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HARVARD COLLEGE LIBRARY

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LECTION OF GORIENTAL Works

PUBLISHED BY THB ASIATIC SOCIETY OF BENGAL New Seutrs, No. 1181

योगशास्रम्‌ | wroafrrcwafyag |

THE YOGASASTRA :

With the commentary called SVOPAJNAVIVARAN A.

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MDCCXLVI-MDCCXCIV

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SRF HEMACITANDRACHARYA EDITED BY MUNI MAHARAJA SRI’ DHARMAVIJAYA.

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Gulentta

fF RINTED BY UPENDRA NATHA CHAKRAVAKRTI, AT THE SANSKRIT PRESS, AND PUBLISHED BY THE ASIATIC SOCIETY, 57, PARK STREET

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LIST OF BOOKS FOR SA

AT THE LIBRARY OF THE

ASIATIC SOCIETY OF BENC

No. 57, PARK STREET, CACUTTA, AND OBTAINABLE FROM THE SOCIETY’ AGENTS, Mr. BERNARD QUARI1 11, Grarrow Street, New Bonp Strert, Lonpon, W., AND }

HARRASSOWITZ, BOOKSELLER, LEIPZIG, GERMA

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Complete copies of those works marked with an asterisk * cannot be supplied marked with an asterisk cannot be supplied

of the Fasciculi being out of stock. [स

BIBLIOTHECA INDICA. Sanskrit Series

e ^ १९०१६ Brahma Siddhi, Fasc. 2, 4 @ /10/ each... Ra.

. Advaitachint& Kaustubha, Fasc. 1-3 (@ /10/ each ...

Aitereya Cochana ०० धि ००५ = Anu Bhiehya, Fase. 2-5 @ /10/ each aa ut Aphoriems of 3890119, (English) Fasc 1T@ly- ... eee . , Agtaskhasrik& Prajiipadvamits, Faac. 1 6 @ /10/ euch = च; *Atharvana Upanishad, Fase 2-5 @ /1(/ each or oe

*Agni एषा 8, Fasc. 3-14 @ /10/ each

Aitardya Br@imags, Vol. I, Fasc. 1-5 ; Vol. 11, Fase. 1-5; Vol. 111.

Fasc. 1-5, Vol. IV, Fase. 1-8 @ /10/ each +

Atmatattaviveka, Fasc. 1. @ /10/ each ... nee

_Agvavaidyaka, Fasc. 1-5 @ /10/ each ^ १४7४४०० Kalpalat&, (Sans. and Tibetan) Vol. J, Fasc. 1-6; Vol. 11. Fasc

1-6 @ 1/ each eee A Lower Ladakhi version of Kesarsaga, Faso. 1-3 @ 1/- each .. Balam Bhatt!, Vol. I, Fasc. 1-2, Vol 2, Fasc. 1 @ /1¢/each _ ,.. Baudhiyana S‘rauta Satra, Fasc. Vol. 1. 1-3 Vol. II, Fase 1 @ /10/ each

*Bhamati, Fasc. 4-8 @ /10/ each

Bhitta Dipiks Vol. I, Fase. 1-5 @ /10/ each Sais ss Ney Brahma Sutra, Faac. 1 @ /10/ each vr ace os eae Brhadddvat& Fasc. 1-4 @ /10/each... क! > Brhaddharma Purina Fasc 1-6 @ /10/ each षः BodhicarySvatSra of Cantideva, Fasc. 1-5 @ /10/ each

| 01 Faso. 1-2 @ /10/ each

, Marnutik& Sangrahia, Fasc. 1 8 @ /10/ each

, - ` @Markandeya Purana, Fasc. 4-7 @ /10/ each , *Mimsihed Dargana, Fasc. 8-19 @ /10/ each - Ny&Syavartika, Fasc. 1~6 @ /10/ each

utalogue of Sanskrit Books and MSS., Fase. 1-4 @ 2/ each .. Qatapatha Brihmana, Vol I, Fasc. 1-7, Vol II, Fase. I-5, Vol. IJ Fase. 1-7 Vol. 5, Fasc. 1-4 @ /10/ each CatasShasrik& Prajndparamits Part, 1. Fase. 1--12 @ /10/ each

. ` *Caturvarga Chint&mani, Vol. 11, Fase. 1-25; Vol. 111. Part I, Fase

1-18. Part II, Fase. 1-10. Vol. 1४. Fasc. 1-6 @ /10, each Qlockavartika, (English) Fasc. 1- 6 @ 1/4/ each

Sriddha KriyS Kaumudl Fase. 1-6 @ /6/ each 4 *Qrauta Sittra of Apastamba, Fasc. 6-17 @ /10/ each Ditto CGankhiyana, Vol. J, Fasc. 1-7; Vol. 17; Fasc. 1-4 Vol. LII, Fasc. 1-4 @ /10/ each ; Vol 4, Fasc. 1 $ २५ Bhashyam, Fasc. 1-3 @ /10/ each na Kriy& kaumudJ, Faso. 1--2 @ /10/ each

Gadadhara Paddhati KSlasira Vo). J, Fase. 1-7 @ /10/ each Ditto AchSrasSrah Vols. 11, Faso. 1-8 @ /10/ each

Gobhiliya Grihya Sutra, Fasc. 3-12 @ /10/ each...

K&la Viveka, Fasc. 1-7 @ /10/ each...

K&tantra, Faso. 1-6 @ /12/ each

Katha Sarit Sagara, (English) Fasc. 1-14 @ 1/4/ euch

Karma Purana, Fasc. 1-9 G /10/ each ...

Lalita-Vistara, (English) Fase. 1-3 @ 1/- each

«Loalitavistara, Fasc. 3-6 @ /10/ each

Madana P&rijita, Fasc. 1-1) @ /10/ each

Mah3-bhagya-pradipddydta, Vol. 1, Fasc. 1-9 ; Vol. If, Fasc. 1-12 Vol. IT Fasc. 1-6 @ /10/ eac

Markapdéya Purina, (English) Fasc. 1-9 @ 1/- each

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अहम्‌

ओठदहिचन््रगुरुभ्यो नमः।

कलिकालस्व्नशौरेमचन्द्राचाध्यप्रणौतं

योगशास्त्रम्‌ |

खो पन्न विषरणसहितम्‌ |

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प्रशम्य सिदाङ्मुतयोगसम्पदे रोव्रोरनधाय विसुक्ञिग्रालिने। - स्वयो गशास्त्राधविशेषनिर्ययो भव्यावबोधाय मया विधाख्छते ॥१॥

तख चायमादिश्रोखः-

नमो दुर्वाररागादिवैरिवारनिवारिशे | अहते योगिनाधाय महावीराय तायिने १॥ अत्र महावोरायेति विशेष्यपदम्‌ fated श्रयति चिपति कश्चाशोति ate: | विदारयति aera तपसा विराजते | तपोवोर्ययेण युक्च तस्माहोर इति स्मृतः ae ति लक्षणात्रिशक्ताहा वोरः महांञ्चासावितरवोरापेक्षया वोर महावोरः श्दं जग्ममहोस्छवसमये तनुश्रौरोऽयं कथं जनप्राग्मारभारं TSA शक्रशदाणङ्कससुदरणाय भगवता वाम-

z | योगगाख्त्े

चरणाद्ृष्टनिपो डितस्मेरुधिसरप्रकम्प्रमानमदोतलोक्षसितसरित्‌- पति्ोभगङ्ितब्रद्माखडभाण्डोदरद्भन प्रयुक्ञावधिक्नानन्नातप्रभावा- तिश्यविस्मितेन वास्तोष्यतिना नाम faa ब्रहावोरोऽयमिति। तत्पुनरनादिप्रभवप्ररूढप्रौढक श्च 'ससुख्ूलनवलेन यथार्थीक्षतच्च मगवता aware इति तु नाम मातरपितराभ्यां कतम्‌ यमणो. देवार्यं इति जनपदेन aa नम दति सम्बन्धः शेषाणि विगेषणानि। ag सद्ुताथप्रतिपादनपरेखत्वारो भगवदतिश्ययाः प्रकाश्यन्ते aA पूर्वाेनापायापममातिश्यः। भपायभूता fe रागादयस्तदपगभेन भग वतः खरूपलाभः १। भरते इत्यनेन सकलृसरारमनुजजनितपूजाप्रकषेवाचिना पूजातिग्रवः २। योगिनायायत्यनेन तु ज्नानातिश्रयः यो गिनोऽवधिजिनादयस्तेषां माधो विपलक्षवलबलावलो कितलोकालोकसभावो भगवानेव | ३। तायिने इत्यनेन तु वचनातिश्यः। ४। तायो सकलस्ुरासुर- मनुजतिरखां पालकः पालकत्वं सकलमुवनाभयदानसमधं- षसमग्रभाषापरिणामिषमदेशनाद्यारेण भगवत एव पालकल- ard तु खापत्यादैर््याप्रादौनामपि सम्भवति तदैवं चतुरति- शयप्रतिपादमहारेण भगवतो महावीरस्य पारमाधिकौ सुतिरभिडितेति १॥

पुनर्वीगगभों qfaary—

(१) शख -दपमयन- | (२) -wa- |

प्रथमः प्रकाशः |

पन्नगे सुरेन्दरे कौशिक पादसंस्छि - निर्विशेषमनस्काय शौवौरखामिने नमः

पन्नगस्य कौ भिकलं पूवभव' खितकीौशिकगो वत्वेन gaa atfit- केति भगवता तधैव भाषितेन सुरेन्द्रस्य तु कौगिकलं कोभिक।भिधानात्‌। create पव्रगस्य दथनबुह सुरेन्द्रस्य भक्यतिशयेन निविगेषमनस्कत्वं भगवतो देषरागविशेष- गहितत्वन माध्यखध्यात्‌ सम्मदायमम्यञ्चायमथस्तथाहि-

खोवोरः प्राणतखगपुष्योत्तरविमानतः |

Usa AA AAA RATT: १॥ `

ज्रानत्रयपवित्रासा सिहाधदृपवेश्मनि |

विशलाकुक्लौ सरस्यां राजहंस द्वागमत्‌ २॥ (aa)

सिंहो गजो हषः साभिषेकञ्रोः खक्‌ शशो रवि;

महाध्वजः Teg पश्मसरः सरित्पतिः ३१.

विमानं रव्रपच्ञब निदमाग्निरिति क्रमात्‌

देवो चतुर्यलप्रानपश्यसव गर्भगे ॥४॥ `

AM BANARAS ATTA TAT TTT |

अपि नारकजन्तनां सणदन्तसुखखासिकम्‌

प्रभुः सुखं सुखेनेव जख प्राप शभे दिनि।

तकालं दिक्कमायश्च सूतिकन्भाणि चष्ठिरे॥ ६॥

(2) खग -भूत-|

योगशा

भथ HHUA RAAF जगव्भुम्‌ | Hage quar: सिंहासनमभिशधियत्‌ sat वारिसभ्भारं कथं खामो सहिष्यते | दूत्यागशङ् शक्रश भक्तिकोमलवेतसा a तदाशद्भमजिरासाय लोलया परमेश्वरः

भेरुगेलं वामपादाङ्गन्टा्ेण न्यपोडयत्‌ < शिरांसि भेरोरनमव्रमस्कर्त्तुमिव प्रभुम्‌। ` तदम्तिकमिवायातुमचलंख् कुलाचलाः w १०॥ अतुच्छमुच्छलन्तिसख्म ara कर्तुमिवाखंवाः | विषेपै सत्वरं तत्र नत्तनाभिमुखेव भूः ११॥ किभेतदिति सच्िन््यावधिन्नानप्रयोगतः। लोलायितं भगवतो बिदाश्चक्रे विडौजसा १२॥ खामिब्रनन्यसामान्धं सामान्यो AST जनः विदाङ्रोतु माहा HAGE तवेदम्‌ १२ त्भिष्यादुष्कृतं भूयाचिन्तितं यश्मयाऽन्यधा TAT HATA WAH परमेश्वरः १४ सानन्दं वादितातोयं चक्रे शक्रैव्नगहुरोः | तोर्यगन्धोदकैः पु्छेरभिषेकमहोत्छवः १५॥ भभिषेकजलं तत्तु सुरासुरनरोरगाः |

ववन्दिरे ay: सर्वाङ्गीणं परिचिक्तिपुः eeu प्रभुख्ातजलालोढा वन्दनोया सदप्यभूत्‌ | गुरूणां किल संसगाद्ौरवं Grams १७

प्रधमः प्रकाशश्च, |

निवेश्य शानशक्राङ सौधरनन्द्रोऽप्यथ प्रसुम्‌ | ख्रपयित्वा^ऽश्वयित्वाराज्रिकं maf तुष्टुवे १८ Aaa भगवते Baas वेधसे | तीधङ्करायादिके पुरुषेषुत्तमाय ते १९

नमो लोकप्रदोपाय लोकप्रयोतकारिषै लोकोत्तमाय लोकाधोशाय लोकहिताय Faro a नमस्ते पुरुषवरपुण्डरोकाय TU |

पुरुषसिंहाय पुरुषेकगन्धदहिपाय ते + २१॥ चवरुर्टायाभयदाय बोधिदायाध्वदायिने।

WUTA WHS नमः शरखदाय F २२॥ धर्मसारथये WHAT धन्छंकचक्रिशे।

व्याहत्तच्छद्मने सम्यकन्नानदशेनधारिषे २१॥ जिनाय & जापकाय तोरणाय तारकाय च। विमुक्ञाय मोचकाय नमो aera वोधिने॥२४॥ सर्व्वन्नाय नमस्तुभ्यं खामिने सवदर्भिने। सव्यातिश्रयपात्राय कन्मा्टकनिषूटिने २५॥ तुभ्यं Sara पानाय तीर्थाय परमासन स्यादादवादिने वोतरागाय FA नमः २६ पूज्यानामपि पूज्याय महद्भ्योऽपि मरोय॒से | भ्चायीणामाचा्यीय च्येष्ठानां ज्यायसे नमः २७

(१) कख खन्रंयित्वाय सत्वारालिक्रमसतवीत्‌ |

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MANIA

नमो विष्ठभुषै तुभ्यं योगिनाधाय योगिने | पावनाय पविभ्रायानुत्तरायोत्तराय २८ योगाचायषय AHATAATA प्रवराय | MUTA वाचस्पतये aera aay ते re ममः पुरस्तादुदितायेकवोराय भास्वते | ऊॐभूर्भुवःखरिति वाकस्तवनोयाय तै नमः २० नमः सव्धैजनोनाय TAAATAATA च| उदितन्रद्मचर्यायाप्ताय पारगताय ते २१॥ नमस्ते efadtara निव्विकाराय तायिने | वच्यक्टृषभना राचवपुषे AMSAT RR नमः कालत्रयन्नाय जिनेन््राय Bae ज्रानवलवोर्य तेजः गशच्चेश्वययमयाय तै १३ भ्रादिपुंसे नमसुभ्यं नमस्ते परमेष्ठिने ;ममसुभ्यं मरेाय ज्योतिस्तच्वाय ते नमः २४.॥ तुभ्यं सिद्ाथैराओन्द्रकुलक्ौरोदधोन्दवे ` मावौराय घोराय विजगत्सखामिने नमः ३५ इति सुला नमसछत्य WHAT परमेश्वरम्‌ | नोय ATG मातुरष्पेयामास वासवः २६ सखवंशहडिकरण्णद्यथाथं पितरौ तदा

नामधेयं विदधतुरवैदेमान इति प्रभोः + १७

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(१) @ मङ्गल्याव।

प्रधमः प्रकाशः |

सोऽ्पूव्विकया भक्तेः सेव्यमानः सुरासुर; | emt पौयुषवषिख्छा सिश्चन्रिव वसुन्धराम्‌ # Re kl अरषटोत्तरसशसरेख लक्षश सपलसितः | निसर्गेख गुणेवंदो वयसा aad क्रमात्‌ ३८ राजपुतेः सवयोभिः समं निःसोमविक्रमः | वयोऽनुरूपक्रोडाभिः कदाचित्क्रोडितुं ययौ ४० तदा ज्ालावधिन्नानाश्मध्येसुरसभं wiz | "धोरा भनुमषावोरमिति वौोरमवणंयत्‌ ४१॥ चोभयिष्वानि त॑ ्ोरभेषोऽहमिति मत्सरो | भ्राजगाम्ामरः कोऽपि ay क्रोडब्रभूहिभुः॥ ४२॥ कुव्बैत्यामलकोक्रोडां TAG: सह प्रभौ | arsatefectadt भुजगोभूय मायया ४३२॥ तत्कालं राजपुजरेषु विव्रस्तेषु दिशोदिशि।

खिला रख्ुमिवोत्लिप्यं त॑ fata चितो विभुः॥ ४४॥ GANT: MIFST AT कुमाराः FATT: | कुमारोभूय सोऽप्यागासर्गवेऽप्यार्रषस्तसम्‌ ४५ I पादपाग्रं कुमारेभ्यः प्राप प्रचमतः प्रसुः। यहा कियदसुष्येदं यो aad गमिष्यति wu ४६.॥ शुभे भगवांस्तव मेरुगृह्धः इवायमा | लम्बमाना वभुः गाखाखन्धे शाखाख्गा दव ४७

(१) कशदोरा। (x) WTA | (y) wfateg |

योगशास्त्रे

जिग्ये भगवता aa कछतञ्चासोदयं पणः |

जयेद WAT एष्मारद्य वाहयेत्‌ ४८ भारद्ावाहयदाहानिव वोरः कुमारकान्‌ | भारुरोह सुरस्यापि ws एषो मषोजसाम्‌ ४९ ततः करालं वेतालरूपमाधाय दुष्टधोः | भूषरानप्यधरयन्‌ प्रारब्धो BET सुरः ५० वक्ते पातालकस्येऽस्य fawar तक्षकायितम्‌ पिक्शुङ्गे fauna कैगैदीवानलायितम्‌ ५१॥ तस्वातिदारुशे द॑दे भभूतां ऋकचाह्लतो |

जाख्वल्य माने अङ्गगरशकय्या विव लोचनं ५२ BUTT महाघोरे मदोधरशगुहे इव |

कुटोभहूरे भोमे महोरग्याविव wat ५२॥ व्यरंसोद्ेनात्रासौ यावत्तावकहौजसा |

आहत्य afer we खामिना वामनोक्ञतः ५४ ud भगवदेये' सा्तात्‌'्कव्येन्द्रव यितम्‌ |

प्रभं नत्वामरूपेख निजं धाम जगाम सः ५५॥ मातापिदधम्यामन्येदयुः प्रारब्धेऽष्यापनोष्छवे `

आः wane शिष्यत्वमितोन्द्रस्तमुपाखितः ५६ उपाध्यायासने तस्मिन्वासवेनोपवेशितः।

प्रणम्य प्राथितः Stat शब्दपारायणं जगौ ५७ |

१) wee na, (९) HWS -लते-।

प्रधमः प्रकाशः | €.

VE भगवतेन्द्राय प्रोक्तं शब्दानुशासनम्‌ | उपाध्यायेन तच्छ्रत्वा लोकषषवद््रमितोरितम्‌ ५८ मातापिवोरगुरोधादष्टा विंश्तिवत्षरोम्‌ | कधच्िदग्टहवासेऽख्ाग्मव्रज्योत्कण्ठितः प्रभुः ५९ अध पूर्णीयुषोः पित्रोदेवभूयमुपेयुषोः | teran परिव्रज्यां निरोहो राज्यसम्मदः॥ ६०॥ अगवश्मा चते art चेप्तोरिति सगहदम्‌। wae ज्यायसा मन्दिवदेनेनोपरोधितः ६१ a भावतो यतिरेवाहं नानाभरणभूषितः। aan अयंशिखशालिकायामवखितः ९२ एषणोयप्रासुकात्रपानहत्तिमषहामनाः। ववमेक कथमपि भगवानत्यवाइयत्‌ ६२ तीये प्रवन्तयेत्यभ्यथितो लोकान्तिकामरः। यथाकाभौनमयिभ्यो दानं दातु प्रचक्रमे \ ९४ देतोयोकेन ary विनिर्मायादणां भुवम्‌ प्रौरभद्राज्यखियं सामो मन्धमानस्तणाय ताम्‌ ९५ सर्ब्ेदेवमिकायेख छतनिष्क्रमणोत्सवः | सहखवाद्यामाशुद्य शिवो चन्द्रप्रभाभिधाम्‌ ९६ नरातखण्ड वमे गत्वा सव सावच्यवस्ननात्‌ प्रत्रज्यामग्ररोदङखतुधेप्रहरे प्रभुः + ६७ जगग्नोगतान्‌ भावान्‌ ANIMAS प्रभोः Wet तुरोयं संजन्न ममःपयैयसंन्नकम्‌ ६८॥

x

१०

योगशास्त्र

तत गत्वा सन्ध्यायां क््मारब्रामसचिधी गिरेन्द्र va निष्कम्पः कायोत्सगे व्यधाददिभुः ९९ गोपालेनाध यामिन्यां निष्कारणक्ततक्रुधा।

| उपद्रोतुं समारेभे भगवानासवेरिशा ७०

पथेन्द्रेावपिन्नानाव्लश्न प्रञुमुपद्रवन्‌ |

सदुःगोलो मशागेलमाखुखेष निखत्रिव ७१

कल्थाणोभक्िरागाञ्च शक्रः प्रभुपदान्तिकम्‌।

नष्टो मल्कुणनाशं गोपडशतकः कचित्‌ ox ततः wefan विसु प्रणिपत्य

दति विन्नापयाश्क्रो प्रभः प्राचोनव्हिंषा og भविष्यति दादशाब्दान्युपसगेपरम्मरा |

at निषेधितुभिष्डामि भगवन्‌ पारिपाकः ७४ समां पारयिलेद््रं भगवानुचिवानिति। नापेखाश्धक्रिरेऽन्तः परसाहायिकं कचित्‌ ०५॥ ततो TAYE: Maas: शोतमयुखवत्‌ | क्यस्तेजोदुरालो कोऽधिपतिस्तेजसामिव nog श्यीर्ोयं वान्‌ गज इव सुमेरुरिव निलः | सव्वस्पर्थान्‌ सहिष्णु यथेव हि वसुन्धरा ७७ wanfafca wad खगेन्द्र va निभयः। मिष्यादृणां दुरालोकः gyat wararfcg oc खद्धिगङ्कमिषेकाक जातखामा मोत्तवत्‌। शुभेग्दरियः qa इवाहिरिवेकान्तदत्तटक्‌ ७८

प्रम, WATT: |

निरञ्जनः WE दव जातरूपः सुवर्णवत्‌ विप्रसुज्ञः खग इव जोव इवासषलद्रतिः ८० MAA भारष्डपक्तोवाप्रमहरः | भश्नोजिनोदलमिवोपल्तेपपरिवस्नितः ८१ nay fa® ze Gt खर्शेऽग्मनि मणौ खदि। इहामुत्र सुखे दुःखे भवे AA समाशयः ८२ निष्कारणेककारुष्यपरायणमनस्तया | AMEN मुग्धमुदिधोषुरिदं जगत्‌ ८१॥ प्रभः प्रभश्ञन इवाप्रतिवहोऽख्िभेखलाम्‌ | नानाग्रामपुरार्यौ Fassett वसुन्धराम्‌ ८४ देशं दल्िणचावालमवाप्य प्रभुरन्यदा |

शेतम्बीं नगरीं गच्छ चित्यूचे गोपदारकः ८५ देवाय¶यसजुः पन्थाः शखेतम्बोसुपतिष्ठके

जिग्छन्तरेऽस्व कनकखलाख्यस्तापसाखमः ८९

a fe म्विषसर्पणाधिष्ठितो वत्ततेऽधुना वाश्ुमात्रैकसच्चारोऽप्रचारः पर्तिणामपि ८७ विद्ाय aed मागें वक्तेशाप्यसुना ब्रज | सुवर्णेनापि किं मेन कणच्छ्टेदो भषेदयतः चट तं चाहं प्रभुरन्नासौद्यदसौ पृवेजश्ननि

mae: पारणकाथं विदत्तं वसतेरगात्‌ ८९. गच्छता तेन मश्डुको पादपातादिराधिता पालो चना्धभेतश्य दशिता चुह्नकन सा॥९०॥

११

१२

योगशास्त्रे

सोऽथ प्रव्युतमष्ुकौदशयन्‌ लोकमारिताः |

चे We मया ae किमेता भपि मारिताः॥९१॥

तृष्णोकोऽभरूत्ततः Yate चेवं विशदधोः। मषाजुभावो यदसौ सायमालोचयिष्यति €२॥ भावश्यकेऽप्यनालो्य. यावदेष निषेदिवान्‌ | चुक्ञकोऽचिन्तय्तावदिच्छतास्य विराधना ९२ अस्मारयच्च तां मेकौमालोचयसि किं नहि चपकोऽपि क्रुधोलयाय ye watfa धावितः ९४ कोपान्धश्च ततः स्तम्भे प्रतिफश्य व्यपद्यत | विराधितत्रामस्योऽसौ .ज्योतिच्कषृदपद्यत ९५

Ya कनकखले सष्स््ादेतपखिनाम्‌ |

पत्युः कुलपतेः पन्नाः पुत्रोऽभूत्कोशिकाद्वयः wee त्र कौशिकमगोव्रल्ादासबन्येऽपि कौथिकाः। अत्यन्तकोपनत्वाश्च ख्यातख्चण्डकौगिषः veo खादेवातिथित्वं तस्मिन्‌ कुलपतौ गते |

असौ कुलपतिस्तत्र तापसानामजायत ९८ FWA वनखण्डस्य सोऽन्तरभ्बम्यत्रहनि णम्‌ | भदाकस्यापि नादातु पुष्यं मूलं फलं दलम्‌ Wee विभौषंमपि योऽग्टल्नाहनमे तत्र फलादिकम्‌ उत्पाद्य परशं यष्टिं are at तं जघान सः॥ १०० फलाव्लभमानास सोदम्तस्ते तपखिनः।

पतिते लगुड काका इव जग्मुदिशोदिशम्‌ + १॥

प्रधमः AAT. |

wag: afeartat: area afedate |

` अमाङ्नुर्मङ्च् राजन्याः WAIT एत्य ATA २॥ अथ व्यावक्षमानख गोपास्तस्य न्धवोविदन्‌ |

पश्य पश्य वनं Raed भज्यते तव ॥२॥ AMAA: क्रोधेन हविषेव हुताशनः | अकुण्ठधारमुद्यम्य कुठारं सोऽभ्यधावत ws a राजपुवास्तते ag: श्येनादिव wae: |

सव लित्वा पपातायं यमवक्ता इवावटे ५॥ पततः पतितस्तस्य wae: परश; शितः |

शिरो feared तेन Wt विपाकः कुकश्मणाम्‌ face वमेऽजरेव चर्डोऽहिदुंम्विघोऽभवत्‌ क्रोधस्तोव्रानुबन्धो fe ae याति भवान्तरे want चेष वोधा इति get जगहुरः |

` अक्षपोड।मगणयन्रुलुनेव पथा ययौ भभवत्पदसश्चारसुखमोभ्रूतवालु कम्‌ | उदपानावहल्कुख्धं शष्क अजेरपादपम्‌ < जोर्शपश्च वयास्तौश्पं RG वरो कपव्वतेः | शलोभूतोटजं Mace न्यविशत प्रभुः १० तव्र चाथ जगत्राधो यलमण्डपिकान्तरे

went प्रतिमया नासाप्रान्तविग्रान्तलोचनः ११॥ ततो efefaa: aa: सदर्प्पो शमित बहिः। बिलाबिरसरल्जिद्ना कालरातिसुखादिव १२॥

१४

BANS

भ्रमन्‌ सोऽनुवनं रेणएसंक्रामदोगलेखया | स्वान्नालेखामिव लिख्त्रोच्ता्चक्रो जगद्गुरम्‌ ११ wa at किमविन्नाय किमवन्नाय कोऽप्यसौ `

or: प्रविष्टो frre निष्कम्पः gaa सितः १४ तदेनं भस्मसादद्य करोमोति विचिन्तयन्‌ i आध्रायमानं कोपेन फटाटोपं चकार सः १५॥ ज्यालामालामुहमन्त्या निहन्या लताहु मान्‌ | भगवन्तं हशापश्यत्‌स्फारफृलत्कारदारुखः १६ ` टरिव्वालास्ततस्तस्य saat भगवत्तनो | विनिपैतुर्दरालोका seat इव दिवो गिरौ १७ प्रभोर्मद्ाप्रभावसख प्रभवन्ति नेव AT: | महानपि wend किं कम्मयितुमोण्वरः १८ दारुदाष्टं दग्धोऽसावद्यापोति क्रुधा ज्वलन्‌ |

दशै दशे दिनकरं दृग्च्वालाः सोऽसुचत्पुनः १८ सम्प्रब्रासु प्रभौ वारिधाराप्रायासु ताखपि।

ददंश SAMA निःशुकः पादपष्कजे॥ २० दष्टा दष्रापचक्राम खविषोद्रेकदुग्भदः | AMARA गण्वो यादेष मामपि ॥२१॥ दशतोऽप्यसक्लत्तस्य विषं प्राभवक्रभो |

“MATa धवलं Had रक्तमत्तरत्‌ २२॥

ततश्च पुरतः खित्वा किमेतदिति चिन्तयन्‌ |

NAIR जगन्नाथं वोक्तापन्रः पत्रगः॥२३॥

WA. WAT: | १५

ततो निरूप्य रूपं तदनुरूपं जगहुरोः | कान्तिसौम्यतया मङश्ु ` विध्याते तदिलोचने २४॥ उपसन्रं तं न्नाला aura भगवानिति।

वण कौथिक qare AWTS ननु मासुष्ः WAY Wl खुत्वा तद्धगवदाक्षमू हापोषं वितन्वतः

CATS समुत्पेदे स्मरणं पूव्वेजन्मनाम्‌ २६

a fa: प्रदचिशोह्त्य aq परमेश्वरम्‌ | निष्कषायः सुमनसाऽनशनं प्रत्यपद्यत २७ marae निष्कश्मीणं awry | प्रणमापनत्रमनत्रासोदन्वन्नासोज्च तं प्रभुः र८॥

कु वराप्यग्धत्र मा armiefea fanaa

दति qe विले चिप्ला पयो समतामतम्‌ २८ तस्यौ तथेव तन्नैव खामी तदनुकम्पया ..

- परेषामुपकाराय महतां fe waa: ३०॥ भगवन्तं तथा cer विसख्मयस्मेरलोचनाः; |

गोपाला AMATATS AAAS AA ३१ surat तिरोभूय यथेष्ट म्रावलोष्ुभिः। प्रशिजन्नुरनिप्नास्ते पव्रगस्य ATTA: ३२॥ तथाप्यविचलन्तं तं ater विखम्भभाजिनः | य््टिभिरष॑द्यामासुनिकटौभूय तन्तनुम्‌ १२ WS जनानां ते गोपास्ततस्तज्रागमन्‌ जनाः | ववन्दिरे महावोरममहंख महोरगम्‌ २४

१६ . ` योगशास्त्र

छत विक्रय करि TTT THAT नागं ईेयङ्कवोनेनाम्ब्यन्‌ पर्णश्च तम्‌ २५ WIT छतगन्धेन तोखतुण्डाः पिपोलिकाः | , चक्रिरे तितडप्रायमहेस्तस्य कलेवरम्‌ २९॥ wera कियदेतदित्यास्ानं विबोधयन्‌ | ३दमामधिरेह तां दुःसष्ां aisfegwa: ३७ वराक्मो माख पोचयन्त wear: पिपोशिकाः बूत्यचोदलदङ्गन मनागपि मषोरगः॥९८॥.. fam: कपासुधादठस्या स्या भगवतोरगः | uaa पश्यतां प्राप्य सडस््ारदिवं ययो १८ विदधति विविधोपसगवार्धां ufeafa हृ्टिविषे wa तु भक्तिम्‌ | इति तुष्यमनस्कता शशंसे चरम जिनस्य जगच्चये कबन्धो: १४० २॥

प्रकारान्तरे पुनर्योगगभाभेव सुतिमादइ-- ` क्रतापराधेऽपि जनै क्रपामन्धरतारयोः वैद्यादयो द्रं श्री वीरजिनभे्रयोः विदहितविप्रिथेऽपि जने सङ्मकादौ कपया Hat CAAT तारे

कनो निक्षे ययोः शषदाष्यशश्ुजलं कर्व्ाक्षत एव तेन TE faa भगवतो ay तयेभद्रमिति सामब्याबरमस्कारम्रतोतिः।

तधाहि--

प्रथमः प्रकाशः। | १७

अनुग्राममनुपुरं विहरन्‌ विभुरन्धदव +. टृढभूमिमनुप्राप बडन्बेच्छकुलाकुलाम्‌ १॥ . पढालम्रामं निकषा पेढालाराममन्तरा | कछताष्टमतपःकन्ा Tard चेत्वमाविशत्‌. vz a जन्ूपरोधरहितमधिष्ठाय fraraay t आजागुलम्बितभुजो दरावनतविग्रषः wed ख्थिरोक्लतान्तःकरण्ो निनिभेषविलो चनः | तसौ ततेकराज्िक्धा महाप्रतिमया प्रभुः + + तदा क्रः Barat सभायां परिवारितः सहसेखतुर्यौत्या खामाजिकदिवौकसाम्‌ + तयस्िंशस््रायस्िं शैः पषदिस्तिङभिस्तथा चतुर्भिर्लो कपयलेख संख्यातोतेः प्रको केः ` प्रत्येकं AYU CACC: | दृढाबद्दपरिकरः aay चतद्ष्वपि सेनाधियतिभिः सेनापरिवोतेख aah: | देवदैवोमसेरा भयेभ्यः किरिबिषिकादिभिः qaaarfefa: कालं विनोदे रतिवा इयन्‌ मोपा दलिषलो कार शक्रः सिंहासने खितः nee परवधिन्नानते ज्राल्ला भगवन्तं तधषखितम्‌ | : खल्याय पादुके UMMAH विधाय १० जान्दक्व्यंभुवि न्धस्य सव्यं न्ध्या किञ्चन्‌ | WADARS भूतलन्धस्तमस्तकः १११

R

१८

AVANT

ATMA सव्यङ्गोदश्वद्रोमा्चकच्युकः। शचोपतिरुवाचेदमुदिश्य सकलां सभाम्‌ १२ भो भोः सर्वेऽपि सोध्धवासिनस्रिदशोत्तमाः | षुत खोमहावोरस्वामिनो महिमाद्धुतम्‌ १२ दधानः पञ्चसमितोर्गभिवरयपविवितः। .. क्रोधमानमायालोभानभमिभूतो निरास्रवः १४॥ द्रव्ये चेते काले भावे चाप्रतिबदधोः।. रुचेकयुदलन्धस्त नयनो ध्यानमाख्ितः १५॥ भमरेरसरेयेक्षेर्षोभिङरगनरः।

अेलोक्षेनापि शक्येत ध्यानाच्चालयितुं नहि १६ CATHY वचः शाक्रं शक्रसामानिकः सुरः ललाटप्रहषरितयकुटोभङ्गभोषखः १७ कम्ममानाधरः कोपान्नोहितायितलोचनः | अभव्यो गाठमिष्यावसङ्गः HAAS १८ मत्यः AACA SG यदेवं टैव व्यते |

च्व च्छन्दं UUs प्रभुत्वं AT कारणम्‌ १८ देवेरपि चास्थोऽयं ध्यानादिल्यदनटं प्रभोः! . . , कथं धार्येत Wed WA वा प्रोच्यते कथम्‌ २० रुदाग्तरि्ःशिखरेमलेरुहरसातलः |

a: किलोदसखते दोष्णा सुभेरर्लोषटुलोलया २१ सकुला चलमेदिन्धाः श्ञावनव्यह्मवेभवः। येषाभेषोऽपि गण्डषश्चकरो मकराकरः २२॥

प्रधमः प्रकाशः |

अष्येकभुजद ण्डेन प्रचण्डाग्डतवलोलया |

उच्चरन्ति सहानेकभूधरां ये वसुन्धराम्‌ २१ तैवामसमक्छदोनां सुराशामभितौलनसाम्‌ | इच्छासम्प्ब्रसिचोनां aera: कियानयम्‌ २४ एषोऽहं चाशयिष्यामि तं ध्यामादिव्युदोओ a: | AY भूमिमाहत्योदस्थादाख्यानमण्डपात्‌ ५२५ अन्तः परसाहाखात्तपः दुर्वन््खर्डितम्‌ 1 मान्रासोदिति gafe: शक्रेण उपचितः २९॥ ततो बेगानिलोसत्पातपतापतचघनाघनः | रोद्राक्षतिर्दृरालोको मयापसरदष्सराः २७ विकटोरखलाचातपु्ितग्रहमण्ड़लः |

पापस्तव्र गतवान्‌ यत्रासौोत्परमेश्वरः २८ निष्कारणजगदन्धु निराबाधं तथासितम्‌ |

MAL पश्यतस्तस्य Ha वहधेऽधिकम्‌ २८ गोव्याशपांसनः vigafe दुष्टोऽतनिष्ट सः | अकाणडछवरितारिष्टासुपरिष्ठाल्नगग््मरभोः २० विषुविशन्तुदेनेव दुरदिनेनेव भास्करः |

पिदधे पांशपूरेण सब्वाक्गो णं जगत्सु: २१ समन्ततोऽपि पूशौनि तथा ओखोतांसि aif: | यथा समभवत्खामो निश्वासोच्छासवल्लितः ३२ तिलमात्रमपि ध्यानात्र चचाल जगहुसः | कुन्नाचललति किं गजे: परिणतेरपि ३२

१९

२९

; योगशास्त्र

भपनोय ततः cia’ aq: पिपोलिकाः समूुत्पादयामास प्रभोः सव्याक्रपोलिकाः १४ प्राक्शिन्नेकतोरङ्गेषु at निययुरन्यतः |

विष्यन्तस्तोखणतुण्डायेः सूच्यो निवसनेष्विव yay

निर्भौम्यस्येव वाच्छामु मोधघोभूतास्च॒ ताखपि

‘SSN रचयामास नाक्षत्यान्तो दुरामनाम्‌ ३६

तेषाभेकप्रहारेण र्ीर्गोच्तीरसोदरैः

रद्धिरभवन्राधः सनिख्ेर शूवाद्विराद्‌ ३७

बैरप्यस्षोभ्यमाणेऽथ THAI Tafa: | करे.प्रचण्डतुण्डाग्रा shearer एषैलिकाः waco Wt परमेशस्य निमम्नमुखमण्डलाः |

ततस्ताः समलच्यम्त रोमाणोव सष्टोधिताः २८ a ततोऽप्यविचलचित्ते योगचित्ते जंगद्ुरो |

महाहसिकां अक्र ध्यानत्रखननिखयो ४०॥ प्रलयाग्निस्फलिद्रगभास्तपस्तोमरदाङ्णेः | तैऽभिन्दन्‌ WATTS लाङ्कलाष्ुरकग्टकेः ४१ तैरप्यनाङुले नाथे कूटसष्कल्पसङुःलः |

सोऽनल्यान्‌ कल्पयामास नकुलान्‌ दशथनाकुलान्‌ ४२ खिखोति रसमानास्ते दं्ाभिभंगवत्तमुम्‌

. SVICSAM aa मांसखस्छान्यपातयन्‌ ४१

तेरप्यक्लतकछ्लत्योऽसौ यमदोदष्डदारणान्‌ ` भव्युत्कटफटराटोपान्‌ कोपाग्रायुङ्क्त TANT ४४

WAH: ATW | Re

waifac: arzardta महावोरं महोरगाः। अवेटयग्धहा वचं कपिकष््छलता इव ४५॥ TAY तथा तव्र स्फुटन्ति फटा यथा तथा दशन्ति यथाऽभनज्यन्तं दशना रपि ४६॥ उदान्तगरलेष्वेषु लम्बमानेषु TAG ।.

वच्दशनानाष् सूषकाशुदपोपदत्‌ ५.४७ MAY खनकाबरलुगेखेदन्तर्मुखेः खरः ` ` : मोमूयमाकशास्तव्रेव शते चारं भिचिचिषुः ४८ तेष्वप्यकिञ्िद्धतेषु भूलोभूत दव क्रुधा ` उष्ण्छदन्तमुखलं Weed Tees सः ४८ सोऽधावत्पादपातेन भेदिनं नमयज्रिव | उड्न्धुदस्तरस्तेन नभस्तस््रोरयन्निव ५० .

` कराग्रेण Plat चं दुर्वीरेण वारणः | दूरशुन्ञालयामास भगवन्तं नभस्तले ५१४. fara aon गच्छत्वसाविति दुराशयः . दम्तावु्रम्य व्योखः पतन्तं स्म प्रतोश्छति a ५२॥ पतितं दन्तघातैन विध्यति ayy: |

वक्षसो वक रिनात्‌ समुत्तस्थुः स्फुलिङ्गकाः ५९१ शशाक वराकोऽसौ कर्त किञ्चिदपि दिषः।. याव्षावस्सुरक्रो करिषीं वेरिणोमिव wus a ्रखण्डशण्डदन्ताभ्यां भगवन्तं fate ar |

St शरोरनोरेख विषेशेव सिषेच ५५॥ ...

योगशास्त्रे ` .

करेथो रेणसाद्गते तस्याः सारे सुराघमः | पिशाषरूपमकरोश्नकरोकटदं कम्‌ ५९ च्वालाजालाकुलं व्यान्तं वायत वक्घकोटरम्‌। ` अभवद्गोषणशं तस्य व्किकुणड मिव च्वलत्‌ ५७ यमौकस्तोरखस्तम्भाविव प्रोक्तभ्भितौ भुजौ | अभूच तस्य ATE YW तालटुमोपमम्‌ ५८॥ साृहासः फेल्कुवेन्‌ स्मु्जत्किलकिलारवः।

` छत्तिवाखाः कतृकाखद्गगवन्तसुपा द्रवत्‌ ५९ ` afaafa fe विध्या स्ौणतेलप्रदोपवत्‌ व्याघ्ररूपं क्रुधाघ्रातः we चक्रे fare: ९० भथ पुच्छच्छटाच्छोटेः पाटयन्निव मेदिनोम्‌ | वृल्कारप्रतिथब्देच रोदसीं रोदयज्निव ९१ दं्ाभिवेचसाराभिनखरेः शूलसोदरैः |

भव्यं व्यापिपन्तिं व्याघ्रो भुवनभन्तरि ६२ तव विच्छायतां प्रापे दवदग्ध इव Za | सिद्वाथैराजज्ि्लादेव्यो रूपं व्यधत्त सः ६२ किभेतद्गवता तात प्रक्रान्तमतिद्ष्करम्‌ |

प्रव्रज्यां मु मास्माकं प्राधेनामवजो गणः ६४ वद्वावशरणावावां त्यक्ञवाब्रन्दिविहैनः |

व्रायखेति खरर्हीनदोनेव्येलपतां तौ ९५ (युग्मं) ततस्तयोविलापेरप्यलिप्तमनसि प्रभौ

भावासितं दुराचारः स्कन्धावारमकस्पयत्‌ ६६

प्रधमः WATT: |

TATATara षदं सूदः | सादर Wet ` TRIS प्रभोः पादौ लत्वा खालोमकश्पयत्‌ gon तत्कालं उ्वालितस्तेन जज्वाल ख्वलनोऽधिकषम्‌ | पादमूले AAMT दवानलः ९८ A तप्तस्वापि प्रभोः खशस्येव योरषोयत `

ततः सुराधमशक्रो Tat SHUNT ६८ पक्षणोऽपि प्रभोः कण्डे कणेयोर्भुजद णयोः Mears शुद्रपक्िपच्राणि व्यलम्बयत्‌ ७० खगेख्यनखाघातस्तथा TE MA: |

यथा च्छिद्रश्यताकोणां aeaacirraag ॥.७१ तव्ाप्यसारतां प्रापे TAA पक्षपन्रवत्‌ | उत्पादितमहोत्पातं खरवातमजोजनत्‌ ७२ भ्रन्तरितै महाषटसास्त णोत्देपं समुरिकिपन्‌ - वि्षिपन्‌ पां शविचचेपं fey प्रावककंराम्‌ ₹.॥ सव्यैतो रोदसोगभं wags पूरयन्‌

SMTA वातोऽसौ भगवन्तमपातयत्‌ ७४ (युग्मं)

तेनापि खरवातेनापूशे कामो विनिक्भे

यु सत्वुलकलङ्कोऽसी rae कलिकानिलम्‌ ७५ i भूतोऽपि ्रमयितुमलङ्कर्ीशविक्रमः। , . . ` ` ्रमयामाक् चक्रखदत्पिणडमिव प्रभुम्‌ OG a भ्वम्यमाशोऽखेवावर्ेमेव तेन नभखता |

तदेकतानो vata मनागपि जहौ प्रभुः 9७

2४

OATS

qerararrentsad wyursta stefan: 1

-न सोभ्यते कथमहं भग्नागूयौमि तां सभाम्‌ ७८ + ATH ATTA ध्यानं WALA नान्यथा | चिन्तयितलेति चक्र कालचक्रं सुराधमः Woe अङ्काय तदयोभारषषस्रघटितं ततः |

उधार खुरः गेलं कौशासमिव Was: So प्रथिवीं weet छतं मन्ये प॒टान्तरम्‌ arma कालचक्रं प्रचिचेपोपरि प्रभोः ८१ ख्यालाजासेरच्छलङ्धिदिं थः wat: कदालयन्‌ | BAU जनदर्तर्यौवगश VAST ८२ ` कुलचितिधरलोदलमस्याखव प्रभावतः | ममणख्नाजानुभगवानन्तवसुमतोतलम्‌ ८१ एवम्भूतोऽपि भगवानंणोचदिदमख् यत्‌

. तितारयिषवो fad वयं संारकारण्म्‌ ८४

कालबक्रहतोऽप्येष WAS पञ्चतां यत्‌ |

अगोष्दरस्तदस््नाण्ासुपायः इषापरः ॥८५॥ =| ae ~

waqaqran: स्ुभ्येच्यदि कथश्धन |

इति बुद्धया विमानखः पुरोऽखादुवाच ८६॥

Apa तत्र तुष्टोऽसि सत्वेन तपसौजसा | प्राणानपेखभावेनारब्ध निवेदन ८७ पयं तपसानेन शरोरक्तेशकारिखा |

मडि area माकार्षीः WET यच्छामि far तव॥८८॥

प्रथमः WATT: | ga

द्च्छामातरेशं yore यत्र नित्यं मनोरधाः।

` किमनैमेव देहेन at खगे प्रापयामि तम्‌ ॥८्८॥ भनादिभवसंरूटकर्निर्मोक्षलकणम्‌ |. एकान्तपरमानन्दं ATS वा लां नयामि. किम्‌ ९० x अरशेषमण्डलाधोथमोलिलाशितश्याखनम्‌। `. | अथवान्रेव यच्छामि arated प्राज्यसदिभिः।९१॥ दलं प्रलोभनावाक्येरक्ोभ्यमनसि प्रभो {अप्राप्तप्रतिवाक्ापः पुनरेवमचिन्तयत्‌ ॥९२॥... मोघोक्लतसनेमेतम्मम ्क्किविजृश्मितम्‌ |. .. . ` तदिदानोममोधं MIAH कामशासनम्‌ ९३ यतः कामास््रभूताभिः कामिनोभिः कटालिताः। हृष्टा महापु्मासोऽपि Frat: पुरुषत्रतम्‌ ९.४ इति fafaa fata fafeen सुराङ्गनाः | तदिश्चमसहायान्‌ षट्‌ प्रायुख्क्ष wai ९५ MATA मन्तकोकिलाकलक््‌जितेः | कन्दर््पनाटकनटो वसन्तस्रीरयोभत ९६ .. मुखवासं सल्नयन्तो विकसन्नोपरेणभिः। Seats दिम्बधुनां Nagy veo ` राज्याभिषेक कामस्य मङ्कख्यतिलकानिव। सर्वाङ्गः केतकबष्याजालुव्यैतो प्राहडाबभौ wes a सहसरमयनोभूय नवनोलो ATTN |

| खसम्पदमिवोहामां पश्यन्तो शशमे शरत्‌ ९९ .. 8

, SMe ..

जयप्रशस्तिं कामस्य श्वेता्षरषडोदरः। हेमन्तयो लिलेखेव WaT: कुन्दकुड्मलेः १०० गणिकैवोपजोवन्तो हेमन्तसुरभोसमम्‌। grew सिन्दुवारे धिशिरयोरचोयत एवसुजम्भमाशेषु सवबर्तषु समन्ततः | मोनध्वजपताकिन्धः प्रादुरासन्‌ सुराङ्गनाः सक्तो तमिव ware: पुरो भगवतस्सतः | ताः प्रचक्रभिरे se मन्तास््नमिव माग्मयम्‌ २॥ "तव्राधिसजरितलयं गान्धारग्राम'बन्धुरम्‌ काभििद्दगोयन्त जातयः शदवेसराः ATH मगेस्तानेवयकेव्यच्नमधातुभिः ` प्रवोणावादयदौणां काचिव्छकलनिष्कलाम्‌ ५॥ स्फुटत्तकारधोषारप्रकारर्मेषनिखनान्‌ | काचिच्च वादयामास्रमृदद्कंस््िविधानपि a ६५. नभोभरूगतचारोकं विचिव्रकरणोद्धटम्‌ .. दष्टिभाैनवनवेः काञिदप्यनरोदरतुः

` इटाङ्गहाराभिनयेः सद्यस्तुटितकश्चुका | बश्रतो waufnd टोमूलं काप्यदोदगत्‌ द्छपादाभिनयनच्छलात्कापि मुहु इः | चार्गोरोचनागौरम्रुरमूलमदगेयत्‌

(१) तवाविङ्लि तक्यम्‌ | (१) छन्द्रम्‌

Wan, WATT, | 29

जथचण्डातकमग्रजिषटढोकरखलोलया

कापि प्राक्राश्यहापौसनाभमिं नाभिमण्डलम्‌ १० व्यपदिण्येभदन्ताख्यषहस्तकाभिनयं Fy: | गाढमङ्गपरिष्वङ्कसंन्ना काचिश्च निगमे १११ स्चारयग्यन्तरोयं नोवोनिविडनच्छलात्‌ | नितम्बबिम्बफलकं काचिदाविरभावयत्‌ १२॥. अङ्गभङ्गापदेथेन वश्षःपोनोब्रतस्तमम्‌ |

सुचिरं रोचयामास काचिद्‌ रुचिरलोचना १३१ यदि & वोतरागोऽसि रागे तन्रस्तनोषि किम्‌। शरोरनिरपेक्त्ेहत्ते aisha fai a aw १४॥ दयालुयदि वासि त्वं तदानीं विषमायुधाव्‌ अकार्डाल्टकोदर्डादस्माच्र AIT कथम्‌ १५१ उपेक्षसे कौतुकेन यदि नः प्रेमलालसाः | किञ्चिश्नावं fe aca मरणान्तं युज्यते १६ स्वामिन्‌ कठिनतां qq पूरयास्मस्मनोरथान्‌ | प्रा्धनाविमुखो माभूः काशिदित्युचिरे चिरम्‌ १७ एवं गोतातोदयग्रतेषविंकारेराङ्िकेरपि चाटुभिख सुरस्नोणां yet जगत्प्रभुः १८ एवं रात्रौ व्यतोतायां तसो विहरतः प्रभोः | FAUST षरमासान्‌ सुराधम उपाद्रवत्‌ १९

(` कच ais |

रथः 1 BUTT

भद्रक सुखं fae Gt भ्रम गतोऽयम्‌ ।.

Wear ब्रुवन्नेवं खिन्नः सङ्कमकोऽगमत्‌ २० weedfadara वराको व्रजिष्यति। शक्यते तारयितुमस्माभिरपि तारकैः २१॥ : एवं भगवतञ्िन्तां aaa गच्छति | हशावभरतां MIATA मन्यरतांरके १२२ २॥

एवं देवतां ममस्छत्य सुक्षिमागें योगमभिधिमुस्तच्छास्ं

प्रस्तौति |

श्रुताम्भोधेरधिगम्य सम्प्रदायाचचच सहुरोः ` खसम्बेदनतखापि arena विरच्यते

दह नानिर्थोतस्व योगस्य पदवाकप्रबन्धेन शास्रविरचना कर्त मुचितेति . योगस्य निहेतुको निण्यः ख्याप्यते शासनतो गुर- पारम्पर्ययात्‌ .खारुभवाश्च तं त्रिविधमपि क्रमेणाह garantie: सकाशादधिगम्य निर्णीय योगमिति शेषः | तथा गुरूपारम्पय्यात्‌ ` तथा खसम्बेदनादेवं विधा योगं निचित्य aera विरण्यते। एतदेव निव्यैहशे वच्यति |

या भाच््नात्खगुरोर्मुखादलुभवाच्ान्नायि fafa कचित्‌

योगस्योपनिषहिषेैकिपरिषच्ेतञ्चमत्कारिषो `

खोचौलुक्यकुमारपालदपतेरत्य्थैमभ्यधना-

दाचार्ययेण निवेशिता पथि गिरां Tease aT eee

प्रथमः प्रकाशः Re

: - -योगस्येव Arerarar—

योगः सव्व विपदल्लोविताने परशुः शितः

अमूलमन्ततन्तं Fare निहेतिधरियंः ५॥ खव्या विपद ्राध्यालिक-भाधिभौतिक-आधपिदेविकलसणाः लाखातिविततलाहन्नोरूपास्तासां वितानः समूहस्तत्र ate: परशर्योग इत्यन्यैपरिहारो योगस्य फलम्‌। उत्तरार्हेनाथेप्राभि- मोखला; परमपुरुषाधरूपाया मूलमन्वतन्तपरिहारेख कारं संवननं योगः काणं fe मूलमन्वतन्वेविंधोयते। योगस ञ्ूलादिरहित एव मोक्षलख््मोवगोकरणरेतुरिति ५॥ कारब्योच्छेदमन्तरेण विपल्ञ्षणशस्य काथस्यो च्छेदः शक्यः क्रियत

दति विपत्कारणपापनिघौवरेतुलं योगस्याह-- ` `

भूयासोऽपि हि पाप्मानः प्रलयं यान्ति योगतः ` चणडवाताहनघना घनाघनघटा इूव ` ` ` बह्ृन्धपि पापानि योगाग्मलयसुपयान्ति प्रचर्डवातोद्ुता भति चमा भेचचटा इव ६॥ स्वादेतदेकजन्मोपाखिनितं पापं योगः चि्यादपि भनैकभवपरम्मरोपात्तपापस्य तु frat | योगादसश्चावनोयमित्याह-- `

लिणोति योगः पापानि चिरकालाखिजि तान्यपि प्रचितानि यघेधासि चषणादेवाशुशुक्षणिः

Ro MANA

` यथा चिरकालमोलितान्यपोन्धनानि चषणमाव्रप्रचितोऽप्यक्लश्ः छथानुर्मस्मषाकरोति | एवं योगः स्षणमातेखेव चिरसञ्धितपाप- ayaa भवतोति

DTS फलान्तरमाहइ-

` कफविप्ररमलामथेसर्व्वषधिमह्ैयः | सम्मिन्रण्ीतोलथिश्च योगं ताण्डवडम्बरम्‌

महरि शब्द; प्रत्येकमपि सम्बध्यते कफ aur farsa: परोष- भिति यावत्‌। मलः कर्शदन्तनासिकानयनजिद्नोदडवः रोर- सम्भव | wast दस्तादिना खः सव्वं विरमूत्रकेशनखादय Sat अनुज्ञा भौषधयो योगप्रभावाग्महदेयो भवन्ति अधवा avert विभिन्ना एवाणत्वादयः। तथा ओखोतांसोद्दरियाणि संभिच्नानि सङ्गतानि एककशः सव्यैविषयेस्तषां afadtrad सौग ताण्डवडग्बर ष्दशितम्‌। |

ante योगमाहाव्याद्योगिनां कफबिन्दवः

सनल्कमारादेरिव जायन्ते सव्यैरकाद्िदः

सनत्कुमारो हि पुरा चतुधंक्रवत्तयभूत्‌ |

षट्‌ खण्डषटथिवोभोक्ना नगरे इस्तिनापुरे ५॥२॥

कदाचिच्च सुधश्मायां सभायां जातविस्मयः।

ed तस्याप्रतिरूपं वशयामास वासवः

(१) खग विकसितम्‌)

Waa, प्रकाश्चः। RR

Tie, सनत्कुमारस्य कुरुवंशथिरोमणेः

. यद्रूपं तदन्धत्र देवेषु मनुजेषु वा ४॥

दति प्रशंसां रूपसश्याश्रहधानावुभौ सुरौ

विजयो वेजयन्तख्च एथिव्यामवतेरतुः ततस्तौ विप्ररूपेण रूपान्वेवणरहेतवे |

प्रासादषहारि दृपतेस्तखतुदख्यसत्रिधौ भ्रासौत्‌ सनल्कुमारोऽपि तदा प्रारब्यमल्लनः सुक्षनिः येषनेपथ्यः सवाद्गगभ्यङ्गसुहहन्‌ VITA हारपासेन ददिजातो तौ निषेदितौ i न्धायवन्तीं चक्रवत्तीं तदानोमप्यवोविशत्‌ सनल्कुमारमालोक्छ विस्मयस्मेरमानसौ धूनयामासतुर्मौलिं चिन्तयामासतुञ्च तौ ललाट; पयेस्ताषटमौरजनिजानिकः।

मैत्रे कणान्तवियान्ते जितनोलोत्पललििषो १० # दन्तच्छदौ पराभूतपक्षविम्बोफलच्छवो निरस्तशक्िकौ कर्णौ कण्ठोऽयं पाश्चजन्धजित्‌ ११ करिगाजकराकारतिरस्कारकरौ भुजौ | खणंगेलगिलालक्छो विलुण्टाकमुरखलम्‌ १२ मध्यभागो खगारातिकिशोरोदरसोदरः। . ` किमन्यदस्य सवाङ्गलश्छोर्वाचां गोचरः १२ WHT कोऽप्यस्य लावश्छसरित्पूरो निरगंलः येनाभ्यङ्गं जानोमो च्योत्छ्योडप्रभामिव १४

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Ta वणयामास तथेदं भाति नान्यथा : मिष्या खलु भाषन्ते महामानः कदाचन्‌ १५॥ fa निमित्तमिहायातौ भवन्तो दिजसन्तमी | Ca सनलत्कुमारेख एष्टौ तावेवसूचतुः १६ MAULANA TATA ! yaa भवतो रूपं नरथादृल गोयते १० ` दूरतोऽपि carne तरङ्कितङ्कतूहलौ | विलोकयितुमायातावावामवनिवासव १८॥ वद्छमानं यथा लोके शखुवेऽस्माभिरङ्ुतम्‌ | wed au ततोऽप्येतच्छविधेषं fathead १८॥ . ` ऊचे सनत्कमारोऽपि सिितविस्फ्रिताधरः इयं fe कियतो कान्तिरङ्क$भ्यङ्कतरद्धिते ५२० इतो भूता प्रतोक्ेधां wears festa यावबिवत्येतेऽस्माभिरेष weary: २१॥ . विदित्ररचिताकस्यं भूरिभूषणभूषितम्‌

` खयं पुननिंरोचेधां सरब्रमिव काञ्चनम्‌ २२

ततोऽवनिपतिः ara कल्पिताकल्पभूषणः | साडम्बरः सदोऽध्यास्ताम्बररव्रमभिवाम्बरम्‌ २३२॥ maura ततो विप्रौ परोभूय aera: | मिदध्यतुख agd fawet cae तौ २४

Aga HAT कान्तिः तल्ञावश्मप्यगात्‌।

aaa मच्यानां सखिकं सर्वमेष fe ५२५॥

Waa. WATT: |

aa: प्रोवाच ती कस्मादृषृष्टा मां मुदितौ Gut कस्मादकस्रादघना विषादमलिनाननौ २९॥. ततस्तावुचतुरिदं सुधाम्वरया गिरा |

महाभाग सुरावावां सौध्मस्गवासिनौ २७॥ WAG शक्रशक्र स्वदूपवणनम्‌ |

अग्रहधानो ALE मल्यमुर्यागताविह २८ शक्रश वयथितं यादृक्‌ ‘aed वपुरो्तितम्‌ |

रूपं कूप तवेदानोमन्धाहटशमजञायत २८

परषुना व्याधिभिरयं कान्तिसव्यैसखतस्करेः |

देहः समन्तादाक्रान्तो निःश्वासैरिव दर्पणः २० यधा्थैमभिधायेति द्राक्किरोडहितयोस्तयोः | विच्छायं खं वृपोऽपण्यदिमभ्रस्तमिव दुमम्‌ a अचिन्तयच्च धिगिदं सदा गदपदं वपुः

सुघेव मुग्धाः कुवन्ति तम्ब तुच्छनुदयः १२ शरोरमन्तरुत्यन्ैव्यीधिभिविविधैरिदम्‌

SHI दारुणेदारु दारुकोटगणशेरिव ३१ ` बहिः कथश्िददोतस्मरोश्येत तथापि हि।

नेयग्रोधं फलमिव मध्ये क्मिकुलाकुलम्‌ ३४ र्जा लुम्पति कायस्य तत्कालं रूपसम्मदम्‌ | महासरोवरस्येव वारिशेवालवक्ञरो २५॥

(१) खग asta पुरोखितम्‌।

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! योगशास्त्रे

WO Waa नाशा रूपं याति पापधीः

जरा स्फुरति srt धिग्‌ खरूपं शरोरिणाम्‌ २९ रूपं लवखिमा कान्तिः शरोर दविखान्धपि |

संसारे तरलं सवे ङुश्ा्जल बिन्दुवत्‌ २७ भद्य्बोनविनाशस्य शरोरख शरोरिषाम्‌ | सकामनिव्जरासारं तप एव मशत्फलम्‌ ३८

दति सण्छातवैराम्यभावनः एथिवोपतिः।

प्रव्रज्यां खयमादिन्तुः सृतं राज्ये न्यवोविशत्‌ २९ गत्वोख्यामे सविनयं विनयन्धरसूरितः |

सव्वैसावद्यविरतिप्रधानं सोऽग्रशोन्तपः ४०

सजाव्रतधरस्यास्य दधानस्योश्वरान्‌ गुणान्‌ |

e fawta a ` agra : समत काग्रषेतसः ४१९॥

गाढागुरागवन्धेन सव्य प्रतिम खलम्‌ |

एष्टतोऽगात्करिकुलं महायु्पतरिव ४२ ( बुग्मं )

निष्कषायमुदासोनं निगमं निष्यरिग्रम्‌ |

तं पय्युपास्य weary कथच्चितन्रयवर्तत ४२ यथाविष्या्तभिश्षाभिरकालापष्यभोजनेः | व्याधयोऽस्य वदधिरे सम्पूशं दीहदेरिव ४४ कच्छुशोषञ्वरण्वासारचिकुच्यचिषेदनाः | सप्ताधिषेष्े पुष्यात सकप्तवषशतानि सः ४५॥ दुःस्ाम्‌ समानस्य AAAI Tes | sulafagual समपदम्त WaT: ४६

प्रचमः ARTA: | १५

अवान्तरे सुरपतिः wafer दिवौकसः |

इदि जातचमतकारचक्षारेत्यस्य वणनम्‌ ४७ खक्रवर्तिजियं ear प्रजयलसुणपूलवत्‌

अहो VATA Sa तप्यते दुस्तपं तपः ४८ # तपोमाहामयलब्धासु सव्वौखपि fe afary अरोरनिरपेलोऽयं aires चिकित्सति ४९ भग्रहधानौ वदपक्यं वेद्यरूपधरौ सुरौ |

विजयो वेजयन्तख तत्समो पमुपेयतुः ५० जचतुख महाभाग fat रोगेः परिताम्यसि वेचावावां चिकित्वो विश्वं ata भेषजैः ५१ यदि स्वमशुजानासि रोगग्रस्तद्यरोरकः।

azera निष्ङ्गोषो रोगानुपचितांस्तव ५२॥ तसः सनल्कुमारोऽपि mere भोिकित्सकोौ fefaur देहिनां रोगा gaat भावतोऽपि ue क्रोधमानमायालोभा भावरोगाः शरोरिणाम्‌ |

| जग्मान्तरसषस्रानुगामिनोऽनन्तदुःखदाः ५४ A तांबिकिस्ितुमोभौ tact तहि चिकिततम्‌ अधो fafa द्रव्यरोर्गास्तइत पण्यतम्‌ ५५॥ ततोऽङ्कलौं गलत्पामां Nat खकफविप्रषा

faar get रसेनेव द्राक्‌ सुवर्णोचकार सः ५६

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QQ) wwmy

२९

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ततस्तामङ्कलौं खणे ग्रलाकामिव भाखतौम्‌ |

UTA पादयोस्तस्य पेततुः प्रोचतुख तौ ५७ निरुरूपयिषु रूपं यौ त्वामायातपूव्विष्णो |

ताषैव तिदशावावां सम्प्रत्यपि समागतौ ५८ facafarcfa व्याधिबाधां सोढा तपस्यति | AHA भगवानितीन्द्रस्बामव णेयत्‌ ५९ # सवाभ्यां तदिद्ागत्य wage परोच्ितम्‌ | दूत्युदित्वा नत्वा त्रिदभौ तौ तिरोहितौ ६० एतत्रिदर्थनमानं wae: प्रदर्भिंतम्‌। `

लब्धान्तरकथा नोक्ता ग्रन्यगौरवभोरुभिः wae a

योगिनां योगमाडहाकयात्पुरोषमपि aera | रोगिणां रोगनाश्ाय कुमुदामोदशालि €२॥ मलः किल समाम््रातो दिविधः सब्वैदेहिनाम्‌ | कणनेवादिजग्मेको दितौयसतु वपुभवः ९३ योगिनां योगसम्पत्तिमादहात्यादहिविधोऽपि सः। कस्तुरिकापरिमलो रोगहा सव्वैरोगिणाम्‌ ९४ योगिनां arden: frafaa सुधारसैः। fautfa तत्वणं खवानामयानामयाविनाम्‌ ६५ नखाः केशा रदासखान्यदपि योगिश्षरोरगम्‌

waa भेषजोभावमिति सरव्वीँषधिः समृता ag तधाहि तो्धनाधानां यो गयचक्रवत्तिनाम्‌

दैष्ाशिशकलस्तोमः सव्वेखर्गेषु पूज्यते gon

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प्रथमः WATT: |

किञ्च-

भेघसुक्षमपि वारि यदङ्कसङ्गमाताब्रदोवाप्यादिगतमपि सब्वरोगहरं भवति तथा विषमूच्छिता रपि यदोयाङ्कसङ्किवात- स्यादेव निविषा भवन्ति विषसंप्ज्ञमप्यन्रं यशुखप्रविष्टमविषं अवति। महाविषश्याधिक्राधिता रपि यहचःखवष्माताद्यहथ- नाच्च वौतविकषारा wafer | एष सर्वोऽपि सर्वोषधिप्रकारः। एतै कफादयो महदहिरूपाः। waar aweat fafa एव वेक्रियालब्धयोऽनेकधा ्णत्व-महत्व-लघुत्व-गुरतव-प्रापि-प्राकाम्य- ईशित्व-वभित्व-अप्रतिघातिल-भन्तदीन-कामरूपिलादिमेदात्‌।

अणश्तमणुशरोरविकरषम्‌ येन विसच्छद्रिमपि प्रविशति |

तव चक्रव्षिभोगानपि yea) awe भेरोरपि महत्तर- शरोरकरणसामण्यंम्‌ | लघुत्वं वायोरपि शघुतरशरोरता Zee वजादपि गुरुतरथरोरतया ` इन्द्रादिभिरपि प्रक्ष्टवजेदुःसषहता |

प्रापिभूमिखस्य अङ्कल्यग्रेण . भेरुपव्यैताग्रमपि प्रभाकरादिष्यगे-

साम्यम्‌ waaay भूमाविव प्रविशतो गमनथल्तिः तथा अप्व भूमावुन्भव्जननिमल्लने ईशित्वं तेलोक्यस्य maa तोधकरव्रिदगेष्ठरऋऋछदिविकरणम्‌ वशित. सबव्वेजोववभ्ोकरण- लब: अप्रतिघातित्वं भरद्विमध्येऽपि भिःसङ्गगमनम्‌। श्रन्त- दीनमटृष्यरूपता कामरूपिलवं युगपदेव मानाकाररूप- fancanfa: | इत्येवमादयो AEA: अथवा. प्रक्लष्टशरुतावरण- वो्याम्तरायक्षयोपश्माविभूतासाधारणमहाप्र्रदिंलाभा STAT: इादशाद्गचतुदशपूवप भपि सन्तो यमथ agengell निरूपयति

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Qe ; : योगशाख्छ

तस्िन्‌ विषारलच्छेऽप्यर्थेऽतिनिपुषप्रन्नाः प्राज्ञयमणाः। भन्धेऽधौत- दथपूव्वा . रोहिषोप्र्रषयादिमहाविद्यादिभिरकृ्टप्रसेनिकाभि- र्य विष्यादिभिवोपनतानां qadtaratiat वशगा विद्यावेग- धारण्दात्‌ विद्याधरच्रमणाः। केचिद्दोजकोषटपदाुसारिवुिविशरेष- fegar: 1 सृजष्टवसमतोलते चेते चित्यदकाद्यनेककारखविरेषा- Qe बोजमनुपहतं यथानेकबोजकोटप्रदं भवति तवैव warac- शादित्षयोपश्यमातिशयप्रतिलम्भारेकाथेवोजखवके सति ata. बोजानां प्रतिपत्चारो . बोजवुयः . कोष्टागारिकखापितानाम - सङणोखनामविनष्टानां भूयसां धान्यबोजानां यथा कोरेऽवस्यानं तथा परोपदेथावधारितानां ओौतानामर्धग्रनयवौजानां भूयसामनु- खअरबमन्तरेशाविनरटानामवसखयानालकोष्ठबुदयः। पदानुसारिणोऽमु- ओतःपदानुसारिणः प्रतियोतःपदानुसारिष उभयपदानुसारि- we | तवादिपदस्ा्े ग्रन्धं परत पश्यत्य भामन्यपदादर्धग्रन्य- विचारणासमषंपदुतरमतयो ऽनुखोतःपदानुखारिवुदयः भग््पद- wt wt परत erga ततः प्रातिकृष्येनादिपदादा अर्धग्र्दविचारपटवः प्रति्ोतःपदालुसारिवुष्यः मध्यपदस्यां wei परकोयोपदेशादधिगम्बाद्यन्तावधिपरिच्छिवरपदसमू इ- परतिनियतावेयन्योदधिसमु्षरणशसम्धासाधारणातिशरयपटविच्चान- नियता उभयपदानुसारिवष्यः। बोजबुद्दिरेकपदार्थावगमादने काधानामवगन्ता UTA तवेकपदावगमात्पदान्तराशामव- मन्तेति faite: | तथा मनोवाक्षायबिनः। तच mee rere. वोयोन्तरायच्चयोपग्मविशेषेण वस्तुबत्यान्तमु त्तेन TART.

प्रथमः प्रकाशः। Re.

दध्यवगाहनावदातमनको मगोबशिनः। TEI सकलश्रुत- वस्तुञ्चारणसमथा वाग्बलिनः। अधवा पदवाक्षालङ्कारोपेतां वाचसुशेशचारयन्तो ऽविरडितवाक्क्रमाहोनकण्डा -वाग्बलिनः बोर्यान्तरायक्चयोपग्रमाविभूतासाधारणकायवलत्वायतिमयावतिष्- मानाः जमक्मविरहिता वर्षमावप्रतिमाधरा बाडइबलिप्रथतयः कायबलिनः। तथा ज्षोरमधसपिरगताख्रविषो येषां पात्रपतितं कदब्रमपि चौरमधुसप्पिरषतरसवीयेविपाकं जायते वचनं वा रोरमानखदुःखप्राप्तानां देहिनां सोरादिवत्सन्तर्पकं भवति तै चोरास्रविशो मध्वास्लविशः सयिरास्लविशोऽख्तासरविणख | afeedieftgma दहिविधा भत्तोणमहानसा wie महालयाख येषामसाधारणाम्तरायश्चयोपशमादल्यमाव्रमपि पाच्रपतितमन्रं गौतमादोनासमिषव wet टोयमानमपि सोयते तेऽच्तोणमङानसाः ब्र्तोणमहालयर्शिप्राप्तास्ं aa परि- मितभूप्रदेशेऽवतिष्ठन्ते तव्रासंख्याता ` रपि देवास्तियख्ो मनुष्या सपरिवाराः परख्यरवाधारदडितास्तोधेकरपषंदौव gear’ | afa प्रन्नाश्रमणादिषु मदाप्रन्नादयो मददयो ofan: |

सर्वेन्द्रियाणां विषयान्‌ णद्नात्येकमपोद्धियम्‌ यद्मभावेन afuaainafag सामता॥१॥८॥

त्धा-

चारशाभगोविषावधिमनःपर्यायसम्यदः योगकल्पदुमस्यैता विकासिकुसुमभिियः <

Be . ` योगशास्ते

अतिश्चयचरणाच्चारणा अतिश्यगमनादित्यधेः तस्षम्पच्रलब्धिरि- wa ्ामोविषलच्िनिग्रष्ानुग्रहसामव्यम्‌ अवधिन्रानलब्धि- मूसंद्रव्यविषयं श्रानम्‌। मनःपयायन्नानलस्िमनो दरव्यप्रत्यक्चौ- करणश्ल्धि;ः। एता लब्धयो AAMAS कुसुमभूताः फलं तु कैवलन्रानं ATA aT | भरतमर्देव्युदाहरणणाभ्यां TENA | ` तथाहि- हिविधाश्चारणा Sar जडगविदोल्यश्क्तितः | तत्राद्या सचकदोपं यान्तयेकोत्पातलोलया AA रुचको पादेकषेनोत्पतनेन तै नन्दोष्वरे समायान्ति हितोयेन.यतो गताः ॥२॥ ते चोध्वगत्याभेकेन समुत्पतनकर््मणा। गच्छन्ति पाण्डकयनं भेरूगेलथिरःख्ितम्‌ ततोऽपि वलिता एकोत्पातेनायान्ति नन्दनम्‌ | उत्पातेन हितोयेन प्रथमोत्पातभरूमिकाम्‌ विद्याचारणशास्तु गच्छन्येकेनोत्पातकम्मणा | मानुषोत्तरमन्धेन दहोपं नन्दोष्ठराद्यम्‌ तस्मादायान्ति चेकेनोत्पातेनोत्पतिता यतः यान््वाया म्ये मागेऽपि तिग्यम्यागक्रभेण ते अन्येऽपि बद्ुभेदाखारण्णा wafer) त्यया भाकाशगामिनः पर्यदगवखानिषख्ाः कायोत्छगशरोरा वा पादोत्केपनिचचेपक्रमा- हिना व्योमचारिणः। केचिश्तु जलजद्गफलपुष्यपत्रश्ष्यम्निथिखा- धूमनोडाराव्डायमेघवारिधारामक्ेटकतन्तुश्योतौरग्िपव नादा-

Waa. प्रकाशः Be

aaanfaaferaguan जलसुपेत्य वापो निज्रगासमुद्रादिष्व- प्कायिकजोवामविराधयन्तो जले भूमाविव पादोत्कैषनिकषेप- कुशला जलचारणाः। भुव उपरि चतुरङ्कलप्रमिते wend जद्ग- निचेपोत्कषेपनिपुखा जङ्ाचारणाः नानाहूमफलाग्युपादाय फला- खय प्राश्य विरोधेन Haast पाटोत्वेपनिचेपकशलाः फशलबारणाः | नानाहूमरतागुखपुष्याग्धुपादाय . पृष्यखच्छजोवानविराधयन्तः कुसुमतलदलावलम्बमसङ्गगतयः पुष्यचारणाः। मानाहक्षगुखमवोर- कताविताननानाप्रवालतरुणपल्ञवालब्बनेन पर्यसुच्छज्ञोवानविरा- धयन्तथरणोत्डेपनिश्चेपपटवः पत्रचारणाः। चतूर्याजनशतोच्छरितस्य निषधस्य नोलस्य चाद्रेटह्च्छित्रां चेणिसुपादायोपयधो वा पाद- पूवेकसुत्तरणावतरणनिपुष्णः सेखिचारणाः अम्निगिखासुपादाय तेजःकायथिकानविराधयन्तः खयमदद्यमानाः. पादविषशारमिपुशा अम्निभिखाचारणाः धूमवति तिरचीनामूष्गां वा भालम्बया- सतशितगमनास्कन्दिनो धूमचारणाः नोषारमवष्टभ्याप्कायिक- पोडामजनयन्तो गततिमसङ्गमामश्वाना नोहारचारणाः Wa- WANA तदाज्यजोवानुपरोेन यान्तोऽवष्यायच्ारणाः। नभोवक्मनि प्रविततजलधरपटलपटास्तरणे जो वामुपघातिचस्क्र- सणप्रभवो Hawa प्राहषेश्यादिजलधरादैवि मिगतवारि- धारावलम्बनेन प्राणिपोडामन्तरेण यान्तो वारिधाराचारणः। कुनठसान्तरालभाविनभःप्रदेशेष कुणठनलादिसम्बदम कीटकतन्धा- सम्बनपादोदरशनिशेपावदाता मकंरकतन्तुमच्छिन्दन्तो यान्तो मक्षटकतन्तुचारणाः | चन्द्रां ्रहनसत्रा्यन्यतमनज्योतौरम्मिसम्ब- 4

४२ योगशास्त्र

aa yata पादविष्ारकुशलाः च्योतोरख्छिषारणाः। पवने- ष्वनैकदिम्मखोग्भुखेषु प्रतिलोमानुलोमवन्तिषु antag. दाय गतिमख्वलितच्रणविन्धासामास्कन्दन्तो वायुखारणाः |

तपरलमाहाव्मयाहुशादितरतोऽपि वा

साशोविषाः समथः स्यर्निग्रहेऽगुग्रहेऽपि १॥

` दष्याखि सूत्तिमनग्येव विषयो यस्व सर्व्वतः |

नेयत्यरहितं श्रानं तब्छादवधिल्वणम्‌

स्यामनःपरव्व॑यो श्रानं मनुष्वचेत्रव्तिनाम्‌

प्राणिनां समनस्कानां मनोद्रव्यप्रकाशकम्‌

waa विपुलेति स्याकनःपययो इदिधा |

विशचाप्रतिपाताभ्यां fagag विशिष्यते a neo

केवलन्नानलक्षणफलोपदशनेन योगभेव स्तौति- अरो योगस माम्य प्राज्यं सामाज्यसुदइन्‌ अवाप केवलन्नानं भरतो भगताधिपः १०॥ अदो बत्याखय्यं प्राच्यं पुष्कलं साम्राज्यं चक्रवर्तित्वसुदहमेव

पुनख्यक्षराश्य सम्पत्‌ भरताधिपः षटरब्च्छभरतचैत्रखामो | तधाडि-- एतस्वामवसर्प्पिष्याभेकान्तसुषमारकै | सागरोपमकोरोनां चतुष्कोटिमिते गते १॥ सागरोपमकोटोनां तिदधभिः कोटिभि्भिते। . अरक्षे सुषमानानि हितोयेऽपि गते सति ॥२॥

Waa. प्रकाशः |

लहिकोटाकोरिमिते सुषमदुःषमारके |

पल्लयाषटम शेषे दसिषारदस्य भारते ३॥ सप्ताभवन्‌ कुलकरा इमे विमलवाइनः। aguia amet चाभियन्द्रोऽच प्रसेनजित्‌ ४॥ मर्देवख नाभिश्च तत्र नामेगृदिण्यभूत्‌ | सर्देषैति सच्चछोलपवितितजगचया ५॥ ठतोयारसख्व शेषेषु पवलचेषु संख्यया |

TUM साश्टमासे वषन्रथेऽपि wa ९॥ तस्या Bat सर्वायैविमानादवतोणंवान्‌ | चतुर्गमहाखप्रसूचितः प्रथमो जिनः ARTA AQSATT तदा सम्यगजानतोः | सप्राधेमिन्द्राः सर्वेऽपि व्याचक्रुः प्रमदोश्मदाः॥ ततः सुखेम जातस्य शभ डि परमेशितुः | षट्पञ्चाशत्‌दिक्लुमायः सूतिकन् प्रचक्रिरे aes भेरुमूषं fa Tart कलोजङ्गे दिवस्पतिः

| नौर्धौद कोरभ्यषिश्चत्ख इषाशरुवारिभिः १०॥ वासवेन ततो मातुरपितस्य जगद्गुरोः |

_ धाव्रोक्ाशि सव्वाखि विदधुविवुधस्त्रियः ११ fade ऋषभाकारं wand efa® प्रभोः | wag: पितरौ नाम ऋषमेति प्रमोदतः १२ Ware SecA सुधारश्मिरिव wy: | विदशाहारयोगेन पोषितो aad क्रमात्‌ ११॥

४३

OTe

सन्येदुर्यसदामीश डपावितुसुपागतः |

अधिन्तयद्गवतो वंशः इड कल्पताम्‌ Ws wane तदाकूतमवधिन्नाननो fay: | तत्वरेच्चलतां लातुं करोव acafaay १५१४ तां समपय area: प्रणम्य विौजसा इच्छाकुरिति वंश तदा नाम प्रतिष्ठितम्‌ १९॥ वास्यं कर्य सिवोक्ष्धय मध्यन्दिनिमिवाय्यंमा |

, विभुर्भिभक्षावयवं featd शिचिये वयः + १७

यौवनेऽपि खट्‌ रक्षौ कमलोदरसोदरौ उष्णावकम्प्रावखवेदौ पादौ समतलो प्रभोः १८॥ नतार्भिष््छेद नायेव प्रपेदे चक्रमोशितुः |

; सदाखितखो करेणोरिव दामाद्शध्वजाः १८

स्वामिनः पादयोलश्मौणोलासदनयोरिव TER तले पार्ष्णो खस्तिकख विरेजिरे rou मांसलो वक्तं लुङ्गो भुजङ्गमफणोपमः | wee: खामिनो वत इव खौ वत्छलाच्छितः २१॥ प्रमोभिवीतनिष्कम्पाः जिग्धदोपभिखोपमाः ` नोरन्धा WHAT दलानोव पदान्नयोः २२ AMAA TARA: पादाङ्गलितलेष्वभान्‌ | यदिम्बानि सितौ waufaereqat aq: १२२ 0 यवाः पवैखङलोनामधोवापोभिरावभुः

उपा इव AMMA विवादाय जगग्मभोः २४

प्रथः WATT: |

कन्दः पादाम्बुजस्येव पाशि व॑त्तायतः Ty: | अङगहाह्लिफणिनां फणामणिनिभा नखाः ५२५॥ हेमारविन्दसुक्ललकखिकागोलकचियम्‌

गूढौ Beart वितैनाते नितान्तं खामिपादयोः ५२९ प्रभोः पादावुपर्यामुपूष्य Barra | सप्रकाथसिरौ जिग्धच्छवो लोमविवजितौ २७ प्रन्तमेम्नाखिपिशितपुष्कले MATS | UWetay fers tera aE गौर्यो जगत्पतेः २८ जागुनो खामिनोऽधातां ate मांषपृरिते। तूलपृपिधानान्तःचिघ्दपणकूपताम्‌ २८

ऊरू Beet जिग्धावागुप्वयेख पौवरौ | चिमराश्क्रतुः प्रोढकदलोस्तश्भविश्रमम्‌ 2०॥ खामिनः कुष्लरस्येव मुष्कौ गूढौ wafer अतिगढं पुंचिङ्ं कुलोनस्येव वाजिनः ३१॥ तच्चासिरमनिनोशमङखादोधेमञ्चथम्‌ |

सरलं खदु निर्लोम वर्तुलं सुरभोन्द्रियम्‌ १२

` शओोतप्रदसिषावत्त यब्दयुक्लेकधारकम्‌ | भयोभव्सावन्तोकारकोशस्थं frat तधा २३ भायता मांसला स्थला विश्याला कठिना कटिः मध्यभागस्समुतेन कुलिशोदरसोदरः ३४ नाभिबेभार wetter सरिदावन्त विश्वमम्‌

aut चिग्धी मांसवन्तौ कोमलौ सरलौ समौ ३५॥

४४

४६

` योगश्च

अधादसःखलं सरशिलाण्यलसुग्रतम्‌ | ओवन्सरब्रपो ठाङ्‌ योलोलावैदिकाथियम्‌ २६ हठपौनोन्रतौ स्कन्धौ कङ्द्मकङ्दोपमौ | TAA कचे गन्धस्मेदमलो किते gow पोनौ पाणिफखिच्छतौ भुजावाजानुलम्बिती |

` चद्छलाया नियमने नागपाशाविव fara: ९८

नवास्रपन्नवातास्रतसतौ निष्कमकद्कभौ

अखेदनावपच्छिद्रावुष्णौ पाणो जगत्पतेः २९ `

द्छचक्रधनुमब्यत्रोवसकुलिगाङ्ुत्रः | WAHT ATS AMPH: ४०॥ ` मकरपभसिंडाश्चरथसखस्तिकदिम्गजैः | प्राषादतोरदौपेः पाशो पादाविवाङ्कितौ ४१॥ AEST AT: शोणाः सरलाः MCI FTA: | WUT इव Heal: प्रान्तमाशिक्यपुष्पिताः ४२॥ यवाः सटमशोभन्त खामिगोऽङ्गहपब्वेसु aaa पु्टिवेशिष्टयहेतवः ४१

भङ्कलो मूषसु विभोः सवसम्प्तिशं सिनः |

दधुः प्रदध्धिशावत्ता दत्तिशावन्ते शङ्ताम्‌ ४४ छच्छादुदरणोयानि जगन्ति तौष्यपोत्यभान्‌ | संख्यालेखा इव तिखो लेखा मूले करानयोः ४५॥ वर्त॑लोऽनतिदौघ॑ख लेखात्रयपविव्रितः | गग्मोरध्वनिराधत्ते कणठः कम्ब विडम्बनाम्‌ ४६

प्रथमः प्रकाशः

विमलं वर्तुलं कान्तितरङ्किः वदनं विभोः पोयुषदोधितिरिवापरो 'लाष्छनवल्नितः ४७ AU मांसलौ जिग्धौ कप्रोलफलकौ प्रभोः. दष्यणाविव Naat वाम्बच्छोः सहवाषयोः ४८॥ अन्त रावत्तसुभगौ कर्णौ स्कन्धाम्तलस्बितौ | प्भोर्सुखप्रभासिन्धुतीरसये शतके श्व ४८ sie} विम्बोपमी दन्ता हाविंशल्कुन्दसोदराः | क्रमस्फारा क्रमोुङ्गवंशा नासा महेशितुः ॥५०॥ wale चिवुकं मांसलं viet खदु

aaa बदरं far कोमलं wry तायिनः ॥५१॥ प्रत्वग्रकल्पविटपिप्रवालारुणकोमला i

प्रभो लिविद्ान तिखूला हादशाङ्गगगमा्धेषुः ५२॥

न्तरा WAIT प्राम्तरक्ते विलो चने नोलस्फटिकशोणाश्ममणिग्धासमये इव ५३॥. ते कणान्तविय्ान्ते कल्ललश्चामपच्छणो | विकस्वर तामरसे निलोनालिक्रुते इव ॥.५४॥ बिभराद्क्रतुभर्तः श्यामले कुटिले श्वौ |

हटि पुष्करिणोतोरसमुद्धिबलतासियम्‌ ५५॥ ,. विशालं मांसलं हन्तं ag कठिनं समम्‌ | AAAS जगङर्सुर्टमोसोमसोदरम्‌ ५९ भुवनखाभिनो मौलिरागुपू््यां ayaa: | दधावधोमुश्डोभूतच्छनसब्रह्मचारिताम्‌ ५७

४3

ye

| Tame | मौ लिच्छबे महेशस्य aneinasifafa |

ठन्तमुततुङ्गसुष्योषं fata कलगच्रियम्‌ ५८ कैशाशकाभिर सि प्रभोभ्जमरमेचकाः।

Bram: कोमलाः जिग्धाः कालिन्द्या इव tea: ॥५९॥ गोरोचनागभगौरो जिग्धखच्छा त्वगावभो

| wugafafana तनौ विजगदोशितुः ९०

खटूनि आमरण्लामान्यदितोयोदमानि | बिसतन्तुतनोयांसि लोमानि खाभिनस्तनौ vce a उत्फुल्ञङुमुदामोदः शासो विखेतरत्पलम्‌

गोक्तोरधाराधवलं रुधिरं जगत्पतेः ६२ इत्य षाधारणेनानालसयेललितः प्रभुः

CH रत्नाकर इव सेव्यः कस्येह नाभवत्‌ ६२ WAY: क्रीडया क्रोडदालभावानुरूपया | मिथो भिथनकं किञ्चित्तले तालतरोरगात्‌ ६४ तदेव देवदुर्यो MT MMA ATCA

तडिदण्ड दवे रण्डेऽपतन्तालफलं महत्‌ ६५ प्रहतः काकतालोयन्धायेनाग्बेव TAF ey | विप्रब्रो दारकस्तन्र प्रथमेनापमत्युना + ६९॥ ware गते तस्िंस्तहितोया नितम्बिनो | quer कुरङ्गोव पिंक संम्यजडामभवत्‌ ९७ अकाण्डमुदराघातेनैव ATTA | बभवुमूच्छितानोव मिधुनान्धपराख्छपि ९८

प्रथमः प्रकाशः ४९

तामि तामभ्रतः wat नारीं पुरुषवस्निताम्‌ किंकसषष्यविमूढानि खोनामैरुपनिन्धिरे ge एषा हवभनायस्य घन्मएतरी भविति nfasrare at a भिरने्रकंरवकौसुदोम्‌ ७० अन्यदा तु "विभोरुयदमाम्मोगफलकस्मणः | भागादिन्द्रो विवाहा हन्दारकगणशान्धितः ७१॥ ततः खणंमयस्तम्धभ्चा जिष्णुम णिपुतिकम्‌ अभेकनिगेमदहारमकाषुमण्डपं सुराः ७२ श्वेतदिष्यां शुको ल्लोचच्छलेनं गगनख्या | गङ्कयेवाचितः सोऽभूहूरियोभादिष्ट्षया og तोरणानि चतुर्दिक्षु qaqa: |

तव्राभूवन्‌ घनूषोव सख्जितानि मनोभुवा ७४ चतस्रो रब्रकलशथ्रेणयोपअ्रंलिहाग्रगाः | पसस्याप्यन्त देवोभिमिधानानि रतेरिव ७५ वषुमण्डपदहारे Saad पयोमुचः |

चक्रे मध्ये सुरोभिभूः पर्ठिला यथकह्मेः nog वाद्यमानेषु GAY MAA APA | अवादयत्रगायं प्रतिब्दे दिगङ्गनाः ७७ सुमङ्गलासुनन्दाभ्यां कुमारोभ्याम कारयत्‌ | वासवः परमेशस्य पाणिग्रहमश्ोस्वम्‌

(१) कष्ठ विभोरभ्यद्यद्मोगफणजरम्प्मः। (2) खग .अभ्वलिङायकाः। ©

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ततः YAFASAl Sa: प्रतमङ्गला

GIA UCAATUT FAST अजोजनत्‌ शलोक्छजनितानन्दा सुनन्दा सुषुषे युगम्‌

gary बाहवलिनं सुन्दरौ चातिसुन्दरोम्‌ ८० प॒नरकोनपर्चाशत्पुयुगानि सुमङ्गला |

असूत बलिमो मूत्तौन्‌ देरुप्ये्ैव मारतान्‌ ८१ अन्येदयुरन्धाय शति पूत्कारोदतबाडहभिः माभिव्यन्रपि सम्भूय सर््मिथुगकलेरिदम्‌ ८२ तिस्रो इकारमकारधिक्षाराख्याः BANAT:

मच्छनतोऽधुना पुश्मिः कुव्यैद्विरसमस्ञसम्‌ ८३ ततः कुलकरोऽप्युचे ्रातास्नादसमच्सात्‌ |

एष वो षमः खामो ACA तदाश्चया # ८४ तदा ङुलकरान्नातः we राज्यस्ितिं स्फुटाम्‌ ` प्रसुरज्रानव्रयमयो मिथुनान्येवमन्बध्रात्‌ ८५ राजा भवति म्यादाव्यतिक्रमनिरोधकः। तस्मोच्ासनदानेनाभिषेकः क्रियते जसः ८६ mre वचनं wee सर्वे TREATS: तच्छिचया ययुः पपुटैजलजिष्ट्षया ८७ तदा चासभगकम्पेनावधिन्नानप्रयोगतः | विच्नातभगवद्राज्यसमयः शक्र भ्राययो ८८.॥ दत्र सिंहासनेऽध्यास्य वासवः परमेष्बरम्‌ | arareasfufataraam सुकुटादिभिः ८८

प्रधमः AAT: | ५१

इतख्ाम्मी जिनोपब्पुटे रच््लिधारितैः |

निजं मन इव खच्छमानिन्ये भिधुनेजलम्‌ ८० उदयाद्विमिवार्केण मुकुटेगोपगशोभितम्‌ | अत्वन्तविमलेवेश्ोर्व्योभिव शरदम्बदे; ९१

Cater शरत्कालं सश्चरचारुयामरेः |

कताभिषेकं nid दषटणएस्तानि विसयात्‌ ९२ (qa) Aaqn mide चेषुभेवंविमभिभिः | विनोतेमिधनेवोरि निदधे cream: ५८९५ ` योजनान्यध विस्तौणां मव दादश चायताम्‌ विनोताख्वां पुरीं कतत eget इरिययौ ८४॥ सोऽपि canal भूमेमाणिष्छसुकुटोपमाम्‌ |

व्यधात्‌ दिषामयोध्येति तामयोष्वापराभिघाम्‌ ९५ तां निमय निमायः पूरयामास aque |

` श्रकषय्यरब्रवसमधनधान्धेनिंरन्तरम्‌ ८९

AAA MASA हम्येविर्ीरि रश्मिभिः

fafa विनापि खे aa चित्क facet ८७ तदग्रे दोप्रमाखिक्षकपिभशोषपरम्परराः |

भयब्रादशतां यान्ति चिरं खेचरयोषिताम्‌ ९८ तस्यां ग्डहाङ्गणमभुवि खस्तिकन्यस्तमौक्धिकेः |

खेरं कक्रकाक्रीडां कुरते बालिकाजनः ९९ ` TATA AS ला ग्रसवस्पमानान्धहति शम्‌

खेचरोखां विमानानि ae यानित कुलायताम्‌ १००

५२

योगशास््े

तव दृष्टाऽहृहर्म्येषु रब्रराशोन्‌ समुच्छ्रितान्‌ तदवकरकूटोऽयं AMA रोहणशाचलः जलकैलिरतस्त्रोणां ब्रटितेहारमौक्तिकंः | तास्नरपर्णीचियं aa दधते wwelfaat: aan: सन्ति ते येषां कस्याप्येकतमस्य सः | व्यवडर्स' गतो मन्ये वखिकपुभो धनाधिपः मक्ञमिन्दुदषहित्तिमन्दिरस्यन्दिवारिभिः। प्रशान्तपांशवो car: क्रियन्ते तत्र सतव्येतः ॥. वापीकपसरोलक्ैः सुधासोदरवारिभिः। ..

` नागलोकं मवसुधाङण्डं परिवभूव सा ५५.

नगरीं तामलङुव्वेत्रेन्द्रो ठषभध्वजः |

अपत्यानि निजानोव प्रजाचिरमपालयत्‌ Wg `

तत उत्पादयामास लोकानुग्रहकाम्यया waa विंगतिधा पश्च frerfa नामिभः राच्यस्थितिनिभित्तं चाऽग्रहोद्वासुरगान्‌ गजान्‌ सामाद्युपायसारां नोतिरौतिमदभेयत्‌ ` हासप्ततिकलाकाष्डं भरतं चाध्यजोगपत्‌ भरतोऽपि निजान्‌ ्ातृस्तनयानितरानपि < + मामेयो argafad भिदमानान्यनेकशः | लक्षणानि इस्यश्वस्त्नो पंसानामजिन्रपत्‌ ween अष्टादशलिपोब्रौद्यया अपसव्येन पाणिना | दर्भयामास सव्यन Yat गणितं पुनः ११५

प्रधमः प्रकाशः

वर्णव्यवस्था! रचयन्‌ ATTA प्रवन्तयन्‌ aritfa पूवेलकाि नाभिभूरत्यवाहयत्‌ १२ प्रभुः खरक्लतावासे मधुमासे समेयुषि। भगादन्ेश्युरुच्याने.परिवारानुरोधतः ११ गुष्लदिः पुष्लमाकन्दमकरन्दोक्मदासिभिः। ` , मधुलच्छवभूव खागतिकौव TAM: १४.॥ पृव्यैरष् इवारग्धे पश्चमोच्चारिभिः पिके |

` अदशयज्नतालास्यं मजयानिललासकः १५५. प्रतिश्ाखं विशम्माभिः पुष्योच्चयकुतूहलात्‌ `. स्नोभिस्तत्राभवन्‌ TA: सच््ातस््नोफला इव. १९ +. पुष्पवासग्डहासोनः पुष्याभरखभूषितः। पष्यगन्ुकहस्तोऽभाग्मधुमुतत दव प्रसुः १७॥ ` aa '्ेलायमानेषु fat भरतादिषु |

दध्यौ खामो fatter क्रोडा दोगुन्दीष्वपि १८॥ जनेऽधावधिना खामो खःसुखान्युकलरोत्तरम्‌ | ` भगुत्तरखगेसुखं भुव सवयं तत्‌ १९ भूयोऽप्यचिन्तयदिदं विगलग्मोहवन्धनः |

faite विषयाक्रान्तो afa arafed जमः ॥२०॥ भदो संसारकूपिऽखिन्‌ जोवाः कुवन्ति कभिः। भरघषटवटोन्धायेनेहिरेयाहिरां क्रियाम्‌ २११

(१) दोकायमनेप्र

४४

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; : योगाच

Laer यावदिसुभवपराश्चुखः | तावक्नोकाग्तिका SAT एयुः सारखतादयः २२ बदेरच्नलिभिम्वं ्तान्धसुङ्खटा शव |

प्रणम्य ते व्यश्नपयन्‌ खामिं स्तौयै wea २१ गतेषु तेषु भमगवारगुख्यानाब्रन्दनाभिधात्‌।

RATS गत्वा नगरोमाशुहावावनोपतोन्‌ २४ राज्धेऽभ्यि्चञ्गरतं व्येष्टपुशरं ततो विभुः | argwerfegarat विभण्च विषयान्‌ ददौ २५॥ साव्व्रिकदानेन ततोऽतर्प्पीत्ता भुवम्‌ देशोति दोनवाक्षख कचिदासोद्यथा नहि ॥२१॥ पथासनप्रकम्येन CASA वासवाः | अभिषेकं प्रभोधक्रगिरेरिव पयोमुचः २७ मास्याज्गरागेदे बेथन्धस्तेवासितविष्टपैः |

~ सवयशोभिरिवाशोनि परितः परभेष्ठरः 2c

विचिव्रेरचितो वस्मरत्क्गपेख भूषणः विभुबभासे सन्ध्याभ्धिष्णेरिव मरत्पथः २९ दिवि दुन्द्भिनादं कारयामास वासवः |

जगतो दददानन्दमसग्मान्तमिवामनि॥ Ro

सुरासुरनरोदाद्यामारोहच्छिविकां fay: ऊषंलोकगतमगं जगतो craft ११॥

wd सदेवेदवेभेक्रो निष्क्रमणोत्वः |

यं wafsfasent ननिभेष्यं छतार्थिंतम्‌ ३२

प्रधमः प्रकाशः |

गत्वा faxraarara सुमोच परभेष्रः कुसुमाभरण्णदोनि कषायानिव सवेतः ३१॥ ` चतुभिर्मु्टिभिः कैशानुहधार जगद्गुरुः |

fagy: पञ्चमीं मुष्टिं वाखवैनेति याचितः ३४.॥ देवांसयोः खणंरुचोर्वाचातोतातिश्चोभते | केणव्ञय्यसावास्तामितिं at खाम्यधारयत्‌ १५ प्रतोच्छतख सौध्माधिपतेः सिषयाख्से खामिकेथा दकदं्तवर्णान्तरगुणथियम्‌ १९॥ ` चरोदधो quia: कशाम्‌ चिष्ठाभ्युपेत्य Ura दवारचभुमुलं मुष्टिसंन्रया.॥ gon aa array प्रत्धाख्यामोति चारिव्रमुश्चकेः | area cafsargrquy जगत्पतिः ase waa: सवेजन्तुनां मनोद्रग्याखि दशेयत्‌ .

AY ज्ञानं प्रभो लुब्धं मनःपय्ययसंन्नकम्‌ ३९ ॥. ` राज्ञां सडखाशलारोऽगुयान्तस्तं निजप्रभुम्‌ | ब्रतमाद दिरे भका कुलोगामां क्रमो wel ४०॥ ततः सर्वेष्वपोन््रेषु गतेषु खं खमालयम्‌ | ARCATA: खामो युधनाथ द्व fed: ४१ लोकोभिश्ाखर्पान्नेभि चाये भ्रमतः प्रभोः |

अढौकि कन्धेभाष्ठादि धिगास्ेवमपि afer ४२॥

ग्याय्यामप्राघ्रुवम्‌ frat सहमानः परोषहान्‌ | परदोनमानसः Atal मौनव्रतमुपाज्ितः za

WK

५९

यो गशाख्े `

खम णानां सष्खैस्तेखतुभिरपिं नाभिभूः |; चधातेर्मुुचे को वा "ससश्वो भगवानिव ४४ वने मूलफलाहारा afat ते q तापसाः। |

भवाटवोपयशुषो धिक्षाशरोलपयच्यलान्‌ ४५

भथ कष्छमदहाकच्छपुत्रावान्नागती कचित्‌ - ` ्यतुनमिविनमौ खामिनं प्रतिमाखितम्‌ ४६ प्रणम्य तौ विन्नपयाम्बभूवतुरिति प्रभुम्‌ ` भरावयोनौपरः खामो खामिन्‌ राच्यप्रदो भव.॥ ४७ fafege भगवांस्तदा तौ-सेवकावपि .

fanart हि.न लिप्यन्ते कस्माप्येहिकचिन्तया.॥ ४८ तौ wera सिषेवाते खामिनं पारिपाश्िकौ wefas भेरुगिरिं सूर्याचन्द्रमसाविव ४८ .. अथ तो acer प्रभुं वन्दितुभेयुषा |

कौ युवामिह को हेतुरित्य॒ क्षाषेवमूचतुः ५० खत्यावावामसो wat कविदप्यादिरेयच। ..

cree fraser सर्वेषां सखवपुत्राणामदषच॥५१॥

पि प्रदत्तसवेखो Stata) राज्यमावयोः |

अस्ति नास्तोति का चिन्ता कार्या सेश्व सेवको; \ ५२॥ यावेधां भरतं खामो निर्ममो निष्परिग्रहः |

किमद्य दद्यादिति ती तेनोक्ञावित्यवोचताम्‌ ५३॥

कायति

(१) खगवच सश्ववान्‌ु|

प्रथमः AAT: | 49

विश्वखामिनमाप्यामुं कुवः खाम्यन्तरं महि 1 ` ` कल्पपादपमासाद्य कः करोरं निषेवते ५४

आवां याचावहे नान्धं विषाय परमेश्वरम्‌ |

पयोमुषं विमुष्यान्धं याचते चातकोऽपि किम्‌ ५५॥ werg भरतादिभ्यः किं तवास्मदिषिन्तया | खामिगोऽस्माद्यद्कवति तद्धवत्वपरेष किम्‌ ५९॥ तदुक्धिसुदितोऽवादौदथेदं waite: | पातालपतिरेषोऽख्ि .खाभिनोऽस्वेव किङ्करः ५७ सेव्य! खाम्ययभेबेति प्रतिज्ना साधु ary a: | खामिसेवाफलं fronted ददामि तत्‌ ५८॥ स्वाभिसेवापतमेवेतदध्येधां .इन्त नान्यथा - सम्बोष्येति ददौ विद्याः प्रन्रपोप्रमुखास्तयोः ॥५८ श्यतुस्तदगुच्रातौ प्चा्थयोलनोप्युम्‌ -

तौ षेताश्याद्विसुततेधं पञ्चविंतियोजनम्‌ a gen दशयोजनविस्वारदल्िणव्रेशिमध्यगाः ..

aa fraraaren नमिः पञ्चाशतं पुरोः॥ ९१ ॥. दशणयोजनविस्तारोन्तरवष्यां न्धवोविश्त्‌ ` faaracafa: षष्टिं पराचि विनमिः पुनः ९२ चक्राते anata चिराद्‌ विद्याधरेषु avi. `. तादृशः खामिशेवायाः किं माम ख्याहरासदम्‌ ६२

5 1 A, 9 शा 5 a

(१) खगवच face

We

.योगशाख्े

वरं मौनी निराहारो fawey भगवानपि पुरं गजपुर नाम प्रययो पारशेच्छया ६४.५ तदा चः; MAINS: अयां सः WAT |

` . भेदं श्यामं Target: चालयित्वोञ्वलं व्यधात्‌ ९५॥

सृबद्विखेष्ठिनाप्येचि awe रवे खुयतम्‌ | यांसेनाहितं तत्र ततोऽसौ भाङुरोऽभवत्‌ ९९ अभि सोमयशखा राजेको बहुभिः परेः

~ इद; समन्ताश्छेयां ससाषाय्वाखलयमो यिवान्‌ go

aaa सदसि खप्रानान्योऽन्धस्य न्धवोविदन्‌ .. कष निर्थयमजानन्तः खं खं खानं BUA: ९८ ्रादुभौवयितुमिव तदा तत्खप्रनि्धयम्‌

. चयांसख्य यत्रौ aan frwral भगवानपि ge

भगवन्तं सम्रायान्तं शश्ादहमिव सागरः |

आलोक्य Raat पात्रं Bata: fara मुदम्‌ So aerate वितन्धानः जेयाः खामिदशेनात्‌

अवाप जातिस्मरणं पूवनषटनिधानवत्‌ ७१ , चक्रयदहणयनाभोऽसौ प्राग्मवेऽखासि सारथिः 'अमुप्रत्रजितशामं तदेत्यादि विवेद ख; ॥७२५ , ततो विच्ञातनिर्दोषभिक्तादानविधिः gar:

-सवामिनै प्रासुकायातश्चुरसं मुदितो cet w og ॥.

भूयानपि रसः arfaarat भगवतो ममौ | चर्यासख्य तु WEA WAALS सुदस्तदा + ऽ४

प्रथमः प्रकाशः।

स्यागोऽगुस्वश्भितोऽन्वासोद्‌ ष्योजि लम्नशिखो रसः | Wet सखामिनोऽचिन्त्यप्रभावाः प्रभवः खलु ७५ ततो भगवता तैन रसेनाकारि पारणम्‌ | TUBA Ra: पुनस्तहशनामतेः ७९ कुब्यदरिदुन्दुभिष्वाने देवेदिवि चर्मैरिव

दृष्टयो र्रपुष्पाशां चक्रिरे वारिषठष्टिवत्‌ noo भथ तक्षशिलां सामो ययौ बादवलेः पुरोम्‌ | arpirara प्रपेदे प्रतिमाभेकराजिकोम्‌ oc « प्रभाते पावयिष्यामि खं लोकं. खाभिदथेनात्‌ | ` ATA बाहुबले; साभूगखासोपमा निशा ७८ प्रातः प्रययौ यावन्तावत्खाम्यन्धतोऽगमत्‌ | लथाखामिकमुखानं MATA ८० मनोरथो विलोनो भे दि बोलमिषोषरे |

4 ४८.

wi fry प्रमहरोऽस्मोति बन्नासानं निनिन्द सः ८१४

यव्राखातां प्रभोः पादौ रतैस्तव्राषभिष्यंधात्‌ | धरकाचक्रां संहारं सशसांशएमिवापरम्‌ ८२॥ .. विवधाभिग्रहः खामो Westy | विजहार यथार्येषु समभावा fe योगिनः a <a 5 सदा प्रथत्यनायीशामपि पापेककर्णाम्‌

धर्मा स्तिकाधिया a8 हृढागुष्टानचेटितम्‌ a ८४ एवं विषरमाणसु सहसे शरदां गते

पुरं परिमताननाख्यमाजगाम ATR ८५

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+ तत्पूर्वोत्तरदिम्भागी कानने शकटानने।

ACA SCHAMA AAA प्रभुः ५८९ सरद चपक्रेखिमपूवेकरणशक्रमात्‌ | शक्तध्यानान्सरं Bearers जगत्पतिः. ८७ + तत घातिककऋमौखि व्यल्ोयन्त घना इव | wrfan: केवलश्नानरविराविवेभरूव ८८ विमानाग्य तिषम््रदीद्‌ WEAR: परस्मरम्‌ पयुरिन्द्राखतुःषष्टिः समं Saree ८८ ` TAME: समवसरशसानभतलम्‌ |

असजन्ायुकुमाराः खयं माजितमानिनः ९०

गन्धाम्बुहष्टिभिरमेघक्कमाराः सिषिचुः चितिम्‌ | qufararat: सोत्वि्धुपार्धवेष्यतः प्रभोः ८१ षष्योपहारखतवो जागुदन्न व्यधुभेवि भ्येषत्पुज्यसंसगः Ferd खलु जायते ९२ चखिग्धधूमभिखास्तोमवासितव्योममण्डलाः | चक्ुधूपघटौसव्र तच वद्धिकुमारकाः WLR इन्दरचापशतालोढभिव नानामणखिलिषा।

ततः समवसरणं चक्रो शक्रादिभिः सुरः wesw रजतस्णंमाणिक्छवप्रास्तत्र वयो वभुः भुवनाधिपतिच्योतिरवेमानिकसुरेः कताः ८५ असौ Baa मोचं Tafa देहिनाम्‌ शंसन्य इव TSA: पताकास्तेषु रेजिरे ९९ ५.

~

प्रथमः प्रकाशः | ६१९१

विद्याधरया रत्रमय्यो वप्रोपरि चकाशिरे | छतप्रवेशनिष्काथा विम्रानाशदया सुरे; ९७ माखिष्कपिशोषोखि मुग्धामरवधूजने ¦ पालोक्धन्त चिरं इरषादव्रताडष्कग््या ९८ प्रतिवप्रं wart गोपुराणि वभासिर। चतु विं चस्य धर्मस क्रीडावातायना इव eee WH समवसरणान्तरेऽोकतरः सुरः . ` क्रोणवयोदयो रब्रव्रयोदयमि वोदिशम्‌ २०० ॥. तख्वाधःपूवदिग्भागे रत्र सिंहासनं सुराः | waren] विदधुः सारं खंगंच्रियाभिव ॥.१:॥ प्रविश्य पूवदारेश नत्वा तों तमश्च्छदे

- ख्ामो सिंहासनं भेजे पूर्वाचलमिवायेमा २.५

दब्रसिंडासनखानि दिच्छन्धाखपि array भगवस्मतिनिष्वानि जोरि दैवा विचक्रिरे ves वराकोल्लतराक्नन्दुमण्डलं परमेशितुः | बरेशोकस्वाभिताविङ्मिवच्छव्रव्रयं वभौ ` भगवानेक एवायं arate leat भुजः CHT MAIC TH रब्रमयो ष्वजः ५॥ चकाथेःकेवशत्नानिचक्रवन्तित्वस्‌ चकम्‌ |

अत्बद्तप्रभाचक्रं WTA प्रभोः पुरः ९॥

श्जतुजाद्ृवोवोचिसोदरे चारुचामरे | हंसा विवागुघावन्तौ खामिनो मुखपषजम्‌

RR

: योगशा

भाविर्बेभूवानुवपुस्तदा aed विभोः ` खदोतपोतवद्यस्व पुरो ATA STSA_ प्रतिष्वानेखतस्नोऽपि दिशो शुखरयन्‌ अथम्‌ waite va mare दिवि दष्वान दुन्दुभिः ॥<॥ अधोठन्ता; सुमनसो विष्वम्बहषिरे चरैः

शा कौभूते.जने त्वक्नान्धसत्राशोव मनोभुवा १०॥ पद्चजधिं शद्र तिशयाज्वितया भगवान्‌ गिरा | वेलोक्छागुग्रडायाध MITA धर्मदेशनाम्‌ ११५. भगवत्केवणज्नानोत्सवं चारा. THAT . `: भग्तख् तदा चक्ररब्रमप्युदपद्यत १२॥ उत्पव्रकेवलस्तात इतक्रमितोऽभ्यगाव्‌ `. श्रादौ.करोमि कस्याचामिति दध्यौ we ठृपः ११॥ क्त विष्वाभवयदस्तातः a चक्रं प्राणिघातकम्‌।

विश्यति खराभिपूजारेतोः खानादिदेश खः १४॥

सूनोः परोषोदन्तदुः S ACT AA | मश्देवामयोपेत्य AAT चासौ व्यजिज्ञपत्‌ १५॥ भ्रादिशः सव्यदापोदं wat सनुस्तपात्यये `

Ogee va we: सहते वारिविद्रवम्‌ १९॥ `

हिमन्तौ हिमसम्पातपरिक्तेशव्शां दशाम्‌ ।. . अरण्य मालतोस्तम्ब इव याति निरन्तरम्‌ १७॥ उण्णत्तौवुष्णकिरणकिरयरतिदारणेः |

सरन्ापं चानुभवति स्तम्बेरम इवाधिकम्‌ १८

प्रथमः प्रकाशः 1 ६१

तदेवं सनव्धकालेषु वनवासो fac: |

एथग्जन इवेकाको वल्लो भे दुःखभाजनम्‌ ॥.१९ जेलोक्धस्वामिताभाजः sates सम्प्रति . | पश्य सम्पदमित्युक्ञारोहयामास तां गजे २० सुवर्थवथमाखिकयभूष लेलुरगेगजैः |

पत्तिभिः खन्दनेमूत्तेवोमयेः सोऽचलसतः २१.॥ सेन्धेभूवलभाःएच्क्षतजङ्गमतोरणेः |

; गच्छन्‌ दूरादपि कृपोऽपण्यद्रबरध्वजं पुरः २२.॥. मरुटैवामयावादौद्धरतः पुरतो छदः ` . . प्रभोः समवसरणं देवि देवेविनिमितम्‌ ५.२३... श्रयं जयजयारावतुसुलस्रिदिवोकसाम्‌। . ` शरुयते तातपादान्ते शेवोक्तवसुपेयुवाम्‌ २४ `: मालवकिकोसुख्यग्रामरागपविविता।: . . ` कणांसतमियं वाखो खामिनो देशनाक्लतिः २५ मयुरसारषक्रोञहंसाष्धेः खस्वराधिका |

WHAT दत्तकः श्वासिनो गोः सविख्मयम्‌ २९ तातस्व तोयदस्येव ष्वनावायोजनादिष

च्युते मनोबलाक्तेव बलवहेवि धावति २७॥ .. Veena वालों संसारतारिषोम्‌ निर्वातदोपनिखन्दा मर्दैवा मुदाऽशोत्‌ २८॥ Tera भिरं देव्या मर्देव्या व्यलोयत। .. WAIT ZT: पदवत्पटलं Evy: २९

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साऽपश्यततोषैल्न्ीं aarsfrramfany ` तस्यास्तदशनानन्दस्थैयीतकम | - © arya

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भगवहर्भनानन्दयोगस्येयमुपेयुषौ |

कैवलश्नानमब्ञानमाससाद TSA AT W AL

- वारिस्कन्धाधिरूढेव प्रापतायुःकमसङ्क्या ` `

अन्तकछ्षत्वो वलितेन निर्वाणं AEST ३२ ` एतस्यामवसप्पिष्यां सिचोऽसौ प्रथमस्ततः | चोराग्पो तपुः ferat चक्रे मोल्ोत्छवः सुरः १२९॥ ततो विन्नाततश्मीक्लो हषेशग्भ्यां समं शपः सअश्वच्छायाकंतापाभ्यां थरत्काण LATA १४ aren राच्यबिद्कानि पदातिः सपरिष््छदः |

aa; समवसरण्ं प्रविषेथ विशाम्पतिः २५॥ अतुर्मिदेवनिकावैः खामो .परिठतस्तदा

SEN भरतेन हक्चकोरनिश्याकरः १२९

विख प्रदल्िष्योलत्य भगवन्तं ne a)

मूध बहाष््लिः स्तोतुमिति चक्रो प्रचक्रमे १७ जयाखिलजगन्राथ जय विश्वाभयप्रद |.

HT WANA जय संसारतारख एट.॥ .. .. अय्यावसर्पिशोलोकपश्चाकरदिवाकर |

त्वयि ce प्रभातं भे प्रन्टतमसोऽभवत्‌ Re भव्यजोवमनोवारिमिर्मलोकारकमेखि |

वाशौ जयति ते नाध कतकच्तोदसीदरा vo ॥..

प्रधमः प्रकाशः। ६५

तेषां दूरे लोकाग्रं areca | समारोषन्ति ये माध लच्छाश्नमहारथम्‌ ४१॥ लोकाग्रतोऽपि संसारमग्रिमं देव aa? | निष्कारणजगदन्धुयत्र BATA ४२ त्वहशनमदहानन्दस्यन्द निष्वन्दलोचनेः |

स्वामिन्‌ मोस्षषुखाखादः संसारेऽप्यलुभरूयते ४३॥ रागरहेषकषायाद्येश्चं जगद रातिभिः

दमुदेच्यते नाच त्वयेवाभयसचिणणा ४४

ख्यं न्रापयसे wet ant दशेयसि खयम्‌ |

aad तरायसे fart am नाधामि नाथ किम्‌ ४५॥ afa gat saat मोनाधथशिरोमखिः। ` टेगनावाक्सुधां ga aatafage पपौ ४६ तदा ऋषभसेनादोन्‌ भगवान्वुषभष्वजः | दोक्षयामास AACA fas गणधरान्‌ स्यम्‌ ४७ VATA ATH भरतस्य ARCATA |

शतानि पञ्च aaa शतानि सप्त नानिभरः ४८ साधवः GWU: साध्व ब्राद्मयादयोऽभवम्‌ I खयां साद्या; श्रावका शराविका: सुन्दरोमुखाः ४९ एवं चतुविंधः सङ्क: स्थापितः खामिना तदा ततःप्रथति age तथेवेयं व्यवखितिः ५० SRAM भव्यबोधायान्यतोऽगाल्छपरिच्छदः |

तं नत्वा भरता्ीग्ोऽप्ययोध्यां नगरीं ययौ ५१॥ €.

६६

योगशास्त्र

AA नाम्यक्कभूवंशरब्राकरनिशाकरः।

यथाविधि ज्ुगोपोर्व्वौँ न्धायो विग्रहवानिव + ५२ चतुःषष्टिः awathe बभूवुस्तस्य वल्लभाः |

अनुचरः Prat यासां अन्जिरे रूपसम्पदा ५२ तस्र सनासोने वासवस्य दिवौकसः | इयोभेंदमजानन्तः पेतुः प्रणतिसंशये ५४ प्रारग्धदिग्जयः 98 gaat भानुमानिव | सोऽमाखितान्यतेजो भिस्ते जोभिर्यो तयन्‌ जगत्‌ ५५ उत्तिप्ताधमिवोदोचिशस्तविन्यस्त विहुमेः

गङ्ग सम्परदसभगं प्रापत्‌ पूवेसखागरम्‌ ५६ मागधतीर्धैकमारं दैवं मनसि क्षत्य प्रपेदेऽषटमभक्तं सोऽथेसिद्ेहारमादिमम्‌ vo यादांसि जासयन्राश THATS रंहसा |

जलधिं AIA AMF महाभुजः ५८ रथनाभ्यदये तोये खित्वा दादयो जनोम्‌ |

are दूतमिव प्रषोज्रामाङ्ं मागधाय सः # Le A अथ arate पतिनिपतिते शरे |

चुकोप विकटाटोपभङ्गटोभङ्गभोषणम्‌ + ६० Qt मन््ा्चरायोव तस्य नामाक्राष्छसौ |

SEL नागकुमारोऽभून्नितान्तं शान्तमानसः + ६१

` प्रथमखक्रवर्येष saa दति चिन्तयन्‌ |

sama भरतं विजयो मूत्तिमानिव ६२

प्रथमः प्रकाशः |

मरचुडामशेरभरं निजं चुडामणिं फणो

विराजितं तेज इवोपागयसच्छरं सः ९३ तवाहं पूवदिक्पालः किङ्करः करवाणि किम्‌ इति विन्नपयन्‌ राज्ञा सोऽगुजन्ने महौजसा} ६४॥ जयस्तश्भभिवारोष्य aq तं मागघाधिपम्‌। पूवनोरनिधेस्तौरावरदेवो MTNA gy <र्व्वोँमनुष्वीं कुव शचलयन्रचलानपि | खतुरङ्बलेनाथ wee दचिण्ठोदधिम्‌ ६६१ एलालवङ्गलवलोकक्रोलवहले तटे सेन्धान्धावासयामास सदोर्वीयैपुरन्दरः ९५७ तेजसा दुरालोकी हितोधश्व भाख्करः | महावा महावादुरारुरोड महारथम्‌ ६८ तरङ्गेरिव रङ्गद्विस्ततसुद्गेणुरङगमेः |

रथनाभ्युटयं तोयं लले महोदधिम्‌ ee वरदामाभिसुखं सल्नोक्षतश्ररासनः | धनुर्वेदोह्यारमिव च्याभिर्चोषं ततान सः 8 oe सौवखकणंताडङ्कपद्मनालतुलारशणम्‌ |

काञ्चनं सन्दधे वारमाकर्णाक्ष्टकामुके ७१ वरदामाख्यतोर्ये्ममि ओोभरतस्ततः |

सुमोच नमुचिद्ेषिखयामा नामाङ्कितं शरम्‌ ७२॥ वरदामपति्वणं प्र प्रतिष्छद्यच। | भरतं HAITIAN उपायनमुपानयत्‌ Og

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अदे भरताघोशं धन्योऽसि यदिषागमः।

MAA भवता नाध सनाधोऽहमतः परम्‌ ७४ ततस्तमामसाक्कत्वा छत्यविद्करतेश्वरः |

प्रति प्रतीचौमचलच्चलयब्रचलां बलेः ७५ अपरा्वमासाख्य प्रभासाभिसुखं शरम्‌ | जाज्वल्यमानं भरतस्त डिदग्डमिवाचिपत्‌ ७६4 ew प्रयच्छ gaint जिजोविषसि चेसुखठम्‌ | दत्यक्षराणि तद्ाशे प्रभासपतिरक्त ७७ प्राच्यानि प्रगुणोक्तत्य प्राथतान्यहूतानि सः। चचाल शरमादाय प्रसादयितुमाषेभिम्‌ ७८ # हारात्रोषहाररिणानाजदहारातिष्ारिशः। चिरकालाच्जितानान्मयश्योराग्ोनिवाखिलान्‌ ७८ येषामग्रे camel Tarawa: | तांस्ताज्िश्चाखयामास AMAHMAAT: ८० कटकानि acted चूडामखिमुरोमस्ि्‌ | निष्कादि चापयद्रान्ने ae तेज खकम्‌ ८१॥ इति प्रसादितस्तेनाच्छद्मना भक्तिसद्मना | भरतोऽगाब्रदीं सिन्धु सु्तरहारदेदलोम्‌ ८२ निकषा सिन्धुभवनं निदे शिबिरं aa: | सिन्पुदेवों wafer विदधे चाष्टमं तपः ८३२ सिन्धुश्षासनकम्पेन स्नाता चक्रिणमागतम्‌ ।. उपैत्योपायनेदिव्येरानच एचिवोपतिम्‌ ॥८४॥ .

प्रचयः प्रकाशः |

तामुरोक्षतकषेवां विङज्य क्रतपारणः | weifsatad तस्या विदे ष्वसुघाधवः ८५ सोऽय चक्रामुगो गच्छन्‌ कङुभोत्तरपूवेया भरतादैदयाघाटं वेताय्याद्रिमवाप ८६ : नितम्बे efat तस्व विन्धस्तशिविरस्ततः। भधिवेताख्चङ्गमारं दृपतिविदधैऽ्टमम्‌ ८७ ` विन्नायावधिना सोऽपि दिव्यैस्तेसत रुपायनेः | उपतस्थे महोपालं सेवां प्रत्यपद्यत ८८

तं विद्धज्य उुपञशक्रोऽषटमभक्तागन्तपारणम्‌ | अष्टाङ्िकोत्लवं तस्य विदधे यथाविधि x ceo गुहां तमिखरामभितस्तमिख्ारि रिव त्विषा जगाम तददूरे स्कन्धावारं न्यघाचुपः ९० कतमालामरं aT F उदिष्याषटमं व्यधात्‌ |

सोऽपि च्नात्ासनकम्पादानेर्चेपित्य भूपतिम्‌ ९१ विश्य तमपि खापः WaT चाष्टमपारण्म्‌ | विदेऽष्टाङ्किकां तस्य मषोत्सवपुरःसरम्‌ ९२ ` सुषेणो भरतादेशास्सिन्ुसुत्तौयं wats ` ` तरसा साधयामास दक्षिणं सिन्धुभिष्कुटम्‌ + <२॥ करं ततस्यन््े च्छानामादाय VAT सः SUE चर्मणा सिन्धुमाययौ भरपैश्बरम्‌ ९.४

` (9) we aguifyd: |.

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water तमिखां aernarzefafeat gery खद्टाटयितुमादिशत्‌ 'सुषेशखषभाव्जः ९५ सुषेशोऽपि प्रभोरान्नां ओेषावन्भु्ं धारयन्‌ प्रदेशेऽगात्तमिखाया qerart भदवोयसि ८६॥ aefusraed क्तमालमनुसखरन्‌ |

तस्यौ पौषधशालायामषटमेन fagwat: ९७

| SMA ATCA बाद्माभ्यन्तरशौचयत्‌ |

पयधाच्छुचिवस््नाछि विविधाभरण्वानि ९८ होमङ्कण्डोपम ` धुपदहने ज्वलदग्नक्रे |

yoger: fay सायै साधनोराइतोरिव ८८

ततः खानादसौ AAT गुहाया हारमभ्यगात्‌ कीशदारं तदायुह्न इवोदृघाटयित्‌ं त्वरो २०० हृष्टमाव्रं तत्कपाटयुगलं प्रशनाम

` मेतारभिव तदन्तःप्रषेशः स्वात्कुतोऽन्धथा १॥

गृाहारे ततोऽष्टा्टमङ्ूलालेख्वपूवं कम्‌ | सोऽष्टाङिकामहिमानं चक्र सखमहिमोचितम्‌ ॥२॥ cere वश्चसारं सवेशन्रुविनाशनम्‌ |

` अव सेनापतिवखं वखपाशिरिवाददे ३॥

पदानि कतिविष्छोपद्त्य वक्र इव ग्रः दण्डरब्रेन भकटिति कपारौ विरताडयत्‌ ४॥

(१? खच ततस्लङ्षनाल्रजः।

प्रचमः प्रकाशः |

पक्लाविवाद्रर्वच्ेख दण्डरत्रेन ताडिती | asufsfa gatet विञ्िष्टौ तौ बभूवतुः ५॥ तदुषादहदारवत्सद्यः सविकाशसुखो अशम्‌ |

सुषेशो भरतायेदं गत्वा मत्वा व्यजिज्ञपत्‌ अदयाभूष्वद्मभावैख गुहादहारमपागलम्‌ | यतेनिश्रेयखदारं तपसेवातिभूयसा मघ्वेरावणमिवाधिरूढो गल्धवारणम्‌ |

तत्कालं भरताधोगो गुशाहारसुपाययो ८॥ अन्वकारापदारांय मखिरन्रं न्यधान्रुपः।

दिखे gf: gat पूवाौद्राविव भास्करम्‌ ततोऽमुगखमू चक्र्क्रमा्गनुगो गुहाम्‌ |

प्रविवेश विग्रामोभो मेवमध्यमिवायेमा von गोमू तिकाक्रमेशागुयोजनान्तं AAS |

पायोः काकिणोरव्रेनालिखम्मण्डलामि सः ११॥ दौप्रेरेकोनपञ्चाशकमण्डलेः काकिणोक्षतः। मान्षर्डमण्डलोय्योतेस्तहाडहिन्धोऽवडग्धु खम्‌ १२ भूपोऽचापश्यदुग््म्ननिमम्ने निन्नगे ययोः | एकन्ोश्मलनति प्रावान्धस्यां मख्नत्यलाब्‌वपि १३ अतिदुस्तरताभाजोरपि सारणिलोलया |

तयोर्न खोरनवद्यां पद्यां व्यधित atta: १४४ पद्यया तै सभुत्तीयं ACTH AA: | निरगच्छन्महामेचमण्डलादिव भास्करः १५॥

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i योगगास्त्े

भरतो भर तकेवोत्तरखग्ड प्रविष्टवान्‌ |

भयुध्यत ततो ग्देष्छर्दानवेरिव वाषवः॥ १६५. जिता रान्ना 'महगेन स्तेच्छाः प्रतिजयेच्छवः | उपासाच्चक्रिरे भेषमुखान्‌ खकुलदेवताः १७ सुसलाकारधाराभिरारादासारदारुणम्‌ |

ते प्रावर्तन्त daa इव विष्वक्‌ प्रवधितुम्‌ १८ MANTRA TNT दादशयोजनौम्‌ ` तददृष्ं wate मध्ये निदधे चमूः १८ मणिरब्रसुरुष्वान्तध्वं साय वसुधाधिपः |

पूवाचल इवादित्यं ware न्ययोजयत्‌ २० तरदण्ड इवाराजत्तद्रबदयसम्युटम्‌ | ततस्तदादिलोकेऽभूद्रह्माखण्डमिति कल्पना २१॥ yale वापितान्‌ शालोनपराद्के पक्तिमान्‌

9 © . प्रत्यावासं षडहपतिर्भोजनाधमपूरयत्‌ २२

ag वषं निर््विखेरूषे भेघकुमारवैः | किराताखक्रवत्येष साध्योऽस्माद्ामपि vw 22 4 भग्नेष्छास्सदहिरा Wer: शरणं भरतं ययुः | अग्निना किल दग्धानामग्निरेव महौषधम्‌ २४॥ AAMT AMAA TAN रत्तरनिष्कुटम्‌

्वाम्यादेथेन सेनानो; संसारमिव योगवित्‌ २५

णनि GER Gn भणी मी णिणििररि

` (१) खगवच मङष्डधेन।

प्रधमः WATT. | अशे

कौ चित्रया णशकेगच्छन्‌ WHE दव लोलया

नितम्बं efat qzfeare: प्राप भूपतिः wes उद्दिश्य शुद्रहिमवत्कुमारं aa चाषेभिः

चक्गेऽ्टमं कार्य सिदेस्तपोमङ्गलमादिमम्‌ २७॥ गलवा्टमान्ते हिमवत्पर्वतं विरताडयत्‌ |

साटोपो Tay शोष्यः एथिवोभुजाम्‌ २८ भरतेशस्ततः शुद्रहिमवदहिरिमूदैनि।

हासप्ततिं योजनानि नामाङ्ग वाणमसिपत्‌ २९ बागमालोक्छ हिमवत्कुमासे ‘sara सत्वरम्‌ | भरताज्नां खशिरसा शिरस्तराणमिवाग्रोत्‌ २० Tat ऋषभक्टाद्िमगषभसखामिभूस्ततः |

जघान रथभौर्षेण तिदेन्तेनेष दन्तिराट्‌ २१॥ अवसप्पिख्यां ठतौयारप्रान्ते भरतोऽस्माहम्‌ | चक्रोति वर्णान्‌ काकिण्या तत्पुवेकटकेऽलिखत्‌ ९२ ततो व्याहत सदुत्तः स्कन्धावारं निजं ययौ चकाराष्टमभक्ञान्तपारणं AKI: २२ ततश श्ुद्रहिमवत्कमारस्य नरेश्वरः |

पर्टाहिकोत्सवं चक्रीऽनुरूपं चक्रिसम्परदः ३४ ततो निवहते amadt चक्रपधानुगः | सिन्धुगङ्गान्तरं कुवन्‌ wee विपुलेवलेः २५॥

(१) अभ्यत्र | @

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नितम्बमुत्तरमध Tavarrexara सः

ततर खस्यपरोवारं स्कन्धावारं न्यधत्त VER ततो नमिविनम्याख्यौ विद्याधरपतो प्रति भदिदेश विशामोभो मागेणं TWATTUT २७ वेताच्चश्द्गगदुत्तोये कुपिती द्डयाचनात्‌ भाजग्मतुयु युत्‌ तौ विद्याधरवलादतौ १८ कुर्व अणिविमानेद्यां बदुसूर्यमयौमिव |

प्रज्वलङ्धिः प्रहर णेस्तडन्मालामयौमिव २८ उदहाम दुन्दुभिष्वानेमेघघोषमयोमिव |

विद्याधरवलं व्योमन्यपश्यहरतस्ततः ४०॥ दण्डाधिन्‌ दच्छमस्मत्तस्तं ग्टक्ञासोति भाषिणौ भाहवायाद्रयेतां तौ विद्याप्तौ awiafay ४१ अथ ताभ्यां ससेन्धाभ्यां प्रत्येकं युगपश्च सः

qaqa विविधययुं हायां यद्लयचियः ४२ युधा हादशवालिक्या विद्ाधरपतौ जितौ |

प्राच्छलौ प्रिपत्येवं भरताधोश्मूचतुः ४३ रवेरुपरि fa तेजो वायोरूपरि को जवो मोकल्षस्योपरि किं सौख्यं ara शूरस्तवोपरि ४४॥ ऋषभो भगवान्‌ ATMS दृष्टस्वमाषमे | अन्नानादोधितोऽस्माभिः कुलखामिन्‌ awe तत्‌ ४५ fade va at aft मण्डनं तव शासनम्‌,

कोशो वपुरपत्यानि सवमन्यच्च तावकम्‌ ४६

प्रघसः WATT. |

ufanafafa dre aware दत्तवान्‌ |

पिनश््ो विनमिनारोरब्रं cated नमिः ४७ ततो रान्ना विद्ष्टौ तौ राच्यान्धारोप्य ag | विरल्नाठषभेशांडिमूले जग्टहतुव्रेतम्‌ ४८ ततोऽपि खलितवतखक्ररव्रस्य एतः | गच्छन्रालादयामाल् राजा मन्दाकिनोतटम्‌ ४८ SUC निष्कुटं गाङ्ग सुषेणोऽप्यभिषेशयन्‌ |

तरसा साधयामास किमसाध्यं महाप्मनाम्‌ ५० राजाप्यष्टमभङ्ेन गङ्गादेवो मसाधयत्‌ |

आनच भरतं सापि देवतार्देरुपायनेः ५१

ततो गङ्गगानदोकूके कमलामोदमालिनि।

वासागार इवोवास वसुमत्येकवामवः ५२ ` भरतं रूपलावण्यकिहःरोक्षतमन्भधम्‌ |

तवावलोक्छ गद्ापि प्राप क्षोभमर्यीं दशाम्‌ ५२॥ विराजमाना wate सुक्षामयविभरषणेः | वदनेन्दोरमुगतेस्तारेस्तारागणेरिव ५४॥ वस्त्राणि कदलोगभंत्वक्छगभीणि बिभ्रतो | सखप्रवाइपयांसोव तदूपपरिणामतः ५५ रोमाख्चकश्ुकोदश्चत्क्चस्फ्टितंकस्ुका | सथस्तरद्धितापाङ्कग ATT भरतमभ्यगात्‌ ५९

( तिभिविेषकम्‌ )

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योगशास्त्रे

प्रेमगहदवादिन्धा गाढमभ्यथ पार्थिवः | रिरंसमानया निन्ये तया निजनिकेतनम्‌ ५७ warn विविधान्‌ भोगां स्तया सड aviafa: | एकाह मिव वर्षाणां awe सोऽत्यवादहयत्‌ ५८ Twi खण्डप्रपाताख्याम ण्डितिपराक्रमः |

ततः खानान्ुपः प्राप करटौव वनाइनम्‌ ५८ कतमालकवन्तश्र नाखमालमसाधयत्‌ |

अष्टमेन कृपस्तदन्तस्य चाष्टाङ्िकां व्यधात्‌ ६० सुषेणोहाटितद्ारकपाटां तां गुं a: 1 urfanefad तस्या दारमुव्जघटे खयम्‌ ६१ नियेयौ तद्ुहामध्यालेशरोव नरेश्वरः |

स्कन्धावारं निदधे गाङ्ग रोधसि faa a ६२॥ नवापि निधयो नागकुमाराधिष्ठितास्तदा | गङ्गगकूलमनुप्राप्तं राजानमुपतख्िरे ९२

श्य सुस्ते वयं गङ्गामुखमागध वासिनः | WIAA महाभाग भवहाग्येवगोक्तताः ६४ यथधाकाममविश्रान्तमुपभुङ्च प्रयच्छ

भपि लोयेत arise ag Slave वयम्‌ ९५ सस्वेनवभिर्य लैः किद्धरेरिव तावकैः | पूर्यमाणाः सततं चक्रा्टकप्रतिषठिताः ९९ + हादशयोजनायामा नवयोजनविस्त॒ताः |

भूमध्ये सश्चरिष्यामो देव त्वत्मारिपाश्िकाः ॥९७॥ (युग्मम्‌)

प्रधमः प्रकारः |

सेनापतिः सुषेणोऽपि गङ्गादलिणनिष्क्टम्‌ महावने महावायुरिवोश्ूख्य समाययौ ६८ समा UWS: षध्येवं जित्वा षट्‌ खर्डभेदिनोम्‌ | चक्रमागोनुगोऽयोध्यां जगाम जगतीपतिः ९९ ततो इादग्रभिवेर्षेरागत्यागत्य पार्थिवः |

प्रचक्रे चक्रवक्षित्वाभिषेको acting: ७० Haat खकुटम्बस्य सारं दशे कथाम्‌ | सुन्दरं चाखिभूतां चुकोप भरतेश्लरः + ७१ ऊचे प्राररिकान्‌ किं t मङगेहे मास्ति भोजनम्‌ | यदेवमोहटशो जाता भरखि ममयो कथम्‌ ७२ स्वामिन्‌ farang arena |

भाचामास््ान्धविय्रान्तमकार्षीसुन्दरो यतः ७१९ `

भत्रान्सरे भगवान्‌ fawer वसुधातले

भगवाम्‌ समवासार्षौदष्टापदगिरौ ततः ७४ शरुत्वा भरताधोशः सखामिवन्दनहेतवे | भ्ागासहेशनां श्ुत्वा व्रतं जग्राह सुन्दरो ७५॥ श्ातृननागतान्‌ WaT तसिन्रपि महोत्सवे ` तषाभेकंकथो दूतान्‌ प्राहिणोद्रतेग्वरः ७९ | राज्यानि चेत्छमोहष्ये सेवध्वं भरतं ततः |

दूते रिस्युदिताः स्वेऽप्यालोच्येवावदन्रिदम्‌ ७७ विभज्य राज्यं दत्तं नस्तातेन भरतस्य | | संसेव्यमानो भरतोऽधिकं किं नः करिष्यति ७८

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समापतन्तं fat काले कालं प्रख्वलयिष्यति।

fat जरारा्षसों @warfeat निग्रहोष्यति बाधाविधायिनः किंवा व्याधिव्याधान्‌ हनिष्यति। यथोत्तरं वच्चमानां wut वा दलयिष्यति ८०॥ ¶टकसेवाफलं दातु चेद्रत ईश्वरः |

मनुष्यभावे सामान्ये afe कः केन सेव्यताम्‌ ८१ प्राल्यराच्योऽप्यसन्तोषादसखमद्राज्धं frat | Val चे्लहयमपि तस्य तातस्य सूनवः ८२ अविन्नपय्य तातं तु सोद्येशाग्रजक्मना।

दूत arate यों वयं प्रोग्सष्ामहे ८३ ते दूतानभिधाये वखषभखामिनं ययुः

नत्वा भरतसनग्दिष्टं "तच्च wet व्यजिन्नपन्‌ ८४ सस््नानकैवलादशे संक्राग्तायेष विष्टपः |

कपावान्‌ भगवानादिनाधोऽपोत्यादिदेश तान्‌ ८५॥ अनेकयोनिसम्पातानन्तबाधानिबन्धनम्‌ | भभिमानफलेवेयं cert: सापि watt ॥८९॥ किच्च या MTSU नादुखत्राग्भवेषु वः! साङ्गारकारकस्येव AURA: कथं शरटेत्‌ ८७ भङ्ारकारकः कचिदादाय पयसो तिम्‌ जगाम कत मङ्कारानरण्ये रोणवारिकि ८८

(१) चं aemeu व्यजिन्नपन्‌ |

Waa, WATT |

सोऽङ्गारानलसन्तापाग्मध्याह्ातपपोषितात्‌ उद्या ठषाक्रान्तः we हतिपयः पपौ ८९ तेनाप्यच्छटित्रठणष्णः सन्‌ सुपः खपे ZH गतः | भालृकलगनन्दानासुद कान्धभितोऽप्यपात्‌ Lo तव्जलेरष्यथान्तायां ठष्यायामग्नितैलवत्‌ | वापोकूपतडागानि पायंपायम शोषयत्‌ ९१ तथेव ठषितोऽधापास्सरितः सरितां पतीन्‌ |

नतु तस्य ठषातुखन्रारकस्येव वेदमा ९२ HAAG ततो यातः Fuge रव्जभिः।

ब्रा fata पयसे faard: कुरते हि ॥९३॥ gaat कूपस्य मध्येऽपि. गलिताम्बुकम्‌ निश्लोत्य get द्रमकः ज्प्रोतमिवा पिवत्‌ ९४ च्छत्रा याखेवादयस्तृट्‌ Bat पूलाग्भसा aT | तदहः खःसुखाच्छ्िताषेदया wear किमु ney भमन्दानन्दनिःस्यन्दिनिवीणप्रापिकारणम्‌ |

वत्साः संयमराज्यं त्युच्यते वो विवेकिनाम्‌ < तत्कालोत्पन्रवेराग्यवेगा भगवदन्तिक्ै | तेऽष्टानवतिर्प्याषश UA ATA: Lo अहो परेयमहो सस्वमहो वैराग्यघोरिति। चिन्तयन्तससत्छरूपं दूता रान्न व्यज्निन्नपन्‌ ८८॥ तत्‌ खुला भरतस्तेषां राज्यानि जग्दहे खयम्‌ लाभादिवरदिती लोभो राजधर्मो wal सदा ee

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wa विन्नपयामास सेनानोभरश्वरम्‌ |

चक्रं चक्रशालायां विशत्यद्ापि नः प्रभो ॥४००॥ श्वासिन्‌ दिम्विजये afserararen कृपः कचित्‌ विवर्स॑ते Sta va a रमति प्रभो १॥

भाः Met भरतोऽवारोक्ञोकोत्तरपराक्रमः अस्म्ंधमहावाहरेको बाहवलिर्वलो +

एकतो गरुडयेकोऽम्यतोऽप्यहिक्कलानि सगारिको यल्कुग्योश्मृगकुलाः -* -*---* एकतः संहताः सवे देवदानवमानवाः |

तथान्धतो argafa: प्रतिमन्नो विद्यते ४॥ एकतखक्रश्ालायां चक्रं प्रविश्रत्यदः। मेच्छत्यान्नामन्धतो बाहुः BES पतितोऽस्माहम्‌ किंवा aryafa: सोऽयमान्नां कस्यापि मन्यते | awa नाम cate केसरो fai कदाचन gn

एवं विख्णतस्तस्य सेनानोजगदे we: | स्ामिंस्वद्लस्याग्रे तेलोक्यं ठणायते anita कनोयांसमथय areata प्रति |

दूतं तक्षथिलापुयां Taarare पार्थिवः tee सिंडमिवो सुङ्गसिंहासने सितम्‌

नत्वा बाहबलिं दूतो युक्लिस्यूतमवोचत < MAR: Wert यस्य ज्येष्ठो भाता जगस्जयो | षटब्वण्डभरताधोशो लोकोष्तरपराक्रमः १०

प्रथमः AAA: |

agrqamafaaraaa महोभुजः मङ्ल्योपायनकराः ACSA नाययुः॥ ११॥ सूर्योदय CAA AASV भरतोदयः।

faa तवेव किन्स्याभिषके त्वमागमः १२॥ ततः कुमार भवतो ऽसमागमनकारणणम्‌ |

भ्रातु राज्ञा मयन्ननाज्नापितोऽहमिदागमम्‌ १२॥ भागा यद्याजवेनापि तत्र कोऽपि जमः पुनः। तवाविनोततां ब्रूते यच्छद्रान्वेषिशः खलाः १४॥ पिकरलानां प्रवेशं तद्यत्राद्रोपयितुं तव

BTR युज्यते तत का ATT खाग्युपासने १५॥ भ्रातेति यदि निर्भीक नागास्तदपि नोवितम्‌। आन्नाषारा ण्यन्ते न्नातेयेन APH १६॥ भयस्कान्तेरिवायां सि देवदानवमानवाः | कष्टास्तेजोभिरघना शकं भरतमन्वगुः १७ यमदीसनदानेन वासवोऽपि सखौयति सेवामातेण तं इन्तानुकूलयसि fa नहि १८॥ वोरमानितया ART राजानमवमन्धसे |

a हि तस्मिन्‌ ससेन्योऽपि समुद्रे सक्तसुष्टिवत्‌ १९

लत्ताशतुरथशोतिस्तदजाः शक्रेभसन्रिभाः। सद्या: केनाभिसरप्पन्तः पव्व॑ता CA जङ्गमाः Re ताषतोऽश्वान्‌ रधांश्ास्य विष्वक्‌ भ्रावयतो महोम्‌।

कक्लोललाजिव कल्पान्तोदषैः कः स्खलयिष्यति॥२१॥ १९१

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योगगास्े

तस्य षसवतिग्रामकोटिभन्तुः पदातयः

कोटः षसखवतिः faut इव त्रासाय कंस्य २२॥ एकः सुषणसेनानौोदंण्डपाशिः समापतन्‌

marr किं शक्यः सोढुं देवासुररपि ret अमोघं faaaaa चक्रिणो भरतस्यतु।

सूर्यस्येव तमस्तोमः स्तोकिकंव तिलोक्यपि २४॥ तेजसा वयसा VAST ATAS: सवधा राञ्यजोवितकामेन शेव्यो बवाष्टुबलते त्या A २५॥ भथ बाहबलिर्बा हवलापास्तजगद्लः |

HY भ्तूभङ्कशदोरध्वानोऽयेव इवापरः २९

युक्तं aga भवता लोभनं Aad वचः |

दूताः खलु यथावस्यस्वामिवाचिकवाचिनः २७ सुरासुरनरेन्द्रार्व्या तातोत्तमविक्रमः। च्ञाघाछैतुमें भरतः कौ्तितो दूत नूतनः २८॥ करदोभूय भरूपाला नागच्छन्तु RA AAA

दश्यते AAD यस्य भ्राता बादुबलिर्बेलौ २९८ ्रवयोमैनु ATAWIFAS खर्डयो रिव

किंन स्यादृव्यवद्दितयोरपि प्रोतिः परस्परम्‌ ३० सदा मनसि तिष्टामस्तस्य भ्नातुरहो वयम्‌

गला किमतिरिष्येत प्रति्नष्िकौ fe नः ३१ आल्वाव्रागताः सत्यं कौल्यं भरतेन किम्‌ |

विमश्यकारिणः षन्तो दूयन्ते किं खलोद्धिभिः ३२

प्रचमः प्रकाशः |

णक एवावयोः Atal भगवानादितोथक्नत्‌ afafanfafa खामो wagrt ममापरः 22 ञ्चाताऽस्माभोः FATT WAT ययलम्‌ | wifaata किं at atu विदार्यते + ३४ सुरासुरनरोपाख्या प्रोतोऽस््ेष मयाख किम्‌ माग एव चमः स्तम्बे रथः सस्नोऽपि भज्यते ३५ तातभक्नो मरन्द्रखेज्नाष्ठं तं तातमन्द्नम्‌ | भ्रासथत्यासनस्याचे किं तेनापि दृप्यति ३६ तेऽन्य तसन्‌ समुद्रे ये ससेन्याः सक्षमुष्टिवत्‌ | तेजोभिदुःसहोऽषं तु इन्त स्यां वडवानलः ३७ पत्तयोऽश्वा रधा नागाः सेनानौभेरतोऽपि मयि स्ये प्रलौयन्तां तेजांसोवाकतेजसि २८ याहि दूत Tay राज्यजो वितकाम्यया तातदन्नांशतुरेम मयेवोपेसितास्य भूः ३९ दूतेनागत्य विन्नपे यथार्थे तेन तत्त्षणम्‌ | युयुलबीडइव लिना भरतोऽधाभ्यषेणयत्‌ ४० छादयग्मेदिनीं सेन्यैघनर्तदां घनेरिव मष्टावादस्ततो बादबलिंभरतमभ्यगात्‌ ४१॥ उभयोरपि वाहिन्योमेहासुभययादसोः |

bap.

्रन्योऽन्यास्फालितास्नोशिःसम्फटोऽभूडयानकः ४२

तस्सेनिकानामन्योऽन्यं कुन्ताकुन्ति शराशरि आमन्वितगराइदेवः Waa TUAW ४३

८४

ATT

पयस्याओेषसेन्धानि तूलानोव महावलः

भभ्येत्य भरतं बाइबलिरेवमवोचत ४४ हस्यष्वपश्तिघातेन किं सुधा पापदायिना |

यद्यलं तस्वमेकाको युहपसवेकाकिना मया ४५॥ एकाङक्ाजिं प्रतिज्ञाय हाभ्यामपि निवारिताः | सेनिका उभयेऽप्यसः पश्चम्तः साक्षिणी यधा ४९ ततो cae wie निनिभेषविलोचनौ

देवैरपि wea तौ देवाविति वितकिती ४७ भरते निजिते तत्र "साक्चोभ्रूतामरं तयोः | वाग्युदमभवत्पत्तप्रतिपत्तपरिग्रात्‌ ४८

त्रापि होनवादित्वं भरते समुपेयुषि |

भूभुजो भुजयुखेन युयुधाते महाभुजौ se a

भरतो लम्बमानोऽथ बाद्टौ बाष्ुवलेः fer | शाखाख्गो महाश्ाखिशाखायामिव वोखितः॥ ५०॥ भरतस्य मदावाष्टोरपि बाहुबलिवलो |

एकेन बाद्ुना ATY लतानालमनामयत्‌ ५९१ प्रारग्षे सुश्टियुद्ेऽथ पेतुभंरतसुष्टयः |

बाइुवलौ समुद्रोर्भिमघाता इव तटाचसे ५२॥ “Teal बाइुवलिना वजकल्पन सुष्टिना |

पपात भरतः पपा खसेन्याऽग्युजलैः UH ५३२

(१) खगवच समभ्योभूतामर aay: 1

प्रचमः प्रकाशः |

ela भरतो argafe दण्डेन sua: | ताडयामास दन्तोव तियेग्दन्तेन पर्वतम्‌ ५४ दण्डेन aryafaat निडतो भरतस्ततः | भूम्यामाजानुमम्नोऽस्थातिखात इव कोलकः ५५॥ fata चक्रवर्ति भरतः wads: | यावसस्मृतवांचक्रं तावदागात्वरेऽस्य तत्‌ ५६ भूभेनिःखत्य कोपेन सहता भरतश्वरः |

Fada प्रज्वलचक्रं छतङाहारवं वलेः ५७ तच्चक्रं पातो बादवलेर्वीग्छा न्यवक्षेत |

देवतानि हि शस्त्राणि खगोते प्रभवन्तिन ॥५८॥ WIT प्रच्य तदाशुवलिः को पारणेक्षणशः |

सचक्रं चुगंयाग्येनमिति सुरिमुदक्तिपत्‌ ५९ भ्रसाविव कषायेधिगद्ं भ्राठवधोद्यतः |

विजित्व करणग्रामं कषायानेव wha तान्‌ ge tt ति सश्नातसंबेगस्तदा aaa gfear | केशामुत्पाटयामास सामायिकमधाददे ६१॥

साधु साध्िति सानन्दं व्याहरन्तः सुरासुराः उपरिष्टाद्ाष्ुबसेः quate वितेनिरे ६२॥

Tal भगवतः पाश्च ज्नानातिश्ययशालिनाम्‌ | कनोयसां सोदराणां विधास्ये वन्दनां कथम्‌ ६२ उत्पतव्रकेवलन्नानस्तत्तां यास्यामि पषदम्‌

दति aaa मौनेन सोऽखाग्रतिमया क्तौ ॥५६४॥ (युग्मम्‌)

८६

योगथास््र

भरतस्तं तथादृष्टा frase खं FWA च।

बभूव न्धश्चितग्नोवो fafagfca भेदिनोम्‌ ६५॥ WATS मूर्ममिव भ्रातरं प्रणनाम FI नैवयोरखुभिः कोष्णे; कोपथेषमिवोक्मुखन्‌ ९६ प्रणमन्‌ भरतस्तस्याऽधिकोपास्तिविधिक्षया नखादर्थेषु WHAT नानारूप इवाभवत्‌ ९७ सुनन्दानन्दनसुनेर्गुणस्तवनपूविकाम्‌ |

सख निन्दामित्यथा कार्षोत्खापवादगदौषधोम्‌ ६८ UI ATH येन Cred मदनुकम्मया |

पापोऽष्टं यदसन्तुष्टो दमदस्त्वास्घपाद्रवम्‌ ९८ aufe ये जानन्ति ये चान्धायं प्रकुवते | जोयन्ते ये लोभेन तेषामसि धुरन्धरः ७० ured भवतरोर्वीजं ये जानन्ति तेऽघमाः | तेभ्योऽप्यदं वि शिष्ये यत्तदसुखचन्‌ विदब्रपि ७१ i त्वमेव पुश्रस्तातस्य यस्तातपधमन्वगः | पुत्रोऽहमपि तस्य स्यां चेद्रवामि भवाष्टगः ७२ विषादपडसुल्छायं पयात्षापजलेरिति |

तत्पुत्रं सोमयशसं तद्राज्ये न्धवोवि्त्‌ ७३२ तदादिसोमवंशोऽभ्ष्छाखाश्तसमाकुलः | तत्तत्पुरुषरब्ानाभमेकमुत्पस्तिकारणम्‌ ७४ ततो agate नत्वा भरतः सपरिच्छदः | पुरोमयोध्यामगमत्खराज्यग्रोसहोदराम्‌ ७५

प्रधमः प्रकाश्यः |

EUs तप्यमानोऽय तपो बाइुबलिसुनिः। वषभेकं व्यतोयाय सह UTA: ७६ ततखामूढलश्येण स्वामिना नाभिसूनुना। ब्राह्मो सुन्दरो Vyas तत्पाश्वेमोयतुः ७७ अचतुख महासस्च समखरणाश्मनस्तव |

युक्तं UMS करिस्कन्धाधिरोहणम्‌ अर एवम्भूतस्य ते इन्त कथं प्रानं प्ररोहति | पधःखितकरोषाम्नेः पादपस्येव पल्लवः ७९ .॥ भामनेव विचायं लमुत्तितोर्वभवोदषिम्‌ ` हस्तिगोऽस्मादवतर तरण्डादायसादिव te tt ततोऽसौ चिन्तयामास gas इस्तिसङ्गमः | धादपारोहमारूढवन्नोव वपुषो मम॥८१॥ marae समुद्रोऽपि चलेयुरचला aft |

cA तु भगवच््छिष्ये भाषेते wart कचित्‌ ॥८्२॥ श्राः न्रातमयवाऽख्येष माम एव AAT: | सणएवमे mane arg विनयदुमम्‌ ८२॥ कथं कनोयसो भ्चातन्बन्दे धिगिति चिन्तितम्‌ | तपसा ज्यायसां तेषां भिष्यादुष्कुतमसु मे ८४.॥ सुरासुरनमस्यस्य गला भगवतोऽ न्तिके |

बन्दे कनिष्ठानपि तांस्तच्छष्यपरमाशुवत्‌ cy भरचलत्पादसुत्पाय्य यावत्ताबदसौ सुनिः।

भवाप केवलन्नान हारं निवीणवेश्मनः ५॥८६॥

ay

BAITS

करामलकवदिश्वं कलयन्‌ केवलच्िया | समोपे खामिनोऽष्यासत सदः कैवलभासताम्‌ ८७ भरतोऽपि महहारव्रेयतुदेणभिराखितः।

चतुःष्टिसदसखरान्तःपुरो नवनिधोश्वरः ८८

CHUA खास्राज्यषम्पहज्ञेः फलो पमान्‌ ure facies यथाकालमसेवत ८९ अन्यदा विहरन्‌ सामो जगामाष्टापदाचलम्‌ भरतोऽपि ययौ तत्र खाभिपादान्विवन्दिषुः॥<९० सुरासुराश्यं समवसरणस्थं जगत्पतिम्‌ |

fa: प्रदचिषोक्लत्य नमस्छत्येति तुष्टुवे ९१ विश्वासमिव मूत्तिख्थं सदुष्तमिव पिर्डितम्‌ | प्रसादमिव निःगेषजगताभेकतः खितम्‌ ९२ भ्नानराशिमिवाध्यत्तं yas समुचयम्‌ | सवलोकस्य सवसव भिवेकत्र समादृतम्‌ <३॥ aye सयममिवोपकारमिव रूपिणम्‌ | भोलमिव पादवारि समाभिव वपु्मतम्‌ ॥८४॥ रष्स्यमिव योगस्य विश्ववौयेमिवैकगम्‌ |

सिदु्पायभिवावन्ध्यं कौश्ल्यमिव केवलम्‌ ८५

walfaa मूत्तिमतीं सदेशां करुणामिव | सुदितामिव पिण्डख्ामुपेचामिव रूपिणोम्‌ ९९ तपःप्रशमसजन्नानयो AAH HATHA | arareafaafaa fafe साधारणोमिव ८७॥

प्रधमः AA |

ष्यापकं weafaa स्वासां श्रुतसम्पदाम्‌।

नमःखस्तिखधाखाहावषडधेमिवाणधक्‌ ९८

विश्दधर्मानि्ीणप्रकषेमिव केवलम्‌

समस्ततपसां fowhyd फलमिवाखिलम्‌ wees

परभागसिवागेषगुणराशेरनश्वरम्‌ |

उपन्नमिव निर्विघ्नं गवो निः ओेयसच्ियः ५००

प्रभावस्येकधामेष मोक्षस्य प्रतिमाभमिव।

कुलवे श्मेव विद्यानां फलं स्वी शिषामिष १॥

आयं वर्यचरिव्राणामालदमिवामलम्‌

कूटस्थं प्रणममिव जगतो दन्तदशनम्‌ २॥

दुःखशान्तेरिव हारं ब्रह्मचये मिवोज्वलम्‌

पुख्येरुपनतं जोवलोकस्येवेकजो वितम्‌ #

मृत्युव्याप्रमुखादेतदाक्रष्टमखिलं जगत्‌ |

ary प्रसारितमिव निर्षाखेन क्पालुना ४॥

नरानमन्दरसंच्ुव्न्नयाग्भोधैः समुचितम्‌ |

अपरं पौयुषमिव देहभाजामख्त्यवे ५॥

वि्ाभय प्रदानेन समाश्वासिततविष्टपम्‌ |

शरणं त्वां प्रपब्रोऽख्ि प्रसोद परमेश्वर gh

तत विजगन्राधरूषभवखामिनं ततः |

एकराग्रमनसोपासाश्चक्री चक्रधद्िरम्‌ WOK

WEAR तवर साधूनां सखेदं शभिवतः |

दोत्षाकालाद्ते पूवलचे मोचं ययौ प्रमुः ८॥ १२

योगशास्े

तदा निर्बाणमहदिमा ‘am शक्रादिभिः at:

अस्तो कशोकः शक्रेण भरतेशोऽप्यवोध्यत < चक्रेऽथ भरतो, रब्रमयमष्टापदोपरि | सिंहनिषद्याप्रासादमष्टापदमिवापरम्‌ १० tt

तत्र खामिनो मानवशसंखानग्रोभितम्‌ | रब्नोपलमयं विग्वं खथापयामास चक्रथत्‌ ११॥ स्वामिशिष्टवयो विंशभावितोथैक्ञतामपि यधावन्मानसंखयानवरे विम्बान्यसू्रयत्‌ १२ भ्ातृशां नवनवतेरपि ay महाकमनाम्‌

रचयामास रब्राश्मस्तृपाननुपमान्रृपः १२ पुनरेत्य निजां राजधानीं राजशिरोमसिः। यथावद्राज्यमशिषग्रजार्षणदोचितः॥ १४॥

कमभिर्भागफलेः प्रेथमाणो निरन्तरम्‌ |

बुभुजे विषिधान्भोगान्‌ साक्षादिव दिवस्मतिः ६५॥ नेपष्यकश्मनिन्मातुमपरेद्यरगादसो |

मध्ये शदाम्तनारोणां ताराणामिव चन्द्रमाः १६॥ तव सव्याङ्विन्धस्तरब्राभरणबिम्बितेः | सनौजनेयगपम्रेम्‌णा परिरब्ध इवाभवत्‌ १७

RES ER eMac nants be 1 9 ~ = mee

(+) गष प्रभोवक्र सुरा्रैः। (x) सच ततोऽसौ faze |

प्रधमः प्रकाशः | ER

CUA खमादर्गेऽपशतखस्ताद्गलोयकाम्‌ |

्रङ्गलिं afaaeneat दिवा शशिकलामिव १८

लतः प्रोहिन्रनिवदाग्मरत्यष्को सिभितभूषणम्‌ |

स्वमपश्यदतगरोकं शोखपणेमिव हुमम्‌ १८

अचिन्तयत धिगहो वपुषो भूषणादिभिः।

खो रा्ार्येव कुष्यस्य पुस्ताद्येरिव कर्मभिः २०

अन्तःक्तिब्रस्य विष्टादेमलेः सोतोभवैवेडिः।

चिग्वमानं किमप्यस्य शरोरस्य शोभनम्‌ २१॥

ददं शरोरं कपूरकस्तुरोप्रशतोन्यपि

दूषयत्येव पाथोदपयां स्यृषरभूरिव २२॥

विरज्य विषयेभ्यो FSAI मोक्षफलं तपः

तेरेव फलभेतस्य जग्टहे तच्छवेदिभिः २२

दति चिन्तयतस्तस्य शुक्तध्यानमुपेयुषः |

BUS केवलन्नानमहो योगस्य जभ्ितम्‌ २४

रजोहरण्पसुख्यानि सुनिचिदानि तत्छणात्‌

विनीत उपनोयाख्े नम्रे दिवस्मतिः २५॥

तद्राज्येऽक्घत तत्पुव्रमादित्ययश्सं तदा |

यदाद्ादित्यवंशोऽयमयाप्यस्ति ACA WYRE ON

wind युक्षं भरतस्य पूर्वैज्माजितयोगघमदिवलक्षपिता-

YRRUT: कमक्ते्क्षपशाय योगप्रभाववणेनम्‌ | यसु जश्नान्तरेषु अनल्रत्रत्रयोऽत एवाक्षपितकमौी मनुषल्वमाव्रमप्यप्राप्तवान्‌ | कथमनन्तकालपचितश्रभा्मकमनिमूलनमनुभवेत्‌

९२ योगशास्त्र तव्राहइ-

पर्वमप्राप्रधर्मापि परमानन्दनन्दिता | योगप्रभावतः प्राप मरूदेवा UT पदम्‌ ११॥

waeat fe खामिनो भरा संसारं वसत्वमात्रमपि नाजुभूतवतो किं qaaiqaa तथापि योगबलसमदेन शक्तध्यानाग्निना चिर सच्ितानि कर्मोन्धनानि भ्मसाल्कु तवतो यदाह- ‘aw एगा मरुदेवा Wad थावरा सिहा। मर्देवाचरितं चोक्घप्रायम्‌ १११ ननु जग्मान्तरेऽपि भक्ततक्रुरकमणां मरुदेवादोनां योगबलेन Ae: HAA: ये त्वत्यन्तक्रुरकमाणस्तेषु योगः , . कुण्ठतामप्यासादयेत्‌ | इ्त्याह- ब्ह्मस्तीभूशगो घातपातकान्नरकातिधेः दटप्रहारिप्रथतेर्यो गो इस्तावलम्बनम्‌ १२

ब्रह्मणो ब्राह्मणस्य स्तिया वनिताया ya mia गभिष्याख गोनोस्तेषां घातः एव पातकं तस्मात्‌ यद्यपि समदभिनां ब्राद्मणाब्राद्मणयोः स्त पुरुषयोमभनव्ाभ्ु णयोग वागवोर्घाते अविभे- षिण पापबन्धः |

(१) यथया एका मरूटेवा अत्यन्तं स्याद्रा लिद्धा।

प्रथमः प्रकाशः ८३ यदाह

ष्सव्वो fefaaent ae महिपालो तदा उदयपालो मय भभयदाशवश्णा अणशोवमाहिश Ela १॥

तथापि लोकप्रसिातुरोषेम ब्रह्मेत्यादयुक्षम्‌। ये fe लोकिकाः सवस्या हिंसायाः पापफलं मन्यन्ते तेऽपि ब्रह्मादिघातकस्य महापापोयसस्तां मन्यन्त एवेति नरकातिचेष्ढप्रहारिप्रतर्योगो इस्तावलम्बनम्‌ | सेनेव भवेन मोच्चगममात्‌ प्रथतिग्रहणादन्धे- $पि पापक्षारिशो विदितजिनवचनास्तत एव प्राप्योगसम्परदो गरकप्रापियोग्यानि कर्माणि fre परमसम्मदमासादितवन्तो दरषटव्याः

यदाह- "कूरावि सहाबेणं विसयविसवसाणगावि होजणं | भावियलिणवयणमणा तेलुक्षसुहावहा होति १॥ sf तथाहि-

कस्िंचिनत्रगरे कञिदासोद्दिजातिर्डटः | प्रजासु HUAI प्रावक्तेत पापधोः॥ १॥

(१) wat हिसितब्यो यचा म्िपाकस्रया उदयपालः। खभमयदागत्रतिना जनोपमामेन भवितव्यम्‌ ?॥ (x) mcr खपि स्वभावेन विषयविषवथाचगा अपि भूत्वा भावितलिनत्रचनननसः नैलोक्यसुखा वषा भवन्ति ¶॥

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योगशास्त्र

भारत्तपुरपैरेष ततो निर्वासितः पुरात्‌ व्याघहस्तमिव WATT जगाम ॥२॥ कृशंसचरितैस्तेस्तराम नसुख्य इत्यसौ | चौरसेनाधिपतिना पु्रत्वेनान्वमन्यत २॥ सौरसेनापती तस्िन्रवसानसुपेयुषि |

तत्पुत्र इति तत्‌स्थाने बभूव महाभुजः ४॥ fad प्रह रत्येष सर्वेषां प्राणिनां यतः |

ततो दृदप्र्टारोति arent निजगदे जनेः ५॥ अन्येव विष्वकुष्टाकलुण्टाकभटपिटकेः

कुगखलनामानं ant लुण्टयितुं ययौ ब्राह्मणो देवशमेति aa दारिद्रय विहूतः। अवकेशोफलमिव aad याचितोऽभकेः wow पयव्य सकले ग्रामे aria aris तन्दुलान्‌ क्रापि anfa पयोऽभ्यथ्य परमाब्रमपोपचत्‌ नद्यां Bla ययाेष यावन्लावत्‌ तदोकसि

तै क्रुरतस्कराः पेतु वं दुबलघातकम्‌ < तेषामेकतमो दस्यरपश्यक्षस्य पायसम्‌ | WAGE प्रेत इव तदादाय पलाथितः॥ १०॥ प्राच्छिदयमाने तस्मिंस्तु पायसे जो वितब्यवत्‌ क्रन्दन्ति डिग्धरूपाणि गत्वा पितरमूचिरे॥ ११॥ व्यात्ताननानामस्माकं CASS पायसम्‌ | ae प्रसारितटटशणामनिलेनेव worry १२॥

Waa, प्रकारः |

ere वचो विप्रः Ferd दोपः we Feat | यमदूत दवादाय परिघं पयधावत ११॥ सरोषरात्षसाबेशास्तमुत्पादितदोबेलः |

way प्रवहते दस्युन्‌ परिघेण पशुमिव १४॥ तेनावकरवत्ाक्षात्तिप्यमाणानवेच्य तान्‌ विवस्यतस्तिरस्कुव्यन्‌ दधाते तस्करे्लरः १५ तस्यापि धावतो देवाहईतिविन्नविधायिनो | निरों दुगतिमिव मागे गोरन्तरेऽभवत्‌ १९ करालकरवालेकप्रहारेण वराकिकाम्‌ |

जघान Baa चण्डाल इव fay: १७ तस्याभ्यापततो रोरहिजातैः शिरो भुवि। पनसद्रोः फलमिवापातयन्खद्यष्टिना १८॥ at: पाप faa क्तं किमेतदिति वादिनो |

¦ वाला मासवतो तं चाभ्यगात्‌ हिजकुट्म्बिनो १९ तस्या हक इव च्छाग्या गुविष्याः सोऽतिदारुणः। ; कुमाण्डदारमुदरं दारयिला हिधाकरोत्‌ ॥२०॥ ततो ATTA तस्या गभं दिधाक्ततम्‌।

स्फुरन्ः निरोसिष्ट लताया इव पञ्चवम्‌ २१॥ तथा सम्पण्यमानख्य तस्य विद्लेतसः | क्षपागतक्षपस्यापि AA वशूछमिवाश्मनः २२ ततो हा तात arafa डा मातमौतरित्यपि। fanart: समाजर्मुस्तत्कालं दिजबालकाः २३॥

ed

fq

योगशास्न

नग्नान्‌ सुग्नानतिक्तामान्‌ "श्यामानतिमलेन दृष्टा दृढप्रषारो तान्‌ साुतापमविन्तयत्‌ २४ eer war fagiaa दरिद्र दम्पतो मया।

भमो बाला इता स्तोयशोषे जोवन्ति किं भषाः २५ ate aaa नेष्यमानस्व द्गेतिम्‌ | पघभीतस्य मे कः WITT: शरणं कः RE इति सख्िन्तयन्नैव वैराग्थावे गभागसौ

एनो गदागदष्काराग्छाधूनुद्यानरेच्षत २७ नत्वोवाचेत्यष्हं पामा भाष्यमाणोऽपि aT ufea: सटश्यमानोऽपि पड्विलोकुङते परम्‌ २८ येषाभेकतरमपि नरकायेव तान्यहम्‌ | ब्रह्मस्नोभ्ू्णगोघातपालकान्धक्तपो व्यधात्‌ W RE मामीदट्मपि भातु साधवो युयमदय

Sarat वर्षतां खानमखानं वा किशन २० अथ ते साधवस्तखे यतिधमेसुपादिशन्‌ |

सोऽच च्छतमिवोष्णालुः पापभोरस्तमाददे २१॥ HUSA तव AAS सरिष्याम्यस्य WA: | करिष्ये सर्वथा सान्ति सोऽग्रहो दित्यभिग्रहौ २९ पूर्वावस्कन्दितै तसिच्रेव ग्रामे कुसले |

mae चिकीर्षुः विजहार महामनाः २९१॥

(१) weu टद्ग्नानतिभलेनच।

प्रथमः AAA: | 29

एवायं HALEN पापः पापोयसामहो | दत्यतजन्यत लोकेन महातमा दिवानिशम्‌ २४॥ गोज्तुषददिजघात्येष इति लीकैनं जल्पता | विशन्‌ गदेषु भिक्षां श्वेव लोटेरकुदयत ३५ MAAS: तत्पापं प्रतिवासरमप्यसौ | शान्तखान्तो A YOR किंवा TAA दुष्करम्‌ २९ afanta: क्षचिग्मध्यं दिने सायमपि कचित्‌, MAA: तत्पापं कुवाप्यह्कि भुक्तवान्‌ २७ लोष्टभिवैशटिभिः पांश्ठरटिभिसुरटिभिजनाः ` IMT: सोऽधिसेहे तत्सम्यक्‌ चेवमभावयत्‌ श८ kt WIRY TEMA कश्च तादृशं फलमाप्नुहि यादृश्षसुप्यते बोजं फलं ताटस्षमाप्यसे ३८ यदमो निरमुक्रोश्माक्रोशाश्मयि तन्वे अयब्रेनेव fret तन्धभेयं afer ४० HAMA: प्रमोदाय यथेषां भे तथेव fe | WHA समानस्य कर्म्यविधायिनः ४१॥ यन्मां भत्तयताभेषां सुखसुत्पद्यतैऽद्य तत्‌ | SMTA भवे इन्त THN: सुखसङ्गमः ४२ परमो मदोयं दुष्कश्यग्रयिं परुषभाषितेः | anfe चिकिस्सन्तो नितान्तं geet मम ४२ HAY ताडनं war ममते यदिदं किल खणेस्येवाम्िसन्तापो मलिनत्वमपोषति ४४ a १९

श्य , योगशास्त्र

कर्षन्‌ दुगतिरपेमां खं प्रचिपति तव यः | , कथं Hanae तस्मै प्रहारानपि कुवते ४५ मत्पापानि व्यपोहग्ति निजयपुख्छव्ययेन ये| कथद्म रभिवेतेभ्यो ऽपरः परमबान्धवः ४६ वधबन्धादि TNA TH संसारमोचनम्‌ः। ।. . . .तदेवानन्तसंसारेतुरेषां दुनोति माम्‌ ४७॥ afantat तोषाय त्यजग्यथौन्वपृष्यपि : wot प्रोतिदमाक्रोशदननादि कियन्‌ मम ४८ तजिंतोऽद्ं इतो नाऽस हतो वा मासि मारितः। मारितोवान भे धर्मोऽपष्कतो बान्धवेरिव ४८. आआक्रोशवागधिचेपो बन्धनं हननं मतिः स्रं खेयोऽ्थिना aa रयो fe बहुविश्नकम्‌ ५० एवं भावयता तैन गता A दुष्कृतम्‌ | जिदेग्धः सवतः कश्यराथिः कत्त इवाग्निना + ५१॥ wart केवलश्नानमथ लेमे 'सुदुलेभम्‌ अयो गिकेवलिगुणस्थानखो मोक्षमाप ५२॥ योगप्रभाषेन ृदगप्रहारो यथेष qa नरकातिथिलवम्‌ पदं प्रपेदे परमं तथान्यो- ऽप्यसंश्यानः प्रयतेत योगे ५३२॥१२॥

(१) We दुलेमम्‌।

प्रधम WATT: | ` €.

पुनङटाषशर शान्सरेष्ठ योगदहामेव वशयति |

तत्कालक्ततदुष्कमकमटसख दुरात्मनः। ` गोप्त्रे चिलातोपुबस्य योगाय स्श्येन्न कः १३॥

तत्कालं तत्तकं छतं cen स्तोवधलक्षणं तेन aS: AAT we gua इति पापकरणकालापश्चं चिलालोपुताभिधानस्य गोप्त्रे दुगतिपातर्काय योगाय को रयेत्‌ सवं एवं WHA- fore: | हि

aatfe—

fafanfad ant यज्चटेवोऽभवदृदिजः |

निनिन्द पर्डितम्बन्यः सदा जिनशासनम्‌ १॥ असहिष्णु at faret जिगोषुः कोऽपि Qa: गुरुणा वाय माणोऽपि तं वादा्धमवोवदत्‌ ॥२॥५ xem प्रतिन्नाभूहादापिषितयोस्तयोः |

येन यो ज्यते तस्य शिष्यत्वं करिष्यति 2 भानोतो निग्रशस्थानं बुचिकौशलशालिना | विवदन्बादिना तेम anea: पराजितः ४॥ Guat जितकाशो तु aneafesraar |

तदा पूवेप्रतिन्नातां परित्रज्यामजिग्रहत्‌ ५॥ ` ततः शासनदेव्येवं यन्नदेवो AAA

चारितं प्रतिपन्नोऽसि न्नानशरानवान्भव॥६॥

योगशास्त्रे

व्रतं ततः प्रत्येष यथावत्मालयव्रपि |

निनिन्द वस््नाङ्गमलं प्राक्संस्कारो fe दुस्यजः अशाम्यन्‌ WARSI संसर्गेण महामनः | प्राहषेख्याभ्नसम्पकंष्वाहिमांशोरिवांशवः भस्य पाणिष्डद्ोतो तु नितान्तमनुरागिणो | उञ्छाच्चकार नो रागं नोलोरल्षेव शाटिका ॥<॥ वश्यो Asfeafa सा तख पारणे कायं ददौ सत्यं cat विरक्ञाख मारयन्तयेव योषितः १०॥. तोयमाणःकष्णपस्तेणिव ATTA TIT |

मुनोन्दुथयौ खगे मण्डलं acafca ११॥ तस्यावसानात्‌ सच््नातनिर्वेदा सापि गदिनो प्रत्रल्यामग्रोदेकं मातुष्यकतरोः फलम्‌ १२ waaay सा पापं पतिव्यसनसम्भवम्‌ |

कालं क्रत्वा दिवं प्राप दुष्पापं तपसा fy किम्‌ १३ AACA जोवोऽघ च्युत्वा THT पुरे धनसा्पतेशेकाडिलात्यास्तनयोऽभवत्‌ १४ चिलात्याः ya इत्येष चिलातीषुव्रसंन्नया | प्ाहयते AAA नाम नान्धक्रकल्ितम्‌ १५॥ यज्नदेवप्रियाजोवशुमलाऽनुसतपञ्चकम्‌ |

भद्राया धनभायीयाः सुसुभेति सुताऽभवत्‌ १६ धनो नियोजयामास विलातोतनयं तम्‌ सुमायाः खदुहितुः बालग्रादककश्णि १७

प्रधब, प्रकाशः |

लोकेष्वार्गांसि चक्रोऽसौ Away राजतः . सामो अत्यापराधेन यतः स्याद्ण्डभाजनम्‌ १८ मन्व विन्तं wrist सदोपद्रवकारिणम्‌। ष्टहाच्रिर्वासयामास STAT दन्दशूकवत्‌ १८ सोऽथ सिंहगुहां Peat ait महागसाम्‌ |

ययौ प्रियागाः wifafe तुरव्यसनभोलयोः २० शंसो WHIT TATA सङ्गतः | वायुमेवास्निरभवदहारुणोऽप्यतिदारुणः २१

ततः सिंहगुहाधोभे चीरसेनापतो सते | चौरसेनापतिः सोऽभूसदर्धमिव निर्मितः २२॥ यौवनं सुसुमाप्याप्ता रूपादि गुखशालिनो | कमाकलापपूरखाभूत्‌ खेचरोव APT २३ A चेलातेयोऽन्यदोचे arafer राजग्छहे पुरे

खेष्ठो धनो ऽनन्तधमो दुहिता चास्य FRAT २४॥ तस्करास्तव गच्छामो धनं वः सुसुमातुमे।

दति व्यवखामाखाय सोऽगाइनग्हं निशि ॥२५॥ प्रयोज्य खापनीं विद्यां कौत्तयित्वा खमागतम्‌ | धनं ग्राहयामास सुसुमां खयमग्रोत्‌ ॥२६॥ सुप्ताथेषपरोवारः सूनुभिः पञ्चभिः समम्‌

WTA धनस्तस्थौ नयो मयवतां ह्यसौ २७ MAU AWA TAA सुसुमाम्‌। चेलातेयः पलायिष्ट सलोपत्रदस्युभिः सह २८॥

cect

` योगशास््र

साहयारचतपुरुषान्‌ धनओेषटोत्वभाषत |

, चौरापडतविन्तं "च प्रत्यानयत सुसुमाम्‌ २९

ततो घनः AeTTa: पुवेखायुधपाणिभिः। पुरोगस्मनःस्मरैयेव त्वरितमन्धगात्‌ २० जलं; खलं लता ठल्लानन्धदष्यख्िल्तं पथि |

: पौतोक्मत्नो शैमभिव सोऽपण्यसुसुमामयम्‌ ११

इतः पोतमितो भुक्ञमितः खितमितो गतम्‌ .. एवं वद्धिः पदिकेः दस्यूब्रिकषा ययौ १२॥ wa इतेति wala wwlafa भाषिषः। मलिब्हूचानासमिलब्रारच्चपुरुषास्ततः २१ दिशो दिभिप्रशेश्स्ते वित्तं त्यज्ान्यतस्कराः | सुसुमां तु नामुख्च्चौरो व्याघ्रो खगोभिव॥ ३४ भारत्तषपुरुषास्ते तु तदन्तं प्राप्य पुष्कलम्‌ |

¦ ` व्यावर्तन्त कतार्थो fe सवे: स्वादन्यथामतिः २५

SUEY सुसुमामंसे लतामिव मतङ्गजः |

प्रविषैश महारण्यं चिलातोतनयस्ततः २६

सूनुभिः पञ्चभिः पञ्चाननेरिव धनोऽन्वगात्‌ |

me पुतं मुखादस्योराष्ोरिन्दुकलामिव ३७ धमे ससविधोभूते माभवलस्य सा मम |

सुमुभेति धिया तस्याः शिरःकमलमच्छ्िनित्‌ ३८॥

(py) खग wy

प्रधमः प्रकाशः |

भ्राक्तष्टकरवानोऽसो हम्तविन्धस्तमस्तकः |

तदा यमपुरोहारकस्ैवपाल इवाबभौ ३८ सुसुमायाः कवन्धस्यान्तिके खित्वा दन्‌ घनः ` वारोव बाष्यपूरेण नयनाश्नलिभिदंदौ ॥४०॥ तस्याः कबन्धमुस्पुज्य व्याहत्तः ससुतो धनः fara; शोकशश्येन मङाटव्यामधापतत्‌ ४१॥ ललाटन्तपतपनतेजस्तापभयादिव |

ok

विष्वक्‌ सङ्चितच्छायो मध्याङकञ्च ततोऽभवत्‌ ४२

योकश्रमनच्ुधाठष्णामध्याद्ातपवह्किभिः।

धनः सुताख पञ्चाग्निसाधका इव तेपिरे ४३ . जलं फलं नान्यदहशर्जीवनौषधम्‌ |

waa प्रत्युतापश्य॑स्त 'हिस्लष्वापदान्‌ पचि ४४.॥ प्लनस्तनयानां तां पश्यन्विषमां दशाम्‌।

WARS पच्यतुच्छे गच्छन्रेवमचिन्तयत्‌ ४५॥

मम सवेखनागोऽभूत्पत्रो प्राणप्रिया खता | मत्युकोटि वयं प्राप्ता धिगष्ो देवज॒न्भितम्‌ ४६ यत्पुरुषकारेण साध्यं धोसम्दा च।

तदेकं देवभेबेह बलिभ्यो बलवत्तरम्‌ ४७ ` प्रसाद्यते दानेन विनयेन a wwe |

सेवया aud नेव केयं दुःसाध्यता faa: ४८॥ `

(१) aw feaqrazrafy |

AVANT

faquataa नेव बलवदधिन रुध्यते साध्यते तपस्यद्धिः प्रतिमन्ञोऽसु को विधैः ४८ ww देवं faufaa कदाचिदनुकम्पते। कदाचित्परिवग्योव निःश प्रणिहन्ति च॥ ५० विधिः fata सवत्र कदा वित्परिरक्षति। कदाचित्पीडयत्येव दायाद इव ‘eA NUR विधियति मागेंणामागेखमपि afefaq | कदाचिख्मार्मगमपि विमार्गेख प्रवत्तयेत्‌ ५२ ` सानयेदपि दूरस्थं करस्थमपि नाशयेत्‌ मायेन्द्रजालतुष्यस्य विधिष्रा गतयो विधेः ven अनुकूले विधौ vat विषमप्यतायते |

विपरोते पुनस्तन्रा गतमेव विषायते ५४॥

एवं चिन्तयन्नेव प्राप Tate पुरम्‌

सशोकः सुसुमापुत्मा विदधे चौडदेहिकम्‌ ५५॥ वे राग्यादु तमादाय गओ्रौवोरखामिनोऽन्तिके

qed तपस्तेपे पूणायुख दिवं ययो ५६ चैलातेयोऽप्यनुरागासुसुमाया FRAY: |

सुखं पश्यब्रविन्नातशमो याम्यां दिशं ययौ nyo सर्वसन्तापष्रणं छायाहठक्चमि वाध्वनि |

AYA TEMG कायोव्गुषं पुरः. ५८

(१) खच sue: |

प्र्यमः प्रकाशः | १०५.

सखेन कर्मणा तेन किच्िदुदिग्नमानसः। तमुवाच समाख्याहि wa संक्षेपतो मम ५८ अन्यथा कदलोलावं लविष्यामि चिरस्तव। भरनेनेव HUTA सुसुमाया इव सणात्‌॥ ६०॥ सक्रानाश्ुनिरन्नामोदोधिबोजमिहाहितम्‌ | wa यास्यति स्फातिं पल्वले शालिबोजषत्‌ ६१ कायं: सम्यगुपशमो fata: संवरोऽपिच। cam चारगासुभिः cata खसुदयौ ६२ पदानि मन्तवन्तानि परावक्षयतस्ततः |

as चिलातोपुतरस्य तदर्थाज्ञिख fem: ६२ क्रोधादोनां कषायाणां कु्यौदुपश्मं qui: दहा तेरहमाक्राग्तख्न्दनः TATA ९४ चिकित्साम्यद्य तदिमाग्महारोगानिवात्नः। चमाख्दुलक्लुतासन्तोषपरमौषधेः ६५ धनधान्यदहिरण्या दिसवखत्यागलक्षणम्‌ | विषैकमेकं कुर्वीत बोजं न्नानमहातरोः॥ ६६॥ तदिदं सुसुमाशोषं wart करख्ितम्‌ सवस्रभूतं सुञ्ामि कैतन पापसम्मदः ६७ संवरथाक्षमनसां विषयेभ्यो निवत्तनम्‌

मया प्रतिपन्रोऽद्य संयमओोशिरोमणिः॥ ६८॥ पदाथ भावयन्नेवं संरदसवलेन्दरियः।

समाधिमधिगम्याभून्नोमातेकचेतनः ६< १४

१०९ ` योगशास्ते

ततोऽस्य विस्रगन्धादक्ङ्टाकव चितं वपुः | कोटिकाभि; शतच्च्छिद्रं चक्रे ETE घुरेरिव ७० पिपोलिकोपसरगेऽपि स्तम्भ इव निश्चलः | साषशोराच्रयुग्मेन जगाम विदशालयम्‌ ७१ यदाह- tan तिहि ante wal समभिगभ्रो संजमं समारूढो | उवसम विकेयसंवरचिलाग्पुत्तं नमंसामि w ७२॥ 'द्हिसरिया पाणिं सोण्णियगंघेण जख कौडोभो | खायंति suet तं दुक्रकारयं वंदे ७३ wat चिलादपुत्तो सुयङ्गलोयाहिं चालणिव्व aut | ञो तद्वि खव्जमाणो पडिवन्रो उत्तमं अट ७४ tesrcate राद्दिएहिं पत्तं चिलाश्पुत्तेण देविंदामरभवणं भच्छरगणसहुलं TAF ७५॥ चरित्रैरापन्ः श्वपच दव धिकारपदवोम्‌ चिलातोपुच्ोऽसावधिनरकमासूज्रितगतिः।

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ee 88e

(१) afeafa: पटः wa समभिगतः संयमं समारूढः) छपथ्चमविवेकसंवरचिलातीपुत्रं नमद्यामि

(२) अधिद्धताः पारः थोखितगन्ेन यख होनाङ्गयः। खादन्ति उत्तमाङ्गंतं दम्करकारकं वन्द्‌

(३) drcfwaratsa’ पिपीडिकाभिबालनोवङ्गतः। यखथापि खाद्यमानः प्रतिपच्च उत्तममधेम्‌

(४) साडेहिभिः tifafe: nin faaratya | देबन्द्रामरभवनं WTYOTAIET रम्यम्‌

प्रथमः प्रकाशः | 209

समालम्बेयवं यचिदिवसदनातिष्यमगमत्‌ एवायं योगः सकलसुखमूललं विजयते og १२॥

पुनरेव योगमेव स्तौति-

तस्याजननिरेवासतु खपशोर्मोघजन्प्रनः | अविषकर्णो यो योग इवयच्चरशलाकया १४

जननमजननिः “नजोऽनिः शापे" ५।२।.१२७ इत्यनिः। WY भूयात्‌ ना चासौ पश्च sayay पोः पश्प्राय- पुरुषस्य मोघजग्मन इति निष्फलजननस्य यः किं योऽविहकणेः कया श्रक्षरशलाकया। WI शलाका कणेषेधजननो भ्र्तरशलाका। ANA याग्धक्षराणि wars WE! योग afa योग इत्यत्षरलक्षणश्रलाकया योऽविहकणेः लोहादिमय- शना काविदकर्णऽपि। तस्य दृपशोवेरमजननिर्युक्षा प॒न- विडम्बनाप्रायं जननमिति १४॥

पनरपि पूर्वान योगं सुला SATE तत्खरूपमाह-- AGA SUMMA AAA कारणम्‌ | ज्नानग्रद्ानचारिवरूपं रत्रवयं सः १५॥

चतुवर्गोऽधैकामधर्षमोच्लक्षणः afar: प्रधानं मोक wat हि भ्रजनरक्षणनाशव्ययहेतुकद्‌ःखागुषङ्कदूषितत्वात्र चतु- वर्गेऽग्रणोभवति। कामसु सुखानुषङ्गलेशाद्यद्प्यथा दुतकुष्यते तथापि विरस्ावसानल्वात्‌ दुगतिसाधनलाच्च arth) wag

१०८ यो गशास्म्े

रेहिकामुशिकसुखसाधनत्वेन भर्धैकामाभ्यां यद्यप्यकृत तथापि क्नकनिगडरूपपुख्यकमबन्धननिबन्धनत्वाहवभ्वमणहेतुरिति ना- aa) wag पुष्यपापच्तयलक्षणो aye! वा विषसम्पक्ञाब्रवदापातरमणोयः परिणामदुःखदायो नवा णडिका- मुक्षिकफलाशंसादोषटूषित इति भवति परमानन्दमययतुनर्ग Tat: a) तस्य कारणं साधकतमं ATT योगः। तस्य fe खूपमित्याषह। vara मरकतादिव्यवच्छेदेनाह त्रान- खद्ानचारि्ररूपमिति १५॥

रत्रत्रये प्रधमं न्रानखदूपमाद -

यथावश्िततच्वानां संक्नेपादिस्तरेग वा योऽवबोधस्तमवादः सम्यग्न्नानं मनोषिगः.॥ १६

यथावद्ितानि नयप्रमाणप्रतिष्ठितखरूपाणि यानि तत्वानि ज्ञोवाजोवाखवसंवरनिज रावन्धमोचतलक्त्ानि तेषां यीऽवबोध- स्तत्सम्यगन्ञानं चाववबोधः योपशम विशे षात्कस्य चित्स GIT RAIS कस्यचिदिस्तरेण |

aate— जोवाजोवावाश्चवश्च संवरो निजेरा तथा बन्धो Waal सप्र तच्छान्याइमनोषिणः aa जीवा feat Hat सुक्षसंसारिमेदतः। अनादिनिधनाः सव ज्नानदभेनलक्तणा;

प्रथमः प्रकाग्रः।

UM एकस्वभावाः स्युजे ख्ादिक्गेणवर्जिताः | श्रनन्तदशेनन्नानवौोर्यी नन्दमया्च तै संसारिणो feat जोवाः स्थावर्रसभेदतः | femasfa fear पर्यीप्तापर्यीघ्तवि्ेषतः पया सयु षडिमाः पर्याप्रलनिवन्धनम्‌ |

्राङ्ारो वपुरक्षाणि प्राणा भाषा मनोऽपि च॥५॥ स्युरेकाक्षविकलाक्षपश्चाक्ताणां शरोरिणाम्‌

चतस्रः पञ्च षड्वापि पयाप्तयो यथाक्रमम्‌ काक्षाः WAT भूम्यपतेजोवायुमदौ रहः |

तेषां तु पूरवे चल्वारः स्युः सच्छा बादरा भ्रपि प्रत्येका: साधारणाष दिप्रकारा APT: |

AT पूर्वे बादराः स्य॒रुत्तरे AHA:

तरसा fefaaquafeaaa चतुविधाः।

तत्र पञ्चेद्दिया Sar संन्निनोऽसंज्निनोऽपि ane शिक्तोपदेशणालापान्धे जानते ast df: | संप्रहत्तमनःप्राणास्तभ्योऽन्ये स्य॒रसंन्निनः १० tt Unt रसनं प्राणं चुः योज्रमितीन्द्रियम्‌ ,

तस्य स्पर्शो रसो गन्धो रूपं शब्द गोचरः ११॥ tifa: waa: शा गण्डुपदजलौकसः |

aaet: श्क्तिकाद्ाय विविधाक्षतयो मताः १२॥ युकामल्कुणमलोटलिक्ताद्यास्नोन्दरिया मताः पतद्गमस्तिकाण्द्दंगाद्याख्तुरिग्द्रियाः १२॥

११०

MANA

तिर्व॑ग्योनिभवाः शेषा जलखलखचारि णः

नारका "मानवा देवाः स्वे पञ्चेन्द्रिया मताः १४॥ मनोभाषाकायबलत्रयमिन्द्रियपञ्चकम्‌ | आयुरच्छासनिःश्वासमिति प्राणा दथ स्मृताः १५॥ सवेजोषेषु देष्टायुरुच्छासा इन्द्रियाणि |

, विकलासंन्निनां भाषा पू्णौनां dfaat मनः॥ eg a

उपपादभवा VAT नारका गभजा; पुनः जरायुपोताग्डभवाः TAT: सम्मूच्छनोडवाः १७ समभूच्छिनो नारकाख जोवा; पापा नपुंसकाः

Sarg खोपुषेदाः° स्युवेद व्रयलुषः परे १८

wa जोवा व्यवष्ायेव्यवषा रितया दिधा | सुच्छनिगोदा एवान्तयाश्स्तेभ्योऽन्ये व्यवहारिणः १८ सचिन्तः dom: गोतस्तदन्यो मिचितोऽपि वा

विभेदेरान्तरेभिंत्रो नवधा योनिरद्धिनाम्‌ २०

प्रत्येकं सप्तलच्षाणि एष्वोवायग्निवायुषु

प्रत्येकानन्तकायेषु क्रमादश चतुदश २१॥ © ©

षट्‌ पुनवि कलाधेषु मनुष्यषु AGE |

स्यघतस्र्चतसखर श्ठभ्रतियक्सुरेषु तु २२

(१) कड भतुलाः। (१) खगवच Jat: स्ोपुंसबेदाः।

(२) कदख्द्ध SIAC: |

(४) waa asso areca: |

प्रथमः प्रकाशः | १११

एवं aaa योनोनामभोतियतुरुत्तरा | सवेन्नोपनश्नसुक्तानि स्वेषामपि जग्िनाम्‌ २३ THAT बादगाः सुखाः TATA: Awa HAA: | ufsfraqcara cater इतरेऽपि २४ एतानि जोवस्यानानि जिनोक्षानि चतुदश | मागंणा रपि तावन््यो HALT नामतो यथा ॥२५॥ गतो द्दरियवयपर्यो गवेदत्नानक्रदादयः संयमाहारटम्लेष्याभव्यसम्यक्त्वसंन्निनः २६ faurefe: साखादनसम्यगि्मिष्याषहटशणावपि | अविरतसम्यग्ढष्टिविरताविरतोऽपि २७ ` प्रमत्षखाप्रमत्तख्च निठ्तिबादरस्ततः | afaataarecara सुच्छसंपरायकः २८

ततः प्रणान्तमोहश्च MNCs योगवान्‌ अयोगवानिति गुणस्थानानि स्य॒खतुहेश २९ भिष्यादृशिभवेन्मिष्यादश्नस्योदये सति | गुशस्थानत्वमेतस्य भद्रकत्वादयपेक्षया ३० मिष्यातलस्यानुद येऽनन्तानुबन्ध्युदये सति साखादनः सम्यग््टिः स्यादुत्करषीत्‌ षडावलोः २१ TARA AMMAN TAA: | प्रविरतसम्यग्हष्टिरप्रत्याख्यानकोदये ३२ विरताविरतसु स्याद्मत्याख्यानोदये सति | प्रमत्तसषयतः प्राघमंयमो यः प्रमाद्यति ३२

११२

योगशास्त्र

सोप्रमत्तसंयतो यः संयमो, प्रमाद्यति

उभावपि पराहत्या स्वातामान्तरमृहत्तिकौ २४॥ want खितिघातादोनपूवौन्‌ कुर्ते यतः | तच्मादपूवैकरणः पकः TART सः २५॥ यदादरकषायाणां प्रविष्टानामिमं fare: | परिणामा निवर्तन्ते निहत्तिबादरोऽपि तत्‌ २६॥ परिणामा निवत्तन्ते मिथो यत्र यत्रतः | अनिहत्तिवादर' स्यात्तपकः WAHT सः २७ लोभाभिधः सम्मरायः aan: किद्धोक्ततो यतः

सुच्छसम्परायः स्यात्लपकः शमकोऽपि ३८ अधोपशान्तमोदः स्याश्नोदस्योपशमे सति

मोदस्य तु क्षये जाते चोणमो WIA २९ सयोगिकेवलो घातिच्षयादुत्पत्रकैवलः |

योगानां तु Aa जाते एवायोगिकेवलो ४०

इति जोवतत्वम्‌

अजोवाः स्यधमाधन्धविष्ायःकालपुद्रलाः Raa we warfa दरव्याण्येते निवेदिताः ४१ aa कालं विना सवं प्रदेशप्रचयात्काः |

विना जौवमचिद्रपा भकन्तौर् तं मताः ४२॥ कालं विनास्तिकायाः act: gre विना | उत्पादविगमधरौव्याक्ानः Tasha तं पुनः ४२॥

NAA: प्रकाशः | १९१२

एद्रलाः स्यः स्यशंरसगन्धवणेसख रूपिणः | ैऽणस्कन्धतया Cur तत्राऽबहाः किलाणवः ४४ वहाः स्कन्धा MATT AAT aa: | WATHAIATAART STATA AT श्रपि॥ ४५॥ कमकायमनोभाषाचे्टितोच्छासदायिनः

सुखदुःख जोवितव्यमल्युपग्रहकारिणः ४९ प्रतयेकभेकद्रव्याणि धमाधम नमोऽपि च।

अमू सौनि निष्रियाणि खिराण्यपि सवयदा ४७ एकजोवपरोमाणसंख्यातोतप्रदेशकौ | लोकाकाशमभिव्याप्य warrant व्यवखितौ ues a खयं गन्तु प्रहत्तषु जोवाजोबेषु सवतः |

सहकारो भवेच; पानोयमिव यादसाम्‌ ४९ जोवानां सुदहलानां प्रपन्नानां खयं खितिम्‌

Ue: 'सहकार्येष यथा च्छायाऽष्वयायिनाम्‌ ५० wat खप्रतिष्ठं स्यादाकाश्मवकाशदम्‌ |

लोकालोकौ सितं व्याप्य तदनन्तप्रदेभाक्‌ ५१॥ Maram भिन्नाः कालाणवसतु ये

भावानां परिवन्नीय मुख्यः कालः SAT ५२ ज्योतिःशास्त्रे यस्य aqua समयादिकम्‌ |

व्यावश्ारिकः कालः कालवेदिभिरामतः॥ ५३२॥

(१) कग BERT |

१५

११४

AANA

नवजोीदिरूपेश यदमो भुवनोद्रे

पदार्थाः परिवन्तन्ते तत्कालस्येव चेष्टितम्‌ ५४ + TRA Walaa भाविनो वत्षमानताम्‌ | पदार्थः प्रतिपद्यन्ते कालक्रोडाविडगम्बिताः ५५

इति अजोवतक्छम्‌ `

मनोवचनकायानां ARATE APTA: |

शभः शभस्य हेतुः स्याद एभस्त्वशभस्य ५९६ इति भाखवः

सवेषामाखरवाणां यो Teg: संवरः |

कर्मणां भवह्ेतूनां जरणादिह निजेरा ५७

xfa संवरनिजंरे

वच्यन्ते भावनाखेवास्रवसंवरनिजराः |

तन्नात्र विस्तरेणोक्नाः पुनरक्रत्वभोरुभिः ५८ सकषायतया जोवः कर्मयोग्यांसतु पुद्रलान्‌ |

यदादत्ते बन्धः स्याव्जोवाखातन््रयकारणम्‌ ५९ प्रक्षतिखित्यज्ुभागप्रदेशणा विधयोऽख तु |

Wafagy खभावः स्यात्‌ श्रानाघ्ठत्यादिरटधा ६० श्रानदच्या ठतो वेद्यं मोहनोयायुषो wie | नामगोन्रान्तरायाख मूलप्रक्ञतयो मताः wee i निकर्षोत्कषेतः कालनियमः कमणां खितिः। wan विपाकः स्याग्रदेणोऽशप्रकस्पनम्‌ ६२

प्रधमः प्रकाशः | ११५

मिष्या्ृष्टिरविरतिप्रमादौ क्रुदादयः | योगेन aye wea विन्नेया बन्धरेतवः # ६३ #

इति qa

अभावे बन्धहेतूनां घातिकर्क्षयोडवे।

aaa सति ala: स्याच्छषाणां कर्णां चये ६४॥ सुरासुरनरेन्द्राणां TAS Yana |

स्यादनन्तभागोऽपि मोश्चसुखसम्पदः way i खस्वभावजमत्यन्ं यदस्मिन्‌ शाश्वतं सुखम्‌ | चतुषैर्गाग्रणोललेन तेन are: प्रकौत्तितः ६६ #

इति मोक्षतत्वम्‌

मतिख्ुतावधिमनःपयीयाः केवलं तथा |

अरमोभिः wade nia पञ्चविधं मतम्‌ ६७ श्रवग्रहादिभिभित्रं बह्वायैरितरेरपि। इन्द्रियानिन्द्ियभवं मतिन्नानमुदौ रितम्‌ ६८ विस्तृतं बहुधा पूर्वेरङ्गोपाङ्गः प्रकोणेकंः स्याच्छब्दला च्छित sa श्रुतन्नानमनेकधा ६< देवनैरयिकाणां स्यादवधिभंवसम्भवः |

षड विकष्पसतु शेषाणां ्षयोपशमलक्तणः #॥ ७० ऋलुर्विपुल tad स्याख्मनःपयेयो fear | fagerafamranat तदिगेषोऽवगम्यताम्‌ ७१

११६ योगशास्त्रे ..

अगेषद्रव्यपयायविषयं विश्वलोचनम्‌ | अनन्तमेकमत्यक्तं "कं वलन्नानसुच्यते ७२ एवं पश्चभिन्रौनैन्नाततत्व समुष्यः अपवर्गहेतो रब्रत्रयस्याद्याङ्गभाग्भवेत्‌ ७३ भवविटपिसमरूलो लने मत्तदन्तो जडमतिभिरनागे पद्मिनोप्राणनाधः | नयनमपरमेतददिश्वतत्वप्रकागे |

करण रिणवन्धे वागुरा ATAAT ७४ १६ दितोयं caare—

रुचिजिंनोक्ततत्वेषु सम्यकश्रहानमुच्यते | जायते तद्धिसगण गुरोरधिगमेन वा १७

जिनोकञेषु way जो वादिषृक्षखरूपेषु या सचिस्तत्‌ aera नदि srafaaa रुचिं विना फलसिदहिः शाका वा दिस्वरूपवेदिनाऽपि afacfeda सौदित्यलन्तणं फलमवाध्यते अुतन्नानवतोऽप्य- षारमदंकादैरभव्यस्य gaa वा जिनो क्तत्वेषु ुचिरहितस्य a विवक्तितं फलमुपश्रुयते तस्य चोत्पादे हयो गतिः निसर्ग-

ऽधिगमश्च | निसगः सखभावो गुरूपरेणादिनिरपे्तः सम्यक्‌ खरान- कारणम्‌ |

भि eo

(१) Va Baas Waa}

प्रधमः प्रकाश्चः। ११७

तथाडि-

श्रनाद्यनन्तसंसारावरससवस्तिषु Vfey | "सानदथ्चाहतिवेदमोयान्तरायकमणाम्‌ Wek सागरोपमकौटोनां कोखचिंशत्यरा खिति; | विंशतिर्गोवनास्नोख मोहनोयस्य सप्ततिः २॥ ततो गिरिसरिद्रावघोलनान्धायतः खयम्‌ | एकाश्विकोटिकोव्यूमा प्रत्येकं क्षीयते fafa: शेषाब्विकोरिकोखन्तःखितौ सकलजग्भिनः | यथाप्रहस्तिकरशाद्रन्विदेशं सभियुति रागदेषपरोशामो दुरभेदो ग्रन्विरच्यते दुरुच्छेदो दृढतरः काष्ठादैरिव wares ग्रन्यिदेशं तु संप्राप्ता रागादिप्रेरिताः पुनः उल्कुष्टवन्धयोग्याः स्युबतुगतिजषोऽपि सै तेषां मध्ये तु ये भव्या भाविमद्राः शरीरिणः भ्राविष्कुत्य परं वोयमपूषैकरे क्षते अतिक्रामन्ति सहसा तं aft दुरतिक्रमम्‌ अतिक्रान्तमहाध्वानो चट्भूमिमिवाष्वगाः eo | श्रयानिहत्तिकरशादन्तरकरणे छम | | four विरलोङकयुकेदनोयं यदग्रतः

(१) कञ्च सागडच्याहतिवेद्याभिषान्तरायकर्मवाम्‌ |

११२ AANA

अन्तर्मुहरत्तिकं सम्यग्‌दशेनं प्राप्रुवन्ति यत्‌

निखगरेतुकमिदं सम्यकखदानसुच्यते १०

गुरूपदेथमालम्बय सर्वषामपि देहिनाम्‌ |

यतु सम्यक्‌खद्ानं तद्छयादधिगमजं परम्‌ ११

यमप्रशमजोवातुर्बीजं न्ानचारिव्रयोः

इेतुस्तपःश्रतादोनां सहशनसमुदो रितम्‌ १२ ariel हि चरणन्नान वियुक्षमपि दशनम्‌ |

पुनच्नानचारित्रे मिध्याल्विषदूषिते १२ a

न्नानचारिवरष्टोनोऽपि at त्रेणिकः किल

सम्यग्दशेनमाङाव्यान्तो घत्वं प्रपद्यते १४

अ्तचरणशवोधाः प्राणिनो यमग्मभावा-

दसमसुख निधानं मोत्षमासादयन्ति।

भवजलनिधिपोतं दुःखकान्तारदावम्‌

अयत afew सम्यग्दशेनं रब्रमेकम्‌ १५ १७॥

aatd Taare सर्वसावदायोगानां त्यागश्चारिवमिष्यते | कौत्तितं तदहिंसादिव्रतमेदेन पञ्चधा १८ wa ag afd ये सावदव्ययोगाः सपापव्यापारास्तषां त्यागो ज्रान्रहानपूर्वकं परिष्ारः सम्यक्चारित्रं weeds विना

aaa चारित्रस्य सम्यकचारिव्त्वाशुपपन्तेः। सवं ग्रहणं देणचारिवव्यवच्छेदाधम्‌। ve वारिषरं genase

WAM: WAT: | ११.

दिविधं कौत्तितमित्यादिना मूलगुणशरूपं चारित्रमाह पञ्चधेति व्रतमेदेन नतु खरूपतः १८

मूलगुणानेव कौन्तंयति-

NASA AAR AAA:

पञ्चभिः पञ्चभियुक्ता भावनाभिविमुक्तये ween uffarzag पञ्चापि प्रत्येकं पञ्चविधभावनाभ्यहिताः सन्तः ख- कायंजननं प्रति श्रप्रतिवहसामध्या भवन्तोति पञश्चभिरित्या- | दयुक्तम्‌ १९८४

प्रधमं मूलगुणमाह-- यत्मरमादयोगेन जौवितव्यपरोपणम्‌ | वसानां स्थावराणां तद्‌ हिसाव्रतं मतम्‌ ॥२०॥

प्रमादोऽन्नानसंशयविपयेयरागदेषस्मृतिभ्रंणयोगदुष्युणिधानधर्मा-- नादरमेदादष्टविधः। तद्योगाश्चसानां खावराणां जोवानां प्राणब्यपरोपणं fear) तत्िषधाददहिंसा प्रथमं व्रतम्‌ ॥२०॥

हितोयमाह-

प्रियं पथ्यं वचस्तथ्यं सुन्तव्रतसुच्यते ` तत्तथ्यमपि नो तथ्यमप्रियं चाहितं यत्‌ ॥२१॥

तथ्यं वचोऽख्षारूपमुखमानं सृ दतव्रतसुश्यते किं विशिष्टं तथ्यं

१२० NAAT `

प्रियं पथ्यं ततर प्रियं यत्‌ yaad प्रोणयति पथ्यं यदायतौ हितम्‌ ननु तथ्यभेवेकं विग्रेषणमसु सत्यत्रताधिकारात्‌ प्रिय- पथ्ययोसखु कोऽधिकारः भत अरा तत्तच्यमपोति व्यवहारापेच्तया तथ्यमपि यदप्रियं यथा चौरं प्रति ded कुष्ठिनं प्रति ast त्वमिति तदप्रियलाब्र त्यम्‌ तथ्यमप्यहितं यथा मृगयुभिः VACA खगान्‌ दृष्टवतो मया खगा दृष्टा इति तन्नन्तु- घातेतुलानब्र तथ्यम्‌ ॥२१॥

ठतोयमाषश्-

अनादानमदत्तस्यासेयव्रतसुदौरितम्‌ | QW प्राणा Taal हरता तं ear fe ते॥२र२।॥

वित्तखामिना wera वित्तस्य यदनादानं तदस्तेयत्रतम्‌ तश्च सखामिनोवतोधंकरगुव्यैदत्तमदेन चतुविधम्‌। aa खाम्यदन्त ठणोपलकाष्टादिकं तत्खामिना यददक्तम्‌। जोवादन्तं यत्खामि- नादत्तमपि Matted यथा प्रत्रज्यापरिणामविकलो मातापिटमभ्यां सुव्रादि गुङभ्यो दयते | नौधकरादत्तं यत्तोधंकरैः प्रतिषिदहमाधा- किकादि waa gaed नाम खामिना दत्तमाधाक्ि- कादिदोषरदहितं गुरूनननुन्नाप्य aged नन्वददिंसापरिकरत्वं सन्धव्रतानामदत्तादाने तु केव feat येनाहिंसापरिकरत्व स्यादिव्य्षं वाद्याः प्राणा इत्यादि यदि स्तेयस्य प्राणरणखर्पं BMT तदा तदस्त्येव ॥२२॥.

प्रचमः प्रकाशः | १२९ चतुधंमाह- दिव्यौदारिककामानां क्तानुमतिकारितैः।

मनोवाक्षायतसत्यागो ब्रह्मा्टाद शधा मतम्‌ ॥२३॥ दिवि भवा fear: तै वेक्रियशथरोरसनश्भवाः। भौदारिकाय सओोटा रिकतियंम्मनुष्यदेषप्रभवास्ते ते काम्यन्त इति कामा Rat त्यागो अग्रह्मनिबेधासकं ब्रह्मचयव्रतम्‌। तच्ाष्टादथ्धा मनसा श्रब्रह्मन करोमि कारयामि कुवम्तमपि परं नानुमन्धे एवं वचसा कायेन वैति दिव्ये ब्रह्मखि नवभेदाः। एवमोदा- रिकेऽपोत्यष्टादश |

यदाह- दिव्याक्ामरतिसुखात्‌ fafad विविधेन विरतिरिति नवकम्‌ श्रोदारिकादपि तथा तद्रह्माष्टादशविकश्यम्‌ इति॥

छतानुमतिकारितेरिति मनोवाक्वायत इति मध्ये कतलाूर्वा- सरेष्वपि महाव्रतेषु सम्बन्धनोयम्‌ २२॥

पच्चममाश-

सवंभाषेषु मूृछायास््यागः स्याद परिग्रहः |

यदसत्खपि जायेत Awa चित्तविश्चवः ॥२४॥ सवभावेषु द्रव्य्ैतकालभावसरूपेषु यो मू च्या MATS त्यागो नतु द्रष्यादित्यागमात्रं सोऽप्ररिग्रहत्रतम्‌। नगु परि ग्रडत्यागोऽपरिग्रशव्रतं

स्यात्‌ fa मूकछौत्यागलक्षणेन तज्ञक्षशेन भत ares यदसतखपोति | १६

१२२ योगशास्त

यस्मादसत्खभ्यविद्यमानेष्वपि ट्रव्यचेत्रकालभावेषु मूच्छया चित्त- विश्वः स्यात्‌ चि त्तविद्कवः प्रणम सौख्यविपयाखः भसत्यपि wa wanted राजगष्डहमगरद्रमकस्येव चित्तसंक्रगो दुगंतिपात- निबन्धनं भवति सत्यपि वा द्रव्यचेत्रकालभावलचणे ara fang दष्णाक्लष्यादहदिनिरूपद्रवमनसां प्रशमसुखप्राष्या चित्त विद्चवाभावः। wa एव धर्मनोपकरणशधारिणां यतोनां शरोर उपकरणे निममत्वानामपरिग्रहत्म्‌ | यदाह

TEU, सत्खप्याभरणभूषणेष्वनभिषक्ः तहदुपग्रहवानपि सङ्गमुपयाति निग्र॑नयः १॥ यथा धर्मोपकरणवतामपि मूर्व्छीरहितानां सुनोनां परिग्रहग्रहित्वदोषस्तथा व्रतिनोनामपि शुरूपदिष्टधर्गोपकरण-

धारिणोनां रव्रत्यवतोनां तैन तासां धर्मोपकरणपरिग्रमाजेष्य मोक्षापवादः प्रलापमान्रम्‌ VE

पञ्चभिः पञ्चभिर्यक्षा भावनाभिर्विंसुक्षये capri तग्मस्तौति--

भावनाभिर्भावितानि पञ्चभिः पञ्चभिः क्रमात्‌ | मशाव्रतानि नो कस्य साधयन्दयव्ययं पदम्‌ २५

भाव्यन्ते वास्यन्ते गुणविशेषमारोप्यन्तं महाव्रतानि यक्षाभिस्ता भावनाः ॥२५॥

प्रधमः प्रकाशः | १२३ अथ प्र्मत्रत्खखमावना्राह-

` मनोगुपषणशादानेर्याभिः समितिभिः सदा | दृष्टान्रपानय्रषणे नारिं सां भावयेत्‌ सुधौः ire

मनोगुपिवंखयमाणलस्षणा aaa भावना एषणा विश्दपिण्ड- aera तस्यां या सभितिः। आदानग्रणेन faa उपलच्यते। तेन पोटादेग्रये खापने या सभितिः। दरणमोया गमनं तत्र या समितिः। आ्राभिरेषणादानेास- भितिभिद््टयोर ्रपानयो््हणेनोपलश्षणत्वात्‌ तदृग्रासेनाहिंसां भावयेदिति सम्बन्धः | we गुतिसमितोनां महाव्रतभावनात्वेम गतानामपि waar पञ्चसमितीत्यादिश्रन्न पुनरत्कोत्तनं गुसिसमितोनासु्तरगुणत्वश्नापनायेम्‌

यददह-

fawear जा fadtet समिर भावणा तवो दुवि | पडिमा अभिगगदो faa उस्षरगुणगो वियाणाहिं १॥

बह मनोगुपेभाषनातवं हिंसायां aaa प्राधान्यात्‌ aaa हि प्रसब्रचन्द्रराजर्षिंमेनो गु्या श्रभाविताहिंसाव्रतो हिंसा- agaafa सप्मनरकष्रष्वीयोग्यं ark निमेभे एषणादानर्यास- faaag भ्रहिंसायां नितरासुपकारिण्छ इति युक्तं भावनालम्‌। दृ्टा्रपानग्रहशं संसक्तान्रयानपरिषारणाहिंसाघ्रतोपकारायेति पञ्चमो भावना H RE A

१२४ DANA ` डहितोयव्रतस्य भावना मराषह-

हास्यलोभभयक्रोधप्रल्याख्यानेनिर न्तरम्‌ भालोच्य भाषणेनापि भावयेत्घुतव्रलम्‌ ॥२७॥ इसन्‌ हि मिष्या ब्रूयात्‌ लोभपरवशचा्थाकाङ्कया ware: प्राशादिरक्षणेच्छया ae: क्रोधतरलितमनस्कतया मिष्या ब्रूयादिति हास्यादिप्रत्याख्यानानि चतस्रो भावनाः भालोष् भाषणं सम्यग्‌ न्नानपूल्यकं पयालो खषा माभूदिति मोहतिर- स्कारदारेण भाषणं पञ्चमो भावना Awe उषावाद हेतुत्वं WAAR | aeTe— रागादहा SAINT मोषाषहा वाक्छसुष्यते waafafa २७

ठतोयव्रतस्य भावना UTE |

पालोच्यावय्टयास्ञाभोच्छावयश्याचनम्‌ एतावग््रावमेवैतदित्यवयषधार णम्‌ रट समानधा्मिकेभ्यश्च तथावग्रडयाचनम्‌ | अनुत््नापितपानाच्राशनमस्तेयभावनाः ॥२९॥ (युग्मम्‌) ware मनसा विचिन्यावग्रहं याचत देवेन््रराजग्डहपतिगय्या-

तरसाधमिकमेदाहि पच्चावग्रहाः। wT पूवः gat बाध्य SAC उत्तरो बाधकः | aa देबेन्द्रावग्रहो यथा swede.

दंसिगलोका्ं शानाधिपतेङन्तरनो काम्‌ राजा चक्रवत्तीं

प्रधमः प्रकाशः | १२५

AMAIA भारतादिवषम्‌ | रहपतिमण्डलापिपतिस्तस्यावग्रइ- wuwafe शय्यातरो वसतिखामो तदवग्रहो वसतिरेव | साधर्मिकाः साधवस्तेषामवग्रहः शय्यातरप्रदन्तं ष्डहादि। एता- नवग्रहान्‌ Wat यथायथमव प्रं याचेत भखाभियाचमे fe परख्यरविरोधेन भकाशधाटनादय रशडिका दोषाः परलोके $पि भदत्षपरिभोगजनितं पापकम इति प्रथमा भावमा। सक्ष सऽप्यवग्रे खामिना waite भूयो भूयोऽवग्रयाचनं काथं GRATIS ग्यानाद्यवसखामूवपुरोषोस्सगेपात्रकरचरण- प्रलालनसश्यानानि दाढचित्षपोडापरिषाराथं याचनोयानि इति हितोयभावना एतावश्ा वरमेव एतावत्परिमाणमेवेतत्‌ सैवादि aman माधिकमिति भअवग्रइस्य धारणं व्यवखापनम्‌ एवमवग्रहधारणरे हि तदभ्यन्तरवत्निनोमूहं खानादिक्रियामाशै- वमानो दातुरूपरोधकारो भवति | याञ्ञाकाल एवावग्रहा- नवधारने विपरिणशतिरपि दातुखतसि स्यादाममोऽपि चाद्षपरि- भोगजनितका बन्धः खादिति ढतोयभावना। wa चर- म्तोति धार्मिकाः समानासुश्थाः प्रतिपन्ने कशासनाः साधवस्तेभ्यः पूवपरिग्टहोतचेवेम्योऽवग्रो याच्यस्तदगुज्नानादि तव्रासितग्यं अन्था स्तयं स्यादिति चतुधीं भावना श्रमुज्नापिते भनुन्रया स्वोक्तते ये ure तयोरशनं aie fe विधिना प्राखकभेषणशोयं कल्यनोयं पानान्नं लब्धमानोयालोचनापूर् गुरवे fra ara wait JIU मण्डल्याभेकको वा May! उपलक्षणमेतत्‌ यत्‌- किञ्िदौधिकौप्रहिकमेदसुपकरणं धमसाधनं aad गुरुणाऽनु-

१२९ योगशास्ते

sid परिभोक्ृव्यम्‌ एवं विदघानो नातिक्रामत्यस्तयव्रतमिति पञ्चमो भावना |

चतुधत्रतभावना माह -

MAW AY AS MAA FAM AU HAA | MUTA AMAT TAA तिवजंनात्‌ २० स््नौरम्याङ्कग्च शसा ्गसंस्कारपरिवजनात्‌

प्रणो ताल्यशनल्यागाद्‌ ATA तु भावयेत्‌ ॥३१॥

( युग्मम्‌ )

लियो टेवमानुषभेदाहिविधाः एता सचिन्ताः अवचिन्तासु पुस्त- लेप्यविवरकमदिनिमिताः। .षर्डास्ढतोयकवेदोदयवर््तिनो aet- मोहकमाणः खरोपुससेवनाभिरताः पशवस्तियग्‌यो निजाः तव गोमदहिषोवडवावालेयोपजाश्रविकादयः समाव्यमानमेधनाः | एभ्यः क्तदन्देभ्यो मतुः खोषण्डपशमतो तै वेश्मासने वेश्म वसतिः। भासनं संस्तारकादि। कुष्यान्तरं यत्रान्तश्स्थोऽपि Hae दम्बत्योर्मोहनादिशब्दः ययते ब्रह्म चयेभङ्गभयादैषामुञ्नं त्यागः | इति प्रथमा भावना | सरागस्य मोषोदयवतो या aif: कथा खोखा वा कथा सरागा ताः लिय ताभिस्तासां at war तस्याख्यागः। रागानुबन्धिनो fe देशजातिकुलनेपष्यभाषागति- विश्वभे्कितहास्यलोलाकटाचप्रषयकलषगरद्मररसागुविहा कथा

प्रथमः प्रकाग्रः। १२०

वात्येव चि्षोदधेरवश्यं विक्षोभमादधातोति featat भावना। प्राक्‌ प्रत्रज्याब्रह्मच्यौत्‌ Ys ग्टहस्थावस्थायां sad सखोभिः सह निष्वनं तस्य afreret वजनं प्राग्रतस्मरथेन्धनाहि कामाम्निः सन्धुख्यते इति amar भावना स््ोणामविवे किजनापेचया ` यानि रम्याणि र््डशोयान्धङ्गामि सुखनयनस्तनञजघनादौनि तेषामो च्षणमपूव विस्मयरसनिभरतया विस्फारिताक्षस्य विलो- कनम्‌ शछणमावं तु रागदेषर हितस्यादृष्टमेव |

यदह-

TIM रूपमद्रष्टं चन्र्गो चरमागतम्‌ | TARA तु यौ तत्र तौ बुधः परिवजयेत्‌ ॥१॥ इत्यादि a

तथा खस्यामनोऽङ्गं TO तस्य संस्कारः लञानविलेपनधुपननख- देन्तकेशसग्भाजनादि स्नोरम्याङ्गक्षणं खाद्संस्कारश्च तयोः परिवजेनात्‌ सोरम्याङ्ग्णतरलितविलोचनो हि दोपशिखायां vay इव विनाशमुपयाति। ्रश्चिशरोरसंस्कारमूढो हि तत्तदुत्कलिकामयेवि कश्येवृधासानमायासयतोति चतुर्थीं भावना प्रोतो ह्यः जिग्धमधुरादिरसः। भत्यशनमप्रणोतस्याऽपि रूलभेलस्वाकण्ठमुदरपूरणं anwar निरन्तरहष्यमधुरल्िग्ध- रमप्रणोलो हि प्रधामघातुपरिपोषेश वेदोदयादव्रह्माऽपि Baa अत्यशनस्व तु कैवलं ब्रह्मस्षतिकारित्वादइजंनं शरोर्पोडा- aifcarefa |

gra AANA

यदाङ- परहमसणशस्य सव्वं ATS Fat ‘sway दोभागी | वाठपवियारणड़ा SANTA जणगं FAT दति पञ्चमो भावना एवं नव विधब्रह्मचर्यगुप्िसं ग्रहेण ब्रह्म चर्य- AAS पद्ध भावनाः २०॥ aL A

पच्चमव्रतस्य भावना Wre—

स्पशे रसे गमे रूपे शब्दे हारिणि | पञ्चखितीन्द्रियाथेषु गाढं were वल्जनम्‌॥३२॥ एतेष्वेवामनोन्नेषु WAM हेषव व्ज॑नम्‌ | भाकिघ्चन्यत्रतस्ये वं भावनाः wy कीतिं ताः ॥२३॥

( युग्मम्‌ ) wunifey मनोषारिषु विषयेषु axe गाद्ैयस्याभिष्वङकस्य वजनम्‌। स्म्ादिष्येवामनोन्नेषिन्दरियप्रतिकूलेषु यो ईषोऽपोति- MATA वजेनम्‌ | aera हि मनोज्ञे विषयेऽभिष्वङ्कवानम- नोज्नानिषयान्विहेटि मध्यखस्व तु मूच्छोरदितस्य afe- रोतिरपरोतिवा रागानान्तरोयकतया देषस्योपादानम्‌ faut बान्चाभ्यन्तरपरिग्रहसू्पं नास्वास्तौत्यकिश्चनस्तद्धाव- भाकिश्चन्धमपरिग्रता। भाकिश्चन्धं तद्रतं तस्यैताः पश्च भावना; २२५ १२॥

णि भीभो Ce

(:) कगबङःबद्धटेष्य्य)

प्रथमः AWAIT: | १२९

सूनगुणरूपचारित्रमभिधायोत्तरगुणङरूपं तदाह-

अधवा पञ्च समितिगु्िवयपविवितम्‌ aft सम्यक्चारिवमिल्याइमुनिपुङ्गवाः २४

ममितिरिति पञ्चानां चेष्टानां ताज्िको संज्ञा waar सं सम्यक्‌

0 $ प्रशस्ता बअ्रहव्वचनमुसारेण इतिः चेष्टा समितिः पञ्चानां समि तोनां समाहारः पञश्चसमिति | गुिरातमनः संरक्षणं qamata- निग्रह इत्यधः गुपीनां ad afaad पश्चसमिति afaad ताभ्यां पवितितं यच्चरित्रं यतोनां चेष्टा सा सम्यक्चारित्र- quai सम्यक्‌प्रठत्तिलक्षणा समितिः प्रव्सिनिठतस्तिलक्षणा afa रत्यनयोषिशेषः २४

अथ समितीर्गसोच नामत WE

ईर्याभाषेषगादाननिकतेपोत्सगंसंन्निकाः | पञ्चाः समितीस्िसो गुप्ोस्ियोगनिग्रहात्‌ २५॥

श्यासमि तिभाषासमितिरेषणासमितिरादाननिक्षेपसमितिर्त्छग मितिरित्येताः पञ्चसषमितीहवते तोधकराः। fade योगास्ि- योगा मनोवाक्षायव्यापारास्तषां निग्रहो निरोधः | प्रवचन- विधिना मार्मव्यवस्ापनमुश्मागनिवारणं च| निग्रहादिति डती पश्चमी तेन मनोगुत्िवचनगुसिः कायगुिरिति fat

qalaad २५॥ १७

१२० HANA

tataquarey—

लोकातिवाहिते मागे चुम्बिते भाखदं शुभिः | जन्तुरक्ार्थमालोक्य गतिर्या मता सताम्‌ ३६

श्रसस्थावरजन्तजाताभयदानदौक्तितस्य मुनेरावश्यके प्रयोजने गच्छतो जन्तुरछ्षानिमिन्तं खशरोररलानिमिन्तं पादाग्रादारभ्य qaaraaa यावत्‌ fatter दरण मौयां गतिस्तस्यां समितिरोया- समितिः 1 यदाहुः

"पुरषो जुगमायारए पेषमाणो महिं चरे

वल्न॑तो alayfeare पाणि दगमरहियं १॥

‘Shara विखमं ora fasta परिवल्नए |

सद्ुभेण wee विव्नमाणे परक्मे २॥

गतिच मागे भवति तस्य विशेषणं लोकातिवाहिते लोकंरति-

वा हिते wares | शुभ्बिते we भरादित्यकिरणेः प्रथमविगेषेन परे विराधिते मागे गच्छतो यतेः षडजोवनिकायविराधना

मवति same गन्तव्यमिति are) तथाविधेऽपि माग

(+) पुरतो युगमाब्रया प्रे्माणो मह चरेत्‌ | ब्जयन्‌ बीजषरितानि प्राणान्‌ दकङटस्तिक।म्‌ (२) आवपातं विषमं स्थाणुं चिजलंप रिवजमेत्‌। सं्रमेख्ड गच्छेत्‌ विद्यमाने पराक्रमे I

प्रथमः ARIA: | १९११

ual गच्छतः सम्पातिमसश्चविराघधना भवेदिति तत्परिहारार्थं हितोयविग्रेषणम्‌ | एषं विधोपयोगवतश्च गच्छतो मुनेः कथंचित्‌ प्रारणिवध्ेऽपि प्रारणिवधपापं भवति।

aere—

satfaafa पाए दूरियासमियस्छ सङ्महाए | वावस्जेव्ल कुलिङ्गो मरिल्ल तं जोगमासव्ल १॥ नय तच्छ afafam बंधो सुदहमोवि देसिभ्रो समर | अणवस्नो उपभ्नोगेण सव्वभावेण सो जम्हा॥२॥

तथा-

जिश्रदु are जोवो श्रजदाचारस्य निच्छश्रो fear पयदस्छ णय बंधो हिंसामि्षेण समिदस्छ ॥२॥२६॥

भाषासमितिमाद-

अवदात्यागतः स्व॑जनौनं मितभाषणम्‌ प्रिया वाचंयमानां सा भाषासमितिस्च्यते ॥३७॥

श्रवद्यानि भाषादोषां वाक्यश्दखयध्ययनप्रतिपादिताः धृत्तकामुक- क्रव्यारचौरचार्वाकादिमाषितानि तैषां निरदेश्नतया त्यागस्ततः सर्वजनीनं wnat हितं मितं खर्प मप्यतिबडु प्रयोजनसाधकं तच्च ARTY

१२२ योगशास्त्र

यदाह- "महुरं fasd ald कल्नावडयं भगव्वियमतुच्छे | ufaasdafad भशणंति जं धम्ममंजुत्तं १॥ एवंविधं यहाषणं सा भाषासमितिः। भाषायां सम्यगिति- भीषासमितिः। साच प्रिया भरभिमता वाच॑यमानां मुनोनाम्‌। यदाइुः- जाय सच्चा ANAT ARIAT A Al Far |

जाय बुहि WIT तं भासेख्ज Tas १॥ इति ॥२७॥

एषणशासमितिमाषश्-

हिचत्वारिं शता भि्तादोषेनित्यमदूषितम्‌ | सुनिर्यदद्रमादक्ते सैषणासमितिमंता ac

दाभ्यामधिका चलारिंगत्‌ दिचत्वारगद्विन्नाटोषाः उद्रमोत्पाद्‌- नेषणालक्षणाः बोदमदोषा गदस्थप्रभवाः TST | यद्यधा-

TBH AE सियपूदकम् भ्र मोसजाए य। ठवण्ा पाडडयाए पाडयरको यपामिञ्चे wei

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(१) मधुर निपुखं सोकं कार्यांपतितमगवितमतुच्छम्‌ | पूरवभतिसङ्कल्ितं भग्यन्ति यञ्चमं संयुक्तम्‌ (२) याष GRA A AMAT GATTI A AT War | याच बद्धेरनाचौर्खांन at भाषेत प्रज्ञावान्‌ (३) ऋधाकर्महेथिकपूतिकमं भिश्रजातंच। ख्यापना UTA प्रादुम्कारक्रीतप्रामित्यम्‌

प्रथमः प्रकाशः | १२३

'परिग्रहिए afires उवभिख aries दय भच्छिन्ने भणिसट्रे अञ्भोभ्ररए सोलसमे sata विकल्पा यतिं मनसि क्त्वा सचिन्तस्याचिग्तोकरण््‌- मचित्षस्यवा पाको निरक्षादाधाकम १॥

BEM: साध्वधे TET: प्रयोजनमस्य श्रौरे शिका यत्पवकत- मोदनमोदकक्तोदादि तत्साधन दध्यादिना गुडपाकेन संस्कृव्पैलो भवति २॥

पआआधाक्िकावयवसम्ियं शुदमपि wager शचिद्रव्य- सिवाश्चिद्रव्यसम्मिच्रम्‌ २॥ |

Tears साध्वयं चादित एव fart प्यते afar ४॥

साश्चयाचितस्य mae: wee सखभाजने सखापनं स्थापना ५॥

कालाम्तरभाविनो विवाहदेरिदानीं afafea: साधवः सन्ति तैषामप्युपयोगी wafafa qe इदानोमेव करणं समय- परिभाषया प्रातिका afaace विवादहादेः कालान्तरे साधु- समागमनं सञ्िन्योत्कषणं वा

यदन्धकारश्यवखितस्य द्रव्यस्य वड्किप्रदोपमश्यादिना firw- पनयनेन वा बहिनिष्कास्व द्रश्यधारषिन वा प्रकटकरणं तद्मादु- ष्करणाम्‌

यस्षाध्वथं मूल्येन RAI तत्क्रोतम्‌

mm ~= a न> =

(१) परि वर्तिंतमभ्याच्रुतष्द्धिचं मालाप्श्रूतमिति। ऋच्छेदमनिङ्षटं खष्यवपूरकच् TT |

१३४ योगशास्त्र

यत्ताष्वधेमब्रादि sana टोला दौयते तत्रामित्यकम्‌ ५८॥ BRUNIA परद्रव्यं AME WHAT Tela तत्परि वस्तितम्‌ १०॥ ग्टहग्रामादेः साष्वधं यटानोतं वदभ्यादतम्‌ ११॥ कुतुपादिखयस्य छतादेदीनाधं यत्‌सतिकादपनयन॑ं तद्‌- fraq ner यदुपरिभूमिकातः भिक्यादेभूमिग्टहाहा भाल्लष्य साधुभ्यो दानं तश्मालापद्कतम्‌ १२॥ यदाच्छिद्य परकोयं हठात्‌ welal सामो mya वा ददाति ATA १४॥ यद्ोष्ठोभक्षादिसर्वेरदत्तमननुमतं वा एकः कथित्साधुभ्यो ददाति तदनिशष्टम्‌ १५॥ सखवाधमधिश्यशे सति साधुसमागमश्वणात्तदयं = yaat धान्धादिवापः सोऽध्यवपूरकः॥ १९॥ उत्पादनादोषा अपि षोडश ते साधुप्रभवाः। तदयथा- "धार दूर निमित्ते भाजोववणोवगे तिगिच्छा a | कोरे मादे माया Ms वन्ति दस एए He

(१) भावो दूतो निमित्तं सालजोववनोपके चिकिल्धाश्। क्रोधो मानो माया Wray wafer Tq Tah

प्रथमः प्रकाशः | १३५

१पुविंपश्छासंधवविल्नामन्ते श्र सुखजोए SUTAAT दोसा MAGIA Wana ॥२॥ बालस्य न्ोरमष्ननमण्डनक्रौोडनादहगरोपणकमकारि ण्यः wy- धावः एतासां कर्म frag कुवतो सुनेधीगोपिण्डः fra: सन्देणकथनं दूतोत्वं॑तत्कुवेतो भिक्ताधै दूतो. पिण्डः ॥२॥ पतोतानागतवर्तमानकालेषु लाभालाभादिकथनं निमित्तं तद्धिता कु्वलो मिमित्तपिष्डः १॥ जातिङुलगणकन्ययिल्यादि प्रधानेभ्य भ्रालनस्तन्तदुशत्वारोपणं भिल्लाधैमाजौवपिष्डः ४॥ खमणत्रादह्मणशकलपणातिचिण्वानादिभङ्षानां परतः पिण्डाये मासान TNR दश्यतो वनोपक पिख्डः वमन विरेचनवस्तिकश्रादि कारयतो वेश्यभेषज्यादि सूचयतो वा fuwra fafarartfaw: विश्यातपःप्रभावन्नापनं राजपूनादिख्यापनं क्रोधफलद्थेनं वा fred कुवत; क्रोधपिर्छः लच्िप्रशंसोत्तानख परेणोत्ाहितस्यावमतख्य at wWwar- भिमानमुत्पादयतो मानपिष्डः ८॥ नानावेषभाषापरिवत्षनं भिसार्धं कुर्वतो ararfaw: we a

१,

(१) पूवपचात्यंसवविव्यामन्तं चणवोगञ्। उत्पाद्नावा दोषा Wea Faas wy

१२९ MAIS

भतिलोभाद्‌ first पयटतो लोभपिण्डः १० (| पूवसंस्तवं जननोजनकादिष्ारेण पात्संस्तवं श्ठयुष्ठशुरा दि. दारेणातमपरिचयाऽनुरूपं सम्बन्धं first चघटयतः पूवैपञ्चास्संस्तव- पिण्डः ee a विद्यां मन्तं qe योगं faa agente चत्वारो विद्यादिपिर्डाः- मन्तजपोमादिसाध्या स्नोटेवताधिष्ठाना वा विद्या १२॥ पाठमावरप्रसिदः पुरुषाधिष्टानो वा मन्तः १२॥ चुग्णोनि नयनास्ञनादोनि भन्तदीनादिफलानि १४ पादप्रजेपादयः सौभाग्यदौभाग्यकरा योगाः wey गभ स्त्भगभीधानप्रसवस्नपनकमूलरक्तावन्धना दि भिक्षां कु. वतो BAHAI १९॥ ग्टह्िसाघुभयप्रभवा एषणादोषा दग | तदयधा-- | 'सह्िन्यमंक्विय निक्छवित्तपिदिवसाहरिभरदायगुश्मोशे | अरपरिणयलिन्तच्छब्डिय एसणदोसा दस wafer १॥ भाधाकम्मका दिग्धा कलुषितो यदव्रायादत्त तच्छहितंयं दोषं WEA तमापद्यते १॥

(१) अङ्धितम्बशितनििप्र पिद्हितसंहतदायकोभ्िच्रम्‌ | wufcwafaqafed waqizian zy भवनि॥

प्रथमः प्रकाशः। १२७

एथिष्य॒दकवनस्पतिभिः सचिेरचिन्षेरपि मध्वादिभिरिते- राञ्िष्टं यदन्रादि तम्स्रसितम्‌ ॥२॥ एचिव्युटकतेजोवागुवनस्मतिषु wey acarafanafa ख्यापितं तज्िलिप्तम्‌ ३॥ सचिन्तेन फलादिना खगितं पिहितम्‌ ४॥ दनभाजनसखमयोग्धं aay एथिष्यादिषु fafa तेन भाजनेन ददतः संहतम्‌ ॥५॥ बालठदपण्छकवेपमानचञ्वरितान्धपमन्तोखतच्छ्टित्रकरचरण- निगडितपादुकारूढकण्ड़ कपेषकभजककत्तकलोठकवौंखकपिच्छ- कदलकबव्यालोडकभोजकषड्कायविराधका waar प्रतिषिदा याच स्रो वैलामासवती ग्टोतबाला बालवत्ला वा एभ्यो भन्रादि weld साधोनं करुपते रेयद्रव्यं खण्डादि सचिन्तन धान्यकणादिना fat ददत उम्मिश्रम्‌ taza मिश्रमचिन्तत्वेनापरिणमनादपरिणतम वसादिना dea wea aaa वा ददतोऽत्रादि लिप्तम्‌ ven walfe च्छर्हेयन्‌ यददाति तत्‌ afed छद्यमाने तादौ तत्रस्थस्वागन्तुकस्य वा सवस्य जन्तोमधुचिन्दू दाइरशेन विराधना- सम्भवात्‌ १० | | तदेवमुदमोत्पादनषणादोषाः संहता feaatfingafar तै भिक्नादोषासतैरदूषितमव्रमश्नखादयसखाश्यभेदसुपलक्षणतवात्पानं

म।वोगदि तथा रजोषरणमुखवस््रचोत्तप्रहटपाश्रादिखविर- १८

१२८ ` योगशा

कल्पिकयोमग्यशतुदेशविधो जिनकल्िकयोग्यव्च दहादशविध- wifaa उपधपिः। चायिंकायोग्यच्च पञ्चविंशतिविधः। भौप- ufera शय्यापोठफलकचमदगण्डादिरुपल्तणादेव firma | नद्मौचिकरजोष्रणादयम्तरेणख Toufentsnanaaty वषास हेमन्तग्रो्योरपि जलकशिकाकुलायामनुपभरूमौ महहात्रतसंर्षणं कतुं चषमम्‌। एतदाषविशहमव्रादि यन्बुनिरा- SU UT एषणमेषणा यथागममन्रादेरन्वषणम्‌ Wa “इषोऽनि- चायम्‌” ॥५।३२।११२॥ दति स्तियामनस्तस्या चव समिति- रेषणाखमितिः। श्यं गवेषणारूपा एषणाग्रासेषणाप्यनयोरुप- लच्छते तस्यां पञ्च दोषाः| तदयधा-

संयोजना प्रमाणातिरिक्षतार ङ्कारो धुमः कारणा- VAT त्र रसलोभादरव्यस्य मण्डकादेद्रंव्यान्तरेण खण्ड्टतादिना वसमबेहिरन्तर्वा योजनं संयोजना ॥१॥ छतिबलसंयमयोगा यावता सोदन्ति तदादहारप्रमाण्णम्‌। धिकाषारसु वमनाय मृत्यवे व्याधये चेति तं परिष्टरेदिति प्रमाणशातिरिक्ञतादोषः॥२॥ खादत तदहदातारं वा प्रशंसन्‌ aga सरागाग्निना चरिनेन्धनस्याङ्गारौ- करादङ्कारो दोषः ॥२॥ निन्दन्‌ प॒नखारितरेन्धनं दहन्‌ धुम करणाचुमो दोषः ५४॥ चृददनाया भसहनं चामस्य वेयादच्या- करणमोयीसमितेरविश्डिः wetarene: संयमस्य चापालनं WAGs प्रबलान्न्युदयाग्राणप्रहाणशदडण 'भात्तरोद्रपरिषारेण

सिरी

(+) -दयान्नसोद्रपरिङारेष।

प्रथमः प्रकाशः | १३२८

धमधष्यानखिरोकरणं चेति भोजनकारणानि तदभावे भुख्ानस्य कारणशाभावदोषः॥५॥ यदाह- उत्पादनोहमेषणाधु्मांगारप्रमाणकारणतः | सयोजनाच्च faw शोघयताभमेषणशासमितिः ven इति acs

भाटाननिस्ेपसमितिमाद-

आसनादोनि संवोच्य प्रतिलिख्य aaa: | रद्लोयान्निचिपेदा यत्सादानसमितिः स्मृता ३९

असनं विष्टरः आदिशब्टादस्तरपात्रफलकदण्डादेः परिग्रहः तान्धासनादोनि dite चकुषा प्रतिलिख्य रजोहरणादिना AAA इत्यु पयो गपूव्वैकम्‌ | Waar सम्यकप्रतिज्ेखना स्यत्‌ | aeTe—

‘afsaed कुणंतो मिहो कं que जणवयकदहं वा |

SU पच्चक्वाणं aay सयं पडिच्छद्वा॥ १॥

१पुटवोभ्राउक्वाएतेजवाऊवणस्सष्तसाणं |

पडिलेहणापमत्तो कण्डपि विराषहगो भणिश्रो ॥२॥

a re 8 re

(१) प्रतिखेखनां कुवन्‌ fou: कथां करोति जमपट्कयां वा | दटाति वा प्रत्बाख्यानं वाच्यति खयं प्रतोष्छतिवा॥

(९) छएचिव्यपक्रायतेजोवायुवनस्धतिल्रसानाम्‌। मरविडेखनाप्रमसः षसामपि विराघको भणितः॥

१४० योगशास्त्रे

` ` यद्ङ्ञोयादाददोत निचविपैत्‌ स्थापयेस्ंवोचितप्रतिलिखित- qa सा भादाननिैपसमितिः। भौमो भोमसेन इति "न्यायादादानसमितिः॥ ३९

उक्षगेसमितिमाङ- कफमूचमलप्रायं निजंन्तुजगती तले यन्नादयदुल्पुजेत्साधुः सोत्सगंसमितिभंबेत्‌ ४० कफः zat मुखनासिकासच्ारौ at प्रखवणं मलो विष्ठा प्राय- ग्रहणादन्यदपि परिष्टापनायोग्यं बस्रपाव्रभक्तपामादि waa | निर्जन्तस्रसखावरजन्तुरहिता खयं नि्जन्तुयपै जगती तस्या- wet सखण्छिलमित्यथः aa यव्रादुपयोगपूबकं ages: सोत्सगसमितिः। wa गुप्तोनामवसरः ४०॥ aa मनोगुिमाडहइ- विमुक्तकल्पनाजालं समत्वे सुप्रतिष्ठितम्‌ | WAN मनस्जन्नैमनोगुधिरुदाषता ४१

दह मनोगुिसख्िधा। भरात्तरौद्रध्यानानुबन्धिकश्पनाजालवियोगः प्रथमा शास््रानुसारिणो परलोकसा धिका धश्चष्यानानुबन्धिनो माध्यख्यपरिणशतिददिं तोया कुशलाकुशलमनोहठत्तिनिरोषेन योग- निरोधावस्याभाविन्याकारामता ढतोया। ता एतास्तिख्ोऽपि विशेषणवयेणाडह विसुक्षकल्यनाजालमिति समत्वे सुप्रति्ित- fafa भ्रासमारामभिति एवंविधं मनो मनोशगुभिः॥ ४१॥

re -ण > ~ का

(१) खच न्यायाञ्जादानकलितिः।

प्रधमः WATT: | १४१

वाग्गुत्तिमादह- संज्नञादिपरिष्टारेग यन्प्रोनस्यावलम्बनम्‌ | anea: dafeat या सा वाग्गिरिषोच्यते॥४२॥

aml सुखनयनभ्नूविकाराङ्कःल्याच्छोटनादिका भधैसूचिकारष्टाः अआआदिगब्टाक्रोष्टचेपोर्ीभावकासितद्द्कतादोनि wea | संन्ना- दोनां a: परिष्ारसेन यन््ौनमभाषणं तस्यावलम्बनमभिग्रडः | संन्नादिना fe प्रयोजनामि सूचयतो मौनं निष्फलभेषेत्येका वाग्गुत्तिः। वाचनप्रच्छनष्षटव्याकरणादिषु लोकागमाविरोधेन yaa स्विकाच्छादितवक्स्य भाषमाणस्यापि वाग्ने संहत्तिवा- ग्विनियन्बणं हितोया angie: भाभ्यां मदाभ्यां वागगुतेः waar वाम्निरोधः ward खरूपं प्रतिपादितं भवति भाषा- समिती तु सम्यग्बाकाप्रहस्तिरेषेति वामुतिभाषासमित्योभेदः | यदाइः- |

समिग्रो fazer om afaanafa भयणिख्नो |

कुसलवयमू्र॑तो जं वश्गुत्तोवि समिश्रोवि॥१॥ | अध कायगुत्िः साच fear चेष्टानिठत्तिलसणा यथासं चेष्टा नियमलक्षणा ४२॥

aAalarare उपसग प्रसङ्गेःपि कायोत्सगजुषो A: सिगौभावः ware कायगुपिनिगयते ४३

उपसग देवमानुषतियक्षृता उपद्रवाः ठउपनलक्चणतवात्‌ चुत्पिपा-

१४२ AATTR

सादयः परोषषा रपि wy तैषां vay: सत्रिपातः। श्रपि शण्टा्दभावेऽपि Ya: साधोः कायः WT तस्योत्गस्यागस्तव निरपेखताल चखस्सं जुषते ane arranger यः खिरोभावो निषलता योगनिरोधं gaa. सर्वधा शरौरचेष्टापरिष्ारो वायः सा कायशगुपिः॥ ४३२॥

हितोयामा-

शयनासननिच्ेपादानचंक्रमणेषु यः | द्यानेषु चेष्टानियमः कायगुतिसतु सापगा ॥४४॥

श्यनमागमोक्लो निद्राकालः waa a fear cara ग्यानाष्वश्वान्तठदादेः तज्रापि प्रथमयाभेऽतिक्रान्त गरूनाएच्छा प्रमाखयुक्ञायां वसतौ date प्रसव्य भूमिं dearest संस्तरणपश्कदयमूहंमधशषच कायं सपादं मुखवचिकारजोहइरणाभ्यां प्र सृज्यानुज्नापिवसंस्तारकावस्थानः पठितपख्चनमस्कारसामायिक- सूरः कतवामवाहपधान ्राकुञ्धितजातुकः gactafeafa प्रसारितजष्को वा प्रमाजिंतक्तोणो तलन्धस्तचरणो वा भूयः सदोच- स्मये प्रमाजितसंदंशकः। उदन्तनमकाले मुखवस्त्रिकाप्रग्ट- कायो नात्यन्ततोत्रनिद्रः wata प्रमाणयुक्ञा तु वसतिङस्तत्रय- प्रमिते भूप्रदेशे naa सभाजनानां साधूनां Tarawa सकलाव- काशपूरणं स्यात्‌ भासनमुपवेशनं aaa प्रदेशे चिकौषितं तं saat निरोख्य nace रजोहरणेन बहिनिंषद्यामास्तीर्योप- विशेत्‌ उपविष्टोऽप्याक्ुश्चनप्रषारणादि तथेव gata वर्षादिषु

प्रधमः WATS: | १४२

ठषोपोटादिषुज्ञयेव समाचार्योपविभेत्‌। निचेपादाने दष्डाद्युपकरणविषये ते पपि प्रत्यवे प्रमज्य विधये. चंक्रमणं गमनं तदप्यावश्यकप्रयोजनवतः साधोः पुरस्ताद्युगमात्र- प्रदेगषत्रितरेगितटशेरप्रम त्तस्य बसखावरभूतानि संर्ततोऽत्वरया पदन्धासमाचरतः प्रशस्तं खानमूदंखि तिलक्षणमवषटश्भादि प्रत्यवेितप्रमाजितप्रदेशविषयम्‌ एतेषु वचेष्टानियमः खच्छन्द- चेष्टापरिहारोयः सा war हितोया कायगुिरिति॥ ४४॥

एतासामागमप्रसिषं माठत्वमुपदथयति- एताश्चारिवगावस्य जननात्परिपालनात्‌ संशोधनाञच्च साधूनां मातरोऽष्टौ प्रकौत्तिताः ॥४५॥

एताः समितिगुप्तयः शास््ेऽष्टौ मातर इति प्रसिहाः। maa हेतूनाह agai सम्बन्धि चारित्रभेव many तस्य जननाद- Was प्रादुभीवनात्‌ जनितस्य चारित्रगाच्रस्य परिपालनाससर्वा- पद्रवनिवारेन पोषणेन ठहिनयनात्‌ चारिवगातस्येवातिचार- मलिनस्य सतः संभोधनाजिमलोकरणादिति ४५॥

वारिं व्याख्यायोप्रसंहरति- सर्वात्मना यतीन्द्राणामेतच्चारिचमीरितम्‌ | यतिधर्मानुरक्तानां देशतः स्यादगारिणाम्‌ nse

हिधा चारित्रं सवेदेणभेदात्‌ walmart चारितं सर्वसावथयोग- विरतिलक्षणम्‌ यतोन्द्राशामनगारिजष्ठानाभेतन्भूलगुणोश्षरगुण-

१४४ AVANT

स्वरूपम रितम्‌ धातृनामनेकाथत्वाद्रतिपःदितम्‌ देशचारित्रं तु केषामित्याहइ अगारिणां गटहय्यानां देशत एकदेशविरति- लक्षणम्‌ fat विशिष्टानामगारिणां यतिघश्म्ानुरक्ञानां यतिषमं सवेविरतिचारिव्ररूपे अनुरक्लानां संहननादिदोषादकुबेतामपि प्रोतिमताम्‌ |

यदाह-

सबेविरतिलालसः खल्‌ देशविरतिपरिणामः यतिधर्मौनु- रागरहिता्नां तु गश्स्थानां टेशविरतिरपि सम्यगिति दतः स्वादगारिणामित्युक्म्‌ at याशो weet walfu- कारो ताहषसुपदशेयितुं ANP AAA प्रस्तावनामाह ४६

तथादहोत्युपदशने निपातसमुदायः--

न्यायसम्यन्नविभवः शिष्टाचारप्र्शसकः। कुलशौलसमेः साच कतो दाष्ोऽन्यगोचजेः ४७॥ uate: प्रसिचं देशाचारं समाचरन्‌ | अवर्शवादौ arta राजादिषु विशेषतः ४८॥ अनतिव्यक्तगुपे श्थाने सुप्रातिषैशमिकैे अनेकनिगेमदारविवजितनिकेतनः क्रतसङ्गः सदाचारेर्मातापिवोश्च पुलकः | MAA MAMTA गर्हिते ५०

प्रथमः AHN: | १४५

व्ययमायोचितं कुर्वन्‌ वेषं वित्तानुसारतः | अष्टमिर्धौगगेयुक्षः गानो घममन्वहम्‌ ५१ MAT भोजनल्यागौ AT भोक्ता साल्यतः | अन्योऽन्याप्रतिबन्ेन Fanaa साधयन्‌ ५२॥ यधावदतिधौ साधो दौने प्रतिपत्तिक्लत्‌। सदानभिनिविष्टश्च aqui गुणेषु ५३ अदेशाकालयो श्चये TAY जानन्‌ बलाबलम्‌ | ठत्तस्थन्नानददानां पूजकः पोष्यपोषकः ५४ दौ षदं विशेषन्नः छतज्नो Aaa: | VAM: सदयः सोम्यः परोपक्ततिकमंटः ५५ अन्तरङ्गारिषडवगंपरिहारपरायणः | वशोक्ततैन्द्रियय्ामो wear कल्यते ५६

( दभि. कुलकम्‌ )

खामिद्रोहमिवद्रोह विख सितवखनचौयपदिगद्यौर्थोपाजंनप-

रिारेषार्धोपाजनोपायभूतः खस्वण्णीमुरूपः सदाचारो न्धाय- सतेन सम्प्र उत्पन्नो विभवः waa तथा Aww fe विभव इद्गलोकडहिताय श्रद्हनोयतया atte तत्फल- भोगास्िवस्वजनादौ संविभागकरणशाच्च।

१९

१४९ योगशा

aE aaa Waal घोराः खकश्मवलगविताः | कुकर्यानिष्तावानः पापाः waa शङ्धिताः १॥ परलोकड्िताय सत्पात्रेषु विनियोगादोनादौ क्षपया वितर्राश्च। भन्यायोपात्तस्ु लोकदयेऽप्यदितायेव इहलोके fe लोकविर्दकारिणो वधबन्धादयो दोषाः परलोके नरकादि- गमनादयः। यद्यपि कस्यचित्पापालुवन्धिपुण्यक््मवशादेहिक- सौ किको विपन्न दश्यते तथाप्यायत्यामवश्यस्भाविन्येव | यदाड-- पापेनेवार्थैरागान्धः फलमाप्नोति यत्‌ कचित्‌ बडिशामिषवन्नत्तमविनाश्य जोयति १॥ न्याय एव परमाथतोऽर्धोपाजनोपायोपनिषत्‌ यदाद निपानमिव मण्डकाः सरः पूलमिवाणडलाः शभकमीणमायान्ति विवशाः सवसम्पदः १॥ विभवं गाडहख्ये प्रधानं कारणमित्यादौ न्यायसम्पनव्र- विभव Tama तधा शिष्टाचारप्रशंसकः शिष्यन्ते स्म शिष्टा हत्तखन्नानठव- खेवोपलब्धविशद शिक्षाः पुरुषविशेषास्तेषामाचार श्रितम्‌ यथा- लोकापवादभोरतवं दोनाभ्यु्रण(दरः t कतन्नता सुदाचिश्यं सदाचारः प्रकौत्ितः १॥ त्यादि |

Waa, AMT. | १४७

Aq WNIT: | वधा--

विपद्युशचैः स्थेयं पदममुविषेयं महतां

प्रिया ara ठत्तिमन्तिममसुभङ्गेऽप्यसुकरम्‌ |

असन्तो नाभ्यच्याः Ywefa याश्यस्तमुधनः

सतां केनोदिष्टं विषममसिघाराब्रतसिदम्‌ १॥५॥२॥

तथा कुलं पिद्पितामहा दिपूवेपुरुषवंः गोलं मदामांस-

निशाभोज्नादिपरिहाररूपः समाचारस्ाभ्यां wager: सम- Hana CUI: 1 Wa नाम तथाविषेकपुरुषप्रभवो anes जाता wa Raat ऽन्येऽन्यगोत्रजास्तेः are कतोदाहो fafeafaare: श्रखिनिटेवादिसाच्िकं पाणिग्रहणं विवाहः | सच नोकेऽष्टविधः। तत्रालह्त्य कन्यादानं ब्राह्मो विवाहः विभवविजियोगेन कन्धादानं प्राजापत्यः गोमिधनदानपूवेक- मषः यतर यन्नाथगृलिजः कन्याप्रदानमेव efaur दैवः एते war विषाहा्लारः। मातुः पितुबन्धूनां चाप्रामाख्छास्पर- स्परानुरागेण समिधः समवायादान्धवः पणवन्धेन कन्धाप्रदान- AYU प्रसष्कन्धाग्रडणाद्राससः © सुप्तप्रमसकन्याग्रशा- त्पेगाचः ८। एतै चत्वारोऽप्यधन्मयाः यदि वधुवरयोः परस्परं “facie aero swan रपि wat) शदकलत्लाभफलो विवाहः भ्रशदभा्यदियोगेन नरक एव तत्फलं वधुरक्षण- माचरतः सुजातमृतसन्सतिरगुपहता चिन्तनिहत्तिगृहक्षत्यसुवि- डिनल्माभिजात्याचारविशुद्रत्वं टदेवातिथिबान्धवसककारानवश्यतवं

१४८ योगशास्मे

चेति | वधुरक्षणोपायास्त्वेते गटहकमे विनियोगः परिमितोऽचे- संयोगो ऽखातन्वयम्‌ खदा माढठतुल्यस््नोलोकावरोधन- मिति॥२॥

पापानि दृष्टादृष्टापायकारखानि कमीखि तेभ्यो भोरुः। wa दृष्टापायकारणानि चौयेपारदारिकल्वव्युतरमण्णदोनि इष- लोकेऽपि सकललोकप्रसिदविडम्बनास्थानानि। टृष्टापायकार- णानि waqaiatanetfe शस््ननिरूपितनरकादियातना- फलानि ४॥

ufae: तथाविघापरणिष्टसश्मततया . दूरं रूढिमागतः देशाचारो भोजनाच्छादन।दिचिन्रक्रियालकः सकलमण्डल- व्यवद्ारस्तं सम्यगाचरन्‌ तदाचारातिलङ्गने हि तेवा सिजन- तया विरोघसम्भावनादकल्याणलाभः स्यात्‌ ॥५॥

भवर्खोऽञ्ञाचा तं वदतौव्येवंभोलोऽवख्वादो क्रापि। जघन्योत्तममध्यमभेदेषु जन्तुषु परावण्वादो fe बददोषः | यदा- | परपरिभवपरिवादादामोत्कषोच्च बहयते कर्म

alaita प्रतिभवमनेकभवकोटिदुर्मोचम्‌ १॥

सदैवं सकलजनगो चरोऽप्यवसवादो चरेयान्‌ | कि पुना- राजामाव्पुरोडितादिषु बहजनमान्येषु। राजाद्यवणवादाहि 'विन्तप्राख्नाशमादिरपि दाषः स्यात्‌ ॥९६॥

wee ee न्क ~ eee ee 2 | ee री णण

(1) wae faaarwarnifzcfa |

प्रथमः प्रकाशः | १४९

तथा waa ay यत्रिगमहारं उपलक्लणत्वादेव प्रषेशारं तेन विवलितं fatat यस्य तथा agy हि निगमप्रमेशदार- व्वनुपन्तच्यमा णनिगंमप्रवे शानां दष्टलोकानामापाते atzfaunte- faya: स्यात्‌| भअत चामेकदहारतायाः प्रतिषेधेन विधिराच्तिष्यते। ततः प्रतिनियतहारसुरसितग्टष्ो wee: स्यादिति लभ्यते तथा- विधमपि निकेतनं खान एव निवेशयितु qa arent खानं तु शल्यादि दोषरदितं बहुलदूर्वा प्रवालङुशस्तम्बप्रस्त वणे गन्ध र्स्ि- कासुखादुजलोदमनिधानादिमश्च खानगुषदोषपरिज्नानं शकुनखप्रोपसुतिप्रतिमिमिन्तादिवसेन स्थाममेव fafaafe | अतिष्यङ्नमतिप्रकटमतिगुप्तमतिप्रच्छनव्रं ततिषेधादनतिष्यक्तगुपतम्‌। aa भतिव्यक्ते ्यसत्रिहितग्डहान्तरतया परिपाश्लतो निरावरण. तया चौरादयोऽभिभवेयुः। अतिगुमे सवैतो ग्टहःन्तरनिरु्- लाव खगोभां aati प्रदोपनकाययुपद्रवेषु दुःखनिगमप्रवेशं ze भवति। पुनः कथंभूते स्थाने सुप्रातिषैश्िक्षै शोभनाः शोलादिसम्पत्राः प्रातिवेभ्मिका यव कुशोलप्रातिषैश्िकलत्वे हि तदालापश्रवणतच्चेष्टादशनादिवशात्‌ खतः सगुणस्यापि गुशानिः स्यात्‌ दुष्यातिवेशमिकास्वेते याचप्रतिषिदडाः--

खरियातिरिक्ठजोणोतालायरसम खमाहणसुसाणा | वग्गुरिश्रवाहगुज्ियहरिणएसपुलिंदमच्छंधा १॥ ७॥

तधा क्तः सङ्गो येन क्तसङ्गः सम्‌ शोभन Wale Ty- परमलोकदिता प्रहस्तर्येषां तै सदाचारास्सेनं तु कितवधुत्तेविट- nrawazifefuaay fe सदपि शोकं विलोयेत |

१५० योगशास्त्रे

यदाङ-- यदि सत्सङ्गनिरतो भविष्यसि भविष्यसि | अथासल्जमगोष्टोषु पतिष्यसि पतिष्यसि १॥ सङ्क; TAHA त्याज्यः Swe शक्यते सद्धिः क्तव्यः सन्तः सङ्गस्य गेषजम्‌ २॥ इतिच ॥प८॥ तधा माता जननो पिता जनकस्तयोः पूजंक्रल्िसन्ध्यं प्रणामकरशेन परलोकडहितागुषाननियोजनेन सकलब्यापारेषु तदाज्ञया weet वशगन्धादिप्रधानस्य पुष्पफलादिवसन उपढौक- नेन anit भोगन वात्रादोनामन्यत्र तदनुचितादिति माता पिति मातापितरौ “ore” ॥३।२।१८॥ इत्यात्वं मातुखाभ्यहिंतल्वात्पुवे निपातः | Tat उपाध्याया दशाचायं भाचायीणां शतं पिता ava तु पितुर्माता गोरषेणातिरिष्यते neues तथा त्यजन्‌ परिष्ठरन्‌ Saad खचक्रपरचक्रविरोधाहभित्- मारोतिजनविरीधादेशाखस्योभूतं यत्‌ स्थानं ग्रामनगरादि। अत्यज्यमामे fe तस्मिन्‌ wartatarat पूर्वाजितानां विनाशेन नवानां चानुपाजनेनोभयलोकभ्॑श एव स्वात्‌ १०॥ तथा afea देशजातिकुलापेक्षया निन्दितं कम्म तत्राप्रहत्तः | देशगहितं यथा- सौवोरेषु afana लाटेषु मव्यसन्धानम्‌ |

प्रथमः प्रकाशः | १५१

जात्यपेचया यथा- ब्रादह्मशस् सुरापानं तिलशवणादिदिक्रयस | Raa यथा- Vaart waaay) aftaatranfen fe ` रवमपि wel aitayreara भवति ॥११॥ ` तथा ब्वयो भक्षव्यमरशखमभोगदेवतातिचिपूजनादि प्रयोजने दथ्यविनियोगः। आयः क्णिपाश्पाण्यवाखिज्यसेवादिजनितो द्रव्यलाभः तसख्ोचितमगुरूपं Va Fay | ` यदाइ- | 'लाभोचियदाखे लाभोचियभोगी लाभोचियमिडिकरे सिया | भायोचितञ्च व्ययञ्तुभागादितया शिदुश्यते | यदाड- पादमायािधिं कुर्यात्पादं विन्ताय ख्यत्‌ धर्मो पभोगयोः पादं पादं भक्तव्यपोषयथे के चिख्वाहुः- saree नियुक्त wat समधिकं aa: शेषेण गेषं कुर्वीत aaanqenafeay १॥

प्रायानुचितो fe व्ययो रोगमिव wat astina .विभव- सारम खिलश्यवदहारासमयथं पुरुषं कुर्वत |

(१) writfergrt खाभोकितमोगो लाभोकितनिविकररः qq |

१५२ | Sra

sme भायव्ययमनालोश्य यसु वेखरवखायते : afataa कालेन सोऽत्र वे अमणायते॥ १॥१२॥ तथा वेषो वस््रालङ्करष्ा दिभोगः विषं विभव उपलक्षणा- इयोऽवस्यारेशकालजात्यादिग्रहः। तदनुषारेण तदानुर्प्येश gafafa सम्बहयते। विभवाद्ननुसारेण ad gaat जनोप- इसनोयतातुच्छलतवान्धायसम्भावनादयो दोषाः . अघवा व्यय- मायोचितं gare वेषं वित्तानुसारेण कुव्यैत्रेषेत्यपरोऽधः यो डि सत्प्याये काप्ष्याद्‌ व्ययं करोति सत्यपि वित्तं कुवेलल्वादिधमां भवति। लोकग्ितो धर्ऽप्यनधिका- Tifa wean | तथा wefudtgedm: धियो quater: शुःुषादयः तै त्रमो- | 3 WIT अवशं चेव ग्रहणं धारणं तथा t अषोऽपो होऽधेविच्रानं TINT Aga त्र शुषा योतुमि च्छा | खवणमाक णनम्‌ ग्रहणं गालार्ध- पादानम्‌ धारणम विस्मरणम्‌ जष्टो विजना तमथेमवलम्बयान्येषु तथा विधेषु व्यात्या fama अपोह उल्ियुक्षिभ्यां विङ्दाद्ीत्‌ हिंसादिकात्‌ प्रस्यपायसम्ावनया व्यावर्तनम्‌ अथवा जः सामान्यन्नानमपोदो विगेषज्नानम्‌ भथविन्नानसृष्टापोषहयोगा- हसने विपर्यासब्य दासेन Wray तच्वन्नानमृहापोषहविन्नान- बिश्दमिदमिलयभेबेति निखयः। शगूषादिभिदिं उपाडितप्रन्ा-

प्रथमः प्रकाशः | १५१

mad; gam कदचिदकल्याणमप्नोति। एते बदिशुखा यथासभ्भवं CAT ॥१४॥ तथा अग्ठानस्ताच्छोल्पेन धममभ्युदयनिःज्रेयसेतु Way say प्रतिदिनं धमेश्रवणपरो हि 'मनःखेदापनोदादिक- माप्नोति। यदाहइ- रान्तमपोन्फति खेदं ad निवीति qert मूढम्‌ सिरताभेति व्याकुलसुपयुक्तसुभाषितं चेतः १॥ Way धर्मश्रवशं चोत्तरोत्तरगुशप्रतिप्तिसाघनलाग्धान- fafa श्रवणमान्राददिगुणादस्य मेदः १५। तथा VAST WA पूवैभोजनस्व wear ware परिपाकः मनागे पूवभोजने नवं भोजनं त्यजतोत्येवंशोलः | | waite भोजने हि सर्वरोगमूलस्याजओणेस्व ठदिरेव क्ता भवति | aay अजोणे प्रभवा रोगा दति। TMG fara न्नातव्यम्‌ यदाइ- मलवातयो विगन्धो विडमेदौ गा तमौरवमरुच्यम्‌ | अरविशरद्दोद्ारः षडजोगोव्यक्तलिङ्कानि॥ १॥ १६॥ तथा काले बुभुक्तासमये alert अन्राय्युपजोवकः भोक्तेति

(१) गन सनःखेडापमोटमाटिकं करोति। Qe

१५४ योगशास्त्र

साधौ aq aa लौल्यपरिषरिण यथाम्निबलं मितं yatta भतिरिक्षभोजनं हि वमनविरेचनमरणादिना ary भवति यो fe मितं qea बह yen wafada श्ङूतमपि qa भवति विषम्‌ तथा श्रुतकालातिक्रमादब्रदेषो देहसादख भवति 'विध्याैऽग्नौ fat नाभेन्धनं कुयादिति पानाहारादयो यस्याविर्दाः WRATH | सुख्ित्वायाव कल्पन्ते aaranfafa मोयते १॥ एवं ATTAIN WT Bana yt विषमपि पथ्यं wafa | परमसावमामपि प्यं सेवेत पुनः साक्मयप्राप्तमप्यपथ्यम्‌ | aa बलवतः पथ्यमिति wal कालकूटं खादेत्‌ सुशिचितो- $पि विषतन्न्नो ज्जियत एव कदाविदिषात्‌ १७ तधा faant घमीधंकामस्तव्र यतोऽभ्युदयनिःखेयखसिद्िः qua) यत; सर्वप्रयोजनसिदिः सोऽधं; यत भ्रानिमानिक- दरसानु विष्ठा सवे न्दरियप्रोतिः ara: | ततोऽन्योऽन्यख परस्मरं यीऽप्रतिवन्धोऽनुपघातस्तेन तविवगेमपि नत्वेकेकं साधयेत्‌ | यदाह-- यस्य त्िवगशुन्यानि दिनान्यायान्ति यान्ति a 1 लोडकारभस्रेव श्वसन्नपि जोवति॥ १॥ aa धर्माधयोर्पघामेन तादालिकविषयसुखलुग्धो वनगज इव कोनाम भवत्याखदमापदाम्‌। AS धनं wT: WHE वा यख्य काभेऽत्यन्तासक्षिः। धमकामातिक्रमाखनमुपा- fad परेऽमुभवन्ति सवयं तु परं पापस्य भाजनं सिंह इव

प्रधमः प्रकाशः | १५१

सिम्युरवधात्‌ भरथकामातिक्रमेण whtar यतौनाभेव wal ग्टहस्थानाम्‌ | धमवाधयाऽचकामौ सेवेत वोजभोजिनः कुटुभ्विन इव नाख्यधामिकस्वायत्यां किमपि कल्वाणम्‌ खलं सुखो योऽमुतर सुखाविरोधेन इलोकमसुखममुभवति cae. बाधया धमकामौ सेवमानस्य ऋणाधिकत्वम्‌ कामवाधया धमार्थौ सेवमानस्य गख्याभावः स्वात्‌ | |

एवं तादालिकमूनहरकदर्येषु walaaiaiaaatsa- वाधा BAT

तच्ाहि-

a: किमप्यसञ्धिग्योत्यतब्रमधेमपव्येति तादालिकः। यः पिदपैतामहमयमन्धायेन भक्षयति मूलहरः। यो ware. पोडाभ्यामथं afanfa नतु कचिद्पि व्ययते कदयैः। तन्र तादालिकमूलहरयो रथैश्वंशेन धमकामयोवषिनाशान्रास्ति कल्याणं RI ASTI राजदायादतस्कराणां निधिर्नतु wharw- योहंतुरिति अनेन सिवगेवाधा wea adagfaafa प्रतिपादितम्‌ | यदा तु देववशादाघा सन्भवति। तदोत्तरोत्तर- वाधायां FS पूवस्य बाधा रक्षणीया |

aaife—

कामबाधायां धमौधयोर्बाधा र्षणोया तयोः सतीः कामस्य सुकरोत्पादकल्वात्‌। कामाचयोसु बाधाया धर्मो र्तणोयः धर्ममूनलत्ादथेकामयोः |

१५७ AANA

उक्त्य ध्मेशेवावसोदेत कपालेनापि waa: | भाव्योऽस्मोत्ववगन्तव्यं धमे विन्ता हि साधवः १॥१८॥ तथा विद्यते सततप्रहन्तातिविश्देकाकारागुष्ठानतया तिष्यादि- दिनविभागो यख्य aisfafa: | यथोक्षम्‌- fafacatarat: सवं त्यक्ञा येन महाक्रना | ufafa तं विज्ञानोयाच्छेषममभ्यागतं faz: साधुः चिष्टाचाररतः सकललोकाऽवगोतः। दोनो cleq aa दति वचनात्‌ स्ोशसकलधग्माथकामाराधनशक्षिः तेषु प्रति- ufaaq प्रतिपत्तिरूपचारोऽब्रपानादिरूपः। कथं यथावत्‌ भौ चित्यानतिक्रमेण | यदाड- भौचित्यभेकमेकच्र गुणानां कोरिरैकतः। विषायते गुणग्राम भरौचित्यपरिवजितः १॥ १८॥ तथा अनभिनिविष्टोऽभिनिकैशरहितः श्रभिनिषैशख नोति- पथमनागतस्यापि पराभिभवपरिणामेन ara: | नो चानां भवति यदाह- eq: रमयति नोचात्रिष्फलनयविशुणदष्करारग्भेः | खोतोविलोमतरणनव्यसनिभिरायास्यते Wea: १॥

प्रथमः प्रकाशः | १४५०

भ्रनभिनिविष्टलं कादाचिलं शाव्छान्रोचानामपि सन्धव- त्यत WIE! सटेति॥२०॥

तथा gag सौजन्धौदायेदाचिष्यस्य प्रियपूवप्रथमाभिभाष- णादिषु खपरयोरूपकारकारशेष्वा धर्मेषु Teal पश्षपातसु बहमनतब्मश्चसासाहाख्करण्वादिमा wage wate: गुखपकल- पातिनो हि जोवा भ्रवन्धयपुश्यवोजनिषेक्षशे्ासुतव गुखग्राम- सम्पदमारोहन्ति ॥२१॥

तथा प्रतिषिद्ो देशोऽरेणः प्रतिषिषः कालोऽकालः तयोर- देशाकालयोशर्यां acd at त्यजन्‌ परिहरन्‌ भदेशकालचारौ fe चोरादिभ्योऽवश्यमुपद्रवमाप्नोति ॥२२॥

तथा जामन्‌ विदन्‌ बलं शक्तिं we परस्य वा दव्यचैतरकाल- wand सामथ्येम्‌ भवलमपि तथेव वलावलपरिज्नाने हि सवैः सफल WT: अन्यधा तु विपयंयः |

यदाहइ-

स्थाने शमवतां शका व्यायामे ठडिरङ्किनाम्‌ | अयधावलमारग्भो निदानं चयसम्पदः new इति wn 22

तधा ठत्षमनाचारपरिष्टारः सम्यगाचारपरिपालनं तत तिष्ठन्तोति wera | wit हेयोपादेयवसुविनिखयस्तेन ददा महान्तः त्ता तै न्नानठत्रा् तेषां पूजकः पूजा सेवा- च्ञस्यासनाभ्युयानादिलचणा | दत्तख्यन्नानवन्तो fe पूज्यमाना नियमात्कश्पतरव शव सदुपदेशादिफलंः wafer २४

१४५८.. योगशास्त्र

तथा; पोष्या भवश्यभन्तव्या माटपिढग्डहिष्पत्यादयस्तान्‌ योगचेमकरशेन पोषयनोति पोषकः ॥२५॥ तथा दौर्धकालभाविल्वारौधमथमनं पश्यति पयलो चय- तोत्वंशोखलो दौचैदर्भौ २१4 तथा away: «wane: खपरयोविशेषमन्तरं नाति नि्िनोतोति विशेषन्नः। अविशेषन्नो fe पुरुषः पशो- नीतिरिश्यते अथवा विश्रेषमातमन एव गुशदोषाधिरोखलक्षणं लानातोति विषन्नः ` यदाइ-- - ~ -: ` ~ ,:: vay प्रत्यवेचेत. नरथरितमान्मनः | | fat a & cufige किंशु सत्परुषेरिति १५ २७॥ तधा ad परोपञ्जतं जानाति fast aaw: एवं fe तस्य कुशखलाभो यदुपकारकारिणो ay मन्यते aawa तु निष्कृति- श्व afar | यदाइ- maw नास्ति निष्कंतिरिति ॥२८॥ तथा लोकानां विशिष्टजनानां विनयादिगुैषन्नभः faa: | को हि गुणवतः प्रति प्रोतो भवति यसु लोकवज्ञभः केवलमामानं खस्य धर्मुष्ठानमपि परेदुंषयन्‌ परषां बोधिलाभ- भरं शहेतुभवति २८ तथा AMAT वेयात्याभावः सह AAT TAM | लव्ञावान्‌ fe प्राणप्रहाणेऽपि प्रतिन्नातमपजदहाति।

प्रथमः प्रकाशः | १५९

यदाह- amt गुषोघजननीं जननो मि वार्थी- मत्यन्तशदद्रदयामगुवत्तंमानाः | तेजखिनः सुखमसूनपि सषग्यजन्ति सत्यखितिव्यसमिनो पुनः प्रतिन्नाम्‌ ॥१॥१०॥

तथा सह दयया दुःखितजन्तुदुःखत्राणाभिलाषेणय वषत षति खदयः। धममस्य दया मूलमिति द्यामनन्ति। aga दयां कुर्वति | यदाइ-

प्राणा यथासनोऽभौष्टा भूतानामपि तै तथा | भ्रासौपम्येन भूतानां दयां कुर्वीत मानव १॥ १२१॥

तथा सोम्योऽक्रुराकारः क्रुरो हि लोकस्योे गकारशम्‌ ॥१२॥

तथा परोपक्ततौ परोपकारे was: कर्मशूरः atife घटते “aa घटते कमणः” ॥७। १।११७॥ इति ठः परोपकारपरो fe पुमान्‌ wae नैजामृताश्लनम्‌ RR

तथा अ्रन्तरङ्नासावरिषडवगान्तरङ्गगरिषडवगस्तस्य परि- हारोऽनासेवनं तच पराथख्स्तत्परः | तत्रायुक्कितः प्रयुक्ताः काम क्रोधलोभमानमददषीः शिष्टग्डहसयानामन्तरङ्गोऽरिषडवगेः | तत्र परपरिग्टहोताखमुढासु वा aly दुरभिसन्धिः कामः परस्यामो वा भ्रपायमविचाये कोपकरणं क्रोधः। दाना्हेवु खधनाप्रदानं निष्कारणं परधनग्रहशं लोभः; दुरभिनिवेशारोहो gare:

१६० योगशास्त्र

ग्रहणं वा मानः। कुलवलेष्वर्यरूपविद्यादिभिर्क्कारकरस्वं पर. प्रधषंनिवन्धनं वा मदः। निनिमित्तं परदुःखोत्पादनेन aa चयूतपापरचैपायन्धेसंखयेख वा मनःप्रमोदो शषः एतेषां परिष्टायल्मपायहतुत्वात्‌ |

यदटाह-

STURM नाम भोजः कामाद्राद्मणकन्धामभिमन्यमानः सअन्धुराष्टो विननाश कराल वेदेः क्रोधाव्जनभेजयो ब्रा्मशेषु विक्रान्तस्तालजङ्कख Way लोभादेलशातुवस्छमभ्या- हारयमाणः सौवोरखाजविन्दुः मानाद्रावणः परदारानप्रयच्छन्‌ दर्याघनो राज्यादृस्नंणं मदादश्भोद्धवो भूतावमानो हेहयवाजुनः हर्षाहातापिरगस्यमभ्यासादयन्‌ furs देपायन ¢ fafa nag

तधा ated: weeat त्याजित इन्दियग्रामौो wala- समूहो येन तथा। भत्यन्ताशक्षिपरिहारेण खगनादोद्दरिय-

विक्षारनिरोधकः। इन्द्रियजयो fe पुरुषाणां परमसम्पदे wafa |

यदाह- ्रापदां कथितः पन्वा इद्दियाशामसंयमः। AMT: सम्पदां मार्गो येनेष्टं तेन गम्बताम्‌ १॥ इन्द्रियाण्येव तत्सवं यत्‌ खगनरकावुभौ | निग्होतविखष्टानि खगाय मरकायच॥२॥

प्रधमः प्रकाशः | १६१

सवेधेन्द्रियनिरोधसु यतोनाभेव ध्य ष्डतु खावकधर्मोचित- ग्टहइश्थसखर्ूपमेवा धिक्षतमित्येवसमुक्षम्‌ १५

एवं विधगुखसममो ममुष्यो ufewita कल्पते अधिक्षतो भवतोति ५६॥ .

दति परमारत्रोकुमारपालभूपालशश्रुषितै भाचायं ब्रोहमचनद्र- विरचितेऽध्यामोपच्धिषन्नाजि स््नातपहवन्धे श्रोयो गशास्मे way प्रथमप्रकाशविषरणम्‌ |

RR

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e

अहम्‌ दितोयः प्रकाशः |

ग्टहिधश्माय waa wan afewng खावकधकः सम्यक्रमूम्तानि दादशत्रतानि तान्येवाड-

सम्यक्तुमूलानि पञ्चागत्रतानि गुणास्वयः | शिक्षापदानि चत्वारि व्रतानि खडमेधिनाम्‌ wen

wae मूलं कारणं येषां तानि सम्यक्ञमूलानि भ्रणूनि महा- प्रतापेच्चया लघुनि व्रतानि भरहिंसादौनि पञ्च एतानि मूलगुणाः | गुणास्नरय उन्तरगुखकरूपाः ते गुशतव्रतानि दिग्रतादोनि atfa fant fam अभ्यासः firma पदानि सथानानि चत्वारि सामायिकादोनि प्रतिदिवसाभ्यसनोयानि तत एव गुणत्रतभ्यो मेदः गुणव्रतानि fe प्रायो यावस्लोविकानि एवं दादशत्रतानि ग्टद्मेधिनां सावकाशम्‌ १॥

सम्यक्ञमूलानोव्युहं तत्र aera विभजति- या देवे देवताबुदिगुरौ गुरुतामतिः | धम्म waa: शुदा सम्यक्तुमिदसुच्यते

area गुरौ धमं wearing टेवत्वगुरुषधमेत्ववु हिरयमभेव देवो gery इति निञख्यपूर्वा रुचिः अानमिति यावत्‌ शा अन्न(नसंगयविपर्थास्निराकरथेन निना सा aang यद्यपि

१६४ योगशास्त्र

स्चिर्जिनोक्ततवेष्विति यतिखावकाशां साधारणं सम्यक्रलक्षण- मुक्तम्‌ तथापि खस्थानां देवगुरुधरमषु पूज्यलोपास्यलानुष्टेयल- लक्षणोपयो गवशादु देवगुरुधस्म तशव प्रतिपत्तिलश्षणं सम्यक पुन- रभिदहितम्‌ ननु तत्वाथरुचिलक्षणे cat देवगुरधमाणां तच्चेऽन्तर्भावः उच्यते देवा गुरुवच Aaa wa: शभाखवे संवरे चान्त्भवति। सम्यक्च विधा भौपश्मिकं क्षायोपशमिकं ल्षायिकां तत्रोपशमो भस्मच्छव्राम्निवत्‌ भिष्यात्वमोषशनोयस्यानन्तानु- बन्धिनां ` क्रोधमानमायालोभानामनुदयावस्था उपशमः प्रयोजनं प्रव्तंकमस्य भ्रोपश्चमिकं तच्चानादिमिष्यादृेः करणवय- yaaa ahaa चतुगतिगतस्यापि जन्तोभेवतोल्यु्वप्रायम्‌ यदा उपशमखेश्यारूटस्य भवति | ` यदाहइ--

'्=वसामगकषेदिगयस्छ Wie उवसामियं तु सब्मत्तं

जो वा भकयतिपुंजो भ्र खवियमिच्छछो ल्द सगं १॥

an मिष्यात्वमोहनो यस्यानन्तानुबन्िनां उदितानां देशतो निमूलनाश्नः अतुदितानां Towa: | aaa ya उपशमः योपशमः प्रयोजनमस्य aaa तश्च सतवा दनाह- दकमप्युच्यते | wana तु सत्कश्ववेदनारदितमिव्यौपशमिकः त्ायोपशभिकयोर्भेदः।

ce ee

(१) surawifunre भवति ्रौपथमिकं तु सम्यङ्खम्‌ यो वारुलतविपन्नच चपितिमिथ्यो लभते सम्यक्‌ +.

feata: प्रकाशः | १६५

यदाडइ-- ‘aux daa खश्रोवसमिषएसु agua at उवसंतकसाभ्रो SX Are dana fa |

एतस्य fafa: षट॒षष्टिः सागरोपमाणि साधिकानि |

यदाड-- | ‘at वारे विजयाद्सु गयरुस तिखश्चुए wea ताद्‌ | Weta नरभवियं नाणाजोवाण Taw १॥

aq मिष्यालमोहनोयस्यानन्तानुबन्धिनां निमुलनाः ल्यः प्रयोजनमस्य Asa तच्च सादयनन्तम्‌ भरत चान्तरज्ञोकाः--

मूलं बोधिहुमस्यैतत्‌ हारं पु्यपुरस्य

We fratagere निधानं सवसम्पदाम्‌ गुणानामेक Ware रन्नानासिव aac: |

पात्रं चारित्रवित्तस्य सम्यक्घ Area केः अ्रवतिष्ठत नाज्नानं जन्तौ सम्यक्षवासिते। प्रचारस्तमसः Hea भुवने भानुभासिते॥ २॥ तियेग्नरकयोहारे टृढा सम्यक्मगला | देवमानवनि्वणसुखद्ारेककुञ्िका ४॥

जो = आः = जि © = > नन ee eee ~ -

(1) वेदयति gent सायोपथभिकेषु नातुभावं सः उपणान्तकषायः पुम्वेदयति सत्कर्मापि॥

(२) हो वारान्‌ विलवादिषु गतश लोख ऋच्युतेऽचव। तानि। अतिरेक भरभविक्र मानाजोश्ानां स्वांदधम्‌

१६६ AANA

भवेदेमानिकोऽवश्यं जन्तुः सम्यक्घवासितः ` यदि नोदान्तसम्यक्गो बद्वायुवीपि नो घुरा॥५॥ अन्तर्मुहत्तमपि यः समुपास्य जन्तुः

सम्यक्ञरव्रममलं विजहाति aa: | qa भवपथे सुचिरं a सोऽपि afeaafacat किमुदोरयामः इति

fanaa सति विवलितं सुज्ञानं भवतोति सम्यज्गविपत्तं

faaraary—

अदेषे देवबु्िर्या गुुधौरगुगे या अधमे धर्मबुरिश्च मिथ्यात्वं तददिपययात्‌

अदेवोऽगुररधर्मय वश्यमाणलक्षणस्तत्र देवत्वगुरुत्वधश्चत्व- प्रतिपत्तिलछषणं faard aa लक्षणं तदिपयेयादिति aa सम्यक्स्य विपर्ययः तस्मादेतोः सम्यक्कविपय यरूपत्वादित्यथः तधा द्द्मपि संग्ष्ोतं 23 भदेवत्वस्य गुरावगुरत्वस्य धमं भधरत्वस्य प्रतिपल्तिरिति।

fama पञ्चधा भाभिग्रहिकमनाभिग्रहिकमाभिनिवे- faa सांशयिकमनाभोगिकं च|

तत्ाभिग्रहिकं पाखण्छिनां खस्वशाखनियन्तितविषेका- लोकानां परपत्षप्रतिधेपदन्षाणां भवति

अनाभिग्रहिकं तु प्राक्ञतलोकानां सवं देवा बन्दनोया

निन्दनोया एवं सवं गुरवः सवं म्मा श्ति॥२॥.

हितीयः प्रकाशः | १६७

अआभिनिवेचिकवं जानतोऽपि यघाखितं वसु दुरभिनिवेश- लेश विञ्चावितधियो जमालेरिव भवति wu 2

सांशयिकं रेवगुरधमष्वयमयं षेति संशयानस्य भवति ४॥

अनाभोगिकं विचारणशृन्धस्येकेग्दरियादेवा विथेषविन्नान- विकलस्य भवति ५॥

यदाह- tsnfanfed शप्रणशभिम्गदं aw भरभिखिवेसियं चेव | संसद्यमणाभोगं निष्छसतं GTA WIT ॥१॥

WAAC AT: भिष्यात्वं परमो रोगो भिष्याल्वं परमं तमः। मिष्यातवं परमः शत्रमिष्यालवं परमं विषम्‌ AURA दुःखाय रोगो ध्वान्तं रिपुविषम्‌ अपि sqaway मिष्यात्मचिकिख्षितम्‌ aa मिष्यालेनालोढचिन्ता नितान्तं त्वातखं जामते नेव Tar: | fa जात्यन्धाः कुत्रचिदसुजाते रम्थारम्यव्यक्िमासादयेयुः २॥

(१) आभिपङ्कननभिङ्‌ तथां wifafaafad चेव | ytafasaatari fauna पञ्चधा wafa (x) wufanfya |

१६८ योगशास्त्रे देवादेवगुवगु रुधर्माधर्मेषु wafaaary देवलक्षणमाडइ - सर्वन्नो जितरागादिदोषस्तैलोक्यपुजितः | यधास्थितार्थवादौ देवोऽईन्‌ परमेवरः

देवस्य टेवत्वे चतुरोऽतिशयानाचकच्ते विचक्षणाः | तवयधा-- च्रानातिशयः१ भपायापगमा तिशयः पूजातिश्यः वागतिशयश्च४ aa Tae इत्यनेन सकलजोवाजोवादितच्वन्नतया श्रानातिशय- माड नतु यथाह विगङ्लवादिनः परे | सवै पश्यतु वा मा वा तच्लमिष्टं तु पश्यतु | कौोटसंख्यापरिज्ानं तस्य नः क्रोपयुज्यते दूरं wag at ar वा त्वमिष्टं तु पश्यतु | प्रमाणं acest Beary ETAT २॥ इति afe विवक्तितस्येकस्यापोषटस्यार्थस्य ज्नानमणेषाधन्नानमन्तरेण भवति। ad हि भावा भावान्तरेः साधारणासाधारणरूपा "इत्ये षश्नानमन्तरेषय सा लन्षख्यवेलक्तण्याभ्यां नैकोऽपि त्रातो भवति | यदाइुः-- ! ` एको भावः सवधा येन दृष्टः सवं भावास्तश्चतस्तेन SLT: |

(१) कच दत्रेषश्मतामन्बरेख।

facta: प्रकाशः | १९८

सर्वे भावाः सवधा येन दृष्टाः एको भावस्तव तस्तेन ST!

जितरागादिदोष इत्यनेनापायापगमातिश्यमाह तत्रेदं सव- जनप्रतौतम्‌ यथा सन्ति रागहेषादयः। तेच दोषास्तेरालनो दूषणात्‌ | तै जिताः प्रतिपक्तसेवनादिभिभ गवतेति जितरागादि- दोष samy सदा रागादिरहित एव क्चित्पुरुषविशेषोऽस्तोति तु वात्तामाज्रम्‌। भ्रजितरागादेश्वास्मदादिवन्र देवल्मिति। वेलोक्यपूजित इत्यनेन पूजातिशयमादइ कतिपयप्रतारितमुग्ध- बुहिपूनायां fe दैवतं स्यात्‌ यदातु चलिताषनेः सुरासुर नीनादेणभाषाव्यवहारविसंस्युलेमुष्येः परस्मरनिरुदवरेः सख्य- मुपागतेस्तियम्मिञ्च समवसरणभूमिमभिपतहिरहमषमिकया सेवाक्नलिपूजागुगस्तो वधमंदेणनागतरसाखरादादिभिः पूज्यते भगवान्‌ तदा देवत्वभिति यधाखिताधेवादोत्यभेन वागतिशयः यथासितं सद्नुतमधं वदतोल्येव॑थौलो यथाख्िता्थैवादौ |

यदाचच्छमहि सुतौ-

mama परोक्षमाणा हयं हयस्याप्रतिमं प्रतीमः |

यथाख्िताधेप्रथनं तवेतदस्थाननिबन्धरसं परेषाम्‌ # यथावा

facra asa: wenlfaaa वा aaifenis लुठनं सुरेितुः। sz agrafaaagend परे; कथष्ुरमपाकरिष्यते।॥२॥

देव इति awad glad qaa इति देवः सामध्या-

दन्‌ परमेश्वरो नान्धः RR

१७० यो गशास्ते

चतुरतिशयवतो देवस्य ध्यानोपासनशरषएगमनगासनप्रतिपत्तोः साधिकचेपसुपदिण्ति-

ध्यातव्योऽयमुपास्योऽयमयं शर गमिष्यताम्‌ | अस्यैव प्रतिपत्तव्यं शासनं चेतनासि चेत्‌ ५॥

अयं देवो ध्यातव्यः पिष्डस्यपदस्रूपसधरूपातोतरूपतया अेणिकै- नेव चेणिको fe वणशप्रमाणसंस्थानसंहननचतुस्तरंगदतिशयादि- योगिनं भगवन्तं खोमद्ावीरमनुष्यातवान्‌ तदनुभावाश्च तदण - प्रमाणसंसखखानसंहननातिशययुङ्घः पद्मनाभस्तोधंकरो भविष्यति यदाचच्छमि- tae AMT मण्शसा वोरजिणो wrest तए gfe | ay तारिसो faa qa wefa wt जोगमाष्प्पं ne मागमख-- जरसोलसमायारो अरिहा तिदलयंकरो मदावोरो | तस्सीलसमायारो होहि भरिष्टा महापउमो २॥ उपास्यः सेवाच्नलिसंबन्धादिना श्रयभेव देवः दुष्क्तगरहा- सुक्षतानुमोदनापूवकमयभेव देवो भवभयात्तिभेदौ शरणमिष्यताम्‌। अस्येवोक्षलक्षण्णस्य देवस्य शासनमाच्रा प्रतिपत्तव्यं खौकरणोयम्‌ |

+~ ~~ = =-= >~ =-= -- ~ ~~ ~~ -= ——— == = == ~ ~ =,

यकन

(१) तथा ada भनसा वौरजिनो ध्यातस्ल्या पूबम्‌ यथया तादय BATS): षो ATTA YTATA

(२) बच्छीरसमाचारो GHZ AMAA लषावोरः। तच्छोढसमाचारो भदिष्यति खलु, अहन्‌ महापद्मः |

हितीयः प्रकाशः | १७१

शासनान्तराणि fe निरतिशयपुरुषप्रणेठकाणि प्रतिपत्ति- योग्यानि | चेतनास्ति चेदित्यपिकषेपः चेतनावत एव प्रत्युपदेशस्य सफलत्वात्‌ अचेतनं तु प्रति विफल उपदेशप्रयासः यदाड-

अरण्यसदितं कतं शवशरौरमुदहर्भितं

ष्व पुच्छमवनामितं atacand: |

स्थते कमलरोपगं सुचिरमूषरे ayy

तदन्धमुखमण्डनं यदबुधे जने भाषितम्‌॥ enw

अटेवलस्षणमाइ-

ये स्रोशस््राक्षसूव्रादिरागाङ्कलङ्धिताः निग्रहानुग्रहपरास्ते देवाः Ua मुक्तये

wat कामिनो wa शूलादि sada जपमाला तान्धादौ येषां नाखाहृहासादोनां & खोग्खास्षसूज्ादयः राग ्रादिर्थेषां तै रागादयः ्रादिशष्दाद्‌ देषमोहपरि ग्रहः दागादोनामङ्कासिह्ानि खोशखाक्त सूत्रादयश्च ते रागाद्या तेः कलङ्किता दूषितास्तत wal रागचिङ्कं शस्त्रं हेषचि्कं ्र्तसूजं मोहविङ्कम्‌ | वोतरागो हि नाद्गनासङ्गभाग्भवति। बोतदेषो वा कथं शस्त्रं विश्यात्‌। गतमोदो वा कधं विस्मृतिचिङ जपमालां परिष्छह्वोयात्‌। cura: सर्वदोषाः WITHA RAAT AAT AAS TATA | निग्रहो वधवन्धादिः अनुग्रहो वरप्रदानादिः तौ परौ प्रक्ष्टौ येषां ते तधा निग्रहानु- agate रागदेषयोधिह्क। एवंविधास्ते देवा भवन्ति aaa

१७२ : OTA

इति सुक्तिनिमित्तम्‌। देवत्वमान्रं तु क्रौडनादिकारिणां प्रत पिश्ाचादौनामिव वायते

सुक्तिनिमित्तलाभावभेव व्यनक्ति-

नाय्याट्रशाससङ्गौतादयुपश्नवविसंस्थ लाः | लम्भयेयुः पदं शान्तं प्रपन्नान्‌ प्राणिनः कथम्‌ wou

हस कलसांसारिकोपञ्जवरहितं शान्तं पदं सुक्गिकवल्यादि- शष्टाभिधेयमस्तोत्यव्र नास्ति विप्रतिपत्तिः aad शान्तं पदं नाखादृ्ाससद्ग तादिविसंख्नलाः खयमुपषतठत्तयः कथमाचित- जनान्‌ प्रापयेयुः नद्येरण्डतसः कल्यतरलोलामुदहति ततय रागदहेषमोषदोषविवज्जितो जिन एको देवो मुक्तये नेतरे दोष- दूषिताः

अत्रान्तरश्नोकाः-

Wat नोरागाः शङ्कर ब्रह्म विष्णवः प्राक्षतेभ्यो मनुष्येभ्यो ऽप्यसमच्सद्स्ितः Slay: काममाचष्टे इषं चायुधर्ग्र्ः | व्यामोहं चात्तसूज्रादिरशोषचं कमण्डलुः २॥ गौरो रुद्रस्य सावि ब्रह्मणः योर्मुरदिषः | शचोन्द्रस्य रै रब्रादेवो Taras विधोः॥३॥ तारा वषस्पतेः MIB वह्कघेतोभुवो ca: | धुमोणौ खा ददेवस्य दारा एवं दिवोकसाम्‌ ४॥

i कनकः eek

feata: प्रकाशः | १७४

सर्वषां शस्तसम्बन्धः सर्वेषां ares faray

तदेवं देवघन्दोहो देवपदवों wag ५॥ बुदस्यापि दवतं मोहाच्छन्यानिधायिनः | प्रमाणसिहे शून्यत्वे शून्यवादकथा TAT प्रमाणस्येव स्वेन प्रमाशविवर्धिता |

शृन्यसिहिः परस्यापि खपक्षख्ितिः कथम्‌ ॥७॥ सवधा सर्वभावेषु alana प्रतिन्यते |

फनेन सह सम्बन्धः साधकस्य कथं भवेत्‌ वधस्य वधको हेतुः कथं ्षणिकवादिनः।

स्मृतिश्च प्रत्यभिच्चा व्यवहारकरौ कथम्‌ < निपत्य ददतो व्याघ्राः खकायं क्षमिसदुःलम्‌ | देयादेयविमूढस्य दया awe कौटभो १० SHUI एवामजनन्यदर्दारिणः | मासोपदेशदातुख्च कथं शौदोदनेर्दया ११॥

यो श्रानं प्रकतेशैश्मं भाषते निरधैकम्‌ | | निगृणो निष्कियो मूढः देवः कपिलः कथम्‌ १२ भयीविनायकस्कन्दसमोरणपुरस्मराः |

निग्यन्ते कथं देवाः सवेदोषनिकैतनम्‌ १३

या पश्गूयमश्राति aya ठषस्यति ,

श्गादिभिप्रतौ जन्तून्‌ सा वन्धालु कथंनु गौः १४॥

(1) प्र्वमिन्ञातव्यवहारकरी कथम्‌ |

१७४ योगासन

पयःप्रदानसामष्यीहन्दा Bae किम्‌

fatay दृश्यते नास्यां महिषोतो मनागपि १५। स्थानं atafaearat सर्वेषामपि गौयदि |

विक्रीयते दुद्यते हन्यते कथं ततः १६ मुसलोदूखले Yat Seat पिष्यलो जलम्‌ | निम्बोऽकषंचापि यैः ate देवास्तैः Asa वजिताः ॥१७॥

वौतरागस्तीतेऽप्यक्तमस्माभिः

mara जठरोपस्यदुश्ितेरपि देवते; warenifagad wet देवास्तिकाः परे १८ ऽ॥

गुरुलन्षण्मादह-

महाव्रवधरा धौरा भेत्षमावोपलीविनः। सामायिकस्था धर्मोपदेशका गुरवो मताः ८॥

महाव्रतानि अदहिंसादोनि तानि धरन्तोति महाव्रतधराः महा- व्रतधारित्व एवायं हेतुः धोरा इति धयं श्रापत्खप्यवेक्नव्यं तदो गाड परखर्डितमदाव्रतधरा भवन्ति | मूलगुणधा रित्वसुक्ञा ठत्तरगुण- wiftaare | मैक्षमाव्रोपजोविन इति firerat समूहो aa भव्रपानधर्मोपकरणरूपं aaraaiustafar लोकाच पुनदैन- धान्यदिरण्यग्रामनगरादि मूलगुणोत्तरगुखधारणकारणभ्रूतगुण- TATE सामाथिकयखथा इति समो रागदषविकल भावा समस्य रायो विशिष्टश्नानादिगुणलाभः। खमायः सख एव सामायिकं

feata: प्रकाशः | १७५

विनयादिल्लादिकणश्‌ aa तिष्ठन्तोति सामायिकशथाः सामायिको fe मूलगुणोत्तरगु गमेदभिनव्रं चारित्रं पालयित्‌ क्षमः एतद्यतिमात्र- साधारणलसषणम्‌ | FY भ्रसाधारणलस्षणं धर्मोपदेशका इति धमं संवरनिजेरारूपं यतिखावकसम्बन्धिमेदभित्रं वा उपदिशन्तोति धर्मोपदेशकाः |

यदुक्लमस्माभिरभिधानचिन्तामणौ-

qquatuena इति ग्टणन्ति az शास््राधेमिति गुरवः

पगुरुलत्षणमाह-

सर्वाभिलाषिशः सर्वभोजिनः सपरिग्रहाः ` श्रब्रह्मचारिणो मिथ्योपदेशा गुरवो नतु We

सवमुपदे श्यखम्बन्धिस््ोधनधान्य हिर ष्यत्चेववासुचतुष्यदाखभिलष- mainte: स्वीभिलाषिणः तथा सवै मय्मधुमांसामन्त- कायादि yaa दत्येवंोलाः सर्वभोलिमः। सङ परिग्रशेण पवकलत्रादिना ana सपरिग्रहाः। wa एवाब्रह्मचारिणः अब्रह्मणो महादोषतां कथयितुमन्रह्मचारिणश इति एधगुपन्धासः | गुरुत्वे श्रसाधारणं कारणमाह मिष्योपदेणा इति मिष्या वितथ श्राप्तोपन्नोपदेशरहितल्वादुपदेयो धमदेशनं येषां तै तथा | तु नेव एवंविधा गुरव fal ननु धर्मोपदेश्दायितं चेदस्ति तदासु yaa fa निष्यरिग्रहित्वादिगुणगवेषणन

१७६ योगशास्त्र दूत्याह-

परिग्रहारम्भमम्नास्तारयेयुः कथं परान्‌ |

खयं दरिद्रो परमौ्वरौ कत्तमौ्वरः १० परिग्रहख्यदिरारभ्भो जन्तुहिंसानिबन्धनं सर्वाभिलापित्वसव- भोजित्वादिः ताभ्यां wen भवाब्धौ afear: कथं परानुपदेग्यान्‌

भवास्ोधस्तारयेयुस्तारणमम्थौः स्युः साधकं दृष्टान्तमाह खय. मित्यादि खष्टम्‌ १०

WHATUATE

दुगतिप्रपतव्माणिधारणारमं उच्यते | संयमादिर्दशविधः सर्व्वन्नोक्तो विमुक्तये ११॥ qual नरकतियेगलच्तष्णायां प्रपतन्तो ये प्राखिनस्तेषां धारणा -

~ ka © e ~ e @ ~ Wawa Saad | धमशब्दार्धऽय waa aad धममस्य धत्त वा नरसुरमोत्तस्थानेषु जन्तूनि ति निस्क्रादन्भः |

यदाह-

दुगंति | | WEA जन्तुन्‌ यस्माष्ठारयते ततः धत्ते चेतान्‌ शमे खाने तस्माद इति स्मृतः १॥

सख तु व्यमाणेः संयमादिभिर्भदेदंयधा। सर्वन्नोक्षत्वाहिसु- हये भवति | देवताम्तरप्रणोतस्वसवन्नवक्षकलवाच्र प्रमाणम्‌ | ननु सवन्नोक्गत्वाभावेऽप्यपौ रुषेयवचनो पन्नस्य धमस्य प्रामाण्िकत्वमसतु |

feata: प्रकाशः | १७७

यदाइ- चोदना fe भूतं भवन्तं भविष्यन्तं सुखं स्थूलं व्यवहितं विप्रक्ष्टभेवं जातोयकमधैमवगमयितुं शक्रोति नान्यक्िख्नेद्दिय-

fafa चोदना अ्रपौङ्षयत्वेन पुरुषगतानां दोषाणामप्रवेणात्‌ प्रमाणमेव |

यदाह- शब्दे दोषोद्धवस्तावदक्तधोन इति खितम्‌ तदभावः कचिन्लावहुणवदक्कलत्वतः १॥ तदशेरपक्लष्टानां शब्दे संक्रान्यसम्भवात्‌ | यदा व्ञुरभावेन water निराश्रयाः

fay— दोषाः सन्तिन सन्तोति पौङ्षेयेषु युज्यते वेदे कर््रभावाश्च Sores नास्ति नः॥ ३।११॥

इत्याहइ-

अपीङषेयं वचनमसम्भवि भवेददि | प्रमाणं भवेदाचा द्याप्राघधोना प्रमाणता १२॥

पुरुषेण क्तं पौरुषेयं तव्रतिषेधादपौरुषेयम्‌ उच्यते खान-

करणशाभिघातपूरवंकं पुरुषेण प्रतिपाग्यत शति वचनम्‌ तदिदं

परस्परविर्चम्‌ | wierd वचनं चेति तदेवाह असम्भवि

ह्यस्ति स्रवो वचनस्य व्रसरेणोरिवाकाथे। wT मश

gor MAT

सतोऽप्यदथनमिति aa qa प्रमाणाभावात्‌ | अभिव्य्नकवशा- च्छष्द्वणभेव प्रमाणमिति चेत्‌ न। ae जन्यतवेऽप्युपपत्तेः। भ्रभिश्यश्पलव प्रत्यत दोषसश्भवः | wafer सखानकरणा- भिघाते शब्दान्तराणामपि तहेश्यानामभिव्यज्िप्रसङ्गः। नच प्रतिनियतव्यच्ञकव्यद्गयता शब्दानां भवति व्यत्रप्ान्तरेषु तद- दशनात्‌ |

तधाच--

गहे दधिघटं द्रष्टुमाहितो गटहमेधिना

भपूपानपि तदेश्यान्‌ प्रकाशयति दोपकः तदेवं चनस्यापौरुषेयता सम्भवति भधाप्यप्रामाणिकदवाक- बलादाकाशादिवच्छब्दस्यापोरषेयता यदि भवेत्‌ तथापि

ware सम्भवति हि यस्मादाप्तवक्षकत्वेन वाचां प्रामाण्यं नान्यथा |

यतः-

शब्दे गुणो हइवस्तावदक्षधोन इति सितम्‌

तदभावः कचित्तावदोषवदल्लकत्वतः

तदोषेरपक्षष्टानां शब्दे संक्रान्यसम्भ वात्‌ |

यदा वक्लुरभावेन गुणा स्युनिराश्रयाः wz A faq—

गुणाः सन्ति सन्तोति पौरुषेयेषु युज्यते |

वेदे कन्त॑रभावाञ्च गुणाशङ्धव नास्ति मः॥ a vere

हितीयः प्रकाशः | १७९

एवं तावदपोर्षयवचनाभिहितस्याषश्भवादिना अभावममिधायासव्नपुरुषवक्षकस्य धश्यस्याप्रामाणिकत्वमाइ-

मिध्याद्टिभिगान्नातो हिसादैः कलुषीक्ततः | धर्म इति विन्लोऽपि भवभरमणशकारणम्‌ ॥१२॥

मि्ाषृहटिभिंहरिष्रहिरण्यगभकपिलवु्ठादिभिराजात भालो- पन्नतया प्रतिपादितः | यत्तदोनित्याभिसम्बन्धादयो firarete- भिरान्नातः wiaa सुग्धवबुचोनां प्रसिचोऽपि waa कारणमधरम एवेत्य; कुत care हिंसाययेः कलुषोक्षत इति | मिय्यादृिप्रणोता eran हिंसादिदोषटूषिताः ee a

इदानोमदेवागाव्यधन्मीणां arad प्रतिरेपमाडइ--

सरागोऽपि हि देवश्चेद्‌ गुरुरब्रह्मचायपि | कपाहो नोऽपि VT: स्यात्कश्टं नष्टं हहा जगत्‌ ॥१४॥

रागग्रहणमुपलस्षणं इषमोहयोः भरब्रह्मचारिष्वमुपलक्षणं प्राशा- तिपातादौनाम्‌ क्पाहोनल्सुपलक्तणं मू नोत्तरगुणद्ोरनत्वस्य | Qu: प्रत्येकमभिसम्बध्यते। श्राप प्रकटयति। कष्टमिति खेदे ad जगत्‌ देवगुरधमशून्यत्वेन विनष्टं दुगतिगमनात्‌ इदा निपातः खेदातिशयसूचकः।

१८० ATTA

यदाष- ष्रागो देवो दोसो रैवो मामि gafa Sat AM wal म॑मे wat जोवहिंसाड धम्मो | र्ता AA HATTA F गुरू वेवि gar SIU HE AH AIM Weas कुणंतो १॥

तदेवमदेवारुर्वधर्मपरिषारेण देवगुरुधमप्रतिपत्िलक्षणं aaa सुव्यवस्थितम्‌ तच्च शभाकपरिणामरूपमख्दादोनामप्रत्यत्तं कैवलं faxed १४ I

तान्येवाह--

शमसंषेगनिवंदानुकम्पासिक्यलच्गोः | लक्षणे: पञ्चभिः सम्यक्‌ सम्यक्तुमुपलच्यते १५॥

पञ्चभिरश्षयी लि; परस्थं परोक्षमपि सम्यक्षं सम्यगु पल्यते लिङ्गानि तु शमसंवेगनिवंदानु कम्पा स्तिक्यसशूपाणि | शमः प्रशमः क्रूराशामनन्तानु बन्धिनां कषायाशामनुदयः। WHA वा कषायपरिणतेः कटुफलावलोकनाहा भवति |

जारा ~~~

(१) Tra Var टोषौ देवो सखे न्योऽपि देवः मदो wat मांसे धर्मः जोवहहिंखावां धमेः। रक्रा WUT: कान्नालक्ताये गुरवः तेऽपि Your:

दाद्ा we नो शोको GENE कुवन्‌

हितोयः प्रकाशः | १८१

यदटाश्-- ‘outa aay arad वा विवागमसुषंति। wacefa न्‌ Guy उवसमश्रो सव्वकालंपि १॥

अरन्ये तु क्रोधकण्डूविषयढष्णोपशमः शम Kary: भषिगत सम्यग्दशनो हि साधुपासनावान्‌ कथं क्रोधकण्ड़ा विषयढच्णया तरलोक्रियेत। नु क्रोधकण्डविषयदढष्णोपश्मसेच्छमस्तरहि छष्णग्रणिकादोनां सापराधे निरपराधैऽपि परे क्रोधवतां विष्यढठष्णातरलितमनसां कथं "शमः तदभावे Ae A गम्येत नेवम्‌ लिङ्गिनि wenn सति लिङ्गरवश्यभाव्यमिति नायं fara दृश्यते fe धुमरहितोऽप्ययस्कारण्डहेषु वद्धिः भखच्छन्रस्य वा वहेन पूमलेशोपोति भयं तु नियमः सुपरोचिते लिङ्ग सति लिङ्गो भवत्येव यदाह-- लिङ्गे लिङ्गो भवत्येव लिङ्किन्येवेतरल्पुनः | नियमस्य विपयासे सम्बन्धो लिङ्ग लिङ्िनोः १॥ सश्छुलनकषायोदयादहा छष्णादोनां क्रोधकण्छूविषयढण्णे सच्छुलना wit केचन कषायास्तोत्रतया भ्रनन्तानुबन्षिस्टश- विपाकवन्त इति सवैमवदातम्‌ संवेगो मोक्षाभिलाषः | सम्यग्‌-

(1) प्रलयाः केषां area वा चिपाकभशुभनिति। अआपराधेऽपि कुष्यति खपचमतः wlarwufa 4 (२) कड प्रशमः।

as] alae

दृटिं नरैनद्रसुरनद्राणां विषयसुखठानि दुःखानुषङ्गाहःखलया मन्यमानो Weeks सुखत्वेन मन्यते भभिलषति यदाह--

"नर विबुषेसरसोक्वं, gad चिय भावभो भ्र मरतो सं वेगश्रो wae मोत्तुणं किंचि wate १॥

निवंदो भववेराग्म्‌ | सम्यग्दशंनो हि दुःखदौगत्यगर्टने भव- कारागारे कमेदग्डपाभिकेस्तथातयाकदब्थमानः प्रतिकर्त॑मच्षमो ममत्वरदहितश्च दुःखेन निव्विखो भवति | यदाड- "नारयतिरियनरामरभवेसु निब्वेयभ्मी cae eae’ भकयपरलोयमम्गो Hala acest १॥ अन्ये तु संवेातिर्दयोरथेविपयेयमाद्ुः संवेगो भवविरागः निवेंदो मो्षाभिलाष इति। wearer दुःखितेषु waynes द्ःखप्रड शेच्छा | पर्चपातेन तु करुणा खपुच्रादौ व्यात्रादौनामप्य- स्येव सा चानुकम्पा gait भावतश्च भवति। द्रव्यतः सत्यां शक्तौ दुःखप्रतोकारेण | भावत We waa |

tt re -->--- ee ee ee

te

(१) मरविबुेश्वरसोख्यं दुःखमेव भवतत लन्यमानः | संगेगतोन मों aR किञ्चित्‌ प्रेते

(२) -इव्खिं |

(१) नारङ्तियेङनरामरभवेष गिर्वेदतः वशति इःखम्‌ | WHATS BATT भमत्वविषवेगर {तद

(४) CUTE -कार- |

दितोयः प्रकाशः | १८३

यदाह- "दहुग पाणिनिवहं भोभे भवसायर्मि Tat अविसेसश्रोणुकंपं दु विष्ावि सामच्छश्रो FAT १॥ अस्तोति मतिरस्येत्यास्तिकस्तस्य भावः कमे वा भास्िक्षम्‌। तस्वान्तरश्र3ष्िऽपि जिनोक्षतस्वविषये facet afaafe: | प्रास्तिक्येन fe लोवधमतया भप्रत्यत्तं Taw aad) तान्‌ fe आस्तिक इत्युष्यते | यदा- ‘aay तमेव ad नोसंकं जं जिशेहिं पन्नं | सुहपरिणामो oat कंखाद्विसुिभ्रारह्िभ्रो॥ १॥ अन्ये तु शमादोनि लिङ्गान्धन्यधा व्याचक्षते सुपरोल्ित- प्रवक्गुप्रवायप्रवचनतश्वाभिनिवेशाञ्धिष्याभिनिवेगोपशमः शमः सम्यम्दगेनस्य लक्षणम्‌ यो were विहायात्मना wet afar: met सम्य्दर्मनवानिति संवेगो भयं जिनप्रवचनानुसारिणो fe नरकेषु शरोरं मानसं शोतोष्णादिजनितं स॑क्तिष्टासुरो- afta परष्यरोदौरितं fry भारारोपणाद्यनेक विधं मनुष दारिद्रादौर्भाग्यादि दुःखमवलो कयत सङ्गोरतया तस्म्मोपाय- भूतं waagfaedt wed विद्यतेऽस्य सम्यग्द्शममिति निर्वेदो

= mee cr ee ee ee ee ==

(1) इषा aifefaary भीमे भवसागरे gerne | अशत्रिचेषतोऽतुकूग्यां हिविधामपि qrawa करोति॥

(२) wares gyifa|

(६) मन्धते तरेव खत्वं निःशङ्कं यदुलिनेः प्रापितम्‌ | प्ुणप्रिष्ामः सम्यक काङ्धाटिविदलिकारड्ितः॥

१८४ योगाख्े

विषयेष्वनभिष्वङ्कः यथा teeta एव प्राणिनां दुरन्तकाम- भोगाभिष्वङ्गोऽनेकोपद्रवफलः परलोकेऽप्यतिकटुकनरकति्यग्‌. मगुष्यजन्धफलप्रदः अतो किञ्िदनेन उबिभकतव्य एवाय- fafa | एवंविधनिर्वेदेनापि लश्छतेऽख्यस्छ सम्यग्दश्यनमिति भनु- कम्मा AAT यथा सव्ये एव स्वाः सख्वाधिनो दुःखप्रहाणाथिनख | ततो warrenty पोडा मया कायेत्यनयापि लब्यतेऽख्यस्य सम्यक्षमिति। सन्ति खलु जिनेन्द्रप्रवचनोपदिष्टा भ्रतोद्दरिया जोवपरलोकादयो भावा इति परिणाम wifey भनेनापि awa सम्यग्द्शनयुक्ञोऽयमिति १५॥ सम्यक्नलिङ्गान्यक्ला भूषणान्याद- waa प्रभावना भक्तिः कोणलं जिनशासने | तौधंसेवा पञ्चास्य भूषणानि प्रचक्षते १६

अस्व Game पञ्च भूषणानि भूष्यते अरलद्धियते यैस्तानि भूषणानि जिनशासने जिनशाखनविषये। एतच्च सवत्र सम्बध्यते। wal fara प्रति चलितचिन्तस्य परस्य स्थिरत्वापादनं खयं वा परतोधिकचि- दथेनेऽपि जिनपासनं प्रति निष्युकम्प्रता प्रभवति जनेन्द्रगासनं तस्व प्रभवतः प्रयोजकत्वं प्रभावना। सा चाष्टधा प्रभावकमेदेन। यदाह-

‘areal waanrel ark नेमित्ति्भो ara

विषा fawt o ak a aga पभावगा भणिया॥ १॥ ` (१) प्रवचनो धर्म्यो बाहो afawe: wate) foggy सिद्द कवि खव प्रभावका ufwae s

feat: प्रकाशः | १८५

aa प्रवचनं arene गणिपिरकं तदस्यास्यतिशयवदिति प्रवचन युगप्रधानागमः। MATA प्रशस्यास्वास्तोति wat शिखादिल्वादिन्‌। वादिप्रतिवादिसभ्यसभापतिल्षथायां चतु. twat सभायां प्रतिपच्लनिरासपूवकं खपक्तस्थापनार्धमवश्यं वदतोति arti fafad बेकालिकं लाभात्ताभादिप्रतिपादकं गावं aware वा मेभित्तिकः। तपो विक्षटमष्टमाखस्यास्तोति तपखो | विद्याः प्रन्घ्यादयः शासनदेवतास्ताः साषशटायक्षे यख a विद्यावान्‌। अक्ननपादक्लेपतिलकगुरिकासकलभूताकषंण- निष्कषष्ववेक्रियलप्रशतयः सिहयस्साभिः fas स्म सिह: कवते गद्यपद्यादिभिः प्रवन्परवेणेनां करोतोति कविः। एते प्रवचन्धा- दयोष्टौ प्रभवतो भगवच्चछासनस्य यथायथं देशकालाद्यौ वित्येन साहायककरषाग्रभावकास्तषां कम प्रभावना feala भूषणम्‌ भक्तिः प्रवचने विनयवेयाहश्यरूपा प्रतिपत्तिः सम्यग्द गनन्नान- चारिव्रादिगुणाधिक्षेषवभ्युलय।(नमभियानं शिरस्यच्लिकरणं खयमा- सनढौकनमासनाभिग्रहो वन्दना पयुपासना WTA चेत्य्टविध- क्म विनयनादष्टविध उपचारविनयः। व्याठन्तस्य भावः कमे वा वेयाहच्यम्‌। तश्वाचार्योपाध्यायतपखिथिक्षकग्लानकुलगणसद्धसाधु- WANA दगखव्रपानवस्त्रपाव्रप्रतिखयपोठकफलकसंस्तारादिभि- धे साधनेङपग्रहः शशयुषाभेषजक्रियाकान्तारविषमदुर्गोपसर्गष्व- भ्युपप्ि्च जिनशासनविषये कौशलं Agua) ततो हि व्यवडितादिरप्यर्थो विषयी क्रियते यथानायदेशवर्ती ्राद्रेककुमारः ये णिकपुवेषाभयकुमारेण कौगशलाद्मतित्रोधित इति ae नव्यादे-

२४

१८९ योगशास्म्

fea संसारस्य aca सुखावतारो मागः। तच्च ‘fea gaa भावतोधं द्रव्यतोधें तो्थंज्लतां जन्दोत्ाच्नाननिनव्याशखानम्‌ | यदाह-- ‘aa दिक्छा are तिलखययराणं महाशभावाणं | जलय किर fare ara cag wis 8 भावतोधं तु भ्चतुर्विधः खमन्सद्धः प्रथमगग्धरो aT | यदा "faa भन्ते fad fast fad गोयमा afcer ताव नियमा तिदय कटे तिले पुखचाठउव्वसो समणसंवे पठमगखहरे वा May सेवा तीर्थसेवा १९॥

अस्य CAMA भूषणान्ध॒क्ा STITT ET

शद्ाकाङ्काविचिकित्सामिध्यादटृ्िप्रशंसनम्‌ तत्संस्तवश्च पञ्चापि सम्यक्तु दूषयन््लम्‌ १७

पञ्चापि wereat निर्दाोषमपि waa दूषयन्ति अलमतिशयेन | IE सन्देहः सा सवं विषया टेशविषया सवविषया अस्ति वानास्िवा ae इत्यादि। देशश एककवसुधस्मगोचरा।

(1) we Bury (२) oad Sher qt तोधैकराष्ां लङ लुभावामाम्‌। जल्‌ किल निर्षाखं वनाद ead भवति॥ (३) गक Wade: | (9; तीरे भगवन्‌ Me atest ae गौतना अरन्‌ anfeata तौध- रसती पमष" ववेय्य Tae परथमगणधरे वा।

हितोयः प्रकाशः | gro

यधा ufer जोवः केवलं सर्वगतोऽखवेगतो वा सप्रदेशोऽ्ररेभो वेति। <a दिधाऽपि भगवदष्व्रशोतपप्रवचनेषु प्रत्ययरूपा aaa दूषयति कैवलागमगभ्या अपि fe पदार्था भस्मदादि- प्रमाखपरोक्षानिरपेला भ्राप्प्रशेठकतवान्र eens योग्बाः | यत्रापि मोहवशात्‌ nay संशयो भवति तवाथ्यप्रतिहतेयममंला | यथा- ‘aa म्दुव्वक्ञेण तव्विहायरियविरडभ्रो वावि | मेयगडणसशेण माणावरणोदणएशं १॥ 'हेजदाङरणासंभवे भ्र सद YE St FNM | सब्बन्रुमयमवितडं awa तं fea axa i २। श्रणुवकयपरा शुग्गहपरायणा जं जिशा जगषप्पवय्‌ | जियरागदोसमोहा AAV ATA AF ॥२॥ यथा वा सुजोक्घस्य कस्याप्यरोचनादक्षरस्य भवति नरः मिष्याहरिः aa fe a: प्रमाणं जिमाभिहितम्‌। arg अन्याग्धदशेनग्रहः। सापि सवविषया देश्विषया च) सर्वविषया qaarefesunt- कामरूपा | देशक्षाद्का लेकादिदर्भनविषया यथा सुगतेन `

(१) खग -प्रवबमे।

(2) कच ufageasy afgurwrafscyay वापि, VANYANA WAIT IA

(३) हेतद।हरष्दारंभवे उति yy यच awa | शवैशञमतभवितयं तथापि तञ्जिन्तयति मतिभान्‌

(8) वानुपल्लतपराहुयषपरायणषवा यख्लिना arma: | जितरागटोषमोषाच नान्यथा वाद्मिस्तेन

~ | योगशास््ने

भिचुष्णामक्ते्को धनध उपदिष्टः खानान्रपानाच्छादनगयनोयादिषु सुखानुभवदारण | यदाद - wel शव्या प्रातरुलयाय पेया मध्ये भक्तं पानकं चापरा द्रात्नाखण्डं शकरा चादैराते मोत्ष्ान्ते शाक्यसिंहेन दष्टः १॥ दति एतदपि घटमानकभेव दूरपेतम्‌ तथा परित्राट्भौत- ब्राह्मणादयो विषयानुपभुच्ाना एव परलोकेऽपि सुखेन युज्यन्त दति साधौयानेषोऽपि धम इति। एवं काहगपि परमाथतो भगवदहग्रणोतागमानाश्वासरूपा Mere दूषयति विचिकित्ता faufaaa: सा सत्यपि युक्घागमोपपन्न जिनघग््ःस्य महतस्तपःक्रेशस्य सिकताकणकवलवत्िखादस्यायत्यां फलसम्प- वितो | wa क्तेशमाव्रभेवेदं निजेराफलविकलमिति उभयथा fe क्रिया दृश्यन्ते सफला WHATS कषोबलादोनाभिव इयमपि तथा VATA | Tele ‘gayfrar जष्ोइग्रमग्गचरा ase तेसि फलजोगो wag धोषंघयणविरश्टसमो ae तसि फलं इति

(१) Wagear यथोचितमागेचरा waa तेषां फडयोगः। wang पधोसंष्ष्दविरष्हतः न्‌ तथा तेषां फलम्‌

दितोयः प्रकाशः | १८९

विचिक्िल्लापि भगवहचनानाश्ासरूपतवास्छम्यक्गस्य दोषः | amet नेयं भिद्यते शह fe सकलासकलपदाधेभाक्ञेन द्रव्यगुणविषया ष्यं तु क्रियापिषयेव। यदा विचिकित्ा निन्दा साच सदाचवारसमुनिविषया यथा waraa प्रखेटजलक्तिब्रमलत्वा - हुगन्धिवपुष एत इति को दोषः स्याद्यदि agence अङ्ग aaa कुर्वारत्रिति इयमपि तत्वती भगवदन्धमानाण्लासरूपलात्‌ सम्यक्कदोषः। faa जिनागमविपरौता दृष्टिर्द शनं येषां ते भिष्या- ृटयस्तथां प्रथ॑सनं प्रशंसा तच्च सर्वविषयं दशविषयं | सवं विषयं सर्वाण्यपि कपिल।दिदभेनानि युक्षियुक्कानोति माध्यख्यसारा सुतिः सम्यक्स्य दूषणम्‌ |

यदाचच्छहि सुतौ--

सुनिचितं मत्सरिणो अमस्य

नाध सूद्रामतिश्ेरते & |

माध्यख्यमाखाय Twat ये

AC FT ARI समानुबन्धाः॥ १॥ देशविषयं तु ्दभेव aera साहयकणादादिवचनं वा तस्वभिति। द्द तु maa सम्यङ्घदूषणम्‌ | तेमिष्यादृटिभिरेकव संवासात्पर- स्मरालापादिजनितः परिचयः संस्तवः एकव्वासे fe तव्मक्रिया- खवणशातिक्रियादश्नाश्च टटठसम्यक्गवतोऽपि हष्टिमेदः सम्भाव्यते | किमुत मन्दबुहेनेवधर्मस्य इति संस्तवोऽपि सम्यक्चटूषणम्‌। एवंविधं vam विशचिष्टद्रव्यसेवकालभावसामग्रणां सत्यां गुरोः समोपे विधिना प्रतिपद्य खरावको यथावत्पालयति।

१८० योगशास्त्र यदटाड-

'समसशोवासभ्रो aa मिच्छन्ताभो पडिक्रभे।

TAIT भावभ्रो पुव्विंसश््त्तं पडिवल्नए १॥

‘a aay से परतिलिियाखं ava तसिं faq देवयाखं परिम ताख चेश्याणं पषावणावंदखपूयणाद्‌ ॥२॥ ्लोयाश् faay सिशाणश्दाखं पिंडष्पयाखं हुणशयथं तवं सं॑कंतिसोमम्गहशाग्पसं पञूयलोयाख पवाहकिञचं

एवं तावस्ागरोपमकोटौकोखां | wat fafagarat मिष्वात्वमोनोयखिती जन्तुः waa प्रतिपद्यते ardor कोटोकोखामष्यवशिष्टायां पस्योपमएयक्ष' यदा aad भवति तदा देशविरतिं प्रतिपद्यते |

यदाहइ-

‘aqufa ae पलियपुदुततण सावो rena १७

(†) भण्ोपाख्कसन्‌ भिथ्वात्वाठ्र विक्रमेत्‌ | KIA भावतः FT षम्बह्धं प्रतिपद्यते

(र) कल्यते तख परतीधिं कानां तेव तेषामेष देवतानाम्‌ | परिये तेषां Sarat प्रभावनावन्द्नपजनादि॥

(३) कोकानां तोरधेषु खानहानं पिक्छप्रहामं wat zag) खंक्रन्तिशोमपहखादिकेषु प्रभूतलोकानां प्रशाहलत्यम्‌

(४) Gas त॒ बम्धे पष्योपमणयङ्धेन श्रावको भवेदिति।

दितोयः प्रकाशः १९१

सम्यक्मूलानि पश्चाात्रतानोत्यकषं तत WAM मभिहितमिदानोमणुव्रतान्याहइ-

विरतिं स्थुलहिंसादेदिविधविविधादिना | अहिंसादौनि पञ्चाणव्रतानि जगदुजिनाः ॥१८॥ |

wat भिथ्याृष्टोनामपि fearaa प्रसिदायादहिंसा सा स्थृल- fear खलानां वा त्रसानां staat हिंसा qatar: खुल प्रह पुपलसलम्‌ तैन निरपराधसङल्पूवकहिंसानामपि wed ्रादिप्रहण।त्‌ खुल्ाकृतस्तेयाब्रह्मचर्य परिग्रहाणां संग्रहः एभ्यः waftarfeen या विरतिनिहसिस्तामहिंसादौोनि परहिंसा ठतास्तेयब्र ह्म चर्यापरिग्रहान्‌ पश्चाणुव्रतानोति जिना- स्तोधकरा जगदुः प्रतिपादितवन्तः। किमविशेषेण विरति- मेत्याह दिविधव्िविधादिमा भङ्गजालेन दिविध क्त- क।रितरूपल्जिविधो मनोवाक्षायमेदटेन aa सं हदिविधकरिविध एको भङ्गः इड यो हिंसादिभ्यो विरतिं प्रतिपद्यते | fefaut कछ्षतकारितमेदां जिविधेन मनसा वचसा कायेन चेति। एवं भावना स्थुनलरंसां करोत्वासना कारयत्यन्येम मनसा वचसा कायेन चेति। wer चामुमतिरप्रतिषिदहा भ्रपत्यादि- परि ग्रडसद्वावात्‌ afvafence तस्यानुमतिप्राप्त;ः। weet परिग्रहापरिग्रहथोरविशेषेण प्रव्रजिताप्रत्रजितयोरमेदापन्तः। नमु भगववयाद्‌ाव।गमे fafad विविष्रैनेत्यपि प्रत्याख्यानमुक्ञ-

१९२ AAS

ante: | तच्च खुतोक्षत्वादनवद्भेव तत्कस्माब्रोष्यते | Ta | aq विरिषविषयलात्‌। तथाहि a: faa प्रवित्रजिषुरव प्रतिमाः प्रतिपद्यते | पुत्ादिसन्ततिषालनाय यो वा fasid सखथंभूरमश्वादिगतं मद्यादि्मासं qafvafean वा क्षविद- वख्याविपेषे प्रत्याख्याति एव तिविधं त्रिविधेनेति करोति। दूत्य विषयत्वान्रीच्यते। बादष्येन तु दिविधं fafadafa | दिविधविविध भादिथस्य दिविधजरिविधादेर्भङ्गजालस्य तन

fefad हि विधेनेति feral भङ्ग; हिविधमिति स्थुलदिंषां करोति कारयति fefadafa मनसा वचसा यदा मनसा कायेन यहा वाचा कायेनेति। ay यदा मनसा वाचान करौति कारयति। तदा aaa भभिसन्धिरहित एव वाचापि ftanaqaaa कायेनेव दुडेष्टितादिना भअरसञ्चिवल्करोति यदा तु मनसा कायेन कराति. कारयति तदा मनसाभि- सन्धिरहित एष कायेन दुखे्टितादि परिषशरब्रेवानाभोगादाचेव हन्मि घातयामि वेतिब्रूते। यदातु वाचा कायेन करोति न्‌ कारयति। तदा मनसेवाभिषखन्िभविक्नत्य करोति कारयति च। श्रनुमतिसु विभिरपि सवैज्रवास्ति। एवं ेषविकस्या सपि भावनोयाः।

दिविधभेकविधैनेति तोयः दिषिधं ace कारणं एकविधेन AAA यहा वचसा यहा कायेन |

एक विधं जिविभेनेति चतुथः एकविधं करणं यहा कारणं मनसा वाचा कथिनच।

feata: प्रकाशः | १९३ एक विधं हिविषेनति waa: एकविं करणं यदा कारण्यं fefaaa मनसावाचा यदा AAAT कायेन ART वाका कायेन |

एक विधमेकदिधेनेति षष्ठः एकविधं act यदा कारणं एञ्ञविधैेन मनका यहा वाचा यहा कायेन।

यदाह-

‘afawfafada पटमो दुवि दधिषे alam हो दुवि एगविषटैशं एगविहं चेव तिविहेण एगविषं chee एगेगविहेश्ठ BIT होदत्ति |

एते भद्राः करणत्रिकेष योगत्रिकेण विशेष्यमाणा एकोनपद्ाशद्रवन्ति | |

तथाहि- `

हिंसां करोति मनसा वाचा कायेन 2 मनसा वाचा४ मनसा कायेन वाचा कायेन वा मनसा वाचा कायेम एते करणेन सप्त UAT |

एवं का(रशिम सप्त WAR सप्त। तथा हिंसां करोति कारयति ममा वाचा कायेन मनसा वाचा मनसा कायेन वाचा कायेन वा मनसा वाचा कायेन TO | एते करणकारणाभ्यां सप्त भङ्गाः |

(१) हितिधबिविधेन प्रथमो हिविधं हिविभेन इितीगो भवति fefad एक- fata एकविं es लिविसेन एकविं fears एकोकविपेन षको भवतीति।

२५.

१८४ . योगशास्त्रे

एवं करशागुमतिभ्यां ari कारणानुमतिभ्यामपि aq) कप्णकारखानुमतिभिग्पि सप्त। एवं स्वे मोलिता एकोन पञ्चाशद्वन्ति। एते विकाशविषयल्वात्‌ प्रत्याख्यानस्य काल- येय गुणिताः सप्तचल्वारिंश्दधिकं शतं भवन्ति |

azie— ‘eared भंगसयं पचक्वाणन्ि जस्स उवलदं | सो खलु पञ्चक्वाणे कुसलो Far भ्रककसलाभ्रो विकालविषयता चातोतस्य निन्दया साम्प्रतिकस्य संवरशेन अनागतस्य प्रत्या ख्याननेति | यदाह-

‘wou निंदामि agua संवरेमि wand पञश्चक्वामित्ति पते भङ्गा रद्िंसाव्रतमाचित्योपदगिताः व्रतान्तरेष्वपि ZEA १८॥

एवं सामान्येन हिंसादिगोचरां विरतिमुपदश्य प्रत्येकं feafeg ताञुपदिदशयिषुदहिसायां तावदाड--

पङ्ृकुष्िकुरितवादि cer हिंसाफलं सुधोः | निरागस्वसजन्तूनां हिंसां सद्ल्पतस्यजेत्‌ weet

इह नादृष्टपापफलाः पापात्निवन्तन्त दति पापफलसुपदशेयन्‌

ककरन ne -----~--- ~ => ~ ~~ ~~ nw - = ~ = न~~ ~~~ ~~~ ~~ =-= ~ = ~~. ~ ---= ~~ -- ~ ~~~ -~ --

(१) सप्रचत्वारिथत्‌ भङ्ग पतं प्रत्ाख््याने वद्य उपलब्धम्‌ | खल MATA कुलः येष। ATT (२) अतोतं निन्दामि प्रल्युत्मचं खंडषोभि अनागतं प्रलख्छानीति |

हितोयः प्रकाशः | १९८५

fearfacfaaagafena पङ्कः सत्यपि पादे पादविहरणाक्षमः कुष्ठो त्वग्दोष कुशिवि कलपाणिः तेषां भावः पङ्क कुष्ठो कुणित्वम्‌ प्रादिग्रहणार्पङ्गत्वो पलत्तितमधःकायवेगुश्यम्‌ | कुित्वोपलसितं सकन्तरोगजातम्‌ कुखित्वोपलस्ितमुपरिकायवेगुख्यं संग्ह्यते | uafearnad हृष्टा सुधोरिति बुहिमान्‌ fe शांस््रबलेन हिंसायाः फलम तदिति निित्य feat त्यजेत्‌ wa विधौ सप्तमो aut निरागस्रसजन्तूनां निरागसो निरपराधास््रसा दो ददियादयस्तेषां सङल्येन aga: wafearqaaarag: भिरागस इति निरपराधजन्तुविषयां feat प्रत्याचष्टे सापराधस्य तु नियमः। ्रसग्रहशेनेकैन्द्रियविषयां हिंसां नियमयितुं wa saree awed इति श्रमं जन्तुं aierafaaa इशोति सङ्कल्पपूवकं हिंसां वजयेत्‌ | wien तु हिंसा भशक्प्रत्याख्यानेति aa यतनाभमेव कुयादिति | अत्रान्तरन्नोकाः-

येषाभमेकान्तिको मेदः सम्मतो देषदटेडहिनोः |

तेषां टेहविनाथेऽपि हिंसा देहिनो भवेत्‌ १॥

श्रभेदेकान्तवादेऽपि alana Sweeter: |

Swat देहिनाशात्परलोको ऽसु कस्य वे

भिन्नाभिन्नतया तस्माल्नोषे देषशाग्रतिश्युते।

SHAT NAAT at at feat waa we a

दुःखोत्प्तिमनःकरशस्तत्पर्यायस्य चयः |

यस्यां स्यास्ता aaa हिंसा हेया विपयिता॥४॥

१९९ TANTS

प्राणो प्रमादतः कु्योद्यत्मराणव्यपरोपणम्‌ |

सा fear जगदे प्रा्नर्बीजं संसारभूरुहः ५॥ शरोरौ fara at at ध्रुवं fear प्रमादिनः।

at uTwaqadasta प्रमादरहितस्य न॥ ६॥ wae हिसा भवैतरित्यस्यापरिषणमिनः। चखिकस्य खयं नाणकं हिंसोपपच्ताम्‌ नित्यानित्ये ततो जोष परिषशामिनि युज्यतं |

fear कायवियोगेन पोडातः पापकारशम्‌ केचिददन्ति हन्तव्याः प्राणिनः प्राणिघातिनः। हिखरस्यैकस्य घाते urged भूयसां किल < तदयुक्षमशेषाणां हिंस्रत्वाग्राणिनासिह |

इन्तव्यता BTU AAT Aaa: WET १० ufgaraaat wa: हिंसातः ad भवत्‌ |

masifa पद्मानि जायन्ते जातवेदः ११॥ पापहेतुवैषः पापं कथं Saat भवेत्‌

AINA: BARS जोविताय जायते १२॥ संसारमो चक। खवा इदुः खिनां वध श्यताम्‌

विनाशे दुःखिनां दुःखविनाशो जायते किल eee तदश्यसाम्प्रतं ते fe wat नरकगामिनः।

भनन्तषु नियोज्यन्ते दुःखेषु aus: gat: १४॥

=> = ~ = ~ ee - - one + ^~ न~ me eee ~ -------- ee ee

(1) WSR za |

दिनोयः प्रकाशः | १८७

fa सौख्यवतां घाते धन्यः स्यात्यापवारलात्‌ | षयं विचायं हेयानि वचनानि कुतीर्चिनाम्‌ १५ चावकाः प्राहरालेव तावन्नास्ति NET |

तं विनाकस्यसा हिंसा कस्य हिसाफलं भवै त्‌ ॥१९॥ भूतेभ्य एव चेतन्यं पिष्टादिभ्यो यथा मद्‌; | भूतसंहतिनाओे पश्चत्वमिति wat १७ भासाभावे AM: परलोको युज्यते |

अभावे परलोकस्व पुख्यापुखष्यकयथा हया १८ तपांसि यातनाशिव्राः संयमो भोगवद्न( |

दति विप्रतिपत्तिभ्यः परेभ्यः परिभाष्यते १८ सवसं वेदनतः सिः a2? जोव इष्यताम्‌ |

अहं दुःखो सुखो वाहमिति प्रत्यययोगतः २० घटं वेग्मयहमित्यन्र जितयं प्रतिभासे |

कना क्रिया कर्तां ततात्ता किं निषिध्यते २१॥ शरोरभेव Rony कन्तु तदचेतनम्‌ | भूतचेतन्ययोगाचे्ेतनं तदसङ्गतम्‌ २२॥

मया ee चुतं we घ्ातमालादितं स्मृतम्‌ | इत्येककस्ृकाभावात्‌ भूतचिहादिनः कथम्‌ २३ स्संवेदमतः fae खदेहे चेतनानि |

परदे्टेऽपि तक्िहिरनुमानेन साध्यते २४ afeqai क्रियां cer खदेदेन्यत्र तहति; | प्रमाएबलतः fear केन नाम निवार्यते २५॥

१९८ ` योगग्रास््े

तत्मरलोकिनः सिद्धौ परलोको gaz: |

तथा पुख्पापादि '"सवभेवोपप्यते २६

तपांसि यातनाञ्धित्रा इत्याद्यन्न्तभाषितम्‌ | सचेतनस्य तत्कस्य NIWA जायते २७ ` निर्वाधोऽस्ति ततो जोवः खिव्युत्पादव्ययामकः | भ्राता TST गुणो भोक्ञा AU कायप्रमाशकः रेट aerate: सिदौ fear fai नोपपद्यते |

तदस्याः परिष्टारषाहिसाव्रतमुदौरितम्‌ २८ १८

हिंसानियमे ae ट्टान्तमाइ- भात्मवत्छवंभूतेषु सुखदुःखे प्रियाप्रिये | चिन्तयन्नाक्मनोऽनिशा हिंसामन्यस्य नाचरेत्‌ ॥२०॥

सुखशब्देन सुखसाधनमन्रपानखकषन्दनादि VWUA | दुःखणब्देन दुःखसाधनं वधबन्धमारणादि ततो यथात्मनि दुःखसाधनमप्रियं तथा सवेभूतष्वपि। एवं चिन्तयन्‌ दुःखसाधनत्वादभ्रियां परस्य हिंसां नकुर्वोत। सुखग्रहणं दृ्टान्तायेम्‌। यधा सुखसाधनं प्रियभेवं दुःखसाघनमप्रियम्‌ | तथा सवभूतेष्वपि दुःखसाधन- मप्रियभित्यथः | यदाहर्लौकिका भरपि- श्रुयतां धमर सवेखं शरुत्वा चेवावधायं ताम्‌ | मनः प्रतिकूलानि परेषां समाचरेत्‌ vel एति wren

(1) कच Way,

feata: प्रकाशः। | eee

aq प्रतिषिहाचरखे दोषः प्रतिषिा wamafaqar

fear खावरेषु anfafaafety यथेष्टं चेष्टन्तां WHAT दत्याह-

निरधिंकां कुर्वीत Nag स्थावरेष्वपि | हिसामरहिंसाधमन्नः काङ्ममो्मुपासकः २१॥

खावराः "एचिष्यम्बुतेजोवायुवनस्पतयस्तेष्वपि slay. हिंसां कुर्वीत | किं fafaet निरर्थिकां प्रयोजनरहितां शरोरकुटुम्ब- निवीहनिभिचं हि खावरेषु हिसा प्रतिषिहाया aafeat शरोरकुट्ग्बादिप्रयोजमरहिता तारो feat gata) उपा- सकः श्रावकः किं विशिष्टः भरहिंसाधर्मन्नः अरहिंसाल्तशं wai जानातोति अहिंसाधर्मन्नः। डि प्रतिषिदवलुविषयेवाहिसा- wa: किन्छप्रतिषिरेष्वपि सा यतनारूपा ततञ्च तथा विधं wa जानन्‌ खावरेष्वपि निरथिकां feat विदधोत। ननु प्रतिषिडविषयेवाहिंसासतु किमनया amfanat इत्याह arpaite हि dara यतिवत्‌ कथं निरर्धिकां हिसामाचरेत्‌ wren aq निरग्तरडिंसापरोऽपि aad दलिशां दश्वा पापविश्दिं

विदध्यात्‌ किमनेम हिंसापरिष्ारक्तगेम दत्याइ- प्राणो प्राणितलोभेन यो राज्यमपि मुञ्चति | तदधोत्यमघं सर्वोर्वोदामेऽपि शाम्यति २२॥

(1) गल एिव्यप्रेगो-।

Ree | योगशाश्े

प्राणो जन्तुः प्रालितं जोदितव्यं तस्व लोभेन राज्यमपि तत्ालोप- खितं परिहरति | यदाह-- मायमाशख् ₹हेमाद्विं राज्यं वाथ प्रयच्छतु | तदनिष्टं परित्यज्य mat जोवितुमिच्छति १॥ वत्तथाविधप्राणितप्रियप्राणिवधसम्भवं पापं सकलषष्वौदामे-

नापि शाम्यति। भूदानं fe सकलदानेभ्योऽभ्यधिकमिति खुतिः॥२२॥

we स्ञोकचतुषटयेन हिंवाकततुनिन्दामाह--

वने निरपराधानां वायुतोयदणशाशिनाम्‌ निघ्नन्‌ गाणां मांसा्थौ विगिष्येत कथं शुनः ॥२३॥

सगाणामिति “निप्रेभ्यो we" ॥२।२।१५॥ इति कमेलप्रति- चधाच्छेषे षष्ठो वने वनवासिनां नतु परखोक्ततभूमिवासिनां तथ (विधा अपि सापराधा; स्यु रित्याह निरपराधानां परधनहर- च्थपरग्टषभङ््परमारकाद्यपराधरहितानां निरपराधले Fqary | वायुतोयदशाथिनाम्‌। नहि वायुलोयदणानि परधनानि येन तद्लष्वा ्ापराधत्वं स्वात्‌ मांसार्थीति अवापि सगाशामिति सम्बध्यते | ware aid तदधेयते ्गग्रहषेनाटविकाः प्राणिनो apa) एवं विधमगम सारथी सृगवधपरायणो निरपराधमानुष- पिचख्डिक्षा मांसलुन्धाच्छनः कथं विशिष्येत aaa: २१॥

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1--3 @ /10/ each ००७ eco ` eve ००५ ` pee 5 0 Padumawati, Fasc. 1--5 @ 2/ cas १.2 eee ००, 10 9 Parigigta Parvau, Fusc. 1--5 @ /10/ each eee ogee oe 9 2 Prikrita-Paingalam, Fasc. 1--7 @ /10/ each sae ००५ wwe 4 ¢ Prithiviraj Rasa. Part 11, Fasc. 1--5 @ /10/ each ... wee == 3 2

Ditto (Englieh) Part IT, Fasc. 1 @ 1/- ... ; es 1 0 Prikrta Lakganam. Fasc. 1 @ 1/8/ each ... is ua 1 8 Parfigara Smpti, Vol. I, Fasc. 1--8; Vol. I, Fasc, 1--6 ; Vol. 117,

Fase. 1-6 @ /10/ each... 8 a we ge 12 8 Paracara, Institutes of (English) @ 1/- each oe sx ००० 0 Prabandhacint&émani (English) Fasc. 1--8 @ 1/4/ each wie jas 8. 12 Saddaraana-Samuccaya, Fasc. 1, @ /10/ each eee ०० 90 10 “Sima Véda Samhités, Vols. 1, Fasc. If, 1-65 117 1.7 ;

IV, 1--6 ; $, 1-8, @ /10/ each eae ००५ ०० 10 14 Sankhya 30८78 Vetti, Fase. 1-4 @ /10/ each sie sua mee 2 8

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5 + Asbalayana, Fasc. 1-11 © /10/ each... ००० + 6 14 Sucruta Saihita, 0६.) Fase. 1 @ 1/- each (> we 0 Suddhikaumudl, Fasc. 1-4 @ /10/ each ... iss Sige - oe «=D 8 *Taittreya Brahmana, Fasc. 3-25 @ /10/ each ee Ses - aes 14 6

Pratiankhya, Fasc. 1-3 @ /\ 0/ each ees eee eee 1 ] 4 *Taitterfya Samhita, Fasc. 22-45 @ /10/ each oa vex. -10 0 Tandya Krahmana, Fasc. 1-19 @ /10/ each $ ००७ 11 14 Yantra Varteka (English) Fasc. 1-6 @ 1/4 / श्लौ ... _ 24 | 8 Tattva (२19६३101, Vol. I, Fasc. 1-9, Vol J1, Fase. 2-10, Vol. ITT, Fase. 1-2,

Vol. LV, Fasc. 1, Vol. V, Fasc. 1-5, Part TV, Vol. If, Fase. 1-12 @ fl0/each 23 12. Tattvarthadhigama Sutram, Fasc. 1-3 @ /10/ each ... ०० ०० Ll 14 Trikinda-Magdanam, Fasc. 1-3 @ /10/ each ५६ | १९. Tulsi Satani, Fase. 1.-5 @ /10/ each ea ie w 2 Upamita-bhava-prapaiica-katha, Fasc. 1-11 @ /10/ each ave oe 0 14 Uvasagalasio, (‘ext and English) Fasc. 1--6 @ 1/- each ००१ oe ® 0 Vallala Carita, Farce 1 @ /10/ oo see ee 1 0 10 Varga KriyS Kaumudl, Fase 1--6 @ /10/each _ ... oats . 12 °Vayu Purina, Vol. 1, Fase. 2--6 ; Vol. Uf, Fasc, 1--7,@ /10/ each ४6; `| 8 Vidharn Parijata, Fasc, 1-8 Vol- U1. Fasc. 1 @ /10/ each sige ०० 6 10 Vivaddlaratnakara, Fase. 1--7 @ /10/ each 3 3 4 6 Vehac Svayambha Puraga, Fasc. 1-6 @ /10/ each ... es ow 3 12 #Yoga Aphoriama of Patanjali, Fase. 2-5 @ /10/ each es 2 8 Yogasdatra of Hemchandra Vol. I. Fasc. 1. ( 200 pages. ) ox oe 1 4

Tibetan Series. Pag-Sam Thi Sif, Fasc. 1--4@ 1/ cach ... ee a "4 Sher-Phyin, Vol. 1, Fasc 1-5; Vol, If, Fasc. 1-8; Vol. 111, Fase, 1-6,@ 1/each 14. 9 Rtoga brjod दु Akhri 8१0 (‘Tib. & Sans. Avadana Kalpalats ) Vol. I, Fasc. 1--6; Vol. 11. Fasc. 1--5 @ 1/ each sed coo eco “21 0

e e 4 Arabte and Persian Series.

’Alamgirnimah, with Index, (Text) Fasc. 1--13 @ /10/ each ... wwe 8 2 Al-Muqaddasi (Hnglish) Vol. I, Fase. 1--3 @ 1/- cach ase ४५ 8 0 Ain-i-Akbari, Fasc. 1-22 @ 1/8/ each... | .. 33 0

Ditto (English) Vol. I, Fasc. 1--7, Vol. If, Fase. 1--5, Vol. III, Fasc. 1.-6, @ 2/- each “isis ne ae Sak ००, 34 || AkbarnSmah, with Index, Fasc. 1--37 @ 1/8/ each ... Pr tes Ditto (English) Vol. I, Fasc. 1--8; ४०). If, Fasc. 1-4 @ 1/4/ each 15 0

Arabic Bibliography, by Dr. A. Sprenger, @ /10/ ... 0 10 *Ridshahnamah, with Index, Fasc. 1--19 @ /10/ each wats ०० 11 14 Conquest of Syria, Fase. 1-9 @ /10/ each ६६ ... 6 10 Catalogue of Arabic Books and Manuscripts, 1-2 @ 1/- each... ee 0 Catalogue of the Persian Books and Manuscripts iu the Library of the

Asiatic Society of Bengal. Fasc. 1--3 @ 1/ each... ty a | 0 Dictionary of Arabic echnical Terms, and Appendix, Fasc. 1-21 @ 1/8/ each 31 8 Farhang-i-Rashidi, Fasc. 1-14 @ 1/8/ each ve his ४. 1 0

‘The other Fasciculi of these works are out of stock, and complete copies cannot be supplied.

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1. Awtatio Resgaronka, Vols. XIX aud XX @ 10/ each

Ditto of Andi + Fasc. 1-4 @ /10/ each ... ‘a4

. History of the Caliphs, (English) Faso, 1--6 @ 1/4/ each ००

1१०७४०02 -1 -ब¶ ०1080, Fasc. 1--8 @ /10/ each = ,,, vee

Madgir-ul-U mara, Vol. I, Fasc. 1--9, Vol. If, Fasc. 1--9; Vol. 111, 1-10; Index to Vol. |, Fasc. 10-11; Index to Vol. Il, Fasc. 10-12; Index to Vol. III, Fasc. 11-12 @./1/ each aay sae

Magh&si of Wiqidi, ०१6. 1--5 @ /10/ each ५७७ ००७

Muutakbabu-t-lawarikh, Fase. 1--15 @ /10/ each. oe

Ditto ( English ) Vol. I, Fasc. 1--7; Vol. 11, Fuec. 1-5 and 3 Indexes ; Vol. {[।, Fasc. 1 @ 1/ each... aie

Muntakbabu-l-Lubib, Fasc. 1-19 @ /10/ench = ` ... ses

Ma’fyir-i-’ Alamgiri, Fanc. 1--6 @ /10/ each nes १०७

Nukhbatu-|-Fikr, Fasc. 1 @ /10/ aw, 1

Nigimi's Khiradnimah-i-Iskandari, Fasc. 1-2 @ /12/ each

Riydgu-e-Salatin, Fasc. 1--5 @ /10/ each... | wae _ Ditto (English) Fase. 1--5@ 1/ ५३ ००५

4५०११०३५ Na&giri, Fasc. 1--6 @ /10/ each ... aT

Ditto (tnglish) Fasc. 1-14@1/each ,.. Ditto Index sai vai wes fae

Térikb-i-Firts Shahi of Ziyéu-d-din Barni Fasc. 1--7 @ /10/ each

Térikh-i-FirQzehShi, of Shams-i-Sirdj Aif, Faso. 1--6 @ /10/ each

‘en Ancient Arabic Poems, Fasc. 1--2 @ 1/8/ each...

Wis Rimip, Fasc. 1--5 @ /10/ each : 04 res

Zafarnimah, Vol. I, Fasc. 1--9, Vol. IT, Faso. 1--8 @ /10/ each ...

Tusuk-i-Jahangirl, (Eng) Fasc. 1 @ 1/ ,,., as

ASIATIC SOCIETY'S PUBLICATIONS,

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(8), 1874 (8), 1875 (7), 1876 (7), 1877 (8), 1878 18), 1879 (7), 1880 (8), 1881 (7), 1883 (6), 1883 (5), 1884 (6), 1885 (8), 1886 (8), 1887(7), 1888 (7), 1889 (10 , 1890 (11), 1891 (7), 1892 (8), 1898 (11), 1६94 (8), 1895 (7), 1896 (8), 1897 (8), 1898 (8), 1899 (8), 1900 (7), 1901 (7), 1902 (9), 1903 (8), 1904 (16), @ 1/8 per No. to Members and @ 2/ per No. to Non-Members

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` क. B.—The figures enclosed in brakets give the number of Nos. in each Volume.

4. 5. 6.

Journal and Proceedings, N 8., 1905, to date, @ 1-8 per No. to Members and Rs, 2 per No. to Non-Members. aces

Memoirs, 1905, to date. Price varies from. number to number. Discount of 25% to Members.

Centenary lteview of the Researches of the Society from 1784-1888 .0. A sketch of the Turki language as spoken in Restart Turkistan, by R. B. Shaw (Extra No., J.A.S.B., 1878) oe

` ५५८५1०१७ of Mammals and Birds of Burmah, by E. Blyth (Extra No,

J.A.8.B., 1875) dea a ies re Cataloguo of the Library of the Asiatic Socicty, Bengal, 1884. Mababhérata, Vols. |] and 1V, @ 20/ each aa (८४ ००५ Moore and Hewitson’s Descriptions of New Indian Lepidoptera, Parts 1--III, with 8 coloured Plates, 4to. @ 6/ each er Tibetan Dictionary, by Caoma de Koris wan Ditto Grammar eat ves oe Kacmiracabdimpta, Parts I & II @ 1/8/ nee Sas baa A descriptive catalogue of the paintings, statues, &o., in the rooma of the Asiatic Society of Bengal by C. R. Wilson... 6 “we Memoir on mape illustrating the Ancient Geography of Kasmir, by M. A. Stein Pu.D., JI. Extra No. 2 0f 1899 ,..

Persian Translation of Haji Baba of Ispahan, by Haji Shaikh

Ahmad-i-Kirmasi, and edited with notes by Major D. C. Phillott.

Notices of Sanskrit Manuscripts, Fasc, 1-38 @1/each ... Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. R. L. Mitra

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N.B.—All Cheques, Money Orders, &c., must be made payable to the “Treasurer

Asiatic Society,” only.

22-11-07.

Books are supplied by पर, ए, P. .

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IMDCCXLVI-MDCCXCIV} TITE YOGASASTRA,

With the commentary called SVOPAJNAVIVARANA. BY SRI HEMACITANDRACHARYA.

EDITED BY

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CASTRA VICARADA JAINACARYA CRI VIJAYA DHARMA SURI.

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VRINTED BY ULENDRA NATIA CHARRAVARTI, AT THK SANSKRIC PRESS, ¢ AS वननायक) avo THR

ASLTATIC SOCTETY, 57, PARK STREET. Q

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LIST OF BOOKS FOR SALE ‘ss AT THE LIBRARY OF THE | ASIATIC SOCIETY OF BENGAL. No. 57, PARK STREET, CACUTTA,

AND OBTAINABLE FROM THE SOCIETY'S AGENTS, Mr. BERNARD QUARITCH,

11, Grarrow Street, New Bonp Street, Lonpon, W., anp Mr. Otto

HARRASSOWITZ, BOOKSELLER, LEIPZIG, GERMANY.

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of the Fasciouli being out of stock.

BIBLIOTHECA INDICA. Sanskrit Series

Advaita Brahma Siddhi, Faso. २, 4 @ /10/each ... ~ Rs.

Advaitachint& Kaustubha, Fasc. 1-3 @ /10/ each ... *Agni Purtina, Fasc. 3-14 @ /20/ each...

AitarSya Brihbmana, Vol. I, Fasc. 1-5 ; Vol. II, ‘Fase. 1-5; Vol. 1.

Fasc. 1-5, Vol. IV, Fasc. 1-8 @ /10/ each Aitereya Lochana. fi ००० vas e Anu Bhashya, Fasc. 2-5 @ /1 0/ each gat Aphorisms of Sandilya, (English) Fasc. 1 @ 1/- ... Agtasihasrikti Prajhadpiramita, 7986. 1- 6 @ /10/ each ‘Atharvana Upanishad, Faso 3-5 @ /10/ each ede Atmatattavive ee Fasc. J. g /\O/each ... oe 2 Acvavaidyaka, Fasc. 1-5 @ /10/ each ... |

Avadana Kalpalatd, (Sans. and Tibetan) Vol. 1; Fasc. 1-6; Vol. 11.

1-5 @ 1/ each... he a ar A Lower Ladakhi version of Kesarsaga. Faso. 1-3 @ 1/- each ...

Balam Bhatti, Vol. I, Fasc. 1-2, Vol 2, Fasc. 1 @ /1/each =... 7

Baudhayana S‘rauta Satra, Faso. 1-3 Vol. II, Fase 1 @ /10/ each *Bhamati, Faso. 4-8 @ /10/ each ४४६ an 2 Bhatta Dipika Vol. I, Fasc. 1-6 @ /10 each

Brahma Sutra, Fasc. 1 @ /10/ each e is ne Brhadd6vaté Faso. 1-4 @ /10/ ९१५ ... Brhaddharma Purina Fase 1-6 @ /10/ each or (५; BodhiearySvatira of Cintideva, Fasc. 1-5 @ /10/ each 9 Fasc. 1-2 @ /10/ ench ५9४

utalogue of Sanskrit Books and MSS., Fuse. 1-4 @ 2/ each

Oatapatha Bréhmana, Vol I, Fase. 1-7, Vol 11, Fase. 1-5, Vol. HI,

Fasc. 1-7 Vol. 5, Fasc. 1-4 @ /10/ each Ditto ‘Vol. 6, Fase. 7

CatasShasrikS’ PrajiSparamita Part, I. Fase. ‘J--12 @ /10/ each a oe

*Caturvarga Chintamani, Vol. II, hase. 1-25; Vol. 111. Part I, Fase. 1-18. Part Il, Fasc. 1-10. Vol. IV. Fasc. 1-6 @ /10/ each Ditto Vol. 4, Fasc. 7 98 Clockavartika, (English) Fasc. 1-6 @ 1/4/ each *Crauta Sitra of Apastamba, Fasc. 9-17 @ /10/ each

Ditto GQankhiyana, Vol. 1, Fasc. 1-7; Vol. 11, Fasc. 1-4,

Vol. 111, Fasc. 1-4 @ /10/ each ; Vol 4, Fasc. 1 Cri Bhishyam, Fa:c. 1-3 @ /10/each ... eh Dana Kriy&S kaumud!, Fasc 1--2 @ /10/ each st Qadadhara Paddhbati Kalas&ra Vol. 1, Fasc. 1-7 @ /10/ each

171४ AcbirasSrah Vols. IT, Faye. 1-3 @ /10/ each Gobhiliya Grihya Sutra, Fasc. 4-12 @ /10/ each Ditto Vol. TI. Fane. ! १७५

Kala Viveka, Fasc. 1-7 @ /10/euh , ,. .

Katantra, Fasc. 1-6 @ /12/ each a ५4 Katha Sarit Sagara, (English) Fasc. 1-14 @ 1/4/ each *Korma Purina, Fase. 3-9 @ /10/ each ... a नर (English) Fase. 1-3 (a: 1/- each *Lalitavistara. Fasc. 3-6 @ /10/ each

Madana P&érijéta, Fasc. 1-11 @ /10/ each

Maha-bhgya-pradipSdyota, Vol. 1, Fase. 1-9 ; Vol. 11, Fase. 1-12 Vol. TI, |

Fasc. 1-6 @ /10/ each = Manutiki Sangraha, Fasc. 1-3 @ /10/ each i Markandéya Purina, (English) Fasc. 1-9 @ 1/- each eMarkandeya Purana, Fasc. 5-7 @ /10/ each कि

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दौयंमाशः कुशेनापि यः TF इन्त दूयते

निमन्तृन्‌ कथं जन्तुनन्तयेन्निभितायुषैः २४ दोयमाणो विदार्यमाशः कुशेन दरभेख भ्रपि शब्दादासतां wae यः SIF शरोरे इन्तेति प्रतिबवोध्यामन्वशे दूयते उपतप्यते निन्तुबरिरपराधान्‌ aay कथं भन्तयेदन्तं प्रापयेत्‌ | fafanrqa: कुन्तादिभि; प्रासानुखारेणापि परपोडामजानच्रेवं निन्द्यते |

तथाच मृगया away Ufaary प्रति केनचिदुक्षम्‌--

रसातलं यातु यदज् पौरुषं

‘a नोतिरेषाऽशरण्यो छदोषवान्‌ | निहन्यते 'यदलिनातिदुबेलो

इहा महाकषटमराजकं जगत्‌ १॥२४॥

faata क्रूरकर्माणः क्षणिकामात्मनो तिम्‌ | समापयन्ति सकलं TTI शरीरिणः २५ क्रूरं Vx कमे हिंसादि येषां तै क्रूरकमीणो लुब्धकादयः भानः

wa तिं areqaad faatqfafa सम्बन्धः छतेविथेषणशं ufanifafa wisannafanufafafad ` aerfafafe-

(१) कुमीति- | (2) णच ayfanifa aay |

०२ योगशास्त्र

दिरुदमपि क्रियेत afeaufafaatart तु समापयन्ति समां नयन्ति जख भन्धस्य वध्यस शरोरिणः Waar: परप्राणिमांष- जन्ध्षणिकठसिरेतोराकालिकं परस्यायुः समाप्यत इति मङदिदं वैशसम्‌ i यदाह-- ` योऽश्नाति यख तनां ससुभयोः पश्यतान्तरम्‌ | एकस्य सखिका ठषिः प्राेरन्यो वियुज्यते १॥ aun

धियखेत्युच्यमानोऽपि eet भवति दुःखितः |

मायंमाशः प्ररगेर्दारुणैः कथं भवेत्‌ २९ fara त्वमिन्युख्यमानोऽपि तु मायेमाणो देहौ जन्तुजीय- मानगल्युरिष दुःखितो भवतोति स्वेप्रारिप्रतीतम्‌। awed: कुन्ततोमरादिभिर्मायमाण्ो विनाश्यमानः वराको 2H कथं भवेत्‌ परमदुःखित एव॒ भवेदित्यधः। मरणवचभेनाऽपि game निशितः शमारणमिति wane तत्कथं सकः qatfefa निन्दा we a

हिंसाफलं ceraetuy—

yaa प्राणिषातेन रौद्रध्यानपरायणौ | सुभूमो ब्रह्मदत्तश्च सप्तमं नरकं गतौ २७

mad TRG एतदागमे यदुत प्राखिघामेन शेतुना बुभूम-

हितोयः प्रकाशः | RoR

व्रह्मदटन्तौ चक्रवर्तिनौ सप्तमं नरकं गतौ हिंसाया मरकगमन- हेतुत्वं रोदरध्यानमन्तरेख भवति अन्यथा सिंहवधकतपखिनो- ऽपि मरकः स्यादिव्यक्णं रोद्रध्यानपरायणौ हिंसानुबन्धिध्यानयुक्षा- fare: | यथा तौ नरकं गतौ तथा कथानकद्ारेण दश्यते

तधाहि-

वसन्तपुरनामायां पुय सुच्छब्रवंशकः |

MUNA CATH TITS ART नाम दारकः॥१॥ सोऽन्धदा चलितस्तस्मात्‌ स्थानादेणान्तरं प्रति AANA: परिशाम्यन्रगमन्तापसाञ्रमम्‌ २॥ तमम्निं तनयल्वेनाग्रहोत्कुलपतिच्मः। जमदग्निरिति ख्यातिं wag ततोऽगमत्‌ तप्यमानस्तपस्सोच्ं HAT इव पावकः |

तेजसा दुःसहेनासौ पप्रथे एथिवोतले a भवान्तरे ARATE ATAT वे्ामरः सुरः | धन्वन्तरि ञ्च तापसभक्षो व्यवदतामिति ॥५॥

एक ्राहाषतां धमः प्रमाणमितरः पुनः तापसानां विवादेऽस्मिन्‌ व्यधातामिति नियम्‌ ६॥ अआाङतेषु जघन्यो यः प्रक्ञष्टस्तापसेषु यः परोक्षणीयावावाभ्यां कौ गुणेरतिरिच्यते तदामीं मिधिलापुथां मवधमेपरिष्क्तः |

ग्रोमान्‌ Tac नाम प्रसितः एथिवोपतिः ८॥

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२०४

योगशास्त्रे

Stat चोवासुपूज्यान्ते wala भावतो यतिः | गच्छंचम्पापुरीं ताभ्यां देवाभ्यां ददे पथि nes परोक्षाकाङ्क्या ताभ्यां ware दौकिते कृपः | afaa: च्ुषितोऽप्योडभचोराः aera a १०॥ MAAC TH HL: ककंरकण्टकेः |

पोडां देवौ कृदेवस्य Beal: पादपश्रयोः ११ पादाभ्यां प्र्षरद्रङ्गघाराभ्यां ताष्टगेऽष्वनि | तूलिकातलसश्चारं संचेरे तथापि सः॥१२॥ faaa Maverfe ताभ्यां लोभाय भूपतैः। तकोघमभवत्तत्र दिव्यास््नमिव Tas १९॥

तो सिदपुव्ररूपेण पुरोभूयेदमूचतुः |

तवाद्यापि महाभाग महदायुर्य॑वासि १४ स्र च्छन्दं भं तद्धोगान्‌ का धोयं यौवने तपः famana कः प्रातः कुयादुद्योगवानपि १५॥ यौवने तदतिक्रान्ते देशदौवेष्यकारणम्‌ | wea तपस्तात हितोयमिव वारैकम्‌ १६॥ arena यदि बद्वायुर्बहपुग्थं भविष्यति जलमानेन नलिनोनालं fe परिवदते eo लोलन्द्रिये यौवने fe यत्तपस्तत्तपो नमु SUS रथेयो fe शूरः शूरः उच्यते १८॥ afaaafad aarary साध्विति वादिनौ

तौ गतौ तापसोत्कुष्टं जमदग्निं परोक्तितुम्‌ १९

दितोयः प्रकाशः। २०५

न्यग्रोधमिव विस्तारिजटासंखृष्टभूतलम्‌ |

वलो काकौण्पादान्तं दान्तं तौ तमपश्यताम्‌ ॥२०॥ तस्य श्मश्रुलताजालते AS निर्माय मायया `

तदेव देवौ चटकमिधुगोभूय तखतुः २१ चटकश्चटकामूते यास्यामि हिमवद्गिरौ भन्धासक्लो नेष्यसि त्वमिति तं नान्बमंस्त सा २२॥ गोघातपातक्षेनाहं wwe नायामि चेग्मिये। Lanna भूयश्चटकां चटकाऽब्रवोत्‌ २३ ऋषेरस्येनसा wH शपेधा इति Bez |

feof तदेव ai पन्थानः सन्तु तै शिवाः २४॥ CATHY वचः RA जमदम्निसुनिस्ततः | उभाभ्यामपि warargqal जग्राह पचिणौो २५॥ WITTE ततो इन्त कुर्वाण दुष्करं तपः | उन्णरश्माविव ष्वान्तमाः पापं मयि कोशम्‌ ॥२६॥ अधिं चटकोवाच मा कुपस्ते मुधा तपः

अपुत्रस्य गतिनाँस्तोत्यखौषोसत्वं किं तिम्‌ २७॥ तत्तथा मन्धमानोऽयं मुनिरेवमचिन्तयत्‌ | ममाकलव्रपुव्रस्य प्रवाहे afad तपः २८॥

afta तं परिज्नाय धिग आान्तस्तापसेरिति |

जजन धन्वन्तरिः याहः प्रत्येति प्रत्ययाब्र, कः २८ बभूवतुरृश्यौ तावपि तिदशौ तदा

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जमदम्निश्च सम्प्राप पुरं नेमिककोष्टकम्‌ | २०

२०६

MAMTA `

जितगवुमहोपालं तव भूयिष्ठकन्यकम्‌।

WG: कन्धकाभेकां eet इर इवागमत्‌ २९ कत्वाभ्युल्यानसूर्वीथः प्राण्लिस्तमभाषत | किमघंमागता यूयं ब्रूत fat करवाग्यदम्‌ ३२ कन्धाधेमागतोऽख्मोति Yaar कृपोऽब्रवोत्‌ |

मध्ये शतस्य कन्यानां at यच्छति टहाख ताम्‌ ३३ कन्धान्तःपुरं WAT जगाद कृपकन्धकाः |

धर्मपरो मम काचिद्वतोभ्यो भवत्विति ३४ जटिलः पलितः art भिच्लाजोवो वदबिदम्‌ |

लब्नसे त्रमिति ताः meena चिरे १५

समोरण इव क्रो जमदग्निसुनिस्ततः |

परधिच्येष्वामयस्याभाः कन्धा: कुनोचकार ताः ३६

पधाङ्भदे YS रममाणां कृपामजाम्‌ |

एकामालोकयामास रेशकेत्यव्रवो ताम्‌ RO

तस्या इच्छसोत्युक्ञा मातुलिङ्गमदशयत्‌ | तया प्रसारितः पाणिः पाखिग्रहशसुचकः ३८ at मुनिः परिजग्राह रोरो धनमिवोरसा। are गवादिभिस्सस्म ददौ fafirrqu: ३९ श्यालोखेषशसम्बन्धादेकोनं कन्यकाश्तम्‌ |

; सङ््ो चक्रे तपः शक्या धिग्मूढानां तपोष्ययः ४०

नोलाश्रमपदं तां मुग्धमभुराल्तिम्‌। इरि णोमभिव ararat HRT मुनिरवदैयत्‌ ४१॥

दितोयः प्रकाशः | २०७

अङ्गप्लोभिगेखयतो दिनान्धस्य तपखिनः |

यौवनं चारकन्दष्यलोलावनमवापसा ४२॥ सासोक्तञ्वलदम्निजिमद ferg frac: | यथावदुपयेभे तां wan इव पावतोम्‌ ४३ ऋतुकाले ऊचे तां ae ते साधयाम्यहम्‌ |

WaT ATMA ea Way उत्पद्यते सुतः ४४॥ सोवाच हइस्तिनपुरेऽनन्तवोर्यस्य भूपतेः |

uate मत्खसा तस्यै चरः TASHA साध्यताम्‌ ४५ बराह्मं सधमचारिग्ये UT तस्लामयेऽपरम्‌ |

चदं साधयामास पुश्रोयसुपजो वितुम्‌ ४६ साचिन्तयदशं तावदभूवमटवोर्गो।

माभूश्राहटक्‌ सुतोऽपोति सातं चरुमभक्षयत्‌ ४७ सादाद्राह्यं चरं SAT जातौ तनयौ तयोः |

AT रामो शर्णकायाः कतवोयेख तत्खसुः ४८ क्रमेण aad राम ऋषित्वे पेढकेऽपि सः |

लाश wenden इताशनमिवाश्रसि ४८ ` विद्याधरोऽन्यदा aa कोऽप्यागादतिखारक्रौ , ` विन्या तस्यातिसाराच्था विस्मृताकाशगामिनो ५० ute प्रतिचरितो भेषजाय; बन्धुवत्‌

रामाय सेवमानाय विद्यां पारशवीं ददौ ५१॥ मध्येधरवणं गला तां विद्यामसाधयत्‌।

रामः परशरामोऽभूत्ततः प्रथति faa: ५२

ATS

cara: afaarear tyatenfisat खसः | जगाम हस्तिनपुरे प्रमृणो दूरे किशन ५२॥ श्यालोति लालयन्‌ लोललोचनां तव THA | अनन्तवोर्योऽरमयत्कामः कामं निरद्कुथः ५४ ऋषिपद्रया तया राजाहल्ययेव पुरन्द गः | WRT यथाकामं सम्भोगसुख्ठसम्पदम्‌ -५५ अनन्तवोर्याश्षनयो रेणकायामजायत | ममतायामिवोतयष्यः sufi aware: ५६ तेनापि ae पुत्रेण रेणकामानयनच्छुनिः |

warei लुब्धो जनः प्रायो दोषं खलु वोचत ५७

at yaafeat वज्ञोमकालफलितामिव | TAMARA: परशराम परशनाऽच्छिनत्‌ ५८ तद्भमिन्धा ठन्तान्तोऽनन्तवोयेख्य श॑सितः | कोपमुरोपयामास कछशानुमिव मारुतः ५९ ततखावार्य॑दोर्वोर्वाऽनन्तवोर्येग मदोपतिः AACA गत्वाभाहगे कन्त इव हिपः॥ ६० तापसानां AAAS: समादाय गवादि खः।

मन्दे मन्दं परिक्रामन्‌ केसरोव न्यवन्तेत ६१ व्रस्यन्तपखितुमुलं खुत्वा श्रात्वाच तां कथाम्‌ | क्रः परशरामोऽयाधावल्ाल्ादिवान्तकः ९२ सुभटग्रामसंग्राम कौतुको जमद र्निजः

पुना SHATA दारुवदारुथेन तम्‌ ६१

दितोयः प्रकाशः |

राज्ये निेयाश्चक्रे तस्य प्र्ञतिपूरुषेः |

waaal महावीर्यः एव तु वयोलघुः ६४॥

सतु माढमुखाच्छुत्वा त्युव्यतिकरं पितुः |

्रादिष्टाहिरिवागत्य जमदग्निममारयत्‌ ९५

रामः पिदवधक्रुडो grat इस्तिनापुरे |

अमारयरज्नतवोये fal यमस्य दवौोयसि ९६ a

जामदनग्न्यस्ततस्तस्य राज्ये न्यविशत खयम्‌ |

trey हि विक्रमाधोनं प्रमां क्रमाक्रमौ ॥&€७॥

रामाक्रान्तपुराद्रान्नो Matas गुविंणो

व्याघ्राघ्रातवनादेणोवागमन्तापसाश्रमम्‌ ९८

कपाषनेभग्टहान्तः सा निधाय निधानवत्‌

तपखिभिर्गोप्यते स्न क्रुरात्परशरामतः ६८ `

चतुदं गमहाखप्रसूचितोऽस्वाः सुतोऽजनि |

wWaq भूमिं सुखेनाभूतुभ्रूमो नामतस्ततः ७०

तियो ay यत्रासोत्तत्र तत्राप्यरीप्यत।

पर्थुः परशरामस्य कोपाग्निरिव मूत्तिमान्‌ ७१

रामोऽगादन्यदा तत्राखरभे AS सोऽज्वलत्‌

Wa चासूचयदुम दव YAS लदा ७२

किमत्र ्षवियोऽस्तोति ्ष्टास्तन तपखिनः |

इत्य सुस्तापसोभूता ¦ लजिया वयसमास्म्े ७२

रामोऽप्यमषोच्रिःशत्रां saat वसुन्धराम्‌ |

निमंभे निस्तृणां येलतटौमिव दवानलः ७४ 29

2०९.

१०

> मणी

ANI

चुखच्षव्रियदंषटाभो रामः खालमपूरयत्‌ |

यमस्य [UHRA पूणपाज्रचियं दधत्‌ ७५ रामः पप्रच्छ 'नेमित्तानन्धेययमे कुतो वधः |

‘wer वंरायमाणा fe शङ्कन्ते परतो तिम्‌ ७९ यो eer: पायसोभूताः सिंहासन xe खितः | भोश्चतेऽमूस्ततचयस्ते वधो भावोति तैऽन्ुवन्‌ ७७ रामोऽथ कारयामास सत्रागारमवारितम्‌ |

धरि सिंहासनं तच्राख्यापयत्खालमग्रतः ७८ waraa प्रतिदिनं लालयद्िस्तपखिभिः | निन्येऽङ्गणटदुम इव सुभूमो ठरहिमह्रुताम्‌ oe ॥. विद्याधरो मेघनादोऽन्येदयुनमित्तिकानिति | परिपप्रच्छ पद्मो कन्धा भे कस्य दौयताम्‌ ८० # तस्या at वरोयांसं सुभूमं तेऽप्युपादिभन्‌

` दश्वा wat ततस्तस्मे तस्येवाभूव्छ सेवकः ८१

कूपमेक इवानन्य गोऽथ पप्रच्छ मातरम्‌

aya: किभियानेव लोकोऽयमधिकोऽपि किम्‌ ८२ माताप्यचोकथदथो लोकोऽनन्तो हि वल्क | म्तिकापदमात्रं fe लोकमध्येऽयमाश्रमः॥ ८२ भस्मन्‌ लोकेऽस्ति विख्यातं नगरं हस्तिनापुरम्‌ |

पिता & क्तवोर्योऽभूत्तब राजा AVY: ८४

(we मेभिन्नानया्ेद्यु कुतो भम (९) चद वधो,

दितोयः प्रकाशः | ALL

wer ते पितरं रामो राज्यं खयमशिचियत्‌ | fafa frafaat चक्रे तिष्ठामस्सङद्कयादिह ८५ तत्कालं हास्तिनपुरे gyal भोमवसर्वलन्‌ |

जगाम SCY ae: Ts तेजो हि दु्ैरम्‌ ८९॥ aa aa ययौ सिं इव सिंहासमेऽविशत्‌ | SEIS: पायसोभूताः सुभुजो बुभुजेचसः॥ ८७॥ उस्िष्ठमाना ARTA ब्राह्मणास्तत्र रसकाः |

afat भेघनादेम aria इरिणा द्व cc nee fara दशनेरधरं दशन्‌

तलो रामः क्रुधा कालपाशाक्तष्ट इवाययौ ce TAT मुमुचे रोषास्पुभ्रूमाय परण्वधः | विध्यातस्तत्क्षणं तस्मिन्‌ स्फलिङ्ग xa वारिखि॥९८०॥ भरल्राभावासुभूमोऽपि दंष्राखालसुदिपत्‌ | चक्रोबभूव तत्स्य: किं स्यात्युण्यसम्मदा ९१ चक्रवच्यष्टमः सोऽथ तेन चक्रख भाखता |

शिरः परशरामस्य पष जच्छदमच्छिदत्‌ Wee aat farafaat रामः TANT यथा व्यधात्‌ | एकविं शतिक्षत्वस्तां तथा निब्राह्मणामसौ ee शखस्चितिपदश्यग्ठपदातिन्युहलोहितं a

वाहयन्‌ alfeataan: प्राक्‌ प्राचोमसाधयत्‌ ८४॥ च्छिन्नानेकसुभटमुण्डमण्ितभूतलः |

efaumi दक्तिखाशापतिरन्य इवाजयत्‌ <५॥

२१२ ` योगशास्े

भटाखिभिदेन्तुरयन्‌ शक्तिशङ्करिवाभितः। रोधो-नोरनिषेः सोऽथ प्रतोचोमजयदहिशम्‌ wee डलोद्घाटितवेताच्चकन्दरः WAAR: | स्वेच्छान्विजतुं भरतो्षरखण्डं विवेश सः ८७ #

उच््छलच्छोणितरसच्छटाच्छछरितभूतलः | waa सोऽभाङगोदिकशूनिव महाकरो ८८ एवं चतुदिशं भाम्यन्‌ घर्णकानिव | दलयम्‌ सुभटादुरवँ षट्‌ खण्डाम साधयत्‌ ९९

उल्वासयनत्रमुमतामिति नित्यरौद्र-

ध्यानानलेन सततं ज्वलदन्तराका |

wars कालपरिणामवथेन ख्यं

at सप्तमीं नरकभूमिमगास्ुभूमः १००

इति सुभूमथक्रवरत्तंकथधानकम्‌ भय ब्रह्मदन्तकथा -

साकेतनगरे चन्द्रावतसस्य सुतः पुरा। नामतो समुनिचन्द्रोऽभूचन्द्रव्मघुराक्षतिः॥ १॥ निर्विखः कामभोगीभ्यो भारेभ्य इव भारिकः | सुने; सागरचन्द्रस्य UNA जग्राह सत्रम्‌ ॥२॥ प्रब्रज्यां जगतः पूज्यां पालयब्रयमन्यदा | देशान्तरे विष्ाराय चचाल गुरुणा TE तु भिक्तानिभिन्तेन पथि ग्रामं प्रविष्टवान्‌ | सारधाद्धष्टोऽटवोमाट यथच्युत LACT: ४॥

fema: प्रकाशः | २१४

सं तव ुत्पिपासाभ्यामाक्रान्तो ग्लानिमागतः | चतुभिः प्रतिचरितो वक्ञपैर्वन्धवेरिव ५॥

तेषामुपकाराय fara waenarz | भपकारिष्वपि क्षपा सरतां किं नोपकारिषु wen प्रवव्रुस्से ANU चत्वारः शमशालिमः |

चतु विधस्य wae चतस्र va मूर्तयः

व्रतं तेऽपालयन्‌ सम्यक्‌ किन्तु हौ ततर चक्रतुः

wa लुगु्सां fru fe fresh: शरोरिणाम्‌ जग्मतुस्तपसा तौ द्यां जुगुषखाकारिणावपि |

खगाय जायतऽवश्यमप्येकाहःक्षतं तपः

Gat ततो दशपुरे शाण्षिर्त्राद्मणावुभौ |

युम्मरूपौ सृतौ erat जयवत्यां बभूवतुः १५

तौ क्रमायौवनं unt पित्रादिष्टौ जग्मतुः |

र्चितुं चेत्रमोषग्‌ हि दासेराणां नियोजनम्‌ ११ तयोः शयितयोनेक्त नि;ङत्य वटकोटरात्‌

एकः MUSA दष्टः कछतान्तस्येव बन्धुना १२॥ ततः सर्पोपलम्भाय हितोयोऽपि परिश्रमम्‌ | वेरादिवाश तेनैव दष्टो दुष्टेन भोगिना ११ तावनाप्तप्रतोकारौ वराकौ WIA: |

यथाऽऽयातौ तथा वातौ निष्फलं जकर पिक्षयोः १४॥ कालिक्ञरगिरिप्रखे aut यमलरूपिखौ | सृगावजनिषातां तौ वहधाते ata १५॥।

२१४ AVANT प्रीत्या TE चरन्तौ al खगौ BAYT इतो |

वाशेनेकेनेककालं कालधमेमुपेयतुः १६९ ततोऽपि खतगङ्कायां राजस्या उभावपि | अजायेतां सुतौ युग्मरूपिणौ FARA १७ क्रीडन्तावे कदेशस्थौ WAT जालेन जालिकः | Wat dar ऽवघोष्यहोनानां Pleat गतिः १८॥ वाराणस्यां ततोऽभरूतां भूतदन्ताभिधस्य तौ मषहाधनसखदस्य मातङ्गगधिपतेः सुतो w १८ चित्रसन्भृतनामानो तौ मिथः जेहशालिनौ | कदापि व्ययुज्यतां Wael मखम सवत्‌ २० वाराणस्यां तदा चाभूच्छह' इत्यवनोपतिः | भासो सबिवस्तस्व नसुविनम विश्रुतः २१॥ sata: सोऽपराच महीयसि मोजा -अर्पितो भूतदन्तस्य प्रच्छन्रवधरहेतवे २२ aaa agfaradt त्वां carfa निजावमवत्‌ पाठयस्याकमजौ भे लं यदि भूमिग्टहस्यितः॥२२॥ प्रतिपन्नं नञुचिना तन्भातङ्कपतेव चः | जनो fe जोवितव्यार्धी aarfer करोति यत्‌ २४॥ विचिन्राचिव्रसम्भूतौ तधाऽध्यापयत्‌ कलाः | शमेऽनुरक्लया aw मातङ्कपतिभायंया २५ Weal तद्तदत्तेनारमे मार्यितुंस तु, GER कः Barty पारदारिक विष्घवम्‌ २९

दितोयः प्रकाशः | २१५

राला मातङ्कपुवाभ्यां दूरेणापसारितः।

ara दसिणा दत्ता प्राणरस्तणलक्षणा २७ ततो निःखत्य मसुचिगतवान्‌ हस्तिनापुर |

चक्रो सनत्कुमारेण सचिवखक्रिशा निजः २८ इतश्च चि्रसग्भूतौ बभतुनेवयौवनौ |

कुतोऽपि हैतोरायातो एचिष्यामाखिनाविव २८ तौ खादु जगतुर्गोतं हाहाहहपडासिनौ वादयामासतुर्वीणामतितुम्बुखमारदौ Ro गोतप्रबन्धानुगतेः BUM: सप्तभिः खरैः तयोवदयतोवेशुं किं करन्ति fara: ११॥ सुरजं धोरघोषं तौ वादयग्ती चक्रतुः ग्डहोतमुरकं कालातोय्यक्लष्णविडम्बनाम्‌ ३२ शिवः चिवोवधोरग्भामुण्केशोतिलोन्तमा; यत्राच्यं विदाश्चक्रुस्तौ तदप्यभिनिन्धतुः १३१ सवेगान्धवं सवेखमपूयं विश्ठका्शम्‌ प्रकाश्ययङ्याभेताभ्यां AS कस्य मानसम्‌ १४ | तस्यां पुरि प्रबहन्ते कटाचिग््रदनोत्सवः |

निरोयुः Dera संमोतपेशला; ३५ TIT निययौ aa चिव्रसन्भूतयोरपि

HAART तदोताक्षष्टाः पौरा खगा इव १६ रान्नो व्यश्नपि केनापि मातङ्गाभ्यां gos: | Maar सर्वाऽयमाकवश्नलिनः कतः १७

२१६

ALANA

चछ्मापैनापि gow: साच्ेपमिदमान्नपि |

WAN: प्रदातव्यो नगर्यामनयोः क्रचित्‌ १८ ततःप्रथति तौ वाराणस्या दूरेण AT: | प्रहत्चखेकदा AT कौसुदोपरमोग्छवः RS A राजशासनसुक्ञद्य लोलेद्धियतया तौ |

प्रविष्टौ नगरीं wR गजगण्डतटोमिव ४० SME WHATS तौ सर्वाङ्गो खावगुगठनौ ` दख्युवब्रगरोमध्ये छत्रं छत्रं विचेरतुः ४१ क्रोष्टवत्करोषटुशष्देन पौरगोतेन तौ ततः

अगायतां तारतारमलद्या भवितव्यता ४२ पाकर क्मधुरं तद्गोतं युवनागरेः। मधुवन्भचिकाभिस्तौ मातङ्गौ परिवारितौ ४३५ काषैताविति विन्नातं लोकः कष्टावगु ण्डनो

अरे तावेव मातङ्कावित्याचैपेण भाषितौ ४४ नागरे; कुच्मानो तौ यश्टिभिर्लोष्टभिस्ततः श्वानाविव wereqat नतग्नोबौ निरोयतुः ४५ तौ सेन्यथशवज्ञोकंन्यमानौ पदै az सखवलत्पादौ कथमपि गश्मोरोदानमोयतुः ४९ i तावचिन्तयताभेवं धिग्‌ नौ 'दुज्चातिदूषितम्‌ कलाकौशलूपादि पयोघ्रातभिवाडिना ४७

(१) खगवच दुजांति-।

हितोयः प्रकाशः

उपकारो गुषेरास्तामपकारोऽयमावयोः |

तदिदं क्रियमाणायाः शान्तवताश start: ४८ कलालावण्डरूपाखि Yar वपुषा सह.। तदेवानषेसदनं HAMA सात्‌ ४८ इति निचित्य तौ प्राश्परिषारपरायणौ .

मृत्यं साक्षादिव द्रष्टु चेलतुदेलिणाममि ५० ततो दूरं प्रयातौ तौ गिरिभकमपण्यताम्‌ | TUES करिणः किरिपोतवत्‌ ५१ अगु पातेच्छया ALATA Wart महामुनिः zen पवते तस्मिन्‌ WHAT रुखपवेतः.॥ ५२ प्राहषैष्यामिवाश्भोदं मुनिं गिरिशिरःखितम्‌ दष्टा प्रनष्टसन्तापप्रसरो तो बभूवतुः UR kW

तो प्राग्दुःखमिवोञ्णन्तावानन्दाखुजलब्छलात्‌ | तत्पादपद्चयोभृङ्गाविव सद्यो निपेततुः ५४ समाप्य मुनिना ध्यानं को युवां किमिदागतौ दति wet eau तावेषमंसताम्‌ ५५॥ जवे waaay वपुरेव fe waa |

शोयेते Ags कम जग्मान्तरशता जिंतम्‌ ५९ त्याज्यं वपुरिदं age wld वपुषः फलम्‌ तश्चापवगेखगेदिकारणं परमं तपः ५७ इत्यादि देशनावाक्यसुधानिर्धौतिमानसौ |

` तस्व पाठं जग्डहतु्य तिधमे मुभावपि ५८ Qa

२१७

RUS

योगशास्त्रे

TATA RRA तौ Marat बभूवतुः wets weld fe किंवा स्याग्मनख्िनाम्‌ uve बष्टा्टमप्रथतिभिस्तौ तपोभिः सुदुस्तपेः क्रणयामासतदेडं Ula: कमभि; TT ॥.६० ` तती विहरमाणौ तौ ग्रामाद्रामं पुरात्पुरम्‌

कटा चिद्मतिपेदाते नगरं हस्तिनापुरम्‌ ॥.६१॥ तौ तश्र दचिरोद्याने चेरतुर्दृ खरं तपः सम्मोगभूमयोऽपि स्युस्तपसे यान्तचेतसाम्‌ ६२.॥ सश्भृतमु निरन्धेदुमा सचचपणपारषे |

पुरे प्रविष्टो free यतिधर्मोऽङ्गवानिव ६१ गदां परिग्वाम्यन्नोर्याखमि तिपूवेकम्‌ |

दाजमार्गापतितो दृष्टो नसुचिमणन्विखा ६४॥ मातङ्क्टारकः सोऽयं मदन्तं ख्यापयिष्यति | मन्तीति चिन्तयामास पापाः aaa शद्धिताः॥ ६५॥ यावन्मम कस्यापि प्रकाशयति सौ | तावब्रिर्वासयाम्येन सिति पन्तोबयुङ्‌ह सः ६६ ताडयितुमारेमे तेन पूर्वोपकायपि ।. चोरपाशमिवाष्ोनामुपकारोऽसतां यतः &७ BAS: FAAS सस्बोजमिवोकटेः स्यानाश्षतोऽपचक्राम त्वरितं त्वरितं मुनिः ६प्र॥ aqua: कुष्टाके्वियं ब्रपि मुनिस्तदा | शान्तोऽप्यङ्कप्दापोऽपि तप्यन्ते वद्ितापतः ६८

feata: प्रकाशः 1: २१९

निजगाम FITS Weal Ala: समन्ततः | परकालोपखिताश्भमोदविश्वमं जिभ्बदम्बरे 90 तेजोलेश्योज्ञलासाथ ख्वालापटलमालिनो | afenwaagralfaa यामभितन्बतो ७१ afafayqaart तं वेजोलेश्याधरं ततः | प्रसादयितुमाजम्मुः पौराः सभयकौतुकाः ७२॥ राजा सनत्कुमारोऽपि Weal Aa सषमाययो | उत्तिष्ठति यतो afeafe विध्यापयेससुधोः og aaa तं कृपः fa वा युज्यते भगवन्रिदम्‌ | चनद्राश्माक्। शतप्तोऽपि नावचिरमुखति जातुचित्‌ ७४ एभिरत्यपराचं यत्कोपोऽयं भवतामतः |

चोरा मर्मव्यमानस्व कालकटमभूव्र किम्‌ ७५॥ स्याव्छा्चेचिरं arfat चेन्त्फलेऽन्धथा | GARE इव क्रोधः सतां तद्रूमहेऽव किम्‌ ७६ ` तथापि माध नाधामि कोपं मुखखेतरोचितम्‌। VATEMT: समशो शदपकार्छपकारिषु ७७ चिनव्रोऽयतरान्तरे wat सन्धूतसुनिमभ्य गात्‌ | सान्छयितुं wafer fed मधुरभाषितंः ऽ८ तस्य कोप उपाशाम्यलचिश्रवाकषे; शुतामुगेः | पयोवाहपयःपूरभिरेरिव SATA ७९. 'महाकोपतमोमुक्षः WUE श्व ara: |

Se NS ae, ce

(१) TSU Mawe- |

ee ee ee 1 ee 7A

२२०

' ~ योगशा.

चशादासादयामास प्रसादं महामुनिः #॥ ८० वन्दित्वा चषमयित्वा लोकस्तस्मा्रावन्तेत

सम्भू तसिजमुनिना तदुद्यानमनोयत ८१४ पथान्लापं चक्रतुस्तौ पयेट्धिगृहे we प्राहारमावकक्लते प्राप्यते व्यसनं मदत्‌ WSR A :

, शरोरं गत्वरमिदं wrertenfa ` पोषितम्‌ | किमनेन wate विंवाहारेख योगिनाम्‌ ८३

चेतसीति विनिञित्य छतसंलेखठनो GT I उभौ चतुर्विधाषारप्रत्याङ्यानं प्रचक्रतुः ८४

काः पराभूतवाग्छाधुं वसुधाम्माति aaa |

दूति जिज्ञासत राम्रो मन्व aaa केनचित्‌ ८५४ wararafa यः सोऽपि पापः किमुत हन्ति a: इत्यानाययदुर्वीशो दस्यवकंयमय्य तम्‌ ८९ अन्धोऽपि साधुविध्वंसं माविधादिति शधोः

त॑ ad सुरमध्येन सोऽनेषोन्छाघुसत्रिधौ ८७

नमबुपथिरोरब्रभाभिरग्भोमयोमिव

gaat उर्व्वीशमुङ्गवस्ताववन्दत ८८

सव्यपाणिग्होतासवलिकापिदहिताननी

उदचिखकारौ तौ तमाशशं सतुरागिषा a ८८ यो वोपराधवान्‌ सोऽस्तु 'खकमंफलभाजनम्‌ | रान्ना सनल्कुमारशेत्यदगि नमुचिस्तयोः

(१) कड सकर्मफदभागसो।

fema: प्रकाशः | २२१

अमोचि नसुचिः प्राप्तः पञ्चत्वोचितभूमिकाम्‌ | सनल्कुमारतस्ताभ्याजुरगो गङ्डादिव <१॥ , नि्वास्व कमंवण्डालबण्डाल इव पतनात्‌ वध्योऽप्यमोश्यसौ रान्ना ard हि गुरुशासनम्‌ ९२ सपबोभिषतुःवरिससैः परिवारिता |

वन्दितुं तौ सृनन्दागात्‌ लोरब्रमथ खक्रिखः ९३ सा EAR: पादपद्मयोशंलितालका पपाताख्येन Haren भुवमिन्दुमतोमिव ९४ तस्यावालकसंखगे सन्भूतसुनिरन्वभूत्‌ रोमाश्वितञ्च सद्योऽभूच्छलान्वेधो fe मन्थः ९८५ अथ TAT Yt Tie तावनु्नाप्य जग्मुषि रागाभिभूतः wart जिदानमिति निमभे ॥<९॥ दुष्वारस्य मदोयस्य यदस्ति तपसःफलम्‌ | तत्खमोरब्रपतिरहं भूयासं भाविजन््नि < चिन्रोऽप्यूे काङ्सोदं मो्दात्तपसः फलम्‌ | मौशियोग्येन रत्रेन पादपोटं करोषि किम्‌ ॥९८॥ मोहात्कृतं तजधिदानभिदानोमपि सुवताम्‌ | मिष्यादुष््लतमस्यासु gular a uae Wee एवं निवाय माणोऽपि सश्भूतबिवसाक्चना |

निदानं नासुचदशो विषयेच्छा बलोयसो १०० निब्यूढानथगौ तौ तु प्रा्ायुःकमसं चव |

Mua समजायेतां विमाने get शुरो १५.

AAR Tet

wat जोवोऽव चित्रस्य प्रथमखगलोकतः | पुरे पुरिमतालाख्ये महेभ्यतनयोऽभवत्‌ २५. TAT सम्भूतजो वोऽपि काम्पिख्े ब्रह्मभूपतेः `

` भार्वायाबलनोदेग्याः कुचौ समवतोखंवान्‌ २॥ चतुदेगमहाखप्रसचितागामिवेभवः। `

` अथ जसे सुतस्तस्याः प्राश्या इव दिवाकरः ॥४॥ ब्रह्ममम्न इवानन्दाद्‌ ब्रह्मभूपतिरस्व 1 ब्रह्मास्कविन्रुतां ब्रह्मदत्त इत्यभिधां व्यधात्‌ ५॥ वहे जगन्रेकुमुदानां सुदं दिशन्‌! guy कलाकलापेन कलानिधिरिवामलः ६४. वङ्घाखि ब्रह्मण इव चत्वारि ब्रह्मणोऽभवन्‌ | प्रियमिवाखि ata: कटकः काशिभूपतिः कषिसद्तसंश्नोऽन्धो इस्तिनापुरनायकः | दोघ कोशलाधोशशम्येशः पुष्पचुलकः; ते खेडादर्षमेकेकभेकंकस्य पुरं युताः |

` पश्चाप्यधिवखन्ति SEAT इव नन्दनम्‌ < ब्रह्मणो ATTAIN यथायोगमायनुः | तत्र क्रोडतां तेषां ययौ कालः कियानपि १०॥ ब्रह्मदत्तस्य पूर्णेषु वर्षेषु दादशेष्वध | परलो कगतिं AH TWH: शिरोरुजा ११ malectea ब्रह्मभूपतैः कटकादयः | | उपाया इव मूर्तस्ते चत्वारोऽमन्वयजिति १२॥

हितोयः प्रकाशः |

ब्रह्मदत्तः जिश्यावदटैकेकस्तावदन्र नः |

तस्य प्रारिक दव वषं वर्वेऽसु र्कः १३ ॥. दोघस्त्रातुं सुद्द्राज्चं तैः संयुज्य न्धयुख्धत -

ततः खानादययाखानमथ जम्मुखखयोऽपि. ते १४ अदोधेबुदिदौर्घोऽपि ब्रह्मणो राज्यसस्पदम्‌ ।. . SHAT चेतरं खच्छन्दं बुभुजे ततः ॥.१५॥. facenaat कोशं चिरगूढं मूढधोः सवेमन्वेषयामास TCA. THT १६

प्राक्‌ परिचयादन्तरन्तःपुरमनगेल्ञः | सद्चाराधिपत्यं हि प्रायोऽन्धं करणं रणाम्‌ १७ एकान्ते चुलनोदेव्या सोऽतिमात्रममन्रयत्‌ + वचोभिनेक्षनिपुखेनदन्‌ अरथरेरिव.॥ १४ Wat AWA लोकं चावगखय्य सः ।. संप्रसन्नखलन्धाभूहवाराणोग्दरियाखि हि १९.॥. ब्रह्मराओं पतिप्रेमसिवजेषं लावुभी | जहतुशूलनोदो्घावो TACT: समरः २० ५. सुखं विलंसतोरेवं यथाकामोनयोसयोः.।

वहवो व्यतियान्ति स्म मुह्तंमिव aac: २१॥ ब्रह्मराजसख हदयं देतीयकमिव सितम्‌ | मन््ाच्नासोहशुरिदं ae दुखे्टितं तयोः २२ afansfemaad gaat lena: | अकायमाचरतवेषा सत्यो fe विरलाः fea: wre x

AAz

२२४.

योगशा सकोशान्तः पुरं Tred ane विष्वासतोऽपिंतम्‌ | afexafa दीर्धस्सदकार्येःनाख्य farga xe aeararationfqeqaicanta विप्रियम्‌

पोषकस्वापि नामोयो माजर इव दुजनः २५

famafa वरधनुसंत्नं खसुतमादिथत्‌ |

तत्तत्‌ श्रापयित्‌ frat ब्रह्मदत्तं सेवितुम्‌ + २६ विश्रमे afergae ठत्तान्ते ब्रह्मनन्दनः

शनैः प्राकाशयत्कोपं नवोद्धिक्र इव .हिपः ॥. २७ ब्रह्मदलोऽसदिष्ुस्तक्माददुबरितिं aa: |.

मप्ये शषान्तमगमद्ोत्वा क्राककोकिले २८

वर्यसङरतो वध्यावैताबरन्धमपोटणम्‌ |

fated निग्ररोष्धामि तवेत्यद्धेदवाख छः २८ + काकोऽदं त्वं पिकोत्यावां निजिषलत््रसादिति | दोर्देशोक्ञेऽवदहेवो मामेषोबगौसभाषितात्‌ ५.२० एकदा भद्रवशया सड wat सगदहिपम्‌ |

चापं ACSA कुमारो मारयचकम्‌ ११ दति गुत्वाऽबदरो्धः साकूतं बालभाषितम्‌ | ततञुशन्धुवाचेति यद्यस्घवं ततोऽपि किम्‌ ३२ MIs द्वकं aya ब्रह्म रिति |

अनया रमते Fa se wails मेटशम्‌ २२ दौर्चोऽवारोदिदं दैवो agra fam: खख | अन्तडद्धिन्रोषाम्निधूमोदारोपमा गिरः २४

हितोयः प्रकाशः | २२५

वचैमानः कुमारोऽयं तदवश्यं भविष्यति | भरवयोरतिविच्नाय कररवोरिव केसरो २५॥ यावत्कवचहरः कुमारो इन्त जायते | ara Ferg इव बालोऽप्युग्मूर्यताममौ १९॥ Faas कथं राज्चधरः gat विहन्यते | तिरश्योऽपि fe रछन्ति पुरान्‌ प्राणानिवास्मनः २७ दोर्घोऽब्रवोष्पु्रमूत्या सव कालोऽयमागतः | मासुहस्वं मयि सति सुतास्तव दुकलभाः ३८ विमु्ापत्यवास्सख्वं शाकिनोव चुलन्यध | रतखेहपरवशा प्रतिशुश्राव तत्तथा ३९ सामन्यदहिनाश्योऽयं रखा वचनोयता | यददास्बवणं Iai कायं पिठतपेणम्‌ ४० उपायोऽथवाश्येष विवादो ब्रह्मसूरसौ | वासागारमिषान्तस्य कायं HAE ततः ४१॥ गूढप्रवे शनिःसारे तत्रोदाहादनन्तरम्‌ | WIR सचषेऽप्यस्मिन्‌ ज्वास्थो निशि इताशनः ४२ उभाभ्यां मन्वयिलवेवं पुष्यचूलस्य कन्यका ठता वेवाहिकोसवेसाममरो चोपचक्रमे ४३॥ तयो क्रुरमाकूतं fants सचिवो धनुः इति विन्नपयामास दौचराजं aarafe: ४४ a कलाविन्रोतिकुशलः सूमुवेरधमुर्मम | वहं लिष्धयुवैवासु लदान्चारवधुवेहः ४५

२८

` ९२६ ` योगशा `

जरद्वव LATS तु यातायातेषु निःसडः |

गत्वा कचिदनुष्ठानं करोमि त्वदनुश्रया ४६॥ Ragas Hata मायाव्येष गतोऽन्यतः | winwafa तं clat घोमद्यः को Wea ४७ # मायाक्षतावडहिलोऽथ cla: सचिवमुचिवान्‌ | राज्येन त्वां far a: किं याभिन्धेव विना विधुम्‌ ॥४८॥ wa सत्रादिनाऽकेव कुङ्‌ मागाख्वमन्यतः |

ured भवादगेभीति Beata काननम्‌ ४८ ततो भागोरथोतोरे सहुदिविंदधे धनुः |

धमेस्येव मद्ाश्छनं पविश्रं सत्रमण्डपम्‌ ५०

wa पान्साथौनामव्रपानादिना ततः | प्रवाहमिव गाङ्गं सो ऽनवष््डिव्रमवाषयत्‌ ५१॥ दानमानोपकारान्तेः प्रत्ययितपूरषेः |

चक्र सुरष्गं दहिक्रोशां ततो जतुग्हावधि॥५२॥ दतः प्रच्छब्रलेखेन सौहादेहुमवारिणा |

"दमं व्यतिकर पुष्यचुलमश्रापयद्नुः ५३

wat तत्पुष्यचृलोऽपि qual: wefeq: पदे t प्रषयामास wal Wareara बकोमिव ५४ a पित्तले खच्धमिति पौष्यचुलोति सा जनेः। लिता भूषमणिद्योतिताशाविशस्पुरोम्‌ ५५

भीभीम

(१) ww इति

हितीयः प्रकाशः। {AS

मू च्छ दो तिष्वनिवूयेपूर्यमाशचे नभस्तले

मुदा तां Yar ब्रह्मसूनुना पर्यणाययत्‌ ५९ सुलन्धप्यख्िलं लोकं विखज्य रजनोमुखे |

कुमारं was प्रेषोल्लातुपे वासवेश्मनि ५७ सवधृकः कुमारोऽपि विखष्टान्यपरिच्छदः | तवागादरधमुना च्छाययेव खया BH ५८ araifuafagay ब्रह्मदत्तस्य जाग्रतः | निशाद व्यतिचक्राम कुतो निद्रा awa ve सुलन्धादिष्टपुरुषेः wena नमितानमेः |

उ्वलेति प्रित इव वासग्डहेऽख्चलच्छिखो ६० धुमस्ोमस्ततो विष्वक्‌ पूरयामास रोदसौम्‌ | खुल) दोधेदुष्कत्यदुष्को्तिप्रसरोपमः ९६१ + सप्तजिद्नोऽप्यभूतको टि जिद्भो उवालाकदम्बको :

" तत्सवं कवलोकर्तु ayers इवानलः ९२ # किमेतदिति dvet ब्रह्मदत्तेन मन्तिसूः। संचेपादा वचचे ऽदशुलनोदुटचेण्टितम्‌ ६३ aay लामितः खानाटरूपं करिकरादिव। स्ति तातेन eae सरह सवगामिनो ९४ TT पाशिप्रहारेण प्रकाशोक्लत्य तत्षणात्‌ | योगोव विवरहारं तहारं प्रविशाधुना ६५॥ भरातोच्यपुटवनत्सोऽथ पाणिनाऽऽस्फोख भूपुटम्‌ सुरङ्गया समितोऽगाद्रह्नरन्तेण सूजवत्‌ eg i

VAS

AAT `

सुरङ्गान्त धनु्टतौ FCHTAAT WATT | रजमन्िकुमारौ तौ रेवन्तयो विडम्वकौ &७ पश्चाग योजनो क्रोशमिव पश्चमघारया |

TAY AGTH ततः पश्चत्वमापतुः ६८ ततस्तौ पादचारेण प्राणत्राशपरायग्ो | जग्मतुनिकषा ग्रामं छच्छरातकौष्टकनामकम्‌ ९९ प्रोवाच ब्रह्मदन्लोऽथ सखे वरधनोऽघुना |

MUAH इवान्योऽन्धं बाधेते WHAT माम्‌ Woe

चणमव प्रतोक्षखनव्यक्ला तं मज्िनन्दनः। ग्रामादाकारयामास नापितं वपनेष्छया ७१ न्तिपु्रस्य HAT ANT ब्रह्मनन्दनः।

वपनं कारयामास चुलामारमधारयत्‌ ७२॥ तथा कषायवस््राणि पवित्राणि धारयन्‌ | सन्ध्याभ्रच्छत्रवालां शमालिलोला मधारयत्‌ ७१॥ कणठे वरधमुन्धस्तं त्रच सूच्रमधन्त

ब्रह्मपुत्रो ब्रह्मपु्रसाहश्यमुद्वाड ७४ मन्तिसूब्रह्मदत्तस्य वच्षःयोवत्सलास्कितम्‌ |

पटेन पिदधे प्रानट्‌ पयोदेनेव भास्करम्‌ ७५ एवं Aquat ब्रह्मसु; सूव्रधारवत्‌। पारिपाश्िकवश्मन्विपुलोऽपि fact तथा ७९ ततः प्रविष्टौ ग्रामे तौ पावणशाविन्दुभास्करी केनापि हिजवर्येण भोजनाय निमन्तितौ oo

fala: प्रकाशः | २२९

सोऽथ तो भोजयामास भक्तया राजानुङूपया | प्रायस्तेजोऽनुमानेन जायन्ते प्रतिपत्तयः ७८ # waranty चिपन्तो विप्रगेहिनो | WAI कन्धां चोपनिन्धेऽप्रःसमाम्‌ woe. HY तलो वरधमुवंटोरस्वाकलापटोः |

कण्ठे बक्नासि किमिमां मूढे awe गामिव co ततो दिजवरेणोचे ata गुणबन्धुरा

कन्धा बन्धुमतो नास्या विनासुमपरो वरः a ce a षट्‌खण्डषएधिवोपाता पतिरस्या भविष्ति | इत्याख्याय fafanafafad चायमेव सः: oR a तेरेवाख्यायि भे पट्ृच्छन्रयोवत्सलाब्कनः |

भोश्यते यस्तवग्डहे तस्म देया खकन्धका HW AAW SUSIE: सह तया तदा

भो गिनामुपतिष्ठन्ते भोगाः काममविन्तिताः ८४॥ लामुषिल्ला fant बन्ुमतोमाश्वास्य चान्यतः |

ययौ कुमार एकत्रावस्थानं सिषा कुतः ८५ Waals प्रापतुस्तौ ay चाखणतामिदम्‌ | पन्धानोऽधिब्रह्मदत्तं सर्वे eta रोधिताः ८६ प्रितावुत्पथेनाथ पेततुस्तौ मशाटवोम्‌ |

faqet ापदर्दीचपुरुषेरिव cred: ८७

ततः कुमारं ठषितं qwrt वटतरोरधः | वारिणऽगादरधनुमनलुख्येन रंहसा रट

२२०

योगशास्त्रे

ततो वरधनुः सोऽयमुपलद्छ AHA | रुषितेदधिपुरूषः पोजिपोत इव श्डभिः ८८ wai ग्डद्तामेष वध्यतां वध्यतामिति।

भोषणशं भाषमारेस्तेजंग्डहे ववधे खः ॥८०॥ संज्ञामधिन्रह्मदन्तं पलायखति सोऽक्तत

पलायिष्ट कुमारोऽपि समये खलु पौरुषम्‌ ९१ ततस्तस्या ALISA महारबव्यन्तर जवात्‌ | ब्रह्मस्राश्रमोवागादाखमादाखमान्तरम्‌ WER सतु तत्र Marea विरसेररषैः फलः

aaa दिवसे squeal तापसमग्रतः ॥९१॥ कुव्राश्रमो वो unafafa wefan |

सं खाखमपदं faar तापसा wfafafwat: wes a सोऽधापश्चत्कलपतिं ववन्दे पिढवन्‌ सुदा © प्रमाणमम्तःकरणम विज्ञातेऽपि वस्तुनि ८५॥ ऊचे कुलपतिवकव् तवातिमधुराक्ञतैः

को हेतुरव्रागमने मरौ सुरतरोरिव ९६

तनो महानस्तस्य विश्वस्तो ब्रह्मसूनिजम्‌ दन्ताम्तमाख्यव्मायेण गोप्यं खलु ताहशम्‌ ९७ WCU: कुलपतिर्ग्याहरहद्दा्षरम्‌ |

feutfea दवात्रेको aime afaqag: ८८ तलो fase प्राप्रस्सिष्ठ वत्त यथासुखम्‌ | THUAN BRATS ANT: Wee

feata: प्रकाशः | VR

Faq जन्टगामन्दममन्दं विश्वज्ञभः |

असो तत्राश्रमे तस्यौ प्राहट्‌ कालोऽप्युपखितः २०० तज्राऽसौ िवसंस्तेन बलेनैव NATE: |

शास््ाखि शखराश्यस््ाणि सर्वाण्यष्याप्यते स्मच ?॥ वर्षात्यये समायाते सारसालापबन्धुरे |

बन्धाविव MATA प्रेलुस्तापसा वनम्‌ २॥ सादरं कुलपतिना वाथमाषोऽप्यगाहनम्‌ |

तैः सह ब्रह्मदसोऽपि कलभः afta १॥ भ्रमन्नितस्ततोऽपण्य दि रमूतं तव दन्तिनः |

प्रत्य ग्रमिति सोऽम॑स watt कोऽप्यस्ि दूरतः ॥४॥ तापसेर्वीथमाणोऽपि ततः सोऽनुपदं व्रजम्‌ | MAASAI नागं नगमिवेक्तत ५॥

निः गकं aeaag: कुवन्‌ गजिंतमू जिंतम्‌ |

मल्लो AW इवाह्नास्त Twat मसहस्तिनम्‌ ` क्रखोदुषितसवीङ्गो व्याङुञ्धितकरः करो | निष्कम्यकषस्तास्रास्यः कुमारं waa wo दभोऽग्यकेऽभ्यगाद्यावत्‌ कुमारस्तावदन्तरे |

उक्षरोयं प्रचिक्षेप त॑ वख्चयितुमर्भवत्‌॥ ८॥ अश्ख्वर्डमिव ब्रश्यटम्तरिक्षासदं शकम्‌ |

BANA प्रतोयेष स्षणादेषोऽत्यमर्षणः ` एवं विधाभिशेष्टाभिः कुमारस्तं मतङ्गजम्‌ |

लोलया खेलयामासाहितुख्िक इवोरगम्‌ १०॥

RRR

योगशास्त्रे

सखेव ब्रह्मदस्षस्याव्रान्सरे छतडम्बरः | धाराधरोऽग्बधाराभिरुपदुद्राव तं गजम्‌ ११॥ ततो रसित्वा विरसं गनां ननाश स; | कमारोऽपि श्रमच्रद्विदिग्मृढः प्राप frre १२ उत्ततार कुमारस्तां नदौ मूत्तौमिवापदम्‌ |

TEM तटे तस्याः पुराणं पुरसुदसम्‌ ११ कुमारः प्रविंस्तस्िन्रपण्यहं गजालिकाम्‌ | तव्रासिवसुनन्दी चोत्पातकेतुविध्‌ TAN १४॥

तौ ete छपाशचेन कुमारः शखकौतुकौ |

foes कदलोच्छदं तां मद्ावं्जालिकाम्‌ १५ ATM AAT चासौ स्फुरदोष्ठदलं शिरः |

zen पतितं vent खलपद्ममिवाग्रतः én सम्यक्‌ WAAAY anda कस्य चित्‌।

AYR ATMS कबन्धं भूमपायिनः १७

हा विव्यासाधनधनो निधनं प्रापितो मया | कोऽप्येषोऽनपराधो धिग्‌ मामिति खं निनिन्द सः १८॥ भग्रतः ययो यावन्तावद्‌द्यानमेक्तत | सुरलोकादवतोखंमवन्धामिव नन्दनम्‌ १९

तब्र प्रविधत्रच्रे प्रासादं सप्तभूमिकम्‌ | भदशेकप्तलोकम्रोरहस्यमिव मू च्छितम्‌ २० भारूटेऽज्ंलिहे तस्िज्िषश्षां खेचरोमिव | इम्तविन्धस्तवदनां नारोमेकां रचत २१॥

हितोयः wars: | २३२

SUT FATA पप्रच्छ खच्छया गिरा |

का त्वमेकाकिनो किंवाकिंवा शोकस्य कारणम्‌ ॥२२॥

अथसा साध्वसाक्रान्ता जगादेति सगददम्‌

महान्‌ व्यतिकरो aster ब्रूहि aed किमागतः २२॥

AMT पङ्चाकभूपतैत्रेह्मणः सुतः |

इति सोऽचौकथयावश्ुदा सा तावदुलिता २४

अानन्द्वाष्यसलिलेर्लो चनास्ञलिविश्युतेः |

सा gaat पाद्यभिव पपातासुष्य पादयोः २५

कुमाराशरणायामे शरणं त्वमुपागतः |

मल्नतो मोरिवाभोधौ वदन्तोति TS AT uw Ee

तैन VET GIS लस्माटशभ्नातुरस्मयहम्‌ |

AAT पुष्पवतो पुष्पचुलस्याङ्गपतेः सुता २७

कन्यास्मि भवते दन्ता विवाहदिवसोशूुखो |

Sula रन्तुमुद्याने दौधिकापुलिनेऽगमम्‌ २८

दुष्टविद्याधरेगष्णडं माय्योग्मल्ाभिधेन तु |

अतापद्रत्यानोतास्मि रावशेमेव जामकौ २८

दृष्टं सोऽखहमानो भे विद्यासाघधनहेतवे |

सूपणशठासुनुरिव प्राविशं शजालिकाम्‌ २० `

धूमपस्यो्ंपादस्य तस्य विद्याच सेत्छाति ,

शङ्धिमान्‌ सिदविद्यः किल मां परिशेष्यति nee x

ततस्तदधष्ठस्नान्तं कुमारोऽस्ये न्यवेदयत्‌ |

हषस्योपरि watsafnaran विप्रियच्छिदा 22 Re

RRs

TANTS

तयोरथ विवाष्ोऽमूदान्धर्वाऽन्योऽन्धरक्योः |

ओष्ठो fe सषजियेष्वेव निमग्बोऽपि सकामयोः २१ रममाणस्तया ae विवितालापपैशलम्‌ |

एकयामामिव तां वियामामत्ववाइयत्‌ २४ ततः प्रभातसमये ब्रह्मदत्तेन LBA |

पराकाशे खेचरस्त्नोणां कुररोखामिव ध्वनिः २५॥ अकस्राल्लायते कोऽयं खे शब्दो नष्टवष्टिवत्‌

तनेति ver संभ्रान्ता दुष्पदत्येवमव्रवोत्‌ ॥२६॥ अगिन्धौ त्दिषो नाद्ो्मत्तस्येमे समागते |

aia खण्डा विशाखा विद्याधरकुमारिके ३७ तत्रि मित्तं विवाष्ोपस्कदपाणो इमे मुधा |

wae चिन्तितं कायं देवं घटयतैऽग्धथा ३८ अपसपं WS तावद्यावच्वदशको्मैः लमीऽहमनयोभावं afa रागविरागयोः २८ राग रक्षां प्रेरयि्ये पताकां awa: |

विराग चलयिष्वामि श्वेतां गच्छस्तदाऽन्यतः ४०॥ ब्रह्मदत्तस्ततोऽवादोग्मामेषोर्भीङ तदहम्‌ | away: किभेते मे qe we करिष्यतः se Sara पुष्यवत्यवं नेताभ्यां वच्मि ते भयम्‌ | एतन्तम्बन्धिनः किन्तु मा विरोौल्सुनभवराः ४२ तस्याचिन्तागुहस्या तु तज्रेवाखयात्‌ एकतः |

भय yaaa श्वेतां पताकां पयं चोचलत्‌ ४२

हितोयः WAIT: | २२११

ततः FATAL SET तव्मदेशाच्छने; शनेः | प्रियाुरोधादगमन्रहि wienent गृखाम्‌ ४४॥ आकाशमिव दुग्रीहमरण्यमवगाद्च सः |

दिनान्तेऽषं इवाश्मोधिं प्रापदेकं महासरः ४५॥ ततः प्रविश्छ तत्रासौ सुरेभ इव मानसे

खाता खच्छन्द्मत्सच्छाः सुधा CT पपावपः ४६॥ निःखत्य ब्रह्मसूर्नोरासोरसुल्तरपधिमम्‌ | लताक्षणदलि खानः सौल्ञातिकमिवाभ्बगात्‌ ४७ aa तेन दु मलताङ्च पुष्पाणि चिन्धतौ | वमाधिदेवता सल्षादिव काप्येति सुन्दरो ४८ दष्याविति कुमारोऽपि जश्नप्रभृतिषेधसः। रूपाण्यभ्बस्यतोऽमुष्यां Tard रूपकौशलम्‌ ve Ul SAT सह जल्यन्तो AEG: Haare: | कगठे मालाभिवास्यन्तो तं पश्यग्यन्यतो ययी ५० पश्यन्‌ कुमार स्तामेव प्रसितो यावदन्यतः | वस्त्रभूषषताम्बुलशदहासो तावदाययौ ५१ +

सा वस्ना्यपयित्वोचै या त्वया SERS सा। सव्यहारमिव aufae: प्रेषोदिदं त्वयि + ५२॥ भ्रादिष्टा चासि यदम afet तातमन्िशः। मयातिष्याय aaa हि वेत्ति यथोचितम्‌ ५२॥ सोऽगात्‌ सह तया वेगम arneaw मन्तिशः | अमात्योऽप्यभ्बुदस्था तमाक्लष्ट दव ART: ५४५

२१६ योगशास्त्र

MATA राजपुश्रया वाषाय तव वेश्मनि प्रषितोऽसौ महाभागः सन्दिश्येति जगाम सा १५ + उपास्यमानः खामोव विविधं तेन मन्िणा | Sui चषपयामास चणभेकभितवेष ताम्‌ ५९ Wal राजकुलेऽनेषौत्कुमारं च्षडदात्यये पर्घादिनोपतस्ेऽसुं वालाकंमिव भूपतिः ५७ # व॑ंशादाष्ष्टापि aa: कुमाराय.सुतां ददौ।

` आक्तत्यैव हि तन्वं विदन्ति नलु afer ५८ o

` उपायंस्त कुमारस्तां इस्तं स्तेन पोडयन्‌ भन्योऽन्यं संक्रमयितुमनमुरागसिवाभितः ५९ त्रह्मदत्तोऽन्यदा MISA TH: पप्रच्छ तामिति। एकस्यान्नातवं शादे; पित्रा दत्तासि भे कथम्‌ ge i MATA कान्तदन्तां शुधौताधरदनाऽब्रवोत्‌

. राजा शवरसेनोऽभूदसन्तपुदपत्तनं ९१॥

तस्सूनुमं पिता राज्यं निषस्धः क्ररगोतिभि;। पययेस्तोऽशिियदिमां पल्लीं सबलवाहनः ६२ भिज्ञाठुपनमय्बान्र aan शवं वेतसान्‌ | ग्रामचघातादिना तातः पृष्णाति खं परिग्रहम्‌ i ert जातास्मि AY तनया तावस्यात्यन्तवक्ञभा | "सामिन्‌ सम्धदिवोपायां डतुरस्तनयानमु ६४

anette A ID ne

(१) wae उपायानां Hfcarg weet agama | अद श्ोवत्पचाइुपाजानां बतुष्डां तसजनग्ननाम्‌ |

हितोयः प्रकाशः | २३७

मासुखौवनामूचै सवे मे देषिणो sar: |

त्वयेह खितया are शंस्यो यस्त मतो वरः ६५॥ AYR चक्रवाकोव सरस्तोरे निरन्तरम्‌ | ततःप्रथति पश्यामि सर्वाभेकंकशोऽष्वगान्‌ ६६ मनोरथानामगतिः ख्रेऽप्यत्यन्तदुलेभः | भायपु्रागतोऽसि तं मद्धाग्योपचयादिषह १७

पकल्लोपतिरग्येष्यग्रामचातक्षते ययो

कुमारोऽपि समं तेन afaarat क्रमो wat ec a लुष्टयमामे ततो WA कुमारस्य सश्स्टे। पाटालयोवैरधरुरेत्य हंस इवापतत्‌ ६९ कुमारकण्ठमाशम्बा सुक्ञकरं Te a | मवोभवन्ति दुःखानि Wea रोषटदर्थमे ७०

ततः पोयूषगण्डषेरिवालापैः Basra: |

WATS VEN खठत्तमिति afera ७१ वटेऽधस्वां तदा YT गतोऽ नाध पायसे सुधाकुण्मि पश्यं fafeed महासरः ७२ तुभ्यमश्नोजिनो पत्रपुटेनादाय वादम्‌ |

वमदूते रिवागच्छन्‌ रुहः संवमितेमेटः ७३

wet वरधनो ब्रूहि ब्रह्मदत्तः fret |

इति तेः एच्छामानः सश्वेश्नोत्यहमहुवम्‌ ७४

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णप Gees ३३ " "2: Cara 2

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तस्करेरिव fang ताच्यमानोऽथ तेरहम्‌ |

इत्यवोचं यथाब्रह्मदन्ो व्याघ्रेण भितः ७५

तं देशं दर्थयेत्यक्ञो माययेतस्ततो ग्मन्‌ |

त्वह गनपयेऽभ्येत्वाकाषं Wat पलायने + ७६ परिव्राङदन्तगुरिकां qas¥ चिप्तवांस्ततः | तक्रभावेन निःसंन्नो खत इत्यडिभितोऽस्मि तेः ७७ चिरं गतेषु तेष्वास्यादाक्लष्य गुटिकामदम्‌ |

लां नष्टाधमिवान्बे्टं रमन्‌ ग्रामं कमप्यगाम्‌ ऽर तत्रैककोऽपि दष्टे परिव्राजकपुद्गवः |

साक्षादिव तपोराशिनंमखक्रं मया ततः ७८ सोऽवदन्‌ मां वरधनो मिबमसि घनोदरम्‌ वसुभागो महाभागो ब्रह्मदत्तः क्र THA ८० | श्राचचचे मयाप्यस्य विश्वं वि्ठस्य सुकृतम्‌

चमे दुष्कथाधुमेग्ौनास्यः पुनरम्यधात्‌ ८१ # तदा MAS दग्धे दोघः प्रातरुदेत

करहभेकं faery करहृतितयं हि ८२॥

Uri तत्र चापश्यससदन्तेऽखपदानि |

धनोर्बहया WALT वां न्रालवा wet चुकोप सः ८३ बहा युवां Walaa wets} साधनानि सः। अस्वलद्मनान्धकंमहासोवादिदेश ८४ पलायितो धनुम॑न्ौ जनयितोतु सा aa |

दोर्चेश नरक va feat मातङ्गपाटके ८५॥

हितोयः wate: | २३९

गण्डोपरिष्टाल्िटकेनेवार्तो वात्षया तया | दुःखोपग्छं ्वहःखः ANS गतवानहम्‌ ८६ + छद्म कापालिकोभूध् ततर मातङ्गपाटक्षे

वेश्म वेश्मानुप्रवेगमश्यां शश इवानिशम्‌ ८७9 च्छछामानख लोकेन ततर ्रमणशकारणम्‌ | अवोखमिति aay शद्यायाः कल्प UG Hy cc A aad भ्ाम्यता मेरो मया विष्डासभाजनम्‌ | अजायतारशकष् मायया किंन साध्यते॥५८्८॥ प्रन्येदयस्तम्मुखेनाम्बामवोचखं यत्करोत्यसौ |

ल्वत्पु वभिवकौख्डिन्यो महात्रत्यभिवादनम्‌ wee हितोयेऽ हि खयं गत्वा जनन्धा वोजपुरकम्‌ sat सगुटिकं जग्धेनासंज्ना तेन साऽभवत्‌ ८१ aafa तां पुराध्यत्तो गत्वा रान्न व्यजिन्रपत्‌। राज्नादिष्टाः खपुरुषास्तस्याः संस्कारहेतवे W ९२ Il AMAA मयोक्नास्ते संस्कारऽस्याः FAST चेत्‌ I महानमर्थो वो राच्नशधति जग्मुः खधाम ते॥ ८२ WITS चावदं तवं चेत्‌ TTA: साधयाम्यङम्‌ सवललणभाजोऽस्वा WAAR शवेन तत्‌ ९४॥ अरः प्रतिपेदे तत्तमेव सहितस्ततः। सायमादाय जननीं गानेऽगां दवोयसि ९५॥ खण्डिते मर्डलादोनि मया निमय मायया qeaint बलिं erqarce: प्रेषितस्सतः ce

२४०

योगशास्त्र

गते afaray मातुरपरां गुटिकामदाम्‌ |

निद्राच्छेद LATIN सोदखाव्ातचेतना 2 खं श्नापयिल्वा खदतीं निवाय सख नयामि ताम्‌ WRU LF तातसुदृदो देवशन्भणः wes इतस्ततो अ्रमन्रेषोऽग्बेषयंस्वामिषहागमम्‌ |

दिश्या दृष्टोऽघुना साषाव्पुख्यराशिरिवासि भै ee ततः परं कथं नाच प्रखितोऽसि खितोऽखि च। aafa ve: खं ठनत्तं कुमारोऽपि न्यवेदयत्‌ Ree अथ कोऽप्येत्य ATTA WIA दौघेभटाः पटम्‌ युखनस्य्चिरूपाङ्ग दर्भयन्तो Tea:

Semel किमायातावनेत्याकष्य गां मया |

curtaw युवां act "चितं कुरु तं हि तत्‌ २॥ ततस्तस्िन्‌ गरीऽरण्य मध्येन कलभाविव पलायमानो कौ शाम्बो प्रापतुस्तौ पुरो क्रमात्‌ WR A aa सागरदश्वस्य ख्िनो बुदडिलस्य उद्यानैऽपश्यतां are तो कुक्टाहवम्‌ उत्पत्योत्पत्य AGE: प्रा षा कषाः टेरिव

युयुधाते ताम्रचुडौ च्चा चश्च विवो कं: ५॥

तवर सागरदश्तस्व जात्यं WH FETA

भद्रेभमिव मित्रेभोऽभाङलोहददिलङुक्टः

[क मी णी

(१) कड द्जिर।

हितोयः प्रकाशः

ततो वरधनुः GATE कथं जात्योऽपि Faz: | WAG सागरानेन Tare TET सागराऽनुज्रया सोऽप्यपश्यत्‌ Ffeagazy तत्पादयोरयःसचौयमदूतीरिषे्त

लक्षयन्‌ वु हिलोऽप्यस्य लला छन्रमिष्टवान्‌ सोऽप्याख्यच्वं व्यतिकरं कुमारस्य जनाम्तिक्षे ॥९॥ ग्रह्मद सोऽप्ययःसचोः छदा बुदहिशकुकटम्‌ | wists सागरग्रेिकुकटेमाम्ययोजयत्‌ १० wafan: कुक्टेन तेन बुहिलकुक्षुटः |

ABQ

wsucufa faarat ea वाद्यं कुतो जयः ११॥

इष्टः सागरदस्तस्तावारोप्य Wet खकम्‌। जयदटानेकमुद्भटौ निनाय निलये निजे १२॥ स्वधामनौव तद्ाज्ि तयोजिवसतोरघ | किमप्याख्यदरधनोरेत्य बडिलकिङ्कदः ११॥ तस्मिन्‌ गते वरधनुः कुमारमिदमभ्यधात्‌। यद्दुहिलेन were दिख्ितं Ase पश्य तत्‌ १४ सोऽदयत्ततो हारं निमेलस्यृलवर्तुखेः। Hue afew: शक्रमण्डलस्य विडम्बनाम्‌ १६ Wit बं सनामा TWEET | अगाच वाचिकमिव ae वत्ाख्यतापसो १९॥ प्तानि तयोमूधं चिघ्ाशौवादपूवैकम्‌ | नोलान्धतो वरधन्‌ कि्िदाख्याय सा ययौ १७ २१

ABR

योगशास्त्र

THANG THA मन्तिसू्र॑ह्मचनवे !

प्रतिकेखं हारवदलेखस्येयमयाचत १८ ओब्रह्मदन्तनामाद्को. ले खोऽयं प्रथयस्व तत्‌

को amen इति सा मया परटेदमनत्रवीत्‌ १९ + अस्ति अष्ठिसुता रब्रवतौ aay पत्तने | warty कन्यात्वं प्रषन्नेव रतिभुवि २० + Mig: acu बिलस्य afea | कुक्कुटायोघनेऽपश्यद्रह्मदत्तमिमं fe au ate ततःप्रथति ताम्यन्तो HATA सा शाम्यति | शरणं ब्रद्मदन्तो मे एवेत्याह चानिश्चम्‌ rr a ad लिखित्वा चान्येद्युलंखं हारेण संयुतम्‌ भप्यतां न्रद्मदत्तस्येत्युदित्वा सा ममा्यत्‌ २३ दास्ते मया लेखः प्रेषोल्यु्ला खिता wait मयापि प्रतिलेख तऽष्ययित्वा सा व्यज्यत Re दुवीरमारसन्तापः कुमारोऽपि ततो दिनात्‌ '्मध्याहाकंकरोत्तप्तः करोव सुखं खितः २५॥ कौशाम्बोखामिनोऽन्येददौ घण प्रहिता नराः |

ACMAITH तो AMAT समाययुः २६

(१) मध्याक्राककरेसप्रः।

हितीयः प्रकाशः ३४६

राजादेशेनकौगाम्बयां प्रतत्तेऽन्वेषणे तयोः

सागरो Wee faart तौ जुगोप निधानवत्‌ २७ निशितौ निवियासन्तौ रथमारोप्य सागरः | कियम्तम पि. garda निनाय ववले ततः ॥२८॥ तौ गच्छन्तौ पुरो नारोमुद्याने समपश्यताम्‌ | अस्तरपूगरथारूढाममरौमिव नन्दने २८ लग्ना किमियती वेला युवयो रिति सादरम्‌ 7 सयोक्षेषे तो षभाषातै. कावावां afer at कथम्‌ 2० TAA UA पुयामस्यां Bt WEA: | धनप्रवर इत्यासोहदनदस्येव सोदरः ३१ afeive तस्याहमष्टानां तनुजम्मनाम्‌ | उपरि्टाहिवेकशओ्चोर्धगुणा नाभिवाभवम्‌ ३२ उद्मौवनास्मिनुचाने यक्चमाराधयं ay! AARATTATS AT नाऽन्यो मनोरयः १३ १¶ तुष्टो भक्तयेष मे यन्नः वरो वरमिदं ददौ

ब्रह्मद त्तक्रव्ती तव wat भविष्यति १४ 4 सागरबुहिलवेिङक्षुटाजौ एष्यति |

खोवत्सो ससखा FAS Aa: तु सया ३१ मदायतनवन्तिन्धाः ware भविष्यति `

भेलको ब्रह्मदत्तन asia सोऽसि सुन्दर ven ute aut विरदददइनपतां चिरादिष् |

विष्यापय प्रयःपूरेषव wea सम्प्रति २७

४६

AANA

तथेति ufacarar अनुरागमिवालषुम्‌ सोऽधिवष्ठौ रथं तां गन्तव्यं क्वेति weary २८ TAQ मगधपुरे afaaayl waraw:

अस्ति चेष्ठपावयोर्बद्धौ ufaufd दास्यति gee नदितस्तत्र गन्तव्यमिति रब्रवतोगिरा।

ब्रह्मसूम न्तिपुते सूतेनाश्वाननोदयत्‌ ४० ATTA SAAT. AIA TWA: |

MISA यमस्येव प्राप भोमां AISA] Bee Tawa: कण्टक aa चौरचमूपतो |

ब्रह्मदत्तं qquq: ष्वानाविव मषाकिरिम्‌ vz weal युगपत्‌ कालरात्रिपुन्राविवोकटौ |

शरेनैभो मर्छपवच्छादयामासतुच तौ ४२॥ TAU कुमारोऽपि गजंखौरवरूथिनोम्‌ निषिषधेषुभि्धारासारेदवमिवाग्बदः ४४ कुमारे वषंति शरान्‌ Taal तौ wang:

न्त प्रहारिखि इरी इरिणानां कुतः fafa: ४५॥ कुमारं मन्विसूरेवमूचे ख्रान्तोऽसि सङ्करात्‌

qe alate खामिंस्तदिद्ेव रथे खितः ४६ स्यन्दने ब्रह्मदन्नोऽपि रब्रवत्या खमगज्वितः |

सुष्वाप गिरिनितम्ये करिष्येव कारो युवा ४७ विभातायां विभावयां प्राप्येकामय निन्रगाम्‌। AA: खरान्तासुरङ्गाख कुमार व्यबुध्यत ४८

दितोयः प्रकाश्ः। २४५.

विबुद्सु armed मज्विनन्दनम्‌ |

पयसे किं गत; स्यादित्यसक्षष्याजष्ार तम्‌ ४८ सोऽलब्धप्रतिवाग्‌ cet रथाग्रं रक्षपद्धिलम्‌ |

विलपन्‌ हा इतोऽस्नोति मूच्छछितो wane ५० उल्ितो नलब्धसंन्नः सन्‌ EET वरधनो सखे |

क्षासोति लोकवत्‌ क्रन्दन्‌ रत्रवत्येत्यवोषि सः ५१॥ विपन्नो जनायते नैव तावद्वतः सखा |

तस्य वाचाप्यमाङ्गल्यं माध कन्तुः युज्यते ५२ anata गतः क्षापि भविष्यत्यसंशयम्‌ |

यान्ति नाथमष्ष्टापि नाधकायीय मन्िशः॥ ५२॥ तवोपरि wera रक्षितो मुगभेष्यति स्वामिभक्तिप्रभावो हि खत्यानां कवचायते ५४ स्थाने प्राप्ताः करिष्वामो नरस्तस्य गवेषणम्‌ |

युज्यते मेह तु खातुमन्तकोपवने वने ५५॥ तदहावा सोऽनुददरष्यान्‌ प्रपेदे मगधक्तितैः |

सोमग्रामं दविष्ठं हि वाजिनां मरुतां किम्‌ ५६ MARA सदःस्थेन cet निन्ये Basa सः |

अन्नाता अपि पूज्यन्ते महान्तो मू्तिंदश्नात्‌ ५७ शोकाक्रान्त इ्वासोति wet म्रामाधिपेन a: |

इत्यूचे AHS चैरेर्युध्यमागो गतः कचित्‌ ५८ तस्य प्रहस्तिमानेष्ये daar इव arefa: |

CART ग्रामणोः सवी तां जगाहे महारटवोम्‌ ५९

"२४६

यो गशाच््े .

GUA AAWS दृष्टः कोऽपि वने नड 1 प्रहारपतितः किन्तु ura "एष शरो मया॥ ge I इतो वरधनुनूनमिति चिन्तयतस्ततः |

Tween: शोक इव तसोभूरभवचत्रिशि॥ ees

याभे तुरोये यामिन्यास्तवर चौराः समापतन्‌

सतु भग्नाः कुमारे मारेशैव प्रवासिनः ६२॥

ततोऽनुयातो ब्रामखया ययौ .राजग्टद्ं क्रमात्‌ |

चामुचद्रव्रवतौं तद्वषिस्तापसाखमे ६२

विशन्‌ पुरं tfae हम्येवातायनस्धिते |

सान्लादिष रतिप्रौतो कामिन्यी नवयौवनं ues a

ताभ्यां सोऽभिदे प्रमभाजं aw जनं ननु

. य्दा गतवान्‌ aR तत्‌ fas प्रत्यभाषत ६५ ` व्याजष्टार कुमारोऽपि प्रेमभाग्‌ बत को Ha; |

WHI A मया aw: Hise F ar युवामिति ।॥ ६६॥ प्रसोदागच्छ विशखाम्य नाथेत्यालापनिष्ठयोः

प्राविशब्रह्मदत्तोऽपि मनसोव तयो गृहे ९७

तिषठमाने क्षतख्रानाशनाय AWA | कषयामासतुस्ते खां .कथामविततथामिति ६८॥

cafe विद्याधरावासः कलधौतगिलामयः | ` भेदिन्धास्तिलक इव वेताष्यो नाम पवतः ९९

[वाक वक AE RE ण्ण we

(१) Tw |

हितोयः प्रकाशः | २४७

परसुष्य दस्िशखखयां नगरे शिवमन्दिरे राजासि उवलनशिखोऽलकायामिव WW: ७० विद्याधरपतेस्तस्य दय तिद्यो तितदिग्मृखा | प्रिया विच्युच्छि वेत्यस्ति विदयदश्भोमुचो यथा ७१ + तयोः nates नादोग्मस्ाभिधसुताजुजे | नाचखा खण्डा विशाखा yarrarat बभूविव ७२ तातः Wasa सख्याम्िशिखेन सहालपम्‌ | गच्छतोऽष्टापदगिरिं मवान्‌ खे fataa ७१ ततःस तोधेयावा्ं चलितोऽचालयच्च नौ | सुदं चाम्निशिखं तं धर्मषिष्टं हि योजयेत्‌ ७४ प्राप्ता श्रष्टापदं तत्रापश्याम मणिनिमिताः। प्रतिमास्तोधेनाधानां मानवणं समन्विताः ७५ ara विलेपनं पूजां विरचय्य यधाविधि alfa: प्रदचतिणोकलत्यावन्दामहि समाहिताः og प्रासादाचिःख्तेदंष्टौ रक्ञाशोकतरोरधः चारणश्रमणौ मूत्तिमनम्ताविव तपःशमौ ७७ तो प्रणम्योपविश्याग्रे YA खया वयम्‌ | अन्नानतिभिरच्छेदकौमुदीं धमंदेशनाम्‌ WOT पप्रक्ाग्िशिखः कः स्यात्कन्ययोरनयोः पतिः | तावुचतुर्योह्मनयोभ्रौतरं मारयिष्यति ७९ हिभेनेव शशो स््नानो जातस्तातस्तया गिरा भ्रावामपोत्यवोचाव वाचा वैराग्यगभया॥ ८०

४८ ` योगशास्त्र

संसारासारतासारा देशनाद्येव शुवे | तदिषादनिषादेन किं तात परिभरूयसे ८१॥ पलमस्माकमप्येवं विैविषयजेः सुटः; | wad तम्रथत्यावां वातुं निजसडङोदरम्‌ ८२ ग्राम्यब्रपश्यन्ये भ्वाताऽन्यदा पुष्यवतोमसो | मातुलस्य त्वदौयस्य पुष्यचुलस्य कन्धकाम्‌ ८३ खूपेणाद्ग तलावस्छपुख्येन इतमानसः |

at जहार दुर्बहिः afe: कर्मानुसारिष्ठो ८४ सोऽसद्िष्णुदृशं तस्या विव्यं साधयितुं ययौ सवयं संविद्रते सम्यग्‌ भवन्तसु ततः परम्‌ ८५ तदा पुष्यवत्याख्यदावयोग्बीठसङ्कयम्‌ | शोकं WAAC: शोकापनोद इव चागुदत्‌ ATE WHY पुष्यवत्युचेऽभ्यगम्योऽयमिहागतः | ब्रह्मदक्नोऽसत वां wat aaa fe सुनेगिंरः ८७ Sind यदावाभ्यां तया रभसावथात्‌ | पताक्षाचालि धवला त्यक्गावां लं गतस्ततः ८८ यदासख्मद्वाग्यवगुख्याव्रागतोऽसि Vac: | wren सर्वव्र.निरविे श्रावामिद तदागते॥ ८८ पुष्येरसि समायातः पुरा पुष्पवतोगिरा हतोऽसि वर्या्वां तहतिरेकसत्वमावयोः do गान्धर्वेण विवाहेन उपायंस्त तै भ्रपि। भोगो हि भाजनं eat सरितामिव सागरः ॥९१॥

दितोयः warm: |

cTaaIg: समं ताभ्यां गङ्गोमाभ्बासिवेष्ठरः |

aaifaargarara at fant wares: ९२ a

ATT राञ्यलाभः ख्वात्पुष्यवत्याः TATA: |

तावद्यवाभ्यां खातव्यमिल्युक्ञा व्यखजच eRe

तधेत्याहतवत्यौ ते सललोकस्तच्च मन्दिरम्‌

गन्धवेनगरमिव ततः सवं fea ९४॥

अथाश्रमे TAMAR ्रह्मसूरगात्‌

अपश्यं सक पप्रच्छ मरमेकं भाक्ततिम्‌ ॥९५॥

दिव्याम्बरधरा नारो रब्ाभरणभूषिता।

कापि दृष्टा महाभाग ल्यातोतदिनेऽखवा॥€६॥

जे नाध नाधेति qeat wraaferar |

परत्यभिन्राय मपत्रोति तच्पिढव्याय चाप्पिता <

तदरोऽषोति तेनोक्शस्तथेति ब्रह्म सुवदनम्‌ |

निन्ये तैन nae तत्पिटव्यनिकेतमम्‌ ९८

waar पिदव्योऽपि aged व्यवाषयत्‌ |

WUT Awa धनिनां सवमोषत्करं यतः wee

तथा विषयसीौख्यानि समं सोऽनुभवन्तथा |

तकां वरधनोरपरेष्युः प्रचक्रमे ४००

सालादिव परे तषु भु्ञानेषु,दिजन्मस |

fanauy वरधनुस्तत्रागत्वाग्रवोदिति॥ १॥

मम चेडोजनं दय स[त्षाइरधनोहिं aq |

इति च्ुतिसुघवास्य gat वाग्‌ ब्रह्मभूनुना॥२॥ RR

२४८

२५०.

AANA

सतं दृष्टा परिष्वङ्गादेकोकुव्िवाना। qaafaa ₹इर्षासेनिनायान्तगृ्ं ततः ऊवे VS: कुमारेण Bae सोऽकथयत्तदा |

सुमे त्यि निरददोऽं चौरे: दोर्धभरेयेथा + वल्ान्तरख्ितेनेकदस्युनेकेन पतिणा |

ease पतितः vert तिरोऽधां लतान्तरे ५॥ aay ay चौरेषु मध्येठक्तं तिरीभवन्‌ आतिरन्तजंलमिव maw ग्राममाप्रुवम्‌ ९५ भवत्रहत्तिं य्ाभेगादिन्नायाहमिष्टागमम्‌ दिश्याऽपणश्यं भवन्तं कलापौव पयोमुचम्‌ अथोचे ब्रद्मदन्तस्तमस्माभिः WAG ननु |

विना पुङ्षकारेण क्रौबेरिव कियच्िरम्‌ ॥८॥ अन्रान्तरे सम्प्रात्तसास्रास्यमकरध्वजः | मध्वन्बदको यूनां प्रादुरासोग्मधुत्छवः # तदा UM AAA: स्तम्भं ASW: |

.निर्ययौ तासितागेषमर्त्वयो मत्योरिवानुजः १०॥

ततो नितम्बभारान्तां काश्चित्‌ कन्यां खवलडतिम्‌ | करो करेण जग्राहाक्षण्य पुष्करिणोमिव wees तस्यां शरणार्धिन्धां क्रन्दन्त्वां दो मचश्ुषि |

AW हाहारवो . वि्वदुःखवोजाच्तरोपमः १२॥ ₹े mania मातङ्गः fad eA लस्बसे . इत्यक्त; कुमारेण तां faqa तमभ्यगात्‌ १३

[कि eR 0 + 9 11 oe 2 S68 ot

feata: प्रकाशः |

Saya दन्तसोपाने पादं विन्धस्य हेलया | WIG कुमारस्तमिख्रयदधासनम्‌ १४ वाक्पादाद्शयोगेन खं योगेनेव योगविव्‌ | AMAA तं नागं कूभारस्सरसा ततः १५॥ साधसा्वित्यु्मानो जनेजंयजयेति

कुमारः करिणं war नोत्वावक्नादशामिव॥ १६॥ लतो मरेन्द्रस्तव्रागान्त cer विसिसिये। भक्षतिविंक्रमश्रास्य कस्य चित्रीयते नवा १७॥

RA

कोऽयं कुतो वा wearer किं सूर्या ataatsaare

UMAR रव्रवत्याः पिढव्यस्तमचोकवषत्‌ १८॥ amt विशाम्पतिः कन्धा; पुख्यमानो क्तोसवः | दत्तः सषपाकरायेव ब्रह्मदाय दत्तवान्‌ १८ यरिणोय तास्तव्र सुखं तिहव्रघाऽग्धदा ` जरल्यत्वं कयेत्थुजे भ्म धित्वा काञ्चलम्‌ २० वेशवणोऽसबाव्यः.चिया वेखवलोऽपरः

लख ओ्रोमतिनौम सुता ओोरिव वारिषैः॥ २११ म।चिता भवत व्यालाद्राहोरटिन्दुकलेव या

सा "तामेव पतोयन्तो ततःप्रशति ताम्बति ५२२ यथा गजाच्वया त्राता सथ तायख तां स्मरात्‌ t were पाणिं तं तखा यथा हदयमग्रशोः 1 २२५

10) त्वामेवाभिशषनम्तो

RU | योगशास्त्र

उपयेमे कुमारस्तां विविधो हाहमङ्कलेः सृवुचिमन्तिणः कन्धां मन्दां aca: पुनः २४ पप्रथाते एथिष्यां तौ तिष्ठन्तो तत्र afew: साभियोगीे ware ततो वाराशसो प्रति २५४ अुत्वायान्तं awed ब्रह्माखमिव गोरवात्‌ | अभ्येत्य संमुखं वाराशसोशः खग्टरेऽनयत्‌ २६ कटकः कटकवतीं नाम gat निजां ददो | चतुरङ्गम्‌ चास्ये Hallas जयच्रियम्‌ २० WASTER UAW तथाऽपरे | भगदन्तादयोऽप्येयुगपाः चत्वा तदागमम्‌ २८ Bar वरधन सेनान्यं सुषेखमिवाषेभिः

दों Haat Ha was ब्रह्मनन्दनः wre दोषस्य दूतः कटकराजभेत्येवमू चिवान्‌ |

HAT सममाबाश्थमेतो AB युज्यते |i ३०४ ततः कटक शव्युचब्रह्मला सहिताः FA!

सोदर्या इव "पश्चाप्यभवाम BW वयम्‌ + २१ खर्जषोत्रह्मलः A राज्ये व्रातुमपिते

Hae frga नाऽत्ति थाकिन्धपि समपितम्‌ + ब्रह्मणः FRITS यदीर्चोऽदोधघंमचिन्तयत्‌ | आखचारातिपापं तच्छपयोऽपि किमाचरेत्‌ ३२॥

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ee ~ ee ~~~ ~~ 2 A कक

(१) wae UQITT SATA: |

हितोयः प्रकाशः | RAR

ARSE शंस SAT AWSMITIA |

Aurea यदि वा AMT दूतं व्यसञयत्‌ १४ ततः प्रयाशेरच्छिवेः काम्मोख्यं ब्रह्मसूययौ | सदोघमप्यरौत्लोसब्रभः साक्ञेमिवाग्बुदः २५॥ दोषे: सर्वाभिखारेण रण सारेण पश्लनात्‌ | दण्डाक्रान्तो जिरसरदिलादिव महोरगः २६ चुन्नन्यपि तदात्यन्तवेराग्बादादद व्रतम्‌ |

ane पूर प्रवत्तिन्धाः क्रमाज्निवेतिमाप २७ रोगा दौचराजस्य पुरोभैत्रद्मजन््नः | नदोयादांखक्रुपारयादोभिरिवं अत्निरे + २८॥ दोर्घोऽप्यमषौदुब्रामिदंद्विकाविकटाननः |

वराह इव धावित्वा इन्त प्रवहते परान्‌ २८ ब्रह्मदस्सय पादातरथसाघादिकं बलम्‌ |

पयास्यत नदोपूरेरेव दोर्ण वेगिना ४० ब्रह्मदस्तस्ततः क्रोधार्णासो FFT खयम्‌

गजता SICH गन्‌ TANT दन्तिना ४१ उभावपि बलिष्ठौ तावस्छाखस्तेनिंरासतुः |

कल्लोल रिव AMAT युगान्तोद्श्बान्तवारिधौ ४२ न्रात्वाऽथ सेवक इवावसरं प्रसरदृद्युति।

ठक ब्रह्मदतस्य aM दिकचक्रजित्वरम्‌ ४२॥ ततो जद्ार दधस तेना awacay |

विमर्दो विद्युतः कोवा गोधाभिधनक्षाधने॥ ४४॥

२५४ ' योगशास्त्र

जयतादेष चक्रौति भाषिणो मागधा श्व | ब्रह्मदक्तोपरि सुराः quate वितेनिरे ४५ We: पितैव मातैव देवतेव aifaa: |

पुरं faan काम्पोख्यं सु्रामेवामरावतीम्‌ a ४९ विभिन्रखाभिनोद्ूलसोमनिमृलनादसौ |

षट्‌ खण्डां साधयिल्ोर्वीभिकखण्डां विनिम्मे ४७ सं वन्धरेर्दाटशभिरूपेत्योपेत्य सवतः |

सस्वाभिषेको विदधे भरतस्थेव राजभिः ४८॥ खतुःष्टिषषस्रान्तःपुरस््ोपरिवारितः |

राख्धसीख्यं बुभजे प्राक्पोभूरुहः फलम्‌ ४८ अन्येदयुर्नायसष्गोते तस्य दास्या समपि तः स्ववेधुगुम्फितदव विचिः पुष्यगीन्दुकः ५० ब्रद्मदत्तसु तं दृष्टा दृष्टपूर्वा मयेहथः |

HUA ष्यधादन्तरूहा पोषं FRAT: ५१ प्राकपश्चजग्न अरशोत्पत्षस्तत्कालमेव

‘hua हृ्टवानेतदित्यन्नाखोकदहोपतिः ५२॥

सिक्षखन्टनाग्भोभिः खस्थोभूयेत्यचिन्तयत्‌ |

कथं मेलिष्यति मे पूवंजम्मस्ोदरः॥ ५२॥

तं न्नातुकामः ज्ञोकाश्समस्यामेवमापयत्‌

रख दासौ सगौ हंसौ मातङ्कावमरौ तथा ५४ i

Ee Se सति

(१) खचर मित्वा mand awe हटवानिति।

feata: wants: | २५५

भरैन्नोकसमस्वांभेय द्मां पूरयिष्यति। राज्या तस्य दास्यामोत्यसावघोषयत्पुरे ५५.॥ Ware तस्तु सर्वोपि awe निजनामवत्‌ . : पठब्रकार्षत्यिवां चापूरिषट कन ॥५६॥ - तदा पुरिमतालाशिव्रजोवो asa: जातिस्मृतेः प्रव्रजितो विडरतरेकदा ययो ५७ ॥: ‘aq afaifaqara प्रासुकखष्डिलखितः ।. Ware AY पठतः सोऽग्रौषोदारघटटिकात्‌ ५८ एषा नो षष्टिका जातिरन्धोऽग्धाभ्यां वियुक्षयोः | ज्ञोकापरा्चैभेवं सम्पू तमपाठयत्‌ ५८ + WATTS Ags: पुरस्सादारघटिकः | पपाठ कः कविरिति, aeqeet सुनिं जमो ९० पारितोषिकं" aw वितीर्योल्कण्डया ययौ | तज्रो्ाने मुनिं द्रष्ट धमेहूुममिवोद्तम्‌ a ९१ ॥. वन्दित्वा तं सुनिं तव वाष्यपूखविशोचनः.।

` निषखादान्तिके राजा सखः पूवजग्भयत्‌ ९२॥ wintaté मुनिदं्वा कपारसमषोदधिः। WAU भूपस्य प्रारेभे धमेदेशनाम्‌ ६३ : राजनब्रखारे संसारे waaay fags | सारोऽस्ति wa एवेकः सरोजमिव BER est

णी री गिण

| बडतख्िन्‌। .

२५६ योगशास्े

~ शरोरं यौवनं watt: खाम्यं भित्रा बान्धवः सवमप्यनिलोषटतपताकाञ्चलवश्चशम्‌ ९५ afecwry दिषोऽजेषोय्येधा साधयितुं महम्‌ | अन्तरङ्गगन्‌ जय तथा मो ससाधनहेतवे ९९ WIS यतिधमें ART त्यजापरम्‌ राजष्ंसो fe ग्डह्काति विभज्य सोरमन्भसः go ब्रह्मदस्षस्ततोऽवादोद्‌ दिच्चा दृष्टोऽसि बान्धव | इयं तवेव राज्ययोरङ्च्छ भोगान्‌ यथारचि ६८ | तपसो हि फलं भोगाः सन्ति ते किं तपस्यसि | उपक्रमेत को नाम खतः faw प्रयोजने ge a सुनिरूचे ममाप्यासम्‌ घनदस्येव सम्मदः | मया तास्तुशवश्यक्ा भवभ्चमणभोरष्या ७० सौधर्मात्क्तोशपुण्योऽस्मिन्नागतोऽसि agaa | saisfa Steger: सन्‌ राजन्धा गा अधोगतिम्‌ ७१ भाय्ये V2 कुले AS मानुष्यं प्राप्य मोदम्‌ |

` सापयस्वमुना भोगाम्‌ सुधया पायुशौ चवत्‌ ७२ स्गाथुगत्वा Vagal श्रान्तावावां कुयोनिषु यथा तथा श्रन्‌ राजन्‌ fa बाल इव समुद्यसि oz aaa बोध्यमानोऽपि arqe वसुधाधवः। कुतः कतनिदानाभां बोधिबोजसमागमः ७४ तमबोष्यतमं बुद्धा जगाम मुनिरन्यतः | कालादिष्टाहिना दष्टे कियत्िष्ठन्ति माश्िकाः ७५

हितीयः प्रकाशः | २५७

घातिकश्मल्षयाग्राप्य केवलन्नानमुत्तमम्‌। भवोपग्माहिकमाणि इत्वा प्राप परं पदम्‌ ७६ AWTS! संसारसुखानुभवलालसः | सप्तातिवाहयामास शतानि शरदां क्रमात्‌ WOO कदाचित््राकपरिवितो दिजः कञ्िष्नगाद तम्‌। चक्रव्तिन्‌ खयं UE यनम देहि भोजनम्‌ ७८ ब्रह्मद त्तोऽप्यवे। चन्तं मदन्रं हिज दुजेरम्‌ चिरेण जोमाणंतु महोश्मादाय जायते ७< कदर्योऽख्यन्रदानेऽपि धिक्ञामिति वदन्‌ fess: | siti सकुटुम्बोऽपि भूभुजा भोजनं निजम्‌ ८० निशायरमथ विप्रस्य चोजादिव तदोदनात्‌ WANG, खऋरोग्मादतसः प्रादुरभूजुम्‌ ८१ श्रन्रातजननोजामिखुषाव्यतिकरं fara: | यश्वस्सषपु्ोऽपि विप्रः प्रवहते रते॥ष्२॥ ततो विरामे यामिन्धा feat zeae सः हिया दश्चेयितुं खास्यमन्योऽन्यमपि नाश्चकत्‌ ८२ RUA Tafa सकुटुम्बो विडम्बितः चिन्तयल्नित्यमर्षेण नगराच्रिरगाद्िजः ८४ दूरादश्बलययपव्राणि काण्यम्‌ शकराकरेः। सेन कञ्िदजापालो दष्टे भ्रमता बहिः cya महेरषाधनायालमसाविति विग्श्य a | तं मूल्थनेव सत्कारेणादायेवमवोचत ८९

२२

«RNG

AAAS

राजमार्गे AATSS यः PATATAT; |

याति we emt ae त्वया ufaa गोलिके co विप्रवाचमजापालः प्रतिपदे aaa ताम्‌ | पश्वत्पश्पाला हिन विमृश्य विघायिनः॥र्त८्॥ wise कुष्यान्तरे खित्वा va प्रसिप्य गोलिके |

, 'सास्फोटयद्‌ दशौ treat are ae विधेः खलु ८८॥

Bisa: प्राप्येनेरिव fear:

-इम्यमानस्तमेवाख्यद्दिप्रं विप्रियकारकम्‌ ९०

तच्छ्रत्वा पाथिवोऽवोचदिग्‌ धिग्‌ जातिहिजन्मनाम्‌ | यज्ते WA पापास्ततर भव्न्ति भाजनम्‌ Wee

यः खामोयति दातारं दन्तं तस्मे वरं शने

न. जातु दातुमुचितं छतन्नानां fray ९२ agai कशंसानां श्वापदानां पलादिनाम्‌ |

ष्टं दिजानां योऽकार्षीबिग्राद्यः प्रथमं fe a: eeu दति जल्यन्रनल्यक्रत्‌ एष्वोपतिरघातयत्‌ | सपुत्चवन्धुमिजं तं विप्रं मशकमुष्टिवत्‌ ८४ दशोरन्धोल्लतस्तेन इदयेऽन्धौक्षतः AUT |

विप्रान्‌ खोऽघातयत्‌ सर्वान्‌ षुरोधःप्रथतौनपि ८५॥

(1) Wee चरफोटयत्‌। (२) Wawe wy |

हितोयः प्रकाशः | २५६

सोऽमात्यमादिदेशेवं Hat दिजग्ममाम्‌ 1

विशालं खालमापूयय निधेहि पुरतो मम nega रोद्रमध्यवसायं तं राज्ञो fama मन््ापि। स्चेमातकफलैः सालं पूरयित्वा पुरो न्यधात्‌ ९७ सुमुटे ब्रह्मदत्तोऽपि पालिना संसु शन्पु इः

विप्राणां लोचनैः ma साघु qufafa ब्रुवन्‌ ॥र८॥ स्मे सरोरब्ररूपायाः yaaa नहि | यथाऽऽसोद्रह्मदत्तस्व ततख्थालस्यशने रतिः ९८ a कदाचन खालमपलारयदप्रतः।

suet मदिरापाज्रमिव दुगेतिकारणम्‌ ५०० विप्रनेवधियाऽखङात्‌ चेभातकफलशानि सः | फलाभिमुखपापद्रोः सव्लयन्रिव दोहदम्‌ १॥ तस्यानिवत्तंको रोद्राध्यवसायोऽत्यवरत

aga वा wi वाऽपि ad fe महतां महत्‌ ॥२॥ त्येवं वसुषेशस्व रोद्रध्यानागुवन्धिनः | पापपडूवराहस्य ययुवषीखि षोडश ३॥

यातेषु षोडगयुमेषु waaay

सप्तखसो सितिपतिः परिष्ूरितायुः हिंसाऽनुबन्धिपरिणशामफलातुरूपां

तां WAAL नरकलोकभुवं जगाम ५०४॥२७॥

इति ब्रह्मदस्तचक्रव्तिकधानकम्‌ A

२६० MANE

पुनरपि feaarfaefa |

afaat at पङ्करशरौरौ at पुमान्‌ अपि aurwaatet तु हिसापरायणः २८

कुणिविकलपाणिः वरमिति मनागिरे मन्तमव्ययं aE: पादवि- कलः कुस्सितं शरोरमशरोरं नञः कुत्ाधेत्वात्‌ तदिव्यते यस्य सो- ऽशरोरो कष्टो विकलाङ्गः श्िपङ्ककुष्ठिनस्ते हि विकलाङ्कत्वारेव हिंसामङ्कवैन्तो मनाक्‌ Fer: सम्पूयेसर्वङ्गोऽपि क्षतपरिकरबन्धं हिंस्ापरायणः garagq 48: ननु रौद्रध्यानपरायणस्य या feat सा नरकहेतुताब्रिन्याऽसुयातु शान्तिकनिित्तं प्रायबित्तभूला feat at वा कुलक्रमायाता मलव्छयबन्धानामिव सा रौद्रध्यान- रहितत्वाच्र दोषायेत्याह २८॥

हिंसा विघ्नाय जायेत farmer क्ताऽपि हि | कुलाचारधियाऽप्येषा Rat कुलविनाशनौ २९ tt

रो द्रष्यानमन्तरेणाप्यविवेकाक्ञोभाहा या शान्तिनिमित्तं कुन. क्रमादहा हिंसा सा केवलं पापेतुः प्रत्युत विश्रान्ति निमित्तं क्रियमाणा समरादित्यकधोक्षस्य यशोधरजोवस्य सुरैन्द्रदत्तस्येव पिषटमयकुक्टवधरूपा विघ्नाय जायेत कल्येत भष्मत्कुलाच।रोऽयमिनि बुहणाऽपि क्ता fear कुलमेव विनाग यति॥ २८

हितोयः प्रकाशः | २९१

इदानीं कुलक्रमायातामपि feat परिहरन्‌ पमान्‌ प्रशस्य

UAE |

अपि वंशक्रमायातां यस्तु हिंसां परिलयजेत्‌ शेष्ठः सुलस इव कालसोकरिकात्मजः ३२०

am: कुलं कुनक्रमायातामपि feat यः "परिहरेत्‌ As: प्रशस्य aa: Jae va ae विशेषणं कालसौकरिकात्मजः कालसीक- font नाम सोनिकस्तस्यातमजः पुश्रः।

यदाह-- | ‘afa दच्छन्तिय मरणं मय परपोडं कुणन्तिमणसावि। सुविष्ग्रसुगद्यद्ा सोयरिश्रसुश्रो जदा सुलसो सुनतमकधानकं सम्प्रदायगम्यम्‌ |

सचायं-

(>)

महरि aneafa पुरं राजग्डष्टाभिधम्‌।

ततर खोवोरपादालभङ्गोऽभूष्छेणिको गृपः॥ १॥ तस्य प्रियतमे aerfaat शोलभुषषे |

प्रभूतां देवकोरोहिख्याविवानकदुन्दुमेः॥२॥. नन्दायां नन्दनो विष्वकुमुदानन्द् चन्द्रमाः | माम्राऽभयकुमारोऽभरू दुभयान्वयभरुषणः

गणी णी = rt ee ee ee ee ee

पररिचजेत्‌। अपि दच्छन्निच मरणंन परपोडां कुन्ति मनसापि। ये ofatzagafaqa: wWafce ga यया सलसः।॥!॥

२९२

ALANIS

गजा AS परिच्राय wast बुहिकोशलम्‌

ददौ सर्वाधिकारिलं शुषा fe गरिमास्पमदम्‌ ४॥ भन्धदा RAMA faery परमेश्बरः | जगत्पुज्यः पुरे तस्मिन्रागत्य समवासरत्‌ ५॥ श्रुता खामिनमायातं अजङ्गमं कल्यपादपम्‌ | waa aarp: Away वृपः ९॥ यथाखामं निष्ेषु देवादिषु TAKE: |

प्रारेभे दुरितध्वं स!देशनीं whey

तदा gunna: afaea प्रणम्य च।

` निषसादोपतोर्ैयमलकं wa Hea ८॥

लतो भगवतः पादौ निजपूयरसेन सः | निःगङ्घन्दमेनेव चव्वयामास भूयसा ॥८॥

atte afer: क्रो दध्यौ वध्योऽयसुलितः | पापीयान्‌ यस्जगदधनत्येवमाशातनापरः १० अत्रान्तरे जिनेन्दरेख सुते प्रोवाच afee: | ज्ियखेत्यय जोति afaaa ga सति ee चतेऽभयङ्कमरेष जोव वा तवं ज्ियख वा | कालसौकरिक्षेणापि शते मा जोव मा GAT: १२॥ जिनं प्रति ज्ियसखेति वचसा रुषितो कृषः

इतः खानादुच्छितोऽसो aver इत्यादिशङटान्‌ १२

(1) कग neeaat |

हिलोयः प्रकाशः | २६९१

देगनान्ते महावोरं नत्वा Bet समुलितः |

eae प्रेखिकभटे; किरातैरिव शूकरः १४॥

तेषां पश्यतामेव दिष्यरूपधरः waz | उत्पपाताम्बरे कुव ब्रह विम्बविडम्बनाम्‌ १५॥ पत्तिभिः कचिते cat aw एष इति विस्मयात्‌ fawat भगवानसर देवोऽसावित्य चोकथत्‌ १६॥ एन" विन्नपयामास सर्वज्ञमिति भूपतिः |

देवः कथमभूदेष Hel वा केन हेतुना १७ weave भगवामेवमस्ति aay विशता |

कौशाम्बो नाम पृस्तस्यां शतानोकोऽभवन्रुपः १८ तस्यां नगब्धाभेकोऽज्नामतः सडको दिजः |

सोमा सदा दरिद्राशां मूखाणामवधिः परः १९ गभिख्छाऽभाकि dstigqalwer alana | UAT तं AW सद्या AWM व्यथा W Ro Il सोऽप्युवे at प्रिये नास्ति मम garfa कौशलम्‌ | येन किञ्िक्नभे क्लापि कलाग्राह्मा यदोण्ठराः २१॥ उव्राचसाच तं महं गच्छ सेवस्व पाथिवम्‌ ,

पर्थिव्यां पाथिवादन्यो afaenerated: २२॥ तथेति प्रतिपद्यासो ad पुष्यफलादिना |

wan: सेवितुं fant दव्रष्छरिव सागरम्‌ ॥२३॥

(१ w त्भापयानास।

alana `

कदाचिदथ कौशाम्बो चम्पेगेनामितेबलैः |

चनर्तृनेव Aarau समन्ततः २४ सानौकोऽपि शतानोको मध्येकौगाम्ि तर्िवान्‌ | प्रतीच्चमाणः समयमन्तविलमिवोरगः २५ चम्पराधिपोऽपि कालेन बहना सन्रसेनिकः |

पराहषि खाश्रयं यात Weel राजडहंसवत्‌ २६ तदा युष्परार्थसुद्याने गतः शेडक र्त

तं areal ware निभ्मुभोड्मिवोडुपम्‌ २७ तू्भेत्य शतानोकं व्यजिन्नपदसाविदम्‌ |

याति स्षौीखबलस्तेरिर्भग्नदद्र इवोरगः WRT ॥. यद्यदोत्तिष्ठसे AH तदा WW: सुखेन सः | बनोयानपि fea: सत्रखिन्रेनाभिभूयते॥ २८ तदच; साघु मन्वानो राजा स्वाभिसारतः। निःससार श्रासारसारनासौोरदारुणः ॥२०॥

ततः पञ्चादपश्यन्तो नेशम्मेशसेनिकाः अचिन्तितितिडित्पाते को वोक्षितुमपि समः uae a चम्पा धिपतिरेकाङ्कः कान्दिगोकः पलायितः।

तस्य इख्यण्बकोशादि कौशाम्बोपतिरग्रष्टोत्‌ ३२ we: प्रविष्टः कौशाम्बीं शतानोको महामनाः | उवाच aeai विप्र ब्रूहि तुभ्यं ददामि किम्‌ ३३॥ विप्रस्तमू चे याचिष्ये एष्टा निजकुटुम्बिनोम्‌ पर्यालो चपदं नान्यो wheat wiwat विना १४

fedia: प्रकाशः २९५

WE: प्रद्ष्टो भट्िन्ये तदशेषं शशंस सः

चेतसा चिन्त्रामाससा चेवं टददिशथालिनो॥३५॥ य्यसुना ग्राहइयिष्ये दरपाद्रामादिकं तदा|

रिष्यत्यपरान्दाराश्मदाय विभवः खलु ३६॥

दिनं प्रत्येक श्रालोचख,'स्तथाग्रामनभोजनम्‌ ।.

claret दचिकायां याय इत्यन्वशात्परतिम्‌ १७ ware त्था विप्रो रानाऽदास्रहदब्रिदम्‌

RUT isfarafa प्राप्य श्टहृात्याको चितं पयः ac x WAG AHA लेमे प्राप्य सम्भावनां चसः।

पुसा राजप्रसादो fe वितनोति महार्घताम्‌ ३८ राजमान्योऽयमित्येष नित्यं aaa |

यस्य प्रसत्रो कृपतिस्तस्य कः UTA सेवकः ४० अग्र YM चालयित्वा बुभुजेऽने कशोऽप्यसौ |

प्रत्यहं दस्तिणालोभादिग्धिग्लोभो दिजग्मनाम्‌ ४१ उपाचौीयत विप्रोऽसौ विविषैर्तिणाधर्मः | प्रासरत्यत्पौत्ैव पादेरिव वटहुमः | ४२

तु नित्यमजोरणात्रवमनादद्गैरसेः |

अमे रभू हूषितत्वगश्वलय दव लाक्षया ४३

कुष्ठो MAT Gas भोखघ्राणां्िपाणिकः। तथेवाभुक्ञ राजाग्रे सोऽढप्तो हव्यवाडिव ४४

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(1) @uaw arate: |

२४

२९९

योगशास्त्रे

एकदा मन्िभिमपो विन्नपतो देव Fare wafcy: कुष्ठरोगो नास्य योग्यभिष्टाश्चनम्‌ ४५॥ सन्त्यस्य AGA: पुत्रास्तेभ्यः RISA भोज्यताम्‌ | "व्यह्धितप्रतिमायां fe स्थाप्यते प्रतिमान्तरम्‌ i Be एवमस्त्विनि राज्नोक्तेऽमात्येरविप्रस्तथोदितः | स्वस्थानेऽस्थापयत्प॒वं we तस्थौ स्वयं पुनः ४७ मधुमण्डकवदृसुदरमल्तिकाजालमालितः सजर्गृादपि बदिः कुटोरेऽचेपि दिजः ४८ afe:feau तस्याज्ञां gat भपि चक्रिरे दारुपात्रे ददुः किन्तु एनकस्येव भोजनम्‌ ४८ +

लुगुष्छमाना वदृष्वोऽपि तं भोजयितुमाययुः |

तिष्ठिवु्षलितग्रोवं मोटनोत्प॒टनासिकाः ५० + अथ सोऽचिन्तयद्िप्रः ओौमन्तोऽमो मया क्ताः | पभिर्ु कोऽस्य नाहन्य तो णौम्भोभिस्तरय्डवत्‌ ५१ तोषयन्ति वाचाऽपि रोषयन्तयेव माममो

बो रुष्टो सन्तुष्टोऽभव्य इत्यनुलापिनः ५२ ज्ुगुष्ठन्ते यथेते मां FAM: स्यरमो पपि |

यथा तधा करिष्यामोत्यालोच्यावोचदामजान्‌ ५२॥

उद्िग्नो जो वितस्यादं कुलाचारस्वसौ सुताः मुमूर्षभिः कुटुम्बस्य देयो क्ो चितः एः ५४

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(१) wae म्यङ्कित-।

1

हितोयः प्रकाशः 1 २६९७

पशुरानोयतामेक इत्याकश्याीगुमोदिनः | अनिन्धिरे asa पशु पशवन्बन्दबुदयः ५५॥ उदर्योदच्यं स्वाङ्गमत्रेन व्याधिवत्तिंकाः। तेनाचारि पशुम्तावव्यावत्‌ Hel बभूव सः ५६१५ wel विप्र; SQA इत्वा TANT | लदाभशयमजानन्तो FUT बुभुजिरे चते॥ vo AG BWIA यासवामोत्याच्छा तनयान्‌ दिजः ययाबुङेमुर्खोऽरख्छं शरर्यमिव चिन्तयन्‌ ५८ a श्रत्यन्तटषितः सोऽटत्रटव्यां पयसे चिरम्‌ ्रपश्यसुष्दमिव देशे नानादुमे इदम्‌ ५८ At लोरतरुखस्तपवतपुष्पफलं दिजः 1 ग्रोममध्यन्दिनाकांशक्थितं क्राथवत्पपौ ge a सोऽपाद्यधा यथा वारि भूयोभूयस्त॒षाततुरः |

लथा तथा विरेकोऽस्य aya afafa: सद ee a नोरगासोत्कतिभिरप्यशोभिकदाश्चसा | मनोज्ञसवांवयवो वसन्तेमेव पादपः ६२ ्रारोग्यहृष्टो aaa विप्रः far सख वे्मने |

dat वपुविशेषोलण्ङ्रारो जग्मभूमिषु ६२

gai प्रविशन्‌ पौरेददे जातविस्मयेः | देदौप्यमानो निर्सुकषो निर्मोक दव पन्नगः ९४ पौरेः पृष्टः Yana इवोह्लाघः कथं त्वसि टेवताराभनादस्मोत्याचचक्षे सतु दिजः॥ ९५॥

्णिोणिििणभी a =

२९८

योगशास्त्र

गल्ला BUF ऽपश्यःखपुवान्‌ कुष्ठिनो मुदा | मयाऽवन्नाफलं साधु दक्मित्यवदच्च तान्‌ ६९१ सुतास्तभे वमू चुख भवता तात निघेषणम्‌ विश्वस्तेषु किमस्मासु दिपैषे दममुठितम्‌ ९७ लोकंराक्रुश्यमानोऽसौ THAT ते पुरम्‌ | ्रख्रयस्मोविकादारं हारपालं निराखरयः॥ ६८ तदाऽ वयमायाता दाख्थोऽस्मदमदेशनाम्‌ | ओत्‌ प्रचलितोऽमुखन्ं विप्रं निजकमेणि ६८ हारोपविष्टः हारद्गौणामग्रतो बलिम्‌ | walevfaayem यथेष्टं afea: Fata ७० भ्राकण्ठं परिभुक्नाव्रदोषाद्रोभोभणा सः। उत्पव्रया SASH AEWA इवाकुलः ७१ तन्त हाःखभिया स्यानं aa नागा्मपादिषु असौ जलचरान्‌ जोवान्‌ धन्याकने ठषातुरः ७२ भ्रारटन्‌ वारि वारोति ठषात्तो व्यपद्यत | इहेव नगरदारवाप्यामजनि TST: ७२ faecal वयं भूयोऽप्यागमाभेद् पत्तनं | लोकोऽसखमदन्दनाथं प्रचचाल ससम्भुमः ७४ GCACMAMNTR अुताऽश्भोदारिणोमुखात्‌।

भेकोऽचिन्तयदिदं aad खुतपूव्य्धम्‌ ७५ ऊषापोष्टं ततस्तस्य कुर्वाणस्य FRAT: | स्वप्रस्मरणवव्ना तिस्मरणं तत्लणाद भूत्‌

हितीयः प्रकाशः | २६९

दध्यौ दर्दुरं हारे संखाप्य मां पुरा)

Stet यं afequara आ्रागाद्धगवानिदह ७७ येते यान्ति तं xe लोका यास्याम्यदं तथा | सवेसाधारणो APT नहि कस्यापि Taal ७८ ततोऽस्महन्दनाहेतोरुलङ्गत्यो्छुत्व सोऽध्वनि |

आयां स्संऽवस्वुरचुस्छो भेकः पश्चत्वमाप्तवान्‌ ७९ दरदंराद्धोऽयसुत्पेदे देवोऽखाद्ल्षिभावितः

भावना fe फल्तत्येव विनाऽनुषटानमप्यहो ८० CE. सदस्यवाचेदसुपत्रेखिकमाहताः | भरव्रह्धानस्तदसोौ तत्यरोक्ताधमागतः ८१॥

गो शो्षचन्दभेनायमानश्च चरणे AA | त्वहष्टिमोङनायान्धत्सधे व्यधित वेक्रियम्‌ cen ame afer: खामिव्रमङ्गन्हयं प्रभोः BW | एषोऽन्धेषां तु मङ्कल्यामङ्कल्यानि जगाद किम्‌ ८३ waaay भगवान्‌ fa भवेऽव्ापि तिष्ठसि |

Mi We प्रयाषहोति मां खियखेत्युवाच सः ८४ सत्वां जगाद Haifa जोवतस्ते यतः सुखम्‌

नरके मरथादूल तस्व हि गतिस्तव ८५ जोवम्‌ wi विधन्त स्याहि मानेऽनुत्तरे सृतः |

जोव ख्ियस्व वेत्येवं तैनाभयमभाषत ८६

जो वन्‌ पापपरो wal सप्तमं नरकं व्रजत्‌ | कालमोकरिकस्तन प्रोचेमा जोवमा मधा; ८७॥

२.७०

योगशास्त्रे

तच्छ्रत्वा श्रेशिको नत्वा भगवन्तं व्यजिन्नपत्‌ |

त्वयि नाथे जगन्रा् कथं मे नरके गति; ८८ बभाषे भगवानेवं पुरा तमसि भूपते |

बहायुनेरके तेन तज्रावश्यं गमिष्यसि ८८ शमानामशभानां वा फलं प्राग्‌ वदकमण्याम्‌ | aimed तद्‌ इयमपि नान्यथा कर्सुमोभ्मरे ९० mat भाविजिनचतुविंशतौ त्वं भविष्यसि | पद्मनाभाभिधो राजन्‌ खेदं मा स्र HATTA: Wee ti afwatsuracara किसुपायोऽस्ि कोऽपि a: | ACHTaAA रच्येऽहमन्धकूपादिवान्धलः wer ti भगवान्‌ व्याज्ारेदं साधुभ्यो भक्तिपूवैकम्‌। ब्राह्मण्या चेत्क पिलया frat दापयसे सुदा 22 कालसौकरिकाल्मृनां विमो चयसि दा यदि।

तदा ते नरकाकमोक्षो राजन्‌ जायेत नान्यधा wey tt सम्य गित्युपदेशं छदि हारमिवोदष्न्‌ |

प्रणम्य यो महावोरं चचाल खाखयं प्रति <५॥ अन्रान्तरे TUN ददुराङ्केन BTM: |

ward facuary: aan इव ofaa wee a eur प्रवचनस्य मालिन्धं मा uafeafa | निवार्यीकाय्यतः सामरा SY प्रत्यमानरुपः ९७ देवो दशयामास साष्वोसुदरिग्षीं पुनः

aa: शासनभक्षस्तां जुगोप निजवेश्मनि yes

——- ,

हितीयः प्रकाशः | २७१

प्रत्यस्षोभूय देवोऽपि तमूचे ary ary ar: | UAMIATMY नेव पवतः खपदादिव ९८ वनाथ यादृशं शक्रः सदसि त्वाम चोकथत्‌ टृष्टस्ताषटश एवासि मिष्यावाचो ATENTA १०० दिवानिमितनक्तवगेखिकं 'afuata a: | व्य्राणयन्ततो हारं MARAT तथा aise सन्धाख्यते हारं wiz मरिष्यति |

इत्यदोयय तिरोचधन्न खप्रटृष्ट इवामरः

दिव्यं Qa ददौ wit Saas मनोषरम्‌ | गोलकहितयं तन्तु नन्दये ृपतिर्मृदा दानश्यास्यास्ि योग्येति et नन्दा मनखिनो। WAT स्फोटयामास WA तदोलकहइयम्‌ एकस्मात्कण्छलदन्दं चन्द्रहन्मिवामलम्‌ | देदोप्यमानमन्धस्मात्कोमयुग्मं निःखतम्‌.॥ ५॥ तानि दिव्यानि रत्नानि नन्दा सानन्दमग्रहोत्‌ | पनभ्चवष्टिवज्ञाभो महतां स्यादविन्तितः॥ a राजा ययाचे कपिलां साधुभ्यः खद्याऽज्िता।

भिन्तां प्रयच्छ fafiiet लां करिष्ये धनोच्चकेः कपिलोचे विधते मां सवां auaat यदि | feafar at तधाऽप्येतदज्लत्यं करोम्यद्म्‌ ८.॥

SO ee em 8 1 1 ee -ee =:

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यो गश।स्ते

कालसौकरिकोऽप्युचे रान्ना सूनां faquaq दास्येऽहमर्थमथस्य लोभाष्ठमसि सौनिकः < सूनायां ननुकादोषो यया wafer मानवाः। तांन जतु त्यजामोति कालसौकरिकोऽवदत्‌ १०॥ सूनाव्यापारमेषोऽत्र करिष्यति कथं fafa :

कृपः चिघ्वाऽन्धङ्कतै तमहोराव्रमधारयत्‌ ११

wa विन्नपयामास गत्वा भगवतं कृपः |

सोऽत्याजि सौनिकः सूनामदोरात्रमिदं विभो १२॥ सवन्नोऽभिदषे राजब्रन्धकूपेऽपि सोऽवधोत्‌ 1.

शतानि पञ्च महिषान्‌ खयं निर्माय मृमयान्‌ १३२॥ aver खे खिकोऽपश्यत्‌ सखयसुददिविजे ततः

fanwt मे पुरा कमा नान्यथा भगवद्धिरः॥ १४॥

पश्च ug गतान्यस्य महिषाव्रिन्नतोऽन्बदम्‌ | कालसौकरिकस्योच्चेः पापराशिरवद्ैत १५॥

दृष्टापि रोगास्तस्यासन्दारुणरतिदारुणाः | पयेन्तनरकप्रापते UTS PARTS: १६ A

हा तात Et मातरिति व्यापिबाधाकदधितः। वध्यमानः शूकरवत्कालसौकरिकोऽरटत्‌ १७ सोऽङगनातूलिकापुष्मवो षाक्रणितमाजिताः |

,हणटिलम्नासिकाक जिद्धाशूलान्यमन्यत १८

ततस्तस्य सुतस्ताहटक्‌ VSG सुलसोऽखिलम्‌ जगाद जगदाप्तायाभदायाभयदायिने १९ u

हितोयः प्रकाशः | २७३

ऊषेऽभयस्त्वत्पिता यश्चक्रं तस्येटशं फलम्‌ 1

सत्यमल्युग्रपापानां फलमतेव लभ्यते Ro

तथाऽप्यस्य कुर प्रत्ये विपरोतैद्दरियाघताम्‌

अरमेध्यगन्ध विष्व॑से uaa जलमोषधम्‌ ॥२१॥

Wa सुलसस्तं तु कटुतिक्ञान्यभोजयत्‌ 1

भरपाययदपोऽत्युश्णास्तपतपुसहादराः २२॥

भूयिष्ठविष्ठया सषु सर्वाीङ्गोशं व्यलेपयत्‌ `

ऊद्करटकमय्यां शय्यायां पदसूषुपत्‌ २३॥

खावयामास चक्रो वतक्रभेलकरवान्‌ ALF

रक्लषोवेतालकङ्कालघोररूपागण्यद शंयत्‌ २४

a: प्रोतः सोऽब्रवोत्पुत्रं चिरात्खादद्य भोजनम्‌ |

Wa वारि ae: शय्या सुगन्धि विक्तेपनम्‌ २५॥

शब्द्‌: शुतिमुधाऽमूनि रूपाण्येकं सुखं ZA: |

anata तल्याऽस्मात्‌ किं afeaisfa चिरं सुखात्‌ wren

तच्छत्वा TAR दध्याविदमतेव जगनि t

Set पापफलं घोरं नरके किं भविष्यति २७॥

waa चिन्तयत्येवं गला प्राप दारुणम्‌ |

सप्तमे नरके स्थानमप्रतिष्ठानसंज्जितम्‌ २८॥

कतोडदेहिकोऽभाणि gaa, सखजनैरिति

faq: खय पदं स्याम सनाथा fe ल्या यया॥२८॥

सुलसस्तानुवाचेदं करिष्ये कमं Awe: |

कि श्चिह्लेमे फलं पित्राऽप्यत्रैवासुष्य कमणः ३२० २५.

२७४७ योगशास्त्र

यथा मम प्रिया प्राणस्तथाञन्यप्राखण्नामपि

प्राणिताय fuel परप्राणप्रमारणम्‌ Re It हिंसाजोविकया जौवेत्‌ कः प्रच्य फलमोटश्म्‌ मरणेकफलं sar किंपाकफलमत्ति कः २२॥ अथ ते खजना प्रोचुः पापं प्राणिवधेऽत्र यत्‌ I तदिभज्य ग्रहोष्यामो हिरण्यमिव गोतिणः॥ २२॥ त्वमेकं महिषं इन्धा इनिष्यामोऽपरान्‌ वयम्‌ | अरत्यल्यमेव ते पापं भविष्यति ततो नमु २४॥ Tera gaa: पिरय कुटारं पाणिना aa: | तेनाजघ्ने निजां set afedt निपपात २५॥ लब्धसंश्नस्ततोऽवादोव्‌ 'साक्रन्दः HATA |

शा कुठारप्रहारेण कटोरेणास्मि पोडितः॥३९॥ wala बन्धवो युयं विभज्य मम वेदनाम्‌ | स्यामख्यषेदनो येन पोडतं पात पात माम्‌ २७॥ gad खिन्रमनसस्ते प्रतिबभाषिरे।

पोडा कस्यापि sata weld शक्यते किसु acy सुलसो amelie यद्‌ व्यधाभियतोमपि।

नमे ग्रहोतुमोशिष्वे तत्कथं मरकन्यथाम्‌ २८ कलवा पापं कुटुम्बार्थं घोरां नरकवेदनाम्‌ | एकोऽसुत्र सदिष्येऽद्धं स्थास्यन्यत्रैव बान्धवाः ४०॥

क-म ee a ee ~ भि न+ आना नन

(१) चसंक्रन्द्न्‌ टरूगस्वगम्‌ | सक्रन्द्न्‌ क-।

facta: प्रकाशः ROY

feat aa करिथामि पेचिकौमपि adr

पिता भवति यखन्धः किमन्धः aradisia fe nse a

एवं व्याहरमाणस्य सुलस स्यातियोडया

प्रतिजागरशायागादभयः खेणिकामजः॥ ४२३

परिरभ्य बभाषे anna: ay ary at: |

सवते ुतमस्माभिः प्रमोदादयमागताः ४२॥

पापात्ितयादपक्रामन्‌ कदंमादिव दूरतः |

त्वमेकः AIST इन्त पक्षपातो गुणेषु नः ४६॥

सुलसं पेशलेरेवम!लापेघर्मवत्सलः |

अरनुमोदय निजं धामस जगाम वृपातलजः॥ ४५॥

SAA सुलसो ग्रहोतष्ादशत्रतः।

दौगेत्यभोतोऽस्थाञ्ेनधर्मे रोर दइवेष्वरे va कालसौकरिक घुतुरिवेवं यच्यजेत्‌ कुलभवामपि हिंसाम्‌ | सखगसम्पददवोयसि तस्य श्रेयसामविषयो हि किख्ित्‌॥१४७। २०४

रध हितां कुवत्रपि दमादिभिः पुण्यमजयत्येव पापं विशोध्येदिव्याइ- दमो देवगुङपासिदानमध्ययनं तपः | सवेमप्येतदफलं हिंसां चेत्र परित्यजेत्‌ २१॥ दम इन्द्रियजयः, दैवगुरूपास्तिदेवमेवा गुरुसेवा च, दानं पात्रेषु

Salary, श्रष्ययनं धमशास््नादेः पठनं, तपः wee चान्द्रायणादि, wate wate तु किचदेव, wae

ROE योगशास्त्र

पुश्याजंनपापक्तयादिफलरह्ितं चेव्यदि feat शान्तिकडतं बुल क्रमायातां वा परित्वजेत्र परिहरेत्‌ एवं तावन्मांसलुब्ानां शान्तिकाथिनां कुलाचारमनुपालयतां या fea सा प्रतिषिद्धा ३१॥

दटानीं शास््नोयां feat प्रतिषधन्‌ गास्रत्वेन वाऽऽनिपति-

विश्वस्तो मुग्धधौर्ला कः पात्यते नरकावनौ | अहो शंसेर्लीभिामेटिसाशास्वोपदेशकेः 22

ferred व्यमा तस्योपदेशका हिंसाशाखोपदेशका मन्वा- दयस्तैः किं विशिष्टेनृशंस निदंयेः। दयावान्‌ fe कथं हिंसाशास- मुपदिशेत्‌ 1 waive हेतुमाह ana: मांसलोभान्धेः स्वाभाषिकविधेकविधेैकिसंसगेचसुरहितैः | यदाह--

एकं fe चत्तुरमलं सहजो विवैक-

wefata सह संव षतिहिं तीयम्‌ |

एतदयं भुवि यस्य तत्वतोऽन्ध-

स्तस्यापमागेचलने खलु कोऽपराधः

अहो इति fare यतो विश्वस्तो fara: विश्वस्तत्वे हतुर्मु्धोः | चतुर दिदि aaa विवेचयन्‌ प्रतारकवचभ्सु विश्वसिति लोकः; प्राक्ततो जनः पात्यतं चेष्यते नरकावनौ नरक- VATA २२॥

दितोयः प्रकाशः | 299 feanraaa यदाहरित्यमेन प्रसुत्य fafenfa— TAG पशवः Wt: BART खयंभुवा | THM YA सर्व॑स्य AAT वधोऽवधः ॥३३॥

यत्रायं यन्ननिमित्तं खयंभुवा प्रजापतिना पशवः ष्टा उत्पादिताः स्वयमेवेत्ययवादः wea जगतो विश्वस्य am ज्योतिष्टोमादिः भूत्यै भूतिविंभवः तस्मात्तत्र यो वधः वधो farsa: हिंसा- जन्यस्य पापस्यानुत्पत्तेः | एवमुच्यते कधं पुनयंन्न हिंसादोषो नासि उश्यते। हिंसा हिंस्यमानस्य महानपकारः प्राण- वियोगेन षव्रदारधनादिवियोगेन वा सर्वानर्घोव्पत्र्दृष्कुतस्य वा नरकादिफलविपाकस्य प्रत्यासन्तेः। यन्न तु हइतानामुपकारो नापकारः नरकादिफलागुत्पन्तेः ३३१ `

waaay

ओषध्यः पशवो sarfaarg: पक्षिणस्तथा | यज्नाथं निधनं प्राप्ताः प्राघ्रवन्तयुच्छितिं ga: ॥२४॥

swat दरभादयः पशवन्डकागादयः ह्ला aurea: faa गवाण्वादयः afew: कपिश्ञलादयः ame यन्ननिमित्तं निधनं विनाशं प्राप्ताः यदपि कैवाञ्ित्तत निधनं नास्ति aarfa ar a यावतो पोड। विद्यत इति सा निधमशष्देन wend प्राप्रवन्ति यान्ति उच्छ्रितिसुत्कषं देवगन्धवयोनिल्वमुत्तरकुववादिषु दौ्चीयु- ष्कादि ३४॥

Rot TANTS यावत्यः काचिष्डास्र चोदिता हिसास्ताः dfaa दग्यति-

मधपकं यञ्ज पिठदेवतकर्मखि | waa पश्वो far नान्यचेत्यत्रवौन्मनुः ३५

ayaa: क्रियाविशेषः aa गोवधो विहितः यन्नो ज्योति wae: तत्र पश्वधो विहितः पितरो दैवतानि aa कमखषटकादौ तश्च ae यदा पितृणां दैवतानां कमं मङायन्नादि॥ ayn

एष्वर्थेषु पशुन हिसन्‌ वेदतच्चाथविदिजः | ° oA भात्मानं पथूश्चव गमयल्युत्तमां AAT ॥२६॥ एतान्थौन्‌ साधयितु पशून्‌ हिंसन्‌ हिज भामानं पशृद्योत्तमां गतिं सख्र्गापवगेलक्तणां गमयति प्रापयति बैदतक्लाधंविदिति

विदुषोऽधिकरारित्लमाह ३९

हिसाशाख्ममनृद्य एनस्तदुपदेयकानाक्िपति-

ये चक्र; क्रुरकमागः शास्त्रं हिंसोपदेणकम्‌ | क्त ते यास्यन्ति नरके नास्तिकेभ्योऽपि नास्तिकाः uso

~

थे मन्वादयः at निधृणं कमं येषां ते क्रूरकर्माणः ae सत्यादि हिंसाया उपदेशकं चक्रुः ते डिंसाशासत्रकत्तारः कर नरके यास्यन्तोति विस्मयः तै चास्तिकाभासा रपि नास्तिक्भ्यो- ऽपि नास्तिकाः परमनास्तिका इत्यथः २७

हितीयः प्रकाशः | २७९. Sa चेत्यनेन संवादक्षोकसुपदशयति-

वरं वगाकश्वार्वाको योऽसौ प्रकटनासिकः वैटोक्तितापसच्छद्मच्छन्नं Tar जैमिनिः ३८

वरमिति amfaet जेमिन्यपेक्षया चार्वाको लौकायतिकः वगक इति दम्भरदितत्वादनुकम्प्रयः। तदेवाह योऽसौ प्रकट नास्िकः। जेमिनिसु a वरं कुतः बैदोद्धितापसच्छ्म तापपवेषस्तन Sa Ta Uae रयं fe वेदों मुखे क्रत्वा सकलप्राणिवश्चनात्‌ मायावो wad दव। aya! ama पशवः wet दति acre निजनिजकमनिमण- areata नानायोनिषु जन्तत्रः समुत्पद्यन्त इति wala: कस्यचित्‌ खष्टिवादः यन्नोऽख्य भूतये सर्वस्येति त्वधेवादः पलपातमात्रं वधोऽवधो इति तूषहासपात' वचः aw विनि. हतानां चौषध्यादोनां पुनर्च्छयप्रासिः अदधानभाषितं भक्लत- सुल्ताना यन्नवधमाव्रेोच्छ्ितगतिप्रा्ययोगात्‌ भ्रपिच यन्न हननमाव्रेण यदि उच्छितगतिप्रा्िस्तह्िं मातापित्रादौनामपि as aa: किंन क्रियतै। यदाहुः- नाहं सखरगेफलोपभोगठषितो नाभ्यधितस्त्वं मया सन्तुष्टस्तुणमन्तणेन सततं साधो qa तव

भजय = मामनि कम = = ~ = ee ~ ~ = ^~ = ee = 9 मो 9 ees

(१?) चड़ -माव्रम्‌।

ate ` योगशास््

wii यान्ति यदि त्वया विनिष्ता यन्न धुवं प्राखनो ay fa a करोषि माष्टपिदभिः पुवैस्तथा बान्धवः ॥१॥ मधुपकौदिषु feat ae नान्येति खच्न्दभाषितं, को हि विशेषो हिंसाया यनेका चेयस्करो नान्येति। Farag सर्वाऽपि हिंसा aware: यथा- "सव्ये mat वि इच्छंति जोविं मरस्जिं ar पाणिवष्ं घोरं निम्ग॑धा वल्जयंति म्‌ १॥ TaN wraret aida गमयत्युत्तमां गतिमिति तदतिमहासाहसिकादन्यः को वल्लुमहेति। sf नाम पो- रहिखस्याकामनिजरयोन्तमगतिलाभः संभवेत्‌ दिजस्य तु निशातज्ञपाणिकाप्रहारपूधै सौनिकस्येव निदेयसख हिंसतः कथसुत्तमगतिसंभावनाऽपि स्यात्‌ २८

एतदेव विरषाभिधानपूवकमुपसंदरव्राह-- देवोपद्ारव्याजेन यन्नव्याजेन येऽथवा | नोर द्गति तरन्ति जन्तुन्‌ TTA घोरां तै यान्ति दुगतिम्‌ ॥२९॥

देवा मैरवचर्डिकादयस्तभ्यः उपद्ारो बलिः एव व्याजं श्र सेन महानवमोमाघाष्टमो चैत्रा्टमौनमसितकादिषु देवपूजाच्छद्म-

(१) सवेजीवा पि इच्छन्ति fad मतुम्‌ | तसात्‌ nifard घोरः निर्मन्य। व्रजंयन्ति॥ १॥

हितीयः प्रकाशः २८१

ना ये जन्तुघातं कुवन्तिये anata गतष्टणा निर्दयास्तं घोरां रौद्रां दुगतिं नरकादिलक्षणां यान्ति wa देवोपदारव्याजे- नेति विशेषाभिधानं यन्नव्याजेनेव्युपसंहारः श्रपि faume धर्मसाधने खाधीने सावाधपराधोनधमसाधनपरिग्रहो खेयान्‌ |

यदाइः- wa Quy विन्दत किमधं cad व्रजेदिति॥ ३८ waeare—

शमग्रौलदयामूलं feat wa जगदितम्‌ | अदो हिसाऽपि धर्माय जगदे मन्दबुहिभिः ॥४०॥

शमः कषायेन्द्रियजयः Te सुखभावता दया भूतानुकम्पा एतानि मूलं कारणं यस्य तथा धर्मोऽभ्युदयनिःखेयसकारणं तं किं विशिष्टं जगित, fear ster शमशोलादोनि धमसाधनान्धुपै- चयत्यर्थः, we इति विस्मये हिंसा भ्रपि घमंसाधनवहिभूता धमं साधनत्वेन मन्दवुहिभिर्क्षा सवजनप्रसिहानि शमभोलादोनिं धर्मसाघनान्युपैच्य श्रधम॑साघनमपि feat धमेसाधनत्वेन प्रति- पादयतां परेषां व्यक्तैव मन्दबुहिता। एषं तावज्ञोभमूला WMA कुलक्रमायाता यजन्ननिमित्ता देवोपडारहेतुका हिसा प्रतिषिदडा॥४०॥

पिढनिमित्ता श्रवभिष्यते तां प्रति निषेधितुं परशणख्ोयां षटज्ञोकोमतुवदति-

२६

दर्शे TAT इविर्यच्चिरराचाय यच्चानन्त्याय कल्पते | fast विधिवहत्तं तत्मवच्याम्यश्रेषतः ४१ चिररात्रशब्टो दोघकालवचनः aware कैनचिदविषा दौघ- araafaniad केनचिदनन्तेव agua प्रवश्यामि \॥ ४१॥ तिलेत्रीहियवेमधिरदविमलफलेन वा | दतेन मासं प्रीयन्ते विधिवत्पितरो गाम्‌ ॥४२॥ तिलादिग्रहणं नेतरपरिसंख्थानाथैमपि तूपान्तानां फलविगरेषप्रद- अना्धेम्‌ | एते विधिवत; पितरो मासं maa ४२ + ही मासो मव्खयमांसेन Tq मासान्‌ हारिणेन तु TAU चतुरः WHAT पश्च तु ४२ we: पाठटोनकाद्याः, रिणा मगाः, deat aan, शकुनय आरण्यकुकटायाः ४३। षरमार्साग्कागमांसेन BAAS सप्त वै WAC मांसेन रोरषेख नवेव तु ४४ क्ागन्कगलः, पएषतेणर्रवो खगजातिविगेषवचनाः ४४॥ दशमासांस्तु wafer वराशमहिषामिषेः | णशकू्मयो्मां सेन मासानेकादशैव तु ४५॥

वराह WICH: ४५॥

दितोयः प्रकाशः

संवत्छरं तु गव्येन. पयसा पायसेन तु | वाप्रींणसस्य मसेन दपिर्दादशवाषिकौ ४६

खुलानुमितयोः अुतसंवन्धस्य वलोयस्त्वाहव्येन पयसा पायसेन संबन्धो aida प्राकरशिकेन, ग्रन्धे तु व्याख्यानयन्ति मांसेन गव्येन पयसा पायसेन वा पयसो विकारः पायसं दध्यादि पयः- dea लोदने प्रसिहिः anifua जरच्छागः यस्य पिबतो जसं atfe anf fant कर्णौख॥ Tete

fafed लिद्दियक्तोखं aa ठदमजापतिम्‌।

वार्भ्रीशसं तु तं प्राहर्याच्चिकाः पिढकर्मसु १॥ ४९१ पिढनिमित्तहिंखोपदेशकं xraaqa तदुपदिष्टं हिंसां दूष- यत्ति-

इति स्मृतयनुसारेश पितृणां तपंशाय या मूदधरविंधीयते हिसा साऽपि safatag ४७

षति yater या स्मृतिधमसंहिता तखा भ्रशुसारेणालम्बभेन पितरः पितुवेश्वाः यच्छतिः- पितरे पितामहाय प्रपितामशाय पिण्डं निवेपदिति। Rat तपेणाय ana qecfaarcaal हिसा विधोयते सखापि a कैवलं मांसलोभादिनिमित्ता दुगतिरैतवे नरकाय a हि खंल्पाऽपि काचिषिंसा नरकादिनिषन्धनं aq faaafanngeds

२८४ योगशास्त्रे

तम्सुग्धबदिप्रतारणमात्रं हि तिलब्रौद्यादिभिमंव्छमांसादिभिवां परासनां पितृणां afaquaad | यदाद सृतानामपि जन्तूनां यदि ठततिभेवेदिह निर्वाण प्रदीपस्य जेषः संवशैयेच्छिखाम्‌ १॥ इति कैवलं हिसा दुगतिरेतुर्व किं तु हिंस्यमानेअन्तुभिरिरोध- निबन्धनतेन खस्यापि दहामुत हिसाशेतुतया UAT; ॥४७४ uffiaa तु स्वेजोवाभयदानशौर्डस्य कुतोऽपि भयमस्तोत्यादह- यो भूतेष्वभयं दाद्रतेभ्यस्तस्य नो भयम्‌ | यादृणितीर्यते दानं तादगासाद्यते फ़लम्‌ ४८ स्पष्टम्‌ ४८ एवं ताविंसापराणां मनुष्याणां नरकादि हिसाफलमभिहितं सुराणामपि हिंसकानां जुगुपनोयचरितानां सूढजनप्रसिदं पूज्यल्वं परिदेवयते-- कोद्‌ण्डदण्डचक्रासिशलणक्तिधराः सुराः | हिसका अपि हा कष्टं पृज्यन्ते देवताधिया ॥४९॥

et aefaafanafaae हिंसका रपि सद्रप्रथश्लयः सुराः प्राक्त aa: पूज्यन्ते विव्रिधयपुष्योपहारादिभिरष्यन्ते ते यथाकथश्िद- wea नाम Fad देवतावबरिस्तत्र विरुदा इत्याह देवताधिया feaqna विगेषणद्वारेण Fqare कौदण्डदण्डचक्रासिशूलगक्ि-

हितोय' प्रकाशः | acy

धरा दति कोदण्डादिधरत्वाहिंसकाः हिंसकत्वमन्तरेण कोदण्डा- दौनां धारयितुमयुक्लतवात्‌ कोदण्डधरः श्रः दण्डधरो यमः चक्रासिधरो विष्णुः शूलधरो शिवौ शक्तिधरः कुमारः उप- लस्षणमन्येषां शब्राणां शस्रधराणां ४९

एवं nage feat प्रतिषिध्य तदिपक्षभूतमरहिंसात्रतं

श्लोकदयेन स्तौति-

मातेव स्वभूतानामहिंसा हितकारिणौ |

afta हि संसारमरावरृतसारणिः ५०

अहिंसा दुःखदावाग्निप्राहेण्यघनावलौ |

भवभमिरगार्तानामहिंसा परमौषधी ५१ सखष्टम्‌ ॥५०॥१५१॥

अहिंसात्रतख्य फलमाह-

दौधमायुः परं रूपमारोग्यं श्राघनोयता |

भदहिसायाः फलं सवं किमन्यत्कामदेव स। ॥५२॥ अरहिंसापरो fe परेषामायुवदैयनव्रनुरूपमेव wart दीर्घायुषं लभते waa पररूपमविनाशयन्‌ wae रूपमाप्रोति तथेव चाखाख्यदेतं हिंसां परिरन्‌ परमख्राख्यरूपमारोग्यं लभते सवेभूताभयप्रदञ्च तेभ्य MMA: ज्ञाघनोयतामशरते एतत्सव- मर्हिंसायाः फलं किया मृङ्गग्राहिकया ag शक्यते इत्याह किमन्यत्कामदेव सा यद्यतकामयते तत्तस्मै ददाति उपलन्त शभेतद- कामितश्यापि खगोपवगादेः फलस्य दानात्‌।

२८५ ALANS अन्रान्तरे चोकः-

हेमाद्रिः पवतानां इरिरखतभुजां चक्रवत्तीं नराणां ओो तां श्वो तिषां खस्त ररव निखा चण्डरोचिग्र हाणाम्‌ | सिन्धुस्तोयाश्यानां जिनपतिरमुरामश्धेमत्या धिपानां यदत्त तानामधिपतिपदवीौं यात्यरिंसा किमन्यत्‌

उक मदहिंसाव्रतम्‌ ५२

wa सूरृतत्रतस्यावसरस्सच्च नालोकविरतितव्रतमन्तरणोप- पद्यते, तत्‌फलमनुपदश्यालो कादिरतिं कारयितुं शक्य; पर इत्यलो कफलमुपदण्यं तदहि रतिमुपदर्गयति -

wate कालत्वं मूकत्वं मुखरोगिताम्‌ | वौचयासल्यफलं कन्यालौकायसल्यसुत्मजेत्‌ ॥५३॥

सन एव मन्तु यत्र AMA परस्याप्रतिपादकं वचनं तय्योगाष्पुरुषो- ऽपि ware भावो aad काडलमव्यक्कवष्वं वचनं AMMAN काडलसस्व भावः AKAs मूकोऽवाक्‌ तस्य भावो मूकत्वं मुखस्य रोगा उपजिद्वादयस्तेऽस्य सन्ति सुखरोगो तस्य भावो qedfam एतव्वमसत्यफलं ae शास््नवजेनोपलभ्यासत्वं सथूलासत्यसु मृजेच्छावकः

qele—

मूका were विकला arqetar वागलुगुष्ठिताः। पूतिगन्धमुखासेव जायन्तेःदृतभाषिशः १॥ ५३

हितोयः प्रकाशः | २८७

Waa तच्च कन्यालोकादि व्यमाणम्‌ aare— कन्यागोभूम्यलोकानि न्यासापडरणं तथा कूटसाच्यं पञ्चेति स्थूलासत्यान्यकौत्तंयन्‌॥५४॥

कन्धालोकं WANA शरूभ्यलोकं ? म्यासापडरणं कूटसा्यं एतानि पञ्च स्धूलासत्यान्धको स्यन्‌ जिनाः तक्र कन्धा- विषयमलोकं कन्यालोकं भित्रकन्यामभित्रां विपयैयं वा वदतो भवति; इदं सवस्य कुमारादिदिपदविषयस्यालोकस्योप- लक्षरं गवालोकमल्पक्तौरां aged विपर्ययं aT वदतः, इदमपि सवचतुष्यदविषयस्यालो कस्योपलक्षशं भूम्यलोकं परसत्कामप्यातसादिसत्कां विपयेयं वा वदतः, ददं शेषपाद- पादयपदद्रव्यविषयालोकस्योपलक्षणं श्रध ददिपदचतुष्यदापद- ग्रडगमेव HATA Way! उच्यते। कन्धाद्यलोकानां लोक्ष अतिगरितत्वेन रूढलत्वादिति। wat cau सम्यत इति न्यासः सृवशीदिः तस्यापहरणमपलापस्तहचनं Wasa: वादः इदं चानैनंव fate पूर्वालोक्षभ्यो भेदेनोपान्नं ; qzare प्रमा णोक्ततस्य AAR कूटं वदतः, away areay असख परकोयपापसमथेकत्वलक्षणविशेषमाञित्य yaa भेदै नोपन्धासः, एतानि क्िष्टाणयसमुलयलवात्‌ खलासत्यानि ५४

एतेषां स्थूलालोकल्वे विेषणदारेण हैतुमुपन्धस्य प्रतिषेधमाह--

सवंलोकविङचं यदा दिष्वसितघातकम्‌। यदिपक्चश्च पुण्यस्य वदे्तदसृन्तम्‌ ५५

Aca ` INS

waa विरुदत्वात्‌ कन्यागोभूम्यखलोकानि a वदेत्‌ विश्ठ- सितघातकल्वान्रासापलापं वदेत्‌ पुष्यस्य wae विपक्षरूपोऽ- wae fe वदन्‌ प्रमाणोक्षतो विवादिभिरभ्यव्येते धमं ब्रूया- त्राधमेमिति इति धम विपत्ततवात्कुटसाच्यं वदेत्‌ ५५ सत्यस्य फलविगेषमुपदशयंस्तत्परिहारसुपदिगति- असत्यतो लघौयस्त्वमसत्यादचनोयता | अधोगतिरसलयाच्च तदसत्यं परिल्यज्ञेत्‌ ५६ लघीयस््वं वचनोयता staadfed फलं, श्रधोगतिरामु- foray ५६॥ श्रथ भवतु क्लिष्टा शयपूवस्यासत्यस्य निषेधः, प्रामादिकयखय तुका बवात्तव्याह-- भसत्यवचनं UTA: प्रमादेनापि नो वदेत्‌ | श्रेयांसि येन भज्यन्ते वात्ययेव AKITA: ५७ स्तां क्िष्टा्यपूवैकमसत्यवचनं, ` प्रामादि कमप्यन्नानसंगशयादि- जनितवचनं वदेत्‌ येन प्रामादिकेनासत्यवचनेन श्रेयांसि भङ्क- मुपयान्ति वात्ययेव मदादूमा इति दृष्टान्तः यदाषमदषयः-- ‘wufa a arate पच्चुप्यत्रमणागए | WAS तु जाणेव्ला aay fa ay aw 2

(१) च्छतातेषक।ले RAAT ATTA | यभथैतुनजानोयात्‌ एवभेतत्‌ इ्तिनो वदेत्‌ ॥!॥ *uanew aaa |

feala: WATT | २८९.

‘sania a कालब्विः पञ्ुष्पखमणागण | aa dat wt ag, was fa Wag y weafar a areas पञ्चुप्यव्रमण्ागरए्‌ | faaifnst भवेजंतु, एवभेप्रं तु fafa nee एतच्चासत्यं चतुरा भूतनिहवो, अभूलोद्धावनं, wate, गदहा भूतनिङवो यधा aren, नास्ति पुण्यं, नासि पापं चेत्यादि। भभूतोद्वावनं यथा। wana आरामा श्यामाक तन्दुलमावो वा Walt यथा गामण्बमभिदधतः। गष तु चिधा। एका arama; यथा Qa कषेत्यादि। हितीया ब्रप्रिया; ard काणमिति वदतः। aalat भाक्रोश- स्पा; यथा wt बान्धकिनेय इत्यादि yon

अतिपरिषरणौयत्वमसत्यव चनस्य दशेयन्‌ पनरप्येहिकान्‌ दोषानाषह--

असत्यवचन्‌(दैरविषादाप्रययादयः | प्रादुःषन्ति के दोषाः कुपथ्यादयाघयो यथा ॥५८॥

वेरं विरोधः, विषादः warera:, भप्रल्ययोऽविश्वासः। श्रादि- ग्रहणाद्राजावमामादयो WA ५८

* ~~ ~~ ~~ -~~ ----~ ---~- ---------- - ----- ~ LT oo TTR

(१) अतीते काले प्रसमृत्पञ्चमनागते।| यत्र शङ्का भवतु एषमेतत्‌ इ्तिगोवरेत्‌ ॥२॥ (>) BMA काले प्रसुत्यच्चमनागते | fa:ufge भवेत्तु एषमेतत्‌ तु fatenq vy *esewnay anata २७

We ane wafaa सृषावादस्य फलमाइ- निगोदेष्वध farq तथा नरकवासिषु उत्पदान्ते सरषावादप्रसादेन WITT: ५८

निगोदा अमन्तकायिका Mardy, तिय॑त्त॒ गोवलोवदंन्यायेन ेषतिर्थग्योनिषु, नरकवासिषु नैरयिकेषु ५८

इदानी खषावादपरिारे भन्वयव्यतिरेकाभ्यां कालिकाचायं वसुराजो दष्टान्तावाद-

ब्रूयाद्गियोपरोधादा नास््यं कालिकार्यवत्‌ यस्तु qa स. नरकं प्रयाति वसुगजवत्‌ °

भिया मरणादिभयेन, उपरोधादास्िश्यादसत्यं ब्रूयात्‌ यस qa भिवयोपरोधादा इत्यत्रापि संबन्धनोयं, दृष्टान्तौ संप्रदाय मम्यौ चायम्‌ |

अस्ति भूरमग्पीमौ लिमखिसुरमणो qa |

यधाधेनामा तव्रासोल्नितशतरमे होपतिः wet

axfa नामधैयेम ब्राह्मणो aa विश्रुता |

दन्त इत्यभिधानेन तस्याः पुतो बभूवच॥२॥

दत्तो नितान्तदुर्दान्तो दतमद्यप्रियः खदा |

सेवितुं तं महोपालं vast वसैनेच्छया ३॥

रान्ना प्रधानोचक्रेऽसौ छ्ायावत्पारिपाण्वंकः।

भारोह'योपसपन्त्या विषवज्ञरपि दमः ue |

हितोयः प्रकाशः | REL

विभेद प्रलतोरेष राजानं निरवासयत्‌।

` पापामानः कपोताख सखाश्रयोष्छेददाथिनः॥५॥ तख रान्नो STATS राज्यं खयमुपाविशत्‌ शद्रः पाटान्तदानेऽपि क्रामल्युच्छोषंकावधि॥ # पश्हिंसोत्कटान्‌ यन्नानन्नो धमधिया व्यधात्‌ धुमेमेलिनयन्‌ विश्वं समूत्तरिव पातकः woe विष्रन्‌ कालिकायीख्यघा चायेस्तस्य मातुलः t तत्राजगाम भगवानङ्गवानिव संयमः us तश्षमौपमनापिलदेत्तो भिध्यालमो हितः |

अत्यथं प्राधितो मावा मातुलाभ्यणीमाययौ ॥९॥ मन्तोख्मत्तप्रमन्ताभो दत्तोऽष्च्छत्तसुहरम्‌।

श्राचायै यदि जानासि यज्ञानां ब्रूहि किं फलम्‌ | १०१ उवाच कालिकाचार्यो धमे एच्छसि TET लत्यरस्य eae यद्यदिप्रियमासमनः॥ ११॥ ननु anne एच्छामोति दत्तोदिते ga: 1 सूरिरूवे fearfe श्रये किन्तु aaa a १२॥ पुनस्तदेव wad wet दत्तेन दुधिया। ससोष्ठवसमुवाचार्यो यज्ञानां बरकः WAH १३२॥ दत्तः क्रुदहोऽभ्यधादेवमिड कः wast वदं | आर्योऽप्युचे श्वङुम्भां तवं पश्यसे ससभेऽहनि १४ + दत्तः कोपाद्‌ स्तभ्वूररुणोक्ततलो चनः |

aatfae द्वोवाच प्रत्ययोऽत्ापिको ननु॥ १५॥

REQ

ee mee tee = ~ » * mee Stet eed ES Pn em le

योगशास्त्र

भधोचे कालिकार्योऽपि खकुग्मो पचनात्पुरः | तस्ित्रेवाह्यकस्मात्ते मुखे विष्ठा प्रवेष्यति १९॥ रोषाद्‌ दत्तो जगादेदं तव Bay: कुतः कदा

कुतोऽपि खकाले at याख्वामौत्यवदन्छुनिः १७ अमु निरु दुर्वहिमिति दत्तेन रोषतः |

भादि: कालिकाचार्यो qed दर्छपूरुषेः १८ WA दत्तात्‌ VASAT: सामन्ताः पापकमणः। आद्त्य ad aw दत्तमपंयितुं किल १८ दोऽपि शङ्कितस्तस्यो निलोनो निजवेश्मनि कर्टोरवरवत्रस्तो fags दव FAT ॥२०॥

frqafeat देवादागते and दिने | बहिनिगन्तुमारसै राजमागौनर्षयत्‌ २१। तवेको मालिकः प्रात्विं्न्‌ पुष्यकरण्डवान्‌ |

‘aay वेगातुरो विष्ठां Wa: पुष्पैः प्यधत्त ॥२२॥

इष हनि हनि्यांमि पशवन्मूनिपांसनम्‌ |

-चिन्तय॒न्निति दत्तोऽपि नियेयौ सादिभिवृतः २३।

एकेन वलाताऽशखेन विष्टोत्‌चिप्ता खुरेण सा

दश्तस्य प्रा विशच्चास्ये नासत्या "यमिनां गिरः २४॥ शिलास्फालितवस्तद्यः ज्ञधाद्गगो विमनास्ततः।

सामन्ताननाप्च्चय ववले खग्दं प्रति २५॥

(१) Bane यतिनाम्‌।

इितोयः प्रकाभः। २८३

माऽस्मस्न्तोऽसुना wrt इति प्रक्तिपृरषेः |

ग्हमप्रविशन्रेव बहा ew गोरिव wre

भ्र प्रकाशयंस्तेजो निजं राजा चिरन्तनः |

प्रादुरासोत्तदानीं निशात्यय इवायमा २७

सोऽहिः करण्डनि्यात इव दूरं ज्वलन्‌ AUT |

दन्तं maga नरककुम्भयामिव तदाऽचिपत्‌ २८॥

अ्रधस्तान्ाप्यमानायां Fart तामोऽन्तरा खिताः |

दन्तं विदहूः परमाधामिका इव नारकाम्‌ २८ निरस्तभूपातभयोपरोधः खोकालिकाचायं wage: | सत्यव्रतत्राशक्षतप्रतिन्नो जातु WIAA कषा मनोषो wz ol

दति कालिकाचायंदस्षकथानकम्‌

रस्ति चेदिषु विख्याता नाम्रा शक्तिमतो पुरो। शक्िमत्याख्यया नद्या नमंसख्येव शोभिता १। ए्वोमुकुटकश्यायां तस्यां तैजोभिरहुतः | माणिक्यमिव पष्वोशोऽभिषन्द्रो नामतोऽभवत्‌ ॥२॥ सूनुः सूगृतवाक्ञस्य वसुरित्यभिधानतः।

भ्रजायत महुः पाण्छोरिव gaffer: ig a पारे MTHS गुरोः पवतकः सुतः | राजपुत्रो वसुच्छातो ALT AAS aT: | 8 सधोपरि शयानेषु तेषु पाठश्रमान्रिगि। चारणशग्रमणो व्योजि यान्तावि्युचतुमिघः ५॥

REY योगशास्त्र.

-एषाभेकतमः खगे गमिष्यत्यपरौ पुनः |

नरकं यास्यतस्तचायखौषोत्तोरकदम्बकः तच्छुत्वा चिन्तयामास few: स्षोरकदम्बकः | मय्यप्यध्यापके शिष्यौ यास्यतो नरकं WHT एभ्यः को यास्यति खगं नरकं कौ AAA: | जिन्नासुरित्युपाध्यायस्तांखोन्‌ बुगपदाद्त ॥८॥ Maye समर्प्येवाभेकेवं पिषटकुक्ुटम्‌

ऊचेऽमो aa वध्या aw कोऽपि पश्यति॥<॥ वसुपवतकौ तत्र गत्वा शृन्धप्रदे णयोः

भाकनोनां गतिमिव जन्तुः पिष्टङुक्षटो १० महाका नारदस्तत्र व्रजित्वा नगराः | |

खित्वा विजने देगे दिशः परश व्यतर्वायत्‌ ११ गुरूपादरदस्तावदादिष्टं वस्र AWA |

वध्योऽयं Fazer aw कोऽपि पश्यति १२॥ पसो पश्यत्यदं पश्याम्यमो पश्यन्ति खेचराः | लोकपाला पश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानिनोऽपिच।॥ ee 4 area स्थानमपि aaa कोऽपि प्यति | तात्पयं तदुर्गिरां वध्यः खलु Hae: १४ गुङूपादा दयावन्तः सदा हिंसापराङ्मुख्ठाः | want परिन्नातुमेतत्रियतमादिशन्‌ १५ विख्श्यैवमहत्वेव Fee समाययौ |

ङक्षुटा नने Sa गुरोव्यन्नपयच्च तम्‌ १९ +

हितीयः प्रकाशः | २८५

aa यात्यसौ तावदिति fafaa was | TAU AS: Wary साधु साध्विति भाषिणा a eon aqua पञ्चादागव्येवं aaa: |

निहतौ gael as aa कोऽपि पश्यति १८ WIAA युवाम्रादावपश्यन्‌ खेचरादयः |

कथं हतो Barr रे पापावित्यशपहुरः १८ ततः डेदादुपाध्यायो दध्यौ विध्यातपाठधोः।

सुधा मेऽध्यापनक्गेभो वसुपवंतयोरभूत्‌ २० गुरूपदेशो fe agua परिणमेदिड |

अन्राश्नः सानभदेन सुक्षालवणशतां व्रजेत्‌ २१ प्रियः पवतकः gw: पुश्रादष्यधिको वसुः

नरकं यास्यतस्तस्माद वामेन किं मम ॥२२॥ निर्वेदादिव्यपाध्यायः प्रब्रन्यामग्रहोत्तदा |

ANS पवतोऽध्यास्त व्याख्यात्तणविचक्षणः २२ Wal गुरोः प्रसादेन सवंशाखविशारदः |

नारदः थारदाकोदश्हधोः खां भुवं ययो ॥२४॥ कृपचन्द्रोऽभिचन्द्रोऽपि जग्राह समये व्रतम्‌ | ततब्ासोहस्‌ राजा वासुदटेवसमः िया।॥२५॥ सत्यवादौति प्राप प्रसििं एथिवोततते

तां प्रसिच्िमपि ata सत्यमेव जगाद सः॥ २६९॥ भयेकदा AFT मृगाय गयाज॒षा |

fafad विचिखो विन्ष्यनितम्बे सोऽन्तरा ऽसबलत्‌ २७

२८७

योगशास्त्र

इषुखवमलनहेतं त्रातुं तव ययौ ततः |

भाकाशस्फटि कगिलामन्नासोत्पाणिना Bry २८ दध्याविति मन्येऽस्यां संक्रान्तः परतद्रन्‌ | भरूमिष्टायेव गोतांभौ cen हरिणो मया ॥२९॥ पाणस विना नेयं सवधाऽप्युपलश्यते

भवश्यं तदसौ योग्या वसोरवसुमतोपतैः १०

WY UNIS गत्वा at खृगयुः शिलाम्‌ |

हृष्टो राजाऽपि TUTE ददौ चासी ACTA २१॥ तया घटयामास च्छन्नं ख।(समबेदि काम्‌ | तच्छिखिनोऽघातयच्च नामोयाः कस्यचिव्रुपाः ware तस्यां सिंहासनं वैदौ Aine निषैगितम्‌। सत्यप्रभावादाकाशखि तमित्यवुधव्जनः WR सत्यादि तुष्टाः सात्रिध्यमस्य कुवन्ति देवताः |

एवमूज सिनो तस्व प्रसिदिर्व्यानये दिशः १४

तया प्रसिष्ठया राजानो भोतास्तस्य वशं "गता;

wert वा यदिवा मिष्या प्रसिहिजयिनो sary ॥३५॥ WM न।रदोऽन्येयुस्ततैचिष्ट पवतम्‌ व्याख्यानयन्तमग्बेदं शिष्यां TABI २९ अजेयेष्टव्यमित्यस्मिन्‌ भेष रित्युपदेशकम्‌ |

बभाषे नारदो araaien किमिदसुश्यते २७

(१) WAR यबुः|

हितोयः प्रकाशः | २९७

व्रिवाविकाणि धान्यानि fe जायन्त इत्यजा; | व्याख्याता गुरुशाऽस्म्माकं व्यस्मार्षौः केन इेतुना २८ a ततः पवतकोऽवादौदिदं तातेन नोदितम्‌

उदिताः किं लजा भेषास्तथैवोक्षा निघण्टुषु २९ जगाद नारदोऽप्येवं शब्दानामध॑ कल्पना |

Haar गौणो तत्रह गोणीं गुरुरचो कथत्‌ vo गरुवैर्मोपदेष्ट खरुतिरमातिकेव | इयमप्यन्यधाकुवस्मितर मा पापमजय ४१॥

MAG पव॑तोऽजल्पदजामनेषान्‌ FETA गुरूपदेशगब्ार्थो्ङ्धनाद मं मजंसि ४२ भिष्याभिमानवाचो fe स्युदष्डभयान्रुणाम्‌ | सखपश्चस्थापने तेन जिद्वाष्छदः पणोऽसतु नः ४२॥ प्रमाणमुभयोरव सहाध्यायो ATAU:

नारदः प्रतिपेदे aa क्षोभः सत्यभाषिणाम्‌ ४४॥ रहः पवेतमूचेऽम्बा ब्टहकमेरताऽप्यषम्‌ | अजास्तिवातिकं धानग्धमित्यश्रौषं भवत्ितुः ४५ जिह्वाच्छेदं पणेऽकार्षीयंदर्पीत्तद साम्प्रतम्‌ | परविश्य विधातारो भवन्ति विपदां पदम्‌ ve i अरवदत्पवेतोऽप्येवं wa तावदिदं मया |

यथा तथा MATa करणं हि विद्यते ४७॥

(9) कगचददड Beg | (x) ष्ठ तदरोचक्रोम।

२८

Zea

AANA

साऽथ पर्वतकापायपोडया हदि शल्थिता | वसुराजमुपेयाय पुच्राधं क्रियते किम्‌ ॥४८॥ eu: चौरकदम्बोऽद्य यदम्ब त्वमसोसिता।

fa करोमि प्रयच्छामि किं चेत्यभिदधघे वसुः साऽवादोरोयतां पुच्रभिक्ता मद्यं महोपते |

ware: किमन्दैमे विना पुत्रेण gam ५० AUER मम मातः WS: पूज्यख पवेतः

शरुवद रपुत्रेऽपि वत्तितव्यमिति शतैः" ५१ Raia waged कालेनाकालरोषिणा।

को जिचांसुर्भ्ातरं मे ब्रूहि मातः किमातुरा ५२॥ अजव्याख्यानठत्तान्तं स्वपुत्रस्य पणं Aq |

लवं प्रमाकोक्ततद्यासौत्याख्यायाथयते सम सा ५२ a HAAN CH भ्रातुरजाग्षानुदौरय | mracaagatar महान्तः किं सुनगिरा ५४ अवोचत वसु्मातमिध्या वरिम वचः कथम्‌ | प्राणात्ययेऽपि शंसन्ति नासत्यं सत्यभाषिणः ५५ अन्धदप्यभिधातव्यं नासत्यं पापभोरुणा | गुरवागन्यथाकारे FCAT का कथा ५६॥ ‘ad HE गुरोः सूनु ART सत्यत्रताग्रहम्‌ |

तया सरोषमित्यक्षस्तद चोऽमंस्त पाथिवः ५७

(१) ww fa: \ (२) खगवच ATAX |

feala: प्रकाशः | Ree

ततः प्रमुदिता सोरकदम्बश्डहिणो ययौ | अजग्मतुच विद्ांसौ तत्र नारदपवेतौ॥ ५८॥ सभाधाममिलन्‌ सम्या माध्यख्यगुशशालिनः | वादिनोः सदसदादक्लौरनोरसितच्छदाः ५८ श्राकाशस्फटि शिलावेदिसिंहाखनं वसुः | सभापतिरमलञ्चक्रे नभस्तलमिवोड्पः ६०

ततो निजनिजव्याख्बापक्ं नारदपवतौ | कथयामासतू रात्ने सत्यं ब्रूहोति wifey ६१ विप्रहदेरथोषे विवादक्त्वयि तिष्ठते | प्रमाणमनयोः UTA त्वं रोदस्नोरिवायेमा u ६२॥ चटप्रतिदिव्यानि वर्तन्ते हन्त सत्यतः मत्याद्षति पजन्य: सत्यास्सिदयन्ति दैवताः ६३ maa सत्ये लो कोऽयं खाप्यते एथिवोपते। त्वामिह ब्रूमहे fa ब्रूहि सत्यत्रतोचितम्‌ a geo वचोऽ्ुत्वव तत्सत्वप्रसिदिं खां निरस्य a | THAI गुरव्याख्यदिति साच्यं वसुव्येघात्‌ ९५॥ भ्रसत्यवचसा तस्य क्रु हास्तत्रव देवताः | दनलयामासुराकाशस्फटिकासनवेदिकाम्‌ ee a वसुवसुमतोनाधस्ततो वसुमतोतले।

पपात सदो नरकपाते प्रस्तावयज्निव &अ9॥ FLATS प्रदातुम्त खपचस्येव को मुखम्‌ | पश्येदिति वसं निन्दव्रारदः खास्यदं ययो ६८

३०० ` `` योगशास्त्रे `

हेवताभिरसत्योक्तिङ्पिताभिनिपातितः। जगाम घोरं नरकं नरनाथो वसुस्ततः ६< यो यः सूनुरुपाविश्षद्राज्ये तस्यापराधिनः। प्रल्रुदवतास्तं तं यावदष्टौ निपातिताः ७° इति वसुकरुपतेरसत्यवाचः फलमाकस्य जिनोल्िविदहकशेः | कथमप्युपरोधतोऽपि जल्प. . द्रृतं प्राणितसंश्येऽपि नेव ७१॥ ९०॥

1 | इति नारदपवतकथधानकम्‌

wan fed aufafa waren ्रवितथमपि परपोडाकरं चनमसत्यभेवाहितत्वा दिति सत्यमपोदशं

भाषेतत्याद-

सल्मपि भाषेत परपोडाकरं वचः लोकेऽपि श्रयते यख्रात्‌ कौभिको ATA गतः ॥६१॥

सत्यमवितयं Masa परमाधतस्तु॒ परपोडाकरत्वादसत्यभवे- त्यथः, AA भाषेत ; ARTTUTACATAAAA: | wa लोकिकं टृ्टान्तमाह- लोकेऽपि समयान्तरेऽपि शयते निशम्यते परपोडाकरसत्य- भाषशषेन कौशिको नरकं गत दति। aifaay सप्रदायगम्यः; चायम्‌-

दितोयः प्रकाशः | २०१

्रासोसत्यधनः कोऽपि कौथिको नाम तापसः | अपास्य ग्रामसंवासमनुगङ्गसुवासष सः १॥ कन्दमून्नफलाहारो निमेमो निष्परिग्रहः | सत्यवादितया प्राप प्रसिचिं परमामसौ।॥२॥ मुषित्वा म्राममन्येद्युदे सखवस्तस्य पश्यतः |

sere निकषा अग्सुवेनं विलमिवोरगाः तेष।ममुपदिनसतु ग्राम्याः पप्रच्छरेत्य तम्‌ | सत्यवासि aggre तस्कराः कुनर AAT ४॥ धमतश्वानभिन्नोऽध कथयामास कौशिकः |

"वमे तस निङ्घुच्छेऽस्िन्‌ दस्यवः प्राविशचिति ५॥ तस्वोपटेशात्सब्रह्य ग्रामोशाः शस्रपाणयः |

वनं प्रविश्य निजेन्नुदस्यन्‌ व्याधा सृगानिव ऋतमप्यकृतं परव्यधाकरणेनेदमुदौरयन्‌ वचः | परिपूर्य निजायुरुखवणं नरकं कौशिकतापसो ययौ॥७॥६१॥

श्रच्यमप्यसत्यवचने प्रतिषे धितं महद सत्यं वदतः परिदेवयते-

अल्पादपि सषावादाद्रीरवादिष्ु संभवः | अन्यथा वदतां Hat वाचं TASS का गतिः ॥६२॥

भरर्यादप्यैहिकाधविषयत्ेन स्तोकादपि मषावादादसत्या- द्रौरकादिषु रौरवमहारौरवप्रतिषु नरकवासेषु संभव उत्पत्तिः लोकप्रसिदत्वाद्रौरवग्र णम्‌ | was सवेनरकेष्वित्युश्येत | रन्धया

is i a [ण

(1) चड़ aay

१०२ योगशास्त्र

विपरौतार्थतया अनी वाचं वदतामतीवाखत्यवादिनां कुतोधि- कानां खयुष्यानां निह्वादोनां का गतिनेरकादप्यधिका तषां गति; प्राप्नो तीत्ययः। भरति खेदे भ्रगक्प्रतोकाराः परिदेवनोयाः gaa «fa | | यदाह ‘awe सयलब्रपावाहिं वितदपब्रवणमकमवि eta | जं मिरिश्मवतदज्ियदुक्षयभवसेसलेसवत्ा १॥ "सुरथयगुखोवि तिद्य॑करोवि तिदयणमभतुन्ञमन्ञोवि। गोवादहिं वि agar कश्मलिभ्रो तिजयपदुष्तसि २॥ भ्धौगोबेभशभूुशंतगा वि afa ce दिढपष्टारार। बद्ुपावावि afaar सिद्धा किर afar चेव भवे ॥२५६२॥

सत्यवादिनो fafeat सत्यवादिनः स्तीति-

ज्नानचारिचयोमृलं सत्यमेव वदन्ति ये | धाचौ पविचरौ क्रियते तेषां चरगरेगुभिः ६३

ज्ञानचारिव्रयोर्नानक्रिययोमूलं कारणं aaa तदेव वदन्ति ये

en रयि

(१) Bee Vaart वितथप्रन्नापननरए्वपि दरनम्‌। यग्रोजिभवतदजिंतदुम्कुतावशेषरेथवथात्‌ (९) बरस्तुतगुष्धोऽपि तोचेश्रोऽपि वलिश्ववनादचयभङ्खोऽपि। मोपाद्भिरपि बहशः कदणितः fannorwerafe २॥ Mareen ala केऽपि दठग्रङावोादवः। aga afa प्रसिद्धाः सिद्धाः किल तख्खिन्नेव wanes

भि

(R

दितोयः प्रकाशः | १०३

तानचारिवग्रहशं "'नाशकिरियाडहिं मीक्वो' इति भगवद्वाष्यकार- वचनातुवादाधं Wares दशनमप्यासिषप्यते। दशनमन्तरेण waaay | faatefefe wares वैपरोत्येन जानाति, wavqa तञ्ज्नामं यदृच्छया aafarduquawa wa- HAAS | Tee ‘aaaafatanray wakes जश्च्छश्रोपलंभाश्रो | नाणफलाभावाश्रो fasfefgar ward १॥ स्पष्टमन्यत्‌ ९२॥

सत्यवादिना्महिकमपि प्रभावं दशंयति-

अलीकं ये भाषन्ते सल्यव्रतमशाधना. | MATRA तेभ्यो भूतप्रेतोरगादयः ६४

भूता भरूतोपलच्िता व्यन्तरः war: पितरो ये खसंबन्धिनो मनुष्यान्‌ पोडयन्ति भूतप्रेतग्रहणं भुवनपत्याटोनामुपलक्षणा्थेम्‌ | उरगा सर्पाः श्रादिग्रणाद्‌ व्याघ्रादौनां परिग्रहः ्रत्रान्तरे Bat: अर्हिंसापयसः पालिभूतान्यन्यत्रतानि यत्‌ | सत्यभङ्गात्पासिभङ्गऽनगेलं fagaa तत्‌ १॥

(१) ज्ञानक्रियाभ्यां मोक" (२) शंदश्दविथेषणात्‌ भव्ेतुयेदच्छोपलम्धात्‌। MARAT भिष्यादरेरन्नानम्‌ ॥१॥

Raa `

सत्यभेव ACT, सवेभूतोपकारकम्‌ | यद्वा तित्‌ समालम्बा मौनं सर्वाधेसाधकम्‌ पृषटेनापि वक्नव्यं वचो ATH कारणम्‌ | ममौ विल्ाकंशं mead रिसखरमसूयकम्‌ ५२५. wae क्रियालोपे सखसिन्रान्ताधवि्चवे | अष्षेनापि शक्तेन वक्षव्यं तं निषिधितुम्‌ चार्वाकः कौलिकेरवित्रैः सौगते: पाखराविकंः। waaaa विक्रम्य जगदे तदिड ब्वितम्‌ अष्टो पुरजलस्नोतःसोदरं तश्छुखोदरम्‌ | निःसरन्ति यतो वाचः पन कुलजलोपमाः दावानलेन च्चलता afcgetsfa पादपः | सान्द्रोभवति लोकोऽयं नतु दुव चन।ग्निना चन्दनं चन्द्रिकाचन्द्रमशयो मोक्िकस्रजः | ्राद्वादयन्तिन तथा यधा वाक्‌ सकता षाम्‌ = शिख्वौ मुण्डो जट aerated यस्तपस्यति | सोऽपि भिष्या यदि ब्रूते far: स्यादन्यजादपि < casas पाथं पापं निःगेषमन्यतः | इयोखुलाविष्टतयोरादयभेवातिरिच्यते १० पारदारिकदस्युनामस्ति काचिग्मरतिक्रिया। अरसत्यवादिनः पुंसः प्रतीकारो विद्यते ११॥ कुवन्ति देवा भपि पक्षपातं नरेश्वराः शासनसुददन्ति

हितोयः प्रकाशः | ३५५

गो तोभवन्ति उ्वनलनादयो य- सत्‌ सत्यवांचां फलमामनन्ति १२॥

sfa दितोयं व्रतम्‌ ६४॥

इदानीं हतीयमस्तेयत्रतमुश्यते। ततापि फलानुपदशेनेन स्तेयात्रिवत्तत एति फलोपदभेपूषं स्तेयनिठत्तिमाद-

दौर्भाग्यं प्रेष्यतां दाखमङ्गच्छैदं दरिद्रताम्‌ अदत्तात्तफलं न्नात्वा स्थुलस्तेयं विवजंयेत्‌ ॥६५॥

दौर्भाग्यमुदहेजनोयता, प्रष्यता wana, दास्यमङ्पातादिना परायत्तशरौरता, अङ्कच्छेद; करचरणादिष्छेदः, दरिद्रता fanaa, एतानोष्ामुत्र चादक्नषादानफलानि शासनतो FABRE War स्थूलं चौरादिव्यपदेशनिवन्धनं स्तयं विवजयेच्छावकः gyn

स्थुलस्तेयपरिहारभेव प्रपच्चयति--

पतितं fad नष्टं fad खापितमादहितम्‌ अदत्तं नाददौत खं परकीयं कचित्सुधोः ६६

पतितं गच्छतो वाहनादेभष्टं, विस्मृतं क्षापि मुक्तमिति खामिना यत्र maa, नष्टं wife गतमिति स्वामिना यत्र saa, खितं wifaana azafad, स्थापितं न्यासोक्षतं, wifed fated, aeafad परकीयं wuaned सत्राददोत क्चिद्रव्यचेत्राद्याप-

दपि सुधोः प्रान्तः ६६॥ २८

Rog : . योगशास्त्र इदानीं स्तेथकारिखो निन्दति-

भयं लोकः परलोको धर्मो चेय घतिमंतिः।

मुष्णता परकीयं खं मुषितं सर्वमप्यदः परकोयं खं धनं FWA भपडहरता सवमप्यद एतत्‌ खं aala सुषितं खशष्दस्योभयत्र संबन्धात्‌ fa तदित्याह, भयं लोकः अयं प्रत्यचचेणोपलभ्यमानो लोक ददं ARTI: परलोको TMA, धमे; पुं, षेयमापत्खग्यवैक्तव्यं, तिः खाखध्यं, मतिः कत्याक्षत्यविवेकः vou

भथ हिंसाकारिभ्योऽपि स्तेयकारिणो बडहदोषल्वमाइ-

एकस्यैकं चं दुःखं मार्यमाणस्य जायते |

सपुरपोचस्य पुनर्यावल्लौवं इते धने ६८ एकस्य नतु बहनां, एक AY नतु बहुकालं, दुःखमसातं, माय- माणस्य हदिंस्यम।नस्य, स्तयकारिणा त्वपर धने परस्य सपुत्र पौरस्य नत्वेकस्य, यावव्नीवं नत्वेवं ad, दुःखं जायत इति संबन्धः Wat |

उक्षमपि wand प्रपश्ेनाद-

चौर्ययपापटू मस्येह वधबन्धादिकं फलम्‌ |

जायते परलोके तु फलं ATHITAT ६< tt Vala तदेव दु मस्तस्येह लोके फलं वधबन्धादिकं, परलोके तु फलं नरकभाविनो बेदना ६<

हितीयः प्रकाशः | 209

भथ कदाचिग्ममादात्‌ स्तेयकारौ wafafaa निगद्यत तथा- प्यसाख्यलस णमेहिकं फलमवस्ितभेव इत्याह -

दिवे at tai at SF वा जागरेऽपि वा। सशल्य दव चौर्येण नैति are नरः कचित्‌ ॥७०॥

aa खापः, जागरो निद्राया अभावः, चौर्येण हेतुना चिदपि सथाने ७० केबलं स्तेयकर्तुः wear एव किन्तु aayfu:

परित्यागोऽगोव्याह-

मिचपुच्रकलचाणि भ्रातरः पितगोऽपिडहि। संसजन्ति quale न्लेच्छैरिव तस्करे; ७१॥

पिता जनकः faaqer: पितरः पिता पितरञ्च पितरः संसजन्ति मिलन्ति पापभयत्‌। यदाहः-- ,, ब्रह्महत्या सुरापाणं स्तयं गुर्वङ्गनागमः | महान्ति पातकान्याडस्तस्ं सगं पञ्चमम्‌ १॥ राजदण्डभयाद्या | यदाइः-- MCHUGH मन्तो मैदन्नः काणकक्रयो। स्थानदो UMTAT चौरः सप्तविधः स्मृतः १॥

तस्कररिति। ada ata कुवन्तौल्येवं शोलास्तस्करास्तैः ७१ a

ह०य यो TITS

स्तयप्रहष्तानां afaamat दोषान्‌ qua प्रत्येकं टषटटान्तदारेणाद -

संबन्ध्यपि fangia चौर्यान्मणिड कवन्रुपेः | चौरोऽपि लक्तचीय्थः स्थाटख्गभायरौ हिगेयवत्‌ ७२

दृ्टन्तद्वयमपि संप्रदायगम्यं सचायम्‌ -

अलन्पमष्यमम्ोधिरिवाग्भो TYLA! | WME पाटलो पुतं नाम NSy पत्तनम्‌ १॥ कलाकलापनिलयः सादहसस्येकमन्दिरम्‌ | राजपुत्रो मूलदेवस्तत्र मूलं धियामभूत्‌ ॥२। धृत्तविदयौकधवः क्पणानाधवान्धवः। कूटचेष्टामधुरिपू खूपल।वख्यमगम्धः चौरे चौरः साधौ साधुवक्र वक्र Waray: Was ग्राम्यग्के at विटे fact भटे मटः॥४॥ द्यूतकारे ब्यूतकारो वान्ति वातिक सः | तत्कालं स्फटिकाश्मेव जग्राह पररूपताम्‌ faa: कौतूहलेस्त त्र लोकं विस्माययन्रसो विद्याधर इव Gt चचार चतुराग्रणोः॥ ९॥ दतेकव्यसनाशक्तिदोषात्पिताऽपमानितः | दुसत्पुरग्रोजयिन्यामुक्यिन्धां जगाम सः गुलिकायाः प्रयागेण War कुलवामनः |

` पौरान्‌ विस्माययंस्ततर कलाभिः ख्यातिमासदत्‌

दितोयः प्रकाशः | ३०८

तवासौदूपसावसख्यकला विन्नानकौ शलः |

दत्तत्रपा रतीर्देवदन्तेति गणिकोश्मा॥<८॥

गणः कलावतां यो Ts WAST Aa तवसा ` Salat रश्ने तस्याः प्रतिच्छेको कोऽप्यभूत्‌ १० मूमलदेवस्ततस्तस्याः Mars तद्ुहान्तिकैे ।.

प्रभाते गातुमारेमे प्रत्यत इव FMT १९१॥ TIRE देवदत्ताऽपि कोऽ्येष मधुरो ध्वनिः ` कस्येति विस्मयादहास्याऽन्वेषयामास a बहिः ॥१२॥ शशंसागत्य सा दैवि गन्धर्वः कोऽपि गायति

HUT वामनः THAT: पुनरवामनः ११ देवदन्ता ततः Hat माधवीं नाम चेटिकाम्‌ | प्रजिघाय तमाद्रातु प्रायो वेश्याः कलाप्रियाः १४॥ सागता त॑ जगादेदं महाभाग कलानिषे।

देवदत्ता खामिनोमे लामाद्रयति गौरवात्‌ १५॥ मूलदेवोऽवददच्छ नागमिष्यामि कुलिके। afenaataiat खवशो वेश्म को विशेत्‌ nee agent विनोदेच्चछुः कला कौगशलयोगतः | UMS ऋजुचक्रो तां कुनोमननानलवत्‌ १७ वपुनवभिवासाच सानन्दा साऽपि चेटिका।

उपेत्य देवदताय तश्चे्टितमचौ कत्‌ १८ देवदक्षवरेणव देवदत्ताऽपि तैन ताम्‌

कुनाग्जुक्लतां aw परमं प्राप विस्मयम्‌ .॥ १९८

योगशास्त्रे

Vatu ततोऽवादोदोटटच्मुपकारि खम्‌ | निजाङ्कलिमपि च्छित्वा तभेकष्डेकमानय २० ततो गत्वा समभ्य्ये चाटुभिखतुरोचितेः

अचालि वेश्माभिमुखं धुत्तराजो भुजिष्यया २१ तया निर्दिश्यमानाध्वा प्रविवेश निवेशनम्‌ | ततोऽसौ SATHTAT राधाया इव माधवः WAV a वामनमपि पर्य कान्तिलावसख्यथालिनम्‌ |

सा मन्वाना सुरं दब्रमुपावेशयदासने ॥२२॥

मिधो हदय संवादि संलापसुभगा ततः |

तयोः प्रवहते गोष्ठो तुष्यवेदग्धाश्ालिनोः २४ अथाऽऽगात्तव कोऽप्येको वोखाकारः प्रवोणषधोः। वौष्ामवोवद स्तेन देवदन्ताऽतिकोतुकात्‌ २५॥ वल्लकीं वादयन्तं व्यक्रग्रामज्रुतिखराम्‌ | yaaa शिरो दैवदत्षाऽपि प्रशशंस तम्‌ Re It क्िलवाऽवदश्भृलदेवोऽप्यद्टो safes: | जानात्यत्यन्तनिपुश्ो गुशागुखविषैचनम्‌ २७ साशङ्का साऽप्युवाचैवं किमव चेशमस्यहो |

| शेकग्डेकप्रशंसायामुपद्टासं fe wea 1 २८॥

सीऽप्याचचक्चै किं चुणमस्ति क्वापि warEnty |

सगर्भा किन्छसौ तन्तौ किञ्च वंशोऽपि weary ५२८ कथं NAA इत्यक्ञस्तयाऽऽदाय वक्ञकोम्‌ | वंशादश्मानमाल्लष्य तन्त्या; RTATHAT W Re

दितोयः प्रकाशः | २११

WANA तां Mai ततः खयमवादयत्‌। Dandy पोयु षच्छटामिव परि्चिपन्‌ i ३१ देवदक्ाऽब्रवीग्रैव सामान्यं कला निषे |

नररूपं प्रपेदाना साक्षादसि सरखखतो ३२॥ वोणाकारश्चरणयोः प्रणिपत्येत्यवोचत |

सामिन्‌ fag भवत्ाश्ं वी शावादयं प्रसोद Hy १३॥ मूलदेवो जगादेवं सम्यग्‌ नानामि नद्यहम्‌।

किन्तु जानामि ताम्‌ ये fe सम्यग्‌ जानन्ति वक्षकौम्‌ ॥३४॥ केनामतेक्ष सन्तोति ृष्टोऽसौ दैवदत्तया। भरवोचदस्ति पूवख्वां पाटलोपुवरपश्तनम्‌ १५ तस्मिन्‌ विक्रमसेनोऽस्ि कलावार्यो महागुणः | म्रूलदेवोऽहं तस्य सदाप्यासब्रसेवकः ३६ watt विश्वभूतिर्नावाचायेः समागतः | साल्ताहरत इत्यस्मै कथितो देवदस्षया ३७ मूलदेवोऽप्येव मूचे सत्यमेवायमोटशः |

ग्राहिताभिः कलां युमाहशौोभिरपि amt ३८ विश्वभूतिर्पक्रान्ते विचारे भारते ततः |

तं खे दत्यवान्नासोदाद्यार्थेन्ना हि arent: ३९ मेने धूत्तराओन विदन्प्ान्ययमस्व तत्‌ ` तास््रखणालङ्करशस्येवान्तदशंयाम्यहम्‌ ४० WWE भरते तस्य गरभमानख् YUU | पूवीपरविरोघाख्यं व्याख्याने दोषमग्रोत्‌ ४१॥

११२ ATT

विष्वभूतिस्ततः कोपादसंवबद्मभाषत।

WS: VET श्रुपाध्यायाञ्डादयन्त्यन्नतां रुषा ४२ aaa 'नाटथेनाखाचायं नारोषु नान्यतः

इसितो मूलदेवेन quite: सोऽप्यजायत ४३ MUM Casas पश्यन्तो वामनं सुदा उपाध्यायस्य वैनच्यमपनेतुमवोचत ४४ इदानोमुसुका युयसुपाध्यायाः Tart | परिभाव्याभिधातव्य wa दिश्न।नशालिनाम्‌ ४५ देवदत्ते वय॑ यामो नाच्यस्यावसरोऽघुना

wae annie विश्ठभूतिस्ततो ययौ ४९ देवदत्ताऽप्यथादिक्षदावयोः ज्ञानहेतके |

अङ्कमर्दौ \निविंमदं कचिदाहयतामिति ४७ पजस्यरुत्तराजोऽपि UTTAR

सुभू यद्यनुजानासि तवाभ्यङ्ग करोमि तत्‌ ४८ किमेतदपि Santa तयोक्ः प्रत्युवाच सः जानामि खितः किन्तु तजन्नानामदम न्तिके ४८ भादेश।हेवद्तायाः पक्रतेलान्यधाययुः |

अभ्यङ्ग कर्तुमारेभे मायावामनस्ततः ५० दु मध्यटठं सखानौवित्वात्‌ पासि प्रसारयन्‌ |

WF तस्या WAT: सुखमहं तमादटघे ५१

(१) खण्ड दादमे-| (२ fafame: |

————$ णी

feata: प्रकाशः. १११

walay कलादाश्यमोदटम्नान्यस्य कस्यचित्‌

सामन्योऽयमिल्यंङ्मोः पतित्वा साऽत्रवोदिति ५२॥ gia त्वमाख्यातः कोऽप्युत्क्टः पुमानिति मयुरव्यंसकामानं fat गोपयसि मायया ue A wale eyo किं मोहयसि मां सुः |

ATTN ZITAT साल्ताच्छुदवता wha ५४॥. Way गुलिकामास्याद्‌ रूपं तत्परिवन्ये सः प्रतिपेदे निजं रूपं ae इव तत्तणात्‌ ५५ अनङ्गमिव जाताङ्गं तं लावख्येकसागरम्‌।

sale विस्मिता सोचे wate: ay A wa WE A तस्यापयिल्वा arate "पोतं प्रोता खधाणिना

द्गगभ्यङ्गः व्यरचयदेवदत्ताऽनुरागिणो ५७ खलिप्रर्तालनापूर्ै पिष्टातकसुगन्धिभिः। कवोष्णवारिधाराभिस्ततो हावपि सन्तु: ५८॥ Sage देवदत्तोपनोते पय्यधत्त सः |

सुगन्ध्याख्यानि aera बुभुजाते at a al ven रडःकलारदहस्यानि वयस्योभूतयोस्योः |

faa: कथयनोरेकः क्षणशः सुखमयो ययो do ततः सा AAT तं A wea लया |

गुणै नीको रनाय प्राधयेऽदं तथाऽप्यदः ९१

[ . ~ ae ee ee em ~न ee me मा ne te ee = ee

(१? पानं प्रोत्या। 8 @

११४

.. योगशास्त्रे

यथा UHR हृदये मम सुन्दर विदधोधास्तथा नित्यमस्मिन्नेव निकेतने ६२ मूलदेवोऽप्युवाचेवं निधेनेषु विदेशिषु

WHEN युभाकमनुबन्धो युज्यते ९६१ गुणानां पत्षपातेनानुरागो निधेनेऽपि चेत्‌ वेभ्यानामजेनाभावाकलं सोदेत्तदाऽखिलम्‌ ९४ + बभाष डेवदत्ताऽपि को विदेशो भवाटशाम्‌ |

aa: Sem गुणिनां aut कैसरिणामिव ६५५ भामानमधैयम्यर्थमूखौ हि afyta नः

प्रवेशं लभन्तेऽन्तविना तवां गुणमन्दिर ६९॥ सर्वधा प्रतिपत्तव्यं त्वया सुभग ATA: |

cara मूलदेवेनाप्याभेति जगदे वचः ६७ ततश्च क्रीडतो; खरद्धादिनोदेवि विपेस्तयोः | राजदाःखोऽत्रवोरेत्यागच्छ प्र्लषात्तथोऽपुना ६८ Baad मूलदेवं सा नोत्वा राजवेश्मनि | रान्नोऽगरे DUAR रम्भेव करणोज्वन्तम्‌ ge शक्रपाटदिकसमः पाटप्रकटने पटुः |

मूलदेवोऽपि निषुणोऽवादयत्पटद्ं ततः ७० राजाऽरन्यत PAA तस्याः करण्शालिना | ` प्रसादं मागेयेत्यूचे तं न्धासोचकार सा ७१ सा मूलदेवसदिता जगौ चानु AAT

ददौ चास्यै कृपसतुष्टः खाङ्गलम्नं विभूषणम्‌ ov

हितीयः प्रकाग्रः। ` Qty

पाटनोपुत्रराजस्य राजदौवारिकस्ततः।

ष्टो विमलसिंहाख्व इत्युवाच महोपतिम्‌ ७३ + अयं हि पाटलोपुतरे मूलटेवस्य ata: कलाप्रकर्षोऽमुष्यावां ठतोयस्य कस्यचित्‌ « ततः प्रदोयतां हेव मूलदेवादनन्तरम्‌ |

विन्नानिषु पटोऽख्यै पताका TRAIT Oye ततो रान्ना तथा SH सा्रवोदेषमे गुरः ।.

ततः प्रसादमादास्ये खामित्रस्याभ्यनुज्नया ७६ र।जाऽप्यवो चन्नदियं महाभागाजुमन्धताम्‌ | धुर्ोऽप्यवादौद्यदेव ध्रान्नापयति तत्कुरु ७७ रतरान्तरे YRC At खयमवादयत्‌ | weuaifa विश्वेषां faaragfcarat: ततो विमलसिंहेन वभाषे देव खल्यम्‌ | ूलदेवन्द्ब्ररूपो ANTS! कला ७€ विन्नानातिशयस्यास्य wala नापरः क्रचित्‌। qaed विना दैव सवधाऽसौ एव तत्‌ ८० + राजा जगाद यद्येवं तदाष्ो खं प्रदर्भय |

दर्भने मूलदेवस्य cawarfar algal ८१॥ गुलिकां मूल्लदेवोऽपि मुखादाक्ञ्य तत्क णात्‌ VATA न्तिमाग्मघनिसंक्ञ इव चन्द्रमाः ८२ ary न्नातोऽसि fanfafafa सप्रेमभाषिणा। ततो विमनमिंहिन धुत्तसिंङः सस्वजे ८३

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११६ योगशास्त्र

'अपतश्भृलदेवोऽपि zeae पदानयोः राजाऽपि तं प्रसादेन सगौरवमपूजयत्‌ ८४ एवं देवदन्ताऽपि तस्मिब्रत्यतुरागिशो | प॒रूरवस्यु वशोवाग्बभू हि षयजं सुखम्‌ ८५ भरतिष्ठग्भृलदेवोऽपि विना ब्यृतदेवनम्‌ |

` भवितव्यं हि केनापि दोषेख गुणिनामपि a ce on ययाचे देवदन्ताऽपि धिग्‌ व्युतं त्यज्यतामिति | नात्यजग्मूलदेवस्त TAA: खलु दुख्यजा ८७ तस्यां नगर्यामासोच्च धनेन धनदोपमः | साधैवाष्ोऽचलो नाम मूर्ख्यीऽपर इव WT ८८ शासको देवदन्तायां मूलदेव।ग्रतोऽपि सः छतखोकरणो भावा बुभुजे तां निरन्तरम्‌ ८< tet मूलदेवाय aval वहति सम च। भन्विष्यति सर तच्छ द्राख्यपद्रवचिकोषया ९.० तच््छङ्या मूलदेवोऽप्यगात्तदेष्मनि च्छलात्‌ | पारवश्येऽप्यवि च्छिन्नो रागः प्रायेण रागिणाम्‌ ॥<१॥ देवदत्तां जनन्युचे RATATAT | निधनं द्यूतकारं मूलदेवं सुते त्यज ९२ vay विविधं द्रव्यं यच्छत्यस्मिन्‌ THe तत्‌। wae निश्चलरतो रम्भेव धनदात्जै ९१ |

(१) न्यपतन्‌

हितीयः प्रकाशः ३१७

देवदत्त प्रत्यवाच मातरकान्ततो हम्‌ धनानुरागिणो नास्मि किं afar शगुशरागिणो॥८४॥ असच्च दूतकारस्य गुणास्तिष्टन्ति Aen: |

इति कोपाञ्जनन्धोक्ञा देवद सेत्यभाषत €५॥

धोरो वदान्यो विद्याविहुणरागो खयं FA | विशेषन्नः शरण्योऽयं नाम्‌ त्यच्यामि तत्‌ खलु ९६ aay कुषिनो रुष्टा ASST प्रचक्रमे |

उच्चाटयितुं तनयां खेरिणो वेरिणोमिव ९७ साऽदान्तयाऽधिकै are faatet शरक पयः | CIS वं खण्डं खो खण्डे नोपखरड़लम्‌ ex | सकोपं देवदोक्ा कुहिनो कुटिलाऽब्रवोत्‌ |

मा कुपः पुति areal यक्षस्ताहग्बलिः किल nee लतेव कण्टकितं किमालम्बा खितास्यमुम्‌ |

सवथा मूलदेवं तच्चजापाव्मिमं पतिम्‌ १०० अवादे)देवदन्तेवं मातः किमिति quate |

पुमान्‌ पाव्रमपावरं वा किसुश्येतापरोत्ितः १६ परोक्ता क्रियतां तर्हीत्युक्षा साकेपमम्बया |

मुदिता देवदन्तेवमादिदेश खवेटिकाम्‌ ॥२॥ यदिक्तौ देवदत्ताथा भभिलाषीऽद्य विद्यते | ्रष्यन्तामिकवः साथवाहाचल ततस्वया + तयोक्षः साथेवाहोऽपि धन्धमानो प्रमोदतः। शकटानोतुपूणौनि प्रेषयामास तत्कणात्‌ ४॥

११८

AANA

हृष्टा कुिन्युवाचैवम चलखामिनो wa | भचिन्सनोयमौदायं पश्य चिन्तामशिरिव ५॥ विषश्ा देवद्तोचे किमम्बाऽस्ि करखका | WHAT: सिक्ता यत्लमूखदलाग्काः भ।दिश्यतां मूलदेवोऽप्यस्िन्र्थं भुजिष्यया | विबैके svat मावहयोरपि यचाऽन्तरम्‌ मूलदेवोऽपि Qala इ्षुनादाय पञ्चषान्‌ मूलाग्राखि त्यजश्महुः निस्त विचक्षणः कटोरत्वेन दुशवपवेग्रन्योन्‌ परित्यजन्‌ |

yA गणिका वक्रे पोयुषस्येव कुण्डिका: चतुर्जातिन cent कपुरे्ाधिवास्य श्ूलप्रोता वश्चमानसंपुटे प्रादिषोत् ताः १० + देवदश्ताऽपि ताः We वभाषे ware fafa | धुसषेशाचलयोः पश्य MTNA cay ११ कुडिन्यविन्तयददो मदहामोदान्धमानसा |

AMA खगढष्णाग्ो पृत्तभेषाऽमुधावति १२॥ सख कोऽप्युपायः क्रियते येन निष्कास्यते एुरात्‌ | अनत्युष्णजलसेकेन बिन्ञादिव महोरगः १३ कुहिनो मूलदेवस्योश्वाटनायाचलं जगौ |

WUT: AAA म्रामगमनोपक्रमस्षया १४ WIR याखयामौत्यलोकं साथवाह त्वमश्चसा | कथयेदंवदत्ताया विगन्धा सा यथा भवेत्‌ १५॥

दितोयः प्रकाशः |

ततो ्रामान्तरगतं श्रुत्वा त्वां धूत्तरपां सनः fa:wg टेवदन्तायाः समोपसुपेष्यति १६॥ देवद सान्तिके ques दोव्यति निभम्‌ | भागच्छेः सवसामग्रया ABTA सुन्दर १७॥ ततस्तथा कथमपि त्वभेतमवमामयेः |

येतां भजश्रुयस्तित्तिरोमिव तित्तिरः + १८ तत्तथा प्रतिपद्याथै यास्यसि ग्राममित्यसौ। आख्याय देवदग्ाया gai दक्वा नियंयौ १९ ततस्तया निरातङ्कं मूलदेवे प्रदेशिते।

Vine geared कुषाकभटवे्टितम्‌ २० देवदता सहसा प्रविशन्तं ददर्भं तम्‌

मूलदेवं AIST न्यधात्मतकरण्डवत्‌ २१॥ तथाखिनं मूलदेवं afer न्नापितोऽचलः।

uae छतप्को निषसाद सिताननः २२ भवो चद चलस्तत्र Raq कंतवनाटितम्‌

देवदत्ते वयं खान्ताः खास्यामः प्रगुणोभव २२॥ देवद त्ताऽब्रवोदेवं विलक्षवितधस्मिता . `

११८

खानयोग्यासने तदहि ag पादोऽवधायैताम्‌ २४ |

एवसुलखाप्यमानोऽपि सादरं Sarwar विशेषतोऽभूत्‌ खटुायामचलो निच्चलासनः २५॥ शशाक LAUTAN स्थात्‌ गन्तं नो तदा प्रायेण विगलन्तयवाखस्थे मनसि शक्तयः २६॥

१२० AVANTE

भवो चदचलो देवदत्ते खप्रो wafaa: |

VAG SAY ARAVA: सचेलज्ञातवानद्म्‌ २७ ai सत्यापयिष्यामि तदयथेमदहमागमम्‌ | सत्मोक्ततो Wa खप्रः शभोदर्काय जायते २८ कुदिन्यवोचदादेशः प्रमाणं जो वितेशितुः |

ufa fat a शरुतं खामौ यदिच्छति करोति तत्‌ ren देवद चाऽब्रषोदार्यं किभेतदुचितं तव सदष्यदेवदृष्ये यं तूलिका यदिनश्यति १० अचलोऽप्यवदद्वदरे aoe किमिदं तव शरोरमपि यच्छन्ति पत्यर्थं लादटशः स्त्रियः ३१ किं तेऽन्यास्तूलिका स्युः पतियंस्याः किलाचनलः | area fat MSS THAT सखा २२. ततौ भाटौविवश्यया कारितो Sarwar अभ्यङ्कोदरतनादौनि पयहखित एव सः २१॥ खप्यमाने ततस्तस्मित्रोे खलिजलादिना | मूनलदेवञ्चण्ड इव ज्वियते समन्ततः २३४ भआलुदवाचलभटान्‌ fet दर्टिसंन्नया | निदिदेणाचलं चाश धु्षौकषे्कर्मये + २५॥ कोपाटोपसमाविष्टो मूलदेवं ततोऽचलः |

चकं wal केशेषु द्रौपदौमिव कौरवः २६

तं चोवाच नयन्नोऽसि विद्ानसि quicfa | कार्म णोऽस्यानुरूपोऽच्य ब्रूहि कस्तेऽसु निग्रहः २७

——— कगयी

दितोयः प्रकाशः | २२१

धनाधोनशरोरेयं वेश्या तां चेद्विरंससे ग्रामपहकवदू रिधनेन किमग्रहोः २८ स्ूलदेवोऽपि निष्यन्दस्तदा मुङकुलितेक्षणः | विफणलोभूतफालस्योदुवाह हौपिनसुलाम्‌ २८ एवं चिन्तयामास साधेवाहपतिस्ततः | fauren महाताऽसौ देवदेवं दशां गतः ४० इति Mart मुक्तोऽय त्मस्मादागसो मया। लतन्नोऽस्युपकन्तेव्यं त्वयाऽपि समये मम ४१॥ सुक्तोऽथ तेन धृ्तेयो वैश्मतो निययौ ततः | qu qu परिक्रामन्‌ रणाहम्न इव feo: ४२॥ गत्वा पुरोपरिसरे wear सरसि विस्तृते शरत्काल इव WI ततृक्षणात्‌ क्षालिताम्बरः ४३२ श्रचलख्वापकर्त' WIRY धूत्तराट्‌। मनोरथरथारूढटोऽचलद्ेणातटं प्रति ४४॥ दादशयोजनायामं सः खापदकुलाकुलाम्‌ | दु दशाया; प्रियसखोमिव प्राप महाटवोम्‌ ४५ पारावारमिवापारां तितोषस्तां महाटवोम्‌ | सहायं चिन्तयामास तररूडमिव धूत्तराट्‌ ४६ कस्मादप्यागतोऽकस्मादभ्चादिव परिच्युतः गम्बलस्थगिकां विभ्रत्कोऽपि cal हिजस्तदा ४७ असदायः सहायोयं तं विप्रं ल्िप्रमागतम्‌ | वदो afefaa प्राप्य मूलदेवो सुदं ययौ ४८

४१

RAR

MANIA

जगाद PACA AACA nAqy: | भानच्छायादितोयस्य दिच्चा सिलितवानसि ४९ खच्छन्द वातत यिष्यावस्तदावां हिजसत्तम | mage विद्या aval fe ar afr aye a दूरे कियति गन्तव्यं खाने जिगमिषा क्र ते।

कष्यतां भो माभाग मागेमेतीं वभो कुङ्‌ ५१॥ विप्रोऽप्याख्यद्रमिष्यामि पारेऽरख्यमिव स्तम्‌ |

खानं वोरनिधानाख्य ब्रूहि तवं ga वास्यति ५२॥ AACA SANM AAT षेणातटे पुरे |

विग्रोऽप्युचे तदेहि त्वभेकोऽध्वा दूरमावयोः ५२ ललाटम्तपतपने WAIST समागते |

मिलिताभ्यां wasatt ताभ्यां प्रापि महासरः ५४॥ पाण्पादमुखं मूनलदेवः ware वारिणा | निरन्तरतरच्छछाये भूतले समुपाविशत्‌ ५५ खगिकायाः समाक्तष्य GAA वारिका | एकोऽपि भोक्षमारेमे cal रहः द्व दूतम्‌ ५९॥ धरत्तोऽप्यचिन्तयदसौ नाऽऽदौ मे भोजनं ददौ प्रतिन्ुधाऽऽतुरो भुङक्ते भुक्तः सन्‌ खलु दास्यति you yat aaifad विप्रे बघ्नाति खगिकामुखम्‌ |

दध्यौ धूर्तोऽपि यद्यद्य arenes: प्रदास्यति ५८॥ तस्मिन्रदन्ला भुच्ाने मूलदेवस्तदाशया | त्रोन्वाखरानगमयन्रामाशा हि जं।वितम्‌ ५८

हितोयः प्रकाशः | १२१

अटवोँ तां परित्यश्य धृत्तराजं दिजोऽवदत्‌ |

afer तुभ्यं महाभाग यास्याम्यदमितोऽधुना geo तमूचे मूलदेवोऽपि त्वत्ाहाव्यादियं मया। हादशयोजनायामा क्रोगवल्लहिताऽटवो ee a वेगात गमिष्यामि मूलदेवाभिधोऽसम्यङ्म्‌ |

ततर मे कथयेः कायं कथ्यतां fat a aa A €२॥ नतोरकनिघुणशर्मेति विहितापरनामकः

विप्रोऽहं संहडो माभेव्युक्ला टकस्ततो ययो ६३ गच्छता मूनलदेवेन ततो वेणातटे प्रति।

eu: संवसधः कञ्चिद्सदावसधः पथि॥ ६8 प्रविष्टस्ततर भिक्लाधं लामङुसिर्ब॑सुक्या t भ्रमन्रासादयामास FAY Hata? n qua ग्रामात्रिष्क्रामतस्तस्याभिश्खः कोऽप्यभून्मुनिः मासक्तपणपुखयाता पुख्यपुक् TAWA] ९६९

तं cul मुदितः सीऽभरूदशो मे सुक्लतोदयः। यग्मयाप्तमिदं पात्रं यानपात्रं भवोदधौ ६७ साधोः कुष्पाषदानेन रत्रतरितयशा लिनः |

उग्भोलतु चिरादद्य महिवेकतरोः फलम्‌ ac कुल्माषान्‌ साधवे TUT मूलदेवः पपाठ च। धन्यास्ते खलु येषां स्युः कुल्माषाः साधुपारणे तस्य भावनया BVT बभाषे alfa देवता | श्रंस्लोकेन याच्खमभद्रकिंतैप्रदोयताम्‌ ७०

२२४

` . योगशास्त्र

प्राथयामास सव्यस्तां मूलदेवोऽपि देवताम्‌ | गणिकादेवदत्तभषदखं राज्यमसु मे ७१ एवमस्ति ति देव्युचे म्रलदेवोऽपि तं सनिम्‌ | वन्दिल्वाऽथ maa भिच्ित्वा बुभुजे खयम्‌ ७२ मागे क्रामन्‌ क्रमेणासी प्राप Taras पुरम्‌। सुष्वाप पान्धशालायां निद्रासुखमवाप ७३ याभिन्याः पञ्चमे याभे सुप्तः ayaa | यत्पुणं ण्डलखन्दरः प्रविवेश मुखे मम ७४ तमेव खप्रमद्राकतीत्कोऽपि कापटिकस्तदा | अन्यकापेटिकानां प्रबुदस्तमचोकधत्‌ ७५ तेषु कापटिकैव्धेकः quad व्यचारयत्‌ |

भविरेण AYIA त्वं सखण्डटटतमण्डकम्‌ OG Ee: पेरिकः सोऽभूदेवं भूयादिति ब्रुवन्‌ | जायेत बदरेखापि सृगालख महोत्छवः ७७ ai नाचोकधत्तेषामन्नानां धुत्तराट्‌ निजम्‌ | मूर्खा हि दिते ca टषत्‌ खण्ड प्रचक्षते ऽर मरकं कपरिः प्राप खष्ाच्छछादनप्येणि | प्रायेण फलति खप्रो विचारस्यानुसारतः < धूर्तोऽपि प्रातरारामे गत्वा प॒ष्पोच्चयादिना। भप्रोणाकालिकं लोकं कर्मापि तादृशाम्‌ So ग्टहोत्वा मालिकात्तस्माल् पुष्पाणि फलानि | शएचिभूत्वा ययौ वेभम सप्रणास्रविप्ितः ८१

दितोयः प्रकाशः |

मूलदैवस्ततो AAT दश्वा पुष्पफलानि च| उपाध्यायाय AAW शशंस ख्वप्रमात्सनः WR li मुदितः सोऽवददिदान्धत्ष खप्रफलं तव |

Base कथयिष्याम्यद्यास्माकं भवातिधिः॥८९॥ मूलटेवं खपयित्वा भोजयिता गौरवात्‌ | परिणाग्रयितु कन्यासुपाध्याय उपानयत्‌ ८४ वभाषे भून्तदेवोऽपि ताताऽन्नातङ्घलस्य मे।

कन्यां प्रदास्यसि कधं विचारथसि किं नहि ८५॥ उपाध्यायोऽप्युव। चैवं लशूध्याऽपि कुलं गुणाः भ्रातास्लससर्वथा कन्या aad परिष्णोयताम्‌ ८६ तदहाचा मूलदेवोऽपि कन्धकां तामुपायत | कायसिचेभेविष्यन्याः प्रादुभूतमिवाननम्‌ ८७ मर्ये दिनानां सप्तानां लं राजेह भविष्यसि |

दति तस्य खप्रफलसुपाध्यायो न्यवेदयत्‌ ce + BEAT वसन्‌ धृत्तराजो गत्वा बहिः पुरात्‌ | सुष्वाप चम्परक्तले संप्राप्ते पद्छमेऽषनि ८९ | तदा नगरे तस्ित्रग्रेतनमहोपतिः।

श्रपुक्रो निधनं प्राप निष्याद ta पादपः॥<०॥ Hal faa: पुरोभाषखच्छतङ्गारचामराः |

AY: TIGA TATE SUTRAS जननः \॥ ९१ I ततो बहिः पयटन्तो निकषा चम्पकदटुमम्‌ | श्रपश्यग्भुलदेवं ते नरदेवपदो चितम्‌ ९२

येन हे षितं am गजेनोजितगजिंतम्‌ |

२२५

२२६

योगशास््न

अङ्गारेण तस्याऽचचामराभ्यां वौोजनम्‌ ९३ | पष्डरोकां aicwafed तस्व चोपरि | शरदञ्चमि वादश्रतडिदण्डमजन्भत ॥९४॥

तं चाधिरोहयामास खस्कन्ध Haga: | खाम्यासिमुदितेर्लीकेक्र जयजयारवः ९५ gt महातूयं रवेः पूयं माणदिगन्तरम्‌ | तप्राविशग्भलदेवो राजराज इवालकाम्‌ ८६ उन्तोर्णो Taw सिंहासनमपिष्ठितः | समन्ततः समायातः सामन्तेरभ्यपिश्यत ८७ Wate देवता alfa देवतानां wared: |

अयं विक्रमराजाख्यो राजा ae कलानिधिः wer वन्तिष्यन्ते येऽमुष्य शासने ्ितिशासितुः | तानद्धं निग्रहोष्यामि मोत इवाग्निः <€ तद्गिरा विस्मितं भौतं सवं प्रतिमण्डलम्‌ | यतेरिवेद्द्रियग्ामः सदा तस्य ANAT २०० ततः सख राजा विषयसुखान्यनुभवन्‌ व्यधात्‌ प्रोतिमुव्जयिनोगेन मिथः संब्यवद्ारतः # १॥ तदानीं देवदन्ताऽपि मूलदेवविडग्बनाम्‌ | weet प्रेष्य agar व्यन्रवोदचलं प्रति wr fa stat द्रव्यदर्पान्ध त्या कुलग्टदिण्यहम्‌ | मुमूर्षो "मूख wee व्यवाहार्षीयिदोहटशम्‌

So ee ~ ~ => ~

(१) We Taare |

हितोयः प्रकाशः ` QAO

त्वयाऽस्मदोयसदने नागन्तव्यमतः परम्‌ |

इति निष्कास्य तं aera? दृपतेरगात्‌ तया याचितो राजास वरो दौयतामिति। यथेच्छं ब्रूहि यच्छामि तं येनत्यवदनुपः ५॥ सोचे at प्रति नाज्नाप्यो मूलदेवं विना पमान्‌ वारणोयोऽचन्ल्चायमा गच्छन्मम वेश्मनि एवमस्ति रान्नोक्ता हेतुः कोऽत्रेति पृष्टवान्‌ शशंस माधवो देवदस्ताभ्वूसंन्नया ततः ¢ faanqaa: कोपाश्चलितश्वुलतस्ततः |

aaa तमाहृय साचेपमिदमनव्रवोत्‌ ८१ मत्पुरोमण्डनावेतौ रत्रभूतावरे त्वया

मूर्खेण wanda mada frafadt we ततोऽमुष्यापराधस्य प्राणापदरणशं तव | दण्डोऽस्त्विति atin देवदता न्यवारयत्‌ १० त्वं यद्यप्यनया aratsyat ताणं तथापि & | मूलदेवे समानोते भेदित्यभ्यधाच्रपः ११॥

au नतला ततो गला साधवाहः प्रचक्रमे | नष्टरत्रमिवान्वष्टं सूलदेवं समन्ततः १२ मूलदेवमपश्यन्‌ भोतो न्यूनतया तया |

WIG भत्वा ययौ Whe पारसकूलमणर्डलम्‌ १३ zat मूलदेवोऽपि विना मे दैवदत्तया। भोव्येनालवरेनेव प्राज्यराज्यश्ियाऽपि किम्‌ १४॥

१२८

योगशास्त्र

ततः देवदत्ताया जितगतोख aaa: |

चतुरं प्रेषयामास दूतं प्रातसंयुतम्‌ १५ गल्वोव्जयिन्धां इतोऽपि frag व्यजिश्रपत्‌ | SANIT ATT OMA HAST वदत्यदः १९

यथा भे दैवदत्तायां प्रेम जानोध तत्तथा |

यद्यस्य रोचत aisha तदियं प्रेष्यतामिति १७॥ ततोऽवददवन्तोशस्तनेदं कियदधिंतम्‌

रान्ना विक्रमराजन मेदो राज्येऽपि नास्ति नः॥ १८॥ भआकाये देवदत्तां जगादोच्यिनोपतिः |

दिष्या जाताऽसि भद्रे लं चिरात्‌ पूशमनोरथा १८ राजा AW मरूलदेवो देवतायाः प्रसादतः |

त्वामानेतं प्र॑षोग्रधानपुरुषं निजम्‌ २० ततस््वं aa गच्छेति प्रसादाल्नितश्रवणा |

, श्रादिष्टा देवदत्ताऽगादणातटपुरं क्रमात्‌ ॥२१॥

राजा विक्रमराजोऽपि महोच्छवपुरःसरम्‌ | खवेतसोव विपुले ख३ग्मनि निनाय ताम्‌ २२ जिनार्चामचतस्तस्य सम्यक्‌ पालयतः प्रजाः | दोव्यतो दवदन्तां जिवर्गोऽभूदबाधितः॥ 22 1 LA पारसकूल(दद्वान्लक्रयवसुकः |

VAM वचलस्तत्र AAZW WATTS: २४

लच्मोमहत्व पिशनेमणिमौक्तिकविटुमेः।

wat fanta wre मशोनाधमुपाख्ितः २५॥

हितीयः WRIT: | ३२९

भचलोऽयमिति fanquafaaary za: | ष्टा प्रागृजम्मसम्बन्धमपि ura: स्मरन्तिदहि॥२६॥ राजानं मूलदेवोऽयमित्यन्नासोत्तु नाचलः | भ्रात्तवेषं नटमपि स्थलप्रन्ना जानते ROU कुतस्त्वमिति cate: पारसादिलत्युवाचसः। ययाचे पश्चकुलं भाण्डालोकनकमणे २८ कौतुकात्खयभेष्याम इत्युक्तो भूभुजा सतु महाप्रसाद LA कोपं को वत्ति तादथाम्‌ २९ ततः पश्चक्ुलोपेतो ययौ राजा तदाश्रये | मच्निष्ठापटटसूतादि सोऽपि भाण्डमदश्ेयत्‌ १० भाण्डं किमियदेषैदं सत्यं avifa ayer | उक्ला इत्युक्तवान्‌ चेष्टो सत्यभेतावदेव मे २१ ay पुनरप्युचे सम्यग्‌ star निवेदय | अस्मद्राज्ये शल्क चौयां यच्छरोरेण निग्रहः ३२॥ ्रमरोचदवलोऽप्यवमस्माभिः AURA | पुरतो नापरस्यापि aa देवस्य किं पुनः १३ राजेत्युवाच ager Afea: सत्यभाषिषः। क्रियतामरंदानं सम्यगम्भार्डं AWA ३४ ततः पञ्चकुलेनां ह्िप्रहाराद वेधतः | श्रसारभाणर्डमध्यख्यं सारभाण्डमशद्यत २५॥ AAAS Aart राजपुंभिबिंभिदिरे क्षणत्‌ शरफादस्यमनांसोव भार्डसखानानि सवतः २६ A BR

११२०

AAT

तेयंधा शद्धितं ure वित्तशाय्ं तथाऽभवत्‌। परपुरान्तःप्रवेशकारिणो हधिकारिणः १२७

तज्‌ न्रात्वा कुपितो राजा बन्धयामास तं AAT | सामन्ता अपि बध्यन्ते राजादेशादणिक्‌ कियान्‌ ३८ ततस्तं सदने Alar ह्ोटयित्ला बन्धनम्‌

fa ai प्रत्यभिजानासि पप्रच्छेति मद्ोपतिः ३८ अचलोऽपि sed जगदुदृद्योतकारिणम्‌।

भानुमन्तं भवन्तं बालिग्ोऽपि वेत्ति कः ४० पर्याप्तं चाटुवचनेः सम्यक्‌ लवं afer तददद राश्रेत्यक्ोऽचलोऽवोच्तद्दिं जानामि AWE ४१ देवदत्तामधाह्कय भूपतिस्तमदभगयत्‌ |

बट्टा कताथ स्याश्मनःसिहिहिं मानिनाम्‌ ४२ देवदन्तामसौ दृष्टा Bla: कष्टां दशां ययी

अग्रे स्रापञ्चाजना हि सत्योरप्यधिका कृशाम्‌ ४२॥ साऽप्यूवे मूलदेवोऽय मिन्युक्घो यस्तदा त्वया

एवं कुर्या ममापि तवं देवादयमघनमोयुषः ४४॥ तदसि व्यसनं प्राप्तः प्राणसन्देहकारणम्‌ |

सुक्षोऽसि चायं पुरेण aa: शुद्रघातिनः ४५ ततो faaa: वणिक्‌ पिला पादयोस्तयोः।

ऊवे सर्वापराधाश्मे तितिन्ध्वं तदा WATT BE | ङष्टस्तेनापराधेन जितशव्रुमहोपतिः प्रवेशसुव्नयिन्यां मे युमदाचा प्रदास्यति ४७

दितोयः प्रकाशः। RRL

भधोचे मूलदेवोऽपि मया क्षान्तं तदेव ते

यदा प्रसादो विदधे देव्या ओोदेवदत्तया ४८ ततः प्रसादं दच्वोचेदूतभेकं WAT | qugefadt गन्तुं विससजा चनं कृपः ६९ प्रवेगोऽवन्तिनाथेन तस्यावन्यामदोयत |

मूनलदेवस्य वचसा WITT YA एव यत्‌ ५०॥ श्न्यदयुरदृःखविधुराः WHTRTAYTATH |

fafaar वणिजो मूलदेवभेवं व्यजिन्नपन्‌ ue a जाग्रत्यपि प्रजाख््रात्‌ं afa देव दिवाजिशम्‌। squad नगरं परितः परिमोषिभिः॥ ५२॥ कोला इव ‘fat चौराः पुरेऽस्मिश्मन्दिराणिनः। nfagd खनन्दुचेनारत्ता रक्षितं WaT: ५२ अटश्यमानाः केनापि कछतसिददाख्ञना इव |

भ्राम्यन्ति चौराः खरं नो Wey खग्डषेष्विव ५४ भचिरािग्रहोष्यामि तस्वरानयशस्करान्‌ | मूलदेवोऽभिधायेैवं वणिजो विससखज तान्‌ ५५ ्रादिक्तग्रगराध्यक्ं aad खापतिस्ततः |

अन्विष्य तस्करान्‌ सर्वान्‌ ग्टहाण निग्डषहाण ५६ अ्रधोवाच पुराध्यक्षः खाभिन्रेकोऽस्ति तस्करः |

असो शक्यते we दृषटनष्टः पिशाचवत्‌ ५७

(# ww fawry

१३२ ' ` योगशास्त्रे

जातामषस्ततो राजा avr नियंयी fafir | नोलाम्बरप्रावरणो नोलास्बर इवापरः ५८ सथानेषु शद्गसथानेषु बभ्ाम खामधाम |: |

ze कमपि नापश्यददहेः पदभिवाम्भसि ५९ #

सवै नगरं श्रान्तः Wat: सुष्वाप कुत्रचित्‌ quweaga भेलगुहायामिव केसरो ९० निशाचर इवाकस्मात्रिशाचरणटारुशः |

ART TATA TSCA RATA: \ ९१॥ aisafa व्यादइरबुच्मलिग्बुवपतिस्ततः |

रुष्टः सुप्तमिव व्यालं पटा ृपमघटहयत्‌ ९२ Nt

चेष्टां खानं fat जिन्नासुस्तस्य भूपतिः | अवे कार्पटिकोऽस्मोति a a निष्णा arent: ६२॥ एदि कापटिकाद्य लामदरिद्रौकरोम्यदम्‌ | Tay तस्करो भूपं मदान्धानां धिगच्चताम्‌ ६४ तमन्वचालोत्सोऽरथेच्छुः पसििवत्पृथिवोपतिः |

` ममई गदेभस्वापि पादौ कार्यान्ननादंनः ९५ जानानः राजानं पाश्वं सत्युमिवानः |

जगाम धाम कस्यापि fea: Aware: ६६

aa ara खनित्रेण पातयित्वा वेश्मनः जग्रा सारद्रविणं राः कुण्डासुधामिव eon अन्नो रान्ना समस्तं तदाषहयामास तस्करः |

$ © a उदरं दशयरामास शाकिन्येव yet: Wes Hl

हितौयः प्रकाशः | RAR

तमुन्भूलयितु मूलाग्भुलदेव उवाह तत्‌

wat हि कारकशोपामादेवाः कायंराक्षसाः ६९ Rear ततो गत्वा गुासुष्ठाव्छ सोऽविशत्‌ निनाय aa भूपं च्छगणारोपितालिवत्‌ oo श्रासोव्रागकुमारौव कुमारो तत्र तत्खसा | नवयौवनलावश्य पुख्यावयव शालिनो + ७१ araarentaa: पादावित्यादिष्टटा खबन्धुना | सोपकूपं ततो भूपसुपावेशयदासने ७२ प्रल्षालयन्तो तत्मादकमक्ञे कमलेक्षणा |

अनुभूय WUT तं सवाङ्गमुदेचत ७१

अरो कोऽप्येष Bed: साक्षादिति सविस्मया | सानुरागा सानुकम्पा साऽब्रवोदिति भूपतिम्‌ ७8 x पादप्र्षालनव्याजाल्कुपेऽख्ित्रपरे नराः

अपात्यन्त महाभाग तस्कराणां कुतः कपा Oy a auufa नैह कूपे लां लद्मभाववगोक्षता। महतामनुभावो हि वशोकरणमडतम्‌ og |

ततो मदुपरोधेन सुन्दरापसर Faq |

हयोरयग्यन्यधा नाश कुशलं भविष्यति ७७ विमृश्याध महोनाधो निजेगाम दूतं ततः |

घौमन्तो fe धिया afer fea: सत्यपि विक्रमे voc गतं Zag व्याहारि तया गच्छत्यसाविति।

(1) WO Mare |

२२४ TATA

खच््णरच्षणाधं fe moet धोमतामयम्‌ ७८ ` छट कङ्मसिजिद्नालो वेताल इव दारुणः . ` अनुभरुपालसु्तालो cara मख्डिकस्ततः ८०

a समासनब्रमालोक्ध भूपतिर्धीहषस्यतिः चत्वरोत्तभ्भितग्रावस्तम्भनान्तरितोऽभवत्‌ ८१ कोपान्धनयनषासौ TIT पुमानिति।

कडग सिना दषतस्तम्भं च्छित्वाऽगाद्ाम afega: ८२ ययौ खं धाम राजाऽपि इष्ट्चौरोपलम्भतः |

प्राप्तः सौख्याय जायेत दोषकारो कस्ववा ८३ राजा प्रातस्ततो राजपाटिकाव्याजतो वहिः |

दस्युं विश्ठमनोदस्युस्तं निरूपयितं यवी ८४ ` भध वस्नापणारे कुर्वाथं FARA |

परेव शितजङ्कोरं किञ्िदुद्ाटिताननम्‌ ८५॥

AAC ASAT पेतं छद्म चाकल तिम्‌ | दृ्टापाल्यत्‌ खापः कपादृष्टानुमानतः ८६ (युग्मम्‌) गत्वा wet महोनायोऽभिन्नानानि निषैदयन्‌ | पुरुषान्‌ प्रषयामास तस्याकारणहेतवे ८७

इतः पुमाब्रुनं तदिजुभ्भितमित्यसौ | श्राहतोऽमंस्त चौरा fe मषाराजिकषेदिनः y cx | SSATAAT WARS राश्नाऽऽस्यत महासने | wemnare कुवन्ति aifant fe जिघांसवः ८९ तं भरपतिरभाषिष्ट प्रसादसुशखया गिरा।

हितीयः प्रकाशः | १३५

BAA TAA AW दातव्या एव RAAT Lo eeyal awit मे नापरो निरगात्ततः। अयं a ua राजेति fafa मण्डिको whe wer गद्मतां मतृखसा देव दैवकोयेव सा fara मदौयमन्यदप्येवमवोचत पार्थिवम्‌ eR a तदानोमण्युपायंस्त रूपातिशयग्ालिनोम्‌ | तस्य सखतारं पतिः कंसारिरिव oferty ९३ महामात्यपदे चक्रं तस्करं तं ATMA: | को वेत्ति भूभुजां भावं मध्यं पल्युरिवाश्मसाम्‌ aes ll तस्माश्रष वस्त्रादि तङ्गिन्येव भूपतिः | नित्यमानाययदश्ो धूर्ता धृतेरटव्यत ९५ AE यावत्समाङ्ञष्टं द्रव्यं तावन्रुपेख सा | अभाषि fad avant: faecal तिष्ठति ॥९६॥ वि्तभमेतावदेवासोदस्य दस्योः aarsfa | एवं न्यवेदयद्राज्ो गोप्यं प्रियतमे a fe co | विडम्बनाभिबह्गोभि्मर््डिकं चर्डशासनः | निजग्राइ ततो राजा पापानां कुशलं कियत्‌ €८

चोर्यात्‌ खश्यंमपि विक्रमराजराजः,

TING मरण्डिकमखण्डनयो जघान |

wai aa विदधोत gah: कथच्चि-

zatfa aufa विङ्दफलानुवनस्ि २९८९

दति मूलदेवमण्डिकयोः कथानकम्‌

१२६ योगशास्त्रे

भासौद्राजग्टहे सम्मस्नितामरपुरे पुरे पादाक्रान्तकपञ्चशिः खेखिको नाम पाथिवः॥१॥ राश्नस्सस्य तनयो नयविक्रमभाजनम्‌ |

` मान्नाऽभयकुमारोऽभूत्‌ wae: श्रोपतैरिव sag तस्िब्रगरे बेभारगिरिकन्द्रे | चौरो लोषस्वुराख्योऽभूद्रौद्रौ रस इवाङ्गवान्‌ सतु use? नित्यं पौराणासुत्वादिषु। लब्धा द्िद्राखि विदधे पिशाचवदुपद्रवम्‌ ४॥ भाददानस्ततो दरव्यं Yara परस्त्रियः | भाण्डागारं निशान्तं वा निजं मेने तत्पुरम्‌ ५॥ चौर्य भेवाभव नतस्य Wa saa चापरा

` अपाख क्रव्यं क्रव्यादा भच्चैस्तुप्यन्ति नापरः ARIJFSA रूपे चेष्टया सुतोऽभवत्‌ भार्य्यां रोहिणोनान्नयां रौहिखेयोऽभिधानतः

स्वमत्यु समये प्रापे पिज्राऽऽद्येत्यभाषि सः | यद्यवश्यं करोषि aqued ददामि तत्‌ ८॥ अवश्यमेव कन्तव्यमादिष्टं भवतां मया | कः पितुः पातयेदान्रां एचिव्यामित्युवाच सः < प्रहृष्टो वदता तेन चौरो लोषखवुरस्ततः | पाणिना dang पुत्रमभाषिरेति निष्ठुरम्‌ १० योऽसौ Taras सितः सुरविनिमिते विधत्ते Saat वोरो मा च्रीपषोस्तस्य भाषितम्‌ ११॥

हितोयः प्रकाशः 2१७

अन्यत्तु खेच्छया वत्स कुयीस्वमनियज्ितः | उपदिश्येति पञ्चत्वं प्राप SWAT: १२ सतकायं पितुः कत्वा रौहिशेयस्तोऽनिश्म्‌ | चकार चोरिकां लोष्ष्वुरोऽपर इवोहतः १३ पालयन्‌ पितुरादेशं जोवितव्यमिवासनः। खटदासेरमिवासुष्णात्‌ राजग्टहपत्तनम्‌ १४५ तदा नगरग्रामाकरेषु विदडरन्‌ WAIT |

चतुदं शमहासाश्ुसहसख्परिवारितः १५॥

BU संचाय्माशेषु खर्णाम्भोजेषु चारुषु |

न्यस्यन्‌ पदानि तव्रागाहौरश्रमतोथक्तत्‌ १९ "व्यन्तरेरसुरेजयोतिषिकवं मानिकेरपि |

Bt: समवसरणं चक्रो जिमपतैस्सतः १७ भायोजन विसरपिख्या सवेभाषानुयातया | भारत्या भगवान्‌ AIT: प्रारेमे धमेदेशनाम्‌ १८ तदानों रौहिषेयोऽपि गच्छन्‌ crore प्रति मागीन्तरासे समवसरणाभ्यणमाययौ १९ एवं चिन्तयामास पधाऽनेन प्रजामि चत्‌ | शृणोमि वोरवचनं तदान्ना भज्यते पितुः २० चान्यो विद्यते पन्या भवत्वेवं faa सः कणँ पिधाय पाणिभ्यां हुतं राजग्डहं ययौ Res

1) waawe येनानिके्ज्योतिपिषैरव्यन्तरेरष्रेरपि। Ba

RRS

; ` योगशास्त्रे

एवमन्वहमप्यस्य यातायातक्लतोऽन्यदा | उपसमवसरणं पादेऽभश्यत कण्टकः २२॥ भोलुक्यगमनाद्राठमम्नं पादे कण्टकम्‌ | VACA समुदक्त्‌ शाक क्रमात्‌ क्रमम्‌ २९॥ माख्युपायोऽपरः कोऽपोत्याक्षष्य ATCT क्षन्‌ कण्टकम्ौषोदिति विश्वगुरोमिरम्‌ २४५ awaerafaarer निनिभेषविलोचनाः | wegraaren निःखेदा नोरजोऽङ्गाः सुरा दति ॥२५॥ ayyafad धिग्‌ धिगित्याशृड्तकण्टकः।

पिधाय पाखिना we तघेवापससार सः २६ भथान्वदं सुष्यमाशे THF तेन दस्यना |

उपेत्य णिक afeast व्यन्नपयन्रिति २७ त्वयि शासति देवान्धत्र भयं दविणंतु नः, WAT WHI चौरैरदृेखेटकेरिव | Ae बन्धूनाभिव तेषां तु zeta: पोडया ततः | सकोपाटोपमित्य॒चे कृपतिरंष्डपाथिकम्‌ २९ किं चौरोभूय दायादोभूय वा मम वेतनम्‌ watfa चौरेगद्यन्ते यदेते Tafa: १० सोऽप्यूचे देव कोऽप्येष चोरः पौरान्‌ विलुण्टति ¦ रौदिषेयाद्नयो we दृष्टोऽपि हि va ३१ विद्यदुल्किप्तकरखेनोत्‌्रुत्यायं श्षवङ्कवत्‌

गष्ादेषं ततो angquyafa हेलया ३२

हितोयः प्रकाशः | ३२१९

AAG MAU ATAU नश्यते |

AMT श्चेकक्रमेणापि तेन त्यज्यते क्रमेः ३३ नतं हन्तुं मवा धर्तुमहं शक्रोमि तस्करम्‌ warg तदिमां देवो दाण्छपाशिकतां भिजाम्‌ २४ ृपेशोक्ञासितेकभ्वुसंत्नया भाषितस्सतः।

कु मारोऽभयकमारस्तमूचं दाष्छपाथिकम्‌ ॥-२५॥ चतुरङ्गवम्‌ सल्नोक्लत्य सुख यहिष्परात्‌ . ` ASTRA VARA: पत्तनं .वेष्टयेससदा १६॥ ware व्रासितो विद्युदुत्चिप्तकरणेन षः ` पतिष्यति बहिः Gat वागुरायां कुरङ्गवत्‌ 2७ प्रतिभरूभिरिवानोतो निजपादेस्ततख सः | ग्रहोतव्यो महान्‌ Tae: पदातिभिः ace तथेत्यादेशमादाय नियेयौ दाख्छपाशिकः ..

तथेव चमू Tent weed निर्ममे wT: ३९ afea रौहिण्योऽपि ग्रामान्तरसमागमात्‌ श्रजानानः पुरीं रुचां वारीं गज इवा विशत्‌ ४० AQAA टला बद्धा मलिन्तुचः |

्रानोय कुपतेर्दाणडपाथिकेन समपितः ४१॥ यथा न्याय्यं सतां ताशमसतां निग्रहस्तथा | निग्डह्मतामसौ तस्मादित्यादिक्षण्महोपतिः ४२ रलोपः प्राप इत्येष fe निग्रहमहेति

विचार्यं निग्रहोतव्य इत्युवाचाभयस्ततः ४१

Ro : योगशास्त्रे

भथ पप्रच्छ तं राजा कत्यः कोषटशजोविकः |

कुतो हेतोरिषहायातो रौदिशेयः चासि किम्‌ ४४॥ स्वनाम शदङ्धितः सोऽपि प्रत्यवाचेति भूपतिम्‌ | शालिग्रामे दुगेचण्डाभिघानोऽ्ं कुटुम्बिकः ४५५ प्रयोजनवशेनेहायातः संजातकौतु कात्‌ | qmeaga राजिं महतोमस्ि खितः ४६॥ सखधाम गच्छब्रारच्ेराचिप्तो राक्षसेरिव | अलद्ग्यमद्ं वप्रं प्राणभोमदतो हि भोः ४७ मध्यारकलविनिर्यातो बाद्नार्तगणेष्वडहम्‌ केवतडस्तविस्नस्तो जाले AWA श्वापतम्‌ ४८ ततो निरपराधोऽपि बदा चोर इवाधुना अहभेभिरिषानोतो नोतिसार विचारय ४८ ततस्तं भूपति्गप्तौ प्रेषयामास AMAT तग्महस्िन्रानरेतोस्तव्र WA पूरुषम्‌ Yo सोऽग्रेऽपि ग्राहितो ग्रामः aga तेन cea | चौरालामपि केषाधिलिवमायतिचिन्तनम्‌ ५१ + तत्खर्पं TATA ग्रामः एष्टोऽब्रवोदिदम्‌ | दुगंचण्छोऽर वास्तव्यः परं ग्रामान्तरं गतः ५२ तव्रा्थे तेन fawn दध्यौ सेखिकसूरिदम्‌।

अष्टो मुक्ततदम्भस्य ब्रह्माऽप्यन्तं गच्छति ५३॥ अभयोऽसव्नयदय प्रासादं सप्तभूमिकम्‌ | महाघंरब्रखचितं विमानमिव नाकिनाम्‌ ५४

feata: प्रकाशः | १४१

रियाऽफरायमाशामीरमणोभिरलङ्कतम्‌ | दिवोऽमरावतोखण्कमिव अ्रष्टमतकिं सः ५५ गन्धवेवगेप्रारब्धसङ्गोतकमङोक्छवः | सोऽधादकस्मादुदुतगन्धवेनगरश्ियम्‌ ५९ ततोऽभयो मयपानमूढं निर्माय तस्करम्‌ | परिधाप्य देवदूष्ये 'श्रभितल्पमशाययत्‌ ५७ we परिणते यावदुदस्वाक्षावद षत | सोऽकस्मादिस्मयकरोमपूवै दिष्यसंपदम्‌ ५८॥ शअरवान्तरेऽभयादिष्टेनरनारोगलेसतः |

उदचारि जय जय नन्देत्यादिकमङ्गलम्‌ ५८ अस्मिग्महा विमाने त्वमुत्पक्रस्िदशोऽघुना | अस्माकं खासिभूतोऽसि लदोयाः किङ्करा वयम्‌ ६० परसरोभिः aan we खंरमिन्द्रवत्‌ | cafe चतुरं चाटुगभेमुचे ATH ६१ जातः सुरः किमस्मोति दध्यौ यावत्स तस्करः | संगोत काय ATTA: प्रदत्तः समहरस्तकः ६२ उपेत्य पुंसा केनापि खशदण्डभता ततः | सहसा भोः किमारवखमेतदेवमभाष्यत | Ez i ततः प्रतिबभाके तेः wetlerc निजप्रभोः प्रदशंयितुमारम्धं wai विन्नानकोशलम्‌ ६४ सोऽप्यवाच Barre दृश्येतां निज कौशलम्‌

(?) खम afwaa- |

,.` योगाने ..

देवलोकषमाचारं कार्यतां किं लसाविति ६५ Hew कोटगाचार इति Wat पूरुषः | साचेपमित्यभाषिष्ट किमेतदपि विखपृतम्‌ ९९ शोत्पद्यते देवः खे तरुष्कूते

आख्याति प्राने खगभोगानमुभवेन्ततः ६७ ` विस्मृतं खामिलाभेन सवेभेतग्मसीदतः। देवलोकखितिं देवः कार्यतामिति तेऽवदन्‌ + ५८ | रौदिशैेयमित्बुचे निजे इन्त एभाशमे |

WMA शंख मः खगभोगान्‌ YS ततः परम्‌ ६८ ततः distance: किमेतत्‌ सत्यमोटशम्‌ ` मां ज्रातुमभयेनेष प्रपश्चो रचितोऽथवा ७०

wa कथमेतदिति ध्वायता तेन संस्मृतम्‌ | कण्टकोदरणकालाकलितं भगवद: ७१ देवखरूपं चोवौराच्छतं चेत्‌ संवदिष्यति

amet कथयिष्यामि करिष्णाम्यन्ययोत्तरम्‌ ७२ दति बु्यास तानोक्लाख्क्रे चितितलसशः | प्रस्मेदमलणिनान्‌ ब्ञानमास्याजि्मिषदोखस्ान्‌ ७२ amd कपटं ज्नालवाऽचिन्तयत्‌ दस्यर्सरम्‌ |

तैनोचे कथ्यतां देवलोकः सर्वोऽयमुन्षुकः ७४ दोदिखेयस्ततोऽवादोग्मया yaa जन्मनि |

अटौयत quae दानं चैत्यानि चक्रिरे ७५ vara fafa पूजितान्यष्टधा$चेया |

दितोयः प्रकाशः | १४३

fafearetiiarara गुरवः पर्युपासिताः + ७६ इत्यादि सदमुष्ठान मया क्तमिति waz |

जच ew शंस दु्रित्रमपि way ७७ रौहिश्योऽप्युवाचेदं साधुसंसगेशालिन। | कदाचिदप्याचरितं किञ्िन्राणोभनं मया noc i व्याजहार प्रतोहारो जश्च नैकखभावतः | ¦ ` याति तत्कष्यतां चौग्यपारदारिकतादिक्षम्‌ ७< रौहिषेयोऽम्यधत्तेवं किमेवं विधचे्टितः |

waite प्राप्रयादन्धः किमारोहति पवत्‌ ८० | गत्वा ततस्तैस्त त्सव मभयाय निवेदितम्‌

अभयेन frwd जेखिकस्व मशोपतैः ॥८१॥. एवविधेरुपा्ैय चोरो wa शक्यत

चौरोऽपि विमोक्षव्यः शक्धा Afar लङ्धितुम्‌ ८२ # अभयः पार्चिवादेग्द्रौ हिरेयमधासुचत्‌

वच्यन्ते वद्जनादस्ेदंसा अपि कदाचन ॥१२॥ ततः सोऽचिन्तयज्चौरो धिगादेशं पितुमम वञ्ितोऽसि चिरं येन भगवदवनामतात्‌ ८४॥ नागमिष्यत्‌ प्रभुवचो यदि भे कशेकोटरम्‌

तदा विविधमारेणागमिष्यं यमगोचरम्‌ ८५ ॥. अनिच्छयाऽपि fe तदा zeta भगवदचः |

मम Haas ae मेषज्चमिव रोगिखः ८६ त्यक्ष हंदचनं हा धिक्‌ चोरवाचि रतिर्मया।

288

aN

योगशा

पस्बाष्यपास्व निम्बेषु काक्षनेव चिरं कता ८७ उपदैशैकदेशोऽपि यदौयः फलतोदशम्‌ |

तस्योपदेथः सामख्यात्‌ सेवितः किं afcafa ८८ + यवं विख्श्य मनसा ययौ भगवतोऽन्तिक्षे। arenas aad रौहिणेयो व्यजिच्रपत्‌ + ८८ भवामो प्राणिनां चोरविपन्रक्रङ्ुलाङ्ले मनापोतायते & मोरायोजनविसविणौ ८० निषिचस्त्वदहवः योतुमनापेनाप्तमानिना | इयत्कालमद्ं पित्रा वञ्वितस्तव्लगहरोः <

जरलोक्धनाय ते धन्धा; जहधानाः पिबन्ति ये।

भवदवनपौयुषं कर्वा्नलिपुटेः सदा <२

अं तु पापोऽशगुषुभगवन्‌ भवतो वचः |

पिधाय कर्णौ हा कष्टमिदं खानमलद्यम्‌ < एकदाऽनिष्छ ताऽप्येकं Jai FHA मया |

` तिन मन््ाक्लरेशेव रत्तितो राजराससात्‌ ९४

यथाऽहं मरणाच्चातस्तथा तायख ATA ATH | लंसारसागरावन्तं निमज्जन्तं जगत्पते ९५ ततस्सतृक्षपया Brat निर्वाणपददायिनोम्‌ | विशां विदध साघु साधुधमेस्य देशनाम्‌ ८६ + ततः WAC: प्रणमन्‌ रौहिखेयोऽत्रवोदिदम्‌ | यतिघर्मस्य योम्योऽस्मि नबे'त्यादिश् मां प्रभो ८७

~ ~क A कनि ATT

7 (() क्खग -ादिण्यतां |

हितोयः प्रकाशः | ३४५

योग्योऽसोति खामिनोक्त, ग्रहोष्यामि विभो व्रतम्‌ परं fafaefeenfa, ओेरिक्ेनेत्यवाच सः ९८॥ निर्विकल्पं fafang सखवक्लव्यमुदोरय |

cam: चेणिकपेणोचे लोदखुरामजः ८८ xy देव uated: अतोऽहं लोकवान्तेया |

सं एष रोहिशेयोऽस्ि भवत्पत्षनमोषकः १०० भगवद्ठखसेकेन दुलेद्धया Alea मया | प्रन्नाऽभयकुमारस्य तरण्डेनेव भिस्रगा we i अेषभेतन्मुषितं ant भवतो मया |

नान्वेषणोयः कोऽप्यन्धस्तस्करो राजभास्कर २॥ कमपि प्रेषय यथा AMAT दशेयाम्यहम्‌

करिष्ये सफलं जग्म ततः प्रव्रज्यया निजम्‌ 2 अभयोऽध समुल्याय श्रेणिकादेशतः खयम्‌ कौतुकात्पौरलोकख सहागात्तेन SAAT ४॥ ततो गिरिणशदोङुच्श्मशानादिषु away

गितं दर्थयामास सोऽथ अंखिकसूनवे ५॥ अ्रभयोऽपि fe यद्यस्य तत्तस्य धनमापेयत्‌। नोतिन्नानामलोभानां मन्तिशां नापरा fafa: ६॥ परमाथ कथयित्वा प्रबोध्य निजमानुषान्‌।

हालुभगवत्पाश्वं रौहिणेयः समाययौ

ततः खरेशिकराजेन nafs: |

"स जग्राह परिव्रज्यां ara योवोरपादयोः॥८॥ (१) @Wwaqye| ४४

२४९ amare ` तततुर्थादारभ्य षरमासान्‌ यावदुख््वलम्‌ | विनिममे तपःकर्म कमे निमूलनाय Wwe तपोभिः क्षभितः wat भावसंलेखनां सः | ओओवोरमाण्च्छ गिरौ पादपोपगमं व्यधात्‌ १० कएभध्यानः सरन्‌ पञ्चपरभेषठिनमस्क्याम्‌ | WaT देशं जगाम द्यां रौहिणेयो awrafa: ११५ रौहिणेय इव dafare: स्रगेलोकमचिरादुपयाति | तसुधोनं विदधीत aafy- चोरिकामुभयलो कविर्दाम्‌ ११२ इति रौहिखेयकथानकम्‌ ७२ स्तेयस्वातिपरिहरणोयतामाह-- ` दूरे परस्य सवंखमपडतु मुपक्रमः | उपाददौत नादत्तं ढणमात्रमपि क्रचित्‌ ७३॥ दूरे weal mace wee fairy, भपहर्तसुपक्रमः Treat, wed स्वामिना, ठणमाव्रमपि नोपाददौत क्गोयात्‌ तदधं wa कयादिति यावत्‌ ७३ स्तयनिहत्तानां फलं स्लोकहयेनाह-- पराथयहयो येषां नियमः शुचेतसाम्‌ | अभ्यायान्ति faa खयमेव खयम्बराः ॥७४॥

पराथेग्रहणे परधनहरणे येषां नियमो faafa: डवे तसां

हितोयः प्रकाशः | 2४७

निर्मलचिन्तानांनतु वकहन्तोनां कड्मलमनसां तेषामभ्यायान्ति अ्रभिमुखमायान्ति faa: सम्पदः, खयमेव तु परप्रेरणया व्यवसायेन AT) GAA इत्यपमानगभम्‌। खयम्बरा wa कन्धा; ७४

तधा-

अनर्था दूरतो यान्ति साधवादः प्रवर्तते | खगं सौख्यानि टौकन्ते स्फ टमस्तेयचारिणाम्‌ ॥७५॥

अनर्था विपदः, दूरतो यान्त्यासन्रा रपि भवन्ति ; साधुरय- fafa प्रवादः साधुवादः aver, प्रवत्ततै प्रसरति, एतावदे हिक" फलम्‌ ; खगसौख्यानोति. तु पारणौकिकम्‌, भस्तेयत्रसेनावश्यं चरन्तोत्यस्तयचा रि णस्तघाम्‌ | अतान्तरे Wa¢r— वरं वङ्किशिखा पोता aute चुम्बितं वरम्‌ वरं हालाहलं SS WAHT तु १॥ प्रायः परखलुब्सख्य निःशूका बुहिरेघते। दन्तु भ्रातृन्‌ पितृन्‌ दारान्‌ सुहृदस्तनयान्‌ गुरून्‌ २॥ Uta तस्करो Way वघबन्धादि Aaa | पयःपायोव aye fasra उपरि खितम्‌ व्याधघीवरमाजजारादिभ्यश्लोरोऽतिरि श्यते निष्यते वृपतिभियदसी नेतरे पुनः ४॥

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(1) गदड एतावरेह्िक।.

auc योगशास्त्र

खर्णादिकेऽप्यन्यधने पुरःख्ये सदा मनोषा हृषदोव येषाम्‌ | सम्तोषपोयुषरमेन SAT- स्तं at लभन्ते खृहमेधिनोऽपि ५॥ ७१५॥ द्दानोमासुभिकमैहिकं चाब्रह्मफलसुपदरश्य Uefa ब्रहमचये व्रतमाह- षर्ठत्वमिन्द्रियच्छदं बौच्याब्र्मफलं सुधीः | भषैत्‌ खदारसन्तुष्टोऽन्यदारान्‌ वा विवजंयेत्‌ ७६ षणठलत्वेमासुभिकं परदाररतानां फलं, इन्द्रियच््छदख् राजादि- wa '?हिकं, सनब्रह्मणः प्रतिषिहस्य मेथुनस्य, athe gramme at Wiel, खदारेषु धमेपत्रयां सन्तुष्टो भवेदियेकं wzewaw- चर्यम्‌, भरन्धदारान्‌ वा परसम्बन्धिनोः fea विवजंयेत्‌। खस्नौसाधारणस्त्नोषेवोत्यधेः इति हितोयम्‌ ७६ यद्यपि ्षखस्य प्रतिपन्नं व्रतमनुपालयतो तादश पापसम्बन्धोऽस्ति aatfa यतिधर्मानुरक्तो यतिघर्मप्राप्तेः ga गाशख््येऽपि कामभोगविरक्षः सन्‌ awed परिपालयति दूति तं वैराग्यकाष्ासुपनेतं सामान्धनाब्रह्मदोषानाह- रम्यमापातमावे यत्‌ परिणामेऽतिदासुणम्‌ | किंपाकफलसंकाशं तत्कः सैषैत मथनम्‌ ७७

पापातमा प्रधमारग्भमाने, रम्यं मनोषरं, परिणामे

कनक = > = ~ = = = == —_ =

(1) -लतमेडिकं, |

हितीयः प्रकाशः | १४९

प्रारश्मादुत्तरोत्तराषस्या्यां, दारुणं Oe, किंपाकफलसंकाशं किंपाको ठक्तविशेषस्तत्फलसटशं, किंपाकफलं श्यापाते रम्यं परिणामे दारुणं मार्णात्कलात्‌। यदा "वखडठा Wawa दोसन्ता दिन्ति हिययपरिभ्रोसं | किंपागफला gua आ्रासायन्तो वियाणिहिसि १॥ एवं विधं यश्वेधुनं भिथुनकमं तत्कः सेषेतेति सम्बन्धः | यराषश- यदपि निषिव्यमाणा aaa: परितुष्टिकारका विषयाः। किंपाकफलादनवत्‌ भवन्ति पषादतिदुरन्ताः २५ ७७

ware परिणशामदारणतमाइ-

कम्पः खेदः मो मूर्छा भमिर्म्नानिबेलक्तयः | राजयच्छादिरोगाश्च भवैयुर्मेयुनोलियताः ७८

कम्मो वेपथुः, खेदो घमः, WA: कमः, Beal मोहः, भ्मिभ्वेमः, म्लानिरङ्सादः, वलक्षयः शक्तिनाथः, राजयका HIV, ब्रादियंषां कासश्वासादोनां रोगाणां तै तथा मेथनोलिता मेधुनप्रभवाः ऽर

= ~~ = ~~ =-= ee न= ~ न्क = + = ^~ ~~~ ~ ----~ --- -~-- ~~ ~~~ ~~~ ~~~ ~ ` ~~~ ~~~

(1) बर्हया alae: हश्यमाना ददति च्रुयपरितोषम्‌ | किंपाकषफलान्‌ पुलक शाखादमानो faqrafe १॥

(२) “quate कोण yaya” दति श्रोहेनचन्द्राचार्याः रेयोनाभभालायां WET कनेकाचेप्रकषरण्ये OF WT ATT: | |

२५० योगशास्त्र

भङिंसापरिवारतवाच्छेषव्रतानां मैषने अहिंसाया एवाभावमाह- योनियन्वसमुत्पन्नाः सुसुश्पा जन्तुराशयः | tear विपदयन्ते यत्र तग्पैधुनं त्यजेत्‌ योनिः प्रसवमागः, सेव यन्ताकारलवाद्यन्तं, तच aya: संमूष्छनेनोत्पत्राः, ते चच्र््राश्ना इत्याह-सुसखमाः, जन्तुराशयो WHAT, usar waar: पंध्वजेनेति शेषः, रूतनालिकायां तप्तायःकणकप्रवेथे रुतानोव, विपद्यन्ते विनश्यन्ति, यत्र मधुने age त्यजेत्‌ योनौ जन्तुसद्धावं संवादेन द्रढयति - . AGAR बाव्साायनोऽप्याह

AAA: कामशास्रकारः | भगेन वाल्घ्यायनसंवादाधी- नमस्य प्रामाण्यमिति aaa, fe जेनं णासनमन्धसंवादापौन- mare किन्तु येऽपि कामप्रधानास्तेरपि जन्तुसद्वावो नाप्त दत्य च्यते

वाक्छ्यायनश्नोको यथा-

THM: HAA: सुखमा खदुमध्याधिशक्तयः | लन्प्वत्मं सु कण्डूतिं जनयन्ति तथाविधाम्‌ ॥८०॥

CAAT रक्रोदवाः, कमयो जन्तुविशेषाः, @ear भप्रत्यक्ताः,

हितोयः प्रकाश्ः। २५९१

सदटुमध्यापिशक्तयः मदुशक्षयो मध्यशक्षयोऽधिष्यक्षयश्च, तथा- विधां सृदुमध्याधिमाव्रशक्धगुरूपां ; मद्शक्षयो sey, मध्यशक्तयो मध्या, 'प्रधिकशक्तयोऽधिकां कण्डतिं कण्ट जग्मवत्मसु योनिषु जनयन्ति ॥८०॥

कामज्वरचिकित्साधमौषधमिव मेधनसेवनमिति यो मन्येत wate

सौ सममोगेन यः कामज्वरं प्रतिचिकौर्षति | इताशं wargan विध्यापयितुमिच्छति ॥८१॥

प्रतिचिकौोषंति प्रतिकर्तमिच्छति, विध्यापयितुं शमयितुम्‌ ; TARA नायं TATE प्रतोकारोऽनुगुणः, भ्पितु ठदिषतुः नहि gait छतादहुतिमसेपस्तच्छान्दे भवति किन्तु तदूहद्य |

बाद्या WATE:

जातु कामः कामानासुपभोगीन शाम्यति। इविषा muama भूय एवाभिवरैते १॥ "किन्तु कामञ्धग्प्रतोकारा tant वैराग्यभावनाप्रतिपश्- सेवाधमशास््रवरवणादयः ; Atty कामच्धरप्रणान्तयुपायेषु सक किं भवभ्वमणाडेतुना मेध॒ नसेवनेन ८१

(1) wwe -sfum- (2) afuny-| (श) ww faq,

२५२ | ' यीगथ्ाख््े ‘qazary—

वरं जचलदयस्तस्भ परिरम्भो विधोयते | पुननैरकदाररामाजघनसैवनम्‌ ८२

WIRE: भवतु कामञ्वरोप्मरेतुर्मेधनं परं नरकरहेतुलाब प्रशस्यम्‌ ८२ पपि स््ोसब्बन्धनिबन्धनं निशचुवनं, fers खता पपि सकलगुणगरिम विचघातहेतव care,

सतामपि fe वामभूद दाना इदये पदम्‌ अभिरामं गुखयामं निर्वासयति निशितम्‌ ॥८२॥

सतामपि fe महाकनामपि, वामम्भूरविं रवितलोचनविकारा, wet पदं ददाना स्मृतिमान्रेणापि सत्रिधापिता, भ्रभिरामं रमणोयं, गुणग्रामं qaaqy, faataafa उहासयति। सेष- च्छाया चेयम्‌ यथा कुनियोगो कञ्िहेशमध्ये पदं ‘zeta एव दरचितव्यान्‌ ग्रामान्‌ लोभमोहादिनोषहासयति, एवं wea लब्ध- पदा कामिन्धपि पालनोयं गुशग्रामसुच्छेदयति थवा सतामपि Tard सताभेव हदये पादं दा वामभ्वृनि वासयति ce

हदयसन्रिधायनमपि सरोशां वडइदोषत्वादणषानिहेतुः किं पना रमणमित्येतदेवाडइ-

(१) wataary | (९) ददानः प्रवररशितव्यानु।

दितोयः प्रकाशः | ३५३

वञ्चकत्वं नृशंसत्वं चश्चलत्वं कुशलता | दूति नैसगिका दोषा यासां तासु रमेत कः॥८४॥ वञ्चकत्वं मायाशोलता, wied क्रूरकमेकारिता, चञ्चलत्वं कु वाप्यवखितचित्तल्राभावः, कुशोलता दुःखभावता, उपस्थसंयमा- भावो वा, cad नेसगिकाः खाभाविका दोषा नलौपाधिकाः, तासु को रमेत un Sy चेयन्त एव दोषा किन््वपरिसंख्याता शत्याषह-- प्रापु पारमपारस्य पारावारस्य पायते स्वो णां प्रक्रतिवक्राणां दुश्चरितस्य नो पुनः ॥८५॥ पारावारस्य समुद्रस्य, भअपारस्याषृष्टपारस्य, पारं परतोरं, प्रां पायते शक्ते, ga: स्रीणां प्रक्ततिवक्राणां सभाव कुटिलचरितराणां, दुषरिव्रस्य दुष्टचे्टितस्य, पारं waar: ; प्राप पायत इति cus दुश्चरित्रमेवाह- नितम्बिन्यः पतिं पुवं पितरं भरातरं शात्‌ | आरोपयन्यकार्येऽपि SAAT प्राणसंशये ८६ नितस्िन्य इति यौवनोक्ाददशनाचैम्‌। श्रतणएव स्तौति नोक्तम्‌ द्वतता Fela, भ्रकार्योऽपि प्रयोजनमन्तरेणापि, VASA प्रयोजने नजोऽन्ायेलवात्‌, प्राणसंशये प्रार- सन्देहे; उपलत्षणं चेतत्‌ प्राणनाशेऽपि भारोपयन्ति भारो- इयन्ति | कभमित्याह पतिं भर्तारम्‌ सूयकान्तेव प्रदेशिराजम्‌ ४५

Rus योगशास््े

Tete ‘wert fa इन्दियिविगारदोसनडिया ate arqraz | जह सो पएसिराया सूरियकंताद्‌ aw वहिभ्रो।॥ १॥ ya तनयम्‌ चुलनोव ब्रह्मदत्तम्‌ यदाह-- "माया नियगमद्विगप्पियश्मि ver भपूरमाणशन्धि। FRA FUT वसणं चुलणो जह वंभदग्तस्य २॥ पितरं जनकं, wrat सोदरम्‌। जोवयशा इव जरासन्धं, areata भ्बातृन्‌ ८९॥ अतएव-- भवस्य Tet नरकदारमागस्य दौपिका | Wat कन्दः कलेमूलं दुःखानां खानिरङ्गना ॥८७॥ भवस्य संसार स्या्ुरस्येव वोजं तत्कारणलत्वावसं सारस्य, नरकहारं नरकप्रषेशः, Aa यो मागः carers दौ पिकैव दोपिका ava. कलात्‌, Vat शोकानां वक्नोनासिव कन्दस्तव्मरोडष्ेतुलात्‌. कलेः कलशस्य तरोरिव मूलं पादो हचिरेतुलात्‌, दुःखानां शारोर- मानसानां लवणादोनामिव व्वानिराकरस्तच्छसुखयलात्‌ दुःखानां,

[ 8 a a = a 8 7 1 ee en ee 1 ee een

(1) wratsfa इन्द्रियबिारदोषनटिता करोति णतिपापम्‌। अथा प्रहेशिराजः खयकान्तवा तथा वधितः॥!॥

(२) माता निनक्मतिविकद्िते अर्थं agaae | पमस करोति YET Ya यथा नददस २॥

feata: प्रकाशः | ५५

काऽषावङ्कना एवं तावद्यतिधमीनुरक्तं wee प्रति सामान्येन HAA: स्तोदोषाचोक्ञाः ८७ | सम्प्रति खदारसन्तुष्टान्‌ गटइस्थानधिल्लत्य साधारणस््रोदोषाः TRAY RA TA मनस्यन्यहचस्यन्यक्कियायामन्यदेव हि यासां साधारणस्लौणां ताः कथं सुखडेतवः ॥८८॥ मनसि चित्तेऽन्धत्‌ वचःक्रिययोविलक्षणं, वचसि वचनेऽन्धत्‌ ` मनः क्रिययो विलक्षणं, क्रियायां चेशटितेऽन्यत्‌. वाक्मनसोविसंवादि, यासां साधारणस्रोणां वेश्यानां, ता विसंवादिप्रेमाणः कथं सुखस्य विष्वासेकनिबन्धनस्य हेतवः | यदाइ-- QUA CHICA याचतेऽन्यं स्तुते परम्‌ श्रन्धथित्ते परः पाशं गणिकानामहो नरः १॥ Se तथधा-- मसमिग्रं सुरामिश्रमनेकविटचुम्बितम्‌। को Awarded चुम्बेदुच्छिष्टमिव भोजनम्‌ ॥८६॥ मांसेन जनलस्ल'खचारिजोवजाङ्गलेन, भिश्रमामगन्धि, मांसादित्वादेश्यानां, सुरया काष्ठपिष्टादिमय्या मदिरया, fad व्याप, सुरापाणप्रसक्रलात्‌। भनेकविटेबैड fafaz रित्यथः, चुम्बित- माखादितम्‌, प्रायो विटासक्गत्वात्‌ ; एवंविधं वेश्यानां वदनं

(१?) wwe wecfe-|

२५९ ` योगशाष्े

quay कचिभ्चेतनसुम्बेदित्यथेः। उच्छिष्टमिव भोजनमिव्यप- मानमनेक विटच्ुम्बितवेश्यावदनस्योपमेयस्य भवा मांस- मिश्रत्वं सुरामिखत्वं चोच्छिषटभोजनेऽपि योज्यम्‌ ८९ तथधा- अपि प्रदत्तसवंखात्‌ कामुकात्‌ VLU: वासोऽप्याच्छेत्तुमिच्छन्ति गच्छतः पण्ययोषितः Neo प्रदत्तसवस्वादपि महाधनावस्थायां, प॒ख्यकच्चयात्न्ौ णसम्मदः, कासुकान्तत एव गच्छतः खण्डं प्रति, वासोऽपि परिधानवस््र- मपि, भाच्च्छेत्तं बलाद्‌ ग्रहोतुभिच्छन्ति ; ce मूल्यं, तकधाना योषितो बेश्याः ; अनेन wane तासामाड़ | यदाह- उपच रिताऽप्यतिमानरं प्रकटवधुः चोणएसम्दः पुंसः पातयति en व्रजतः स्पृहया परिधानमाजेऽपि we leon

तधा-

देवात्र Foals Feel बान्धवान्‌ | असत्ङ्गरतिनित्यं वेश्यावश्यो डि मन्यते ॥<१॥

वेश्यावश्यः yara देवादोगखन्यते, कुतः भसकक्गर तिनित्यं असदह्विर्विटादिभिः सङ्गो भसत्सद्धस्तज्र रतिर्यस्य बश्यावश्यस्य हि सुलभा एवासर्कङ्ाः॥९१॥

eS EN ee i cele ae eA Bete, ` ----~-- ~= ee = 94 es meee en > eee

१) च, शचेतमः। क. सश्चेतमः।

दितोयः प्रकाशः। २५७

aat—

कुष्ठिनोऽपि स्मरसमान्‌ पश्यन्तौ धनकाङ्खया तन्वन्तीं छतिमसनेष्टं frat गणिकां त्यजेत्‌ ner

कुषठिनः कहिरोगिणोऽप्यत्यन्तममुपादेयान्‌, स्मरसमान्‌ कन्दपेतुस्यान्‌, ARPA हेतुभूतया पश्यन्तीं, महत्या प्रतिपश्य प्रतिपादयन्ती, arate कुठिनोऽपि सकाशाशनावासि- fifa. तन्वन्तीं विस्तारयन्तीं, क्षज्रिमसुपचरितं, खं प्रम; परमाधतसतु नि; खहा गणिकां वेश्या, त्यजेत्‌ एवं तावत्खदार- सन्तुष्टस्य पश्याङ्गनागमने दोषाः प्रतिपादिताः ९२१४

दटानों परदारगमनदोषानाद-

नास्ता सेवनौया हि खदारा अप्युपासकैः आकरः सवंपापानां किं पुनः परयोषितः ॥६३॥

सर्वविर तिलालसः खलु टेशविरतिपरिणाम इति are श्येऽपि वैराग्यातिश्यादुपासकंरप्रतिषिष्ठाः खदारा भप्यासक्या गर्न सेवनोयाः fa पुनः परयोषितस्ता भरत्यन्तमसेवनोया इत्यथः ; यतं stat: खानि: सवेपापानां मायागषावादादोनाम्‌, fe wet यस्मादर्थे, यस्मात्‌ खदारानपि नासह्धया सेवन्ते उपासकाः ततः कधं परदारेषु प्रसजेयुरित्य्ः॥ ९३

परस्नोशां पापका रिलमेव दशयति-

३५८ योगशास्त्र

खपतिं या परियज्य निसरपो पपतिं भजेत्‌ | त्यां चषणिकचित्तायां विश्रम्भः कोऽन्ययोषिति॥€४॥ तस्यां afaafamat चलितचिन्तायामन्धयोषिति, को fara: को विश्वासः, कञ्िदित्यथेः। विखश्चाधोनं सुखं तदपि नास्तीत्यर्थः या किं, या waft देवतारूपं भतृ्ेवता fe faa: इति श्रुतैः ; परित्यज्य पाशिग्डहोत्यपि am, निख्रपा

लब्ञारदहिता ; au fe wad etary; उपपति aaa, भजेत्‌ Wes

wernt परस्ोप्रसक्तोऽनुशिष्यत--

भीरोराकुलचित्तस्य दुःखितस्य परख्ियाम्‌ | रतिनं युज्यते कर्तसुपद्यनं पशोरिव €५ परस्यां रतिः प्रीतिः, कतुं युज्यते, MO: परतिराजा- दिभौतस्य, भतएवाङुल चितस्य waa evista mdisefafa उपसपंतोति व्याङ्कलचिन्तस्व, दुःखितस्य खण्डदेवकुलादौ शय्या- सनादिरहितस्य, aaa, anita वध्यस, sagt शुना. समोपै ९५॥

तस्मात्‌- प्राणसन्देहजननं परमं वैरकारणम्‌ | MARA परस्बौगमनं व्यजैत्‌ ९६

utfaat गमनं सश्भोगस्तच्यजेत्‌, प्राणानां जोवितष्य्य,

दितोयः प्रकाशः | २५९

सन्देहो Arne, तं जमयतोति प्राणसन्देडजननं ; ‘acety vane fe waa परेः प्राणा प्रणाश्यन्ते कदाचित्रेति प्राण. Wee, परमं wae, वैरस्य विरोधस्य, कारणम्‌ | यदाह-- बदमूत्तस्य मूलं हि awed: faa इति ।. लोकदयभिष्लोकपरलोकलक्षणं, तस्य विरु प्राशसन्दे- जननत्वादेरकारणत्वाल्लोकदयविर्दत्वादिति परस््नोगमनत्यागी हेतुरयं विग्रेषनहारेण pce लोकदयविर्चं चेति विशेषणमस्फटं स्फ॒टयति- AAV बन्धं शरोरावयवच्छिदाम्‌ BAG नरकं घोरं लभते पारदारिकः < सवे धनापहारं, रञ्वादिना बन्धं, शरोरावयवः एष्वजादि- स्तस्य च्छिदां छेदं लभत इतोहलोकविरोधः | waa मरकं घोरं लभते इति परलोकविरोधः। परदारान्‌ गच्छलतोति पारदारिकः ९७ | उपपत्तिपूवं परस्ीगमनप्रतिषेघमाड- खदाररक्चणे यरं विदधानो निरन्तरम्‌ | जानन्नपि जनो दुःखं परदारान्‌ कथं व्रजत्‌ ॥<८॥ जानन्नपि अ्रमुभवन्रपि, दुःखं मनःपोडां, परदारप्रसङ्ग तस्य ; परदारः परेषां दाराः परदाराः भ्रतः खदारप्रसक्तेषु परेषु

Pe 8 ए. शः ~ ~ I RE ~ -- ee ~~~

(१) कग परश््ोप्रसक्रख।

२६० AANA

SPARTA | Va हेतुमाह सखदाररचणे aHayceqy, यब्रमाददं, भिसिवरण्डकप्राकारप्राहरिकादिभिविं दधानः कुवन्‌, निरन्तरं दिवानिशं, खदाररच्षणपरिक्तशशालो जनो जानात्येव स्वस्मिन्‌ दुःखं द्त्वातानुभवेन परेष्वपि दुःखं पश्यन्‌ कथं परदारान्‌ व्रजेत्‌ ८८

Wai परस्त्रोषु tad रमशेच्छाऽपि महतेऽनर्यायेति भाद- विक्रमाक्रान्तविश्वोऽपि परस्नोषु रिग्सया क्रत्वा कुलक्षयं प्राप नरकं दशकन्धर <<

परस्नोविषये रमलाभाषेऽपि रिर्सामान्रेण Saar, दणकन्धरो रावणो, मरकं प्राप दति पारलोकतिकं फलम्‌ fea Mal कुल्यं, यय्पि कुलक्यस्तस्य रामादिभिः छतो तेन, तथापि तदोयपरदाररिरंसापूवकलत्वा दिभिस्तस्तस्तत्कु उच्यते | ननु पारलौकिकं फलं नरकगमनरूपमास्तां, रेहलोकिकं तु बलवतां qaw भवेदित्याह विक्रमाक्रान्तविश्वोऽपि; a fe दशकन्धरादन्यो बलवान्‌, यो विक्रभेण विष्वमप्याक्रान्तवान्‌ सोऽपि यख्नयमग्रतै तदपरस्य का मातेति wee भयं चाधेः सम्प्रदायगम्यः, सचायम्‌ ।- अस्ति fagzfacfa शिरोमण््रिव faa: | दरसोद्दोपि fecarrer लङ्केति प्रथिता gett we a विव्याधरनृपस्तस्यां पुलस्यकुलकोसुभः | अजायत महावोर्यो रावणो fracas: २॥

हितीयः प्रकाशः |

अभूतां आरातरौ तस्य निःसोमस्थाम^शोभिनौ रपराविव Staal) कुम्भकणंविभोषखौो २॥ देवतामिव कुलस्य स्पूर्वपुरुषाजिताम्‌

ZF नवमहारत्रस्रजं सोऽपश्यदन्यदा ४॥ ari इादश्ादित्या नवादित्या इमे पनः श्यन्ते कथमित्येतहदान्‌ पप्रच्छ AY सः॥ ५॥ अथाचचचिरे तख ATT: पुरा

ATMA महासाराऽन््यंयं रत्रमालिका इमां fata यः कण्ठे स्यातोऽभरतेशरः इत्यास्मयात्तवालाये पूज्यते पूवेजैरसौ ततस्तां सोऽचिपत्कर्डे तद्रत्रेषु नवस्वपि |

सङ्‌ क्रान्तास्यतया चासो दशास्य इति पप्रये॥रु॥ ततो जनेजयजयेत्यारावे रभिनग्दितिः | ASAT इवोत्साहो जगदिजयहेतते < AMAIA वि्यास्ताः प्रन्रपोप्रसुखाः सदा! असाष्यसाधनप्रीढाः पाणं सेना इवावसन्‌ १०॥ ततो भरतवर्षे एकग्रामलोलया |

Said साधयामास दोःकण्डनेत्वपूयं ११ प्रासोदितस्च वेताश्यगिरौ वि्याधरेश्वरः | इन्द्रनामा पूवेजश्मागुथतिन्द्रषद खिति; १२

(१) खच wifes | ४६

२९१

Th ` योगशास््

विन्ेष्लयवलोद्रे कादिन्द्रताभ्यासतोऽपि

इन्द्रम मानभेवायममंस्तेन्द्रं तु नापरम्‌ ¢ १३॥

शचोति खमहिषीं aad वचरमित्यपि।

पेभमेरावण इत्य ण्वमुचेःअवा दति १४॥

सारधिं मातलिरिति चतुरोऽन्यामहाभटान्‌ !

सोमो यमः पाशधरः कुबेर इति चाभ्यधात्‌ १५॥

मन्यमानस्त॒णायान्धानिन्द्र॑मन्यः दोमदो |

नाजोगणद्रावणमप्यत्यन्तरणदारूणम्‌ १९

तस्मे ततः प्रङ्घपितः AAT इव STAT: |

रावण्टोऽखावणांग्भोदगजंद्जबलोऽचलत्‌ १७

विष्याबलात्ससेन्योऽपि लङ्यामास सोऽणंवम्‌ |

विद्याधगसुल्ययाना yaufa नभख्यपि १८

दिशन्कादयन्‌ सन्यवाव्योचुते रजखयेः |

AAA प्राप कम्पान्तमद्ावात इव FA १८

Val रावणशमायान्तमिन्द्रोऽपि दुतमभ्यगात्‌।

dat मेतां at संमुखोल्ानमादिमम्‌ २०

दूरादपि दशास्येन प्रहितो मदहितीजसा

भथ दूतोऽभ्युपेव्येन्द्रमिव्युवाच ससौष्ठवम्‌ २१॥

ये afafee राजानो विद्यादोर्वीयिदर्पिणः |

तेरुपीत्यो पायनादयेः पृजितो दशकन्धर: २२॥ दभकण्डस्य विस्मृत्या भवतद्याजवादयम्‌

यान्‌ कालो यगो तस्मिन्‌ भक्तिकालस्तवाधुना २२

हितीयः प्रकाशः) REY

भक्तिं ene तत्तस्िन्‌ शक्तिं वा दशंयाघुना | भकतिशक्तिविरहोनबवदेवमेव विनङ्श्यसि २४ इन्द्रोऽपि निज्ञगादेवं वराकः पूजितो aa: 1 रावणस्तदयं मत्तः पूजां मत्तोऽपि वाल्कति॥२१५॥ यथा तथा गतः कालो रावणस्य सुखाय.सः। कानलरूपसत्वयं कालम्तस्येदानोमुपथितः २६ गत्वा खस्वाभिनो भक्तिं शक्तिं वा मचि.दभेय।

भक्तिशक्तिदोनशटेवभेव विनङ्च्यति २७ ` gaara विन्नप्ते रावणः क्रोधदारुणः।

QAM AMAR aA: AAI इवाणवः २८॥ तयोर्बलानामन्योऽन्यं संफेटः; शस्त्रवषिंणाम्‌ संवत्तपुष्करावत्तवारिदानाभिवाभवत्‌ २८ रावणं रावणिनेत्वा युदायेन्द्रमघाद्त 1

रणाक्रोड।सु वोरा fe नाग्रं ददति कस्यचित्‌ uae a ततश्चे काङ्गविजयाकाङ्णाविन्द्ररावशो | सन्यान्यपास्यायुष्येतां दन्दयुहेन THT ३११ faa: प्रतिहतास्तौ तौ रणपारयियासया।

युथुधाते faqga मदान्धो सिन्धुराविव ३२ 4 रावणिः किमधोऽचेन्द्र ऊङमिन्द्रोऽथ crafa: नालश्यत तयोव्ये र्वे गादहिपरिवर्तिनोः १३२

(1) we -पाष्य युङ्धवतां।

३९४ योगशास्त्र

fasaal: atarg मेचनादे चरेन च। यातायातं व्यधाद्धोतैवोभयोरपि भोमयोः + २४

भसौ मशक इत्यस्ादयाबदवेख वच्वभित्‌ |

तावव्सर्वौजसा भैघनादस्तं समुपाद्रवत्‌ wav tt

पातयित्वा भगिव्येष्व तं बबन्ध TUTTE: |

जिगोषुखां जये हेतुः प्रथमो द्याशकारिता ३९ मेघनादः सिंहनादेर्नादयन्‌ Ted vfs |

पितुः समपेयामास ad जयमिवाधः तम्‌ १७ 0 प्रबलार्तरुप्तायां तं गुप्तौ रावणोऽक्िपत्‌

इयं विधत्ते हि बलो निदन्त्यपि वदत्यपि १८॥

सोमो दण्डधरः पाभो कुर समेत्य ते। दशास्यमिग्द्रग्रणात्क्रुहदा रुरुधिरे ततः ३९ जितकाौ दगास्योऽपि भूलोव्ठाहाश्वतुर्गणः t योधयामास संग्रामचतुरबतुरोऽपि तान्‌ ४०॥ सोऽभाङ्नेदण्डिनो दण्डं vate गदिनो गदाम्‌ | पाथिनोऽत्रोटयत्पाणान्‌ धनुः सोमस्य चाच्छिदत्‌ ४१। अपातयद्रहारेस्तामषहेमः कलभानिव

waeleraat वद्धा वेरिविद्रावशः wary ४२॥ सप्ताङराज्यसहि तमुपादाय पुरन्दरम्‌ | पाताललद्कां aga विजतुमगमश्ततः ४२॥

ee ee

(9) -वं| (२) -पतः।

दितोयः प्रकाशः | १६५

हत्वा चन्द्रोदरं aa "तद्राज्यं खां सोदरोम्‌। सोऽदात्खराय वि्िरोदूषणज्यायसे ततः ४४ चन्द्रोदरस्य निःशेषं खरः खरबलोऽग्रहोत्‌ |

एका तु गुर्विंणो cw प्रणश्य क्चिदप्यगात्‌ syn ततः पाताललङ्ातो लङ्क ला पतियेयौ |

aa निष्कण्टकं राज्यं चक्रे विष्टपकण्टकः॥ ४६॥ सोऽन्येद्युः पुष्पकारूढक्रौडयेतस्ततो WAZ | मरुत्तभूपप्रारव्धमोक्ाश्चक्र मष्टामखम्‌ ४७

ततो faararentat दशास्वस्तदिदटक्षया |

भ्रामं भूभुजा तेन पायसिंहासनादिना ४८ ततो मङत्तभूपालं जगादैवं दशाननः |

भरे किमेष क्रियते नरकाभिसुखेमखः ४८

wa: प्रोक्तो श्महिंसातः सर्वनेसिज गहितैः | पश्हिंसामकाद्यन्नास्त कथं नाम जायते ५० ti लोकदयारिं aad ar कार्षीशेत्करिष्यसि। महुप्ताविष् ते वासः परत्र नरके पुनः॥ ५१॥ विससज ad सदयो मरुत्तगरपतिस्ततः।

Sag रावणान्ना हि विश्ठस्यापि wager ५२ a WAA TIA मरुत्तमखभश्ननः | ततोऽगाच्चेत्ययात्राथें YRaeraeifey vz |

(1) खच treed at waweda |

१६६ योगशास््े

विधाय यातां aay कविमाक्तिभेषु सः | पभाजगाम fast धाम पुनरेव दशाननः ५४॥ इतञ्ासोदयोध्यायां पुथामेकमदहारधः |

राजा दश्ररथो नाम.धाम निःसोमसम्मदाम्‌ ५५ Vat: कौगल्याकंकेयोसुमि तासुप्रभाभिघाः। प्रियाशतस्नस्तस्यासग्भृ्षा इव दिशां fra: ५६ कश्या सुषुवे रामं कंकेयो भरतं सुतम्‌ |

सुमित्रा cae नाम wad सुप्रभाऽभिधा ५७॥ रामल्छमणभरतशनरुन्नास्तस्य रेजिरे

चत्वारः सूनवो दन्ता इव जिदणदन्तिनः॥५८॥ जनकस्य सुतां Vat भामण्डल'सशोदरोम्‌ | कार्सुकारोपण्पणां रामभद्र उपायत ५९ जिनेन्द्र विम्बञ्रपनजलं मह्गगलहेतवे |

चतखणां रान्नोनां रपः ्रेषयदन्यदा go ll तन्तोयमागतं पश्चादिति रोषसुपेयुषोम्‌ |

अनुनेतुं खयं रान्न सुमितामगमन्रुपः ६१ घर्टान्त्लालिकालोलद शनं चलिताननम्‌ | शेतसर्वाङ्गरो माणं भ्वुरो मच्छन्रलोचनम्‌ ९२ पदे पटे प्रस्वलन्तं याचमानं पञ्चताम्‌ | TAT ददर्शकं जरत्कश्चुकिनं TT ६३

[रे [नवक A

(१) Www -सहोदरम्‌।

हितोयः प्रकाशः | १६७

तं दृष्टाऽचिन्तयद्राजा स्मो यावत्रेटशा वयम्‌ | चतुधेपुरुषार्थाय तावहि प्रयतामहे ६४

व्रतं fag: ततो राज्ये खापयितु fas | भङायाद्वाययामास तनयौ रामनलच्छणो ६५ भरतस्य जनन्याऽथ RAAT मन्यरागिरा |

वरो प्राकप्रतिपन्नी याचितः सत्यसङ्गरः ६६॥ वरेणाधित एकेन तदा रघपुद्धवः | प्रतिपब्रसिरो राज्यं भरताय समापयत्‌ ६७ चतुणसमा यावदनवासाय चादिशत्‌ | ससौतालद्छयणं रामं वरेणान्येन चाथिंतः ९८ ससोतालद्यणशो रामः मद्योऽगाण्हण्डकावमम्‌ | पश्चवद्छा खमे चावतय्थेऽसौ सत्यसङ्गरः ६< AMAA चारणीं राघवाभ्यां नमस्तौ | सोताऽऽनर्वातिथोभूती खहालुः शदभिक्षया ७० ततो गन्भोदकदश्टिरमरविदघे तदा। तद्वन्धादाययौ तत्र जटायुनाम WHUZ ७१ तौ सुनो देशनां aa चक्रतुः श्व्यबोधि a संजातजातिस्मरणोऽवतस्थे चातुजा नकि ७२ I तख्थषस्तव्र रामस्य Waa बहिगंतः |

ददश लक्मणः GRAVY कुतूहलात्‌ ७२ |

So ee जान eee =-= > -~ = = न~~ ee

(१) खच द्ध -टे[गडका-। (श) we Baa |

१६८ योगशास्त्र

AMMA ae तत्क्षणं तेन ASAT: | MITA वंशजालीं नललावं लुलाव ७४ वंशजालान्तरख्यस्य कत्तं कस्यापि देडिनः |

येकं मोलिकमलं सोऽपश्यत्य तितं पुरः ७५ अरयुध्यमानोऽशस््रश्च पुमान्‌ कोऽपि तो मया | अमुना कमणा धिग्मामित्यात्ानं निनिन्द सः ७९ गत्वा र(मभद्राय तदशेषमचौकथत्‌।

असिं दशयामास रामोऽप्येवमभाषत ७७ अस।वसिः सूयं हासः साधकोऽस्य त्वया इतः

भस्य सम्भाव्यते नुनं कञिदुत्तरसाधकः ७८ अत्रान्तरे दशग्रोवखसा चन्द्रणखाऽभिधा।

स्वरभार्या ययौ aa ददशे इतं सुतम्‌ we wife दहा वत्त शम्बृक शम्केति रुदत्यसो | अपश्यज्ञच्छणस्यां डिन्यासपङ्क्ि मनोहराम्‌ ८० मम सुमुडतोऽनेन यस्येयं weuefa: | पदपङ्ूक्िपधेनेव ततच्न्द्रणखाऽऽययो ८१ यावत्किञ्िदगात्तावत्ससोतालक्मणं पुरः | नेव्राभिरामं रामं साऽपश्यन्तरतले faay ८२ fata रामं सा सयो रिरंसाविवशाऽभवत्‌ कामावेशः कामिनोनां शो कोद्रेकेऽपि Aisa ८१ a स्वं रूपं चारु HTT रन्तुं रामस्तयाऽधितः | WATT सभार्योऽषमभायं भज TIAA ८४

हितोयः प्रकाशः | १६८

तयाऽधितस्तयेैत्य ल्म णोऽप्येवमन्रवोत्‌ |

्रायं गता तमार्यव तदलं वातयाऽनया ८५

सा याखाखर्डनात्पुववधाच्च रुषिताऽधिकम्‌ | WAKA खरादोनां तत्क तं तनयक्षयम्‌ ८६ विद्याधरसदसैस्ते चतुदशभिरावताः | ततोऽभ्येयुरुपद्रोतं रामं शेलमिव fea: ८७ क्िमायः सत्यपि मयि योक्छते खयमोटभैः |

दति राममयाचिष्ट तेषां युडाय लद्छमणः ८८ गच्छ वत्स ! जयाय तवं यदि ते ags भवेत्‌। सिंहनादं HATES कुया इत्यन्वशात्‌ तम्‌ ८< रामान्नां प्रतिपद्योच्वैलंच्छणोऽथ धनुःसखा |

गत्वा प्रवहते न्तु AAT इवोरगान्‌ ९० प्रवदमाने age auc: पार्ये |

गत्वा त्व रितमित्युचे रावणं रावणशस्वसा ९१ Vaal दण्डकारण्ये AAA THAN | WATHA निन्यतुस्ते यामेयं यमगोचरम्‌ ९२ त्वा auufaa तु सानुजः सबलो ययौ |

aa सौभितिणा are युद्मानोऽस्ि संप्रति nea कनिष्ठभ्चाठवोर्यण स्ववीर्येण गर्वितः |

परतोऽस्ि fact रामो विलसन्‌ daar सद <४॥ सौता रूपलावश्यच्रिधा सोभेव योषिताम्‌ |

देवो Mem नापि मामुष्यन्येव काऽपिसा॥<५॥

४9

(-9-1

योगशास्त्रे

तस्या STRATA TGA TAT | च्रलोक्येऽप्यप्रतिच््छन्दं SU वाचामगीचरम्‌ ८९ भासमुद्रममुद्रान्न | यानि कान्यपि wae | तवेवादन्ति रत्नानि तानि सर्वाणि बान्धव ! ८७ हशामनिभिषोकारकारणं रूपसम्पदा |

स्रो रब्रमेतद्रह्धोया नचेन्तव्रासि रावणः Wer अरुद्धा पुष्मकमधादिदेग दशकन्धरः। विमानराज ! त्वरितं याहि यवरास्ति जानको॥८९॥ ययौ चात्यन्तदेगेन विमानमनुजानकि |

सखयशैयेव शग्रौ वमनसस्ततव्र गच्छतः १०० दृष्टाऽपि रामादत्युग्रतंजसो दशकन्धर: |

विभाय दूरे तस्यौ व्याघ्रो इतवदादिव इति चाचिन्तयदितः कष्टं रामो दुगासदः |

CAB सोताहइरणमितो व्याघ्र इतस्तटो २॥ विमृश्य ततो विद्यामस्मार्षौदवलोकनोम्‌ | उपतस्थे सा महु किद्करोव ठताच्नलिः २॥ नतश्ान्नापयामास तत्कालं तां दशाननः |

कुरु साहाय्यमह्ाय मम sai रिष्यतः ४। साऽवोचदासुकमौ लिरव्रमादोयतै सुखम्‌ |

नतु रामसमोपस्था सौता देवासुरैरपि ५॥ उपायः किन्लसावस्ति यायाद्‌ येनेष लच्छ णम्‌ | तस्येव सिंहनादेन सद्धतो waaay

दितोयः प्रकाशः। २७१

एवं कुविंति तेनोक्ञा व्रजित्वा परतस्ततः।

सा साक्षादिव afata: सिंहनादं fafaaa non तं खुत्वा afaat तत्र gat रामो ययौ हुतम्‌ महतामपि मोहाय भवेक्नाया हि मायिनाम्‌ = GAMA SAA: सोतामारोप्य पुष्यके |

at इरन्‌ रावणोऽस्मोति कथयव्रभसा ययौ wr नाध विदहिषन््ाधयरामडहा वत्स ANT |

Wl तातपाद हा अ्रातर्भामण्डल महाभुज il १०॥ सोता वो ङियतेऽनेन काक्षनेव बलि ्कतलात्‌ |

एव॑ सोता ररोदोच्ै रोदयन्तोव रोदसोम्‌ ११॥ मामेषीः ofa ar wat: क्षरे यासि fara i रोषादिति वदन्‌ दूराल्जटायुस्तमधावत १२ भामर्डलानुगशेकः कोऽपि विद्याधराग्रणोः। SNe ena रे तिष्ठ तिष्टेति तजंयन्‌ + १२ जटायुविंकटाटोपष्करजत्रोरिक्रोटिभिः। ‘afawai दशग्रोवोरसि प्रवहते ततः १४

रे जोषितस्य पोऽसि जरदुप्रेति विन्रुवन्‌ दशास्वचन्द्रहासासिमाक्ष्य निजघान तम्‌ १५॥

(१) WT -्छ- | (२) चड़ -नखर-। (९) खच प्रतिहन्त्‌।

३७२ MANTA

तस्य विदाधरस्यापि विद्यां दशसुखोऽहरत्‌ निक्घत्तपत्तः cata सोऽपविद्योऽपतङ्वि १९५ रावणोऽगात्ततो asi सोतां चोपवनेऽमु चत्‌ |

तां प्रलोभयित्‌ aa विजटामादिदेग १७ गामस्यापि हतामित्रः सौमित्रिः संसुखोऽभवत्‌। भ्रार्यामायं | faqeiant किमागा sfa चात्रवोत्‌ १८॥ urea: सिंहनादेन तव ayant | लच्छमणाऽहमिष्ायातो व्याजदहारेति राघवः १९ ल्छणोऽप्यवदश्वक्र सिंहनादो मया नहि | खुतश्चायेण तन्नूनं वयं केनापि वञ्चिताः ॥२०॥ Wadd सत्यमार्यामपनोतोऽस्युपायतः |

सिंनादस्य करथे NE स्तोकं कारणम्‌ Re aaq साध्विति रामोऽपि खस्यानेऽगात्सलक्छमणः | सोतामपश्यन्‌ करासोति विलपन्भूच्छितोऽपतत्‌ २२ तं ads सौमितिरित्युचे कदितेरलम्‌ |

पौरुषं पुरुषाणां fe व्यसनेषु प्रतिक्रिया २३ WAM पुमानेकः कथिदेत्य ननाम ar |

ताभ्यां Ve: खटठत्ताम्तमेव व्यन्नपयशच्च सः २४॥ इत्वा पातालन्तष्कशं तातं चन्द्रोदरं मम

पठस्येव पदे तस्य खरं खररयोऽकरोत्‌ २५ गुर्वीं मष्टा मक्राता विराधं नाम मां सुतम्‌ | अन्यत्रासूत awa कथिदाख्यदिदं मुनिः wren

हितीयः प्रकाशः | ROR

यदा दाशरधिरन्ता खरादीँसवत्सुतं AT | पाताललष्म धिपतिं करिष्यति संगयः २७॥ तदद्य समयं लब्धा युसानस्मि समाचितः।

पिरे रिवधक्रौतं पत्तिं जानोध मां निजम्‌ रर रामस्ततोऽदात्पातालनष्ुं AH महाभुजः | फलन्ति समयन्नानां खामिनः खयमेव हि ॥२९॥ तं स्थापयत तत्र गच्छन्‌ रामः सलद्छमशः | इतविद्यं पुरोऽपश्यद्ुस्थं भामर्डलानुगम्‌ ३० अथ दाशरथो नता खहत्तान्तं व्यजिन्नपत्‌ |

पमन जटायो सीताया रावणस्य च॥ ३१॥ अध पाताललष्ायां ययौ रामः VAM: | सत्यसन्धो विराधं पिता राज्ये न्यवेशयत्‌ ३२ तच साष्सगतिनाम विद्याधराग्रणौः।

खे च्रमनब्रधिकिष्किन्धाधित्यकं समुपाययौ २२॥ ययौ तदा किक्किन्धाधिपतिः क्रोडितुं बहिः सुग्रोवः सपरोवारो रन्नां fe खितिरोटभो॥ ३४ | eam साहसगतिस्तदा चान्तःपुरखिताम्‌ | सुग्रोवस्य प्रियां नाख्रा तारां तारषिलोचनाम्‌ २५॥ तस्यां लावण्यकूलिन्यां चिक्रो डिषुर्‌्चकः |

LAG नान्यतो गन्तं घमत्त ea HAT २६ सोऽख्यात्तथेव aaa निषिद्गमनः क्षणात्‌ |

तां मूर्ताभिव कामान्नासुल्लङ्यितुमन्तमः॥ २७॥

१०४

योगशास्त्र

रमणो रमणोयेयं रमणोया मया कथम्‌ इतोच्छाव्याक्लः "सोऽप्युपायं चणमचिग्तयत्‌ ३८ स्सा साहसगतिस्ततः सुग्रोवरूपताम्‌ |

कुशोलत्वकुशलः कुशी लव wares ३९

waren विटसुग्रोवः सुग्रोव इति मानिभिः | भङ्गर छे रसव लितः सु ग्रोवभवनेऽविशत्‌ ४० भन्तःपुरण्टषहारं ययौ WAAR: |

तावद्पाघुच्छ सु्रोवः खवे्मदहारमाययौ ४१ सुग्रोवस्य प्रवेष्टु हारं प्राहरिका ददुः |

aa प्रविष्टो राजाऽसि लमन्योऽसोति वादिनः ४२ ततञ्च सत्यसु गरो स्वस्यमाने aafafiz: | अतुलसमुलो AN मध्यमान CTT ४२॥ सुग्रोवहइितयं cet सन्देहाहालिनन्दनः | शदान्तविश्चवं त्रातुं तहारं त्वरितो ययौ ४४ शान्ते विटसुग्रोवः प्रविशन्‌ वालिसूनुना | मागद्विणा सरित्पुर इव प्रखबलितस्ततः ४५ अधाभिलन्‌ सैनिकानामत्तौहिष्यखतुदेश |

© रसर्वखानो © ` चतुदं शजगत्सारसवखवानोव सवतः ४६

इयोरपि तयोभेदमजानन्तोऽथ सेनिकाः | सत्यसुग्रो वतोऽ विटसुग्रोवतोऽभवन्‌ ४७ ततः प्रवहते युं सेन्ययोरुभयोरपि |

जकः - eR

() Saws me लोऽभ्युपावमचिन्तबत्‌।

हितीयः प्रकाशः |

कुन्सपातेदिंवं कुवेदुल्कापातमयोमिव ४८ युयुधे सादिना सादो निषादौ निषादिना। पदातिना पदातिख रथिको रथिकेन ४८ चतुरङ्गचमूचक्रविमर्दादधय मेदिनो।

wag कम्पं सुग्धेव प्रोढप्रियसमागमात्‌ ५० एष्योहि रे परण्टहप्रवेशग्वचिति स्रवन्‌ | विटसुग्रोवभुद्रोवः सुग्रोवो योहमाहत ५१॥ ततश्च विटसुग्रौवो मत्तेभ इव तजितः।

जजितं गर्जितं कुवन्‌ स॑मुखोनो युधेऽभवत्‌ ५२ युयुधाते महायो तौ क्रोधारुणलोचनौ | विदधानौ HATS कौोनाशस्येव सोदरौ ५१॥ तौ निशातेनिश्ातानि we: wearer fare: चिष्च्छेदाते ठणशच्छदं रणशच्छेकावुभावपि ५४॥ शस्त्रखण्ड च्छल चिद्‌ दुवे चरो गणः |

मायु तयोवे्तखण्डो मददिषयो रिव ५५ तौ दिव्रास्त्रावधाग्योन्यममषंणशिरोमणो | मन्नयुचेनास्फालतां पवेताविव जङ्गमौ ५६ उत्पतन्तौ कषणादमोज्ि निपतन्तो wary fa | ताख््रचूडा विवाभातां वौरच्‌डामणो उभौ ५७ तौ हावपि महाप्राणौ मिथो जेतुमनोश्रौ। wos दूरेण ठषभाविव तस्यतु; ५८ पनय॑हेन gata: fas: खिव्रतरुस्ततः |

२०५

१०६

` योगशास्त्र

बहि्निगत्य किष्किन्धापुरादावासमग्रहोत्‌ ५९॥ तत्रेव विटसुग्रोवस्तस्थावखसमानसः |

भरन्तःपुरप्रधेशं तु लेभे वालिनन्दनात्‌ ९०॥ wala न्यञ्ितग्रोवमधेवं पय्यचिन्तयत्‌ |

WET Blas: Braz: कीऽप्येष नो दिषन्‌ ९१५ पकमोया भष्यनाकोया दिषस्मायावशोक्षताः |

अहो बभूवुस्तदसाववस्कन्दो निले येः ६२ मायापराक्रमोल्कु्टः कथं वध्यो दिषन्‌ मया |

frat cima वालिनान्नस््रपाकरम्‌ ९२ धन्यो महाबलो वालो योऽखण्डपुरषत्रतः |

cred ठढणमिव त्यक्ा यञ्च भेजे परं पदम्‌ ५४ चन्द्ररभ्मिः कुमारो मे वलोयान्‌ जगतोऽप्यसौ |

किंतु इयोरभेदकन्नः कं Tag निष्न्तु कम्‌ ६५॥ षदं तु विदे ary साष्वद्टा चन्द्ररश्मिना।

तस्य पापोयसो रुचं शान्ते यत््रवैशनम्‌ ६६ वधाय बलिनोऽसुष्य वलोयांसं खयामि कम्‌

यद्‌ arent एव रिपवः खतोऽपि परतोऽपि वा & भूभं वःखस्रयोवोरं मरुत्तमखभच््नम्‌ |

भजामि विदिषषहातटहेतवे किं दशाननम्‌ ६८ way किंतु प्रज्ञया Ala AAA ALT: तंचमां निहत्याशु तारामादास्यते खयम्‌ yee SEN व्यसने प्राति साहाय्यं कतुंमोश्ठरः।

हितीयः wars: |

भासोत्‌ खरः खरतरो राघवेण इतः सतु॥ Oe तावेव रामसौमित्रो गत्वा सिन्रोकरोमि तत्‌। तत्कालोपनतस्यापि यौ विराधस्य राज्यदौ ७१॥ ती तु पाताललङ्कायामलंकर्मीणशिदोवेलो विराधस्योपरोधेन तथैवाद्यापि तिष्ठतः ७२ एवं fans सुग्रोवोऽनुशिष्य रहसि खयम्‌ | facrugat विश्वासभूतं दूतं न्धयोजयत्‌ ७३ गत्वा धाताललङ्कायां विराधाय प्रणम्य सः। खामिष्यसनठन्तान्तं कथयिलांऽब्रवोदिदम्‌ ७४ महति व्यसने खामो पतितो नस्तदोदणे

राघवौ शरणोकर्तं' तव हारेण वाच्छति ७५ हूतलमायातु Bala: सतां apt हि पुष्यतः | तेनेत्यक्नो दूत एत्य Yala शंस तत्‌ Og प्रच चालाथय सुगोवोऽण्वानां ग्रेवेयकस्वने; |

दिशो मुखरयन्‌ सवां वेगादुरमदूरयन्‌ ७७ पाताललङ्कं प्राप चणनाप्युपवेश्मवत्‌

विराधं चोपतस्थेऽसावभ्य्षखयौ चापि तम्‌ ७८

विराधोऽपि qaqa रामभद्राय atfaa |

तं नमस्कारयामास ATS व्यजिन्नपत्‌ se सुगो वौऽप्येवमुचेऽस्मिन्‌ दुःखे तमसिमभे गतिः। aa हि सवथा मूढे शरणं तरणिः खलु ८० # स्वथं दुःख्यपि तदु qed रा मोऽभ्युपागमत्‌ |

8a

, १०७

Roc योगशास्त्र

खकार्यादधिको यब्र: परकार्ये AMAT ८१॥ सौ ताषहरणदन्तान्तं विराधेनावबोधितः।

रामं विन्ञपयामास सुग्रोवोऽच कछताच्नलिः ८२ त्रायमाणस्य ते fad तथा चयोतथतो रवैः |

कापि कारणापेक्षा देव वच्मि तधाप्यदः ८३ ल्ग्रसादात्‌ waft aq ससेन्धोऽपि तवानुगः | पानेष्यामि प्रहस्तं सोताया facreea ८४॥ ससुग्रोवः naw किष्किन्धां प्रति राघवः | विराधमनुगच्छन्तं संबोध्य विससजं ८५ रामभद्रेऽथ किष्किन्धास्कन्धावारमधिष्ठितें |

amar विटसुभ्रीवमाद्वास्त रणकमषे ८९ निनदन्‌ विटसुग्रोवोऽप्यागादाद्वानमावतः |

रणाय नालसाः; शरा भोजनाय feat इव ८७ दु्शेखरणन्यासैः कम्पयन्तौ वसुन्धराम्‌ | तावुभावप्ययुष्येतां मत्ताविव वनददिपौ र्ठ रामः सरूपौ Al दष्टा कोऽस्मदोयः परख कः | इति संशयतस्तसख्थावुदासोन इव WIAA ce भवत्वेवं तावदिति विशन्‌ रघुपुक्घवः। वच्वावर्ताभिधधनुषटद्वारम करोत्ततः < ° UACELAM AA सासगतेः AAT |

सूपान्तरकरो विद्या हरिणोव "पलायत <१॥

(9) we warfaar |

हितीयः Waray: |

विमोद्य मायया सै परदार रिरंससे |

पापारोपय रे चापमिति रामस्ततजे तम्‌ ER एकफेनापौषुणा प्रा्णास्तस्याहार्षीद्रघुदहः

हितोया चपेटा हि हरेईरिणमारणो ८३॥ विराधमिव qualia रामो राज्ये न्यवेशयत्‌ सुग्रोवोऽपि खन्तोकषेन प्राम्बदेवानमस्यत ८४ दस रामकार्यायागादिराधः समं वनेः | ख्वामिक्नत्यमकछषल्ा fe कछतज्ना नासते सुखम्‌ ९५॥ भामण्डलोऽपि तत्रागाद्‌ faaracayaa: | प्रभुकायं कुलोमानासुत्सवो Waray w cg i जाम्बवदनुमन्नोलनलादौन्‌ विदितौजसः |

सुग्रोवख PAAR समन्तादप्यजुषवत्‌ ९७ विद्याधरचमूचक्रेव्वायातैष्वथ सवतः |

उपेत्य रामं सु ग्रोवः प्रणम्यैवं व्यजिन्नपत्‌ ८८ "इनु मानाश्ञननेयोऽयं विजयो पावनच्नयिः | MAMTA लहगयां लदटादेशणाद्‌ व्रजिष्यति ce रामेगान्नापितो दत्वा खमभिन्नानमूमिकाम्‌ | नभखानिव मभसा AWA AAT ययौ Roo सोऽगात्तणेन लहायासुद्याने चिं्रपा तले | सोतामपश्यद्यायन्तीं नाम रामस्य मन्तवत्‌ १॥

[ षि 7 ) ए. 2, ee (गोणी इ;

(1) ware इृमुमागिति gig west

२.७८.

८०

AANA

तरूशाखातिरोभूतः सोतोलङ्गःङ्गलोयकम्‌ हनुमान्‌ पातयामास ALT YAS चसा ॥२॥ तदेव गत्वा विजटा दशकण्डं व्यजिश्रपत्‌ | यत्कालं विषख्ाऽऽसौत्‌ सानन्दा तद्य ATA WR I मन्ये विस्मृतराभेयं रिरंसुमेयि संप्रति |

तदत्वा बोध्यता'मित्यादिचत्‌ मन्दोदरीं सतु॥४॥ ATS TSA त्र ARITA ययौ

प्रलोभनक्लते सोतां विनता सेत्यवोचत ५॥

WE AMAA AAACN AA: | त्वमम्यप्रतिरूरैव रूपलावस्यसम्द्‌ा \ Qu यद्यप्यन्नम aq युवयोरुभयोरपि |

व्यधाद्युचितो योगस्तथापि wg संप्रति ७॥ उपैत्य भजनोयं तं भजन्तं भज रावणम्‌ | Wea Aga Bey! faqs सौताऽप्यवोचदाः पापे पतिदूत्यविधायिनि। त्हर्तुरिव वोत सुखं दुमुंखि कस्तव < रामस्य पाठे at विहि सौमिविभिष चागतम्‌ खरादोनिव way द्राक्‌ धवं लव सबान्धवम्‌ १० sfastfas पापिष्ठे afea नातः परं त्या aaa तर्जितेवं सा सकोपा प्रययौ ततः ११॥

(१) Wow -मेषभूे।

हितोयः प्रकाशः

भधावतोयं इनुमान्‌ Mat var क्ताच्नलिः | cae देवि जयति दिश्या रामः WaT: १२ amnafand रामेशादिष्टोऽहमिहागमम्‌ |

मयि aa गतै राम ceafa रिपुच््छिदे॥ cet पतिदूतं इमूमन्तमभिन्नानसमपेकम्‌ |

प्रोता सौताऽप्यथागोभिरमोघाभिरनन्दयत्‌ १४॥ हन्‌ मदुपरोधघेन रामोदन्तमुदा AT | एकोनविंशव्यपवासान्ते व्यधित भोजनम्‌ १५ ` पराच्ञनिः mre इवोद्यानस्य भगे |

VSR दशकण्टस्य बलालोकनमकौतुकात्‌ १६॥ भज्यमानं aaa तैन मानभिवोच्चकः |

उपेत्य दशकगस्याशंसन्रुद्यानपालकाः १७ ` भ्रारत्ता रावणादिष्टास्तं निहन्तु समागताः |

इता इनुमतेकेन विचिता हि रशि गतिः १८॥ भ्रादिष्टो दशकरेन साटोपः शक्रजित्ततः |

२८१

तदन्धायामुचत्पाणान्‌ पाः सं सोऽप्यवन्धयत्‌ १९

MAW दशास्यस्य दलयन्‌ मुकुरं पदा उत्पपातापास्तपाशस्तडिष्णड इवानिलिः २० हन्यतां ग्टह्यतां चेष इति जल्यति Tae | भ्रनाधामिव सोऽभाङ्कचोत्न्पुरीं पादददेरेः २१॥ MIST कलै वमुत्पश्य Yar श्व पावनिः।

एत्य रामं नमस्छत्य तं satay व्यजिन्नपत्‌ २२॥

RGR

योगशास्त्रे

रामस्तं गाढम।पोष्योरसा सुतमिवौरषम्‌ | ल्ाविजययाव्राये सुभ्रोवादौनधादिशत्‌ २१ Was रावशारत्तं बहा सेतु Ta: |

लङ्ापुरों विमानस्थः सुग्रोवादीः समं ययौ ॥२४॥ निवेश्य कटकं रामो हसहोपान्तरे ततः | 'भववेषटदलेलहइगभेकपाटकलोलया २५ Wart दशग्रोवं प्रणम्योचे विभोषणः। कनिष्ठस्वापि भे खामिन्रव्येकं वचमं कुर्‌ ॥२९॥ waa रामभद्रोऽज् निजां जायां area 1 अप्येतां तदसौ सोता धर्मोऽप्येवं वाध्यते २७ wars रावणो Tere बिमषि बिभोषण | तदेवमुपदेशं भे ca कापुरुषोचितम्‌ ॥२८॥ बिभोषणो बभाषेऽच दूरे रामः waa: तत्प्तिरेको हनुमन्‌ दृष्टो देवेन किं नहि uy xe waent विपक्तानुरागो ्नातोऽसि याहि ₹।

इति निर्वासितस्तेन ययौ रामं विभोषणशः ₹० | लङ्काधिपत्यभेतस्मे रामोऽपि प्रत्यपद्यत |

wwifaa विसुश्चन्ति महामान, कदाचन ३१ afefana लङ्धेशसेना राघवसेनया |

कास्यतालं कांस्यतालेनेवास्फालदथोखणम्‌ २२

(१!) wfated | (श) wy च|

दितोयः प्रकाशः। | ८३

प्राणसर्मखदेविन्योिथषम्बोगेतागतम्‌ |

जयश्रीः ओोरिवाकार्षीदुत्तमर्णधमणयोः २२ रामभ्वरुसंन्नयाऽऽन्नप्ता इनृमग्रमुखास्ततः |

जगाहिरे दिषन्सन्ये सुरा ष्व महोदधिम्‌ ३४॥ wat: केऽपि war: केऽपि arfaar: केऽपि aaa: | MATH रामषोरेदर्वारैवारणेरिव २५ कुम्भकणंस्तदाकश्छ We वह्किरिव sea मेघनाद aay: प्रविवेश रणाङ्गणम्‌ २६ तावापतन्तौ कल्पाम्तपवनस्वलनाविव |

हि सोदुमशक्येतां रामसेन्येमेनागपि २७ सुग्रोवोऽथ amare शिलामिव शिलोच्चयम्‌ | भर्तिपल्कश्क णाय सोऽपि तं गदयाऽपिषत्‌ ३८ पनगंदाप्रहटारेण पातयित्वा कपीश्वरम्‌ |

Raat न्यस्य पौलस्यो aet प्रत्यचलग्लतः ३९ भमेघवब्रिनदश्मघनादोऽपि सुदितस्ततः |

ञ्ञवङ्गान्‌ ज्ञावयामास निशातश्रहटटिभिः uve y ala fas तिष्ठेति भाषमाणोऽरुणेक्षणः |

रामोऽथ कुम्भक णीय मेघनादाय AMT: ४१॥ सुग्रोवोऽप्यत्पपाताथ क्षललौजो रावणागुजात्‌

मुष्टौ छतः कियत्कालं नतु तिष्ठति पारदः ४२ वलितः कुश्भकर्णोऽपि रामेण युयुधे aa: | सौमित्रिणा मेघनादोऽप्रमादः च्ौोभयन्‌ जगत्‌ ४१॥

२८४

AIAN

मिलितौ रामपीलस्यावन्धो पूर्वापराविव। WAAR ATA aT लद्छमशरावणो ४४॥. रावखावरजं रामो रावणिं शसम: पुनः| पातयिल्वाऽग्रहोस्सत्यं रक्षसामपि राक्षसः ४५॥ रावणेरावखो रोषादगेषकपिङुश्नरान्‌ पिंघन्रधाययौ qaya भुवनभोषणः ४६ # अलमाय | खयं qwafa रामं निवारयन्‌ | सौमितविरभ्यमित्रोणो बभुवास्फालयन्‌ wy: ४७ चिरं गुदाऽखिलेरसत्ररस्नविद्रावणस्ततः | जघानामोघया शक्या मङ्चु वक्षसि aya ४८ wear भिब्रोऽपतत्लोश्यां लद्मणशस्तत्तणादपि | तथेव सद्यो रामोऽपि बलवच्छोकगदना ४९ Mal वप्रान्‌ भटेरष्टौ प्राकेरपि हितेषिणः | सुग्रोवाद्यास्ततो रामं सल्मणम्ेष्टयन्‌ ५० मरिष्यत्यदय सौमिविस्तदभावे aces: |

fat qut & रणेनेति रावणोऽगात्पुरों ततः ५१॥ राघवं परितो जाते वप्रहदारचतुषटये | सुग्रोवप्रमुखास्तस्यरारक्तोभ्रूय ते निशि ५२ + भामण्डलमयोपेत्य दसिणहाररल्षणम्‌ |

पूर्व॑खंसुत cae कोऽपि विद्याधराग्र्योः ५२ अयोध्याया योजनेषु serena पत्तनम्‌ | कौतुक मङ्गलमिति aa द्रोणचनो कृपः ५४॥

दितोयः प्रकाशः | acy

कंकेयोशातुरस्यास्ति विशल्या नाम कन्यका

तस्याः arate: खगं we faatfa तत्तगात्‌ ५५। WATT TT सरज्ञानपयसोच्ते गतशस्यस्तदा जोषवेदन्यधा तु जीवति ५६॥ ततो मस्मस्ययाद्रामभद्रं विन्नपय दतम्‌ |

कस्यापि saad तदागयमनहेतवे ५७ त्वग्येतां खामिकार्याय प्रत्यूषे fat करिष्यथ |

उदस्तं शकटे war किं gata गणाधिपः ५८ भामशण्लस्सतो गला तद्रामाय व्यजिन्नपत्‌ | भादित्तत्तवकुते रामस्तमेव waaay ve | agen विमानेनायोध्यां पवनरंहसा |

WATS ददृशतुः शयानं भरतं ततः ६० भरतस्य प्रबोधाय तौ गोतं चक्रतुः कलम्‌ | राजकार्येऽपि राजान उल्याप्यन्ते युपायतः ९१ विबुध्य भरतेनापि दृष्टः we: परो नमन्‌।

जये URSA, कारय AMAA "प्ररोचना ६२ सेत्स्यत्येतक्मया तज्रेयुषेति भरतस्ततः | तदिमानाधिरूढोऽगात्पुरं कौतुकमङ्गगलम्‌ ६३ भरतेन दरोण्चनो favenay याचितः।

सहोहाष् स्तौसहस्रसदहितां MATH ६४॥

(१) wwe “TI ४९.

२८६

योगशास्त्र

भामण्डलोऽप्ययोध्यायां FRI ALARA: |

Waa सपरोवारविशव्यासंयुतस्ततः ey il च्वललदोपविमानस्यो भोतेः Gateaaarg |

ae cur निजः aisurfenerqraearay ६९ तया पाणिना र्ष्टाल्न्णानत्तणादपि | निःखत्य क्राप्यगाच्छक्िय्टिनेव मष्ोरगो ६७ तस्याः खानामसाऽन्येऽपि रामादेशादयोतिताः | निःशस्था afat सेन्याः पुनर्जाता इव WATT et WAT: BATA सेकं कुष्यकणोदयोऽपि ते, भानोयतामिरहेतयश्व रादिदेश रघुदहः ९९ तदानौभेव ASA VAR ATS खयम्‌ |

दति विन्नपयामासुरारक्ता लद्छणाग्रजम्‌ ७० AAAS ARTA मोच्या मुक्तिपथख्िताः | दति रामगिराऽऽरक्तेनत्वाऽसुष्यन्त ते चषणात्‌ विशष्यां कन्यकास्ताञ्च ACTA ABA: | रावणोऽपि रणायागादमषणशिरोमणिः ७२ प्रणम्य रामं सौमितिरत्तस्येऽधिज्यकामुकः | विवाहादयु्वेभ्योऽपि वोराणासु्छवो रणः ७३ यद्यदस््र दशग्रौवो विसक्षजांतिदासणम्‌ | anfasee aifafara: कदलिकाण्डवत्‌ ७४ भस्त्रच्छेदादथ mea fags Way: | तक्षच्छणोरस्यपतश्चपेटावन्र धारया O% Ul

facta: प्रकाशः ३८७

तदेवादाय सौभित्रो रावणस्याच्छिदच्छिरः। निजाश्वेरप्यवस्कन्दः पेत्‌ खस्य कदापि हि ७६ | सोता सख णंश्लाकेव निमला शोलशालिनो | रामेण HVE TET न्धस्तो विभोषणः ७७ wa निहत्य ससहोदरदारमितो रामो ययावथ निजां नगरोमयोध्याम्‌ | उत्यन्रया परकलत्ररिरंसयाऽपि' क्रत्वा कुलशयमगानब्ररकं दशास्यः २७८॥

इति सोतारावशकधानकम्‌ <<

तस्मात्‌ |

° सौन्दयस लावण्यपुण्यावयवां पदं UE: कलाकलापकुशलामपि जद्यात्परस्वियम्‌ ॥१००॥

दुरू्यजामपि परस्त्रियं जश्मात्परिहरेत्‌ दुख्यजत्वे Sqare | लावण्यपुण्यावयवां aaa weutaat सूपादिभ्योऽतिरिक्षं तेन पुण्याः पविता भ्रवयवा यस्यास्तां, पदं स्थानं सौन्दयसंपदो रूपसम्पदः, कला हासप्तिलेखायाः स््रोजनोचिताः तासां कलापः समूहस्तत कुशलां प्रवौणाम्‌ | लावण्यं, रूपं, वेदग्धा परदाराणां दुख्यजतवे हेतुः अपि शब्द्‌ स्िष्वपि हेतुषु सम्बन्ध- नोयः १००६

ना, भाः =>

(1) we fr;

{¬> BANA

परस््नोगममे दोषानभिधाय परसो विदतान्‌ प्रशसति-

अकलङ्मनोहत्तेः परस्त्री सच्चिधाबपि | genre किं ब्रूमः सुदभनसमुन्रतः १०१

परसत्नोसचिधानेऽपि निष्कलङ्ूवेतोदन्तेः सुदणंनाभिधानस्य महाच्रावकस्य किं ब्रूमः कां सुतिं कुमंहे वचनगोचरातोता सुतिरित्यर्थः। genre विशेषणं सुदशनसमुव्रतेः भोभना दभनससुत्रतियैस्ा त्तस्य, सदशन प्रभा वक स्येत्यथेः | Weary संप्रदायगम्यः। वायम्‌-

अख्यङ्कदे गेऽत्यलकापुरो चम्पेति aa च। दधिवाइन इत्यासौद्रा जाऽतिनरवाङनः भभूसलस्वाभया नाम कलाकौग्रलशालिनो | महादेवो खनलावस्यावन्नाततिदशाङ्कना इतो नगयां तस्यां समग्रवणिगम्रणो; | Hel ठषभदासोऽभूदासोनः चेष्ठकमंणि २॥ यथार्नामिका अनधर्मोपासनकर्मणा | weeraifa तस्यासोद्‌ ae गोलशालिनो शेषस्तस्य महिषोरक्ोऽभूक्‌भगाभिधः | पनेपोकादिषोनित्यं सतु चारयितुं वने ५। aaifaan: सोऽन्येयार्माघमासे दिनात्यये अपश्यदगप्रावरणं कायोव्गस्यितं मुनिम्‌ i

feala: प्रकाशः | Que

wat feafafa खाश्रिव यः स्यास्यति farq असौ धन्यो मातेति चिन्तयन्‌ wy ययौ महामुनिमवन्नातहिमानोपातवेदभम्‌ |

aaa चिन्तयब्राद्रंमना रातिं भिनायसः॥ I श्रविभातविभावय्यां ग्डदोत्वा महिषौस्ततः।

ययो ay यतासोत्‌ मुनिः प्रतिमाखितः॥<॥ खयाणोमक्िरानम्योपासाश्क्र सतं तदा)

पहा नेसगिकः कोऽपि विवेकस्तादणामपि १०॥ भरतान्तरे चष्डरोचिरारोषदुदयाचलम्‌ |

अद्या तमिव दृष्टं कायोसखगेखितं सुनिम्‌ ११॥ नमो अ्रिहन्ताणमिति वाचमुदौीरयन्‌ |

दितोय इव चच्डांशुरत्पपात नभस्तसे १२॥ भराकाशगामिनौ नूनमियं विद्येति बुहितः। नमस्कारपदं तंतु सुभगो faet we a १३२॥ जाग्रत्खपन्रटंस्तिष्ठन्दिवा निशि ze बहिः | तदपाठोव्‌ उच्छिष्टोऽप्येकग्राहा fe arent: १४॥ ततः पप्रच्छ तं Sl विश्वोलकृ्टप्रभावत्‌ |

wd पञ्चपरमेहिनमस्कारपदं कुतः १५॥

wad महिषोपालः कथयामास तत्ततः |

ary wi: साधु भद्रेति way चेष्टो जगाद तम्‌ ॥१६॥ साकाशगमने हेतुरसौ विद्या केवलम्‌

किन्तु हेतुरसाषेव गतौ खर्गाीपवगेयोः १७

३९ ` योगशास्न

यक्किञ्धिसषन्दरं वसु TUT शुवनव्रये |

लोलया प्राप्यते सवै तदसुष्य प्रभावतः १८ `. भस्य पञ्चपरमभेषठिनमस्कारस्य वैभवम्‌ |

परिमातं शक्तोऽसि वारि वारिनिधैरिव १८ साधु प्राप्तमिदं we तत्त्वया पुणययोगतः | किन्तृच्छिटटग् होतव्यं qeara जातुचित्‌ २० TIA व्यसनमिव त्यहं ATA: | अलमस्मोति तेनोक्षः खेटो इष्टोऽत्रवोदिदम्‌ २१ तदधोष्वाखिलां पञ्चपरमेष्ठिनमस्कियाम्‌ | कल्याणानि यथा ते स्थुः परलोके्लोकयोः २२॥ ततौऽगेषनमस्कारं लब्धा्थमिव "तदनः | परावर्यताजसखं सुभगः सुभगाशयः २३ महिषोपालकस्यास्य ्चसुष्णावेदनाहरः | परमेठिनमष्कारः प्रकामं समजायत i Vs

एवं तस्य नमस्कारपाठव्यसनिनः सतः |

कियत्यपि गते are वर्षाकालः समाययौ २५॥ धारानाराचधोरणस्या waar निरन्तरम्‌ | अकोलयदिव दयावाण्टयिव्यो नव्यवारिदः॥२६॥ ग्हाङ्गरोल्ा महिषीः सृभगोऽपि बहिगेतः ! विनिहन्तोऽन्तराऽपण्यद्वोरपूरां महानदौम्‌ २७

es es eee -_ ee ee

(१) कं तद्धनम्‌

हितोयः प्रकाशः।

ai eer a मनाग्‌ भोतस्तस्थो किञ्चिद्िचिन्तयन्‌ |

नदीं तोला परत्ते महिष्यः प्राविशंस्ततः॥२८॥

ममस्कारं पठन्‌ व्योमयानविद्यापिया aa: | उत्पपात क्षतोत्फालो मध्येनदि पपात च॥२८॥ तवान्तःकदमं मग्नः खरः खदिरकौतलकः | क्तान्तदन्तसोदर्या द्यस्य प्रविवेशच॥३२०॥ तथेवावस्तयन्‌ पञश्चपरमेिनमस्वियाम्‌ |

तदा मर्माविघा तेन कालधमंभियाय सः Ae i खेठिपत्रास्ततः सोऽङश्हास्याः कुक्ताववातरत्‌ ममस्काररतानां fe सहतिन विसंवदेत्‌ १२ तस्मिन्‌ गभंखिते मासि तायो व्यतोयुषि श्ेषषठिनो aft खस्य टोषदानित्यचौकथत्‌ २२॥ गन्धोदकैः खपयितं fata विलेपने |

अरचत्‌ कुसुमेरिच्चछाम्यषतां प्रतियातनाः १४ प्रतिलश्भयितु साधुनिच्छाम्याच्छादनादिभिः। संघं पूजयितं दातं aera मतिमेम २५॥ दत्यादिदोषदां स्तस्याः श्रुत्वा मुदितमानसः | चिन्तामशिरिव स्रहठिशिरोमशिरपूरयत्‌ २६ ततो नवसु मासेषु दिनेष्वद्टमेषु

गतेषु afer पुत्रमख्त शभलक्षणम्‌ ३७ | सदयो महोत्छवं क्षत्वा Ast दष्टः शमे दिने | सूनोः सुदर्थन इति यथाथ नाम निर्ममे ३८

२८१

१८

योगशास्त्रे

ata: क्रमात्पित्रो्मनोरथ इवोच्चकोः

BUA यधौचित्यं जग्राह सकलाः कलाः ३९ कान्धां मनोरमां नाम मनोरमङलाक्ततिम्‌ | arenfea cat येष्ठो "तेन तां पय्येशाययत्‌ ४० सौम्यमूत्तिः wala पिवोरेव केवलम्‌ |

अन्ने राश्नोऽपि लोकस्य sas’ ATTA ४१ दतो नगा तव्राभूदुपतेदुंदयङ्गमः |

gira: कपिलः प्राप्रोधा विद्याम्ोदधेः ४२॥ समं सुदर्धनेनाख्य waar मधोरिव |

अजायत परा प्रीतिः सवं दाऽप्यविनणश्वरो ४१ (युग्मम्‌). प्रायः सुदर्भनस्यैव पुरोधा महामनः |

Dera शवोष्णांभो; परिपाश्ममवन्तत ४४॥ कपिलं कपिला नाम Bat ऽपष्छन्तमन्यदा | वि्मरनित्यकमणि कियत्कालं नु free" ४५ apa सुदर्भनस्याद्ं तिष्ठामोति तदोरितै

कोऽसौ Gent इति तयोक्षः प्रत्युवाच सः ४६ मम fat सतां ya विश्वैकप्रियदशथनम्‌

qed चेदेण्ि तशवं afer किञ्चन ४७

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(१) www तेनायो-| २) खश्च “aay (३) कग तु तिहि |

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A CoLLECTION Or OrtentaL Works

PUBLISHED BY THB ~ qi ASIATIC SOCIETY oF BENGAL, 150

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PRINTED BY UPENDRA NATHA CHAKRAVARTI, AT THE SANSKRIT PRESS 6, Nandakumar Choudhury’s 2nd Lane

AND PUBLISHED BY THE

ASIATIO SOCIETY OF BENGAL, 1, PARK STREET.

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110 ASIATIC SOCIETY OF BENGAL. 1 २44; No, 1, PARK STREET, CACUTTA

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9 BIBLIOTHECA INDIOA.

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Sanskrit Series

+" @Advaite Brahma Siddhi, Fare. 2, 4 @ /10/ each... Advaitachint& Kaustubha, Fasc. 1-3 @ /10/ each : " *agni Purdna, 0086. 6-14 @ /20/ each

an ¢ Aitardya Braihmana, Vol. I, Fasc. 1-5; Vol. 11, Faso. 1-5;

Fasc. 1-5, Vol. IV, Fase. 1-8 @ /10/ each he ‘Aitereya Lochana ००१ ` ००१ ००९ " ` Anu Bh&ighya, Fase. 2-5 @ /10/ each Aphoriems of Sandilya, (English) Fasc. 1 @ 1/- ... » Agtasthasrik& PrajhapSramité, Fasc. 1-6 @ /10/ each

+. wAtharvana bl eli Faso 4-6 @ /10/ each wie

Avadana Kalpalata, (Sans. and Tibetan) Vol. I, Faso, 1-7; Vol. IH. Fase. | 1-6 @ 1/ each re . “ˆ, ` 21970 Bhatti, Vol. I, Fasc. 1-2, Vol 2, 280. 1 @ /10/ each =, ‘aa Baudbdyana S‘rauta Sntra, Faso. 1-3 Vol. II, Fase 1-2 @ /10/ each ` .\ *Bhamati, 0996. 4-8 @ /10/ each it Dipik& Vol. I, Fasc. 1-6; Vol. 2, Faso, 1, @ /10 each = yostatrasangraha ( 1.10. & Sans. ) + ००९ + eee Brahma Sutra, Fasc. 1 @ /10/ ०4०7 =, ,,, =: ००१ | tee sie Brhadd&vat&é. Fusc. 1-4 @ /10/ each va नि 9 .~ Brhaddharma Purina Fasc 1-6 @ /10/ each gee 8 ee im “4, Bodhieary&vatéra of Cantideva, Fasc. 1-5@ /10/each ... Cri Cantinatha Charita, Fasc. 1.3 ,. , ves arr ००९ 0 Faso. 1-2 @ /10/ cach =. 4 eee: a utalogue of Sanskrit Books and MSS,, Faso. 1-4 @ 2/ ‘ga Qatapatha Brahmaya, Vol I, Fasc. 1-7, Vol II, Fasc. 1-5, Vol. III, | Faso: 1-7 Vol. 6, Fasc. 1-4 @ /10/ each | 4.0. Ditto Vol. 6, Fasc. 1-3 @ )/4/ each vas (4

Atmatattaviv Fasc. I. @ /10/ each ... oe ee Agvavaidyaka, Fasc. 1-5 @ /10/ each

a Ditto Voi. VII, Fasc. 1-83 @ /10/

’GatasihasrikS PrajiSpGramité Part, I. Faso. 1-12 @ /10/ each...

Vol. HL ,.

“<Gaturvarga Chintimani, Vol. II, Fase. 1-25; Vol. 111. Part I, Fasc

ee -18. Part'JI, Faso. 1-10. Vol. 1४ .- 7986. 1-6 @ /10/ each. . Ditto. Vol. 4, Faso. 7,@1/4/ each = ,,, | ०५५ i Lett Ditto Vol. 1४, Fasc. 8-9 @ /10/ ` ` „^ ' ` - Qlookavartika, (English) Faso. 1-7 @ 1/4/ 2960) =, ... - ` *Qrauta Stra of Apastamba, Faso. 12-17 @ /10/ each

Ditto .. Q&nkhSyana, Vol.. J, Faso. 1-7; Vol. JI, Faso, 1-4,

Vol, 111;.Fase, 1-4; Vol 4, Fasc. 1 @ /10/ each

| - ` 071 Bhashyam, Faro, 1-8 @ /10/ each

Dé&na Kriy& kaumud, Fage. 1-2 @ /10/ each , Gadadhara Paddhati KSlasira ४4 1; Fasc. 1-7 @ /10/ each

"` bitto ` .- Achirasirah Vol. II, Faso. 1-4 @ /10/ each - , Gobhiliya Grihya Sutra, Vol. I. @ /10/ each ८४ , ... , Ditto Vol. II. -Fase, -2 @ 1/4/ each , Ditto (Appendix) Gobhila Patisista ..... Ditto. Gribya Sangraha ie . „` , Haralata ०० ove .. Karmapradiph, Fasc. I +

‘Kala Viveka, Fase. 1-7 @ /10/ each ` K&tantra, Fasc. 1-6 @ /12/ each

Kath’ Sarit Sagara, (English) Fasc. 1-14 @ 1/4/ ench . *Ktrma Purana, Fasc. 3-9 @ /10/ each

Madana P&rijata, Fasc. 1-11 G /10/ each

Maha-bbhagya-pradipddydta, Vol. 1, Fasc. 1-9 ; Vol. 11, Fase. 1-12 Vol. 111

Fasc. 1.10 @ /10/ each =... 9०४12 Sangraha, Fasc. 1-3 @ /10/ each sete | Markandeya Purina, (English) Fasc. 1-9 @ 1/- each to saibe

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--3 @ /10/ each ow) + 999 ove eve 5 0 Padumawati, Faso. 1--5 @ 2/ : : “ge ae ae 10 0 Variyigtn Parvan, Fasv. 3--5 @ /10/ each ` is day = ` ००१ ०० 1 14 Prakrita-Paingalam, Fasc. 1--7 @ /10/ each ^ "१०७ “` " ००० 4 ` 6 Prithivir&8j Rasa. Part 11, Fasc. 1--6 @ /10/ each = , a ae

Ditto (English) Part II, Fasc. 1 @ 1/ , `“ = 1 0. Prikrta Lakganain Faso. 1 @ 1/8/ each 1 8 Paricara 8701५, Vol..I, Fasc. 1--8; Vol. If, Func. 1--6 ; Vol. II

Fasc. 1-6 @ /10/ench =... ; sve 1४ 8 Par&cara, Institutes of (English) @ 1/- each ; ane ‘aes BP SO Prabandhacint&mani (English) Fasc. 1--3 @ 1/4/ each eee . wee 8. “22 Saddarsana-Samuccaya, Fasc. 1-4 @ /10/ शैल - | = : 1 4

Sima ४९५० Saihhit&, Vols. 1, Fase. 7-10; II, 1-6; 111, 1--7 वः

IV, 1.-6 ;. V, 1-8, @ /10/ each oe „. = 19 Sigkhya Sfitra Vetti, Fasc. 1-4 @ /10/ each ae wet 2 8

Ditto (English) Fasc. 1-3 @ 1/- each ००० eee ¢

Sankara Vejaya, Fasc. 2-3 @ /10/ ench es sae: 2k 4 Sraddha KriyS Kaumudl, Fasc. 1-6 @ /10/ each —... sale ae 9 1 सपद्मा atotra ( Sanskrit and Tibetan)... 9०७ (क 6. ` 0 || Srauta Sutra Latyayan, Fasc. 1-9 @ /10/ each ae ननन" aaa! 6 10 a » , Asbalayana, Fasc. 4-11 @ /10/ ench by 1 -0 || Sucruta Samhita, Eng.) Fasc. 1 @ 1/- ench + 1 (| Suddhikaumud!, Fasc. i-4 @ /10/ each „अ see ~ a ee: 8 *Taittreya Brahmana, Fasc. 6.25 @ /10/ each ae we 12. ON Pratisnkhya, Fasc. 1-3 @ /10/ each ise = we Ll 14 *Taitterfyn Samhita, Fasc. 27-45 @ /10/ each “he Serer ... 1 14 7३०५१४१ Brahmans, Insc. 7- 19 @ /10/ काली ` ,.,. - oe . 0 14 ‘Tantra Varteka (English) Fasc. 1-6 @1/4/ench ... 7 8 Tattva Cintamagi, Vol. I, Fasc. 1 Vol 21, Fase. 2-10, Vol. IIT, Fase. 1-2, `

Vol. 1४, Fasc. 1, Vol. V, asc. 1--5, Part TV, Vol. IJ, Fasc. 1-12 @ /10/ each 23 12 Tattvarthadhigama Butram, Fasc. 1-3 @ /10/ cach ००७०१, we 1 14 Trikfigda-Maydanam, Iasc. 1-3 @ /10/ शलौ . ^ ~ mare 2 14 Tulsi 3६१, Fase. 1--6 @ /10/ each | vee, OE Ca. "0 2 Upamita-bhava-prapafica-kathd, Fasc. 1-11.@ /10/ ८५५।१ - > - ==. . ` -, == 9 14 Uvasagadasso, (Text and English) Fasc. 1--6 @ 1/- each ००९ . ०५ 6 MY Vallala Carita, Fasc 1 @ /10/ | ५, aie ; ,,, ०0 10) Varga KriyS Kanmudl, Fasc 1-6 @ /10/ench ' ... +> . 12 “Vayu Purdya, Vol. 1, Fase. 3.-6 ; Vol. Uf, Mase. 1--7,@ /10/ each ००० 6 14 Vidhara P&rijata, Fasc. 1-8 Vol- 1. Fasc. I @ /10/ each ae ००, 6 10 Vivadaratnakara, Fasc. 1--7 @ /10/ each + eo `... 4 Vebat SvayambhO Purana, Fasc. 1--6 @ /10/ench ... = sus ००, 1४ *#Yoga Aphorisms of Patanjali, Facc. 3-6 @ /10/ each ie 4, 2. ~ Yogasastra of Hemchandra Vol. I. Fasc. 1. ( 200 pages.')' ... “ae 4

4 ४७९८०१५ Series

Pag-Sam Thi Sif, Fasc. 1.--4 @ 1/ cach ... 4 0 Shor-Phyin, Vol. 1, Fasc. 1-5; Vol. If, Fasc. 1-3; Vol. 111, Fase. 1-6, @ 1/ each 14 Rtoga brjod dpag Akhri 8१0 ( 19. Sana. Avadana Kalpalats ) Vol. J

Fane, 1--6; Vol. {1. Fasc. 1--5 @ 1/ each ००७ ee 11 i) Arabic and Persian Series, , = Mamgirnamah, with Index, (Text) Fasc. 1--13 @ /10/ each ... we 8 2 Al-Muqaddasi (English) Vol. I. Fasc. 1--8 @ 1/- each 5 a oe 0 Kin-1-Akbari, Fase. 1-22 @ 1/8/ each... . 33 0 Ditto (Engliah) Vol. 1, Fasc. 1--7, Vol. 11, Fase. 1--5, Vol. Lf 7११८. 1--6, @ 2/- each = .. . seis ०० BE. Akbarnamah, with Index, Fasc. 1-37 @ 1/8/ each ... vee 55 8 Jitto (English) Vol. I, Fasc. 1--8; Vol. 11, Fasc. 1-4@1/d4/each 15° 0 Arabic Bibliography, by Dr. A. Sprenger, @ /10/ , 9 10 *BadshAhnamah, with Index, Fasc, 1--19 @ /10/ each ie ००, 11 14 Conquest of Syria, 8१८. 1-0 @ /10/ each a ,.. 5 10 atalogue of Arabic Books and Manuscripts, 1-2 @1/- each .., ve. 2, -@ ‘Catalogue of the Persian Books and Manuscripts iu the Library of the Aniatic Society of Bengal. Fasc. 1--3@ 1/ each 3 0 Dictionary of Arabic ‘echnical Terms, and Appendix, Fasc. 1-21 @ 1/8/ each 31 8 Farhang-i-Rashidi, Fasc. 1-14 @ 1/8/ each ae 1

‘The other Fasciculi of these works are out of stock, and complete copies connot be supplied

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Ra. 4 0 Futdb-ugh-Shim of Waqidi, Faso. 1..9 @ /10/ each es ०००. 6 16 Ditto of Asidi, Faso. 1--4 @ /10/ each ... ०० 2 ` 58 ' Haft Asm&n, History of the Persian wi, Fasc. 1 @ /12/ each ०० 0 12 History, of the Caliphs, (English) Fasc. 1--6 @ 1/4/ each ea ४. | 8 TqbSinimah-i-Jah&ngiri, Faso. 1--8 @ /10/ each ... ees ०० 1 14. 1580920. with Supplement, 51 Fasc. @ 1/- each S33 9 ,,, 61 0 Ma'ayir-i-’ Alamgiri, Faso. 1-6 @ /10/ each 8 1४ Madyir-ul-Umari, Vol. I, Fasc. 1--9, Vol. If, Faso. 1--9; Vol. III, 1-10 Index to Vol. I, Faso. 10-11; Index to Vol. 11, Fasc. 10-12 Index to Vol. LIT, Fasc. 11-12 @ /1/ each és a ००, 35 0 Maghisi of Wi&qidi, ९6. 1--5 @ /10/ each bes eee | 2 Muntakbabu-t-lawdrikh, Faso. 1--15 @ /10/ each . 9 £6 Ditto ( English ) Vol 1--7; Vol. U1, Faac 1.-5 and 8 Indexes ; Vol. III, Fasc. 1 @ 1/ each ००, 15 0 Muntskhabn-l-Lub&b, Fasc, 1-19 @ /10/ each are ००५ ee 11 14 Nukhbatu-l-Fikr, Faso. 1 @ /10 wae ००. 0 10 Nigimi’s Kbiradnimah-i-Iskandari, Fasc. 1-2 @ /12/ each = | 8 RiySgu-s-Salitin, Fasc. 1--5 @ /10/ each aaa ३३ 3 2 Ditto . (English) Faso. 1--5 @ 1/ ००५ ०० 6 0 Tabaqu&t-i-N&giri, Faso. 1--6 @ /10/ ea: ooe eee eee 3 2 Ditto (tnglish) Fasc. 1~-14@1/ each... ane woe 19 0 Ditto Index a 1 + Tarikh-i-Firts Shahi of Ziyfu-d-dim Barni Faso. 1--7 @ /10/ each ..„ 4 6 “lérikh-i-FirQseh&hi, of Shams-i-Sirdi Aif, Faso. 1-6 @ /10/ each „= 8 12 ‘ren Ancient Arabic Poems, Faso. 1--2 @ 1/8/ each we 8 ¢ Tusuk-i-JahSngirl, (Eng.) Faso. 1 @ 1/ ... ४६६ ७७९ cee ` 0 Wis-o-Rimin, Faso. 1--5 @ /10/ each... ae, 9 2 Zafarnimah, Vol. I, Fasc, 1--9, Vol. IT, Fasc. 1--8 @ /10/ each ... -. 10 10 ASTATIO SOCIETY'S PUBLICATIONS. 1. Aastatio Resranonna, Vols. XIX and XX @ 10/ each. ... 20 2. Prooxxptnes of the Asiatic Society froin 1870 to 1904 @ /8/ per No 3. Joornat of the Assiatio Society for 1870 (8), 1971 (7), 187४ (8), 1878 (8), 1874 (8), 1875 (7), 1876 (7), 1877 (8). 1878 (8), 1879 (7), 1880 (8), 1881 (7), 1882 (6), 1888 (5), 1884 (6), 1885 (6), 1886 (8), 1887 (7), 1888 (7), 1889 (10. 1890 (11), 1891 (7). 1892 (8). 1893 (11), 1894 (8), 1895 (7), 1896 (8), 1897 (8), 1898 (8), 1899 (8), 1900 (7), 1901 (7), 1902 (9), 1908 (8), 1904(16), @ 1/8 per No. to Members and @ 2/ per No. to Non-Members ’. B.—The figures enclosed in brakets give the number of Nos. in each Vi lume. 4. Journal and Proceedings. N. S., 1908, to date, @ 1-8 per No. to Members and Rs, 2 per No. to Non-Members 5. Memoirs, 1905, to te. Price varies from number to number Discount of 25% to Members ७. Centenary Review of the Researches of the Society from 1784-1883 3 0 sketch of the Turki language as spoken in Eastern Turkistan, by R. B. Shaw (Extra No., J.A.S.B., 1878) = 4 0 Catalogue of Mammals and Birds of Burmah, by E. Blyth (Extra No., J.A.S.B8., 1875) . 4 0 7. Catald ate of the Library of the Asiatic Society, Bengal, 1884 ०० 8 8 8. Mahdbbérata, Vols. 111 and 1V, @ 20/ each = 40 0 9. Moore and Hewitson’a Descriptions of New Indian Lepidoptera, Parts 1-ITI, with 8 coloured Plates, 4to. @ 6/ each $ ove 18 10. Tibetan Dictionary, by Csoma de 101 ae sae. 10 ¢ 11. Ditto Qrommar er + 8 iz. Kagmiracabdimyta, Parts I & II @ 1/8/ ; . 0 13. Adescriptive catalogue of the paintings, statues, &c., in the rvomsa of the Asiatic Society of Bengal by ©. K. Wilso See 0 14. ‘Memoir on maps illustrating the Ancient Geography of Kazmir, by M. A. Stein Pa.D., JI. Extra No. 2 of 1899 ... . 4 ¢ 15. Persian ‘Translation of Haji Baba of Ispahan, by Haji Shaikh Abmad-i-Kirmasi, and edited with notes by Major D. ©. Phillott 10 0 Notices of Sanskrit Manuscripts, Fasc. 1-84@1/cach ... ` ०० 84 0 Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. R. L. Mitra 5 c

N.B.—All Cheques, Money Orders, &c., must be made payable to the “Treasurer Asiatic Society,” only

‘Books are supplied by ए. P. P.

3-१-09.

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हितोयः प्रकाशः |

तं ज्नापयाघुनापोति तयोक्ञः कपिलोऽबदत्‌। श्रसाठषभदासस्व शेषषठिनस्तनयः सुधीः ४८ एष रूपेण पञ्चेषुः कान्त्यन्दुस्तेजसा रविः | गाग्मोर्खयेख मष्ा्मोधिः मया सुमिसत्तमः ४९ दानेकचिन्तामाणिक्यं गुणमाखिक्धरोषणः | प्रिथालापमुधाकुर्डं वसुघासुखमण्डनम्‌ Yo waa खलु ase निखिलानपरान्‌ गुणान्‌ | गुणचुडामधैः Ne यस्य सवलति कचित्‌ ५१ + कपिला कपिलाच्छुत्वा agar काम विद्ला चक्रोऽनुरागं, चपलाः प्रायेण दिजयोषितः॥ ५२ सुदशनाभिखरणोपायं प्रतिदिनं ततः | कपिला चिन्तयामास परं awa योगिनो ५३॥ अपरेदानृपादेश्ाद्रामान्तरसुपेयुषि | कपिले, कपिलेयाय सुदशेननिकेतनम्‌ ५४॥ सा मायाविन्धवोचत्तमख AAT महत्‌ | शरोरापाटवं तेन हेतुना नाययाविद ५५॥ श्रपाटवं लहिरहादहपुषो हिगुं aa: | अतस्त्वामहमाद्वात्‌ प्रेषिता सुषदा तव ५६ नेतज्‌न्नातं ARAW ACATATA ATCA नान्यमायां हि neat सन्तः खयममायिनः ५७ त्र प्रविशन्रूवे क्ष माम सुद्दस्तिमे। सोवाच गम्यतामग्रे शयानः सुद्रदस्िते॥ usa Yo

९४ DANS

किञ्चिच afceara पुनः प्रोच सुदशनः |

भत्रापि कपिलो नास्ति किमन्यत्र कचिद्ययौ ५८ सोते सितो भिवातैऽस्ति शरोरापाटवादसौ | मूलापवरकं गच्छ वयस्यं तत्र WA Tu go a amfa प्रविवैशायमपश्यन्‌ awe aa: |

कपिले ! कपिलः क्षास्तोत्युवाच सरलाशयः # ६१॥ भवरुषा ततो हारं मदनोरदोपनानि सा। fafouana aretia च्छादयन््च्छवाससा॥ २॥(युग्मम्‌) हृढवन्धामपि गोवरं रधयित्वाऽभिबक्रतो विलोललोचनाऽवोचद्रोमाख्ोदश्िकच्ुका ६३ arene कपिलस्तस्मातकपिलां प्रतिजाग्टडि विभेदो भवतः को वा इयोः कपिलयोनेनु ६४ प्रतिजागरितव्यं किं कपिलाया इति qaq

सुदश्यनो निजगरे ga: कपिलभायेया yey a MCAS: शशंस त्वां यदाऽङ्ुतगुणं मम

ततः wafa माभेष दुनोति मदनज्वरः ६६ feen मे विरहात्ताया छश्मनाऽपि ल्दागमः

भुवो Marfan इव भेघसमागमः eo

अदा नाधामि aare | मन्मयोग्माधथविद्भलाम्‌ | निजाद्चेषसुधाव्षेराश्वासय चिराय माम्‌ ९६८ nog: कोऽप्यसावस्या दुविंचिन््यो विधेरपि |

धिक्‌ स्नोरिति विचिन्ोचे प्रत्यत्पन्रधोरिदम्‌ ge

हितोयः प्रकाशः |

यूनां युक्लमिदं किन्तु "पर्डकोऽङमपर्डिते | | सुधा पुरुषधेषेण मदोयेनासि वसिता oo तलो facet wer: सा याहि areifa भाषिशो। हारमुषाटयामास निर्ययौ सुदशनः ७१॥ स्तोकेन Far नरकदारादस्मोति चिन्तयन्‌ खेषठिसूनुदं तपदं प्रपेदे भिजमम्दिरम्‌ ७२ अ्रतिराक्षसयः कूटादतिशाकिनयग्कनात्‌ | अतिविद्युतश्षापलाहारुणाः किमपि स्तियः ७३ एताभ्यो भोरुरस्मोति प्रत्यखौषौ fear सः

नातः परं awe? यास्यामि क्चिदेककः ७४ निभिमाणः watfa कर्माणि ganas: |

सतां मूर्तं श्वाचारो नावं किञ्धिदाचरत्‌ uous एकदा तु यथाकालं पुरे तस्मिच्रवन्तत | समग्रजगदानन्द्पदसिन््रमशोत्सवः ७६ सुदशेनपुरोधाभ्यां सहोद्यानं ययौ कृपः साक्षादिव शरत्कालन््रागस्तिविराजितः ७७ दतः कपिलया युक्ञाऽभया भूपतिमन्वगात्‌। समारूढा याप्ययाने विमान इव नाकिनो ऽर सुदशनस्य भार्याऽपि षड्भिः पवेमनोरमा तज्रागाद्यानमारु्य ANT इवाङ्गवान्‌ ७९

(१) कष षग्ङको- |

२८५

२८९ योगशास्त्र

तां eur कपिलाऽष्च्छत्केयं खामिनि ! विनो VIA AN सवेखभार्डागार LATTA! ८० ततस्तामभयाऽवादोव्र न्नातैयमपि त्वया

सुदशनस्य whew wwawifer खयम्‌ ८१ तच्छ्रत्वा विस्मिता are कपिला दैवि ! यद्यसौ | Serres wheat तदस्याः कौशलं मत्‌ ८२ किमस्याः कौश्लमिति cerita asada: | द्यन्ति yauteria यदसौ समजोजनत्‌ ८९२ सखाधोनपतिका gaara जनयेद्यदि |

तक्किं कौशलमित्यक्घाऽभयया कपिलाऽवदत्‌ ८४ एवं देवि | भवत्ये पतियंदि पुमान्‌ भवेत्‌ |

VENA: पुनरयं "पण्ड; ुरषवेष्छत्‌ ८५ कथमेतत्तया ard रान्नयति गदिता aa: |

सा सुदश्यनहत्तान्तं खानुभ्रूतमचो कथत्‌ ८९ अभयाऽप्यत्रवोदेवं aaa वञ्धिताऽखि तत्‌

qe ! ‘aw: परस्नोषु त्यं निजयोषिति ८७ ततो विलक्षा कपिला प्रललापैत्यसूयिता।

afeat यद्यं मूढा प्रान्नायाः किं तवाधिकम्‌ र्ट y अनयोचे मया सुग्धे | रागतः पाणिना wa: दरबेद्रावाऽपि fade: ain: fat पुनः पमान्‌ ८८

——— - ~~~ Fe ~ ~~~ ~~~ -~- ee, जनः as ~ -* ~~

(१) षण्डः | २) षदः षरडः।

हितोयः प्रकाशः | | ३९७

सासूयमूचै पिलाऽप्येवं मा wavy |

गवै वदसि चेहेवि | रम्यतां Aye ९० व्याजदहाराभया Vat साहङ्कारमिदं ततः

इला ! रमितभेवेनं मया विहि सुदशंनम्‌ wee i रमणोभिविदणग्धाभिः कठोरा वनवासिनः | तपख्िनोऽपि रमिता: कोऽसौ मृदुमना wey <२ रमयामि aad प्रविशामि तदाऽगलम्‌ | इत्यालपन्त्यावुदयानं NATTA BAA ते ॥९८२॥ | ‘aaTcaaat Bt नन्दनेऽष्छरसाविव |

भ्रभयाकपिले यान्तखं खं धाम गते ततः es श्रथ तत्राभया राज्ञो खप्रतिन्ामजिक्ञपत्‌

wifaat पण्डितां नाम सवेविन्नानपर्छिताम्‌ ९५॥ पर्छिताऽवोचदाः | पुति ! युक्तं मज्वितं ल्या। श्रननेऽव्यापि जानासि Gane महामनाम्‌ Wee जिनेन्द्रसुनि यूषा निष्कम्मोक्ततमानसः |

सुदशनः खल्वसौ तद््रतिन्नां धिगिमां तव neo अन्योऽपि जावको नित्यं परनारोसशोदरः |

किमुश्यते पुनरसौ महासस्वशिरोमणिः <८॥ ब्रह्मचयेधना नित्यं शुरवो यस्व साधवः |

कथं कार्यत सोऽब्रह्म गुरुथोलाद्युपासकः ८८

a EE SCO I = ee

(1) बत्रचारमर्ता-।

२९८

योगशास्त्र

खदा गुरुकुलासोनो ध्यानमौनाजितः षदा | आआानतुमभिषतुः वास कथं नाम शक्यते १००॥ वरं फणिफणारव्रग्रहणाय प्रतिखवः।

कदापि पुनस्तस्य गोलोल्ञष्नकर्मणे १॥ WAAAY कथमष्येकवारं तमानय |

तत ऊद्ंमष्ठं सवं करिष्यामि ते च्छलम्‌ ॥२॥ विचिन्त्य चेतसा किञ्िदित्यवोचत पण्डिता | यदयं निखयस्ते तदश्युपायोऽयभेककः पर्वे शुन्धगेहादी कायोत्सगं करोति सः |

तथाख्ितो यदि परमानेतव्योऽन्यथातु न॥४॥

उपायः साधुरेषोऽस्मिन्‌ यतितव्यं लयाऽन्वदहम्‌ | came तात्पयोहेव्यामोमित्यवाच सा ५॥ ततः परं व्यतोतेषु दिवसेषु कियत्खपि | विष्वानन्दक्षवकौसुटोमदहोक्व उपाययौ ॥६॥ अथ रान्नोत्सवोत्से कविधित्सोल्ुकचेतसा | श्रारक्षकाः समादिष्टाः पटहेनेत्यघोषयन्‌ स्वेदय सर्वं लोकेन कौसुदुक्वमो चितुम्‌ |

भव्यो दयानेऽभिगन्तव्यमिति वो राजशासनम्‌ प्रातरेष्यच्चतुमी सधम कर्मक्रियोग्मनाः।

खुत्वा Tena विषादादित्यविन्तयत्‌ AURA प्रातचेत्यवन्दनकमषव |

SAGA CANT राजशासनम्‌ १०

हितीयः प्रकाशः | ३८९

उपायो भवत्वेवं तावदित्यभिचिग्छ सः | समर्प्योपायमं भूमिपतिभेवं व्यजिन्नपत्‌ ११॥ प्रातः wafer युष्मद्रसादाहिदधाम्यहम्‌ | देवार्चादोनि तैनोक्षोऽमुमेने तस्महोपतिः १२॥ famlasts जिनैन्द्राणां भक्तया ज्ञातं विलेपनम्‌ | sat रचयंयेत्यपरिपाच्य।ं चथारसः॥ १२॥ ततः सुटशनो Tray wear पौषधव्रतम्‌। कायोल्र्गेख कस्मिंिश्तख्ो ancaat १६॥ पर्डिताऽप्यभयामूचे कटाचिन्ते मनोरधाः। पूयन्ते परमुश्ानमय त्वमपि मा गमः॥ १५॥ शिरोमे बाधत इति छल्लोत्तरमिलापतेः।

ABT राजन nag हि fawarcear: स्ियः १६ ततो लेष्यमयीं काममूत्ति माच्छाश्च वाससा | याने कलवा पण्डिताऽगाग्रवेष्टं राजवेग्मनि १७ किमेतदिति एच्छडिर्वेतिभिः wafaart तु सा। इत्यूचे पण्डिता भार्डागारिकौ कूटस्म्पदाम्‌ १८ शरोरकारणाहेवो नादयोद्यानं ययौ ततः

पूजां समरादिदेवानां वेश्मन्धेव करिष्यति ee द्यं प्रवेश्यते तस्माव्रतिमा पुष्पधन्वनः | अप्यन्धासां देवतानां प्रवेश्या wer मूततयः २० तदिमां enfaaa avelfa हाःखभाषिता।

सा RAGUSA जगामच॥२१॥

AAAS

सा प्रतीषारमोहाय शषहोताऽपरमूत्तिंका

"हिच्तिख प्रविवेशाहो नारोशां छद्मकौशलम्‌ २२॥ याने सदभेनं न्धस्योत्तरोयेण पिधाय | दाःस्येरबबलिताऽनौयाऽभयायाः पण्डिताऽर्पयत्‌ २२ पावि्विकारा साऽनेकप्रकारं मदनातुरा |

भभया सं्लोभयितुमित्यभाषत तं ततः २४ कन्दर्पो मां दुनोत्येष fae निभितेः we: | कन्दपप्रतिरूप,स्तच्छ्ितोऽसि nce मया २५॥ शरद्य; शरलशायातामात्तौ AAS नाथ ! माम्‌

पर कार्ये महहौयांसो द्कायमपि कुर्वते २६॥ सानोतन्डश्ननाऽसोति कार्यः कोपस्त्वया हि | काये ae यदाषानां ww खलु च्छलम्‌ 4 २७॥ ततः खदभ्नोऽप्यु्ैः परमा Agee: |

देवता प्रतिभेवाख्यात्कायोश्र्गेण निखलः २८॥ प॒नरप्यभयाऽवादोभ्डावद्ावमनोहरम्‌

नाध ! सश्भाषमाणां मां quite: किमुपेच्चसे २८ u व्रतकष्टमिदं YW मा छधासत्वमतः परम्‌

मत्तंप्राप्तणा व्रतफलं विहि dfawarna: २०

1) faferaafataret | (२) WWE -पस्ं faarsfe | (2) दख -त्‌ Franz |

हितोयः प्रकाशः | Bo?

ताम्यन्तीं याचमानां मां ai मानय मानद ! | टेवात्पतितमुत्सद्गः ta ग्टह्वासि किं महि॥३१॥ 'कियदश्यापि सौभाग्यगवेसुच्राटयिष्यसि | इत्यालपन्त्या HE तया पाणौ पाणिना ३२॥ निबिडं मण्डलोभूतपोनोतङ्गस्तनं तया |

भुजाभ्यां पद्चिनोनालख्दुलाभ्यां TAR १३ एवं तदुपसर्गेषु निसर्गेण WITH: |

धरम॑ध्याने निशलोऽभूत्‌ किं चलत्यचसः कचित्‌ २४ दध्यौ चेति qaqa कथञ्िदहमेतया |

पारयामि तदोत्सगंमन्यधाऽनशनं मम ३५ अमानिताऽच घचरटितभ्ुकुटिः कुटिलाशया |

अभया तं भापयितुभित्यभाषत निभया ३६ मुमूर्षा ! मूखं ! माकार्षीमान्याया मेऽवष्माननाम्‌ | afer मानिनौ नृणां मिग्रहारुग्रहल्लमा ३७ ममोभववशाया मे वशमाविश्च रे जड | |

मो चेदामवशं यास्यस्यत्र area संशयः १८ दति संरश्भकाष्टायां साऽऽङ्रोडह यथा यथा | UMAR ACMA AACS तथा तथा १८

(१) w fe qqanfa |

(x) -माननम्‌। Wy -मेव भाश्ताम्‌। (2) WTEUry |

५६

४०२

AANA

एवं कदर्थितो रातिं तया mara सोऽचंलत्‌।

किं भ्यते महाश्मोधिः कापि नौदश्डताडने; vo ततः TH प्रभातं सा खं लिलेख नखैवपुः। कोऽप्यसौ मे बलाल्कारकारोत्युञ्चे ररास ४१॥ ततः प्राहरिकास्ततर संभ्रान्ता यावदागमन्‌ HANA खितं .तावहटशुस्ते FIAT ४२ अस्मिब्रसग्भवत्येतदिति दूतसुपेत्य a: |

विज्ञप्तो भूपतिस्तव्राययौ anes चाभयाम्‌ ४३ सोचे dre टेव ! Atay यावदिह खिता एषोऽकस्मादिदायातो दृष्टस्तावत्पिशाचवत्‌ ४४ एष भेष शवोगश्मन्नो मखधनव्यसनो ततः | रिरंसुमीमयाचिष्ट पापिष्ठवाटुकोटिभिः wu ४५॥ ऊवे मयेष रे मेषोरसतोवत्षतोरपि |

naa fe चणकवन्मरिचानि चवितुम्‌ ४६। ततः परं बलात्कारादेष एवं चकार मे।

मया पूटह्नतमन्धदबलानां बलं नदि ४७ अस्मिव्रिदमसम्भाव्यमिति war महोपतिः। किमेतदिति पप्रच्छ ayia सुदशेनम्‌ ४८॥ पृष्टोऽपि रान्ना कपया किञ्िब्रोचे सुदशनः | परतापोपशान्त्ये हि निषटष्टमपि चन्दनम्‌ ४९ ततः सम्भावयामास दोषं तस्यापि भूपतिः | पारदारिकदस्युनां तृष्णोकलवं हि लक्षणम्‌ ५०

दितौोयः प्रकाश. | ४०३

इत्यादिदेश क्रोधास्षकलेऽप्यत पत्तने | दोषप्रख्यापनां Rar पाप एष निग्टद्मताम्‌ ५१॥ ्रारश्षपुरुषैर्टोशि ्वोत्पाटितस्तः |

वचसा सियो cat मनसेव दिवौकसाम्‌ ५२॥ मर्तो मुखे war Wat रक्तचन्दन | करवोरस्रजा मुण्डे HWS 'कोश्कमालया ५३ खरमारोप्य वि्टतसपभ्च्छत्रः तस्ततः | वाश्यमानेनानकेनारेभे भ्रमयितं पुरे ५४ क्तापराधः शान्ते वध्यतेऽसौ सुदशनः नात्रदोषो कृपस्येति चक्रुराघोषणां ते ५५॥ Ye सवधाऽप्येतन्रेह सश्चवतोहश्म्‌

दति लो कप्रघोषोऽभरूद्‌ हादहारवयुतस्ततः ५६ एवं अ्म्यमाणशोऽगाद्‌ हारदेशे खषेश्मनः। VENA महासत्या मनोरमयाऽपि YO चिन्तयामास सा चैवं सदाचारः पतिर्मम , भूपति प्रियाचारो दुराचारो विधिक्रुवम्‌ ५८॥ इदमप्यसदथवा WANA ASA: |

उपखितं फलमिदं प्राक्लनाशुभकमणशः ५९

(1) कोशिकभालया। (९) favagiwmauade: | fava र्षच्छलयतेखतः। विधतः सपग्डत्चतस्ततः।

योगासन

कोऽपि are प्रतोकारस्तथाप्येष भविष्यति fafaaifa प्रविश्यान्तजिनार्चाः साऽ्षयसतः ६० कायोव्सगगख खित्वा सोचे शासनदेवता; | भगवत्यो मम पत्यु्दोषसभ्भावमाऽपि aw ६१॥ परमखावकस्यास्य Afar चेत्करिष्यध |

aeise पारयिष्यामि कायोत्सगेमिमं खलु + ६२॥ अन्यथेव खिताया मे भवत्वनशनं प्रवम्‌ |

धर्मध्वंसे पतिष्वंसे किं जोवम्ति कुलस्त्रियः ६३ cae न्यधुरारक्ताः शूलिकायां सुदटश्ेनम्‌ | अलद्नोया warat राजान्ना fe भयङ्दा ६४ खर््यालासनतां AHA शूलाऽप्यस्य महामनः |

टेवतानां प्रभावेन aadersta कुण्ठति ayn वधाय तस्य ारक्ेदुढं व्यापारितः शितः | करवालोऽपतत्कण्ड पुष्पमाला सोऽभवत्‌ uae lt awe! चकितेरेत्य विन्नघस्र्मदोपतिः |

saw हस्तिनौ वेगादयययावपिसु दभेनम्‌ ९७ तमालिश्च मद्ोपालोऽनुतापादित्यवोचत |

गष्िब्रहि विनष्टोऽसि दिष्याऽऽकोयप्रभावतः ९८ मया fe तावत्पापेन किं राच्ञाऽसि विनाशितः। नाधः सतामनाधानां धर्मो जागत्ति स्वधा €< Bu मायाप्रधानानां waar निहन्ति a: | ufaamac: पापो नापरो दभिवाहनात्‌ ७०

हितीयः प्रकाशः | ४०५

किंच किञ्िदिदं पापं मवताऽप्यस्ि कारितः। श्रसक्तय्यग्या साधो ! तदा एष्टोऽपि नावदः ७१ एवमालपता रान्ना करिश्यामधिरोप्य सः।

नोत्वा खदर्ये खपित खन्दनेख विकेपितः ७२ | वच्रालद्गारजातच् परिधाप्य सुदशनः |

रान्ना पृष्टो राविहन्तं यथातधमचोकथत्‌ ७३ wa रान्न प्रति क्रो भूपतिर्निग्रहोयतः। ` wena व्याषेधि शिरः प्रक्षिप्य पादयोः ७४ | ‘aa: Bel कृपेषेभमारोप्य पुरमध्यतः | महाविभूत्या atsa नायितो ग्यायतायिना ७५॥ अभयाऽप्येतदाकर्थ्योहिष्यासानं व्यपद्यत परद्रोहकराः पापाः खयमेव पतन्ति fe ७4 पण्डिताऽपि प्रखश्यागात्पाटलोपुवरपत्तनम्‌ | अवसहेवदकलाया गणिकायाश्च सत्रिधौ ७७ | तत्रापि पण्डिता नित्यं तथाऽऽभंसलदभेनम्‌ | दशनेऽस्य यथा देवद त्ताऽभूङ्शसुलका

सुद शमोऽपि संसारविरक्ो व्रतमग्रशोत्‌ |

SUG गुरोः पां रत्रमश्भोनिधेरिव oe तपःलछशाङ्ग एकाद्रःविदहारप्रतिमाख्ितः |

क्रमादिष्रन्‌ प्राप पाटलोपुवपन्तनम्‌ ८०

(1) wey wey

Bog योगशास्त्र

भिता cacers दृष्टः पण्डितिया सः | कथितो देवदत्तायाः सा तया तमजुवत्‌ ८१ भि्लाव्याजान्तयाऽऽतस्तव्रापि सुनियेयौ विमर्शमविधायैव सापायनिरपाययोः + देवदता ततो हारं पिधाय तमनेकधा। fea कदधयामास yard सुनिनेतु॥८२॥ पथ प्मुक्तोऽनया सायसुद्यानं गतवानसौ। तत्रापि दृ्ोऽभयया व्यन्तरोभूतया तया ८४ कदथेयितुमारमे प्राक्मंस्मरणादसौ | ऋणं वेरं जन्तूनां नग्येस्जस्मान्तरेऽपि ८५॥ क्ििश्यमानो बह तया ABTA: FINA: | आरोहत्‌ सपक श्रेणिमपूवेकरणक्रमात्‌ ८६ ततः भगवान्‌ प्राप केवलज्नानमुञ््चलम्‌ | तस्य कैवलमदहिमा AIG सुरासुरेः ८७ उदिधोषु्भवाव्जन्तृन्‌ चक्रे धमदेश्नाम्‌ लोकोदयायाभ्युदयस्ताहगानां हि जायते रुर तस्य देशनया तव्रावुदयन्तान्ये केवलम्‌ देवदन्ता पण्डिता व्यन्तरो TATA ८९ सरीसत्रिधावपि तदेवमदूषितामा HAF प्रबोध्य एभदेशनया क्रभेण |

------~------ ---~- ~= ~~न ~~ - a ~ ~~~ erm ~~~ eo RES a ES SE OD a आनी जक =-= 9

(१) SW BHAA साय-। BWI सोऽय-।

दितोयः प्रकाशः | yoo स्थानं सुदशनमुनिः परमं प्रपेदे जेनेन्द्रशासनलजुषां हि तद्टरापम्‌ १९० इति सुदशनक्छषिकधानकम्‌ १०१॥ धर्म्ये कमेणि पुरुषा एवाधिक्रियन्ते किन्तु सोणामप्यधि-

कारथतुवणें WF तासामप्यङ्गभूतत्वात्‌ ततः पुरुषस्य परदार- प्रतिषेधवत्‌ aint परपुरुषगमनं प्रतिषेधयति-

पेश्व्यराजराजोऽपि रूपमीनध्वजोऽपि सौतया Wad इव त्याज्यो नार्यां नरः UT १०२॥

एेखयेण विभवेन, राजराजो धनदः शव राजराजः, आस्तामितरः। Stu सौन्दर्येण, मोनध्वजोऽपि सखरोऽपि, भरास्तामन्यः। त्याज्यः परिरणोयः, arat स्तिया, परः स्वपतेरन्यो, नरः पुरुषः, इव कया, Maat रावण wl सोताचरितमुक्तमेव १०२॥

स्न पुंसयोईयोरपि waaay फलमाह- नपुंसकत्वं तिर्यक्त्वं दौर्भाग्यं भवै भवे WATT सौ णां ATA ATTA ATA ॥१०३॥

मपुंसकलवं weed, तियं क्त्वं fertana:, दौभाम्यमनादेयता, भवे भवै जग्मनि जन्मनि, भवेत्‌ जायेत, नराणां wet च। अन्यकान्तासक्ञवेतसामिनि। fat दयोवि्ेषण्म्‌। यदा

You योगशाख्छे

पुरुषाणां तदा अन्यस्य कान्ता भायी भन्यकान्ता aerawea- साम्‌। यदातु स्नोणां तदा way, पल्युरपरः चासौ कान्त कामयिता तत्रासक्कचेतसाम्‌ १०२

भव्रह्मनिन्दां Aa ब्रह्मचयं स्ये डहिकं गुणमाह

प्राणभूतं चरित्रस्य परब्रह्म ककारणम्‌ | समाचरन्‌ ब्रह्मचयें पूजितेरपि पश्यते १०४

प्राणभूतं जोवितभूत॑, «faa देशणवारि्रस्य सव चारि्रस्य च, परब्रह्मणो मोक्षस्य, एकमहितोयं, कारणं समाचरन्‌ पालयन्‌, ब्रह्मचयै जितैद्दियस्योपखनिरोधलक्षणं पूजितेरपि सुरासुरमनु- He: केवलमन्येः Yous, मनोवाक्ञायोपचारपूजाभिः १०४॥

ब्रह्मचयस्य पारलौकिकं गुणमाषह-

चिरायुषः FATA टटसंहनना नराः | Mafra महावौया भवैयुत्रह्मचर्यतः १०५

चिरायुषो दौघयुषोऽनुत्तरसरादिषुत्पादात्‌, भोभनं wart समचतुरखरलक्षणं येषां ते सुसंखानाः wae eae, ee qua संहननम खिसश्यरूपं वचक्षभनाराचाख्यं येषां ते हठढसंहननाः, एतच्च मनुजभकेषुत्पय्यमानानां देवेषु संहननाभावात्‌, तेजः शरोरकान्तिः प्रभावो वा frat येषां ते वैजखिनः, महावौर्या बलवत्तमाः तोधंकरचक्रवच्यादित्वनोत्पादात्‌, भकवेयु- जायेरन्‌, AWAIT ब्रह्मचयौनुभावात्‌

हितोयः प्रकाशः |

} wrareitan:—

पश्यत्ति nugiat कबरोमेव योषिताम्‌ | तदभिष्वङ्गजश्मानं दुष्कमेपरम्प्रराम्‌ सोमन्तिनोनां daa: पूर्णः सिन्दूररेशना | पन्या: सोमन्तकाख्यस्य ALMA AMAT # aqawet वधिनोनां वणेयन्ति -जानते areata प्रखितानां पुरोगाभ्ुरगोभिमाम्‌ १२॥ भङ्करान्रयनापाङ्गगमङ्गनानां निरोचते इतवुिन तु निजं भङ्गरं हन्त जोषितम्‌ mad प्रशंसन्ति Mut सरलमुक्रतम्‌ | निजवंशं a पश्यन्ति भ्रण्यन्तममुरागिणः ५५ Bai कपोले संक्रान्तमातानं वो ष्यति `. संसारसरसोपद्वे aera वेति नो लडः & पिबन्ति रतिसवेखबुया विम्बाधरं स्रियाः बुध्यन्ते ajar: पिबत्यायुदिं कानिशम्‌ # योषितां दश्यनान्‌ कुन्दसोदरान्‌ ay मन्धते | सखदन्तभङ्गः ATM तरसा जरसा छतम्‌ स्मरदोलाधिया कणेपाथान्‌ पश्यति योषिताम्‌ | कर्टोपकण्ठलुटठितान्‌ कालपाशांसु नालनः योषितां प्रोभितमतिसुखं पण्यत्यनु्चणम्‌ | सणोऽपि इन्त AAA कतान्तमुखवोस्षणे १० ५२

४०८

४१०

AVANT

नरः स्मरपराधोनः सरोकणठमवलम्बते |

Aaa वेद्यसूनद्य श्लो वा कर्ठावलस्बिनः ११४ सोणा भुजलताबन्धं बन्धुरं {era कुधोः |

कार्मबन्धमेवे्मामानमनुशोचति १२॥

धत्ते स्रोपाणिभिः wer wet रोमाञ्च कण्टकान्‌ | स्मारयन्ति a किं तेऽस्य कुटशाख्मलिकर्टकान्‌ १२१ agar समालिङ्गय fea: ओते सुखं जडः | विश्मृता नुनमेतस्व कुर्भोपाकोद्वा व्यथा १४ मध्यमध्यासते मुग्धा FRTST चशे ae uaa भवाश्मोभैरिति नैते, fafa १५॥ fangarat जिवलोतरङ्गेङ्कियते भजन | तिवलौोद्यना aay वैतरणी तयम्‌ १६ सरा मव्जति मनः पुंसां स्नोनाभिवापिषु | प्रमादेनापि fat नेदं साम्याभसि qerae १७ सखमरारोदणनिः rat स्नोखां रोमलतां विदुः

` नराः संसारकारायां प॒नर्लोग्रह्लाम्‌ १८

अघन्धा जघनं स्नोणां भजन्ति विपुलं सुदा संसारसिन्धोः पुलिनमिति नुनं जानते १८ भजते करभोरूणामूरूनस्पम तिनेरः | अनृरत्रियमाणं तेः सदत SA ARIS I Ro

em me =, 09 ~ नक

(१) नरो-। (३) खख मनः| (६) we, मेवं |

हितोयः प्रक्षाः Be

Miu wesaaaarara बह मन्यते | Want a A जानाति चेप्यमाशमधोगती re a. दथेनात्‌ MAT RESTS या इन्ति शमजोवितम्‌ , शेयोग्र विषनागोव वनिता सा विषैकिभिः॥ २२॥ इन्दुलेखेव कुटिला सब््येव लणरागिणो |

faatta निख्रगतिर्वजनोया नितस्विनो' २१॥

प्रतिष्ठां सौजन्धं दानं नच गौरम्‌

मच arafed वामाः पश्यन्ति मदनागन्लाः २४ facent at नारौ तत्करोत्यसमश्सम्‌

aeqer: सिंह्ादूलब्याला भपि कुवते २५ दूरतस्ताः परित्याज्याः प्रादुर्भावितदुमदाः विश्वोपतापकारिश्यः करिश्य va योषितः wre कोऽपि स्मयेतां मन्तः देवः कोऽप्युपांख्यताम्‌ |

येन स्ोपिशाचोयं ग्रसते शोलजोवितम्‌ २७ शास्त्रेषु गूयते यच्च यश्च लोकेषु Maa |

संवादयन्ति दुःणोखं तन्राओः कामविष्ठलाः २८ संपिण्डयवा हदं ्राग्नियम fanny | जगस्जिघांसुना नायः WAT: MTT वेधसा २९ + यदि शिरा uafeafasfer यदि वायवः | देवात्तधापि नारोणां eat Wiad मनः १०

~व

१) निरनरम्‌। (श) WE Trae: |

AANA

afeat मन्वतन्ाद्ैवच्यन्ते चतुरा भपि। इन्द्रजालमिदं हन्त नारोभिः शिचितं कुतः २१ अपूवा वाममेजाण्णां मपषावादेषु Seat | प्रत्वक्ताश्यप्यक्षत्यानि TTI AA ३२॥ Talat यथा लोष्टं सुज मन्यते जनः |

तथा laws दुःखं सुखं मोषटान्धमानसः 22 जट मुण्डो शिखो मौनी नम्नो वर्को ATES | ब्रद्माऽप्यब्रह्मणौलसेत्तदा AW रोचते ३४॥ RSI कच्छरः HS यथा दुःखं सुखौयति |

दुवारमश्रथाषेशविवभो नैथुमं तथा २५

नार्यो येरुपमोयन्ते काञ्चनप्रतिमादिभिः | भालिञ्यालिष्य area किसु कामो ठप्यति।॥ ag यदेवाङ्गः कुखनोयं गोपनोयं योषिताम्‌

aaa fe जनो रज्येत्‌ केनान्येन विरज्यताम्‌ २७ मोहाद नारोषामङ्गं मांसास्िनिमितेः।

चन्दरन्दो वरकुन्दादि weet दूषितम्‌ २८ नारं नितम्बजघनस्तनभूरिभारा-

मारोपयन्त्युरसि ब्बूढधियो रताय | संसारवारिनिधिमध्यनिमलव्ननाय

लानन्ति तां नहि शिलां मिजकगठबचाम्‌ ३९ भवोदन्वदेलां मदनरगयुव्याधडरिणों मदावस्थाहालां विषयरूगदष्णामरभुवम्‌ |

हितोयः प्रकाशः | ४१९

महा मोहष्वान्तोच्चयवहुलपनलान्तरजनोम्‌ विपत्खानि मारीं परिहरत @ ाहसुधियः | ॥४६०।॥१०५॥ संप्रति मूर्व्शफलमुपदथेयंस्तब्रियन्तशारूपं पञ्चमम णुव्रतमाहइ-

भसन्तोषमविश्वासमारम्भं दुःखकारणम्‌ | मत्वा Twine कुर्यात्परि यहनियन्तखम्‌ १०६॥

द्ःखकारणभित्यसन्तोषादिभिस्तिभिः प्रत्येकमभिसंबध्यते | श्रसन्तोषादोनि दुःखकारणानि मूर्छया mea फलत्वेन विज्ञाय मू च्छहेतोः परिग्रहस्य नियन्तणं मेयत्यमुपासकः कुयीदिति योगः | तत्रासन्तोषस्तुष्यभावः, दुःखकारणम्‌ | मूच्छावाम्‌ fe बडुभिरपि धनेन संतुष्यति, उत्तरोत्तरा्ाकद्ितो दुःख्खभेवानु- भवति परसंपदुतकर्षश्च होनसंपदमसन्तुष्टं दुःखाकरोति | यदाह- भ्रसन्तोषवतां पुंसामपमानः पदे पदे | सन्तोषेश्वयसुखिनां दूरे दुजेनभूमयः # अविष्वासः खखपि दुःखकारणम्‌, श्रविष्डस्तो हश्डनोये- भ्योऽपि neat: खधनस्य cat wan कचिदिष्ठसिति | यदाह ‘sagur aus निशाद cfd a gus दिभ्राविभ्र ससंको। लिंपड ste सययं सं दियपडिलंद्िथं कुणद्‌ १॥

Cee OO ए. 7. 1

(१) खेखनति खनति fayian cif खपिति इ्त्राऽपि wang: | favafa श्थापबति सततं aifeqanfaerfsad करोति !१॥

४१४ योगशास्त्र

मूच््शपरिगतखारण्धं प्राशातिपातादिकं प्रतिपद्यते

तथाहि-

तनयः पितरं पिता तनयं राता wat हिनस्ति, ग्टहोातलख्क्च कूटसासित्वदायो aad भाषते, बलप्रकर्षात्पधिक. जनं मुणाति, खनति ara, zaifa विन्दं, घनलोभात्‌ परदार. नभिगच्छति, तथा सेवाक्तषिपाश्पाल्यवाशख्िज्यादि करोति। मखमणवणिगिव नद्यादिषु प्रविश्य काष्टान्याकषति। नमु दुःखकारणं qetnd sat परिग्रहनियन्वणं कुर्यादिति ad वाचो Afar: | उक्रमव मूच्छ कारणत्वात्‌ परिग्रोऽपि zur ; अथवा “मूर्छा परिग्रहः” इति सूत्रकारव चनात्‌ मूष्छेव परिग्रह इति निश्चयनयमतेनोश्यते, मूच््छामन्तरेख धनधान्धादेरपरि- श्रहत्वात्‌ | यदाद --

परिग्रह एव भवेदस््ाभरणायलहृष्तोऽपि पुमान्‌ | ममकारविरहितः "सति ममकारे 'सङ्गवात्रम्नः १॥

त्या-

ग्रामं IY विशन्‌ कमं नोकमे चाददानोऽपि। भप रिग्रहोऽममत्वोऽपरिग्रहो नान्धधा कचित्‌ ue

(१?) शच रन्‌) (२) GHIA? F: |

हितीयः प्रकाशः | ४१५ तधा-

"जं पि वयं पायं वा कबलं पायपु्णं |

तं पि संजमलस्हा घारति परिषडरंतिष्।॥१॥ "नसो परिग्गष्ो sat नायपुष्सेख Area | gear परिग्गहो वुको इद्‌ वुत्तं महेसिणा २॥

इति सवैमवदातम्‌ १०६

प्रकारान्तरेख परि ग्रडनियन्वशमाद-

परिग्रहमरच्वाचि मव्ञलेव भवाम्बुधौ | महापोत Fa प्राणौ ल्यजेत्तस्मात्‌ परिग्रहम्‌ ॥१०७॥

परिश्द्मत दति परिग्रो घनधान्यादिस्तस्य awe निरवधित्वं AMA: amas, श्रवश्यमेव wafa, प्राणौ शरोरो, भवै संसारे, Law, WAM समुद्रे महापोत इव महायानपात्रमिव, ` यथा भिरवधिघनधान्धादिभाराक्रान्तः पोतः समुद्रे मति, तधेवापरिमितपरिग्रहः प्राणो मरकादी निमस्नति |

यदाइः--

(१) वपि et at ora at कम्बलं वा पादपरोष्छनम्‌ | तदपि शंयमलस्जाये' धारबन्ति परिशञ्चतेब॥!॥ (श) मश परिपद्‌ om सातषुमेख ताचिना। wat uftay om: इक्क मङ्षिंखा॥२॥

४१६ ANTS

'महारंभय।ए मह परिम्गहयाप afaaerte पं चिंदियवहेखं खोवा नरयाठयं wosfa

तथा बह्वारग्नपरिग्रत्वं नारकस्यायुष इति यस्मादेवं तस्माच्यभेवियन्येत्‌ परिग्रष्ं धनधान्धादिषूपं मूशरूपं वा॥ Qo

सामान्येन afcarwerarary

बसरगुसमोऽप्यत्र गुणः कोऽपि विद्ते | दोषास्तु पर्वतस्थुलाः प्रादुषूषन्ति परिग्रहे ॥१०८॥

जसरेणवो ग्टहलालाग्त;प्रविष्टसूयकिरणोपलच्याः सद्या द्रव्यविश्ेवाश्तत्छमोऽपि तम्ममाणोऽपि va परिग्रहे कखन गुखोऽस्ति, महि परिग्रडवलादासुभिकः पुरुषाधः सिद्धति ay भोगोपभोगादिः गुणः प्रत्युत गदेहेतुत्वाहोष एव योऽपि जिनभवनविधानादिलक्खः परिग्रहस्य गुणः शास्त्रे aa ag गुखः, किं तु परिग्रहस्य सदुपयोगव्यावंनं तु तदथभेव परिग्रहधारणं खेयः

यदाश्ः- wad यस्व विन्ता तस्यानोष्ा गरोयसौ |

प्र्ालनादि wpa दृरादस्पमशंने वरम्‌

(१) मडङ्ारम्भतवा ayufcayaar कुख्िमाारेष्य पञ्ेन्द्रियवघेन ater ACHE MAS fat |

दितोयः प्रकाशः | ४१७ सधा-

"कांचणमशिसोवाणं धंभसशस्सोसियं सुवख्तत्तं | जो कारिच्छ fawedt तभ्रोवि तवसंजमो “fests tet व्यतिरेकमाह - दोषासु, दोषाः पुनः पवेतस्यला अतिमहान्तो वच्यमाणाः परिग्रहे सति प्रादष्‌षन्ति प्रादुभंव न्ति १०८

Sarg पवतस्यृला इति यदुक्तं तत्‌ प्रपञ्चयति-

सङ्गाहवन्ल्यसन्तोऽपि रागदेषादयो दिषः सुनेरपि चलेच्च॑तो यत्तेनान्दोलितात्मनः ॥१०९॥

सङ्गात्परिग्रहाद्ेतोभवन्ति प्रादुर्भवन्ति श्रसन्तोऽपि उदया- वस्यामप्राप्ता अपि रागहेषप्रथतयः शत्रवः सङ्गवतो fe afa- बन्धनो रागः प्रादुभेवति। aynfaafag देषः, एवं मोड- भयादयो वधवन्धादयो नरकपातादयख द्रव्याः तदिदं प्वेव- Baa दोषाणाम्‌ | कथमसन्तोऽपि रागादयो भवन्तोति, उच्यत,

ee eee

(1) wigrafqdtadt सान्भसहरसोक्छरितं छववंतशम्‌ | यः wicafanazy ततोऽपि तपःशंयमोऽधिकः॥ 1

(२) कड दढ awager |

* ddQuqufcem तु- कंचचलखिशोवाच्ते यम्भस हस्धूसिए छवच्रतरे। शो aicaan faqye asia तवसंलमो meager fa a UF पाटो Twa | 42

४१८ योगशाख्े

यत्‌ यस्माश्ुनेरपि ब्रास्तामन्धस्य चलेत्‌ प्रशमावस्थायाशयवेत्‌ चेतो मनः तेन aga भरान्दोलितामन भखिरोक्ततावमनः। मुनिरपि fe सङ्गानङ्गोङ्वेश॒नित्वाद्‌ श्यत्येव

यदाह- ‘eur iat वसशं भायासकिलेसभयविवागो 7

मरणं घम्प्रबभ॑सो WX WATT Tas १॥ ^"दोससयमूलजालं पुव्वरिसिविवल्नियं ak aa wai वसि wae कोस face तवं चरसि वदहबंधण मारण्यसेषणाभो ara afore यि | तं जद परिम्गो faa जश्धश्मो तो wy पवंचो ॥३॥ १०८

सामान्येन परिग्रहस्य टोषानभिधाय wads खावकधमेणाभिसंवन्ाति-

संसारमृलमारम्भास्तेषां हेतुः परिग्रहः | तस्प्रादुपासकः कुर्यादल्पमल्यं परिग्रहम्‌ ॥११०॥

WAT: प्राख्युपमददयस्ते संसारस्य मूलम्‌ ; एतदविवाद-

~ ~ ~ ~

(1) Set भेदो व्यसनं आयासक्लेशभवविपाकाच।

qcw waa अरतिरर्यात्‌ सर्वांखि॥ !॥ दोषश्तमुज्जालं पूधिविवजितं यदि वान्तम्‌ |

we वहसि wae weiface तपश्चरसि २॥ वघबन्धनमारखसेधनाः काः परिहन सन्ति।

ag यदि ufcay एव यतिधभेखतो नह प्रपञ्चः॥१॥

अकि

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हितोयः प्रकाशः 1 ४१९

fad, ततः fat तैषामारण्भाणां हेतुः कारणं, परिग्रहः, यत एवं तस्म्ादुपासकः साधुपासकः परिग्रहं धनधान्धादिकमस्पमख्पं नियतपरिमाणं कुर्यात्‌ ११०

पुमरपि सिंहावलोकितेन परिग्रडदोषानाह-

मुष्णन्ति विषयास्तेनाददहति स्मरपावकः | रुन्धन्ति वनिताव्याधाः सङ्गेरङ्गीक्रतं नरम्‌॥१११॥

aguaurafecafeaftagcpiad वोक्तं यथा ay- ufcad कान्तारगतं पुरुषं चोरा सुष्थन्ति तथा संसारक्तान्तारगतं विषयाः शब्दादयः संयमसवखापहारेण मुष्णन्ति निनो कुर्वन्ति | यथा वा बहुपरिग्रहं aang ait दवाम्निदंडति तथा संसारकाम्तारगतं मस्मधाग्निचिन्तादिना दशप्रकारेण विकारेण दइत्युपतापयति। यथा वा बहुपरिग्रहं कान्तारगतं व्याधा लुम्का धनशरोरलोभेन qf पलाथितुमपि ददति, तथा भव. कान्तारगते वनिताः कामिन्यो धनाधिन्यः शरोरभोगार्धिन्यख सखवातन्ताठन्तिनिषिधेन qafa ्रपिच। वद्ुनापि परिग्रहेण argraat दत्तिः सश्चवतिं अपि त्वसम्तोष एव वरते | ART: 'gaqqua पष्वया wa सिश्रा केलाससमा भ्रपङ्कया |

[णी

ee ता मा + en nee [न्धि be ` 1

(१) पवर्शद्प्यस्य पवता ad ee: खलु Reena अनङ्गजः

४२० योगशास््े

lava awat तेहि किंचि इच्छा | भ्रागाससमा wafaar ui g il ‘goat सालो जवा ay feca पसुभिस्सद | ufegay नालभेगस् Su fret तवं चरे ॥२॥ कवयोऽप्याषहः- aur खनिरगाधेयं दुष्युरा केन पूयेत या afacta fea: पूरणेरव खन्यते १॥ तंधा- "तणा wdfew faa fae? wea वि लहिजण | सेलंपि qarafeara fai nazwa ved १॥ १११॥ एतदेवाह -- `

ठप्तो पुवेः सगरः, कुचिकर्णो गोधनेः | धान्येसिलकशरेष्ठी, नन्दः कनकोत्करे; ॥११२॥

सगरो हितोय बक्रवर्ती, ष्टिसषसरसंख्यैः ga: सन्तुटस्तृप्ो- भवत्‌ | कुचिकर्ण नाम कचित्‌ बहुभिरपि गोधनेने ae:

(1) wee quae तेः किञ्चित्‌ इच्छा we व्याकाथसमा खमन्तिका atu (र) थ्वी area यवा एव fycad पशुभिः Ty | nfagw नालमेश्खय दति विदित्वा तपञचरेत्‌ ॥२॥ (9) णा खखख्ड़िता एव विभवान्‌ खल्युधतान्‌ «fa ware | चेलभपि माद्य किंवा गगनख areca tn

हितीयः प्रकाशः | ४२१

तिलको नाम यष्टी UTAH: वा नन्दकृपतिः कनकरा-

fafitara: | ततोऽसन्तोषहैतुरेव परिग्रहः |

सम्प्रदायगम्याच्च सगरादयः।

चायम्‌-

श्रासोत्पुर्यामयोध्यायां जितशतुमेहोपतिः | युवराजः सुमितोऽभू दूभाववनिमावतुः १॥ जितशवरोरभू सुनुरजितखा मितौ घलत्‌ | सगरथक्रवर्ती सुमित्रस्य महाभुजः WV A जितशतुसुमित्रौ ad Equa:

राजाऽभूदजितखामौ सगरो FACTS पुनः ZI प्रवव्राजाजितखामो गते काले कियत्यपि | रालाऽमूत्गरथक्रवर्तों ऋषमसनुवत्‌

अध afvawarfy afat तस्य सूनवः | खेदच्छ्िदः संचितानां शाखा va महातरोः॥ ५॥ ज्येष्ठो AE: कुमारोऽभ्रूत्तेषां सगरजन्मनाम्‌ | तनेकदा तोषितोऽदाहेवतेव पिता वरम्‌ a BANGS दश्डादिरबः सडह सबान्धवः |

avt विचरितं वाञ्कामोति जद्करयाचत ager सगरेणापि विखष्टः warns: | जङ्गहतसहस्रां शः सहसेन्डतमण्डलेः WAT महत्या भक्तया चाहञचेत्यानि ae पदे सोऽ्चयन्‌ विचरनूरवी' ययावष्टापदं क्रमात्‌ <

BRR

AANA

तमष्टयोजनोच्छायं चतुर्योजनविस्त॒तम्‌ रोहत सोदे जैङ्कमिंतपरिष्छदः + १० त्रैकयोजनायाममर्ैयोजनविस्तृतम्‌ fanned चेत्यं चतुरं fata सः ११५ बिम्बानि खसं स्थामलमानवणौनि aa सः | UAT AL यथावत्पयं पूजयत्‌ १२ ववन्दे UAT AMAA ञ्च पावनान्‌ | किच्िहिचिन्त्य खदालुसचरेवसुवाच १२॥ अरष्टापदसमं सथानं aa aifa a fread कारयामो वयं ga चैत्यभेतदिवापरम्‌ १४॥ amish भरतं भुङ्क्ते भरत खक्रवत्य्ो

गेले भरतषारेऽसिं सेत्यव्याजादवस्ितः # १५॥ एतदेव wa चत्यमस्माभिशेहिधोयते | भविष्यत्पार्थिषैरस्य लुष्यमानस्य र्षणम्‌ १९ ततः सुरषषहस््राधिहितमादाय पाणिना |

Tw भ्रामयामास परितोऽष्टापदाचलम्‌ १७ TA योजनसद्सखरं दोण कूाण्डवक्मष्ो |

भ्नाम्यता तेन भिव्रानि नागानां भुवनानि १८॥ ata: शरणं RT VATA ज्वलनप्रभः |

च्नात्वाऽवधिनोपैत्य ag fereraraiy क्रुधा १९ भरनन्तजन्तुनिघातकारणं किम कारणम्‌ | भवद्विर्भिंदै aaelad भूमिदारणम्‌ २०

हितोयः प्रकाशः |

भजितखाभिभ्राटब्येः ga: सगरचक्रिणः | किभेतत्क्रियते पापमरे रे! कुलपांसनाः! ॥२१॥ ABSY मयाऽतरेत्य चैत्यं AAT: कतम्‌ | युमद्गवमनभङ्गोऽभूदयदन्नानात्त TATA २२॥ अन्नानक्षतमागोऽदः सोढंते मा कथाः YA | शत्यदोयं निजं धाम जगाम FATA: २२ सागुजोऽचिन्तयव्लङ्कः aaa परिखा परम्‌ | परिपूरिते पांशपूरेः कालेन गच्छता २४॥ . ततः HET ewer गङ्गम्‌ ततासिपञ्गशम्‌ | उपटूतानि तत्तोयैः प॒नर्वेशमानि भोगिनाम्‌ २५॥ MRA समं नागकुमा रेज्यलनप्रभः

तान्‌ दृष्टा भस्मसाश्चक्र दवानल इव FAT ॥२६॥ धिण्धिम्नः खामिनः get: कोवानाभिव पश्डताम्‌ | छिधेत्ययोध्यासविषै aqua सेनिकाः २७ खं सुखं दशयिष्वामो वश्यामोऽदः कथं प्रभोः |

दति मन्यतां Rat कोऽप्येत्येत्यवदद्‌ fest: २८ कथयिष्याम्यदो um aa मोषो भविष्यति। उश्नरिष्यत्यवद्यं वो मा भूत AAA AF wre La तकं कञ्चिदादायानाथमभ्यगात्‌ | राजदहारे BATU श्व BAIA: ti Qo ki रान्नाऽप्रच्छि ततोऽवादोदयभेकः स॒तो aa |

दष्टः सर्पेण निशेष्टस्तहेवो जो वयस्वसुम्‌ २१

BRR

४२४

——__. _

योगशास्त्र

अधादिष्टेनरेन्द्रेण नरेन्दरेमन् कौशलम्‌ |

निज प्रयुक्षं तत्राभूत्तद्स्मनिहतोपमम्‌ ३२ खतो जोवयितुं शक्यो नायं तावद्िजोऽप्ययम्‌ | कथंतु च्छान्द्सो बोध्य श्त्यालोच्योचिरेऽथते॥ 22 Wi यस्मिन्‌ षेश्मनि नो कोऽपि खतः पूवे ततोऽघुना | खशमानोयतां TM जोवयामस्तया AAA ३४ ततो हाख्ैनुपादेशात्पुयेां ग्रामेषु चेक्ितम्‌

ze a दृष्टं afafaqal aw कञ्चन २५॥ Tress मदोयेऽपि कुले कुलकरा कताः भगवाद्षभखामो भरतचक्रवल्येपि ३९

राजा argafa: quant: सोमयगा भपि। अन्येऽप्यनेक्षशः केऽपि शिवं केऽपि दिवं ययुः॥ ३७ जितशत्रुः शिवं प्राप ufaafafed ततः | सवेसाधारणं a खसूनोः Twa किम्‌ ३८ विप्रोऽप्युचे सत्यभेतत्तथाऽप्येको डि भे स॒तः | Taal दोनानाधत्राणं सतां व्रतम्‌ २९ ware चक्रवर््येवं डो ब्राह्मण ! मा AW: | शरणं मरणात हि भववेराग्यभावना ४० व्याजहार हिजोऽप्येवं यद्येवं ary बुद्यसे |

महश | मा qe: ष्टिसषस्रसुतखनत्युना ४१ ततः यावद्मुपो हा किभेतदित्यचिन्तयत्‌ तावससंकैतिताः सन्धा; सवमाख्यवुपेत्य ते ४२॥

feala: प्रकाशः।

उदन्तेन ततस्तेन TATA मूच्छितः |

पपात मूपतिभभूमौ पवतः पविनेव सः ४२ लब्संन्नस्ततो राजा रूदित्वा जनवत्क्षणम्‌ | भेजे संसारवराग्यं चिन्तयामास चेत्यसौ ४४ waa मण्डयिष्यन्ति प्रोणयिष्यन्ति मां सुताः |

saa धिग्ममासारं संसारं जानतोऽप्यभूत्‌ ४५

feafaaqt: पञ्चषेवीऽन्येषां भवेत्कथम्‌ | पैस्तुिरियन्मातरेरपि यन्ते बभूव ४६९ afi कथममो कु स्तावन्तोऽपि ममामजाः ईटग्गतिमकाण्डेऽयुरठप्ताः प्राणितस्य ते ४७

इटं विचिन्त्याघ भुतेरढसिकः

तत्तये ATA भगोरथम्‌ |

राज्ये निवेश्याजितनाथसन्निधौ

प्रव्रज्य वव्राज तदक्षयं पटम्‌ ४८

इति सगरचक्रिकथधानकम्‌

ग्रामः सुघोषो AWAIT मगधनोहतः | कुचिकणशाभिधानथ ग्रामणोस्तत्र fara: १॥ गवां शतसहस्राणि तस्य संजञ्चिरे क्रमात्‌ बिन्दुना बिन्दुना इन्त ज्ियते हि सरोवरम्‌ २॥ गोपालानां पाल्लनाय सोाऽपयामास गास्ततः |

भव्या AA A A भव्या इत्य युध्यन्त ते बहिः॥२॥ ५.४

४२१

४२९ योगशास्त्र

कुचिकर्णो विभज्येता भ्रापंयत्‌ कस्यचित्‌ सिताः | aU: कस्यापि कस्यापि रक्ताः Tare कस्यचित्‌ ४४ Wag प्रथगर पथेषु गोकुलानि न्यभेगयत्‌ | yarn दधिपयसो Waray क्रमात्‌ ५॥ अन्वहं वदयामास NS गोष्टे गोधनम्‌ | want दधिपयसोः सुराया इव TAS तस्याभवदथाजोणं मध AE सरद्रसम्‌ | प्रदोपनान्तःपतितस्येव Stel महानभूत्‌

हा Gaal हा नवतणंकाख

हा शाक्षरावः कदाच AAT |

गोधनेरेवमदढक्त एव

खत्वाऽथ तियेग्बतिमाससाद

बति कुचिकणेकथानकम्‌

ग्रेष्टयासोत्तिलको नाम पुरेऽचलपुरे पुरा |

भसौ पुरेषु ग्रामेषु चाकरोषान्यसंग्रहम्‌ माषसुदतिलब्रोहिगोधुमचणकादिकम्‌

eat सार्दिंकया धान्यं काले सादं सोऽग्रष्ौत्‌ WR a urdu) घनेर्धान्यं धान्धं जोवधनेरपि

उपाव बाग्रटोदान्यं ध्यायन्‌ धान्धं AWAIT दुर्भि ्तकाले धान्येभ्यः प्रत्यपान्तेम॑हाधनैः |

बभार परितो धान्धेरिवासौ धान्यकोष्ठकान्‌

हितोयः प्रकाशः BRO

पमः सुभि धान्धं क्रोतवा क्रीत्वा BAAR | लब्धाखादः पुमान्‌ ay aarafa मुखखति॥५॥ कोटकोटिवधं नषोऽजोगणत्‌ कणसंग्ररे | West पच्चेन्दरियाणामप्यतिभारधिरोपणशात्‌ नैमित्तः कोऽपि तस्याख्यह्वा विदुभिश्मेषमः VIASAT सोऽक्रोणात्कणान्‌ पुनरढपिकः ठडयाऽपि द्रव्यमाल्लष्याग्रहोदान्यमनेका | wana wesawiy किंन कुर्वीत लोभवान्‌ ८१ असौ जगदभिवस्य मित्रस्येवोखमनास्ततः। दर्भिचच्येष्यतो मार्ममो्ाशचक्रे दिने दिने॥ < \ अथ वर्ष प्रवेशेऽपि ववर्षपेत्य सवतः | धारासारेघेनस्तस्य इदयं दारयन्निव १० गोधूमसुदकलमाखचका मकुटा माषास्िलास्तदपरेऽपि कणा विनश्य 1 यास्यन्ति संप्रति रेति तेरो इत्स्फोटजातमरणा'त्ररकं WAS ee a इति faaaafeqarraz प्राच्यां महन्द्रनगयोप्रतिषिम्बमिवोच्चकोः आख्यया पाटलोपुव्रमित्यस्ति प्रवरं पुरम्‌ ९१ असोत्तव्ातिसुवामा शत्रुवगवितस्‌व्रथे त्रिखण्डवसुधाभधोभो नन्दो नाम नरेश्ठरः

मी

(१) SWS -मरखो।

BAG

योगशास्त्र

सोऽकराणां करं चक्रे सकराणां महाकरम्‌। मष्टाकराणामपि fafaam करान्सरम्‌ ३॥ यं कञ्चिदहोषसुत्पादय धनिभ्यो धनमग्रहोत्‌।

छलं वति भ्रूुपानां इलं नेति ad वदन्‌ ४॥ सर्वोपायेन लोकानिष्कपः उपाददे भपामख्धिनृपोऽर्थानां are नान्य इति ब्रुवन्‌ + ५१ तथाऽ सोऽग्रशोञ्चोकाज्ञोकोऽभूब्रिधनो यधा | भ्ूमावृशौयुचो्ीयां खलु प्राप्यते ढणम्‌ शिरख्यनाणकाऽऽख्याऽपि तेन लोकेषु नाथिता | WSU व्यवद्टारोऽपि चमं्णो नाणकस्तदा + पाष्ठख्डिनोऽपि वेश्या भप्यसावधंमदण्डयत्‌ | इतार्शनः ware नहि fafefequfa ोवोरमोक्तादेकोन विंगत्यब्द रतेषु यः

खाग्रषु भावो किं सोऽयं कल्कोति जनवागभूत्‌ WAIN पश्यतोऽप्यस्य भूमिभाजनभोजनः | जनो ददौ गतभयो, भयं भवति भाजने १० AW: पवतांचक्रे पूरयामास चावटान्‌ | भार्ागाराणि agit पूशंकामस्तु नाभवत्‌ ११॥ भाकण्यं तत्तथाऽयोध्यानाथेनाथ हितेषिणा

तं प्रबोधयितुं वाग्मो दूतः प्रेषित भ्रागमत्‌ १२॥ सवतोऽप्यादतग्रोकं निःयोकं तं तथापि हि

दूतो भूपमथापश्यब्रत्वा चोपाविशत्ुरः १२॥

हितोयः प्रकाशः। BRE

सोऽनुन्नातो zane yar मत्खा्िवाचिकम्‌। कोपितव्यंन देवेन हिताखाटुभाषिणः॥ १४॥ भवणेवादो SAT यः परम्परया श्रुतः |

प्रत्यच्षौक्ततो wer निमूला जनजुतिः १५ अरन्यायतोऽ्धलेशोऽपि रान्न: सवयशज्छिदे

श्रप्येकं तुम्बिकाबोजं गुडभारान्‌ विनाशयेत्‌ १६॥ ्राकमभूताः प्रजा रान्नो राजान STATS mater भ्रपिन क्रव्यं निजमश्रण्ति जातुचित्‌ १७॥ प्रजाः पुषाण पुष्णन्ति पोषिता एव ता way वश्याऽपि छ्नड़ाहो दत्त दुग्धमपोषिता १८ सर्वदोषप्रसूर्लोभो लोभः सवेगुखापषः | लोभस्तच्यन्यतामेत॑स्वहितो वक्ति way: १९ नन्दोऽपि afc दावदग्धभूरिव वारिणा। अत्युष्णवाष्यममुषद्‌ TUR CATT तम्‌ Ro राजदौवारिको जातु वध्य इति नन्द्राट्‌ |

Sara गभवेश्मान्तः सशिरोऽ्तिरिवा विशत्‌ २१॥ नासौ सदुपदेशानां जवासक इवाम्भसाम्‌ |

योग्य इत्या ख््न्‌ दूतोऽप्यगात्‌ खसवामिनोऽन्तिकम्‌ ॥२२॥ नन्दोऽप्यन्धायपापोलेषंदनादानदार्णेः | रोगरिष्ापि संप्राप्तः परमाधामिंकीरिव ४२३ वेदनाभिर्दारुणाभिः पोद्यमानो यधा यथा . ARAMA, लो कोऽभूत्नातानन्दस्तथा तथा २४

४९० योगशास्त्र

पश्यमानो WATT SHAT इव व्यधाम्‌। अवाप नन्दः, स्तोकं fe सवे ताहृत्तपाफनः २५॥ ये waa विनिहिता गिरिवच qet- WATS Asa मम काश्चनराशयस्ते। कस्य स्युरित्यभिग्टणब्रविठपत एव सत्वा निरन्तभवदुःखमवाप नन्दः २६॥

इति नन्दकथानकम्‌ ११२

अपि योगिनामपि परिग्रहमुपग्णद्नतां लाभमिच्छतां मूलक्षतिरायातेत्वाह-

तपःश्रुतपरौवारं शमसामराज्यसंपदम्‌ | परियषटगर्ग्रस्ताख्यजेयुर्यो गिनोऽपि डि ११२

सोमो रब्रवयगप्रासिस्तहम्तो योगिनस्तऽपि, भासतां एधग्‌जनाः; परिग्रश एव ग्रहस्तद्रस्ताः पिशाचकिन इव .शमसाम््राज्यसंपदं खाधौनामपि त्यजेबुः, शमस्य विढष्णतायाः, सास्बाच्ं परमेश्वयं, तद्रूपा सम्पत्‌ ताम्‌। Aree नेकाकिनो मवतोत्याह- तपःश्रुतपरोवारां तपश्ारिवं, खतं wanted, ते एव परोवारः परिच्छदो यस्यास्तां तथाविधाम्‌ अमसास््राच्यसंपदं खाधोनां परित्यज्य सुखार्धिनः परिग्रहलवलुब्धा qaqera लाभमिष्छन्तो- HU: १११

हितोयः प्रकाशः। ४२१ श्दानोमखन्तोषफलोपदश नपूवेकं षन्तोषफलमाह-

असन्तोषवतः Meat शक्रस्य चक्रिणः | जन्तोः सन्तोषभाजो यदभयस्येव जायते ११४

सन्सोषरदहितस्य तत्फलभूतं सौख्यं शक्रस्य टेवराजस्य, नापि चक्रिणो मनुजराजस्य ; यत्सौख्यं सन्तोषवतो afar जायते कस्येषेत्याह --भ्रभयस्य रभयकुमारस्य अेणिकराज- पुरस्य fe पिवरोपनोतमपि राज्यं often शमसास्नाज्यसम्पदं परिष्टशोतवानिति

कथानकं सम्प्रदायगम्यम्‌ चायम्‌-

Wale NAAT केदारमिव सुन्दरम्‌ | विभालभालिकमलं नाखा राजग्टहं पुरम्‌ १॥ aa प्रसेनजिन्राम 'नमितायओेषभूपतिः। पतिर्वारामिवालब्धमध्योऽभूत्पुथिवोपतिः खोमत्याश्वैजिनाधोशशाखनाश्नोजषट्पदः | सम्यग्दर्थनपु्यामा सोऽणुत्रतधरोऽभवत्‌ WAI तैजसा कान्त्या जितामरकुमारकाः। कुमारास्तस्य बषवो बभूवुः खेणिकादयः॥ ४॥ को राज्थयोम्य इत्येषां athard महोपतिः। एकतर पायसखयालान्यशनार्यै कदाऽऽपेयत्‌ ५॥

भभ भीरी

(१) we माभिवता-।

` योगशाख्रे `

ततो मोक्ष प्रहत्तानां कुमाराणाममोचयत्‌ व्याघ्तानिव ATMA सारमेयान्‌ सारधोः ९॥ कुमारा हुतञरुन्तस्युरापतन्॒ ततः WT

एकस्‌ ेणिकस्तखौ धियां धाम तथैव हि non सोऽन्यस्थालात्यायसाब्ं स्तोकं स्तोकं wat ददौ यावक्जिलिद्िरे श्वानस्तावश्च बुभुजे खयम्‌

येन केनाप्युपायेन निषेधिष्यत्यरोनयम्‌

भोश्यते खयं wal राजा सेनेति रचितः < राजा पुनः परोक्षा सुतानामन्यदा ददी | मोदकानां करण्डांख cata मुदितान्‌ ४१०५ द्मां सुद्रामभण्न्तो Pals मोदकानसून्‌।

पयः पिबत मा कदं छिटद्रमित्यादि शवृपः ११ विना अ्रणिकमेतेषां कोऽपि arya नापिबत्‌ बुदिखाध्येषु कायेषु कुर्यु रुजखिनोऽपि किम्‌ ? १२ वलयित्वा चलयिल्वा खेणिकोऽथ करण्डकम्‌ |

बुभुजे मोदकन्चोदं शलाका विवरश्यतम्‌ w १३॥ रोप्य शक्या घटस्याधो गलद्ाविंन्दुपूणया |

पयोऽपि पपौ किं fe दुःसाधं सुधियां धियः॥ १४॥ तग्रेश्य पतिः प्रोतो जातैऽन्ये्युः प्रदोपने

यो agwifa मदे हात्तत्तस्येत्यादिश्सुतान्‌ # १५५ सवे ग्टष्ोल्ला रत्नानि कुमारा नियेयुस्ततः |

siete wat लरितः सेणिकसु विनियेयी १६

हितीयः प्रकाशः | $22

fataqefacm ata faa ऽवदत्‌

जयस्य fas waa प्रथमं एथिवोभुजाम्‌ eo fl

रस्याः शब्देन भूपानां दिगृयात्रामक्गलं भवेत्‌ |

रक्षणीया चषमापालेः खामिंस्तदियमातमवत्‌ १८

ततः परोस्षानिवीहन्नातबुहिमषोपतिः |

तस्य प्रोतो ददौ भग्नासार इत्यपराभिधाम्‌ १८

राज्याहमानिनो मैनं राज्यां सूनवोऽपरे

नासिधुरित्यवाज्नासोष्छेणिकं एथिवोपतिः २०॥

VAR TR कुमाराणां ददौ देयाब्ररेष्वरः

किञ्िच्छेणिकस्यासु राज्यमस्यायताविति ze i

ततोऽभिमानौ खपुरात्कलभः काननादिव |

निःखत्य खेणिकोऽगच्छस्ृं वेणातटं सुरम्‌ २२

तच प्रविशन्‌ भद्राभिधस्य खे्ठिनोऽय सः

कम॑ लाभोदयं मूतस्तमिवोपाविशदापशे २२ a

तदा नगरे तस्मिन्‌ विपुलः कञ्िदुतव्छवः

नव्यदिव्यदुकूलाङ्गरागपौराऽऽकुलोऽभवत्‌ २४

प्रभूतक्रायकेरासौत्‌ अष्टौ व्याकुलस्तदा

कुमारोऽप्यापैयददृष्वाऽस्् पुटाऽपुटिकादिकम्‌ २५

दरव्यं कुमारमाहासगाच्छरष्ठो भूयिहमाजंयत्‌

पुष्यपुखां विदेशेऽपि खषचर्य्यो नगु fra: ५२६

भ्रदयावितथयपुख्यस्य कस्यातिथिरसौत्यथ

शेणिकः afer wet भवतामित्यभाषत २७ ५१५

४३४ ` ` योगासन

नन्दायोग्यो वरो ze; aysa निभि यो मया भसौ ara एवैति चेष्टो चेतस्यचिन्तयत्‌ wu २८ सोऽमाषिष्ट धन्योऽस्मि यद्ृवस्यतिधिमम असावलसमध्येन ननु WET समागता २८ dawg ततः Wel तं नोता निजवेश्मनि aufaar परिधाप्य खगौरवमभोजयत्‌ २० एव॑ तिष्ठं स्तदरहे णिकः अेषठिनाऽन्यदा |

कन्धा परिश्येमां मे नन्दां नान्नेत्ययाश्यत २१॥ ममान्रातक्लस्यापि कथं car सतामिति | जेणिक्षेनोक्ष ऊचे सन्नतं तव TT: कुलम्‌ २२॥ ततस्तस्योपरोधेनो दधैरिव सुतां हरिः |

faa: पर्यरेषीन्तां भवद्वलमङ्कलम्‌ ३३ yarn विविधान्‌ भोगान्‌ सडह वक्लभया तया | अतिष्टष्छरणिकस्ततर निकुष् FUT: २४ श्रेशिकस्य सरूपं तदिवेदा प्रसेन जित्‌ | सद्खाक्ला fe राजानो भवन्ति चरलोचनेः २५॥ oud प्रसेनजिद्रोगं प्रापाधान्तं विदव्रिजम्‌ |

ga ओेणिकमानेतं शोघ्रानादिदौष्टिकान्‌ २९ ओषधिभ्यो 'न्रातयाऽऽतः पितुरत्यत्तिंवात्तेया | नन्द संबोध्य Bae प्रतस्ये AFTRA २७

eee

(9) qraara: |

हितोयः प्रकाश्ः। २१५

"वयं पाण्डुरकुष्ा गोपाला THF पुरे 1 आद्वानमन्प्रतिमान्यस्षराणोति चापैयत्‌ # २८ माऽन्या तातस् रोगा्तेमेदर्तिभूदिति हुतम्‌

out fen भआरारुद् ययौ राजग्डहं पुरम्‌ २९ a eer सुदिती राजा इषंनेवरायुभिः समम्‌। राज्येऽभ्यषिञ्चदिमसैः सुवशकलशाम्बुभिः ४० राजाऽपि "संस्मरन्‌ पाश्वं जिनं पश्चममस्कियाम्‌ चतुःशरणशमापन्नो faa तिदिवं ययै ve a fad वि्ठश्मराभारं वभार अखेखिकस्ततः।

तेन सा गुर्विणौ gat गभे नन्दाऽपि दुवे्म्‌ ४२ तस्या Swe इत्यासोदजारूढा शरोरिणाम्‌ | महाभूत्योपकुर्वाणा भवाम्यभयदा यदि van fawoata राजानं तत्पित्राऽपूरि दोषदः

पूर्णे काले साऽसूत प्राचो रविमिवाभंकम्‌ ४४ दोहदार्थौनुसारेण aura दिवसे शमे | चवकाराभयकुमार इति मातामहोऽभिधाम्‌ ४५॥ क्रमादहधरे विद्या निरवदययाः पपाठ ख। अष्टवर्षोऽभवद्क्तो हासप्तत्यां कलासु ४६॥

(१) श्रीषन्द्रतिलकोपाध्यायशते, अभवकुमारवरितेः-

“यतोऽयमथेः पाण्डरकुद्याः धवलभिसवः। गोपाः एविहोपाला गोषन्धोऽवनिवाचकः"॥ afar y

BRE AVANT

सवयाः wae कोऽपि तं कोपादित्यतजैयत्‌। fa लं जल्पसि यस्यादहो पिता विन्नायते afe ४७ अचेऽभयकुमारस्तं ननु भद्रः पिता मम। पिता भद्रो भवश्मातुः प्रत्युवाचेति सोऽभयम्‌ ४८ नन्दां प्रत्यभयोऽप्युचे मातः | को भे पितेत्यध wa तव पिता भद्रः Bel नन्देत्यवोकथत्‌ ४९ भद्रस्तव पिता शंस मदोयं पितरं ननु | प॒वेषेव्युदिता मन्दा निरानन्देदमब्रवोत्‌ ५० # टेणान्तरादागतेन परिशोताऽख्ि केनचित्‌ मम त्वयि mre तमोयुः केचिदौष्टिकाः ५१ we: किच्िदुक्ा तेः wea कचिदप्यगात्‌ | पथापि तं जानामि कुतख्यः कथिदित्यषम्‌ ५२॥ यान्‌ किश्िष्नजल्प त्वामिति पृष्टाऽभयेन at | अक्षराण्यप्ितान्येतानोति पत्रमदशयत्‌ ५२ तदिभाव्याभयः प्रोतोऽब्रवोग्मम पिता कृषः Gt Use aa गच्छामो ननु संप्रति ५४॥ are यिनं भद्रं सामग्रोसंयुतस्ततः | ATA नन्दया साद ययौ THY पुरम्‌ ५५॥ मातरं afeqara विमुख सपरिच्छदम्‌ | aa खल्पपरोवारः प्रविषेशाभयः पुरे ५६ saa मेलितान्यासंस्तदा खणिकभूमभुजा |

तामि पद्ैकोनानि मन्तिणां मन्सतरिशाम्‌ ५७

दितोयः प्रकाशः | 820

afarandt gut ad नरपतिस्ततः |

लोके गवेषयामाख कञ्चिदुत्कष्टपूरषम्‌ ५८ i ततस्च तत्परोक्ाथं शुष्ककूपि निजोमिकाम्‌ |

ufuaa लितिपतिर्लीकानित्यादिदेशथ ५९ श्रादास्यति करेषेतामूिंकां यस्लटखितः।

तस्य ोकौशलक्रौता' agar afayaar ९० तेऽप्यूचुयेदथक्षानुष्ठाममस्राद्ामिदम्‌ |

ताराः करेण यः कर्षेत्‌ इमामूर्मिकामपि ९६१ ततोऽभयकमारोऽपि संप्राप्तस्सत्र सस्मितम्‌ |

ऊचे fal द्यते मेषा, किमेतदपि दुष्करम्‌ १२॥ त॑ eet a लना दध्युः कोऽप्यसावतिश्ायिधोः | समये मुखरागो fe कृखामाख्याति पौरुषम्‌ ९१३ HAYS ते महाभाग ! त्वं ण्डायेयमूमिकाम्‌ | अर्मिकाकवार्षणपणां ुर्य॑तां चैषु मन्तिषु ९४ ततोऽभयक्ुमारस्तामूमिकां कूपमध्यगाम्‌ | च्रादूगोमयपिर्डेन निजघानोपरि खितः ९५ प्रचचिष्योपरि तत्कालं ज्वलन्तं ठणपूलकम्‌ |

सदः संशोषयामास गोमयं त्महामतिः ea नन्दाया नन्दनः सद्यः कारयिल्ाऽथ सारणम्‌ | वारिणाऽपूरयत्‌ कूपं विस्मयेन तं जनम्‌ १७

(१ कखगद -क्रीती। (९) ww ते।

BAG

MANTA

तङलोमयं Shang: करेण तरसाऽऽददे

Pafe: सुप्रयुक्षस्व किमुपायस्य दुष्करम्‌ ६८ तस्मिन्‌ खरूपे चारकतेविं श्रमे जातविक्यः | कृपोऽभयङ्ञमारं द्वागाशुषावासब्रिधो ge

अभयं afer: पुव्रप्रतिपच्याऽच eae | बन्धुरक्नायमानोऽपि दृष्टो मोदयते AA: ७० कुतस्वमागतोऽसोति ष्टः अेणिकभूभुजा | खेष्वातटादागतोऽमिति काभिदधैऽभयः ७१ राजाऽप्च््छटदरमुख | किं भद्र इति विखरुतः।

at तवास्ति तस्यापि नन्दानामो नन्दना ७२॥ अस्येवं सम्यगित्यक्ते तेन भूयोऽपि भूपतिः |

उवे नन्दोदरिण्यासो त्किमपत्यमजायत ७३ अधाख्यत्कान्तदन्तांशखेणिः खणिकसूरिदम्‌ टेवाभयङ्कमाराख्यं खा नन्दनृमजोजनत्‌ ७४ किंरूपः किंगुणः सोऽस्तोत्युदिते सति भूभुजा | aaa: ware स्लामिब्रस्मोति चिन्तयताम्‌ ७५ परिष्वश्याहमारोप्य समाघ्राय atta |

wera खञपयितुमिव fads नयनाम्बुभिः ७९ कुशलं aa! ते मातुरिति ve महोभुजा

` दूति विक्नपयामाख बचास््लिपुटोऽभयः ७७

अनुस्मरन्तो WHIT त्त्पादाम्भोजसङ्गमम्‌ | खामिन्रायुश्मतौ भेऽम्बा वाश्च वानेऽस्ति संप्रति ऽ८

हितीयः प्रकाशः | ४३९

ततो नन्दां समानेतुममन्दानन्द्कन्दलः |

AJSM सवसामग्रोमग्रेक्लत्य कृपोऽभयम्‌

ततः.खयमपि प्राज्योष्षण्टोज्जिखितमानसः |

नन्दामभिययौ राजा राजद्ंस इवालिनोम्‌ ८०

शिधिलौभूतवलयां कपोललुलितालकाम्‌ |

भनच्नना्तीं कबरोधारिणों मलिनां शकाम्‌ ८१॥

तनोस्तनिन््रा दधतीं हितोयेन्दुकलातुलाम्‌ |

SI राजा सानन्दो नन्दासुद्यानवासिनोम्‌ ॥८२॥ (युग्मम्‌)

aerated पतिर्मीलला खं निकेतनम्‌ |

पषरान्नोपदेऽकार्वीत्‌ सतामिव रघुः ८३ भक्ितः पितरि खस्य पदातिपरमाणुताम्‌ ।.

` मन्वानः साधयामास SAAT भूभुजोऽभवयः॥८्४।॥

अन्यटोञनयिनोपुरव्या्ण्ड प्रयो तभूपतिः |

चलितः सव॑सामग्रया TS THY पुरम्‌ ८५

प्रोतो वदसुकुटाशतुदेश् परे Baw: 1.

AATATAN जदाः परमाधामिका इव ८६.

पाटपटञजुतेरण्बेः पाटयच्निव भेदिनोम्‌ |

भागच्छन्‌ प्रखिधिभ्योऽथ शुवे शशकेन सः ८७

fafes चिन्तयामास प्रोतो समापतन्‌

ALTE दव क्रुः कार्यो हतवलः कथम्‌ ?॥ २८८

ततोऽभयकुमारस्यौत्पस्तिष्यादिधियां fae:

कृपतिर्मु खमेचतिष्ट सुधामध्षरया था ८९

४४० AAG

यथाथेनामा राजानमभयोऽथ व्यजिन्नपत्‌ | का चिन्तोल्लयिनोभ्ोऽयख भूयादय्ातिधिमेम ९.० यदिवा ‘gfearasa शस््ाशस््िकयथा ठधा |

बुद्िभेव wine तदहि जयकामधुक्‌ nee s भथ बाद्येऽरिसेन्धानामावासस्थानभूमिषु |

| लोष्टसंपुटमध्यस्थान्‌ दोनारान्‌ न्धचोखनत्‌ ८२ प्रयोतदरपतैः सेन्धेस्ततो राजग्डद्ं पुरम्‌ पयेैच्यत भूगोलः पयोधिसलिलेरिव <३ ata प्रेषयामास लेखं प्रयो तभरुपतेः | सभयो Wages: परषेतरभाषिभिः wes िवादैवोचेक्लणयोर्भेदं AB मनागपि | त्मान्योऽसि शिवादेवोसम्बन्धेनापि सवेदा ८५॥ तदवन्तोण | afen त्वाभमेकान्तहितष्काह््या | ५३ सर्वे ये खिकराजेन मेदितास्तव भूञजः ९६ ॥.. Stare: प्रेषिताः सन्ति तभ्यस्तान्‌ कक्तुमामसात्‌ | तै तानादाय बहा लामपेयिष्यन्ति मत्पितुः ८७ तदावाशषु दौनारा निखाता afar तच्कुते खानयित्वा पश्च को वा दौपे सत्यग्निमोक्षते ८८ विदित्वैवं भूपस्यैकस्यावासमचोखनत्‌ | AANA दौनारास्तान्‌ TESST पलायत ९९

ns (१) SWS बुद्ध-। (x) SWS -वान्क्या।

feala: प्रकाशः | ४४१

नष्टे aa तु aaa विलोद्याखिभिवा खिलम्‌ | इस्त्यश्वादयादद्‌े सारं ANAT: समन्ततः १००॥ नासारूठेन alas वायुवाजेन वाजिना |

ततः wenagufa: कथञ्चित्‌ खां पुरीं ययो ये चतुदश भूपाला ये चान्येऽपि महारथाः |

केऽपि नेशः काकनाशं wa Gar हनायकम्‌ ॥२॥ अ्रसंयतलुलत्केथेग्कत शून्ये मौलिभिः। राजानमनुयान्तस्तेऽप्यापुरुव्नयिनीं पुरोम्‌ अभयस्येव मायेयं वयं नेहथयकारिगणः

प्रत्यायितः सशपथं तैरधोव्नयिनोपतिः कदा चिदूचेऽवन्तोशो मध्येसभममषेणः

योऽपेयत्यभयं बद्धा मम wea किम्‌ ५१ पताकं इस्तमुत्तिप्य काऽप्येका गणिका aa: | व्यजिन्नपदवन्तोशमलमस्मौड कर्मणि & x तामादिदेशावन्तोशो य्येवममुतिष्ठ तत्‌ | रोम्यधोदिसाहाय्य ब्रूहि किं तव संप्रति १॥७॥ सा दध्यौ यदभयो नोपायं गृद्यतेऽपरेः धमच्छग्र तदादाय साधयामि समौहितम्‌ अयाचत aaa इहे दितोयवयसौ feat | तै तदैवापयद्राजा ददौ द्रव्यं पुष्कलम्‌ water: प्रतिदिनमुपाख्योपाख संयताः | बभूवुरतकरप्रज्नास्तास्तिस््रोऽपि बहश्ताः॥ १०॥ ५६

४४२ योगशास्त्र

तास्तिसखरोऽपि ततो जग्मुः ओेणिकालह्कतं पुरम्‌ लगत्रयीं वञ्चयितुं मायाया LA मूत्तयः ११५ बाश्चोदाने क्षतावासा सा पणस्नोमतक्िका | पन्तनाम्त्यवौ चेत्यपरिपाटौचिकौषया १२

सा विभूत्याऽतिश्ायिन्या ta कृपतिकारितै प्रविवेश समं ताभ्यां wat नैषेधिकोत्रयम्‌ १२१ मालवरकशिकौमुख्यभाषामधुरया गिरा

देवं afeeqaita खपय्धां विरचय्य सा १४॥ तवाभयकमारोऽपि ययौ देवं विवन्दिषुः | भामढतीयां तामग्रे वन्दमानां ददश च॥ १५॥ देबदभनविघ्नोऽस्या मा भूव्मविश्रता मया। हारयेवेत्यभयस्तखौ मण्डपान्तविषेश १६॥ प्रणिधानसुतिं क्त्वा सा मुक्ताशुक्तिमुद्रया | यावदुक्श्य॒षो तावदभयोऽम्याजगाम ताम्‌ १७ तादृशीं भावनां तस्यास्तं वेषं प्रमं तम्‌ अभयो वर्णयामास सानन्दं जगाद ताम्‌ १८ fear भद्रेऽघना तलादकसाधमिकसमागमः। साधर्मिंकात्परो saga संसारे विषेकिनाम्‌ १९ कालत्वं किमागमः कावा वास्भूमिरिभेचके। यकाभ्यां खातिराधाभ्यामिन्दुलेखेव शोभसे २० व्याजद्ाराथ सा व्याजख्राविकाऽवन्तिवासिनः। महेभ्यवणिजः पाणिष्डषोतो विधवा त्वहम्‌ २१

हितीयः WATT: | B¥2

मे मम पुत्रस्य कलत्रे कालधमंतः। विच््छाय्यभूतां विधे भम्महक्ते लते २२ व्रताथेमापष्च्छाते उभे whe तदैव माम्‌। विपच्चपतिकानां fe सतीनां शरणं व्रतम्‌ २३॥ मयाऽप्युकञे ग्रहोष्यामि निर्वीँराऽहमपि व्रतम्‌ meee फलं किन्तु wat तीधेवात्रया २४ व्रते हि भावतः पूजा युज्यते द्रव्यतो नतु।

ary तोर्थया तायैमेताभ्थां we निर्ययौ २१ अधेल्मभयोऽवोचदतिथोभवताद्य नः

आतिथेयं सतोध्यानां ती्दप्यतिपावनम्‌ २९ प्रत्युवा चाभयं साऽपि FRA भवान्‌ परम्‌ MARA Gass भवाम्यद्यातिथिः कथम्‌ २७ अथ तन्रिष्ठया दृष्टोऽभयस्तामवदत्पनः |

अवश्यं मम तय्मातरागन्तव्यं जिकेतमे acy Tsay यत्क्षधिनापि जम्मिनो जग पूयेत

अहं प्रातरिदं कर्ताऽस्मोति जल्येकधं समुधो; २९ अस्िदानोमियं भूयः खो निमन्छाति चिम्तथन्‌ | at विङ्ल्याभयेत्यं वण्दित्वा ae ययौ १२०४ at निमन््राभयः प्रातगृचैत्यान्यवन्दयत्‌ | | भोजयामास प्राज्यवस््रदानादि व्यधात्‌ २१॥ निमन्वितस्तयाऽन्येद्यमितोभूयाभयोऽप्यगात्‌ | साघर्भिकोपररोभेन चिं कुवन्ति तादृशाः 24 ३२

४४४ योगशास्त्र

तया विविरैर्भोख्यैरभयोऽकारि भोजनम्‌ न्द्रहाससुरामियपानकानि पायितः॥ 22 0 भुक्तोयितशच तत्कालं सुष्वाप खेणिकामजः | wifzat मद्यपानस्य निद्रा awatl खलु २४ a रथेन साने खाने स्थापितेश्चापरे TH: |

अवन्तीं प्रापयामास दुलंच्यच्छश्मसद् सा ३५ ततोऽभयान्वेषग्णाय खेणिकैन नियोजिताः |

स्थाने खानेऽन्वेषयन्तस्तत्रापीयुगवेषकाः २६ किमिद्ाभय भायात इत्युक्ता TEATS सा Sea: समायातः परं यातस्तदव fe ३७ वचनप्रत्ययान्तस्या भन्धतेयुर्गबेषकाः |

स्याने खाने खापिताण्वेः साऽप्यवन्तीं समाययौ २८ सा प्रचच्छाऽभयं चग्डप्रयोतस्यापयत्ततः | पभयाऽऽनयनोपायस्वरूपं व्यजिन्नपत्‌ २९ तां प्रद्योतोऽप्युवाचेवं साधु fated त्वया यदमुं धमेविच्रब्धं लवं घमंच्छद्मनाऽऽनयः ४० कथासप्ततिसंशंसो AAT शकोऽनया | नोतिन्नोऽपि ग्डोतोऽसि जगाटेत्यभयं सः॥ ४१॥ श्रभयोऽप्यत्रवोदेवं aaa मतिमानसि |

awa विधया बुहया राजधर्मः प्रवहते ४२ लज्जितः कुपितखाथ चण्डप्रयो तमरूपतिः। गाजदेसमिवाचेप्ती भयं काष्टपच्छरे ४३

हितोयः प्रकाशः | ४४१५

भग्निभोरूरथो देवो शिवा नलगिरिः करो लोषजद्ो Agaret राच्ये रनब्रानि तख तु ४४॥ RCAF BT: Ug YRS मुमु हः | anamadtaeraaayn इत्य'मन्तयन्‌ ४५॥ श्रायात्ययं दिनेनापि पश्चविंशतियोजनोम्‌ | अरसक्लहगराषहटरत्यस्त्नान्‌ हन्मः UA ततः ४६ ते विग्श्येत्यदुस्तस्य waa विषमोद कान्‌ | तद्वस्ाशम्बलं चान्यत्समन्तादप्यपाषरन्‌ ४७ कञ्चित्पन्धामसुक्ञद्प नदौ रोधसि शम्बलम्‌ |

तद्वोक् मव तख्येऽसौऽभूवन्रशकुनान्यथ ४८ शकुनन्नसतु सोऽभुक्गोलयाय दूरं ययौ ततः |

श्ुधितो भोक्षुकामस्तहारितः शकुनेः पुर्न: ४९ दूरं गत्वा भोक्षुकामः शकुनेवीरितः पुनः

ततो गत्वा AMG प्रद्योतस्य न्यवेदयत्‌ ५० ततो रान्ना समाद्य तत्पुष्टः ेणिकासमजः पायेयभस््रामाच्राय जगाद मतिमानिदम्‌ ve i भस्ति दृटिविषोऽवाहिद्रेव्यसंयो गसम्भवः |

असो दग्धो Naga भस्तरामुद्ारयेदयदि ५२ ततः पराख्ुखोऽरणये मोच दत्यभयोदिते।

तथेव सुसुवे सदो दग्धा वक्ता Bas सः॥ ५२॥

ee ee = es oe = 7) es fe Mee ee ण्स

1) We -सत्रयन्‌।

४४६ योगशास्त्रे

विना बन्धनमो्चत्वं वरं याचख मामिति। दरपैणोक्ञेऽभयोऽवारीद्यासोभरूतोऽसतु मै वरः ५४ श्रन्धदाऽऽलानमुग्मृश्य पातयित्वा निषादिनी |

ai नलगिरिभ्वीम्यन्‌ च्षोभयामास नागरान्‌ ५५ पसाववशगो Wait वशं Aa: कधं fafa:

राज्ञा एष्टोऽभयोऽथं सद्वायब्रदयनो कृपः ५९ पुत्रया वासवदन्ताया गाग्धरववाघोतये' छतः | जगावुटयनस्तवर समं वासवदत्तया ५७॥ तङोताकणनाल्षिप्तो वच्चो नलगिरिः करो |

सुनरददौ वरं राजा न्धयासोचक्रोऽभयस्तथा ५८ अभूदवन्त्यामन्येदयुनिं विच्छदं प्रदोपनम्‌ |

Bey तव्मतोकारं प्रद्ोतैनाभयोऽवदत्‌ ५९ विषस्येव विषं वङ्केवद्िरेव यदौषधम्‌ |

तदन्यः क्रियतां वद्ियथा शाग्येत्‌ प्रदोपनम्‌ ६० + त्था विदधे राज्नाऽशाम्यत्तच्च प्रदोपनम्‌ |

aaa वरं सोऽदाब्रासोचक्रेऽभयख तम्‌ ६१ भशिवं मदन्धेदयु सुव्नयिन्यां सुखितम्‌ |

AUNT नरेन्द्रेण TE इत्यभयोःऽब्रवोत्‌ ९२ पागच्छन्वन्तरास्यानं Sar: सवौ विभूषिताः | गुमान्‌ जयति या हच्चा कथनोया तु सा मम + gz

(१) ww -ध्ययने।

हितोयः प्रकाशः | ४४७

तथैव fazed रान्ना रान्नोऽन्धा विजिता eur t gan तु शिवया राजा, कथितं चाभयाय तत्‌ ६४५ श्रभाषताभयोऽप्येवं AHI शिवा खयम्‌

करोतु कूरबलिना भूतानामचेन निशि ९५॥ aage शिवारूपैणोिष्ठत्यथवासते |

तस्य तस्य मुखे टेव्या Aa: कूरवलिः खयम्‌ ९६९ विदधे शिवया तच्चाशिवशान्तिवभूव च।

तुय चादाहरं राजा ययाचे चाभयोऽप्यदः Qo खतो नलगिरौ ahaa त्यि fares: |

अं विशाम्यग्निभोरुरथदारुक्ततां चिताम्‌ १८ ततो fare: प्रोतो वरान्‌ दातुमशक्तुवन्‌ | विसखस्जाच्नलिं mat कुमारं मगेशितुः ९८ आश्रावाभयोऽप्येवं सयाऽऽनोतम्डलाददम्‌ |

दिवा रटन्तं yr तवां तु भैष्थाम्यसावहम्‌ ७० ततोऽभयकुमारोऽगात्‌ क्रमाद्राजग्डहे पुरे | कथमप्यवतस्थे कञ्चित्कालं महामतिः ७१॥ zeta गणिकापुत्ररौ रूपवत्यावधाभयः |

णिम्बे्ोऽगादवन्त्यां राजमार्गेऽग्रष् रुहम्‌ ७२ प्रद्योतेनेखिते ते दारिके पथि गच्छता |

साभ्यां सविल्लासाभ्यां प्रयोतोऽपि निरोलितः॥ प्रोतेन we गत्वा रागिणा प्रेषिता aa: | दूतिकाऽनुनयन््याभ्यां क्रु डाभ्यामपषस्तिता ७४

४४८

योगशास्त्र

दितोयस्मिब्रपि दिनेऽथयमाना पाय |

ताभ्यां शनेः सरोषाभ्यामवामन्यत दूतिका ७५ adlasafe निवदादेत्य & याचिेऽनया'। HAGA सदाचारो भ्राता भनावेव र्तति ७९ ततो बहिमतेऽसुखिन्‌ सप्तभेऽद्ि समागते इष्ायातु कुपन्डब्रस्ततः सङ्गो भविष्यति ७७ | ततोऽभयेन प्रयोतसहगीकः पुमातबरिजः

wart faced तस्य प्रोत इति नाम ७८ शट शोऽयं मम राता श्राम्यतोतस्ततस्ततः | रच्ितव्यो wat wt किं करोमोत्यवदव्नने ७८ तं वेयसद्मनयनच्छद्मना ware बहिः |

रटन्तं मश्चकारूढं निनायातं इवाभयः ८० नोयमानश्च तनोः उकत्तयतुष्पये |

प्रयोतोऽद्ं छियेऽनेनेत्युदखुवदनोऽरटत्‌ ८१ सप्रभेऽड्ि कृपोऽप्यकस्तत प्रच्छत्र भ्राययौ | कामान्धः सिन्धुर इव वदधाभयपूरुषेः ८२ नोयतेऽसौ वे ्यवेश्मेत्यभयेनाभिभाषिणा |

पय्येद्धेन समं TH पुरान्तः रटन्‌ दिवा ८२ MT क्रोशे पुरा सुक्ल Tacs सुवाजिभिः।

पुरे राजग्टहेऽनेषोग्रयोतमभयोऽभयः

(१ Swe aary (२) Swe नानेष।

दितोयः प्रकाशः | ४४९

सतो निनाय प्रद्योतं खरखिकस्य पुरोऽभयः। दधाषे खद्गमाक्षष्य तं प्रति खेणिको दपः ८५ ततोऽभयक्ुमारेण बोधितो मगघेश्वरः | संमान्य ARATE: प्रोतं व्यरूजग्भुदा ८६ अन्यदा गणग्देवसुधमसख्वामिनोऽन्तिके | प्ररज्यामग्रहोत्कोऽपि fata: काष्ठभारिकः ८७ विहरन्‌ yt पौरेः पूर्वावस्थाऽनुवादिभिः। अरभर्छतोपाषस्यतागद्यतापि GS us ८८ नावन्नां सोदुमोध्ोऽत्र विरामि तदन्यतः। इति व्यन्नपयत्‌ ओोसुधमस्वामिनं ततः सुघर्मखामिनाऽन्यव्र विष्ारक्रमहेतवे | अरापएच्छाताभयः एच्छन्‌ AAW कारणम्‌ lo दिनमेकं प्रतो्तध्वम्दधं यत्प्रतिभाति वः तदिधत्तेत्ययाचिष्ट प्रणम्य खेणिकावलमजः < सोऽथ राजकुलात्कृष्टा रब्रकोटि तयं बहिः | दास्याम्येताभेत लोकाः | पटदनेत्यघोषयत्‌ ९२ ततखेयुजेनाः सर्व॑ऽप्यवोचदभयोऽप्यदः जलाग्िस्रौवजको यस्तस्य रत्नो चयोऽसत्वयम्‌ a लोकोत्तरमिदं लोकः खामिन्‌ ! किं कत्त॑मोष्वरः ? दति वेष्वाभाषमारेष्वभयोऽपोत्यभाषत # यदि वो नेदृशः कञ्चिद्रब्रकोटौवयं aa: | जलाग्निस्नोमुचः कछभारिणोऽस महामुनेः oy ५७

४५०

योगशास्त्रे

सम्यगोदटगयं साधुः पारं दानस्य युज्यते | मुधाऽसौ swasarfafefa तैजेगदेऽभयः ८६ भस्य भर्सयोपषासादि कर््त॑व्यमतः परम्‌ | utfevanaad प्रतिपद्य ययुजंनाः ९८७

एवं बुहिमष्टाश्मोधिः पिढमभक्तिपरोऽभयः fade धमंसंसक्तो राज्यमन्वशिषत्पितुः ९८ वर्तमानः खयं Wa प्रजा भप्यवत्तयन्‌ प्रजानां पशुनां गोपायत्ताः Wawa: ce राजा चक्रे जजागार यथा wren fas |

तथा खावकधर्मेऽसावप्रमहरमानसः २०० बदिर्गान्‌ यथाऽजेषोषटजंयानपि विदिषः | भरन्तरद्गगानपि तथा लोकदयसाघकः १॥ तमूचे रेशिकोऽन्येदुवेक् ! wed GATT |

अहं यिष्ये योवोरशुषासुखमन्वहम्‌ पिताक्ाभङ्संसारभो रुरित्यभयोऽत्रवोत्‌ | यदादिशत awry vated षणं परम्‌ CAT भगवान्‌ वोरः प्रत्राज्योदायनं दपम्‌ मर्मण्ड़लतस्तव्ाभ्यागत्य समवासरत्‌ ततो गल्लाऽभयो AAT पप्रच्छ चरमं जिनम्‌ राजर्षिः कोऽन्तिमोऽथाख्यत्तच्रेवोदायनं wy: ५॥ गत्वोचे खेणिकं सोऽसि राजा Ba ऋषिस्तदा श्रोवो रोऽन्तिमिराजकिं गशंसोदायनं यतः

feaia: प्रकाशः | ४५१

At खामिनं प्राप्य प्राप्य लल्पुत्रतामपि | नौ Sai भवदुःखं चेग्मत्तः कोऽन्योऽधमस्ततः नाजाऽहमभयस्तात | TASHA भवाडूशम्‌ सुवनाभयदं at तच्छयामि समादिश तदलं मम राज्येनाभिमानसुखरेतुना | यतः खन्तोषसाराणि सौख्यान्याहर्महषंयः wes निबेन्धाद्राश्चमाण्येऽपि यदा राज्यमग्रोत्‌ | तदाऽभयो व्रतायामुजन्न रान्ना प्रमोदतः॥ १० राज्यं ठणमिव त्यक्ता सन्तोषसुखभागसौ | दोक्षां चरमतीथेशवोरपादान्तिकेऽग्रडोत्‌ ११४ सन्तोषमेवमभयः सुखदं दधानः UNC AYIA जगाम सत्वा | सन्तोषभेवमपरोऽप्यवलम्बमान- स्तान्धुत्तरोत्तरसुखानि नरो लमेत २१२ a

इति योश्रभयराजषि कथानकम्‌ ११४

wad सन्तोषभेव स्तोति-

सन्निधौ निधयसलस्य कामगव्यनुगामिनौ | अमराः किङ्रायन्ते सन्तोषो यस्य भूषणम्‌॥११५॥

निधयो महापश्मादयः, afad afafeat:, कामगबो काम.

BYR योगशास्त्र

aq, सा भनुगच्छतोत्येवंभोला भनुगामिनो, wat: सुगः, किङ्करा इवाचरन्ति किङ्करायन्ते तस्येति योगः यस्व faq ; यस्य पुंसः सन्तोषो भ्रूषणमलदःरणम्‌ | तथाहि- सन्तुष्टा मुनयः शम प्रभावात्तृणाग्रादपि रव्रसमूष्ान्‌ पातयन्ति, कामितफलदायिन्च सुरुन्द्रेरप्यहमदमिकयोपचयन्त इत्यत्र कः सन्देहः | WATATATRT: —- ‘ud धान्यं स्वणरूप्यकुप्यानि त्तेववासुनो | हिपाचतुष्याच्चेति waa वाद्याः परिग्रहाः १॥ रागेषौ कषायाः शग्डासौ रत्यरतो भयम्‌ | FIG वेदमिष्यात्वे भरान्तराः Wage बाह्यात्‌ परिग्रहाग्रायः प्रकुप्यन्त्यान्तरा अपि | Taw मूषिकालकविषलजोपद्रवा इव ३॥ प्राप्तप्रतिष्टानपि वैराग्यादिमद्धादुमान्‌ | उ्मूलयति fara परिग्रहमहाबलः परिग्रनिषसखोऽपि योऽपवं विमागति लोोडपनिविष्टोऽसौ पारावारं तितोषंति ५॥ aren: परिग्रहाः पुंसां धमस्व ध्वं सहेतवः |

तव्नश्मानोऽपि जायन्ते समिधामिव asa:

न> न~ ee ee ee we ee ee en oe ee ee oe a ee eatin Sein acinaaes

(+) कच भनधान्यस्यमा- | © wie धनं ey

हितोयः प्रकाशः |

बाद्रानपि fe यः agra नियन्यित्‌ aa: | जयेत्‌ Ala: कथं सोऽन्तःपरि ग्रहचमूममूम्‌ क्रीडोव्यानम विद्यानां वारिधि्व्यसनार्णसाम्‌ | कन्दस्तुष्णामङाव्नरेक एव परिग्रहः

पदो भ्राखयमुनमक्षसर्वसङ्गासुनोनपि धनार्थितवेन NEM धमरक्तापरायणाः राजतस्करदायादवद्कितोयादिभोरभिः। धनेकलानेधनिभिनिशासखपि सुप्यते १०॥ दुर्भि वा सुभिक्चे वा वने जनपदेऽपि वा शडाऽऽतङाङकुलतया धनो सवत्र दुःखितः ११॥ निर्दोषा वा सदोषा वा सुखं जोवन्ति निर्धना; | बाध्यन्ते धनिनो लोकै दोषैरत्यादितेरपि १२॥ MAA रक्षणे नागे व्यये मवैव दुःखदम्‌ |

WH कणग्टहोताच्छभक्ललोलां धनं णाम्‌ १३॥ धिग्धनं धनवन्तो यटेकामिषजिषक्ुभिः | स्वजनेरपि बाध्यन्ते शुमकाः शुमकंरिव १४॥ GAG लभेयाहं Tad वहयेय क्रतान्तदन्तयन्वस्थोऽपौत्याशां त्यजेहनो १५॥ पिभाचोव ward यावदुच्छह्ृला भवेत्‌ |

तावत्‌ प्रदशयेब्रुणां नानारूपां विडम्बनाम्‌ १६

यदोच्छसि सुखं धर्मं सुक्तिसास्राल्यभेव च| तदा परपरोद्ारटैकामाशां वशोकुर १७

४५२

४५४

योगशास्त्रे

स्वगौपवगेनगरप्रकषेशप्रतिरोधिनौ

अभया वच्धाराभिराैव fe Were १८ भराशेव रात्तसौ पुंसामाशैव विषमच्ञरौ

sata जो्णमदिरा धिगाशा सर्वदोषभूः १८

ते धन्याः पुश्यभाजस्ते TAT: केशसागरः |

जगत्स मोद्जननो यराशाऽऽओोविषो जिता २० पापवज्ञो दुःखखानिं सुखाभिनिं दोषमातसम्‌।

भराशां निराशोकुरते यस्तिष्ठति सुखेन सः ॥२१॥ भ्रागादवाम्नेमेदिमा कोऽपि लोकपधातिगः | waad समाधिं यो विध्यापयति तत्णात्‌ २२ | att जखन्ति गायन्ति नृत्य ग्यभिमयन्ति ्राशापिशाचो विवशाः पुमांसो धनिनां पुरः २३॥ यान्ति वायवो यत्र नाप्यकन्दुमरोचयः। wae: Gat तत यान्ति निरगेलाः २४ येनाशायै ददे खाम्यं Rare दास्यमामनः |

WIN दासौक्तता येन तस्य खाम्यं AMAT WV’ नाशा नैसगिकौ पुलि या जीर्यति जौर्यति उत्पात एव कोऽप्येषा तस्यां सत्यां कुतः सुखम्‌ २६ वलयो वलया; पुंसां पलितानि खजः कताः | किमन्धन्मण्डने क्रत्वा कताथौऽऽशा भविष्यति २७ प्राम्योऽप्यतिरि च्यन्ते तेऽ्यासत्यक्षा भाशया क्रोडोकरोति यानाथातेतु खग्नऽपि दुलभाः॥ २८॥

feala: प्रकागः। ४५१

aay ब्ुभि"य॑ तरिच्छेव्धाधयितुं नरः अयव्रसिहा waa कते शाशानिमोन्तने २८. पु्योदयोऽस्ि चेत्‌ पुंसां व्यर्थवाशापिश्चाचिका | aa पुण्योदयो नास्ति व्यर्धेवाशापिशाचिका॥ २०॥ रोतो पण्डितः प्रन्नः पापभौरुस्तपोधनः।

सएव येन हित्वाऽऽशां नैराश्यसुररोक्नतम्‌ २१ सुखं सन्तीषपोयुषजुषां यत्‌ स्ववशाकनाम्‌ तत्पराधोनठत्तौनामसन्तोषवतां कुतः ३२ सन्तोषवमंणि व्यर्था भाश्ानाराचपङ्क्षयः |

ताः कथं प्रतिरोव्या इति मा स्माक्ुलो भव २३२॥ वाक्येनेकेन तडइच्मि यदहाच्यं वाक्यकोरिभिः। ्राशापिशाचो शान्ता प्राप्तं परमं पदम्‌ २४॥ तस्छन््यजाऽऽशावेवग्यं मितोक्तपरिग्रहः |

भजख पद्व्यसाधुलवं यतिधममुरक्षधोः ३५ सिष्यादग्‌भ्यो विशिष्यन्ते सम्यग्‌दभंनिनो जनाः | तेभ्योऽपि रेशविरता मितारग्धपरिग्रशटाः २६ I यामन्यतोधिका यान्ति गतिं तोव्रतपोजुषः | उपासकाः सोमिलवत्तां विराव्रता श्रपि॥ aon मासे ara fe & बालाः कुशाग्रेशेव भुच््ते। सन्तुष्टोपासकानां ते कलां नादन्ति षोडभौम्‌ ३८

—- = ~= _ ~~ ee ae ~ a - ~~~ ee oe.

x (1) खच -भिः aa: | (र: भनजवखमत्र-। भाव-|

४५६ योगशास्त्रे

रप्यहततपोनिष्ठस्तामलिः पूरणोऽपि वा

सुखावको चितगतेरतिद्ोनां गतिं ययो २८ प्राशापिणाषविवशं कुरुमास्मवचेतः सम्सोषसमुदद परिग्रहनिग्रहेण | aut विधेहि यतिधमेधुरोणताया- मन्तर्मवाष्टकसुपेषि यथाऽपवगेम्‌ ४० ११५॥

इति परमाईतोङुमारपालभूपालश्एयुषिते भाचाय- सरोहेमचन्द्र विरचिते भध्यासोपनिषनब्राजि Galas खोयोगशास्त्रे खोपन्नं हितोयप्रकाशविवरणम्‌ |

© अम्‌

तोयः प्रकाशः |

अरथाणुव्रतव्यावशनानन्तरं गुणव्रतानामवसरस्तत्ापि प्रधमं गुणव्रतमाडइ -

दशखखपि am feq यव सौमा लङ्खयते। ख्यातं दिगिरतिरिति प्रथमं तहु णत्रतम्‌ १॥

Tal, आग्नेयो, याम्या, नै ऋतौ, वारुणौ, वायव्या, waa, waa, नागौ, ब्राद्मोति en दिशस्तासु; भपिश्ब्दाटैक- हित्रयादिदिच्छपि, सोमा मर्यादा, क्ता प्रतिपन्ना, यत्र aa सति, लद्यते ना तिक्रम्यते, तत्रधमं गुणव्रतम्‌ उ्रगु णरूपं व्रतं गुणतव्रतम्‌, गुणाय चोपकाराय श्रणब्रतानां व्रतं गुणत्रतम्‌ ; ख्यातं प्रसि, तस्याभिधानं दिम्विरतिरिति॥ १।

ननु हिंसादिपाप्खानविरतिरूपाणि युक्ान्यशुब्रतानि, दिगूत्रते तु कस्य पापस्थानस्य नि्ठत्ति्यनास्य त्रतलसुश्यते | उच्यते श्रव्रापि हिंसादोनाभमेव crear विरतिरेतदेवाश-

चराचराणां जीवानां विमदंननिवत्तनात्‌ तप्रायोगोलकल्पस्य Tad ुदिशोऽप्यदः

चरास्वसा दोद्द्रियादयः, Wat: war: wafRar: ; तेषां ५८

४५८ योगशास्त्रे

नियमितसौोमावदह्िवर्तिनां जोवानां, यदिमर्दनं यातायातादिना feat, तस्य निवत्तेनादेतोरिदमयपि हिंसाप्रतिषिधपरमेव wre. स्यापि सद्रतम्‌। हिंख।प्रतिषेधपरत्वे च, भरषत्यादिप्रतिषेध्परताऽपि yaaa | aad, साधुनामपि दिग्विरतित्रलप्रसङ्ग इत्याह-- तप्ता योगोलकल्पस्येति weet श्ारश्नपरिग्रहपरत्वादयत्र यत्र याति, Bem, शेते, व्यापारान्तरं वा कुरते, तत्र तप्तायोगोलकं दव जौवोपमदें करोति ग्टहिशोऽपोत्यपिशब्दस्सप्तायोगोलकल्पस्यत्यतर सम्बध्यते ; तप्तायोगोलकस्पस्यापौत्यथेः | यदटाहइ- "तन्तायगोलकष्यो पमश्तजोवोऽणिवारियप्यषषरो aaa fat कुला पावं तक्कारणाणगप्रो॥ १॥ साधूनां तु खमितिरु्िप्रधानव्रतश्यालिनां नायं दोष xfa 4

तेषां दिम्बिरतिव्रतम्‌ २॥

लोभलक्षणपापखयानविरतिपरमपि चेतद्‌ aafaarw—

जगदाक्रममागस्य प्रसरज्ञोभवारिषेः waa विदधे तेन येन दिग्विरतिः कता

लोभ एव दुलद्यलाहारिपिः समुद्रः प्रसरंखासौ नानाविकल्य- कज्लोलाक्ुलतया लोभवारिधिञ्च; तस्य विशेषणं जगदाक्रममा- शस्य वारिधिपश्चे जगन्ञोकः, लोभपक्त तु निःगरेषभेव मुवनन्रयम्‌ |

(१) तप्नायोगोलकद्यः प्रमल्तषजोवो ऽगिवारितप्रलरः| waa किंन कुर्बात्‌ पापं तत्कारण्ाहुनतः॥

ज,

SANA: प्रकाशः | Bye

लोभवशगो fe जद्ुलोकगतां सुरसम्पदं मध्यलोकगतां चक्रा वश्या दिसम्पदमधोलोकगतां | च॒ पाताल्प्रमुत्वादिसम्पदमभिलषं- स्तिभुवनमपि मनोरथेराक्रामतोति लोभस्य जगदाक्रमणशम्‌, तेन wana प्रसरनिरोधः, afecu, येन fa, येन पुरुषेण fefacfa- विहिता। दिभ्विरतो fe प्रतिन्नातसोमातः परतोऽगच्छंस्तत्ख - सुवणर्प्यधनधान्धादिषु प्रायेण लोभं ged इतिलोभलथण- पापस्थानविरतिपरता भ्रश्य AAS | भतान्तरन्ञोकाः-

तदेतय्यावव्नोवं वा सदुव्रतं ग्टहमेधिनाम्‌ !

चतुमासादिनियमादधवा खल्पकालिकम्‌

सदा सामायिकख्यानां यतोनां तु जितासनाम्‌

a दिशि area स्यातां विरत्यविरतो इमे २॥

चारणानां हि aad agg भेरमूैनि

faanquana मेषां दिग्बिरतिस्ततः २॥

wai wary यो fey विदध्यादवधिं qt:

खर्गादौ निरवधयो जायन्ते तस्य सम्परः ।४॥२॥

हितोयं quanare— भोगोपरभोगयोः संख्या शक्तया यत्र विधौयते भोगोपभोगमानं ag दैतीयौकं गुणव्रतम्‌

भोगोपभोगयोवचखयमा लक्षणयोः, संख्या परिमाणं, यव व्रते, विधोयते, कया, शक्या शरोरमनसोरनावाधया, तद्खोगोष-

४९० योगशास्त्र

भोगमानं नाम गुणव्रतं,. हितोयमेव दंतोयोकम्‌; खां टोकण्‌ ४॥

भोगोपभोगयोलन्षणठमाद --

WARSI भुज्यते यः भोगोऽन्रसख्रगादिकः।

पुनःपुनः Gata उपभोगोऽङ्गनादिकः ५॥

सकछलदेव एकवारमेव, भुज्यते सेव्यते इति भोगः; परत्रमोदनादि, wae, भादिशब्दात्ताग्बृलविलेपनोहन्तेन- धुपनच्ञानपानादि परिग्रहः पुनःपुनरनेकवारं, भोग्यः सेव्यः, aya वनिता, भरादिश्ब्टादस्रालङ्गरग्डहशयनासनवाडनादि- ufcaw: wun

Te भोगोपभोगव्रतं भोक्त योग्येषु परिमाणकरपेन भवति, षूतरेषु तु वजनेनेति Wawa तदहजनोयानाह -- मद्यं मांसं नवनोतं मधूदुम्बरपञ्च कम्‌ अनन्तकायमन्नातफलं Tat भोजनम्‌ ६॥ सामगोरससंपृक्तं दिदलं पुष्पितीदनम्‌ | दध्यहदिं तयातीतं कुथितात्नं वजयेत्‌ ७॥ aa मदं हिघा-काष्ठनिष्यन्र, पिष्टनिष्यन्नं च, मांसं faw-

अलखलखष्वरमांसमिटेन मांसग्रहयेम चरमरधिरमेदोमव्नानः परिग्द्यन्ते नवनोतं गोमद्दिष्यजाऽविसम्बन्पन चतुरा मधु

Sala: प्रकाशः BER वधा-मास्िकं, wai, पौत्तिकं च। seacrgareat यथाख्यानं व्याख्यास्यन्त & uo

तव्र मद्यस्य वजंनोयत्वहेतृन्‌ दोषान्‌ न्नोकदशकेनाह-- मदिरापानमात्रेण बुरिनंश्यति दूरतः | वेदग्धीबन्धुरस्यापि दौर्भाम्येशेव कामिनी ८॥ वैदग्धोबन्भुरस्यापि gaat dh, मदिरापानमाररेण बुहिनेश्यति aa याति, दूरतो दूरं यावत्‌ सर्वधा विनश्यतोत्यथेः | श्रतोपमानं crate काभिनोति। वैदग्धोबन्धुरस्यापि दूरत

इति चात्रापि सम्बध्यते तेन यधा विदग्धस्यापि दौभग्यदोषेणं कामिनो मश्यति पलाये, दूरतो दूरादपि ८॥

तघया-

पापाः कादम्बरौपानविवभशौक्ततचेतसः |

जननं हा प्रियौयन्ति जननोयन्ति प्रियाम्‌ < कादम्बरो मदिरा, जननीं मातरं, छाडद्ति खेदे, fratafer

प्रियासमिव जायामिवाचरन्ति, प्रियां जननोयन्ति जननोमिवा- चरन्ति | मदिरामद विद्रलत्वाव्नननोजाययो राचा रव्यत्ययेन व्यव- हरम्तोत्यथंः <

तधा--

जानाति परं खं वा मदाच्चलितचेतनः।

खामौयति बगकः खं खामिनं किङ्करौयति १०

४९२ योगशास्त्र

मद्याहेतोः चलितचेतनो नष्टचेतन्धः खन्‌, खमामानं, परं घा भराकलव्यतिरिक्ञं, जानाति भत्र हेतुमाह- यत भामान- मजानन्‌ खं खाभिनमिवाचरति, वराकदयतन्यद्धोनत्वादनुकम्प- नोयः परमजानन्‌ सखरामिनं नाघं किङ्करसिवाचरति १०॥

तथा- |

मद्यपस्य शवस्येव लुढितख्य चतुष्पथे |

मूचयन्ति मुखे १वानो ara विवदशद्भया ११॥ GHZ ११

तधा

मदयपानरसे मग्नो नग्नः खपिति चत्वरे गूढं खमभिप्रायं प्रकाशयति लोलया १२॥ मद्स्य पानं ay रस भ्रासक्षिस्तत्र मग्नो face: ; मदय. पानव्यसनोत्य्थः। wt एव वस्रमपि स्रस्तमजानन्‌ नग्नः खपिति चत्वरे, नतु टह एव। दोषान्तरं च, गूढं केनाप्यविदितं, खमभिप्रायं राजद्राहादिकं, प्रकाशयति प्रकटौकरोति, लोलया बन्धनताडनादिव्यतिरेकेणापि १२ तथा- वारणौपानतो यानि कान्तिकित्तिं मतिभ्यः | विचिच्रािषरना विलुटठत्कष्नलादिव १२३

वारणोपानतो मद्यपानात्‌, यान्त्यपगच्छन्ति, कान्तिः शरीर.

तोयः प्रकाशः | BER

तेजः, कीर्तिर्यशः, मतिस्तात्कालिकौ प्रतिभा, at सम्पत्‌ विचिन्रा इत्याद्युपमानं UTZ ११॥

लधा- भूतास्तवन्नरौ नत्ति रारटौति सशोकवत्‌ | CET TTA सुरापो लोलुटौति १४॥

भूतास्ो व्यन्तरविशेषपरिग्ह्ोतः, atafa क्रियापदानि WMATA ङ्लुबन्तानि १४॥ तधा-

विदधल्यङ्गगेधिल्यं ग्लपयन्तीन्दरियाणि | मृ्छामतुच्छां यच्छन्तो हाला हालाषलोपमा ॥१५॥ हाला सुरा, हालाहनलोपमा eran विषविशेषस्तत्‌- Wem साधारणधमीनाह- विदधतो कुर्वाणा अङ्गगेचिष्यं रौर विशंस्युलत्वम्‌, रलपयन्तो कार्या्षमाशि कुव्वैतो, इन्दि याणि चक्षुरादोनि; मूच्छ चेतन्याभावस्तामतुच्छां प्रसुरां यच्छन्तो | शङ्गगधिष्यादयो शहालाडहालाहलयोः साधारणा

धर्माः १५॥ |

लधा- विषेकः संयमो ज्ञानं सत्यं शोचं दया चमा मदाव्मलौयते सव ara वङ्किकणशादिव १६

विवेको शेयोपादेयन्नामं, संयम इन्दरियिवनोकारः, नानं

४६४. योगशास्त्र

शास्रावबोधः, सत्यं तथ्या भाषा, गोचमावारशहिः, दया कर्णा, लमा क्रोधस्यागुत्पाद sure वा fantacy) मदाग्भद्य- पानात्‌, Walaa नाशमुपयाति, सर्वँ विषेकादि यथा वद्किकण्वात्‌ SQ ढणसबरूहः | कणानां TWAT, पाशादितलाज्ञा ¦ ॥१६॥

दोषाणां कारणं मदं मदां कारगमापदाम्‌ रोगातुर इवापध्यं तद्माग्द्मयं विवजंयेत्‌ १७॥

दोषाणां चौयेषारदारिकतादौनां, कारणं हेतुः, मव्य- पानरतो fe fa किमकायं gat; दोषकारणत्वाटेव चापदां वधबन्धादोनां, कारणं तस्माद्य विवजंयेदित्युपसंहारः | रोगातुर इवापध्यर्मित्युपमानम्‌ | | अवरान्तरश्चोकाः-- रसोडवाञ्च भूयांसो भवन्ति किल जन्तवः | तस्मादयं पातव्यं हिसापातकभोरुणा १॥ दन्तं दन्तमान्तं नान्तं कतं नो क्तम्‌ मषो्राज्यादिव et at वदति aan: २॥ we बहिर्वा मार्गे वा परद्रव्याणि मूढधोः | वघबन्धादिनिर्भीको ग्रद्भात्याच्छिद्य मदपः॥ ३॥ बालिकां युवतीं ठा ब्राह्मणीं खपचोमपि yea परस्त्रियं सद्यो मद्योक्मादकदर्धितः रटन्‌ गायन्‌ लुठन्‌ धावन्‌ कुप्यंसुष्यन्‌ रुदन्‌ हसन्‌ | स्तमरन्रमन्‌ MAAS सुरापः TITS नटः॥ ५॥

BANA: प्रकाशः |

गूयते किल शाम्बेन मद्यादन्धस्भविष्णुना | तं afuge सवं श्नोषिता "पुरो पितुः पिवत्रपि सुडुमव्यं मच्यो नेव ठष्यति | जन्तुजातं कवलयन्‌ RAT द्व सवदा wo लोकिका ्रपि मद्यस्य बहुदोषत्भ्माखिताः | यत्त परिष्टाय॑लमभेवं पौराणिका जगुः कचिदटषिस्तपस्तपे भोत इन्द्रः सुरस्त्रियः | लोभाय प्रेषयामास तस्यागत्य तास्तकम्‌ < विनयेन समाराध्य वरदाभिसुखं खितम्‌ | AYA तथा मांसं सेवखात्रद् चेच्छया १०॥ एवं गदितस्ताभिहं योनैरकरेतुताम्‌ | AAT मदरूपं शचकारणपूवेकम्‌ ११ मयय प्रपद्य तद्ञोगान्‌ नष्टधमखितिमदात्‌ | विदंशाथैमजं wat सर्वभेव चकार सः + १२ wade नरकस्य पहतिं सवापदां खानमकोत्तिकारणम्‌ | श्भव्यसेव्यं गुखिभि्विं गर्हितं विवजयेग्भद्यमुपासकः सदा १३॥ १७॥

~ ~ ~~~ ~~ > त-न = ee ee

(1) we पितुः yy (२) waa -afaar: |

५८

४९५

४६९ योगशास्त्र

अध मांसदोषानाषश्- वचिखादिषति यो मासं प्राणिप्राणापडारतः। उन््ूलयत्यसौ मूलं दयाऽऽख्यं धर्मशाण्विनः १८

विखादिषति, खादितुमिच्छति, a: कञ्चित्‌, aid पिशितं, असौ मान्‌, उग्मूलयति उल्खनति, किं तन्मूलं दयासंन्नकं, कस्य धमं- शाखिनः yaw, aged कथं धर्मतरोदेयाख्यं मूल- eyed इत्याह - प्राश्िप्राणापहारतः प्राणिप्राणापाराहेतोः, a fe प्राणिप्राणापषारमन्तरेण मांसं संभवतोति १८

aa aid चिखादिषब्रपि प्राखणिदयां करिष्यतीत्याह-

अशनौयन्‌ सदा मासं दयां यो fe चिकौषति। ज्वलति ज्वलने aat रोपयितुमिच्छति १८

सदा सवेदा, मांसमशनोयन्‌ मांसमशनमिवाचरन्‌, galafa च्छाच्रमि तिवत्‌ “भाधाराच्ोपमानादाचारे ५॥२।४।२४॥ इति क्वनि रूपम्‌, दयां wat, यः कचित्‌, fe स्फुटे, चिकोषंति कर्तमिच्छति | च्वलतोत्यादिना निदशेनम्‌, यधा च्वलत्यम्नी वज्ञोरोपणमशक्षम्‌, तथा मांसमग्रनोयता दयाऽपि कर्तुमशक- व्यधेः १९

नन्वन्धः प्राणिनां घातकोऽन्यख मांसभसक इति कथं मांस- wane प्राखिप्राशापश्रणमिति उच्यते भत्तकोऽपि घातक पएवेत्वाषह-

Bala: प्रकाशः | ४६७

न्ता पलस्य विक्रेता संस्कर्ता भच्तकस्तथा |

क्रो ताऽनुमन्ता SAT घातका एव यन्द्रनुः ॥२०॥ हन्ता शस्त्रादिना प्राणिनां प्राणापषारकः, पलस्य वक्ता यो मांसं विक्रो णोत पलस्येत्युत्तरेष्वपि पदेषु सम्बन्धनोयम्‌ | संस्कर्ता यो मांसं संस्करोति, waa: खादकः, क्रेता यो मांसं क्रौणाति, अ्रनुमन्ता यः प्राखिहिंसयथा मांससुत्णाश्मानमनुमोदते, दाता at मांसमतिथ्यादिभ्यो ददाति; एतै सा्तात्पारम्पय्येण वा घातका

एव प्राणिप्राणापषारका एव, यश्मनुरिति संवादाधम्‌ २०

मानवभेवोक्ग दथयति-

अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयौ |

संस्कर्ता Baral खादकश्चेति घातकाः ॥२१॥ श्रमुमन्ता भ्रमुमोदकः, विश्रसिता इतस्याङ्गविभागकरः, निदन्ता व्यापादकः, कयविक्रयो क्रयविक्रयौ विद्येते यस्य तथा, क्रेता विक्रेता Aur; संतता मांसपाचकः, sawul परिषिष्टा, खादको NAR: ; एते सवे घातकाः WAL

हितोयमपि मानवं ज्ञोकमाह-- amet प्राणिनां हिंसां मासमुत्पदाते क्रचित्‌ | प्राडिवधः खर्ग्यस्स्प्रान्प्मांसं विवर्जयेत्‌ २२

यावद्माणिनो इतास्तावन्मांसं नोत्पद्यते, fear चातिश्येन Saag, तस्माश्मांसं विवजेयेत्‌, उत्पद्यत इति मासस्य हिसा

४९८ यो गशास्

निमित्तत्वात्‌ कनृव्यपदेश दति समानकतृकत्वमविसदम्‌ wa इति स्वर्गामुत्त्तिमात्रमभिप्रेतमपि तु नरकादिदुःख- हेतुता २२

ददानोमन्यपरिद्ारेख भक्तकस्येव वधकत्वमा-

ये भच्यन्लन्यपलं खकोयपलयुष्टये | एव घातका यत्न वधको Waa विना २३

्रन्यपलमन्यमांसं aniagea ये uaafa एव utara घातकान तु इन्तुविक्रठप्रथ्तयः। भव युक्तिमाह-- य्यस्माब्र waa विना वधको भवति; ततो इन्तुप्रेतिभ्यो भक्षकः पापोयान्‌, सखकोयपलपुषटय शति हिंसाभिप्रायं सखपलपोषण- मावप्रयोजनः कतिपयदिनजोवितः परजोवितप्रहाणं कुर्यात्‌ यदाह- ‘Sqe परपाश्चे ware जे कुति ware | ware दिवसाणं acy नासंति ward ae il तधा- ‘uaa कण नियजो विय बहश्राड जोवकोडोश्रो | दुक्वं Safa & केवि ताश fal #सासयं THA १॥ १॥२२॥

[र

(१) त्वा परपाग्यान्‌ आर्यां बे कुवन्ति सप्राखम्‌। अल्पा मां दिवसानां कतेन नाशयन्ति खात्नानम्‌ (२) wae aa निजलनीवितद्य wear जोवकोटीः | इःखे स्यापयन्तियेके{पितेषां fa शाश्रतो ata: 74 + मासयो Warr |

Sala: प्रकाशः। ४६८

एतदेव सजुगुष्षमाद-

मिशच्रान्यपि विष्ठासादखूतान्यपि मूत्रसात्‌ |

स्ययंस्ि्नङ्गकस्यास क्रते कः पापमाचरेत्‌ ? ॥२४॥ मिष्टान्नानि शालिसुद्माषगोधुमादोनि तान्यपि विष्ठासादिष्टा- त्वेन स्युः संपदोरन्‌ saa पयःप्रश्तोमि तान्यपि मूत्र साश्मुत्रत्वेन स्युः संपद्येरन्‌ यस्मिन्‌ wy wd, Wa» कुल्सितस्य शरोरस्य, क्रते fafad, कः सचेतनः पापं प्राणि- घातन्तत्नणमा चरेत्‌ विदधत २४॥

erat मांसभत्तणं दोषायेति वदतो निन्दति-

मांसाशने दोषोऽसतीलयुच्यते यैदुरात्मभिः। AM THERA ATTA ATTRA: २५ मांसभच्ते दोषोऽस्तोति यैस्ते दुरामभिरदःखभावैः, यधा - | “न मांसभक्षणे दोषो मद्ये मेधने | vafatar भूतानां faafag महाफला" शति aatar लुखकाः, zur fear: afafaRar:, तकां भ्रण्यग्वानः, व्याघ्राः WaT: , SUA जम्बुकाः, Zena उपदेशकाः | wa a fe व्याधादीन्‌ गुरून्‌ विना afatdfad शिक्षयति, नचाशित्तितं महाजनपूज्या एवसुपदिशन्ति। aft faafag महाफलेति वदद्िरयेषां भिहत्तिमहाफला तेषां प्रव न्तिनं दोषवतोति स्मयमेव खवचनविरोध भ्राविष्कत इति किमन्धद्‌ ब्रूमहे २५॥

83० NAA faamatarfa मांसस्य परिषायंल्माष्-

मां भक्तयिताऽसु्र यस्य मांसमिशग्माशम्‌ |

एतम्पांसस्य मांसत्वे निक्तं मनुरत्रवीत्‌ २६॥ मां wafadfa oa ष्ति सवनामसामान्धापेक्चं योग्येनार्थेन निराकाङ्लोकरोति। यस्य ataavafa, «fa इहलोके,

watfa परलोके, एत्भांखख्य मांसत्वे मांसङ्पतार्या, fran नामघेयनिवचनं waaay २६॥ मांसभक्तशे महादोषमाह-

मांसाखादनलुब्धस्य देहिनं देहिनं प्रति |

इन्त vata बुद्दिः शाकिन्या इव दुर्धियः २७॥ सांसभखण्यलम्परटस्य देहम देहिनं प्रति dd पश्यति जलचरं मब्धादिकं, waat सगवराषादि अजाऽविकादि च, Quai ति्तिरिलावकादि, अन्ततो सूषिकाद्यपि तं तं प्रति wat हननाय afe: प्रवर्तते ; दुधियो दुर्बहेः, ाकिन्धा इ्व--यथा fe शाकिनो य॑ यं ged स््नियमन्यं वा प्राणिनं पश्यति, तंतं vat तस्या afe: Waa, तथा मांसाखादनलुब्धस्यापौति ro

पपि मांसमलिणासुत्तमपदाथंपरिष्ारण नोचपदार्धोपा-

दानं avefeagqa दगेयतोति दशया -

ये भक्षयन्ति पिशितं दिव्यभोन्यैषु सव्खपि।

सुधारसं परित्यज्य भुञ्जते ते इलाइलम्‌ Ve

तोयः प्रकाशः | ४७९१

दिव्यभोश्येषु सकलधातुवृंकेषु सवेन्द्ियप्रोतिप्रदेषु कोरकषैरेयौ- किलाटौकूचिकारसालादध्यादिषु मोदकमण्डकमर्डिकाखायक- पप॑टिकाषटतपूरादिषु इण्डेरिकापूरणवटकवटिकापपेटादिषु ््ु- गुडखण्डशकंरादिषु द्राक्षासषहकारकदलदाडिम नालिक्षेरनारङ्ग- खजूराच्चोटराजादनपनसादिषु arate तान्नाहत्य ये मूढा विखगन्धिनुगुष्ाकरं शूकाप्रधानानां वान्तिकरं मांसं भक्षयन्ति तै जोवितहदिहेत्वखतरसपरिष्टारेण जोवितान्सकरं हालाहलं विषभेदं yaad वालोऽपि fe टषत्परिषशारेण grata दति बालादपि atanfad बालाः ॥२८॥

AMY मांसमसष्दटोषमाश-

धर्मो निदंयस्यासि पलादस्य कुतो दया | vaya aete विद्याद्वोपदिशेन्नहि २८

निदेयस्य क्षपारहितस्य, धर्मो नास्ति ; धर्मस्य दया मूलमिति wraafea) ततः प्रसुते किमायातमत ्राह-पलादस्य कुतो दया | wales मांसोपजोविनः, कुतो दया नैव caw: ; VIHA वधकत्येनोक्तत्वात्‌। वधक कथं सदयो नाम इति पलादस्य नि्धमतालक्षणो दोषः ननु सवेतनः कथमाक्नि Walaa TSA! SAI vagal agfa मांसलोभेन तस्पृवार्घोकं जानाति wa कथञ्धिदिद्याव्ानोयात्तहि खयं मांस- लुब्धो मसनिहठर्तिं adanqay सर्वेऽपि मम सथा भवन्तिति परेभ्यो मसनिषेधं नोपदियेदालिणकवत्‌ श्रुयते हि कञिदा-

Bor योगशास्त्र

जिणको मागें गच्छनव्रैकया खपिया भकितस्तस्सर्वेऽपि भच्य- न्तामनयेति बुद्धया परेभ्यो नाख्यातवानिति ददितोयोऽपि तयेव दष्टो नान्येषां कथितवान्‌ ; एव॑ यावल्सप्त दष्टाः मांसखभक्षकोऽपि मांसखभक्षणशात्सखयं नरके पतन्‌ “aa नष्टा दुरामानो नाशयन्ति परानपि” इति परेभ्य उपदिशति २८९

इदानीं मांखभक्षकाणां मूढतासुपदशयति-

कैचिन्प्रासं महामोडादन्नन्ति परं खयम्‌ | देवपिवतिथिभ्योऽपि कल्पयन्ति यदूचिरे २०॥

केचित्‌ कुणास्रविप्रलमा महतो area केवलं खयं मांसमग्नत्ति किन्तु देवेभ्यः पिढठभ्योऽतिधिभ्यञ्च कल्पयन्ति, यद्यस्मादूचिर तद्मशास्रकाराः॥ २०

SAAT

AMAT खयं वाऽप्यत्पादय परोपषतमेव वा | देवान्‌ पितृन्‌ समभ्यच्यं खादन्‌ मांसं दुष्यति yz eI

मृगपल्तिमां सविषयमेतच्छास्नं, तेन सूनापणमांसं विना व्याध शाकुनिकादिभ्यः क्रीत्वा मूल्येन सूनापणमांसे तु देवपूजा- दावनधिज्नतेः। तथा खयमुत्पाय- ब्राह्मणो याख्या, afaat खगयाकमग्ा, Wat परेणोपद्ृतं दौकितं तेन मासेन देवानां, पितृणां चाचेनं क्त्वा मांसं Grea दुष्यति ; एतश्च महामोहा- दिति वदद्धिरख्माभिदूषितभेव खयमपि fe प्राणिषातदेतुकं

WALA: प्रकाग्‌ः। yor

aid भस्यितुमयु्गं fa पुनदेवादिभ्यः कल्पयितुम्‌ देवा fe सुक्ततसम्भारलातानोऽधातुकशरोरा श्रकावलिकादाराः कथं मासं भक्तयेयुः, अरभक्षयद्खास्तत्कश्यनं मोह एव | पितरश खसुक्तत- दुष्कृलवशेन प्राप्तगतिविश्रेषाः खकमफलमनुभवन्तो पुज्रादिल्लस- नापि सुक्ततेन तायन्ते किं पुनमांसठोकनदुष्कतेन। a qatfead gaa तेषासुपतिष्ठते wag सेकः कोविदारेषु फलं cal श्रतिधिभ्यशख्च सत्कारादभ्यो नरकपातदतोमंसस्व ढौकनं महते श्रधमीय। एवं परेषां महामोषृवेषटितम्‌ अति- afafafeamretiaaatefa चेत्र चुतिभाषितेष्वप्रामाख्िकेषु प्रत्ययस्य कर्तुमशक्यत्वात्‌ यन्ते हि श्रुतिवचांसि-यथा पापघ्नो गोखभः, दरुमाणां पूजा; छागादोनां वधः खम्यः। ब्राह्मणभोजनं पिदप्रोणने, मायाबोन्यधिदेवतानि; ast इतं देवप्रोतिप्रदम्‌। तदेवंविषेषु अ्ुतिभाषितैषु युक्िकुग्रलाः कथं ACN १।

यदाद

स्पर्शाऽमेष्यभुजां गवामघषशरो वन्दा विसंन्नादूमाः

स्वगेम्डागवधादिनोति पितन्‌ विप्रोपभुक्ताशनम्‌ |

GAPS: सुराः fafaga प्रोणाति देवान्‌ हविः

ala wey aay afafaci को वेत्ति लोलायितम्‌ 2 nen

AMMAIAE एवायं मांसेन देवपूजाऽऽदिकमित्यलं विस्तरेण aq मन्संस्छतो afea दहति पचति वा, तन्मन संस्कतं मांसं दोषाय स्यात्‌ | é ©

BOR योगशास्त्रे

यद्‌ मनुः- sama पशृग्मन्तैनीदयादिप्रः कथश्चन्‌ | wag संस्कतानद्याच्छ।ग्वतं विधिमास्थितः १॥ शाश्वतो नित्यो वैदिक इत्यथैः २१॥

भतराइ-

मन्तसंस््तमप्यदयादयवाल्यमपि नो पलम्‌ | भवेख्नोवितनाशाय हलाहललवोऽपि fe ३२॥

मन्वसंस्कतमपि मन्वपूतमपि, पलं नाद्यात्‌, a fe मन्वा भरम्ने- ईहनशक्षिवब्ररकादिप्रापणशक्तिं मांसस्य प्रतिबध्रन्ति। तथा सति सवेपापानि Wal पापन्नमन्वानुस्मरणमात्रात्‌ कतार्थीभिवेयुः | एवं सवेपापप्रतिषेधोऽपि निरथंकः स्यात्‌, सवेपापानां मन्ादेव TWAT: | अथ यथा स्तोकं मदं मदयति am खलं aid 4 पापाय स्यात्‌ उच्यते-यवाल्मपि यवतुद्यप्रमाणमपि नाद्यात्‌ पलमिति संबध्यते, तदपि दोषाय, भतोन्तराहेन निदशनम्‌ ३२

इदानोमङुत्तरं मांसस्य दोषमुपदशेयनुपसंहरति - सद्यः संमूद्छितानन्तजन्तुसन्तानदूषितम्‌ नरकाध्वनि पाथेयं कोऽञ्चोयात्पिशितं Aw: ? ॥२३॥

सद्यो जन्तुविशसनकाल पव संमूच्छछिता saat श्रनन्ता निगोद- रूपा ये जन्तवस्तषां सन्तानः पुनः पुनभेवनं तेन दूषितम्‌ |

waa: प्रकाशः | ४७५

aeTy: "आमासु aunty श्र विपश्वमाणासु म॑सपैसोसु। सययं faa saat भरिश्रो निगोग्रजोवाखं तत्त एव॒ नरकाष्वनि पाथेयम्‌, fafnanque case पिशितमपि पा्ेयमुक्तं, कोऽग्रीयात्पिथितं सुधोरित्यपसंह्ारः |

परतान्तरश्लोकाः-

मांसलुबरेरमर्यादे नास्तिकैः स्तोकदशिभिः। कुशाकारेव यात्याददितं मांसभक्षणम्‌ १॥ नान्यस्ततो गतष्टणो नरकाचिषदिन्धनम्‌ समसं परमांसेन भ्यः पोषयितुमिच्छति॥२॥ aie पुष्णब्रुगूयेन वरं हि zane: | प्राणिघातोडवैमां सेनं एननिघुणो नरः निःशेष जन्तुमांसानि भद्याणोति ऊचिरे aad वजितं शद्धे खवधाशद्कयेव तेः ४॥ विशेषं यो मन्येत ब्रुमांसपशमांसयोः | धामिंकसतु ततो नान्धः पापोयानपि नापरः ५॥ शक्रशो णितसन्भूतं विष्ठारसविवहि तम्‌ |

लोहितं स्यानतामाप्षं कोऽश्रोयादक्तमिः पलम्‌ ?

(1) शामा पकाक् विपच्यमाना् मांसपरेथोष। सततमेव sour भखितस्तु निगोटजोतानाम्‌ ! (2) खण जो atfaa-|

Bog

योगशास्त्र

भदो दिजातयो घमं गोचमूलं वदन्ति च। सप्तधातुकदेशोदं मांसमश्रन्ति चाधमाः WOH येषां तु 7s मांसात्रे खठकाभ्यवदहारिणाम्‌ | fanaa समे तेषां खत्यजोवितदायिनो wate सतां मांसं प्रख्यङ्गतेन हेतुना | श्रोदनादिवदित्येवं ये चाजुमिमते जडाः we गोसम्भवत्वान्ते सूं पयोवन्र पिवन्ति किम्‌ १। प्रा्यङ्गतानिभिन्ना नौोदनादिषु भच्यता॥ १०॥ शङ्ादि शचि नाख्ध्यादि प्राश्यङ्गत्वे समे यधा | Mears am vagawe पिशितादिकम्‌ eeu यस AAA AAT प्राह मांसौदने aa | Manraraavan: fat area a कल्पयेत्‌ ? Wer पञ्चेन्दरियस्येकस्यापि वधे तम्म्ांसभत्तणात्‌ |

यथा fe नरकप्रासिने तथा धान्यभोजनात्‌ १३॥

fe धान्यं भवग्मांसं रसरक्तविकारजम्‌।

अरमांसमभोजिनम्तस्मान्न पापा धान्यभोजिनः १४॥

धान्यपाके प्राणिवधः परमेकोऽव शिष्यत | wzfeui टेगयसिनांसतु नात्यन्तबाधकः॥ १५॥ मांसखादकगतिं fran: सस्यभाजनरता इड सन्तः | प्राप्नुवन्ति सुरसम्परदमुच्च- जनशासनजुषो गडिणोऽपि १६॥ २३॥

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Bala: प्रकाशः | ४७७ क्रमप्राप्तं नवनोतभक्षणशदोषमाषश-

अन्तमङ्कर्तात्परतः FARA जन्तुराशयः। यत Fett dala नवनीतं विवेकिभिः ॥२४॥

TAU FRNA श्रनसमंहत्ते, तस्मात्‌ परत ae, भ्रतिशयेन सूदाः Yast, जन्तुराशयो जन्तुसखमूहाः यस्मित्रवनो, मू च्छन्ति उत्पदान्ते, तन्नवनोतं, नाद्यं भक्तणौयं, faa- किभिः॥ ३४॥ एनमभेवाधं मावयति--

एकस्यापि हि जौवस्य हिंसने किमघं भवेत्‌ ?

जन्तुजातमयं तत्‌ को नवनीतं निषेवते ? २५ एकस्यापि fe जन्तोवेधे किं fagganmad पापं भवैत्‌ तत्त-

सपमाजजन्तुजातं प्रजतमस्िंस्तव्नन्तुजातमयं नवनोतं at निषेवतै कः सविवेकोऽश्राति१॥३२५॥ |

MA ATATAYSIALATE-— TARAAQVS AAA ATAARAT Wud लालावत्‌ कः खादयति afar ?॥२६॥ श्रनेकस्य जन्तुसद्गतस्य यत्निघातनं विनाशस्तस्मात्‌ ससुदवो यस्य तत्तथा निघातनमिति weatefa न्तेशुरादिपाठात्‌

fun रूपम्‌ श्रयं परलोकविरोधो दोषः, greatly कु त्नोयं, लालावज्ञालामिव, श्रयमिषहलोकविरोधो दोषः, कः

yo MANS

सचेतनः, खादयति भक्षयति, afearfa: ad मासिकं ay | एतच्च भ्नामरादोनामुपलक्तणम्‌ २६ इदानीं मघुभक्षकाणां पापौयस्तां दर्भयति - WATM AR चुद्रजन्तुल्नलषयो इवम्‌ | स्तोकजन्तुनिडन्तभ्यः शौनिक्षभ्योऽतिरिच्यते ॥२७॥ चुद्रजन्तुरनख्िः स्यादथवा शुद्र एव यः श्रतं वा प्रखतियेषां केविदा agerefa i १॥ तेषां शद्रजन्तुनां लक्षाणि, aqayd बडहत्वोपलचषणम्‌ | वेषां क्षयो विनाशस्तस्मादुद्वो यस्य तत्तथा, तद्भत्षयन्‌ स्तोक- पश्वादि जन्तुनिहन्तुभ्यः शौनिकेभ्यः खहिकेभ्योऽतिरि च्यते श्रधिकौ- भवति ; भक्षकोऽपि घातक दत्यक्गप्रायम्‌ ३७ लौकि कानामप्युच्छि्टभो जनत्याजिनामुच्छिष्टतवाग परि्न्तव्यभेवेत्यादह--- एकेककुसुमक्रोडाद्रसमापीय afar: | qenta मधूच्छिष्टं acufer धामिकाः ॥इट८ एककस्य कुसुमस्य यः क्रोड उत्सङ्कस्तस्माद्रसं मकरन्दमापीय पला, मलिकाः यहमणन्ति उदिरन्ति, तदुच्छिष्टं मधु; wa चरन्ति धार्मिकास्ते नारन्ति। भ्रनुच्छिष्टभोजनं fe धर्मो लौकिकानाम्‌ ३८ aq 'विदोषशमनं मधुः नातःपरमीषधमस्तौति Aza शान्तये मधुभक्षे को दोष एत्या --

SAA: प्रकाशः | ४७९

अप्योषधक्तते जग्धं मधु प्वभनिबन्धनम्‌ |

भितः प्राणनाशाय कालकूटकशोऽपि हि ॥३९॥ श्रास्तां रसाष्रादलाम्पय्येन यावदौषधक्ृतेऽपि ग्रौषधनिनमित्तमपि मधु जग्धं यद्यपि date, तधापि waw नरकस्य निबन्धनम्‌ ; fe यस्मात्‌ प्रमादाञ्लोवितार्धिंतया वा कालकूटस्य विकस्य कणोऽपि लवोऽपि भक्तितः सन्‌ प्राणनाशाय भवति ॥३९॥

नमु खजुरद्रात्तादिरसवन्प मधुरमिति सरवे द्दरियाप्यायकलवात्‌ कथं परिदाय aifzary— मघनोऽपि हि aaa aE Ae ्रासादयन्ते यदाखादाच्िरं नरकषेदनाः॥ ४० सत्यमस्ति मधुनो माधुयं व्यवहारतः, परमाघेतस्तु नरके दना- हेतुत्वादत्यन्तकटुकलत्वभेव श्रवोपैरिति परमार्धेपरिभौलना- विकलैः, नरकवेदनादलोरपि मधुनो माघुर्यवणेनमबाधाना- मिव्यशडेत्यनेन विषादो द्योत्यते। यस्य aya भराखादाब्ररक- वेदनाधिरमासायन्ते प्राप्यन्ते ४०॥ पवितल्ात्‌ मधु देवल्ञानोपयोगोति ये मन्यन्ते तानुपडसति- मक्तिकामुखनिषुयतं जन्तुघातोहवं मधु | अहो पवित्रं मन्वाना देवसखराने VAM ४१॥

मल्तिक्राणां सुखानि afterd वान्तं जन्तुघाताप्राणिघातादुङ्वो यस्य तन्ताटशमपविन्रं ay, पवितं शचि, मन्वाना ्रभि-

Be योगशास्त्र

मन्यमानाः, देवानां शङरादोनां, खाने खाननिमिन्तं, wae व्यापारयन्ति, WHT इत्यपहासे | यथा- | करभाणां fears | रासभास्तन्र गायनाः | परस्मरं प्रशंसन्ति रो ङ्पमषहो प्वनिः १॥ ४१॥

क्रमप्रापान्‌ THATS TATE SSMALATAATATA CACM ay | पिप्यलस्य नाश्रौयात्फलं कमिकुलाकुलम्‌ ४२॥ उदुम्बरवटञ्जल्तकाकोदुम्बरिका पिप्पलानां पञ्चोदुम्बरसंस्ितानां wa

नाश्रोयात्‌ | भनशने कारणमाइ-क्रमिकुलाकुलं, एकस्मिब्रपि फले तावन्तः Baa: सम्भवन्ति ये परिसंख्यातुमपि शक्यन्त |

यन्नौकिका भपि पेदुः-

कोऽपि क्षापि कुतोऽपि कस्यचिददो चेतस्यकस्माल्ननः

केनापि प्रविशत्यदुम्बरफलप्राणिक्रमेण चषणात्‌ |

aafaafa पाटिते विघटिते faarfaa स्फोरितै

fafa परिग।लितं विदलिते farted वा नवा ven इति ॥४२॥

पश्चोदम्बरफलविरतानां सुतिमाडइ- शअप्राप्रुवनत्रन्यभच्यमपि AAT बुभुक्षया | भक्षयति पुण्यात्मा पञ्चोदुम्बरजं फलम्‌ ॥४३॥

यः पुश्याता पविव्रामा पुरुषः, wales फलं भत्तयति,

कतोयः WHIT | ४८१

Watt सुलभधान्यफलसमृच देशे काले वा, यावष्ेणदोषात्‌ काल- slater अ्रप्राप्रुवन्रव्यन्यभश्यं धान्धफलादिभच्यं ; भपि शब्द्‌ उत्तर- तापि सम्बध्यते; qyaat कामोऽपि क्शोऽपि; wayfaaw सख्यस्य ब्रतपालनं नातिदुष्करम्‌ ; यस्तु श्रप्राप्तभोज्यः चुत्त्ामद् aa पालयति पुण्यातति प्रशस्यते ४३

क्रमप्राप्तमनन्तकायनियमं ज्ञोकत्थेण दशेयति-- We: कन्दः समग्नोऽपि aa: किशलयोऽपि ae लबगक्षत्वक्‌ कुमारो गिरिकणिका ॥४४ शतावरौ विरूढानि Gest कोमलान्िका पल्लाद्धोऽखतव्ली aw: शुकरसंज्जितः ४५ अनन्तकायाः सुचोक्ता अपरेऽपि Hara: |

मिध्याटशामविज्ञाता वजनौयाः प्रयन्नतः ४६ ्रारद्राऽशष्कः, शष्कस्य तु निर्जोवतल्वादनन्तकायत्वं भवति कन्दो भ्रुमिमध्यगो ठक्षावयवः समग्रोऽपि, सवं कन्दा vert) तेच सूरणभ्राद्रंकलशनवयकन्दहरिद्राकचचूरपलागकन्दग्टच्ननलोटकक- सेरुकसुदरमुस्तामूनकभ्रालुकपिष्डालुकडहस्तिकन्दमनुष्यकन्द्प्रथ-- तयः ; किश्यलयः पत्रादर्वाग्‌ बोजस्यो"च्छूनावखा wal तु काचिदेव, खुषो वतर: ; aU ठ्तस्य त्वक्‌, त्वगेव aaa अवयवाः ; कुमारो मांसलप्रणालाकारपत्रा, गिरिकणिंका

(१) कचं -त्याना-।

ge

४८२ ` योगशाख्ते

वज्ञोविशेषः, शतावरौ वज्ञोविश्रेष एव, विरूढानि wefenfa दिदलधान्धानि, शुचो व्ञोविशेषः, कोमलाऽच्जिका कोमला भवदाखिश्षा अस्जिका fafefeart ; ame: शाकभेदः, ्रसतवज्ञो वज्नोविशेषः, am: गुकरसंन्षितः qa eau: ; शूकरसंच्चितग्रहणं धान्यवज्ञनिषेधा्थेम्‌ एतै भायेप्रसिहाः ब्ब व्छप्रसिद्ासु waisfa date: ; at जोवाभिगमः। भ्रपरऽपि marae: सुश्राषकेवेजनोयाः। ते मिष्यादृ्टौनामविन्नाताः ; मिष्याहशो fe वनस्मतोनपि जोवल्ेन मन्यन्त कुतः पुनरनन्त-

कायान्‌ ४४ ४५॥४६॥ श्रथ क्रमप्राप्तमच्रातफलं वजयितुमाद-

खयं परेण वा ज्ञातं फलमदादिशारदः | fafae विषफले वा मा yee प्रवत्तं नम्‌ ॥४७॥

अन्नातमिति संबज्धिविशेषानिर्देणात्‌ खयमाव्मना, परेश वा अन्धेन, श्रातं फलमव्यादक्षयेहिशारदो धोमान्‌ ; ad खयं परेण वान wid तदन्नातफलं वजेयेत्‌ ; भनश्नातफलभक्तषे दोषोऽयम्‌, fafae फले विषफले वा भन्नानादस्य विशारदस्य मा anafe:: ‘sant fe प्रतिषिहे फले प्रवन्तमानस्य व्रतभङ्कः, विषफले तु जोवितनाशः ४७॥

१) अलानतो।

BAA प्रकाशः | ४८४

wa mand राविभोजनं निषेदुमाडहइ --

अन्नं प्रेतपिशावाद्यैः aquiRfacen: | उच्छिष्टं क्रियते aa तच नादयादहिनाल्यये ४८ प्रेता WUAT व्यन्तरः, पिशाचा व्यन्तरा एव ; भ्राद्यग्रहणाद्रास- सादिपरिग्रहः, निशाचरलवात्रिरङ्कशेः aaa aucfa: ख्शणीदि- नोच्छष्टमभोज्यं क्रियते ax दिनात्यये ual, aa नादान Wala | | यदाहुः "मालिंति महिश्रलं जामिणोसु रयणोश्ररा समते | ते विह्ालेति eae रयणोए भुंजमारं तु ४८

तधा-

घोराखकारश्दाक्तैः पतन्तो यच जन्तवः | नेव भोज्ये निरौच्यन्ते तज yaa को निशि ?॥४९॥

प्रबलान्धकारनिसडलोाचनेः क्मिपिपोलिकामसिक्ादयः पतन्तो छततेलतक्रादौ भोज्ये दृश्यन्ते यत्र, aa तस्यां निशि सचेतमः को भुक््नोत १॥ ४९

१) भालयन्ति महोतलं याभिगोषु रजनोचराः समन्तात्‌ | तेऽपि चलन्ति eRe रजन्यां UR aT # ते वि क्लंतिष् एति रलगेखरणरिकतशावकप्रतिक्रमचष्नरोङ्ञाबाम्‌।

४८४ ` योगशास्च

रात्रिभोजने दृष्टान्‌ दोषान्‌ ञ्चोकत्येषाहइ-

मेधां पिभलिका इन्ति युका कुर्याव्जलोदरम्‌ | कुरुते मक्षिका वान्ति कुष्ठरोगं कोलिकः ५० कण्टको दारुखगड वितने।ति गलव्यथाम्‌ | व्यश्चनान्तशिप्रतितस्तालु विध्यति दिकः ५१ विलम्नञ्च गले वालः खरभङ्गाय जायते |

Taal दृष्टदोषाः स्वं्ां निशि भोजने ५२

पिपोलिका कोटिक, मन्रादिमध्ये मुक्ता सतो, मेधां बुदिविशेष, शन्ति; पिपोलिकैति जातावेकवचनम्‌ तथा युका जलोदर मुदररोगविेषं कुर्यात्‌, awa afaar afe वमनं करोति, तथैव कोलिको मकटक्रः, कुष्ठरोगं करोति, कण्टको बदर्यादि- संबन्धो, दारुखण्डं काषशकलं, तथेव गलव्यधां वितनोति, व्यच्छनानि शाकादोनि तेषां मध्ये निपतितो ह्चिकस्तालु विध्यति | ननु पिपोलिकादयः खच्छताव्र दृश्यन्ते, ठि कसु स्थूलत्वाद्‌ दृश्यत एव तत्कथमयं भोज्ये निविशेत उच्यते। व्यच्नमिह arat- कुश्ाकक्पमभिपरेतं तहन्त ठचिकाकारमेव भवतोति ठिकस्य तब्मष्यपतितस्यालश्यत्वादोज्यता auaaifa | faa गले वाल इत्यादि ava ; एवमादयो राविभोजने दृष्टा दोषाः सर्वेषां मिच्याहशामपि |

SANA: प्रकाशः | ४८५ यटाहइः-

'ae पिपोलियाप्रो#+ हंति aad मच्छ्िया Aa |

जुया waaay कोलियश्रो कोढरोगं १॥

बालो सरस्य UF कण्टो लमग्गद्‌ aaa cig q |

agin fiug wat वंजणमस्रग्ि भुजंतो २॥ sfa a. निशाभोजने क्रियमाणे wast पाकः संभवो तत्र षडजोवनिकायवधोऽवश्यंभावो, भाजनधावनादौ जलगतजन्तु- विनाशः, जलोच्छनेन .भूमिगतकुन्यु पिपौलिकादिजन्तुघातञ्च भवति, तवप्राखिरक्षणका्कया ्रपि निशाभोजनं away

यदाष्ुः- Mary BATT घायणं भायणधोयणासु |

एमाद्ययणिभोयणदोशे को साच ATT ॥५०।॥५१।५२॥

नमु TATA पाको वा भाजनधावनादिसंभवस्तल्मिचं मोदकादि waicgrarfe भक्षयतः श्व दोष इत्याह--

ककर

(१) मेधां पिपोशिक्षा जनन्ति वलनं afar करोति। मूका जलोट्रत्वं कोलिकषः nec ways बालः STS UF कटको लगति nF eq q | तालुनि विध्यति afaalgaray चञ्छमानः॥ २॥ * fattfa ured | +t welat a} (२) starat कुन्ध्वारोनां घातनं भालनघावनादिष | एवमाटिरिलनोभोलमटोषान्‌ कः कथयतु शक्रोति lye i

ute योगशाख्

नाप्रेच्यसच्छजन्तूनि निश्यदयात्पराशुकान्यपि | अप्यात्केवलन्नानेर्नाहतं यच्चिशाऽशनम्‌ ५२

प्राणकान्यपि भवेतनान्यपि उपलश्षणशत्वा्तदानोमपक्षान्यपि मोदकफलादौोनि faa, कुतः भप्र्यसृच्छअन्तृनि wie: प्रे्तितुमश्क्धाः, Gat कुन्युपनकादयो जन्तवो aa तानि विशेषणद्वारेण हेतुवचनं, भप्रे्यसुच्छजम्मुत्वा दित्यर्थः ; यद्‌ यस्मादुत्पन्क्षेवल्नानेः कैवलन्नानबलेनापिगतसुक्छेतरजन्तुसंपाते. निजैन्तुकस्वाहारस्याभावान्नाहतं निशाभोजनम्‌ wea निशोधभाष्य-- 'जश्वि हु फासुगदव्वं कुथुपशगावि तद्वि qua | पञ्चकमस्वनाणिणोवि y राेभत्तं परिहरति ।॥ १॥ जष्वि पिवोलगाई दौसंति पर्वमाष्ल्लोए | तश्वि खलु WUT मूलवयविरादहणा जेण ॥२॥ ५२॥ लोकिकसंवाददशनेनापि राजिभोजनं प्रतिषैघति- धर्मविन्नैव Yala कटाचन दिनात्यये are मयि fama यदभोज्यं प्रचत्षते॥५४॥ धर्मवित्‌ अुतधर्मवेदो कदाचित्रिभि yatta, वाद्या जिन-

(1) अद्यपि खलु प्रागुकट्व्यं कुन्धुपनका आपि तथापि gent: | प्र्श्स्ाभिनोऽपि we cifaun परिषरन्ति॥१॥ यद्यपि खल्‌ प्पोकिकाट्यो इष्यन्ते प्रहोपाद्यु्योति | तथापि खलु व्यनाचोष्छे' भृजत्रतविराधना बेन २॥

WAT? प्रकाशः | gro

शासनबहिभूता लोकि कास्तेऽपि यत्‌ यस्मात्‌ fafa भोज्यमभोनज्य Wand ५४॥

येन शास्रेण am निशाभोज्यमभोञ्यं प्रचक्षते तच्छास्त्नो- una तद्ययेति तच्छाल्रमेव पठति-

az यधा--

चयोतेजोमयो भानुरिति बैदबिदो विदुः |

तत्करः पूतमखिलं शुभं कम समाचरेत्‌ ५५॥ वयो ऋग्यसुःसामलच्षणा awa: wad प्रसुतमस्मिन्‌ anima भानुरादित्यः, त्रयोतमुरिति श्ादित्यस्व नाम। इति वेदविदो जानन्ति। तलत दति शेषः तत्करेभागुकरः पूतं पवित्रोक्तम खिलं समस्तं शुभं कम समाचरेत्‌ ; तदभावे wi कमं कुर्यात्‌ ५५ |

एतदेवाह -

नेवाइतिनं सानं ग्रां देवताचंनम्‌

दानं at fated रातो भोजनं तु विशेषतः ॥५६॥ अहतिरग्नौ समिदाद्याधानं, खानमङ्कप्रसालने, श्रां पिठकमे, देवताचनं देवपूजा, दानं विश्राणनं ; विहितमिति waa नजो योगः; भोजनं तु विशेषतो विहितमिति। नशु

नक्षभोजनं श्रेयमे श्रुयते, राविभोजनं विना anata उच्यते ।. नक्ञगष्ार्घापरिन्नानादेवसमुश्यते ५९॥

yor योगशास्त्रे

तदेवाह - दिवसस्याष्टमे भागे मन्दौभूते दिवाकरे | aa तु तदिजानोयान्न नक्तं fafa भोजनम्‌ yon दिवसस्य दिनस्याष्टमे भागी पाषात्येऽप्रहरे यद्गोजनं aam- fafa विजानोयात्‌ दविधा fe शब्दस्य प्रहत्तिर्मुख्या गौषो च; तव क्चिग्परख्यया व्यवहारः, क्षचिग्बुख्याधबाधायां सत्यां NW; ARIA रात्रिभोजनलकसुख्यार्थवाधा, ufa- भोजनस्य ay aa ufafawarfefa ara एव anne cual दिवसगेषभो जने aia, aa निमित्तमुह्णं wehza दिवाकरे, सुख्याथप्रतिषिधाश्च निभि भोजनं amy you राजिभोजनप्रतिषेधभेव परकोयेण taeda - देवस्तु ya gate wars षिभिस्तथा | aware पिठभिः सायाङ्कं दैत्यदानवैः ॥५८॥ सन्ध्यायां यत्तरक्तोभिः सदा भुक्तं कुलोदह | | सर्वषेलां व्यतिक्रम्य Tat भुक्तमभोजनम्‌ ५८ पूवेमह्ः yale: तख्िन्‌ देवेभंं, मध्यमहो मध्याङृस्तस्मिगरुषि- finia, भपरमहो भ्रपराद्गस्तस्मिन्‌ frafiniag ; सायमङ्ः सायाङ्को विकालस्तस्मिन्‌ देत्यैदिं तिजेर्दानवैदं नुजैर्भुक्तम्‌ ; सन्ध्या रजनीदिनयोः प्रवेशनिष्काश तस्यां aera रच्तोभो रा्सै- भुक्तम्‌ | कुनोदहेति युधिष्ठिरस्ामन््र णम्‌ सर्वेषां देवादोनां वेला पवसरस्तां व्यतिक्रम्य रातो भुक्ञमभोजनम्‌ ५८॥ ५९

BAT. प्रकाशः 1 ट्€

आयुतं देऽप्युक्तम्‌

va पुराणेन रात्रिभोजनप्रतिक्षेधस्य संवादमभभिधायायुदेन

संवाद माह, ्रायुवे देऽप्युक्तमित्यनेन | भायुवेदम्तु-

इत्नाभिपद्मसङ्ोचश्चण्डरोचिरपायतः |

अतो नक्तं भोक्तव्यं सुच्छजोवादनादपि ॥६०॥ इह शरोरे दे पद्ये; wat यदधोसुखं, नाभिपद्मं यदद सुखं, eae पद्मयोः रातौ ares; कुतञ्चण्डरोचिषः सूर्थस्ापायादस्तमयात्‌ | श्रतो इत्पग्मनाभिपग्मसङ्को चारतो रात्रौ भोक्लव्यम्‌ ; सच्छजोवादनादपौति हितोयं निशिभोजन- प्रतिषिधकारणम्‌ सूदा ये जोवास्तेषामदनं vay, तस्मादपि रात्री भोक्तव्यम्‌ ६०

परपक्तसंवादमभिधाव que समधंयते-

संसजज्नोवसङ्खातं yar निशि भोजनम्‌ | Tae विशिष्यन्ते मूढात्मानः कथं नु ते? ॥६१॥

संबध्यमानजोवसमूहं, भोजनं भोज्यं, yarat fafa राचौ, दासभ्यः Raza: ad q कथं नाम, विशिष्यन्ते भिद्यन्त, रास्षसा एव ते wa) मूढातानो ase; रपि च, लब्धे मानुषत्वे जिनधमपरिष्कुते facta कर्मुचिता, विरतिोनसु ङ्पुच्छहोनः पशुरेव ६१॥

६२

8९० ` योगशास्त्र waeary— वासरे र्जन्याच यः वादन्नव fasfa | खृङ्नुच्छपरिषष्टः we पुरेव हि ce It WEA ९२ रा्रिभोजननिदन्तभ्योऽपि सविशओेषपुखयवतो दशंवति- अङ्को मुखेऽवसानेचयोद्दे घटिक जन्‌ निंशाभोजनदोषन्नोऽश्राल्यसौो पुष्यभाजनम्‌ ६३ tt अको सुखे weal, अवसाने पिमे भागे, इं दे घटिक, qed Gest रातेः, प्रत्यासनत्रं त्यजन्‌ परिहरन्‌, योऽश्नाति ye- भाजनम्‌. निशाभोजनदोषन्न इति निश्ाभोजने सम्पातिमजन्तु- सम्पातलक्षणा ये दोषास्तान्‌ जानन्‌ रातिप्रत्यासत्रमपि qed qed सदोषत्वेन जानाति; wa waa सवंजघन्यं प्रत्याख्यानं

सुडन्तप्रमाणनमष्कारसदधितसुखते | पाषात्यमुह्ृत्तीदप्यवाक्‌ खावको भोजनं करोति, तदनन्तरं रात्रिभोजनं प्रत्याख्याति we ai

ननु यो दिवेव yea तस्य रात्रिभोजनप्रत्याख्याने wa नास्ति, फलकविगेषो वा कञ्िदुच्यतामित्याहइ-

अक्त्वा नियमं दोषाभोजनादिनमोज्यपि

we waa निर्व्याजं afanifad बिना ६४॥

नियमं निह्तिं, राविभोजनादक्लत्वा दिने da गोलमस्यासौ दिनभोजौ सोऽपि निशाभोजनविरतेः फलं निर्व्याजं निग्डद्म,

BAA: प्रकाशः BER

भजेत्‌ लभेत कुत इत्याह--न afeuifad विना, afer कलान्तरं, भाषितं afd विना स्यात्‌ लौकिकभेतद्‌, यथा अाषितभेव कलान्तरं भवेदिति ९४ a पूर्वाल्ञस्य विपयंयमाह-- ये वासरं परिल्यज्य रजन्यामेव मुञ्चते |

ते परिलयनज्य माणिक्यं काचमाददते जडाः ॥६५॥ दिवसं परित्यज्य तच्चछैलतया रात्राव ये yaa; zeta: स्पष्टः neue

ननु नियमः waa फलवान्‌, ततो यस्य रात्रावेव मया भोक्तव्यं दिवसे" इति नियमस्तस्व का afaftary—

वासरे सति ये श्रेयस्काम्यया निशि मुञ्चते |

ते वपन्छुषरन्नेत्रे शालीन्‌ सत्यपि पल्वले ६६ SHIN वासरभोजने स्यपि कुशासत्रसंस्कारान्मोदहादा अखय- स्काम्यया ये रातावैव भुश्ते मे गालिवपनयौग्ये qaa सत्यपि wet BF गालोन्‌ वपन्ति। यथा wet Ba गालिवपनं निरथकं, तथा रात्रावेव मया भोक्तव्यमिति निष्फलो नियमः | पधर्मनिहत्तिरूपो fe नियमः फलवानयं तु घसनिहत्तिरूप दत्यफनलो विपरीतफलो वा ee

रात्रिभोजनस्य फलमाद- उलुककाकमा्जारण्घ्रणम्बरशुकराः |

अहिद्ठ्चिकगोधाश्च जायन्ते रात्रिभोजनात्‌ ॥६७॥

BER AVANT

गात्रिभोजनादुलुकादिषु a भवति। उन्तृकादय उपलचणं ; ैनान्यष्वप्यघमतियन्तु राव्रिभो जिनो जायन्ते ९७

वनमालोदादहरणेन राव्रिभोजनदोषस्य महत्तां दशयति--

शूयते छयन्यण पथाननाहल्येव लच्छ गः | निश्ाभोजनगश्रपथं कारितो वनमालया ६८

शयते रामायणे दशरथनन्दनो aa: पिठ निदेशात्‌ ay राण Saat दस्तिणापे प्रखितोऽम्तरा कूवंरनगरे मदोधरराजतनयां वनमालामुपयेभे ; ततस्च रामेख सह परतो देशान्तरं यियासन्‌ सभाय वनमालां प्रतिमोचयतिसनः; सरा तु तदिरश्कातगां पुनरागमनमस्भावयन्तौ AAC शपथानकारयत्‌ | यथा प्रिये ! रामं मनोषिते देगे परिख्थाप्य aay भवतीं खदभेनेन प्रो यामि, तदा प्राणातिपातादिपातकिनां गतिं यामोतिः; सातुतेः शपयेरतुष्यन्तो यदि रात्रिभोजनकारिणां शपधं करोषि, तदा त्वां प्रतिसुद्ामि, नान्यथेति तमुवाच ; तथेत्यभ्युपगत्य देगा- wat प्रखितवान्‌ एवमन्यशपथाननाटत्य AM वनमालया रावरिभोजनश्पधं कारितः;। विगेषचरितंतु ब्रन्यगौरवभयाब्रद लिख्यते # ९८ |i

we निदभनं विना सकलजनानुभवषिदं रात्रिभोजन fata: फलमाषड-

करोति विरतिं धन्यो यः सदा निशि भोननात्‌ |

Tiss पुरषायुषस् स्यादवश्यमुपोषितः €<

aoe ~ =, ~ eee ~= नन ~ अ~ = ee es 9

तीयः प्रकाशः | ४८३

यः कञिहमंधनो fe रात्रिभोजनस्य विरतिं करोति, सोऽ परुषायुषस्योपोषितः स्यात्‌ उपवासश्च aware निजेरा- कारणत्वाश्मषहाफलत्वं पञ्चाशदषेसम्धितानां तूपवासानां कियत्फलं सम्भाव्यते; इटं गतवर्षायुषः पुरुषानधिक्तत्योक्षम्‌ पूवकोट. जो विनम्तु प्रति azequatarat ग्यायसिडमेव ६८

aet राविभोजनस्र भूयांसो दोषाम्तत्परिवजेने तु ये गुणास्तान्‌ वक्तमस्माकमगक्तिरेवत्याच्च--

रजनौभोजनल्यागे ये गुणाः परितोऽपि तान्‌ सर्थन्नाहते कश्चिदपरो वत्त मीश्वरः ७० WEA ७० अथ क्रमप्राप्तमामगोरससंएक्षदिदलादिभोजमप्रतिषेधमाह-- श्रामगोरससपृक्तदिदला्दिषु जन्तवः | eet: क्ेवलिभिः सुच्म्ास्तश््मात्तानि विवजंयेत्‌ ॥७१॥ te ea सितिः- कैविदह्वावाः ईतुगम्याः, कैचित्वागमगम्यास्तत ये यधा ईेलादिगम्याप्ते ada प्रवचर्नधरैः प्रतिपादनोयाः।

श्रागमगम्येषु हेतून्‌, Fata amanda प्रतिपादयव्रान्ना विराधकः स्यात्‌|

यदाद--

"जो इउवायपक्वन्वि Sant ama ागनिश्रो।

~~ ~ ~~ ---~-->=-~ ree. ae ee eee ee eee

(1) St Vanya Yau आगमे aafan: |

४९४ ` योगशास्त्रे

"सो ससमयपन्रवभ्रो fadafacrett Gat ne 4

Varamcadwafecarel हेतुगम्यो जोवसद्ावः, faraar- vane vai तथाहि भामगोरससंण़करे दिदले भ्रादिशब्दा- स्पुष्यितौदने, अददि तयानोते efu, कुथितान्ने च, ये जन्तवस्ते कैवलन्नानिभिदृष्टा ति जन्तुमिखामगौरसमिश्दिदलादिभोजनं वजयेत्‌ | तद्वोजनादहि प्राणातिपातलक्षणो दोषः केव लिनां निर्दोषत्वेनाप्तानां वचनानि विपरियन्ति oe

पपिच। मद्यादौनि कुथिताब्रपयेवसानान्येवाभोल्यानि, किन्छन्धान्यपि जोवसंषक्तिबहुलान्यागमादुपलभ्य वजनोयानो- at

जन्तुमिश्रं फलं पुष्पं ut चान्यदपि asta |

सन्धानमपि संसक्तं जिनधमपरायगः ७२ जन्तुभिरमियं wt मधूक विखवादेः, एष्यमररिभिगुमपृकादेः, ot प्राहषि तक्डनोयकरादेः, भ्रन्यदपि मूलादि aq) सन्धान- मास्रफलादौनां यदि संसक्तं भवेत्‌, तदा जिनघर्मपरायणः क्ष पालु लात्यजेदिति संबन्धः। इदं च॑ भोजनतो भोगोपभोगयो- त्रेतसुक्लम्‌ ; भोगोपभोगकारणं धनोपाजनमपि भोगोपभोग उच्यते) उपचारात्‌ तत्मरिमाणमपि भोगोपभोगव्रतम्‌ | यथा शवकस्य खरकमपरिद्धारेण. कर्मान्तरेख जोविका। एतच्च

(१) खसममप्भापकः सिद्धानर्बिताधडोऽन्धः॥ !॥

BMA: प्रकाशः | ४८५

सह्धगपार्धमतिचारप्रकरण एव amt: अवसितं भोगोपभोग- व्रतम्‌ ७२

अधानयदण्डस्य ठलोयगुणव्रतस्यावसरः तचतुर्देति श्ोक- इयेनाइ--

आत्तं रोद्रमपध्यानं पापकार्मौ पदेशिता हिंसोपकारिदानं प्रमादाचरणं तथा ७३ शारौराय्थदण्डस्य प्रतिपच्चतया स्थितः | योऽनधदण्डस्तच्यागस्तृतीयं तु गुणव्रतम्‌ ७४

WAS ध्यानमपध्यानं, तदनथंदण्डस्य प्रथमो भेदः। तश्च देधा--श्राक्तं रौद्रं च); तत्र ऋतं दुःखं aa भवमा; यदि वा ब्र्निः पोडा यातनं च, am भवमात्तम्‌। तचतुची- मनोज्ञानां शब्दादोनां संप्रयोग तद्िप्रयोगचिन्तनमसंप्रयोग- प्राधेना प्रथमम्‌ शूलादिरोगसम्भषे तहियोगप्रखिधानं तद- संप्रयोगचिन्ता दितोयम्‌। इष्टानां शब्दादौनां विषयाणां सातवेदनायाञ्चावियोगाध्यवसानं, संप्रयोगाभिलाषच ठतोयम्‌ देवेन्द्रचक्र वस्य दिविभवप्राधेनारूपं निदानं चतुधेम्‌ यदाइः- 'अरमरण्खाणं सद्‌ाइविसयवलयण aaa | ufas विश्रोभ्रवितणमसंपञ्रोगाणुसरणं १॥

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(१) आअभनोन्नानां शब्द्‌ दिविषयवस्तूमां हेषमलशिमख्य | ame वियोगचिन्तनभसंप्रयोगाचुसरणंच॥ !

४८९ योगशास्त्र

tag सूमनलसोसरोगाश्वेयण्ाए विभ्रोभ्रपणिदारं तदसंपश्रोगचिंता तप्पड़ाराटलमणस्॥२॥ १दूदाणं विखयादईैग वेयणाए भ्र रागरत्तस्य। अरविश्रोगज्रवसाणं aw संजोगाभिनलासोशभ्र॥२॥ ष्टविंदचक्कवटित्तणाद्गुण रिदिपल्यकामड्यं | ava नियाखचितखमखाशाणगयम्चतं ४॥ ‘aad चखबिद्धं रागदो समीं कियस्स जौवस्छ | अहजाणं संसारवदणं तिरियगद्मूलं ५॥ रोदयत्यपरानिति WA दुःखहेतुस्तेन छतं तस्य वा कमं रौद्रम्‌ . तच्तुर्दा--हिखानुवन्धि सषातुबन्धि स्तयानुबन्धि धन- संरच्षणानुबन्ि यटाषहुः- "सत्तवहवेद्वंधणददणं कणमारणाद्परणिष्ाणं | wraieaead निग्विणमणसोहम विवागं १॥

(1) तथा गूलन्िरोरोगादिविदनायाः वियोगप्रख्बिघानम्‌। तदश्प्रयोगचिन्ता तत्मतोकाराङलमनसः॥२॥

(2) इह्टानां विषयानां Featara रागरक्रख। ऋियोगाष्यदक्षानं तया संयोगाभिलाषख॥३॥

ig) देवेन्द्रवकरर््तित्वादिगुग्वडिपराचेनामवम्‌। awa निदानचिन्तननन्ञानाचुगतमव्बन्तस्‌ i 8॥

(४) पतत्‌ चतुर्विधं रागदेषमोहाङ्धितख site | ऋर्तध्यामं संसारवद्खंनं तिख्ेग्गतिमूब्रम्‌ ॥५॥

(५) ` खक गधवेधबन्धनद्ङ्नाङ्कनम।रख्वादिप्रखिधानम्‌। ऋअतिक्रोधयहपस्तं निषुष्डमनसोऽधमविपाक्म्‌ at i

BANA: प्रकाशः ७८.७

'पिसुणापम्भासब्भूयभूयचघायाद्वयणश्पणिदाणं | मायाविखो श्रद्संघणपरस्स पच्छब्रपावस्छ॥२॥ ‘aw तिष्वको हलोहाउललस्छ भूभ्रोवघायणमणब्ं | पर दव्वहर चिन्न परनोगावायनिरपेक्वं *सदाद्विसयस{हणघणसंरक्वणपरायणखमणिट्रं | सव्वाभिसंकणपरोवघायकलुसाखउलं चित्तं ४॥ ‘ca चउव्विहं रागदोसमोदंकियस्स Naa | रोदञ्छ़ाणं संसारवहणं निरयगश्मूलं ५॥

एवमात्तरोद्रध्यानासकमपध्यानमनधेदर्डस्य प्रथमो मेदः पाप कर्मोपदेशिता वद्यमाण्षा हितोयः। हिंसोपकारिशां शस््नादीनां दानमिति ढतोयः। प्रमादानां गोतढर्तादोनामाचरणं चतुर्धः। शरोरादिनिभित्तं यः प्राणिनां दण्डः सोऽ्घीय प्रयोजनाय दण्डाऽथेदण्डस्तस्य शरोराय्थ॑दण्डस्य यः प्रतिपत्तरूपोऽनधेदर्डो निष्ययोजनो दण्ड दूति यावत्‌ ; तस्य व्यागोऽनधंदश्डविरति- स्तृलोयं गुणव्रतम्‌ |

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(१) fa एनासम्यासुतद्भुभूतवाताद्विचमप्रख्िधानम्‌ मायात्रिनोऽतिष्चन्धानपरद्य प्रच्छलच्चपाप्सय॥२॥ (>) तथा तीव्रक्रोधलोभाकुन्रस्य भूतोपवातनमनायैम्‌ | परद्व्यशरन्छचन्सं परलोकापायनिरपेश्ठम्‌ nyt (१) शब्द्‌द्विषयसाघनधनसंरचशपरायणमनिदटम्‌। सव्राभिशह्धनपरोपवातक्नुषाकुल जिस्म van (a) एषं चतुविंधं रागहेषभोहाद्भितख्य are | Cina संख।रश्नं नरकगतिमूलम्‌ ॥५॥

&२

yeu योगशास्त्रे

यदाह "जं इंदियसयणाडई age urd ater at WIT! TA दंडो एतन्नो WAT WHAsST १॥ ७३॥ ७४॥ अपध्यानस्य खरूपं परिमाणं चाद-- वैरिघातो नरेन्द्रत्वं पुरघाताग्निदौपने | खचरत्वायपध्यानं सुद्भत्तात्परतस्त्यजेत्‌ ७५ ti पैरिघातपुरघाताग्निदौ पनादि विषयं रौद्रध्यानमपध्यानं, नरेन्द्रलं ख्ठचरत्वमादिशब्टादप्षरोविद्याधरोपरिभोगादि, तेष्वात्तध्यानरूप- मपध्यान, तस्य तत्परिमाणरूपं ad सुह त्तीत्परतस्यञेदिति ॥७५॥ भथ पापोपदेशस्वरूपं तदहिरतिं चादड-- वषभान्‌ दमय at क्ष षरटय वाजिनः | दाक्िष्याविषये पापोपदेशोऽयं कल्पते ७६ saa वत्सतरान्‌ प्रसद्गगादिना दमय दान्तान्‌ कुरु; प्रत्यासो- दति खलु वर्षाकालः, तथा Bat बोजावापभुवं कष; वष्टः खलु भेघो, यास्यति वापकालो, wat ar केदारा गाश्चन्तां, सारैदिन- व्रयमध्ये उप्यन्तां ब्रोहयः ; तथा नेदोयोऽश्वः प्रयोजनं रान्ना- भिति wea वर्चिंतकान्‌ कुरु, वाजिनोऽशखान्‌, उपलक्षणं चेत दन्येषां गोष दवाभ्निदानादौनाम्‌ ; अयं पापरूप उपदेशः, खाव- काणां कल्पते युज्यते waa पापोपदेनियमं aaa

१) यडिन्दिवसखजनाटौन्‌ nate पापं कुर्यात्‌ भवति। BU TBE: दूतः अन्यस्तु अमचेदणडस्तु

Bara: प्रकाशः | Bee

म्योऽपवारदोऽयमुच्यते 1 दा्िश्याविषय इति बन्धुपुव्रादि विषय- zifawmaa: पापोपदटेशोऽशश्चपरिष्ारः। दाद्दिष्याभावे तु यथा तथा मौखयख पापोपदेश्ो कल्यते ७६

wa दहिंसोपकारोणि तद्ानपरिहारं are

यन्वलाङ्लशस््राग्निमुशलोदूखलादिकम्‌ | दसि ण्याविषये fea नापयेत्करणशापरः 091 यन्तं शकटादि, लाङ्गलं हलं, शस्त्रं खद्ादि, भ्रग्निवद्धिः, सुगल- waist, उदूखलमुन्तृखलं, शादि शब्दादनुभेस््रादिपरिग्रहः | ft वसु, करुणापरः खावको नापयेत्‌ ; दात्तिणथाविषय इति पूववत्‌ ७७ अरय प्रमादाचरणशमनधैदर्डस्य चतुधमेदं तत्परिहार WHITE कुतूहल।द्‌गोतन्धत्तनाटकादि निरो क्षणम्‌ | कामशास्वप्रसक्तिश्च दृतमदादि सेवनम्‌ ५८ AAA डाऽऽन्टोलनादिषिनोदो जन्तुयोधनम्‌ | रिपोः सुतादिना at भक्तस्त्रीदेशराट्‌ कथाः ७९ रोगमार्मश्रमौ मुक्ता खापञ्च सकलां निशाम्‌ | एवमादि परिषहरेत्ममादाचरगं Tat: ८०

कुतृरनलात्कोतुकारेतोर्गीतस्य we नाटकस्य wifey रणादैनिंरोत्तगं, तेन नेन्द्रियेण यथोचितं विषयोक्षरणम्‌ |

~~ =-= =-------

Yoo योगशास्त्र

कुतूदलग्रहणाज्जिनयाव्रादौ, प्रासद्धिकनिरोकणे प्रमादाः चरणम्‌ AAT SAMI वाद्छायनादिक्तते, प्रसक्विः पुनः पुनः परिगोनलनम्‌ ; तथा दयूतमक्षकादिभिः क्रीडनम्‌ ; मद्यं सुरा; शभ्रदिशब्दाख्मुगयादि ; तेषां सेवनं परिगोलनं ; तथा canst तड।गजलयन्वादिषु मनज्ननोग्मनननश्ङ्गिकान्च्छोटनादिरूपा ; तथा श्रान्दोलनं वत्षशाखादौ दोलादेलनं ; भादिशब्दात्पष्या- वचयादि ; तथा जन्तूनां कुक्रुटादोनां योधनं परस्परेणाभ्या- हननम्‌ ; तथा रिपोः शत्रोः सम्बन्धिना पुत्रपौव्रादिना वैरम्‌ ; अयमर्थो येन तावत्कथञ्धिदायातं वेरं त्यः ufew शक्रोति तस्यापि पु्रपौव्रादिना यदेरं ततामादाचरणम्‌ ; तथां UAHA, यथा CS चेदं मांस्माकमाषमोदकादि साघु भोज्यं, साष्वनेन भुज्यते, श्हमपि वा इदं wie इत्यादिरूपा; तथा wine, स्तोणां नेपव्याङ्गदहारद्ावभावादिवणंनरूपा “कर्णाटी सुरतोपचारचतुरा लटो विदग्धप्रिया? इत्यादिरूपा वा,

प्रधानः, yaen विचित्रवस्रगुडखग्डगशालिमद्यादिप्रघानः,

तथा देशकथा, यथा दस्तिणापयः प्रबुरात्रपानः स्तोसम्भोग-

sata शूराः पुरुषा जविनो वाजिनो गोधुमप्रधानानि धान्यानि सुलभं aed मधुरागि द्राक्षादाडमकपियादौनि; पशिमदेथे qeanifa वस्त्राणि सुलभा इक्षवः श्रोतं वारोत्येव मादि; राटकथा राजकथा, यधा शूरोऽस्मदोयो राजा, सधन योडः, गजपतिर्गौडः, waafaqas safe) एवं प्रतिकूला अपि भक्गादिकश्रा वाद्या; तथा रोगो ज्वरादिः, मागयमो

[मि कि aves ee coe ए. ए. 7 त, oes:

BANA: प्रकाशः | ५०१

मागेखेदः, तौ amt सकलां निशां खापो निद्रा। रोगमागे- AAT प्रमादाचरणम्‌ एवमादिपूर्वोक्षस्रूपं प्रमादाचरणं परिषरेत्‌ gat: खमणोपासकः। प्रमादाचरितं च-

‘ast विस्यकसाया निष्टा विगहाय पचमो afeat | एए ay पमाया sta पाडन्ति dart we

fa पञ्चविधस्य प्रमादस्य WOW: WOT NO ८०

टेगविशेषे प्रमादपर्हिरमषह-

विलासहासनिषूातनिद्राकलदुष्कथाः | जिनेन्द्रभवनयस्यान्तराटारं चतुर्विधम्‌ ८१॥

जिनेन्द्रभवनस्यान्तरित्यादित area संबध्यते; तेन जिनेन्द्र भवनस्य मध्य विलासं कामवेष्टां, हासं कडकहष्वानं हसनं, fagia निष्ठोवनं. निद्रां ad, कलहं uel, दुष्कधां चोर पारदारिकादिकथां, चतुविधं चाहारम्‌ श्रगनपानखाद्यन्बाय- स्वरूपं परिहरेत्‌ afcetfefa gaa: सम्बन्धनोयम्‌। aaa शाश्यादि मुद्रारि amife पेयादि मोदकादि चौरादि सूरणादि मग्डकादि च।

यदादइ-

(१) way विषयकषाया निहा विकथा पञ्चमी भखिता। UA VY AAT जोष पातयन्ति Bre wen

५०२ योगशास्त्र

‘gad भरोश्रणसत्तुगमुगजगाराद Genser सखोराद्सूरणार मंडगपभिष भर fea १॥

पानं Wat यवादिधावनं सुरादि waa: कर्कटकजला- दिकं च।

यदाह

‘ata सोवोरजवोदगाद चित्तं सुराश्यं चेव | ्खक्षाभ्रो Tal कक्तडगजनाद्रयं तहा १॥

gr भृष्टधान्यं गलपपेटि काखजूरनालिकैरद्राक्षाकरकवास््रपन

सादि। यदाह-

‘werd eat qo नालिएरदक्वाई | कक्ठडिगंवगफणसाद् agfad area aa ॥१॥

ere दन्तकाष्ठं ताम्बलतुलसिका पिण्डाजंकमभ्पिष्यलौ सु री- मरिचजोरकषरोतकोविभोतक्यामलक्यादि |

(1) शनमोदनसक्घकसद्रजगयांःद खादयक्विधिच। wife acwife भगडकप्ष्डति विकषेयम्‌ ॥!॥

(2) पानं सौोरबवोट्कञादि fea रादिकं ta, WUBI: FF: ककंटकलजलादिकंचतया॥!॥

(8) wate दन्त्यादि wad न।लिकेरद्रालाटि | कर्कटिकास्नपनसाद्‌ asfad wifed यम्‌ ॥१॥

Sara: WHIM | ५०३

यदादह-- "दं तवं तंबोलं fad तुलसोकुहेडगादयं | महपिष्पलिसंटाई wearer सामं WIE ॥१।८१॥

उक्तानि alfa गुणव्रतानि।

wa चत्वारि शिक्तात्रतान्युखन्त, तवापि सामायिकदेयाव काशिकपौषधोपवासातिधिसंविभागलक्षशेषु चतुर्घं॑शिकात्रतेषु प्रथमं सामायिकाख्यं faamaary—

त्यक्ता रोद्रध्यानसख व्यक्तसावदाकर्मणः। FEU समता या तां विदुः सामायिकव्रतम्‌ ॥८२॥

Hed मुहत्तकालं, या समता रागद्ेषरेतुषु wawat, तां सामायिकव्रतं विदुः; समस्य रागहेषविनिमं्षस्य सतः, प्रायो भ्ानादोनां लाभः प्रगमसुखरूपः, समयः; समाय णव सामा- यिकम्‌ ; विनयादितल्वादिकण्‌ समायः प्रयोजनमस्येति वा सामायिकम्‌ | त्च सामायिकं मनोवाक्षायचेष्टापरिष्ारं विना भवतोति त्यक्तात्तरौदरध्यानस्येत्यक्त, त्यक्लसावद्यकममण दति ; wai साव्यं वाचिकं कायिकं कम येन तस्य aaa खावकः weenie यतिरिव भवति

(1) दन्तपवनं ange feat त॒लसोज्गरेडकादिक्षम्‌। ayfonfaguarife staat खादिमं भव्रति॥!॥

--` - - ~= मय ee नना

५०४ योगशास्त्र

यदाहइ--

'सामाश्यंमि कण समणो इव BAT] WAL ART | पणणं कारणं वहसो सामाश्यं HAT ve il अतएव तस्व देवज्ञाव्रपूजादौ नाधिकारः नन्वगहितं कमं कुर्वाणस्य देवश्नात्रादौ को दोषः; सामायिकं fe सावद्यव्यापार- faturaa, निरवद्यव्यापारविधानासकं च; | तत्खाध्यायपटन- परिवक्षनादिवत्‌ देवपूजादौ को दोषः १। नैवम्‌। यतैरिव देवक्लञच्रपूजनादौ नाधिकारः | भावस्तवाथं दरव्यस्तवोपादा- नम्‌; सामायिक्षेच सति संप्राप्तो भावस्तव इति fa द्रव्यस्तव- करणेन ?। यदाह--

‘aaa a भावल्यश्रो cat agguifa बहि सिया। पणिउशजणवयणमिणं छन्नं वहियं faq fafa ue

दह यावकः सामायिककन्तां हिविधो भवति। ऋडिमाननृचि- कञ्च; योऽसावदृदिकः aqd way सामायिकं करोति; जिननब्डहे, साधुसमोपे, पौषधगान्ायां, az? वा; ay वा विश्राम्यति, निश्योपारोवा भास्तं aaa) aa यदा साधुसमोपे

--~- ~~~ ~~~ - -~----~ ~~ ~~~ ~~ - ~

१) Bafana Ua रते खमण्ड द्व वको भव्ति यश्यात्‌। यतेन कारणेन asa: सामाविकं कुर्यात्‌ ॥!॥

(र) दव्यस्तव्रच भावसवच् दूव्यखवो Tega xia बुद्धिः Gq | ऋनिपएष्यलजनप्रचनमिदं षट जीवितं जिना नुवते॥ !

ठतोयः प्रकाशः | ४०५

करोति तदायं विधिः; यदि aanfaefa ad नास्ति, केन चिदिवादो नास्ति, ऋणं वान धारयति; मा बरत्तत्कृता- कषणापकरव्णनिमित्तचित्संक्तेणः; तदा azesfa सामायिकं wart tai गोधयन्‌, सावद्यां भाषां uftecq, काष्ठलेष्टादिना यटि कायं तदा तत्खामिनमनुन्नाप्य प्रतिलिख्य vara ग्टहन्‌, खेलसिद्धाणकारटोाविषेचयन्‌ विषेचयंख wie प्रत्यवेच्छ प्रसज्य च; एवं पश्चसमितिसमितस्तिगु्िगुपतः साष्वा- खयं गत्वा aaa सामायिकं करोति यधा--

करेमि भंते सामाश्यं was जोगं पच्चक्वामि जाव साह पल्जुवासामि gfae तिविदेणं add वायाए कारणं करेमि कारवेमि aa भते ufeamfa निंदामि गरिदहामि ward वोसिरासि

सामायिकसूतरस्यायमधः-- करेमि अ्रभ्युपगच्छामि; wa ति गुरोरामन्णम्‌, ₹े भदन्त ! wed सुखवान्‌ कशयागवांख भवति ; age सुखकल्थाणयोः, wa भौशादिकाम्तप्रत्ययान्तसख्य निपातनात्‌ रूपम्‌ भ्रामन्तखं प्रत्यक्षस्य गुरोस्तदभावे परोक्तस्यापि बया प्रत्य्तोक्ततस्य भवति ; यथा जिनानामभाषै जिनप्रतिमाया श्रारोपितजिनल्वायाः स्तुतिपूजासम्बोधनादिकं भवति, गुरोथाभिमुखीकरणं aca सर्वो ध्म इति प्रद्नायेम्‌ |

ग्रदाह- ९४

४५०९ योगशास्त्रे

area Fie भागो थिरयरम्ो dae चरिन्त

WAT भ्रावकहाए गुङकुलवासं मुंचति १॥ अथवा भवान्तहेतुल्वाइवान्तः, भन्ते इत्याषत्वात्‌ मध्यव्यच््ननलोप रूपं भन्ते इति “oa cal पुंसि मागध्याम्‌” ५८।४।२८७॥ दूतयेकारोऽैमागधत्वादाषंस्य सामायिकमुक्तनिवेचनम्‌ wai पापं, wera aaa, युज्यते इति योगो व्यापारस्तं yarenfa ; प्रतोति प्रतिषेधे भाङाऽऽभिसुख्ये, aia प्रकथने, wag प्रतीपमभिसुखं aoa सावदययोगस्य करोमोत्यधः | अथवा पच्चक्छामोति प्रत्याचचे, चचिक्‌ व्यक्षायां वाचोत्यस्य परत्याङ्गपूवस्य रूपम्‌ ; प्रतिषेधस्यादरेणाभिधानं करोमोत्ययैः | लाव साह पल्बुवाखामि ; यावच्छब्दः परिमाणमर्यादाऽवधारण- वचनस्तव्र परिमा यावस्लाधुपर्यं पासनं मम तावद््मत्याख्यामोति; मर्यादायां साधुपयुपासनादर्वाक्‌, way यावस्साुपर्युपासनं तावदेव aaa tau: दुवि तिविदेणं ; हे विधै यस्य दिविधः सावद्यो योगः सख प्रत्याख्येयत्वेन कम सम्पदयते; अतस्तं दिविधं योगं करणकारणलक्षणमनुमतिप्रतिषेधस्य wee: कार्तुमशक्षलवात्‌ पुव्रत्यादिक्लतस्य व्यापारस्य खयमकरणेऽप्यनु- मोदनात्‌ विविधेनेति act ढतोया। wae वायाए are इति. fafawata सूत्रोपात्तं विवरणं, मनसा वाचा कायेन

(१) ्ञामद्यभवतिभागी fercacay दशने चरित्रे च| अन्धा यावत्कथयायां gener सुञ्ल्ि॥१॥

ZAI: प्रकाशथः। yoo

चेति, fafata करणेन करोमि a कारयामोति सूतीपात्तमेवं दि विधमित्यस्य विवरणम्‌। किं पुनः कारणमुदेशक्रममतिलद्य व्यत्यासेन fata: क्षतः saa: योगस्य करणाधीनतोपदभ- नाथम्‌ करणाधोनता fe योगानाम्‌, करणभारै भावान्तदभाषे चाभावादययोगस्य | तप्यति, तस्य श्रत्राधिक्ततो योगः संबध्यते ;. अवयवावय्रविभावनत्तणसम्बन्धे षष्ठो ; योऽयं योगस्नरिकालविषयः स्तस्यातोतमवयवं प्रतिक्रामामि निवत्त प्रतोपं क्रामामोत्यथंः; निन्दामि जुगुपे गामि एवाथः, केवलमातसाक्तिकौ निन्दा, गुमसासिकौ गही भन्ते दरति पुनग॑रोरामन्तणं भक्चतिशय- ख्यापनाय पुनरक्तम्‌ ; waar सामायिकक्रियाप्रत्य्पणाय पनगरोः सम्बोधनम्‌ waa चैतत्‌ च्नापितं भवति, सवक्रिया- ऽवसाने गुरोः प्रत्यपणं कायमिति। उक्तच भावष्यकारेण--

'सामादइ्यपच्वप्यणवयणोवायं भयंतसदहोत्ति |

सत्वकिरियावसाणे भणियं पञ्चष्यणशमणेण ्रप्याणमिति ; श्रालानमनतोतकालसावद्ययोगकारि्यम्‌ ; वोसि- रामोति, व्यत्जामि ; विशब्दो विबिधार्थो विशेषार्घो वा; उच्छब्टो una: विविधं विरेषेण वा अशं जामि

त्यजामोत्यथेः। अत्र करेमि da सामादइयमिति वर्तमानस्य

1 7 ee ee 1 19 अ)

शिण

(१) सामायिकरप्रन्यभ्यवचनोपायो भद्न्नशब्द्‌ इति। सर्वंक्रियऽवसषामे भणिते प्रत्यपेणमनेन॥

Ho& योगशास्ते

मावद्ययोगस्य प्रत्याख्यानम्‌ wast जोगं पच्क्वामोत्यना- गतस्य ; wa भंते पडिकमामोत्यतोतस्येति तैकालिवां प्रत्या- ख्यानसुक्लमिति त्रयाणां वाक्यानां daar | Say - wid निंदामि पडुपन्नं संवरेमि भणागयं प्वक्वामौति |

एवं कतसामायिक शयापथिकायाः प्रतिक्रामति पथ्ादागमन- मालोच्य यथाञ्चेष्टमाचायादोन्‌ वन्दते, पुनरपि गुरं वन्दित्वा vate निविष्टः ; alfa, पठति, च्छति वा एवं चैत्यभवने- ऽपि दृष्टव्यम्‌ यदा तु Wee, पोषधगालायां वा सामायिकं ग्टष्ोत्वा Aaa तदागमनं नास्ति ; यसु राजादि्मेहरिंकः स- मन्ध सिन्धुरस्वान्धाधिरूढम्डतर चामरादिराजालष्कुःरणालह्न्तो हास्ि- काश्वौयपादातिरथकव्यापरिकरितो भेरोभाद्गरभरिताग्बरतलो बन्दिवन्दकोलाहलाकुलोक्कतनमस्तलोऽन कसामन्तमण्ड लेश्व बाम - इमिकासंप्र्यमाण्पादकमलः पौरजनैः सयरहमङ्ल्यापदश्टमानो मनो रथै सपस्पश्यमानस्तेषाभेवाच् लिबन्धान्‌ लाजाच्नलिपातान्‌ शिरःप्रणामाननुमोदमानः wet wat घर्मो एवंवि. रप्युपशेव्य दति प्राक्ततजनेरपि श्ञाष्यमानोऽक्रतसामायिक एव जिनालयं साधुवसतिं वा गच्छति, aa गतो रालककुदानि छत्रचामरोपानदृमुककुटखद्रूपाणि परिषरति ; जिनाचेनं ary- वन्दनं वा करोति, यदि लक्षौ कछ्तसामायिक एव गच्छेत्‌ तदा गजाश्वादिभिरधिकर णं स्यात्‌ ; तच्च युज्यते कतुम्‌ तथा कत- सामायिकेन पादाभ्यामेव गन्तव्यम्‌, तच्चानुचितः भूपतोनामिति।

कनीयः प्रकाशः | Wok

श्रागतस्य यदासौ खावको भवति तदा कोऽप्यभ्युलयानादि करोति wr यथा भद्रकस्तदा पूजा क्षता भवत्विति पूवभेवासनं Tat | श्राचार्याश्च पूरवेमेवोयिता wad मा उलानानुखान- कता दोषा wafafa, amar सामायिकं करोनोत्यादि पूववत्‌ nce

सामायिकसखश्च महानिजेरो भवतोति दृ्टाम्तदहारेणाडइ--

सामायिकन्रतश्थसख खहिगोऽपि शिराव्मनः। चन्द्रावतंसकस्येव waa कमं सश्ितम्‌ ८३

ग्टहस्थस्यापि कतसामायिकस्य कर्मनिजंरा भवतीति चन्द्रा वतंसक उदाहरणम्‌ | तच्च सम्प्रदायगम्यम्‌ | चायम्‌--

रस्ति साकेतनगरं खोसद्कतनिकेतनम्‌ हसितेन्द्रपुरख्रीकं सितारं दैत्यकेतनेः wey तत्र लाकटगानन्दो हितोय इव चन्द्रमाः | चचनद्रावतंसो राजाऽसोदवतंस इवावनेः २॥ यथा धारयामास शस््ाणि जागहेतवे। anita शिक्तावश्रतो व्रतान्यपि तथा सुधोः॥३॥ माघमासे विभावयां सोऽन्यदा वासवेश्मनि | ्रारोपज्वन्तनं स्थास्यामोति सामायिक्रे खितः sy तच्छय्यापालिका ध्वान्तं खामिनोमा सर भूदिति, यात प्राम्धामिनोयाभे प्रदीपे वैलमक्तिपत्‌ ५॥

५१० योगशास्त्र

गते यामे featafarafa सा भक्तमानिनौ | जाग्रतो Sas च्षोणतेले तैलं न्यधात्पुनः वियामायाख्ुतोयस्मिन्रपि याभे व्यतोयुषि | मल्ञिकायां प्रदौपस्य ad faa सा पुनः विभातायां विभावयामवसानमथासदत्‌ | खरमोत्पत्रव्यथाक्तान्तो राजास द्व दौपकः॥८॥ मामायिकं समधिगम्य नित्य कम चन्द्रावतं खद्रुपतिखिदिवं ततोऽगात्‌ | सामायिकत्रतलुषो गटहिणशोऽपि सद्यः तोयेत कम निचितं सुगतिभवेश्च <

इति चन्द्रावतंसराजपिंकथानकम्‌ ८३

feala faaraaate——

दिगत्रते परिमागं यत्तस्य संक्चेपणं पुनः दिने रावौ देशावकाशिकव्रतसुच्यते ८४॥

feqat प्रथमगु्त्रते यहशखपि feq गमनपरिमाणं aq दिवा रात्रौ चोपनलक्षपत्वाग्रहरादौ यत्‌ WAG तह शावका- शिकव्रतम्‌। देशे दिगत्रतण्छहोतपरिमाणस्य विभागे अचवकाशो- ऽवसानं देगावकाश्ः सोऽतरास्तोति देयावकािकं ^“अतोऽनेक- MUG’ ७।२।६॥ इतौकः। दिग्त्रतसं्चेपकरकमगव्रतादि- संक्ेपकरणस्याप्युपलत्षणं द्रष्टव्यम्‌ एषामपि संत्तेपस्यावश्यं

BAA: प्रकाशः | ५११

कन्तव्यत्वात्‌ प्रतित्रतं सं्षेपकरणस्य विभिनब्रव्रतत्वे दादश व्रतानोति संख्याविरोधः स्यात्‌ ८४

श्रय ठतोयं शिल्ाव्रतमाड-

चतुष्यव्यां चतुर्थादिकुव्यापारनिषेधनम्‌ | ब्रह्मचयत्रियाखरानादिल्यागः पोषधव्रतम्‌ ॥८५॥

aqua ब्र्टमो चतुदभौ-पूणिं मा-अमावास्यालकच्तणा, aqui पवां समाहारथतुष्यर्वी | पवगब्टोऽकारान्तोऽप्यस्ि ; तस्यां चतुर्थादिकं तपः, कुव्यापारस्य सावद्यव्यापारस्य निषेधः, ब्रह्मचय- क्रिया ब्रहमचयस्य करणं, Gate: शरौरसत्कारस्य त्यागः श्रादि- शब्दादुर्सनवर्ण कविल्ेपनपुष्यगन्धविशिष्टवस्त्राभरणादिपरिग्रहः पोषं पुष्टिं प्रक्रमादग्मस्य धत्त पोषधः एव ad पोषधत्रतम्‌। सर्वलः पोषध cae fefad हि पोषधव्रतं दशतः सवंतय | तत्राहारपोषधो देशतो विवल्षितविक्ततेरविक्षतेराचामास््स्य वा सक्लदेव feta वा भोजनमिति। स्वतस्तु चतुर्विधस्याप्याहार- स्याहोरात्रं यावत्प्रत्याख्यानम्‌ ; कुव्यापारनिषेघपोषधसु sya एकतरस्य कस्यापि कुव्यापारस्याकरणं, wag स्वेषामपि क्रपिसेवावाणिज्यपाश्एपाल्यग्डइकमादोनाम करणं, त्रश्मचर्थपोषधो- ऽपि देशतो दिषैव रात्रावेव वा, anea feta वा स्नोसेवां मुक्ता ब्रह्मचयेकरणम्‌ ; सर्वतस्तु श्रहोरात्रं यावत्‌ awaa- पालनम्‌ | देशतः Grae: शरोरखत्कारस्यकतरस्याकरशं सवतसु सवंस्यापि तस्याकरणम्‌ ; इह देशतः कुव्यापारनिषेधपोषधं

५१२ AANA

यदा करोति तदा सामायिकं करोति at नवा; wet yg aaa: करोति तदा सामायिकं निवमाक्करोति, sac’ तु तत्फलेन वच्यते | खवेतः पोषधव्रतं चेत्यग्द वा, साधुमूले वा, षे वा, पोषधशालायां वा amafugauiaagra व्यपगतमालाविले- पनवख्कः परिद्रतप्रहरणः प्रतिपव्यते। aq कते पठति पुस्तकं वाचयति ward ध्यायति, यथैतान्‌ साधुगुणानङ्ं मन्द- भाग्यो समर्थो धारयितुमिति। इह यदाषहारथरोरसत्कार- बरह्मचयं पोषधवत्‌ कुव्यापारपोषधव्रतमप्यन्धत्रानाभोगनेत्यादया- कारोच्वारणपुवकं प्रतिपद्यते तदा खामाधिकमपि सार्थकं स्यात्‌ | खुलल्वात्पोषधप्रत्याख्यानस्य Baars सामायिकस्यति तथा पोषधवताऽपि सावद्यव्यापारा कार्यां एव ततः सामायिकमकुव्वं- स्तन्नाभादुश्यतोति यदि पुनः सामावारोविशेषात्‌ सामायिक- भिव हिविधं तिविधैनेव्येवं aod प्रतिपद्यते तदा सामाथि- कांस्य पोषधमेव गतत्वा्र सामायिकमत्यन्तं फलवत्‌ यदि परं पोषधसामायिकनचणं त्रतदयं प्रतिपब्रं मयेत्यभिप्रायात्‌ फलवदिति ८५॥

इदानीं पोषधव्रतकतृन्‌ प्रणंसति

डि गोऽपि हि धन्यास्ते पुण्यं ये पोषधव्रतम्‌ | दुष्पालं पालयन्त्येव यथा चुलनोपिता ce

हिणो ~ 0 ° यतयस्तावद्‌ धन्धा एव wzheutsfa zee श्रपि ते धन्याः धमधनं

SANA: प्रकाशः | ५१४

लब्धारः ये निःसत्वजनदुष्पालं पुष्यं पवित्रं पोषधव्रतं पालयन्ति,

यथा चुलनोपितेति cera: ; खम््रदायगम्यः।

सख चायम्‌-

अस्ति वाराणसो नामानुगष्खः ATT वरा। विचित्ररचनारम्या तिलकसखौरिवावनेः॥ १५ सु्रामेवामरावत्यामविसूतितविक्रमः। जिल7दुरभू सत्र धरित्रोधवपुद्गवः ॥२॥ ्रासीद्ृहपतिस्तस्यां महेभ्यश्ुलनोपिता | प्राप्तो मनुष्यधरमेव ARATE कुतोऽपिद्ि॥३॥ जगदानन्दिनिस्तस्यानुरूपा रूपशालिनो | श्यामा नामाभवद्ञायाो श्यामेव Oferta: # अष्टौ निधानेऽ्टौ हहावष्टौ व्यवहाराः इति तस्याभवन्‌ देम्रतुविंशतिकारयः ५॥ कंको गोसदखेदेणभिः प्रमितानि तु 1 तस्यासन्‌ गोकुलान्यष्टौ कुलबेश्मानि सम्पदाम्‌ ६॥ तस्यां पुयामयान्येदयुरुद्याने कोषटकाभिधे भगवाम्‌ waaay fagtacay जिनः ततो भगवतः पादवन्दनाय सुरासुराः | सेन्द्राः समाययुस्तत्र जितशत्रुख भूपतिः पद्यां चचाल चुलनोपिताऽप्बचितसूषशः | वन्दितुं नन्दितिमन्‌।; stat विजगत्पतिम्‌ aes

As

AANA

भगवन्तं ततो aalafasa चुलनोपिता

WATT परया भक्तया प्राखलिधमदेशनाम्‌ १० अधोलितायां खदसि प्रणम्य चरणौ प्रभोः | |

इति विन्रपयामास विनोतश्ुलनोपिता ११॥ स्वामिब्रस्माहशां बोध तोविहरसे मेम्‌ |

अगद्ोधं विना नान्धो हथचङ्क्रमणे रवेः १२॥ सर्वोऽपि area गत्वा दन्ते यदिवा नवा। आगत्य याचितो wa दत्से हेतुः AISA Tn १३१ आनामि यतिधमे चेत्‌ zafa खामिनोऽन्तिके) योग्यता परमियतो मन्दभाग्यस्य नास्तिमे॥ १४॥ याचे खावकधमतु खामिन्‌ ! देहि प्रसोदमे। भादश्तेऽब्धावप्युदह्ो भरणं निजमेव हि १५॥ यथासुखं ग्टहाशेति खासिनाऽनुमतस्ततः |

्त्याख्यत्स्युलदिसां warate चौरिकाम्‌ १९ प्रत्याख्यच्च Baraat: श्यामाया भ्रपरस्ननियम्‌ अष्टाटकोच्म्यधिकं aw निध्यादिषु विषु १७॥ ब्रजभ्योऽन्यानधाष्टभ्यः प्रत्याचख्यौ व्रजानपि | इलपच्चश्तोतोऽन्यां कषियोग्यां महहोमपि १८॥ अनःगशतेभ्यः पञ्चभ्यो दिग्‌यायिभ्योऽपरं तनः | WawaTa पञ्चभ्यः प्रत्याचख्यो महामतिः १९ दिगयाव्रिकाखि चत्वारि चत्वारि प्रवहन्ति | वाहनानि विना सोऽथ प्रत्याख्यदितराणितु॥२०॥

नोयः प्रकाशः 1 ४१४

न्यत्र गन्धकाषाय्याः प्रत्माख्यदङ्गपुसनम्‌ |

आद्रौया मधुकयषटे रितरहन्तधावनम्‌ २१ अन्तः सोरामलकाग्मत्याचख्यी फलान्यपि | सहस श्र तपाकामभ्यां तेलाम्यां व्बक्षणान्तरम्‌ २२१४ गन्धाश्चादन्यतः प्रत्याचख्यावुहत्तनान्धपि 1

अष्टाभ्य भोद्िकेभ्योऽम्धःकुम्भेभ्योऽधिकमस्जनम्‌ २३२४ वस्तं प्रत्याख्यदन्यञ्च कापांसादस्तरयुगम कात्‌ | विलेपनानि चान्यत्र कुहमागुरुचम्दनात्‌ २४ पुष्यं प्रत्याख्यदन्यच्च पद्याव्ञातिखजोऽपि | कजिकानामसुद्राम्यामन्यानि भूषणानि च॥२५॥ सुमोच घुपमगस्तुरुष्काभ्यामथापरम्‌ |

अन्धा काषहपेयायाः Gar भ्रपि समन्ततः rq a खर्डखादाद्‌ तपूराश्चेतरत्‌ ख्ठादयमत्यजत्‌ | ्रोदनान्यपि निः्ैषाण्यन्यतः कलमोदनात्‌ २७8 कलायमुद्रमाषेभ्य इतरं सूपबत्यजत्‌। शरत्कालभवास्वे गोठतादपरं तम्‌ २८

WA पल्यङ्कम ण्डक शएकाभ्या मन्य मत्य्‌

विना खष्ाम्बदाल्यम्त तोमनान्यपि सर्वतः wre श्रन्तरिक्लोदकादन्धदुदकं पयं वव्नयत्‌ |

मुखवासं ताम्बुलात्पञ्चसौगसन्धिकाटते ३० अपध्यान fae प्रमादाचरितं तथा |

पापक्रर्मो पदेशं चानधेदच्छानवजंयत्‌ ३२१॥

११९

योगशास््े

एवं श्रावकधर्म सम्यक्‌ सम्यक्रपूवेकम्‌ | सर्वातिचारर हितं wae पुरतः प्रभोः २२१ भगवन्तं ततो नत्वा गत्वा निजवेश्मनि |

प्रतिपत्रं तथा धर्मं खभार्यायं न्यकैदयत्‌ ३२ RATT साऽप्यनुन्नाता रथमारद्य तत्ल्णम्‌ |

eta una ग्टहदिधमेमगिचियत्‌ २४॥ तदा गौतमो नत्वा पप्रच्छंति जगत्पतिम्‌ महहाव्रतधरः किं wre वाऽयं चुलनोपिता ?॥५३१५॥ अ्रथोचे स्वामिना नैष यतिधमें waa | ग्द्िधर्मरतः किंतु मत्वा सौधममेष्यति ३९ sama विमाने aquencafafa: | ततश्ु्त्वा विदेेषुत्पद्य निर्वाणमेष्यति ३७ ( युम्मम्‌ ) went weya न्यस्याथ चुलनोपिता

AW पोषधशालायां पालयन्‌ पोषधत्रतम्‌ २८ तस्याथ VIIA मायाभिष्यात्ववान्‌ सुरः | fania काञिदागच्छत्पाश्ं व्रतजिघांसया २८ घोराकारः पुरोभूय GWATAT भोषणम्‌ BUTI तमत्युश्ेषुलनोपितरं सुरः vo | सप्रार्धितप्रार्धक रे! चमणोपाखकत्रतम्‌

त्वया किमिटमारब्धं मदादेगेन मुच्यताम्‌ ४१॥ RIAs A VAT च्येष्ठपुत्रमहं तव |

guiwfaa era खण्डयिष्यामि Gem: ४२॥

तोयः प्रकाशः | Ure

भवतः प्र्माणस्य पुरस्त्पिशितान्यद्म्‌

faat कटारे पच्यामि शूलेभच्यामि तत््षणात्‌ ४३ श्राचमिष्यामि तश्मांसशोणितानि तधाऽघुना। haar यथा fe लं खयमेव faces ४४॥ देवन्रुवे विन्रवति ata चुलनौ पिता |

चकम्ये केसरोव गजत्युजितमम्बुदे ४५ ्रसोभं प्रेरसमाणस्तु धुलनोपितरं सुरः। विभोषयितुकामस्तं तयेवोवे पुनः पुनः ४६॥

एषं विभाषमाणस्य सुरस्य शुलनोपिता |

सम्मुखमपि Tawa शुन इव fea: ४७॥

विक्तत्य पुरो च्येष्ठतनयं शुलनोपितुः |

निख्िंगेन कृशंसाता पशुवद्‌ व्यशसन्ततः ४८॥ हिला fear कटादान्तस्तम्मांसानि पपाच च। aaron शितैः शूलेराचचाम सोऽमरः;॥ ४८ अधिसेहे तत्सवं awe: चुलनोपिता | श्रन्यत्वभावनाभाजां खाङ्गचष्छेदोऽपि ATU ५० TANI TAT Tt! व्रतमयापि नोञभसि।

ag ज्येष्ठमिव ते ga efa मध्यममप्यषम्‌ ५१॥ AASSEMAA FT ALANA पुनः OA: | fadargfad तं कनिष्ठं चावधोलृतम्‌ ५२ तत्राप्यालोक्छय निष्कम्पं tae: सुरोऽत्रवोत्‌। नाद्याप्यृञभसि पाषण्डं मातरं ते fag तत्‌ xz a

AG

योगशास्त्रे

भद्रां नामाय चुन्तनोपितु्मातरमातुराम्‌ | विकरोतिख् qeat करणं कुररोमिव॥ ५४ सुरः Jays मुच्यतां wad लया | स्वङुटुम्बप्रणाशाय कत्यातुष्यमिदं व्रतम्‌ ५५ अन्यथा कुलभेटिं ते मातरं इरिणोभिव ।.

wat aunfa पच्यामि भक्षयिष्यामि क्षणात्‌ ५९ ततोऽप्यभौतं चुलनोपितरं वोच मोोऽमरः। भद्रामाराटयन्तारं सूनान्यस्तामलजामिव ५७॥ यया भार इवोटसत्वसुदरेष्णोदरंभरिः।

मातरं इन्यमानां at पण्मत्युचे पुनः सुरः ५८॥ aad चिन्तयामास वेतसा खुलनोपिता।

रहो STAT कोऽप्येष परमाधाभिकोपमः ५८ Yaad मे पुरतो जघान चखाद च। क्रव्यादितर ममाम्बामप्यञ्ुना न्तुसुयतः + ९०॥ यावन्र इन्त्यमूं तावद्रश्यामोति चचाल सः Hala महाशब्दमुत्पेते सुरेणखे।॥ ee a

तं MASS Bal भद्रा FARIA तम्‌ किमेतदिति चाप्रच्छत्सोऽशंसत्तदगशेषतः &२॥. ततोऽभाषिष् aga भिथ्याटक्षोऽप्ययं सुरः | पोषधत्रतविन्नं तै चक्रो क्त्िमभोषणेः ९३ पोषधत्रतभङ्गस्व FAVA GA ततः |

पापाय AANFA स्यादनालोचनं यतः ६४॥

Wala: प्रकाशः | ५१९

तथेव प्रतिपैदेऽथ angie चुलनै। पिता | चकारालोचनां तस्य व्रतभङ्गस्य Weal: neu भधैकादश भेजओऽसौ खावकप्रतिमाः क्रमात्‌ | सोपानानोव खगक्तौधारोषणकर्मरे ९६ fafenurafafud एषं खावक्षत्रतम्‌ | सुचिरं पालयामास भगवदहचमोचितम्‌ ६७ ततः संलेखनापूवं प्रपद्यानशनं सुधीः | मृत्वा सौधम sae विमाने सोऽरुणप्रमे ६८॥

दुष्पालभेवं चुलनोपिता यथा

तत्पालयामास पोषधत्रतम्‌ |

ये पालयन्त्येव तथा परेऽप्यदो

ृठत्रतास्ते खलु सुक्षिगामिनः ९९

इति चुलमोपितुः कथानकम्‌ ८६ द्दानीं चतुथे शिक्ात्रतमाह--

दानं चतुविधाष्टारपात्राचछादनसद्मनाम्‌ | अतिधिभ्योऽतिधिसंविभागव्रतमुदौरितम्‌ co

अतिधिभ्यस्तिथिपवोद्यत्सवरहितेभ्यो भक्तां भोजनकाले उप fata: साधुभ्यो, दानं fered, चतुविंधस्याशनपानखाद्यखाद- रूपस्याहारस्य, पात्रस्यालाव्वादेः, Wars वसनस्य कम्बलस्य वा, सद्मनो वसतैरुपलक्षणात्पीटफलकशय्यासंस्तारकादोनामपि |

५२० योगशास्त्रे

saa हिरस्यादिदाननिकिधस्तवां यतेरनधिकारात्‌। तदेतदतिचि- सं विभागव्रतसु्यते। श्रतिधेः aga निर्दोषो विभागः पषात्‌- कमदिदोषपरिहारायांशदानरूपोऽतियिसंविभागस्तदटरूपं व्रतम तिधिसंविभागव्रतम्‌। भहारादौनां न्धायाजिंतानां प्रासुकंषणो- यानां कल्यनौयानां STATA TCT उत्कारपूवंकमामानुग्रहवुहया यतिभ्यो दानमतिधिषंविभागः।

यदूचुः -

'नायागयाखं कप्यरिव्जाणं अब्रपाणाध्णं card देसकाल- सदहासक्कारकमनज्ुषं TW भन्तोए भायाणम्गवुषोए संजयाणं दाणं भ्रतिहिसंविभागो।

wa fea चेतत्‌-- प्रायः शरेख्िविधविषधिना प्रासुकरेषणौधेः MUN, खयसुपष्ठमेवसुभिः पानकादयः काले प्राप्तान्‌ सदनमसमयखहया साधुवर्गान्‌ धन्धा; केचित्परमवदहिता इन्त ! संमामयन्ति।॥ १॥ ्रग्रनमखिलं खाद्यं खाद्यं भवेदथ पानकं यतिजनहितं ae पात्रं सकम्बलप्रोल्छनम्‌ | वखतिफलकप्रख्यं सुख्यं चरिव्रविवदनं निजकमनसः प्रोत्याधायि प्रदेयमुपासकेः २॥

(१) न्यावागतानां क्ल्यनोयानां खच्चपानाटोनां garet रेयकालश्रद्ाषत्कार- MAGA परया MAY! अ्षातुपद्बुद्धयाखंवतानां दानं खतिचिरुविभागः।

Gala: प्रकाशः 1 “URL

तधा- "साह कष्पशिज्नं जं नवि fed कहिंचि किंचि तहिं धोरा जइत्तकारो सुसावगा तं भुजति १॥ "वसहोखयगास णभन्तपा शमेसव्नवल्यपन्ताई | जद्वि पव्जत्तधणो Mar fa ad टरेष्॥र॥ वाचकमुख्यस्वादइ - किञ्चिच्छं काल्पपमकल्पंव स्यात्‌ स्याद कल्ययमपि कल्पाम्‌ | पिण्डः शय्या वस्त्रं पातं वा Aantal arn ea देशं कालं पुरुषमवस्थामुपयोगशुहिपरिणामान्‌ | प्रसमोच्य भवति कल्पय ने कान्ताकल्पते कल्ययम्‌

ननु यथा शास्ते भ्राहारदानारः qa तथा वस्रादिदातारः, नच वस््रादिदानस्य फलं aad aa वस््रादिदानं युक्षम्‌ | नवम्‌ ¦ भगवल्यादौ वस्त्नादिदानस्य साकादुक्षलात्‌ | यथा--

‘are निग्गंथे फाञएणं wefan असण्पाणखादइम- साद्भमेणं वलयपडग्कंबलपायपुंङृषेणं पोटफलगसेव्नासंधारएणं पडिलाभेमाे farce |

(१) साधनां seule यद्‌ नापि ew कञ्चित्‌ किद्वत्‌ afwa WITT बयोक्कशारिखः BRITA UHRA wt a (2) बसति गयनासनभक्पानमेषख्चवखपालाटि | यदापि a पर्याप्रघनः स्तोक्ादपि ee ख्यात्‌ ॥२॥ (९) श्रमखानु मिसरन्वान्‌ nigts रएषच्योयेन अयनप।नखारिमिखलादिभेन

६६

५२२ Alaa a

दूत्वाहारवव्सतंयमाधारशरोरोपकारकत्वादस््नादयोऽपि साधभ्यो देयाः संयमोपकारित्वं वस्त्रस्य तावत्‌ ठख्ग्रडशानलसेवा- निवारणाधैत्वेन, घमश्क्त्यानसाधनार्थत्रेन, म्लानपोडापरि- wus, खतकपरिष्ठापना्ेत्वेन यदाष्ुः- 'तणगदणशानलसेवानिवारणा घम्डसुकक्राणटुा | feg कष्पम्गहणं गिलाणमरणटया चेव १॥ वाचकोऽप्याषह- शोतवातातवैदेशेमश्कंखापि Sea: | मा सम्यज्ञादिषु ध्याने सम्यक्‌ संविधास्यति ॥१॥ इत्यादि पाव्रस्याप्युपयोगः, भ्रणदस्यात्रादेग्रहषेन तत्परिष्टापनं, Weare स्याविराधनात्‌। प्रमादात्पूतरकसदितस्य तर्ुन्ोद कादेग्रहणे सति तत्परिष्टापनासुखं च) एवमादयोञन्येऽपि पात्रग्रहगा गुणाः यदाहइः-- 'कक्षायरक्वणडा पायगदणं farts cae | Haya संभोए वंति वे पायगदणेवि॥१॥

ee ee शा)

वद्पतदुपङ्कन्बलपादपोञ्छनेन पोठफलकयग्यासुखारकेख प्रतिलाभ्यमानान्‌ fayitafa | | (१) awoywsaetnfencera घर्मशुङ्खध्यानाथंम। fee कदलयपष्खं ग्लानमरणाये Sa (a) षटक,अरथण्ा्ये maa faa: प्रनञप्रम | बेच ga: संभोगे भवन्तिते AAW sia १॥

WAT: प्रकाशः ५२९ 'प्रतरंतबालवुङ्ा VHT एसा गुरूभ्रसहवमगे | साहारणोम्गहालदिकारणा WITT Fay fl ननु तोधेकराण्ठां वस्त्पा्रपरिभोगो yaa, Mua चरितागुकारश तच््छिष्याखां am: 1 वदन्ति fe— षजारिसयं गुर्लि ङ्गः सोसेण वि तारिसेण्ठ हविभव्वम्‌ afa मेवं वोचः- श्रच्छिद्रपाण्यस्तोधेकराः, भ्रपि चन्द्रादित्यौ यावच््छिस्वा गच्छति; तु पानोयविन्दुरष्यधः पतति ; चत्तुविधनच्नानवलाच्च ते संसक्तासंसक्तमं सत्रसमव्रसं जलादि श्राला निर्दोषभेवोपाददते,

षति नेषां पात्रधारणे गुणः वस्त्रं तु दोखाकाले तोधैकरा अपि ग्टहन्ति |

यदाद्‌ः- ‘aa वि एगदूसेण निम्गया जिखवरा चखव्वोसं | नय नाम waft नय fafefan कुलिंगेवा॥१॥

परमां च-

(1) ग्लानबाखदृ्धात्‌ farang aryidarg शरोररूहहिष्ण॒षर्गात्‌ | साधारणखावयदङ्ालस्णिक्रारणखात्‌ पाल्रयहखंतु॥२॥

(a) यादशं गुरूशिङ्गः शिष्येखापि med भवितव्यम्‌ |

(१) सर्वेऽपि wage निर्गता लिनवराचतृवितिः। नच नामाम्टज्िङ्गेन ग्टह्िखिङ्धे कुलिङ्गेवा॥१॥

५२४ योगासन |.

'aafa रध्या श्रणागया सी श्र arava ते aa सोवद्दिधश्मो देसियनव्वो fa ae uit देवदूखमादाय निक्ठमिंस निक्वाम॑ति निक्छ मस्यति वा।

परत्रज्यो्तरकालं सवेवाधासहलानब्र वस्त्रेण प्रयोजनमिति यथाकथच्चित्तदपेतु नाम गुरुलिङद्ातुवन्तनं तच्छिष्याणां

9 a 9 0 AEM, तदैरावखानुकरमामिव सामान्धकरिशाम्‌ | किं तोधे-

ON © ~ a aUuqaittasteas निवकस्नमाघधाकमिकादिपरिभोगस्तला- भ्यद्कोऽङ्गमरशकटोसेवनं ठणपटोपरिधानं कमण्डलुधारणं बडुसाधु- मध्ये निवासन्कद्मसयानां धमदे्नायाः करणं शिष्यशिष्यादोक्षा feat सर्वम विधेयं स्यात्‌, तच्च कुवन्ति |

© 9 9 °

कम्बलस्य वघांसु बद्िनिगतानां तात्कालिकहष्टावप्‌काय- रक्षणमुपयोगः, बालददगम्लाननिमिन्तं वषत्यपि जलधरे fama निःसरतां कम्बलाहतदेहानमां तधा विधाप्‌कायविराधना, उच्चार प्रखवणादिपोडितानां कम्बलाठतदेहानां गच्छतामपि तथा विधा विराधना। छत्रादयाच्छादितानां कम्बलमन्तरेणापि गच्छतां को दोष «fa aq al SAA घारणट्राएः wma छत्रस्य प्रतिषिषलवात्‌ रजोष्टरणं पुनः साक्ताव्मोवरक्ताधं प्रति- लेखनाकारित्वादुपयोगोति कस्तत्र विवादं कुर्यात्‌ १। मुख- aaafd सम्पातिमजोवर्तणाद्‌ष्णमुखवातविराध्यमानवाद्यवायु-

(१) सेमे येऽतीता वेऽनामताये वर्तमानास्ते सवे सोपधिधर्मा देन्य दति कत्वा एकं देवदूष्यमादाय निरक्रःमषुः निष्क्रामन्ति निन्कुजिष्यन्ति at |

ठतोयः प्रकाशः | ५२५

कायजोवरक्षणाश्युखे घुलिप्रवेगरक्षणाच्चोपयोगि पोठफलकयो- वर्षासु पनकङ्न्युदिसंसक्ञायां भुवि भूशयनस्य प्रतिषिहलाच्छय- मासनादावुपयोगः शय्यासंस्तारकयोच शोतोष्णकालयोः शयनाद्‌ावुपयोगः। वसतिश्च निवासा यतौनामत्यन्तोपकारिणो।

यदादइ-

"जो दे उवस्छयं सुणिवराण ेगगुणजोगधारोण | au दिखा वल्यस्पाणशसयणासणविकष्पा

‘st aa टिया भवे सब्वेसिं तेण तेसिसुवभ्रोमो रक्वपरिपालणा वि, शतो Fear एव ते. सव्ये ॥२॥ "सौोयायवचोराणं दंसाणं तह बालमसगाणं waa सु णिवसमे सुरलोयसुदं समच्ि णद्‌ रे

एवं यदन्धदप्यौखिकमोपग्रहिकं वा धर्मोपकरणशं तत्छाधुनां धारयतां दोषः; तहातुषणं तु सुतरां गुणश.एव

उपकरणमानंतु-

(१) यो दट्व्युपाश्रय हनिवरकासनेकगुषयोगधारिथाम्‌ तेम रन्ता वस्तान्नपानशयनमासनविक्ल्याः॥!१॥

(>) waa खितानां भवेत्‌ erat तेन तेषाञ्चपयोगः। रचाप{रिपालना aly, अतो दत्ता एवते VT A

(९) शोतातपकच्चौरेभ्यो दयेभ्यरया बालमथकेभ्यः | रन्‌ सुनिषटपभान्‌ सरलोकस॒खं समजति॥१॥

५२९ AAT

FAUT वारषरूवाभ्रो ATT चोहसरूविखो | भव्नाणं पखवोसं तु WT SY SAMA १॥ इत्याद्यागमादवगन्तव्यं, CE तु watauga प्रतन्धते। TY SEIN सामाचारो। खावकेण पोषधं पारयता नियमाल्धाधुभ्यो द्वा TMAH | कथम्‌ ?। यदा भोजनकालो भवति तदा भाग्मनो विभूषां war प्रतिचयं गत्वा साधुन्‌ निमन्यते ; fant खन्नो- पिति साधूनां तं प्रति का प्रतिपत्तिः खच्यते। तदेक: पटः लकमन्धो सुखानन्तकमपरो भाजनं प्रत्यवे्तते ; माऽन्तरायदोषाः श्यापनादोषा वा भूवत्रिति। सच यदिप्रधमायां पौरुष्यां निमन्तर- यते; भसति नमल्कारषडितप्रत्याख्यानो, ततस्तब्र्यते। अध नाख्यसौ तदा ग्टद्तै, यतस्तद्दोढव्य॑ भवति यदि पुनघंनं लगीत्‌, तदा wea संखाप्यते च; योवा खउदाटपौरुष्यां पारयति १्पारणकवानन्धो वा तसै तदोयते; पञा्तेन खावक्षेण समं agizal व्रजति, एको वत्तते प्रेषयितुं ; साधुपुरतः way मार्गे गच्छति, ततोऽसौ we ar तावासनैनोपनिमन्बयते; यदि िविगेते, तदा भव्यम्‌, भध निविशेते, तथापि विनय waa भवति, ततोऽसौ भक्तं पानं खयमेव ददाति, भाजनं वा धारयति, खित एवास्ते यावहौयते। साधु भपि पञ्चात्कमंपरि- शरणां सावगेषं waia:, ततो afar विसल्लयति, भनु-

ee ee

(१) जिना इादशसर्पाः wfacreqzwefas: | wratet wefiufra खत SESTTE: Wt ik (२) खच UIced दातव्यो ar ave |

SAA: प्रकाशः | ५२७

गच्छति कतिचित्पदानि; ततः खयं भुङ्क्षे यदि पुनस्तत्र ग्रामादो साधवो नभवन्ति तदा भोजनेलायां हारावलोकनं करोति, विशुडभवेन चिन्तयति यदि साघवोऽभविष्षन्‌ तदा निम्तारितोऽहमभविष्यमिति। एष पोषधपारणके fafa: 1 अन्यदा तु द्वा भुङ्के, Yar वा ददातोति। श्रव्रान्तरश्चोकाः- warelafad दानसुक्तं धर्मोपकारिणाम्‌। धर्मोपकारबाद्यानां खशीदौनां aay १॥ दत्तेन येन दोप्यन्ते क्रोधलोभस्मरादयः। तत्खयं चरितिभ्यो दथाच्चारिव्रनाशमम्‌ २॥ यस्यां विदायंमाणायां च्यन्ते जन्तुराशयः | Fatwa प्रशंसन्ति दानं करुणापराः २॥ यद्यच्छलरं महाहंसं तत्तेन विधोयते | तदङिंखमना लोष्टं कथं दद्याहिचक्षणः१॥४॥ संमूच्छन्ति सदा यव भूयांसस्त्रसजन्तवः | तेषां तिलानां को दानं मनागप्यनुमन्यते १॥ ५॥ दव्याददप्रसूलां गां यो हि gata wate | म्तियमाणशामिव wer) व्यते सोऽपि धार्मिकः यस्या पाने alata qaararfa याऽशचिम्‌ तां मन्वानाः पवित्रां गां vata ददते जडाः प्रत्यहं CAMA यस्यां वत्सः प्रपोद्यते | खुरादिभिजन्तुघ्रीं नां caret Fae कथम्‌ १॥८॥

५२८

योगशास््र `

aqua sana तिलमग्याज्यमग्यपि |

विभज्य yous Aaqaera: fa फलं भवेत्‌ १॥८॥ HAIMA बन्धुज्ञहदुमदवानलः।

कलेः कलितं गेदुगं तिदारकुश्िका १०॥ मोचचहारागला धर्मधनचौरौ विपव्करो |

या कन्या दौयते साऽपि wae, कोऽयमागमः १॥ ११॥ विवाडसमये aeuagqar विधोयते |

यन्नु यौतुकदानं AAA इतोपमम्‌ १२ यत्‌ संक्रान्तौ व्यतीपाते Awa पवेणोरपि |

दानं प्रवर्तितं लुबधर्मग्धसंमोहनं हि तत्‌ १२ मृतस्य aa a दानं तन्वन्ति तनुबुयः।

ते fe सिश्चन्ति मुशलं सलिले; पक्ञवेष्छया १४॥ विप्रभ्यो भोजने दत्ते प्रोयन्ते पितरो यदि | एकस्मिन्‌ yaaa: ge: fa भवेदिह ?॥ gun भपत्यदन्तं चेहानं पितृणां पापसुक्घये

qwe तप्ते तपलि तदा मुक्तिं पिताऽ्रुयात्‌ १६

गङ्गगगयादौ दानेन तरन्ति पितरो यदि | taal प्ररोहा "णहे दग्धा हुमास्तदा १७ गतानुगतिकेः aa दद्यादुपयाचितम्‌ फलन्ति इन्त ! पुण्यानि Gas मुधेव तत्‌ १८

(१) wwe तलोष्यन्तां। ३) वङ्किदग्धाः।

WANA: प्रकाशः 1

कोऽपि शक्यते त्रातु पूणं काले Fecha | दत्तोपयाचितेस्सेषां चिम्बेस्त्राणं महाहुनम्‌ १८ a Vera वा महाजं वा खरोतियायोपकल्षयन्‌ CASH पात्रं पातयेब्ररकावटे॥२०॥ ददडहमधिया दातां तथाऽचैन लिप्यते , जाननब्रपि यधा दोषं ग्रहोता मांसलोलुषः॥ २११ अपात्रप्राणिनो इत्वा पारं पुष्णन्ति ये पुनः अनकमेकघातेन ते प्रोखन्ति भुजङ्गमम्‌ ॥२२॥. खर्णादोनि दानानि टेयानौत्यङेतां मतम्‌ | श्रव्रादोन्यपि wat दातव्यानि विपश्चिता॥२२॥ क्रानदशेनचारितरूपरब्र्रयान्वितः | समितोः og विभ्नाणा गुञ्ितितयशालिनः २४५ मदात्रतमङहाभारधरणे कधुरन्धराः। परोषदहोपसगारिचमूजयमहाभटाः २५॥ निमेमल्वाः शरोरेऽपि किसुतान्येषु वसुषु १। धर्मोपकरणं gar परित्यक्तपरिग्रहाः॥ २६ a दिचलारिंशता dave भेमात कम्‌ | ददाना वपुधमयात्रामात्रप्रहत्षये २७ नवगुक्षिसनाथेन ब्रह्मचयेंख भूषिताः | दन्तशोधनमाच्रेऽपि ATS विगतस्षाः २८ मानापमानयोलीभालाभयोः सुखदुःखयोः | प्रशं सानिन्दयोदषेशो कयो सुष्यहत्तयः २९

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५२०

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(१)

योगशास्त्र

क्रतकारितानुमतिप्रभेदारम्भवजिताः | मोक्चैकतानमनसो यतयः पात्रसुत्तमम्‌ ५॥ २०॥ सम्यग्द्थं नवन्तसतु देशचारितरयो गिनः | यतिधर्मेच्छवः पारं मध्यमं ग्टहमेधिनः २१४ सम्यज्घमाजसन्तुष्टा व्रतशोलेषु "निःसद्धाः | तीर्थप्रभावनो AR जघन्यं पात्रमुच्यते २२ कुशास््रख्रवणोत्पब्रवेराग्याचिष्परिग्रहाः | ब्रह्मचयैरताः स्तेयसषादिंसापरासनुखाः २२ MAA मौनजुषः कन्दमूलफला शिनः | शिलोब्डदत्तयः पत्रभोजिनो भेत्त जो विनः २४ 0 aaa fara: शिखामोरडाजटाधराः | एकदण्डास्नरिदण्डा वा ग्हारण्यनिवासिनः॥ २५॥ पष्चाग्निसाधका mie गलन्तोधारिणो Fea भस्माक्करागाः खटाङ्गकपालाखिविभूषगाः ३६ wegen धर्मवन्तोऽपि मिष्यादगनदूषिताः जिनधर्महिषो मूढाः Fata स्युः 'कुतोधिनः २७ प्राशिप्राणापष्दरणा सषावादपरायणाः। परखखहरणोव्युक्ताः प्रकामं कामगदभाः ३८ We परिग्रद्ारम्भरता सन्तुष्टाः कदाचन |

मांसाशिनो मद्रताः कोपनाः कल्पिका; २८

एवया rE A मि —-

aw निःस्पृहाः) (२) waa कुतीधिकाः।

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(१) (२)

BAA: प्रकाशः 1 URL

कुशास््रमत्रपाठेन सदय पर्डितमानिनः।

aaa नास्तिक प्रायष warafata शंसिता: ४०॥ इत्यपातं gala परिदत्य विवे किनः |

यात्रदाने natal सुधियो मोक्षकाह्किणः॥ sey दानं खात्सफलं पाते षकुपातापात्योरपि।

पाते धमय तच्च स्याटधमाीय तदन्ययोः ४२५ पयःपानं भुजङ्गानां यथा fagfaaes | कुपात्रापाव्रयो दनं तदश्डवविव्ठहये ४२॥

स्वादु att यथा fad कटुलाबुनि दुष्यति

दानं दत्तं शडमपि कुपान्रापात्रयीस्तथा ४४॥

दत्ता कुपात्रापाव्राभ्यां aaa फलाय न)

पात्राय दत्तो ग्राखोऽपि खहया स्याकहाकखः॥ ४५॥ श्यं मोक्षफले दाने पावापात्रविचारणा।

दयादानं तु त्छनज्ञैः कुत्रापि निषिध्यते ve शुशुदिक्लता भङ्काश्चत्वारः पाच्रदानयेः।

श्रायः शुचो दितोयो ष्वेकल्यिकोज्न्यौ तु निष्फलो neg दानेन भोगानाप्रोतीत्यविसश्यैव भाष्यते। अनष्यंपाच्रदानस्य कुद्रा भोगाः कियत्फलम्‌ शट पात्रदाने फलं मुख्यं ala: शस्यं छषेरिव

पलालमिव भोगा फलं स्यादामुषङ्किकम्‌ ४९

=-= eee जम्‌

BW नत्वपात्रकुपालयोः। (2) गख femag पाशिको-। -दइवति uu |

१३२ योगशास्त्र

जिनानां दानदातारः प्रथमे मोत्तगामिनः।

धनादयो दानधर्मा्ोधिबौजसुपाजयन्‌ ५०

जिनानां पारणे भिक्तादातुणां मन्दिराजिरे

॥चर्वोत्कषपराः सद्यः पुष्यति ary: सुराः ५१॥

इृत्यतिथधिसंविभागत्रतमेतदुदोरितं प्रपञ्चेन

देवादेये पात्रापाव्रे श्नात्वा यथो चितं कुर्यात्‌ ५२ ८७ यद्यपि विषैकिनः खद्ावतः सत्पातदाने arena वा wa: फलं, तथापि सुग्धजनानुग्रहाथे पाच्रदानस्य wafra

फलमह-

पश्य UTAH नाम सम्पदं बव्यपालकः | चमत्कारकरों प्राप मुनिदानप्रभावतः Ch

पश्येत्यनेन सुग्धबुहिमभिमुखयति। सङ्गमको नामेति सक्गमकानि धानः, ANITA वव्छपालनजोवकः, चमत्कारकरों सम्पदं प्राप; कुतः, मुनिदानप्रभावतः। भव सङ्गमकस्य पारम्पर्येण मोत्तोऽपि फलमस्ति, तथापि प्रासङ्गिकफलाभिधानरभकसेन ate: |

सद्नःम कचरितं सम््रदायगम्यम्‌

चायम्‌- मगधैष्वस्ति निःसोमरन्नप्रागभारभास्रम्‌। पुरं समुद्रषद्राजग्टदं कुलग्डदहं faa: neu

(1) RUA GY पगन्ध्युदकपुष्मस्करन्र-। med

(¶)

BAT: प्रकाशः |

राजा पुरं तदपरेरनुल्लद्धितशासनः |

शशास खणिकः पाकशासनः स्वःपुरोभिव॥२॥ श्यालिग्राभेऽथ धन्ति का चिदु च्छित्रवंशिका। बालं सङ्गमकं नाम समादाय समाययौ ३॥ वसंस्तत्र पौराणां वत्सरूपाश्य चारयत्‌ | अनुरूपा ह्यसौ रोरबालानां सद्जोविका॥ ४॥ अ्रयापरेद्यः संजाते तत्र afaifagaa |

पायसं सद्ग मोऽपश्यद्‌ भुज्यमानं WE WE ५॥ गत्वा aI? जननौ ययाचे सोऽपि पायसम्‌ | साऽप्यवाच दरिद्राऽस्ि ARe पायसं कुतः १॥ वालेन तेनान्नतया याच्यमाना मुहुर्मुहुः |

स्मरन्तौ पूवेविभवं ‘ara सरोद सा तस्या सदि तदुःखेनानुविदद्दया द्व |

श्रागत्य प्रतिवेशिन्यः पप्रच्छदु;खक।रणम्‌ ताम्योऽभ्यधनत्त सा दुःखकारणं WHETAT: | RNUATA AWA साऽपचत्‌ पायस ततः < | खण्डाज्यपायसेभत्वा US बालस्य तस्य सा | WMATA चान्तगृं कार्येण केनचित्‌ १० अ्र्रान्तरे कोऽप्यागाश्ूनिमासमुपोषितः | पाराय भवोदन्वत्तारणायास्य नौरिव wee

ARQ

wae तार तार (२) कखछ प्रातिनेश्ज्जिग्यः।

५२४

योगशास्त्र

सोऽबिन्तयदिदं चिन्तामाशिक्यमिव चेतनम्‌ | जङ्गमः कश्पणाखोव कामधेनुरिवापशः १२ साघु साधु महासाघुर्मह्ाग्येरयमाययौः |

कुतोऽन्यथा वराकस्य मभे्टकपातरसह्गमः ? १२ भाग्योदयेन केनापि ममाद समपद्यत |

fad वित्तं art जिषेणोसङ्कमो way १४॥ इत्यसौ खथानसमुत्पाख पायसं साधवे ददौ | जग्राहानुद्ायास्य मषाकारुणिको मुनिः॥ १५॥ यवौ चस सुनिगेहाखमध्याद्‌ धन्धाऽपि निर्ययो। मन्ये भुक्मनेनेति eet at पायसं ga: १६॥ तत्पायसमढस्ः WAHT TYR सः |

तदजौर्णेन यामिन्यां स्मरन्‌ साधं व्यपद्यत १७॥ तेन दानप्रभावेण सोऽय राजगृह Gt |

गोभद्रेभ्यस्य भार्याया भद्राया उदरेऽभवत्‌ १८ wifaat सुनिष्पन्नं सप्रेऽपश्य्च सा ततः |

भतं; शशंस, सोऽप्यस्याः सूनुः स्यादित्यचौोकथत्‌ १९ चे्ानधमकर्माणि करोमौति बभार art

See, तंतु गोभद्रः पूरयाप्रास भद्रषोः॥२०॥ yw काले ततो भद्रा दयुतिद्योतितदिम्मुखम्‌ |

waa तनयं रतं विदूरं गिरिभूरिव॥२१॥ दृष्टखप्रामुसारेण सूनोस्तस्य wa दिने |

चक्रतुः पितरौ शालिभद्र इत्यभिधां शुभाम्‌ २२॥

SMA: प्रकाशः | ५२५

"्धात्रोभिः पञ्चभिः पाल्यमानः aad क्रमात्‌ | fafagaead: aq पितराऽप्यध्यापितः कलाः २१ संप्राप्तयोवनश्चासौ JAA HATA: |

सवयोभिः समं रेमे प्रद्यु इव AAA w Re तत्पुरस्रेषिनोऽथेत्य कन्या दातिंगतं निजाः

प्रदात शालिमद्राय भद्रानाधं ययाचिरे way भ्रथप्रह्ष्टो गोभद्रः णालिभद्रण सादरम्‌ | सवंलक्षणसंपूर्णीः कन्यकाः पयंणाययत्‌ ॥२६॥ शालिभद्रस्ततो रम्ये विमान इव मन्दिरे विललास समं ताभिः पतिदिं विषदामिव २७ विकेदानन्द्मगनोऽयं रात्रिंनच वासरम्‌ तस्यापूरयतां भोगसामग्रौं पितरौ खयम्‌ २८ | खौवौरपादमूलेऽथ MAR व्रतमग्रहोत्‌ |

Mal चानशनं Bal देवलोकं जगाम “qT nw xe a अवधिज्नानतोन्नाला शालिभद्रं निजातमजम्‌। ATA: सोऽभूत्पुवरवास्सस्यतत्परः ९० दिव्यानि वस्रनेपध्यादोन्यस्य प्रतिवासरम्‌ | सभायंस्यापयामास कल्यशाखोव सोऽमरः wen यद्यश्नर्ययोचितं कायं भद्रा तत्तदसाधयत्‌ | पूवंदानप्रभावेण भोगान्‌ सोऽभुङ्क्त के वलम्‌ ॥.३२

(1) खगवच पाल्यमानः watia: पञ्चभि | (२) कसः

५२९

योगशास्त्र

विभिः कंिदन्येद्य गृत्वा रब्रकम्बलान्‌ | fafaa खेणिकस्तां महाचेत्वेन नाग्रद्ोत्‌ २३ ततस्त वखिजो जग्मुः शालिभद्रनिकेतनम्‌ | तदुक्ञार्घे तान्‌ भद्राऽप्यग्रहोदरब्नकम्बलान्‌ २४॥ मयोग्यो Vala मदामूखयोऽपि कम्बलः | इत्यु चे TAUNTS तदा येणिको कृपः २५ रान्नाऽपि मूख्यपूे ते कम्बलं वणिजोऽधिताः।

भद्रा जग्राह तान्‌ सर्वान्‌ कम्बला नित्यचोकथन्‌ ३९ afua: प्राहिणशोदेकं vata पुरुषं नतः |

AAA मूल्यटानाकम्बल।(दानहेतवे ३७ याचिता तैन भद्रोचे feet तान्‌ रत्रकम्बलान्‌ | शालिभद्रप्रियापादप्रोल्कनोक्लतवत्यहम्‌ २८ कायें निष्यद्यते किञ्िव्नौ शंचेद्रव्रकम्बलेः। तदत्वाऽऽष्च्छ राजानमागच्छामून्‌ ग्टहाण २८ WAKA तद्राज UNTT THATS: | पश्यास्माकं वणिजां Ufaseatfcaraancy ४०॥ तमेव पुरुषं we अ्रेणठिकेन कुतूहलात्‌

भाकारिते शालिभद्र vette व्यजिन्ञपत्‌ ४१॥ afeafe awtare ! जातु याति मदामजः। प्रसादः क्रियतां देव | महृहागमनेन मे ४२ कौतूहलाख्छरेखिकोऽपि तन्तधा प्रत्यपद्यत |

तं क्षणं Wate Bisa भूत्वा we ययौ ४३

SAT: प्रकाशः | 429

विचितवस््रमाणिक्छचिन्रकत्व्मयीं ततः | श्राराजदम्यं खग्डहादटगोभां व्यधत्त सा ४४॥ तयाऽऽडतस्ततो राजा क्रतां सद्यः Ferra | विभावयन्‌ इटगोभां शालिभद्रग्डहं ययौ ४५

स्व गस्तस्भोपरि Tefen aM | मोक्तिकसखस्िकश्रणिदन्तुरहारभूतस्तम्‌ uve i दिव्यवस्रक्ततोल्लोचं सुगश्धिद्रव्यधूपितम्‌ |

भुवि दिष्यविमानानां प्रतिमानसिव खितम्‌ ४७ a तदिष्रेग विशामोशो विश्मयस्मेरलो चनः |

भूमिकायां aqat तु सिंहासन उपाविशत्‌ ४८ सप्तम्यां भुवि age शालिभद्रं ततोऽवदत्‌ | इषायातः अरणिकोऽस्ति तं द्रष्टु चषणमेहि तत्‌ ४९ अम्ब ! aaa यद्वेत्सि aad कारय खयम्‌ |

किं मया तत्र करव्यं भद्रामित्यभाषत १॥ ५० तलो भदराऽप्युवाचेने' क्रेतव्यं वसु यदः |

किन्त्वसौ सवलोकानां यु्ाकमपि प्रभुः wae तच्छत्वा गालिभद्रोऽपि सविषादभविन्तयत्‌ |

धिक्‌ सांसारिकमेष्वयं यन्ममाप्यपरः प्रसुः ५२ भागिमोगेरिवेभि्मे भोगैरलमतः परम्‌ |

दोक्तां मङ्कु ग्रहोष्यामि ओोवोरचरणान्तिक्षे ५३ a

ES eh

(1) खच -प्युवाचैवं|

3

XRG योगशास्त्र

wa संवेगयुक्नोऽपि मातुरुपरोधतः

सभार्वोऽभ्येत्य राजानमनमदिनयान्वितः ५४ सस्वजे खशिकेनाथ are सुत इवासितः | खेद्ाच्छिरसि चाघ्रातः चथाच्ाश्रुणि सोऽमुचत्‌ ५१४ ततो भद्रा जगादेवं Sara मुच्यतां यतः मानुष्यमाल्यगन्धेन मनुष्योऽप्येष बाध्यते ५६ aya गतः चेष्टो सभायेस्यास्य यच्छति | दिव्यनेपष्यवस्त्ाङ्गरागादोन्‌ प्रतिवासरम्‌ ५७

ततो रान्ना विष्ष्टोऽसौ ययौ सप्तमभरूमिकाम्‌

wea भोक्षव्यमिति विन्नप्तो भद्रया रपः ५८ भद्रादाक्चिख्यतो राजा प्रत्यपद्यत तत्तथा |

wa: साऽसाधयव्छवं Alaa किं सिध्यति १॥ ५८ सखौ खानोयतैलाम्बचिस्तुणं ततो नृपः |

weed तदङ्गनल्याः क्रोडावाप्यां पपात च्च ६० यावदन्वेषयामास भुचतिस्तदितस्ततः | तावद्द्राऽऽदिशदासौं वाप्यम्भोऽन्यत्र नाय्यताम्‌ ६१॥ तधाक्षते तया चित्रदिव्याभरणमध्यगम्‌ |

अष्रगराभं areata दृष्टा राजा विसिश्मिये ee a किमेतदिति crate टास्यवोचदिष्ान्वष्टम्‌ ! निर्मायं शालिभद्रस्य समभायंस्य निधीयते naan

(१) तत्‌|

0) -

Bara: प्रकाशः |

सवथा धन्य way घन्योऽदहमपि संप्रति !

राज्ये यस्येटशाः सन्ति विममशेति भूपतिः evs AYR सपरोवारो भरूमुजामप्रणोस्ततः | चिघ्राल्वारवस्त्रादयरवितख we ययौ ६५

शा लिभद्रोऽपि संसारविमोक्तं याषदिच्छति 1 अभ्येत्य धमसुष्दा विक्नपतस्तावदोटशम्‌ ९६ आगाच्तुक्ीनधरः सुरासुरग्स्सतः।

मूर्तो धर्म इवोदयाने धर्मघोषाभिधो मुनिः ९७ शालिभद्रस्ततो हषदधिरुद्य रथं ययौ भाचायेपादान्‌ वन्दित्वा साधुं्ोपाविशत्पुरः ६८ सूरिर्देशनां कुयेन्‌ नत्वा तेनेत्यषए्च्छत |

भगवन्‌ | कमणा केन प्रभुरन्धो जायते १॥ ee भगवानप्युवाचेदं Stat wafer ये "जनाः | अगेषस्यापि जगतः खासिभावं भजन्ति ते ७० 4 यदेवं नाय ! aval निजामाण्ष्च्छ मातरम्‌ |

५२८

ग्रहोष्यामि व्रतमिति शलिभद्रो व्यजिज्ञपत्‌ ७१९५

प्रमादो विधातव्य Sua: सूरिणा ततः | शालिभद्रो we गत्वा भद्रां नत्वेत्यभाषत ७२५ धमे; खौोधमघोषस्य QTC मुखाञ्ब॒ जात्‌ | वि्वदुःखविमोक्तस्योपायभूतो मया शरुतः 92

(१?) खश at: |

५४०

योगशास्त्र

ware: साध्विदं aa! पितुस्सस्यासि नन्दनः | प्रशशंसेति भद्राऽपि शालिभद्रं प्रमोदतः ७४॥ सोऽप्यवो दिदं मातरेव Pay wate भे। avienfa aaay ननु तस्य पितुः सुतः ७५॥ साऽप्यवारोदिदं am! युक्तस्तेऽसौ ब्रतोदयमः। किग्छव्र लोहचणकाञ्चवेणोया निरम्तरम्‌ सुकुमारः प्रकत्याऽपि दिव्यभोगेखच लालितः |

स्यन्दनं तर्णक कथं त्वं वच्यसि व्रतम्‌ ७७

शालिभद्रोऽप्युवाचेवं पुमांसो भोगलालिताः |

रसदा व्रतकष्टानां कातरा एव नेतरे ऽर

त्यज भोगान्‌ WAH माल्यगन्धान्‌ सहस इत्यभ्यासादुतं वक्र | WRIA दत्युवाच सा ७८ श्रालिभदरस्ततो भद्रावचनं प्रतिपद तत्‌

भार्याभेकां तूलिकां qufa स्म दिने दिने॥८०॥ saa तस्मिन्‌ नगरे धन्यो नाम महाघनः।

बभूव शालिभद्रस्य कनिष्ठमगिनोपतिः ८१ शालिभदखसा ‘ary खपयन्तोतुतं तदा।

fa रोदिषीति तेनोक्ता जगादेति सगद्रदम्‌ ?१॥ cz ad ग्रह्ोतुं मे वाता त्यज्येकां दिने feat |

भायां तूलिका aie हेतुना तेन रोदिमि ८३

ce i TLL + SS >

१) खच साखुः। इड चन्ट।

SAA: WHIM | ४५४९१

एवं कुर्ते फररिव भोरुस्तपखखयसीौ |

होन सस्वस्तव ways घन्यः सनमकम्‌ ८४ |

सुकरं Qed नाध ! क्रियतेकिंन fy त्वया १।

एवं सदहासमन्यानिभीर्याभिजगदेऽथ सः ८५ धन्योऽप्युचे व्रते विन्नो भवत्यम्ताञ्च पुख्यतः | श्रगुमन््रमोऽद्य मेऽभूवन्‌ प्रव्रजिष्यामि तद्‌ दूतम्‌ ८६ ता WAY: प्रसोदेदमस्माभिनमे शोदितम्‌ |

मा त्याक्षौः चियोऽस्मांय मनखिन्‌ ! नित्यलालिताः wor श्रनित्यं स्रोधनाद्येतत्रो"उभा नित्यपदेच्छया |

अवश्यं प्रव्रजिष्यामोत्यालपन्‌ धन्य उलितः रर तामनु प्रत्रजिष्याम एवमुक्षवतोख aT: |

अन्वमन्यत घन्योऽपि धन्यंमन्यो महामनाः ॥८्८॥ तञ्च वेभारगिरौ NNT समवासरत्‌।

विदाञ्चकार तं सद्यो धन्यो धर्मसुद्रह्िरा॥ दत्तदानः सदारोऽसावारुष् शिबिकां aa: |

भवभोतो महावोरचरणौ शरणं ययौ ९१॥

सदारः सोऽग्रहोद्‌ sai ततो भगवदन्तिके |

तच्छृत्वा शालिभद्रोऽपि जितंमन्यः प्रतत्वरे ९२ सोऽन्वोयमानस्तदनु अ्रेणिकेन wey

उपेत्य ओरोमहावोरपादमूलेऽग्रशोद्‌ व्रतम्‌ ८३

(१) we प्रोख्छलि- |

५४२

योगशास्त्र

ततः सपरिवारोऽपि खामी सिद्दाधेनन्दनः | विहरब्रन्यतोऽगष्छत्‌ सयु इव इस्तिराट्‌ + ८४ धन्य शालिभद्रय तावभूतां TEA |

AWCUNTY तपते खद्वधारासषश्ोदरम्‌ <५॥ पक्षाद्‌ मासाद्‌ हिमास्याखिमास्या मासचतुषटयात्‌ | श्ररोरनिरपै्लौ तौ चक्रतुः पारणं सुनो तपसा समजायेतां निमांसरधिराङ्गकौ | चर्मभस्नोपमौ शालिभद्रधन्यौ म्ामुनो < waa: खौ मषावोरसवामिना सद तौ मुनौ | MITA TATE पुरं aaa निजाम्‌ ८८ # ततः समवसरणस्थितं aa जगत्पतिम्‌ | यद्ाऽतिशययोगेनाच्च्छिव्रमोयुजनाः पुरात्‌ ५९८४ मासपारणक्षे गालिभद्रधन्यावुभावपि।

काले विडतै farsa भगवन्तं प्रणेमतु: १००४ arama णं तेऽयोत्युक्ः खामिना aa: | इच्छासोति भगन्‌ शालिभदरो धन्ययुतो.ययोौ गत्वा भद्राण्टषदारि तावुभावपि तशख्तुः | तपःच्षामतया तौ केनाप्युपलक्तितौ २४ sat अालिभद्रं धन्यमप्यदय वन्दितुम्‌ | यामौति TFA USANA FRAT नती ॥२॥ लणमेकमवस्थाय तत्र तौ जम्मतुस्ततः |

महर्षी नगरदारप्रतोख्या निरोयतुः a ४॥

BMA: प्रकाशः | ४५४१

लदाऽभ्यान्तौ पुरे तस्मिन्विक्रेतुं दधिसपिंषौ श्ालिभद्रस्य प्राग्जञकमाता धन्धाऽभवत्पुरः शालिभदं तु सा प्रच्य सच््ञातप्रस्रवस्तनो | वन्दित्वा चरणौ भक्तया दाम्यामपि ददौ दधि। Qn ओ्रोवौरस्यान्तिके Tat तदालोच्य warafe: ` शालिभद्रोऽवदत्स्वामिग्ाठतः पारणं कथम्‌ १॥ सर्वन्नोऽप्या चचच्तेऽथ ालिभद्र ! महासुमे ! प्रागजग्ममातरं घन्यामन्यदप्यन्धयजग्मजम्‌ ८॥ Hal पारणकं दन्राऽऽण्च्छ खामिनं ततः।.. वेभाराद्वं ययौ शालिभद्रो धन्यसमज्वितः शिलातक्ञे शालिभद्रः सधन्यः प्रतिलेखिते | पादपोपगमं नाम तत्रानश्नमाशयत्‌ १०॥

तदा भद्रा तन्माता चैणिकञ्च महोपतिः। भ्राजम्मतुभेकियुक्तौौ खोवोरचरणान्तिकम्‌ ॥. ११ ततो भद्राऽवददन्यशालिभद्रौक्तौ सुनो 7 | भित्ताधं नागतौ कस्मादस्मदेश्म जगत्पते! १२॥ सवन्नोऽपि बभाषे at लदहेश्मनि सुनो गतौ | भन्रातौोन तु भवत्येहागमनव्यग्रचित्तया॥ १३॥ प्राग्‌जकममाता SAAT AAT यान्तो पुरं प्रति

ददौ दधि तयोम्तेन पारणं चक्रतुश्च तौ १४॥

(१) इड -H@a- |

५४७४

योगशास्त्रे

उभावध महासश्लौ "सत्वरौ भवसुञ्मितुम्‌ | वैभारप्वेते गत्वाऽननं तौ प्रचक्रतुः १५॥

खे णिक्षेन समं भद्रा वभारादििं ययौ aa: | तथाखितावपश्यश्च तावश्मघटिताविव weg tt तत्कष्टमथ पश्यन्तौ स्मरन्तो तत्‌सुखखानि च। साऽरोदोद्रोदयन्तीव auras प्रतिखनैः eon भ्रायातोऽपि WH Aa! मया तु खल्पभाग्यया। stata प्रमादेनाप्रसादं मा क्था मयि wu tt I यद्यपि त्यक्ञवाब्रस्वं तथापि निजदशेनात्‌ | श्रानन्दयिष्यसि est पुरेत्यासोश्नोरथः १८ भारश्भेणासुना YX | शरोरत्यागहेतुना |

मनोरथं तमपि मे भङज्गुमस्युदयतोऽुना २० प्रारं anaes ते विक्नौभवाम्यदम्‌ | किन्छेतत्ककशतमं शिलातलमितो भव ॥२१॥ was Sfaat ₹र्षस्थाने \किमम्ब ! रोदिषि !

Yen यस्याः सुतः aly 'त्वमेका पुत्रवत्यसि २२

तच्वन्नोऽयं महासच्छस्त्यक्गा ठणमिव धियम्‌ प्रपेदे खामिनः पादान्‌ साक्षादिव परं पदम्‌ ॥२२॥

(१) we eat १) weedeat; QQ) waw fa aa |

Bala: प्रकाशः। ५४१

असो जगत्खाभि शिष्यामुरूपं तप्यते तपः |

` सुधाऽमुलप्यते मुग्ध! किं त्वया स््लोखभावतः१॥२४॥ अद्रवं बोधिता रान्ना afear तौ महामुनो। विमनस्का निजं धाम जगाम अखिकस्तथा॥२५॥ Bal ततस्तौ सर्वाधसिदखरगे बभूवतुः |

सुरात्तमो त्रयस्तिंगत्सागरप्रमिताभुषौ ॥२६॥

सत्पातरदानफलसम्पमदमहितोयां प्राप सष्गमक भ्रायतिवदहमानाम्‌ | कार्यो नरेरवितथधातिथिसंविभागी

© Q e भाग्याथिभिननु ततः सततं Waa: १२७

इति सद्गमककधानकम्‌ र्ठ

उक्तानि हादशत्रतानि, श्रथ तच्छषमतिचाररस्षणलस्षणां प्रम्तोतुमाड-

व्रतानि सातिचारागि सुक्कताय भवन्ति | अतिचागस्ततो हेयाः wy पञ्च व्रते aa i ce y

sfaaat मालिन्धं aaafa व्रतानि सूक्ताय भवन्ति, © ~~ ~ ~ तद्थभेवेकेकस्िन्‌ at पञ्च पञ्चातिचाराः परिहरणोयाः। ननु सवं विरतावेषातिचारा भवन्ति, संख्वलनोदय एव तैषामभि- धानात्‌ | gc

५४६ योगशास्े

यदाह- "सब्वेवि a axa dared तु ठदयतो हंति मूलच्छिव्न पुख होड वारसयदं कसायाशं १॥ damier सखव विरतानामेव, देशविरतानां तु प्रत्याख्याना- वरणोदय इति a देशविरतावतिचारसमश्चवः। युज्यते चेतत्‌, VMI, FART ब्रशाव्यभाववत्‌ | तथाहि- प्रथमाशब्रते ad awe निरपराधं हि विधं वि विधेनेत्यादि- विकल्ये वि गेषितत्वेनातिसुख्तां गते tarred देश विराधना- रूपा अतिषारा भवन्तु. अतः सवनाश एव तस्योपपद्यते मदहा- aay ga संभवन्ति, मदस्वादेव ; whandt द्रणपटबन्धादि- वदिति। saa. देशविरतावतिचारा संभवन्तोत्यसङ्कतम्‌ उपासकदशादिषु प्रतिव्रतम तिचारपख्चकाभिधानात्‌ Wa भङ्ा एव तै, त्वतिचाराः। नेवम्‌ भङ्ादहदेनातिचारस्यागभे संमतलात्‌ | यच्ोक्म्‌। सर्वेऽप्यतिचाराः संख्चलनोदय एव away! कैवलं सवविरतिचारिव्रमेवाचित्य तदुच्यत, q सम्यक्नदेशविरतो | यतः-खव्वेवि अद्यारा इत्यादि गाधाया एवं व्याख्या -संञ्वननानाभेवोदये खवेविरतावतिचारा भवन्ति, शषोदये तु qawaaa तस्याम्‌ एवं देशविरतावति-

चचारामावः SC

णी भीणणणणीणगणणणाणण णि पाक वु

(१) wasfa अतिबाराः खंज्वलनानां तु उदबतो wafer | Bama grata हादषानां कषायाखाम्‌ ॥१॥

ठतोयः प्रकाशः। uso

aa प्रथमत्रते तानाष-

क्रोधादसण्डविच्छेदोऽधिकभाराधिरोपणम्‌ | प्रहारोऽन्नादिरोधश्चाहिसायां परिकौत्तिताः॥९०॥

अह्दिसायां प्रथमाणव्रते रमो पच्चातिचाराः-- बन्धो रख्वादिना गोमहिष्यारौनां नियन्त्रणम्‌ ; स्पुतादौनामपि विनयग्राहणाथं क्रियते, wa: क्रोधादिल्युक्नम्‌ ; क्रोधात्‌ प्रबलकषायोदयाद्यो बन्धः प्रधमोऽतिचारः१। कविः शरोरं aa, तस्याः हेदो देधोकरणाम्‌ ; पादवल्मोकोपहतपादस्य पुतरादेरपि क्रियते sfa क्रोधादित्यतुवत्ततं। mtu: छविच्छेदः दितीयोऽति- चारः AMAA वोदुमशक्यस्य भारस्यारोपणं गो-करभ-रासभ- मनुष्यादेः स्कन्ध we शिरसिवा बाहनायाधिरोपणम्‌ ; इहापि क्रोधादित्यनुवत्तते, ‘aa क्रोधात्तदुपलचिताज्ञोभादहा यदधिक- भारारोपणं ठतोयोऽतिचारः ३। प्रहारो लगुडादिना ताडनं क्रोधादेवेति चतुर्धोऽतिचारः भन्रादिरोधो भोजनपानाद- निषेधः क्रोधादेषैति पञ्चमोऽतिचारः ५। अज्र चायमावश्यक- चु्दयक्तो विधिः। बन्धो दिपदानां चतुष्पदानां वासात्‌, सोऽपि सार्घं कोऽनर्धको वा, तव्रानयेकस्तावद्‌ विधातु युज्यते, साधकः पुनरसौ fefaw:, ate निरपेक्षश्च, aa सापेक्षो यो दाम ग्रन्थिना fafaaa, aa प्रदोपनादिषु मोचयितुं Sd वा शक्यते। निरपेक्षा यत्‌ निश्चलमत्यथेञ्च बध्यते। एवं तावत्‌

ee me 5 ' 1०, (98 | ee ~ ~ ee ee

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(१) तत्‌

rth -योगशास्ते

चतुष्यदटानां बन्धो हिपदानामपि दासदासोचीीरपाठादिप्रमत्त guetta यदि बन्धस्तदा सविक्रमणा एव बन्धनोया रक्षणोयाख, यथाऽम्निभयादिषु विनश्यन्ति; तथा हिपदचतुष्यदाः अावकेष एव संग्टोतव्या ये भ्रवष्ठा एवासते इति, छविष्छदोऽपि तधैव | नवरम्‌ fate हम्तपादकगनासिकादि afacd छिनत्ति, aaa: gare वा weal fewer ददृदेति ; amsfua- भारोऽपि नारोपयितव्यः, gaia fe या दिपदादिवाइनेन जोविका सा खावकेण मोक्षव्या, भथान्याऽसौ A भवेत्‌ ; तदा feuzisd भारं खयसुरिकिपति, अवतारयति तं awa, चतुष्यदस्य तु यथोचितभारः fafega: क्रियते. हलशकटादिषु पनरुचितबेलायामसौ qua दति; प्रहारोऽपि तथेव नवरम्‌ | निरपेक्षः neta निदयताडना, ate: ga: खावकेणादित पव भोतपषदा भवितव्यं, यदि ya: कोऽपिन करोति विनयं तदा तं मर्माणि qwrt लतया दवरकेण वा सक्लद्‌ feat ताडयेदिति। तथ। अच्रपानादिरोधो कस्यापि कन्तव्यस्तोरणवुभुन्तो रेवं रति 'स्ियते; सखमोजनकबेलायां तु च्वरितादोन्‌ विना नियमत एवान्धान्‌ विष्टतान्‌ भोजयित्वा खयं ysla; भव्रादिरोधौऽपि साधकान्थकमेदो yay द्रष्टव्यः नवरम्‌। सापेक्षो रोग- चिकिन्षाधं स्यात्‌. भ्रपराधकारिण्ि भ्वाचैव ate—wa a दास्यति भोजनादि शान्तिनिमिन्तं चोपवासादि कारयेत्‌

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(1) faa) (२) वाचेवं।

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Bala: प्रकाशः | ५४९

fa agate मूलगुणस्याहिंसालक्षणस्यातिचारो यथा भवति तधा यननया वत्तंनोयम्‌। ननु हसेव ART प्रत्याख्याता तनो बन्धादिकर्णेऽपि दोषो हिसाविरतेरखख्डितलात्‌; रथ बन्धादयोऽपि प्रत्याख्यातास्तदा तत्करणे aauy एव, विरतिः areata | fags वन्धादौनां प्रत्याख्येयले adam ‘fantaa ; प्रतित्रतमतिचारत्रतानामाधिक्छादिति। एवं बन्धादोना- मतिचारतेति। उश्यते -सत्यं डिंसेव प्रत्याख्याता वन्धादयः, fad तव््रत्याख्याने अधतस्तेऽपि प्रत्याख्याता द्रव्याः, हसो. पाय्रत्वात्तेषाम्‌। नच बन्धादिकरणोऽपि व्रतभङ्गः किम्बतिचार एव कथम्‌ इह हि विधं त्रतम्‌- wager afeger ; aa मारयामोति विकल्पाभावेन यदा कोपाद्यावैशात्यरप्राणप्रहाण- मविगणयन्‌ बन्धादौ प्रवत्तते हिंसा भवति, तदा निदेयताविरत्यनपेततप्रहत्तत्वेनान्तवच्या व्रतस्य भङ्गः, हिंसाया भभावाचच ब्िवृत्या पालनमिति देशस्य भण््रनादेशस्टव पालनाद तिचारव्यपदेशः Wawa | |

तदुक्तम्‌-

मारयामोति क्लतत्रतस्य विनेव मल्यु इदहातिचारः १।

निगद्यते यः कुपितो वधादौन्‌ करोत्यसो स्याब्रियमाऽनपेक्तः we मत्यारभावात्रियमोऽस्ि तस्य कोपाहयाषशोनतया तु भग्नः। देशस्य भद्रादनुपालनाच्च पूज्या अ्रतोचारमुदाहरम्ति ॥२॥

(1) त्थोर्यत।

५५० योगशास्त्र

यच्चोक्तम्‌ व्रतयत्ता ‘fanaa इति तदयुक्षम्‌। विश्दाहिंसा- ama fe बन्धादोनामभाव एव तत्‌ खितमेतदन्धादयोऽति- चाराणएव बन्धादिग्रहणस्य चोपलक्षणत्वाशम्ततन्प्रयोगादयोऽ- न्येऽप्यतिचारतया Hat: < ° अथ हितोयस्य व्रतस्था तिचारानाद- मिध्योपदेशः सहसाऽभ्याख्यानं गुद्यभाषणम्‌ | विश्वस्तमन्भेदश कूटलेखश्च सुते ९१

` मिष्योपदेशोऽसदुपदेशः,प्रतिपब्रसत्यब्रतखय fe परपोडाकरं वचन- मसत्यभेव, ततः प्रमादात्परपीडाकरणे उपदेशे अतिचारो यथा, वादयन्तं खरोष्रादयो इन्यन्तां दस्यव इति यद्वा यथाखितोऽथे- स्तथोपदेथः साधोयान्‌, चिपरोतसु भययार्थोपदेभो यथा- परेण सन्देहापन्नेन VS तथोपदेशः | यदा विवादे खयं परेण वा अन्धतराभिसन्धानोपायोपदेश शति प्रथमोऽतिचारः १। स्सा WATS खाभ्याख्यानभसदाषाध्यारोपणं यथा- चोरसत्व पारदारिको वेत्यादि अन्धे तु सहसाऽभ्याख्यानखाने रहस्माभ्याख्याने पठन्ति : व्याचक्षते - रह एकान्तस्तब भवं We रहस्यनाभ्याख्यानमभि- श्रासनमषदध्यारोपणं, रहय्याभ्याख्यानं यथा-यदि दद सनो ततस्तस्यै कथयति,- भयं तव unt तरुख्याम तिप्रसक्लः, w रुणो तत एवमाइ- षय ते wat प्रौढवेष्टितायां मध्यमवयसि योषिति प्रसक्घः, तथाऽयं खरकामोमदुकामद्ति वा परिहसति,

(१) aw famaa-|

ढतोयः प्रकाशः | ५५१

तथा स्ियमभ्याख्याति we: पुरः - यथा पन्नो ते कथयति एवमयं मां रहसि कामगदभः खलोकरोति, भथवा दम्पत्योरन्धस्य वा da: स्त्रिया वा येन रागप्रकषं उत्पद्यते तैन alent रस्येनानेक- प्रकारेणाभिभंसमं हास्यक्रोडादिना aafufaana; तथा सति त्रतभङ्गः एव स्यात्‌ यदाद

'सहसाभक्वाणाई ATTA He AS तो wait |

HE YW णाभोगाई्डिंतो at WIE Weare ae a इति हिनोयोऽतिचारः २। तथा गुदं गृहनोयं waa aera राजादिकाथ्यसंवचं तस्यानधिक्लतेनेवाकारेद्गितादिभिन्राला- SIH प्रकाशनं Warmed यथधा-एते Wefae राज- विरुचादिकं मन्यन्ते, अधवा गुद्भभाषणं पेश्न्धं यथा--हयोः प्रोतौ सत्याभेकस्याकारादिनोपलभ्याभिप्रायमितश्स्य तथा कथयति यधा प्रोतिः प्रणश्यति इति ठतोयोऽतिचारः तधा विश्वस्त! विश््रास्सुपगता ये भितकलतरादयस्तषां मन्तो aad तस्य fz: wan तस्यानुवादरूपत्वेन, सत्यत्वात्‌ यद्यपि नाति चारता घटते तथापि मन्विता्धप्रकाशनजनितसस्वादितो faa- कलत्रादे्मरणादिसम्धवेन परमार्थतोऽस्यासत्यत्वात्‌ wafexy- रूपत्वेनातिचारतेव गुद्यभाषशे गुद्रमाकारदिना विन्नायानचधि-

(१) सहसग्याखानादोन्‌ जागन्‌ यरि Katy ततो भङ्गः | ale पुनरनाभोगारिम्बसततो भव्रत्बतिषारः॥१॥

५५२. योगशास्त्रे `

क्त एव Ww प्रकाशयति, इह तु खयं मन्रयिल्वेव मन्व भिनत्तौ- wane: | दति चतुर्योऽतिचारः ४। तथा कूटमसङ्गुतं तस्य लेखो लेखनं कूटलेखः, भन्यखरूपाक्तरमुद्राकरण्म्‌, एतच यदपि कायेनासत्यां वाचं वदामोत्यस्यन वदामि वादयामोत्यस्य वा व्रतस्य uy एव, तथापि सहसाकारानाभोगादिना भति क्रमादिना वाऽतिचारः; waar भ्रसत्यमित्यसत्यभणनं मया प्रत्याष्यातभिदं पुनलेखनमिति भावनया तव्रतसापेक्षस्याति- चार एवेति पञ्चमोऽतिचारः ५॥९१॥

wy ठतोयत्रतातिचारानाड-

स्ेनानुन्ना-तदानौतादानं दिट्‌राज्यलङ्खनम्‌ | प्रतिद्पक्रिया मानान्यलं चास्तेयसंथिताः ez

स्तनाबौरास्तेषामनुन्ना-हरत युयमिति इरणक्रियायां प्रेरणा, थवा स्तनोपकरणानि कुशिकाकम्तरिकाघघरिकादोनि तेषा aad विक्रयणं वा स्तेनानुज्ञा। wa यदापि चौय करोमि कारयामोव्येवं प्रतिपत्रत्रतस्य स्तेनानुन्नात्रतभङ्ग एव, तथापि किमधुना aa निव्यापारास्तिष्ठत १, यदि वो भक्ादि नास्ति तदाऽ तहदामि ?, भवदानं\तमोषस्य वा यदि विक्नायको a विद्यते तदाऽषं विक्रये शत्येवंविधवचनेखौरान्‌ व्यापारयतः स्वकल्पनया तद्वयापारणं परिरतो व्रतसापेच्चस्यासावतिचारः। दूति प्रथमोऽतिचारः १। तथा तच्छब्देन स्तेनपरामथः स्तन- रानोतमाद्ृतं कनकवसख््नादि तस्यादानं ग्रहणं मुख्येन मुधिकया

Bala: प्रकाशः | ४५४३

at तदानीतादानं, ward हि काणक्रयेण सुधिकया वा WET श्टह्वं्ोरो भवति, ततच्चौयंकरणाषुतभङ्गः, वाशिज्यभेव मया क्रियते चौरिकेत्यध्यवस्ायेन व्रतसापेक्तलात्र 'तद्ङ् «fa भङ्गा मङ्गरूपोऽतिचारः | दति हितीयः २। तथा दिषोविर्दयो- बान्ञोरिति शेषः, राज्यं निग्रसिता भूमिः कटकं वा तस्व aed व्यवय्थाऽतिक्रमः; व्यवस्था परस्परविर्दराजकलतेव, तक्लङ्कने चान्यतरराज्धनिवासिन इतरराज्ये प्रवेगः, इतरराज्य- निवानिनो वा अन्यतरराच्ये प्रवेशः, दिडराज्यलङ्नस्य यद्यपि स्वस्वामिना श्रनमुन्नातस्य साभिजोवादत्तं तिखयरेशं तरेव गुरूद्धिः इत्यदक्तादानलक्षणयोगीन तत्कारिणां चौयदष्ड- योगेन श्रदत्तादानरूपलवादु तभङ्ग एव, तथापि दिडराज्यलङ्कनं कुवता मया वाणिन्यमेव ad चोयंनिति भावनया व्रतसापेत्तताक्लोके चोरोऽयमिति व्यपदेशाभावादतिचारता। इति ama: 21 तथा प्रतिरूपं महग ब्रीदोणां vafa:, तस्य वसा, fest: खदिरादिवेष्टः, तलस्य सूत्रं, जात्यसुवणंरूप्ययो- युक्षिसुवणरूप्ये, इत्यादिप्रतिरूपैण क्रियाव्यवहारः, त्रोद्यादिषु पनच्जपादि प्रिष्य तत्तदिक्रोण्णोते। यदा, अ्रपद्ृतानां गवादोनां सग्रङ्गाणामग्निपक्षकालिङ्गोफनलस्वेदादिना अष्गाष्यधोमुखानि प्रगुणानि तियंम्बलिलानि वा यथारुचि विधायानन्यविधत्वमिव तेघामापाय सुखेन धारणविक्रयादि करोति। इति चतुर्थः ४।

ee 2 7 me ee ee 1 णण

(१) खच वाभ-। (श) ww -याण्छत्वसिव। Soe

५४५४ योगशास्त्रे

तधा मौयतेऽनेनेति मानं कुडवादि, पलादि, हस्तादि, शस्यान्यलं होनाधिकतं, शोनमानेन ददाति, भरधिकमामेन ग्टह्वाति। इति पञ्चमः ५। प्रतिरूपक्रिया armada पर- व्यसनेन परधनग्रहणरूपत्वाह्कद्गः एव, केवलं खात्रखननादिक- भेव da प्रसिष्ठं, मया तु वशिक्रलेव क्तेति भावनया aa- र्षणोदयततलादतिचाराषेबेति। भधवा स्तेनानुन्नादयः पच्चाप्यमो ARMAS एव, केवलं सदसाकारादिना श्रतिक्रमव्यति. क्रमादिना वा प्रकारेण विधोयमाना अरतिचारतया व्यपदिश्यन्ते | चेते राजसेवकादीनां सश्चवन्ति, तथाहि-भ्राद्ययोः ae एव सम्भवः, दिडराज्यलष्नं तु यदा सामन्तादिः कचित्‌ सखस्वामिनो हत्तिमुपजोवति, तहिरुचस्य aera भवति, तदाऽस्यातिचारो भवति, प्रतिरूपक्रिया मानान्यल्वं यदा राजा arent द्रव्याणां विनिमयं मानान्धत्वं कारयति, तदा रान्नोऽप्यतिचारो भवति एते पञ्चाप्यस्तयत्रताथिता भअतिचाराः ॥<२॥

धंत्रताति ay चतुधेत्रतातिचारानादह-

दृत्वरात्तागमोऽनात्तागतिरन्यविवादनम्‌ | मदनाव्यायहोऽनङ्गक्रोडा ST TAFT Bat: <४

ब्रह्मणि त्रह्मचयेव्रते, एतेऽतिचाराः wan sat प्रतिपुरुष. मयनभोला, वेश्या शत्यः; सा चासावात्ता कञ्चित्कानं भाटोप्रदानादिना संहता, पंवद्भाषे इत्वरात्ता भवा इत्वरं

SANA: प्रकाशः | १५१५

Marga, wat स्तोकमस्यमात्ता sata, विखष्टपटु- वत्‌ VA. | WIT इत्वरकालमात्ता LATA, मयुरव्य॑स- कादिल्वात्‌ समासः, कालशब्दलोपख तसां गम भासेवनम्‌ | द्यं चात्र भावना-भाटोप्रदानादित्वरकालखवोकारेण खकलती- क्त्य वेश्यां सेवमानस्य खबुहिकश्यनया खदारत्वेन त्रतसापे्त- fanaa भङ्गः, भल्पकालपरिग्रहाच्च वसुतोऽन्यकलतत्वाद्गङ्गः, दति भङ्गगभङ्गरूपत्वादित्वरात्तागमोऽतिचारः। दति प्रथमः १। तथा भ्रनात्ता wafer वेश्या खरिणी, प्रोषितमतेका HATA वाऽनाधा तस्यां गतिरासेवनम्‌। श्यं चानाभोग- दिना अ्रतिक्रमादिना वा श्रतिचारः। दमौ चातिचारौ खदा- रसन्तोषिण्ष एव, नतु परदारवजकस्य ; इत्वरात्नाया Aaa अ्रनात्तायाः खनाधतयेवापरदारत्वात्‌, शेषासत्वतिचारा योरपि; ददं सूत्राऽनुपाति। aery: 'सदारसंतोसस्प Ta प्छ श्रद्यारा sifqaar समायरिभ्रव्वा। अन्ये त्वाहुः - श्त्वरात्तागमः खदारसन्तोषवतोऽतिचारस्तत्र भावना क्तैव, अ्रनात्तागतिसतु परदारवजिनः TATA fe वेश्या यदा तां गटडहोतान्यसक्तभाटिकामभिगच्छति, तदा परदार गमनजन्यदोषसम्भवात्‌ कथञ्चित्‌ परदारत्वाच्चाभद्गःत्वेन UPUF- खूपोऽतिचारः इति feata: २। तथाऽन्येषां खखापत्यव्यतिरि-

[त गगौ

(१) खदारसन्तोषययेमे पञ्ादिकखारा सरातव्याः, सनाचरितन्याः|

५५६ योगशास्त्र

क्तानां विवाष्नं विवाहइकरणं कन्धाफललिष्छया, खेसम्बन्धादिना वा परिणयनविधानम्‌। ददं खदारसन्तोषवता खकलवात्‌ परदारवजेकेन स्रकनलतरवेग्याभ्यामन्यव मनोवाक्ावै्ेंथुनं ara कारणोयमिति यदा प्रतिपन्नं व्रतं भवति, तदा श्रन्धविवाहकरणं मेथुनकारणमथतः प्रतिषिमेव भवति, तदतौ तु मन्यते-- विवाह एवाऽयं मया विधोयते मेनं काय्यते दति व्रतसापेन्तत्वादतिचार शति कन्धाफललिष्छठा सम्यग्‌ दृटरव्यत्पन्राऽवस्थायां सग्धवति, मिच्यादृ्टेसु भद्रकावस्थायामनु- ग्रहां व्रतादाने सा aarafa | नन्वन्यविवाहइनवत्‌ खापत्यविवाह- नेऽपि समान एव दोषः सत्यम्‌ यदि खकन्धाया विवाहो नं कायते, तदा खच्छन्दचारिणो स्यात्‌, ace शासनोपघातः स्यात्‌ ; fafeafaarer तु पतिमियन्वितल्वेन तथा खात्‌

atsuny:

पिता रक्षति कौमारं wat cafa यौवने | पुरस्तु स्थविरे भावेन स्तो खातन्व्रयमदति।॥ १॥

यसु दाशाच्स्य AWM चेटकराजस्य खापत्येष्वपि विवाद- नियमः खुयते, चिन्तकान्तरसङह्वावे द्रष्टव्यः भन्ये ATE: अन्यस्य कलत्राऽन्तरस्य विगिष्टसन्तोषाभावात्‌ खयं विवाहन- मन्यविवादनम्‌ श्रयं खदारसम्तुषटस्याऽतिचारः | इति ठतोयः 21 मदने कामेऽत्याग्रहः परित्यक्तान्यसकलव्यापारस्य तदध्यवसायतः योषासुखकन्नो रूपस्थान्तरेष्वविलप्ततया प्रक्षिप्य प्रजननं महतीं बेलां निनो मत एवास्ते, चटक इव चटकायां मुद्‌

BAA: प्रकाशः | ५५७

मंहर्योषायामारोहति, जातबनलकच्तयश्च वाजोकरणान्धुपयुङक्ते ; saa खर्पौषधप्रयोगेण गजप्रमेको तुरगावमर्दीव पुरुषो भवतोति aati इति चतुथः ४। तथा WA: कामः, सच पसः स््ोपनपुंसकरेषु सेवनेच्छा, इस्तकर्मादोच्छछा वा वेदोदयात्‌ | योषितोऽपि योषिन्रपंसकपुरुषासेवनेच्छा हस्तकमादोच्छा वा, नपेसकस्यापि नपुंसक पुरुषस्तोसेवनेच्छछा इस्तकममादोच्छा वा एय।ऽनङ्गो नान्यः कथित्‌ तेन तसन्‌ वा क्रोडा रमणशमनङ्ग- क्रोडा Al ब्र्ार्येः काष्ठपुस्तफनलसत्तिकाचर्मादिभिघटितः प्रजनने; स्वलिङ्गेन कछतक्षत्योऽपि योषिनामवाचखरेशं भूयो भूयः कुथानि, केशाकषणप्रहारदानदम्तनखकदधनाऽऽदिप्रकारेय मोड- नौोयकमवेशात्‌ तथा क्रोडति यथा बलवान्‌ रागः प्रसूयते। ase देहावयवो मेयनापेत्तया योनिमंहनं वा तदयति- रिक्रान्यङ्गानि कुचकत्तोरूवदनादोनि तेषु क्रोडा अनङ्गक्र)डा। दह अ्रावकाऽत्यन्तपापभोरुतया awe चिकौषैरपि यदा वेदोदयासहिष्णुलया afeaad शक्रोति, तदा यापनामाता्ं सखदारसन्तोषादि प्रतिपद्यते मेयुनमात्रेणेव यापनायां सम्भवन्ां मदनात्याग्रहानङ्गक्रोडे waa: प्रतिषिदहे। तत्सेवने afaz- गुणः, प्रत्युत तात्कालिकौ छिदा uname रोगा दोषा एव भवन्ति एवं प्रतिषिदडाचरणाडन्गो नियमाबाघनाचाभङ्ग इत्य ति- aaa wai ठन्यधाऽतिचारहयमपि भावयन्ति-स fe सखदारसन्तोषो मनमेव मया प्रत्याख्यातमिति खकश्नया वेश्यादौ तत्‌ परिष्रति, नालिङ्गनादि; परदारविवजेकोऽपिः

US योगशास्त्रे

परदारेषु मेधुनं परिहरति, नालिङनादि ; इति कथञ्चि तसापेच- ल्वादतिचारौ। एवं खदारसम्तोषिणः पश्चातिचाराः परदार- षजंकस्य तूत्तरे तय एवेति faaqi भन्ये त्वन्यधाऽतिचाराम्‌ विचार्यन्ति- यथा-

'परदारवल्िगो og हन्ति fafa सदारसंतुटे

wats fafa पश्च भंगविगष्येडि अष्यारा॥१॥ दत्वरकालं या परेण भादखादिना afew वेश्या तां गच्छतः परदारवजिनो भङ्गः कथञ्चित्‌ परदारत्वात्तस्याः, लोकै तु परदारत्वारूटेने भङ्ग इति भद्गाभक्गरूपोऽतिचारः भपरि- ग्टशोतायामनाथकुलाङ्गनायां या गतिः परदारव जिनः सोऽप्यति- चारः ; तत्कल्यनयाऽपरस्य भतुरभाषेनापरदारलवादभष्गः, लोके परदारतया Geng दति पूववदतिचारः। शेषासु तयो दयो. रपि भवेयुः, स्तरियासु खपुरुषसन्तोषपरपुरुषवजंनयोने मेदः ; ख- परुषव्यतिरेकेणाऽन्येषां परपुरुषत्वात्‌ | श्रन्धविवाहनादयसु az: सखदारसन्तोषिण va खपुरुषविषयाः स्युरिति ag at) कथम्‌। अादास्तावदयदा खकोयपतिर्वारकदिने सपत्रा परिष्टहडोतो भवति, तदा सपन्नोवारकं विलुप्य तं परिभुश्नानाया अतिचारः, हि तोयसत्व तिक्रमादिना परपुरुषमभिसरन््या भतिचारः, ब्रह्म

(१) ucercafara: पश्च भवन्ति त्रयस्तु खदारषन्तुषे | faaraa: पश्वा भङ्गविक्ल्येरतिबाराः॥।॥

BANA, प्रकाशः | ५१५९

चारिणं ar खपतिमतिक्रमादिनाऽभिसरन्त्या अतिचारः शेषा waa: स्तिया: पूववत्‌ ८४

अध चञ्मव्रतस्याऽतिचारानाद-

धनधान्यस्य FA गवादेः चेचवास्तुनः | हिरण्यहम्रश्च संस्याऽतिक्रमोऽच परिग्रहे wey

Wa खावकधर्मोचिते परिग्रव्रते यः संख्याऽतिक्रमः सोऽतिचार, कश्य कस्येत्याह--धनं गणिमधरिमभेयपरो waaay | यदाइ-- "गणिमं जारईफलफोप्फलाद्‌ धरिमं तु कुदमगुडार्‌ | Fax चोष्यडलोणाद्‌ aise परिष्छव्जं १॥ धान्यं सप्तदशविधम्‌ | यदाह- ब्रोहियवो aaa गोधुमसुहमाषतिलचणकाः | अणवः प्रियक्ककोद्रवमकुषटकाः शालिराटक्यः १॥ fag कलायङुललौ सणसप्तदशानि धान्धानि | धनं धान्यं धनधान्यं तस्य धनधान्यस्य अत्रोत्तरन्र समादहारनिर्देणः परिग्रशस्य पश्चविधतवनज्ञापना्ेः। तथा सति यति चा््पश्चकं सुयोजं भवति | कुप्यं ख्प्यसुव णंव्यतिरिक्तं कांस्य-

({) गिभ जार्तिफलपूगफलाटि afta a FE Ves | मेयं सव्यसब्णाद careute परिच्छरद्यम्‌ 1

५६० AANA

लोडताम्रसो्षकनत्रपुगह्ाण्डत्वविसारविकारोददहिकाषटमस्चकम--- चिकामसूरकरथगशकटहलप्रति द्रव्यं, तस्य HATS गौरनङान- ऽनङ्ाहो च, भ्रादियेस्य हिपदचतुष्यदवगेख्य गवादिः! अ्रदिशब्दाख्हिवमेषाऽविककरभरासमतुरगहस्या दि चतुष्पदानां

हसमयुरकुकंटशकसारिकापारापतचकोरादिपचचिदिपदानां wat: उपरचादासोदासकमकरपदात्यादिमनुष्याणां संग्रहः। Ba सस्योत्पत्तिभ्रुमिः, तत्‌ विविधं, सेतुकेतूभयमेदात्‌ तत्र सेतुचेतं यदरघटादिजलेन सि चयते. केतुकते्रमाकाशोदकपातनिष्याद्यसस्वम्‌ ; उभयमुभय जलनिष्पाद्यसस्यम्‌ | वास्तु ग्टहादि ग्रामनगरादि च। aa ग्हादि विविधं; खातं भूमिग्टहादि, उच्छितं प्रासादादि, खातोच्छितं भूमिग्टहस्योपरि ग्टहादिसत्रिषेशः। Ata वास्तु चेति समाहारदन्हः | तथा हिग्ण्यं रजत, घटितं अघटितं चाऽनेकप्रकारं urate, एवं सुवणेमपि, हिरण्यं हेम चेत्यता- ऽपि समाहारः संख्या व्रतकाले यावव्नोवं चतुमासादिकानलावधि वा यत्परिमाणं zed तस्या अतिक्रम saya संख्यातिक्रमा- ऽतिचारः॥८५॥

नमु प्रतिपनत्रव्रतसंख्याऽतिक्रमो भङ्ग एव स्वात्‌, कथमतिचारः 7 त्याद- वन्धनाद्वावतो गांयोजनाद्‌ दानतस्तथा प्रतिपन्नव्रतस्पैष पञ्चधाऽपि युज्यते <

साक्तात्‌ संख्याऽतिक्रमः, किन्तु aaataa बन्धनादिभिः

BAA: प्रकाशः | ५९१

पञ्चभिर्हतुभिः खवुद्धया व्रतभङ्गमकु्वेत एवातिचारो भवति ; षन्धमादयष यथासंख्येन धनधान्यादोनां परिग्रहविषयाणां सम्बध्यन्ते तत्र धनधान्यस्य बन्धनात्‌ संख्याऽतिक्रमो यधा- तधनवान्यपररिमाणस्य कोऽपि लभ्यमन्यदा धनं धान्धं वा ददाति, तच्च व्रतभङ्गभयाच्वतुमास्यादिपरतो weaauatfe- विक्रये at कमे ग्रहोव्यामोति भावनया बन्धनात्‌, aay, रच्च दिसंयमनात्‌, सत्यद्ारदानादिरूपाहा खोकत्य तद्‌ ग्ड- एव तत्‌ ख्ापयतोऽतिचारः १। कुप्यस्व भावतः संख्याऽतिक्रमो यथा-कुष्यस्य या संख्या क्ता तस्याः aafee दिशुणत्व सति व्रतभङ्कभयाद्‌ भावतो इयोहंयोर्मौलनेन एकौकरणरूपात्‌ पर्यायान्तरात्‌ सखाभाविकसंख्याबाधनात्‌ संख्यामात्रपूरणाच्ाति- चारः | श्रधवा भावतोऽभिप्रायादयि तललक्षणादिवल्ितकालावधेः परतो ग्रहोष्यामि रतो नान्यस्मे देयमिति पराप्रदेयतया व्यवस्था- पयतोऽतिचारः २। तधा गोमदहदिषौोवडवादेविवल्षितसंवव्छराद्य- वधिमध्य एव प्रसवे अधिकगवादिभावाद्‌ त्रतभङ्गः स्यादिति तद्भयात्‌ कियत्यपि काले गतै गभतो गभग्रहणादभंसखगवादि- भावेन बदहिस्तदभावेन aafanangre त्रतिनोऽतिचारः ३। तथा Faargal यो जनात्‌ सचेत्रवास्बन्तरमोलनादृष्टोतसंख्याया- अतिक्रमोऽतिचारः। aurfe —fatada चेवं वासु चेत्यभिग्र्- वतोऽधिकतरतदभिलाे सति त्रतभङ्गभयात्‌ प्राक्रनस्चेत्रवासु- प्रत्यासन्न तद्‌ WHA पूर्वेण ay तस्येकत्वकरणाथं वत्तिभिचया-

दपनयनेन ada ॒योजयतो ब्रतसापेस्लात्‌ कथञ्धिहिरति- ‘Of

४९२ AANA

aarifaae: ४। तथा fecatm@meltnfracatz ग्होतसंख्याया भतिक्रमः। am केनापि चतुर्मासाद्यवधिना हिरण्यादिसंख्या प्रतिपन्ना, तेन तुष्टरालादेः सकाशात्‌ तदधिकं तज्ञब्धं तदन्धस्े त्रतभङ्भयाद्‌ ददाति पूर्णेऽवधौ ग्रोष्यामौोत्यभिप्रायेणेति व्रतसापै्षल्वादतिचारः। एष गटडोत- संख्याऽतिक्रमः, पञ्चधाऽपि पञ्चभिरपि प्रकारः, प्रतिपव्रत्रतस्य WIAs युज्यते, कतुमिति शेषः, त्रतमालिन्यहेतुतवात्‌ पञ्चधेव्युपलक्षणमन्येषां सहसाकारानाभोगादोनाम्‌ उक्ता भणु- व्रतानां प्रत्येकं पच्च पद्चातिवाराः ५॥८६॥

अथ गुखव्रतानामवसरः, तत्राऽपि प्रथमगुणतव्रतस्य fefracfa- ल्त णस्थाऽतिचारनाद -- `

स्पृन्तर्धानमूध्वाधिस्तियगभागव्यतिक्रमः चेवहहिश्च पञ्चेति स्मृता दिग्िरतित्रते ॥९७॥

दिभ्विरतित्रते पञ्चाति चाराः, इत्यनेन रूपेश, स्मृताः पूर्वचार्ययः | तदयथा -स्मृतेर्योजनश्तादिरूपदिक्परिमाणविषयाया श्रति- ग्याक्ुलत्वप्रमादित्वमत्यपाटवादिनाऽन्तधाने अंगः तधाहि- केनचित्‌ पूवेस्यां दिभि योजनशतसूपं परिमाणं क्रतमासौत्‌, गमनकाले ava a aca, fa शतं परिमाणं naga पश्चात्‌ १९ तस्य चदं पश्चागतमतिक्रामलोऽतिचारः. शत- मतिक्रामतो भङ्गः, सापेच्तत्वा्रिरपेक्षलाश्चेति। तस्मात्‌ सत

waa wvlaad, afaqe fe सवेमनुष्ठानमिति प्रथमो.

Bata: प्रकाशः ५९३

ऽतिचारः १। तथा aE पवंततरूशिखरादेः, श्रध ग्रामभूमि- wequie:, fara galfefey, योऽसौ भागो नियमितः प्रदेशः, तस्य व्यतिक्रमः ; एते चयोऽतिचाराः यलूव्म्‌ -

'उङ्दिसिपमाणाद्क्षमे श्रहोदिसिपमाणाष्कमे तिरियदिसि- पमाणाडश्कमे इति

एतं अनाभोगातिक्रमादिभिरेवाऽतिचारा भवन्ति, भन्यधा- Watt FUR एव ag करोमि a कारयामोति वा नियमं करोति, faafaataq परतः खयं गमनतः परेण नयनानयनाभ्यां दिकूप्रमाणशातिक्रमं परिहरति, तदन्यस्य तु तथाविधप्रल्याख्यानाऽभावात्‌ परेण नयनानयनयोन दोषः 212181 तधा चेतरस पूवादिटेशस्य दिगत्रतविषयस्व स्वस्य सतः, ठदडिवधनं पचिमादिचैवान्तरपरिमाणप्रकषेपेण दोर्घीकरणं, ्ेवहहिरिति पञ्चमोऽतिचारः। तथाहि--केनापि पूवापरदिभोः प्रत्येकं योजनशतं गमनपरिमाणं ad, चोत्पन्र- प्रयोजन एकस्यां दिशि नवतिं योजनानि व्यवस्थाप्य अन्यस्यां दिशि तु दभोत्तरयोजनशतं करोति, उभाभ्यामपि प्रकाराभ्यां योजनश्तदयरूप्स्य परिमाणस्याव्याइतल्वादित्येवभेक्रतर da वधेयतो त्रतसापक्षत्वादतिचार इति। यदि वाऽनाभोमाव्‌ नेवपरिमाणमतिक्रान्तो भवति तदा निवतितव्यं, wt at

(१) ऊदंटिकप्रमाखातिक्रमोऽधोटिकप्रभाखातिक्रमस्ियेग्‌दिकप्रमाखाति- प्रभः +

५९४ योगशास्से

गन्तव्यम्‌, अन्योऽपि विसजनोयः। भ्रथानाश्चया कीऽपि गतो “भवेत्‌ तदा यत्‌ aa लब्धं, खयं at विख्मतितो गतेन लब्धं तत्‌ परिडतेव्यम्‌

wa दितौयगुशत्रतस्य भोगोपभोगमानरूपस्यातिचारानाह -

सचित्तसेन सम्बदः सन्पिश्रोऽभिषवस्तथा | दुष्पक्ताहार TAR भोगोपभोगमानगाः Es

सष चित्तेन चेतनया वतेषे यः सचिन्तः ्राष्टार एव, महारस CUAL इत्यस्मादाक्षष्य सम्बध्यते, एवमुत्तरेष्वप्या- हारशब्टो योजनोयः | सचित्तसु कन्दमूलफलादिः wettarar- feat) इह निहतस्तिविषयीक्षतप्रठत्तौ भद्खद्ावेऽप्यतिचारा- भिधानं व्रतसापेक्ञस्यानाभोगातिक्रमादिना vant gear १। तेन ufada was: प्रतिबडः सचित्तसंबहः, सचेतनक्त्ादिना सम्बह्ो गुन्दादिः पक्षफलादिर्वा, सचित्तान्तर्बीजः खजरा्रादिः aerer fe सचित्ताषहारवजंकस्यानाभोगादिना सावद्याहार- प्रहत्तिरूपत्वादतिचारः ! श्रवा बोजं त्यच्यामि तस्येव सचतन- त्वात्‌, were तु भक्तयिष्यासि तस्याचेतनलत्वादिति बुदा पक्त स्लजुरादिफलं सुखे प्रचिपतः सचित्तवजकस्य सचिश्नप्रतिबदादहारो हितोयः 21 तथा afada मिश्रः शवलः आष्ारः afaratetT | यथा--भ्राद्रकदाडिमवोजकुलिकाचिभरिकादिमिखः पूरणादिः, तिलमिश्रो यवधानादिर्वा, ्रयमप्यनाभोगातिक्रमादिनाऽतिचारः। भधवा सम्भवदस्सचित्तावयवस्यापक्रकणिक्रादेः पिष्टललादिना भच-

BAT: प्रकाशः | ५६५

तनमिति बुदा आहारः afararerc: व्रतसापेक्षत्वादतिचार षति aata: 21 श्रभिषवोऽनेकद्रव्यसंधाननिष्यन्रः सुरासोवोरकादिः, मांसप्रकारखण्डादिर्वा, सुरामध्वादयभिसख्यन्दि््यद्रव्योपयोगो वा, अयमपि सावद्याहारवजेकस्यानाभोगातिक्रमादिनाऽतिशार इति चतुथः तथा दुष्यक्षो मन्दपक्षः चासावाहारख दुष्पक्ताहारः, स॒ चाधंखिब्रण्धकतन्दुलयवगोधूमस्थुलमण्डक^ककंटकफलादिर- हिक्षप्रत्यवायकारो यावता चांशेन सचेतनस्तावता परलोकमप्युप- हन्ति एधूकादेदंष्यक्षतया सम्भवत्सचेतनावयवल्वात्‌ पक्षत्ेनाचेतन- ति भुच्ञानस्याऽतिचार इति पञ्चमः ५। केचित्‌ लपक्ताहारम- प्यतिचारत्वेन aqafe waa चाग्न्यादिना यदसंस्छतम्‌। एष सचिसस्ाषहारे प्रथमातिचारेऽन्मवति। तुच्छौषधिभक्षणमपि केचिदतिचारमादुः | तुच्छोषध्यख सुदह्ादिकोमलशिम्बौरूपास्ताख् यदि सचिन्तास्तदा सचिक्षातिचार एवान्तभेवन्ति, wa भ्रमिि- पाकादिना भवचित्तास्तहिं को दोषः ? इति एवं राचिभोजनम- यादिनिहत्तिष्वपि अनाभोगातिक्रमादिभिरतिचारा भावनोयाः। एते पञ्चातिचारा भोगाभोगपरिमाणगनता बोदव्याः ९८॥

श्रध भोगोपरभोगातिचारानुपसंहरन्‌ भोगोपभोगतव्रतस्य लक्षणान्तरं तदतांखातिचारातुपदशयितुमाड- अमी भोजनतस्याज्याः कर्मतः खरकमं तु तद्िन्‌ पञ्चदश मलान्‌ कर्मादानानि संत्यजेत्‌ ec

[र

(१) -कटुकफवश- |

wee ` योगासन

भमो उक्रसखरूपाः पञ्चातिचाराः, भोजनतो भोजनमाशित्य, त्याज्या वजंनोयाः भोगोपभोगमानस्य व्याख्यानान्तरं -- भोगोपभोगसाधनं a तदुपाञनाय यत्कम. व्यापारस्तदपि भोगोपभो गशब्देनोच्यते, कारे कार्योपचारात्‌ | ततव कमेत: wala, खरं adit प्राणिबाधकं gana कोटपालनगुपि- पालनवोतपालनादिषरूपं तल्याच्चं, तस्मिन्‌ खरकमत्यागलक्तणि भोगोपभोगत्रते, ween मलानतिचारान्‌ संत्यजेत्‌ तै

मादानगब्देनोच्यन्ते, कमणां पापप्रकतोनामादानानि कारणा- नोति लत्वा €<

तानेव नामतः श्लोकहयेन दशंयति-

अङ्गरवनशकटभाटकस्फोटजोविका | दन्तलाकच्चारसकेणविषवागिज्यकानि १०० यन्वभीडा निर्लाञ्छनमसीपोषगं तथा | दवदानं सरःशोष इति पञ्चदश त्यजेत्‌ १०१॥

जो विकाशब्दः प्रत्येकं सम्बध्यते श्रङ्गारजोविका षनजोविकार श्कटजोविका३भाटकजोविका सखोटजोविका ५। उत्तरार्धेऽपि वाणिन्यशब्दः प्रत्ये कमभिसम्बध्यते। दन्तवाणिज्धं & लाक्षावाख्िज्यं © रसवाणिच्यं केशवा णिज्यं विषवाभिज्ध॑ १०; यन्त्रपोडा ११ निलौब्छनं १२ भसतोपोषणं १३ दवदानं १४ सरःशोषः १५ CAAT पञ्चदश्ातिचारान्‌ त्यजत्‌ १००॥ १०१॥

ठतीयः प्रकाशः ५९७ क्रमेण पञ्चदश्ाप्यतिच्ारान्‌ व्याचष्टे, तच्राङ्गारजोविकामाह--

अङ्गारभाषटटकरणं कुम्भायःखरशकारिता | ठढारत्वेष्टकापाकाविति BHT १०२

NPR काष्ठदारेनाऽङ्रारनिष्याद्नं तदिक्रयख, अङ्गारकरणे fe षण्णां जोवनिकायानां विराधनासख्रवः। एवं चये येऽम्नि- विराधनारूपा WATS तेऽङ्गारकर्मस्यन्तभ वन्ति; प्रपश्चाये तु Az- उक्तः WIESE चणकादिभजनस्थानस्य करणं apace, ATY- जी विकेत्यथः | तथा कुभ्भकारिता कुम्भकरणपाचनविक्रयनिभिन्ता जोविका। तथा श्रयो लोष्टं तस्य करणघटनादिना जोविका। सखणंकारिता सुवणर्प्ययोर्गालनघटनादिना जौविका कुग्भायः- स्वानि करोत्येवं MAMA भावस्तत्ता | तथा sata - नागवङ्गकांसपित्तलादोनां करणचघटनादिना जोविका इषटका- पाकः CERI पाकस्तेन जोविक्षा इत्येवंप्रकारा श्ह्रारजोविका १०२॥

अथय बननोविकामाङ्-- चिन्नाख्छित्रवनपचप्रसूनफलविक्रयः | कणानां दलनात्‌ Tare हत्तिश्च वनजौविका ॥१०३॥

हितस्य दिधाक्लतस्य भ्रच्छित्रस्य च. वनस्य वनख्तिषमूशस्य पत्राणां प्रसूनानां फलानां fearferarai विक्रयो वनजोवि- केन्युत्तरेण सम्बन्धः कणानां घरहादिना दलनाद्‌ देधौ-

५६८ योगशास्त्रे

करणात्‌, शिलाभिलापुव्रकादिना पेषात्‌ चूर्णाकरणाव्या ठत्तिः सा वनजौविकषा। वनजोविका वनस्मतिकायादिघात- सम्भवा १०३॥

wa शकटजोबिकामाह-

ष्कटानां ACSA’ ASH खेटनं तथा | famaafa शकटजोविका परिकीर्तिता ॥१०४॥

शकटानां चतुष्यदवाद्यानां वाहनानां, तदङ्कगनां शकटाषननां चक्रादोनां, घटनं खयं परेण वा निष्यादनं, खेटनं वाहनं, तश्च शकटानामेव स्वति ad पर्ण वा; विक्रयश्च शकटानां तदङ्गानां च, इति सकलभूतोपमदंजननो गवादौनां वध- बन्धादिहेतुः शकटजोविका प्रकौर्तिता १०४॥

अध भाटकजोविकामाष-

शकटोत्चलुलायोष्टखराभ्वतरवाजिनाम्‌ | भारस्य Wears ठत्तिभेष्ठाटकजौविका ॥१०५॥

शकटशब्द SHU, SAM बलोबदीः, लुलाया महिधाः, ser: करभाः, खरा रासभाः, waa वेसराः, वाजिनोऽष्ाः, एतेषां भाटकनिमिन्तं amare, तस्माद्‌ या ठत्तिः सा भारकनोविका॥ १०५

ata: प्रकाशः | ५९९ TT स्फोरजोविकामाद-

सरःकूपादिखननशिलाकुटनकमभिः | पृथिव्यारन्भसम्भूतेजौं वनं स्फोटजोविका ॥१०६॥

सरसः कूपस्य श्रादिग्रहणाद्‌ बापौदौषिकादेः खननमोख्डकमे, ` हनादिना at कैतरादेभूविदारणं ; भिलाङुदृनकमे पाषाण- घटनकमं; एतेः एथिव्याः एथिवोक्रायस्य wit suns: स्तस्य सम्भूतं सम्भवो येभ्यस्तैः एथिव्यारग्भसन्भूतेः ; उपलं चेतद्‌ भूमिखनने वनस्पतित्रसादिजन्तुचातानाम्‌ एभिर्जौनं सफोटजोविका; स्फोटः ween विदारणं तेन जोविका स्फोट- जोविका॥ १०६॥

पथ टम्सवाणिज्यमाद-

दन्तकेशनखास्थितवय्ोम्‌णो ग्रहणमाकरे | साङ्गस्य वणिज्याथे टन्तवाशिज्यमुच्यते ॥१०७॥

दन्ता हस्तिनां उपलंक्षणत्वादन्धेऽपि वसजोवावयवा eure WM HAE - केशाचमयीदोनां, नखा धुकादोनां, भ्रस्योनि wpiciat, त्वक्‌ चित्रकादोनां, रोमाणि इंसादोनां, तेषां ग्रहणं सूख्वादिना ata, रोमश इत्येकषचनं प्राख्यङ्गत्वात्‌ Mat तदुत्पत्तिखयाने, agra तसजोवावयवस्य, रिज्या्ै वाणिज्यनिमित्तं ; arat fe दन्तादिग्रहशाघ्र पुलिन्दानां यटा wa ददाति तदा तद्मतिक्रया्थे wearfead ते कुवन्ति, क्‌

४५७० योगशास्त्रे

प्राकरग्रणं चानाकरे दन्ताटेयष्टये विक्रये दोष इति ज्ञापनार्थम्‌ १०७ |

अध लाश्षावाणिन्यमाषश-

लाक्षामनःशिलानीलोधातकौटङ्णादिनः। विक्रयः पापसदनं लाक्चावाणिज्यसुच्यते १०८

लाता जतु Varta लाकल्ाग्रडशसुपलकचणमन्येषां सावद्यानां मनः- शिलादौनाम्‌ तान्येवाषह-- मनःशिला कुनटी, नोलो गुलिका, धातको हक्षविश्ेषः तस्याः त्वक्‌ पुष्यं मय्यसन्धानहेतु- धौतको, zee: चषारविगेषः ; ्रादिगब्दात्‌ संकूटादयो गण्यन्ते, तषां विक्रयः पापसदनं टक्णमनःगिलयोर्बाद्यजोवघातक- त्वेन, नोष्या जन्तुघाताविनाभावेन, धातक्या मद्यहेतुतवेन तत्‌- कल्कस्य क्रमिहेतुत्वन पापसदनत्वं ततस्तदिक्रयस्याऽपि पाप waaay तदेतद्‌ लान्तावाणिज्यमु च्यते १०८ |

अथ रसकेगवाचिन्ये पएकेनव स्लोक्तनाद-

नवनौतवसाच्चौद्रमययप्र्तिविक्रयः |

दहिपाच्चतुष्पाद्विक्रयो वाणिज्यं रसकेशयोः ॥१०९॥ नवनोतं दधिसारं, वसा मेदः, dle ay, aad सुरा. wafa- ग्रणात्‌ मल्नादिग्रहः। एषां विक्रयो रसवाशिज्यम्‌, हिपदां

मनुष्यादोनां चतुष्पदां गवा्ठारोनां विक्रयः केशथवारिन्यम्‌, सखजोवानां विक्रयः केणवाणिज्यमजोवानां तु जोवाङ्गगनां

Sata: प्रकाशः | yor

विक्रयो दन्तवाणिज्यमिति fata: रसकेशयोरिति यथा- संख्येन योगः। Sarg aaa जन्तुसंमूच्छनं, वसान्तौद्रयो- WPA, मद्यस्य मदटनजननं axaanfafaaraafa ; fearaquifema तु तेषां पारवश्यं वधवबन्धादयः त्ुत्पिपासा- पोडा चेति eee

aq विषवाशिख्यमाद-

विषास्व हलयन्तायोहरितालःदिवस्तुनः | विक्रयो जौ वितघ्रस्य विषवागिज्यसमुच्यते ॥११०॥

विषं afgarfe तच्चोपलक्षणं जोवघातहेतूनामस््रादोनाम्‌ | तान्येवाह -श्रस््रं खद्रादि, शलं wired, यन्तरमरघटादि, श्रयः कुशोकुदालादिरूपं, हरितालं avafang: 1 आआदिश्रब्दादन्येषा- सुपविषाणां ग्रहणम्‌ एवमादिवस्तुनो विक्रयो विषवाणिज्यं विषादेविशेषणं जौवितन्नस्य श्रमोषां जोवितन्नत्वं प्रसिद- भेव ११०॥

श्रध यन््रपोडाकर्माह- तिलेन्नुसषपेरण्डजलयन्वादि पीडनम्‌ | दलतेलस्य क्ततियन्बपीडा प्रकीर्तिता ॥१११॥

यन्तशब्दः प्रत्येकमभिसम्बध्यते | fanaa तिलपौलनोपकरणम्‌; शसुयन्त्ं कोल्चुकादि, सषपैरण्डयन्ते तत्मौलनोपकरणे, ललयन्- मरघटष्टादि, दलतेलं aa दलं तिलादि Daa ad प्रति

YOR TRE

wwe तदलतेलं aw क्तिर्विधानमिति, यन्पोडा यन्व- Wet यन्वपोडा कमेण पोडनोयतिलादिक्तोदास्तदतन्रखजोव- वधाञ्च सदोषत्वम्‌ लौकिका अपि श्ाचक्षते- दशसूनासमं चक्रमिति १११॥ अथ मिर्लाब्दनकर्माह--

MAAN Set सुष्कच्छेदटनं पृष्ठगालनम्‌ |

कग कम्बलविच्छेटो निर्लाच्छनसुदौरितम्‌ ॥११२॥ नितरां लाच्छनमङ्गावयवच्छेदः, मेन कर्म जोविका निर्लास्कनकमं | लङ्ग दानाह-नासाषेधो गोमदिषादौनाम्‌, अङ्कनं गवाश्ारौनां चिदकरणं, सुष्कोऽण्डस्तस्य wed वधितकौकरणं गवाश्वादो- नाभेव, पृष्ठगालनं करभाणां, गवां कणकम्बल विच्छेदः एषु जन्तुबाधा BART W ११२॥

अथासतोपोषणमाचच--

सारिकाशुकमार्जारण्वकुव टकलापिनाम्‌ |

पोषो दास्याश्च वित्ताथमसतीपोषगं विदुः ॥११३॥ WIA दःगौोलास्तासां पोषणं, लिङ्मतन्वम्‌, एकादोनां एंसामपि पोषणमसतोपोषणं, सारिका व्यक्षवाक्‌ पक्िविशेषः, शकः att, ama बिडालः, श्वा FRU, कुढ्टस्ताम्बरचूडः, कलापो मुरः, एतषां facai पोषः पोषणं, दास्या पोष इति वतते, सच भाटौग्रहणा्थमसतोपोषः। एषां दुःशोलानां पोषणं पापरतुरेव ११३२॥

BAT: प्रकाशः | ५७३

अध दवदानसरःगोषाषेकेन WAATH—

व्यसनात्‌ FIM वा दवदानं भवद्‌ हिधा | सरःशोषः सरःसिन्धुदादेरम्ब संञ्रवः ११४

दवस्य दवाग्नेः ढगादिदहननिमिन्तं दानं वितरणं दवदानं, तश्च हिधा संभवति-व्यसनात्‌ फलनिरपैक्षतात्पर्व्यात्‌. यधा वनेचरा एव. मेवाऽगनिं ज्वालयन्ति; Gael वा aaa दवादेया मरणकाले श्यन्तो मम Walsa धमेदोपोत्छवाः करणोया इति, waar aug सति नवढणाङ्कुरोद्धेदाद्‌ गावरन्तोति चेते वा सस्य- सम्पस्िठहयेऽग्निञ्वालनम्‌ wa ओोवकोटौनां वधः स्यात्‌ सरसः शोषः सरःगशोषः सरोग्रहणमुपलक्षणशं जलाशयान्तराणाम्‌ | तदेवाह सरःसिन्धुषदा दिभ्यो योऽम्बनो जलस्य संञ्जवः सारणो- कषेणं धान्यवपनाधे, ्ादिशब्दात्‌ तडागादिपरिग्रहः | तत्राऽखातं सरः, खातं तडागम्‌ सरः शोषे जलस्य तदतानां Aaa तत्‌- ञ्ञावितानां wat जोवनिकायानां वध इति सरःगोषदोषः। इत्युक्तानि पञ्चदश्कमदानानि, दिशां चेदम्‌, एवंजातोयानां agat सावयकर्मणां पुन; परिगणनमिति | इह Sa विंशति- संख्याऽतिचाराभिधानमन्यन्राऽपि पञ्चातिचारसंख्यया तच्ातो- यानां व्रतपरिणामकालुष्यनिबन्धनविधोनामपरेषां संग्रह दति ज्नापनाथैम्‌ | तेन स्मृत्यन्तर्घानादयो यथासम्भवं सवेत्रतेष्वतिचारा दृश्याः नन्वद्गारकर्मादयः कथं खरकमस्यतिचाराः १, खर- कामरूपा एव श्येतं सत्यम्‌ खरक्मरूपा wad, किन््ना-

५७४ योगशास्त्र

भोगादिना क्रियमाणा अतिचारः, उपेत्य क्रियमाणस्तु भद्रा एषेति ११४॥

परधानर्धदण्डविरतिव्रतस्याऽतिचारानाश-

संयुक्ताधिकरणशत्वमुपभो गातिरिक्रता मखर्य्यमथ AHA कन्दर्पोऽनथद एडगाः ११५॥

अनर्थटण्डगा इत्यनथेदष्डविरतित्रतगामिन एषे warfare: | तद्यधा--भधिक्रियतै दुगेतावा साऽमैनेत्यधिकरणसुदूखलादिसं- युक्तम्‌, उदूखलेन मुशलं, CAA फालः, शकटेन युगं, धनुषा गराः, एवमेकम्रधिकरणमध्िकरणान्तरेण संयुक्तं संयुक्ञाऽधिकरणं तस्य भावस्तस्वम्‌ | इह शरावकेण संगुक्तमधिकरणं धारणोयम्‌। तथा afa fe a: कञ्चित्‌ संगुक्तमधिकरणमाददोत, वियुक्ञाधि- करणतायां तु सुखेन परः प्रतिषेधयित्‌ं शक्यते एतच्च दिंसखरप्रदान- परस्यानधद च्डस्यातिचारः तथा उपभो गस्यो पलक्षशत्वाङ्ोगस्य चोक्षनिर्वचनस्य यदतिरिक्रल्वमतिरेकः सा उपभोगातिरिक्षता। अयं प्रमादाचरितस्याऽतिचारः। इह ज्रानपानभोजनचन्दन- कुषमकमस्बूरिकावस्राभरणादोनामतिरिक्रानामारन्भोऽनयदण्डः | अवाऽपि ठदसम्मदायः-भतिरिक्रानि बहूनि तेलामलकषानि यदि ग्छद्नाति, तदा AMAA बहवः खानां तडागादौ व्रजन्ति, ave पूतरकाप्‌कायादिवधोऽधिकः स्यात्‌; चेवं कल्पते, ततः को विधिः aa ख्ानेच्छना तावद्गुह एव alae, तदभावे तु तैलामलकेगेह एव शिरो aafaat तानि सर्वाणि शाटयिला

कलोयः प्रकाशः 1 ५७५

तडागादोनां तटे fafacisafafa: खाति तधा येषु पुष्पादिषु संसक्ति auafa तानि परिहरति, एवं waa वाच्यमिति हितोयो- ऽतिचारः२। तथा समुखमस्याऽस्तोति मुखरोऽनालोचितभाषो वाचाटः AM भावो ales धाष्टयप्रायमसभ्यासम्बहवदुप्रला- पित्वम्‌, श्रयं पापोपदेशस्यातिचारः, मौखय्ये सति पापोपदेश- सम्भवादिति ठतोयः३। तथ। afefa gaat निपातो, निपाता- नामानन्त्यात्‌ कुत्‌ कुत्सितं कुचति अ्वुनयनोष्ठनासाकरचरण- मुषविकारेः सडःचतोति कुल्कु चस्तस्य भावः कौतक म्‌, भनेक प्रकारा भग्डादिविडम्बनक्रिया इत्यध; saat कौकुश्यमिति पाठः, तत्र कुल्ितः कुचः कुकुचः सदोचादिक्रियाभाक्‌ तद्भावः कोकुच्यम्‌, Ta चयेन परो शसति, भरालमनञ्च लाघवं भवति, ated am चेष्टितुं वा कल्पते, प्रमादात्षधाचरणे चातिचार इति चतुरः तथा कन्दः कामस्तरेतुस्तव्रधानो वा वाक्प्रयोगो- ऽपि कन्दपेः। UE A सामाचारौ- श्रावक्षेण aed awa येन सखस्य परस्य वा मोष्ोद्रेको भवतोति waa: एतौ हावपि प्रमादाचरितस्यातिचारौ, इृत्यवसिता गुणव्रताति- चाराः ११५॥

wa शिल्तात्रतातिचारावस्रः। तत्रापि avatar तावदतिचारानाडह--

कायवाङमनसां दुष्टप्रणिधानमनादरः |

स्मलयनुपरस्ापनं स्पृताः सामायिकत्रते ११६॥

५७६ योगशाख्े

कायस्य वाचो मनसञ् प्रखिहितिः प्रणिधानम्‌, दुष्टं तद्मशिधानं दुष्टप्रखिधानं सावद्य प्रवतेनं कायदुष्यणिधानं, वाग्दुष्यसिधानं, मनोदुष्युखिधानं Paws) ay शरोरावयवानां पाशिपादा- दौनामनिश्तताऽवखयापनं कायदुष्पुखिधानम्‌, वणे संस्काराभावो- ऽधानवगमश्ापलं वाग्‌दुष्यणिधानम्‌, क्रोधलोभद्रोष्ाऽभिमाने- वादयः कायेव्यासद्गसग्धम मनोदुष्यखिधानम्‌ ; एते चयोऽति- चाराः। यदाहइः-- 'अनिरिक्ठियापमख्ियध ख्डिले areas वन्तो | हिंसाभावेविनसो कडसामाश्भ्नो पमायाड॥१॥ कडसामाद्ड पुवं ania पेडिजण भासिल्ा। सद्‌ निरवल्नं aad way सामाद्यं A WT RO ware तु ars घरचिन्तंजो चिन्तए सो अहवसटहोवगश्रो fated तच्छ सामाद्यं २॥

तथाऽनादरोऽनुक्छाहः प्रतिनियतवेलायां सामायिकस्याकरणम्‌,

(१) आअनिरोखिताप्रमाजिंतस्यर्डिशे wrarfz सेवमानः। fearwasfa नस कतसामाविकः प्रमादात्‌ ॥!१॥ लतखामायिकः पूरवे बुद्धया प्रच्छ भाष्त। aw निरवद्यं वचनमन्धया सामाजिक भवेत्‌ ॥२॥ सामाजिकं तु त्वा ग्डषचिन्तां यस्तु जिन्तवेत्‌ ang: | wraanqratana faced तद्ध डाभायिकम्‌ vet

Sala: प्रकाशः yoo

यथा wafgel करणम्‌, प्रवलप्रमादादिदोषात्‌ करणानन्तरभेव पारणं च। यदाहः- "काज तक्वणं faa cits ate वा ahead | अणवट्वियसामाद्यं अ्रणायराग्रोन ad Bs ue a इति चरुः ॥४॥ स्मृतौ स्मरणे सामायिकस्याऽगुपस्यापनं स्मत्यनुपस्थापनं सामायिकं मया wast a कतेव्यमिति वा, सामायिकं मया छतं क्तमिति वा, प्रबलप्रमादाददा स्मरति तदा अतिचारः, स्मतिमूललाग्मोच्चसाधनाऽनुष्टानख | Tey: 'a ALT पमायजुत्तो जो सामाद्यं कयाय Was 1 कयमकयंवा aM कयं पि विदलं तयं aan १॥ ननु कायदुष्युणिघानादौ सामायिकस्य निरर्थकत्वादिप्रतिपादने वसुतोऽभाव एवोक्तः, श्रतिचारश्च मालिन्यसरूप एव भवतोति कथं समायिकाभावे भवेत्‌ ?, अतो भङ्गा एवेते नातिचारा इति चेत्‌ sad ्रनाभोगतोऽतिचारलत्वम्‌ ननु fefad fafata सावद्यप्रत्याख्यानं सामयिकं, ततर कायदुष्पणिधानादौ प्रत्या- ख्यानभङ्गात्‌ सामायिकाभाव एव, anqgafad प्रायञ्ित्तं

32 ee

(१) Bear ages पारयति करोतिवा बण्च्छम्‌| ऋनवस््यितसामायकमनाटरादू तत्‌ शुद्धम्‌ १),

(2) दरतिप्रभाद्युक्रोयःसामायिकं कदा कर्तव्यम्‌| aaaad वा त्य खलु हतमपि विफलं तजन्नयम्‌ १॥

me

you ` Syme

विधेयं स्यात्‌ attenfeurst चाणशक्यपरिषश्ारं मनसोऽनवख्ित- area: सामायिकप्रतिप्तः सकाशात प्रतिपत्तिरेव अयसो यदाष्ुः-भविधिक्लताहरमक्ततमिति नैवम्‌ यतः सामायिकं दि विधं विविधेन प्रतिपच्रम्‌, तव मनसा वाचा कायेन सावद्यं a करोमि क्ारयामोति षट्‌ प्रत्याख्यानानि शत्येकतर- प्रत्याख्यानभङ्केऽपि गेषसङ्वावाभ्मिष्यादुष्क्तेन मनोदुष्युणिधान- माव्रश्देव सामायिकस्यात्यन्ताभावः, सवविरतिसामायि- केऽपि तथाऽभ्युपगतम्‌ ; यतो afin मिष्यादुष्कतं प्राय- fanqaq | किच्च सातिचारादप्यगुष्ठानादभ्यासतः कालेन निरतिचारमनुष्ठानं भवति | यदाहर्बाद्या भपि-

अभ्यासो fe कमणां कौशलमावहति, डि सक्तचिपात- माज्रेणोदविन्दुरपि ग्रावणि निम्नतामादधाति। a चाविधिक्षताद्‌ वरमक्लतमिति युक्षम्‌, भसूयावचन- ales | यदटाइः-- 'भविहिकया वरमक्यं भसूयवयणं भणन्ति समयन्न | पायच्छित्तं ज्या WHT FAN कए AEH ne

केचित्तु पोषधणालायां सामायिकमेकेनेव काय्यै बहुभिः, ‘ait

(१) wafafanarg वरमहतमद्धयावचनं भणन्ति समयन्नाः। wiafad यख।टशतेगुरूकं कते BUA Ne

तोयः प्रकाशः | woe

भयोए' इति aaanraratfeare: | नायभेकानग्तो वचनान्तर- स्याऽपि वणात्‌ | व्यवारभाव्येऽप्यक्तम्‌ -

'राजसुयारई पञ्च वि पोसहसालाद संमिलिश्रा | इत्यलं प्रसङ्गन ११९॥

एते पञ्चातिचाराः सामायिकव्रते उक्ताः, इदानीं

देणावकािकव्रतातिषारानादह--

प्रेष्यप्रयोगानयने Gear तधा |

शब्द्रूपाऽनुपातो व्रते STATA ११७॥ दिग्‌त्रतविगेष एव देशावका्िकत्रतम्‌, इयांसु fata:— दिगृत्रतं masta संवस्सरचतुर्मासोपरिमाणं वा, देशावकाशिकं तु दिवसप्रहरसुह्ृतीदिपरिमाणम्‌ तस्य पच्चातिचाराः। तद्यधा--प्रेष्यस्याऽऽदेश्यस्य प्रयोगो विवक्ितच्चेताददिष्ययोजनाय व्यापारणम्‌, स्वयं गमने fe व्रतभङ्कः स्यादिति प्रेष्यप्रयोगः। टेणावकाशिकव्रतं fe मा भूद्‌ गमनागमनादिव्यापारजनित- प्रा्यपमदं इत्यभिप्रायेण ह्यते, तु खयं कतोऽन्येन कारित दति कथित्‌ wa विशेषः; प्रत्युत खयं गमने श्यापथ- fanaa, परस्य पुनरनिपुगत्वादोथासमित्यभावे दोष fe प्रथ्मोऽतिचारः १। श्रानयनं fasfaadate बहिः सितस्य सवेतनादिद्र्यष्य faafaaaa प्रापणं सामर्ध्यात्‌ प्रेष्येण ; स्वयं

गमने हि व्रतभङ्कः स्यात्‌, परेण तु श्रानयने व्रतभङ्कः स्यादिति

(9) राजघ्चतादयः waIsfa पोषधशाला्यां संमिखिताः।

Uo योगशास्त्र

बुद्धया प्रेष्येण यदाऽऽनाययति सचेतनादि द्रव्यं तदाऽतिचार दति facta: २। तथा पुद्रलाः परमाणवस्तस्संघातससमुहवा वादर- परिणामं प्राप्ता लोषटे्टकाः काष्ठश्यलाकादयोऽपि years aay way | विशिषटदेशावग्र हे fe सति कायार्थ परतो गमन- निषेधाव्यदा लो्टादोन्‌ परेषां बोधनाय faufa, तदा लोष्टादिपात- समनन्तरमेव ते तत्छषमौीपमनुधावन्ति ; aay तान्‌ व्यापारयतः स्वयमनुपमदकस्यातिचारो भवतौति ama: ३। शब्दरूपानु- पातौ चेति शष्दानुपातो रूपानुपातथ् तत्र खण्टददतिप्राका- रादिव्यवच्छित्रभूदेगाभिग्रहः प्रयोजमे vat खयमगमनाद्‌ वत्तिप्राकारप्रत्यासव्रवर्तो भूत्वा भ्रभ्युत्कासितादिशब्दं करोति, श्राद्वानोयानां ओोजेऽनुपातयति, ते तच्छब्दग्रवणात्ततसमौप- मागच्छन्ति इति शब्दानुपातोऽतिचारः। तथा रूपं anit सम्बन्धि उत्पत्रप्रयोजनः गब्दमनुच्चारयन्‌, आद्वानोयानां दृष्टावनु- पातयति, तदहशनाच ते तत्समोपमागच्छन्तीति रूपानुपातः। wana भावना - विवस्तिनक्ते्ाडिःखितं कच्चन नरं व्रतमङ्गभया- दाद्कातुमगशक्नुवन्‌ यदा खकौयशब्द्‌ खावणरूपदगंनव्याजैन तमा- कारयति, तदा व्रतसापेत्तलाच्छष्टानुपातरूपानुपातावतिचाग- विति चतुयपच्चमौ ४।५। इह चाद्यातिचारदयमव्युत्यब्रबुदि- तया, सदहसाकारादिना वा; saad तु मायावितया श्रति- त्ारतां याति। wa दिगत्रतसंचपकरणवद्‌ व्रतान्तराणामपि संक्तपकरगं टदेशावकाशिकव्रतमिति gat) रतिचाराख दिग्‌ व्रतकरणस्येव BIA व्रतान्तरसंक्षेपकरणस्य, तत्कथं त्रतान्तर-

तोयः प्रकाशः | ure

संक्षेपकरणं देशावक्राशिकात्रतम्‌ 21 ward प्राणातिपातादि- विरमणव्रतान्तरसंकेपकरशेषु वधश्नन्धादय एवातिचाराः, दिम्‌- व्रतसंततेपकरणे तु dfanary चेवरस्य, प्रेष्यप्रयोगादयोऽतिचाराः | भित्रातिचारसश्चवाश्च दिगृव्रतसंच्तेपकरणस्येव देशावकाशिकलवं सात्तादुक्षमिति ११७

भध पोषधव्रतस्यातिचारानाह-

उत्यगादानसंस्ताराननवेच्याप्रसज्य | अनादरः स्पृ्यनुपस्थापनं चेति पोषधे ११८

© @ e उत्षजनमुत्गसत्याग उच्चारप्रस्रवणखेलसिंघाणकाटोनामवेश्य प्रमृज्य खण्छिलादौ sat: कायं; श्रवेक्तं wT fads. णम्‌ प्रमाजनं वस्तरप्राम्तादिना feasts विश्रुतौ करणम्‌ | भरधानवेच्याप्रखज्य Tat करोति तदा पोषधव्रतमतिचरतीति प्रधमोऽतिचारः १। श्रादानं ग्रहणं यषटिपौटफलकादोनाम्‌,

© © ATR प्रमृज्य कायम्‌, भरनवेचितस्याप्रमाजितस्य चादान- मतिचारः भ्रादानग्रहणिन निक्चेपोऽप्युपलश्छयते यच्यादोनाम्‌, तन सोऽप्यवेश्छ प्रमाज्य कायः; भ्रनषेचयाप्रख्ज्य नित्तेपो- ऽनिचार इति दितीयः 21 तथा संस्तोयते यः प्रतिपन्न पोषधव्रतेन दभकुशथकम्बलिवस्त्रादिः संसारः, चातेश् WAY कर्तव्यः, ्रनवेश्याप्रमाच्ये करणेऽतिचारः। इह चानवेन्षरेन दुरवेत्तणम्‌, भ्रप्रमाजनेन दुष्पुमाजनं GWA, नजः

© © `

कुत्साथस्याऽपि दशनात्‌, यथा कुल्सितो ब्राह्मणोऽब्राह्मणः।

४५८८२ योगशास्त्रे

यत्‌ सूत्रम्‌ -"प्रप्पडिलेहिभ्रदुष्पडिलेहिभ्रसिव्नासंधारए, अप्यमस्निच्दुष्पमल्जिभ्रसिल्नासंधारए, भप्यडलेदिभ्रदुष्पडिलेहिभ्र- उच्चारपासवणभूमोरए, अप्पमल्जि ्रदुप्यमल्नि्खच्ारपासवणभूमि दूति ठतोयः १। तथा अनादरः पोषधत्रतप्रतिपत्तिकतेव्य- तायामिति aque) तथा स्मृत्यनुपख्ापनं तदिषयभेवेति

पञ्चमः, Wad waa: Wea, ena: Wwe तु नायं fafa: ५॥ ११८५

अधातिथिषंविभागव्रतस्यातिवारानाड- सचित्ते क्षेपणं तेन पिधानं काललङ्नम्‌ | मल्छरोऽन्यापदेशख तुयभिचात्रते WAT: ॥११९॥

afad walt पष्वोजलकु मो पनुक्नोधान्यादौ, क्षेपणं निचेपो देयस्य वसुनः, तच्च श्रदानबुदया नित्तिपति, एतल्नानात्यसौ त्ुच्छवुिः यत्‌ afaufafad wea साधव इत्यतो देयं चोपस्थाप्यते चाददते साधव इति लाभोऽयं ममेति प्रथमो- ऽतिचारः १। तथा तेन सचित्तन सूरणकन्दपत्रपुष्पफलादिना fi a an fi तधाविधयव gett पिधत्ते, इति feala: 21 तधा कालस्य साधुनामुवितभिक्लासमयस्य लङ्नमतिक्रमः, भ्रयमधः--उचितो

यो fama: साधूनां तं लङ्कयित्वा, अनागतं वा yea

(१, ऋप्रतिरेखितदुष्म॒ तशेखितशअग्यासंस्तारके, आप्रमाजिंतदुष्युमाजि तथग्या- Teed. अप्रतिर्ढेखतदुष्मतिरेखितोज्जारपरस्लवणभूमो, अप्रमाजितद्ष्युमाजिंतो- ञ्ारप्रस्वखभ्रूभो |

WAT प्रकाशः | ५८३

पोषधव्रतो। ति ठतौयः 21 तथा wat: कोपः यथा मागितः aq कुष्यति, सदपि मार्मितं ददाति। भथवाऽनेन तावद्‌ द्रमक्षेण मागितेन दन्तम्‌, किमदं ततोऽपि होन इति मात्षयाहदाति ; wa ॒परोन्रतिवेमनस्यं array, यदुक्ष- मस्म्राभिरेवाऽनेकाथसंग्रहे- मत्सरः परसम्प्यक्तमायां तदति क्रुधि। दूति चतुर्थः ४। तथा wee परस्य सम्बनौदं गुड- werelfa watt व्याजोऽन्यापदेशः, यदनेकाधसंग्रहे- श्रपदेशस्तु कारणे व्याजे लश्येऽपि। शति wea: ५। एतं पञ्चातिचारासुय fread भ्रतिथिसंविभागनान्िि war: भ्रति- चारभावना पुमरियम्‌-यदा अनाभोगादिना अरतिचरस्ति तदा अ्रतिचाराः, न्यथा तु ATT: ; दत्यवसितानि सम्य क्ल्वमूलानिं दाद शव्रतानि, तदतिचाराच्ाभिहिताः॥ ११९

इ्दानोमुक्कओेषं निदिं न्‌ खावकस्य महा्ावकत्वमाइ-

एवं व्रतश्ितो भक्तया सप्तैवं धनं वपन्‌ दयया चातिदोनैषु महाश्रावक उच्यते १२०

एवं पूर्वोक्षप्रकारेण सम्यक्त्वमूलेष्वतिचारविश््देषु हादशसु aay सितो निश्चलविभ्षत्वेन निलोनः, सप्तानां dara समा- हारः Naat जेनविम्बभवनागम साधुसाध्वोशावकश्राविकालक्षणा तस्यां, न्यायोपात्तं धनं वपन्‌ fafaaq ; ay हि बोजस्य वपन- afaafaan aufafa, वपनमपि aa उचितं नाऽक्षत्रे इति मप्तत्तत्रपामित्यक्ञम्‌ Wad सप्तानां शूटमेव वपनं

uty योगशास्त्र

waa यथोचितस्व द्यस्य wet खया, aafe—faa- बिम्बस्य तावदिथिष्टलच्चष्यलत्ितस्य प्रसादनोयस्य वचेन्द्रनोलाऽ- ष्छनचन्द्रकान्तसू्ंकान्तरिष्टाङकर्केतनविटुमसुव णं रूप्यचन्दनोपल- खदादिभिः सारदरव्यैविधापनम्‌। यदाह सम्भृ्तिकामलशिलातलरूप्यदाङ- सौवणशंरव्रमणिचन्दनचारविम्बम्‌ कुवन्ति जेनमिह ये खधनानुरूपं ते प्राप्रुवन्ति दृसुरेषु महासुखानि १॥ तधाहि- "पालाशा USAT लक्वणलुत्ता समन्तलद्रणा | TE WITT मणं aw faecal विश्राणाहि॥१॥ तथा निमितस्य जिन बिम्बस्य ्ास्ोक्तविधिना प्रतिष्ठापनम्‌, weifta प्रकाररभ्यचेनं, याज्राविधानं, विभिष्टाभरणभूषणं, विविव्रवस््ेः परिधापनभिति जिनबिम्बे धनवपनम्‌। यदाहइ- गन्धेमाशये विं मियेदहलपरिमलेररतैधृपदोधैः AAT: प्राज्यभेदेखरभिरूपद्नतेः पाकपूतैः फलेख अभ्भःसम्पूणंपान्रैरिति fe जिगपतेरष्वेनामष्टमदां कुर्वाणा वेश्मभाजः परमपदसुखस्तोममारान्ञभन्ते १॥

बियो Pr ~ A ~ ~ ~ + रः

(१) प्राक्षादिता प्रतिभा खच्ण्बुक्रा समस्ताबङ्रष्डा। मथा wyizafa waar निनीर्यामो विजानोह्ि॥

BANA: प्रकाशः | wry

ननु जिनवबिम्बानां पूजादिकरणे afaguaim, a fe पूजादिभिस्तानि auf तुष्यन्ति वा, चालप्ततुष्टाभ्यो देवताभ्यः फलमाप्यते नेवम्‌ ¦! चिन्तामण्यादिभ्य इवाऽढस- तुष्टेभ्योऽपि फलप्राप्तपविरोघात्‌ | aga वोतरागस्तोतेऽस्पाभिः- AMAA कं प्राप्यं फलमभेतदसङ्कतम्‌ ? | चिन्तामण्यादयः fa a फलन्त्यपि विचेतना; १॥ तथा 'ठवगाराभावम्मि वि पुव्लाणं yaaa santa | मन्ताद्सरणजलणादिसेवशे जह तरं पि ue a एष तावत्‌ खकारितानां बिम्बानां पूजादिविधिरुक्षः, भन्ध कारितानामपि। अअरक्रारितानां शाश्तप्रतिमानां यथा पूजनवधनादिविधिरनुष्टेयः। विविधा हि faanfaat:—afa- कारिताः खयं ute वा चेत्येषु कारिताः, या इ्दानोमपि मनुष्धा- दिभिर्विधाप्यन्ते ; मङ्ल्यकारिता या wey दारपन्रेषु मङ्गलाय wae, Wag कारिता एव भधस्तिर्यगूडलोकावस्ितेषु जिनभवनेषु वतन्त इति। fe लोकब्रयेऽपि तत्खानमस्ति यत्र पारमेश्वरोभिः प्रतिमाभिः पषिलितमिति। जिनप्रतिमानां वौ तरागख्रूपाध्यारोपेण पूजादिविधिर्चित इति जिनभवनचेच खधनवपनं यथा-- शषादिरहितभूमौ खयं सिदस्योपलकाष्ठादि-

ee ee eee,

——-—

(1) उपकारामाबेऽपि पूञ्छानां पूजक्खोपकारः] सन््ाद्खिरखज्यनारटिसेवमे बया aayiifa ae a

urq ` योगशास्ते

दनस्य ग्रहणेन सूज्रकारादिगतकानतिसन्धानेन अत्यानामधिक- स्रुल्य वितर ेन षड्जो वनिकायरक्षायतनापूवंकं जिनभवनस्व विधा- पनम्‌. सति विभवे भरतादिवद्‌ रब्रशिलाभिबेहचाम्मीकरकुटिमिस्य मणिमयस्तश्भसोपानस्य रब्रमयतोरणशतालद्गरक्रतस्य विशाल- शालामलानकस्य शालभच्िकाभङ्भिभ्रूषितस्तम्धादिप्ररेगस्य दद्य मानकपृर कस्तृरिकागुसप्रभतिधुपसमुच्छलचूमपटन्जा तजलदश- इग गृत्यत्कवलक ण्ट कुल कोलाहलस्य चतु विधाऽऽतोद्यनान्दोनिनाद- नादितरोदसोकस्य देवाक्रप्रतिविचि्रवस््नोज्ञो चख चि तसुज्ञावचु- लालह्कतस्व उत्पतत्रिपतदहायब्रुत्यदहलास्िंहादिनादितवक्षुरसमुह- महिमानुमोदनप्रमोदमानजनस्य विचिव्रचित्रचिनत्रोयितसकल- लोकस्य चामरष्वजच्छन्रादयलङारविभूषितस्य सूर्घारोपितविजय- वेजयम्तोनिवदकिदहिणोरणत्वारमुखरितदिगन्तस्य कौतुकाचिप्त- दुरासुरकिवरोनिवद्ाऽहमहमिकाप्रारब्यसङ्गोतस्य गन्धर्वगोत- ष्वनितिरस्लततुम्बसमदिख्नो निरम्तरतालारसरासकन्नोसक- प्रसुखप्रबन्धनानाभिनयनव्यग्रकुलाङ्गनाचमतकारितभव्यलोकस्या-- $भिनोयमाननाटककोटिरसाल्िप्तरसिकजनस्य लिनभवनस्यो- avfaferry जिनानां जस्मदोच्ान्नाननिवाणखयानेषु सम्प्रति- राज्ञवश्च प्रतिपुरं प्रतिग्रामं पटे पदे विधापनम्‌; safa तु ` विभवे ठदणङ्खटयादिरूपस्याऽपि

Tere

यस्तृणमयोमपि get कुयाददयात्तधेकपुष्यमपि भक्षा परमगुङभ्यः YONA RAMS १॥१॥

BAA: प्रकाशः | ५८७

किं पुनरूपचितदृदघनरिलासमुष्ठातघटितजिनभवनम्‌ |

ये कारयति शुममतिविमानिनस्ते मदाचघन्याः॥२॥

राजास विधापयितुः प्रषुरतरभाण्डागारम्रामनगरमच्डलगोकु- लादिप्रदानं जिनभवनकछेजे वपमम्‌, तथा जो्णगोर्णीनां चैत्यानां समारचनम्‌, न्टभ्रष्टानां ससुदरणं चेति ननु निरवदयजिनधम- समाचरणचतुराणां जिनभवनविम्बपूजादिकरणमनुवितमिव प्रतिभासते षड्जोवनिकायविराघनादहेतुल्लात्तस्य, भूमोखमनदल- पाटकानयनगर्तीपूरिषटकाचयनजलङ्गावनवनस्मतिवसकायविरा- घनामम्तरेण fe तद्वति। उच्यते। arcana: कुटुम्बपरिपालननिमिन्तं धनोपाजनं करोति, तस्य utara विफलं मा भूदिति जिनभवनादौ घनव्ययः खयानेव। नच Was घनोपाजनं युक्तम्‌

यतः- धर्माीधं यस्य वित्तदा तस्यानोदहा गरोयसौो | marae cee दृरादस्पशेनं वरम्‌ १॥

इत्युक्तमेव वापोकूपतडागादिखनमवदशभोद कौ जिनभव- नादिकरणम्‌.रपितु सङ्समागमधमदेशनाकरणव्रतप्रतिपच्यादि- करणेन शभोदकमेव | षडजोवनिकायविराघधना यतनाकारि- पामगारिणां waa सृच्छानपि जन्तून्‌ र्यताम- विराधनैव | |

यदादइः-

~ —--

~~ योगशाख्छे

‘at जयमाणस्छ भवे विराहइण्ा सुत्तविदहिसमम्गस्छ | ` सा Ss froma भव्‌भवयविसो हिलुसस्छ १॥ 'परमरस्पमिसोणं समत्तगखिपिडगवभरिभ्रसाराण | | ufcaurfad पमाणं निष्छयमवलग्बमाणाणं २॥ यसु निजङटुग्बाधमपि areal करोति प्रतिमाप्रतिपन्रादिः, तख मा भूल्िनवबिम्बादिविधापनमपि | यदाषुः-- ‘Qwisfafad पि कायवहस्मि cy पयट्न्ति। जिणपू भाकायवदण्मि तेसिमपवन्तणं मोषो १॥ इत्यलं प्रसङ्गन जिनागमक्तेतरे खधनवपमं यथा--जिनागमो fe कुशास्रजनितसंस्कारविषससुक्छेदनमदहामन्वायमाणो wal- धमल्लत्याक्तत्यभच्छाभच्यपेयापेयगम्यागम्यसारासारादिविवेचनहेतुः संतमसे दोप शव, समुद्रे दोपमिव, मरो कल्पतर्रिव, संघार दुरापः जिनादयोऽप्येतग्मामाश्यादेव निचोयन्ते यदवोचाम ` श॒तिषु- | यदोयसम्यक्कबलात्‌ WAAL भवादृशानां परमाप्तभावम्‌। कुवासनापाश्विनाशनाय नमोऽस्तु AA तव शासनाय new

(१) यायतमानद्य wag विराधना तलविधिसमय्ख। शा भवति निजरफदाऽभ्यथनावियोधियुक्तखं atu

(२) ucacyaamet समस्तगख्िपिटकन्डतसाराष्डाम्‌। परि खातं nara निसयमवलम्बलानानास्‌ ॥२॥

(३) देष्टादिनिजित्तमपि खनु ये कायवघे दूह WaT | जिनपूजाकायव्रपे तेषामप्रवतनं मोहः १॥

SAAT: प्रकाशः | ५८९

जिनागसमवद्ुमानिमा टेवगुरुधमादयोऽपि बहुमता भवन्ति | क्षिं कैवलन्नानादपि जिनागम एव प्रामाख्येनाऽतिरिष्यते। यदाहुः- | ‘st? MASA सुयमाणो as fawe WaT | तं केवलो fa Yat भ्रपमाणं Bat भवे CHT We एकमपि जिनागमवचनं भविनां भवनाशर्तुः | यदाहः-- ` | | एकमपि जिनवचनाद्यस्माचिर्वाहकं पटं भवति ! श्रुयन्ते चानन्ता; सामायिकमात्रपद्सिहाः॥ १॥ द्ति।॥ यद्यपि faqrefew wate इव vata रोचते जिन- वचनम्‌, तथापि नान्यत्‌ स्र्गापवगेमागेप्रकागनसमर्घम्‌ ; इति सम्यगृहष्टिभिस्तदटादरेख aga, यतः कष्थाणभाजिन एव जिनवचनं भावतो भावयन्ति इतरेषां तु कणशुलकारितमामृत- मपि विषायते। यदि चेदं faaaad नाभविष्यत्‌, तदा धर्मा ऽधमव्यवस्याशून्यं भवान्धकूपे मुवनमपतिष्यत्‌ यथा इरौ- ant भक्षयेद्‌ विरेककामः इति वचनादइरोतकोभक्षशप्रभवविरेक- AANA प्रत्ययेन खकलस्याऽप्यायुकेदस्य प्रामाश्यमवसोयते, तथा अष्टाद्रनिमि सकेवलिकाचन्द्राकंग्रहचारधातुवादरसरसायमादिभि- रप्यागमोपदिषटेदृ्टाधवाक्यानां प्रामाण्डनिश्चयेनाऽदृष्टा्थोनामपि

१) ओके चछतोपरुक्रः gage afe खन म्डद्खात्व शुद्धम्‌ | तदू केवर्ख्यापि चेडःकरेऽप्रमाखं खतं भवेदितरया !

9 AANTR

वाक्यानां प्रामाण्यं मन्दधोभिनिखेतव्यम्‌। लिनवचनं दुःषमा कालवशादुच्छिवप्रायमिति मत्वा भगवद्विर्नागार्जन- स्कन्दिलाचाय्येप्रथतिभिः guay न्यस्तम्‌ ततो जिनवचनबद्ु- मानिना तत्‌ पुस्तकेषु लेखनोयं वस््रादिभिरभ्यचनोयम्‌ यदड-- a & नरा दुगेतिमाप्रवन्ति मूकतां नैव जडख्रभावम्‌ | चान्धतां बुहिविष्ोनतां ये लेखयन्तोष् जिनस्य वाक्धम्‌ ॥१॥ agafa नरा धन्धा ये जिनागमपुस्तकम्‌ | ते सवै वाक्यं sar fafe यान्ति संश्यः॥२॥ जिनागमपाठकानां वसत्रादिभिरभ्यचनं भक्िपूषै संमाननं च। यदाह- पठति पाठय पठलतामषौ वसनभोजनपुस्तकवस्तुभिः | प्रतिदिनं कुरते saad दष सवविटैव UAT: + १॥

लिखितानां पुस्तकानां संविम्नगौतार्थेभ्यो ब्ुमानपूवकं व्याख्यानां दानम्‌, व्याख्यायमानानां प्रतिदिनं पूजापूवकं वणं चेति साधनां जिनवचनानुसारेख सम्यक्‌ चारि मनुपालयर्तां ead agen सफलोकुवेतां ad तीरष्णनां परं तारयितुमुद्तानामातीरधङ्रगणधरेभ्य पा चेतहिनदोसितेम्थः सामायिकसंयतेभ्यो यथोचितप्रतिपच्या खधनवपनम्‌, यधा-- , उपकारिणां प्रासुकंषगोयानां. कल्पनोयानां चाशनादौनां, रोगापषारिशां भेषजादोनां, शओोतादिवारणा्थीनां वस््रादोनां, प्रतिक्तेखनाषतो रजोहरशादोनां, भोजनाय्यथं

AMA: प्रकाशः | ४५९९१

पाव्राणां, भरौपग्माहिकाणशां दण्डकादौनां, निवासाधेमा- mara दानम्‌। हि तदस्ति यद्रव्यके्रकालभावापेक्षयाऽगुप- कारकं नाम, तत्सवस्वस्याऽपि दानम्‌, साधुधर्मोद्यतस्य aya- पुवपादेरपि समपंशं च। किं बहना यथा यथा सुनयो निरा बाध्या खयमनुष्ानमनुतिष्ठन्ति, तधा तथा महता प्रयतेन सम्पादनम्‌, जिनवचनप्रत्यनोकानां साधुधमनिन्दापराणां यथा- शक्ति निवारणम्‌| यदाड- "तद्या सद्‌ सामये आणशाभटरश्िनो खलु ster अण्कूलगेयरे हि भर sua Wie दायव्वा+ १॥ तथा रव्रच्रयधारिष्ोषु analy साधुष्िव amnfaarercfe- दानं खधनवपनम्‌ aq Vai निःसस्वतया दुःशोलल्यादिना मोक्तेऽनधिकारः, तत्कधमेताभ्यो दानं साघुदानतुष्यम्‌ ? उश्यते निःसत्वमसिदम्‌, ब्राद्मोप्रभतोनां खाष्वोनां ग्टहवाखपरित्यागेन यतिधममनुतिष्ठन्तोनां महासस्वानां नाऽस्वसम्भवः | यदाह ब्राह्मी सुन्दयीयी राजोमतो चन्दना गण्धराऽन्या | अपि दैवमनुजमहिता विख्याताः शोलसश्चाभ्याम्‌ गादख्येऽपि सुसश्वा विख्याताः भोलवतोतमा जगति ` सोतादयः कथं तास्तपसि ‘fantar विस्वा १॥२॥

1) तस्मात्‌ सति सामनर्येऽजस्ताश्र्े नो WaT | अतुकूलकेतरे fe wafufedafa दातन्या॥)!॥ (२) wes, fagen वि्ोखाख्।

४०२ ` ` योगशास्त्र

संत्यज्य राज्यलश्छीं पतिपुतरभ्ाठवन्धुषम्बन्धम्‌ | ` पारिव्राल्यवदायाः किमसच्वं सत्यभामादेः 2 ९॥ ननु awards भिष्यालसहायेन स्नोत्वमज्यते; fe सम्यग्दृष्टिः etd कदाचिद्‌ बघ्नाति इति कथं aindeafaa तनो मुलिः स्यात्‌ १। मेवं वोचः, सम्यक्घप्रतिपत्तिकाल एवाऽन्तःकोरौ- कोरिखितिकानां सवंकमेणां waa मिष्यालमोहनोयादौनां चयदि सम्भवास्मिष्यात्वसदहितपापकमसश्चवत्मकारणम्‌, मोक्त- RCS तु तास व्ममुचितम्‌ तच्च नास्ति। यतः- | arta जिनवचनं awe चरति चाऽऽयि का warez नाऽस्ाख्यसम्भवोऽस्वां नादृष्टविरोधगतिरस्ति ॥१॥ इति

तस्िभेतम्भुल्िसाधनधनामु साध्वोषु साधुवद्‌ धनवपनमुचित- fafa washes यत्‌ साध्वोनां दुःभोलेभ्यो नास्तिकैभ्यो गोपनम्‌, खण्डष्प्रत्यासन्तौ समन्ततो . गुप्ताया गुष्हाराया वसतीर्दानम्‌, खस्नोभिख तासां परिचय्याविधापनम्‌, खपुविकाशां q ante धारणम्‌, व्रतोदयतानां खपुत्रयादोनां प्रत्यपषं च, तथा विख्यृतकरणोयानां तत्छारणम्‌, भन्धायप्रहत्तिसम्भवे चरिवारणम्‌, सकदन्यायप्रहत्तौ भिक्षणम्‌, ga: ga: प्रहस्त निष्टुरभाषणादिना ताडनम्‌, उचितेन वसुनो"पचारणं चेति aay खधनवपनं यथा-साधमिकाः खलु चावकस्य श्रावकाः,

(१) -पक्रणं।

Markandeya Purana, Fase. 5-7 @ /10/ each ° 170817१ चः ana, Fasc. 10-19 @ /10/ each NySyavSrtika, Fasc. 1-6 @ /10/ each *Nitisara, Fasc. 3-5 © /10/ each a NityScirapaddhatib, Fasc. 1--7 @ /10/ each Nityfcirapradipal Vol. 1, Fasc. 1--8; Vol. II, Fase. 1-3. @ /10/) each Nyayabindutika, Faso. 1 @ /10/ each *NySya Kusumafijali Prakarana Vol. I, Fasc. 2--6 ; Vol. II, Fasc. --3 @ /10/ each Padumawati, Fasc. 1--5 @ 2/ | ¢Parigiyta Parvan, Faso. 8--5@ /10/each = ` ` . ४० Prakrita-Paingalam, Fasc. 1--7 @ /10/ each - ` ` १०७ * as Prithivir3j Rasa. Part 11, Fasc. 1--5 @ /10/ each ... Ditto (English) Part IT, Fasc. 1 @ 1/ i Prikrta Lakganam Fasc. 1 @ 1/8/ each

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Pariicara Sunrti, Vol. I, Faso. 1-8; Vol. II, Fasc. 1-6; ९५1. LIT, Fasc. 1--6 @ /10/ ea 4 os ५६ Paricara, Institutes of (English) @ 1/-each = = = `. ius ses Pariksamukha Sutram_ esas ००७ Prabandhacint&émani (English) Fasc. 1-3 @ 1/4/ each ५०५ eee Rasarnavam, Fasc. 1. 1५०५ oa ००५ Saldarasana-Samuccaya, Fasc, 1-2 @/10/each =, ` , cad *Sama Vida 891011४8, Vols. |, Fasc. 7-10; II, 1-63 111, 1-7 ; ; lV 1 6 Vv, 1 8 @ /10/ each aoe , ००१ ott ; ‘dee 4 Samaraleca Kaha’ Fase. 1-2 10/ nee ` ०१, न्भ ०० Sankhya 3¶6धा* Vrtti, Faso. 1-4 @ /10/ each ~ ००9 ` ~, ४४,

Ditto 3 (English) Fasc. 1-3 @ 1/- each eSankara Vijaya, Fasc. 2-8 @ /10/ each Six Buddhist Nyaya Tracts Sraiddha KriyS Kaumudl, Fasc. 1-6 @ /10/ each Srauta Sutra Latyayan, 79१6, 4-9 @ /10/ each Asbalayana, Fasc. 4.11 @ /10/each ... ` Sucrinta 3१1011४8, «Eng.) Fasc. 1 @1/- each | Suddhikaumud!, Fase. 1-4 @ /10/ each Suryya Siddhanta faso. 1 eTaittreya Brahmana, Faso. 11.26 @ /10/ each Pratisakhya, Fasc. 1-8 © /10/ each *Taitterfya 881011४4, Faso. 27-45 @ /10/ ench Tandya ttrahmaga, Fasc. 10-19 @ /10/ each ~ Yantra Varteka (English) Fasc. 1-6 @ 1/4/ क्ली .. Tattva (1६10991, Vol. [, Faso. 1-9, Vol ||, Fanc. 2-10, Vol. 711, Fase. 1-2 Vol. LV, Fase. 1, Vol. V, Fase. 1-5, Part IV, Vol. IT, Fasc. 1-12 @ /10/ each Tattvarthadhigama Sutram, Fasc. 1-3 @ /10/ each ... Trikigda-Mandanam, Fasc. 1-3 @ /10/ each Tulsi Satani, Faso. 1--5 @ /10/ each «Upamita-bbava-prapafica-kath#, Faso. 1-2, 5-18 @ /10/ each Uvasngadasio, (Text and English) Fasc. 1-6 @ 1/- eac Valisla Carita, Fasc 1 @ /10/ Varga KriyS Kaumudi, Fasc 1-6 @ /10/each _... *Vayu Purana, Vol. 1, Faso. 8--6 ; Vol. 11, Fasc. 1--7,@ /10/ each Vidb3ra P&rijata, Fasc. 1-8 Vol- Tl. Fasc. 1 @ /10/ each | Ditto Vol. 11, Fasc. 2-4 @ 1/4/ Vivddaratnikera, Faso. 1--7 @ /10/ exch Vehat Svayambha PurSga, Faac. 1--6 @ /10/ each ¢Yoga Aphorisms of Patanjali, Fasc. 3-5 @ /10/ each Yoganistra of Hemchandra Vol. I. Fasc. 1-2

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Tibetan Series |

Baudhyastotrasangraba, Vol. I ( Tib.& Sans.) ...

A Lower Ladakhi version of Kesaranga, Fase. 1-4 @ 1/- each

Nyayabindu of Dharmakirti, Fasc. 1

Pag-Sam 8.01 Tif, Faso. 1--4 @ 1/- cach

Rtogs brjod dpag Akhri 8१6 ( Tib. & Sans. ^ २४६१2 Kalpalata& ) Vol. 1/ Fasc. 1--7 ; Vol. UI. Fasc. 1--6 @ 1/- each

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1 Sher-Phyin, Vol. I, Fasc. 1.6 ; Vol. If, Fasc. 1-8 ; Vol. 111, Fasc, 1-6, @ 1/ each 14

Arabic and Persian Series

Klamgirnamah, with Index, (Text) Fase. 1--18 @ /10/ each Al-Muqaddasi (English) Vol. I, Fasc. 1-3 @1/- cach = = Ain-1-Akbari, Fasc. 1-22 @1/8/each_ ...

Ditto (English) Vol. 1, Fasc. 1--7, Vol. If, Faso. 1--5, Vol. If

Ditto Index to Vol: 2. Fasc. 1--5, @ 2/- each Akbarnimah, with Index, Faso. 1-37 @ 1/8/ each .. ८. “90

Ditto (English) Vol.‘J, Fase. 1-8; Vol. If, Fasc. 1-6 @ 1/4/ each Arabic Bibliography, 1 Dr. A. Sprenger, @ /10/ | « BadshShnaimah, with Index, Faso. 1-19 @ /10/ each aa

9०५.

*The other Fasciculi of these works are out of stock and complete copie

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. spoken in North Bihar by Dr 0. A. Grierson. Second Edition, Part I

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6 N.B.—All Cheques, Money Orders, &o. must be made payable to the “Treasurer, ‘atid Society,” only! ; => = ¶.~ ~. == => ^~ neemnlinA haw WT Pp Pp 24-12 10.

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A CoLLecTION OF ORIENTAL.: WORKS

PUBLISHED BY THE

ASIATIO SOCIETY OF BENGAL.

NEW SERIES, NO. 1409

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THE YOGASASTRA

With the commentary called SVOPAJNAVIVARAN A

BY

SRI HEMACIIANDRACHARYA

EDITED BY GASTRA VIGARADA JAINACARYA

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PRINTED BY UPENDRA NATIIA CHAKRAVARTI, AT THE SANSKRIT PRESS, No. 8, Nandakumar Ohawdhury’s 2nd Lane ANP PUBLISHED BY THE

ASIATIC SOCIETY OF BBNGAL, 1, PARK STREET

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AT THE LIBRARY OF THE

ASIATIC SOCIETY OF BENGAL No. 1, PARK STREXKT, CACUTTA, AND OBTAINABLE FROM THE SOCIETY'S AGENT, Mr. BERNARD QUARITCH Ll, Grarton Street, New Bonn ऽता, Lonpon, W.

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` " Complete copies of those works marked with an asterisk * cannot be supplicd.—some of the Fasciculi being out of stock.

BIBLIOTHECA INDICA. 07 Sanskrit Series Advaitachint& Kaustubha, Fasc. 1-8 @ /10/ each Re Aitardya Br&hmanga, Vol. I, Fasc. 1-5 Vol. 11, Fasc.:1-5; Vol. 11 Faac. 1-5, Vol. 1V, Fasc. 1-8 @ /10/ each wee 1 Aitereya Lochana. ` ००५ ००५ sad Amarkosha, Fase. 1 ¢ a8 , ` ° & ए४ Bhaighya, Fasc. 2-6 @ /10/ each . oe Anumana Didhiti Prasarini, Fasc. 1 @ /10/- Agtashhasrik& Prajfiiparamith, Fasc. 1-6 @ /10/ each Atmatattaviveka, Fasc. I Agvavaidyaka, Fase. 1-5 @ /10/ each Avadona Kalpalat&, (Sane. and Tibetan) Vol. 1, Fasc. 1-10; Vol. 11 K'anc. 1-10 @ 1/ each er Balam Bhatti, Vol. I, Fase. 1-2, Vol II, Fasc. 1 @ /16/ each Baudbayana S'rauta 30४78, Fasc. 1-3 Vol. II, Fase 1-5 @ /10/ each Bhasavritty Bhitta Dipik& Vol. I, Fase. 1-6; Vol. 2, Fasc. 2, @ /10 each 4 Bauddhastotrasangraha ,,. al | ies Brhaddévat& Fasc. 1-4 @ /10/ each... sae Brhaddharma Purfiga Fasc 1-6 @ /10/ each ou mae Bodhiearyivat&ra of Cantideva, Fasc. 1-6 @ /10/ each ie eae Cri Cantinatha Charita, Fasc. 1-3 : ee “ee 0 Fasc. 1-2 @ /10/ each a as co atalogue of Sanskrit Books and MSS., Fase. 1-4 @ 2/ each .. Vatapatha Brahmasa Vol I, Fasc. 1-7, Vol II, Fasc. 1-5, Vol. TI Fasc. 1-7 Vol. V, Faso. 1-4 (@ /10/ each ` ; Ditto = Vol. VI, Fasc. 1-3 @ 1/4/ each Ditto Vol. VII, Fasc. 1-6 @ /10/ eg Ditto Vol. 1X. Fase. 1 ace CatasShasrikS PrajhdpSramité Purt, I. Fasc. 1--17 @ /10/ each , *Caturvarga Chint&émayi, Vol. II, 2986. 1-25; Wol. 111. Part I Faso. 1-18. Part II, Fasc. 1-10. Vol. 1 . Fasc. 1-6 @ /10, each Ditto Vol. IV, Fasc. 7-8, @ 1/4/ each Ditto Vol. IV, Faac. 9-10 @ /10/ Qloekavartika, (English) Fase. 1-7 @ 1/4/ eaeh di as ` *Crauta Sittra of Gankh3yana, Vol. I, Fasc. 1-7; Vol. 1, Fase. 1-4;

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Karmapradiph, Fasc. I Kala Viveka, Fasc. 1-7 @ /10/ each

Kittantra, Fase. 1-6 @ /12/ each | a : *Karma Purdya, Fasc. 3-9 G /10/ each ... sae ; Kiranavali, Fasc. 1-2 @ /10/ each wei

Madana P&rijata, Fasc. 1-11 @ /10/ each Mah&-bhiigya-pradipddydta, Vol. 1, Fasc. 1-9 ; Vol. 11, Fasc. 2-12 Vol. 117

Fasc. 1-10 @ /10/ each , 1 Ditto Vol. IV, 986. @ ।/4 goes ee Manutika Sangraha, Fasc. 1-3 @ /10/ each es fs ` Markandéya Purfga, (English) Fasc. 1-9 @ 1/- each = ah

° {71790 Darcana, Fasc. 10-19 @ /10/ each ae eMugdhabodha Vyakarana, Fasc. } -4 @ /10/ each ..

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समानधाभिकाणां सष्रमोऽपि महते पुण्याय, किं पनस्तदनु- रूपा प्रतिपस्तिः १। साच खपुत्रादिजन््मोत्सवै विवाहेऽन्धस्मिचरपि तथाविधे प्रकरणे साधमिकाणां faaaay, विशिष्टभोजन- ताम्बलवस्त्राभरणादिदानम्‌, भ्रापनत्रिमम्नानां खधनव्ययेना- ऽप्यभ्यदरणम्‌, Waar विभवक्षये पुनः पूवंभूमिका- प्रापणम्‌, ua विषोदतां तेन तेन प्रकारेण wa खैव्यारोपणम्‌, प्रमाद्यतां स्मारणवारणचोदना"प्रतिचोदनाऽऽदिकरणम्‌,वाच- नाप्रच्छना्परावर्तनाऽनुप्रेक्षाघमकथादिषु यघायोम्यं विगियोजनं, विशिष्टधर्मानुष्ठानकरणाथं साधारणपोषधशालाटेः करणश- भिति। anfaarg धनवपनं ख्रावकवदन्धुनातिरिक्षमुन्रेतव्यम्‌ तवर ज्ञानदशनचारित्रवत्यः शोलसन्तोषप्रधानाः सधवा विधवावा जिनशासनानुरक्षमनसः साघर्सिकत्वेन माननोयाः। ननु ala कुतः णोलशा लित्वम्‌ ९, कुतो वा रब्रतययुक्ञत्म्‌ १, स्रियो fe नाम Ma लोकोत्तरे चाऽनुभवाच्च टोषभाजनत्वेन प्रबिष्ठाः। एताः wer- भूमिजा विषकन्द्ल्यः, भ्रनभ्चसम्भवा ANAT: WANA व्वाघधयः, WATT मत्यः, भ्रकन्द्रा ATA, TIA WAT: 5 प्रसत्यवच- नस्य, साहसस्य, बन्धु विघातस्य, wnweqaa, निर्विंषैकत्वस्य परमं कारणमिति दूरतः परिहाय, तत्कथं दानसंमानवास्सल्य- विधानं atg युक्तियुक्षम्‌ !। उच्यते अनेकान्त एषः, यत्‌ Mi टोतवबहूलत्वसमु च्यते, पुरुषेष्वपि fe समानमेतत्‌ केऽपि क्रूराशया टोषवदहला नास्तिकाः aan: खामिद्रोहिो टेवगुर्वश्चकाच

(१) w—waiea- | (१) w—a—ufcaaar- | ४0

५९४ योगशास्त्रे

दृश्यन्ते | ALATA महापुरुषाणामवन्ना कत्‌ युज्यत, एवं स्नोणामपि। यद्यपि काषाञ्िदोषबदहुलत्वमुपलमभ्यते, तथापि कासांचिद्‌ गुशवद्लत्वमप्यस्ति। तोधकरादिजनन्यो fe स्नोलवेऽपि तत्तु शगरिमियोगितया सुरेनदरेरपि पूज्यन्ते, मुनिभिरपि स्तृयन्ते | alfarat अप्याषुः-

निरतिशयं गरिमाणं तेन युवत्या वदन्ति facia: |

तं कमपि वति गभं जगतामपि यो गुङुभवति wen इति काचन खशोलप्रभावादग्निं जलमिव, विषधरं cafaa, सरितं wafaa, विषममृतमिव कुवेन्ति। चतुर्वणे सङ्क चतुर्धमद्गः ग्टहभेधिस्रियोऽपि | सृलघाप्रथतयो fe खाविकास्तौधकरेरपि प्र्स्यगुणाः, सुरेन्द्रेरपि सखगेभूमिषु ga: पनबेहमतचारित्राः प्रबलमिष्यालेरप्यक्तोभ्यसम्यज्नासम्पदः, का्िच्चरमदेष्ाः, काञचि- दिविभवान्तरितमोच्षगमनाः शास्त्रेषु यन्ते तदासां लननौनाः faa भगिनोनामिव खपुत्रोणाभिव वात्सल्यं युक्धियुक्मेवोत्पश्यामः। quavafant नागिलाख्या afaafatt जखावकवदपबिमा सत्यश्रोः | तत्कथं नाविकाः पापवहनितानिदशनेन ger ? warety न॒ परिष्ठरणोयाः, aaa चासां करकोयमिव्यलं प्रसङ्गेन | कैवलं agar wt वपन्‌ महास्रावक उच्यते, किग्- तिदौनेष्वपि निःखान्धबधिरपक्करो गातेप्रथतिषु छपया कैवलया wt वपन्‌, तु मह्या भक्तिपूवेकं हि सप्तच्चेत्रयां यथोचितं दानम्‌। भतिरोनेषु लविचारितपावापा्रमविख््टकसख्पनोया- $कख्पनोयप्रकारं केवलयेव करणया सखघनसख्व वपनं न्याय्यम्‌ |

SAT: प्रकाशः | ४५९

भगवन्तोऽपि fe निष्करमणकालेऽनपेकलितपातापाब्रविभागं कस्‌- war सांरवत्सरिकदानं दत्तवन्त fa | aed भक्तया सप्तसेत्रयां Zag चातिदयया धनं वपन्‌ महाश्रावक saad | ननु जावक इत्यच्यताम्‌, महाखावक इति तु मस्व विगेषणं किमधैसुश्यते १। ावकत्वमविरतानाभेक्रायणव्रतधारिष्णं खरोतोति व्युत्प्यो- चते ; यदाह- '"सम्धस्षदंसगणाषर पद्दियष्ं seat Fas य) सामायारिं परमं जो खलु तं सावयं विन्ति॥ १॥ यदालुतां खाति पदाधैचिन्तनाद्‌ धनानि Gray वपत्यनारतम्‌ | किरत्यपुण्यानि सुसाधुसेवना- दद्यापि तं AARHATSTHAT WR A दति faqare waned सामान्यस्यापि ufaeq ; faafaag निरतिचारसकलत्रतधारो सप्तसचेतो लक्षि सेत्रे धनवपनाहर्थन- प्रभावकतां परमां दधानो दोनेषु शात्यन्तक्तपापरो महाजावक- TAA CATT: १२० andar घनवपनं व्यतिश्कदारेण समथेयते-- यः सद्याद्यमनिलयं AI_ धनं वपेत्‌ |

कथं MICs Sat समाचरेत्‌ ?॥ Ver kt

Oe a, ee Oe कक 9 9 9 em ee ति माते योन विजि विचि दिके

(१?) संप्ाप्रट्चनाटिः प्रतिदिवक्षं यर्तिजनात्‌ walfa च, GUAT परमां as We A TAH AAA ०9

५८६ ` योगशास्त्र

सदिति विश्यमानमसतो fe धनस्य कथं दानं भवेत्‌ aefa _ ant शरोरादहिभूतं भान्तरस्य तु कस्यचिहानं mel कट, बाह्ममपि यदि नित्यमाकालखायि waq तदा दोयेताऽपि, इटं त्वनित्यं चौरजलल्वशनदायादपा्धिवादिष्टरषौयं प्रयब- गोपितमपि पुख्यस्षयेऽवश्यं विनश्यति ; यदस्मदृगुरवः- ‘wai चोरा विलुपंति उदहालंति दाया राया वा संवराैद्‌ बला मोडोद HAT १॥ many वा fame पाणियं वा पलावणए | पअवहारेय निगच््छे वसणोपहयच्छयवा॥२॥ भूमोसंगोवियं चेव हरन्ति वन्तरां सुरा। fant aie सव्वं पिमरन्तो ar परं भवं॥३॥ भनित्यमपि quad fafectd शक्यते, fe वहइतलम- स्तोति पर्वता ्भ्यज्यन्त इत्यक्तम्‌ सेजेषिति, चे्राणि aad धनं भतसषस्रलचकोटिगुणं भर्वति एवंविधायामपि सामग्रयां वः सधनं वपेत्‌ वराकः निःसत्वथारित्रं महासस्वक्षेवनोयमतणएव दुश्चरं कथं समाचरेत्‌ ? ; धनमाव्रलुबो निःस्वः कथं सवेसङ्ग- त्यागरूपं चारित्रं विदधोत अनाराधितचारित्र्च कथं सतिं

(1) we चौरा विलुम्पन्ति, खह्‌ःरयन्ति दायाराः। राजावाष्छंवारयति बलात्‌ waa कुनापि॥ १॥ उ्वलमो वा विनाशयति पानीयं वा ytaafa Bogies नि गण्चछेत्‌ व्यसनोपष्तख्वा॥ २६ भ्रमो गो पितमेव रन्ति व्यन्तराः सराः | स्मित्वा याति सवेमपि स्नियमाखोवा प्रः भवम्‌ nk

BAA: प्रकाशः | Yeo

प्रश्रयात्‌ १, सवेविरतिप्रतिपत्तिकनलशारोपण्फलो हि ्रावक- धमंप्रासाद इति १२१॥ ददानो महाजरावकस्य दिनचय्धामाख-

ब्राह्मये HEN Biusq परमेशटिसत॒तिं पठन्‌ 1 किंधर्मा किंकुलघ्ास्पि कित्रतीःस्मौति स्मरन्‌॥१२२॥

पश्चदश्मुङ्कतौ रजनो, तस्यां चतुदशो मुह्र्ता ब्राह्मस्तस्मिवरसति- wq fast ज्यात्‌ ; परमे तिष्ठन्तोति परमेष्ठिनः cereerea- स्तेषां सुति नमो भ्ररिहन्ताणमित्यादिरूपाभात्यन्तिकतदहमान- काभूतां परममह्ृलाधै वा asaqarmauifafa शेषः यदाह "परमेद्धिचिम्तरं aruafan Gerracy कायव्वं। guar विणयथपविक्तो निवारिया Wie wa ane श्रन्धे त्वविशेषेणेव नमस्कारपाठमादहइनं सा काचिदेवथा - यस्यां पद्चनमस्कारस्यानधिकार इति मन्वानाः नं कैवलं पठन्‌, को धर्मो यस्याऽमौ faiuat, किंकुलं यस्याऽसौ किंकुलः, किं व्रतं यस्वाऽसौ किंत्रतोऽ्मोत्यहमिति स्मरत्रिटं भावतः स्मरणम्‌ उपलस्षणष्वात्के गुरवो ममेति दरव्यतः, कुव ग्रामे anced ar वक्तामोति @aa:, कः कालः प्रभातादिरिति areas स्मरन्‌, WAS जेनादेः, कुलस्येच्छाक्तादैः, वरतानामणुब्रतादोनां सरणे तदहिर्दपरिङ्ारस्येषत्करतवात्‌ १२२

(1) परमेहिचिन्तनं मानसे चयागतेन क्षतव्यम्‌ | ga fanaquefafearfcat भव्ति wt aa

४८ योगाच

ततः-

शुचिः पुष्पामिषस्तोवेद वमम्यच्यं वेश्मनि |

प्रत्याख्यानं यथाशक्ति क्रत्वा SAT व्रजेत्‌ ॥१२४॥

श्चिरिति मलोक्गदन्तधावनजिद्वालष्ठनसुखप्रसालन्‌गण्डु- कंरणल्ञानादिना शुचिः सत्रित्यमुवादपरं लोकसिहेा want इति नोपदेगपरम्‌, sara हि शास्रमधर्वत्‌। a fe मलिनः aay, बुभु्ितोऽग्रोयादित्यतर गास्वमुपयुज्यतै। wut ` त्वामु्िक्षे मार्गं नेखगि कमोदान्तमसविलुप्ालोकस्य लोकस्य aaa ad चश्षुरित्येवसुत्तरवाऽप्यप्राप्र विषये उपदेशः सफल इति चिन्तनोयम्‌ array शास्तृणां वाच- निक्यऽप्यनुमोदना Far) यदाष्ुः-

"सावनव्वणवजाणं वयणशाणं जो जाणण्‌ विसेष॑।

qu fa aa नं od fang) पुण tad कां १॥

दूति शएवित्मनुद्य पुष्यामिषस्तोवरेरित्याय्यपदिशति-

वेश्मनि ue? देवं मद्गलचैत्यरूपं waar पूज- यित्वा, पूजाप्रकारानाह--पुष्पामिबस्तोवरिति, पृध्पाणि कुसु- मानि पुष्यप्रहणं.सवषां सुगधिद्रयाशां विलेपनधुपगरन्धवासवस््ना- भरणशादौनामुपलक्षणंम्‌ प्रामिषं wer पेयं च, तच्च पक्षार््रफलाऽ- चतटोपजलद्तपूपावादिरूपं, aa शक्रस्तवादिसद् तराणोत्को- तनरूपं, ततः प्रत्याख्यानं नमस्कारसरहितायद्दार्ूपं सद्ेतरूपं

ar en ee ee (= ova cim eee 7 7 ee - ~---- ee Ro a ell =

(१) साष्द्यानव्रयानां बचनानांयो लानाति fade | | : omaty ag खसं किमङ्ग ¦ एुनदेयनां कतुम्‌

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Sata: प्रकाशः | ५९८

गरन्विसहितादि कत्वा यथाशक्तीति शक्यनतिक्रभेण, शकतितस््या- गतपसो दूति सुप्रतिहभेव, देवग्टष्ं भक्षिदधत्यरूपं AAR | भ्रव wafaaureafafaermacmnaginauicay- विशिष्टवाहनाधिरोङ्णप्रथतोनां ea: चिानां नोपदेशः | We शासखरमथेवदित्युक्तमेव देवग्टहव्रजनविधिः पमरयम्‌-यदि राजा भवति तदा “व्वा wiq ware fedte ware BT away सव्वपोरिसेणः इत्यादिवचमाग्रभावनांनिमिन्तं महदा याति।

श्रय सामान्यविभवस्तदा भ्रोदत्यपरिषार्य maui परिहरन्‌ ब्रजति + १२३॥

ततः प्रविश्य विधिना aa fe प्रदचिणयेज्निनम्‌ | पुष्पादिभिस्तमभ्यच्यं सवनेसत्तमैः स्तुयात्‌ १२४ aa zane विधिना विधिपूर्वकं प्रविश्य feet वारान्‌ परदचचिणयेत्‌ प्रदच्िषीकर्यात्‌ ; जिनमरडद्टारकम्‌, प्रवेशविधिषा- यम्‌-प्ष्यताम्बलादिसचिन्नद्रव्याशां क्षरिकापादुकायचिन्तदर्याणां परिहारेण कलतोत्तरासङ्गो जिनविब्बदर्थनेऽक्ञलिबन्ध' निर

स्यारोपयन्‌ मनस तत्परतां gafafa पश्चविधाभिमभेन नैष- धिकोपृतं प्रविशति।

-- ~ -~ ~ ae ` + ~~ ~ ne ee = ee ee eee यमक

(१) शर्ववा waqr, सर्ववा Pigs, सर्वया gar, स>बलेम, सर््पौङ्षेण।

geo MANTA

यदाह -'सविन्ताणं care वि उसदणयारए, भविन्ताशं care वि ठसरण्याए, एगज्ञसाडिएणं ठत्तरासङ्गकरये णं चक्सु- We भश्चलिपम्गेशं मसो एगन्सोभावकरणेणंति। यसु राजादिः षेत्यभवनं प्रविशति तत्कालं राजविदानि परिहरति | यदाइ- "अवटु रायकडप्माद्‌ं पञ्च वररायकरउभ्रारूवाड़ं QA Guay ase तद चामराभो १॥ पुष्यादिभिरिति guage मध्यग्रहणे भाद्यम्तयोरपि ग्रण- ` भिति न्घायप्रद्थेनाधम्‌, तथाहि -- नित्यं विशेषतस cafe खातः पूवकं पूजाकरग्मिति gama प्रथमं सुगसन्धिश्रौखण्डेन जिन- बिम्बस्य तिखककरणम्‌ | ततः- | मोनकुरक्नमदागुरुसारं सारसुगन्धिनिश्ाकरतारम्‌ तारभिलन्‌मलयोलखयविकारं लोकशुरोदंह धूपमुदारम्‌ इति वचनादुपोत्चेपणम्‌, ततः सवौँषध्यादि द्रव्याणां जल- पूर्कलसे Rad, पात्‌ कुसमाश्नलिचैपपूवकं सर्वोषधिकपृर- कुङ्मजोख ण्डा हप्र भतिभिजंलमिसेधुतदुग्धप्रथतिभिख लाव

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() शचिष्तानां दूव्याणामपि खवश्रयतया, afearat दरव्याखानपि ar STAR, एकथाढकेनासरासङ्गकरष्येन, चम्‌ खये Renate सनस एडत्वो- भावक्रण्डेनेति।

(२) woge राजक्कुटानि vy वररालककुदङ्पाखि।

खडः दलचपामदू wes तया qwacife wy

SANA: प्रकाशः | ६०१

करणम्‌, ततः सुरभिणा मलयजरसादिना विलेपनविधानम्‌, ततः सुगन्धिजाति-चम्पक-शतपन्र-विचकिल-कमलादिमालाभिभगवतो- ऽभ्यचनम्‌, रव्रसुवणंमुक्ताभरणादिभिरलङ्रणम्‌, वस्त्रादिभिः परिधापनम्‌, पुरतश्च सिद्ाथेकशालितण्डलादिभिरष्टमाङ्गलिका- लेखनम्‌, तत्पुरतश्च बलिमङ्गलदौोपदधिष्टतादोगां ढौकनम्‌, भगवतश्च भालखले गोरोचनया तिलककरणम्‌, तत भ्रारातिका- दयुत्तारणम्‌ | यदाह - 'गन्धवरधूवसव्वोसहोहि उभ्रगाद्एदिं fad fe | सुरहिविलेवणवरकुसुमदामबलिदौवणएहिं an १॥ सिदलययदङ्िश्रक्वयगोरोश्रणमाद्एहिं जहलाभं | कञ्चणमोत्तिश्ररयणद्दामणएहिं विविहेहिं॥२। पवरेहिं साशं पायं भावो वि stag पवरो। मय wart उवश्रोगो एएसि सियाणलट्‌ठयरो॥३॥ त्ति, एवं भगवन्तमभ्य्ये पूजयिता रेयाीपथिकौप्रतिक्रमणपूर्वकं शक्र प्तवादिभिरण्डवैषेत्यवन्दनं कलवा स्तवनैः स्तोत्ररसमरल्म-

Cnr त-प

(१) गन्वरधूपसर्बोधधोनिरदक्ादिकचिते : | सुरभिग्लिपनवररकुसुमदामबलिटोण्कंच॥ 1 सिडाधक-टध्यित-मोरोचनादिकर्ययालभम्‌ | काश्चनमौक्तिकरललारिदामभिच विविषैः॥२॥ प्रवरे; साधमेः प्रायो भाक्रोऽपि जायते WIT: | चान्य Saat एतेष YY मगोङरतरः॥३॥ TAA |

१०२ योगशास्त्र

कविरचितैः स्तुयाद्‌ गुणोक्कोतेनं कुर्यात्‌ waret चोत्मल- मिदसुक्षम्‌- यथा- पिख्छक्रियागुष्गतेगखोरेविविधवसंयुक्षेः | सआशयविशदचिजनकैः संवेगपरायसेः YE १॥ पापनिषेदनगर्मैः प्रणिधानपुरस्रेविचित्राधः। waafaafequaa: स्तोत्र महामतिग्रथितेः+२। इति। qatafad: एकं wrafamtaaragfad safe तोयं खनः uaa विपुले नितम्बफलके गृ्खगारभारालसम्‌ | अन्यषुरविल्टचापमदनक्रोधानलोदहौपितं शम्भोर्भिन्नरसं समाधिसमये न्वयं पातु वः॥ १॥ तथा-- धन्धा केयं खिता a facfa afnaren fai 4 नामेतदसखा नामेवास्यास्तदेतत्परिचितमपि ते faa we हेतोः नारीं एच्छामि He कथयतु विजया प्रमाणं यदौन्द्‌- देव्या निङकातुमिच््छोरिति सुरखरितं शाव्वमब्याहिभोवः wen तधा-- "पनमत पनयप्यङ्कपितगोलोचलणम्गलमग्गपडिषिंवं | AUT नखतप्यनेषं एकातसतनुधलं YE +

(१) प्रष्डमत प्रणवप्रकगपितमौरोचरब्वापरखग्नप्रतिबिम्बम्‌। इथ नखद्पशेषु एकाद्थततुधरद्द्रम्‌॥!।

® = ~ ~ = ^ = ~ ~ ~ = = === ~ ~~~ = me ee ~ ~~ --- ~~

तोयः प्रकाशः | ६०३

तथा- एतत्किं गिरसि fad मम पितुः खण्डं सुधादोधित- aiaiz किमिदं विलोचनमिदं ware किं पत्रगः इतथं क्रौञ्चरिपोः क्रमादुपगते दिग्वाससः शूलिनः प्रये वामकरोपरोधमसुभगं टेव्याः स्मितं पातुवः॥१॥ तथा- | उत्तिष्ठन्या रतान्ते भरसुरमपतो पाणिनेकेन Har Val चान्येन वासते विगलितकबरोभारमंसं वन्याः | भरुयस्तत्कालका श्तिदिगुखितसुरतप्रोतिना शौरिणा वः शय्यामाजिष्य मोतं वपुरनलसलसदाद्‌ AIT: पुनातु Ae A "भरतेन सम्पूर्ण वन््नाविधिङ्पलचितः यथा- ‘fafa faaifea fafa पयाहिशा fafa Qa a पणामा। fafaet प्राय तहा भ्रवल्यतियभावणं Va il १॥ तिदिसिनिरक्वणविरद भमो पमज्जशं fara | वश्पाद्तियं सुहातियं fafad a पण्िदडिणं॥२॥ प्प्फामिमसयरद्मैश्रा तिविद्ा प्रा च्रवद्यतियमंतु।

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(9) wary

() faw नेपरेधिक्यस्तिखच प्रदस्िणास््रय ur = rata: | fafoa gare तचाऽत्रस्यालिकमभावनं चैव लिदिगनिरौशखव्रिरतिभूमौ प्रमानं fae: | watfzfan सुद्‌ तिक्र लितिधं प्रणिधानम्‌ ॥२॥ पष्यासिषरस्तुतिमेदास्त्रिविधा पूजाऽवसखयाविक्कंतु।

९०४

योगशास्त्र

"छ उमलय-केवलि न्तं fawd भुव णनाष्स्य २॥

वस्ाश्लियं तु पशो वखल्यालम्बणशस्यङूवं तु

मणवयशकायजणखिश्ं fafag पण्दाणमवि we a ४॥

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(१)

(श)

(8)

amy पणिवाभ्रो ययपाढो हाद जोगमुहाए | वन्दन जिखमुहाए पणिषिालं मुन्तसुन्तोए १॥ at ary cfs at dead होड उत्तिमंगं तु), aa संपणिवाभो नेभो पंचंगपणिवाग्रो॥२॥ असोखंतरिभरंगुलिकोसखागारेष्धिं cife ware | पिष्टोवरिकोप्परसंदिएददिं तह जोगसुहत्ति २॥ चत्तारि भरंगुलाङ़ं पुरग्रो aust जलय afar | पायाणं saat एषा ‘qa wis जिणमुहा॥४॥

इदु ख्य-केवलित्वं सिद्धत्व चवननायद्य ay i

autfefad त्‌ पएनवर्थार्यालम्बनस्तर्पंतु।

मनो-वन कायजनितं fafad प्रखिचघानमपि भवति॥४॥

ugre: प्रखिपातः sagt भवति योगसदूया।

बन्द्नं faagzat प्रखिषान GATT Ut ll

हे gt Had पञ्चसकं भवव्युत्तमाङ्गतु |

सम्यक्‌ संप्रश्डिपातो Sa: प््चाङ्गप्रख्िपातः॥२॥

अन्योग्यान्तरित'ङरुडिकोशागाराभ्यां grat इक्ाभ्याम्‌।

उदरोपरिकूण्रस"स्थिताभ्यां तथा योगशद्रेति १॥

चत्वायङ्गुलानि परत जनानि aa पचिमकः।

पाटयोर्त्धग एषा पुनर्भवति जिनञ्चदरा ४॥ गड खसु

SANA: WATT | ९०५

'सुत्तासुत्तोमुदहा ‘sa खमा दीवि गग्भिया इलया | ते पुण शिडालदटेसे aa भत्रे wafer ५॥ इत्यादि। ेयापयिकौप्रतिक्रमणपूवकं चेत्यवन्द्नमित्यक्घम्‌ तत रियौपथिकोसूत्रं व्याख्यायते-तच इच्छामि पडिक्कमिखमित्यादि aw मिच्छामि दुक्रडमिव्यन्तम्‌, इच्छामि ufeafad इरिया- वहियाए विराषणाए; दृच्छामि अभिलषामि प्रतिक्रमितुं nad क्रमितुम्‌, शररणमोयां गमनभित्वधेः, aaa: पन्या शर्या पथः, तत्र मवा रेयीपथिको ; काऽसौ विराधमा जन्तुवाधा, तस्या पियाीपथिक्छा विराधनायाः सकाशात्‌ - प्रतिक्रमितुभिष्छामौति सम्बन्धः स्मि व्याख्याने शयापथनिमिन्ताया एव विराध नायाः प्रतिक्रमणंस्याद्‌ नतु शयनादेर्लितस्य nama ; तस्मादन्या व्याख्यायते -ईयोपधः साध्वाचारः, यदाह - Lalas मोनध्यानादिकं faqad त्र भवा रेयीपथिकौ ; काऽसौ विरा- धना साष्वाचारातिक्रमरूपा तस्या इच्छामि प्रतिक्रमितुभिति सम्बन्धः साष्वाचाराऽतिक्रमथख प्राणातिपातादिश्पः। त्च चख प्राणातिपातस्येव Wawa, शेषाणां तु पापख्यानानामतेवान्त- भोवः, wa एव प्राणानिपातविराधनाया एवोत्तर; प्रपश्चः। सति विराधना गमणागमणे गमनं चागमनं समाहारदन्धस्तस्मिन्‌,

(1) शुक्ताशुक्रिस॒दरा यलस्मौहात्रपि गभितौ waits तौ प॒नलंखाटर्‌गे शमग्नावन्यावसम्नाविति॥९॥ (२) wae समा afte |

९०९ योगशास्त्र

गमनं प्रयोजने सति बहिर्यानम्‌. भागमनं प्रयोजनसमाप्ती खखान एव गमनम्‌ गमनागमनेऽपि कर्थं विराघना ? इत्याह -पाशक्ष मश प्राख्याक्रमशेप्रागिनो दोद्दियादयस्तेषामाक्रमसं पादेन Test प्रा्याक्रमणं तत्र ; तथा, बौोषक्मे वोजाक्रमशे, vata Tarai waaay ; तथा, इरिभ्रक्रमखे इरिताक्रमणे ; भनेन सकलवन- स्यतेः, तधा, भोसाउ्तिंगपष्गदगमटोमक्डासंताणासंकमके, भव- mat जलविेषः, इड चावश्यायग्रहणम्रतिश्यतः शेषजलसभ्भोग- परिहरणार्धम्‌, उत्तिंगा गदंभाक्ततयो जोवाः, ते feat विवराखि कुर्वन्ति, कोटिकानगराणि at उक्तिंगाः ; पनकः पञश्चवर्णोलिः ; दकर्त्तिका भनुपदतभूमो चिक्विक्ञः ; अधवा, दकशब्देनाप्कायो waa मत्तिक्ाशब्देन तु एष्वोकाय षति; aac: कोलिकस्तस्व सन्तानो जालकम्‌, ततश्ावश्यायदो्तिङ्गषेत्यादिदन्हः. तैषां सक्र मणमाक्रमणं afer) कियन्तोवा भेदेनाख्यात्‌ गक्यन्ते ? इत्याह- & & जोवा faafeat a केचन सवधा मया जोवा विराधिता दुःखे ख्यापितः; तै एगिंदिया एक॑ सखशनमावभमिनद्दियं येषां तै एकेन्द्रियाः एधिग्यप्ेजोवायुवनसखतिलक्षणाः ; वेष्ंदिया हे स्मशन- waa इन्द्रिये येषां ते Shear wanes: ; तेडंदिया Tha स्प नरसनघ्राणानि इन्द्रियाख्ि येषां ते गोद्धिया; पिपोलिकादयः; चउरिदिया चत्वारि सखशनरसनघ्राणवन्ुरंलखानोन्द्रियाणि येषां ते चतुरिद्दरिया ्रमरादयः; पंचिदिया पश्च ओोवान्तानि इन्द्रि याकि.येषां तै aafeat मूषकादयः। विराधनाप्रकारमाद अभिषहया परभिमुखा warataa afzat:;, उत्‌चिष्य लिप्ता

ठतोयः प्रकाशः | goo

वा ; व्तिभ्रा वर्तिताः gaat: धुलिचिक्छल्ञादिना खगिताः ; ` लेसिश्रा क्ञषिताः पिष्टा भूम्यादिषु वा लभगिताः ; संघादया संघा- तिताः श्रन्योन्यगाज्ररेकश्र लगिताः; संघध्िया संघटिताः मनाक्‌ wer: ; परिश्राविश्रा परितापिताः समन्ततः पीडिताः; किला- faw क्तमिता स्लानिमापादिता मारणान्तिकं समुदृघातं नोता इत्यथः ; उदहविभ्रा भ्रवद्राविता उच्चासिताः ; sare इाणं संका- | मिया खस्थानात्‌ ates नताः; जोवियाभ्रो ववरोबिया जोवि- ताद्‌ व्यपरोपिता मारिता wae: ; तस तस्य श्रभिद्या rat भ्योक्घविराधनाप्रकारस्य सवस्य मिच्छामि cae fae मे दुष्कृतम्‌ एतद्‌ दुष्कृतं मिष्या मे भवतु विफलं wafer: | मिच्छामि gasfauea पूर्वाचार्या निङक्ञविधिमुपदशयन्ति-- . त्था | ‘fafa fasagaa छलि दोसाण erat होश fafa भ्रमेराए foal दुत्ति दुगंह्ामिबश्रप्पाणं॥१॥ afa ae मे ard uefa gq @afa तं उवसभेशं। एसो मिच्छादुक्कङडपयक्वरल्यो समासेणं 2 एवमालोचनाप्रतिक्रमणरूपं हिविधं प्रायखिन्तं प्रतिपदा कायो- त्षगलक्षशं प्रायञ्चिन्त प्रतिषि रिदं aa पठति- तश्च उत्षरोकरशेणं

(१) भोति मडु-मादवा्येदढेतिच रोषाणां बादने usfa | मोत्यभयाडयां खतो इ-द्ति जुगु खानम्‌ ॥१॥ afa ad Raw Via sy ayaa agunta | एष famrgae ( निथ्यादन्कृत ) पदारथ; समासेन ॥२॥

Qos योगशाख्चे

पायच्छितस्तकरशेणं विसोषोकरशणं विसक्ञोकरणेणं पावाणं aad निग्घायण्टढाए ठामि aise | तस्यालो चितप्रतिक्रान्तस्य विरा- घनाप्रकारस्व उ्लरोकरणादिना हेतुभूतेन sifa कारस्सग्गमिति at | atracace पुनः संस्कारदारेण परिष्करणमगुत्तर- स्यो्तरस्य करणसुत्तरोकरणम्‌ ; भयं भावः- विराधनस्व हि पूवमालो चनादिकं छतं तस्यैव कायोस्छगेकरणसुत्तरकरणम्‌, तेन पापकमेनिर्घातना .मवति। उत्तरोकरणं प्रायचिन्तकरण- हारेण भवति इत्याङ-पायच्छित्तिकरणेणं प्रायो बाश्ुष्येन fat Ma मनो वा शोधयति प्रायचित्तम्‌ ; यहा, पापं feawfa पापच्छित्‌ भाषत्वात्ायच्छिन्तं तस्य करेन हेतुभूतेन प्राय- चिन्तकरणं विषश्डिष्टारेण भवतीत्याह - विसोदोकरषेणं विश्योधनं विशः भ्रपराधमलिनस्यानो निर्मलोकरणं fant: करणां विश्डदिकरणं तेन हेतुभूतेन fagfaacd fane- करणष्दारेख भवति wa भराह-विसक्ोकरणेणं विगतानि शल्यानि मायादोनि यस्याऽसौ विशल्यः, भविश्स्यस्य विशल्यस्य करणं तेन हेतुभूतेन क्िभित्याह-पावागं कम्माशं निग्ा- यशटूढाए पापानां संघारनिवन्धनभूलानां कर्मणां चन्नाना- वरणोयादोनां निर्घातनार्थीय निर्घातनमुष्च्छेदः ware: प्रयो- जनं aa, sifa काडस्परमां भनेकायेतवाद्ातूनां ठामि करोमि कायस्य उत्सर्गो व्यापारवतः परित्यागस्तम्‌। किं सवधा नेत्याह- waa जसषिएणं भरन्यत्रोख्छसितात्‌, ठतौया पञ्चम्य्े, ag प्रलम्बं

वा श्वसितसमुच्छसितं amar योऽन्यो व्यापारस्तेन व्यापारवतः

BNA: प्रकाशः | doe

कायस्य san इत्यथः, उच्छसितं fe निरोदुमशक्षम्‌, तच्धिरोधे सच्यः प्राणदिघातादयापन्तः | Tere ‘aad निरुभद्‌ भरभिग्गहिग्रोवि fagqa facere | wat मरणं निरोहे FEAR तु जयणाठ॥ १॥ एवं निःश्वसिताद्यपि नोससिएणं भधःखलितं निःश्वसितं तस्मात्‌ ; खासिएणं काशितात्‌; किएणं wag; जखाश्एशं विठत- वदनस्य प्रबन्तपवननिगमो qf तस्मात्‌; उङ्डुएणं उद्गारितात्‌ ; वायभिसगोणं yoda पवननिगेमो वातनिसगेस्तस्मात्‌ ; भमलिषए शरोरशभ्चमेराकस्मिक्याः ; पित्तसुच्छाए पित्तप्रावष्या्मनाग्मोशो Wel तस्याः ; Teale ्रगसंचालेदहिं aaa लच्थालश्येभ्यो- SFU गात्रविचलनप्रकारेभ्यो रोमोद्मारिभ्यः ; gare खेलसं चाले सूच्छभ्यः खेलस्य श्चेखणः agri: ; भावनो fe वोययुक्द्रव्यतया अ्रन्तःसूच्छक्चेमसञ्चारः सभ्भवतौत्यतोऽन्यतोश्यते avafe fefsduafe qa efeaatteat निमेषादिभ्यः ; amt fe efeawrcrae सवेधा fate शक्यन्ते यदा एकस्मिन्‌ zai efefaan: fetiad शक्यते, शक्यते कर्तुमिति उच्छु सितादिभ्योऽन्यत्र कायोत्सगं करोमोल्येतावता faye भवति wansafe watts sua भ्रविराहिभ्रो इल मे काडस्छग्मो एवमादि भिरच्छंसितनिः श्लसितादिभिः पपूर्वोक्ञेराकारेरपवादरूपे-

ce ~ - ~~ ~~~ ~ nr ~-- ere -- ~ ee

१) खच्छास निरुणद्धि aifuqfeaisfa faua खेदया, सद्यो सरणं निरोचे auaae तु यतनया॥!॥

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११० योगशास्त्र

रभम्नोऽविराधितो भे कायोलर्मो भूयादिति सम्बन्धः ; भादि- गब्दादन्धेरपि यदा wafer वा ज्योतिः wufa तदा प्राव- रणायोपधिग्रणं कुवतो कायोखछगेभङ्कः नमु नमस्कारमेवा- भिधाय किमिति तदग्रहणं करोति येन axwt भवति | उश्यते- नाऽव्र नमस्कारेण पारशमेवाव शिष्ट कायोत्ग- मानं क्रियते, किन्तु यो यत्परिमाणः कायोत्सगे उ्नस्तावन्तं कालं प्रतीच्य तत KE नमसकारमपटित्वा पारयतो भङ्गोऽपरिसमाक्तेऽपि पठतो भङ्ग एव, aaa यत्परिमाणः काथोत्स्गस्तस्मिन्‌ पूं एव नमो भरिषहताणमिति वक्तव्यम्‌ तधा माजीरमूषिकादेः पुरतो गमनेऽग्रतः सरतोऽपि aR!) तधा चौरसंश्रमे राज. dah वा अखानेऽपि नमस्कारमुचारयतो भङ्ग; | तधा aes भरालनि परेवा साध्वादौ सहसा उच्चारयतो UT: | यदाडइः-- | "पगणि-उच्छिन्दिव्न-वोहिभ्रखोभाद्-दोषडक्ो वा। VMS भग्गो उस्सम्गो एवमाह १॥

WAM WTA इत्याकारा: कायोत्तगोपवादप्रकारा cay, तेराकारेवि यमानेरपि भग्नः aan विनाशितः, भग्नो- sam, विराधितो eave, विराधितोऽविराधितो भवेन्मम कायोत्सगः कियन्तं कालं यावदित्याह- जाव भ्ररिहताणं भग- aaa नमोक्कारेणं पारेमि यावदिति कालावधारषे, याव-

(१) अन्यु छद्य-बोधिकशोभादि Sezer ary BBA भग्न wan एवमादिभिः॥!॥

BAA; WAIT: | ९१९१

दतां भगवतां सम्बन्धिना नमस्कारेण नमो भ्ररिषहंताणमित्यनेन पारयाति पारं गच्छामि तावक्किमित्याह ताव कायं sew Mag wag अष्पाणं वोसिरामि nama कालं कायं देख खानेनोदस्थानेन हेतुभूतेन जडंस्थानमभिग्यद्य कायप्रसरनिषेधने- त्यथः, मौनेन वाग्निरोधल चशेन,ध्यानेन शमेन सददिषये चिन्तामभि- गद्येव्यधेः; Wad भ्राषत्ादामौयं कायं वोसिराभि a. aatfa कुव्यापारनिराकरभेन परित्यजामि भरन्येतु warefafa पठन्ति। श्रयमर्धः-पञ्चविंशत्यख्छासमानं कालं यावदूनं - wafer प्रलम्बभुजो निर्दवाकप्रसरः . प्र्स्तध्यानाऽनुगत- fastfa सथानमौनध्यानर््ियाव्यतिरेकेष क्रियान्तराध्यासहारेख व्युुजामि | पञ्चविंशल्युच्छासा्च चतुरविशतिस्तवेन wey नि- ward इत्यन्तेन चिन्तितेन पूयन्ते, पायसमा aera एति वचनात्‌ ATURE नमो भरहंतार्मिति नमस्कारपूवकवां पारयित्वा चतुर्विं शतिस्तवं aad पठति एवं सज्रिहिते गुरौ amad, गुरुविरहे तु yeaa मनसिक्लत्वा शरयीपधप्रतिक्रमणशं fara चेत्यवन्द्नमुत्कुष्टमारभ्यते, BATA तु Fae रिया पथिको प्रतिक्रमणशमन्तरेष्षाऽपि भवतः। wa नमस्कारेण नमो अरहंताणमित्यनेन | वपुरेव तवाचष्टे भगवन्‌ ! वौतरागताम्‌ हि.कोटरसंखेऽग्नौ तरभेवति area

इत्यादिना afanda जघन्या चेत्यवन्दना भवति।

TI तु प्रणाममाच्ररूपां जघन्यां चेत्यवन्द्नां acfe |

९१२ AIAN

Way पच्चधा-- | wary: शिरमो नाभे ETE: HUET | जयाणां नमने WIE: करयोः गिरसस्तथया १॥ चतुणां करयोर्जान्वो नमने ACE: | शिरसः करयोजन्वो; पञ्चाङ्गः THR AT २॥ मध्यमा तु खापनाइतस्तवदणग्डक्षेन सुत्या चैकया भवति | यदाह- 'नवकारेण Tea दंडगधथुदजुगल Afar धेया संपुखा उक्तोसा विहिणा खलु acu तिविषा॥ १॥ शत्युलक्टया चेत्यवन्दनया वन्दितुकामो विरतः arg: यावक भविरतसम्यगृदष्टिरप॒नवेन्धको वा यथाभद्रको यथोचितं प्रति- लेखितप्रमाजितस्यण्िलो भुवनगुरौ विनिवेगितनयनमानसः संवेगवेराग्यवशादुत्यन्ररो माश्चकष्ुको सुदश्ुपूषलोचनः भति- दुलेभं भगवत्ादवन्दनमिति ay मन्यमानो योगमुद्रया भस्वलि- तादिशु्णोपेतं तद्थीनुस्मरणग्भं ufuqacwaat पठति। तत्र भ्रयस्तिंगदालापका भालापकहिकादिप्रमाणाख विश्राम भूमिरूपा नवसम्पदो भवन्ति यदाद-- ष्टो fan चरति पर॑चादोत्रिभरचउरोयषशुन्ति faa a) सक्कथए नव dag तित्तोसं होन्ति भालावा॥ १॥

~~ -----~--------- --- --~ --~---------*=-"-----~-~

(1) wate जघन्या दग्डकस्तुतिबुगलाद्‌ azar Gar | aq etaer fafuat खलु वन्द्ना fafaut ate

(2) gtaaqatcaa: vy gts waTce भवन्ति mae |

शक्गास्तमे नव सम्पदास्तवस्तिषद्‌ भवन्ति आलापाः॥!

BAA: प्रकाशः | ६१९

एताच यथाखामं नामतः प्रमाणतय कथयिष्यन्ते | व्याख्या नमोलकं asad भगवंताणं तत्र नम इति नेपातिकं पदं yore, ` पूजा द्रव्यभावसषहोचः। तत्र करचिर'पादादिद्रव्सद्यासो द्रव्य- सङो चः, भावसहयोचसतु धिश्हस्य मनणो नियोगः, अस्त्विति भवतु प्रायेनेषा धर्मबोजमाशयविशुदिजनकलात्‌। णमिति वाका ABI! श्रतिशयपूजामहन्तोति भरन्तः | यदाडह-- | "श्ररहंति वंदणनर्मसणाडदं wets पूयसक्षारं। fafenad ufcer श्रता au वुञ्वंति॥१॥ सुगहिषाद्ः सत्रिशव् सुत्ये ॥५।२।२६॥ इति वत्तमानकालेऽठभ्‌ कथं वतंम(नकालत्वसिति वेत्‌. पूजारम्भस्याऽतुपरमात्‌ | एष एव fe mI वतमानकालो यत्रारब्धस्यापवर्गो नास्ति। तथा अरिहन- नादडहन्तः, श्ररयश्च मोहादयः साम्मरायिककमबन्धरेतवः, तेषा- मरोणामनेकभवगहनव्यसनप्रापगकारणानां हइननादरन्तः | तथा THEA, TAY घातिकमंचतुष्टयं येनाहतस्याकमनः सत्यपि स्रानादिगुणसखभावस्व घनसमूहस् गितगभस्तिमण्ड़लस्य विवस्वत द्व तद्गुणानामभिव्यक्षिने भवति तस्य इननाददेन्तः। तथा रह- wares: ; तथाहि--भगवतां निरस्तनिरवथेषज्नानावर- शादिकमेपारतन्तपाणां केवलमप्रतिहतमनन्तमह्कतं wat a | चास्ति, ताभ्यां जगदनवरतं qaanwam जानतां पश्यतांच

(१) खष्ेम्ति बन्द्न-नमखनाद्यह न्ति पूजासत्कारम्‌ fefgnaat ङा शङ्न्तस्तनो"्यन्ते

६१४ AUNTS

cee नास्ति, तस्माद्र खाभावादरन्तः एषु जिष्वरयेषु एषोदरा- fearzefefa सिदाति। sear भविष्यमानं ce एकान्तङूपो देशोऽन्तघ मध्यं गिरिगुहादोनां सवषेदितया were कस्याप्य- भावेन येषां तेऽरडोऽन्तरस्तभ्योऽरहोन्तमभ्येः | Waar Wee: लोणरागत्वात्‌ क्षचिदप्यासल्िमगच्छड्यः। धवा भरडद्भ्यो दरागहेषहेतुभूतमनोज्ञतरविषयसंपकेऽपि वौोतरागल्वादिकं खं स्वभावमत्यजङ्ाः। भरिषंताशमिति पाठान्तरं वा; aa wal. Frwy: | we q-- | ‘asfad पि कशं भरिभूयं Fix सयलजोवाशं | ad कश्ममरिशता भरिता aw वुचंति॥१॥ अरषहंताणशमित्यपि पाठान्तरम्‌ aa भररीहदृभ्योऽनुपजाय-

माभेभ्यः, Mead aay | -छह्नच्च -

दग्धे NA यधात्यन्तं प्रादुभेवति नादरः |

MANA तथा TT नारोहति मवाहुरः १॥

णाष्दिकासु WEA wie रूपत्रयमिच्छन्ति ; यदय-

मवोचाम -—“sarefa” ५८।२ १११॥ चकाराददितावपि, तेभ्यो- weet adifeafa नमःशब्दयोगाञ्चतुर्धी, “aad: षष्टो" ॥८।१।१११५ इति प्राललतसूव्राचतथ्थाः खाने षष्ठौ बहवचनं चा-

ee oe क, ee

१) wefawafy we कर्मा+रिभूतं भवति ceasing | तत्‌ क्मारिइन्तारोऽइन से नोच्यन्ते !

BAA: प्रकाथः। ६१५

देतग्यव च्छेदेनाऽ दहत्वख्यापनार्धेम्‌, विषयश्रइत्ेन ममस्कतुः फनलातिशयन्नापनाधं च। एते चाऽदन्तो मामाद्यनेकमेदा दति भावाहलम्रिग्रहाचेमाह भगवहयः-- ` भगोऽकन्नानमाहार्म्ययगोवेराग्यसुक्तिषु | खूपवोर्यप्रयने षडा धमं खर्ययोनिषु १॥

sfa वचनादकयोनिवजेमिह हादश्रधा wa सख faut येषां तै भगवन्तः, निन्दावजं भूम्या दिष्व्थेषु मतुः ; art तावद्रभेनिवासत्‌ प्रति भादोक्षातो मतिन्ुतावधिलक्षणं दीश्ागन्तरं त्वघातिकमचतुषटयस्षयाद्‌ मनःपर्यायन्नानसहितम्‌, afaaa चानन्तममन्तविषयं निःओेषभावाभावसखवभावावभासकं केवलन्नानम्‌ माहात्म्यं प्रभावातिशयः, तञ्च खवेकल्थाणकेषु नारकाणामपि - सुखोत्पादकत्ेन नित्यसन्तमसेष्वपि नरकेषु प्रकायजनकत्वेन गभनिवाघात्‌ प्रति कुलस्य धनादिवधमेना- ऽप्रणतसामन्तानां प्रणत्येतिमारिवैरोपडतिवजितराज्यक रै- नाऽतिहश्यनाहठटटि प्रशत्य॒पद्रवरहितजनपदत्वेन चलितासनसकल- सुरासुरप्रणतपादपद्मत्वन खाऽवसेयम्‌। २। any रागहेषपरोष- शोपसगपराक्रमसमुयमाकालप्रतिष्ठं यत्सर्वदा दिवि सुरसुन्द- रोभिः पाताले नागक ाभिर्मीयते सुरामुरनित्यमभिष्टुयते 121 qua मरत्रेन्द्रलच्छोमनुभवतामपि aa aa रतिर्नाम, यदा तु सवविषयत्यागपूवेकं प्रव्रज्यां प्रतिपद्यन्ते तदाऽखभेभिरिति, यदा तु Manag भवन्ति तदा सुखदुःखयोभेवमोचयोरौ- दासौन्धसिति विविधमप्यतिशायि भवति।

६१६ योगशास्त्र

यदवोचाम वोतरागस्तोतरे- यदा मरब्ररैन्द्रयौस्वया नाधोपभुश्यते यवर तत्र रतिर्मम farmed तदापिते॥ १॥ नित्यं face: कामेभ्यो यदा योगं was | अलभेभिरिति प्राच्यं तदा वेराग्यमस्तिते॥२॥ सुखे दुःखे al WF यदौदासीन्यमोशिषै | ` तदा पराग्यभेवेति aw नाऽसि विरागवान्‌ vgn इति isi मुक्ति सकलक्तेप्रहाष्लस्णा सनत्रिहितेवेति ५। ed gq | 'सव्वसुरा ae रूवं भअंगुहपमाणयं . fasfere | faqarigg as सोहए तं जहिंगालो १॥ दूति निद्ंनात्‌ fae सर्वातिभ्ायि। ६। Hi मेरोदेष्ड- saat ufenira छषरूपतां कतुं सामव्यम्‌ यते ; हि तव्काल- जाततजैव यौ महावीरेण WANE वामपादाक्रष्टन AT- usa: प्रकम्पितः ७। Waa: परमवोयंसमुल एकराविक्षादि- महाप्रतिमाभा वहतुः AYWATAAMAG CVT saat सुरजश्मनि तोधकरजग्मनि दुःखपङ्कमग्नस्य जगत उदिषीर्षातिश्रयवतौ < घो तिकर्मोच्छेदविक्रमावासक्षैवला- लोकसम्पन्तिः, भतिगयसुख सम्प्रचानुपमा १०। धर्मः पुन- CATHAY महायोगामको निञं राफलोऽतिश्रेयान्‌ ११ | र्ये तु

ne

(1) gegt वदि कपमङ्कहप्रमाखकं विदु बुः | लिमपादाङ्कष्ं प्रति MNT तदू TAHT ।॥

ठनोयः प्रकाशः | ९१७

भक्तिभरावनम््रतिदश्पतिविदितसमवसरणप्रातिषार्यादिरूपम्‌।१२। एवम्भूता एव प्रेक्षावतां स्तोतव्या दृत्याभ्यामालापकाभ्यां स्तोत- व्यसम्पदुक्ता |. AMARA हेतुसम्पदुच्यते-श्रादगराणं तिलय- राणं सयंसंबुह्ाणं-्रादिकरणशोला भादिकरणश्हेतवो वा ्ादि- कराः सक्रलनो तिनिबन्धनस्य श्रुतघमस्येति सामर््यीदम्यते सेभ्यः | यद्यपि सैषा दादशाषरो कदाचिन्रासीत्‌, न. कदाचिन्न भवति, कदाचिन्न भविष्यति, wae भवति भविष्यति चेति वचनषद्‌ नित्या seme; तथाप्य्थीपेक्षया नित्यत्वं TEAC REL तु waaay खुतधमीदिकरत्वम विशम्‌ एतेऽपि कोवन्यान सरापवर्गैवादिभिरनीर्धकरा wear अकत्खचये कैव- ल्याभावादिति वचनादिति तद्मपोहाधैमाड- तोयेकरेभ्यस्तौयते संसारसमुद्रोऽननेति AA त्च प्रवचनाधारघतुविधसङ्कः प्रथमगण- ud at, यदाषुः- "तिलं मन्ते! fad तिद्ययरे fad maar! परिहा ताव नियमा तिलं्ररे तिलं qu asad समणसंघे पठटमगणहरे वा, तत्वरणगोलास्तोथकराः। BAA are भवति, घातिकर्मक्ये भपघातिकर्मभिः कवस्यस्या- बाधनात्‌ एवं न्रानकंवस्ये तोधकरत्वमुपपद्यते, सुक्षकंवच्ये तु तोधकरत्वमम््ाभिरपि नेष्यते। एतेऽपि संदा शिवानुग्रहात्‌ कंचिद्ोधवन्त श्ष्यन्ते, यदाह महेशानुग्रहाद्‌ वोघनियमा-

विति तत्िराकरणाधमाह--सखयंसंवुरेभ्यः खयमालसना तथा-

wen we ce eee = ~ = ~~~ = ~ ee

(१) means: तीथं तोचेकरल्ीये गौतम! गरङलावच्िवमात्‌ Me: करस्ते पुगचतुरषषः FACT! प्रथमगखध्ररोव।। ङ्घ

६१८ योगशास्े

भव्यत्वादिसाममोपरिपाकात्र तु aden सम्यगविपयेयेष बुदा भवगततच्वाः खयंसंवहास्तेभ्यः। यद्यपि भवान्तरेषु तघा- विधगुरसन्रिधानायस्षबोधास्तेऽभूवन्‌, तथापि तोधेकरजग्मनि परोपदेशनिरपैक्ा एव qu, यद्यपि तोधथेकरजश्मन्धपि लो कान्तिकतिदशवचनात्‌ “aad fad पवन्त इत्येवंलक्षणाद्‌ eat प्रतिपद्यन्ते, तथापि वैतालिकवचनानन्तरप्रत्तनरेन्द्रया- व्रावत्‌ खयमेव प्रव्रज्यां प्रतिपद्यन्ते इदानीं स्तोतव्यसम्पद्‌ एव हेतुविशेषसम्पद्‌ यते-पुरिसोत्तमाणं पुरिससोहाणं पुरिसवर- Twi पुरिसवरगन्धद्योणं पुरि nat शयनात्‌ परुषा विशिष्टकर्मोदयथादिशिष्टसंखानववृशरोरवासिनः सत्वास्तेषा- qua: सषहजतधाभव्यत्वादिभावतः Bet पुरुषोत्तमाः; तथाहि--भ्रासंसारभेते पराथैव्यसनिन उपसजनौलतखा्ी उपचितक्रियावन्तोऽदोनभावाः संफलारभ्मिषो टढानुशयाः कतन्न- तापतयोऽनुपड तचिन्ता टेवगुरुषदमानिनो गख्मोरागशया इति। ख्वखवसमारचितमपि जात्यरन्नं समानमितरेण समारचितोऽपि काचादिरजात्यरनत्रौभवति। एवं यदाहुः सौगताः-नास्तोद क्चिदभाजन aa बति, सर्वे बुहा भविष्यन्ति षति च; तत्‌ प्रत्यक्षम्‌ एते वाद्नायंवादसत्यवादिभिः संस्छताचारयैभिष्य- निरपमानस्तवाची Tat होनाधिकाभ्यासु पमा सेति वचना सहावच्छेदाधमाड- पुरुषसिंरेभ्यः पुरुषाः सिंडा दव प्रधानाः

2 7

(१) भगवंस्तीथेप्रवत॑बत।

BAT: WHIT: | ११९

शो वधादिगुशभावेन पुरुषसिंहाः, यथा सिंहाः Warfequai fia: तथा भगवन्लोऽपि कमतुन्‌ प्रति शूरतया तदुच्छेदं प्रति क्रूरतया क्रोधादौोन्‌ प्रत्यसहनतया रागादौन्‌ प्रति वौययोगेन तपःकमे प्रति वोरतया ख्याताः, तथा एषामवन्ना परोषषेषु, भयमुपसर्गेभ्यः, चिन्ताऽपि इद्धियवगं, खेदः संयमाध्वनि, प्रकम्पो ध्याने, चेवप्ुपमा खषा तहारेण तदसाधारणगुणाभिधानादिति। एतै सुचारुगशगिष्येः सजानोयोपमायोगिन waa विजातोये- नोपमायां तत्सह यधमोपदया पुरुषत्वादयभावप्रा्िः यदाहइः- ते विङ्दोपमायोगी तदश्मापद्या azagqafafa तदयपोहायाडइ- पुरुषवरपुग्रोकेभ्यः पुरुषा वरपुररोकाणोव संसारजला- सङ्गादिना धमकनापेन पुरुषवरपुणडरोकाखि तेभ्यः, यथाहि पण्डरोकाण्ि og जातानि waa व्धिंतानि तदुभयं विहायो- परि वतन्ते प्रक्रतिसुन्दराण्ठि भर्वन्ति निवासो सुवनलद्छाः, श्रायतनं चक्तुरा्यानन्दस्य प्रवरगुणयोगतो विखिष्टतिथम्नरामरेः Qua सुखटहेतवो भवन्ति; तथा भगवन्तोऽपि waaay जाता दिव्यभोगजलेन वर्धिता उभयं विषाय वर्तन्ते, qecrarfana- योगेन निवासो गुणनम्बदः, Faq: परमानन्दस्य केवल।दिगुण- भावेन faaauat: Qua निऽत्तिसुखडेतवखच जायन्ते इति भिन्रैजातोयोपप्रायोगेऽप्यधेतो विरोधाभावेन यथोदितदोषा- ऽसमावः। यदि q विज्ातोयोपमायोगशेन तद्मीपन्तिरापाश्यते afe सिंहादिसजातौयोपमायोगे agai पश्त्वादोनामप्यापत्तिः स्यादिति एतेऽपि वथोत्तरं गुणक्रमाभिधानवादिभिः सुरगुरो-

९२० | ` योगशास्त्र

| विनयेर्शौनगुशोपमापूर्वकम धिकगुणोपमादह इष्यन्ते प्रभिधान- mara भअभिघेयमपि तदहदक्रमवदसदितिवचनादेतब्रिराषा- याद्‌ -पुरुषवरगन्धहस्तिभ्यः पुरुषा वरगन्धहस्तिम दव वरगज न्द्रा पुरुषवरगन्धषस्तिनः यथा गन्धदस्तिनां गन्पनेव तहेगविद्ा- रिणः शद्रगजा भन्यन्ते तदिति परचक्रदुभिक्षमारिप्रशतयः सवे एवोपद्रवगजा भमवतामचिन्तयपुख्यनुभावानां विदहारपवनगन्धादेव भज्यन्ते, चेवप्रभिषानक्रमाभावेऽभिक्ैयमपि क्रमवदसदिति वाच्यम्‌ | सवगुणानामेकत्राऽन्योऽन्यसंवलितल्वेनावसथानात्‌, तेषां यथारुचि सोत्राभिधाने दोषः। एवं पुरुषोक्षमलत्वादिना प्रका- श्ण स्सोतव्यसम्पद एव हेतुविगेषसखम्मत्ततोया ।३। इदान स्तोत- व्यसम्पद एव साभन्येनाप्योगसम्पदमाद-लोगुन्तमाषं लोग area लोगदहिभ्राणं Matar लोगपल्नोश्रगराणं-समुदायेष्वपि प्रहताः शब्दा भ्रनेक्षधा श्रवयबेव्वपि प्रवतन्ते दति न्धयायाद्यद्यपि लोकशब्देन तत्वतः पञश्चास्तिकाया उच्यन्ते, धम्रदौनां afe- gaat भवति यवर तत्‌ ad aca: सह लोकस्तहिपरौतं शलो काख्यमिति वचनात्‌ तथापीह Madea भव्यसश्चलोक एव परिष्द्मते, सजातोयोत्वषे एवोनल्षमलोपपन्तेः। भन्धधा प्रभव्यापि्या सर्वभव्यानामयप्युत्तमत्वावरेषामतिशथय SH: स्यात्‌ | तत भव्यसश्वलोकस्य सकलकष्यागनिवन्धनतया wyaqura- AAA MANTA, MAAR, बह लोकशब्देन बीजाघानादिना dara रगादयुपद्रेभ्यो camay विशिष्टो भव्यलोकः. परिग्डह्ते अस्मित्रेव माचलत्वोपपन्तः, योगक्तेमललब्राव

ठतोयः प्रकाशः। ६२१

दति वचनात्‌, तदिह येषामेव बोजाघानोद्धेदपोषणेर्योगः, 3a तस्तदुपदरवरच्षशेन ठे एव भव्या लोकशब्देन waa, चेती MAR सकनलभव्यसस्वविषथे कस्यचित्सम्भवतः सर्वेषामेव मुक्ति- प्रसङ्गा त्तस्मादुक्ञस्येव लोकस्य नाथा इति. तया लोकहितैम्यः, लोकशब्दम una एव साव्यवहारिकादिमेदभिन्नः प्राणिवर्गा ग्टद्ते, तस्मे सम्यगदशंनप्ररूपकारक्षगयोगेन feat लोकहिता, तथा लोकप्रदोपेभ्यः, wa लोकशब्देन fafae एव Quaragfi- भिष्यात्वतमोऽपमयनेन यथां प्रकाश्ितन्ञेयभा३ः dfeata: परि- wma तं प्रत्येव भगवतां प्रदोपत्वोपपत्तेः। नद्यन्धं प्रति प्रदोषः प्रदोपो नाम तदेवंविधं लोकं प्रति प्रदोपा लोकप्रदोपाः, तधा लोकप्रद्योतकरेभ्यः, इह लोकशब्देन विशिष्टचतुदेशपूवंविज्ञोकः परिग्टद्यते, ada awa: प्रद्योतकरत्वोपपत्तेः, प्रयोतं सप्त प्रकारं जौवादिवतुतचछं anaiaacre विशिष्टानाभमेव पवंविदां भवति, तेऽपि षट्‌स्थानपतिता एव यन्त, तैषां सवेघामपि प्रद्योतः सश्चवति, प्रोतो fe विशिष्टतक्वसंवेदनयोग्यतासाच विश्िष्टानाभेव भवति। तेन fafueaqengs विज्ञो कापेचया प्र्ोतकरा एवं लोकोत्तमलत्वादिभिः पञ्चभिः want: पराधै- ATU: स्तोतव्यसम्पदः खामान्येनोपयोगसम्पशच्तुर्थौ ist इटानो- मुपयोगसम्पद एव हैतुसंपदुच्यते। भभयदयाशं चक्ुदयाणं मम्गदयाणं सरणदयाणं बोहिदयाणं- इद wad aaa इष परत्ोका-ऽऽदाना-ऽकम्मादा-ऽऽजोव-मर ण-क्षाघामेदेनेतग्रतिपक्ततो-

ऽभयं fafavaiaa: खार्यं निःग्रेयसे धमभूमिकानिवन्धनभूतं |

GAR AANA

तिरित्यन्धेषां तदिलयंभूतमभयं quaaanaefauafaga- लात्‌ स्वंधा पराधकारित्वाद्‌ भगवन्त एव॒ ददतोत्यभयदा- स्तेभ्यः ; तथा ays: दह चन्तर्विंगिटमामधमरूपं तच्वाव- बोधनिवन्धनं wats तच्च श्रत्यन्येषां तदिषहोनस्याचनच्त- अत इव वसुतच्वदशनायोगाद्‌, मागीऽनुसारिणो खषा सुखेनावाग्यते सत्यां चास्यां away भवति aqaw- दगंनम्‌, तदियं धमकल्प मस्यावस्यबौजनूता भगवहय एव भव- तोति चचुदेदतोति चच्चदौः; तथा मागदेभ्यः, इह मामां भुजङ्गम नलिज्ञायामतुल्यो विशिष्टगुखथानावास्भिप्रवणः खरस वादो स्षयोपशमविगेषोऽयममुमन्ये yaaraaa ufaaafa यथोचितशगुशष्यानावासिमीगविषमतयथा चेतःख्वन्तनेन प्रति- वन्धो पपत्तेः, AME भगवह्य एति मागं ददतीति मार्गदाः; "मधा शरणदेभ्यः, दृह शरणं भयार्तन्रागं तच्च संसारकान्तार- गतानामतिप्रवन्रागादिपोडितानां समाण्वासनखानकल्पं aw- चिन्तारूपमष्यवसानं faafetaaqafaa सति तक्लगोचराः WITTY -ग्रहण-धारण- विन्नानो-हाऽपोह - तत्वाभिनिवेशाः प्रन्ञागुश्णा भवन्ति। तत्वचिन्तामन्तरेण तेषामभावात्‌ सम्भवन्ति तु तामन्तरेणाऽपि तदाभासा पुनः खाथैसाधकत्वेन भाव- साराः, तत्वचिन्तारूपं शरणं भगवङ्का एव भवनाति शरणं ददतोति acta; तथा बोधिदेभ्यः, ce वोधिजिन- प्रौ तधर्मावासिः, बयं पुनययाप्रत्त-अपूवे-अनिव्रत्तिकरण-

वयव्य।पाराभिग्यद्गयमभिन्रपूवग्रन्िभेदतः प्रशमसंबैगनिवेदानु-

BALA! प्रकाशः। ९२१

कम्पा स्तिक्याभिव्यक्तिलक्षणं त्वादान सम्यग्दशंनमुच्यते तिन्नपिरित्यन्येषां पञ्चकमप्येतदपुनवेन्धकस्य, gaat यथो- वितस्यास्याभावादेते यथोत्तरं पूवपूवफलभूलाः, तथा हि-भ्रभयफलं चकुः, aad मागे; मागफलं शरणम्‌, शरण- फलं बोधिः सा भगवद्धा एव भवतोति बोधि ददतोति योधिदाः | एवमभयदानचन्रुर्दानमागंदानशरणदानवोषिदानेभ्यो यथोदितोपयोगलसिङेशुपयोगसम्पद एव हेतुसम्मदुक्षा ; साम्प्रतं सो नव्यप्तप्मद एव विशेषोपयोगसम्पदु यते-धम््मदयाणं धमम- Saat धश्मनायगाणं धम्मसारहोणं धम्मवरचाउरन्तवक्ष वटोणं- ध्मरेम्यः, इड ध्मखारिष्रधर्मा wea यति-खावक- सम्बन्धिमेदेम tat यतिधमः सवसावद्ययोगविरतिनलक्षणः; खावकधमंसु रैशविरतिरूपः, चायसुभयरूपोऽपि भगवह्धा एव हेत्वन्तराणां सद्वावेऽपि भगवतामेव waatqaifefa धर्मं ददतोति धर्मदा, धमदलत्वं धर्मरेणन।दारेणेव भवति नान्यधे- त्या --धमेदेशकेभ्यः, धर्मं प्रसुतं यधाभव्यमवस्यतया देशय- न्तीति धमदेशकाः, तथा धर्मनायकेभ्यः, घर्मोऽधिक्ञत एव तस्य AAR, ख।मिनस्तदभशौोकरण्भावात्‌ तद्लकषीऽवापेस्सग्रक्षष्टफल- भोगात्‌ तदयाघातानुपपत्तेख धमनायकाः, तथा धर्मसारथिभ्यः WAM धमेस्य खधपरापेक्षया सम्यक्‌ प्रवत॑नपालनदमनयोगतः सारथयो धमषारथयः, तचरा घर्मवरचतुरन्तचक्रवतिभ्यः, धमः vga: a एष विकोटिपरिशडितया सुगतादिप्रणोतघधमचक्रा- पेखया उभयलोकहितल्वेन चक्रवत्या दि चक्रापेक्या वरं प्रधानं

१२४ | ss Papas

` चतां गतीनां नारकतियेग्नरामरलक्षणानामन्तो यस्मात्‌ `

तच्चतुरन्तं चक्रमिव wi रौद्रमिष्यालादिभावध्रलवनात्तेन

„. वतन्ते इत्येवं गोला, धमेवरचंतुरन्तचक्रवतिनः चाउरन्तेति सम-

चयादिल्वादात्वभेवं धर्मदत्वादिभिः पञ्चभिः स्तोतव्यसम्मदेव विगे- घोपयोगसम्पदुक्षा। इ्दानों ad पश्यतु वा मावा त्वमिष्टं.तु पश्यतु, कोटसंख्यापरिन्नानं तस्य नः क्षोपयुज्यते१॥५१॥ दति सवेदशं नप्रतिक्चेपे गे्टतस्वदशंनवादिनः सौगतान्‌ प्रतिखिपति. अष्यह डिहयवरना णदं सणधराशं विष्मषृकठमाशं- भप्रतिहते सवः

वाःप्रतिर्बलिक्ते वरे `ल!यिकत्वात्‌ प्रधाने ज्नामदश्ने विशेष-

सामान्धावबोधरूपै धारयतीति भप्रतिडतवरन्नानदशनधरास्तेभ्यः,

अप्रतिहतवंरन्नानदशेनधरत्वं निरावरणत्वेन सवन्नानदशन-

सवभावतया च, च्रानप्रहणं चादौ सवा. aaa, .राकारोप- यो गोप्रयुक्ृस्यति ज्न।पनाधमिति एते कञिन्तच्चतः खच्वव्या- SUMMA एवेष्यन्त यदाहइ- | 1. . क्ानिनो wave wale: परमं पदम्‌ | pee

, गल्या गच्छन्ति भूयोऽपि भवं तोधेनिकारतः + १॥

तथा-- |

` ~; . दणग्धेन्धनः पुनरुपेति भवं-प्रमथ्य

निवीणमप्यनवधारितमो रनिष्ठम्‌ |

~ .:.. भुक्तः खयं BATS पराधशूर-

“oh `. स्तवच्डासनप्रतिहतेष्विह मोषराज्यम्‌ + १॥ इति

SANA: प्रकाशः | ६२५

तत्रि ्यथ माइ - व्याठत्तच्छद्मभ्यः, छादयतोति छद ज्ानाव- द्वादिघातिकमे तदन्धयोग्यतालसणो भवापिकारय, व्याहरन्तं निहत्तं ey येभ्यस्ते तथाविधाः, asm संसारे भपवगः Me जग्मपरिग्रह द्त्यसत्‌, हेत्वभावात्‌ तोधनिकारजन्मपरा- भवो ₹तुस्तषां मोहाभावाद्‌ मोहे वा ्रपवमे इति प्रलापमावभेव- सप्रतिहतवरन्नानद्शनधरत्वेन व्याठत्तच्छश्मतया स्तोतव्यसम्द एव सकारणा BEG! एतेच कणिता विद्यावादिभिः परमा- येतो जिनादय एषेषयन्ते श्ान्तिम।वरमसदहिद्येति वचनात्‌ एत wate अह-जिणाशं जावयाशं रागारिजेटल्ाख्जिनाः, नच रागादरोनामसक्वं प्रतिप्राख्यनुभवसिष्त्वात्‌ न॒ खाऽजुभवोऽपि भ्रान्तः सुखदुःखादयनुभवेष्वपि जरान्तिपुसङ्गात्‌, एवं जंयसम्भवा- ज्जिनत्वमविरङम्‌ एवं रागादोनेव सदुपदेशादिना जापयन्तोति जापका; तेभ्यः, एतेऽपि कालकारणवादिभिरनन्तथिष्येभीवतो- ऽतो्णीदय waar कान्त एव are जगदावतयल्ि इति वचनात्‌ एलत्रिरासायाह -तिख्ाणं लाग्याण-सम्यगन्नानदशनचारित्रपो- तेन varia तोणंवन्तः तीर्णः, चेषां atalat पारगतानः- मावतः सश्भवति तद्वाव मुक्ष्यसिहेः, एवं qm: पुमभेवे भवतोति तीणलसिहिः, एवं तारयन्ति अन्वानपीति तारका- स्तेभ्यः, एतेऽपि परोस्न्नानवादिभि्मीमांसकमेदेरबुहादय एवे- श्यन्ते भप्रत्यचा हिनो बुद्धिः प्रत्यक्तोऽथः इति वचनात्‌ एतदयव- च्छेदाधेमारट- वुहाणं Neary - भन्नाननिद्राप्रसुपे जगत्यपरोप- देभेम जोवाजोवादिरूपं ad adfafeaa mia बुवन्तो

Of

६२६ योगशास्त्रे

काः, चाखंविदि तेन च्रानेनार्धन्नानं सम्भवति। चदृ्प्रदौपो awa प्रत्यक्तोकरोति, चेद्दरियवदससंविदितस्या$पि च्रानखा- येप्रत्यक्तोकरण्मिद्दियस् भावेन्द्रियत्वात्‌ तस्य wdfafea- रूपत्वात्‌

यदाह-- अप्रत्यचोपलग्भस्य नार्थ॑टष्टिः प्रसिष्ठएति

एवं fat बुदत्वमेवमपरानपि बोधयन्तोति बोधकास्तेभ्यः, wisi जगत्वतृलोनमुक्ञवादिभिः सन्तपनविने्ेस्त्लतोऽमुक्षादय एवेच्यन्ते, ब्रद्मवद्‌ ब्रह्मसङ्कतानं fafafefa वचनात्‌ एतत्रिरा- विकौर्षयाऽऽह-मुत्ाणं मोग्रगाणं-चतु्गतिविपाकचित्रक्मबन्ध- मुक्त्वान्‌ मुक्ताः aaa fafsaral इत्यथः, जगत्वर्तरि लये fafemuad सश्भवति, जगल्वरणेनः क्रतक्षत्यत्वायोगात्‌ होनादि- करणे रागहेषोऽनुषङ्गः, चान्यत्राऽन्यस्य लयः सम्भवति एक- तराभावप्रसद्भात्‌ एवं जगत्कतरि लयाभावाद्‌ सुक्नत्वसिहिः, एवं मो चयन्दन्यानपोति मोचकास्तेभ्यः. एवं जिनलजापकत्वती त्वतारकत्वबुदहत्ववोचकत्वमुक्तत्मोचकत्वंः खपरद्ितसिदेराम- ठल्यफलकनतेत्वं॑सखम्मदष्टमो ।८। एतेऽपि बुहियोगन्नान- कादिभिः कापिलेरसरवश्रा भसवेदभिन ete वद्धयध्यवसितमधे ंरुषञ्चतयते इति वचनात्‌ एतन्निराकरणायाह -- सव्वन्नूणं शव्वदरिसोणं- से जानन्तीति waa: सथं पश्यन्तील्येवंभोल; खवदर्थिंन; ततस्भावल्े निरावरणत्न।त्‌

ठकतोयः प्रकाशः | ६२७

say faa: ataigasia: प्रक्षत्या भावश्हया | चन्द्रिकावच् विज्ञानं तदावरणमभ्चवत्‌ ii १॥

करणाभावै कर्ता तत्फलसाधक शत्यप्यनेकान्तिकम्‌, परनिहित्त्नवकस्य तरण्ड काभावेऽपि श्नवनदभेमात्‌ दति बुहि- लक्षणं करणमन्तरेणाऽपि sia; सवेन्नत्वघव॑दटि्ठसिदहिः। अन्यस्त्वाह -क्नानस्य विशेध विषयत्वाद्‌ दशंनस्य सामान्धविषय- त्वात्‌. तयोः सवीधेविषयत्वमयुक्गं तदुभयस्य सर्वारैविषयत्वादि- त्युच्यते नहि सामान्यविशेषयोर्भेद एव, किन्तु ते एव पटाः समविषमतया संप्रन्नायमानाः सामान्धविपरेषश्यब्दाभिधेयतां प्रति- पद्यन्ते तत तै एव न्नायन्तेते एव दृश्यन्ते इति युक्तं च्ान- दभनयोः सवीर्धविषयत्वमिति। ननु waa विषमताधम- fafuer एव गम्यन्ते समताधमविशिष्टा अपि eatin खच समताधर्मविशिष्टा एव गम्यन्ते विषमलताघर्मविचिष्ा श्रपि। ततव स्नानदगेनाभ्यां समताविषमतालक्षणघर्मदयाऽग्र- हणाटयुक्षभेव तयोः सर्वाधविषयत्वमिति न, धर्मधर्मिणोः सर्वधा- भेदानभ्युपगमात्‌ ततश्चाभ्यन्तरोक्षतसमताख्यधमौण एव विषं- मताधमविशिष्टा waa गम्यन्ते श्रभ्यन्तरोक्ततविषमताष्य- धमण एव समताधमविशिष्टा दर्शनेन गम्यन्ते दति न्रान- दशचनयोनैऽसर्वी्धविषयत्वमिति wen: सर्वदर्थिनखच तेभ्यः, एते सवगता ादिभिर्मक्नते सति fare waa | यदास्ते —“qan सवत्र तिष्ठन्ति व्योमवत्तापवजिताः” इति।

श्रेय योगशास्त्रं

तत्चिराकरणायमाह- सिवप्रयलमर्‌श्रमणंतमक्ययमव्वाबाशमपुश- ufafa fafenearaad sit daar --शिवं wataga- रहितत्वात्‌, weet स्वाभाविकप्रायोगिकचलनक्रियारडितत्वात्‌, परणं व्याधिषेदनारडितं तच्िबन्धनयोः शरोरमनसोरभावात्‌, अनम्तमनन्तज्नानविषयलयुक्लात्‌, wad विनाशकारण्ाभावात्‌, अव्यावाधम कमत्वात्‌, TACT, पुनराषठत्तिः संसारेऽवतरो यस्मात्‌ सिदिगतिनामघेयं सिद्यान्ति fafearat wart जन्तव इति fafeatarataaaa सेव गम्यमानलाहतिः, fafe- गतिरेव नामधेयं यस्य. तत्तथा, wa fasafafafa खानं व्यवद्ारतः सिदिकते्रम्‌ यदाहुः "इड gfe urn खं तदय- aqu fans इति। निचयतसु खस्ररूपभेव सवं भावा भाभाव तिष्ठन्तीति वचनात्‌, विशेषणानि faqauftaaa aafa मुक्ञामन्येव भूयसा सश्चवन्ति तथापि खानखानिनोरमेदोपच्वारा- देवं व्यपदेशः, तदेवं विधं खानं सम्प्राप्ताः सम्यगथेक्कमविष्यत्या स्वङूपगमनेन परिशामाम्तरापश्या प्राप्तास्तेम्यः, fe विभूनाभेवं- faumfaawa:, सवगतत्वे सति सट कशभावत्वात्‌, नित्वानां चेकङूपतया waar तदावा्ययस्य नित्यत्वात्‌ wa: सेव्रतो- ऽसर्वगतपरिणामिनाभेवैवं॑प्रात्तिः awafa , भत एव काय- wana सुखितं वचनं तेभ्यो नम इति क्रियायोगः एवंभूता एव प्रे्तावनां नमःकारादहा Wate नमस्कारो

(1) ue शरोर्न्यङ्घा तत गत्वा सिध्यति।

ढनोयः प्रकाशः | ६२९

मध्यव्यापोति जितभया waa एव नान्ये इति प्रतिपादयितुसुप- संङ्रतब्राह- नमो faurd जिप्मभय्राणं-नमो जनेभ्यो जितभयेभ्य ¶ति तदेवं सव्वणं सव्वदरिसोणमित्यत भारभ्य नमो faud जिग्रभयाणमिल्येवमन्तेस्तिभिरालापकेः प्रधानशुणाऽपरिख्यप्रधानः- HAAS सम्पन्रवमो 121 WT सुतिप्रस्तावानब्र पौमरुक्य शद करणोया। यदाडइ- 'सञ्छाय-ज्पराण-तव-श्रोसहेसु SITT धद्-पयाशेसु | सम्तगुणकित्तपेसुयन होन्ति पुशरुष्तदटोसाभ्ो॥ १॥ एताभिनवभिः eax: प्रशिपातदण्डक sea, तत्पाठा- नन्तरं प्ररिपातकरणाल्निनजश्मादिषु खर्विमानेषु oust: पूवेमपि शक्रोऽनेन भगवतः स्तौतोति शक्रस्तवोऽप्य्यते, wer way भावाषदिषयो भावाददध्यारोपाश्च खापनार्हतामपफि परः पठ्यमानो दोषाय प्रणिपातदर्डकानन्तरं चाऽतोतामागतः वतमानजिनवन्द्ना्थं केचिदेतां गाथां पटन्ति-- भजे अर ais faa & भर ufaaifae wing काले। संपद्‌ भर azatu सव्व fafaea वंटामि॥ १॥ सुगम्म चेयम्‌ ततश्चोयाय सथापनादहन्द्ना्थैः जिनमुद्रया श्ररिष्ंतचेश्याणमित्यादिसूवं पठति। seat yatmaearet

(१) खाध्याव-ध्यान-तप-ओषचेधूण्देश-स्तुति-प्रदानेषु | शहूमाहीतमेषु भवन्ति पुनर्क्रटोषास्तु #!

(श) ये चातोताः लिङा ये भविष्यन्त्यगागते ara | सम्पति चवेलमानाः सर्वान्‌ लिविचेन बन्दे »

६२० ANANTH

चैत्यानि प्रतिमालक्तणानि परषचेत्यानि - चिन्तमन्तःकरणं तस्य भावः कम वा वण्टृढादितात्‌ खरि चेत्यं वहुविषयत्वे चेत्यानि aaiseai प्रतिमा fe प्रशस्तममाधिचिन्तोत्पादकल्वादश्चेत्यानि भयन्ते तैषां किं वन्दनादिप्रत्ययं कायोत्सगं करोमोचि सम्बन्धः- कायस्य WY san क्ताकारस्य स्थानमौनध्यानक्िया- व्यतिरेकेण क्रियान्तराध्यासमधपिक्षत्य परित्यागस्तं wifi वंदवन्तिभ्राए-वन्दनप्रत्ययं वन्द्‌्नमभिवादनं प्र्स्तकाय- वान नःप्रहत्तिरित्यथः तत्‌प्रत्ययं तचिमित्तं कथं नाम कायो- कगौदेव मम वन्दनं स्यादिति वक्तिभ्राए द्त्याषत्वास्षि्भेवं सवत्र द्रष्टव्यम्‌ तथा पूभणवत्तिभ्राए yaad पूजन निमित्त पूजनं गन्धमाल्य दिभिरभ्य्चनम्‌, तथा सक्वारवत्तिषाए सत्वार- wad सत्कारनिनित्तं सत्कारः प्रवरवस्त्राभरणादिभिरभ्यचेनम्‌, नतु ad: पूजनपत्कारावनुचितौ द्रव्यप्तवत्वात्‌; अ्रावकस्य तु साचात्पूजाषत्कारकतः कायोत्सगेदारेण तत्‌प्रा्ना निष्फला, उष्यते, साधोदरव्यस्तवप्रतिपेधः कर मधिक्षत्य पुनः कारणानु- मतो, यत उपरटेशदानतः कारखसद्भावो भगवतां पूजाषत्कार- दश्यनात्‌ प्रमोदेनानुमतिरपि | यदादड-- 'सुव्वद्म्रवद्ररिसिणा कारवणं fa 9 aufafaag | वायगगन्येसु ACT भागया STU VA et

ae

(१) सत्रतिकश्व्छरधिंष्वा कारणमपि चाचुषितमदय। VIET तथा खागता रेन Stns

SAA: प्रकाशः | ६२९१

श्रावकसतुं सम्पादयन्नपि एतौ भावातिशयादधिकसम्ादनाथे पूजासत्कारो प्राथेयमानो निष्फलारः, तथा warfare सद्मानप्रत्ययं सश्माननिमिन्तं सन्मानः सुत्यादिभिर्गुशोच्रतिकरणं मानक्षप्रोतिविवेष इत्यन्ये; रथ वन्दनादयः किंनिमिक्ल- faary - बोहिन्ाभवत्तिग्राए-वोधिलाभोऽदद्मणोतधमीवािस्तत्‌- naa afafad बोधिलाभोऽपि fafatanfaure—faea- सम्गवत्तिभ्राए-जम्माद्युपसगौभावेन निरुपसर्गां aaa सच्रिसित्तं ननु साधुश्रावकयोर्वोधिलाभोऽस््येव तकिं सतस्ख्य maa Ruan मोक्तोऽप्यनभिलषणोय एव, saa facaaterana बोधिलाभस्य प्रतिपातस्श्भवाद्‌ waat 4 तस्याच्थमानत्वात्रिरूपसर्गोऽपि तारेण wera एषेति qalsaat- रपन्यासः ; श्रयं Aaa: क्रियमाणोऽपि खहादिविकलस्व नाभिनलतितायेप्रसाधनायाऽलमित्याद-सदाए Awe चिरए धार- WIT भ्रणष्येाए agamic ठामि काठसमं-- गहा faara- मोहनोयक्षमस्योपश्रमादिजन्योदकप्रसादकमण्िवचतसः प्रसाद- जननो तया waar a तु बलाभियोगादिना, एवं मेधया जडष्वेन भधा सच्छास्रग्रहकशपटुः पापन्ुताऽवन्ञाकारो Wars: दणोयत्षयोपशम जचित्तधर्मः, war मेधया मर्यादावर्तितया नाऽसमकनसत्वेन एवं एत्या मनलःसमाधिलस्षण्या a रागदेषादया- कुलतथा एवं धारणया भङहंहशाविस्मरणङूपया तु AEA तथा एवमतुप्रेलयाऽङदुणानामेव मुडर्मुहरलस्मरयेन, तद कल्येन वधंमामतयेति चहादिभिः प्रत्येकमभिसम्बध्यते श्रहादौनां क्रमो-

RR MATA

प्रच्चासो लाभापेललया हायां fe सत्यां Aur aga शतिस्ततो धारणा तदन्बनुप्रक्ा afecararaa तिष्ठामि करोमि कायो- at ननु प्राक्करामि कायोक्षगेमिल्युक्लं aad तिष्टामोति किमयसुयते ?, सत्यं सत्धामोप्ये सहव्मत्ययो भवतोति करोनि करिष्ामि इति क्रियाऽभिसुख्यं qaqafaert लासब्रतरल्रात्‌ ` क्रियाकालमिष्टाकालयोः कथच्िदमेदात्‌ fasrerarefafa fai सर्वथा तिष्ठामि arated नेत्याह - अनत्रयजससिएणमित्यादि- Mea पूवं कायोकगखाष्टोच्छासमाव्रो त्वत्र ध्येयनियमो- ऽस्ति कायोव्छगौन्ते यदेक एव ततो नमो अरिहंताख्मिति नमस्कारे पारयित्वा यत्र चैत्यं वन्दनां कुवश्नस्ति तत्र यख भगवतः ufafed खापनारूपं aw ofa पठति भध बहवः ससत एक एव ofa पठति, भन्ये तु कायोत्सगखिता एव Tela यावत्‌ सुतिषमासिः , ततः सर्वेऽपि नमस्कारेण पारयन्तोति तद- amt तस्याभ्ेवावस्पिष्ां ये भारते ad Arad भरभूवन्‌ सेषाभेवेकसेवरनिवापिनामाखनत्रोपकारित्वेब कौ)तनाय चतु- fanfaad पठति, पठन्ति वा तथा- लोगस्य उच्नो भरगरे wafaaat faz |

` अरिष्ंते faunal चउवोसंपि केवलो ue

अरिषत इति विशेष्यपदम्‌ भेत उक्निवचनात्‌, कौत. fat नामोश्चारशपूवकां स्तोष्ये, तै राज्यादयवख्यासु दव्यान्तो भवन्तोति भावाहे्छप्रतिपादनायाद़् --केवलिन उत्पन्रकेवन्त-

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Tattva Cintamani Didhbiti Prakas, Faso. 1-5, @ /10/ each ies Yattvarthadhigama Sutram, Fasc. 1-3 @ /10/ each ... ००० , , ५० Tirthacintamoni, Fasc, 1-38, @ /10/ each a ae ००१ Trikfilgda-Magdanam, Fasc. 1-3 @ /10/each = ,.. तः Tul'si 8४881; Fasc. 1--6@_/10/ each —... Bee wa ate « Upamita-bbava-prapaiica-katha, Faso. 1-2, 5-13 @ /10/ each... ००९ Uvasngadas&o, (Text and English) Faso. 1--6 @ 1/- each eis ०५ Vallala Carita, Fasc 1 @ /10 vas ००७ es Varga KriyS Kaumudl, Fasc 1-6 @ /10/each ` ... | pate + a “Vayu Purdna, Vol. I, Fasc. 3--6 ; Vol. If, Fasc. 1--7,@ /10/ each ०० Vidbira P&rijata, Fasc. 1-8 Vol- 11. Fasc. I @ /10/ each nee ००

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Tibetan Series

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५१ "५." Nepalese Buddhist Sanskrit Literature, by Dr. R. L. Mitra, 5.

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. . N.B.—AI Cheques, Money Orders, &c. must be made payable to the ° “Treasurer

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Advaita Brahma Slddhi (Text), Faso. 1-4 @ /10/ each ‘Advaitachinté Kaustubha, Fasc. 1-8 @ /10/ each .-. ‘Agni Purana (Text), ॥१५४५.1--14 @ /10/ 96), ` - bes 7 Aitareya Aranyaka of Rig-Veda (Text), 2--4 @ /10/ each

sitardya Brihmaya, Vol. [, , Fasc. 1-5; Vol. 11, , ७५०५. 1 5; Vol UL,

+ Fasc. 1-5, Vol. IV, Fasc. 1-8 @ /10/ each | wAitereya 1060114 ०० (व ‘Amarikosha, 186. 1—-2 mee, > an es ‘* Anu’ Bhashyam, (1*6>८), Fage. 2-5 @ /10/ each mAnumana Didhbiti Prasarini, 1०१96. 1-3 @ /10/- -

(व्व of Sandilya (English), 1५86. 1 @ 1/

basrik& Prajhiptiramita, Fasc. 1-6 @ /10/ each uw” ~ tsAtharvana Upanishadas (lext), Fasc. 1-6@ /10/ ८०५१ = as

A tinadtattvaviveka, ९०86. 1--2 Avadhna’ Kalpalat&, Sans. and Tibetan) Vol. ), Fasc. 1-18 ; Vol. 11

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"146101४0 Bhatti, Vol. 1, Fasc. 1-2, Vol 11, Fasc, 1 @ /1(/ ०१५ ~ ...

Hardié and Historical Survey of Rajoutana ‘A Descriptive Catalogue of

: Bardic and Historical Manuscripte. Seo. I, Prose Chronicles, Vart |

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Bardic and Historical Survey of Rajputana VacanikaA itithora Katana

. Singhaji ri Mahesadisdta ri Kluriyé Joga ri Kata, Part 1, Dingala Text

Bauddhastotrasangraha

Baudhayana S'rauta Stra, Fasc. 1-3; Vol. II, Fasc 1-5; Vol. IIL, Fasc. 1

@ /10/each ... : ; Bhainati (Text), Faso. 1--8, © /10/ ench Bhaisavritty ae Dipika Vol. 1, Fasc. 1-6; Vol. 2, Fano. 1--2, @ /10 each Bodhiearydvatara of Cantideva, Fasc. 1-7 @ /10/ each Brahma Sutras (English), Wasc. 1, @ 1/ Byhadddvat&i Fasc. 1-4 @ /10/ each... Brhaddharma Purfiga Fase 1-6 @ /10/ each VYatadiganl, aso. 1-2 @ /10/ each ' *Cutalogue of Sanskrit Books and MSS., Faso. 1-4 @ 2/ each ... Yatapatha Brdhimana, Vol J, Fasc. 1-7; Vol 11, Fase. 1-33 Vol. IU Faso, 1-7 ; Vol. ४, Faso. 1-5 @ /10/ each

Ditto Vol. VI, Faso. 1-3 @ 1/4/ each

Ditto Vol. VII, Fasc. 1-5 @ /10/ . Ditto Vol. 1X. Paso. 1 - eens Prajhadparamita Port, 1. Fasc. 1--18, Part 11, Fase. 1, @ /1t/ ou o> *

*Caturvarga Chintémani, Vol. II, Fasc. 1-25; Vol. 111. Part | ४५५५. 1-18. Part If, Fasc. 1-10; Vo}. 1V. Fasc. 1-6 @ /10, each Ditto Vol. IV, Fasc. 7 @ 1/4/ each Ditto Vol. 1V, Fase. 8-10 @ /10/ #Chandah Sutra (Text), Fasc. 1--8, @ /10/ each Ylockavartika, (Kuglish) Fasc. 1-7 @ 1/4/ each ६५ **Crauta Sutra of Apastamba (Text:, Fase. 2--17, @ /10/ each oe *Yrauta Sftra of Qaénkh3yana, Vol. 1, Fasc. 1-7; Vol. 11, Fasc. 3-4; Vol. 111, Fuse. 1-4 ; Vol 4, Fasc. 1 @ /10/ each _ Qri Bh&shyam (Text), Faso 1-3 @ /10/ each Cri Cantinatha Charita, Fasc. 1-4

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कतोयः प्रकाशः | ६९९

भ्नानाद्वावाहत इत्यर्थः, waa न्रानातिश्य उक्ल; तसंख्यामाह-- चतुर्विंशतिमपि . अ्रपिश्ब्दादन्धानपि किंविशिष्टान्‌. लोकस्यो- हमोतकरान्‌ लोक्यते प्रमाणेन दश्यत इति लोकः, पच्चास्िकाया- स्तस्योद्मो तकरणशौलान्‌ केवलालोकदोपेन सवलो कप्रकाश- करणशोलान्‌ इत्यर्घः, ननु कैवलिन शृत्यनेनेव गतायेमेतज्ञोको- होतकरणशभशोला एव fe कैवन्िनः। सत्यम्‌ विज्ञानाऽदेतनिरसे- नोहगोतकराः, SNA मेददश aay, लोकोद्योतकरत्वं तत्‌- स्तावकानासुपकाराय चाऽनुपकारिणः कोऽपि स्तौति इत्युप- कारकलतवप्रदनायाह-धमतोर्धकरान्‌ ; धम SMAI: तो ते- sta Ma घमप्रघानं AY vada धर्मग्रहणाद्‌ cada नव्यादेः maifeamfaag श्रधमेप्रधानस्य परिहारः, तत्कारण- TA धमतीर्धकराः तान्‌ सटेवमनुज्ाऽसुरायां wife स्वै भाषापरिणामिन्धा वाचा धमतोधेप्रवतेकानित्वथेः, waa पूजा- तिश्यो वागतिश्यखोक्नः। अपायापगमातिश्यमाह-जिनान्‌ रागदेषादिजेतनित्यधेः | यदुक्तं कौर्तविष्यामोति aay कुवेब्राह--

उसभमजिभ्रं वंदे संभवमभिनंदणं yar च।

पडठमष्यं gud fay च॑दष्यषं a2 २॥

‘afafe पुप्फदंतं diva fasia argger च।

विमलमणशंतं fad wat संतिंचवंदामि।॥

कद्यं भरं म्नि वन्दे मुशिसुष्वयं afafad

व॑दामि रिटिठनेभिं पासं ae वहमाणंच।॥४॥

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९३४ . योगशास्त्र

समुदायाथः सुगमः। पदा्थेसु विभज्यते, सामान्यतो विशेषतश्च तव सामान्यतः ऋषति गच्छति परमपदमिति ऋषभः, “SEAN ८। १।१३१॥ इत्यते TAB | ठषभ इत्यपि, adfa faufa देशनाजलेन दुःखाम्निना दग्धं जगत्‌, cama: “aah वा वा”॥८। १। १३२ इति वकारेण ऋत उत्वेऽस्य।पि sawt विशेषततु ऊर्वोवषभो लाब्कनमभूहग- वतः, जनन्धा चतुदंशानां खप्रानामादादधभो दृष्टस्तेन ऋषभो ठषभो वा। १। परोषहादिभिनं जित इति भ्रजितः, तथा mie भगवति जननो द्यत रान्ना जिता इत्यजितः।२। सश्चवन्ति wary भवन्ति चतुस््निशदतिशयगुणा श्रस्मित्िति aaa: शं सुखं भवत्यस्मिन्‌ सुते इति शग्भवो वा, aw “aah: सः” ॥८।१।२६० दूति सत्वे सम्भवः, तथा गभे गतैऽप्यस्मिन्‌ श्रभ्यधिकसस्यसम्भवा- व्श्भवः। २। रभिनन्यते देषेन्द्रादिभिरित्यभिनन्दनः, aur गभक्रश्ति एवाऽभोदण' शक्रादयभिनन्दनात्‌ भ्रभिनन्दनः। ४। सु शोभना मतिरस्येति सुमतिः, तथा awe जनन्याः सुनिखिता सतिरभूदिति सुमतिः। ५। निष्यहतामङ्गोक्लत्य पद्मस्येव प्रभा ARIA TYAN, तथा पद्मशयनदोषृदो मातुदेवतया पूरित दूति. पद्मवणंच भगवानिति cami ६। शोभनाः oat अस्येति सुपाशवैः, तथा wea भगवति जनन्यपि gata जातेति सुपाखः। चन्द्रस्येव प्रभा eta सोम्यलेश्याविभेषोऽस्येति चन्द्रप्रभः, तथा दैव्याखन्द्रपानदोडदोऽभूत्‌, चन्द्रसमवणंख भगवा- जिति चद्द्रप्रभः।र। wm विधिः aaa कौश्लमस्येति

ठतोयः प्रकाशः | ६३१

सुविधिः, तथा गभस्ये भगवति जनन्प्येवमिति सुविधिः, पृष्य- कलिज्ञामनोहरटन्तत्वात्‌ पुष्पदन्त दति fetta नाम < सकनलसस्चसन्तापदर गाष्छटौतसलः, तथा THe भगवति पितुः पूर्वास्पनत्राऽचिकिद्छपित्तदाद्ो अनमोकरस््रणीद्पशान्त इति Wat: १०। सकनलभुवनस्याऽपि प्रशस्यतमतवेन Way, Rai- सावंसावस्यति पृषोदरादित्वात्‌ ata वा, तथा गभस्थेऽस्मिन्‌ कैमाप्यनाक्रान्तपूवरी देवताधिितथ्य्या जनन्धा भाक्रान्तेति खेयो जातमिति चरेयांसः।११। वसवो देवविशेषाः, तषां पूज्यो वसुपूज्यः, प्रज्ञादित्वादणि वासुपूज्यः, तथा गभस्थेऽस्मिन्‌ वसु हिरण्य तेन वासवो राजकुलं पूजितवानिति वासुपूञ्यः, वसुपूज्यस्य रान्नो- safafa वा “तस्येदम्‌” ६।३।६० इत्यणि वासुपूज्यः | १२। विगतमलो विमलः, विमलानि वा च्रानादोन्धस्येति विमलः. तथा Tae मातुमतिस्तनु् विमला जातेति विमलः। ea) भ्रनम्त- maint जयति, अननन्तव न्ानादिभिजंयति ्रनन्तजित्‌. तथा THe जनन्या अनन्तरब्रदाम दृष्टम्‌, जयति विभुवभैऽपोति अनन्तजित्‌, भोमो भोमसेन दति न्धायादनन्त इति | १४। दुर्गतौ प्रपतन्तं weap धारयतीति धमः, तथा awe जननो दानादिधर्मपरा जातेति घर्मः १५। णान्तियोगात्‌, तदामकलतात्‌, तत्कतुत्वाहा शान्तिरिति, .तथा गभंख्े पूर्वास्मन्राऽशिवशान्तिरभूदिति शन्तिः १६ कुः. एषो, तस्यां खितवानिति fram कुन्यः, तथा गर्भखे जननो Tarai qa राशिं टषटवतोति gay: १७

१९९ ¦ aa

सर्वा नाम महासश्वः कुले खपलायते | तस्याऽभिददये हदेरसावर उदातः + १॥

षति वचनादरः। तथा Aaa जनन्या AT सर्वरवब्रमयोऽरो दृष्ट इत्यरः १८ परोषष्ादिमन्नजयाविरक्नाश्मक्िः, तथा Ws मातुः एकच्छतो सवर्तसृरभिकुसममास्यश्यनोयदोदो देवतया पूरित इति म्ञिः। १८ मन्धते जगतस््रिकालाऽवस्यामिति मुनिः “ataea चास्य वा” (suger) दति शप्रत्यये उपान््स्ोलवम्‌, शोभनानि व्रतान्यस्येति सुव्रतः, सुनिबासौ qaqa सुनिसुत्रतः, तथा awe samt सुनिवसूत्रता जातेति सुनिसुव्रतः। २० परोषषोपसर्गादिनामनाद्‌ “atq वा? ( खउग्ा-६१२) षति विकल्यनोपान्यस्येकाराभावपक्े नमिः, var mew भगवति पर्क्रगृपेरपि प्रणतिः छरति नमिः २१। धर्मचक्रस्य नेमिवन्नेभिः, तथा गभंख भगवति जनन्या रिष्टिरवरमयो awiafaee इति रिष्टिः, wafaarfe- शब्दवत्‌ नञ्‌ पूवत्वेऽरिष्टनमिः २२। पश्यति स्वभावानिति faery पाश्वः, am amie जनन्या निशि शयनौयखया- saat सर्पो दृष्ट इति गमौमुभावोऽयमिति मला पश्यतति पाष्लः, पार््वोऽस्य वेया्त्यकरस्तस्य नाधः पाश्वनाथः, भौमो Wada इतिवत्‌ ona: २२.। Tate श्रानादिभिर्व्पत दति ववमानः, तथा भगवति mie wage धनधान्या- दिभिर्वर्धत इति वधमानः | २४।

an (२ = sel?

BAA: प्रकाश्ः। ६३७

विशेषाऽभिधाना्धसं ग्राहिकासेमाः ओोभद्रवादुखाभिप्रणोता गाथाः--

‘HEY ठसद्लव्कणमुसमं yfauia ay उमश्जिणो। भक्येसु जेण भजिभ्रा जणणो ofa fara तम्हा॥ १४ afagara सास्ति सम्भवो तेण gay भयवं |

अभिनन्द अभिक्वं सक्तो भभिनन्दणो तेण ॥२॥

aunt aaa विरिच्छएसु सुमद्स्ि aq सुमश्जिणो। पउमसयगग्ि जण्णोड्‌ डोहलो तेण परमाभो २॥ TWAT अं AUT जाय सुपासा ast सुपासजिशो। जणणोद् चंदपिश्रणस्ि डोडङ्नो तेष चंटाभो॥ सव्वविष्ोसु श्र कुसन्ा Taare जण wix सुविदहिजिणो | fase} दाहोवसमो गम्भगणए सोभरलो तणा ५॥

[रणी

(1) खर्गष्पभलाञ्छनन्दषभं खमे तेनषंभमलिनः। away वेनाजिता aan खलितो जिमसख्यात्‌॥।॥ अआभिसंभूनानि सद्यानोति संभवस्ते नोच्यते भगवन्‌ | खनि मन्द्त्य मोतं शक्रोऽभिनन्द्मस्तेन लनम eva विमिखयेषु सुमतिरिति तेन समतिजिनः। पदमथयमे RAM VITA पद्माभः।॥ ३॥ NAMA ARAM जाता स्नुषां ततः Barge: | जमनन्याचन्दरपामे WYPSHT जन्दराभः॥ ४॥ सषैविधिष कुशजा गर्भगते बेन भवति सुभिधिजिनः।, fogzteiuaay nana Mase ॥१५॥

९९८ ` योगगास्त्रे

, पमडरिहसिख्नाङ्हणम्बि steal होर तेण . सिख्लंसो | gus वासवो जं भभिक्वणं तेण वसुपुष्नो पिमलतणबुदिजणणो गस्भगप मेण we विमलजिको। रयणविचित्तमणशंतं दामं सुमिष्शे तभ्रोऽणंतो vou गठ्भगणए जं AAT जाय quay तण wafer | जाभो अलसिवोवसमो गन्भगप तण संतिलिण्ा॥र्॥ uy रयग्यवि चित्तं aa सुमिणण्डि तेण कथजिणो ofag भरं महरि पासड्‌ जणश्ग्बो भरो aw we | वरसुरङ्िमक्ञसयणग्पि Steet तेण होड afaferet जाया TAM जं सुव्वयत्ति सुणिसुव्वप्नो तन्हा १० पण्या पञ्चंतनिवा दंसियमित्ते जिणम्मि तेण शमो fegcag नेमिं ष्ययमायं तभो नेमो ११॥

ee re 1 7 वि 8 917 1 7 tee 8 8

(1) Wereneicrwe दोषो भव्ति तिन sata: | guafa wan यमगिखस्यं तेन वाद्पूक्छः॥६॥ भिमलततबरर्िजननी गभं गति तेन भवति विसज्लणजिनः। रल्लविलित्रसमन्तं दाम GT ततोऽमन्नः॥ 3

NAAR BAA जाता सुधर्मेति तेन wafers: | ज।तोऽगिवोपशमो ग्भंगते तेन aifafara: ys wd cafafoat कन्ध खपे तेन कृन्थजिनः |

wast aay पश्यति जननी, Were वरद्चरभिम।लयथवमे Tyres भवति मह्धिखिनः। खाता जननो यत्‌ gaafa सनिष्रव्रतस्तसात्‌ १०॥ प्रणताः HTC दथिं तमाले जिने तेन aha | fcetal नेनिकत्मतन्तं ततो मेमिः॥ !१॥

GANA: प्रकाशः | ९२८

‘ai सयणे seal जं qas तमसि aq पासजिणो।

avec नायकुलंति भ्र तेण जिषो azarae त्ि॥ १२॥ दति कौतनं क्त्वा चेतः शयथे प्रिधानमाहइ--

एवं ay प्रभिधुभ्रा विह्कश्रर्यमला पषोणजरमरणा |

चडउवोसं पि fawac तिल्ययरा मे पसोग्रन्तु॥५॥ एवमनन्तरोदितैन विधिना मयेव्वासनिर्देशः, भ्रभिष्टेता अ्राभि- मुख्येन qa: खनामभिः कौर्तिता इत्यथः किविशिष्टास्ते, विधूतरणोमनलाः-- रज मलं रजोमले, विधुते प्रकस्मिते भने- कार्थत्वादपनोतै वा रजोमले येस्ते विधुतरनोमनाः, बध्यमाने कर्म रजः. FIAT तु मलम्‌, Waar ae रजो निकाचितं मलम्‌, waa रेयीपधं रजः, साम्परायिकं मलमिति यतेवंभूता भत एव प्र्ौणजरामरणाः कारणाभावात्‌ चतुर्विंश्तिरपि, भरपि- शण्टादन्येऽपि जिनवराः श्रुनादिजिनेभ्यः wae, ते तोधेकरा fa पूववत्‌, मे मम, किं? प्रसोदन्तु प्रसादपरा भवन्तु ते वौतरागल्वाद्यदयपि सुताः तोषम्‌, निन्दिता ea यान्ति, तथाऽपि स्तोता सतुतिफलम्‌. निन्दकख निन्दाफनलमाप्रोत्येव. यथा चिन्तापणिमन्ाद्याराधकः ; यदवोचाम वौोतरागस्तवे-

WAAAY कथं प्राप्यं फल्लमेतदस्षद्गतम्‌ |

चिन्तामश्यादयः किं फलन्त्यपि विचेतनाः १॥ १॥ \

oe ESSE SS AESOP

(१) BW शयने जननो यत्‌ uaia cafe Await: | बधते स्ातकृनमितिचतेन जनो वध॑सानद्रति॥ \२॥

९४० योगश्ाख्े

शूत्युज्ञमेव wa यदिन प्रसोदन्ति, तकिं प्रसोदण्छिति'ठया waite?) नेवम्‌ भक्यतिशयत एवमभिधानेऽपि दोषः। यदाह-च्ौशक्तेया एते afe प्रसोदन्ति, तत्स्तवोऽपि था, ततृस्तवभावविशुेः, प्रयोजनं कमेविगम uf ५५ wat

fafas वंदिष्र afeat Sa aaa उन्मा far |

पारम्गवोहिलाभं vafeacqua feq a eu कौन्तिताः खनामभिः प्रोज्ञाः. वन्दितास््रिविधयोगेन सम्यक्‌ सुताः, मदह्िताः पृष्पादिभिः पूजिताः। axa इति पाठान्तरम्‌, तव मयका सया। कै एतै ?, दरत्याहइ-ये एतै लोकस्व प्राणिवगेस्य कमं- मलकलङ्ाभावेनोल्माः प्रलाः, fawrfa सिषा: कतहल्लत्या इत्यथैः, WTS भाव भारोग्यं सिहत्वं तदधैम्‌, बोषिलाभः we- ्रषोतधर्मप्राधिरारोग्बबोधिलाभः, wire मोलायेव भवति तम्‌, तदधं समापिवरं वरसमाधिं परमखाख्यरूपं भाव- समाधिसित्यधः, भसावपि तारतम्यमेदादनेकधेव, wa भ्राइ- SUA Valens ददतु प्रयच्छन्तु, एतच्च भक्धाश्यतं | यत Say

"भासा असच्चमोसा मवरं wale afaur Tar |

नषु Glefuerciar दिति warts = afe a ven इति

(१) भाषा Sema wet भक्कय। भाषितेषा। गन्‌ WHAT ददति इमाधिं बोधिं च।॥!॥

तोयः प्रकाशः। ९४९१

तधा- dey निश्मलयरा भाश्चेसु अहिश्रं पयाखयरा। . सागरवरगग्भोरा faa fafe मम fea ion “पश्चम्यास्तृतीया च” ८। ९। ११५ इति Wee TAT, अतचन्रभ्योऽपि नि्मलतराः सकलकममनापगमात्‌, पाठान्तरं वा wele निग्मलयरा, एवमादिसेभ्योऽप्यधिकं प्रकाशकराः, केवलोद््ोतेन लोकालोकप्रकाशकलवात्‌ | om च-- "चंदाद्चगदहागां पषा Tatas परिमिभरं faut केवलिश्रनाणलम्भो लोश्रालोश्रं पयासेद i १॥ सागरवरः सख्यश्भूरमणाख्यः समुद्रः, परोषषोपसरगीय्स्ोभ्य- लवात्‌ तस्मादपि गश्मोराः, सिराः कमविगमात्‌ कतक्लत्याः, fate परमपदप्रा्िम्‌, मम दिशन्तु प्रयच्छन्तु एवं चतुर्विं यतिस्तवसुक्का सवलोक एवाऽहेशचेत्यानां वन्दनां कायोत्सगकरणायेदं पठति, पठन्तिवा। सव्वलोए श्ररिहंतचेष्भ्राणं करेमि काउसम्गभित्यादि घोसिरामोति यावत्‌ व्याख्या पूववत्‌ | वरम्‌, waaay लोक श्रधस्तियगूष्वभेदस्तसिंस्त्रेलोक्मे इत्यथः, भ्रधोलोके हि चमरादि- भवनेषु, तियेग्लोके दोपाचलच्योतिष्कविमानादिषु, aaa सौधर्मादिषु waaesaa, ततश मौलवचेत्यं , समाधिकारण- fafa मूलप्रतिमायाः प्राक्‌ सुतिरुक्षा इदानों सर्वेऽहन्तस्तहुणा

(१) चन्दरादित्बयहाथां प्रभा प्रकाययति परिमितं aaa केवखिकभानलाभो शोकाशोकं प्रकाशयति ats band

q8R ` योगशास्त्र

इति सघवलोकसंग्रहः, तदमुसारेण स्वेतोधैकरसाधारणो रुतिः। WIN भन्धकायोत्लगं wan सुतिरिति a सम्यगतिप्रसङ्गादिति सवतोयेकराणां eater इदानीं येन तै भगवन्तस्तदभिहिताख भावा; स्फुटसुपलभ्यन्ते angen सम्यक्‌ yaaefa कौ्त- मम्‌, तत्राऽपि तक्रशेतृन्‌ भगवतः प्रधमं स्तोति- एक्छरवरदोवङ् घायश्खंडे भ्र जम्बुहोषे भ्र भरहेरवयविदेहे wareat नमंसामि॥ १॥

भरतं भरतक्तेव्रम्‌,एैरवतमेरवतक्चे्रम्‌, fatefafa भौमो भोमसेन इति न्यायाद्‌ महाविदेहशचेव्रम्‌, एवं समाहारहन्हः, तैषु भरतेरव- तविदेषटेषु धर्मस्य श्रुतधमेस्यादिकरान्‌ qaa: प्रथमकरणशगोलान्‌, नमस्यामि @ti यानि भरसेरवतमद्ाविदेहस्तताणि ९, इत्याह- पुष्कराणि पद्मानि, aac: पष्करवरः चासौ होप घुष्क रवरदोपः तोयो रोपः, तस्याधै मानुषोत्तराचन्तादर्वाग्‌- भागवति, aa हे भरते, ेरवते, दे awifae?, तधा धातकौनां ग्ठख्डानि वनानि यस्मिन्‌ धातकौोखण्डो tha; तस्मिन्‌,दे भरते, एिरवते, महा विदेहे | जम्न्वा उपलल्ितः amare वा Cay जब्बहोपः, WAH भरतमेकमेरवतभेकं महाविदेहमित्येताः पश्च- दगकमेभूमयः, शषास्वकमभूमयः | यदाह--^“भरतेरवतविदेहाः कमभूमयोऽन्यत्र देवङ्खरूत्तरकुरुभ्यः” (तस्वा-२।१६) . महत्तर सेषप्राधान्धाङ्गोकरणात्यञ्चानुपूरव्या fata: | -धमीदिकरत्वं .यया भगवतां भवति तधा अपोर्षेयवादनिराकरण्धावसशे प्राग्निर्णीतम्‌ | नन्वेवमपि कथं घमौदिकरत्वं भगवताम्‌, "त पुथि्रा भरहयाः

Bala: WATT: | ९१४२

दूति वचनाद्‌ वचनस्वानादिलात्‌ १। नेवम्‌, बोजाङ्‌ रवन्षदुष- पत्तः-वौजाि wea भवति हरा बोजमिति। एवं भगवतां पूवजन्भनि अुतधर्मीभ्यासानषोधैकरत्वम्‌, ती्धैक्ठतां खुतधर्मादि- करत्वमदुष्टमेव | नमवाऽयं नियमः चुतधमंपूवैकभेवाङस्वमिति, मरदेव्यादोनां सुतधमंपूवैकत्वाभावेऽपि कैवलच्रानखवणा दित्यलं Wasa! एवं युतधर्मादिकराणशां सुतिरक्ता। इदानीं ga- way aafafacasafataua सुरगणनरिंदमहिभ्रस्य। सोमाधरस्य वंदे ugaifenatenraay

तमोऽच्नानम्‌, तदेव fafacy saat वदस्प्ृष्टनिधत्तं ज्ञाना- वरणौयं कर्म तमः; निकाचितं तिमिरं ततस्तमस्तिमिरस्य, तमस्तिमिरयोर्वा पटलं हन्दम्‌. तदिष्वंसयति famnaaifa नन्द्यादित्वादने . तमस्तिमिरपटलविष्वं सनस्तस्य, अच्राननिरासेने- वाऽस्य प्रवततेः। सुरगभेषतुविधाऽमरनिकायेनरेन्द्रे क्रव्यादि fuafen: पूजितस्तस्य भागममहिमां हि gaa सुरासुरा दयः सोमां .मयादाम्‌, Marat वा धारयतोति सोमाधरस्तस्य, खुतधम इति विशेष्यम्‌, ततः कमणि दितोया, तस्याञ्च “afaz हितोयादेः” ॥८। १९। ११४ इति प्राक्ततसूत्रात्‌ षष्टो, wad वन्दे, AMA यन्माहासप aT इति भग्बन्धे षष्ठो ; waar तस्य वन्दे वन्दनं करोमोति। प्रकर्षेख स्फोटितं विदारितम्‌ मोहजालं भिष्यलादिरूपंयेन a तधा तस्य yaaa fe सति विषेक्िनो मोडजालं मिष्याल्वादिरूपं विलयसुपयात्येव श्यं

१४४ TANIA

qaafias ada गुलोपदगनहार्णाऽप्रमादगोचरतां प्रति- पादयवबाहइ-- सादईैजरामरक्सोगपणासशस्स काल्ञाणपुक्ठनलविसालसुषावहस्य | को देषदाख्वनरिंदगणच्िभ्रस्य धम्यमस्छ सारसुवलब्भ करे पमायम्‌ १॥३॥ क; सचेतनः, धमेस्य श्ुलधमस्य, सारं waaay, उपलभ्य विन्नाय खुतधर्मोदितेऽगुष्ठाने प्रमादमनादरं कुर्यात्‌ ?, कञ्चित्‌ कुयीदि- wa: किंविथिष्टस्य खुतधमंस्य?, जाति्ज, जरा विसा, मरणं WTA: शोको मानसो दुःखविपरेषः, तान्‌ प्राशयति अपनयति, जातिजरामरशोकप्रणागनः A, QA ASIAN. जात्यादयः प्रशश्यन्त्ेव, सनेनास्यानर्थप्रतिघातित्वमुक्नम्‌ कश्यमारोग्यमखति शब्द्यति . दति कल्याणम्‌. पुष्कलं सम्पृणम्‌, ace किन्तु विशालं विस्तोपमेवग्भूतं सुखमावहति प्रापयतोति कश्याणपुष्कमत- विगानलसुख।वहः तस्य, तथाच खुतधर्मोक्ानुष्ठानादुक् लसणमपवगे- -सुखमवाप्यत एव, अनेन चाऽस्य विधिष्टायेप्रापकल्वमाङ | देवानां दानवानां नरेन्द्राणां. गणेरचिंतस्य पूजितस्य, सुरगणनरेनद्र- महितस्व इति, wea निगमनं देवदानबैत्यादि | यतचैवमतः- fag भो ! पयभ्रो नमो जिषमए नदौ सया.संयभे देवंमागसुवखकिन्ररगणस्छभ्भू भभावश्िए | लोगो जलय पश्हटिभ्रो aafad तेलुक्षमश्चासुरं want ages सायं fanaa want ages ४॥

ama: प्रकाशः | ९४५

fas: फलाव्यभिचारेण प्रतिष्ठितः, भरधवा fae: सकलनयव्यापक- त्वन जिकोटिपरिशदत्वेन प्रख्यातस्स्मिन्‌, भो इत्यतिश्यिना- मामन्रणम्‌. पश्यन्तु भवन्तः, प्रयतोऽषं यथधाशक्येतावन्तं कालं प्रक- षेण, यतः शल्यं परसािकं प्रयतो भूत्वा पुननेभस्करोति, ममो faqay नमो जिनमताय, प्राक्ततलाचतुष्थाः ` सप्तमो भस्मिख सति मन्दि: aafe: | सदा सवेकालम्‌, संयमे wis भूयात्‌ om द--(१)पठमं नाणं aw दयाः | किं विशिष्ट संयमे १, रैवनाग- सुपण्धकिनब्रगणेः सदूतभावेनाचिते- देवा विमानिनः, नागा धरणादयः, सुपा गर्डाः, किव्ररा व्यन्तरविशेषाः उपलक्षणं शेषाणां, देवमित्यनुखारः छन्दःपूरणे, तथा संयमवम्तोऽच्यन्त एव टेवादिभिः। aa जिनमे, किं यत्र}. aera लोकी ज्ञानम्‌, प्रति- faa: तदशोभूतः, तधा जगदिदं sacar ufafeafafa योगः ; कैचिकमनुष्यलोकमेव ara, भरत श्राह तरलोक्छमत्यासुर- माधाराधैयरूपम्‌। भयमियश्भूतो wa: जुतघर्मो वेतां हदिमुप- fi e © (१ यातु, शाश्वतसिति क्रियाविशेषणं शाष्वतमप्रथयुत्या वधतासिति ; विजयतः परवादि विजयेन, धर्मोत्तरं चारितव्रधर्मीत्तरं वधंताम्‌, ® fa © पनवद्धयभिधानं atataa प्रत्यहं कानहहिः कायां इति प्रदश- e €, © 0 नाथम्‌ तथाच तोधकगनामकमहेतून्‌ प्रतिपादयतोक्नम्‌- ‘sgaqaruney इति प्रगिधानमेतस्मोक्षबौजकस्पं परमार्थ तोऽनाशं षारूपभेषेति प्रणिघानं कछ्षल्वा ज्रुतस्येव वन्दनाश्यधें कायो-

(1) प्रथमं सानं ततो gar

९४६ | योगशास्मे

wane पठति पठन्तिवा। सुश्रस्छभगवमो करेमि काठसम- मित्यादि वोसिरामोति यावदधः पूववत्‌ नवरम्‌--श्रुतस्येति mata सामायिकादेबिन्दसारपयेन्तस्य भगवतो यथोमाङा- ग्मयादियुज्ञस्व, ततः waranty पूवेवत्पारयिल्ला yaa सतिं पठति। aaa अरनुष्ठानपरम्पराफन्तभूतभ्यः fart नमस्कार. करणायेदं पठति पठन्ति at—

faara Fare पारगयाणं परम्प्ररगयागं |

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लोभम्गसुवगयाणं नमो सया TAfaera १॥ faeries fam: ये येन शुभेन निष्यत्राः परिनि्ठिताः सिद्चौदनवद्‌ पुनः साघनोया दत्यथः, तेभ्यो नम दति योगः ते सामान्यतः कमीदिमिडा ofa भवन्ति,

aay |

tara faa fasta मंते जोगे wae |

अव्य HA अरभिष्पाए तवे कम्मक्वण Tn e u

तव कमे भ्राचार्योपदेयरहितं भारवडनक्तषिवािज्यादि, aa सिः. ufafafea:, मद्यगिरिसिदवत्‌। शिष्यं तल्वाचार्योपदे शजं aa fae:, कोकासवधकिवत्‌। विद्या जपद्ोमादिना फनदा, मन्तो जपादि- रहितः पाठमात्रसिरः; सरीदेवताऽपिष्ठाना विदा, पुरुषदेवताधि-

(१) wef faat विद्यायां मन्त्रे योगे «tne | we वालारासभिप्राते तपसि कर्मशय इति 1

ठतौयः प्रकाशः ६४७

हानसु aa: aa विद्यासिह भ्रायखपुटवत्‌, मन्सि; स्त्ा- कषंकवत्‌। योग भ्रौषधिसंयोगः, तत्र सिद्धो योगसिदः भ्रायंसमित- वत्‌, आगमो हादशाङ्गं प्रवचनं तवराऽसाधारण्णर्घौवगमास्षिदः भरागमसिहो गोतमवत्‌, wat घनम्‌, दतरासाधारणो यख सोऽथसिहो मग्परणव खिम्वत्‌ जले खले वा यस्याऽविन्ना arate यावाखिडसुख्छिकवत्‌। यमयेमभिप्रेति aed तथेव यः. साधयति सोऽभिप्रायसिद्धोऽभयङ्गमारवत्‌ यस्य wate तपः तपःसिष्ठो दृद प्रहारिवत्‌। यः कमकच्षयेण क्रानावरणोयाद्य्टकमनिमूलनेन शिः कमं ्यसिदो मर्देवौवत्‌ प्रतः कमौदिखिदव्यपोहेन कमंस्षयसिदपरिग्रङर्यमाह- वुडेभ्यः भरज्ञाननिद्राप्रसुप्ते जगति भण्रोपदेशेन जोवादिषूपं तसं ब॒हवन्तो बुधाः, बुहत्वानन्तरं कमयं छत्वा सिहा दत्यधैः, तेभ्यः एतै संसारनिवीणोभय- परित्यागखितिमन्तः कचिदिष्यन्त--

संसारे नि्षीखे fam भुवनभूतये चिन्तय: सवंखलोकानां चिन्तारब्राधिको मदान्‌ १॥

इति वचनात्‌ एतव्रिरासायेमाइ--पारगतेभ्यः पारं पयन्तं संसा- रस्य प्रयोजनव्रातस्य वा, गताः पारगताः Ha: ; एते a! eET- वादिभिः कचि्टरिद्रराज्यास्षिवदक्रमसिदतवेनाऽभिधोयन्ते, तद्ुगदा- साथमाह-परम्परगयाणं- परम्परया ` चतुदंणगुणस्थानक्रमारो- Taal, अधवा कथश्धित्‌ कमक्षयोपशमादिसामग्रया wares तस्मात्‌ सम्यगृन्नानं तस्पात्‌ सम्यक््चारित्रमित्येवम्भूतया गता

गँ

que योगथास्ते

सुलिश्याने प्राप्ताः परम्परागताः Ber | एते केचिदनियत्देभा अभ्युपगम्यन्ते, aa क्रीशक्तयस्तच्र विश्नानमवतिष्ठते। बाधा सर्वधाऽस्येद् तदभावाव्र जातुचित्‌ a eu इति वचनात्‌, एतत्विरासायाड stargate: लो काग्रमौष- mace: एथिव्या sufeaa तदुप सामोप्येन तदपरा- भिबदेशतय निःेषकमक्षयपूर्वकं गताः प्राप्ताः | on I— ^ जलय एगो fast तद्य wea भवक्ठयविमुद्धा। असोस्पम णावां चिटटठंति सुहो gy an i es सैभ्यः। नगु चोणकमष्यो जोवस्य we लोकां यावदहतिः १। उश्थतै--पूवंप्रयोगादियोगात्‌ t यदाष- पूवप्रयोगसिरेबंन्धच्छदादसष्रभावाञ्च। गतिपरिखामाञज्च तथा सिहस्योष्वं गतिः सिद्धा a en नलु तिरिच्ेव्रात्परलोऽधस्तिर्यग्वा aaa गच्छन्ति १, अताऽप्यु्नम्‌ - ` नाऽघो गौरवविगमाद सङ्कःभावाच्च गच्छति faqa: | | लोक्ान्तादपि परं yaw इवोपग्रहाभावात्‌॥१॥

(१) wa Se: faye चानन्ता भग्ययदिष्घक्ताः। च्छन्योन्धयभनाचाधं तिहन्नि दखिन GS RINT a tk

Bata: WAM: | १४९

योगप्रयोगयोञ्ाभावात्तिरयमन तस्य गतिरस्ति ` AMAIA शालो कान्तादतिभवति ॥२॥ दति॥

नमः संदा सवसिदेभ्यः- नमो नमोऽसु, षदा सकालं, सव- सिदेभ्यः- सवे साध्यं सिहं येषां तै सवलिः तैभ्यः, भधवा सवेसिदेभ्यः Ad सिदादिमेदेभ्यः, यथोक्तम्‌ 'तिखसिष्ा भतिल- सिहा ति्ययरखिद्धा भतिययरसि्ठा सयं ुहसि्ठा पत्तेयवुदसि्ा बुदवोहिश्रसिहा धौ farfawt पुरिष- लिङ्ग सिचा < aqunfapfaw १० सलिष्गसिद्ा ११ भव्लिङ्ग- सिदा १२ fafefarfaer ce wafaet १४ श्रणेगसिदहा १५। aa ata चतुविंधखमण्सद्धे उत्पन्ने सति ये सिदडाः तै तीध- faa tet wale जिनान्तरे urease सति नातिखरणा- दिनाऽवाप्तापवर्गमागीः faut: भरतो्थसिद्ाः, मरुदेवोप्रश्तयो वा, तदा तीर्धस्याऽमुत्त्रलयात्‌ ।२। तौधेकरसिह्ाः तौधकरत्वमनुभूय चिदा: ।३। अ्रतीधकरसिचाः सामान्यकेवलितवे सति fast: ।४। स्यं बाः सन्तो ये सिहाः तै खयं बुदसिहाः ।५। ्रतयेकबुहाः सन्तो ये सिष्ठाः तै प्रत्येकवुसिद्दाः ig) सखयम्बुदप्रत्ये कवुष्धयोख वोध्युपधिश्रुतलिङ्गक्षतो विशेषः- खयं बडा हि बाद्यप्रतययमन्त-

(१) तीोचिङ्धाः, खतीयेसिङ्काः, तीर्यक्ररसिङ्धाः, तीर्धकरसिद्धाः, स्वयं बद्ध सिद्धाः, प्रते कब इसिः; qaifuafegr:, स्तोशिक्गसिडधाः, पुरुषलिङ्गसिद्धाः, मपुषकलिङ्गसिद्ाः, wepfeg:, awfagiear:, ग्टह्िशिङ्ग सिद्धाः, एक feur:, अनेकसिदधाः |

GR

९५० योगशास््न

रेण बुध्यन्ते, प्रत्येकबुदासु बाद्यप्रत्ययेन हषभादिना कर ण्डादिवत्‌, उपधिम्तु खयंवृहानां पाज्रादिहौदशधा, प्रत्येकबुद्ठानां प्रावरणवर्जो नवविध; ; खयंबुहानां पूवाधौतशुतेऽनियमः, प्रत्ये क- वानां तु नियमतो भवत्येव ; लिद्गप्रतिपत्तिलु खयंबचानां गुरुखन्निधावपि भवति, wa कव्यानां तु देवता लिङ्ग प्रयच्छति ; बा Waal wanna: तेर्बोधिताः सन्तो ये लिहा: तै quaifuafaar: tol एते सर्वेऽपि क्षेचित्‌ सनो लिङ्गसिदाः, केचित्‌ एंलिष्गसिदाः, केचित्‌ नपंसकलिष्कसिहाः | aq तोधकरा रपि किं स्त्ोलिङ्गसिष्ठा भवन्ति १, उच्यते, भवन््येव-- यदुक्तं सि mazi—‘aaatar निद्यरिसिष्ठा, faaactfaa नोतिल्य- यरखिष्ा भसंखेच्जगुष्ण, तिल्ययरि तिले नोतिलययरि सिदाप्ो ad- खिव्नगुश्वाप्ो, तिलयवयरितिलये नोतिल्यरसिदहा भसंखेखछगुणा ति। नपेवकलिङ्गसिदासु तोधकरसिद्धा waa, प्रत्येक- qafaarg पंलिङ्गसिद्ठा एव ।८।९।१०। afaga रजोहरणादिना xufaga fast: afagfaet: ।१९१। wast परिव्राज कादीनां fara faut wafagfaer 1 १२। wzhefanfaer मर्टेव्या- दयः ।१३। एकंकस्मिन्‌ समये एकाकिनः विदाः एकसिषाः ies एकस्‌ समये aetat शतं यावत्‌ सिषा भनेकसिदडाः।१५। यत उक्तम्‌-

(1) सरसलोकास्तीयकरद्द्धाखीध्करतीयं नोती्थकरखिद्धा असंख्येय- UW, Haw नोतोचश्रीषिङ्धा यरुख्येवयुणाः, तो्थश्राताघं नोती्षकर- सिद्धा कसंख्ये यगुष्वाः।

ठतोयः WWI | ६५१

"वत्नोसा अडयाला सहो AWA बोदव्वा | सुगलसं) eusy दुरहिश्रमहोत्तरसयं १॥

नन्वेते faster भ।ययोस्तोधलिहाऽतीधसिदयोरेवाऽन्तभेवन्ति, तोथेकरचिद्दादयो हि तौयेखिदा वा स्युरतोधेसिदा वैति। सत्यम्‌, WAAMALS पूवभेदहयादेवोत्तरमेदाप्रतिपन्तेरन्नातन्नापनाधे भेदा- भिधानमदुष्टमिति ca सामान्येन सवेसिहनमस्कारं लत्वा भास- ्रोपकारित्वाहतमाननोधौधिपतैः ओोमश्महावोरवधमानखयामिनः

स्तुतिं करोति-

जो ary fa दैवो जं Gat Guat addfa | तं gadaafed सिरसा ae aware il 2 8

यो भगवान्‌ महावोरो हैवानामपि भवनवास्यादोनां yeuals देवः, श्रत Tale -यं देवाः waa विनयरचितकरसम्पुटाः सन्तो नमस्यन्ति प्रणमन्ति, तं भगवन्तं रेवतः शक्रादिभिमेहितं पूजितम्‌, वन्दे fara उस्तमाङ्गेन.भ्रादरप्रदशेनाये चेतत्‌ तं कं? महावोरम्‌, विशेषे श्रयति aa गमयतियाति वा शिवमिति au, मह।खासौ वीर महावोरस्तम्‌ ca सृतिं aa पुनः परापक्रारायर ्राकसभावहहये फनप्रदशेनपरमिदं पठति

aml वि नसुक्कारो जिणखवरवसद्स्य aware | संसारसागराश्रो Aire ata aft at wa

ee a

(1) atfaingeerritua wfegtanfas agar: | चतुरशोतिः षखवतिहिरह्ितमटोत्तरथतंच॥!॥

EUR ANNI

एकोऽप्यासतां बहवः, नमस्कारो द्रव्यभावसंको चलकच्तशः, जिनवर- हषभाय- जिनाः श्ुतावधिजिनादयः वैषां वराः कैवलिनस्तेषां aaa: तोयेकरनामकर्मोदयादुत्तमो जिनवरहषभस्तख्ये। सष ऋषभादिरपि भवतोत्याह -वधमानाय ways: afafa ae: faq? संसरणं संसारस्तियेग्नरनारकाऽमरभवाऽनुभावलच्षणः सख एव भवख्ितिकायखितिभ्यामनेकधावखानेनाऽलब्धपारत्वाव्लागर ष्व संसारसागरः, तस्मात्‌ तारयति पारं नयतौ्यर्धः। कमि. त्याह १-नरंवानारीौँं वा-नरग्रहणं पुरषोत्तमधर्मप्रतिपादनायेम्‌, नारोग्रहणं तासामपि axa एव संसारक्षयो भवतौति ATTA | यथोज्ञं यापनोयतन्ते- |

mt gq vat भजोवो, यावि WHS, a atfa daq- विरोहिषणो, नो भ्रमाणस्या नो अणायरियख्प्यनत्रा, नो भसंखेव्ला- SUT, नो भ्रद्कूरमर, नो अ्रगवसन्तमोष्ठा, नो भरसुद्ाचारा, नो wewatal, नो ववसायवल्जिभा, नो अपुव्वकरणविरोदहिष्पौ, नो Aaa acess, नो भजोग्गा लद्दोए, नो अक्रज्ञाष्भायणं ति कं ठउत्तमधम्मस्य साहगा ? इति।

(१) we a अजीवः, चाष्यभव्या, नचापि इदयनविरोधिनी,नगो चमातुष्य', गो खनार्योत्पन्न', नो खसंख्येवायुष्क।, मो afagrcafa:, नो खतुप- अन्तमो हा, नो MYATT, नो अशुच्शरोरा, नो व्यशसायमजितः, नो खपु करष्डविरोधिनी, नो नषगुखख्यानदर्ड्िता, नो अयोग्या खब्धय।ः, नो अग्णयाण- भाजनमिति कथं मोत्तमपधमख शाधिशा१द्ति।

"अनना: (म्‌ ~= -- ll

तोयः प्रकाशः | ९५३

sana भावः, सति सम्यग्दशेने परया भावनया क्रियमाण एकोऽपि नमस्कारस्तथामूतप्याष्यवस्ायस्य हेतुभेवति यथाभूतात्‌ खेणिमवाप्य निस्तरति भवोदधिभमिति। wa: काये कारणोप- चारादेवसु्यते चारित्रस्य ane, तथाभूताध्यवसायस्ेव चारिब्ररूपत्वादिति। एतास्तिस्रः सुमयो गणधरक्ततलतवाद्‌ निय. भेनोच्यन्त. केचिन wai ्रपि सुतो पठन्ति- यथा-

Sfsintafaet टिकवा ard fadifeat va

तं umamafe ufcafi नमंसामि॥४॥

चत्तारि wz za at श्र व॑दिभ्राजिणवरा seated 1

ucazgfafeagt fae fafe aa दिसंतु॥५॥

wre ` एवभेतत्पटित्वो पचितपुण्यसम्भार उचितेष्वौचित्येन

प्रहत्तिरिति ज्नापनाधं पठति पठन्ति वा वेयावच्चगराथं सन्ति- गराणं सम्बदिद्धिप्रमाहिगराशं करेमि कारस्सगगं वेयाठत्य- कराणां प्रवचनायै व्याप्रनभावानां गोमुखयल्ताऽप्रतिचक्राप्रभ- तोनां शान्तिकराणां ware सम्यगृदरटि विषये समाधिकरा- शाम्‌, एषां सम्बन्धिनां षष्ठया; सपम्यद्ेत्वादेतदिषयमेतान्‌ वाथित्य करोमि aaa) wa वन्द्नादिप्रत्ययमित्यादि cal, ufa q ्न्यतोच्छुसितेनेत्यादि, तेषामविरतत्वात्‌. इयमेव तद्वाव. हेहेरपकारदशनात्‌ रएतदयाख्या पूववत्‌ wat सुतिर्वेया- हत्य कराणां पुनस्तेनेव विधिना उपविश्य पूर्ववत्‌ प्रणिपातदण्छवा पटित्वा सुक्लाशक्तिमुद्धया प्रणिधानं wafer |

९५४ Pare यथा-

जय वोयराय ! ATT! होर मम तुह aM भयवं ! .

भवनिव्वेभो मम्नाणसा रिभा इट्टफलसिद्दो + eu

लोगविर्दच्ाभो FERIA परलयकरणं |

सुहगुरुजोगो तव्वयणसेवणा पराभवमखण्डा ॥२॥

जय वोतराग! जगहरो! इति भगवतल्िनोकनाचस्य quit सच्निधानाचमामन्णम्‌, भवतु जायतां मभेत्याकनिर्देशः, तव प्रभावतः तव सामष्यन, wunafafa पुनः खम्बोघनं भक््यति- arena, किं तदित्याह-भवनिर्घेदः संसारनिर्वेदः | fe भवादनिर्विख्ो मोक्षाय यतते, भनिर्विखख anfa- बन्धाश्मोचं यत्रोऽयव एव, निर्जोवक्रियातुख्यत्वात्‌। तथा मार्गीऽनु्ारिता श्रसद्रहविजयेन त्वानुसारिता, तथा इटफनन- सिदिरभिमताथनिष्यसिः रेडनौकिकौ, ययोपण्डदोतस्व चिन्न स्वाख्य' भवति तसख्माच्ोपादेयप्रहत्तिः तथा लोकविर्दत्यागः स्वेजननिन्दादिलोकविर्हाऽनुष्टानवजनम्‌ |

` यदाडइ- ‘aaa चेव निंदा fatewt तह गुणसमिदाणं।

उशुषन््रकषरणहसखं रोढा जखपूयर््नाणं १॥ बदहुजनविख्दसंगो देसाचारस्छ Gad चेव |

SATA तहा दाणागर्वियडमनत्रेो॥२॥

(१) ote ae निन्द्‌ श्धिषतस्तथा guewaTne | ऋज धमकरणहखनं रीठा जनपूजनोवानास्‌ जरूजननिरदसक्रो Wace a_A चेव | खल्वष्भोगच तथा ट।मादिविक्टमग्यस्नात्‌ ॥२॥

BANA: THT: | ६५५

‘aryaaafa at at सद्‌ सामलयश्ि भपडियारोभ्र।

एमाण्याङ्ं इतयं लोगविर्षाडं Gyre’ + ३॥

गरुजनस्य पूजा उचितप्रतिपत्तिगुरजनपूजा, शुरव्च auf धमाचाथा एवोचखन्ते तथापौह मातापित्रादयोऽपि ग्ह्मन्ते। यदुक्नम्‌-

माता पिता कलाचाय एतेषां ज्ातयस्तथा | हदा धर्मोपदेष्टारो gaan: खतां मतः i eh

परा्थ॑करणं Baas जोवलोकसारं पौरषचिकभेतत्‌ | सत््ेतावति लौकिके सौन्दये लोकोत्तरधमेधिकारो भवतो- त्याह-शभगुर्योगो विशिष्ट चारित्रयुक्ताचाय सम्बन्धः, तथा तदह चम- सेषा सङ्गुरवचनसेवना, जातुचिदयमहितसुपदिशति, भाभव- म।संसारमच्छण्डा सम्पण इदं प्रणिधानं निदानरूपम्‌, प्राये निस्सङ्गाभिलाषरूपत्वात्‌ | एतश्चाप्रमन्तसंयतादवौक्‌ कतव्यम्‌, भप्रमन्तादोनां मोक्षैऽप्यनभिलाषात्‌ तदेवंविधश्भ- फनप्रणिधानपयेन्तं चेत्यवन्दनम्‌ १२४ द्दानोमनन्तरकरष्योयमाडइ

ततो गृङूणामभ्यग प्रतिपत्तिपुरःसरम्‌

विदधौत विशुहात्मो प्रल्याख्यानप्रकाशनम्‌॥ १२५॥

(१) सधुवषमेतुस्सति सामर्ययेःप्रतन्नारच। दषभादिक्षानि cat wrafaqgifa Safa net

९५६ MAAS

ततोऽनन्तरं गुरूणां धर्मावार्य्याणां देववन्दनायेमागतानां खातादिदशनधममंकथाद्यथै aaa खितानामभ्य्े उचिते समीप, उचितत्वं चाधंचतु्ंस्तप्रमाणात्‌ चेताद्‌ बवहिरवसखानम्‌, प्रति- पत्तिर्व्याद्याख्यमाना वन्दनकादिरूपा वा, ततपुरःखरं तत्‌पूवेकं, विदषीत wana, fageranr निमलचिन्तो नतु canfegm:, प्रत्याख्यानस्य Zagat क्तस्य प्रकाशनं गुरोः पुरतः प्रक- टनम्‌; fafad fe प्रत्याख्यानविधानमामसाचिकं देवसालिकं गुरुसालिकं १२५ प्रतिपत्तिपुरःसरमित्युक्षमिति गुरप्रतिपततिं Maia दगेयति--

MIA तदालोकेऽभियानं तदागमे | शिरस्यश्रलिसंञ्नेषः खयमासनढौकनम्‌ ॥१२६॥ भासनाऽभियहो HAI वन्दना प्युपासनम्‌ | तदयामैऽनुगमसे ति प्रतिपत्तिरियं गुरोः १२७॥

WAI सप्भूममासनत्यागः, तदान्तोके शुरूषामालोकने सति, भ्रभियानमभिमुखं गमनं तदागमे गुर्वागमे, गिरसि मस्तके गुरद्भनसमकालमश्नलिसंकन्ेषः करकोरककरयं नमो खमास- मणाणंति वचनोच्ारपूवेकं सख्यभित्यासना तु परप्रषधन : भासनढौकनमासमसत्धिघापनम्‌ ॥१२९॥ भासनाऽभिग्रहः भासन , उपविष्टेषु गुरुषु खयमासितव्यमित्यभिग्रहः भासनाभिग्रहः, azar भक्तिपूर्वकं वन्दना पश्चविंशत्यावश्यकविश्एदं वन्दनं खानखितानां गमनादिव्याङ्ललत्वाभावे पथ्डुपासनं सेका, कषां गुरूणां याने

ढतोयः प्रकाशः | ९५७

गमनेऽनुगमनं पृष्ठतः कतिपयपदानुसरणनमियं प्रतिप्तिङ्पचार विनयङ्ूपा गुरोधमचायेस्य १२७ ततो aaa घमदटेशनां खुत्वा-

ततः प्रतिनिहत्तः सन्‌ स्थानं गत्वा यथोचितम्‌ | सुधौधंर्माऽविरोधेन विदधौ तार्थचिन्तनम्‌ १२८

त्तो gaze प्रतिनिहठत्चो व्याहन्तः मन्‌ यथोचितं खानं. गत्वा यथोचितमिति यदा राजादिस्तदा घवलण्हं quae दिस्तदा करणम्‌ ; wa वणिगादिस्तदा प्रापमिति सुधोबुहि- मान्‌ विदधीत प्रथचिन्तनमर्थोपायचिन्तां धम विरोषेनेति ware जिनधर्मस्य भ्रविरोधेन भवाधया। wa चाथेविन्तनमित्यमुवाद्यं तस्य तःसिदत्वात्‌, धमविरोघेमेति विधेयमप्राप्तलात्‌ wat. विरोधश्च रान्नां दरदरिरयो्मान्यामान्ययोङ्क्षमनो चयोर्माध्य- स्येन न्धायदर्शनात्‌, नियोगिनां राजाधप्रजायथंसाधरेन, वणिजां कूटतुलाकूटमानादिपरिहारेण पश्चदशकमादानपरि- हारेण Always n १२८

ततो माध्याङ्किकौं पूजां कुर्यात्‌ क्त्वा भोजनम्‌ | afafe: सह शास््नाथरषटस्यानि विचारयेत्‌ १२९

ततस्तदनन्तरं माधष्याह्िकौं मध्याङकालभाविनों gsi

जिनसपश्यां कुर्यात्‌ क्त्वा विधाय भोजनमित्यनुवादः। माध्य-

डिकोपूजाभोजनयोख्च कालनियमः | तोत्रबुभुक्तोहिं ayar- ba

gut MANS

कालो भोजनकाल इति esaarsizaafa रष्टोतप्रत्याख्यानं तोरयित्वा देवपूजापूवेकं भोजनं gaa दुष्यति wa चाऽयं fafa:—

'"जिनपूश्रोचिभ्रदाणं परियणशसम्ालणा sfeafard |

STUATAT AGT TIT PUTT

तथा भोजनाऽनन्तरं auaal afaafeare: प्रत्याख्यानसख्व कर्थं प्रमादपरिजिरौर्षोदहिं प्रत्याख्याने विना a युक्तं चषण- मध्यासितुम्‌ यास््राथौनां रहस्यान्येद्‌ पयधाखि विचाग्येदिदभिद्य भवति मेति ar सम्प्रधारथेत्‌ , कधं, ae सापे कंस्तहिदहिः तच्छा- mua विदन्ति ये तेः, गुरुमुखात्‌ शतान्यपि शाखा रहस्यानि परिशोन्ननाविकलानि चेतसि सुटदप्रतिष्ठानि भवन्तोति BATH १२९॥

ततश्च सन््यासमये क्रत्वा Sarat पुनः | क्रतावश्यककमां कुर्यात्‌ खाध्यायमुत्तमम्‌ ॥१३०॥ ततस्तदनन्तरं यो fares भिकालसमये रन्तर्मुहर्ताद- वोग्‌ भोजनं कत्वा सन्यासमये पुनस्तुतोयवारं देवार्चैनं कत्वा खाधुषमौपं गत्वा भूमिकोचित्येन षड्विधावश्यकं सामायिक-

चतुर्वि शतिस्तव वन्द्नक-प्रतिक्रमण-कायोत्सर्ग-प्रत्याख्यानलक्तं कुथात्‌ ; तत्र सामायिक्रमातरौद्रध्यानपरिषारेणण धर्मध्यानपरि-

(१) जिनपूजोचितदानंपरिजनसंभालनपचितन्लत्म्‌। सयानोपदेण तचा ATA संभरण्म्‌ 1

Sala: प्रकाः। ६५९

करणेन शत्रमितढणकाञ्चनादिषु खमता, तञ्च पूवेभेवोक्तम्‌। चतु- विंतेस्तौधे कराणां मामोलकौतनपूवैकं स्तवो गुणकौतनं तस्य कायोत्गें मनसाऽनमुध्यानं शेषकालं व्यक्तवखंपाठः | भयमपि gage; | वन्दनं वन्दनायोग्धानां धर्माचार्याणां पञ्चविंथत्याव- श्यक विकर हार्तिंश्दोषरहिनं नमस्करणयम्‌ aq पञ्चविंशतिराव- ष्यकानि यथा-

'दुश्रोणयं ब्रहाजायं fara वारसावयं |

asfat तिगुत्तं दुपषेसं एगनिक्वभमगं ९॥ इलति!

हे अवनमने इच्छामि खमासमणो वदिडं जावशि- sg नितोहियाए इत्यभिधाय गुरोन्डन्दागुन्नापनाग्र प्रथम- मवनमनम्‌ ।१। यदा पुनः छलावर्ना निष्क्रान्त इच्छामोत्यादि- सूतरमभिधाय पुनम्डन्दोऽनुक्नापनायैव तदा हितौयम्‌ २। तथा यथाजातं जातं AA तच्च दधा प्रसवः प्रत्रज्याय्इणं तत्र प्रसवकाले रचितकरमंपुटो जायते प्रत्रज्याकाले ग्टदहोतरजो- इरणमुखवस्त्रिक दति यथाजातमस्य यथाजातस्तथाभूत.पए्व area शति वन्द्नमपि यध्राजातम्‌ ।२। तथा हादशावतौः कायवेष्टाविश्चेषा गुरुचरणन्धम्तहस्तगिरःसापनर्ूपा यस्िंस्तद्‌ हादगावतेमिह प्रथमप्रविष्टस्य wet कायं इत्यादि aat- चारणशगभाः षडावरतः निष्क्रम्य पुनः प्रविषटस्याऽपि एव षडिति wenyeul चत्वारि शिरांसि यस्मिन्‌ तच्वतुःशिरः

(॥) हय्मश्रनतं यथ।जातं लतकमं हादचावतम्‌। चतुःशिरः लिथुप्रं हिपवेयमेकमिव्कुमणम्‌

६६० योगशास्त्र

प्रथमप्रषेे लषामणाकाले शिष्याचाययोरवनमच्छिरो हयम्‌, निष्क्रम्य पुनः nat तथेव िरोहयम्‌ १८ जिशुप्ं मनोवाक्काय waa २२। तथा प्रमोऽनुन्नाप्य wast feta: पननिर्गत्य waa इति हौ aa aa तद्‌ हिप्रवेगभेकं निष्क्रम खमावश्यक्या निगेच्छतो aa तदेकनिष्करमणम्‌ | २५। हाजिंशदोषा यथा

'अणादियं use पविद्ठं परिपिडियं।

टोलगड् vad चव ता कच्छभरिगिष्रं॥१॥

च्छोव्वत्तं मसा पच तह बैद्याबहं।

भयसा चेव भवंतं AM गारवकारण्ण २॥

` तैशिभ्ं पडणोभ्रं चेव az तस्नियभेव ada vifad चेव aw facfadfad ues fezoafees तषा faa करमोषरषं। भालिष्ठमनालिचं ad उत्तरच्‌लिभ्रं iy

(१) saved wat प्रविद्धं oftiafasag | टोक्गति wad तथा कच्छरपरङ्गितम्‌ ! मत्योहुतं मनसा use तथा बेदिक।बडम्‌। भयाद्‌ चैव भजमानं सेली गौरबश्नारणम्‌ खत गकं प्रयमोकं चेष ee तरखितमेव «| ud WVifed चेव तथा विपरिकृश्चितम्‌ oes SLATE तथा WH GT करमोचनम्‌ | aifweanfaeqrgucafang ४॥

BARNA: प्रकाशः | ९६९१

‘qu cust चेव uefa श्रपच्छिमं | बत्तोसदटोषपरिमुद्वं fara पडंजए ॥५॥

अनाटतं सश्भूमरहितं वन्दनम्‌ ie) स्तब्धं मदाटकवशोक्लतस्य वन्दनम्‌ ।२। Wad वन्दनं ददल एव पलायनम्‌ i ufcta fase प्रभूतानां युगपदन्द्नम्‌, यहा Haale want व्यवस्थाप्य परिपि- ख्डितकरचरणस्याऽव्यक्तसूतोचारण्पुरःसरं वन्दनम्‌ ।४। Diana तिङडवदुत्‌्ञव्योतृ्ुतय विसंस्थलं वन्दनम ।५। ब्रह्शमुपकरणे चोल- VERT CS वा AAW समाक्षष्य TENA गजस्येवाचा- यस्योध्वसितस्य शयथितस्य प्रयोजनान्तरव्यग्रस्य वा वन्दनकाथ- मासन उपवेशनम्‌ fe पूज्याः कदाचिदप्याकषणमहन्ति, भविनयत्वादस्य, यहा रजोहरणमष्टुश्वत्कदयेन WHAT वन्दनम्‌, यदि वाऽद्शाक्रान्तस्य इस्तिन इव शिरोनमनोरमने कुर्वाणस्य वन्दनम्‌ igi कच्छपरिद्गितसूष्वंखितस्य ति्तिसण्यरा इत्यादिसूज्- सुचारयत उपविष्टस्यवा wel कायं काय इत्यादिसूवसुच्ारयतो- ऽग्रलोऽभिसुखं पादभिसुखं रिङ्गतबलतो वन्दनम्‌ io मल्छयो- दृव्त्तमु्िष्ठत्रिविशमानो वा जलमध्ये WaT इवोहतते Vena यत तत्‌ | यद्वा एकं वन्दिता हितोयस्य साधोरदुतं हितोयपार््ेन रेच- Haat AAI Was वन्दनम्‌ मनसा प्रदुष्टं शिष्यस्त- aaa वा गुरुणा fafauquafafea यदा भवति तदा मनसो दूषितत्वाद्‌ मनसा Wee, यहा वन्दो होन: केनचिदहुणेन

(1) qawoesd चेव चडकन्िच्चापचिसम्‌। हातिंचहोषपरिपुद्धंशतिकमंप्रयुन्मोत॥५॥

mth योगशास्त्र

तनोऽङमेवेविध्रनाऽपि वन्दनं दापथितुमारण्य इति चिन्तयतो वन्दनम्‌ ict Qfeanrad जानुनोरूपरि went faasa wat a पाश्वयोवपी sag वा जानु. ata: Bal a इति पश्चभि- वेदिकाभिवें गक्ष वन्दनम्‌ ।१०। बिभ्यत्‌ सङ्कात्‌ कुलात्‌ गच्छात्‌ सत्राहा निष्क।सयिष्येऽहमिति भयाद्‌ वन्दनम्‌ et) भलमानं waa at शेवायां पतितो मम wa वा मम भजनं करिष्यति ततोऽहमपि वन्दनषल्ं निषोरकं निवेशयामोति बुदा वन्दनम्‌ | १२। मेत्रीतो मम faaaraa इति, भावार्येखेदानीं aat wafafa ar वन्दनम्‌ १३२। गौरवादन्दनक्रसामाचारोकुशलो swfafa गवादन्येऽप्यवगच्छन्तु मामिति यथधावदावर्तदोना- राधयतो बन्दनम्‌ ies! कारणाद्‌ न्ञागादिव्यतिरिक्रादस््नादि- ल।भषेतोर्वन्दनम्‌, यहा च्रानादिनिनित्तमपि लोकपृज्योऽन्येभ्यो वाऽपिक्रतरो भवामोत्यभिप्रायतो वन्दनम्‌, यदा वन्दनकमूल्य- वभौक्ततो मम प्रार्थनाभङ्क नं करिष्यतीति बा वन्दनम्‌ ।१५। wfaa मम लाघवं भविष्यतोति परेभ्य sara निगृूहयतो वन्दनम्‌, भयमर्थः- एवं नाम WIA वन्दते यथा स्तैनवत्‌ केनचिद्‌ ee: कैनचिन्नेति ।१६। प्रत्यनोकमाहारादिकाले वन्दनम्‌ ।१७। यदाष- "व क्विक्षपराहु ते पमत्ते मा कयावि वंदिल्ना आहारं करिति Tet वा जङ्‌ Hts uw १॥

(9) ब्यालिप्रपराभूतान्‌ प्रमत्तान्‌ ar कदापिवन्दिः। argie कुवतो नोहर वा यहि शरोति॥!॥

BANA: WRIT: | ६६२

रुष्टं क्रोधाश्मातस्य गुरोवेन्दनमाकना वा क्रुदेन वन्दनम्‌ ।१८ तजिंतमवन्यमानो कुप्यसि वन्दमाना विशेषन्नतया प्रसो- दसि इति fanaa यदा बदुञजनमध्ये मां वन्दनं दापय॑स्तिष्ठसि ज्ञास्यते मया तवेक्षाकिन इति धिया तर्जन्या शिरसा वा तजं- यतो वा वन्दनम्‌ eel Ws शाय्येन विश्श्ना्धं वन्दनं गलानादि- व्यपदेशं वा mat सम्यग्वन्दनम्‌।२० होलितं हे गणिन्‌ वाचक | किं भवता वन्दितिनेत्यादिना भवजानतो वन्दनम्‌ ।२६१। विपरिकुंचितम्‌, adafen एव देणादिकधाकरणम्‌ ।२२। दृष्टाद्टं तमसि खितः कैनचिदन्तरित एवभेवास्ते evy वन्दत इति।२३।. शङ्कु WEY कायं काय इृत्याद्यावर्तीनुश्चारयतौो ललाटमध्यटेशम- wna: शिरसो वामदे शङ्क Waal वम्दनकरणम्‌ ।२४। करः कर दव राजदेयभाग इव अहप्रणोतो बन्द्नककरोऽवश्यदातष्य दूति धिया वन्दनम्‌ ।२५। मोचनं लौकिककराहयं Yat नमुश्यामहे वन्दनकरादिति दधया वन्दनम्‌ ।२६। आश्जिष्टानाञ्धिष्टमज् चतुभन्गो, सा श्रो कायं काय इृत्यादावतकाले भवति -रजोहरणस्य शिरसग्र कर(भ्यामान्चेषणं, रजोहरणस्य शिरसः, शिरसो रजोहरगास्य, रजोहरगस्य नाऽपि fata: | Wa प्रधमः शः शेषासु दुष्टाः २७। नुनं व्यच्ननाभिलापावश्चकं रसम्पु णम्‌ ।२८। उत्तरचुनलं वन्दनं a महता शब्देन मस्तकेन वन्दे इत्यभि- धानम्‌ २८ | BR श्रालापाननुच्चारयतो वन्दनम्‌ 1201 TEST महता गष्देनोच्चारयतो वन्दनम्‌ ११ Teal saya यधोरुकं गह्यते तथा Tiedt wha aed, यदा यत्र दौचघहस्तं

१९४ | योगासन

प्रसाय बन्दे इति Nal वन्दनम, अधवा wel wafaar खवीन्‌ वन्दे इति वदतो वन्दनम्‌ ar) वन्द्नके शिष्यस्य षडभि- लापा भवन्ति, तद्यथा इच्छा भ्रमुन्नापना भव्यावाधं याज्रा यापना भपराधक्षामणा च, |

यदाह-

"इच्छा MOGI VATE जन्त लवणा अवरादहख्वामण्या विय sara y fa aay १॥ गुरुवचनान्धपि षडेव यथा छन्देन अनुजानामि तथेति तुभ्य- मपि वतेते एवमहमपि स्षमयामोति। यदहइ- ‘wea अणलाणामि तडत्ति quifa age एवं | अहमवि खाभेमि qa प्रालावा deufcway ue एते हये भरपि यथाख्यानं सूत्रश्याख्यायां दश यिष्यन्ते | ay a— | च्छामि खमासमणो dfed जावणखिक्नाण fadifeata ्रलुज्ाणडमे fasad निसोदहि wei कायं कायसंफासं खमखि- ol भे किलामो भष्यकिलंताणं aggqua a दिवसो asad जसा भे जवणिल्ज भे खाभेमि वमासमणो टेवसिषरं and

(१) इच्छा चातुच्लापना BArard याना याप्माच। ऋअपराधरामणा चेव षट ख्यानानि भवन्ति वन्द्नके॥ !॥ (९) दन्देनाततजानाभि तथेति तदाऽपि भतेते एवम्‌ | ayaa शमयानि तवाखापाद्‌ बन्द्नाङ्ख॥!।

ठतोयः प्रकाशः | ६६५

भ्राव्रह्तश्माए पडिक्लमामि खमासमणाणं देवसिश्राए भासयां तित्तोसब्रयगाए जं किंचि मिच्छाएण मणदुक्डाए वयदुक्रडाए कायदुक्षडाएण RIL माणाए मायाए atwig सव्वकाल्ियाए सव्वमिच्छावयाराए CAVA CHATT WAU at मे ष्रद्ू- रारो aT aa खमासमणो! afeaaifa faafa afcerfa ward वोसिरामि। व्याख्या - भत्र हि fret गुरवम्दनेन वन्दितुकामः gf aq- वन्द्नपुरःसरं संदंशक प्रसज्योपविषट एव मुखवस्िकां पश्चविश्ति- कत्व: wean, ‘aar शरोरं wefdufaaa wana ate विनयेन मनोवाककायसंश्ो गुरोः THINITIATATUIY चेताद्‌ बहिःखितोऽधिन्यचापवदवनतकायः करदयण्टङोतरजोहरष्ादि- वेन्द्नायोत एवमाह - इच्छामि भरभिलषामि waa वलाभि- योगः परिष्तः, समायम्‌ | लमूति aya इत्यस्य faurefe सभा सहनमित्यथः, श्राम्यति संसारविषये fem भवति तप्स्य- तोति वा, नन्द्यादित्वात्‌ कतरि va खमणशः, लषमाप्रधानः WAT: चमायमणः तस्य सम्बोधने प्राते खमासमणो! डो Dat ar’ a ( सिहषेम०८।३।३८ ) दति maa सेरडोकारः, लषमाग्रहषेन मादवाजवादयो गुणाः सूचिताः। ततञ्च चषमादिगुणोपलसित- यतिप्रधान ! waa वम्दनादतवं तस्येव सूचितम्‌, किं aq’ वन्दितुं नमस्तु भवन्तमिति गम्यते, कथया, यापनौयया नेषेधिक्ा, wa नेषेधिक्येति विष्य, यापनीोययेति विशेषणम्‌,

| (१!) तचा। ८४

६९९६ योगशास्त्र

“षिधु गत्याम्‌! इत्यस्य निपूर्वस्य घलि निषेधः प्राणातिपातादि- निहति; प्रयोजनमस्या नेषेधिकौो. तनुः, तया कौदश्या, यापनौयया ‘ata प्रापणे" wa णिगन्तस्य ama यापयतीति यापनीया प्रवचनोयादिलात्‌ कतर्यनौोयः तया, शक्ञिखमन्धितया इत्यधेः। WE समुदायाः | 2 चम णगुणयुक् ! we शक्तिषमन्वित- शरोर; प्रतिषिद्पापक्रियख त्वां वन्दितुभिच्छामि। wa faze: | Wa चान्तरे गुरर्यदि व्याक्चेपबाधायुक्लस्तदा भणति प्रतोचखति तच्च बाधादिकारणं यदि कथनयोग्यं भवति तदा कथयति waar त॒ नेति शुषिंकारमतम्‌, हत्तिकारस्य तु मतं तिविघेनेति भति मनसा वचसा कायेन प्रतिषिदी ऽसोत्यधे; | ततः शिष्यः सं्चेपवन्दनं करोति व्याक्चेपादिरहितखेदुरः तदा वन्दनमनुज्नातुकामः छन्दे- नेति वदति छन्देनाऽभिप्रायेण ममाऽपि एतदभिप्रेतमित्यथे; | ततो विभेयोऽवग्रहाद्‌ बहिःखित एतैवमादह भनुज्ानोत wana मे इति भाव्निदेशे,. fai, मितञ्चासावषग्रह मितावग्रहः, दशा चायस्य wey fey भामप्रमायं चेतमवग्रहः, तसिव्राचाय्या- sant विना प्रवेष्टु कल्पते,

Tete |

'भायप्यमाणमेत्तो qed wie श्रवगष्ो ATT | ayaa सया ware aa पविसेडः

“^ 5 $

" ` {१} ऋात्प्रमाव्यमालचतुदिषं भवत्बवयष्ो TU: | BATA TI कलते तत्र HIET wt

WALA: प्रकाशः | ६६9 `

तनो शुरुभणति-्रनुजानामि। ततः शिष्यो भुवं wae नेषेधिक्रीं कुवन्‌ qaaue प्रविशति | faatwifa निषिरदसर्वाशु- भव्यापारः सन्‌ प्रविशाम्यहमिव्यर्धैः | ततः संदंशप्रमाञनपूवंक- सुपविशति। शुरुपादान्तिक्षे भूमौ निधाय wwe त्म्ये गुरुचरण्युगततं संखाप्य सुखवस्तिकया TATU वाम- स्तन दल्तिणकणं यावक्षलाटमविच्छत्रं वामं जानु चिः! प्रख्य सुखवस्िकां वामजानृपरि ख्यापयति ततोऽकारो- खारणसमकालं wey कराभ्यां संसएश्य शोकारोच्चारण- समकालं ललाटे GAA | ततः काकारोचारणषमक्रालं रजो- हरणं YET यंकारोच्चारणसमकालं ललाटं स्पृशति | yag काकारोचारणसमकालं TET WE यकारोचचारणसम- कालं wae स्पुणति। ततः. संफासमिति वदन्‌ शिरसा पाणिभ्यां रजोहरण्ं स्पृशति | ततः भिरि aerafa: "खम- faust भे किलामो' इत्यारभ्य ‘feat वश्कतो'` यावद गुरमुख fafavefe: पठति अधस्तात्‌ कायोऽघःकायः पादलच्षणस्तं प्रति कायेन निजदेहेन ` इस्तललाट्लक्षणेन dan sane करोसि! इति गम्यते एतदपि. ममनुज्ानोधष्वमित्यनेन योगः आचायमननुन्नाप्य-हि-संस्यर्मो ad! fan afa—ea- गिन्नो चम णयः Peer, a wafs:, किलामो कमः day afa देदग्लानिरूपः। तथा, wafadard we स्तोकं क्तान्तं क्तमो

(१ )-च.्िः.प्रदचिष्दोलत्य प्रञ्च।

६९८ योगशास्त्र

येषां . तैऽल्यक्तान्तास्तेषामण्यवेदनानाभित्यथः, वद्ुसुसेण ay reed aya तेन वहसुखेनेत्यधः, मै waza, दिवसो वद््‌- Wat दिवसो ..व्यतिक्रान्तः। अचर ferred राविपचादो- नासुपलक्षणं द्रव्यम्‌ एवं योलितकरसंपुटं गुरोः ufaaaa- मो्षमाणं fad प्रत्याह qe:—‘ay fa’ तथेति प्रतिञखवकरे, va तथाकारः यथा भवान्‌ ब्रवौति Aa: एवं तावदाचायंशरौर- वाता एष्टा wa तपो नियम विषयां वातो एच्छव्राह- जत्तामे, ‘WH इत्यनुदासस्वरेणोच्चरयन्‌ रजोहरगं कराभ्य। GET रजोहइरण- लन्ाटयोरम्तराले “ar इति afcia खरेणोच।यं, seraata भे' इत्युश्चारयन्‌ गुरुमु खनिविष्टटरश्टलिलाटं स्यृगति, यात्रा संयम- तपोनजियमादिन्नखण। सायिकक्षायोपशथमिकौपश्मिकभ।वलनलणा वा मे भवताम्‌ 'खक्छपति इति गम्यते। wnat गुरोः प्रति. वचनम्‌ ‘gai पि are’ मम तावदुक्षपेति, भवतोऽप्युकपति। अधुना नियन्णोयपदाधविषयां वाती एच्छन्‌ पुनरप्याह विनेयः-जवशिल्लं भे, ‘a’ इत्यनुदा्षख्छरेष्ट रजोषरणं TE ‘a’ इति स्व रितस्वरेण रणोहरणन्लाटयो रन्तराले Bate गिशब्द- सुद तरणो चारयन्‌ कराभ्यां ललाटं स्पृशति, पुनः प्रतिवचनं WAGs, भरधसमाप्तलात्‌ प्रश्रस्य ; ततो “व्लं' इत्यनुदातसखर्णो- श्चायं कराभ्यां Tete TAT gata रजोहरशलल।टाम्तराले ‘a दति घरितस््ररेगोशाय ‘F दत्युदात्तस्वर्णोच्चारयन्‌ कराभ्यां ललाटं aE प्रतिवचनं शभूषमाणस्तथेवास्ते ; safes

यापनौप्रमिग्द्रियनोद्न्द्रियोपश्रमादिना प्रारेणाबाधितं मै

कनोयः प्रकाशः | ` ९९

भवतां “शरोरम्‌' इति गम्यम्‌ एवं परया भका एच्छता विनेयेन विगयः क्तो भवति। भवान्तरे गुरुराह-एवं भ्राम यापनोयं चमे wat) दृदानोमपराधलामणां कुवन्‌ रजोहरणोपरि- न्धस्तहस्तमस्त fata इदमाह--“खाभमेमि खमासमणो ! देव- fed asad’ समयामि लमाश्रमणख| दिवसे भवो देवसिकस्सं व्यतिक्रममवश्यकरणोययोगविराधनारूपमपराधम्‌ | | wart गुरुवदति-`रहमवि खाभेमिः अहमपि eaafa दैवसिकं श्वं व्यतिक्रमं प्रमादोद्धवम्‌ | ततो fata: प्रणमन्‌ चमयित्वा ‘sigfaary इत्यादि जोमे भष््रारो aay इत्यन्तं खकोया- तिचारनिप्रेदनपरमालो चना प्रायचिन्तसूचवं सूतं तच्छ खमा- समणो पडङ्गमासिः? इत्यादिकं प्रतिक्रमणाहप्रायचिन्षाभि- धायकं पुनरकरश्चेनाभ्युयित sand गोधयिष्यामोति वुदा- awe नित्य पठति,- श्रव्यं waaay चरणकरणेषु भवा क्रिया आव्श्यको तया ्रासेवनादारेण हेतुभूतया यदसाध्वनुष्ठितं तस्मात्‌ प्रतिक्रमामि निवर्ते; बल्यं सामान्धेना- भिधाय विेषेणाभिचत्ते--स्षमाशमणानां संबन्धिन्या देवसिक्या WAAAY Naat @war waar तया, किंविशिष्टया, चथस्तिंशदन्धतरया त्रयस्िंग्स्ंख्यानामाशातनानामन्यतरया कयाचित्‌, उपनक्षणत्वाद्‌ हाभ्यां तिद्धभिरपि, यतो दिवसमध्ये wat पि संभवन्ति; ताञ्च व्यन्त ; यत्‌ किञ्चित्‌ कदटालम्बन- afaa सिय्यप्रा faaigaa क्नयेत्यधैः; भिष्याभावोऽता- स्तौत्यश्वादित्वादकारे मिष्या, एवं क्रोधयेत्यादावपि; मनसा

4 MAN `

ERM मनोदुष्कृता तया प्रेष निमित्तधेव्यधः.; वाग्‌दुष्कृतया भसम्यपरुषादिव चननिमिश्षया, कायदुष्क्तया भासन-गमन- श्यानादिनिमित्तया, क्रोधया क्रोधयुक्षया, मानया MATT, मायया मायायुक्षया, लोभया लोभयुक्षया ; wa भावः- क्रोधा चनुगतेन या काचिद्‌ विनयञ्ंशादिललषाऽऽशातना कता तयेति एवं. देवसिक्धाशातनोक्षा ।. मधुना पचच-चतुर्मस- सुंवतव्षरकालक्लता इहभवान्यभवगतातोतानागतकालक्लता या पआशातना तस्याः संग्रहाथमाह-सव्वकाल्ियाए' सर्वकालेषु war सावैक।लिकौ तया | भनागतकाले कथमाश्चातनासंभवः षति चेत्‌। | oat —‘aise गुरोरिदमिदं वानिष्टं कर्तास्मि" afa चिन्तया। ca भवान्तरेऽपि तदईधादिनिदानकरणेन संभवत्येव सवं एव मिष्योपचारा माटस्यानगर्भाक्रियाविगेषा qatar सवतिष्योपचारा तया। सवे धर्मा wel प्रवचनमातरः सामान्येन करणोयव्यापारा वा tuafamad aya विराधनं यस्यां खा सवधमौतिक्रमणा। एवंभूतयाऽऽणातनया यो मया- तिचारोऽपराधः क्षतो विद्ितस्तस्वातिचारस्यं हे Walaa | मुसत्सा्िकं प्रतिक्रमामि भयुनःकरणेन निवतं ;` तथा, दटकमे- कारिणं मिन्दाम्यासानं भवोदिगनेन anda चेतसा ;. तधा, गहं wand दुष्टकमेकारिणशं युखससाछिकम्‌ ; ब्युतृजाम्यासामं दुष्टकमकारिषं तदनुमतित्वागन। एवं तत्र एवार्घौवनतकायः पुनरेवं भणति--"द्च्छामि Garand’ इत्यारभ्य यावद्‌ 'वोसि- दासिः इति; परमयं षिशेषः--भवग्रहाद्‌ afefaenrectea

Bala: WAIT! | GOR

भावश्यको विरहितं eundd पठति। वन्दनकविधिविैष-

संवादिकाश्ेमा गाधाः- mace मूलं विणभ्रो सो geri भ्र afer साश्र विहिवंदणाभ्रो विष्टो इमो वारखावत्तो + १॥ हाउमहाजाभो बहि संडासं TAM. sae AST | पडिलेहियसमुष्पकस्षोपमल्निभ्रोवरिमटेचो उट्‌ठडं परिसंठिशरङकष्परट्‌ टि श्रपद्गोनसि्काश्नो | लु सि पिदहिश्रपच्छडो पवयशकुच्छा ae होड॥२॥. वामंगुलिमुहपोत्तोकरजु ्रलतललयज सरयषरणो | अवणिय जहोत्तदोसं गुरसं मुदं vas पयडमिखं ४॥ श्च्छामि खमासमणो इचा जा निसोहियाएरस्ति। Sew ति gas गुरुवयणं Sue जाए.॥ ५॥

(१) atmca g भूलं विनयः gaara प्रतिपत्तिः साच विधिवन्द्नाद्‌ विधिरयं grentad: ain भूत्वा यथाजातो बहिः Gee प्रडव्योत्कटक्स्थानः प्रतिलिखित्चखव्रस्तिकाप्रमार्जिंतोषरि मदेः wn खल्याय: प्रतिसंस्थितङ्पंरस्थि तपठृकावनतकायः। बुक्किपिड्ितपचाधः प्रच्यगकृत्यायथान भवति TY बामाङ्जुःलिसखवरस्िश्ाकरयुगलतणखस्यबुक्तरजोहरणष्डः। ` अपनोय ating गुरूमंहखं भणति प्रकटमिदम्‌ ven ` cwufa शमाश्रमख ¦ canfe यावद नेषेधिक्येति। ` धन्देमेति ger चुख्वच नमह्‌ याति ॥१॥

९७२ योगशास्त्र.

"भाजा मे मिखम्गहमणजाणामि fa भासिए gear sawed पविसड caer संडासए निमिए + ६॥ वामदषं रथष्रणं Gas भूमोए संठवेजण | सौखपफुसण्ेण wie! wet ति awl पठममेव वामकरगदिश्रपोत्तो TAG VARA | wither fuga पमल्व जा etfeat कसो ॥८॥ भव्वच्छितघ्रं वामयजार्‌ नसिलजण तल सुहपोत्तिं | रयहरणमञ्भदेसश्छि TAT पुक्नपायजुगं सुपसारिभवाइजभो ऊरुजुभरलंतरं भफसमाणो | जमलट्‌ ठिभ्रग्गपायो प्रकारभुच्चारयं.फसद्॥१०॥ पड्भंतरपरिभ्ररिभरकरयलसुवशोच्र तोसफसकतं |

तो करजुभ्रलं fant होकारोचारसमकालं ११॥

(१) अतुजानीोध्वं से भिताव्यहमसजानानोति भाषिते gear आष्यश्खेनं प्रविशति प्रल्ध aed निषं)देत्‌ abs वामदशं रोर HAG YR Cary | facudaa भविष्यति काय सिति ततः पथमभेव ॥७॥ वामकरम्दषोतश्चखवद्िक एकटेशेन वामकर्खात्‌। Tag wars प्रजञ्छ wry efaw: कथः ॥८॥ च्य च्छं वानच्लातुष्टदा तन्‌ सखवद्िकाम्‌। रनोहरव्यसष्यरेषे स्या पयेत्‌ पूञ्छपाद्वबुमम्‌ ॥९॥ चपसारितबाहवुग जख्बुगखान्तरमस्तुथत्‌। बललस्वितायपाखिरशारसञ्चारयम्‌ स्मृति acs ्भ्यन्तरपरिवस्िंतकरतव्लपनोब face eiararg | ततः करबुगखं way ङोकारो्ारण्मकावम्‌॥1॥ =

BAA, प्रकाशः |

ga 82a सुहकरयल काकारसमं ठविष्न TANT | य॑सदहेणं समयं gut fa Md ACAD WLR काकारसमुच्ारणसमयं रयडहरणशमालुहेजण |

a faa ety aa guy fa ald तहचेभ्र॥ १२॥ संफासं fa भणंतो सोसेणं पशमिजण Taye | उव्रामिभरसरंजलि Waray तप्रो पुच्छे १४॥ खमखिव्लो भे fama भष्पकिनंताथं aggad भे।

few पक्खो afta at वश्कंतो श्य amt तुस्िणो॥१५॥

गुरुणा तद fa ufaq wear nau पुच्छियव्वाय। परिसंहिएण इमो सराण HITT कायव्वं॥१६॥ aa परिभासेमो मंदमद्विषेभ्रगाद्ण्ट्‌टाए। MITABRATM सरजौ भो ठवेयव्वा १७

(1 ) पुमरधस्ताद्‌ छखक्ररतलं काकारभमं स्याप्वेद्‌ रजोषरणम्‌ | यं शब्दन सभक पुनरपि शिरस्तथेव ॥१२॥ काकारषमञ्धारस्यसमशं रजोकरखमाज्िष्य।

afar शब्दन सभं पुनरपि facwes tyes संफासं इति waq शिरसा प्रणम्य TMYTS | उच्चाभितसूषांञ्मलिरव्यावाचां ततः इष्छेत्‌ ween शमखोयो भवद्भिः क्रमो खङ्ञान्तानां बह्कशुभेन भवताम्‌, fea पचो aa at व्यतिक्रान्तभिति ततसृष्णोकः १५॥ गुरुणा तथेति wiws याना agar 4 nea च| ufcdfmaad खराखां योगेन कतब्यम्‌ ॥!६॥ तत्र परिभाषालहे मन्द्मतिविनेवयाङ्णाचम्‌ | नोचोञ्जभव्यमाः सरबुक्तबः खयापयितव्याः ॥1अ॥

८५

९७ ` - योगशास्त्र

'नोभो aT रयदरे SAAT उदको

Me निदंखणोभ्रो तदंतरालम्मि सरिभ्रोय॥ १८॥ भणदत्तो भ्र TAHT Al Blew Ele a उदन्षसदो। quifa aafager अनुदश्ता सुशेभ्रव्वा १८

चलं पणदत्तो भर पुणो afew मे उदन्तषरणामो | एवं रयहरणाश्सु fag Ts GU Tar wy ro 1

Use भ्रावन्षतिगं वख्छदुगेणं तु रद्यमणकमभसो | वोयावत्ताशच faa fate fafe वस्तेहि निपफत्रं + २१॥ रयदष्रणस्मि जकारं लाकारं करलुएणण मञ्भश्ि। मकारं सोसलश्विभ्र काडं गुरुणो वयं सुगसु॥२२॥ qed fa aze fa गुरुणा भगिश्रम्ि सेसभावन्ता। efa वि are तुसिणो जा गुरुणा भखिश्रमेवं ति ॥२३५

Ne en en त, भज ता धिये, ee eee

(१) नोचखव्रातुदासो रजोडरस्ये SYS SeTUA |

wy निदथंनोयस्तदन्नराले खरितश्च ॥१८॥ ब्यतुट्‌। तख जकारः a afta भवति मे उदटा्षख्लरः। पुमरपि लर्वण्शन्द्‌ा यनुट्‌त्तादयो Waa: WEN - ख्जं अतुटास्तञ्च Ya स्वरितो भे उट ्तखरनाभः। एवं रजोोषर्णादिषु fay ख्यामेषु खरा Har: ॥२०॥

. प्रथमम।वतलिकं वं दिकेन तु रजितमचुक्रमशथः। इितोयावर्तानां तिकं fafafefatdfanga ॥२।॥ रजोषरण्ये ABT साकारः करवुगेण Ty |

भकार शिरसि त्वा गुरोर्वचः wT ॥२२॥ तवापि aaa xfa a गुरुणा खते येषावर्तौ। दावपि त्वा aU यावद्‌ gew wfeaaafafa ae

SAT: प्रकाशः | ६७५

img सोसो Tay कयंजलो wae सविशयं सिरसा | खामेमि खमासमणो ! देवसिश्राद्वड्कमणं ॥२४॥ अहमवि खामेमि तुमे गुरुणाऽण्खाए खाम्णेसोसो। निक्वम sarerat श्रावसियाए भेजण ful श्रोणयदेष्टो श्रवराइखामणं सव्वसुच्रेऊणा | निंदियगरहिभ्रवोसष्सव्वदोसो पड्क्कितो ॥२९॥ खामिन्ना fancy तिशुक्लो तेण पुगरवि aes | उम्गहजायगापविघ्ण्दुभ्रोणयं दो पवेसं ॥२७। Usa BATA बोयपवेसम्पि via छचेव

ते भ्र भदो ak भमंकरेणं पठत्तव्वा ॥२८॥ पटठटमपवेखे सिरनामणं दुहा बोश्रए श्र तह चेव। तेषेश्र वडसिरंतं ufuafad एगनिक्वम णं ॥२९॥

(2) अथ शिष्यो रजोहरणे शताञ्चशिभंखति सविमयं face | शमयाभि WANS! देवसिकाटिव्यतिक्रमणम्‌ ॥२४॥ asufa चमयामित्वां गुरूणा. नुन्ताते समख शिष्यः | जिण्करामत्यश्यदहादाश्श्यक्या भखित्वा ॥२५॥ खवनतदेहोऽपराधसषमयं GIFS | जिन्दितिगङ्ितब्य्यृ्टसवेदोषः प्रतिक्रान्तः ॥३६॥ मयित्वा विमवेन लियुप्रस्तेन पुनरपि aes | वयमहयाचनप्रवेशमहिक्ञावमतं हयोः wan ॥२७॥ प्रथमे षड वर्ता हितोयप्रवेशे भवन्ति षेव | तै अङो इयादयोऽसंकरेष् प्रयोक्तष्याः॥श्८॥ प्रथमप्रवेये शिरोन।भनं हिधा इितोयकें wads | ata ग्यल्यृजाग्यन्तं मखितमिदमेकनिष््रमणम्‌ ॥२९॥

९७६ योगशा

'एवमहाजाएगं तिगु्िसहिषं इति चत्तारि Va feds पशवो मावस्छया हंति Roll ‘fawtlaata’ vam fafa, व्रयखिंश्दाशातना विवेखन्ते- गुरोः पुरतो गमनं शिष्यस्य निष्कारणं विनयमभङ्कहेतुत्वादागातना, मार्गदशनादिकारषे तु दोषः, गुरोः ण््वाभ्यामपि गममम्‌, षएष्ठतोऽप्यासन्रगमनम्‌, निः ष्छासच्चुतक्चेश्षपातादिदोषप्रसङ्गत्‌ ; ततश्च यावता भूभागैेन गच्छत भ्रागातना भवति तावता गन्तव्यम्‌ ।१।२।३। एवं पुरतः, पाश्वतः, wae स्थानम्‌ ४।५।६। तथा, पुरतः awa: पृष्ठतो वा निषदनम्‌ ७|८।९८ आचार्येण ayaa गतस्याचायत्‌ प्रयमभेवाचमनम्‌ ।१०। गुरोरालापनोयस्य कस्यचिच््छिष्येख प्रथममालपनम्‌ ।११। शिष्य- स्थाचार्ये aw बहिगतस्व एुननिदठत्षस्वा चार्यीत्‌ प्रथमभेव गमना- गमनालोचनम्‌ १२। भिचामानौय शिष्ये गुरोः पूव चस्य कस्यचित्‌ पुरत भालोचख पाद्‌ गुरोरालोचनम्‌। १३। भिल्ला मानोय प्रथमं wea कस्यचिद्पदश्यं गुरोदंनम्‌। १४। भिक्तामानौय गुरमनाप्च्च्य Tarai यथाङचि प्रभूतमैच्यदानम्‌ leat भिक्षामानौय गतं कच्चन fara care गुरोरुपनिम- न्तम्‌ १६। शिष्ये भित्तामानोयाचा्यीय यत्‌ fafez दक्वा जिग्धमधुरमनोन्नाषारशाकादौनां वखगन्धरखस्मशेवतां

(१) एश auras fagfgefyd भवन्ति wfc | शेषेषु Way पञ्चविचतिरावद्यका.भवम्ति॥३०॥

Aa: WATT: goo

दष्याणां खयमुपभो गः 179) Tal “arat: | कः खपिति जागतिं वा?” इति ga: एच्छतोऽपि जाग्रताऽपि शिष्येशाप्रतिखवणम्‌ १८। शओेषक्रासेऽपि गुरौ व्याङ्रति aa aa fata शयितन वा शिष्येण प्रतिवचनदानम्‌ | re) ओ्हतेनासनं शयनं वा amt संनिहितौभूय (मस्तकेन ae’ दति वदता गुरुवचनं खोतव्यम्‌, तद कुवत भ्रा्ातना | २० TAU भाहृतस्य शिष्यस्य किमिति वचनम्‌, भणितव्यं मस्तकेन वन्दे इति। २१) गुर प्रति चिष्यस्य तकारः २२। गुरूष्णा ग्लानादिषेयाहच्यादिहेतोः दं aq इत्यादिष्टः (त्वमेव fa कुरुष इति त्वमलसः' | sam ^त्वमप्यनसःः इति शिष्यस्य तञ्लातवच्चमम्‌ ।२२। गुरोः पुरतो बहोः nals ace शिष्येण वदनम्‌ २४। गुरौ कथां कथयति ‘waaay’ श्त्यन्तराले शिष्यस्य वचनम्‌ २५। ga धर्मकथां कथयति "न aia त्वभेतमयधेम्‌. area: संभवति' इति fare वचनम्‌। २६ गुरो धर्म कथयति सौमनस्य रहितस्य गुरूकमननुमोदमानस्य ‘ara भवज्धिःः इत्यप्रशंसतः गिष्यस्योपशतमनसत्वम्‌ २७। शुरो ध्म कथयति ‘ea fire. वेला सुत्रपौरुषौषेनला, भोजनेन, इत्यादिना शिष्येण पषद्ेद- नम्‌ २८। गुरौ धर्मकथां कथयति ‘ae कथयिष्यामि" इति भिष्येण कथाच्छेदनम्‌ २८ तथा, WATT घमकधायां क्रतायामनुलिताघाभेव पषदि aa पाटवादिन्नापनाय शिष्येण सविशेषं धमकधनम्‌ १०। गुरोः षुरत उच्चासने समासने वा भिष्यस्योपक्ेणनम्‌ ।२१। गुरोः शव्यारूस्तारकादिकस्य wea

९७८ ' योगशास्त्रे

BEAR, अननुन्नाप्य हस्तेन वा स्पमशनम्‌, घटयित्वा WEI ase: मणम्‌ ; यदाह,-

'संघटृश््ा arate तहा उवहिशामवि | खमे अवरां मे aver पु न्ति भ्र ॥१॥ az! गुरोः शय्यासंस्तारकादौ सथानं निषदनं शयनं चेति ।३२।

एतदथंसंवादिन्धो गाथाः- |

‘guint cage गमणं sre निखो्रणंतिनव। सेहे Gat WTAE भालवद् ATT भरालोए॥१। असशाद्ममालोदश्र Ufeday Sk ठवनिमंतेद्‌। AC ACIS लहो निद्धाद्‌ गुरुपुरभ्रो ॥२॥

राभ्रो Toa वयभ्रो तुस्िणो सुणिरो fa सेसकालेषि। ay गो वा ufegis ae fafa a तुमं ति गुरं ne

(9) Swey कायेन तथोपधघोनामपि। शमखपराधंमे stg a gafcia a nee | (२) पुरतः aged गमनं स्थानं जिषद्नसिति aq | ओर पूवम।चभति आपति तथा चालोच्यति ate अशनादिक्मालोच्यप्रतिद्धंवति ददाद्युपनिमन्त्रयति। nag तथाङ्रति लब्धः स्जिग्ध।दि गुरूपुरतः ॥२॥ रानौ गुरोभदतस्तष्णौं चोताऽपि पेषकाक्ेऽपि। तन्न गतो वा प्रतिद्णोति बशोति िभितिबा त्वमपि गुरूम्‌ ॥१।

BANA: प्रकाशः | ६७९

‘amid ufewur ae ay ay कष्ंतरे वयद्‌ |

uafad fa a सरसिनो सुमि भिंदरे afta isi

face aw avryfgars परिसाइ aes afaaa |

गुरुपुरभो विनिसोयद् ठाद ससुच्चासणि Ser ॥५॥

PAT पाएगं सेवनासंधारयं गुरस्य ays

aaa sie fafaac que श्रवसेहोत्ति amd val

इह यदापि यतिरेव aeamaaten a खावकः, तथापि यतेः कर्तभ णनात्‌ श्रवकोऽपि कन्त विज्ञेयः, प्रायेण यतिक्रियानु- atta ओावकक्रियाप्रहत्तेः ; wad कष्णवासुदेवेनाष्टादशानां यतिसहस््रा शरां इादशावतेवन्दनमदायि, इत्याश्ातना sia यत्यनु- सारेण यथासंभवं अावकस्य वाच्याः Wa वन्द्नकं दच्वाऽवगरद- मध्यखित एव विनेयोऽतिचारालो चनं कर्तकामः किञ्चिदवनत- कायो गुरं प्रतोदमाद-"दच्छाकारेण dfeaw टेवसियं भालो- ufa’ इति। इच्छाकारेणा निजेच्छया, dfena wre ददत, टेवधिकं दिवसभवम्‌ “श्रतोचारम्‌' इति गम्यम्‌ ; एवं राविकपा- सिकादिकमपि द्रष्टव्यम्‌, भालोचयामि मयादया साभसख्येन वा प्रकाश्यामि। «ee देवसिकादौनामयं कालनियमः- यधा

( ) aera प्रतिषन्ति anfa we तथा जथान्तरे वद्ति। wafagfafa + wife M Haag faafa ufcaza i an faafe कथां anafamat परिषि कथयति faiaa | गुङ्पुरतो विगिषोढति तिष्ठति समभोञ्चासमे wea: ॥\५॥ dugafa पाटेन शब्यासंखारकं गुरोखया। तत्रेव तिष्ठति निषीदति aasatey दूति aafeng An

९८० MAN

देवसिकं मध्याादारम्य निरोधं यावद्‌ भवति, faa fantar- दारभ्य wars यावद्‌ भवति, पाकिकचातुर्मासिकसांवच्छरि- aif carga wafers भवान्तरे ‘ware’ दति गुरुवचन- माकख्य wea शिष्यः qaugery - इच्छं भालोएमिः इच्छाम्य भ्य पगच्छामि गुरुवचः. भालोचयामि पूवरूभ्युपगतमधे क्रियया प्रकाशयामोति। ta प्रस्तावनामभिधायालोचनामेव साक्तात्का- Taw— जो मे देवसिभ्रो अश्भ्रारो ad aed arsed माग. fam स्मृतो oman waa पभकरखिव्नो caret टुव्विचिं- तिभ्रो अ्रण्णायारो भ्रखिच्छियव्वयो भरल्षावगपाखम्गो नाणे daa दरिष्लाचरिक्तिसुए साभाश्ण तिरं गु्तोखं qty कसायाखं पंलब्हमसबव्वयाशं faqe गुणव्वयाणं aoa सिक्ठ(वयाणं aivafaga खावगघम्मस्य जं diet जं faufed aq मिच्छामि saw’ |

व्याख्या - यो मया दिवसे भवो देवसिकोऽतिचारोऽतिक्रमः war निर्वर्तितः, पुनरतिचार रपाधिभमेदटेनानेकधा भवति, भत wary ay कायः प्रयोजनं प्रयोजकोऽख्यातिषारस्येति काथिकः, एवं aM वाक्‌ प्रयोजनमस्य वादिकः, एवं मनः प्रयोजनमस्येति मानिकः, SHAT स॒ज्रादतकान्त say: quafa- क्रम्य कत इत्यथैः, SW मागेः स्षायोपश्मिको भावस्तमति- क्रान्त Sain: लायोपश्मि कभावत्यागीनौदयिकभावसंक्रमः कत इत्यः, अक्ष्यो net anal विधिराचारखरशकरणब्यापार इति यावत्‌, कलर्पोऽकल्पोऽतद्रप wa, करणोयः सामान्येन

AMA प्रकाशः | ६८१

क्तव्यः, करशोयोऽकरणोयः, हेतहेतुमद्ाव्ात्र यत TATA

ऽत waar इत्यादि, उक्षश्लावत्‌ कायिको वाचिक | भ्रधुना मानसिकमाह--दुज्‌भाभ्रो दुष्टो ध्यातो दुष्यत एकाग्रचित्त तयाऽऽर्वसैद्रलक्ष णः, दुब्विचितिभरो दुष्टो विचिन्तितो दुविचिन्तितः, अशभ एव चलचित्ततया! जं थिरमजभवसाणं तं काणं जं चलं तयं faw इति वचनात्‌, यत खवेटंभूतस्तत एव भ्रणायारो WAC: MARAT, भ्राचारोऽनाचारः, यत एवाना- चरणोयोऽत एव अरणिच्छियव्वो save: मनागपि मनसापि एष्टव्य WM तावत्‌ RAM, यत रएषैदयंभूतोऽत एव भसावग- पाठमो भअश्रावकप्रायोग्यः--भ्रभ्युपेतसम्यक्घः प्रतिपन्राणव्रत् प्रतिदिवसं यतिभ्वः सकाशात्‌ साधूनामगारिणां सामाचा्यीं ulate खरावकस्तख्य प्रयोग्य उचितः जावकप्रायोग्यः, तधा, खावकारुचित wae: wa चातिचारः क्र विषये भवतीत्याह- "णाश दंसणे चरित्ताचरित्ते' इति, ज्ञागविषये, दशे नविषये, wae-

सावदायोगनिहत्तिभावाच्ारित्ं सुच्छसावच्योगनिहच्यभावादशा- fea चारित्राचारिज्रं तस्िन्‌ देशणविरतिविषये इत्यधेः अघुना भेदेन व्याचष्टे-सुए श्रुतविषये, चुतग्रहणं मत्यादिन्नानोपलक्षणम्‌,

तत्र॒ विपरौतप्ररूपणा, अकालखाध्यायच्ातिचारः, arr सामायिकविषये, सामायिकम्रहणात्‌ सम्यक्सामायिकदटेथ-

विरतिसामायिकयोग्रंहणम्‌ तत्र॒ सम्यक्कसामायिकातिषारः

शद्कादिः। देणविरतिसामायिकातिचारं तु मेदेनाह-तिष्डं

(१) यत्‌ स्विरमध्यवक्ानं ag ध्यानं यञ्चलं तद्धितम्‌ | ८६

QR योगशास््

गत्तौशं तिणां quiat ‘aq खर्डिनम्‌' इत्यादिना सवत्र योगः, मनोवाक्‌कायगोपनासिकास्तिखो gaat व्याष्याताः, तासां चाश्रहानविपरोतप्ररूपणाभ्यां खण्डना विराघना च, aqui क्रोध- मानमायालोभलस्णानां कषायाणां प्रतिषिचानां करशेनाखदहान- विपरोतप्ररूपणाभ्यां ; पश्चानामश्व्रतानां तयाणां गुणत्रतानां चतुणां यि्तात्रतानासुक्तखरूपाणाम्‌, भण्व्रतादिमौलनेन इादश्रविधस्य शरावकधर्मस्य यत्‌ efwa देशतो भग्नम्‌, यद्‌ विराधितं सुतरां भग्नं पुनरेकान्ततोऽभावमापादितम्‌, aa मिच्छामि gat तस्य देवखिकाद्यतिचारस्य न्नानादिगोचरस्य, तथा गुपोनां, कषायाणां दादश विधश्रावकधममस्य यत्‌ खण्डनं विराधनं चातिचारङ्पं तस्य faufa प्रतिक्रमामि दुष्कुतभेतद- कतेव्यमिदं मभेत्यधः।

अवान्तरे fata; पुनरप्यर्धावनतकायः प्रवधेमानसंवेगो मायामदविप्रसुक्त Wea: स्वातिचारविशदयथें सूत्रमिदं पठति- स्वस वि टेवसिय दुचधिंतिय ganfaa efafga इच््छाकारेख dfeaw ।` सर्वाश्यपि लुप्तष्टोकानि पदानि ततोऽयमये;ः- स्वस्यापि देवसिकस्याणुत्रतादि विषये प्रतिषिष्दाचरशादिना जात- स्यातिचारस्येति गम्यते ; पुनः wena, दुिन्तितस्व दुष्टमात- रौद्रष्यानतया चिन्तितं यत्र तथा तस्य दुधिन्तितोडवस्येत्यथः ; अनेन मानसमतोचारमाह ; दुष्टं सावदवागरुपं भाषितं way aq तथा तस्य दुर्भाषितोत्पन्नस्येत्यधेः, भनेन वाचिकं सूचयति ; दुष्टं

प्रतिषिहं धावनवलानादिकायक्रियारूपं चेष्टितं ay तत्‌ तथा त्य

wala: प्रकाशः ` ६८१

दुचेशटितोद्षस्येव्ययेः, waa काथिकमाह); warfare किमित्याह द्च्छाकारेगा संदिसशहेति, भ्राोयेच्छया aa प्रति- AAU प्रयच्छत, LIM FWA गुरुमुखं प्रेक्षमाण WT | ततो शुरराह--'पडिक्षमङ' प्रतिक्रामत। aa: शिष्यः प्राद-- "च्छं दच्छम्येतद्‌ भगवहचः, तस्र तस्य टैवसिकातिचारस्य मिच्छामि gad भ्राकोयं gad मिथ्येति लुगुख इत्यः तथा, दितयच्छन्दनकावग्रहान्तःख्ित एव विनेयोऽधौवनतक्रायः स्वापराधल्तामणां चिकी्षुगुरं प्रतोदमाह--इच्लाकारेण संदि- ae’ इति, इच्छाकारेण स्वकोयाभिन्ताषेण पुनवलाभियोगा- fear, संदिशत भ्रान्नां प्रयच्छत युयम्‌ भान्नादानस्यव विषय- qazgarazare—‘ssyfem अर्ह अ्रम्भिंतरदरेवसिभ्ं खाभेमिः भभ्यलितोऽस्ि प्रारब्धोऽस्मि अहम्‌, अनेनाभिलाषमात्ख व्यपोहेन समणाक्रियायाः प्रार्भमाड-"भरिभंतरदटेवसिश्रं' इति feaar- भ्यन्तरसंभवम्‌ भ्रतोचारम्‌? इति गम्यते, क्षमयामि मषंयामि, इत्येका वाचना। wa त्वेवं पटठज्ति--इच्छाभि खमासमशो sayfgay uf अन्भिंतरदेवसिभ्रं gras’ दति, इच्छामि प्रभिलषामि ‘aafaay इति योगः, 2 तमाश्रमं | केवल- मिच्छामि, किन्तु “श्रवभुद्िग्रो र्हि" इत्यादि पूव्येवदेव। एवं स्वाभिप्रायं प्रकाश्य quia यावद्‌ गुरुराह--'खामेह" दति समयसखेत्यर्धः | ततः गुरुदचनं बड़ मन्यमान wie— cs खामेमिः इति, इच्छं इच्छामि भगवदान्नाम्‌, खामेमि waafa aay | waa स्षमणक्रियायाः प्रारश्ममादह। ततो

६८४ योगशास्त्र

विधिवत्‌ पञश्चभिरङ्गः खृष्टधरणोतलो qeafeaa खगितवदन- देण इदमाश्- “जं किंचि भ्रपत्तियं परपत्तिभं भक्ते पाणे faq बेयावच्े wert dara उश्वासणे समासणे भंतरभासाए safe urate ot किचि asa विणयपरिष्ोषयं gyda at बायरंवा तुमी जाणड oe याणामि aa भिच्छा मि cee |

व्याख्या- जं किंचि यत्‌ किचित्‌ सामान्यतो निरवशेषं वा, अपत्तियं भार्पत्वादप्रौ तिकमप्री तिमानम्‌, परपत्तिषरं - प्रकटम- प्रो तिकं परप्रत्ययं वा परषेतुकम्‌, उपलक्षणत्वादस्याप्रत्ययं चेति दरषटव्यम्‌, qufead मम जातं awfial मम afaafata वाकशेषः, ‘aa मिच्छामि इत्युत्तरेण संबन्धः तथा, भन्ते भकं भोजनविषये, पाणे पानविषये, विणए विनयेऽभ्युयानादिरूपे, वेभावञ्च Faw ears वा भरौषधपध्यादिनाऽवष्ट्भरूपे, were TAN सक्तव्जल्पङूपे, संलावे dad मिधःकथारूपै, उचासख गुरोरासनादुचैरासने, समासणे गुर्वासमेन तुष्ये waa, भं॑तर- WNT भरन्तभीषायां गुरोर्भाषमाणस्य विचालभाषणसूपायाम्‌, सवरिभासाए उपरिभाषायां गुरोभौषणानन्तरमेव विशेषभाषणश- ङ्पायाम्‌ ; एषु भक्षादिषु जं किंचि यत्‌ fafeq समस्तं सामा न्यतो वा, मड मम, विखयपरिहोणं विनयपरिषोनं गिक्षावि- am संजातम्‌" इति शेषः विनयपरिष्ोनस्येव हेविष्यमाह- ‘gga वा बायरं वाः सूद्मश्यप्रायचित्तविशोष्यम्‌, बादरं बुहत्पायि्तविभोध्यम्‌ ; वाशब्दो योरपि मिष्यादुष्कुतविषयतव- uate, तुभ जानहेति युयं arty, सकलभाववेदक-

Bala; प्रकाशः) ९८५

त्वात्‌, अहं याशामि we पुनन जानाभि, मूढत्वात्‌ ; तथा ‘aaa जानोध प्रच्छव्रक्षतत्वादिना, अहं जानाभि, खयं कत- त्वात्‌ ; तधा, युयं arate, परेण aaatfeat, wv a जानामि, विस्मरणादिना; तथा, युयमपि aria. भ्रहमपि जानामि, gat: nwa’ एतदपि दरष्टव्यम्‌ ; तस्स तस्य षष्ठ- सप्तम्योरभेदात्‌ तस्मिब्नप्रौतिकविषये विनयपरिद्ोणविषये मिच्छामि gas मिष्या मे eqafafa खदुशरितानुपात्तसूचकं स्रदोषप्रतिपत्तिसुचकं वा प्रतिक्रमणमिति पारिभाषिकं aad प्रयच्छामोति शेषः ; भववा, तस्येति विभक्तिपरिणामाव्‌ तदपो- faa विनय्रपरिषोनं मिष्या मोक्षस्षाधनविपयेयभूतं वतेते भे मम; तथा, दुष्कृतं पापमिति खदोषप्रतिपत्तिरूपमपराधक्षमख- fafa) वन्दनपूवेके चालोचनक्षमणे भवत इति wat वन्दनकान- न्तरं ते व्याख्याते, waar ufamat तयोरवसरः ; वन्द्नकस्य फलं कमनिजरा, यदाडइः-- |

"वंदणशणएणं dt) जोषे किं भल्निणद्‌ ?। Wat! Ve waaay निविडवंधणबहाभ्रो सिदिलवेधणवहाश्रो ate, विरकालटिश्म्ाग्रो wantafsentat ats, तिव्वाणभावाश्रो मंदाणएभावाभ्रो Rte, बहुपएसम्गाभ्रो Wace Ary, अणाद्श्रंच णं ्रणवदग्गं संसारकतारं नो afwuze | तथा,-

(१) वन्द्नढेन मगवनु ! जवः किमजंयति {। maa! we कमप्रशतोनिनि- डबन्धमवङडध।ः faufaaaeqaaar: कराति,) fecnafefaat असशालश्थितिकाः करोति, तोत्र चुभावा aeaguar करोति, wwaefaat wantin: करोत, अन।टि्कं चानन्तं संसारकान्तार गो पर्यटति।

६८६ योगशास्त्र

‘dzqqd dt: ota fat भख्िणद्‌ }। maa वंटगरबं नोयागोत्तक्षगां Tae squid fadus, dial शं श्रप्यडिहयं भाणाफलं निव्वत्तेद्‌ | तधा,-

र्विखभ्रोवयारमाणस्य WaT YI गुरुजणस्य | तिल्यराण भ्राष्णा सुश्रधम््माराहणा फिरिभ्रा ५१। अथ प्रतिक्रमणंप्रतोव्युपसगेः प्रतोपै प्रातिकृष्येवा; क्रमू पाद विक्षेपे, wa प्रतिपूववंस्य भावानडन्तस्य प्रतपं क्रमखं प्रति- क्रमणम्‌ ; भरयमधेः--श्भयोगेभ्योऽशभयोगान्तरं aaa qa- ष्वेव क्रमणात्‌ प्रतोपं क्रमणम्‌ ; यदाह,- AMAT यत्‌ परस्थानं प्रमादस्य वशाद्‌ गतः। awa क्रमणं भूयः प्रतिक्रमण्सुच्यते ॥१॥ प्रतिकूलं वा गमनं प्रतिक्रमणम्‌ ; यदाह,- लायो पगर्मिकाद्‌ भावादौदयिकवशं गतः | तत्रापि सर एवाथः प्रतिकरूलगमात्‌ स्मृतः ॥१॥ प्रति प्रतिक्रमणं वा प्रतिक्रमणम्‌ ; sat च,-- प्रति प्रतिप्रवर्तनंवा Wey योगीषु मोर्षफलदटेषु | निःशस्यश्य यतेयेत्‌ तद्‌ विन्नं प्रतिक्रमणम्‌ ॥१।

१) agate भगवन्‌ ¦ जोवः ज्िमजंयति ?। गौतम ! बन्द्नद्ेन arama. कर्म शपयति, oqita निबघ्नाति, सौभाग्यं बाप्रतिहतमन्ञाफषं निर्वर्तयति | (र) विनयोपच्ारमागख्छ भलजना पूजना शुखुननद्य | तीधंकराणां aq खुतधर्माराधना frat at a

ZANT: प्रकाशः। ६८७

तच्चातोतानागतवतेमानकालज्र यविषयम्‌ | नन्वतोतविषयमेव प्रतिक्रमणम्‌, यत उक्तम्‌, “aga पडिक्मामि, पडप्पत्रं संव- रेमि, भ्रणागयं पञचचक्ठामि” इति, तत्‌. कथं जरिकाल्तविषयता 2 | उचते -श्रत्र प्रतिक्रमणशब्दोऽशभयोगनिहठत्तिमान्रायेः, \मिच्छन्तपडकमणं ata wand पडिकमयखं | कसायाण पडिक्रमणशं जोगाण श्रप्पसल्ाणं ॥१॥ ततश्च निन्दाहारेणाश्भयोगनिठसिरूपमतोतविषयं प्रतिक्र- मणम्‌, प्रत्युत्पन्नविषयमपि संवरहारेण' भ्रनागतमपि प्रत्याख्यान- witafa कञ्चिद्‌ दोषः। तच्च देवसिकादिमेदात्‌ पश्चधा- दिवसस्यान्ते देवस्िकम्‌, रारन्त रात्रिकम्‌, पक्स्यान्ते पा्िकम्‌, चतुणां मासानामन्ते चातुमासिकम्‌, संवत्सरस्यान्ते सांवक्छरि- कम्‌ | पनर्हेधा-- धुवम्‌, भ्रुवं धुवं भरतेरावतवु प्रधम- चरमतोधकरतीरयेषु, WATT भवतुवामा वा, उभयकालं प्रति- क्रमणम्‌ भर्रवं मध्य मतोधेकरतोर्येषु विदेशेषु कारणजाते प्रतिक्रमणम्‌ ; यदाह,- *सपडिक्रमशो wat पुरिमस्छ पच्छिमस्छ fav | मज्किमियाण जिणाणं कारणजाए पडक्रमण॥ १॥

प्रतिक्रमणविधिषताभ्यो गाधाभ्योऽवसेयः,-

(१) अतीतं प्रतिक्रमामि nga vewtfa, अनागतं प्रत्नाख्छामि। (९२) भिथ्यात्वप्रतिक्रमणं तचेवासंयमे प्रतिक्रमखम्‌ | कषायाणां प्रतिक्रमणं योगानां चाप्रशस्तानास्‌ ॥१॥ (६) सप्रतिक्रमण्ो धमः प्रथमस्य पचिमद्च fare) मध्यमङ्गानां जिनानां ace जाते प्रतिक्रमणम्‌ ॥!॥

ईट AIAN

"पश्च विहाय।रविसुदिहेउमिह are सावगो वावि | पडिक्षमणं ay गुरुणा गुरविरहे wae vat fan ee afew Meu ere चखराश्ण GAIA | भूनिदहिश्रसिरो सयलाष्यारमिच्छोक्षडं टे ॥२॥ सामाद्प्रपुव्वमिच्छया मि sted काडउस्छम्गमिशाडं। ga ufay पलंबिश्रभुयकुप्यरधरियपदहदिरण्यप्रो २॥ घोडगमाद्दोसेदहिं facfed तो ate carat | नाहिमहोजाणुदं चखरंगुलठटविभ्रकड्िपष्टो ४॥

aa धरे हिभणए awed दिण्कए weet | TITH AYR ase चठवौखचयदंखं drat पमल्जिय उववि सिय अमलम्गविभ्रयबादुज्ुभो। सुष्णंतगं कायं खच पेषए danarer na ¢ i

[अर

(१) पञश्चुतिध(चारविशुडिहेतारिह ery: चरावक्षो बापि। प्रतिक्रमणं Ue शुरुयागुरगविरहे करोपसेकोऽपि॥ १॥ बन्दित्वा Sanfa दत्वा चदुरादिकान्‌ शमाचमणान्‌। ufafyafacr: स्कलातिचारभिष्यादव्कुतं दद्यात्‌ ॥२॥ साभाविकपूर्वेमन्छा मे स्थापयित" कायोल्यगं मित्यादि। aa भखिला प्रलम्बितक्चजकूपरपरिधानः घोटङ्ाटदिटोषेविरङ्ितं ततः करोति sara | नाभ्यघोलानू ध्व CATE SS fanz: ४॥ ततल धारयति yea यथाक्रमं feagarafrercre | पारयित्वा नमस्कारो पठति चतर्विथतिस्लवदणडम्‌ wea प्रञ्ोपविश्यालग्नविततबाङ्कबुगः। सुखानन्तकं कायं प्रेरते पद्यविंथतिषा॥९६॥

Qala: प्रकाशः | ६८

‘sfgafenl afaug विहिणा गुरुणो ate fans | अत्तीखदोषरहिभ्रं auataraanfage 9 I

पह सम्ममवणभ्रंगो करसुश्रविहिधरिश्रपुश्िरयद्रणये | परिचिंतिश्र ्रश्भारे जदक्षमं गुरुपुरो वियषडे॥र८॥ अह safafan सुत्तं सामाद्यमाद्यं afer cast | sey fgam fe cae ose दुह ofent fafeat ie i ZIRT वंदणं तो Gay जश्सु Ging fafa | facana करे siafiaarenrefad az il १०॥ इय WALISAAQUAAC काठस्सग्गटिश्री। Fias उल्नोयदुगं चरि्षश्रद्यारसुदिक्ए।॥ ११॥ fafeur पारिय सम्म्र्तसुषिषेडं use उव्नोभ्रं |

तदह सव्वलोश्रभ्ररहंतचेश्याराहणोसमां १२॥

१) Sfaafera: विमं विधिना qa: करोति afanay | wfdagrachyd पश्चविंशत्यावग्यकविशुद्धम्‌ आथ सम्वगवमताङ्गः करयुगविध्ष्टतञ्स्तिकारजोहरणः। परिचिन्तयत्तिचारानू यथाक्रमं गुरूपुरो पिस्तुतान्‌ ८॥ अआथयोपविष्य aa सामायिकाडिकं पटित्वा naa: | च्भ्युलितोऽखमीत्यारि पठति हिधोल्वितो विधिना॥€॥ दश्वा wes ततः पञ्चकादिषु यतिषु शमयेत्‌ fa: |

रतिकर्म कुर्यादाचार्वाडिगायालिकं पठति !* इति सामाविकोखयगेख्लसन्चायं कायोल्मस्थितः| चिन्यन्बुदूद्योतदिक्ं चारित्रातिच।रणशुद्धिरते !!॥ विधिना पारयित्वा सस्यङ्घगुद्बिहेतोख पठेडुद्द्योतम्‌ | सजा सर्वलोकार्द्त्वाराधम)त्पगम्‌ १२॥ ८9

६८० योगशास्त्र

lard उव्जो गगरं चिंतिय ote सुहसम्मत्तो | पक्वरवरदौ वडटं Hace सुभ्रसोहणनिमित्तं १३॥ पुण पण्वोषोस्सासं staal guar पारण fafea | तो सयलकुसलकि रियाफलाण सिचाण ase धयं १४॥ रप quafafeed सु्देवोए ate staal | fats नमोक्ारं Fae ade | तोड़ as १५॥

एवं खे्सुरोण उस्सम्गं FaT Yury ex ay पदिजण पंचमंगलमुवविसद aaa संडासे॥ १६॥ पुव्वविहिखेव tfea पुत्ति दाऊण ded गुरुणो | carat uate ति भर्यि जाणहिंतो sx १७॥ Tausayy ae तिखि वदमाणक्वररसरो ase | सद्कल्यवं धवं पठिभ्र que पल्छित्तडस्समां pec

(१) नल्वोदृव्योतकरं चिन्तयित्या पारयति शुद्धसम्यक्लः | षएष्करवरद्वीपा्े पठति चुतश्ोधन निमित्तम्‌ ११॥ qa पञ्चविं थल्युष्टूसशत्ग' करोति पारयति विधिना। ततः खकलखकुशलक्रियाफलानां feqrat पठेत्‌ सवम्‌ 1४॥ (a) व्य श्ुतसङबडितोः खतदेव्याः gatzaaa | चिन्तये नमसख्क। SHANE बरेद्‌ वा तखाः स्तुतिम्‌ ova णवं Wagat san कुर्यात्‌ weary दद्यात्‌ सुतम्‌ | पटित्वा पश्चमङ्गवकस१विशेत्‌ प्रख्य संदंशम्‌ 1६॥ पूवं विधिनैव tee वस्त्रिका evar वन्दनं गुरोः। दच्छामोऽलुथास्तिमिति भशित्वा जानुभ्यां तेत्‌ १७ गुरूसुतियद्खे स्तुतोस्िख्लो वभभानाद्चरखरः wa) amped सवं पटित्वा कुर्यात्‌ प्राय चित्तोत्वगेम्‌ १८॥

BNA: प्रकाशः | ९९१

‘ad ता Safad राइ्यमवि एवभेव नवरि तहिं | पटमं दाउ मिच्छामि gad use amma ve A Sfza ate fafeu san faar श्र ose | सोयं दंसथसुषोए चिंतए ay इममेव २०

तद्रए निषाभ्रद्भारं ayaa fafa arts | fazaa afeat पमल्न dsiaqafaas ae i yaa पुचिपेषणषंदणमालोयसुतपटगं a | वंदणशखामणवंदणगाहातिगपढणसुश्वम्गो २२॥ aa fear संजमजोगाण Ete जेण मे era | तं पडवल्नामि ad मासं तान कारमलं॥२३॥ एगाश्गुणतोसणयं पिन सशो पंचमासमवि। एवं चड ति card समलो एगमासं पि || 28 1

(1) एवं तावदु Safes रालिकरमप्येरमेव नवर तव} प्रथं दश्वा भिथ्वामे दुब्कुतं पटेत्‌ EMMI te | sara gate विधिनोत्धग" चिन्तयेश्नोदद्योतम्‌। दितीयं दथमशुद्धो चिन्नयेत्‌ mazes २० | तोये निभ्ालोचार यथाक्रमं चिन्तयित्वा पारयेत्‌ | fagudt पटित्वा प्रखज्छसंदंशसुपविषेत्‌ yee a पूव्मिव sf वन्द्नमालोबसनपरठनं च। वन्द्मच्षमणावन्द्नगायालिकपटनभुत्यगंः २२ ta चिन्तमरेत्‌ संयमयोगानां नभवति Fa aS ष््ाजिः। तत्‌ प्रतिपद्ये तपः षड माशांस्तावषु कतमलम्‌ २९ एक्ाद्योकोनविंशदूमक्षमपि मसो प्रञ्युमाक्षानपि। यवं WATS. हो मासौ समं पकमासमपि॥ २४

GER MAIS

tara fa तेरसूणं चडतोसद्माद्भ्र दुहाणोए।

जाव Use तो भायंबिलाद्जापोरिसिनमोवा॥२५॥ जं ag तं हियए uty arta Gwe aft |

zis वंदणमसढो तं faa पश्चक्वए fafear ii re Il इच्छामो wwafe ति भिय safafan ace तिखि aft | fasatd amaare तो Brg वंदे २७

पह ufaad asefafeufa ga ag cafes | gua ufeanfads तो anfad aa FUT tl xe I qeafa ठेदखयं संबुहाखामणं तषालोए |

dey पन्तेयक्वामणं वंदणयमह TH २९

सुं अगभुहाणं sway yfa dey ay 7s पल्नंतियसखामणं aw चरो धोभवंदणया २०॥

(१) लातमपि लयोदयोनं चतुस्तिंयदाद्कं िह्ान्या। बाश्रुतुयेः तत arate यावत्‌ eet aay aT २५॥ यत्‌ क्यं तदु Yea धारयित्वा पारयेत्‌ प्रेत ATTA दक्वा वन्द्नमगठटसतटेव प्र्ाद्यायादू विधिना wrk इच्छामोऽचुशाल्िमिति wfartafaa पठेत्‌ fae qt: | wguaa यक्रस्लतवादि ततचेत्यानि wea १७ we पाशकं चतरे थोदिने पूर्वमिश् ततर देषसिक्म्‌। gaia प्रतिक्रम्य ततः सम्यगिमं क्रमं gatg ॥२८॥ सष्छवसख्छिका aad स्बुद्धच्तमणा AUIS | वन्दनं प्रत्येकं WAT वन्द्नकमय GAT ve GAIA ATE Tt वस्त्रिका बन्द्नं AAT | पार्यन्तिङच्ठमणा तथा चत्वारि स्लोभवन्द्नकानि॥३०॥

BANA: प्रकाशः | ६८९

‘yafafega ua देवसियं deme al FUT) सेव्लसुरोडस्समो UMN संतिथधयपठणर्े a | ae | एवं faq asad वरिस yo aema विदो UW | पक्व चठमासं वरिशेसु मवरि arafa Arad It 22 I AW SAMA वारसवौसा समंगल्िग चत्ता। संबुहखामणं ति पश सत्त साषण awe | Ve I प्रतिक्रमणसूत्रविवर्णं तु ग्र्यतविस्तरभथाद्‌ AM | भथ Hata | कायस्य शरोरस्य सखानमौनध्यानक्रिया- व्यतिरेक्रेणान्यबोच्छसितादिभ्यः क्रियान्तराध्यासमध्िक्तत्य उत्सगेख्यागो "नमो wear? दति वचनात्‌ प्राक्‌. कायो- amt) हिविधः, चेष्टायामभिभषेच। चेष्टायां गमना- गममादावोर्यापयिकादिप्रतिक्रमणभावौो, weal उपसगजया- यम्‌ ; यदाइः- | रसो उस्सम्गो द्‌ विषो ang .भिभवे भ्र नायव्वो भिक्लायरिया पटमो उसम्गभिखंजशे बवोभ्रो il १॥

(१) पूरव बिधिनेव सवं" दे्वसिकं वन्द्नादि ततः क्रयात्‌ | ख) घयुत्यें Az: चान्तिस्तवपठमे ९।॥ एवभेव चतुर्मासे वषे यथाक्रमं विधिक्वः। पच्चयतुर्मासवर्षेषु, नवरः माजि AAT १२॥ तचोत्घगव्दुषोता gen विंशतिः समङ्गखिकाञ्चत्वारिथत्‌। VAANAT ङसः vy oH साधूनां यथासंख्यम्‌ १९॥ (x) saat हिविधदेटायामभिभवे WTA: | fuqatat nus saurfaaina fama: at a

428 ` योगशास्त्र

तव चेष्टाकायोव्सर्गऽट-पद्चविंशति-सप्तविंशरति-विशतौ-पख्च- शतो-ग्र्टोत्तर-सदहस्रोच्छामान्‌ यावद्‌ भवति, अभिभवकायोष्षगेसतु दूतौ दारभ्य drat यावद्‌ बा हइबलेरिव भवति कायोत्छगे च्छित निषस्य-शयितभेदेन aut: एकंकखतुध-उच्छिती- fem द्रव्यत उच्छ्रित aad भावत उच्छ्रितो धम॑ध्यान- शक्ध्याने इति प्रचमः तथा, द्रव्यत उच्छित जध्वंखानं भावतोऽनुच्छ्ितः कछष्णादिलेश्यापरिषशाम इति हितीयः gaat नोच्छितो aera भावत उच्छ्रितो धमध्यान-शक्तष्याने इति छतोयः। द्रष्यतो नापि भावत उच्छति इति चतुधैः। एवं निषस्-शयितयोरपि qe वाच्या |

दोषरहितख arate: कायेः। दोषाचेकविंश्तिः;ः- भाकुश्चितेकणादस्य घोटकस्येव खानं घोटकदीषः ie) खरवात- प्रकम्थिताया लताया दव कम्पनं लतादोषः।२। WAM AAA खानं स्तश्भदोषः ।१। कुश्यमवष्टभ्य स्थानं FATT: ।४। Ara शिरोऽवष्टभ्य खानं मालदोषः ।५। इस्तौ ZweR स्थापयिता waaay इव खानं शबरीदोषः।९। भिरोऽवनम्य कुलवध्वा इव स्थानं वधृदोषः ।७। निगडतस्त्व विहतपादस्य मिल्तितपादस्य वा स्थानं निगडदोषः।८। नाभेरुपयालामु चोन्तपटकं निबध्य खानं रब्वोत्तर्टोषः।९। दंगादिवारणाथेमन्नानाद्‌ वा स्तने चोलपटटकं निवध्य सथानं स्तनदोषः; शधाजोवद्‌ aad स्तना- बुच्रमश्य स्थानं वा ah ।१० पार्ष्णी मोनयिलाऽग्रचरणौ fara, weet वा मोलयित्वा orf विस्तायं खानं शरकटो-

कतीयः प्रकाशः) ९८१५

हिंकादोषः itl afamaq पटेन antares खानं संयतोदोषः ।१२। खलोनमिव रजोहरणं पुरस्कस्य ख्यानं खलोन- दोषः ; भन्ये खलोनातेहयवदूरध्वाधःशिरःकम्नं खलोनदोषमाइः ।१२। वायसस्येकेतस्ततो नयनगोलकश्रमखं दिगवेत्षणं वा वायसदोषः ।१४। षट्पदिकाभयेन कपिखवच्चोलपट्ं संहत्य Aer what खानं कपिलयदोषः ; (एवभेव afe बद्ध्वा खानम्‌ इत्यन्ये ।१५। भूताविष्टस्येव शोषं कम्परथतः स्थानं शोर्षोक्किम्पित- दोषः ।१६। मू कस्ये वाव्यक्षशब्दं HAT: खानं मूकदोषः ।१७। प्रालापकगणनार्धमङ्गलो बालयतः खानमङ्गलिदोषः।१८। व्याण- रान्तरनिशूपशाथं अतरसं्नामिवमेव वा aad कुवेतः खानं WAT el निष्यद्यमानवारूख्या इव बुडबुखाराषेख स्थानं वार्कणोदोषः ; "वारूणोमन्तस्येव घुणमानस्व ख्यानं serene’ इत्यन्ये ।२०। अनुप्रेलमाणस्येवौष्ठपुटे चलयतः खानमनुप्रे्ा- दोषः; ।२१६। यदादः ;-

‘Siem लया खमे कुड्डे ara सवरि ay शियले।

लंवोत्तर थण sal ane Glad वायस afag lien

dimafad ae भंगुलो भसुषहाय वारुणो पेडा | «fa | एके त्न्यानपि का्रोत्गंदोषानाडइः, यथा--

(1) षोढक्ञो लता See: ge मालं शबरो वधूनिगरडः। लम्बोसरः wa रद्धिसेयती खलीनं वायसः wheat: wil अोर्षोत्कम्मितं gaits fess sree} प्रशा)

६१८ MATT

faslat agian: प्रपश्चबहला fafa: |

aalfeafadala वयोऽपेला विवजनम्‌ ५१॥

काल्ापेक्ताव्यतिक्रानिव्यौक्तेपासक्ञविन्तता।

लोभाकुलितचिन्ततं पापकार्योच्यमः परः wi

लत्याज्ञत्यविमूूठतवं पटिकाद्युपरि खिति; इति। कायोक्गस्यापि फलं निजजरेव ; यदाहः-

‘ase जह संटिश्रसस uefa अंगुवंगां

दय भिंदंति gfafear azfae कम्मसंघायं ॥१॥ कायोत्लगसत्रायः प्राग व्याख्यात एव |

अथ प्रत्याख्यानम्‌ प्रति प्रहत्तिप्रतिकूलतया भा मर्यादया ख्यानं प्रकथनं प्रत्याख्यानम्‌ तच्च देधा--मूनगुषरूपसु्तर- Ted Wagan यतोनां महाव्रतानि, चावकाशामश- aaa; उत्तरगुण्ासु यतोनां fawfagenea:, चावकाकां तु गुशव्रत जिक्ताव्रतानि। मूलगुणानां तु प्रत्याख्यानत्वं fear- दिनिक्ठस्िरूपल्वात्‌, खन्तरगुणखानां तु पिण्ड विश्चयादौनां दिम्बुता- दोनां प्रतिपलनिष्ठन्तिरूपत्वात्‌। तत्र खयं कतप्रत्याख्यानः का विनयपूवंकं सम्यगुपयुक्षो गुरुवचनमनुश्चरन्‌ खयं जानन्‌ Waa गुरोः पशं प्रत्याख्यानं करोति। श्रते agp. waive प्रथमो भङ्गः शदः ।१। Tawa fawarwa हितीयः तवर

तस्कालं शिष्यं संक्षेपतः प्रवोध्य यदा गुरः प्रत्याख्यानं कारयनि 1

( १) wate यया via भग्बन्तेऽङ्गोपाङ्गानि। एवं भिन्दन्ति चशिह्हिता अष्टविधं कमंरुंवातम्‌ ut

ठनोयः प्रकाशः | ६९७

तदाऽयमपि शचः, Wa ABE: ।२। Tia शिष्यस्य wa ama.) waafa तथाविधगुरोरप्राप्तौ गुरुवडमानाद्‌ गुरोः पिढ-पिद्व्य-मातुल-च्चेष्टश्रा्रादिकं afad gana: शदः, . अन्यधा AVE ।३। हयोरन्नते WA, WIE एव ।४। उस्रगुणप्रत्याद्यामं प्रतिदिनोपयोगि दिविधम्‌- संकतप्रत्या-

ख्यानमदाप्रत्याख्यानं च। aa संकैतप्रत्याख्यानं शावकः पौङ- ष्यादि प्रत्याख्यानं कछला चेवादौ गतो we वा तिष्ठ्‌ 'भमोजन- WIR: प्राक्‌ प्रत्याख्यानरहितो मा भूवम्‌, इत्यङ्ष्ठादिकं संकेतं करोति--वावदङ्गष्ठं सुषि ग्रयिंवा सुश्चामि, ata ufanifa, खेदबिन्दवो वा यावद्‌ शुष्यन्ति, एतावन्तो वाच्छासा यावद्‌ भवन्ति, जलाद्रेमद्धिकायां यावदेते बिन्दधो a शुष्यन्ति, दोपो वा यावद्‌ नि्बाति तावद्‌ Ya’ दति ; यदाइः-

॥'अंगुद्रसुदिगं टोघरसेज सासथिवुगजो ead |

एषं daa ufad Wife अणंतमाणोरिं ॥१।॥

मवकार पोरिसीए परिमङ्ठेक्षासणेगठाणे य।

पायंबिल wag चरमे भ्र भनिगहे विग ॥२॥

() खङ्गलहटियन्विग्ट Fagg a fore wel fare न्‌ एतत्‌ VET भितं धीरोरनन्त्ानिभिः ॥1॥ : मभस्छारः WAR Gated Tarawa | वाचा माण्छममङ्कायचरमोऽभिपषो faafa: ॥२॥

cc

१९८ MANA

अहा कालस्तदहिषयं प्रत्यादख्यानमदाप्रत्याख्यानम्‌ तच्च नमस्कारसदहितं, Neat, दिनपूर्वाधेः, एकाशनम्‌, एकखानकम्‌, WTAE, उपवासः, चरमम्‌, अभिग्रहः, fanfafaautfa enfauyq ; यदाद :—

ASHMAN AMSA AIA; fe aa कालनियमोऽस्ति? सत्यम्‌, WaIMaTEnaqalaar- शनादोनि प्रायेण क्रियन्त इत्यहाप्रत्याख्यानत्वनोश्यन्ते प्रत्या ख्यानं चापवादरूपाकार सहितं कतेव्यम्‌, भन्यधा तु भङ्गः स्यात्‌, सचे दोषाय); यदादुः-

‘aqui गुख्टोसो येवस् वि पालणा गुखकरो भो। गुरलाचवं चेयं wafay Wy भ्न भागारा ॥१॥

तेच नमस्कारसदहितादिषु यावन्तो भवन्ति तावन्त उपद- श्यन्ते | तत्र नमस्कारसहित YRAATAMA नमस्कारोचचारणा- वसाने प्रत्याख्याने दहावाकारो भवतः। भाक्रियतं विधोयते प्रत्याख्यानभङ्गपरिद्ाराधेभित्याकारः प्रत्याख्यानापवादः | नलु कालस्यानुक्ञत्वात्‌ संफेतप्रत्याख्यानभेषेदम्‌ नेवम्‌, सदहितगब्देन सुतस्य विश्िषणात्‌ श्रथ edn शयते, तत्‌ कथं तस्य विशेष्यत्वम्‌ ?। उश्यते--प्रहाप्रत्याख्यानमध्येऽस्य पाठात्‌, पौरषो- प्रत्याख्यानस्य वच्यमाण्त्वादवश्यं तद्वाम्‌ qe एवाविष्यते | भथ सुदुरतइयादिकमपि कुतो लभ्यते ?। उच्यते--भस्याकार-

(2) व्रतभद्भेगुरटोषः सोक्खयापि पालना qead q गुखूणाघयवं Ga धमें;तचाकाराः uti

BAA: प्रकाशः | ६८ <

लादस्य। पौरुष्य fe षडाकाराः, तदस्मिन्‌ प्रत्याख्याने आआकारदयवति खल्य एव कालोऽवशिष्यते नमस्कारेण afer: पूर्णेऽपि काले नमस्कारपाठमन्तरेण प्रत्याख्यानस्यापूये- माणत्वात्‌ ; सत्यपि नसस्कारपाटे सुुर्तोभ्यन्तरे प्रत्याख्यामभङ्गात्‌ | तत्‌ सि्भेतत्‌ - सुदतेमानकालं नमस्कारसदहितं प्रत्याख्यान- fafa) wa waa एव qua tfa कुतो लभ्यते १1. सूव- प्रामाण्यात्‌, पोरुषीवत्‌ सूतं चदम्‌ :-

SIT सूरे नमोक्वारसहिभ्रं पश्चक्वाद् चडठचव्विषं पि आहारं असणं पाणं ACA WIA मखल्यणाभोगेणं सहसागारेणं वोखिरद््‌।

व्याख्या--उद्गते सुरे सूर्यादमादारभ्येत्यधेः, नमस्कारेण परभे- शछिस्तवेन सहितं qa नमस्कारसहितं प्रत्याख्याति, “ad waa: करोत्य्थेन व्याप्ताः” इतिन्यायाद्‌ नमस्कारेण सहितं प्रत्याख्यानं करोति। we गुरोरनुकादभद्वया वचनम्‌ शिष्यस्तु प्रत्याख्याभिः waaay एवं 'व्युलसुजतिः इत्यत्रापि वाच्यम्‌ | कथम्‌ चतु- faufufa, पुनरेकविधादिकम्‌, भाहारमभ्यवदायं ‘afer’ CATT योगः। इदं चतुविंधाहारसखैव भवतोति संप्रदायः, रात्िभोजनत्रततोरणप्रायत्वादस्य भशनमित्याद्याहारवातुवि- ध्यकौीतनम्‌ WATT WE: GF व्याख्याताः। wa नियममङ्गभयादाकारावाह-- भ्रखलयणाभोगेणं सडसागारेणं, wa पश्चम्यर्थे तोया, अन्यत्रानाभोगात्‌, UTAH ; एतौ asifa- eae) तन्रानाभोगोऽत्यन्त विस्मृतिः सहसाकारोऽतिप्रह- सयो गानिवतेनम्‌ | वब्युत्सुजति परिहरति

Gee MANE

भध पौरषोप्रत्याख्यानम्‌-

पोरिसिं पशचक्छाद् उमाए सुरे asfay पि भाद्रं wad पाणं gid ard भस्लणाभोगेणं qramtd gawd arty fearmed सष्ुवयकषेणं सब्वसमाहिवत्तिभरागारणं alface

FET: प्रमाणमस्याः पौरष छाया aae: कालोऽपि पौरुषो प्रहर इत्यधेः, तां प्रत्याख्याति पौरुषो प्रत्याद्यानं करोतीत्यधेः | कथम्‌ १। चतुविधमशन पान-खाय्यखायलक्षणं वयुत्मृजतिः इत्युसरेण योगः। wT षडाकाराः। प्रथमौ दौ पूववत्‌ अन्यत्र प्रच्छत्रकालात्‌, दिग्मोहात्‌, साधुवचनात्‌, सवसमाधि- प्रत्ययाकाराचच | WA कालस्य, यदा Aaa रजसा fafcer वान्तरितत्वात्‌ सूरो दृश्यते, ततर पौरुषीं पूणां war मुष्ानस्यापूर्णायामपि तस्यां भङ्गः; sat त्वधमुक्षेनापि तथेव wast यावत्‌ पौरुषो पूर्णा भवति, पूर्णायां ततः परं winery; पूणंतिन्नातेतु भुक्नानस्य भङ्ग ual दिम्मोहसु यदा पूर्वमपि afaafa जानाति तदापपूर्णीयाप्रपि पौरुष्यां Wels YAS भङ्ः, arefana तु पूववदर्धभुक्तनापि स्थातव्यम्‌ ; निरपेक्षतया भुच्छानस्य ay एवेति साधुवचनं 'ठद्घाटा Graal इत्यादिकं विभ्रम कारणम्‌, तत्‌ wat Yar- नस्य भङ्गः, मुक्लानेन तु Wes, अन्येन वा कथिते पूववत्‌ तधैव सथातश्यम्‌ तथा, क्रतपौरुषोप्रत्याख्यानस्य समुत्पन्नतोव्रशूला दि- दुःखतया संजातयोरार्त -रौद्रष्यानयोः सवथा निरासः स्वैषमाधि-

SANA प्रकाशः |

WS प्रत्ययः कारणं एवाकारः प्रत्याख्यानापवादः aaah प्रत्ययाकारः---समाधिनिसिन्तमौषधपथ्यादिप्रहन्तावपूश्णीयामपि पोरा yee तदा भङ्ग cat वैदयादिर्वा क्तपौरषौ. प्रत्याख्यानोऽन्यस्यातुरस्य aafufafad यदाऽपूरषयामपि Meat भुङ्कते तदा भङ्गः, WR त्वातुरस्य समाधौ ATs वोष्यत्रे ara सति aaa भोजनस्य त्यागः

साधपौरुषौप्रत्याख्यानं पौरषीप्रत्याख्यान एवान्तभूतम्‌

सथ पू्वाधप्रत्याख्यानम्‌-

at उग्गए yftaed पञ्चक्ठ। asfad पि wert असणं पाणंखाद्मं aed भ्रत्रल्यणाभोगणं खसागारेणं पच्छसोशं aay feared साइवयचेणं agaumtd सव्यसमादहिवैन्तिया- MIG वोसिरड

पूै तदै पूर्वां fered प्रहरहयं पूर्वा प्रत्या ख्याति पूर्वाधप्रत्याख्यानं करोति षडाकाराः पूर्ववत्‌ (महस- रागारेणंः शति, महत्तरं प्रत्याख्यानागुपान्तमलमभ्यनिञरापेलया हहत्तरनिजेरालाभरहेतुभृतं पुरुषान्तरासाध्यं ग्लानचेत्यसंघादि- प्रयोजनं तद्ेवाकारः प्रत्याख्यानापवादो महत्तराकारस्तस्मात्‌ ‘waa’ इति योगः। aaa महसराकारस्याभिधानं नमस्कारसहितादौ, तत्र॒ FCAT ATS कारण Aga |

(१) wutay

०२ | योगशास्त्र

तथे काश्नप्रत्वाख्यानम्‌ | ATCT: वत्‌ सत्रम्‌ः-

एक्षाषणगं caw wsfay पि wet भाषणं पाशं Sw wre भश्छलयश्ाभोगेशं सङसागारणं सागारिप्रागारेखं पाउंटख्पसारशेषयं Zeneygaw पारिहिवख्ियागारणं महन्तरा- गारेणं सव्वसमाहिवत्तिभागारेषं Tae |

एकां सक्लदशनं भोजनम्‌, एकं वासनं पुताचल्तनतो यत्र तदे काशनभेकाखनं ; ure दयोरपि एगासखं' दति रूपम्‌, तत्‌ प्रत्याख्याति-एकाशनप्रत्याख्यानं करोतोत्यथेः। war- TRY हावाक्ञारौ पूववत्‌ सागारिभागारेखं wate aaa इति खागारः एव सागारिको wee: एवाकारः प्रत्याख्यानापवादः सागारिकाकारस्तस्मादन्य्र | गहसखप्मचं fy साधूनां Wis कल्यते, प्रवचनोपघातसंभवात्‌ ; WA एवोक्म्‌ ;-- ` . "हक्षायदयावंतो वि drat ead ae वोदहिं।

अहारि Tet दुगुद्धियपिंडगडथे

AAT भुष्छानस्य यदा सागारिकः समायाति, सयदि चल- स्तदा we प्रतोरते, रथ खरस्तदा स्वाध्यायादिव्याघातो मा भूदिति ततः खानादन्धक्रोपविश्य भृच्छानस्यापि uy: ग्टहरयस्य तु येन Es भोजनं लोर्यति सागारिकः। भाचं- टण्पसारखेणं-भराठंटणं भाकुच्यमं nye: संकोचनं प्रसारणं AMAA Waly, भाकुखने प्रसार arafeqaar

[1

(1) uzearagaratafa संवतो gaw करोति बोधिम्‌ | wt Nee aghqafaaave च॥ !॥

AMA: ABT: | Gog

किथमासे fafecrd चकति ततोऽन्धन्र प्रत्याख्यानम्‌ गुर | अम्भुहाेशं गुरोरभ्यलाना हस्या चायेख्य WATCH वाऽभ्युखानं प्रतीत्या सनत्यजनं गुवभ्युल्यानं ततोऽन्यज्र Wars चावभ्य- क्व्यत्वाद्‌ भच््ञामेनापि कतेव्यमिति तजर प्रत्याख्यानभङ्कः | प।रिटावखिश्रागारेणं परिष्ठापनं सवधा त्यजनं प्रयोजनमस्य पारिष्ठापनिक्रमन्रं तदेवाकारः पारिष्ठापनिकाकारः, ततोऽन्य | anfe व्यज्यमाने बडदोषसंभवात्‌,. waa चागसिक- न्यायेन गुणसंभवाच्चःगुर्वान्नया पुनर्भुच्ञानस्य भङ्गः Afar इति, भनेकासनमशनाय्याहारं परिहरति | पयेकश्यानकम्‌ | AY सपाकाराः। WT सू्रम-एकट्राखं पञ्चक्छाद शत्यादेकाशनवत्‌। अआङुश्चनप्रसारषाकारवजभेकम- हितोयं खानमङ्गविन्यासरूपं aq atau प्रत्याख्यानम्‌ | यद्‌ यधा भोजनकालेऽङ्गोपाङ्गं स्थापितम्‌, afaiqarfaa एव भोक्तव्यम्‌ मुखस्य पाणेशख्चागक्छपरिहारल्वाच्चलमं प्रतिषिहम्‌ | प्राक्र्नप्रसारणाकारवजलेनं चैकाशनतो भेदजन्नापनायम्‌, भ्रन्धधे- कासनमेव स्यात्‌ सधाचामान््म्‌ | ARVANA: | भत्रसूत्रम्‌:- भायंविलं TURK भव्र्यणाभोगेशं खडसागारेणं लेवालेवेखं

(१) च- बलनम्‌ | (र) WU Aa TY

०४ योगशाख्े

उक्वि्तविषैगेशं गिदहलयसंसहेशं पारिडावखिश्रागारेणं aye- रागारेकं सव्वसमाहिवस्तिभ्रागारेषं aiface | भाचामोऽवसखावणम्‌, wt चतुर्धा रसः, एते चख mas व्यज्ञनै यत्र॒ भोजने भोदन-कुल्याष-सक्नुप्रथतिक्षे aera समयभाषयोष्यते, तत्‌ प्रत्याख्याति-भाचामाश््प्रत्याख्यानं करोतोत्वथः। पाच्यावग्याख त्रय साकारा; yaaa लेवालेषेखं लेपो भोजनभाजनस्य विक्लत्य। तौमनादिना वाऽऽचामाश्प्रत्या- ख्यतुरकल्यनोयेन fara, wad विक्षत्यादिना कलिप्तपूरवस्य भोजनभाजनस्यैव इस्तादिमा संलेखमतोऽलिप्तता, लेपवाक्तेपख Quad तस्मादन्यत्र भाजने विह्लत्याद्यवयवसङ्कावैऽपिन भङ्ग waa, उक्ठित्तविषैगीशं शष्कौदनादिभक्ते परतितपृवेस्याचामा- च्छप्रत्याख्यानवता मयोग्य स्वा दरव विक्त्य दि द्रब्यस्वोत्तिप्स्योद स्स्व विवेको निःओेषतया त्याग उत्सिप्तविवेक sana cara, AASYA—M MALAITA NAY Aina भङ्ग इति भावः। wad a तस्य भोजने भङ्गः गिहयसं सेषं WU भक्वदायकस्व संबन्धि करोटिकादिभाजनं fanarfe- द्रव्येखोपलिप्तं weadee, ततोऽन्यत्र विक्षत्यादिसंखष्टभाजमेन fe दोयमानमङ्गमकल्यवद्रव्यावयवमिरं भवति, तद्‌ WaT स्यापि भङ्गः, यद्यकच्याद्रव्यरसो ay Baa | वोधिरद् इ्ति- भनाचामानं चतुर्विंधाहारं व्यक्ति भवामन्ना्धप्त्याख्यानम्‌ | तत्र पञ्चाकाराः, यत्‌ Tay ;- सुरे ome भगम ages asfad पि wet waz

तोयः प्रकाशः | ०४

पाणं Qed wea भव्रलयणाभोगेणं avant पारिदराव- शियागारेखं awatimtey सब्बसमाहिवसियागारेशं afar | सूरे See सूर्योहमादारभ्य, Waa भोजनानन्तरं प्रत्याख्या- नस्य निषेध care, भक्तेन dakar: प्रयोजनं um: भलार्याऽभक्ञाधेः, waar विद्यते amutsfaq प्रत्याखाान- विशेषे Moana उपवास इत्यर्थः भाकाराः पूववत्‌ | नवरं पारिष्ठापनिकाकारे fata: 1 यदि तिविघाहारस्य प्रत्याख्याति तदा पारिष्टापनिकं कल्यते, यदि तु खतुविंधाहारख्य प्रत्याख्याति पानकं नास्ति तदा कल्यते, पानके तूदरिते कल्यते alfa- रद्र दूति भकह्याधेमशनादि ब्युलृजति अथ पानकम्‌ तत पौरुषौपूरव्वा्धेकाग्रनैकसखानाचामा- गहाभक्ाधेप्रतयाखानेषकगतवतु वि धादारस्व प्रत्याख्यानं न्याय्यम्‌ t यदि तु fafaurwice प्रत्याखपानं करोति तदा पानकमाच्ित्व wera भवन्ति, यत्‌ सूत्रम्‌ ;— पाणस VAST वा भरेवाडेख वा Wy वा बहुलेणयवा afaas वा भसिलयेष वा alface | दह UMA इत्यस्यानुदत्तस्तृतोयायाः पश्चम्यथेत्वात्‌ Gass घेति क्तलेपाद्‌ at पिष्छलत्वेन भाजनादौमामुपकेपकारकात्‌ ` खलूरादिपानकादन्धत्र तद्‌ वलंयिल्ेत्यधेः , तिविधाहार ‘arqafa’ इति योमः। वाशब्दोऽलेपक्षलपानक्रापक्याऽवजेनोय- त्वाविश्रेषद्यो तनाथेः, भअलेपकारिशेव लेपकारिषाप्युपवासादेने

भङ्ग षद्ति भावः। एवमलेपह्लताद्‌ वाऽपिष्छलात्‌ ; WERT aT CE

७० GAN

निमेलादुष्णोदकादैः ; वहलाद्‌ वा avery तिलतन्द्लधावनादेः, afanarg वा भक्ञपुलाकोपेतादवस्रावणादेः, भसिकथाद्‌ वा सिकथव जिंतात्‌ 'पानकाष्टारात्‌

अथ Way, चरमोऽन्तिमो am) दिवसस्य भवस्य चेति fear: तहिषयं प्रत्याखयानमपि चरमम्‌ इह भवचरमं यावब्जोवम्‌। aa हिविधेऽपि चलार भाकारा भवन्ति ; aay ;-

दिवखचरिमं भवचरिमं वा पश्चक्वाद asfad पि wwii Wad पाण Gita ast भत्र्यण्ाभोगीणं सहसागारेणं मड- तरागारेशं सन्वसमाद्िवत्तिभागारेषं वोसिरद््‌

ननु दिवसचरिमप्रत्याख्ठपानं निष्फलम्‌, एकाशनादिप्रत्या- खःानेनेव waaay) नैवम्‌, एकाशनादिकं werarac- HAT चतुराकारम्‌, भत भाकाराणां संच्ेपकरणात्‌ सफलमेव | भत एवकाश्यनादिकं देवसिकमेव भवति, राविभोजनस्य त्रिविधं ति विधेन यावञ्नोषं प्रत्याख्यातत्वात्‌ wrentuat पुनरिद- मादित्योदमान्तम्‌, दिवसस्याष्टोराव्रपधायतयापि दशनात्‌ | तव येषां रातिभोजननियमोऽस्ति, Fava? साधं कम्‌, भनुवादक- त्वेन स्मारकत्वात्‌ | भवचरमं तु इाकारमपि भवति। यदा जानाति महसरसवसमाधिप्रत्ययरूपाभ्यामाकाराभ्यां प्रयो- जनम्‌, तदाऽनाभोगसहसाकाराकारौ भवतः, भद्रल्यारेरना- भोगेन सहसाकारेण वा सुखे प्रक्षेपसंभवात्‌। wa एवेदमना-

कारमप्यच्यते, भाकारदयस्यापरिषायंलात्‌

तोयः प्रकाशः | 909

अधाभिग्रहप्रत्याख्यानम्‌ | तश्च दण्ड प्रमाजनादिनियमरूपम्‌ तत्र चत्वार भाकारा भवन्ति, यथा, भव्रल्यणाभोरीणं सहसागारेशं मदत्तरागारेणं सब्वसमाहिवत्तिषागारेणं बोसिरद्। यदा त्वप्रावरणाभिग्रहं ग्टह्वाति तदा 'चोलप्हगागारेशं' इति पञ्चम आकारो भवति, चोलपटक्राकारादन्धत्त्यधैः

रथ विक्ञतिप्रत्याख्यानम्‌। तत्र नव, Wet वाऽऽकाराः; ` यत्‌ सूवम्‌-

विगङभ्ो GAIT श्रन्रयशाभोगेशं ससागारेणं लेवालेषेणं गिह लसंसटरेणं उक्वित्तविषेगेणं पड़्चमक्विएणं पारिडावणि- WM महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिप्रागारेणं वोसिरद्‌ |

मनसो विक्लतिहेतुल्वाद्‌ विक्लतयः, ata ea, यदाश्ुः;-

ait efe नवणोभ्रं aa तदा aqaa गुड मलं | ay ad चेव तदा भोगाहिमगं a fantat nen

aa पश्च चीराणि, गोमहिष्यजोद्रयलकासंबन्धमेदात्‌। दधि-नवनोत-छतानि तु चतुभेदानि, उद्टरौणां तदभावात्‌। तेलानि चत्वारि, तिलातसौनहवासषेपसं वन्धमेदात्‌ aaa तुन fanaa, लेपक्ततानितु भवन्ति गुड इ्क्तुरसक्ताथः। हिधा, पिण्डो दरव मदां tur काष्ठ पिष्टोहवत्वात्‌ मघुचरेधा,- मासिकम्‌, alfa ्रामरंच)। atd विविषम्‌, जल-खन- ख॒ रजन्तृह वत्वात्‌ ; भयवा मांसं fafawa, चर्म-रुधिर-मांस-

fe eee कनक =-= = पि

(१) at दधि नवनीतं हतं तचा data गुडो भव्यम्‌ | सपु मांसं चैव तथाऽवगाहिमकं fanaa nit

७० AVANT

भेदात्‌ . भवगादेनं Senaaa निदे्तमवगाडिमं पदाम्‌ “भावादिमः” ( सिदहेम-९।४।२१। ) sila, यत्‌ तापिक्षायां एतादिपूष्णीयां चलाचलं खायकादि पच्यते, तस्यामेव तापिकार्यां तेनैव र्न feald aad खाद्यकादि विकतिः, ततः परं पक्षान्नानि योगवाहिनां निविक्लतिप्रत्याख्खयानेऽपि ae | अथेकेनेव पूपकेन तापिक्ता पूर्येत तदा हितोयं amd निविह्लति- प्रत्याख्यानेऽपि कल्यते, Mand तु भवति aay ठदसामा- चारो। एताश्च दशसु faafay मणच्यमांसमघुनवनोतलक्शा- wae विक्षतयोऽभच्याः। शेषासु षड्‌ भ्या: aq aang विक्लतिषेकादि विक्लतिप्रत्याखयाने षड्विक्ततिप्रत्याखयानं fafa- हतिकसंन्न विछतिपरत्याख्डयानेन संग्डहोतम्‌ भ्राकाराः पूववत्‌ नवरम्‌, fawadagd इति ayaa खप्रयोजनाय दुण्धसंखष्ट Wet दुग्धं तमतिक्रम्योल्कषंतखत्वायङ्लानि यावदुपरि aaa तदा तद्‌. दुग्धम विक्ञतिः, पञ्चमाङ्कलारण्भे विक्ततिरेव sata न्धायेनान्यासाममि विक्लतोनां ग्टइख्ासंखष्टत्वमागमादवसेयम्‌ | उक्ठिश्वविषेगेशं इति, उत्‌ लिप्तविषेक भाचाभास्ञवदुदत' शक्यासु faufay द्रष्टव्यः, zafaafag नास्ि। oss मक्विएशं इति, --प्रतोन्ध सर्वधा रूत्तमण्डकादि कमपेश्य afad खरहितमौषत्रौ- guinea स्रच्षणल्लतविशिष्टखादुतायाखाभावाद्‌ afaa- faa यद्‌ वतते तत्‌ adie afed स्रखिताभासमित्यथः 1 दह चायं fafa:—aaqer cafe war aware afad तदा कष्यते fafanfane, धारयातु कल्यते ब्युद्मुजति

तोयः प्रकाशः। ॐ०€

fanfa त्यजतोत्यथैः। शह यासु faafaafeanfater: संभवति तासु नवकाराः, अन्यासुतु द्रवरूपाखष्टौ। एतदधसंवादिन्यो गाथाः- lat चेव नसुक्कार भागारा we पोरिसीए | aaa पुरिमदे एक्षाघणगग्धि wea we i wingrea saga dfaafia भागारा। Uta WANE दष्पाशचे चरिम चसारि॥२॥ पंच Wary भभिम्गहे fafar az मवय wim | भष्पाउर्शे dy हवति Aq तन्तारि॥श॥ मनु निर्विंक्ततिक एवाकाराभिघानाद्‌ विक्लतिपरिभाणप्रत्या- QUI कुत भाकारा भरवगम्यन्ते१। sai—fafanfanaye® विक्लतिपरिमाशस्यापि संग्रहो भवति, एव शाकारा भवन्ति; यथा--एकाषनस्व Deer: पू्ार्पस्यैव सुतरेऽभिधानेऽपि इपासतनकस्य BINA अपास्य प्रत्याखानमदुषटम्‌, भप्र- areas: संभवात्‌ भाकारा भप्येकासनादिसंवन्धिन एवान्ये ष्वपि ana, भासनादिग्रब्दसाम्यात्‌ चतुर्विधाहारपारेऽपि

(१) gras नमच्ारे याकार षट्च पौरुष्यां वु। ORT gerd एकाशमेऽरेव॥।॥ CAVING त्वेव TTA. STH | UPUUMTS षट्‌ TIA चरसे wea yk पञ्च चतुरोऽभिसहे fafrafatce नवचाडाराः। SANS Vy g भवन्ति Hay aT: ae

Sto ALANS

दिविधनिविधाशारप्रत्याखयानवत्‌। ननु हयासनादोनि भरभि- ग्रप्रत्याखपानानि, ततस्तेषु चत्वार एवाकारः प्राप्रुवन्ति | न, एकासनादिभिलुल्ययो गत्तेमलात्‌ भन्ये तु मन्यन्ते,-- एवं हि प्रत्याखाने den विभोयंत। तत दकासनादौग्येव प्रत्या- खपानामि, acung यावत्दिष्णुस्तावत्‌ पौरुष्यादिकं प्रत्या- anfa, तदुपरि न्वि्हितादिकमिति। प्रत्याखाने स्मण- नादिगुणोपेतं querer भवति; | यदाहुः - tonfast पालियं चव सोहिष्रं तोरिभ्रं तहा | किडियमाराहियं चव एरिसयश्ि पयद्भव्वं १॥ ay ae प्रत्याखानकाले विधिना प्राप्तम्‌ je) पालितं पुनः- पुनरुपयोगप्रतिज्ागरषेन रसितम्‌ ।२। शोभितं गुर्वादिप्रदन्त- शेषभोजनासेवनेन ।३। तीरितं पूर्णेऽपि कालावधौ किञ्ित्काला- away ig) atfad भोजनषेलायाममुकं मया प्रत्याखयात- ayat पू मोच्य शत्यश्चारथेन ५। भाराधितमेभिः प्रकारैः संपूर्णे निष्ठां नतमिति | प्रत्याखयानस्य चानन्तर्येण पारम्पयंण फलमिदम्‌ ;— <qqaarafa कण भास्वदाराडङ शति पिदिभ्राष्ं।

भासवदारपिद्ाशे तण्ावुच्ेभणं viene a

(१) Qe पाडत चापि शोभितं Mica तथा| कीतिंतमाराधितं diez प्रवतिनब्यप्‌ nen

(र) प्रत्या खाने लते खास्तश्हाराख्ि asf fafyarfa | व्यासबहारपिधामे wey भवति ॥२॥

SAA: प्रकाशः | ORL

'तण्ावुष्ेएण भखलोवसमो UI AYA | भखलोवसमेण पुष्यो पथचकण्वाणं wax सुं I zs तत्तो चरिष्छघश्भरो कम्यविषेगो ्रपुव्वकरशणं च| तत्तो केवलणाणं सासयसोकष्ठो AGM AAS ॥१।॥ चावश्यकतव्यमावश्यकं चेत्यवन्द्नाद्येव ओावकस्य, षड्‌- faufafa am युक्तम्‌, र्समधेण सावएण भवस्पकायव्वयं Wax HAT | stat श्रो निसिस्य तम्हा Waa ATA १॥ इत्यागमे खावकं प्रत्यावश्यकस्योक्तत्वात्‌ | Wa चेत्यवन्द्‌- नादोवावश्यकं वक्षुमु चितम्‌, “tat wet निसिख्छयः' इति काल- इयाभिधानात्‌, चेत्यवन्द्नस्य श्रैकालिकत्वेनोह्नलात्‌ |` भनु- यो गहारैष्वपि ‘ad समणोवा समणो वा सावएण वा साविया arafad तस्मि ana तदर्‌टोवशक्ते तदप्पियकरणे तम्भावष- भाविए उभभ्रोकालं waa ats, से तं लोखक्षरिभ्रं भावा-

—_

(1) ष्णाव्युच्छेटेन चातुलोपशमो भवेद्‌ HYRTWTT | अतुलोापश्मेन पुमः wearers भव्ति शुद्धम्‌ ॥२॥ ततचारि्वषमेः कसंविप्कोऽपूर्वर्रषं च। ततः Raya शाच्नसोख्यसतो HTT: १॥ (र) मणेन Bay च्शन्तंन्यकं भवति यसमात्‌, आन्तेऽको fang तसाराश्यकं नाम le yg (९) यत्‌ Saw वा aaa वा areal a aifae वा तञ्जित्तरमानाकरूद्ञे- ष्यलदर्याप्युक्रसदप्ितिकरणसाद्धामाभावित उमयकाङमावश्यकं gata, तज्ञो- कोत्र भावाव्र्यन्नम्‌।

OLR AMAIA

aad इति वचनात्‌ अआावकस्वाप्यावश्यकसुक्ञमेव ततः कछत- षड विधावश्यक कर्मा खाध्यायम्‌, waa: पश्चममस्कारस्य वा परिवर्तनं कुर्यात्‌ ; Waa, खाध्यायं पञ्चविधं वाचना-प्रग्र- परिवर्तना-ऽनुप्रेला-धमेकधारूपं कुयौत्‌। यसु साधूपायमा- गन्तुमश्ह्षो राजादि्वां महिंको वा बह्ृपायः WE एवा- वश्यकं खाध्यायं करोति। उस्षपममिन्युत्तमनिजराहेतुम्‌, यदाह ;- | |

tarcefaufa fa सके afaiacafet कुसलदिटे।

नवि wife नवि श्र शोषो सञ्भायसमं तवोकश्यं॥ १॥ तधा,

AWC waa काणं WIT q सव्वपरमद्यं।

सञ्काए वहतो GY GY ary Acai neu इत्यादि १२०॥

न्याय्ये काले ततो देवगुरुख्मृतिप्रविवितः। निद्रामल्पासुपासौत प्रायेशाब्रह्मवजंकः १२१॥

न्यासो न्यायादनपेनः कालः, सच Wa: प्रधमयामोऽ्रा वा शरोरसात्म्येन, तत दति खाध्यायकरण्दानन्तरं, निद्रामसख्या- सुपाक्षोतैति क्रिया कथम्भूतः सन्‌ ? देवगुरुख्मतिपविचितः- (१) erenfetsfa तपसि लाभ्यनरबाद्ो quatre | गाष्यस्ति नापि भविष्यति qnaraed तपःकर्म !

(र) स्लाध्यामेन weet ध्यानं जानाति सबवपरनाषंम्‌ | WAIT वर्तमानः US WS जाति वेराभ्यम्‌ !॥

Bata: प्रकाशः | ७१8

देवा रदष्ारकराः, गुरवो धमौ चार्यः, तेषां स्मृतिमनस्यारोप्ं सया पविवितो नि्मलोभूतासा saad चेतच्चतुःशरणगमन- दुष्कुतगा-सल्लतागुमोदना-पश्चनमस्कारस्मरणप्र्धतोनाम्‌ ्तत्छरणमन्तरेण पविच्रता भवति तत्र देवस्मुतिः-- “नमो वौयरायाणं ware तिलोक्कपूदभ्राणं जहटिभवल्युवारैणं” इत्यादि गरस्मतिख--^धन्धास्ते ग्राम-नगर-जनमपदादणो येषु मदोया walaray विहरन्ति |” निद्रामल्यामिति निद्रामिति विशेष्यम्‌, अल्पासिति विगेषणम्‌। विगेषणस्य चात्र विधिः, <खविधे-. षले fe विधि-जनिषेधौ विशेषणसुपसंक्रामतः" इति न्यायात्‌। निद्रासिति विशेष्यमिति as विधिः, दशेनावरणोयकर्म दयेन निद्रायाः खतः सिहल्वात्‌, “अप्रा हि णास्मवेवत्‌' इत्यह्ल- प्रायम्‌ Ww मेथुनं तद्‌ वजेयति भ्रब्रह्मवजकः, प्रायेखेति SEGA, ग्दइखत्वादस्य + १२१

पएुनख- `

निद्रा्छेदे योषिदङ्सतच्वं परिचिन्तयेत्‌ | स्थुलभद्रादि साधूनां afqate पराखशन्‌ ॥१२२॥

परिणतायां रात्री fag? सति योषिदङ्गगनां स्नो- शरोराणां सतत्वं खरूपं परिचिन्तयेत्‌ fa कुवन्‌ ? खयृल-

[म भभम

(१) गलो कीतरगेभ्यः wathagetagfaaten बधासखितवस्तुबा दिभ्यः | ée

९१४ MANE

मद्रादौनां साधूनां तचत्तं योषिदङ्कनिहत्तिं पराश्न्‌ VATA |

Bauza re संप्रदायगम्यम्‌ | चायम्‌ >—

प्रस्ति सौधप्रभाजालधृपधूमे निरन्तरे | जितगङ्गाकजासद्गः पाटलो पुतरपत्तनम्‌

aa जरिखष्डषधिवोपतिः पतिरिव faa: ससुरखा तददिषत्कन्दो नन्दो नामाभवद्‌ Ba no विसंकटः faat वासोऽसंकरः शक्षटो faara शकटाल इति तस्य वभूवामात्यपुङ्गवः a २॥ तश्याभूल्नेयष्ठतनयो विनयादिशुणास्मदम्‌ | WHat: Bangi भद्राकारनिशाकरः भक्िनिष्ठः कनिष्टोऽस्य ओोयकोऽजनि नन्दमः | नन्द्राडदृदयामन्दानन्दगोभोषचन्दनः ॥. बभूव aa कोभेति वेश्या रूपच्ियोवभो | वशोक्ततलगच्ेताश्चतोभूजे वनौषधिः भु््ञानो विविधान्‌ भोगान्‌ स्थृलमद्रो दिवानिशम्‌ उवासावसथे तस्या इादशाब्टानि AMAT: खोयकस्वङ्गरक्तोऽभूद्‌ भूरिविखग्धभाजनम्‌ | दितोयमिव दयं नन्दस्य एथिवौपतेः

aa चासौद्‌ aafaaia हिजवराग्रणोः। कवोनां वादिनां वेयाकरणशानां शिरोमणिः ५८४

तोयः प्रकाशः 1

स्वयं क्षते नवनवेरष्टो ्तर्तेन सः

Se: प्रह त्तोऽनुदिनं नृपावलगने सुधीः wee i मिष्याहगिति तं मन्तो प्रशंस जातुचित्‌ | तुष्टोऽप्यस्मे तुष्टिदानं ददौ गुपतिस्ततः॥ ११॥ Wat वररुचिस्तत्र दानाप्रापणकारणम्‌ | पराराधयितुमारेभे west तस्य मन्तिः १२॥ | संतुष्टया तयाऽन्येदुः कायं एषटोऽत्रवौदिदम्‌

UI: पुरस्ताद्‌ Aas तव भता प्रशंसतु ॥१२॥ सया तदुपरोधेन तदिज्नप्तोऽवदत्‌ पतिः | मिष्यादृशटेरसुष्याहं प्रशंखामि कथं वचः १॥ १४॥ तयोक्तः साग्रहं Al तत्‌ तथा प्रत्यपद्यत | WAM AALS णामाग्रहो वलवान्‌ खलु १५॥ TW: पुरस्तात्‌ पठतः काव्यं वररचेस्ततः |

७१४.

WW! सुभाषितमिति वणेयामास मन्तिराट्‌ १९॥

दोनारशथतमष्टाग्रं aaa safaeet | राजमान्धस्य वाचापि जोष्यतै ह्नुकूलथा १७ दोनाराष्टो्तरशते दोयमाने दिने fer |

किमेतद्‌ दोयत इति भूपं मन्तो व्यजिन्नपत्‌ १॥ १८॥

भधोचे शुपतिमन्तिन्‌ ! दद्नोऽस्मे Beat |

वयं यदि खयं दमो दद्यः fat a gut ततः१॥ १८

waa मया देव ! प्रशंसा नास्य निमभे काव्यानि परकौयानि प्रशशंस तदा लम्‌ २०

७१६ योगशास््

परो मः परकाव्यानि waters पठत्ययम्‌ | किमेतत्‌ सत्यभावेनेत्यभाषत saa: २१॥ एतत्पटितकाव्यानि पठन्ति वालिका भपि। दथयिष्यामि वः प्रातरित्यृचे सचिवोऽपि ॥२२॥ यक्ता यक्दन्ता भूता भूतदन्ता तथेषिका।

वेणा येति सप्तासन्‌ प्रश्नाः पत्योऽख्व मन्तिः २३ जग्राह व्यायसो तासां Gage तथेतराः | दित्यूदिवारक्रमतो wafer a यथाक्रमम्‌ as A ts: समोपं सचिवो feasts निनाव a: | तिरस्कारिष्यन्तरिताः समुपावेशयश्च सः २५ i अष्टोत्तरशतं सलोकान्‌ खयं निमाय नेत्विकान्‌ | जचे वररचिस्ता अप्यगुज्येहमनुचिरे xq

ततो ATHY FST राजा दान न्यवारयत्‌

surat: सचिवानां fe निग्रहानुग्रहत्तमाः २७ ततो वररुविगेवा aad गङ्गाजले न्यधात्‌ |

त्म्ये वस्त्रबदं दौनारशतमष्टयुक्‌ २८ प्रातगेङ्गगमसौ सुत्वा यन्तमाक्रमदंङ्ि्ा। टौनारास्से तत्पाणावुत्पत्य AAA: २९ ‘a एवं विदधे नित्यं जनस्तेन fafafaa |

त्च खता जनग्युत्या राजाऽशंसच्च मन्ति ३० a

SERA | Me SSR CEI ©= भय

(१) चण्वच।

WALA: प्रकाशः | S29

इदं यदास्ति सत्यं तत्‌ प्रातर्वींक्षामड खयम्‌ | इत्युक्तो मन्तिगा राजा AMAT WIAA ११॥ दश्वा शिं चरः सायं प्रेषितस्तन्र मन्तिणा। शरस्तम्बनिनलोनोऽखात्‌ पक्त वानुपलचितः ३२ तदा वरर्चि्गत्वा छत्रं मन्दाकिनोजक्ञे दौोनारा्टोत्षरशतग्रयिं न्धस्य ययौ ze + kk तञ्जोवितमिवादाय दौनारग्रन्यिभेष तु |

खरः समपयामास प्रच्छन्नं वरमन्ति्ि\॥ १४॥

अथ गुप्तास्तदौीनारग्रन्िमेन्तो निश्रात्यये।

ययो रान्ना समं APIA वररुचिस्तदा ey a द्रष्टुकामं कृपं टृष्टोलु्टुमानो सविस्तरम्‌

स्तोत्‌ प्रवहते ग्गं मूढो वररुचिस्ततः + ३९ सुत्यन्तेऽचालयद्‌ aw यदा वरस्चिः पदा। दौनारग्रन्विरुत्पत्य नापतत्‌ पाशिकोटरे १७ द्रव्यं सोऽन्वेषयामास पाणिना ane ततः | "तख्यावपश्यं सतव्णोको धूर्ता wer हि मौनभाक्‌ १८ Tay महामात्य: किंते et TBAT | न्धासोक्ततमपि द्रष्यमन्वेषयसि यद्‌ मुहः १॥ २८ sure ब्टहाणेदं निजद्रव्यमिति ब्रुवन्‌ सोऽपयामास दोनारग्रय्यिं वरर्चेः कर ४०

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(१) WW वब @ |

Orc ' arrare

दोनारग्रनिना तेनोकखपिद्क्ुन्विभेव सः दशामासादयामास मरणादपि CAwiy etn विप्रतारयितु लोकं सायमवर सिपत्यसो |

द्रवयं प्रातः प॒नगृ्नातोत्युचे सचिवो कृपम्‌ ४२ साध ज्रातमिदं छभ्ेत्यालपन्‌ मन्धिपुद्कवम्‌ | विस्मयस्मेरनयनः खवेश्मागाद्‌ महोपतिः ४२.॥ समर्षलो वरदविः प्रतिकार विचिन्तयन्‌ | wzraed सचिवस्ाप्च्छशचेटिकारिकम्‌ ४४॥ तस्याथ कथयामास काचित्‌ सविवचेव्छदः | भूपतिः ओोयको हाहे भोख्यते मग्विषिश्मनि ४५ aaa Wa शस््रादि दातु मन्दाय मन्विषा। शस्रप्रियाशां रान्नां हि शस््रमादयसुपायनम्‌ ४९॥ समासाय च्छलज्नम्तच्छलं वर रचिस्ततः |

wentfe प्रदायेति डिग्बरूपाण्यपाठयत्‌ ४७

वेत्ति राजा यदसौ शकटालः करिष्षति। व्यापाद्य नन्दं तद्राज्ये गीयकौ खापयिष्यति a ४८ खाने खाने पठतो feats दिने दिने | marge तदग्ौषोदिति चाविन्तयद्‌ za: ४९ MAA यच्च भाषन्ते भाषन्ते यच्च योषितः। प्रोत्पातिकौचया भाषा खा भवत्यन्यथा नहि ५०॥ तद्मत्यया्े time प्रेषितो मन्छिवैश्मनि |

Guu: सवमागत्य यथादृष्टं व्यजिन्नपत्‌ ५१

BAA: प्रकाशः Ore

ततश सेवावसरे मज्विणशः समुपेयुषः |

प्रणामं Haat राजा कोपात्‌ AY TUG: ५२ & तद्वावज्नोऽच AMAT: ्रौयकमन्रवोत्‌। ` राज्ञोऽस्ि श्रापितः केनाप्यभक्तो विदिषन्निव ug a असावकस्मादस्माकं कुलक्षय suf;

रच्यते, वच्छ ! कुरुषे य्ादेशमिमं मम ५४॥ नमयामि यदा ow भिरन्डिन्ास्तदासिमा।

अभक्तः खामिनो वध्यः पितापोति वदेस्ततः ५५॥ जरसापि चियासौ मय्येवं याते पराशुताम्‌ |

लवं मलत्कुलब्डहस्तम्भो नन्दिष्यसि चिरं ततः ५९॥ Manisha रुदन्रेवमवदद्‌ गहदसखवरम्‌।

तात ! घोरमिदं कर्म खपचोऽपि करोति किम्‌ १॥१५७॥ श्रमात्योऽप्यत्रवोदेवभेवं कुर्वन्‌ विचारणाम्‌ | मनोरथान्‌ पूरयसे वैरिणामेव केवलम्‌ ५८्॥

राजा यम WAITS: सकुटुम्ब हन्ति Az | यावत्‌, तावग्मेकस्य TAT TH कुटुम्बकम्‌ ५८ सुखे विषं तालपुटं we मंस्यामि भूपतिम्‌ |

शिरः परसोमं fever: foawat a ते ततः॥६०॥ fata बोधितस्तत्‌ प्रतिपेदे wart a) ` शएभोदकाीय धोमन्तः कुवन््यापातदार्णम्‌ ९१॥ भवता किमिदं am) विदधे कमं दुष्करम्‌ | ससंभ्नमभिति ate ate ओोयकोऽवदत्‌ ६२॥

७२० ‘area

यदेव aif sat aig निहतस्तदा भरतुचित्तानुखारेण warrat हि प्रवतनम्‌ + ९३ अत्यानां युज्यते दोषे खयं ara विखारणा। | wifamia प्रनोकारो युख्यते विचारणा és

छतीष्वदेहिकं नन्दस्ततः यौयकमत्रवोत्‌। सरवव्यापारसदहिता मुद्रेयं गद्तामिति + ayn अथ विज्ञपयामास प्रणम्य Waal कृपम्‌ | स्थलमभद्राभिधानोऽस्ति पिढतुख्यो ममाग्रजः ६९ पिद्धप्रसादाद्‌ निर्बाधं कोश्ायासतु निक्षेतने। भो गानुपमुखखानस्य तस्याब्दा हादग्ागमन्‌ + Eo WHEAT स्यृलमद्रस्त मथ भूमुजोदितः। पर्यालोष्यासुमादेषं रिष्यामोत्यंभाषत et भव्येवालोचयेत्युक्षः BART AWA | अशोकवनिकां गत्वा विममेति चेतसा॥ ६< nad भोजनं ज्ञानं यच्चान्यत्‌ सुखसाधनम्‌ | कालेऽपि नाजुभूयन्ते रोरेरिव नियोगिभिः ° नियोगिनां खान्धराष्चिन्ताव्यग्रे चेतसि।

- प्रेयसौनां नावकाशः 'पूणकुष्पेऽऋअसामिव ७१॥ wal सवेमपि खा रान्नोऽधं कुवंतामपि उपद्रवन्ति fagar owerarfaa feat: ७२

( १} पथे \

ठतोयः प्रकाशः | ORL

यथा खटेहद्रविणशब्ययेनापि प्रयत्यते |

राजार्थे, तद्व दामार्ये यत्यते किं धोमता १॥ ७१॥ विख्श्येवं व्यधात्‌ केभोत्पारटनं agate सः। रन्नकम्बलदशाभो रजोहरणमप्यथ ७४

ततश्च महासस्वो गत्वा सदसि पार्थिवम्‌ भालोचितमिदं धमेलाभः स्तादित्यवोचत ७५ ततः राजसदनाद्‌ Feat इव Raa |

fa ससार महासारः संसारकरिरोषणः og किमेष कपटं Har यायाद्‌ Aare ya: | इत्यप्रत्ययतः BWIA waray fataa noo Nea शबदुगन्धेऽप्यविकूणितनासिकम्‌

यान्तं ET MAUS नरेन्द्रोऽधूनयच्छिरः ७८ भगवान्‌ वोलरागोऽसावस्िन्‌ धिग्‌ भे कुचिन्तितम्‌। इत्या सानं निनिन्दोचचनंन्दस्तमभिनन्दयन्‌ oe. स्थुलभद्रोऽपि गत्वा खोसंभूतिविजयान्तिके

lai सामायिकोच्ारपूविकां wera ८० weet aa Aho ततो नन्दः सनौरवम्‌ | मुद्राधिकारे निःओेषव्यापारसहिते न्यधात्‌ ८१ चकार Waal राज्यचिम्तामवहितः सदा| साक्तादिव MASI: प्रक्ष्टनयपाटवात्‌ ८२ नित्यमपि कोशाया fata: सदमे ययौ।

Wig भ्ातुस्तम्मियादि कुलोनेबेड्‌ मन्धते ce <

SRR

योगशा

स्थूलमद्रविवोगातो ओोयकं प्रे Issey

CE Ce fe gaat दुखं धतुमीशते ८४ ततस्तां ओोयकोऽवोचदायें ! किं कुमे वयम्‌ |

wat वररुचिः पापोऽघातयल्ननकं fe नः॥ ८५ भकाण्डो यितवच्वाम्निप्रदोपमसषष्ोदरम्‌ स्यूलभद्रवियोगं भवत्या भ्रकरोदयम्‌ + ८९ AMAA शायां यावद्‌ रक्तीऽख्यसौ खलः | तावत्‌ प्रतिक्रियां काञ्चिद्‌ विचिन्तय aafafa! ॥८७॥ सदादिशोपकोशां यत्‌ प्रताये कथमप्यसौ |

विधोयतां वररुचिमेचपान सचिसत्वया ct

प्रेयो वियोजनाद्‌ sue दाचिख्याद्‌ टेवरस्य |.

aq प्रतिन्नाय खा सयोऽप्युपकोशां समादिशत्‌ ५८९ कोशायाख निदेशेनोपकाशा तं तथा व्यधात्‌ |

यथा पपौ सुराभेष alan: क्रियते किम्‌ ११९८० सुरापानं वररविः खरं भटटरोऽद्य कारितः खपकोशेति कोशायं शशंसाध निशात्यये ९१॥

अध कोशामुखात्‌ सवं शाव खोयकोऽपि az t

aa पिदवेरख विहितं प्रतियातनम्‌ ९२ शकटालमडहामात्यात्वयात्‌ प्रति सोऽप्यभूत्‌ |

भद्रो वररुचिभूपसेवावसरतत्परः ९३

Way राजकुले सेवाकाल समापतन्‌।

UN राजलोकख सगौरवमटृश्यत ८४

waa: प्रकागः।

अन्यदा नन्द्‌ राड मन्विगुणस्मरणविद्लः |

सदसि Manta जगादेवं सगहदम्‌ <५ भक्गिमान्‌ शक्तिमान्‌ नित्यं शकटालो महामतिः अभवद्‌ मे महामात्य: शक्रस्येव awa: ९९ एवभेव विपन्नोऽसो देवादश् करोमि किम्‌ 7 | मन्ये शृन्यमिवाख्थानमहं तन विनातलसनः ९७ उवाच खोयकोऽप्येवं किं Say fara |

ददं वरसचिः सवे पापं व्यधित मदयपः॥९८॥ सत्यभेष सुरां uz: पिबतोति aries `

ग्तोऽसं दशेयितास्मोति Taw: प्रत्यवोचत ९९ aang featasfe सर्वेषामोयुषां सदः agar fafaiard: पद्मभेकं कमापेयत्‌ १०० तत्कालं मदमफलरसभावनयाऽञ्धितम्‌।

दुरात्मनो वररुवेरपयाम।स THA कुतसत्यमह तामोदमिदमित्यभिविनः |

त्रातं राजादयो निन्युनौखाग्रे खं खमम्बुजम्‌ २॥ सोऽपि भट्रोऽनयद्‌ घ्रातं त्राणाग्रं पजं निजम्‌। "न्द्रहासमुरां सयो राज्रिपोतां ततोऽवमत्‌ २॥ fand सोधुपं ब्रह्मबन्धु बन्धवधोचितम्‌ स्वेरित्याक्रश्यमानो निययौ सदसोऽय सः

` ब्राह्मणा याचितास्तेन प्राय्चि्तमचोकषन्‌। तापितव्रपुणः पानं सुरापाणाघचातकम्‌ ५॥

अर

O28

योगशास्त्र

मूषया तापितमथ पपौ वररुचिद््रपु

प्राणेच सुमुचे सदयस्तत्रदाहभयादिव é स्थुलभद्रोऽपि संभूतविजयाखायेसन्निधौ |

प्रव्रज्यां पालयामास पारदृश्वा श्रुताम्बुधेः

वषा कारेऽन्यदाऽऽयाते संभूतविजयं गुरुम्‌ |

प्रणम्य मूत्रा मुनय श्त्यग्णद्व्रभिग्रहान्‌

ad fdequrert कतोव्षग उपोषितः |

भवस्थास्ये चतुमीसोभेकः प्रत्यशणोदिदम्‌ wen

टग्‌ विषाह्िबिलदहारे चतुमौसोमुपोषितः।

स्थास्यामि कायोव्छगंण दितोयोऽम्यग्टहोदिति १० SRA कूपम ण्डुकासने मास चतुष्टयम्‌ | स्थास्याम्युपोषित इति arta: प्रत्यपद्यत ११ योग्यान्‌ मत्वा गुरुः साधन्‌ यावत्‌ तानन्वमन्यत | WAR: FU नत्वेवं तावदब्रवोत्‌ WORN कोशाभिघाया वेश्याया we या चिन्रशालिका। विविवकामशास््ोक्षकरणालेख्यशालिनो १२॥ तव्राक्षततपःकम विशेषः षड्रखागनः।

चास्यामि चतुरो मासानिति asfirre: प्रभो! १४॥

श्नात्वोपयोगाद्‌ योग्यं तं गुर्स्तत्रान्वमन्धत |

साधवश्च ययुः सवे खं सवं स्थानं प्रतिख्रुतम्‌ १५॥ स्ृलभद्रोऽपि संप्राप कोथावेश्यानिकैतनम्‌ WANA ततः कोयाप्याडिताच्नलिरग्रतः-॥ ee

BAA? WAM: | ७२५

सुकुमारः WAM THAW दवोरुणा |

व्रतभारेण fagasatarfefa fafara at १७॥ उवाच खवागतं स्वामिन्‌ ! समादिश करोमि किम्‌ ?। agua परिजनः सर्वमेतत्‌ aaa हि १८ चतुम सीं वसत्यै मे चित्रणालेयमप्येताम्‌

द्यवे स्थृत्तभद्रोऽपि सा तृचे चटद्मतामिति १९ तथा तस्यां प्रगुणोक्ञतायां भगवानपि | कामख्छानेऽविशद्‌ धम दव स्ववलवत्षया Ro

अथ सा षड्रसाषहारभोजनानन्तरं सुनेः। विशेषक्लतश्ह्धारा Bia समुपाययौ ॥२१॥ सोपविष्टा पुरस्तस्वोत्कृष्टा काचिदिवाखराः |

चतुरं रचयामास हावभावादिकं AE: २२ करणानुभवक्रोडोहामानि सुरतानिष। |

तानि तानि प्राक्तनानि स्मारयामास साऽसक्त्‌ २२४ यद्‌ यत्‌ mura विदधे लया तत्र महासुनौ |

तत्‌ तद्‌ म॒धाऽभवद्‌ यदद्‌ वच्वे नखविलेखनम्‌ २४ प्रतिवासरमप्येवं तत्त्ोभाय THT AT |

AMA FAA Ma मनागपि महामनाः॥२५॥ तयोपसगकारिष्या प्रत्यलास्य महामुनेः |

श्रादोप्यत ध्यानवङ्किमेचवङ्किरिवाश्यसा २६

लयि पूर्वमिवाश्नानाद्‌ रन्तुकामां धिनो ! माम्‌ | भ्राकानमिति निन्दग्तो साऽपतत्‌ तस्य पादयोः २७

७२६

योगशास्त्र

मुनेस्तस्येन्दरियजयप्रकषष TAMA |

Nae arama सा ‘wewiaaafaueA + २८॥ qe: कदापि aafae ददाति afe at ac: | विना चुमांसभेकं तमन्त नियमो मम २८ गते तु वर्षास्षमये ते योऽपि fe साधवः। निव्यंढाभिग्रहा एयुर्गरुपादान्तिकं क्रमात्‌ + १० ्रायान्‌ सिंहगुहासाधुरष्ो ! दुष्करकारक ! |

तव खागतमित्युचे किञिदुलयाय सूरिणा ॥३१॥ खूरिणा भाषितौ तददायान्तावितरावपि।

aa प्रतिच्नानिर्वाहे समा हि खाभिखत्किया ३२ अथायान्तं स्यलभद्रसुलयाय गुङरब्रवोत्‌ | दुष्करदुष्करकार | महान्‌ | खागतं तव a az सासूयाः साधवस्तेऽधाचिन्तयत्रित्यद्ो ! गुरोः ` इदमामन्धशं मन्विपु्तारेतुकं ननु २४ TTA षड्रसाहारः छतदुष्करदुष्फरः |

वर्षान्तरे afe प्रतिन्नास्यामहे वयम्‌ ३५॥ एवं मनसि संस्थाप्य सामर्थास्ते महषयः

कुव ष्णः संयमं मासाब्र्टावगमयन्‌ क्रमात्‌ २६ + SUNG श्व प्राते काले TE: परो गुरोः

ary: सिंहगुहावासो चकारेति प्रतिश्चवम्‌ २७

(१) awu-avige |

Bala: WRIT: | SAO

कोशणवेश्याग्टहे नित्यं षडरसाषहारभोजनः |

भगवन्‌ | GUAM चतुर्मासौमिमामहम्‌ २८ WARSI मात्सयदेतदङ्गोक रोत्ययम्‌ |

विचायव्य पयोगेन areata गुरुरादित्‌ Re वत्स | माभिग्रहः कार्षीरतिदुष्करदुष्करम्‌ | WAU, चमः कर्तमद्विराज दव FAT ४०

हिमे दुष्करोऽप्येष कथं FACET: ! | तदवश्यं करिष्यामौल्युवाच सुनिर्गुरुम्‌ w ४१॥ गुररूचःऽमुना भावो अंशः प्राक्नपसोऽपि a | आरोपितोऽतिभारौ fe गाज्रभद्गाय जायते ४२ गुरोव॑चोऽवमन्याथ वोरंमन्धो सुनिःसतु। उग्मोनक्षेतनं प्राप कोशायास्तु निकेतनम्‌ ४२।॥ स्थलभद्रसघेयेहायाति AA तपखयसौ |

भवे पतन्‌ TATA शृ्युलयाय AAA ATW ४४॥ वसत्ये याचितां तेन मुनिना चिन्रथालिकाम्‌। कोशा समपेयाम।(स मुनिस्तत्र वाविश्रत्‌ ४५॥ तं भुक्रषडरसाहारं मध्याङ्केऽथ परोत्तितुम्‌ | कोशापि तव्र लावश्छकोशभ्रुता समाययौ ४६॥ aula मुनिमेडुः पड्जानोसुदोश् ताम्‌ |

सतनो aed भोजनं meq fanaa किं. भवेत्‌ ॥४७॥ MUA याचमानं तं कोथाप्येवमवोचत | ..

वयं हि भगवम्‌ ! वैश्या वश्या; स्मो धनदानतः॥ ४८

आरे

TANTS

सुनि्व्यीजदाराधं nate सृगलोचने | 1

अस्मासु भवति gai far तेलं arqatfaa १॥४९॥ नेपालभूपोऽपूवस्मे साधवे रब्रकम्बलम्‌ |

दत्ते तमानयेव्थचे सा निर्वेदयितु मुनिम्‌ ५० + ततङचाल नेपालं प्रत्यकालेऽपि बालवत्‌ पङ्किलायामिलायां निजव्रत इव सवलन्‌ ५१॥ तत्र गल्ला मदोपालाद्‌ रत्रकम्बलमाप्य |

सुनिवलितो वमन्धासंस्तव्र दस्यवः ५२॥ भायाति लक्मित्याख्यद्‌ दस्युनां शकुनस्ततः | किमायातोत्यण्च्छश्च cay दरू खितं नरम्‌ ५२१ आगच्छन्‌ भिक्तुरेकोऽस्ति कचित्‌ ताटशोऽपरः | TUTTE दूुमारूढखोरसेनापतेः तु ॥५४॥ साधुस्तजाथ संप्राप्तसेरविंटत्य निरूपितः | RATATAT Af a: ५५ WANA प्रयातोति व्यादरष्छकुनः YA: |

सनिं चौरपतिः प्रोचे सत्यं ब्रूहि किमस्ति ते १॥ ५९१४ वेश्याक्ततेऽस्य वंशस्यान्तः तिपो रत्रकम्बलः भस्तोत्यक्ते सुनिश्चोरराजेन मुसुचेऽथ सः ५७

सख समागत्य कोशायं प्रददौ रत्रकम्बलम्‌ |

विक्षेप सा गहस्नोतः पङ्क निः शङ्भमेव तम्‌ ५८॥ अजल्पद्‌ सु निरप्येवं न्यतेष्यशचि कदंमे |

AVS WA रव्रकम्बलः कम्बकर्षटि ! किम्‌ ? ॥५९॥

SANA: प्रकाशः | ७२८

अथ कोशाप्यवाचेवं कम्बलं ae ! शोचसि | गुणरल्नमयं शश्रे पत्तं खं शोचसि ६० aq खुत्वा madam सुनिस्तामित्यबोचत | aifaaisfar लया ary संसारात्‌ साधु रितः + ६१॥ भघान्यतोचारभवान्युश्ृलयितुमासनः

यास्यामि गुरुपादान्ते धमंलाभस्तवानचे ! ९२ sw कोथापि तमुवाचेवं मिष्या मे दुष्कृतं त्वयि ब्रद्मव्रतश्थयाप्येवं मया यदसि खेदितः ६२॥ अ्रशातनेयं युाकं बोघरेतोमया क्ता |

UMA सा गुरुवच: Aaa यात सत्वरम्‌ ६४ इच्छामोति भरित्वा गुवेन्तिकमुपेत्य सः |

. ग्टहोललालो घमां तोखखमाचचार पुनस्तपः ६५॥ रान्ना प्रदत्ता कोथापि तुष्टेन रथिनेऽग्धदा। दराजायन्तेति शिखाय विना रागणसातु तम्‌ ६६॥ wang विना मान्यः पुमान्‌ कोऽपोव्य निं शम्‌ खा तस्य रथिनोऽभ्यणे वणयामास वयिंनो ge रधो गत्वा ब्टहोद्याने aay निषद्य सः | तन्भनोरख्नायेति सखविन्नानमदशेयत्‌ ess माकन्दलुम्बों बाधेन विव्याध तमपौषुणा | SUA तमप्यन्धनेत्याहस्तं थराद्यभूत्‌ ee ai छित्वा चुरप्रेण वाणग्रेणिमुखखिताम्‌ |

Bat खपाणिनाऽऽन्ञष्यासौोनस्तस्ये भापेयत्‌ ७० | ९२

ORe योग NTA

saat aa विन्नानं पश्चेत्ालप्य arfa fe |

aque सार्षपं Ufa तस्योपरि ननतं ७१॥ सूचीं faut तव umn पुष्पतः पिधाय ary |

at aaa a at ae विद्धा राशिव 4 aa: 0 ७२॥ ततः ऊवे तुष्टोऽखि दुष्करेणासुना aa |

याचख यद्‌ RATT ददामि acy Yay OR सोवाच fai मयाऽकारि दुष्करं येन रचितः बदमप्यधिकं चास्मात्‌ fama दुष्करम्‌ ?॥ ७४ किश्चास्नलम्बोच्छेदोऽयं कृत्यं चेदं दुष्करम्‌ ufufad स्यूलभद्रो यच्चक्रं तन्तु दुष्करम्‌ ७५ हादथ्ाब्दानि बुभजे भोगान्‌ यत्र समं मया |

aaa वचि्रशालायां तसौ सोऽखण्डितव्रतः + og दुग्धं नङुलसंचारादिव सोणा प्रचारतः |

योगिनां gua चेतः स्थुलभदरमुनिं विना दिनमेकमपि सातं aise स्रोसंनिधौ तथा ? चतुमौ सौं यथा तस्थौ स्थुलमद्रोऽ्ततव्रतः ७८ आचारः षडरसशिव्रशालावासोऽङ्गनान्तिक्गे

अप्येकं व्रतलोपायान्धस्य लोहतनोरपि ce. facta धातुमया ona asfca fer: |

सतु वखमयो Az wag महामुनिः | ८०

नाजा तन re ee णन SRR = 5

(1) डच -भङ्म-।

WANA: प्रकाशः | ७३

WAVE महासत्वं RAGA A |

MAI YM xa मुखे वणेयितु परम्‌ ८१ a रथिकोऽप्यध पप्रच्छ एवं वच्यते त्या |

को माम ख्थृन्नभद्रोऽयं महासक्वशििरोमखिः १॥८२॥ MYT MHA नन्दभूपालमन्तिषः |

तनयः स्थृलभद्रोऽयं तवाग्रे Taf यम्‌ ८१ AMA सोऽपि संभ्नान्त इत्युवाच कताक्नलिः . एषोऽस्ि HCCI स्थलभद्रमहासुनेः ८४ संविग्नं सातं न्नात्वा विदधे wana प्रत्यबुध्यत सददिर्मोहिनिद्रामपाख्य सः ८५॥. प्रतिबुचं तं बुद्धा साऽऽख्यद्‌ निजमभिग्रहम्‌ |

तत्‌ yar विस्मयोत्फुल्नलो चनः सोऽत्रवोदिदम्‌ ८६ बो धितोऽदहं लया भद्रे! स्थुलभद्रगुणोक्िभिः यास्यामि तस्य पन्यानं waar दितम्‌ ८७ कष्याणमसु तै भद्रे ! पालय खमभिग्रहम्‌ |

SHG ATTA: पाश्वं गत्वा Fiat @ wee y cca भगवान्‌ स्थूलभद्रोऽपि तोत्र व्रतमपालयत्‌ | CITA दुष्कालः TATA nce.

Me मोरनिधेगल्वा ayadtsfieatsers . गमयामास दष्कालं करालं कालराविवत्‌ ee अगुख्मानं तु तदा साधुनां विमतं gay | अनभ्यसत्नतो नश्यत्यधोतं घोमतामपि wee a

SRR

Tara

| संघोऽथ पाटलोपुत्रे समवायं विनिममे।

यदङ्कगध्ययनोदेणाद्यासोद्‌ यस्य तदाददे ॥८२॥५ ततञ्चेक्षादशाङ्गनि ओसंघोऽभेलयत्तदा | efenefafad aen fafaz विचिन्तयन्‌ wee a संघोऽस्प्मरद्‌ भद्रवाहोद्‌ं्टिवादण्धतस्ततः तदानयनशहतोख प्रजिघाय सुनिद्यम्‌ ९४

गत्वा नत्वा सुनौ तो तमिलत्युचाते छताच्ञलो समादिशति वः संघस्तव्रागमनष्ेतवे <.५॥ सोऽप्युवाच महाप्राणष्यानमारब्धमस्ति यत्‌ I भविष्यति ततो ईतोनं तत्रागमनं मम ॥९९। ACTA सुनो गत्वा संधस्याशंसतामथ | संचोऽप्यपरमादहयादिदेथेति मुनिदयम्‌

गत्वा वाच्यः भाचार्यो यः यौसंघस्य शासनम्‌

करोति भवेत्‌ तस्य ew: इति शंसनः+<८॥ संघवाद्यः कन्तंव्य इति वक्तियदासतु।

AS तहण्डयो ग्योऽसोत्याचार्यो वाच Sas: ९८ ताभ्यां गत्वा avatar भा चार्योऽप्येवमूखिवान्‌

मैवं करोतु भगवान्‌ संघः किन्तु करोत्वदः २०० + मयि प्रसादं कुर्वाणः aida: प्रहिणोति |

faenq मेधाविनस्तेभ्यः सप्त दास्यामि वाचनाः॥ १॥ तज्रेकां वाचां दास्ये भिक्ताचर्यात भागतः।

अन्धां कालवेलायां बहिभूम्यागतोऽपराम्‌

WMA: प्रकाशः ORR

wait विक्रालषेलायां fra भरावश्यके ya: | सेव्छत्येवं dana मल्कायेस्वाविवाघया ताभ्याभैत्य तथाख्याते यखोसंघोऽपि प्रसादभाक्‌। प्रहिणोत्‌ ख्लभद्रादिसा्चपश्चशतीं ततः तान्‌ सूरिर्षाचयामास तेऽप्यल्या वाचना इति | उडव्येयुनिजं खानं स्थलभद्रर्ववाखित ५५ wee fafaam: सूरिणा सोऽत्रवोदिदम्‌ | नोडच्ये भगवन्‌ ! किन्तु ATT एव वाचनाः सूरिङूचे मम ध्यानं पूशेप्रायमिदं aa: |

तदन्त वाचनासतुभ्यं प्रदास्यामि त्वदिच्छया vou पूणं ध्याने ततः सूरिरिच्छया तमवाचयत्‌ | हिवस्तृनानि पूर्वाणि दश यावत्‌ पपाठसः॥र॥ विष्ारक्रमयोगेन पारलोपुव्रप्लनम्‌ | खोभद्रवाहरागत्य बद्योदयानमथिखियत्‌ + < विदारक्रमयोगेम afaaitsarat तु at: | भगिन्यः ख्थृलमद्रस्य वन्दनाय समाययुः १० वन्दित्वा गुसमुषुस्ताः WANE: क्ष नु प्रभो ! | इष्टापवरकेऽस्तौति तासां सूरिः शशंस ai ११॥ ततस्तमभिचेलस्ताः समायान्तो विलोक सः | पशयंदशेनक्तते सिंहरूपं विनिर्ममे १२

दृष्टा सिंहं तु Maren: सूरिभेत्य व्यजिन्नपन्‌। vasa जग्रसे fiewa सोऽद्यापि तिष्ठति १३

Sas

योगशास्त्रे

भ्ाल्लोपयोगादाशार्योऽप्यादिषैशेति गच्छत |

वन्दध्वं तत्र वः सोऽस्ति cust नतु केसरो wes ततोऽयुम्ताः पुनस्तव Bou निरूप्य |

ववन्दिरे arg wer were निजां कथाम्‌ १५ alae: सममस्मानिर्दं्ां ware किन्छसौ चुधावान्‌ स्वेदा कात मैकभह्षमपि चमः १६ wate: पर्युवशायां aT Teale |

GT UATSITATAM मया पूेऽवधौ Ga: w eon whee ad प्रत्याख्याहि पूर्वाधमप्ययि ! |

अदा यावत्‌ त्वया चेत्यपरिपाटो विधौयते ec ti तथेव प्रतिपेदेऽसौ aaasfafea: ga: |

विष्टे दानौमस््वपामिति am तथेव सः १८ प्रस्यासवाऽधुना रातिः सुखं सुप्तस्य यास्यति | तद्मत्वाख्याद्यभक्ञायमित्यक्तः सोऽकरोत्‌ तथा Re ततो निभौये संप्राप्ते सरन्‌ देवगुरूनसो |

चुत्पोडया प्रसरन्या विपय्य fafed ययौ a २१॥

ऋषिघातो Wasa AAR ततस्त्वहम्‌ |

पुरः खमचखसंघस्य प्रायञिक्नाय ठोकिता २२॥ संघोऽप्युचे व्यधायोदं भवत्या श्भावया प्राय्िन्तं ततो ay कतव्यं किश्िदस्तिते॥२१२॥ ततोऽशमित्यवोखं सासादाख्याति चेखिनः | ततो इदयं विन्तिजायते मम, नान्यथा २४

ठनोयः WAM | ७१५

WA सकलः संघः कायो तगं ददावथ |

एत्य शासनदेव्युचे ब्रूत कायं करोमि किम्‌ १।२५॥४ संघोऽप्येवमभाषिष्ट जिनपाष्वेमिमां नय |

सोचे निविन्नगत्यथै कायोसर्गेण तिष्ठत २९॥

da तद्मतिपेदाने मां asad fornia |

ततः Naacaial वन्दितो भगवान्‌ मया॥२७॥ भरतादागताऽऽ्येयं निर्दोित्यवदज्िनः |

कपया मचिभित्तं व्याचक्रे चुलिकादयम्‌ २८॥ ततोऽहं हिव्रसन्देहा हेव्यानोता यथाशयम्‌ |

यो संघस्यापि तवती चूलिक्षाहितयं तत्‌ २९ इरत्याश््याय Bangsar निजमाच्नयम्‌ |

ता ययुः MAAR sha वाचना्ेमगाद्‌ TIA २० ददौ वाचनां तस्याऽयोग्योऽसौत्यादिशन्‌ गुरः दौलादिमात्‌ प्रयत्येषोऽप्यपराधान्‌ व्यचिन्तयत्‌ ३२१॥ चिन्तयित्वा wit: सरामोति जगाद च। क्ता मन्यसे शान्तं पापमित्यवदद गुरः w ३२॥ स्थ॒न्नभद्रस्ततः स्मृत्वा पपात गुरुपादयोः |

a करिष्यसि भूयोऽदः छषम्यतामिति चाव्रवोत्‌ १३१ करिष्यसि भूयस्बमकार्षीयिदिदं ga: |

दास्ये arent तैनेच्याचायास्तमनुचिरे १४ सथुलभद्रस्ततः खवेसंघेनामानयद्‌ गुरुम्‌ |

avai कुपितानां fe महान्तोऽलं प्रसादने॥ ३२५

ORE: . योगशा

सूरिः dd बभाषेऽथ विचक्रेऽसौ aaryat | तथाऽन्ये विकरिष्यन्ते मन्दस्वा अतः परम्‌ ३६ अवशिष्टानि पूर्वाखि सन्तु मत्पाश्च एव तत्‌ भस्यासु दोषद ्डोऽयमन्ध शिष्लाक्ततेऽपि fy ३७ संघेनाग्रह्वादुक्लो विवेदेव्युपयोगतः। म्तः शेषपूर्वाखामुच्छेदो भावष्यतसु सः ३८ अन्धस्य रषपूवौशि प्रदेयानि त्वया नहि | इत्यभिग्राद् भगवान्‌ स्थलभद्रमवाचयत्‌ ३८ I सवैपूवेधरोऽथासौत्‌ aera! महासुनिः | प्राप्य aaa भदरभविनः प्रत्यबोधयत्‌ ४०॥ whan निवत्तिम धिगम्य समाधिन्तोनः खोख्यलमद्रमुनिराप दिवं क्रमेण एवं विधप्रवरसाधुजनस्य wa- संसारसौख्यविरतिं विमृशेद्‌ anh ५२४१।१३२॥ इति ओोख्यलभद्रकधानकम्‌ |

योषिदङ्गसतच्वं कलापकेनाडइ- यक्लच्छक्रन्प्रलश्चेष्रमच््रास्यिपरिपूरिताः खायुस्यृता' वहोरम्याः स्ियञ्चन्धप्रसेविकाः॥१३३॥

THY कालखण्डम्‌, शकद्‌ विष्ठा, मला दन्ताद्युपलेपाः, QW कफः, AMT षष्ठो धातुः, भखोनि cat धातुः, एभिः

(q). डय -भदमः- |

BAA: WAT! | O29

परिपूरिताः faa: स्नोशरोराणि, चमंप्रसेविका wea, भतएव

afeta cat) भस्त्रा डि मध्ये पूतिद्रव्यपूरिता श्रपि वाद्ये

रम्या भवन्ति, स्ियोऽप्येवम्‌ ; भस््ाञ्च War भवन्ति, wart

खायुस्यूताः waa: खसादिभिः स्युता ca स्यूताः ११ RH तथा-

बहिरन्तविंपर्यासः स्वीशरौरस्य चेद्‌ भवेत्‌ | तस्येव कामुकः कुर्याद्‌ खधुगोमायुगोपनम. ॥१२४॥ बहिषान्तञ्च, anfaaaidt विनिमयः वहि्मीगोऽन्तमेेत्‌, wan वा बहिः, स्मीशरोरस्य Weea चेद्‌ यदि भवेत्‌, तदा तस्येव स््रौशरोरस्य कामुकः कामी ग्घ्रगोमायुगोपनं ग्टप्रगोमायुभ्यो Tat कुयात्‌ ग्टध्रगोमायुग्रहणं दिवानिशं रच्चणौयताप्रतिपादनायेम्‌ ; wut fe दिवा प्रभविष्णवः, गोमा- यवख्च रात्रौ तत्‌ शोशरौरस्य विपयसे नक्तंदिनं कामुको ग्टप्रगोमायुरत्षणव्याङुल एव स्यात्‌, Ft तत्परिभोगः ११४ तथधा-

स्लोशस््रेणापि चेत्‌ कामो जनगदेतख्िगौषति तुच्छपिच्छमयं wa किं Tet Aart १।॥१२५॥ aq शस्त्र Wine तेन जगदिजया्ेसुपात्तेन, भ्रपोत्यनादरे, खेद्‌ यदि, कामो मब्मधः, एतसल्भगत्‌ नेलोक्धासकम्‌, जिगोषति जेतुमिच्छति, तदा मूढधोः कामः Fe काकादोनां यत्‌

पिच्छं awa net fa नादत्त कुतो Rar warfare Ea

७२८ ` ` योगशास्त्र

अयमधैः-यद्सारेख रसाङग्मां सभेदोऽखिमव्जश्क्रपूरितेन बहु- प्रयासनलमभ्येन eae शस्त्रेण जिगोषत्ययम्‌, तदा तुच्छं पिष््- भेव सुलभमपूति fa नादत्ते xe fe विष्मृतमस्य मूढधियः, यन्नोकिकाः पठन्ति ;—

aa चेद्‌ ay विन्देत किमथे पवतं व्रजेत्‌ १।

इटस्वाथस्य संसिष्दौ को विहान्‌ यव्रमाचरेत्‌ ॥१५१२५॥ तथा, इदमपि निद्राच्छेटे चिन्तयेत्‌ ;-

सङ्कल्पयोनिनानेन इष्टा | विष्वं विडम्बितम्‌ | तदत्खनामि wee मृलमस्येति चिन्तयेत्‌ ॥१३६॥

VEU: कन्यनामाच्रं योनिः कारणं यस्य तु वास्तवं किञ्चित्‌ .कारणमित्यधेस्तेन, waa सकलजगसंवेदनसिदहन, wer इति G2, fae जगद्‌ ब्रद्मा-हरि-र-संक्रन्दनप्रथति कङ्कोटपर्यवसानं aa: स्नोद्नालिङ्कनस्मरणादिभिः प्रकार- विडम्बितं विगोपितम्‌ चयते fe पुरापि-- इर. गौरोविवाशोत्वै परोहितोभूतः पितामहो, गौरी प्रणयप्रायनास्ु इरः, गोपोचाटु- कमणा Rafa: गौतमभार्यायां रममाणः सहस्रलोचनः, waa- भौ्यीयां तारायां चन्द्रः, भश्वायामप्यादित्यो विडम्बनां प्रापितः। तदनेनासारेणासारहेतूडवेन यद्‌ विश्वं विडम्बयते तद साम्प्रतम्‌ तत्‌ तच््ादिदानोमस्यैव जगदिडम्बनकतः सङ्ल्यलक्खं मून- मुत्खनामि उन्मृलयामि। इति स््नौणरोरस्याशचित्वमसारत्वं सङ्र्पथोन्युपकर.त्वं वि चिन्तयेदिति प्रकतयोजना १३६

SAT: प्रकाश्ः। ७३९.

तथा, इदमपि fazren? चिन्तयेत्‌- यो यः स्याहाधको दोषस्तस्य तस्य प्रतिक्रियाम्‌ ` चिन्तयेद्‌ दोषसुक्तेषु प्रमोदं यतिषु व्रजन्‌ ॥१२७॥ यो यो राग-हेष-क्रोध-मान-माया-लोभ-मोह-मग्धा-ऽसूया- मह्रादिदोषो बाधकचिन्तप्रशान्तिवाहिकायास्तस्य तस्य दोषस्य प्रतिक्रियां प्रतीकारं चिन्तयेत्‌ ; तथाहि-- रागस्य वंराग्यम्‌, देषस्य Hal, क्रोधस्य चमा, मानस्य Asay, मायाया way, लोभस्य सन्तोषः, मोहस्य विवेकः, मश्मयस्य स्तोशरोरागौचभावना, भ्रसूव्राया भनसूग्रतलम्‌, मत्सरस्य परसंपदुत्कषेऽपि चित्तानाबाधा प्रतिक्रिया मता| शरदं चाशथक्यमिति नाशद््नौयम्‌, दृश्यन्ते fe मुनयस्तस्षदोषपरिष्टारेण गुणमयमास्मानं विभ्रतः | अत एवाह-दोषसुक्षेषु यतिषु प्रमोदं व्रजन्‌ gat हि दोषसुक्त- सुनिदशेनेन प्रमोदादामन्धपि दोषमोश्षणम्‌ १२७ | तथा- Sul भवस्थितिं Gat सर्वजौवेषु चिन्तयन्‌ निसगसुखसगें sara विमार्गयेत्‌ ॥१२८॥

gat दुःखहेतुम्‌, भवसख्ितिं संसारावस्थानम्‌, चिन्तयन्‌ वि शन्‌, सवेजोवेषु तिर्यग्‌-नारक-नरा-ऽमरेषु ; तथाहि- तिरं वध_-बन्ध-ताडन-पारषश्य-चत्‌-पिपासा-ऽतिभारारोपण्ा-ऽद्ग्छेदा- दिभिः, नारकाणां स््राभाविक-परसख्ररोदौरित-परमाधामिंक- तच्ेतानुभावजवेदनामनुभवतां क्रकचदारण--कुमोपाक-कूट-

ogo ` योगशास्त्रे

शास्मलोसमाञ्चेष-वेतरोतरणादिभिः, राशां दारिद्राव्याधि- पारवश्यवधवन्धादिभिः, सुराणां चे्ष्या-विषाद-विपन्चसंपद्‌दशेन- मरणदुःखानुचिन्तमादिभिर्ृःखैव भवखितिः, तां Gat aia चिन्तयंस्सेषु सवैजोवेष्वपवगे wing, किंविशिष्टम्‌ निसगसुख्सगे निसेख सुखसंसर्गो यत्र तम्‌, विमागयेदाशंसेत्‌- कथं नु नाम aa संसारिशः सकलदूःखविमोचेण mite संयुल्येरविति ॥१३८॥

इदमपि निद्राष््छेटे चिन्तयेत्‌- संसगेऽप्यु पसर्गाशां टटव्रतपरायणाः धन्यास्ते कामदेवादाः स्राष्यास्तौधक्ततामपि ॥१३९॥

संषर्गेऽपि संबन्धेऽपि, उपसर्गाणां सुरादिक्लतानाम्‌, दठत्रत- परायणाः प्रतिपन्नव्रतपालनपराः, कामदेवाय; कामदेवप्रथतयः, धन्धा धमनं लब्धारः, दूति भगवदुपासकत्वेन प्रचिष्ाः। धन्धत्वे विगेषदेतुमाह--ज्ञाष्याः प्रणस्यास्तोधल्तां ओोमनश्नहा- ee, पूजायां वड्वचनम्‌ | कामदेवकधानकं संप्रदायगम्यम्‌ | चायम्‌,-- अनुगङ्गं पतह त्ेषोभिरिव चारुभिः। SAAT राजमाना चम्पेत्यस्ति महापुरी १॥ भोगिभोगायतभुजस्तम्भः Ree जियः | जितथश्नरिति are तखखामासोद्‌ महौपतिः २॥ mig ग्ढहपतिस्तस्यां कामदेवाभिधः gut: | आखयोऽनेकलोकानां सहातङ्रिवाष्वनि nee

कतोयः प्रकाशः | ७४

लच्मरोरिव खिरोभूता रूपलावश्यशालिनो |

अभूद्‌ भद्राक्लतिभेद्रा नाम तस्व सधर्भिथो॥४॥ निधौ षट्‌ खणंकोखः षड्‌ ठौ षड्‌ व्यवहाराः | व्रजाः षट्‌ चास्य दशगोखहसख्रमितयोऽभवन्‌ ५॥ तटा विदरब्रवीं तव्रोर्वीमुखमश्छने | पश्यभद्राभिधोद्याने NAT: समवासरत्‌ ९॥ कामदेवोऽध पादाभ्यां भगवन्तसुपागमत्‌ |

शुशाव योत्रसुधां खामिनो weary ७॥ कामदेवस्ततो देवमरासुरगुरोः YT |

प्रपेदे हादशविधं ग्टहिधमं विशदो; प्रत्याख्यात्‌ विना भद्रां Masta wea विना। निधौ हहौ व्यवहारे षट्‌ षट्‌ कोटर्विना वसु ९, earn सुक्राऽत्यारोत्‌ चेत्राख्यनांसि तु दिम्याविकासि वोदृखि ag पश्च शतान्युते १० दिग्यात्रिकाणि चत्वारि चत्वारि प्रवइन्ति 4 | विहाय वदहनान्येष प्रत्याख्यद्‌ वनान्यपि a ११॥ विनैकां गन्धकाषायीं तत्याजाङ्गमाजेनम्‌ | दन्तधावनमप्याद्रौमपास्य मधुयष्टिकाम्‌ + १२) wa सोरामलकात्‌ फलाग्न्धानि सोऽमुचत्‌ | mag विना तेल सस्लशतपाकिभमे १२ विना सुगन्धिगन्धाष्यसुहतनकमत्यजत्‌ | विनाष्टावोद्िकानम्भस्कुम्धान्‌ मव्लनकमे + १४॥

O82 AVANT

ऋते सौमयुगलाद्‌ aw सवं मवजंयत्‌ | चन्द्नागुरुषुद्ध शा ग्धपास्यान्यद्‌ विलेपनम्‌ १५॥ जातौखलं पद्मं विना कुसुममत्यजत्‌ | कथिकां maga विष्टायाभरण्यान्यपि १६॥ त॒रष्कारुरुधुपेभ्य ऋते धूपवि्िं जौ | छतपूरात्‌ SWAT az भश्यमवजंयत्‌ १७॥ काष्ठपेयां विनी पेयामोदनं aaa faar | मासमुदकलायेभ्य ऋते सपं सोऽसुखत्‌ १८॥ तत्याज छतं सवंख्ते शारद गो्ठतात्‌। शाकं खस्तिकमण्डक्याः पक्चाङ्श्चापरं जहो | १८ अन्यत्‌ चेह स््दाण्यश््ात्‌ तीमनं वारि rave; | जष्ो सुगन्धिताम्बलाद्‌ सुखवास्मथापरम्‌ Ro ततः प्रभं वन्दित्वा ययो निजनिकेतनम्‌। तद्धार्याप्येत्य जग्राह VAT खावकतव्रतम्‌ ॥२१॥ कुटुम्बभार्मारोप्य च्चेष्ठपुत्रे ततः खयम्‌ | तखौ पौषधशालायामप्रमादौ व्रतेषु सः॥ २२॥ तख्षस्तघ्य तत्राथ fate ्षोभरेतवे। पिशाचरूपभद्‌ मिष्याटृष्टिः कोऽप्याययौ सुरः ॥२३॥ शिरोरुहाः शिरस्यस्य ककशाः कपिशत्विषः | चकासामासुरापक्ताः केदार ष्व शालयः ॥२४॥ भार्डभिन्तनिमं भालं बम्बुपुष्छोपमे waar | , कर्णौ सुपीलतो युग्मशुज्ञोतुख्या नासिका ॥२५॥

BAT: प्रकाशः | ७४

उष्टौष्ठलम्बिनावोष्ठौ दशनाः फालसत्रिभाः |

जिद्धा सर्पीपमा say वाजिवालधिसोदरम्‌ ॥२९॥ लघमूषानिमे aa न्‌ सिंहनुपमो | | इलास्यतुस्थं faqa ्रौवोषग्रोवया समा २७ उरः पुरकषपाटोर्‌ Yat भुजगभोषणोौ |

पाणौ शिलाभावङ्ख्यः शिलापु्रकसत्रिभाः २८ + पाताल्तुख्यसुदरं नाभिः कूपसदोदरा।

far चाजगरप्रायं AAT कुतपोपमो + २९

AE तालहूमाकारे पादौ शेलथिलोपमौ ` कोलाहन्तरवोऽकार्डा्निष्वनिभयानकः Ro मूषघ्र्याखुखजं frag कण्डे सरटसख्रजम्‌ . नक्लुलान्‌ कणिकाखाने ऽङ्गदस्थाने पन्नगान्‌ ॥.२१॥ करडान्तकसमुल्किप्ततजेनाह्ुलिदासणम्‌ उदस्यन्रपकोशासिं कामदेवं जगाद सः॥ ३२ शअप्रा्थितप्रायेक | रे! किमारब्मिदं wat |

किं खवर्गमपवभं वा वराक ! AAS? | ३३ मु्चारब्धमिदं नो चेदनेन निधितास्िना।

तरोरिव फलं स्कन्धात्‌ पातयिष्यामि ते शिरः» ३४॥ तजेयत्यपि ata समापनं चचाल सः।

शरभ; येरिभारावेः किं श्ुभ्यति कदाचन !॥ ३५ कामदेवः शभध्यानाद्‌ चचाल यटा AT | व्याजहार तथेवायं हिस्िस्निदशपांसखनः ३६ i

Oss

AANA

AAT PAT: सोऽस्व Trad वपुव्यधात्‌। सखश्रह्वन्तमनालोक्छ विरमन्ति gar a feu 294 सोऽधत्त विग्रहं तुङ्ग सजलग्ोदसोदयम्‌। सवेतोऽप्येत्व भिष्यात्वं राथोभूतमिवेकतः ate

दोधदारुखाकारं विषाणडन्दमुब्रतम्‌।

धारयामास कोनाशभुजदण्डविडम्बकम्‌ २८ fafecrafeat get कालपाशामिवोदडन्‌ | कामदेवं जगादेवं Sa; कूटेकदेवतम्‌ ४०॥ मायाविन्‌ ! qeat माया सुखं fas werwar | पाष्वण्डगुड्ष्वा केन त्वमस्येवं विमोहितः ves चेद्‌ YUU धमं VWs तद्‌ हुतम्‌ | weifa त्वामितः खानाद्‌ नेष्णामि नभोऽङ्गखे ॥४२॥ ata: पतन्तं दन्ताभ्यां प्रेषयिष्यामि चान्तरा। अवनम्य ततस्ताभ्यां दारयिष्यामि दावत्‌ ४२ पादैः करदंममरईच wt afeerfa निद॑यम्‌। एकपिण्छो करिष्यामि तिलपिशटिभिव चात्‌ ४४॥ उका ्तस्येव तस्यव चोरं व्याहरतोऽपि fe |

AVAL कामदेवोऽदाद्‌ ध्यानसंलोनमानसः ४५ असंुभितमो नत्वा कामदेवं दढाश्यम्‌ | feferaquifae तथेव दुराशयः ४६॥

(१?) डथप्ुवम्‌।

BANA, प्रकाशः। ७४१

ततोऽप्यभोतं तं TT शुण्डादरडेन सोऽग्रहोत्‌ |

व्यो मन्धुच्छालयामास प्रतीयेष पूलवत्‌ ४७ SAMA दन्ताभ्यां पादन्धासेममदं | धमकमेविरुदानां किमक्तत्यं दुरालनाम्‌ 7 ४८॥ अधिसेहे तत्‌ खवं कामदेवो महामनाः | मनागपि wa ae गिरिरिव fet ४९ + तस्मि्रचलिते ध्यानादौटेनापि कमणा |

azu; सर्पं विदध विवुधाघमः॥ ५०

देषः पृवेवदेवोचे तं भापयितं ततः

कामरेवसु age ध्यानध॑वर्भितः सुघोः # ५१॥ भ्रूयो भ्रूयस्तथोक्घा तं निर्भोकिं wer दुःसुरः |

, भातोद्यसिव avy खभोगनाभ्यवेष्टयत्‌ ure निःशूकमेव दशमेदेदशूको ददंश तम्‌ |

सतु ध्यानसमुधामग्नो तहाधामजोगणत्‌ ५३॥ दिव्यरूपं ततः कत्वा द्य॒तिद्ो तितदिङमुखम्‌ |

सुरः पौषधश्ालायां विक्षेयेवसुवाच ५४॥ धन्योऽसि कामदेव | लवं देवराजेन संसदि | प्रशंसाऽकारि भवतोऽखडिष्णुस्तामिदहागमम्‌ ५५॥ प्रमवः प्राभवेणापि safer श्मवस्ूवपि।

अतः परोत्ितोऽसि लवं नानारूपडता मया ५६ ai यथाऽवणयच्छक्रस्तदघेवासि संशयः |

सम्यतामपराधो मे परोक्षणभवस्त्वया ५७ €. 0

O84

योगशास्त्रे

प्रययावभिधायेवं देवो डेवसश्मनि। कामदेवोऽपि Quran प्रतिमां तामरपारयत्‌ # १८ a उपसगसिष्णुं तमञ्चाचिष्ट खयं प्रभुः सभायां मगवान्‌ वोरो गुरवो गुष्यवव्छलाः ५९ कामदेवो feaafarats पारितपोषघः | वरिजगत्खामिनः पादवन्दनाथमधागमत्‌ ६०॥ जगदुगुररभाषिष्ट गौतमप्रतोनिति। ग्ट हिधर्मेऽप्यसाक्षेवमुपसर्गान्‌ विसोढवान्‌ ६१॥ सवसङ्गपरित्यागादु यतिघमेपराय णेः | afenty सोढव्या उपसर्गा भवादृशः } ६२॥ कमनिमूलनोपायान्‌ यावकप्रतिमास्ततः | एकादशापि शिखाय कामदेवः maT ताः ६२॥ सोऽथ संलेखनां war प्रपेदेऽनश्नव्रतम्‌ | धरं समाधिमापनब्रः कालधर्मेसुपाययौ ९४ सोऽरश्ामे विमानेऽभुद्‌ aqueafefa: सुरः | च्युता ततो विदेेषुत्पद्य fate व्रजिष्यति gy यथोपसर्गेऽपि निसगधेयीत्‌ कामदेवो त्रततत्परः सन्‌ | श्ञाष्योऽभवत्‌ तोधक्षतां तथाऽन्धे- ऽप्येवंविधा धश्यतमाः पुमांसः + ६६।१३९ दति कामटेवकधानकं संपूणम्‌

Sara: प्रकाश्यः | Oye `

xzafa fagres? चिन्तयेत्‌-

जिनो देवः HIT wat गुरवो यव साधवः 1 TARA AAR स्नाचेताषिमूटधौः ? ॥१४०॥

खावका उक्तनिवेचनास्तेषां भावः खावकत्वं Aw Banaras को घेत १- सवः ज्ञाघेतेव, Aw मोहमूढान्‌। भत एवाह -श्रविमूढधौः ; qeatiat waucfuat तेभिरिकाणा- faa चन्द्रहितय-शङ्कपौतिमदयिनां मा भूत्‌ खावकलाय ज्ञाघा, अमूढबहयसु तस्वदभित्वात्‌ aia शव aw दति, तस्संवन्धिनं वच्छग्ट्माह-- यत्र arene जिनो रागादि दोषजेता Sa: पूज्यो नतु रागादिमान्‌, wot दुःखितदुःखप्रहाणेच्छा, धर्माऽगुषटेयरूपो मतु हिलासमको यागादिः, साधवः प्श्चमहात्रतरताः, गुरवो भर्पराप्टेष्टारो नतु परिग्रहारश्भसक्षाः + १४०॥

तथा, निद्राच्छदे तांस्तान्‌ मनोरधान्‌ सप्तभिः न्ञोकराह-

जिनधमेविनिरमक्तो मा भूवं चक्रवल्य॑पि स्या चेटोऽपि दरिद्रोऽपि जिनधर्माधिषासितः॥१४१॥

जिनधर्मेण श्रान-दशथन-चारित्ररूपेण विनिमृक्ञो रदित- अक्रवत्येपि सावैभौमोऽपि मा भूवं मा जनिषि, तस्य नरकमूल- , लात्‌; किन्तु at भवेयं चेटोऽपि दासोऽपि दरिद्रोऽपि दुःखितो- ऽपि, कथंभूतः 2 जिनधर्म णोक्ञखरूपेशाधिवासितः १४१

- ७४८ योगशास्त्र

तधा- ल्यक्तसङ्गो जौणंवासा मलक्रिन्नकलेवरः | भजन्‌ माधुकरीं ठत्तिं मुनिचयां कदा श्रये १।१४२॥

wet weafedinaaa: apt येन त्यक्षसङ्गः , ate जरद्‌ वासो यस्य जोणवासाः, मलेन fad कलेवरं aaa मलक्वितरकलेवरः, मधुकरस्येयं मकरो माधुकरोव माधकरौ हत्तिर्भि्ा at भजन्‌ सेवमानः, यदाहुः ;- teret qaa yay भमरो swifaas Td | नय पुप्फं fate at पोषे qa we ti एभेए समणा मुत्ता लोए संति args fadaat पुप्फमु दानभत्तेसणे रया ॥२॥ वयं वित्ति लबभामो alqawae | रष्ागडेसु Tas grey भमरा He ३॥ म॒नोनां wal मूलगुणोत्तरगुणरूपा तां कदा किं खथ अयिष्यामि, कदाकरछ्योनिवा ॥५।३२।८॥ इति aaa

वतमाना १४२ Il

(१) यवथाद्रूमद्य एष्येषु wat श्चापिबति रथम्‌ | पुष्पं क्रमयति चप्रोणात्थात्मानम्‌ १॥। एवमेते ATG BHT वे लोके सन्ति साधवः। विष्क्गमा KI पुष्पेषु दामभक्तौषणे रताः॥ २॥ वयं एत्ति aya 4a कोऽप्यपषन्यते | * अथाहतेषु रीयन्ते पुष्पेषु भ्रमरा यया॥३॥

ठतोयः प्रकाशः | ७४९ लदच्ा- यजन्‌ दुःशौलसं सगे गुरुपादरजः स्पृशन्‌ कदां योगमभ्थस्यन्‌ प्रभवेयं भवच्छिदे १४३

दुःशोला लोकिका लोकोत्तरा तत्र लौकिका दुःग्ौला विट-भट-भण्ड गणिकादयः, लोकोत्तरा पाश्तस्यावसन्रकुशोल- dma: dai संवासादिकरूपं, त्यजन्‌ परिहरन्‌ | त्मात्रेण भवतोत्याइ-गुरुपादरजः स्पृशन्‌ भनेन सत्‌- संसगेमाह। चेतावताप्यलमित्या इ--यो गमभ्यस्यन्‌ योगो Wad ध्यानं वा तमभ्यस्यन्‌ पुनः पुनः परिभथोलयन्‌ कदां प्रभवेयं प्रभविष्यामि कस्ये भवच्छिदे संसारोच्छेदाय ween

तधा--

महानिशायां प्रक्रत कायोत्छगे पुराद्‌ बहिः स्तम्भवत्‌ खन्कषणं ‘gor: कुयुः कटा मयि॥१४४॥

avifamat faa, कायोत्सगे प्रते ana पुराद्‌ afeanug armen? wa दव स्तश्भवद्‌ मयि सखकन्धकषणां स्कन्धकण्यने कदा ठषा sauna: ga: करिष्यन्ति इदं प्रतिमाप्रतिपन्रय्ावक विषयम्‌, तस्यैव पुराद्‌ बहिष्क तकायोत्सगंस्य भिलास्तश्भराग्या हषमेः सकन्धकषणसंभवः ; प्रेष्ठितयत्यवस्थापेन्तं धा, यतोनां जिनकल्िकादौनां सवदा कायोत्सगसंभवात्‌ ॥१४४॥

7 5 ~ ~~ ~ oe 40 0 8 Ber 8 ee

¢ (१) इकटा Rata a |

७४० योगशा नवा वने पञ्मासनासौनं क्रोडस्थितसगाभकम्‌ कद्‌ाऽऽघ्रास्यन्ति वक्त मां ACA सगयुधपाः ॥१४५॥

वनेऽरण्यो पद्मासनं वच्यमाणं तेनासोनसुपविष्टम्‌, afvaan क्रोडे saw खिता खगाभका सगडिन्धा यस्व तं क्रोडखित- सूगर्भकम्‌, एवंविधं मामपरिकमेशथरोरं कदा वक्ते भा्रास्यन्ति, कै, angen सगयुथाधिपतयः, किंविशिष्टाः, weet दाः लरन्तो fe यथा कथद्धित्‌ विष्ठसन्ति, परमसमापिनिख्लता- संदश्यनात्‌ तैऽपि fare: सन्तो आतिखभावाद्‌ ca भाजि- whet १४५॥

wat

शवो faa zt aa खणंऽश्मनि मणौ afz | ara ua भविष्यामि fafiaaafa: कदा ॥१४६॥

शत्रौ रिपौ, fat सुदि, at शव्यादौ, ae स्ोसमूर, स्रं काश्चने, भश्मन्युपले, मणो रते, मदि रुत्तिकायाम्‌, ma कर्मवियोगम्तशणे, भवे कमसंवन्धलस, fafancafaquafa: कदा भविष्यामि। शतरुमिवादिषु निविंशेषमतित्वमप्यन्धस्यापि भवेत्‌, असौ तु परमवैराग्योपगतो मोत्त-भवयोरपि निर्विशेषत्व- मधेयते, यदाह ;- MA भवे सवत्र fara मुनिसत्तमः इति

Bala: प्रकाशः | ७५९१

एतै मनोरथाः क्रमेणो्षरोत्तरप्रकववन्तः, तथाहि- प्रथमे Wa जिनधर्मातुरागमनोरधः, fens तु यतिधमपरिग्रह- मनोरथः, ama तु यतिवर्याकाहापिरोरशमनोरथः, WAZ कायोत्गादिमनोरथः, waa तु गिरिगुादयवखितसुनिषर्या- मनोरथः, षष्ठे तु परमसामाथिकपरिपाकमनोरथः ॥१४६॥ ¶टानोसुपसंहरति- अधिरोदु गुणश्ेिं faut सुक्तिषेश्मनः | परानन्दलताकन्दान्‌ कुर्यादिति मनोरथान्‌ ॥१४७॥ अधिरोदुमारोदुं गुणे णिमुत्तरोत्तरगुणख्या्नरूपाम्‌, fai- विशिष्टाम्‌ निःजरेणोभिव निःशेणोम्‌, कस्य ? सुक्िलसणस्यः वेश्मनो मन्दिरस्य, कुर्याद्‌ विदध्यात्‌, इति dana मनोरथान्‌, किंविगिष्टान्‌ ? परानन्दलताकन्दान्‌ परशाणा- AAT सख एव लता तस्याः wey कन्द्भूतान्‌ यथा हि कम्दाज्ञता प्रभवति तथेतेभ्योऽपि मनोशरथेभ्यः परो WTAE: परमखामायिकरूपः प्रभवति | सप्तभिः कुलकम्‌ ॥१४७५ अधोपसंडरति-- दल्याहोराविकौं चर्यामप्रमत्तः समाचरन्‌ | यथ्रावदुक्चद्त्तस्थो स्थोऽपि विशुध्यति ॥१४८॥

tfa पूर्वोकषक्रभेल, सहोरावे भवामाडहोराजिकीं eat समा- चारङूपामप्रमत्तः प्रमादरहितः समाचरन्‌ सम्यक्‌ Fay, sa

(१९) नथ -नन्च-|

OUR योगशास््े

जिनागभेऽभिदितं यद्‌ हन्तं प्रतिमादिलक्षणं ay ॒तिष्तोत्यक्ञ- sus: कथम्‌ यथावत्‌ सम्यग्विधिना, ग्डहस्योऽपि यतित्व- , मप्राप्रुवन्नपि विशध्यति चोषपापो भवति |

अध पुनः काः प्रतिमाः, avg feat ब्डहस्योऽपि विष्ध्यति! उच्यते--शङ्कादिदोषरहितं unatfefay खे्वादिभूषणं मोच- मामेप्रास्षादपौठभूतं सम्यग्दशंनं भय लोभ-लल्ादिभिरष्यन ति- चरन्‌ मासमात्रं सम्यक्त्वमभुपालयति, इत्येषा प्रथमा प्रतिमा iti

डौ मासौ यावदखण्छितान्यविराधितानि qanfaar-

मुष्ठानसडितानि हादशापि व्रतानि पालयतोति हितीया ।२।

व्रन्‌ मासामुभयकालमप्रमन्तः पूर्वोक्गप्रतिमानुष्टानखडितः सामायिकमनुपालयतोति ढतोया ।१।

चतुरो मासंखतुष्पव्यां पूवप्रतिमानुष्टानसहितोऽखष्छितं dred पालयतोति चतुर्थौ ise |

पञ्च॒ मासांखतुष्पव्यां we तदृहारे aqua वा परोषद्ोप- सगौदिनिष्कम्मकायोस्गः पूर्वोहयप्रतिमानुष्ठानं पालयन्‌ सकलां राज्रिमास्त इति weat ।५।

एवं वश्यमाणासखपि प्रतिमासं पूवपूवप्रतिमानुष्टाननिहटिता अवसेयाः, नवरं षर्मासान्‌ ब्रह्मचारो भवतोति षष्ठो 141

सप्त मासान्‌ सचित्ताहारान्‌ परिहरतोति सप्तमौ 19)

अष्टौ मासान्‌ खयमारभ्भं करोतोत्य्टमो ।८।

नव मासान्‌ Racca कारयतोति नवमो ।९।

दश मासानाताथेनिष्यवबमाहारं TYE इति द्मौ।१५।

Bala: ART | OUR

एकादश मासान्‌ UMAR रनोहरणादिसुनिवेषधारौ छत-

केशोत्याटः Meaty गोङ्ुलादिषु वन्‌ प्रतिमाप्रतिपच्ाथ अमणोपासकाय ‘fate दति वदन्‌ धमलाभगष्टोच्चारश- रहितं सुसाुवत्‌ समाचरतोत्येकादभो उक्लह्िः-

"दंसणपडिमा Aut aaa जा LE Fatt

कुगगहकलंकरदिश्रा मिच्छत्तखभश्रोवसमभावा॥ १॥

वोभ्रा पडिमा Qar सुद्ाणव्वयधारणं

सामाद्श्रपडिमाभो सुदं सामाद्यं fad ii 2 #

अटमोमाश्पव्वसु समं पोसषपालयं |

से षाणुदाणलु स्स wal पडमाश्मा॥३॥

निक्कषपो कारसगं तु पव्बुत्तगुणसंजुभ्रो |

ate पव्वराग्सु पंचमिं afeaqal ॥४॥.

SAT ANAT सो AAW सत्तमो |

वञ्ने सावव्लमारभं अहमि पडिवन्नश्मो ५॥

(१) इधंनप्रतिमा Sar सम्यकत्वयुतश्य वेष्‌ 7g: | कुपशहकलङ्कुरहहिता मिथ्यात्व्योपशमभावात्‌ ! हितोया ufaar wart शद्धाखव्रतपालनम्‌ | सामायिक्षप्रतिलातः qe सामायिकमपिष।॥२॥ चऋअरम्यादिपवेद् सम्यक पोषधपाङनस्‌ | शेषातुलानमदुक्तख्छ चतुय प्रतिमेयम्‌ aye निष्कम्पः कायोत्समे तु पूर्वाक्गुखलंयुतः। करोति पवरात्रीषु पञ्चमीं प्रतिपन्चकः॥४॥ षठा AYA प्राचुकादहारः सप्नम्याम्‌ | Sate ावद्यमारम्भमररनौ प्रतिष्चन्नः॥५॥

<५

७५४ BATA

watarfe add नवमो नो करावप |

दसमौए guifeg arew fa a aT ६॥

एक्षारसोष fran धरे लिंगं afeare |

कयलोभ्रो FAY व्व पुव्वत्तगुणसायरो won xfa ॥१४८॥

इदानीं पञ्चभिः स्लोकेविधिशेषमाइ-

सोऽथावश्यकयोगानां भङ्गे खल्योरथागमे | Hal संलेखनामादौ प्रतिपद्य संयमम्‌ ॥१४९॥ लन्प्रदौचान्नानमोच्स्थानेषु WATTAT तदभावे रुषेऽरण्ये fees जन्तुवजिंते ॥१५०॥ त्यक्ता चतुविंधाहारं नमस्कारपरायशः | भाराधनां विधायोचेशतुःणरणमाथितः ॥१५१॥ इहलोके परलोके fae मरणे तधा | लयक्ताशंसां निदानं समाधिसुधयोलितः ॥१५२॥ परौषहोपसगेभ्यो निर्भोको जिनभक्तिभाक्‌ | प्रतिपद्येत मरखमानन्दः यावको यथा ॥१५३॥

ब्याख्या- AAR, अधानन्तरम्‌, अवश्यका भवश्च

(१) आअषपरेणाप्यारन्धं नवम्वां गो कारयेत्‌| दथम्वां पुनर्हष्टं प्रा्कमपि ugia nde एकादश्यां fryer धरोश्िङ्ग प्रतियम्‌ | BATT: सुसाधुरिव पूर्वाक्गागुखसाद्रः॥ऽ॥

BUNT WAT: | ७०५५

करणोया ये योगाः संयमवब्यापारास्तेषां भङ्गे कतमशक्तावित्येकं कारणम्‌ ; we हितीयं-सत्योरागभे खत्यसमये संप्राप, संलिख्यते तम्‌ क्रियते cat कषायाञ्चानयेति संलेखना, ay शरोरसंलेखना क्रमेण क्रमेण भोजनत्यागः, कषायसंलेखना तु क्रोघादिकषाय- परिहारः | ay प्रथमायाः कारणमिदम्‌,- ‘eufa भरसंलिषहिए सहसा wale faa aft. Hal VERA सरोरिणो qaanrafa aes हितोयायाः पुमररिदम्‌ ;- र्न तै ud पसंसामि fad are सरोरयं | कोस ते sige war भावं संलिषमा तुर! ॥१॥ इत्यादिना प्रवन्धेनोक्घम्‌ संयमं यथौ चित्येन प्रतिपद्यते | aad ware ;-खावकः किल सकलस्य खावकधमे- स्योद्यापनार्धमिवान्ते dad प्रतिपद्यते तस्य साधुधमंशेषभूत्ैव संलेखना, यदाह :-—*dawa da a fatwa जेण we alk) ततो यः संयमं प्रतिपद्यते संयमानन्तरं काले संलेखनां क्त्वा मरणं प्रतिपद्यते; ay संयमं प्रतिपद्यते त॑ प्रति सकलो ग्रन्थः ब्रानन्द्ख्रावको यथा इतिपयेन्तः संवध्यते ५१४९॥

(1) देरेऽसंखिखति स्सा wafa: fea: | जायत BAA शरोरिणचरमकाले॥ !॥

(९) गदडच -नः|

(१) नते एतत्‌ प्र्शषामि ad खाचो ! शरोरकम्‌। कश्चत्‌ तेऽङ्गलिभम्ना भावं few aca

(४) waqar त्वन्ते नियोगाद्‌ वेन प्रब्रजति कोऽपि।

९५६ योगशास्त्र

ग्रीमदष्दहारकाणां जग््-दोखा-न्नान Aaa: aa vw दानानि,

"षक्छा गुभूमि sent सावलि fata कोसलपुरं कीसंवो वाखारसि dzraq ay कायंदो॥१॥ भदिलपुरं सौहपुरं चंपा कंपिन्न ssn रयख्पुरं। fatwa गयपुरण्मौ मिहिला तह चेम रायगिष्ं॥ 2 मिदहिला सोरिभ्रनयरं वाणारसि ava चेर कुडपुरं | saute जिखाशं जम्मशभुमो जहासंख्वं॥ ३॥

दौक्षाखानानि,-- र्खसभो विणोश्राए arate भ्ररिटरवरनेमो। अवसेखा तिलययरा faa जग्मभूमोसु १॥ उसभो सि्टयवण्ग्मि arggent विष्ारगिषगस्मि। धम्मो भ्र वप्यगाए नोलशगुहाए सुणोनामो॥२॥

(१) इश्ाङ्भूमिरयोध्या ataen विनीता कोथखपुरःच। WIATA वाणारसो चन्द्रानना तथाच काड्न्दी॥।॥ भदिङषुरं सिंपएरं wer कम्पिङाऽयोध्या TATA | marerafe rage सिथिखा तथ।चेव राजम्टकृम्‌ ॥२॥ भिथिखा शोर्यगगर वाश्ारसौ तवेव क्ञरडपरम्‌ | कटषभ। दो मां जिनानां az aes ens ३॥

(२) ऋषभो विनोतागां gcaarafcercafa: | ष्पवपेषासी्ंकदा Faw लक्ब्धमोषु॥ way: सिद्धायवने वाच्चपूष्धो विषारम्टड्के | धमव वप्रगायां Megerat छनिगामा॥२॥

Bara: प्रकाशः | ७५७

"प्रास्तमपयस्मि पासो वोरजिखिंदो asst | अवसा निक्ंता सहसंववणश्दि sonra २॥

सानखानानि ;- sana पुरिमताले वौरस्सोव्मवालिभानहतोरे | Vary केवलाडं जसुलनाणेसु VACA wy Vn

waarata >— १अ्रटावयचंपो स्जिलपावासंमेभसेलसिष्रसु | खउसभ-वसुपुश्ल-नेमो वोरो सेसा सिडिगया॥१। तदभावे जग्न-दोला-च्रान-मोत्तस्ानप्रा्यभावे WE यतिवस- त्यादौ, wea शजच्रच्छयादिषु fafeday, तेष्वपि भुवं निरो प्रसव्य जन्तुविवर्जिते खण्डिले, ष्टं जम्मादिश्ानेष्वपि द्रष्टव्यम्‌ ॥१५०॥ Aw परित्यज्य चतुविंघाहारमग्नन-पान-खाद्य- खाद्य रूपम्‌, नमस्कारः पश्चपरमेठिस्तवः, तत्परायणस्तदनुस्मरण- परः, आराधना च्रानाद्याराधना तामतिचारपरिहारेण विधाय चतुरणामरंत्‌-सि-साध-घर्माणां रयं ay सखाकसमपेणं चतुः-

(1) च्याचमपदे पार्य वौरजिमेन्द्र न्नातषगडे | SAIS FAM SRSIAIT STA He (2) wang एुरिभताशे बीर्जवालिकानरीतोरे | यषाखां केवलानि बेषुद्यानेषु प्रत्रजिताः॥ (१) अराप्ट-चम्पोख्जयम्तपापाशुमेत्यलगिखरेषु | षटषम-वापृपुञ्छमेमयो NE: Bare सिद्बिगताः॥ 1

oye योगशास्त्र

शरणं तदाजितः, यदाइः--'अर्ंते सरणं पव्वल्नामि, faa सरणं

पव्वज्जामि, साह सरणं पव्वल्लामि, aafacadt wai सरणं पव्वस्ामि fr ॥१५१॥ आहारपरिहारप्रतिपत्तिख पश्चविधाति-

चारपरिषारेण कार्या; तदैवाह- इहलोके इलो विषये धन-

पूजा-कोत्यीदिष्वाशंसा, परलोके परलोकविषये ख्गादावाशंसा,

लो वितं प्राणधारणम्‌, तजर पूजादिविश्रेषदगेनात्‌, परभूतपरिवारा-

वलोकनात्‌, सर्वलोकन्ञाघाश्रवथाचेवं मन्धते लोवितभेव त्रेय,

प्रत्ाख्यतचतुविंधादारस्यापि यत एवंविधा agenda विभूति-

वेतत LAURA, मरणं प्राणत्यागः, aa aera afaq तं प्रति-

amanda प्रति सपयथा श्राद्ियते, कित्‌ ज्ञाते, तदा

तस्येवं विध्िन्तपरिणामो जायते, यदि tet fad इत्याशंसा, at

त्यक्षा, निदानं प्रस्मात्‌ तपसो IAAT ATA चक्रवर्ती,

वासुदेवः, महामण्डलेष्लरः, सुभगः, रूपवान्‌ स्याम्‌" इत्यादि-

प्राथेनां ww, पुनः fafafae: amfuqualfea: समाधिः

परमसखास्यं एव सुधाऽतं तयोलितः fam: ॥१५२॥ परोषहभ्यो

निभयो जितपरौषड् इत्यधेः, aa मार्गीच्यवन-निजेराथं ufc

वष्न्त इति परोषहाः, ते हाविंयतिः, तद्यथा ;-श्षत्पिपासा-

श्नोतोष्णदंग्मश्कनान्न्धारतिस्नो चयानिषय्याचय्याऽऽक्रोगवधयाजा- इन्ताभरोगद् सर्ममलसत्कारप्रचरान्नानदभं मसलचग्याः , तेषां जय-

खेवम्‌ ;-

() wea: ace प्रपद्ये, fearg ace aug, साधन्‌ ace प्रपद्ये. केर्डि nay wa अरणं naz fa |

BNA: प्रकाशः | ७५९.

Sea: शक्तिभाक्‌ साधरेषणणां मा तिलक्कयेत्‌ अरदोनो fara विदान्‌ यात्ामाजोखतशख्रेत्‌ १॥ पिपाशितः प्रथिश्योऽपि तच्चविद्‌ Safa: |

शोतसुदकं व!व्टेरेषयेत्‌ प्रासुकोदकम्‌ Wz a बाध्यमानोऽपि maa त्वग्‌-वस्त्र-ताखवजिंतः | वासोऽकष्पं। नाददोत WMA MAAS ATH QA हष्णेन तप्तो ana निन्देच्छायां स्मरेत्‌ वौजनं aera गाजराभिषकादि, वजेयेत्‌ दष्टोऽपि diana: सर्वाहारप्रियत्वविव्‌ |

ard दषं निरासं कुर्यात्‌, कु्याद्पेक्तणम्‌ ५॥ नात्ति वासोऽश्भं चेतद्‌ तच्रेष्छेत्‌ साध्वसाधु AT | नाग्न्यन fagal जानक्घाभालाभविचि्रताम्‌ कदाप्यरतिं कुर्याद्‌ धर्मारामरतियंतिः |

गच्छं स्तिष्ठंस्तथासोनः खास मेव समाखयेत्‌ दुध्यानसङ्कपङ्का fe मोच्चहारागलाः स्त्रियः | चिन्तिता धमेनाशाय चिन्तयेदिति नेव an nce ग्रामाद्यनियतसायो waaay विवजिंतः च्यभेकोऽपि gata विविधाभिग्रहेर्युतः < अमगानादौ निषदयायां स्यादि कण्टकंवजिते। इृ्टानिष्टाजुपसगौन्‌ निरीहो fata: सहेत्‌ १० भभाश्भायां शय्यायां विषहेत सुखासुखे राग-देषौ बुर्वीत प्रातख्याच्येति चिन्तयेत्‌ wee a

BANS

भक्रष्टोऽपि हि नाक्रोथेत्‌ चमाच्रमणतां विदन्‌ | प्रत्युताक्रोष्टरि यति्िन्तयेदुपकारिताम्‌ १२

a2a हन्यमानोऽपि प्रति्न्धाद्‌ मुनिन तु |

जोवानाभात्‌ HUT TST चमया ुाजनात्‌ ५१३। नायाचितं यतोनां यत्‌ परदन्तोपजो विनाम्‌ |

या! दुःखं प्रतोच्छेत्‌ तद्‌ Ae पुनरगारिताम्‌ १४ परात्‌ पराध are वा शमेतान्नादि मापिवा।

HAT लाभाद्‌ नालाभाद्‌ निन्देत्‌ खमधवा परम्‌ ५१५॥ ofesa रोगेभ्यो arefafafaraq |

अदौनसु सेद्‌ देशाव्नानानो भेदमात्मः + १६४ अभूताश्याणचेलत्वे मंस्त॒तेषु ढणादिषु |

सहेत दुःखं तत्छ्थभवमिच्छेद्‌ तान्‌ सदून्‌ १७४ गोषा तपपरिक्िचरात्‌ सवीङ्गोणाद्‌ मलाद्‌ मुनिः | नोदिजेत fasta नोहतेयेत्‌, सहेत Ta १८॥ sala पूजने दाने भवेदभिलाषुकः |

असत्कारं दौनः स्यात्‌ सत्कारे ATT इषवान्‌ + १९ ५. wei प्रन्नावतां पश्यत्रामन्यप्रान्नतां विदन्‌ |

fades नवा मादयेव्‌ प्रन्नोलषेसुपागतः २० ज्ञानखारिबयुक्तोऽखि च्छद्मखोऽहं तथापि हि |

cama विषदेत ज्ञानस्य क्रमलाभवित्‌॥ २१४ जिनास्तदुशं जोवो वा धमधम भवान्तरम्‌ परो्षलवाद्‌ खषा नेव चिन्तयेत्‌ प्राप्तदथेनः २२१

ठलतीयः-प्रकाशः। ७६१

श्ारोरमानसानेवं खपरप्रेरितान्‌ सुनिः। परौीषडान्‌ सहेताभौवौक्षायममसां ait ॥२३॥. श्रानावरणोये वेदे मोहनोयान्तराययोः ।. कमंसूदयमापेषु संभवन्ति परोषषाः ॥२४॥ Fay स्यात्‌ शुत्‌ ढषा शोतसुष्णं दं थादयस्तथा | च्या शय्या वधो रोगस्तणस्मशंमलावपि २५॥ प्रभ्ञान्नाने तु विक्तयौ न्रानावरशसंभवोौ। अरन्तरायादलाभोऽमो च्छद्मस्स्य चतुदश w २६ aq पिपासा tage दंशाषर्यां वधो मलः। शय्या रोगस्तणस्पर्शो जिने वेद्यस्य संभवात्‌ २७ तथा, उपसर्गेभ्यो निर्भीकः, तत्रोप सामौप्येन उपषजना- दुपद्धल्यत एभिरिति वा, उपदन्यन्त इति वोपख्गोः, ते ;— दिव्यमामुषतेरश्ामसंबेदनभेदतः। चतुष्यकाराः प्रत्येकमपि तै स्यृश्चतुविधाः १॥ ware tag विमशाच्च afrwara देवताः स्याद्‌ arg विमर्णाद्‌ दुःभोलसद्काच मानुषाः ॥२॥ ATATY भयक्रोधाहारापत्यादिरक्ष्णत्‌ | | घटनस्तम्भनञ्चेषप्रपातादातमवेदनाः २॥ यदा वात-पित्त-कफ-सं निपातीड्खवा भ्रमो | परोषहापसर्गणाभेषां सोढा भवेदभोः ५४५. जिनैष्वाराधनाकारिषु भक्तिभाक्‌ बहमानभाक्‌, 'जिनेरपि हि संसारपारावारपारोशेः पयेन्ताराधनानुहिताः इति बडहमानात्‌। <~ |

1 &। योगशास्त्रे

तथाच 5-— "निव्वाशमंतकिरिभ्रा सा चोद्समेण पठमनादस्य | सेसाण मासिएणं वोरजिखिंदस्य wean .. एवंभूतः सन्‌ मरणं समाधिमरथं प्रतिपथयेत, भानन्द्खावको यथेति खंप्रदायगम्यम्‌ | चायम्‌ ;- असत्यपास्तापरपुरं परमाभिविभूतिभिः। नाजा वाणिजकग्राम इति ख्यातं महापुरम्‌ १॥ aa प्रजानां विधिवत्‌ पितेव परिपालकः | जितशन्ररिति ख्यातो वभूव एूथिवोपतिः २५ आसौद्‌ गपतिस्तस्मिन्‌ नयनानन्दिदगेनः | भानन्दो नाम भमेदिन्यामायात इव चन्द्रमाः Qe सधमचारिणो तस्य रूपलावष्यदहारिो | aya शिवनन्देति anges रोहिणो ४। निधौ हदो व्यवदारे चतसखोऽस्य Tan Tay | हिरणष्यकोटयोऽभूवंखत्वारख व्रजा गवाम्‌ ५॥ तत्पुरादुत्तरप्रा्यां कोल्ञाकाख्योपपन्तने | भानन्दस्य। तिवडहइवो वन्धुसंबन्धिनोऽभवन्‌ 8 तदा ufaat fawca जिनः सिराचनन्दनः | तत्पुरोपवने दूतिपलाओे समवासरत्‌

(१) निर्वाष्यमन्तक्रिया खा चतुदथेन प्रथमनाथखय। अषाष्यां मासिक्तेन वोरलिनेन्द्रख षष्ठेन

wala: प्रकाशः

जितथ्नुमहोनाधस्तिजगन्राधमागतम्‌ |

खुत्वा ससंभ्रमोऽगच्छद्‌ वन्दति सपरिच्छदः आनन्दोऽपि ययौ षडयां पादमूले जगत्पतेः 1

करं पोयुषगण्ड्ष कल्पां शाव दे्नाम्‌ अरधानन्दः WIE तिजगत्खामिनः'पुरः। जग्राह हादशविधं wheat महामनाः॥ १०॥ शिवनन्दामन्तरेख al: तत्याजषेमतु) TABMINA स्र्यकोरौरनिंष्यादिगा विना॥ ११॥ प्रत्याचख्यौ व्रजानेष ऋते चतुरो व्रजान्‌ | quart विदधे इनलपञ्चशतोँ विना १२॥ WHE वज्ञयामास पञ्च पच्च शतान्दुते। दिम्घात्राव्यापएतामां वहतां चानसाममोौ॥ १२॥ दिम्याविकाखि चलारिसं सांवहनिकानिच। विषाय वहनान्यन्यवदडमानि व्यवजयत्‌ १४ WALT गन्धकाषाय्याः ATA FAIA | दन्तधावनमाद्रौया AYASTA HB १५॥ वजयाम।स ्ोरामलकादपरं फलम्‌ |

अभ्यङ्गः विना ae सहस्रशतपाकिमभे १९ way सुरभिगन्धास्यादहतेनकमत्यजत्‌ |

अष्टभ्य भ्रोद्धिक पयस्क्‌म्मेभ्योऽन्यच्च मव्वमम्‌ १७ wat Mayne वासः सवेमवजेयत्‌ | खोखण्डागुरपषुखणान्यपा स्यान्यद्‌ विलेपनम्‌ १८॥

OR

© és

योगशा

ऋते मालतीमाण्ात्‌ पञ्चा कुसुमं ae

MSR AQAA AIM TTT + १८ तुरुष्कागु रुधुपेभ्य ऋते waa AB | छतपूरात्‌ खण्डख्वादयादपरं भख्यमत्यजत्‌ २०॥ काष्ठपेयां विना पेयां कलमादन्यदोदमम्‌ | मासमुदकलायेम्य ऋते सूपमपाकरोत्‌ २१ wa वजंथामाख विना शारदगोषतात्‌ |

. शाकं स्वस्तिकमण्छकों uraaat विना जहौ २२

ऋते ATAU तोमनं चाम्बु खाग्बुनः | पञ्चसुगन्विताम्बुन्ाद्‌ मुखवासं खोऽमुचत्‌ W २९२ ware: निवनन्दाया star ada: |

अशेषं Haag whew ufagayq xs शिवाय भिवनन्द्‌ापि यानमाङ्द्र तत्तश्म्‌ | भगवत्पादमूलेऽगाद्‌ गडिघर्माधिनौ ततः २५४ AA प्रणम्य चरणौ अगच्यगुरोः पुरः |

प्रपेदे शिवनन्दापि गहदिधमे समाहिता ॥२६॥ अभिर ततो यानं विमानमिव भासुरम्‌ | भगवहाकसुधापानसुदितासा WY ययौ + २७॥ wa प्रणम्य सवन्नमिति पप्रच्छ गौतमः |

मातायं किमानन्दो यतिधमे ग्रह्ोष्यति?१॥५२८॥ विकालदर्भौ भगवान्‌ कथयामासिवानिति। खावकव्रतमानन्दः सुचिरं पालयिष्यति ze

तोयः प्रकाशः |

ततः सौधमकल्येऽसौ विमाने चारणप्रमे। भविष्यत्यमरवरचतुष्यल्योपमख्ितिः + ३० सततं जागरूकस्य हादशत्रतपालमे |

भानन्द्स्य ततोऽतीयुदीयनानि चतुदश ee निशान्ते चिन्तयामास सोऽग्येदयुरिति weit: | aaa; ओोमतामस्ि भूयखामिद पत्तने wars वि्तिप्तशिन्तया तेषां मा waa afar रङ्गगोक्तनेऽस्मिन्‌ सवज्नप्रक्पे धमेकर्मनि ३९॥ ततो मनसिक्घत्यैवं प्रातरुलयाय ज्लत्यवित्‌।

कोल्ञाके पोषधशलां सुविगालामचोकरत्‌ २४ निमन्तरा मिव्रसंबन्धिवान्धवादोनसावय।

भोजयित्वाऽखिलं ज्येष्ठ भारं पुतेऽध्यरोपयत्‌ ३५

ततश्च पुव्रसिवादोन्‌ सर्वानप्यनुमान्य सः |

` ययौ पौषधशालायां धमकर्मविधित्षया ३६ AY त्र AIAG Aaa क्शयन्‌ वपुः |

Wa भगवदादिष्टमातमानमिव पालयन्‌ ३७ fa: afanai खर्गापवगसौोघाधिरोडशे | ख्रावकप्रतिमापङक्तिमारुरोह MAT Tu ३८ तपसा तेन तोत्रेण शष्काङक्रपिशिताङ्गकः | चमेवेष्टितयध्याभो ACTS बभूव खः २९ धमजागयया जाग्र्रिभोधसमयेऽन्यदा भ्रभगनस्मपसानन्द्खेतस्येवम चिन्तयत्‌ ४० +

OEY

७६६

योगशास्त्र

यावदुलातुमोशोऽस्ि -शब्दायितुमपौण्वरः |

धर्म चायेख भगवान्‌ यावद्‌ fawta मम ४१॥ संलेव्वनासुभयथापि wart मारणान्तिकोम्‌ | लावच्चतुविधाशारप्रत्याख्यानं रोम्यद्हम्‌ ४२॥ चिन्तयित्वेवमानन्दस्तथेव विदधैऽपि च। विसंवदति चिन्तायाखेरितं महावमनाम्‌ ४२४ निराकाहृस्य कालेऽपि समत्वाध्यवसायिनः।

तस्य जच्चेऽवधिन्नानं तदाठ्रणश्ुदितः ४४॥ तज्राजगाम भगवान्‌ WANA विषरंस्दा | दूतिपलाशओे समवामर्क्रं देयनाम्‌ ४५॥ गौतम तदा भिक्षाचयया प्राविशत्‌ पुर

| पभक्षावपानः कोज्ञाके ययावानन्दभूषिते a ४६॥

मिलितं as भूयांसं लोकं संजातविस्मयम्‌ | tara गणधरोऽन्योन्यसमित्यभिभाषिणम्‌ ४७ शिष्यो जगहरोरवीरस्यानन्दो नाम gerd: | प्रपन्रानशनोऽस्तोह निरोहः सवधापि हि ४८ MARY तदाकश्छ पण्याम्यमुसुपासकम्‌ |

इति quit जगामाथ तत्पोषधनिकेतनम्‌ ४९ अकस्माद्‌ रबहच्याभं तमविन्तितिमागतम्‌।

EUl सानन्दमानन्दोऽवन्दतेवसुवाच Wo i भगवन्‌ ! तपसाऽनेन क्िष्टमुलयातुमन्तमः | इहेष्रनभियोगेन यथा पादौ स्पृशामि ते ५५१४

BAA: प्रकाशः | ७&

उपैत्य पुरतस्तस्य AQIS महासुनेः |

saa जिधानन्द्खरणोौ शिरसा स्पृशन्‌ ५२॥

fa भवत्यवधिन्नानं भगवन्‌ ! weafua: १। शत्यानन्देन पष्टः सन्राभेत्युे महामुनिः ५३१ श्रानन्दोऽावदत्‌ खामिन्‌ ! afe मे ग्टहमेधिनः। भवधिन्नानमुत्पटे गुरुपादप्रसादतः॥ ५४॥

sid योजनशतीं पूर्वागौ दलिणोदघौ ` ufaatal) वोन्तेऽहमुटोश्ां a डिमाचलात्‌ ५५॥ ऊध्वं सौधमंकल्पादा पश्यामि भगवव्रहम्‌ |

WUT उन्रप्रभायासतु TAIT AT लोलुपाद्‌ वनात्‌ ५६९५ सुनिरूचेऽवधिन्नानं जायत ग्टदहमेधिनः |

faumiafard खानस्यालो चयास्य तत्‌ ५७ आनन्दोऽप्यत्रवोदेतदस्ति मे तत्‌, सतामपि | भावानामभिधाने किं भवेदालाचमा क्रचित्‌ ?॥५८॥ भवेदालोचना नो चेद्‌ ननु तद्‌ युयमेव fe | भ्रालोचनामाददीष्वं सथानस्यासुष्य संप्रति ve i श्रानन्द्‌नेत्यभिहिते ang गौतमस्ततः।

यवौ ओोवोरपादान्ते भक्तपानादयदग्रीयत्‌ ९०॥ नन्द्‌ स्यावधिक्ञाममानविप्रतिपतस्तिजम्‌ |

वादं चाषेदयाश्चक्र गौोतमस्तं HART: ६१॥ भालोचनोयं afew किमानन्देन किं war? |

गौ तमेनेति fawa भवतेत्यादिश्त्‌ wy: ६२१

ogc योगशास्त्रे

तथेव प्रतिपेदे तद्‌ विदधे तथेव सः | तमयामास चानन्द समिखं afaai वरः ९२ aaifa fanfafafa प्रतिपाख धमे- ATH भराषददधानशमेन सत्यम्‌ | aA सुरोऽरुशविमानवरे विदेह BU यास्ति पदं परमं AAT ॥६४।१५३४

दति भ्रानन्दखाइकथानकम्‌

TT MAS Wana गतिं ज्ोकहयेनाइ-

प्राप्तः कल्येष्विन्द्रत्वमन्यदया खानमुत्षमम्‌ | मोदतेऽनुत्तरप्राज्यपुग्यसंभारभाक्‌ ततः ॥१५४॥ च्युत्ोत्यदा मनुष्येषु सूक्ता भोगान्‌ सुदुर्लभान्‌ | विरक्तो सुक्तिमाप्रोति शुदात्मान्त्मवा्टकम्‌ ॥१५५॥

व्याख्या- Maal यथोक्ञखावकधमपरिपालनात्‌ wig सौध्मीदिषु, खम्यग्ड शोनामन्यत्रोत्पादाभावात्‌, CHa शक्रत्वम्‌, मन्धद्‌ वा सामानिक-व्रायस्निंश-पारिषय्-लोकपालादिसंबन्धि ख्यानं पदं प्राप्तः, उत्षमभमित्याभियोम्बादिखानव्यवच्छेदाधेम्‌, तत्रोत्पत्रच मोदते प्राप्तरबविमानमडहो यानमव्लनवापौविचित्ररब- वसत्राभरणः सुरसुन्दरोचामरव्यजनव्याजवायंमाशमोलि-मन्दार-

(9) डय -नधरो।

BAT: प्रकाशः | ७६९

माख्यमधुकरोऽहमहमि कारेवासमायातज्रिदशको टौ चाट कारजय- जयध्वनिप्रतिष्वनितनभोङ्गणो मनोमातवपरिखमसंमिलितसकल- बैषयिकसुखनलालितो मानासिहायतनयातासमुत्पव्रहषेप्रकषः सन्‌ प्रमोदभाग्‌ भवति भध हेतुमाह -श्रगुसरा अनन्यसाधारणः प्राज्या बहवो ये पुष्यसंभारास्तान्‌ भते तहाक्‌ १५४ ततः SMI मनुष्यायुनिंबन्धेन खवनमनुभूय मनुष्येषु fafae- देशजातिङ्लबलेष्ठयैरूपवत्मृत्यद्चोदारिकशरोरत्वेन aT लब्ध्वा, भक्काऽनुभूय भोगान्‌ शब्द-रूप-रस-गन्ध-स्पशेलक्षणानक्लतपुख्येरति- शयेन दुलभान्‌, यत्‌ "किचिद्‌ निमिक्तमवाप्य सांसारिकैभ्यः सुखेभ्यो fara वैराग्बस्यैव परमप्रकर्पयोगन सवविरतिं प्रतिपश्य ततेव जग्मनि सपकमेख्याक्रमणक्रमेण RAAT AVANT निः शेष- कमेनिमृलनेन wer समुद्धिमाप्रोति waa तत्रेव जानि सुक्गिस्तदा कियन जक्मान्तरेषु gfe: स्यादित्याह -भन्तभेवा- टकम्‌" इति भवाष्टकाभ्यन्तर इत्यधेः १५५ प्रकाशब्रयोक्षमयमुपसंहरति-

इति संचेपतः सम्यग्रबवयमुटौरितम्‌ | सर्वोऽपि यदनासादय नासादयति fara fer ॥१५६॥

दूति प्रकाशब्रयेण taad च्रामदशनचारित्रामकं योगल्वेन प्रत्याख्यातमुदौरितं कथितम्‌ कथम्‌ ! सम्यग्‌ जिमागमाविरोघेन। विस्तरस्यासवविदा वक्ष॒मशक्छत्वादाह- संकेपतः | ब्रत्रयं विना-

(१?) we faq| é9

योगशास्त्र

ऽन्धतोऽपि कारणाद्‌ निर्वाणप्रािं शङ्मानं प्रत्याह- सर्वाऽपि, भासतां कश्चिदेकः, यद्‌ रब्रत्रयमनासाश्य काकतालोयेनापि न्यायेन माप्नोति निवृतिं ` मोत्तम्‌। श्चन्नाततस्वोऽखदधानो नवं कमे निबश्नन्‌ पूर्वोपास्तानि कमाणि शक्तध्यानबषलेनाक्षपयन्‌ संखार- बन्धनाद्‌ मुक्तिमाप्रोतोति aa समण््सम्‌ १५९

इति परमारतयरोङ्मारपालभूपालश्चषिते भ्राचायं- ओरौ हेमचन्द्रविरचितेऽध्यातोपनिषव्राजि संजातपट्बन्धे RAIMA Bat ठतोयप्रकाश्रविवर णम्‌ wa

श्रहम्‌

अथ चतुधः प्रकाशः

घर्मधमिंणोर्मेदमयम धिज्ञत्यालमो card मुक्किकारणतवेनोश्षम्‌ इदानोममेदनयाखयेणालमनो रब्रभरयेणेकत्वमाह-

आत्मेव दशेनन्नानचारिवागस्यथवा यतेः

TAMAR VAT शरौरमधितिष्ठति १॥

अधवेति भैदनयापे्षया प्रकारान्तरस्यामेदनयस्य प्रकाश- नायम्‌ wee ततो भिन्नानि दशेनन्नानचारिग्राणि। यतेरिति संबलिपदम्‌। भतोपपत्तिमाह-- यद्‌ यस्मात्‌ तदात्मक एव दगन-ज्ञान-चारित्रामक एव तदभेदमापन्र एवैष भाता शरीरमधितिष्ठति। भ्रालभिन्रानां fe दथेनादौनां नानि afatqa स्यात्‌, देवदन्तसंबन्धिनामिव amet १॥

श्रमेदभेव समर्धयितुमाद- आत्मानमात्मना afa मोहल्यागादय wear | तदेव तस्य चारित्रं तउन्नानं तच्च दशनम्‌ २॥

© Watt कमतापन्रमालन्याघारभूते Waray खंयमेष यो वेत्ति sia | wa wad मूढानां भवतोत्याह-मोह-

Oz योगशास्त्र

त्यागात्‌.। तदेवातन्नानमेव तस्यामनखारि्रम्‌, अनाखवरूप- त्वात्‌ ; तञ्न्नानं तदेव ज्नानम्‌, बोधश्पत्वात्‌ ; तच्च दशनं तदेव दशनम्‌, खद्ामरूपत्वात्‌

मान्नानभेव स्तौति- | भात्मान्नानभवं दुःखमात्मन्नागेन TIT तपसाप्यात्मविन्नानङौनेग्डेत्तं शक्ते

ay सवं दुःखमनाकविदां भवति, वदासान्नानभवं प्रतिपक्च- मूतेनात्न्नानेन शाम्यति चयमुपयाति तम इव प्रकायेन। ननु HAIG: प्रधानं तप say, यदाहः,-"पुष्विं दुचिन्राखं दुष्पडिकंताणं कडाणं gard वेषद्ला ala ae अवेयद्ता तवसा वा MSTA इत्याह, तपसापि भास्तामन्धेनानुष्टानेन तदासमाच्चानभवं दुःखमासवित्रानह्ोनेन wy शक्यते, ज्ान- मन्तरेण तपसोऽख्पफलत्वात्‌, ASE :- ‘at MATT aa Sag aygufs वासकोडौदहि। a शणो fafe गु्तो eax जसासमेन्त्ट १॥ | तत्‌ सितमेतत्‌-- बाद्यविषयव्यामोषहमपहाय रब्रत्रयषवेख- मूते भात्रन्नाने प्रयतितव्यम्‌, यदादुर्बाद््ा भपि- भासा रे maaan मन्तव्यो निदिष्यासितश्य इति। भाकन्नानं

(१) gx दुरितानां इुष्मरिकरान्तानां कतानां कमणां बेदवित्वा der मास्त्ववेद वित्वा तपसा वा wafer | (९) यदश्चामी कसं शपवति बह्काभिरव्षकोरिभिः | तश्च्रामो fq frig: चपयन्व॒च्छासनालेष !

चतुरैः प्रकाशः S28

नामनः क्मेभूतस्व एथक्‌ fafeq, भपि amafagae ad: वेदनभेव मृग्यते, नातोऽन्यटात्मन्नानं नाम, एवं era रपि नालनो fart एवं चिद्रुपोऽयं त्रानाखाख्यानिरभिधोयते | मनु विषयान्तरव्युदासेन किमित्यालन्नानभेव ग्यते, विषयान्तरज्नान- भेव श्न्नागरूपं दुःखं हिन््यात्‌ नेवम्‌, सवं विषयेभ्य आलम एव प्रधामल्वात्‌, तस्येव कमेनिवन्धनश्रोरपरिग्रहे दुःखितलवात्‌, कम- चये सिहसखरूपत्वात्‌ २॥

WaAzay----

भयमात्मेव चिद्रुपः शरौरौ कमंयोगतः | ध्यानाग्निदग्धकमां तु सिचात्मा स्याच्चिरश्ननः॥ ४॥

भयमिति सकलप्रमाणप्रतिहितसिद्रपञ्चेतमखवभावः, उपयोग- लक्षणतवास्नोवस्य ; तथा, एव शरोरौ भवति, क्मयोगात्‌, aq विषयाः; तेन 4 विषयान्तरश्नानं सम्बते। शाक्व शक्तध्यामाग्निदग्धकमऽशरोरः सन्‌ सुहस्वरूपो भवति facagar निमलः। परतोऽपि कारणादालन्नानं सग्यते॥४॥

तधा-

अयमात्मेव संसारः कषायेग्द्रियनिर्जितः | तमेव तदिजेतारं मोच्माहमनीषिणः ५॥ “भ्रयमासेवः इति पूतैवत्‌ संसारो नारक-तियंग्‌-नरा-ऽमर- wana. किंविचिष्टः सन्‌ १. कषायेद्द्ियनिजितः कषार्यं-

१.1.11 योगशास्त्र

रिद्दियेख पराभूतः aaa arent तदिजैतारं कषायेन्द्रिय- जेतारं मोक्तमाइः। हि खरूपलाभादन्धो मोक्षः | याऽप्या- नन्दरूपता सापि खरूपलाभर्ण्व | तस्माटामन्नानमुपासनौयम्‌, दशंन-चारिव्राेरत एव सिदेरिति॥ ५॥

'कषायेन्दिनिजिंतः इत्युक्घम्‌, तत्र कषायान्‌ farwifa—

स्युः कषायाः क्रोधमानमायालोभाः शरीरिणाम्‌ | चतुर्विधासे प्रयेकं He: संज्वलनादिभिः क्रोधमानमायालोभाः कषायश्ब्दवाश्या भवन्ति. कच्यन्ते fear प्राणिनोऽस्ित्रनेनेति वा, कषः संसारः कमवातस्याया लाभाः प्राप्तथ इति कछला, waa, ad संसारमयन्त एभिरिति wear! तेच शरोरिणां संसारिणां गतु gary! तेच क्रोधादयः Naa चतुविधाचतुण््रकाराः संज्वल्तनादिभिरभेदेः | ततव क्रोधः PAA, प्रत्याख्यानावरण्णः, भप्रत्याख्यानावरण्ः, अनन्तानुषन्धी एवं मानः, माया, लोभखति ९॥

संञ्वलनादोनां लक्षणमाह- ae सं ज्वलनः प्रल्याष्यानो मासचतुष्टयम्‌ | अप्रल्ास्यानको वषं जन्मानन्तानुबनधकः

ud माषाधमभिव्याप्य संज्वलनः क्रोधो मानो माया लोभख भवति संञ्वलन इति ठणाग्निवदौषस््बलनासकः, परोषषादि- संपाते सपदि उ्वललनातलको वा। arent भौमो maga

चतुथे: प्रकाशः ७७५

इति aaa प्रत्याख्यानावरणः प्रत्याख्यानं स्वेविरतिमाठणोतोति Ral! मासचतुष्टयमभिव्याप्य भवति अप्रत्याख्यानोऽप्रत्ा- ख्यानावरणः, नओोऽख्पाधेत्वादल्पमपि प्रत्याख्यानमाठणशोतोति क्त्वा। वषं संवत्सरमभिव्याप्य भवति। wart भवमनु- बन्नातोत्यनन्तामुबन्धकः, मिष्यात्वखद चरितत्वादस्यानन्तभवानु- न्धिलम्‌ | जग्म जोवितनालमभिव्याप्य भवति | प्रसब्रचन्द्रादः तणमाब्रखितोनामपि कषायाण्ामनन्तानुबन्धित्वम्‌, भन्धधा नरकयोग्यकर्मोपाजैनाभावात्‌ #

दति फालनियमक्नते संज्वलनादिलच्रेऽपरितुष्य लस षान्तर- माद-- |

वौ तरागयतिग्रादसम्यग््टित्वघातकाः | ते देवत्वमनुष्यत्वतियक्घनरकप्रदाः

त्व शब्दः प्रत्येकमपि संवध्यते, तैन वोतरागत्वस्य, यतित्वस्य, खावक्षत्वस्य, सम्यण्ट्टितस्य क्रमेण घातकाः, तथाह्- संज्वलनोदये यलित्वं भवति a पुनर्वीँतरागत्वम्‌ ; प्रत्याख्याना- वरणोदये wana भवति पुनयतिलम्‌ ; भप्रत्याश्यामावरणो- दये सभ्यगृटष्टित्वं भवति पुनः खरावकलवम्‌ ; भ्रनन्तानुवन्ध्युदये सम्यग्दृर्टित्वं भवति। एवं वोतरागत्चातकतवं संञ्वलनस्य, यतित्वघातकलवं NASA, अावकत्वघातकत्वमप्रत्या- ख्यानावरणसख्छ, सम्यगृहरटिलघातकत्वमनन्तानुबन्धिनः खतं लक्षणं भवति उन्तरार्धेनामोषां फलदायकत्वमाह -- ते संञ्यल-

७9९ BANE

meat रेवल्वादिफललदायकाः ; anfe— संञ्वलनाः क्रोधादयो टेवगतिम्‌; प्रत्याख्यानावरण्ठा मनुष्यगतिम्‌, भप्रत्याख्यानावरणा- स्वियम्गतिम्‌, -पनन्तानुबन्धिनो नरक गतिं प्रयच्छन्तो ति एतेषां a संख्वलनादिमेदानां चतुणां कषायाणां सखषटटृष्टान्तकथनन खरूपसु्ते-जलराजि-रछराजि-एथिवीराजि-पवतराजिसटशाः क्रोधाः संल्वलनादिभेदाः, -तिनिशलता-काष्टा-ऽखि-गेलस्तम्भ- सहटशाखचत्वारो मानाः, भवलेखन-गोम्‌तिका-भेषग्ङ्क-वंशिमून- समाखतस्रो मायाः, हरिद्रा-खश्चन-कदम-कमिरागसदटशथाखत्वारो लोभाः, यदाह | 'जलरेणपुठविपव्वयरादईसरिसो asfast को तिनिस्लयाकटटि यसेललेभोवमो माणो ae मायावलेहगोमु्िमिंढसिंगघणवं सिमूनलसमा | लोहो हइलिदखंजणकदमकिमिरागसारिच्छो ॥२॥१ ति॥८॥

अथ कषायाणां ओेतव्यलसपद्यितं दोषानाह- तवोपतापकः क्रोधः क्रोधो वैरस्य कारणम्‌ | SMa क्रोधः क्रोधः शमसुषार्गला <

तज्रेति तेषु कषायेषु क्रोधः प्रथमकषाय उपतापयति WaT

(१) wetuvehaiacfaurawafew: क्रोधः | fafaqeararerfersdweranrasy स।नः॥ !

` भायावेखगोसूनिकाभेदक्ष्टङ्कषनवंथिभूखलमा | शोभो रिदा खञ्ञगकरभलनिरागखषयः॥२॥

चतुथः प्रकाशः | ७99

सनो ल्युपतापकः, तथा, वरस्य परस्मरोपघाताकनो fatwa सुभूम-परशुरामयोरिव कारणम्‌,तथा, दुगेतेनरकलक्षशायास्तयो- रिव वतनो मागः क्रोधः; तथा, शमसुख्ठस्य प्रशमामन्दस्यासनि प्रविशतोऽगेलेवागंला, तदुपरोधकारित्वात्‌ | पुनः पुमः क्रोधग्रहयं तस्यातिदौच्यन्नापनाथेम्‌ <

ख-परोपतापक्षारिव्वेऽपि क्रोधस्य कथानुदृष्टान्तेन खोप- तापक्षत्वं समर्थयते,-

उत्पयमानः प्रथमं दल्येव खमाश्रयम्‌ | क्रोधः क्रशानुवध्पञ्चादन्यं दहति वा नवा १०

तथाविधकरारणसंपाते उत्पद्यमानः क्रोधः क्शानुवत्‌ खं खकोयमाश्रये, यत्र उत्पद्यते तं, निभेन दहति, पात्‌ कशानुवदटेवान्यं दाश्चान्तरं दष्ति वा नवा, परस्य लमाशोल- लादिना साद्रहुमादिवत्‌ दग्धुमशक्छलात्‌ |

अत्रान्तरज्चोकाः,-

भजितं पूवंकोयया यद्‌ वर्षेश्टमिषरूमया | तपस्तत्‌ तल्लषणादेव दहति क्रोधपावकः + १॥ “WAST पयः प्राज्यपुख्यसंभारसंचितम्‌ | अ्रमषविषसंपकादसेव्यं तत्छणाद्‌ भवेद्‌ ॥२॥ चारित्रविनश्ररचनां विचिव्रगुखधारिणौम्‌।

TARA क्रोधधूमो व्यामलोकुरतेतराम्‌ éG

श्ट MANE

यो चराग्यश्रमोपन्रपुदटैः समरसोऽजितः।

भाकपवरषुटामेन क्रोधेनोस्मृज्यते किम्‌ १॥ ४५

प्रवधमानः क्रोधोऽयं किमकार्यं करोति a? as fe हारका इेपायनक्रोधानले समित्‌ ५॥ maa: कायं सिदियी सा क्रोधनिवन्धना | जन््ान्तराजिं तोजखिकमणः खल्‌ तत्फलम्‌ स्वस्य लोकदयोच्छिश्ये नाशाय खपरार्धयोः | धिगद्ो ! दधति क्रोधं थरोरेषु शरोरिणः॥ क्रोधान्धाः पश्य निन्नन्ति पितरं मातरं गुरुम्‌ | Oe सोदरं दारानाम्ानमपि fagar ॥८॥१०॥

MIVA खरूपसुक्रा तव्जयोपायसुपदिशति-

क्रोघधवङ्केस्दद्ाय शमनाय शुभाव्मभिः | यणीया AAAI संयमारामसारणिः ११॥

ran क्रोध एवंविधस्त्मात्‌ क्रोधवड्कर्ाय कटिति wa नाय शान्तये शभाक्निः पुष्याव्भिः, अदायग्रहणं भकटिति क्रोधोपशमोपदेयाधम्‌, क्रोधो हि प्रथमभेवाप्रतिदतः सन्‌ विवधं- मानो दवागल इव wary निवारयितुमशक्यः, aiq— ‘sald वणथोवं अम्मिधोवं कसायथोवं | AEG वोससियब्वंयोवंपिष्ुतं ag wee

({) wWweita वनसाक्मग्निखोकं कषायस्तोकं 4 खलु भवता निच्रहड्तव्यं स्तोकमपि तदू we भवति 1

चतुधेः प्रकाशः। S98

Rata wafaaat एकव waar! fe qaraate क्रोधोपशथमोपायो जगत्यस्ति, क्रोधफलसंप्रटानं तु वेरहेतुखेन प्रत्युत क्रोधहदिहेतुः, तु anus श्त्येकग्रहणम्‌ समां विथिन्ि-क्षंयमारामसारणिः संयम एव नवनवानां संयम- स्थानानां तरूणामारोषहितुलेन तदुचिहतुल्वेन चारामो fafaa- तरुसमूहात्मकस्तस्य areca: Fen संयमारामहदिरेतुतया पृष्य- फलप्रात्तिहेतुतया aa fe प्रणान्तवाहितारूपा चिन्तपरिणतिः सग सारशित्वेन रूपिता, नवनवप्र्रमपरम्पराप्रवाहरूपत्वात्‌ |

अव्रान्तरश्चोकाः--

भपकारिजने कोपो निरों यक्धते कथम्‌ 1

शक्यते AMAIA यहा भाषनयाऽनया १२॥ अङ्गोक्त्यालनः पापं यो मां वाधितुमिच्छति। स्वकमंनिहितायास कः कुप्येद्‌ बालिशणोऽपि सन्‌ ५२॥ प्रकुप्याम्यपकारिभ्य दति चेदाशयस्तसं |

aq किंन कुप्यसि खस्य wat दुःखशेतवे २॥ उपेष्य लोष्टस्ेप्तारं लोष्टं दशति awe: |

anf शरमाप्र्य शरसेपारमिष्छति ४॥

यैः परः प्रेरितः क्ररमद्यं कुप्यति waft: mate परे क्रध्यन्‌ किं खये भषणञियम्‌ श्रुयते NAAT ars wag जग्मिवान्‌ | भयन्रेनागतां क्षान्तिं ne किमिव नेच्छसि nga

योगशास्त्र

ब्रलोक्छप्रलयताण्चमाखेदाचिताः समाम्‌ कदलोतुख्यसस्यख्य समा तव किं qar 7 aon तथा किं माक्लधाः पुष्यं यथा कोऽपि वाधते १। खप्रमादमिदामीं तु शोचब्रङ्कोकुरं समाम्‌ क्रोधान्धस सुनेबण्डचण्डालस्य नान्तरम्‌ |

, तस्मात्‌ क्रोधं after भजोखघलधपियां पदम्‌

महषिः. क्रोधसंयुक्षो. निष्कोषः कूरगद्खकः |

safe सुकला देवताभिवेवन्दे कूरगड्डकाः १० भरुन्तुदेवचःगशस्ेुष्यमानो विचिन्तयेत्‌ |

चेत्‌ तध्यभेतत्‌ कः कोपोऽच मिष्योकन्षभाषितम्‌ ११॥ वधायोपस्थितेऽन्धस्मिन्‌ wee विसितमानसः।

वधे. मकमसंसाध्ये gar ठृत्यति बालिशः १२ # निषहन्तुमुखते ध्यायेदावुषः wa एष नः |

तदसौ निभयः पापात्‌ करोति सतमारणम्‌ १९

सवपुरुषाधवचौरे कोपे कोपो चेत्‌ तव। धिक्‌ at खल्पापराधेऽपि परे कोपपरायशम्‌ १४॥ सवं ्दरियग्बानिकरं विजेतु ` कोपं प्रसपन्तमिवोग्सर्म्‌ | विद्यां सुधोजङ्लिकोमिवान- wat चमां संततमाद्धियेत ।१५५११॥४

चतुधैः प्रकाशः | ७८१

मानकषायस्य खर्ूपमाश्-

विनयग्ुतशौलानां faster घातकः | विवैकलोचनं लुम्पन्‌ मानोऽन्धङ्रणो कृशाम्‌ ॥१२॥

विनयश्च गुवादिषुपचारलसषणः, qd विद्या, Me सुख- भावता, तेषां घातकः जात्वादिमदाश्चातो हि पिशाचकिप्रायो गुवीदोनां fama भवति भविनोतख शुरूनश्गूषमाशो a faut प्रतिलभते। अतएव सवेअनावन्नाकारो awe z:- स्वभावता प्रकटयति i केवलं विनयादौनाभेव घातको मानो यावत्‌ जिवर्गस्य धर्माथकामलकत्षणस्य | मदावलिप्तस्य हि मेद्दरिय- जयः, तदधोनश्च wa कथं स्यात्‌ ?। ` भर्धोऽपि राजादिसेवा- पराय्त्तिर्मानस्तब्धस्य कथं स्यात्‌ १। WAY मादवमूल एव, तत्‌ कथं मानस्तद्धे खाणाविव भवेत्‌ १। किख, प्रमन्धोऽन्धः क्रियतेऽनेनेत्यन्धकरणो मानः | Fat? | way किं कुवन्‌ १। quay किं तत्‌ १। विषेकलोचनं विवेकः कछत्याक्षत्यविचारणं सएव लोचनम्‌, “एकं हि aqua wen विवेकः” षति वचनात्‌ मानवतो fe ठहसेवामकुर्वीणस्य विवेकलोचनलोप- नमवश्यंभावि, तसिं सत्यन्धद्कर णत्वं मानस्य सुवचभेव १२

इदानीं मानस्य मैदानुपदशेयं स्तत्फलमाइ-

जातिलाभकुलेश्वयबलरूपरतपःश्ुतेः Haq मदं पुनस्तानि हीनानि लभते जनः ॥१३॥

OTR AVANT

जातिख शाभचेत्यादिदन्डः, aad मदलिप्तचित्ततां wea, तान्येव जात्यादौनि जश्मान्तरे होनानि aia |

अतान्तरन्ञोकाः- लातिभेदान्‌ मेकविधानु्तमाघममध्यमान्‌ | दृष्टा को नाम कुर्वीत जातु जातिमदं सुधोः॥ १॥ swat जातिमाप्नोति होनामाप्रोति कमतः। तव्रा्ाश्वतिकीं लाति की नामाघाग्य माद्यत २॥ अन्तरायल्षयादेव लाभो भवति नान्यधा | ततश्च TYAN लाभमदसमुदहेत्‌ २॥ परप्रसादशक्धादिभवे लाभे महत्यपि | लाभमदस्च्छन्ति महामानः कथचन ४॥ अकुलोनानपि प्रच्य प्रर्ाग्रोशोलशालिनः | कार्तव्यः कुलमटो महाकुलभवेरपि ५॥ fa कुलेन कुशोलस्य सुगौोलस्यापि तेन किम्‌ | wd विदन्‌ quad विदध्याद्‌ विचत्षषः gt खुत्वा विभुवनेश्वयेसंपदं aerate: | पुरग्रामधनादोनामैश्वये alent मदः गुशोख््वलादपि श्यद्‌ दोषवन्तमपि येत्‌ | कुभोलस््नोवदैग्बयं मदाय विवेकिनाम्‌ ac

` महाषलोऽपि रोगादीरबलः क्रियते चषणात्‌ | , दशत्यनित्ये बले cat get बलमदो गहि

GAA: प्रकाशः | OQ

बलवन्तोऽपि जरसि wal कमेफलाम्तरे |

VARIA, तनो इन्त ! तषां बलमदो सुधा+॥ Lo i सप्तधातुमथे देहे चयापचष्यवभिंि | जराङरुजाभिभ व्यस्य को रूपस्य मदं वहेत्‌ ११॥ सनत्कुमारस्य रूपं तत्लयं विचारयन्‌

कोवा सकण; खग्नेऽपि gale Gawd किल १२॥ मामेयस्य तपोनिष्ठां खुत्वा वौरजिनख ` कोनाम खल्यतपसि खकौये मदमाखयेत्‌ १३॥ येमेव तपसा च्रच्ेत्‌ तरसा कममेसं चयः |

तेनेव मद दिग्धेन वर्धते कमंसंचयः १४

wqu रचितान्यन्धेः शास््नाश्याघ्राय लोलया | सवन्नोऽख्मीति मदवान्‌ सखकोयाङगनि खादति १५॥ Maratea खुत्वा निर्माधारषे |

कः; खयेत्‌ BARS सकणंद्दयो जनः॥ ve i

कैचिन्त॒ ेयतपसोः wa वाक्ञभ्यवुहिमदौ पठन्ति, उप- दिणन्तिच,-

द्रमकैरिव दुष्कम॑कमुपक।रनिमित्तकां परजनस्य | क्त्वा AT वाल्नभ्यकमवाप्यते को मदस्तेन॥१॥ गवं परप्रसादातकेन वाक्ञभ्यकेन यः कुर्यात्‌ | तदाञ्ञभ्यकविगमे शोकससुदयः परास्शति॥२॥५

(१) चयच्र-बचभेखः|

Oty AIAN तधा

रहशोदाहणनवक्ततिविचारवा्थावधारण्वाद्येषु | बुहगङ्विधिविकल्पष्वनन्तपर्याय हेषु

पूरव एरषसिंहानां विन्नानातिश्यसागरमनन्तम्‌ |

खुत्वा सांप्रतपुरुषाः कथं खवद्या मदं यान्ति 7 ५४।१३॥

मानस्य स्वरूपं dete प्रतिपाद्य, cert समानप्रतिपच्चभूतं aed मानजयोपायजुपदिति,-

उत्छपयन्‌ दोषशाखा गुणमूलान्यघो नयन्‌ | उग्मूलनौयो AACA AST TA: १४

मान एव दुर्दम उच्रतिविशेषधारित्वेन | मानहुमयोः साधम्ये- माह,--उष्षवैयनुध्वं नयन्‌ दोषा एव प्रसरणभोलल्येन शाखा दोषथाखास्ताः, गुणा एव मूलानि शणमूलानि तान्धधो गनयन्‌ waaay! केरग्मृलनौयः मादंवसरित्दमवेमौ दवभेव सततवाहि- तया सरित्‌ तखाः शतैः प्रसरेः। मदद्रमो हि यथा यथा वधते तथा तथा शुशमून्नानि तिरोदधाति, दोषशाखाख विस्तारयति | तदयं कुटारादिभिरगमृलयितुमशक्मो मादवभावनाखरितरवाङख समूलमुग्भूलमोय इत्यधेः |

अनान्तरक्नोकाः-

मार्दवं नाम दुता तश्ौदत्यनिषेधनम्‌ | मानस पुनरोरत्यं खरूपमनुपा्थिकम्‌ २॥

चतुथे: प्रकाशः | ७८५

भन्तः समेद्‌ aa यत्रोहत्यं जाल्यादिगोचरम्‌ | तत्र तस्य प्रतीकारहेलोर्मदं वमाश्रयेत्‌ सर्वत्र ured कुर्यत्‌ पूज्येषु तु विशेषतः! ` येन पापाद्‌ विमुश्यत पूज्यपूजाव्यतिक्रमात्‌ मानाद्‌ बाहूबलिर्बद्ो लताभिरिव पापमिः। मादंवात्‌ AIG Ye: सयः संजातकेवलः चक्रवर्ती aman वेरिणामपि वेश्मसु | भिका यात्यहो | मानच्छेदायामदु मादेवम्‌ ५॥ चक्रवत्यपि तत्कवालदौधतितो रङ्कघाधवे नमस्यति त्यक्षमामिरं वरिवस्यति एवं मानविषयं afta दोषं

ज्ञाता मादेवनिषेवणजं गुणौघम्‌ | मानं विषाय यतिधम विशेषरूपं

सद्यः समाखयत मादवभेकतानाः | ॥७॥१४॥

ददानो मायाकषायखसरूपमाइ-

असृन्धतस्य जननौ परशुः शौलशाखिनः जन्मभूमिरविदयानां माया दुर्गतिकारणम्‌ ॥१५॥ असनतस्याटरतस्य जनमोव जननो, मायामन्तरेण प्रायेणास्‌-

तरृतस्याभावात्‌, मायाः इति वच्यमाणं संबध्यते, माया वच्छना-

तमकः परिष्णामः, तथा, परशः कुठारः We सुखभावता तदेव €. |

org MAI

UTS तस्य परशरिव परशः, weary; तथा जग्मभूमि- रत्प्तिस्थानम्‌, कासाम्‌ ? भविद्यानां मिथ्यान्नानानाम्‌। साच qua: कारणमिति प्रधानफलनिरदेभः १५॥

UMAGA WENA मायायाः परमाधेतः ` खवद्धनभेव ` फलमित्याह-

कोटिल्यपटवः पापा मायया वकठत्तयः भुवनं वच्चयमाना वञ्चयन्ते खमेव हि ॥१६॥ मायया ढतोयकषायेख भुवनं जगद्‌ वच्चयमानाः प्रतारयम्तः खमेवासानमेव वच्यन्ते के ? पापाः पापकमंकारिखः | पाप- कर्मनिष्वाथमेव वकहत्तयः, यथा बको मबव्छादिवश्चना्थं मन्दं मन्दं विचेष्टते तथा सऽपि aaeea तथा चेष्टन्ते यथा वक- sem भवन्ति। ननु मायया जगदच्छनम्‌, aura faga:, इति qa श्यन्तं भारं ते até समर्थाः ? श्त्याह--कौटिल्यपटवः कौरिष्यपाटवरद्ितो fe कदाचित्‌ परं aqua, नवा कदाचिद्‌ fasa इति,कोरिल्यपारवे तु दयं भवति परबच्चने वश्चनाच्छादनं fa | WATRATALHT— कूटषाडङगुखययोगेन च्छलाद्‌ विश्वस्तघातनात्‌ अथलोभाश्च राजानो वञ्चयन्तेऽखिलं जनम्‌ तिलकेसंद्रया मन्व; च्षामतादभेनेन च। भन्तःशून्या बहिःसारा वश्चयन्ते दविजा जनम्‌ २॥

चतुधेः प्रकाशः | OTS

कूटाः कूटतुलामानाश्क्रियाकारियोगतः

AV जनं मुग्धं मायाभाजो वशिग्‌जनाः जटामोर्डाशिखाभस्मवरूकनान्न्यादिधारयेः |

qr ae waa पाखण्डा इदि नास्तिकाः ४॥ अरल्लानिमीषहावत्तोलागतिविलोकनेः।

कामिनो रक्नयन्तोभिरवेश्याभिवेश्यते जगत्‌ ५॥ Wala कूटे; Tas: Hear कूटकपदि काम्‌ |

धनवन्तः WATT दुरोदरपराययेः

zum पितरः पुत्राः सोदयाः geet निजाः |

दशा भत्यास्तथान्येऽपि माययाऽन्योन्यवख्काः अथेतुग्धा TACT वन्दकारा Afar: |

अहनिशं जागरू कान्कलयन्ति प्रमादिनम्‌ कारववखान्त्यलाय्ैव खकमफलजोविनः।

माययाऽली कशपथेः कुर्वते साधुवश्चनम्‌ < व्यन्तरादिकुयोनिखा दृष्टा प्रायः प्रमादिनः

र्‌ राग्छलेवेह विधेर्वाधन्ते मानवान्‌ पशून्‌ १०

मरयादयो AAI SAY खापत्यभत्तकाः

बध्यन्ते धोवरेस्तेऽपि माययाऽऽनायफाणिभिः ११ 6 0 ©

नानोपायेमुंगयुभिवश्चनप्रवणजडाः

निवध्यन्ते विनाश्यन्ते प्राणिनः सखलचारिणः १२॥

नभ्रा भूरिभेदा वराका लावकादयः।

बध्यन्ते माययाऽन्युेः MARAT: १३२

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तदेवं सर्वलोकेऽपि परवञ्चकतापरा; |

सखस्य धमं सट्तिं नागयन्तः SAGA: १४ तधा,-

तिर्य ग्‌जातेः परं बौजमपवगेषुरागेला |

विश्वासदूमदावाग्निमाया हेवा मनीषिभिः १५५

afaara: पूवभके wear मायां तनोयसौम्‌

मायाशस्यमनुत्खाय Via प्राप जगत्पतिः ॥१६५१६॥

ददान मायाजयाय तव्मतिपक्षभूलमाजं वमुपदि शब्राह-- तटाञज॑वमहोषध्या जगदानन्देतुना | RATA मायां विषधरौमिव ॥१७॥

यतो माथा एवंविधा तत्‌ तस्माद्‌ मायां विषधरोभिव जयेत्‌। मायाविषधर्यः साघम्यमाष-जगदृद्रोदकरीं जगतो जक्रम- लोकस्य द्रोहोऽपकारस्तं करोतीत्येष॑शोला जगदृद्रोहकरो ताम्‌। Ga जयेत्‌ भाजवमद्ौषध्या भ्राजवमकौटिल्यं तदेव मह्ानुभावा मओोषधिर्मशोषघिस्तया उभयोः साधम्यमाड-जगदानन्दहेतुना जगतो जंगमलोकस्य यथायधं भरानन्दः कायारोग्यप्रभवः प्रीति- विशेषो वद्कत्वपरिष्ारे कषायजयाद्‌ मोचदरूपञ्च तस्य हेतुना कारथेन। 'अवान्तरन्चोकाः- wise सरलः पन्था सुक्तिपुर्याः प्रकोतितः। भाचारविस्तरः शेषो are भपि यदूचिरे॥१॥

चतु्षैः प्रकाशः | ote

सवं जिदं wuaAred ब्रह्मणः पदम्‌ एतावाङन्नानविषयः प्रलापः किं करिष्यति ५२॥ इति भवेयुराजवलुषो लोकेऽपि प्रौतिकारणम्‌ | कुटिलाद्‌दिअन्ते fe जन्तवः पत्रगादिव॥ ३॥ ufagfanamat भववासरूश्ामपि |

uafad सुक्तिसुखं adda महातनाम्‌ कौटिल्यश्ना क्तिष्टमनसां वच्चकात्मनाम्‌ | परव्यापादनिष्ठानां स्वप्रेऽपि स्यात्‌ कुतः सुखम्‌ ५॥ समग्रविद्यावेदुष्येऽधिगतासु कलासु च। धन्धानासुपजायेत बालकानामिवाजवम्‌ श्रज्ञानामपि बानानामाजेवं प्रोतिषेतबे

किं ga: सर्बशास््रा्धंपरिनिष्ठितचेतसाम्‌ ? खाभाविको fe ऋलुता afar कुटिलामता। ततः खाभाविकं aa fear कः कतमं खयेत्‌ छन्तये शुन्यवक्रो क्रिवश्चनाप्रवधे जने |

धन्याः केचिद्‌ निर्विकारा सुवशंप्रतिमाद््व॥<॥ ुतास्िपारप्राप्तोऽपि मौतमो ATT: |

रहो! Wet इ्वाखौषोदाजवाद्‌ भगवदधिरः॥ १०॥ अरगेषमपि दुष्कमं ऋच्वालो चनया किपेत्‌ | ्रुटिनलालोचनां कुर्वब्रल्पोयोऽपि विवधंयेत्‌ १११ काये वचसि fad « समन्तात्‌ कुटिलाकनाम्‌

मोत्तः, किन्तु ale: स्यात्‌ सवेव्राकुटिलासनाम्‌ ५१२॥

0 योगश्च | स्त

इति जिगदितमुग्रं कमं कौरिष्यभाजा- गृलुपरिखतिभाजां waa चरित्रम्‌ तदुभयमपि बुद्धया संस्पृशन्‌ सुक्धिकामो निरुपम खलुभावं संखयेच्छटशवुदिः ॥१२॥१७॥

ददानो लोभकषायखरूपमाह- भाकरः सवदोषाणां गुणय्सनराच्तसः | कन्दो व्यसनवक्लौनां लोभः सर्वाधवाधकः ॥१८॥ भाकरः खानि: सवदोषाणां प्राणातिपातादौनां 'लोहादौना- सिवः इति गम्यते ; गुणानां ज्नानादौनां प्राणिनाभिव यद्‌ ग्रसनं RAAT AA WAT CA राक्षसः; तथा, कन्दो मूलाधोऽवयवः, कासां ?, व्यस्नवन्ञोनां व्यसनानि दुःखानि तान्येव वन्ञयस्तासाम्‌, | लोभबतुधेकषायः , तस्य सखरूपसंग्रहमादह- सवीधवाधकः स्वेषा- aU इत्यथ धमीधेकाममोत्षलक्षणास्तेषां बाधकः प्रतिकूलः | लोभस्य सर्वदोषाकरत्वम्‌, गुणघातकत्वम्‌, व्यसनहेतुत्वं सर्व- पुरुषाधघातकलत्वं प्रसिष्ठमेव १८ लोभस्य दुजयतवं न्ञोकज्रयेणाह-- Vast: शतमेकं AES शतवानपि | avafuafaerd कोटि wasatsfa ॥१९॥ कोटौप्वरो नरेन्द्रत्वं नरेन्द्रक्रवरति ताम्‌ | amaal देवत्वं देवोऽपौन्दरत्वमिच्छति yr on

SAU: प्रकाशः | ७९

इन्द्रत्वैऽपि fe संप्राप्ते यदिष्छा निवतेते। मूले लघीयांस्तज्ञोमः सराव इव TIS २१॥ स्पष्टम्‌ | | अच्राम्तरन्नञोकाः-- feta सर्वपापानां मिष्यालभिव कमंणाम्‌ | राजयच्छव रोगाणां लोभः सर्वागसां शुकः १॥ श्रो! लोभस्य सास््राज्यमेकच्छव्रं ANA तरवोऽपि निधिं प्राप्य पादः प्रच्छादयन्ति यत्‌॥२॥ श्रपि द्रविशलोभेन ते हितिचतुरिन्दरियाः। स्वको यान्यधितिष्ठन्ति प्राग्निधानानि amar i २॥ सुजङ्गग्टडगो धाखमुख्याः पश्चेन्दरिया afi धनलोभेन लोयन्ते निघानस्यानभूभिषु ४॥ पिगाचसुहलप्रेतभरूलयत्तादयो घनम्‌| स्वकोयं परकोयं वाऽप्यधितिहन्ति लोभतः ५॥ भूषणोद्यानवाप्यादौ मूच्छिताच्रिदशा भ्रपि। Yat ata जायन्ते एृष्वौ कायादियोनिषु.+ प्राप्योपशान्तमोहइतवं क्रोघादि विजये सति लोभांशमात्रदोषेण पतन्ति यतयोऽपि fe ow रकामिषाभिलाषेण सारमेया दव हुतम्‌ सोदयं भपि युध्यन्ते धनसेणजिषठक्षया लोभाद्‌ ग्रामाद्विसोमानमुदिश्य गतसौद्दाः | ग्राम्या नियुक्षा राजानो वेरायन्ते परख्मरम्‌

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हासग्ोकदेषहषानसतोऽप्यामनि स्फ़टम्‌ | सखामिनोऽग्रे लोभवन्तो नाटयन्ति नटा vay eo आरभ्यते पूरयितं लोभगर्तो यथा यथा

तथा तथा alas ARTE विवधते a eeu

ufa नामेष पूर्येत पयोभिः पयसां पतिः

नतु ्ैलोक्धराज्येऽपि प्रापे लोभः प्रपूयते॥ १२॥ अनन्ता भोज नाच्छछाद्‌ विषयद्रव्यसं चयाः | भुक्ास्तथापि लोभस्य नांशोऽपि परिपूयते १३२॥ wear यदि तदा तपोभिरफलेरलम्‌ | लोभद्यक्षो चेत्‌ तदहि तपोभिरफलेरलम्‌ १४ सदित्वा शास््रसवसखं मयतदवधारितम्‌ | लोभस्यैकस्व हानाय प्रयतत महामतिः ॥१५।॥१८५२०५२१॥

लोभखरूपं निरूप्य तच्नयोपायसुपदिश्ति- `

लोभसागरसुदेलमतिवेलं महामतिः | संतोषसेतुबग्धेन प्रसरन्तं निवारयेत्‌ ॥२२॥

सोभ एवाप्राप्तपारत्वेन सागरस्तम्‌, ठष्ेलमुह वेलं तन्तद्त्‌- कलिकावस्वेन विदोच्छ्रायम्‌, अतिवेलं अशम्‌, एतश्च ' निवारयेत्‌? दूति क्रियाया विशेषणम्‌ ्रसरन्तम्‌' इति तोभसागरस्य विशे- घम्‌ महामतिमुनिः। निवारणकारणसुपदिशति-संतोष- सेतुबन्धेन संतोषो लोभप्रतिपक्षभूतो मनोधमः सख एव सेतुबन्धो

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1996

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