामजन्यवेनाज- न्या मदशस्यासम्भवितलादित्यत wy, ‘Katranarar इति te-

(र) ईश्र्प्रमाया इति Ke, we | (९) वेदपदवस्वमेव वेशत्वमिति we |

ade वक्वचिन्तामयौ

बेदार्थस्यानुमानादिविषयन्वेऽपि अनुमानादेरवेदोप- जौवकत्वात्‌। aitat भारतादिभागस्य Ae समानाथेकत्वेऽपि शब्दजन्यधौ जन्यत्वात्‌ Vary प्रतौत्य ततप्रणयनात्‌। सजातौयोचारणानपे्ोचरितजातौ-

ओोयवाक्यार्थश्नामस्येत्यथेः, तथाच शब्दजन्यल विग्रेषणेनेव तदारेण- fafa भावः शब्दोपनोग्यतिरिकलदलस्य व्याटत्निं करतो दगे- थति, शेदायस्ेति, ‘sqarraifa शअनुमित्धादौत्धयेः, arfe- ` पदादुपमितिपरियदः “aq दुःखेनेत्यादि खगं पदादिश्क्तियारक- वेदार्थेख्योपमिति विषयव्ादिति भावः। ‘saat’ wafa- QT अजन्यान्तद लस्य Bey छलतो द्यति, 'खतौनामिति, नभारतादिभागस्यः भारतादेर्भाग विगेषस्य ` दृष्टाथैकेतरभारतायेक- ३ेशरस्येति यावत्‌, बेदष्मानायेकलेऽपिः तादृ शप्रमित्यविषया्थैक- asfa faq पौरषेयलमिति are समाधन्ते, वजातीरेति ` स्लसमानजातोयवाक्यस्य TNT Ma तदनपेचं तदप्रयोच्य- यद श्चारणं कण्ठाद्यभिचातः प्रयन्नो वा तव्लन्यजातौयल्मित्ययेः, BINA तन्लन्यजातोयवनश्चानुपृ्यां विवचितं, cere ध्यापकोश्वारणमादाय सिद्धसाधनं, पूर्वाध्यापकोच्चरितवेदन्नामा- Sawa ततो वेदाथेप्रतौ तिरूपेषएटषाधनतान्नानादेदे द्च्छा ततो बेदशूपेष्टसाधनतान्ञामात्‌ तत्तद तुकूशकष्टाद्यमिघातादौ प्रयत्नरतः कणष्टाद्यमिघात इति क्रमेणाध्यापकोच्ारणस्य पूर्व्वाध्यापको क्रखस- | मानातुपूर्वौ narararanateqafaaafeta भावः वेदाद्वारता्ै

श्ब्दाष्यतुरौयखररे AAA! | ६९५

यत्व॑पौरषेयत्वं, आद्यभारतेऽपि तज्नातीयत्वानन व्यभिचारः | श्रथवा वेदत्वं सजातौयोच्वारणानपेघ्ो-

?

प्रतोत्येवाद्यभारतप्रणयनाद्‌भारते व्यभिशलारवारणय खसमामजा- तोयेति, एवश्च तस्य विजातौयषेदर न्नानप्रयोजच्यतेऽपि खसमानजा- तोयभारतन्नानाप्रयोच्यलान्न व्यभिषारः, पयमानवेद-भारतयो- वाध- व्यभिचारवारणाय सञजातौयतलमिति श्रतएव aware पूर्वौ कभारत-ख्त्याद्योरपि व्यभिचारः, तचाणाद्यवेद्मादाय त्नातौयत्वमल्वात्‌ प्रयोज्यतपदेन खजन्यवाका्येज्नामदारा प्रयो- श्यत्वमेव॒विवङितं भअ्रन्यया भारते व्यभिचारापत्तेः श्राद्यभारतो- quanta भारतनिष्टभारतार्थग्तो तिरूपेष्टमाघनतान्नानात्मकस्य भारतज्नानस्य प्रयोन्यलात्‌ चास्मदारौीनां वेदममानागुपूर्वोकं वाक्यं करणापाटवादिना ae तच तद्ेदवाक्ये are ` तदाक्योच्चार णएजन्यत्वसत्ेन तदाक्यमादार्यांग्रतः सिद्धसाधनं एवं चनाद्रन्यायेनोश्चरितरुत्यादितोवाक्यायै ney देववश्राद्यचं वेदषमागातुपूरन्वौकं वाक्यसुच्चरितं त्र तादृशो खारणएजन्यलसत्वेन तदाक्यमादायांश्रतः सिद्धसाधनं दति वाच्यं पच्तावच्छेदकाव- Sta साध्यसिद्धरदे श्चलात्‌, अतएव निखिरवेदानामेकधमनावच्छे- देन cae agent निगय दूति दिक्‌ 'तव्नातोयलादिति, asa मेदाघटितलात्‌ मिष्ठाप्रत्ययायातौोतवस्य चाविव- ` चितलादिति भावः। सजातोयोच्चारणेति घजातौयो चारणामपे-

~ cee ew + ५५ ~~ eee

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(९ निर्मर इतीति wo |

acd व्वचिन्तामणे

afcagin प्रमाणतावण्छेदकवाक्धदट्तिधम्मेत्वात्‌ स्मृति- MAT | यदा वेदाः शब्दाजन्यवाक्याथैगोषरयथार्थ- WARM: प्रमाणशब्दत्वात्‌ भारतवत्‌। पल- माने वेदे बाधः भारते मन्वादिस्मृतो व्यभिचारः तेषां ` दिकं कत्वात्‌, तादशन्रानजन्यजातौयत्वं वा साध्यं, तवाप्येतदभावादेव वेदेऽपोरुषेयत्वव्यवहारः |

शोचरितजातीयमाचदन्तिलं, तेन देववश्षम्पश्लवेदमादाय fag- aed, दितौ यसुश्चारणं वा पूर्ववत्‌ अरयंन्ञानविभरिष्टलेन विशेष पौयं, भ्रमाणतेति, श्रजेदामोन्तमबेदा दि माचटन्तितन्तद्राक्तिवेदा- नो न्तनबेदत्वादिधर्े व्यभिचारवारणाय श्रमाएतावच्छेदकेति, प्रमाणतावच्छेदकल्वं श्रध्ययनानुष्टानान्यतर विधि विषयतावच्छेद कलव, भवति “@raratsaaa:” ““सतिरध्यातययत्यादि विधिविषय- तावच्छेदकं वेदल-खतिलादि, उश्चरितवस् श्ब्दधश्मोलादश्वमेधलादौ श्यभिचारवारणाय(९ "वाक्यटन्तोति, अश्वमेधलादेरपि “शरश्मेधेन जेतेव्या्तुष्टानविधिविषयतावच्छेदकलात्‌ | वश्ठतस्तु प्रमाणता- वच्डछेद कत्वमध्ययन विधि विषयतावच्छेद कलं, 'वाक्यटन्तोति ख- खूपकयनमिति wag ‘meri शब्दन्नानाप्रयोव्येत्ययेः, |

तेन तादुग्रख्त्थादिजन्यतलमादार्थांग्तः बिद्धषाधनमर्यानतरः वा, आनुपूर्यौययार्थन्नानजन्यतयां ग्रतः सिद्धषाधनस्यार्थाननरष्य॒वार-

(६) Pee ike CLIC LAG धम्मं द्य मिचारवारखायेति We |

परब्दाख्यतुरोय खणे तात्पय्यैवादः ३६७

लन्वप्रयो जकमिदं वाक्या्थैगोचरयथःयैन्नानपृष्वंकत्व- मेव शब्दप्रामाण्ये तन्तं तु ताहशन्नानस्य शन्दा- ` जन्धत्वमपि गौरवात्‌, अन्यथा वेदेऽपि तव दिकदंक- त्वेन प्रामाण्यं स्यात्‌ लोके तथा SWAT, TIT अनादिमौमांसासिश्चन्यायेनावगततात्पय्धात्‌ Aes प्रतीत्य पुच्धपु्वबाध्यापकेन उच्रितादेदादु्षरोचतर- स्याप्यध्ययनतदयथप्रतौतिरित्यनादितैवातः किं खत- ` न््रपुरुषेख तत्प्रयो जनस्य परतन्त्रादेव fae: | fa

शाय ‘areata warded इति xe) (तादृशेति, we सषलातोयेति शरष्द विशेषणं देवं तेम wat भारते व्यभि- सारतादवख्छये, ‰एतदभावादिति खसमानजातोयोश्चारणणनपे- चोज रितजातौयतल-्रब्दाजन्यवाक्यायंन्नामजन्यजातौयत्योरभावादि- त्यथः, “श्रन्ययेति प्रत्यचादिना wharinetfanaa तथा दभनेन तत्कश्पने इत्ययः, "लोके" लौ किकवाक्ये “मो मांसा सिद्धेति लाघवा दिज्नामसदश्तेत्ययः, “न्यायः अनुमानं, “श्र्ययमतद यंप्रती- तिरिति waat सति तद यप्रतौतिरित्ययेः, ततो anata इति शेषः 'खतन्त्रपुरषेणेति सजात योच्ारणामपेचवेदोचारयिटपुड- way, “परतन्तादेवेति तादृश्योश्ारणषापेखवेदोशारयिषटपुङ्‌- | चादेवेत्यथेः ममु सर्गा्चकालोगबेद प्रयो गख वेदजन्यवाक्यायेन्नान- waist सम्भवति प्रणये बेदोच्छेदादतो भगवत्‌बिद्धिरिव्यत- आड, ‘faafa, ‘gaara इति डहेतुतावच्डछेदकावद्छिभभिश्नस्येव

ads ` त्त्वचिन्तामणै

TARTAN VAT: कालत्वात्‌ वक्षमानकालवत्‌ | चांओे बाधः AY चाश्रयासिद्धिः, भ्रंशत्वेनानुपादा- नात्‌, VAR वेदश्रन्य इत्युदेश्यप्रतौतेर सिकः नांशतः सिद्धसाधनं, तथा पव्वकालौनं वेदाध्ययनं ग॒व्वैध्ययनपूरव्वकं अध्ययनत्वात्‌ इदानौन्तनाध्ययन- वत्‌। लिप्यनुमितवेदाध्ययनेन व्यभिचारः, लि- येरध्ययनपुव्वकत्वात्‌। चेवं भारताध्ययनमपि तथा श्यात्‌, तस्य भारतादावेव व्यासादिकतेकत्वेन कथना- दिति। उच्यते वेदधामागण्याधौनं तत्रामाण्यमित्या-

पलतावच्डेदकलवात्‌ पूर्ति एतत्‌पूरवंकाख इत्यः, "न बेदशन्य इति, ` द्यपि बेदवानित्येव वक्कमुचितं तथापि पराभिमतेदश्न्यलाभा- बलप्रकारक सिद्ययं मित्यममिधानं, “Wy प्रलयरूपे, ‘sit चेति कगकाले Fart, श्राञ्रथासिद्धिः' सिद्धसाधनात्‌ Wann, “शतेन विशिष्य प्रलयत्वादिमा, उरे श्यप्रतौ तेरि ति पचतावष्छेद का- वच्छेदेन प्रतीतेरित्यथः, शर्वैध्ययने ति, ‘Gane’ Weitere, श्रन्यया पूवं षगो याध्ययमपूवंकलेन सिद्धसाधनात्‌, ‘fat खशूपकथनरिति ` मन्तव्ये, “श्रध्ययनलात्‌" बेदाध्ययनत्वात्‌, wat व्यभिंचारः। “शिपेरपोति, साच्ातृपरन्परासाधार णप्रयोव्यतमा बस्य प्रवेशादिति भावः। “न चेवमिति, भारताध्ययनं भारताध्ययनपूर्वकं भारता- ध्ययनला दित्धनुमानसम्भवादिति भावः "तस्येति, तथाच बाधान्न

TETAS AY तत्थियैवादः | ११८

wrt | नं चं पुथ्येवेदप्रामाणयोपौनमुततैरषेदपा- मोण्यमिति ध्यक्तिमेद्माहाय नात्माश्चय दर्तिं वाच्यं | रवं तन्यषयेस्यांपिं तत्पुववेध्रामण्यात्‌ प्रामाश्यमिव्धेन- eran) अनादित्वादैयमदोषे ६ति epi म॑ भूल मतप्रमाखान्तराभावात्‌ अ्रन्धपरभ्यरापातात्‌ खत nerd वेदं एवं सर्व्व वेद भूशमिति चेत्‌। A) सर्ववेषा- मेषं परवेदापे त्वेनं खतः प्रमा शत्वाभावात्‌ अत- खं MTVU आतिः सतेराचारं दत्व विश्चातवीन- परानपेक्षमूलस्तप्रमाणाभावादन्धपरम्पराभयेन तज

बिद्धिरिति भावः। Sarre इति वाक्यायेयथार्न्नागपूवैकलेन Aq asa” प्रमारौग्डतवेदजन्यलाभौ मभिति पर. न्परथा बेदजन्यपामाश्याधोनं वेद्‌ प्रामाण्मित्धाद्मामय इत्ययः, | 'समूलभरतेति, बेदगन्यप्रमाया मित्यादौ arate, भ्रमाणाम्तराभावा~ दिति खतः प्रामाद्ाभावादिल्य्थः, “अन्धपरग्परेति प्रमासामान्यच्छ खतः प्रमाणएमूणकल्या्निभङ्गमसङ्गा दित्ययंः, खतस्वश्च सखेतरपरा- माख्ाधोगप्रामाश्केतरत्व मित्यथेः, “वे दे" बेदजन्यशच्चाने, "परषेरा- पेशलेनेति परवेदप्रामाण्धाधौगप्रामाष्छकलेनेत्यथैः, '“विश्वासवौजेति , प्रमासामान्यथापकेत्ययेः, “परानपेखेति सेतरप्रामाखाधोनप्रामा- warts: “श्न्धपरन्परेति स्रतिजन्यश्चानस्याप्रमालप्रसङ्गभयेने-

त्यथः भनु वेदप्रामाखमप्यपरवेदप्रामास्छाधौनं महाजनपरियरहादेव 47

Roe < तच्चचिन्ताममौ

बेदमूलकत्वकख्यना | अनादिमहाजनपरिग्रहादनादि- बेदप्रवादप्रामाश्यावधारणेऽपि तन्निर्वाहकेतरानपेध- मुखबूतप्रमाणाभावेनानाश्रास रव अन्यथा समृत्याचा- THUY प्रामाण्यावधारणे प्रमाणमूलकत्वकख्यना^' स्यात्‌। तस्मादाश्चासवोजपरानपेकषेश्वरपत्यक्षमूल- कत्वादेव वेदस्य प्रामाण्यं महाजनपरिम्रहादवधा- aa) शतेनानुमानमपि fate) मूखलभूतप्रत्यं `विना बेदप्रामाण्यासुपपत्त्या साध्याभावसिन्ौ बाधात्‌

eA YS A णी

तत्मामाष्यावधारणादिव्यत wy, नादौति, “परि्हादिति मङहाजनपरिगडडादित्यथः, "परिग्रहः, अध्ययमाष्यापन-तदर्यानुष्टा- भादि, ‘afaawata महाजनपरियहनिर्वाहइकं यकाहालमानां WIAA प्रमाणं तद्रपेतरप्रामाण्याघोनपामाष्केतर मूखग्डतप्रमा- चकत्ाभावेनेत्ययेः, “wry एवेति वेदजन्यप्रमाया ऋप्रमाल- ; Wey wae: “एवमिति महाजनपरिग्रेणेत्यथैः, श्रमाणमूखक- लेति बेदमूलकवेत्यथेः, arena प्रामाश्यवोजेत्यथेः, "परान- परेति fran, ‘Semmes श्ररोयोपादानमत्धरेत्धथेः, ‘arama श्रध्ययनपकालुमाममपोत्यथैः, ‘nad विना नित्यप्रत्थकमूल्लकलं विना, भ्रामाश्वातुपपत्याः खतः प्रामण्यासुप-

, (%) प्रमाखान्तरम्ूलकल्परनेति ge, To |

ए्म्दाख्यतुरौयखण्छे तात्पय्यैवाद्‌ः | ROR

ननु वेदो पौरुषेयः श्रस्मय्यमाशकतेकत्वादिति बाधकमल्विति चेत्‌ कपिल-कणाद-गोतनरैस्त- ` ` fae वेदे सकतेकत्वस्मरणस्य प्रतीयमान- त्वात्‌ मूलभ्रूतानुभवाभावात्‌ सरणातुपपत्तिः, पौरुषेयत्वानुमानादेवामुभवात्‌। Waa तच बाधकमिति चेत्‌ रवं सत्यस्मरणाननुभवयोर-

पश्या घत्‌प्रतिपक्षमाश्ङते, "भव्ति, वेदत्वं ॒पौद्षेयषटजि अरध्ययमविधि विषयतावच्छेदकले सति अअय्येमाणकटकाटसिलात्‌ व्यतिरेकेण aad दृष्टान्त इत्च aad, चथायुते “खा ते भववित्यादौ व्यभिचारादिति ana, खाव्यमाणकदरंकलं खति- बो धितपौ रूषेयलकलं, तादृशरसूपतेरप्रवरद्रूपलेऽपि कपिलादौनां qiangut तादृग्ररूतिन्नामसत्वाद्धेतुः aenfag दति war धत्ते, "कपिलेति, “सकरठैकवस्मरणसेति पौदषेयलमोधकसतेरि- त्ययः ममूलण्धतेति खतिकदैरवेरे पोर्षेयलानुभवाभावा दित्यर्थः, तद्ोधकमूखन्डतश्रुतिविरहादिति भावः “इरणामुपपन्तिः' सति- प्रणयनाुपपन्तिः, “श्रतुभवादिति whiadae पौरुषेयतानुभवा- दित्यथेः, तथाचानुमानार्वेदे पौरुषेयत्वमवधाय्यै सतिप्रण्यनमिति भावः “श्रस्मरणमेवेति We GTI सरणाथंकन्ञानपरं, wha- HAT पौ रषेयत्यविषयकसमरणाभाव एवेव्यथः, तज बाधकमिति वेद गोचरपौ रषेषलामुभवा दिबाधकभित्ययः, सरतिकतुस्तद्गोचर- सार णाभावेम तद्गोचरानुभवाभावः साधनौयदति भावः “wa-

ROR ववचिन्तामकौ

श््चोग्धाश्रयात्‌ | WA तदथेस्मर AAT ass प्रमाखस्वा- rag fe भाविस्मरणम्रपेश्य प्रमाखमनु- भावकं ^“ तस्मात्तपस्तेपानाश्नत्वारो बेदा अजायन्त ` wee सामानि aise” इति कठेशवखात्‌ ^ प्रति- मन्वन्तरष्वेषा श्रुतिरन्या विधौयते” इत्यादिकद- BUMS पौरुषेयत्वे बाधकं विना अथैवादमाबत्वस्य

वक्तुमशक्यत्वात्‌ | #स्वयम्भूरेष भगवान्‌ वेदो गौत-

रणाननुभव्रयोरिति श्र्मरवानतुभवषिद्यो ae: | अरणाभावेना- सुभव्राभावस्राभरने (्यभिचारम्नष्वाइ, “श्रये इति, उपेकात्मकज्चानखखले हति गरवः, अप्रयोजकल्मप्याह, रहौ ति, भगवतो वेदकढेले Age यौरूषेयलाहमानं परमाणसुक्का afi खएतिन्नपि) प्रमाणयति, शतसा दिति, “तपस्तेपानात्‌' परमेश्वरात्‌, “खक्‌, वेदभागविगेषः, anf wet, ‘Mant’ भगवतो वेदकटरेलबोधकलसुतेः, “न्येति fafreraglaerd:, इति aaa: विभिन्लव्धक्तिकेति तु MAE, आरुपूर्यीभेदकश्यलाथां गौरवात्‌, “कर्टखरण्णदिति क्षगवतो बेदकद्रेवबोध्कस्ते रित्यथेः। “भयेवादमाजलस्य' स्ठुति- जाचलस् 1 we वेदस्य नित्यलबोधकभारताद्ेव aga पौर्षेब्रले भाधक्रमिति तटस्वाग्रङाद्रामाङ्, “aaatcia fire इव्यथः, ‘UA

ज~

AY ुत्रिनह्भतो pone we |

शब्दाख्यतुरौ यखय्दे तात्पर्यवादः | ROR

Wal पुरा शिवाया ऋषिप्रयन्ताः autiicn कारकाः” इति महाभागवतपुराणौयवाक्स्य श्रुति- विरोषेनान्यष तात्पयात्‌ | काय्यपरमेव प्रमाणं, क्त खरणस्य सर्व्वबाविध्यथैत्वात्‌ सकवुकत्वाथैवादस्य ` स्वगं- नरका्थैवादस्येव “tacquraia” इति विधि- ayaa | साधयिष्यते सिद्वाथेस्य प्रामाण्यं a चैवमानन्दोऽपौश्चरे स्यादिति nei तष मानान्तर- विरोधात्‌ पुरुषस्य भरम-प्रमादादिमभूविष्ठत्वेन बे

भगवानित्यपि वेदस्य विगरेषणं | “काय्येपरमेवेति विधिसमभिव्या- इतमेवेत्ययेः, “तस्मादित्यादि विध्यसषमभिव्याइतलात्‌ प्रमाण fafa भावः 'कठसमरणस्येति कटेलबोधकस्रतेरित्य्ः, "्रविध्य- uatfefa विष्यसमभमिव्याइतलादित्ययेः, तथाच भारतादैरपि व्यासादिकटंकता स्यादिति भावः। सकटेकला्थवादस्सेति "तसा दित्यारि विष्यसमभिव्याइतवाक्यस्येत्ययेः, “खर्गेति “aq दुःखनेत्या्च्ेवाद खेत्ययेः, ‘fafa, श्रथवादस्याप्रामाख- वादिनापि विधिगरेषौश्ताथेवादस्य प्रामाश्ाभ्युपगमादिति भावः | ‘fagriafa विध्यषममिन्या इतवाक्यय्येत्ययंः। "न चेवमिति, “नित्यं विज्नागमागन्दं ब्रद्यत्याद्य्॑वादस्वादिति भावः। (तेति, सुख- Arawaza पु्छशन्यतकल्यमात्‌ तच्ानन्दपदेन दुःखाभावाभिधा- मादिति भावः। यिष्ठत्ेनेति बडतरदो षाश्रयलेनेत्यथः, ‘a2

ey avaferrtaal araia इति Wi at धभ्िग्राहकमानेन नित्य- सर्व्वन्नत्वेन fag तच दोषाभावादिति।

इति श्रौमद्‌गङ्गेशो पाध्यायविर चिते तच्वचिन्तामखो शब्दा खतुरौयखण्डे तात्पय्यवादः

[णि

क्चिदधेदे, “अनाश्वासः श्रप्रामाश्छप्रसङ्गः, कतुभ्वेमा दि दोषनन्यल- सम्भवादिति भावः।

दति ओओमथरानाय-तकंवागौ विरचिते तत्लचिन्तामणिर द्य शब्दा ए्यतुरौयसखण्डर दस्मे तात्पय्येवा TTA

एम्दाख्यतुरौय खणे शब्दाभिश्चतावादः। ३०६

अय भाब्दानित्यतावादः।

ननु तयाप्यप्रयोजकं पोरषेयत्वानुमानं नित्य

अरय शब्द्‌ नित्थतावादरइष्यम्‌

“भिन्येति नित्यलेन यज्ञिदौषलं तेनेव प्रामाष्छोपपन्तेरिग्यधैः। न॒च fazed प्रामाश्छप्रयोजकं तेषां adarvea नित्यतया विशषम्ना दिवाक्यमाशरेऽपि तस्छ्वादिति Tea! मिदषलपदेन दोषा- भन्यानुपूर्वौ कल्य विवचितलात्‌, श्रातुपू्वौ ant शम्द संमबेत- पदार्थान्तरं सखा वेदे भित्था wary afr, अन्यथा वर्णानां aay नित्यत्वेन नित्याभित्यविभागो स्यात्‌ सेवं faa निदाषलप्रयोजक्रं षदोषवाक्येऽपि तस्त्वादिति are नित्यल- पदेनापि नित्यामुपूर्वौकलस्य विवङितलादिति।

केचितु -भित्यतेन निदौषलेन चेति प्रयोजकदयपरतथा(९) व्याचचुः(\, age नित्यत्वं यदि यथाश्रुतं तदा विसम्नादिवाकष्ध- माजेऽतिव्याततेः wrap विशिष्टानां वर्णानां ade भित्यलात्‌, यदि नित्यानुपू्ौ विशिष्टलं तदा शलौ किकवाक्यमाच . एवा-

(५) प्रयोजकत्वपरतयेति wo | ` (९) चाचक्रुरिति we |

१०९ -तत्वचिन्तामबौ

निद्धषत्देनैव ततप्रामाण्योपपन्षेरिति चेत्‌। न। वशानां अनित्यत्वेन तत्समूहस्य सतरामनित्यत्वात्‌ तदसि, तथादि वशेात्मकः शब्दोऽनित्यः समवेतत्वे सत्यत्पत्तिमच्वात्‌ घटवत्‌।.न हेत्वसिद्धिः, carat

arn एतेन मित्यलविशिष्टनिदंाषतयेति विशिष्टप्रयोजकपरतया व्याख्यानमपि परास्तं। नित्यव- मिद्षवे चदि qarga तदा विसम्नादिवाक्यमाज एवातिव्या्षिः, नित्यलं यदि नित्यानुपूर्नौ- कलं तद्‌ा लौ किकवाक्यमाचर एवाव्यानिः निहोषलांगरवेयर््ाप्तिच | यदि faa यथाश्रुतं fiqied दोषाशन्धातुपूर्बौ कलं तदा faqatuaaatfat दिक्‌

यद्यप्येवमपि भिधषल्व प्रामाश्चप्रयोजकं विषम्नादिशएकादि- वाद्येऽतिव्यात्नेः प्रतोताचं विपरोतप्रत्यायनेच्छाया दोषत्मते भा- माप्रतारकवाक्येष्वव्यासेख, तथापि प्रसङ्गादरष्णानामनित्धत्वं wa यितुं तदोष्ुपेच्छ वर्णानामनित्यले aqarrgga अनित्यलं साधयति, "वर्णानामिति, ‘aque - बटस्या तुपूरनवो fare, "सुतरामिति, अन्यथा ` अनेकसमबेत नित्यस्य जातित्नियमेनानुर्या- जातिलापत्तरिति तद्णनामनित्यल। "तथा रोति पचतावच्छेदक- घामामायधिकरण्येन साध्यसिद्धेदेष्यलेनां प्रतः सिद्धसाधनवारणाय व्णाताक इति वशरब्दवाश्थ इत्यथः, तेन रूपादाव्थान्तरवारणाय sq दति, ध्वंसे व्यभिचारवारणाय ‘wala षतौति, “यश्चकेति

~

(९ श्रतौतार्थ्यादिः मत Ker पाठः खएस्तके नास्ति

एष्दाख्यतुरौयखगे शब्टानित्धतावादः। ` Ree

गकारः इदरायामुन्पद्यमानोऽस्ि कोलाहल इति प्रत्य - यात्‌ व्यश्काभावात्‌ प्रागनुपलब्धस्योपकख्धि- मां तस्य, उत्पन्नो गकार इति प्रत्ययात्‌ चायः मौपाधिकः, अन्योत्यत्ताव्द्यमाशायामपि तदनुः भवात्‌ | समयमाणारोपः, बाधकाभावात्‌। अन्यथा घटोात्यस्िरपि सिद्धेत्‌ | |

यत्तु ओ्रोच्रालुविधानात्‌ पदं खशोमौत्यबाधितानु- SAA BWA ग्रहौतुमशक्यत्वाञ्च ओओच- TENA सा घसमानकालौनप्रागभावप्रति- ागित्वं॑टस्येति प्रागभावगप्रतियो गित्वमुत्यत्तिम

कण्ड-ताश्वाद्यभिघातादेरभावादित्ययेः, WY AIM हेतुः, ‘ae उक्नमरत्ययस्य, षय इति शेषः ‘org इति -उत्पश्यवगा - हिवमनुभवसिद्ध मित्यथेः, श्रौ पािकः' ave, "अरुद्ममाणायां श्रननुश्धयमामायां, Ways गकार इत्यादि प्रत्याद्वर्णमासु- व्पस्तिमत्वं साधितं |

अरन्ये तु ज्रामुपूर्नवौँप्रत्यकतादेव वर्णामामुत्पन्तिमत्व सिध्यतो त्याः, Tage दूषयति, ‘afefa, “पदमिति sarqysay- विशिष्टवंमित्यथेः, aga agar, खमानकारनेति, तद्‌-

ष्वंसाभिकरणलणागुत्पन्तिकतवे सतोति विशेषणोयं, aa विल- pi

१९८ ` 3 avafarntaat

ate प्रत्यक्षमिति, aa, घन्नानानन्तरभ्नानविषयत्वं ZETA NATTA सा HAT शयते घट- पटश्नानयारिव तदु पनौता श्रोचविषयः। नतु ware गकार ९ति प्रत्यमिन्नाबाभितमिदमित्यकैका- wa गकारादिव्यक्तयः। यद्यपि प्रत्यभिन्नाया नित्यत्वं a विषयस्तथापि नाश्कत्वाभिमतशब्दान्तरादोनां

म्ितो्चरिते नातिप्रसङ्गः, “रत्यच्चमिति आरुपूव्बौपत्य्ादेव fe. मित्यर्थः, ‘amata, अन्यथा मौनि्लोकाग्यातैरिति भावः, येश्वरोक्स्यले न्ञामानन्र्य्णा षम्भवादव्याश्तिरिति वाच्य चन्ना- नानमारमव्यवधानेनम ew भववित्यमिप्रायविषयले तात्पर्य्यात्‌, यच्च wafer तथाभिपरायसम्मवस्तचापौग्रमादायैव तत्‌सम्भवः। नन्वेवं सा श्रोजग्राद्या स्यादित्यत we, “खा चेति, 'वट-पटज्ञानयो रिवेति घट-पटश्नानयोरानन्तय्यैभिवेत्ययेः, “AGI . Pav’ मानसोपनौता,८९ पदं श्टणोमौत्यमुव्यवसाये लौ किक- विषयतानुभवो fates एवेति इदयं “इदमिति अनित्य लासुमानमित्यथः, “एकै काएवेति एकैका नित्या एवेत्ययः, ‘meat म्तरादौनामिति, श्रादिना तदुन्तरोत्पन्नपदा्थान्तरपरियहः,

` (४ wan टस्योत्पत्तिमत्वं fag णवं वर्णान्तरस्यापौचर्थः। `. (९ ware मानसोपगयेनेव sae तद्भानमिति माबः। `

एम्दास्यतुरौयखे शब्दानि्यतावादः। Ree

Satreaasta तावतकालौनतां गकारस्य णङ्ञा- तौति “तावत्कालं श्िरण्वेनं कः पञथ्ानाशयिष्य- तौति पराभिमताशुविनाशित्वब्यतिरेकान्नित्यताया- मेव पय्वस्यति। धम्मिणो गकारस्य भेदेऽपि रकजातीयत्वेन Naf, तथा सतिं asta fafa: स्याब्रतु रवायमिति। अथ तारत्व-मन्दत्व- वि रूङधम्माध्यस्तविषयत्वेन सा AWA) चख तारत्वादौनां खाभाविकत्वं . विरङ्त्वष्बासिद्ं, ax. सतारो गकारस्ताराग्मन्दोऽन्य LIAM TATA तत्‌सिङ्धः। wat शेत्य-द्रवत्वे खाभाविके इत्य VARI VAI तत्‌ किं यो यद्गतत्वेन भासते 'तावत्कालौनर्ताः सिरकालौोमगकारामिन्लता, “अए्विनाशिव- व्यतिरेकादिति, विल्लम्बविनाभितलबाधसडशतादिति गेषः, .विलम्ब- विना शिल्वाभावस्योभयसश्मतत्वादिति भावः। पय्येवस्यतोति वेः wae, तथाच वर्णौ नित्यः विक्लम्बविनाभशिलाभावे सत्या- ufanfrarnafeqaaafafa भावः ‘ar’ श्रभेदप्रत्यभिन्ा, 'सखाभा विकल seas, खाभा विकलवे हेतुमाह, मन्द इति मन्दो गकारस्तारो गकार द्त्ययेः, faaga हेतुमाह, तारादिति, मन्दलावष्छेदेन तारभेदग्रहादिति भावः। ‘aqfegicfa तयोः श्रष्दे ठन्िल-विकरद्वयोः सिद्धेरिव्ययंः snmga, तत्‌ किमिति,

se तच्चचिन्तामणौ

awa रव तथा सति रक्तः पटः जरितः स्फटिक- इत्यादावपि तथां स्याद विशेषात्‌, न, रक्षत्वादौना- ` मन्यधम्प॑त्वस्थितौ स्फरिकादौनाश्च तदिरूद्धम्यैत्वे स्थिते जवाकुसुमादेरन्वय-व्यतिरेकानुविधानाद्‌बाचधेन तब यान्तत्वात्‌। बेह तारत्वारैरन्यधम्मेत्वेनोप- fafa: | नापि गकारादौनां तदिरुदधम्मेवच्वं, नाप्य न्यस्य तारत्वादिधभ्िणोऽमुविधानं। न. चावश्यं सखौहतवायारेव धम्ाम्तारत्वादयोगका रादिगतत्वेन भासन्ते इतिः वाच्यं स्पर्शाग्रहे त्वचो व्यापाराभावेन त्ववा ASANTE | अवसा तद्‌ ग्रहः, अवायवौय-

त्वेन वायुमाचधम्मामग्राहकत्वाच्चक्षुवेत्‌ तारत्वाद्यो

qa श्यात्‌, रक्रत्वादेः स्फरिकादिघम्मवं aq, “wager ष्छटिकादतरधरमेलव्यवस्थिता वित्यथः, प्रमाणान्तरमाइ, “स्फटि- केति, tamtare, वेति, “श्रन्वयेति, wfearet cna इत्यादिः, ‘aria’ रकरत्वाभावख्य yarufagaa, “श्रनु विधानमिति, तारलनादिप्रत्यय इति we. नन चावश्यमिति भवतामपि तार- ` मन्दशब्दोत्पत्तौ विजातोयवायुसंयोगस्य नियामकलादिति भावः "स्याद" स्य््राविषयकथाकात्कारे, व्या पाराभावेनः जन्यलाभावेन, “द्रवायवोयतेन' श्रवायवोयवदहिरिगश्रियवेम, तेन aafa a afy-

शरब्दास्यतुरौ यणे श्ब्दानित्यतावादः | 3

या aqua: आ्आावणत्वात्‌ कादिवत्‌, वयुषा श्रवणमाचम्राद्यधम्मीमुकत्वात्‌ पटवत्‌, WA MITA वायुधम्मेष्वनिधम्भाः वायुधम्मस्य ध्वनेर- ग्रहात्‌। ध्वनिरूपः शब्दो नमोषत्तिरेव तथा सति तङ्धम्मेतारत्वादिग्हः satis वाच्यं | तारोऽयं गकार इत्यव ध्वनौनामस्फुरणात्‌ तत्‌कार णाभावाञ्च। च. व्यक्तया विना जातिस्फुरशं, तस्या व्यक्तिसमा- नसंवित्‌संबेत्वात्‌ | स्मयमाणतारत्वाद्यारापः, IT, AWE सन्ना- द्रव्यत्ववारणणय, एवमुक्षरज wry यया- योग्यं माज्रपदमध्याहाय्यै। “श्रतएवेति, वच्छमाणएषध्वनेरग्रहादिति- दोषादेबेत्ययेः, “श्रयशादिति श्रवणमाबग्रहासम्भवादित्यथैः, तथाच afway विना कथं जातिग्रह इति wal गतु तारलादिभेव aR स्णुरणएमभ्युपगम्यतामत शआ, ^तत्कारणेति गकराथुत्पन्ति- ` मये ध्वनिकारणो भरतस्य शङ्खदेरभावादिव्ययेः। मनु तारला- दिकं जातिविग्रेषस्तस्य शब्द टन्तितेऽपि तल्नियामकतया वायु मिह वैजत्थमावश्वकं तथाच शाघवात्‌ तदेवास्त॒ किं शन्द्वेजाल्याम्तरे-

(९) चाग्रहकत्वं लौकिकप्रयच्ताजगकत्वमेव तश्च मगसो areafata au विद्धेषणमिति वाच्यं च्ागमाचस्येव मनोजन्धत्वात्‌, खन्न

लौ किकविष यित्वावच्छि्रजगकताप्रवेरे वथमिचारानवकाश्चादिगरेषय- Tay बोध्यं |

RE _ तच्वचिन्तामणौ

बाधकाभावात्‌ प्रथमतस्तारत्वा्ग्रदप्रसङ्गाचेति। मेवं तारत्वादया गकारादिजातयः गत्वादिना BET प्रसङ्गात्‌ नानैव तारत्वं, ताराकारानुगत- प्रत्ययाभावप्रसङ्गात्‌। सजातौयसांसषात्कारप्रति- बन्धकतावच्छेद शब्दहत्तिजातिन्वेन नाना तारत्वेषनु-

रेति गौरवमेव बाधकमित्यस्लरसादाह, "प्रथमत इति सादृण्ठ- विगरिष्टगकारादिुद्धिं विनेत्य्ेः, सादृष्ठविशिष्टधरिश्नागच्य छाये माणारसेपे हेतुलादिति भावः। सजातोयेति खाश्रयसनातोये- व्यथः, श्रतिबन्धकतावच्छेदकेति ज्ञानविषयतया प्रतिबन्धकताव- Sat, मन्दवुुत्ा विर हविभिष्टतारलौ किकसालात्कारलेन शौ किकविषयितया तारग्रन्दवल्ेनैव वा काय्यैषददवन्तितया प्रति- बन्धकलादिति भावः तारशब्दस्॒ स्रङ्पतो a Afar. देशाग्तरे तारग्रब्दसन््ेऽपि मन्द शब्दस्याग्रापन्तेः चाद्श्तारला- अयग्रहे यादृग्रमन्दलाश्रययदो जायते तादृ ग्रमन्दलान्रयाचात्‌- | कारं प्रति ताद््तारलाञ्रयषा्षात्‌कारलेन प्रतिबन्धकलं तेम अर्मववामेव शब्दानां किञ्चिद पेच्छ तारल-मन्दल्वेऽपि चखतिः, प्रतिबन्धकाभावकूटख हेतु तेनैकविधमन्दल्ाश्रयग्रे नानाविधता- रलाश्चयग्रस्य प्रतिबन्धकल्वेऽपि कतिः अच सावच्छिल्ाभाव- घाखात्‌कारप्रतिबन्धकतावच्छेदके गलादौ मधरतरग्ष्देमोत्‌कट-

[कस

(९) खरूप सन्न प्रतिबन्धक इति Ge |

प्ष्दाख्यतुरोयखद्छे श्यब्दानित्यंतावादः | acy

विषयशूपतथा स्पशा दिगदप्रतिबन्धाच्डम्दठत्तिमधुरतरते चाति- , व्यार्धिवारणय साश्रयसजातोयेति, साजात्यश्च रणएतव्याप्यजात्था तेम सर्णादेगै एलादिना मधृरतरग्ष्दसनातोयलेऽपि ma खतिः। चेवं मध्रतर र्द्ध खसमागजातौयकटुग्रम्दयदहं NAA प्रति- बन्धकतया सजातौयसासातृकारप्रतिबन्धकतावच्छेदकं मधुरतर- wea एवं गलावच््छिन्नाभावसाकात्‌कारस्यापि गकारविषयक- तया गलादिकमपि श्जातौयसाखात्‌कारप्रतिबन्धकतावच्छेदक- fafa avez) गणएवब्यायजाव्या स्ञाशरयसजातोयसाकलात्‌कारमाब- ठत्तिधनावच्छिन्नप्रतिवध्यतानिरूपितप्रतिबन्धकताया विवक्ितिवात्‌ मधुरतर शब्दस्य खाविषयकसाचात्‌कारलावच्छेदेनेव(\ प्रतिब- न्धकल्वात्‌ उत्‌कटमधुररसस्यापि रसान्तरसाचात्‌ कारप्रतिबन्धक- तथा तच्लाततावतिप्रसङ्गवारणाय गब्दटत्तिपदं, समवायेन weze- ्ितालाभाय जातिपदं, तेन मधुररसमिष्टोत्‌कषंस्यापि काशिक- तया शब्दटन्तिलऽपि तदहोषतादवस्षछछा चाच प्रतिबन्धकताव- च्छेदकलं यदि तत्पय्यो्यधिकरणलं तदा तारेऽस्भवः मन्दबुभु्ा- | विरइषदशटततार त्वस्यैव तत्‌पर्य्या्यधिकरणएलात्‌, sa) तत्‌कोरि- प्रविष्टव तदा मन्दबुभुत्छाविरहां ओर मन्दलस्यापि प्रवेश न्दवे- ऽ्यतिप्रसङ्ग इति वाच्यं प्रतिबन्धकतावश्छद कत्वपदेन शन्नानविषय- तथा प्रतिबन्धकतावच्छेदकसमवेततया तत्‌कोरिग्रविष्टवस्य faa-

(१) एवं गल्वावच्छित्रसाक्तातृकारप्रतिबध्यतावच्छेदककोटौ ments साधारण््राय साच्चात्‌कारत्वाप्रवेश्राख नोक्तदोष दति बोध्यं | (९) qatar aaa | |

axe सत्वचिन्तामणौ

कितलात्‌ मतु तथापि area विरशविभिष्टमन्दुसुा ` हतमन्दशम्दषालात्‌कारलेन ` तारग््दयदं प्रति प्रतिबन्धकलात्‌ मन्दवेऽतिप्रसक्गः। मन्दश्रब्दन्नानं arent मन्दग्रब्दालुभवो लायतामित्यादिभेदरेन तच्छब्दसाशात्‌कारो जायतां तत्‌पुरुषोष्- श्रष्दसाच्ात्‌कारो जायता मित्यादिभेदेन WAY अ्रमतु- गमात्‌ कथमेकरूपेण हेतुत्व) मन्दगरन्दसाक्ात्‌ कारे च्छालेनातुगमे nad जायतामित्थादेरपि शङ्कहापत्तेरिति are तन्तदिच्छा- न्यमन्दषाचात्‌ कारे च्छालेनासुगमादिति - चेत्‌, न, wafemra- भन्दगुभुष्पावे शिष्यानव च्छलेन प्रतिबन्धकताद्रा विशरेषणो वलात्‌ | सा्मदायिकास्त तारबुभुक्छाविरइविशिष्टमन्दबुभुष्छाल्वन मन्द ayaa सामामाधिकरण्डपरत्यासत्या तारगरब्दयदप्रतिबन्धिका तु ASAT तच प्रवेश CATS: तदसत्‌ | मन्द्‌ श्रष्टासच्वेऽपि तादृगेच्छायां तार ग्ब्दायदप्रषङ्गादिष्टापन्तौ चातु- भव विरोधात्‌ | greg प्रतिबन्धकतावच्छेदकत्वं प्रतिबन्धकतावष्डेकलपय्वा्- धिकरणखाश्रयषाच्ात्‌ कारलकल्व, मन्द शष्ट सालात्‌ कारव तथां बुसुल्धा विर वेभिष्छादेरपि तज xan चेवं तारलेऽ्यषम्भवः तापि बुभुा विरश्वेगिश्चस्य प्रवेश्रादिति वाच्यं मन्दबुभुन्छा- विरदविशष्टतारशन्दषाकात्‌कारलवेन fe प्रतिबन्धकलवं किन्तु ATCA TAMAS मन्दवुसुखा BE, काग्येतावच्छे

(९) कथमनेन रूपेण हेतुत्वमिति खर |

WRIA Vay शब्यानि्तावादः | ४८५

गमः, तदप्रतिसन्धानेऽपि तारत्वानुगतप्रत्धयात्‌ ता- रत्व-मन्दत्वे शब्द टलिजात्मै संप्रतियोगिकत्वात्‌ |

Say A तारग्ष्दगररकालौनमन्दश्ब्दसाचात्‌कारत्वं तथा खति तारगरब्दासत््ेऽपि मन्दनुभुासम्वे तारगरब्दगरदकालौनमन्दगरब्द- साश्षात्‌कारापक्तेः किन्तु मन्दमुभुत्छोतरमन्दशष्दसाकात्‌ कारल,(९ इत्यश्च तार गष्दग्रहकाले सामान्यसामसौोमग्यादथा मन्दसाकात्‌- कारवारण्ाय तदकालोममन्दषाखात्‌क्रारे केवलं तार च्रब्दसाखात्‌- कारलेभेव प्रतिबन्धकलमिति तारण्रब्दसाचात्‌कारलश्य तत्पर््या- ्यधिकरणएलादित्याङ्ः। AI! काय्यै-कारणभावदयकख्यने गौरवात्‌ मानाभावाश्च। भे तवापि विशेवश-विेव्यभावेन विभिगमना विरहात्‌ काय्ये-कारणभावदयमिति0र are) तथापि तवापि कास्यै-कारणभावषतुष्टयात्‌(२ तन्तदिच्छान्यमन्दबुभु्छोष्तर- लस्य काैतावच्छेदकधटकतया का्यैतावच्छेदकगौ रवं पुनरधिक- मिति fea. | | 'सद्प्रतिसन्धानेऽपि' ताद शावच्छेदकलाप्रतिसन्धानेऽपि, argy- प्रत्ययस्य कद्‌ाचिदपला पम्भवादाह, (तारत्व-मन्दतवे चेति, शब्द्‌ (५ मन्दबुम॒त्‌ साविशिष्टमन्द्ण्ब्दसाच्तात्‌कारत्वमिति ge | | (९) वि्ेषण-विष्ेष्यमावमेदेन काय्यै-कारणमावदयमितौति we | (९) मन्दबुसुत्घोत्तराब-मन्दसाक्षात्‌कारत्वयोस्तारानुत्तरव-मन्दसाच्ताव्‌- aerate विपरषण-विशेष्यमावमेदाव्‌ cad: | चोत्तरत्वावण्छि्रं

प्रेव हेतुत्वात विष्धेष्यप्रवेश् इति वाच्यं aqucesft वथा सम्भ-

वात्‌ प्र्तासङ्गतेरिति ध्येयम्‌ | 49

Ree तत्वचिन्तामणौ

नापि तारत्व-मन्दत्वयोर्विराधः, खव गकारस्तार- आसौत्‌ Wan मन्द इति समयभेदेन वर्ुभेदेन तयोरेकत्वप्रतीतेः | ARI तारतरस्तारा- maior इति मेदप्रतौतिरस्तौति चेत्‌, न, wiser: ऽभेदे भासमाने विशि धम्मिभेदप्रतौतेर्धन्मैमेद विषय- त्वात्‌। VW घटे लाहितोऽयं श्यामद्दानौमिति प्रतीतिवत्‌। MAD WAY मन्दगकाराभि-

रा a oe

टकम ति; aay , शष्दटन्तिजातितथा ataragaa इति भावः। "नरष्टटन्ती ति Berna तेन- ana नेाप्रसिद्धिः,९ “शप्रतिथोगि- कत्वादिति सावधिकलवादित्यथः, श्रयमस्माश्लारः अयमस्माश्न्द- इत्येव प्रत्ययादिति ara: | रसादिट््युत्कर्षापकषेजतेस्कातेऽभावा् व्यभिचार इति भावः। ग्ष्दटन्तिजा तित्वमभ्वुपेत्याइ, नापौति, “आसोदिति खयलम्ध इत्यथैः, शअन्ययातोतनानन्वथात्‌ वकषभेदेन चेति, एव gage तार safer एव We मन्द- खश्चरित इति amen tah, "तथोः" तारल-मन्द्तयोः, तारो- ऽयं तारतर इति gerard, “स्तौति, श्रभिकरण्ाभेदप्रत्यभिन्ना माधिकेति we: ) भासमान इति प्रमाणसिद्ध cae, 'धर्मति तारल्वादिघभेद विषयत्वादिव्यथैः, ‘MAI तोव्रगकारषाका- वकारे णेत्यर्थः, मन्दनुभुत्छाविर दसदतेनेति we, “श्रभिभवादिति

(९) aad शरुणगतजात्नद्ोकारारिति ara: |

WRAITH शब्दानित्यतावादः | ३८७

भवात्‌ तयोमेदः हि तदेव तदभिभावकं, तस्यैव तेनैव - तदैव ग्रहणाग्रहशयेाविराधात्‌ इति: वाज्यं तारत्वव्यश्ञकवायेाबेलवच्वेन मन्दत्वष्यश्कवाय्वमि- भवात्‌ मन्दत्वस्या्रहणात्‌ | सन्तु वा तार-मन्दरूपा- दयोऽभिन्नारव गकारास्ततप्रत्यभिन्नामे बाधकाभावात्‌ | तस्मात्‌ वायुधम्मा रव ॒तारत्वादयः शब्दगतत्वेन

साचात्कारपमतिबन्धादिव्ययेः, “त्रभिभावकमिति शाखात्कारप्रति- . ` बन्धकसाक्वात्कार विषयतावच्छेदकसित्ययैः, ‘aga’ गकारण्येव, ‘ada afaaa काले, ‘aay’. पुरुषेणेव ‘aaa’ प्रति- बन्धकलेन, 'वाखभिभावा दिति वायोस्तेन सह सामानाधिकरण्थादि- त्यथः, तथाच तौव्रगकारसाचात्कारो प्रतिबन्धकः किन्तु जावच्छेदेम विजातोयवायुसम्बन्ध एव प्रतिबन्धक इति भावः | ‘afirar एवेति पाठः ताररूपा गकाराः सर्व्वंऽभिन्लाः मन्दरूपा- मकाराः सर्मऽभिन्ञा द्यः, तु तार-मन्दयोरभेद इति भावः | श्रत्यभिन्नान इति स. एवायं तारः एवायं मन्द इति पूष्वी- न्तरतारयोः पृथ्वीत्तरमन्दयोखामेदप्रत्यभिभ्ायाः `. VATA बाधका- भावादित्थथैः, 'मापौत्यादेरभ्यपगमवादेनेव उक्षलात्‌ सखमतेनोप- संहरति, "तस्मादिति, ववायुधर््राःः वायुखमवेताखण्डोपाधिङूपाः, शर्द समत्रेतले मलादिना सहरपसङ्गात्‌(९ नानातोपगसे . गकार

eae भन कक cs =. Gres ०००० ew क्क - क्का) +> ०० [1 —- षि, | ewes ००० ee Dotseces ase +905

(९) तम्मते साह्च्येस्यानु गतधम्मभमाज्रबाधकत्वमिति ara: |

gee avafadrat

भाषन्ते दर्प॑शधम्भा इव मुखादौ ATTA स्पशपुर- सकारेण कगेशष्कुलोत्वगिन्द्रियेख तार-मन्दजनकवाय्‌- नां त्वयाप्युत्कर्षपपकषैस्योद्भूतस्यशेस्य ata mata वा चश्रारेयंख वायुधम्पैग्रहस्तजायेग्बत्व- मुपाधिः, अन्यथा MAG खगुणा ia इन्द्रिये

ककारखाधारणताराकाराशुगतप्रत्यच्ारुपपस्तिप्रसङ्गादिति भावः चेवं. गलादिकमपिः वायुधश्जाऽस्ठ तारलारिवत्‌ adwa- ware शाघवादिति as! एव गकारस्तार श्रासौत्‌ ष- एषेदानौं मन्द इतिवत्‌ककारादौ गकारादिनेन प्रव्यमिश्चा विरहात्‌ प्रत्युत ककाराद्भकारोऽन्य इत्यादिप्रतोतेरिति इदयं “ख्थैपुर- स्कारेणेति wi विषयौ रृ्येवेत्यथः, ‘adi कष्‌ वच्छेदेन लगिश्ियवल्तिकर्षंणेत्यथेः, यथा चचुभौ खकावष्डिकनल गिन्धिथसन्नि- कष्येव धूमस्पशेयाङकल्वं तथा कर्णेग्रषवुद्यवच्छिशल गिदियसन्नि- कर्वद्धेव तादृ शस्यशरेयाहइकत्वमिति भावः। श्रत एवान्यावच्छेदेम aft fxaafaate तद्ग्रहणमिति। 'उत्कर्वेति, अन्यया का््यैवैजाल्यं नस्यादिति भावः। ‘eqnetefa, ae caraqaave वायोः शब्दाजनकल्वादिति भावः। नन्वेवं BTA तन्न zea) तारं स्युरामोत्यतु्यवखायापत्तिखेत्यत श्रा, “ATA, ‘ag गहणमित्यरुषव्यते, “अन्यथेति सवार शेनमाचात्‌ Ht इत्यरथः,

(५ कर्मावच्छितवुाद्यपद्तत्वचा ange स्यादिति we |

ए्ब्दाल्यतुरोयखणे शब्दोनित्यतावादः | ६८९.

तथा दशनात्‌, WHat पाथिवरूपग्राहकं अपाथि- वेन्दरियत्वात्‌ रसनवत्‌ इत्याद्यपि स्यात्‌। We योग्यो- योग्येन WA STU WYRM वा, योग्यता फल- बेन कल्पयते, तदि ओषरस्यापि वायुधम्पेमदे तुज्यं | तारो गकार इत्यव वायोरप्रतौतिः, वायुन्वेना- ` प्रतीतावपि तारत्वादिजैव तत्मतौतेः, यथा अ्मित्वे- नाप्रतीतावपि अयोगोरक्े Brfea इति प्रततिः . ननु वायु-शब्दयोरूवचा BAT वा ग्रहे केन तारोऽयं गकारदत्यारोप इति चेत्‌, न, उभयेद्दरियग्राद्यथेार- संसगोप्रहात्‌ संसगेव्यवहारः। असु at त्वगिद्दिथाप-

‘aur दशेनादिति खद्णाग्राहकलत्वर्‌ भ्रेना दित्यथेः, "न पार्चिंवशूपेति, Tame: एथिवौसमवेतषन्ायाइकतथा व्यभिचारवारणाय रूपप्‌, तश्च रसेतरगुणपर, अतएव we व्यभिवारवारणय डेतावपा- faafa, ae पक्षमतया(४ व्यमिचारो दोषाय, तवगग्माद्यत्वेनापि वा णो विग्रेष्णोयः। "न चेति, लक्‌ argue विमा तद्‌- न्तिजातिगप्रहषमर्येति भावः। लखा तारलग्रहपक्े इद,(९) "ाय्‌- लेनेति, वायुलख्छ त्ते att state दोषादग्रदति भावः लया तारलप्रहपके wea, "गन्विति, परमतेनाह, ‘ag वेति,

(९) प्रतिबन्धिसुद्रया त्रापि तस्य साध्यत्वमिति ara: | (९) QP वायम्रहापेच्ता स्यात्‌ |

१९० तत्वचिन्तामणौ

नौतस्य MAU: AAs वा तारत्वम्रहाऽपोत्युक्त, उत्प्तिमस्वश्वासिन्खं तत्‌प्रतौतेः श्रुतपुव्वाऽय गकार इति प्रत्यभिन्नानबाधितत्वात्‌ ननु प्रत्यभिन्नव तया बाधिता गत्वजात्यौपाधिकोऽमेदप्रत्ययो गकारे सम्भव- ` तीत्युक्तमिति चेत्‌, न, गत्व जातेरसिष्ः भेदे भासमाने मेद प्रतौ तिर्जातिमालम्बते। गकारमेदप्रतौति- ` रस्ति, .तारत्व-मन्दत्वे अपि भेदत ण्व तारः a रवेदानौ मन्द इति प्रत्यभिन्नानात्‌, गकारानित्य- त्वेऽपि तथा सम्भवतीति चेत्‌, afe नित्यत्वेऽपि aa-

खमतेऽन्ययाण्यातेरभावात्‌ "तयेति उत्पज्तिप्रतौत्येव्ययंः, "बाधि- तेति ग्यह्यमेद विषयतेन बा धितेत्यथेः, व्या्मेद्‌ विषयेति यावत्‌, fanfe wat विषय दत्यत are, (लेति, “गत्वजातेरिति : गकारस्येकलेतकव्यक्रिमा जटन्तिलादिति भावः भसु आतेरसिद्धा- वप्यनुगतधम्मान्तरमभेद प्रह्यमिन्नाविषयथः | ष्यात्‌ यदग्रे कोलाहल Wheat दोषान्तरमाह, "मेद इति, “भाखमानेः अतुभवसिद्ध, अन्यथा चटा दिष्यक्यमेदप्रत्यभिश्चानमपि दम्तजलाच्चल्ति e- fafa भावः। नतु तारत्वादि विर्द्धधर्ण मेदोऽनुमेय इत्यत आरद, तारेति, ‘zea’ भेदारुमापकौ, कचित्‌ तथेव पाठः, ‘a एवेति तथाच विङद्धलाभावान्न मेद शिक्गत्वमिति भावः 'गकारानित्यल्व- ऽपि, .मकारस्लोत्पत्तिमच्वेऽपि, “तयेति व्यक्भेद प्रत्यभिन्नेत्यथेः,

(९) घटादिव्यक्यमेदप्रयभिच्लानेऽपि दत्तजलान्नलिर्ति खर |

णब्दाखयतुरौयखण्डे णब्दाभित्यताषादः | REL

शष्कलौत्वगिन्द्रियो पनौतवायुधम्मीत्पन्तेरुपाधित्वं सम्भ- वति | वायोरप्रतौतिः, उत्पन्नत्वेनैव तत्प्रतौतेः लोडहितन्वेनेव जवाकुसुमस्य स्फटिके | असतु वाः प्राग- नु पलम्यमानत्वे सति उपलभ्यमानत्वेन उत्पन्नस्य. ` सादृश्येन सतोत्पत्तिमच्वारोपः। शैवं घटादावपि नोत्पत्तिः सिद्धोदिनति वाच्यम्‌| कुलालब्यापारान- न्तरमनुभूयमानघटस्य तद्यापारात्‌ प्रागजुभरूवमानेन घटेन नाभेदोभासते किन्तु Ae श्वेति तच oT aw सिध्यति, गकारे त्रुन्पत्तिप्रतीत्यनन्तर aw- ताश्वादिव्यापारात्‌ पुव्वमनुख्यमानगकारेणमेद्प्र- aay) दौपवत्‌ Asan रव अथ शब्द्‌ उत्पद्यते

श्रारोपरूपला दिति भावः तहिं तुष्धन्यायतयोत्पक्तिमक्वप्र्यथस्यापि भ्रमत्वं सम्भवतौत्यार, ‘AV ति, "उपाधिल्लमिति श्रारो्यलमित्ययैः, तथाच विनिगमकाभावादुत्पन्तिम्त सन्दिग्धमिति भावः(९। अ्रसु- waar भिषेधति, चेति, स्फरिक इति, तादाव्येनेति शेषः सनु तदान नियमतो वायोस्तारलेनातुभवकखने. वायु- त्वामुभवप्रतिबन्धकदोषकण्यने मानाभावो गौ रवश्चेत्यत. श्रा, “अस्तु वेति, सादृश्यं विना तादृ्रधोरस्द्धिवेति भावः) "खः" कष्टताश्वादिग्यापारः, व्यञ्जक एव शब्दस्य TAH एव, ‘Teele

(९) ऋअमेदप्रत्यमिश्लामादिति we, | (९) सन्दिग्धासिद्धमिति ara दति ख. |

ReER arafanntaat

gener सति अपकरषवश्वात्‌ माधुय्यैवत्‌ अतश्वा-

परममशत्वे व्यभिचारवारणाय विशेष्यं, परमाणपरिमाण्े महत्वापे- aaqes व्यभिचारवारणाय wari तयापि परमाणे- ` रलस्य द्रणएकाएलापेषयोतृषृ्टवान्तरोषतादवख्यमिति वाच्यं अपकर्॑पदेन सखाश्रयषजातोयप्रतियो गिकापकषेख्छ विवच्ितव्ात्‌ खपदमपक्ैपर, VM Bwana) चं सत्यकवेय््य॑मिति वाच्यम्‌ श्रभ्निख्शपिचयाऽ्यन्तापर्ष्टे योभ्नो- प्द्यारम्भकपरमाणगतोष्णस्यशं व्यभिचारवारकलात्‌ खाशरव- समानाधिकरणद्रव्यविभाजकोपाधिमहृन्तिवेनः wratd faze | we तेन शकंरारसाश्यपेयापषृषटे तण्डुला दिरखाश्चपेखया wee जख्लपरमाणरसादौ व्यभिचारः wacarter तजापकषेविर- wy, खपदमपकषंपरः यदि परमाणपरिमाणे श्णएकपरि- माणापेखयापि गोत्करवीऽस्ति किग्वपकषं एव तस्यात्यन्तापरुष्टलेन wifagay शअधिकदेगरव्यापकलेनेव परिमाणष्योक्कष्टवमिति शणकिरणाबद्यामाचार्ययैरभिहितलाच्च, तदा तु सजातोयेत्यलुपा- दाय तादृ्रोपाधिमहून्तिप्रतियोगिकलेनापकषं एव विगेषण्णेधः | ` केचिन्तु प्रत्यवे सतोत्यनेन विशेषाश्च परमाणुपरिमाणादौ व्यभिचारः सत्यगावेचथ्य, Faxes तात्पर्य्यात्‌, किम्ूत्कषे- वत्ववटितद्ेतौ प्रत्यकं बहिरि द्ियजवेन विग्रेषण्णयमत श्राक्म- परिमाणस्य प्रत्यश्त्वेम तच व्यभिवार इति प्राहः |

(७ aeme परिमायत्वेन सजातोयत्वेऽपि तद्याप्याखल्वादिनात्या aU तच YUN वेति दपेच्तयापकवंसतकरेति भावः |

श्ब्दास्यतुरोयखय्छे शब्दानित्यतावादः | BER

नित्यत्वमिति चेत्‌। न। तारत्व-मन्दत्वयोरुत्कषौपकषे- योगकारे पुव्वेन्ायेनासिद्ेः सिद्धौ वा जातिसङ्करभये- नोत्कषापकषयोजात्योः रसत्व-शब्दत्वव्धाप्ययोर्नानात्वेन रसशब्दसाधारण्याभावात्‌ WATT सजातोयसा- छात्कार प्रतिबन्ध कतावच्छेदकसामान्यमुत्कषे; तत्मति- RAVAN TT विषयतावच्छेदकसामान्यमपकषेः इति साधारणो हेतुरपास्तः तारत्वादेगेकारनातित्वा- fed: | साधनावच्छिन्रसाध्यव्यापकमूक्तेगुणत्वस्याओौ- ` श्रनुमितातुमाने गौरवादाह, ‘aa एषेति, अरनित्यवमिति, शब्दे साधनोयमिति Te: | “साधारष्येति, तथाच शब्द टच्युत्कर्षा- पकर्ैवरितव्याक्षिरेवासिद्धेति भावः "सजातीयेति, wa हेतुदये ATTA, गगम-परमाणपरिमाण्टत्तिजात्योरनिंरक्प्रतिबन्धकताव चे दकल्व-प्रतिबध्यतावच्छेद कल्वयोरसत्वेन व्यभिचाराभावादुभयनिवेशे प्रयोजन विरहादिति Ba श्रमूत्तमाचटरतिदितादरौ( साध्या- व्यापकतया ‘aaa, इदञ्च सनिहितद्ेत्‌ दयापेचया श्रन्यथा सुखादौ कर्मणि साध्याव्यापकलापातात्‌, श्युएपदश्च समवायेन मूकेटन्तितालाभाय, घ्वनिख वायुधश्मं इति मतेनेद- भिति ध्वनौ साध्याव्यापकता, श्रभ्रौचेति ओजाग्राष््णएलतवस्ये- व्यथः, मातः ओओषसंयो गादौ व्यभिचारः, ष्वमिभिन्नभावलावच्छिश्न-

(९) qafaarafeaafafa we | 50

Res | ताचचिन्तामबौ

qa चोपाधित्वात्‌ अप्रयोजकत्वा्च | fe कार शापन रव उत्कर्षऽपकषेख, wares परमाणौ परिमाणे प्रत्येकं सत्वात्‌ | चोभयस्येकच ae कारणप्रयोज्धं, रकैकवद्‌दयोर पि प्रत्येकमेकत्वात्‌। स्या- देतत्‌ ओ्ओोषव्यापारानन्तरमिदानो श्रुतपुव्यौ गकारो नास्ति विनष्टः कोलाहल इति प्रतीतेः प्रत्यक्षमेव श्ब्दानित्यत्वं विनाशिभिावत्वेनोत्प्तिमश्वानुमानादा, प्रत्यक्षप्रतियोगिकाभावत्वेन fe nara ध्वंसस्य घट-

री

साध्यव्यापक बोध्यं तेन ध्वनि-तद्धंषयोने साध्याग्यापकता, wa- काते. meena ध्वनेः षदिश्वियेश्कालस्य May qaace, छत्वषैवत्े सतौ ति Preval दोषान्तरमाह, “श्रपरयो- THe fa | “सजातोयेत्था दि हेतुपरल्वे “परममहतौत्याचयिमग्रन्द- विरोधात्‌ sagen निराकरोति, "म होति भरत्येक- मेकलादिति, तथाच प्र्येकषन्तानिथामकारेव एककनोभयसक्नोप- TAT तज सकारणकलं प्रयोजकमिति भावः। शलोबब्यापारा- नन्तरमिति ओष-मनःखंयोगाननरमित्यथेः गनूत्पज्निमत्वमेवा- fret तच्च प्रत्यसिद्धमित्यतश्रार, “विनाभरिभावलेभेति, (उत्पन्तिम्वासुमानादे fa, “अब्दा नित्यलमित्यसुषव्यते, “waaay wean, तेन मूरत्तसामान्याभाषे व्यभिचारः, ‘dee शब्द

() च्व निभिन्रतार्त्वाव्छित्रसाध्यव्यापकत्वमिति Ge |

प्ब्दाख्यतुौय WMATA: | १९५

ध्वं सवत्‌ तु विनाशग्रहे प्रतियोगिसमबायिप्रत्यश्चत्वं तन्तं wala naan: | afefxarare- $पि प्रतियो गिसमवायिनि गन्ध-रसाभावयोग्रंहणाञ्च। नोभयं गौरवात्‌ स्मृतघटसंयोगध्न॑सामप्रत्यक्षत्वापाताश्च | प्रतियोगियोग्बत्वस्य तन्त्रत्वे वायुस्यशध्व॑सोऽपि प्रत्यक्षः स्यात्‌ इति वाच्यम्‌ | आश्रयनाश्रजन्धस्य तस्व

(Wee, “विना श्रे" fara, ‘aati धोष्वंसेत्ययेः | मतु खया इकेश्ियग्राद्यप्रतियो गिमवायिद्धस्तिमा शत्वं wanaye- तन्त्रमित्यत श्राह, ‘afefxafa, "गन्ध-रसाभावयोः' गन्ध-रस- ध्वंसयोः ननु तदि द्धिययाद्प्रतियो गिकष्वंसल्वं प्रतियोगिषम- वायिनो शौ किकपरत्यच्षवश्च इयं नाशरप्रत्यसे तन्तमित्यत sry, "नोभयमिति, ‘aust खतघरयोयैत्योगष्वंसप्रतयशं भतेलादौ तस्याभावप्रसङ्गादित्यथंः, तदानौं प्रतियोगि-समवायिनो्लौकिक- neefacefafa भावः। यदा कदाचित्‌ रत्य विषयप्रतियो गि- समवायिकमाश्रलश्च प्रयोजकवे मानाभाव इति Weal | ‘nape: दयादिति वायौ प्रत्यलः स्यादित्यथंः, श्रन्यया कालादौ amare भ्युपगमादिष्टापन्तेः सम्भवात्‌ | 'याइकेति, वायुघटितेद्धियषज्निकरषं- विरहादिति भावः। मन्ेतावता शब्दध्वंसप्र्यलसम्मवेऽपौदानौं ओके =

(९) खं प्रतियोगि वदुग्राहकेन्द्ियग्राद्यो यसतत्समवायो axel | (९) aware मौरवादेव acta वामिति ara | :

xed तज्वचिन्तामणौ

गराहकेन्दरियसन्निकर्षाभावात्‌ | किच्च यस्य ae यचा- नुपलब्धिविरोधि तस्याभावस्तव ख्यते इति. योग्या-

श्रुतपूर्व गकारो नास्तौत्यत्यन्ताभावप्रत्यचासम्भवः श्रधिकरणतया तदे गरिष्यावगाद्यभावप्रत्यचे९ तद्योग्यता विशगिष्टप्रतियो गिमत्वानुपल- fasta योग्धातुपलभेरंतुवात्‌ अन्यया जलपरमाणौ एयिवौलं भाखतौत्यपि प्रत्यचाप्तेः। मददङ्खतरूपवदि श्ियबम्बह् विगर बणताया एव एयिवोलाद्यमावयाहकलात्तदभावादेव तादृग मत्यखषमिति वाच्थं। तथापि द्यूशजले यिवौलाभावबन्निकषेद ्राया- मुपनौतजलपरमाणप्रकारेण तादृ गलौ किकप्रतयचचस्छ दुर्वारत्वात्‌ ya ary ATE WHATS ceraftata “aeacarut प्रयिवी- लाभावसाचात्कारो भवतोति प्रामाणिकप्रवादख्य जलपरमाषु- aferafente एथिवौलाभावषालात्कारो भवतोत्यथं इति TY शलपरमाणसन्निकषेदग्रायां एयिवौलशुन्ययोग्यवस्न्तर- सज्ञिकरषस्यावष्ठकतया एयिवौलाभावलौ किकसाचात्कारस्लावभ्क- लेन ay जखपरमाएघरितसन्निकषंजन्यलाभावस् शपथनिर्ैयवा- पत्ते रिव्यतोऽत्यन्ताभावयहमण्युपपादयति, ‘gia, “यस ॒सल्- fafa प्रतियो गितावष्छेदकसम्नन्धेन यद्भर्म्मावच््िन्ञस्य सत्वमित्यथः, ‘aw श्रधिकरणे, “श्रनुपलसिविरोधि' खावच्छिनवे शिष्यावगाहि- लो किकप्रत्यच्ाभावाभावापादकं arafeqaa शिष्यावगाडहिलौ किक- -अव्यच्चापादकमितियावत्‌, ‘wera’ तद्धर्मावच्छिन्नात्यन्ताभावः,

[8

OTe = 20S 06 भक कक कक AO CS जनो कक वाक PO Cw~RENEO Rese ०७-09-७७

(४) बहि रिग्धियेय खायोग्यमुख्यविश्ेष्यक ज्ञानाजननात्‌ सन्॑साधारखा- येदम्‌ |

शब्दाश्यतुरौ यखण्छे शभ्दानिल्यैतावादः ‘Ree

नुपलब्धाथः। Wawa पथिवौत्वाभावो गलौयपरमाणो प्रत्यक्षः Naa वायौ Sana” अस्ति

‘aa wey श्राधाराधेयभावसम्बन्धेन तदिभरिष्टतया साखात्‌- करियते ay तशादौ समवायादिना चटषत्वेन समवायादिना चटोपशम्भस्छापादमबम्भवादतौद्ियंयोगादिना घटाभावम्रत्यल्ा- पत्तिवारण्णय प्रतियो गितावच्छेदकसम्बनयेने्युक्, थद वच्छिभेतयु- पादानामनसि महत्वसमानाधिकरणोद्रूतरूपाभावसखाचुषोगोद्ूत- ङूपतावच्छिन्नाभाव इृत्यवधेयं | “एथिवौल्वाभाव इति जलपरमाणौ एयिवौलं नास्तीति साचात्कार इत्यथैः, लपरमाणयेदि एथिवौलवाम्‌ स्यात्‌ एचिवौतवे शिष्छावगा दिशौ किकचाचुषविषयः स्यादित्यापादगस्य णणपरमाण्ादौ व्यमिशारेणासम्भवादिति ara: | वायौ Sora इति वायावुचरूतरूपाभाव इत्धयैः,(९) वायुयैदि मर्वे खति चचुःसन्निकरषादिमले सल्युद्रूतरूपवाम्‌ श्यान्नदो- ` ्तरूपवे गिष्ावगा हलौ किकचाच्षविषयः सधा दित्थापादनघम्भवा- दिति भावः) यद्यप्येवं जलपरमाणावपि एथिवौलाभावषाखात्कासी eat भलपरमाणचंदि मदुद्ध तरूपवत्वे खति चचुःखन्िकर्षादि- मन्वे सति प्रथिवोतल्वान्‌ स्यात्तदा एथिवोत्ववन्तथो पलश्येतेत्या- UAW BARAT! पकच्वाटन्तिध््माविशेषितेन agui- afequenafa विवक्ितमिति are: एवमपि भलपरमाणुयेदि

(९) मदति वायौ रूपामाव इति ° | (९) मति वायावुदुभूतरूपामाव इत्ययं इति we |

8९७ तत्वचिन्तामगणौ

तथा शब्दे तस्य VS समवधाने प्रतोतिप्रसङ्गात्‌। निरधिकरणाभावप्रतितिर्नास्तौति चेत्‌, न, इहेदानौँ

Tae” ware सति चशुःसज्निकर्षा दिमत्ते सति एथिवौत्वान्‌ स्यात्तदा एयिवौतलवन्तयोपखण्येतेत्यापादनषम- बेन तज एथिवोलाभावचाचषस्य qatar. तथापि पचाटन्नि- wale परतियोगियाहकातिरिकेभ चाविगरेषितेन यद्धर्रावच्छिन- समेनेति विवचितं गन्धवदणभिशलादिकश्च^) प्रतियोगियाइका- तिरिकभेषेति भातिप्रषङ्ग इत्यभिमानः। रेतस्य योग्यातपणब्धय- wa. घटवति तले चटाभावजौ किकपरत्यक्षभमासम्भवः तज वाखवघटखलरेनापादनासम्भवादिति वाश्यं। अद्या अभावखौ किक- ` अव्य्षमम्नोपयोगिलादिति दिक्‌ विषषरण्छसखत्तानुमानरदस्ते श्तिरेकिगन्येऽतुसम्भेयः प्रते योजयति, “रषि वेति, नतस्य aa समवायेन WU BH, ‘aaa मनःघंयोगे च, श्रतौति- प्षङ्गादिति शष्दप्रत्यशापादनसम्भवा दित्यः, चयदि agua खति शब्दवान्‌ Great श्र्दवन्तयोपलम्येतेत्यापादगच्य निरपद्रव- त्वादिति ara) ^जिरधिकरणेति श्रधिकरण्णानवगा हिनौत्यथः, अधिकरणस् प्रते भानं सक्मवति ओजस्याधिकरणस्य ओओषा-

. (९) गन्धवद्धिन्नत्व इति we |

(९? गन्धवद्धि्त्वादिकष्ेति we |

(९) योग्यानुपलम्भपदार्थत्व इति we |

(४) यदि मनःसंयुक्तत्वे सति शब्दवत्‌ स्यात्‌ वदा खावशसाच्तात्कार- विषः स्यादिश्यापादानस्य निरपद्रवत्वादिति भाव इति we |

ए्ब्दाख्यतुरोय खणे शब्दानित्यतावादः | Ree

ब्दो नास्तौति प्रतीतेः | तस्मात्‌ यचाधिकरणे Sr समये वा प्रतियोग्यव ana ay तदभावो निरूप्यते | WAV सद्भ्यामभावो निरूप्यते इत्युक्त, शब्दाभावस्य स्वतरषेन्द्रियसन्निरृष्टत्वात्‌ नाश्चये सन्निकर्षापेक्षा इन्द्रियविग्रेषणतया नाभावग्रहणमिति चेत्‌ न।

योग्यलादिल्याश्रयः, इति प्रतीतेरिति इल्युपनौतश्ोजादि विषयक- प्रतौतेरित्यथेः। aad योग्यप्रतियोगिकष्वंषस्य कु्रचिटधिकरणे nae भवति gufesas किं मियामकं अरधिकरणयोग्यतस्स तज जियामकल्वागभ्युपगमादित्यत श्रा, "तस्मादिति, ‘aw यज्व, ` ‘ay दिशुपाधौ, ्रतियोम ava दति प्रतियोगौ प्रतियोगि- मष्वोपलम्ममापाद यितु शक्रोतोत्य्थैः, ‘ay तदभाव इति aaa तदभावो निरूप्यत wae, तु तस्यापि ate तन्त्रमिति भावः। “श्रतएवेति थत एव श्रधिकरणयोग्यलं शब्दाभाव wae तन्तं ava, ‘agi’ प्रामाणिकाभ्वामधिकरण-प्रतियोगिर्भ्यां श्रभावो निरूप्यत cath तु योग्याभ्वामधिकरण-प्रतियोगि- भ्वा मिल्यक्षमित्य्ः मतु size ओओचासम्बद्धतया wend इद्दियसम्बद्ध विगरेषणलाभावात्‌ कथं प्रत्थकल्मित्यत sre, "ब्दा भावस्येति, 'खतएव' साचादेव, ‘wea’ ओओ, ‘chal, तथाच शब्दाभाव awe: अ्रभावले सति साचात्कारकारणेखदियसन्बद्ध-

(९) भन्धेवमित्यादिः यचैवेन्न्तः पाठः ATER नास्ति |

gee तज्वचिन्तामणौ

अयोग्यत्वस्योपाधित्वात्‌। अन्यथा गुणस्य सयुक्त समवायेन ग्रहणदशंनात्‌ समवायेन शब्द यः स्यादिति | मैवं सत श्व हि शब्दस्य व्यश्ञकविरहा- द्नुपरन्धिमाचं तु ध्वंसः, तत्तद्याप्येतर सकलतदुप-

विग्रेषणतारडितत्वा दित्यतुमेयमिति भावः श्रयोग्यलस्येति श्रयो- ग्यलं विषयतया साल्ात्काराजमकलं योग्यातुपलयिर दितत्वं वा "अन्येति खचारदशेनमाजेण ae इत्ययः श्यादेतदिति neat waren, “मैवमिति, “श्रतुपलसिमाजमिति कदाचिद- ` शुपलसिमाजमित्य्ः गतु गकारादेः सम्डेदा सत्वे शोके ददानो gaya गकारो नास्तोति म्रत्यक्ातुपपत्तिरिव्यत श्रा, "तत्त- great प्रतिथो गि-प्रतियो गिव्यायेतरम्रतियोग्युपशम्भकयावत्कारण- विशिष्टप्रतियोगिमत्वातुपलयिरूपाथा योग्यातुपलमेरभावा दित्यचेः, yagat गकारो नास्तोति म्त्यलासिद्धेरिति शेषः, अच प्रति यो गिमन्तालुपलविमाचोपादाने श्रन्धकारद रायां निमौलितनयम- द्रायां सुषु्यादिदभ्ायाश्चाभावग्रत्यक्वापत्तिरतो श्ियमाचप्रतियो - गिकात्यन्ताभावपत्यापक्निख्ातो विशिष्टान्तं, श्रतोद्धियमाचप्रति- योगिकात्यन्ाभावस्ले प्रतियोग्युपलम्भाप्रशिद्या नातिप्रसङ्गः, परतियोग्युपलम्भपदस तदि शियजन्यप्रतियो गिशौ किकप्रथश्चपरलात्‌, थावदित्थशते अन्धकारादावपि घटाद्यभावचाचुषापत्तिः चवुः- संयोगा fran ferent fare went fem ATC TA दतस्तदु पादां, aranaacnrat प्रतियोगि-तदि शियसज्ञिकषांदेः प्रतियोगि

्ब्दाख्यतुरीयखष्डे शरब्दानित्यतावादः | ७०९

लम्भकसमवधाने तदनुपलसिरूपयो ग्यानुपलम्पेरभा- बात्‌। प्रतियोग्युपलम्भकब्यश्रकवायोरभावात्‌, विनष्ट- पारकयावद मगेतस्य स्येज्रासन्मवादग्या वार णयेतरान्तं यावत्‌- कारणविगेषणं, प्रतियोग दियसज्निकषंञ्च प्रतियोगिव्याप्य एव चेवमतोतानागतचलुरादियक्रौनामपि ताद ग्षटादियाहकलात्‌ यावत्रतियोग्युपलम्मकसमवधानं writes इति वाच्यम्‌ प्रतियोगि-तद्चाष्येतरनिष्टानि तदि ्वियजन्यलौ किकम्रत्यदनिरूपि- ताजि धावन्ति कारणतावच्छेदकामि खाश्रयसम्नन्धेन तदे शिष्श्य विवक्ितलात्‌ नतु तथाणत्र ग्यायतायां व्याणदिभि प्रतियोगयुप- शम्भकता वश्छेद कसम्बन्धः प्रतियो गिदिगि area घटकं तेना- तौतानागतचटाद्यभावप्रत्यखे परतियोगिनिष्ठमरत्वोदूतरूपादेव्येव- Kz: इत्यश्च प्रतियोगौद्धियसश्िकर्षादेमं व्यवच्छेदः तस्येखियेऽपि सत्वेन प्रतियोग्यब्यायलात्‌ प्रतियोग्युपणम्भकतज्त्ामव्यक्तिलावच्छि- arate प्रतियो गिव्यायेतरतथा श्रसम्भवापन्ते साख्या जन्य - संयोगनाग्रख wae व्यभिचाराचच व्यासब्यटन्तिगएमत्यकेतोर्या- वदाश्रयषन्निकषेश्य तादृ ग्मरतियोग्यपलम्भकथावदन्तगेतस्याभावात्‌, अतएव काछिकसम्बन्धेन प्रतियो गिव्याणलवा सिधानेऽपि निस्तारः प्रतियोग दियसन्निकषदिः प्रतियो गिविमाश्रक्षणेऽपि सत्वेन तस्यापि काशिकसम्बन्येन प्रतियोग्यव्यायलात्‌ शआालोकादेर्घरटलादिष्याण- तथाऽन्धकारेऽपि घटलाद्यभावचाचषापत्तेखेति चेत्‌, न, प्रति- यो गि-तद्यायपदेन प्रतियोग्युपलम्भाखाधारणएकार एस्छ विवशितलात्‌ प्रतियोग्युपलम्भासाधारणएकारणलच्च यादु शप्रतियो गिग्रा दकेऽसत्यपि 5 1

9० - वश्वचिन्तामणौ

प्रतौतिरपि त्वगिन्दियोपनौतव्यश्चकवायुस्यशध्वंसोपा- fata वायुर्नत्पादकः किन्तु व्यश्ञकः cars विं विनिगमकमिति चेत्‌। न। इदानौं Barger गकारो नास्ति विनष्टः कोलाहलडति प्रतोत्यनन्तरं पुनः अवे AAAS गकारः पुनः Cars कोलाश्ल- इति प्रत्यमिन्नानमेव, घटरध्वंसप्रतौत्यनन्तरश्व waa चट षति प्रत्यमिन्नानमिति तब विनष्टप्रतौत्या

यादुग्राभावम्त्यकं angina वाश्यमिदश्च खंखगाभावपर्थे रेतः. श्रत द्धियान्योन्याभावपरत्यचय्छले प्रतियोग्युपलम्भकाप्रिद्धः उपमापरस् जौ किकप्रत्य्परलादिति दिक्‌। मनु तथापि विनष्टः कोलाहल इति nae wee ष्वंससिद्धिरिव्यत आड, विनष्ट- प्रतीतिरपौति, 'वायुसपशष्वंसेति, न्यायनये वायोरतोद्धिवतया वायुष्वंसमपदहाय वायुख्यरानुधावनं वायुत्छशरध्वंघोऽपि कचं लगिख्ियोपनौतः warm aa गाइके शयसन्िकर्षा- भावादिति are कालस षडिद्धियग्राह्मतया ^ कालघटित- खश्िकर्ेण काले ae an प्रत्य्चसम्भवादिति भावः वायोर- व्यश्चकले योग्यातुपञष्डिः सम्भवत्येवेत्यभिभ्रायेणा श्रते, "वायुरिति, “किं विनिगमकं" किं प्रमाणं भत्थमिन्नानमेवेति, “विनिगमक- मित्यहषव्धते ) नन्वेवं घटादेरपि लाघवान्नित्यवमद्छ विनष्टमरतो-

, aq खमतानुसारादुक्त, बस्तुतो maa shy AUT Ba क्ाल- स्ातौन्वियत्वेऽपि तिस्तथेवानुभवात्‌ |

एब्दाख्यतु रोयखष्डे शब्दानित्तावाद्‌ः। goa

wa wa सिध्यति sawa तारत्व-तारतरत्व-. मन्दत्व-मन्दतरत्वप्रतौतोनां भमत्वकख्यनादरः प्रत्य भिन्नानमाबस्य सअमत्वकल्पनमित्यपासतम्‌। wy सतौषप्यमेदप्रत्यभिन्नानात्‌ | स्यादेतत्‌ शब्दः प्रयलं साध्यः तदनभिच्यद्यत्वे सति तदनन्तरमुपलभ्यमान-

तेरन्यदौ ध्वंस विषयवेनेवोपपन्तेरित्यत आड, "धटध्वंसेति “्रत- एवेति, “शरपास्तमित्ययेतनेमाग्वयः। ‘uarg aatfafa तारव- तारतरलादिग्रतौतौनां यथायेलेऽपौत्ययैः, “श्रभेद परत्यभिन्नानादिति यथार्याभेद्‌ परत्यमिन्नानषम्वा दित्यर्थः, तत्मरतौतौनां खाश्रयव्यश्च- लात्मकपरण्परासम्बन्धेन(५ वाय॒निष्तारलाद्चवगा हिवादिति भावः | 'तदनभिव्यञ्चल इति, प्रतिबन्धकविधूननदारा ्रयन्नयन्चे षटनादौ व्यभिचारवारणाय सत्यन्तं प्रयन्नजन्यलो किंकसा चात्कारा विषयलपर, कालादौ व्यभिचारवारणाय "तदनन्तरसुपलभ्यमानलादिति az ग्वय-व्यतिरेकानु विधायिलौ किकमरत्यचविषयलवा दित्थयैः, यो ge ,. शौ किकसषाचात्कारा विषये खति यदनषय-व्यतिरेकानुविधायि- शौ किकषाकचात्कार विषयो भवति as इति सामान्यसुशौ व्यारिर्मातो जन्यमाजस्य प्रयन्नजन्यतथा यदन्वथ-व्यतिरेकानु- विधायिलाचंकस्य तदनन्तर पदस्य au, दष्डाद्यनभि्यञ्चे पटादौ दण्डा दिजन्यलाभावेन सामान्यतो व्याप्तौ यभिचारवारणाय तद्‌-

(९ शखाश्यजन्यतवासकपरम्रासम्बन्धेगेति ° |

४०४ तत्वविन्तामणतै

त्वात्‌ पटवत्‌, अभिव्यश्जकत्वं हि शन्द्रियसम्बन्धप्रतिब- न्धकापनायकत्वादिन्दरियसन्निपापकत्वादा५ कुद्योत्सा- TIAA पटादौनां, तदुभयमपि शब्दे सम्भवति नि- त्यसमवेतत्वेनावरणापनयन-सन्निधापनयारभावात्‌

पादानात्‌ ` ग॒ प्रयन्नानभिव्यश्यायामपू्येदेवदन्तलादिजातौ व्यभिशार इति वाच्यम्‌ जातिमत्त्वे सतीति fanaa, इत्वश्च सामान्यतोब्याप्तौ चचुरादिमादाय चटादिटन्तिरूपादौ व्यभिचार वारणाय सत्यन्तं। शब्दस्यापि बुभुत्सावश्रात्‌ कग्रस्कुयव- ख्िनल्लममःषंयो गदारा प्रयन्रव्यश्लाद सिद्धिरिति args तद्धिल- शब्दस्य qatacufefa wa) सामान्यतोग्या्यमिप्रायेष ¢- am: पटवदिति, ay afaauafigaran प्रथन्नव्यश्यतेऽपि तन्तुसंयोगादिमादाय साध्य-हेतुसत्वादिति भावः(९) wapafay- que सखरूपासिद्धं निराकरोति, “अभियश्जकलं tifa, प्रयत्न- स्येति शेषः "द द्धिथसम्नन्धेति विषयेश्ियसम्नन्षेत्यर्थः, ‘cfxa- सन्निधापकलयादिति विषयस््ेद्धियनिकटदे श्रामयनद्ारा <fxe- सन्निकषंनननारदेत्ययेः, “ङुद्योत्ारणेनेवेति पूष्ववद्दृष्टान्तः, “नित्य- मवेतवेनेति शओ्रोसषमवायरूपेष्ियषन्जिकर्ष॑स् नित्यलेनेत्ययः, “श्रावरण्णापमयनेति द्दियसन्िकर्षस्य प्रतिबन्धकापनयनेत्य्ेः, 'सन्निधापनेति विषयस्येन्धियसन्निषृष्टरे गानयमद्ारे सियसज्िकषे-

(९) इद्धियस्रिकर्षा धायकत्वादेति ° | (९) पटप्र्यस्ते तन्तुसंयोगस्याहेतुत्वेऽपि agra खव पटप्र्च्तादिति मावः |

शब्दाख्यतुरोयखष्डे शब्दानित्यतावादः | - 8४०५.

नापि ओओषसंस्वारात्‌, श्ट्दियसंस्कारस्य उन्मौलना- लोकादेः सकृदिन्द्रियसम्बन्धयोग्यसर्ववार्थो पलग्ध्यनुक्गल- संस्कारजनकत्वं दष्टं तददायुरपि सदेव सव्वेशब्दो- पलब्ध्यतुङ्कलं MT संस्कारमादध्यात्‌, तथाच सव्वं शब्दो पलब्थिः स्यात्‌। तदुक्तं “सश संस्कृतं ओषं सव्व. शब्दान्‌ प्रकाशयेत्‌ | घटायोन्रौलितं we: पटं हि

लननेत्यथः, “शरो तरसस्कारादिति ओजसंस्कारदारेत्य्यः, seas शष्दव्यश्जकल्मिति Te) संस्कारश्च परमते पदाथ विगेषः, wr श्रते वायुस्योगादिशूपसहकारिणा समवधानं, "द ड्ियसंस्कारस्य' tirana, afenta पाठः, “वदिति युगपदिण्यर्थः, “इ दियसम्बन्भेति इद्ियसन्बद्धो योग्यो चावामयस्तदुपलमौत्यवः, “तडत्‌” उन्मोलमादिवत्‌, वायुरपौ ति, “्रपिना प्रयनस्ुन्डः, तेन ग॒प्रतासङ्गतिः,(५ “सदेवः युगपदेव, “सर्व्व॑श्ब्देति भवन्ते शब्दानां fanaa सर्वामेव शब्दानामिग्ियसन्निरृष्टलादिति भावः (तथाचेति, युगपदेवेति शेषः, “सचेति युगपदे वेत्यर्थः, श्रब्दामां नित्येकवे इत्यादिः मनु यज्निन्नासया संस्कार उत्पा- दितस्तदेव बोघधयतोत्यत श्रा, ^चटायेति चरजिन्ञाषयेत्यर्थः, ‘a बुध्यत इति बोधयतोत्यथेः, युगपत्‌ सरमवशरब्टोपलसिं निरा-

(९) तेन gaaagfafefa we |

seq arafarrtealt

बुध्यते" अथान्वय-व्यतिरेकाभ्यां areal प्रतिनियत- जनकजन्धत्ववच्छब्देऽपि प्रतिनियतव्धश्जकव्धद्चत्वमि- ति चेत्‌ न। vat fe प्रतिनियतव्यश्कब्यञ्चाः

करतमाग्रद्ते, “अयेति, '्रतिनियतभनकेति परस्परानकेत्यधेः, ‘mast? ककारा दिष्वपि, भरतिमियतेतिं परस्य राव्यश्चकव्यश्यल- भित्यथंः, ववण होति, “ग प्रतिगियतव्यश्चकव्यश्ाःः परश्यरा- STR इत्यथः, wea तददिषयकसाच्ात्कारजनकलं, Bye तष्जन्यघाथात्कारविषयलवं नतु परस्पर पदाथेलस्य दु्येव- लाने ममानं। नग तदं एतदर्णायश्च कव्यश्चलाभावः, एतद्ध तदणा्श्चकब्यश्चलाभाव एव ` परस्पराग्यश्चकाग्यश्त्वे तथाचेवं प्रयोगः ककारः खकाराग्यश्च कब्यश्चलाभाववान्‌ खकार षमामदे ले सति तत्‌षमानेख्ियय्याह्मलात्‌( एवं खकार पचौहत्य ककारा- ERATE: साध्यः सामान्यसुखो anfaftfa are ACIS RATATAT MTT AKAM Y-ATAS ATTRA) व्यमिषा- रात्‌ VARA एकलाव्यश्नकावधिन्नानव्यश्लात्‌ एयक्ल-

` (५ कसान्तात्‌कारात्वावच्छित्िविलच्तणवायु सं यो गत्वेन हेतुत्वं ख्वमन्यव ` ख्व तादृ्रव्यद्यत्वमेव कारादाविति तदभाव दति मौमांसक- ` मतं, नेयायिकमते वायुसंयोगानां वर्णोत्पादकत्वमेव ead तथाच व्यञ्नकसाम्यात्‌ fata: | | ९) रकमाषटरत्तिटयकत्वमेकष्टयकत्व, उभयमाचडत्तिषटयकलत्वं fe एथकत्वं णवमन्यदपि |

श्ब्दाख्यतुरोयखग्डे शंब्दानिद्यतावाद्‌ः | gee

रकावच्छेरेन समानदेशत्वे सति समानेन्द्रियग्राद्यत्वात्‌

व्यश्नकमवधिन्ञानमे कलाव्यञ्चकमेव A शएयक्त्वसाक्ात्कारस्य निथ- मत एकत्वषाखात्काररूपत्वादिति वाच्यं | तदव्यन्न कव्यञ्लाभावो fe तदिषयकसाखात्काराजनकजन्यषाखात्कार विषयलाभावः, सिद्ध साधनापक्नेः(९ ककारव्यश्नकविलकणवायुसंयोगस्यापि ककार- खकारोभय विषयकसमू हा खम्नमसाखात्कारजनकवेन खकारसाचा- त्कारजनमखशूपयोग्धलात्‌,‹९ किन्तु तत्छाचात्कारतावच्छिलाजनक- अन्यसासात्कारविषयल्ाभावो ane, तथाच व्यभिचार एव भवति श्चेकलसाचात्कारलावच्छिन्नाजमकावधिन्नानजन्यसाचात्कार- विषय una च॒ तद्िषयकसाचात्कारानुपधायकणजन्य- साकात्कार विषयत्ाभावस्तदथंः, तथाच सिद्धसाधनं ant ख- कार विषयकषाचात्क्रारारुपधायकवायुखयोगस्यापि HATTA STAT रजनकला दिति वाच्यं तथापि तद्घटेकशए्यक्त्वसमानदेश- aaa Aenea व्यभिचारात्‌, एकत्वस्य एक्लघाखा- त्कारारुपधायकस्यावधिश्चानविरहकाखौगाशोकसंयोगच् व्यज्ला- दिति, मेवं, एकवणेस्य सव्यश्च कव्यश्चापरवणोव्यश्नकव्यश्चमिन्नव-

मौमांसकमतेऽपि साध्यसत्त्वे निष्विवादादिति ara |

(र) खकारसाच्तातृकारजगकल्वादिति तथाच तम्मतेऽपि कादै- fide तद्यञ्नकवाय॒सं योगस्यापि तदिषयकसमूालम्बगार्वीक- खविषयकय त्‌ कित्‌ साच्तात्‌कारजनकत्वेन तदवष्छिप्रमेदास्ा- दिति ara | |

(९) तथाच वधिच्चानस्याप्येकत्वसाच्तातृकारोपधायकत्वान्न Brae: |

gcc तत्वचिन्ताममौ

घटेकत्वपरिमाणवत्‌। चावयवसंयोग-बहत्वव्यश्ञका-

मेव ` हि परस्पराव्यश्चकाग्यश्चलं, awed प्रयोगः, ककारः सखाव्यश्चकव्यश्चखखकार कले सति energy यथ्यन्तद्धिलः खकारखमानदे शते षति खकारयादकेद्धिययाद्मलात्‌ यथत्‌ समान- देले सति यद्वाहकेशियाय्ाद्म तत्‌ खाग्यश्चकव्यश्तत्‌ कले खति away यद्यत्तदन्यदिति सामान्यतो afi, इत्यश्च मोक्त- व्यभिचारः एकस्य एयक्लवाव्यश्चकव्यज्ल्वाभावात्‌ खाव्यश्चक- VPA. सषाखात्कारलावद्िन्नाननकटन्तिकारणताप्रतियोगिक- कार्यतायाः (९ लौ किकषाचात्कारविषयतया अवच्छेदकलं, यथा- qe शिद्कसाधनापन्तेः। खकारव्यश्चकवायसंयोगविशरेवस्ापि खकार- ककारोभयविष्रयकषमूहालम्बनसाखात्कारजनकलेन ककारषाचा- त्कारजनकलवात्‌ तग्छतेऽपि खकारे ककाराग्यश्चकव्यज्त्वाभावेन सराव्यश्चकव्यज्च्वकारकले सति खकार व्यश्चकव्यश्चलस्च ककारे- ऽभावसत्वात्‌ नम बिद्धसाधगवारणाय खवालात्कारत्ावख््डि- ज्ञाजगकणन्यसा चात्कारविषथलमेव तद स्तिति वाज्यं तद्षटैकल- खमागदे श-खमानेग्ियगराद्ये तदघटेकष्टयकाले व्यभिचारात्‌ | भवति दि एयक्लसा चात्कारलावच्छिन्नागनकात्म-मनःखंयो गादिजन्यषाचा- त्कारविषय एकलं एकलाग्यश्चकावधिन्ञानव्य्चमप्येकषटयकूत्वमिति कार्ता स्ेतरभावदटन्तिलेग विगेषष्टौीथा, खपद श्च तच्छष्दवाच्य- पर, अन्यथा तर्‌घटेकलखमामदे श-समाने PRAT ATS TIA

(४) खसात्तात्‌कारत्वावच्छिन्रिननकाटत्तिक्षारणताप्रतियो गिककार्यताया- इति | `

WATCH शब्दानि्वतावादः | ere

उक्ष्यभिचारतादवस्ण्यात्‌ एक यस्यापि एयक्लसारात्कारलावच्छि- लाजनकयोः सखसाकात्कारमाजप्रतिबन्धकदोषविगरेषाभावयोष्यञ्च- त्वात्‌, एकलवलेनमेकत्वघाचषात्कारवेन काय्यै-कारफभावः किन्तु AEM तन्तद्भाक्रिषाचात्कारवेन, अतएव एकलाम्तर ठन्िकार- णता प्रतियो गिककाययतावच्छेदकतया agente वयभिचारः, एवं तदव्यश्नकव्यञ्छतल्मपि तता चात्कारत्वावदख्छिनल्ालमकडन्तिका- रणताप्रतियो गिकका्य्येताया सौ किकसाचात्कारविषयतया अवच्छे- दकत्व, अन्यथा भवन््तेऽपि ककारबयश्नकवायसंयो गविग्रेषस्लापि ककार-खकारोभयविषयकसमूहाशम्ननसाचात्कारजमकलेन खकार- व्यश्जकलात्‌ ककारे खकाराव्यश्चकव्यओ् भिन्लत्वसत्वेन सिद्धषाधना- पतेः सिडूमसाघमवारणाय तत्‌ साचात्कारवावख्डिनाजनमक- जन्यसाचात्कारविषयत्वमेव ALY AHA ककारस्य खंकारसाचात्‌- कारल्वावच्छिश्लाजनकः ककारव्यश्नकवायुशयोगविशेष एवै तष्णन्य- साखात्कार विषयत्वेन तद्धिश्ललाभावात्‌ सिद्षाधमाभावादिनि वाच्यं तथा सति तद्घटेकष्टयक्लसमाभदेश्र-समाने any तर्‌्घरेकले व्यभिचारात्‌ भवति शछकलाव्यश्चकावधिन्लामव्यश्च- मेकश्यकूत्वमे कशए्यक्त्साखात्कारलावच्छिन्ञाजमकात्ममनःसंयोगा-

दिजन्यसाकात्कारविषयोऽप्येकत्वमिति, इत्यञ्च एकव्स्यापि ere - त्कारविषयतया श्रात्म-ममःसयो गा दिजन्यतानवच्छेद कलवान wifi चारः, safe कारणता सखेतरभावटन्तिलेन विगरेषणौया ' खपदं प्राध्यौग्धतान्योन्याभावप्रतियो गिपर, अन्यथा ATI! HVAT ATA

(९) तन्मतेऽपौति we | 52

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दे ्-बमाने दधि यग्राद्मतद्‌ घटे कले उकव्यभिचारतावच्छात्‌ भवति दयोकलषाखात्कारलावच्छिलाजनकावधिन्नानदन्तिकारणताप्रतियो- मिककायेतायाः साचात्कार विषयतया श्रवच्डेदकमेकश्यकूत्वे एक- एथकतखा खात्कारत्वावच्छिलाजनकेकवव-तत्‌साचात्कारमाजप्रतिब- न्भकदोषविगरेषाभावधोः घाकात्कार विषयतया अवच्छेदकसेकल- मिति 1.

पिदचरणास्तु तदग्यश्चकग्य्यलव-ख्ाग्यच्नकव्यश्छतत्कत्वोभयाभाव- छव परस्य राग्यश्नकव्यश्छलाभावः ANTES प्रयोगः, ककारः ख- काराग्यच्नकग्धश्चतल-खाग्यश्चकाग्यग्यखकारकत्वो भयाभाववान्‌ खकार- समाने शते षति खकारग्रादकेण्िययाद्मलात्‌, यद्यत्‌ षमानदे गरले सति चद्राइकेडिथयाद्यं तक्रदग्यश्चकनग्यग्ल- सखा थश्चकव्यग्यतत्‌कलो- भयाभाववद्भवतोति सामान्यतो VCH: | प्रथमदखाभावमाचरख साध्यते तद्घटैकलषमानदे ्-षमानेन्िययाश्चे तद्‌धटेकणएवकूने व्यभिचार; एकणए्यक्लदेकला्यश्चकावधिजानश्यश्चलात्‌, इत्यश्च , ाग्यश्नकव्यक्ेकत्वकलाभावेन(र) उभयाभावसत्वान्न व्थभिशारः | शरमदसखराभावमाचस्य . साध्यनेऽपि एतद्‌ घटेकषटयकल्समानदे ्र- खमानेद्ियग्रादचैतद्‌ षरेकलने वयभिचारः, cae खाव्यश्चकावधि- ज्ानब्धन्एयकत्वकलात्‌, इत्यश्च एचकलायश्चकव्यश्चलाभावेनोभया- waeere व्यभिचार इति प्राहः watt तदबयश्चकव्यश्चला- दिर प्ेवद्बोध्यं

` (९ कान्ैतावन्डेदकश्ेकालवमितौति खर | (९) खाग्धघ्नकव्य ह्यत त्‌ कल्वाभावेनेति ° |

WTC ya चब्दानित्यतावादः | 8१९

"एकावच्छेदेनेति, तेन सममेकावच्छेदेन(९ तत्‌ समाभदे शले सति तत्‌समाने शिथग्राह्मला दित्यः, इद च्च was ताभ्युपगमेमान्यथा परेषां wee नित्येकतथा कालिकरेभिका- maaan खरूपाचिद्यापत्तेः रब सख-खावधिः ज्ानमाश्यग्चयोग्येधिकरणष्रयक्लवयो विभिनसस्यानविगरेवपौषश्य- ate गोत्वाश्चलयोष्यभिचारवारणाथ ` समानदेशवे सतौति w- नियतदे शले wha: sau वमानाधिकरण्योरपि परस्य राभावशमाभाधिकर णयो मडावधिकचट-पट भ्िदिषए्यकल-पटाव धिकषट-मटदन्तिदिषश्यक्त्योः ख-सखावधिन्चानमाबथश्चयोयैमि- ` चारापन्तेः(९ विभिन्नसंद्यानविगरेवध्योग्यश्छययोः were, पाषाशत्योग्यैमिकारापन्तेख(९। चेवमपि भिनलमिशावधिनिरू- पितखमनियतेकश्यक्तवदये व्यभिचार इति are) अवधिभेदेनेकः प्रथक्तवभेदाभावात्‌ | अममिधतदे शलश्च समवायेश feat) तेनाभावषाशात्कार प्रति प्रतियो गिश्चानस्य हेतुत्वेऽपि अट-पटत्व+ थोरन्योन्याभावात्यन्ताभावयोने व्यभिचारः | एकस्येव TATA देरथ-मूमावख्डिलटशमिष्टसयो गयोः खसावच्छेदकयदग्यजछ्चयोग्येभि- चारवणाय एकावच्छेदनेति* a चसावच्छेटकादिगशो संथो-

(९) तेन समानाकारावच्छेदेनेति we | |

®) इमौ दौ यस्मात्‌ थक्‌ दत्ादिप्रतौतिसिडं दिएथकत्वादिकं दित्व- वदुमयङ्त्तोति बोध्यं | |

(९) रुतेन तद्याप्यदेशत्वमपि froma |

(४) रुतेन तदसमवाग्थसमबेतत्वे सति तत्समवायि समवेतत्वं फलितं | (४) समवायावच्छिद्राधेयतायां रकरेग्रावच्डित्रतवं बोध्यं | `` ` `

श्‌ `: तस्वचिन्तामग्यै

arfzayen: किम्तवावग्यकल्वादवच्छेद कावच्छेदेनेश्ियसल्िकर्ष एव हेतुरिति कथं व्यभिचार इति are तद्धेतुलाभिमानेनेतदि- ओेषणोपादानात्‌ |. मन्वेवमेकदे भराव च्छिन्नतोक्षावप्येकश्राख्ावच्डेदेन खरणदयावच्छिन्ाभ्यां Bay सड टदसयो गाभ्वां स्स्ावष्डेदक- चरषगरहग्यश्चाभ्यां व्यभिचारो दुर्वारः तथोः श्रेमचरणदयावच्ि- अलेऽणेकध्ाखावच्छिभलस्य Te एकदे ्ावच्छिलपदे नान्यूमान- तिरि क्रे शरावच्डिश्नलविवकषणे ` समाने ग्रत विभरषणवे यश्यादिति चेत्‌, म्‌, .. चरणदयावस्डिरयोः श्येन ठखसयोगयोयां संयोगव्यक्रि्यहेण- वदापिनो ay परण्परया . तरे गभागो ऽवच्छेदको तु खन्या श्रा- द्लोभयचावच्छेदिकेति ` यथाश्रुतमेव ay वभिचारनिराख इत्यभि प्रायात्‌ | agg’) अभावसाखात्कार प्रति प्रतिथोगिन्चानख्छ हेतुतया घटलात्यन्ताभाक-घटान्योन्याभावयोग्येभिचारवारणय स- मानटे श्वपदं समवायसम्बन्धेन इस्तिमल्वायेकं, ख-स्ञावधिन्नानमाच- वयङ्गयोः समानकाश्ञौन-ग्यधिकरणष्यक्‌लयो ण्डिमिनलसस्वामविभेष- सौवग्यङ्गयोरगेतवाश्चवयोव्येभिचारवारणाय तेन. सममेकावच्छेदेनेति तेन WHAM TATA THATS सतोत्ययेकं, तु .तद- वच्छेद कावच्छे्यतवे अतौत्धर्थकं(९) wt व्थधिकरणष्टयक्त्वयोरपि

(७ aura समवायस्येकयादिश्थिरटस्यापि गाव्यञ्नकल्वं विेव्यङत्तविधिरा-

जुयो गिकामावानम्युपगमाव्‌ | (१) SST रखकावन्डेदकत्वानुमवात्‌ व्थाप्यङततेरवच्छेदकल्वसय सिङडधाग्तविश्डत्वाचाह वस्तुतस्तिति |

® तु तदवन्डेदयत्ये सतोत्मधंकमिति.ख० |

TATA एब्दानित्यतावादः re

AASIAASTHIRUATATH तदोषतादवचख्थं तयोः काले खञस्ता्रयरूपविभिश्नावच्छेद कावच्छेद्यलात्‌ तजर कालर्ूपे- कावच्छेद्‌ कमादाय व्भिलारतादवस्छावारणय एकदे शावच्छेद्यत्वमेष विवच्छतां किमन्यूनागतिरिकलप्रेधेनेति वाच्यं तथापि पर्य- राभावसमानाधिकरणयोरय मानाधिकरणयो्मटावधिकचर- -पटदटन्तिदिष्यक्त्-पटावधिकधट-मठटसिदिषयक्त्वयथोः ` खसलाव- धिन्ञानमावब्यश्चयोव्येभिचारापकेः विभिनसंस्यान विगरेषपौयज्योः पाषाणलनव्या्यघटल-पाषाणवयोग्यभिवारापत्तेख तेषां यत्किञ्िदा- अरयमादाय काले एकदे श्ावच्छे्त्वात्‌ | चेकटे श्ावच्छेदेन सम- वायसम्बन्भेन ठत्तिमत्वमर्थाऽस्लिति वाच्यं परनये वणानामेकतया VAIN AMAA समवायसम्बन्धेन दन्ताववच्डे- दकविरहेए खरूपा सिद्यापन्तेः व्याप्यन्ते वच्छेदके ` मानाभावात्‌, उक्रविवखायान्तु वर्णानां समवायसम्बन्धेन arasfaasta काशे कालिकखम्बन्धेनाग्याप्यदलिलादाखयरूपावच्छे दकमादायेव डहेत्‌- सम्भवः चेवं न्यायनये भागाषिद्धिः wai व्णानामन्यमा- तिरि क्रावष्डेद्‌ कावच्छेद्यत्वाभावादि ति वाच्य एकसाचात्कार- विषयोगतानां वर्णानां cea, एवश्च खकारसाकात्कार विषयः ककार शृत्यादिक्रमेण पचता, अन्युगागति रिक्रावच्छेद कावच्छे्लश्च खानव च्छेद कानवच्छद्यतत्‌कले षति तदनवच्डेदकामवच्छद्यतं च॒ परनये शब्दस्ावच्छेदकाप्रसिद्या अ्रनवच्छेदकत्वमपसिद्धमिति वाच्यं waste शब्दस्य काशिकषम्नन्धेन काले इन्तावाश्रय-

(९) विभिध्रकानोत्प्तिकानामतयात्वमिति ata: |

ars arafaratrat

waren aqrecanfagtiaa ad’) तत्‌पुर्षैैया- पेशाबुद्धिजन्यदिलादि षाचात्कारलावच्छिशनं प्रति तदौयापेषाबुदधि- जन्यद्दिललादिना हेतुवाभ्बुपगमात्‌ विभिशलपुरुषौयापेषानुद्धि- लन्यदिलाद्योग्यं भिचारवारणाय तत्‌ समानेख्धिवग्राह्मलादिति तद्थंख तद्वाइकवदि रिद्धियव्यक्तिग्राह्यलमतो गोक्रवयभिचारः, चदपेषा- afer यत्‌ faa तत्‌ तत्‌पुरषे श्ियस्येव ग्रादह्ममिनयेकेश्िवयान्ज- व्वाभावात्‌ प्राह्यल-गाहकतयोः फलोपधानग्भत्ात्‌ तदिषयकणौ- किकषाखात्कार विषयत्वं वा तदथैः। परख्यराग्यश्चकविभि- लावधिन्चानव्यश्चयो विभिन्लावधिकदौ्धैलेकषटयक्त्वयोव्यंभिचार इति वाच्यं रूपेण परिमाणे नावधिज्नानापेखा किन्तु wa-faa- इ्याच्वच्छिन्लत्वग्रे^९) इति मतामुयायिलात्‌ बाध्ये कारणता भावटृन्तिलेन विग्रेषिता तैन परस्यराग्यश्चक पिन्दूरत्वादिदोषा- ` भावजन्यथोः साचात्कार विषयतया अ्रवच्डेदकयोः चत्य-परिमाण्यो- नै व्यभिचार इति | |

पिद्रचरण्ास्त प्रकारान्तरेणायतुमानं परिष्ुष्यभ्ति, तथाहि साध्ये परस्यराव्यश्ञ काव्यत्वं परस्पराविषयकसाचलात्कारा विषयत्व तद विषयकसाच्वात्कार विषयत्- खा विषयकसाच्ात्कार विषयतत्कत्वो -

[क णिरप

(५ तदनमाख्यस्थेव तदगवच्छछेदकत्वमिति मावः | | ९) इल्त्ाद्यवयविकत्वद्महे xe, तथाच यथा खवधिश्चानं विनापि खरूपतः एथकात्वत्वेन ग्रहः तथा परिमायत्वेन Tae वा परिमाणः खवधिच्चानं विनापि fhe दादि द्वहाराव्‌ किन्तु उस्तारौ षं इ्यादावेव तदपेच्छेबगुभवादिति भादः |

श्ब्दाख्यतुरौवखदे छष्दानित्वतावादः | ४९९

भयाभाव इति यावत्‌, तद विषयकथाच्ात्कार विषयल-विषयिता- सम्बन्धेनतत्‌ ST HRT FASTA IAA Aa गिताबच्छेदकल्वोभया - भाव इति तु निष्कषेः। तदयं तिगेखितप्रयोगः ककारः खका- रा विषयकषाशात्का विषयत्व-विषयितासम्नन्धेमखकार विषयकसाच्वा- त्कारमिषठान्येन्योभावप्रतियोगितावच्छेदकलत्वोभयाभाववान्‌ खकारेण सहेकावच्छेदेम समाभमदे श्रते सति समानेख्ियगरा लात्‌ इति पूर्ववत्‌ सामान्यमुखौ afe:, साध्ये उभयदखप्रयोजमन्तु way तद्‌चटेक- ले क्यकलयो्य चायथं बोध्यं, SARA साचात्कारोखौ किकोबोध्यः अन्यथा श्लौ किकप्रत्यकमादाय ATHY HART THAT MTT UH: श्रौ किक प्रत्य्चमादाय बाधापत्ते्च | अथ न्यायनये बाधः एकेकश्नोऽपि वेसलाशात्काराभ्यपगमात्‌ PHARMA. TT नानामेव वणानां weafafa are वर्णानां कमिकोत्पभलेने- HAMS वकरमानामामणेके कशः खाखात्कारादिति चेत्‌, न, एक- साखात्कार विषथोश्धतानां वर्णामां पक्वात्‌, एवश्च खकारषाशा- त्कारविषथोश्धतः ककार इत्था दि क्रमेश geal’) चेवं fag- साधनमिति are) परमये ककार-खकारादौ मामेकेकलेन तेषा- मेव प्र्येकमभिग्यङः, हेतौ angi मामान्यतोष्याप्नौ .षमनि- थतदे श-काशयोरेकपुरुवरषुमांचया इयोध्वंसविगरवयोग्येभिचारवार्‌- पाय समानरेग्रले सतौोति समवायसम्बन्धेन aHAR alate, मूलायरावच्छिन्नयोः समनियतेद्धियग्राद्तत्पुरुषो यष्योगथोः षंयो-

2. ति ति

(९) पश्व सिदिरिति we | (९ परत्व बोध्यमिति we. |

ere तक्वचिन्तामयौ.

गष्याश्रयभेदश्नानव्यश्यतया तादृग्रद्रव्य-तदवयवदयमंयो गयोरेकध्रा- Basen. चरणदयावच्छिन्नयोः श्येम-टखसंयोगयो विंमिन्नकाखे एकपुरूवमानप्रतोतयोख व्यमभिशारवारणाय तेन सममेकावच्छदे- नेति. तेन सममन्यनानतिरिक्रावच्छेदकावच्छ्तवे सतोत्यथेक, आतः कालदूपेकावष्छेदकमादाय शाखाशूयेकावच्छेदकमादाय त- होषतादवख् अन्यनान HATTA TATA STAT प्वेवद्बोध्यं | अथेवं समनिधतेन्दिययाद्च-सममियतकाशव्यधिकरणरूपदया दिषु व्यभिचारः , तेषां विभिन्लावयवावच्छेद्यलात्‌ व्यभिषार- इति ares रूपारोनां देभिकाग्याणटन्तिलविर हेण ` तेषामवयवा- qua मानाभावात्‌ एकच wife भावाभावयो विरोधेनेवावच्डे- दकभेदाश्वपगमादिति चेत्‌, म, व्यधिकरणरूपादोनां काले का- जिकम्बन्पेन sit . परस्यरमिन्नानां खस्ञाश्याणामवच्छेदकलत्वेन व्यभिचाराभावात्‌। समनियतरूप-रसाघोव्येभिचारवारणाय fava, ATTY ` परस्पराग्रादकेश्ियव्यह्षाद्यलं स्तायादकेडियन्या्वगाद्च- तत्कले सति तद ग्रादकेश्ियव्यह्षयाद्मलमिति यावत्‌, नतु तद्‌- ारकवदिरि श्ियव्य जगि गराद्लं, तदिषयथकलौ किकषाचात्कारविष- थलं वा, लाचेकषएटयक्लसाचात्कारविषयस्पर्गेक्थक्ल्योव्येभिचारा- पत्तेः अवधिन्नानविर इद शायां विमा vara त्वचा aie विना aig waar गात्‌ thaw व्यक्निलवेमोपादाना- दिभिन्नपुरुषौ यापेचाबुद्धिजन्यषमनियतदिव्वयो स्तादृश्रपरलवाद्ोख व्यभिशारः याद्यत्-ग्ाहइकत्थयोः फलोपधानघटितलात्‌ 4 तथापेकेकग्रहप्रतिबन्धकदोषवगेन कदाचित्‌ परस्परा विषयकषाच्ा-

शम्दाख्यतुरोयखण्डे गब्द्‌(नित्यतावादः | 8१७

व्यद्यनावयविनोत्पलत्वव्यश्जकदीपाव्यद्येन तन्ञैसिमा धटदटत्तिपथक्ताव्यश्जकाव्यद्योनैकत्वेन वा व्यमिषारः।

त्कार विषययोः समनियतेद्िययाद्ययोः समनियतसेर-दवत्वव्धक्ति- विशेषयोग्येमिशार इति वाच्यं) टोषविरहदशायां परस्यराविष- यकसाच्वात्कार विषयलस्य साध्यलादि ति aga: | | एकवणेस्यापर वर्णा व्यञ्चकव्यञ्जत्वाभा val प्रतिनियतव्यश्नक- ayaa: सएव षच साध्य दरति भ्रमेण angi सामान्यतो व्या- प्नाववय विनमादायावयवदन्तिखंयो ग-बडलयो सत्पलटन्तिनौलरूपमा- दायोत्पलले एकलमादाय चेकण्यक्तवे क्रमेण व्यभिचार माशङ्कते, ‘a चेत्यादिना खभिचार cana, “श्रवयवसंयो गेति श्रवयवसंयोग- बङत्वयोवय्नकस्याश्रयभेद ग्रदस्पराव्यद्मेनावयविना करणम्डतेनेत्यर्थः, श्रवयवसंयोग-बह्त्वयो रि ति(९) sie, “व्यभिचार दृत्ययेतनेन सम्बन्धः, तयोरवयवव्यश्नकखाखयभेद गदव्ज्तलादि ति wa | श्रव्या सञ्यटन्तिलवे सतोत्यनेम(^९) हेतो विगेषणेऽयेतद्भिचारवारएसम्भवा दार, उत्यल- तेति, "तन्नो लिन्ञेति उत्यलनो लिश्ना करणग्डतेनेत्ययंः,.उत्यणत्व इति शेषः, व्यभिचार इग्रेतनेन सम्बन्धः, दौपो Maa लिमव्यश्नकः |

(९) gantta स्यन्त लब्यवच्छेदः |

(९) शवयविनमादायावयवद्यसयोगेऽवयवागां बते Aare |

(र) खव चाग्यासज्यटसित्वं नेकमाचरन्तिधर्म्मा वन्किन्नपर्य्या ति कत्वं सं- योगे तदभावात्‌ परन्तु यावद्‌ाश्रयमेदग्रहसापेच्तयषह विषयत्वादिक-

मिद्यभिप्रायः। 53

१६८ तस्वचिन्तामणौ

अवयवेसंयो गाऽवयविनोनौ शत्वोत्पशत्वयो TTC | ध्याप्यषटनिनो र्त्यलत्वस्य शाधिकद्तित्वनेकावष््डे-

man areas दोषरूपतया प्रतिबन्धकः(९ तथाचो “प्रदौपे- gaya लातिनं तु नौरजमोलिमेति, जातिरुत्यखलादि भौरणसु- त्पलमिति मतेनेदं। ननु तदव्यन्नकव्यश्ल तत्छाचात्कारलावष्डिला- शनकटन्तिकारणताप्रतियो गिककाय्येतायाः साचात्कारविषयतया- वच्छेद्कल्मतो मायं व्यभिचार उत्पशललसाचात्कारत्वख् दोप- काय्यैतानवन्डेदकला दित्यत श्राह, ‘uzenifa षटदज्निषएटथक्ल- aera तन्तद्बधिन्नानस्याव्यश्चेन घटैकलेन ATMA, चटकं एकत दति गेषः। हेलभावादेवावयब्यत्यशनौशमादायावयव- संयो गोत्पशत्वयोने व्यभिचार इत्याह, “अ्वयवखयोगावथविनोरिति, “शअरव्याणयव्याप्यटत्तिनो रित्ययेतनमजचेव सम्बध्यते, “एकावच्छेदेन टल्य- भावादिति एकदेशावष्कदेनान्यनानतिरिक्दे ग्रढत्निवाभावादित्य- G0 चद्यप्यवयवसंयोगावयविनोरेकदेशावच्छेद्लमन्यूनानतिरिक्- दे ग्रदन्तिलच्चाख्येव, चछेकदे परावच्छश्यलमन्यूनामतिरि कदे ्ावष्डे- लं, समामे श्रत विग्रेषणवे यर्थ्यापत्तेः, तथाप्यवयवसंयोगव्यक्तिर्यद्र- व्यापिनो परन्परया तहेग्रभाग एव तज्रावच्छेदको तु agai

() श्थाप्याश्याप्यरत्तित्वेनौत्यलत्वस्येति we |

(९) रूपाविषयकलोकिकप्रयच्छागङ्ोकारात्‌ रूपान्तरविषयकलवं तस्या- ` बष्यक्षमिति बोध्यं |

(९) रकावष्डेदेनान्युनागति रिक्ते प्ररत्तित्वाभावादित्यधं इति we |

WRITS शब्दानित्यतावादः | ४९९

देन टत्यभावात्‌। बहत्व-पधत्तव्यश्जकव्य्यत्वश्च अव- यव्येकत्वयो रिति परस्यरव्यभिषारिव्यश्जकव्य्यत्वं, BAVA नौला बसाकेत्यच रूप-परिमाणयोरड निखात-

कपालिका श्रवयषिभि तु कपालिकेव साकल्ादवच्छेदिकेति भावः इदमुपलक्षणं STIG परस्यरगभतया rages fa 4 awa race HARTA णिको निरक्रावयवसंयो गोत्पलला्यश्जकव्यश्चलाभावा - दिव्यपि बोध्यं श्वय विनमाद्‌ायावयववड्त्रे घटेकलमादाय घटै- aera व्यभिचारं परस्यरघटितसाध्यसन््ेगोद्धरति, “बतेति ब्व-एयक्लव्यश्चकव्यश्ल बडत्व-एयक्लाव्यश्चकाव्यश्चलं तदुभ- यसालात्कारत्वावच्छिश्नाजनकटृ्तिकारणताप्रतियो गिककाय्येतायाः

सालात्कार विषयतथावच्छेदकत्वाभाव इति यावत्‌ परश्यरब्य- fruftesaaygafafa a निङ्क्रपरस्पराग्यश्चकव्यश्यलमित्यथेः, ‘sauafa भावटन्तिकारणएताघरितमिङक्षपरस्य राव्यश्चकब्यश्चलरूप- साध्यसचादेषेत्ययैः, "नौला बलाकेति, 'बशाका' वकपंक्िः, तस्याच्च मेघषन्निधानरूपटोषवश्रात्‌ waraesta परिमाण्यदः कदाचिच्च- चुषा दरलवादिदोषवश्रात्‌(\) परिमाणायदेऽपि wane इति पर- स्पराव्यन्नकतन्तदोषाभावव्यञ्लाद्यभिषारसम्भवो ध्येयः | | "शरद्धे निखा- तेति श्रद्केनिखातवंगेऽद्ध निखननरूपदोषश्शात्‌ परिमाणाग्रेऽपि

[ee

(९ तथाच faaferraaraceararq साध्यसस्चमिति ara: | (१९) कद्‌ाचिदडं निखातादिदोषवश्चादिति कम दैदृ्पाटस्य wafac- खादिदवोषवश्चादिव्यषेः, शादिना दृरत्वादिपरियषः।

gee तैस्वचिन्तामणौ

व॑ंश्रसङ्या-परिमाण्योव व्यभिचार इति Fa

सद्यः दोषविगेषान्तरवभ्रा् agra श्रयद्ेऽपि परिमाणग्रह दति परल्यराव्यश्चकतत्तदोषाभावय्यश्चलाह्भिचारसभ्भव इति भावः

, पिदषरण्ानां मते लेकवणस्यापरवणेा विषयकसाडात्कार विषय- ara एव प्रतिनियतव्यश्चकव्यञ्त्वाभाव इति भमेण angi सामान्यतो व्याप्नाववयवनिष्ठसयोगबड्त्वमा दायावयविनभि(\ उत्पल- इन्तिनोलमादायोत्यलले घटदत्येकषटयक्त्वमादाय तदेकले व्यभि- VACA, “न चेत्यादिमा, शश्रवयवसंयोग-बडलव्यश्चकाग््ेनेति अ्रवयवसंयो ग-बङ्त्ा विषयकसाच्तात्कार विषये णेत्यर्थः, संयो ग-बडल- योगे ्राञ्यभेद यदस्मापि taaar तैन विनाप्यवयविनो ग्रहादिति भावः। 'उत्पलत्वे ति, नो लद्ूपा विषयकदौ पजन्योत्पलसाचात्कार विष- येणणोत्यललेनेति aaa’) योजना, ¢ यकलाव्यश्चकवयज्चेनेति एय- क्वा दि विषयकषा्तात्कार विषयेणेत्यथेः, परस्प रानवच्छेद कामवच्छे्य- लद्ध पेत विगेषण्णभावादेवावयवसयो गोत्पलनो लमा दायावययुत्यल- aaa व्यभिचार इति समाधत्ते, “श्रवयवंयोगे ति, “अन्याप्यटृतन्तिनो- रित्युभयनचेव सम्बध्यते, नोलस्योत्यत्तिकालावच्छंदेनाग्याणटत्तिवात्‌, व्याप्यदृत्तिलश्चाव्यविनो tha उत्पलस्य कालिकं aaa विव- कितं एतेनावयवसंयो गनौलष्टपयोरवयय्य तय छलानवच्छेदकानवच्छे- wa नास्तौत्यभिहितं, श्रवयवसंयो गस्यावयव्यनवच्छेद के शरावच्छे्य-

(४ पूव्वैकल्ये संयोगादावेव ्यभिचार इति तद्ेपरौ्यमिति | (९) game नोलिमपदोत्तरतौयाया sare त्तरमनुसन्धानं |

श्म्दाख्यतुरौयखण्डे शम्दानिच्चतावादः। ७२९

त्वात्‌ NAA चोत्पलत्वानवच्छेद ककालावच्छेद्यत्ात्‌ उत्पलस्य नित्यतया काशस्य तदगवच्छेदकलात्‌। दमुपणणं श्रवथवसंयोगे- ऽवयब्यनवच्छेद कावयबयुत्पक्तिप्राक्षा लावच्छे्त्वमपि बोध्यं उत्पल asfa नौलदूपानवच्छेद कामवश्छश्यतं aay, ‘sqaure चेति उत्पलस्य भो लद्ूपानाश्रयेऽपि वत्तेमानलेनेत्य्थः, तया चोत्यश- तस्य काले नौलरूपामवच्छेकनोलेतरसराख्रयावच्छे्यतलात्‌ नोला- मवच्छेद्‌ कानवच्छेधत्वमिति भावः "एकावच्छेदेन ठत्यभावादिति परस्यरा मवच्छेद्‌ कानवच्छधत्वाभावादित्य्ः, इदमुपलक्षणं उत्पले परस्यरायारकेद्धिययाद्मलरूपदेतु विशरेव्यदलाभावात्‌ साध्यस्य पर- स्परग्भतया AWAIT” नोलद्ूपमादाय व्यभिचारः उत्पलटन्ति- नो लरूपस्योत्पलत्वा विषयकसाक्तात्कार विषयत्वाभावादित्यपि बोध्ये | अवयवबडलमाद्‌ायावयविनि(९) घटेकषयक्लमादाय घटेकले व्यभि- चारं परस्प रघरितसाध्यसत्वेनोद्धरति, asda बडत्व-एयक्त्ववि- षयकसाच्ात्कार माजश्येव विषयलश्चेत्यथेः, तथाच बङल-एयक्त्व- योरवयव्ये कला विषयकसाचात्कार विषयल्वाभाषेनोभयाभावदूपषाध्य- सत्त्वमिति भावः। "परस्यरव्यमिचारिष्यश्च कव्यञ्तवं' परस्प राविषयक- साचात्कार विषयत्वं, “श्रतषएवेति दोषाभावगभेसाध्यश्नादेवेत्ययः, इ्प-परिमाणएयोरिति, wa “परिमाणएपदं बलाकामिष्ठ रएक्तयाश्के- दसियमात्रयाद्यबलाकापरिमाणएव्यक्रिपरं, saa निरक्रषमानेड्िय- गाद्यलाभाव्रादेव वभिचारस्यासम्भवादिति दिक्‌

[मि

(४ उत्पलत्वस्य नोलरूपाग्राह कत्वगिग्ियग्राद्यत्वादिति भावः | (९) अवयवबद्ुत्वमादाय तत्‌समनियतकाणेऽवय विमति we |

BRR , "` ` बश्वचिन्तामणौ

aut: प्रतिनियतव्यश्ञकव्यद्याः माश्रयेख सदह समा- नेगन्द्रियाम्राद्चत्वात्‌ गन्धवत्‌ इत्यापाततः सत्‌प्रतिपक्च-

वात्‌

व्रणा इति, gatvafeaerae प्रतियोग्येवाच साध्य, पचोऽपि पूमरैवरेव, ककारलाथवच्छेदेन साध्यसिद्धरेश्वतवं तेन न्यायनये atua; fagarad, “प्राखयेणेति खकाराद्याचयग्रादइकेद्ियाराद्म- ज्ञादिति ब्रथाश्रुतोऽयेः, चद्यदाअरयया इके्िया पराय तत्‌तेन खम निदा तिनियतव्यश्चकव्यश्चं थया रसेन गन्ध इति षामान्यतो वया्निः चद्मपनाप्यतोद्धियद्चणकादौ षटादिटन्तिरूपारिकमा- दाय व्यभिचारः उपनोतभानमाद्‌ाय सिद्धषाधनापत्या प्रतिनियत- qaqa साध्यस्य शौ किकसाष्दात्कार विषयत्वघटितलेन ay साध्याभावात्‌, तथापि नजृव्यत्यासेन लौ चिकषाचात्कारविषथ- नदाञअरयापादकेख्यप्ाद्मलं हेलयो faafer:, इत्थञ्च द्मणकादौ? ग्राद्यलाभावादेव व्यभिचारः धघटादिटत्तिररुलादिकमादाघ तद्ढन्निगन्धादौ व्यभिचारवारणाय लौ किकसाचात्कारविषयेति afaqe विगरेषणं तथापि खकाराद्याञ्रयद्छ गगन याइकािद्या wa हेलसिद्धिरिति षाश्यं। परनयें गगनष्यापि खकाराद्या्यय्य चाचुषतया यादकपरसिद्धिषम्भवात्‌, अराइकेद्धि- चायाद्ये शौ किकषाचात्कार विषयतदाशरधकले वा विवकणौयं लौ- किकषाात्करार विषयेति तदित्यस्य विग्रेषणमिति दिक्‌ श्च

(\) अतीश्द्रियादापिति खर |

षः

णब्दाख्यतुरौ यख एम्दानित्ववावाद | SRR

वस्तुतस्तु अनन्यथासिद्प्रत्यमिन्नानबयेनामेदसिद्धौ प्रतिमियतव्यशच्रकव्यद्चत्वसाधकस्येव ANI, शष्द्स्थ शब्देजनकत्वभ्व शब्दनाशकत्वं वौचौतरज्गन्धायेनोत्पः FARMAN HMART शब्दस्य शब्देऽजनकावादमाः, भकत्वाच्च अन्त्याद्यशब्दवत्‌ | रतेन सामान्यवश्षे

समूहालम्बनसाखात्कारमाअविषययोगेन्धयोः मामाणिकले तज व्यभिचारो दुर्वार दति wa श्रापाततः सप्रतिपचलादिति वच्छयमाणयुषा अस्या धिकबणत्वेम समानबलला भावान्न ania परव मित्यत om शश्ापातत इति |

अनन्यया सिद्धति sag विभासुपपद्यमामेत्ययः | ननु शब्दस्य भित्यले शब्दस्य शशब्दजनकल्ादिकं कथमुपपद्यत tat आङ, शब्दस्येति, वोचो -तरङ्गन्यायेनेति कदम्बगोलकन्यायेनं शब्दोत्पादश्य गौरवपराहतलवान्तत्परित्थागः, "कश्यममेवेति मानाभावादिति भावः। साधकाभावमुक्ता WAAAY, ‘Wala, “wai वणत्मिकः Meat A शब्दणनको वा शब्दनमाश्रकः वणेत्वादग्धश्न्दवदादथ्- शष्ठ वच्ेत्ययः, waa प्रतियो गिप्रसिदधिष्वैमिजगके aqme च, BUA NIMH, VY WAVING, AID शब्दमाभस्य TOUMAITAAGUAT TT ATTY वणेमाजमेव दृष्टान्तः, sauafats इति वर्णानित्यलसाधनमपाससित्य्यः। अच नातौ ध्वंसे व्यभिशारवारणाय सत्यक, Wet व्यमिशारवार- णाय विगरयदलं, श्रलौ किकप्रत्यखषमादाय तदोषतादवख्यवारणष्णय

8 तत्वचिन्तामयौ

सत्यस्मदादिवदहिरिन्दियनप्रत्यक्षत्वात्‌ Taare, प्रत्य- भिज्नानबाधात्‌ शब्दत्व-गत्वादेरसिदेख, तस्माच्छब्दो नित्यः व्योमैकगुखत्वात्‌ तत्परिमाणवत्‌, ओओषग्राद्य- त्वात्‌ शब्दत्ववत्‌, विशेषगुणान्तरासमानाधिकरशैक- लौ किकललाभार्थं “अस्मदादौति, श्रात्मनि | व्यभिचारवारणाय सबददिरितीति Sa “एतेनेत्येव fasutfa, श्रत्यभिन्नेति, शश्रसि- Safa शातिलाषिदधेखेत्यथेः, शश्रादिपदात्‌ सन्ता-गणलादिपरि- ae, तथाच सत्यन्तविगशरेषणस्य ख्वदूपासिद्धिरिति भावः। मौर्मासकः खमतमुपसंहरति, तस्मादिति, ्योभैकगुणलादिति ब्योममाचरएत्वादित्यथैः, व्योमौयमंयोगादौ व्यभिषारवारणय माजपदं व्योमान्याखषमवेताथेकं, श्रतस्तश्नये समवायस्यानित्यतया चटादिसमवायेऽखमन्नये प्रागभावे व्यभिचारवारणाय yw GAIA, व्योमलश्चाष्टद्रवयान्यद्रयतं तु शन्दाश्रयत्व, तया सति तादाक्येम शब्दस्यैव हेतुत्वसम्भवा दि तरां शवे यथ्थो पत्तेः, ध्वनिश्च वायकौय इति तच व्यभिचारः, व्याणद््निले सतोत्यनेन वा विशेष्यीयं, प्वनिखाव्यायटत्तिः वर्णक्मकशब्दस्य प्रत्यभिन्ञा- असेन व्याप्यटन्तिलमिति कोऽपि दोषः “ओजयाद्मलादिति, ध्वनि ` कणं शष्कुद्धवच्छिन्नलगि द्धिय्राद्य इति तच व्यभिचारः, "शरष्दत्ववदिति न्यायमये दृष्टान्तः, परनये शन्दलवद्योपापितिया merged हेतोर सिद्धेश्तक्मते षडिद्धियवेद्यः कालो दृष्टाः, "विगेषररेति, ws घटादिनिष्टगन्धादौ afer

WTSI शब्दानित्तावाद। | ७९४

टक्निगुणत्वात्‌ समयपरिमाणवत्‌, प्रधिवोतरनित्धम्त- विगरेषगुणखत्वात्‌ suas सति नित्धेकसमवेतत्वात्‌

णाय शश्रसमामाधिकरण्णन्तं श्न्दभिन्नविग्रेषश॒णासमानाधिकरणा- यकं, शब्दस्यापि शब्दात्मक विग्रेषहएषमानाधिकरणलात्‌ खशूपा- सिद्धिवारण्णय शष्टभिन्ेति, श्रष्डाभावघरकलाच्च aed,” “विग्रेषपदमपि खरूपासिद्धिवारकं, वायुख्यधेख् तादृग्रासमानाधि- करण इति तज व्यभिचारः, कालाकाप्रनिष्ठद्धिलादौ वयभिचार- वारणाय ^एकट्न्तौ ति, एकटत्तितं एकमाजटत्तिलसुभयाषममेतल- fafa यावत्‌, समवाये^९) व्यभिचारवारण्णय ‘quid ममवेतार्थकं म॒ ख॒ मनमोमिष्टकश्मै-वेग-परत्वापरतेषु व्यभिचार इति वाच्यं), aaa मनसो विभुतया ay तेषामनभ्युपगमात्‌, मनो fayar- भावे तु quad विभुसमबेतपरभिति a areata: ‘aaa परिमाणएवदिति महाकाखपरिमाणवदित्यथेः, श्रथिवौतरेति, पर माणगन्धादौ व्यभिचारवारणाय शथिवौतरेति गत विगेवफं, ललावयविषूपादौ व्यभिचारवारणाय “नित्येति wafaned, त~ पदं. ज्नानादाकनैकाम्तिकल्ववार शाय, TAMARA, गभो- चरटसयोगादौ व्यभिचारवारणाय “विषति, ध्वनिश्च चदि वायु- परमाणगणोऽपि तदा तदन्यलेनापि विशेषणीय, “श्रपाकललेति,

(९) eau शब्दभिन्नतवस्य व्यभिचारावारकविेषणतया वै यथ्यैसम्मव- इति area | (र) तग्भते तस्य नानात्वाद गित्यत्वादेति भावः। 64

BRE ! ~ ` , संत्वचिन्तामणौ `

लपरमाणुरूपवत्‌, अव्यासश्यटृत्तित्वे सति अनात्म- विश्रुगुखत्वात्‌ कालपरिमाणवत्‌, विपे arvana प्र व्यभिन्नानमेवेति |

इति ओ्रौमद्गङ्गेशोपाध्यायविरचिते तस्वचिन्ता- मणौ शब्दास्यतुरोयखण्डे शब्दानित्यतावादपुव्वपश्ठः |

परमाणगन्धादौ व्यभिचारवारणाय wart तेजःखंयोगाखमवाचि- कारणकान्यलायेकं तेजषश्ररीर-कण्डाद्यमिघातञअन्यवरछषु ग्यायनये भागाषिद्धिरिति aa तदतिरिक्तस्य पकत्वात्‌, नला- त्रयविरूपादौ व्यभिचारवारणाय “नित्येति विगशरेषणं, भतपदश्च न्नामादावनेकान्तिकलवारण्णय,^* ऋतपद्‌शून्यपाठे तु अरपाकजल- मेव सामान्यतः संयो गाखमवायिकारणएकान्यत्वं वाच्यमतो grat व्यभिचारः | श्राद्यश्रब्देतर ग्रब्दस्य WATS न्यायमये भागा- सिद्धिः, नभो-घटसंथोगादौ व्यभिचारवारणाय “एकेति, "एकषम- बेतल् मव्यासच्यटन्तिरणलवं तेन श्परमाणद यखयोगे परमाणकष्मेणि qq व्यभिचारः, aq गतिखन्तानः, परल्ापरत्रमपि dar; संथोगण्डयस्लाण्पौ यस्वमेव अतः परमाएनिषठेषु तेषु व्यभिचारः, तदन्येन वा विेषणौयमिति ara: “श्रग्यासच्येति, संयोगादौ व्यभिचारवारणाय war, श्नानादौ व्यभिचारवारणाय श्रनात्मेति,

(९) “नित्यभूतैकसमयेतत्वादिति मूलपाठमनुखत् भूतपदस्य श्थाढ़त्तिदानं “a | |

शब्दाख्यतु रौ यंखण्डे शब्दानिन्तावादः | 8२७

चटादिस्सं व्यभिचारवारणाय “विभििति, waa घटारिषंभवाये व्यमिचारवारणाय शणपदःं खमवेतायेकमिति- दिक्‌ तदेवं weg नित्यलपूव्वपश्चनिष्कवेः। लाघवात्‌ ककारादयो वर्णा faa. wRat एव, विनष्टः ककारः उत्पन्नः ककार इत्यारिप्रत्ययन्ठु प्रारीपल््याः नुपलभ्यमामवलर्ूपटोषवशाद्श्रमः। वर्णानां fama षट- पदल्वादिकं gad अव्यवहितो श्सरत्वसम्बन्भन चवहलादेसच्वात्‌ ्रव्यवदहितोन्तरत्वश्य नित्यत्वेऽसम्भवादिति वाश्यं ayaa मव्यवधामेन zy भववित्यभिप्रायविषयत्वसम्बन्धेन waraea तत्वात्‌, wary शिखकखयेश्वरस्य वामिप्रायमादाथ तत्सम्भवः) श्रय सर्ववां ककारादौनामेकवे तार-तारतर-मन्द-मन्दतरादि- विखकणप्रत्ययानुपपत्तिः चैकस्यामेव ककारादिव्यक्रौ aca: तारतरत्व-मन्दव-मन्दतरलादिनानाधम्मगभ्युपगमान्न तादृ शप्रत्यया- नुपपत्तिरिति ae तारलारेख्छस्यव्यक्गिटत्तिते जा तिरूपत्वानु- पपत्तेः भवग्प्रतेऽपि तारलादेर्जातितमसिद्ध कल्-गल्ला- दिना wecnayrfefa वाच्य कल-गत्ादिव्याष्यनानातारवादि- Mary) मच तारलादिकंवा भामा कत्व-गत्वादिकं वेत्य विनिगमनाविरह इति वाश्ं। कतव-खलादिर्नानाल्े तार-मन्द्‌- साधारण-कः-ख-दत्याद्याकारानुगतप्रत्ययानुपपन्तेः( श्रधिकजाति- AMANITA) | मयापि तार-तारतर-मन्द-मन्दतरकका- रादिव्यक्रौनां परस्परभेदोऽभ्यपेयत एव -परन्तु. शम्नागनातौय-

(९) तार-मन्दसाधास्गक्रकार-खकारानुगतप्र्ययानुपपसेरिति क०॥.. (र?) अयं पाठः खपुसतके aft. - .-..... ६)

aac तत्छविन्तामय

ककारादिव्यक्नौनामेव भाभेदोऽभ्वपेयत इति are तयापि तारल्तारतरलादेर्नाविरूपलानुपपन्तिः तारलारैः ककार-खका- रादिमेदेन विभिशलाभ्युपगमे एकब्धक्किटन्तिलात्‌ अन्यथा कल्व- wafer खदरादिति चेत्‌, म, तारल्वादेः कल्वादिग्याप्यनानाजा- तिले ककार-खकारारिषाधारणताराद्याकारासुगतप्रत्ययानुपपकेः | तद बिद्धि, अरसुभवापलापात्‌। तस्माक्ारत्-तारतरलादिकमतु- गतलान्ञाचवाच्च ककार-खकारादिसव्षाधारणमेकमेवाखष्डोपाधिः we सम्यैमेकस्यामेव ककारादिव्याक्नौ aia इति तादृग्पर्य- AAG | अत एव एव ककारस्तार श्रासौत्‌ Waal मम्द इति प्रतोतिरपि साधु सङ्गच्छते विश्वणवायोव्यैश्चकतया War तारत्वादिखम्बध्ध्रहः तार-मन्दाचयुत्पन्तिनियमाय वायुनिष्टवेखश्यस्य त्वथाणय्यपगमात्‌ चेवं तारोऽयं तारतर- स्ताराग्मन्दोऽन्य इत्या दिःप्रत्ययातुपपत्तिरिति वाच्यं i frat विनष्ट इत्धादिपरतौ तिवदिशरेष शमभेद प्रतियो गितवश्चेव विशिष्टे तेनावगाइनात्‌। तारककारादिसाचात्कारस्य काय्यैसहभाषेन मन्दककारादि- साच्वात्कारप्रतिबन्धकलात्‌ तयोर्भ॑द्सिद्धिरिति are तारलवप्रका- रक-ककारादिसाचात्कारस्य मन्दलप्रकारकसाचात्कारप्रतिबन्धक- लेनाभेदेऽपि तदुपपत्तेः owe वा तारल-तारतरलादिकं वाय- निष्ठेव जातिर्क्रदोषविशेषवश्राच्छष्द निष्ठतया५९. भासते दर्पण- निष्टतथा सखादिरिव, तार-तारतराधुत्यन्तिभियमा्थं वायु निषठ- Qaqoe wT तदेव लाघवेन तारल-तारतरलादि-

[क ° कक्कर = "गगण 1 80 पकक

(९) वन्तदोषवण्याण्छब्दनिष्तयेति °

णब्दाख्यतुरोयखण्डे एब्दानित्यतावादः | ४९९

रूपस्य चितलात्‌ तस्य saat श्रवसा कथं age: कणेश्ष्कुच्यवच्छिलत्व गिद्धिथोपनोतस्य तस्य शरवसो पनोतमानाग्युप- गमे तारत्वं MATIN: पटणोमोत्यरुष्यवखायानुप- पत्तेख्ेति वाच्यं arafrewniace अवणायोग्यल्ेऽपि तार तादेखद्ोग्यलाग्युपगमात्‌ योग्यतायाः फणबसर्कश्यलात्‌ waa वाथुनिष्ठतारलादिथदाग्यपगमे ओजखयुक्रसमवाययस्याति- रिकप्रत्यासन्तिलकश्पनापन्तिरिति वाच्यं श्रप्रत्यासन्लस्येव ATTA! mat प्रात्‌) वच्छमाणक्रमेण विक्लदणएवायसंयोगस्य तार ला दिग्यश्चकलादेवातिप्रसङ्ग विरहात्‌ एतम एकस्मिन्नेव ककारे तारल-मन्दला दिसकलधषोखौ ALA ककारादयं ककारस्तार- दति प्रत्ययामुपपन्निः सखप्रतियोगिकतारवस्छ सख सिन्नषभ्भवात्‌ ख- प्रतियो गिकतारलस्यापि खसिन्नभ्युपगमे तारलेनोपलभ्यमामककार~ away खापे्या तारलप्रत्ययप्रसक्गात्‌ भच तवापि तार. त्वादेर्जातिषूपतया सप्रतियो गिकतप्रत्ययामुपपत्तिभतिः सप्रति यो गिकलाभावमियमादिति वाच्यं) जात्यन्तरष्य मानाभावेन सप्रतियो गिकल्वविरद्ेऽपि तारल्वादिजातेः सप्रतियौगिकते भाध- काभावादित्यपि wre! वायुनिष्ठतारलादेरेव ककारादिपरति- योगिकतया ककारादौ भमो पपत्तेः यदि ककारादौ are त्वा दि प्रत्ययस्य तारोऽयं तारतर स्ताराग्मन्दोाऽन्य Tefen यश्य प्रमावमणयनुभवसिद्ध तदा सन्तु तार-तारतर-मन्द-मन्द-

(९) प्र््तविषयतायाः सतिकष॑प्रयोज्यते मामामावादिति ara |

BRS : `, ~. . बत्वचिन्तामणौ -

तरादिव्यक्रय . एवेकंकाः तार-मन्दादयस्त॒ परस्यर विभिन्ना va | नतु तथापि ककार-गकारादौनां नित्यले ककाराचेक गन्द सालात्कारद शायां गकारादिसन्बेशरब्दसाच्ात्कारापन्निः sara mem wig कणेशरव्कुखवच्छेदेन सत्वादिति चेत्‌, न, न्यायनये ककारायुत्पादकतन्तदिल्णएवाथुसंयो गख्ेवाखमन्मते ककारादिषा- चात्कारजनकतया तदिरदादेव युगपत्‌ सन्ेग्ष्दो पणब्धयसम्भवात्‌ कण्ठाद्यभिधातञख तन्तदिल्तएवाय क्रियासम्पादकतया परम्परयोप- GAA नतु न्यायनये यज्ावच्छेद्कतासम्बन्धेम ककारादुत्यज्निस्तच् समवायसम्बन्धेन तन्तर्‌ विशचणवायुषंयोग दूति सामानाधिकरश्- mara वायुसंयो गानां ककारा दिडेतुलमतो कर्णान्तरे ara- संथोगात्‌ कर्णान्तरे ककाराचयत्पन्तिः तत्‌पुरुषौयशब्दस्तौ किकसा- च्ात्कारं प्रति तत्‌ पुरुषौ यश्रो समवाथस्यावच्छिश्नवसम्बन्धेन तत्‌- पुरुषौयकणंविवरस्य वा विषयनिष्ठतया Waar पुरूषान्तरोय- कर्णावच्छेदे नोत्पन्लश््दस्य पुरुषान्तरेण ग्रहणं, aga तन्तदि- श्वएवायुसंयोगानां ककारादिषाचात्कारं प्रति कया प्रत्यासत्या हेतुत्वं श्रव्यवदितपूव्वैव्तितामानेण हेतुवे युगपत्‌ सब्वेशरब्दोपशमे- दु्वारलात्‌ vada fatale तन्तदिलचण- वायुसंयोगसत्वात्‌ कणस्य ॒श्नानानवच्छेद कतया यत्‌कर्णा वच्छेदेन ककारादिषाचात्कारस्तज विश्शदणवायुखंयोग द्रति क्रमेण हेतुलख वक्ुमशक्यलात्‌ स्लौयकणंवच्छिन्नविरुक्षएवायुसंयो गलेन Wye मरति-

णै

(४) तथाच तासाकासानुगतव्यवषासु घटादिष्यवषारवदुपपादनोय- दति भावः।

श्ब्दाख्यतुरौ यखयेः श््दानि्यतावादः | Bar

कणे तन्तत्पुरुषभेदेनानन्तकाय्ये-कारणभावापन्तः। तत्तदिशकण- वायुखयोगः समवायघरितसामामाधिकर ्प्रत्यासत्यात्ममिष्ठ एव ककारादि साक्तात्कार हेतुः विशकषणवायुमंयो गस्य फणबलकरूयतया ककारादिषाकात्कारदश्ायामेव awa सत्वाश्नातिप्रषङ्ग. इतिः वाच्यं ्रात्मनो विभुलात्‌ एकस्य पुरुषस्य कर्णावच्छेदेम विश्षएवायोः संयोगद्श्ायां सब्वंषामेव पुर्षाणामात्मनि तद वच्छेदेन fawau-: वायोः संयो गस्यावश्यकल्वाद तिप्रशङ्गतादवसख्छात्‌ fe संथोग- fas AMY जनकतावच्छेद क, कथ्मजन्यतावच्छेदक-सयोगलन्यताव-~. च्छेद कजाश्योर्नानालापन्तरपि तु वायुनिष्ठमेवेति चेत्‌, न, ममापि तत्र तन्तदधिशच्णवायसंयोगानां शरोरनिष्ठतया warfare त्कारडेतुलात्‌ चेवं ₹स्ताद्यवष्डेटेन विलच्छणवायोः संयोगस्यापि. ककारादिसाचात्कारजमकल्वापत्तिरिति वाच्य कर्णावख्छिल- विशच्षणएवायुसंयो गलेन Waar पुरुषान्तरौ यकणेञ्च पुरुषान्त रौयग्ररोर निष्ठसयो गावच्छंद कः विलच्णवायोः संयो गस्य फलव AAW ककारादिसाचात्कारदश्रायामेव तस्य woe सत्वेन. दस्ताद्यवच््छिन्नविलच्णवायसंयोगस्य हेतुत्वेऽपि चखतिविरहाच्च way ओ्रोज्रखमवायादेरपि प्रत्याखत्तिलं तन्तदिलचणवायुसंयो ~: गानां ब्यश्जकलस्यावश्छकतया तत एवातिप्रसक्गभङ्गात्‌ | तथापि न्यायनये विलच्णवायुसंयोगानां कलादि कमेव समवायसम्बन्धेन काय्येतावश्डेदक भवकाते तु कसाच्ठात्कारलादिक(९ wat गौरवं

(९) विलच्छणवायोः संयोगस्य सत्वेऽपौति we | (९) तव तु ककारसाच्तात्ारत्वादिकमिति we |

FRR त्चचिन्तामणौ

ग्याच्रनयेऽननककारादिग्यक्रिकण्पनं ततृपुरुषोयग्रन्दलौ किकथाचा- et प्रति तत्‌पुडषौ यश्रोषसषमवाथादेंतुलकश्पयनश्च wagufifa वाच्यं ममापि लौकिकविषयतासम्बन्भेन ककारादि्यक्षेरेवाव्डे- SHAY ककारादिग्क्रेरेकेकतथा ककार-कल्योर away च॒ तथापि खौ किकविषथलष्य खरूपसम्बन्धार्थकस्सानतुगततया RATATAT TARTANA Ay खमवायवत्‌ शौ किकविषयलस्यापेकस्येवातुगतख् सखाघमेनाभ्यपगमात्‌ तवापि समवाथस्चेकतेन मवायसम्बन्धावख्डिलकल्ाधारव्वश्येव प्रतिव्यक्ति मिनसर्पषम्बन्धात्मकश्य कार्ता वश्छेदकताभियामकसम्बन्धलयेन स- सम्बन्धानसुग निबन्धनगौ रवख्य aware) तथापि तव कल्ादिरूपे्छ कादिव्यक्िरवच्छेदिका न्यायमये तु सखरूपतः कल्वादिष्यक्रिरिति लाघवमिति वाच्य ममापि खशूपतः कका- रादिष्यक्ेरवश्ेद कलात्‌ लात्यतिरिक्रपदायेष् किचि- इभप्रकारेकेव भाननियमात्‌ कथं कादि्यक्तेः खरूपतोऽवच्डेटक- लमिति ara) सखलरूपतोऽवच्छेद कत्वेऽपि का््यै-कारण्भावग्डे क- ला दिशूपेखेव भानात्‌ डि जात्यतिरिकपदा्थेख्च किचचिद्धष्य प्रकारेण भाननियमवत्‌ किचिद्धषपप्रकारेण्णवच्छेदकलमित्यपि नियमः, मानाभावात्‌ श्रय तथापि शौ किकविषथतवा क्रिरवष्डेदिका खौ किक विषयतया कवं Fare भिनिगमकाभावात्‌ तव काय्यै-कारष्यभावदयापन्तिः। कावस्यावच्छेदकल्वेऽपि वि- लचणवायसंयो गाभावदश्रायां ककारषाक्षात्कारापन्तर्वारणाय क- कारव्यह्िरवच्ेद कलाबष््रकल्वमेव विनिगमकमिति ares एवं

शब्दाख्थयतुरो यखष्छे शब्दानिद्यतावादः | 14.

सति विशक्षणवायुखंयो गाभावदश्रायां कलमा चात्कारापत्तर्वारएव कत्वष्छ॒श्रवच्छे कल्वावश्यकलादिति खेत्‌, म, ककारादि विषयक कल्साचात्कारस्यलो कतया ककारषाचास्कारषामयोविरहादेव त- STAY कत्वसाच्ात्काराभावसमभबेन RAV IST कलानावष्छकलात्‌, RAMAN कत्वा विषथकस्यापि Besta wey कब्यक्रेरव- च्डेदकलश्य चवेष्सकलादिति aga 1 |

इति ओमथरानाय-तकंवागोौ प्रविर चिते तत्वचिन्तामरिरशख्े

शब्टाख्यतुरौोयखण्डर श्ये शब्दानित्यतावाद पूर्वेपचर TAY 9

55

Bee | तत्त्वचिन्तामणौ `

शब्दानित्यतावादसिद्वान्तः

` चोच्यते गकारादिव्धक्तयोनैकैकाः, अस्तिं शुक-सारिका-मतुष्यप्रभवेषु स्त्ौ-पुंसतदिशेष प्रभवेषु गकारादिषु स्फुटतरवैलघ्षण्यात्‌ सखवरूपतोभेदप्रथा दृक्ष्तौरादिमाधुगवत्‌। चेयमोपाधिकौ भेदप्र तौतिः, fe विदितकुङ्कमस्य कुद्ुमारुखा तरुणोति-

अथ श्दा नित्यतावाद सिद्धान्तर दस्य |

‘afa सखेति wat af wee, तदिगरेषेति खो- विगरेष-पुरुष विगेषेत्यथैः, 'स्फुटतरवेलचष्छादिति nauafagaae- Ga हेतुनेत्यर्थः, "खशूपतोभेद प्रयेति श्रन्योन्याभावसखरूपपरल्यर- aerate: “वुचोरादिमाधुच्येवदिति दवुमाुष्य-दौर- माधुख्यादिवदित्यथेः, सक्म्यन्तादतिः, “माधुय मधुरोरखः, तथाच तज yaaa हेत्ना परस्यरभेदप्रतौ तिरित्यथैः, 'भपाधि- कौति परम्परयान्यनिषटवेधम्म्यैविषयेत्यथेः, “भेदप्रतौ तिः" यथोक्त गकारादिषु वैषचष्ठातुभवः, अ्रन्यनिष्टवे धम्म्येविषयतवं दूषयति, ‘a सोति, ‘SEAT तरुणोतिवदिति जङकमारुणा तरुष्ोति- naa कुङ्कुमा रुष्वदिल्ययेः, शस्लो-पुंसादिप्रमेदवमिति खो-पुं

श्रब्दा खयतुरीयखखे धिब्दाभिव्यतावादः | ४३१

वत्‌ स्ी-पुंसप्रभवत्वमानुभविकमुर्पाभिः इन्द्रियाः सन्निकर्षेण . स्लौ-पुंसादिभेदम विदुषोऽपि . णब्दभेद- प्रत्ययात्‌, यतोऽनुमापयन्ति शुकशब्दे।ऽयं स्रौशब्दो- ऽयमित्यादि अन्यथान्योग्याश्रयात्‌, ` तत्रभव्रत्वे wa भेदप्रत्ययस्तक्माच्च . तदमुमानमिति ।. ख. AIT णाग्वय-व्यतिरेकानुविधानात्‌ Aw मुखदौधंत्ववत्‌ आओपपत्निकमोपाधिकत्ं, अन्यानुविधानाभावात्‌। अथ

कनन ~ ~) = >

मा दिभिष्ठं वेलच्च्मित्यथः, स्तौ-पुंसप्रभवलभितिपाटेऽपययकेवी थैः, agit अतुभवसिद्धं, “उपाधिरितिकशमयुत्पत्या परग्परया त्रारोपप्रकारौग्धतमित्यर्थः, “इद्धियासन्निकरपंण' न््ियसननिकर्षा- दि विरहेण, “ग्रब्दभेदेति, "भेदः" वैलच्ष्छं, तदन्नानेऽपि भेदपत्यय- cay मानमाह, "यत xfa, तेनेव हेतुनेति गेषः “waar तजृन्ञानानन्तरमेव शब्दभेद प्रत्यये, "तत्रभवले' wM-dafefas- jaqa, ‘Wena’ शब्द निष्ठवेलचष्यप्रत्ययः, ‘Agra’? wee- निष्ठव्ैलचष्यन्नामाख, “त्रतुमानमिति स्ती-पुंसादि निष्ठरैलचच्यानु- मानमित्ययेः, (छपाणान्वयेति यदा इपाणे meine तिस्तदेव मुखे दौषैलारोपो पुनरादशदौ तक्नत्ययद भरायामित्यन्वय-तिरे- | कालुविधानादित्यथेः, ‘eae मुखदौघेलवदिति शपाणनिष्ठतया भासमानस्य मुखस दौ घेवप्रत्ययवदित्ययेः, शरैपपन्निकमिति

. # +

[पी me

(९) स््नो-एैसादिप्रमेदत्वमानुमविकमुपाधिरिति पाठान्तर |.

end , , .. . - बष्वचिन्ताममौ `

VARTA Teel शुकादिगकारगतत्वेन भा- सते . वायोरुपलन्धिस्तनैव ङूपेणेति चेत्‌ ग- कारगतत्वे बाधकाभावात्‌ चाभेदप्रत्यभिन्नानं बाधकं, a हिय रव शुकशब्दः शव सौशब्द इति प्रत्यमिच्रानं, अन्यथा तेषु भेदक्नानाभावेन वकुवि षानुमानं. स्यात्‌ | चाभिव्यश्जकवायोरेव बेल- QU शुकाथनुमापकं, तस्य गकारारत्तित्वात्‌ तच

अन्याग्वय-व्यतिरे कान्ययानुपपक्या दि सिद्ध मित्यथेः, “बापाधिकलत्वमि- ति, श््द निष्टवेलचष्यप्रत्ययस्य यथाकथस्ित्‌ स््यमाणारोपरूपतव मित्यर्थः शपाशे मुखदोषेतवारोपस्यातुग्धयमानारो पर्ूपत्मेव तु श्येमाणरोपरूपत्रमिति कचं दृष्टान्तलमिति are | यादृशं ata BUTE तादृ श्दोचेलस् सुखे ्रारोपाभावेन auf स्मय्येमाणद घलान्तरारो परूपतलमित्यभिप्रायात्‌ ्यच्चकवायोरि- ति, वायुनिष्टवेखलण्यस्य तवाप्यावश्यकलादिति भावः गकार गतत्वेन भाखत इति, प्रतो तिस्त॒ परम्परासम्बन्धेन प्रमारूपा साषात्‌- सम्बन्धेन भ्रमरूपेव वेत्यन्यदेतदिति भावः amr विना कथं जा- faay इत्यत श्राह, वायोरिति, वायुषन्तु stare भासत इति भावः मनु meg ष्वंसादिकश्यनागौरवमेव बाधकमित्यत श्राह, अन्ययेति, “अन्यया auntie, भेदज्ञानाभावेनः न्नाय- मामवैख्ष्याभाषेन, "तस्येति, तथाच गकारं wate इएकाथ्- श्रिते साध्ये वायुगिष्ठवंलचच्यस्य न॒ qugafafa भावः

WATT शब्दानित्धतावाद्‌ः | 9३७

चारोपे श्रनुभितेभान्तत्वापातात्‌। तस्मात्‌ ; यथा RUM गौः Tar गोरिति मेदे भासमाने गकारानु- गतप्रतौतिगेात्वमासम्बते तथा शुकादिगकारेषु. भेदे भासमानेऽयं गकारोऽयमपि गकार इति बुिगेत्वमा-

ननु पकधषमेतान्ञानमुपयभ्यते तच्चा चारो परूपमेवा विकलमित्यत- आह "तत्र चेति गकारादिषु वायुमिष्ठवेशकचष्यस्य पक्चधशेतारोप- इत्यथः, “्रनुमितेः' श्रसुमित्यमुव्यवसायस्य, “भरान्तलापातादिति भ- वज्ञयेऽन्यथास्याव्यभावेन पचचधम्मेता निश्चयाभावादतुभि्युत्पादाषम- वादिति भावः। परम्परासम्बन्धेन वायुटत्तिवेल्यं लिङ्गमिति वाच्यं Wana व्याप्यतामवच्छेदकल्ादिति ara: “अरनुमितिरिति ययाञ्चुतन्तु सङ्गच्छते विषयाबाधेन कूटजिङ्ग- कानुमितेरपि प्रमालसम्भवात्‌ मतु एक-प्रारिकादिगकारादोनां परस्यरभिन्नलेऽयङ्गकारोऽयभपि गकार इत्यादिप्रत्यभिन्चानुपपन्तिः(९ व्यह्षभेदस्य तददिषयला दिल्या शङ्कामुपसंहारव्याजेन निराकरोति, "तस्मादिति, भेदे भासमान दति इत्यलुभवसिद्धेन वेलचष्छेन भेदे षिद्ध इत्यथैः, “गोतलमाणम्बत दूति तु amici: ‘ane माने' सिद्धे, गकार इति बुद्धिगेलमालम्बते तु यक््भेदमि- त्यथैः। नतु परन्परास्बन्धस्ापि व्याप्यतावच्छेदकतया वायुनि्ट-

(९) इति हदयमिति खर | | (९) प्रत्यत्चानपपत्तिरिति °

eqs ct | ˆ --

waa इति nara Rena ` चोपपद्यते | fare गत्वादिकं यदि. न. जातिस्तदा. areaTwenent स्यात्‌ तथा fe नगरादौ बहभिर्वशौानामेकदोच्ारणे दूरस्येनानभिव्यक्तगका रादिवगेविभागं कोलाहलम्राषं शरुयते। तच व्णान्धस्य ध्वनिरूपस्य शब्दस्य श्रुतिः

व्ैशचष्ठेनापि परन्यरया शएकाथु्चरितलानुमानसमावः। शसु वा ata’ water ्रककण्टाद्यमिदितलं(५ साध्यौरत्य इएकौयला - तुमाभमिल्यव्लरयात्‌ ` ककारारैरेकैकले केल-खल्वा दिजात्यतुपपश्या aut भेदं साधयति, ‘feels, "गलादिकमिति, गलादिजात्तेस- व॑ष्यकले व्यक्तिभेदिाऽप्यावण्यक दूति गूढाभिसन्धिः, "कोला हशप्रत्यय- दूति कौलादणव्यवदार इत्यथः, ‘asf’ जनेः, वर्णानां" बहनां वर्णानां, ‘canta, qua waratea तु यादशब्दापेदया खकर्णावच्छिन्नखेव शब्दस्य ग्रहादिति ध्येयं “श्रनभिव्यक्ेति अन- भिव्धक्षकला दिजातिकमित्यवैः, 'कोशादलमाच॑ weeaqealy, ‘gay यत्‌ yaa, तदेव कोलाहलव्यवहार विषय दति ta.) | तथाच वणेलावान्तरकलादिजातिमत्तया श्रप्रतो यमानशब्दसमृरत- त्वमेव aera aq गत्वा दिजात्यभावे सम्भवतोति भावः नन्वप्रतौतष्यनिलावान्तरजातिकष्वनिव्यकिसमूह एव ` कोलाहल- व्यवहारविषय इत्यत श्राह, “न चेति, तच कोलाहशव्यवदहार-

(४) शुक कग्टाद्युष्वरि तत्वमिति ° | (र) इति ma इति ऋक० |. ...

WTS गरञ्दानित्यतावादः। eRe

सेम॑वति, तद्भिव्यश्ञकमेरोताङनादेरभावत्‌ | वर्णाभिव्यच्जका रव ध्वमिव्यश्काः, सन्निषानेऽपि शरुय॑ः WIND वर्णे तच्छवणप्रसङ्गात्‌। वर्णामिव्यश्जकः वायुभिरेव दूरे ध्वनिमाच्रमभिव्यज्यते, कव्यश्कस्य गव्यश्ञम दव वणव्यश््कस्य ध्वनिव्यश्जनेऽसामणथ्यीत्‌ तत्समथैशङ्कादेरभावाच | तच शब्द्त्वमेव प्रतौ यते शब्द्‌, MHA जात्यग्रहात्‌। चाभिव्यश्चको वायुरेव कोलादइशत्वेन प्रतौयते, शब्दत्वेन प्रत्ययात्‌

wa, तद भिव्यश्चकेति ष्वन्यत्यादकेत्ययेः, ष्वनोनामनिल्यतया५) यथाश्रुतासङ्गतेः श्वनिवयश्नकाः' च्वन्युत्पाद्काः। दूर दति दु रवसहकारा दित्ययं , तथाच सन्निधानेऽपि ष्वमिर्जायत एव | व्यश्जकाभावात्‌ श्रूयत इति भावः। aq फलबलाहूरल्लोपडि- तानां वणेव्यश्चकानामेव aw सामथ्यं स्यादित्यत ay, ‘aqaa- यंति ध्व निजनगकेव्ययेः, तथाच grace विना कथं aw ध्वनि तौ यध्वमावेवेति ara गौरवात्‌ मानाभावाश्चेति ara) गद्ममाणव्यक्िकश्न्दत्मेव ated afer निराचष्टे, सेति श्रभिव्यश्नकेति ककारादिव्यश्नकेत्यथः, sazqaru- न्योन्यभेदिकाः wearer: गकारादिव्यक्रय ` एव कोलादणश- ¦

(९ ध्वनोनामजिव्यत्वोपगमादिति we | ,, . ee . ;

see | ` वत्वचिन्तामयैी

सन्निधावपि तथा प्रत्ययप्रसङ्गा्च। गकारादिग्रहेभपि तेषां परस्परभेदाग्रहात्‌ कोलाहलधौरिति चेत्‌, न, तेषु वैधम्म्याभावात्‌ . तदभावेऽन्धोन्याभावस्याभावात्‌ स्व रूपग्रहणात्‌ समौपे . वहग कारेषु भेदाभावेन तद्‌- TY कोलाहलधोप्रसङ्गाच्च | अनेकयर्योजच्ारणस्य तदे तुत्वे दूरेऽपि तदप्र्यापन्तेः। तस्मादवश्यं गत्वादि- जातिरुपरेया zeae गकारादिग्रहेऽपि कोलाहलबुद्ि-

श्यवद्दारविषय इत्याश्रङते, 'गकारादोति, “परस्परभेदाप्रशादिति परस्रनिष्ठो यो भेदस्तस्या ग्रहा दित्यथेः, वेधर्म्यान्योन्याभावसख- रूपाम्‌ भेदान्‌ क्रमेण faney दूषयति, "तेष्विति, गलादिजातेखठ- यागश्युपगमादिति भावः। तदभावे" Feeder, “अन्योन्याभाव ष्याभावादिति अन्योन्याभावद्य वेधम्म्या्याणत्वादिति भावः ननु वेधम्म्याकराभावेऽपि खरूपमेव तादाक्येन Aue eas वा भेदो are: ae मेदवलेनाप्रहात्‌ कोशादणप्रत्ययः स्मा दित्स्त- राद विद्यमानभेदायदो नियामको विद्यमामभेदायरशो वेति विकश्य We दोषमाह, समौप इति, "बहगकारेषु" asf fry गकारेषु, तदह इति, age ` तवान्ययास्याल्यापत्ति- रिति भावः। fara दोषमाह, “्रनेकेति, ‘agae’ कोला- इशपौडहेतुले, दुरेऽपौति, बङमिरेकदा गकारोचारणेऽपोति we, ‘waa गत्वा दिना तिरिति, गलादिजात्यभ्युपगमेऽनेकगकारादिब्- क्रिरगत्या विद्यातोति भावः। नतु खन्तु कोलारलनुद्धि- व्यपदे ग्रान्य-

शम्दाख्यतुरौयखग्डे शब्दानित्यतावादः | eet

व्यपदेशो | अलि शब्दस्य कोऽपि जातिविशेषः PIM: यस्मात्‌ प्राच्यादिदि्देशविशिष्ट शङ्खप्रभव- त्वमनुमौयते, अ्यपदेस्यत्वेपि घछष्ौरादिमाधु्या- वान्तरवत्तससश्वात्‌ | अन्यथा दिग्देशविशिष्टशङ्खम- atat ग्रहे ओ्रोषस्यासामर्थ्यात्‌ तत्‌प्रतौतिनं स्यादेव + तथापि गत्वादिना परापरभावानुपपत््या शुकादि-

यारुपप्या गलादिका जातयः एवमपि शएकादिप्रभवा एवौका एव मन्तु ककारादियक्रय इत्यत आर, “त्रस्ि चेति, "यस्मात्‌" जाति- faingat, भ्राश्यादौति, तथाच इएकककारलस्यापि ang प्रभवलरूपतेजात्यभेदादवेद इति भावः। मतु प्राचोप्रभवलादेर्जाति- पतल एव तदाञ्रयककारादौनां MATa तदेव कुत इति चेत्‌, ग, प्राच्यादिप्रभवश्कौैयाेकैक ककारादि विषयकतेनेव तादृशव्यक्निय- डेऽपि प्राश्यादिप्रभवत्व-तदःप्रभवत्वसन्देरात्‌ . प्राच्यादिप्रभवलादेमं- त्वादिव्याप्यला तिविशरेषल्वावश्यकलतात्‌ जातिविगरेषखकारे -च दोष- वशात्‌ तादूग्रनात्यप्रहकासे एव तादृशसंश्योपपन्तेः, इत्यञ्च कदम्ब- गोरकन्यायेन शब्दोत्पन्तौ अन्यथा want प्राचौभवलादेरसमभ- वात्‌ वौचि-तरङ्गन्यायेनोत्यत्तौ देशान्तरेऽपि arm sign देश्ान्तरजन्यतावच्छेदकजात्या सङरप्रसङ्गाश्च, “शङ्केति दृष्टान्ता, एकादिकमपि बोध्यं श्रव्यपरे श्यविऽपि' कंख्यचित्‌ we प्रहन्तिनिमिन्नलाभाववल्ेऽपि, "तत्त्‌" ` प्राच्यादि प्रभववजाति-

सत्वात्‌ MAMI. ता दृश्वेजात्याखौकारे, "परापरभावालुपपन्येति 56

Th |. , वत्वचिन्तामणौ

गक्रारादिषु जातिविश्रेषा इति चेत्‌, शुककका- रादिषु कत्वादिव्याप्या नानाजातिभिन्ना तया प्रत्येकं श्कककारादिषु शुकादिप्रभवत्वमनुमाय तद्यवहारः, नतु शुकककारादिषु शका जातिरस्ति शुकप्रभवत्वा- warrant तद्यवहारकारिका वा, गत्वादिना सदर. प्रसङ्गात्‌, TAY नाता अनतुगतन्वेन ततोऽनु- गतव्यवहारानुपपन्तेः | अतरणव तारत्वमपि गत्वादि-

ACMA, Aaah शकारादौ एकादि- MRA एएकादिप्रभवल्न्येणन्यप्भवगकारादौ गला दौनां ्वादिति भावः | (तथाः गन्या्यनानाजात्या, इएकादि- mag इका दिप्रयोज्यल, एवं देग्प्रभवलमपि देश्रप्रयोच्यत, अन्यथा कण प्ष्कुख्यवच्छिशे शब्द जन्यश्न्दे तव्न्यलाभावादलप्रक- तापत्ते, शरकप्रयोग्यटन्तिखुजातिविग्रेषः शएक-तहे्रजन्यताव- द्र कजातिग्यापक एव्‌, AMMA: शएक-तरे ्रजन्यतावण्डेदक- आात्यारुमान्च व्यतिरे किणेवान्वषषडहचाराभावात्‌, तादृग्रजन्यता- वच्वेद कलात्यतुमानच्च तदन्ये राप्रभवल्वेऽपि सति तहेग्प्रभवला- दिना व्यतिरेकिणेव | तद्यवदारः” श्रडुकादिप्रभवोऽयं गकार दति Wau, "ह्ूरमसङ्गादिति गलाभाववति wart प्रुफम्रभवतस्य wea चान्यप्रभवगकारे गलद्छ सत्वात्‌ इएकपरभवगकारे तद्यो, अरसाबेग्राचेति भावः “नागाः शएकप्रभवलादि याप्य -विदद्ध- FAW ATM, शअशुगाततद्भतवडहाराहुपपत्तेरिति भावः। aU

MTA ATS शब्दानिद्यतावादः 88

व्याप्यं नाना तु गत्वं तन्िश्चयेऽपि गत्वसम्देहश्च व्याप्यतावच्छेदकरूपानिश्चयात्‌। ` षातुगतव्यवडहा- रानुपपत्तिः, सजातोयसाक्षात्कारप्रतिबन्धकतावच्छेद्‌ः कत्वेनामुगतेन नानातारनवे्नुगतव्यवदहारसम्भवात्‌, तदन्नाने ` व्यवहारासिङ्धेः। तारत्व-मन्दन्वे जातौ सप्रतियोगिकत्वात्‌ इति चेत्‌, न, तारत्व-तारतरत्वादय- ` उत्‌कर्षादिरूपा आतिविशेषा खव ते चाश्रये द्य माण र्व Ww तूत्कर्षावध्यपेश्षाः यया मधुर-

ककार-खकारसाधारणएकप्रभवलप्रकारकाशुगतवब्यवहाराजुपपनेस्त- जापि साम्यमेव तथापि तादृध्राजुगतबुदधिरपामाणिकोत्यभि- ्रतयेत्युक्रमिति भावः “रत एवः गकारासुगतव्धवहारारुप- पत्तेरेष, ‘aq गलमिति, मामेति we) भगु तारलादे्- त्वादिष्याणले तन्निश्चयो स्यादित्यत श्राह, -तज्िखयेऽपौ- ति तारल्ादिनिशयेऽपोत्यथेः, व्याप्यतावच्डेदकेति तारलादि- निष्ठगत्वा दिव्याणताषच्छे करूपाभावादित्यथेः, तारण्वादेर्वायुधष्य- लवेनाग्याप्यलादिति भावः। Keg पररोत्या पर veut, समते तु व्या्लेनाश्चानद्‌ शायामेतादृशनिशयेऽपि संशयो पपन्तिर्बाध्या “प्रमु गतब्यवहारामुपपत्तिःः ककार-गकारादिषाधारणतार-द्त्या- कारकाशुगतवष्यवहारामुपपन्तिः | “सखप्रतिथो गिकलात्‌ wafufrey- एापौननिरूपणकलात्‌ ।. "म॒ वत्कर्षावष्यपेचाः' दत्कर्षावधि-

898 तत्वचिन्तामणौ

तरत्वादय उत्कषेष्यवहारः wacarter कुर्वन्ति तथा मन्दा्यपेक्षया तारत्वादिव्यवदार, उत्कर्षस्तु जआ- -तिरूप्रादन्योऽसम्भावित रव, गकारे तु नैवं, अन- ग्यथासिद्वभेदप्रत्ययबखेन वक्तविशेषानुमांनबखेन चख तत्सिद्ेगेत्व-कत्वव्याप्यतन्नानात्वस्वीकारात्‌ तवापि

विषयिष्ेव स्मतौ तिः “तारल्वा दिव्यवहारमिति, त्ारलादि- | नातयः ` wait fat we: अतः तारतादौनां onfaa fag ब्यवहाराथंमवध्यपेचार्यां दोषः। एवं विल्लच्णप्रतो तिबजान्तख- ठृ्निकलेऽपि acd away जातिद्वं घटतल्-कलसलादौ माना- भाव दति त्वेतादृश्जातिदयमिति aera) नलु नाना- गकारेषु उपाधिनेव गकारालुगतमतिरस् तत्कथमनुगतमग्यवहारा- -न्यथानुपपश्या व्यापकणातित्वं गलस्येत्यत Ae, "गकारे तु नैवमिति, Se? व्यापकजातिकर्पकाभ(वः, wa हेतुमाह, “शरनन्ययेति अरनुगतधग्यावगाङिम्रत्धयबलेनेत्ययः, ककार-खकारादिसाधारण- -इ्एकौोय इत्याकार कानुगतप्रतौ तिस्खसिद्धेति भावः भसु देवदन्त- प्रभवल्वाद्युपाधिभेवानुगतवुद्युपपनत्तौ किन्तप्भवलजाव्येव्यत श्रा, ‘afafa वक्कादिविग्रेषो देवदन्तप्रभवत्वादिः, तथाष्‌ वक्ृविग्रेषरूपो- पाधिरपि जातिविगरेषं विना सिद्यतौति ततश्लीकार आवश्यक- -इति भावः। ‘aurea शकोयतादेगंल-कलतव्ाप्यमानाजातिल- -स्लौकारादित्ययः |

“RRO शकारे तु नेवभित्यस्त यथा कंल-खलादिव्या्यनानाः

ए्रब्दाख्यतुरौ खणे शब्दानित्यतावादः | ४७१

वायुत्तिन्वे शुकादिककार-गकारादिव्यश्जकवायुनां विजातौयत्वं वाच्यं तथाच ककारव्यश्ञकवायुत्व- ara” यदि शुकवणोभिव्यश्ञकवायुत्वं तदा. wa गकार व्यश््ञकवायो. स्यात्‌, अथ व्यापकं तदा सव्वे रव कव्यश्जञकवायवः शु कवर्णा भिव्यष्ञकवाययः

Ne शएकप्रभवत्मनुमाय एुकोयककार-खकारादिसाधारणषु शएकौयलवयवहारखथा LAT गकारे गलव्या थनानानाल्या' WATT SAGA तञ्चवहारोऽपि तु गलव्याणेकजाल्येवेत्यथेः, शएकौयल- गयाप्यतायां किं प्रमाणएमत-श्रार्‌, “्रमन्यथासिद्धेत्यादि, तथाचानु- गतप्रतौ तिमिष्वाडाय गलादिप्रती तिनिव्याहाय गवजातेः इक- तदन्यगकारषाधारणतवेऽनायत्या तद्यायत्रमिति भाव caw: |

अपरे तु यत्र एक एव इएकौयो गकारखतेकग्यक्तिदृन्तितया प्रुकोयतवस्य जा तिलाभावाष्लात्या इएकप्रभवत्वमतुमाय श्रटकगयत्- व्यवहारो नेत्याह, “गकारे तु नैवमिति, went च॒ गलादेः इएकोयलजा ति्यापकले किं माममिति wera समाधत्ते, “श्रनन्यये- त्यादि पृथ्यीक्रायेकमित्याङ्कः |

'तवापौति, ववायट़त्तिवेः शकोयला दिजातौनां वायुटत्निवे, “विजातोयत्व' गकारव्यञ्चकवायु विलातोयलं, “न स्पा दित्यस्य शएक-

(५ ककारादिव्यन्नकवायतश्याप्यमिति ae | (९) श्रुकककारण्यन्नकवायाविति we |

‘pee 7 arafentrat `

स्यस्तस्मादायुषटत्तित्वेऽपि तासां नानात्वमावश्यकं 1 अयातु सो-पुंसादिगकारभेदस्तथापि यावदक्षभेद्‌, मनन्ता wa नित्या वर्णाः प्रत्यभिन्नानादिति चेत्‌, अश्यत्पाद-विनाश्परतौतौ सत्यामपि ware गकार इति प्रत्यभिक्ना, अस्ति हि तदनन्तरमष्यत्पाद्‌-वि AMAA | चोत्पादप्रतौत्यमेदप्रत्यभिन्नयोरन्यत- रस्य wet विहायान्यद्बाधकमस्ति, वानयोः ` परस्यरं बाध्य-बाधकमामे विनिगमकं येैकथान्त- त्वेनाविरोधः स्यात्‌। कथं वा मेदामेदन्नानयोरन्य-

वर्णामिव्याश्चकवायलमिन्धादिः, ‘aet इकौयलजातौनां, उत्पा- दादिपत्यय-मत्यभिन्ञायोः परस्यर प्रतिबन्धेन प्रत्यभिन्नाया ew दावगादिलासम्नवेनानायत्या तच्नातौयामेदावगाइनाच्छम्दस् नि- ह्यतायां प्रमाणलमिति समवधन्े, “शस्त्पादेत्या दिगा ्रमाण- यितुं reer इत्यन्तेन गतु यदि व्यक्रिभेद ्ानाशचाने प्रत्यभिन्ना तदेवाविरोधाय म्रत्यमिश्चाया विषयभेद कण्पना get तदेव न, परन्तु थदोत्पश्यभेदव्याप्यतया तज॒न्नानकाले कटाचिद्यकरिभेदगरह- एव प्रथमतो भातस्तदा तत्‌प्रतिबन्धकवश्रात्‌ प्रत्यमिन्ना लायत- एवेति विनिगमना विरेषणोभयोरेव प्रमाणतया प्रत्यभिज्ञाया निन्यले प्रमाणलमचुशलेवेत्यत आह, "कथं वेति, तचाच aren भेदग्रेऽपि तदुश्तरषणेऽनुभवषिद्धां प्र्थमिश्वा विषवभेदकश्पनां

re ee निजकर्म = =

WTS शग्वानित्तावादः। 88

बाबधांरितं परस्परप्रतिबन्धकत्वं परिभूय प्रथमं तयो- रेकसन््ेऽप्यपरोत्यत्तिप्रसङ्ग इति सङ्कटप्रविहत्वेन प्रत्च- faut शब्दनित्यत्वे प्रमाखयितुं शक्यते ।. Ae वभुत्परिमस्वादिनाप्यनित्यत्वसिङ्धिः कथं, इत्थं, उत्पा- दादिबुि-प्रत्यभिन्रयो रप्यवश्यं विषयभेदः, ` एकविष यत्वे विरोषेनैकानन्तरमपगरानुत्पतलतिप्रसङ्गात्‌ . रवण्ड भेदे mama प्रत्यभिन्नायाः सजातौयत्वं विषयोः व्यक्तयमेदः। चैवं तज्नातीयोऽयमिति स्यात्‌ a तु सोऽयमिति वाच्यं | तज्नातौयत्वप्रतौतेरपि सोऽय- मित्याकारद्शनात्‌ यथा सैवेयं गाथा तदेवेदमौषधं agin: छतं मयापि प्रत्यहं कियमाणमस्तीत्यादौ।

विना कथं सा दित्यचेः, इति सङटेति, तथाच प्रत्यभिन्ना तष्ना- तोयाभेदावक््ननेति भावः मनूत्पाद्‌ादिप्रत्ययानामेव विषयभेदः कश्प्यतां विनिगमकाभावात्‌ tery कथं तेषां शब्दाभित्यते प्रमाण त्रमित्याश्रड्ते, ‘afafa, बिद्धाम्तयति, “दत्यमिति, र्यभिन्नायाः साष्लातोयलावगाइने साधकमाह, "एवश्चेति, ‘wiz, तद्यक्षिला- वज्छिलञप्रतियो गिताकभेदाभावः, ‘xf स्यात्‌" इत्यभिल्ापरः wr! नतु Tahaan इत्यञ्च तावदणेसमूदस्याुपूर्वोलि तश नित्येकतया तदत्वावच्छिन्नाभेद विषयतेनेवोपपन्नौ तत्मश्यमि- जायास्तव्नातोयलावलम्ननमसम्भवदु क्रिकमेवेत्यत शआागुपूर्यां नाना-

esc तच्वचिन्तामयौ

हि तावदगमाजमानुपुव्वौ, जरा-राज-नदौ-दोना- दिषु तन्नानात्वात्‌, किन्तु तदुच्चारखानन्तरसमुचारलं तजन्नानानन्तर We वा तच्च नानेति तदतौ गाथापि नानैव | नचाभेदे भासमाने उत्यादादिबुदिरेवान्- स्योत्पादादिकमवगाइते, गकार गतत्वप्रतौतेर्वान्तत्व- प्रसङ्गात्‌ | बेशटापत्तिः, अभेदे भासमाने तदिर्ड- धम्मेवश्चस मानुदयात्‌ विनिगमकाभावेनोभयस्यापि

त्वमेव साधयति, होति, ‘aq नेति, तथाच ताद्‌ शरानुपूर्या- तऋकतन्तदधाक्तिलावच्छिन्नमेदाभावष्य तादृश्रासुपूरवौरूपेदन्वविभिष्ट- वैगिष्यावगाहित्वं सम्भवति तादृशानुपू्यां veritas विगेषणविषयकतद्धानासम्भवात्‌ We Maya VATA TS ूल्यवच्छिश्नमेदाभाव एव विषयो वाच्यः, तथाच तदेव तष्नातौय- लावगाइनमिति भावः ‘fa’ इतिद्ेतोः, ‘away ATE MTA- yaaa, “गकारगतल्वप्रतौतेः" yatoaararii ets गकार- दूति प्रतौतेः, “wae भाषमाने' प्रथमं मेदाभावरूपविग्रेषदर्भने विरोधिनि afa, “तदिरुद्धधषौवत्श्रमासुदयात्‌" तददिपरोतन्नानानु- दथात्‌, “विभिगमना विरदेणेति,\ उभयोर्याया््थश्च उत्पादादि- yaaa तदौयोपादाना दि विषयकले प्रत्यभिन्नायाख तव्नातौोयला-

0 विनिगमकामावेनेत्बच विनिगमनाविस्हेबेति कस्चिन्भृशपुसतकर पाटः |

Wagaya ग्रब्दानि्यतावादः। ete

AMAA, कुतस्तरि तस्या Maer fra, we प्रथं Renal Bawa Rzaws तदन्नानात्‌ कचित्‌ ar भ्रान्ता, तस्माद्यव मेदप्रतौतिस्तदितरबधकाबाध्या तच प्रत्यभिन्नैव भवति भवन्तौ वा तज्नातौयतवमा- लम्बते, तु यान्ता, विश्रेपद णमे भरमानुदयात्‌। अपि यथा शङ्कगदिध्वनौनां उन्पल्ति-विनाशप्रत्ययात्‌

anfea एव सिद्यतौति तथालमावश्चकमिति भावः "तष्याः, प्रत्यभिज्ञाया, "यच भेदप्रतौतिरिति, तदितरबाध्काबाध्या' ‘afz- तरेण' प्रत्यभिश्चेतरेए, बाधकेन" श्रप्रामाख्छन्यानादिना, ‘sane’ आस्कन्दिता भवतौत्यथंः, लगु वर्णानामुत्पाद विनाश्रकश्यनापे- चयोत्यादादि प्रत्यायामां भमलकण्पनेव युकत्यतश्राह, ahs चेति

मनु गवाद्यविषयकप्रत्यदविषयवणेस्तोमलत्वं कोखाइजतं ता- दृ श्नोपाध्यप्रतिषन्धानेऽपि कोलाहख्प्रत्ययादन्यया शूपलादिकमपि चचुमाजग्राह्यग्‌ एल्याद्युपाधिरेव व्व्मतेऽपि are किन्तु अ्रब्टलभि- USGA AT कोलादशतलमत एव कलाश्च विषयक प्रत्यचविषय- स्योपनौतभामद श्रायामपि ग्टहोतभेदकवणेस्तोमः कोलादइण दत्या- कारको मानुभवः तच्च धर्ान्तरं दूरता दिग्यश्चमतः सन्निधाने mea इत्यत we, “अस्ति चेति, ‘wee’ ada, ‘srarfefent mMy-ayifezarat, ‘fafwemgretare, भ्रभवलं' प्रथोष्यलं, यख्मादनुमौयत Tau, तेन श्रूयमाणवणेग्यक्तो नां तत्तहिगाच- जन्यवेऽपि व्यभिचारः शङ्खः वेभिष्यं विलक्षणा त्कार हितत,

67

8०. तत्वचिन्तामणौ

तारत्वादि विरुदधम्मेसंसर्गाचानित्यत्वे सैवेयङ्गजरौत्या- दिप्रत्यभिन्ना तज्नातौयत्वविषया तथा वयीप्रत्यभि- त्रापि अन्यथा ध्वनयोऽपि नित्याः स्युः उत्पत्ति-वि-

“श्रादिना विपश्चो प्रगते रुपयदः, सटकारि विगेषवशात्‌ weet वशोत्पाद कलमते चेदं ननु दिग्देपयोच्यध्सासाधारणएपद्‌ WHATS THAN तिलानुपपत्निरित्यत Wy, “श्रवयपरेश्यवे- ऽपोति ्रषाधारणपद शक्यतानवच्छेद कवेऽपौत्यर्थः, "माधुर्य्यावान्तर- वदि ति, wa’ दिगादिग्रयोच्यजातौना मस्ते, "न स्यादेवेति, तथाच तादृग्रजात्यशुरोधात्‌ गकारव्यक्नौनां मानालाद्वष्छं गकाराद्यतुगत- ल्यच गलादिजातिरभ्यपेतव्येति तदवच्छि्नामेद विषयिष्ठेव प्रत्य farm भविष्यतौति न्यायमतनिगभंः। wet, 'तथापौति, “परा- परेति, शकौोयलादिकं कत्वसमानाभिकरणजातिमिनं श्रव्यभिवा- रिकलव्यमिशारिलात्‌ खूपत्वादिवहटला दि वदेति भावः। ककारगत- शएवंगेयलस्य कलाव्यभिचा रिलादुकहेतोः खरूपासिद्धिरित्या्येन परिहरति, शएकेति ननु कलादिव्यापयायाः कौयलजातेर्नानाने ककारादावनुगतः श्टकोयतव्यवहारः कथं स्यादत ae, “तया चेति तादृ ग्रनानाजाल्या चेत्यर्थः, “एएकादिप्रभवतव' तत्मयोज्यलं wea, “न चेति,९ निरस्यति, 'गतवादिनेति, wa विमा mated wart mala विना गवं स्तौगकारे व्त॑मानं शकौय- गकारे मिथः सङो णमिति ara: |

(९) ‘eters "तया चेतिपाठः क्चिन्मलपुतके वर्तत इति | (९) ईदृ श्व्याख्थाने “न वित्य "न चेतिपाठो यज्यते |

जब्दाख्यतुसेयखण्डे शब्दानित्यतावादः | 8४९

भनु agate गलादिकमेव हशकौयत्वादिग्याणं भाना कर्थं मोचयते इत्यत श्राह, 'गलन्विति, त्रननुगतल्वेनेति, यद्यपि ara भिरेव गलभातिभि्गकारेषु कष्टावच्छेदश्यविलसणप्रयन्नप्रभवत्मनु- माय तेनेव गणेग्रशक्रतावच्छेद कजा तिमदष॑लेनेव a) अ्रनुगतगकार- व्यवहारः सम्भवत्येव तादृश्चोपाध्यप्रतिषन्धानेऽपि गकारानुगतमत्या श्रमुगतलख्लौकारे तु इकप्रभवलवाद्युपाधेरप्रतिसन्धानेऽपि शएकोक- गकारादिनामावर्शेव्वसुगतमल्यमुरोधात्‌ तेष्वपि इएकप्रयोज्यजाति- प्रसङ्गे gait: तथापि इका दितत्त्राणिप्रयोव्यजाति्ेदि कला- दिपञ्चाश्रष्लातिग्यापिका तदा प्राणिग्रतसञुश्वरितेषु ककारादि- पञ्चागश्दरेषु तन्षप्राणिपरयोच्यजातिशतस्लौ कारेऽतिरि कपञ्चाशव्ना- तिकश्यनागौरवं स्यात्‌ कलादिपश्चाग्रव्लातौनां तन्तप्राणिप्रयोज्य- जातिग्यापकले ठु प्राणिग्रतखमुच्च रितेष्वपि कादिपश्चाग्रदरषु कला- द्यः पश्चाश्रदेव जातयो गतु शतानि इत्येव गल्ादिजातेरमुगतले मूलयुक्रिः, इदन्तु बोध्यं कलवग्याप्यश्एकप्रभव-तत्तहे ग्रपभवतारलमेकं एवं खकार दिवर्णन्तरेव्वपि जन्यतावच्छेदकजातेर मनुपगसेऽपि चत्यभावादन्यथा श्रडकोयल-तरे प्रभव -तारलादौमां जातिषाङ्- BR: WHATS तदे शप्रभवल-तारवजातोयसाचात्कारप्रतिबन्भ- $तावच्छेद कश्ब्दजातिलाद्युपाधिभिरेव ककारा दिष्निवान्यदेभौय- $कारादिष्बपि शएकोयलाद्नुगतबुद्धेः सम्भवात्‌ शककलभेव सामान्यं द्याञ्च तारत्व-तहे ्रपरभवतमेकं शएकगकारस्य तद्‌ शप्रभवतारस्य ann जातिद्यखौकारे. साहृग्धादिल्यपि वदन्ति “श्रतएवेति

(९) गपटेन गशेश्गो धनादिति ara |

७६ . तस्वचिन्तामदै

भत्वादेरनुगतल्वारैवेव्यथेः, मनु ATG गव्व्याणले तल्लिख्चयदश्रायां गल्खन्देहो न्‌ स्यादिरोधिव्याप्यनिखयस्य wire wy, 'तजिखय- दति, न्या्यतावष्डेदकरूपा निखयादिति, तादेण fayaiada व्या्िस्मारकलात्‌ इति ata) व्यापकषामानाधिकरष्यरूपव्या्य- मिप्रायेखेव वायं न्धः नतु तारलरश्य aa ककार-गकारा दिषु तार इत्धनुगतग्यवहारः कथं स्यादित्याग्रद्ते, “न चेति, परिडरति, SATA la, त्यश्च तदूकारादयं शब्दस्तार इत्थ पञ्चम्यर्थः ATW, तच्च ग्रष्दश्चाचात्कारमरतिबन्धकतावच्छेद्कजातिमत्‌पय्यवथितस्च तार- पदा्थस्येकदे गे ग्रष्देऽन्वितं, तेन गकाराच्ात्मकग्रष्दसालात्कारप्रतिब- न्धकतावष्डेदकलातिमामयं WET इत्याकारकस्त्ान्वयबोधः। मत्वा दि गतोत्कषंस्येव तारलवश्यापि शावधिकले बाधकाभावाद- बधित्वमेव werd इति वाच्यम्‌ तथा खति तद्ूकारापेचया मन्देऽपि ad तद्कारान्ञारोऽयमिति प्रयोगापभ्भिः arguaenit- MICA खापेया मन्दश्न्दाम्तरसाखात्कारप्रतिबन्धकतावष्डेक- लात्‌ ARRAY अन्यथा तद्गकारादसौ मन्द इत्यपि प्रयोग- स्त्र न्‌ aq, यदैव डि वेजात्यात्मकापेचया तारत्वं तदेवान्यापे- या मन्दत्मित्यश्युपगमात्‌, अतएव क्ुबलयमरत्वा दुक्छष्ट fave cams पञ्चम्या नावधिलमथेस्तथा खति विर्षमहत्वादु्कष्टं कुब- शअयमडइत्नमित्यपि प्रयोगापन्तेः कुवलय निषठश्य स्ष॑पाश्यपेखयोत्कषसय विष्वमदत्वावधिकल नियमादन्यथा विष्वमदत्वाद पशष gaara इत्यपि प्रथोगो स्यादेकमइत्वापेखया उत्कवेस्येवापरमंदत्ापेच- धापकरषरूपतवात्‌ किन्तु कुबलयमहत्वा दिष्वमदत्वसुत्कष्टमित्यत्रापि

शब्दाख्यतुखयखख्े शम्दानित्यतावादः | eye

तारेथ्येमेव wean, तश्च परिमाणसाशात्कारपरतिबन्धकतावच्छेद्‌- कौश्तजा तिषपय्यैवसितस्य sate एकदेशे परि माणेऽन्वित, तेन कुवलयमह्वात्मकपरिमाणएगो चरसाच्ात्कारप्रतिबन्धकतावच्डे- दकौोभ्रतजात्याश्रयो विश्वमरत्वमित्याकार एव॒ तमाग्वयबोधः, साश्रयादज्निद्रग्यषमवेतत्वसम्नन्धेगो्छष्टमरचस्यापहृष्टमरत्वसावात्का- रप्रतिबन्धकल्ादिति मिश्राद्यतुयायिनः।

परे तु तुखव्यक्किटन्निकमपि awd away नेवं किन्तु लातिदयमेव विशणबुद्धि षिद्धलात्‌ षटल्-कशसत्योभंदे प्रमाणए- विरहारैेक्धस्लौ का रात्तयाच गकारावधिकं wares तदति तङ्का- दावधिकस्य तारत्वस्य विरदहान्द्रकारावधिकतारव्यवहाराषम्भवादर- afuaaa पञ्चम्ययेः। तारलस्छ सावधिकतवे जातितं स्यात्‌, अप्रयोजकत्वादन्यथा सथोगादेः घावधिकषे रणएलं ख्यादिति संयो गादयोऽपि निष्यृतियोगिका एवेति किनं रयाः, एवश्च कुव - सयमरत्वाद्‌्छष्टं विशूषमरत्वमित्यचापि नोक्क्रमे णान्यबोधः कचि- तदिश्ा उक्कष्टमडत्वस्यापलएटमहत्वसा ात्कारमप्रतिप्रतिबन्धकले प्रमा- एाभावात्‌ सन्निकषेविरहारेव मदच्वाटतस् चुदरख्छ परिमाणगह- सम्भवात्‌ MII तवाणप्रतोकारात्‌ षटमत्वादुत्लष्टगगनमरत्वमे- fengarme खगेसुखमित्थादौ ताड शवुद्यषम्भवात्‌ गगनमद- त्वार षेटमदत्वसालात्कार प्रत्य विरोधिलात्‌ किन्तु तज्राष्यवधिलमेव पञ्चम्यथः, चोत्कषंपद वाश्यात्मकं एवोत्कषंपरस्यार्यःज्वितः, तथाच कुबलयमरवावधिक यदु त्कषेपदवाच्यं तददिष्वमरत्वमित्याकारक- एव तचाग्यबोधः तत्तहुणचेकपदोन्नरपञ्चम्याखन्तहुणन्वितखञार्था-

8५४ तस्वचिन्तामणथो

` वधिलख्य तहुोत्कषं भिन्ना टन्तिखरूपसम्बन्धेनेव centage धरिण अन्वयबोघं प्रति साकाङ्घुलादेव fanned कुबशयमदत्व- मित्यादिप्रयोगस्यासम्भवादिति प्राहः |

खतन्तरास्ह तारललसुत्कषेला दिक्ाखण्डमेव धर्मान्तरं सौकुर््वा- weed सावधितलमाश्रयम्तः कथितव्यवहारसुपपादथन्ति, afer |

wed, ‘areata, ‘anfaatfanafefa खेतरन्नानाधौन- | प्र्य्वसामान्यकल्वा दित्यर्थः, ब्राह्मणएल्रादिजातौ व्यभिचार सन््ेऽपि खरूपासिद्या परिहरति, "तारलेत्यादिना, “उत्करषशूपा इति जा तिले हेतुगर्भविशेषणं, श्रतएव वच्यति, 'उत्कषं स्वित्यादि, विति cade योऽवधिष्तज्घ्ानसापेषा zy दति gers: | WHAT AAA AT इत्थादिष्यवद्ारः स्मादत we, 'उत्कषेव्यवहारमिति उत्कर्षायैकतर-तमा दिप्रयोगभित्यर्ः, “तर- maa इति खधभ्मिकया सजातौोयगोचरसाचात्कारप्रतिबन्धकता- वच्छेद कजा तिमत्वलचणणोत्कषत् बुद्धा सहता इत्यर्थः, “कुन्बन्तो त्यस्य मधुरादि श्रन्दोत्तरमिति शेषः, प्रुतिश्रक्ययोगे ए-ककयेणोरन्यतरस्थो- Si एव तर-तमयोरतुश्राखनात्‌ इति भावः “मन्दाद्यपेच्येति मन्दादिश्चानमपेच्छेत्य्थः, ^तारलादिव्यवशारमिति, ‹तारल्-तार- तरलादयः' ‘gantfa दइयमनुषज्यते, तथाचाश्रयसन्निकर्षा- इद्यमाणेऽपि तारलादौ शन्दसाचात्कारप्रतिबन्धकतावच्छेदकजाति- त्खच्णएतारलवं ग्टहौोतमतस्तदानौः तारलब्यव्ारस्तादयेणेव aera तारपद श्रक्यतावच्छेदकलादिति भावः। मतु गकार- स्योत्कषेवत्ने मधुरतरो रस इत्यादिक दव गतरः शब्द इत्यपि

Waray एब्दानिद्यतावादः। ' ४१५१५

व्यवहारः WA श्राह, “गकारे तु मेवमिति ms तुन मधुरादि- शब्द्‌ वोत्क्र्षायेकतर-तमा दिव्यवदार इत्यथः, गकारस्य गपद्‌ क्यता- नवच्छेद कतया सजातौयसासात्कार प्रतिबन्धकतावच्छेदकनातिम्त- are तर-तमादिष्यवद्ारं प्र्यकिथित्करलादिति भावः। नमु गकारो गोत्कर्षेवाम्‌ तर-तमप्र्थयाप्रहतिग्रष्दलादन्यया कलादिना सङरप्रसङ्गादत रार, ्रनन्ययेति, भदः' वेल, "वक विगरेषः' इएका- दिः। मनु इएकौयलाथुत्कषस्य melee कल्वादिभिः साङ्ग्यभिथा aaa वाच्यं तद्र वयश्चकवायुभिष्ठमेकेकं लाघवात्‌ तत्कस्प्यतां आश्रयव्य्चललक्णपरन्परा GAs तादृशेकजात्या गकारादिषु ब्ररको यलव्यवदारसम्भवादत श्राह, तवापौति, एकोयल्ादिजातेरिति Wa) "तासां" एकौ यतलादिजातोनां, wed, “श्रथेति, “aT एवेति, नित्याभिरेव तन्तदणव्यक्तिमिख्तदक्ररलुमानसम्भवादि ति भावः। भ्रत्य भिन्नानादिति एवायं ale: ककार शत्या दिप्रत्यभिज्ञानादित्ययः, निरस्यति, “रस्ति ₹ोत्यादिना ‘awe इत्यन्तेन, बाधकः श्रप्रामा- WAT, “श्रमयोरिति एवायं गकारो गायं AAT दत्याकारक- भेदाभेद न्नानयोरित्ययेः, .मेदोऽच aay, ददानोसुत्पश्नलादिकमि- त्यपि कञित्‌। ‘agenfasaafa नित्यता याहकधश्मसाधकतया स- न्दिग्धलेनेत्यथेः गनुकदि शोत्पत्तिम्न्ञानमपि सङृटप्रविष्टमेमेति तदपि कथमभित्यले प्रमाणोकन्तव्यमिन्या गरङ्ते, "नन्वेवमिति, उन्तर- यति, इत्थमिति, “विरोधेनेति, पूर्व्वामुगतव्यक्रिभेदस्थेदानौसुत्पादस्छ मियो sana परस्यरग्रहविरोधिलादिति भावः। fa- वयभेदमाह, ‘wats “न ग्यत्वभेदः' पूर्व्वागुग्धततन्लद्यक्िलाव-

rt: ल्वचिन्तामगौ

च्डिजासेदः, इति स्यात्‌" इत्याकाराभिलापः स्यात्‌, तव्नातौय- लेति चेवं त्नातौयोऽयं गकारः सोऽयं गकारदत्यलुभववोरवे- ल्या सुभवापलापप्रसक्चः, wa तहु न्तिगत्वजाव्यवच्छिलस् fara जहन्तिगत्वाव च्छिश्नग्याभेदः सन्निहृष्टगकारे भाखतदत्येव सएुटतरवे- MAGGI] यन्तु TTA गकार इत्यत गलवभात्यव- च्छिलस्य एवायं गकार cae गव्वावच्छिलस्य wit भाषते इत्येव धरैलचष्यमिति तन्ुच्छं, तथा सत्ययं चटो sexes भकारो गकारदत्यन्वयस्य उरटेष्सविधेथतावच्छेद कयोरेक्येनासम्भवा- ध्तेरिति प्येवं! गतु wal विशेषा वच्छिन्नतन्तदणेसो मप््येव- fart: पूर््वापरगायाग्या्नोरेवाभेदसम्भवात्‌ aid गाथा cae शब्द मित्यतावादिनां मते तव्नातौयलस्यावगारममसिद्धमत श्राह, ‘a होति, मौनिद्चोकस्यानुपूष्बौः सखम्पाद्‌ यितुमाह, तल्न्नानेति, ग्याख्याततत्वमेतत्‌ | ag सज्िषृष्टगकारस्य प्रत्यभिन्नायाः पूर्वा लुश्रतव्यह्मभेद सिद्धावुत्पत्तिमन्बप्रतौताषन्यदौयोत्पत्तिरभासते इत्येव विषयभेदः fa स्यादित्याशङ्ते, ‘a चेति, निरस्यति, “गकार- गतलेति, “श्रभेद शति yatquaemica faqacarat afz- इद्धस्येदानौसुत्पदच्यमानला दिषकषेख्य भमासम्भवा दित्यः, पूर््वानुग्धत- लद्चक्षिलस्याधुनातनोत्पश्यभावावच्डेद कतया ABM व्याव्तक- धद्नविधयाऽधुनातनोत्यत्तिमच्भ्रमविरो धिलादिति भावः। नतु ng क्षिता वच्डेदे नाधुनातनोत्पत्यभावस्या निखयद्‌ प्रायामेवाधुनायसु- wet गकार इति wa बाधकाभाव इत्यत श्राह, “विनिगमढेति, 'उभवसखेति. ख॒ एवाचमिदानौसुत्पन्नोऽयभिति जागदयस्तेत्यथेः |

WATT TSS श्ब्दानित्यतावादः | ४५७४

नाश-तारत्वादि प्रतीतीनां प्रत्यभित्तानवलेनो पारधि- त्वात्‌ वर्णेषु तारत्वेनैव भासमाना भ्वमय- उपाधयः सम्भवन्ति, तु ध्वनिषु वर्णासशननकःण- ताखवाद्यभिघाताभावादिति are | वर्योशारशदशा- यामपि गुजेरीकादिजनकानाममावात्‌ तस्मात्‌ उत्यत्ति-विनाश-तारत्वादि प्रत्ययस्य प्रत्यभिन्नानध शं तुल्यत्वे इयोरपि नित्यत्वमनित्यत्वं ari चोभयोरपि

एच्छति, ‘grata, ‘vay’ प्रत्यभिन्नायाः, wie’ qatg- भतव्य्यभेदः, उन्तरं, "यजेति, "कचित्‌" were, ‘er तद्रजतमि- तिप्रभिक्चा, तदितरेति प्रत्यमिन्नेतरसख्य बाधकप्रमाणश्च बाध्या नेत्यथेः। नन तु भरान्तत्यश्च व्यह्षभेद्‌ानवगा हितयेत्यादिः, ‘fasre’ व्य्वभेदस्य, ‘aia’ विरोधिनि स्तौति ta: ननु. गलादिकम- खण्डो पाधिष्पमेवा स्लित्यतः प्रतिबस्धिमाह, ‘aft ef | '्रह्यमिन्नामवसेनेति चेवेयं रस्जरौत्यादिप्त्यभिन्चावरेनेव्यथः, “श्रौ पाधिकलादिति शाखात्परन्परया वान्यभिष्टोत्पा दादि विषयक त्ादित्यथेः। “डपाधयः सम्मवन्तोति वणेनिष्ठतया प्रतौयमानस्यो- त्पादादेराग्रयाः सम्भवन्तौत्ययेः, ‘Aaa घ्वन्युत्पादद् शयां वणेजनककण्टाद्यमिघाताभावादित्ययेः। तदान वर्णमुत्पादेऽपि स्मय्यैमानतन्निषटोत्पादादिरेव aren cara: wat भाषत दति वाच्यम्‌ तदनो वर्णाभावे तत्छाभ्िष्यरूपदोषविरदात्‌ श्राञ्रयषा-

भगु गल्वाद्यविषयकरेादि' प्रतिबन्धिमाइ aft चेतोन्तः पाठः क्चर्‌

टौकाएकक्रे ata, परन्त्वयमेव प्राठः समौ चौमत्वेन प्रतिमाति | 58

‘sys aratanrrat

नित्यत्वमेव, उक्तन्यायेन प्रत्यभिन्नायास्तन्नातौयत्व- विषयत्वात्‌ | किञ्च यदि aay: शब्दः स्यात्‌ तदा वाद्यालोकाभाषे घटस्येव Wana शब्दस्यानुप- लम्भात्‌ AAA: स्यात्‌, व्विदेदानौं शब्दो नास्तौति

न्निष्यङूपपरग्परायन्नन्धविर दाच साचात्‌ परन्परथा वा भागवकाव- इत्यभिप्रायात्‌ | ‘adrercefa, तथाच वरौच्चारणदथ्रायामपि ध्वनेर्त्पादनियम इति भावः इदन्तु समाधिसौकर्य्यादुक्तं वस्तु- ag वर्णानुत्पादेऽपि वायुनिष्टोत्पा दादेस्तज्िष्ठतारल्वा दिषै खचण्छस्य ध्वमिनिष्टोत्पाद-विनाग्र-तारलवादिप्रतौतौनां साक्षात्‌ परम्परया वा विषयलमन्भवादित्यपि बोध्यं उभयोः" ध्वमि-वणेयोः, ‘on- न्यायेनेति watt साकात्सम्बन्धेनोत्पादा दि परत्ययस्च भमलप्रसङ्गेनेत्यथैः, श्रत्मिन्ायाः' ata शनंरोत्या दिप्रत्यभिन्नायाः, 'तव्नातीयल्विष- यल्ादिति तष्नातौयलादिविषयकलस्येव लयातमतलादिल्यर्ः, "तव्जातौयलादिपदात्‌ दजंरौलाद्यवच्छिन्षप्रतियो गिताकतन्तदराष- मेदपरिग्रहः। मनु शाघवाद्धनेरपि भित्यलान्युपगमे साकात्घन्बन्धेनो- त्पादादिःप्रत्ययस्य भमलमेवोपेयत cae, ‘fafa, ‘are- लोकाभाव इति वाद्यालोकस्य घटादिव्यश्चकस्दाभावे xan, वव्यश्चकाभाव इति विलचणएवायुषयो गरूपव्यश्चकस्याभाव <a, 'तत्‌संश्यः स्यादिति शब्दषंश्यः स्यादित्ययेः, “निखयः' प्रात्यकिक- afaau:, प्रतियो गि-तस्सभिकर्षादौो तरखकलप्रगियोग्युपणम्भकसइ- छतातुपलम्ेरभावय्ा हिकाया श्रभावादिति भावः इदमणापाततः

न्क - समापय

शब्दाख्यतुरौ यखच्छे श्रम्दानिद्यतावादः | ४१९ निश्चयः तस्मादृवर्णो नित्योऽनित्यो वा awe

शब्दाभावप्रत्यकद्यले प्रतियो गिसन्निकर्षादिमध्ये व्यश्जकवायुसंयोग- स्यापि प्रवेगेन तादृ श्ामुपलसिषत्वात्‌९ श्रभावभेदेन योग्यानुप- लयिभेदान्‌ शाम्देष्यश्यानुपादेयल्वात्‌ | वस्ठतस्ठ घटादि प्रतिबन्धिरेव शब्दा नित्यले मानं तजायेकजातीयानां wast चटानामेकलस्छ fae शाघमेमौ चित्यात्‌ अ्रवयवसंयोगादीर्मां व्यश्चकतथेवोप- लम्भकाद्‌ा चित्कतनि्ष्वाहात्‌ उत्पादादिप्र्ययस्यान्योत्पादादिमारा- येव waa! ननु तन्नाश्रलेन तक्छमवेतमा श्रलेन भाण्ठ-नाशक- भावात्‌ RATA घटमाश्रश्छ दुर्ग्वारतया घटस्य नित्यलासम्भवः | शात्यादिमाश्वारण्णय खप्रतियो गिलन्यवस्य नाश्कतावच्छेद्‌- कसम्बन्धतया घटादे भिंत्यलेम प्रतियो गिजन्यलविरहारेव arw- दति वाच्यम्‌ | साघवात्‌ खप्रतिथो गिखमवेतलस्येव माशकतावश्छे- द्‌ कम्बन्धत्वादमन्तघटा दिकल्यमायाः फशभुखलात्‌ सत्वेन ध्वंसतेन ना्छ-नाश्कभावानम्तरादेव नाव्यादेरनाश्यत्ोपपत्तेः अ्रनम्मप्रतियो- गिजन्यलस्य ना शकतावच्छेद कसम्बन्धतवकश्यना मपेच्छयातिरिक्रेकनाश्य- ना शकभावकल्यमाया जघुलादिति चेत्‌, न, TAQ कपाल-कपा- fare Rave सुवचलात्‌ avant घटादिनाश्ख्य दुद लवात्‌ किञ्चैवं सुखादिप्रतिबन्धिरपि ay मानं तज्रापि पूय वर्षानुग्डतमेष सुखमस्िन्नपि वर्घऽनुश्यत दति प्रत्यभिन्नासत्वा- fearet faa “न नित्य इति ष्वंसाप्रतियोगौत्यः,

(५ तादृ ्रानुपलन्िसम्भवादिति we |

gfe neafererterat

wena frrar, अस्मद्‌ादिवदिरि द्दरिययय्ाश्यत्मे सति लातिमन्वात्‌, अस्मदादिप्रत्यगुणत्वाहा, आत्मेकत्व- प्रत्यक्षुत्वपघ्े प्रत्यक्षविश्रेषगुणत्वात्‌, व्यापकसमवेत-

शाघवादाद, “faa इति ध्वंखप्रतियोगोत्यचैः, ‘aa सतति, खमतेनायं हेतुः, “रखदादरौति, भित्यरणदौ यभिचारवारणशय waa मानशेतरलौ किकमत्य्विषयला्ंकं, आत्मनि व्यमिचार- वारणाय मानसेतरेति, शाद्याग्धमिनश्लग्ष्दस्य पचत्वात्‌ qeara- च्छेदकसामानाधिकरष्येन साध्यसिद्धेरदेग्णलादा भागाषिद्धि- देवाय, सामान्यादौ व्यभिचारवारणाय जातिमल्लादिति, लातिपद खमवेतमाजपरमिति भावः | जाधवादाह, “श्रखदारौति सौ किकमरत्यवविषयरणला दित्यः, आत्मनि नाद्यादौ afr aera शेति, fragt व्यभिचारवारणाय fare | ` भन्वाद्मेकल-परिमाण्योग्यैभिचार इत्यतश्राद, शश्रादमीकलेति, तत्परिमाणमपि बोध्यं, “विगरेषराणत्वादिति, जौ किकमत्य्विषये- waft wet, “ग्यापकसमवेतेति विभुखमवेतेत्यरयः gees व्यापकसमवेतेति Be, तथापि व्यापकखमवेतविगरवरणतात्‌ प्र्यच- विगरेवणलादिति इडेतुदये तात्प, प्रथमे व्यापकलं द्रव्यलग्याण- onfacfers, तैन भगवज्च्रानादौ व्यभिचारः। fee डेतोः पूम्यादभेदः, अभ favre संख्या-परिमाणान्यपरलात्‌ श्रात्मसममेताम्यपरलादा, ay विशेषरणपदस्स परिभाषिकतत्पर- लात्‌ अतएव गौ रवान्तप्ररि्यागेनाग्यस्मोपादानं चद्धा विगेषपद

WIT ASA शब्दानित्यतावाद्‌ः | edt

प्रत्य विशेषगुणत्वात्‌, अ्नात्मप्रत्यक्षगुणत्वात्‌, अ्रव्या- प्यटत्तित्वात्‌, CACHAN तथा, तत्मयोककारणा- भावात्‌, विरि न्द्रियव्यवश्या हेतुगुणत्वात्‌, बूतप्रत्यघ्-

भवाव

nga तथाच प्रत्यशविगेषदुण शति षष्ठोसमासात्‌ प्रत्यक विग्रेषविषयगएवारिव्ययेः फलितः, प्रत्यचष्य विगरेषोमानसेतर- लौ किकलवरूप इति awe नोलादैरेकेकतया नित्यतया घटादिरूपे व्यभिचार इति are तस्यापि प्षमलादिति RAI: | एक एव हेतुः परन्तु तच्मते रूपादेरेकेकतया भित्यतया तज व्यभिचारवारणाय समवेतान्तं, प्रत्यचपदञ्चासरशये भगवज््रानादौ व्यमिचारणायेत्यपि zee इति जवः “श्रनात्म- प्रत्थद्एत्वादि ति प्रत्यचले सत्थात्मान्यदुएलादित्यर्थः, ्रात्रैकलादौ | व्यभिचारवारणयात्मान्येति, भ्रत्यच्पदामन्तरं “विग्रेषेतिपाटे म्रत्य- सविगरेषोलौ किकप्रत्य्च cat: “श्रव्याणयटन्तिलादिति समवाय- सम्बन्भेमाव च्छिन्नटन्तिकला दित्यः, संयो गात्यन्ताभावादौ faae- पादेरपि कालेऽवख्छिन्नटन्तिकलात्‌ नित्यरूपादौ व्यभिचारवारण्णय समवायसनन्धेनेति। मम तथाः नाव्याप्यटत्ति, ‘anata श्रव्यायहसितासाधकेव्यथंः, "कारणाभावात्‌" प्रमाणाभावात्‌, परेषां शब्द स्याग्याप्यटत्तिले विवादान्‌ हेवन्तरमाह, ‘afefcfa वडि- रिद्ियग्राद्मगुएतवा दित्ययेः, तप्रत्यक्षशुणत्वादि ति प्रत्यवे सति भरतद्चएलवा दित्यथंः, श्रात्मेकल-परिमाणयोग्येभिचारवारणय शतेति,

(९ तथाच we uweaa गिचारो दोषायेति भावः |

७९९ तक्चचिन्तामभौ `

गुणत्वात्‌, उत्कषौपकषंशब्दप्रहत्तिनिमित्तजातिमस्वा-

प्रत्यञ्च शौकिकं बोध्यं "उत्कर्षापकर्षशरब्दप्रडत्तिनिमिन्ेति खत्कर्वापकरषेपद शक्येत्यथैः, श्रत्तिनिमिन्तेति aera सद्ग - ष्कते उत्कर्षापकर्षैयोरेव लातिरूपतया जा तिनिष्टधमेखेव तत्रद- त्तिनिमित्तवात्‌, श्रजोत्कर्षपद शक्यजा तिमत्तमागोक्रावाकाश्ादि- ava व्यमिषार इत्यपकर्षंपद शक्येति जातिविग्रेषणं, तावन्मा- int द्णकपरिमाणापेचथापङृष्टे परमाणुपरिमाणे व्यभिचार दतयुत्कषैपदधरक्येति भ॒ परमाएपरिमाणं द्मणकट्युपरि- माणापेखयोक्छष्टभेव लपहृष्टमणलांभे तस्योक्ृष्टलादिति वाच्यं , अधिकदे.व्यापकलेनेव परिमाणस्योक्ष्टलं न्यम गभ्यापकलेनेव परिमाणस्यापश््टलमिति मतेन तस्याभिधानात्‌ चेकद्या- लातेङभयपदशक्यत्वाभावाद सिद्धिरिति aed) एकस्या एव जातिः किथिदपेषयोत्कषैलेन किश्चिदपेदयापकषंलेम चोभयपद्‌ शक्यलात्‌ समवायसम्नसेन तादृश्धबोवत्वलाभाय जातिपदं, अतितारातिमन्द- श्ब्दयोख मानाभाव इति तजर भागासिद्धिः मध्यविधशब्दस्य वा Ted) जलपरमाणरखे एथिवोपरमाणएरसापेक्चयोत्कषे- वति शक॑रारसापेच्या santas व्यभिचार इति ara ूपवदखमवेततवे सतौत्यनेन विगरेषण यलात्‌, इद ाणपद यन्धषटरेव वच्छयति, वायमरत्व-वेग-सुखादिक््च दृष्टाकः, ay किश्चिदपेकयोत्कर्षा पकर्षाविति तत्परमाणस्य्ं व्यभिचारः|

केचित्त “उत्कर्षापकषेपदेत्धस्योतृशष्टापष्ष्टपदेत्यथंः, इत्यश्च

प्ब्दाख्यतुरोयख्छे शब्दानित्यतावाद्‌ः ede

देत्यादि, रसत्वादिव्याप्यजातेर्नानात्वेऽपि तादशप्रटत्ति- निमित्षत्वस्य साधारण्यात्‌। खाच साधनावच्छिन्नस्य पकछषधर्म्मावविद्धन्नस्य वा साध्यस्य व्यापकः स्पशेवत्‌सम-

a Y

प्र्तिभिमित्तपदं यथाश्रुतमेव जातिपदश्च aia, तदलुपादाने मरद्पेलथापषृष्टः दइणएकापेचया wwe: परमाणरिति प्रयोग- विषधे परमाणौ तादृश्डक्निनिभित्षपरमाएपरिमाणमादाय व्यभिचारापत्तेः, जलपरमाणरसे व्यभिचारो क्क्रमेणेव वारणौय- CANS: तदसत्‌, उक्छष्टापरृष्टगरन्दयोर्वाक्यलेन. yar, उक्छष्टापशष्टश्रब्ययोः पदलेऽपि छत्कर्षापकर्षात्मकजात्याश्रयस्येव तच्छक्यलेन परमाणुपरिमाणस्य तत्रडत्तिनिमित्तलाभावाच्च, उक्त प्रयोगे चोत्छष्टापृष्टशब्दयोर्शाचणिकलवा दित्यास्तां विस्तरः |

मनु जर्परमाणरसे एथिवोर षापेखयोत्कर्षा पकषेवति व्यभिचार THAR, .रसलादौ ति, ‘arenas’ उत्कर्ष पकर्षाथंकमानापद्‌- शक्धतवेऽपि, "तादुशप्रडन्तिनिमित्तलस्येति उत्कर्षापकर्षेपदश्रक्यतादृ्- णातिमतो जशपरमाणरसस्ेत्यथेः, साधारण्छादिति रूप-रसषाधा- रण्या दित्यथेः, तथाच ₹ूपवद समवेतत्वे सतोत्यमेन विग्रेषणोयमिति भावः "खाधनावच्छिननेति, इदञ्च वहिरिदख्ियग्राह्मणएलादेंतुल- परे बोध्यं उत्कार्षापकषेगभैहेतुलपरे( सुखादौ साध्याव्यापकलात्‌, श्रत॒ एव Bay Vat साधनावच्छिलसाध्यव्यापकलासम्भवादार, ‘qaum(a वहिरि दिथग्माद्मद्रणएत्वादिरूपपकधर्त्धथेः, शस्यग्रेवत्म-

(९) उत्कर्षापकषंगम हेतो वष्डटेदकत्व इति we, Te |

9१७ | तश्चचिन्ताममौ

aad उपाधिः, aaa वर्णात्मकशब्दपरसौकरणे व्योमगुखेषनित्येषु भ्वनिषु साध्याव्यापकत्वात्‌स्यश्वत्‌- पदस्य प्माचव्यावर्तकत्वेन पञ्ेतरत्वाशचेति। यदा वणौ खव नित्यास्तदा कैव कथा पुरुषविव- छाधौनानुपु्व्यादिविश््टवणेसमुहरूपाणां पदानां, कुतस्तराष्ब तत्समु हरूपस्य वाक्यस्य FATA तत्समूहस्य बेदस्येति |

इति श्रौमद्‌ गङ्गे्ठो पाध्याय विरचिते तच्वचिन्तामणौ

शब्दाण्यतुरोय खण्डे शब्दानित्यतावादसिदान्तः

बेतत्वभिति, साधनव्यापकतापरिहाराथ ्यशेवदिति, ‘aaqafa waa साध्ये इत्यथः, ‘autaafa, तथा ध्वनेः qeafeiaards साध्याव्यापकलत्वमिति wa) wate नित्यलमते वायकौयत्वमते तज साध्याव्यापकलासम्भवादाहर, स्यशेवदि ति, “पचमाचव्यावन्तं- कलेनेति खक्रसाधनवतो मध्ये पक्षमा चस्यैव य्यावत्तकलेनेत्यधैः, धथाभ्रुते अणपरिमाणादेरपि व्यावन्तमादसन्न तेः, "पकेतरत्वादिति परेतरत्रतुष्यला दित्यर्थः aq arg वर्णो नित्यस्तथापि पद्‌- वाक्यभेदास् नित्या waa ओह, "यदा चेति, ‘agqeede’ पदसषमू दरूपस्य, ‘AQAA’ वाक्यषमूइस्य

दति श्नौमयुराना य-तकंवागो श्रविर चिते तत्वचिन्तामणिरदख् श्रष्दाख्यलु रौयखष्डर इस्ये weal नित्यतावादसिद्धागरइद्धं

श्मब्दाख्यतुखेयखग्डे SHUNT | ९९११

अथोष्छन्नप्रच्छन्नवादः |

तथापि परतन्लपुरुष परम्यराध्मैनतया प्रवाहावि-

अयो च्छलप्रच्छलवाद्‌र LS | : eee ममु तयाणप्रयोजकं खतन्त्पुरुषप्रणणौतलरूपपौ र्षेयलानुमाने वेदस्य ध्वंघाप्रतियो गिलरूपनित्यत्वाभावेऽपि प्रवाहा विष्डेदरूपनि- MAG HAAG प्रामाश्यान्ययानुपपतन्तिरूपानुक्रूलतकं बिर- हादित्यभिप्राओेण गरः wea, तथापौति ace ष्वसाप्रतियोगि- तवूपनित्यलाभावेऽपौत्यवः, "परतन्ेति खाश्रयोश्चारण्णनपेरोचा- रणकट्ष्ा सुपूर्व्वो भिन्नातुपूर््बो कतयेत्ययेः, खपदं भेदप्रतियोग्थासु+ watt वम्ठतस्त स्वाश्रयेतिखवाने सखसजातोयाश्रयेति ane सेन परनये वर्णनामभित्यलाभ्यपगमे वर्णनामिव तक्स्मवेतानुपूर्या- अपि army वाक्यभेरेनानुपूर्व्वोभेदस्यावश्यकलवेऽपि सतिः, इत्यश्च qa प्रवाहा विच्छेदरेतुलवं तेन न्यायनये तादृशानुपूर्व्यौमिन्नानु- प्ये प्रसिद्धावपि चतिः। - केचित्तु "परतन््ेत्यादेः खसजातौ थो खारणानपेचो लारणकान्य- aaah, Bw भेदप्रतियो गिवाक्षपर, इद श्च न्यायमये चटादाबेब, 69

ead तत्वचिन्तामणौ

च्छेदमेव नित्यत्वं an: इति चेत्‌, न, स्मृत्याचारानुमि तानां शखानामुष्छेदद शनात्‌ | स्यादेतत्‌, विवादपद

परसिद्धमित्याः तदसत्‌, एकस्या पूव aa कवाक्धं अलोश्चरिते तादृश्ानुपूष्वौ कवाक्ये प्रवाहा विच्छेदव्यभिचारिलादिति ध्येय ्रवाहाविष्छेदमेषेति, खसनातोयानधिकरणकालकान्यलं श्रवा- हा विच्छेदः, खसषनातो यतश्च खटत्तितन्दानुपूव्याश्रयलवं खटत्यानु- पवनौ सजातौयातुपूवव्याश्रयतवं वा, तेन waa वर्णानामनित्यला- wae वाक्यभेदागुपूर््ो भेद स्सावण्छकल्वऽपि खतिः, साजात्ये तन्तदातुपूणवौटत्तिवेशशसेन भेदकूटमवेशाश्च प्रवाहा विष्छेदान- शुगम इति भावः | श्राखानामिति श्रष्टकामङ्गलादि कन्तेव्यतानोध- कानामित्धर्थैः, ‘saci सजातौयामधिकरणे तम्नत्काले- ऽदश्रनात्‌, तथाच प्रवाहा विष्डेदोऽसिद्ध इति भावः। प्रत्यच्सिद्ध- बेदनातौोया अनित्या एव श्रत्याचारामुमितवेदास्त॒ यावत्कालमम- धौता श्रश्ुतातुमितस्भावा नित्या एव नावच्छिल्ञा दति मनत्यन्तर- armed, “स्यादेतदिति, wa aca श्रध्ययनविषयलव्यापये वा, प्रत्यदविषयवव्याप्य वा, श्रनित्यलव्याणं वेत्यादिविप्रतिपत्ति- विंधिकोटिर्गेयायिकानां निषेधकोरिमंङ्गल-रोखाकाद्याद्याचारातु- ~ मितवेदानां अ्रष्टकादिबोधकस्धत्थलुमितवेदानाश्च अतोदल्ियत्व-मि- व्यलस्लोकदेण्णां geut, “विवादपद मित्यादि प्रत्थखवेद मूखकसख्तावं- aa: बिद्धषाधनवारणाय, “विवादपदमिति छश्छन्नमूताविवादपद- fava इत्यथः, सदानोभानपरत्य्चविषयवेद खमानविषयकेतरेति चा-

ETT SR उच्डत्रपच्छत्वादः | 8६७

मपुव्वैवोधिका स्मृतिः स्मृत्य्यानुभवजनकवेदमूला अविगौत-मशाजनपरिहोतस्मृतित्वात्‌ प्रत्य्षवेद्‌-

वत्‌, भातः प्र्यचवेद मूखकेऽपि कडदाविदिवादशम्भवात्‌ रोवसदरव- ग्धः, शोभादिमूलकद्तिवारणणय “श्रपू्व॑वोधिकेति, “प्पूैबोधकतव' azeatiaaganee faafed, वेदसमानायंकलं था, sat भं न्यायमयेऽिद्धिः vad स्पतेरपूरवबोधकववाभावात्‌। श्रस्म्ते श्रा - वेदे aaa नि्याशुमेयवेे swat बाधवारणाय ‘qatfa, सतिर्वेदेतरवाक्धं पचतावच्डेदकावच्छेदेम साष्यसिद्धेदेष्त- लेन sina: बिद्धसाधनस्यादोषत्वादिवादपदत्विशेषण्वैयथ्यं तदव- च्छेदेन साध्यसिद्धेरदे श्यत्वाभावे wait बाध्या रोषलादपूर्वबोधक- तव विग्ेषणवे यथ्येमिति aren पखतावच्छेद कावच्छेदेन साध्यसिद्धस्- देशप्रलेऽपि sina: सिद्धसाधनं दोषायेति प्राचोननये ^विवादपदल- विग्रेषणोपादानात्‌ agay “विवाद पदेत्यादि खरूपकथयनमानं | पचता तु WERT: कार्य्या इत्यादि विग्रिेव। "सत्यर्थे ति, fra वेदेन मार्थान्तरं yn इति सत्यर्याजुभवजनकेति वेद विग्रेषणं चं नेया यिकेरण्य्टका दिषोधक्रसपतिमूलब्धूतवेदाभ्युपगमात्‌ सिद्धसाधन - fafa वा्यं। डि बेदस्तामुभवविरोधः। कयमख्मादुच्छेद- fafg: स्पत्युपपत्यमन्तरं वेदाययुच्छदेऽपि तत्छाधनसम्भवात्‌ इतिं वाच्यं WHA UWA समवायेम सत्वादिति ser ्रविमतेति, सतितमान्र शोभादिमूलकघटमानयेत्या दिवाक्यष्य व्यभिचारि तस्यापि वेदभिन्नवाक्यवरूपर्रतित्वादतः शश्रविभौतेति, ` शश्रविभौ-

ads | तस्वचिन्तामयै `

अणौ किकल, प्र्यशा दिमूखङेतरलमिति यावत्‌, श्ब्दोपजञो fanaa व्यभिचारवारणाय. -मराजनपरिग्टदो- तेति, ‘ayaa प्रमात्मक प्रवन्त कश्चामवक्व, “परिग्रशोतलं' तज्च्रा- यमानार्थकलवं चेवं मङ्गलपचकासुमागवत्‌ खमाधेयं परत्य खण्डदिश्रा समकते wyice aud तु नित्यानुमेयवेदस्च सिद्धलेन तज व्यभिचारवारणाय शशखतिलादिति बेदमिन्नवाक्धलादित्य्ेः | aq बेदमूखकले बेदणन्यावं तथाच बाधः सतिं प्रति Acree सेव Varga प्रत्यशषेदमूखकङ्धतावपि तदभावेन इष्टाकाषिद्धि- qua wy, "वेदेति, ‘aaa प्रयोख्यलं, अन्यथा aaa:

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(९ qantifa, चेशं खतः प्रमायपएरषाविश्चामादन्धपरम्मरापत्िः, तेषासुपदेशैन बेदार द्धिंतया खतः प्रामाण्यात्‌ तथाच तदधौनमेव प्रामा- wae किमौशखरेणेति मावः। केचित्त प्रवाहाविष्छितरत्वरूपं यभित्धत्वं तेन गन्रिदधषत्वं तत wa प्रामाखमस्लित्यथंः xa “उच्छदेति, तथाच प्रवाहा विष्डेदोऽसिद्ध इति भावः। खग्याचासानुमितश्ाखानां खत एव oferta तदचैच्नापकत्वेनानुमितात्‌ खुढन्याद्युपपक्तिरिव्याङ, “स्यादेत- दिति, वच्च वेदत्वं अधष्ययनदिषयत्वश्याप्यं वेति विप्रतिपत्तिः | प््यच्छवेद्‌ मूलक्रस्मतावं रतः सिद्धसाधनमित्त ary, “विवादेति, उच्छिन्रमूलत्वविवा- दे्यर्थः, प्रत्यच्तषैदमूलान्ये्च् तात्पर्यम्‌ न्यायादिमूलकसरूढतावश्रतो बा- were, शवपन्वंबोधिकेति, श्पृव्वं पमापिके चयैः, वेदसमामा्ं AA, अष्त्वैरेव वेदाथैलवात्‌ वेदस्यापि wees wat बाधादाह, (द्विरिति, तादप्यसिद्ध्थे “MART, अन्यया तस्यानुमावकत्वामुपपत्तेः | यस्‌ उच्छति वेदमू बलयेनार्था नत रादाष, ‘ate, उष्छिव्रस्या सत्वान्न wad इति an, बेदमूलत्वपदेनेव तत्निराकरणाव्‌, उच्छित्रवेदस्यापि wet इढगयर्थानुभव-

शब्दाश्यतुरीयखणे SBI YAN! | ede

मुखकस्मृतिवत्‌, बेदमूखकत्वश्ड बेदजन्यानुभवजन्धत्वं MAT WANA बेदस्य सतिहेतुतयातुमान,

प्रतीत्य wat व्यभिचारापत्तेः, तथाच बेदमूललं वेद्‌ प्रयोज्यं दति भावः। We वा जनकलमेव मृशत्वभित्यत wy, श्ञानेति सखखानुभवेत्ययेः, कालो वा वाच्यः। गमु न्नानव्यवडितद्य कारणं

जगकत्वाच् | विगतेति, लोममूलकसप्रतेविंगौवत्वान्नगयमूलकसतेम॑दा- जनगापरिग्टशौतत्वादेदस्यास्रतित्वात्‌ Parquet महागनखादृष्टार्धि- एशष दत्थवधेयमिाङः | afer, णवं हि मद्धाजनपदेनेव लोममूलकः wierd “खविगोतपदवैयर्थ्यापततेः, fe लोममूलकररतिरपि दू सार्थिंएरषपरिणटहौता, किन्तु लोमाधिंपरिग्टद़्ोतेव, wafer तचा, परिग्रहे न्यायमूलकस्प्रतावपि तथा सम्भवे व्यभिचारवादवद्ययापत्तेः | अन्ये तु सुतित्वं शब्द-तदुपजोविप्रमाणातिरिक्तप्रमाणजन्यप्रभितिविषया- data सति weg arse, तेन लौकिकवाक्ये न्या- यादिमूलकङ्तौ वेदे व्यभिचारः, Tay चेत्यं वन्देतेत्यादिगौडधागम- quant यभिचारादाहइ, (महाजनेति, श्येनेनाभिचरन्‌ यजेतेत्धादिवेद- भूलकर्छतौ free: साध्ये वेदपदस्य विधिपरत्वेग तच्र साध्यासत्वादित्यत- श्राह, ‘afantafa, विधित्वञ्च निषिदफलकादृष्टाप्रतिपादकवेदत्वमतो 4 may मच्तयेदिव्ादिवेदमूलकष्मतौ व्यभिचार इति वदन्ति। केचित्त अलोकिक्राविगौतस्तित्वादिति हेत्व ¦, न्धायप्र्यच्तमूले तु vital, que स्तिस्रतिविंगोतेति, wiry ऋषिप्रणौतश्चब्दत्वं, तेन वेदस्याङ््रतितवं; पाणिनि-मग्वादिकन्तु सतिरेवे्याङः | aq वेद मूलत्वं वेदपरम्यराकार्ण- तयापि नि्न्बहतोति उच्छिन्रिवेदमूलत्वेनार्थान्तरमत any, ‘aaa ATTA, |

gg0ce तत्वचिग्तामणै

बुविन्दस्येव न्नानादिव्यवहितस्य पटे, नतु कारखकार- खता, वेट्‌ सत्येव तत्रतिसन्धाने स्मृतिप्रणयनात्‌, वेदार्थसमृतिता प्रसिदिसिहा, Yarra afar शव Sift | स्मृत्यथेबोभकवेदातुमाने wer.

atta दृष्टमित्यत श्राह, कुविन्दष्डेवेति, शश्रादिना विकौर्षापरि- गरहः yaad व्यवच्छिनत्ति, नतु कारण-कारणतेति, वेदमूलल- मिति ओषः aad खतितोऽथे प्रतीत्य विरचितेदानौन्तनस्पतौ व्यभिचार इत्यत श्राह, AS सत्येवेति, “एवकारः 'तक्मतिषन्धाने' इत्यनन्तरं योज्यः, Azan तत्रतिखन्धान एव खतिप्रण्यना दित्यः, तथाच तादृ श्रस्रतेरेवासिद्धलेन व्यभिचार इति भावः। इदमा- पाततः वेदभन्यवाक्धार्थालुभवं विनापि afadtsi प्रतौत्य खति- प्रणयमस्यातुभविकलवात्‌। अ्रप्रयोजकत्निराशाया ह, वेदांत वेद- समामायेस्तिता मददाजनप्रसिद्धि षिद्धेत्यथेः, तथाच ate वेद्‌ जन्यानुभवणनन्या स्यात्‌ तदा महाजनानां बेदषमानायंकप्रसिद्धि- सिद्धा स्टात्‌ इत्येवानुकूलतकं इति भावः।

केचिन दृष्टान्ते साध्यवेकद्यपरि्ारायाद, Aref बेद- मूलस्रतिता ae, दृष्टान्ते इति गेष cers: |

नतु स्रद्यर्थ॑स्य प्रागज्नानात्‌ तदर्थातुभावकत्वेन बेदस्ानुमाना- सम्भवात्‌ कथं तेन रूपे शानुमितवेदात्‌ सव्र वाक्यायधो रिव्यत- wt, ‘wate: ‘waa waaay बेदानु-

शब्दाख्थतुरौयखन्डे SST: | ४७१

रूपवेदाथैस्य विषयत्वात्‌ बेदोऽनुवादकः न्नानान्तरा- पनौतस्य विग्रेषशत्वेन विशिष्टबुचचिसम्भवात्‌, पाक- कतौ मानस्षप्रत्यक्षायां पाकस्य AAAs संज्ञाया-

मान Tan, “अषुवादकट्ति, शवे जानेन प्रकारेणामुमितवेदाथे- प्रत्यय twa वच्छयमाणल्ारिति भावः शज्ञानान्तरेति fafwen- ग्टदोतासंसगेकस्य awarded विशेषण लेनेत्यचः, wafad: स्प्यर्थाविषयकलेऽपोति भेष, "विशिष्टबद्धि- सम्भवात्‌" तदिशि्टवृद्धिसम्भवात्‌, तददिगेव्यकवुद्धेरेव तद्िशिष्ट- बुद्धित्वात्‌, wa एव विग्रेषणश्चानानन्तरं तदग्टहोतासंसगेकविगरेव्य- ज्ञानं विशनेषण्ण विषयकमपि विशिष्टबुद्धिः तथाचानुमितेः सत्यये- विषयकलाभावान्नानुवादकलमिति भावः। चं तथापि तरेव ज्ञामान्तरमादायानुवादकत्मिति वाच्यं। a हि यदा कदाचित्‌ प्रततप्रत्यायकतामाजेणामुवादकलं, तया खति सर्वस्येवागुवादकता- पकः, शपि तु समानकालोनातुभवान्तर विषय विषयकप्रतौतिजन- कत्वं तत्‌, ज्ञानान्तरं वेदजन्यासुभवसमयडन्ति तत्छमय एव तनला- श्नात्‌, "विश्गिष्टबुद्धिविषयलासम्भवादिति काचित्कः पारस्तु प्रामा- दिकः तद विषयत्वेऽपि तदिशिष्टवुद्धिलमित्य् anata दृष्टान्त माह, “पाकताविति, weqd सप्तमो, "मानसप्रत्यचार्या" मामस- साखात्कारे, ‘wana, afar दवश्रब्टोऽज घल्न्नाया tara सम्बध्यते, Wada यथा wae विशिष्टबुद्धिलमिव्ययेः, तजापि fe पाको विषयः बहिर्विंषयकशौ किकप्रत्य्जममे ममसो

ack ` काल्थिनािथौ MATIN तदनुव्यवक्षाये भमविषयस्येव, अन्यधा सान्त-सान्तित्सङ्कणपत्तिः तु शन्दार्थोऽनुमानस्य विधयः तस्यासिडत्वेनाजनकतयः सत्व्यापकत्वात्‌ |

असामर्थ्यात्‌ शरशौ किकप्रत्याखन्तेगीरभिरमद्गोकारादिति भावः। पाकरृतेमानसप्रत्यचं कथं पाकविशिष्टबुद्धिः तदिगरेषणकनुद्धेरेव तंदिंशिष्टवुद्धिल्ात्‌ पाकशतेर्मागसप्रत्यके पाको विशेषणं खाव्यव- हितपूरवेवन्तिन्नान विषस्येव तकति विगरेवणतवात्‌ gare पाकशतिकाले एव नाशादिति are) शत्यनम्तरं सतिरूपपाक- ज्ञानत्वात्‌ कथमन्यथा नेयायिकमयेऽपि तच पाकभानं ज्ञानलकण- ्रत्यासन्तेरभावात्‌ | ‘asf नामविशिष्टमा मिप्रत्यञे यथा नाम- विशिष्टबुद्धिलमित्ययेः, तजापि हि aa नाभिप्रत्थच्षदिषयः OTA: रब्दश्टपतेन चचुरादेर योग्यलात्‌ wel किकपत्यासन्तेगै भिरमङ्गोकारादिति भावः। शश्लामाययाथेव दति श्नानायथार्थंव- मते, तदनुव्यवाये' भमासुव्यवसाये, “भरम विषयय्येवेति विषयस्छ रजतलादेयेया विशिष्टबुद्धिलमित्ययेः, ज्ञामायथा्तले cera, अन्यथेति, ‘sau’ भमानुव्यवसायेऽपि भरमविषयस्य रजतलादे- रिदमंगे विशेषतया भाने, ‘aeqw wae: भरमलेनेत्यथंः, wa- wadfafafasas बाधकमाह, “a fafa, ‘ae’ वेदार्थस्य, “अरसिद्धेलेनेति सूतयुत्पन्तिपूवंमसत्वेन मानाभावेन Fare, “WITT तयाः VORA, खत्यव्यापकलात्‌" खत्यनसुमेयलात्‌, कार्ये acerca विधेयकोटौ aruda विषयमिति तसिद्धान्तात्‌,

ब्दा खयतुरोयखण्डे STAIN: | BOR

वेदो नित्यमुमेय श्वानुमितादेवा्मवधाय्य स्मृतिप्रखयनप्तम्भवात्‌ | नन्वासंसारमपरितस्य बे-

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गन्वेतावताष्टकाबोघकरूरतिभूखग्डतवेद सिद्धावपि तच्च कथसु- स्डेदाभावषिदड्धिः कथं वा तस्यानुख्छनलवे cart प्र्यशमित्यत- आह, खख az ति, लाघवारिति गेषः, “मित्यमहुमेय एवेति नित्यमेवासुमेय एवेति योजना, “भित्थमेवेत्यस्य स्वंकाशमेवेत्धरथैः, क्रोशं कुटिला नदौ्यादिवश्च ब्याप्यकष्मणि दितोया, “अरतुमेय- एषेव्थेवकारेण शिड्ियकवव्यवच्छेदः, तथाच शाघवतकंसहकारा- दुक्ानुमानादेव तदुच्छेदाभावसिद्धिरतौशिवलोपगमेन प्रत्य fafa भावः। भरु तस्टातोद्धियले कथं ततोऽयं sate सतिप्र- णयनमित्यत श्राह, “श्रनुभित्तादिति, खतिधाराया wufeda wafema: परवेमपि wate स्वेन प्ठसम्भवादिति wa: | मच वेदो पञ्चाश्द्वर्णान्तमेतः प्रत्येकं तेषा मनित्यलघाधनेन

नित्यल्लबाधान्सदतिरिक्ष्याभावादिति ary) तावदर्णाकगेत एव 60

088 तस्चचिन्तामग्ध

दत्वं उत्पत्तितोऽभिव्यक्तितो मोनिश्षोकवदभिप्रायतो Tagen हौनवयोमाचस्य निर थेकत्वात्‌ | च्रानजनक- समभिव्याहारस्यानेकत्वे विशरेषानतुमानाशचेति चेत्‌ | स्मृत्यथैन्नापकत्वेनैव न्नातस्य बेदस्य Waly

नित्योऽतौज्ियः कठापि केना्यनुच्चाय्यैमाणो यः कञचिदषं एव a- इत्यभ्युपगमात्‌ श्रथमाणव्ेरेव वा PQS शक्यषाधनलात्‌ | mang तावदर््णातिरिक्ष णव सः। तदतिरिकवणेस्याभाव- fa वाश्यं। एतदलुमानादेव तस सिद्धिरिति तकातनिष्कषेः | “इत्यन्नित इति sufaufearagat asa: ख्यात्‌ एक- दणात्प्रत्यनम्तरमपरवर्णोत्पन्तिः, tq ae, “अभिव्यक्तित इति afuafaafetas:, स्याच्च एकवणफेक्चामानन्तरमपरवषंश्चानं, दघ दमये, ‘afta दति अभिप्रायघरितेव्यथः, स्याश्च एकपदोप- श्वितेरणमकरमपर पदोणएख्ितौ तात्प, इदञ्च उभयमते, ‘facia लात्‌” अन्वयबोधाजमकलात्‌ मरु We विशेवविगिष्ट एवा- GHA दत्यत आइ, “श्ानजमकेति, श्रनेकल इति अष्टकाः कार्य्याः कार्य्या अष्टका इत्थाद्मेकविधलषम्भवेन विगरेषरूपेषानुमानाषम्भ- वादि द्ययंः, विगरेषरूपेण व्या्तिन्ञानाभावादि ति भावः। त्ययति, अर सरत्ययतवरूपेण् BMH कारणं किन्तु विभिष तक्तदथेन्नापकलच्चानं angi: हेतुः, अन्वयबोधप्रकारग् अ्येकतन्तदरथेन्नापकलप्रकारकतज्चतरानात्‌ HARTMAN: तद- WA हृति-वकमानवयोरेव एकपदटोपस्याप्यानामपि पर्यर मन्वय-

शन्दाल्यतुखोय खण्डे उब्थघ्रपष्दत्रषादः | soy

aaa | fe शान्द्वोषे मियतपदानुपव्वीं हेतुः, व्यभिचारात्‌ पदस्य वगोविशेषानुपुव्वौँ नियमेऽपि तत्तदर्णानुपुव्वीं कपद विशेषत्वेन हेतुत्वं इस्ते-करा- दि पदानां प्रत्येकं व्यभि चारात्‌। किभ्वव्यभिचारितदधै- प्रापकत्वेन WA लाघवाशावश्यकत्वा्च, ATTA पक्त्वन्नानार्थमेव क्चिदशेक्रमख्वरविर्ेषाणाभुपयो- गः | MAW THANG कुशमा नयेति सकारसन्देहे

बोधः। यदा aa तत्तदर्थ पस्थितिं विनेव तत्तदर्यान्वयानुभवः विगशेषणश्नानस्य तक््मतेऽखेतुलादिति Ba ननु तथापि शआ्रासुपूष्यपि हेतुः तद्यतिरेके कथं शाब्दो रित्यतश्रार, "पदस्येति, 'तन्नदरंतिं घो त्तर टला दिनेत्यर्ध॑ः, “दस्तेति पर्य्यायान्तरेए शाब्दबोधे तस्या रपि व्यभिचारादित्ययेः, “किन्वव्यभिषसारोति, “्रव्यभिशारि' अनुगतं, स्वेसाघारणएमिति यावत्‌, लाघवादिति व्यभिचारखण्डनाय विरे षरूपेणानुपूरव्यादिना श्रनेककाथ्यै-कारणभाषकर्यभे गौरवारित्यधंः, “श्रावश्यकलादिति, स्यादि-त्यादिवणलोपस्छसे शैप्वणविगेषागिख- याक्षदयंन्नापकवन्नानस्येव हेतुलेनातुसरणौ यलादिति भावः| भतु GUI प्रथोजिका तदा यथा भदौ ग्रब्दअवणे नद्या श्रण्वय- बोधः तथा दौनेतिश्रवरेऽपि तदग्वथबोधापन्तिरिव्यतं sry, ‘a- दरयति, प्रते तददिनापि तद्थन्नापकलग्रह cfr तदपेशेति भावः | "खर विशेषणमिति अवर्णादौत्थादिः, ‘aavafa थत एव AMINA प्रयोजकमतपएवेत्य्थः, "व्ंलोपादाविति

8०९ तश्वचिन्तामग्यै

लिपावु्वारणे वा इस्त-करसन्देहेऽपि वाश्चार्थवीधः | ननु कर्मिकपदवश्वं वामत्वं | चाच पदक्रमः, अनु- चाखमाणतयोक्ारणाधौनस्य युगपद्नुमौयमानतया बुद्यधौनस्य . वा तस्याभावादिति चेत्‌, fe कमिक- पदवश्वं वाक्धत्वं, गोरश्च इत्यादावभावात्‌ किन्तु विशि- एाथैपरश्ब्दत्वं ATMA | अधानुच्चायमाणस्य म॒ वाक्धत्वं नम वा. अर्थानुभावकत्वमिति. चेत्‌,

9

ष्टारि-त्यादावित्ययेः, लुप्तवणं विशेषाजिश्ये इति गरेषः, “्रादिपदा- इषंदिकारषक्कहः, ‘arate दति, तदर्थंश्चापकनष्ठ निखया- दिति भावः। संश्रयसाधारणमानुपूरव्वो aman हेतुरस्ति are) सम्बजिितावच्छेदक विधया हि पदाथेमुपखखापयन्तौ अन्वयबो- धायोपयुच्यते सम्बन्धितावच्छेद कसं्रये सम्नन्भिनिखय इति। कभिकपदवस्वमिति क्रमवत्पद चरिततलमिन्थयेः, 'उच्चारणाधौ मरति एकपदोश्वारणविषयत्वरूपद्धो शारफघटित्तेत्यथेः, बुद्यधोनस्तेति एकपद ्ञानो्षरन्नानविषयतरूपस् बद्धिगतसखेत्यथेः, ‘ae पद्‌- कमस्य, अभावात्‌" वाक्यलाभावात्‌, तथाचाव्याभ्भिरिति भावः। “विशिष्टायेपरश्रष्लमिति विशिष्टपमरतिपत्यनुकूशश्र क्रिमत्वमित्यथः, aura विगिष्टपरतिपन्तोच्छयोचरिततवरूपस्यापि ve नित्यानुमे- येऽघन्भवा दिति ध्येयं पूर्वापरभावेमोश्चा खंमाणएपदवत्वश्च व्याप्यं वाक्ध- लमित्यमिप्रायेण wet, श्रयेति, “अनुच्धाय्येमाणद्य' पूर्वापरभावे-

इष्दाख्यतुरीयखण्दे SHUT: | 8७

लिप्यतुमितानामपि वाक्यत्वात्‌ भर्थवोधकत्वाश्च, लि- पितुल्या स्मृतिः किञ्च वाक्यमुच्लाययेते gee Wea, अन्यथा वाक्यमुशारयेत्यब्रानम्बयापत्तिः, अनुच्चारितमोनिन्लोकश्च वाक' स्यादुशारणदशा- याश्च वाक्यत्वे वाक्यस्यासस्वमेव स्यात्‌ रकदा तावत्प-

मानुज्ाय्येमाणएपद खमूहस्य, “लि्यमुमितानामफौति, कदाचिदपि केनाप्यनुश्ारिताननां वाक्धामामिति गेषः। “उच्ार्॑मारेत्यच यन्त MAAS शानपरत्यथाथेलात्‌। पूर्वापरभावेन खजगकवशमागोचारण- विषयपद समूहतवं वाक्षयलव्यापकमभिमतं उच्चारणं शतिरित्यमिपरा- येण दूषणान्तरमाह, “किञ्चेति, शवाक्यश्ुशाययैते वाक्यलवि- शिष्टसुचारणकष्म, तु" च, उच्चारणादिति, पूर्वमिति शेषः, पूवा परभावेन खजमकवन्तेमानोच्चार णटविषयपदसमूहलस्य वाक्यल- व्यापकतया व्यापकाभावेन व्यापयाभावात्‌ तथाच विग्ि्टश्च gey- रणकममत्वमुपपन्तिः तेन रूपेण प्रागसत्वात्‌ कियानिमित्तवसूप- कारकल्वाखम्भवात्‌, श्रम्भते संसारस्यानन्ततया वाक्यव विधिं यथाकथश्चिदाक्ये पूल्वेमख्छेषेति भावः। मनु विशिष्ट भोच्चारणए- कन्मेलभित्यत श्रा, ्रन्ययेति वाक्यलविगिष्टस्योश्ारणाकमत tae, “अनन्बयापत्तिः' दितौया्ंकम्मले वाक्यल विगिष्टामन्वया- Ufa) नमु घटं भानातोत्यादाविवाभापि दितौयार्थो क्षतं अन्यथा तदाक्यमुचचारयेदित्यभान्वयानुपपन्तिखनापि रु वारेत्यरचे- राह, “श्तुच्वारितेति, कदाचिदपि केनापौत्यादिः,. वाक्यस्य

gas ayafarntaat

erat उचारणाभावात्‌। छत-क्रियमाख-करिष्य- मासोखारणस्य वाक्धत्व, समुदाये प्रत्येकस्याभावात्‌ | तस्माद्थैविगेषन्नापकत्वेनैव न्नातादथेविशेषधौः | अत wafa वदिलिङ्गमितिशब्दात्‌ watt ye बह

वायवस्य | "म हतेति हत-क्रियमाण-करिग्यमाणोच्वार एविषय- पदषमूइसतेत्र्थः, “समुदाय इति क्ु्ापि पदे उच्चारणविषयलं aaah, सामान्यत उच्चारण्विषयलव्या्निग्राइकमानाभाव इति भाव; मतु विगरेषरूपेणाश्नातं ज्ञायमानकरण फलं तु जनय- Aaa ae, “अत एवेति यत एव विगरेषरूपेष्णन्नातमपि न्नाय- मानकरणं फलं जनयति sau: ‘fay व्यापय,“अरलुमान-

(९) aq वेदाधैपरमापकल्वं Wire समतेबेदानुमानात्‌ प्रागनुपस्धिता शुगतस््रतिपदमडक्तिनिमिसापरिचयाच दुर्धेयमव ere, Sere वेदा- चैता सतिता Aah, तथाच या वेदाथेरूपावृद्ाचप्रमापकत्वेन Blea प्रसिद्धा ताकृष्सेव वरेदमू लकल्वपिवाद विषयः, पद्यः | विवादविषय- तावष्डेदकापरिचयः, उभयसिद्खान्यतरको टि कान्यत्वस्येव तत्वादिति भावः | साध्याप्रसिडिं परिदरति, ‘ad इति, “छरानान्तरेति aga ज्ञागमोचरतैव वेदार्थस्य वेदोऽलुवादकं इति ave) दि यथाकचधि दुपद्डिता्च॑बोधकतामाच्रेयालुवादकता मा यदेकदा वेदाचौबगमे एन- सनेव वद्॑बो घनननात्‌ तदेदस्यामुवादकता तदिनापि तेन कदाचिदथ बोधात्‌ आपि लवा्ठापिद्चयोयनिस्पेच्तप्रमावो धिवाधप्रमापकतन्ना, सं- GET AHL ATTA MATA TAH ATT प्र्मच्यवेदानां नं दति

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रतुमामं, तु तदयेन्नापकषतेन न्नातात्‌ पदादथैन्नान- ad स्यात्‌ तु संसगंधौः, घटः कम्भैत्वमानयनं भावना तदोधकमिति ज्ानेऽपि परमानयेतिवाक्वा-

fafa, भवन्मते ware, अन्यथा wad ATA TMTA- wiafafayaaa तमालुमितेरसिद्धरणग्रकतापक्तः। Aa away, ‘Agua’ घट-कम्मेलामयम-भावनादौनां बोधकं तदर्थबोधकलस्यापि च्चामप्रदशेनाय इद्‌, ^वटमामयेतौति व्यतिरे कदृष्टान्तः, तस्माद्यान्वयमोधस्तथाग्वयनोधामावादित्ययेः, “श्रन्वय- प्रकारेति श्रन्वथप्रतिथो गत्यथ, “पद्‌ विग्रेषश्छ' घटादि पदस्छ, ^तदु- त्था पितेति तदत्यदघरितेव्यथैः, “न्ञापकत्माजेण' तदयेन्नापकल-

निस्पे्प्रमायं च्वश्यापेच्चणौया वा, सद्यं गोचशाचारादप्यशुमानसम्भवेन तथानुमितवेदस्यापि तदर्थबोधकालादिति ara | “तस्येति, Wale कार. णानुमाने खकार्णस्य तदहिषयत्वमिति परसिडधान्त इति प्रागेव कथमा- दिति भावः। ‘saufea इति न्यायमते, “शअभिव्यक्तित दति gana, 'इखछभिप्ायतं इति उमयमते ‘afamafefa, चटमागयानय धटभि- aural वाक्धाभ्यामन्वयधोदश्ंनादिति ara | “खअ्यभिचारोति नुगते~ यथः | Ay यद्यानु पूर्व्य प्रयोनिका तदा नदौ-दोनेन्यादावविग्रेषापत्ति- foua खा, "तदयंति | उश्वारणगमें वाक्यत्वं मा भूदुषारणव्याप्यन्तु स्या- fearuga, “अथेति aq लिप्यनुभितमपि कदाचिदुलाय्येत खवेत्यरचे- राह, ‘fagfa, seria वत्तमागोच्वारणविषयत्वमिति वदर्यान्त- alta दूषणमिदं, केवलं शब्दे Dattani तु च्चायमागकरणमाचसयैव ्ाप्य-न्नापकत्वक्चानं ATA, 'चतर्वेति, इति शाखान्तरम्‌।

हिन 5 ^ वस्वचिन्ताममीौ

दिवान्बयबोधाभावात्‌। रवष्वाग्वयंप्रकारकम्येत्वायुप- स्थापकविभक्यादिमत्पद विशेषस्य तदूत्धापिताकाह्ग- देख wa वाक्धाथधौरेतुरतो faa न्नापकत्व- ATA न्नाताद्थधौः, हस्त-करादिसन्देडहे कुशमानये- त्यादौ विभक्धादिश्रानादेव वाक्धार्थामुभव इति, मैवं, a fe तत्तदिभक्तधादिमत्पदविश्चेषन्वेन वाक्धाथषौ- हेतुत्वं, अननुगमात्‌, किन्तु घटः कम्मेत्वमित्याम्बय- विरोधिपदाजग्धपदार्धोपस्थितिस्तथा सा चेहाप्यस्ि। वस्तुतस्तु नानापदात्‌ पदार्थोपस्ित्यनन्तरं वाक्षार्थ-

माण, इस्त-करादिसन्देदष्य awiqga: व्यभिचारेऽपि विभक्षादि- ame व्यभिचार इत्यत wy, ‘waft, 'तन्तददिभष्ोति अरमा दि विभक्तौत्ययः, "पद विग्ेषलेनेति चटा दिपदलवनेत्यथेः, “श्रनतु- गमादिति, कलसमानय चटावानय इत्यादि तोऽ्यन्वयबोधादिति भावः। ‘ae: कम्येलमित्यारोति, “अन्वयविरोधोति पद विग्रेषणं | ag अन्वय विरोधिलं अन्वथानुङ्लविभल्षा दिशुन्यलं वाच्यं तथाच विभल्वादिरदडितनमित्यालुमेयवेदात्‌ कथमन्वयबोध इत्यसखरसादाह ‘aqafeafa, ‘alata तन्तदिभक्ा दिमन्तत्तत्पद विरेषभ्चानलेनेवे- wy, ‘aay, वन्सत्यद्‌ विग्रेषश्चानगस्य डेतुलं शाब्दबोधमानज व्यभिचारात्‌ अनतुगमाखच किन्तु तन्तदन्वथातुभव विशेषे, एवश्च HAAS . तद्थन्नापकलश्नानमेव कारणं तु THT विशरेषन्नान-

शब्दाश्थतुरो यखके उच्छव्रप्रच्छन्रवादः | ४८१

बोधे तथेव wan अनुमितवेदादाक्याथगैनुभवरे विलक्षरैव सा स्मृन्यथैन्नापकत्वेनैव wae स्मृत्यथौनु- waaay धम्िग्राइकप्रमाणेन तस्य तथेव fas- त्वात्‌ | तवेश्वरस्येवाश्रौरस्य Baa | Bava वणे- पद्‌ विभक्तया दिविगशेषघरितत्वेनान्नातस्याखण्डस्य स- खण्डस्य वा वाक्यार्थानुभावकत्वात्‌ पदार्थस्य नोयस्तस्यं

भिति भावः (तथेव सूत्यर्थानुभावकवेनेव, ‘aga दति, धि गराहकमानेन fagafafa wie, यथा अन्यत्र HARTI विरदिणोऽपि श्श्वरस्य aaa धम्िग्राहकमानषिद्धं तथान्यनर aR सामगोविरददिणोऽपि नित्यानुमेयवेदस्यानुभावकलं धम्मिपाहक- मामसिद्धमित्यैः, sae चटादिकाय्यैविभेषे विशिष्टखेव ade दृष्टमिन्यङ्करेऽपि aga स्यात्‌ कथमौ श्वर, “श्रत एव तथेव Uf यादकमानषिद्धवादेव, “पदार्चस्छामो यस्तस्य वाक्याचैः' इत्यन्तो नेको- ay, “श्रखण्डस्य' वर्णान्तराघरितशरौरस्य, ‘wawe’ agafzn- WTS, ‘awe इवायं, श्रनेनेव वर्णात्मकस्य aw सिद्धेरिति Si “पदायैस्ानौयः पदार्योपख्ितीयः, “तस्य वाक्याच, तव्लन्य- वाक्यार्थः, यथा पदार्योपसितौ पदान्तर।पेच्वा तथा तष्नन्ये शान्दबोघेऽपौत्ययेः | |

केचित्त यस्मिन्‌ wa पदायेखरणं तसिन्नेव et ama शाब्दबोधे पद्‌ाथ॑सरणरूपव्यापारान्तरापेकेति भाव इत्याहः `

मनु तस्याखण्डलि वणएसमू हइवरूपं पदलं पद सम्‌ इतवरूपं TITY 61

४९८२ are fantaat

वाक्याथेस्तच . वशेसमूः पदं पदसमूहो वाक्धमित्य- चापि ततो ग्रहः प्रमाण्शन्दत्वमाचेण तस्य सिद्धः अन्यथा Hieg विना सेाऽनुभावक इत्या तदसि. दावाश्रयासिद्धिः सिद्धो वा बाधः तेन विनैव सर्व्वा नुपपत्तिं परिभूय तदनुभावकत्वस्य धम्मिग्रादकमान- सिद्धत्वात्‌ तरव क्रचित्‌ स्तुति-निन्दाभ्यां कल्पित-

~ ^ ^^ = ~ SS भिण = नम्‌ ee ee mee

कथं श्यादित्यत आह, "तनेति नित्थानुमेयबेद इत्यथः, ‘aueqe: पदमिति व्णसमूरल्पं पदलमित्यथेः, “पद समूष्टो वाक्यमिति पद्समूरदतलरूपश्च वाज्यचमित्ययेः, श्रस्तौति गेषः, प्रमाणएश्नन्दत्मा- चेति, “माचपदात्‌ पदल-वाक्यवयोयेपच्छेरः, ‘fag’ wfaaren- मानसिद्धेः, “श्रन्यया' शाब्दबोधमात्रे एव तत्तदिभह्मादिर्ममिव्य - ततन्तत्यद्‌ विशेषस्य Yaa, ‘a’ नित्यातुमेयोवेदः fauzafa, “तेनेति Maa: ज्ञ परहेतोरपेकितिले तचानुभावकलस्धेवा- सम्भवादिगिष्टसममियादार विशरेषस्ानुमातु मशक्यलादिति भावः। त्वयेदमवश्यं स्तति-निन्दाखले मन्तव्यमित्याह, “श्रतएवेति यतएव श्रान्दबोधमात्रे तन्तदधिमक्यादिसमभिव्याइततन्तत्यद विगरेषख देतुत्वं॑श्रतएव, "कचित्‌ तदयंश्चापकलन्नानमाचादष्यन्वयबोध- इत्यथः, शव्तोति “तरति aay तरति agwat योऽश्वमेधेन यजेत” दति aa, ^जिन्देति “यो ब्राह्यणानवदुरेत्त श्रतेन धातयेदिति arma, wa विधिवाकःस्धाश्रवणादिति भावः।

शब्दाख्यतुरौ AT उच्छ्रप्रच्छत्तवादः | ९८७

विधि-निषेधकवेदा्थमधिगत्य प्रड्ति-निदटत्तो। श्रन्यथा विधि-निषेधकानां नानापकारकत्वेन विभक्तच।दिवि- शरषवत्‌पदस्यानुमातु मशक्यत्वात्‌ ततोऽधेधौः स्यात्‌। तथापि वक्तुन्नानानुमानानन्तरमिवानुमितानुमा-

नादेव वाक्याथैसिङ्धेलै¶किक वाक्यवद्‌ बेदस्यानुषाद्‌कत्व स्यादिति चेत्‌, न, धम्मिग्राहकमानेन स्मत्यधैन्नापक- तया WAY सम्भूतसामग्रोकत्वेनानुपदमेव वाक्याथै- च॒ रत्ययेसय सतित एवोपस्ितेवेक्रव्यलात्‌ after कुत उपस्थितिरिति वाश्य। श्रनायत्या श्रनुमानपरम्पराप्रयोज्यसख- त्यधौनामुमानस्ौकारादिति कानुपपत्तिः श्रगश्रक्यलादिति, fafog व्याघ्यादेरन्चानादिति भावः। ‘aa’ afaafafa-fag- धकवाक्यात्‌ wea, (तथापि, ववक्न्नानेति यया etfaa- वाक्यस्ले श्रयं वक्षा एतद्राक्ायेगो चर ययाथन्नामवाम्‌ ATTA काकाङ्खादिमदेतदाक्छप्रयोक्रृला दित्यनुमानामन्तरं एते पदार्थाः तात्पय्ये विषय मिथःसंसगेवन्तः एतत्यदाचगो चर पद्‌ चैशागवदु पट्‌ खारितलादित्यमुमानात्‌ शब्दबोधात्‌ प्रागेव वाक्यायबोधस्येत्य्ः, “श्रलुमितेति खतेञदमूलकतानुमामामन्तरं एते wal far: संसगेवन्तः वेदमूलकवाक्यायलात्‌ इत्यरुमानादित्ययेः, 'वाक्ायं- सिद्धेः, शाब्दबोधात्‌ प्राग॑बेत्यादिः “सम्धूतसामयोकलेम' सकल- घहकारिमण्यन्ञवेन, “agate श्रतुमितानुमामात्‌ प्रागेव, “्योग्य-

४८७ तक्वचिन्तामणौ

बेाधोदयात्‌ शपेक्षणौयान्तराभावात्‌, अमुमानस्य व्याश्यादिजन्नानापेशछितन्वेन विलम्बितत्वात्‌। वेद्‌- स्यापि येग्यतादिन्नानापेकछितितया विलम्बः, तन्निर पेषबाधकस्येव धम्मिगरादकमानसिद्त्वात्‌ येग्यतादि- विशिष्टस्येवानुमानादा, रवं मङ्गलाचारस्याविगौत- शिष्टाचारत्वेन कन्तव्यतामनुमाय सा कर्तव्यता वेद्बो- भिता भलोकिकाविगौतशि्टाचारकनव्यतात्वादिति तदोधकत्वेनानुमितवेदात्‌ कन्व्यताधौस्ततः wale: |

तादिक्ञाभेति, श्रादिपद्‌ात्‌ तात्पय्यपरिग्रहः। मतु बोघकववमुक्रानु- मानात्‌ सिद्यति तु निरपेक्ठबोधकत्वभित्यत are, '"योग्यता- दौति, शयोग्यताः safuatad, waged प्रकारमाचारे- sufafenfa, ‘vafafa, ‘agerace’ श्राचारविषयमङ्गलस्य, कचित्‌ ayuda पाठः, "कन्नेव्यतामिति बलवद तिष्टाननुबन्पौ्ट- साधनमव्समानाधिकरणछतिसाष्यतवमिव्यर्थः, हेतौ दष्टसाधनातांग् भ्रमाअन्यतवं शिषटव, अ्रविगौतलं बलवद निष्टाजमकलं एतद्ूयश्ना- सार विशेषणं, श्राचारतवं श्रासार विषयत, श्राचारः रतिः, faafe- ` तभिदमस्माभिः प्रत्यचर इस्ये। ‘ar कन्तेयता' मङ्गलो यकन्तेय्यता, श्रौ किकेति कन्ते्यता विशेषणं, श्रलौ किकल्वे श्ब्द-तद्पजौ वि- प्रमाणातिरिक्प्रमाएलन्यप्रमित्य विषयत्वं, “अरविगोतलेः frerec- fated, श्रावारपदः श्राचारविषयपरं, “कन्ते्यतालात्‌' तन्निष्- कंन्तैव्यतालात्‌, HAVA मक्गलकन्तवयताधौः। war

श्र ब्द ख्यतुरो यखण्डे उच्छत्रपच्छन्रवादः। acy

नन्‌ STATA AANA AAT ताहशाचार- त्वा दित्यनुमितबेदात्‌ तत्कत्तव्यताधौः, विभक्तयादिकं विनानुमितबेदात्‌ तत्कत्तव्यतान्नानाभावात्‌ मङ्गलमा- चरेदित्येव॑रूपस्य वेदस्य नानुमानं तथा व्या्यभा-

wee शा ee ee ee

व्यं VRAIS वच्छयमारानुमानात्‌ प्रङतनिर्बाहादिति wefan दूषयति, ‘afafa, “स श्राचारः' आचारविषयो मङ्गलादिः, ‘az: शाचारत्वात्‌” श्रविगौतशिष्टाचार विषयलात्‌, Fane, "विभ्वा दिकमिति, “शरनुमितबेदात्‌' उक्ररूपेणानुमितवेदात्‌, तत्कत्तेव्यतेति मङ्गल विषयककन्तव्यतान्नाना सम्भवा दित्यथेः। चेवं खमते एव कथ- मनुभितवेदात्‌ विभष्षादिकं विना मङ्गलकन्तयताबोधः खति- wa एव वा कथं विभल्वादिकं विनामुभितबेदादाक्यायेबोध दूति aay) श्रसति विगेषबाधकरे पक्ता वच्छे केऽप्यलुमितिरिति भिध- मादसमखमते मञ्लकर्तव्यतां पच्चयितवा वेदबोभितवासुमाने मङ्गले- ऽपि वेदबोधितत्वानुमानादृन्तरकालं वेदस्य मङ्गशबो घकवगदष- way विभह्षादिकं ` विनापि मङ्गलविषयककन्तवयताबोधः अ्रन्य- तरस्येव Vaan कर््तवयताया बेदबोधितलग्रेऽपि मङ्गले Aen धितवलायदात्‌ वेदस्य मङ्गलबोधकलवग्रहाभावेम विभक्यादिकं विमा कर्तवयतामाजश्ानसम्भवेऽपि मङ्गसलविषयकबोधस्यासम्भवात्‌ तजुन्ञापकलेन Basa तदनुभावकलादिति भावः। aay विभ- हा दि समभिव्याइतमेद एव उक्ररूपेणानुमेय इत्यत श्रा, "मङ्गल- मिति, ‘areprafefa, सामान्यधम्मष् हेतुलादिति भावः |

४य्द्‌ वक्वचिन्तामणौ

वात्‌, तस्मात्‌ तस्य कलब्यतामनुमाय तदोधकवेदा- नुमानं, प्रथमं .कत्तव्यतान्नानेऽपि बेदानुमानं श्रविनाभावात्‌। तत रव प्रत्यष्वेदानुमानं, NYA उक्छेदानुपपन्तेः शखान्तरवत्‌ | | ‘aw ayaa, "तद्‌ बोधकेति मङ्गलकन्तेव्यताबो घकेत्यथेः नन्वेवं प्रथममेव प्रवन्तंकन्नानोत्पन्तौ कतं बेदानुमानेनेत्यत श्राह, श्रचम- ` भिति, शश्रविनाभावादित्युपखच्चयं शआलुमानिककन्तग्यताप्रामाष्छ- शर हा ग्रहपत््नेन ततः प्रटत्यसम्भवा दित्यपि बोध्य, way ‘aa: प्रटत्ति- रिति प्रारक्रमपि सङ्गच्छते दति ध्येयं ‘aa एष" उक्रवेदमूलकत्व- साधकादेव, “त्यच्ल इति, प्रत्यक्चविषयतस्य उच्छेदाभावव्याणला- दिति भावः। तयाचानुमाने बाध दति भावः। "उच्छेदः" भ्रध्य- यन विषयत्वाभावः, नातस्तमतेऽसिद्धिः" |

——

(६) ‘weifa, तच विभक्रयादिसमभिव्यादहार मुक्तौ यान्वयधीस्तक्नो पमजान- तोऽप्यम्धयधौरेव नेत्याश्यः। ननु घटः कम्भत्व मित्यादावमेदान्वयखसरू्प- योग्यलात्‌ तत्तदन्वय विसो धिपदाजन्यत्वं वाच्य तथाननुगमस्तदवस्थ खवेति लाघवादूविमह्यादिमत्पदत्वेगेव तद््ोऽख्लि्यखरसेन मतान्तरमा इ, "वस्तु- afeafa, प्रतिबन्धाभिप्रयेय दृद्ान्तमाहइ, (तवेति, तर्वेति तथा धन्भियाहइकमागसिडतवादेवेत्य्थंः, तदृघटितत्वेना त्ञातस्येव्यस्य fara 'वधखद्डस्य), ‘ABBR तदृघटितत्वेन Nae, 'वाण्णब्दो ऽनाख्धायां xarat at) "पदार्यंति Grea वाक्धा्थं खव Wiad तु पदायंस्मर्णावान्तर- द्यापारापेच्तेत्य्ैः, afe कथं वेदत्वमित्यतच्धाह, ‘safe, तथाच म॒ तदुघटितं वेदत्वं किन्तु प्रमाणशन्दत्वघटितं aerate भावः | TIRE Tare, “खतर्वेति, “खनुमितेति, र्ते सबर्याः

श्ब्दाख्यतु रौयखरे SSRIS: | ४८७

यत्त अष्टकाः कत्तव्याः काया अष्टका इत्येवं रूपमेव वाक्यमनुमेयं उपख्ितत्वात्‌, खश्च तवेवार्थे प्रतिपुरुष-

ee |

उपस्ितलादिति, यस्यामुमितिपून्बस्षमये यद्‌पस्थित त्य

ae.

परस्परं संसगं वन्तः वेदजन्यानुभव विषयत्वादित्यादेसित्यर्थः, aa नाविषयत्वं वाऽप्राधान्धेम विषयत्वं इन्यनुवादकतावश्यकोति भावः। 'योग्यतादि- श्चानेति, श्यादिपदात्‌ तात्पर्यां दिपसिग्रइः च्छभ्युपगमवादेनाह, 'योग्यतादीति, उक्षरोतिमाचारख्यकेऽप्यतिदिश्ति, ‘wafafa, रखतदमु- मानं VaR व्याख्यातं ‘av’ मङ्कलाचारौयेव्र्थः, तथाच त्ततावच्छेदकावच्छदेग साध्यसिद्धिरिति मते मङ्गलाचारविशिर- avast त्रेदबोधितत्वानु मितौ समानसं वित्‌ संवेद्यतया मङ्गलाचारवि- श्ि्टकन्ेष्यतागोधकत्वेन वेद सिद्धेखतस्तदधौः तदर्चं ्ापकतवन्ञाममचस्येवाच् सामग्रोत्वात्‌ तदिदमाह, नद्धो धकत्वेमानुमितवेदादिति, 'भन्विति, a कर्तव्यतामाचरबो धकत्वेन वेदसिद्धेनं ततो मङ़लाचार विशिरकरयताबोधः wifefa भावः। बड्कन्रौद्ययंपर््यालोचमया व्यापि मङ्कलकरत्तव्यता- बो धकत्वेनेव तत्‌सिडधिरिति वायं वस्तुगत्या या ayant agtu- कत्वेन सिडावपि मङ्गलां शबो धक्रत्वेनासि डेस्तद्रोधकत्वानुपपन्तेः। Er काशः ओ्रोच्रग्राह्यगुण दनु मितावाकाप्रेऽपि ओचय्माद्यत्वभागसम्भव दति, afe again’ विमक्तयादिसमभिव्याहाररूपसामयेयव बोधयतित्यत are, (विभक्तीति खनु मितवेदे fanmufcaafaareneqaagatafeeard: | afe तत्‌समभिव्याषत र्वानुमौयताित्यत खाइ, “मङ्गलमिति, "तस्येति मङ्ल।चारस्येथंः, (तदुबोधकेति मङ्लाचारविशिरकततवयताबो धकस्ये्य यैः, “वखविनामावादिन्युपलच्तमां खन्धपरम्परानिरासमाशासायश्चे्यपि Aza, wa "ततः vafafefa vatmata सङच्छते दति ध्थेयं शच कथं गानु- वादकत्वमिति चिन्त्यं दति वयाख्यान्तर्‌

exe araFarrtaat

मन्यान्यवेदानुमानं Vary रकाथमेकपदापस्थितौ वानेकवाक्यानुमानमेवेति, तन्न, आ्चारतो वेदानु- मने -मङ्गलमा चरेदिव्याद्यन्यतरा प्रसितौ नियमाभा- वात्‌ अरनेकवेद्कल्पने स्वानुभवविराधः, मनु- स्मृतिमूलब्चानेकं वाक्यं नावश्यकमिति कथमाधुनि- काऽनेकमनुभितुयात्‌। स्मृत्यथैबाधकोवेद्‌ः समृति- सदृश ॒र्वातुमेयः नियमतः स्मृते रुपश्ितत्वात्‌ इति TH | ayaa नानाप्रकारकत्वात्‌ त्स्य प्रदाषादौ अनुच्चरितवेदस्येव वेदत्वं ओओचयदहाणार्द- तदेव उपनौतं सदनुभितौ भारते दति नियमादिति भावः ‘a दोषायेति, सामयोबलधिद्ूवेन प्रामाण्िकिगौ रवस्यारोषतादिति भावः। ननु ay एकस्िन्नेवार्ये अनेकवाक्योपस्थितिस्तच्र का गतिरित्यत श्रा, “एकार्यंति, बेदानुमानेः वेदातुमानद्भ्राया, दूषणान्तरमाड, “अनेकेति, 'खातुभवेति अुमातुर्लाचवसदषते - नातुमानान्तरेण Aa नानाप्रकारकवाभावनिश्चयादिल्यर्चः। एवं सतिमूलक्वे दानुमानेऽपयाद, ममतुखतोति मन्वादिखतीत्य्धः, क्षाघचवादेकस्येव तन्कलस्य कल्पनादिति भावः नानेति, awe नेकवेद कर्यने खातुभवविरोध इति भावः। वस्ततोऽनुमितावुपनौ- तभाने मानाभाव इति ध्येयं "तस्य च" भित्यातुमेयस्य च, श्रदोषेति यथा प्रदोषकाले तेषामणुच्चारणाविषयलेऽपि बेदस्तथायमपौत्यरथः, रोचति, सखद्ूपयोग्यतावच्छेदकश्च awa श्रो चशमवेत विग्रेषण-

WRAL TW उच्छन्रप्रष्डन्न वादः | ete

तया Were वाक्यत्वमथभाधकत्वादित्येतरेव युं BAIT चानुमितो वेदेाऽथ बोधयतीति पुब्बु णातुभितवेदात्‌ उकलरात्तपस्मुत्याचाराविति नान्धपर- म्यरा शब्दा्थेशक्तिग्रहवत्‌ खतः प्रमाणमुलकंत्वात्‌ | तस्मान्नित्यानुमेयत्वं बेदस्य qa इति। wars | उच्छिन्नवेदादथ प्रतौत्य स्मृत्याचारयोरुपपक्तैः सा- मग्यन्तर कल्पनं Bava नाश्रयासिदहिर्बाधा वा समत्या-

aq) नित्यस्य खद्ूपयोग्यले फलोपधानप्रषन्ग इति वाच्यं | ते नित्यस्य सखशूपयोग्यस्य फलावश्यम्भावनियमस्यामङ्गोकारादिति भावः पपूल्वैपूर््व॑रेति पूनैपूत्वस्त्या दिनेत्य्थः, ‘aad AMAR, “ब्देति यथया शन्दशक्रौ व्यवहारलिङ्गकानुमा- मादिमूलं तथात्रापि वेदमूखमित्यर्थः, “नित्यानुमेयतल्रभिति नित्यत्व सत्यनुमेयतमित्यरथः, “aA qe’ तु we.) 'उच्छिक्ेति, च्‌ तद्य॑ञ्ापक्रलज्ञानमेव waa सामथ्यस्लिति areas तदभावेऽपि शरयमाणएवाक्यात्‌ योग्यतादिप्रतिसन्धानेऽन्वयद्‌ शनादिति भावः। qaarant विना सोऽतुभावक cara age दोषमुद्धरति, “श्रत एवे तिर | नन्वेवभिदानौं विभक्यादि विशिष्टस्य मङ्गलमाचरे- दित्यादिवत्‌ तस्य वेदस्यानुमातुं शक्यलादनुमितवेद्‌।त्‌ कन्तेव्यता-

(९) “यत्तिति, aura विभक्रधाटिसमभिव्याहा श्वत Dagny साम- यगन्तरकम््यनमिति ara | यद्यपि तादृ श्रवेदेन समं व्याक्षिक्लधाप्युपगौत-

भानमतेनेदं बोध्यं ‘Nal, कतव!देरेव तदवद्ेदकत्वादिति भावः| 62

gee , arafarmnaait

चारानुमितवेदस्यास्माभि रभ्युपगमात्‌ xara” Baca प्रतौत्याचाराच कर्तव्यतामनुमाय प्ररत्तिः चैवं किं वेदेनेति वाच्यं तुल्यत्वात्‌ अ्चविनाभावाच्च तत्कल्पनं Gal तथाच स्मृत्याचारथेर्वेदजन्यानुभव- मूखत्वानुमानादेव पक्षधम्पताबलात्‌ प्रत्यक्षवेदमुलक- त्वसिञ्धिः। अन्धथा तस्यानुभावकत्वाभावेन मूलत्वा-

च्ञामासमवेन कथं प्रटृत्तिरित्यत श्रा, शददानोध्ेति। एवं सत्धथैश्वानादितः प्रदृत्यपपन्तौ, “किं वेदेनेति fa वेदाुमाने- नेत्यर्थः, Aer’ तवापि तुखयलात्‌, ‘aa बेदानुमानं, "पच- ugafa wad वेदमूलकलेन बाधादिष्यथैः, पचधश्मेता बलमेव दशयति, ्रन्ययेति, wee सष्टकारिमूलानुपूर्व्या दिजन्नानाभावात्‌ सामग्यन्तर कश्पनस्य गौरवपराइतल्रादिति भावः। अ्रतुमितेया- पकतावच्छेद कप्रकारकलमियममभिपत्य wre स्थापनां दभेयति,

नवाक्यत्वमिति, खाचारमूलाभिपायेणेदं तेम पौनसरत्यमिन्याद्भुः। ननु ways समाचारयोरेवास्तु किं वेदेनेति शङ्गा निरस्यति, "स्तौति, (उच्छिपेति, तदर्थक्लापकतवश्लानमेव सव्वं सामयपसख्लिति वाच्यं तदभावेऽपि श्रुयमाणवाकधाद्‌ योग्यतादिप्रतिसन्धानेऽन्वयधौदश्रंनात्‌ ATTA ATT तनच्रापकत्वेन प्रागच्चानाच्च इति मावः “अन्धथेव्यादि- प्रा्ाक्तमुडरति, श्यतरवेति |

(९ नग्विदानीं विभ्रादिवििदस्यानुमातुमश्क्यत्वासतदथं ्ापकत्वेनेवा- मु भितस्योच्छिद्नवेदस्यानुभावकत्वमिति सामयमपन्तरकल्पनमावश्यकमित्यत- Ey, “ददानो घ्रेति, तथाच प्रत्यच्तताद श्ायामेव पर तस्यानुभावकलत्वमिति तत्कल्यग मिति मावः नन्विति, aura प्रामाणिकं गौरवमिति मावः

प्रब्दाख्यतु रौ यावण्डे SHUTS | Bet

नुपपत्तेः | तस्मात्‌ स्मृत्याचारातुमितो वेदः प्रत्य्षाऽध्य- यनविषयश्च Asay सम्मतवत्‌, अन्यथा सामग्यन्तर- कल्यने गौरवप्रसङ्गः aq लुति-निन्दा्थैवादेन कल्यितात्‌ विधि-निषेधकवाक्यात्‌ कथमथेमवगम्य प्ररत्ति-निदत्तो, fe तच वरे-पद्‌-विभक्ति-विधि- प्रत्ययक्रमविश्ेषाणामनमानं सम्भवति, व्यभिचारा- दिति चेत्‌, न, स्तुति-निन्दावाक्यभ्यां nefa-faefa- पराभ्य। प्रटत्ति-निषटत्तिहेतुरथेरव कल्पयते लाघवात्‌

"तस्मादिति, श्रध्ययनपदेन अदृष्टजनकाध्ययमं बोध्यते तेन हेतौ वेयथ्यै, WAI तु वाक्यलमेव हेतुतया विचितं श्रप्रयोजक- aay, “न्येति, श्छतोति श्ठति-निन्दारूपो योऽयैवाद्‌- wage, ‘aia विधिषमभियाइतं वाक्यं" करितात" श्रनु- सितान्‌, ¶्रट्ति-मिटज्िदेतुरिति प्रत्या दि हेतुज्ञाम विषय इत्यथैः, दृष्टसाधनलादिकमभिष्टसाधनलश्च, "कल्प्यते इति सोमो राजानमण्तात्‌ Sat ब्राह्मणानां राजा इत्यादौ sa ceary- HAMM वेदे सरयमानलात्‌ वायुँ चेपिष्ठा देवता arazi Manag, वायुवदित्यतुमौयते wah, ‘ata’ चन्द्रः, "सखयमा मलात्‌" उत्कषेवल्नेमावधारण्णत्‌, ‘afar fears, ‘ay रखवेति टसाधनत्वादिकमनिद्टसाधनत्वश्चे्यः, "गौरवादिति, अवश्य

काय्यैकल्यनेने वो पपरेरिति भावः। “उक्तेति fA दिमलोऽनुमातुम शक्यत्वात्‌ सामयरगन्तरकल्यने गौरवमिलर्थः, “म fafa, ^तत्वल्पनापि' अर्थं कल्यनापौ-

७९२ तत्वधिन्तामणौ

तु विधायक-निषेधकवाक्यं गोरवात्‌ उक्तराषाच, यच चार्थैवादादैव तदर्थावगमः “तरति खन्युमित्यादौ तच्च तत्कल्यनापि। wa तस्याध्ययनविषयत्वे

"वायव्यं वायुदेवताकं, दृष्टान्ते शेतच्डरागलाशम्नमेवोपाषना गौर- वितद्ेतुक्रियाया एवोपासमलात्‌^९) “गौरवादिति विष्यनुमानं ततश्च विभेर्थधोरिति च्चामदयकर्यने विधिस्वरूपकल्यने गौरवा- दित्यर्थः, ‘onfa, तादृशजशिक्गगभावा दित्यर्थः 'तदर्य॑ति प्रदृत्यादि- देतुश्ञानविषयार्थांवगम इत्यथः, ^तरतौति “तरति ल्यु तरति ब्रद्मरत्यां योऽश्वमेधेन ada” इत्यन्तविधिप्रतिष्पके इत्यः, तत्कन्पनापौति नार्थकन्यनापौत्ययः, ‘afi meat शमु चि - मोति। चानुवादात्‌ कथं यागे aha: प्रटत्तिदेतुज्ञानविष- येष्टसाघनव-शतिषाष्यलयोरनवगमात्‌ विधेरेव तद्बोधकलात्‌ इति वाच्यं हेतु-हेतुमतो शिंडित्यच PT WMATA: चकारस्य णटसमुच्चायकलात्‌ लटोऽपि afer साध्य-साधनबोधकलतात्‌,

(९ सोमो राजागमग्टतादि्यादिः गौरवितदहेतुकियाया खवोपासनत्वा- fran: पाठः चादर एसतकानुरूप ख्व मुद्रितः परन््वयं पाठः सम्बकपरि- yaaa प्रतिभाति |

अथः, "पिः सामयगन्तरकल्यनं समुचिनोति | ननु छतिसाध्येसाधनतं ate कस्यां xara तद्वो धां विधिकल्यनं, किच ताकृश्स्य विधेयत्व्याप्य- wizard तत्कर्पबमिति aged द्रटसाधनवं यौक्तिकश्च छतिसाध्यत्वमिति कापि तच लटोऽमभिदहितल्वात्‌ इति चेत्‌, के चत्‌, सिदडध-साध्यसमभि- व्याहारे fag साध्यायोपयुज्यत ति श्यत्पत्तिवलारथा प्रतौतिरि व्याङः।

ए्दास्यतु सेये SWANN: | ४९९

शा खान्तरवत्‌ वहभिर्मेधाविभिराध्याल्मिकशक्तिसम्प- नैरभियमाण्शाखाया उन्छेदासम्भव इति चेत्‌, न, रकस्य सकलशाखाध्ययने शक्तिरित्येकेनेवापरेरपि तदनध्ययने शखेष्डेदसम्भवारेकानपौताया अपरा- ध्ययनविषयत्वनियमे मानाभावात्‌ शाखात्वस्येव प्रत्य-

a Orme Ee me ee ` षा ee ey

अतएव waaasta विधिप्रतिषूपकोऽनुवादः प्रमाणमेव काययैता- बोघकलादिति। चेवं तयथाग्तमाधनमतस्य विधेयलव्याप्यल्ाद- विनाभावेन तज्रापि विधिक्रन्यनमिनति विधिवादश्वग्रन्धासङ्गतिरिति वाच्यं तस्य AAAI श्र्छ प्रयोजनाभावान्न TTR fafa aaa वच्छमाएतादिति। ददमापाततः, agay तचापि तन्तत्कन्नमावश्छकं श्रन्यया कति साध्यवेष्टमाधनत्वबोधोपगमेऽपि बलवद निष्टाननुबन्धिलस्यानवगमात्‌, कन्यनप्रकारस्तु WRU यागः बलवद निष्टाननुब सपित्व-कतिसाध्यलसमाना धिक CURR wen feat एसाधनलवान्‌ ब्रह्मदइत्यादितरएसमानापधिकरणएवेन वेदबोधितलात्‌ यद्‌ यत्छमानाधिकरणएल्ेन बेदमो धितं भवति aware भव- तौति सामान्यसुखो af इति wa श्राध्याद्मिकौ शक्रिः" ग्रडधारणणदि शक्रिः नज्िरानौमपि निखिलश्ाखा विदां व्यासा- afer, तादृ्र्युत्पत्तौ मानाभावात्‌ मावे वा कथचित्तप्रतौतावपि पदानु- पर्ितस्याप्रकाश्त्वेन कृति साध्यत्वादिप्रकारकन्ञानाम।वे ततोऽपि प्रङश्चनु- पपत्तिः। खन्धे गु श्ुत्पत्तिबलात्‌ सोऽर्थो मासत इत्येव Tae प्रटसि-

maga faa, यदा खश्वमेधेनेति दतौयया तदिष्टसाधगत्वलाभः इति रता तथोक्तं छृतिसाध्यत्वन्वानुमानिकमेवैत्याङः। के चित्त टद्यमिन्या-

8€9 तश्चचिन्तामणौ

छष्णखात्वस्याप्रयाजकत्वात्‌ | यद्यपि बेदसदखषशाखा- विदा व्यासादयः सन्त्येव, तथाप्यध्ययनाभाव श्व WARE: | ननु WAS? वशै-पदवाक्यहानिश- EM प्र्यक्षवेदादपि वाक्याथै-प्रयागयारनिश्चये वैदि- कव्यवदहारमाचं लुष्येतेति चेत्‌, न, भ्रुयमाशमाचस्येव मदाजनपरि्शटोतत्वात्‌ तम्माबवाधिताङ्केतिक्तव्यत-

दौनां स्वात्‌ कथं तुच्छेद्‌ aA आर, 'यद्यपौति, शश्रष्ययना- भाव दति निमित्तसप्रमो उच्चारण्णभावनिमित्तक उच्छेद cae, 'वाक्या्य-प्रयोगयोरिति, प्रयोगो मन््रादिश्ररौरं। नष FIAT खूपवक्यायप्रतोतौ किं बाधकमिति वाच्यं! aration "परिग्टहोतलंः श्रध्ययनाध्यापन विषयत्वं, ^तन्माजेति च्रयमाणमाचे- त्यथ, तिकन्ते्यता" कष्मेपरिपाटौ, श्रतुष्टौयमानलात्‌” कणः क्रियमाणत्वात्‌, वण्णादि दानिश्रद्धाविरदेणेति wa) थदि ad- पदडहानिख् स्यात्‌ तदा तदवच्छिन्नस्य शाखात्वाभावेन तेषां तद- ध्ययमारिकं तन््ाचबोधिताङ्गंतिकन्तंव्यतया कर््ानुष्टानश्च faqa- तेति भावः। प्रयोगविषयोऽणेवमेव ate: च्रूयमाणएमाच्य महाजन- परिग्टहोतलात्‌ wart यदि वणे-पदहानिः स्पात्‌ तदा तदव-

TATU AHEM हिवध्राद्वादान्तरे यत्र तदवगमस्ल्र तत्‌- RIAA तु aaa: | विधेयत्वव्याक्षियंद्यस्ि तदाऽस विनाभा- वात्‌ कल्यं प्ररृच्यन्त॒ तथेयेव AA: | वस्त॒तो प्रयोकत्वादविनामाव खव मेति भावः। “शाखात्वस्येति, त्वन्मत ति Re) अनिखयो नानुमेयपदार्ध-

श्ब्दाख्यतु रौ यखण्डे SBAUS Hale! | Wey

थैव शष्टेरनु्ठौयमानत्वाच्च तदर्थनिश्चयात्‌। उच्छिन्रशाखागोधितेतिकत्तव्यताशङ्खया रकस्मिश्नपि कम्मेण्यनाश्वासप्रसङ्गः, नानाशादेतिकनतव्यतापुरणौय- त्वात्‌ तस्येति ana, सन्ति fe anemia नानाशा- खाबोधितसकलेतिकत्तव्यताबोधनायैनमेव कालकम- भाविनमनाश्वासमशङ्धमानैमेहपिभिः प्रणौता मदा- जनपरिखहौताः स्मृतयद्रति नानाश्वासः। अन्यथा

faqs मन्तलाभावेन तेषां तरध्ययनादिकं विरुध्येतेति भावः | नन्वेवं उच्छिन्तश्राखानो धितकन्तताश्डया चिष्टानां कम्येमाचामुष्टा- नमेव स्यात्‌ इत्याशङ्कते, "न सेति, “अनाश्वासः निष्कन्यप्रटत्य- भावः, Va प्रत्यचशाखेकदे शावष्छेदेन श्रद्ाधोनः कश्रंलोपः परि- an: सम्प्रति Shama fudge: aftfanad xfa भेदः “श्रनाश्चाषः' ofeequrara धितेतिकन्त॑व्यतासन्दे दः। नाना- श्वास दति नेतिकन्तेव्यतासन्देह इत्यथः, ददमुपलक्णं तम्मा जबो- धिते तिकन्नैव्यतयेव शिष्टेरनुष्टो यमानलान्न सन्देह vata बोधय | श्रत एव यत्र खतिर्मास्ति तत्रापि wee: भ्रन्ययोच्छेदानभ्यृपगमे मरवा खानध्यायिनां शाखान्तरबो धितेतिकन्तेयतासन्देहा दि तिकन्त- व्यताजिश्चयो स्यादित्याह, “श्रन्यये ति, 'नायेनिश्चय दति ततएवेति- दत्त व्याह, वेदत्वं चेति, खत रवेयस्य विवरं, "बाधादिति, "विधिष्येति, यदि सामान्यतोऽन्यतमत्वादिना wae, यदिवा तावदन्यतमत्वं वेदत्व-

समामाधिकरण्मिति साध्यं तदा बाधरणव YM, यदा रतदखरसादेवाह, ८... & e ha धम्मति, 'प्र्यच्तत्वादिति, उपगयमय्यादयेदं बोध्यं, तथाच सिद्धसाघनान्नानु-

Bed arafartaat

VAR सकलशशखानवगमात्‌ शखान्तरबोधितेतिक- तेव्यतासंश्येनैकशखातो नाथेनिश्चयः स्यात्‌

ay विभक्तयादिमत्तत्तत्पपदानां तत्मुदायानाश्व प्रत्यक्षत्वन्ते्ठपि afage: तचायं समुदाये ae शइत्य- निश्चय wa नित्यानुमेयाथः, वेदत्वं वा तवान्‌मेय- मिति, तन्न, प्रत्यक्वेद्‌ा तिरिक्त वाक्ये तदभियुक्तानां महाजनानां वेदत्वाभावनिश्चयात्‌ | अतरव वेदत्वं तव

कन्तव्यतानिश्चयो स्यादित्यर्थः) प्रत्यच्लमिति इदानौमपि परत्य्लमित्यथेः, तेष्वपौति तेव्वेबेत्य्थः, ‘afyee दति a: कथि देदस्तवेत्यथेः। ननु afayqeat नित्यातुमेयश्नब्दा्ं capacar- दाह, वेदत्वं afa, ‘aw यत्किश्चिदेदे, तथाचायमेव नित्धानु- मेयश्रब्दाथे दति भावः। बेदातिरिक्रेति वेदवेन निस्ौयमाना- तिरिक्रेत्यथेः, "वाक्ये प्रत्य्षसिद्धवाष्ये, बेदलाभावनिखयादिति, तथाच बेदस्य नित्यलासत्वमनायातमिति भावः। द्यपि निश्चायकं प्रमाणं दुर्वाद्यं तथापि yeagedat वाक्यमेव तयेत्यभिप्रायः(९ |

[1

मानमिति भावः | सुद्रतावतिप्रसक्कः, गपेच्येति fataanfears: | (नाध्ययनेवि ऋदृेत्वध्ययग्‌ निषयत्वमि्ययेः। (तदभावादिति, fe वादृ- श्रानुपूर्व्वो विश्रि्टः केनचित्तथापाद्यत इति भावः | (खनभ्युपगमादिति, देव- दत्तप्रभवत्वाद्यनुमापकजा{भिः सङ्कनरप्रसङ्ादिति ara. यथपि शब्द तदुपनोवौत्यादिरूपवेदत्वानुमाने गोक्छदोषस्तथापि वेदस्य नि्यानुमेयत्व- विवादे वेदत्वस्य तथात्वसाघने अर्थान्तरमिति are, दति याख्यान्तरम्‌।

शब्दा ख्यतुखोयखनक्डे SWNT | 8९9

aged बाधात्‌ विशिष्य पक्षान्नानाच्च भम्मेवेदना- जनकत्वच्च वेदत्वं नानुमेयं तज्नमकत्वस्य प्रत्यक्षत्वात्‌, नाध्ययनविषयत्वं तद्भावात्‌, जातिरनभ्युपगमा-

fefa |

“अतएवेति, विदणोति, "बाधादिति, ‘fafaafa, व्याप्यवन्तयेत्ययैः, Signy बेदलं तचामुमेयमित्थाह, ‘aii धश्मन्नानननकलमि- त्य्ः। निषेधवाक्धाव्या्भिः तस्य ध््माबोधकलादिति वाच्यं धन्ेपदश्ापूर्वमाचपरल्वात्‌ तस्यापि मिषेधापूष्येबोधकलात्‌ ख्धतावतिपरक्गः, श्रपौ सषेथलस् प्रथोगोपाधिलात्‌ स्तोमे- ऽग्यात्निः, तस्वाखच्छयलारि ति wa) प्रत्यच्चत्वादिति sweaty मनोवे्लादित्यथंः, तथाच सिद्धसाधनालल्ानुमानमिति भावः | ‘seats अदृष्टविगेषलमकाथ्ययमविषयलमित्ययेः, ययाज्रुतस्या- तिप्रसक्लेन वेदरूपत्वासम्भवात्‌ श्रध्ययमविषयत्व मास्य प्रत्यच्सिद्ध- aa तदभावादिष्य॒न्तरय्न्धाबङ्गतेख away, तदभावादिति, “मभ्युपगमादिति वथा दणएगतजातेरमभ्युपगमात्‌ कलत्व-खल्ादिना लातिषाङष्याचेति भावः |

Nee सत्थाचारामुमितो वेदः इदागोमपयजाध्ययनगोखरो ल्न्यचेति वेदः प्रबुद्ध एव तु नित्यानुमेयो वा उच्छ CATS: | तदत्‌ गौरवाश्चानाभावाचेति द्रष्टव्यं

(1. ave fatal

स्यादेतत्‌ स्मृत्याचारयोर्वेदमूलत्वे तचोच्छेदादिवि- वादस्तदेव fad, तथा fe वेद्समानाथा महाजन- ufcawiar स्मृतिः खार्थोपलित्यनन्तरं सृत्यथोनु- भावकवेदानुंमाने लिङ्ग तथाच प्राथम्यात्‌ साध्यप्रसि- SIMA स्मरतेरेवापव्वा दिवाक्याथैत्नानमलतु किं वेदेन तदधैस्य स्मुतित शव सिद्धः अपुव्वंस्यापि

aze: wea, शस्यादेतदिति,९ शेदेति बेदषमाना्थ॑कले- भामिमतेत्यथैः, “लिङ्गमिति परोग्य तदसुमानप्रयो जिकेत्ययेः, waren wfata वा शिङ्गमित्याश्यः, श्रायम्यादिति nea wan wae वावश्कोपयस्थितिकला दिव्यथेः, “साध्यप्रचिद्ययेमिति afan विना खतितः साध्यघटकोग्तद्धत्ययेक्ञामासम्भवादिति भावः ) ‘acuafa इष्टसाधनलादिन्नानदारा बेदप्रयोजनस्य प्रटृश्यादरे रिव्यः, किच्च उक्ररूपेणानुमितवेरा्म्रत्यये afis- waar शन्नापकवेन वेदस्यानुवादकतापन्तिरिव्याहइ, “श्रपूव्वेष्या- Tir were यदि वेदेकगम्यलं स्यात्तदा ae सपतितो न्नात- माजन्नापकलं erased, किन्तु शष्देकगम्यवमतः ‘efit sae’ खतिन्नातमाचस्य ज्नापकल्वनेत्यथैः |

(९ acer प्रद्चवतिषते, ‹स्यादेतदिति, ˆवदथंस्येति ending vemeforn, चेदं दिनापि खमूव्वौपस्धितावपववैत्वव्याघाव इयत ae, ‘qaata, तु शम्दविेषवेदे कवेदयत्वे, गौ रवादिति मावः। भु वेदं

शब्दाख्यतुरौगखग्दे SHISHA | eee

शब्देकगम्यत्वेन स्मृतितेन्नातस्य न्नापकत्वेनानुवादक- तापक्तेश्च, सा स्मृत्यन्तरादित्यनादिरेव स्मृतिधाराव- WR अन्यथा मनुस्मृतेः पूव्वन्तवापि वेदानुमानं स्यात्‌ स्यां स्मृतिः स्मतिजन्यवाक्वार्थप्रमाजन्य- त्वेन महाजनपरिश्दौतत्वेन प्रमाणमिति नान्धपरः- म्यरा, प्रत्यक्षा स्मृतिः स्मृतिमूलं नानुमिता अ्ननुमि- उपाध्यायाख्ु मनु want यदि भ्रूर्व्वादिवाक्यार्थन्नानं तदा age वेदेकगम्यलमायातमित्यत श्राह, “WITTY शब्देकगम्य- aafa, तथा वेदैकगम्यत्वमेव श्रसिद्धमिति भावः। दतौीयान्तं QAM यन्धः, दूषणान्तरमाह, ‘Waa दतीत्याः | “श्रतुवादकतापत्तेखेति, वेदस्येत्यादिः। नतु वेदमन्तरेण wafzafara कथं भविव्यति वाक्यप्रयोग प्रति वाक्या्थन्नानख्छ हेतुता दित्यतश्राह, सा चेति, प्रलयादिकं aratfa भावः, 'तवापौति नित्यानुमेयतावादिमस्तवेत्ययेः, परोग्ड तस्त्यन्तराभा- वादिति भावः aad area खतावप्रामाण्यश्ङ्ा स्यादि- त्यत श्राह, ‘wal चेति, श्रमाणं मिसितप्रामाण्यकं चेवं AMAA Rana एकषेद कल्यनेव शचौयसौति

बिना मूलामावे क्तिरेव स्यादित्चत are, ‘at चेति, प्रलयादिकं मास्ो्यमिमानः। उत्पादकमुक्षा प्रामाणणन्तापकमप्याह, " महाभनेति, पने स्तिरतोज्िया चेत्‌ तदा किमपराद्धं निल्यालुमेयवेदेनेत्बत wy,

४५०० , वावधिन्तामगकौ

तवेदवत्तस्याननुभावकत्वात्‌। बेदाथस्मृतिताप्रसिदिरु प्रत्यक्षषेदमलस्मृतिसारचर्ययेख धमात्‌ प्रत्य्चवेदाबोधि- तलोभ-न्यायमुलस्मृताविव तान्िकाखां लिङ्गाभासज- न्यवेदमुलत्वथमादा भवन्तौ सम्भवग्भृखान्तराशां वेदमृन्लकत्वं कल्पयति अथ स्मृतिरिव तदेदमुखक- त्वप्रसिद्विरपि महाजनपरि होता va सा वेदमूल- त्वनिबन्धना अविगौतमहाजनपरिहोतवेदमुखत्वप्र-

arey| fagrase मोध्यलात्‌ खतिरपि नित्यारुमेयेव खतिमूख- मस्ित्यत wy, ‘sae चेति, कथं तरिं ae वेद षमाना्यंकव- प्रमिद्धिरिव्यत are, वेदार्थेति, श्रसिद्धिः' ्थवदारः, बेदाबोधितेति वेदाबोधितार्थकेत्यथेः, nage Wears vary, ‘fa- रेति तिला दि शि्गाभाखजन्यवेदमूलकलभ्मा दित्यथंः। भनु महा- लनपरिग्टसोततया बेदमूलकलप्रसिद्धेभंममूलकलत्वकख्यनमश्क्यमि- ति wea, शश्रयेति, “महाजमेति, “परियदहोऽज प्रामाण्छनिश्चयो- बोध्यः, बेदमूखकलेति वेदमूखकत्वथया्ैधौजन्येत्यथैः, “विगतेति, अविगौतबेदमूलकलवप्रसिद्धिलात्‌ महाजनपरिग्टहोतवेदमृखकलपर- fafgara इति Saxe तात्य, waar “श्रविगोतेत्यख् वेयर्था

"प्रचा शेति, afe वेदमूलत्वेन महाजनानां कथं aqufafatcea- eve, ' बेदार्योति, ' साह चर्यखेति प्र्चभ्नमाभिपरायं, ‘wag’ वेद- मूणकल्व्नमादिल्यः, ‹वेदाबोधितल्वः वेदानोधिता्थं तव, ° लिद्धेति विवादा- et सू्तिर्वेदमूका सु्रतित्वात्‌ xfs. भ्नमादित्यथंः ag. afrgita on

शब्दाख्यतुरोयखये उच्छश्प्रब्त्रवादः | ४०६,

सिदित्वात्‌ प्रत्यश्चवेदमुखस्मतो तत््रसिदधिवत्‌, शवं वेदाथताप्रसिदिरपि अन्यथा महाजनपरिश्डौता- नाद्रे वेद्‌-स्मृत्योरपि प्रामाण्यं स्यादिति चेत्‌, युपहस्यादिसमतेस्तत्रसिद्धौ व्यभिचारात्‌, कृप्तलाभा- दित wa aquaria विषारकाणां विप्रतिपक्तेश तच तत्‌प्रसिद्धौ विगानं महाजनानामितिं चेत्‌,

qa, afamad बेदमूखकलभ्रमामधोनतेन गिष्टनिश्चोयमानलं, महाजनपरिग्टहौतलश्च ayaa faey तप्रामाण्कलमिति हेलोभंदः, ‘anfafgafefa, शेदाथेतेति बेदखमानायताप्रशिद्धिरषौत्यचैः, बेदसमानार्थताययाचैधौ जन्येति ओषः wage तकंमाइ, “शन्यये- ति, “शरन्ययेत्यसेव विवरणं “महाजनपरि गरहानादर इति(९। ‘gata पे ut दस्तिनो ager इतिखोभादिमूलकर्तावित्ययेः, तत्‌- असिद्धौ" बेदमूखकलप्रसिद्धौ wee, ‘wala, तत्स्मवात्‌' wen: सतिषम्भवात्‌, “विगानं' बेद्मूखकलप्रमा धो नल्वेन निखचयाभावात्‌ HT

(९) मष्ाजभपरि्टिङोतानादर इत्यत्र मङाजनपरि यमषागादर इति पा- SAE |

कुत इत्यत Ue, सम्मवन्मृलतेति, तथाचासम्भवग्भृलान्तरत्वमेव तजोपाधि- रिग्थामासत्वमेवेति भावः | ‘wafafa वेदाचेताप्रसिजिः वेदार्थ॑त्वनिबन्धना तादृश्वेदाथ॑ताप्रसिडित्वादित्धथेः, खन्धथेग्धस्य विवरं महाननपरि- ae xfs) गणामिसन्धिराड, यपेति, शखसम्भवन्मलान्तरतवमवि- Mag विचारकाणौ ava प्रतिपच्धविषयत्वं वा लिष्विष्टेषयमिग्याश्यङ्गते arta, खभिसन्धिमुद्‌घाटयति, खच्रापोति, तथाच खरूप्रासिडिरिति

aor avafeenteat

अथापि मुलान्तरसम्भवादूविप्रतिपत्तेच विगानमेव तेषां अतण्व स्मृतौनां न्यायमूलत्वं सम्भवति वेद्‌- मुलत्वप्रसिहावपि वेदमूलत्वं। वेदमूखेऽय- fafa कृत्वा स्मृतमहाजनपरिग्रहात्‌ तम्मूलत्वं, वेदम- सेयमिति प्रथमं न्नातुमशक्यत्वात्‌ शक्यत्वं वा किमनु- मानेन वेदमुखत्वेन प्रकारेण महाजनपरिग्रहः, असिहेः, मन्वादिस्मृतित्वेन पृव्वम हाजनपरिग्रहेणोत्त-

` मा श्निख्चयाभावः, "तेषामिति, तथाच हेतुदयमेव ख्रूपासिद्धमिति भावः, भ्रसिद्धावपि' प्रसिद्धिसक््ऽपि। मब्वियं स्रति्वंदमला बेदमू- सेयमिति war महाजनपरिग्टहोतलवादिति तदनुमेय मित्याशद्ते, “न चेति, "परिग्रहः" निखयः, ‘ree’ बेद मूलत्वं | नलु किं बेद मूललवं तदिशेष्यक-बेदमूलतप्रकारकमहाजन मिख्चयवविषयत्व, वेदमूखकलवप्र- कारकमराजननिखय विशेव्यलमां वा, WY वेदमृलकत्ववदेतदि- व्येव प्रथमं given, बिदेति, प्रायम्यं तदनुमानापेचया, तयाच हेतोरशन्नानरूपा सिद्धिरिति भावः wean मनिराक- रोति, ‘a चेति, "परिग्रहः, निखयमूलबेदकल्सखाधक इति गेव, ‘afagicfa, तादृश्रनिखयस्येवाजामभ्युपगमादिति भावः मतु तदसिद्धौ प्रामाश्छनिखयासम्भवेन कथं महाजनानां तदूर्यानुषानं ara | नम चाविगीतत्वं वेदानिषिङत्वमिति नासिद्धिरिति ave) तथा

, सति न्धायादिमूशकसू्रतेखत्रसिदडधौ व्यभिचारापत्तेः वस्ततोऽप्रयोभकल , बोध्यं | qurentafaqgre खड्पासिजिमाष्, चेति ाचारेऽपि

शग्दाख्यतु रोयखष्डे STW: | ४०

Vata परिग्रहादनष्ठानादयुपपक्तेः, रवं होलाकाथ्ा- चारेऽपि वेदलिङ्गनैव कचेव्यतान्नानोपपननेः किं वेदेन, तदधैस्य लिङ्गादेवोपपक्तेः। अविगौताशोकिकतिष- यकश्िष्टाचारस्य वेदमुलत्वदशेनात्‌ वेदानुमाने चावि- गौतशिष्टाचारत्वेम भाजना्ाचारोाऽपि Fee स्यात्‌, बेदं विनापि तत्‌कत्तव्यताधौसम्भवात्‌ तदथै" षेद्‌-

बेदमूलकलत्वभिश्चयादेव प्रामाश्छमिश्चय द्यत आर, "मन्वारौति, मन्वादिस्तितेन पूष्वमहाजनपरिश्ेण सेति हेतुदयं, अत एव कचिश्चकारखम्बशितोऽपि पाठः !उन्तरोरेषां" महानना, ‘aftawey प्रामाश्यनिखयात्‌, wa: सतिवदाकलारोऽपि बेद्‌- मलुमापयतोति व्यवस्थापयति, “एवमिति, “होलाकाथ्याचारेऽपिः' होलाकादिक्वियायामपोत्ययेः, Azhar श्रविगोतशिष्टाचारवि- quan, ‘aquafa anaafeurma azine प्रह स्यादेरित्ययेः, ‘afanafa, “अरविगोतत्वं swacfaeraafae. परदारादिप्रषटक्तौ व्यभिचारादिवारणाय, “welfaand परह्यः ग्टरोतेष्टसाघनताकविषयान्यतवं भोजनाश्चाचारे व्यभिचारवारणशाय,. "जिष्टेति, “शिष्टत्ं दृष्टसाधनतां ग्रे aacfena Waa: व्यभिचारवारणाय, एवमलौ किकलविगरेषएमपि weqat मौरवा- दित्यत श्राह, श्रविगोतेति, ‘a agi वेद दतौति, an.

वेद भूकावं निरस्यति, ‘wafafa, (तुल्यमिति, तचयाचाप्रयोगकात्वमुमयनत्रेति मादः | fexenmaty, ‘equate, “धन्यथा' सापेचस्यापरम्नाग्रतवे, 9

won avaferrrat `

दति इहापि तुल्यं भषार-कन्तव्यतान्‌मानयोरना- दित्वेनाषाराशां कत्व्यत्वानुमानमुलकत्वात्‌ नान्धपर- म्यरा। पूर्व्वानुमानसापेक्षमुलरानुमानमिति सखतन्लप्रमाखमूलकत्वाभावात्‌ सा, व्यात्ि-पञ्चधम्बेता- सत्वेन सर्वेषां खतन्त्रप्रमाशत्वात्‌ नापैतरपामान्धा- Wa wae प्रामाण्यमिति निरपेखत्वं, प्रत्यश्चादे- रपि तथात्वाप्तेः 1 रुतेन विवादपदमाथारा निर- Tenaga: अर विगौतमदहाजनाचारत्वात्‌ प्रत्य- छवेद्मूलाचारवदिति निरस्तं अनुमानस्य निरपेश्ष- भयोणकत्वनिति भावः “नान्धपरन्परेति भममूखकलवश्रेत्ययैः, ‘ar अन्धपरन्परा, qraeed हि WATER फले BAMA प्रमाण मार निरपेषलय, खतोऽपि तत्मामाश्यानधोनप्रामाश्कलं वा, a परतेऽप्यस्लौत्याइ, aaa, सर्म्ववामिति कन्तव्यतासुमानानामि- व्यचेः, अन्धं निरस्यति, ‘nafs, we कन्तव्यताहमानस्य, ‘aaa अस्ातग्थापन्तेरित्यथैः, ब्रत्यच्ादिप्रामाष्छस्यापि w- मानप्रामाश्चाधौनसिद्धिकलादिति भावः। श्रौनलश्ापि दुर्वेष- areata बोध्यं | “शअरविगोतेंति, अभाविमोतलवं बलवद निष्टाननुब- fad, AW इटवाधनमतांशरे aaa, TATED we जममौषे प्रमाणन्तरानपेषलं सखञातग्त्यमिव्यमिप्रायेणाइ, “अनुमानस्सेति,

देवि, qrarct aye वेदमूखकलत्वेन प्रसिदेरित्धथैः | खच प्रामाछिक- प्रधिदिर्विवश्िता प्रसिदिमाचं वा, ये दोषमाङ, “असिदडेरिति खन्धवरा-

WTA उष्डत्रप्रच्छप्नवादः | ५०५

प्रमाणत्वात्‌ प्रमाणमूलत्वेनैव Baerga: निरपेक्ष- त्वस्य गौरवेखाप्रयो जकत्वाच्च | सापेछछत्वेन . प्रमाणता, व्या्यादिप्तत्वात्‌ अन्यथा WATS नैरपे- छस्य वेयर्थ्यात्‌ चाचारे वेदमुलत्वप्रसिहेस्तदनु- मानं, असिः व्यमिचारादन्यथोापपत्तेशच | वेद्‌- मुलत्वेनैव महाजनपरिग्रहात्तथा, हि वेदमूलाऽय-

तथाच बिद साधनमिति भावः। ‘Sat’ श्रविगौतमडहाजमाचार त्वस्य | 'सापेखतेम' पूयेपूर्व्वासुमामसापेशवेन, "न प्रमाणता, उन्तरोत्तरासु- मानस्येति गरष, “MIU? सापेच्य प्रमाणएलाभावे, ‘Acasa’ भिर पेखत्व विशेषणस्य, प्रमा णएपदेनेव सापेच्स्य वारणादिति wa: | चेति अयमाचारो वेदमूलकः वेद मूलकल्वप्रसिद्धलादिति प्रकारेणेवेत्यथैः, “श्रसिद्धेरिति, तादृग्परसिद्धेरेव तेरनभ्यपगमादिति भावः। श्यभि- चारादिति लोभमूखके श्रालारे व्यभिचारादित्ययंः, श्रप्रयोजकता- मार, “श्रन्ययेति न्यायादिमूलकाचारवदन्ययो पपन्तेने बेदमूलतमि- ae "परि यात्‌" निश्चयात्‌, ‘aur’ बेदमूललं, पूर्वे wa: खति- qaa cafes ददादीनामाचारष्यले दति a diane | yi वेदान्नामद्पासिद्धिमाह, हौति। भनु वेदमूखकलत्वप्रकारक-

सिदधेरिखथैः, ष्ये are, * चभिचारादिति, न्धायादिमूलकाचार इति Ra: | “अन्येति, न्यायादिमूलकाचार्वनग्मृलान्तरसम्भवात्तयाचाप्रयोगकलत्व- मिति भावः पून्ववदसिदिमाद, “न Wife | “न चेति वेदमूलत्वेन महाजन-

ufexWiatsafala went महाजनपरिग्रह माचस्येव हेतुत्वेऽधिकस्य यर्थ 64

vod वत्वचिन्तामणौ

मिति रत्वा महाजनानां तत्परिम्रहः, बेद्मुशत्वस्य प्रथमं च्रातुमशक्यत्वाच्छवधत्वे वा किमनुमानेन। बेदमूलत्वेन्ैव महाजनपरिखहोतेाऽयमाचार इति ननात्वा तच महाजनपरिग्रहः, शर वादसिदधेख पूवव मदहाजनपरिग्रहाहैवेत्षोल्तरेषां परिग्रहादनुष्ठानाप- क्तेः | ताहशस्मत्याचारयोयंदमूलत्वेन व्याप्ेवेदसिदि-

[

मदहाजमनिखय विषयतेन महाजननिदखयो aT इत्यत श्राह, ने कति, “मडाजनपरि गरदः, परिग्रहे हेतुरिति गेषः, "गौरवादिति मूलभतभेदकख्यने गौरवादित्यथैः, तथाचाप्रयोजकलमिति भावः। afer वेदमूखलेन महाजनपरिग्टहो तलच्यव waa दितौय- मशाजनपरि यशस्य वे यर्थ्या दित्यं cars: | ‘afazgfa तादृशनिखयस्येवा धिद्धेरित्यथेः गतु महाजन- ्रडन्तामेव तदिषयवेन BREA श्यात्‌ सेव कथं BIAS करन्तव्यतान्नानाभावादित्यत BIE, ‘Wala पूयेपूव्वमहाजनाचार- विययवनेषेव्यथैः, “उन्तरोत्तरेषां परिग्डादिति उन्तरोन्तरमहा- लनानां कन्त॑व्यता नि्चयादित्यथः, ‘ade safe "तादृशेति श्रविनौतादिष्टपेत्ययंः। यद्चपि श्राचारस्यले दृदमाश्दधित तयापि

त्वादित्यर्थः, वेदमूशत्वकल्यने गौरवं तथाचाप्रयोगकत्वमित्यन्ये। खसिदड- रिति Jaques विनापि परिग्रडोपपत्तक्तद्घटितहेतोर सिद्धेरिघयथेः | वदेव weata, ‘tafe, ्व॑शरह्ितमप्युपाधिदानाय age, ° वादृ्ेति। प्यैपव्करतेरत्तरोरख्तिरिवादिकम उक्त ददानौमाचासव्‌ इतिः

WIA उन्छ्नप्रष्डन्नवादः | ५०७

रिति चेत्‌, न, शरसम्भव्भृलान्तरत्वस्योपाधित्वात्‌। अन्यथा लेोभ-न्यायमू लस्मूतेरपि वेदमुलत्वप्रसङ्गः | अस्तु वा स्पृत्याचारयारनादित्व॑। चाचारात्‌ स्मृतिः स्मृतेराचार इत्यन्धपरम्यरा मलबरूतप्रमाणाभावात्‌ इति वाच्यं स्मृत्याचारयेरभयारपि प्रमाणत्वात्‌ | अन्यथा ततो वेदानुमानमपौति | उश्यते प्रलये पूव्वस्मरत्याचारयो रुच्छेदात्‌ AST नित्यसर्बन्तश्वरप्र- णौतवेद्मूखत्वं स्मृत्याचारयोः | WII मृलाभावे-

दूषण्णन्तरदानाय तजाणुद्भावितमिति wa श्रसस्भवदिति, मब्विदं प्रत्यच्वेदमूलकर्रतिमूणके साध्यायापकं az- तदुपजो विप्रमाणातिरिक्रप्रमाणएमूलकलम्यैः, साधनव्यापकलादिति, मेवं, साधनव्यापकतासंश्रयेन सन्दिग्धोपापिलसन्भवात्‌ प्रत्यक्वेद- मूलकत्वं वा तस्यार्थः, ‘WAI रलौ किकलवं विहाय श्रविनोत- मदहाजनपरिग्टहोतसछतिलरेन हेतु दत्ययेः, wasatencac- wfaftfa yagn इ्दानोमाचारात्‌ सतिः सतेराचार इत्या, ‘ag वेति नेयायिकः समाधत्ते, “प्रलय दति, बेदमूशलमिति वेद जन्यन्नानजन्यलमित्यथेः, aay सूत्याचारान्तरयोरभावादिति भावः। ननु मन्वादौनां पूव्वेसर्गातुश्धलतन्तद यैस्मरणदेवाषारादे-

सू्मतेराचार Tare, ^ स्तु वेति, "उच्छेदादिति, नित्यानुमेयवेदवारिमते me बोध्यं मन्वादोनामिति aura त्मणीतस््मतिरेव तभ्भूलमस्तु किं वेदेनेत्य्ः।

५०८ | तत्वचिन्तामणौ

नान्धपरम्यराप्रसङ्जः। मम्बादोनामतोद्धिया्ै- दर्भित्व, तदुपायश्रवणादेस्तदानौमभावात्‌ | पूव्वसगे- सिद्धस ्मन्वादय एव ते इति चेत्‌, न, प्रमाखाभा- थात्‌। सत्याचारयोः प्रमाणमृलत्वमेव तत्कल्यकमिति चेत्‌, न, प्रतिसगे तेषामन्यान्यत्वकषूपने गारवमित्ये कस्यैव नित्यसर्ववनस्य कल्पनात्‌ | GAT रव तत््रणौताः, तासां मन्बादिकलेकत्वेन स्मृतौ बोधनात्‌

aqua: किं Aaa We, “श्रन्ययेति सर्गादौ आचारादिजनक- aaa बेदलन्यलाभावे इत्यर्थः, मूलाभावेनान्धपरन्रेति तस्िन्लन्नाते अनाश्वासप्रसङ्ग wae, वेदमूलकत्व-ख्दतिमूखकल- गिष्टाचारमूलकलया दिजन्नानानामेव विश्वाषमूललादिति भावः मन्वादीनामिति, तथाच प्रत्यच्मूललात्‌ तसम्‌ wrt नाप्रा- माश्छग्रङेति wat ूल्वैसर्गेति पूल्वैसरगषन्वैश्चत-वभ्तमानयोगज- धम्मंजनित विश्वविषयसाचात्कारवन्त दत्ययेः, श्रमाणाभावादिति मन्वादीनां सर्गे इति te: तेषां मन्वादौ, “नित्य- aqyata नित्यसव्वं विषयकश्ञामवतः कल्यमा दित्ययंः, तदषनारेव सर्गादौ खत्याचाराविति भावः। तत्मणौताः' शश्वरप्रणौताः, तथाच किं वेदेनेति भावः सताविति “ant घश्मश्राख्ाण्णं मनु-

4 urate, aaa मन्वादोरां wea ers fa ए्ाग्दसन्नं दिषयकनक्लान- बत्चविषयेति भावः। (तासामिति, “इधताविति बक्कारो धम्मद्चाखराबां

म्याख्यतुरौयखण्डे उच्छत्रप्रच्डन्न वादः | ५०९

स्मृतावेव स्मृतौनां बेदमूलत्वस्मरणाच्च | रवश्च स्मृत्या- चारयामेहाजनपरिग्रहादेदमुलत्वसाधकमपि भग- वति प्रमाणं अतरव “प्रतिमन्बन्तरञ्चेषा श्रुतिरन्या विधीयते" इत्यागमोऽपि रवण्ड पूर्वव प्रत्यक्षमूलायेव BAAN, भगे कालक्रमेणायुरारोग्य-बल-अहा- ग्रण-धारणादिशक्ररहरहरपचौयमानत्वात्‌ तदध्य- यनविच्छेदेन WAAAY सत्या चाराभ्यामेव कत्त-

विष्णु-यंमोऽङ्गिराः” | इत्य) दिखता वित्यथेः, ‘aaraafa “यः क- faq aafegal मनुना परिकौत्तितः। सर्ग्वोऽभिहितो ae” ware सता वित्थः, भगवतोति परम्परया भगवति प्रमाणएमि- त्यथः, श्रतएवेति यत एव प्रलये विच्छेदे भगवता aq: प्रणयति अतएवेत्ययेः, “उपहर ति, “एवश्चेति, श्रटत्निरिति, श्रासुपूव्यादि- fafuse वेदस्यानुमातुमशक्यत्वात्‌ तस्याननुभावकलादिति भावः। मन्विदानौमाचारशिक्रकश्चानादेव प्रटत्तिस्तदिं सर्गादावपि तया-

मयुविष्युयंमोऽङ्किराः”। rants wanted, Maat “a कचित्‌ कस्यचिदम्मी ममुमा सम्प्कौ सितः | सन्वाऽभिडहितो FZ” दत्यादावि- ma: | ^शअतर्वेति यतः सख््ाचारदेरौश्वगप्रणोतोच्छिन्रवेदमूलत्वं तत- Tae: | उपसंहरति, ‘aaa, ‘wefafels, शवानुपू्थादिविधि्वे्य- स्यानुमातुमश््छत्वेम तस्याननुमावकत्वादिति ara | ‘awsamitfa, wa- atrnga वल्तुत शृश्वराचारसम्भवेऽपि तथ खेरसाधनतारूपसाध्यप्रसि- QUAM वृष्टान्तमूलव्याष्या माचारान्तरश्सम्भव EATS! |

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aaafuna wef) नन्वेवं स्मृतिरस्तु agra मज्गलाद्याचारल्वौश्वरादेव भविष्यति पट-लिष्यादि- सम्यृदायवदिति चेत्‌, न, बहव्यापारघरितस्य तत्तदा- चारस्य गुरुत्वेन ("मङ्गलमाष्रेदिन्या दिवाक्वस्येव ला- धवेन कल्पनात्‌ | मङ्गलादिपदशक्तिग्रहाथेमा- चार MIA ईति वाच्यं सखर्गादिपदवद्वाक्धाधें त- दुपपन्तेः | अतरव यज वचनमाधात्‌ परप्रतिपत्तिस्तव fafa uxa, ‘anafafa, "मङ्गलाद्याचारः' श्राद्यमङ्गलावारः, "शरेति श्शररस्याचारादिव्यथः, 'वट-क्िष्यादौति, यद्यपि qwia- TITAS IIT सम्भवति तथा्यदृष्टायेकसपतेवंदमूलक- arava wat नाश्रद्धितं "बङव्यापारेति वाक्यापेच्या बड़- तरकायादिग्यापारसाध्यस्येव्ययैः, "वत्तदाचारस्येति पूजादि रूपमङ्ग- लादिक्रियाया इत्यथैः, "मङ्गलमिति, तजानुपू्वौ विगेषोऽविवदितः तदतुमानस्याषम्भवात्‌, शशरक्रियहायमिति, शवर स्येव nate: प्रयोजकं परिग्टद्य प्रथमं श्रक्ियाइकलादिति भावः। ‘a@at- दिपदवदिति, an खर्गादिपदश्य “यन्न दुःखेन सभ्िज्लमित्या- दिवाक्यस्थष्य श्रङ्गिग्रहस्तथा मङ्गल्ादिपदश्यापि तदुपपत्तेरिति, तथाच वाक्यघरकौश्तख्छ शक्तिग्रहः प्रकारा्तरादिति ara: मङ्गशपदं भति-स्तुव्यादिपर, “श्रवएषेति यत एव STATA Ga

(९) (मङ्कलमा्वरे दिति देवताल्तुल्ादि कमाचरेदित्यं,, तदपि aerat- fim, वस्तुत ददानौमावुपृष्येनिश्वय णव वेदतवेनेव तदनुमानमिति | ' खत रखवेति ante STATE शरत्वादेवेध्थंः। गग्वस्तु वाकस्य

णब्दाख्यतु खेय खणे SBA | ५९२९

नाषारः परौषकाणां, तस्य वेदत्वं नेश्वरप्रणौतत्वेन शक्तिग्रहणाथैतदचने aire, किन्तु ताहशा- चारस्य बेदमुलत्वनियमादिति। स्यादेतत्‌, प्रलये सत्येवमेव तत्‌ खव तु नास्ति प्रमाणाभावात्‌ इति

qa ayaa: “परौककाणाः पण्डितानां मसु सर्गादौ खल्या चारान्यथालुपपत्या yeaa सिद्धं तस्य ted कुतः ईै प्रणोततस्य शक्रियदार्यतदकलने व्यभिचारादित्यत श्राह, ‘aw चेति, तदचन दति घटमानयेत्यादितदाक्छ इत्यथः, “किन्विति, ददमुपलचणं तस्य ईश्वर भ्नानजन्यत्वादेव श्ब्दजन्यवाक्या यन्ना नजन्यत्वं दृष्टायेकलत्वाभावारेव सत्यन्तदलं तथाच किमपर sarge aca दृत्यादि द्रष्टव्यं (प्रलये सतोति काले काय्येद्रवयाधिकरणएभेरे षतो- त्यथः, “एवमेतदिति, “एतत्‌” अ्रष्टकादिबोधक खनत्यादिकं, "एवं" बे- दमूलमित्ययेः, “ख एव' काले काय्यद्रव्याधिकरणभेद एव, यथाश्रुते

meat तथापि तस्य वेदत्व कुत इत्यत श्चा, तस्य चेति, ‘agar’ घट- मागयेत्यादौ, किन्त्विति चाचप्रयोगकतवं तथाच श्क्तियाहक- तदचनवत्‌ तन्भुल-तडाक्धस्यापि वेदत्वं माछ्लिति वां | शग्द-तदुपजौवौ. व्यादिलस्णाक्राम्तत्वेन तस्य॒ वेदत्वादन्ययाश्चमेधेन यनेतेत्धादेरप्यवेदत्व- शङ्खा स्यादिति मावः। उपोदुघातसङ्गतिमाइ, “स्यादेतदिति, "कालेवयुष- aaa कालोपाधि-दिद्रुपाध्याणिकमपि बोध्यं | रतश्च घटप्रागभावस्याकाशच- ढकत्तितया sufat मा भूदिति बाधस्ोरणाय, तेन कार्द्रव्यागधिकरण- तवेव काय्द्व्याधिकरणभिन्नत्वस्य fahren कपालस्यातथात्वात्‌ परश्-

५९२ तत्वचिन्तामणौ

Aq, न, काल-कपालान्याहत्तिघट प्रागभावः कायेद्र- व्यानाधाराधारः कायैद्रव्यानधिकरणकाय्थाधिकरण-

मयय

सिद्यासिद्धिगष्याघातात्‌ तथाच कालो काय्यद्रव्यानाभारः तदन्ता- प्रमित्यविषयत्ादिति फलितं we सुखादि सिद्धिमाह, काल कपान्येति, का्द्रव्यानाधारत्ं कास्द्रव्यानभिकरण्डन्तिलं तथाच कालादेः सौरालोकादिकायद्रव्याधारत्वसामान्याभाषेन तद्‌टत्ति-

धम्भताबकलेन तावृश्चकालसिडिरिति। दिश्राचन्तरं तादृद्कालासिडधौ दिश्रोऽपि वाद्रप्यासिदधे, Wlerit कापि दिक्‌ सकलकाय्र्मून्या, तथाच तादृद्रकालावच्डेदकवेगेव दिष्योऽपि वाद्रुप्यसिद्धिरिति वत्‌खिडिर- waka भूतलादिठत्तितवेगार्यन्तर, घटप्रागमावाधिकरणणेभूतभतलादेः कायैदव्याधिकर यत्वनियमात्‌ प्रागभावस्य प्रतियो गिसमानदेग्रत्वात्‌ | कालस्यापि कायैद्रव्याधिकरयत्वेन तद्धित्रत्वामावाद्वाध इति वाच्यं शवखण्डस्य तथातऽप्येककालोपाधिः तथालेन बाधामावात्‌ | घटप्रागमावः रतत्कालोग- घटस्य प्रागभावः तेन इत्तप्रलयसिडिः, खतरख्व प्रागित्धपि, एकदेव सर्न्- wait दति मतेनेदं afer रतदुत्रस्चाणडङत्तित्वं कायदे fattaufaarg: | अतणव खणप्रलयसिडये दितौयसाध्ये कार्य्याधिकरण- पदं तसैव ख्डध्रलयपदार्च॑तवात्‌ यत्त॒ मद्ाप्रलयेनार्ान्तरवारणाय तदिति, तन्न, प्रागभावस्य महाप्रलयढत्तित्वाभावादेव तदसम्भवात्‌, का- ग्यीधिकरणत्वश्च भावकार्ग्याधिकरणत्वं, खमावल्वादिति | afae कायै बर्यागधिकरणान्योन्धामावे erate खन्योन्धाभावस्य प्रतियोगिवाव- ष्ेदकासमानाधिकरणत्वेन ay साध्या सक््वादिति चेत्‌, म, तस्यापि wre ब्ष्यानधिकरये सिषाधयिषितकाले सत्वेन पश्चसमत्वात्‌ खन्या निन्बल- शथाघातात्‌ | |

WATTAGE उण्डत्नप्रच्छघ्रवादः | ४९

लमादायार्थान्तरं खादिति तद्टत्तिले बाधस्फोरणाच we काल- कपालान्याटत्तिरि ति, काल-कपालान्याटत्तिवघ्च खप्रतियोगिसम- वायिनि इन्तावपि भाश्रयाशिद्धिः। यद्यपि कपालस्यापि कालोपा- धितया कालान्याृन्तोत्यावण्यकं, तथापि wee एव काणोपाधिरि- ति निष्कुष्टमतेनेदं, कपालपद श्च खप्रतियो गिसमवाचिपर, तेनो- दासौनतादृश्रकपालान्तर धिद्या नार्यान्तर चरटष्वंसप्रागभावे बाध- वारणाय Bad, घटप्रागभावत्ावच्छरेन काण्द्रव्यानधि- atusfaafafgeger तेन भाविप्रलयसिद्या मार्थान्तरः, “ठत्त- प्रलयसाधना दित्यनलुपदं वद्छयमाणएतया श्रस्यालुमानस्य ठत्तप्रलय- साधकलात्‌, खण्डप्रलये काय्यैशणादि स्वाश्महाप्रलये प्रागभावा- सत्वात्‌ खमते बाधवारणाय साध्ये द्रव्यपदं चेवमपि तदानीं AQUA काय्यद्र्यसत्वाद्‌ बाधः युगपत्‌ सव्वघरह्माण्डश्रलयाभावा- दिति वाच्यं। area एतट्‌ब्रह्माष्डोयल्वेन विशेषण्णत्‌। बस्हत- ददानो ब्रह्माण्डान्तरसत्वे मानमेव मास्तौत्यनेनेव तदभावस्यापि साधनात्‌ | काय्यद्व्यामधिकर एतश्च सम्बन्धसामान्येन बोध्यं, अन्यथा संयोगेन समवायेन वा अनधिकरणएलोक्तौ शटिकाल्लौनस्यन्दा चा- त्ककाशटत्तितया सिद्धसाधनं, कालिकसम्बन्धेन तदुक्रौ लन्ध- aaa काणोपाधिलानङ्गोकटेमते कपाशषन्तितया बिद्धसाधना- पत्तेः | उत्तिवश्च प्रतिथो गिषमवाभथिनि यादृ ग्रविग्रेषणता विषेश प्रागभावस्तादश्र विगेषणएता-कालिकान्यतरषभ्बन्धेन aati, अन्यथा कालिकषाबन्सेन ठल्तिलाभिधाने ada प्रागसिद्धेः, संयोग समवा-

anat तदमिधाने प्रागभावस्य Tae बाधापकेः, सम्नन्धसा मान्येन 65

gro वत्वचिन्तामकौ

तद भिधाने विगेषणता विगेषेणाकाश्रादिष्तितमादायार्चान्तरता- पत्तेः ययो क्वान्यतर सम्बन्धन काल-कपालान्या भिलसेव Tafa weary | न. चेवमपि कथं प्रशयसिद्धिरिति वाच्यं कपा काय्यदरेव्यामभिकरणभिशतवमावात्‌ परधग्मताबलेम काशसेव ता- eve fog: | कालभिन्दिग्‌ विगेषसिद्यार्थान्तरः, तदन्बाटक्ति- त्वविशेषणेनेव तद्वारणादिति was महाम्रखयपृम्वेवरढत्तिल- मादायारथान्तरं प्रलये द्रव्यणादौनां करमेण नाग्राभ्युपगमात्‌ तत्‌- पुव्वेखणस्यापि. काय्यद्रव्याभधिकरणलात्‌ प्रागभावस्त तद्‌- भयट््तित्वबाधादेव नार्थान्रमिति वाच्यं gear तश्याविना- भ्रिनोऽभ्युपगमादित्यखरषात्‌ षाध्यान्नरमाह, “काद्र येति, उह़- रौत्या. महाप्रलय तत्पुन्बवणद्चादाय श्र्यामरवारणाय "कार्ययाधि- करणेति, काय्येपद श्च अविनश्यदवस्यविनाश्चिपर, तेन wd विनश्व- दवख्गृणएादिकं वादाय तरोषतादख् गेषं दिंतदिश्ावसेयं।

frag प्रागभावस्य महाम्रज्य-तत्पव्वेलणट न्िलबाधादेव Seay महाप्रलय -तत्पुम्वेणमादाय Mate किन्तु काय्यै- द्रवयानधिकरणत्वविशिष्टकार्य्याधिकर णत्वीव warwae खण्ड - प्रलयत्वरूपतया तत्साधनाय दितोयसाध्याऽभिधानमित्याह्ः (४ तदसत्‌ ` मागभावस्छ मरा प्रलय-तत्पवं्चणदत्तिने लाघवात्‌ काय्यद्रव्यामधिकर एत्वे सति प्रामभावलस्येव खण्डप्रलयलसूपतयाः धयोक्रस्य खष्डप्रशयत्वाना्मकलादिति |

` (४ तस्मादुक्घरूपस्यावान्तरपलयपदा्थंतया तत्‌ साधनाय विशिषं प्रति- ~ $ A OMT. कायति नक्वमिधयक्तं मिखेः |

श्ब्दाख्यतु रीयखखे उच्छ्रप्रष्छत्नवादः | ४९४

ठत्तिवौ अभावत्वात्‌ आकाशटच्यन्धोन्याभाववदिति

काययद्रव्यानधिकरणान्योन्याभावादौ काथ्द्रग्यामधिकर- त्वप्रमा विेष्यलाधिकरणान्योन्याभावादौ व्यभिचार इति arey | प्रलयकालेऽपि कालिकषन्बन्ेन तिषामन्योन्याभावषत्वात्‌ दे तरिक- विशेषणता विगरेषेेव प्रतियो गितावच्छेद कान्योन्याभावयो विरोधात्‌ | भन दितौयसाध्ये महाप्रलयात्मकध्वंसे महाप्रखयाग्यवहितयपृन्वै- afaqida व्यभिचार शति are एतत्कालोनाभावलश्य तच हेतुलात्‌ तयते Bees wwe aT रादिति वाच्यं खमते तद्भावात्‌ “श्राकारेति, साध्यघत्व- VIMAR RIT, तशोपलशणं wars awe माववदिति दृषटान्तान्तरं बोधयं। cae सौरालोकादि- काय्ेद्रव्याधारतया दृष्टान्तासिद्धिरिति वाच्यं तथा प्रतौत्यभावेन तस्य तदाधारवासिद्धः काय्येद्रव्यक्षयो गितामाजेण ear वेपरोौत्यस्यापि दुरव्वारलापत्तेरिति भावः “टन्तप्रशयसाधनादिति SAAMI टन्लप्रलयसाधनादित्ययेः, चटप्रागभावलावच्छेदेन areata sare विनातुपपस्या qaqa बलाद्‌ ठकलप्रलयवकूपेण afeg:, ट्तलश्च नेतत्सगाव्यवहितपूलवै- वज्निवमपि तु तत्गंपू्वेवन्तिलमाचं तेन चघटप्रागभावलावच्छेदेन टृन्तप्रणयटत्तिलं a बाधितमिति भावः। भाविषगोंयचटप्रागभा- स्यपि टन्तप्रलयमादायेव काय्यद्रव्यानधिकरणएटन्ित्वसम्भवेन घट- प्रागभावपचकामुमानान्न भविय्यत्‌प्रलयलेन सिद्धिसम्भव इत्यतो-

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उत्तप्रलयसाधनात्‌ | waa घटध्वंसं पक्तैरत्या- गामिप्रलयसाधनं। यदा घटः कायद्रव्यानधिकरण-

we पचलोहत्य भा विप्रलयं साधयति, “एवमिति, we काय दव्यागधिकर णकार्य्या धिकरणटत्तित्वं साध्य, प्रथमसाप्ये महाप्रलये मार्यान्तरापन्तेः Te Beas तत्कालौनघटपर, wit चरम- ध्वंसे बाधो मवा इन्तप्रलयेऽर्वान्तर चेवमपि महा प्रखयपूर्यखरेन सिद्कशाधनं प्रख्ये उदव्यणदीनां क्रमेण माशाभ्वपगमादिति वाच्यं का्याधिकरणलं डि अविनष्दवस् विनश्वभिकरणलवं ब्रह्माछद्ेलवदृ्टाधिकरण्लरं वा चेवं आरकाशद्त्यन्योन्याभावस् कथं दृष्टान्तं आाकाश्र्यादृष्टाधिकरशलराभावादिति वाच्यं | अदु- छाधिकरणान्यख्वापि net इृष्टान्तलसम्भवात्‌ एतत्काल्लौनपदा्ं- प्रतियोगिकलश्च हेतौ विशेषणं देयं अन्यया wae महा- प्रणयाव्यवडहितसरगात्पन्नघरष्वंसे व्यभिचारापकनेरिति ध्येयं , बा गामिप्रलयसाघधनमिति भाविप्रजयलेनम भाविप्रजलयसाधनममिल्यर्थः, एतत्कालोनघटष्वंसे काय्यदरग्यानधिकरण्कार्य्यायिकरणटन्तिलश्य fared विनातुपपत्या TATE भाविप्रल- यसिद्धिरिति भावः। प्रकारान्तरेणागामिप्रजयं साधयति, “वदेति,

(९) चेवमन्योन्याभावस्य प्रतियो गितावच्ेदकविरोधनियमभक्कापत्तिः, कालविशेषः कायेद्रद्यानधिकरयमिनच्न दति प्रतौ्मावेन देवया aq तदनधिकरयत्वेऽपि rt कार्यंनरदयानधिकरणान्योन्यामाव इति wien कालत्वेन तस्य तदधिकरदत्वाभ्युपग मात्‌ | TATA कालान्धोन्धामावस्य नि

शन्दाख्यतुरोौ यखण्े SHAT BAT | ४९७

कायाधिकरणत्तिध्वं सप्रतिथागौ कायत्वाण्छब्दवत्‌

(घटः एतत्कालौमघटः, wat महाप्रलयाव्यवहितसगे टन्तिघटे बाधः, कालकपालान्यड्निष्वंसाप्रतियो गिवेमापि घटो विगेषणोधः तेन दिगाकाश्रादिषन्तिलेम मार्थान्तर, महाप्रलयेनार्यान्तरवारण्णय साध्ये काय्याधिकरणेति, "काय्येपदमविनश्छदवस्यविना शिकाय्येपर, तेन॒ विनश्वदवश्यकाय्येमाराय तहोषतादवख्छछे, वा महा- प्रलयाव्यवहितप्राक्वाशमादायार्थान्तर, तत्छमबेतगुणमाश्ाद्ृष्टादि- भाश्रयोयु गदेव स्तौ कारेण तत्काणस्या विनश्यदवस्तेनाधिकरणखा- wary प्रागभावोपादामेन भाविप्रशयसिद्धिरतो श््वंसेतौति भावः "काययैलवादिति एतत्कालोमभावकाय्थेला दित्यथेः, तेन we महाप्रलयाव्यवहितगौ यकार्थं व्यभिचारः| श्रतोतानागत-

तया कालङत्तित्वेऽपि देशतया काणो माधिकरणं कालः कालमित्र दति प्रतोत्यापन्तेः गग्वेतदेव कथमिति चेत्‌, भ, Gana त्तिमेदेन तथा- भ्युपगमादित्याङः | दितौयसाध्ये त्वमावत्वमनाद्यमावत्वमतर्वान्योन्यामावत्व- प्यन्तमुक्त दृष्टान्ते, तेन मशाप्रलयाष्यवह्ि तपदार्च॑ध्वंसे व्यभिचारः | केचित्तु णतत्‌कौलोनामावत्वादित्यच arrears: चाकाशस्य सौरा- लोकादिकाय्द्रश्चाधारतया दृष्टान्तासिदिरिति aver) तथा प्रतीत्यमावेन तस्य तदधिकरणत्वानुपपक्ते, संयो गितामाचेण तथाते वैपरीत्यापत्तेरिति भावः | प्रसङ्गादाह, शधटध्वं समिति, रतत्‌कालोगदरव्यमाश्रकालेना- रथान्तर द्रब्यद्ुणादौनां क्रमेण माग्रादिति वाच्यं उथ्छकालोपाधिभिन्नत्येन कार्य्या धिकरणत्वस्य विशेषणात्‌ युगपदेव waa द्र्न्ये महा- प्रलयाव्यवदितरृष्टिकाग्यध्वंसे श्यभिचारः, रतत्‌कालोनाभावल्वादित्य्र तात्पर्यात्‌ | “कार्येति, पूव्ववन्र माप्रलयपूव्व्तयोगार्यान्तर, (काग्यैलाव्‌?

१९८ _ तस्वचिन्तामणौ `

यदा काय्यद्रव्यत्वं कायद्रव्यानधिकरणकायधाधिकरण- खत्तिष्वसप्रतियेगिहत्ति कायमाबहन्नित्वात्‌ शब्द्त्व-

खण्डनमानं साधयति, ‘Magee, काय्यैलमाचस्ध पचते शम्दरन्तिवमादाय सिद्धसाधममतो ‘cad, खरूपासिद्धिवारणय ‘RTA, पू्वैवदाकाश्रादिमादायार्थान्तरवारण्टाय समानद्रग्यखम- वायिभिन्नटन्तिध्वंसप्रतियोगिलेन काथद्र्यल fered, साथे मदाप्रशयमादायार्यान्तरवार ष्णाय कार्य्याधिकरणेति, काय्यैपदस्च, अविगश्यदवद्धविनागिपरं, तेन ध्वंखमादाय TELAT TTS, Hat महाप्रलयाव्यवहिततयाकाय्यैमादायार्यानतर, "काय॑माचेति, wre व्यभिारवारणाय ‘Aras arcadia | गभ waa व्यभिचारः "काय्येपदस्य भावकार्यपरले माच्रपदतैयार्थ्यापत्त- रिति awe तादाक्येन waft सतौत्थनेम विगेषणात्‌ तथाच wea a व्यभिचारः, वा मानपदवेयरथं wars ध्व॑सान्यतरवे ष्वंसाप्रतियो गिलरूपानन्तले व्यभिचारवारकलात्‌, महाप्रशयाव्यवदितसर्मो काययमाचटृत्तौ तत्तत्‌क्रियाले तादृशादृष्ट- लादिनातौ व्यभिचारवारणाय ददानोन्तनेति भावविगेषणं, “शरब्द- त्वदिति खनये, wad सुखलादिकं दृष्टान्तः aga ade

ददागोन्तनमावकाय्यत्वात्‌, रुतेन मष्ाप्रलयाव्यवह्ितकार्ये ध्वंसे x afer: | शब्दवदिति ददागौन्तनश्रम्दवदित्यथंः, “कायब्यत्वमिति, enti wianufat, ताकृ्रस्तखादित्तितनार्थान्तरवारयाय पक्त RAN, “काय्येमाचेति | मनु ध्वं सत्वे व्यभिचार, RTs मावका्म-

e

शब्दाख्यतुरो यख उच्छन्नप्रश्छन्नवादः | Ure

वत्‌। यदा रककारगैनाः सर्ववे परमाणवः समग्रोपदेय- प्रबन्धश्रन्या WTR नष्टपवनारम्भकपरमाणु-

नित्यलात्‌ "परमाणव दति, wa परमाणल्वे नित्यष्रथिवोलादि- कमेव a तु मित्याणपरिमाणवल्नं मोमांखकमते आश्रयासिद्धः. तेरणपरिमाणनभ्यपगमात्‌ खोपादेयद्रव्याप्रसिद्धलेनां रतः साध्या ~ प्रसिद्यापत्तेशच “समयेति यावत्‌खमवेतप्रबन्धदन्या इत्यथः, ‘Qe. न्यव्मत्यम्ताभावः, WT त्कि्चित्‌खमवेतप्रबन्धप्रतियो गिकाभाव- ; मादाय सिद्धसाधनवारणाय समयेति समवेतसामान्याभावला-. भाय प्रणयेऽपि JUS: VT: WAITS काय्यै-. माचपरल्वादिति are) समवेतं .काय्ये प्रबन्नातौति aor प्रबन्धपदस्य द्रव्यपरलात्‌, समवायसम्बन्धावच्छिन्तप्रतियो गिकाभाव-; लाभाय समवेतेति सम्बन्धाम्तरावद्िन्नाभावमादाय fag-. साधममिति ध्येयं श्रारमकलात्‌ द्रव्यसमवायिकारणतावच्छेद्‌-. `

परः, माधपदगरयर्थया पत्तेः | भावदततित्वे सति काैटत्तित्मर्थस्तयाचा- ama भिच्चास्वारणाय माचपदमिति वायं | तथापि चरमक्ियात्वादौः व्यभिचारापत्तेरिति Vere मातपदस्य AMATI कार्ययपदस्य भाव. डत्तिविभाभको पाध्यवच्छिन्नपर्येन भावरत्तिविभाजकोपाध्यवष्डिन्रयावत्‌- काय्ेषत्तित्वादित्य्चः, तेन ates | श्यं विगरेषणत्वं विरेष्यमाचश्च खरूपासिङ्मिति वाच्यं विकाश्चकविग्रेषे तस्यादोषत्वात्‌ नौोलघमवत्‌ agranfatan खव तथात्वात्‌ दति यसु काण्यतावच्छैदक धम्भत्वादित्यथेः दति, am, महाप्रलयाश्यवहितरूष्टिसम्बन्धिचेचप्रमवत्वा्यनुमापकशब्द- ठत्तिजातौ द्यभिचारापत्तेः। aaa कार्णदरव्यागधिकरणमादाय

yReo तस्वचिन्तामयौ

वत्‌। सव्व पञछतावच्छेदकावच्छिख्रं साध्यं प्रतौयते इति THATS शून्यता लभ्यते पवनपरमाख्‌- नामपि पक्षत्वेनां शतः सिद्धसाधनम्‌, पक्षधम्मेतावललभ्य-

कावच्छिननलवात्‌ इव्यलादिति यावत्‌ साध्यस्य केवलान्वयि- तया प्रमेयलादित्येव कथं हतमिति वाच्यं तष्यापि Yaar लात्‌ महाप्रलयमादायार्थाम्तर, श्रदृष्टाधिकरणलेन प्ता- वच्छेदककालविगेषण्णत्‌, कालपदश्च खवृलकालपरं तेन तादृश अणमाजसिद्या mulatta मन्तव्यं ‘aati, बाधाद्यनव- तारदश्राथामिति शेषः “एककाले एककालावच्डेदेन, “पवम- परमाणम" गष्टपवनारम्भकपर माणुनां, ‘gua: सिद्धसाधनमिति, तस्य Ternary sawed प्रलयासिद्धिरिवि भावः उदेश्ठ- प्रतोतेरसिद्धर्ना शतः सिद्धषाधानमित्याह, ‘wf एककालावच्डि- शनसायेत्यधेः तु मा aa सिद्धसाधनं तथापि कथं ae दृष्टा-

तत्साध्यसक्वमिति ar शब्दवदुघटादावपि कुम्भक्रारादिविगेषपयोव्य- भातिसम्भवेन at तयापि व्यभिचारात्‌ केचिन अनादितावष्छेदक- wnat, खनादित्वद्च खलनातोयध्वं घय्याप्यप्रागमावप्रतियोगिल- भिव्याङः “रककालोगा दति, स्प वन्त इत्यपि पृरणोयं, न्यथा मगति व्स्प्भरवति बाधापत्तेः, ‘Satara खोपादेयग्रव्यपरत्वादन्यथा बाधा- पत्तः quan न्योपादेयमून्यत्वामावाष्च, WaT कादाचित्‌- कामावपरत्वात्‌; तरव “चखारम्भकत्वादिति हेतुक, अन्यथा मेयत्वादि-

maa क्रियेतेति भावः। कार्ेसमानकालोनतावृप्रबन्धकादाचित्‌- काभाववन्त इति साध्यं तेग मद्ाप्रलयेनार्थां न्तरं, “शारम्भकत्वात्‌'

शब्दाख्यतुरोयखक्छे SAT ष्छत्रवादः। 8२६

साध्याप्रतौतेः, अमेटानुमानवच्च पक्षस्य ष्टान्तत्वा- विराधः। यदा परमाणवः काय्येद्रव्यानधिकरण- टत्तिकाय्यवन्तः नित्यद्रव्यत्वात्‌ भ्राकाशषत्‌, भूगोलज्ञ-

मालवं पष्य yermafactufzaa sre, “waza yaar afeara श्रालोकात्‌ चया महानषमित्याद्यनुमामवदित्यथेः, नि- वितखाध्य-साधमवत्वं दि दृष्टाम्तलप्रयोजकं तु पान्यवमपोति भावः “परमाणव इति, यचणेकपरमाणुपषवेऽपुरेभ्पं॒॑सिद्यति तथापि a एव nwa दोधूयमानाः का्थदरव्यविर दिण एव तिष्ठन्ति दति बोधनाय बहवचनं, “कार्थेति, परमाणूनां काद्रवयागधिकर- wana तादूश्काणसिद्धिः, wa दिगन्यलं काय्येद्रव्यानधि- ace विभ्रेषणं तेन तादृश्दिश्ार्थान्तरं मतु परमाखाकाश्न- संथोगमादाय सिद्धषाधमं, दितोयका्पदस्छेकाश्रितका्॑परलात्‌ अतो wana मशाप्रशयेनायर्थाग्तर, ^मित्यद्रव्यलादिति, कपालादौ यभिचारवारणय “नित्येति, गुणणदौ व्यभिचारवा- रणाय ‘zafai चेश्वरे व्यभिचार इति ara भिल्येःपि

गव्यसमवायिकारणल्वात्‌, अन्यथा उक्घसाध्यामाववति wt व्भि- HCA, “सर्व्व चेति, Tad वथोक्तमनुमानपरकारे | ˆ चेति, अपरात्वे- ऽपौच्छया सिद्धिरिति मावः। उदग्यप्रतौ्यसिडेनें शतः faxaranfiarw, ‘uaa, “्मेदेति,"निखितसाध्यव्व gerne प्रयोगकं तु wey. त्वमपौति मावः “परमाणव इति, जेव पाधिंवपरमाशपक्त्वेऽपौटसिडि-

रिवि ater) खन्न Ra इन्र "काययेपदमवथासज्यडतिभावकाग्येपरं 66

५२ तच्वचिन्तामणौ

सन्तानोऽयं भ्रगालकसन्तानानपिकरणटसिष्वंसप्रति- यागी कायत्वात्‌ घटवत्‌ | यहा रतत्कम्भातिरिक्तामि

कालिकाधारलाभ्यपगमेम तजापि साध्यसत्वादिति भावः &,- रान्यवेन श्रात्मान्यले वा विशेषणष्णैयं इति कथित्‌, तदसत्‌, परमा- waa व्याप्यलासिद्धाप्रसिद्योरन्यतरापन्तेः |

afer काणदरन्यानधिकरणटन्तिस्पशेवद्‌ टत्यनेकाभितान्यभाकं aida खाध्यत दत्याकागरेश्वरदन्तिलादिकमादाय साध्यस्नाम्न व्यभिचारः साध्ये चषोपरश्चकविगशेषणं दोषायेव्याः |

Gahafa, auite ब्रह्माण्ड, BUH वा, “AAT? समूहः, CY स्तरूपकथनमाजं प्रत्येकपचतायामण्युदे सिद्धेः “काय्येलात्‌ इदानौम्तमभावकाय्येलात्‌, तेन चरमसरगात्यन्ञे wa व्यभिचारः। (एतदिति, किचत इति का्द्रवय, तु खन्दः, प्रलये परमाष- क्मेणामभ्यपगमात्‌ यद्यपि कला वष्डेदेन यत्किधित्‌कग्धेपरति- बन्धकललसाधनेऽपि उदेग्छसिद्धिभेवति, तथापि पचातिरिक्ेव

तेन प्ररमारवाकाश्संयोगादिना सिडसाघधनं वा महाप्रलयेनार्थान्तरं। कपालादौ श्चभिचारादा, “नित्येति, atest यभिचारादाङ, शरेति, चेरे व्यभिचार): तदन्यत्वेनापि विग्रेषणात्‌ वस्तुतो “भावपदं देष, grave भातिमत्रं, तथाच च्रानादिकमादाय खरे साध्यसत्वानन श्यमि- चारः | भावकास्यैौधिकरयत्वमपि कार्दरवयानधिकरणविग्ेषथं अतो ay प्रलयकालौनगयमादाय नार्थान्तरमिति | “भगोालकेति, खवयवानामावापौ- arte भूगोलकस्याधुना नाग्रादर्यान्तरमिव्यत उक्तं सन्तानेति, कायैौधिक- रया्वमपि faite देयं तेव मदाप्रलयेन्‌ ATA, "काय्येत्वात्‌” मावका्-

प्ब्दाख्यतुरोयखण्डे SQRYWAAMZ | WRB

कर्माणि रतद्मतिबन्धकप्रतिवध्यानि कम्भैत्वात्‌ रखत- त्कम्मेवत्‌। चाच व्यभिचारशङ्का, सर्वेषामेवं रूप- त्वादनेवम्भावे खभावप्रच्यवात्‌। अनन्यथा निय-

दृ्टाकत्वमित्यभिमानेन "एतत्कम्मीतिरिक्रानोति प्ठविगेषणं, "एतप्रतिबन्धकेति, एतावता पलधम्मताबलात्‌ षकशकाय्यद्रवयप्रति- बन्धक एकः कालः शिद्यतो ति मिश्राः, तदसत्‌, एतावता सकख- काय्यद्रव्योत्पन्तिप्रतिबन्धकप्रसिद्धावपि काणेद्रव्यानधिकरणएकाणा- चिद्या प्रलयासिद्धः aay द्रव्यामुत्पारैऽपि उत्पन्नद्रव्याणणं सत्व बाधकाभावात्‌ | वम्हुतस्छ॒ “एतत्कभोप्रतिबन्धकेत्यस्य एतत्कर्ानधि- aaa, तप्रतिबध्यवश्च कालिक विशेषणतया तन्िष्ठान्यो- न्याभावप्रतियो गितावच्छेद कत्व, एवश्च सकशद्रव्यामधिकरण एकः कालः प्रसिद्ध इति तत्वं ‘a शाचेति, शसब्वंषामिति सर्व्वषामेषे Saat, “एवरूपलात्‌' साध्याव्यभिचरितलनिितलात्‌, ‘wa- ary rae भिचारिले, “सभावः श्रमौपाधिकलानुमवः, भ्रश्य वात्‌' प्रच्यवापत्तेः, तथाचानौपाधिकलमेव व्यभिचाराभावनिश्चाय-

त्वात्‌, “रवतृकर्म्मेति, खच प्रतिबध्यत्वं प्रतिबन्धखरूपयोग्यत्वं बोध्ये तेग शितेन aria नष्टेऽपि कम्मपि साध्यसतत्वान्न गाधो व्यभिचारो वा, TUTE पचधम्भताबलेग सकलकम्भप्रतिबन्धकतया रकः कालः सिध्यतीति wa: | कम्भतवमेव पच्तावच्डेदकमस्लिति Wwe | प्तान्धस्येव वृद्ान्तल्वमिति- मतेगोक्कल्वादित्येके | व्थापिग्रह रव साध्यसि्िप्रसङ्ादित्यपरे | “रवंरू्प. त्वादिति रवतृप्तिबन्धखरूपयोग्यत्वादिद्यथेः। 'खभवेति, काम्मवावनष्डेदे"

ars , तच्वचिन्तामगयै

मेऽपि नियमान्तरपिक्षायामनवस्यितेः | arise: भुमेवाथ संवतदौति शतं प्रसक्तानुप्रसक्तया `

कमिति भावः। नमु निरूपाधिरव्यभिशार vay नियभे को भियामक इत्यत आह, श्रन्यथेति नन्वमौ पाभिकलासुभव एवा- मोषामबिद्धः। परेतरत्वादपि तादृशः सम्भवतीति are काय्दरव्यालुपादानदे ्काललवादेः सम्भवात्‌ पर्ेतरलस्साणसत्यमुकूल- तके सन्दिग्धोपाधितलसम्भवात्‌ wat wd घट एतद्रुपाचतिरिक्र away घटलात्‌ श्रपरघटवदित्यतो शूपाद्यतिरिक्रातौखियधषे षिद्धदुंवारतवापत्तः। श्रय श्रास्तां केषु केषुचित्‌ व्यभिचारग्रहा नतु एककालोनसष्वं परमाणव इत्यत्र तथा fe इग्यमेवाशमवायिका- रणमन्यतयान्यमिखिलद्रव्यग्‌ waging, wets द्न्योत्पत्ति- rae निखिलद्रव्यगएमित्यज् केषामपि ele) तथापि अतुकरूलतकाभावे कथं व्या्षिगड इति are aearfa- गाहकलत्वादिति चेत्‌, भ, एतादृ्रासुमानादपि enfufagt प्रागभावाधिकरणकालोनाः स्वं परमाणवः यावत्‌ समबेतका्- शल्या द्रव्यलात्‌ उत्प्निकालावच्छिन्घटवदित्यतुमानात्‌ प्रागभाव-

(९) तया qlenfe: dfn: पाठः ्वादर््रानुरूप रव मुदितः qo पाठः सम्यक परिगुद्धत्वेन प्रतिभाति |

जेव तादृश्रसखभावनियेयादिति भावः। ननु तादृशख्वभाव wa किं निमामक- मिव्यत व्याह, (अन्येति, वच्रापि नियामकान्तराभिधानप्रखद् तेनेव शुदबपर््यापतौ बाधान्तरावतारौ स्यादित्यनवख्ार्थः। तदिदमुक्षं “शतं प्रस-

शब्दाख्यतुसौगखन्डे उन्डव्प्रष्छप्नवादः। ary

दति mtaereEMnarafacrea referral शब्दाश्यतुरौय खण्डे TMA-HAANS: Nok

कालायण्छेदेना पि सकलपरमाणनां थावत्षममेतकार्दयल्यवविद्या- aa: xa fe aaa साववथवं निरवयवख तथां खत्पन्तिका- खा वच्छेरैन निखिलसमवेतकाय्यद्यन्यमित्यविवारं waft महा- प्रशयावण्डेरेन निखिशकाय्यैदुन्यमित्यजापि भवतां fanfa- ufaftwacarare, श्रागमोऽपोति, संवदति शसुदितं प्रमा- पथति, wie we ware यावत्‌, भूयते हि “देव सौग्येद- मय श्रासौदेकमेवादितीयमिति Were, ‘eH एकतसङ्खाथोगि, “श्रदितेयं' केवलमेव, “रमे प्राक्‌, सौम्येति सम्बोधने, तेन प्राक्‌ जित्य zeae श्रासोत्‌ कायद््यमित्थागतं, प्रागभावाधिकरण- RUT एव “नाहो राजिरित्थागमेऽप्यमुसन्भेय इति दिक्‌ दति ओमथरानाथ-तकवागौश्रविरचितें तत्वविन्नामकिर इये शब्दा ख्यतुरोयखण्डर इच्छे उच्छशप्रष्छशवाद्रदस्सम्‌

ह्षानुप्रस्येति wet तत्तदतिरिक्कानि कम्भाखि रतदुत्यादकासाधार- योपादानसाध्यानि कायेत्वादिग्धाद्यपि स्यादित ere, “वआआगमोऽपौति, Cant oft ममो भूमिरिलादिरित्व्चः, अन्यच तु वथागमाश्- पष्टम्म इति भावः| इति care |

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तश्यचिन्तामओ शब्दखण्डे शब्दाप्रामाण्यवादादि-

उष्ठन-प्रच्छलवादान्तभागस्य BVT |

faqa: | WTA TYE ai wrecrnrarerattaaana CL 6 १०५ ove शब्दाप्रामाण्छवादिनरणग्भोमांसकमतं तत्‌ख्छनं Poe ग्रब्दाप्रामाखवादिप्रमाक्चरादिमतं

तत्‌खण्यनं ००५ see

खमते शब्दस्य प्रमाखान्तरत्वव्यवस्धापनं

चाकाङ्कावादपृव्वेपचचः SATE TAS सिडधान्तः ai योग्यतावादपृव्वं पकः योग्यतावादसिडान्तः च्पाससिवाद्‌१ = .,* ani

तात्यग्येवादे UAABS ,,, तात्पग्य॑वादे खमतच्यवख्यापनं ,,, तात्प्ैवादे मौ्मांसकमतं ,,, aaa ०५५ one द्दानित्यतावादपु्वेषक्तः = ,,* Waa sar = ,,, उच्छत्र-प्रच्छत्रवादः

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